“मीठे बच्चे
तुम्हें
कमाई का निहायत शौक होना चाहिए, इस तालीम में ही कमाई है"
सवाल:-
इल्म के
बिगर कौन सी ख़ुशी की बात भी मुश्किलात रूप बन जाती है?
जवाब:-
दीदार ए
जलवा होना, यह है तो ख़ुशी की बात मगर अगर हक़ीक़ी रूप से इल्म नहीं है तो और
ही मूँझ जाते हैं। समझो किसी को रब का दीदार ए जलवा हुआ, नुक्ता देखा तो क्या
समझेंगे और ही मूँझेंगे, इसलिए इल्म के बिगर दीदार ए जलवा से कोई भी फ़ायदा नहीं।
इसमें और ही इल्म के मुश्किलात पड़ने लगते हैं। कइयों को दीदार ए जलवा का उल्टा
नशा भी चढ़ जाता है।
नग़मा:-
तकदीर
जगाकर आई हूँ........
आमीन।
मीठे-मीठे
रूहानी बच्चों ने नग़मा सुना। नयों ने भी सुना, पुरानों ने भी सुना। कुमारों ने
भी सुना कि यह दारूल उलूम है। दारूल उलूम में कोई न कोई तक़दीर बनाई जाती है।
वहाँ तो कई तरह की तक़दीर है। कोई सर्जन बनने की, कोई बैरिस्टर बनने की तक़दीर
बनाते हैं। तकदीर को एम-ऑब्जेक्ट कहा जाता है। तक़दीर बनाने बिगर दारूल उलूम
में क्या पढ़ेंगे। अब यहाँ बच्चे जानते हैं कि हम भी तक़दीर बनाकर आये हैं। नई
दुनिया के लिए अपना सल्तनत-क़िस्मत लेने आये हैं। यह हक़ीक़ी इबादत है ही नई
दुनिया के लिए। वह है पुरानी दुनिया के लिए। वह पुरानी दुनिया के लिए बैरिस्टर,
इन्जीनियर, सर्जन वगैरह बनते हैं। वह बनते-बनते अभी पुरानी दुनिया का तो टाइम
निहायत थोड़ा रहा है। वह तो ख़त्म हो जायेंगे। वह तक़दीर है इस आलम ए मौत के
लिए यानि कि इस विलादत के लिए। तुम्हारी यह तालीम है नई दुनिया के लिए। तुम नई
दुनिया के लिए तक़दीर बनाकर आये हो। नई दुनिया में तुमको सल्तनत-क़िस्मत मिलेगा।
कौन पढ़ाते हैं? बेहद का रब, जिनसे ही वर्सा पाना है। जैसे डॉक्टर से डॉक्टरी
का वर्सा पाते हैं, वह हो जाता है इस विलादत का वर्सा। एक तो वर्सा मिलता है रब
से, दूसरा वर्सा मिलता है अपनी तालीम का। अच्छा, फिर जब बुज़ुर्ग होते हैं तब
हादी के पास जाते हैं। क्या चाहते हैं? कहते हैं हमको दारूल सुकून में जाने की
तालीम दो। हमको ख़ैर निजात दो। यहाँ से निकाल दारूल सुकून ले जाओ। अब रब से
वर्सा मिलता है, उस्ताद से भी वर्सा मिलता है इस विलादत के लिए, बाक़ी हादी से
कुछ भी मिलता नहीं। उस्ताद से पढ़कर कुछ न कुछ वर्सा पाते हैं। उस्ताद बनें,
सुविंग टीचर (सिलाई टीचर) बनें, क्योंकि रोजगार तो चाहिए ना। रब का वर्सा होते
हुए भी पढ़ते हैं कि हम भी अपनी कमाई करें। हादी से तो कुछ भी कमाई होती नहीं।
हाँ कोई-कोई गीता वगैरह अच्छी रीति पढ़कर फिर गीता पर तक़रीर वगैरह करते हैं।
यह तमाम हैं कलील अरसे की ख़ुशी के लिए। अब तो इस आलम ए मौत में हैं थोड़ा वक्त।
पुरानी दुनिया ख़त्म होनी है। तुम जानते हो हम नई दुनिया की तक़दीर बनाने आये
हैं। यह पुरानी दुनिया ख़त्म होनी है। रब की और अपनी मिलकियत भी ख़ाक हो जायेगी।
हाथ फिर खाली हो जायेंगे। अभी तो कमाई चाहिए - नई दुनिया के लिए। पुरानी दुनिया
के इन्सान तो वह करा नहीं सकेंगे। नई दुनिया के लिए कमाई कराने वाला है
रहमतुल्आल्मीन। यहाँ तुम नई दुनिया के लिए तक़दीर बनाने आये हो। वह रब ही
तुम्हारा बाप भी है, उस्ताद भी है, हादी भी है। और वह आते भी हैं मिलन पर।
मुस्तकबिल के लिए कमाई करना सिखाते हैं। अब इस पुरानी दुनिया में थोड़े रोज़
हैं। यह दुनिया के इन्सान नहीं जानते। कहेंगे नई दुनिया फिर कब आयेगी, यह गपोड़ा
मारने वाले हैं। ऐसे समझने वाले भी निहायत हैं। रब कहेंगे नई दुनिया क़ायम होती
है। बच्चा कहेगा यह गपोड़ा है। तुम बच्चे समझते हो नई दुनिया के लिए यह हमारा
बाप, उस्ताद, हक़ीक़ी हादी है। रब आते ही हैं दारूल सुकून, दारूल मसर्रत में ले
जाने। कोई तक़दीर नहीं बनाते हैं गोया कुछ भी समझते नहीं हैं। एक ही घर में औरत
पढ़ती है, मर्द नहीं पढ़ेगा; बच्चे पढ़ेंगे, माँ-बाप नहीं पढ़ेंगे। ऐसे होता
रहता है। शुरू में खानदान के खानदान आये मगर इबलीस का तूफ़ान लगने से आश्चर्यवत्
सुनन्ती, कथन्ती, रब को छोड़ चले गये। गाया हुआ भी है आश्चर्यवत् सुनन्ती, रब
का बनेंगे, पढ़ाई पढ़ेंगे फिर भी.... हाय कुदरत ड्रामा की। रब खुद कहते हैं हाय
ड्रामा, हाय इबलीस। ड्रामा की ही बात हुई ना। औरत-मर्द एक-दो को डायओर्स देते
हैं। बच्चे रब को फारकती देते हैं यहाँ तो वह नहीं है। यहाँ तो डायओर्स दे न सकें।
रब तो आये ही हैं बच्चों को सच्ची कमाई कराने। रब थोड़े ही किसको खड्डे में
डालेंगे। रब तो है ही नापाक से पाक, रहमदिल। रब आकर दु:ख से लिबरेट करते हैं और
गाइड बन साथ ले जाने वाला है। ऐसे कोई जिस्मानी हादी नहीं कहेंगे कि मैं तुमको
साथ ले जाऊंगा। ऐसे हादी कभी देखा, कभी सुना? हादी लोगों से तुम पूछो - इतने
आपके जो फालोअर्स हैं, तुम जिस्म छोड़ जायेंगे फिर क्या इन फालोअर्स को भी साथ
ले जायेंगे? ऐसे तो कभी कोई नहीं कहेगा कि मैं फालोअर्स को साथ ले जाऊंगा। यह
तो हो न सके। कभी कोई कह न सके कि मैं तुम सबको दारूल निजात और आलम ए अरवाह में
ले जाऊंगा। ऐसा सवाल कोई पूछ भी न सके कि हमको आप साथ ले जायेंगे? सहीफों में
है अल्लाह ताला फरमाते हैं, मैं तुमको ले जाऊंगा। मच्छरों के मिसल तमाम जाते
हैं। सुनहरे दौर में तो इन्सान थोड़े होते हैं। इख्तिलाफ़ी फ़ितने के दौर में
तो बेइंतहा इन्सान हैं। जिस्म छोड़ बाक़ी रूहे हिसाब-किताब चुक्तू कर चली
जायेंगी। भागना ज़रूर है, इतने इन्सान रह न सकें। तुम बच्चे अच्छी तरह जानते हो
- अभी हमको जाना है घर। यह जिस्म तो छोड़ना है। आप मुये मर गई दुनिया। अपने को
सिर्फ़ रूह समझ रब को याद करना है। यह पुराना चोला तो छोड़ना है। यह दुनिया भी
पुरानी है। जैसे पुराने घर में बैठे हुए नया घर सामने तैयार होता रहता तो
समझेंगे हमारे लिए बन रहा है। अक्ल चली जायेगी नये घर तरफ़। इसमें यह बनाओ, यह
करो। ममत्व तमाम पुराने से मिटकर नये में जुट जाता है। वह हुई हद की बात। यह है
बेहद के दुनिया की बात। पुरानी दुनिया से ममत्व मिटाना है और नई दुनिया में
लगाना है। जानते हैं यह पुरानी दुनिया तो ख़त्म हो जानी है। नई दुनिया है जन्नत।
उसमें हम बादशाहत मर्तबा पाते हैं। जितना इबादत में रहेंगे, इल्म का इख्तियार
करेंगे, औरों को समझायेंगे, उतना ख़ुशी का पारा चढ़ेगा। बड़ा भारी इम्तहान है।
हम जन्नत की 21 विलादत के लिए वर्सा पा रहे हैं। दौलत मन्द बनना तो अच्छा है
ना। बड़ी उम्र मिली तो अच्छा है ना।खिल्क़त को याद करेंगे, जितना जो अपने जैसा
बनायेंगे उतना फ़ायदा है। बादशाह बनना है तो अवाम भी बनानी है। नुमाइश में इतने
बेइंतहा आते हैं। वह तमाम अवाम बनती जायेगी क्योंकि इस ला फ़ानी इल्म की तबाही
तो होता नहीं है। अक्ल में आ जायेगा - पाकीज़ा बन पाकीज़ा दुनिया का मालिक बनना
है। तजवीज़ जास्ती करेंगे तो अवाम में आला मर्तबा पायेंगे। नहीं तो कम दर्जे
वाली अवाम बनेंगे। नम्बरवार तो होते हैं ना। इलाही सल्तनत का क़याम हो रहा है।
शैतानी सल्तनत की तबाह हो जायेगी। सुनहरे दौर में तो होंगे ही हूरैन।
रब्बा ने समझाया है - याद
के सफ़र से तुम सातों फ़ज़ीलतों से लबरेज़ दुनिया के मालिक बनेंगे। मालिक तो
बादशाह अवाम तमाम होते हैं। अवाम भी कहेगी हिन्दुस्तान हमारा सबसे आला मर्तबा
है। बरोबर हिन्दुस्तान निहायत आला मर्तबा था। अभी थोड़े ही है, था ज़रूर। अभी
तो बिल्कुल ही ग़रीब हो गया है। क़दीम हिन्दुस्तान सबसे दौलतमंद था। तुम जानते
हो - बरोबर हम हिन्दुस्तान रिहाईश नशीन सबसे आला सुर हूरैन खानदान के थे। दूसरे
कोई को हूरैन नहीं कहा जाता। अब तुम बच्चियां यह पढ़ती हो फिर औरों को समझाना
है। इन्सानों को समझाना तो है ना। तुम्हारे पास तस्वीर भी हैं, तुम साबित कर
बतला सकते हो - इन्होंने यह मर्तबा कैसे पाया? अंगे अक्षरे (तिथि-तारीख के साथ)
तुम साबित कर सकते हो। अब फिर से यह पद पा रहे हैं रहमतुल्आल्मीन से। उनका
तस्वीर भी है। पाक परवरदिगार है सुप्रीम बाप। रब फ़रमाते हैं जिब्राइल
अलैहिस्सलाम के ज़रिए तुमको कुव्वत ए इबादत से 21 विलादत का वर्सा मिलता है।
खानदान ए आफ़ताबी जन्नत के तुम मालिक बन सकते हो। रहमतुल्आल्मीन दादा जिब्राइल
अलैहिस्सलाम के ज़रिए यह वर्सा दे रहे हैं। पहले इनकी रूह सुनती है, रूह ही
इख्तियार करती है। असल बात तो है ही यह। तस्वीर तो रहमतुल्आल्मीन का दिखाते
हैं। यह तस्वीर रहमतुल्आल्मीन की है। जिब्राइल अलैहिस्सलाम - मीकाईल
अलैहिस्सलाम-इस्राफील अलैहिस्सलाम हैं मल्क़ूतवतन के हूरैन। बाप ए अवाम
जिब्राइल अलैहिस्सलाम तो ज़रूर यहाँ चाहिए। बाप ए अवाम जिब्राइल अलैहिस्सलाम के
बच्चे आदम ज़ादा-आदम ज़ादियां बेइंतहा हैं। जब तक जिब्राइल अलैहिस्सलाम के बच्चे
न बनें, तो मोमिन न बनें, तो रहमतुल्आल्मीन से वर्सा कैसे लेंगे। कोख की पैदाइश
तो हो न सके। गाया भी जाता है मुंह निस्बनामा। तुम कहेंगे हम बाप ए अवाम
जिब्राइल अलैहिस्सलाम की मुंह निस्बनामा हैं। वह हादियों के फालोअर्स होते हैं।
यहाँ तुम एक को ही बाप-उस्ताद-हक़ीक़ी हादी कहते हो। सो भी इनको नहीं कहते हो।
ग़ैर मुजस्सम रहमतुल्आल्मीन भी है। दरिया ए इल्म है। खिल्क़त के
आग़ाज़-दरम्यान-आख़िर का इल्म देते हैं। उस्ताद भी वह ग़ैर मुजस्सम है जो
जिस्मानी के ज़रिए इल्म सुनाते हैं।रूह ही बोलती है।रूह कहती है मेरे जिस्म को
तंग मत करो।रूह दु:खी होती है तो समझानी दी जाती है जबकि तबाही सामने खड़ा है,
रूहानी बाप आते ही हैं अाख़िर में सब को वापिस ले जाने। बाक़ी जो भी कुछ है, यह
तमाम तबाह होने का है। इसको कहा जाता है आलम ए मौत। जन्नत तो यहाँ सरज़मी पर
होता है। देलवाड़ा मन्दिर बना हुआ है। नीचे इबादत कर रहे हैं, ऊपर में है जन्नत।
नहीं तो कहाँ दिखावें। ऊपर में हूरैन की तस्वीर दिखायी हैं। वह भी होंगे तो यहाँ
ना। समझाने की बड़ी तरीक़त चाहिए। मन्दिरों में जाकर समझाना चाहिए - यह रहमतुल्
आल्मीन का यादगार है, जो रहमतुल्आल्मीन हमको पढ़ा रहा है। रहमतुल्आल्मीन है असल
में बिन्दी, मगर बिन्दी की इबादत कैसे की जाए, फल फूल कैसे चढ़ाये जायें इसलिए
बड़ा रूप बनाया है। इतना कोई होता नहीं है। गाया भी जाता है पेशानी के दरम्यान
चमकता है अजब सितारा। है भी बेइंतहा महीन, नुक्ता है। बड़ी चीज़ हो तो साइंस
वगैरह वाले झट उनको पकड़ लें। न इतना हज़ार सूरज से तेज वाला है, कुछ भी नहीं।
कोई-कोई अकीदत मन्द लोग भी आते हैं ना, कहते हैं बस हमको यह चेहरा देखने में आता
है। रब्बा समझते हैं, उनको पाक परवरदिगार का पूरा तारूफ मिला नहीं है। अभी
तकदीर ही नहीं खुली है। जब तक रब को न जानें, यह न समझें कि हमारी रूह नुक्ता
बराबर है, रहमतुल्आल्मीन भी नुक्ता है, उनको याद करना है। ऐसे समझ जब याद करें
तब गुनाहों का ख़ात्मा हों। बाक़ी यह देखने में आता है, ऐसा दिखता, वैसा दिखता...,
इसको फिर इबलीस की मुश्किलात कही जाती है। अभी तो ख़ुशी में हैं, हमको रब मिला
है। रब फ़रमाते हैं आदम अलैहिस्सलाम का दीदार ए जलवा कर निहायत ख़ुशी में डांस
वगैरह करते हैं मगर उनसे कोई ख़ैर निजात नहीं होती। यह दीदार ए जलवा तो अनायास
ही हो जाता है। अगर अच्छी तरह से पढ़ेंगे नहीं तो अवाम में चले जायेंगे। दीदार
ए जलवा का भी फ़ायदा तो मिलना है ना। अकीदत मन्दी की राह में बड़ी मेहनत करते
हैं तब दीदार ए जलवा होता है। यहाँ थोड़ी भी मेहनत करते हैं तो दीदार ए जलवा
होता है मगर फ़ायदा कुछ नहीं। जन्नत में सादी अवाम वगैरह जाकर बनेंगे। अभी तुम
बच्चे जानते हो रहमतुल्आल्मीन हमको यह नॉलेज सुना रहे हैं। रब का फरमान है
पाकीज़ा ज़रूर बनना है। मगर कोई-कोई पाकीज़ा भी रह नहीं सकते हैं, कभी नापाक भी
यहाँ छिपकर आ जाते हैं। वह अपना ही नुकसान करते हैं। अपने को ठगते हैं। रब को
ठगने की बात ही नहीं। रब से ठगी करके कोई पैसा लेना है क्या? रहमतुल्आल्मीन की
सिरात ए मुस्तकीम पर कायदे सिर नहीं चलते हैं तो क्या हाल होगा। समझा जायेगा
तक़दीर में नहीं है। नहीं पढ़ते हैं और ही औरों को दु:ख देते रहेंगे, तो एक तो
निहायत सज़ायें खानी पड़ेगी और दूसरा फिर मर्तबा भी बद उनवान हो जायेगा। कोई भी
कायदे के खिलाफ काम नहीं करना चाहिए। रब तो समझायेंगे ना कि तुम्हारी चलन
दुरुस्त नहीं है। रब तो कमाई करने का रास्ता बताते हैं फिर कोई करे न करे, उनकी
तक़दीर। सज़ायें खाकर वापिस दारूल सुकून तो जाना ही है। मर्तबा बद उनवान हो
जायेगा। कुछ भी मिलेगा नहीं। आते तो निहायत हैं मगर यहाँ तो रब से वर्सा लेने
की बात है। बच्चे कहते हैं रब्बा हम तो जन्नत का खानदान ए आफ़ताबी बादशाहत
मर्तबा पायेंगे। हक़ीक़ी इबादत है ना। स्टूडेन्ट स्कॉलरशिप भी लेते हैं ना। पास
होने वालों को स्कॉलरशिप मिलती है। यह माला उन्हों की बनी हुई है जिन्होंने
स्कॉलरशिप ली है। जितना-जितना जैसा पास होगा ऐसे-ऐसे स्कॉलरशिप मिलेगी। यह माला
बनी हुई है। स्कॉलरशिप वालों का इज़ाफा होते-होते हज़ारों बन जाते हैं। बादशाहत
मर्तबा है स्कॉलरशिप। जो अच्छी तरह पढ़ाई पढ़ते हैं वह बातिन नहीं रह सकते हैं।
निहायत नये-नये भी पुरानों से आगे निकल पड़ेंगे। जैसे देखो कई बच्चियां आती
हैं, कहती हैं हमको यह तालीम तो निहायत अच्छी लगती है, हम अहद करती हैं यह
जिस्मानी तालीम का कोर्स पूरा कर फिर इस तालीम में लग जायेंगी। अपना हीरे जैसा
ज़िन्दगी बनायेंगी। हम अपनी सच्ची कमाई कर 21 विलादतों के लिए वर्सा पायेंगी।
कितना ख़ुशी होती है। जानते हैं यह वर्सा अब नहीं लिया तो फिर कभी नहीं ले
सकेंगे। तालीम का शौक होता है ना। कोई को तो ज़रा भी शौक नहीं है समझने का।
पुरानों को भी इतना शौक नहीं, जितना नयों को है। वन्डर है ना। कहेंगे ड्रामा के
मुताबिक तक़दीर में नहीं है तो अल्ल्लाह् ताला भी क्या करें। उस्ताद तो पढ़ाते
हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों
के वास्ते मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी रब की रूहानी
बच्चों को सलाम।
तरीक़त के वास्ते अहम
निकात:-
1) अपनी कमियों को छिपाना भी खुद को ठगना है - इसलिए कभी भी अपने से ठगी नहीं
करनी है।
2) अपनी आला तक़दीर बनाने के लिए कोई भी काम कायदे के खिलाफ नहीं करना है।
पढ़ाई का शौक रखना है। अपने जैसा बनाने की खिदमत करनी है।
बरक़ात:-
हर कदम
फरमान पर चलकर इबलीस को कुर्बान कराने वाले आसान इबादत नशीन बनो।
जो बच्चे हर कदम फरमान पर
चलते हैं उनके आगे तमाम दुनिया कुर्बान जाती है, साथ-साथ इबलीस भी अपने खानदान
के साथ कुर्बान हो जाती है। पहले आप रब पर कुर्बान हो जाओ तो इबलीस आप पर
कुर्बान जायेगी और अपने अफ़ज़ल इज़्ज़त में रहते हुए हर फ़रमान पर चलते रहो तो
विवादित दर विलादत की मुश्किल से छूट जायेंगे। अभी आसान इबादत नशीन और
मुस्तकबिल में आसान ज़िन्दगी होगी। तो ऐसी आसान ज़िन्दगी बनाओ।
स्लोगन:-
खुद के तब्दीली से
बाक़ी रूहों का तब्दील करना ही जीयदान देना है।
आमीन