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❍ 14 / 09 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *साक्षातकार आदि की आश न रख निश्चयबुधी बन पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *बीमारी आदि में बाप की याद में रहे ?*
➢➢ *"मैं अति सूक्षम आत्मा हूँ" - पहले पहले यह निश्चय किया ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *सूक्षम पापों से मुक्त बन सम्पूरण स्थिति को प्राप्त करने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *शक्ति, शान्ति और सर्वगुणों के स्तम्भ बनकर रहे ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ अब तो घर जाना है? (कब जाना है?) *समय कभी भी बता के नहीं आयेगा, अचानक ही आयेगा।* जब समझेंगे समीप है तो नहीं आयेगा। जब समझने से थोडे अलबेले होंगे तो अचानक आयेगा।
〰✧ आने की निशानी अलबेलेपन वाले अलबेलेपन में आयेंगे, नहीं तो नम्बर कैसे बनेंगे? फिर तो सब कहें - हम भी अष्ट हैं, हम भी पास हैं। लेकिन थोडा बहुत अचानक होने से ही नम्बर होंगे। बाकी *जो महारथी हैं उन्हों को टचिंग आयेगी।*
〰✧ लेकिन बाप नहीं बतायेगा। *टचिंग ऐसे ही आयेगी जैसे बाप ने सुनाया।* लेकिन बाप कभी एनाउन्स नहीं करेंगे। एक सेकण्ड पहले भी नहीं कहेंगे कि एक सेकण्ड बाद होना है। यह भी नहीं कहेंगे। नम्बरवार बनने हैं, इसलिए यह हिसाब रखा हुआ है। अच्छा।
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- आत्मा निश्चय करना, प्रवर्ति में रह शिवबाबा का बच्चा और पोत्रा समझना"*
➳ _ ➳ मीठे बाबा के कमरे में बेठी हुई मै आत्मा... अपलक अपने प्यारे बाबा को निहार रही हूँ... बाबा की वरदानी किरणों में शक्ति सम्पन्न बन रही हूँ... और मीठे चिंतन में खो रही हूँ... कि *प्यारे बाबा ने मुझे मेरे आत्मिक रूप का अहसास देकर... जीवन को नये आयाम दे दिए है.*.. स्वयं को शरीर समझकर जीना, कितना बोझिल और दुखदायी था... और आत्मिक भाव ने मुझ आत्मा को किस कदर हल्का, प्यारा, सुखी कर, सच्चे आनन्द से भर दिया है... अब देह के सारे बोझ काफूर हो गए है,.. और मै आत्मा परमात्मा शिव की यादो में मदमस्त हो गयी हूँ...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को देह के आवरण से छुड़ाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... अब इस देह भान से निकल स्वयं के सत्य स्वरूप में खो जाओ... आप देह नही हो, चमकती मणि हो, इसकी याद में गहरे डूब जाओ... *हर कर्म को करते हुए, सदा स्वयं को शिवबाबा का निराकारी बच्चा समझ, खुशियो में मुस्कराओ.*.. अलौकिक पिता ने हमे शिव बाबा से मिलवाया है... सदा इन मीठी यादो में रमण करो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा की श्रीमत को दिल में समाते हुए कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा *आपको पाकर, सत्य की चमक से निखर गयी हूँ... मै मात्र शरीर नही, बल्कि प्यारी पवित्र आत्मा हूँ, इन मीठे अहसासो में हर पल झूम रही हूँ.*.. आपने मेरा जीवन सत्य की रौशनी से भर दिया है... और मै आत्मा आपकी यादो में, हर कर्म को सुकर्म बनाती जा रही हूँ..."
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने प्यारे वजूद में गहरे डुबोते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वर पिता की मीठी गोद में बेठ, देह के मटमैले आकर्षण से निकलकर, अपनी आत्मिक तरंगो के आनंद में डूब जाओ.*.. जो हो उस सत्य के गहरे खो जाओ... दुनिया में रहते हुए... प्रव्रति में कार्य को करते हुए, सदा निराकारी पिता की यादो में खोये रहो... दिल से सदा यादो में खोये, अपने महान भाग्य की खुमारी में दिव्य कर्म करते रहो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा से देवताई संस्कार स्वयं में भरते हुए कहती हूँ :-"मीठे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा *आपकी ज्ञान रौशनी में अज्ञान के गहरे अंधेरो से बाहर निकल रही हूँ... और अपने दमकते स्वरूप को पाकर, असीम ख़ुशी से भर गयी हूँ.*.. देह की नश्वरता और विकारो के दलदल से बाहर निकल गयी हूँ... अपने खुबसूरत वजूद को पाकर मालामाल हो गयी हूँ..."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने निराकारी रूप के नशे से भरते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... सदा अपने चमकते रूप के भान में रह, इस दुनिया में हर कर्म को करो... *सदा स्वयं को आत्मा निश्चय कर, दिव्य कर्मो से अपने दामन को सुंदर बनाओ.*.. और इन सच्ची मीठी आत्मिक खुशियो को, अपने दिल आँगन में सदा के लिए पाओ...
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा की श्रीमत को गले लगाते हुए कहती हूँ :-"मेरे सच्चे सहारे बाबा... *मीठे बाबा आपने मुझ आत्मा का हाथ पकड़कर... मुझे कितना प्यारा जीवन दे दिया है.*.. आपकी श्रीमत को पाकर, मै आत्मा बेफिक्र बादशाह बन गयी हूँ... हर कर्म आपकी श्रीमत प्रमाण कर, सच्चे आनन्द में झूम रही हूँ... मीठे बाबा को दिल से धन्यवाद देकर मै आत्मा... अपनी स्थूल देह में लौट आयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- साक्षात्कार आदि की आश ना रख, निश्चय बुद्धि बन पुरुषार्थ करना*"
➳ _ ➳ मेरा यह ब्राह्मण जीवन पुरुषार्थी जीवन है जिसमे मुझे तीव्र पुरुषार्थ कर सम्पूर्ण बनने के अपने उस ऊंच लक्ष्य को पाना है जो लक्ष्य मेरे लिए मेरे परम पिता परमात्मा शिव बाबा ने निर्धारित किया है। *अपने उसी ऊंच लक्ष्य को स्मृति में ला कर, ऐसा ऊंच लक्ष्य देने वाले अपने शिव पिता परमात्मा को मैं याद करती हूँ और उनकी मीठी याद का आधार ले कर, ज्ञान और योग के पंख लगा कर मैं आत्मा उड़ने लगती हूँ*। सभी हद के किनारों का सहारा छोड़, सम्पूर्ण निश्चय बुद्धि बन केवल अपने शिव की पिता की याद का सहारा ले कर अब मैं आत्मा जा रही हूँ उनके पास उस निराकारी धाम में जहां देह और देह की दुनिया का कोई बोध नही।
➳ _ ➳ आत्माओं की इस निराकारी दुनिया मे मैं देख रही हूँ चारों और चमकती मणियों को जो सितारों की भांति चमक रही हैं। *सामने हैं महाज्योति शिव बाबा जो एक ज्योति पुंज के रूप में सुशोभित हो रहें हैं*। आत्माओं और परमात्मा के मंगल मिलन को मैं मन बुद्धि के नेत्रों से स्पष्ट देख रही हूँ। महाज्योति शिव परम पिता परमात्मा की अनन्त ज्योति के प्रकाश से हर चैतन्य दीपक की चमक तेजी से बढ़ रही है। *ऐसा लग रहा है जैसे कोई बहुत बड़ी दीपमाला है। सामने दीपराज और उनके सामने जगमग करते असंख्य चैतन्य दीपक*। इस खूबसूरत दृश्य को देख मैं मन ही मन आनन्दित हो रही हूँ।
➳ _ ➳ गहन आनन्द की अनुभूति करके मैं चैतन्य दीपक अब परमधाम से नीचे फरिश्तो की आकारी दुनिया में प्रवेश करती हूँ। चमकीली फ़रिशता ड्रेस धारण कर मैं बापदादा के सम्मुख पहुंचती हूँ। *बापदादा के अति शोभनीय लाइट माइट स्वरूप को मैं मन बुद्धि के नेत्रों से निहार रही हूँ और साथ ही साथ बापदादा की लाइट माइट को स्वयं में समा कर बापदादा के समान लाइट माइट बन रही हूँ*। बापदादा की लाइट माइट पा कर मेरी चमकीली फ़रिशता ड्रेस और भी चमकीली हो गई है। ऐसा लग रहा है जैसे मेरे अंग - अंग से श्वेत रश्मियां फव्वारा बन कर फूट रही है और चारों और फैलती जा रही हैं।
➳ _ ➳ अपने इस अति सुंदर, अति प्रकाशित स्वरूप को देख मैं आनन्द में गदगद हो रही हूँ। अपने इस अति चमकीले, अति प्रकाशवान स्वरूप में मैं अब सूक्ष्म लोक से नीचे साकार लोक की और आ रही हूँ। *मंदिरों, गुरुद्वारों, और अनेक धार्मिक स्थानों के ऊपर से गुजरते हुए मैं भगवान की भक्ति में डूबे भक्तों को देख रही हूँ*। अपने ईष्ट देव और ईष्ट देवी के साक्षात्कार की आश में कठिन से कठिन उपाय कर रहें हैं। उनके एक दर्शन मात्र के लिए कितने कर्मकांड कर रहें हैं। उनकी इस मनोकामना को पूर्ण करता, उनके इष्ट देव के रूप में उनकी साक्षात्कार की आश को पूरा करता हुआ मैं फ़रिशता अब पहुंच गया साकारी लोक में और अपने अति उज्ज्वल सूक्ष्म फ़रिशता स्वरूप के साथ अपने साकारी शरीर मे प्रवेश कर रहा हूँ।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं उन बेचारे भक्तो के बारे में सोच रही हूँ जो इस बात से सर्वथा अनजान है कि भगवान के या इष्ट देव/देवी के साक्षात्कार हो जाना कोई प्राप्ति नही है। *प्राप्ति तो परमात्म पालना में है और वही परमात्म पालना देने के लिए भगवान स्वयं इस धरती पर आए हैं*। अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य पर मुझे शुद्ध अभिमान हो रहा है कि कोटो में कोई, कोई में भी कोई वो सौभाग्यशाली आत्मा हूँ मैं, जिसका हर पल प्रभु प्रेम के पालने में कट रहा है।
➳ _ ➳ *साक्षात्कार की मेरे मन मे कोई आश ही नही क्योकि भगवान स्वयं सम्मुख आ कर अपने प्रेम की शीतल छांव में हर पल मुझे झुला रहा है और उसके प्रेम की यही शीतल छांव और परमात्म पालना की अनुभूति मुझे निश्चय बुद्धि बना रही है*। निश्चय बुद्धि बन, अपने पुरुषार्थ को तीव्र कर अब मैं निरन्तर आगे बढ़ती जा रही हूँ।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा सूक्ष्म पापों से मुक्त बन सम्पूर्ण स्थिति को प्राप्त करती हूँ।”*
➳ _ ➳ आज मेरे शिवबाबा ने शिक्षक के रूप में सावधानी दी… मैं आत्मा अपनी चेकिंग करती हूँ… कहीं मैं *वर्तमान समय कर्मों की गति के ज्ञान में बहुत इजी तो नहीं हो गयीं हूँ... कहीं मुझसे छोटे-छोटे पाप तो नहीं होते रहते हैं*… बाबा ने कर्म फिलॉसफी का सिद्धान्त बताया है… यदि मैं आत्मा *किसी की ग्लानी करती हूँ, किसी की गलती को फैलाती हूँ या किसी के साथ हाँ में हाँ भी मिलाती हूँ तो यह भी पाप के भागी बनती हूँ*…आज यदि मैं आत्मा किसी की ग्लानी करती हूँ तो कल वह मेरी दुगुनी ग्लानी करेगा… *यह छोटे-छोटे पाप सम्पूर्ण स्थिति को प्राप्त करने में विघ्न रूप बनते हैं… इसलिए कर्मों की गति को जानकर मैं ज्ञानी तू आत्मा पापों से मुक्त बन सिद्धि स्वरूप बन रही हूँ*…
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- आदि पिता के समान बनने के लिए शक्ति, शान्ति और सर्वगुणों के स्तम्भ बनना"*
➳ मैं ब्रह्मामुख वंशावली ब्राह्मण आत्मा हूँ... मैं आत्मा आदि पिता के सम्मुख बैठी हूँ... *शिव बाबा ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में दिव्य महाज्योति के स्वरुप में विराजमान है...* बापदादा से आती निरंतर शांति की किरणों का झरना मुझ आत्मा पर प्रवाहित हो रहा है... और मुझ आत्मा से शांति की किरणें चहुँ ओर फैलती जा रही हैं... *मैं आत्मा शांति का फरिश्ता बनती जा रही हूँ...* बापदादा से आती सतरंगी किरणें मुझ आत्मा में समाती जा रही हैं... और मैं आत्मा शक्तिशाली बनती जा रही हूँ... *जैसे बाबा ने आदि पिता को बनाया, वैसे मुझ आत्मा को भी बनना है... फाॅलो फादर करती मैं आत्मा बाप समान बनने का पुरूषार्थ कर रही हूँ...* दिल का हर संकल्प यही है बाबा तुम सा बनना ही है... मैं आत्मा बाबा का श्रीमत रुपी हाथ पकड़ शांति, शक्ति, और सर्वगुणों का स्तम्भ बनती जा रही हूँ...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *ब्राह्मण जीवन अर्थात् खुशी की जीवन।* कभी-कभी बापदादा देखते हैं, कोई-कोई के चेहरे जो होते हैं ना वह थोड़ा सा.... क्या होता है? अच्छी तरह से जानते हैं, तभी हंसते हैं। तो बापदादा को ऐसा चेहरा देख रहम भी आता और थोड़ा सा आश्चर्य भी लगता। मेरे बच्चे और उदास! हो सकता है क्या? नहीं ना! *उदास अर्थात् माया के दास। लेकिन आप तो मास्टर मायापति हो। माया आपके आगे क्या है? चींटी भी नहीं है, मरी हुई चींटी। दूर से लगता है जिंदा है लेकिन होती मरी हुई है।* सिर्फ दूर से परखने की शक्ति चाहिए। जैसे बाप की नालेज विस्तार से जानते हो ना, ऐसे माया के भी बहुरूपी रूप की पहचान, नालेज अच्छी तरह से धारण कर लो। वह सिर्फ डराती है, जैसे छोटे बच्चे होते हैं ना तो उनको माँ बाप निर्भय बनाने के लिए डराते हैं। कुछ करेंगे नहीं, जानबूझकर डराने के लिए करते हैं।
➳ _ ➳ ऐसे माया भी अपना बनाने के लिए बहुरूप धारण करती है। जब बहुरूप धारण करती है तो आप भी बहुरूपी बन उसको परख लो। परख नहीं सकते हैं ना, तो क्या खेल करते हो? युद्ध करने शुरू कर देते हो हाय, माया आ गई! और युद्ध करने से बुद्धि, मन थक जाता है। फिर थकावट से क्या कहते हो? माया बड़ी प्रबल है, माया बड़ी तेज है। कुछ भी नहीं है। *आपकी कमजोरी भिन्न-भिन्न माया के रूप बन जाती है। तो बापदादा सदा हर एक बच्चे को खुशनसीब के नशे में, खुशनुमा चेहरे में और खुशी की खुराक से तन्दरूस्त और सदा खुशी के खजानों से सम्पन्न देखने चाहते हैं।*
✺ *ड्रिल :- "माया को मरी हुई चींटी समझ सदा खुशनसीब के नशे में रहने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा एकांत में शांत स्थिति में बैठी हुई... अपनी जीवन यात्रा पर एक नजर दौड़ाती हूँ... मैं देख रही हूँ कि जीवन यात्रा में जो भी खूबसूरत पल आये... भगवान हर पल, हर क्षण मेरे साथ थे... और जीवन के चैलेंजिंग क्षणों में मैं आत्मा... स्वयं को ईश्वर की गोदी में महफूज देख रही हूँ... यह सब देख कर *ईश्वर के प्रति मेरे मन में अगाध स्नेह उमड़ रहा है... ईश्वरीय स्नेह में मेरे नयन भीग रहे हैं...*
➳ _ ➳ प्रभु स्नेह में भीगी हुई मैं आत्मा... अपने प्यारे शिवबाबा को अपने बिल्कुल समीप देख रही हूँ... *उनकी शक्तियों का, प्यार का जल अजस्त्र धारा की तरह मुझ पर बरसता जा रहा है... मैं आत्मा ईश्वरीय स्नेह में डूबती जा रही हूँ*... मैं परमात्म प्यार से सराबोर होती जा रही हूँ... मैं स्वयं को ईश्वरीय रंग में रंगा हुआ देख रही हूँ...
➳ _ ➳ कितना सुंदर है मेरा यह मरजीवा जन्म... *मेरा यह ब्राह्मण जीवन खुशियों से भरा जीवन है... मैं आत्मा बाबा की शक्तियों और सहयोग से... माया के हर रूप पर विजय प्राप्त करती जा रही हूँ... मैं मास्टर मायापति बन रही हूँ...* माया कैसा भी विकराल रुप धारण करके आवे... लेकिन मुछ आत्मा को हलचल में नहीं ला सकती... क्योंकि सर्वशक्तिमान बाबा मेरे साथ है... उनके साथ से हर क्षण मेरी विजय होती जा रही है... मैं आत्मा मायाजीत बन रही हूँ...
➳ _ ➳ बाबा अपनी सर्व शक्तियों के खजानों से मुझे भरपूर कर रहे हैं... मीठे बाबा ने अपनी समस्त शक्तियां मुझे दे दी हैं... माया तो मरी हुई चींटी के समान निर्जीव बन गई है... *बाबा से मुझ आत्मा में परखने की शक्ति संपूर्ण रूप में समाती जा रही है... मुझ आत्मा को ज्ञान की गुह्य बातें स्पष्ट हो रही हैं... साथ ही माया के विविध रूपों की भी स्पष्ट परख, स्पष्ट पहचान होती जा रही है*... माया तो सिर्फ डराने के लिए आती है, वास्तव में उसमें कोई भी शक्ति नहीं है...
➳ _ ➳ मैं परख शक्ति के द्वारा माया के हर रूप को परख पा रही हूँ... हर कमजोरी से स्वयं को मुक्त अनुभव कर रही हूँ... वह कमजोरी ही माया के विभिन्न रुप धारण कर आती थी और मैं आत्मा उसे युद्ध करने में अपनी शक्तियां गंवा रही थी, मन-बुद्धि इस युद्ध में शिथिल होती जा रही थी... लेकिन अब *हर प्रकार की कमजोरी पर जीत पाकर मैं आत्मा... अपनी खुशनसीब स्थिति में हूँ... अपने श्रेष्ठ भाग्य, श्रेष्ठ प्राप्तियों के गीत गुनगुना रही हूँ... खुशी की खुराक से मैं आत्मा तंदुरुस्त हो रही हूँ... खुशी के खजानों से भरपूर हो रही हूँ...* अपनी इस खुशकिस्मत अवस्था में खुशनुमा चेहरे और चलन से... सर्व आत्माओं को खुशी का खजाना बांटती जा रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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