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❍ 05 / 08 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *स्वदर्शन चक्रधारी बनकर रहे ?*
➢➢ *बुधी का योग सबसे तोड़ एक बाप से जोड़ा ?*
➢➢ *बाप समान सम्पूरण बनने का पुरुषार्थ किया ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *रूहानियत द्वारा वृत्ति, दृष्टि, बोल और कर्म को रॉयल बनाया ?*
➢➢ *मेहनत की बजाये मोहब्बत के झूले में झूलते रहे ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *सर्व प्रवृत्तियों के बन्धनों से विदाई ले समाप्ति समारोह मनाया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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➳ _ ➳ साइलेंस की शक्ति के अनुभवी हो? कैसी भी अशान्त आत्मा को शान्त स्वरूप होकर शान्ति की किरणें दो तो अशान्त भी शान्त हो जाए। *शान्ति स्वरूप रहना अर्थात शान्ति की किरणें सबको देना।* यही काम है। विशेष शान्ति की शक्ति को बढाओ। *स्वयं के लिए भी औरों के लिए भी शान्ति के दाता बनो।* भक्त लोग शान्ति देव कहकर याद करते हैं ना? देव यानी देने वाले। जैसे बाप की महिमा है शान्ति दाता, वैसे *आप भी शान्ति देवा हो। यही सबसे बड़े ते बडा महादान है।* जहाँ शान्ति होगी वहाँ सब बातें होंगी। तो सभी शान्ति देवा हो, अशान्त वातावरण में रहते स्वयं भी शान्त स्वरूप और सबको शान्त बनाने वाले, जो बापदादा का काम है, वही बच्चों का काम है। *वापदादा अशान्त आत्माओं को शान्ति देते हैं तो वच्चों को भी फॉलो फादर करना है।* व्राह्मणों का धन्धा ही यही है। अच्छा। (पार्टियों के साथ)
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- स्वदर्शन चक्रधारी बन 84 जनमो की स्म्रति में रहना, और याद दिलाना*"
➳ _ ➳ मीठे बाबा के मिलन को प्यासी मै आत्मा... मिलन की आस दिल में लिए डायमण्ड हाल में पहुंचती हूँ... मेरे सम्मुख दादी गुलजार है... मीठी दादी के सानिध्य में कुछ पल रहती हूँ... और अचानक मीठे बाबा की आवाज सुनाई देती है... *मेरे मीठे बच्चे.*.. मेरे हर्ष की कोई सीमा ही नही रही है... और पलको से आसुंओं की अनवरत धारा बह चली है... अपने मीठे बाबा को टुकुर टुकुर निहारे जा रही हूँ... और मीठे बाबा मेरी जनमो के बिछड़े पन की प्यास मिटाते जा रहे है...
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को अमूल्य रत्नों से सजाकर कहते है :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता को जानकर, जो स्वयं के सत्य स्वरूप को जाना है... तो स्वयं के चमकते रूप और मीठे बाबा की यादो में सदा खोये रहो... *सदा स्व के दर्शन में आनन्दित रहो.*.. इन मीठी यादो में सदा मगन रहो और दूसरो को भी सदा याद दिलाते रहो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के ज्ञान रत्नों को अपनी झोली में समाकर कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... विकारो से ग्रसित मै आत्मा... स्वयं को सदा देह मानकर दुखो के पहाड़ को जीती जा रही थी... *आपने जीवन में आकर, मेरा आत्मिक सौंदर्य दिखा कर, देवताई लक्ष्य दिया है.*.. अपने दमकते अनादि स्वरूप को जानकर मै आत्मा पुलकित हूँ..."
❉ प्यारे बाबा मुझ आत्मा को दिव्य तरंगो से भरपूर करते हुए कहते है :- "मीठे लाडले बच्चे... अपने 84 जनमो को जानकर, बेहद के खेल को भलीभांति जान गए हो... अपने स्वदर्शन को यादो में फिराते ही रहो... यही यादे सुखो भरे मीठे जीवन को प्यारी हकीकत बनाएंगी... *खुद भी यादो में डूबे रहो, और औरो को भी इन यादो के अहसासो में भिगो दो.*.."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने प्यारे बाबा से असीम ख़ुशी को पाकर कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... *आपने जीवन में आकर जीवन को खुशियो की मचान बना दिया है.*.. मेरा खोया वजूद याद दिला कर, मुझे अनोखा और प्यारा बना दिया है... मै आत्मा अपने 84 जनमो के पार्ट को देख देख ख़ुशी में झूम रही हूँ...."
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपने वरदानों से भरपूर करते हुए कहते है :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... मीठे बाबा बेहद का समाचार सुनाकर, *तीनो लोको की खबर सुनाकर, मा त्रिलोकीनाथ बना देते है.*.. इस मीठे नशे में सदा झूमते रहो... अपनी बुद्धि में सदा स्वदर्शन को फिराते रहो... कितना खुबसूरत देवताई भाग्य पाते हो...इन मीठी स्मर्तियो में खोये रहो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा की सारी रत्नों भरी खानों पर अपना अधिकार जमाते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा हदो में फंसी स्वयं को मात्र देह समझ दुखो में उलझी रही... आपने आकर मुझे नूरानी बनाया है... अथाह ज्ञान धन देकर मुझे मालामाल किया है... और *देवताई सुखो का अधिकार देकर भाग्यवान बनाया है.*.." अपने प्यारे बाबा से मीठी रुहरिहानं कर मै आत्मा... अपने कर्म क्षेत्र पर लौट आयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ब्रह्मा बाप समान ज्ञान को धारण कर सम्पूर्ण बनना*"
➳ _ ➳ ब्रह्मा बाप समान बनने का दृढ़ संकल्प मन में ले कर, अपने ब्राह्मण स्वरुप में स्थित मैं आत्मा मन बुद्धि से पहुंच जाती हूँ मधुबन के पांडव भवन में और बाबा के कमरे में जा कर बैठ जाती हूँ। *यहां बैठ कर गहन शांति की स्थिति में स्थित होते ही मेरे कानों में ब्रह्मा बाबा के मुख से उच्चारित ओम ध्वनि सुनाई देने लगती है। उस ध्वनि की मीठी आवाज में मैं जैसे खो जाती हूँ*। ब्रह्मा बाबा के साथ - साथ अब मैं भी अपने मुख से ओम ध्वनि का उच्चारण कर रही हूँ। मुझ से निकल रही ओम ध्वनि की मधुर तरंगे चारो और फैल रही है जो धीरे धीरे परमधाम पहुंच कर शिव पिता को टच कर रही हैं *जिसके रेस्पॉन्ड में शिव बाबा परमधाम से अपनी अनन्त किरणे मुझ पर प्रवाहित कर रहें हैं*।
➳ _ ➳ बाबा से आ रही ये शक्तिशाली किरणे मुझे लाइट माइट स्वरूप में स्थित कर, अपनी ओर खींच रही हैं। डबल लाइट फ़रिशता बन अब मैं ऊपर की ओर उड़ रहा हूँ। *आकाश मण्डल को पार करके उससे भी ऊपर मैं पहुंच गया सूक्ष्म लोक। अब मैं देख रहा हूँ स्वयं को सूक्ष्म वतन में बापदादा के लाइट स्वरूप के सम्मुख*। अष्ट शक्तियों के रूप में बापदादा के अलग - अलग स्वरूप मेरे सामने स्पष्ट हो रहें हैं।
➳ _ ➳ बापदादा का पहला स्वरूप समेटने की शक्ति से भरपूर है। *जैसे ब्रह्मा बाबा ने निश्चय होते ही अपना व्यापार, रिश्ते नाते समेटकर अपना संसार शिव बाबा को बना लिया*। वही समेटने की शक्ति मुझ में जागृत करने के लिए समेटने की शक्तिशाली किरणों से बाबा मुझे भरपूर कर रहें हैं।
➳ _ ➳ दूसरे स्वरूप में मैं देख रहा हूँ बापदादा का सहनशक्ति से भरपूर स्वरूप। *जैसे ब्रह्मा बाबा ने सारे समाज का विरोध सहन किया। कभी हिम्मत नही हारी*। वही सहनशक्ति मुझ में भरने के लिए बाबा सहनशक्ति से भरपूर किरणे मुझ पर प्रवाहित कर रहें हैं।
➳ _ ➳ बापदादा का तीसरा स्वरूप समाने की शक्ति से भरपूर है। *जैसे बापदादा सभी बच्चों की सभी बातों को स्वयं में समा लेते हैं* वैसे समाने की शक्ति से भरपूर किरणे दे कर बाबा मुझमे हर बात को स्वयं में समाने का बल भर रहें हैं।
➳ _ ➳ बापदादा का चौथा स्वरूप परखने की शक्ति को परिलक्षित कर रहा है। *जैसे ब्रह्मा बाबा अपने सम्मुख आने वाली हर आत्मा को सेकेंड में परख लेते थे*। वही परखने की शक्ति से भरपूर किरणे बाबा मुझमे समाहित कर रहें हैं ताकि अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को परख कर हर प्रकार के धोखे से स्वयं को बचा सकूँ।
➳ _ ➳ अब मैं बापदादा के पांचवे स्वरूप को देख रहा हूँ जो निर्णय करने की शक्ति स्वयं में समाए हुए है। *जैसे ब्रह्मा बाबा सबकी बात सुन कर बिना किसी पक्षपात के उचित निर्णय सुनाते थे* ऐसे ही निर्णय करने की शक्ति से सपन्न किरणे बापदादा के इस स्वरूप से निकल कर मुझ फ़रिश्ते में समा रही हैं।
➳ _ ➳ बापदादा का छठा स्वरूप सामना करने की शक्ति से भरपूर है। *जैसे ब्रह्मा बाबा ने विरोधी आत्माओ की परवाह ना करते हुए अपने पितृवत स्नेह से उन्हें भी अपना बना लिया*। ऐसे सामना करने की शक्ति से बाबा मुझे भरपूर कर रहें हैं।
➳ _ ➳ सातवें स्वरूप में बापदादा सहयोग की शक्ति से परिपूर्ण है। *जैसे ब्रह्मा बाबा सहयोग की शक्ति से सबको एक साथ ले कर आगे बढ़ते रहे, सबको दिल का स्नेह दे कर पालना करते रहे*। ऐसे सहयोग की शक्ति से भरपूर किरणे बाबा मुझ में प्रवाहित कर मुझे भी सहयोगी आत्मा बना रहें हैं।
➳ _ ➳ बापदादा का आठवां स्वरूप विस्तार को संकीर्ण करने की शक्ति का परिचायक है। *जैसे ब्रह्मा बाबा अशरीरी हो कर देह और देह के सम्बन्धो के विस्तार को समेट कर सबको आत्मिक स्वरूप में देखते उन्हें भी आत्मिक दृष्टि से देखने के लिए प्रेरित करते रहे*। ऐसे विस्तार को सार में समाने की शक्ति बाबा मुझे दे रहें है।
➳ _ ➳ बापदादा के आठों स्वरूपों से अष्टशक्तियों को स्वयं में भरपूर करके अब मैं फ़रिशता मास्टर सर्वशक्तिवान बन गया हूँ। समय और परिस्थिति अनुसार जब चाहे उचित शक्ति का प्रयोग कर मैं सहज ही माया के हर वार का सामना कर सकता हूँ। पूर्णतया निर्विघ्न स्थिति का मैं अनुभव कर रहा हूँ। *ब्रह्मा बाप समान मास्टर दाता बन अब मैं विश्व ग्लोब पर स्थित हो कर सर्वशक्तियों की साकाश विश्व की सर्व आत्माओं को दे कर सर्व का कल्याण कर रहा हूँ*। सारी सृष्टि और इस सृष्टि की हर चीज इस सकाश से पावन बनती जा रही है।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा रूहानियत द्वारा वृत्ति, दृष्टि, बोल और कर्म को रॉयल बनाने वाली ब्रह्मा बाप समान हूँ।*
➳ _ ➳ *रूह में रूहानियत की ताशिर भर कर मैं आत्मा चल रही हूँ ब्रह्मा बाप के नक़्शे कदम पर...* व्यर्थ बोल... व्यर्थ संकल्पों को अलविदा कहकर मैं आत्मा... तीव्र पुरुषार्थ की ऊंची उड़ान भर रही हूँ... *चेहरे और चलन से सिर्फ एक बाप को प्रत्यक्ष करने के एक मात्र संकल्प के साथ... व्यर्थ भाव से परे... अव्यक्त भाव और भावना से ब्रह्मा बाप समान बनती जा रही हूँ...* असाधारण बोल से... व्यर्थ संकल्पों से परे रहने वाली मैं आत्मा... मंसा वाचा कर्मणा... शुभ भावना के हीरे तुल्य संकल्पों को फैलाती जा रही हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मेहनत के बजाए मोहब्बत के झूले में झूलना ही श्रेष्ठ भाग्यवान होने का अनुभव करना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा बापदादा का सिकिलधा बच्चा हूँ... जिसे बाबा ने अपने दिलतख्त पर बैठने का सौभाग्य दे दिया है... बाबा मुझ आत्मा पर अपने सर्व खजाने लुटाते जा रहें है... *मैं बापदादा के साथ श्रेष्ठ पार्ट बजाने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ*.. सदा बाप का हाथ और साथ अनुभव करने वाली श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ... सदा ही मौजों में झूमने वाली... श्रेष्ठ भाग्यवान होने का अनुभव करने वाली आत्मा बनती जा रही हूँ... *बाबा मिल गया सब कुछ मिल गया... इससे बड़ा और कोई भाग्य हो ही नही सकता*... ब्राह्मण जन्म ही खुशी के झूले में हुआ है... इसलिए सदा खुशी के झूले में झूलने वाली आत्मा बनती जा रही हूँ... इसमें कोई भी थकावट नही... कोई मेहनत नही... चाहे कितने भी कड़े हिसाब हो... *सदा श्रेष्ठ भाग्यवान होने का नशा रहता है*...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली पर आधारित... )
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अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳
जैसे
आप लोग एक ड्रामा दिखाते हो,
ऐसे
प्रकार के संकल्प - अभी यह करना है,
फिर
वापस जायेंगे - ऐसे ड्रामा के मुआफिक साथ चलने की सीट को पाने के अधिकार से
वंचित तो नहीं रह जायेंगे - अभी तो खूब विस्तार में जा रहे हो,
लेकिन विस्तार की निशानी क्या होती है? *वृक्ष
भी जब अति विस्तार को पा लेता तो विस्तार के बाद बीज में समा जाता है। तो अभी
भी सेवा का विस्तार बहुत तेजी से बढ़ रहा है और बढ़ना ही है* लेकिन जितना विस्तार
वृद्धि को पा रहा है उतना विस्तार से न्यारे और साथ चलने वाले प्यारे,
यह
बात नहीं भूल जाना। *कोई भी किनारे में लगाव की रस्सी न रह जाए। किनारे की
रस्सियाँ सदा छूटी हुई हों। अर्थात् सबसे छूट्टी लेकर रखो।* जैसे आजकल यहाँ पहले
से ही अपना मरण मना लेते हैं ना- तो छुट्टी ले ली ना। *ऐसे सब प्रवृत्तियों के
बन्धनों से पहले से ही विदाई ले लो। समाप्ति-समारोह मना लो।
उड़ती कला का उड़ान आसन सदा तैयार हो।*
✺
*"ड्रिल :- सर्व प्रवृत्तियों के बन्धनों से विदाई ले समाप्ति समारोह मनाना।"*
➳ _ ➳
आत्मिक स्थिति में स्थित मैं आत्मा बैठी हूँ एक बाप की याद में... मन को बाप
में लगाने की तम्मना के साथ... जन्म-जन्म के विकर्मों को दहन करने के एक ही
मार्ग पर चल पड़ी हूँ... एक ही संकल्प मन के तार को बापदादा से दूर करता जा रहा
है... *“क्या
विनाशी देह की भस्म को गंगा में बहाने से क्या सम्बन्ध पूरे होते हैं?
और
क्या उस सम्बन्ध से जुड़े पुराने तानेबाने ही ख़तम हो जाते हैं?
क्या
पुनर्जन्म में वह आत्मा अपने पुराने संस्कारो के वशीभूत जन्म लेगी ?
मोह
माया के रिश्तों में बंधे सभी आत्माओं का पुर्नजनम कैसा होगा ?*
अपने
इन विचारों में खोयी मैं आत्मा मन बुद्धि रूपी नयनों द्वारा देखती हूँ बापदादा
को अपने समीप... अपने रूहानी वात्सल्य से भरे हाथों से मुझ आत्मा के मस्तक पर
हाथ रखकर अपनी अनंत शक्तियों को मुझमें समाते जा रहे हैं... और मैं आत्मा
आन्तरिक शांति को पाती जा रही हूँ... मन की चंचलता ख़त्म होती जा रही है... और
बापदादा एक सीन दिखा रहे हैं...
➳ _ ➳
झरमर झरमर बहती गंगा... शांत और शीतल पवन के झोंके... धूप दीप नैवेद्य से भरी
थाली... एक कलश... लाल कपडे से बंधा हुआ... जिसमें विनाशी देह की भस्म भरी हुई
है... *विनाशी शरीर पंच महाभूतों में विलीन हो गया है...* विनाशी देह के सगे
सम्बन्धी उस विनाशी देह की भस्म को गंगा की लहरों में समर्पित करते जा रहे
हैं... और उस आत्मा से देह का रिश्ता पूरा होता है... और एक दृश्य बाबा दिखा रहा
है जहां एक आत्मा का जन्म होता हैं... हर्षोल्लास का वातावरण छाया हुआ है... सभी
सगे सम्बन्धी खुशियों के झूले में खुद भी झूल रहे हैं और वह आत्मा के बालक
स्वरुप को भी झुला रहे हैं... कहीं पर मरण के दुखदायी नज़ारे हैं तो कहीं पर
जन्म की बधाइयां दी जा रही हैं... *रिश्तों के ताने बाने से बंधी आत्मा... जन्म
मरण के चक्कर में... मोह माया के बंधन में बंधती ही जा रही हैं...*
➳ _ ➳
यह
दृश्य देखती अपने आप से बातें करती मैं आत्मा बाबा के महावाक्यों का सिमरण करती
हूँ... *"अंत मती सो गति“*
और
इस महावाक्य को समझने में उलझ जाती हूँ... बापदादा के संग उनके रूहानी रंगों
में रंगी मैं आत्मा... अपने अंतर्मन को बापदादा की रूहानी शक्तियों से रंगती जा
रही हूँ *जन्म मरण के नजारों को साक्षी भाव से देख...* सृष्टि चक्र को बापदादा
की शक्तियों से फिरता देख... मैं आत्मा मन की चंचलता को समाप्त करती जा रही
हूँ... और मन बुद्धि रूपी आँखों से बापदादा और एक सीन दिखा रहे हैं... हम
ब्राह्मण आत्माओं का घर... वह ब्राह्मण आत्माएं जो *बाप की प्रत्यक्षता को जान
चुके हैं... भगवान की खोज को बापदादा की खोज में पूरा होता हुआ देख रहे हैं...*
वह ब्राह्मण आत्माएं जिन्होंने एक बाप से रूहानी रिश्ता जोड़ दुनियादारी के
सम्बन्धों से मन से किनारा कर लिया है... देह भान से परे सभी ब्राह्मण आत्माओं
का सम्बन्ध सिर्फ एक बाप से जुड़ा है...
➳ _ ➳
यही
वह बी के ब्राह्मण आत्मायें हैं जिनके घर पर जन्म मरण के दृश्य भी देखने को
मिलता है... यह वही ब्राह्मण आत्मायें हैं जो मन बुद्धि से लौकिक से किनारा कर
अलौकिक पार्ट बजा रहे हैं... जन्म मरण में देही अभिमानी बन शरीर को न देख आत्मा
को देखते हैं... *पंचमहाभूतों में विलीन शरीर की मालिक आत्मा को शांति की
शक्तियों से भरपूर कर दूसरे जन्म के लिए सजाते हैं... बापदादा की पवित्रता...
सुख... शांति के किरणों को दान कर लौकिकता को अलौकिकता में बदल देते हैं...*
संगमयुग की ब्राह्मण आत्मायें मृत्युशैया पर लेटी आत्मा को बापदादा की शक्तियों
से उनके विकार भस्म करवा कर सुखरूप से पुराना चोला छोड़ नया धारण करने में
मददरूप बनते हैं...
➳ _ ➳
मैं
आत्मा बापदादा द्वारा दिखाये दिए जा रहे सभी ब्राह्मण बी के आत्माओं के घर को
सतयुगी राजमहल के रूप में देख रही हूँ... बापदादा के संगमयुग में इस धरा पर
अवतरण का सुहावना नज़ारा देख रही हूँ... बापदादा के सुनहरे महावाक्य *"कोई भी
किनारे में लगाव की रस्सी न रह जाए... किनारे की रस्सियाँ सदा छूटी हुई हों...
अर्थात् सबसे छूट्टी लेकर रखो सब प्रवृत्तियों के बन्धनों से पहले से ही विदाई
ले लो... समाप्ति-समारोह मना लो... उड़ती कला का उड़ान आसन सदा तैयार हो"* को
प्रत्यक्ष होता हुआ देख रही हूँ... और बापदादा से विदाई लेकर लौकिक के सभी
कार्यों से... संबंधियों से... मन बुद्धि से विदाई लेकर समाप्ति समारोह मना रही
हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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