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 30 / 10 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*5=25)

 

➢➢ *अन्दर में कोई खोट तो नहीं रखी ?*

 

➢➢ *स्वदर्शन चक्रधारी बन शंखध्वनि की ?*

 

➢➢ *किसी को भी आधार तो नहीं बनाया ?*

 

➢➢ *सदा हर संकल्प और कर्म में ब्रह्मा बाप को फॉलो किया ?*

 

➢➢ *गोपी वल्लभ की सच्ची सच्ची गोपिका बनकर रहे ?*

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         ❂ *तपस्वी जीवन प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं*

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〰✧  सारा दिन हर आत्मा के प्रति शुभ भावना और श्रेष्ठ भाव को धारण करने का विशेष अटेन्शन रख अशुभ भाव को शुभ भाव में, *अशुभ भावना को शुभ भावना में परिवर्तन कर खुशनुमा स्थिति में रहना है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाये ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  उन्हों के राज्य दरबार में तो खिटखट होती है। यहाँ तो खिटखट की बात ही नहीं है। आपोजिशन तो नहीं है ना। एक का ही कन्ट्रोल है। कभी-कभी अपने ही कर्मचारी आपोजिशन करने लग पडते हैं तो *राजयोगी अर्थात मास्टर सर्वशक्तिवान राजा आत्मा, एक भी कर्मेन्द्रिय धोखा नहीं दे सकती।*

 

✧  स्टॉप कहा तो स्टॉप ऑर्डर पर चलने वाले हैं ना। क्योंकि *भविष्य में लाँ और ऑर्डर पर चलने वाला राज्य है।* तो स्थापना यहाँ से होनी है ना। यहाँ ही आत्माराजा अपनी सर्व कर्मेन्द्रियों को लाँ और ऑर्डर पर चलाने वाली बने, तभी विश्व-महाराजन बन विश्व का राज्य लाँ और ऑर्डर पर चला सकती है।

 

✧  *पहले स्व राज्य लॉ और ऑर्डर पर हो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:- 15)

 

➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  पावन बनाने की सेवा करना"*

 

➳ _ ➳  *बारिश की बूंदों की छम-छम में जैसे मोर नाच रहा... वैसे ही ज्ञान सागर की वर्षा के सरगम में मुझ आत्मा का मन मयूर नाच रहा है...* जन्म-जन्मान्तर के विकारों की तपन को बुझाकर... ज्ञान वर्षा में नहलाकर प्यारे बाबा मुझे रूप-बसंत बना रहे हैं... ज्ञान कस्तूरी से सुगन्धित कर रहे हैं...

 

❉   प्यारे बाबा मुझे अपनी गोद में बिठाते हुए कहते हैं:- मेरे मीठे फूल बच्चे... देह के भान और देह के सम्बन्धो से उपराम बनो और आत्मा के तल पर आत्मिक भाव को अपनाओ... ईश्वरीय मत की ऊँगली थाम हर कर्म को यादो से महकाओ... और ऐसा ही सुंदर जीवन सबका बनाओ... *सबको कांटे से फूल बनने का सुंदर राज बताओ... पतितो को पावन बनाने का रास्ता बताओ...”*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा बाबा को गले लगाकर कहती हूँ:- हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा विकारी मत को छोड़... श्रीमत का हाथ थाम सुख भरी खुशनुमा जीवन जी रही हूँ... *और यही पावनता का रंग सबके जीवन में भी रंग रही हूँ... मीठी मीठी यादो में महक रही हूँ...”*

 

❉   मीठे बाबा मुझे लाड करते हुए कहते हैं:- मीठे प्यारे लाडले बच्चे... बहुत दुखो में जी चुके हो... अब विकारी मत को छोड़ ईश्वरीय साथ को थामो... *यह श्रीमत ही सच्चा साथ निभाकर फूलो भरे बगीचे में ले जायेगी... स्वयं खिलकर औरो को भी खिलाओ...* सबका घर आँगन सच्ची खुशियो से खिलखिलाओ... उन्हें भी पावन राह पर ले आओ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा बाबा के प्यार में मगन होकर कहती हूँ:- मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अपनी मत और परमत में दिव्य गुणो को ही खो चुकी थी... *अब ईश्वरीय यादो में फिर से निखर रही हूँ... और अपने सत्य स्वरूप को पाकर पावनता की खूशबू से भर रही हूँ... और सबको आनन्द से सराबोर कर रही हूँ...”*

 

❉   मेरे बाबा प्यार से कहते हैं:- प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वरीय सन्तान हो खुशबूदार खिले फूल हो... तो अब रावण की मत पर चलकर विकर्मो के बोझों को और न बढ़ाओ... *सिर्फ और सिर्फ श्रीमत की लकीर को अपनाओ... और खुबसूरत खुशियो के मालिक बनो...* अपने साथ साथ औरो के जीवन को भी पावन सुंदर बनाओ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा ख़ुशी से कहती हूँ:- हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा रावण की मत को सदा का त्याग कर... देह के भान से मुक्त होकर... खुशियो के सागर में... बाबा संग लहरा रही हूँ... *श्रीमत पर खूबसूरत हुए अपने जीवन को देख पुलकित सी झूम रही हूँ... और मीठी खुशियो की खबर संसार में फैला रही हूँ...”*

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अपने पांव पर खड़ा होना है, किसी को भी आधार नही बनाना है*"

 

➳ _ ➳  सिवाय एक शिवबाबा के अगर किसी ओर को आधार बनाया तो जीवन रूपी नैया बीच भंवर में ही डूब जायेगी क्योकि सिवाय बाबा के और सभी आधार निराधार हैं। *मन ही मन स्वयं से बात करती, अपनी जीवन नैया को पार लगाने वाले अपने खिवैया बाप को मैं जैसे ही याद करती हूँ वैसे ही मन बुद्धि अपने परमधाम घर की स्मृति में स्थित हो जातें हैं* और मन बुद्धि के विमान पर सवार हो कर मैं चल पड़ती हूँ अपने परमधाम घर, अपनी जीवन नैया को पार लगाने वाले अपने खिवैया बाप से मिलने।

 

➳ _ ➳  अपने देह रूपी रथ का आधार छोड़, स्नेह मिलन के गीत गुनगुनाती मैं आत्मा सजनी अपने शिव साजन के स्नेह में डूबी, ऊंची उड़ान भर कर पल भर में ही नील गगन से पार पहुँच जाती हूँ अपने निराकारी धाम में। *सितारों सी चमकती निराकारी आत्माओं के बीच महाज्योति के रूप में मेरे शिव साजन अपनी अनन्त किरणे फैलाते हुए अति शोभायमान लग रहे हैं*। मन बुद्धि रूपी नेत्र एक पल के लिए भी उनके इस अति सुंदर स्वरूप को देखे बिना नही रहना चाहते। मैं आत्मा सजनी एकटक उन्हें निहारती हुई उनसे बिछुड़ने की जन्म - जन्म की जो प्यास है उसे आज बुझा लेना चाहती हूँ।

 

➳ _ ➳  अपने शिव प्रीतम को निहारते - निहारते मन मे उनके अति समीप जाने की लालसा लिए अब मैं धीरे - धीरे उनकी ओर बढ़ रही हूँ। *ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे मेरे शिव पिया भी मुझ से मिलने के लिए व्याकुल हैं और इस व्याकुलता का एहसास उनके प्यार की, उनके स्नेह की अनन्त किरणों में स्पष्ट अनुभव हो रहा है*। उनके समीप पहुंचते ही उनका अथाह स्नेह उनकी शक्तिशाली किरणों के रूप में मुझ पर बरसने लगा है। अपने शिव पिया के प्रेम की किरणों रूपी बाहों में समाई, उनके निस्वार्थ प्रेम से मैं स्वयं को भरपूर कर रही हूँ। *अपने असीम प्रेम की वर्षा मेरे ऊपर करके वो मुझे भी आप समान मास्टर प्रेम का सागर बना रहे हैं*।

 

➳ _ ➳  बाबा के प्रति अपने असीम प्रेम के उदगार को अब मैं अपने मन में उठ रहे संकल्पो के माध्यम से बाबा के सामने प्रकट कर रही हूँ। *मेरे प्राणों से प्यारे बाबा, जन्म -जन्म से मैं आपको याद कर रही थी*। आखिर मैं आपके पास पहुँच ही गई। आपसे मिल कर मेरे जन्म - जन्म के कष्ट मिट गये। सर्व दुखों से परे आपके पावन प्रेम की शीतल छाया को पाकर मैं धन्य - धन्य हो गई हूँ। आपको पाकर मैंने सब कुछ पा लिया मेरे बाबा। *मेरे मन की इन भावनाओं को मेरे प्राण प्रिय बाबा स्पष्ट समझ रहें हैं और इसका प्रतिफल अपने स्नेह की अनन्त किरणों के और भी तीव्र प्रवाह के रुप में प्रकट कर रहें हैं*।

 

➳ _ ➳  अपने शिव साजन के असीम प्रेम और उनकी सर्वशक्तियों से भरपूर हो कर अब मैं आत्मा सजनी फिर से कर्म करने के लिए कर्मभूमि पर लौट रही हूँ। किन्तु अब मेरे शिव पिया ने अपने निस्वार्थ, निर्मल और निश्छल प्यार से मुझमे असीम बल भर कर मुझे इतना शक्तिशाली बना दिया है कि अब बिना किसी का आधार लिए, मैं अपने पांव पर खड़े हो कर इस रूहानी यात्रा पर बड़ी ही सहजता से चल सकती हूँ। *मेरे शिव पिया का प्रेम आधार बन कर मुझे इस ईश्वरीय डगर पर निरन्तर आगे बढ़ने के लिए उत्साहित कर रहा है। दुनिया के सभी आधार छोड़, अपने शिव पिया का हाथ थामे, उनके सहयोग से अपनी जीवन रूपी नैया को मैं खुशी - खुशी चला रही हूँ*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं  हर संकल्प और कर्म में ब्रह्मा बाप को फॉलो करने वाली  समीप और समान आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को स्वमान में स्थित करने का विशेष योग अभ्यास किया ?

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं आत्मा गोपी वल्लभ की सच्ची-सच्ची गोपिका बन अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करती हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ स्मृतियों में टिकाये रखने का विशेष योग अभ्यास किया ?

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बाहर के साधनों द्वारा या सेवा द्वारा अपने आपको खुश करना - *यह भी अपने को धोखा देना है। बापदादा देखते हैं कभी-कभी बच्चे अपने को इसी आधार पर अच्छा समझखुश समझ धोखा दे देते हैंदे भी रहे हैं।* दे देते हैं और दे भी रहे हैं। यह भी एक गुह्य राज है। क्या होता हैबाप दाता हैदाता के बच्चे हैंतो सेवा युक्तियुक्त नहीं भी हैमिक्स हैकुछ याद और कुछ बाहर के साधनों वा खुशी के आधार पर है, *दिल* के आधार पर नहीं लेकिन *दिमाग* के आधार पर सेवा करते हैं तो सेवा का *प्रत्यक्ष फल* उन्हों को भी मिलता हैक्योंकि बाप *दाता* है और वह उसी में ही खुश रहते हैं कि *वाह हमको तो फल मिल गयाहमारी अच्छी सेवा है।* लेकिन वह *मन की सन्तुष्टता सदाकाल नहीं रहती और आत्मा योगयुक्त पावरफुल याद का अनुभव नहीं कर सकतीउससे वंचित रह जाते।*

 

 _ ➳  *बाकी कुछ भी नहीं मिलता होऐसा नहीं है। कुछ-न-कुछ मिलता है लेकिन जमा नहीं होता।* कमायाखाया और खत्म। इसलिए यह भी अटेन्शन रखना। सेवा बहुत अच्छी कर रहे हैंफल भी अच्छा मिल गयातो खाया और खत्म। *जमा क्या हुआ?* अच्छी सेवा कीअच्छी रिजल्ट निकली, लेकिन वह सेवा का फल मिला, जमा नहीं होता। इसलिए जमा करने की विधि है - *मन्सा-वाचा-कर्मणा पवित्रता। फाउन्डेशन पवित्रता है।* सेवा में भी फाउन्डेशन पवित्रता है। स्वच्छ होसाफ हो। और कोई भी भाव मिक्स नहीं हो। *भाव में भी पवित्रताभावना में भी पवित्रता।*

 

✺   *"ड्रिल :-  मंसा में, चाहे वाणी में, कर्म में वा सम्बन्ध-सम्पर्क में शुद्धि का अनुभव"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा सूक्ष्मवतन में शिव बाबा के साथ एक रुहानी हाल में खडी हुई हूँ... जहाँ बहुत सुन्दर सुन्दर रूहानी रंगो से मूर्तियां रंगी हुई है एंव सफेद मोतियों से सजी हुई है मैने बाबा से पूछा *बाबा यह सुन्दर चित्र किसके है और किसने बनाये?* बाबा अपनी रूहानी नजरों से मुझ आत्मा को दिव्य साक्षात्कार करवा रहे कि *कैसे हम आत्मायें मोतियों से सजे हुए... हाथों में बासुरी लिये अपना दिव्य खेल खेल रहे है...* मुझ आत्मा को इन खूबसूरत चित्रों में खोया देख बाबा मुसकुरा कर कह रहे कि *यह रूहानी चित्र आप बच्चों के ही तो है जो बाबा दिन भर तैयार करता है इस उम्मीद के साथ कि एक दिन आप इन जैसे बन जाओगे...* मैं आत्मा अपने आँसूओं को चाहते हुए भी नही रोक पा रही और मन ही मन सोच रही कि *वाह मेरा भाग्य... वाह मेरे बाबा... कभी सपने में भी नही सोचा था कि तुम हमे मिल जाओगे और  हमे विश्व की बादशाही दिलवाओगे... भला और किसी को क्या चाहिये, तुम मिल गए मानो सब मिल गया... शुक्रिया बाबा मुझे अपना बनाने के लिये...*

 

 _ ➳  कुछ देर बाद बाबा एक स्थान पर खड़े हो जाते हैं... और मैं आगे दौड़ जाती हूँ... जैसे ही मैं पीछे मुड़कर देखती हूँ तो बाबा मुझसे दूर दिखाई देते हैं... मैं दौड़ते हुए बाबा के पास जा रही हूँ... बाबा ने कहा बच्ची पहले तुम सेवा करने के लिये तैयार हो जाओ... इतना कहकर बाबा सर्वप्रथम मुझे अपनी सतरंगी किरणों से नहलाकर सेवा करने के लिए तैयार कर रहे हैं... जैसे-जैसे ये सतरंगी किरणें मुझपर गिरती है... वैसे -वैसे मैं अपने आपको शक्तिशाली महसूस करने लगती हूँ... उनकी किरणों से नहाकर मैं अपने आपको संगमयुग की श्रेष्ठ प्राप्ति स्वरूप आत्मा अनुभव कर रही हूँ... और *मैं अपने आपको बहुत ही भाग्यशाली आत्मा समझने लगी हूँ कि मुझे स्वयं भगवान ने विश्व परिवर्तन के कार्य में अपना सहयोगी बनाया है...*

 

 _ ➳  *अब मैं सर्व खजानों से भरपूर होकर विश्व परिवरतन के खेल में आगे बढ़ती चली जा रही हूँ... और अपने व्यर्थ संकल्पों को पीछे छोड़ती जा रही हूँ...* मेरा मन भी बच्चे की भांति एकदम निष्कपट और कोमल हो गया है... मैं खेल में और भी उत्साहित हो रही हूँ... उछल-कूद रही हूँ... मेरे मन में किसी के लिए भी कोई बैर-भाव नहीं है... बाबा के साथ खेल खेलते हुए मेरी मंसा, वाचा, कर्मणा सभी शुद्ध होते जा रहे हैं... मेरी स्थिति और भी ऊँची होती जा रही है... ये अनुभव करते हुए मैं और आगे दौड़ने लगती हूँ... बाबा मुझे फिर दूर खड़े होकर निहारने लगते हैं... और अपनी पलकों के इशारे से मुझे अपने पास बुलाते हैं...

 

 _ ➳  फिर दौड़कर मैं बाबा के पास जाती हूँ... और *बाबा मुझे संगम युग के महत्व के बारे में बता रहे हैं...* बाबा कहते हैं- "खेल-खेल में प्राप्त कर लो संगमयुग के सर्व खजाने, कहीं समय ना बीत जाये फिर बनाने लगो तुम बहाने..." मैं उछलती-कूदती हुई उनकी सभी कही गई बातों को अपने अंदर समां लेती हूँ... उनकी दी हुई सभी अनमोल शिक्षायें जीवन में उतार लेती हूँ... और गुलाब की तरह खिल जाती हूँ... मेरे जीवन में मैं संपूर्ण पवित्रता की झलक देखने लगती हूँ...

 

 _ ➳  तभी बाबा को मेरी नज़रे ढूंढ़ती है... बाबा खेल में मुझसे छुप जाते है... और मैं चुपके से उन्हें ढूंढ लेती हूँ... और मेरा मन बाबा के साथ खेलते हुए ये अनुभव कर रहा है... *मानों मैंने सबकुछ पा लिया हो...* मेरा मन अति आनंदित हो रहा है तथा अतिइंद्रिय सुख की अनुभूति करने लगती हूँ... और इसी आनंद और उत्साह से मैं अपने पुरुषार्थ में जुट जाती हूँ...

 

 _ ➳  मेरा मन एकदम बच्चे की तरह निष्कपट और कोमल बन गया है... मेरे संबंध-संपर्क में आने वाली सभी आत्माएं पावन बन रही हैं... *मैं मंसा, वाचा, कर्मणा, पवित्र बन चुकी हूँ...* मुझे सर्व खजाने के मालिक पन की अनुभूति हो रही है... अब मैं अन्य आत्माओं के प्रति शुभचिंतक बन उनको शुभ भावनाएं देती जा रही हूँ... मैं जितना-जितना सभी को शुभभावनाएँ देती जा रही हूँ... उतना ही मैं पुरुषार्थ में आगे बढ़ती जा रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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