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❍ 24 / 01 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 2*5=10)
➢➢ *एकमत होकर रहे ?*
➢➢ *योगबल से पुराने सब हिसाब किताब चुकतु करने पर विशेष अटेंशन रहा ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:3*10=30)
➢➢ *चलन और चेहरे द्वारा पुरुषोत्तम स्थिति का साक्षात्कार कराया ?*
➢➢ *एकरस स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर स्थित रहे ?*
➢➢ *संगठित रूप से फुलफ़ोर्स से योग ज्वाला प्रज्जवलित की ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *अभी अभी आवाज़ में आने का और अभी अभी आवाज़ से परे जाने का अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - तुम्हे अभी नया जीवन मिला है, पुराना जीवन बदल गया है, क्योकि तुम अब ईश्वरीय सन्तान बने हो, तुम्हारी प्रीत एक बाप से है"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता ने दुखो के दलदल से निकाल कर, नया खुशनुमा जीवन दिया है... यह ईश्वरीय साथ का आनन्द भरा जीवन अनोखा और अदभुत है... *सब श्रीमत की ऊँगली पकड़कर उमंगो में झूम रहे है.*.. और एक पिता माशूक में खोये से सब आशिक हो चले है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार भरी गोद में *नया सा जीवन, नया सा जनम पाकर फूलो सी खिल गयी हूँ.*.. मेरी नजर ईश्वरीय हो चली है... पूरा विश्व परिवार बन गया है,और सब मीठे बाबा की दीवानगी में झूम रहे है...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... भगवान बागबाँ ने विकारो की गिरफ्त में काँटे हो चले बच्चों को... पलको से चुनकर ईश्वरीय सन्तान सा खिलाया है... ईश्वरीय प्यार और महक से सराबोर शानदार जीवन दिया है... *एक सूत्र में बंधे स्नेह की माला बने,* ईश्वर पिता के गले में सजे फूल से मुस्करा रहे हो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा इतना मीठा प्यारा खुबसूरत जीवन पाकर निहाल हो चली हूँ... *ईश्वरीय सन्तान होने के अपने भाग्य पर इठला रही हूँ.*.. मीठे बाबा आपसे प्यार पाकर, स्नेह की वर्षा पूरे विश्व वसुंधरा पर कर रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... कितना मीठा प्यारा सा भाग्य है... *ईश्वरीय गोद में खुशियो से छलकता हुआ नया जीवन मिला है.*.. सच्चे प्रेम को जीने वाले खुशनसीब हो... देह और देहधारियों के विकृत प्रेम से निकल, ईश्वरीय प्रीत पाने वाले रूहानी गुलाब से महक उठे हो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा जनमो की प्यासी, प्रेम विरह में व्याकुल सी... *आज आपसे अविनाशी प्यार पाकर सदा की तृप्त हो रही हूँ.*.. ईश्वरीय प्रेम सुधा ने मुझ आत्मा के रोम रोम को सिक्त कर अतीन्द्रिय सुख से भर दिया है...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा ब्रह्मा बाप समान हूँ।"*
➳ _ ➳ मैं ब्रह्मामुख वंशावली ब्राह्मण आत्मा हूँ... प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपना बच्चा बनाकर नया जीवन दिया है... जीवन जीने का लक्ष्य दिया है... मैं आत्मा पदमापदम भाग्यशाली हूँ... *सर्वश्रेष्ठ, सर्वज्ञ, ऊंच ते ऊंच बाप की संतान हूँ... ईश्वरीय संतान हूँ*...
➳ _ ➳ मैं *ब्रह्मा के आचरण पर चलने वाली सच्ची ब्राह्मण आत्मा* हूँ... मैं आत्मा ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रख चलने वाली आत्मा हूँ... जैसे ब्रह्मा बाप को तत् त्वम् का वरदान मिला ऐसे सब बच्चों को भी बापदादा तत् त्वम का वरदान देते है... मैं आत्मा इस वरदान को स्मृति में रखते अपने पिता की शिक्षाओं पर यथार्थ रुप से चलती हूँ... मैं आत्मा वरदानी स्वरुप का अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा हर कर्म करने से पहले सोचती हूँ कि अगर ब्रह्मा बाप होते तो क्या ऐसा करते... हर कर्म करने से पहले अटेंशन रखती हूँ... इस स्लोगन को याद रखती हूँ कि *जैसा कर्म मैं करुंगी मुझे देखकर दूसरे भी वैसा करेंगे*... हर कर्म बाबा की याद में रह व श्रीमत पर चलते श्रेष्ठ करती हूँ...
➳ _ ➳ जैसे *बाप हर आत्मा के प्रति उदारचित्त रहे, सहयोगी रहे*... हर आत्मा में बस विशेषता देख उसे उमंग उत्साह से आगे बढ़ाते... ऐसे मैं आत्मा हर आत्मा के प्रति स्नेह और सम्मान स्वरुप में सहयोगी बनती जा रही हूँ... हर आत्मा के प्रति आत्मिक भाव रखती हूँ... साक्षी होकर हरेक के पार्ट को देखने का अभ्यास करती हूँ... अपने को बस निमित्त समझती हूँ...
➳ _ ➳ लौकिक में भी जैसे बच्चा अपने बाप के नक्शे कदमों पर चलता है... अपने पिता के मान सम्मान का ध्यान रखते हर कार्य एक्यूरेट करता है... *ब्रह्मा बाबा ने भी हर कर्म सम्पूर्ण रुप से समर्पित भाव से किया*... अपने परमपिता शिव बाबा का नाम बाला किया... ऐसे मैं आत्मा अलौकिक में रहते हुए अपने ब्रह्मा बाप को हर कदम पर फॉलो कर तीव्रगति से पुरुषार्थ कर रही हूँ...
➳ _ ➳ जैसे स्थूल खजाना प्राप्त करने वाली आत्मा के चेहरे और नयनों से खजानों का नशा स्पष्ट दिखाई देता है... ऐसे मुझ आत्मा से *ईश्वरीय अविनाशी खजानों की सम्पन्नता खजानों का नशा, खुशी* स्पष्ट दिखाई देता है... बाबा ही मेरा संसार है... मैं आत्मा सीरत और सीरत से ब्रह्मा बाप समान बनने का पुरुषार्थ करती हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- एकरस स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर स्थित रह सच्चा तपस्वी बनना"*
➳ _ ➳ *मैं अचल अडोल आत्मा हूँ...* हर परिस्थिति में स्थिर रह... सदा एकरस स्थिति में स्थित... कमल फूल समान हर बात से न्यारी हूँ... मैं सदा एकरस स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर स्थित रह... हर कठिन परिस्थिति, हर समस्या, हर विघ्न से उपराम हूँ...
➳ _ ➳ *मैं तपस्यमूर्त आत्मा हूँ...* मैं एकरस स्थिति के आसन पर स्थित रह... सच्चा-सच्चा तपस्वी हूँ... मैं बाहरी हर बात से परे... अंतर्मुखी आत्मा हूँ... बाबा से अनन्त शक्तियां प्राप्त कर... महावीर आत्मा हूँ...
➳ _ ➳ साक्षी भाव से ड्रामा के हर सीन को देखते... हर स्थिति में एकरस हूँ... निंदा स्थूति, लाभ-हानि में एक समान रह... *सदा निश्चिन्त और निश्चित हूँ...* किसी भी बात में जरा भी विचलित नहीं होती... बाबा और मैं बस औए कुछ नहीं... मैं बाबा की बाबा मेरे... इसी लग्न में मगन हूँ...
➳ _ ➳ मेरी तपस्या की ज्वाला से... मेरे और अन्य आत्माओं के भी विकारों का नाश कर रही हूँ... *मैं मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हूँ...* समय पर सभी शक्तियों का यूज कर... निरन्तर योगी आत्मा हूँ... सच्ची तपस्वी हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *चलन और चेहरे द्वारा पुरुषोत्तम स्थिति का साक्षात्कार कराने वाले ब्रह्मा बाप समान होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ पुरुषोत्तम स्थिति अर्थात पुरुषों में सबसे उत्तम स्थिति , *स्थिति अर्थात मन में उठने वाले विचार* किस क्वॉलिटी के है ? समर्थ या व्यर्थ । समर्थ संकल्प चाहे एक हो उससे स्वयं ओर सर्व का भला हो जाता है । जैसे ब्रह्मा बाबा ने देखा मुझे कृष्ण बनना है ओर धक से सबकुछ त्याग कर दिया इसी तरह एक समर्थ संकल्प बाप समान बना देगा ।
❉ आपके चेहरा ओर चलन में इतनी रूहानियत भरी हुई हो की दूर से ही ऐसी भासना आए की यह मेरा है , *अपनेपन की फ़ीलिंग* दूसरी आत्माओं को साक्षात्कार करवाने के निमित बनेगी ।
❉ जैसे ब्रह्मा बाबा ने अपने हर एक कर्म से बच्चों को हर कार्य करना सिखाया , *पहले आप* यह पाठ पक्का किया उसी तरह हमको भी बाबा की तरह हर एक ज्ञान की बिंदु की अनुभवीमूर्त बनना है जिससे ब्रह्मा बाप समान शो होगा ।
❉ *रियल ओर रॉयल* गुण शक्तियों को अपने जीवन में धारण कर अपने चेहरे ओर चलन से बेहद की सेवा करे ओर अनेको को बाबा का साक्षात्कार करवाए । रियल माना " मैं आत्मा हूँ " इस स्मृति के एक सेकंड में अनुभव में लाना ।
❉ हर साधारण कर्म करते हुए भी *एक बाप की याद समायी हुई हो* तो हर एक आत्मा को थी अनुभव होगा की यह बाबा जैसा है अर्थात ब्रह्मा बाप समान अनुभव होगा ।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *जो एकरस स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर स्थित रहता है - वही सच्चा तपस्वी है... क्यों और कैसे* ?
❉ सच्चा तपस्वी उसे कहा जाता है जो अपनी तपस्या के बल से हर परिस्थिति को सहजता से ऐसे पार कर ले जैसे कोई परिस्थिति कभी आई ही नही । *अपनी श्रेष्ठ स्व स्थिति के बल से बड़ी से बड़ी समस्या को भी सेकण्ड में सुलझा कर जो अचल अडोल रहते हैं* और एकरस स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर दृढ़ता के साथ ऐसे विराजमान रहते हैं कि उस आसन से उन्हें कोई परिस्थिति हिला डुला नही सकती । ऐसी आत्मा ही वास्तव में सच्ची तपस्वी आत्मा हैं ।
❉ भक्ति में भी दिखाते हैं कि एक महात्मा भी जब तपस्या में लीन होता है तो उसकी तपस्या के बल से उसके सामने आने वाले विघ्न और बाधाएं स्वत: ही टल जाते हैं क्योंकि उसकी *तपस्या का बल उसके चारों और एक ऐसा प्रभा मण्डल बना देता है कि उस तक कोई भी विघ्न पहुँच ही नही पाता* । यहां भी माया के अनेक प्रकार के विघ्न स्थिति को प्रभावित करने के लिए आते हैं किंतु अपनी तपस्या में लीन हो कर जो एकरस स्थिति के आसन पर विराजमान रहते हैं वही उन विघ्नों पर जीत पाने वाले सच्चे तपस्वी बनते हैं ।
❉ शास्त्रों में गायन है कि बड़े बड़े ऋषि मुनियों ने परमात्मा को प्रसन्न करने के लिए और परमात्मा से मनचाहा वरदान पाने के लिए अनेक प्रकार के यज्ञ तप आदि किये और *अपनी तपस्या से परमात्मा को प्रसन्न करके उनसे मनचाहा वरदान प्राप्त किया* । अप्रत्यक्ष रूप में की गई तपस्या जब स्थिति को इतना श्रेष्ठ बना सकती है तो यहां तो स्वयं परमात्मा प्रत्यक्ष रूप में हमारे सामने हैं । तो उनकी याद में जो सदा मग्न रहते हैं अपनी तपस्या के बल से वे एकरस स्थिति के आसन पर विराजमान रहने वाले सच्चे तपस्वी सहज ही बन जाते हैं ।
❉ अपने तप के बल से रिद्धि सिद्धि प्राप्त करने वाले साधू महात्मा भी अपनी रिद्धि सिद्धि से अनेक आश्चर्यजनक कार्य कर दिखाते हैं । किंतु हम ब्राह्मणों की सबसे बड़ी सिद्धि है सिद्धि स्वरूप आत्मा बन अनेको आत्मायों का कल्याण करना । और *सिद्धि स्वरूप बन अनेकों आत्मायों का कल्याण तभी कर सकेंगे* जब सब बातों से उपराम हो कर एकरस स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर विराजमान रहेंगे । अपनी एकरस स्थिति से न केवल स्वयं को बल्कि अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को भी हर प्रकार की हलचल से जब मुक्त कर पायेंगे तभी तपस्वी आत्मा कहलायेंगे ।
❉ कर्मेन्द्रियों के अनेक प्रकार के रसों को छोड़ जो केवल एक के ही रस में डूबे रहते हैं वही सदा एकरस स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर विराजमान रह सकते हैं । क्योंकि *इंद्रियों के सुख की लालसा आत्मा को पतन की ओर ले जाती है* और उन्ही क्षणिक सुखों को पाने के लिए ही मनुष्य विकर्म करता चला जाता है ।किन्तु प्रभु प्रेम के रस में जो डूब जाते हैं उन्हें दुनिया का कोई भी रस फिर अपनी ओर आकर्षित नही कर पाता और एकरस स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर विराजमान हो कर वे सदा परमात्म रस का पान करने वाले सच्चे तपस्वी बन जाते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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