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 02 / 11 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*5=25)

 

➢➢ *माया के विघनो की परवाह तो नहीं की ?*

 

➢➢ *आत्माओं पर ज्ञान के छींटे डाल शीतल बनाने की सेवा की ?*

 

➢➢ *बाप समान दुःख हरता, सुख कर्ता बनकर रहे ?*

 

➢➢ *चारों और की हलचल के समय अव्यक्त व अशरीरी स्थिति का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *अलबेलेपन के लूज़ स्क्रू को टाइट किया ?*

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         ❂ *तपस्वी जीवन प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं*

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〰✧  *ब्रह्मा बाप से प्यार है तो प्यार की निशानियां प्रैक्टिकल में दिखानी है।* जैसे ब्रह्मा बाप का नम्बरवन प्यार मुरली से रहा जिससे मुरलीधर बना। तो जिससे ब्रह्मा बाप का प्यार था और अभी भी है उससे सदा प्यार दिखाई दे। *हर मुरली को बहुत प्यार से पढ़कर उसका स्वरूप बनना है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाये ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  सदा अपने को जैसे बाप न्यारा और प्यारा है, ऐसे न्यारे और प्यारे अनुभव करते हो? बाप सबका प्यारा क्यों है? क्योंकि न्यारा है। *जितना न्यारा बनते हैं उतना सर्व का प्यारा बनते हैं।* न्यारा किससे? पहले अपनी देह की स्मृति से न्यारा।

 

✧  जितना देह की स्मृति से न्यारा होगे उतने बाप के भी प्यारे और सर्व के भी प्यारे होंगे। क्योंकि न्यारा अर्थात आत्मा-अभिमानी। जब बीच में देह का भान आता है तो प्यारा-पन खत्म हो जाता है।

 इसलिए *बाप समान सदा न्यारे और सर्व के प्यारे बनो, आत्मा रूप में किसको भी देखेंगे तो रूहानी प्यार पैदा होगा ना।*

 

✧  और देहभान से देखेंगे तो व्यक्त भाव होने के कारण अनेक भाव उत्पन्न होंगे - कभी अच्छा होगा, कभी बुरा होगा। लेकिन *आत्मिक भाव में, आत्मिक दृष्टि में, आत्मिक वृति में रहने वाला जिसके भी सम्बन्ध में आयेगा अति प्यारा लगेगा।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:- 15)

 

➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  याद में रहने का पुरुषार्थ करना"*

 

➳ _ ➳  *मैं आत्मा बाबा के कमरे में बाबा के फोटो को निहारती हुई स्वचिन्तन करती हूँ... अपने भाग्य को देख रही हूँ... मैं कोटों में कोईकोई में भी कोई आत्मा हूँ...* जो भगवान ने मुझे चुनकर अपना बनाया... इतना लाड प्यार देकर... शिक्षाएं देकर मेरा भाग्य बना रहे हैं... स्वर्ग की बादशाही सौगात में लेकर आएं हैं... ऐसे प्यारे ते प्यारे बाबा को प्यार से पुकारती हूँ... तुरंत बाबा सम्मुख हाजिर हो जाते हैं...  

 

❉   प्यारे बाबा मुझे देख मुस्कुराते हुए कहते हैं:- मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय प्यार में सांसो को डुबो दो... *हर लम्हा यादो से रंग दो... ईश्वर पिता को नये नये तरीको से प्यार करो... अपनी यादो का चार्ट भी रखो...* जितना अथक बन यादो में गहरे डूबोगे उतना ही गहरा प्यार का प्रतिफल भी पाओगे... बाप को याद करने की भिन्न भिन्न युक्तियाँ रचो पुरुषार्थ का चार्ट रखो थको नही तूफानों में अडोल रहो"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा एकटक बाबा को निहारते हुए कहती हूँ:- *हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा मै आत्मा अब तक झूठे नातो को याद किया करती थी अब विश्व पिता को यादकर जीवन को महान भाग्य में रंग रही हूँ...* हर पल अचल अडोल होकर मीठी मीठी यादो में डूबी हूँ...

 

❉   मीठे बाबा सच्ची कमाई का रहस्य समझाते हुए कहते हैं:- मीठे प्यारे लाडले बच्चे... यह ईश्वर पिता के साथ का समय कितना खुबसूरत है जितना चाहो उतना महान भाग्य बाँहों में भर लो... तो इस महान समय का पूरा फायदा उठाओ... *हर सेकण्ड सच्ची कमाई में लगाओ... अथक बन यादो का चार्ट प्यारे बाबा को रोज थमाओ... और विजयी बन मुस्कराओ...*"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपने भाग्य पर नाज करती हुई कहती हूँ:- *मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ कहाँ कब मैंने ऐसा सोचा था... की भगवान यूँ मिल जायेगा और मेरा सोया सा भाग्य जगायेगा...* मेरे मटमैलेपन को अपने मीठे प्यार में धोकर यूँ उजला बना दमकायेगा...

 

❉   प्यारे बाबा मीठी दृष्टि देते हुए कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... इस वरदानी ईश्वर पिता के साथ के समय को हर साँस में समाओ... हर पल यादो में भीग जाओ... *मन को नयी युक्तियों से रिझाकर ईश्वरीय यादो में लगाओ और सच्ची कमाई को दामन में सजाओ...* ईश्वर पिता के साथ की ऊँगली पकड़कर हर तूफान को तिनका बना दो...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा बाबा के प्यार में मगन होकर कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... आप भगवान होकर मेरी फ़िक्र में खपे है तो मै आत्मा भी सचेत बन सच्ची कमाई में जुटी हूँ... *आपकी मीठी यादो में गहरा सच्चा सुख पाकर सदा की आनन्दित हो रही हूँ... और विघ्नो में विजयी बन मुस्करा रही हूँ...”*

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सभी पर ज्ञान के छींटे डाल शीतल बनाने की सेवा करनी है*"

 

➳ _ ➳  ज्ञानसूर्य शिव बाबा के सामने मैं आत्मा परमधाम में ज्ञान की शीतल रिमझिम का गहन आनन्द ले रही हूँ। *ज्ञान के सागर मेरे शिव पिता ज्ञान की रंग बिरंगी किरणे रंग बिरंगे मोतियों के रूप में मुझ आत्मा पर बिखेर रहें हैं*। पानी के बुलबुलों की भांति ये रंग बिरंगे ज्ञान के मोती मुझ निराकार चमकते हुए सितारे को टच करते ही फूट कर मीठी मीठी फ़ुहारों के रूप में मुझ पर बरसने लगते हैं और मुझे गहन शीतलता की अनुभूति से सरोबार कर देते हैं। *ज्ञान की शीतल लहरों की शीतलता की अनुभूति में खोई मैं आत्मा चात्रक बन अपने शिव पिता को निहार रही हूँ*।

 

➳ _ ➳  मेरे शिव पिता का यह मनोहारी स्वरूप मन को असीम आनन्द से भरपूर कर रहा है। *उनके पास जा कर, उनकी शीतल लहरों में समा कर, उनके समान बनने का संकल्प मन के लिए मैं आत्मा अब धीरे - धीरे उनकी ओर बढ़ रही हूँ*। उनके अति समीप जा कर उन्हें टच करते ही ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे शीतलता का कोई झरना बह रहा है और उसकी अनन्त धारायें बहुत तीव्र गति से मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं। *मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की मैल उन तेज धाराओं के बहाव से उतर रही है और मेरा स्वरूप बहुत ही चमकदार होता चला जा रहा है*।

 

➳ _ ➳  63 जन्म विकारो की अग्नि में जलने की तपन, मेरे ज्ञानसूर्य शिव बाबा के ज्ञान की शीतल किरणों की शीतलता को पा कर अब शांन्त हो रही है। *अपने शिव पिता के ज्ञान की शीतल किरणों के स्पर्श से मैं आत्मा शीतल बन कर अब सूक्ष्म लोक की ओर चल पड़ती हूँ*। यहां पहुंच कर मैं अपना लाइट का सूक्ष्म आकारी शरीर धारण कर लेती हूँ और अपने चमकते हुए फ़रिशता स्वरुप में बापदादा के पास पहुँचती हूँ। मुझे देखते ही बापदादा अधरों पर एक दिव्य मुस्कराहट लिए मेरा स्वागत करने के लिए अपनी बाहें फैला लेते हैं।

 

➳ _ ➳  बापदादा की दिव्य मुस्कराहट मुझे अपनी और आकर्षित करने लगती है और मैं दौड़ कर बाबा की बाहों में समा जाती हूँ। *बाबा की बाहों में समा कर बाबा के प्रेम का गहराई तक अनुभव करने के बाद, अब मैं बाबा का हाथ थामे बाबा के घुटनो में अपना सिर रख कर बैठ जाती हूँ*। बाबा का एक हाथ मेरे हाथ मे और दूसरा हाथ वरदानी मुद्रा में मेरे सिर के ऊपर स्थित है। बाबा अपनी सर्वशक्तियाँ मुझे विल कर रहें हैं और साथ साथ वरदानों से मुझे भरपूर कर रहें हैं। *अपनी सर्वशक्तियाँ और वरदानों से मुझे भरपूर करके अब बाबा मुझे अपने सामने बिठा कर अपनी मीठी दृष्टि से मुझे निहाल कर रहें हैं*।

 

➳ _ ➳  बाबा की भृकुटि से ज्ञान की शीतल धारा निकल कर सीधे मुझ आत्मा में समा रही है। ज्ञान की रूहानी मस्ती में मैं सहज ही डूबती जा रही हूँ। *ऐसा लग रहा है जैसे ज्ञान की बूंदों की हल्की - हल्की बरसात हो रही है जिसमे मैं पूरी तरह भीगती जा रही हूँ*। ज्ञान की यह शीतल फुहारें रंग बिरंगी रश्मियों के रूप में मेरी प्रकाश की सूक्ष्म काया से निकल कर चारों और बिखर रही है। ज्ञान की शीतल किरणों से चंहु ओर शीतलता फैलाने वाला शीतलता का फ़रिशता बन अब मैं सूक्ष्म लोक से नीचे साकार लोक की ओर चल पड़ता हूँ।

 

➳ _ ➳  पूरे साकार लोक का भ्रमण करते हुए मैं ज्ञान की शीतल किरणे चारों ओर बिखेर रहा हूँ। विकारो की अग्नि में जल रही आत्माओ के पास जा कर, उन पर ज्ञान के छींटे डाल, उन्हें विकारो की तपन से छुड़ा कर उन्हें शीतल बना रहा हूँ। *विकारों की अग्नि में जल रही आत्मायें शीतलता का अनुभव करके अति प्रसन्न हो रही है और स्वयं ही विकारो को छोड़ती जा रही हैं*। सबको विकारो की दलदल से निकाल उन्हें ज्ञान के शीतल मार्ग पर लाने की सेवा ही मेरे जीवन का उद्देश्य है, और इस उद्देश्य को कभी अपने फ़रिशता स्वरूप द्वारा और कभी अपने ब्राह्मण स्वरूप के द्वारा अब मैं निरन्तर कर रही हूँ।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं चारों ओर की हलचल के समय अव्यक्त स्थिति वा अशरीरी बनने के अभ्यास द्वारा विजयी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को स्वमान में स्थित करने का विशेष योग अभ्यास किया ?

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अलबेलेपन के लूज़ स्क्रू को टाइट करने वाली तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ स्मृतियों में टिकाये रखने का विशेष योग अभ्यास किया ?

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳ *कुछ भी होबाप साथ हैमूंझने की क्या बात है। कनफ्यूज़ होने की क्या बात है। बाप के साथ का सहयोग लो, अकेले समझते हो तो मौज के बजाए मूंझ जाते हो।* तो मूंझना नहीं। ठीक है ना? अभी भी मूंझेंगे। (नहीं) अभी नहीं मूंझ रहे होमौज में हो इसलिए कहते हो कि नहीं मूंझेंगे! *कुछ भी हो जाए लेकिन मौज नहीं जाए।* ठीक है ना या मौज चली जायेगी? मौज नहीं जानी चाहिए। *सेवा का बल है तो उस बल को कार्य में लगाओ। सिर्फ सेवा नहीं करो लेकिन सेवा का बल जो बाप से मिलता हैउसको काम में लगाओ।* सिर्फ सेवा कर रहे हैंसेवा कर रहे हैं तो थक जाते होमूंझ भी जाते हो लेकिन बाप के साथ का अनुभव *जहाँ बाप है वहाँ मौज ही मौज है। तो साथ को इमर्ज करो, सुनाया ना - याद करते हो लेकिन साथ को यूज नहीं करते, इसीलिए मूंझ जाते हो*।

 

 _ ➳  संगमयुग मौजों का युग है या मूंझने का युग हैमौज का है तो फिर मूंझते क्यों हो? *अभी अपने जीवन की डिक्शनरी से मूंझना शब्द निकाल दो।* निकाल लियापक्का। या थोड़ा-थोड़ा दिखाई देगाएकदम मिटा दो। *परमात्मा के बच्चे और मौज में नहीं रहे तो और कौन रहेगा* और कोई है क्यातो सदा मौज ही मौज है। सभी अपनी ड्युटी पर खुश होया थोड़ा-थोड़ा ड्युटी में खिटखिट है? *कुछ भी हो जाएयह पेपर पास करना है। बात नहीं हैपेपर है। तो पेपर पास करने में खुशी होती है ना। क्लास आगे बढ़ते हैं ना! तो बात हो गईसमस्या आ गई यह नहीं सोचो। पेपर आया पास हुआ, मौज मनाओ।* जब बच्चे पेपर पास करके आते हैं तो कितने मौज में होते हैंमूंझते हैं क्या! *यह पेपर तो आयेंगे। पेपर ही अनुभव में आगे बढ़ाते हैंइसलिए सदा मौज में रहने वाले। सेवाधारी नहीं लेकिन मौज में रहने वाले। सदा यह अपना टाइटल याद करो।*

 

✺   *ड्रिल :-  "बाप के साथ से मूंझना शब्द डिक्शनरी से निकाल देना"*

 

 _ ➳  संगमयुग पर मैं ब्राह्मण आत्मा... अपने भाग्य को देख देख हर्षित हो रही हूं... *वाह वाह रे आत्मा* इसी नशे इसी मस्ती में अपने मन मंदिर में बाबा को देखती हूं... *मन मग्न अवस्था में दिलाराम बाबा के हाथों में हाथ दे रूहानी मस्ती में हूं और गा रही हूं:- "मेरे बाबा हैं साथ मेरे बाबा हैं साथ..."*

 

 _ ➳  *तभी देखती हूं कि कुछ ब्राह्मण आत्मायें कन्फ्यूज हैं... "ये ऐसा क्यों, कैसे" से झूझ रही हैं... इसीलिए उदास हैं... माया के द्वारा बार बार कई तरह के पेपर आ रहे हैं...* परिस्थितियों के पहाड़ सामने खड़े हैं, वो उन्हें पार करने की कोशिश कर रही हैं, पर उन्हें पार नहीं कर पा रही... अपने ही बुने तानेबाने में उलझती जा रही हैं, मूँझ रही हैं... उनका यह हाल देख *मैं आत्मा उनके पास जाती हूं... और बाबा के महावाक्यों का गुँजन कर उन्हें समझाती हूँ:- "सब को ड्रामा समझ कर देखो तो पार हो जाएंगे, क्यों मूँझते हो...? ये तो पेपर हैं... जिन्हें पास करना बाबा के बच्चों के बाएं हाथ का खेल है... परमात्मा के बच्चे और उदास...? ये तो मौज में रहने के दिन है..."* पर मेरा गुंजन किसी को सुनाई नहीं दे रहा...

 

 _ ➳  *मैं आत्मा अपनी पूरी कोशिश कर रही हूं... ये क्या हो रहा है ? इनकी तकलीफ दूर क्यों नहीं हो रही...* ये सब मुझे सुन क्यों नहीं पा रहे...? तभी एकाएक एक लाइट सी कौंधती है... मुझमें जैसे एक स्पार्क सा होता है... ये मैं क्या कर रही हूं ! बाबा को बिना साथ लिए मैं सेवा करने चली थी... ना बाबा को साथ लिया, ना याद का, ना सेवा का बल भरा... *दिल से अपने दिलाराम बाबा को याद कर उनसे अपनी इस भूल के लिये माफ़ी मांगती हूं और देखती हूँ अब सबको मेरा रूहानी गुँजन सुनाई दे रहा है... बाबा को साथ ले मैं उड़ती पतंग बन उड़ने लगती हूं... अब मैं आत्मा नाचती, गाती, झूमती आकाश में उड़ सबको हिम्मत की, आशा की किरणें दे बल भर रही हूं... बाबा- अब से हम सब आत्माओं की डिक्शनरी में ये मूँझना शब्द नहीं होगा...* कभी नहीं होगा... कभी भी नहीं होगा...

 

 _ ➳  *अब सब आत्मायें बाबा को अंग संग ले खुशी खुशी मौज मस्ती में, ऊंची नीची बातों को खिटपिट को हँसते हँसते सहन कर रही हैं... और साथ साथ गुनगुना भी रही हैं:- "मेरे बाबा हैं साथ मेरे बाबा हैं साथ"* मुझ आत्मा संग सभी मेरे आत्मा भाई भी इस रूहानी मस्ती में रंग गए हैं... अब सभी आत्मायें किसी भी पेपर में मूँझ नहीं रहीं हैं... *परमात्म बल से स्वयं को भर अपने अगले पेपर की तैयारी कर रही हैं... और गा रही हैं:- "हंसते हंसते कट जाएं रस्ते, खुशी मिले या ग़म बदलेंगे ना हम दुनिया चाहे बदलती रहे...*"

 

 _ ➳  *कितना प्यारा है ये अनुभव... सभी आत्मायें अपने को चढ़ती कला में अनुभव कर रही हैं...* सबके मुख मंडल रूहानी मौज मस्ती से सरोबार हैं... *"बारम्बार शुक्रिया मेरे बाबा, मीठे बाबा"- यह कहते कहते सभी आत्मायें अपनी रूहानी ड्यूटी पर पहुँच रही हैं...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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