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❍ 04 / 01 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 2*5=10)
➢➢ *रावण की मत को छोड़ एक बाप की श्रीमत पर चले ?*
➢➢ *इस दुःखधाम को भूल, अपने स्वीट होम, शांतिधाम को याद किया ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:3*10=30)
➢➢ *यथार्थ याद और सेवा का डबल लॉक लगाया ?*
➢➢ *स्नेह और शक्ति के बैलेंस से सफलता का अनुभव किया ?*
➢➢ *अब एक दुसरे को वाणी से सावधान करने की बजाये मनसा शुभ भावना से एक दुसरे के सहयोगी बनकर आगे बड़े और बढाया ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *"सब चलता है" जैसे अलबेलेपन के संकल्प तो नहीं किये ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - तुम्हे इस काँटों के जंगल को दैवी फूलो का बगीचा बनाना है, नई दुनिया का निर्माण करना है"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... जब घर से चले थे तो खुशबूदार फूल से खिले थे... अनन्त सुखो से भरपूर खुशियो में चहके थे... वो *मीठे सुखो से भरा वही स्वर्ग इस धरा पर फिर से लाना है.*.. देवताओ के विचरण और सुख की हंसी से इस धरा को खिलखिलाना है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में रूहानी गुलाब बन गयी हूँ... और इस रूहानियत की खुशबु से सबको मदमस्त बना रही हूँ... मीठे बाबा के *प्यार रुपी जादू से हर कांटा फूल* बन खिलता जा रहा है...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता को पाकर ईश्वरीय राहो में... विकारो से मुक्त होकर जो मीठा खुबसूरत प्यारा सा जीवन पाया है... यह ख़ुशी सबको बांटो विकारो की दुर्गन्ध से दूर गुणो की सुगन्ध से सबके अंतर्मन को महकाओ... *नई दुनिया में सुख भरा आशियाना हर दिल को दिलाओ.*..
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा *कांटे से यूँ फूल बन महकूँगी कभी सोचा भी न था.*.. आज गुणो की इत्र लिए सबको मीठे बाबा का दीवाना कर चली हूँ... हर दिल पूछता है यह खुशबु कहाँ से पायी और मै आत्मा झट आपका पता बता देती हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... बागबान बाबा कितनी दूर से आकर काँटों को फूल बना रहा... अपने बच्चों में वही हंसी ख़ुशी की रंगत देकर देवता सा खिला रहा... तो बागबान पिता के सच्चे सच्चे माली बन पिता के कार्य में हाथ बंटाना है... *कांटे हो चले दैवी फूलो को फिर से रूहानियत से खिलाना है.*..
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा के प्यार में जादूगर हो चली हूँ... *अपनी व्रति दृष्टि और कृति से हर कांटे को देवता फूल* बनाती जा रही हूँ... सबको सुखो की जन्नत में देवता सजाकर महल दिलाती जा रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा फीलिंगप्रूफ हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा कलियुगी मायावी दुनिया, थर्ड फ्लोर में रहती थी... सभी दरवाजे, खिड़कियों से माया की प्रवेशता थी... मैं आत्मा चारों ओर से माया की चकरी में फंस गई थी... प्यारे बाबा ने आकर मुझ आत्मा को ज्ञान दिया की मुझ आत्मा का *असली घर फर्स्ट फ्लोर परमधाम* है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा के दिए *ज्ञान, योग के पंख* लगाकर थर्ड फ्लोर से, फर्स्ट फ्लोर मूल वतन पहुँच जाती हूँ... प्यारे बाबा से योग लगाती हूँ... पवित्र योगाग्नि में मुझ आत्मा के सभी विकार जलकर भस्म हो रहें हैं... मैं आत्मा माया के चंगुल से बंधनमुक्त होती जा रही हूँ... मायाजीत बनती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा सर्वगुण, शक्तियों के खजानों से स्वयं को भरपूर कर रहीं हूँ... मैं आत्मा अब *स्मृति स्वरूप बन समर्थ* बन रहीं हूँ... अब मैं आत्मा बाबा के साथ सेकंड फ्लोर में सूक्ष्मवतन में आती हूँ... मैं आत्मा फरिश्ता स्वरूप धारण कर बापदादा के साथ विश्व कल्याण का कार्य कर रहीं हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा प्राप्त खजानों को दुखी, अशांत आत्माओं में बाँटकर सुख, शांति प्रदान कर रहीं हूँ... सबको शुभ भावनाओं, शुभ कामनाओं से भरपूर कर निःस्वार्थ सेवा कर रहीं हूँ... मैं आत्मा यथार्थ सेवा कर रहीं हूँ... अब मैं आत्मा जब चाहे तब फर्स्ट फ्लोर पहुँच जाती हूँ... *एक बाबा की याद* से स्वयं को भरपूर करती हूँ... जब चाहे तब फरिश्ता बन विश्व का कल्याण करती हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा शक्तिशाली याद और निःस्वार्थ सेवा का डबल लाक लगाती हूँ... अब मैं आत्मा माया के आने के सभी दरवाजों पर डबल लाक लगाकर निर्विघ्न बनती जा रहीं हूँ... मैं आत्मा क्यों, क्या की व्यर्थ फीलिंग से मुक्त होती जा रहीं हूँ... अब मैं आत्मा यथार्थ *याद और सेवा के डबल लाक* द्वारा निर्विघ्न रहने वाली फीलिंगप्रूफ बन गई हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- स्नेह और शक्ति का बेलेंस द्वारा सफलता की अनुभूति करना।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अति सूक्ष्म ज्योति बिंदु... इस शरीर में रहते इस सृष्टि ड्रामा में अपना पार्ट प्ले करते... सदैव स्नेह और शक्ति का बेलेंस रखती हूँ... शिव बाबा से अपार स्नेह प्राप्त करने वाली वरदानी आत्मा हूँ... *शिव बाबा से प्राप्त प्रेम मेरे हर आचरण में टपकता हैं...* तो साथ ही मैं शक्तिशाली आत्मा... अपनी सर्व शक्तियों का प्रयोग भी समय और परिस्थिति अनुरूप करती हूँ...
➳ _ ➳ मैं सर्वशक्तिमान की सन्तान मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ... सर्व शक्तियाँ प्राप्त कर मैं महान आत्मा बन गई हूँ... मेरी परखने की और निर्णय लेने की शक्ति... मुझे परिस्थिति अनुरूप राईट शक्ति को यूज़ करने में मदद करती हैं... मैं अस्ट भुजाधारी दुर्गा हूँ... *शक्ति स्वरूपा हूँ... तो प्रेम स्वरूपा भी हूँ...*
➳ _ ➳ स्नेह के सागर में पलने वाली मैं आत्मा... स्नेह की दैवी हूँ... मेरे नैनों से निरन्तर हर आत्मा के लिए स्नेह छलकता ही रहता हैं... *स्नेह के साथ शक्तियों का भी प्रयोग कर... सशक्त आत्मा बन गई हूँ...* स्नेह और शक्तियों के बेलेंस द्वारा मुझ आत्मा को कदम-कदम पर सफलता मिलती है...
➳ _ ➳ मैं सफलतामूर्त आत्मा हूँ... सफलता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार हैं... *स्नेह और शक्ति के बेलेंस द्वारा मैं आत्मा सफलतामूर्त बन गई हूँ...* हर पल सफलता की अनुभूति करने वाली... सृष्टि रंगमंच की श्रेष्ठ हीरो पार्टधारी आत्मा हूँ... मेरे स्नेह और शक्ति के बेलेंस ने ही मुझे विशेष आत्मा बनाया हैं... बेलेंस रखना ये अपने आप में बहुत बड़ा गुण हैं... जो जीवन को सहज और सफल बनाता हैं...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *यथार्थ याद और सेवा के डबल लॉक द्वारा निर्विघ्न रहने वाले फीलिंगप्रुफ होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ यथार्थ याद और सेवा के डबल लॉक द्वारा निर्विघ्न रहने वाले फीलिंगप्रुफ होते हैं क्योंकि... *माया के आने के जो भी दरवाजे हैं उन्हें याद और सेवा* का डबल लॉक लगा लेना है। डबल लॉक लगा लेने से, माया को आने का स्थान ही नहीं मिलेगा और वह आ कर भी चली जायेगी।
❉ यदि याद में रहते हुए और सेवा करते हुए भी माया आती है तो जरूर याद अथवा सेवा में कोई कमी रह गई है। अतः हमें उस कमी को जान कर, उसे दूर करने का पूरा पूरा यत्न करना है और *माया के आने का द्वार, सदा के लिये अवरुद्ध* कर लेना है तथा स्वयं के मार्ग को निर्विघ्न बनाना है।
❉ हमें सदा ही यथार्थ सेवा के मार्ग को अपनाना है। यथार्थ सेवा स्वार्थ रहित होती है। कहते हैं न... यथार्थ सेवा वह सेवा है जिसमें स्वयं का कोई भी स्वार्थ निहित न हो। अगर किसी *सेवा में स्वयं का स्वार्थ निहित होता है तो वह सेवा यथार्थ सेवा* नहीं कहलाती है।
❉ अतः हमें सदा ही यथार्थ सेवा करनी है तथा स्वयं को सभी कर्म बन्धनों से मुक्त बनाना है। अगर हमारी सेवायें निस्वार्थ नहीं हैं तो हम कभी भी कर्म अकर्म के विकर्म की गति से निर्बन्धन नहीं हो सकेंगे। इसलिये! हमें सदा ही *अपनी याद और सेवा को यथार्थ निर्विघ्न और फीलिंग प्रूफ बनाना है।*
❉ अगर हमारी निस्वार्थ सेवा नहीं है, तो समझो! हमारी याद और सेवाओं रुपी लॉक ढीला है और याद भी शक्तिशाली नहीं है। *ऐसा डबल लॉक हो तो निर्विघ्न बन जायेंगे* फिर क्यों, क्या की व्यर्थ फीलिंग से, परे फीलिंग प्रूफ आत्मा रहेंगे।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *स्नेह और शक्ति का बैलेन्स ही सफलता की अनुभूति कराता है... क्यों और कैसे* ?
❉ आने वाले समय प्रमाण संबंध संपर्क में अनेक ऐसी कमजोर आत्माएं आएंगी । *जिन्हें सर्वसमर्थ बनकर सर्व प्राप्तियों की अनुभूति करवानी पड़ेगी* और अपनी तपस्या के बल से उन्हें उठाना पड़ेगा । इस कार्य में सफलता कभी प्राप्त कर सकेंगे जब स्नेह और शक्ति का बैलेंस होगा । अर्थात जब स्नेह रुप के साथ शक्तिस्वरूप बनेंगे तभी सर्वशक्तियों के आधार पर जाननहार के साथ करनहार बनकर उन्हें प्राप्ति का अनुभव करवा कर सन्तुष्ट कर सकेंगे ।
❉ स्नेह और शक्ति का बैलेंस बना कर सफलता की अनुभूति तभी कर सकेंगे । जब ज्वाला स्वरूप के साथ शीतल स्वरूप धारण करेंगे । और इस स्वरूप को धारण करने का आधार है । *साधना द्वारा मन, बुद्धि और संस्कार को अपने कंट्रोल में रखकर, इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर स्वराज्य अधिकारी बनना* । तथा साथ ही साथ मास्टर सर्वशक्तिमान की सीट पर बैठ सर्वशक्तियों को अपने ऑर्डर प्रमाण यूज करना । जितना यह स्वरूप धारण करेंगे स्नेह और शक्ति का बैलेंस बना रहेगा ।
❉ जो निरंतर एक बाप की लगन में मगन रहते हैं, जागती ज्योत बनकर रहते हैं । वे संकल्प और कर्मों की समानता द्वारा सिद्धि स्वरूप आत्मा बन जाते हैं और *अपनी साधना द्वारा जब चाहे जैसा स्वरूप बनाना चाहे वैसा स्वरूप धारण कर लेते हैं* । जब चाहे शक्ति स्वरुप और जब चाहे स्नेह स्वरुप में स्थित होकर वे ऐसी शक्तिशाली आत्मा बन जाते हैं । जो स्नेह और शक्ति के बैलेंस द्वारा हर कार्य में सफलता मूर्त बन जाते हैं ।
❉ मन बुद्धि को व्यर्थ में लगाने की बजाय जो याद की साधना में व्यस्त रखते हैं । वे सर्वशक्तिमान बाप से सर्वशक्तियों के अखुट खजाने प्राप्त कर शक्ति सम्पन्न आत्मा बन जाते हैं । *समय और परिस्थिति के अनुसार सही समय पर सही शक्ति का स्वरुप बनने का अभ्यास* उन्हें ऐसा शक्ति स्वरूप और स्नेह स्वरुप बना देता है । कि स्नेह और शक्ति का बैलेंस रख वे हर परिस्थिति पर सहज ही विजय प्राप्त कर सफलता की अनुभूति कर लेते हैं ।
❉ समय की समीपता को देखते हुए आवश्यकता है ज्वालास्वरूप स्थिति बनाने की । ज्वालामुखी योग द्वारा *पुराने संस्कारों को जलाकर लाइट माइट स्वरूप में स्थित रहने का अभ्यास जैसे-जैसे पक्का होता जाएगा* । वैसे वैसे स्नेह और शक्ति स्वरूप को धारण करना सहज होता जाएगा । स्नेह और शक्ति स्वरुप की धारणा जितनी ज्यादा होगी उतना स्नेह और शक्ति के बैलेंस द्वारा हर समस्या का समाधान कर हर कार्य में सफलता प्राप्त करना सहज हो जायेगा ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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