मीठे बच्चे - रब आये हैं
तुम्हें शैतानी सल्तनत से लिबरेट कर ख़ैर निजात देने, जहन्नुम रिहाईश नशीन को
जन्नत रिहाईश नशीन बनाने”
सवाल:-
रब ने तुम
हिन्दुस्तान रिहाईश नशीन बच्चों को कौनसी-कौनसी याददाश्त दिलाई है?
जवाब:-
ए
हिन्दुस्तान रिहाईश नशीन बच्चे! तुम जन्नत रिहाईश नशीन थे। आज से 5 हज़ार साल
पहले हिन्दुस्तान जन्नत था, हीरे सोने के महल थे। तुम तमाम दुनिया के मालिक थे।
ज़मीन आसमान सब तुम्हारे थे। हिन्दुस्तान रहमतुल्आल्मीन का क़ायम किया हुआ आलम
ए इलाही था। वहाँ पाकिज़गी थी। अब फिर से ऐसा हिन्दुस्तान बनने वाला है।
नग़मा:-
नयन हीन को राह दिखाओ प्रभू........
आमीन।
मीठे-मीठे
रूहानी बच्चों (रूहों) ने यह नग़मा सुना। किसने कहा? रूहों के रूहानी रब ने। तो
रूहानी रब को रूहानी बच्चों ने कहा कि ए रब्बा। उनको अल्लाह ताला भी कहा जाता
है, बाप भी कहा जाता है। कौन सा बाप? सुप्रीम बाप क्योंकि बाप दो हैं - एक
जिस्मानी, दूसरा रूहानी। जिस्मानी बाप के बच्चे रूहानी बाप को पुकारते हैं - ए
रब्बा। अच्छा रब्बा का नाम? रहमतुल्आल्मीन। वह तो ग़ैर मुजस्सम पूजा जाता है।
उनको कहा जाता है सुप्रीम फादर। जिस्मानी बाप को सुप्रीम नहीं कहा जाता। आला ते
आला तमाम रूहों का बाप एक ही है। तमाम ज़िन्दा रूह उस बाप को याद करती हैं। रूहें
यह भूल गयी हैं कि हमारा बाप कौन है? पुकारते हैं ओ गॉड फादर हम अंधे को आंख दो
तो हम अपने रब को पहचानें। अकीदत मन्दी की ठोकरों से छुड़ाओ। खैर निजात के लिए
तीसरी आंख लेने लिए, रब से मिलने लिए पुकारते हैं क्योंकि रब ही चक्कर-चक्कर
हिन्दुस्तान में आकर हिन्दुस्तान को जन्नत बनाते हैं। अभी इख्तिलाफ़ी फ़ितने का
दौर है, इख्तिलाफ़ी फ़ितने के दौर के बाद सुनहरा दौर आना है। यह है रूह ए
अफ़ज़ल मिलन का दौर। बेहद का बाप आकर जो नापाक बद उन्वानी बन गये हैं उन्हों को
रूह ए अफ़ज़ल बनाते हैं। यह (आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम) रूह ए
अफ़ज़ल हिन्दुस्तान में थे। आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम की डिनायस्टी
की सल्तनत थी। आज से 5 हज़ार साल पहले सुनहरे दौर में आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा
अलैहिस्सलाम की सल्तनत थी। यह बच्चों को याददाश्त दिलाते हैं। तुम हिन्दुस्तान
रिहाईश नशीन आज से 5 हज़ार साल पहले जन्नत रिहाईश नशीन थे। अब तो सब जहन्नुम
रिहाईश नशीन हैं। आज से 5 हज़ार साल पहले हिन्दुस्तान हेविन था। हिन्दुस्तान की
निहायत अज़मत थी, हीरे-सोने के महल थे। अभी तो कुछ भी नहीं है। उस वक़्त और कोई
मज़हब नहीं था, सिर्फ़ खानदान ए आफ़ताबी ही थे। खानदान ए महताबी भी पीछे आते
हैं। रब समझाते हैं तुम खानदान ए आफ़ताबी डिनायस्टी के थे। अभी तक भी इन
लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर बनाते रहते हैं। मगर आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा
अलैहिस्सलाम की सल्तनत कब थी, कैसे पायी, यह किसको मालूम नहीं है। बुतपरस्ती
करते हैं, जानते नहीं। तो ब्लाइन्डफेथ हुआ ना। शिव की, लक्ष्मी-नारायण की पूजा
करते हैं, बायोग्राफी को भी नहीं जानते। अभी हिन्दुस्तान रिहाईश नशीन खुद कहते
हैं - हम नापाक हैं। हम नापाकों को पाक बनाने वाला रब्बा आओ। आकर हमको दु:खों
से, शैतानी सल्तनत से लिबरेट करो। रब ही आकर सबको लिबरेट करते हैं। बच्चे जानते
हैं सुनहरे दौर में बरोबर एक सल्तनत थी। बापू जी भी कहते थे कि हमको फिर से
रामराज्य चाहिए, घरेलू राब्ता जो नापाक बन गया है सो पाकीज़ा चाहिए। हम जन्नत
रिहाईश नशीन बनने चाहते हैं। अभी जहन्नुम रिहाईश नशीनियों का क्या हाल है, देख
रहे हो ना। इसको कहा जाता है हेल, डेविल वर्ल्ड। यही हिन्दुस्तान डीटी वर्ल्ड
था। रब बैठ समझाते हैं तुमने 84 विलादत लिए हैं, न कि 84 लाख। रब समझाते हैं
तुम असुल दारूल सुकून के रहने वाले हो। तुम यहाँ पार्ट बजाने आये हो। 84 विलादतों
का पार्ट बजाया है। दोबारा विलादत तो ज़रूर लेना पड़े ना। दोबारा विलादत 84 होते
हैं।
अब बेहद का रब आये हैं तुम बच्चों को बेहद का वर्सा देने। रब तुम बच्चों (रूहो)
से बात कर रहे हैं। और इज्तेमाअ में इन्सान, इन्सानों को अकीदत मन्दी की बातें
सुनाते हैं। आधा चक्कर हिन्दुस्तान जब जन्नत था तो एक भी नापाक नहीं था। इस
वक़्त एक भी पाक नहीं। यह है ही नापाक दुनिया। गीता में कृष्ण भगवानुवाच लिख
दिया है। उसने तो गीता सुनाई नहीं। ये लोग अपने मज़हबी सहीफें को भी नहीं जानते।
अपने मज़हब को ही भूल गये हैं। हिन्दू कोई मज़हब नहीं है। मज़हब अहम हैं चार।
पहले हैं अल्लाह अव्वल हूर-हूरैन दीन। खानदान ए आफ़ताबी और खानदान ए महताबी दोनों
को मिलाकर कहा जाता है हूर-हूरैन दीन, डीटीज्म। वहाँ दु:ख का नाम नहीं था। 21
विलादत तो तुम दारूल मसर्रत में थे फिर शैतानी सल्तनत, अकीदत मन्दी की राह शुरू
होती है। अकीदत मन्दी की राह है ही नीचे उतरने का। अकीदत मन्दी है रात, इल्म है
दिन। अभी है घोर अंधियारी रात। शिव जयन्ती और शिवरात्रि यानि कि शब ए बारात,
दोनों अल्फ़ाज़ आते हैं। रहमतुल्आल्मीन कब आते हैं? जब रात होती है।
हिन्दुस्तान रिहाईश नशीन घोर अन्धियारे में आ जाते हैं तब रब आते हैं। गुड़ियों
की पूजा करते रहते हैं, एक की भी बायोग्राफी नहीं जानते। यह अकीदत मन्दी की राह
के सहीफें भी बनने ही हैं। यह ड्रामा, खिल्क़त के चक्कर को भी समझना है। सहीफों
में यह नॉलेज नहीं है। वह है अकीदत मन्दी का इल्म, फिलॉसॉफी। वह कोई ख़ैर निजात
की राह का इल्म नहीं है। रब फ़रमाते हैं - मैं आकर तुमको आदम अलैहिस्सलाम के
ज़रिए हक़ीक़ी इल्म सुनाता हूँ। पुकारते भी हैं, हमको दारूल मसर्रत, दारूल
सुकून का रास्ता बताओ। रब फ़रमाते हैं आज से 5 हज़ार साल पहले दारूल मसर्रत थी,
जिसमें तुम तमाम दुनिया पर सल्तनत करते थे। खानदान ए आफ़ताबी डिनायस्टी की
सल्तनत थी। बाक़ी तमाम रूहें दारूल सुकून में थीं। वहाँ 9 लाख गाये जाते हैं।
तुम बच्चों को आज से 5 हज़ार साल पहले निहायत दौलत मन्द बनाया था। इतनी दौलत
दिया फिर तुमने वह कहाँ गँवाया? तुम कितने दौलत मन्द थे। हिन्दुस्तान कौन सडावे
(कहलाये)। हिन्दुस्तान ही सबसे आला ते आला खण्ड है। तमाम का असल में यह मुकद्दस
मुकाम है, क्योंकि नापाक से पाक बनाने वाले रब की पैदाईशी मुकाम है। जो भी
मज़हब वाले हैं, तमाम की रब आकर खैर निजात करते हैं। अभी शैतान की सल्तनत तमाम
खिल्क़त में है, सिर्फ़ लंका में नहीं थी। तमाम में 5 ख़बासत दाखिल हैं। जब
खानदान ए आफ़ताबी सल्तनत थी तो यह ख़बासत ही नहीं थे। हिन्दुस्तान वाइसलेस था।
अभी विशश है। सुनहरे दौर में हूरैन फ़िरक़ा था। वह फिर 84 विलादत भोग अभी शैतानी
फ़िरक़ा बने हैं फिर हूरैन फ़िरके बनते हैं। हिन्दुस्तान निहायत दौलत मन्द था।
अब ग़रीब बना है इसलिए भीख मांग रहे हैं।
रब फ़रमाते हैं तुम कितने दौलत मन्द थे। तुम्हारे जैसी ख़ुशी किसको भी मिल नहीं
सकती। तुम तमाम दुनिया के मालिक थे, ज़मीन आसमान तमाम तुम्हारे थे। रब याददाश्त
दिलाते हैं, हिन्दुस्तान रहमतुल्आल्मीन का क़याम किया हुआ आलम ए इलाही था। वहाँ
पाकीज़गी थी, उस नई दुनिया में हूर-हूरैन सल्तनत करते थे। हिन्दुस्तान रिहाईश
नशीन तो यह भी नहीं जानते कि राधे-कृष्ण का आपस में क्या संबंध है? दोनों
अलग-अलग दारूल हुकूमत के थे फिर निकाह के बाद आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा
अलैहिस्सलाम बने हैं। यह इल्म कोई इन्सान में नहीं है। पाक परवरदिगार ही दरिया
ए इल्म है, वही तुम्हें यह रूहानी इल्म देते हैं, यह स्प्रीचुअल नॉलेज सिर्फ़
एक रब ही दे सकते हैं। अब रब फ़रमाते हैं - रूहानी हवासी बनो। मुझ अपने सुप्रीम
बाप रहमतुल्आल्मीन को याद करो। याद से ही सातों फ़ज़ीलतों से लबरेज़ बनेंगे।
तुम यहाँ आते ही हो इन्सान से हूरैन और नापाक से पाक बनने। अभी यह है शैतानी
सल्तनत। अकीदत मन्दी की राह में शैतानी सल्तनत शुरू होती है। शैतान ने कोई एक
सीता को नहीं चुराया है। तुम तमाम अकीदत मन्दी करने वाले, शैतान के चम्बे में
हो। तमाम खिल्क़त 5 ख़बासतों रूपी शैतान की कैद में है। तमाम दुःख की दुनिया
में दु:खी हैं। रब आकर सबको लिबरेट करते हैं। अब रब फिर से जन्नत बना रहे हैं।
ऐसे नहीं कि अभी जिनको दौलत निहायत है, वह जन्नत में हैं। नहीं, अभी है ही
जहन्नुम। तमाम नापाक हैं इसलिए गंगा में जाकर नहाना करते हैं, समझते हैं गंगा
नापाक से पाक बनाने वाले है। मगर पाकीज़ा तो कोई बनते नहीं हैं। नापाक से पाक
बनाने वाले तो रब को ही कहा जाता है, न कि नदियों को। यह तमाम है अकीदत मन्दी
राह। रब ही यह बातें आकर समझाते हैं। अब तुम यह तो जानते हो एक है जिस्मानी बाप,
दूसरा फिर बाप ए अवाम जिब्राइल अलैहिस्सलाम है रूहानी रब और वह रूहानी बाप। तीन
बाप हैं। रहमतुल्आल्मीन, बाप ए अवाम जिब्राइल अलैहिस्सलाम के ज़रिए मोमिन दीन
क़ायम करते हैं। मोमिनों को हूरैन बनाने के लिए सल्तनत ए इबादत सिखलाते हैं। एक
ही बार रब आकर रूहों को सल्तनत ए इबादत सिखलाते हैं। रूहे दोबारा विलादत लेती
हैं। रूह ही कहती है - मैं एक जिस्म छोड़ दूसरा लेती हूँ। रब फ़रमाते हैं अपने
को रूह समझ मुझ रब को याद करो तो तुम पाकीज़ा बनेंगे। कोई भी जिस्म नशीन को याद
नहीं करो। अभी यह है आलम ए मौत का आखिर। आलम ए हयात का क़याम हो रहा है। बाक़ी
तमाम अनेक मज़हब ख़लास हो जायेंगे। आला जन्नत में एक ही हूरैन दीन था। फिर अदना
जन्नत में खानदान ए महताबी नूह अलैहिस्सलाम और आबर अलैहिस्सलाम। तुम बच्चों को
तमाम चक्कर की याद दिलाते हैं। दारूल सुकून, दारूल मसर्रत की क़याम करते ही हैं
रब। इन्सान, इन्सान को ख़ैर निजात दे नहीं सकते। वह तमाम हैं अकीदत मन्दी की
राह के हादी। अकीदत मन्दी की राह में इन्सान कई तरह की तस्वीर बनाए इबादत कर
फिर जाकर कहते हैं डूब जा, डूब जा। निहायत इबादत करते, खिलाते पिलाते, अब खाते
तो मोमिन लोग हैं। इसको कहा जाता है गुड़ियों की पूजा। कितनी अन्धी अकीदत है।
अब उन्हों को कौन समझाये।
रब फ़रमाते हैं अभी तुम हो इलाही औलाद। तुम अभी रब से सल्तनत ए इबादत सीख रहे
हो। यह दारूल हुकूमत क़ायम हो रही है। अवाम तो निहायत बननी है। कोटों में कोई
बादशाह बनते हैं। सुनहरे दौर को कहा जाता है फूलों का बगीचा। अभी है कांटों का
जंगल। अभी शैतानी सल्तनत बदल रहा है। यह तबाही होनी ही है। यह नॉलेज अभी सिर्फ़
तुम मोमिन को मिलती है।आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम को भी यह इल्म नहीं
रहता। यह इल्म आम तौर पर गायब हो जाता है। अकीदत मन्दी की राह में कोई भी रब को
जानते ही नहीं। रब ही खालिक है। जिब्राइल अलैहिस्सलाम-मीकाईल
अलैहिस्सलाम-इस्राफील अलैहिस्सलाम भी मख़लूक़ हैं। पाक परवरदिगार सब तरफ़ मौजूद
कहने से तमाम बाप हो जाते। वर्से का हक़ नहीं रहता। रब तो आकर तमाम बच्चों को
वर्सा देते हैं। तमाम का ख़ैर निजात दिलाने वाला एक ही रब है। यह भी समझाया है
84 विलादत वह लेते हैं जो पहले-पहले सुनहरे दौर में आते हैं। क्रिश्चियन लोग के
विलादत कितने होंगे? करके 40 विलादत होंगे। यह हिसाब निकाला जाता है। एक अल्लाह
ताला को ढूँढने के लिए कितने धक्के खाते हैं। अभी तुम धक्के नहीं खायेंगे। तुमको
सिर्फ़ एक रब को याद करना है। यह है याद का सफ़र। यह है नापाक से पाक बनाने वाले
गॉड फादरली युनिवर्सिटी। तुम्हारी रूह पढ़ती है। राहिब वली फिर कह देते हैं रूह
निर्लेप है। अरे रूह को ही आमालों के मुताबिक़ दूसरी विलादत लेनी पड़ती है। रूह
ही अच्छा और बुरा काम करती है। इस वक़्त तुम्हारा आमाल गुनाहगार आमाल होता है।
सुनहरे दौर में आमाल न्युटरल आमाल होते हैं। वहाँ गुनाहगार आमाल होता नहीं। वह
है नफ़ीस रूहों की दुनिया। यह तमाम समझने और समझाने की बातें हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे नम्बरवार तजवीज़ के मुताबिक कांटे से फूल बनने वाले बच्चों
के वास्ते मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुड-मॉर्निंग। रूहानी रब की रूहानी
बच्चों को सलाम।
तरीक़त के वास्ते अहम
निकात:-
1) कांटे से फूल बन फूलों का बगीचा (सुनहरे दौर) क़ायम करने की खिदमत करनी है।
कोई भी बुरा आमाल नहीं करना है।
2) रूहानी इल्म जो रब से सुना है वही सबको सुनाना है। रूहानी हवासी बनने की
मेहनत करनी है। एक रब को ही याद करना है, किसी जिस्मानी हवासी को नहीं।
बरक़ात:-
हमेशा अपने
रॉयल खानदान की याददाश्त के ज़रिए आला स्टेज पर रहने वाले फ़ज़ीलत सूरत याफ़्ता
बनो।
जो रॉयल खानदान वाले होते
हैं वह कभी ज़मीन पर, मिट्टी पर पांव नहीं रखते। यहाँ जिस्मानी हवास मिट्टी है,
इसमें नीचे नहीं आओ, इस मिट्टी से हमेशा दूर रहो। हमेशा याददाश्त रहे कि आला से
आला रब के रॉयल फैमिली के, आला स्टेज वाले बच्चे हैं तो नीचे नज़र नहीं आयेगी।
हमेशा अपने को फ़ज़ीलत सूरत देखते हुए आला स्टेज पर वाक़ेअ रहो। कमी को देखते
ख़त्म करते जाओ। उसे बार-बार सोचेंगे तो कमी रह जायेगी।
स्लोगन:-
रॉयल वह है जो अपने
खुशहाली के ज़रिए प्योरिटी की रायॅल्टी का एहसास कराये।
आमीन