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❍ 22 / 11 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*5=25)
➢➢ *स्वदर्शन चक्र फिराते पूरा पूअर नष्टोमोहा बनकर रहे ?*
➢➢ *"मौत सिर पर है" - यह स्मृति रही ?*
➢➢ *आत्मा अभिमानी बन सच्चा सपूत बनकर रहे ?*
➢➢ *हर घड़ी को अंतिम घड़ी समझ सदा एवररेडी रहे ?*
➢➢ *पास विद ऑनर होने के लिए एडजस्ट होने की शक्ति को बढाया ?*
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❂ *तपस्वी जीवन प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं* ✰
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〰✧ आप रूहानी रॉयल आत्मायें हो इसलिए मुख से कभी व्यर्थ वा साधारण बोल न निकलें। *हर बोल युक्तियुक्त हो, व्यर्थ भाव से परे अव्यक्त भाव वाला हो तब रॉयल फैमली में आयेंगे।*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:- 10)
➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाये ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ *एवररेडी का अर्थ ही है ऑर्डर हुआ और चल पडा।* इतना मेरे-पन से मुक्त हो? सबसे बडा मेरा-पन सुनाया ना कि देहभान के साथ देह-अभिमान के सोने-चांदी के धागे बहुत है।
〰✧ इसलिए सूक्ष्म बुद्धि से, महीन बुद्धि से चेक करो कि कोई भी अल्पकाल का नशा ये धागा बन करके रोकने के निमित तो नहीं बनेगा? मोटी बुद्धि से नहीं सोचना कि मेरा कुछ नहीं है, कुछ नहीं है। *फालो करने में सदा ब्रह्मा बाप को फालो करो।*
〰✧ सर्वप्रति गुणग्राहक बनना अलग चीज है लेकिन फालो फादर कई है जो भाई-बहनों को फालो करने लगते हैं लेकिन वो किसको फालो करते हैं? *वो फालो ब्रह्माबाप को करते हैं और आप फिर उनको करते!* डायरेक्ट क्यों नहीं करते?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:- 15)
➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- स्वदर्शन चक्र फिराते विकर्म विनाश कर सिर से पापों का बोझा उतारना"*
➳ _ ➳ भक्ति मार्ग में दर्शनों के लिए दर- दर भटकती, जड चित्रो के दर्शन कर अपने जीवन को सार्थक समझती, मैं आत्मा खुद की खोज में खुदी से कितना दूर होती चली गयी, जडचित्रों के आगे हाथ पसारे हद की मन्नतो को पूरा करना ही ईश्वर भक्ति का मर्म समझती रही, *धुल सकी न मन की चादर, नहाकर गंगा जमुना में... काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह खूब नाचते रहे मन के अँगना में*... तीर्थों पर दर्शनो के लिए समय संकल्प और तन, मन, धन को गँवाना ही मेरे लिए पुण्यात्मा बनने का साधन था... कल की उस यात्रा की तुलना आज की चारधाम की यात्रा से करती हुई मैं आत्मा बैठी हूँ बापदादा की कुटिया में, और कुटिया में बैठा वो रूहानी दिलबर मन्द मन्द मुस्कुरा रहा है मेरी ओर निहारकर... *बेतहाशा बोलती- सी उसकी रूहानी आँखों में अपना भविष्य स्वरूप निहारती मैं आत्मा*... एक एक अदा को गहराई से दिल में समाती हुई मैं...
❉ *अपने रूहानी नयनों की मधुशाला से हर सम्बन्ध की सुखद अनुभूति कराते हुए मुझ आत्मा से बाबा कहते है:-* "मीठी बच्ची... स्वयं को देख पा रही हो मेरी आँखों में ? *स्व का दर्शन किया आपने कभी मेरे दिल में, मेरी नजरों से देखों स्वयं को, कितना ऊँचा और महान स्वरूप बसता है इनमें आप बच्ची का*... आप समान बनाने आया हूँ मैं आपको..."
➳ _ ➳ *स्नेह की एक एक बूँद को तरसती मैं आत्मा स्नेहसागर की आँखों में अपना दर्शन कर निहाल हो कर स्नेह के झरने को स्वयं में समाती भावो में डूबी बाबा से कह रही हूँ:-* "मीठे बाबा... मेरे पदमापदम भाग्य का आईना दिखा दिया है आपने तो मुझे... यही तो वो पहचान थी मेरी, जो जन्म जन्मान्तर के सफर में मुझसे कहीं जुदा हो गयी थी... *यही कदमों के भटकन की वजह थी, यही वो अनबूझ सी प्यास थी... यही मंजिल और यही तलाश थी*... इन आँखों में मैने आज अपना वजूद पा लिया है..."
❉ *करीब आकर अपनी शक्तियों का तेज मुझमें समाते, कुटिया के बाहर मुझ आत्मा को आनन्द के झूले में झूलाते हुए मुझ आत्मा से बाबा कहते है:-* "प्यारी बच्ची... सृष्टि के चक्र में तुम्हारा हर जन्म बेशकीमती है... *वो सतयुगी राजधानी और सतोप्रधान दुनिया, भक्तों की मनोकामना पूरी करते वो तुम्हारे जडचित्र, तुम्हारी महानताओं का कायल ये संगम, जब अपनी चाहतों में बाँधकर तुमने मजबूर कर दिया मुझ निर्बन्धन को, जमीन पर आने के लिए*, उन महानताओं की स्मृति में रहों तो विकर्म विनाश होते जायेगे... *परदर्शन पर चिन्तन से बोझिल होते मुझसे अब मुझसे तुम देखे नही जाते..."*
➳ _ ➳ *अन्तिम वाक्य में छुपे बापदादा के चिन्ता मिश्रित स्नेह से अपने निज स्वरूप मे स्थित हो बाबा से मैं आत्मा कहती हूँ:-* "प्यारे बाबा... शुक्रिया मुझे धारणाओं के कमल पर आसीन करने और हंस बुद्धिबनाने के लिए, देखों! मेरे गले में चमचमाती ये दिव्य गुणों की माला... मैं इनकी चमक को कभी धुँधला नही होने दूँगी "... *विकर्मों की इस पोटली को उतारकर फेंकने की तीव्र गाढी लौ अब मेरे हृदय में जग चुकी है..."*
❉ *धैर्य के सागर बाप दादा स्नेह से महकती सीखनी देते हुए कहते है:- "लाडली बच्ची... विकर्मों की पोटली जब तक सर पर रहेगी ताज सुशोभित नही होगा... बडा ही सहज है स्वदर्शन चक्र फिराते हुए इस भार से मुक्त हो जाना*"... और मैं देख रही हूँ बाप दादा की उम्मीदों का वो सुनहरा रतन जडित ताज जिसे बाबा आहिस्ता से हाथ में उठा धीरे से मेरे सर पर रख रहे है... बहुत कुछ कर गुजरने की चाह पैदा कर गया है मन में *उनका ये ताज को उठाकर मेरे सर पर रख देना* अनोखे आत्मविश्वास से लबालब कर गया है मुझे..."
➳ _ ➳ *ताज और तख्त की अधिकारी बन बाप दादा की हर उम्मीद को पूरा करने वाली मैं आत्मा बापदादा से कहती हूँ:-* "मेरे लाड़ले बाबा... मेरा परिचय, जो मैने आपसे पाया, प्रेम और पावनता का सागर जिसमें भरपूर नहलाया और *स्वदर्शन चक्र का जादुई सा चिराग, बोझा विकर्मों भस्म करना सहज ही सिखाया... मुझ आत्मा ने स्वदर्शन फिराकर जैसे खुद को ताजधारी बनाया .. वैसे ही अब हर एक आत्मा को इस ताज की अधिकारी आत्मा बना रही हूँ..."* और बडे नाज से झूले से उतर सतयुगी राॅयल चाल चलती हुई मैं आत्मा चल पडी हूँ विश्व सेवा पर... वो मुझे देख कर मुस्कुराये जा रहे है और वरदानी शक्तियाँ भरकर हाथ हिलाये जा रहे है..."
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मौत सिर पर है इसलिए सबसे ममत्व निकाल देना है*"
➳ _ ➳ इस मृत्युलोक में हर मनुष्य आज मौत के साये में जीवन जी रहा है। मौत सबके सिर पर मंडरा रही है। बच्चे, बूढ़े, जवान किसी का कुछ पता नही कब शरीर छूट जाए। *जीवन की इस कड़वी सच्चाई को सहर्ष स्वीकार करती हुई मैं स्वयं से ही सवाल पूछती हूँ कि मृत्यु की शैया पर लेटा इंसान जिसे यह बोध है कि अब जल्दी ही उसकी जीवन कहानी का अंत होने वाला है तो क्या वो इस नश्वर संसार की किसी भी चीज से मोह रखेगा!* समय के गम्भीर इशारे भी बार - बार यह चेतावनी दे रहें है कि मौत सिर पर है तो क्या मृत्यु से पहले मैंने उस अवस्था को पा लिया जो मुझे सम्पूर्णता तक ले जाये! क्या मैं नष्टोमोहा बन गई! क्या इस देह और देह के विनाशी सम्बन्धों से मेरा ममत्व समाप्त हो गया!
➳ _ ➳ मन ही मन स्वयं से सवाल करके अपनी चेकिंग करते हुए मैं अनुभव करती हूँ कि सम्पूर्णता की उस अवस्था तक पहुँचने के लिए ब्रह्मा बाप समान बेहद की वैराग्य वृति को धारण कर मुझे नष्टोमोहा बन सबसे ममत्व निकालना ही होगा और यह तभी होगा जब मोह की रग झूठे सम्बन्धो से निकल केवल एक बाबा के साथ जुड़ी हुई होगी। *बाबा के साथ सर्व सम्बन्धो की सुखद अनुभूति ही सबसे ममत्व निकालने का आधार है*। यह संकल्प मन मे आते ही अपने प्यारे बाबा के साथ सर्व सम्बन्धों के अनुभव की सुखद यादें स्मृति में आने लगती है। *साथी, दोस्त, साजन, बाप सभी सम्बन्धो के रूप में बाबा से मिलने वाला अथाह स्नेह याद आते ही मन उनसे मिलने के लिए बेचैन हो उठता है*।
➳ _ ➳ बाबा से मिलने की लगन सेकण्ड में मुझे उनके समान विदेही स्थिति में स्थित कर देती है। आत्मिक स्मृति में स्थित होते ही स्वयं को देह और देह के हर सम्बन्ध से मैं न्यारा अनुभव करने लगती हूँ। देह, देह की दुनिया और देह से जुड़े सभी सम्बन्ध मुझे झूठे लगने लगते है। इसलिये *इन सबसे किनारा कर अपने खुदा दोस्त, साजन, साथी से मिलने के लिए मैं विदेही बन उनके धाम की ओर चल पड़ती हूँ*। आत्माओं की निराकारी दुनिया जहाँ यह नश्वर देह और देह से जुड़ी किसी भी वस्तु का कोई संकल्प भी मन मे नही उठता। *ऐसे अथाह शान्ति से भरपूर अपने शिव पिता के धाम शान्तिधाम में मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ। यहाँ पहुंचते ही गहन शान्ति की अनुभूति मुझ आत्मा को तृप्त और सन्तुष्ट कर देती है*।
➳ _ ➳ शान्ति की इस दुनिया में, शान्ति के सागर अपने शिव साथी की सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ शान्ति की गहन अनुभूति करने के बाद मैं आत्मा उनके बिल्कुल समीप पहुँच कर उन्हें टच करती हूँ। *टच करते ही सर्वशक्तियों की रंग बिरंगी किरणो का फव्वारा पूरे वेग से मुझ आत्मा पर प्रवाहित होने लगता है। सर्वशक्तियों के फव्वारे से आ रही शीतल फुहारें मुझ आत्मा के ऊपर पड़ते ही मुझे शीतलता की अति सुखद अनुभूति से सरोबार कर देती हैं*। अतींद्रिय सुख की अनुभूति में मैं डूब जाती हूँ । गहन सुखमय स्थिति का अनुभव करके, बाबा की सर्वशक्तियों को स्वयं में समाहित कर, शक्तिशाली बन कर अब मैं उनसे विदाई ले कर कर्म करने के लिए वापिस कर्मभूमि पर लौट आती हूँ।
➳ _ ➳ अपने कर्मक्षेत्र पर आकर, शरीर रूपी रथ पर विराजमान हो कर, मैं ब्राह्मण आत्मा अब कर्मेन्द्रियों से हर कर्म करते इस बात को सदैव स्मृति में रखती हूँ कि इन आँखों से दिखाई देने वाली हर चीज अब समाप्त होने वाली है। *मौत सिर पर है। यह स्मृति मेरे अंदर वैराग्य की भावना उतपन्न कर, सबसे ममत्व निकालने में मुझे सहयोग दे रही है। देह और देह के सम्बन्धों से मैं अब सहज ही नष्टोमोहा बनती जा रही हूँ*। अब मेरे सर्व सम्बन्ध केवल एक बाबा के साथ हैं। मेरे हर संकल्प, हर बोल और हर कर्म में केवल बाबा की याद समाई है। *बाबा की स्वर्णिम किरणों का छत्र निरन्तर अपने ऊपर अनुभव करते हुए, सबसे ममत्व निकाल, अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति में अब मैं सदैव मगन रहती हूँ*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं हर घड़ी को अंतिम घड़ी समझ सदा एवर रेडी रहने वाली तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को स्वमान में स्थित करने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं एडजस्ट होने की शक्ति को बढ़ाकर नाजुक समय पर पास विद ऑनर बनने वाली आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ स्मृतियों में टिकाये रखने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *बापदादा ने पहले भी कहा है - रोज अमृतवेले अपने आपको तीन बिन्दियों की स्मृति का तिलक लगाओ तो एक खजाना भी व्यर्थ नहीं जायेगा। हर समय, हर खजाना जमा होता जायेगा।* बापदादा ने सभी बच्चों के हर खजाने के जमा का चार्ट देखा। उसमें क्या देखा? अभी तक भी जमा का खाता जितना होना चाहिए उतना नहीं है। समय, संकल्प, बोल व्यर्थ भी जाता है। चलते-चलते कभी समय का महत्व इमर्ज रूप में कम होता है। *अगर समय का महत्व सदा याद रहे, इमर्ज रहे तो समय को और ज्यादा सफल बना सकते हो।* सारे दिन में साधारण रूप से समय चला जाता है। गलत नहीं लेकिन साधारण। ऐसे ही संकल्प भी बुरे नहीं चलते लेकिन व्यर्थ चले जाते हैं। *एक घण्टे की चेकिंग करो, हर घण्टे में समय या संकल्प कितने साधारण जाते हैं?* जमा नहीं होते हैं। फिर बापदादा इशारा भी देता है, तो बापदादा को भी दिलासे बहुत देते हैं। बाबा, ऐसे थोड़ा सा संकल्प है बस। बाकी नहीं, संकल्प में थोड़ा चलता है।सम्पूर्ण हो जायेंगे। ठीक हो जायेंगे। अभी अन्त थोड़ेही आया है, थोड़ा समय तो पड़ा है। समय पर सम्पन्न हो जायेंगे।
➳ _ ➳ *लेकिन बापदादा ने बार-बार कह दिया है कि जमा बहुत समय का चाहिए।* ऐसे नहीं जमा का खाता अन्त में सम्पन्न करेंगे, समय आने पर बन जायेंगे! बहुत समय का जमा हुआ बहुत समय चलता है। वर्सा लेने में तो सभी कहते हैं हम तो लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। अगर हाथ उठवायेंगे कि त्रेतायुगी बनेंगे? तो कोई नहीं हाथ उठाता। और लक्ष्मी-नारायण बनेंगे? तो सभी हाथ उठाते। *अगर बहुत समय का जमा का खाता होगा तो पूरा वर्सा मिलेगा।* अगर थोड़ा-सा जमा होगा तो फुल वर्सा कैसे मिलेगा? *इसलिए सर्व खजाने को जितना जमा कर सको उतना अभी से जमा करो।* हो जायेगा, आ जायेंगे....गे गे नहीं करो। *'करना ही है' - यह है दृढ़ता।* अमृतवेले जब बैठते हैं, अच्छी स्थिति में बैठते हैं तो दिल ही दिल में बहुत वायदे करते हैं - यह करेंगे, यह करेंगे। कमाल करके दिखायेंगे... यह तो अच्छी बात है। *श्रेष्ठ संकल्प करते हैं लेकिन बापदादा कहते हैं इन सब वायदों को कर्म में लाओ।*
✺ *ड्रिल :- "अमृतवेले तीन बिन्दियों की स्मृति का तिलक लगाकर व्यर्थ वा साधारणता से मुक्त बनने का अनुभव"*
➳ _ ➳ अमृतवेला की शांतमय सुहावनी वेला में, मैं आत्मा बिन्दु आंख खुलते ही अपने ज्योति बिन्दु शिव पिता को मुस्कुराते हुए गुडमार्निंग विश करती हूँ... गुडमार्निंग प्यारे बाबा और मैं आत्मा बिन्दु बाबा रूम में जाती हूँ... और जाते ही एक निराला सीन मुख आत्मा के सामने उभरता है... *दीवार पर लगे बापदादा के चित्र से लाइट निकल कर सामने राइट साइड पर लगे सृष्टि चक्र पर पड़ रही हैं...* मैं आत्मा बिन्दु बड़े ध्यान से इस दृश्य को देख रही हूँ... अचानक से सृष्टि चक्र का चित्र बड़ा हो जाता है... और हाइलाइट होकर और ऊभर कर सामने आ गया है... *3 डी व्यू की तरह यह सामने आ गया है...* ये चित्र बेहद स्पष्ट नजर आ रहा हैं... *और देखते ही देखते ये काल चक्र ( समय चक्र ) जिसे चार भागों में विभाजित किया है, घूमने लगता हैं...* इस समय चक्र के बीच लगी घड़ी के समान सुईयां धीरे-धीरे चलने लगती है...
➳ _ ➳ ये सुईयां सृष्टि चक्र के शुरू सतयुग से चलना शुरु होती है... और त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलियुग के अन्तिम चरण संगमयुग में पहुँच जाती हैं... जैसे ही इस काल चक्र की सुईयां संगमयुग में पहुँचती हैं... उसी पल मुझ आत्मा के सामने कुछ स्मृतियां इमर्ज होती है... *मैं कौन की स्मृति इसी संगमयुग में मिली, ये स्मृति सामने आते ही मैं आत्मा अपने असली स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ और बेहद शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ...* भृकुटि के भव्य भाल पर सितारे के समान चमक रही हूँ... इस प्रकार आत्म-स्मृति का तिलक लगाती, *मैं आत्मा स्वयं में नव उर्जा का अनुभव कर रही हूँ...* और एक दूसरी स्मृतियाँ मेरे सामने इस सृष्टि चक्र को देख इमर्ज होती है... *मुझ आत्मा के सामने, मुझ आत्मा को सत्य प्रकाश देने वाले शिव पिता की वो सभी स्मृतियाँ इमर्ज हो जाती है...* जब वो ज्ञान सूर्य मेरे जीवन में आया और उसने अज्ञान रूपी अन्धकार को मेरे जीवन से हटाया अपना बनाया... *सामने शिव ज्योति बिन्दु पिता को देख रही हूँ... उनसे आता प्रकाश मुझ आत्मा में समा रहा है... ये प्रकाश मुझे अलौकिक ईश्वरीय शक्तियों से भर रहा हैं... इस प्रकार बिन्दी बाबा की याद रुपी द्वितीय तिलक मैं आत्मा लगाती हूँ...*
➳ _ ➳ *मुझ आत्मा के सामने अब ज्योति बिन्दु पिता के द्वारा दिये इस सृष्टि चक्र के ज्ञान की सभी तस्वीरें एक-एक कर सामने आने लगती है, इमर्ज होती है...* आदि मध्य अन्त, देख रही हूँ मैं आत्मा किस प्रकार हर आत्मा इस सृष्टि चक्र ( वर्ल्ड ड्रामा ) में अपना फिक्स और एक्यूरेट पार्ट प्ले कर रही है... *देख रही हूँ मैं आत्मा इस कल्याणकारी समय चक्र को जिसकी हर सीन में कल्याण है...* इस प्रकार मैं आत्मा ड्रामा बिन्दी लगा एक निश्चित और निरप्रश्न स्थिति का अनुभव कर रही हूँ... इस समय की स्मृति के साथ और तीन बिन्दियों का तिलक लगाकर मैं आत्मा अपनी दिनचर्चा की शुरुआत करती हूँ... *मैं आत्मा हर कदम में पदमों की कमाई जमा कर रही हूँ... तीन बिन्दुओं का तिलक लगाकर हर कर्म कर रही हूँ...* और हर खजाने को सफल कर जमा का खाता बढ़ा रही हूँ... और समय का महत्व हर पल इमर्ज रूप में है... *समय के महत्व को सदा सामने रख मैं आत्मा समय, संकल्प, बोल हर खजाने को सफल कर जमा का खाता बढाते नम्बर वन में आने का पुरूषार्थ कर रही हूँ... और मैंने बाबा से जो वायदे किये सब दृढ़ता से कर्म में ला रही हूं...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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