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❍ 03 / 11 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*5=25)
➢➢ *कर्मबन्धनों के चिंतन में तो नहीं रहे ?*
➢➢ *बन्धनों से छूटने के लिए पूरा पूरा नष्टोमोहा बनकर रहे ?*
➢➢ *ज्ञान से स्वयं को मज़बूत और हिम्मतवां बनाया ?*
➢➢ *मेरेपन की खोट को समाप्त कर भरपूरता का अनुभव किया ?*
➢➢ *"समझना, चाहना और करना" - तीनो को समान बनाया ?*
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❂ *तपस्वी जीवन प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं* ✰
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〰✧ *कोई भी कर्म करो, बोल बोलो वा संकल्प करो तो पहले चेक करो कि यह ब्रह्मा बाप समान है!* ब्रह्मा बाप की विशेषता विशेष यही रही- जो सोचा वो किया, जो कहा वो किया। *ऐसे फालो फादर। अपने स्वमान की स्मृति से, बाप के साथ की समर्थी से, दृढ़ता और निश्चय की शक्ति से श्रेष्ठ पोजीशन पर रह कर ओपोज़िशन को समाप्त कर देना।*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:- 10)
➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाये ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ तो *सेकण्ड में न्यारे हो सकते हो?* कि टाइम लगेगा? जैसे शरीर में आना सहज लगता है, ऐसे शरीर से परे होना इतना ही सहज हो जाये। कोई भी पुराना स्वभाव-संस्कार अपनी तरफ आकर्षित नहीं करे और सेकण्ड में न्यारे हो जाओ।
〰✧ सारे दिन में, बीच-बीच में यह अभ्यास करो। ऐसे नहीं कि जिस समय याद में वैठो उस समय अशरीरी स्थिति का अनुभव करो। नहीं। चलते-फिरते, *बीच-बीच में यह अभ्यास पक्का करो - ‘मैं हूँ ही आत्मा!*
〰✧ तो आत्मा का स्वरूप ज्यादा याद होना चाहिए नाः सदा खुशी होती है ना! कम नहीं होनी चाहिए, बढ़नी चाहिए। इसका साधन बताया - मेरा बाबा! और *कुछ भी भूल जाये लेकिन ‘मेरा बाबा' यह भूले नहीं।* अच्छा (पार्टियों के साथ)
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:- 15)
➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप से मुक्ति-जीवनमुक्ति का वर्सा लेना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा भाग्य विधाता बाप की संतान श्रेष्ठ भाग्यवान होने के नशे में झूमती, नाचती, गाती हुई प्यारे बाबा का आह्वान करती हूँ... मीठे बाबा तुरंत आकर मुझे अपने साथ एक सुन्दर से गुलाब के बगीचे में लेकर जाते हैं... सुन्दर-सुन्दर फूलों की महक चारों ओर के वायुमंडल को सुगन्धित कर रही है... *रंग-बिरंगी तितलियाँ रंग-बिरंगी फूलों पर अपना प्यार बरसा रही हैं... चहकते हुए पक्षी अपने मधुर संगीत से समां बांध रहे हैं... इस सुन्दर खुशनुमा वातावरण में बाबा का हाथ पकड़ बगीचे की सैर करती हुई मैं आत्मा बाबा से बातें कर रही हूँ...*
❉ प्यारे बाबा मुझे विकारों की दलदल से निकाल गुलगुल फूल बनाते हुए कहते हैं:- “मेरे लाडले बच्चे... फूलो जैसे सुंदर खिले मेरे बच्चे... दुखो की दुनिया में बेहाल हो गए हो... *मै अपने बच्चों को सुखो की दुनिया में खिलते फूल बनाने आया हूँ... सुखो का मीठा स्वर्ग वर्सा देने आया हूँ...* मुक्ति और जीवनमुक्ति देने मै विश्व पिता धरती पर उतर आया हूँ..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा विभिन्न रंगों से सजे हुए अपने सतरंगी भाग्य को देख कहती हूँ:– “हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा दुखो को अपनी तकदीर समझ कितने अंधकार में जी रही थी... *आपने आकर बाबा मुझे सुखो का सूरज दिखा दिया है... अलौकिक खुशियो से दामन सजा दिया है...”*
❉ प्यारे बागवान बाबा मुझ रूहानी गुलाब को महकाते हुए कहते हैं:- “मीठे प्यारे फूल बच्चे... अपने ही लाडलो का दुःख मै विश्व पिता भला कैसे देख पाऊं... *मेरे फूलो को कुम्हलाता मै बागवान कैसे झेल पाऊँ... अपने मीठे बच्चों को सुखो का खुशनुमा स्वर्ग देने दौड़ा ही चला आऊं...* मेरे बच्चे सदा के लिए सुखी हो जाएँ तो मै विश्व पिता मीठा सुकून पाऊं...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा खुशियों से अपना दामन सजाते हुए कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा आपकी मीठी यादो में खुशियो संग मुस्करा उठी हूँ... दुखो से सदा की अनजान और खुशियो का पता जान चुकी हूँ...* आपको पाकर सदा की भाग्यशाली हो गई हूँ...”
❉ मेरे बाबा हथेली पर स्वर्ग की सौगात सजाकर कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... मुझसे दूर होकर जो घर से निकले तो दुखो की नगरी में विकारो के कंटीले तारो में लहुलहानं हो गए... अब प्यारा बाबा आ गया अपने बच्चों की सुध लेने... *उन्हें फूलो सा खिलाने और खूबसूरत दुनिया में ले जाकर विश्व का मालिक बनाने... और सुख शांति की दुनिया के महलो में बिठाने...”*
➳ _ ➳ मैं आत्मा स्वयं को सर्व वरदानों से सजी, संवरी देख खुश होते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा प्यारे बाबा को पाकर जादुई अहसासो से भर उठी हूँ... *मीठा बाबा मुझे सजाने सवांरने के लिए ज्ञान और योग के पंखो को ले आया है... मुझे फ़रिश्ता सा बना अपने दिल के आसमाँ पर बिठाने आया है...”*
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बुद्धि को देह धारियों से हटाना है*"
➳ _ ➳ इस नश्वर देह और इस देह से जुड़ी हर वस्तु के चिंतन से मैं जैसे ही अपने मन बुद्धि को हटा कर अपने वस्तविक सत्य स्वरूप के बारे में विचार करती हूँ तो मन बुद्धि स्वत: ही मेरे उस सत्य स्वरूप पर एकाग्र होने लगते है और मैं मन बुद्धि के दिव्य नेत्रों से अपने उस अति सुंदर स्वरूप को देख कर आनन्द विभोर हो उठती है। *आहा! कितना सुंदर, चमकता हुआ, जगमग करता हुआ, दिव्य ज्योतिर्मय स्वरूप है मेरा*। अपने इस अति सुन्दर सलौने स्वरूप को मैं ज्ञान के दिव्य चक्षु से देख रही हूँ और इसमें समाये अपने सातों गुणों और अष्ट शक्तियों का गहराई तक अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ मैं देख रही हूँ मुझ आत्मा के सातों गुण सतरंगी किरणों के रूप में चारों ओर फैल कर अपनी अद्भुत छटा बिखरते हुए आस पास के वायुमण्डल को भी सतोगुणी बना रहे हैं। *किरणों का प्रवाह मुझ आत्मा से मेरे पूरे शरीर मे होता हुआ अब धीरे - धीरे बाहर तक फैलने लगा है*। एक दिव्य आलौकिक रूहानी मस्ती चारों और फैलती जा रही है। *चारों और अपने गुणों की किरणें फैलाता हुआ मुझे मेरा यह सतोगुणी स्वरूप एक सतरंगी खिले हुए रूहे गुलाब की तरह दिखाई दे रहा है जिसमे से निकल रही रूहानियत की खुशबू पूरे वायुमण्डल को रूहानी सुगन्ध से भर रही है*।
➳ _ ➳ ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे मैं किसी सुगन्धित फूंलो के खिले हुए उपवन में पहुँच गई हूँ जहां चारों ओर फैली दिव्यता मन बुद्धि को दिव्य बना कर, *देह और देह की दुनिया से किनारा कराए, उस दिव्य लोक की ओर ले कर जा रही है जो मुझ आत्मा का वास्तविक घर है, मेरे पिता परमात्मा का घर है*। जहां से मैं आत्मा अपने सत्य स्वरूप के साथ सृष्टि रूपी रंगमंच पर पार्ट बजाने के लिए आई थी और पार्ट बजाते - बजाते अपने सत्य स्वरूप को ही भूल गई थी। किन्तु मेरे शिव पिता परमात्मा ने आ कर मुझे मेरा वास्तविक परिचय दे कर मुझे मेरे उस सत्य स्वरूप का अनुभव करवा दिया।
➳ _ ➳ अपने उस सत्य स्वरूप का अनुभव अपने घर में, अपने शिव पिता परमात्मा के सम्मुख करने के लिए मैं आत्मा अब अपने घर परमधाम की ओर चल पड़ती हूँ। मन बुद्धि के विमान पर सवार हो कर सेकण्ड में मैं आकाश को पार कर जाती हूँ और उससे भी परें अपने परमधाम घर में पहुँच जाती हूँ अपने शिव परम पिता परमात्मा के पास। *बीजरूप शिव पिता की मास्टर बीजरूप सन्तान मैं आत्मा स्वयं को देख रही हूँ आत्माओं की अति सुंदर निराकारी दुनिया में*। मेरे सामने बिंदु रूप में मेरे शिव पिता परमात्मा और उनके सामने मैं बिंदु आत्मा। कितना सुखद दृश्य हैं। बिंदु बाप और बिंदु बच्चे का यह मंगल मिलन चित को चैन और मन को आराम दे रहा है ।
➳ _ ➳ 5 तत्वों के पार लाल सुनहरी प्रकाश से प्रकाशित यह दुनिया कितनी निराली और असीम शांति से भरपूर करने वाली है। चारों और गहन शांति ही शांति का अनुभव हो रहा है। संकल्पो की हलचल मात्र भी यहां नही है। *इस बीजरूप अवस्था में अपने ओरिजनल स्वरूप में स्थित हो कर अपने बीज रूप परमात्मा बाप के सानिध्य में मैं अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर रही हूँ* । बीजरूप बाबा से आती सर्वशक्तियों रूपी किरणों की बौछारें मुझे असीम बल प्रदान कर रही हैं। बाबा से आती सर्वशक्तियों को स्वयं में समाकर मैं शक्तियों का पुंज बन गई हूँ और बहुत ही शक्तिशाली स्थिति का अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ शक्ति स्वरूप स्थिति में स्थित हो कर अब मैं पुनः लौट रही हूँ जीवात्माओं की साकारी दुनिया में। फिर से अपने साकार तन में, साकार दुनिया मे, साकार सम्बन्धो के बीच अपने ब्राह्मण स्वरुप में मैं स्थित हूँ। *देह और देह की दुनिया मे रह कर मैं अपना पार्ट बजा रही हूँ*। किन्तु देह और देहधारियों के बीच में रहते हुए भी अपने सत्य स्वरूप में टिक कर अपनी दिव्यता और रूहानियत का अनुभव मुझे इस नश्वर दुनिया से वैराग्य दिला रहा है। स्वयं को मैं इस दुनिया से उपराम अनुभव कर रही हूँ। *बुद्धि को देहधारियों से निकाल, अपने सत्य स्वरूप में अपने सत्य बाप के साथ सर्व सम्बन्धों का सुख लेते हुए मैं हर पल अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर रही हूँ*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं मेरेपन की खोट को समाप्त कर भरपुरता का अनुभव करने वाली सम्पूर्ण ट्रस्टी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को स्वमान में स्थित करने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं समझना चाहना और करना- तीनों को समान बनाने वाली बाप समान आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ स्मृतियों में टिकाये रखने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. *मधुबन निवासी अर्थात् कर्म में मधुरता और वृत्ति में बेहद का वैराग्य।*
➳ _ ➳ 2. तो मधुबन निवासी अर्थात् एकस्ट्रा गिफ्ट के अधिकारी। *गिफ्ट है ना! कितने निश्चिंत हो। अपनी ड्युटी बजाई और मौज में रहे।* मदोगरी करनी है, जिज्ञासुओं को सम्भालना है, इससे तो फ्री हैं ना!
➳ _ ➳ 3. मधुबन निवासियों को स्पेशल अटेन्शन रखना है कि हमें चारों ओर पावरफुल याद के वायब्रेशन फैलाने हैं क्योंकि आप ऊंचे-ते-ऊंचे स्थान पर बैठे हो। स्थान तो ऊंचा है ना! इससे ऊंचा तो कोई है नहीं। तो ऊंची टावर जो होती है, वह क्या करती है? सकाश देती है ना! लाइट माइट फैलाते हैं ना। तो *कम से कम 4 घण्टे ऐसे समझो हम ऊंचे ते ऊंचे स्थान पर बैठ विश्व को लाइट और माइट दे रहा हूँ। यह तो आपको अच्छी तरह से अनुभव है कि मधुबन का वायब्रेशन चाहे कमजोरी का, चाहे पावर का - दोनों ही बहुत जल्दी फैलता है।* अनुभव है ना! मधुबन में सुई भी गिरती है तो वह आवाज भी पहुंचता है क्योंकि मधुबन निवासियों की तरफ सबका अटेन्शन होता है। मधुबन वाले समझो विजय प्राप्त करने और कराने के निमित्त हैं। मधुबन की महिमा कितनी सुनते हो! मधुबन के गीत भी गाते हो ना। तो मधुबन के दीवारों की महिमा है या मधुबन निवासियों की महिमा है! किसकी महिमा है? आप सबकी। तो ऐसे अपनी जिम्मेवारी समझो। सिर्फ अपना काम किया, ड्युटी पूरी की यह जिम्मेवारी नहीं। *मधुबन का वायुमण्डल चारों ओर वायुमण्डल बनाता है।*
➳ _ ➳ 4. बापदादा तो मधुबन निवासियों को सदा नयनों के सामने देखते हैं। *नूरे रत्न देखते हैं। मधुबन निवासी बनना कोई छोटी सी बात नहीं है। मधुबन निवासी बनना अर्थात् अनेक गिफ्ट के अधिकारी बनना।* देखो, स्थूल गिफ्ट भी मधुबन में बहुत मिलती है ना! और कितना स्वमान मिलता है। अगर मधुबन वाला कहाँ भी जाता है तो किस नजर से सभी देखते हैं? *मधुबन वाला आया है। तो इतना अपना स्वमान सदा इमर्ज रखो। मर्ज नहीं, इमर्ज।*
✺ *ड्रिल :- "अपने लौकिक स्थान पर या सेवाकेंद्र पर रहते हुए भी स्वयं को मधुबन निवासी अनुभव करना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा *मधुबन की पावन धरती पर बिताए हुए अपने अनमोल क्षणों को याद कर रही हूँ... इस स्मृति से स्वयं में स्फूर्ति, उमंग, ईश्वरीय स्नेह का पारावार महसूस कर रही हूँ*... जिस धरनी पर स्वयं भगवान आते हैं, घण्टों बच्चों को दृष्टि देते हैं, उनसे प्यार भरी बातें करते हैं... वहां के वायब्रेशन कितने शक्तिशाली हैं... यहां के चार धाम की मन-बुद्धि से यात्रा करते करते... मैं स्वयं को अति इंद्रिय सुख के झरने के नीचे अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ जिस प्रकार सागर के पास जाते ही शीतलता, अग्नि के पास जाते ही ऊष्णता का अनुभव स्वतः ही होता है... ठीक इसी प्रकार *मधुबन की स्मृति मात्र से ही... मन उमंगो में नाचने लगता है... मधुबन का हर जर्रा दास्तां गाता है उस महान युग पुरुष की... जिसे स्वयं भाग्य विधाता ने अपना रथ चुना, साकार बाबा और मम्मा की कर्मभूमि... वरदान भूमि... तपस्या भूमि... यहां कदम रखते ही मन शिव पिया के प्यार में खो जाता है...*
➳ _ ➳ *जहां अपनी याद में बैठे लाडले बच्चों से रोज अमृतवेले... बाबा मिलन मनाने आते हैं, जहां बाबा की याद में पवित्र भोजन बनता है... और वह पवित्र भोजन बड़े प्यार से बाबा को स्वीकार कराया जाता है... जहाँ पवित्र प्रवृति धर्म का पालन किया जाता है... वह स्थान चाहे लौकिक घर हो या सेवाकेंद्र... वह बाबा का यज्ञ ही है... और मैं आत्मा मधुबन निवासी की श्रेष्ठ स्थिति में स्थित हो सेवा कर रही हूँ*... मुझ आत्मा के हर कर्म में दिव्यता है... मधुरता है... साथ ही बेहद की वैराग्य वृत्ति भी समाई हुई है... हर तरह के लगाव, झुकाव, आसक्तियों से मैं आत्मा परे हूँ... सर्व चिंताओं, बोझ से निश्चिंत हूँ... बेफिकर बादशाह हूँ... ईश्वरीय सेवा करके मैं आत्मा सदा मौज में, आनंद में रहती हूँ... जिज्ञासु आत्माओं को बाबा का परिचय देकर उनको मुक्ति और जीवनमुक्ति का वर्सा दिलाने के निमित बन रही हूँ...
➳ _ ➳ मधुबन की पावन धरनी ऊंचे ते ऊंची तपस्या की, वरदानों की भूमि है... जैसे लाइट हाउस ऊंची स्थान पर होता है और चारों ओर प्रकाश फैलाता है, सबको रास्ता बताता है... इसी प्रकार *मैं आत्मा ऊंची मधुबन की धरनी पर बैठ सारे विश्व में शक्तियों की, पवित्रता की... लाइट और माइट फैला रही हूँ... इस ऊंची धरनी पर स्थित होने से मेरे हर संकल्प का वायब्रेशन सारे विश्व में फैल रहा है... यह अटेंशन रखती हुई मैं आत्मा बाबा की शक्तिशाली याद में स्थित हो पावरफुल तरंगें... समूचे वायुमंडल में फैला रही हूँ*... मुझ आत्मा के हर संकल्प को सारी कायनात ग्रहण करती है... यह जिम्मेवारी समझकर मैं आत्मा स्वयं पर अटेंशन रूपी पहरा लगाती हूँ... और शक्तिशाली, पवित्र किरणों की सकाश विश्व की सर्व आत्माओं को दे रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं श्रेष्ठ आत्मा बाबा के नयनों में समाई हुई हूँ... उनके स्नेह की अधिकारी आत्मा हूँ... मैं बाबा की नूरे रत्न हूँ... इतना श्रेष्ट भाग्य है मुझ भाग्यवान आत्मा का... ईश्वरीय वरदानों से मैं आत्मा संपन्न बनती जा रही हूँ... *कितने ऊंचे टाइटल्स, कितने श्रेष्ठ स्वमान मीठे बाबा मुझे दे रहे हैं... मैं आत्मा मधुबन निवासी हूँ... हर समय अपने इस श्रेष्ठ स्वमान की स्मृति में ही रहती हूँ... अपने लौकिक स्थान या सेवाकेंद्र पर रहते हुए भी... मधुबन निवासी के अपने श्रेष्ठ भाग्य की स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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