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❍ 18 / 09 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *"हम ऊंचे ते उंच सर्वोत्तम ब्राह्मण कुल भूषण हैं" - इसी ख़ुशी में रहे ?*
➢➢ *"स्वयं भगवान बाप, टीचर और गुरु के रूप में हमें मिला है" - इसी स्मृति से सदा हर्शित रहे ?*
➢➢ *झरमुई झगमुई में समय बरबाद तो नहीं किया ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *विपरीत भावनाओं को समाप्त कर अव्यक्त स्थिति का अनुभव किया ?*
➢➢ *सर्वशक्तिमान बाप के साथ से माया को पेपर टाइगर बनाया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ सभी शान्ति की शक्ति के अनुभवी बन गये हो ना! शान्ति की शक्ति बहुत सहज स्व को भी परिवर्तन करती और दूसरों को भी परिवर्तन करती है। याद के बल से विश्व को परिवर्तन करते हो। याद क्या है? शान्ति की शक्ति है ना! *इससे व्यक्ति भी बदल जायेंगे तो प्रकृति भी बदल जायेगी।* इतनी शान्ति की शक्ति अपने में जमा की है?
〰✧ व्यक्तियों को तो बदलना है ही लेकिन साथ में *प्रकृति को भी बदलना है।* प्रकृति को मुख का कोर्स तो नहीं करायेंगे ना! व्यक्तियों को तो कोर्स करा देते हो लेकिन प्रकृति को कैसे बदलेंगे? वाणी से वा शान्ति की शक्ति से? योगबल से बदलेंगे ना तो योग में जब बैठते हो तो क्या अनुभव करते हो?
〰✧ शान्ति का संकल्प भी जब शान्त हो जाते हैं, *एक ही संकल्प - ‘बाप और आप’, इसी को ही योग कहते हैं।* अगर और भी संकल्प चलते रहेंगे तो उसकी योग नहीं कहेंगे, ज्ञान का मनन कहेंगे। तो *जब पॉवरफुल योग में बैठते हो तो संकल्प भी शान्त हो जाते हैं,* सिवाए एक बाप और आप। बाप के मिलन की अनुभूति के सिवाए और सब संकल्प समा जाते हैं - ऐसे अनुभव है ना?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सबको बाप का परिचय देकर सुखदाई बनाना, देही अभिमानी बनना"*
➳ _ ➳ अमृतवेले के मनमोहक मिलन का आनन्द लेकर मै आत्मा... मीठे बाबा के प्यार भरे गीत गुनगुनाती हुई... टहलते हुए, सूर्य की, धरती को, आलिंगन करती, नई नवेली किरणों को निहार रही हूँ... और सोच रही हूँ कि *ज्ञान सूर्य बाबा ने मुझ आत्मा को,गले लगाकर, मुझे गुणो और शक्तियो के श्रंगार से पुनः नई नवेली बना दिया है*...और श्रंगारित करके, सीधे अपने दिल में सजा दिया है... *भगवान के दिल की रानी बनकर, मै आत्मा, अपने मीठे भाग्य पर बलिहार हूँ... आज मै आत्मा, भगवान के दिल में रहती हूँ, मीठी बाते करती हूँ, दिल की हर बात बताती हूँ.*.. इन मीठे अहसासो ने जनमो के दुःख ही विस्मर्त कर दिए है... अब सुख ही सुख मेरे चारो ओर बिखरा है... यही जज्बात मीठे बाबा को सुनाने वतन में उड़ चलती हूँ...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को विश्व कल्याण कारी की भावना से ओतप्रोत बनाते हुए कहा ;-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता को पाकर, जिन सच्ची खुशियो को, मीठे सुखो को, आप बच्चों ने पाया है... इन मीठी खुशियो से हर दिल आँगन को भर आओ... *सबके जीवन में सुखो की बहारो को खिलाने वाले... सदा के सुखदाई बन, मीठे बाबा के दिल में मुस्कराओ*..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा की अमूल्य शिक्षाओ को अपने दिल में गहरे समाकर कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा *आपके मीठे प्यार में, असीम सुखो की अनुभूतियों से भरकर... यह अनुभव की दौलत, हर दिल पर, दिल खोलकर, लुटा रही हूँ.*.. अपने प्यारे बाबा का परिचय... हर दिल को देकर... सबको आप समान खुशियो की अधिकारी बना रही हूँ
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा की देही अभिमानी स्थिति को पक्का कराते हुए कहा:-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सतगुरु पिता से जो अपने आत्मिक सत्य को जाना है... उस सत्य को हर पल स्मर्तियो में बनाये रखो... तो हर साँस, हर संकल्प ईश्वरीय याद से खिल उठेगा... *आत्मिक भाव में और सुखदायी पिता की याद में हर पल, समय सहज ही सफल हो जायेगा... और विकर्मो से सहज ही बचे रहेंगे..*.
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा के सच्चे प्यार में सुख स्वरूप आत्मा बनकर कहती हूँ :-"मीठे दुलारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपकी मीठी पालना में पलकर... असीम सुखो की मालिक बनकर... *अपने प्यारे बाबा से, हर बिछड़े दिल को मिलाकर, असीम दुआओ की हकदार बन रही हूँ.*.. देही अभिमानी बनकर, सबको सच्चे आनन्द की तरंगो लबालब कर रही हूँ... विकारो से मुक्त होकर, तेजस्वी बन रही हूँ..."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने सच्चे वजूद के नशे से भरते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *ईश्वर पिता को पाकर, अब हर साँस को ईश्वरीय यादो से पिरो दो... यह यादे ही, सच्चे सुखो का आधार है.*.. जितना आत्मिक स्थिति को पक्का करेंगे... उतना विकर्मो से परे होते जायेंगे... देह के दलदल से सहज ही निकलकर, आत्मिक चमक से दमकेंगे... और ईश्वरीय यादो भरे, इन सच्चे अहसासो को,... ख़ुशी से हर दिल पर उंडेलेंगे...
➳ _ ➳ मै आत्मा ईश्वरीय यादो के खजानो से सम्पन्न होकर, मीठे बाबा से कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा... मुझ आत्मा के जीवन में आकर, आपने मुझ आत्मा को विश्व कल्याण की सुंदर भावना से भर दिया है... मै आत्मा *हर पल सबको सुख देने की भावना दिल में लिए हुए हूँ... सबको मीठे बाबा से मिलवाकर, सबके जीवन में आनन्द और खुशियो के फूल खिला रही हूँ.*.. सच्चे पिता का परिचय देकर... सबके जीवन को सुख भरी मुस्कान से सजा रही हूँ..."मीठे बाबा को अपनी मीठी भावनाये सुनाकर मै आत्मा... अपने कर्म क्षेत्र पर आ गयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- स्वयं भगवान बाप, टीचर, गुरु के रूप में मुझे मिला है, इस स्मृति में सदा हर्षित रहना*"
➳ _ ➳ स्वयं भगवान को बाप, टीचर, गुरु के रूप में पा कर, खुशी में गदगद होती हुई, मैं मन ही मन विचार करती हूँ कि यह बात तो मैंने कभी स्वपन में भी नही सोची थी। *कभी मन मे ये ख्याल भी नही आया था कि भगवान बाप बन पालना कर सकता है, टीचर बन पढ़ा सकता है और गुरु बन मुझे सत्य मार्ग दिखा सकता है!*
➳ _ ➳ "वाह रे मैं आत्मा" जो आठ सौ करोड़ आत्माओं में से भगवान ने आ कर ना केवल मुझे चुन कर अपना बनाया बल्कि बाप का स्नेह, टीचर का मार्गदर्शन और गुरु का सहारा दे कर इस दुनिया की भीड़ में मुझेे खचित होने से बचा लिया। *इस पतित विकारी दुनिया मे फंस कर मैं कितनी गन्दी, छी - छी बन गई थी किन्तु भगवान बाप ने आकर मुझे इस पतित विकारी दुनिया से निकाल कर अपने मस्तक की चमकती हुई मणि बना लिया*। इस विकारी दुनिया के विकारी सम्बन्धों के बन्धन से मुझे मुक्त कर जीवन मुक्ति का अनुभव करवा दिया। अपने ऐसे मीठे बाप, टीचर, गुरु पर मुझे कितना ना बलिहार जाना चाहिए!
➳ _ ➳ मेरा यह अनमोल ब्राह्मण जीवन मेरे भगवान बाप, टीचर, गुरु की ही तो देन है। इसलिए अब मुझे अपने इस ब्राह्मण जीवन को अपने भगवान बाप पर सम्पूर्ण रीति समर्पित कर देना है। मन ही मन स्वयं से यह प्रतिज्ञा करते हुए मैं अपने भगवान बाप की मीठी स्नेह भरी याद में खो जाती हूँ। *अपने मन की तार को अपने भगवान बाप के साथ जोड़, बुद्धि के विमान पर मैं सवार होती हूँ और उस विमान को ऊपर आकाश की ओर ले कर चल पड़ती हूँ*। बुद्धि के विमान पर बैठ रूहानी यात्रा का आनन्द लेते - लेते आकाश को पार कर, सूक्ष्म लोक से परे मैं पहुंच जाती हूँ अपने निराकार भगवान बाप, टीचर, गुरु के पास उनके धाम।
➳ _ ➳ आत्माओं की इस अति सुन्दर निराकारी दुनिया में मैं देख रही हूँ मणियों के समान चमकते अपने आत्मा भाइयों को जो परमात्म शक्तियों की छत्रछाया में बैठ अतीन्द्रिय सुख ले रहे हैं। अब मैं भी स्वयं को परमात्म छत्रछाया के नीचे देख रही हूँ। *बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की शीतल छाया के नीचे बैठ मैं असीम आनन्द की अनुभूति में सहज ही स्थित हो रही हूँ*। सर्वशक्तियों की किरणों का झरना मुझ आत्मा पर बरसता हुआ मुझे अतींद्रिय सुख का अनुभव करवा रहा है। *ऐसा लग रहा है जैसे ऊर्जा के भंडार मेरे शिव पिता अपनी समस्त ऊर्जा मुझ में प्रवाहित कर मुझे बलशाली बना रहे हैं*। स्वयं को मैं बहुत ही ऊर्जावान अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ समस्त शक्तियों को स्वयं में समाकर शक्तिशाली बन कर अब मैं आत्मा परमधाम से नीचे सूक्ष्म लोक में प्रवेश कर रही हूँ। *अपने भगवान बाप को अब मैं ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में टीचर के रूप में देख रही हूँ*। बापदादा मेरे सम्मुख आ कर ज्ञान के अविनाशी खजाने से मुझे भरपूर कर रहें हैं। उनकी अनमोल शिक्षाओं को जीवन मे धारण करने की दृढ़ प्रतिज्ञा कर, अब मैं सूक्ष्म लोक से नीचे साकार लोक की ओर आ रही हूँ।
➳ _ ➳ यहां मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हूँ और अपने भगवान बाप को गुरु के रूप में निरन्तर अपने साथ अनुभव कर रही हूँ। *उनके वरदानों से स्वयं को हर समय भरपूर अनुभव करते हुए मैं उनके दिखाए हुए सत्य मार्ग पर निरन्तर आगे बढ़ रही हूँ*। स्वयं भगवान बाप, टीचर, गुरु के रूप में मुझे मिला है, इस बात को स्मृति में रख, सदा हर्षित रहते हुए मैं संगमयुग की मौजों का आनन्द ले रही हूँ।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा विपरीत भावनाओं को समाप्त कर अव्यक्त स्थिति का अनुभव करती हूँ।”*
➳ _ ➳ संगमयुग के उडती कला की मौज में रहने वाली मैं आत्मा हूँ… बाबा ने आज कहा *जीवन में उड़ती कला वा गिरती कला का आधार दो बातें हैं - भावना और भाव… सर्व के प्रति कल्याण की भावना, देने की भावना, हिम्मत-उल्लास बढ़ाने की भावना... आत्मिक स्वरूप की भावना वा अपने पन की भावना ही सद्भावना है… ऐसी भावना वाली मैं आत्मा अव्यक्त स्थिति में स्थित रहती हूँ*… अगर मेरे अन्दर इनके विपरीत भावना हुई तो… व्यक्त भाव अपनी तरफ आकर्षित करेगी… *मुझ आत्मा के अन्दर किसी भी विघ्न का मूल कारण यह विपरीत भावनायें हैं..* इसीलिए मैं आत्मा सर्व के प्रति कल्याण की भावना ही रखती हूं...
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सर्वशक्तिमान बाप जिसके साथ है तो माया उसके सामने पेपर टाइगर"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ... सर्वशक्तिमान परमपिता परमात्मा से निरंतर सर्व शक्तियों की किरणें मुझ आत्मा पर प्रवाहित हो रही हैं... *मैं आत्मा हजारों भुजाओं वाले बाप की छत्रछाया में सदा सेफ हूँ...* मैं आत्मा एक बाप की याद में मग्न रहती हूँ... मुझ आत्मा को एक बाप की याद में बिजी देख माया मौसी भाग जाती है... जैसे ये शरीर और आत्मा कम्बाइन्ड रहते हैं ऐसे मैं आत्मा सदा बाप संग कम्बाइन्ड रहती हूँ... सर्वशक्तिमान बाप के साथ से मैं आत्मा हर परिस्थिति को खेल समझ पार करती हूँ... *जिसका साथी हो भगवान उसे क्या रोक सके आंधी और तूफान...* सर्वशक्तिमान बाप का साथ होने से मैं आत्मा माया रुपी पेपर कागज के टाइगर समान अनुभव करती हूँ...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ स्वभाव-संस्कारों को सेवा के समय देखो ही नहीं। देखते हैं ना-इसने यह किया, इसने यह कहा -तो सफलता दूर हो जाती है। देखो ही नहीं। बहुत अच्छा, बहुत अच्छा। हाँ जी और बहुत अच्छा, यह दो शब्द हर कार्य में यूज करो। स्वभाव वैरायटी हैं और रहने भी हैं। *स्वभाव को देखा तो सेवा खत्म। बाबा करा रहा है, बाबा को देखो, बाबा का काम है। इसकी ड्यूटी नहीं है, बाबा की है। तो बाप में तो स्वभाव नहीं है ना। तो स्वभाव देखने नहीं आयेगा।*
✺ *ड्रिल :- "दूसरों के स्वभाव-संस्कारों को सेवा के समय नहीं देखना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा आज अपने बाबा के सेंटर पर बाबा की मुरली हाथ में पकड़े... अपने सामने बैठी हुई कुछ आत्माओं को मुरली सुनाना प्रारंभ करती हूं... और उससे पहले मैं देखती हूं... की इन सामने बैठी आत्माओं में सभी आत्माओं के स्वभाव संस्कार बिल्कुल अलग है... और इन आत्माओं के सामने मैं अपने आप को मुरली सुनाने की स्टेज पर अनुभव नहीं कर पाती हूँ...* मैं देखती हूं कि कुछ आत्माएं ऐसी भी है... जो अपने पुराने स्वभाव संस्कारों के कारण हमेशा मुझे और अन्य आत्माओं को दुखी करने का प्रयास करती रहती हैं... और कुछ आत्माएं ऐसी हैं जो काफी समय से बाबा के बच्चे के रूप में पालना ले रही हैं और मुझ आत्मा को उन्होंने अपने ज्ञान से परिपूर्ण कर आज इस स्थिति पर विराजमान किया है...
➳ _ ➳ परंतु मेरी कुछ छोटी-छोटी गलतियों के कारण वह ज्ञानी आत्माएं मुझे क्रोध वश होकर मेरा कड़े शब्दों में अपमान कर देती है... जिस को मैं भुला नहीं पाती हूँ... और कुछ आत्माएं ऐसी भी थी जो हमेशा अपने आप को श्रीमत की लकीर के अंदर अनुभव करते हुए पुरुषार्थ कर रही थी... और इन सभी आत्माओं के स्वभाव संस्कार देखते-देखते मैं आत्मा बाबा की मुरली प्रारंभ नहीं कर पाती... तभी मेरा अंतर्मन मुझे श्रीमत का ज्ञान आभास कराता है... और मैं अपने आपको बाबा से जोड़ देती हूं... और महसूस करती हूं कि *मैं आत्मा इस देह में विराजमान हूँ और शिव बाबा मुझे निमित्त बना कर इन आत्माओं को मुरली सुना रहे हैं...*
➳ _ ➳ और जैसे ही मैं अपने आप को निमित्त आत्मा अनुभव करती हूँ... तो मुझे आभास होता है कि *सामने बैठी हुई आत्माएं सिर्फ और सिर्फ मेरे बाबा के रूहानी बच्चे हैं... मुझे सभी आत्माएं अपने सामने फ़रिश्ते की भांति नजर आ रही है... और मुझे किसी भी आत्मा के स्वभाव संस्कार का बिल्कुल आभास नहीं होता है...* और मैं आत्मा अपनी इन कर्म इंद्रियों द्वारा सामने बैठी हुई आत्माओं को मुरली सुनाना प्रारम्भ कर देती हूं... मुरली सुनाते सुनाते मैं अपने आप में एक अद्भुत परिवर्तन महसूस करती हूं... मुझे अनुभव होता है कि मैं आत्मा अब बिल्कुल हल्की और फरिश्ते की भांति इस उड़ती कला स्वरूप बन गई हूं...
➳ _ ➳ और अब मैं आत्मा बिल्कुल रमणीकता से बाबा की मुरली सुना रही हूं... और जैसे ही कुछ देर बाद मुरली समाप्त होती है... तो हम सभी आत्माएं एक संकल्प में बाबा को याद करते हैं... और अपनी बेहद की सेवा में जुट जाते हैं... जैसे-जैसे सभी आत्माएं मेरे साथ सेवा करते हैं तो मैं अनुभव करती हूं... कि *ये बहुत अच्छी आत्माएं हैं... ये देवकुल की महान आत्माएं हैं... यह मेरी ईश्वरीय घराने की... मैं और ये सब आत्माएं सुखधाम में एक साथ मिलजुल कर रहेंगी...* तो अब वह सभी आत्माएं मुझे बस अपने समान बाबा के बच्चे ही नजर आते हैं... और उनके प्रति मेरा रूहानी स्नेह बढ़ता जाता है.. अब सेवा के समय मुझे हमेशा अब दूसरी आत्माएं निमित्त सेवाधारी अनुभव हो रही है... और अपने आप को भी मैं निमित भावना से सजाकर सेवा में अग्रणी होती जा रही हूं...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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