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❍ 31 / 07 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *संगदोष में आकर ईश्वरीय बचपन को भूले तो नहीं ?*
➢➢ *हर एक को बाप से वर्सा लेने की युक्ति बतायी ?*
➢➢ *बाप की याद से विकर्मों का बोझ उतारा ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *साधारण जीवन में भावना के आधार पर श्रेष्ठ भाग्य बनाने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *सेवा में बड़ी दिल रख असम्भव जो भी संभव बनाया ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *सेवा में क्वान्टिटी के साथ साथ क्वालिटी पर भी अटेंशन दिया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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➳ _ ➳ *ये तो बाप-दादा ने सेवा के लिए समय दिया है।* सेवाधारी का पार्ट बजा रहे हो। तो अपने को देखो *यह शरीर का बन्धन तो नहीं है* अथवा यह पुराना चोला टाइट तो नहीं है? टाइट ड्रेस तो पसन्द नहीं करते हो ना? ड्रेस टाइट होगी तो एवररेडी नहीं होंगे। *बन्धन मुक्त अर्थात लूज ड्रेस, टाइट नहीं।* आर्डर मिला और सेकण्ड में गया। ऐसे बन्धन-मुक्त, योग-युक्त बने हो? *जब वायदा ही है ‘एक बाप दूसरा न कोई तो बन्धन मुक्त हो गये ना।*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ज्ञान के सिवाय, कोई व्यर्थ न सुनना, न सुनाना"*
➳ _ ➳ मै सोभाग्य से सजी आत्मा... अपने संगम के सोभाग्य के नशे में खोयी हुई.उड़ चलती हूँ... और मधुबन घर के पांडव भवन के शांति स्तम्भ पर... और मीठे बाबा के सम्मुख बेठ जाती हूँ... मीठे बाबा से अनवरत आती शक्तियो की किरणों को स्वयं में भरती जा रही हूँ... और मीठे बाबा से दिल की बाते कहती जा रही हूँ... मीठे बाबा भी मेरी यादो में उतावले... अपना परमधाम छोड़ मेरे दिल के करीब मौजूद है.. एक दूजे की यादो में खोये हुए बाबा और मै... एक दूजे की धड़कन की सुन रहे है... *बाबा की धड़कन कह रही है.. मेरे मीठे बच्चे... और मेरा दिल सुना रहा है... मेरे मीठे बाबा.*..
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को ज्ञान रत्नों से निखारते हुए कहते है :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... इस पुरानी दुनिया और देह के बन्धनों से बुद्धियोग निकाल कर शिव पिता की यादो में खो जाओ... हर पल, हर साँस मीठे बाबा को याद कर स्वर्ग का राज्य भाग्य अपनी बाँहों में भर लो... ज्ञान रत्नों की झनकार में सदा खोये रहो... *अब जब भगवान ही जीवन में आ गया है... तो किसी भी व्यर्थ में स्वयं को न उलझाओ.*.."
➳ _ ➳ मै भाग्यशाली आत्मा अपने बाबा से पाये अमूल्य खजाने को निहारती हुई कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... देह के नातो में जो मै आत्मा उलझ गयी थी... आपके प्यार भरे हाथो ने उन गांठो को सुलझा कर मुझे आत्मिक स्वरूप की माला में पिरो दिया है... *आत्मिक प्रेम का पर्याय बनी मै आत्मा हर पल समर्थ चिंतन और आपकी मीठी यादो में मगन हूँ.*.."
❉ प्यारे बाबा मुझ आत्मा पर ज्ञान धारा को प्रवाहित करते हुए कहते है :- "मीठे लाडले बच्चे... शिवबाबा की यादो भरा यह खुबसूरत वरदानी साथ मीठे भाग्य की बलिहारी है... इस समय को अब किसी भी व्यर्थ में न खपाओ... *ईश्वर पिता के साये में, गुणो और मूल्यों से सज संवर कर, देवता बन जाओ..*."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने प्यारे बाबा के ज्ञान दौलत की वारिस बनकर मुस्कराते हुए कहती हूँ :- "मीठे मनमीत बाबा... आपके सच्चे प्रेम ने मुझ आत्मा का कायाकल्प किया है... आपके प्यार ने मेरे दुर्गुणों को भस्म कर, मुझे अमूल्य रत्नों और गुणो की दौलत से भरपूर किया है... मै आत्मा, *ज्ञान बुलबुल बनकर इस विश्व बगिया में चहक रही हूँ.*.."
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपने वरदानों से सराबोर करते हुए कहते है ;- "मीठे सिकीलधे बच्चे... जिस ईश्वर पिता की जनमो से चाहना थी... *जब वो मिल गया है, तो साँस का हर तार, उसकी यादो में पिरो दो.*.. और सदा ज्ञान रत्नों की खनक में खोये रहो... जो भी सम्मुख आये उनको भी ज्ञान सुनाकर आप समान भाग्यवान बनाओ... यह दौलत हर दिल पर खूब लुटाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने मीठे भाग्य के नशे में डूबकर बाबा से कहती हूँ :- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... कब सोचा था कि पत्थर की प्रतिमा से भगवान निकल कर यूँ सजीव हो उठेगा... पिता बनकर मुझे यूँ गोद में बिठाएगा... और टीचर बन ज्ञान रत्नों से मेरी झोलियाँ भरेगा.., सतगुरु बन सदगति करेगा... *मेरे भाग्य ने यह कितना खुबसूरत दिन मुझे दिखलाया है*..." मीठे बाबा का दिल से शुक्रिया कर... मै आत्मा अपने कार्य जगत में आ गयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- संग दोष में आ कर ईश्वरीय बचपन को नही भूलना*"
➳ _ ➳ *"बचपन के दिन भुला ना देना, आज हंसे कल रुला ना देना" गीत की इन पंक्तियों पर विचार करते - करते मैं खो जाती हूँ अपने ईश्वरीय बचपन की उन सुखद अनमोल स्मृतियों में जब पहली बार मुझे मेरा सत्य परिचय मिला था*, अपने पिता परमात्मा का सत्य बोध हुआ था। उस सुखद एहसास का अनुभव करते - करते आंखों के सामने एक दृश्य उभर आता है।
➳ _ ➳ मैं देख रही हूं एक स्थान पर जैसे एक बहुत बड़ा मेला लगा हुआ है। एक छोटे बच्चे के रूप में मैं उस मेले में घूम रही हूं। सुंदर सुंदर नजारे देख कर आनन्दित हो रही हूं। बहुत देर तक उस मेले का आनन्द लेने के बाद मुझे अनुभव होता है कि मेरे साथ तो कोई भी नही। *मैं स्वयं को एकदम अकेला अनुभव करती हूं और अपने पिता को ढूंढने लगती हूं। मैं जोर - जोर से चिल्ला रही हूं किन्तु मेरी आवाज कोई नही सुन रहा*। सभी अपनी मस्ती में मस्त हैं। अब उस मेले की कोई भी वस्तु मुझे आकर्षित नही कर रही। घबरा कर मैं एकांत में बैठ अपना सिर नीचे कर रोने लगती हूँ। तभी कंधे पर किसी के हाथ का स्पर्श पा कर मैं जैसे ही अपना सिर ऊपर उठाती हूँ। *सामने एक लाइट का फ़रिशता जिसके मस्तक से बहुत तेज प्रकाश निकल रहा है मुझे दिखाई देता है और वो फ़रिशता मुझ से कह रहा है, बच्चे:- "घबराओ मत, मैं तुम्हारा पिता हूँ"*
➳ _ ➳ इस आवाज को सुनते ही मेरी चेतनता लौट आती है और याद आता है कि इतनी बड़ी दुनिया के मेले में, इतनी भीड़ में होते हुए भी मैं अकेली ही तो थी और ढूंढ रही थी अपने पिता परमात्मा को। मैं तो नही ढूंढ पाई लेकिन उन्होंने आकर मुझे ढूंढ लिया। *अपने ईश्वरीय जीवन का वो दिन याद आता है जब पहली बार खुद भगवान के उन शब्दों को सुना था कि तुम देह नही आत्मा हो, मेरे बच्चे हो, मेरी ही तरह ज्योति बिंदु रूप है तुम्हारा*। कितने जन्म हो गए तुम्हे मुझसे बिछुड़े हुए। आओ मेरे पास आओ। अपने पिता परमात्मा के सत्य परिचय को जान कर, उनके असीम स्नेह को अनुभव करने का वो एहसास स्मृति में आते ही मन अपने उस प्यारे पिता के प्रति असीम प्यार से भर जाता है और उनसे मिलने की तड़प मन मे उतपन्न हो उठती है।
➳ _ ➳ अपने पिता परमात्मा से मिलने के लिए अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित होकर, निर्बन्धन बन, अब मैं चमकता हुआ सितारा, ज्योति बिंदु आत्मा अपनी साकारी देह को छोड़ अपने निजधाम परमधाम की ओर चल पड़ती हूं और सेकंड में पहुंच जाती हूं प्रेम, सुख, शांति के सागर अपने शिव पिता के पास। *एक दम शांत और सुषुप्त अवस्था में मैं स्थित हूं। संकल्पों विकल्पों की हर प्रकार की हलचल से मुक्त इस शान्तिधाम में शांति के सागर अपने शिव पिता के सामने मैं गहन शांति का अनुभव कर रही हूं*। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं अपलक शक्तियों के सागर अपने शिव पिता को निहारते हुए, उनसे अनेक जन्मों के बिछड़ने की सारी प्यास बुझा रही हूँ। उनके प्रेम से, उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूं।
➳ _ ➳ परमात्म शक्तियों से भरपूर हो कर, अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति का गहन अनुभव करके अब मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूं। मेरे शिव पिता परमात्मा के प्रेम का अविनाशी रंग और मेरे ईश्वरीय बचपन की सुखद स्मृतियां अब मुझे देह और देह की दुनिया मे रहते हुए भी उनके संग के प्रभाव से मुक्त कर रही हैं। *ईश्वरीय प्रेम के रंग के आगे दुनियावी प्रेम अब मुझे बहुत ही फीका दिखाई दे रहा है इसलिए हर प्रकार के संग दोष से अपनी सम्भाल करते हुए अब मैं ईश्वरीय प्रेम के रंग में रंग कर अपने जीवन को तथा औरों के जीवन को खुशहाल बना रही हूं*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा साधारण जीवन में भावना के आधार पर श्रेष्ठ भाग्य बनाती हूँ।"*
➳ _ ➳ *बापदादा को साधारण आत्माएं ही पसंद है... वह स्वयं भी साधारण तन में आते हैं...* आज का करोड़पति साधारण है... साधारण बच्चों में भावना होती है... और बाप को भावना वाले बच्चे चाहिए... देह-भान वाले नहीं... ड्रामा अनुसार संगमयुग पर मैं एक साधारण आत्मा बनी हूँ... *मेरा साधारण बनना भी भाग्य की निशानी है...* साधारण बच्चे ही भाग्य विधाता बाप को अपना बना लेता है.. *मैं आत्मा अब इसलिए अनुभव करती हूं कि भाग्य पर मेरा अधिकार है... अब मैं आत्मा ऐसे अधिकारी बन पदमापदम भाग्यवान बन गई हूँ...*
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सेवाओं में दिल बड़ी रखकर असंभव कार्य भी संभव होता हुआ अनुभव करना "*
➳ _ ➳ *मैं भाग्यवान आत्मा... सदा स्नेही, सहयोगी, सेवाधारी... शक्ति स्वरूप की स्थिति में स्थित हूँ... सेवाओं में सफलता मूर्त हूँ...* मैं आत्मा सदा बाप के साथ हूँ... बापदादा की सेफ्टी की छत्रछाया में सेफ हूँ... निर्विघ्न हूँ... सच्चीे दिल से सेवा करती हुई... हर विघ्न व हलचल से मुक्त हूँ... ईश्वरीय गुणों से स्वयं को भरपूर कर... *विश्व का कल्याण करने के लिए ईश्वरीय सेवा के लिए सदा उपस्थित हूँ...* ईश्वरीय कार्य में निमित्त बनने के श्रेष्ठ भाग्य के उमंग-उत्साह में उड़ती ही जा रही हूँ... सदा बाप के साथ का अनुभव कर रही हूँ... *सदा फालो फादर... सदा सी फादर करती हुई...* स्व तथा सर्व का कल्याण करती हुई मैं कल्याणकारी आत्मा... सर्व की और बापदादा की प्रिय... आज्ञाकारी बच्ची बन गई हूँ... *श्रेष्ठ स्थिति के जादू द्वारा हर असंभव कार्य सहज ही संभव होता प्रतीत हो रहा है...* फरिश्ते की लाइट और चमकीली ड्रैस पहनकर... हर कर्म को सहज ही दिव्य बनाती जा रही हूँ...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
➳ _ ➳ *वर्तमान
समय सेवा की रिजल्ट में क्वान्टिटी बहुत अच्छी है लेकिन अब उस क्वान्टिटी में
क्वालिटीज भरो। क्वान्टिटी की भी स्थापना के कार्य में आवश्यकता है।* लेकिन
वृक्ष के पत्तों का विस्तार हो और फल न हो तो क्या पसन्द करेंगे? पत्ते
भी हो और फल भी हों या सिर्फ पत्ते हों? पत्ते
वृक्ष का श्रृंगार हैं और फल सदाकाल के जीवन का सोर्स हैं।
✺
*"ड्रिल :- सेवा में क्वान्टिटी के साथ साथ क्वालिटी पर भी अटेंशन देना।"*
➳ _ ➳
मैं
आत्मा परमात्मा को याद करते हुए अपने मन बुद्धि से एक बुलबुले के अंदर अपने आप
को इमर्ज करती हूं... और मैं अनुभव करती हूँ कि मैं उस बुलबुले में बैठी हूं...
और उड़ती जा रही हूं... *खुले आसमान में उड़ते हुए मैं अपने आपको इस दुनिया में
सबसे अद्भुत अनुभव करती हूं... मैं अनुभव करती हूँ... कि उड़ने की शक्ति
परमात्मा ने केवल मुझे ही दी है... मैं आत्मा यह सोचते हुए अपने आप को उस
बुलबुले की सहायता से और भी ऊंची अवस्था में महसूस करती हूं...* और कुछ समय बाद
मैं अपनी मन बुद्धि से पहुंच जाती हूं अपने घर परमधाम... वहाँ पहुंचकर मैं
देखती हूं कि वहां का वातावरण इस इस स्थूल वतन से बिल्कुल ही न्यारा है...
➳ _ ➳
जैसे जैसे मैं परमधाम में समय व्यतीत करती हूं... मुझे आभास होता है कि उस लाल
सुनहरे प्रकाश के बीच मैं बुलबुले के आकार की चमकती हुई मणि के समान प्रतीत हो
रही हूं... और मैं अपने सामने परमात्मा को अनुभव करती हूँ... जिनसे अनेक रंग
बिरंगी किरणें निकल रही है... और मुझमें समाती जा रही है... *जैसे जैसे वह
शक्तिशाली किरणें मुझमें प्रवेश करने लगती है... वैसे वैसे ही मैं फिर से एक
बुलबुले के रूप में परिवर्तित होती जा रही हूं... और मुझे ये आभास होता है कि
परमात्मा मुझे अपनी शक्तिशाली किरणों से भर रहे हैं...* और इन किरणों से अपने
आप को भरपूर कर मैं अब बन जाती हूँ एक शक्तिशाली बुलबुला...
➳ _ ➳
और
मैं आत्मा अपनी मन बुद्धि से बुलबुले की आकृति में धीरे-धीरे नीचे उतरती जाती
हूं... जैसे जैसे मैं नीचे उतरते जाती हूं... मैं प्रकृति के पांचो तत्वों को
अपनी पॉजिटिव किरणों से पवित्र बनाती जा रही हूं... और मैं यह फील करती हूं...
कि *मुझ आत्मा रूपी बुलबुले से यह पवित्र किरणें निकलकर प्रकृति के पांचो
तत्वों को पवित्र बना रही है... और मैं उनको पवित्र बनते हुए अनुभव कर रही
हूं...* और जैसे ही मैं आत्मा इस धरा पर आती हूं... तो मैं अपने आप को इस
कल्पवृक्ष की जड़ों में स्थित कर लेती हूं... मैं अपनी शक्तिशाली किरणों से इस
पूरी सृष्टि को शांति की किरणें देती जा रही हूँ... और जैसे-जैसे मैं अपनी
शांति की किरणें सारे कल्पवृक्ष में फैलाती जा रही हूं... वैसे ही मैं अनुभव
करती हूँ... कि यह कल्पवृक्ष एकदम भरपूर हो रहा है... कल्पवृक्ष की एक-एक
शाखाएं शांति को अनुभव करते
हुए हरियाली से भरपूर हो रही हैं...
➳ _ ➳
और
जैसे-जैसे मुझसे किरणें निकलती जा रही है... मैं बुलबुले के आकार से धीरे-धीरे
अपने असली स्वरुप में आ रही हूं... मैं उस बुलबुले से अब चमकती हुई मणि रूपी
आत्मा का आभास कर रही हूं... और अपने आपसे एकाग्रचित अवस्था में स्थित होकर यह
संकल्प कर रही हूँ... कि मैं आत्मा अपने आपको सातों गुणों से भरपूर अनुभव करते
हुए और परमात्मा द्वारा दिए हुए हर खजाने को अपने अंदर समाते हुए... इस सृष्टि
की सेवाधारी बन कर रहूँगी... *मैं आत्मा अपने आपको विश्व सेवाधारी की स्टेज पर
अनुभव करती हूँ... और अपने अंदर सभी खजानों को भी गहराई से अनुभव करती हूँ...
तथा मैं अपनी सभी कमी कमजोरियों को बारीकी से चेक करते हुए... इन्हें समाप्त
करती जा रही हूं...* जैसे जैसे मैं अपनी कमी कमजोरियों को समाप्त करती जाती
हूं... मैं अपनी शांति भरी स्थिति का आनंद लेती जा रही हूँ... और अपनी शक्तियों
को पहचानते
हुए,
जानते हुए मैं अन्य दुखी आत्माओं को परमात्मा का परिचय देकर उन्हें सही मार्ग
पर लाती जा रही हूँ...
➳ _ ➳
अब
मैं आत्मा परमात्मा द्वारा दिए हुए... ज्ञान रत्नों और शक्तियों से श्रृंगारित
होती जा रही हूं... इन अविनाशी रत्नों से सज संवर कर अन्य आत्माओं को भी ज्ञान
रत्नों से सजाती जा रही हूं... मैं यह देख रही हूं... कि सभी आत्माएं
श्रृंगारित होकर बहुत ही आनंदित हो रही है... और बार-बार अपने आपको सजा सँवरा
देखकर हर्षित हो रही है... उनके हर्षित मुख के कारण मुझ आत्मा की चमक और भी
बढ़ती जा रही है... *जैसे-जैसे मैं अपने आप को शक्तिशाली स्थिति में अनुभव करती
हूं... वैसे वैसे ही मैं अपने आपके और भी करीब होती जा रही हूँ... और अपनी छुपी
हुई शक्तियों को पहचानती जा रही हूं...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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