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❍ 01 / 11 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*5=25)
➢➢ *हर काम युक्तियुक्त किया ?*
➢➢ *ज्ञान की मस्ती में रहकर बाप का शो किया ?*
➢➢ *ज्ञान की नयी और निराली बातें सिद्ध की ?*
➢➢ *मंजिल को सामने रख ब्रह्मा बाप को फॉलो किया ?*
➢➢ *अवस्था को बिगाड़ने वाली बातों को सुनते हुए भी नहीं सुना ?*
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❂ *तपस्वी जीवन प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं* ✰
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〰✧ अपने हर संकल्प को हर कार्य को अव्यक्त बल से अव्यक्त रुप द्वारा वेरीफाय कराना है। *बापदादा को अव्यक्त रुप से सदा सम्मुख और साथ रखकर हर संकल्प, हर कार्य करना है।* ‘‘साथी’’ और ‘‘साथ’’ के अनुभव से बाप समान साक्षी अर्थात् न्यारा और प्यारा बनना है।
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:- 10)
➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाये ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ तखत पर रहना अर्थात राज्य अधिकारी बनना। तो तख्त नशीन हो या कभी उतर आते हो? सदा स्मृति रखो कि - ‘मैं आत्मा तो हूँ लेकिन कौन-सी आत्मा? *राजा आत्मा, राज्य अधिकारी आत्मा हूँ, साधारण आत्मा नहीं हूँ।'*
〰✧ राज्य अधिकारी आत्मा का नशा और साधारण आत्मा का नशा - इसमें कितना फर्क होगा ! तो राजा बन अपनी राज्य कारोवार को चेक करो - कौन-सी कर्मेन्द्रिय वार-वार धोखा देती है? *अगर धोखा देती है तो उसको चेक करके अपने ऑर्डर में रखो।*
〰✧ अगर अलबेले होकर छोड देंगे तो उसकी धोखा देने की आदत और पक्की हो जायेगी और नुकसान किसको होगा? अपने को होगा ना। इसलिए क्या करना है? *अकालतखा-नशीन बन चेक करो।* (पार्टियों के साथ)
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:- 15)
➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- श्रीमत पर चल स्वच्छ, शुद्ध बन सेवा करना"*
➳ _ ➳ *‘देह की मिटटी से बड़ी दूर आओ चले हम अपने घर... चाँद, तारों से दूर इन नजारों से दूर, प्यारा प्यारा लगे है अपना घर...’ मैं आत्मा ये गीत सुनते हुए इस देह से न्यारी होती हुई... प्रकाशमय काया धारण कर... पहुँच जाती हूँ अपने प्यारे वतन...* बादलों के झूले में झूलते हुए बाबा दोनों हाथ फैलाए मुझे अपनी बाँहों में समा लेते हैं... प्यारे बाबा दिव्य वरदानों, खजानों से मुझे भरपूर कर रहे हैं...
❉ प्यारे बाबा शिक्षा देते हुए कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय राहो पर चलकर खुशनुमा फूल बन महक रहे हो...और आप समान सुगन्धित बनाने की सेवा कर रहे हो... *अपना तन मन और धन ईश्वर पिता को सौंप, विश्व को सुखो का स्वर्ग बनाने में दीवानो सा जुट गए हो...* कितना प्यारा और मीठा भाग्य है... ईश्वर पिता के मददगार बनकर, प्रेम सुख और आनन्द से भरी नई दुनिया सजा रहे हो... तुम्हे शुद्ध नशा होना चाहिए कि हम श्रीमत पर अपने ही तन मन धन से खास भारत आम सारी दुनिया को स्वर्ग... बनाने की सेवा कर रहे है..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा के बाँहों के झूले में झूलते हुए कहती हूँ:- *"हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा ईश्वर पिता का साथी बनकर, सुखो की दुनिया बसाने में सहयोगी बन रही हूँ...* ऐसा तो मीठे बाबा ख्वाबो में भी न सोचा था... आपने तो बाबा मेरा भाग्य कितना खुबसूरत बना दिया है... मै आत्मा खुशियो से भरपूर हो गई हूँ..."
❉ मीठे बाबा मीठी वाणी सुनाते हुए कहते हैं:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... श्रीमत के हाथो में हाथ देकर कितने निश्चिन्त और बेफिक्र बादशाह हो गए हो... *तन मन धन से ईश्वरीय सेवाओ में जुटकर मीठे बाबा के दिल में मुस्करा रहे हो...* आप समान सबको सुखी बना रहे हो... और भारत को अनन्त सुखो की धरा में तब्दील करने में ईश्वरीय सेवाओ में दिलोजान से लगे हो..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा के प्यार में लवलीन होकर कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा सबके जीवन को खुशियो की फुलवारी बनाने में रोम रोम से जुटी हूँ... मीठे बाबा... आपकी ऊँगली हर दिल को थमाकर, सबको आप समान खुशनसीब बनाती जा रही हूँ... *सच्चे प्यार से भरी और सुखो से सजी खुबसूरत दुनिया में हर दिल को लाती जा रही हूँ*..."
❉ प्यारे बाबा मुझे ब्लेस्सिंग्स देते हुए कहते हैं:- “मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता की फूलो सी गोद में बेठे राजयोग सीख रहे हो... और सच्ची खुशियो और सुखो से अपना दामन सजाते जा रहे हो... पूरे विश्व को खुशियो का संसार बना रहे हो... और *भारत को सतयुगी दुनिया का पर्याय बनाते जा रहे हो*... इस मीठे नशे में गहरे डूब जाओ..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा रूहानी नशे का अनुभव करते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में खुद सज संवर कर... सारे विश्व को आत्मिक सुंदरता का स्वरूप बनाती जा रही हूँ... मीठे बाबा... आपकी सेवाओ में तन मन धन से कुर्बान हूँ... और *सबके दामन में खुशियो के फूल खिलाती जा रही हूँ*..."
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- हर्षितमुख, अचल, स्थिर और ज्ञान की मस्ती में रहकर बाप का शो करना*"
➳ _ ➳ अपने शिव परम पिता परमात्मा से होने वाली प्राप्तियों को स्मृति में लाते ही चेहरे पर एक दिव्य अलौकिक मुस्कराहट स्वत: ही आ जाती है और *मन बुद्धि से मैं आत्मा उन सुंदर अनुभवों की मधुर स्मृतियों में खो जाती हूँ जो मेरे शिव पिता मुझे अक्सर करवाते रहते हैं, वो अनुभव जो मुझे अनुभवीमूर्त बना कर हर परिस्थिति में अचल और स्थिर रखते हैं*।
➳ _ ➳ ज्ञान की मस्ती में डूबी मैं आत्मा उन सुंदर सलौने अनुभवों को स्मृति में लाकर अपने दिलाराम बाबा की अति मीठी याद में खो जाती हूँ और *देह से न्यारी होकर, अपना दिव्य सतोगुणी, ज्योतिर्मय स्वरूप को धारण कर भृकुटि की कुटिया से बाहर निकल कर, ऊपर आकाश की ओर चल पड़ती हूँ*। अपने अति सुंदर, उज्ज्वल स्वरूप में, दिव्य गुणों की महक चारों और फैलाते हुए, अपने दिलाराम बाबा से मिलने की लगन में मगन मैं आत्मा ज्ञान और योग के सुंदर पंख लगा कर, निरन्तर ऊपर की ओर उड़ती जा रही हूँ।
➳ _ ➳ आनन्द से भरपूर, रूहानी अलौकिक मस्ती में डूबी मैं आत्मा हर गम से अनजान, इस देह की दुनिया के हर बन्धन से मुक्त, आजाद पँछी की भांति उन्मुक्त हो कर पूरे भू लोक का भ्रमण करते हुए, नीले गगन को पार कर, फ़रिशतो की दुनिया से भी परें, अपने घर निर्वाण धाम, में प्रवेश करती हूँ। *गहन शांति की यह दुनिया जहां किसी भी प्रकार का कोई शोर नही, ऐसे अपने शांतिधाम घर मे पहुंच कर, गहन शांति की अनुभूति में मैं खो जाती हूँ*। गहन शांति की स्थिति का यह अनुभव एक दम निराला और अनोखा है।
➳ _ ➳ गहन शांन्त चित स्थिति में स्थित मैं आत्मा अब शांति के सागर अपने शिव पिता की ओर चल पड़ती हूँ। *एक अखंड महाज्योति के रूप में मेरे शिव पिता परमात्मा अपनी सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे फैलाते हुए मेरे सामने सुशोभित हो रहें हैं*। उनके बिल्कुल समीप पहुँच कर मैं आत्मा उनके पास जा कर उनके साथ अटैच हो जाती हूँ। उनकी सर्वशक्तियाँ फुल फोर्स के साथ मेरे ऊपर बरसने लगती है और मैं आत्मा अपने शिव पिता से आ रही समस्त शक्तियों को स्वयं में गहराई तक समाने लगती हूँ।
➳ _ ➳ ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे शक्ति का एक तेज करेन्ट मेरे शिव पिता से आ रहा है और मुझ आत्मा में प्रवेश कर अपनी सारी ऊर्जा मेरे अन्दर प्रवाहित कर, मुझ असीम शक्तिवान बना रहा है। *मेरी खोई हुई एनर्जी वापिस लौट रही है और मैं स्वयं को बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ*। सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बन कर अब मैं अपने परमधाम घर से वापिस नीचे की ओर लौटती हूँ और सूक्ष्म लोक में प्रवेश करती हूँ। अपनी चमकीलीे फ़रिशता ड्रेस को धारण कर, अब मैं बापदादा के पास पहुँचती हूँ।
➳ _ ➳ अपना वरदानी हाथ मेरे मस्तक पर रख कर, मुझे सदा अचल और स्थिर रहने का वरदान देते हुए, अपनी लाइट माइट से बाबा मुझे भरपूर कर देते हैं। *ज्ञान के अथाह खजाने मुझ पर लुटा कर सर्व खजानों से बाबा मुझे सम्पन्न बना देते हैं*। भरपूर हो कर, अपनी फ़रिशता ड्रेस को वहीं उतार कर अपने असीम ऊर्जावान, अचल, स्थिर और ज्ञानवान निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप को धारण कर, अब मैं आत्मा सूक्ष्म वतन से नीचे साकारी दुनिया की ओर प्रस्थान करती हूँ और पाँच तत्वों के बने अपने साकारी तन में प्रवेश कर जाती हूँ।
➳ _ ➳ बाबा की लाइट माइट और सर्वशक्तियों से स्वयं को सदा भरपूर अनुभव करते हुए अब मैं हर परिस्थिति में सदा अचल और स्थिर रहती हूँ। *सम्पूर्ण ज्ञानवान बन, ज्ञान की मस्ती में रहते हुए, सबको इस ज्ञान से परिचित करवाकर, यह अद्भुत ज्ञान देने वाले अपने ज्ञान सागर बाप का शो करते हुए, अब मैं सबको बाप से मिलाने का रूहानी धन्धा हर समय करते हुए सदा हर्षितमुख रह, सबके जीवन में खुशियां बिखेरती रहती हूँ*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं मंझिल को सामने रख ब्रह्मा बाप को फॉलो करते हुए फर्स्ट नम्बर लेने वाली तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को स्वमान में स्थित करने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं व्यर्थ को सुनते हुए भी नहीं सुनने का अनुभव करने वाली एकरस आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ स्मृतियों में टिकाये रखने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *बापदादा एक-एक बच्चे के मस्तक में सम्पूर्ण पवित्रता की चमकती हुई मणी देखना चाहते हैं। नयनों में पवित्रता की झलक,* पवित्रता के दो नयनों के तारे, रूहानियत से चमकते हुए देखने चाहते हैं। *बोल में मधुरता*, विशेषता, अमूल्य बोल सुनने चाहते हैं। *कर्म में सन्तुष्टता, निर्माणता सदा देखना चाहते हैं। भावना में - सदा शुभ भावना और भाव में सदा आत्मिक भाव, भाई-भाई का भाव। सदा आपके मस्तक से लाइट का, फरिश्ते पन का ताज दिखाई दे*। दिखाई देने का मतलब है अनुभव हो। ऐसे सजे सजाये मूर्त देखने चाहते हैं। और ऐसी मूर्त ही श्रेष्ठ पूज्य बनेगी। *वह तो आपके जड़ चित्र बनायेंगे लेकिन बाप चैतन्य चित्र देखने चाहते हैं।*
✺ *ड्रिल :- "बापदादा के सामने सजे सजाये चैतन्य मूर्त बनने का अनुभव"*
➳ _ ➳ तारक जडित गगन की नीली चुनरिया... चुनरियाँ ओढे मधुबन की पावन सी ये धरनी... और उस पर लहराता पावनता का अनन्त सागर... सागर में छिपे एक से एक बहुमूल्य रत्न... और शान्ति स्तम्भ रूपी वो लाईट हाऊस... जो तूफानों से घिरी कश्तियों का मार्ग दर्शक बन गया है... *मैं आत्मा बैठ गयी हूँ देह रूपी कश्ती सहित, इस लाईट हाऊस के सामने...* और भरपूर होती जा रही हूँ... *पावनता से, मधुरता से, सन्तुष्टता से*... मैं आत्मा फरिश्तें रूप में तैर रही हूँ पावनता के इस सागर में... *सामने से हाऊसबोट की तरह तैरकर आती हुई कुटिया* और उसमें हाथ पकडकर, मुझे बिठाते हुए बापदादा *आनन्द से विभोर होता हुआ मैं*...
➳ _ ➳ देख रहा हूँ हाऊस बोट पर मैं दैवीय श्रृंगार की सारी सामग्री बडे करीने से सजाकर रखी है एक बडे से थाल में... और *बापदादा श्रृंगार कर रहे है किसी दिव्य मूरत का बडी तल्लीनता से... नयनों मे जडे है पावनता के दो तारें*... पावनता की उस कशिश में बंधकर मैं मानो पलके ही झपकाना भूल गया हूँ... और देखे जा रहा हूँ अपलक उस दिव्य से चैतन्य श्रृंगार की एक एक बारीकी को... *वाणी में वीणा की सरगम भरी जा रही है*... वो मिश्री सी मिठास और जादुई सी प्रेरणा से भरते रूहानी बोल... अचानक दिव्य मूरत के शालीनता से हिलते हाथ... *कर्म में सन्तुष्टता और निर्माणता का परिचय देते हुए*...
➳ _ ➳ और अब एकाएक भावों की एक दिलकश सी धारा भिगो जाती है मुझे... *शुभ भावना का ज्वार सा फूट रहा है मेरे रोम रोम से... उस शुभ भाव की धारा के मुझे छूते ही*... और अब केवल आत्मीयता का गहरा भाव शेष है वहाँ... *मैं भूल गया हूँ निज रूप को भी पलभर के लिए* और *बेहद आत्मीयता महसूस कर रहा हूँ उस दिव्य मूरत में*... और अब अन्तिम श्रृंगार के इन्तजार में... मै श्वाँस रोके देख रहा हूँ उत्सुकता से... *बापदादा ने फरिश्ते पन का ताज थमा दिया है मेरे हाथों में*... इशारा पाकर मैं ताज पहनाने आगे बढ रहा हूँ आहिस्ता आहिस्ता... *और हैरान हो गया हूँ अपनी ही हमशक्ल चैतन्य मूरत को देखकर*... बापदादा की हसरतों का परचम लहराने का वादा मन ही मन करता हुआ... पहन लेता हूँ वो ताज स्वयं ही अधिकार पूर्वक...
➳ _ ➳ *कुछ देर पहले तक मन में चल रही सभी जिज्ञासाओं का समाधान पा लिया है मैने... वो मैं ही हूँ जिसे बापदादा अकेले में और मेले में हर समय श्रृंगारते हैं*... और मूरत की जगह चैतन्य मूरत बनकर खडा हो गया हूँ मैं... अपनी वरदानी दृष्टि से मुझे भरपूर करते बापदादा... और *सजी सजायी चैतन्य मूरत का गहराई से अनुभव करता मैं*... देर तक बापदादा से दृष्टि लेकर मैं लौट आया हूँ अपनी देह रूपी कश्ती में... पावनता के उस सागर को कश्ती में समेटने का मजबूत संकल्प लिए हुए...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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