“मीठे बच्चे
यह मिलन का
दौर है चढ़ते फ़न का दौर, इसमें तमाम का भला होता है इसलिए कहा जाता चढ़ती कला
तेरे भाने सर्व का भला”
सवाल:-
रब्बा तमाम
मोमिन बच्चों को बहुत-बहुत मुबारकबाद देते हैं - क्यों?
जवाब:-
क्योंकि
रब्बा फ़रमाते तुम मेरे बच्चे इन्सान से हूरैन बनते हो। तुम अभी शैतान की जंजीरों
से छूटते हो, तुम जन्नत की बादशाहत पाते हो, पास विद् ऑनर बनते हो, मैं नहीं
इसलिए रब्बा तुम्हें बहुत-बहुत मुबारकबाद देते हैं। तुम रूहें पतंग हो, तुम्हारी
डोर मेरे हाथ में हैं। मैं तुम्हें जन्नत का मालिक बनाता हूँ।
नग़मा:-
आखिर वह
दिन आया आज........
आमीन।
यह कहानी ए
हयात कौन सुना रहे हैं? कहानी ए हयात कहो, हक़ीक़ी अफ़ज़ल हज़रात की कहानी कहो
या तीजरी की कहानी कहो - तीनों अहम हैं। अभी तुम किसके सामने बैठे हो और कौन
तुमको सुना रहे हैं? इज्तेमाअ तो इसने भी निहायत किये हैं। वहाँ तो तमाम इन्सान
देखने में आते हैं। कहेंगे फलाना राहिब कहानी सुनाते हैं। रहमतुल्आल्मीन सुनाते
हैं। हिन्दुस्तान में तो बेइंतहा सतसंग हैं। गली-गली में सतसंग हैं। मातायें भी
क़िताब उठाए बैठ सतसंग करती हैं। तो वहाँ इन्सान को देखना पड़ता है मगर यहाँ तो
वन्डरफुल बात है। तुम्हारी अक्ल में कौन है? पाक परवरदिगार। तुम कहते हो अभी
रब्बा सामने आया हुआ है। ग़ैर मुजस्सम रब्बा हमको पढ़ाते हैं। इन्सान कहेंगे वह
अल्लाह ताला तो नाम-रूप से न्यारा है। रब समझाते हैं कि नाम-रूप से न्यारी कोई
चीज़ है नहीं। तुम बच्चे जानते हो यहाँ कोई भी जिस्मानी इन्सान नहीं पढ़ाते हैं
और कहाँ भी जाओ, तमाम वर्ल्ड में जिस्मानी ही पढ़ाते हैं। यहाँ तो सुप्रीम रब
है, जिसको ग़ैर मुजस्सम गॉड फादर कहा जाता है, वह ग़ैर मुजस्सम जिस्मानी में
बैठ पढ़ाते हैं। यह बिल्कुल नई बात हुई। विलादत बाई विलादत तुम सुनते आये हो,
यह फलाना पण्डित है, हादी है। ढेर के ढेर नाम हैं। हिन्दुस्तान तो निहायत बड़ा
है। जो भी कुछ सिखाते हैं, समझाते हैं वह इन्सान ही हैं। इन्सान ही तालिब इल्म
बने हुए हैं। कई तरह के इन्सान हैं। फलाना सुनाते हैं। हमेशा जिस्म का नाम लिया
जाता है। अकीदत मन्दी की राह में ग़ैर मुजस्सम को बुलाते हैं कि ए नापाक से पाक
बनाने वाले आओ। वही आकर बच्चों को समझाते हैं। तुम बच्चे जानते हो कि
चक्कर-चक्कर तमाम दुनिया जो नापाक बन जाती है, उनको पाकीज़ा करने वाला एक ही
ग़ैर मुजस्सम रब है। तुम यहाँ जो बैठे हो, तुम्हारे में भी कोई कच्चे हैं, कोई
पक्के हैं क्योंकि आधा चक्कर तुम जिस्मानी हवासी बने हो। अब रूहानी हवासी इस
विलादत में बनना है। तुम्हारे जिस्म में रहने वाली जो रूह है उनको पाक
परवरदिगार बैठ समझाते हैं।रूह ही आदत ले जाती है। रूह कहती है आरगन्स के ज़रिए
कि मैं फलाना हूँ। मगर रूहानी हवासी तो कोई है नहीं। रब समझाते हैं जो इस
हिन्दुस्तान में खानदान ए आफ्ताबी - खानदान ए महताबी थे वही इस वक़्त आकर मोमिन
बनेंगे फिर हूरैन बनेंगे। इन्सान जिस्मानी हवासी रहने के आदती हैं, रूहानी हवासी
रहना भूल जाते हैं इसलिए रब घड़ी-घड़ी फ़रमाते हैं रूहानी हवासी बनो। रूह ही
अलग-अलग चोला लेकर पार्ट बजाती है। यह हैं उनके आरगन्स। अब रब बच्चों को फ़रमाते
हैं दिल से मुझे याद करो। बाक़ी सिर्फ़ गीता पढ़ने से कोई क़िस्मत-सल्तनत थोड़े
ही मिल सकती है। तुमको इस वक़्त तीनों ज़माने को जानने वाला बनाया जाता है।
रात-दिन का फ़र्क हो गया है। रब समझाते हैं मैं तुमको हक़ीक़ी इबादत सिखाता
हूँ। आदम अलैहिस्सलाम तो सुनहरे दौर का प्रिन्स है। जो खानदान ए आफ़ताबी हूरैन
थे उनमें कोई इल्म नहीं। इल्म तो आमतौर पर ग़ायब हो जायेगा। इल्म है ही ख़ैर
निजात के लिए। सुनहरे दौर में बुरी हालत में कोई होता ही नहीं। वह है ही जन्नत।
अभी है इख्तिलाफ़ी फ़ितने का दौर। हिन्दुस्तान में पहले खानदान ए आफ़ताबी 8
विलादत फिर खानदान ए महताबी 12 विलादत। यह एक विलादत अभी तुम्हारा सबसे अच्छी
विलादत है। तुम हो बाप ए अवाम जिब्राइल अलैहिस्सलाम मुंह निस्बनामा। यह है
अज़ीम तरीन दीन। हूरैन मज़हब अज़ीम तरीन मज़हब नहीं कहेंगे। मोमिन दीन सबसे आला
है। हूरैन तो उजूरा पाते हैं।
आजकल निहायत सोशल वर्कर
हैं। तुम्हारी है रूहानी खिदमत। वह है जिस्मानी खिदमत करना। रूहानी खिदमत एक ही
बार होती है। आगे यह सोशल वर्कर वगैरह नहीं थे। राजा-रानी सल्तनत करते थे।
सुनहरे दौर में हूर-हूरैन थे। तुम ही काबिल ए एहतराम थे फिर नाकाबिल बने। आदम
अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम द्वापर में जब उल्टी राह में जाते हैं तो
मन्दिर बनाते हैं। पहले-पहले रहमतुल्आल्मीन का बनाते हैं। वह है तमाम का ख़ैर
निजात दिलाने वाला तो उनकी ज़रूर बुतपरस्ती होनी चाहिए। रहमतुल्आल्मीन ने ही
रूहों को ग़ैर ख़बासती बनाया था ना। फिर होती है हूरैन की बुतपरस्ती। तुम ही
क़ाबिल ए एहतराम थे फिर नाकाबिल बने। रब्बा ने समझाया है - पाक परवरदिगार को
याद करते रहो। सीढ़ी उतरते-उतरते एकदम पट पर आकर पड़े हो। अब तुम्हारा चढता फ़न
है। कहते हैं चढ़ती कला तेरे भाने तमाम का भला। तमाम दुनिया के इन्सान का अब
चढ़ता फ़न करता हूँ। नापाक से पाक बनाने वाले आकर सबको पाकीज़ा बनाते हैं। जब
सुनहरे दौर में था तो चढ़ता फ़न था और बाक़ी तमाम रूहें दारूल निजात में थी।
रब बैठ समझाते हैं
मीठे-मीठे बच्चों मेरी विलादत हिन्दुस्तान में ही होती है। रहमतुल्आल्मीन आये
थे, गाया हुआ है। अब फिर आया हुआ है। इसको कहा जाता है राजस्व अश्वमेध अविनाशी
रूद्र ज्ञान यज्ञ। सल्तनत ए नफ़्स पाने के लिए यज्ञ तामीर किया हुआ है।
मुश्किलात भी पड़ी थी, अब भी पड़ रही हैं। माताओं पर ज़ुल्म होते हैं। कहते हैं
रब्बा हमको यह नंगन करते हैं। हमको यह छोड़ते नहीं हैं। रब्बा हमारी हिफ़ाज़त
करो। दिखाते हैं द्रोपदी की हिफ़ाज़त हुई। अभी तुम 21 विलादतों के लिए बेहद के
रब से वर्सा लेने आये हो। याद के सफ़र में रहकर अपने को पाकीज़ा बनाते हो। फिर
ख़बासत में गये तो खलास, एकदम गिर पड़ेंगे इसलिए रब फ़रमाते हैं पाक़ीज़ा ज़रूर
रहना है। जो चक्कर पहले बने थे वही पाकीज़गी का अहद करेंगे फिर कोई पाकीज़ा रह
सकते हैं, कोई नहीं रह सकते हैं। अहम बात है याद की। याद करेंगे, पाकीज़ा रहेंगे
और दीदार ए नफ़्स चक्कर फिराते रहेंगे तो फिर आला मर्तबा पायेंगे। ग़ैर ख़बासती
के दो रूप सल्तनत करते हैं ना। मगर विष्णु को जो शंख चक्र दे दिया है वह देवताओं
को नहीं था। लक्ष्मी-नारायण को भी नहीं था। विष्णु तो सूक्ष्मवतन में रहते हैं,
उनको चक्र के नॉलेज की दरकार नहीं है। वहाँ मूवी चलती है। अभी तुम जानते हो कि
हम दारूल सुकून के रहने वाले हैं। वह है ग़ैर मुजस्सम दुनिया। अब रूह क्या चीज़
है, वह भी इन्सान नहीं जानते। कह देते रूह सो रब। रूह के लिए कहते हैं एक चमकता
हुआ सितारा है, जो पेशानी के दरम्यान रहता है। इन आंखों से देख न सकें। भल कोई
कितना भी कोशिश करें, शीशे वगैरह में बन्द करके रखें कि देखें कि रूह निकलती
कैसे है? कोशिश करते हैं मगर किसको भी मालूम नहीं पड़ता है - रूह क्या चीज़ है,
कैसे निकलती है? बाक़ी इतना कहते हैं रूह स्टार मिसल है। इलाही नज़र बिगर उसको
देखा नहीं जाता। अकीदत मन्दी की राह में बहुतों को दीदार ए जलवा होता है। लिखा
हुआ है अर्जुन को दीदार ए जलवा हुआ अखण्ड ज्योति है। अर्जुन ने कहा हम बर्दाश्त
नहीं कर सकते। रब समझाते हैं इतना तेजोमय वगैरह कुछ है नहीं। जैसे रूह आकर
जिस्म में दाखिल करती है, मालूम थोड़े ही पड़ता है। अब तुम भी जानते हो कि रब्बा
कैसे दाखिल कर बोलते हैं।रूह आकर बोलती है। यह भी ड्रामा में तमाम नूँध है, इसमें
कोई की ताक़त की बात नहीं। रूह कोई जिस्म छोड़ जाती नहीं है। यह दीदार ए जलवा
की बात है। वन्डरफुल बात है ना। रब फ़रमाते हैं मैं भी सादा जिस्म में आता हूँ।
रूह को बुलाते हैं ना। आगे रूहों को बुलाकर उनसे पूछते भी थे। अभी तो स्याह
रास्त बन गये हैं ना। रब आते ही इसलिए हैं कि हम जाकर नापाकों को पाक बनायें।
कहते भी हैं 84 विलादत। तो समझना चाहिए कि जो पहले आये हैं, उन्होंने ही ज़रूर
84 विलादत लिए होंगे। वह तो लाखों साल कह देते हैं। अब रब समझाते हैं तुमको
जन्नत में भेजा था। तुमने जाकर सल्तनत की थी। तुम हिन्दुस्तान रिहाईश नशीन को
जन्नत में भेजा था। हक़ीक़ी इबादत सिखायी थी मिलन पर। रब फ़रमाते हैं मैं चक्कर
के मिलन के दौर पर आता हूँ। गीता में फिर युगे-युगे अल्फ़ाज़ लिख दिया है।
अभी तुम जानते हो हम सीढ़ी
कैसे उतरते हैं फिर चढ़ते हैं। चढ़ता फ़न फिर उतरता फ़न। अभी यह मिलन का दौर है
तमाम का चढ़ते फ़न का दौर। तमाम चढ़ जाते हैं। तमाम ऊपर में जायेंगे फिर तुम
आयेंगे जन्नत में पार्ट बजाने। सुनहरे दौर में दूसरा कोई दीन नहीं था। उनको कहा
जाता है वाइसलेस वर्ल्ड। फिर हूर हूरैन उल्टी राह में जाकर तमाम विशश होने लगते
हैं, जैसा राजा-रानी वैसी अवाम। रब समझाते हैं ए हिन्दुस्तान रिहाईश नशीन तुम
वाइसलेस वर्ल्ड में थे। अब है विशश वर्ल्ड। कई मज़हब हैं बाक़ी एक हूर हूरैन
दीन नहीं है। ज़रूर जब न हो तब तो फिर क़ायम हो। रब फ़रमाते हैं मैं जिब्राइल
अलैहिस्सलाम के ज़रिए आकर अल्लाह अव्वल हूर-हूरैन दीन का क़याम करता हूँ। यहाँ
ही करेगा ना। मल्क़ूतवतन में तो नहीं करेंगे। लिखा हुआ है जिब्राइल अलैहिस्सलाम
के ज़रिए अल्लाह अव्वल हूर-हूरैन दीन की खिल्क़त तामीर करते हैं। तुमको इस
वक़्त पाकीज़ा नहीं कहेंगे। पाकीज़ा बन रहे हैं। टाइम तो लगता है ना। नापाक से
पाक कैसे बनें, यह कोई भी सहीफों में नहीं है। असल में अज़मत तो एक रब की है।
उस रब को भूलने के सबब ही आरफन बन पड़े हैं। लड़ते रहते हैं। फिर कहते हैं सब
मिलकर एक कैसे हों। भाई-भाई हैं ना। बाबा तो तजुर्बेकार है। अकीदत भी इसने पूरी
की है। सबसे ज़्यादा गुरू किये हुए हैं। अब रब फ़रमाते हैं इन सबको छोड़ो। अब
मैं तुमको मिला हुआ हूँ। तमाम का ख़ैर निजात दिलाने वाला एक सत् श्री अकाल कहते
हैं ना। मतलब नहीं समझते। पढ़ते तो निहायत रहते हैं। रब समझाते हैं अभी तमाम
नापाक हैं फिर पाकीज़ा दुनिया बनेगी। हिन्दुस्तान ही ला फ़ानी है। यह कोई को
मालूम नहीं है। हिन्दुस्तान का कभी खात्मा नहीं होता और न कभी प्रलय होती है।
यह जो दिखाते हैं सागर में पीपल के पत्ते पर श्रीकृष्ण आये - अब पीपल के पत्ते
पर तो बच्चा आ न सके। रब समझाते हैं तुम हमल से विलादत लेंगे, बड़े आराम से। वहाँ
हमल महल कहा जाता है। यहाँ है हमल जेल। जन्नत में है हमल महल। रूह को पहले से
ही दीदार ए जलवा होता है। यह जिस्म छोड़ दूसरा लेना है। वहाँ रूहानी हवासी रहते
हैं। इन्सान तो न खालिक को, न मख़लूक़ के आग़ाज़-दरम्यान-आख़िर को जानते हैं।
अभी तुम जानते हो रब है दरिया ए इल्म। तुम मास्टर समन्दर हो। तुम (मातायें) हो
नदियां और यह गोप हैं ज्ञान मानसरोवर। यह इल्म नदियां हैं। तुम हो सरोवर।
कुनबाई राह वाले चाहिए ना। तुम्हारा पाकीज़ा घरेलू आश्रम था। अभी नापाक है। रब
फ़रमाते हैं यह हमेशा याद रखो कि हम रूह हैं। एक रब को याद करना है। रब्बा ने
फरमान दिया है कोई भी जिस्म नशीन को याद न करो। इन आंखों से जो कुछ देखते हो वह
तमाम खत्म हो जाना है इसलिए रब फ़रमाते हैं दिल से मुझे याद करो, फ़रिश्ता बनो।
इस कब्रिस्तान को भूलते जाओ। इबलीस के तूफ़ान तो निहायत आयेंगे, इनसे डरना नहीं
है। निहायत तूफ़ान आयेंगे मगर आज़ाओं से गुनाह नहीं करना है। तूफ़ान आते हैं तब
जब तुम रब को भूल जाते हो। यह याद का सफ़र एक ही बार होता है। वह है आलम ए मौत
की सफरें, आलम ए हयात का सफ़र यह है। तो अब रब फ़रमाते हैं कोई भी जिस्म नशीन
को याद न करो।
बच्चे, शिव जयन्ती की
कितनी तारें भेजते हैं। रब फ़रमाते हैं तुम्ही थे तुम्हे ही बनना है। तुम बच्चों
को भी रब मुबारकबाद देते हैं। असल में तुमको बधाईयाँ हो क्योंकि इन्सान से
हूरैन तुम बनते हो। फिर जो पास विद् ऑनर होगा उनको जास्ती मार्क्स और अच्छा
नम्बर मिलेगा। रब तुमको मुबारकबाद देते हैं कि अब तुम शैतान की जंजीरों से छूटते
हो। तमाम रूहें पतंगें हैं। सबकी रस्सी रब के हाथ में है। वह सबको ले जायेंगे।
तमाम के ख़ैर निजात दिलाने वाले हैं। मगर तुम जन्नत की बादशाहत पाने के लिए
तजवीज़ कर रहे हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों
के वास्ते मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी रब की रूहानी
बच्चों को सलाम।
तरीक़त के वास्ते अहम
निकात:-
1) पास विद् ऑनर होने के लिए एक रब को याद करना है, किसी भी जिस्म नशीन को नहीं।
इन आंखों से जो दिखाई देता है, उसे देखते भी नहीं देखना है।
2) हम आलम ए हयात के सफ़र पर जा रहे हैं इसलिए आलम ए मौत का कुछ भी याद न रहे,
इन आज़ाओं से कोई भी गुनाह न हो, यह तवज्जों रखना है।
बरक़ात:-
हवास ए
बालातर ख़ुशी खुशहाल सूरत ए हाल के ज़रिए कई रूहों का बुलावा करने वाले जहान
फ़लाह नशीन बनो।
जितना लास्ट मुकम्मल नशीनी
स्टेज नज़दीक आती जायेगी उतना आवाज़ से परे सुकून याफ़्ता की सूरत ए हाल ज़्यादा
प्यारी लगेगी - इस सूरत ए हाल में हमेशा हवास ए बालातर का एहसास होगा और इसी
हवास ए बालातर खुशहाल सूरत ए हाल के ज़रिए कई रूहों का आसान बुलावा कर सकेंगे।
यह पाॅवरफुल सूरत ए हाल ही दुनिया फ़लाह नशीन सूरत ए हाल है। इस सूरत ए हाल के
ज़रिए कितनी भी दूर रहने वाली रूह को पैग़ाम पहुंचा सकते हो।
स्लोगन:-
हर एक की खासियत
को याददाश्त में रख फेथफुल बनो तो तनज़ीम एकमत हो जायेगा।
आमीन