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 13 / 08 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *निमित बन सर्व आत्माओं को सहारा दिया ?*

 

➢➢ *अनुभव द्वारा आत्माओं को अविनाशी पाठ पढाया ?*

 

➢➢ *स्वयं को तीन बिंदियों का तिलक लगाया ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *एक का मन्त्र सदा याद रहा ?*

 

➢➢ *"मैं भी शांत, घर भी शांत, बाप भी शन्ति का सागर, धर्म भी शांत" - आत्माओं को यह पाठ पढाया ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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➳ _ ➳  *सारे विस्तार को बीज में समा दिया है वा अभी भी विस्तार है?* इस जडजड़ीभूत वृक्ष की किसी भी प्रकार की शाखा रह तो नहीं गई है? *संगमयुग है ही पुराने वृक्ष की समाप्ति का युग।* तो हे संगमयुगी ब्राह्मणों! पुराने वृक्ष को समाप्त किया है? जैसे पते-पते को पानी नहीं दे सकते। बीज को देना अर्थात सभी पत्तों को पानी मिलना। ऐसे इतने *84 जन्मों के भिन्न-भिन्न प्रकार के हिसाब-किताब का वृक्ष समाप्त करना है।* एक-एक शाखा को समाप्त करने का नहीं। आज देह के स्मृति की शाखा को समाप्त करो और कल देह के सम्बन्धों की शाखा को समाप्त करो, ऐसे एक-एक शाखा को समाप्त करने से समाप्ति नहीं होगी। लेकिन *बीज बाप से लगन लगाकर, लगन की अग्नि द्वारा सहज समाप्ति हो जायेगी।* काटना भी नहीं है लेकिन भस्म करना है। आज काटेंगे, कुछ समय के बाद फिर प्रकट हो जायेगा क्योंकि वायुमण्डल के द्वारा वृक्ष को नेचुरल पानी मिलता रहता है। जब वृक्ष बडा हो जाता है तो विशेष पानी देने की आवश्यकता नहीं होती। नैचरल वायुमण्डल से वृक्ष बढ़ता ही रहता है वा खडा हुआ रहता है तो इस विस्तार को पाये हुए जडजडीभूत वृक्ष को अभी पानी देने की आवश्यकता नहीं है। यह आटोमैटिक बढ़ता जाता है। *आप समझते हो कि पुरुषार्थ द्वारा आज से देह सम्बन्ध की स्मृति रूपी शाखा को खत्म कर दिया, लेकिन बिना भस्म किये हुए फिर से शाखा निकल आती है।* फिर स्वयं ही स्वयं से कहते हो वा बाप के आगे कहते हो कि यह तो हमने समाप्त कर दिया था फिर कैसे आ गया! पहले तो था नहीं फिर कैसे हुआ। कारण? *काटा, लेकिन भस्म नहीं किया।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  एक का मन्त्र याद रहे, तो सबमे एक दिखाई देगा"*

 

_ ➳  प्रकर्ति के खुबसूरत सानिध्य का आनन्द लेती हुई मै आत्मा... लाल गुलाबो से भरे हुए एक उपवन को निहारती हूँ... लाल गुलाबो के देख... मुझे मीठे बागबान बाबा द्वारा... इस धरा पर खिलाये रूहानी गुलाब सी मै आत्मा का... *खुबसूरत भाग्य और अपने लाल घर परमधाम की याद आ जाती है.*. यादो के पंखो से... मै आत्मा अपने मीठे घर में प्यारे बाबा से मिलने के लिए उड़ चलती हूँ... मीठे बागबान बाबा का रोम रोम से शुक्रिया करने...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने प्यार के रंग में रंगते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *ईश्वर पिता को पाने की अविनाशी ख़ुशी, अविनाशी खुशबु में सदा खोये रहो.*..तो मेरा तो एक बाबा स्वतः ही यादो में बना रहेगा... ऐसे अविनाशी संकल्प से सब कुछ सहज हो जायेगा... और दिल मीठे बाबा को देकर, तीन बिंदियों के अविनाशी तिलक को सदा लगाये रहो..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की यादो में डूबकर कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा *आपकी यादो के रंग में इस कदर रंगी हूँ कि बाबा ही मेरा संसार है.*.. आपकी यादो, आपकी बातो, और आपके यज्ञ के अलावा मुझे कुछ ओर दीखता ही नही है... मेरी दुनिया ही मीठा बाबा है... मै आत्मा आपकी यादो में डूबी, ख़ुशी के आसमाँ में उड़ रही हूँ..."

 

   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को असीम ख़ुशी से भरते हुए कहा :- "मीठे लाडले बच्चे... सदा उमंग उत्साह में झूमते रहो... अनुभव की दौलत से हर दिल को अनुभव की ख़ान बनाते चलो... अशांत और थकी आत्माओ को शांति का अनुभव कराकर सच्चे सुख और सुकून से भर दो... *सच्ची शांति और प्रेम का अहसास कराने वाले, रहमदिल बनकर मुस्कराओ.*.."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा को पाकर असीम ख़ुशी में नाचते हुए कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... *आपने ही तो मुझ सदा के लिए सच्ची खुशियो से सजाया है.*.. अपने मीठे प्यार की पालना और ज्ञान रत्नों की दौलत देकर... उमंगो और उत्साह से भरपूर किया है...विश्व मेरी चाल से ही मेरे ख़ास होने का आभास सदा पाता है...

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा को ज्ञान धन से दौलतमंद बनाते हुए कहते हे :- "मीठे सिकीलधे बच्चे.... सबको सहारा सेने वाले मा सर्वशक्तिवान बनकर मुस्कराओ... माला में पिरोये दाने की तरह संस्कारो में समीपता लाकर, संस्कार मिलन् की रास कर दिखाओ... *मा सर्वशक्तिवान बनकर शक्तियो को आडर्र कर हर कदम पर सदा सफलता को गले लगाओ.*.."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा की अमूल्य शिक्षाओ को स्वयं में भरते हुए कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... *आपकी यादो में डूबकर मै आत्मा सर्व शक्तियो की मालिक बन गयी हूँ..*. सबको आत्मिक भाव से निहारने वाली मै प्रेम मणि बनकर मुस्करा रही हूँ... और सदा सफलता के शिखर पर मुस्करा रही हूँ..."ऐसी मीठी रुहरिहानं प्यारे बाबा से कर, मै आत्मा... साकार जगत में लौट आयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- आत्माओं को शांति का अनुभव करवाना*"

 

 _ ➳  "विश्व की सर्व आत्मायें शांति की तलाश में भटक रही है, उन तड़पती हुई आत्माओं को शांति की अनुभूति करवाओ" अपने शिव पिता परमात्मा के इस फरमान का पालन करने के लिए, अपनी शांत स्वरूप स्थिति में स्थित हो कर मैं शांति के सागर अपने शिव पिता परमात्मा की याद में बैठ जाती हूँ। *अशरीरी स्थिति में स्थित होते ही मैं स्वयं को शान्तिधाम में शांति के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के सन्मुख पाती हूँ जो शांति की अनन्त शक्तियों से मुझे भरपूर कर रहें हैं*। अपने शिव पिता से आ रही शांति की शक्तिशाली किरणों को स्वयं में समा कर मैं जैसे शांति का पुंज बनती जा रही हूं।

 

 _ ➳  शांति की असीम शक्ति का स्टॉक अपने अंदर जमा करके अब मैं परमधाम से नीचे आ कर विश्व की उन सर्व आत्माओं को शांति की अनुभूति करवाने चल पड़ती हूँ जो पल भर की शांति की तलाश में भटक रही हैं। *सूक्ष्म लोक में पहुंच कर अपना लाइट का फ़रिशता स्वरूप धारण कर, शांति दूत बन बापदादा के साथ कम्बाइंड हो कर अब मैं विश्व ग्लोब पर आ कर बैठ जाता हूँ*। मैं देख रहा हूँ बापदादा से अविरल शांति की धाराएं निकल रही हैं जो निरन्तर मुझ फ़रिश्ते में समा रही है। शांति की इन धाराओं को मैं फ़रिशता अब विश्व ग्लोब के ऊपर प्रवाहित कर रहा हूँ। *शांति की इन धाराओं के विश्व ग्लोब पर पड़ते ही शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन पूरे विश्व मे फैल रहें हैं*।

 

 _ ➳  जैसे - जैसे ये वायब्रेशन वायुमण्डल में फैल रहें हैं वैसे - वैसे वायुमण्डल में एक दिव्यता छाने लगी है। *जैसे सुबह की ताजी हवा शरीर को सुखद अहसास करवाती है वैसे ही वायुमण्डल में फैले ये शांति के वायब्रेशन आत्माओं को एक अद्भुत सुख का अनुभव करवा रहें हैं*। उनके अशांत मन शांति का अनुभव करके तृप्त हो रहे हैं। सबके चेहरे पर एक सकून दिखाई दे रहा है। *जन्म जन्मान्तर से शांति की एक बूंद की प्यासी आत्माओं की प्यास बुझ रही है*। शांति के सागर शिव पिता से आ रही शांति की किरणों का प्रवाह और भी तीव्र होता जा रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे शांति की शक्ति की किरणों की बरसात हो रही है।

 

 _ ➳  *जैसे चात्रक पक्षी अपनी प्यास बुझाने के लिए स्वांति की एक बूंद पाने की इच्छा से व्याकुल निगाहों के साथ निरन्तर आकाश की ओर देखता रहता है*। इसी प्रकार शांति की तलाश में भटकती और तड़पती हुई आत्मायें भी शांति की एक बूंद पाने की इच्छा से व्याकुल निगाहों से ऊपर देख रही है और शांति की किरणों की बरसात में नहा कर जैसे असीम शांति का अनुभव करके प्रसन्न हो रही हैं। *विश्व की सर्व आत्माओं को शांति की अनुभूति करवाकर अब मैं फ़रिशता बापदादा के साथ फिर से सूक्ष्म लोक में पहुंचता हूँ*। अपनी फ़रिशता ड्रेस को उतार कर अपने निराकारी स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं आत्मा अपने शांत स्वरूप में स्थित हो कर वापिस साकारी दुनिया मे अपने साकारी शरीर मे प्रवेश करती हूं।

 

 _ ➳  साकारी दुनिया मे आ कर अब मैं आत्मा अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, निरन्तर अपने शांत स्वधर्म में रहकर शांति के वायब्रेशन चारों ओर फैला रही हूँ। सर्व आत्माओ को शांति के सागर बाप का परिचय दे कर, उन्हें भी अपने शांत स्वधर्म में स्थित हो कर शांति पाने का सहज उपाय बता रही हूं। *स्वयं को शांति के सागर अपने शिव पिता के साथ सदा कम्बाइंड अनुभव करने से मेरे सम्पर्क में आने वाली परेशान आत्मायें डेड साइलेन्स की अनुभूति करके सहज ही अपनी सर्व परेशानियों से मुक्त हो रही हैं*। "विश्व की सर्व आत्माओं को शांति का अनुभव कराना" यही मेरा कर्तव्य है। इस बात को सदा स्मृति में रख अब मैं इसी ईश्वरीय सेवा में निरन्तर लगी रहती हूं।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा सर्व शक्तियों को अपने अधिकार में रख सहज सफलता प्राप्त करती हूं।*

 

 _ ➳  मेरे बाबा ने मुझे संगमयुग पर श्रेष्ठ स्वमानों का तख्त दिया... मुझे इतना मान देकर ज़मीन से फलक पर बिठा दिया... मेरे कमज़ोर मन के कमज़ोर संकल्पों को बदल शक्तिशाली बना दिया... बाप ने ये बताया कि मैं आत्मा *जितना जितना मास्टर सर्वशक्तिमान की सीट पर सेट होंगी उतना मेरी ये सर्व शक्तियां ऑर्डर में रहेंगी...*  जैसे स्थूल कर्मेंद्रियां जिस समय ऑर्डर करती हूं वैसे ऑर्डर से चलती हैं... ऐसे ही *मुझ आत्मा की स्थूल शक्तियां भी ऑर्डर करनी वाली हों*... इन सूक्ष्म कर्मेंद्रियां का अभी से ऑर्डर में रखने पर ही मैं आत्मा अंत में सफलता प्राप्त कर सकती हूं... क्योंकि *जहाँ सर्व शक्तियां हैं वहाँ सफलता जन्म सिद्ध अधिकार है...*

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- आकारी ओर निराकारी स्थिति में रह निरहंकारी बनने का अनुभव"*

 

_ ➳  मैं आत्मा सेकण्ड में अपने मन बुद्धि की तार... अपने परमपिता बाप से जोड़...उनसे *सर्व शक्तियों, गुणों को खुद में धारण करती जा रही हूँ*... सर्व आकर्षणों से दूर...साकार में रहते हुए भी निराकारी देश के निवासी समझकर... निराकारी स्थिति में स्थित रह पार्ट बजाने वाली आत्मा हूँ... बार-बार मैं आत्मा *देही-अभिमानी स्थिति में स्थित होने का अभ्यास करती जा रही हूँ*... मुझ आत्मा में जो भी विकार है... वह सब समाप्त होते जा रहे है...मैं आत्मा अनुभव करने लगी हूँ... कि *संकल्प में भी विकारों के अंश समाप्त हो गए है*... मैं आत्मा  निरहंकारी स्थिति का अनुभव करती जा रही हूँ... मैं आत्मा अनुभव करने लगी हूँ... *जब चाहूँ आकारी और जब चाहूँ निराकारी*... स्थिति में स्थित हो सकती हूँ... चलते-फिरते बीच-बीच में यह अभ्यास पक्का करती जा रही हूँ... कि *मैं हूँ ही आत्मा अशरीरी*...देह की स्मृति से न्यारी होती जा रही हूँ...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  *एक होती है कल्याण के भावना की सेवा और दूसरी होती है स्वार्थ से।* *मेरा नाम आ जायेगामेरा अखबार में फोटो आ जायेगा, मेरा टी.वी. में आ जायेगामेरा ब्राह्मणों में नाम हो जायेगाब्राह्मणी बहुत आगे रखेगीपूछेगी..... यह सब भाव स्वार्थी-सेवा के हैं।* क्योंकि आजकल के हिसाब सेप्रत्यक्षता के हिसाब सेअभी सेवा आपके पास आयेगीशुरू में स्थापना की बात दूसरी थी लेकिन अभी आप सेवा के पिछाड़ी नहीं जायेंगे। *आपके पास सेवा खुद चलकर आयेगी। तो जो सच्चा सेवाधारी है उस सेवाधारी को चलो और कोई सेवा नहीं मिली लेकिन बापदादा कहते हैं अपने चेहरे सेअपने चलन से सेवा करो।* आपका चेहरा बाप का साक्षात्कार कराये। आपका चेहरा, आपकी चलन बाप की याद दिलावे। ये सेवा नम्बरवन है। ऐसे सेवाधारी जिनमें स्वार्थ भाव नहीं हो। ऐसे नहीं मुझे ही चांस मिलेमेरे को ही मिलना चाहिए। क्यों नहीं मिलता, मिलना चाहिए - *ऐसे संकल्प को भी स्वार्थ कहा जाता है।*

➳ _ ➳  चाहे ब्राह्मण परिवार में आपका नाम नामीग्रामी नहीं है,सेवाधारी अच्छे हो फिर भी आपका नाम नहीं हैलेकिन बाप के पास तो नाम है ना, *जब बाप के दिल पर नाम है तो और क्या चाहिए!* *और सिर्फ बाप के दिल पर नहीं लेकिन जब फाइनल में नम्बर मिलेंगे तो आपका नम्बर आगे होगा। क्योंकि बापदादा हिसाब रखते हैं।* आपको चांस नहीं मिलाआप राइट हो लेकिन चांस नहीं मिला तो वो भी नोट होता है। और मांग कर चांस लियावो किया तो सही लेकिन वो भी मार्क्स कट होते हैं।

➳ _ ➳  *ये धर्मराज का खाता कोई कम नहीं है। बहुत सूक्ष्म हिसाब-किताब है। इसलिए नि:स्वार्थ सेवाधारी बनोअपना स्वार्थ नहीं हो। कल्याण का स्वार्थ हो।* यदि आपको चांस है और दूसरा समझता है कि हमको भी मिले तो बहुत अच्छा और योग्य भी है तो अगर मानो आप अपना चांस उसको देते हो तो भी आपका शेयर उसमें जमा हो जाता है। चाहे आपने नहीं कियालेकिन किसको चांस दिया तो उसमें भी आपका शेयर जमा होता है। क्योंकि *सच्चा डायमण्ड बनना है ना। तो हिसाब-किताब भी समझ लोऐसे अलबेले नहीं चलोठीक हैहो गया...... बहुत सूक्ष्म में हिसाब-किताब का चौपड़ा है। बाप को कुछ करना नहीं पड़ता हैआटोमेटिक है।*

✺   *ड्रिल :-  "नि:स्वार्थ सेवाधारी बन सच्चा डायमण्ड बनना"*

➳ _ ➳  *मैं आत्मा अपने ही धुन में तितली की भांति उड़ती चली जा रही हूँ... कभी इस फूल पे तो कभी किसी बादल की टुकड़ी पर...* जो भी मुझे देख रहे खुश हो रहे, तारीफ कर रहे... मैं आत्मा देख रही हूँ हर बादल की टुकड़ी को... वो कभी टी.वी, तो कभी अखबार है... अपनी ऊंचाइयों को छूती जा रही हूँ... कितना सुकून है जहां सिर्फ मैं ही मैं हूँ... कितना ना आराम से बैठी हूँ बादल की टुकड़ी पर... और देखती हूँ कि दिव्य किरणें नीचे की ओर आ रही है... *ये किरणें चारों ओर फैल रही है... देखती हूँ बाबा धीरे-धीरे किरणों से उतरते जा रहे हैं...*

➳ _ ➳  बाबा मेरे हाथ थामे माउंट आबू की पहाड़ी पर ले जाते हैं... और बाबा के साथ बैठ जाती हूँ... *बाबा कहते हैं बच्चे तुम अपने दिव्य बुद्धि से देखो, त्रिकालदर्शी बन अपनी हर एक पार्ट को देखो जो अंतिम जन्म तक भी श्रेष्ठ है...* अपनी असली स्वरूप की स्मृति होते ही अल्पकाल की मान, प्रशंसा, नाम की जो भी संकल्प रहते थे उससे डिटैच होने लगी हूँ...

➳ _ ➳  *मैं आत्मा बाबा के सानिध्य में बैठी बाबा से पवित्रता की सफेद किरणें ग्रहण करती जा रही हूँ... जो मेरे देहभान को खत्म करता जा रहा है...* ज्ञान सूर्य शिव बाबा से ज्ञान की नीली किरणें ग्रहण करती जा रही हूँ... मास्टर ज्ञान सूर्य बन मास्टर दाता बनती जा रही हूँ... स्नेह, सुख, शांति, शक्ति, आनंद की रंगबिरंगी किरणें मुझमें समाती जा रही है... सातों गुणों से भरपूर होकर मैं आत्मा इच्छा मात्रम अविद्या सी हो गयी हूँ... देहअभिमान से छूटती देहिअभिमानी होती जा रही हूँ... मैं आत्मा डायमंड जैसी बनती जा रही हूँ... *बाबा ने कहा कि बच्चे सेवा तुम्हारे पास चल कर आएगी... तुम्हें सेवा मांगना नहीं है... निस्वार्थ सेवाधारी बनना है...*

➳ _ ➳  *कल्प-कल्प मैं आत्मा ही निस्वार्थ सेवाधारी बनी हूँ... हर ब्राह्मण आत्मा को शुभभावना, शुभकामना की टचिंग हो रही है...* हर ब्राह्मण आत्मा को सेवा का चांस मिलता जा रहा है... कोई न कोई सेवा का चांस बाबा मुझ आत्मा द्वारा औरों को भी दे रहे हैं... *ये ब्राह्मण जीवन सफल होता जा रहा है... कल्प-कल्प के लिए श्रेष्ठ भाग्य का खाता नूँध हो गया है... वाह रे मैं आत्मा... वाह रे मेरा भाग्य...*

➳ _ ➳  *दिलाराम बापदादा की दिलतख़्तनशीन बन गई हूँ... सच्चा-सच्चा  डायमंड बनती जा रही हूँ... निस्वार्थ सेवाधारी बनना है... बाबा ने मुझ आत्मा को बेदाग, सच्चा डायमंड बना दिया है...* एक चमकता हुआ डायमंड जो रोशनी से भरपूर होकर... औरों को भी अपने चेहरे और चलन से बाबा की प्रत्यक्षता करती जा रही है... शुक्रिया बाबा... बहुत बहुत शुक्रिया... जो धर्मराज के खाते में पुण्य जमा होता जा रहा है... सूक्ष्म हिसाब-किताब का चौपड़ा भी चमक रहा... *शुक्रिया बाबा जो सच्चा डायमंड बन गई हूँ... ओम् शान्ति।*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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