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❍ 01 / 07 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *कलयुगी पतित संबंधो से बुधीयोग हटाया ?*
➢➢ *इस पुरानी दुनिया से बेहद का वैराग्य रखा ?*
➢➢ *"हम सारे विश्व में लक्कीएस्ट बच्चे हैं" - इसी नशे में रहे ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *परखने की शक्ति द्वारा कुसंद व व्यर्थ संग से दूर रह शक्तिशाली स्थिति का अनुभव किया ?*
➢➢ *बालक और मालिकपन का बैलेंस रख सदा हलकेपन का अनुभव किया ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *याद में रह कर्म करते हुए हर कर्म को एक खेल बनाया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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➳ _ ➳ अभी वर्णन सब करते योग अर्थात याद, योग अर्थात कनेक्शन। लेकिन *कनेक्शन का प्रैक्टिकल रूप, प्रमाण क्या है, प्राप्ति क्या है, उसकी महीन में जाओ।* मोटे रूप में नहीं, लेकिन रूहानियत की गुह्यता में जाओ। तब फरिश्ता रूप प्रत्यक्ष होगा। *'प्रत्यक्षता का साधन ही है स्वयं में पहले सर्व अनुभव प्रत्यक्ष हो'।* जैसे विदेश की सेवा में भी रिजल्ट क्या सुनी? प्रभाव किसका पड़ता? दृष्टि का और रूहानियत की शक्ति का, चाहे भाषा ना समझे लेकिन जो छाप लगती है वह फरिश्ते-पन की, सूरत और नयनों द्वारा रूहानी दृष्टि की। रिजल्ट में यही देखा ना। तो अन्त में न समय होगा, न इतनी शक्ति होगी। चलते-चलते बोलने की शक्ति भी कम होती जाएगी। लेकिन *जो वाणी कर्म करती है उससे कई गुणा अधिक रूहानियत की शक्ति कार्य कर सकती है।* जैसे वाणी में आने का अभ्यास हो गया है, वैसे रूहानियत का अभ्यास हो जाएगा तो वाणी में आने का दिल नहीं होगा।
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सवेरे उठ बाप की याद से बेड़ा पार"*
➳ _ ➳ मीठे बाबा के प्यार की गहराइयो में डूबी हुई मै आत्मा एक गीत गुनगुना रही थी... कि मेरी बुद्धि के तार को मीठे बाबा ने वतन में खींच लिया... अपनी सूक्ष्म काया में वतन पहुंची तो मीठे बाबा भी *आ चल के तुझे मै लेके चलूँ एक ऐसे गगन के तले.*.. गीत गुनगुनाते हुए बाहें पसारे... मुझे गले लगाने को मेरे करीब आ गए... अपने आराध्य को यूँ अपने प्रेम में मन्त्रमुग्ध देख मेरी ख़ुशी का पारावार न रहा...
❉ मीठे प्यारे बाबा मुझ आत्मा के सुखो के चिंतन में मगन होकर कहने लगे :- मीठे फूल बच्चे... जनमो की प्यास के बाद जो ईश्वर पिता का साथ पाया है... उस साथ भरे पलों को 21 जनमो के स्थायी सुखो में बदल दो... सवेरे सवेरे उठकर इन मीठी यादो से अपना दामन इस कदर भर दो... कि यह आनन्द भरे पल, सतयुगी सुखो की बहार बन जाएँ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने भगवान को पिता रूप में देख देख अति आनन्दित हो रही हूँ और कह रही हूँ :- "ओ मीठे दुलारे मेरे बाबा... कब सोचा था मीठे बाबा कि भाग्य यूँ अनन्त ऊंचाइयों पर मुझे बिठाएगा... *ईश्वर पिता ही मेरा सच्चा साथी बनकर सदा का साथ निभायेगा..*. अपनी श्रीमत की डोरी से मुझे सुखो कि ऊँची डगर तक खींच ले जायेगा..."
❉ प्राणप्रिय बाबा मुझ आत्मा को अतुलनीय धन सम्पदा का मालिक बनाते हुए कहने लगे :- "मीठे लाडले बच्चे... सुबह के शांत लम्हों में, *खुबसूरत यादो के मौसम में, मन के सच्चे मीत मीठे बाबा से मिलन मनाओ.*.. और यूँ यादो में खोये खोये कब दुःख के सागर से निकल चलोगे पता ही न चलेगा... यह यादे ही सुख नगरी में शानोशौकत से स्वागत करेंगी..."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने भाग्य पर इठलाती हुई झूम उठी... और मीठे बाबा से कहा :- "मेरे प्यारे बाबा... जब से आपको जाना है, पहचाना है, आप रोम रोम में समाये हो... मै आत्मा सच्चे मीत को पाकर धन्य धन्य हो गयी हूँ... झूठ के नातो से बाहर निकल कर... *आपके आगोश में डूबीे, सच्चे प्रेम की शीतल छाया में पुनः खिल उठी हूँ..*.
❉ मुझ आत्मा के दिली जज्बात सुनकर प्यारे बाबा मुस्कान से भर गए... और वरदानी दृष्टि से मुझे भरपूर करते हुए बोले :- " सिकीलधे प्यारे बच्चे... खुबसूरत भाग्य ने जो यूँ सहज ही सच्चे सतगुरु से मिलवाया है... उस भाग्य पर बलिहार हो जाओ... और इस कदर ईश्वरीय यादो में दीवाने हो जाओ... कि स्वर्ग के असीम सुख कदमो में स्वागत को बिखरे हो... *सवेरे के खुबसूरत पलों में यादो के आलम में खो जाओ.*.."
➳ _ ➳ मै आत्मा ईश्वर पिता की अपने उज्ज्वल भविष्य के चिंतन में डूबे देख कहती हूँ :- "प्यारे बाबा मेरे... आप जीवन में न थे तो कितना तन्हा, कितना सूना और वीरान सा जीवन था... आप आये हो तो खुशनुमा बहार आई है... जीवन रौनक से भर गया है... दिल सदा *बाबा ओ मेरे मीठे बाबा* का ही गीत गाता है... *यादो में डूबा हुआ मन हर पल आपको ही पुकारता है.*.." अपने दिल के भाव सारे भाव मीठे बाबा को सुनाकर मै आत्मा अपने ठिकाने पर लौट आई..."
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- एक बाप से सच्चा सच्चा लव रख बाप समान फ्राकदिल बनना*"
➳ _ ➳ अपने गिरधर गोपाल शिव बाबा के प्रेम की लगन में मगन मैं आत्मा रूपी गोपी, मन को सुकून देने वाली अपने कान्हा की मीठी मीठी यादों में खोई हुई, स्वयं को इस संसार के शोरगुल से दूर एक छोटे से सुंदर से टापू पर देख रही हूं। *चारों और पहाड़ियों से घिरा यह छोटा सा स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है*। तन और मन दोनों तरफ से बिल्कुल शांत चित्त स्थिति में स्थित होकर मैं प्रकृति की इस अद्भुत छटा का आनंद ले रही हूं। *प्रकृति के इस अद्भुत सौंदर्य का आनन्द लेते लेते मैं अपनी आंखें बंद कर अपने गिरधर गोपाल अपने मीठे शिव बाबा को याद करती हूँ* तभी कानों में बांसुरी की मधुर आवाज सुनाई देने लगती है और मैं मंत्रमुग्ध होकर उस आवाज को सुनने लगती हूं।
➳ _ ➳ बांसुरी की मधुर आवाज के साथ साथ एक बहुत ही सुंदर नजारा मुझे दिखाई देता है। मैं देख रही हूँ मेरे शिव बाबा, मेरे नटखट गिरधर गोपाल सामने खड़े बांसुरी बजा रहे हैं और बांसुरी की मधुर आवाज को सुनकर गोपियां दौड़ी दौड़ी चली आ रही है। *नटखट कान्हा गोपियों के संग रास रचा रहे हैं*। एक अद्भुत दृश्य मैं देख रही हूँ कि बांसुरी की मधुर आवाज से बेसुध होकर कोई गोपी मुस्करा रही है, कोई जोर - जोर से हंस रही है और कोई अपने कान्हा के प्रेम में डूबी आंसू बहा रही है। एकाएक गिरधर गोपाल का स्वरूप बापदादा के लाइट माइट स्वरूप में परिवर्तित हो जाता है।
➳ _ ➳ अब मैं देख रही हूं कान्हा के प्रेम में डूबी उन सभी गोपियों को लाइट के फ़रिशता स्वरुप में बाप-दादा के सामने बैठे हुए। *बापदादा मधुर महावाक्य उच्चारण कर रहे हैं और सभी फरिश्ते मंत्रमुग्ध होकर बाबा की वाणी को सुन रहे हैं*। कुछ बाबा के प्रेम में मगन होकर आंसू बहा रहे हैं और कोई पूरी तरह से बाबा के प्रेम में डूबे हुए हैं।
➳ _ ➳ मन को लुभाने वाले इस दृश्य को देख कर मैं सोचती हूं कि भक्ति में जो गायन है कि कान्हा जब मुरली बजाता था तो गोपियां अपनी सुध-बुध खो कर दौड़ी चली आती थी। वास्तव में यह गायन तो इस समय का है जो मैं मन बुद्धि रूपी दिव्य नेत्रो से इस समय देख रही हूं कि *शिव बाबा जब ब्रह्मा तन में आकर मुरली चलाते हैं तो ब्राह्मण आत्माएं रुपी गोपिकाएं कैसे अपने कान्हा अपने शिव बाबा के प्रेम में मग्न हो कर अपनी सुध बुध खो देती है*।
➳ _ ➳ इस खूबसूरत नजारे को देख अपने गिरधर गोपाल से मिलने की तड़प और तीव्र हो जाती है और मैं आत्मा गोपी इस नश्वर देह को छोड़ अपने गिरधर गोपाल से मिलने चल पड़ती हूँ उनके धाम। आवाज की दुनिया से पार, पांचो तत्वों से भी पार, मैं पहुँच जाती हूँ गोल्डन प्रकाश से परिपूर्ण, संपूर्ण शांति से भरपूर अपने निजधाम में । *यहां मैं पूर्ण शांत और आनन्दमय स्थिति का अनुभव कर रही हूँ । मेरे सामने हैं सर्व सुखों के दाता, आनन्द के सागर मेरे गिरधर गोपाल मेरे प्यारे परम पिता परमात्मा*। उनको देखते ही मेरा रोम रोम जैसे खिल उठा है। मेरी ख़ुशी का कोई पारावार नही है। मन में एक ही गीत बज रहा है "पाना था सो पा लिया"।
➳ _ ➳ अपने शिव प्रीतम के प्रति अपने असीम प्रेम के उदगार को अपने मन में उठ रहे संकल्पो के माध्यम से मैं उनके सामने प्रकट कर रही हूँ। हे मेरे प्राणेश्वर, मेरे नाथ जन्म -जन्म से मैं आपको याद कर रही थी। आखिर मैं आपके पास पहुँच ही गई। *आपसे मिल कर मेरे जन्म-जन्म के कष्ट मिट गये*। सर्व दुखों से परे आपके पावन प्रेम की शीतल छाया को पाकर मैं धन्य-धन्य हो गई हूँ। आपको पाकर मैंने सब कुछ पा लिया मेरे स्वामी।
➳ _ ➳ मेरे प्यार का प्रतिफल मेरे प्राणेश्वर शिव बाबा के प्यार की शक्तिशाली किरणों के रूप में अब मुझ पर बरस रहा है जो मुझे आनन्द विभोर कर रहा है। अपने गिरधर गोपाल से असीम प्रेम पा कर अब मैं धीरे - धीरे परमधाम से नीचे आ रही हूँ और प्रवेश कर रही हूँ अपनी साकारी देह में। *मेरा मन अब परम आनन्द से भरपूर है। मेरा जीवन ईश्वरीय प्रेम से भर गया है। अब मुझे बाप समान फ्राकदिल बन सर्व आत्माओं को इस परमात्म सुख, परमात्म प्रेम का अनुभव करवाना है* और सबको परमात्म वर्से का अधिकारी बनाना है । यही मेरा अब इस साकार सृष्टि पर कर्तव्य रह गया है ।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा परखने की शक्ति द्वारा कुसंग व व्यर्थ संग से दूर रहती हूँ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा कुसंग व व्यर्थ संग से प्रभावित नहीं होती हूँ... मैं आत्मा सदा बापदादा की शिक्षा को धारण कर न व्यर्थ सुनती हूँ... न व्यर्थ बोलती हूँ... न व्यर्थ करती हूँ... न व्यर्थ देखती हूँ... न व्यर्थ सोचती हूँ... मैं आत्मा व्यर्थ बातों की रमणीकता और बाहरी आकर्षण में नहीं पड़ती हूँ... *मैं आत्मा परखने की शक्ति द्वारा खराब वा व्यर्थ संग को पहले से ही परखकर परिवर्तन कर देती हूँ... मैं ऐसी शक्तिशाली आत्मा हूँ जो बाप के सिवाए और कोई भी संग का रंग मुझे प्रभावित नहीं करता है...*
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बालक और मालिकपन का बैलेन्स कर सदा हल्केपन का अनुभव करना"*
➳ _ ➳ मैं इस संगमयुग पर परमात्म पालना में पलने वाली ईश्वरीय संतान हूँ... मीठे बाबा की मीठी सिकीलधी बच्ची हूँ... अपने बाप से पूरा-पूरा वर्सा अधिकार लेने वाली आत्मा हूँ... कल्प-कल्प की अधिकारी आत्मा हूँ... *मैं कर्मेन्द्रियों से कर्म कराने वाली करावनहार आत्मा मालिक हूँ...* एक बाप की याद में रहने वाली बालक हूँ... अपने परमपिता परमात्मा के सर्व खजानों, गुणों, शक्तियों की अधिकारी हूँ... मैं आत्मा बस *एक की लगन में मगन हूँ बस मैं और मेरा बाबा...* मैं आत्मा बालक सो मालिकपन का बैलेन्स रख हर कर्मेन्द्रिय को आर्डर प्रमाण चलाने वाली सदा हल्केपन का अनुभव कर रही हूँ...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा-:
➳ _ ➳ कोई भी कार्य करते बाप की याद में लवलीन रहो। लवलीन आत्मा कर्म करते भी न्यारी रहेगी। *कर्मयोगी अर्थात् याद में रहते हुए कर्म करने वाला सदा कर्मबन्धन मुक्त रहता है। ऐसे अनुभव होगा जैसे काम नहीं कर रहे हैं लेकिन खेल कर रहे हैं। किसी भी प्रकार का बोझ वा थकावट महसूस नहीं होगी।* तो कर्मयोगी अर्थात् कर्म को खेल की रीति से न्यारे होकर करने वाला। ऐसे न्यारे बच्चे कर्मेंन्द्रियों द्वारा कार्य करते बाप के प्यार में लवलीन रहने के कारण बन्धनमुक्त बन जाते हैं।
✺ *"ड्रिल :- याद में रह हर कर्म करते हुए कर्म को एक खेल बनाना"*
➳ _ ➳. दूर एकांत स्थान पर बैठकर *मैं आत्मा एक ऐसी आत्मा को देखती हूं... जो अपने सिर पर एक भारी सी गठरी लिए हुए चल रही है... वह अपने शरीर से और उस गठरी से अपने आपको इतना थका हुआ अनुभव कर रही है कि वह एक कदम भी सही तरह चल नहीं पा रही है...* उसे देख कर मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि मानो वह बहुत ही थकान से भरी हुई है... और एक तरफ मैं देखती हूं कि एक आत्मा अपने आनंद से चली जा रही है वह बहुत ही तेजी से और अपने ही धुन में चली जा रही है... जब मैं दूर बैठी उन दोनों आत्माओं को ध्यान से देखती हूं तो मुझे दोनों ही आत्माओं में अलग-अलग भाव दिखाई देता है...
➳ _ ➳ मैं उन आत्माओं के पास जाती हूं और जिस आत्मा ने अपने ऊपर एक भारी गठरी रखी हुई थी उससे पूछती हूं ? तुम इतनी थकान में और इस गठरी के बोझ से प्रभावित होकर कहां जा रही हो? तो वह आत्मा कहती है कि मैं अपने कर्म-क्षेत्र पर अपना कर्म कर रही हूं जिससे मुझे थकान का अनुभव हो रहा है... *मेरे कर्तव्य का बोझ और सेवा का बोझ मुझ पर इतना हो गया है कि मैं चल भी नहीं पा रही हूं और कहती हूँ परंतु मैं कितना भी थकान का अनुभव करूँ मुझे चलते जाना है... मुझे सेवा करते रहनी है* और मैं उस आत्मा को उसी स्थान पर रुकने के लिए कहती हूं और वह आत्मा अपने गठरी को नीचे रखती है और बैठ जाती है...
➳ _ ➳ और मैं दूसरी आत्मा को जो मगन अवस्था में तेजी से चल रही थी उसे अपने पास बुलाती हूँ और पूछती हूं... तुम इतनी तेजी से और मगन अवस्था में कहां जा रहे हो ? तो वह आत्मा मुझे कहती है कि मैं परमात्मा की याद में अपना कर्तव्य और सेवा करती हुई जा रही हूं... फिर मैं उन दोनों आत्माओं को एक स्थान पर बैठा कर उनका अनुभव सुनकर उन्हें एहसास दिलाती हूं कि *अगर हम किसी भी सेवा को परमात्मा की याद में रहकर करते हैं तो हमें उस सेवा को करते समय कोई भी थकावट नहीं होगी... वह सेवा कब पूरी हो जाएगी हमें एहसास भी नहीं होगा और वह सेवा हम खेल खेल में ही पूर्ण कर देंगे...*
➳ _ ➳ इतना कहकर मैं आत्मा रॉकेट बनकर अंतरिक्ष में पहुंच जाती हूं... जहां पर एक ग्रह के ऊपर मैं बाबा को अपने सामने इमर्ज करती हूँ... यह नजारा देख कर मेरी आंखें बहुत ही सुख का अनुभव कर रही है... और बाबा मुझे कह रहे हैं, *बच्चे तुम्हे भी हर कर्म को परमात्मा की याद मे रहकर ही करना चाहिए... और हर कर्म को खेल समझकर करना चाहिए... जिससे तुम कब, कितना काम कर जाओगे तुम्हे अहसास भी नहीं होगा...* और साथ ही उन दोनों आत्माओं का उदाहरण भी देते हैं कि अगर हम हमारा सारा बोझ परमात्मा को दे देते हैं तो हमें उसकी याद में थकावट का अनुभव नहीं होगा...
➳ _ ➳ और बाबा की बातों को सुनकर मैं बाबा का धन्यवाद करती हूँ... और मन बुद्धि से रॉकेट में बैठकर वापिस मैं उसी स्थान पर आ जाती हूँ और उन दोनों आत्माओं को कहती हूँ... जो आत्मा गठरी उठाये थी उसे कहती हूँ, आप इस अपनी गठरी को एक खेल की प्रक्रिया समझते हुए उठाये और बाबा की याद में रहिये... जैसे *आप समझो की इस पोटली में बाबा के दिए हुए अनमोल खजाने है... जिसको स्वयं बाबा उठा रहे हैं आप तो सिर्फ निमित्त मात्र है... और साथ ही मैने कहा कि तुम इस खजानों की पोटली को लेकर भागते हुए ये अनुभव करो की तुम्हें पुरुषार्थ की दौड़ में इन खजानों से नंबर वन आना है... वह आत्मा फिर तेजी से और याद में मगन होकर चलने लगती है...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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