━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 15 / 10 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *"भगवान भी हमारे गीत गाते हैं" - ऐसा नशा रहा ?*
➢➢ *ईश्वरीय परिवार की वृद्धि के लिए त्याग का पार्ट बजाया ?*
➢➢ *हर सेकंड अपनी प्रैक्टिकल लाइफ के आईने द्वारा सर्व आत्माओं को स्व का और बाप का साक्षातकार करवाया ?*
────────────────────────
∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *"मैं कौन सी आत्मा हूँ ? क्या हूँ ?" - आत्माओं को यह रीयलाईजेशन करवा शांति का अनुभव करवाया ?*
➢➢ *"मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, सर्वशक्तिवान की संतान हूँ" - निर्बल आत्माओं को यह रीयलाईजेशन करवा शक्ति स्वरुप स्थिति का अनुभव करवाया ?*
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ कर्मातीत स्थिति के समीप आ रहे हैं। कर्म भी वृद्धि को प्राप्त होता रहता है। लेकिन *कर्मातीत अर्थात कर्म के किसी भी बंधन के स्पर्श से न्यारे।* ऐसा ही अनुभव बढ़ता रहे। जैसे मुझ आत्मा ने इस शरीर द्वारा कर्म किया ना, ऐसे ही न्यारा-पन रहे।
〰✧ न कार्य के स्पर्श करने का और करने के बाद जो रिजल्ट हुई - उस फल को प्राप्त करने में भी न्यारा-पना कर्म का फल अर्थात जो रिजल्ट निकलती है उसका भी स्पर्श न हो, बिल्कुल ही न्यारा-पन अनुभव होता रहे।
〰✧ जैसे कि *दूसरे कोई ने कराया और मैंने किया।* किसी ने कराया और मैं निमित बनी। लेकिन *निमित बनने में भी न्यारा-पना ऐसी कर्मातीत स्थिति बढ़ती जाती है* - ऐसा फील होता है?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- विश्व शांति सम्मेलन के समाप्ति समारोह पर, प्राण अव्यक्त बापदादा के महावाक्य"*
➳ _ ➳ भगवान जब धरती पर आएगा... *मुझे चुनकर, अपने दिल में यूँ सजाएगा... अथाह रत्नों को देकर मुझे अमीर बनाएगा..*. धरती पर रहकर मात्र देह समझकर जीने वाली मै आत्मा... *आत्मिक स्थिति में डूबकर यूँ आसमां में उड़ूँगी... वरदानो सजुगी... पवित्रता और दिव्यता से भरकर देवताई ताजोतख्त पाकर... बड़ी शान से सतयुगी दुनिया में राज करूंगी.*.. भला मेने ऐसा कब सोचा था.... *आज मेरा जीवन इस खुबसूरत हकीकत से खनक रहा है.*.. यूँ ही असीम प्यार में डूबी हुई मै आत्मा... दिलबर बाबा को अपने दिल की आवाज सुनाने... वतन में उड़ चलती हूँ...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अनन्य विशेषताओ से सजाते हुए कहा :-" मीठे प्यारे फूल बच्चे... *आपके महान भाग्य के गुण स्वयं ईश्वर पिता गा रहे है... सदा इस महान नशे में झूमते रहो.*.. सदा शुभ भावना की वाइब्रेशन विश्व में फेलाते रहो... रियालजेशन और सॉल्युशन से सहज ही शांति की अनुभूति कराओ... शक्तियो और गुणो से भरकर हर निर्बल आत्मा को शक्तिशाली बनाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बापदादा से ज्ञान मोतियो को अपनी बाँहों में भरकर कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा मेरे... *इतना प्यारा भाग्य भला कब सोचा था... कि स्वयं भगवान बेठ मेरे भाग्य के गीत गायेगा*... मुझे अपने दिल में जगह देकर, मेरा मान बढ़ाकर, इतना ऊँचा स्थान दिलाएगा... मै आत्मा अपने इस मीठे भाग्य के नशे में झूम रही हूँ...
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी अमूल्य शिक्षाओ से सजाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सदा दूसरो को आगे बढ़ाते हुए स्वयं को आगे बढ़ाओ... *सदा याद में रहो, याद दिलाते रहो, हर कदम पर यादगार कदम बढ़ाते चलो.*.. अपनी रूहानी चाल से सर्व आत्माओ को स्व का बाप का साक्षात्कार कराओ... ऐसे वरदानी महादानी बनकर, मीठे बाबा के दिल में मुस्कराओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के प्यार में वरदानों से भरपूर होकर कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा... मै आत्मा *आपके प्यार की किरणों तले... आत्मिक गुणो से पुनः सज संवर गयी हूँ.*.. सबको सहयोग भरे हाथ देकर, आगे बढ़ाने वाली विश्व कल्याण कारी बन गयी हूँ... पूरा विश्व मेरा परिवार है... इस मीठी भावना से ओतप्रोत होकर, गुणो की प्रतिमूर्ति बनकर... मुस्करा रही हूँ...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को शक्तियो से सम्पन्न बनाकर कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *सदा एक बल एक भरोसा इस निश्चय से ईश्वरीय राहो में बढ़ते रहो... निश्चय बुद्धि आत्मा बन, सदा विजय तिलक लगाते रहो*... सदा मा सागर बनकर... अपने गुणो और शक्तियो की शीतल तरंगो से... विश्व को अभिभूत करो... हंस सिहांसन पर विराजमान होकर... अपनी खुशनसीबी की स्मर्तियो में डूबे हुए... सर्व खजानो से सम्पन्न होकर मुस्कराओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा की अथाह सम्पदा को दिल में भरकर कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा *अपने भाग्य पर कितना न इतराऊँ, झूमूँ और नाचूं.. कि मेरी बाँहों में स्वयं भगवान आ गया है... और मुझे सच्ची खुशियो से सजा दिया है.*..मीठे बाबा आपसे पायी हुई खुशियो की, वरदानों की यह दौलत मै आत्मा... हर दिल पर लुटा रही हूँ..."प्यारे बाबा को अपनी खुशियो का इजहार करके मै आत्मा... साकारी देह में लौट आयी...
────────────────────────
∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- "मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, सर्वशक्तिवान की संतान हूँ" - निर्बल आत्माओं को यह रीयलाईजेशन करवा शक्ति स्वरुप स्थिति का अनुभव करवाना*"
➳ _ ➳ "मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, सर्वशक्तिवान की संतान हूँ" इस श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट होते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे परमधाम से सर्वशक्तिवान शिव बाबा अपनी सर्वशक्तियाँ बिखेरते हुए, मेरे सिर के बिल्कुल ऊपर आ कर स्थित हो गए हैं और उनकी सर्वशक्तियों से मेरे चारों और एक बहुत ही सुंदर औरा निर्मित हो गया है। *इस औरे का विस्तार जैसे - जैसे बढ़ रहा है वैेसे - वैसे मेरे चारों और का वायुमण्डल बहुत ही शक्तिशाली बनता जा रहा है*। एक - एक करके मेरी सभी शक्तियां इमर्ज रूप में मेरे सामने उपस्थित हो गई है और मैं स्वयं को बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। *अपनी इस शक्तिशाली स्थिति में स्थित हो कर अब मैं अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर लेती हूँ*।
➳ _ ➳ सर्वशक्तियों से सम्पन्न अपने फ़रिशता स्वरूप में स्थित हो कर, अपने सर्वशक्तिवान परम पिता परमात्मा की छत्रछाया के नीचे स्वयं को अनुभव करते, अब मैं फ़रिशता सारी दुनिया का चक्कर लगा रहा हूँ। *सर्वशक्तिवान मेरे शिव पिता परमात्मा से निरन्तर सर्वशक्तियाँ निकल कर मुझ फ़रिश्ते में और मुझ फ़रिश्ते से सारे विश्व में फैलती जा रही हूँ*। मैं देख रहा हूँ उन सभी तड़पती हुई, अशांत आत्माओं को जो पल भर की शांति की तलाश में भटक - भटक कर बिल्कुल निर्बल, शक्तिहीन हो चुकी हैं और मुझ फ़रिश्ते से निकल रही सर्वशक्तियों को पा कर स्वयं को शक्तिशाली अनुभव करने लगी है। *मुझ फ़रिश्ते से निकल रही सर्वशक्तियाँ उनमें शक्ति का संचार कर रही हैं*।
➳ _ ➳ सर्वशक्तिवान बाबा की सर्वशक्तियों की छत्रछाया के नीचे, विश्व की सर्व आत्माओं को शक्तियां प्रदान करता मैं फ़रिशता अब अपने सर्वशक्तिवान बाबा के साथ सूक्ष्म लोक की ओर जा रहा हूँ। *सूक्ष्म लोक में पहुंच कर बाबा अपने निर्धारित रथ, ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान हो जाते हैं और मुझे अपने पास बिठा कर, शक्तिशाली दृष्टि दे कर अपनी सर्वशक्तियों से मुझे भरपूर करने लगते हैं*। अपने हाथ मेरे हाथों पर रख कर बाबा अपनी सर्वशक्तियाँ मुझे विल करने के बाद अपने निराकार स्वरूप में परमधाम की ओर प्रस्थान करते हैं। मैं भी अपनी फ़रिशता ड्रेस को वही उतार कर, अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप में स्थित हो कर उनके पीछे परमधाम की ओर चल पड़ती हूँ।
➳ _ ➳ परमधाम में पहुंच कर, सर्वशक्तिवान बीज रूप अपने शिव पिता परमात्मा के सानिध्य में मैं मास्टर बीज रूप आत्मा जा कर बैठ जाती हूँ। बाबा से आती सर्वशक्तियों रूपी किरणों की मीठी - मीठी फुहारे मुझे असीम बल प्रदान कर रही हैं। सर्वशक्तियों से मैं सम्पन्न होती जा रही हूँ। *ऐसा लग रहा है जैसे अपनी समस्त ऊर्जा का भंडार बाबा मेरे अंदर समाहित कर रहे हैं ताकि संपूर्ण ऊर्जावान बन मैं विश्व की समस्त आत्माओं का कल्याण करने के निमित बन बाबा के कार्य में मददगार बन सकूँ*। परमात्म शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर, शक्तियों का पुंज बन अब मैं परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और साकारी दुनिया मे आ कर अपने पांच तत्वों के बने शरीर में मैं प्रवेश करती हूँ, इस स्मृति के साथ कि अब मुझे मास्टर सर्व शक्तिवान आत्मा बन निर्बल आत्माओं को शक्ति स्वरुप स्थिति का अनुभव करवाना है।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं स्वयं को सदा इस श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट रखती हूँ कि "मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, सर्वशक्तिवान की संतान हूँ"। *इस श्रेष्ठ स्वमान की स्मृति में रहने से मैं स्वयं को सदैव अपने सर्वशक्तिवान शिव बाबा के साथ कम्बाइन्ड अनुभव करती हूँ*। जिससे मुझ आत्मा की शक्तियाँ सदैव इमर्ज रहती है और मेरा शक्तिसम्पन्न स्वरूप मेरे सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली निर्बल और कमजोर आत्माओं को भी, उनके शक्तियों से सम्पन्न ओरिजनल स्वरूप का रीयलाईजेशन करवा कर उन्हें भी शक्ति स्वरूप स्थिति का अनुभव करवाता रहता है।
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा बाप द्वारा प्राप्त हुए सर्व खजानों को कार्य में लगाकर बढ़ाती हूँ।”*
➳ _ ➳ बाबादादा के वर्से की अधिकारी मैं आत्मा… बिन मांगे सबकुछ देने वाले दाता की औलाद हूँ… *बापदादा ने मुझ आत्मा को सर्व खजानों से सम्पन्न बनाया है… मैं आत्मा समय पर हर खजाने को काम में लगाती हूँ… इससे मेरा खजाना सदा बढ़ता जाता है*… मैं कभी ऐसे नहीं कह सकती कि चाहती तो नहीं थी… लेकिन हो गया… खजानों से सम्पन्न *मैं ज्ञानी-योगी तू आत्मा पहले सोचती हूँ फिर करती हूं… मुझे समय प्रमाण टच होता है… मैं फिर कैच करके प्रैक्टिकल में लाती हूँ… एक सेकण्ड भी करने के बाद नहीं सोचती हूँ… मैं ज्ञानी तू आत्मा हूं*…
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- स्वभाव और विचारों में अंतर होते हुए भी स्नेह का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं दुःखहर्ता बाप की सन्तान हूँ... *बाबा के समान सर्व आत्माओं पर स्नेह लुटाने वाली आत्मा हूँ*... बाबा कभी भी अपने बच्चों को सजा नही देते... *पुरुषार्थ करेंगे तो प्रालब्ध के अधिकारी आत्मा बन जाएंगे*... चाहे स्वभाव और विचारों में कितना भी अंतर है परन्तु... सबके प्रति क्षमा और रहम की दृष्टि... *मुझ आत्मा में स्नेह और रहम के संस्कार भरती जा रही है*... बाबा ने भी मुझ आत्मा को क्षमा कर... अपना बना, *अपने नजदीक ला रहे है*... जैसे बाबा मुझ आत्मा पर स्नेह की बरसात करते है... ऐसी ही बाप समान मैं आत्मा भी... सम्पर्क में आने वाली आत्मा के... विचारों में स्वभाव में... अंतर होते हुए भी... *उस आत्मा के प्रति स्नेह में कोई भी अंतर नही रखती हूँ*... उन आत्माओं के प्रति शुभ भावना शुभ कामना रखते हुए मैं आत्मा स्नेह का अनुभव कर रही हूँ...
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ चारों ओर की सेवाओं के समाचार बापदादा सुनते रहते हैं और दिल से सभी अथक सेवाधारियों को मुबारक भी देते हैं, सेवा बहुत अच्छे उमंग-उत्साह से कर रहे हैं और आगे भी करते रहो लेकिन सेवा और स्थिति का बैलेन्स थोड़ा -सा कभी इस तरफ झुक जाता है, कभी उस तरफ इसलिए सेवा खूब करो, *बापदादा सेवा के लिए मना नहीं करते और जोर-शोर से करो लेकिन सेवा और स्थिति का सदा बैलेन्स रखते चलो।* स्थिति बनाने में थोड़ी मेहनत लगती है और सेवा तो सहज हो जाती है। इसलिए सेवा का बल थोड़ा स्थिति से ऊंचा हो जाता है। *बैलेन्स रखो और बापदादा की, सर्व सेवा करने वाले आत्माओं की, संबंध-सम्पर्क में आने वाले ब्राह्मण परिवार की ब्लैसिंग लेते चलो।* यह दुआओं का खाता बहुत जमा करो।
➳ _ ➳ *अभी की दुआओं का खाता आप आत्माओं में इतना सम्पन्न हो जाए जो द्वापर से आपके चित्रों द्वारा सभी को दुआयें मिलती रहेंगी। अनेक जन्म में दुआयें देनी हैं लेकिन जमा एक जन्म में करनी हैं।* इसलिए क्या करेंगे? स्थिति को सदा आगे रख सेवा में आगे बढ़ते चलो। क्या होगा, यह नहीं सोचो।ब्राह्मण ब्राह्मण आत्माओं के लिए अच्छा है, अच्छा ही होना है। लेकिन बैलेन्स वालों के लिए सदा अच्छा है। बैलेन्स कम तो कभी अच्छा, कभी थोड़ा अच्छा। सुना क्या करना है? क्वेश्चन मार्क सोचने के हिसाब से आश्चर्यवत होके सोचने को फिनिश करो, यह तो नहीं होगा, यह तो नहीं होगा....। वह स्थिति को नीचे ऊपर करता है। समझा।
✺ *ड्रिल :- "सेवा और स्थिति का बैलेन्स करना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा मन और बुद्धि से शक्ति स्तम्भ पर... शक्तियों के सुरक्षित घेरे के अन्दर... *शिव बिन्दु से आता लाल सुनहरें प्रकाश का तेज, मेरी भृकुटी पर स्थित हो गया है...* मेरे मस्तिष्क में फैलता नीले रंग का प्रकाश मेरे हृदय स्थल में हरे रंग व उदर भाग में जाकर पीले रंग में बदल रहा है... पूरी ही देह सतरंगी प्रकाश की आभा से दमक रही है... आहिस्ता आहिस्ता मैं आत्मा देह से अलग होती हुई... देहभान से मुक्त मैं आकारी फरिश्ता... *सामने से मुस्कुराते आ रहे है बापदादा मेरी ही ओर... इन्तजार के लम्हों पर एकाएक विराम सा लग गया है*... और मैं बापदादा संग उड चला सूक्ष्म वतन की ओर नन्हें हाथों में उनकी उगँली थामें हुए...
➳ _ ➳ सूक्ष्म वतन में बापदादा के सम्मुख बैठा हूँ मैं... और बापदादा समझा रहे है... *सेवा और स्व स्थिति का बैलेन्स रखना है सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली ब्राह्मण आत्माओं से ब्लैसिंग लेनी है, अनेक जन्म में दुआए देनी है मगर इस जन्म में लेनी है...* मैं फरिश्ता सब कुछ ध्यान पूर्वक सुनता हुआ... अब मैं और बापदादा विश्व सेवा पर... ग्लोब के ऊपर खडा हूँ मैं, ठीक मेरे पीछे मेरी छत्रछाया बने बापदादा... बापदादा के हाथों में मेरे दोनों हाथ, शान्ति की, पावनता की, शक्तिशाली किरणें बापदादा से लेकर ग्लोब पर बिखराता हुआ... प्रकृति को सकाश देता हुआ... और साक्षी होकर अपनी ऊँची स्थिति को देखता हुआ... मैं देख रहा हूँ पूरे ग्लोब पर प्रकाश का प्रसरण... सचमुच ऊँचाई पर स्थित होकर ही मैं ऐसा कर पा रहा हूँ...
➳ _ ➳ *तभी सागर में उठती मनोरम लहरों से आकर्षित होता हुआ मैं उतर जाता हूँ सागर के किनारें पर मगर ये क्या?* मेरी शक्तियाँ तो सीमित होती जा रही है, मैं स्वयं को अशक्त सा महसूस करने लगा हूँ... सागर में भयंकर लहरों का उत्पात... *मैं शान्ति की किरणें भेज रहा हूँ... मगर मेरी कोशिशें असर हीन सी साबित हो रही है... घबराकर मैं देख रहा हूँ बापदादा की ओर... ग्लोब पर खडे बापदादा मुस्कुरा रहे है मुझे देखकर... मगर ये मुस्कान मेरी गलती का एहसास कराने वाली मुस्कान है... मैं समझ गया हूँ, सेवा में स्व स्थिति का बैलैन्स कैसे रखना है...* बापदादा के पास उडकर वापस लौटता हुआ मैं... फिर से ग्लोब पर, और फिर से बाबा के हाथों में मेरे हाथ... और शान्त होती सागर की लहरें...
➳ _ ➳ *मेरे पास लौटकर आती हुई दुआएं, मैं भरपूर महसूस कर रहा हूँ स्वयं को* मन के निर्मल गगन में विचरता द्वापर युगीन विमान... स्वयं को इस विमान पर सवार, द्वापर युग में देख रहा हूँ... भव्य राजमहलों और मन्दिरों को अपने आँगन में सजाये ये द्वापर युग... स्वर्ण कलश से सुशोभित सुनहरी आभा छिटकाता मेरा भव्य और विशाल मन्दिर... और मन्दिर के गर्भ गृह में दिव्य प्रकाश फैलाती मेरी पावन प्रतिमा... मगंल गायन करते भक्त जन... घन्टे और घडियाल बजाते पुजारी... और *द्वार पर भक्तों की लंबी कतार... और मन्द मन्द मुस्कुरातें हुए एक एक भक्त की मनोकामनाओं को पूरा करता हुआ मैं...* भक्तों की कतार कम होने का नाम नही ले रही... मगर मैं बडी उदारता से सबकी मनोकामनाएं पूरा करता जा रहा हूँ, और अब मैं आत्मा लौट आयी हूँ वापस उसी देह में... सेवा और स्वस्थिति का बैलेन्स का गहरा अनुभव लिए... ओम शान्ति...
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━