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 27 / 07 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *निरंतर एक बाप की याद में रहे ?*

 

➢➢ *"मांगने से मरना भला" - यह स्मृति में रख किसी से कुछ माँगा तो नहीं ?*

 

➢➢ *कल्याणकारी बन सबको सच्चा रास्ता बताया ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *दुःख की दुनिया से किनारा कर सुखदेवा, सुखस्वरुप स्थिति का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *सदा ख़ुशी की स्मृति बनी रही ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *विश्व कल्याणकारी अवस्था का अनुभव किया ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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➳ _ ➳  फुर्सत है तो अभी है फिर आगे नहीं होगी। जैसे लोगों को कहते ही फुर्सत मिलेगी नहीं, लेकिन फुर्सत करनी पडेगी। *समय मिलेगा नहीं लेकिन समय निकालना है।* ऐसे कहते ही ना! तो स्व-अभ्यास के लिए भी समय मिले तो करेंगे, नहीं। समय निकालना पडेगा। स्थापना के आदिकाल से एक विशेष विधि चलती आ रही है। कौन-सी? फुरी-फुरी तालाव (ढूंद-बूंद से तालाव) तो समय के लिए भी यही विधि है। जो समय मिले अभ्यास करते-करते सर्व अभ्यास स्वरूप सागर बन जायेंगे। *सेकण्ड मिले वह भी अभ्यास के लिए जमा करते जाओ, सेकण्ड सेकण्ड करते कितना हो जायेगा!* इकट्ठा करो तो आधा घण्टा भी बन जायेगा। चलते-फिरते के अभ्यासी बनो। जैसे चात्रक एक-एक बूंद के प्यासे होते हैं। *ऐसे स्व-अभ्यासी चात्रक एकएक सेकण्ड अभ्यास में लगावें तो अभ्यास स्वरूप बन ही जायेंगे।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  बाप का बनकर, बिना खर्च, सेकण्ड में जीवनमुक्ति का अधिकार पाना"*

➳ _ ➳  प्रकर्ति का खुबसूरत उपहार.. गंगा नदी के किनारे टहलते टहलते... मै आत्मा ईश्वरीय चिंतन में मगन हूँ... और अपने ज्ञान गंगा बनने के मीठे भाग्य पर पुलकित हूँ... कैसे यह साधारण जीवन ईश्वरीय हाथो में श्रेष्ठ कृति बन रहा है... इस चिंतन में, मीठे बाबा कलाकार की मीठी यादो में डूब जाती हूँ... मीठे बाबा मुझ आत्मा के यादो के पल्लू से सदा बंधे, सम्मुख हाजिर हो गए है... *अपने कौड़ी से जीवन को हीरों से सजाते देख, मै आत्मा जादूगर पिता का,भीगी पलको से शुक्रिया किये जा रही हूँ.*..
 
❉   मीठे बाबा मुझ आत्मा की ज्ञान धन से लबालब करते हुए बोले :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता को पाकर, महान भाग्य की बदौलत, *सेकण्ड में ईश्वरीय खजानो के मालिक बनते हो... और जीवन मुक्ति का वर्सा पाकर मुस्कराते हो*... सारा संसार ईश्वर के दर्शन मात्र को तरसता है... और आप सहज ही सारी दौलत को बाँहों में भरकर मुस्कराते हो..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा के ज्ञान रत्नों को अपनी झोली में समेटते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा सुख और वेभवो के पीछे भटककर सांसो को यूँ ही व्यर्थ गंवा रही थी... कि मेरे *ईश्वरीय भाग्य के जादू ने आपकी दौलत का वारिस बनाकर*... मुझे सुखो की महारानी बना दिया है..."
 
❉   मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपनी सम्पत्ति का उत्तराधिकारी बनाते हुए पुनः बोले :- "मीठे लाडले बच्चे... कितने सुंदर भाग्य से सजे हुए महान आत्मा हो... *कि बिना एक कौड़ी खर्च के विश्व की बादशाही को पाकर सच्ची मुस्कान से सजे हो*... अपने इस महान भाग्य की ख़ुशी और नशे में झूम जाओ..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा को रोम रोम से शुक्रिया कर रही हूँ और कह रही हूँ :- " मीठे मीठे बाबा मेरे... सुखो की बून्द को भी कभी तरसती मै आत्मा... *आज आपकी यादो में अनन्त सुखो की मल्लिका बन रही हूँ.*.. जनमो ईश्वर की आराधना कर रही थी... आज आपको सम्मुख पाकर अपने मीठे भाग्य पर बलिहार हूँ..."

❉   प्यारे बाबा मुझ आत्मा में मेरे मीठे भाग्य के नशे को जगाते हुए कह रहे है :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता की मीठी यादो में खोकर... असीम सुखो की जन्नत को अपना राज्य बनाओ... *अपने महानतम भाग्य के नशे में डूबे हुए ईश्वरीय खजाने को गिनते रहो..*. कहाँ दर दर भटक रहे थे, आज गोद में फूलो सा खिल रहे हो..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा खुशियो में चहकते हुए मीठे बाबा से कहती हूँ :- "प्राणप्रिय बाबा मेरे... मै आत्मा कितने तीर्थ, कितनी यात्राओ में शरीर को थकाती व्याकुल हो... आपको खोज रही थी... आप यूँ आएंगे और साथ ही जीवन मुक्ति के भाग्य से मुझे सजायेंगे... यह तो कल्पनाओ से भी परे था... " भगवान को अपनी खुशियो भरी दास्ताँ सुनाकर... मै आत्मा सृष्टि पर लौट आयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप की याद से बिगर कौड़ी खर्चा किये विश्व की बादशाही लेना*"

➳ _ ➳  लाइट की दिव्य आकारी देह धारण कर मैं आत्मा साकारी दुनिया से दूर ऊपर की और उड़ती जा रही हूँ। *पांचो तत्वों को पार करते हुए, आकाश को भी पार करके उससे भी परे मैं पहुँच जाती हूँ सफेद चांदनी के प्रकाश से प्रकाशित एक दिव्य अलौकिक दुनिया मे, जहां अव्यक्त बापदादा की दिव्य अलौकिक किरणे चारों ओर फैली हुई हैं*। देह और देह की दुनिया से अलग, सफेद प्रकाश से प्रकाशित यह दुनिया बहुत ही न्यारी और प्यारी है।

➳ _ ➳  फरिश्तो की इस दिव्य अलौकिक दुनिया मे अब मैं स्वयं को बापदादा के सम्मुख देख रही हूँ। बाबा मुझे दृष्टि दे रहें हैं। *बाबा के नयनो से अथाह स्नेह की धाराएं बह रही हैं। बाबा मुझे विजयी भव का तिलक दे रहें हैं*। अपना वरदानी हाथ बाबा ने मेरे सिर पर रख दिया। बाबा के वरदानी हस्तों से गुण और शक्तियों की किरणें निकल कर मुझ में समा रही हैं।

➳ _ ➳  परमात्म प्रेम और शक्तियों से भरपूर हो कर, बाबा के सामने बैठ अब मैं बाबा के दिव्य स्वरूप को अपलक निहार रही हूं। एकाएक बाबा के चेहरे पर अति गुह्य मुस्कराहट देख कर मैं अचंभित हो कर बाबा से सवाल करती हूं, बाबा:- "आपके चेहरे पर अचानक आई इस गुह्य मुस्कराहट में अवश्य कोई गहरा राज समाया है"। *बाबा प्रसनचित मुद्रा से मेरी ओर देखते हुए मुझ से कहते हैं, हाँ बच्चे:- "जो दृश्य मैं देख रहा हूँ वो मुझे अति हर्षित कर रहा है"*। उस दृश्य को देखने की जिज्ञासा को जैसे बाबा मेरे मन के भावों से स्पष्ट पड़ लेते है। इसलिए मुझे अपने पास बुला कर दिव्य दृष्टि से उस दृश्य का साक्षात्कार करवाते हैं जो बाबा देख रहे थे।

➳ _ ➳  मैं देख रही हूं सामने अति साधारण गरीब से दिखने वाले ब्राह्मण बच्चे जो बाबा की याद में मग्न बैठे हैं। वनवाह में रहते, उनके चेहरे दिव्य आभा से चमक रहें हैं। बाबा की याद उन्हें उस सुकून से भरपूर कर रही है जिन्हें साहूकार कभी विनाशी साधनों से प्राप्त नही कर सकते। तभी एक बहुत ही खूबसरत दृश्य मुझे दिखाई देता है। *मैं देख रही हूं बाबा की याद में मग्न, बाबा के अति साधारण गरीब से दिखने वाले उन सभी ब्राह्मण बच्चों के मस्तक पर एक दिव्य ताज सुशोभित हो रहा है*। विश्व महाराजन की ड्रेस पहने, डबल ताजधारी उन ब्राह्मण बच्चो को देख कर ऐसा लग रहा है जैसे कोई बहुत बड़ा राजदरबार हैं जिसमे राजाओ, महाराजाओ की महफ़िल लगी हुई है।

➳ _ ➳  मन को लुभाने वाले इस दृश्य को देख कर स्वत: ही मेरे चेहरे पर भी मुस्कराहट आ जाती है। *बाबा अब मुझे संबोधित करते हुए कहते हैं, समझा बच्चे:- "इस गुह्य मुस्कराहट का रहस्य"*। देखा ना कैसे बिगर कौड़ी खर्चा किये ये गरीब बच्चे बाप की याद से विश्व की बादशाही लेने का पुरुषार्थ कर रहें हैं। जी बाबा, कह कर मन ही मन मैं संकल्प करती हूं कि अब मुझे केवल बाबा की याद से विश्व की बादशाही लेने का पुरुषार्थ करना है। *मनुष्य से देवता, कौड़ी से हीरे तुल्य बनाने वाले अपने मीठे शिव बाबा की याद में रह कर अब मुझे अपनी हर श्वांस को सफल करना है*।

➳ _ ➳  इसी दृढ़ संकल्प के साथ, लाइट की सूक्ष्म आकारी देह सहित मैं आत्मा अपने प्यारे, मीठे बाबा की यादों को अपने साथ लिए जागती ज्योत बन लौट रही हूं वापिस अपने साकारी तन में। *पांच तत्वों की बनी साकारी देह में विराजमान हो कर अब मैं हर श्वांस में अपने शिव पिता की याद को समाये, बिगर कौड़ी खर्चा किये अपने जीवन को हीरे तुल्य बना कर विश्व की बादशाही प्राप्त कर रही हूं*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा दुःख की दुनिया से किनारा कर सुखदेवा बनती हूँ।"*

 

 _ ➳  मैं संगमयुगी आत्मा... सुख के सागर शिव पिता से कम्बाइंड हो... पल-पल सुख का अनुभव कर रही हूँ... मेरा चित्त शान्त हो गया... परमात्मा से मिली श्रीमत... *सुख दो और सुख लो... न दुःख देना न दुःख लेना...* सदा के लिए पक्का कर... मैं आत्मा मन, वचन, कर्म से सब को सुख दे रही हूँ... कैसी भी आत्मा हो... रहम दिल बन सर्व के प्रति श्रेष्ठ व शुभ भावना रखती हूँ... भाई-भाई की आत्मिक दृष्टि रख... सबको सहयोग... हिम्मत दे आगे बढ़ती हूँ... स्वयं संतुष्ट रह... औरों को संतुष्ट कर... सब से दुआएं पा... दुआएं देते जाती हूँ... पूर्वज आत्मा बन सबको सुख-शान्ति से भरपूर करती हूँ... *सुखदेवा अर्थात् सम्पूर्ण पवित्र... मन्सा मे भी दुःख की फीलिंग नहीं... सदा सभी को कुछ न कुछ देना... संकल्प लेने का नहीं*... सदा स्मृति में रखती हूँ कि अब किसी को न दुःख देना है... न लेना है... मैं आत्मा दुःख की दुनिया से किनारा कर... सदा के लिए सुख सागर की छत्रछाया में रहकर... मास्टर सुखदेवा बन सबको... देती जा रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  सदा ख़ुशी की स्मृति द्वारा अपनी स्थिति बनाये रखने का अनुभव करना"* 

➳ _ ➳  मैं ब्रह्मामुख वंशावली ब्राह्मण आत्मा हूँ... मैं ब्राह्मण आत्मा ज्ञान के खजानों से भरपूर हूँ... बाबा से प्राप्त ज्ञान रत्न सदा मेरी स्मृति में रहते हैं... मैं आत्मा सदा ज्ञान डांस करती रहती हूँ... जिससे मेरे ख़ुशी की स्मृति का स्विच सदा ओन रहता हैं... ये ख़ुशी की स्मृति ही मेरी स्थिति का आधार बनती है... *सदा अपने स्वभाव और संस्कारों पर अटेन्शन रख... ज्ञान के एक-एक पॉइंट को स्वयं में धारण करती हूँ...* सदा स्वमान की प्रेक्टिस और सतत् बाबा की याद ने मेरी सदा की मजबूत स्थिति का निर्माण किया हैं... हर परिस्थिति में मेरी ख़ुशी की स्मृति बनी ही रहती है... इससे मैं आत्मा अचल-अडोल रह... ऊंच स्थिति में स्थित रहती हूँ... मैं आत्मा मालिक सदा ही अपनी कर्मेन्द्रियों की लगाम अपने हाथों में रख... श्रेष्ठ कर्म कर... अपने अकलतख्त पर सदैव विराजमान रहती हूँ... *मैं कौन और मेरा कौन?... ये स्मृति मेरे जेहन में गहरी समाई हुई हैं...* मैं आत्मा सदा नारायणी नशे में मदमस्त हूँ...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *सर्वंश त्यागी सदा अपने को हर श्रेष्ठ कार्य के - सेवा की सफलता के कार्य मेंब्राह्मण आत्माओं की उन्नति के कार्य मेंकमज़ोरी वा व्यर्थ वातावरण को बदलने के कार्य में जिम्मेवार आत्मा समझेंगे।* सेवा में विघ्न बनने के कारण वा सम्बन्घ सम्पर्क में कोई भी नम्बरवार आत्माओं के कारण जरा भी हलचल होती है, तो *सर्वंन्श त्यागी बेहद के आधारमूर्त समझचारों ओर की हलचल को अचल बनाने की जिम्मेवारी समझेंगे।* ऐसे बेहद की उन्नति के आधार मूर्त सदा स्वयं को अनुभव करेंगे। ऐसा नहीं कि यह तो इस स्थान की बात है या इस बहन वा भाई की बात है। नहीं। ‘मेरा परिवार है'। मैं कल्याणकारी निमित्त आत्मा हूँ। टाइटल विश्व-कल्याणकारी का मिला हुआ हैं न कि सिर्फ स्व-कल्याणकारी वा अपने सेन्टर के कल्याणकारी। दूसरे की कमज़ोरी अर्थात् अपने परिवार की कमज़ोरी हैऐसे बेहद के निमित्त आत्मा समझेंगे। मैं-पन नहींनिमित्त मात्र हैं अर्थात् विश्व-कल्याण के आधारमूर्त बेहद के कार्य के आधारमूर्त हैं। *सर्वंश त्यागी सदा एकरस, एक मत, एक ही परिवार का एक ही कार्य है - सदा ऐसे एक ही स्मृति में नम्बर एक आत्मा होंगे।*

 

 ✺   *"ड्रिल :- विश्व कल्याणकारी अवस्था का अनुभव करना।"*

 

_ ➳  भक्ति मार्ग की मैं भक्त आत्मा... अपनी ही उलझन में उलझी... अपने ही दुःखों में डूबी... *अपनी ही विपरीत परिस्थितिओं को सुलझाने में खुद ही उलझ पड़ती मैं आत्मा... न अपना उद्धार कर पा रही थी और न ही औरों का...* भगवान को दर दर ढूंढती मैं आत्मा... सोचती थी मैं भगवान की पक्की भक्त फिर भी भगवान आ नहीं रहे हैं तो समस्त विश्व में मेरे जैसे कितने दुःखी... अशांत आत्मायें हैं जो भगवान को पुकार रहे हैं... *क्या भगवान को सुनाई नहीं दे रहा हैं... समस्त लोक के दुःखी... अशांत... आत्माओं की पुकार...* एक ही संकल्प मन में मुझ भक्त आत्मा में चलता रहता था कि मैं इन समस्त आत्माओं के लियें कुछ भी नहीं कर पा रही हूँ... बस देखती... सुनती रहती हूँ... और *मन ही मन भगवान को पुकारती रहती हूँ... अब तो आ जाओ...* और कितना पाप का घड़ा भरना बाक़ी हैं... अब तो अत्याचार की पराकाष्ठा हो गईं भगवान... अब तो आ जाओ...

 

_ ➳  और मैं भक्त आत्मा... भगवान को खोजती पहुँच जाती हूँ ब्रह्माकुमारी के सेंटर पर... *जहाँ सच्चा गीता ज्ञान मिला... मैं कौन... मेरा कौन... भगवान कौन की पहचान मिली...* और मन की आँखे खुल गई जब भगवान के अवतरण को प्रत्यक्ष महसूस किया... भगवान मेरे पिता शिवबाबा हैं... उनकी शक्तियों और प्यार की मैं हक़दार बच्ची हूँ... *यही वह संगमयुग हैं जब भगवान स्वयं अपना धाम छोड़ कर इस पतित दुनिया में आते हैं... अपने भक्तों को भक्ति का फल देने... अपने बच्चों को वर्सा देने आते हैं...* अपने बच्चों को अपनी ही शक्तियों से अवगत कराने आते हैं... अपने ही संस्कारों से परिपूर्ण कराने आते हैं... और मैं आत्मा बापदादा की शक्तियों की अधिकारी बन गई... अपने आप में सर्व शक्तियों से भरपूर हो गई... खुद के ही दुःखों की जंजीरों में बंधी मैं आत्मा... *बापदादा के प्यार भरी मुरली रूपी शिक्षाओं से दुःखों से मुक्त हो गई...*

 

_ ➳  और मैं आत्मा हद के बंधनों से निकल कर पहुँच जाती हूँ बेहद के त्यागी... तपस्वी जीवन में... *मैं आत्मा सदा स्वयं को बेहद की उन्नति की आधार मूर्त अनुभव करती हूँ...* समस्त ब्रह्माण्ड मेरा परिवार है... और सभी आत्माओं की मैं पूर्वज... विश्व-कल्याणकारी आत्मा हूँ... दाता की बच्ची मैं दातापन के संस्कारों को अपने में उजागर करती हूँ... *मेरेपन की त्यागी मैं आत्मा बापदादा की लाडली बच्ची बन समस्त ब्रह्माण्ड में बापदादा के शांति रूपी किरणों को फैलाने में संगमयुग के क्षणों को व्यतीत करती जा रही हूँ...* दैवीय संस्कारों का आह्वान कर... सभी आत्माओं की मनोकामनाएं पूर्ण करती जा रही हूँ...

 

_ ➳  *हर पल बापदादा से बातें करती... बापदादा को साथ साथ महसूस करती... बापदादा के संग संग चलती मैं आत्मा... प्रत्यक्ष बापदादा को अनुभव करती रहती हूँ...*  उनके आशीर्वादों रूपी शक्तियों को अपने में धारण कर समस्त ब्रह्माण्ड में फैलाती जा रही हूँ... बापदादा के साथ साथ सभी अशांत... दुःखी... आत्माओं को शांति... पवित्रता के वाइब्रेशन से भरपूर करती जा रही हूँ... बापदादा के साथ फ़रिश्ता ड्रैस में सज मैं आत्मा... पूरे ब्रह्माण्ड में लाइट माइट हाउस बन शक्तियों रूपी लाइट से प्रकाशित करती जा रही हूँ... *विश्व-कल्याणकारी के स्टेज पर विराजमान मैं आत्मा... चारों ओर की हलचल को अचल बनाने की जिम्मेवारी बापदादा के साथ साथ निभाती जा रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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