“मीठे बच्चे
गरीब निवाज़
रब्बा तुम्हें कौड़ी से हीरे जैसा बनाने आये हैं तो तुम हमेशा उनकी सिरात ए
मुस्तकीम पर चलो”
सवाल:-
पहले-पहले
तुम्हें तमाम को कौन सा एक गहरा राज़ समझाना चाहिए?
जवाब:-
“बाप-दादा”
का। तुम जानते हो यहाँ हम बापदादा के पास आये हैं। यह दोनों इकट्ठे हैं।
रहमतुल्आल्मीन की रूह भी इसमें है, जिब्राइल अलैहिस्सलाम की रूह भी है। एक रूह
है, दूसरी सुप्रीम रूह। तो पहले-पहले यह गहरा राज़ सबको समझाओ कि यह बापदादा
इकट्ठे हैं। यह (दादा) अल्लाह ताला नहीं है। इन्सान अल्लाह ताला होता नहीं।
अल्लाह ताला कहा जाता है ग़ैर मुजस्सम को। वह रब है दारूल सुकून में रहने वाला।
नग़मा:-
आखिर वह दिन आया आज........
आमीन।
बच्चों को
बाप, दादा के ज़रिए यानि
कि रहमतुल्आल्मीन जिब्राइल अलैहिस्सलाम दादा के ज़रिए समझाते हैं, यह पक्का कर
लो। जिस्मानी रिश्ते में बाप अलग, दादा अलग होता है। बाप से दादा का वर्सा मिलता
है। कहते हैं दादे का वर्सा लेते हैं। वह है गरीब निवाज़। गरीब निवाज़ उनको कहा
जाता है जो आकर ग़रीब को सिरताज बनाये। तो पहले-पहले पक्का यक़ीन होना चाहिए कि
यह कौन हैं? देखने में तो जिस्मानी इन्सान है, इनको यह तमाम ब्रह्मा कहते हैं।
तुम सब ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ हो। जानते हो हमको वर्सा रहमतुल्आल्मीन से मिलता
है। जो सबका बाप आया है वर्सा देने के लिए। बाप वर्सा देते हैं ख़ुशी का। फिर
आधा चक्कर बाद शैतान दु:ख की लानत देते हैं। अकीदत मन्दी में अल्लाह ताला को
तलाशने के लिए धक्का खाते हैं। मिलता किसको भी नहीं है। हिन्दुस्तान रिहाईश
नशीन गाते हैं तुम मात-पिता....... फिर कहते हैं आप जब आयेंगे तो हमारे एक ही
आप होंगे, दूसरा न कोई। और कोई साथ हम ममत्व नहीं रखेंगे। हमारा तो एक
रहमतुल्आल्मीन। तुम जानते हो यह रब है ग़रीब निवाज़। ग़रीब को दौलत मन्द बनाने
वाला, कौड़ी को हीरे जैसा बनाते हैं यानि कि इख्तिलाफ़ी फ़ितने के दौर नापाक
कंगाल से सुनहरे दौर वाला सिरताज बनाने के लिए रब आये हैं। तुम बच्चे जानते हो
यहाँ हम बापदादा के पास आये हैं। यह दोनों इकट्ठे हैं। रहमतुल्आल्मीन की रूह भी
इसमें है, जिब्राइल अलैहिस्सलाम की रूह भी है, दो हुई ना। एक रूह है, दूसरी
सुप्रीम रूह। तुम हो रूहें। गाया जाता है रूहे रब अलग रहे निहायत अरसे......
पहले नम्बर में मिलने वाली हो तुम रूहें यानि कि जो रूहें हैं वह पाक परवरदिगार
बाप से मिलती हैं, जिसके लिए ही पुकारते हैं ओ गॉड फादर। तुम उनके बच्चे ठहरे।
फादर से ज़रूर वर्सा मिलता है। रब फ़रमाते हैं हिन्दुस्तान जो सिरताज था वह अभी
कितना कंगाल बना है। अभी मैं फिर तुम बच्चों को सिरताज बनाने आया हूँ। तुम डबल
सिरताज बनते हो। एक ताज होता है पाकीज़गी का, उसमें लाइट देते हो। दूसरा है
जवाहिरात जड़ित ताज। तो पहले-पहले यह गहरा राज़ सबको समझाना है कि यह बापदादा
इकट्ठे हैं। यह अल्लाह ताला नहीं है। इन्सान अल्लाह ताला होता नहीं। अल्लाह ताला
कहा जाता है ग़ैर मुजस्सम को। वह रब है आलम ए अरवाह में रहने वाला। जहाँ तुम
तमाम रूहें रहती हो, जिसको दारूल निजात या आवाज़ से बालातर कहा जाता है फिर तुम
रूहों को जिस्म इख्तियार कर यहाँ पार्ट बजाना होता है। आधा चक्कर ख़ुशी का
पार्ट, आधा चक्कर है ग़म का। जब ग़म का अाख़िर होता है तब रब फ़रमाते हैं मैं
आता हूँ। यह ड्रामा बना हुआ है। तुम बच्चे यहाँ आते हो भट्ठी में। यहाँ और कुछ
बाहर का याद नहीं आना चाहिए। यहाँ है ही मात-पिता और बच्चे। और यहाँ यज़ीद फिरक़ा
है नहीं। जो मोमिन नहीं हैं उनको यज़ीद कहा जाता है। उनकी सोहबत तो यहाँ है ही
नहीं। यहाँ है ही मोमिनों की सोहबत। मोमिन बच्चे जानते हैं कि रहमतुल्आल्मीन
जिब्राइल अलैहिस्सलाम के ज़रिए हमको जहन्नुम से जन्नत की दारूल हुकूमत का मालिक
बनाने आये हैं। अब हम मालिक नहीं हैं क्योंकि हम नापाक हैं। हम पाकीज़ा थे फिर
84 का चक्कर लगाए सतो-रजो-तमो में आये हैं। सीढ़ी में 84 विलादतों का हिसाब लिखा
हुआ है। रब बैठकर बच्चों को समझाते हैं। जिन बच्चों से पहले-पहले मिलते हैं फिर
उन्हों को ही पहले-पहले सुनहरे दौर में आना है। तुमने 84 विलादत लिए हैं। खालिक
और मख़लूक़ की तमाम नॉलेज एक रब के पास ही है। वही इन्सानी खिल्क़त का बीजरूप
है। ज़रूर बीज में ही नॉलेज होगी कि इस दरख्त का कैसे कयाम, परवरिश और तबाही
होती है। यह तो रब ही समझाते हैं। तुम अब जानते हो हम हिन्दुस्तान रिहाईश नशीन
ग़रीब हैं। जब हूर-हूरैन थे तो कितने दौलत मन्द थे। हीरों से खेलते थे। हीरों
के महलों में रहते थे। अब रब याददाश्त दिलाते हैं कि तुम कैसे 84 विलादत लेते
हो। बुलाते भी हैं - ए नापाक से पाक बनाने वाले, ग़रीब-निवाज़ रब्बा आओ। हम
ग़रीबों को जन्नत का मालिक फिर से बनाओ। जन्नत में खुशी बेइंतहा थी, अब ग़म
बेइंतहा हैं। बच्चे जानते हैं इस वक़्त तमाम पूरे नापाक बन पड़े हैं। अभी
इख्तिलाफ़ी फ़ितने के दौर का आखिर है फिर सुनहरा दौर चाहिए। पहले हिन्दुस्तान
में एक अल्लाह अव्वल हूर-हूरैन दीन था, अब वह आमतौर पर ग़ायब हो गया है और तमाम
अपने को हिन्दू कहलाते हैं। इस वक़्त क्रिश्चियन निहायत हो गये हैं क्योंकि
हिन्दू मज़हब वाले निहायत कनवर्ट हो गये हैं। तुम हूर-हूरैन का असुल आमाल
अफ़ज़ल था। तुम नापाक कुनबाई राह वाले थे। अब शैतानी सल्तनत में नापाक कुनबाई
राह वाले बन गये हो, इसलिए दु:खी हो। सुनहरे दौर को कहा जाता है आलम ए इलाही।
रहमतुल्आल्मीन का क़याम किया हुआ जन्नत। रब फ़रमाते हैं मैं आकर तुम बच्चों को
यज़ीद से मोमिन बनाए तुमको खानदान ए आफ़ताबी, खानदान ए महताबी दारूल हुकूमत का
वर्सा देता हूँ। यह बापदादा है, इनको भूलो मत। रहमतुल्आल्मीन जिब्राइल
अलैहिस्सलाम के ज़रिए हमको जन्नत का लायक़ बना रहे हैं क्योंकि नापाक रूह तो
दारूल निजात में जा न सके, जब तक पाकीज़ा न बनें। अभी रब फ़रमाते हैं मैं आकर
तुमको पाकीज़ा बनने का रास्ता बताता हूँ। मैं तुमको पद्मपति जन्नत का मालिक
बनाकर गया था, बरोबर तुमको याददाश्त आई है कि हम जन्नत के मालिक थे। उस वक़्त
हम निहायत थोड़े थे। अभी तो कितने बेइंतहा इन्सान हैं। सुनहरे दौर में 9 लाख
होते हैं, तो रब फ़रमाते हैं मैं आकर जिब्राइल अलैहिस्सलाम के ज़रिए जन्नत का
क़याम, शंकर के ज़रिए तबाही करा देता हूँ। तैयारी सब कर रहे हैं, चक्कर पहले
मुआफिक़। कितने बॉम्ब्स बनाते हैं। 5 हज़ार साल पहले भी यह क़यामत की जंग लगी
थी। अल्लाह ताला ने आकर हक़ीक़ी इबादत सिखाए इन्सान को हज़रात से अफ़ज़ल हज़रात
बनाया था। तो ज़रूर इख्तिलाफी फितने के दौर पुरानी दुनिया की तबाही होनी चाहिए।
तमाम भंभोर को आग लगेगी। नहीं तो तबाही कैसे हो? आजकल बॉम्ब्स में आग भी भरते
हैं। मूसलधार बरसात, अर्थ क्वेक्स वगैरह तमाम होंगा तब तो तबाही होगी। पुरानी
दुनिया का तबाही, नई दुनिया का क़याम होता है। यह है मिलन का दौर। शैतानी
सल्तनत मुर्दाबाद हो इलाही सल्तनत जिंदाबाद होती है। नई दुनिया में कृष्ण की
सल्तनत थी। लक्ष्मी नारायण के बदले कृष्ण का नाम ले लेते हैं क्योंकि कृष्ण है
सुन्दर, सबसे प्यारा बच्चा। इन्सानों को तो मालूम नहीं है ना। कृष्ण अलग दारूल
हुकूमत का, राधे अलग दारूल हुकूमत की थी। हिन्दुस्तान सिरताज था। अभी कंगाल है,
फिर रब आकर सिरताज बनाते हैं। अब रब फ़रमाते हैं पाकीज़ा बनो और दिल से मुझे
याद करो तो तुम सातों फ़ज़ीलतों से लबरेज़ बन जायेंगे। फिर जो खिदमत कर अपने
जैसा बनायेंगे, वह आला मर्तबा पायेंगे, डबल सिरताज बनेंगे। सुनहरे दौर में
राजा-रानी और अवाम तमाम पाकीज़ा रहते हैं। अभी तो है ही अवाम की सल्तनत। दोनों
ताज नहीं हैं। रब फ़रमाते हैं जब ऐसी हालत होती है तब मैं आता हूँ। अभी मैं तुम
बच्चों को हक़ीक़ी इबादत सिखा रहा हूँ। मैं ही नापाक से पाक बनाने वाला हूँ। अब
तुम मुझे याद करो तो तुम्हारी रूह से खाद निकल जाए। फिर सातों फ़ज़ीलतों से
लबरेज़ बन जायेंगे। अभी स्याह से खुबसूरत बनना है। सोने में खाद पड़ने से काला
हो जाता है तो अब खाद को निकालना है। बेहद का रब फ़रमाते हैं तुम हवस की आग पर
बैठ काले बन गये हो, अब इल्म की आग पर बैठो और सबसे ममत्व मिटा दो। तुम आशिक हो
मुझ एक माशूक के अकीदत मन्द तमाम अल्लाह ताला को याद करते हैं। आला जन्नत-अदना
जन्नत में अकीदत मन्दी होती नहीं। वहाँ तो है इल्म का उजूरा। रब आकर इल्म से
रात को दिन बनाते हैं। ऐसे नहीं कि सहीफें पढ़ने से दिन हो जायेगा। वह है अकीदत
मन्दी की चीज़े। दरिया ए इल्म नापाक से पाक बनाने वाला एक ही रब है, वह आकर
खिल्क़त के चक्कर का इल्म बच्चों को समझाते हैं और इबादत सिखाते हैं। अल्लाह
ताला के साथ राब्ता लगाने वाले योग योगेश्वर और फिर बनते हैं राज राजेश्वर, राज
राजेश्वरी। तुम अल्लाह ताला के ज़रिए राजाओं का राजा बनते हो। जो पाकीज़ा राजायें
थे फिर वही नापाक बनते हैं। आपे ही काबिल ए एहतराम फिर आपे ही नाकाबिल बन जाते
हैं। अब जितना हो सके याद के सफ़र में रहना है। जैसे आशिक माशूक को याद करते
हैं ना। जैसे कन्या की सगाई होने से फिर एक-दो को याद करते रहते हैं। अभी यह जो
माशूक है, उनके तो निहायत आशिक हैं अकीदत मन्दी की राह में। तमाम दु:ख में रब
को याद करते हैं - या अल्ल्लाह् दु:ख दूर करो, ख़ुशी दो। यहाँ तो न सुकून है, न
ख़ुशी है। सुनहरे दौर में दोनों हैं।
अभी तुम जानते हो हम रूहें
कैसे 84 का पार्ट बजाते हैं। मोमिन, हूरैन, जंग जू, कारोबारी, यज़ीद बनते हैं।
84 की सीढ़ी अक्ल में है ना। अब जितना हो सके रब को याद करना है तो अज़ाब कट
जाएं। आमाल करते हुए भी अक्ल में रब की याद रहे। रब्बा से हम जन्नत का वर्सा ले
रहे हैं। रब और वर्से को याद करना है। याद से ही अज़ाब कटते जायेंगे। जितना याद
करेंगे तो पाकीज़गी की लाइट आती जायेगी। खाद निकलती जायेगी। बच्चों को जितना हो
सके टाइम निकाल याद की तरीक़त करनी है। सवेरे-सवेरे टाइम अच्छा मिलता है। यह
तजवीज़ करना है। भल घरेलू राब्ते में रहो, बच्चों की सम्भाल वगैरह करो मगर यह
अाखिरी विलादत पाकीज़ा बनो। क
हवस की आग पर नहीं चढ़ो।
अभी तुम इल्म की आग पर बैठे हो। यह तालीम निहायत आला है, इसमें सोने का बर्तन
चाहिए। तुम रब को याद करने से सोने का बर्तन बनते हो। याद भूलने से फिर लोहे का
बर्तन बन जाते हो। रब को याद करने से जन्नत के मालिक बनेंगे। यह तो निहायत आसान
है। इसमें पाकीज़गी अहम है। याद से ही पाकीज़ा बनेंगे और खिल्क़त के चक्कर को
याद करने से जन्नत का मालिक बनेंगे। तुम्हें घरबार नहीं छोड़ना है। घरेलू राब्ते
में भी रहना है। रब फ़रमाते हैं 63 विलादत तुम नापाक दुनिया में रहे हो। अब आलम
ए इलाही आलम ए हयात में चलने के लिए तुम यह एक विलादत पाकीज़ा रहे तो क्या हुआ।
निहायत कमाई हो जायेगी। 5 ख़बासतों पर फ़तह पानी है तब ही जगत फ़तहयाब बनेंगे।
नहीं तो मर्तबा पा नहीं सकेंगे। रब फ़रमाते हैं मरना तो सबको है। यह अाखिरी
विलादत है फिर तुम जाए नई दुनिया में सल्तनत करेंगे। हीरे-जवाहरातों की खानियां
भरपूर हो जायेंगी। वहाँ तुम हीरे-जवाहरातों से खेलते रहेंगे। तो ऐसे रब के बनकर
उनकी सिरात पर भी चलना चाहिए ना। सिरात ए मुस्तकीम से ही तुम अफ़ज़ल बनेंगे।
शैतान की सलाह से तुम बद उन्वानी बने हो। अब रब की सिरात ए मुस्तकीम पर चल बुरी
खस्लतों से आरास्ता से सातों फ़ज़ीलतों से लबरेज़ बनना है। रब को याद करना है
और कोई तकलीफ़ रब नहीं देते हैं। अकीदत मन्दी में तो तुमने निहायत धक्के खाये
हैं। अब सिर्फ़ रब को याद करो और खिल्क़त के चक्कर को याद करो। दीदार ए नफ़्स
चक्कर नशीन बनो तो तुम 21 विलादतों के लिए चक्कर नशीन राजा बन जायेंगे। अनेक
बार तुमने सल्तनत लिया है और गँवाया है। आधा चक्कर है खुशी, आधा चक्कर है ग़म।
रब फ़रमाते हैं - मैं चक्कर-चक्कर मिलन पर आता हूँ। तुमको दारूल मसर्रत का
मालिक बनाता हूँ। अभी तुमको याददाश्त आई है, हम कैसे चक्कर लगाते हैं। यह चक्कर
अक्ल में रखना है। रब है दरिया ए इल्म। तुम यहाँ बेहद के रब के सामने बैठे हो।आला
ते आला अल्ल्लाह् ताला बाप ए अवाम जिब्राइल अलैहिस्सलाम के ज़रिए तुमको वर्सा
देते हैं। तो अब तबाही होने के पहले रब को याद करो, पाकीज़ा बनो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों
के वास्ते मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी रब की रूहानी
बच्चों को सलाम।
तरीक़त के वास्ते अहम
निकात:-
1. मुसलसल रब की याद में रहने के लिए अक्ल को सोने का बर्तन बनाना है। आमाल करते
भी रब की याद रहे, याद से ही पाकीज़गी की लाइट आयेगी।
2. नूरानी कलेमात कभी मिस नहीं करना है। ड्रामा के राज़ को हक़ीक़ी तौर पर समझना
है। भट्ठी में कुछ भी बाहर का याद न आये।
बरक़ात:-
खुद पर रब
उल हक़ को कुर्बान कराने वाले कुर्बान नशीन, यक़ीनी दानिश मन्द बनो।
“रब मिला सब कुछ मिला''
इस खुमारी और नशे में तमाम कुछ कुर्बानी करने वाले इल्म याफ़्ता, यक़ीनी दानिश
मन्द बच्चे रब के ज़रिए जब ख़ुशी, सुकून, कुव्वत और ख़ुशी का एहसास करते हैं तो
लोक लाज की भी परवाह न कर, हमेशा कदम आगे बढ़ाते रहते हैं। उन्हें दुनिया का
तमाम कुछ नाचीज़, बेनियाज़ एहसास होता है। ऐसे कुर्बानी नशीन, यक़ीनी दानिश
मन्द बच्चों पर रब उल हक़ अपनी तमाम दौलत के साथ कुर्बान जाते हैं। जैसे बच्चे
इरादा करते रब्बा हम आपके हैं तो रब्बा भी कहते कि जो रब का सो आपका।
स्लोगन:-
आसान इबादत नशीन
वह हैं जो अपने हर इरादा और आमाल से रब के प्यार के वायब्रेशन फैलाते हैं।
आमीन