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 27 / 12 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *याद की गुप्त मेहनत की ?*

 

➢➢ *एकांत में पढाई पडी ?*

 

➢➢ *सर्व विकारों के अंश का अभी त्याग कर सम्पूरण पवित्र अवस्था का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *हिम्मत का एक कदम रख हज़ार गुना मदद प्राप्त की ?*

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         ❂ *योगी जीवन प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं*

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✧  *आत्मिक स्थिति में रहने से चेहरा कभी गम्भीर नहीं दिखाई देगा। गम्भीर बनना अच्छा है लेकिन टूमच गम्भीर नहीं। चेहरा सदा मुस्कराता रहे।* जैसे आपके जड़ चित्रों को अगर सीरियस दिखाते हैं तो कहते हो आर्टिस्ट ठीक नहीं है। *ऐसे आप अगर सीरियस रहते हो तो कहेंगे इसको जीने का आर्ट नहीं आता।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ योगी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाकर योगी जीवन का अनुभव किया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं सृष्टि ड्रामा के अन्दर हीरो पार्टधारी हूँ"*

 

    सदा अपने को इस सृष्टि ड्रामा के अन्दर हीरो पार्टधारी समझकर चलते हो? *जो हीरो पार्टधारी होते हैं उनको हर कदम पर अपने ऊपर अटेन्शन रहता है, उनका हर कदम ऐसा उठता है जो सदा वाह-वाह करें, वन्समोर करें।* अगर हीरो पार्टधारी का कोई भी एक कदम नीचे ऊपर हो जाता है तो वह हीरो नहीं कहला सकता। तो आप सभी डबल हीरो हो।

 

  हीरो विशेष पार्टधारी भी हो और हीरों जैसा जीवन बनाने वाले भी। तो ऐसा अपना स्वमान अनुभव करते हो? एक है जानना और दूसरा है जानकर चलना। तो जानते हो वा जानकर चलते हो? *तो सदा अपने हीरो पार्ट को देख हर्षित रहो, वाह ड्रामा और वाह मेरा पार्ट। अगर जरा भी साधारण कर्म हुआ तो हीरो नहीं कहला सकते।*

 

  *जैसे बाप हीरो पार्टधारी है तो उनका हर कर्म गाया और पूजा जाता है, ऐसे बाप के साथ जो सहयोगी आत्मायें हैं उन्हों का भी हीरो पार्ट होने के कारण हर कर्म गायन और पूजन योग्य हो जाता है।* तो इतना नशा है या भूल जाता है? आधाकल्प तो भूले, अभी भी भूलना है क्या? अब तो याद स्वरूप बन जाओ। स्वरूप बनने के बाद कभी भूल नहीं सकते।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *स्वयं को इस स्वमान में स्थित कर अव्यक्त बापदादा से ऊपर दिए गए महावाक्यों पर आधारित रूह रिहान की ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  विदेही माना देह से न्यारा हो गया तो देह के साथ ही स्वभाव, संस्कार, कमजोरियाँ सब देह के साथ हैं, और *देह से न्यारा हो गया, तो सबसे न्यारा हो गया।* इसलिए यह ड्रिल बहुत सहयोग देगी, इसमें कन्ट्रलिंग पॉवर चाहिए। 

 

✧  मन को कन्ट्रोल कर सकें, बुद्धि को एकाग्र कर सकें। नहीं तो आदत होगी तो परेशान होते रहेंगे। *पहले एकाग्र करें, तब ही विदेही बने।* अच्छा। आप लोगों का तो 14 वर्ष किया हुआ है ना! (बाबा ने संस्कार डाल दिया है) फाउण्डेशन पक्का है। आप लोगों की तो 14 वर्ष में नेचर बन गई।

 

✧  *सेवा में कितने भी बिजी रही लेकिन कोई बहाना नहीं चलेगा कि हमको समय नहीं था।* क्योंकि बापदादा को अभी जल्दी-जल्दी 108 और 16,000 तो तैयार करने हैं। नहीं तो काम कैसे चलेगा। साथी तो चाहिए ना। तो 108 फिर 16,000, फिर 9 लाख।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बेहद के बाप से वर्सा लेना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा संगमयुग की ऊँची चोटी पर खडे होकर इस सृष्टि नाटक को देख रही हूँ...* मुझ अनादि आत्मा ने अपने घर शांतिधाम से अवतरित होकर अपने आदि स्वरुप में स्वर्णिम सतयुग में बेहद सुख, समृद्धि से संपन्न रॉयल जीवन व्यतीत किया था... मैं आत्मा अपना रॉयल पार्ट बजाते बजाते रावण की नगरी में आ पहुंची और मेरी रॉयलटी, गुण, शक्तियों को खोकर विकारों के वश होते चली गई... और अपने घर, अपने पिता को भूलकर दुखी हो गई थी... *अब मेरे प्राण प्रिय परमपिता परमात्मा इस संगम की ऊँची चोटी पर मेरे सम्मुख बैठकर स्वयं का परिचय देकर मुझे अपने साथ घर ले जाने आयें हैं... मुझे बेहद का वर्सा देने आएं हैं...*

 

   *मेरे प्यारे बेहद के बाबा मुझे बेहद के वर्से का अधिकारी बनाते हुए कहते हैं:-* मेरे मीठे बच्चे... यह खेल अब पूरा हो गया है... *यह दुखधाम कुछ समय का है... इन सांसो के रहते सच्चे पिता से अपना अधिकार ले लो...* सिवाय पिता के यह अधिकार कोई न देगा... सब खत्म हो जायेगा पर पिता के साथ की यादे अमर होकर सुखो का वर्सा दे जाएँगी...

 

_ ➳  *मैं आत्मा बेहद के बाप से बेहद के खजानों को झोली भर भरकर लूटते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा... *मीठे प्यारे बाबा को यादो में समाकर अधिकारी बन रही हूँ...* ये यादे सच्चा हक दिलाकर मुझे धनवान् बना रही है... सांसो को मै आत्मा बाबा की यादो में पिरो रही हूँ...

 

   *प्यारे बाबा भरमार सुख, शांति की दौलत की बरसात में मुझे भिगोते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे मेरे सिकीलधे बच्चे... ये बाते ये नाते ये रिश्ते ये दुनिया सब छूट जाना है... ये भुरभुरे से खोखले रिश्ते ठग जायेंगे... *इसलिए समय रहते सच्ची यादो में डूबकर पिता से सारी सम्पत्ति ले लो... और मीठे सुखो को अपने पिता से अपने नाम लिखवा लो...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा यादों की मखमली चादर ओढ़कर प्यारे बाबा की गोद में सुख पाते हुए कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा विनाश होने से पहले प्यारे बाबा से सारी जागीर अपने नाम लिखवा रही हूँ...* और मुस्कराते सुखो की मालकिन बन इतरा रही हूँ... यादो में मैंने बाबा से सब कुछ ले लिया है...

 

   *मेरे बेहद के बाबा सारे अविनाशी खजानों की वसीयत मेरे नाम करते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे मेरे लाडले बच्चे... अब और देर न करो... वक्त से पहले वक्त को जीत लो... *ईश्वर पिता पर पूरा अधिकार जमा लो... उसे अपनी यादो से सदा का खरीद लो खाली कर दो और सदा के अमीर बन जाओ...* सारे गुण और शक्तियो को लेकर विश्व के मालिक बन जाओं...

 

_ ➳  *मैं आत्मा अंतर्मन में सदा के लिए अमर ज्योति जगाकर ज्योतिर्बिंदु बाबा से कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा प्यारे बाबा से पूरा वर्सा ले रही हूँ... समय पर जाग गई हूँ... और दिल में ईश्वरीय प्रेम की लौ जगा रही हूँ... *ईश्वरीय धन को अपना धन बनाकर सदा के सुख अपने आँचल में भरवा रही हूँ...”*

 

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- योगबल से आत्मा को सतोप्रधान बना कर एकरस कर्मातीत अवस्था तक पहुंचना है*"

 

_ ➳  परमधाम में मैं आत्मा, मैं चैतन्य ज्योति, अपने महाज्योति शिव पिता के सानिध्य में बैठ उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूँ। *अपने शिव पिता के साथ मिलन मनाने का असीम सुख लेते हुए मैं एकटक उन्हें निहार रही हूँ*। पूरे पाँच हजार वर्ष उनसे अलग रहने के कारण उनसे मिलने की जो प्यास थी उस जन्म जन्मांतर की प्यास को मैं आज पूरी तरह बुझा लेना चाहती हूँ। *इसलिए मन बुद्धि रूपी नेत्रों को पूरी तरह अपने शिव पिता पर केंद्रित कर, उनके अति सुंदर मनमोहक स्वरूप को, उनकी एक - एक किरण को निहारते हुए मैं मन ही मन मगन हो रही हूँ*। उनका यह सुन्दर सलौना स्वरूप मुझे उन्हें और समीप से देखने के लिए अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।

 

_ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे मेरे शिव पिता अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैला कर मुझे अपने आगोश में लेकर, अपना सम्पूर्ण स्नेह मुझ पर बरसा कर आज मुझे तृप्त करना चाहते हैं। *अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में समाकर अब मैं चैतन्य ज्योति स्वयं को अपने महाज्योति शिव पिता के अति समीप देख रही हूँ*। इतना समीप कि ऐसा लग रहा है जैसे मैं ज्योति, महाज्योति में समा कर उनका ही स्वरूप बन गई हूँ। बाबा से आ रही सर्वशक्तियाँ ऐसे लग रही हैं जैसे बहुत तेज अग्नि की अनन्त धाराएं निकल रही हों।

 

_ ➳  पूरे वेग से ये धाराएं मुझ आत्मा के ऊपर निरन्तर प्रवाहित हो रही हैं। और इन धाराओं के प्रभाव से मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की खाद जल कर भस्म हो रही हैं। *63 जन्मो के विकारों की कट जो असंख्य परतों के रुप में मुझ आत्मा पर चढ़ी हुई थी वो एक - एक परत योग की अग्नि में जल कर  समाप्त हो रही है और मैं आत्मा हल्केपन का अनुभव कर रही हूँ*। अपनी सर्वशक्तियों की ज्वालास्वरूप किरणों की अग्नि से बाबा मुझ आत्मा द्वारा किये हुए एक - एक विकर्म को दग्ध कर मुझे सम्पूर्ण पावन बना रहें हैं। *मेरे सभी पुराने स्वभाव, संस्कार इस योग की अग्नि में जल कर भस्म हो रहें हैं*।

 

_ ➳  जैसे - जैसे इस योग अग्नि में मेरे पुराने स्वभाव संस्कारों का दाह संस्कार हो रहा है वैसे - वैसे मैं आत्मा फिर से अपने अनादि सतोप्रधान स्वरूप को पुनः प्राप्त कर रही हूँ। *रीयल गोल्ड के समान चमकते हुए अपने वास्तविक स्वरूप का मैं अनुभव कर रही हूँ*। मेरा अनादि स्वरूप बहुत ही प्यारा और बहुत ही आकर्षक है। कभी मैं अपने इस मनमोहक अनादि स्वरूप को और कभी अपने सामने विराजमान अपने महाज्योति शिव पिता परमात्मा के मन को लुभाने वाले अति सुंदर स्वरूप को निहारते हुए आनन्दविभोर हो रही हूँ।

 

_ ➳  रीयल गोल्ड बन कर, शक्तियों से भरपूर हो कर अब मैं आत्मा वापिस साकारी लोक में आ रही हूँ। *अपने जिस अनादि सतोप्रधान स्वरूप में मैं आत्मा पहली बार सृष्टि रूपी रंगमंच पर शरीर धारण कर पार्ट बजाने के लिए आई थी, उस सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था को पाना ही मेरे इस ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है*। इस लक्ष्य को सदैव स्मृति में रख, आत्मा को सतोप्रधान बना कर एकरस कर्मातीत अवस्था तक पहुंचने के लिये, निरन्तर बाबा की याद में रह, अब मैं योग का बल स्वयं में जमा कर रही हूँ।

 

_ ➳  *जैसे ब्रह्मा बाबा ने योगबल द्वारा एकरस कर्मातीत अवस्था बनाकर सम्पूर्ण अवस्था को प्राप्त किया। कर्म करते हुए भी कर्म के हर प्रकार के प्रभाव से निर्लिप्त न्यारी और प्यारी अवस्था मे ब्रह्मा बाबा सदैव स्थित रहे ऐसे ही फॉलो फादर कर, योगबल से आत्मा को सतोप्रधान बना कर, एकरस कर्मातीत अवस्था तक पहुँचने और सम्पूर्णता को पाने का पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सर्व विकारों के अंश का भी त्याग कर सम्पूर्ण पवित्र बनने वाली नम्बर वन विजयी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं हिम्मत का एक कदम रख हजार गुणा मदद प्राप्त करने वाली हिम्मतवान आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *मालिक हो नाराजा हो ना! स्वराज्य अधिकारी होतो आर्डर करो।* राजा तो आर्डर करता है ना! यह नही करना हैयह करना है। बस आर्डर करो। अभी-अभी देखो मन कोक्योंकि मन है मुख्य मन्त्री। तो *हे राजाअपने मन मन्त्री को सेकण्ड में आर्डर कर अशरीरीविदेही स्थिति में स्थित कर सकते होकरो आर्डर एक सेकण्ड में। (बापदादा ने 5 मिनट ड्रिल कराई)* अच्छा।

 

✺   *ड्रिल :-  "अशरीरी, विदेही स्थिति में स्थित होने का अनुभव"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा शांति स्तंभ के सामने बैठ योग तपस्या कर रही हूँ... यहां बैठते ही दिव्य शांति और रूहानियत का अनुभव हो रहा है... यहां के शक्तिशाली प्रकम्पन सहज ही देह से न्यारा, अव्यक्त स्थिति में स्थित कर रहे हैं... *मैं आत्मा अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित हूँ...  इस दिव्य भूमि पर बैठते ही ब्रह्मा बाबा के चरित्र... एक-एक करके कैमरे के चित्रों की भांति... मेरे मानस पटल पर उभरने लगे हैं*...

 

 _ ➳  शांति स्तंभ की पावन धरनी पर बैठ... मैं आत्मा स्वयं को बहुत शक्तिशाली, रूहानियत से भरपूर देख रही हूँ... *अब मुझ आत्मा का हर कदम ब्रह्मा बाप के समान हो रहा है... मैं हर संकल्प, बोल और कर्म में ब्रह्मा बाबा को फॉलो कर रही हूँ*... ब्रह्मा बाबा ने किस तरह से... आत्मिक स्थिति का अभ्यास किया... 'मैं आत्मा हूँ...', 'मैं आत्मा हूँ...' की धुन लगा दी थी... इसी प्रकार मैं आत्मा भी आत्मा का पाठ स्वयं को पक्का करा रही हूँ...

 

 _ ➳  ब्रह्मा बाबा डायरी में लिख-लिख कर अभ्यास करते थे... 'यशोदा आत्मा है...' 'यशोदा आत्मा है...' इसी प्रकार मैं आत्मा भी आत्मिक दृष्टि का अभ्यास कर रही हूँ... मेरे नैनों में, मेरे हर संकल्प में... सर्व के प्रति प्रेम, रूहानियत समाई हुई है... *मैं आत्मा देह, देह के सम्बन्धों से न्यारी होती जा रही हूँ... हर प्रकार के लगाव और आसक्तियों से परे... अपने आत्मिक स्वरुप में असीम सुख का रस पान कर रही हूँ...*

 

 _ ➳  ब्रह्मा बाबा रोज रात को कर्मेंद्रियों का दरबार लगाते थे... आत्मा राजा बन मन मंत्री को आर्डर देते थे... ऐसे ही मैं आत्मा अपनी शक्तिशाली मालिकपन की स्थिति में स्थित हूँ... *मैं आत्मा इस देह की, कर्मेंद्रियों की, मन-बुद्धि-संस्कारों की राजा हूँ... मालिक हूँ... मैं स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूँ... राजा बन सभी कर्मेंद्रियों को श्रीमत के आर्डर प्रमाण चला रही हूँ...*

 

 _ ➳  मन मेरा सबसे अच्छा मित्र है... मैं आत्मा राजा बन मन मंत्री को... आर्डर कर रही हूँ... मन तथा सभी कर्मेन्द्रियाँ मुझ स्वराज्य अधिकारी आत्मा के... डायरेक्शन को फॉलो कर रही हैं... *मैं आत्मा अपनी शक्तिशाली स्थिति में स्थित हूँ... जब चाहूँ, जैसे चाहूँ, जितना समय चाहूँ... उसी स्थिति में स्वयं को स्थित कर सकती हूँ... मेरा मन सुमन बन गया है... मैं अशरीरी, विदेही आत्मा हूँ... अपनी इस निराकार स्थिति के... सुंदर, दिव्य अनुभवों में समाई हुई हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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