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❍ 23 / 07 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *सोने की डालियों को छोड़ उड़ता पंछी स्थिति का अनुभव किया ?*
➢➢ *विश्व कल्याणकारी अवस्था का अनुभव किया ?*
➢➢ *स्वयं को भोग में समर्पण किया ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *स्वयं को सिद्ध करने वा स्वयं की कमज़ोरियों के बचाव के लिए मनमत के बोल तो नहीं बोले ?*
➢➢ *सदा दाता का बच्चा बन सर्व को देने की भासना से भरपूर रहे ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ *सर्वस्व त्यागी बनकर रहे ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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➳ _ ➳ अन्तिम दृश्य और दृष्टा की स्थिति :- *चारों ओर की हलचल की परिस्थितियाँ हो फिर भी सेकण्ड में हलचल होते हुए भी अचल बन जाओ।* फुलस्टॉप लगाना आता है? फुलस्टॉप लागाने में कितना समय लगता है? फुलस्टॉप लगाना इतना सहज होता है जो बच्चा भी लगा सकता है। *क्वेचन मार्क नहीं लगा सकेगा, लेकिन फुलस्टॉप लगा सकेगा।* तो वर्तमान समय हलचल बढने का समय है। लेकिन प्रकृति की हलचल और प्रकृतिपति का अचल होना। *अब तो प्रकृति भी छोटे-छोटे पेपर ले रही है लेकिन फाइनल पेपर में पाँचों तत्वों का विकराल रूप होगा।* एक तरफ प्रकृति का विकराल रूप, दूसरी तरफ पाँचों ही विकारों का अंत होने के कारण अति विकराल रूप होगा। अपना लास्ट वार आजमाने वाले होंगे। तीसरी तरफ सर्व आत्माओं के भिन्न-भिन्न रूप होंगे। एक तरफ तमोगुणी आत्माओं का वार, दूसरी तरफ भक्त आत्माओं की भिन्न-भिन्न पुकारा चौथी तरफ क्या होगा? *पुराने संस्कार। लास्ट समय वह भी अपना चान्स लेंगे। एक बार आकर फिर सदा के लिए विदाई लेगे।*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सर्वंश त्यागी की निशानियाँ"*
➳ _ ➳ मै नूरानी आत्मा अपने मीठे बाबा को मिलने, प्यार करने और शक्तियो से सजने के लिए... अपने फ़रिश्ते स्वरूप में सूक्ष्म वतन पहुंचती हूँ... सूक्ष्म वतन पहुंचकर मै आत्मा... प्यारे बाबा को ब्रह्मा तन में अपने आने के इंतजार में... आतुर सा पाती हूँ... मीठे बाबा अपनी बाहें फैलाये मुझे गले लगाने को बेचैन से है... मै आत्मा *अपने मिलन के एक कदम मात्र... पर मीठे बाबा के दौड़ते हुए... हजार कदमो को देख.*.. प्यार में अभिभूत हो जाती हूँ... निहाल हो जाती हूँ... कुर्बान हो जाती हूँ...
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को सर्वंश त्यागी बच्चों की विशेषताओ को बताते हुए बोले :- "सदा गुणमूर्त बनकर सदा सबके गुणो को ही देखना... *सदा न्यारे और बाप के प्यारे, रूहानियत और मधुरता से भरपूर तथा पवित्रता के रंग में रंगकर बाप समान बनना है.*. और यूँ गुणो से बाप के दिल को जीतकर... दिल तख्त पर शान से विराजित होकर मुस्कराना है..."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने प्यारे प्यारे बाबा को भीगी पलको से शुक्रिया करते हुए कहती हूँ :- "मेरे सच्चे साथी बाबा... मुझ आत्मा को ज्ञान रत्नों को दौलत से भरपूर करने... *अपनी सारी खानों और खजानो को मेरे कदमो में बिखेर रहे हो.*.. मुझे किस कदर मूल्यवान, गुणवान बनाने में अपना सारा समय और संकल्प दे रहे हो... मुझे क्या से क्या आप बना रहे हो..."
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को देवताई ताजोतख्त पर सजाते हुए बोले :- "मीठे लाडले बच्चे... श्रीमत को हर साँस और संकल्प में समाकर विकारो के सूक्ष्म रूप को भी समाप्त करने वाले महावीर बनो... सदा दातापन की सीट पर विराजमान रहकर सदा देने के भाव से भरपूर रहो... होलिहंस बनकर सदा ज्ञान रत्नों को ही चुगते रहो... *ऐसे विश्व कल्याणकारी, आधारमूर्त बनकर ईश्वरीय दिल में खिल जाओ*..."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने मीठे बाबा की अनमोल शिक्षाओ को दिल मै समाती जा रही हूँ और कहती हूँ :- "मीठे दुलारे बाबा मेरे... आपके बिना मुझ आत्मा ने अपना जीवन सदा निर्रथक ही बिताया... अब जो आप जीवन में आये हो मै आत्मा व्यर्थ से परे सदा की समर्थ हो गयी हूँ... *ज्ञान से वजनी होकर... मै आत्मा सुखो भरी दहलीज पर कदम रख रही हूँ.*.."
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को जोश और जूनून से भरपूर करते हुए बोले :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... जब भाग्य ने भगवान से मिलवा दिया है तो... अब हद की डालियो को छोड़ सदा उड़ता पंछी बनो... इच्छा मात्र अविद्या बनकर सदा प्रत्यक्ष फल को खाओ... *मा सर्वशक्तिवान बनकर... पावरफुल वायुमण्डल बनाओ, और सदा के अंधकार को समाप्त करो*... सदा कमल आसन पर विराजमान होकर अथाह खुशियो में झूम जाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने मीठे बाबा से ज्ञान की अतुलनीय धनसम्पत्ति की पाकर बलिहार हूँ और कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा... मुझ आत्मा को ऐसा किसी न निखारा, न यूँ बेठ संवारा...आपने मुझे तेजस्वी बनाकर मेरा खोया वजूद पुनः दिलाया है... *देह के अंधकार से निकाल कर सदा के प्रकाश में मुझे नूरानी बनाया है.*.." ऐसी मीठी रुहरिहानं और दिल का हाल प्यारे बाबा को सुनाकर... मै आत्मा अपने कर्म जगत में आ गयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सर्वस्व त्यागी बनकर रहना*"
➳ _ ➳ परमपिता परमात्मा शिव बाबा ने हम ब्राह्मण बच्चों को सम्पूर्णता को पाने का जो लक्ष्य दिया है उस लक्ष्य तक पहुंचने की सीढ़ी है "सर्वस्व त्यागी" बनना। *ब्रह्मा बाबा ने भी इसी सीढ़ी पर कदम-कदम रखते हुए सम्पूर्णता के लक्ष्य को हासिल किया और अव्यक्त फ़रिशता बन गए*। ऐसे फॉलो फादर कर मुझे भी बाप समान बनना ही है। स्वयं से यह प्रतिज्ञा करती हुई अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर मैं चल पड़ती हूँ फरिश्तों की उस दुनिया मे जहां ब्रह्मा बाप आज भी अव्यक्त फ़रिशता बन हमारे सम्पूर्ण बनने का इंतजार कर रहें हैं। *उनकी अव्यक्त पालना में भी साकार पालना का अनुभव करके, एक अनोखे उमंग उत्साह के साथ नई आत्मायें भी लास्ट सो फ़ास्ट और फ़ास्ट सो फर्स्ट जा कर सम्पूर्णता के लक्ष्य को पाने का तीव्र पुरुषार्थ कर रही हैं*।
➳ _ ➳ अब मैं फ़रिशता देख रहा हूँ स्वयं को सफेद प्रकाश से प्रकाशित फरिश्तों की खूबसूरत दुनिया मे अव्यक्त सूक्ष्म शरीर धारी ब्रह्मा बाबा के सामने जिनकी भृकुटि में शिव बाबा चमक रहें हैं। *ऐसा लग रहा है जैसे बाबा की भृकुटि से प्रकाश की अनन्त धाराएं निकल कर पूरे वतन में फैल रही हैं और पूरा वतन एक अलौकिक दिव्य आभा से जगमगा रहा है*। इन दिव्य अलौकिक किरणों को स्वयं में समा कर मैं गहन आनन्द से भरपूर हो रहा हूँ। धीरे धीरे मैं बाबा के समीप जा रहा हूँ। बाबा से आ रही सर्व शक्तियों की किरणें और भी सघन होती जा रही हैं। ऐसा लग रहा है जैसे मेरे ऊपर शक्तियों का कोई झरना बह रहा हो। *रूहानी मस्ती में मस्त हो कर शक्तियों की इन किरणों को स्वयं में समाते हुए मैं विशेष बलशाली बन रहा हूँ*।
➳ _ ➳ स्वयं को परमात्म बल से भरपूर करके अब मैं बापदादा को निहार रहा हूँ। ब्रह्मा बाप समान बनने के मेरे संकल्प को शिव बाबा ने जैसे मेरे चेहरे से पढ़ लिया है इसलिए बापदादा मेरे मन की बात समझ कर अब मुझे अपने पास बिठा लेते हैं और मेरे साथ मीठी मीठी रूह रिहान करने लगते हैं। *शिव बाबा कहते, मेरे मीठे बच्चे:- "जानते हो सर्वस्व त्यागी बनने के लिए ब्रह्मा बाप ने किन विशेषताओं को धारण किया"*!
➳ _ ➳ ब्रह्मा बाप निराकारी, निर्विकारी और निरहंकारी इन तीन विशेषताओं के आधार पर शिव बाबा के समीप और समान बन गए। तो सदा स्मृति में रखो कि *संकल्प में सदा निराकारी सो साकारी बन सदा सर्व से न्यारे और बाप के प्यारे बन कर रहो। वाणी में सदा निरअहंकारी अर्थात् सदा रूहानी मधुरता और निर्मानता दिखाई दे और कर्म में हर कर्मेन्द्रिय द्वारा निर्विकारी अर्थात् प्युरिटी की पर्सनैलिटी स्पष्ट अनुभव हो*। इन तीनों विशेषताओं को स्वयं में धारण कर हर कर्मेंन्द्रिय द्वारा सर्व आत्माओं को उनके स्वरूप की स्मृति दिलाने के महादानी वा वरदानी बनो।
➳ _ ➳ जी बाबा कह कर अब मैं फ़रिशता अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर साकार लोक में आ कर अपने शिव पिता का आह्वान करता हूँ। बाबा की सर्वशक्तियों की छत्रछाया के नीचे *अब मैं ब्राह्मण आत्मा वरदानी और महादानी की सीट पर सेट हो कर अपनी रूहानी दृष्टि द्वारा सर्व आत्माओं को मुक्ति जीवन मुक्ति का रास्ता दिखा रही हूं*। वरदान दे कर उन्हें अनुभव करवा रही हूं कि यही उनका असली घर और राज्य है। मुख से रचयिता और रचना के विस्तार का ज्ञान दे कर उन्हें श्रेष्ठ ब्राह्मण सो देवता बनने का वरदान पाने का रास्ता बता रही हूँ। इस प्रकार हर समय *अपनी हर कर्मेन्द्रिय द्वारा मैं सर्व आत्माओं को विशेष अनुभूति कराते हुए निर्विकारी जीवन जीने वाली सर्वस्व त्यागी आत्मा बन रही हूं*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा विकारों रूपी सांपों को गले की माला बना देती हूँ।"*
➳ _ ➳ *परमात्मा की ज्ञान मुरली रूपी बीन से मुझ आत्मा के पांच विकारों रूपी जहरीले सांप मेरे अधीन हो गए हैं... मेरे दास बन गए हैं...* जन्म-जन्मान्तर से ये सांप मुझ आत्मा को डंसकर मेरे अन्दर विकारों रूपी जहर भर दिए थे... इन विकारों के वशीभूत होकर मैं आत्मा कई विकर्म कर कर्मबंधनों के जाल में फंसती चली गई थी... प्यारे बाबा के ज्ञान, गुण, शक्तियों की किरणों से सभी विकार दग्ध हो गए हैं... और मैं आत्मा इन विकारों से मुक्त हो गई हूँ... *मैं सच्चा योगी, तपस्वी आत्मा इन विकारों रूपी साँपों पर विजय प्राप्त कर... इनको अपने गले की माला बनाकर सदा ख़ुशी में नाचती रहती हूँ...* जिसका ही ब्रह्मा बाप और हम ब्राह्मणों का यादगार तपस्वी शंकर स्वरूप है, जिनके गले में सांपों की माला दिखाते हैं...
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पुराने संसार व संस्कारो से जीते जी मरने का अनुभव करना"*
➳ _ ➳ बाबा मुझ आत्मा को जीते जी मरना कैसे है... यह सीखा रहें है... *शिव बाबा के यज्ञ में पुराना सब स्वाहा करने वाली* मैं समर्पित आत्मा हूँ... पुरानी दुनिया से मरकर... *एक बाबा का बनती जा रही हूँ*... बाबा आए है मुझ आत्मा का सब कुछ पुराना दान में ले... *आत्मा पर लगे ग्रहण को छुड़ाने*... मन-इच्छित फल देने के लिए... मैं आत्मा इस पुरानी दुनिया से मर कर... बाबा की बनती जा रही हूँ... इस *पुरानी दुनिया से... सम्पति से, वैभवों से... स्वभाव-संस्कारों से ममत्व मिटा*... मैं आत्मा मरजीवा बनती जा रही हूँ... बाबा के हाथ व साथ से मैं आत्मा पुराने सम्बन्धो, स्वभाव-संस्कारों के विस्तार को दूर करती जा रही हूँ... *मैं आत्मा स्वयं को सदा टॉवर ऑफ पीस में अनुभव करने लगी हूँ*...स्वयं को बाबा की शीतल छाया में अनुभव कर रही हूँ... सारे विकल्प समाप्त होते जा रहें है...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ सर्वंश त्यागी आत्मा किसी भी विकार के अंश के भी वशीभूत हो कोई कर्म नहीं करेगी। विकारों का रायल अंश स्वरूप पहले भी सुनाया है कि मोटे रूप में विकार समाप्त हो रायल रूप में अंश मात्र के रूप में रह जाते हैं। वह याद है ना! ब्राह्मणों की भाषा भी रायल बन गई है। अभी वह विस्तार तो बहुत लम्बा है। *मैं ही यथार्थ हूँ वा राइट हूँ - ऐसा अपने को सिद्ध करने के रायल भाषा के शब्द भी बहुत हैं। अपनी कमज़ोरी छिपाकर दूसरे की कमज़ोरी सिद्ध करने वा स्पष्ट करने का विस्तार करना, उसके भी बहुत रायल शब्द हैं। यह भी बड़ी डिक्शनरी हैं। जो वास्तविकता नहीं है लेकिन स्वयं को सिद्ध करने वा स्वयं की कमज़ोरियों के बचाव के लिए मनमत के बोल हैं। वह विस्तार अच्छी तरह से सब जानते हो। सर्वन्श त्यागी की ऐसी भाषा नहीं होती - जिसमें किसी भी विकार का अंश मात्र भी समाया हुआ हो। तो मंसा-वाचा-कर्मणा, सम्बन्ध-सम्पर्क में सदा विकारों के अंश मात्र से भी परे, इसको कहा जाता है ‘सर्वंश त्यागी'। सर्व अंश का त्याग।*
✺ *"ड्रिल :- स्वयं को सिद्ध करने वा स्वयं की कमज़ोरियों के बचाव के लिए मनमत के बोल नहीं बोलना।*
➳ _ ➳ बाबा को याद करते हुए मैं आत्मा मन बुद्धि से पहुंच जाती हूं परमधाम... और बाबा से मिलकर बाबा को अपने साथ लेकर आ जाती हूं... *रिमझिम की एक फुहार बनकर नीचे आसमान में... मुझे वहां कुछ बादल दिखाई देते हैं... और मैं आ जाती हूं बादलों के अंदर... जैसे ही मैं बादल में प्रवेश करती हूं... बादल गहरे रंग के हो जाते हैं... और बादलों की गति बढ़ने लगती हैं... मैं बादलों में बैठकर उनकी गति को मन ही मन फील करती हूं... मुझे एहसास होता है... कि जैसे बाबा ने मुझमें इतनी शक्तियां भर दी हैं कि मैं अब इस धरा को अपने रिमझिम फुहार से हरी-भरी कर सकूं और बंजर जमीन से फसल का जीवन दान दे सकूं...और साथ ही उदास चेहरों पर हंसी ला सकूं...*
➳ _ ➳ *जैसे-जैसे बादलों की गति बढ़ती जाती है... वह आपस में एक दूसरे से टकराते हैं... और शिवबाबा बिजली बनकर चमकते हैं... और बाबा से शक्तियां लेकर मैं बारिश की फुहार बनकर इस धरा पर बरसने लगती हूं... और ऐसा प्रतीत हो रहा है... मानों सभी आत्माएं जन्म जन्म की प्यासी हो... और मुझसे वरदानों की बारिश करने के लिए कह रही हो...* मैं अपनी शक्तियों की वर्षा उन पर करने लगती हूं... तभी मैं अचानक देखती हूं कि... एक स्थान पर कुछ आत्माएं बैठी हुई है... और एक आत्मा आगे बैठकर उन्हें कुछ पढ़ा रही है... और मैं देखती हूं कि... वह सभी आत्माएं उस एक आत्मा की बातें बहुत गहराई से और प्यार से सुन रही है...
➳ _ ➳ परंतु कुछ समय बाद मैं देखती हूं कि... वह आत्मा अपने आप को देहभान में लाते हुए... बाबा की श्रीमत को पूरा फॉलो नहीं करते हुए... उन सभी आत्माओं को अपने ज्ञान अभिमान करते हुए... कुछ बातें बता रही है... वह अपनी मन बुद्धि में परमात्मा को शामिल नहीं करते हुए सिर्फ अपनी मनमत से आत्माओं को कुछ बातें बताने की चेष्टा कर रही है... परंतु उसके सामने बैठी सभी आत्माएं कुछ असंतुष्ट सी नजर आ रही है... मेरा जैसे ही ध्यान उन आत्माओं पर जाता है... मैं उनकी भावनाओं को समझ जाती हूँ... और *बाबा से लगातार शक्तियां लेते हुए बारिश की फुहार बनकर सामने बैठी उस आत्मा के मन बुद्धि में प्रवेश कर जाती हूँ... और मैं उस आत्मा के मुख मंडल द्वारा उन सभी आत्माओं को कहती हूं कि... मैं आज जो कुछ भी हूं जो कुछ भी मुझे ज्ञान मिला है वह सिर्फ परमात्मा के द्वारा ही मिला है...*
➳ _ ➳ और मैं कहती हूं कि मुझे परमात्मा रोज नया नया ज्ञान मुरली द्वारा देते हैं... जिससे मैं श्रीमत का पूर्ण रुप से पालन कर पाती हूं... मैं जो भी कुछ ज्ञान सुना रही हूं वह सिर्फ और सिर्फ परमात्मा द्वारा दिए हुए श्रीमत के कारण ही सुना पा रही हूं... इतना कहकर मैं उस आत्मा की मन बुद्धि से वापस बाहर निकल आती हूं... और मैं देखती हूं कि... वह आत्मा एकदम परिवर्तित हो चुकी है... और उस पर मेरे कहे हुए शब्दों का प्रभाव पड़ रहा है... और *वह परमात्मा का बार-बार धन्यवाद करते हुए उन आत्माओं को बाबा के ज्ञान द्वारा संतुष्ट करने का पुरुषार्थ कर रही है... वह अपने आप को सिद्ध करने के लिए किसी भी प्रकार के मनमत का साथ नहीं ले रही है... तथा मैं देखती हूं कि... वहां बैठी सभी आत्माएं एकदम शीतल भाव से, शांत भाव से संतुष्ट होकर उस आत्मा की बातें सुन रही है...*
➳ _ ➳ वहां का यह चित्र देखकर मेरा मन अति हर्षित हो रहा है... और मैं परमात्मा को लगातार अपने साथ अनुभव कर रही हूं... और रिमझिम फुहार से और परमात्मा द्वारा दी हुई शक्तियों को रिमझिम फुहार में परिवर्तन कर... इस पूरे संसार में फैला रही हूं... क्रोध में जलती हुई आत्माएं और सभी असंतुष्ट आत्माएं श्रीमत से बाहर जाती आत्माएं सभी अपने साथ परमात्मा को अनुभव करने लगती है... और मैं यह चित्र देखकर बाबा को धन्यवाद करती हूं... फिर से अपने आप को उस बादल से निकालकर इस देह में विराजमान कर लेती हूं... और इस देह में विराजमान होते-होते *मैं अपने आप से यह वादा करती हूं... कि मैं पुरुषार्थ की राह में कभी भी अपने आप को सिद्ध करने के लिए मनमत का सहारा नहीं लूंगी... और सदा पुरुषार्थ में श्रीमत की राह पर चलूंगी... इसी भाव से मैं इस सृष्टि पर अपनी वाइब्रेशन फैलाने लगती हूं...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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