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 28 / 09 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *शरीर रुपी पुरानी खाल से ममत्व निकालने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *बुधी से रूहानी यात्रा पर तत्पर रहे ?*

 

➢➢ *पुरानी दुनिया की किसी भी बात से ताल्लुक न रख ज्ञान चिता पर बैठे रहे ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *अपने पूज्य स्वरुप की स्मृति से सदा रूहानी नशे में रहे ?*

 

➢➢ *निमित और निर्माण बन सच्चे सेवाधारी बनकर रहे ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  जब चाहो तब *अशरीरी स्थिति* में स्थित हो जाओ। और जब चाहे तब *कर्मयोगी बन जाओ - यह अभ्यास बहुत पक्का चाहिए।* ऐसे न हो कि आप अशरीरी बनने चाहो और शरीर का बंधन, कर्म का बंधन, व्यक्तियों का बंधन, वैभवों का बंधन, स्वभाव-संस्कारों का बंधन अपनी तरफ आकर्षित करे।

 

✧  *कोई भी बंधन अशरीरी बनने नहीं देगा।* जैसे कोई टाइट ड्रेस पहनते हैं तो समय पर सेकण्ड में उतारने चाहें तो उतार नहीं सकेंगे, खिंचावट होती है क्योंकि शरीर से चिपटा हुआ है। ऐसे कोई भी बंधन का खिंचाव अपनी तरफ खींचेगा। बंधन आत्मा को टाइट कर देता है।

 

इसलिए *बापदादा सदैव यह पाठ पढाते हैं - निर्लिप्त अर्थात न्यारे और अति प्यारे।* यह बहुतकाल का अभ्यास चाहिए। ज्ञान सुनना सुनाना यह अलग चीज है लेकिन यह अभ्यास अति आवश्यक है। , *पास विद ऑनर बनना है तो इस अभ्यास में पास होना अति आवश्यक है।* और इसी अभ्यास पर अटेन्शन देने में डबल अण्डरलाइन करो, तब ही डबल लाइट बन कर्मातीत स्थिति को प्राप्त कर डबल ताजधारी बनेंगे।

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  एक के साथ योग लगाकर, पुराने दुश्मन रावण पर जीत पाना"*

 

_ ➳  ईश्वर पिता को पाकर मै आत्मा अपने खोये अस्तित्व को पुनः पाकर... कितनी शक्तिशाली हो गयी हूँ... प्यारे बाबा ने मुझे कितना ऊँचा उठाया है कि मै आत्मा... जो विकारो के रावण से हारकर निस्तेज हो गयी थी... *आज ईश्वरीय हाथ और साथ को पाकर पुनः तेजस्वी हो गयी हूँ..*. सदा मीठे बाबा की यादो में खोयी हूँ.... और हर कदम पर विजय की गले लगाती हुई... सतयुग की दहलीज पर कदम बढ़ा रही हूँ... *प्यारे बाबा ने अपनी बाँहों में भरकर... मुझे देह की जमी से उठाकर, अपने दिल के आसमाँ पर सजा लिया है.*.. इन्ही मीठी यादो में खोयी मै आत्मा... मीठे बाबा के कमरे में पहुंचती हूँ...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान धन से सम्रद्ध बनाकर, अपनी यादो में भिगोते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... जनमो से जो दुखो के जंगल में भटके हो और लहुलहानं हुए हो... *अब ईश्वरीय यादो के आँचल में छुपकर,असीम सुखो भरी लोरी पाओ.*.. और विकारो के रावण से मीठे बाबा की श्रीमत के आँचल में सदा के लिए बेफिक्र हो जाओ... सिर्फ एक बाबा का हाथ पकड़कर, जीवन में खुशियो संग उड़ते रहो..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की यादो में गहरे डूबकर सुख के रत्न पाकर कहती हूँ ;-"मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपको पाकर, *आपकी मीठी यादो में खोकर, सम्पूर्ण सुख को पा रही हूँ... मेरा जीवन ईश्वरीय प्रेम से सराबोर हो गया है.*.. और प्यार में खोकर मै आत्मा...सहज ही रावण दुश्मन पर विजय पाती जा रही हूँ..."

 

   प्यारे बाबा ने मुझे असीम शक्तियो से भरकर शक्तियो से सजाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता के सच्चे प्यार में सदा भरपूर होकर... आनन्द की यह बहार पूरे विश्व में खिलाओ... *मीठे बाबा की मीठी यादो भरी छाँव में रहकर, माया के रावण से सदा बचे रहो*... यह यादे ही वह छत्रछाया है... जो आत्मा को पावनता से हरा भरा कर सतयुगी बहारो में ले जाएँगी..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा से अखूट खजाने लेकर अपने दिल में भरते हुए कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा... मै आत्मा देह के दलदल में गहरे धँसी थी कि... *आपने जीवन में आकर, जीवन को ईश्वरीय प्रेम से लबालब कर दिया है.*.. मेरा जीवन सच्ची खुशियो की खनक से गूंज उठा है... और अब अपवित्रता का नामोनिशान भी नही रहा हे...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को मेरे सत्य वजूद की चमक से भरते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे,.. जब घर से चले थे, कितने खुबसूरत खिले फूल थे... दिव्य गुण और पवित्रता से सजेधजे सच्चे प्रेम के प्रतीक थे... देह के भान ने विकारो की कालिमा से सारा सौंदर्य पतित सा कर दिया है... *अब सच्ची यादो की अग्नि में बेठ... विकारो रुपी रावण को सदा के लिए जला दो, और अपनी खोयी पवित्रता को पुनः पा लो.*.."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा से असीम प्यार में देवताई ताजोतख्त पाकर कहती हूँ :-"सच्चे साथी बाबा मेरे... मै आत्मा आपके प्यार में अपनी सत्यता को पुनः पा गयी हूँ... *मेरा दिव्य सौंदर्य आपकी यादो के स्पर्श से पुनः निखर उठा है.*.. एक आपकी यादो में खोयी हुई मै आत्मा... सारे विकारो पर विजयी होती जा रही हूँ..."मीठे बाबा को अपनी सच्ची भावनाये अर्पित कर मै आत्मा... साकारी वतन में लौट आयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पुरानी दुनिया की किसी भी बात से तैलुक नही रखना*"

 

_ ➳  अपने मीठे ते मीठे प्यारे बाबा के प्रेम की अमूल्य धरोहर जो मुझे उनसे मिली है, उस अमूल्य धरोहर को याद करते ही, आंखों से खुशी के आंसू मोतियों के रूप में छलक उठे है और अपने शिव प्रीतम द्वारा उन मोतियों को अपने दिल की डिब्बी में कैद कर लेने का अहसास मुझे उनके और करीब ले जा रहा है। *जितना मैं स्वयं को उनके नजदीक अनुभव कर रही हूँ उतना इस पुरानी दुनिया की हर बात से मेरा तैलुक समाप्त होता जा रहा है*। यह देह और देह की झूठी दुनिया मुझे बेरंग लगने लगी है। इसलिए मन रूपी पँछी बार - बार इस झूठी दुनिया से किनारा कर उस निराकारी दुनिया मे उड़ जाना चाहता है जहाँ प्यार के सागर मेरे शिव पिया रहते हैं।

 

_ ➳  अपने रथ पर विराजमान हो कर, मेरे शिव पिया का साकार में आ कर मुझ से मिलना, मुझ से मीठी - मीठी रूह रिहान करना और अपने प्रेम की शीतल फ़ुहारों से मुझ आत्मा सजनी को तृप्त कर देना, इन सभी बातों की स्मृति मुझे विदेही बन, झट से उनके पास जाने के लिए प्रेरित कर रही है। *अपने माशूक के प्रेम की लगन में मग्न मैं आत्मा आशिक विदेही बन इस देह से किनारा कर अब जा रही हूँ अपने शिव पिया के पास उस विदेही दुनिया में जहां देह और देह की दुनिया का संकल्प मात्र भी नही*। देह की इस झूठी साकारी दुनिया से परें आत्माओं की वो निराकारी दुनिया बहुत ही न्यारी और प्यारी है जहाँ मेरे अति मीठे, प्यारे बाबा रहते हैं।

 

_ ➳  अपने शिव पिता परमात्मा के उस धाम की ओर मैं निरन्तर बढ़ती जा रही हूँ। साकार दुनिया को पार कर, सूक्ष्म लोक से परें अब मैं देख रही हूँ स्वयं को अपने स्वीट साइलेन्स होम में अपने शिव पिता परमात्मा के सम्मुख। *शक्तियों की अनन्त किरणे बिखेरता उनका सलोना स्वरूप मन को असीम आनन्द का अनुभव करवा रहा है*। उनसे निकल रही शक्तियों की रंग बिरंगी किरणे बहते हुए झरने के समान मुझ पर पड़ रही है और मन को गहन शीतलता दे रही है।

 

_ ➳  शक्तियों की रंग बिरंगी धाराएं जितनी तीव्र गति से मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं उतना ही मुझ आत्मा पर चढ़ा हुआ विकारों का किचड़ा समाप्त होने से मेरा स्वरूप निखरता जा रहा है। शक्तियों से मैं सम्पन्न हो कर शक्ति स्वरूप बनती जा रही हूँ। *बाबा का स्नेह और प्यार किरणों के रूप में निरन्तर मुझ पर बरस रहा है और मुझे नष्टोमोहा बना रहा है*। बाबा के प्रेम को अपने जीवन का आधार बना कर अब मैं वापिस साकारी दुनिया की और प्रस्थान कर रही हूँ।

 

_ ➳  साकारी लोक में अपने साकारी तन में अब मैं विराजमान हूँ। देह और देह की दुनिया मे रहते हुए, अब मेरे शिव बाबा का प्रेम, उनका साथ मुझे देह और देह की दुनिया के हर आकर्षण से मुक्त कर रहा है। दुनियावी  सम्बन्धो से अब मेरा कोई लगाव, झुकाव और टकराव नही है। *पुरानी दुनिया की किसी भी बात से कोई तैलुक ना रख, केवल अपने शिव बाबा के साथ सर्व सम्बन्धों का सुख लेते हुए, उनकी मीठी यादों में खोए रहना ही अब मुझे अच्छा लगता है*।

 

_ ➳  *तुम्ही से बैठूं, तुम्ही से खाऊँ, तुम्ही संग रास रसाऊं इसे ही अपने जीवन का मंत्र बना कर, हर बात से उपराम हो कर, अब मैं अपने मीठे बाबा के साथ अपने जीवन के हर पल का आनन्द ले रही हूँ*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  मैं आत्मा अपने पूज्य स्वरुप की स्मृति से सदा रूहानी नशे में रहने वाली हूँ।*

 

 _ ➳  परम पूज्य मैं पूर्वज आत्मा... सिर्फ एक बाप की ही स्मृति में रहती हूँ... *सतयुगी पूज्य मैं आत्मा...* अपने देवपन के अधिकार का आह्वान कर... इस संगमयुग पर *मन-बुद्धि से किसी भी बंधन में बंधती नहीं हूँ...* देह... सम्बन्ध... पदार्थ वा संस्करों में विचार... संकल्प रूपी माया को अग्निपरीक्षा रूपी चेकिंग से पार उतारती हूँ... सदा जीवनमुक्ति का अनुभव करती मैं आत्मा... अपने पूज्य स्वरुप की स्मृति द्वारा... *शुभ भावना रूपी मोतियों की वर्षा कर रही हूँ...* शरीर नहीं मैं रूह... *रूहानी गुलाब बन सदा जीवनमुक्त परिस्थिति का अनुभव करती हूँ... परमधाम निवासी में आत्मा... *अपने ओरिजिनल... पूज्य संस्करों को सदा स्मृति में रख... संगमयुग में... सतयुगी बादशाही का आनंद ले रही हूँ...*

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- निमित ओर निर्माण बन सच्चा सेवाधारी बनने का अनुभव"*

 

_ ➳  मैं सारे विश्व में सौभाग्यशाली आत्मा हूँ... *जिसे स्वयं भगवान ने विश्व-सेवा के निमित्त चुना है*... मैं न्यारी ओर प्यारी आत्मा हूँ... करावनहार मुझ आत्मा से श्रेष्ठ कार्य करा रहा है... मैं आत्मा तो निमित हूँ... *मैं आत्मा निमित भाव की विधि से सेवा में वृद्धि करती जा रही हूँ*... निमित्त भाव मुझ आत्मा को स्नेही व रहमदिल भी बनाता जा रहा है... मैं आत्मा स्मृति में सदा यह स्लोगन याद रखती हूँ... *जैसी मुझ निमित्त बनी हुई आत्मा की वृति होगी... वैसा ही वायुमंडल का निर्माण मैं आत्मा करती हूँ... निमित्त भाव मुझ आत्मा में निर्मानता लाता जा रहा है*... मैं आत्मा बुद्धि में पहले आप का महामन्त्र धारण कर... *विश्व का कल्याण करने वाली सच्ची सेवाधारी आत्मा अनुभव करने लगी हूँ*... बाबा द्वारा मिले हुए खजाने को देने के निमित्त बनती जा रही हूँ... *लगाव, झुकाव से न्यारी आत्मा होने का अनुभव करती जा रही हूँ*...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *बेहद की सेवा में समय लगाने से समस्या सहज ही भाग जायेगी क्योंकि चाहे अज्ञानी आत्मायें हैंचाहे ब्राह्मण आत्मायें हैं लेकिन अगर समस्या में समय लगाते हैं वा दूसरों का समय लेते हैं तो सिद्ध है कि वह कमजोर आत्मायें हैंअपनी शक्ति नहीं है।* जिसको शक्ति नहीं होपांव लंगड़ा हो और उसको आप कहो दौड़ लगाओतो लगायेगा या गिरेगातो समस्या के वश आत्मायें चाहे ब्राह्मण भी हैं लेकिन कमजोर हैंशक्ति नहीं हैतो वह कहाँ से शक्ति लायेंबाप से डायरेक्ट शक्ति ले नहीं सकता क्योंकि कमजोर आत्मा है। तो क्या करेंगेकमजोर आत्मा को दूसरे कोई का ब्लड देकर ताकत में लाते हैंकोई शक्तिशाली इन्जेक्शन देकर ताकत में लाते हैं *तो आप सबमें शक्तियां हैं। तो शक्ति का सहयोग दोगुण का सहयोग दो। उन्हों में है ही नहींअपना दो।*

 

 _ ➳  पहले भी कहा ना - दाता बनो। वह असमर्थ हैंउन्हों को समर्थी दो। *गुण और शक्ति का सहयोग देने से आपको दुआयें मिलेंगी और दुआयें लिफ्ट से भी तेज राकेट हैं।* आपको पुरुषार्थ में समय भी देना नहीं पड़ेगादुआओं के राकेट से उड़ते जायेंगे। पुरुषार्थ की मेहनत के बजाए संगम के प्रालब्ध का अनुभव करेंगे। *दुआयें लेना - वह सीखो और सिखाओ। अपना नेचरल अटेन्शन और दुआयें, अटेन्शन भी टेन्शन मिक्स नहीं होना चाहिएनेचरल हो।* नालेज का दर्पण सदा सामने है ही। उसमें स्वत: सहज अपना चित्र दिखाई देता ही रहेगा। इसीलिए कहा कि पर्सनैलिटी की निशानी है प्रसन्नचित। यह क्योंक्याकैसे। यह के के की भाषा समाप्त। दुआयें लेना और देना सीखो। *प्रसन्न रहना और प्रसन्न करना - यह है दुआयें देना और दुआयें लेना।* कैसा भी हो आपकी दिल से हर आत्मा के प्रति हर समय दुआयें निकलती रहें - इसका भी कल्याण हो। इसकी भी बुद्धि शान्त हो। यह ऐसायह वैसा - ऐसा नहीं। सब अच्छा।

 

✺   *ड्रिल :-  "बेहद की सेवा से दुआयें लेने और देने का अनुभव"*

 

 _ ➳  अमृतवेले, मैं आत्मा एकांत में एक शांत स्थान पर बैठ जाती हूँ... *सुबह की ठंडी- ठंडी हवाओं में, मैं आत्मा... एक के ही अंत में समा इस देह से बिल्कुल... न्यारी हो चाँद तारो को पार करती हुई... फरिश्ता स्वरुप में स्थित हो फरिश्तो की दुनिया में चली जाती हूँ...* जहाँ, चारो... ओर चाँदनी सा प्रकाश बिखरा हुआ है... मैं आत्मा, प्रकाश को चीरती हुई आगे बढ़ती हूँ... और अपने प्यारे बाबा को अपने सामने आता हुआ देखती हूँ... बाबा मुस्कुराते हुए मेरे सामने आ गए है...

 

 _ ➳  *बाबा बाहे फैलाये... मुझ आत्मा का आह्वान करते है... आओ मेरे प्यारे, मीठे बच्चे आओ...* मैं आत्मा झट से प्यारे बाबा की बाहों में समा जाती हूँ... बाबा के मस्तक वा नयनो से निकलती हुई दिव्य किरणे... मुझ आत्मा में समाती जा रही है... मुझ आत्मा से कब, क्या, क्यों, कैसे????... सभी प्रश्न, सभी व्यर्थ संकल्प, आसुरी संस्कार निकलते जा रहे है... *मैं आत्मा सर्व शक्तियों वा गुणों से भरपूर हो एकदम हल्की हो जाती हूँ...*

 

 _ ➳  सर्व शक्तियों वा गुणों से भरपूर हो मैं आत्मा, ज्ञान के दर्पण में अपना आदि अनादि स्वरुप देखती हूँ... *मैं शक्ति स्वरुप आत्मा हूँ...* मुझे कोई सहयोग दे तो मैं कार्य करू, नही... मुझे सहयोग देना है... शक्तिहीन में ज्ञान का फ़ोर्स भर, गिरते को उठाना है... आत्मिक शक्ति को बढ़ाना है...

 

 _ ➳  *दाता स्वरुप बन मैं आत्मा, कमजोर आत्माओ में शक्ति का बल भरती हूँ...*संपर्क में आने वाली सभी आत्माओ को, चाहे अज्ञानी है, चाहे ब्राह्मण है... सभी को आत्मिक दृष्टि से देखती हूँ... गुणवान बन सर्व के गुणों वा विशेषताओं को देखती हूँ वा उनकी महिमा का बखान करती हूँ... *उमंग-उत्साह के पंख लगा मैं आत्मा, बेहद की सेवा में समय सफल कर हर समस्या, हर परिस्थिति को पार करती जाती हूँ...*

 

 _ ➳  *महानता ही निर्माणता है...* मैं आत्मा निर्माण भाव से सर्व का कल्याण करती हूँ... भल आत्मा कैसी भी हो, सभी को शुभ भावना, शुभ कामना देती हूँ... प्रसन्नचित रह सबको प्रसन्न करती हूँ... साक्षीद्रष्टा हो, बना बनाया खेल देखती हूँ... जो बीत गया वह भी अच्छा, जो हो रहा है वह और अच्छा और... जो होने वाला है वह और भी अच्छा... यह ऐसा, यह वैसा नही, सब कुछ अच्छा ही अच्छा... सर्व आत्माओं की दुआयें लिफ्ट का काम करती है... *दुआयें देना ही लेना है... दुआयें प्राप्त कर मैं आत्मा पुरुषार्थी जीवन में निरन्तर आगे बढ़ती जा रही हूँ... इस संगम पर पुरुषार्थ करना नही पड़ रहा, स्वतः होता जा रहा है... मैं आत्मा संगम पर प्रालब्ध का अनुभव करती हुई संगमयुग की मौजो में झूमती रहती हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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