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 24 / 02 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *पढाई के लिए कोई बहाना तो नहीं दिया ?*

 

➢➢ *पवित्र गृहस्थ आश्रम बनाने पर विशेष अटेंशन रहा ?*

 

➢➢ *सिर्फ एक बाप का ही गुणगान किया ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *मन से दृढ़ प्रतिज्ञा कर मनमनाभव के मन्त्र को यंत्र बनाया ?*

 

➢➢ *स्वमान में रह अपमान की फीलिंग से मुक्त रहे ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *इस वर्ल्ड ड्रामा में स्वयं के पार्ट को साक्षी होकर देखा ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे - एक बाप ही है जिसकी अपरमपार महिमा है, बाप जेसी महिमा और किसी की भी हो नही सकती"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... देह की दुनिया में और विकारो में लिप्त होकर, अथाह दुखो में गर्दन तक धँसे बच्चों को, परमपिता के सिवाय कोई निकाल ही न सके... ईश्वर पिता ही दुखो में कुम्हलाये अपने *फूल बच्चों को पावनता से पुनः महकाएँ* और सुनहरे सुखो की सेज पर बिठाये... इसलिए ईश्वर पिता ही महिमा तुल्य है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो की महक से सम्पूर्ण पवित्र बनती जा रही हूँ... देह के भान से निकल *सच्चे आत्मिक नशे से भरती जा रही हूँ.*.. आपने मीठे बाबा मुझे पावनता से सजाया और महकाया है...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... इस पतित दुनिया को पावनता से और सुखो से भरपूर.. विश्व पिता के सिवाय कोई मनुष्यमात्र तो कर ही न सके... विश्व पिता ही दुखो से कलुषित धरा को... *सुखो के फूलो मे खिलाकर बच्चों को सदा का सुखी बनाता है*... और देवताई श्रंगार से सजाकर विश्व अधिकारी बनाता है...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपको पाकर कितनी पावन कितनी ओजस्वी खुबसूरत हो चली हूँ... *देह की नश्वरता से निकल कर स्वयं के सच्चे वजूद में खिल उठी हूँ.*.. प्यारे बाबा आपने मुझे असाधारण सा बना दिया है...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता आप बच्चों के सुखो के पीछे अपना धाम छोड़ धरा पर डेरा जमाये... बच्चे गुणो और शक्तियो से सजकर.... देवताई सुखो में मुसकाये यही आस दिल में लिए....  ईश्वर पिता हर बच्चे को फूलो सी गोद में बिठाकर, पावनता से सजाये.... तो मीठा बाबा ही महिमा का पर्याय सा है... *ऐसा जादू कोई और तो कर ही न सके.*..

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी सी प्यार भरी छत्रछाया को पाकर कितनी पावन हो चली हूँ... गुणो और *शक्तियो से भरपूर अथाह खजानो की वारिस हो चली हूँ.*.. आपने मीठे बाबा मुझे देह की मिटटी मोल से कितना अनमोल बना दिया है...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा सदा शक्तिशाली हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  परमपिता परमात्मा के निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि महाशिवरात्रि पर्व को... चारों ओर भक्त लोग धूम-धाम से मना रहे हैं... शिव और सालिग्राम दोनों की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना कर रहे हैं... व्रत-उपवास और जागरण कर रहे हैं... परमपिता परमात्मा आकर मुझ आत्मा को *अज्ञान-अंधकार की रात्रि से जागृत कर*... ज्ञान के सोझरे में ले आए... प्यारे बाबा मुझ आत्मा को मधुबन की पहाडियों पर ले जाते हैं...

 

➳ _ ➳   मैं आत्मा बाबा के सम्मुख बैठी हूँ... मंदिरों में शिव लिंग पर भक्त लोग गंगा जल से अभिषेक कर रहे हैं... ज्ञान की नीले रंग की किरणों से बाबा मुझ आत्मा का अभिषेक कर रहे हैं... मुझ आत्मा की सारी अज्ञानता बाहर निकलती जा रही है... भक्तजन शिव लिंग पर दूध-दही, पंचामृत से अभिषेक कर रहे हैं... बाबा मुझ आत्मा पर *पवित्रता की श्वेत रंग की किरणें* प्रवाहित कर रहे हैं... मुझ आत्मा के काम, क्रोध के विकार, सारी अपवित्रता बाहर निकलती जा रही है...

 

➳ _ ➳  भक्त शिव लिंग पर गन्ने का रस, बिल्व पत्र चढ़ा रहे हैं... बाबा मुझ आत्मा को प्रेम की हरे रंग की किरणों से सराबोर कर रहे हैं... भक्त शहद, फलों के रस से नीलकंठ का अभिषेक कर रहे हैं... बाबा *शांति की आसमानी रंग की किरणों* से मुझ आत्मा को नहला रहे हैं... भक्त शिवलिंग पर चंदन का लेप लगा रहे हैं... प्यारे बाबा सुख की पीले रंग की किरणें मुझ आत्मा पर बरसा रहे हैं... मुझ आत्मा की घृणा, दुख और अशांति खत्म होती जा रही है...

 

 ➳ _ ➳  भक्त लोग अक, धतूरा चढ़ा रहे हैं... बाबा मुझ आत्मा पर आनंद की बैंगनी रंग की किरणें प्रवाहित कर रहे हैं... मुझ आत्मा का लोभ, मोह और अहंकार मिटता जा रहा है... भक्त शिवलिंग पर कुमकुम का तिलक लगा रहे हैं... बाबा *शक्ति की लाल रंग की किरणें* मुझ आत्मा पर प्रवाहित कर रहे हैं... मुझ आत्मा की सभी कमी-कमजोरियां, पुराना स्वभाव-संस्कार खत्म होता जा रहा हैं... भक्तजन यज्ञ-हवन कर रहे हैं... प्यारे बाबा रुद्र ज्ञान यज्ञ रचकर मुझ आत्मा को अपना सहयोगी बना रहे हैं...

 

➳ _ ➳  सभी मंदिर अगरबत्ती, कपूर की सुंगंध से सुगंधित हो रहे हैं... बाबा ज्ञान का वास धूप जला रहे हैं... मैं आत्मा रुहानी खुशबू से महक रही हूँ... इस रुहानी अभिषेक से मैं आत्मा पवित्र और शक्तिशाली बनती जा रही हूँ... मैं आत्मा बाबा से रुहानी मौली बंधवाकर एक बाबा से सारे बंधनों में बंध गई हूँ... मंदिरों में भक्त पंचाक्षरी मंत्र का जाप कर रहे हैं... बाबा मुझ सालिग्राम को *मनमनाभव का अविनाशी मंत्र* देते हैं...

 

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा मनमनाभव के मंत्र को यंत्र बनाकर किसी भी परिस्थिति को सहज ही पार कर रही हूँ... अब मैं आत्मा सच्चे मन से दृढ़ प्रतिज्ञा कर बाबा का हर कार्य कर रही हूँ... मैं आत्मा पावरफुल प्रतिज्ञा से हर परीक्षा को कमजोर बना रही हूँ... और सफलता प्राप्त करती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा मन से दृढ़ प्रतिज्ञा कर मनमनाभव के मंत्र को यंत्र बनाने वाली *सदा शक्तिशाली अवस्था का अनुभव* कर रही हूँ...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल - स्वमान में रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा बन फीलिंग को समाप्त करना "* 

 

➳ _ ➳  मैं स्वमानधारी आत्मा हूँ... मैं स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूँ... *मैं बापदादा की छत्रछाया में पलने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ*... यह स्वमान की स्मृति मुझ आत्मा को शक्तिशाली बनाती जा रही है...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा श्रेष्ठ स्वमान के अभिमान से... भिन्न-भिन्न देह-अभिमान को समाप्त करती जा रही हूँ... *श्रेष्ठ स्वमान का स्विच ऑन करते ही*... मुझ आत्मा में अपमान के अँधेरे की फिलिंग को समाप्त कर देता है...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा स्वयं को सदा परमात्म प्यार में समाया हुआ... अनुभव करती जा रही हूँ... स्वमान मुझ आत्मा को अनुभवी मूर्त बनाते जा रहे है... *मैं आत्मा स्वयं को सदा श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट होने का अनुभव करती जा रही हूँ*...

 

➳ _ ➳  मैं भाग्यशाली आत्मा जिसे स्वयं परमात्मा ने... कोटों में भी कोई में चुनकर अनेक स्वमानों की सीट पर बिठा दिया... *मैं आत्मा सृष्टि रचना की पहली रचना*... कितना बड़ा स्वमान परमात्मा ने मुझ आत्मा को दे दिया...  

 

➳ _ ➳  वाह!! मैं भाग्यवान आत्मा वाह!... मुझ आत्मा को बाप का दिल तख़्त मिल गया... मैं आत्मा बेहद के बाप के सर्व खजानों को अनुभव करने लगी हूँ... *मैं आत्मा मालिक सो बालक बनती जा रही हूँ*...

 

➳ _ ➳  स्वमान की सीट मुझ आत्मा को अपसेट नही होने देती... देह अभिमान में आने से अपमान की फिलिंग आती है... *मैं आत्मा अब सदा स्वमान की सीट पर रहती हूँ*... कभी भी देह की मिट्टी में अपने आपको गन्दा नही करती हूँ... सदा बाप द्वारा दिए स्वमान की... शान में रहने वाली आत्मा हूँ... स्वमान की सीट पर सेट रह श्रेष्ठ आत्मा बन फीलिंग प्रूफ बनने का पुरुषार्थ कर रही हूं...

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *मन से दृढ़ प्रतिज्ञा कर मनमनाभव के मन्त्र को यन्त्र बनाने वाले सदा शक्तिशाली होते हैं...  क्यों और कैसे?*

 

❉   मन से दृढ़ प्रतिज्ञा कर मनमनाभव के मन्त्र को यन्त्र बनाने वाले सदा शक्तिशाली होते हैं क्योंकि...  जो बच्चे किसी बात की *सच्चे मन से प्रतिज्ञा करते हैं तो वह प्रतिज्ञा उनके लिये मनमनाभव का मन्त्र बन जाती है।* वे सदा अपनी प्रतिज्ञा को मन ही मन में सिमरण करते रहते हैं।

 

❉   जब वे अपनी प्रतिज्ञा के प्रति दृढ़ प्रतिग्य होते हैं तो मनमनाभव हो जाता है और यह मनमनाभव का मन्त्र किसी भी परिस्थिति को पार करने का यन्त्र बन जाता है। लेकिन! *मनमनाभव का मन्त्र यन्त्र तभी बनता है जब हमारा मन अपनी प्रतिज्ञा को पूरी कर लेने के प्रति दृढ़ प्रतिग्य हो।* प्रतिज्ञा के प्रति शक्तिशाली हो।

 

❉   वह मन में सदा यही सोचे कि ये कार्य मुझे करना ही है तथा मन में यही संकल्प हो कि जो बाप ने कहा है वह तो हुआ ही पड़ा है इसलिये!  *हम जब भी कोई भी प्रतिज्ञा करते हैं तो वह मन से करेंगे और दृढ़ प्रतिग्य हो कर करेंगे।* तभी तो स्वयं को भी अति शक्तिशाली बना सकेंगें।

 

❉   इसलिये स्वयं को बार बार चैक करना है कि प्रतिज्ञा पॉवरफुल है या परीक्षा पॉवरफुल है। *प्रतिज्ञा सदा ही परीक्षा से पॉवरफुल होनी चाहिये।* हमें यही देखना चाहिये कि कहीं परीक्षा हमारी प्रतिज्ञा को कमजोर न कर दे। अतः हमें सदा अपनी प्रतिज्ञा को ही सर्वाधिक महत्व देना है।

 

❉   तभी तो कहा गया है कि मन से दृढ़ प्रतिज्ञा कर मनमनाभव के मन्त्र को भी यन्त्र बनाने वाले सदा शक्तिशाली होते हैं। *वह शक्तिशाली बच्चे सदा ही सच्चे मन से प्रतिज्ञा करते हैं और क्षण में मनमनाभव हो जाते हैं।* तभी तो मनमनाभव मन्त्र किसी भी परिस्थिति को पार करने का यन्त्र बन जाता है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *जो स्वमान में रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा है उन्हें अपमान की फीलिंग नही आ सकती... क्यों और कैसे* ?

 

❉   श्रेष्ठ स्वमान निर्माण चित्त बनाता है । इसलिए *जो सदा श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट रहते हैं उनके अंदर निर्माणता का गुण विकसित होने लगता है* । और निर्माणता का गुण उनके अंदर से देह अभिमान को समाप्त कर निमित्त पन का भाव ले आता है । और जो निमित्त पन की स्मृति में रह कर हर कर्म करते हैं उनके अंदर अभिमान और अपमान की फीलिंग कभी भी नहीं आती । क्योंकि निमित्त पन का भाव उन्हें निरंहकारी बना देता है ।

 

❉   कोई भी कर्म या सेवा करते हुए जब तेरा मेरा या मैं पन का भाव आता है तो अभिमान और अपमान की फीलिंग आती है । किंतु जब श्रेष्ठ *स्वमान की सीट पर सेट होकर कर्म या सेवा के क्षेत्र में आते हैं तो मेरे तेरे का भाव परिवर्तित हो जाता है* । जिससे हद के मान शान की प्राप्ति की इच्छा भी समाप्त हो जाती है इसलिए अपमान की फीलिंग भी मन में नही आती । इसलिए जो सदा श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट रह कर शक्ति सम्पन्न बन सेवा के क्षेत्र में आते हैं । वही सफलतामूर्त बन सेवा में सफलता प्राप्त करते हैं ।

 

❉   स्वमान में स्थित होने से किसी भी प्रकार का अभिमान चाहे देह का वा बुद्धि का अभिमान, नाम का अभिमान, सेवा का अभिमान व विशेष गुणों का अभिमान स्वत: ही समाप्त हो जाता है । क्योंकि श्रेष्ठ स्वमान में स्थित रहने वाला सदा निर्मान रहता है । *अभिमान नहीं लेकिन निर्मान । इसलिए उसे स्वत: ही सबका मान प्राप्त होता है* । मान की इच्छा से परे होने के कारण उसमें किसी भी प्रकार के अपमान की फीलिंग भी कभी नहीं आती । मान के त्याग में सर्व का माननीय बनने का सौभाग्य उसे सहज ही प्राप्त हो जाता है ।

 

❉   जो जैसा होता है वैसा ही वह स्वयं को सदा स्वत: ही समझ कर चलता है । जैसे लौकिक रीति भी कोई साधारण आत्मा को कोई उच्च पद प्राप्त हो जाता है तो उसका स्वमान ही बढ़ जाता है और वह उस नशे में स्वत: ही स्थित हो जाता है । वो तो हद की बात है । लेकिन *हम ब्राह्मण आत्माएं तो सारे विश्व में सर्वश्रेष्ठ विशेष पार्टधारी आत्माए हैं* । जो अपने इस श्रेष्ठ स्वमान, श्रेष्ठ पोजीशन और अपने श्रेष्ठ ऑक्यूपेशन को सदा समृति में रखते हैं वे सर्वश्रेष्ठ स्व स्थिति में सदा स्थित रहने के कारण हर प्रकार के अभिमान और अपमान की भावना से मुक्त रहते हैं ।

 

❉   जैसे बाप सभी बच्चों को स्वमान देते हुए आप समान बनाते हैं । ऐसे हम ब्राह्मण आत्माओं का कर्तव्य भी हर एक आत्मा को स्वमान देते हुए उसे आप समान और बाप समान बनाना है । ऐसे श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट रह सब को स्वमान देने वाले सदैव इस बात को समृति में रखते हैं कि *इस समय सिवाय एक बाप से लेने के बाकी सब को देना ही देना है* । जितना बाप से लेने और सर्व को देने का भाव समृति में रहता है उतना कर्म में नम्रता आती जाती है और अभिमान और अपमान की फीलिंग सहज ही समाप्त होती जाती है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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