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❍ 13 / 02 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *दिल से साहिब पर पूरा पूरा बलिहार गए ?*
➢➢ *पूरा ट्रस्टी बन कदम कदम श्रीमत पर चले ?*
➢➢ *कोई भी बदनामी का कार्य तो नहीं किया ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *बहानेबाजी के खेल को समाप्त किया ?*
➢➢ *मैं और मेरेपन के भावों से वैराग्य रहा ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *संकल्पों की गति धैर्यवत रही ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - कदम कदम पर श्रीमत पर चलना,बाप की शिक्षाओ को धारण करना,यही अपने ऊपर कृपा करनी है"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... इस पराये देश परायी सी दुनिया के भूल भुलैया के खेल में... स्वयं के सच्चे स्वरूप और असली घर को ही भूलकर... दुखो का पर्याय बन चले हो... अब *सच्चे पिता की सच्ची श्रीमत पर चलकर*... वही तेजस्वी स्वरूप को पुनः पा चलो... और मीठे सुखो के मधुमास में खुशनुमा जीवन के अधिकारी बन मुस्कराओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा देह को ही अपना वास्तविक स्वरूप समझकर दुखो के दलदल में धँस चलो थी... आपने प्यारे बाबा मुझे अपनी श्रीमत का हाथ देकर सदा का सुखी बनाया है... श्रीमत को बाँहों में लेकर *मै आत्मा ख़ुशी के आसमान में उड़ चली हूँ.*..
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... हर कदम को मीठे बाबा की यादो और श्रीमत को रखकर... बेफिक्र बादशाह बनकर मुस्कराओ... *बाबा की श्रीमत भरा हाथ हाथो में थामकर* निश्चिन्त हो इठलाओ... अपनी हर साँस संकल्प को श्रीमत प्रमाण चलाओ... और सुंदर देवताई संस्कारो को दामन में सजाओ....
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपका साथ और साया पाकर कितनी भाग्यशाली बन चली हूँ... प्यारे बाबा आपके बिना मै आत्मा... कितनी निराश थकी और टूटी सी हो उठी थी... आपके प्यार और श्रीमत ने पुनः *मुझे रूहानी फूल सा खिला दिया है.*..
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... मनुष्य मतो पर चलकर जीवन के खोखलेपन और शक्तिहीनता के गहरे अनुभवी हो गए हो... अब श्रीमत पर चलकर खुद ही खुद पर दया करो... *ईश्वर पिता जो सुख और खजाने हाथो में ले आया है* उनके अधिकारी बन सुन्दरतम जीवन को पाओ... हर कदम श्रीमत प्रमाण ही उठाओ....
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय ज्ञान को पाकर कितनी मीठी ख़ुशी से भर उठी हूँ... प्यारे बाबा, जीवन कितना सरल प्यारा और श्रेष्ठ हो चला है... और ईश्वरीय हाथो में सदा का सुरक्षित हो चला है... *आपकी श्रीमत ने मुझे दुखो की गुलामी से मुक्त करा दिया है.*..
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा स्वमानधारी हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा *सुप्रीम वरदाता की संतान* हूँ... सर्व गुणों, शक्तियों, खजानों के सागर की संतान हूँ... मैं आत्मा ज्ञान स्वरूप, पवित्र स्वरूप हूँ... मैं शांत स्वरूप, सुख स्वरूप आत्मा हूँ... प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को स्वमानों की माला पहनाई हैं... स्व का मान करना सिखाया है... मैं निरंतर स्वमानों का अभ्यास करती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अनेक से बुद्धि योग हटाते हुए एक बाबा की याद में लगाती हूँ... एक वरदाता बाप से सर्व वरदानों की वर्षा हो रही है... मैं आत्मा वरदानों से भरपूर होती जा रही हूँ... *सर्व गुणों, शक्तियों से सम्पन्न* बनती जा रही हूँ... मैं आत्मा मास्टर वरदाता बनती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा के आलस्य, अलबेलेपन के पुराने स्वभाव-संस्कार खतम होते जा रहे हैं... मुझ आत्मा के क्यों, क्या के क्वेश्चन्स खत्म होते जा रहे हैं... अब मैं आत्मा सर्कमस्टान्सेस को दोष नहीं देती हूँ... अब मैं आत्मा बहानेबाजी की भाषा को समाप्त कर दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ... कि कैसी भी परिस्थितियाँ आए मुझे उनके वश नहीं होना है... श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट रहना है... मुझ आत्मा को *बाप जैसा बनना ही है*...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा दूसरों से सहयोग की अपेक्षा नहीं रखती हूँ... स्वयं सम्पन्न बन दूसरों को सहयोग देती हूँ... अब मैं आत्मा सर्व को मास्टर दाता बन सहयोग, स्नेह और सहानुभूति दे रही हूँ... देना ही लेना है, इसी भावना से सर्व को शुभ भावनाएँ, शुभ कामनाएं देते जा रही हूँ... अब मैं आत्मा *मास्टर दातापन की स्वमानधारी* स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं और मेरे पन के भावों से वैराग्य कर बेहद के वैरागी बनना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा इस शरीर में मेहमान हूँ... परमधाम से अवतरित विशेष कार्य के निमित्त विशेष आत्मा हूँ... *यहाँ पर सब कुछ मेरे लिए हैं... पर मेरा कुछ नहीं हैं...* यह शरीर मुझे इस सृष्टि रंगमंच पर पार्ट प्ले करने के लिये मिला हैं... सभी सम्बन्ध इस शरीर के साथ हैं... मैं आत्मा तो एकदम न्यारी और प्यारी हूँ... कमल पुष्प समान हूँ...
➳ _ ➳ दुनिया में रहते हुये... इस दुनिया की हर वस्तु से मैं आत्मा अनाशक्त हूँ... मैं आत्मा बाबा की हूँ... *विश्व परिवर्तन के स्पेशल प्रोजेक्ट में बाबा की सहयोगी आत्मा हूँ...* मैं और मेरेपन के भाव से भी वैरागी... बेहद की वैरागी आत्मा हूँ...
➳ _ ➳ इस नश्वर दुनिया में मेरा कुछ भी नहीं हैं... मैं बाबा की हूँ और बाबा मेरा हैं... *मैं निमत्त हूँ... एक जरिया हूँ... जिसके द्वारा भगवान अपना कार्य कर रहा हैं...* करनकरावनहार तो बाबा ही हैं... मुझ आत्मा का तो सौभाग्य जो उसके महान कार्य में मुझे सहयोगी बनाया हैं...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा को तो शरीर सहित सब कुछ यही छोड़... बाबा के साथ ज्ञान योग से सज धज कर जाना हैं... *इस दुनिया के किसी भी विनाशी वस्तु, वैभव, व्यक्ति में मेरी रग नहीं है...* मैं तो नाममात्र के लिए अपना रोल निभाने के लिए ही यहाँ हूँ... मैं तो बेहद की वैरागी आत्मा हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *बहानेबाज़ी के खेल को समाप्त करने वाले मास्टर दातापन के स्वमानधारी होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ बहानेबाज़ी का खेल अर्थात जब बुद्धि को सही डायरेक्शन पता होने के बाद भी, मन में अनेक संकल्प चलते है जिससे वह सही निर्णय नही ले सकती आत्मा मालिक । यह खेल अक्सर तब दिखता जब *आत्मा देह-भान में फँसी हुई होती* , योग (शक्ति ) की कमी की वजह से सही डायरेक्शन होते हुए भी नही चल सकती ।
❉ बहानेबाज़ी का खेल दिखाने वाली आत्माओं के शब्द कुछ ऐसे होंगे *'देख लेंगे , कर लेंगे'... 'करना चाहती हुँ लेकिन होता नहीं'* इससे ज्ञानी तू आत्मा को समझ जाना चाहिए की सामने वाली आत्मा योग में कमज़ोर है इसलिए ऐसे शब्द का प्रयोग कर रही है । इसके लिए सदा ऐसी आत्माओं के प्रति शुभ भावना और शुभ कामना का श्रेष्ठ संकल्प रख पुण्य का खाता जमा करना है ।
❉ इसके लिए प्रातः अमृतवेले से लेकर रात तक *स्वमान की सीट पर सेट रहने के लिए भिन्न भिन्न युक्ति या प्रोग्राम बनाए* जैसे ट्रैफ़िक कंट्रोल के समय विशेष चेकिंग करे की अपने को आत्मा समझ कार्य किया या देह भान में आकर कार्य किया ? सीट पर सेट थे या अप्सेट थे ? दातापन की स्टेज थी या लेवतापन की स्टेज थी ? इसी को समाप्त करने के लिए बाबा हमको एक पॉवरफ़ुल स्लोगन देते "हिम्मते बच्चे मददें बाप" ।
❉ जैसे ब्रह्माबाबा सदा याद रखते थे *" जैसे कर्म मैं करूँगा मुझे देख ओर करेंगे"* इसी स्मृति से वह घड़ी-घड़ी प्रयास करते की वह शिवबाबा की याद में रहकर हर कर्म करे और फिर सबसे अनुभव भी शेयर करते इसी से उन्हें समझ आता की बच्चों को भी कौनसे विघ्न आएँगे ओर सबकी अवस्था कैसी है... इसलिए ब्रह्माबाबा सदा स्वमान की सीट पर सेट रह, ड्रामा की बिंदु पर अटूट निश्चय द्वारा सदा मास्टर दातापन बनकर हर बच्चे के मददगार बने ।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *जब मैं और मेरेपन के भावों से वैराग्य हो तब कहेंगे बेहद के वैरागी... क्यों और कैसे* ?
❉ जहां मैं और मेरा पन होता हैं वहां लगाव और झुकाव स्वत: ही पैदा हो जाता है । यही *लगाव और झुकाव हदों में बांध देता है और इसी लगाव, झुकाव के कारण मनुष्य से जाने अनजाने में अनेक प्रकार के विकर्म होते चले जाते हैं* । आत्मा पर विकारों की जंक चढ़ने लगती है जो उसे परमात्मा से दूर कर देती है । इसलिये मैं और मेरेपन के भावों को जब समाप्त कर स्वयं को परमात्मा के आगे सम्पूर्ण रूप से समर्पण कर देंगे तभी बेहद की वैराग्य वृति धारण होगी ।
❉ मैं और मेरेपन के भावों से वैराग्य तब आ सकता है जब स्वयं को इस धरा पर केवल मेहमान समझ कर रहें । जैसे *मेहमान का किसी से लगाव झुकाव नही होता क्योंकि उसे पता होता है कि उसे हमेशा के लिए वहां नही रहना है* इसलिए वो जिस घर में जाता हैं वहां रहते हुए भी उसका ममत्व उस घर में नही होता । इसी तरह हम भी इस दुनिया में केवल मेहमान हैं । हमारा असली घर तो परमधाम हैं जहां हमे वापिस लौटना है । यह बात सदा स्मृति में रहने से सहज ही बेहद के वैरागी बन जायेंगे ।
❉ मैं और मेरेपन के भाव आत्मा को दैहिक आकर्षणों में फंसा देते हैं । इसलिए *जितना अशरीरी स्थिति के अभ्यासी बनेंगे उतना देह और देह की दुनिया से डिटैच होना सहज होता जायेगा* । आत्मिक स्मृति में स्थित हो कर मन बुद्धि को जब केवल एक बाप की याद में ही लगाये रखेंगे तथा सर्व सम्बन्धो से सदा एक बाप के साथ ही मिलन मेला मनाते रहेंगे । तो शरीर के किसी भी आकर्षण में आकर्षित नही होंगे और बेहद के वैरागी बन सर्व आकर्षणों से मुक्त हो सदा उड़ती कला में उड़ते रहेंगे ।
❉ शरीर से परे अपने स्व - स्मृति में स्थित रहना अर्थात मैं और मेरेपन के भावों से मुक्त रहना । मैं और मेरेपन के भाव हद के किनारें हैं जो आत्मा को उसके वास्तविक स्वरूप की विस्मृति करा देते हैं । *इसलिए स्वयं को देह समझना अर्थात हद के बंधनों में बंध जाना और स्वयं को आत्मा निश्चय करना अर्थात सर्व बन्धनों से मुक्त हो जाना* । क्योंकि जब स्वयं को आत्मा समझते हैं तो आत्मा का सिवाय परमात्मा के और कोई नही । इसलिए जितना स्व - स्मृति में रह परमात्मा के प्रेम की लगन में मग्न रहेंगे तो स्वत: ही बेहद के वैरागी बन जायेंगे ।
❉ जो इच्छा मात्रम अविद्या की स्थिति में स्थित रहते हैं वही मैं और मेरेपन के भावों से वैरागी बन सकते हैं । क्योकि *इच्छा मात्रम अविद्या बन कर ही मनमनाभव की स्थिति में स्थित हो सकते हैं* । और जो सदैव मनमनाभव की स्थिति में स्थित रहते हैं वे अतीन्द्रिय सुख के सुखमय झूले में सदा झूलते रहते हैं । अतीन्द्रिय सुख की सुखद अनुभूति ही उन्हें हद की सभी इच्छाओ और कामनाओं से मुक्त कर देती है तथा मैं और मेरेपन के भावों से वैराग्य दिला कर उन्हें बेहद का वैरागी बना देती है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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