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 16 / 01 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 2*5=10)

 

➢➢ *अपनी एम ऑब्जेक्ट को अपने सामने रखा ?*

 

➢➢ *किसी देहधारी के नाम रूप को याद तो नहीं किया ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:3*10=30)

 

➢➢ *"नेचुरल अटेंशन" को अपनी नेचर बनाया ?*

 

➢➢ *स्वयं के स्वयं टीचर बन कमजोरियों को समाप्त करने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *"अब वापिस घर जाना है" - अन्दर यह धुन सदा रही ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 10)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *बापदादा से "बाप समान भव" का वरदान स्वीकार किया ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे - एक ईश्वर से सच्ची मुहोब्बत रखनी है, इस इन्द्र सभा की दरबार में सपूत बच्चों को ही लाना है, किसी कपूत को नही"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... सच्चे प्रेम के पर्याय मीठे पिता से ही सच्ची मुहोब्बत कर चलो... धरती के यह मटमैले रिश्ते सच्चे प्रेम  को भला क्या जाने... *सच्चे प्रेम का दरिया तो निस्वार्थ पिता ही बहा सके.*.. तो इस सच्ची मुहोब्बत के इत्र से सुगन्धित हो चलो... और पवित्र फूलो की खुशबु से ईश्वर पिता का दरबार सजा दो...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा स्वार्थ भरे रिश्तो में सच्चे प्रेम की एक बून्द न पा सकी... *आपने प्यारे बाबा सच्चे प्रेम से जीवन का पोर पोर छलकाया है.*.. और मै आत्मा सच्ची मुहोब्बत में रंगी सफेद पवित्र फूलो से आपका स्वागत कर रही हूँ...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह के नातो से बुद्धि को निकाल सच्चे पिता की सच्ची मुहोब्बत में परवाने बन मुस्कराओ... और रोम रोम को सच्चे प्रेम की सुगन्ध से महकाओ... *यह ईश्वरीय प्रेम जादू सा सच्चे सुखो की बहार में बदल जायेगा*... इन्द्र सभा में सदा पवित्रता के श्रंगार में निखरी मणियाँ ही सजानी है...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा *आपको पाकर ही प्रेम के गहरे अर्थो को समझ पायी हूँ.*.. धरती पर सच्चा प्रेम जो रेत में बून्द भी न मिला... आपसे सागर को पाकर प्रेम परी हो चली हूँ... सारे विश्व को ईश्वरीय प्रेम गीत सुनाने वाली लव बर्ड बन मुस्करा रही हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वरीय प्रेम में जनमो की दुखो भरी थकान को मिटाओ... और *निस्तेज हो चली रंगत को पवित्रता के रंग में रंगकर ईश्वरीय प्रेम चुनर पहनाओ*... और सुखो की बगिया में आनन्द के झूलो में खुशियो भरे गीत गुनगुनाओ... सपूत बच्चों को सच्चे पिता से मिलवाकर अथाह पुण्यो का फल पाओ....

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा महान भाग्यशाली हूँ कि ईश्वर प्रेम को जी रही हूँ... *ईश्वर महा प्रेमी बन मेरे जीवन में खुशियो की बहार ले आया है.*.. धरती आसमाँ सब मेरे हो चले है पूरा विश्व परिवार हो चला है... और मै आत्मा इस प्रेम ओढ़नी में सदा की मुस्कराहट से खिल उठी हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा स्मृति स्वरूप हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा *रुहानी पांडव सेना की रुहानी सैनिक* हूँ... मैं आत्मा रुहानी सुप्रीम कमांडर से ट्रेनिंग ले रही हूँ... माया रुपी शत्रु के हमलों से बचने के लिए रुहानी सुप्रीम कमांडर मुझ आत्मा को रोज ट्रेनिंग देते हैं... मुझ रुहानी सैनिक को श्रीमत रुपी नियम कायदों पर चलना सिखा रहे हैं...

 

➳ _ ➳  मुझ रुहानी सैनिक की ट्रेनिंग अमृतवेले से शुरू हो जाती है... सुप्रीम कमांडर बाबा मुझ आत्मा को सुबह-सुबह रुहानी यात्रा पर ले जाते हैं... कमांडर बाबा मुझ आत्मा को *स्वदर्शन चक्र फिराने की ट्रेनिंग* दे रहे हैं... मैं आत्मा फरिश्ता बन सूक्ष्म वतन में यात्रा करती हूँ... बाप-दादा की रुहानी दृष्टि से पवित्र बनती जा रही हूँ...

 

➳ _ ➳  फिर मैं आत्मा मन, बुद्धि की विमान में बैठकर परमधाम में पावरहाउस के सामने बैठ जाती हूँ... पावरहाउस से रंग-बिरंगी किरणों का झरना मुझ आत्मा पर पड़ रहा है... मैं आत्मा इन किरणों में पूरी तरह से भीग रहीं हूँ... जिससे मुझ आत्मा के आलस्य, अलबेलेपन, पुराने सभी स्वभाव संस्कार ख़त्म होते जा रहें हैं... मैं आत्मा *ज्ञान, गुण, शक्तियों से भरपूर* होती जा रही हूँ... 

 

➳ _ ➳  फिर मैं आत्मा सतयुग, त्रेता में अपने देवी-देवता स्वरूप को देखती हूँ... वहाँ मैं आत्मा सोने हीरे के महलों, *सतोप्रधान प्रकृति, स्वर्णिम युग के नजारों* को देख खुशी में झूमती हूँ... फिर मैं आत्मा अपने पूज्य पवित्र स्वरूप को, मंदिरों में भक्तों द्वारा पूजते हुए देख आनंदित हो उठती हूँ...

 

➳ _ ➳  फिर मैं आत्मा अपने संगमयुगी ब्राह्मण स्वरूप को देखती हूँ... कितनी ही भाग्यवान आत्मा हूँ कि स्वयं भगवान मुझ आत्मा की पालना करते हैं... रोज पढ़ाते हैं... मुक्ति, जीवन-मुक्ति की वर्सा देते हैं... अब मैं आत्मा सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य की स्मृति में रह *स्मृति स्वरूप बन रहीं* हूँ...

 

➳ _ ➳  अब मैं रुहानी सैनिक कभी भी अलबेली नहीं रहती हूँ... सदा अटेन्शन में अलर्ट रहती हूँ... अब मैं आत्मा अटेन्शन को नेचुरल विधि बना रहीं हूँ... अब मुझ आत्मा ने  टेंशन को छोड़ नेचुरल अटेन्शन को अपनी नेचर बना लिया है... अटेन्शन रखने से स्वतः स्मृति स्वरूप बनती जा रही हूँ... विस्मृति की आदत छूटती जा रही है... अब मैं आत्मा *"नेचुरल अटेन्शन" को अपनी नेचर* बनाने वाली स्मृति स्वरूप बन गई हूँ...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- स्वयं का टीचर बन सर्व कमजोरियों को समाप्त करना"*

 

➳ _ ➳  मैं विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ... बाबा ने मुझे विश्व की सभी आत्माओं के उद्धार और कल्याण की जिम्मेवारी दी हैं... इस जिम्मेवारी को सच्चे दिल से तभी निभा पाऊँगी... जब मैं आत्मा स्वयं का परिवर्तन करूंगी... *स्व कल्याण से ही विश्व कल्याण होना है...*

 

➳ _ ➳   जब मैं आत्मा बाबा की श्रीमत पर स्वयं को पवित्र बनाऊँगी... तब मेरी पवित्रता की रोशनी से पूरा जग ही जगमगाएगा... मेरी पवित्रता का प्रकाश हर आत्मा की ज्योत जगायेगा... तो मुझे बाबा की श्रीमत पर चल सम्पूर्ण पवित्र बनना ही हैं...  *विश्व परिवर्तन के श्रेष्ठ और ऊँचे कार्य को मुझ निमित्त आत्मा को पूरी निष्ठा के साथ सम्पन्न करना ही है...*

 

➳ _ ➳  स्वयं के परिवर्तन से पूरे विश्व को परिवर्तन करना ही हैं... मैं आत्मा स्वयं का टीचर स्वयं ही बन... अपने हर एक कर्मों का अवलोकन बहुत सूक्ष्म रूप से करती हूँ... *चेक एन्ड चेंज करते हर कर्म में निपुणता लाती हूँ...* मैं देव कुल की आत्मा देवताई गुणों को इमर्ज करती जाती हूँ...  

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा  स्वयं का टीचर स्वयं बन अपनी सर्व कमजोरियों को धीरे-धीरे समाप्त कर... सम्पूर्णता के गुण को इमर्ज करती हूँ... कोई भी भूल हो... उसे तुरन्त ही सुधार कर... अपने अनुभव की अथॉरिटी को बढ़ाते जाती हूँ... मैं आत्मा सदैव स्वयं को उमंग उत्साह के झूले में झुलाती... *स्वयं से सन्तुष्ट बन स्वयं से सन्तुष्टता का सर्टिफिकेट लेती हूँ...*

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *" नेचुरल अटेन्शन " को अपनी नेचर ( आदत ) बनाने वाले स्मृति स्वरूप होते हैं...  क्यों और कैसे?*

 

❉   " नेचुरल अटेन्शन " को अपनी नेचर ( आदत ) बनाने वाले स्मृति स्वरूप होते हैं क्योंकि...  सेना में जो भी सैनिक होते हैं,  *वह कभी भी अलबेले नहीं रहते हैं और  वे सदा अटेन्शन में अलर्ट भी रहते हैं।* इसी प्रकार से हम बच्चे! भी पाण्डव सेनानी हैं। इसलिये!  इस बात मेंहमें भी सदा सावधान रहना हैऔरज़रा सा भी अलबेलापन नहीं रखना है।

 

❉   हम रूहानी सैनानी हैं। हमें अपने पुरुषार्थ में, कभी भी अलबेले नहीं होना है। अतः हम कभी भी, माया रावण के चुंगल में नहीं आ सकते। हमें सदा ही माया के रूपों से सावधान हो कर रहना है। *माया का क्या है कि...  ये किसी भी रूप में हमारे सामने आ जाती है* और आ कर हमें, हमारे ही सत्य के मार्ग से डिगाने की कोशिश करती है।

 

❉   इसलिये!  हमें अलबेलेपन का त्याग कर देना है और सदा ही सावधान और अलर्ट हो कर रहना है। हम पांडव सेना हैं। हमें तनिक भी अलबेला नहीं बनना हैतथा  *अटेन्शन हमारे लियेएक नेचुरल विधि बन जाये।* और ये अटेन्शन हमारे जीवन में प्राकृतिक रूप से सरलता से समां जायें।

 

❉   क्योंकि...  *कईयों के लियेयह अटेन्शन की विधि भी एक टेन्शन का रूप धारण कर लेती* है तथा उनके लिये अटेन्शन भी एक प्रकार की टेन्शन बन जाती है। इसलिये!  हमें सदा ही सावधान हो करअपने जीवन को सरल और सुगम बना लेना हैतथा किसी भी प्रकार की टेन्शन को अपने समीप भी आने नहीं देना है।

 

❉   अतः हमें सभी प्रकार की टेन्शन से मुक्त हो कर ही अटेन्शन को रखना है क्योंकि...  टेन्शन की लाइफ सदा नहीं चल सकती है इसलिये!  *हमें नेचुरल अटेन्शन को अपनी नेचर बना लेना है।* जब हम अटेन्शन को अपनी नेचुरल नेचर बना लेंगेतब हम स्वतः ही स्मृति स्वरूप बन जायेंगेऔर तब फिर हमारी विस्मृति की आदत भी छूट जायेगी।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *स्वयं के स्वयं टीचर बनो तो सर्व कमजोरियां स्वत: समाप्त हो जायेंगी... क्यों और कैसे* ?

 

❉   जो समय से पहले स्वयं ही स्वय के टीचर बनते है वे समय की मार से बच जाते हैं क्योंकि जो स्वयं ही स्वयं के टीचर नही बनते समय फिर उनका शिक्षक बन उन्हें सिखाता है । और *समय का शिक्षक बनना माना परिस्थितयों की मार खा कर सीखना* । जिसमे प्राप्ति भी नही होती और सजाएं भी खानी पड़ती हैं क्योकि *समय से पहले अगर स्वयं नही सीखते तो कमजोरियां रह जाती है* जिन्हें दूर करने के लिए फिर सजाएं खानी पड़ती हैं । इसलिए बाबा की श्रीमत है कि स्वयं का स्वयं ही टीचर बनो तो सर्व कमजोरियां स्वत: ही समाप्त हो जायेंगी ।

 

❉   व्यक्ति स्वयं ही स्वयं के बारे में जितना जानता है उतना कोई दूसरा व्यक्ति उसके बारे में नही जान सकता । यही कारण है कि जितना अच्छा शिक्षक व्यक्ति स्वयं ही स्वयं का बन कर स्वय को सिखा सकता है उतना कोई दूसरा उसे नही सिखा सकता । इसलिए *जो स्वयं ही स्वयं के टीचर बन समय प्रति समय अपनी कमजोरियों की चेकिंग करते रहते हैं* वो समय रहते ही अपनी कमी कमजोरियों को चेक कर उसे चेंज कर लेते हैं और समय आने पर समय से मिलने वाले धोखे से बच जाते हैं ।

 

❉   एक स्टूडेंट के जीवन में टीचर का स्थान बहुत ही महत्व रखता हैं क्योंकि टीचर ही स्टूडन्ट को अच्छे, बुरे की पहचान करना सिखाता है । उसे सही राह दिखाता है जिस पर चल कर वह अपने भाग्य का निर्माता भी बन सकता है । *टीचर के महत्व को स्मृति में रख स्वयं ही स्वयं का टीचर बनना तो सबसे बड़ी उपलब्धि हैं* । क्योकि जो स्वयं ही स्वयं के टीचर बनते हैं वे स्वयं को उचित मार्गदर्शन दे कर अपनी कमी कमजोरियों को स्वत: ही समाप्त कर लेते हैं और अपने जीवन को ऊंच और श्रेष्ठ बना लेते हैं ।

 

❉   एक दो का शिक्षक बन एक दो को सलाह देना तो बहुत सहज है किंतु स्वयं ही स्वयं का शिक्षक बन कर स्वयं को सलाह देना इसमें सबसे बड़ी महानता है । क्योकि आज की कलयुगी दुनिया में *देह अभिमान के कारण हर मनुष्य को स्वयं में केवल गुण ही गुण नजर आते हैं* तथा दूसरों में केवल दोष ही दोष नजर आते हैं । परदर्शन और पर चिंतन का चश्मा पहनने के कारण स्वयं का चिंतन कोई करना नही चाहता । किन्तु बाबा कहते वही महान हैं जो दूसरों को देखने के बजाए स्वय ही स्वयं के शिक्षक बन अपनी कमजोरियों को समाप्त करते हैं ।

 

❉   स्वयं ही स्वय का टीचर बनना अर्थात स्वयं ही स्वयं का निरीक्षण करना । स्व चिंतन कर अपने दोषों, अपनी कमी कमजोरियों को ढूंढना और उन्हें परिवर्तन करना । तो जो स्वयं ही स्वयं के टीचर बन अपनी कमजोरियों को स्वीकार करते हैं और उन्हें दूर करने के प्रयास में लग जाते हैं वे स्व परिवर्तन द्वारा सहज ही अन्य आत्मायों को भी परिवर्तित कर देते हैं और *हर प्रकार के स्वभाव संस्कार के टकराव से वे स्वत: ही मुक्त हो जाते हैं* । औरों के लिए एक आदर्श बन वे अनेकों आत्मायों के कल्याण के निमित्त बन जाते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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