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 08 / 09 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *"हम बाबा के साथ खा रहे हैं" - भोजन करते समय यह स्मृति रही ?*

 

➢➢ *देवता बनने के लिए शंखध्वनि की ?*

 

➢➢ *स्वदर्शन चक्र फिराते रहे ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *दूसरों के परिवर्तन की चिंतन छोड़ पहले स्वयं का परिवर्तन करने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *सेवाओं में सदा उमंग रख छोटी छोटी बीमारियों को मर्ज किया ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  अब ऐसा कौन है जिसको एक मिनट भी फुर्सत नहीं मिल सकती? जैसे पहले ट्रैफिक कन्ट्रोल का प्रोग्राम बना तो कई सोचते थे - यह कैसे हो सकता? सेवा की प्रवृति बहुत बडी है, बिजी रहते हैं। लेकिन *लक्ष्य रखा तो हो रहा है ना प्रोग्राम चला रहा है ना।*

 

✧  *सेन्टर्स पर यह ट्रैफिक कन्ट्रोल का प्रोग्राम चलाते हो वा कभी मिस करते, कभी चलाते?* यह एक ब्राह्मण कुल की रीति-रसम है, नियम है। जैसे और नियम आवश्यक समझते हो, ऐसे *यह भी स्व-उन्नति के लिए वा सेवा की सफलता के लिए, सेवाकेन्द्र के वातावरण के लिए आवश्यक है।*

 

✧  ऐसे अन्तर्मुखी, एकान्तवासी बनने के अभ्यास के लक्ष्य को लेकर अपने दिल की लगन से बीच-बीच में समय निकाली। *महत्व जानने वाले को समय स्वत: ही मिल जात है।* महत्व नहीं है तो समय भी नहीं मिलता। *एक पॉवरफुल स्थिति में अपने मन को, बुद्धि को स्थित करना ही एकान्तवासी बनना है।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  भगवान से फिर से राजाई के लिए पढ़ाई पढ़कर,अपना एम् ऑब्जेक्ट सदा याद रखना"*

 

_ ➳  मधुबन प्रांगण में डायमण्ड हॉल में अपने खुबसूरत लक्ष्य को निहारती मै आत्मा मन्त्रमुग्ध हो जाती हूँ... और मीठे बाबा की याद में गहरे डूब जाती हूँ... और अगले ही पल दादी गुलजार के तन में विराजित मीठे बाबा को पाकर... अपने महान भाग्य पर मुस्कराती हूँ... मीठे बाबा मुझ आत्मा पर ज्ञान रत्नों की बरसात कर मुझे महा धनवान् बना रहे है... और मै आत्मा *भगवान को यूँ पिता, टीचर, सतगुरु रूप में पाकर भाव विभोर हो जाती हूँ.*.. ज्ञान धन से लबालब मै आत्मा, अपने देवताई लक्ष्य को सदा स्मर्ति में लिए... मीठे बाबा के हाथो में अपना हाथ देकर... सदा के लिए निश्चिन्त हो मुस्कराती हूँ...

 

   मीठे बाबा ने ज्ञान रत्नों की बौछार मुझ आत्मा पर कर सम्पन्न बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... *अपने प्यारे बच्चों को फिर से शहंशाह बनाने के लिए, भगवान पिता बनकर. अथाह खजानो और सुखो को अपनी हथेली पर सजाकर लाया है.*.. इस ईश्वरीय दौलत से सम्पन्न हो, देवताई सुखो में मुस्कराओ... अपना सम्पन्न स्वरूप देवताई लक्ष्य, सदा याद रख निरन्तर आगे बढ़ो..."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा से यूँ ज्ञान धन से मालामाल होकर, कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा... आपने मुझ आत्मा को अपनी गोद में बिठाकर, ज्ञान धन से भरपूर किया है... *भगवान को टीचर रूप में पाने वाली, मै संसार की सबसे भाग्यशाली आत्मा हूँ... जिसे ईश्वर पिता अपने हाथो से देवताई स्वरूप में ढाल रहा है.*.. यह कितना प्यारा मेरा भाग्य है..."

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को देवताई लक्ष्य का नशा दिलाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *संगम के वरदानी समय पर, ईश्वर पिता से देवताई अमीरी से, भरपूर हो रहे हो.*.. इस मीठे भाग्य के नशे में हर पल झूमते रहो... मीठे बाबा से फिर से राजयोग सीख, देवताई सौंदर्य और विश्व की राजाई पा रहे हो... अपने लक्ष्य को सदा स्मर्ति में रख ईश्वरीय यादो में खोये रहो..."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा से बेपनाह सुख और दौलत पाकर कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा *आपकी यादो की बाँहों में, खुबसूरत देवताई लक्ष्य पाकर, मनुष्य से देवतुल्य बन रही हूँ..*. इस समूर्ण विश्व धरा पर राज्य भाग्य पा रही हूँ... प्यारे बाबा आपसे पुनः राजयोग सीख, अपनी खोयी शक्तियाँ और गुणो के खजाने से पुनः भर रही हूँ..."

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपने प्यार और वरदानों से भरपूर करते हुए कहते है :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता की प्यार भरी छत्रछाया में बैठकर,पढ़ाई पढ़कर, सहज ही देवताई लक्ष्य को बाँहों में पा लो... *घनेरे सुखो की बहारो में प्रेम, शांति और आनन्द के झूलो में खिलखिलाओ.*..मीठे बाबा के सारे खजानो के अधिकारी बन, विश्व की बादशाही को पाने वाले महान भाग्यवान बनकर मुस्कराओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा को असीम प्यार से निहारते और गले लगाते हुए कहती हूँ :-"सच्चे साथी बाबा मेरे... मै आत्मा आपको पाकर धन्य धन्य हो गयी हूँ... आपकी यादो में गुणवान, शक्तिवान बन, अपने खोये अस्तित्व को पुनः पा रही हूँ... *सच्चे सुख, शांति और प्रेम की दुनिया की ओर रुख कर रही हूँ... और सदा की मालामाल हो रही हूँ.*.."मीठे बाबा की बाँहों में अथाह ज्ञान रत्नों को पाकर मै आत्मा... अपने स्थूल वतन में लौट आयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- स्वदर्शन चक्र फिराते रहना*"

 

_ ➳  स्वदर्शन चक्रधारी बन अपने 84 जन्मो के भिन्न - भिन्न स्वरूपों का गहराई से अनुभव करने के लिए मैं स्वयं को अशरीरी स्थिति में स्थित करती हूँ। *इस स्थिति में स्थित होते ही मैं स्वयं को विदेही, निराकार और मास्टर बीज रुप स्थिति में अपने शिव पिता परमात्मा के सामने परम धाम में देख रही हूँ*। कोई संकल्प कोई विचार मेरे मन में नही है। निर्संकल्प अवस्था। बस बाबा और मैं। *बीज रुप बाप के सामने मैं मास्टर बीज रुप आत्मा डेड साइलेंस की स्थिति का स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। कितना निराला अनुभव है। कितना अतीन्द्रिय सुख समाया है इस अवस्था में*।

 

_ ➳  यही मेरा संपूर्ण अनादि स्वरुप है। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं देख रही हूँ अपने अनादि सतोप्रधान स्वरूप को जो बहुत सुंदर, बहुत आकर्षक और बहुत ही प्यारा है। *बीजरूप निराकार परम पिता परमात्मा शिव बाबा की अजर, अमर, अविनाशी सन्तान मै आत्मा अपने अनादि स्वरूप में सम्पूर्ण पावन, सतोप्रधान अवस्था मे हूँ*। एक दिव्य प्रकाशमयी दुनिया जहां हजारों चंद्रमा से भी अधिक उज्ज्वल प्रकाश है उस निराकारी पवित्र प्रकाश की दुनिया की मैं रहने वाली हूँ। सर्व गुणों और सर्वशक्तियों से भरपूर हूँ।

 

_ ➳  अपने इसी अनादि सतोप्रधान स्वरुप में मैं आत्मा परमधाम से अब नीचे आ जाती हूं। संपूर्ण सतोप्रधान देह धारण कर नई सतोप्रधान दुनिया में मैं प्रवेश करती हूं। संपूर्ण सतोप्रधान चोले में अवतरित देवकुल की सर्वश्रेष्ठ आत्मा के रुप में इस सृष्टि चक्र पर मेरा पार्ट आरंभ होता है। *अब मैं मन बुद्धि से देख रही हूँ अपने आदि स्वरूप में देव कुल की सर्वश्रेष्ठ आत्मा के रूप में स्वयं को सतयुगी दुनिया में*। 16 कला सम्पूर्ण, डबल सिरताज, पालनहार विष्णु के रूप में मैं स्वयं को स्पष्ट देख रही हूँ। लक्ष्मी नारायण की इस पुरी में डबल ताज पहने देवी देवता विचरण कर रहें हैं। *राजा हो या प्रजा सभी असीम सुख, शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर हैं। चारों ओर ख़ुशी की शहनाइयाँ बज रही हैं। प्राकृतिक सौंदर्य भी अवर्णनीय है*।

 

_ ➳  अब मैं आत्मा अपने पूज्य स्वरूप का अनुभव कर रही हूं। मैं देख रही हूं मंदिरों में, शिवालयों में भक्त गण मेरी भव्य प्रतिमा स्थापन कर रहे हैं। *मेरी जड़ प्रतिमा से भी शांति, शक्ति और प्रेम की किरणे निकल रहीं हैं जो मेरे भक्तों को तृप्त कर रही हैं*। अपने पूज्य स्वरूप में मैं आत्मा स्वयं को कमल आसन पर विराजमान, शक्तियों से संपन्न अष्ट भुजाधारी दुर्गा के रूप में देख रही हूं। *असंख्य भक्त मेरे सामने भक्ति कर रहे हैं, मेरा गुणगान कर रहे हैं, तपस्या कर रहे हैं, मुझे पुकार रहे हैं, मेरा आवाहन कर रहे हैं। मैं उनकी सभी शुद्ध मनोकामनाएं पूर्ण कर रही हूँ*।

 

_ ➳  अब मैं देख रही हूँ स्वयं को अपने ब्राह्मण स्वरूप में। ब्राह्मण स्वरुप में स्थित होते ही अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की स्मृति में मैं खो जाती हूँ। संगम युग की सबसे बड़ी प्रालब्ध स्वयं भाग्यविधाता भगवान मेरा हो गया। विश्व की सर्व आत्माएँ जिसे पाने का प्रयत्न कर रही है उसने स्वयं आ कर मुझे अपना बना लिया। *कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जिसे घर बैठे भगवान मिल गए। मेरा यह दिव्य आलौकिक जन्म स्वयं परमपिता परमात्मा शिव बाबा के कमल मुख द्वारा हुआ है। स्वयं परमात्मा ने मुझे कोटों में से चुन कर अपना बनाया है*। अपने ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धियों को देखते - देखते मुझे अपने ब्राह्मण जीवन के कर्तव्यों का भी ध्यान आने लगता है। उन कर्तव्यों को पूरा करने के लिए अब मैं स्वयं को अपने फ़रिशता स्वरूप में स्थित करती हूँ।

 

_ ➳  अब मैं डबल लाइट फरिश्ता बन गया हूँ। मेरे अंग - अंग से श्वेत रश्मियाँ निकल रही हैं। मेरे चारों ओर प्रकाश का एक शक्तिशाली औरा बनता जा रहा है। मेरे सिर के चारों ओर सफेद प्रकाश का एक बहुत सुंदर चमकदार क्राउन दिखाई दे रहा है। *ज्ञान और योग के चमकदार पंख मुझ फरिश्ते की सुंदरता को औऱ अधिक निखार रहे हैं। सम्पूर्ण फरिश्ता स्वरूप धारण किये, परमपिता का संदेशवाहक बन विश्व की सर्व आत्माओं को परमात्मा के इस धरा पर अवतरित होने का संदेश देने के लिए अब मैं  सारे विश्व का भ्रमण कर रहा हूँ*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  मैं आत्मा दूसरों के परिवर्तन की चिंता न कर स्वयं का परिवर्तन करने वाली शुभचिंतक हूँ।*

 

 _ ➳ *स्व परिवर्तन की सुहावनी वेला में मैं आत्मा... अपने पुराने संस्कारों को... विकारों को एक बाप की याद की योग अग्नि में जलाकर भस्म करती जा रही हूँ...*  स्वयं का परिवर्तन करती मैं आत्मा शुभ, सकरात्मक चिंतन व श्रेष्ठ संकल्पों को पूरे ब्रह्माण्ड में फैला रही हूँ... *स्वयं को सतयुगी देवताई लक्षणों से परिपूर्ण करती जा रही हूँ...* बापदादा के महा यज्ञ में अपने पुराने संस्कारों को... अपने जन्मों के विकारों को स्वाहा करती जा रही हूँ... *सोलह कला संपूर्ण... संपूर्ण निर्विकारी... देवताई स्वरुप का आह्वान करती मैं आत्मा.. अपने सतयुगी संस्कारों को उजागार करती जा रही हूँ...* स्व सेवा से विश्व सेवा के पथ पर चलती मैं आत्मा बापदादा के श्रीमत को पूरा फॉलो करती जा रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सेवा का सदा उमंग रख छोटी छोटी बीमारियों के मर्ज होने का अनुभव"*

 

_ ➳  मैं पदमापदम भाग्यशाली आत्मा हूँ... जो *बाबा ने मुझ आत्मा को... निमित सेवाधारी बना दिया*... बाबा मुझ आत्मा पर कितनी लाइट दे रहें है... कितनी शक्ति देते और सेफ्टी में रखते है... सवेरे-सवेरे बाबा मुझ आत्मा को रूहानी दृष्टि से भरपूर करते हैं... जिससे मुझ *आत्मा की वृत्ति कल्याण की होती जा रही है*... मन्सा, वाचा, कर्मणा द्वारा मैं आत्मा सेवा करती जा रही हूँ... *श्वांसों श्वांस बाबा की सेवा में लगाती जा रही हूँ*... सारे विश्व को बाबा का संदेश पहुँचाने की सेवा... मुझ आत्मा में उमंग-उत्साह भरती जा रही है... *मैं विश्व सेवाधारी आत्मा हूँ*... यह उमंग मुझ आत्मा की छोटी-छोटी बीमारियों को मर्ज करता जा रहा है... *देह का भान समाप्त होता जा रहा है*... सब कमजोरियां समाप्त होती जा रही है... बाबा का हाथ मुझ आत्मा के हाथ में है... सर्व शक्तियाँ मुझ आत्मा में आती जा रही है...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  कभी-कभी सक्सेसफुल क्यों नहीं होतेउसका कारण क्या है? *जब अपना जन्म सिद्ध अधिकार हैतो अधिकार प्राप्त होने में, अनुभव होने में कमी क्यों?* कारण क्या?बापदादा ने देखा है - मैजारिटी अपने कमजोर संकल्प पहले ही इमर्ज करते हैंपता नहीं होगा या नहीं! *तो यह अपना ही कमजोर संकल्प प्रसन्नचित्त नहीं लेकिन प्रश्नचित्त बनाता है।* होगानहीं होगाक्या होगापता नहीं..... *यह संकल्प दीवार बन जाती है और सफलता उस दीवार के अन्दर छिप जाती है।*

 

 _ ➳  *निश्चयबुद्धि विजयी - यह आपका स्लोगन है ना!* जब यह स्लोगन अभी का हैभविष्य का नहीं हैवर्तमान का है तो सदा प्रसन्नचित्त रहना चाहिए या प्रश्नचित्त? *तो माया अपने ही कमजोर संकल्प की जाल बिछा लेती है और अपने ही जाल में फँस जाते हो। विजयी हैं ही - इससे इस कमजोर जाल को समाप्त करो।* फँसो नहीं, लेकिन समाप्त करो। समाप्त करने की शक्ति है? धीरे-धीरे नहीं करो, फट से सेकण्ड में इस जाल को बढ़ने नहीं दो। अगर एक बार भी इस जाल में फँस गये ना तो निकलना बहुत मुश्किल है। विजय मेरा बर्थराइट हैसफलता मेरा बर्थराइट है। यह बर्थराइट, परमात्म बर्थराइट हैइसको कोई छीन नहीं सकता - *ऐसा निश्चयबुद्धिसदा प्रसन्नचित्त सहज और स्वतः रहेगा। मेहनत करने की भी जरूरत नहीं।* 

 

✺   *ड्रिल :-  "निश्चयबुद्धि विजयी बन सदा प्रसन्नचित्त रहने का अनुभव"*

 

 _ ➳  मैं शिव शक्ति आत्मा हूँ... मैं परमपिता शिव बाबा की संतान हूँ... मैं आत्मा इस साकारी तन से निकल... उड़ कर पहुंच गयी हूँ... अपने परमपिता की छत्रछाया के नीचे... जैसे ही बाबा ने मुझे देखा... वैसे ही उन्होंने मुझे करीब बुलाया... और मुझे अपनी प्यार भरी गोद में बिठा लिया... *बाबा ने मेरे मस्तक पर अपना वरदानी हाथ रख दिया... और कहा बच्ची निश्चय बुद्धि सदा विजयन्ती...*

 

 _ ➳  बाबा ने कहा बच्चे- *सफलता तुम्हारा जन्म सिद्ध अधिकार है...* बाबा के इतना कहते ही... *मैंने अपने सारे कमजोर संकल्पों को बाबा की झोली में डाल दिया...* क्या, क्यूँ, होगा या नहीं होगा ऐसे कमजोर संकल्पों को बाबा के सम्मुख रख दिया... बाबा मुझे हाथ पकड़कर एक दीवार के पास ले गए... जो मेरे ही कमजोर संकल्पों से बनी थी... बाबा ने इस दीवार को तोड़ दिया...

 

 _ ➳  फिर बाबा ने कहा देखो बच्ची तुम्हारी सफलता के बीच... ये तुम्हारे कमजोर संकल्पों की दीवार थी... मैं अपनी सफलता को देख नाचने लगी... और बाबा से वादा किया... बाबा आज के बाद मैं हमेशा दृढ़ निश्चयी बन कर... हमेशा सफलता को प्राप्त करूंगी... इन कमजोर संकल्पों का जाल अब कभी नहीं बनने दूँगी... *और ना इन कमजोर संकल्पों के जाल में कभी फसुंगी... सारे जाल एक सेकंड में फट से समाप्त हो गए...*

 

 _ ➳  जब से मेरा ईश्वरीय जनम हुआ... तब से ही विजय मेरा बर्थराइट है... *यह मेरा बर्थराइट, परमात्म बर्थराइट है... इसको अब मुझसे कोई छीन नहीं सकता है...* मैं परमपिता की संतान हूँ... इस दृढ़ निश्चय के नशे को अब कभी उतरने नहीं दूँगी... *मैं आत्मा अब सदा प्रसन्न चित्त रहूँगी...* आज से यह सहज और स्वत: ही होगा... इसके लिए अब मुझे *मेहनत की जरूरत नहीं है...* मैं सफलता के सागर शिवपिता की संतान हूँ... *सफलता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है... इसका नशा मुझे हमेशा रहेगा...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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