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❍ 20 / 09 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *निंदा करने वाले का संग तो नहीं किया ?*
➢➢ *मुख से ज्ञान रत्नों का दान किया ?*
➢➢ *अपना और सर्व का कल्याण करने का धंधा किया ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *सर्व आत्माओं के अशुभ भाव और भावना का परिवर्तन किया ?*
➢➢ *अनुभवी स्वरुप बनकर रहे ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ बहुत जन्म विस्तार में जाने की आदत पडी हुई है। इसलिए विस्तार में बहुत जल्दी चले जाते हैं लेकिन ब्रेक लगाने वा समेटने में टाइम लग जाता है तो टाइम नहीं लगना चाहिए। क्योंकि बापदादा ने सुनाया है - *लास्ट में फाइनल पेपर का क्वेचन ही यह होगा - सेकण्ड में फुलस्टॉप, यही क्वेचन आयेगा।*
〰✧ इसी में ही नम्बर मिलेंगे। तो इम्तिहान में पास होने के लिए तैयार हो? सेकण्ड से ज्यादा हो गया तो फेल हो जायेंगे। तो टाइम भी बता रहे हैं - 'एक सेकण्ड और क्वेचन भी सुना रहे हैं - और कोई याद नहीं आये बस फुलस्टॉप' *एक बाप और मैं, तीसरी कोई बात नहीं।*
〰✧ यह कर लूँ, यह देख लूँ. यह हुआ, नहीं हुआ। यह क्यों हुआ, यह क्या हुआ - *कोई बात आई तो फेल।* यह क्वेचन सहज है या मुश्किल?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- श्रीमत पर सबकी तकदीर जगानी है,पावन बनने की युक्ति बतानी है"*
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा को अपने दिल की बात सुनाने के लिए झोपडी में पहुंचती हूँ... *एक पिता का विशाल ह्रदय देख देख अभिभूत हूँ.*.. कि बच्चे संगम पर भी अथाह सुखो में... और सतयुगी दुनिया के वैभव भी बच्चों के ही लिए है... और पिता झोपडी में बेठा, मुझे सुखो के अहसासो में भिगो रहा है... *बच्चे सदा के लिए सुख भरी दुनिया के मालिक बनकर, सदा अनन्त खुशियो में चहके.*.. इन्ही जज्बातों में डूबा मेरा अलौकिक बाबा कितना निर्माण, कितना निर्विकारी, और निरहंकारी है... सब कुछ सिर्फ बच्चों के सुख के लिए... और *बच्चों के सम्पूर्ण पावन बनने के इंतजार में बेठा... मेरा बाबा कितना मीठा और प्यारा है.*.. मीठे बाबा के लिए दिल में अथाह प्यार लेकर, मै आत्मा... झोपडी में प्रवेश करती हूँ...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को विश्व कल्याण की भावनाओ से सजाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... सबके जीवन में आप समान खुशियो की बहारो को सजाओ... *ईश्वर पिता को पाकर, जो सच्चे अहसासो को आपने जिया है... उनकी अनुभूति हर दिल को भी कराओ.*.. उनका भी सोया भाग्य जगाकर, आनन्द के फूलो से दामन सजाओ... सबको पतित से पावन बनाकर देवताई राज्य भाग्य दिलाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के अमूल्य ज्ञान को बुद्धि में समेटकर कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा *आपकी यादो की छत्रछाया में पलकर, असीम खुशियो की मालिक बन गयी हूँ.*.. यह खुशियां हर दिल पर उंडेल कर, उन्हें भी आप समान भाग्यशाली बना रही हूँ... सबको पावनता भरी सुंदर राहो पर चलाकर... सुख के बगीचे में पहुंचा रही हूँ..."
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को दिव्य गुणो और शक्तियो से भरकर कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता की यादो में गहरे डूबकर,श्रीमत के हाथो में अपना हाथ देकर... सबको श्रेष्ठ जीवन का मालिक सजाओ... *मीठे बाबा ने जो अपने प्यार की खुशबु में पावनता से सुगन्धित किया है... आप भी पावन बनने की खशबू हर दिल तक पहुँचाओ.*.. सबको पावन बनने की युक्ति बताकर, सच्चे सुखो से दामन सजा आओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे प्यारे बाबा मुझ आत्मा के उज्ज्वल भविष्य को सजाने में खपते हुए देख कहती हूँ :-"मीठे प्यारे दुलारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपके अथाह प्यार को पाकर, प्रेम, सुख, शांति की तरंगो से भर गयी हूँ... सबको ईश्वरीय राहो का राही बनाकर... दुखो के दलदल से बाहर निकाल रही हूँ... *सुख भरे फूलो को खिलाकर, अधरों पर मीठी मुस्कान सजा रही हूँ.*..
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने महान भाग्य के नशे से भरते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वर पिता जो धरती पर अथाह खजानो को ले आया है... इस दौलत से हर दिल को रूबरू कराओ.*.. सबको प्यारे बाबा से मिलवाकर, जनमो के दुखो से छुटकारा दिलवाओ...श्रीमत की सुखदायी छाँव में, पावन दुनिया का मालिक बनाओ... सबकी सोयी तकदीर को जगाकर, असीम खजानो का मालिक बनाकर, दिव्यता से भर आओ...
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा से महा धनवान् बनकर पूरे विश्व में इस ज्ञान धन की दौलत लुटाकर कहती हूँ :-"मीठे दुलारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपसे पायी अथाह धन सम्पद्दा को... अपनी बाँहों में भरकर, हर दिल को आपकी ओर आकर्षित कर रही हूँ... *मुझे इस कदर प्यारा बनाने वाले, पिता की झलक, अपनी रूहानियत से सबको दिखा रही हूँ.*.. और आपकी बाँहों में पालना दिलवाकर, पुनः पावन बना रही हूँ..."मीठे बाबा को दिल के सारे जज्बात सुनाकर मै आत्मा... अपने कर्म के बीच पुनः लौट आयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- निंदा करने वाले का संग कभी नही करना*"
➳ _ ➳ "संग तारे, कुसंग बौरे" मुरली में आने वाली इस कहावत को स्मृति में ला कर मैं विचार करती हूँ कि आज दिन तक आसुरी दुनिया के आसुरी मनुष्यों का संग करते - करते मेरी बुद्धि कितनी मलीन हो गई थी जो अपने ही आत्मा भाईयों के गुणों को ना देख उनके अवगुणों को देख उनकी निंदा करने लगी थी। किन्तु *भगवान बाप ने आ कर, अपना सत्य संग देकर, मुझ पत्थर बुद्धि को पारस बुद्धि बना दिया। ज्ञान का दिव्य चक्षु दे कर, मुझ आत्मा को होली हंस बना कर, अवगुण रूपी पत्थर को छोड गुण रूपी मोती चुगना सिखा दिया*।
➳ _ ➳ ऐसे होली हंस बनाने वाले अपने प्यारे मीठे शिव बाबा का शुक्रिया अदा करने के लिए, अब मैं अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप में स्थित होती हूँ और *मन बुद्धि की उस मीठी रूहानी यात्रा पर चल पड़ती हूँ जो सीधी मुझे मेरे ज्ञान सूर्य अति मीठे, अति प्यारे, सिकीलधे बाबा तक ले जाती है*। मन बुद्धि की यात्रा पर चलते, अनेक सुंदर, अद्भुत अनुभूतियाँ करते, मैं अपने निराकार बाबा के पास उनकी निराकारी दुनिया की ओर बढ़ रही हूँ।
➳ _ ➳ आकाश मण्डल को पार करके, सूक्ष्म लोक को पार करते हुए अब मैं स्वयं को अपनी रूहानी मंजिल के बिल्कुल समीप अनुभव कर रही हूँ। *मेरे शिव पिता की शक्तिशाली किरणों का एक दिव्य आभामंडल मुझे मेरे चारों और दिखाई दे रहा है*। इस आभामंडल के बिल्कुल बीचों - बीच गहन आनन्द की अनुभूति करते हुए मैं अपने शिव पिता के अति समीप जा रही हूँ। *समीपता की इस स्थिति में सिवाय दो बिंदुओं के और कुछ भी मुझे दिखाई नही दे रहा*। मेरे अति समीप ज्योति बिंदु शिवबाबा और उनके बिल्कुल सामने मैं ज्योति बिंदु आत्मा।
➳ _ ➳ अपने निराकार ज्योति बिंदु बाबा की किरणों के साये में मैं स्वयं को देख रही हूँ। उनकी शक्तिशाली किरणों रूपी बाहों में समा कर मैं उनकी सर्वशक्तियों को स्वयं में भरता हुआ महसूस कर रही हूँ। *बाबा की शक्तिशाली किरणों का तेज प्रवाह निरन्तर मुझ आत्मा में प्रवाहित हो कर, मुझे भी बाप समान बना रहा है*। सर्वशक्तिवान बाप की सन्तान स्वयं को मैं मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा के रूप में देख रही हूँ और स्वयं को बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। *परमात्म संग का रंग स्वयं पर चढ़ा हुआ मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ*।
➳ _ ➳ परमात्म शक्तियों से स्वयं को भरपूर करके और अपने शिव पिता परमात्मा के अविनाशी संग के रंग में स्वयं को रंग कर अब मैं वापिस साकारी दुनिया की ओर लौट रही हूँ । मेरे शिव पिता परमात्मा के अविनाशी संग का रंग अब मुझे आसुरी दुनिया के आसुरी मनुष्यो के संग से दूर कर रहा है। *आसुरी दुनिया और आसुरी मनुष्यों के बीच रहते हुए भी उनकी आसुरी वृति का अब मुझ पर कोई प्रभाव नही पड़ता*। निंदा, चुगली करने वालों के संग से दूर, केवल अपने शिव पिता परमात्मा के संग में सदा रहते हुए अब मैं सदा परमात्म प्रेम की मस्ती में खोई रहती हूँ और हर प्रकार के कुसंग से बची रहती हूँ।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा सर्व आत्माओं के अशुभ भाव और भावना का परिवर्तन करती हूँ ।”*
➳ _ ➳ सर्व फूलों में उत्तम है गुलाब का फूल… सर्व वर्णों में उत्तम है ब्राह्मण वर्ण… जैसे गुलाब का पुष्प बदबू की खाद से खुशबू धारण कर खुशबूदार गुलाब बन जाता है… ऐसे *मैं सर्व आत्माओं में श्रेष्ठ आत्मा अशुभ, व्यर्थ, साधारण भावना और भाव को श्रेष्ठता में... अशुभ भाव आर भावना को शुभ भाव और भावना में परिवर्तन करती हूँ... अब मुझ आत्मा में ब्रह्मा बाप समान अव्यक्त फरिश्ता बनने के लक्षण सहज और स्वत: आ रहे हैं... इसी से मैं आत्मा माला का दाना, दाने के समीप आ रही हूँ*…
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अनुभवी स्वरूप बन चेहरे से खुशनसीबी की झलक का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं ऊंच ते ऊंच ब्राह्मण आत्मा हूँ... *सारे विश्व के अंदर ब्रह्माण्ड और विश्व के मालिक बनने वाली आत्मा हूँ*... देहभान से न्यारी देही-अभिमानी आत्मा हूँ... सदा अपने स्वमान में स्थित रहने वाली आत्मा हूँ... *स्वमान मुझ आत्मा को सर्व प्राप्तियों का अनुभव करा रहें है*... मैं आत्मा स्वमान स्वरूप का अनुभव करती जा रही हूँ... *स्वमान की स्मृति मुझ आत्मा को... अनुभवी मूर्त बनाती जा रही है*... मैं शिव शक्ति हूँ... यह स्वमान का स्वरूप मुझ आत्मा के चेहरे से... खुशनसीबी की झलक का अनुभव कराता है... *बिन मांगे अमूल्य रत्न मुझ आत्मा को मिलते जा रहे है*... शुक्रिया बाबा आपका इतना ऊंचा स्वमान दिया... मैं देवता बनने वाली हूँ... *सर्वशक्तिवान के साथ हमारा सम्बन्ध है... यह अनुभव मुझ आत्मा की सबसे बड़ी खुशनसीबी का अनुभव करा रहा है*...मुझ से खुशनसीब कोई ओर नही... वाह!!! बाबा!!!... वाह!!..
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. *अगर कोई भी बच्चे थोड़ा भी नीचे-ऊपर होते हैं, अचल से हलचल में आते हैं तो उसका कारण सिर्फ 3 बातें मुख्य हैं,* वही तीन बातें भिन्न-भिन्न समस्या या परिस्थिति बनकर आती हैं। वह तीन बातें क्या हैं? अशुभ वा व्यर्थ सोचना। अशुभ वा व्यर्थ बोलना और अशुभ वा व्यर्थ करना। सोचना, बोलना और करना - इसमें टाइम वेस्टबहुत होता है। अभी विकर्म कम होते हैं, व्यर्थ ज्यादा होते हैं। *व्यर्थ का तूफान हिला देता है और पहले सोच में आता है, फिर बोल में आता है, फिर कर्म में आता है* और रिजल्ट में देखा तो किसी का बोल और कर्म में नहीं आता है लेकिन सोचने में बहुत आता है। जो समय बनाने का है, वह सोचने में बीत जाता है। तो बापदादा आज यह तीन बातें सोचना, बोलना और करना - इनकी गिफ्ट सभी से लेने चाहते हैं। तैयार हैं?
➳ _ ➳ 2. सभी ने यह दे दिया। वापस नहीं लेना। यह नहीं कहना कि मुख से निकल गया, क्या करें? मुख पर दृढ़ संकल्प का बटन लगा दो। दृढ़ संकल्प का बटन तो है ना?क्योंकि बापदादा को बच्चों से प्यार है ना। *तो प्यार की निशानी है, प्यार वाले की मेहनत देख नहीं सकते।* बापदादा तो उस समय यही सोचते कि बापदादा साकार में जाकर इनको कुछ बोले, लेकिन अब तो आकारी, निराकारी है। बिल्कुल सभी मेहनत से दूर मुहब्बत के झूले में झूलते रहो। *जब मुहब्बत के झूले में झूलते रहेंगे तो मेहनत समाप्त हो जायेगी।* मेहनत को खत्म करें, खत्म करें नहीं सोचो। सिर्फ मुहब्बत के झूले में बैठ जाओ, मेहनत आपेही छूट जायेगी। छोड़ने की कोशिश नहीं करो, बैठने की, झूलने की कोशिश करो।
➳ _ ➳ 3. *बाप को भी बच्चों पर फेथ है।* पता नहीं कैसे कोई-कोई किनारा कर लेते हैं जो बाप को भी पता नहीं पड़ता। छत्रछाया के अन्दर बैठे रहो। ब्राह्मण जीवन का अर्थ ही है झूलना, माया में नहीं।
➳ _ ➳ 4. तो माया भी झूला झुलाती है लेकिन माया के झूले में नहीं झूलना।
➳ _ ➳ 5. अभी *अतीन्द्रिय सुख* के झूले में झूलो, *खुशी* के झूले में झूलो। *शक्तियों की अनुभूतियों* के झूले में झूलो। अभी *प्रेम* के झूले में झूलो, अभी *आनंद* के झूले में झूलो। अभी *ज्ञान* के झूले में झूलो। तो झूले से उतरो नहीं।
✺ *ड्रिल :- "सदैव मुहब्बत के झूले में झूलते हुए मेहनत से मुक्त होने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *परम सत्ता के सानिध्य में बैठी मैं आत्मा... डूब जाती हूँ उसकी ही यादों में...* परम सत्ता... परम पिता मेरे... जिसकी यादों में दिल डूबा ही रहता हैं... जिसको भूलने की दरकार ही नहीं... हर घड़ी... हर पल अभुल बन के छाया है मुझ आत्मा के दिलों दिमाग पर... वह परम पवित्र आत्मा... *मुझ आत्मा का पिता... जिस के सानिध्य में मैं आत्मा परम शांति का अनुभव करती हूँ...* मनरूपी नाव पे सवार हो कर... समुन्दररूपी व्यर्थ के तूफानों को पार करती मैं आत्मा... पहुँच जाती हूँ परमधाम में... शांति के धाम में...
➳ _ ➳ बिंदु बन कर बिंदु रूपी बाप की छत्रछाया में समां रही हूँ... *उसकी अनंत शक्ति रूपी किरणों को अपने में धारण कर मैं बिंदु आत्मा बिंदु बाप की परछाई बन रही हूँ...* परमधाम में पिता के साथ चल मैं आत्मा पहुँचती हूँ सूक्ष्मवतन में... जहाँ मेरे ब्रह्माबाबा मेरा इंतजार कर रहे थे... *शिवबाबा का ब्रह्माबाबा के भालतख्त पर विराजमान होने का ऐतहासिक नजारा मैं आत्मा साक्षी होकर के देख रही हूँ...* एक चमकती हुई दिव्य ज्योति पुंज का अवतरण ब्रह्मा तन में... प्रत्यक्ष होता हुआ देख रही हूँ... बापदादा का कंबाइंड स्वरुप नजर को निहाल कर रहा है...
➳ _ ➳ बापदादा के संग संग चलती मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ... साकार मनुष्य लोक में... भक्ति मार्ग की रस्मों-रिवाज में उलझी हुई आत्माओं को देखा... *जप-व्रत-तीर्थ आदि में स्वयं को भूली आत्मा... परमात्मा को भूली आत्मा... ढूंढ रही हैं भगवान को...* परम शांति... परम सुख का मार्ग ढूंढती आत्मा... कभी ख़ुशी... कभी गम के झूले में... झूलती रहती हैं... ख़ुशी का पारा कभी ऊपर तो कभी नीचे होता ही रहता हैं... भगवान को पाने की मेहनत में संगमयुग व्यतीत कर रहे हैं... *संगमयुग की अनमोल घड़ियों को मुहब्बत के बजाये मेहनत से तोल रहे हैं...*
➳ _ ➳ बापदादा के संग संग... मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ... *ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में... जहाँ हर ब्राह्मण आत्मा... अपने संगमयुग की ऐतिहासिक पलों को अपने ही यादगार बनाने में लगी हैं... भगवान को स्वयं जान... स्वयं महसूस करती हर ब्राह्मण आत्मा... अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलती ही रहती हैं... बापदादा की यादों में अपने मन बुद्धि को सफल करती रहती हैं... सिर्फ मुहब्बत के झूले में बैठ... मेहनत से मुक्त आत्मायें... बापदादा के दिलतख्तनशीन बन जाते हैं... मुहब्बत के झूले में झूल मेहनत को समाप्त करती हर एक ब्राह्मण आत्मा...* शक्तियों की अनुभूतियों के झूले में... तो कभी प्रेम के झूले में... कभी आनंद के झूले में... कभी ज्ञान के झूले में झूलती ही रहती हैं...
➳ _ ➳ और मैं फ़रिश्ता आत्मा... अपने आप को भी देख रही हूँ मुहब्बत के झूले में झूलता हुआ... मेहनत से मुक्त... *बापदादा के दिलतख़्त पर विराजमान होता हुआ...* बापदादा अपनी शक्तियों रूपी किरणों को सभी सेंटर पर फैला रहें हैं और मैं आत्मा... सभी ब्राह्मण आत्माओं के साथ उस शक्ति रूपी किरणों की बारिश में भीग रही हूँ... पूर्णतः शक्तियों से भरपूर... सभी ब्राह्मण... संगमयुगी... आत्मायें... हर पल को यथार्थ रीति बापदादा की यादों में प्यार की वर्षा में बहाते जा रहे हैं... *सोचना... बोलना... और करना... बाप समान बनते जाते हैं...* बापदादा के नूरे रत्न बनते जा रहे हैं... ॐ शांति
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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