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❍ 27 / 08 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *जब भी किसी को देखा तो उसके शरीर को न देखते हुए उसके आत्मिक स्वरुप को देखा ?*
➢➢ *भटकती हुई आत्माओं को यथार्थ ठिकाना दिखाया ?*
➢➢ *वर्तमान और भविष्य की प्राप्तियों को स्मृति में रख सदा हर्षित रहे ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *सदा एकरस रहने का, सदा सूर्य समान चमकते रहने का संकल्प किया ?*
➢➢ *मास्टर सतगुरु बन आत्माओं को नज़र से निहाल किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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➳ _ ➳ फुर्सत है तो अभी है फिर आगे नहीं होगी। जैसे लोगों को कहते ही फुर्सत मिलेगी नहीं, लेकिन फुर्सत करनी पडेगी। *समय मिलेगा नहीं लेकिन समय निकालना है।* ऐसे कहते ही ना! तो स्व-अभ्यास के लिए भी समय मिले तो करेंगे, नहीं। समय निकालना पडेगा। स्थापना के आदिकाल से एक विशेष विधि चलती आ रही है। कौन-सी? फुरी-फुरी तालाव (ढूंद-बूंद से तालाव) तो समय के लिए भी यही विधि है। जो समय मिले अभ्यास करते-करते सर्व अभ्यास स्वरूप सागर बन जायेंगे। *सेकण्ड मिले वह भी अभ्यास के लिए जमा करते जाओ, सेकण्ड सेकण्ड करते कितना हो जायेगा!* इकट्ठा करो तो आधा घण्टा भी बन जायेगा। चलते-फिरते के अभ्यासी बनो। जैसे चात्रक एक-एक बूंद के प्यासे होते हैं। *ऐसे स्व-अभ्यासी चात्रक एकएक सेकण्ड अभ्यास में लगावें तो अभ्यास स्वरूप बन ही जायेंगे।*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सदा एकरस सम्पूर्ण चमकता सितारा बनो"*
➳ _ ➳ निराला निराकारी शिव पिता, और ब्रह्मा सी प्यारी अलौकिक मां.... के साये में सनाथ बनी मै आत्मा... इतने अनोखे निराले प्यारे माँ पिता को पाकर.. जनमो के अनाथपन को कब का भूल गयी हूँ... संगम के वरदानी समय पर भाग्य के यूँ उदय होने पर... खुशियो और आनन्द में रोमांचित हूँ... *वो भटकन वह दुःख भी, अब तो प्यारे है... जिन्होंने मुझे यूँ भगवान की गोद में लाकर छोड़ दिया... वह हर बात प्यारी है, जिसने मुझे भगवान के निच्छल प्रेम का प्याला पिला दिया है.*.. इसी मीठे चिंतन में मगन मै आत्मा... सूक्ष्म वतन में अपने सच्चे मातपिता से मिलने उड़ चलती हूँ...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को चमकता सितारा बनाते हुए कहा :- " मीठे प्यारे फूल बच्चे... मीठे बाबा ने जो भाग्य का सितारा चमकाया है... सदा उसे ही देझते रहो... दूर से ही आपकी चमक की लाइट दिखती रहे... ऐसा अभ्यास बढ़ाते चलो... *मा दाता, मा शिक्षक के साथ मा सतगुरु का भी पार्ट बजाकर... वरदाता बन मुक्ति जीवनमुक्ति दिलाओ.*.."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा से मा सतगुरु की उपलब्धि पाकर आनन्द में डूबकर कहती हूँ :- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... सुख की एक झलक को प्यासी मै आत्मा गुरुओ के पीछे घूम रही थी... *कि आप सतगुरु ने मुझे गले लगाकर, मा सतगुरु की सीट पर सजा दिया है... इस मीठे भाग्य का किस तरहा शुक्रिया करूँ.*.. प्यारे बाबा आपने और मेरे भाग्य ने मुझे किन ऊंचाइयों पर सजा दिया है..."
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा में मेरी सोयी शक्तियो को जगाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *सदा एकरस सम्पूर्ण चमकता सितारा हो... ऐसा स्वयं को प्रत्यक्ष कर, सदा सूर्य समान चमकते रहने का संकल्प करो.*.. भटकती थकी प्यासी आत्माओ को सच्चा रास्ता दिखाने वाले... लाइट हाउस बन कर, बाप दादा के दिल तख्त पर मुस्कराओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा की प्यारी गोद में इठलाते हुए कहती हूँ :- "मेरे प्यारे मनमीत बाबा... कभी स्वयं अज्ञान के अंधेरो में खो गयी थी... आज भाग्य ने ज्ञान सितारा बनाकर विश्व में मुझे चमका दिया है... आपकी मीठी यादो संग में आत्मा *विश्व को रौशन करने वाला, एकरस सम्पूर्ण सितारा बनकर, विश्व गगन पर बड़े ही शान से चमक रही हूँ..*.
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को हर बात में विन, नम्बर वन बनाते हुए कहते है :- "सदा पुरुषोत्तम समझकर, चढ़ती कला में जाने वाले बनो... सदा उड़ो और उड़ाओ...सदा निश्चयबुद्धि विजयी रत्न है इस नशे में डूबे रहो... *ईश्वरीय खानों के मालिक मा सागर के खुमारी में रह... बीती को बिंदी लगाकर... खुशियो में झूमते आगे बढ़ो.*.."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा से पायी खुशियो की दौलत को गले लगाते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे दुलारे बाबा... *अपनी यादो के पंख देकर, मुझ आत्मा को खुशियो के आसमाँ में उड़ाने वाला खुबसूरत आत्मा परिंदा बना दिया है.*.. बीती को बिंदी में समाकर कितना हल्का प्यारा कर दिया है... ईश्वर ही मेरा साथी बनकर साथ है... भला अब किस बात की मुझे चिंता..."ईश्वर पिता से शक्तियो वरदानों को लेकर मै आत्मा... स्थूल जगत में लौट आयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मास्टर सतगुरु बन आत्माओं को नज़र से निहाल करना*"
➳ _ ➳ अपने सत बाप, सत शिक्षक, सत गुरु शिव बाबा की याद में बैठते ही ऐसा आभास होता है जैसे मेरे सतगुरु शिवबाबा मेरे आस - पास ही है। उनकी सर्वशक्तियाँ मुझ पर पड़ रही हैं और जैसे वो मुझ से कुछ कह रहे हैं। *अपने मन बुद्धि को पूरी तरह एकाग्र करके अब मैं अपने सतगुरु शिव बाबा पर केंद्रित करती हूं तो शिव बाबा को अव्यक्त ब्रह्मा बाबा के आकारी रथ पर विराजमान अपने बिल्कुल सामने पाती हूँ*। बाबा मुस्कराते हुए मेरी और देख रहें हैं और मुझे अपनी मीठी दृष्टि से निहाल कर रहें हैं। बाबा की मीठी दृष्टि से आ रही लाइट और माइट मुझे भी बाप समान बना रही है। अब मैं भी स्वयं को अपने लाइट माइट स्वरूप में अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे मुझे लाइट माइट बना कर बाबा ने अपने संकल्पो को मुझ तक पहुंचाने की शक्ति मुझे प्रदान कर दी हो। अब मैं बाबा के हर संकल्प को कैच कर रही हूँ। *बाबा के संकल्प मुझे बाबा के साथ चलने का इशारा कर रहे हैं। उस इशारे को समझ अब मैं फ़रिशता बाबा का हाथ थामे चल पड़ता हूँ बाबा के साथ*। तीव्र वेग से मैं बाबा के साथ उड़ता जा रहा हूँ और नीचे पृथ्वी के नजारो को भी देखता जा रहा हूँ।
➳ _ ➳ तभी मैं देखता हूँ बाबा वापिस नीचे आ रहें हैं और एक ऐसे स्थान पर आ कर रुक जाते हैं जहां कोई बहुत बड़ा पंडाल लगा हुआ है। बाबा मेरा हाथ थामे मुझे उस पंडाल के अंदर ले आते हैं। मैं देख रहा हूँ *सामने स्टेज पर कोई गुरु, महात्मा बैठे प्रवचन कर रहें हैं और उसके सामने बहुत बड़ी संख्या में उसके फ़ॉलोअर्स बैठे उन प्रवचनों को सुन रहें हैं*। अब बाबा मुझे स्टेज पर उस गुरु के बाजू में बैठने का इशारा करते हुए कहते है, *बच्चे:- "मास्टर सतगुरु बन इन आत्माओं को नजर से निहाल करो"*।
➳ _ ➳ अपने लाइट माइट स्वरूप में अब मैं उस स्टेज पर उस गुरु के बाजू में जा कर बैठ जाता हूँ। बाबा अपनी सर्वशक्तियों रूपी छत्रछाया के साथ मेरे सिर के ऊपर स्थित हो जाते हैं। *अब बाबा धीरे - धीरे अपनी सर्वशक्तियों की शीतल फुहारें मुझ फ़रिश्ते पर प्रवाहित करने लगते हैं। मैं देख रहा हूँ कि बाबा से सर्वशक्तियों की ये शीतल फुहारे मुझ में समा कर फिर मुझ से निकल कर धीरे धीरे पूरे पंडाल पर पड़ रही हैं*। पंडाल में बैठी सभी आत्मायें जो विकारो की अग्नि में जलने के कारण गहन तपन का अनुभव कर रही थी वो मुझ फ़रिश्ते से आ रही शीतल फुहारें पा कर जैसे शांत हो रही हैं।
➳ _ ➳ अब बाबा वहां बैठी हर आत्मा को एक - एक करके सूक्ष्म रीति मेरे सामने इमर्ज कर रहें हैं। मैं अपने सामने आ रही हर आत्मा को बड़े प्यार से निहारते हुए उसे दृष्टि दे रही हूँ। बाबा का प्यार उनकी सर्वशक्तियों की किरणों के रूप में उनसे से निकल कर मुझ में समाते हुए वहां उपस्थित हर आत्मा पर बरस रहा है। और सभी को अपनी शक्तियों रूपी बाहों मे समेट कर अतीन्द्रिय सुख के झूले में झुला रहा है। अपनी नजरो से वहां उपस्थित सभी आत्मायों को मैं निहाल कर रही हूँ। *मास्टर सतगुरु बन सभी को मुक्ति, जीवनमुक्ति का सत्य मार्ग दिखा रही हूं*।
➳ _ ➳ वहां उपस्थित सभी आत्माओ को नजर से निहाल कर, बापदादा अब अपने धाम लौट जाते हैं और मैं आत्मा अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर वापिस लौट आती हूँ। *किन्तु अपने ब्राह्मण स्वरूप में मैं अब सदा मास्टर सतगुरु की सीट पर सेट हो कर अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को अपने सच्चे सतगुरु शिव बाबा द्वारा दिया जा रहा सत्य ज्ञान सुना कर सबको सद्गति पाने का सच्चा रास्ता दिखा रही हूँ*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा न्यारेपन की अवस्था द्वारा पास विद ऑनर का सर्टिफिकेट प्राप्त करती हूँ।*
➳ _ ➳ *देह से न्यारी... एक दिव्य ज्योति पुंज मैं आत्मा... अशरीरीपन की उच्च अवस्था की यात्रा पर चल रही हूँ...* देह अभिमान से परे मैं आत्मा मन बुद्धि से पहुँच जाती हूँ... तीन बिंदियों का तिलक लगवाने... *परे ते परे रहने वाली आत्मा... परमात्मा के पास...* मन और मुख के मौन द्वारा हर परीक्षा में पास विद ऑनर का सर्टिफिकेट बापदादा के हाथों से लेती हूँ... देह और देह के सम्बन्धियों के प्रति न्यारी और बापदादा की प्यारी बनती जा रही हूँ... *अंतिम समय... अंतिम पेपर की तैयारी में मग्न मैं आत्मा... अशरीरी बन अपने ही देह को व देह के सम्बंधों को मन से स्वाहा करती हूँ...* देह भान से मुक्त मैं आत्मा... दैहिक संस्कारों से किनारा कर... हद से निकल बेहद के साम्राज्य की साम्राग्नि बन गई हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- आज्ञाकारी बन सर्व गुणों वा सर्वशक्तियों का अधिकार प्राप्त करने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं बाप समान सर्वगुण, सर्वशक्तियों से सम्पन्न आत्मा हूँ... *मैं बाप समान धारणा स्वरूप आत्मा हूँ*... बाबा से आती शक्तिशाली किरणें मुझ आत्मा को... *सर्वगुण, सर्वशक्तियों से भरपूर करती जा रही है*... और यह किरणें मुझ आत्मा से होते हुए... पूरे विश्व की आत्माओं तक फैलती जा रही है... पूरे विश्व को रोशन करती जा रही है... मीठा सा यह अनुभव... *बाप के आज्ञाकारी बच्चे होने का अनुभव करा रहा है*... मैं बाप के वर्से के अधिकारी आत्मा बनती जा रही हूँ... मैं *मास्टर सर्वशक्तिवान श्रेष्ठ आत्मा अनुभव करती जा रही हूँ*... सर्व कमजोरियां समाप्त होती जा रही है... बाबा से मिले खजानों का मनन करते करते... *हर कदम में सर्वशक्तिवान बाप की सर्व शक्तियों, सर्वगुणों का अनुभव कर रही हूँ*... यह अनुभव मुझ आत्मा को बाप का अधिकारी होने का अनुभव करता जा रहा है...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ १. *एक गलती बहुत करते हो उसके कारण भी संस्कार के ऊपर विजय नहीं प्राप्त कर सकते*, बहुत टाइम लगता है *समझते हैं कल से नहीं करेंगे लेकिन जब कल होता है तो आज से कल की बात बड़ी हो जाती है*। तो कहते हैं कल छोटी बात थी ना आज तो बहुत बड़ी बात थी। *तो बड़ी बात होने के कारण थोड़ा हो गया, फिर ठीक कर लेंगे-ये बड़ों को वा अपने दिल को दिलासा देते हो और ये दिलासा देते हुए चलते हो लेकिन ये दिलासा नहीं है, ये धोखा है*। उस समय थोड़े समय के लिए अपने को या दूसरों को दिलासा देना-बस अभी ठीक हो जायेंगे, लेकिन ये *स्वयं को धोखा देने की आदत पक्की करते जाते हो। जो उस समय पता नहीं पड़ता* लेकिन जब प्रैक्टिकल में धोखा मिलता है तभी समझते हैं कि हाँ ये धोखा ही है।
➳ _ ➳ तो भूल क्या करते हो? *जब बड़े या छोटे एक-दो को शिक्षा देते हैं तो क्या कहते हो? ये मेरा स्वभाव है, मेरा संस्कार है, कोई का फीलिंग का, कोई का किनारा करने का, कोई का बार-बार परचिन्तन करने का, कोई का परचिन्तन सुनने का, भिन्न-भिन्न हैं*, उसको तो आप बाप से भी ज्यादा जानते हो। लेकिन *बापदादा कहते हैं कि जिसको आपने मेरा संस्कार कहा वो मेरा है? किसका है?* (रावण का) तो मेरा क्यों कहा? ये तो कभी नहीं कहते हो कि ये रावण के संस्कार हैं। कहते हो मेरे संस्कार हैं। तो *ये 'मेरा' शब्द - यही पुरुषार्थ में ढीला करता है*। ये रावण की चीज अन्दर छिपाकर क्यों रखी है? लोग तो रावण को मारने के बाद जलाते हैं, जलाने के बाद जो भी कुछ बचता है वो भी पानी में डाल देते हैं, और आपने मेरा बनाकर रख दिया है!
➳ _ ➳ तो जहाँ रावण की चीज होगी वहाँ अशुद्ध के साथ शुद्ध संस्कार इकट्ठे रहेंगे क्या? और राज्य किसका है? अशुद्ध का। शुद्ध का तो नहीं है ना! तो राज्य है अशुद्ध का और अशुद्ध चीज अपने पास सम्भाल कर रख दी है। जैसे सोना या हीरा सम्भाल के रखा हो। इसलिए अशुद्ध और शुद्ध दोनों की युद्ध चलती रहती है तो बार-बार ब्रह्मण से क्षत्रिय बन जाते हैं। मेरा संस्कार क्या है? *जो बाप का संस्कार है, विशेष है ही विश्व कल्याणकारी, शुभ चिन्तनधारी। सबके शुभ भावना, शुभ कामनाधारी। ये हैं ओरिजिनल मेरे संस्कार। बाकी मेरे नहीं हैं*। और यही *अशुद्धि जो अन्दर छिपी हुई है ना, वो सम्पूर्ण शुद्ध बनने में विघ्न डालती है*। तो जो बनना चाहते हो, लक्ष्य रखते हो लेकिन प्रैक्टिकल में फर्क पड़ जाता है।
➳ _ ➳ २. *ये रावण की चीज जो छिपाकर रखी है ना वो मन का मालिक बनने नहीं देती*। मेरी आदत है, मेरा स्वभाव है, मेरा संस्कार है, मेरी नेचर है-ये सब रावण की जायदाद साथ में, दिल में रख दी है,तो दिलाराम कहाँ बैठेगा! रावण के वर्से के ऊपर बैठे क्या! तो अभी इसको मिटाओ।
✺ *ड्रिल :- "रावण के संस्कारों को मिटाकर बाप के संस्कारों को धारण करना"*
➳ _ ➳ *बाप के संस्कारों को धारण करना... मतलब बाप समान बनना...* और बाबा कहते बाप समान बनना हो तो बैठ जाइए बापदादा के कमरे में... तो मैं आत्मा मन बुद्धि से पहुँच गयी हूँ बापदादा के कमरे में... पावन दूधिया आभा से भरपूर ये कमरा गवाह है बापदादा की तपस्या और लगन का... *संस्कार परिवर्तन की एक ऐसी इबारत जो यहाँ के चप्पे चप्पे के मौन संगीत में गूँजती है...* उसी मौन संगीत की धुन पर नृत्य करती मैं आत्मा डूबती जा रही हूँ बापदादा की आँखों से छलकते स्नेह में... दोनों आँखो से बरसता स्नेह का ये झरना मुझे गुणों और शक्तियों से भरपूर करता जा रहा है...
➳ _ ➳ *छलछलाते प्याले की भांति स्नेह और शक्तियों से छलकता मेरा रोम रोम...* मैं आत्मा देह से अलग फरिश्ता रूप में... बापदादा के चित्र की जगह अब आकारी बापदादा... *उनकी रूहानी आभा से पूरी तरह जगमगा गया है ये कक्ष... और बापदादा मेरा हाथ थामें चल दिये हैं, एक विशेष यात्रा पर...* ये यात्रा है संस्कार परिवर्तन की यात्रा...
➳ _ ➳ कल्याणकारी बाप के साथ *मैं शुभ भावना और शुभ चिन्तन की ध्वजा सम्भाले ऊँची पहाडी पर...* संसार की सब दुखी आत्माओं को सुख शान्ति और पवित्रता की सकाश देते हुए... ध्वजा से निकलता प्रकाश का समुद्र दूर दूर तक फैलता हुआ... *सामने दूसरी पहाडी पर अंधेरा देखकर मैं फरिश्ता बढ चला हूँ उस तरफ...* उस पर भी प्रकाश का पसारा करने...
➳ _ ➳ मगर तभी कुछ कंटीली झाडियों में मेरे पंखों का उलझ जाना... *परचिन्तन की, मेरे पन की, फीलिंग की, किनारा करने की ये नागफनी... मेरी उडान में बाधक बन गयी है... खुद को मुक्त करने के प्रयास में घायल होते मेरे पंख... और समय की बर्बादी...* मुझे कोशिश करते बाबा दूर से ही साक्षी होकर देख रहे है... मानो कह रहे हों,- *बच्चे अशुद्ध चीजे अपने पास छुपाकर रखी है...* रावण के संस्कारो से मेरा पन! ... स्वयं से ही धोखा...
➳ _ ➳ और स्वयं की चैकिंग का जैसे ही ख्याल आता है... तुरन्त परिवर्तन की तीव्र ज्वाला का भडकना और देखते ही देखते भस्म हो जाना उन कटीली झाडियों का... *मैं देख रहा हूँ रावण के एक एक संस्कार को उसमें भस्म होते हुए, परचिन्तन का संस्कार... किनारा करने का संस्कार, मेरे पन का संस्कार, सब एक एक कर भस्म हो रहे है...* मेरे चेहरे पर विजयी मुस्कान... अब बापदादा चलकर आ रहे हैं मेरे पास... और हौले से मुझे कन्धे पर बिठा लेते है... *मैं मन का मालिक दिलाराम को दिल को दिल में बिठाने का आग्रह करता हुआ...* और हँसते हुए मैं और बाबा उड चले परमधाम की ओर... परमधाम से शक्तियाँ भरकर मैं लौट आया हूँ बापदादा के कमरे में... पहले से ज्यादा आत्मविश्वास से भरा हुआ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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