━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 06 / 09 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *कोई उल्टा सुलटा बोले तो शांत रहे ?*
➢➢ *अपने रजिस्टर की जांच की ?*
➢➢ *बाप समान बन सबके दुःख दूर किये ?*
────────────────────────
∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *सत्यता के साथ सभ्यतापूर्वक बोल और चलन से आगे बढते रहे ?*
➢➢ *सम्बन्ध संपर्क और स्थिति में लाइट रहे ?*
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ जैसे अभी भी कोई वाद-विवाद वाला आता है तो वाणी से और ज्यादा वाद-विवाद में आ जाता है। *उसको याद में बिठाए साइलेन्स की शक्ति का अनुभव कराते हो ना।*
〰✧ एक सेकण्ड भी अगर याद द्वारा शान्ति का अनुभव कर लेते हैं तो स्वयं ही अपनी वाद-विवाद की बुद्धि को साइलेन्स की अनुभूति के आगे सरेन्डर कर देते हैं तो इस *साइलेन्स की शक्ति का अनुभव बढ़ाते जाओ।* अभी यह साइलेन्स की शक्ति की अनुभूति बहुत कम है। साइलेन्स की शक्ति का रस अब तक मैजारिटी ने सिर्फ अंचली मात्र अनुभव किया है।
〰✧ हे शान्ति देवा! आपके भक्त आपके जड चित्रों से शान्ति का अल्पकाल का अनुभव करते हैं, ज्यादा करके मांगते भी शान्ति है क्योंकि शान्ति में सुख समाया हुआ है तो *बापदादा देख रहे थे कि शान्ति की शक्ति के अनुभवी आत्मायें कितनी हैं,* वर्णन करने वाली कितनी हैं और *प्रयोग करने वाली कितनी हैं।* इसके लिए - *'अन्तर्मुखता और एकान्तवासी' बनने की आवश्यकता है।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- यह ज्ञान और भक्ति के वन्डरफुल खेल में, फिर से सतोप्रधान पूज्य बनना*"
➳ _ ➳ एक खुबसूरत उपवन में झूले में झूलती हुई मै आत्मा... झूले के ऊपर नीचे के खेल को देख... मीठे बाबा की यादो में खो जाती हूँ... कि कैसे मीठे बाबा ने मुझे ज्ञान और भक्ति के खेल को समझाकर... मझे जनमो की यात्रा का राज समझा दिया है... *मीठे बाबा की यादो में अपने आत्मिक वजूद को पाकर, मै आत्मा... पुनः पावनता की खुशबु को स्वयं में भरकर... इस बेहद के स्टेज पर पूज्य बन मुस्करा रही हूँ..*.अपने इस खुबसूरत भाग्य का सिमरन करते हुए मै आत्मा... मीठे बाबा की बाँहों में झूलने वतन में पहुंचती हूँ...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को दिव्यगुण धारी बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की सच्ची यादो में सतोप्रधान पूज्य बनने का पुरुषार्थ करो... ज्ञान रत्नों से बुद्धि को भरपूर कर अथाह सम्पत्ति और सुखो के मालिक बनो... *मीठे बाबा की मीठी यादो में देहभान में लगे सारे दागो को मिटा दो... और पूज्य देवता बन शान से मुस्कराओ.*.."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा से दिव्यता के वरदान को लेकर मुस्करा कर कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा देह भान में आकर, अपनी सारी आत्मिक सुंदरता को खो गयी थी... मै क्या थी, और क्या हो गयी हूँ... *आपने मीठे बाबा मुझे सच्ची यादो की राहो पर चलाकर, कितना दिव्य और प्यारा बनाया है.*.. आपके हाथ और सच्चे साथ ने पूज्य रूप में विश्व धरा पर सजा दिया है..."
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपने अमूल्य रत्नों की जागीरों को सौंपते हुए कहते है :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वरीय यादो में हर पल हर संकल्प से डूबकर, सतोप्रधान पूज्य बन अनन्त सुखो का आनन्द उठाओ.*.. यह ज्ञान और भक्ति का वन्डरफुल खेल है, इसमे पुनः सतोप्रधान बन विश्व बादशाही को पाओ.. मीठे बाबा की यादो में सारे विकारो को भस्म कर, पावनता से सज संवर कर मुस्कराओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा के ज्ञान मणियो को अपने दिल में समाते हुए कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा आपकी फूलो सी गोद में बैठकर, ज्ञान रत्नों से मालामाल हो रही हूँ... *इस प्यारे खेल में पुनः पावनता से खिलकर, सतोप्रधान बन रही हूँ.*..आपकी यादो में विकारो की कालिमा से मुक्त होकर, देवताई चमक से भर रही हूँ..."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को रत्नों की दौलत से खुबसूरत बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *ज्ञान और भक्ति के इस जादुई खेल में, ईश्वर पिता के साथ से रत्नों से लबालब होकर, देवताई सौंदर्य को पा रहे हो.*.. मीठे बाबा के प्यार के साये तले अपने खोये ओज को पाकर... सच्चे सुखो में मुस्करा रहे हो... पावन पिता के संग में सदा की पावनता को पा रहे हो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा से पायी ज्ञान की अतुलनीय धनसंपदा से सजकर कहती हूँ :-"मीठे दुलारे बाबा मेरे... मै आत्मा किस कदर देह भान में फंसी थी और विकारो के दलदल में धँसी थी... *मीठे बाबा आपने हाथ देकर... जो मुझे बाहर निकाला है, मै आत्मा कितनी प्यारी पावन बनकर महक उठी हूँ..*. पूज्य बनकर निखर रही हूँ..."मीठे बाबा से पावनता का वरदान लेकर मै आत्मा... अपने वतन लौट आयी...
────────────────────────
∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- जीवन बाप की सेवा में लगाना और बहुत बहुत सुखदाई बनना*"
➳ _ ➳ अपने प्यारे मीठे शिव बाबा द्वारा मिल रही अनन्त प्राप्तियों की स्मृति आते ही मन उनके प्रति अगाध स्नेह की भावना से भर उठता है और उनका सुंदर, सलोना निराकारी स्वरूप सहज ही आंखों के सामने आ जाता है और मन मे उनका असीम प्रेम पाने की इच्छा जागृत होने लगती है। *मेरी यह इच्छा मेरे संकल्पो के माध्यम से जैसे ही मेरे मीठे प्यारे शिव पिता तक पहुंचती है मेरे दिलराम शिव बाबा अपना धाम छोड़ कर सेकेंड में मेरे पास आ जाते हैं*। उनसे आने वाली शीतल किरणों की शीतलता मुझे उनकी उपस्तिथि का अहसास करवा रही है। *मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ उनकी शक्तिशाली किरणों में समाए उनके असीम स्नेह को, उनके निश्छल, निस्वार्थ प्यार को*।
➳ _ ➳ मेरे दिलाराम शिव बाबा के प्यार की मीठी सुखद फुहारें मन को अथाह सुख प्रदान कर रही हैं। इन फुहारों से मिल रहे असीम आनन्द का आकर्षण मुझे धीरे धीरे उनके समीप ले जा रहा है। *उनके प्रेम के सुखद एहसास की मीठी डोर में बंधी मैं आत्मा अब अपने साकारी तन से बाहर आ कर, उनके साथ साथ चल पड़ती हूँ ऊपर की ओर*। उनकी किरणों रूपी बाहों के झूले में झूलती, अतीन्द्रिय सुख में गोते खाती मैं उनके साथ चली जा रही हूँ। *देह और देह की दुनिया के हर आकर्षण से मुक्त, हर बंधन से आजाद सुख के सागर शिव बाबा से मिल रहे गहन सुख में समाई मैं पहुंच गई अपने शिव बाबा के साथ उनके धाम*।
➳ _ ➳ परमधाम में सुख, शांति के सागर अपने प्यारे मीठे शिव परम पिता परमात्मा के सानिध्य में मैं आत्मा उनसे आ रही सर्वशक्तियों को स्वयं में समाहित करती जा रही हूँ। *उनसे आ रही सर्वशक्तियों की असीम किरणे जैसे - जैसे मुझ आत्मा पर प्रवाहित हो रही हैं मुझे ऐसा लग रहा है जैसे सुख का झरना मुझ आत्मा के ऊपर बह रहा है और मैं असीम सुख से भरपूर होती जा रही हूँ*। असीम सुख की अनुभूति करके, स्वयं को सर्वशक्तियों से सम्पन्न करके मैं आत्मा परमधाम से नीचे अब सूक्ष्म वतन में आ रही हूं।
➳ _ ➳ अब मैं देख रही हूँ स्वयं को सफेद प्रकाश से प्रकाशित फरिश्तों की जगमग करती हुई दुनिया में। *सफेद चमकीली फरिश्ता ड्रेस धारण कर मैं फरिश्ता पहुँच जाता हूँ अव्यक्त वतन वासी अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के सामने जिनकी भृकुटि में शिवबाबा चमक रहें हैं*। बापदादा बड़े प्यार से निहारते हुए अपनी मीठी दृष्टि मुझ पर डाल रहे हैं। उनकी शक्तिशाली दृष्टि से मुझ फरिश्ते के अंदर परमात्म बल भरता जा रहा है जो मुझे शक्तिशाली बना रहा है। *सुख की अनन्त शक्तियां बाबा मुझ में प्रवाहित करके मुझे आप समान मास्टर सुख दाता बना रहे हैं*।
➳ _ ➳ विश्व की दुखी आत्माओं को सुखी बनाने की सेवा अर्थ अब बाबा मुझे निमित बना कर वापिस साकारी दुनिया में लौटने का निर्देश देते हैं। *सुख का फरिश्ता बन अब मैं सूक्ष्म लोक से नीचे आ जाता हूँ और विश्व की तड़पती हुई दुखी अशांत आत्माओं को सुख की अनुभूति करवाने चल पड़ता हूँ*। एक बहुत ऊंचे और खुले स्थान पर जाकर मैं फरिश्ता बैठ जाता हूं। और अपने सुख सागर परमपिता परमात्मा शिव बाबा के साथ कनेक्शन जोड़ कर उनसे सुख की शक्तिशाली किरणे लेकर सारे विश्व में सुख के वायब्रेशन फैलाने लगता हूँ।
➳ _ ➳ सारे विश्व मे सुख, शांति की किरणें फैलाता और सबको सुख शांति की अनुभूति करवाता हुआ मैं फ़रिशता अब अपने साकारी तन में आ कर प्रवेश कर जाता हूँ इस स्मृति के साथ कि बाबा ने मुझे निमित बना कर ईश्वरीय सेवा अर्थ इस भू लोक पर भेजा है। इस बात को सदा स्मृति में रख अब मैं अपने जीवन को ईश्वरीय सेवा में सफल कर रही हूँ। *"मैं खुदाई खिदमतगार हूँ" इसलिए खुदा की खिदमत ही मेरे ब्राह्मण जीवन का कर्तव्य है। इसी स्मृति में स्थित हो कर अब मैं हर कर्म कर रही हूँ और अपने संकल्प, बोल और कर्म से अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को परमात्म सुख का अनुभव करवाकर उनके जीवन को भी सुखदाई बना रही हूँ*।
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा सत्यता के साथ सभ्यता पूर्वक बोल और चलन से आगे बढ़ती हूं।”*
➳ _ ➳ मैं आत्मा स्मृति स्वरुप हूं… मुझे स्व की, परमात्मा की, और ड्रामा स्मृति इस संगमयुग पर ईमर्ज रूप में है…मुझ आत्मा के अंदर सत्य ज्ञान है… मुझे सदैव याद रहता है कि *सत्यता निशानी है सभ्यता*… मुझे आत्मा में सत्यता की शक्ति है… मैं आत्मा सभ्यता को कभी नहीं छोड़ती… *सत्यता को सभ्यता पूर्वक सिद्ध करती हूं… सभ्यता की निशानी है निर्माण… असभ्यता की निशानी है जिद… मुझ आत्मा के सभ्यता पूर्वक बोल… और चलन से ही सफलता मिलती है*… यह मेरे और यज्ञ के आगे बढ़ने का साधन है… यदि मुझे आत्मा में *सत्यता हो… और सभ्यता नहीं… तो सफलता मुझे मिल नहीं सकेगी*…
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सम्बन्ध सम्पर्क और स्थिति में लाइट और दिनचर्या में दृढ़ रहने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं ब्राह्मण आत्मा सदा ईश्वरीय मर्यादाओं में चलने वाली श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ हूँ... सदा व्यवस्थित दिनचर्या में रहते सभी कार्यों को कुशलता और प्रभावी ढंग से करती हूँ... *ईश्वरीय धारणाएं मेरे लिए सुरक्षा दिवार है, जो मुझ आत्मा को माया से सुरक्षित रखती है...* प्यारे मीठे मेरे बाबा सदा मेरे साथ हैं... बाबा और मैं आत्मा कम्बाइंड हैं... बाबा के साथ कम्बाइंड रहते सम्बन्ध-सम्पर्क में सदा लाइट हूँ... सर्वशक्तिवान बाप के हाथो में बुद्धि रूपी हाथ दे मैं सदा निश्चिन्त हूँ... मेरी स्थिति एकदम लाईट हैं... ईश्वरीय दिनचर्या दृढ़ता से पालन करते मैं सदा माया से सेफ़ हूँ... *मैं आत्मा अमृतवेला से लेकर रात्रि बाबा को पोतामेल देने तक अपनी पूरी दिनचर्या का दृढ़ता से पालन करती हूँ...* मैं कर्मयोगी आत्मा हर कर्म को समय और परिस्थिति प्रमाण बाबा को साथ रखते हुए करती हूँ...
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *अपने भाई बहिनों के ऊपर रहमदिल बनो, और रहमदिल बन सेवा करेंगे तो उसमें निमित्त भाव स्वतः ही होगा।* किसी पर भी चाहे कितना भी बुरा हो लेकिन अगर आपको उस आत्मा के प्रति रहम है, तो आपको उसके प्रति कभी भी घृणा या ईर्ष्या या क्रोध की भावना नहीं आयेगी। *रहम की भावना सहज निमित्त भाव इमर्ज कर देती है।* मतलब का रहम नहीं, सच्चा रहम। मतलब का रहम भी होता है, किसी आत्मा के प्रति अन्दर लगाव होता है और समझते हैं रहम पड़ रहा है। तो वह हुआ मतलब का रहम। सच्चा रहम नहीं, *सच्चे रहम में कोई लगाव नहीं, कोई देह भान नहीं, आत्मा-आत्मा पर रहम कर रही है। देह अभिमान वा देह के किसी भी आकर्षण का नाम-निशान नहीं।* कोई का लगाव बाडी से होता है और कोई का लगाव गुणों से, विशेषता से भी होता है।
➳ _ ➳ लेकिन विशेषता वा गुण देने वाला कौन? *आत्मा तो फिर भी कितनी भी बड़ी हो लेकिन बाप से लेवता (लेने वाली) है। अपना नहीं है, बाप ने दिया है। तो क्यों नहीं डायरेक्ट दाता से लो।* इसीलिए कहा कि स्वार्थ का रहम नहीं। कई बच्चे ऐसे नाज-नखरे दिखाते हैं, होगा स्वार्थ और कहेंगे मुझे रहम पड़ता है। और कुछ भी नहीं है सिर्फ रहम है।
➳ _ ➳ *लेकिन चेक करो - निःस्वार्थ रहम है? लगावमुक्त रहम है? कोई अल्पकाल की प्राप्ति के कारण तो रहम नहीं है?* फिर कहेंगे बहुत अच्छी है ना, बहुत अच्छा है ना, इसीलिए थोड़ा.... थोड़े की छुट्टी नहीं है। अगर कर्मातीत बनना है तो यह सभी रूकावटें हैं जो बाडी कानसेस में ले आती हैं। अच्छा है, लेकिन बनाने वाला कौन? *अच्छाई भले धारण करो लेकिन अच्छाई में प्रभावित नहीं हो। न्यारे और बाप के प्यारे। जो बाप के प्यारे हैं वह सदा सेफ हैं।* समझा!
✺ *ड्रिल :- "सच्चा और निःस्वार्थ रहम की भावना रख न्यारे और बाप के प्यारे बनने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने इस स्थूल शरीर से निकलकर फरिश्ता बनकर ऊपर उड़ती हूँ... *इस साकारी दुनिया से ऊपर चाँद सितारों को पीछे छोड़ते हुए सूक्ष्म वतन में आकर ठहरती हूँ...* चारों ओर चाँदनी सा प्रकाश बिखरा हुआ है... मेरे अंदर भी ये प्रकाश समाने लगता है... थोड़ा आगे चलकर अपने सामने ब्रह्मा बाबा को देखती हूँ और उनके सम्मुख जाकर बैठ जाती हूँ...
➳ _ ➳ बाबा की शक्तिशाली किरणें मुझ आत्मा में प्रवाहित होने लगी हैं... *मेरे पुराने सब आसुरी संस्कार भस्म हो रहे हैं और दैवी संस्कार इमर्ज हो रहे हैं*... बाबा की शक्तिशाली किरणें मेरी सब कमी कमज़ोरियों को समाप्त कर रही हैं और अब मैं आत्मा बाबा का प्रकाश स्वयं में महसूस कर रही हूं... एक दम हल्की हो गयी हूँ...
➳ _ ➳ बाबा के प्यार की किरणें मेरे क्रोध के संस्कार को समाप्त कर रही हैं और मैं आत्मा अपने मूल स्वरूप शान्त स्वरूप में स्थित हो गयी हूँ... *किसी भी आत्मा के प्रति ईर्ष्या या घृणा के भाव समाप्त हो रहे हैं और रहम के संस्कार मुझ आत्मा में भर रहे हैं*... मेरे संपर्क में आने वाली हर आत्मा को मैं स्नेह देती हूँ... कैसी भी आसुरी संस्कार वाली आत्मा हो मैं उससे घृणा नहीं करती उसे रहम के वाइब्रेशन दे उसके संस्कार परिवर्तन में सहयोग देती हूं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा देह के भान से न्यारी हूँ... देह अभिमान और देह के आकर्षण से मुक्त हूँ... *सर्व आत्माएं मेरे भाई बहन हैं और मैं अपने सभी भाई बहनों के प्रति रहम की भावना रखती हूँ...* बाबा का प्यार मुझमें वो अलौकिक ख़ुशी भर रहा है जिससे मैं किसी भी आत्मा से ईर्ष्या नहीं करती... सबको सहयोग दे आगे बढ़ाती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा के प्यार में समाती जा रही हूँ... *बाबा के साथ सर्व संबंध जोड़ कर मैं आत्मा इस संसार के लगाव से मुक्त होती जा रही हूँ*... संसार के वैभव, देह के संबंध सब कुछ पीछे छोड़ रही हूँ... *और मैं आत्मा बाबा की प्यारी बनती जा रही हूँ*
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━