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 17 / 08 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *सवेरे सवेरे उठ बाप को प्यार से याद किया ?*

 

➢➢ *बुधी को ज्ञान से भरपूर किया ?*

 

➢➢ *बाप समान निरहंकारी बन सेवा की ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *श्रेष्ठ पुरुषार्थ द्वारा हर शक्ति व गुण का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *सम्पन्नता की अनुभूति द्वारा संतुष्ट आत्मा बनकर रहे ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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➳ _ ➳  *सब तरफ से सर्व प्रवृत्तियों का किनारा छोड चुके हो* वा कोई भी किनारा अल्पकाल का सहारा बन बाप के सहारे वा साथ से दूर कर देंगे? संकल्प किया कि जाना है, *डायरेक्शन मिला अब चलना है तो डबल लाइट के उडन आसन पर स्थित हो उड जायेंगे?* ऐसी तैयारी है? वा सोचेंगे कि अभी यह करना है, वह करना है? समेटने की शक्ति अभी कार्य में ला सकते हो वा *मेरी सेवा, मेरा सेन्टर, मेरा जिज्ञासु, मेरा लौकिक परिवार या लौकिक कार्य - यह विस्तार तो याद नहीं आयेगा?* यह संकल्प तो नहीं आयेगा? जैसे आप लोग एक ड्रामा दिखाते हो, ऐसे प्रकार के संकल्प - अभी यह करना है, फिर वापस जायेंगे - ऐसे ड्रामा के मुआफिक साथ चलने की सीट को पाने के अधिकार से वंचित तो नहीं रह जायेंगे - अभी तो खूब विस्तार में जा रहे हो, लेकिन विस्तार की निशानी क्या होती है? वृक्ष भी जब अति विस्तार को पा लेता तो विस्तार के बाद बीज में समा जाता है। तो अभी भी सेवा का विस्तार बहुत तेजी से बढ़ रहा है और बढ़ना ही है लेकिन *जितना विस्तार वृद्धि को पा रहा है उतना विस्तार से न्यारे और साथ चलने वाले प्यारे, यह बात नहीं भूल जाना।* कोई भी किनारे
में लगाव की रस्सी न रह जाए। किनारे की रस्सियाँ सदा छूटी हुई हो। अर्थात सबसे छूट्टी लेकर रखो। जैसे आजकल यहाँ पहले से ही अपना मरण मना लेते है ना - तो छूट्टी ले ली ना। ऐसे सब प्रवृत्तियों के बन्धनों से पहले से ही विदाई ले लो। *समाप्ति समारोह मना ली।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  सवेरे सवेरे उठ बाप को याद कर, पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बनना*"

 

_ ➳  मीठे बाबा की मधुर यादो में खोयी खोयी मै आत्मा...मधुबन में मीठे बाबा की झोपडी में... मन बुद्धि से उड़ कर पहुंचती हूँ... *प्यारे बाबा बाहें फैलाये, मुझे प्यार करने को आतुर है... उनकी मखमली गोद में जाकर, मै आत्मा बेठ जाती हूँ.*.. और फूलो सा विश्राम पाती हूँ... मीठे बाबा मुझ आत्मा के सर पर... अपना वरदानी हाथ फेरते है...और असीम शक्तियो से भर देते है...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी मीठी यादो में डुबोते हुए कहते है :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *प्रकर्ति के शांत और सुगन्धित माहौल में...सवेरे सवेरे उठकर, मीठे बाबा की यादो में गहरे डूब जाओ.*.. यह मीठी यादे ही सुखो का आधार बन, सतयुगी दुनिया में ले जाएँगी... इन मीठी यादो से ही पत्थर बुद्धि से... पारस बुद्धि बन, अनन्त सुखो के अधिकारी बनोगे..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा के अमूल्य रत्नों को बुद्धि झोली में भरते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा *सवेरे सवेरे आपकी मीठी यादो में डूबकर, अनन्त खजानो की मालिक बन रही हूँ.*.. आपकी यादो में, देहभान में किये विकर्मो को भस्म कर...पुनः पावनता से सज संवर रही हूँ... पवित्र बुद्धि की मालिक बन रही हूँ..."

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा को पावनता के गहरे राज समझाते हुए कहते है :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *अमृतवेले उठकर मीठे बाबा को बड़े प्यार से, दिल से याद करो..*. मीठे बाबा से मीठी मीठी बाते करो... ईश्वरीय शक्तियो से स्वयं को भरपूर करो... और देह के भान में पतित हो गयी बुद्धि को यादो में पावन बनाकर... देवताई सुखो के मालिक बनो...

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा के प्यार में गहरे डूबकर कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... आपकी यादो की खुशबु ने मेरे जीवन का कायाकल्प किया है... दिव्यता और गुणो से सजाकर, आपने मुझ आत्मा को दिव्य और प्यारा बना दिया है... *पावनता के रंग में रंगकर... देवताई सुंदरता से भर दिया है.*.."

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा को ईश्वरीय याद के जादु को समझाते हुए कहते है :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *सवेरे के यादो भरे पलो में, दिल की गहराइयो से, मीठे बाबा की याद कर प्यार की जादूगरी को देखो..*. यह यादे कितना खूबसुरत बनाकर, अथाह सुखो का अधिकार दिलायेगी... पतित बुद्धि को पावन बनाकर... असीम आनन्द का खजाना दिलायेगी..."

 

_ ➳  मै आत्मा अपने पयरे बाबा को रोम रोम से सुक्रिया करते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा...मनुष्यो की यादो में जीवन दुखो का जंगल बन गया था...और मै आत्मा, उसमे गहरे उलझ... पत्थर बुद्धि बन गयी... *आपने अपनी यादो की गोद में बिठाकर मुझे खुशियो से भर दिया है.*...मेरी विकारी बुद्धि को अपनी यादो में पुनः पवित्र कर दिया है..."मीठे बाबा से मीठी रुह रिहान कर मै आत्मा... स्थूल वतन लौट आयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बुद्धि को ज्ञान से भरपूर कर बाप समान निरहंकारी बन सेवा करनी*"

 

_ ➳  शरीर के सभी अंगों से चेतनता को समेट अपने मन बुद्धि को मैं भृकुटि के मध्य भाग पर जैसे ही केंद्रित करती हूँ। अपने सत्य स्वरूप का मुझे स्पष्ट अनुभव होने लगता है। *मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं स्वयं को देख रही हूं एक चमकते हुए दिव्य सितारे के रूप में जो इस देह रूपी कुटिया में भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हो कर चमक रहा है*। ऊर्जा का एक ऐसा स्त्रोत जिसके बिना इस शरीर का कोई अस्तित्व नही। यह चैतन्य शक्ति मैं आत्मा हूँ जो इस शरीर को चला रही हूँ। अपने इसी वास्तविक स्वरूप में स्थित हो कर मैं जागती ज्योति आत्मा अब अपनी इस देह रूपी कुटिया से निकल कर ऊपर की ओर जा रही हूँ। पांचो तत्वों को पार करके अब मैं सूक्ष्म वतन की ओर बढ़ रही हूँ।

 

_ ➳  सूक्ष्म वतन में प्रवेश करते ही मैं देखती हूँ मेरे सामने सृष्टि के मालिक, सर्वशक्तिवान मेरे शिव पिता परमात्मा ब्रह्मा बाबा के लाइट के आकारी तन में विराजमान है। मेरे ही आने का जैसे वो इंतजार कर रहे हैं। अपने लाइट के फरिश्ता स्वरूप को धारण कर मैं पहुँच जाता हूँ उनके पास। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा कुछ सोच रहें हैं। *जैसे ही बाबा की दृष्टि मुझ पर पड़ती है ऐसा अनुभव होता है जैसे बाबा के मन मे चल रहे संकल्पो को पढ़ने की बाबा मुझे दिव्य दृष्टि दे रहें हैं*। इस दिव्य दृष्टि के मिलते ही अब मैं बाबा के मन मे चल रहे संकल्पो को स्पष्ट अनुभव कर रही हूं।

 

_ ➳  ऐसा अनुभव हो रहा हूं जैसे बाबा कह रहे हैं, मेरे मीठे बच्चे:- "अपने प्यारे पिता से बिछुड़ने के कारण आज सभी अपने घर का रास्ता भूले हुए हैं इसीलिए सभी भटक रहे हैं और दुखी हो रहें हैं"। ऐसे में उनको रास्ता दिखाना आपका कर्तव्य है। *संसार की भटकती आत्माओं को संदेश देने और मेरे बिछुड़े हुए बच्चों को फिर से मुझ से मिलाने के लिए ही बाबा ने आपको ये संगमयुगी ब्राह्मण जीवन दिया है*। इसलिए बुद्धि को ज्ञान से भरपूर कर, बाप समान निरहंकारी बन इस ईश्वरीय सेवा में लग जाओ। इन्ही संकल्पो के साथ बाबा की सर्वशक्तियाँ वरदान के रूप में अब मुझ फ़रिश्ते पर बरसने लगी हैं। बाबा मुझे विजय का तिलक दे रहें हैं।

 

_ ➳  विजय का तिलक अपने मस्तक पर लगा कर, बाबा के फरमान को पूरा करने के लिए अब मैं अपनी बुद्धि रूपी झोली को ज्ञान के अविनाशी खजानों से भरपूर करने के लिए अपने निराकारी ज्योति बिंदु स्वरूप में स्थित हो कर अपने निराकार ज्ञानसूर्य परमपिता परमात्मा शिव बाबा के पास परमधाम पहुंच जाती हूँ। *मैं देख रही हूं ज्ञान सूर्य शिव बाबा को अपने ऊपर। उनसे निकल रही सर्वगुणों और शक्तियों की किरणें पूरे परमधाम में फैल रही हैं*। बाबा से ज्ञान की शक्तिशाली किरणों का फव्वारा सीधा मुझ आत्मा पर पड़ रहा है और मैं आत्मा ज्ञान रत्नों से भरपूर होती जा रही हूं।

 

_ ➳  अपनी बुद्धि रूपी झोली को अविनाशी ज्ञान रत्नों के खजाने से भरपूर करके अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, वरदानीमूर्त बन अपने सम्बन्ध - सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को अपने मुख से ज्ञान रत्नों का दान दे कर उनकी बुद्धि रूपी झोली में भी अविनाशी ज्ञान रत्न डाल कर उन्हें भी उनके परमपिता परमात्मा बाप से मिलवाने की रूहानी सेवा कर रही हूं। *बुद्धि को ज्ञान से भरपूर करके, उसे अपने जीवन मे धारण कर ज्ञान स्वरुप बन मैं अनेको आत्माओं का कल्याण कर रही हूं*। मेरे मुख से निकले वरदानी बोल अनेकों आत्माओं को मुक्ति, जीवन मुक्ति का रास्ता दिखा रहें हैं। *बाप समान निरहंकारी बन, सर्व आत्माओं को ज्ञान रत्न दे कर, उनका कल्याण करने की रूहानी सेवा ही अब मेरे ब्राह्मण जीवन का उद्देश्य है*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा श्रेष्ठ पुरुषार्थ द्वारा हर शक्ति वा गुण का अनुभव करती हूं।"*

 

 _ ➳  *सबसे बड़ी अथॉरिटी अनुभव की है...* जैसे हम सोचते और कहते हैं कि आत्मा शांत स्वरूप, सुख स्वरूप है... ऐसे मैं आत्मा हर एक गुण की अनुभूति करती हूं और उन अनुभवों में खो जाती हूँ... जब कहते हैं शांत स्वरूप तो उसी स्वरूप में स्वयं को, दूसरे को शांति की अनुभूति होती है... *शक्तियों का वर्णन करने के साथ साथ अनुभूति भी होती है... मुझ आत्मा का अनुभवी मूर्त बनना ही श्रेष्ठ पुरुषार्थ की निशानी है...* मैं आत्मा अनुभवों को बढ़ा रही  हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सम्पन्नता की अनुभूति द्वारा अप्राप्ति का नामो निशान मिटा, सन्तुष्ट आत्मा बनने का अनुभव"*

 

_ ➳  मैं आत्मा अविनाशी खजानों से भरपूर हूँ... सम्पन्न हूँ... *बेहद के बाप की सन्तान बेहद खजानों की मालिक हूँ...* अप्राप्त नहीं कुछ भी मुझ ब्राह्मण आत्मा को... भगवान मिला सब कुछ मिला... पाना था जो वो पा लिया अब और क्या बाकी रहा... *मुझ से आत्मिक गुण, शक्तियां और खुशिया उफ़न उफ़न कर चारो ओर बह रहे है... मैं आत्मा स्त्रोत हूँ अविनाशी ख़ुशी की...* मैं सन्तुष्ट मणि हूँ... भृकुटि भाल पर चमकती मैं आत्मा हर बात से सन्तुष्ट, हर हाल में खुश हूँ... परमात्म शक्तियां मुझ से निरन्तर बह रही है... अप्राप्ति का नामो निशान भी मेरे स्वप्न मात्र से भी हट गया हैं... शिव बाबा से इतना प्यार पाया है की जिसको व्यक्त शब्दों में नहीं किया जा सकता... शुक्रिया बाबा शुक्रिया...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  कोई को तख्त मिलता और किसको रायल फैमिली मिलती है। इसके भी गुह्य रहस्य हैं। *जो सदा संगम पर बाप के दिल तख्तनशीन स्वत: और सदा रहता है,* कभी-कभी नहींजो सदा आदि से अन्त तक स्वप्न मात्र भीसंकल्प मात्र भी पवित्रता के व्रत में सदा रहा हैस्वप्न तक भी अवित्रता को टच नहीं किया है, *ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें तख्तनशीन हो सकती हैं।* 

➳ _ ➳  जिसने चारों ही सब्जेक्ट में अच्छे मार्क्स लिये हैंआदि से अन्त तक अच्छे नम्बर से पास हुए हैंउसी को ही पास विद् आनर कहा जाता है। बीच-बीच में मार्क्स कम हुई हैं फिर मेकप किया है, मेकप वाला नहीं लेकिन *आदि से चारों ही सब्जेक्ट में बाप के दिल पसन्द है वो तख्त ले सकता है।* 

➳ _ ➳  साथ-साथ जो ब्राह्मण संसार में सर्व के प्यारेसर्व के सहयोगी रहे हैंब्राह्मण परिवार हर एक दिल से सम्मान करता है, *ऐसा सम्मानधारी तख्त नशीन बन सकता है।* अगर इन बातों में किसी न किसी में कमी है तो वो नम्बरवार रायल फैमिली में आ सकता है। चाहे पहली में आवे, चाहे आठवीं में आए, चाहे त्रेता में आए। तो *अगर तख्तनशीन बनना है तो इन सभी बातों को चेक करो।*

✺   *ड्रिल :-  "सतयुग, त्रेतायुग में तख्तनशीन बनने का पुरुषार्थ करना"*

➳ _ ➳  भृकुटी की कुटिया में विराजमान मैं अविनाशी प्रकाश पुंज आत्मा हूँ... *अपने सत्य स्वरूप को और गहराई से अनुभव करते हुए* मैं आत्मा देख रही हूँ... स्वयं को मस्तक के भव्य भाल पर सूर्य के समान चमकते हुए... जैसे सूर्य अपनी शक्तिशाली किरणों से पूरे विश्व को प्रकाशित करता है... ठीक उसी प्रकार *मैं अविनाशी प्रकाश पुंज आत्मा अपनी शक्तिशाली किरणों से इस पूरे विश्व को प्रकाशित कर रही हूँ...* इस देह मे होते भी विदेही अवस्था का स्पष्ट अनुभव हो रहा है... मैं आत्मा एक खिचाव महसूस कर रही हूँ... जैसे कोई मुझे ऊपर की तरफ खींच रहा हो... धीरे-धीरे मैं आत्मा इस देह रूपी घर से निकल कर सूक्ष्म शरीर के साथ ऊपर की तरफ बादलों के बीच से होती हुई जा रही हूँ... पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन में जहां *बाबा अपने फरिश्ते स्वरुप में बडे से रंग-बिरंगे फूलों के झूले पर बैठे मुस्कुरा रहे हैं...*

➳ _ ➳  ये दृश्य मन को मोह लेने वाला है... बाबा बाहें फैला कर मुझे अपने पास आने का इशारा करते हैं... मैं फरिश्ता बिना देर किए जल्दी से जाकर अपने मीठू बाबा के गले लग जाता हूँ... बाबा से गले लगते ही जैसे *बाबा की सर्व शक्तियाँ मुझ में समा रही है...* बाबा मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहते हैं आ गये मेरे लाडले बच्चे बाबा आपका ही इन्तजार कर रहा था... ये सुन कर मैं फरिश्ता गदगद हो जाता हूँ... प्यार से भर जाता हूँ... *मुझ फरिश्ते की चमक और बढ गई है...* अब बाबा मेरा हाथ पकड़ कर मुझे भी अपने साथ रंग-बिरंगे फूलों से बने झूले पर बिठा देते हैं... और मुझे सामने देखने का ईशारा करते हैं... बाबा मुझ फरिश्ते के सामने एक दृश्य इमर्ज करते हैं... मुझ फरिश्ते के सामने स्वर्णिम दृश्य इमर्ज हो रहे हैं... मैं फरिश्ता बहुत बडे-बडे सोने-हीरों से जड़ित महल देख रहा हूँ... सम्पूर्ण सतोप्रधान प्रकृति, कल-कल करते मीठे झरने बह रहे हैं... दूध की नदियां बह रही है... वाह कितने सुंदर-सुंदर फल और फूलों के बगीचे है... पंछी मधुर आवाज में गीत गा रहे हैं... ऐसा लग रहा है मानो प्रकृति और ये पंछी मिलकर नये नये साज बजा रहे हों... ये सभी दृश्य बडे मनमोहक लग रहे हैं...

➳ _ ➳  इस मनभावन दृश्य को देखते-देखते मैं फरिश्ता एक बडे से हीरे-सोने से बने महल में प्रवेश करता हूँ... जहाँ मैं फरिश्ता देखता हूँ... सामने देवी-देवताओं की सभा लगी हुई है... जिसमें *डबल सिरताज देवी-देवताएँ बैठे हैं* और उनके बीच एक बहुत बडा सोने-हीरों से जड़ित तख्त है... उस तख्त पर भी डबल सिरताज देवी और देवता विराजमान हैं... *अलग-अलग रंगों के हीरे और सोने से बने तख्त पर विराजमान देवी और देवता अलग और बहुत मनमोहक नजर आ रहे हैं...* मैं फरिश्ता यहाँ वहाँ देखता हूँ... और सोचता हूँ... ये सभी तख्त पर क्यों नहीं बैठे हैं... सिर्फ यही दो देव आत्माएँ तख्त पर विराजमान हैं... अचानक से मुझ फरिश्ते को कंधे पर स्पर्श अनुभव होता है... जैसे ही मुड कर देखती हूँ... सामने बाबा को पाती हूँ... और फिर मैं बाबा को सारी बात बताती हूँ... और बाबा को कहती हूँ... बाबा वो तख्त बहुत ही सुंदर और मनमोहक था... हम भी भविष्य में वैसे ही तख्त पर बैठेंगे... लेकिन बाबा वहां सभी तख्त पर क्यों नहीं बैठे थे... इसका क्या रहस्य है बाबा, बाबा मुझे देख मुस्कुराते हैं और फिर इस बात के गुह्य रहस्य को बताते हैं... मैं एकटक होकर बाबा की एक-एक बात को बडे ध्यान से सुन रही हूँ...

➳ _ ➳  बाबा मुझे बताते हैं बच्चे भविष्य तख्त प्राप्त करने का आधार है... *सदा बाप के दिलतख्तनशीन हो रहना... अभी के दिलतख्तनशीन ही भविष्य तख्त प्राप्त कर सकते हैं...* चारों ही सब्जेक्ट में फुल मार्क्स लेने वाले पास विद आनर, चारों ही सब्जेक्ट में बाप के दिल पसंद जो बनते हैं... और *अभी जो सम्मानधारी बनता वहीं तख्त नशीन बनता है...* वहीं भविष्य तख्त नशीन बनता है... अगर इनमें से किसी भी बात में कमी है तो वो नम्बरवार रायल फैमिली में आता है... समझा बच्चे, बाबा की सारी बात सुन मैं आत्मा स्व चैकिंग करती हूँ... बाबा की कही सभी बातों को सामने लाती हूँ... अपने आप से मैं प्रश्न पूछती हूँ... क्या मैं आत्मा बाबा द्वारा बताए तख्तनशीन के पुरुषार्थ अनुसार ही पुरूषार्थ कर रही हूँ...

 ➳ _ ➳  बाबा को देखते हुए मैं आत्मा कहती हूँ... बाबा मैं हूँ ही दिलतख्तनशीन सो भविष्य तख्तनशीन आत्मा... बाबा मुझ आत्मा को देखते हुए कहते हैं हाँ मेरे लाडले बच्चे हाँ बाबा मुझ आत्मा के सिर पर अपना वरदानी हाथ रख मुझे वरदान देते हैं... *बच्चे-सदा दिलतख्तनशीन भव !* मैं अंतर्मन से इस वरदान को स्वीकार करती हूँ... जैसे ही अंतर्मन से मैं आत्मा इस वरदान को स्वीकार करती हूँ... वैसे ही मैं आत्मा अपने जीवन में इस वरदान को सहज फलीभूत होते देख रही हूँ... मैं आत्मा सदा स्वयं को बाबा के दिलतख्त पर अनुभव कर रही हूँ... *मैंने पहले नम्बर में आने का दृढ़ संकल्प किया है* बाबा के दिए वरदान को बार बार स्मृति में ला रही हूँ... जितना स्मृति में ला रही हूँ... उतना ही मैं इस वरदान को अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा अपनी सम्मानधारी स्थिति का स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ... हर आत्मा को सम्मान और सहयोग दे रही हूँ... *मैं आत्मा चारों ही सब्जेक्ट में बाप की दिल पंसद बनती जा रही हूँ...* इस प्रकार मैं आत्मा *तीव्र पुरषार्थ में जुट गई हूँ* और "सदा दिलतख्तनशीन भव" सो भविष्य तख्तनशीन भव के वरदान को सहज ही अपने जीवन में फलीभूत होते अनुभव कर रही हूँ... शुक्रिया मीठू बाबा, शुक्रिया

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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