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 23 / 01 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 2*5=10)

 

➢➢ *आप-आप कह बात की ?*

 

➢➢ *धूतेपन, परचिन्तन से अपनी संभाल की ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:3*10=30)

 

➢➢ *साधारण कर्म करते भी श्रेष्ठ स्मृति व स्थिति की झलक दिखाई ?*

 

➢➢ *संकल्प मात्र भी कहीं पर लगाव तो नहीं रहा ?*

 

➢➢ *मन और बुधी को पावरफुल ब्रेक देने और संकल्पों को मोड़ने का अभ्यास किया ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 10)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *अचल अवस्था में स्थित रह आधारमूर्त स्थिति का अनुभव किया ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे - खामियों का दान देकर, फिर अगर कोई भूल हो जाये तो बताना है, मियां मिट्ठू नही बनना है, कभी भी रूठना नही है"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... *ईश्वरीय राहों में सदा सच का राही बन चलना है.*.. जिन संस्कारो ने गहरे दुःख, अंतर्मन को देकर जख्मी किया है, उन्हें ईश्वर पिता को सौप मुक्त होना है... फिर कभी कोई भूल हो जाये तो सच्चे मन से पिता को बताना है... सदा सच्चे सोने सा गुणवान बन चमकना है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... में आत्मा विकारो में लिप्त होकर, असत्य से दामन भर चली थी... *आपने प्यारे बाबा मुझे सच्चाई भरा खुबसूरत उजला जीवन दिया है.*.. मै आत्मा सारे विकारो का त्यागकर खुबसूरत मणि बन दमक उठी हूँ...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह की मिटटी और विकारो के संग में मटमैले हो चले थे... अब जो *प्यारा ईश्वरीय जीवन मिला है तो गुणवान और शक्तिवान बन मुस्कराओ.*.. देह अभिमान ने जो सुनहरी चमक को धुंधला किया है... देही अभिमानी बन अपने नूर को पा चलो... और सत्य पिता की बाँहों में सत्यता से खिलखिलाओ...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी गोद में खिलकर गुणो की मिठास से भर चली हूँ... *जीवन प्यारा खुशनुमा और सच्चाई की खनक से गूंज उठा है.*.. दिल के हर राज का राजदार. बाबा को बनाकर मै आत्मा ईश्वर दिल को जीत चली हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देवताओ सा खुबसूरत जीवन और स्वर्ग के अथाह सुखो का अधिकारी बनना है, तो अपनी कमियो को ईश्वर पिता को अर्पण कर हल्के हो जाओ... *गर कोई भूल हो जाये तो पिता के साथ बयान करो*... साफ सुथरा, प्यारा सा सच्चा जीवन जीते हुए आनन्द के झूलो में झूलते रहो...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा खुशियो की झलक को प्यासी सी, *आज खुशियो की मचान पर मुस्करा रही हूँ.*.. ईश्वर पिता के प्यार में चरित्रवान गुणवान और शक्तिवान बनकर, देवताई सोभाग्य को बाँहों में लिये, मीठे गीत गा रही हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा पुरुषोत्तम सेवाधारी हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  अभी तक नाम रुप में फंसी देह को देख देहधारियों की सेवा करती रही... झूठी मान-शान की चाहना करती रही... हर सम्बंध निभाती स्वार्थवश सेवा करती रही... और उनसे ही वापिस मान सम्मान पाने की चाहना रखती रही... *देहभान के झूठे आकर्षण* में रह हर सम्बंध निभाते उनसे ही सुख की इच्छा करती रही व फिर देहभान के कारण नीचे गिरती गई...

 

➳ _ ➳  अब प्यारे सच्चे सच्चे परमपिता ने मुझे घनघोर अंधकार से निकाल कर मेरे असली स्वरुप की पहचान दी कि *मैं अशरीरी आत्मा हूँ*... बिन्दु स्वरुप चमकता सितारा हूँ... इस देह से न्यारा और प्यारा हूँ... मैं महान आत्मा हूँ... स्नेही आत्मा हूँ... मेरे प्यारे बाबा ने मुझे सर्व के कल्याण के लिये चुना है...

 

➳ _ ➳  मैं  आत्मा साधारण नही हूँ... विशेष आत्मा हूँ ... जो प्यारे परमपिता ने कोटो में कोई व कोई मे से कोई में मुझे चुना है... मैं आत्मा प्यारे बाबा की याद में रह अपने पुराने स्वभाव-संस्कार, विकर्म विनाश करती जा रही हूँ... *प्यारे बाबा ही मेरे सुप्रीम शिक्षक, सुप्रीम सतगुरु है*... मीठे बाबा से मिले खजानों, गुणों, शक्तियों से मैं आत्मा शक्तिशाली बन रही हूँ...

 

➳ _ ➳  इस संगमयुग पर मैं अपने *सुप्रीम शिक्षक से रुहानी पढ़ाई पढ़कर ज्ञान रत्नों से अपनी झोली* भरती हूँ... अपने कौड़ी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बना रही हूँ... ये मुझ आत्मा का नया अलौकिक जीवन है... हीरे तुल्य जन्म है...मैं आत्मा एक मीठे बाबा की याद में रह पुरुषोत्तम बनती जा रही हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा हर कर्म करते सर्व सम्बंध निभाते अपने को बस निमित्त समझती हूँ... मेरा तो कुछ नही सब प्यारे पिता का है... मैं आत्मा तो बस मेहमान हूँ... ट्रस्टी हूँ... *करनकरावनहार मीठा बाबा है*... जैसे प्यारे परमपिता अपने बच्चों की सेवा के लिये हमेशा एवररेडी रहते हैं... ऐसे मुझ आत्मा को भी सेवा के लिये एवररेडी रहना है...

 

➳ _ ➳  जैसे हीरे भल कितनी धूल में छिपा हुआ हो अपनी चमक जरुर दिखाता है ऐसे ही भल कैसा भी वातावरण हो संगठन हो... मैं आत्मा *एक बाबा की याद में रह मास्टर सर्वशक्तिवान* बन स्वमान की सीट पर सेट रहती हूँ... मैं आत्मा कर्म करते हुए स्मृति स्वरुप रह अपनी स्थिति श्रेष्ठ रखती हूँ... जिससे देखने वाले को अनुभव होता हैं कि मैं आत्मा ऊंच ते ऊंच सर्वश्रेष्ठ बाप की सर्वश्रेष्ठ संतान हूँ... मैं आत्मा पुरुषोत्तम सेवाधारी बनने का पुरुषार्थ कर रही हूँ...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सच्चे राजऋषि बन संकल्प मात्र भी कहाँ पर लगाव नहीं रखना"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा तपस्विमूर्त हूँ... देह, देह के सम्बन्ध, देह के पदार्थ से परे... एक ही लग्न में मगन हूँ... मैं देही-अभिमानी... नाम,मान, शान की कोई सूक्ष्म आस भी मुझमें नहीं हैं... किसी भी लगाव और प्रभाव से मुक्त हूँ... *पाना था सो पा लिया, अब और क्या बाकि रहा...* भगवान को प्राप्त करने के बाद... इस पतित दुनिया की कोई भी इच्छा नहीं रही...

 

➳ _ ➳  सभी बन्धनों से मुक्त... मैं निर्बन्धन आत्मा बन गई हूँ... कोई भी दुनयावी वस्तु या सम्बन्ध मुझे आकर्षित नहीं करता... मैं आकर्षण मूर्त आत्मा... रूहानी स्नेह सब पर बरसाती हुई... *कमल फूल समान न्यारी और प्यारी हूँ...*

 

➳ _ ➳  *संकल्प से भी मैं आत्मा किसी भी वस्तु या व्यक्ति को टच नहीं करती...* संकल्प मात्र भी कहि लगाव या खिंचाव नहीं हैं... सम्पूर्ण मुक्त और लाईट हूँ... सर्व के सुख की कामना करना और सर्व पर सर्वस्व आलौकिक प्राप्तियाँ लुटाना... यही मुझ ब्राह्मण आत्मा का धंधा है...

 

➳ _ ➳  मैं राजऋषि हूँ... *मेरे चाल चलन बहुत रॉयल हैं... मेरी दृष्टी सम्पूर्ण पावन हैं...* मैं हद की कोई भी लगाव से परे... सम्पूर्ण ईश्वरीय प्राप्तियों से भरपूर हूँ... मैं महादानी वरदानी आत्मा... किसी भी हद की कामनाओं को संकल्प में भी नहीं लाती... मैं भरपूर आत्मा हूँ...

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *साधरण कर्म करते भी श्रेष्ठ स्मृति व स्थिति की झलक दिखाने वाले पुरुषोत्तम सेवाधारी होते हैं...  क्यों और कैसे?*

 

पुरुषोत्तम सेवाधारी अर्थात *पुरुषों में सबसे उत्तम* ,जो आत्मा एक शिव बाबा की याद में हर एक कर्म करे उसको पुरुषोत्तम सेवाधारी कहेंगे ।

 

इसके लिए ही बाबा ने बहुत बार मुरली में कहा की अगर आत्मा अपने *स्वधर्म में टिक कर कर्म करें* तो श्रेष्ठ भाग्य जमा होगा । ( धर्म + कर्म = श्रेष्ठ भाग्य )

 

जब आत्मा श्रेष्ठ स्मृति अर्थात *ऊँच संकल्पो की रचना* करती है तो वह उसकी फ़ीलिंग प्रत्यक्ष में महसूस करेगी जिससे उसका साधारण कर्म भी एक बाबा का शो करेगा । इसके लिए ही बाबा कहते *(हथ कार डे दिल यार दे )*

 

श्रेष्ठ स्मृति व स्थिति में टिकने के लिए आप *स्वमान की सीट पर सेट रहे* ओर स्वमान में रहने से हर एक कर्म में सम्मान स्वतः मिलेगा ओर स्वतः ही सेवा होती रहेगी । जिसके लिए बाबा कहते जैसी स्मृति वैसी वृत्ति वैसी दृष्टि , ओर *जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि* ।

 

अपना चलना , बोलना , खाना , सोचना , पीना , सोना , बैठना , सम्बंध सम्पर्क में आना आदि *हर कर्म एक बाबा की याद में हो* तो हर एक साधारण कर्म भी पुरुषोत्तम सेवाधारी बना देगा ।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *सच्चे राजऋषि वह हैं जिनका संकल्प मात्र भी कहाँ पर लगाव नहीं है... क्यों और कैसे* ?

 

❉   राजऋषि अर्थात् एक तरफ राज्य और दूसरी तरफ ऋषि अर्थात् बेहद के वैरागी। अगर किसी में भी और कहाँ भी चाहे अपने में, चाहे व्यक्ति में, चाहे वस्तु में ज़रा सा भी लगाव है तो राजऋषि नहीं कहेंगे । क्योकि *संकल्प मात्र थोड़ा सा भी लगाव है तो इसका अर्थ है दो नांव में पांव होना* । और दो नाव में पाँव रखने वाले कहीं के नही रहते । इसलिए सच्चे राजऋषि बनने के लिए जरूरी है बेहद के वैरागी बनना । संकल्प मात्र भी कहीं लगाव ना होना ।

 

❉   सच्चे राजऋषि वही बन सकते हैं जो बेहद के वैरागी बनते हैं । बेहद के वैरागी अर्थात् किसी में भी लगाव नहीं, सदा एक बाप के प्यारे । यह प्यारापन ही न्यारा बनाता है । *जो बाप के प्यारे नहीं बनते वे न्यारे भी नहीं बन सकते* । क्योकि लगाव में आ जाते हैं । किन्तु जो बाप के प्यारे बनते है वह सर्व आकर्षणों से परे अर्थात् न्यारे रहते है जिसको निर्लेप स्थिति कहते हैं और निर्लेप का अर्थ ही है कोई भी हद के आकर्षण की लेप में आने वाले नहीं ।

 

❉   मन - बुद्धि - संस्कार - इन सूक्ष्म शक्तियों पर जो विजय प्राप्त कर लेते हैं वही सच्चे राजऋषि कहलाते हैं । कर्मेन्द्रियजीत बनना तो सहज है किंतु *मन - बुद्धि - संस्कार का मालिक बनना - यह सूक्ष्म अभ्यास है* । जिस समय जो संकल्प, जो संस्कार इमर्ज करना चाहें वही संकल्प, वही संस्कार सहज अपना सकें - इसको कहते हैं *सूक्ष्म शक्तियों पर विजय अर्थात् राजऋषि स्थिति* । और यह राजऋषि स्थिति उनकी बन सकती है जिनका संकल्प मात्र भी कहाँ लगाव ना हो ।

 

❉   एक तरफ सर्व प्राप्ति सम्पन्न होने का नशा और दूसरी तरफ बेहद के वैराग्य का अलौकिक नशा । वर्तमान समय इन दोनों अभ्यास को बढ़ाने की आवश्यकता है । *वैराग्य माना किनारा नहीं लेकिन सर्व प्राप्ति होते भी हद की आकर्षण मन बुद्धि को आकर्षण में नहीं लाये* । संकल्प मात्र भी अधीनता न हो । यह पुरानी देह, देह की पुरानी दुनिया, व्यक्त भाव, वैभवों का भाव इन सब आकर्षणों से सदा और सहज दूर रहने वाले ही सच्चे राजऋषि कहलाते हैं ।

 

❉   जैसे ब्रह्मा बाप ने उपराम और दृष्टा बन सम्पूर्णता को साकार में लाया और ऐसे राजऋषि बन कर रहे कि सम्पूर्ण और साकार अलग देखने में नहीं आता था । ऐसे फालो फादर करते हुए जो *देह, देह के सम्बन्धो से उपराम अर्थात् न्यारा बनने के साथ साथ अपनी बुद्धि और संस्कारों से उपराम बनते हैं* तथा संकल्प मात्र भी दुनियावी पदार्थो के आकर्षण में आकर्षित नही होते । वे संपूर्ण लगावमुक्त बन सहज ही सच्चे राजऋषि बन जाते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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