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❍ 07 / 02 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *इस पुरानी दुनिया को बुधी से भूल बेहद के वैरागी बनकर रहे ?*
➢➢ *बाप सामान ओबीडीयंट बन सेवा की ?*
➢➢ *किसी भी बात में मूंझे तो नहीं ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *सदा उमंग उत्साह के पंखों द्वारा उडती कला की स्थिति का अनुभव किया ?*
➢➢ *अशरीरी स्थिति के अभ्यासी बन शारीरिक आकर्षण से दूर रहे ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *आवश्यकता को हद में रख लोभ के अंश को समाप्त किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - सदा इसी नशे में रहो की ज्ञान सागर बाप ने ज्ञान देकर हमे स्वदर्शन चक्रधारी त्रिकालदर्शी बनाया है, हम है ब्रह्मा वँशी ब्राह्मण"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... सत्य ज्ञान के बिना सत्य पिता के बिना किस कदर दुखो की अंधी गलियो में भटक रहे थे... अब जो *ईश्वर पिता ने अपनी पलको से चुनकर फूलो सा सजाया है*... ज्ञान रत्नों से मालदार बनाया है... उस मीठे भाग्य के नशे में झूम जाओ... और ब्राह्मण होने के मीठे भाग्य पर इठलाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपसे ज्ञान रत्नों की असीम दौलत पाकर... सारे सुखो को कदमो में बिखरा चली हूँ... स्वयं से थी कभी अनजान जो आज त्रिकालदर्शी बन मुस्करा रही हूँ... *ब्रह्मा वंशी बन विश्व धरा पर चहक रही हूँ.*..
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... दुनिया जिसे पुकार रही... वह विश्व पिता अपने बच्चों को बैठ पढ़ा रहा... *ज्ञान रत्नों से दामन सजा रहा.*.. अपनी सारी जागीर सारे खजाने बच्चों पर दिल खोल लुटा रहा... सारे राज बताकर सदा का समझदार बना रहा... इस खुबसूरत मीठे भाग्य के नशे में झूम झूम जाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अपने अनोखे अदभुत से भाग्य पर बलिहार हूँ... धरा की मिटटी से सने देह के रिश्तो से निकल... सच्चे प्यार सच्चे धन को पा रही हूँ... *यूँ भगवान की गोद में इठलाऊँगी.*.. भला कब मेने सोचा था... कितना मीठा सा मेरा भाग्य है...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता से वर्से में जो ज्ञान धन पाकर मालामाल बने हो... उस दौलत को हर साँस संकल्प में गिनते ही रहो... पूरे विश्व में आप चुने हुए भाग्यशाली ब्रह्मा वत्स हो... और *ईश्वर पिता के हर जज्बात को जानने वाले* उनके दिल पर राज करने वाले दिल पसन्द हो... इस नशे की खुमारी में खो जाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आज आपके प्यार को पाकर कितनी धनवान् हो गयी हूँ... *ज्ञान रत्नों की बेशुमार दौलत मेरे चँहु ओर बिखरी है.*.. और इस अखूट खजाने को पाकर ज्ञान परी बन चहक रही हूँ... मा त्रिकालदर्शी बन मुस्करा रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा कर्मयोगी हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं कितनी ही खुशनसीब आत्मा हूँ... *पद्मापदम तकदीरवान आत्मा* हूँ... जो मुझ आत्मा को स्वयं परमात्मा की गोद मिली... मैं आत्मा रोज परमात्म पालना का अनुभव करती हूँ... डायरेक्ट परमात्मा की शिक्षाओं को सम्मुख सुनती हूँ... ग्रहण करती हूँ... शिक्षाओं को धारण कर मैं आत्मा धारणा स्वरूप बनने का अभ्यास कर रही हूँ...
➳ _ ➳ प्यारे बाबा के मुख से मीठे बच्चे सुनते ही मुझ आत्मा का तन-मन मिठास से भर जाते हैं... प्यारे बाबा की मधुर मुरली की गूंज कानों में पड़ते ही मैं आत्मा अपनी सुध-बुध खो जाती हूँ... प्यारे ते प्यारे बाबा से योग लगाते ही मुझ आत्मा के सारे विकर्म विनाश होते जा रहे हैं... मैं आत्मा *सतगुणों, शक्तियों से सम्पन्न* बनती जा रही हूँ... शक्तिशाली बनती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ परमात्मा ने मुझ आत्मा के *नीरस जीवन में उमंग-उत्साह का रस* भर दिया है... अब मैं आत्मा सदा उमंग-उत्साह के पंखों से उड़ती कला का अनुभव करती हूँ... अब मैं आत्मा सदा उड़ते ही रहती हूँ... मैं आत्मा कर्मयोगी बन कार्य अर्थ नीचे आकर कर्म करती हूँ... फिर उड़ती कला में स्थित हो जाती हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा कभी भी दिलशिकस्त नहीं होती हूँ... सदा दिलखुश रहती हूँ... अब मैं आत्मा शक्तिशाली बन हर तूफान का सामना करती हूँ... हर परीक्षा व समस्या को मनोरंजन अनुभव करती हूँ... अब मैं आत्मा सदा उमंग-उत्साह के पंखों द्वारा *उड़ती कला की स्थिति का अनुभव* करने वाली कर्मयोगी बनने का पुरुषार्थ कर रही हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अशरीरी स्थिति के अभ्यास से शरीर के आकर्षण से मुक्त रहना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा भृकुटि में चमकती ज्योति... इस शरीर को चलाने वाली शक्ति हूँ... ये शरीर अलग मैं आत्मा अलग... मैं आत्मा इस शरीर की मालिक हूँ... ये शरीर भारी हैं... मैं आत्मा इस शरीर में बैठी एकदम हल्की हूँ, लाईट हूँ... *पल भर में मैं आत्मा इस शरीर से अलग हो जाती हूँ... अभी-अभी शरीर में... अभी-अभी अशरीरी...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा घड़ी-घड़ी अशरीरी होने का अभ्यास करती हूँ...* बीच-बीच में शरीर के भान से एकदम मुक्त हो अशरीरी हो जाती हूँ... मैं कर्मयोगी आत्मा... कर्म करते भी अशरीरी होने का अभ्यास करते रहती हूँ... अशरीरी स्थिति के अभ्यास से शरीर के आकर्षण से सम्पूर्ण मुक्त हूँ...
➳ _ ➳ मैं देह और देह के सभी आकर्षण से मुक्त शक्तिशाली आत्मा हूँ... *इस शरीर में मैं आत्मा मेहमान हूँ...* मैं इस शरीर में महान कार्य करने अवतरित आत्मा हूँ... यही स्मृति में रख... इस शरीर से नष्टमोहा... मैं मोहजीत आत्मा हूँ... ये शरीर मुझे किंचित मात्र भी आकर्षित नहीं करता हैं...
➳ _ ➳ अशरीरी रहने के अभ्यास से मैं आत्मा एकदम हल्का हो, जब चाहे तब उड़ सकती हूँ... कोई भी बन्धन मुझे खींचता नहीं... इस शरीर के बन्धन से भी मुक्त हूँ... *मैं अशरीरी के अभ्यास से शिव बाबा के एकदम नजदीक हूँ...* हमेशा बाबा के साथ हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *सदा उमंग उत्साह के पंखों द्वारा उड़ती कला की स्थिति का अनुभव करने वाले कर्मयोगी होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ उड़ती कला वाली आत्मा की निशानी होती है *सदा ख़ुश रहना और दूसरों में ख़ुशी बाँटना* । तो ऐसे में ये स्वाभाविक है कि आत्मा की स्मृति में ये जरूर रहेगा की उससे ये ख़ुशी किस द्वारा मिली । जैसे लौकिक में मन चाहा गिफ़्ट अगर हमें कोई देकर ख़ुश करदे तो क्या हम गिफ्ट देने वाले को भूलते है ?
नहीं ना , तो ऐसे ही जिस दिन पहली बार आत्मा को यह अनुभव हुआ की मुझे भगवान मिल गया उस दिन बाबा को याद नही करना पड़ा स्वतः ही याद आयी ।
❉ इसी तरह आत्मा उड़ती कला में ऑटोमेटिकली *स्मृति में रहती की यह उमंग उत्साह किस द्वारा मिली* तो याद ऑटोमेटिकली निरंतर रहेगी और कर्मयोगी की स्टेज बन जायेगी । इसलिए बाबा कहते ज्ञान की धारणा के जब अनुभवी बनती है आत्मा तब उसको योग लगाना नही पड़ता बल्कि बाबा की याद स्वतः याद आती है ।
❉ सदा उमंग उत्साह का साधन है *ज्ञान और योग के पंख* अर्थात ज्ञान तो है कि मैं एक शान्त स्वरूप आत्मा हुँ ,मुझ आत्मा का स्वधर्म है ही शान्त लेकिन योग नहीं है अर्थात शक्ति नही है इसको फ़ील या अनुभव करने की इसकी वजह से सदा उमंग का पारा नही चढ़ता ओर कभी कभी की लिस्ट में आ जाते है इसलिए बाबा ने कहा सदा उमंग में रहने है तो स्नेह शक्ति का बैलेन्स होना चाहिए ।
❉ जैसे ब्रह्मा बाबा को बड़ी से बड़ी परिस्थिति में भी सदा स्वयं का और सर्व का उमंग बढ़ाते हुए देखा , बाबा मुरली चलाते ही ऐसे थे की शिवबाबा और उनके बीच की रूहरहान *सदैव रोमांचक ( स्नेह या लव) और गम्भीरता (शक्ति या लॉ ) का बैलेन्स* बनाए रखता था इससे वह लॉ की वजह से सदा उड़ती कला और लव की वजह से सदा उमंग उत्साह के पंख लगाए सहज कर्मयोगी बनकर दिखाया ।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *जो अशरीरी स्थिति के अभ्यासी हैं उन्हें शरीर की आकर्षण आकर्षित नहीं कर सकती... क्यों और कैसे* ?
❉ स्वयं को देह समझने की भूल ने ही आज मनुष्य को सुख, शांति से वंचित कर दिया है इसलिए सभी दुखी और अशांत हो गए है । *सुख शांति की तलाश ही आज सबको भौतिक आकर्षणों की ओर आकर्षित कर रही है* और उनकी चकाचौंध में मनुष्य अपने वास्तविक आत्मिक स्वरूप, आत्मा के निजी गुण इन सबको भी भूल गया है । इसलिए अब जितना आत्मिक स्थिति में स्थित रहने का अभ्यास करेंगे उतना देह और दैहिक आकर्षणों से स्वयं को मुक्त कर सकेंगे ।
❉ इस बात को सभी स्वीकार करते हैं कि इस दुनिया में मनुष्य अकेला आता है और उसे वापिस भी अकेले ही जाना है । जितना इस बात को स्मृति में रखेंगे उतना अशरीरी स्थिति में स्थित रहने के अभ्यासी सहज ही बनते जायेंगे । जिससे देह का आकर्षण धीरे धीरे समाप्त होता जायेगा और *बुद्धि का योग दुनियावी सम्बन्धो से निकल एक परमात्मा में लगने लगेगा* । परमात्म ज्ञान को जब ढाल बना कर अपने साथ रखेंगे तो हद की सभी बातों से सहज ही किनारा होता जायेगा ।
❉ प्रायः कोई भी मनुष्य तब तक भटकता है जब तक उसके सामने उसका लक्ष्य और मंजिल स्पष्ट नही होते । जब उसके सामने उसके जीवन का लक्ष्य और मंजिल स्पष्ट हो जाते हैं तो उसका पूरा ध्यान और प्रयास केवल अपनी मंजिल को पाने का होता है । *हमारे सामने भी हमारा लक्ष्य और मंजिल स्पष्ट है कि हमे बाप समान सम्पूर्ण बनना है* । संपूर्णता के इस लक्ष्य को तभी प्राप्त कर सकेंगे जब शरीर के किसी भी आकर्षण में आकर्षित नही होंगे और यह तभी होगा जब निरन्तर अशरीरी स्थिति के अभ्यासी बनेंगे ।
❉ जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव करने का आधार है तपस्या और तपस्या का आधार है न्यारे और प्यारे बनना । जितना न्यारे और प्यारे रहेंगे उतना स्थिति एकरस रहेगी और बन्धन मुक्त स्थिति का अनुभव कर सकेंगे । *अगर न्यारे और प्यारे नही बनेंगे तो हद के आकर्षणों में आसक्ति रहेगी* और यह हद के आकर्षण मन बुद्धि को विचलित करके सर्व प्राप्तियों से वंचित कर देंगे । इसलिए जितना अशरीरी स्थिति के अभ्यासी बनेंगे उतना हद के आकर्षणों में आकर्षित होने के बजाए बेहद की स्थिति में स्थित होते जायेंगे ।
❉ जो अशरीरी स्थिति के अभ्यासी होते हैं वे स्वयं को सहज ही देह और देह की दुनिया से डिटैच कर लेते हैं और आत्मिक स्मृति में स्थित हो कर मन बुद्धि को केवल एक बाप की याद में ही लगाये रखते हैं तथा *सर्व सम्बन्धो से सदा एक बाप के साथ ही मिलन मेला मनाते रहते हैं* । उन्हें सदैव यही स्मृति रहती है कि वे निरन्तर सर्वशक्तिवान बाप की छत्रछाया के भीतर सुरक्षित हैं । यह स्मृति उन्हें शरीर के किसी भी आकर्षण में आकर्षित नही होने देती । इसलिए वे सर्व आकर्षणों से मुक्त हो सदा उड़ती कला में उड़ते रहते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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