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❍ 24 / 10 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *अवयभिचारी याद में रहे ?*
➢➢ *इस झूठखंड को बुधी से भूलने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *बाप का पूरा पूरा मददगार बनकर रहे ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *देह, देह के सम्बन्ध और पदार्थो के बंधन से मुक्त रहे ?*
➢➢ *रूहानी स्नेह की संपत्ति एकत्रित की ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ *सारे दिन में भिन-भिन्न स्थितियों का अनुभव करो।* कभी फरिश्ते स्थिति का, तो कभी लाइट हाऊस, माइट हाऊस स्थिति का, कभी प्यार स्वरूप स्थिति अर्थात लवलीन स्थिति के आसन पर बैठ जाओ और अनुभव करते रहो।
〰✧ इतना अनुभवी बन जाओ, *बस संकल्प किया फरिश्ता, सेकण्ड में स्थिति हो जाओ।* ऐसे नहीं, मेहनत करनी पडे। सोचते रहो मैं फरिश्ता हूँ और बार-बार नीचे आ जाओ। ऐसी प्रैक्टिस है?
संकल्प किया और अनुभव हुआ।
〰✧ जैसे स्थूल में जहाँ चाहते हो बैठ जाते हो ना। सोचा और बैठा कि युद्ध करनी पडती है - बैठें या न बैदूँ? तो यह मन-बुद्धि की बैठक भी ऐसी इजी होनी चाहिए। *जब चाहो तब टिक जाओ। इसको कहा जाता है - राजयोगी राजा।*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- भारत को पवित्र बनाने की सेवा पर रहना"*
➳ _ ➳ जब मै आत्मा देह की मिटटी में गहरे धँसी थी तो... विकारो की बदबू से सनी थी... मेरे तपते जीवन में दूर दूर तक सुखो की कोई छाया नही थी... कि *भाग्य ने अचानक परमात्म हाथो को मेरे जीवन की छत्रछाया बनाकर,मेरे ऊपर सजा दिया... मेरा विकारी जीवन गुणो की सुगन्ध में बदल गया... ईश्वरीय यादो में पोर पोर खुशबु से खिल गया..*. अंग अंग से पवित्रता छलकने लगी... आज तन और मन पावन बनकर.. पांचो तत्वों को, इस विश्व धरा को, पावन तरंगो से सिंचित करने लगे है... *यह कितनी प्यारी जादूगरी ईश्वर पिता ने मेरे जीवन पर दिखाई है.*.. उस जादूगर बाबा को अपनी पावनता का दिल से... धन्यवाद करने मै आत्मा... बढ़ चलती हूँ मीठे बाबा के कमरे की ओर....
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी शक्तियाँ देकर रूहानी सोशल वर्कर बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... सतगुरु पिता से मिलकर जो शक्तियो और गुणो का प्रतीक बनकर मुस्करा रहे हो... यह दौलत सबके दिलो में उंडेल आओ... *भारत को अपनी पावन किरणों से भरकर, पावनता और महानता का प्रतीक बनाओ.*.. सब आत्माओ के दुखो को दूर करने वाले... और सच्चे सुखो से जीवन को सजाने वाले... रूहानी सेवाधारी बनकर, बापदादा के दिल तख्त पर मुस्कराओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के प्यार के रंग में रंगकर प्रेम स्वरूप बनकर कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा मेरे...मै आत्मा आपसे पाये असीम खजाने पूरे विश्व पर बिखेर रही हूँ... और सबके आँगन में सच्ची खुशियो के फूल खिला रही हूँ... *सदा हँसती, मुस्कराती और खुशियो की बहारो को लुटाती... राह में आने वाले सारे विघ्नो को खत्म कर... सबका जीवन आप समान प्यारा बनाती जा रही हूँ.*.."
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को विश्व का कल्याण करने के लिए पावनता से सजाकर कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे...ईश्वर पिता के मददगार बनने वाले कितने महान भाग्यशाली हो... कि भारत को पावन बनाने में दिल जान से मीठे बाबा के साथी बने हो... सदा इस मीठे नशे से भरकर, ईश्वरीय दिल पर इतराओ... *भारत को पवित्र बनाने की सेवा कर, आने वाली सारी मुश्किलो को अपनी शक्तियो से दूर कर... उमंग उत्साह के पंखो से सदा खुशियो के आसमाँ में उड़ते रहो.*.."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा से पवित्रता की किरणे लेकर मा सागर बनकर कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा...मै आत्मा कभी खुद के वजूद को भूली थी... आज आपसे मिलकर भारत को पवित्रता से सजाने आप संग चल पड़ी हूँ... यह कितनी प्यारी जादूगरी है... यह कितना प्यारा मेरा भाग्य है... कि मै आत्मा *हर दिल को सच्चे आनन्द. प्रेम से भरकर, खुशियो से सजी खुबसूरत सतयुगी दुनिया में देवताओ सा सजा देख रही हूँ.*..
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी सारी खानों का मालिक बनाकर कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... मीठे बाबा ने जिन सच्ची खुशियो दिव्यता और पवित्रता... से आपको श्रंगारित किया है...आप इस श्रंगार से पूरे विश्व को सजाओ... पतित हो गए भारत को पुनः इसकी दिव्यता से भरपूर करो... और *देवताओ वाली सुंदर सतयुगी दुनिया इस धरा पर पुनः लाओ.... सदा खुशियो में चहकते हुए, इस ईश्वरीय सेवा में.अपना भाग्य बनाओ.*.."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा की बाँहों में महानता से सज संवर कर कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे...मै आत्मा आपकी यादो में गहरे डूबकर, आज इस कदर महान बन गयी हूँ कि दिव्य गुणो से हर मन को सजा रही हूँ... *आपकी यादो भरी पवित्रता की चुनरी, हर दिल को ओढ़ा रही हूँ... और आपकी यादो के श्रंगार से देवताई सौंदर्य से दिलवा रही हूँ.*.. सच्ची सेवाधारी बनकर सबको खुशनुमा जीवन की अधिकारी बना रही हूँ..."मीठे बाबा को दिल की भावनाये अर्पित कर, सच्ची सेवा का व्रत लेकर... मै आत्मा धरा पर लौट आयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अल्फ और बे को याद करने की सिम्पल पढ़ाई पढ़नी और पढ़ानी है*"
➳ _ ➳ *मनमनाभव के महामन्त्र को स्मृति में लाकर अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में मैं जैसे ही स्थित होती हूँ मुझे अपनी ईश्वरीय पढ़ाई, पढ़ाने वाले अल्फ अर्थात अपने परम शिक्षक शिव बाबा और बे अर्थात इस मोस्ट वैल्युबुल पढ़ाई से मिलने वाली सतयुग की बादशाही भी स्वत: ही स्मृति में आने लगती है*। मन मे विचार चलता है कि लौकिक रीति से विद्यार्थी अल्प काल के उंच विनाशी पद को पाने के लिए कितनी मुश्किल पढ़ाई पड़ते हैं। कैसे रात - दिन एक कर देते है। सिवाय पढ़ाई के उन्हें और कुछ सूझता नही। कितनी मेहनत करते है किंतु फिर भी प्राप्ति अल्प काल के लिए ही होती है।
➳ _ ➳ यहाँ तो अल्फ और बे को याद करने की कितनी सिम्पल पढ़ाई है और प्राप्ति जन्म - जन्म की है। *मन ही मन मैं अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करती हूँ कि "वाह रे मैं खुशनसीब आत्मा" जो स्वयं भगवान शिक्षक बन मुझे इतनी सिम्पल पढ़ाई पढ़ा कर जन्म जन्मान्तर के लिए मेरा भाग्य बनाने आये हैं*। ऐसे भगवान बाप, टीचर, सतगुरु पर मुझे कितना ना बलिहार जाना चाहिए। मन में यह संकल्प आते ही अपने परम शिक्षक को मिलने के लिए मन बेचैन हो उठता है।
➳ _ ➳ अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर मैं चल पड़ती हूँ अपने परम शिक्षक शिव बाबा के पास उनसे ज्ञान के अथाह खजाने लेने ताकि स्वयं को भरपूर कर, इस ईश्वरीय पढ़ाई को अच्छी रीति पढ़ कर औरों को भी पढ़ा सकूँ। *अति तीव्र वेग से उड़ता हुआ मैं फ़रिशता सेकण्ड में साकारी दुनिया को पार कर, सूक्ष्म लोक में प्रवेश करता हूँ*। अपने सामने अपने परम शिक्षक शिव बाबा को ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में मैं स्पष्ट देख रही हूँ। बापदादा बड़े प्यार से मन्द - मन्द मुस्कराते हुए अपने नयनो से मुझे निहार रहे हैं। *बाबा की भृकुटि से बहुत तेज प्रकाश निकल कर सीधा मुझ फ़रिश्ते पर पड़ रहा है। यह प्रकाश स्नेह की मजबूत डोर बन कर मुझे अपनी और खींच रहा है*।
➳ _ ➳ बाबा के स्नेह की डोर से बंधा मैं फ़रिशता अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित हो कर बाबा के सामने जा कर बैठ जाता हूँ। बाबा ज्ञान के अथाह खजाने मुझ पर लुटा रहें हैं। *मेरी बुद्धि रूपी झोली को अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर कर रहें हैं*। अल्फ और बे को याद करने की अति सिम्पल पढ़ाई पढ़ा कर अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख कर, बाबा मुझे इस पढ़ाई को अच्छी रीति पढ़ने और दूसरों को पढ़ाने का वरदान दे रहें हैं।
➳ _ ➳ *ज्ञान के अखुट खजानों से अपनी बुद्धि रूपी झोली को भरपूर करके, अपने फ़रिशता स्वरूप को सूक्ष्म लोक में छोड़, अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं आत्मा ज्ञान सूर्य शिव बाबा के पास उनके धाम पहुँच जाती हूँ* और जा कर अपने परमशिक्षक ज्ञानसूर्य शिव बाबा की सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया में बैठ जाती हूँ। ज्ञान की अनन्त किरणों से स्वयं को भरपूर करके मैं वापिस साकारी दुनिया की ओर प्रस्थान करती हूँ और जा कर अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप को सदा स्मृति में रख अब मैं अल्फ और बे को याद करने की इस अति सिम्पल पढ़ाई को अच्छी रीति पढ़ने और औरों को पढ़ाने की सेवा में लगी रहती हूँ। *हर रोज अपनी झोली अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरकर, वरदानीमूर्त बन अपने सम्बन्ध - सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को अपने मुख से ज्ञान रत्नों का दान दे कर उन्हें भी अल्फ और बे को याद करने की यह सिम्पल पढ़ाई पढ़ने और उंच प्रालब्ध बनाने के लिए प्रेरित करती रहती हूँ*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा देह, देह के सम्बन्ध और पदार्थों के बंधन से मुक्त फ़रिश्ता हूं।*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा लाइट माइट फ़रिश्ता हूं... सूक्ष्म काया में भी चमकीला और कर्मों से भी चमकीला हूं...* देह के सम्बन्धों से मुक्त हूं... लगाव, झुकाव, पदार्थों के बंधन से भी मुक्त... *मैं उन्मुक्त फ़रिश्ता हूँ... कोई कर्मों का बंधन यानी कर्मबन्धन नहीं...* कार्य करने के लिये मैं केवल कर्मेन्द्रियों के संपर्क में आता... एकदम हल्का... किसी से कोई बैर भाव नहीं, *सदा उड़ते हुए देह के दुनियावी रिश्तों से दूर...* मैं आत्मा अपने फ़रिश्ता स्वरूप में एकदम न्यारी और प्यारी हूँ... *मुझ फ़रिश्ते को ना पुरानी देह, ना देह के संबंधों से कोई लगाव या झुकाव नहीं है...* सतही रूप में सब से जुड़ कर, केवल कार्य के लिए संबंध संपर्क में आते... *मैं आत्मा जीवन्मुक्त फ़रिश्ता स्थिति में रहती हूं...*
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- स्नेही स्वरूप का अनुभव"*
➳ _ ➳ स्नेह सागर की संतान... मैं आत्मा... मास्टर स्नेह सागर हूं... रूहानी स्नेह से भरपूर... *रूहानी स्नेह की धनी... मैं आत्मा... बाप समान ममतामई हूं...* सुहावने संगम पर... शिव पिता के स्नेह की छत्रछाया में... मैं आत्मा... बेहद स्नेह के झूले में झूल रही हूं... अतींद्रिय सुख से भरपूर हूं... अखुट स्नेह की धनी... मैं सर्व पर स्नेह लुटाती जाती हूं... *न्यारा पन का महामंत्र... मुझ आत्मा को ईश्वरीय स्नेह से भरपूर किए हैं...* अब मुझ आत्मा के जीवन में दुख का कोई नाम निशान नहीं रहा... *परमातम स्नेह के आगे जैसे सर्व दुख किनारा किए हुए हैं... पुराने संस्कार स्वभाव सहज परिवर्तित हो गए हैं...* सब सहज प्रतीत हो रहा हैं... परमात्म स्नेह में सर्व कार्य जैसे हुए ही पड़े हैं... मैं आत्मा अनुभवी बन गई हूं...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बापदादा एक बात का फिर से अटेन्शन दिला रहे हैं कि *वर्तमान वायुमण्डल के अनुसार मन में, दिल से अभी वैराग्य वृत्ति को इमर्ज करो।* बापदादा ने हर बच्चे को चाहे प्रवृत्ति में है, चाहे सेवाकेन्द्र पर है, चाहे कहाँ भी रहते हैं, स्थूल साधन हर एक को दिये हैं, ऐसा कोई बच्चा नहीं है जिसके पास खाना, पीना, रहना इसके साधन नहीं हो। जो बेहद के वैराग्य की वृत्ति में रहते हुए आवश्यक साधन चाहिए, वह सबके पास हैं। अगर कोई को कमी है तो वह उसके अपने अलबेले-पन या आलस्य के कारण है। बाकी ड्रामानुसार बापदादा जानते हैं कि आवश्यक साधन सबके पास हैं। जो आवश्यक साधन हैं वह तो चलने ही हैं। लेकिन कहाँ-कहाँ आवश्यकता से भी ज्यादा साधन हैं। साधना कम है और साधन का प्रयोग करना या कराना ज्यादा है। इसलिए *बापदादा आज बाप समान बनने के दिवस पर विशेष अन्डरलाइन करा रहे हैं - कि साधनों के प्रयोग का अनुभव बहुत किया, जो किया वह भी बहुत अच्छा किया, अब साधना को बढ़ाना अर्थात् बेहद की वैराग्य वृत्ति को लाना।*
➳ _ ➳ ब्रह्मा बाप को देखा लास्ट घड़ी तक बच्चों को साधन बहुत दिये लेकिन स्वयं साधनों के प्रयोग से दूर रहे। *होते हुए दूर रहना - उसे कहेंगे वैराग्य।* लेकिन कुछ है ही नहीं और कहे कि हमको तो वैराग्य है, हम तो हैं ही वैरागी, तो वह कैसे होगा। वह तो बात ही अलग है। सब कुछ होते हुए नालेज और *विश्व कल्याण की भावना से, बाप को, स्वयं को प्रत्यक्ष करने की भावना से अभी साधनों के बजाए बेहद की वैराग्य वृत्ति हो।* जैसे स्थापना के आदि में साधन कम नहीं थे, लेकिन बेहद के वैराग्य वृत्ति की भट्ठी में पड़े हुए थे। यह 14 वर्ष जो तपस्या की, यह बेहद के वैराग्य वृत्ति का वायुमण्डल था। बापदादा ने अभी साधन बहुत दिये हैं, साधनों की अभी कोई कमी नहीं है लेकिन होते हुए बेहद का वैराग्य हो। विश्व की आत्माओं के कल्याण के प्रति भी इस समय इस विधि की आवश्यकता है क्योंकि चारों ओर इच्छायें बढ़ रही हैं, इच्छाओं के वश आत्मायें परेशान हैं, चाहे पदमपति भी हैं लेकिन इच्छाओं से वह भी परेशान हैं। *वायुमण्डल में आत्माओं की परेशानी का विशेष कारण यह हद की इच्छायें हैं। अब आप अपने बेहद की वैराग्य वृत्ति द्वारा उन आत्माओं में भी वैराग्य वृत्ति फैलाओ।* आपके वैराग्य वृत्ति के वायुमण्डल के बिना आत्मायें सुखी, शान्त बन नहीं सकती, परेशानी से छूट नहीं सकती।
✺ *ड्रिल :- "साधनों के बजाए बेहद की वैराग्य वृत्ति द्वारा साधना का वायुमण्डल चारों ओर बनाना"*
➳ _ ➳ नुमाशाम योग के समय हद के सेवाओं से, दुनियावी बातों से *मन और बुद्धि को कुछ समय के लिये हटाते हुये स्वयं को अशरीरी फरिश्ता स्वरूप में देख रही हूँ... सफेद प्रकाश के पवित्र उज्जवल पोशाक में स्वयं को निहार रही हूँ... कुछ ही समय में स्वयं को सूक्ष्मवतन में विराजित पाती हूँ...* ब्रह्माबाबा के सम्मुख जाकर बैठ जाती हूँ... बाबा की मीठी मुस्कान देख मैं फरिश्ता सुख का अनुभव कर रही हूँ... *बाबा की नज़रों से नज़र मिलाकर मैं आत्मा भाव विभोर हो रही हूँ...*
➳ _ ➳ बाबा की नज़रों ने बुद्धि में ज्ञान बिंदुओं की झड़ी लगा दी है... विश्व कल्याण की इस यज्ञ शाला में साधनों के आधार पर साधना की परिधि बडी ही सीमित है... *सम्पूर्ण विश्व की सेवा के लिए, बेहद की सेवा के लिए मन और बुद्धि में वैराग वृत्ति को इमर्ज कर साधना में लीन होने की बात बाबा की नजरों से जैसे समझ आ गई...* बाबा की नज़रों ने ज्ञान की इतनी कठिन बात को सहजता से समझा दिया है...
➳ _ ➳ देह और देह की जगत के समस्त सुख सुविधा से सम्पन्न साधनों के होते हुए भी मन और बुद्धि में वैराग वृत्ति का अनुभव, विश्व के अनेक आत्माओं के शांति व सुख की शुभभावना शुभकामना के लिए बेहद सेवा को सहज आधार प्रदान कर रहा है... *चाहे जितनी साधनों का प्रयोग हो साधना के लिए वैराग वृत्ति ही मुख्य आधार हो* - बाबा की यह शिक्षा बहुत ही सरल तरीके से मुझ आत्मा की मन और बुद्धि में समाती जा रही है... *और मैं आत्मा अपने फरिश्ता स्वरुप में स्थित हो सेकंड में बेहद के वैराग का अनुभव कर रही हूँ...*
➳ _ ➳ *ब्रह्मा बाबा समान लक्ष्य सदा नज़रों के सामने रख बाबा की ज्ञान ऊर्जा को स्वीकार करती मैं फरिश्ता परमात्मा पिता को प्रत्यक्ष करने के लिए तैयार हो रही हूँ...* स्वयं को बेहद के वैराग वृत्ति से भरपूर कर अन्य आत्माओं की हद की वृत्ति को बेहद में परिवर्तन करने की सेवा देने की अनुप्रेरणा ले रही हूँ...
➳ _ ➳ अपने बेहद की वृत्ति द्वारा सम्पूर्ण वायुमंडल को बेहद की वैराग वृत्ति से भरपूर करती मैं *अशरीरी आत्मा फरिश्ता स्वरूप में चारों दिशाओं की चक्कर लगाती हुई अनेक आत्माओं को शांति व शक्ति का अनुभव कराते हुए नीचे आ जाती हूँ... शांति सुख शक्ति की सकारात्मक ऊर्जा को वायुमंडल में भरपूर करती मैं आत्मा अशरीरी स्वरूप में हद की समस्त बातों से न्यारा सा अनुभव कर रही हूँ...* स्वयं में बेहद के वैराग की गंभीरता को गहराई में भरते हुए अनुभव कर रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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