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 21 / 12 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *आपस में व्यर्थ बातें तो नहीं की ?*

 

➢➢ *प्रतिज्ञा कर उस पर कायम रहे ?*

 

➢➢ *बेहद के अधिकार की स्मृति द्वारा अपार ख़ुशी में रहे ?*

 

➢➢ *सर्व की दुआओं से तीव्र गति की उड़ान भरी ?*

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         ❂ *योगी जीवन प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं*

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✧  अभी आत्मिक स्थिति की स्मृति कभी-कभी देह के पर्दे के अन्दर छिप जाती है, इसलिए यह स्मृति भी पर्दे के अन्दर दिखाई देती है। *आत्मिक स्मृति स्पष्ट और बहुत समय रहने से अपना भविष्य वर्सा अथवा अपने भविष्य के संस्कार स्वरूप में सामने आयेंगे। भविष्य संस्कारों को स्पष्ट स्मृति में लाने के लिए आत्मिक स्वरूप की स्मृति सदाकाल और स्पष्ट रहे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ योगी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाकर योगी जीवन का अनुभव किया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं बाप के साथ द्वारा साक्षी स्थिति का अनुभव करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

✧   सभी सदा साक्षी स्थिति में स्थित हो, हर कर्म करते हो? जो साक्षी हो कर्म करते हैं उन्हें स्वत: ही बाप के साथी-पन का अनुभव भी होता है। साक्षी नहीं तो बाप भी साथी नहीं इसलिए सदा साक्षी अवस्था में स्थित रहो। *देह से भी साक्षी जब देह के सम्बन्ध और देह के साक्षी बन जाते हो तो स्वत: ही इस पुरानी दुनिया से साक्षी हो जाते हो।*

 

✧  देखते हुए, सम्पर्क में आते हुए सदा न्यारे और प्यारे। यही स्टेज सहज योगी का अनुभव कराती है - तो सदा साक्षी इसको कहते हैं साथ में रहते हुए भी निर्लेप। *आत्मा निर्लेप नहीं है लेकिन आत्मअभिमानी स्टेज निर्लेप है अर्थात माया के लेप व आकर्षण से परे है। न्यारा अर्थात निर्लेप।* तो सदा ऐसी अवस्था में स्थित रहते हो?

 

✧  किसी भी प्रकार की माया का वार न हो। *बाप पर बलिहार जाने वाले माया के वार सदा बचे रहेंगे। बलिहार वालों वार नहीं हो सकता।* तो ऐसे हो ना? जैसे फर्स्ट चाँस मिला है वैसे ही बलिहार और माया के बार से परे रहने में भी फर्स्ट। फर्स्ट का अर्थ ही है फास्ट जाना। तो इस स्थिति में सदा फर्स्ट। सदा खुश रहो, सदा खुश नशीब रहो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *स्वयं को इस स्वमान में स्थित कर अव्यक्त बापदादा से ऊपर दिए गए महावाक्यों पर आधारित रूह रिहान की ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  बापदादा आज देख रहे थे कि बच्चों की तीन प्रकार की स्टेजेस हैं। एक हैं - पुरुषार्थी, उसमें पुरुषार्थी भी है और तीव्र पुरुषार्थी भी हैं। दूसरे हैं - जो पुरुषार्थ की प्रालब्ध जीवनमुक्ति अवस्था की स्टेज अनुभव कर रहे हैं। लेकिन *लास्ट की सम्पूर्ण स्टेज है - देह में होते भी विदेही अवस्था का अनुभव।*

 

✧  तो तीन स्टेज देखी। पुरुषार्थी की स्टेज में ज्यादा देखे, प्रालब्ध जीवनमुक्ति की, *प्राप्लब्ध यह नहीं कि सेन्टर के निमित बनने की वा स्पीकर अच्छे बनने की वा ड्रामा अनुसार अलग-अलग विशेष सेवा के निमित बनने की।*

 

✧  यह प्रलब्ध नहीं है, *यह तो लिफ्ट है* और आगे बढ़ने की, सर्व द्वारा दुआयें लेने की लेकिन *प्राप्लब्ध है जीवनमुक्त की।* कोई बन्धन नहीं।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- कभी भी पढाई नहीं छोड़ना, पढाई जरुर पढनी है"*

 

_ ➳  मैं आत्मा बाबा के कमरे में बैठ नर से नारायण और नारी से लक्ष्मी बनने की पढाई पढने के लिए सज धज कर तैयार होती हूँ... मैं आत्मा इस देहभान से निकल अपने आत्मिक स्वरुप में टिक जाती हूँ... *अपने जगमगाते, चमचमाते अत्यंत सुन्दर सजीले स्वरुप में सजकर मैं आत्मा इस स्थूल दुनिया को छोड़ सुन्दर प्रकाश के विमान में बैठकर पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन मेरे प्यारे बाबा के पास...*

 

   *प्यारा बाबा मेरे जीवन की बगिया को अपने ज्ञान रत्नों और प्यार से महकाते हुए कहते हैं:–* “मेरे मीठे फूल बच्चे... इस धरा पर खेल को जो उतरे तो सब कुछ भूल गए कौन हो किसके हो कहां के हो... सब कुछ भूल गए हो... *अब सत्य पिता ज्ञान रत्नों से फिर से सजा रहा और देवताओ सा सुखद जीवन दामन में खिला रहा है... यह ईश्वरीय पढ़ाई ही सतयुगी सुखो का आधार है...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा वरदाता का साथ और श्रीमत का हाथ पकडकर कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मुझ आत्मा ने कितना प्यारा भाग्य पाया है कि स्वयं ईश्वर पिता मुझे पढ़ा रहा...* मेरा खोया हुआ सौंदर्य लौटाकर मुझे देवताओ सा खुबसूरत सजा रहा... मै आत्मा मीठे बाबा से पढ़कर प्रतिपल निखर रही हूँ...

 

   *मीठे बाबा मेरी तकदीर जगाकर ज्ञान रत्नों से सराबोर करते हुए कहते हैं:–* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वरीय पढ़ाई को मन बुद्धि के रोम रोम में भर लो... यही ज्ञान रत्न सुखो के रत्नों में बदल जीवन को शांति और आनन्द से भरपूर कर जाएँगे...* ईश्वर पिता ने गोद में बिठाकर सारे ज्ञान खजाने नाम कर दिए है उन कीमती अमूल्य रत्नों को सहेज लो...

 

 ➳ _ ➳  *मैं आत्मा कई जन्मों के पुण्यफल से भगवान् को सम्मुख पाकर अपने भाग्य पर इठलाती हुई कहती हूँ:–* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा ईश्वरीय रत्नों को पाने वाली महान भाग्यशाली आत्मा हूँ...* भक्ति में कितनी खाली हो गई थी मै आत्मा ईश्वरीय सानिध्य में ज्ञान रत्नों से मालामाल हो गयी हूँ... और सुंदर देवता बनने का राज जानकर मुस्करा उठी हूँ...

 

   *मेरे बाबा मुझ आत्मा को इस ऊँची पढाई से दैवीय गुणों से भरपूर कर पावन श्रेष्ठाचारी बनाते हुए कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... सारा मदार इस ईश्वरीय पढ़ाई पर ही है... *यह पढ़ाई ही विश्व का मालिक बनाकर विश्वधरा पर सजायेंगी... इसलिए इस पढ़ाई को रग रग में धारण करलो...* जिन अल्पकाल के क्षणिक सुख के पीछे खप रहे थे कभी... यह पढ़ाई देवताई सुखो के अम्बार लगाकर जीवन खुशनुमा बना देगी...

 

_ ➳  *मैं आत्मा स्वर्णिम विश्व के रंगमंच पर देवता बन फिर से पार्ट बजाने का पुरुषार्थ करते हुए कहती हूँ:-*  हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सारे सुखो के गहरे राज आप पिता से जान चुकी हूँ... *और जीवन को साधारण मनुष्य से असाधारण देवता बनाने के प्रयासों में जीजान से जुटी हूँ...* मीठे बाबा से सारे सुख अपने नाम लिखवा रही हूँ और शान से मुस्करा रही हूँ...

 

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाबा की अवज्ञा कभी नही करनी है*"

 

 _ ➳  अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप में मैं आत्मा परमधाम में अपने शिव पिता के सम्मुख हूँ। *ज्ञानसूर्य शिव बाबा के सानिध्य में बैठ अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की ज्वालास्वरूप किरणों का स्पर्श पाकर मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी 63 जन्मों के विकारों की कट धीरे - धीरे उतर रही है*। देह भान में आने के कारण मुझ आत्मा से जाने अनजाने जो भी विकर्म हुए है वो योगअग्नि में जल कर भस्म हो रहें हैं। मेरा स्वरूप सोने के समान उज्ज्वल बनता जा रहा है। मैं फिर से अपने अनादि सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप को प्राप्त कर रही हूँ। *विकारो का किचड़ा जैसे जैसे मुझ आत्मा के ऊपर से उतर रहा है वैसे - वैसे मेरा स्वरूप डबल लाइट बनता जा रहा है*।

 

 _ ➳  अपने इसी डबल लाइट स्वरूप में मैं आत्मा नीचे साकार लोक की और आ रही हूँ। अपना ब्राह्मण चोला धारण कर ड्रामानुसार इस सृष्टि रंगमंच रूपी कर्मभूमि पर अब मैं अपना पार्ट बजा रही हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित मैं आत्मा विचार करती हूँ कि कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जिसे स्वयं भगवान अपनी श्रेष्ठ मत दे कर श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ भाग्य बनाने का सुनहरी मौका दे रहें हैं*। सारे कल्प में ऐसा मौका फिर दोबारा प्राप्त नही होगा। भविष्य 21 जन्मो की श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने का संगमयुग का यह अनमोल समय फिर कल्प के बाद ही मिलेगा।

 

 _ ➳  ऐसे वैल्युबुल समय को सफल करने के लिए मुझे बाबा का वफादार, फ़रमानबरदार बन कदम - कदम पर बाबा की श्रीमत का पालन करना है। *ऐसा सर्वश्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले भाग्यविधाता बाबा की अवज्ञा कभी ना हो इस बात का मुझे संकल्प में भी ध्यान रखना है स्वयं से यह दृढ़ प्रतिज्ञा करते हुए अपने भाग्यविधाता बाबा की मीठी यादों में मैं खो जाती हूँ*। बाबा की मीठी मधुर याद सेकण्ड में देह और देह की दुनिया के भान को भुला कर मुझे मेरे सत्य अविनाशी स्वरूप में स्थित कर देती है। *मन बुद्धि रूपी नेत्रों से अपने सत्य अविनाशी स्वरूप को निहारते - निहारते अपने शिव पिता के अविनाशी प्रेम की लगन में मैं मगन हो जाती हूँ*।

 

 _ ➳  बाबा के प्रेम की लगन में मग्न यह अवस्था बाबा को भी अपना धाम छोड़ कर मेरे पास आने के लिए विवश कर देती हैं और मेरे प्रेम की डोर से बंधे भगवान अपना घर परमधाम छोड़ कर नीचे साकार सृष्टि पर मेरे पास आ जाते हैं। *अपने बाबा के प्यार की खुशबू को मैं अपने आस - पास के वायुमण्डल में स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। मेरे मीठे बाबा का अविनाशी प्रेम उनकी सर्वशक्तियों की किरणों के रूप में मुझ पर बरस रहा है और एक अविनाशी रूहानी सुरूर मुझ आत्मा पर छाने लगा है*। एक अलौकिक मौलाई मस्ती से मैं भरपूर हो रही हूँ। बाबा के प्यार की शीतल किरणों का अहसास मेरे रोम - रोम को प्रफुल्लित कर रहा है। एक गहन अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति में मैं सहज ही स्थित होती जा रही हूँ।

 

 _ ➳  अपने अविनाशी प्रेम के अविनाशी रंग में मुझ आत्मा को रंग कर अब मेरे शिव पिता वापिस अपने धाम जा रहें हैं। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से अपने शिव पिता को जाते हुए मैं देख रही हूँ। *किन्तु उनके मिलन का, उनके प्यार का कोमल एहसास अभी भी मुझे उनके साथ का अनुभव करवा रहा है*। उनके मधुर प्रेम के मधुर एहसास की मधुर स्मृति को सदा अपनी यादों में बसाये अब मैं उनकी श्रीमत की लगाम को अपने हाथ में थामे एक - एक कदम आगे बढ़ा रही हूँ। *हर कर्म करते इस बात को अब मैं सदैव स्मृति में रखती हूँ कि मुझ से कभी अनजाने में भी ऐसा कोई कर्म ना हो जिससे मेरे बाबा की अवज्ञा हो*।

 

 _ ➳  *बाबा के फरमान पर चल अपने इस ब्राह्मण जीवन को सम्पूर्ण रीति बाबा पर समर्पण करना ही अब मेरे इस ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है जिसे पाने का ही अब मैं पुरुषार्थ कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं बेहद के अधिकार की स्मृति द्वारा अपार खुशी में रहने वाली सदा निश्चित आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सर्व की दुआओं से तीव्रगति की उड़ान भरकर  समस्याओं के पहाड़ को सहज ही क्रॉस करने वाली फरिश्ता आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा सभी बच्चों के 5 स्वरूप देख रहे हैं। पहला - अनादि ज्योतिबिन्दु स्वरूप। याद है ना अपना स्वरूपभूल तो नहीं जातेदूसरा है - आदि देवता स्वरूप। पहुंच गये देवता स्वरूप में?तीसरा - मध्य में पूज्य स्वरूपवह भी याद हैआप सबकी पूजा होती है या भारतवासियों की होती हैआपकी पूजा होती हैकुमार सुनाओ आपकी पूजा होती हैतो तीसरा है पूज्य स्वरूप। चौथा है - संगमयुगी ब्राह्मण स्वरूप और लास्ट में है फरिश्ता स्वरूप। तो 5 हीरूप याद आ गयेअच्छा *एक सेकण्ड में यह 5 ही रूपों में अपने को अनुभव कर सकते हो?* वनटूथ्रीफोरफाइव... तो कर सकते हो! यह 5 ही स्वरूप कितने प्यारे हैं? *जब चाहोजिस भी रूप में स्थित होने चाहोसोचा और अनुभव किया। यही रूहानी मन की एक्सरसाइज है।* 

 

 _ ➳   आजकल सभी क्या करते हैंएक्सरसाइज करते हैं ना! जैसे आदि में भी आपकी दुनिया में (सतयुग में) नेचुरल चलते-फिरते की एक्सरसाइज थी। ख़डे होकरके वनटूथ्री.. एक्सरसाइज नहीं। तो अभी अन्त में भी बापदादा मन की एक्सरसाइज कराते हैं। *जैसे स्थूल एक्सरसाइज से तन भी दुरूस्त रहता है ना! तो चलते-फिरते यह मन की एक्सरसाइज करते रहो*। इसके लिए टाइम नहीं चाहिए। 5 सेकण्ड कभी भी निकाल सकते हो या नहीं! ऐसा कोई बिजी है,जो 5 सेकण्ड भी नहीं निकाल सके! है कोईतो हाथ उठाओ। फिर तो नहीं कहेंगे - क्या करें टाइम नहीं मिलतायह तो नहीं कहेंगे ना! टाइम मिलता हैतो *यह एक्सरसाइज बीच-बीच में करो। किसी भी कार्य में हो 5 सेकण्ड की यह मन की एक्सरसाइज करो। तो मन सदा ही दुरुस्त रहेगाठीक रहेगा।*

 

 _ ➳   *बापदादा तो कहते हैं - हर घण्टे में यह 5 सेकण्ड की एक्सरसाइज करो। हो सकती हैदेखोसभी कह रहे हैं - हो सकती है। याद रखना।* ओम् शान्ति भवन याद रखनाभूलना नहीं। तो जो मन की भिन्न भिन्न कम्पलेन है ना! क्या करें मन नहीं टिकता! मन को मण बना देते हो। वजन करते हैं ना! पहले जमाने में पावसेर और मण होता थाआजकल बदल गया है। तो *मन को मण बना देते हैं बोझ वाला और यह एक्सरसाइज करते रहेंगे तो बिल्कुल लाइट हो जायेंगे। अभ्यास हो जायेगा।*

 

✺   *ड्रिल :-  "5 स्वरूपों का 5 सेकण्ड की एक्सरसाइज का अभ्यास करना"*

 

 _ ➳  अमृतवेले उठते ही मन बाबा के प्यार में समाया हुआ है...अपने शिव साजन की महिमा के गीत गा रहा है... *बाबा ने मुझ आत्मा को कैसे किचड़े के ढेर से उठाकर अपने दिलतख्त पर बिठा लिया... मुझे अपनी बाहों में समा लिया... कहां एक बूँद प्यार के लिए तरसते थे और अब... खुद प्यार का सागर चलकर मेरे पास आ गया है... उसने मुझे अपना बना लिया है... अपने सर्व खजानों का मालिक बना दिया है*... मीठे बाबा! कैसे मैं शुक्रिया करूं आपका... मेरे मीठे शिव साजन के स्नेह में... मुझ आत्मा को संसार के सभी सुख फीके लगने लगे हैं...

 

 _ ➳  अपने बाबा की महिमा गाती हुई मैं आत्मा... अपने मीठे बाबा को अपने पास बुलाती हूँ... मेरे दिल की पुकार सुन कर बाबा मेरे समीप आ जाते हैं... बाबा मुझ पर बेशुमार प्यार बरसा रहे हैं... इस प्यार की बारिश में मेरा रोम-रोम गीला हो गया है... मैं आत्मा तृप्त हो रही हूँ... मुख से वाह-वाह के ही बोल निकल रहे हैं... *बाबा मेरे मस्तक पर विजयी भव का तिलक लगाते हैं... मुझे पवित्रता और विश्व सेवा की जिम्मेवारी का ताज पहनाकर अपने दिलतख्त पर बिठा लेते हैं...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा अपने श्रेष्ठ भाग्य के गीत गा रही हूँ... *पूरे कल्प में मुझ आत्मा का कितना सुंदर पार्ट है... मैं हीरो पार्टधारी आत्मा हूँ... मैं आत्मा अपने 5 स्वरूपों को बुद्धि के नेत्रों से देख रही हूँ*... मैं अपने अनादि जगमगाते प्रकाशमय ज्योति स्वरुप में हूँ... फिर अपने सतयुगी राजाई स्वरुप का... फिर मध्य में पूज्य इष्टदेव स्वरुप का अनुभव कर रही हूँ... कैसे विधि विधान से मेरी पूजा हो रही है... फिर अपने श्रेष्ठ संगमयुगी स्वरुप का... और फिर फरिश्ता स्वरुप का अनुभव कर रही हूँ...

 

 _ ➳  मैं आत्मा मन की यह सुंदर एक्सरसाइज कर रही हूँ... 5 सेकेंड में अपने पांच स्वरुपों का अनुभव कर रही हूँ... स्थूल एक्सरसाइज करने से शरीर स्वस्थ रहता है, उसी प्रकार मन की ये एक्सरसाइज, ड्रिल करने से मैं आत्मा शक्तिशाली बनती जा रही हूँ... मैं चलते फ़िरते अपने इन पांचों स्वरूपों का अभ्यास कर रही हूँ... *मन को शक्तिशाली, सुंदर बनाने का सुंदर अभ्यास मैं आत्मा... कर्म करते हुए बीच बीच में कर रही हूँ... बीच बीच मे 5 सेकण्ड निकाल अपने पांचों स्वरूपों में स्थित हो रही हूँ...*

 

 _ ➳  मन की ये सुंदर ड्रिल करने से मुझ आत्मा की विभिन्न प्रकार की कम्पलेन समाप्त हो रही है... मैं आत्मा शक्तिशाली बन रही हूँ... अपने संकल्पों पर कंट्रोल आता जा रहा है... मेरा मन अब शांत होता जा रहा है...  *स्थूल एक्सरसाइज करने से भारी शरीर हल्का हो जाता है, उसी प्रकार मन की ये एक्सरसाइज करने से मन का बोझ खत्म हो रहा है... मैं आत्मा बोझमुक्त, लाइट, हल्की हो रही हूँ... अपनी प्रकाशमय, लाइट स्वरूप की स्थिति में स्थित हो रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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