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❍ 13 / 10 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *कोई भी बुरा काम करके छिपाया तो नहीं ?*
➢➢ *बाप से कभी रूठे तो नहीं ?*
➢➢ *अपना सब कुछ बाप हवाले कर श्रीमत पर चलते रहे ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *शक्तिशाली याद द्वारा परिवर्तन, ख़ुशी और हल्केपन की अनुभूति की ?*
➢➢ *दिल को मज़बूत बनाए रखा ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ जो आत्मा स्वराज्य चलाने में सफल रहती है तो *सफल राज्य अधिकारी की निशानी है वह सदा अपने पुरुषार्थ से और साथ-साथ जो भी सम्पर्क में आने वाली आत्माएँ हैं वह भी सदा उस सफल आत्मा से सन्तुष्ट होंगी* और सदा दिल से उस आत्मा के प्रति शुक्रिया निकलता रहेगा।
〰✧ *सर्व के दिल से, सदा दिल के साज से वाह-वाह के गीत बजते रहेंगे, उनके कानों में सर्व द्वारा यह वाह-वाह का शुक्रिया का संगीत सुनाई देगा।* यह गीत ऑटोमेटिक है। इसके लिए टेपरिकार्डर बजाना नहीं पडता। इसके लिए कोई साधनों की आवश्यकता नहीं। यह अनहद गीत है। तो ऐसे सफल राज्य अधिकारी बने हो?
〰✧ क्योंकि *अभी के सफल राज्य अधिकारी भविष्य में सफलता का फल विश्व का राज्य प्राप्त करेंगे।* अगर सम्पूर्ण सफलता नहीं, कभी कैसे हैं, कभी कैसे हैं, कभी 100 परसेन्ट सफलता है, कभी सिर्फ सफलता है। कभी 100 परसेन्ट सफल नहीं हैं तो ऐसे राज्य अधिकारी आत्मा को विश्व का राज्य ताज प्राप्त नहीं होता लेकिन रॉयल फैमिली में आ जाता है।
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- भोलानाथ बाप, एक से, झोली को ज्ञान रत्नों से भरना"*
➳ _ ➳ एक खुबसूरत झरने को निहारती हुई में आत्मा... सोचती हूँ...ऊंचाइयों से गिरता हुआ पानी... किस कदर धवल बन चमक रहा है... और यही जादूगरी मेरे जीवन में भी छा गयी है कि... *ईश्वर पिता ने आकर जो मुझ आत्मा को देह के दायरों से बाहर निकाल... अशरीरी अवस्था की ऊंचाइयों पर बिठाया... मै आत्मा निर्मल बन, गुणो की धवलता को पा गयी.*.. मेरा हर कार्य ईश्वरीय खूबसूरती से सजने लगा है... झरनो के सौंदर्य को निहारती हुई मै आत्मा... स्वयं के अंतर्मन में ईश्वर पिता द्वारा सजाये हुए... *गुणो और शक्तियो के भीतर बहते झरने में... स्वयं के उज्ज्वल धवल अद्वितीय सौंदर्य को देख मन्त्र मुग्ध हो रही हूँ.*..
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान रत्नों से लबालब कर, विश्व का मालिक बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... सत्य की तलाश में, दर दर की ठोकरे खाते रहे, फिर भी कोसो दूर ही रहे... *आज भगवान स्वयं धरा पर उतर कर, स्वयं से मिलवा रहा... और अपनी सारी मिल्कियत, जागीर से भरपूर कर रहा है.*.. ऐसे प्यारे पिता को पाकर, सदा मीठी यादो में डूब जाओ... अपने खुबसूरत शानदार भाग्य के मीठे मीठे गीत गाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा की सारी दौलत को दिल में समेटते हुए कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा जनमो तक सच्चे सुखो और सत्य से महरूम रही... ईश्वर को पाने की चाहत में धरती आसमाँ नापती रही... पर प्यारे बाबा, आपकी एक झलक भी न पा सकी... *जब आपने आकर मुझे पुकारा, अपनी बाँहों में समाया, तो ही मै ईश्वर को जान सकी.*.. मीठे बाबा अब तो हर साँस में आप समाये हो...
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी सारी खानों और खजानो को मुझे सौंपते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर को पा लिया, सारी सृस्टि के बीज को जान लिया... तो अब व्यर्थ बातो में भटकना नही है... सदा एक बाप की प्रीत में डूबे हुए, ज्ञान रत्नों से झोली को भरते रहो... *मीठे बाबा की बाँहों में रहकर, सदा ज्ञान मणियो से सजे रहो... संगम की यादो भरे, यह बेशकीमती पल यूँ ही अब व्यर्थ में जाया न करो.*.."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा की यादो में गहरे डूबकर अपने भाग्य पर नाज करते हुए कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा मेरे... आपने मुझे मेरे सच्चे वजूद का अहसास कराकर... जीवन कितना प्यारा, और खुशियो से भरा, सुनहरा कर दिया है... ईश्वर पिता को पाने की चमक, सहज ही मेरे रंग रूप से झलकती है... *मेरे श्रीमत की खुबसूरत राहो पर रखे हुए, कदमो की आहट को...पूरा विश्व दीवाना होकर, सुन रहा है... और मीठे बाबा से, बिछड़ा हुआ, हर दिल पुनः मिल रहा है.*.."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी अखूट सम्पत्ति देकर, असीम खुशियो सजाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... भोलानाथ पिता को पाकर, सब कुछ पा लिया है... *यह कितना प्यारा भाग्य है कि भगवान बाँहों में समा गया है... सारे दुखो से, भटकन से छुड़ाकर, सुखो से सजी और खुशियो से महकी नई खुबसूरत दुनिया का मालिक बना रहा है..*. ऐसे प्यारे बाबा की यादो में रोम रोम से खो जाओ... जो दिव्यता और पवित्रता से संवार कर देवताई श्रंगार कर रहा है..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के सच्चे प्यार में गहरे डूबकर कहती हूँ :-"मीठे मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा मन्दिरो में, कन्दराओं में आपके दीदारो को भटकती रही... और आपने स्वयं आकर, मुझे अपनी गोद में बिठा लिया... और *सच्चे ज्ञान से मुझे रौशन कर दिया है... मै आत्मा आपके प्यारे तले,अज्ञान अंधेरो से निकल कर, सदा के लिए नूरानी हो गयी हूँ..*प्यारे बाबा को अपनी भावनाये अर्पित कर.मै आत्मा... इस कर्मक्षेत्र पर लौट आयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अपने कर्मबन्धनों को स्वयं काटना*"
➳ _ ➳ कर्मो की गुह्य गति का ज्ञान अपने प्यारे मीठे बाबा से पाकर जीवन को जीना कितना सहज लगने लगा है। *मन ही मन अपने आप से बातें करती अपने प्यारे बाबा का मैं धन्यवाद करती हूँ और विचार करती हूँ कि जब तक कर्मो की गुह्य गति के बारे में नही जाना था तो कर्मबन्धन के रूप में आने वाली परिस्थितयां जीवन को कितना हल - चल में ले आती थी*। यही विचार करते - करते एक दृश्य मुझे दिखाई देता है। मैं देख रही हूँ कि अनेक प्रकार की जंजीरो में मैं कैद हूँ। उन जंजीरों से छूटने की हर सम्भव कोशिश कर रही हूँ। लेकिन मेरे अंदर इतना बल नही कि उन जंजीरो को मैं काट सकूँ।
➳ _ ➳ स्वयं को मैं एकदम असहाय अनुभव करके बहुत ही दुःखी हो रही हूँ। तभी जैसे आकाशवाणी होती है कि ये जंजीरे ऐसे नही टूटेंगी। इन जंजीरो को तोड़ने का केवल एक ही उपाय है और वो है परम पिता परमात्मा की याद। *केवल परमात्म बल ही इन जंजीरो को काट सकता है और इनके बन्धन से मुझे मुक्ति दिला सकता है*। इस आकाशवाणी को सुन कर मैं जैसे ही अपने परम पिता परमात्मा को सच्चे दिल से याद करती हूँ। मैं अनुभव करती हूँ सूर्य के समान अति तेजोमय एक ज्योतिपुंज ऊपर आकाश से उतर कर मेरी और आ रहा है।
➳ _ ➳ उस प्रकाशपुंज से अनन्त किरणे निकल रही है और वो प्रकाशपुंज मेरे बिल्कुल नजदीक आ कर जैसे ही अपनी उन किरणों को मुझ पर प्रवाहित करता है, उन किरणों की शक्ति से एक - एक करके सभी जंजीरे टूटने लगती है। *सभी जंजीरों के टूटते ही मुझे ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे सभी बन्धनों से मैं बिल्कुल मुक्त हो गई हूँ*। स्वयं को बन्धन मुक्त अनुभव करते ही वो दृश्य मेरी आँखों से ओझल हो जाता है।
➳ _ ➳ उस दृश्य को स्मृति में ला कर अब मैं विचार करती हूँ कि वास्तव में ये जंजीरे कोई स्थूल जंजीरे नही थी *ये तो मेरे ही द्वारा अनेक जन्मो के किये हुए कर्मो का फल था जिसने कर्मबन्धन की जंजीरो के रूप में मुझे बांध रखा था*। और इन कर्मबन्धनों रूपी जंजीरो के लिए मैं दूसरों को दोषी मान कर इन्हें और ज़्यादा मजबूत बना रही थी।
➳ _ ➳ धन्यवाद मेरे मीठे प्यारे बाबा का जिन्होंने आ कर मुझे कर्मो की इस फिलॉसफी के बारे में सब कुछ विस्तार से समझा दिया। और अब जबकि मैं यह सत्यता जान चुकी हूँ कि मेरे जीवन मे सुख - दुख के रूप में आने वाली सभी परिस्थितियां मेरे ही द्वारा किये हुए कर्मो का अच्छा या बुरा फल है। *तो अब अपने जीवन मे घटने वाली हर परिस्थिति को अपने ही किये हुए कर्म का फल मान, उस कर्मबन्धन को अपने भगवान बाप की याद से, योग बल से मुझे स्वयं ही काटना है*। स्वयं से यह प्रोमिस कर, अपने अंदर योगबल जमा करने के लिए, अब मैं अशरीरी स्थिति में स्थित हो कर बैठती हूँ और अपने निराकार स्वरूप में स्थित हो कर अपने स्वीट साइलेन्स होम परमधाम की ओर चल पड़ती हूँ।
➳ _ ➳ साकारी और सूक्ष्म लोक से परे आत्माओं की निराकारी दुनिया परमधाम में अब मैं स्वयं को अपने योगेश्वर शिव पिता परमात्मा के सम्मुख देख रही हूं। *बुद्धि का योग अपने योगेश्वर बाबा के साथ लगा कर उनसे आ रही सर्वशक्तियों को मैं स्वयं में समा रही हूँ*। परमधाम में बीज रूप स्थिति में स्थित हो कर अपने बीज रूप परमपिता परमात्मा के साथ योग लगाकर, योग की अग्नि में तपकर मेरा स्वरूप सच्चे सोने के समान अति तेजस्वी और शक्तिशाली बन गया है। *बाबा की लाइट माइट से भरपूर हो कर डबल लाइट बन कर अब मैं वापिस लौट रही हूँ*
➳ _ ➳ अपनी साकारी देह में विराजमान हो कर अब मैं निरन्तर आत्मिक स्मृति में रहते हुए अपने पिता परमात्मा की याद में सदा समाई रहती हूँ। *योग का बल स्वयं में जमा कर, अपने जीवन मे आने वाली परिस्थितयों या बीमारी आदि के रूप में आने वाले हर प्रकार के कर्मबन्धन को स्वयं काटकर उस परिस्थिति पर अब मैं सहज ही विजय प्राप्त कर रही हूँ*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा शक्तिशाली याद द्वारा परिवर्तन, खुशी और हल्केपन की अनुभूति करती हूं।*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सदा स्मृति में रखती हूं कि *मैं एक आत्मा हूँ, और ईश्वर की संतान हूं...* इस स्मृति से मैं निरंतर याद की यात्रा पर चलती हूं... *बाबा की ये शक्तिशाली याद ही मुझे दोहरी यानी डबल खुशी का अहसास दिलाती है...* यही मेरी *परिवर्तन शक्ति* का आधार है... अपने को *साधारणता से समर्थता* की और बढ़ता देखती हूं तो खुशी और हल्केपन की अनुभूति होती है... इस याद से ही मेरे विकर्म भस्म हो रहे हैं... *बाबा कहते हैं कि विधिपूर्वक यथार्थ याद में रहने वाले समर्थी बच्चे ही नम्बर वन प्राइज के अधिकारी बच्चे हैं...* तो मैं आत्मा *स्मृति से समर्थी स्वरूप* बन अपने आप को *प्राइज का अधिकारी बना रही हूं...*
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मजबूत और बुजुर्ग दिल का अनुभवी बनना"*
➳ _ ➳ *दिलाराम बाबा को दिल में बिठाए... मैं आत्मा मजबूत और बुजुर्ग दिल की मालिक हूं...* साक्षीदृष्टा हूं... अंगद समान अचल अडोल हूं... नष्टोमोहा हूं... *लौकिक जीवन में... विनाशी नशे में चूर... उसमे सच्ची खुशी देखने वाली... आत्माओं के जीवन को देख... मैं आत्मा दुख की लहरों से कोसों दूर हूं...* ड्रामा कल्याणकारी है कि स्मृति... मुझ आत्मा के दिल को मजबूत किए हुए हैं... *बाबा के महावाक्य, बच्चे सर्व को सतोप्रधानता... रजो... तमोप्रधानता... इन स्टेज से गुजरना ही है... हर चीज पुरानी और पतित होनी ही है... कि स्मृति मुझे आत्मा की मुस्कुराहट बरकरार रखे हुए हैं... और मैं आत्मा न्यारी और सर्व की प्यारी हूं, उड़ती रहती हूं...* मैं आत्मा सहनशील हूं... सहनशीलता का गुण मुझ आत्मा को... हिम्मतवान बनाए हुए हैं... *मजबूत दिल की मालिक मैं हिम्मतवान आत्मा... अपने आसपास की आत्माओं को सहज ही एक्सेप्ट कर रही हूं...* और कमाल यह है जहां मैं खुद को चेंज कर रही हूं... वहां मुझे सर्व बदले से नजर आ रहे हैं...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. *सतयुग में या मुक्तिधाम में मुक्ति व जीवनमुक्ति का अनुभव नहीं कर सकेंगे। मुक्ति-जीवनमुक्ति के वर्से का अनुभव अभी संगम पर ही करना है।* जीवन में रहते, समय नाजुक होते, परिस्थितियाँ, समस्यायें, वायुमण्डल डबल दूषित होते हुए भी इन सब प्रभाव से मुक्त, जीवन में रहते इन सर्व भिन्न-भिन्न बन्धनों से मुक्त एक भी सूक्ष्म बन्धन नहीं हो - ऐसे जीवन मुक्त बने हो? वा अन्त में बनेंगे? अब बनेंगे या अन्त में बनेंगे?
➳ _ ➳ 2. *बापदादा अभी से स्पष्ट सुना रहे हैं, अटेन्शन प्लीज। हर एक ब्राह्मण बच्चे को बाप को बन्धनमुक्त, जीवनमुक्त बनाना ही है।* चाहे किसी भी विधि से लेकिन बनाना जरूर है। जानते हो ना कि विधियाँ क्या हैं? इतने तो चतुर हो ना! तो बनना तो आपको पड़ेगा ही। चाहे चाहो, चाहे नहीं चाहो, बनना तो पड़ेगा ही। फिर क्या करेंगे? (अभी से बनेंगे) *आपके मुख में गुलाबजामुन। सबके मुख में गुलाबजामुन आ गया ना। लेकिन यह गुलाबजामुन है - अभी बन्धनमुक्त बनने का। ऐसे नहीं गुलाबजामुन खा जाओ।*
✺ *ड्रिल :- "संगम पर बन्धनमुक्त, जीवनमुक्त बनने का अनुभव करना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा *फर्श से न्यारी होती हुई एक बाबा से रिश्ता रख फरिश्ता बन उड़ चलती हूँ फरिश्तों की दुनिया में...* जहाँ बापदादा मेरे ही इन्तजार में बैठे हुए हैं... चारों ओर सफेद चमकीले प्रकाश की आभा बिखेरते हुए बापदादा अपने कोमल हाथों से मुझे अपनी गोदी में बिठाते हैं... बाबा अपनी मीठी दृष्टि देते हुए अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रखते हैं...
➳ _ ➳ *बाबा की मीठी दृष्टि मुझ आत्मा में मिठास घोल रही है...* मैं आत्मा भी बाप समान मीठी बन रही हूँ... मुझ आत्मा के पुराने स्वभाव-संस्कार बाहर निकल रहे हैं... मैं आत्मा अटेन्शन की शक्ति द्वारा परिस्थितियों, समस्याओें, वायुमण्डल के प्रभाव से मुक्त, शरीर में रहते इन सर्व बन्धनों से न्यारी एवं प्यारी होती जा रही हूँ... मोह के सूक्ष्म बन्धन सब समाप्त हो रहे है... बाबा के हाथों से दिव्य अलौकिक गुण व शक्तियां निकलकर मुझ फरिश्ते में प्रवाहित हो रहे हैं... मुझ आत्मा के आसुरी अवगुण भस्म हो रहे हैं... मैं आत्मा दिव्य गुणों को धारण कर धारणा सम्पन्न अवस्था का अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा स्व को परिवर्तित कर रही हूँ... मैं आत्मा कलियुगी संस्कारों से मुक्त हो रही हूँ... और संगमयुगी श्रेष्ठ संस्कारों को स्वयं में धारण कर रही हूँ... अब *मैं आत्मा श्रीमत अनुसार ब्राह्मण कुल की सर्व धारणाओं पर चल रही हूँ...* मैं आत्मा स्व-परिवर्तन द्वारा सर्व को परिवर्तित कर रही हूँ...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा परिपक्वता की शक्ति द्वारा परिवर्तन कर रही हूँ...* हर परिस्थिति में अचल अडोल बन विजय प्राप्त कर रही हूँ... कैसी भी परिस्थिति अब मुझ आत्मा को हिला नहीं सकती है... मैं आत्मा हर परिस्थिति में अटेंशन अपनी धारणा में परिपक्व रहती हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा सदा अटेंशन रख ‘परिवर्तन करने की कला’ से माया के सभी रूपों को परिवर्तित कर रही हूँ... ‘परिपक्वता’ की शक्ति से मैं आत्मा सर्व मर्यादाओं का पालन कर रही हूँ... *मैं आत्मा अपनी ‘निर्मान' स्थिति द्वारा हर गुण को प्रत्यक्ष कर रही हूँ...* मैं आत्मा धर्म सत्ताधारी बन इन गुणों का अनुभव कर रही हूँ... बाबा मुझ आत्मा से खुश हो कर मुझे गुलाबजामुन खिला रहे हैं...
➳ _ ➳ बाबा की शक्तिशाली किरणें मुझ फ़रिश्ते से होती हई विश्व के कोने कोने में पहुँच रही है... और *विश्व की सर्व आत्माओं तक बाबा का सन्देश पहुंचा रही है... विश्व की हर आत्मा धरती पर आये भगवान को पहचान रही है और बाबा से अपना जन्म सिद्ध अधिकार मुक्ति और जीवन मुक्ति का वर्सा प्राप्त कर रही है...* मैं फरिश्ता सदैव इसी तरह बाबा की सेवा में तत्पर विश्व की सर्व आत्माओं को आप समान बनाने की सेवा कर अपनी झोली दुआओं से भर रहा हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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