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 02 / 09 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *एक बाप से ही सदा चिटके रहे ?*

 

➢➢ *दिन रात बाप की ही महिमा की ?*

 

➢➢ *कभी भी मिया मिठू तो नहीं बने ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *साधनों के वशीभूत होने की बजाये उन्हें यूज़ किया ?*

 

➢➢ *हद के मैं और मेरेपन को बेहद में परिवर्तित किया ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  हर कर्म करते कर्मयोगी आत्मा' अनुभव करते हो? कर्म और योग सदा साथ-साथ रहता है? *कर्मयोगी हर कर्म में स्वतः ही सफलता को प्राप्त करता है।* कर्मयोगी आत्मा कर्म का प्रत्यक्ष फल उसी समय भी अनुभव करता और भविष्य भी जमा करता, तो डबल फायदा हो गया ना।

 

✧  ऐसे डबल फल लेने वाली आत्मायें हो। *कर्मयोगी आत्मा कभी कर्म के बंधन में नहीं फंसेगी।* सदा न्यारे और सदा बाप के प्यारे। *कर्म के बंधन से मुक्त - इसको ही कर्मातीतकहते हैं।* कर्मातीत का अर्थ यह नहीं है कि कर्म से अतीत हो जाओ। *कर्म से न्यारे नहीं, कर्म के बंधन में फँसने से न्यारे,* इसको कहते हैं - कर्मातीत।

 

✧  *कर्मयोगी स्थिति कर्मातीत स्थिति का अनुभव कराती है।* तो किसी बंधन में बंधने वाले तो नहीं हो ना? औरों को भी बंधन से छुडाने वाले। *जैसे बाप ने छुडाया, ऐसे बच्चों का भी काम है छुडाना,* स्वयं कैसे बंधन में बंधेगे?

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  सुखदायी बनकर, सब्को सुख देना, गुणग्राही बनना"*

 

_ ➳  प्रेम के सागर मीठे बाबा की बाँहों में प्रेम मणि बनी मै आत्मा... कितनी मीठी और प्यारी हो गयी हूँ... अपने मीठे भाग्य के चिंतन में खोयी हुई कि... *प्यारे बाबा ने अपने प्यार में मेरे देहभान के सारे कड़वेपन को धो दिया है... और अपनी मिठास को मुझ में भरकर यूँ रूहानी सा सजा दिया है..*. आज हर आत्मा के लिए मेरे दिल ने सदा आत्मिक स्नेह की खुशबु है... इन्ही मीठे जज्बातों को उंडेलने, मीठे प्यार के सागर बाबा का दिल से शुक्रिया करने, मै आत्मा वतन में पहुंचती हूँ...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को रूहानी प्यार से सराबोर करते हुए खा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता ने जो आत्मिक अनुभूति करवाई है... उसमे गहरे डूबकर आत्मिक भाव की तरंगे पूरे विश्व में बहाओ... *रूहानी प्यार में रहकर, सदा एक दूसरे को आत्मा देख, गुणो को ही ग्रहण करो..*. मीठे बाबा से सारे गुणो की दौलत लेने में मशगूल रहो... किसी के भी अवगुण न देखो..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा से सच्चे प्यार की दौलत पाकर कहती हूँ :-मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा देह के भान में आकर सदा अवगुणों पर ही गहरी नजर रखती रही... और अवगुण देखते देखते मै स्वयं अवगुणों की खान बनकर रह गयी... *आपने मीठे बाबा मुझ आत्मा को आत्मिक स्नेह की नजर देकर मुझे कितना गुणवान और सुखी बना दिया है..*.सबमे गुणो को निहारने वाला होलिहंस बना दिया है,.."

 

   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को गुणो की अमीरी से भरते हुए कहा :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वरीय प्रेम के पर्याय बनकर, सबको सुख और आनन्द के खजानो का मालिक बनाओ..*. सच्चे प्यार की बहार बनकर, सब्को सदा सुख ही सुख की अनुभति कराओ... गुणो के मोती अपनी झोली में सदा भरते रहो...किसी की कमी कमजोरी को न देखो..."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा के रूहानी प्यार को पाकर, अति मीठी और प्यारी बनकर कहती हूँ :-"मीठे लाडले बाबा मेरे... *आपने मुझे प्रेम का स्वरूप बनाकर, कितना मीठा और प्यारा कर दिया है... सबमे गुण खोजने वाली बन गयी हूँ.*.. मै आत्मा हर दिल पर प्यार लुटाकर, आपको प्रत्यक्ष कर रही हूँ... सबको सुख देकर सच्चे पिता से मिलवा रही हूँ...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को मा गुण सागर बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... प्यार के सागर से पायी प्यार भरी लहरों से हर मन का सिंचन करो... *हर दिल पर सदा रूहानी स्नेह की वर्षा करके सुख भरी ठंडक पहुँचाओ..*. सदा गुणो को ही देखो और मा गुण सागर बनकर मुस्कराओ...."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा से असीम प्यार पाकर प्रेम मणि बनकर कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा *आपकी प्यार भरी गोद में रूहानी प्यार से भरपूर होकर, सबपर यह प्यार का खजाना लुटा रही हूँ.*.. अपने मीठे बाबा से पाये गुणो के भण्डार का मुरीद हर दिल को बना रही हूँ... कितना प्यारा यह मेरा भाग्य है..."मीठे बाबा के प्रेम में भरपूर होकर मै आत्मा... साकारी वतन में लौट आयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- एक बाप की अव्यभिचारी याद में रह सतोप्रधान बनना*"

 

_ ➳  अपनी सम्पूर्ण सतोप्रधान स्टेज को स्मृति में लाते ही मैं आत्मा स्वयं को अपने अनादि स्वरूप में परमधाम में देख रही हूँ। यहां मैं अपनी सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था में अपने शिव पिता के सम्मुख हूँ। *सातों गुणों और सर्वशक्तियों से मैं आत्मा सम्पन्न हूँ। हर प्रकार के कर्म के बंधन से मुक्त हूँ*। अपनी इसी अशरीरी स्थिति में अपने स्वीट साइलेन्स होम परमधाम को छोड़, साकारी लोक में आ कर, शरीर धारण कर इस सृष्टि रूपी कर्म क्षेत्र पर कर्म करने के लिए मैं अवतरित होती हूँ।

 

_ ➳  एक - एक करके मुझे अपनी सारी अवस्थाओं की स्मृति आ रही है। मैं देख रही हूँ स्वयं को पहले - पहले नई सतोप्रधान दुनिया सतयुग में। यहां मैं आत्मा सम्पूर्ण सतोप्रधान हूँ। *मेरा निर्विकारी सम्पूर्ण देवताई स्वरूप बहुत ही आकर्षणमय है। धीरे - धीरे त्रेता युग मे मैं आत्मा सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था से सतो में आ गई इसलिए मुझ आत्मा की आकर्षण शक्ति में थोड़ी सी गिरावट आ गई*। मुझ आत्मा की चमक थोड़ी फीकी पड़ गई। द्वापर युग में आ कर, विकारों की प्रवेशता ने मुझ आत्मा को रजो अवस्था मे पहुंचा दिया। यहां आ कर मुझ आत्मा की चमक बिल्कुल ही फीकी पड़ गई। कलयुग तक आते - आते मैं आत्मा तमो और कलयुग अंत तक आते - आते बिल्कुल ही तमोप्रधान हो गई।

 

_ ➳  सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था मे सोने के समान चमकने वाली मैं आत्मा तमोप्रधान हो जाने से लोहे के समान काली हो गई। किन्तु अब संगमयुग पर मेरे शिव पिता परमात्मा ने आ कर ज्ञान और योग सिखलाकर मुझे तमोप्रधान से दोबारा सतोप्रधान बनने का सहज उपाय बता दिया। *अब मैं जान गई हूँ कि मेरे शिव पिता परमात्मा की अव्यभिचारी याद ही मुझे तमोप्रधान से सतोप्रधान बना सकती है। इसलिए आत्मा के ऊपर चड़ी विकारों की कट को उतारने और स्वयं को सतोप्रधान बनाने के लिए मैं अपने शिव पिता परमात्मा की अव्यभिचारी याद में अपने मन बुद्धि को एकाग्र कर, अशरीरी हो कर बैठ जाती हूँ* और अगले ही पल इस नश्वर देह का त्याग कर निराकारी ज्योति बिंदु आत्मा बन उड़ चलती हूँ अपने शिव पिता परमात्मा के पास।

 

_ ➳  अब मैं देख रही हूं स्वयं को परमधाम में अपने निराकार शिव पिता परमात्मा के बिल्कुल पास। यहां मैं अपने प्यारे, मीठे शिव बाबा से आ रही सातों गुणों की सतरंगी किरणों और सर्वशक्तियों को स्वयं में भरपूर कर रही हूँ। *साथ ही साथ योग अग्नि में अपने विकर्मों को भी दग्ध कर रही हूं। बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की ज्वाला स्वरूप किरणें जैसे - जैसे मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं वैसे - वैसे मुझ आत्मा पर चढ़ी विकारों की कट जल कर भस्म हो रही है और मेरा स्वरूप फिर से सच्चे सोने के समान चमकदार हो रहा है*। विकारों की खाद निकल रही है और मैं आत्मा तमोप्रधान से दोबारा अपनी सतोप्रधान अवस्था को प्राप्त कर रही हूँ।

 

_ ➳  स्वयं को योग अग्नि में तपाकर, रीयल गोल्ड समान चमकदार बन कर अब मै आत्मा वापिस साकारी लोक में लौट रही हूँ और अपने साकारी तन में आ कर अब मैं *ब्राह्मण स्वरुप में स्थित हो कर एक बाप की अव्यभिचारी याद में रह, स्वयं को सतोप्रधान बनाने का पुरुषार्थ कर रही हूँ*। पिछले अनेक जन्मों के आसुरी स्वभाव संस्कार जो आत्मा  को तमोप्रधान बना रहे थे वे सभी आसुरी स्वभाव संस्कार बाबा की अव्यभिचारी याद में रहने से परिवर्तन हो रहें हैं। क्योकि *बाबा की याद मेरे अंदर बल रही है जिससे पुराने स्वभाव संस्कारों को बदलना सहज हो रहा है*।

 

_ ➳  इस बात को अब मैं सदैव स्मृति में रखती हूँ कि मैं आत्मा जिस सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था मे आई थी अब उसी सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था मे मुझे वापिस अपने धाम लौटना है। *इसलिए अब केवल एक बाप की अव्यभिचारी याद में ही मुझे रहना है क्योंकि मेरे शिव पिता परमात्मा की अव्यभिचारी याद ही मुझे उसी सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था तक ले जाएगी*। इसी स्मृति में निरन्तर रह कर अब मैं आत्मा किसी भी देहधारी के नाम रूप में ना फंस कर, केवल पतित पावन अपने परम पिता परमात्मा की अव्यभिचारी याद में रह स्वयं को सतोप्रधान बना रही हूं।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  मैं आत्मा साधनों के वशीभूत होने के बजाये उन्हें यूज़ करती हूँ ।*

 

 _ ➳  *संगमयुग अमूल्य युग... भगवान के अवतरण के युग में...* मैं आत्मा... साधनों का उपयोग अलौकिक सेवा में सफलतापूर्वक कर रही हूँ... साधनों के वशीभूत न हो कर उन्हें बेहद की सेवा में सफल कर रही हूँ... मास्टर क्रियेटर मैं आत्मा... साधन का उपयोग... साधना को... पुरुषार्थ को हाई जम्प लगाने के हेतु कर रही हूँ... *तीव्र पुरुषार्थ द्वारा अंतिम स्थिति... कर्मातीत अवस्था की शिखर पर खड़ी मैं आत्मा... बेहद की सेवा में... मंसा... वाचा... कर्मणा... समर्पित हो गईं हूँ...* बापदादा की श्रीमत पर... ब्रह्मा बाबा के कदमो पे कदम रखती मैं आत्मा... अपने संगमयुग को सफल कर रही हूँ... *साधनों को साधना में सफल करती मैं आत्मा... मास्टर क्रियेटर बन ड्रामा के पार्ट को यथार्थ रीति निभा रही हूँ...*

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- हद के मैं और मेरेपन को बेहद में परिवर्तन कर निरंतर योगी बनने का अनुभव"*

 

_ ➳ मैं बाबा के प्यार के पात्र आत्मा हूँ... अधिकारी आत्मा हूँ... *मैं बाप समान बनने वाली आत्मा हूँ*... मुझ आत्मा ने बाप का बनते ही... बाप से पहला वायदा ही यही किया है... *ये तन, ये मन, ये धन जो भी है वह सब तेरा है बाबा*... मैं ओर मेरा सब कुछ बाबा को सौंप... मैं आत्मा निश्चित होती जा रही हूँ... बाबा ने दुख देने वाले मन को परिवर्तन कर... मुझ आत्मा को *कितना खुशी वाला अच्छा मन दे दिया*... जो मैं और मेरेपन के हदों से परे... बेहद में परिवर्तन हो निरन्तर योगी बनाता जा रहा है... *बेहद की स्मृति मुझ आत्मा को न्यारा और सर्व का प्यारा बनाती जा रही है*... निमित भाव, निर्मान स्वभाव और सर्व प्रति कल्याण की श्रेष्ठ भावना मुझ आत्मा में आती जा रही है... हद से बाहर निकल बेहद में परिवर्तन हो जाने का अनुभव ही निराला है... *पूरा विश्व अपना लगने लगा है*...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  १. अभी भी समय और संकल्प - ना अच्छे मेंना बुरे में होते हैं। *तो बुरे में नहीं हुआ ये तो बच गये लेकिन अच्छे में जमा हुआ? समझा?* समय कोसंकल्प को बचाओजितना अभी बचत करेंगेजमा करेंगे तो सारा कल्प उसी प्रमाण राज्य भी करेंगे और पूज्य भी बनेंगे।

 

 _ ➳  २. लेकिन एक अटेन्शन रखना - अगर मानो आपका आज के दिन जमा का खाता बहुत कम हुआ तो कम देख करके दिलशिकस्त नहीं होना। और ही समझो कि अभी भी हमको चांस है जमा करने का। अपने को उमंग- उत्साह में लाओ। *अपने आपसे रेस करोदूसरे से नहीं। अपने आपसे रेस करो कि आज अगर ८ घण्टे जमा हुए तो कल १० घण्टे हो। दिलशिकस्त नहीं होना*। क्योंकि अभी फिर भी जमा करने का समय है। अभी टू लेट का बोर्ड नहीं लगा है। फाइनल रिजल्ट का टाइम अभी एनाउन्स नहीं हुआ है। जैसे लौकिक में पेपर की डेट फाइनल हो जाती है तो अच्छे पुरुषार्थी क्या करते हैं? दिलशिकस्त होते हैं या पुरुषार्थ में आगे बढ़ते हैंतो आप भी दिलशिकस्त नहीं बनना। और ही उमंग-उत्साह में आकरके दृढ़ संकल्प करो कि मुझे अपने जमा का खाता बढ़ाना ही है। समझा?दिलशिकस्त तो नहीं होंगेफिर बाप को मेहनत करनी पड़े! फिर बड़े-बड़े पत्र लिखना शुरु कर देंगे - बाबा क्या हो गया... ऐसा हो गया... ! बाबा बचाओबचाओ - ऐसे नहीं कहना। *देखो आपके जड़ चित्रों से जाकर मांगनी करते हैं कि हमको बचाओ। तो आप बचाने वाले होबचाओ-बचाओ कहने वाले नहीं*।

 

 _ ➳  ३.  ये अपने आप चेक करो और चेक करके चेंज करो। *दिलशिकस्त नहीं बनोचेंज करो। जब बाप साथ है तो बाप को यूज करो ना*! यूज कम करते होसिर्फ कहते हो बाबा साथ हैबाबा साथ है। यूज करो। *जब सर्वशक्तिमान साथ है तो सफलता तो आपके चरणों में दौड़नी है*। 

 

✺   *ड्रिल :-  "समय और संकल्प जमा करने में बापदादा को यूज करना"*

 

 _ ➳  अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी स्वरूप में मैं नन्हा सा फ़रिशता अपनी शिव माँ की किरणों रूपी गोद मे बैठा उनकी ममतामयी गोद का अनुपम सुख प्राप्त कर रहा हूँ। मेरी शिव माँ अपनी सर्वशक्तियों रूपी किरणों की बाहों के झूले में मुझे झुला रही है। उनकी किरणों रूपी बाहों का कोमल स्पर्श मेरे मन को आनन्दित कर रहा है। *अपनी बाहों के झूले में झुलाते - झुलाते मेरी शिव माँ अब मुझे अपनी गोद मे उठाये कहीं दूर ले कर चल पड़ती है*। एक बहुत खूबसूरत प्रकृतिक सौंदर्य से भरपूर, दुनिया की भीड़ से अलग बहुत खुले स्थान पर मेरी शिव माँ मुझे ले आती है और अपनी किरणों रूपी बाहों की गोद से मुझे नीचे उतार कर मेरे साथ खेलने लगती है।

 

 _ ➳  कभी मैं नन्हा फ़रिशता उड़ कर अपनी शिव माँ को पकड़ता हूँ और कभी मेरी शिव मां मुझे पकड़ती है। *अपनी शिव माँ के साथ अनेक प्रकार के खेल खेलने के बाद मैं उनकी गोद मे सिर रख कर सो जाता हूँ* और जब नींद से जागता हूँ तो स्वयं को परियों की एक बहुत सुंदर दुनिया मे देखता हूँ। जहां अथाह खजानों के ढेर लगे हुए हैं।

 

 _ ➳  तभी मेरी शिव माँ अव्यक्त ब्रह्मा माँ के आकारी रथ में विराजमान हो कर मेरे पास आती है और मेरे हाथ मे सर्व खजानों की चाबी रख देती है और मुझ से कहती है मेरे बच्चे इन सर्व खजानों के आप मालिक हो। जितना चाहे इन खजानों को यूज़ करो। जितना यूज़ करेंगे उतने यह खजाने बढ़ते जायेंगे। *अपनी शिव माँ से सर्व खजानों की चाबी ले कर मैं फ़रिशता सर्व खजानों को बढ़ाने का जो मुख्य आधार है "समय और संकल्प" उसे जमा करने के तीव्र पुरुषार्थ में लग जाता हूँ*।

 

 _ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, *बापदादा को यूज़ करते हुए अब मैं शुद्ध संकल्पो की रूहानी लिफ्ट पर सवार हो कर कभी निराकारी स्थिति में, कभी आकारी स्थिति में और कभी साकारी स्थिति में स्थित हो कर स्वयं को शक्तिशाली बना रही हूँ*। समय के वरदानों को स्वयं प्रति और सर्व प्रति कार्य मे लगा कर मैं हर सेकण्ड को सफल कर रही हूं।

 

 _ ➳  मनबुध्दि को शुद्ध और श्रेष्ठ संकल्पो में बिजी रख अपनी स्वस्थिति को शक्तिशाली बना कर मैं मायाजीत बनती जा रही हूं। *सर्वशक्तिवान बाप की छत्रछाया के नीचे स्वयं को सदा अनुभव करने से, बापदादा की सर्वशक्तियों की अधिकारी बन मैं उचित समय पर उचित शक्ति का प्रयोग कर हर प्रकार की मेहनत से स्वयं को मुक्त अनुभव कर रही हूं*। कोई भी परिस्थिति अब मुझे दिलशिकस्त नही बना सकती।

 

 _ ➳  कदम कदम पर बापदादा को अपने साथ अनुभव करने और बाबा की शिक्षाओं पर बार - बार मनन करने से मेरी बुद्धि समर्थ बनती जा रही है। *ज्ञान रत्नों को धारण कर अपनी बुद्धि को समर्थ बना कर, ज्ञान रत्नों की व्यापारी बन अब मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को ज्ञान रत्न दे कर सर्व खजानों के जमा का आधार "समय" और "संकल्प" के श्रेष्ठ खजाने को सफल करते हुए सदा और सहज सफ़लतामूर्त बनती जा रही हूं*।

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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