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 14 / 08 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *पढाई में समय का बहाना तो नहीं दिया ?*

 

➢➢ *ज्ञान को बुधी में रख सदा हर्षित रहे ?*

 

➢➢ *"मेरा तो एक शिव बाबा, दूसरा न कोई" - यही पाठ पक्का किया ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *शुद्ध संकल्पों के घेराव द्वारा सदा छत्रछाया की अनुभूति की ?*

 

➢➢ *शरीर से डीटेच रहने का अभ्यास किया ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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➳ _ ➳  आग में पडा हुआ बीज कभी फल नहीं देता। तो *इस हिसाब-किताब के विस्तार रूपी वृक्ष को लगन की अग्नि में समाप्त करो।* फिर क्या रह जायेगा? देह और देह के सम्बन्ध वा पदार्थ का विस्तार खत्म हो गया तो *बाकी रह जयेगा बिन्दु आत्मा वा बीज आत्मा'* जब ऐसे बिन्दु, बीज स्वरूप बन जाओ तब आवाज से परे बीजरूप बाप के साथ चल सको। इसलिए पूछा कि आवाज से परे जाने के लिए तैयार हो? विस्तार को समाप्त कर दिया है? बीजरूप बाप, बीज स्वरूप आत्माओं को ही ले जायेंगे। बीज स्वरूप बन गये हो? *जो एवररेडी होगा उसको अभी से अलौकिक अनुभूतियाँ होती रहेगी।* क्या होगी? चलते, फिरते, बैठते, बातचीत करते पहली अनुभूति - यह शरीर जो हिसाब-किताब के वृक्ष का मूल तना है जिससे यह शाखायें प्रकट होती हैं, *यह देह और आत्मा रूपी बीज, दोनों ही बिल्कुल अलग हैं।* ऐसे आत्मा न्यारे-पन का चलते-फिरते बारबार अनुभव करेंगे। नॉलेज के हिसाब से नहीं कि आत्मा और शरीर अलग है। लेकिन शरीर से अलग मैं आत्मा हूँ। यह अलग वस्तु की अनुभूति हो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  ज्ञान को बुद्धि में रख सदा हर्षित रहना"*

 

_ ➳  एक खुबसूरत पहाड़ी पर बैठकर... पहाड़ो के सौंदर्य को निहारते हुए मै आत्मा... पहाड़ो की ऊंचाई देख... *अपनी ज्ञान की ऊँची अवस्था... और ऊँचा उठाने वाले मीठे बाबा को याद करती हूँ..*. और सोचके आनन्दित हो रही हूँ... कि कितना प्यारा भाग्य मुझ आत्मा ने पाया है... भगवान जीवन में शिक्षक बनकर... कितनी ऊँची तालीम से मुझे सजा रहा है... *देह की हदो से निकाल मुझे बेहद में बसा रहा है.*.. इन सुंदर पहाड़ो की तरहा मै आत्मा... विश्व जगत में अनोखी बनकर शान से मुस्करा रही हूँ... और मीठे बाबा को यादो में दिल से शुक्रिया कहती हूँ...

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपने मीठे सुखो की याद दिलाते हुए कहते है;- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *अपने सच्चे सहारे मीठे बाबा को शिक्षक रूप में पाकर बेहद को जानने वाले मा त्रिकालदर्शी बन मुस्करा रहे हो.*.. विश्व के आदि मध्य अंत को जानने वाले ज्ञान की रौशनी से प्रकाशित हो... ऐसे मीठे भाग्य मे सदा आनन्दित रहो...

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा के ज्ञान धन को दिल में समाते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे मेरे बाबा... मै आत्मा अज्ञान के अंधेरो में और दुखो के जंगल में भटक रही थी... *आपने मुझे ढूंढ कर अपना बच्चा बनाया है... और देवताई राज्यभाग्य से मेरा दामन सजाया है..*. मै आत्मा इन मीठी खुशियो में झूम रही हूँ..."

 

   प्यारे बाबा मुझ आत्मा को सच्ची खुशियो से सजाकर अपने भाग्य का नशा दिलाते हुए कहते है ;- "मीठे लाडले बच्चे... *कितना प्यारा और खुबसूरत सा भाग्य है... कि तीनो कालो तीनो लोको को जानने वाले, मा नॉलेजफुल बन मुस्करा रहे हो.*.. दुनिया किन अंधेरो में जी रही... और आप ज्ञान की चमक से सुखो भरे उजालो में आ गए हो...

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा को टीचर रूप में पाकर अपने भाग्य पर पुलकित होते हुए मीठे बाबा से कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा देह के अँधेरे में खुद को भी खो गयी थी... *आपने मेरा सच्चा वजूद याद दिलाकर, मुझे सारे भ्रमो से मुक्त कर दिया है.*.. मुझे अपनी खोयी चमक से पुनः सजा दिया है..."

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा को ज्ञान रत्नों की माला से सजाकर कहते है :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... *देह की हदो से निकलकर, विश्व जगत को जानने वाले मा ज्ञान सागर बनकर मुस्करा रहे हो..*. ज्ञान रत्नों को सदा बुद्धि में गिनकर ख़ुशी में नाचते रहो... ईश्वरीय खजानो को पाने वाले मालामाल हो..."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा की खानों की मालिक बनकर ख़ुशी में झूमते हुए कहती हूँ :- "मीठे दुलारे बाबा मेरे... *आपने जीवन में आकर जीवन को खुशियो का मधुमास बनाया है..*.मै आत्मा आज देह के, दुखो के, सारे कष्टो को भूल अलौकिक आनन्द में मगन हूँ... और सच्चे ज्ञान को पाकर सदा के लिए हर्षित हूँ..."प्यारे बाबा को अपने खुशनुमा जीवन की कहानी सुनाकर मै आत्मा... अपने धरातल पर आ गयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- एक बाप की अव्यभिचारी याद में रह आत्मा को सतोप्रधान बनाना*"

 

_ ➳  सोने में पड़ी हुई खाद को निकालने के किये एक सुनार उसे अग्नि में कितनी अच्छी तरह तपाता है। ठीक उसी प्रकार मुझ आत्मा के ऊपर 63 जन्मो के विकारों की जो कट चढ़ चुकी है उसे भस्म करने के लिए उसे भी तो योग अग्नि में तपाना बहुत जरूरी है और यह *योग अग्नि तभी प्रज्ज्वलित होगी जब सिवाय एक पतित पावन बाप की याद के और कोई की याद मन मे नही होगी। केवल एक बाबा की अव्यभिचारी याद ही, आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की कट को जला कर भस्म कर सकती है* और आत्मा को सम्पूर्ण पावन, सतोप्रधान बना सकती है। ये सब बातें मैं मन ही मन में सोच रही हूं।

 

_ ➳  इन बातों पर विचार करते करते मैं अशरीरी स्थिति में स्थित हो जैसे ही अपने शिव पिता परमात्मा की अव्यभिचारी याद में बैठती हूँ मैं डीप साइलेन्स में पहुंच जाती हूँ। इस स्थिति में स्थित होते ही देह, देह से जुड़ी हर वस्तु से मैं स्वयं को पूर्णतया मुक्त अनुभव करने लगती हूं और *इसी विमुक्त अवस्था में मैं स्वयं को विदेही, निराकार और मास्टर बीज रुप स्थिति में अपने बीच रुप परम पिता परमात्मा, संपूर्णता के सागर, पवित्रता के सागर, सर्वगुण और सर्व शक्तियों के अखुट भंडार, ज्ञान सागर, पारसनाथ बाप के सामने परमधाम में पाती हूँ*। उनसे आ रही अनन्त शक्तियों की किरणों से उतपन्न होने वाली योग अग्नि में अब मुझ आत्मा के विकर्म विनाश हो रहें हैं और मैं सम्पूर्ण पावन सतोप्रधान बन रही हूं।

 

_ ➳  अपने इसी अनादि सतोप्रधान स्वरुप में मैं आत्मा परमधाम से अब नीचे आ जाती हूं। संपूर्ण सतोप्रधान देह धारण कर नई सतोप्रधान दुनिया में मैं प्रवेश करती हूं। *संपूर्ण सतोप्रधान चोले में अवतरित देवकुल की सर्वश्रेष्ठ आत्मा के रुप में इस सृष्टि चक्र पर मेरा पार्ट आरंभ होता है*। अब मैं आत्मा अपने पूज्य स्वरूप का अनुभव कर रही हूं। मैं देख रही हूं मंदिरों में, शिवालयों में भक्त गण मेरी भव्य प्रतिमा स्थापन कर रहे हैं। मेरी जड़ प्रतिमा से भी शांति, शक्ति और प्रेम की किरणे निकल रहीं हैं जो मेरे भक्तों को तृप्त कर रही हैं।

 

_ ➳  अपने देवताई और पूज्य स्वरूप का आनन्द ले कर अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होती हूँ। इस स्वरूप में टिकते ही अपने ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों की स्मृति मुझे आनन्द विभोर कर देती है। इस बात की स्मृति आते ही अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य पर मुझे नाज़ होता है कि *मेरा यह दिव्य आलौकिक जन्म स्वयं परमपिता परमात्मा शिव बाबा के कमल मुख द्वारा हुआ है*। स्वयं परमात्मा ने मुझे कोटों में से चुन कर अपना बनाया है। तो अब मेरा भी यह फर्ज बनता है कि अपने प्यारे मीठे बाबा की श्रीमत पर चल कर मैं ब्राह्मण सो फ़रिशता बनने का पार्ट जल्दी ही समाप्त करूँ ताकि इस पार्ट को पूरा करके अति शीघ्र उसी सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था को प्राप्त कर, अपने धाम वापिस लौट सकूं जिस सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था मे मैं आत्मा इस सृष्टि पर पार्ट बजाने आई थी।

 

_ ➳  इसलिये एक बाप की अव्यभिचारी याद में रह, आत्मा को सम्पूर्ण सतोप्रधान बनाने के लिए अब मैं अपने परमप्रिय परम पिता परमात्मा के प्रेम को ढाल बना कर, आसुरी दुनिया मे रहते हुए भी आसुरी सम्बन्धो के लगाव, झुकाव और टकराव से स्वयं को मुक्त कर रही हूं। *देह और देह की दुनिया मे रहते हुए भी मैं जैसे इस दुनिया मे नही हूँ। मैं आत्मा हूँ, परमपिता परमात्मा की अजर, अमर, अविनाशी सन्तान हूँ और मेरे सर्व सम्बन्ध एक के ही साथ हैं, इसी स्मृति में निरन्तर रह कर अब मैं आत्मा किसी भी देहधारी के नाम रूप में ना फंस कर, केवल पतित पावन अपने परम पिता परमात्मा की याद में रह स्वयं को पावन बना रही हूं*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा शुध्द संकल्पों के घेराव द्वारा सदा छत्रछाया का अनुभव करती हूं।"*

 

 _ ➳  *मेरा एक शुध्द वा श्रेष्ठ शक्तिशाली संकल्प बहुत कमाल कर सकता है... शुध्द संकल्पों का बंधन वा घेराव कमज़ोर आत्माओं के लिए छत्रछाया बनता है*... वह सेफ्‍टी का साधन वा किला बन जाता है... सिर्फ इसके अभ्यास के समय पहले युद्ध चलती है... व्यर्थ संकल्प शुध्द संकल्पों को कट करते हैं... लेकिन *मैं आत्मा दृढ़ संकल्प करती हूं कि मेरा साथी स्वयं बाप है... मेरे पास सदा ही विजय का तिलक है...* मैं सिर्फ इसे इमर्ज करती हूँ... इससे व्यर्थ स्वतः ही मर्ज हो जाता है...

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  शरीर से डिटैच रहने का अभ्यास करते रहने से फरिश्ते स्वरूप का साक्षात्कार कराते हुए अनुभव करना "*

 

_ ➳  देह के भान से मुक्त होकर... देह से रिश्ता समाप्त कर... *मैं अशरीरी आत्मा अपने फरिश्ते स्वरुप में स्थित हो जाती हूँ...* देह के हर बंधन से मुक्त... न्यारी व प्यारी प्रकाश स्वरुप आत्मा... *प्रकाश की काया में स्वयं को चलते फिरते अनुभव कर रही हूँ...* प्रकाश की काया वाला फरिश्ता दिव्य प्रकाश फैला रहा हूँ... यह देह बापदादा द्वारा मिली हुई... सेवा अर्थ अमानत है... मेहमान बन... *देह को आधार बनाकर कर्म करती हूँ... फिर फरिश्ते स्वरुप में स्थित हो जाती हूँ...* मैं डबल लाइट फरिश्ता ऊपर आकाश में हूँ... बाबा की शक्तिशाली किरणें मुझ पर पड़ रही हैं... सारे संसार को सकाश देता हुआ... सब के दुख दर्द दूर करता हुआ... सर्व शक्तियों का दान दे रहा हूँ... *वह भी मुझे समीप अनुभव कर मेरा सहयोग प्राप्त कर... मुझे अशरीरी आत्मा का फरिश्ता स्वरूप अनुभव कर रही हैं...* परमात्मा प्रत्यक्षता से... शिव बाबा के प्रेम में मग्न हो आनन्दित होती जा रही हैं...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  *जब सर्वशक्तिमान् बाप साथ है तो सर्वशक्तिमान् के आगे अपवित्रता आ सकती हैनहीं आ सकती।* लेकिन आती तो है! तो आती फिर कहाँ से हैकोई और जगह हैचोर लोग जो होते हैं वो अपना स्पेशल गेट बना लेते हैं। चोर गेट होता है। तो *आपके पास भी छिपा हुआ चोर गेट तो नहीं हैचेक करो। नहीं तो माया आई कहाँ से?* ऊपर से आ गईअगर ऊपर से भी आ गई तो ऊपर ही खत्म हो जानी चाहिये।

➳ _ ➳  कोई छिपे हुए गेट से आती है जो आपको पता नहीं पड़ता है तो चेक करो कि माया ने कोई चोर गेट तो नहीं बनाकर रखा है? और गेट बनाती भी कैसे हैमालूम है? *आपके जो विशेष स्वभाव या संस्कार कमजोर होंगे तो वहीं माया अपना गेट बना देती है। क्योंकि जब कोई भी स्वभाव या संस्कार कमजोर है तो आप कितना भी गेट बन्द करोलेकिन कमजोर गेट हैतो माया तो जानीजाननहार है,उसको पता पड़ जाता है* कि ये गेट कमजोर हैइससे रास्ता मिल सकता है और मिलता भी है।

➳ _ ➳  *चलते-चलते अपवित्रता के संकल्प भी आते हैंबोल भी होताकर्म भी हो जाता है। तो गेट खुला हुआ है नातभी तो माया आई।* फिर साथ कैसे हुआकहने में तो कहते हो कि सर्वशक्तिमान् साथ है तो ये कमजोरी फिर कहाँ से आईकमजोरी रह सकती है? नहीं नातो क्यों रह जाती हैचाहे पवित्रता में कोई भी विकार हो, मानो लोभ हैलोभ सिर्फ खाने-पीने का नहीं होता। कई समझते हैं हमारे में पहनने, खाने या रहने का ऐसा तो कोई आकर्षण नहीं हैजो मिलता हैजो बनता हैउसमें चलते हैं। लेकिन जैसे आगे बढ़ते हैं तो माया लोभ भी रायल और सूक्ष्म रूप में लाती है।

➳ _ ➳   *मानो स्टूडेण्ट हैबहुत अच्छा निश्चयबुद्धिसेवाधारी है, सबमें अच्छा है लेकिन जब आगे बढ़ते हैं तो ये रायल लोभ आता है कि मैं इतना कुछ करता हूँसब रूप (तरह) से मददगार हूँ,* तन से, मन सेधन से और जिस समय चाहिये उस समय सेवा में हाजिर हो जाता हूँ फिर भी मेरा नाम कभी भी टीचर वर्णन नहीं करती कि ये जिज्ञासु बहुत अच्छा है। अगर मानों ये भी नहीं आवे तो फिर दूसरा रूप क्या होता हैअच्छानाम ले भी लिया तो *नाम सुनते-सुनते- मैं ही हूँमैं ही करता हूँमैं ही कर सकता हूँवो अभिमान के रूप में आ जायेगा।*

✺   *ड्रिल :-  "माया के रायल और सूक्ष्म रूप की चेकिंग करना"*

➳ _ ➳  मन बुद्धि रूपी विमान में बैठ मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ *शांतिवन में... बाबा रूम में... संकल्पों विकल्पों की हलचल से दूर... शांति के सागर शिवबाबा के सामने...* अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ... शक्तियों के सागर अपने प्यारे पिता को एकटक निहार रही हूँ... उनसे निकल रही शांति की किरणों से भरपूर कर रही हूँ स्वयं को... 

➳ _ ➳  मैं बाबा से कहती हूँ... बाबा, जब सर्वशक्तिवान आप मेरे साथ हो तो माया चोर गेट बना कर कैसे आ सकती है... पर बाबा... *माया बड़ी दुस्तर है... मेरे ऊपर बहुत कड़ी निगरानी रखती है...* कभी एक सेकंड के लिये भी क्रोध का सूक्ष्म अंश आ जाता है... या किसी बात में थोड़ा सा देहभान आ जाता है तो माया बिना एक पल गवांये वार कर देती है...  

➳ _ ➳  *बाबा, जब मैं आपकी बन गई... पवित्रता का कंगन बांध लिया तो फिर संकल्प में... बोल में... कर्म में... अपवित्रता सूक्ष्म में भी क्यों आ जाती है... मैं और मेरापन क्यों आ जाता है...* बाबा... जब पवित्रता के सागर... आप स्वयं मेरे साथ हो तो फिर यह अपवित्रता क्यों... बाबा, मेरे मीठे बाबा... *अब मैं अपने हर संकल्प... हर बोल... हर कर्म... की सूक्ष्म चेकिंग करुँगी... अटेंशन रूपी पहरेदार को अपनी इन सूक्ष्म कमजोरियों पर कड़ी निगरानी रखने के लिये कहूँगी...*

➳ _ ➳  *माया की इन रॉयल और सूक्ष्म कमजोरियों पर काबू पाने के लिये मुझे परखने की... समाने की... सहन करने की... शक्तियों का बल जमा करना है... मैं और मेरेपन के सूक्ष्म अहंकार को समाप्त करना है...* पुराने स्वभाव और संस्कार के वंश के अंश पर जीत पहननी है... जहाँ "मैं" शब्द याद आये वहाँ बाबा... आप याद आओ... और जहाँ "मेरा" याद आये... वहाँ आपकी श्रीमत याद आये...

➳ _ ➳  बाबा के हाथ में अपना हाथ देकर... मैं बाबा से कहती हूँ... प्यारे बाबा... *आज मैं आपसे प्रतिज्ञा करती हूँ  मैं माया के इस चोर गेट को अटेंशन रूपी डबल लॉक द्वारा बंद करुँगी... और हर कदम पर आपकी श्रीमत पर चलकर सम्पूर्ण पावन बन माया के रॉयल और सूक्ष्म रूप की गहराई से चेकिंग करुँगी...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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