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❍ 23 / 11 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*5=25)
➢➢ *किसी भी बात का अफ़सोस तो नहीं किया ?*
➢➢ *गृहस्थ व्यवहार से तोड़ निभाया ?*
➢➢ *कमल फूल समान बनकर रहे ?*
➢➢ *स्वराज्य के साथ साथ बेहद की वैराग्य वृत्ति को धारण किया ?*
➢➢ *सब आधार टूटने से पहले एक बाप को अपना आधार बनाया ?*
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❂ *तपस्वी जीवन प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं* ✰
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〰✧ *आपके सामने कोई कितना भी व्यर्थ बोले लेकिन आप व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन कर दो। व्यर्थ को अपनी बुद्धि में स्वीकार नहीं करो। अगर एक भी व्यर्थ बोल स्वीकार कर लिया तो एक व्यर्थ अनेक व्यर्थ को जन्म देगा।* अपने बोल पर भी पूरा ध्यान दो, ‘‘कम बोलो, धीरे बोलो और मीठा बोलो’’ तो अव्यक्त स्थिति सहज बन जायेगी।
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:- 10)
➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाये ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ (बापदादा ने ड़िल कराई) *एक सेकण्ड में डॉट लगा सकते हो?* अभी-अभी कर्म में और अभी-अभी कर्म से न्यारे, कर्म के सम्बन्ध से न्यारे हो सकते हो? यह एक्सरसाइज आती है?
〰✧ किसी भी कर्म में बहुत बिजी हो, मन-बुद्धि कर्म के सम्बन्ध में लगी हुई है, बन्धन में नहीं, सम्बन्ध में, लेकिन डायरेक्शन मिले - फुलस्टॉप। तो *फुलस्टॉप लगा सकते हो कि कर्म के संकल्प चलते रहेंगे?* यह करना है, यह नहीं करना है, यह ऐसे है, यह ऐसे है।
〰✧ तो यह प्रेक्टिस एक सेकण्ड के लिए भी करो लेकिन *अभ्यास करते जाओ, क्योंकि अंतिम सर्टीफिकेट एक सेकण्ड के फुलस्टॉप लगाने पर ही मिलना है।* सेकण्ड में विस्तार को समा ले, सार स्वरूप बन जाये। तो यह प्रैक्टिस जब भी चांस मिले, कर सकते हो तो करते रहो।
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:- 15)
➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- गृहस्थ व्यवहार में रहते तोड़ निभाकर, एक बार बेहद का सन्यास कर 21 जन्म की प्रालब्ध बनाना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा तालाब के किनारे बैठ खिले हुए कमल कुन्ज देख देख हर्षित हो रही हूँ...* हौले-हौले मस्ती भरी हवाएं चल रही है... बरखा की मधुर फुहारें नए-नए साज गाकर सुना रही हैं... सफ़ेद, गुलाबी रंगत लिए ये कमल ऐसे लग रहे जैसे तालाब के पानी में राज करे रहे हों... एकदम साफ़ उजले उजले कमल एक बूंद कीचड या पानी भी अपने ऊपर ठहरने नहीं देते हैं... *अपने मुस्कुराते मन कमल को बाबा को अर्पित करने मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ प्यारे वतन...*
❉ *प्यारे ज्ञान सूर्य बाबा अपने ज्ञान किरणों की बूंदों से मेरे मन कमल को भिगाते हुए कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय राहो पर चलकर फूलो जैसा मुस्कराता खुशनुमा जीवन पाओ... *ऐसी खुबसूरत खुशियो से दामन सजाने वाले प्यारे बाबा पर दिल जान से बलिहार जाओ...* ईश्वर पिता पर रोम रोम से कुर्बान जाओ... एक बार बेहद का सन्यास कर 21 जन्म के मीठे सुखो की तकदीर को सहज ही पा लो...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा हद के संबंधों से तोड़ निभा एक बाबा से सर्व संबंधो का रस लेते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपको पाकर अनन्त खुशियो को बाँहों में भर गई हूँ... *प्यारे बाबा आपकी सारी दौलत सारे खजाने अपने नाम कर ली हूँ.*.. सच्चे दिल से बलि होकर कखपन देकर 21 जनमो की अमीरी पाने वाली महा भाग्यवान सज गयी हूँ..."
❉ *मीठे बाबा विषय विकारों के कीचड़ से मुझ आत्मा को बाहर निकाल कमल फूल समान पवित्र बनाते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता के साथ के यह मीठे पल खुबसूरत यादो से छ्लकाओ... और देवताई ताजो तख्त ईश्वर पिता से अपने नाम लिखवाओ... सच्चे प्रेम में बलि हो, ईश्वर पिता पर अपना पूरा पूरा अधिकार जमाओ... *21 जनमो के सच्चे सुखो के खातिर यह एक जनम ईश्वर पिता को सौंप दो... गृहस्थ व्यवहार में रहते सबसे तोड़ निभाओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा संगम की इन सुहावनी घड़ियों को प्यारे बाबा के नाम करते हुए कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा सुख और शांति की खोज में किस कदर दर दर भटक रही थी... प्यारे बाबा आपने तो सुखो का समन्दर ही मेरे नाम कर दिया है... आपको पाकर तो मैंने सारा जहान पा लिया है... *यह कौड़ी तुल्य जीवन सौंप कर हीरों से दामन सजा लिया है..."*
❉ *प्यारे बाबा मुझे रूहानियत से भरपूर कर पद्मापदम् भाग्यवान बनाते हुए कहते है:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता को दुखो में व्याकुल होकर जो पुकार रहे थे... *वह मीठा बाबा अखूट खजानो को हथेली पर सजा, उपहार सा लाया है...* एक बार ऐसे पिता पर पूरा पूरा बलिहार जाओ... अधूरा नही, जितना ईश्वरीय दिल पर मर मिटोगे... उतनी सुखो की दौलत से मालामाल रहोगे..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा के इस अमूल्य ज्ञान की चाबी से 21 जन्मों के श्रेष्ठ भाग्य की प्रॉपर्टी अपने नाम करते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा देहधारियों पर मर मिटकर जो खाली और निष्प्राण हो गई थी... आज मीठे बाबा आप मनमीत को पाकर, सच्चे दिल से अर्पण हो गई हूँ... गुणो और शक्तियो की दौलत पाकर, असीम धनदौलत को पा गई हूँ... *21 जनमो का शानदार भाग्य पाकर निहाल हो गयी हूँ..."*
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- आस्तिक बन सबको आस्तिक बनाना है*"
➳ _ ➳ स्वयं को आस्तिक समझने वाले, भगवान को जानने का दावा करने वाले, भगवान की बड़ी - बड़ी महिमा करने वाले बड़े - बड़े महा मंडलेश्वर, साधू सन्यासी भी वास्तव में भगवान को ना जान सके और ना ही पहचान सके किन्तु *अति साधारण दिखने वाली जिन चन्द आत्माओं ने भगवान बाप को पहचान लिया वास्तव में वो ब्राह्मण बच्चे ही सही अर्थ में आस्तिक हैं*। एकांत में बैठ मन ही मन चिंतन करती, अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की मैं सराहना करती हूँ कि कितनी पदमापदमा सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जिसे भगवान ने स्वयं आकर ज्ञान का वो तीसरा नेत्र दिया जिससे भगवान को पहचान कर मैं सही मायने में आस्तिक बन गई।
➳ _ ➳ जैसे भगवान बाप ने ज्ञान का तीसरा नेत्र देकर अज्ञान अन्धकार से मुझे निकाल कर आस्तिक बनाया ऐसे ही मुझे भी अज्ञान अन्धकार में भटक रही आत्माओ को परमात्म ज्ञान देकर सोझरे में लाना है ताकि वो भी परमात्मा को पहचान सकें और सही अर्थ में आस्तिक बन सके। *मन ही मन स्वयं से मैं जैसे ही यह प्रतिज्ञा करती हूँ वैसे ही परमात्म ब्लैसिंग बाबा की सर्वशक्तियों की अनन्त शक्तिशाली किरणो के रूप में सीधे
परमधाम से मुझ आत्मा पर बरसने लगती हैं*। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे बाबा इस ईश्वरीय सेवा के लिए मुझ में असीम बल भर कर मुझे बलशाली बना रहे हैं। परमात्म प्रेम और परमात्म शक्तियों का मेरे अंदर गहराई तक समावेश हो रहा है।
➳ _ ➳ स्वयं को मैं बहुत ही लाइट और माइट अनुभव कर रही हूँ। मेरी यह लाइट और माइट स्थिति मुझे देह से डिटैच कर रही है। स्वयं को मैं देह में विराजमान किन्तु देह से एकदम अलग अनुभव कर रही हूँ। *एक अति प्यारी साक्षी स्थिति में स्थित हो कर मैं अपने शरीर रूपी रथ को और अपने आस पास की हर वस्तु को देख रही हूँ किन्तु इन सबके आकर्षण से मैं पूर्णतया मुक्त हूँ*। साक्षी हो कर इन सबको मन बुद्धि के नेत्रो से देखते हुए अब मै इन सबसे किनारा कर ऊपर आकाश की ओर उड़ चलती हूँ। *कुछ सेकंड की एक अति सुंदर रूहानी यात्रा को पूरा करके मैं अपने पिता के घर, निराकारी आत्माओं की दुनिया में आ पहुँचती हूँ*। यहाँ पहुंच कर मन को गहन शान्ति और सुकून का अनुभव हो रहा है।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे मैं अपनी मंजिल पर पहुँच गई हूँ। मेरे बिल्कुल सामने, शांति, सुख, प्रेम, आनन्द, शक्ति, ज्ञान और पवित्रता के सागर मेरे शिव पिता विराजमान है और अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैला कर मेरा आह्वान कर रहें हैं। *अपने शिव पिता की और तीव्र गति से बढ़ती हुई मैं आत्मा उनकी किरणो रूपी बाहों में जा कर समा जाती हूँ*। अपनी किरणों रूपी बाहों के आगोश में लेकर बाबा अपनी असीम शक्ति मेरे अंदर भर रहें हैं। स्वयं को मैं बहुत ही बलशाली, बहुत ही एनर्जेटिक अनुभव कर रही हूँ। *बाबा अपने सर्व गुण, सर्व शक्तियाँ मेरे अंदर प्रवाहित कर मुझे आप समान बना रहें हैं*।
➳ _ ➳ भरपूर होकर अब मैं ईश्वरीय सेवा अर्थ वापिस साकार लोक की ओर लौट रही हूँ। आस्तिक बन सबको आस्तिक बनाने की प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए अपने ब्राह्मण तन में विराजमान हो कर अब मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सभी आत्माओं को परमात्मा का सत्य ज्ञान, सत्य परिचय दे रही हूँ। *वे आत्मायें जो भगवान को पाने के लिए भक्ति के व्यर्थ के कर्मकाण्डों में फंस कर अपने समय और एनर्जी को वेस्ट कर रही हैं उन्हें सत्य ईश्वरीय मार्ग दिखा कर, परमात्म पहचान दे कर, परमात्मा को याद करने की यथार्थ विधि बताकर उन्हें भक्ति के व्यर्थ के कर्मकांडो से मुक्ति दिलाकर आस्तिक बना रही हूँ*।
➳ _ ➳ *स्वयं आस्तिक बन सबको आस्तिक बनाना इसी ईश्वरीय सेवा अर्थ मुझे यह ब्राह्मण जीवन मिला है इस बात को स्मृति में रख यह परमात्म सेवा अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं स्वराज्य के साथ बेहद की वैराग्य वृति को धारण करने वाली सच्ची - सच्ची राजऋषि आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को स्वमान में स्थित करने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *सब आधार टूटने के पहले एक बाप को अपना आधार बना लेने वाली मैं समझदार आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ स्मृतियों में टिकाये रखने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ब्राह्मण अर्थात् अलौकिक। *ब्राह्मण जीवन का महत्व बहुत बड़ा है। प्राप्तियां बहुत बड़ी हैं। स्वमान बहुत बड़ा है और संगम के समय पर बाप का बनना, यह बड़े-से-बड़ा पदमगुणा भाग्य है*। इसलिए बापदादा कहते हैं कि हर खजाने का महत्व रखो। जैसे दूसरों को भाषण में संगमयुग की कितनी महिमा सुनाते हो। *अगर आपको कोई टापिक देवें कि संगमयुग की महिमा करो तो कितना समय कर सकते हो? एक घण्टा कर सकते हो*? टीचर्स बोलो। *जो कर सकता है वह हाथ उठाओ। तो जैसे दूसरों को महत्व सुनाते हो,* महत्व जानते बहुत अच्छा हो । बापदादा ऐसे नहीं कहेगा कि जानते नहीं हैं। *जब सुना सकते हैं तो जानते हैं तब तो सुनाते हैं। सिर्फ है क्या कि मर्ज हो जाता है। इमर्ज रूप में स्मृति रहे* - वह कभी कम हो जाता है, कभी ज्यादा। तो *अपना ईश्वरीय नशा इमर्ज रखो*। हाँ मैं तो हो गई, हो गया... नहीं। *प्रैक्टिकल में हूँ... यह इमर्ज रूप में हो*। *निश्चय है लेकिन निश्चय की निशानी है - 'रूहानी नशा'। तो सारा समय नशा रहे। रूहानी नशा - मैं कौन! यह नशा इमर्ज रूप में होगा तो हर सेकण्ड जमा होता जायेगा*।
✺ *ड्रिल :- "संगमयुग की महिमा इमर्ज रूप में स्मृति में रखना"*
➳ _ ➳ संसार रूपी भवसागर में हिचकोलें खाती मेरी जर्जर सी वो कश्ती... डूबने के भय से सँवरने के लिए भक्ति के खडताल बजाती हुई मैं भक्त आत्मा... *और तभी अचानक किसी ने हाथ पकड कर बिठा लिया संगम रूपी जल पोत पर*... और भक्त आत्मा से ज्ञानी तू आत्मा का परिचय भी दे दिया... भवसागर की हर लहर को तैरने के अनुकूल बनाते हुए मेरे शिव पिता खुद नाविक बन मेरी कश्ती को पार लगा रहे है... *मैं कौन की पहेली की गहराई में जाकर मैं जितना खुद को जानने की कोशिश कर रही हूँ... उतना उतना रूहानी नशा चढता जा रहा है... मैं आत्मा स्वमानों की माला पहने अपने गुण और शक्तियों को इमर्ज करते हुए... एक एक गुण की गहराई से अनुभूति कर रही हूँ... संगम के ये खजाने... समय का खजाना... एक एक पल दूसरे युगों के सालों के बराबर, संकल्प का खजाना... बंध गया है मेरे संकल्पों की डोर से परमधाम में रहने वाला... गुणों और शक्तियों का खजाना... मास्टर सर्वशक्तिमान बनाकर बाप समान बनने का लक्ष्य दे डाला है उसने मुझे*...
➳ _ ➳ *हर पल किनारों की ओर ले जाता मुझे ये संगम रूपी जहाजी बेडा*... पल पल बाप से सर्वसम्बन्धों का सुख देता हुआ... विभिन्न प्रकार की ड्रैसेस से सजा मेरा सुन्दर सा केबिन... देवताई ड्रैस फरिश्ता ड्रैस... *फरिश्ता स्वरूप की ड्रैस पहन मैं आत्मा उड चली सूक्ष्म वतन की ओर*... सूक्ष्म वतन में बापदादा के साथ कुछ पल के लिए साक्षी होकर देख रही हूँ मैं... संगम के बेडे पर सवार सभी देव कुल की आत्माओं को... *पल पल सतयुगी सृष्टि के सृजन में लगी हुई*... हर संकल्प से उसे और करीब लाती हुई बापदादा निरन्तर खुशियों से सम्पन्न कर रहे है इस पोत को... हर पल स्नेह की मीठी सी बारिश... शीतल फुहारें...
➳ _ ➳ *खुशियों का अखूट खजाना भर के चला है ये संगम रूपी जलयान*... और हर क्षण हर पल खुशियों की खुराक से भरपूर होती मैं आत्मा... *अमृत वेले का वो रूहानी मिलन और मुरली... खुशियों के खजाने की चाबी मिली है मुझ आत्मा को... जितना घुमाती हूँ उतने खजाने खुलते जा रहे है मेरे सामने... खुशियों के झर झर बहते झरने... हर पल अनुभवों का पल*... मेरे संकल्प की डोर से बंधकर आते शिव सूर्य ठीक मेरे मस्तिक के ऊपर स्थित हो गये है... *मैं बिन्दु रूप धारण कर स्वयं को समाँ रहा हूँ शिव सूर्य की सुनहरी किरणों में*... और आहिस्ता आहिस्ता एकाकार होता मैं शिव बिन्दु के साथ... मानों आभार व्यक्त करने के लिए ही मैं विनम्र होता हुआ मिटा देना चाहता हूँ अपने वजूद को उस परम बिन्दु में... *संगम के इस महा मिलन की स्मृति को गहराई से अपनी स्मृति में संजोये मैं आत्मा लौट आई हूँ अपनी देह मैं... अखूट खजानों की चाबी को हाथ में लिए*...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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