“मीठे बच्चे
तुम रब के
पास आये हो अपनी सोई हुई तक़दीर जगाने, तक़दीर जगना माना दुनिया का मालिक बनना”
सवाल:-
कौन सी
खुराक़ तुम बच्चों को रब जैसा अक्लमंद बना देती है?
जवाब:-
यह तालीम
है तुम बच्चों के अक्ल की खुराक़। जो रोज़ तालीम हासिल करते हैं यानि कि इस
खुराक़ को लेते हैं उनकी अक्ल पारस बन जाती है। मालिक ए पारस रब जो अक्लमंदों
की अक्ल है वह तुम्हें अपने लिए पारस अक्ल बनाते हैं।
नग़मा:-
तकदीर
जगाकर आई हूँ........
आमीन।
नग़में की
लाइन सुनकर के भी मीठे-मीठे बच्चों के रोमांच खड़े हो जाने चाहिए। है तो कॉमन
नग़मा मगर इनका खुलासा और कोई नहीं जानते। रब ही आकर नग़मों, सहीफें वगैरह का
मतलब समझाते हैं। मीठे-मीठे बच्चे यह भी जानते हैं कि इख्तिलाफ़ी फ़ितने के दौर
में सबकी तक़दीर सोई हुई है। सुनहरे दौर में सबकी तक़दीर जगी हुई है। सोई हुई
तक़दीर को जगाने वाला और सिरात ए मुस्तकीम देने वाला और तदबीर बनाने वाला एक ही
रब है। वही बैठ बच्चों की तक़दीर जगाते हैं। जैसे बच्चे पैदा होते हैं और तकदीर
जग जाती है। बच्चा पैदा हुआ और उनको यह मालूम पड़ जाता है कि हम वारिस हैं।
हूबहू यह फिर बेहद की बात है। बच्चे जानते हैं चक्कर-चक्कर हमारी तक़दीर जगती
है फिर सो जाती है। पाकीज़ा बनते हैं तो तक़दीर जगती है। पाकीज़ा घरेलू आश्रम
कहा जाता है। आश्रम अल्फ़ाज़ पाकीज़ा होता है। पाकीज़ा घरेलू आश्रम, उनके
अगेन्स्ट फिर है नापाक ख़बासती घरेलू राब्ता। आश्रम नहीं कहेंगे। घरेलू राब्ता
तो सबका है ही। जानवरों में भी है। बच्चे तो तमाम पैदा करते ही हैं। जानवरों को
भी कहेंगे घरेलू राब्ते में हैं। अब बच्चे जानते हैं - हम जन्नत में पाकीज़ा
घरेलू आश्रम में थे, हूर-हूरैन थे। उन्हों की अज़मत भी गाते हैं तमाम फ़ज़ीलतों
से लबरेज़, 16 फ़नों से आरास्ता...... तुम खुद भी गाते थे। अब समझते हो हम
इन्सान से हूरैन फिर से बन रहे हैं। गायन भी है इन्सान से हूरैन.....। जिब्राइल
अलैहिस्सलाम-मीकाईल अलैहिस्सलाम-इस्राफील अलैहिस्सलाम को भी हूरैन कहते हैं।
ब्रह्मा देवताए नमः फिर कहते हैं शिव परमात्माए नम:। अभी उनका मतलब भी तुम जानते
हो। वह तो अन्धी अकीदत से सिर्फ़ कह देते हैं। अब शंकर देवताए नम: कहेंगे। शिव
के लिए कहेंगे शिव परमात्माए नम: तो फ़र्क हुआ ना। वह हूरैन हो गया, वह पाक
परवरदिगार हो गया। रहमतुल्आल्मीन और इस्राफील अलैहिस्सलाम को एक कह नहीं सकते।
तुम जानते हो हम बरोबर पत्थर अक्ल थे, अब पारस अक्ल बन रहे हैं। हूरैनों को तो
पत्थर अक्ल नहीं कहेंगे। फिर ड्रामा के मुताबिक़ शैतानी सल्तनत में सीढ़ी उतरनी
है। पारस अक्ल से पत्थर अक्ल बनना है। सबसे अक्लमंद तो एक ही रब है। अभी
तुम्हारी अक्ल में दम नहीं रहा है। रब उनको बैठ पारस अक्ल बनाते हैं। तुम यहाँ
आते हो पारस अक्ल बनने। पारसनाथ के भी मन्दिर हैं। वहाँ मेले लगते हैं। मगर यह
किसको मालूम नहीं कि आलम ए पारस कौन है। असल में पारस बनाने वाला तो रब ही है।
वह है अक्लमंदों की अक्ल। यह इल्म है तुम बच्चों की अक्ल के लिए खुराक, इससे
अक्ल कितनी पलटती है। यह दुनिया है कांटों का जंगल। कितना एक-दो को दु:ख देते
हैं। अभी है ही स्याह रास्त खौफनाक जहन्नुम। गरुड़ पुराण में तो निहायत रोचक
बातें लिख दी हैं।
अभी तुम बच्चों की अक्ल
को खुराक मिल रही है। बेहद का रब खुराक दे रहे हैं। यह है तालीम। इसको हयात ए
इल्म भी कह देते हैं। कोई पानी वगैरह है नहीं। आजकल तमाम चीज़ों को आब ए हयात
कह देते हैं। गंगाजल को भी आब ए हयात कहते हैं। हूरैन के पैर धोकर पानी रखते
हैं, उसको आब ए हयात कह देते हैं। अब यह भी अक्ल से समझने की बात है ना। यह
अंचली आब ए हयात है या नापाक से पाक बनाने वाला गंगा का पानी आब ए हयात है?
अचंली जो देते हैं वह ऐसे नहीं कहते कि यह नापाकों को पाकीज़ा बनाने वाला है,
गंगा के पानी के लिए कहते हैं नापाक से पाक बनाने वाली है। कहते भी हैं इन्सान
मरे तो गंगा का पानी मुंह में हो। दिखाते हैं अर्जुन ने तीर मारा फिर आब ए हयात
पिलाया। तुम बच्चों ने कोई तीर वगैरह नहीं चलाये हैं। एक गांव हैं जहाँ तीरों
से लड़ते हैं। वहाँ के बादशाह को अल्लाह का नुज़ूल कहते हैं। अब अल्लाह का
नुज़ूल तो कोई हो नहीं सकता। असल में सच्चा-सच्चा हक़ीक़ी हादी तो एक ही है, जो
तमाम का ख़ैर निजात दिलाने वाला है। जो तमाम रूहों को साथ ले जाते हैं। रब के
सिवाए वापिस कोई भी ले जा नहीं सकता। ब्रह्म में लीन हो जाने की भी बात नहीं
है। यह ड्रामा बना हुआ है। ख़िल्क़त का चक्कर अबदी फिरता ही रहता है। वर्ल्ड की
हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे रिपीट होती है, यह अभी तुम जानते हो और कोई नहीं जानता।
इन्सान यानि कि रूहें अपने रब खालिक को भी नहीं जानती हैं, जिसको याद भी करते
हैं ओ गॉड फादर। हद के बाप को कभी गॉड फादर नहीं कहेंगे। गॉड फादर अल्फ़ाज़
निहायत रिस्पेक्ट से कहते हैं। उनके लिए ही गाते हैं नापाक से पाक बनाने वाले,
दु:ख दूर करने वाले ख़ुशी देने वाले है। एक तरफ़ कहते हैं वह दु:ख दूर करने वाला
ख़ुशी देने वाला है और जब कोई दु:ख होता है और बच्चा वगैरह मर जाता है तो कह
देते अल्लाह ताला ही ग़म-खुशी देता है। अल्लाह ने हमारा बच्चा ले लिया। यह क्या
किया? अब अज़मत एक गाते हैं और फिर कुछ होता है तो अल्ल्लाह् ताला को गालियाँ
देते हैं। कहते भी हैं अल्लाह ने बच्चा दिया है, फिर अगर उसने वापिस ले लिया तो
तुम रोते क्यों हो? अल्लाह ताला के पास गया ना। सुनहरे दौर में कभी कोई रोते नहीं।
रब समझाते हैं रोने की तो कोई दरकार नहीं। रूह को अपने हिसाब-किताब के मुताबिक
जाए दूसरा पार्ट बजाना है। इल्म न होने सबब इन्सान कितना रोते हैं, जैसे पागल
हो जाते हैं। यहाँ तो रब समझाते हैं - अम्मा मरे तो भी हलुआ खाना..... खात्मा ए
लगाव होना है। हमारा तो एक ही बेहद का रब है, दूसरा न कोई। ऐसी हालत बच्चों की
होनी चाहिए। लगाव फ़तहयाब बादशाह की रिवायत भी सुनी है ना। यह हैं तमाम दन्त
कथायें। सुनहरे दौर में कभी दु:ख की बात नहीं होती। न कभी बे वक़्त मौत होती
है। बच्चे जानते हैं हम मौत पर फ़तह पाते हैं, रब को महाकाल भी कहते हैं। मौतों
का मौत तुमको मौत पर फ़तह पहनाते हैं यानि कि मौत कभी खाती नहीं। मौत रूह को तो
नहीं खा सकती। रूह एक जिस्म छोड़ दूसरा लेती है, उसको कहते हैं मौत खा गया। बाक़ी
मौत कोई चीज़ नहीं है। इन्सान अज़मत गाते रहते, समझते कुछ भी नहीं। गाते हैं
अचतम् केशवम्...... मतलब कुछ नहीं समझते। बिल्कुल ही इन्सान समझ से बाहर हो गये
हैं। रब समझाते हैं यह 5 ख़बासत तुम्हारी अक्ल को कितना ख़राब कर देते हैं।
कितने इन्सान बद्रीनाथ वगैरह पर जाते हैं। आज दो लाख गये, 4 लाख गये.....
बड़े-बड़े ऑफीसर्स भी जाते हैं ज़ियारत करने। तुम तो जाते नहीं तो वह कहेंगे यह
बी.के. तो नास्तिक हैं क्योंकि अकीदत मन्दी नहीं करते। तुम फिर कहते हो जो
अल्लाह ताला को नहीं जानते वो नास्तिक हैं। रब को तो कोई नहीं जानते इसलिए इनको
आरफन की दुनिया कहा जाता है। कितना आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैं। यह तमाम
दुनिया रब्बा का घर है ना। रब तमाम दुनिया के बच्चों को नापाक से पाक बनाने आते
हैं। आधा चक्कर बरोबर पाकीज़ा दुनिया थी ना। गाते भी हैं राम राजा, राम प्रजा,
राम साहूकार है..... वहाँ फिर ग़ैर दीन की बात कैसे हो सकती। कहते भी हैं वहाँ
शेर-बकरी इकट्ठे जल पीते हैं फिर वहाँ शैतान वगैरह कहाँ से आये? समझते नहीं।
बाहर वाले तो ऐसी बातें सुनकर हंसते हैं।
तुम बच्चे जानते हो - अभी
दरिया ए इल्म रब आकर हमें इल्म देते हैं। यह नापाक दुनिया है ना। अब इल्हाम से
नापाकों को पाक बनायेंगे क्या? बुलाते हैं ए नापाक से पाक बनाने वाले आओ, आकर
हमको पाकीज़ा बनाओ तो ज़रूर हिन्दुस्तान में ही आया था। अब भी कहते हैं मैं
दरिया ए इल्म आया हूँ। तुम बच्चे जानते हो रहमतुल्आल्मीन में ही तमाम इल्म है,
वही रब बैठ बच्चों को यह तमाम बातें समझाते हैं। सहीफों में तमाम है दंत कथायें।
नाम रख दिया है - व्यास भगवान ने शास्त्र बनाये। अब वह व्यास था अकीदत मन्दी की
राह का। यह है व्यास देव, उनके बच्चे तुम सुख देव हो। अब तुम ख़ुशी के हूरैन
बनते हो। ख़ुशी का वर्सा ले रहे हो व्यास से, शिवाचार्य से। व्यास के बच्चे तुम
हो। मगर इन्सान मूंझ न जाएं इसलिए कहा जाता है रहमतुल्आल्मीन के बच्चे। उनका
असुल नाम है ही रहमतुल्आल्मीन। तो अब रब फ़रमाते हैं - किसी जिस्म नशीनी को मत
देखो। जबकि रहमतुल्आल्मीन सामने बैठे हैं। रूह को जाना जाता है, पाक परवरदिगार
को भी जाना जाता है। वह पाक परवरदिगार रहमतुल्आल्मीन । वही आकर नापाक से पाक
बनने का रास्ता बताते हैं। कहते हैं मैं तुम रूहों का रब हूँ। रूह को रियलाइज़
किया जाता है, देखा नहीं जाता है। रब पूछते हैं अब तुमने अपनी रूह को रियलाइज़
किया? इतनी छोटी सी रूह में ला फ़ानी पार्ट नूंधा हुआ है। जैसे एक रिकार्ड है।
तुम जानते हो हम रूह ही
जिस्म इख्तियार करती हैं। पहले तुम जिस्मानी हवासी थे, अब रूहानी हवासी हो। तुम
जानते हो हम रूहें 84 विलादत लेती हैं। उनका एन्ड (अन्त) नहीं होता। कोई-कोई
पूछते हैं यह ड्रामा कब से शुरू हुआ? मगर यह तो अबदी है, कभी फ़ना नहीं होता।
इनको कहा जाता है बना-बनाया ला फ़ानी वर्ल्ड ड्रामा। तो रब बैठ बच्चों को समझाते
हैं। जैसे अनपढ़ बच्चों को तालीम दी जाती है। रूह ही जिस्म में रहती है। यह है
पत्थर अक्ल के लिए फूड (खाना), अक्ल को समझ मिलती है। तुम बच्चों के लिए रब्बा
ने तस्वीर बनवायी हैं। निहायत आसान हैं। यह है तीन मुजस्सम जिब्राइल
अलैहिस्सलाम-मीकाईल अलैहिस्सलाम-इस्राफील अलैहिस्सलाम। अब जिब्राइल अलैहिस्सलाम
को भी तीन मुजस्सम क्यों कहते हैं? देव-देव महादेव। एक-दो के ऊपर रखते हैं,
मतलब कुछ भी नहीं जानते। अब जिब्राइल अलैहिस्सलाम हूरैन कैसे हो सकता। बाप ए
अवाम जिब्राइल अलैहिस्सलाम तो यहाँ होना चाहिए। यह बातें कोई सहीफों में नहीं
हैं। रब फ़रमाते हैं मैं इस जिस्म में दाखिल कर इन के ज़रिए तुमको समझाता हूँ।
इनको अपना बनाता हूँ। इनके निहायत विलादतों के अाख़िर में आता हूँ। यह भी 5
ख़बासतों की बेनियाज़ी करते हैं। बेनियाज़ी करने वाले को इबादत नशीन, ऋषि कहा
जाता है। अभी तुम राजऋषि बने हो। 5 ख़बासतों की बेनियाज़ी तुमने किया है तो नाम
बदलता है। तुम तो हक़ीक़ी इबादत नशीन बनते हो। तुम अहद करते हो। वह राहिब लोग
तो घरबार छोड़ चले जाते हैं। यहाँ तो औरत मर्द इकट्ठे रहते हैं, अहद करते हैं
हम ख़बासत में कभी नहीं जायेंगे। असल बात है ही ख़बासत की।
तुम बच्चे जानते हो
रहमतुल्आल्मीन खालिक है। वह नई खिल्क़त तामीर करते हैं। वह बीजरूप, हक़ीक़ी
ज़िन्दा दरिया ए निशात, दरिया ए इल्म है। कयाम़, तबाही, परवरिश कैसे करते हैं -
यह रब जानते हैं, इन्सान नहीं जानते। फट से कह देते तुम बी.के. तो दुनिया की
तबाही करेंगी। अच्छा, तुम्हारे मुंह में गुलाब। कहते हैं यह तो तबाही के लिए
ज़रिया बनी हैं। न सहीफों को, न अकीदत मन्दी को, न हादियों को मानती हैं, सिर्फ़
अपने दादा को मानती हैं। मगर रब तो खुद फ़रमाते हैं यह नापाक जिस्म है, मैंने
इनमें दाखिल किया है। नापाक दुनिया में तो कोई पाकीज़ा होता नहीं। इन्सान तो जो
सुनी-सुनाई बातें सुनते हैं वह बोले देते हैं। ऐसी सुनी-सुनाई बातों से तो
हिन्दुस्तान बुरी हालत को पाया है, तब रब आकर सच सुनाए सबकी ख़ैर निजात करते
हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों
के वास्ते मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी रब की रूहानी
बच्चों को सलाम।
तरीक़त के वास्ते अहम
निकात:-
1) रब से ख़ुशी का वर्सा लेकर ख़ुशी का हूरैन बनना है। सबको ख़ुशी देनी है।
राजऋषि बनने के लिए तमाम ख़बासतों की बेनियाज़ी करनी है।
2) तालीम ही सच्ची खुराक़ है। खैर निजात के लिए सुनी-सुनाई बातों को छोड़ सिरात
ए मुस्तकीम पर चलना है। एक रब से ही सुनना है। लगाव फ़तहयाब बनना है।
बरक़ात:-
हमेशा
इज़्ज़त ए आप में वाक़ेअ रह हलीम सूरत ए हाल के ज़रिए तमाम को इज़्ज़तत देने
वाले इज़्ज़त बख्श, काबिल ए एहतराम बनो
जो रब की अज़मत है वही
आपका इज़्ज़त ए आप है, इज़्ज़त ए आप में वाक़ेअ रहो तो हलीम बन जायेंगे, फिर
तमाम के ज़रिए अपने आप ही इज़्ज़त मिलती रहेगी। इज़्ज़त मांगने से नहीं मिलती
मगर इज़्ज़त देने से, इज़्ज़त ए आप में वाक़ेअ होने से, इज़्ज़त की कुर्बानी
करने से तमाम के इज़्ज़त बख़्श और काबिल ए एहतराम बनने की तक़दीर हासिल हो जाती
है क्योंकि इज़्ज़त देना, देना नहीं लेना है।
स्लोगन:-
जाननहार के साथ
करनहार बन कमज़ोर रूहों को एहसास का तब्बरूक बांटते चलो।
आमीन