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❍ 14 / 10 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *बहुत बहुत शांतचित रहे ?*
➢➢ *सबके साथ प्यार से चले ?*
➢➢ *कभी भी यह संकल्प तो नहीं आया की हम बाबा को देते हैं ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *स्मृति स्वरुप के वरदान द्वारा सदा शक्तिशाली स्थिति का अनुभव किया ?*
➢➢ *गुप्त रूप से पुरुषार्थ कर ज्ञान की पराकाष्ठा तक पहुंचे ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ सभी अपने को इस समय भी तख्तनशीन आत्माएँ अनुभव करते हो? डबल तख्त है या सिंगल? आत्मा का अकाल
तख्त भी याद है और दिल तख्त भी याद है। अगर अकाल तख्त को भूलते हो तो बॉडी कानशेस में आते हो। फिर परवश हो जाते हो। *सदैव यही स्मृति रखो कि मैं इस समय इस शरीर का मालिक हूँ।* तो मालिक अपनी रचना के वश कैसे हो सकता है?
〰✧ अगर मालिक अपनी रचना के वश हो गया तो मोहताज हो गया ना! तो अभ्यास करो और कर्म करते हुए बीच-बीच में चेक करो कि मैं मालिक-पन की सीट पर सेट हूँ? या नीचे तो नहीं आ जाता? सिर्फ रात को चेक नहीं करो। *कर्म करते बीच-बीच में चेक करो।* वैसे भी कहते हैं कि कर्म करने से पहले सोचो, फिर करो।
〰✧ ऐसे नहीं कि पहले करो, फिर सोची। फिर निरंतर मालिक-पन की स्मृति और नशे में रहेंगे। संगमयुग पर बाप आकर मालिक-पन की सीट पर सेट करता है। *स्वयं भगवान आपको स्थिति की सीट पर बिठाता है। तो बैठना चाहिए ना!* अच्छा। (पार्टियों के साथ)
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- हीरे जैसा जीवन बनाने वाले बाप को, बहुत ख़ुशी से याद करना"*
➳ _ ➳ मीठे बाबा के कमरे में बेठी हुई मै आत्मा,.. *मीठे बाबा के मुझ आत्मा पर किये हुए अनन्त उपकारों को याद कर रही हूँ.*.. प्यारे बाबा ने मुझ, देह की मिटटी में लथपथ आत्मा को... *अपने प्यार भरे हाथो में लेकर, देवताई कृति बना दिया है.*.. सच्ची खुशियो को मेरे जीवन में सजाकर... मुझे ख़ुशी और आनन्द का पर्याय बना दिया है... आज ईश्वरीय प्यार की बदौलत... मै आत्मा *गुणवान, शक्तिवान बनकर हीरे जैसा दमक रही हूँ... और मेरी चमक पूरे विश्व को आकर्षित कर... मीठे बाबा का दीवाना बना रही है.*..
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सच्ची खुशियो से महकाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... भगवान के दर्शन मात्र को कितने जतन करते रहे... *आज भाग्य ने भगवान को ही सम्मुख ला दिया है... जो अपनी गोद में बिठाकर पढ़ा रहा... प्यार की पालना देकर, जीवन को हीरे जैसा चमका रहा.*.. ऐसे मीठे प्यारे बाबा को असीम ख़ुशी के साथ याद कर सच्चे प्यार में डूब जाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा ईश्वर को अपनी नजरो के सम्मुख पाकर, ख़ुशी से नाचते हुए कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा *अपने भाग्य की जादूगरी पर फ़िदा हूँ, जिसने ईश्वर को मेरी बाँहों में दिलवाकर, मुझे असीम खुशियो से भर दिया है.*..मै आत्मा आपकी प्यारी बाँहों में बेफिक्र बादशाह बन गयी हूँ और हीरो सी दमक को पा रही हूँ...
❉ प्यारे बाबा ने मुझे अनन्त शक्तियो से भरकर शक्तिशाली बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय प्यार हीरे जैसा सज संवर कर, सदा सच्ची खुशियो में मुस्कराओ... गुणो और शक्तियो से भरपूर होकर, अनन्त सुख भरे सतयुग में देवताई सत्ता को पाओ... *मीठे बाबा की यादो में इस कदर खो जाओ कि... जीवन सुखो का पर्याय बन, मीठे स्वर्ग की धरोहर को दिलवाये.*.."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा के अथाह ज्ञान धन को दिल में समाकर कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा मेरे... आपके बिना मेरा जीवन दुखो का जंगल बन गया था... जिसमे मै आत्मा लहुलहानं, होकर बेहाल थी... *मेरी दारुण पुकार सुन, आपने जो मेरा हाथ थामा... मेरा जीवन सुखो की बहार बनकर, मुस्कराने लगा है.*..अब मै आत्मा एक पल के लिए भी आपको भूलती नही हूँ..."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को देह की धूल से निकाल हीरे सा जगमगाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... सदा ईश्वरीय यादो के नशे में डूबे रहो... यह यादे ही सच्चे सुखो का आधार है... मीठे बाबा को बड़े ही प्यार से हर पल, हर साँस से याद करो... *सदा यादो के समन्दर में डूबे रहो... यह यादे ही विकर्मो से मुक्त कराकर...जीवन को सुख की बगिया बनाएंगी.*..
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा को पाकर खुशियो में गुनगुनाते हुए कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे...मै आत्मा *आपको पाकर सारे जहान की खुशियो से भर गयी हूँ.*.. देह के दलदल से निकाल कर... *मुझे अपनी बाँहों में पावनता से महका रहे हो*... दिव्य गुणो से मेरा दामन सजा रहे हो..."मै आत्मा रोम रोम से आपकी यादो में डूबी हुई हूँ... मीठे बाबा से रुहरिहानं कर मै आत्मा... अपनी देह में लौट आयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ऊँच पद पाने के लिए बहुत - बहुत शांतचित रहना*"
➳ _ ➳ ईश्वर बाप द्वारा पढ़ाई जाने वाली यह पढ़ाई मुझे बहुत ही ऊँच पद की प्राप्ति करवाने वाली है। 21 जन्मों के लिए सारे विश्व का राज्य भाग्य दिलाने वाली है। इस बात को स्मृति में ला कर मैं स्वयं से यह प्रतिज्ञा करती हूँ कि इतने ऊँच पद को पाने का तीव्र पुरुषार्थ मुझे अवश्य करना है। और *आज बाबा ने फ़रमान किया है कि ऊँच पद पाने के लिए बहुत - बहुत शांतचित रहना है। तो अब मुझे बाबा के इस फरमान पर चल स्वयं को ऐसा शांन्त चित बनाना है कि कोई भी परिस्थिति मुझे कभी हलचल में ला कर अशांत ना कर सके*।
➳ _ ➳ स्वयं से यह प्रतिज्ञा कर, अब मैं अपने शांन्त स्वधर्म में स्थित हो कर बैठ जाती हूँ। शांति की गहन अनुभूति करते हुए, सेकण्ड में ही मैं स्वयं को इस देह से न्यारा, एक चमकता हुआ सितारा अनुभव करते हुए, देह रूपी इस पिंजड़े से बाहर निकल आती हूँ और अपने घर शांति धाम की ओर चल पड़ती हूँ। *मुझ सितारे से निकल रही किरणों से शांति के वायब्रेशन चारों और फैलते जा रहें हैं*। अपनी शांति की किरणे चारों ओर फैलाता हुआ, साकार दुनिया के अद्भुत नजारों को देखता हुआ मैं चमकता सितारा, मैं शांन्त स्वरूप आत्मा अपने पिता परमात्मा के प्रेम में मगन उनसे मिलन मनाने की तीव्र लग्न में एक अति शन्तिमई यात्रा पर निरंतर बढ़ती जा रही हूँ।
➳ _ ➳ साकार लोक को पार कर, सूक्षम लोक को भी पार कर, मैं आत्मा पहुंच गई शान्तिधाम अपने शिव पिता परमात्मा के पास। *देख रही हूँ अब मैं स्वयं को अपने अनादि ज्योतिर्मय स्वरूप में, शांति के सागर अपने शिव पिता के सम्मुख परमधाम में*। मेरे शिव पिता से निकल रहे शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन पूरे परमधाम घर मे फैले हुए हैं जो मुझे गहन शांति का अनुभव करवा रहें हैं। गहन शांति की गहन अनुभूति में खोई अपने शिव पिता को मैं निरन्तर निहार रही हूँ और उनसे आ रही शांति की शक्तिशाली किरणों की मीठी फ़ुहारों का आनन्द ले रही हैं। *63 जन्मों से मैं आत्मा जिस शान्ति के लिए प्यासी थी मेरी वो जन्म - जन्मान्तर की प्यास जैसे बुझ रही है। इतने लम्बें समय के बाद अब मैं स्वयं को तृप्त अनुभव कर रही हूँ*।
➳ _ ➳ शांति के सागर मेरे शिव पिता से आ रहे शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन मुझे अपनी ओर खींच रहें हैं। धीरे - धीरे अपने शिव पिता की ओर मैं बढ़ रही हूँ और जा कर उनके साथ कम्बाइंड हो जाती हूँ। *कम्बाइंड स्वरूप की स्थिति में मुझे ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे शांति के सागर में मैं डुबकी लगा रही हूँ*। बाबा से निकल रही सर्वशक्तियों रूपी सतरंगी किरणों का झरना मुझ आत्मा पर बरस रहा हैं। मैं असीम आनन्द का अनुभव कर रही हूँ। एक अलौकिक दिव्यता से मैं आत्मा भरपूर होती जा रही हूँ। *शांति के सागर मेरे बाबा असीम शांति से मुझे भरपूर करके आप समान मास्टर शांति का सागर बना रहे हैं*।
➳ _ ➳ गहन शांति की अनुभूति करके और शांति की शक्ति से स्वयं को भरपूर करके, कर्म करने हेतु अब मैं साकार सृष्टि में आ जाती हूँ। अपने साकारी तन में भृकुटि पर विराजमान हो कर, मैं हर कर्म कर रही हूँ। *आंखों से सब कुछ देख रही हूँ, कानो से सब कुछ सुन रही हूँ, मुख से बोल रही हूँ और ये सभी कार्य मैं अपने शांन्त स्वधर्म में स्थित हो कर के कर रही हूँ*। अपने स्वधर्म में स्थित हो कर हर कर्म करने से मेरी सर्व कर्मेन्द्रियां शांत और शीतल होती जा रही हैं । मेरे विचार शांत हो रहे हैं। *कैसी भी अशान्त करने वाली परिस्थिति मेरे सामने क्यों ना आ जाये किन्तु मेरी शांतचित स्थिति मुझे हर विपरीत परिस्थिति में भी अचल - अडोल बनाये रखती है*।
➳ _ ➳ *अपने शांन्त स्वधर्म में सदा स्थित रहते हुए, शांतचित स्थिति को बनाये, शांति के वायब्रेशन चारों और फैलाते हुए अब मैं अपने आस - पास के वातावरण को शांतिपूर्ण बना कर ऊँच पद की अधिकारी आत्मा बनने का पुरुषार्थ निरन्तर कर रही हूँ*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा स्मृति स्वरूप के वरदान द्वारा सदा शक्तिशाली स्थिति का अनुभव करती हूं।”*
➳ _ ➳ मैं आत्मा मास्टर सर्व शक्तिमान हूँ… विजयी रत्न हूँ… मैं सदा शक्तिशाली, विजयी हूँ… क्योंकि *मैं स्मृति स्वरूप आत्मा हूँ… मैं सहज पुरुषार्थी आत्मा हूँ… मैं हर परिस्थिति में सदा अचल रहती हूँ*… भल कुछ भी हो जाए… परिस्थिति रूपी बड़े से बड़ा पहाड़ भी आ जाए… संस्कार टक्कर खाने के बादल भी आ जाएं… प्रकृति भी पेपर ले… लेकिन मैं अंगद समान मन-बुद्धि रूपी पांव को हिलने नहीं देती हूँ… *बीती की हलचल को भी स्मृति में लाने के बजाए फुलस्टॉप लगा देती हूँ… मेरे पास कभी अलबेलापन नहीं आ सकता*…
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- गुप्त पुरुषार्थ कर ज्ञान की पराकाष्ठा का अनुभव"*
➳ _ ➳ ज्ञान सागर बाप द्वारा ज्ञान प्राप्त करने वाली मैं महान आत्मा हूँ... *मैं साधारण जीवन से निकल श्रेष्ठ जीवन में आ गई हूँ*... जीवन बदला अर्थात् सब कुछ बदल गया... इतना श्रेष्ठ ज्ञान देने वाला पिता भी गुप्त... ज्ञान भी गुप्त... और हम ज्ञान लेने वाले बच्चे भी गुप्त है... *स्वयं भगवान धरा पर आए है*... दुनिया वाले नही जानते... परमात्मा कितने साधारण तन में आकर... *हमें कौड़ी से हीरे जैसा बना रहे है... हमारा खोया हुआ राज्य भाग्य देने आए है*... भक्त आत्माएँ जिसके लिए तड़प रही है... प्यासी है, वह पिता... ज्ञान का सागर मुझ आत्मा को कितना सहज मिल गया... *भक्ति की प्यास बुझ गई है*... मैं आत्मा गुप्त पुरुषार्थ कर... ज्ञान की पराकाष्ठा का अनुभव कर रही हूँ... और अपने भाग्य को हर पल श्रेष्ठ बना रही हूँ...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *अभी से विदेही स्थिति का बहुत अनुभव चाहिए। जो भी परिस्थितियां आ रही हैं और आने वाली हैं उसमें विदेही स्थिति का अभ्यास बहुत चाहिए।* इसलिए और सभी बातों को छोड़ यह तो नहीं होगा, यह तो नहीं होगा। क्या होगा, इस क्वेश्चन को छोड़ दो। *विदेही अभ्यास वाले बच्चों को कोई भी परिस्थिति वा कोई भी हलचल प्रभाव नहीं डाल सकती।* चाहे प्रकृति के पांचों ही तत्व अच्छी तरह से हिलाने की कोशिश करेंगे परन्तु विदेही अवस्था की अभ्यासी आत्मा बिल्कुल ऐसा अचल-अडोल पास विद आनर होगा जो सब बातें पास हो जायेंगी लेकिन वह ब्रह्मा बाप के समान पास विद आनर का सबूत रहेगा।
➳ _ ➳ बापदादा समय प्रति समय इशारे देते भी हैं और देते रहेंगे। आप सोचते भी हो, प्लैन बनाते भी हो, बनाओ। भले सोचो लेकिन क्या होगा!... उस आश्चर्यवत होकर नहीं। *विदेही, साक्षी बन सोचो लेकिन सोचा, प्लैन बनाया और सेकण्ड में प्लैन स्थिति बनाते चलो।* अभी आवश्यकता स्थिति की है। *यह विदेही स्थिति परिस्थिति को बहुत सहज पार कर लेगी। जैसे बादल आये, चले गये।* और विदेही, अचल-अडोल हो खेल देख रहे हैं। *अभी लास्ट समय को सोचते हो लेकिन लास्ट स्थिति को सोचो।*
✺ *ड्रिल :- "लास्ट स्थिति के लिए विदेही स्थिति का अभ्यास करना"*
➳ _ ➳ आज जब मैं आत्मा बाबा को याद कर रही थी तो बाबा ने अनुभव कराया कि बच्चे जब से तुम्हारा नया जन्म हुआ ये मरजीवा जन्म हुआ है तब से *अपने को विदेही आत्मा अनुभव करने का बहुत काल का अनुभव चाहिए...* मैं आत्मा बाबा की याद में विदेही बनती जा रही हूँ... देह का भान भूलता जा रहा है... मैं एकदम हल्की हो चुकी हूँ...
➳ _ ➳ जैसे जैसे मैं आत्मा आगे बढ़ती जा रही हूँ तो देख रही हूँ कि *जब तक बहुत काल का विदेही स्थिति का अनुभव नही होगा तो अंत में आत्मिक स्थिति का अनुभव नही कर पाएंगे...* और हलचल में आ जाएंगे... फिर मैं बाबा की याद में विदेही होती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ फिर मैं आत्मा ये फील कर रही हूँ कि जो भी परिस्थिति या हलचल आ रही है या आने वाली है उन्हें मैं विदेही स्थिति से पार करती जा रही हूँ... बाबा भी मेरे साथ है हम दोनों का एक अटूट कनेक्शन है... *मैं आत्मा और सब बातों को छोड़ कि क्या होगा कैसे होगा आगे बढ़ती जा रही हूँ*... इस देह ओर देह के संबंधों को भूलतीं जा रही हूँ...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा का विदेही पन का बहुत काल का अभ्यास हैं... जिसके कारण कोई भी परिस्थिति और हलचल का मुझ आत्मा पर कोई प्रभाव नही पड़ रहा है... बस मैं आत्मा बाबा की याद में मग्न हूँ... *मैं आत्मा देख रही हूँ कि प्रकृति के पांचों तत्व अपने विनाशी स्वरूप में हैं फिर भी मैं आत्मा विदेही बन सब साक्षी होकर देख रही हूँ*... और प्रकृति के पांचो तत्वों को सकाश दे रही हूँ.. और इस हलचल की स्थिति में भी मुझ आत्मा पर कोई प्रभाव नही पड़ रहा है...
➳ _ ➳ विदेही स्थिति में बाबा के सूक्ष्म इशारे मुझे अनुभव हो रहे है... और इन इशारों से मैं आत्मा और आत्माओं के साथ प्लान बना रही हूँ... और अचल अडोल स्थिति बनती जा रही है... *मैं आत्मा आश्चर्यवत नही हूँ कि ये क्या हो रहा है क्यों हो रहा है... क्योंकि बाबा ने पहले की ड्रामा के राज को स्पष्ट किया है... आदि से अंत तक का ज्ञान मुझ आत्मा में है*... और हर सेकेण्ड बाबा की याद से विदेही बनती जा रही हूँ... और जो भी परिस्थिति मेरे सामने आती जा रही हैं उसे मैं आत्मा ड्रामा के एक सीन की तरह देखते आगे बढ़ती जा रही हूँ... मैं आत्मा देख रही हूँ कि ये अंतिम समय है... प्रकृति अपने विनाशी स्वरूप में है... खून की नदियां बह रही है... लेकिन *मैं आत्मा अपने लास्ट स्टेज अपने फ़रिश्ता स्वरूप में ये सब देख रही हूँ...और उड़कर बाबा के गोद में समा चुकी हूँ*...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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