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❍ 30 / 11 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*5=25)
➢➢ *मात पिता का शो किया ?*
➢➢ *अपने अन्दर कोई भी भूत तो प्रवेश नहीं करने दिया ?*
➢➢ *एक बाप से बुधीयोग लगाया ?*
➢➢ *ब्राहमण सो फ़रिश्ता सो जीवन मुक्त देवता बनने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *अपने संस्कारों को इजी बना सब कार्यों को इजी बनाया ?*
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❂ *तपस्वी जीवन प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं* ✰
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〰✧ अनेक प्रकार के व्यक्ति, वैभव अथवा अनेक प्रकार की वस्तुओं के सम्पर्क में आते आत्मिक भाव और अनासक्त भाव धारण करो। *यह वैभव और वस्तुयें अनासक्त के आगे दासी के रूप में होंगी और आसक्त भाव वाले के आगे चुम्बक की तरह फंसाने वाली होंगी।*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:- 10)
➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाये ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ हर कर्म के लिए श्रीमत है। चलना, खाना, पीना, सुनना, सुनाना - सबकी श्रीमत है। है, कि नहीं है? मानो आप परचिंतन कर रहे हो तो क्या ये श्रीमत है? *श्रीमत को ढीला किया तो मन को चांस मिलता है चंचल बनने का।*
〰✧ फिर उसकी आदत पड जाती है। तो आदत डालने वाला कौन? आप ही हो ना! तो पहले मन का राजा बनो। *चेक करो - अन्दर ही अन्दर ये मन्त्री अपना राज्य तो नहीं स्थापन कर रहे हैं?*
〰✧ जैसे आजकल के राज्य में अलग गुप बना करके और पॉवर में आ जाते हैं। और पहले वालों को हिलाने की कोशिश करते हैं तो ये मन भी ऐसा करता है, बुद्धि को भी अपना बना लेता है। *मुख को, कान को, सबको अपना बना लेता है।*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:- 15)
➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- दुःख देना घोस्ट का काम है, किसी को भी दुःख नहीं देना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मधुबन पीस पार्क में यहाँ के शांत, सुन्दर वातावरण में झूले में बैठी सुख, शांति का अनुभव कर रही हूँ...* एक-एक फूल, पेड़, पौधे, पहाड़ों से होती हुई यहाँ की रूहानी हवाएं, प्यारे बाबा की रूहानियत की कहानी कहते हुए, जैसे ही मुझे छूती हैं, मैं आत्मा अतीन्द्रिय सुखों में डूब जाती हूँ... *और अपने को इस देह से परे अव्यक्त वतन में प्यारे बाबा के गोदी के झूले में पाती हूँ...*
❉ *प्यारे दुखहर्ता सुखकर्ता बाबा मुझे मास्टर सुखकर्ता बनाते हुए कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय पुत्र होकर सबको सुख शांति और आनन्द से भर दो... *जनमो की दुखी थकी आत्माओ को सुख भरी अंजलि देते जाओ...* सबके दुखो को हरने वाले और खुशियो से दामन सजाने वाले मा सुखकर्ता बन कर मुस्कराओ... विश्व धरा से दुखो का नामोनिशान मिटाने वाले दिव्य आत्मा बन जाओ...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सुख का नूर बन चारों ओर सुख की रौशनी फैलाते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा ईश्वरीय साथ भरा खुबसूरत जीवन पाकर खुशनसीब बन गयी हूँ...* और यह खुशनसीबी हर दिल पर लुटा रही हूँ... सबके दामन से दुखो के कांटे चुनकर सुखो के फूलो से भर रही हूँ... सबको सदा का सुखी बना रही हूँ...”
❉ *मीठे बाबा दुखों का अंत कर सुख की दुनिया में ले जाने का मार्ग बताते हुए कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... अब कभी किसी को भी दुःख न दो... *हर पल खुशियां और सुखो के सच्चे आधार बनकर, इस धरा से दुखो का नामोनिशान मिटा दो...* थकी आत्माओ को सच्ची राहत देकर मीठी मुस्कराहटों से भर दो... जो सुख और खुशियो के खजाने ईश्वर पिता से पाये है उनसे हर दिल को भर दो...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा भाई-भाई की स्मृति से आत्मिक स्वरुप में टिककर रहमदिल बन सर्व को सुख की अंजली देते हुए कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा मनसा वाचा कर्मणा सबको सुख पहुंचा रही हूँ... किसी को भी दुःख देने के ख्याल मात्र से भी अभूल हूँ... और *सबको सच्चे सुखो का रास्ता बताने वाली रूहानी जादूगर हो गई हूँ...* प्यारे बाबा आपने मेरा जीवन ही दिव्यता से सजा दिया है...”
❉ *मेरा बाबा सुख के सागर में मुझे डुबोकर रोम-रोम में सुख की अनुभूति कराते हुए कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता से पायी सुखो की दौलत हर दिल पर बिखरने वाले, मास्टर सुख सागर बन खिलखिलाओ... *अधरों पर सच्ची मुस्कान सजाकर विश्व धरा पर सुखो की बहार सजा दो...* जैसे अपने दुखो से मुक्त हो गए हो, वैसा ही सुख का जादू हर दिल पर चलाओ...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सुख का फ़रिश्ता बन विश्व ग्लोब पर बैठकर सबको सुख की किरणों का दान करते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मैं आत्मा सबको आप समान सुखी बनाकर दुआओ को पाती जा रही हूँ... जिन सच्ची खुशियो से प्यारे बाबा *आपने मुझे महकाया है वही सुख की रश्मियाँ में विश्व धरा पर बिखेर रही हूँ...* हर पल खुशियो की बरसात करने वाली सुख बादल हो गई हूँ...”
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ज्ञान की बुलबुल बन ज्ञान की टिकलू - टिकलू कर सबको कब्र से निकालना है*"
➳ _ ➳ अपने फ़रिशता स्वरुप को इमर्ज करते ही मैं अनुभव करती हूँ कि मेरा लाइट का अति सूक्ष्म आकारी शरीर मेरी साकारी देह में से निकल कर मेरे बिल्कुल सामने आ कर स्थित हो गया है और मैं आत्मा अपने उस अति सूक्ष्म आकारी शरीर मे प्रवेश करके स्वयं को बहुत ही हल्का अनुभव कर रही हूँ। *पाँच तत्वों की बनी स्थूल देह क़ा बन्धन जैसे टूट गया है और मैं इस देह से जुड़े हर बन्धन से जैसे मुक्त हो गई हूँ। अपने इस अति प्यारे स्वरूप में स्थित होते ही इस स्थूल धरनी के आकर्षण से भी परें हो कर मैं धीरे - धीरे जैसे ऊपर आकाश की ओर उड़ने लगी हूँ*। स्थूल दुनिया के सभी आकर्षणों से मुक्त इस उपराम स्थिति में मुझे बहुत ही सुखदाई अनुभव हो रहा है।
➳ _ ➳ अपनी इस उपराम अवस्था के सुख और दिव्य अलौकिक आनन्द की अनुभूति के साथ सारे विश्व मे भ्रमण करते - करते अब मैं फ़रिशता एक बहुत ऊंचे स्थान पर पहुँचता हूँ जहाँ से पूरा विश्व एक बहुत सुंदर टापू के रूप में दिखाई दे रहा है। *प्रकृति के सुंदर - सुंदर नज़ारे मैं देख रहा हूँ। किन्तु प्रकृति के इन अति सुंदर नज़ारो को देखते - देखते एक बहुत ही विचित्र दृश्य अब मेरे सामने आ रहा है। मैं देख रहा हूँ वो अति सुंदर टापू देखते ही देखते जैसे एक कब्रिस्तान बन गया है*। चारों और कब्र में दाखिल मुर्दे दिखाई दे रहें हैं। अचम्भित हो कर मैं इस पूरे दृश्य को देख रहा हूँ। तभी बापदादा मेरे सामने आ कर उपस्थित होते हैं और मुझे फ़रमान करते हैं:- कि *"ज्ञान की बुलबुल बन ज्ञान की टिकलू - टिकलू कर सबको कब्र से निकालो"*
➳ _ ➳ बापदादा के इस फरमान को सुन मैं फ़रिशता अब विचार करता हूँ कि आज सारी दुनिया कब्रिस्तान ही तो बनी हुई है। पाँच विकारों की कब्र में हर मनुष्य आत्मा फँसी हुई है और बहुत दुखी है। *केवल ज्ञान का दिव्य चक्षु पाकर ही ये सभी कब्रदाखिल आत्मायें विकारों की कब्र से निकल सकती हैं*। इसलिए इन सभी आत्माओं को कब्र से निकालने के लिए अब मुझे ज्ञान की बुलबुल बन इनके आगे ज्ञान की टिकलू - टिकलू करनी है। *मन ही मन यह विचार कर मैं फ़रिशता अब बापदादा के पास सूक्ष्म वतन की ओर उड़ चलता हूँ*। सेकेंड में आकाश को पार कर, अंतरिक्ष से परें सफ़ेद चाँदनी के प्रकाश से प्रकाशित अति सुंदर फ़रिशतो की आकारी दुनिया सूक्ष्म वतन में मैं प्रवेश करता हूँ।
➳ _ ➳ सफेद चांदनी के प्रकाश से प्रकाशित इस दिव्य अलौकिक दुनिया में अव्यक्त बापदादा की दिव्य अलौकिक किरणे चारों ओर फैली हुई हैं। *देह और देह की दुनिया से अलग, सफेद प्रकाश से प्रकाशित यह दुनिया बहुत ही न्यारी और प्यारी है। फरिश्तो की इस दिव्य अलौकिक दुनिया मे अब मैं स्वयं को बापदादा के सम्मुख देख रही हूँ*। बाबा मुझे दृष्टि दे रहें हैं। बाबा के नयनो से अथाह स्नेह की धाराएं बह रही हैं। बाबा मुझे विजयी भव का तिलक दे रहें हैं। अपना वरदानी हाथ बाबा ने मेरे सिर पर रख दिया। बाबा के वरदानी हस्तों से गुण और शक्तियों की किरणें निकल कर मुझ में समा रही हैं।
➳ _ ➳ परमात्म प्रेम और शक्तियों से भरपूर हो कर, *बापदादा के सामने बैठ उनके दिव्य स्वरूप को अपलक निहारती मैं बाबा को मन ही मन उनके हर फ़रमान का पालन करने का प्रोमिस कर रही हूँ और बाबा उस प्रॉमिस को पूरा करने का मेरे अंदर जैसे बल भर रहें हैं*। ज्ञान की बुलबुल बन ज्ञान की टिकलू - टिकलू कर सबको कब्र से निकालने का संकल्प कर अब मैं उसे पूरा करने के लिए अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ वापिस साकारी दुनिया की ओर लौटती हूँ।
➳ _ ➳ चारों और परमात्म शक्तियों की किरणे फैला कर, सबको परमात्म प्रेम का अनुभव करवाकर, उन्हें परमात्मा के अवतरण का सन्देश देकर अपने अति सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ अब मैं अपने साकारी तन में प्रवेश कर जाती हूँ इस स्मृति के साथ कि ज्ञान की बुलबुल बन ज्ञान की टिकलू - टिकलू कर सबको कब्र से निकलना ही मेरे ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है। *इसी स्मृति में सदा रहते हुए अब मैं हर कर्म कर रही हूँ और अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा के सामने ज्ञान की टिकलू - टिकलू कर उन्हें विकारों की कब्र से निकलने का रास्ता बता कर उनके जीवन को सुखदाई बनाने का रूहानी धन्धा अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं ब्राह्मण सो फरिश्ता सो जीवनमुक्त्त देवता बनने वाले सर्व आकर्षण मुक्त्त आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को स्वमान में स्थित करने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं अपने संस्कारों को इज़ी (सरल) बनाकर सब कार्यों को इज़ी बनाने वाली सरल आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ स्मृतियों में टिकाये रखने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. मातायें तो सदा खुशी के झूले में झूलती हैं, झूलती हैं ना! माताओं को बहुत नशा रहता है, क्या नशा रहता है? हमारे लिए बाप आया है। नशा है ना! *द्वापर से सभी ने नीचे गिराया, इसलिए बाप को माताओं पर बहुत प्यार है और खास माताओं के लिए बाप आये हैं।* खुश हो रहे हैं, लेकिन सदा खुश रहना। ऐसे नहीं अभी हाथ उठा रहे हैं और ट्रेन में जाओ तो थोड़ा-थोड़ा नशा उतरता जाए, सदा एकरस, अविनाशी नशा हो। कभी-कभी का नशा नहीं, सदा का नशा सदा ही खुशी प्रदान करता है।
➳ _ ➳ *आप माताओं के चेहरे सदा ऐसे होने चाहिए जो दूर से रूहानी गुलाब दिखाई दो क्योंकि इस विश्व विद्यालय की जो बात सबको अच्छी लगती है, विशेषता दिखाई देती है वह यही कि मातायें रूहानी गुलाब समान सदा खिला हुआ पुष्प हैं और मातायें ही जिम्मेवारी उठाए, मातायें इतना बड़ा कार्य कर रही हैं।* चाहे महामण्डलेश्वर भी हैं लेकिन वह भी समझते हैं कि मातायें निमित्त बनी हैं और ऐसे श्रेष्ठ कार्य सहज चला रही हैं। माताओं के लिए कहावत है - सच है नहीं, लेकिन कहावत है तो दो मातायें भी इकट्ठा कोई कार्य करें, बड़ा मुश्किल है। लेकिन यहाँ कौन निमित्त हैं? मातायें ही हैं ना! जब भी मिलने आते हैं तो क्या पूछते हैं? मातायें चलाती हैं, आपस में लड़ती नहीं हैं? खिटखिट नहीं करती हैं? लेकिन उन्हों को क्या पता कि यह साधारण मातायें नहीं हैं, *यह परमात्मा द्वारा बनी हुई आत्मायें, मातायें हैं। परमात्म वरदान इन्हों को चला रहा है।*
➳ _ ➳ 2. *अगर माताओं को बाप निमित्त नहीं बनाता तो नया ज्ञान, नई सिस्टम होने कारण पाण्डवों को देखकर बहुत हंगामा होता। मातायें ढाल हैं क्योंकि नया ज्ञान है ना। नई बातें हैं।*
✺ *ड्रिल :- "साधारण मातायें नहीं, परमात्मा द्वारा बनी हुई आत्मायें होने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *अमृतवेले.. प्यारे बाबा, मीठे बच्चे, प्यारे बच्चे कह मुझ आत्मा को उठाने आते है... उठो बच्ची वरदानों से अपनी झोली भर लो, कानो में यह मधुर स्वर पड़ते ही मै आत्मा उठकर बैठ जाती हूँ...* मै आत्मा सफ़ेद चमकीले वस्त्र में बाबा को आता हुआ देख रही हूँ...
➳ _ ➳ कुछ देर के लिए मै आत्मा बाबा के सम्मुख बैठ जाती हूँ... बाबा के मस्तक से वा नैनो से आती हुई दिव्य किरणे मुझ आत्मा में समाती जा रही है... *इन किरणों में समाती हुई मै आत्मा इस देह से न्यारी हो एक दम हल्का अनुभव कर रही हूँ... अब मैं आत्मा प्यारे बाबा के साथ उड़ चलती हूँ सूक्ष्म वतन में, जहाँ चारो तरफ सफ़ेद चमकीला प्रकाश ही प्रकाश दिखाई दे रहा है... हर तरफ फ़रिश्ते ही फ़रिश्ते दिखाई दे रहे है...* बाबा हाथ में चमचमाती छड़ी ले सफेद चमकीली पहाड़ियों पर आगे ही आगे चलते जा रहे है... मै आत्मा बाबा के पीछे-पीछे चलती जा रही हूँ... बाबा चमकीली छड़ी से एक स्थान की ओर इशारा करते है...
➳ _ ➳ आहा!!!... क्या मनोहर दृश्य है, मै आत्मा स्वयं को एक ऐसी दुनिया में देख रही हूँ *जहाँ शुद्ध हवा चल रही है, पशु पक्षी मधुर स्वर में चहचहा रहे है, शीतल जल की नदियां बह रही है, मै सुनहरे वस्त्र धारण कर, हीरे के आभूषणों से सजी हुई हूँ... सिर पर लाइट और माइट का ताज धारण कर स्वयं को राज सिंहासन पर महारानी स्वरूप में देख रही हूँ...*अपना यह स्वरुप देख मैं बाबा की और देखती हूँ... तो प्यारे मीठे बाबा छड़ी घुमाकर दूसरी तरफ इशारा करते हुए एक ओर दृश्य दिखाते है... जहाँ मै आत्मा स्वयं को जीवन बंधन में बंधा हुआ देखती हूँ... जहाँ कर्मो का बंधन है तो रिश्ते नातो का बंधन है, माया का बंधन है तो जिम्मेवारियों का बंधन है... इन बंधनो में बंधी मै आत्मा बहुत समय से गिरती चली आयी थी... बोझ से दबी हुई, अत्याचारों को सहन करती हुई, दुखो की जंजीरों में जकड़ी हुई मै आत्मा अपने वास्तविक रूप को भूल गयी थी...
➳ _ ➳ दोनों दृश्यों को देख, *मै आत्मा त्रिकालदर्शी बाबा की तेजोमय किरणों में स्वयं के पूरे 84 जन्मो के चक्र को देख रही हूँ...* इन किरणों में डूबती हुई मै आत्मा अब पुरानी दुनिया, पुराने संस्कार, पुराने सम्बन्ध, पुरानी हर चीज जो विनाशवान है उसे भूलती जा रही हूँ... परमात्मा ने स्वयं मुझे ढूंढा है, मै साधारण नही विशेष आत्मा हूँ... अब मै आत्मा पवित्रता को धारण कर रूहे गुलाब बन सर्व आत्माओ को रूहानियत की खुशबू से महका रही हूँ... स्नेह और सहयोग द्वारा सर्व आत्माओ में उमंग उत्साह भर आत्मिक भाव में स्थित हो परमात्म प्यार में पलते हुए विश्व परिवर्तन के कार्य में परमात्मा का सहयोगी बन संगमयुग में ज्ञान-रत्नों को धारण करती जा रही हूँ... *जो कोई भी देखे तो उनको यह अनुभव हो रहा है कि यह साधारण आत्मा(माता) नही परमात्मा की पालना में पलने वाली देव आत्मा है...*
➳ _ ➳ अब मै आत्मा इस धरा पर सदा रूहानी नशे में रह जिम्मेवारियों का ताज पहन इस अंतिम जन्म में हर आत्मा के साथ अपने हिसाब-किताब चुक्तु कर, ड्रामा के हर सीन को साक्षी भाव से देखती हुई... पवित्र दुनिया में चलने के लिए हर परिस्थिति में एकरस स्थिति का अनुभव करती जा रही हूँ... *मै आत्मा कर नही रही, करन करावनहार करा रहा है... परमात्म प्यार में डूबी हुई मै आत्मा मेहनत से नही मोहब्बत से पुरुषार्थी जीवन में निरन्तर आगे बढ़ती जा रही हूँ... परमात्मा ने स्वयं मुझ आत्मा (माताओ) पर ज्ञान का कलश रखा है, मै साधारण नही, विशेष आत्मा हूँ... मेरी एक आँख में मुक्तिधाम और एक आँख में जीवन्मुक्तिधाम समाया हुआ है...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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