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❍ 20 / 08 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *कंबाइंड रूप से सहजयोगी अवस्था का अनुभव किया ?*
➢➢ *अपने श्रेष्ठ भाग्य की स्मृति में रहे ?*
➢➢ *अविनाशी बाप के साथ अविनाशी दिन मनाया ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *विधि से सहज सिद्धि स्वरुप, विधान से विश्व निर्माता और वरदान से वरदाई मूर्त अवस्था का अनुभव किया ?*
➢➢ *संपर्क में आने वाली आत्माओं को ईश्वरीय अलोकिक स्नेह, शक्ति, गुण और सहयोग की लिफ्ट की गिफ्ट दी ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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➳ _ ➳ *आवाज से परे अपनी श्रेष्ठ स्थित को अनुभव करते हो?* वह श्रेष्ठ स्थिति सर्व व्यक्त आकर्षण से परे शक्तिशाली न्यारी और प्यारी स्थिति है। *एक सेकण्ड भी इस श्रेष्ठ स्थिति में स्थित हो जाओ तो उसका प्रभाव सारा दिन कर्म करते हुए भी स्वयं में विशेष शान्ति की शक्ति अनुभव करेंगे।* इसी स्थिति को - कर्मातीत स्थिति, बाप समान सम्पूर्ण स्थिति कहा जाता है। इसी स्थिति द्वारा हर कार्य में सफलता का अनुभव कर सकते हो। ऐसी शक्तिशाली स्थिति का अनुभव किया है? *ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है - कर्मातीत स्थिति को पाना।* तो लक्ष्य को प्राप्त करने के पहले अभी से इसी अभ्यास में रहेंगे तब ही लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे। *इसी लक्ष्य को पाने के लिए विशेष स्वयं में समेटने की शक्ति, समाने की शक्ति आवश्यक है।* क्योंकि विकारी जीवन वा भक्ति की जीवन दोनों में जन्म-जन्मांतर से बुद्धि का विस्तार में भटकने का संस्कार बहुत पक्का हो गया है। इसलिए *ऐसे विस्तार में भटकने वाली बुद्धि को सार रूप में स्थित करने के लिए इन दोनों शक्तियों की आवश्यकता है।*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- विधि विधान और वरदान"*
➳ _ ➳ प्यारे बाबा को अपने दिल आँगन में बुलाकर... अपनी सारी मीठी भावनाये उंडेलती हुई... मीठे चिंतन में खो जाती हूँ... *कि इस जीवन में मीठे बाबा ने आकर कितनी रौनक बिखेरी है.*.. दुखो में कलुषित जीवन जीने वाली मै आत्मा.... आज मीठे बाबा के हाथ को पकड़े...उमंगो से भरी हुई... हर आत्मा को भी उजालो में ला रही हूँ... मीठे बाबा की शक्तियो को स्वयं में समाकर... माया के हर दांव को निष्फल कर रही हूँ... और देखती हूँ, अपने प्यारे बाबा को जो... कब से खड़े, मेरी भावनाओ को निहार रहे है...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान धन की मल्लिका बनाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... सदा विधि को अपनाने वाले सिद्धि स्वरूप बनकर मुस्कराओ... विधान से विश्व निर्माता बनो और वरदानों से वरदानी मूर्त बनकर, मीठे बाबा को जहान में प्रत्यक्ष करो... *मा विधाता बनकर सबको खुशियो भरे भाग्य से भरकर आप समान सुखी बनाओ.*.."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा से पायी असीम खुशियो पर मुस्कराते हुए कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... आपकी प्यारी गोद में खिलकर तो मै आत्मा मा विधाता बन गयी हूँ... स्वयं को भी नही जानती थी, और *आज सारे विश्व का कल्याण करने वाला प्यारा दिल लिए घूम रही हूँ... मीठे बाबा कितनी प्यारी जादूगरी आपने सिखायी है.*.."
❉ प्यारे बाबा मुझ आत्मा को सच्चे स्नेह से सींचते हुए कहते है :- " सदा मीठे बाबा का हाथ पकड़े कम्बाइंड रहो... और निमित्त भाव लिए खुशियो में झूमते रहो... मीठे बाबा के नयनों का नूर बनकर सदा आगे बढ़ते रहो... और *हजार हाथो की मदद बाबा से पाकर, हर कदम सफलता...पाने वाले महा भाग्यवान बनकर विश्व धरा पर इठलाओ.*.. लाइट हाऊस बनकर सबको सत्य रौशनी की राहे दिखाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा से शक्तियो को लेकर स्वयं में भरते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... आपके सत्य ज्ञान से ओजस्वी होकर मै आत्मा... हर दिल को अँधेरे से निकाल, सत्य के प्रकाश से भर रही हूँ... *आपके हजार हाथो में अपने हाथो को सौंपकर... कितनी निश्चिन्त सी और बेफिक्र बन झूम रही हूँ.*.."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने दिलतख्त पर बिठाते हुए कहा :- "मीठे सिकीलधे प्यारे बच्चे... मीठे बाबा का हाथ पकड़ कर महावीर बनकर... माया पर सहज ही जीत पाओ... बड़े बाप के संग रह, सदा विजय पताका फहराओ... *पहले आप के गुण से परमार्थ और व्यवहार में सर्व के प्रिय बनकर मुस्कराओ..*.
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा को दिल से असीम दुआए देते हुए कहती हूँ :- "मीठे दुलारे बाबा मेरे... *आपके फूलो से हाथो को थाम कर.. जीवन कितनी अपार ख़ुशी की जागीर बन गया है.*.. जिस माया के गर्त में गहरे फंसी थी... आज आपकी यादो के सहारे, उस दलदल से निकलना कितना आसान हो गया है..."प्यारे बाबा से मीठी सी रुहरिहानं कर मै आत्मा... अपने साकार वतन में लॉट आयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- संपर्क में आने वाली आत्माओं को ईश्वरीय अलौकिक स्नेह, शक्ति, गुण और सहयोग की लिफ्ट की गिफ्ट देना*"
➳ _ ➳ अपने संगमयुगी ब्राह्मण जीवन की अमूल्य प्राप्तियों को स्मृति में ला कर मैं विचार करती हूँ कि कितनी सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा। जिस भगवान को आज दिन तक दुनिया ढूंढ रही है। पहाड़ो पर, कन्दराओं में, गुफाओं में ना जाने कहाँ - कहाँ उसे पाने की कोशिश में भटक रही है वो भगवान मुझे घर बैठे मिल गया। *मेरे तो दिन की शुरुवात ही भगवान के उठाने से होती है, दिन में भी हर कर्म करते वो निरन्तर मेरे साथ रहते हैं और रात को अपनी सुखमय मीठी गोद मे सुला कर, मेरी दिन भर की सारी थकान हर लेते हैं*। एकांत में बैठी अपने इस सर्वश्रेष्ठ सौभाग्य को याद करके मैं आनन्दित हो रही हूँ ।
➳ _ ➳ किन्तु तभी एक - एक करके अनेक मुरझाए हुए, निराश, दुख से पीड़ित आत्माओं के चेहरे मेरी आँखों के सामने आने लगते हैं जो मेरे ही सम्बन्ध, सम्पर्क में आने वाली अनेक आत्माओं के चेहरे हैं। उनके मायूस चेहरों को देख कर मन मे संकल्प आता है कि इन्हें भी अगर भगवान मिल जाये तो इनके मुरझाए चेहरे भी खिल उठेंगे। जो जीवन इनके लिए बोझ बन चुका है अपने उस जीवन को ये भी आनन्द से जी सकेंगे और *बाबा का फरमान भी है कि मेरे बिछुड़े हुए बच्चों को मुझ से मिलवाना तुम ब्राह्मणों का कर्तव्य है। इस कर्तव्य को पूरा करने के लिए मैं अपना लाइट का फ़रिशता स्वरूप धारण करती हूं और ईश्वरीय वरदानों से स्वयं को सम्पन्न बनाने के लिए अव्यक्त बापदादा के अव्यक्त वतन की ओर चल पड़ती हूँ*।
➳ _ ➳ अब मैं फ़रिशता सूक्ष्म वतन में अव्यक्त बापदादा के सम्मुख हूँ और उनके वरदानी हस्तों से वरदान ले कर स्वयं को भरपूर कर रहा हूँ। अपनी सर्वशक्तियों से, अपनी लाइट माइट से वो मुझे भरपूर कर रहें हैं। उनकी पावन दृष्टि मुझ में असीम बल और शक्ति का संचार कर रही है। *स्वयं को सर्वशक्तियों से भरपूर करके, सर्वशक्ति सपन्न स्वरूप बन कर अब मैं अपने प्यारे मीठे बाबा को अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को भी परमात्म पालना का अनुभव कराने का आग्रह करता हूँ*। बाबा मुस्कराते हुए अब उन सभी आत्माओं को वतन में इमर्ज कर देते हैं।
➳ _ ➳ मैं देख रहा हूँ अपने सामने उन सभी हताश, निराश आत्माओं को और उन्हें धैर्य दे रहा हूँ कि अब वो भी परमात्म पालना में पलने का सुख प्राप्त करके अपने हर दुख और पीड़ा से मुक्त हो जायेंगी। *अब मैं फ़रिशता उन आत्माओं के बीच मे बैठ जाता हूँ और अपने सिर के ऊपर प्यारे बापदादा की छत्रछाया को स्पष्ट अनुभव कर रहा हूँ*। बाबा के साथ कनेक्शन जोड़ते ही सर्वशक्तियों का झरना जैसे फुल फोर्स से मुझ फ़रिश्ते के ऊपर बरसने लगा है। मैं देख रहा हूँ *बाबा से आ रही ये सर्वशक्तियों की किरणें मुझ फ़रिश्ते पर पड़ कर, छोटे छोटे चमकीले सितारों के रूप में फिर मुझ से निकल कर उन सभी आत्माओं के ऊपर बरस रही हैं*।
➳ _ ➳ मेरे श्वेत प्रकाश की काया से निकलते यह छोटे छोटे चमकीले सितारे ऐसे लग रहे हैं जैसे बाबा मुझ फरिश्ते को निमित्त बनाकर मेरे द्वारा इन सर्वशक्तियों को अपने सभी बच्चों तक पहुंचा कर उन्हें संपूर्ण पावन और सर्वगुणसंपन्न बना रहे हैं। *मुझ से निकल रही पवित्रता, सुख शांति, शक्ति सम्पन्न किरणे मेरे सामने बैठी इन सभी आत्माओं के चित को छू कर उन्हें पवित्र बना रही हैं*। सुख, शांति का अनुभव करवा रही हैं। मैं देख रहा हूँ सबके मुरझाये हुए चेहरों पर अब एक रौनक आ गई है। परमात्म पालना का अनुभव करके वो सब जैसे तृप्त हो गई है।
➳ _ ➳ उन सभी आत्माओं को परमात्म प्यार के सुख की अनुभूति करवा कर अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट रही हूँ । अपने संपर्क में आने वाली सभी आत्माओं को अब *मैं परमात्म परिचय दे कर और उन्हें ईश्वरीय अलौकिक स्नेह, शक्ति, गुण और सहयोग की लिफ्ट की गिफ्ट द्वारा उन्हें उनके लंबे काल से बिछुड़े परमात्मा बाप से मिलवाकर उन्हें भी सुख, शांति के वर्से की अधिकारी आत्मा बना रही हूँ*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा बेहद की वैराग्य वृति द्वारा मेरे-पन के रॉयल रूप को समाप्त करने वाली न्यारी-प्यारी हूँ।*
➳ _ ➳ *मेरे-पन के रॉयल रूप को समाप्त करती मैं आत्मा... बेहद की वैराग्य वृत्ति रूपी संस्कारों का आह्वान करती हूँ...* सम्बन्ध-संपर्क से न्यारापन के अधिकार की सीट पर बैठ मैं आत्मा... मैं... मेरा... मेरे-पन के संस्कारों को त्याग करती हूँ... हद के संबंधों से मंसा किनारा करती मैं आत्मा बेहद की ऊंची उड़ान भरती हूँ... *"मैं कौन ? मेरा कौन?" के स्वमान की सीट पर विराजमान मैं आत्मा... निमित्त और निर्मान बनती जा रही हूँ...* हद से निकल बेहद की रहवासी बनती जा रही हूँ... मेरे-पन के भान से परे मैं आत्मा... सब को *शुभ भावना रूपी फूलों से आच्छादित करती जा रही हूँ...*
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- परचिन्तन के प्रभाव से मुक्त होने के लिए, शुभचिन्तन करना और शुभचिंतक बनने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा मन-बुद्धि से एकाग्र हो... सृष्टि ग्लोब पर पहुँच जाती हूँ... वहाँ बैठ बाबा का आह्वान करती हूँ... *मैं आत्मा स्वयं को बापदादा की छत्रछाया के नीचे अनुभव कर रही हूँ*... बाबा से आती पवित्रता की... शांति की किरणें मुझ आत्मा से होती हुई... विश्व की सर्व आत्माओं तक पहुंच रही है... मुझ आत्मा के दिल से विश्व की सर्व आत्माओं प्रति... यही शुभ भावना... शुभ कामना निकल रही है कि *सभी आत्माओ को... सच्ची सुख और शांति अनुभव करें*... अपने बाप से वर्सा प्राप्त हो जो उनका *जन्म-सिद्ध अधिकार है*... विश्व की सर्व आत्माएँ बापदादा से आती शक्तिशाली किरणों को स्वयं में आता अनुभव कर रही है... *बाबा से आती शक्तिशाली किरणों से उनमें परिवर्तन होने लगा है*... मैं आत्मा भी अनुभव करने लगी हूँ... सर्व आत्माओं प्रति शुभचिन्तन... मुझ आत्मा को *परिचिन्तन के प्रभाव से मुक्त कर*... शुभ-चिंतन करना और शुभ-चिंतक बनने का अनुभव कर रही हूं... शुक्रिया बाबा....
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
➳ _ ➳ *अपने
बोल कैसे हो? यह
अपशब्द,
व्यर्थ शब्द,
जोर
से बोलना..... ये जोर से बोलना भी वास्तव में अनेकों को डिस्टर्ब करना है।* ये
नहीं बोलो- मेरा तो आवाज ही बड़ा है। मायाजीत बन सकते हो और आवाज जीत नहीं बन
सकते! तो ऐसे किसी को
भी डिस्टर्ब करने वाले बोल और व्यर्थ बोल नहीं बोलो। बात होती है दो शब्दों की
लेकिन आधा घण्टा उस बात को
बोलते रहेंगे, बोलते
रहेंगे। तो ये जो लम्बा बोल बोलते हो, जो
चार शब्दों में काम हो सकता है वो १२-१५ शब्द में
नहीं बोलो।
➳ _ ➳ *आप
लोगों का स्लोगन है कम बोलो, धीरे
बोलो।* तो जो कहते हैं ना हमारा आवाज बहुत बड़ा है, हम
चाहते नहीं हैं लेकिन आवाज ही बड़ा है, तो
वो गले में एक स्लोगन लगाकर डाल लेवे। होता क्या है? आप
लोग तो
अपनी धुन में जोर से बोल रहे हो लेकिन आने-जाने वाले सुन करके ये नहीं समझते
हैं कि इसका आवाज बड़ा है। वो
समझते हैं पता नहीं झगड़ा हो रहा है। तो ये भी डिससर्विस हुई।
➳ _ ➳
इसलिए आज का पाठ दे रहे हैं - व्यर्थ बोल या किसी को भी डिस्टर्ब करने वाले बोल
से अपने को मुक्त करो। व्यर्थ बोल मुक्त। फिर देखो अव्यक्त फरिश्ता बनने में
आपको बहुत मदद मिलेगी। *बोल
की इकानामी करो, अपने
बोल की वैल्यु रखो।* जैसे महात्माओं को कहते हैं ना-सत्य वचन महाराज तो आपके
बोल सदा सत वचन अर्थात् कोई न कोई प्रीत कराने वाले वचन हो। किसको चलते-फिरते
हंसी में कह देते हो
- ये तो पागल है, ये
तो बेसमझ है, ऐसे
कई शब्द बापदादा अभी भूल गये हैं लेकिन सुनते हैं। तो *ब्राह्मणों के मुख से
ऐसे शब्द निकलना ये मानों आप सतवचन महाराज वाले, किसी
को श्राप देते हो। किसको श्रापित नहीं करो,
सुख दो।*
➳ _ ➳ *युक्तियुक्त
बोल बोलो और काम का बोलो, व्यर्थ
नहीं बोलो।* तो जब बोलना शुरु करते हो तो एक घण्टे में चेक करो
कि कितने बोल व्यर्थ हुए और कितने सत वचन हुए? *आपको
अपने बोल की वैल्यु का पता नहीं,
तो
बोल की वैल्यु
समझो। अपशब्द नहीं बोलो,
शुभ
शब्द बोलो।*
✺
*ड्रिल :- "व्यर्थ बोल मुक्त बन, युक्तियुक्त बोल बोलना"*
➳ _ ➳ *बाबा
के महावाक्य हैं "मीठे बच्चे" यह बोल सुनते ही मन ख़ुशी में झूमने लगता हैं...*
कितना प्यार भरा संबोधन बाबा के बच्चों के प्रति... मीठे बच्चे... लाडले
बच्चे... सिकीलधे बच्चे... अनहद प्यार... प्यार के सागर में हम बच्चे हिंडोले
लेते ही रहते है... प्यार का सागर मेरा पिता... मैं उनकी संतान... मास्टर प्यार
की सागर... उनके गुणों को ग्रहण करती जा रही हूँ... मुरली रूपी महावाक्यों को
अपने स्मृति पटल पर सुनहरे अक्षरों से अंकित करती मैं आत्मा... *संगमयुगी
श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ योगी आत्मा बनने के पुरुषार्थ में मंसा वाचा कर्मणा समर्पित
होती जा रही हूँ...* कल्पवृक्ष के बीजरूप मैं आत्मा... अपने वचनों से सभी
आत्माओं को सुख शांति का वर्सा देती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ *बाबा
के कमरे में... आशीर्वादों से परिपूर्ण होने की आशा लिए बैठी मैं आत्मा...
एकाग्रचित होकर सिर्फ एक बाप को याद करती हूँ...* चंचल मन... व्यर्थ की...
पास्ट की बातों में उलझ जाता है... मैं बार बार चंचल मन को कंट्रोल करने की
कोशिश में असफल हो जाती हूँ... और दुःखी व्यथित नैनों से बापदादा को निहारती
रहती हूँ... मन के भाव को जान बापदादा मुझे एक सीन दिखा रहे हैं... मैं आत्मा
देखती हूँ अपने आपको गुस्से में लाल लाल... अपवित्र... असभ्य बोल युक्त वाणी...
अपशब्दों की झड़ी लगाये हुए... *तलवार की धार के जैसी बोली... और सुनने वाला
अश्रुओं से भीगा हुआ... अशांति का माहौल... दुःख का साम्राज्य छा गया था...*
➳ _ ➳
मैं
आत्मा अश्रुभीनी आँखों से यह सीन देख रही थी... क्या मेरा ऐसा दुःव्यवहार था...
क्या मैं ऐसे श्रापित बोल बोलती थी... *कहाँ मैं संगमयुगी ब्राह्मण आत्मा और
कहाँ मैं गुस्से के विकारों में लथपथ...* बाबा के कमरे में बैठी मैं आत्मा...
यह सीन देख कर आँखों से गंगा जमना बह रही थी... ऐसा मेरा विकारी रूप देख कर मैं
आत्मा विचलित नजरों से बापदादा को देखती हूँ... और मन ही मन अपने दुष्कर्तव्यों
की क्षमा याचना मांगती हूँ... *अश्रुभीनि आँखों से मैं आत्मा... भावपूर्ण...
सच्चे मन से सभी आत्माओं से माफ़ी मांगती हूँ... और देखती हूँ बापदादा के चेहरे
पर ख़ुशी की झलक दिखाई दे रही हैं...*
➳ _ ➳
बापदादा से प्यार भरी झरमर बरसती किरणों को अपने में धारण कर मैं आत्मा... अपने
विकारों से मुक्त होती जा रही हूँ... गुस्से के... अपवित्र बोल के कड़े
संस्कारों को बापदादा की परम पवित्र किरणों से स्वाहा करती जा रही हूँ...
*मुरली रूपी ज्ञान धारा को अपने ब्राह्मण योगी जीवन में चरितार्थ करती जा रही
हूँ... अपने ही कुसंस्कारों की अर्थी जलाकर मैं आत्मा पवित्रता... शांति के
शिखर पर बैठ जाती हूँ...* मन की गहराईयों में भी अंश मात्र सूक्ष्म पाप के बीज
न रहे ऐसे अपने आप को अग्नि परीक्षा रूपी योग अग्नि में स्वाहा करती जा रही
हूँ...
➳ _ ➳ *बाबा
के कमरे में बैठी मैं आत्मा... आज बापदादा से एक प्रॉमिस करती हूँ और कहती हूँ,
"बाबा
आज से जो बाप के बोल वह मेरे बोल... जो बाप का संकल्प वह मेरा संकल्प..."*
संगमयुगी ब्राह्मण आत्मा के मुख से सदा ही शुभ भावना रूपी मोती ही बरसेंगे...
*अकल्याणकारी पर भी कल्याण की दृष्टि रख अपने पूर्वज होने का सबूत दूँगी...*
विश्वकल्याणकारी स्टेज की उच्च शिखर पर विराजमान मैं सतयुगी आत्मा...
आशीर्वादों... वरदानों से सब को भरपूर करती रहूँगी... *वरदानी मूर्त बन कर
स्वयं में बापदादा की प्रत्यक्षता करवाती रहूँगी...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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