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❍ 20 / 07 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *ज्ञान योग से सबकी पालना की ?*
➢➢ *पवित्र और योगिन के हाथ का भोजन खाया ?*
➢➢ *सदा अपने को ट्रस्टी समझकर चले ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *त्रिकालदर्शी स्थिति में रह ड्रामा के हर समय के पार्ट को देख मास्टर नॉलेजफुल स्थिति का अनुभव किया ?*
➢➢ *सदा योगयुक्त रह सर्व का सहयोग स्वतः प्राप्त किया ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *मालिकपन की स्मृति से अधीनता के संस्कारों को छोड़ बाप के दिलतख़्तनशीन बनकर रहे ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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➳ _ ➳ अब क्या करेंगे? *अब कर्म बन्धनी से कर्मयोगी समझो।* अनेक बन्धनों से मुक्त एक बाप के सम्बन्ध में समझो तो सदा एवररेडी रहेंगे। *संकल्प किया और अशरीरी बना, यह प्रैक्टिस करो।* कितना भी सेवा में बिजी हो, कार्य की चारों ओर की खींचातान हो, बुद्धि सेवा के कार्य में अति बिजी हो - ऐसे टाइम पर अशरीरी बनने का अभ्यास करके देखो। *यथार्थ सेवा का कभी बन्धन होता ही नहीं। क्योंकि योग-युक्त, युक्ति-युक्त सेवाधारी सदा सेवा करते भी उपराम रहते हैं।* ऐसे नहीं कि सेवा ज्यादा है इसलिए अशरीरी नहीं बन सकते। याद रखो मेरी सेवा नहीं, बाप ने दी है तो निर्वन्धन रहेंगे। ‘ट्रस्टी हूँ, वन्धन मुक्त हूँ ऐसी प्रैक्टिस करो। *अभी के समय अंत की स्टेज, कर्मातीत अवस्था का अभ्यास करो तब कहेंगे तेरे को मेरे में नहीं लाया है।* अमानत में ख्यानत नहीं की है समझा, अभी का अभ्यास क्या करना है? *जैसे बीच-बीच में संकल्पों की ट्रैफिक का कन्ट्रोल करते हो वैसे अभि के समय अंत की स्टेज का अनुभव करो तब अंत के समय पास विद ऑनर बन सकेंगे।*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पढ़ाई में अथक बनकर, कर्मातीत अवस्था को पाना"*
➳ _ ➳ मीठे से मधुबन की मीठी प्यारी कुटिया में... मै तेजस्वी आत्मा अपने दिलबर बाबा से रुहरिहानं कर रही हूँ... प्यारे बाबा मुझ आत्मा की भावनाओ को सुनने के लिए बेहद उत्सुक है... अपनी रूहानी दृष्टि और शक्तियो से मुझे भरपूर कर रहे है... मै आत्मा बाबा की किरणों के साये तले असीम सुख पाती जा रही हूँ... और दिल ही दिल में यह गीत गुनगुना रही हूँ... *आ बेठ मेरे पास बाबा तुझे देखती रहूँ...न तु कुछ कहे ना मै कुछ कहूँ..*..मीठे बाबा भी मुस्कराते हुए... अपनी बाँहों को फैलाये मुझ आत्मा को अपने प्यार में सराबोर कर रहे है...
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को बेपनाह अमीरी का मालिक बनाते हुए बोले :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वरीय पढ़ाई में सदा अथक बनना है... जितनी दिल से पढ़ाई पढ़ेंगे, उतनी ही प्राप्ति के हकदार बनेगे... *यह पढ़ाई ही काँटों को फूलो जैसा सुंदर बनाकर स्वर्ग का राज्य भाग्य दिलायेगी.*.. इसलिए इस कमाई में सदा अथक बन, कर्मातीत अवस्था को पाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा की सारी खानों और खजानो को अपनी बुद्धि में समेटकर कह रही हूँ :- "मीठे मीठे बाबा... देह के नशे में कंगाल हो गयी मुझ आत्मा को... अमीरी से सजाने परमधाम से उतर आये हो... मेरे भाग्य को ज्ञान रत्नों से चमकाने धरा पर चले आये हो... *भगवान से मेरे बाबा बनकर वरदानों की बौछार कर रहे हो..*. प्यारे बाबा आप संग संगम में ऐसे सुंदर जीवन को जीयूँगी...यह तो कभी सोचा ही नही था..."
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपनी गोंद में ज्ञानामृत पिलाते हुए बोले :- "प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता के साये में अमूल्य ज्ञान रत्नों को अपनी बाँहों में भरकर... *अतुल धनसंपदा के मालिक बन कर, सुखो की धरती पर मुस्कराओ.*.. सच्ची लगन से ईश्वरीय पढ़ाई पढ़कर सम्पूर्णता को पा लो... और बेहद के समझदार बनकर, कर्मातीत हो जाओ...."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने प्यारे भगवान को ज्ञान दौलत मुझ पर लुटाते देख कह रही हूँ ;- "प्यारे बाबा आपके ज्ञान रत्नों को पाकर तो मै आत्मा भाग्य की धनी हो गयी हूँ... बेहद की समझ पाकर विकर्मो से परे हो, दिव्यता भरा खुबसूरत जीवन जी रही हूँ... *संगम पर भी मौज मना रही हूँ और भविष्य को देवताओ सा सुंदर बनाती जा रही हूँ.*.."
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को अनमोल खजाने से सम्पन्न बनाते हुए बोले :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... देह और देह के भान में खपकर दुखो के जंगल में लहुलहानं हो गए हो... *अब श्रीमत के हाथ को पकड़कर, सुखो की बगिया में खुबसूरत गुलाब बनकर खिल जाओ.*.. ईश्वरीय पढ़ाई पढ़कर 21 जनमो की राजाई अपने दामन में सजा लो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा से ज्ञान रत्नों की दौलत को अपनी सम्पत्ति बनाते हुए कह रही हूँ :- "मेरे सच्चे साथी बाबा... मै आत्मा आपकी फूलो सी गोंद में कितनी प्यारी फूलो सी खिल रही हूँ... रूहानियत से भरपूर होकर दिव्यता से छलक रही हूँ... *भगवान को यूँ शिक्षक रूप में पाकर... सच्चे ज्ञान की झनकार से दुखो के जंगल से बाहर निकल गयी हूँ.*.." अपने बाबा से अथाह दौलत अपनी बाँहों में समेटकर मै आत्मा अपने कर्म क्षेत्र पर आ गयी....
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मात पिता को फॉलो करते हुए ज्ञान योग से सबकी पालना करना*"
➳ _ ➳ मम्मा बाबा ने शिव बाबा की श्रेष्ठ मत पर चल कर जो श्रेष्ठ कर्म किये उन श्रेष्ठ कर्मो का एक एक यादगार उनकी कर्मभूमि मधुबन में स्पष्ट दिखाई देता है। इसलिए मम्मा बाबा को फॉलो करने का दृढ़ संकल्प लेते ही मन बुद्धि सहज ही परमात्मा की उस अवतरण भूमि मधुबन में पहुंच जाते हैं और मम्मा बाबा की साकार यादें बुद्धि में सहज ही स्पष्ट हो जाती हैं। *ऐसे ही मम्मा बाबा की साकार यादों का अनुभव करते करते मैं मन बुद्धि से पहुंच जाती हूँ उस स्थान पर जहां मम्मा बाबा ज्ञान योग से अपने हर ब्राह्मण बच्चे की पालना करते थे*।
➳ _ ➳ मैं देख रही हूं स्वयं को उस क्लासरूम में जहां मम्मा बाबा आ कर मुरली चलाते थे। मम्मा बाबा के ममतामई, स्नेही और मधुर महावाक्यों को सुनने के लिए अनेक ब्राह्मण आत्मायें यहां उपस्थित हैं। *सामने संदली पर ममता की साक्षात मूर्त मम्मा और प्रेम तथा वात्सलय की प्रतिमूर्ति ब्रह्मा बाबा विराजमान है। दोनों के चेहरे पर दिव्य नूर और दृष्टि में रूहानी कशिश सबको अपनी ओर आकर्षित कर रही है*। मुख से ओम ध्वनि का उच्चारण करती, सितार पर बड़ी तन्मयता के साथ दिव्य गीत गाती मम्मा की मधुर आवाज सुनने वाली हर ब्राह्मण आत्मा के हृदय के तारों को झंकारित कर रही है।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे सभी ब्राह्मण आत्मायें देह से ऊपर उठ कर मुक्त पंछी के समान रूहानियत के आकाश में विचरण कर रही हैं। *मम्मा बाबा के मुख से मधुर वाणी सुनने के बाद अब एक एक करके सभी ब्राह्मण बच्चे मम्मा बाबा की ममतामयी गोद में बैठ अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर रहें हैं*। मम्मा बाबा ज्ञान की लोरी दे कर सबको अपने वात्सलय का अनुभव करवा रहें हैं। मेरी बारी आने पर मैं जैसे ही मम्मा बाबा की गोद मे बैठती हूँ *ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे शरीर है ही नही बस थोड़ी चेतनता है किंतु अहसास नही है कि शरीर कहाँ है*। बहुत ही हल्केपन और स्वयं को असीम शक्ति से मैं भरपूर अनुभव कर रही हूं।
➳ _ ➳ मुरली क्लास के बाद अब मम्मा बाबा सभी बच्चों को सैर पर ले जा रहें हैं। ब्रह्मा बाबा चलते चलते बीच बीच मे खड़े हो कर बच्चों से पूछ रहे हैं:- " शिव बाबा याद है"। सभी बच्चे बारी बारी से बाबा का हाथ पकड़ कर खुशी से सैर कर रहें हैं। खुली जगह पर बैठ सभी चाय पी रहें हैं। *बीच बीच मे बाबा ज्ञान की बातें बच्चों को समझा रहें हैं और ज्ञान सुनाते सुनाते कभी अपने अनादि स्वरूप में तो कभी अपने आदि स्वरूप में स्थित होने ड्रिल भी करवा रहें हैं*। मैं देख रही हूं ड्रिल करते करते कई ब्राह्मण आत्मायें ट्रांस में पहुंच कर बाबा को श्रीकृष्ण के बाल रूप में देख गोपी बन उनके साथ रास करने में खोई हुई हैं।
➳ _ ➳ साकार मम्मा बाबा के साथ के इन अनमोल क्षणों का भरपूर आनन्द ले कर अब मैं ब्राह्मण आत्मा अपने सेवा स्थल पर लौट रही हूँ। *मन मे अब केवल एक ही संकल्प है मात पिता को फॉलो कर, मम्मा बाबा के समान सबकी ज्ञान योग से पालना कर सबको आप समान बनाना*। इस संकल्प को पूरा करने के लिए अब मैं अपने हर संकल्प, बोल और कर्म पर विशेष अटेंशन दे कर हर कर्म करने से पहले चेक कर रही हूं कि क्या वो मम्मा बाबा के समान है। मम्मा बाबा की शिक्षाओं को जीवन मे धारण कर सम्पूर्णता के लक्ष्य को पाने का तीव्र पुरुषार्थ करते हुए अब मैं *मम्मा बाबा के समान स्नेह और शक्तिरूप बन ईश्वरीय यज्ञ में अपने तन-मन-धन को सफल कर रही हूं*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा त्रिकालदर्शी स्थिति में रह ड्रामा के हर समय के पार्ट को देखती हूँ।"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित होकर देख रही हूँ*... मैं आत्मा क्या थी... क्या हूँ... क्या बनूँगी... इस ड्रामा में मेरा विशेष पार्ट नूंधा हुआ है... मुझ आत्मा को बाबा से तीनों कालों की नॉलेज मिल गई... जिससे स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ... कि मैं आत्मा कल देवता थी... फिर कल बनने वाली हूँ... संगमयुग सभी युगों का टॉप प्वांइट है... जिससे सबकुछ क्लियर दिखता है... *मैं आत्मा संगमयुग के टॉप प्वाइंट पर खड़े होकर नॉलेजफुल बन... हर पार्ट को देख रही हूँ... और मजे ले रही हूँ*...
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सदा योगयुक्त रह सर्व का स्वतः सहयोग अनुभव करना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा योगयुक्त हूँ... प्यारे मीठे मेरे बाबा सदा मेरे साथ हैं... बाबा और मैं आत्मा कम्बाइंड हैं... *सर्व गुणों से सर्व शक्तियों से सम्पन्न मैं आत्मा बाप समान हूँ*... जो बाप के कर्तव्य वही मेरे कर्तव्य हैं... *बाबा के समान सम्पूर्ण विश्व के कल्याण का लक्ष्य मेरे सामने हैं...* मैं निरन्तर योग में रह इस महान कार्य को अंजाम दे रही हूँ... बाबा के साथ से, बाबा से प्राप्त बेहद के प्यार से... *सर्व आत्माओं की पालना करते सर्व की स्नेही और सहयोगी बन रही हूँ*... स्नेह के सागर मीठे बाबा के प्यार से भरपूर होकर मैं आत्मा भी सबको प्यार और रिगार्ड देते स्वतः ही सर्व का प्यार और सहयोग प्राप्त कर रही हूँ... सर्व का सहयोग प्राप्त कर मैं आत्मा सहज आगे बढ़ रही हूँ...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बेहद का बाप, बेहद का संकल्प रखने वाला है कि सर्व बच्चे बाप समान बनें। ऐसे नहीं कि मैं गुरू बनूँ और यह शिष्य बनें। नहीं, बाप समान बन बाप के दिलतख्तनशीन बनें। यहाँ कोई गद्दीनशीन नहीं बनना है। वह तो एक दो बनेंगे लेकिन बेहद का बाप बेहद के दिलतख्तनशीन बनाते हैं। जो सर्व बच्चे अधिकारी बन सकते हैं। *सभी को एक ही जैसा गोल्डन चांस है। चाहे आदि में आने वाले हैं, चाहे मध्य में वा अभी आने वाले हैं। सभी को पूरा अधिकार है - समान बनने का अर्थात् दिलतख्तनशीन बनने का।* ऐसे नहीं कि पीछे वाले आगे नहीं जा सकते हैं। कोई भी आगे जा सकता है - क्योंकि यह बेहद की प्रॉपर्टी है। इसलिए ऐसा नहीं कि पहले वालों ने ले लिया तो समाप्त हो गई। *इतनी अखुट प्रॉपर्टी है जो अब के बाद और भी लेने चाहें तो ले सकते हैं। लेकिन अधिकार लेने वाले के ऊपर है।*
➳ _ ➳ क्योंकि अधिकार लेने के साथ-साथ अधीनता के संस्कार को छोड़ना पड़ता है। कुछ भी नहीं सिर्फ अधीनता है लेकिन जब छोड़ने की बात आती हो तो अपनी कमज़ोरी के कारण इस बात में रह जाते हैं और कहते हैं कि छूटता नहीं। दोष संस्कारों को देते कि संस्कार नहीं छूटता। लेकिन स्वयं नहीं छोड़ते हैं। क्योंकि चैतन्य शक्तिशाली स्वयं आत्मा है वा संस्कार है? *संस्कार ने आत्मा को धारण किया वा आत्मा ने संस्कार को धारण किया? आत्मा की चैतन्य शक्ति संस्कार हैं वा संस्कार की शक्ति आत्मा है? जब धारण करने वाली आत्मा है तो छोड़ना भी आत्मा को है, न कि संस्कार स्वयं छूटेंगे।* फिर भिन्न-भिन्न नाम देते - संस्कार हैं, स्वभाव है, आदत है वा नेचर है। लेकिन कहने वाली शक्ति कौन सी है? आदत बोलती है वा आत्मा बोलती है? तो मालिक है या गुलाम हैं? तो अधिकार को अर्थात् मालिकपन को धारण करना इसमें बेहद का चांस होते हुए भी यथा शक्ति लेने वाले बन जाते हैं। कारण क्या हुआ? कहते - मेरी आदत, मेरे संस्कार, मेरी नेचर। लेकिन मेरा कहते हुए भी मालिकपन नहीं है। अगर मेरा है तो स्वयं मालिक हुआ ना! ऐसा मालिक जो चाहे वह कर न सके, परिवर्तन कर न सके, अधिकार रख न सके, उसको क्या कहेंगे? क्या ऐसी कमजोर आत्मा को अधिकारी आत्मा कहेंगे?
✺ *"ड्रिल :- मालिकपन की स्मृति से अधीनता के संस्कारों को छोड़ बाप के दिलतख़्तनशीन बनकर रहना।"*
➳ _ ➳ देह रूपी रथ का रथी मैं आत्मा, देह सहित बैठ जाती हूँ बापदादा के चित्र के सामने... और निहार रही हूँ अपलक उनकी आँखो में... *अखुट खजानों का द्वार खोलती उनकी आँखे, दिलतख्तनशीन बनने का आह्वान कर रही है...* धीरे धीरे मैं आत्मा अशरीरी अवस्था का अनुभव करती हुई... देह से अलग स्थित होकर साक्षी भाव से देख रही हूँ अपनी इस देह को... जो संगम पर पदमों की कमाई के निमित्त मुझे मिली है... मैं बाप के अखुट खजानों की अधिकारी आत्मा मन बुद्धि से बैठ गयी हूँ शान्ति स्तम्भ पर... ज्योति पुंज से आती शान्ति की किरणें मुझ आत्मा को शान्ति एवं गुणों के खजानों से भरपूर कर रही है...
➳ _ ➳ सूक्ष्मलोक के उडनखटोलें में बैठकर बापदादा आज उतर आये हैं उसी शान्ति स्तम्भ पर... मेरे चारों ओर घूमते असंख्य फरिश्ते... *पाण्डव भवन ही आज फरिश्तों का लोक नजर आ रहा है... नीचे नीचे घूमते फरिश्तों से टकराते बादल... और ये फरिश्ते खडे है मेरे चारों ओर घेरा बनाये... श्वेत बादलों का उडनखटोला पूनी के आकार में यहाँ वहाँ उडते बादल... और उडनखटोले की ध्वजा पर लहराते ज्ञान सूर्य शिव बाबा...* अब बापदादा चलकर आ रहे है मेरे करीब... मन्त्रमुग्ध सा होता हुआ मैं फरिश्ता खडा हो गया हूँ उनके अभिवादन में... आगे बढकर मेरे हाथ में सुन्दर उपहार थमा देते है, मैं मन ही मन सोच रहा हूँ उस उपहार के बारें में... तभी बापदादा मुझे उसी उडन खटोले में बैठने का आह्वान कर रहे हैं...
➳ _ ➳ हवा में उडते उडनखटोले में मैं और बापदादा सवार है... बापदादा के सामने स्वच्छ ताजे खुशबूदार फूलों का गुलदस्ता और उनके ऊपर मंडराती तितलियाँ देखकर मेरे मन में विचार उठते है... फूल अपनी खुशबू के मालिक है और तितली अपनी पंखों की, तो मैं आत्मा भी अपने संस्कारों की मालिक हूँ... अपने कमजोर संस्कारों की, आदतों की... तन पर पहने वस्त्रों को, गले में पहने हार को जब मैं उतार सकता हूँ तो मैं अपने संस्कारों को कमजोरियों को भी तो छोड सकता हूँ... उडनखटोलें की ध्वजा पर स्थित *ज्ञान सूर्य से आती तेज किरणें और मेरा दृढ होता संकल्प... इसी संकल्प के साथ गले में पहना कमी कमजोरियों का पुराना हार उतालकर दूर फेक देता हूँ मैं... खुश होकर बापदादा मुझे विजय माला पहनाकर मेरी ताजपोशी कर रहे हैं...*
➳ _ ➳ *सूक्ष्मवतन का ये बादलों रूपी उडनखटोला बदल गया है पुष्पक विमान के रूप में...* मैं देवता इस विमान पर सवार सैर कर रहा हूँ अपनी सतयुगी राजधानी की... स्वर्णाभूषणों से सजी हुई मैं अधिकारी आत्मा मालिकपन की स्मृति से अधीनता के सर्व संस्कारों को छोड बाप के दिलतख्तनशीन बन वापस लौट आयी हूँ अपनी उसी देह में, जहाँ से मैं चली थी... *अब गहराई से समझ लिया है कि जिन संस्कारों की मैं मालिक हूँ उनको बदलना और छोडना मेरे लिए सहज है... क्योंकि चेतना मैं हूँ संस्कार नही...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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