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 19 / 11 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*5=25)

 

➢➢ *सर्व आत्माओं के प्रति कल्याण की वृत्ति रख मास्टर विश्व कल्याणकारी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *"जो होगा, वह कल्याणकारी होगा" - यही श्रेष्ठ संकल्प किये ?*

 

➢➢ *कर्मयोग से कर्मभोग पर विजय प्राप्त की ?*

 

➢➢ *विश्व की सेवा की जिम्मेवारी का ताज पहने रखा ?*

 

➢➢ *दुसरे की कमजोरी देखकर स्वयं दिलशिकस्त तो नहीं हुए ?*

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         ❂ *तपस्वी जीवन प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं*

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〰✧  जैसे अभी सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को ईश्वरीय स्नेह, श्रेष्ठ ज्ञान और श्रेष्ठ चरित्रों का साक्षात्कार होता है, ऐसे अव्यक्त स्थिति का भी स्पष्ट साक्षात्कार हो। *जैसे साकार में ब्रह्मा बाप अन्य सब जिम्मेवारियाँ होते हुए भी आकारी और निराकारी स्थिति का अनुभव कराते रहे, ऐसे आप बच्चे भी साकार रूप में रहते फरिश्तेपन का अनुभव कराओ।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाये ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  दुनिया वाले तो अभी भी यही सोचते रहते हैं कि परमात्मा को पाना बहुत मुश्किल है। और आप क्या कहेंगे? पा लिया। *वह कहेंगे कि परम आत्मा तो बहुत ऊँचा हजारों सूर्यों से भी तेजोमय है और आप कहेंगे वह तो बाप है। स्नेह का सागर है।* जलाने वाला नहीं है। हजारों सूर्य से तेजोमय तो जलायेगा ना और आप तो स्नेह के सागर के अनुभव में रहते हो, तो कितना फर्क हो गया।

 

✧  जो दुनिया ना कहती वह आप हाँ करते। फर्क हो गया ना। कल आप भी नास्तिक थे और आज आस्तिक बन गये। *कल माया से हार खाने वाले और आज मायाजीत बन गये।* फर्क है ना। मातायें जो कल पिंजड़े की मैना थी और आज उडती कला वाले पंछी है। तो *उडती कला वाले हो या कभीकभी वापिस पिंजडे में जाते हो?*

 

✧  कभी-कभी दिल होती है पिंजड़े में जाने की? *बंधन है पिंजडा और निर्बन्धन है उडना।* मन का बंधन नहीं होना चाहिए। अगर किसी को तन का बंधन है तो भी मन उडता पंछी है। तो मन का केाई बंधन है या थोडा-थोडा आ जाता है? *जो मनमनाभव हो गये वह मन के बंधन से सदा के लिए छूट गये।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:- 15)

 

➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  कुमारियों की भट्ठी में अव्यक्त बापदादा के मधुर महावाक्य"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा डायमंड हाल में अपने भगवान से मिलन मनाने के इंतजार में बैठी हूँ... पलकों को बिछाए प्यारे बाबा का आह्वान कर रही हूँ...* 'आ जाओ मेरे प्राण प्यारे बाबा, आ जाओ... मेरी प्यार भरी पुकार सुन, मेरे मीठे बाबा अपना धाम छोड़कर नीचे आ जाते हैं... और दादी के तन में अव्यक्त बापदादा विराजमान हो जाते हैं... इन्तजार की घड़ियों समाप्त हो गई... स्वयं भगवान मेरे सम्मुख बैठे हैं...

 

   *प्यारे बापदादा प्यार भरी दृष्टि से निहाल करते हुए कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... *लवली बापदादा अपने लवलीन बच्चों से मिलने आये है... प्यार के ख़ुशी के गीत सुनते हुए एकरस स्थिति को देख रहे है...* रूहानी गुलाबो की खुशबु ले रहे है... ऐसे फ़रिश्ता सो देवता... स्नेह के बन्धन में बंधने और बांधने वाले खुशनसीब बच्चों को पदमगुणा मुबारक दे रहे है..."

 

_ ➳  *जो स्वप्न में भी ना सोचा था, साक्षात भगवान् को अपने सम्मुख पाकर ख़ुशी के अश्रु बहाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा मीठे बापदादा संग मिलन मना रही हूँ... कभी दुआओ में माँगा मन्दिरो में खोजा दर दर ढूंढा... *वो परमात्मा अपनी आँखों के सामने देख अपने भाग्य पर निहाल होती जा रही हूँ... इतनी भाग्यशाली खुशनसीब मै आत्मा हूँ और ख़ुशी में नाच उठी हूँ..."*

 

   *प्यारे बापदादा कुमारियों को संबोंधित करते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... पिता के गले की माला के मनके हो इस मीठे नशे से भर चलो... *और सदा बाप को याद रखना है एक पिता का सन्देश हर दिल को देना है और हर परिस्थिति में एकरस रहकर बापदादा के दिलतख्त पर शान से सजना है...* चैतन्यता का ऐसा रूहानी वायुमण्डल तैयार करो कि सब सुख पाये..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा ब्रह्माकुमारी होने के अपने पद्मापदम् भाग्य पर इतराते हुए कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा मीठे प्यारे बापदादा की यादो से भर गई हूँ... सदा यादो में समाये हुए अपनी दिली मुस्कान से प्यारे बाबा का परिचय दे रही हूँ... *सबको सुख सुकून शांति मिले ऐसा अनोखा वातावरण हर थकी आत्मा को देकर असीम ख़ुशी की अनुभूति करा रही हूँ..."*

 

   *मेरे बाबा अविनाशी खजानों की टोली खिलाते हुए कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... रूहानी डॉक्टर बन सबके दुखो को दूर करो... ईश्वर पिता को पाने की ख़ुशी में झूलते हुए सबको खुशियो के झूलो में संग झुलाओ... *सदा बाप की छत्रछाया में रह हर विघ्न से मुक्त होकर मास्टर सर्वशक्तिमान बन मुस्कराओ... बेहद के वैरागी बन नष्टोमोहा स्थिति से अचल अडोल होकर बापदादा के दिल में मणि सा जगमगाओ..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाप समान बनने का गोल्डन चांस लेकर अतीन्द्रिय सुखों के झूले में झूलते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपसे मिलकर खुशियो से भर गई हूँ... जीवन हर विघ्न से मुक्त हो गया है... चारो ओर खुशियो के फूल खिले है... *आनन्द की मस्ती छायी है और दिल अथाह सुख में झूल रहा है... मै आत्मा बेहद की वैरागी हो अपने सत्य स्वरूप के नशे में डूब गई हूँ...*

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सर्व आत्माओं के प्रति कल्याण की वृत्ति रख मास्टर विश्व कल्याणकारी बनकर रहना*"

 

 _ ➳  सर्व आत्माओं के प्रति कल्याण की वृत्ति रखने वाले दया के सागर शिव परमपिता परमात्मा की सन्तान मैं आत्मा भी उनके समान सर्व आत्माओं पर रहम करने वाली मास्टर विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँइस स्मृति में स्थित हो कर विश्व की सर्व आत्माओं का कल्याण करने हेतू अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को मैं धारण कर लेती हूँ और *स्वयं को सर्वशक्तियों से सम्पन्न करने के लिए सर्व गुणों और सर्वशक्तियों के दाता अपने शिव बाप के पास चल पड़ती हूँ*। अपने लाइट के सूक्ष्म शरीर में मैं स्वयं को साकारी देह से बिलकुल अलग एकदम हल्का और निर्बन्धन अनुभव कर रही हूँ। कितनी न्यारी और प्यारी अवस्था है। कोई भारीपन, कोई बोझ नही। हल्केपन की इस स्थिति में अब मैं धीरे - धीरे ऊपर उड़ रही हूँ।

 

 _ ➳  पूरी दुनिया का भ्रमण करते, इस कलयुगी दुनिया के दिल को दहलाने वाले करुण दृश्यों को मैं देखती जा रही हूँ। विकारों के वशीभूत हो कर सभी एक दूसरे को दुःख दे रहें हैं। क्षण भर की शान्ति की तलाश में दर - दर भटक रहे है किंतु शान्ति से कोसों दूर है। *रोती, बिलखती, दुःख से पीड़ित आत्माओं को देखता हुआ मैं फ़रिशता कलयुगी दुनिया से बाहर आ जाता हूँ औऱ आकाश को पार कर जाता हूँ*। उससे भी ऊपर और ऊपर उड़ते हुए मैं सफेद प्रकाश की एक अति सुंदर मन को लुभाने वाली दुनिया में प्रवेश करता हूँ जहाँ चारों और प्रकाश की काया वाले फ़रिश्ते ही फ़रिश्ते हैं। पाँच तत्वों से बनी कोई भी वस्तु यहाँ नही है।

 

 _ ➳  अपने सामने मैं अव्यक्त बापदादा को देख रहा हूँ जो स्वागत की मुद्रा में अपनी दोनों बाहों को फैला कर खड़े हुए हैं। बाबा के अति तेजस्वी मुख मण्डल पर फैली दिव्य मुस्कराहट मुझे सहज ही अपनी और आकर्षित कर रही है। *बिना एक क्षण की भी देरी किये मैं दौड़ कर बापदादा के पास जाता हूँ और उनकी बाहों में समा जाता हूँ*। बाबा मुझे अपनी बाहों में भर लेते हैं और अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटाने लगते हैं। अपनी सर्वशक्तियों से बाबा मुझे भरपूर कर देते हैं। *परमात्म बल मेरे अंदर भर कर मुझे असीम ऊर्जावान और शक्तिवान बना कर अब बाबा मुझे विश्व की सर्व आत्माओं का कल्याण करने की जिम्मेवारी दे कर अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख देते हैं*।

 

 _ ➳  परमात्म बल से भरपूर हो कर और बापदादा से वरदान ले कर मैं फ़रिशता विश्व की सर्व आत्माओं का कल्याण करने हेतु अब विश्व ग्लोब पर आ कर बैठ जाता हूँ और बापदादा का आह्वान करता हूँ। *बापदादा के साथ कम्बाइंड हो कर, बाबा से आ रही सर्वशक्तियों को स्वयं में भर कर इन शक्तियों को अब मैं विश्व ग्लोब पर बैठ पूरे विश्व मे फैला रहा हूँ*। विकारो की अग्नि में जलने के कारण दुखी और अशांत हो चुकी आत्माओं पर ये शक्तियाँ शीतल फुहारों के रूप में बरस रही हैं और उन्हें गहन शीतलता का अनुभव करवा रही है। शीतलता की अनुभूति करवाने के साथ - साथ अब मैं फ़रिशता उन आत्माओं को परमात्म परिचय दे कर उन्हें सदा के लिए दुःखो से छूटने का उपाय बता रहा हूँ।

 

 _ ➳ परमात्मा का परिचय पाकर और परमात्म प्यार का अनुभव करके सभी आत्मायें प्रसन्न हो रही हैं। उनके चेहरों की मुस्कराहट वापिस लौट आई है। हर आत्मा का चेहरा रूहानियत से चमकने लगा है।  ईश्वरीय ज्ञान के महत्व को सर्व आत्मायें स्वीकार कर रही है। *परमात्म परिचय दे कर सर्व आत्माओं का कल्याण कर, अब मैं अपने सूक्ष्म शरीर के साथ वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ और अपने साकारी तन में विराजमान हो कर अपने ब्राह्मण स्वरुप में स्थित हो जाती हूँ*। सर्व आत्माओं के प्रति कल्याणकारी वृति रखते हुए, मास्टर विश्व कल्याणकारी बन अब मैं सबको बाप का परिचय दे कर उनका कल्याण हर समय करती रहती हूँ।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सदा हजूर को हाजिर समझ साथ का अनुभव करने वाली कंबाइंड रूपधारी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को स्वमान में स्थित करने का विशेष योग अभ्यास किया ?

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं जीवन जीने की कला सीख कर सदा रूहानी मौज में रहने वाली आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ स्मृतियों में टिकाये रखने का विशेष योग अभ्यास किया ?

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *'विघ्न-विनाशककिसका नाम हैआप लोगों का है ना! विघ्नों की हिम्मत नहीं हो जो कोई कुमार का सामना करेतब कहेंगे 'विघ्न-विनाशक'।* विघ्न की हार भले होलेकिन वार नहीं करे। विघ्न-विनाशक बनने की हिम्मत हैया वहाँ जाकर पत्र लिखेंगे दादी बहुत अच्छा था लेकिन पता नहीं क्या हो गया! ऐसे तो नहीं लिखेंगे? *यही खुशखबरी लिखो - ओ. के.वेरी गुडविघ्न-विनाशक हूँ। बस एक अक्षर लिखो। ज्यादा लम्बा पत्र नहीं। ओ. के.।* लम्बा पत्र हो तो लिखने में भी आपको शर्म आयेगा। शर्म आयेगा ना कि कैसे लिखें,क्या लिखें! कई बच्चे कहते हैं पोतामेल लिखने चाहते हैं लेकिन जब सोचते हैं कि पोतामेल लिखें तो उस दिन कोई न कोई ऐसी बात हो जाती है जो लिखने की हिम्मत ही नहीं होती है। *बात हुई क्यो? विघ्न-विनाशक टाइटल नहीं है क्याबाप कहते हैं लिखने सेबताने से आधा कट जाता है। फायदा है।*

 

 _ ➳  लेकिन लम्बा पत्र नहीं लिखोओ. के. बस। *अगर कभी कोई गलती हो जाती है तो दूसरे दिन विशेष अटेन्शन रख विघ्न-विनाशक बन फिर ओ. के. का लिखो।* लम्बी कथा नहीं लिखना। यह हुआयह हुआ... इसने यह कहाउसने यह कहा.... यह रामायण और उनकी कथायें हैं। *ज्ञान मार्ग का एक ही अक्षर हैकौन सा अक्षर है?ओ. के.। जैसे शिवबाबा गोल-गोल होता है ना वैसे ओ भी लिखते हैं। और के अपनी किंगडम।* तो ओ.के. माना बाप भी याद रहा और किंगडम भी याद रही। इसलिए ओ. के.... और ओ.के. लिखकर ऐसे नहीं रोज पोस्ट लिखो और पोस्ट का खर्चा बढ़ जाए। ओ.के. लिखकर अपने टीचर के पास जमा करो और टीचर फिर 15 दिन वा मास में एक साथ सबका समाचार लिखे। पोस्ट में इतना खर्चा नहीं करनाबचाना है ना। और यहाँ पोस्ट इतनी हो जायेगी जो यहाँ समय ही नहीं होगा। आप रोज लिखो और टीचर जमा करे और टीचर एक ही कागज में लिखे - ओ.के. या नो। *इंगलिश नहीं आती लेकिन ओ.के. लिखना तो आयेगानो लिखना भी आयेगा। अगर नहीं आये तो बस यही लिखो कि ठीक रहा या नहीं ठीक रहा।* 

 

✺   *ड्रिल :-   "विघ्न विनाशक बन सदैव ओ. के. स्थिति का अनुभव करना*

 

 _ ➳  *वाह मैं खुशनसीब आत्मा... बाबा ने स्वयं आकर... मुझे अपनी शक्तियों से परिचय करवाया...* कि बच्चे तुम... अपार शक्तियों और गुणों के मालिक हो... *तुम सर्व शक्तिमान की संतान... मास्टर सर्व शक्तिमान हो... तुम ही शिव शक्ति हो... तुम ही लक्ष्मी... तुम ही सरस्वती... तुम ही दुर्गा हो... और तुम ही विघ्न विनाशक गणेश हो... विघ्न हर्ता हो... सुख कर्ता हो...*

 

 _ ➳  'विघ्न-विनाशकमुझ आत्मा का ही नाम है... *विघ्नों की हिम्मत नहीं है... जो मुझ विघ्न विनाशक गणेश कुमार का सामना करे...* विघ्नों पर विजय प्राप्त कर... मुझ आत्मा ने 'विघ्न-विनाशक' के इस टाइटल को सार्थक कर दिया है... मैं आत्मा हर विघ्न को पार कर... विघ्न को हराने वाली आत्मा हूँ... *विघ्नों के वार का मुझ आत्मा पर तनिक मात्र भी प्रभाव नहीं पड़ता है... बाबा से मेरा दृढ़ निश्चय है... और पक्का वादा है... विघ्नों पर... विघ्न-विनाशक बन वार करने की... मुझ आत्मा में अनंत हिम्मत है...*

 

 _ ➳  अब जब भी मैं आत्मा बाबा या दादी को पत्र लिखती हूँ... बस एक शब्द ओ.के. ही लिखती हूँ... अब मुझ आत्मा की कभी शिकायत नहीं होती है कि... सब कुछ अच्छा था... लेकिन कैसे ये सब हो गया... *मैं विघ्न विनाशक आत्मा... ऐसे कमजोर शब्दों का यूज कभी नहीं करती हूं... यही खुशखबरी लिखती हूँ... ओ. के... वेरी गुड... विघ्न-विनाशक हूँ...* बस एक अक्षर लिखती हूँ... ज्यादा लम्बा पत्र नहीं लिखती हूँ... ओ. के... अगर कभी लम्बा पत्र हो जाता है... विघ्न विनाशक का स्वमान... याद करती हूँ... तो पत्र छोटा हो जाता है... *और बाबा ने भी कहा है... बच्चे एक शब्द में अपनी बात कहो... कम खर्च बाला नशीन बनो... बाबा के इस महावाक्य को याद करते ही... लम्बा पत्र लिखने में शर्म महसूस होने लगती है...* अब मैं आत्मा निर्विघ्न रूप से... हर दिन का पोतामेल लिखती हूँ... अब मुझ आत्मा को कभी भी पोतामेल लिखने में... कोई विघ्न का सामना नहीं करना पड़ता है... विघ्न-विनाशक का टाइटल हमेशा स्मृति में रहता है... बाबा ने कहा भी है... *बच्ची पोतामेल देने से आधा कट जाता है... और फायदा यह होता है कि मेहनत कम लगती है... और बोझ आधा हो जाता है...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा खुद पर विशेष अटेन्शन देती हूँ... मुझ आत्मा से अगर कभी कोई गलती हो जाती है... तो दूसरे दिन विशेष अटेन्शन रख... विघ्न-विनाशक बन... बस ओ. के. लिखती हूँ अपनी लम्बी कथा नहीं लिखती हूँ... यह हुआ... वह हुआ... इसने यह कहा... उसने यह कहा... यह राम कथा भक्त लोगों की कथायें हैं... *मुझ विघ्न विनाशक गणेश की नहीं... ज्ञान मार्ग का एक ही अक्षर है... ओ. के...* जैसे शिवबाबा गोल-गोल है... वैसे ओ भी गोल - गोल है... और के. मेरी किंगडम... *ओ.के. माना बाप... और किंगडम माना याद... तो बाप भी याद रहा और किंगडम भी याद रही... इसलिए अब सिर्फ एक शब्द ओ.के...*

 

 _ ➳  *अब मैं आत्मा रोज ओ.के. लिखकर... अपने टीचर के पास जमा करती हूँ... और टीचर फिर 15 दिन या एक मास में एक साथ... सबका समाचार लिख कर... पोस्ट करते हैं... पोस्ट में इतना खर्चा नहीं करती... कम खर्च बाला नशीन करती हूँ...* टीचर एक ही कागज में - ओ.के. या नो लिखती हैं... इंग्लिश में लिखना नहीं भी आता है... तो बाबा ने आसान मार्ग सुझाया है... बस यही लिखो कि ठीक रहा या नहीं ठीक रहा...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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