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 30 / 09 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *"बाप बिंदी है" - इस बात को यथार्थ समझकर बाप को याद किया ?*

 

➢➢ *सच्ची गीता सुनी और सुनायी ?*

 

➢➢ *रेगुलर पढाई पढने पर विशेष अटेंशन रहा ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *अपने श्रेष्ठ कर्म रुपी दर्पण द्वारा ब्रह्मा बाप के कर्म दिखलाए ?*

 

➢➢ *बाह्यमुखता को छोड़ अंतरमुखी एकांतवास बन अव्यक्त स्थिति का अनुभव किया ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  साइलेन्स की शक्ति को अच्छी तरह से जानते हो? *साइलेन्स की शक्ति सेकण्ड में अपने स्वीट होम, शान्तिधाम में पहुँचा देती है।* साइंस वाले तो और फास्ट गति वाले यंत्र निकालने का प्रयत्न कर रहे हैं। लेकिन *आपका यंत्र कितनी तीव्र गति का है!* सोचा और पहुँचा। ऐसा यंत्र साइंस में हैं जो इतना दूर बिना खर्च के पहुँच जाएँ?

 

✧  वो तो एक-एक यंत्र बनाने में कितना खर्च करते है, कितना समय और कितनी एनर्जी लगाते हैं, आपने क्या किया? बिना खर्चे मिल गया। *यह संकल्प की शक्ति सबसे फास्ट है।* आपको शुभ संकल्प का यंत्र मिला है, दिव्य बुद्धि मिली है। शुद्ध मन और दिव्य बुद्धि से पहुँच जाते हो। *जब चाहो तब लौट आओ, जब चाहो तब चले जाओ।*

 

✧  साइंस वालों को तो मौसम भी देखनी पडती है। आपको तो यह भी नहीं देखना पडता कि आज बादल है, नहीं जा सकेंगे। आजकल देखो - बादल तो क्या थोडी-सी फागी भी होती है तो भी प्लैन नहीं जा सकता। और *आपका विमान एवररेडी हैं या कभी फागी आती है?* एवररेडी है? सेकण्ड में जा सकते हैं - ऐसी तीव्र गति है? *माया कभी रुकावट तो नहीं डालती है?*

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  कलयुगी दुनिया के दुःख के छप्पर को उठाना, याद से पुण्य कमाना"*

 

_ ➳  एक खुबसूरत खिले गुलाबो से भरपूर, उपवन को निहारती हुई मै आत्मा मुस्कराती हूँ... और गुलाबो के साथ अनगिनत काँटों को देख... अपने जीवन के दुःख भरे काँटों के बारे में सोच रही हूँ कि... *मीठे बागबान पिता ने मेरे जीवन में आकर... कैसे सारे दुःख भरे काँटों को निकाल, सुख की लताओं से दामन सजा दिया है..*. आज जीवन कितना प्यारा, खुबसूरत गुलाब बनकर... गुणो की रूहानियत को महका रहा है... और यही खुबसूरत जीवन सबको देकर मै आत्मा... अथाह पुण्यो से अपनी झोली भरकर... महान भाग्यशाली बन रही हूँ... दिल की यह बात मीठे बाबा को सुनाने मै आत्मा... मधुबन के तपस्या धाम में बाबा के पास उड़ चलती हूँ...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी यादो में डुबोकर, असीम सुखो का मालिक बनाते हुए कहा:-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वरीय प्यार और साथ को पाकर, अपने सत्य स्वरूप के नशे में डूबकर, सदा पुण्यो के खाते को बढ़ाते चलो... जिन सच्ची खुशियो से आप बच्चे खुशनुमा हो गुणवान फूल बनकर सतयुगी धरा पर महकने को तैयार हो रहे हो... *इन सच्ची खुशियो की तरंगो से विश्व धरा को तरंगित कर दो... चहुँ ओर सुख ही सुख बिखरा दो..*."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा के असीम प्यार को मन बुद्धि रुपी झोली में भरकर मुस्कराते हुए कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा *कितनी खुशनसीब हूँ कि... जो ईश्वर पिता से अखूट खजाने पाकर, पुण्यो से अपना दामन सजा रही हूँ.*.. मीठे बाबा इस कलयुगी दुनिया में आप आकर मुझे आवाज न दी होती, मै आत्मा इस सौंदर्य से कभी न सजती... और आज यह सच्चे आनन्द की बहार, पूरे विश्व में फैलाकर... मीठे सुखो से सजा सतयुग ला रही हूँ..."

 

   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी सारी शक्तियाँ देकर अनन्त शक्तियो से भरपूर करते हुए कहा:-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे...ईश्वरीय यादो में गहरे डूबकर इस दुखो भरी दुनिया को सच्चे सुखो का सुखधाम बनाओ... *दिव्यता और पवित्रता को धारण कर... दुखो की धरा को सुख भरे फूलो में तब्दील करो.*.. सबके जीवन में खुशियो की मुस्कान सजाकर... पुण्यो को जमा करने वाले... विश्वकल्याण कारी बनकर मुस्कराओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा  मीठे बाबा की अमूल्य शिक्षाओ को अपने दिल में समा कर कहती हूँ:-"मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा *आपकी प्यार भरी बाँहों में समाकर... कितनी प्यारी और दिव्यता की मूरत बन गयी हूँ.*..और आपकी यादो में डूबकर, कलयुगी दुनिया में दुःख के छप्पर को उठाकर... सुख शांति प्रेम की दुनिया बसाने में आपकी मददगार हो रही हूँ..."

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने मीठे प्यार में सराबोर करते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... आप अपनी रूहानियत और दिव्यता की दिव्य तरंगो से... इस विश्व धरा से दुखो का सफाया करने वाले... विश्व कल्याण कारी बन कर ईश्वरीय दिल में मुस्कराओ... *सबके दामन में आनन्द प्रेम और खुशियो के फूल सजाने वाले मा बागबान बन जाओ... इस धरती से दुःख को मिटाकर, सुख की अविरल धारा बहा दो.*.."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा को बड़े ही प्यार से निहारकर असीम ख़ुशी में झूमते हुए कहती हूँ:-"मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा *सबके जीवन को आप समान सच्ची खुशियो से भर रही हूँ... दुखो को दूर करने वाली मा सुखदाता बन रही हूँ.*.. और सच्चे सुखो की जागीर आपसे सबको दिलवाकर अनन्त पुण्यो को अपने आँचल में भर रही हूँ..."मीठे बाबा से असीम शक्तियो को दिल में समाये मै आत्मा... साकारी वतन में लौट आयी..."

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप बिन्दी है, इस बात को यथार्थ समझकर बाप को याद करना*"

 

_ ➳  अपने परम पिता, परम शिक्षक, परम सतगुरु शिव बाबा को याद करते हुए मैं सड़क के किनारे पैदल चलती जा रही हूँ। रास्ते मे एक मन्दिर के सामने से गुजरते हुए मैं मन्दिर के अंदर का नज़ारा देख कर कुछ पल के लिए वही रुक जाती हूँ। *मैं देख रही हूँ मन्दिर में महाशिवरात्रि के उपलक्ष्य में मन्दिर में एकत्रित भक्तो की भीड़ को। शिवलिंग पर जल चढ़ाने वाले भक्तों की बहुत लंबी लाइन लगी है*। अपने हाथों में जल, बेल पत्र, अक, धतूरा लिए लोग शिवलिंग की पूजा कर रहें हैं। उन्हें देख मन ही मन उन पर तरस आता है और मैं सोचती हूँ *कितने नादान है बेचारे ये लोग, जो भगवान को यथार्थ ना जानने के कारण व्यर्थ के कर्मकांडो में फंस कर अपने समय को बर्बाद कर रहें हैं*।

 

_ ➳  परमात्मा को यथार्थ जानकर, उन्हें यथार्थ रीति याद करने में जो प्राप्ति है वो प्राप्ति भक्ति के इन कर्मकांडो से इन्हें कहां मिल सकती है! *उनके इस कृत्य को देख, मन ही मन उन पर रहम करते मैं अब स्वयं के बारे में विचार करती हूँ कि कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जिसे भगवान ने स्वयं आ कर अपना परिचय दे कर इन व्यर्थ के कर्मकांडो से बचा लिया*। बाप बिंदी है, इस बात को यथार्थ समझ कर बाबा को याद करके मैं सेकण्ड में पदमो की कमाई जमा कर लेती हूँ। अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य पर नाज करते, मन ही मन अपने परम पिता परमात्मा का दिल से शुक्रिया अदा करते, अपने बाबा की छत्रछाया के नीचे स्वयं को अनुभव करते मैं अपने कर्म क्षेत्र पर पहुंच जाती हूँ।

 

_ ➳  अपने शिव पिता परमात्मा से अखुट प्राप्तियां करने के लिए अब मैं सभी बातों से किनारा कर, अपने मन बुद्धि को एकाग्र करके बैठ जाती हूँ। *अपने मस्तक पर तीन बिंदियो की स्मृति का तिलक लगाती हूँ, और स्मृति स्वरूप बन बाबा की यथार्थ याद में बैठ जाती हूँ। इस यथार्थ याद में स्थित होते ही मुझे सेकेंड में एक मधुर से न्यारेपन का एहसास होने लगता है*। एक ऐसा न्यारापन जो मुझे हर बंधन से मुक्त कर, एक दम हल्केपन का अनुभव करवा रहा है। अपने चमकते हुए दिव्य ज्योतिर्मय स्वरूप को मैं मनबुद्धि रूपी नेत्रों से देख रही हूँ। *मेरा यह स्वरूप मुझे मेरे वास्तविक गुणों और शक्तियों की अनुभूति करवा रहा है*।

 

_ ➳  अपने गुणों और शक्तियों के अनुभव का आनन्द लेते - लेते, अपने शिव पिता की मीठी याद की डोर को थामे मैं एक आनन्दमयी रूहानी यात्रा पर बढ़ती चली जा रही हूँ। *साकार लोक से परमधाम तक की इस रूहानी यात्रा का आनन्द लेते - लेते मैं अब पहुंच गई हूँ अपनी मंजिल अपने स्वीट साइलेन्स होम परमधाम में अपने शिव पिता के सामने*। सर्व गुणों, सर्वशक्तियों के दाता मेरे शिव पिता परमात्मा मेरे बिल्कुल नजदीक हैं। उनको देखते ही मेरा रोम - रोम जैसे खिल उठा है । मेरी ख़ुशी का कोई पारावार नही है । *मन में एक ही गीत बज रहा है" पाना था सो पा लिया"*

 

_ ➳  बाबा के प्रति मेरे असीम प्रेम के उदगार संकल्पो के माध्यम से स्वत: ही प्रकट हो रहें हैं। मेरे प्राणों से प्यारे बाबा, जन्म -जन्म से मैं आपको याद कर रही थी । आखिर मैं आपके पास पहुँच ही गई । आपसे मिल कर मेरे जन्म - जन्म के कष्ट मिट गये । *सर्व दुखों से परे आपके पावन प्रेम की शीतल छाया को पाकर मैं धन्य - धन्य हो गई हूँ । आपको पाकर मैंने सब कुछ पा लिया मेरे बाबा*।

 

_ ➳  मेरे एक - एक संकल्प को मेरे दिलाराम बाबा पढ़ रहे हैं और प्रेम का रिटर्न अपनी शक्तिशाली किरणों के रूप में मुझ पर प्रवाहित कर रहें हैं। इन पावरफुल वायब्रेशन्स को पाकर मैं आत्मा आनन्द विभोर हो रही हूँ। *मेरे प्राण प्रिय बाबा की सर्वशक्तियाँ मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की कट को धो कर मुझे सम्पूर्ण पावन, सतोप्रधान बना रही है*। अपने प्यारे परमपिता परमात्मा की सर्व शक्तियों से भरपूर हो कर अब मैं धीरे - धीरे परमधाम से नीचे आ रही हूँ और प्रवेश कर रही हूँ अपनी साकारी देह में ।

 

_ ➳  *परमात्म प्रेम को मन मे बसाये, अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, यथार्थ परमात्म याद के द्वारा सर्व प्राप्तियों का अनुभव करते, अब मैं सदैव अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को भी परमात्मा बाप का यथार्थ परिचय दे कर, उन्हें भी परमात्म प्राप्ति का सत्य मार्ग दिखाती रहती हूँ*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  मैं आत्मा अपने श्रेष्ठ कर्म रूपी दर्पण द्वारा ब्रह्मा बाप के कर्म दिखलाने वाली हूँ।*

 

 _ ➳  *ब्रह्मा बाप के नक़्शे कदम पर चलती मैं आत्मा...* श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ कर्म करती जा रही हूँ... फॉलो फादर करती मैं आत्मा... हर कर्म को चेक करती कर्म रूपी दर्पण द्वारा ब्रह्मा बाप के कर्म दिखलाती हूँ... *बोलना... चलना...उठना... बैठना... ब्रह्मा बाप के समान सफल करती जा रही हूँ...* ब्रह्मा बाप का हाथ पकड़ कर मैं आत्मा... *विषय वैतरणी नदी रूपी कलियुग को पार कर पहुँच गई हूँ संगमयुग में...* विकारों को योग अग्नि में स्वाहा कर... संगमयुग को सफल कर रही हूँ... *ब्रह्मा बाप* के साथ साथ चलती मैं सौभाग्यशाली आत्मा बन गई हूँ... *चलन और चहेरे से एक बापदादा को प्रत्यक्ष करती मैं आत्मा... बापदादा की दिलतख्तनशिन बन गई हूँ...*

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ब्राह्ममुखता को छोड़ अन्तर्मुखी एकान्तवासी बन अव्यक्त स्थिति का अनुभव"*

 

_ ➳ मैं आत्मा मन-बुद्धि को एकाग्र कर... एक की ही याद की लगन में मगन आत्मा बनती जा रही हूँ... *एक बाबा ही मेरा संसार है... बाबा की सर्वशक्तियों की मैं अधिकारी आत्मा हूँ*... सर्व आकर्षणों से मुक्त... ब्राह्यमुखता को छोड़ अंतर्मुखता में मैं आत्मा समाती जा रही हूँ... *एक के अंत में समा तपस्या की योग-अग्नि में... अपनी कमजोरियों को भस्म कर रही हूँ मैं आत्मा*... वाह!!! कितना सुन्दर अनुभव है... *मैं ओर मेरा बाबा दूसरा न कोई*... निरन्तर एक की याद मुझ आत्मा को एकान्तवासी अनुभव करवा रही है... और *मैं आत्मा अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने लगी हूँ... शुक्रिया बाबा शुक्रिया*... मैं आत्मा लाइट हाउस माइट हाउस बनती जा रही हूँ...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. अभी समय प्रमाण सबको बेहद के वैराग्य वृत्ति में जाना ही होगा। लेकिन *बापदादा समझते हैं कि बच्चों का समय शिक्षक नहीं बनें*जब बाप शिक्षक है तो समय पर बनना - यह समय को शिक्षक बनाना है।

 

 _ ➳  2. ब्रह्मा बाप ने समय को शिक्षक नहीं बनायाबेहद का वैराग्य आदि से अन्त तक रहा। आदि में देखा इतना तन लगाया, मन लगायाधन लगायालेकिन जरा भी लगाव नहीं रहा। *तन के लिए सदा नेचुरल बोल यही रहा - बाबा का रथ है*। मेरा शरीर हैनहीं। बाबा का रथ है। बाबा के रथ को खिलाता हूँमैं खाता हूँनहीं। तन से भी बेहद का वैराग्य। मन तो मनमनाभव था ही। धन भी लगाया, लेकिन कभी यह संकल्प भी नहीं आया कि मेरा धन लग रहा है। *कभी वर्णन नहीं किया कि मेरा धन लग रहा है या मैंने धन लगाया है। बाबा का भण्डारा हैभोलेनाथ का भण्डारा है*। धन को मेरा समझकर पर्सनल अपने प्रति एक रूपये की चीज भी यूज नहीं की। कन्याओं, माताओं की जिम्मेवारी है, कन्याओं, माताओं को विल कियामेरापन नहीं। समय, श्वांस अपने प्रति नहींउससे भी बेहद के वैरागी रहे। *इतना सब कुछ प्रकृति दासी होते हुए भी कोई एकस्ट्रा साधन यूज नहीं किया*। सदा साधारण लाइफ में रहे। कोई स्पेशल चीज अपने कार्य में नहीं लगाई। वस्त्र तकएक ही प्रकार के वस्त्र अन्त तक रहे। चेंज नहीं किया। बच्चों के लिए मकान बनाये लेकिन स्वयं यूज नहीं कियाबच्चों के कहने पर भी सुनते हुए उपराम रहे। *सदा बच्चों का स्नेह देखते हुए भी यही शब्द रहे - सब बच्चों के लिए है*। तो इसको कहा जाता है बेहद की वैराग्य वृत्ति प्रत्यक्ष जीवन में रही। अन्त में देखो बच्चे सामने हैंहाथ पकड़ा हुआ है लेकिन लगाव रहाबेहद की वैराग्य वृत्ति। स्नेही बच्चे, अनन्य बच्चे सामने होते हुए फिर भी बेहद का वैराग्य रहा। *सेकण्ड में उपराम वृत्ति काबेहद के वैराग्य का सबूत देखा*। एक ही लगन सेवासेवा और सेवा..... और सभी बातों से उपराम। इसको कहा जाता है बेहद का वैराग्य।

 

 _ ➳  3. *साकार में सर्व प्राप्ति का साधन होते हुएसर्व बच्चों की जिम्मेवारी होते हुए, सरकमस्टांशसमस्यायें आते हुए पास हो गये ना*! पास विद आनर का सर्टीफिकेट ले लिया। विशेष कारण बेहद की वैराग्य वृत्ति। 

 

✺   *ड्रिल :-  "ब्रह्माबाप समान बेहद की वैराग्य वृत्ति का अनुभव करना"*

 

 _ ➳  ब्रह्मा बाप समान बेहद की वैराग्य वृति धारण करने का दृढ़ संकल्प मन में लिए मैं लाइट का सूक्ष्म शरीर धारण कर फरिश्ता बन पहुंच जाता हूँ सूक्ष्म वतन... *मेरे संकल्पों को पहले ही कैच कर चुके अव्यक्त ब्रह्मा बाबा में विराजमान शिव बाबा मुझे देखते ही अपनी बाहें फैला कर मुझे गले से लगा कर कहते हैं, आओ मेरे बच्चे:- "साकार ब्रह्मा बाप की गोद का सुख लेने आये हो"!* यह कह कर बाबा मुझे अपनी गोद में बिठा लेते हैं... बाबा की गोद में बैठते ही मैं जैसे एक छोटी बच्ची बन जाती हूँ और बाबा के साथ मधुबन में उस स्थान पर पहुंच जाती हूँ जहां ब्रह्मा बाबा ने दादियों के साथ 14 साल कठोर तपस्या करके इस स्थान को ऐसी तपोभूमि बना दिया कि *इस तपोभूमि पर पैर रखते ही हर मनुष्य आत्मा को गहन शांति की अनुभूति स्वत: ही होती है...*

 

 _ ➳  अब मैं देख रही हूँ स्वयं को इस तपोभूमि पर... यहां पहुंचते ही ब्रह्मा बाबा की वो सभी साकार यादें स्मृति में ताजा हो उठती है जो दीदी, दादियों ने ब्रह्मा बाबा के साथ अपने अनुभवों में कही हैं... *उन साकार यादों की स्मृति मुझे भी साकार पालना का अनुभव कराने लगती हैं*... उस खूबसूरत एहसास में मैं खो जाती हूँ... मेरी आँखों के सामने ब्रह्मा बाबा के हर कर्म का सीन स्पष्ट हो रहा है जिसमे ब्रह्मा बाप की बेहद की वैराग्य वृति की झलक स्पष्ट दिखाई दे रही है...

 

 _ ➳  बाबा के हर कर्म को मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूं... कैसे ब्रह्मा बाबा ने अपना तन - मन - धन ईश्वरीय यज्ञ में समर्पित कर दिया... *तन के लिए मुख से सदा यही बोल निकला कि मेरा शरीर नही है, शिव बाबा का रथ है*... मन में भी सिवाए शिव बाबा के दूसरा कोई नही था... धन के लिए भी बाबा के मन में कभी यह संकल्प नही आया कि यज्ञ में मेरा धन लग रहा है... *मुख से सदा यही निकला कि शिव बाबा का भंडारा है, भोलेनाथ का भंडारा है*... अपना सारा धन कन्याओं, माताओं को विल कर ईश्वरीय सेवा में लगा दिया, अपने प्रति एक चीज भी यूज़ नही की... समय, संकल्प, श्वांसों को भी बेहद के वैरागी बन कर सफल किया... किसी भी चीज में कोई ममत्व, कोई लगाव नही रखा... सब कुछ होते हुए भी हर चीज से उपराम रहे...

 

 _ ➳  बाबा के हर कर्म में उनकी वैराग्य वृत्ति की छाप का मुझे स्पष्ट अनुभव हो रहा है... *उनके हर कर्म को देख कर मैं मन ही मन दृढ़ संकल्प करती हूं कि अब बस मुझे ब्रह्मा बाप समान बेहद का वैरागी बनना है*... इस संकल्प को दृढ़ता से मन में धारण करके जैसे ही मैं बाबा की ओर देखती हूँ... बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख कर मुझे "ब्रह्मा बाप समान बेहद के वैरागी भव" का वरदान देकर मेरे मस्तक पर विजय का तिलक लगा देते हैं... *बाबा से वरदान ले कर, विजय का तिलक लगाए मैं फरिश्ता अब अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट आता हूँ*...

 

 _ ➳  ब्रह्मा बाप समान बनने का लक्ष्य मन में लिए, अपने ब्राह्मण जीवन में अब मैं ब्रह्मा बाप के हर कर्म को फॉलो कर रही हूँ... *मेरा यह ब्राह्मण जीवन केवल ईश्वरीय सेवा अर्थ मुझे मिला है, इस बात को स्मृति में रख मैं अपना तन- मन - धन ईश्वरीय सेवा में सफल कर रही हूं*... चलते - फिरते, खाते - पीते हर कर्म करते मन में केवल एक शिव बाबा की याद है...

 

 _ ➳  देह, देह की दुनिया, देह के सम्बन्धो, पदार्थो में अब मेरा कोई ममत्व नही है... सर्व सम्बन्धो का सुख शिव बाबा से लेते हुए मैं जैसे सबसे उपराम हो गई हूं... *ब्रह्मा बाप समान देह और देह के सम्बन्धो के विस्तार को समेट कर सबको आत्मिक स्वरूप से देखने के अभ्यास ने मुझे मरजीवा बना दिया है*... इस देह में रहते स्वयं को मेहमान समझ, सर्व सम्बन्धो से मैं नष्टोमोहा हो गई हूं...

 

 _ ➳  मन में अब केवल यही अनहद नाद गूंजता रहता है "दिल का अब संकल्प यही है, बाबा तुमसा बनना ही है..." और *इस संकल्प को पूरा कर, ब्रह्मा बाप समान सम्पूर्ण बनने के लिए बेहद की वैराग्य वृत्ति को धारण कर, पास विद ऑनर का सर्टिफिकेट लेना ही अब मेरे जीवन का लक्ष्य है*...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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