“मीठे बच्चे
तुम इस
कब्रिस्तान को परिस्तान बना रहे हो, इसलिए तुम्हारा इस पुरानी दुनिया,
कब्रिस्तान से पूरी-पूरी बेनियाज़ी चाहिए”
सवाल:-
बेहद का रब
अपने रूहानी बच्चों का वण्डरफुल सर्वेन्ट है, कैसे?
जवाब:-
रब्बा
फ़रमाते बच्चे मैं तुम्हारा धोबी हूँ, तुम बच्चों के तो क्या तमाम दुनिया के
छी-छी गन्दे लिबास सेकेण्ड में साफ़ कर देता हूँ। रूह रूपी लिबास साफ़ बनने से
जिस्म भी खालिस मिलता है। ऐसा वण्डरफुल सर्वेन्ट है जो दिल से मुझे याद करो के
छू मन्त्र से सबको सेकेण्ड में साफ़ कर देता है।
आमीन।
ओम् शान्ति
का मतलब बच्चों को रब ने समझाया है। मैं रूह का दीन ए नफ़्स है सुकून। दारूल
सुकून जाने के लिए कोई तजवीज़ नहीं करनी पड़ती है।रूह खुद सुकून याफ़्ता, दारूल
सुकून में रहने वाली है। हाँ थोड़ा वक्त सुकून में रह सकती है। रूह कहती है -
मैं आज़ाओं के बोझ से थक गई हूँ, मैं अपने दीन ए नफ़्स में टिक जाती हूँ, जिस्म
से अलग हो जाती हूँ। मगर आमाल तो करना ही है। सुकून में कहाँ तक बैठे रहेंगे।
रूह कहती है हम वतन ए सुकून की रिहायश नशीन हैं। सिर्फ़ यहाँ जिस्म में आने से
मैं टॉकी बनी हूँ। मैं रूह ला फ़ानी, मेरा जिस्म है फ़ानी। रूह पाकीज़ा और
नापाक बनती है। सुनहरे दौर में 5 अनासर भी सातों फ़ज़ीलतों से लबरेज़ होते हैं।
यहाँ 5 अनासर भी सयाह रास्त हैं। सोने में खाद पड़ने से सोना नापाक बन जाता है
फिर उनको साफ़ करने के लिए आग में डाला जाता है, इनका नाम ही है आग ए इबादत।
दुनिया में तो कई तरह के हठयोग वगैरह सिखलाते हैं। उनको आग ए इबादत नहीं कहा
जाता है। आग ए इबादत यह है जिससे गुनाह जलते हैं। रूह को नापाक से पाक बनाने
वाला पाक परवरदिगार है, बुलाते हैं ए नापाक से पाक बनाने वाले आओ। ड्रामा प्लैन
के मुताबिक़ सबको नापाक बुरी खस्लतों से आरास्ता बनना ही है। यह दरख्त है इनका
बीजरूप ऊपर में है। रब को जब बुलाते हैं, अक्ल ऊपर चली जाती है, जिससे तुम वर्सा
ले रहे हो, जो अब नीचे आया हुआ है। कहते हैं मुझे आना पड़ता है। इन्सानी
खिल्क़त का जो दरख्त है, कई वैराइटी दीनो का, वह अब स्याह रास्त नापाक है।
जड़जड़ीभूत हालत को पाया हुआ है। रब बैठ बच्चों को समझाते हैं। सुनहरे दौर में
हूरैन, इख्तिलाफ़ी फ़ितने के दौर में हैं शैतान। बाक़ी शैतान और हूरैन की जंग
लगी नहीं है। तुम इन शैतानी 5 ख़बासतों पर कुव्वत ए इबादत से फ़तह पाते हो। बाक़ी
कोई तशदिद जंग की बात नहीं। तुम कोई भी तरह से तशदिद नहीं करते हो। कभी किसको
हाथ भी नहीं लगायेंगे। तुम डबल इद्दम तशदिद हो। ज़िना कटारी चलाना, यह तो सबसे
बड़ा गुनाह है। रब फ़रमाते हैं यह ज़िना कटारी आग़ाज़- दरम्यान-आख़िर दु:ख देती
है। ख़बासत में नहीं जाना चाहिए। हूरैन के आगे अज़मत गाते हैं ना - आप तमाम
फ़ज़ीलतों से लबरेज़......। रूह कहती है हम नापाक बने हैं, तब तो बुलाते हैं ए
नापाक से पाक बनाने वाले आओ। जब पाकीज़ा है तब तो कोई को बुलाते ही नहीं। उनको
जन्नत कहा जाता है। यहाँ तो राहिब-वली वगैरह कितनी धुन लगाते हैं - हे
पतित-पावन सीताराम......। रब फ़रमाते हैं इस वक़्त तमाम दुनिया नापाक है, इसमें
भी किसका कसूर नहीं है। यह ड्रामा बना-बनाया है। जब तक मैं आऊं, इन्हों को अपना
पार्ट बजाना है। इल्म और अकीदत मन्दी फिर है बेनियाज़ी। पुरानी दुनिया से
बेनियाज़ी। यह है बेहद की बेनियाज़ी। उन्हों का है हद की बेनियाज़ी।
तुम जानते हो यह पुरानी दुनिया अब ख़त्म होनी है। नया घर बनाते हैं तो पुराने
घर से बेनियाज़ी हो जाती है ना। बेहद का रब फ़रमाते हैं अभी तुमको जन्नत रूपी
घर बनाकर देता हूँ। अभी तो है जहन्नुम। जन्नत है नई दुनिया। जहन्नुम पुरानी
दुनिया। अभी पुरानी दुनिया में रह हम नई दुनिया बना रहे हैं। पुराने कब्रिस्तान
पर हम परिस्तान बनायेंगे। यही जमुना का कण्ठा होगा। इस पर महल बनेंगे। यही देहली
जमुना नदी वगैरह होगी बाक़ी यह जो दिखाते हैं पाण्डवों के किले थे, यह सब हैं
दन्त कथायें। ड्रामा प्लैन के मुताबिक ज़रूर फिर यह बनेंगे। जैसे तुम यज्ञ तप
दान वगैरह करते आये हो फिर भी करना होगा। पहले तुम शिव की अकीदत मन्दी करते हो,
फर्स्ट-क्लास मन्दिर बनाते हो। उसको एक की अक़ीदत मन्दी कहा जाता है। अभी तुम
इल्म की राह में हो। यह है वाहिद इल्म। एक ही रहमतुल्आल्मीन से तुम सुनते हो।
जिसकी पहले-पहले तुमने अकीदत मन्दी शुरू की, उस वक़्त और कोई दीन होते नहीं।
तुम ही होते हो। तुम निहायत ख़ुशहाल रहते हो। हूरैन दीन निहायत ख़ुशी देने वाला
है। नाम लेने से मुंह मीठा हो जाता है। तो तुम एक रब से ही इल्म सुनते हो। रब
फ़रमाते हैं और कोई से न सुनो। यह है तुम्हारा वाहिद इल्म। बेहद के रब के तुम
बने हो। रब से ही वर्सा मिलेगा नम्बरवार तजवीज़ के मुताबिक। रब भी थोड़े वक़्त
के लिए जिस्म में आया हुआ है। फ़रमाते हैं मुझे ही तुम बच्चों को इल्म देना है।
मेरा मैकरू जिस्म है नहीं, मैं इसमें दाखिली करता हूँ। शिवजयन्ती से फिर झट गीता
जयन्ती हो जाती है। उनसे ही इल्म शुरू कर देते हैं। यह रूहानी इल्म तुमको
सुप्रीम रूह ही दे रहे हैं। पानी की बात नहीं। पानी को थोड़े ही इल्म कहेंगे।
नापाक से पाक इल्म से बनेंगे, पानी से थोड़े ही पाक बनेंगे। नदियां तो तमाम
दुनिया में हैं ही। यह तो दरिया ए इल्म रब आते हैं, इसमें दाखिली कर नॉलेज
सुनाते हैं। यहाँ जब कोई मरते हैं तो मुंह में गंगा का पानी डालते हैं। समझते
हैं यह पानी है नापाक से पाक बनाने वाला तो जन्नत में चला जायेगा। यहाँ भी गऊ
मुख पर जाते हैं। असल में गऊमुख तुम ज़िन्दा हो। तुम्हारे मुंह से हयात ए इल्म
निकलता है। गऊ से दूध मिलता है, पानी की तो बात नहीं। यह अभी तुमको मालूम पड़ा
है। तुम जानते हो ड्रामा में जो एक बार हो गया है वह फिर 5 हज़ार साल के बाद
होगा, हूबहू रिपीट। यह रब बैठ समझाते हैं, जो तमाम का ख़ैर निजात दिलाने वाला
है। अभी तो तमाम बुरी हालत में पड़े हैं। आगे तुम नहीं जानते थे कि शैतान को
क्यों जलाते हैं। अभी तुम समझते हो बेहद का दशहरा होना है। तमाम खिल्क़त पर
शैतानी सल्तनत है ना। यह तमाम जो सरज़मी है वह लंका है। शैतान कोई हद में नहीं
रहता। शैतान की सल्तनत तमाम खिल्क़त में है। अकीदत मन्दी भी आधा चक्कर चलती है।
पहले होती है एक की अक़ीदत मन्दी फिर कईयों की अकीदत मन्दी शुरू होती है। दशहरा,
रक्षाबंधन वगैरह तमाम अभी के त्योहार हैं। शिव जयन्ती के बाद होती है कृष्ण
जयन्ती। अभी कृष्णपुरी स्थापन होती है। आज कंसपुरी में हैं, कल कृष्णपुरी में
होंगे। कृष्ण थोड़ेही यहाँ हो सकता। कृष्ण जन्म लेते ही हैं सतयुग में। वह है
फर्स्ट प्रिन्स। स्कूल में पढ़ने जाते हैं, जब बड़ा होता है तब गद्दी का मालिक
बनता है। बाक़ी यह रासलीला वगैरह वह तो आपस में ख़ुशी मनाते होंगे। बाक़ी कृष्ण
किसको बैठ ज्ञान सुनाये यह हो कैसे सकता। तमाम अज़मत एक रहमतुल्आल्मीन की है जो
नापाक को पाक बनाते हैं। तुम कोई बड़े ऑफीसर्स को समझाओ तो कहेंगे आप राइट कहती
हो। मगर वह और किसी को सुना न सकें। उनकी बात कोई सुनेगा नहीं। बी.के. बना और
तमाम कहेंगे इनको तो जादू लग गया है। बी.के. का नाम सुना, बस। समझते हैं यह जादू
करती होंगी। थोड़ा किसको इल्म दो तो कह देते यह बी.के. जादू लगाती हैं। बस यह
तो सिवाए अपने दादा के और किसको मानती नहीं। अकीदत मन्दी वगैरह कुछ नहीं करती।
रब्बा तो फ़रमाते हैं किसको मना नहीं करना है कि अकीदत मन्दी न करो। आपे ही छूट
जायेगी। तुम अकीदत मन्दी छोड़ते हो, ख़बासत छोड़ते हो, इस पर ही हंगामा होता
है। रब्बा ने फ़रमाया है मैं रूद्र इल्म यज्ञ तामीर करता हूँ, इसमें शैतानी
फिरक़े की मुश्किलात पड़ती हैं। यह है रहमतुल्आल्मीन का बेहद का यज्ञ, जिसमें
इन्सान से हूरैन बनते हैं। गाया हुआ भी है - इल्म यज्ञ से तबाही शौला रोशन हुआ।
जब पुरानी दुनिया ख़ाक हो तब तो तुम नई दुनिया में सल्तनत करेंगे। इन्सान कहेंगे
हम कहते हैं सुकून हो और यह बी.के. कहती हैं तबाही हो। रब समझाते हैं यह तमाम
पुरानी दुनिया इस इल्म यज्ञ में ख़ाक हो जायेंगी। इस पुरानी दुनिया को आग लगनी
है। नेचुरल कैलेमिटीज़ भी आयेगी। तबाही तो होनी ही है। सरसों मुआफिक़ तमाम
इन्सान पीसकर ख़त्म हो जायेंगे। बाक़ी रूहें बच जायेंगी। यह तो कोई भी समझ सकते
हैं - रूह ला फ़ानी है। अभी यह बेहद की होलिका होनी है, जिसमें जिस्म तमाम
ख़त्म हो जायेंगे। बाक़ी रूहें पाक बन चली जायेंगी। आग में चीज़ खालिस होती है
ना। हवन करते हैं खालिस नशीनी के लिए। वह तमाम हैं जिस्मानी बातें। अभी तो तमाम
दुनिया ख़ाक होनी है। तबाही के पहले ज़रूर क़याम हो जाना चाहिए। किसको भी समझाओ
तो पहले बोलो क़याम फिर तबाही। जिब्राइल अलैहिस्सलाम के ज़रिए क़याम। बाप ए
अवाम तो मशहूर है ना। अब्दी हूर और अब्दी हूरैन। जगत अम्बा के भी लाखों मन्दिर
हैं। कितने मेले लगते हैं। तुम हो जगत अम्बा के बच्चे, ज्ञान-ज्ञानेश्वरी फिर
बनेंगे राज-राजेश्वरी। तुम निहायत दौलत मन्द बनते हो फिर अकीदत मन्दी की राह
में लक्ष्मी से दीपमाला पर विनाशी धन मांगते हैं। यहाँ तो सब कुछ मिल जाता है।
उम्र दराज़ बनो, औलाद वान बनो। तुम जानते हो हमारी उम्र 150 साल की रहती है। रब
फ़रमाते हैं जितनी इबादत करेंगे उतना उम्र बढ़ती रहेगी। तुम अल्लाह ताला से
राब्ता लगाकर योगेश्वर यानि कि नमाज़ी बनते हो। इन्सान तो हैं भोगेश्वर यानि कि
यज़ीद। कहा भी जाता है विकारी, मूत पलीती कपड़ धोए...... रब फ़रमाते हैं मुझे
धोबी भी कहते हैं। मैं तमाम रूहों को आकर साफ़ करता हूँ फिर जिस्म भी नया खालिस
मिलेगा। रब फ़रमाते हैं मैं सेकेण्ड में तमाम दुनिया के कपड़े साफ़ कर लेता
हूँ। सिर्फ़ दिल से मुझे याद करो होने से रूह और जिस्म पाक बन जायेंगे। छू
मन्त्र है ना। सेकेण्ड में ज़िन्दगी ए निजात। कितना आसान तरीक़ा है। रब को याद
करो तो पाकीज़ा बन जायेंगे। चलते फिरते सिर्फ रब को याद करो, और कोई ज़रा भी
तकलीफ़ तुमको नहीं देता हूँ। सिर्फ़ याद करना है। अभी तुम्हारी एकएक सेकेण्ड
में चढ़ता फ़न होता है।
रब फ़रमाते हैं मैं तुम बच्चों का सर्वेन्ट बन आया हूँ। तुमने बुलाया ही है ए
नापाक से पाक बनाने वाले आओ, आकर हमको पाक बनाओ। अच्छा बच्चे आया हूँ तो
सर्वेन्ट हुआ ना। जब तुम निहायत नापाक बने हो तब ही ज़ोर से चिल्लाते हो। अब
मैं आया हूँ। मैं चक्कर-चक्कर आकर तुम बच्चों को यह मन्त्र देता हूँ। मुझे याद
करो तो तुम पाकीज़ा बन जायेंगे। दिल से मुझे याद करो का मतलब भी है - दिल से
मुझे याद करो, फरिश्ता बनो यानि कि रब को याद करो तो आलम ए ग़ैर ख़बासत के
मालिक बनेंगे। तुम आये ही हो आलम ए ग़ैर ख़बासत की सल्तनत लेने। आलम ए शैतान के
बाद है आलम ए ग़ैर ख़बासत। कंसपुरी के बाद कृष्णपुरी, कितना आसान समझाया जाता
है। रब फ़रमाते हैं इस पुरानी दुनिया से ममत्व मिटा दो। अभी हमने 84 विलादत पूरे
किये हैं। यह पुराना चोला छोड़कर हम जायेंगे नई दुनिया में। याद से ही तुम्हारे
अज़ाब कटते जायेंगे। इतनी हिम्मत करनी चाहिए। वह तो ब्रह्म को याद करते हैं।
समझते हैं ब्रह्म में लीन हो जायेंगे। मगर ब्रह्म तो है रहने का मुकाम। वो लोग
तपस्या में बैठ जाते हैं। बस हम ब्रह्म में जाकर लीन हो जायेंगे। मगर वापिस तो
कोई जा नहीं सकते। ब्रह्म से राब्ता लगाने से पाक़ीज़ा तो बनेंगे नहीं। एक भी
जा न सके। दोबारा विलादत तो लेनी ही है। रब आकर सच बतलाते हैं, सचखण्ड सच्चा
रब्बा क़ायम करते हैं। शैतान आकर झूठ खण्ड बनाते हैं। अभी यह है मिलन का दौर।
इसमें तुम आला से आला बनते हो इसलिए इनको रूह ए अफ़ज़ल कहा जाता है। तुम कौड़ी
से हीरे जैसा बनते हो। यह है बेहद की बात। आला से आला इन्सान हैं हूरैन। तो अभी
रूह ए अफ़ज़ल मिलन के दौर पर तुम बैठे हो। तुमको रूह ए अफ़ज़ल बनाने वाला है आला
ते आला रब। आला ते आला जन्नत का वर्सा तुमको देते हैं फिर यह तुम भूलते क्यों
हो? रब फ़रमाते हैं मुझे याद करो। बच्चे कहते हैं - रब्बा रहमत करो तो हम भूलें
नहीं। यह कैसे हो सकता! रब्बा के डायरेक्शन पर चलना है ना। रब फ़रमाते हैं मुझे
याद करो तो तुम नापाक से पाक बन जायेंगे। राय पर चलो ना। बाक़ी रहमत क्या करूँ।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों के वास्ते मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और
गुडमॉर्निंग। रूहानी रब की रूहानी बच्चों को सलाम।
तरीक़त के वास्ते अहम
निकात:-
1) रब के हर डायरेक्शन पर चलकर खुद को कौड़ी से हीरे जैसा बनाना है। एक रब की
याद में रह खुद के लिबास को साफ़ बनाना है।
2) अब नये घर में चलना है इसलिए इस पुराने घर से बेहद की बेनियाज़ी रखनी है। नशा
रहे कि इस पुराने कब्रिस्तान पर हम परिस्तान बनायेंगे।
बरक़ात:-
मिलन के
दौर की अफ़ज़ल तस्वीर को सामने रख मुस्तकबिल का दीदार करने वाले तीनों ज़माने
के जानने वाले बनो।
मुस्तकबिल के पहले तमाम
दस्तयाबियों का एहसास आप मिलन के दौर के मोमिन करते हो। अभी डबल ताज, तख्त,
तिलकनशीन, तमाम हक़दार याफ़्ता बनते हो। मुस्तकबिल में तो गोल्डन स्पून होगा
मगर अभी हीरे जैसा बन जाते हो। ज़िन्दगी ही हीरा बन जाती है। वहाँ सोने, हीरे
के झूले में झूलेंगे यहाँ रब उल हक़ की गोदी में, हवास ए बालातर ख़ुशी के झूले
में झूलते हो। तो तीनों ज़माने को जानने वाले बन मौजूदा और मुस्तकबिल की अफ़ज़ल
तस्वीर को देखते हुए तमाम दस्तयाबियों का एहसास करो।
स्लोगन:-
आमाल और इबादत का
बैलेन्स ही इलाही ब्लैसिंग का हक़दार बना देती है।
आमीन