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❍ 17 / 10 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *एक दो का हाथ पकड़ सहयोगी बनकर रहे ?*
➢➢ *बाप को सर्व संबंधो से याद किया ?*
➢➢ *अपने से बड़ों का रीगार्ड रखा ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *एक के पाठ को स्मृति में रख तपस्या में सफलता प्राप्त की ?*
➢➢ *मन और बुधी को मनमत से खाली रखा ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ *जितना ही कार्य बढ़ता जायेगा उतना ही हल्का-पन भी बढ़ता जायेगा।* कर्म अपनी तरफ आकर्षित नहीं करेगा लेकिन मालिक होकर कर्म कराने वाला करा रहा है और निमित करने वाले निमित्त बनकर कर रहे हैं। आत्मा के हल्के-पन की निशानी है - आत्मा की जो विशेष शक्तियाँ है मन, बुद्धि, संस्कार यह तीनों ही ऐसी हल्की होती जायेगी।
〰✧ *संकल्प भी बिल्कुल ही हल्की स्थिति का अनुभव करायेंगे।* बुद्धि की निर्णय शक्ति भी ऐसा निर्णय करेगी जैसे कि कुछ किया ही नहीं, *और कोई भी संस्कार अपनी तरफ आकर्षित नहीं करेगा।* जैसे बाप के संस्कार कार्य कर रहे हैं।
〰✧ यह मन-बुद्धिसंस्कार सूक्ष्म शक्तियाँ जो हैं, तीनों में लाइट (हल्का) अनुभव करेंगे। स्वतः ही सबके दिल से, मुख से यही निकलता रहेगा कि *जैसे बाप, वैसे बच्चे न्यारे और प्यारे हैं।* क्योंकि समय प्रमाण बाहर का वातावरण दिन-प्रतिदिन और ही भारी होता जायेगा।
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सदा एक दूसरे का रिगार्ड रख, कर्म करना,*
➳ _ ➳ मीठे मधुबन के डायमण्ड हॉल में, मै भाग्यवान आत्मा... प्यारे बाबा से मिलन मना रही हूँ... और सोच सोचकर अभिभूत हूँ... कितनी मेहनत करके, भगवान ने मुझे देह के दलदल रुपी दुर्गन्ध से निकाल कर... *गुणो की प्रतिमूर्ति बना दिया है... सिवाय मीठे बाबा के भला, किसको मेरी यूँ फ़िक्र थी... कौन मुझे यूँ प्यारा और मीठा... फिर से बना सकता था... सिवाय मेरे बाबा के.*.. आज जीवन पवित्रता और दिव्यता की अनोखी अदाओ से सजकर... विश्व को मेरा जो दीवाना बना रहा है... वह मेरे मीठे बाबा का मुझको दिया हुआ असीम प्यार है... *जिसने मुझ आत्मा को, देह आम से आत्मा खास बना कर.*.. विश्व जगत में अलौकिकता से चमका दिया है...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को कर्म की गुह्य गति को समझाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... *आत्मिक भाव में स्थित रहकर... सदा एक दूसरे को सम्मान देकर, गुणो की लेनदेन करो.*.. देह ने जो सीमाओ में बांध कर, दिल को जो छोटा कर दिया था... अब अपने असली स्वरूप, आत्मिक भाव में डूबकर... दिल को अपनी विशालता से पुनः सजाओ...विश्व कल्याण कारी बनकर हर कर्म को करो कि... आपका कर्म सबके लिए प्रेरणा बने..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के अमृत वचनो को सुनकर अति आनन्द में डूबकर कहती हूँ :-"मेरे सच्चे सहारे बाबा... आपने मेरे जीवन में आकर... इस मटमैले विकारी जीवन को गुणो के फूलो सा सुगन्धित बनाकर... मुझे इस विश्व धरा पर, अनोखा सजा दिया है... *अब मै आत्मा खुशियो की, और श्रेष्ठ कर्मो की मिसाल बनकर, हर दिल को श्रेष्ठता से सजाती जा रही हूँ.*.."
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अति मीठा और प्यारा बनाकर कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... मीठे बाबा की प्यार भरी छाँव में खिलकर... सदा गुणो और शक्तियो की झलक हर कर्म में दिखाओ... आत्मिक गुणो से हर कर्म को सजाओ... *सदा यह स्म्रति रहे कि आप विशेष आत्माओ का... हर कर्म सारे संसार के लिए पथ प्रदर्शक का कार्य करता है.*..इसलिए हर कर्म को श्रीमत प्रमाण कर, जग को दीवाना बनाओ...
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के ज्ञान रत्नों को पाकर खुशियो में झूमते हुए कहती हूँ :-"सच्चे सच्चे सखा मेरे... मै आत्मा विकारो की गलियो में खोकर... अपने गुणो और शक्तियो को पूर्णतः खो बेठी थी... मीठे बाबा आपने आकर मुझ पर इतनी मेहनत कर, मुझे फिर से गुणवान बनाया है... अब मै आत्मा *अपने हर कर्म में ईश्वरीय अदा दिखाकर... हर दिल को आदर और सम्मान देती जा रही हूँ.*.."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सर्वगुण सम्पन्न बनाकर देवताई राज्य तिलक देते हुए कहा:-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... देह के भान में आकर, अपने मौलिक गुणो को पूरी तरहा खो बेठे थे... *अब जो प्यारे बाबा ने सच्चे अहसासो से भरा है... तो हर कर्म में उन मीठी अनुभूतियों को झलकाओ.*.. हर कर्म श्रीमत के रंग में रंगा हो... हर दिल आपसे खुशियां पाये... ऐसा मीठा प्यारा और निराला ईश्वर पुत्र बनकर, जीवन का हर कार्य करो...
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा से अमूल्य शिक्षाये पाकर, संवरे हुए जीवन को देख, प्रफुल्लित होकर कहती हूँ :-"सच्चे सच्चे खिवैया बाबा... मीठे बाबा आपने जीवन को मूल्यों से सजाकर, मुझे कितना महान बना दिया है... अब मेरा कर्म असाधारण और महानता से सज गया है... *हर दिल मुझसे पूछता है... कि इतना मीठा, प्यारा और निराला, भला तुम्हें किसने बनाया है... मै मुस्करा कर कहती हूँ सिर्फ मेरे मीठे बाबा ने.*..."मीठे बाबा से दिली रुहरिहान् कर मै आत्मा... अपने कर्मक्षेत्र पर आ गयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप जो सर्व सम्बन्धों की सैक्रीन है, उसे बड़े प्यार से याद करना*"
➳ _ ➳ सर्व सम्बन्धों का सुख देने वाले अपने भगवान बाप, आल माइटी अथॉरिटी शिव बाबा का मैं दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ जिन्होंने सर्व सम्बन्धों की सैक्रीन बन, हर सम्बन्ध का सुख मुझे देकर मेरे जीवन को मिठास से भर कर मुझे तृप्त कर दिया। *जब - जब जिस - जिस सम्बन्ध की कमी को जीवन मे अनुभव किया, स्वयं भगवान ने आकर उसी सम्बन्ध का सुख दे कर, उस कमी को दूर किया*। कभी बाप के रूप में पालना दी, कभी माँ बन कर अपनी ममता की ठंडी छांव में मुझे बिठाया, कभी दोस्त बन कर मुझे उचित मार्गदर्शन दिया। कभी साजन बन कर मेरे हर सुख - दुख में मेरा साथ निभाया।
➳ _ ➳ *कितनी पदमा पदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जिसे स्वयं भगवान ने उस हर सम्बन्ध का सुख दिया जो देह के सम्बन्धी कभी दे ही नही सकते* मन ही मन स्वयं से यह बातें करती अपने मीठे प्यारे बाबा पर मैं दिल से बलिहार जाती हूँ और खो जाती हूँ उन सर्व सम्बन्धों के अनुभव में जो बाबा हर रोज मुझे करवाते हैं।
➳ _ ➳ कभी मैं स्वयं को एक छोटी बच्ची के रूप में देखती हूँ जिसकी उंगली थामे बाबा उसे इस विषय सागर से निकाल उस दुनिया मे ले जा रहें है जहाँ अपरमपार सुख ही सुख हैं। *कभी मैं देखती हूँ मेरा सिर बाबा की गोदी में हैं और बाबा माँ बन कर अपनी ममता के आँचल में मुझे मीठी लोरी सुना कर सुला रहें हैं*। कभी मैं स्वयं को एक सुंदर झूले पर अपने खुदा दोस्त के साथ बैठ उनसे अपने दिल की ढेरों बातें करते देख रही हूँ। मेरा सच्चा दोस्त बन कर मेरे मीठे बाबा मेरे साथ बातें कर रहें हैं, मुझे सही रास्ता दिखा रहें हैं। *कभी मैं देखती हूँ बाबा साथी के रूप में मेरे हमसफ़र, मेरी छत्रछाया बन कदम - कदम पर मेरी रक्षा कर रहें हैं*।
➳ _ ➳ इन सर्व सम्बन्धों के अनुभव में खोई अब मैं सर्व सर्वसम्बन्धो की सैक्रीन अपने अति मीठे बाबा को बड़े प्यार से याद करती हूँ। *अपने प्यारे बाबा की याद का प्रतिफल मुझे मेरे बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की मीठी फ़ुहारों के रूप में स्पष्ट अनुभव हो रहा है*। बाबा का प्यार, उनकी सर्वशक्तियों की किरणों के रूप में परमधाम से सीधा मुझ आत्मा पर पड़ रहा है और मुझे अपने सच्चे निस्वार्थ प्यार में रंग कर, अपने जैसा बना रहा है। बाबा की शक्तिशाली किरणे मुझे उनके समान विदेही बना कर, अपने पास खींच रही हैं और *मैं आत्मा इस देह को छोड़ एक चमकता सितारा बन ऊपर आकाश की ओर जा रहा हूँ*।
➳ _ ➳ शीघ्र ही पांच तत्वों की इस दुनिया को पार करती हुई, आकाश से ऊपर, सूक्ष्म वतन से होती हुई मैं जगमग करती हुई ज्योति प्रवेश करती हूँ एक दिव्य प्रकाशमयी अलौकिक दुनिया में जो सर्वसम्बंधों की सैक्रीन मेरे मीठे बाबा का घर है। उस स्वीट साइलेन्स होम में मैं स्वयं को देख रही हूँ और एक अति मीठी गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ। *मन, बुद्धि पूरी तरह से मीठे प्यारे बाबा की याद में स्थिर हैं और मैं चात्रक बन अपने अति प्यारे बाबा को निहार रही हूँ*। उनके अति सुंदर दिव्य प्रकाशमय स्वरूप को निहारते हुए, उनसे निकल रही सर्वशक्तियों की किरणों के नीचे बैठ मैं स्वयं को उनकी सर्वशक्तियों से भरपूर कर रही हूँ। *उनके बिल्कुल पास जा कर, उनके साथ टच हो कर उनकी लाइट माइट को स्वयं में भर रही हूँ*।
➳ _ ➳ भरपूर हो कर अब मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया की ओर लौट रही हूँ। अपने साकारी तन में विराजमान हो कर हर सम्बन्ध का सुख अपने प्यारे बाबा से लेते हुए, मैं देह और देह के झूठे सम्बन्धों से उपराम होने लगी हूँ। *सर्व सम्बन्धों की सैक्रीन अति मीठे प्यारे बाबा के प्यार की मिठास से अपने जीवन को सदा भरपूर करते हुए, उनकी मीठी याद में रह कर मैं अपना एक - एक सेकण्ड सफल कर रही हूँ*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा एक के पाठ को स्मृति में रख तपस्या में सफलता प्राप्त करती हूँ ।*
➳ _ ➳ *संगमयुगी मैं ब्राह्मण आत्मा... "मेरा बाबा" के पाठ को स्मृति में हर पल रखती...* तपस्या की ऊंची शिखर पर पहुँच गयी हूँ... आत्मिक स्मृति स्वरूप मैं आत्मा... मेहनत मुक्त बन गयी हूँ... *एक की याद में खोई मैं आत्मा... निरन्तर और सहज योग की अनुभूति को महसूस कर रही हूँ...* एकरस स्थिति में हर पल रह... बापदादा द्वारा प्राप्त अविनाशी ख़ज़ाने को सफल कर रही हूँ... तपस्यामूर्त बन... एकाग्रता की सीट पर विराजमान हूँ... हर घड़ी... हर पल... सिर्फ एक बाप को स्मृति में रख... *याद करने की मेहनत से मुक्त हो गयी हूँ... याद करना नही पड़ता... स्वतः उसकी याद में बलिहार जाती हूँ...* उस एक की ही याद का अविनाशी स्मृति तिलक लगाकर मैं आत्मा तपस्वी मूरत बन... *कर्मातीत अवस्था की अंतिम स्टेज पर पहुँच चुकी हूँ...*
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मन और बुद्धि को मनमत से सदा खाली रखते हुए आज्ञाकारी बनने का अनुभव करना"*
➳ _ ➳ *सदा बाबा की मर्जी पर चलने वाली... सदा फरमान फालोफादर करने वाली... मैं बाबा की वफादार व आज्ञाकारी आत्मा हूँ...* बाबा के सदा समीप रहने वाली... खुदाई खिदमतगार हूँ... अमृतवेले से ही हर कर्म चेक करती हुई... हर कर्म श्रीमत के आधार पर करती हुई... श्रेष्ठ कर्मों के खाते को बढ़ा रही हूँ... *रोज की ज्ञान मुरली को आधार बनाकर... जीवन की हर परिस्थिति को सहज ही पार करती हुई... खुशी व शक्ति की अनुभूति कर रही हूँ...* हर कदम... हर बोल... हर कर्म को श्रीमत अनुसार श्रेष्ठ बना रही हूँ... *हर सेकेंड... हर संकल्प को अमूल्य बनाकर...* सर्व प्राप्तियों से संपन्न होता हुआ अनुभव कर रही हूँ... बाबा के द्वारा दी गई *अनमोल शिक्षाओं को जीवन में धारण करती हुई... आज्ञाकारी बनते हुए अनुभव कर रही हूँ...* समय की वैल्यू को समझते हुए... हर सेकंड को अमूल्य बनाने की सेवा करती हुई... उमंग उत्साह से भरपूर हो रही हूँ...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ क्या सोचते हो ताली बजेगी तो बन जायेंगे, ऐसे? क्या सोचते हो - ताली बजेगी उस समय बनेंगे? क्या होगा? बजायें ताली? बोलो तैयार हो? पेपर लेवें? *ऐसे थोड़ेही मान जायेंगे, पेपर लेंगे? टीचर्स बताओ- पेपर लें? सब छोड़ना पड़ेगा। मधुबन वालों को मधुबन छोड़ना पड़ेगा, ज्ञान सरोवर वालों को ज्ञान सरोवर, सेन्टर वालों को सेन्टर, विदेश वालों को विदेश, सब छोड़ना पड़ेगा। तो एवररेडी हैं? अगर एवररेडी हो तो हाथ की ताली बजाओ* एवररेडी? पेपर लें? कल एनाउन्समेंट करें? वहाँ जाकर भी नहीं छोड़ना है, वहाँ जाकर थोड़ा ठीक करके आऊं, नहीं। *जहाँ हूँ, वहाँ हूँ। ऐसे एवररेडी। अपना दफतर भी नहीं, खटिया भी नहीं, कमरा भी नहीं, अलमारी भी नहीं। ऐसे नहीं कहना थोड़ा -सा काम है ना, दो दिन करके आयें। नहीं। आर्डर इज आर्डर।* सोचकर हाँ कहो। नहीं तो कल आर्डर निकलेगा, कहाँ जाना है, कहाँ नहीं जाना है। *निकालें आर्डर, तैयार हैं? इतना हिम्मत से हाँ नहीं कह रहे हैं। सोच रहे हैं थोड़ा-सा एक दिन मिल जाये तो अच्छा है। मेरे बिना यह नहीं हो जाए, यह नहीं हो जाए, यह वेस्ट संकल्प भी नहीं करना।*
➳ _ ➳ *ब्रह्मा बाप ट्रांसफर हुआ तो क्या सोचा कि मेरे बिना क्या होगा? चलेगा, नहीं चलेगा। चलो एक डायरेक्शन तो दे दूं, डायरेक्शन दिया? अपनी सम्पन्न स्थिति द्वारा डायरेक्शन दिया, मुख से नहीं।* ऐसे तैयार हो? आर्डर मिला और छोड़ो तो छूटा। हलचल करें? ऐसा करना है - यह बता देते हैं। *आर्डर होगा, पूछकर नहीं, तारीख नहीं फिक्स करेंगे। अचानक आर्डर देंगे आ जाओ, बस। इसको कहा जाता है डबल लाइट फरिश्ता। आर्डर हुआ और चला।* जैसे मृत्यु का आर्डर होता है फिर क्या सोचते हैं, सेन्टर देखो, आलमारी देखो, जिज्ञासु देखो, एरिया देखो......!
➳ _ ➳ *आजकल तो मेरे-मेरे में एरिया का झमेला ज्यादा हो गया है, मेरी एरिया! विश्व-कल्याणकारी की क्या हद की एरिया होती है?* यह सब छोड़ना पड़ेगा। यह भी देह का अभिमान है। *देह का भान फिर भी हल्की चीज है, लेकिन देह का अभिमान यह बहुत सूक्ष्म है।* मेरा-मेरा इसको ही देह का अभिमान कहा जाता है। *जहाँ मेरा होगा ना वहाँ अभिमान जरूर होगा। चाहे अपनी विशेषता प्रति हो, मेरी विशेषता है, मेरा गुण है, मेरी सेवा है, यह सब मेरापन - यह प्रभू पसाद है, मेरा नहीं। प्रसाद को मेरा मानना, यह देह-अभिमान है।* यह अभिमान छोड़ना ही सम्पन्न बनना है। *इसीलिए जो वर्णन करते हो फरिश्ता अर्थात् न देह-अभिमान, न देह-भान, न भिन्न-भिन्न मेरे-पन के रिश्ते हो, फरिश्ता अर्थात् यह हद का रिश्ता खत्म।*
✺ *ड्रिल :- "हद के भिन्न-भिन्न मेरे-पन से मुक्त होकर डबल लाइट फरिश्ता बनने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा इस पंच तत्व के शरीर से निकल कर... इस पंच तत्व की दुनिया से पार... उड़ कर पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन में... जहां बापदादा बाहें फैला कर... मेरा आह्वान कर रहे हैं...* आओ बच्चे मैं तुम्हारे ही इंतजार में बैठा हूँ... बाबा ने अपने पास बिठा लिया... और मुझे गुह्य - गुह्य बातें बता रहे हैं... *मुझ आत्मा को ज्ञान दे रहे हैं... बच्ची... देह और देह की दुनिया के भान से परे हो जाओ... नहीं तो अंत मति सो गति नहीं होगी... फिर पछताना पड़ेगा...* मैंने कहा जी बाबा मैं सब कुछ समझ गयी हूँ... बाबा के दिए इस ज्ञान से भरपूर हो मैं आत्मा... उड़ कर वापस पहुँच जाती हूँ... पंच तत्व की दुनिया में...
➳ _ ➳ *वाह मैं खुशनसीब आत्मा... स्वयं परमात्मा... भाग्य विधाता... मुझे मिल गया... इस संगम युग में मेरा भाग्य बना रहा है... वो भी 21 जन्मों के लिए...* मुझ आत्मा को अब कुछ नहीं चाहिये... ना ये पाँच तत्वों का बना शरीर... और ना पाँच तत्वों से बनी ये साकारी दुनिया... जो एक दिन खत्म होनी है... *मैं आत्मा इस साकारी देह के लगाव से मुक्त हो गयी हूँ... और इस देह के हर रिश्तों के लगाव से मुक्त हो गयी... अब मैं आत्मा एवररेडी हूँ... और हर पेपर को पार करने के लिए तैयार हूँ...*
➳ _ ➳ *बाबा अगर कल एनाउन्समेंट करें... की बच्ची सब कुछ छोड़ दो... तो मैं आत्मा एक पल में सब कुछ छोड़ दूंगी... और प्यारे बाबा के साथ चल पडूँगी... मैं सम्पूर्ण एवररेडी आत्मा हूँ... अब मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं है...* अपना दफ्तर... अपनी खटिया... अपना कमरा... अलमारी... इन सब से अब मैं डिटैच्ड हूँ... *ऐसे नहीं कहूँगी कि थोड़ा-सा काम... दो दिन करके आऊँगी... नहीं... आर्डर इज आर्डर... बाबा अभी आर्डर निकालें... मैं फरिश्ता सम्पूर्ण तैयार हूँ... इतनी हिम्मत से हाँ कह रही हूँ... मेरे बिना यह नहीं होगा... या हो जाएगा... यह वेस्ट संकल्प भी मुझ आत्मा को अब नहीं होगा...*
➳ _ ➳ *जिस तरह ब्रह्मा बाप ट्रांसफर हुए... थोड़ा सा भी नहीं सोचा था कि हुआ मेरे बिना क्या होगा... चलेगा... नहीं चलेगा... चलो एक डायरेक्शन तो दे दूं... डायरेक्शन दिया लेकिन अपनी सम्पन्न स्थिति द्वारा डायरेक्शन दिया... मुख से नहीं...* ऐसे मैं आत्मा भी तैयार हूँ... आर्डर मिला और छोड़ो तो छोड़ दिया... मैं आत्मा रिन्चक मात्र भी हलचल में नहीं आऊँगी... *बाबा अचानक आर्डर दें आ जाओ... और मैं फरिश्ता पहुँच गयी... इसको ही डबल लाइट फरिश्ता कहा जाता... आर्डर हुआ और चला...*
➳ _ ➳ आजकल मेरे-मेरे एरिया का झमेला ज्यादा है... मेरी एरिया... मैं विश्व-कल्याणकारी आत्मा हूँ... *तो विश्व-कल्याणकारी की हद की एरिया नहीं होती... मुझ आत्मा ने यह सब छोड़ दिया... क्यूँकि यह भी देह का अभिमान... देह का भान हल्की चीज है... लेकिन देह का अभिमान यह बहुत सूक्ष्म है...* मेरा-मेरा इसको ही देह का अभिमान कहा जाता है... जहाँ मेरा होगा वहाँ अभिमान जरूर होगा... चाहे अपनी विशेषता प्रति हो... मेरी विशेषता है... मेरा गुण है... मेरी सेवा है... यह सब मेरापन मैं आत्मा छोड़ चुकी हूँ... और यह समझ गयी हूँ कि यह सब प्रभु पसाद है... मेरा नहीं... *प्रसाद को मेरा मानना... यह देह-अभिमान... यह अभिमान को छोड़ मैं आत्मा सम्पूर्ण और सर्व गुण सम्पन्न बन गयी हूँ...* इसीलिए बाबा ने जो वर्णन किया है फरिश्ता अर्थात् न देह-अभिमान... न देह-भान... न भिन्न-भिन्न मेरे-पन के रिश्ते हो... फरिश्ता अर्थात् यह हद का रिश्ता खत्म... *अब मैं आत्मा "हद के भिन्न-भिन्न मेरे-पन से मुक्त होकर डबल लाइट फरिश्ता बन गयी हूँ..."*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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