“मीठे बच्चे - तुम्हें
याद में रहने की तजवीज़ ज़रूर करनी है, क्योंकि याद की कुव्वत से ही तुम अज़ाब
फ़तहयाब बनेंगे”
सवाल:-
कौन सा
ख्याल आया तो तजवीज़ में गिर पड़ेंगे? खुदाई खिदमतगार बच्चे कौन सी खिदमत करते
रहेंगे?
जवाब:-
कई बच्चे
समझते हैं अभी टाइम पड़ा है, पीछे तजवीज़ कर लेंगे, मगर मौत का कायदा थोड़े ही
है। कल-कल करते मर जायेंगे इसलिए ऐसे मत समझो निहायत साल पड़े हैं, पिछाड़ी में
गैलप कर लेंगे। यह ख्याल और ही गिरा देगा। जितना हो सके याद में रहने की तजवीज़
कर, सिरात ए मुस्तकीम पर अपना फ़लाह करते रहो। रूहानी खुदाई खिदमतगार बच्चे रूहों
को सैलवेज करने, नापाक को पाक बनाने की खिदमत करते रहेंगे।
नग़मा:-
ओम् नमो शिवाए........
आमीन।
यह तो बच्चों
को समझाया गया है ग़ैर मुजस्सम रब जिस्म बिगर कोई भी आमाल नहीं कर सकते हैं।
पार्ट बजा नहीं सकते। रूहानी रब आकर जिब्राइल अलैहिस्सलाम के ज़रिए रूहानी बच्चों
को समझाते हैं। कुव्वत ए इबादत से ही बच्चों को सातों फ़ज़ीलतों से लबरेज़ बनना
है फिर ख़ैर रास्त दुनिया का मालिक बनना है। यह बच्चों की अक्ल में है।
चक्कर-चक्कर रब आकर के हक़ीक़ी इबादत सिखलाते हैं। जिब्राइल अलैहिस्सलाम के
ज़रिए आकर अल्लाह अव्वल हूर-हूरैन दीन का क़याम करते हैं। यानि इन्सान को हूरैन
बनाते हैं। इन्सान जो हूर-हूरैन थे सो अब बदलकर यज़ीद नापाक बन पड़े हैं।
हिन्दुस्तान जब आलम ए पारस था तो पाकीज़गी - ख़ुशी - सुकून तमाम था। यह 5 हज़ार
साल की बात है। एक्यूरेट हिसाब-किताब रब बैठ समझाते हैं। उनसे आला तो कोई है नहीं।
खिल्क़त और दरख्त, जिसको कल्प वृक्ष कहते हैं, उसके आग़ाज़-दरम्यान-आख़िर का
राज़ रब ही बता सकते हैं। हिन्दुस्तान का जो हूर-हूरैन दीन था वह अब आमतौर पर
ग़ायब हो गया है। हूर-हूरैन तो अभी रहे नहीं है। हूरैन की तस्वीर ज़रूर हैं। यह
तो हिन्दुस्तान रिहाईश नशीन जानते हैं। सुनहरे दौर में आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा
अलैहिस्सलाम की सल्तनत थी। भल सहीफों में यह भूल कर दी है जो कृष्ण को द्वापर
में ले गये हैं। रब ही आकर भूले हुए को पूरा रास्ता बताते हैं। रास्ता बतलाने
वाला आता है तो तमाम रूहें दारूल निजात में चली जाती हैं इसलिए उनको कहा जाता
है तमाम का ख़ैर निजात दिलाने वाला। मख़लूक़ एक ही होता है। एक ही खिल्क़त है।
वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी एक ही है, वह रिपीट होता रहता है। सुनहरा दौर-
रूपहला दौर, इख्तिलाफ़ी फ़ितने का दौर फिर होता है मिलन का दौर। इख्तिलाफ़ी
फ़ितने के दौर में हैं नापाक, सुनहरे दौर में हैं पाक़ीज़ा। सुनहरे दौर होगा तो
ज़रूर इख्तिलाफी फितने के दौर तबाही होगी। तबाही से पहले क़याम होगा। सुनहरे
दौर में तो क़याम नहीं होगा। अल्लाह ताला आयेगा ही तब जब नापाक दुनिया है।
सुनहरा दौर तो है ही पाकीज़ा दुनिया। नापाक दुनिया को पाक दुनिया बनाने अल्लाह
ताला को आना पड़ता है। अब रब आसान से आसान तरीक़ा बताते हैं। जिस्म के तमाम
रिश्ते छोड़ रूहानी हवासी बन रब को याद करो। कोई एक तो नापाक से पाक बनाने वाला
है ना। अकीदत मन्दी का सिला देने वाला एक ही अल्लाह ताला है। अकीदत मन्दों को
इल्म देते हैं। नापाक दुनिया में दरिया ए इल्म ही आते हैं पाक़ीज़ा बनाने लिए।
पाकीज़ा बनते हो इबादत से। रब बिगर तो कोई पाकीज़ा बना न सके। यह तमाम बातें
अक्ल में बिठाई जाती हैं औरों को समझाने के लिए। घर-घर में पैग़ाम देना है। ऐसे
नहीं कहना है कि अल्लाह ताला आया है। बड़े तरीक़े से समझाना होता है। बोलो, वह
बाप है ना। एक है जिस्मानी बाप, दूसरा रूहानी बाप। दु:ख के वक्त रूहानी बाप को
ही याद करते हैं। दारूल मसर्रत में कोई भी याद नहीं करते हैं। सुनहरे दौर में
आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम की सल्तनत में ख़ुशी ही ख़ुशी थी।
प्योरिटी, पीस, प्रासपर्टी थी। रब का वर्सा मिल गया फिर पुकारते क्यों। रूह
जानती है हमको ख़ुशी है। यह तो कोई भी कहेंगे वहाँ ख़ुशी ही ख़ुशी है। रब ने
दु:ख के लिए तो खिल्क़त नहीं तामीर की है। यह बना-बनाया खेल है। जिनका पार्ट
पिछाड़ी में है, 2-4 विलादत लेते हैं वह ज़रूर बाक़ी वक़्त सुकून में रहेंगे।
बाक़ी ड्रामा के खेल से ही निकल जाएं, यह हो नहीं सकता। खेल में तो सबको आना
होगा। एक-दो विलादत मिलती हैं। तो बाक़ी वक़्त जैसे कि निजात में हैं। रूह
पार्ट नशीन है ना। कोई रूह को आला पार्ट मिला हुआ है कोई को कम। यह भी अभी तुम
जानते हो, गाया जाता है अल्लाह ताला का कोई आखिर नहीं पा सकते। रब ही आकर आख़िर
देते हैं खालिक और मख़लूक़ के आग़ाज़-दरम्यान-आख़िर का। जब तक खालिक खुद न आये
तब तक खालिक और मख़लूक़ को जान नहीं सकते। रब ही आकर बतलाते हैं। मैं सादे
जिस्म में दाखिल करता हूँ। मैं जिसमें दाख़िली करता हूँ वह अपने विलादतों को नहीं
जानते। उनको बैठ 84 विलादतों की कहानी सुनाता हूँ। कोई के पार्ट में चेंज नहीं
हो सकता। यह बना-बनाया खेल है। यह भी किसकी अक्ल में नहीं बैठता है। अक्ल में
तब बैठे जब पाकीज़ा होकर समझें। अच्छी तरह समझने के लिए ही 7 रोज़ भट्ठी है।
भागवत वगैरह भी 7 रोज़ रखते हैं। यहाँ भी समझ में आता है - कम से कम 7 रोज़ के
सिवाए कोई समझ नहीं सकेंगे। कोई-कोई तो अच्छा समझ लेते हैं। कोई-कोई तो 7 रोज़
समझकर भी कुछ नहीं समझते। अक्ल में बैठता नहीं। कह देते हैं हम तो 7 रोज़ आये।
हमारी अक्ल में कुछ बैठता नहीं। आला मर्तबा पाना नहीं होगा तो अक्ल में बैठेगा
नहीं। अच्छा फिर भी उनका फ़लाह तो हुआ ना। अवाम तो ऐसे ही बनती है। बाक़ी
सल्तनत-क़िस्मत लेना उसमें तो बातिन मेहनत है। रब को याद करने से ही गुनाह ख़ाक़
होते हैं। अब करो न करो मगर रब का डायरेक्शन यह है। प्यारी चीज़ को तो याद किया
जाता है ना। अकीदत मन्दी की राह में भी गाते हैं ए नापाक से पाक बनाने वाले आओ।
अब वह मिला है, फ़रमाते हैं मुझे याद करो तो कट उतर जायेगी। बादशाही आसानी से
थोड़े ही मिल सकती। कुछ तो मेहनत होगी ना। याद में ही मेहनत है। अहम है ही याद
का सफ़र। निहायत याद करने वाले मुकम्मल नशीनी हालत को पा लेते हैं। पूरा याद न
करने से गुनाहों का ख़ात्मा नहीं होंगा। कुव्वत ए इबादत से ही अज़ाब फ़तहयाब
बनना है। आगे भी कुव्वत ए इबादत से ही गुनाहों को जीता है।आदम अलैहिस्सलाम और
हव्वा अलैहिस्सलाम इतने पाकीज़ा कैसे बनें जबकि इख्तिलाफ़ी फ़ितने के दौर के
आखिर में कोई भी पाकीज़ा नहीं हैं। इसमें तो साफ़ है, यह गीता के इल्म का
एपीसोड रिपीट हो रहा है। “ रहमतुल्आल्मीन फ़रमाते हैं '' भूलें तो होती रहती
हैं ना। रब ही आकर अभुल बनाते हैं। हिन्दुस्तान के जो भी सहीफें हैं वो तमाम
हैं अकीदत मन्दी की राह के। रब फ़रमाते हैं मैंने जो कहा था वह किसको भी मालूम
नहीं है। जिन्हों को कहा था उन्होंने मर्तबा पाया। 21 विलादतों की क़िस्मत पाई
फिर इल्म आमतौर पर ग़ायब हो जाता है। तुम ही चक्कर लगाकर आये हो। चक्कर पहले
जिन्होंने सुना है वही आयेंगे। अभी तुम जानते हो हम सैपलिंग लगा रहे हैं,
इन्सान को हूरैन बनाने की। यह है हूरैन दरख्त का सैपलिंग। वो लोग फिर उन दरख्तों
का सैपलिंग निहायत लगाते रहते हैं। रब आकर कान्ट्रास्ट बताते हैं। रब हूरैन फूलों
का सैपलिंग लगाते हैं। वे तो जंगल का सैपलिंग लगाते रहते हैं। तुम दिखाते भी हो
- कौरव क्या करत भये, पाण्डव क्या करत भये। उनके क्या प्लैन हैं और तुम्हारे
क्या प्लैन्स हैं। वो अपना प्लैन बनाते हैं कि दुनिया बढ़े नहीं। फैमिली
प्लैनिंग करें जो इन्सान जास्ती न बढ़ें, उसके लिए मेहनत करते रहते हैं। रब तो
निहायत अच्छी बात बतलाते हैं,कई मज़हब खलास हो जायेंगे और एक ही हूर-हूरैन दीन
की फैमिली क़ायम करते हैं। सुनहरे दौर में एक ही अल्लाह अव्वल हूर-हूरैन दीन की
फैमिली थी और इतनी फैमिलीज़ थी नहीं। हिन्दुस्तान में कितनी फैमिली हैं। गुजराती
फैमिली, महाराष्ट्रियन फैमिली..... असल में हिन्दुस्तान रिहाईश नशीनियों की एक
फैमिली होनी चाहिए। निहायत फैमिलीज़ होंगी तो ज़रूर आपस में खिटपिट ही रहेगी।
फिर सिविलवार हो जाती है। फैमिली में भी सिविलवार हो जाती है। जैसे क्रिश्चि
औरयन की अपनी फैमिली है। उन्हों की भी आपस में लगती है। आपस में दो-भाई नहीं
मिलते, पानी भी बांटा जाता है। सिक्ख दीन वाले समझेंगे हम अपने सिक्ख दीन वालों
को जास्ती ख़ुशी दें, रग जाती है तो माथा मारते रहते हैं। जब आखिर होती है तो
फिर सिविलवार वगैरह तमाम आ जाती हैं। आपस में लड़ने लग पड़ते हैं। तबाही तो होनी
ही है। बॉम्बस बेइंतहा बनाते रहते हैं। बड़ी लड़ाई जब लगी थी जिसमें दो बॉम्बस
छोड़े थे, अभी तो बेइंतहा बनाये हैं। समझ की बात है ना। तुमको समझाना है यह
लड़ाई वही क़यामत की है। बड़े-बड़े लोग जो भी हैं, कहते हैं अगर इस लड़ाई को
बन्द नहीं किया तो तमाम दुनिया को आग लग जायेगी। आग तो लगनी ही है, यह तुम जानते
हो। रब अल्लाह अव्वल हूर-हूरैन दीन का क़याम कर रहे हैं। सल्तनत ए इबादत है ही
सुनहरे दौर की। वह हूर-हूरैन दीन अब आमतौर पर ग़ायब है। तस्वीर भी बनी हैं। रब
फ़रमाते हैं चक्कर पहले मुआफिक़ जो मुश्किलात पड़नी होंगी वह पड़ेंगी। पहले थोड़े
ही मालूम पड़ता है। फिर समझा जाता है चक्कर पहले ऐसे हुआ होगा। यह बना बनाया
ड्रामा है। ड्रामा में हम बांधे हुए हैं। याद के सफ़र को भूल नहीं जाना चाहिए,
इनको इम्तहान कहा जाता है। याद के सफ़र में ठहर नहीं सकते हैं, थक जाते हैं।
नग़मा है ना - रात के राही...... इसका मतलब कोई समझ न सके। यह है याद का सफ़र।
जिससे रात पूरी हो दिन आ जायेगा। आधा चक्कर पूरा हो फिर ख़ुशी शुरू होगी। रब ने
ही मनमनाभव का मतलब भी समझाया है। सिर्फ़ गीता में कृष्ण का नाम डालने से वह
ताक़त नहीं रही है। अब फ़लाह तो सबका होना है। गोया हम तमाम इन्सान का फ़लाह कर
रहे हैं। हिन्दुस्तान ख़ास और दुनिया आम। सबका सिरात ए मुस्तकीम पर हम फ़लाह कर
रहे हैं। फ़लाह नशीन जो बनेंगे तो वर्सा भी उनको मिलेगा। याद के सफ़र के सिवाए
फ़लाह हो न सके।
अभी तुमको समझाया जाता है, वह तो बेहद का रब है। रब से वर्सा मिला था।
हिन्दुस्तान रिहाईश नशीन ने ही 84 विलादत लिए हैं। दोबारा विलादत का भी हिसाब
है। कोई समझते नहीं कि 84 विलादत कौन लेते हैं। अपने ही श्लोक वगैरह बनाकर
सुनाते रहते हैं। गीता वही, टीकायें कई लिख देते हैं। गीता से तो भागवत बड़ी कर
दी है। गीता में है इल्म। भागवत में है रिवायत ए ज़िन्दगी। असल में बड़ी गीता
होनी चाहिए। दरिया ए इल्म रब है, उनका इल्म तो चलता ही रहता है। वह गीता तो आधा
घण्टे में पढ़ लेते हैं। अभी तुम यह इल्म तो सुनते ही आते हो। रोज़ ब रोज़
तुम्हारे पास कई लोग आते रहेंगे। आहिस्ता-आहिस्ता आयेंगे। अभी ही अगर बड़े-बड़े
राजायें आ जाएं फिर तो देरी न लगे। झट आवाज़ निकल जाए इसलिए तरीक़े से
आहिस्ते-आहिस्ते चलता रहता है। यह है ही बातिन इल्म। किसको मालूम नहीं है कि यह
क्या कर रहे हैं। शैतान के साथ तुम्हारी जंग कैसे है। यह तो तुम ही जानो और कोई
जान न सके। अल्लाह ताला फ़रमाते - तुम सातों फ़ज़ीलतों से लबरेज़ बनने के लिए
मुझे याद करो तो गुनाहों का ख़ात्मा हो जायेंगा। पाकीज़ा बनो तब तो साथ ले जाऊं।
ज़िन्दगी ए निजात सबको मिलनी है। शैतानी सल्तनत से निजात हो जायेगी। तुम लिखते
भी हो हम कुव्वत ए रहमतुल्आल्मीन आदम ज़ादा- ज़ादियां, अफ़ज़ल नशीन दुनिया
क़ायम करेंगे। पाक परवरदिगार की सिरात ए मुस्तकीम पर, 5 हज़ार साल पहले मुआफिक़।
5 हज़ार साल पहले अफ़ज़ल नशीन दुनिया थी। यह अक्ल में बिठाना चाहिए। अहम-अहम
प्वाइंटस अक्ल में इख्तियार होंगी तब याद के सफ़र में रहेंगे। पत्थर-अक्ल हैं
ना। कोई समझते हैं अभी टाइम पड़ा है पीछे तजवीज़ कर लेंगे। मगर मौत का कायदा
थोड़े ही है। कल मर जाएं तो कल-कल करते मर जायेंगे। तजवीज़ तो की नहीं इसलिए ऐसे
मत समझो निहायत साल पड़े हैं। पिछाड़ी में गैलप कर लेंगे। यह ख्याल और ही गिरा
देंगा। जितना हो सके तजवीज़ करते रहो। सिरात ए मुस्तकीम पर हर एक को अपना फ़लाह
करना है। अपनी तफ्तीश करनी है। कितना रब को याद करता हूँ और कितना रब की खिदमत
करता हूँ! रूहानी खुदाई खिदमतगार तुम हो ना। तुम रूहों को सैलवेज करते हो। रूह
नापाक से पाक कैसे बने, उसका तरीक़ा बतलाते हैं। दुनिया में अच्छे और बुरे
इन्सान तो होते ही हैं, हर एक का पार्ट अपना-अपना है। यह है बेहद की बात। अहम
टाल टालियां ही गिनी जाती हैं। बाक़ी तो पत्ते कई हैं। रब समझाते रहते हैं -
बच्चे मेहनत करो। सबको रब का तारूफ दो तो रब से अक्ल का राब्ता जुट जाए। रब सब
बच्चों को फ़रमाते हैं, पाकीज़ा बनो तो दारूल निजात में चले जायेंगे। दुनिया को
थोड़े ही मालूम है कि क़यामत लड़ाई से क्या होगा। यह इल्म यज्ञ तामीर किया गया
है। क्योंकि नई दुनिया चाहिए। हमारा यज्ञ पूरा होगा तो तमाम इस यज्ञ में खलास
हो जायेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों के वास्ते मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और
गुडमॉर्निंग। रूहानी रब की रूहानी बच्चों को सलाम।
तरीक़त के वास्ते अहम
निकात:-
1) यह बना बनाया ड्रामा है इसलिए मुश्किलात से घबराना नहीं है। मुश्किलात में
याद के सफ़र को भूल नहीं जाना है। तवज्जों रहे - याद का सफ़र कभी ठहर न जाए।
2) रूहानी रब का तारूफ सबको देते हुए पाकीज़ा बनने का तरीक़ा बतलाना है। हूरैन
दरख्त का सैपलिंग लगाना है।
बरक़ात:-
तमाम
ज़िम्मेवारियों के बोझ रब को देकर हमेशा अपनी तरक्की करने वाले आसान इबादत नशीन
बनो।
जो बच्चे रब के काम को
लबरेज़ करने की ज़िम्मेवारी का इरादा लेते हैं उन्हें रब भी इतनी ही मदद देते
हैं। सिर्फ़ जो भी फ़ालतू का बोझ है वह रब के ऊपर छोड़ दो। रब का बनकर रब के
ऊपर जिम्मेवारियों का बोझ छोड़ने से कामयाबी भी ज़्यादा और तरक्की भी आसान होगी।
क्यों और क्या के क्वेश्चन से आज़ाद रहो, ख़ास फुल-स्टॉप की सूरत ए हाल रहे। तो
आसान इबादत नशीन बन हवास ए बालातर ख़ुशी का एहसास करते रहेंगे।
स्लोगन:-
दिल और दिमाग़ में
ऑनेस्टी हो तो रब और फैमिली के भरोसे मन्द बन जायेंगे।
आमीन