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 11 / 10 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *"मेरा तो एक शिव बाबा , दूसरा म कोई" - यह धारणा पक्की की ?*

 

➢➢ *स्मृतिलब्धा बनकर रहे ?*

 

➢➢ *मेरा मेरा छोड़ ग्रहण से मुक्त होने का पुरुषार्थ किया ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *सर्व शक्तियों रुपी बर्थ राईट को हर समय कार्य में लगाया ?*

 

➢➢ *उमंग औत उत्साह से भरपूर अनुभव किया ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  इस पुरानी दुनिया की राज्य सभा का हालचाल तो अच्छी तरह से जानते हो - न लॉ है, न ऑर्डर है। लेकिन *आपकी राज्य दरबार लाँ फुल भी है और सदा हाँ जी, जी हाजिर - इस ऑर्डर में चलती है।*

 

✧  जितना राज्य अधिकारी शक्तिशाली है उतना राज्य सहयोगी कर्मचारी भी स्वत: भी सदा इशारे से चलते, *राज्य अधिकारी ने ऑर्डर दिया कि यह नहीं सुनना है और यह नहीं करना है, नहीं बोलना है, तो सेकण्ड में इशारे प्रमाण कार्य करें।* ऐसे नहीं कि आपने आर्डर

किया - नहीं देखो और वह देख करके फिर माफी मांगे कि मेरी गलती हो गई।

 

✧  करने के बाद सोचे तो उसको समझदार साथी कहेंगे? *मन को ऑर्डर दिया कि व्यर्थ नहीं सोचो, सेकण्ड में फुलस्टॉप, दो सेकण्ड भी नहीं लगने चाहिए।* इसको कहा जाता है - युक्ति-युक्त राज्य दरबार। ऐसे राज्य अधिकारी बने हो? रोज राज्य दरबार लगाते हो या जब याद आता है तब ऑर्डर देते हो?

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  शिव वंशी ब्रह्मा मुख वंशावली, ब्राह्मण के नशे रहना"*

 

_ ➳  मधुबन घर में डायमण्ड हाल में अपने शिव पिता को निहार कर मै आत्मा.. घनेरे सुखो में खो जाती हूँ... सम्मुख बेठे भगवान को देख, ख़ुशी में बावरी हो रही हूँ... *मन ही मन मीठे बाबा को प्यार कर रही हूँ... दुलार कर रही हूँ... ख़ुशी के अंसुवन से, दिल के भावो को, बयान कर रही हूँ.*.. मेरे लिए धरती पर उतर आया है भगवान... मुझे संवारने, निखारने और देवताई शानो शौकत से सजाने... यह सोच सोचकर निहाल हुई जा रही हूँ... *कितना दूर दूर ढूंढ रही थी.. इस मीठे भगवान् को... और मीठे बच्चे की आवाज सुनकर, जो मुड़कर निहारा... तो भगवान को अपने सम्मुख खड़ा पाया.*.. अपने इस मीठे भाग्य को देख देख पुलकित हूँ... जिसने यूँ चुटकियो में मुझे भगवान से मिला दिया... मुझे क्या से क्या बना दिया...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा के महान भाग्य का नशा दिलाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... आपका भाग्य कितना प्यारा और महान है कि... परमधाम से स्वयं भगवान ने आकर आपको चुना है... *अपनी मखमली गोद में बिठाकर, फूलो जैसा खिलाया है... अथाह ज्ञान रत्नों से सजाकर, पूरे विश्व में अनोखा बनाया है.*.. अपने इस खुबसूरत भाग्य के नशे में रहकर... पुरुषार्थ के शिखर पर पहुंचकर मीठा सा मुस्कराओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा को अपनी बाँहों में भरकर गले लगाती हुए कहती हूँ :-"प्यारे प्यारे बाबा मेरे... आप जो जीवन में न थे बाबा तो यह जीवन दुखो की गठरी सा बोझिल था... मै अकेली किस कदर इसे उठाकर टूट गयी थी... *आपने मीठे बाबा मेरे जीवन में आकर, गुणो की खुशबु से महके...सुख भरे फूल खिलाये है.*.. मुझे अपना प्यारा बच्चा बनाकर मेरा सोया हुआ भाग्य जगा दिया है...

 

   प्यारे बाबा ने मुझे ज्ञान रत्नों से सजाकर विश्व की बादशाही देते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सदा अपने मीठे भाग्य की यादो में रहकर मीठे बाबा को याद करो... *सोचो जरा, कितना शानदार भाग्य है कि शिव पिता और ब्रह्मा मां... जीवन को नये आयामो से सजाने के लिए मिली है.*.. देह की मिटटी से उठकर, ईश्वरीय दिल में बस गए हो..."

 

_ ➳  मै आत्मा अपनी खुशनसीबी पर झूमते गाते हुए मीठे बाबा को गले लगाकर कहती हूँ ;-"मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा *अपने इस अनोखे भाग्य पर कितना ना इठलाऊँ झूमूँ, नाचू और मुस्कराऊ.*.. कि भगवान को पाकर खुबसूरत देवता बन रही हूँ... गुणो और शक्तियो से सजधज कर विश्व की मालिक बन रही हूँ...

 

   मीठे बाबा मुझे अपने दिल में बसाकर, अप्रतिम सौंदर्य से सजाकर कहते है :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता को पा लेने की सच्ची खुशियो में सदा, सदा मुस्कराओ... अपने प्यारे भाग्य के गीत गाकर, मीठे बाबा की प्यारी प्यारी यादो में खो जाओ... *शिव शिल्पकार पिता और ब्रह्मा सी माँ मिलकर देवताई सौंदर्य में ढाल रहे है... पावनता से भरकर विश्व का बादशाह बना रहे है.*.. सदा इस मीठी खुमारी में खोये रहो..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की श्रीमत पर चलकर जीवन को खुबसूरत बनाते हुए कहती हूँ :-"मीठे प्यारे साथी मेरे... मै आत्मा आपकी यादो के साये में गुणो और शक्तियो से भरपूर होकर... सतयुगी दुनिया की हकदार बन रही हूँ... *शिव पिता और ब्रह्मा माँ का हाथ थामकर खुशियो की बगिया में घूम रही हूँ... साधारण मनुष्य से ऊँचा उठकर, खुबसूरत देवता बन रही हूँ..*."प्यारे बाबा से असीम प्यार पाकर मै आत्मा... इस देह के भृकुटि सिहांसन पर लौट आयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  मेरा - मेरा छोड़ ग्रहण से मुक्त होना*"

 

 _ ➳  अपने मीठे बाबा की मीठी याद में बैठी एक बहुत ही सुंदर दृश्य मैं देख रही हूँ जिसे देख कर मेरा रोम - रोम आनन्दमयी हो रहा है। *मैं देख रही हूँ जिस देह और देह की दुनिया मे मैं रहती हूँ वह देह और देह की दुनिया जैसे निराकारी आत्माओं की दुनिया मे परिवर्तित हो रही है*। सभी के साकारी शरीर जैसे लुप्त होते जा रहें हैं। एक भी मनुष्य मुझे दिखाई नही दे रहा। चारों और केवल चमकती हुई ज्योति बिंदु आत्मायें निराकार शिव बाबा की छत्रछाया के नीचे दिखाई दे रही हैं।

 

 _ ➳  बाबा की अनन्त शक्तियाँ सभी आत्माओं पर पड़ रही है और बाबा की सर्वशक्तियाँ पा कर सभी आत्मायें जगमग करते हुए सितारों की भांति चमक रही हैं। *सर्वशक्तियों का एक शक्तिशाली पुंज दीप राज के रूप में और उसके सामने असंख्य जगमग करते चैतन्य दीपक शोभायमान हो रहें हैं*। ऐसा लग रहा है जैसे कोई चैतन्य दीपमाला जग रही है। इस अद्भुत दृश्य को देख मन को असीम सुकून की अनुभूति हो रही है। अपने शिव बाबा की सर्वशक्तियों की छत्रछाया में सभी असीम आनन्द की अनुभूति कर रहें हैं।

 

 _ ➳  असीम आनन्द की अनुभूति करके अब हर आत्मा फिर से अपना देह रूपी वस्त्र धारण कर रही है। और जैसे ही देह में प्रवेश करती है माया रावण अपने अति लुभावने रूप में उसे अपनी और आकर्षित करके उस दिव्य अलौकिक आनन्द की अनुभूति को भुला देती है। *अब मैं देख रही हूँ फिर से साकारी दुनिया मे साकारी मनुष्यों को जिनके ऊपर माया रावण की परछाया पड़ चुकी है। माया रावण ने देह अभिमान के रुप में सभी को "मैं और मेरा" का ग्रहण लगा दिया है*। सभी के अंदर पांच विकारों रूपी रावण की प्रवेशता हो गई है। "मैं और मेरा" के ग्रहण ने सभी को अभिशापित करके विकर्मी बना दिया है। देह अभिमान में आ कर सभी विकर्म कर रहें है और दुख पा रहें हैं।

 

 _ ➳  पतित दुनिया के इस दुखमय दृश्य को देखते देखते एकाएक मैं देखती हूँ कि धीरे - धीरे परमधाम से ज्ञानसूर्य शिवबाबा अपनी शक्तिशाली किरणों को बिखेरते हुए नीचे आ रहें हैं। *सूक्ष्म लोक में पहुंच कर, शिवबाबा अपने आकारी रथ, ब्रह्मा बाबा की भृकुटि  पर विराजमान हो कर, साकारी दुनिया में प्रवेश करते हैं*। मैं देख रही हूँ पूरी दुनिया में ज्ञान सूर्य की शक्तिशाली किरणे धीरे - धीरे चारों ओर फैलने लगी है। शिव बाबा ब्रह्मा मुख से सभी को "मैं और मेरा" के इस ग्रहण से मुक्त होने का उपाय बता रहें हैं। सभी को उनका और अपना वास्तविक परिचय दे कर, उन्हें उनके वास्तविक गुणों की स्मृति दिला रहें हैं।

 

 _ ➳  अब मैं देख रही हूँ जो निश्चयबुद्धि बन, ज्ञानसूर्य शिव बाबा के इस दिव्य ज्ञान को सुन, उनकी समझानी पर चल रहें हैं वो "मैं और मेरा" के ग्रहण से मुक्त होते जा रहें हैं। किन्तु *जो संशय बुद्धि हैं और भगवान की मत के अनुसार नही चल रहे। वो पांच विकारों के इस ग्रहण के शिकंजे में और ज्यादा फंस कर दुखी, अशांत हो रहें हैं*। इस दृश्य को देखते - देखते मैं अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करती हूँ जो स्वयं भगवान ने आ कर मुझ आत्मा पर लगे ग्रहण से मुझे मुक्त कर सदा के लिए सुखदाई बनने का सहज रास्ता बता दिया।

 

 _ ➳  *अपने भगवान बाप का दिल से शुक्रिया अदा करते हुए, अपने ब्राह्मण स्वरूप में रहते , निरन्तर बाबा की याद से अब "मैं और मेरा" को छोड़ पांच विकारों के ग्रहण से मुक्त होने का पुरुषार्थ मैं निरन्तर कर रही हूँ*। पांच विकारों रूपी ग्रहण ने जो मुझ आत्मा को काला बना दिया था, उन विकारों की कट को योग अग्नि से भस्म कर अब मैं रीयल गोल्ड बन रही हूँ।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *ड्रिल :-  मैं आत्मा सर्वशक्तियों रूपी बर्थ राइट को अधिकारी बन कार्य में लगाती हूं।*

 

 _ ➳  *मुझ आत्मा को मेरे सर्वशक्तिमान पिता ने सर्व शक्तियों के खज़ाने से भरपूर किया है... मैं अधिकारी आत्मा हूं...* और मैं आत्मा सदा इसी नशे में रहती हूं... *ये शक्तियां ही मेरे गुण बन मेरे स्वभाव संस्कार को बदल रहीं हैं... नकारात्मक परिस्थितियों में दृढ़ता से अपनी अलग अलग शक्तियों का उपयोग कर उसको सकारात्मकता में बदल रही हूं...* मुझे नम्बर वन विजयी बनना है... तो विपरीत समय पर इन शक्तियों को पहचान कार्य में लगा रही हूं... और शक्ति स्वरूपा बन सबको सहयोग दे रही हूं... *निरंतर अभ्यास के द्वारा ही मेरी शक्तियां मेरा आत्मबल बन मुझे और शक्तिशाली बना रही हैं... मेरा आत्म बल निरन्तर बढ़ता जा रहा है... और इसी निरंतरता से मैं मास्टर सर्वशक्तिमान बन रही हूं...*

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  उमंग उत्साह द्वारा हर कार्य में विजय मूर्त बनने का अनुभव करना"*

 

_ ➳  *बाप मिला... बाप की गोद मिली... और मैं आत्मा... 21 जन्मों के लिए वर्से की हकदार बन गई... यह स्मृति... मुझ आत्मा को... उमंग उत्साह से... भरपूर किए हुए हैं...* इस स्थिति में स्थित... मैं आत्मा... हर कार्य में विजय मूर्त... सिद्धि स्वरूप हूं... मैं आत्मा देखती हूं... *उमंग उत्साह में रह... विधिपूर्वक किया... हर संकल्प सफलता को प्राप्त हैं... प्रत्यक्ष फल की मैं आत्मा... अनुभवी मूर्त बन गई हूं...* कोई भी कार्य...साधारण न रह... श्रेष्ठ, महान प्रतीत हो रहा हैं... उमंग उत्साह को देख... समस्याएं मेरे गले का हार बनी हुई है... अपनी मस्ती में मग्न... उमंग उत्साह के पंख लगा... मैं आत्मा... उड़ती जा रही हूं... एक दम हल्की... इस देह... देह के आकर्षणों से दूर... मग्न अपनी मस्ती में...  *ऐसा प्रतीत होता है... मानो सर्व कार्य जैसे हुए ही पड़े हैं... बस मैं आत्मा... उमंग उत्साह के पंख लगाए... हर कार्य में अंचली देने के निमित्त हूं...*

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  जब काम मिलता है तो लिखने में भी मार्क्स जमा होती हैं। अगर नहीं लिखा तो मार्क्स एकस्ट्रा कम हो गईनुकसान कर दिया। *जो भी डायरेक्शन मिलते हैंडायरेक्ट बाप द्वारा मिलते हैंचाहे निमित्त आत्मायें दादियों द्वारा मिलते हैंउसको रिगार्ड देना अति आवश्यक है।* इसमें न बहाना देनान अलबेलापन करना। आगे के लिए बापदादा बता देता है कि मार्क्स जमा नहीं हुई। *इसलिए इसको महत्व देना अर्थात् महान बनना।* हल्की बात नहीं करो। बच्चे बड़े चतुर हैं, कहेंगे बापदादा तो जानते ही हैं ना। जानते तो हैं लेकिन कहा क्योंजानते हुए कहा ना! तो ऐसे छुड़ाना नहीं चाहिए, *बहुत ऐसे कार्य हैंछोटे-छोटे जिसको हाँ जी करने में एक्स्ट्रा मार्क्स जमा होती हैं।*

 

 _ ➳  *कई ऐसे स्टूडेन्टस हैं जो किसी भी पास्ट के संस्कार के वश बहुत अच्छे उमंग-उत्साह में बढ़ते हैं* लेकिन कोई न कोई सुनहरी धागा, बहुत महीन धागा उनको आगे बढ़ने नहीं देता। वह समझते भी हैं कि यह महीन धागा रहा हुआ हैलेकिन.... लेकिन ही कहेंगे। लेकिन *ऐसे भी पुरुषार्थी हैं जो छोटी-छोटी कामन बातों में हाँ जी करने से मार्क्स ले लेते हैं। और हो सकता है कि वह थोड़ी-थोड़ी मार्क्स इकट्ठी होते हुए वह आगे भी निकल सकते हैं,* ऐसे भी बापदादा के पास एक्जैम्पुल के रूप में हैं *इसलिए सहज तरीका है छोटी-छोटी हाँ जी करने में मार्क्स जमा करते जाओ। कट नहीं करोजमा करो।*

 

✺   *ड्रिल :-  "छोटे-छोटे कार्यों में 'हाँ जी' कर मार्क्स जमा करना"*

 

 _ ➳  *ठंडी-ठंडी हवाओं में, धुन्ध भरे मौसम में नीलाम्बर के नीचे हरी-हरी घास पर विचरण करती मैं दिव्य प्रकाशमय आत्मा...* अपने सुप्रीम टीचर की दी शिक्षाओं पर विचार करती, *मैं आत्मा एक मगन अवस्था में स्थित हूँ... मानों मैं आत्मा ज्ञान सागर में डूबती, ज्ञान के रहस्यों में गोते खा रही हूँ...* और समा गयी हूँ... ज्ञान के गहरे रहस्यों के तल में... एक-एक ज्ञान रत्न रूपी मोती इकट्ठा करती मैं दिव्य आत्मा... एकाएक मुझ आत्मा के सामने एक दृश्य उभरता हैं... मैं आत्मा देख  रही हूँ... एक बहुत उबड़-खाबड रास्ता नजर आ रहा हैं... *जिस पर कुछ यात्री अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रहे है...*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा देख रही हूँ... इस राह पर बीच-बीच में कुछ पत्थर पड़े हुए है... जिन पर लिखा है... "हाँ जी"* मैं प्रकाश पुंज आत्मा इस दृश्य को बड़े ध्यान से देख रही हूँ... कुछ आत्माएँ जिन पत्थर पर हाँ जी लिखा है... उसे रास्ते से अपनी जिम्मेदारी समझते रास्ते से हटाने में लग जाती हैं... और कुछ अन्य आत्माएं उसे देख कर अनदेखा कर उस से आगे बढ़ जाती है... *अचानक एक अजब सीन सामने आता है... जो यात्री हाँ जी वाले पत्थर को हटाने में लगे थे... अचानक वो पत्थर बदलकर एक लिफ्ट बन जाती हैं...* और उस लिफ्ट में वो यात्री बैठ *बाकि यात्रियों से 4 कदम आगे बिना किसी मेहनत के, बिना थके एक नये उमंग के साथ पहुँच जाते है...*

 

 _ ➳  और इस अजब दृश्य को देख मैं आत्मा अपने अनर्तमन की गहराइयों से धीरे-धीरे वापिस आती हूँ... और अब *मैं ज्योति स्वरूप आत्मा अनुभव कर रही हूँ... स्वयं को पांच तत्वों से बने देह में... और मैं आत्मा ज्ञान की कुछ नयी बातों से, उनके रहस्यों की स्पष्टता को पाकर सुप्रीम टीचर की शिक्षाओं को धारणा करने में अपने को और परिपक्व अनुभव कर रही हूँ...* मैं आत्मा मम्मा और ब्रह्मा बाबा उनकी भृकुटि में शिव पिता को सामने पाती हूँ... *लाइट की चमकीली ड्रेस में मम्मा दिव्य आलोक से भरपूर धीरे-धीरे मुझ आत्मा की तरफ आ रही है...* और मम्मा अपना लाइट का हाथ जैसे ही मेरे सिर पर रखती है... *मैं आत्मा दैहिक भान से परे हो जाती हूँ... इस देह और देह की दुनिया की सुध-बुध भूल जाती हूँ... देह से उपराम... अशरीरी हो जाती हूँ...*

 

 _ ➳  *मेरे चारों तरफ प्रकाश ही प्रकाश है... कभी सामने बीज रूप शिव बाबा निराकार स्वरूप में दिख रहे है...* कभी ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में शिव बाबा चमकते हुए दिखाई दे रही है... *लग रहा है जैसे लाइट की बारिश मुझ पर हो रही हो...* और मैं आत्मा इस लाइट में भीग कर इसमें समा गई हूँ... *अतिइन्द्रिय सुख के झूले में मैं आत्मा स्वयं को अनुभव कर रही हूँ सर्व शक्तियों और सर्व गुणों से सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ...* तभी मेरे सामने मम्मा के जीवन के वृतांत आने लगते है... जिसमें मैं आत्मा स्पष्ट देख रही हूँ... कैसे *मम्मा ने हर छोटी-छोटी बात में भी हाँ जी का पुरूषार्थ किया और कैसे आगे बढ़ी...* और अचानक सभी दृश्य मुझ आत्मा के सामने से गायब हो जाते है... और इन सभी दृश्यों को देख *एक नयी ज्ञान उर्जा का संचार मैं दिव्य आत्मा स्वयं में अनुभव कर रही हूँ... पहले से ज्यादा दिव्यता और मुझ आत्मा का प्रकाश बढ़ गया है... सर्व शक्तियों से सम्पन्न मैं आत्मा अनुभव कर रही हूँ...*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा अब देख रही स्वयं को इस सृष्टि रंग मंच पर पार्ट प्ले करते हुए...* अब मैं आत्मा इस धरा पर अपना पार्ट पले कर रही हूँ... मेरे सामने अंतर्मन की गहराइयों में जाकर जो दृश्य मैंने देखा, और मम्मा के जीवन के वृत्तांत मेरे सामने आ रहे है... *मुझ आत्मा को इन सब से प्रेरणा मिल रही है...* मैं दिव्य आत्मा देख रही हूँ... *स्वयं को मैं आत्मा मम्मा समान हर कार्य में, सभी छोटे-छोटे कार्य में भी निश्चय बुद्धि होकर सदा हाँ जी कर आगे बढ़ रही हूँ...* मैं निश्चयबुद्धि आत्मा हाँ जी रुपी लिफ्ट द्वारा तेजी से पुरूषार्थ में आगे बढने का अनुभव कर रही हूँ... *हाँ जी रूपी लिफ्ट को यूज़ कर मैं आत्मा एक नयी आत्मिक उर्जा, और दुआओं की गिफ्ट से स्वयं को भरपूर, हल्का और स्वयं में महानता का अनुभव कर रही हूँ...* मैं सन्तुष्ट महान आत्मा एक नये आत्मिक बल से, नये उंमग के साथ तीव्र गति से आगे बढ़ रही हूँ... *बाबा द्वारा जो निमित्त आत्मा द्वारा जो डायरेक्शन मिल रहे है उसमें मेरा हांजी का पाठ पक्का हो गया है...* इनको महत्व देते हुए, निमित्त को रिगार्ड देते हुए मैं स्वयं को एक महान आत्मा समझ रही हूं... ना कोई  सूक्ष्म महीन बंधन है ना कोई पुराने संस्कारो की खिंचावट... *मैं निश्चिन्तता से सरलता से उमंग-उत्साह से हांजी करते हए अपने मार्क्स जमा करते हुए भाग्य बनाती जा रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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