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 08 / 02 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *"हम ब्राहमण चोटी सबसे उत्तम हैं" - इसी नशे में रहे ?*

 

➢➢ *विचित्र बनने का पूरा पूरा पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *"मैं आत्मा निराकरी दुनिया की रहने वाली हूँ" - यह पाठ पक्का किया ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *हर कर्म योगयुक्त', युक्तियुक्त किया ?*

 

➢➢ *मोहब्बत के झूले में झूल मेहनत से छूटे रहे ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *आपस में भी मुबारकबाद दी और स्वयं को भी मुबारकबाद दी ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे - बाप आये है तुम बच्चों को आप समान अशरीरी बनाने, जब तुम अशरीरी बनो तब बाप के साथ चल सको"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... स्वयं को देह समझ और देहधारियों से दिल लगाकर दुखो के घने जंगल में भटक गए... अब ईश्वर पिता से सत्य को जान अपने ज्योति स्वरूप के भान में खो जाओ... *अपनी निराकारी सत्यता को हर साँस संकल्प में जीकर*... सुनहरे सुखो के अधिकारी बन सदा का मुस्कराओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा शरीर नही खुबसूरत मणि हूँ.*.. मीठे बाबा आप जेसी ही निराकार खुबसूरत हूँ इस सत्य को बाँहों में भर कर खुशियो के गगन में उड़ चली हूँ... और स्वयं के सत्य भान में टिक कर पुनः तेजस्वी बनती जा रही हूँ...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... अब इस देह की मिटटी में मन बुद्धि रुपी हाथो को और नही सानो... *अपने ओजस्वी तेजस्वी स्वरूप को यादो में बसाओ.*.. ईश्वर पिता समान अशरीरी के भान में खो जाओ... देह के सब रिश्तो नातो से उपराम होकर... अशरीरी पन के नशे में गहरे उतर जाओ...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा देह भान के दलदल से निकल कर... ईश्वरीय प्यार की खुशबु से रंगती जा रही हूँ... मै *अविनाशी आत्मा हूँ इस सत्य को हर पल अपनाती जा रही हूँ.*.. अपने असली अशरीरी सौंदर्य को यादो में बसाकर मीठे बाबा की ऊँगली पकड़ घर चलने की तैयारी कर रही हूँ....

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जब घर से चले थे कितने महकते फूल थे... धरा की मिटटी में खेलते खेलते अपने दमकते स्वरूप को भूल कर मात्र शरीरधारी हो चले... *अब उसी महक उसी रंगत उसी नूर को यादो में ताजा करो.*.. अपने अविनाशी पन को हर साँस में पिरोकर पिता संग घर की ओर लौटने की तैयारी में जुट चलो...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में अपनी सच्ची *अशरीरी सुंदरता को पाती जा रही हूँ.*.. इस देह के मायाजाल से निकल कर अविनाशी गौरव को यादो में बसा रही हूँ... मै आत्मा मीठे बाबा के साथ घर चलने को सज संवर रही हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा निरंतर योगी हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  मैं परमात्मा द्वारा चुनी गई विशेष आत्मा हूँ... परम पिता ने कोटो में से चुनकर मुझ आत्मा को महान बना दिया... श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा बना दिया... सुप्रीम माली ने मुझ आत्मा को विकारों के कंटीले जंगल से निकाला... *संगमयुगी पॉट में रुहानी फूल* बनाकर सजा दिया...

 

➳ _ ➳  सुप्रीम माली मुझ रुहानी फूल को रोज *ज्ञान जल से सींचते* हैं... गुण, शक्तियों रुपी उर्वरक से मुझ आत्मा को शक्तिशाली बना रहे हैं... मुझ आत्मा के विकारों रुपी कांटे टूट कर गिरते जा रहे हैं... मैं आत्मा कांटों से मुक्त होती जा रही हूँ... सुगंधित फूल बनती जा रही हूँ...

 

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा सूरजमुखी फूल की तरह सदा ज्ञान सूर्य को ही देखती हूँ... मैं आत्मा मायावी आकर्षणों से मुक्त होकर एक बाबा की ओर आकर्षित होती जा रही हूँ... *एक बाबा के प्यार में मगन* होती जा रही हूँ... अब मुझ आत्मा को एक बाबा ही बड़ा प्यारा लगता है... मुझ आत्मा के दिल में एक बाबा ही बसता चला जा रहा है...

 

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा साधारण या व्यर्थ कर्म नहीं करती हूँ... मैं आत्मा योगयुक्त, युक्तियुक्त कर्म करने का अभ्यास कर रही हूँ... निरंतर एक बाबा के प्यार में लवलीन होकर श्रेष्ठ कर्म कर रही हूँ... हर सेकंड, हर संकल्प, हर बोल श्रेष्ठ होते जा रहे हैं... एक बाप से दिल का प्यार बढ़ते जा रहा है... अब मैं आत्मा हर कर्म योगयुक्त, युक्तियुक्त करने वाली *कर्मयोगी सो निरंतर योगी* स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मेहनत से छुटने के लिए  मोहब्बत के झूले में झूलना"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा प्यार के सागर की सन्तान... मास्टर प्यार का सागर हूँ... हर आत्मा से मोहब्बत करना मेरी फितरत हैं... मेरा स्वभाव हैं... *प्यार में वो शक्ति है जो पत्थर को भी पानी कर दे...*

 

➳ _ ➳  मैं शिवबाबा से बेइंतहा मोहब्बत करती हूँ... आय लव शिवबाबा... *जिससे मोहब्बत करते हैं, उसकी हर बात प्यारी लगती है...* मैं परमात्मा शिवबाबा की हर बात को सर आँखो पर रखती हूँ... बाबा से इतनी मोहब्बत है की उनकी कही कोई भी बात को धारण करने में मुझे जरा भी मेहनत नहीं लगती... बस बाबा ने कहा और मैंने किया...

 

➳ _ ➳  मैं स्वयं से भी मोहब्बत करती हूँ... मैं आत्मा जो हूँ, जैसी हूँ अच्छी हूँ... शिवबाबा की हूँ... सतत अच्छाई के रास्ते पर चलती हूँ... *सब पर प्यार लुटाना... यही मेरा धंधा हैं...* मैं हर आत्मा से रूहानी मोहब्बत करती हूँ...

 

➳ _ ➳  मोहब्बत में मेहनत जरा भी नहीं महसूस होती... मैं आत्मा सदा ही मोहब्बत के झूले में झूलती रहती हूँ... सभी को प्यार देना और प्यार लेना... *अपकारी पर भी प्रेम की वर्षा करना... इससे हर आत्मा के कठोर से कठोर संस्कार भी पिघल जाते है...* जरा भी मेहनत नहीं लगती...

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *हर कर्म योगयुक्त, युक्तियुक्त करने वाले कर्मयोगी सो निरन्तर योगी होते हैं...  क्यों और कैसे?*

 

 ❉  कर्मयोगी माना ही हर कर्म करते एक बाप की याद में रहना । हर कर्म हम योग युक्त होके करते है तो ये स्मृति  सदा रहती है *करवाने वाला कौन और करने वाला कौन* । और जब हम करनहार है और करवाने वाला करावनहार बाप है तो मैं आत्मा तो केवल निम्मित मात्र हुँ तो एक बाबा की याद स्वतः रहेगी जिससे मैं आत्मा निरंतर योगी बन जाऊँगी ।

 

 ❉  युक्तियुक्त कर्म करना अर्थात ज्ञान की ऐप्लिकेशन को सही जगह यूज़ करना । अर्थात जब *जिस पोईंट की आवश्यकता है तभी अप्लाई करना* ऐसा नहीं बाद में अप्लाई करना तो फ़ायदा नही होगा । ज्ञान की पोईंट को समय पर यूज़ करना ही आत्मा को स्वतः ही कर्मयोगी की स्टेज पर स्थित रखेगी ।

 

 ❉  जैसे ब्रह्मा बाबा मुरली में हमको अनेक उदाहरण देकर समझाते है , जैसे की कहते *भाई-भाई की दृष्टि रखो* इससे तुम्हारे में नैचरल गुण इमर्ज होंगे ओर भाई बहन बुद्धि से समझने से तुम विकार में नही गिरेंगे । इस वाक्य में बाबा ने हम बच्चों को युक्ति भी बता दिया कि कौनसी दृष्टि रखने से हम पवित्र रह सकते और भाई भाई के अभ्यास के द्वारा हमारा एक बाबा से योग भी पक्का करवा दिया जिससे आत्मा निरंतर योगी बन जाती ।

 

 ❉  जैसे बाबा मुरली में बहुत बार हमको भिन्न भिन्न उदाहरण देते सर्प का , नंदिगन का , भ्रमरी का , कभी धोबी , माली , बागवान, टीचर , हंस बूगोल, चूहे का आदी आदी ... इन सबको देखते ही हमको अब ज्ञान की पोईंट याद आ जाती है इसलिए निरंतर योग लगा रहता युक्ति से । ( जैसे सर्प अपनी एक खाल बदल दूसरी लेता इसी तरह हम भी सतयुग में एक खाल छोड़ दूसरी लेंगे अपने समय पर इसने दुःख की बात नही )

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *मेहनत से छूटना है तो मोहब्बत के झूले में झूलते रहो... क्यों और कैसे* ?

 

❉   देह और देह की दुनिया को भूल जब केवल एक बाप की मोहब्बत के झूले में झूलते रहेंगे तो हर संकल्प, हर बात में न्यारे होते जाएंगे और जितना *न्यारे होते जायेंगे उतना बाबा की शिक्षाएं हमारे संस्कार में आकर स्वरुप बनती जाएंगी* । कदम - कदम पर परमात्मा बाप के साथ का अनुभव और साथ के अनुभव की शक्ति हमारे अंदर भरती जाएगी । जो हर प्रकार की मेहनत से छुड़ा कर कार्य व्यवहार में एवरेडी और हल्का बना देगी ।

 

❉   किसी भी कार्य को करने में जब मेहनत का अनुभव होता है तो थकावट महसूस होती है । इसलिये *बालक सो मालिक बन मेहनत के बजाय जब मुहब्बत में समाये रहेंगे तो सब प्रकार के बोझ से स्वयं को मुक्त अनुभव करेंगे* । संगमयुग है ही मुहब्बत का युग, मिलन का युग और संगमयुग की प्रालब्ध ही है सम्पन्न स्टेज के तख़्तनशीन । इसलिए  संगमयुग की श्रेष्ठ प्राप्तियों को जितना स्मृति में रख मोहब्बत के झूले में झूलते रहेंगे उतना मेहनत के अनुभव से मुक्त रहेंगे ।

 

❉   जो सदा बाबा की मोहब्बत के झूले में झूलते रहते हैं । दिल में केवल एक दिलाराम बाप को बसा कर रखते हैं और दिल से बाबा बाबा कहते रहते हैं । *वे सदा उमंग - उत्साह और ख़ुशी में एकरस रह, हर गुण वा शक्ति को अपना स्वरूप बना लेते हैं* और अपनी शक्तिशाली स्थिति में स्थित हो शक्ति स्वरूप बन बाप द्वारा मिले सर्व खजानों और शक्तियों का अनुभव सर्व आत्माओं को कराते रहते हैं । वे सदा ख़ुशी के खजाने से भरपूर रहते हैं इसलिए हर प्रकार की मेहनत से छूट जाते हैं ।

 

❉   स्वयं को ट्रस्टी समझने के बजाए जब गृहस्थी समझते हैं तो कार्य में मेहनत का अनुभव करते हैं क्योकि गृहस्थीपन अर्थात *अनेक रसों में भटकना और भटकने वाला कभी भी एकरस स्थिति में स्थित नही हो सकता* इसलिए सदा स्वयं के ऊपर एक बोझ अनुभव करता है और बोझ मेहनत का अनुभव कराता है । इसलिए गृहस्थी के बजाए जब स्वयं को ट्रस्टी समझेंगे और बाबा की मोहब्बत के झूले में झूलते रहेंगे तो हर परिस्थिति में स्थिति एकरस रहेगी और मेहनत से छूट जायेंगे ।

 

❉   अकेलेपन का अनुभव शक्तिहीन स्थिति की अनुभूति कराता है जिससे छोटा सा कार्य भी मुश्किल लगता है और उसे करने में मेहनत का अनुभव होता है । इसलिए मोहब्बत के झूले में झूलते हुए स्वयं को *सर्वशक्तिवान बाप की छत्रछाया के नीचे जब अनुभव करते हैं तो सर्वशक्ति सम्पन्न स्थिति का अनुभव होता है* । सदा कम्बाइंड स्वरूप में रहने से और बाबा को कम्पैनियन के रूप में सदा साथ रखने से हर विघ्न का सामना करते हुए भी सदा निश्चिन्त रहते हैं और लाइट माइट स्थिती में स्थित रहने के कारण मेहनत से छूट जाते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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