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❍ 09 / 01 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 2*5=10)
➢➢ *अपनी प्रजा तैयार की ?*
➢➢ *निर्भय निर्वैर बनकर रहे ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:3*10=30)
➢➢ *हर कर्म में बाप का साथ साथी रूप में अनुभव किया ?*
➢➢ *विशेषताओं को ही देखा और विशेषताओं का ही वर्णन किया ?*
➢➢ *नॉलेजफुल बन सारे वृक्ष को शक्तियों का फल दिया ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *"आत्माओं को हिम्मत और उल्लास देने, उड़ाने के लिए नीचे आये और फिर ऊपर चले गए" - ऐसी प्रैक्टिस की ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - कार्य व्यवहार करते बुद्धियोग एक बाप से लगा रहे, यही है सच्ची यात्रा, इस यात्रा में कभी भी थकना नही"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... दुनियावी कार्यो को करते हुए भी बुद्धियोग ईश्वर पिता की यादो में खोया रहे... प्यार की ऐसी मीठी लहर दिल में बनी रहे... *ईश्वर पिता के साथ के यह मीठे सुंदर पल दिल की गहराइयो में बसा लो.*.. और संगम पथ पर अथक पथिक बन यादो की यात्रा कर चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा मनुष्य से देवतुल्य के महा सोभाग्य को प्राप्त कर रही हूँ... *मेरी यादो में मीठा बाबा सदा प्राण बन समाया है.*.. ये ईश्वरीय मीठी यादे मुझ आत्मा को अथाह सुख प्राप्तियां देकर मालामाल कर रही हूँ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... मीठे बाबा की मीठी यादो में जितना दिल को भिगोयेगें यह यादे उतने ज्यादा *सुख सम्पन्नता और सच्चे प्रेम के महकते फूल जीवन में खिलाएंगी.*.. प्रेम में ऐसी वफादारी तो मनुष्य मात्र तो दे न सके... इसलिए मीठी ईश्वरीय यादो में अनन्त खुशियां पा चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा धरती के मटमैले रिश्तो में सच्चे प्रेम की बून्द भी पा न सकी और प्यारा बाबा प्यार का सागर सा जीवन में छलक उठा... *ऐसे प्यारे बाबा को एक पल भी अब न बिसरूँ मै.*.. रोम रोम से यादकर सच्चे प्रेम को जीती जा रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जिस भगवान के जनमो से मुरीद होकर... मात्र एक झलक पाने को जर्रे जर्रे में खोज रहे थे... आज सम्पूर्ण दौलत सहित सामने है... *ऐसे प्यारे बाबा को जी भर के प्यार करो.*.. हर पल हर घड़ी सिर्फ और सिर्फ उसे ही याद करो... दिल में बसाकर दिल का सच्चा श्रंगार करो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता को प्यार करने वाली *उसे अपने दिल में समाकर रुहरिहान करने वाली दिलरुबा बनी हूँ.*.. अब मेरा सारा प्यार मीठे बाबा के लिए है...साँस का हर कतरा मीठे बाबा की मधुर थाप से गूंज रहा है...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा सिद्धि स्वरूप हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा रावण के पिंजरे से आजाद होकर *संगमयुगी आसमान में उड़ता पंछी बन* उड़ रहीं हूँ... मैं आत्मा सर्व प्रकार के बोझ बाबा को देकर बोझ मुक्त हो गई हूँ... मैं आत्मा सभी देह के बंधनों को तोड़कर एक बाबा से प्रीत के बंधन में बँध गई हूँ... एक सच्चे मीत से प्रीत लगा रहीं हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा सदा *एक मीत के प्रीत में गीत* गाते रहती हूँ... "मेरे बाबा हैं साथ, मेरे बाबा हैं साथ"... वो मेरा बाबा हमेशा मुझ आत्मा के साथ रहते हैं... धूप में कभी छाँव बनकर... लहरों में कभी नांव बनकर... जब मेरे कदम लडखड़ाते हैं तो वो मेरा हाथ थाम लेते हैं... सदा मेरे संग संग रहते हैं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने बाबा की लाडली हूँ... मुझ आत्मा को प्राण प्यारे बाबा कितना ही *लाड़ और प्यार से पालना* करते हैं... कभी खुशी के झूले में... कभी सुख के झूले में... कभी बाबा की गोदी के झूले में... आनंद, प्रेम, शांति के झूलों में झुलाते रहते हैं... पाँव जमीन पर नहीं रखने देते हैं...
➳ _ ➳ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को आदि, मध्य,अंत और श्रेष्ठ कर्मों का ज्ञान देकर नालेजफुल बना दिया... प्यारे बाबा ने सर्व खजानों की चाबी दे दी... *एक का पदम गुना* देकर मुझ आत्मा को भाग्यशाली बना दिया... मैं आत्मा बस अपने साथी के साथ मौज मनाते रहती हूँ... बड़ा प्यारा लगे ओ बाबा सदा साथ तुम्हारा...
➳ _ ➳ सदा बाप के साथ के अनुभव से मैं आत्मा याद करने की मेहनत से छूट गई हूँ... साथ की अनुभूति से स्वतः ही सहज और निरंतर याद रहती है... मुझ आत्मा का देहभान स्वतः ही ख़तम होता जा रहा है... मैं आत्मा *देही अभिमानी बनते जा रहीं* हूँ... बाबा के साथ और सहज याद से मुझ आत्मा के कई जन्मों के विकर्म भस्म होते जा रहें हैं...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा के हर कर्म में बाप ऐसा साथी है... मददगार है... जो मुश्किल को भी सेकंड में सहज कर देता है... माया के तूफानों में भी मैं आत्मा प्यारे बाबा की छत्रछाया में सदा सेफ रहती हूँ... अब माया भी विघ्न डालने से डरती है... अब मैं आत्मा हर कर्म में *बाप का साथ साथी रूप में* अनुभव करने वाली सिद्धि स्वरूप बन गई हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- विशेष आत्मा बन, विशेषता को ही देखना और विशेषता का ही वर्णन करना।"*
➳ _ ➳ बाबा ने बताया है की अगर हम किसी की कमजोरी मन में रखेंगे तो वो हमारी कमजोरी बन जायेगी... तो हम किसी की कमजोरी देखे ही क्यों?... *मैं आत्मा तो सर्व की विशेषता देखने वाली विशेष आत्मा हूँ...* जब मैं आत्मा किसी की विशेषता देखती हूँ... तो वो मेरी भी विशेषता बन जाती हैं... और उस आत्मा को भी पॉजिटिव एनर्जी मिलती हैं... उसकी वो विशेषता और ही वृद्घि को पाती हैं...
➳ _ ➳ मैं गुणमूर्त आत्मा हूँ... सम्बन्ध-सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा के गुण और विशेषता ही देखती हूँ... उनकी विशेषताओं का ही वर्णन करती हूँ... मैं बाप समान आत्मा... मास्टर प्रेम का सागर हूँ... हर आत्मा प्रति कल्याण की भावना लिए हुये... *हर आत्मा की विशेषताओं को उजागर कर... उनका उमंग-उत्साह बढ़ाती हूँ...*
➳ _ ➳ *सर्व की विशेषता देखने वाली मैं होली हंस आत्मा हूँ...* बाबा ने बताया हैं, कोई कैसी भी स्वभाव संस्कार वाली आत्मा हो... उसमे कोई एक विशेषता अवश्य होगी... और मुझ होली हंस आत्मा का काम ही हैं... उस विशेषता को देखना और सिर्फ उसका वर्णन करना... ऐसा करने से मैं उस आत्मा को भी विशेष आत्मा बनाती हूँ... आप समान बनाती हूँ...
➳ _ ➳ सर्व की विशेषता देखने से मैं महान आत्मा बन गई हूँ... सर्व की स्नेही आत्मा बन गई हूँ... समाने की शक्ति द्वारा... सर्व की कमी कमजोरियों का विनाश कर... उनके गुणों और विशेषताओं को देख उन्हें आगे बढ़ाने की निमत्त आत्मा हूँ... *सभी के पुरषार्थ को तीव्र करने वाली बाप समान आत्मा हूँ...*
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *हर कर्म में बाप का साथ साथी रूप में अनुभव करने वाले सिद्धि स्वरूप होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ हर कर्म में बाप का साथ साथी रूप में अनुभव करने वाले सिद्धि स्वरूप होते हैं क्योंकि... *हमारे पास सबसे सहज और निरन्तर याद का साधन* है – सदा बाप के साथ का अनुभव करना। यदि हम बाबा के साथ का अर्थात! बाप के साथ अनुभव निरन्तर करते रहेंगे, तो! बाबा की याद हमारे लिये सहज और सरल हो जायेंगी।
❉ क्योंकि बाबा के निरन्तर साथ की अनुभूति हमें मेहनत करने से छुड़ा देती है। जब भगवान का साथ हमारे साथ है तो याद रहेगी ही, लेकिन! *साथ रीयल्टी में होना चाहिए, केवल बोलने के लिये ही नही हो*, बल्कि! साथ ऐसा नहीं होना चाहिये, कि... बस वह सिर्फ! साथ में बैठा हो। साथ में बैठना, मीन्स... साथी बनना है।
❉ साथी मीन्स मददगार बनना होता है। भगवान हमारा साथी है। वह ही हमारा सच्चा मददगार है। इसीलिए तो! भगवान... बाबा हमारा, हमारे हर कदम में, अर्थात! हर कार्य में मददगार बनता है। तभी तो हर कर्म में वह साथी रूप में है। *जब वह साथी रूप में है, तब हम भी सिद्धि स्वरूप* में होते हैं।
❉ अतः हमें सदा बाप की याद में निरन्तर व सहजता से रहना है और बाप को अपना साथी समझ कर ही सदा व्यवहार भी करना है तथा बाप के *साथ की अनुभूति के द्वारा याद की मेहनत से छूट जाना* है और बाप का साथी बन कर बाप के दिलतख्त नशीन भी बन जाना है। जब साथ है तो याद रहेगी ही।
❉ लेकिन! ऐसा साथ नहीं है कि सिर्फ साथ में बैठा है... लेकिन! साथी अर्थात! मददगार है। *साथ वाला कभी भूल भी सकता है, लेकिन! साथी कभी भी नहीं भूलता है।* तो! हर कमी में बाप ऐसा साथी है, जो मुश्किल को भी सहज करने वाला है। ऐसे प्यारे साथी के साथ का हमें सदा ही अनुभव होता रहे, तो! हम सिद्धि स्वरूप स्वतः ही बन जायेंगे।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *विशेष आत्मा बनना है तो विशेषता को ही देखो और विशेषता का ही वर्णन करो... क्यों और कैसे* ?
❉ जैसे परमात्मा बाप रहमदिल बन बच्चों को क्षमा कर देते हैं । बच्चों की बुराइयों व कमी कमजोरियों को दिल में ना रख माफ़ कर देते हैं । ऐसे ही मास्टर दया के सागर बन जो सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं की बुराइयों वा कमजोरियों को नजरअंदाज कर *हर आत्मा के वास्तविक स्वरूप और गुणों को ध्यान में रख केवल उनकी विशेषताओं को देखते है* और उनकी महानता की स्मृति दिलाते हैं वो स्वयं भी विशेष आत्मा बन जाते हैं ।
❉ जैसे शक्तियों के गले में माला दिखाते हैं और देवताओं के गले में भी माला दिखाते हैं । भक्ति मार्ग में देवी देवताओं के गले में दिखाई यह माला वास्तव में संगम युग पर हम ब्राह्मण बच्चों द्वारा धारण की हुई गुणों की माला का यादगार है । तो इस समय संगम युग पर जो *किसी के भी अवगुणों का चिंतन करने के बजाए गुणमूर्त बन सबमे गुण देखते हैं*, गुणों और विशेषताओं का ही वर्णन करते हैं और उन गुणों को स्वयं में धारण करते हैं वही विशेष आत्मा कहलाते हैं ।
❉ जैसे पत्थर की कोई वैल्यू नही होती किंतु रत्न की बहुत वैल्यू होती है । इसी प्रकार दूसरों के अवगुणों को देखना अर्थात संकल्प, बोल और कर्म मे व्यर्थ जमा कर पत्थर बुद्धि बनना और अपनी वैल्यू को समाप्त करना । *दूसरे के अवगुणों को ना देख उनके गुणो को देखना अर्थात संकल्प, बोल और कर्म में श्रेष्ठता आना यानि रत्न बनना* । इसलिए रत्न बन सदैव दूसरों की विशेषताओं को देखने और विशेषताओं का वर्णन करने वाले ही विशेष आत्मा बनते हैं ।
❉ दूसरों की विशेषताओं को ना देख कर उनके अवगुणों और दोषो को देखना परचिन्तन कहलाता है जो आत्मा को रसातल में ले जाता है । क्योकि दूसरों के दोषों और अवगुणों को देखने से और उनका वर्णन करने से उनके अवगुण और दोष स्वयं में ही आ जाते हैं । इसलिए जो दूसरों की कमजोरियों को देखने के बजाए उनकी विशेषताओं को देखते हैं । वे *स्व चिंतक और शुभ चिंतन करने वाली शुभ चिंतक मणि बन सहज ही आत्मिक उन्नति को पाते जाते हैं* और विशेष आत्मा बन जाते हैं ।
❉ श्रीमत कहती है कि कैसे भी स्वभाव संस्कार वाली आत्मा हमारे सामने आ जाये किन्तु हमारे सदव्यवाहर को देख उसका स्वभाव संस्कार भी परिवर्तित हो जाये । *अपने रहम की भावना से उन आत्माओं का भी कल्याण हो जाये जो पुराने स्वभाव संस्कारों के परवश हैं* और उन स्वभाव संस्कारों के कारण दुखी हो रही हैं । इसलिए बाबा कहते किसी भी आत्मा के अवगुणों वा दोषो को देखने के बजाए उसके गुणों और विशेषताओं को देखते हुए अपनी कल्याणकारी वृति से उसका भी कल्याण करो तभी विशेष आत्मा बन सकेंगे ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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