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❍ 15 / 07 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *योग में रह विकर्माजीत बनकर रहे ?*
➢➢ *स्वयं को स्वयं ही स्वराज्य तिलक दिया ?*
➢➢ *सबको पवित्रता की राखी बाँधी ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *संकल्पों में भी मेरेपन की मैल को समाप्त कर बोझ से हलके रह फ़रिश्ता स्थिति का अनुभव किया ?*
➢➢ *हर परिस्थिति में फुल पास हो मास्टर सर्वशक्तिवान स्थिति का अनुभव किया ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *कर्मबन्धनों से मुक्त रहे ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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➳ _ ➳ आज बापदादा सर्व स्नेही बच्चों का खेल देख रहे थे। क्या खेल होगा? खेल देखना तो आपको भी अच्छा लगता है। क्या देखा? अमृतवेले का समय था। *हरेक आत्मा, जो पक्षी समान उडने वाली है अथवा रॉकेट की गति से भी तेज उडने वाली है, आवाज की गति से भी तेज जाने वाली है, सब अपने-अपने साकार स्थानों पर,* जैसे प्लेन एरोड्रोम पर आ जाता है वैसे सब अपने रूहानी एरोड्रोम पर पहुँच गये। लक्ष्य और डायरेक्शन सबका एक ही था। *लक्ष्य था उडकर बाप समान बनने का और डायरेक्शन था एक सेकण्ड में उडने का।* क्या हुआ?
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पवित्रता का कंगन बांध, पावन बनने की प्रतिज्ञा करना"*
➳ _ ➳ आज मै आत्मा मा त्रिलोकीनाथ के नशे में डूबी हुई... तीनो लोको को स्म्रति पटल पर देख रही हूँ... और देखते देखते मै आत्मा अपने सूक्ष्म शरीर को लिए... इस स्थूल धरा के आवरण से निकल कर... सूक्ष्म वतन में अपने प्यारे बाबा से मिलने को उड़ चली हूँ... सूक्ष्म वतन में पहुंच कर मै आत्मा मीठे बाबा की बाँहों में समा जाती हूँ... और *दीवानी आत्मा और माशूक परमात्मा के सच्चे प्रेम की धारा से सूक्ष्म वतन तरंगित हो रहा है.*..
❉ मीठे बाबा सामने खड़े ज्ञान की अमूल्य मणियो को मेरी झोली में छलकाते हुए कहने लगे :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... देह और देह की दुनिया के आकर्षणों से निकल सम्पूर्ण पवित्रता को धारण करो... *यह पवित्रता ही स्वर्गिक सुखो का आधार है.*.. पवित्रता का कंगन बांध पावन बनने की द्रढ़ प्रतिज्ञा करो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा को रोम रोम से शुकिया कहते हुए बोली :- "मेरे मीठे बाबा,.. आपने जीवन में आकर जीवन को पवित्रता की खूबसूरती से सजाया है... इसके पहले तो मै आत्मा अपवित्रता की दुर्गन्ध में डूबी हुई थी... *आपने मुझे पावनता से सजाकर, महान भाग्यशाली बना दिया है.*.."
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को पावनता के श्रंगार से खुबसूरत बनाते पुनः बोले ;- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... हर साँस और संकल्प को पवित्रता के रंग में रंगकर देवताई राजतिलक के अधिकारी बनो... *पवित्रता ही देवताओ का सौंदर्य है.*.. इसलिए दिल जान से इस पावनता की प्रतिज्ञा को निभाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा की अनमोल शिक्षाओ को दिल में समाते हुए कह रही हूँ :- "ओ मीठे बाबा मेरे... आपने मुझ आत्मा को देह के दलदल से निकाल, दिव्यता से सजाकर, कितना प्यारा और खुशबूदार बना दिया है... मै आत्मा *पावनता की सुगन्ध लिए स्वर्ग धरा पर विचरण कर रही हूँ.*.."
❉ प्यारे बाबा मुझ आत्मा को अपने वरदानी हाथो में थाम प्रेम किरणों से भरपूर करते हुए बोले :- " मीठे लाडले बच्चे... पवित्रता ही देवताओ सा सुखमय और अथाह खुशियो और आनन्द से भरपूर जीवन की आधारशिला है... *विश्व का राज्य भाग्य इस पवित्रता की धारणा पर ही पा सकते हो..*. इसलिए पावनता से सजधज कर देवताई खुशियो में झूम जाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा को परम् शिक्षक रूप में पाकर अपने मीठे भाग्य पर नाज करते हुए कह रही हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा... देह की मिटटी ने मुझ आत्मा को जो मैला कर दिया... आपने पावनता से उसे धो दिया है... और *वही तेज और ओज देकर मुझ आत्मा को दिव्यता के रंग से निखार दिया है.*..अपने बाबा से ऐसी मीठी रुहरिहानं कर मै आत्मा स्थूल जगत मे लौट आयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- योग में रह विकर्माजीत बन स्वयं को स्वयं ही स्वराज्य तिलक देना*"
➳ _ ➳ इस देह रूपी रथ पर विराजमान मैं आत्मा राजा, मन बुद्धि रूपी घोड़े की लगाम अपने हाथ मे ले कर, कर्मेन्द्रियों को अपने वश में कर जैसे ही स्वराज्य अधिकारी की सीट पर सेट होती हूँ स्वयं को विश्व राज्य अधिकारी के रूप में अनुभव करती हूं। *विश्व महाराजन के रूप में मैं स्वयं को देख रही हूं। सोने की बहुत बड़ी नगरी जिसमे बहुत बड़ा हीरे जवाहरातों से सजा राजमहल। उस राजमहल के विशाल राजदरबार में राजाओ, महाराजाओ की एक विशाल सभा और उस सभा मे एक रत्न जड़ित सिहांसन पर मैं विराजमान हूँ*। राजमुकुट पहना कर, मस्तक पर तिलक लगा कर मेरा राज्यभिषेक किया जा रहा है। तालियों की गड़गड़ाहट और खुशबूदार पुष्पों की वर्षा हो रही है।
➳ _ ➳ विश्व महाराजन बनने का यह खूबसूरत दृश्य मेरे मन को रोमांचित कर रहा है। इस दृश्य का भरपूर आनन्द ले कर अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं आत्मा विचार करती हूं कि विश्व महाराजन बनने के लिए पहले मुझे विकर्माजीत बन स्वयं को स्वयं ही स्वराज्य तिलक देना होगा तभी भविष्य राज्य तिलक पाने की मैं अधिकारी बन सकती हूं। इसलिये *अब मुझे योग में रह विकर्माजीत बनने का तीव्र पुरुषार्थ अवश्य करना है*। विकर्माजीत बनने की मन ही मन स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर मैं आत्मा अपने ऊपर चढ़ी 63 जन्मो के विकर्मों की कट को योग अग्नि में भस्म करने के लिए, इस साकारी देह को छोड़ चल पड़ती हूँ अपने योगेश्वर शिव बाबा के पास परमधाम।
➳ _ ➳ साकारी और सूक्ष्म लोक से परे आत्माओं की निराकारी दुनिया परमधाम में अब मैं स्वयं को अपने योगेश्वर शिव पिता परमात्मा के सम्मुख देख रही हूं। *बुद्धि का योग अपने योगेश्वर बाबा के साथ लगा कर उनसे आ रही सर्वशक्तियों को मैं स्वयं में समा रही हूँ। धीरे धीरे ये शक्तियां जवालस्वरूप धारण करती जा रही है*। ऐसा लग रहा है जैसे एक बहुत बड़ी ज्वाला प्रज्ज्वलित हो उठी हो। अग्नि का एक बहुत बड़ा घेरा मेरे चारों ओर बनता जा रहा है और उस अग्नि की तपिश से मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकर्मों की कट और तमोगुणी संस्कार जल कर भस्म होने लगे हैं। *मैं आत्मा बोझमुक्त हो रही हूं। सच्चा सोना बनती जा रही हूं*। स्वयं को अब मैं एकदम हल्का पापमुक्त अनुभव कर रही हूं। हल्की हो कर अब मैं आत्मा वापिस लौट रही हूं।
➳ _ ➳ साकारी दुनिया मे अपने साकारी शरीर मे विराजमान हो कर अब मैं आत्मा मस्तक पर स्वराज्य तिलक लगाए, स्वराज्य अधिकारी बन, मालिकपन की स्मृति में रह हर कर्म कर रही हूं। *राजा बन रोज कर्मेन्द्रियों रूपी मंत्रियों की राजदरबार लगा, उन्हें उचित निर्देश देने से अब मेरे जीवन रूपी शासन की बागडोर सुचारु रूप से चल रही है*। अब हर कर्मेन्द्रिय मेरे अधीन है और मेरी इच्छानुसार कार्य कर रही है।
➳ _ ➳ पिछले अनेक जन्मों के आसुरी स्वभाव संस्कार जो विकर्म बनाने के निमित बन रहे थे। *वे सभी आसुरी स्वभाव संस्कार कर्मेन्द्रियजीत बनने से परिवर्तन होने लगे हैं*। सहनशीलता का गुण मेरे अंदर विकसित होने लगा है। सहनशील बन हर आत्मा के पार्ट को साक्षी हो कर देखने और उन आत्माओं के प्रति शुभभावना रखने से उनके साथ बने कार्मिक एकाउंट चुकतू होने लगे हैं, *विकर्मों के खाते बन्द हो रहे हैं और मैं सहज ही विकर्माजीत बनती जा रही हूं*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा संकल्प से भी मेरेपन की मैल को समाप्त कर बोझ से हल्का रहती हूँ।"*
➳ _ ➳ मैं और मेरेपन के बोझ रूपी मैल को एक बाप के याद की योग अग्नि में स्वाहा करती मैं आत्मा मेरे को तेरे में बदल रही हूँ... *सच्चे सोने के जेवर रूपी मैं आत्मा अपने स्वभाव... संस्कार को... मेरेपन के मैल को... बापदादा की शिक्षाओं रूपी वर्षा से धो रही हूँ...* परमात्म प्यार की अधिकारी मैं आत्मा ट्रस्टीपन और साक्षीभाव से हर लौकिक कार्य... हर सेवा... को परिपूर्ण कर रही हूँ... *सब बोझ बाप के हवाले कर, मेरेपन के देह अभिमानी रूपी जंजीरो से मुक्त होकर मैं आत्मा उड़ता पंछी बन... पुरुषार्थ में तीव्र गति से उड़ती रहती हूँ और सभी को उड़ाती रहती हूँ*...
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- हर परिस्थिति को फुल पास कर मास्टर सर्वशक्तिवान बनने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सर्वशक्तिवान बाप की संतान मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ... मा. सर्वशक्तिवान का स्वमान मुझ आत्मा को *हर परिस्थिति को पार करने की शक्ति दे रहा है*... अमृतवेले से ही मैं आत्मा बाबा से रूहरिहान कर... बाबा से सर्वशक्तियों का वरदान ले... स्वयं को भरपूर करती जा रही हूँ... *बाबा का वरदानी हाथ मुझ आत्मा पर छत्रछाया बन*... मुझे हर परिस्थिति का सामना करने की शक्ति भरने लगा है... *मैं आत्मा हर परिस्थिति को खेल अनुभव करने लगी हूँ*... बाबा की छत्रछाया में सारी परिस्थितयां सहज समाप्त होती जा रहीं है... बाबा से मिल रही शक्तियों... और गुणों को धारण कर... *समय आने पर उन शक्तियों और गुणों का यूज़ कर* हर परिस्थिति को फुल पास करती मा. सर्वशक्तिवान का अनुभव कर रही हूँ...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ कर्म बन्धन से मुक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए कर्मयोगी बनो:- सदा हर कर्म करते, कर्म के बन्धनों से न्यारे और बाप के प्यारे - ऐसी न्यारी और प्यारी आत्मायें अपने को अनुभव करते हो? कर्मयोगी बन, कर्म करने वाले कभी भी कर्म के बन्धन में नहीं आते हैं, वे सदा बन्धनमुक्त-योगयुक्त होते। *कर्मयोगी कभी अच्छे वा बुरे कर्म करने वाले व्यक्ति के प्रभाव में नहीं आते। ऐसा नहीं कि कोई अच्छा कर्म करने वाला कनेक्शन में आये तो उसकी खुशी में आ जाओ और कोई अच्छा कर्म न करने वाला सम्बन्ध में आये तो गुस्से में आ जाओ - या उसके प्रति ईर्ष्या वा घृणा पैदा हो। यह भी कर्मबन्धन है। कर्मयोगी के आगे कोई कैसा भी आ जाए - स्वयं सदा न्यारा और प्यारा रहेगा।* नॉलेज द्वारा जानेगा, इसका यह पार्ट चल रहा है। घृणा वाले से स्वयं भी घृणा कर ले यह हुआ कर्म का बन्धन। ऐसा कर्म के बन्धन में आने वाला एकरस नहीं रह सकता। कभी किसी रस में होगा कभी किसी रस में। इसलिए अच्छे को अच्छा समझकर साक्षी होकर देखो और बुरे को रहमदिल बन रहम की निगाह से परिवर्तन करने की शुभ भावना से साक्षी हो देखो। इसको कहा जाता है - ‘कर्मबन्धन से न्यारे'।
➳ _ ➳ क्योंकि ज्ञान का अर्थ है समझ। तो समझ किस बात की? कर्म के बन्धनों से मुक्त होने की समझ को ही ज्ञान कहा जाता है। ज्ञानी कभी भी बन्धनों के वश नहीं होंगे। सदा न्यारे। ऐसे नहीं कभी न्यारे बन जाओ तो कभी थोड़ा सा सेक आ जाए। *सदा विककर्माजीत बनने का लक्ष्य रखो। कर्मबन्धन जीत बनना है। यह बहुतकाल का अभ्यास बहुतकाल की प्रालब्ध के निमित्त बनायेगा।* और अभी भी बहुत विचित्र अनुभव करेंगे। तो सदा के न्यारे और सदा के प्यारे बनो। यही बाप समान कर्मबन्धन से मुक्त स्थिति है।
✺ *"ड्रिल :- कर्म बंधनों से मुक्त रहना।"*
➳ _ ➳ इस हलचल भरी सृष्टि पर मैं आत्मा कुछ आत्माओं के बीच बैठकर अपनी बुद्धि से शांतिधाम में स्थित हूं और शांतिधाम की गहन शांति को अपने अंदर अनुभव कर रही हूं.... जैसे-जैसे मैं इस शांति को अपने अंदर फील करती हूं वैसे वैसे मैं अपने आप को बहुत ही हल्का अनुभव करती हूँ... और *शांति धाम में उस लाल सुनहरे प्रकाश में मैं अपने साथ अनेक आत्माओं को भी देखती हूं जो शांति स्वरूप स्थिति में बैठकर अपना प्रकाश उस स्थान पर फैला रही है... और कुछ देर बाद में देखती हूं कि उस स्थान पर मेरे परम पिता परमात्मा ज्योति स्वरूप में विराजमान है और उनसे अनेक रंग बिरंगी किरणे निकल रही है जिसे देख कर मेरा मन अति आनंदित हो रहा है... परमात्मा की शीतल किरणें जैसे जैसे मुझ पर गिरने लगती है मैं बहुत ही आनंदित अवस्था को महसूस करती हूं...*
➳ _ ➳ इसी शांति स्वरूप स्थिति में मैं धीरे-धीरे अपनी कर्मभूमि पर आती हूं और *अपने आप पर शांतिधाम से आती हुई किरणों को अनुभव करती हूं... जिसके कारण मैं उस हलचल भरी दुनिया से अपने आप को दूर रख पाती हूं और यहां के तेज भागते हुए संकल्पों से अपने आप को डिटेच अनुभव करती हूँ...* जैसे जैसे मैं अपने इस स्थिति में स्थित होती हूँ वैसे ही वहां बैठी अन्य आत्माओं को मेरी स्थिति का अनुभव होता है और सभी आत्माएं व्याकुल होते हुए अपनी इस व्याकुलता भरे प्रश्न से मुझे अवगत कराते हुए इसका उत्तर जानने का प्रयास करते हैं... और मुझसे कहती हैं... यहां पर इस हलचल भरी दुनिया में रहते हुए भी तुम इस आनंदित भरी स्थिति का कैसे अनुभव कर पाती हो... क्या तुम्हें यहां की हलचल अपने वश में नहीं करती... तुम्हें यहां की गतिविधियां हलचल में नहीं लाती... जैसे ही यह आत्माएं मुझसे यह पूछती है तो मैं परमात्मा का धन्यवाद करती हूं और उनकी व्याकुलता को समझते हुए उनके सभी प्रश्नों का उत्तर देने के लिए उन्हें कहती हूं... हे आत्माओं अगर हमें इस हलचल भरी दुनिया से अपने आप को शांति भरी दुनिया में अनुभव करना है तो तुम्हें एक दृश्य को समझना होगा... इस दृश्य को देखकर तुम सहज ही अनुभव कर पाओगी कि मैं इस स्थिति का कैसे अनुभव कर पा रही हूं...
➳ _ ➳ कुछ समय बाद मैं उन आत्माओं को ज्योति स्वरुप में ही अपने साथ एक ऐसे स्थान पर ले जाती हूं जहां पर उन्हें अपने सभी प्रश्नों का उत्तर बड़ी ही सरलता से मिल सके... और हम अपना प्रकाश फैलाते हुए एक ऐसे स्थान पर आकर विराजमान हो जाते हैं जहां से हमें कमल कीचड़ में खिलता हुआ साफ साफ नजर आ रहा है... मैं उन आत्माओं से कहती हूं... हे आत्माओं अब आप इस दृश्य को बहुत ही गहराई से देखिए और समझिए... वह आत्माएं एकाग्रचित होकर उस दृश्य को देखती है और मेरे द्वारा कही हुई बातों को ध्यान से सुनने लगती है... मैं उन्हें कहती हूं कि इस कमल को देखिए यह सिर्फ कीचड़ में खिलता है परंतु कीचड़ में रहते हुए भी अपने आप को कीचड़ को छूने भी नहीं देता कीचड़ इसे छू भी नहीं पाती है... अगर यह कीचड़ में खिलकर कीचड़ में ही लिपट जाए तो इसे कोई भी मनुष्य देखेगा भी नहीं... क्योंकि कीचड़ के कारण इसकी सुंदरता और पवित्रता नष्ट हो जाएगी इसलिए *यह कमल अपनी ऊंची स्थिति के लिए अपने आप को कीचड़ में रखते हुए भी इससे दूर अनुभव करता है... इसके इसी गुण के कारण सभी मनुष्य इसकी सुंदरता और पवित्रता को गहराई से अनुभव करते हैं...*
➳ _ ➳ मेरी इतनी बात सुनकर वह सभी आत्माएं संतुष्ट हो जाती है... और उसी समय यह कहती है कि इस कमल की तरह आज से हम भी इस मायावी दुनिया के कर्म बंधनों से अपने आप को दूर रखेंगे... और कहती हैं कि *हम जब भी कोई भी कर्म करेंगे और हमारे सामने कैसे भी संकल्पों वाली आत्माएं आये तो हमें उनके संकल्पों से कोई असर नहीं पड़ेगा और ना ही हम अपनी स्थिति को हलचल में आने देंगे... ऐसा करने पर ही हम हमारी ऊंची इस स्थिति को सहज ही अनुभव कर पाएंगे और प्रभु के प्यारे बन पाएंगे...* इतना कहकर वह सभी आत्माएं वहां से मेरे साथ प्रस्थान करने लगती है... और उसी समय से अपने आप को शांतिधाम में अनुभव करती हैं... रास्ते में चलते समय कई बार ऐसी परिस्थिति आई जिसके कारण हमारी स्थिति में हलचल आ सकती थी... परंतु हमने अपने आपको परमात्म प्यार में अनुभव किया और कर्मयोगी स्थिति का अनुसरण किया... जिससे हमारी स्थिति बनी रहे और हम चलते चलते वापिस अपने इस देह में विराजमान हो जाते हैं...
➳ _ ➳ *और हमारा यह छोटा सा समूह इस दुनिया में रहते हुए भी बहुत ही गहन शांति का अनुभव करती है... जिसे देखकर अन्य आत्माएं बहुत ही आकर्षित और खुश होती हैं और हम सभी अब अन्य आत्माओं के किसी भी कर्म को अपने ऊपर हावी नहीं होने देते और ना ही उनके कोई भी संकल्प हमारी स्थिति को हलचल में ला सकते हैं...* अब हम केवल इस स्थिति का अनुभव करते हैं जैसे कि एक व्यक्ति फांसी पर लटका हुआ हो अर्थात हमारा यह देह इस संसार में दिखाई देगा कर्मयोगी के रूप में और हम मन बुद्धि से शांतिधाम में अपने परमपिता परमात्मा के साथ अपने आप को अनुभव करते हैं... इन्हीं विचारों के साथ और इन्हीं संकल्पों के साथ हम वापस अपने इस देह में रहते हुए अपने आप को शांतिधाम में परमात्मा के साथ अनुभव करते हैं...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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