━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 26 / 01 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 2*5=10)
➢➢ *आज्ञाकारी बन बाप का आशीर्वाद लिया ?*
➢➢ *माया चूही से अपनी संभाल की ?*
────────────────────────
∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:3*10=30)
➢➢ *व्यक्त भाव की आकर्षण से परे अव्यक्त स्थिति का अनुभव किया ?*
➢➢ *हद के किनारों का सहारा छोड़ बाप के सहारे का अनुभव किया ?*
➢➢ *तपस्वी स्वरुप में बैठ अपनी उडती कला द्वारा फ़रिश्ता बन चारों और चक्कर लगाया ?*
────────────────────────
∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 10)
➢➢ *आज बाकी दिनों के मुकाबले एक घंटा अतिरिक्त °योग + मनसा सेवा° की ?*
────────────────────────
∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - सर्वशक्तिवान बाप की याद से आत्मा पर चढ़ी हुई विकारो की जंग को उतारने का पुरुषार्थ करो"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की यादो में ही वही अविनाशी नूर वही रंगत वही खूबसूरती को पाओगे... *इसलिए हर पल ईश्वरीय यादो में खो जाओ.*.. बुद्धि को विनाशी सम्बन्धो से निकाल सच्चे ईश्वर पिता की याद में डुबो दो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा देह अभिमान और देहधारियों की यादो में अपने वजूद को ही खो बेठी थी... *आपने प्यारे बाबा मुझे सच्चे अहसासो से भर दिया है.*.. मुझे मेरे दमकते सत्य का पता दे दिया है...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता धरा पर उतर कर अपने कांटे हो चले बच्चों को फूलो सा सजाने आये है... तो उनकी याद में खोकर स्वयं को विकारो से मुक्त कर चलो... *ये यादे ही खुबसूरत जीवन को बहारो से भरा दामन में ले आएँगी.*..
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी प्यारी सी गोद में अपनी जनमो के पापो से मुक्त हो रही हूँ... *मेरा जीवन खुशियो का पर्याय बनता जा रहा है.*.. और मै आत्मा सच्चे सुखो की अधिकारी बनती जा रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपनी हर साँस संकल्प और समय को यादो में पिरोकर सदा के पापो से मुक्त हो चलो... *खुशियो भरे जीवन के मालिक बन सुखो में खिलखिलाओ.*.. यादो में डूबकर आनन्द की धरा, खुशियो के आसमान को अपनी बाँहों में भर चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ... मुझे ईश्वर पिता मिल गया है... मेरा जीवन सुखो से संवर चला है... *प्यारे बाबा आपने अपने प्यार में मुझे काँटों से फूल बना दिया है.*.. और देवताई श्रंगार देकर नूरानी कर दिया है...
────────────────────────
∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा सर्व बन्धनमुक्त हूँ।"*
➳ _ ➳ अभी तक मैं आत्मा उड़ना नही जानती थी... क्यूंकि देह व देह के सम्बंधों के बंधनों में बंधी हुई थी... उन्हीं देह के सर्व सम्बंधों को ही अपना सब कुछ समझती रही... उन्हीं झूठे जंजालों में फंसी रही... अपने कड़े संस्कारों में अपने को बांध जीवन रुपी ग्राउंड में युद्ध करती रही... अपने *सच्चे परमपिता को व स्वयं* को भूल गई...
➳ _ ➳ सच्चे परमपिता ने मुझे इस रौरव नरक से निकाल *ज्ञान रुपी तीसरा नेत्र व दिव्य दृष्टि रुपी अनमोल गिफ्ट* दिए... मुझे अपने असली स्वरुप की पहचान दी कि मैं आत्मा अजर अमर अविनाशी हूँ... सच्चे सच्चे परमपिता का परिचय दिया... अपना बच्चा बनाया... अपनी गोद में बिठाकर सच्चा निःस्वार्थ प्यार दिया... मुझ आत्मा को ज्ञान और योग रुपी पंख देकर उड़ना सीखा दिया...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अब उड़ता पंछी* हूँ... इस देह में रहते देह व देह के सर्व सम्बंध निभाते न्यारी प्यारी रहती हूँ... मैं आत्मा अपने परमपिता परमात्मा की याद में रह हर कर्म कर रही हूँ... इस विनाशी दुनिया की चकाचोंध से परे रहती हूँ... मैं आत्मा जान गई हूँ कि मैं देह नही देही हूँ... इस देह में रहते हीरो पार्टधारी हूँ... ये शरीर मेरे प्यारे बाबा का अमानत है... सेवार्थ मिला है... मैं आत्मा बस निमित्त हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा प्रवृत्ति में रहते बंधनमुक्त हूँ... ये तन मन धन सब बाबा का ही है... मैं आत्मा मन बुद्धि से सब सम्पूर्ण रुप से बाबा को समर्पित करती हूँ... *मेरा तो बस एक शिव बाबा दूसरा न कोई*... मैं आत्मा बस बाबा संग ही बैठती हूं... खाती हूँ... चलती हूँ... मुझ आत्मा को इतना मीठा प्यारा बाबा सच्चा साथी मिला है... तो कोई ओर आकर्षण मुझ आत्मा को आकर्षित नही कर सकता... मुझ आत्मा के सर्व सम्बंध सिर्फ व सिर्फ एक बाबा के संग है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अब देह, देह के सम्बंध, विनाशी पदार्थों के आकर्षण से परे हूँ... इस विनाशी कलयुगी दुनिया से लगाव रखते व निभाते हुए मुझ आत्मा ने दुःख ही पाए हैं... इसलिए इस विनाशी दुनिया से बंधनमुक्त होने के लिए मैं आत्मा संकल्प में भी किसी बंधन में नही अ न ही आकर्षित होती हूँ... मैं आत्मा हर कर्म बस बाप की याद में रह करती हूँ... बस कर्म करने के लिए ही व्यक्त में रहती हूँ... मैं आत्मा *कमल पुष्प समान इस प्रवृति में रहते न्यारी और प्यारी स्थिति* का अनुभव करती हूँ... मैं आत्मा बंधनमुक्त हूँ...
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप के सहारे का अनुभव करने के लिए हद के किनारों का सहारा छोड़ना*
➳ _ ➳ मैं बेफिक्र आत्मा हूँ... सर्वशक्तिमान के हाथों में अपना हाथ दे सभी चिंताओं फिकरातों से मुक्त हूँ... *ईश्वर ही मेरा सच्चा-सच्चा साथी बना हैं...* उसका अविनाशी साथ पाकर मैं आत्मा धन्य-धन्य हो गई हूँ...
➳ _ ➳ *कदम- कदम पर बाप के सहारे का अनुभव करती हूँ...* जीवन की हर परीक्षा में बाबा के साथ से मुझे सफलता मिलती ही है... हद के विनाशी किनारों के सहारे को छोड़ मैंने विश्व रचेययता, विश्व कल्याणकारी ईश्वर का हाथ थामा हैं... उसका सहारा पाकर... सभी विनाशी हद के किनारों के सहारों से छुटती गई हूँ...
➳ _ ➳ भगवान स्वयं मेरे गाईड बने हैं... जो मुझ आत्मा को हर परिस्थित हर विघ्न को पार करने की राह बताते रहते हैं... अपना बुद्धि रूपी हाथ बापदादा को सौंप... मैं आत्मा बेफिक्र बादशाह बन गई हूँ... हर बात में निश्चिन्त रह... *हर कदम पर विजय का अनुभव कर... विजय रत्न आत्मा बन गई हूँ...*
➳ _ ➳ बाबा जैसे मेरे रास्ते के सब विघ्न समाप्त करते जाते हैं... उनका हाथ और साथ पाकर... स्वयं को धन्य-धन्य समझती हूँ... *भगवान की गोदी में पलने वाली भाग्यवान आत्मा हूँ...* हर कदम पर उनसे रॉय लेती हूँ... मैं उनकी आज्ञाकारी बच्चा हूँ... हर कदम बापदादा के इशारों अनुसार चलती हूँ... मुझ आत्मा ने हद के विनाशी अल्पकाल के किनारों को छोड़ .... बाप के सहारे को हर पल महसूस किया हैं...
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *व्यक्त भाव की आकर्षण से पर अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने वाले सर्वबंधनमुक्त होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ व्यक्त भाव अर्थात अपने को आत्मा नही देह समझना ओर किसी के भी स्मर्क में आते देह ओर देह के पधार्थो के बारे में ही चिंतन करना ... अव्यक्त स्थिति अर्थात अपने को आत्मा समझना ओर हर कर्म करते हुए यही स्मृति रहे की मैं आत्मा हुँ ओर जब यह आदत निरंतर हो जाती तो अव्यक्त स्थिति में स्थित हो जाना बहुत सहज अनुभव होता ।
❉ जैसे ब्रह्मा बाबा जब मुरली सुनाते थे तब व्यक्त भाव से परे वह अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर चलाते जिससे सुनने वाली आत्माएँ भी यही अनुभव करती की वह एक आत्मा है शरीर नही अर्थात स्वयं को अशरीरि अनुभव करते ओर हद की हर एक आकर्षण से जैसे कोई सम्बंध ही नही हो, इसके लिए *पवित्रता ओर सहनशक्ति* जैसे दोनो गुण होने चाहिए ।
❉ इस स्थिति में सदाकाल के लिए स्थित होने के लिए *बहुतकाल का अशरीरिपन का अभ्यास* होना आवश्यक है जिससे आत्मा को सर्व संबंधो की कोई खिंच नही होगी ओर एक बाबा के साथ सर्व सम्बंध के अनुभव ऐसे अनुभव होंगे की एक बाबा दूसरा ना कोई अर्थात मैं ओर मेरा बाबा ।
❉ जैसे ब्रह्माबाबा अब अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर *बेहद की सेवा* कर रहे है हद के सर्व आकर्षण सम्बंध से सदा न्यारा प्यारा ओर जब जो संकल्प लिया वह उसी समय साकार हुआ तभी आज हर एक बच्चा कहते मेरा बाबा , हमको भी चलते फिरते ऐसे अव्यक्त स्थिति में स्थित रहकर बेहद में रहना है ।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *बाप के सहारे का अनुभव करना है तो हद के किनारों का सहारा छोड़ दो... क्यों और कैसे* ?
❉ बाबा की पहली श्रीमत है कि देह सहित देह के सब सम्बन्धों को भूल मामेकम याद करो । क्योकि देह और देह के सम्बन्धी हद के किनारे हैं जिनके *लगाव की सूक्ष्म जंजीरे कभी भी जीवन रूपी नैया को पार नही जाने देंगी* । इसलिए जितना हद के इन किनारों को छोड़ एक बाप को सहारा बनाएंगे । तो बाप स्वयं खिवैया बन हमारी जीवन रूपी नैया को पार ले जायेंगे ।
❉ शरीर से परे अपने स्व - स्मृति में रहना ही हद के किनारों से छूटना है । स्वयं को देह समझना अर्थात हद के बंधनों में बंध जाना और स्वयं को आत्मा निश्चय करना अर्थात सर्व बन्धनों से मुक्त हो जाना । क्योंकि *जब स्वयं को आत्मा समझते हैं तो आत्मा का सिवाय परमात्मा के और कोई नही* । इसलिए जितना स्व - स्मृति में रह परमात्मा के प्रेम की लगन में मग्न रहेंगे तो हद के किनारे स्वत: छूटते जायेंगे और बाप सहारेदाता बन पार ले जायेंगे ।
❉ एकांत में बैठ जितना आवाज से परे, निराकारी स्थिति में स्थित रहने का अभ्यास करेंगे उतना मनमनाभव की स्थिति में स्थित रह सकेंगे । यह *मनमनाभव की स्थिति ही हद के किनारों को छोड़ने में मददगार बनेंगी* । क्योकि जब बाप को सहारा बनायेंगे तो हद के किनारे धीरे धीरे अपने आप दूर होते जायेंगे । जीवन की सारी समस्याएं समाप्त होती जाएंगी और बाप साथी बन जीवन रूपी नैया को पार ले जायेंगे ।
❉ इस बात को सभी स्वीकार करते हैं कि इस दुनिया में मनुष्य अकेला आता है और उसे वापिस भी अकेले ही जाना है । *जितना इस बात को स्मृति में रखेंगे उतना देह का आकर्षण धीरे धीरे समाप्त होता जायेगा* और बुद्धि का योग दुनियावी सम्बन्धो से निकल एक परमात्मा में लगने लगेगा । परमात्म ज्ञान को जब ढाल बना कर अपने साथ रखेंगे तो हद के किनारे छूटते जायेंगे और केवल एक परमात्मा बाप ही सहारा बन जायेंगे ।
❉ जितना सर्व सम्बंधों के साथ बाबा से अटैच रहेंगें उतना देह और देह की दुनिया से डिटैच होते जायेंगे । बाप से अटैच माना दुनिया से ए - टू - जेड डिटैच । *किसी बात का कोई फ़िक्र और चिंता नही । सब कुछ बाप के हवाले* । जब ऐसी स्थिति में निरन्तर स्थित रहेंगे तो उड़ता पंछी बन उड़ते रहेंगे । केवल कर्म करने के लिए देह और देह के सम्बन्धो में जब आएंगे तो हद के सभी किनारे दूर होते जायेंगे और एक बाप के सहारे जीवन की नैया सहजता से पार हो जायेगी ।
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━