रहमतुल्आल्मीन रब फ़रमाते
हैं"-मीठे बच्चे, तुम मुझे याद करो और प्यार करो क्योंकि मैं ही तुम्हें हमेशा
खुशहाल बनाने आया हूँ”
सवाल:-
जिन बच्चों
से ग़फलत होती रहती है उनके मुंह से कौन से बोल अपने आप निकल जाते हैं?
जवाब:-
तक़दीर में
जो होगा वह मिल जायेगा। जन्नत में तो जायेंगे ही। रब्बा फ़रमाते हैं यह बोल
तजवीज़ नशीन बच्चों के नहीं। आला मर्तबा पाने की ही तजवीज़ करनी है। जब रब आये
हैं आला मर्तबा देने तो ग़फलत मत करो।
नग़मा:-
बचपन के दिन भुला न देना.......
आमीन।
मीठे-मीठे
रूहानी बच्चों ने नग़में की लाइन का मतलब समझा। अभी जीते जी तुम बेहद के बाप के
बने हो। तमाम चक्कर तो हद के बाप के बने हो। अभी सिर्फ़ तुम मोमिन बच्चे बेहद
बाप के बने हो। तुम जानते हो बेहद के बाप से हम बेहद का वर्सा ले रहे हैं। अगर
बाप को छोड़ा तो बेहद का वर्सा मिल नहीं सकेगा। भल तुम समझाते हो मगर थोड़े में
तो कोई राज़ी नहीं होता। इन्सान दौलत चाहते हैं। दौलत के सिवाए ख़ुशी नहीं हो
सकती। दौलत भी चाहिए, सुकून भी चाहिए, सेहतमंद जिस्म भी चाहिए। तुम बच्चे ही
जानते हो दुनिया में आज क्या है, कल क्या होना है। तबाही तो सामने खड़ी है। और
कोई की अक्ल में यह बातें नहीं हैं। अगर समझें भी तबाही खड़ी है, तो भी करना
क्या है, यह नहीं समझते। तुम बच्चे समझते हो कभी भी लड़ाई लग सकती है, थोड़ी
चिनगारी लगी तो भंभट मच जाने में देरी नहीं लगेगी। बच्चे जानते हैं यह पुरानी
दुनिया ख़त्म हुई कि हुई इसलिए अब जल्दी ही रब से वर्सा लेना है। रब को हमेशा
याद करते रहेंगे तो निहायत खुशहाल रहेंगे। जिस्मानी हवास में आने से रब को भूल
दु:ख उठाते हो। जितना रब को याद करेंगे उतना बेहद के रब से ख़ुशी उठायेंगे। यहाँ
तुम आये ही हो ऐसा आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम बनने। राजा-रानी का और
अवाम का नौकर चाकर बनना - इसमें निहायत फ़र्क है ना। अभी की तजवीज़ फिर
चक्कर-चक्कर के लिए क़ायम हो जाती है। पिछाड़ी में सबको दीदार ए जलवा होगा -
हमने कितनी तजवीज़ किया है? अब भी रब फ़रमाते हैं अपनी हालत को देखते रहो। मीठे
ते मीठा रब्बा जिससे जन्नत का वर्सा मिलता है, उनको हम कितना याद करते हैं।
तुम्हारा तमाम मदार ही याद पर है। जितना याद करेंगे उतनी ख़ुशी भी रहेगी।
समझेंगे अब नज़दीक आकर पहुँचे हैं। कोई थक भी जाते हैं, मालूम नहीं मंजिल कितनी
दूर है। पहुँचे तो मेहनत भी कामयाब हो। अभी जिस मंजिल पर तुम जा रहे हो, दुनिया
नहीं जानती है। दुनिया को यह भी मालूम नहीं कि अल्लाह ताला किसको कहा जाता है।
कहते भी हैं खुदा ताला। फिर कह देते ठिक्कर-भित्तर में है।
अभी तुम बच्चे जानते हो हम रब के बन चुके हैं। अब रब की ही सिरात पर चलना है।
भल विलायत में हो, वहाँ रहते भी सिर्फ़ रब को याद करना है। तुमको सिरात ए
मुस्तकीम मिलती है।रूह बुरी खस्लतों से आरास्ता से सातों फ़ज़ीलतों से लबरेज़
सिवाए याद के हो न सके। तुम कहते हो रब्बा हम आपसे पूरा वर्सा लेंगे। जैसे हमारे
मम्मा बाबा वर्सा लेते हैं, हम भी तजवीज़ कर उनकी गद्दी पर ज़रूर बैठेंगे। मम्मा
बाबा, राज-राजेश्वरी बनते हैं तो हम भी बनेंगे। इम्तहान तो सबके लिए एक ही है।
तुमको निहायत थोड़ा सिखाया जाता है सिर्फ़ रब को याद करो। इसको कहा जाता है
आसान इबादत ए सल्तनत कुव्वत। तुम समझते हो राब्ते से निहायत कुव्वत मिलती है।
समझते हैं हम कोई गुनाह करेंगे तो सज़ा निहायत खायेंगे। मर्तबा बद उन्वान हो
पड़ेंगा। याद में ही इबलीस मुश्किलात डालता है, गाया जाता है हक़ीक़ी हादी की
तौहीन कराने वाला ठिकाना न पाये। वह तो कहते हादी का तौहीन कराने वाला.....
ग़ैर मुजस्सम का किसको मालूम नहीं है। गाया भी जाता है अकीदत मन्दों को सिला
देने वाला है अल्लाह ताला। राहिब-वली वगैरह तमाम अकीदत मन्द हैं। अकीदत मन्द ही
गंगा नहाने जाते हैं। अकीदत मन्द अकीदत मन्दों को सिला थोड़े ही देंगे। अकीदत
मन्द अकीदत मन्दों को सिला दें तो फिर अल्लाह ताला को याद क्यों करें। यह है ही
अकीदत मन्दी की राह। तमाम अकीदत मन्द हैं। अकीदत मन्दों को सिला देने वाला है
अल्लाह ताला। ऐसे नहीं कि जास्ती अकीदत करने वाले थोड़ी अकीदत करने वाले को सिला
देंगे। नहीं। अकीदत माना अकीदत मन्दी। मख़लूक़, मख़लूक़ को कैसे वर्सा देंगे!
वर्सा खालिक से ही मिलता है। इस वक़्त तमाम हैं अकीदत मन्द। जब इल्म मिलता है
तो फिर अकीदत मन्दी खुद ब खुद छूट जाती है। इल्म जिंदाबाद हो जाता है। इल्म
बिगर ख़ैर निजात कैसे होगा। तमाम अपना हिसाब-किताब चुक्तू कर चले जाते हैं। तो
अब तुम बच्चे जानते हो तबाही सामने खड़ी है। उसके पहले तजवीज़ कर रब से पूरा
वर्सा लेना है।
तुम जानते हो हम पाकीज़ा दुनिया में जा रहे हैं, जो मोमिन बनेंगे वही ज़रिया
बनेंगे। जिब्राइल अलैहिस्सलाम मुंह निस्बनामा मोमिन बनने के बिगर तुम रब से
वर्सा ले नहीं सकते। रब बच्चों को तामीर करते ही हैं वर्सा देने के लिए।
रहमतुल्आल्मीन के तो हम हैं ही। खिल्क़त तामीर करते हैं बच्चों को वर्सा देने
लिए। जिस्म नशीन को ही वर्सा देंगे ना। रूहें तो ऊपर में रहती हैं। वहाँ तो
वर्से और उजूरा की बात ही नहीं। तुम अभी तजवीज़ कर उजूरा ले रहे हो, जो दुनिया
को मालूम नहीं है। अब वक़्त नज़दीक आता जा रहा है। बॉम्ब्स कोई रखने के लिए नहीं
हैं। तैयारियाँ निहायत हो रही हैं। अभी रब हमको फरमान करते हैं कि मुझे याद करो।
नहीं तो पिछाड़ी में निहायत रोना पड़ेगा। सल्तनत तालीम के इम्तहान में कोई
नापास होते हैं तो जाकर डूब मरते हैं गुस्से में। यहाँ गुस्से की तो बात नहीं।
पिछाड़ी में तुमको दीदार ए जलवा निहायत होंगे। क्या-क्या हम बनेंगे वह भी मालूम
पड़ जायेगा। रब का काम है तजवीज़ कराना। बच्चे कहते हैं रब्बा हम आमाल करते हुए
याद करना भूल जाते हैं, कोई फिर कहते हैं याद करने की फुर्सत नहीं मिलती है, तो
रब्बा कहेंगे अच्छा वक्त निकालकर याद में बैठो। रब को याद करो। आपस में जब मिलते
हो तो भी यही कोशिश करो, हम रब्बा को याद करें। मिलकर बैठने से तुम याद अच्छा
करेंगे, मदद मिलेगी। असल बात है रब को याद करना। कोई विलायत जाते हैं, वहाँ भी
सिर्फ़ एक बात याद रखो। रब की याद से ही तुम स्याह रास्त से ख़ैर रास्त बनेंगे।
रब फ़रमाते हैं सिर्फ़ एक बात याद करो - रब को याद करो। कुव्वत ए इबादत से तमाम
गुनाह ख़ाक़ हो जायेंगे। रब फ़रमाते हैं दिल से मुझे याद करो। मुझे याद करो तो
दुनिया का मालिक बनेंगे। असल बात हो जाती है याद की। कहाँ भी जाने की बात नहीं।
घर में रहो, सिर्फ़ रब को याद करो। पाकीज़ा नहीं बनेंगे तो याद नहीं कर सकेंगे।
ऐसे थोड़े ही है तमाम आकर क्लास में पढ़ेंगे। मंत्र लिया फिर भल कहाँ भी चले
जाओ। सातों फ़ज़ीलतों से लबरेज़ बनने का रास्ता तो रब ने बतलाया ही है। यूँ तो
सेन्टर पर आने से नई-नई प्वाइंट्स सुनते रहेंगे। अगर किसी सबब से नहीं आ सकते
हैं, बरसात पड़ती है, करफ्यू लगता है, कोई बाहर नहीं निकल सकते फिर क्या करेंगे?
रब फ़रमाते हैं कोई हर्जा नहीं है। ऐसे नहीं है कि शिव के मन्दिर में लोटी
चढ़ानी ही पड़ेगी। कहाँ भी रहते तुम याद में रहो। चलते फिरते याद करो, औरों को
भी यही कहो कि रब को याद करने से गुनाह ख़ाक होंगे और हूरैन बन जायेंगे।
अल्फ़ाज़ ही दो हैं - रब खालिक से ही वर्सा लेना है। खालिक एक ही है। वह कितना
आसान रास्ता बताते हैं। रब को याद करने का मंत्र मिल गया। रब फ़रमाते हैं यह
बचपन भूल नहीं जाना। आज हंसते हो कल रोना पड़ेगा, अगर रब को भुलाया तो। रब से
वर्सा पूरा लेना चाहिए। ऐसे निहायत हैं, कहते हैं जन्नत में तो जायेंगे ना, जो
तक़दीर में होगा.. उनको कोई तजवीज़ नहीं कहेंगे। इन्सान तजवीज़ करते ही हैं आला
मर्तबा पाने लिए। अब जबकि रब से आला मर्तबा मिलता है तो ग़फलत क्यों करनी चाहिए।
स्कूल में जो नहीं पढ़ेंगे तो पढ़े के आगे भरी ढोनी पड़ेगी। रब को पूरा याद नहीं
करेंगे तो अवाम में नौकर-चाकर जाकर बनेंगे, इसमें ख़ुश थोड़े ही होना चाहिए।
बच्चे सामने रिफ्रेश होकर जाते हैं। कई बांधेलियाँ हैं, हर्जा नहीं, घर बैठे रब
को याद करती रहो। कितना समझाते हैं मौत सामने खड़ा है, अचानक ही लड़ाई शुरू हो
जायेगी। देखने में आता है लड़ाई जैसे कि छिड़ी कि छिड़ी। रेडियों से भी तमाम
मालूम पड़ जाता है। कहते हैं थोड़ा भी गड़बड़ किया तो हम ऐसा करेंगे। पहले से
ही कह देते हैं। बॉम्ब्स की मगरूरी निहायत है। रब भी फ़रमाते हैं बच्चे अजुन
कुव्वत ए इबादत में तो होशियार हुए नहीं हैं। लड़ाई लग जाए, ऐसे ड्रामा के
मुताबिक होगा ही नहीं। बच्चों ने पूरा वर्सा ही नहीं लिया है। अभी पूरी दारूल
हुकूमत क़ायम हुई नहीं है। थोड़ा टाइम चाहिए। तजवीज़ कराते रहते हैं। मालूम नहीं
किस वक्त भी कुछ हो जाये, एरोप्लेन, ट्रेन गिर पड़ती। मौत कितनी आसान खड़ी है।
धरती हिलती रहती है। सबसे जास्ती काम करना है अर्थक्वेक को। यह हिले तब तो तमाम
मकान वगैरह गिरें। मौत होने के पहले रब से पूरा वर्सा लेना है इसलिए निहायत
प्यार से रब को याद करना है। रब्बा आपके बिगर हमारा दूसरा कोई नहीं। सिर्फ़ रब
को याद करते रहो। कितना आसान तरीकें जैसे छोटे-छोटे बच्चों को बैठ समझाते हैं।
और कोई तकलीफ़ नहीं देते हैं, सिर्फ़ याद करो और ज़िना की आग पर बैठ जो तुम जल
मरे हो अब इल्म की आग पर बैठ पाकीज़ा बनो। तुमसे पूछते हैं आपका मकसद क्या है?
बोलो, रहमतुल्आल्मीन जो सबका रब है वह फ़रमाते हैं दिल से मुझे याद करो तो
तुम्हारे गुनाह ख़ाक होंगे और तुम स्याह रास्त से ख़ैर रास्त बन जायेंगे।
इख्तिलाफ़ी फ़ितने के दौर में तमाम स्याह रास्त हैं। तमाम का ख़ैर निजात दिलाने
वाला एक रब है।
अब रब फ़रमाते हैं सिर्फ़ मुझे याद करो तो कट उतर जायेगी। यह इतना पैग़ाम तो दे
सकते हो ना। खुद याद करेंगे तब दूसरे को याद करा सकेंगे। खुद याद करते होंगे तो
दूसरे को शौक़ से कहेंगे, नहीं तो दिल से नहीं निकलेगा। रब समझाते हैं कहाँ भी
हो जितना हो सके, सिर्फ़ याद करो। जो मिले उनको यही तालीम दो - मौत सामने खड़ा
है। रब फ़रमाते हैं तुम तमाम स्याह रास्त नापाक बन पड़े हो। अब मुझे याद करो,
पाक बनो। रूह ही नापाक बनी है। सुनहरे दौर में होती है पाकीज़ा रूह। रब फ़रमाते
हैं याद से ही रूह पाक बनेगी, और कोई तरीक़ा नहीं है। यह पैगाम सबको देते जाओ
तो भी निहायतों का फलाह करेंगे और कोई तकलीफ़ नहीं देते। तमाम रूहों को पाकीज़ा
बनाने वाला नापाक से पाक बनाने वाला रब ही है। सबसे आला से आला बनाने वाला है
रब। जो क़ाबिल ए एहतराम थे वही फिर नाकाबिल बने हैं। शैतानी सल्तनत में हम
नाकाबिल बने हैं, इलाही सल्तनत में क़ाबिल ए एहतराम थे। अब शैतानी सल्तनत का
खात्मा है, हम नाकाबिल से फिर काबिल ए एहतराम बनते हैं - रब को याद करने से। औरों
को भी रास्ता बताना है, बुढ़ियों को भी खिदमत करनी चाहिए। दोस्त-रिश्तेदारों को
भी पैग़ाम दो। सतसंग, मन्दिर वगैरह भी कई तरह के हैं। तुम्हारा तो है एक प्रकार।
सिर्फ़ रब का तारूफ देना है। रहमतुल्आल्मीन कहते हैं दिव से मुझे याद करो तो
तुम जन्नत का मालिक बनेंगे। ग़ैर मुजस्सम रहमतुल्आल्मीन तमाम का ख़ैर निजात
दिलाने वाला रब्बा रूहों को फ़रमाते हैं मुझे याद करो तो तुम बुरी खस्लतों से
आरास्ता से सातों फ़ज़ीलतों से लबरेज़ बन जायेंगे। यह तो आसान है ना समझाना।
बुढ़िया भी खिदमत कर सकती हैं। असल बात ही यह है। शादी मुरादी पर कहाँ भी जाओ,
कान में यह बात सुनाओ। गीता का भगवान कहते हैं मुझे याद करो। इस बात को तमाम
पसन्द करेंगे। जास्ती बोलने की दरकार ही नहीं है। सिर्फ़ रब का पैगाम देना है
कि रब फ़रमाते हैं मुझे याद करो। अच्छा, ऐसे समझो अल्लाह ताला इल्हाम करते हैं।
सपने में दीदार ए जलवा होता हैं। आवाज़ सुनने में आता है कि रब फ़रमाते हैं मुझे
याद करो तो तुम स्याह रास्त से ख़ैर रास्त बन जायेंगे। तुम खुद भी सिर्फ़ यह
ग़ौरतलब करते रहो तो बेड़ा पार हो जायेगा। हम प्रैक्टिकल में बेहद के रब के बने
हैं और रब से 21 विलादतों का वर्सा ले रहे हैं तो ख़ुशी रहनी चाहिए। रब को भूलने
से ही तकलीफ़ होती है। रब कितना आसानी से बतलाते हैं अपने को रूह समझ रब को याद
करो तो रूह सातों फ़ज़ीलतों से लबरेज़ बन जायेगी। तमाम समझेंगे इन्हों को रास्ता
तो बरोबर राइट मिला है। यह रास्ता कभी कोई बता न सके। अगर वह कहें
रहमतुल्आल्मीन को याद करो तो फिर राहिबों वगैरह के पास कौन जायेंगे। वक़्त ऐसा
होगा जो तुम घर से बाहर भी नहीं निकल सकेंगे। रब को याद करते-करते जिस्म छोड़
देंगे। आखिरी वक़्त जो रहमतुल्आल्मीन को याद करे...... सो फिर अफ़ज़ल हज़रात
वल-वल उतरे, आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम की डिनायस्टी में आयेंगे ना।
घड़ी-घड़ी बादशाहत मर्तबा पायेंगे। बस सिर्फ़ रब को याद करो और प्यार करो। याद
बिगर प्यार कैसे करेंगे। ख़ुशी मिलती है तब प्यार किया जाता है। दु:ख देने वाले
को प्यार नहीं किया जाता। रब फ़रमाते हैं मैं तुमको जन्नत का मालिक बनाता हूँ
इस-लिए मुझे प्यार करो। रब की सलाह पर चलना चाहिए ना। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों के वास्ते मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और
गुडमॉर्निंग। रूहानी रब की रूहानी बच्चों को सलाम।
तरीक़त के वास्ते अहम
निकात:-
1) ख़ुशी में रहने के लिए याद की मेहनत करनी है। याद की कुव्वत रूह को सातों
फ़ज़ीलतों से लबरेज़ बनाने वाला है। प्यार से एक रब को याद करना है।
2) आल मर्तबा पाने के लिए तालीम पर पूरा-पूरा तवज्जों देना है। ऐसे नहीं जो
तक़दीर में होगा, ग़फलत छोड़ पूरा वर्से का हक़दार बनना है।
बरक़ात:-
सोचने और
करने के फ़र्क को मिटाने वाले खुद की तब्दीली सो जहान तब्दील नशीन बनो।
कोई भी आदत, रवैया, बोल
और राब्ता जो हक़ीक़ी तौर नहीं बेकार है, उस बेकार को तब्दील करने की मशीनरी
फास्ट करो। सोचा और किया.. तब दुनिया तब्दीली की मशीनरी तेज़ होगी। अभी क़याम
के ज़रिया बनी हुई रूहों के सोचने और करने में फर्क दिखाई देता है, इस फर्क को
मिटाओ। तब खुद तब्दीली नशीन सो जहान तब्दील नशीन बन सकेंगे।
स्लोगन:-
सबसे लक्की वह है
जिसने अपने ज़िन्दगी में एहसास की गिफ्ट दस्तयाब की है।
आमीन