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❍ 12 / 11 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*5=25)
➢➢ *चलते फिरते उठते बैठते मधुबन की स्मृति में रहे ?*
➢➢ *जो भी आत्माएं सम्बन्ध में हैं, उन्हों को संपर्क में लाते हुए सेवा की स्टेज पर लाये ?*
➢➢ *दूसरी आत्माओं से ज्ञान धन व अनुभव का धन दान करवाया ?*
➢➢ *स्वयं के, संबंधो के, प्रकृति और परिस्थितियों के अधीन तो नहीं हुए ?*
➢➢ *स्वयं को सागर की शीतल लहरों में, अतीन्द्रिय सुख की, शांति की प्राप्ति में समाया हुआ अनुभव किया ?*
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❂ *तपस्वी जीवन प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं* ✰
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〰✧ अमृतवेले उठने से लेकर हर कर्म, हर संकल्प और हर वाणी में रेग्युलर बनो। एक भी बोल ऐसा न निकले जो व्यर्थ हो। *जैसे बड़े आदमियों के बोलने के शब्द फिक्स होते हैं ऐसे आपके बोल फिक्स हो। एकस्ट्रा नहीं बोलना है।*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:- 10)
➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाये ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ अहंकार आने का दरवाज एक शब्द है, वो कौन-सा? 'मैं'। तो यह अभ्यास करो - *जब भी ‘मैं’ शब्द आता है तो ओरीजिनल स्वरूप सामने लाओ - 'मैं कौन?* मैं आत्मा या फलानी-फलानी?” औरों को ज्ञान देते हो ना - 'मैं' शब्द ही उडाने वाला है, ‘मैं’ शब्द ही नीचे ले आने वाला है। 'मैं' कहने से ओरीजिनल निराकार स्वरूप याद आ जाये। ये नेचुरल हो जाये।
〰✧ तो पहला पाठ सहज है ना तो इसी को चेक करो, आदत डालो - *'मैं' सोचा और निराकारी स्वरूप स्मृति में आ जाये।* कितनी बार 'मैं' शब्द कहते हो! मैंने यह कहा, ‘मैं’ यह करूंगी, ‘मैं’ यह सोचती हूँ. अनेक बार 'मैं' शब्द यूज करते हो। ते *सहज विधि यह है निराकारी वा आकारी बनने की - जब भी ‘मैं’ शब्द यूज करो, फौरन अपना निराकारी ओरीजिनल स्वरूप सामने आये।*
〰✧ ये मुश्किल है वा सहज है? फिर तो लक्ष्य और लक्षण समान हुआ ही पडा है। सिर्फ यह युक्ति - निरहंकारी बनने का सहज साधन अपनाकर देखो। यह देहभान का ‘मैं’ समाप्त हो जाये। क्योंकि *‘मैं’ शब्द ही देह-अहंकार में लाता है और अगर ‘मैं’ निराकारी आत्मा स्वरूप हूँ - यह स्मृति में लायेंगे तो यह ‘मैं’ शब्द ही देहभान से परे ले जायेगा।* ठीक है ना।
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:- 15)
➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- विश्व के हर स्थान पर आध्यात्मिक लाइट और ज्ञान जल पहुंचाना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा होली हंस बन अलौकिक खुशी की रूहानी डांस करती हुई ज्ञान सागर के कंठे पर पहुँच जाती हूँ... ज्ञान सागर बाबा ने मुझ आत्मा को कीचड से निकाल ज्ञान वर्षा में नहलाकर, रत्नों को चुगने वाली होली हंस बना दिया...* अब मैं आत्मा ज्ञान सागर में डूबकर सिर्फ ज्ञान मोती और ज्ञान रत्न ही चुगती हूँ... ज्ञान सूर्य से निकलते ज्ञान प्रकाश की किरणों से मैं आत्मा भी मास्टर ज्ञान सूर्य बन चमक रही हूँ...
❉ प्यारे बाबा मुझ सिकीलधे बच्चे को देख हर्षित होते हुए कहते हैं:- "मेरे लाडले बच्चे... *ईश्वर पिता के दिल पर मणि बन दमकना है तो ज्ञान और यादो के मीठे बादल बन बरसो...* दुखो में मुरझाये मेरे फूल बच्चों को खुशनुमा कर आओ... *मीठे बाबा का पता देकर उन्हें सदा का जीवित कर आओ..."*
➳ _ ➳ मैं आत्मा ज्ञान जल से तडपती प्यासी आत्माओं की प्यास बुझाते हुए कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा आपकी यादो से भरा मीठा बादल बन गई हूँ... यादो की बदली बन सबके तनमन खिला रही हूँ... *प्यारा बाबा आ गया... हर दिल को इस मीठी बरसात में भिगो रही हूँ..."*
❉ प्यारे बाबा अपने समान मुझे लाइट हाउस बनाते हुए कहते है:- मीठे प्यारे फूल बच्चे... प्यार भरे बादल बनकर ज्ञान के बादल बनकर सुखो की वर्षा करो... मीठे बापदादा के दिलतख्त पर राज करो... *लाइट हाउस बन आध्यात्मिक लाइट से पूरे विश्व का कल्याण करने की मीठी भावना से भर जाओ... सबको सच्चे सुखो का पता देते जाओ..."*
➳ _ ➳ मैं आत्मा आत्मविश्वास का तिलक लगाकर कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा पूरे विश्व का कल्याण करने के दृढ़ संकल्प से भर गई हूँ... *जो मीठे बाबा से खजाना पाया है वह लुटाने निकल पड़ी हूँ... सबको सजाना है संवारना है और पूरे विश्व में मुझे ख़ुशी के फूल खिलाना है..."*
❉ मेरे बाबा शुभ भावनाओं, शुभ कामनाओं के मोती बिखरते हुए कहते हैं:- *"प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जो सुख पिता से पाया है उसे पूरे विश्व के दामन में सजा आओ... सबके चेहरे खुशियो से मुस्करा आओ...* ईश्वर को मिलने की उनकी जनमो की चाहत को पूरा कर आओ... विश्व परिवार को ज्ञान और योग का जादू सिखा आओ..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा जगी हुई दीपक बन विश्व का अंधकार मिटाने की जिम्मेवारी लेते हुए कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आध्यात्मिक लाइट बनकर, ख़ुशी का बादल बनकर विश्व गगन में उड़ रही हूँ... *और ज्ञान की वर्षा कर ज्ञान जल से सारे विश्व को सुखो से सराबोर कर रही हूँ... कोई फूल दिल मुरझाया न रहे इस ईश्वरीय सन्देश के महान अभियान में जुट गयी हूँ..."*
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- चलते फिरते उठते बैठते मधुबन की स्मृति में रहना है*"
➳ _ ➳ भगवान की अवतरण भूमि मधुबन की स्मृति आते ही आत्मा रूपी पँछी ज्ञान और योग के पंख लगा कर सेकेंड में उस पावन धरनी पर पहुँच कर एक गहन सुकून की अनुभूति करने लगता है और मन अनेक सुखद स्मृतियों में खो जाता है। *मम्मा बाबा की साकार पालना, वरिष्ठ दादियों का स्नेह और प्यार, साकार में आ कर भगवान का अपने बच्चों से मिलन मनाना सभी दृश्य एक - एक करके आंखों के सामने उभर आते हैं और मन को आनन्दविभोर कर देते हैं*।
➳ _ ➳ अपने पिता परमात्मा की इस अवतरण भूमि मधुबन की स्मृति मुझे मधुबन के आंगन में ले आती है और मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं स्वयं को मधुबन के पांडव भवन में पाती हूँ। *मन में शक्तिशाली बनने का दृढ संकल्प लिए मै शांति स्तम्भ पहुँचती हूँ और जा कर शान्ति स्तम्भ के नीचे बैठ जाती हूँ*। शांति के शक्तिशाली प्रकम्पन इस महाशक्तिस्तम्भ से निकल कर चारों ओर फ़ैल रहें हैं। मेरे चारों ओर शांति का एक बहुत ही विशाल औरा बना हुआ हैं जो मुझे असीम शांति का अनुभव करवा रहा है। *अनन्त शक्तियों की किरणें इस महाशक्ति स्तम्भ से निकल कर मुझ आत्मा में प्रवेश कर रही हैं और मुझे शक्तिशाली बना रही हैं*।
➳ _ ➳ शक्तिशाली स्थिति में स्थित हो कर अब मैं बाबा के कमरे की ओर चल पड़ती हूँ।और जैसे ही बाबा के कमरे में कदम रखती हूँ कोने में सामने रखे पलंग पर अव्यक्त बापदादा दिखाई देते हैं और कानों में उनकी अव्यक्त आवाज स्पष्ट सुनाई देती है। *अपने अव्यक्त स्वरूप में स्थित हो कर अव्यक्त बापदादा की आवाज मैं सुन रही हूँ*। बाबा कह रहे हैं बच्चे -"बाप समान बनने का दृढ संकल्प उतपन्न हो तो बापदादा के कमरे में आ जाना"। यह कहकर बाबा अपना वरदानीमूर्त हाथ मेरे सिर पर रख देते हैं। *बाबा के वरदानी हस्तों से आ रही लाइट माइट मुझे बाप समान स्थिति में स्थित कर देती है*।
➳ _ ➳ बाप समान स्थिति का अनुभव करते हुए अपने लाइट माइट स्वरुप में मैं अब बाबा के कमरे से निकल हिस्ट्रीहॉल में पहुँचती हूँ। *यहां पहुंच कर बाबा के ट्रांस लाइट के चित्र के सामने बैठते ही ऐसा अनुभव होता है जैसे मेरे मन मे चल रहे सभी संकल्प बिल्कुल शांन्त हो गए हैं*। अब मैं हिस्ट्रीहाल में लगे एक - एक चित्र को देख रही हूँ। यज्ञ के आदि रत्नों के इन चित्रों से विशेष प्रेरणा मिल रही है जो मुझे शक्तिशाली स्थिति में स्थित कर रही है।
➳ _ ➳ शक्तिशाली स्थिति का अनुभव करके अब मैं बाबा की कुटिया में पहुँचती हूँ। यहां पहुंचते ही ऐसा अनुभव होता है जैसे बापदादा मेरे ही इंतजार में अपनी बॉहें पसारे खड़े हैं। देखते ही बाबा मुझे अपने गले लगा लेते हैं। *मेरा हाथ पकड़ कर बाबा मुझे अपने पास बिठा कर मेरे साथ मीठी - मीठी रूह रिहान करने लगते हैं*। अपने मन की हर बात मैं बाबा को बता रही हूँ। बाबा बड़े प्यार से मुस्कराते हुए मेरी हर बात को सुन रहें हैं और अपनी शक्तिशाली मीठी दृष्टि से मेरे अंदर बल भर रहें हैं।
➳ _ ➳ अपने मधुबन घर की यात्रा और बाबा से मीठी - मीठी रूहरिहान करके फिर से मन बुद्धि के विमान पर बैठ मैं वापिस अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ। *अब मैं अपने कर्मक्षेत्र पर रहते, हर कर्म करते बुध्दि से सदैव चलते फिरते उठते बैठते अपने मधुबन घर की स्मृति में रहती हूँ*। यह स्मृति मुझे लौकिकता में भी अलौकिकता का अनुभव करवा कर उमंग उत्साह से सदैव भरपूर करती रहती है।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं जिम्मेवारी की स्मृति द्वारा सदा अलर्ट रहने वाली शुभभावना, शुभ कामना सम्पन्न आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को स्वमान में स्थित करने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं अपने हर कर्म द्वारा सहारेदाता बाप को प्रत्यक्ष करने वाली आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ स्मृतियों में टिकाये रखने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. बापदादा देखते हैं कि बच्चों के लिए अभी समय की क्या पुकार है? आप भी समझते हो ना कि समय की क्या पुकार है?अपने लिए सोचो। सेवा प्रति तो भाषण किये, कर रहे हैं ना! लेकिन अपने लिए, अपने से ही पूछो कि हमारे लिए समय की क्या पुकार है? वर्तमान समय की क्या पुकार है? तो बापदादा देख रहे थे कि *अभी के समय अनुसार हर समय, हर बच्चे को 'दातापन' की स्मृति और बढ़ानी है। चाहे स्व-उन्नति के प्रति दाता-पन का भाव, चाहे सर्व के प्रति स्नेह इमर्ज रूप में दिखाई दे। कोई कैसा भी हो, क्या भी हो, मुझे देना है।*
➳ _ ➳ *तो दाता सदा ही बेहद की वृत्ति वाला होगा, हद नहीं और दाता सदा सम्पन्न, भरपूर होगा। दाता सदा ही क्षमा का मास्टर सागर होगा।* इस कारण जो हद के अपने संस्कार या दूसरों के संस्कार वो इमर्ज नहीं होंगे, मर्ज होंगे। मुझे देना है। *कोई दे, नहीं दे लेकिन मुझे दाता बनना है।* *किसी भी संस्कार के वश परवश आत्मा हो, उस आत्मा को मुझे सहयोग देना है।* तो किसी का भी हद का संस्कार आपको प्रभावित नहीं करेगा। *कोई मान दे, कोई नहीं दे, वह नहीं दे लेकिन मुझे देना है।* ऐसे दातापन अभी इमर्ज चाहिए। मन में भावना तो है लेकिन... लेकिन नहीं आवे। मुझे करना ही है।
➳ _ ➳ *कोई ऐसी चलन वा बोल जो आपके काम का नहीं है, अच्छा नहीं लगता है, उसे लो ही नहीं।* बुरी चीज ली जाती है क्या? मन में धारण करना अर्थात् लेना। दिमाग तक भी नहीं। दिमाग में भी बात आ गई ना, वह भी नहीं। *जब है ही बुरी चीज, अच्छी है नहीं तो दिमाग और दिल में लो नहीं यानी धारण नहीं करो। और ही लेने के बजाए शुभ भावना, शुभ कामना, दाता बन दो।* लो नहीं; क्योंकि अभी समय के अनुसार *अगर दिल और दिमाग खाली नहीं होगा तो निरन्तर सेवाधारी नहीं बन सकेंगे।*
➳ _ ➳ दिल या दिमाग जब किसी भी बातों में बिजी हो गया तो सेवा क्या करेंगे? फिर जैसे लौकिक में कोई 8 घण्टा, कोई 10 घण्टा वर्क करते हैं, ऐसे यहाँ भी हो जायेगा। 8 घण्टे के सेवाधारी, 6 घण्टे के सेवाधारी। निरन्तर सेवाधारी नहीं बन सकेंगे। *चाहे मन्सा सेवा करो, चाहे वाणी से, चाहे कर्म अर्थात् संबंध, सम्पर्क से। हर सेकण्ड दाता अर्थात् सेवाधारी।* दिमाग को खाली रखने से बाप की सेवा के साथी बन सकेंगे। *दिल को सदा साफ रखने से निरन्तर बाप की सेवा के साथी बन सकते हैं।*
➳ _ ➳ 2. तो क्या सुना? समय की पुकार है - दाता बनो। आवश्यकता है बहुत। सारे विश्व के आत्माओं की पुकार है - हे हमारे ईष्ट...ईष्ट तो हो ना! किसी न किसी रूप में सर्व आत्माओं के लिए ईष्ट हो। *तो अभी सभी आत्माओं की पुकार है - हे इष्ट देव-देवियां परिवर्तन करो।*
✺ *ड्रिल :- "समय की पुकार - दातापन की वृत्ति रखना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा *फर्श से न्यारी होती हुई एक बाबा से रिश्ता रख फरिश्ता बन उड़ चलती हूँ फरिश्तों की दुनिया में...* जहाँ बापदादा मेरे ही इन्तजार में बैठे हुए हैं... चारों ओर सफेद चमकीले प्रकाश की आभा बिखेरते हुए बापदादा अपने कोमल हाथों से मुझे अपनी गोदी में बिठाते हैं... *बाबा अपनी मीठी दृष्टि देते हुए अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रखते हैं...*
➳ _ ➳ *बाबा की मीठी दृष्टि मुझ आत्मा में मिठास घोल रही है...* मैं आत्मा भी बाप समान मीठी बन रही हूँ... मुझ आत्मा के पुराने स्वभाव संस्कार बाहर निकल रहे हैं... *बाबा के हाथों से दिव्य अलौकिक गुण व शक्तियाँ निकलकर मुझ फरिश्ते में प्रवाहित हो रहे हैं...* वर्तमान समय को देखते हुए... बाप दादा मुझ आत्मा के अन्दर दातापन की स्मृति को बढ़ा रहे हैं... *दातापन की स्मृति से मुझ आत्मा के अंदर सर्व के प्रति स्नेह इमर्ज रूप में दिखाई दे रहा है... और स्व उन्नति के प्रति भी दातापन का भाव दिखाई दे रहा है...*
➳ _ ➳ *क्षमा के सागर बाबा मुझ आत्मा को दाता बना क्षमा के मास्टर सागर बना रहें हैं...* इस दातापन के भाव मुझ आत्मा के अन्दर भरपूर होने से... मैं आत्मा किसी भी संस्कार के वश परवश आत्मा हो... *उसे सहयोग देती हूँ...* मीठे बाबा नेे मेरे दातापन को इमर्ज कर दिया है... *जिससे कोई भी आत्मा मुझे मान दे या न दे पर मुझे तो उसे देना ही है...* ऐसा भाव मुझ आत्मा के अंदर जागृत हो गया है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अब *निरंतर सेवाधारी बन सदैव दातापन की स्मृति में रह सर्व आत्माओं के प्रति शुभ भावना शुभकामना रखती हूँ...* अब मैं आत्मा सदैव हर आत्मा की झोली अपनी दुआओं से भरपूर करके, अपने सम्बन्ध संपर्क में आने वाली हर आत्मा के जीवन को निर्विघ्न बनाने में अपना भरपूर सहयोग देती हूँ... *अब मैं आत्मा किसी की भी चलन या बोल को अपने चित पर नहीं रखती... और सदैव क्षमा भाव धारण करते हुए हर आत्मा को क्षमा का दान देते हुए* तीव्रता से अपने अलौकिक जीवन में आगे बढ़ते जा रही हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा दिल को सदा साफ रख और दिमाग को खाली रख... *अपने प्यारे मीठे बाबा की सेवा की साथी बन गई हूँ... मैं आत्मा मनसा-वाचा-कर्मणा और संबंध संपर्क से हर सेकेंड दाता अर्थात सेवाधारी बनती हूँ...* मैं इष्टदेवी सारे विश्व की आत्माओं की पुकार सुन समय प्रमाण अब परिवर्तन के कार्य में लग जाती हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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