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❍ 25 / 07 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *सिर्फ एक बाप एक सामने ही अपनी बात रखी ?*
➢➢ *खुदाई खिदमतगार बन सबको बहिश्त में चलने का रास्ता बताया ?*
➢➢ *एक बाप से ही सच्चा योग रखा ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *सर्व शक्तियों का अनुभव करते हुए सिद्धि प्राप्त कर निश्चित विजयी स्थिति का अनुभव किया ?*
➢➢ *व्यर्थ देखने व सुनने का बोझ समाप्त कर डबल लाइट स्थिति का अनुभव किया ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तित किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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➳ _ ➳ एकाग्रता की शक्ति से किसी भी आत्मा का मैसेज उस आत्मा तक पहुँचा सकते हो। किसी भी आत्मा का आह्वान कर सकते हो। किसी भी आत्मा की आवाज को कैच कर सकते हो। किसी भी आत्मा को दूर बैठे सहयोग दे सकते हो। वह एकाग्रता जानते हो ना। *सिवाए एक बाप के और कोई भी संकल्प न हो।* एक बाप में सारे संसार की सर्व प्राप्तियों की अनुभूति हो। एक ही एक हो। पुरुषार्थ द्वारा एकाग्र बनना वह अलग स्टेज है। लेकिन *एकाग्रता में स्थित हो जाना, वह स्थिति इतनी शक्तिशाली है। ऐसी श्रेष्ठ स्थिति का एक संकल्प भी बाप समान का बहुत अनुभव कराता है।* अभी इस रूहानी शक्ति का प्रयोग करके देखो। इसमें एकान्त का साधन आवश्यक है। *अभ्यास होने से लास्ट में चारों ओर हंगामा होते हुए भी आप सभी एक के अंत में खो गये तो हंगामे के बीच भी एकांत का अनुभव करेंगे।* लेकिन ऐसा अभ्यास बहुत समय से चाहिए। तब ही चारों ओर के अनेक प्रकार के हंगामे होते हुए भी अपने को एकान्तवासी अनुभव करेंगे। *वर्तमान समय ऐसे गुप्त शक्तियों द्वारा अनुभवी मूर्त बनना अति आवश्यक है।*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल
:- *सोभाग्यशाली बनकर, सबको आप समान बनाने का कर्तव्य पूरा करना*"
➳ _ ➳
विश्व कल्याण के लिए निकली फरिश्तों की टोली के समूह में...मै आत्मा फ़रिश्ते
स्वरूप में विश्व ग्लोब पर... मीठे बाबा से सुख,
शांति,
प्रेम की तरंगो को लेकर... निरन्तर बरसा रही हूँ... और फिर सूक्ष्म वतन में ठहर
जाती हूँ... मीठे बाबा और मै फ़रिश्ता...मेरा हाथ थामे मीठे बाबा सूक्ष्म वतन
में गुफ्तगू करते टहलते है... अपने प्यारे बाबा को दिल के इतना करीब देख... मै
आत्मा अपने सोभाग्य पर मुस्कराती हूँ... और *सोचती हूँ वाह रे भाग्य मेरे,
तूने
यूँ भगवान का हाथ मेरे हाथो में दे दिया*....
❉
मीठे बाबा मुझ आत्मा को विश्व के कल्याण की जिम्मेदारी को समझाते हुए बोले :- "मीठे
प्यारे फूल बच्चे... सबको अपने जैसा महान भाग्यशाली बनाओ... *हर बिछड़े दिल को
सच्चे पिता से मिलवाकर,
खुशियो की जन्नत दिलवाओ.*.. सच्ची खुशियो से सबका दामन सजाओ... जो खजाने आप
बच्चों ने पाये है उन्हें दिल खोल कर लुटाओ..."
➳ _ ➳
मै
आत्मा अपने बाबा की उम्मीदों का इस कदर सितारा बनकर कहती हूँ :- "मीठे बाबा मेरे...
भगवान को यूँ कभी काम आऊँगी भला... यह तो सपनो में भी न सोचा था... *यूँ खुशियो
की महारानी बनी... मै आत्मा सबको इस दौलत से सजाऊँगी* ऐसा आत्मिक भाव,
और
विशाल दिल देकर... आपने मेरे बौनेपन को अनन्त में बदल दिया है..."
❉
प्यारे बाबा मुझे ज्ञान रत्नों की जागीरों से भरते हुए बोले :- "मीठे लाडले
बच्चे... मै ईश्वर पिता अपने महान बच्चों की ओर मदद की नजरो से सदा ही देखता
हूँ... मेरे बिछड़े जिगर के टुकुडो को मुझसे मिलवाओ... *उनके दुखो में थके कदमो,
और
मेरी खोज में पथरायी आँखों को,
सदा
की ख़ुशी और सुकून दे आओ*... उन्हें भी आप समान सोभाग्य से सजाओ...."
➳ _ ➳
मै
आत्मा मीठे बाबा को मुझ आत्मा को इतना प्यार सम्मान और दुलार देते देख कहती हूँ
:- "मीठे सिकीलधे बाबा... *आपसे पाया असीम प्यार... मै आत्मा हर मन आँगन में
बिखेर रही हूँ.*.. सच्चे सुखो की अधिकारी बनाकर सच्ची मुस्कान से सजा रही
हूँ... स्वर्ग के सुख भरे फूल उनके दामन में खिला रही हूँ..."
❉
मीठे प्यारे बाबा मुझ आत्मा को मा सुख दाता बनाते हुए बोले :- "मीठे सिकीलधे
बच्चे... आप समान सोभाग्यशाली हर आत्मा को भी बनाओ... *सच्चे सुख आनन्द से भरा
जीवन सबकी जागीर बनाओ.*.. विश्व पिता से पायी सच्ची खुशियो की बहार... हर दिल
पर खिलाओ.. और मायूस अधरों पर सच्ची सुख भरी मुस्कान सजाओ...
➳ _ ➳
मै
आत्मा मीठे बाबा को सच्चे दिल से वादा करते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा
मेरे... मै आत्मा आपसे पाये ज्ञान रत्नों की दौलत और ईश्वरीय प्यार की खुशनसीबी
का अधिकारी सबको बना रही हूँ... विकारो से मुक्त कराकर ईश्वरीय दिल का तख्त
दिलवा रही हूँ... *भटके हुए दिलो को आपके हाथो में लाकर,
सदा
का निश्चिन्त बना रही हूँ.*.. ऐसी मीठी रुहरिहानं अपने बाबा से करके... मै आत्मा
साकार वतन में आ गयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल
:- खुदाई खिदमतगार बन सबको बहिश्त में चलने का रास्ता बताना*"
➳ _ ➳
अपने
खुदा दोस्त के साथ विश्व की सैर करने का ख्याल मन मे आते ही मैं अशरीरी हो
निराकार ज्योति बिंदु आत्मा बन अपने निराकार खुदा दोस्त की याद में बैठ उनका
आह्वान करती हूँ। *मेरे बुलाते ही मेरे खुदा दोस्त अपनी निराकारी दुनिया परमधाम
को छोड़,
फरिश्तों की दुनिया सूक्ष्म लोक में पहुंच कर,
अपने
निर्धारित रथ अव्यक्त ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान हो कर मेरे सामने
उपस्थित हो जाते हैं* और आ कर अपना हाथ जैसे ही मेरे मस्तक पर रखते हैं उनकी
लाइट माइट से मेरा साकारी शरीर जैसे एक दम सुन्न हो जाता है और उस साकारी शरीर
मे से अति सूक्ष्म लाइट का फ़रिशता स्वरूप बाहर निकल आता है।
➳ _ ➳
अपने
लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर को धारण किये अब मैं फ़रिशता अपने खुदा दोस्त के साथ
चल पड़ता हूँ विश्व भ्रमण को। अपने मन की बातें अपने दिलाराम दोस्त के साथ करते
करते,
प्रकृति के खूबसूरत नजारो का आनन्द लेते लेते मैं सारे विश्व का चक्कर लगा रहा
हूँ। *प्रकृति के सुंदर नजारों का आनन्द लेने के साथ साथ विश्व मे हो रही
दुखदायी घटनाओं को भी मैं देख रहा हूँ*। कहीं प्रकृतीक आपदाओं के कारण होने वाली
तबाही,
कहीं
अकाले मृत्यु,
कहीं
गृहयुद्ध,
कहीं
विकारों की अग्नि में जल रही तड़पती हुई आत्मायें। *इन सभी दृश्यों को देखते
देखते विरक्त हो कर मैं अपने खुदा दोस्त से कहता हूं कि वो जल्दी ही दुःखो से
भरी इस दुनिया को सुख की नगरी बना दे*।
➳ _ ➳
मेरे
खुदा दोस्त,
मेरे
दिलाराम बाबा मुस्कराते हुए अपना हाथ ऊपर उठाते है और विश्व ग्लोब को अपने हाथों
में उठा लेते हैं। *उनके हाथों से बहुत तेज लाइट और माइट निकल रही है जो उस
विश्व ग्लोब पर पड़ रही है*। देखते ही देखते पूरा विश्व एक बहिश्त बन जाता है।
अब मैं देख रहा हूँ माया रावण की दुःखो से भरी दुनिया के स्थान पर अपरम अपार
सुखों से भरपूर सोने की एक खूबसूरत दुनिया।
➳ _ ➳
खो
जाता हूँ मैं उन स्वर्गिक सुखों में। स्वयं को मैं विश्व महाराजन के रूप में
देख रहा हूँ। *हीरे जवाहरातों से सजे महल। प्रकृति का अद्भुत सौंदर्य। सोलह कला
सम्पूर्ण,
सम्पूर्ण निर्विकारी मर्यादा पुरुषोत्तम देवी-देवतायों की अति मनभावन इस दुनिया
में राजा हो या प्रजा सभी असीम सुख,
शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर हैं*। पुष्पक विमानों पर बैठ देवी देवता विश्व
भ्रमण कर रहें हैं। चारों ओर ख़ुशी की शहनाइयाँ बज रही हैं। रमणीकता से भरपूर
देवलोक के इन नजारों को देख मैं मंत्रमुग्घ हो रहा हूँ। इन स्वर्गिक सुखों का
अनुभव करवाकर मेरे खुदा दोस्त अब मुझे खुदाई खिदमतगार बन सबको बहिश्त में चलने
का रास्ता बताने का फरमान देते हुए परमात्म बल और शक्तियों से मुझे भरपूर कर
देते हैं।
➳ _ ➳
सतयुगी दुनिया के मनमोहक दृश्यों को अपनी आंखों में संजोए अब मैं फ़रिशता सच्चा
सच्चा खुदाई खिदमतगार बन अपने खुदा दोस्त के इस फरमान का पालन करने के लिए उनके
साथ कम्बाइंड हो कर उन सभी धार्मिक स्थानों पर जा रहा हूँ जहां भगवान को पाने
के लिए मनुष्य भक्ति के कर्मकांडो में फंसे पड़े हैं। *अपने खुदा दोस्त की
छत्रछाया में बैठ,
उनसे
सर्वशक्तियाँ ले कर अब मैं वहां उपस्थित सभी आत्माओं में प्रवाहित कर रहा हूँ*।
उन्हें मुक्ति,
जीवन मुक्ति पाने का सहज रास्ता बता रहा हूँ। मेरा कम्बाइंड स्वरूप उन्हें
दिव्य अलौकिक सुख की अनुभूति करवा रहा है। परमात्म वर्से को पाने अर्थात बहिश्त
में जाने का सत्य रास्ता जान कर सर्व आत्मायें आनन्द विभोर हो रही हैं।
➳ _ ➳
सर्व आत्माओं को बहिश्त में चलने का रास्ता बता कर अब मैं अपने सूक्ष्म आकारी
स्वरूप के साथ अपने साकारी तन में प्रवेश कर जाता हूँ और इस स्मृति के साथ अपने
ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाता हूँ कि *"मैं खुदाई खिदमतगार हूँ"। इसी
स्मृति में स्थित हो कर अब मैं हर कर्म कर रहा हूँ और अपने संकल्प,
बोल
और कर्म से अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को परमात्म प्रेम का
अनुभव करवाकर उन्हें भी परमात्म वर्से को पाने का रास्ता बता रहा हूँ*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा सर्व शक्तियों का अनुभव करते हुए समय पर सिद्धि प्राप्त करती हूँ।"*
➳ _ ➳ मैं सर्व शक्तियों से सम्पन्न... निश्चयबुद्धि विजयी आत्मा हूँ... *ईश्वरीय जन्म मिलते ही... बाबा से गोल्डन गिफ्ट अविनाशी ज्ञान धन... दिव्य बुद्धि... सर्वश्रेष्ठ पोजीशन... ब्रह्मा कुमार-कुमारी पाकर... मैं आत्मा शुद्ध नशे में झूम रही हूँ*... वाह मेरा भाग्य वाह... ज्ञान सागर बाप से प्राप्त ज्ञान से मैं आत्मा... त्रिनेत्री त्रिकालदर्शी बन गई... *मैं और मेरा का ज्ञान मिला... मेरे सब प्रश्न समाप्त हो गए...* अविनाशी ज्ञान देने से बढ़ता हैं... एक दो, हजार पाओ... दिव्य बुद्धिधारी बन... श्रीमत को धारण कर सदा के लिए... मास्टर सर्व शक्तिवान स्थिति का अनुभव करती हूँ... निश्चयबुद्धि बन हर शक्ति को सदा साथ रख... हर कर्म में विजय प्राप्त करती हूँ... हर परिस्थिति में... समय प्रमाण शक्तियों को स्व प्रति... यूज़ कर समय पर लगा... हर कर्म में सिद्धि स्वरूप बन रही हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल
:- व्यर्थ देखने वा सुनने के बोझ को समाप्त कर डबल लाइट स्थिति का अनुभव करना"*
➳ _ ➳
मैं
संगमयुगी ब्राह्मण आत्मा...व्यर्थ और साधारण की महात्यागी हूँ... *हर सेकंड को
अमूल्य बनाने की सेवा करने वाली... भाग्यवान आत्मा हूँ...* बापदादा समझा रहे
हैं... हीरो पार्टधारी आत्माओं का हर सेकंड,
हर
संकल्प,
हर
बोल व कर्म... हीरे से भी ज्यादा मूल्यवान है... देह के भान से मुक्त मैं आत्मा...
अपना हर कर्म चेक करती जा रही हूँ... *श्रीमत के आधार पर हर कर्म करते हुए सदा
समर्थ... सदा अलौकिक... पदमा पदम् भाग्यवान बन रही हूँ...* श्रेष्ठ कर्म करते
हुए मैं आत्मा... अत्यंत खुशी और आनंद का... संतुष्टता का अनुभव कर रही हूँ...
बाप दादा के स्नेह की डोर से... मैं आत्मा सदा के लिए बंध गई हूँ... सदा शुभ
चिंतन करने वाली... स्व कल्याणी व विश्व कल्याणी बन गई हूँ... हर व्यर्थ के बोझ
को समाप्त कर... *बापदादा की मर्जी पर चलते चलते... मैं आत्मा बहुत ही हल्की
होकर... डबल लाइट होकर अलौकिक आनन्द में उड़ती ही जा रही हूँ...*
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ मास्टर सर्वशक्तिवान की स्थिति से व्यर्थ के किचड़े को समाप्त करो:- सदा अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा समझते हो? *सर्वशक्तिवान अर्थात् समर्थ। जो समर्थ होगा वह व्यर्थ के किचड़े को समाप्त कर देगा*। मास्टर सर्वशक्तिवान अर्थात् व्यर्थ का नाम निशान नहीं। *सदा यह लक्ष्य रखो कि - ‘मैं व्यर्थ को समाप्त करने वाला समर्थ हूँ*'। जैसे सूर्य का काम है किचड़े को भस्म करना। अंधकार को मिटाना, रोशनी देना। तो इसी रीति मास्टर ज्ञान सूर्य अर्थात् - व्यर्थ किचड़े को समाप्त करने वाले अर्थात् अंधकार को मिटाने वाले।
➳ _ ➳ *मास्टर सर्वशक्तिवान व्यर्थ के प्रभाव में कभी नहीं आयेगा*। अगर प्रभाव में आ जाते तो कमजोर हुए। बाप सर्वशक्तिवान और बच्चे कमजोर! यह सुनना भी अच्छा नहीं लगता। कुछ भी हो - लेकिन सदा स्मृति रहे -‘‘मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ''। ऐसा नहीं समझो कि मैं अकेला क्या कर सकता हूँ.. एक भी अनेकों को बदल सकता है। तो स्वयं भी शक्तिशाली बनो और औरों को भी बनाओ। जब एक *छोटा-सा दीपक अंधकार को मिटा सकता है तो आप क्या नहीं कर सकते*! तो सदा वातावरण को बदलने का लक्ष्य रखो। विश्व परिवर्तक बनने के पहले सेवाकेन्द्र के वातावरण को परिवर्तन कर पावरफुल वायुमण्डल बनाओ।
✺ *"ड्रिल :- व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तित करना।"*
➳ _ ➳ अष्ट शक्तियों के घेरे में सुरक्षित मैं आत्मा हीरा, देह सहित बैठ गयी हूँ, बाप दादा के चित्र के सामने... बापदादा की आँखों से बहती स्नेह की अविरल धारा प्रकाश की असंख्य धाराओं के रूप में मुझ तक आ रही है... आकाश में बादलों के पीछे से झाँकता सूरज जैसे बादलों को अपने सुनहरे रंग में रंग देता है उसी प्रकार रूहानी रंग से रंगी मेरी ये देह भी अपनी स्थूलता भूल चुकी है... *बस रूह ही बाकी है यहाँ और रूहानियत के पैमाने है... उतर रहा नूर परमधाम से उसका, निर्बाध से ये मयखाने है...* मैं आत्मा हीरा अपने कवच में सुरक्षित तेज गति से उडती हुई पहुँच गयी हूँ परम धाम... गुणों, शक्तियों का शान्त-सा सागर, शिव बिन्दु अनगिनत आत्मा मणियों का गुलदस्ता सजाये, किरणों रूपी लहरों से मानों मेरा आह्वान कर रहा है... मैं आत्मा मणि समाँ जाती हूँ उन किरणों के आगोश में, और आहिस्ता आहिस्ता एकरूप होती जा रही हूँ उन लहरों के साथ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा फरिश्ता रूप में, बादलों के विमान पर सवार होकर बापदादा के साथ विश्व सेवा पर... आहिस्ता आहिस्ता ये विमान उतर गया है सुन्दर शान्त झील के किनारे... झील में मोती चुगते हंसों की पंक्ति... *विवेक बुद्धि से व्यर्थ रूपी कंकड़ अलग कर केवल मोती चुग रहें है...* देखते ही देखते मैं आत्मा हंस रूप धारण कर हंसों की पंक्ति का हिस्सा बन गयी हूँ... बापदादा मुझे देखकर मन्द-मन्द मुस्कुरा रहे हैं... और धीरे से मेरे पास आकर मुझे सर्वशक्तिमान की स्मृति दिला रहे है... मैं फरिश्ता उडकर पहुँच गया हूँ आकाश में और एक ही प्रयास में हाथ बढाकर सूर्य का गोला किसी बाॅल की तरह उछालता हुआ बापदादा के सम्मुख उपस्थित हो गया हूँ... कानों में गूँज रहे है बापदादा के वही महावाक्य *एक छोटा सा दीपक अंधकार को मिटा सकता है तो आप क्या नही कर सकते...*
➳ _ ➳ *और मैं अकेला ही निकल गया हूँ संसार के किचडे को भस्म करने, व्यर्थ को समर्थ में बदलने...* झील के उस तरफ देख रहा हूँ... सूखे झाड झाडियाँ, व्यर्थ के कँटीले घास फूस और अज्ञानता की गहन गुफाएँ... बापदादा का इशारा पाते ही सूर्य रूपी गेंद मैंने उछाल दी है उस तरफ... *एक तेज विस्फोट और तेज ज्वाला के साथ भस्म होता वो सूखा किचडा, प्रकाश में नहा उठी है वो गुफाएँ... वो हृदय रूपी गुफाएँ...* और मैं बापदादा के कन्धे पर बैठकर खुशी से झूमता हुआ... स्वयं की समर्थता का भी जश्न मनाता हुआ, वापस लौट आया हूँ उसी अष्ट शक्तियों के घेरे में सर्वशक्तिमान की गहरी स्मृति के साथ... अष्ट शक्तियों रूपी सेविकाएँ पग-पग पर मेरे इशारों पर मौन नर्तन करती हुई... *हर व्यर्थ को समर्थ करने के पुरूषार्थ में पहले से ज्यादा तल्लीनता के साथ जुटी हुई है...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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