━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 23 / 08 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *बाप और वर्से को याद किया ?*
➢➢ *बहुत बहुत मीठा बनकर रहे ?*
➢➢ *"मौत सामने खड़ा है" - यह स्मृति रही ?*
────────────────────────
∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *बेहद के अधिकार को स्मृति में रख सम्पूरनता की बधाईयां मनाई ?*
➢➢ *हर समय, हर कर्म में बैलेंस रखो तो सर्व की ब्लेसिंग प्राप्त की ?*
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
➳ _ ➳ *संगमयुग के ब्राह्मण जीवन की विशेषता है ही - सार रूप में स्थित हो सदा सुख-शान्ति के, खुशी के, ज्ञान के, आनंद के झूले में झूलना।* सर्व प्राप्तियों के सम्पन स्वरूप के अविनाशी नशे में स्थित रहो। सदा चेहरे पर प्राप्ति ही प्राप्ति है - उस सम्पन स्थिति की झलक और फलक दिखाई दे। जब सिर्फ स्थूल धन से सम्पन विनाशी राजाई प्राप्त करने वाले राजाओं के चेहरे पर भी द्वापर के आदि में वह चमक थी। *यहाँ तो अविनाशी प्राप्ति है तो कितनी रूहानी झलक और फलक चेहरे से दिखाई देगी!* ऐसे अनुभव करते हो? वा सिर्फ अनुभव सुन करके खुश होते हो! पाण्डव सेना विशेष है ना! पाण्डव सेना को देख हर्षित जरूर होते हैं। लेकिन *पाण्डवों की विशेषता है उन्हें सदा बहादुर दिखाते हैं, कमजोर नहीं।* अपने यादगार चित्र देखे हैं ना। चित्रों में भी महावीर दिखाते हैं ना। तो बापदादा भी सभी पाण्डवों को विशेष रूप से, सदा विजयी, सदा बाप के साथी अर्थात पाण्डवपति के साथी, बाप समान मास्टर सर्वशक्तिवान स्थिति में सदा रहें, यही विशेष स्मृति का वरदान दे रहे हैं। *भले नये भी आये हो लेकिन हो तो कल्प पहले के अधिकारी आत्मायें।* इसलिए सदा अपने सम्पूर्ण अधिकार को पाना ही है - इस नशे और निश्चय में सदा रहना। समझा। अच्छा। सदा सेकण्ड में बुद्धि को एकाग्र कर, सर्व प्राप्तियों को अनुभव कर, सदा सर्व शक्तियों को समय प्रमाण प्रयोग में लाते, सदा एक बाप में सारा संसार अनुभव करने वाले, ऐसे सम्पन और समान श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- रूहानी धंधा कर, बाप और वर्से को याद करना"*
➳ _ ➳ सत्य के प्रकाश से कोसो दूर मै आत्मा... देह के रिश्तो और धंधो में फंसी हुई, जकड़ी हुई थी... कि अचानक मीठे बाबा ने मुझे अपना हाथ देकर उस देह के दलदल से बाहर खींच लिया... और *आज अपना चमकदार जीवन और उज्ज्वल भविष्य को पाकर मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हो गयी हूँ.*.. इसी मीठे चिंतन में खोयी हुई मै आत्मा... फ़रिश्ते रूप में दिल की गहराइयो से, मीठे बाबा का शुक्रिया करने... और बाबा को बेपनाह प्यार करने वतन में पहुंचती हूँ...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अलौकिकता से सजाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *सदा ईश्वरीय यादो में डूबकर, सारी शक्तियो और खजानो से सम्पन्न बनकर, देवताई सुखो के मालिक बन मुस्कराओ.*.. ईश्वरीय साथ का यह समय बहुत कीमती है, इसे हर पल ईश्वरीय यादो में लगाओ... सिर्फ मीठे बाबा और वर्से को याद करने का ही धंधा करो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा संग यादो में झूलते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपकी यादो की छत्रछाया में पलकर कितनी सुखी हो गयी हूँ... *हर साँस आपको याद कर, अथाह सुखो और धन सम्पदा की मालिक बन रही हूँ.*.. देह की मिटटी से निकल ईश्वरीय यादो में खो गयी हूँ..."
❉ प्यारे बाबा मुझ आत्मा को अपनी यादो की तरंगो से भिगोते हुए कहते है :- "मीठे लाडले प्यारे बच्चे... देहभान से निकल, अपने सत्य स्वरूप के नशे में डूबकर... हर समय मीठे बाबा को याद करो... *यादो में ही सारे सुख समाये है... इसलिए बाकि सारे धंधे छोड़, सिर्फ मीठे बाबा को ही याद करने का धंधा करो.*.. और सतयुगी मीठे सुख को याद करो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के ज्ञान वचनो को दिल में उतारते हुए कहती हूँ :- "मेरे मीठे मीठे बाबा... *आपकी मीठी प्यारी यादो में, मै आत्मा अतुल खजानो को पाती जा रही हूँ.*.. सबको आपका परिचय देकर, सच्चे प्रेम सुख शांति की राहो पर चला रही हूँ..."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी यादो के मीठे अहसासो में डूबते हुए कहा :- "मीठे सिकीलधे लाडले बच्चे... देह के सारे धंधो को अब छोड़, सिर्फ रूहानी धंधा करो... *हर घड़ी, हर साँस, हर संकल्प, से मीठे बाबा और असीम खजानो दौलत को ही याद करो..*. याद करते करते, सुखो भरी खुबसूरत दुनिया के मालिक बन जायेंगे... इसलिए सिर्फ यादो का ही कारोबार करो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा की अमूल्य शिक्षाओ को बुद्धि पात्र में समाते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मुझ आत्मा ने जीवन का कितना समय देह के रिश्तो के पीछे खपा दिया... और अब जो आप मिले हो तो मै आत्मा... हर साँस आपकी याद में ही खोयी हुई हूँ... आपकी यादो के सिवाय मुझे अब कोई कार्य नही... *आपकी यादे और देवताई जीवन ही मेरी सांसो का लक्ष्य है..*."मीठे बाबा को अपने दिल की बात बताकर मै आत्मा स्थूल जगत में आ गयी...
────────────────────────
∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- भारत को रामराज्य बनाने की सेवा में अपना सब कुछ सफल करना*"
➳ _ ➳ रामराज्य शब्द स्मृति में आते ही एक ऐसी दैवी दुनिया का चित्र आंखों के आगे उभर आता है जो सुखमय दुनिया मेरे प्रभु राम, मेरे परम प्रिय परमपिता परमात्मा शिव बाबा ने हम बच्चों के लिये बनाई थी। जिसमे अपरमअपार सुख था, शांति थी, समृद्धि थी। *एक ऐसी दुनिया जहाँ सब मिल जुल कर बड़े प्यार से रहते थे। किसी के मन मे किसी के प्रति कोई ईर्ष्या - द्वेष कोई छल - कपट नही था*। उसी दैवी दुनिया अर्थात उस रामराज्य के बारे में विचार करते - करते मैं मन बुद्धि से पहुंच जाती हूँ उसी दैवी दुनिया में।
➳ _ ➳ स्वर्ण धागों से बनी हीरे जड़ित अति शोभनीय ड्रेस पहने एक राजकुमारी के रूप में मैं स्वयं को प्रकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण उस देव भूमि, उस रामराज्य में देख रही हूँ जहां हरे भरे पेड़ पौधे, टालियों पर चहचहाते रंग-बिरंगे खूबसूरत पक्षी, *वातावरण में गूंजती कोयल की मधुर आवाज, फूलों पर इठलाती रंग बिरंगी तितलियां, बागों में नाचते सुंदर मोर, कल-कल करते सुगंधित मीठे जल के झरने, रस भरे फलों से लदे वृक्ष, सतरंगी छटा बिखेरती सूर्य की किरणे मन को आनन्द विभोर कर रही हैं*।
➳ _ ➳ प्रकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण इस देव भूमि पर सोलह कला सम्पूर्ण, मर्यादा पुरुषोत्तम देवी-देवताओ को विचरण करते, पुष्पक विमानों मे बैठ उन्हें विहार करते मैं देख रही हूं। *लक्ष्मी नारायण की इस पुरी में राजा, प्रजा सभी असीम सुख, शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर हैं*। चारों ओर ख़ुशी का माहौल हैं। दुख, अशांति का यहां नाम निशान भी दिखाई नही देता। ऐसे देवलोक के रमणीक नजारों को देख मैं मंत्रमुग्घ हो रही हूँ।
➳ _ ➳ मन बुद्धि से इस दैवी दुनिया की यात्रा कर मैं असीम आनन्द से भरपूर हो गई हूं। अपने देवताई स्वरूप का भरपूर आनन्द लेने के बाद अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होती हूँ और विचार करती हूँ कि यही भारत जब रामराज्य था तो कितना समृद्ध था। *किन्तु विकारों रूपी रावण की प्रवेशता ने इस समृद्ध भारत को कितना दुखी और कंगाल बना दिया और अब जबकि मेरे प्रभु राम इस रावण राज्य को फिर से रामराज्य बनाने के लिए आये हैं तो मुझे भी इस रामराज्य की स्थापना में अपने प्रभु राम का सहयोगी बन भारत को रामराज्य बनाने की सेवा में लग जाना चाहिए*।
➳ _ ➳ इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए अब मैं अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर बापदादा के साथ कम्बाइंड हो कर विश्व ग्लोब पर आ जाता हूँ। विश्व की सर्व आत्मायें मेरे सम्मुख हैं। *अब मैं उन्हें उनके वास्तविक स्वरूप से परिचित करवा रहा हूँ। संकल्पो के माध्यम से उन्हें बता रहा हूँ कि आपका वास्तविक स्वरूप बहुत आकर्षक है, बहुत ही प्यारा है*। आप सभी बीजरूप निराकार परम पिता परमात्मा शिव की अजर, अमर, अविनाशी सन्ताने हो।
➳ _ ➳ देह के भान में आकर आप कुरूप बन गये हो। आपका देवताई स्वरूप संपूर्ण सतोप्रधान, सर्वगुण सम्पन्न था। विकारों रूपी रावण की प्रवेशता ने आपका सुख और पवित्रता का वर्सा छीन कर आपको दुखी बना दिया है। *सो हे आत्मन - अब जागो! अज्ञान रूपी निद्रा का त्याग कर परमात्मा शिव द्वारा दिए इस सत्य ज्ञान को स्वीकार कर उसे अपने जीवन में धारण करो*। ये सत्य ज्ञान ही आपके जीवन को फिर से श्रेष्ठ बनायेगा और भारत फिर से रामराज्य बन जायेगा।
➳ _ ➳ विश्व की सर्व आत्माओं को रामराज्य में चलने का संदेश दे कर, अपने फ़रिशता स्वरूप को छोड़ अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर भारत को रामराज्य बनाने की सेवा में अपना सब कुछ सफल कर रहा हूँ। *श्वांसों - श्वांस अपने शिव पिता परमात्मा की याद में रह कर, मनसा, वाचा, कर्मणा सम्पूर्ण पवित्र बन, पवित्रता का सहयोग दे कर, अपने शिव पिता परमात्मा के साथ भारत को पावन बनाने के कार्य मे उनका मददगार बन रहा हूँ*। जिस सत्य ज्ञान को पाकर मेरे जीवन में इतना सुखद परिवर्तन आ गया उस सत्य ज्ञान को सारे विश्व की सर्व आत्माओं तक पहुंचा कर उनके जीवन में भी सुखदाई परिवर्तन लाने के निमित्त बन, उन्हें भी रामराज्य लाने और उसमें राज्य करने के लिए उन्हें प्रेरित कर रहा हूँ।
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा बेहद के अधिकार को स्मृति में रख सम्पूर्णता की बधाइयां मनाती हूँ।*
➳ _ ➳ बाबा का बच्चा बनते ही मैं आत्मा वारिस बनी हूँ... *संगमयुग पर हम बच्चों को वर्सा भी प्राप्त है, पढ़ाई के आधार पर सोर्स ऑफ इनकम भी है और वरदान भी मिले हुए हैं... मैं आत्मा तीनों ही संबंध से इस अधिकार को स्मृति में इमर्ज रखकर हर कदम उठा रही हूँ*... अभी समय, प्रकृति और माया विदाई के लिए इंतज़ार कर रही हैं... *मैं आत्मा मास्टर रचयिता हूँ... सम्पूर्णता की बधाइयां मना रही हूँ... जिससे माया स्वतः विदाई ले रही है*... मैं आत्मा सदा नालेज के आईने में देखती हूँ कि अगर इसी घड़ी विनाश हो जाए तो मैं क्या बनूंगी...
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- हर समय हर कर्म का बेलेंस रखते हुए सर्व से ब्लेसिंग स्वतः ही प्राप्त करने की अनुभूति"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा कर्मयोगी हूँ... *कर्म करते मन बुद्धि से बाबा की लगन में मगन हूँ...* हाथ करदे यार दिल दे... हाथों से काम करते मेरा दिल तो बाबा में ही लगा रहता हैं... बाबा की याद से मेरा हर कर्म सफल ही होता हैं... हर कर्म में सदा बेलेंस रख... मैं आत्मा सर्व की ब्लेसिंग्स स्वतः ही प्राप्त करती हूँ... *मेरा हर कर्म स्वयं को और अन्य को सुख देने वाला होता हैं...* मुझ में हर कर्म को समयानुसार समेटने की शक्ति हैं... मैं एवररेडी आत्मा हूँ... मैं प्राथमिकता अनुसार हर कर्म करती हूँ... मैं समर्थ आत्मा हूँ... बाबा की किरणों के नीचे रह हर कर्म करती हूँ... मेरे बाबा सदा साथ हैं... मैं अनुभव करती हूँ की बाबा मेरा साथी बन मेरे हर कर्म में सहयोगी हैं... *मुझे सदा ये स्मृति रहती है की जैसा कर्म मैं करूंगी मुझे देख अन्य करेंगे... इसलिए सदा कर्म में बेलेंस रख हर आत्मा को सन्तुष्ट करती हूँ...* मुझे स्वतः ही सर्व से ब्लेसिंग प्राप्त होती है...
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *ब्रह्माकुमारीज इज रिचेस्ट इन धी वर्ल्ड चाहे डालर कहो, चाहे पौण्ड कहो, है तो पेपर ही, तो पेपर कहाँ तक चलेगा! सोने का मूल्य है, हीरे का मूल्य है, पेपर का क्या है?* मनी डाउन तो होनी ही है। और आपकी मनी सबसे ज्यादा मूल्यवान है। जैसे शुरु में अखबार में डलवाया था ना कि ओम मण्डली रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड। कमाई का साधन कुछ नहीं था। *ब्रह्मा बाप के साथ एक-दो समर्पण हुए और अखबार में डाला रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड।*
➳ _ ➳ तो अभी भी जब चारों ओर ये स्थूल हलचल होगी फिर आपको अखबार में नहीं डालना पड़ेगा। *आपके पास अखबार वाले आयेंगे और खुद ही डालेंगे, टी.वी. में दिखायेंगे कि ब्रह्माकुमारीज रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड। क्योंकि आपके चेहरे चमकते रहेंगे, कुछ भी हो जाये। दिन में खाने की रोटी भी नहीं मिले तो भी आपके चेहरे चमकते रहेंगे* तो चारों ओर होगा दुख और आप खुशी में नाचते रहेंगे। इसी को ही कहते हैं मिरुआ मौत मलू का शिकार।
➳ _ ➳ *हिम्मत है ना! क्या होगा, कैसा होगा, ये नहीं सोचो। अच्छा है, अच्छा होना ही है। जो श्रेष्ठ स्मृति से कार्य करते हो वो सदा ही अच्छा है।* तो ये कभी नहीं सोचो पता नहीं क्या होगा, पता है अच्छा होगा समझा? *अच्छा है हिम्मत बहुत अच्छी रखी। जहाँ हिम्मत है वहाँ मदद है।*
✺ *ड्रिल :- "श्रेष्ठ स्मृति से कार्य करना"*
➳ _ ➳ प्रकृति के सानिध्य में बैठी मैं आत्मा... मंद-मंद लहराते ठन्डे-ठन्डे पवन के झोंके... फूलों की खुशबू से महकी मैं आत्मा... बाप के याद रूपी पंख लगाकर उड़ चलती हूँ पांडव भवन में... *ज्ञान चक्षु से पांडव भवन में विहरति मैं आत्मा... बैठ जाती हूँ बाबा की झोपड़ी में...* सुख... शांति... पवित्रता से भरी बाबा की झोपड़ी... मीठी-मीठी फूलों की खुशबू फैला रहा है... और मैं आत्मा सिर्फ एक बाप की यादों में मग्न हो जाती हूँ... और मैं आत्मा मन की आँखों से देख रही हूँ सतयुगी दुनिया को... *पवित्रता का श्रृंगार किये खड़ी प्रकृति... सतोगुणी प्रकृति के सुखद आहलादक नज़ारे... सोने चांदी हीरों से सजे महल... 16 कला सम्पूर्ण... सम्पूर्ण निर्विकारी... सभी आत्मायें...* और मैं आत्मा खो जाती हूँ सतयुगी सृष्टि में...
➳ _ ➳ मैं आत्मा मन बुद्धि रूपी सतयुगी सफर का आनंद लेकर वापिस आ जाती हूँ बाबा की झोपड़ी में... पूर्णतः शांति... निःसंकल्पता की अवस्था में बैठी मैं आत्मा... एक और सीन देख रही हूँ... *कलियुगी विनाश के नज़ारे... प्राकृतिक आपदाओं से घेरा हुआ ब्रह्माण्ड... अग्नि ज्वालाओं में लपेटे हुए इमारतों के ढेर...* कहीं और समंदर का तांडव... दुःख दर्द से व्यथित धरती... अगन ज्वाला फेकता आग... त्राहिमाम अवस्था में भागती आत्मायें... *अपनों की खोज में ख़ुद को खो चूंकि आत्मायें...* चेतनहींन शरीर... दुःख... दर्द से भरा प्रकृति का साम्राज्य... दुःखी... हताश आत्मायें... मन विचलित हो उठा यह देख और आँखों से अश्रु धारा बहती जा रही हैं...
➳ _ ➳ और मन ही मन बाबा को पूछती हूँ "बाबा सतयुग की सुहानी सफर के बाद यह विनाश का नजारा क्यूँ दिखाया?" और अपने सवाल के जवाब की आश लिए देखती हूँ बापदादा को... शांत मन की गहराईओं में मैं आत्मा देख रही हूँ... *संगमयुगी ब्राह्मण आत्मायें जो इस विनाश की लपटों में भी अपनी अवस्था बनायें रखी हैं... साक्षीदृष्टा बन विनाशी पलों को देख रहे हैं... एक बाप की याद में रह अपने विनाशी देह से परमधाम की यात्रा कर रहे हैं... बापदादा की गोद में सुकून से समां रहे हैं...* मुरली रूपी शिक्षाओं को अपने में धारण कर पूरा संगमयुगी जीवन बाप को समर्पित कर श्रीमत का पालन करते करते अंतिम समय की तैयारी कर रहे हैं...
➳ _ ➳ अंतिम संगमयुगी जीवन में पवित्रता की धारणा कर शांति का श्रृंगार कर अपने साथ शांति और पवित्रता रूपी ख़ज़ाने को लेकर उड़ चलते हैं परमधाम की ओर... *न कलियुगी संस्कारों को साथ लेकर... न कलियुगी खजानों को साथ लेकर...* बस एक बाप के प्यार में मग्न होकर... बाप की शिक्षाओं को साथ लेकर... *योग बल से अपने विनाशी देह का त्याग करते हैं... रिचेस्ट बाप के रिचेस्ट बच्चे... संगमयुग में सतयुगी स्थापना की नींव रखते है...* संगमयुग में अविनाशी खजानों की प्राप्ति कर पुण्य का खाता श्रेष्ठ स्मृति रूपी कार्य से जमा करते रहते हैं...
➳ _ ➳ *योगयुक्त अवस्था की उच्च आत्मिक स्थिति में स्थित होकर के संगमयुगी कार्य को बाप की श्रीमत पर चल परिपूर्ण करते रहते हैं...* मैं आत्मा बापदादा से निकलते आशीर्वाद रूपी किरणों को अपने में धारण कर संगमयुगी ब्राह्मण जीवन को श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाती जा रही हूँ... *सतयुगी श्रेष्ठ स्मृति को अपने जीवन में चरितार्थ कर संगमयुग को ही सतयुग में परिवर्तित करती जा रही हूँ...* श्रेष्ठ संकल्प... श्रेष्ठ स्मृति के भाग्य को जान अब मैं आत्मा एक-एक संकल्प को तराजू में तोलती जा रही हूँ... ॐ शांति...
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━