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 21 / 08 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *ज्ञान युक्त बुधी से रूहानी यात्रा की और कराई ?*

 

➢➢ *मां बाप से आशीर्वाद मांगने की बजाये याद की यात्रा में तत्पर रहे ?*

 

➢➢ *मां बाप को फॉलो किया ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *दूसरों के लिए रिमार्क देने की बजाये स्व को परिवर्तन किया ?*

 

➢➢ *हर दृश्य को साक्षी होकर देख सदा हर्षित रहे ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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➳ _ ➳  शुरू से देखो - अपने देह के भान के कितने वैरायटी प्रकार के विस्तार है। उसको तो जानते हो ना! मैं बच्चा हूँ, मैं जवान हूँ, मैं बुजुर्ग हूँ मैं फलने-फलाने आक्यूपेशन वाला हूँ। इसी प्रकार के देह की स्मृति के विस्तार कितने हैं! फिर सम्बन्ध में आओ कितना विस्तार है। किसका बच्चा है तो किसका बाप है, *कितने विस्तार के सम्बन्ध है। उसको वर्णन करने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि जानते हो।* इसी प्रकार देह के पदार्थों का भी कितना विस्तार है। भक्ति में अनेक देवताओं को सन्तुष्ट करने का कितना विस्तार है। लक्ष्य एक को पाने का है लेकिन भटकने के साधन अनेक है। *इतने सभी प्रकार के विस्तार को सार रूप लाने के लिए समाने की वा समेटने की शक्ति चाहिए।* सर्व विस्तार को एक शब्द से समा देते। वह क्या? - 'बिन्दू'। मैं भी बिन्दू बाप भी बिन्दू। *एक बाप बिन्दू में सारा संसार समाया हुआ है।* यह तो अच्छी तरह से अनुभवी हो ना।

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  ज्ञानयुक्त बुद्धि से, रूहानी यात्रा करनी और करानी"*

 

_ ➳  मै आत्मा अपने सुंदर भाग्य का... मीठे बाबा से पायी असीम दौलत का... दिव्य गुण और शक्तियो का दुआओ का... इन खजानो को गिनते गिनते आनंद के चर्मोत्कृष् पर पहुंच कर... मीठे बाबा को दिल से पुकारती हूँ... मीठे बाबा मेरे सम्मुख बाहें फैलाये हुए *जी हुजूर, मै आया*कह हाजिर हो जाते है... अपने मीठे आराध्य को... अपने प्यार में इस कदर... साधारण और सरल सहज देख... मै आत्मा निशब्द हो मुस्कराती हूँ...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी यादो में डुबाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *ज्ञानसागर पिता को पाकर जो अथाह धन खजाने पाये है... उसे अपनी बुद्धि में सदैव गिनते रहो.*.. ज्ञान के चिंतन मनन से यादो का सैलाब और ज्यादा बढ़ेगा... रूहानी यात्री बन सदा यादो में खोये रहो... और सबको यह यात्रा सिखलाओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की अतुलनीय धन सम्पदा की मालिक बनते हुए कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... आपके बिना मुझ आत्मा का जीवन कितना सूना कितना कंगाल सा था... *आपको पाकर मै आत्मा ईश्वरीय अमीरी से सम्पन्न हो गयी हूँ.*.. ज्ञान धन ने मुझ आत्मा को गुणो और शक्तियो से भरपूर कर दिया है..."

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी सारी सम्पत्ति देते हुए कहा ;- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वर पिता की गहरी यादो में डूबकर, बुद्धि रुपी पात्र को ईश्वरीय रत्नों से सोने का बनादो.*.. और देहभान से छुड़ाने वाले रूहानी यात्री बनकर मुस्कराओ... अपने मीठे भाग्य के नशे में खो जाओ... कि किसकी सम्पत्ति के वारिस बन रहे हो..."

 

_ ➳  मै आत्मा अपने महान भाग्य की खुशियां मीठे बाबा संग बांटते हुए कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... *आपको पाकर सारे जहान की खुशियो से दामन भर गया है*... आपके ज्ञान धन से जीवन कितना पवित्र और प्यारा हो गया है... ईश्वरीय साथ और साये में जीने वाली मै कितनी भाग्यंवान आत्मा हूँ... मेरे जैसा भाग्य भला किसी और का कहाँ..."

 

   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को खुशियो की जागीर सौपते हुए कहा :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता ने ज्ञान दौलत से भरपूर कर, मा नॉलेजफुल बनाया है... उस नशे में सदा खोये रहो... *ज्ञान के दिव्य नेत्र को पाकर, अपने श्रेष्ठ भाग्य की स्मर्तियो में सदा खोये रहो.*.. इन रत्नों को पूरे विश्व पर बरसाओ, और सबको आप समान रूहानी यात्रा कराओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे साथी भगवान को पाकर आनन्द में मगन होकर कहती हूँ :- "मीठे साथी बाबा मेरे... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में खोयी हुई... ज्ञान चिंतन से गुणवान और शक्तिवान बनती जा रही हूँ... *हर पल, हर संकल्प को यादो में पिरो कर, दिव्यता से सजती जा रही हूँ.*.. और आप समान सबका भाग्य सुंदर बनाती जा रही हूँ..."प्यारे बाबा से अथाह ज्ञान धन से भरपूर होकर मै आत्मा... साकार वतन में लौट आती हूँ...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- शिवबाबा को अपना वारिस बनाये उन पर पूरा - पूरा बलिहार जाना*"

 

_ ➳  अपने शिव पिता परमात्मा के साथ अलग - अलग सम्बन्धों का सुख अनुभव करते हुए मन बेहद खुशी से भर जाता है और मन मे विचार चलता है कि वो ऑल माइटी ऑथोरिटी भगवान जिसकी भक्त लोग केवल अराधना करते हैं, स्वप्न में भी नही सोच सकते कि भगवान उनका बाप, दोस्त, साजन, बच्चा, भी बन सकता है। लेकिन *मैं कितनी खुशनसीब हूँ जो हर रोज भगवान के साथ एक नया सम्बन्ध बना कर, उस सम्बन्ध का असीम सुख प्राप्त करती हूँ*। ऐसा सुख  जो देह के सम्बन्धो में कभी मिल ही नही सकता। क्योकि वो *अनकंडीशनल प्यार केवल प्यार का सागर भगवान ही दे सकता हैं*।

 

_ ➳  यही विचार करते करते अपने शिव पिता परमात्मा को अपना बच्चा अपना वारिस बनाने का संकल्प मन मे लिए मैं अपने मन बुद्धि को एकाग्र कर उनका आह्वान करती हूँ। आह्वान करते ही सेकेंड में उनकी छत्रछाया को मैं अपने ऊपर अनुभव करती हूं। *अपने चारों और फैले सर्वशक्तियों के रंग बिरंगे प्रकाश को मैं मन बुद्धि की आंखों से स्पष्ट देख रही हूँ*। ये प्रकाश मन को असीम शांति और सुकून का अनुभव करवा रहा है। सुख, शांति, प्रेम, पवित्रता के शक्तिशाली वायब्रेशन चारो और वायुमण्डल में फैल कर मन को असीम आनन्द की अनुभूति करवा रहें हैं। *इस असीम आनन्द की अनुभूति करते करते अपने शिव पिता परमात्मा की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों के झूले में बैठ, मैं आत्मा अपने लाइट के सूक्ष्म शरीर के साथ उड़ चलती हूँ*। और उड़ते उड़ते एक बहुत सुंदर उपवन में पहुंच जाती हूँ।

 

_ ➳  चारों और फैली हरियाली, रंग बिरंगे फूंलो की खुशबू मन को आनन्दित कर रही है। उपवन में बैठी मैं प्रकृति के इस सुंदर नजारे का आनन्द ले रही हूं। तभी कानो में बांसुरी की मधुर आवाज सुनाई देती है औऱ *देखते ही देखते मेरे शिव पिता परमात्मा नटखट कान्हा के रूप में बाँसुरी बजाते हुए मेरे सामने आ जाते हैं*। उनके इस स्वरूप को देख मैं चकित रह जाती हूँ। धीरे धीरे बाँसुरी बजाते हुए मेरे नटखट गिरधर गोपाल मेरी गोदी में आ कर बैठ जाते हैं और अपने नन्हे हाथों को फैला कर मुझे अपनी बाहों में भर लेते हैं। *उनके नन्हे हाथों का कोमल स्पर्श पाकर मन उनके प्रति वात्सलय और प्यार से भर जाता है*। अपने नटखट कान्हा की माँ बन कर मैं उन्हें प्यार कर रही हूँ, उनकी लीलाओं का आनन्द ले रही हूं।

 

_ ➳  स्वयं भगवान नटखट गोपाल का रूप धारण कर, मेरा बच्चा बन मुझे मातृत्व सुख का अनुभव करवा कर अपने लाइट माइट स्वरूप में अब मेरे सामने उपस्थित हो जाते हैं और फिर से अपनी सर्वशक्तियों रूपी किरणों को बाहों में समेटे मुझे ऊपर की और ले कर चल पड़ते हैं। अपने सूक्ष्म आकारी फ़रिशता स्वरूप को सूक्ष्म वतन में छोड़, निराकारी आत्मा बन *अपने शिव पिता की बाहों के झूले में झूलते - झूलते मैं पहुँच जाती हूँ परमधाम और उनकी सर्वशक्तियों रूपी किरणों की छत्रछाया में जा कर बैठ जाती हूँ*। उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर करके, तृप्त हो कर अब मैं वापिस साकारी लोक की ओर आ जाती हूँ और अपने साकारी तन में आ कर भृकुटि पर विराजमान हो जाती हूँ।

 

_ ➳  नटखट गिरधर गोपाल के रूप में मेरे शिव पिता परमात्मा ने बच्चा बन कर जिस अविस्मरणीय सुख का मुझे आज अनुभव करवाया उसकी स्मृति बार बार मन को आनन्दित कर रही है। *उसी सुख को बार बार पाने की इच्छा से अब मैं शिव बाबा को अपना वारिस बनाये, तन मन धन से उन पर पूरा पूरा बलिहार जा कर 21 जन्मो के लिए उनसे अविनाशी सुख का वर्सा प्राप्त कर रही हूँ*। जैसे सुदामा में मुट्ठी भर चावल दे कर महल ले लिए ठीक उसी प्रकार इस एक जन्म  में शिवबाबा को अपना वारिस बना कर उन पर बलिहार जाने से, मैं जन्म जन्म के लिए उनकी बलिहारी की पात्र आत्मा बन गई हूं।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा दूसरों के लिए रिमार्क देने के बजाय स्व को परिवर्तन करती हूं।"*

 

 _ ➳  इस राजयोग के माध्यम से बाप ने अष्ट शक्तियों से भरपूर किया है... इन शक्तियों को कब कहां कैसे यूज़ करना है यह ज्ञान भी मुझ आत्मा को पिता से मिला है... पर शक्तियों और गुणों के दाता बाबा कहते हैं कि *चलते चलते कई बच्चे बहुत बड़ी गलती करते हैं... दूसरों के जज बन जाते हैं और अपने वकील बन जाते हैं*... मैं आत्मा चेक करती हूं कि कहीं मैं भी तो ऐसा नहीं कर रही... कहीं दूसरों को यह तो नहीं कहती कि इसको यह नहीं करना चाहिए, इनको बदलना चाहिए... और अपने लिए कहती कि मैं बिल्कुल सही हूँ... क्या मैं अपनी चेकिंग करना भूल तो नहीं जाती... अब मैं आत्मा दूसरों के लिए ऐसी रिमार्क देने के बजाए *स्वयं के लिए जज बनती हूँ... स्वचिंतक बनती हूं और स्वयं को परिवर्तन करती हूं... मैं आत्मा स्वपरिवर्तन से विश्व परिवर्तन में सहयोगी बन रही हूँ*...

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  हर दृश्य को साक्षी होकर देखने से सदा हर्षित अनुभव करना"*

 

_ ➳  *साक्षीपन की सीट पर बैठकर मैं आत्मा... परिस्थितियों के खेल को देखते हुए... सदा हर्षित अनुभव कर रही हूँ...* देह की दुनिया की स्मृति का... त्याग कर... देह से डिटैच होकर... सदा बाबा की याद में मग्न रहकर... सब बाबा को सौंप कर... हल्की... डबल लाइट हो रही हूँ... स्वतंत्र होकर... प्रसन्नता का अनुभव कर रही हूँ... स्वयं की श्रेष्ठ स्थिति के द्वारा... परिस्थिति की हलचल के प्रभाव से मुक्त हो रही हूँ... *सदा साक्षी स्थिति में रहकर... निश्चिंत अवस्था का अनुभव कर रही हूँ...* मैं आत्मा साक्षीपन के सिंहासन पर विराजमान हूँ... सिंहासन के नीचे... सभी समस्याओं को नष्ट होता हुआ अनुभव कर रही हूँ... *साक्षीभाव की अचल अडोल अवस्था से... ड्रामा का हर पार्ट... बहुत ही कुशलता से निभा रही हूँ...* संपर्क में आने वाली हर आत्मा भी... स्वतः ही हर्षित अनुभव कर रही है...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  १. *तन तो सबके पुराने हैं हीचाहे जवान हैं चाहे बड़े हैं, छोटे और ही बड़ों से भी कहाँ-कहाँ कमजोर हैं*चाहे बीमारी बड़ी है *लेकिन  बीमारी की महसूसता कि मैं कमजोर हूँमैं बीमार हूँ - ये बीमारी को बढ़ा देती है। क्योंकि तन का प्रभाव मन पर आ गया तो डबल बीमार हो गये*। तन और मन दोनों से डबल बीमार होने के कारण बार-बार सोल कान्सेस के बजाय बीमारी कान्सेस हो जाते हैं।

➳ _ ➳  २. *तन से तो मैजारिटीबीमार कहो या हिसाब-किताब चुक्तु करना कहोकर रहे हैं*लेकिन ५० परसेन्ट डबल बीमार और ५० परसेन्ट सिंगल बीमार हैं।

➳ _ ➳  ३. कभी भी मन में बीमारी का संकल्प नहीं लाना चाहिये- मैं बीमार हूँमैं बीमार हूँ... *लेकिन होता क्या हैये पाठ पक्का हो जाता है कि मैं बीमार हूँ*.... कभी-कभी किसी समय बीमार होते नहीं हैं लेकिन मन में खुशी नहीं है तो बहाना करेंगे कि मेरे कमर में दर्द है। क्योंकि मैजारिटी को या तो टांग दर्दया कमर का दर्द होता हैकई बार दर्द होता नहीं है फिर भी कहेंगे मेरे को कमर में दर्द है।

➳ _ ➳  आजकल के हिसाब से दवाइयाँ खाना ये बड़ी बात नहीं समझो। क्योंकि *कलियुग का वर्तमान समय सबसे शक्तिशाली फ्रूट ये दवाइयाँ हैं।* देखो कोई रंग-बिरंगी तो हैं ना। कलियुग के लास्ट का यही एक फ्रूट है तो खा लो प्यार से। दवाई खाना ये बीमारी याद नहीं दिलाता। *अगर दवाई को मजबूरी से खाते हो तो मजबूरी की दवाई बीमारी याद दिलाती है और शरीर को चलाने के लिये एक शक्ति भर रहे हैंउस स्मृति में खायेंगे तो दवाई बीमारी याद नहीं दिलायेगी, खुशी  दिलायेगी* तो बस दो-तीन दिन में दवाई से ठीक हो जायेंगे।

➳ _ ➳  आजकल के तो बहुत नये फैशन हैंकलियुग में सबसे ज्यादा इन्वेन्शन आजकल दवाइयाँ या अलग-अलग थेरापी निकाली हैआज फलानी थेरापी हैआज फलानी, *तो ये कलियुग के सीजन का शक्तिशाली फल है। इसलिए घबराओ नहीं। लेकिन दवाई कांसेस, बीमारी कांसेस होकर नहीं खाओ*। तो तन की बीमारी होनी ही हैनई बात नहीं है। इसलिए बीमारी से कभी घबराना नहीं। बीमारी आई और उसको फ्रूट थोड़ा खिला दो और विदाई दे दो।    

✺   *ड्रिल :-  "बीमारी कान्सेस के बजाय सोल कान्सेस में रहना"*

➳ _ ➳  शाखाओं पर झूलती पकी धान की सुनहरी बालियाँ... वातावरण को महकाती हुई... शाखाओं से अलग होने के इन्तजार में है... *कलियुग का अन्तिम प्रहर और मैं आत्म पंछी देहभान की शाखाओं से खुद को मुक्त कर उड चला एक अनोखी सी उडान पर...* दुखों से मुक्ति की उडान... *मैं उडता जा रहा हूँ निरन्तर ऊँचाईयों की ओर*... सब कुछ छोटा और छोटा  प्रतीत हो रहा है मुझे... *वो सभी कुछ जो पीछे छोडता जा रहा हूँ मैं...* देह की पीडा, देह के सुख, संबधों में लगाव... जैसे सब कुछ बहुत ही छोटी छोटी बाते है... ये ऊँची बिल्डिगें ये पर्वत, ये नदियाँ, ये झरने जैसे सब कुछ नन्हें खिलौने मात्र है... गहराई से महसूस कीजिए... उन सबकी लघुता को...

➳ _ ➳  फरिश्ता रूप में मैं, बापदादा के सामने हिस्ट्री हाॅल में...  बापदादा आज चिकित्सक के रूप में है... (दृश्य चित्र बनाकर देखे बाप दादा को एक चिकित्सक के रूप में) मैं देख रहा हूँ गौर से उनकी एक एक भाव भंगिमा को... महसूस कर रहा हूँ उनके अन्दर किस कदर हम बच्चों के प्रति कल्याण की भावना है... उनकी आज की वेशभूषा इस बात का प्रमाण है... बापदादा के सामने रंग बिरंगी गोलियों का बडा ढेर है... *कलियुग का शक्तिशाली फल*... और *आज वरदानों के साथ बाप दादा बच्चों को यही गोलियाँ टोली के रूप में दे रहे हैं... शरीर के हिसाब चुक्तु करने की बडी लिफ्ट ये गोलियाँ और देही अभिमानी बनने का वरदान*...

➳ _ ➳  मेरी बारी आती है... मैं मन में कुछ संकल्प विकल्प लिए बाबा के सामने हूँ... और बाबा जैसे बिना बतायें ही सब कुछ समझ गये हैं... *स्नेह से हाथ पकड कर बिठा लिया है उन्होने अपनी गोद में*... और मैं नन्हें बच्चे की तरह दुबक गया हूँ, उनकी गोद में जैसे कोई नन्हा पंछी छिप जाता है, अपनी माँ के पंखों के नीचे... *मेरे सर पर स्नेह से हाथ फेरते बापदादा अपने स्नेह से ही मेरी मन के सभी विकल्पों का समाधान कर रहे है*... मैं महसूस कर रहा हूँ  कि *मेरा बीमारी काॅन्सेस हो जाना ही मुझे डबल बीमार कर देता है*... इसी समझ के साथ बापदादा से मैं *कलियुग का शक्तिशाली फल खुशी खुशी ले लेता हूँ, बापदादा सर पर हाथ रखकर मुझे आत्म अभिमानी बनने का वरदान दे रहें है*...

➳ _ ➳  वरदानों की शक्ति स्वयं में समाये हुए मैं राकेट की तेज गति से परमधाम में... कुछ देर सारे संकल्पों को मर्ज करके... बस एक ही संकल्प में स्थित... *मैं आत्म अभिमानी हूँ* संकल्प का स्वरूप बनने की शक्ति देते शिव बाबा... (देर तक महसूस करें शक्तियों का वो झरना खुद के ऊपर) और इसी एक संकल्प मैं बल भरकर, मैं आत्मा लौट आयी हूँ अपनी उसी पुरानी देह में, *मगर अब न कोई शिकवा है, न शिकायत...  मैं सम्पूर्ण स्वस्थ और आत्मभिमानी अवस्था में...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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