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❍ 29 / 09 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *साक्षात्कार आदि की आश तो नहीं रखी ?*
➢➢ *चित्रों को देखते विचार सागर मंथन कर हर बात को दिल में उतारा ?*
➢➢ *राजयोग की तपस्या की ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *संगठन में न्यारे और प्यारे के बैलेंस द्वारा अचल रहे ?*
➢➢ *देहि अभिमानी स्थिति द्वारा तन मन की हलचल को समाप्त कर अचल अडोल अवस्था का अनुभव किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ *ब्राह्मण बने, बाप के वर्से के अधिकारी बने, गॉडली स्टूडेन्ट बने, ज्ञानी तू आत्मा बने, विश्व सेवाधारी बने* - यह भाग्य तो पा लिया लेकिन अब पास विद ऑनर होने के लिए कर्मातीत स्थिति के समीप जाने के लिए ब्रह्मा बाप समान न्यारे अशरीरी बनने के अभ्यास पर विशेष अटेन्शन।
〰✧ जैसे ब्रह्मा बाप ने साकार जीवन में कर्मातीत होने के पहले ‘न्यारे और प्यारे’ रहने के अभ्यास का प्रत्यक्ष अनुभव कराया। जो सभी बच्चे अनुभव सुनाते हो - सुनते हुए न्यारे, कार्य करते हुए न्यारे, बोलते हुए न्यारे रहते थे। सेवा को वा कोई कर्म को छोडा नहीं लेकिन न्यारे हो लास्ट दिन भी बच्चों की सेवा समाप्त की। *न्यारा-पन हर कर्म मे सफलता सहज अनुभव कराता है।* करके देखो।
〰✧ एक घण्टा किसको समझाने की भी मेहनत करके देखो और उसके अन्तर में *15 मिनट में सुनाते हुए, बोलते हुए न्यारे-पन की स्थिति में स्थित होके दूसरी आत्मा को भी न्यारे-पन की स्थिति का वायवेशन देकर देखो।* जो 15 मिनट में सफलता होगी वह एक घण्टे में नहीं होगी। यही प्रैक्टिस ब्रह्मा बाप ने करके दिखाई। तो समझा क्या करना है।
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- जब तक जीना है, पढ़ाई पढ़ सीख कर, पावन दुनिया में जाना*
➳ _ ➳ मीठे बाबा की यादो में डूबी हुई में आत्मा... सोचती हूँ कि *परमधाम से कितनी सजी संवरी मै आत्मा... इस धरा पर उतरी.*.. सुखो को जीते जीते कैसे मै आत्मा... देह के भान में आकर, अपने निज स्वरूप को ही भूल बेठी... कैसे, मै देह समझ कर, इस खेल में उलझ गयी... और अथाह दुखो से घिर गयी... मीठे बाबा ने घर से जो मेरी दारुण दशा को निहारा... *मेरे प्यार में मेरे सुखो की चाहत में, मेरा बाबा धरती पर आ गया... सारी स्मर्तियो को हथेली पर संजोये हुए, मेरे दिल में भरने आ गया..*. अथाह रत्नों को अपनी बाँहों में भरकर... मुझे पुनः सुखो में अमीर और पावन बनाने आ गया... ऐसे मीठे प्यारे दिलेर पिता की आभारी मै आत्मा... मीठे बाबा की झोपडी में प्रवेश करती हूँ....
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान धन के खजानो से भरते हुए मालामाल करते हुए कहा:-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... *मीठे भाग्य की बदौलत ईश्वर पिता टीचर बनकर, जीवन को ज्ञान निधि से सजा रहा है.*.. इस धन से भरपूर होकर स्वर्ग के मीठे सुखो के अधिकारी बनो... इसलिए जब तक जीना है, अंतिम साँस तक भी पढ़ाई को नही छोड़ना है... यह पढ़ाई ही दिव्य गुणो से सजाकर, पावन दुनिया का मालिक बनाएगी..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा से सारी खाने और खजाने लेकर मुस्कराते हुए कहती हूँ:-"मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा *महान भाग्य ने दिलवाये ईश्वरीय प्यार को पाकर खुशियो के ऊँचे शिखर पर हूँ.*.. साधारण जीवन ईश्वरीय प्यार और ज्ञान को पाकर... कितना सुखदायी और मालामाल हो गया है... मै आत्मा ज्ञान परी बनकर मुस्करा रही हूँ..."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ईश्वरीय ज्ञान रत्नों की जागीर सौंपते हुए कहा ;-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *सदा ज्ञान रत्नों से खेलते रहो... यह ज्ञान रत्न ही सारे सुखो को आपके कदमो तले सजायेंगे..*.. ईश्वरीय ज्ञान से सदा आबाद रहना है, यह ज्ञान और श्रीमत ही सच्चा सहारा है... सांसो और यादो में पावन बनकर... पावन दुनिया में अथाह सुखो के साम्राज्य को जीना है...
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के असीम प्यार को मन बुद्धि में डुबोते हुए कहती हूँ :-"सच्चे साथी मेरे बाबा... *आपने मुझ आत्मा को अपने मजबूत हाथो में थाम मेरा सदा का कल्याण किया है.*.. दुःख भरी दुनिया से निकाल... सुखो के सवेरे को मेरे जीवन में बिखेरा है... मै आत्मा ईश्वरीय दौलत को पाकर... सदा की अमीरी से भरपूर हो गयी हूँ...
❉ प्यारे बाबा ने अपने अमूल्य ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा के जीवन को दमकाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... यह ईश्वरीय पढ़ाई अनमोल है... स्वयं भगवान धरा पर आकर, अपनी फूलो सी गोद में बिठाकर... पढ़ाई पढ़ा रहा... अपने भूले हुए बच्चों को पुनः दिव्य गुणो और पावनता से सजा रहा है... ऐसी पढ़ाई का दिल से सम्मान करो और अंतिम साँस तक पढ़ते रहो... *यह पढ़ाई ही अथाह सतयुगी सुखो में बदल कर... जीवन को सच्ची खुशियो से महकाएगी*...
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा से अखूट खजाने लेकर महा धनवान् बनकर कहती हूँ :-"मीठे दुलारे मेरे बाबा... मै आत्मा अपने मीठे भाग्य पर बलिहार हूँ... जिसने मुझे जादूगर बाबा से मिलवाया हे... *अपने पुण्यो की आभारी हूँ जिसने ईश्वरीय अमीरी से मुझे छलकाया है.*.. भगवान को पाने वाली, उनसे पढ़ने वाली मै महा भाग्यवान आत्मा हूँ... आपका हाथ और साथ मै आत्मा कभी न छोडूंगी..."मीठे बाबा से असीम प्यार को लिए दिल में समाये मै आत्मा... इस धरा पर उतर आयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- राजयोग की तपस्या करनी*"
➳ _ ➳ राजयोग के अभ्यास द्वारा अपनी सोई हुई शक्तियों को पुनः जागृत कर, स्वयं को सर्व गुणों, सर्वशक्तियों और सर्व खजानों से सम्पन्न करने के लिए मैं अशरीरी बन बैठ जाती हूँ सर्व गुणों, सर्व शक्तियों के सागर अपने शिव पिता परमात्मा की याद मे। *जैसे - जैसे मैं अपने शिव पिता परमात्मा की याद में गहराई तक डूबती जा रही हूँ वैसे - वैसे देह का भान समाप्त होता जा रहा है*।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे देह रूपी वस्त्र धीरे - धीरे उतर रहा है और उसके भीतर छुपी जगमग करती चैतन्य शक्ति आत्मा अपने प्रकाश की रंग बिरंगी किरणे फैलाती उजागर हो रही है। *जैसे सूर्य की किरणें रात के अंधेरे को अपने प्रकाश से दिन के उजाले में परिवर्तित कर देती है ऐसे सूर्य की किरणों के समान प्रकाश मुझ आत्मा से निकल निकल कर मेरे चारों ओर फैल रहा है*। यह प्रकाश निरन्तर बढ़ता हुआ मुझ आत्मा के चारो और एक सुंदर औरे का निर्माण कर रहा है।
➳ _ ➳ अपने चारों और निर्मित प्रकाश के इस औरे के साथ अब मैं आत्मा धीरे - धीरे देह रूपी वस्त्र का पूरी तरह त्याग कर ऊपर की बढ़ रही हूँ। *शक्तियों के सागर अपने शिव पिता के सानिध्य में बैठ उनकी सर्वशक्तियों को स्वयं में समा कर उनके समान बनने की इच्छा लिए अब मैं आकाश को पार कर, सूक्ष्मवतन से परें पहुँच गई अपने शिव पिता परमात्मा के पास निर्वाण धाम*। वाणी से परें मेरे शिव पिता परमात्मा का यह धाम शांति की शक्तिशाली किरणों से भरपूर हैं। यहाँ पहुंच कर मैं आत्मा गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ सुख के सागर, प्रेम के सागर, आनन्द के सागर, पवित्रता, ज्ञान और शक्तियों के सागर मेरे शिव पिता मेरे बिल्कुल सामने हैं और अपने इन सभी गुणों की शक्तिशाली किरणों की वर्षा मुझ आत्मा पर करके मुझे इन सभी गुणों से सम्पन्न बना रहे हैं। *अपनी शक्तियों को मुझ में प्रवाहित कर मुझे आप समान शक्तिशाली बना रहे हैं*। बाबा के साथ टच हो कर मैं उनके सभी गुणों, सर्वशक्तियों और सर्व खजानों को स्वयं में समाती जा रही हूँ।
➳ _ ➳ भरपूर हो कर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे प्रवेश करती हूँ और अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, तपस्वीमूर्त बन, राजयोग की तपस्या करने एक ऊंचे खुले स्थान पर जाकर बैठ जाती हूँ और अपने पिता परमात्मा का आह्वान करती हूँ। *सेकेंड में मैं स्वयं को सर्वशक्तियों के सागर अपने शिव पिता के साथ कम्बाइंड अनुभव करती हूँ*। सर्वशक्तिवान बाबा से सर्वशक्तियाँ ले कर मैं समस्त वायुमण्डल में चारों ओर प्रवाहित कर रही हूँ और विश्व की सर्व आत्माओं को सुख शांति की अनुभूति करवा कर अपने सेवा स्थल पर वापिस लौट रही हूँ।
➳ _ ➳ *अपने तपस्वी स्वरूप को सदा इमर्ज रूप में रख, राजयोग की तपस्या करते, अब मैं अपने सम्बन्ध संपर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को राजयोग द्वारा राजाई पद प्राप्त कर उन्हें भी मुक्ति, जीवनमुक्ति का वर्सा पाने की अधिकारी आत्मा बना रही हूँ*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा संगठन में न्यारे और प्यारे बनने के बैलेन्स द्वारा अचल रहने वाली हूँ।*
➳ _ ➳ मैं आत्मा संगंठनरूपी परिस्थिति में न्यारे और प्यारेपन के संस्कारों द्वारा अचल अडोल निर्विघ्न स्थिति में रहती हूँ... *फॉलो फादर करती मैं आत्मा सेवा में सदा निर्विघ्न और सन्तुष्ट रहती हूँ...* परिस्थितियों रूपी पहाडों के बीच में... कलियुगी संस्करों के वातावरण में मैं अचल अडोल आत्मा... बापदादा का हाथ थामें खड़ी हूँ... *बापदादा को साथ साथ महूसस करती हर पल मैं आत्मा... संकल्प में भी अचल रहती हूँ...* निर्विघ्न भव का वरदानी तिलक बाप-दादा के हाथों लगवाती मैं आत्मा... इस संगमयुग में पुरुषार्थ रूपी सीढ़ी द्वारा कर्मातीत अवस्था की उच्च शिखर पर पहुँच गई हूँ... *नकारात्मक वायुमंडल में अपने आप को बापदादा के अखंड सुरक्षा-कवच में महफ़ूज़ रखती हूँ।*
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- देही-अभिमानी स्थिति द्वारा तन-मन की हल-चल को समाप्त कर अचल-अडोल रहने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं सदा स्वमान में स्थित रहने वाली आत्मा हूँ... *देह अभिमान से न्यारी, देही-अभिमानी आत्मा हूँ*... स्वमान मुझ आत्मा के देह अभिमान को समाप्त करता जा रहा है... *स्वमान की स्मृति में स्थित हो... मैं आत्मा स्वयं को शक्तिशाली अनुभव करती जा रही हूँ*... बाबा द्वारा मिल रही शक्तियों को स्वयं में अनुभव करने लगी हूँ... मैं सर्व आत्माओं के गुणों को देखने वाली देही अभिमानी आत्मा बनती जा रही हूँ... *देही अभिमानी स्थिति मुझ आत्मा में समाने की शक्ति को बढ़ाती जा रही है... तन-मन की हलचल समाप्त होती जा रही है*... कोई भी परिस्थिति व हलचल... मुझ आत्मा पर प्रभाव नही डाल सकती... *प्रकृति की हलचल भी जितनी चाहे कोशिश कर ले... पर मुझ आत्मा को हिला नही सकती... ऐसी अचल-अडोल अवस्था का मैं आत्मा अनुभव करने लगी हूँ*...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. स्नेह ऐसी शक्ति है जो सब कुछ भुला देती है। न देह याद आती, न देह की दुनिया याद आती। स्नेह मेहनत से छुड़ा देता है। *जहाँ मोहब्बत होती है वहाँ मेहनत नहीं होती है। स्नेह सदा सहज बापदादा का हाथ अपने ऊपर अनुभव कराता है*। स्नेह छत्रछाया बन मायाजीत बना देता है। कितनी भी बड़ी समस्या रूपी पहाड़ हो, स्नेह पहाड़ को भी पानी जैसा हल्का बना देता है।
➳ _ ➳ 2. *बाबा, बाबा और बाबा.... एक ही याद में लवलीन रहे*। तो बापदादा कहते हैं और कोई पुरुषार्थ नहीं करो, स्नेह के सागर में समा जाओ।
➳ _ ➳ 3. *समाये रहो, तो स्नेह की शक्ति सबसे सहज मुक्त कर देगी*।
➳ _ ➳ 4. स्नेह सहज ही समान बना देगा क्योंकि *जिसके साथ स्नेह है उस जैसा बनना, यह मुश्किल नहीं होता है*।
✺ *ड्रिल :- "स्नेह के सागर में समा, स्नेह की शक्ति का अनुभव"*
➳ _ ➳ आराम की मुद्रा में, एकांत में बैठ, अपनी पलके मूंदे, मैं अपने जीवन में घटित होने वाली घटनाओं और रोज़मर्रा की परिस्थितियों के बारे में विचार कर रही हूँ। *तभी मुझे अनुभव होता है कि जैसे मैं एक रास्ते पर बड़े आराम से चलते हुए कहीं जा रही हूँ और अचानक चलते चलते मेरे सामने एक पहाड़ आ जाता है और आगे जाने का रास्ता बंद हो जाता है*। इसलिए जैसे ही मैं वापिस पीछे मुड़ती हूँ तो देख कर हैरान रह जाती हूँ कि पीछे भी एक बहुत ऊंचा पहाड़ है। मेरे दाएं ओर बायें तरफ के भी दोनों रास्ते बंद है। चारों तरफ से बाहर निकलने का अब कोई रास्ता मुझे दिखाई नही दे रहा। *घबरा कर बाहर निकलने के लिए मैं ज़ोर - ज़ोर से चिल्ला रही हूं किन्तु वहां मेरी आवाज़ सुनने वाला कोई भी नही*।
➳ _ ➳ जब कहीं से कोई मदद मिलने की आश नही रह जाती तो मुख से स्वत: ही निकलने लगता है, हे भगवान मुझे बचाओ। भगवान को पुकारते - पुकारते अपने घुटनों में सिर रख कर मैं रो रही हूं। *तभी जैसे कानों में एक मधुर आवाज सुनाई देती है,बच्चे:- "मैं हूँ ना"। इस आवाज के साथ - साथ बहुत तेज प्रकाश मेरे चारों तरफ फैल जाता है*। और वो प्रकाश अपनी किरणों रूपी बाहों में मुझे उठा कर उस पहाड़ को पार करवा देता है।
➳ _ ➳ तेज प्रकाश की चकाचौंध से मेरी बन्द आंखे अपने आप खुल जाती हैं। सामने लाइट माइट स्वरुप में बापदादा को देख कर मैं अचंभित हो कर बाबा की और देखती हूँ और मेरे मुख से निकलता है, "बाबा वो पहाड़"। *बाबा मुस्कराते हुए कहते हैं, बच्ची:- "वो पहाड़ नही थे"। वो तो जीवन में आने वाली छोटी - छोटी परिस्थितियां है, जिन्हें तुम सोच - सोच कर पहाड़ जैसा बना देते हो*।
➳ _ ➳ *आओ, मेरे बच्चे:- "अपनी लाइट माइट से मैं तुम्हे इतना शक्तिशाली बना देता हूँ कि जीवन में आने वाली ये परिस्थितियां पहाड़ से राई बन जाएंगी"। फिर तुम इन्हें जम्प देकर सेकेंड में पार कर जाओगे*। यह कहकर बाबा अपनी शक्तिशाली किरणों को जैसे ही मुझ पर प्रवाहित करते है। मेरा साकारी शरीर जैसे लुप्त हो जाता है। और बाबा मुझ आत्मा को अपने साथ ऊपर की ओर लेकर चल पड़ते हैं।
➳ _ ➳ लाइट की एक ऐसी दुनिया जहाँ चारों और चमकती हुई मणियां जगमग कर रही है। इस परमधाम घर में बाबा मुझे ले आते हैं। अब मैं बाबा के सम्मुख हूँ। बाबा के साथ अटैच हूँ और उनसे आ रही लाइट, माइट से स्वयं को भरपूर कर रही हूं। उनसे आ रही सर्वशक्तियाँ मुझमें असीम बल भर कर मुझे शक्तिशाली बना रही है। *मैं डबल लाइट बनती जा रही हूँ। कोई बोझ, कोई बंधन नही। बिल्कुल उन्मुक्त और निर्बन्धन स्थिति में मैं स्थित हूँ*। गहन सुखमय स्थिति की अनुभूति अपने शिव पिता परमात्मा के सानिध्य में मैं कर रही हूं। बाबा की लाइट माइट से भरपूर हो कर डबल लाइट बन कर अब मैं वापिस लौट रही हूं।
➳ _ ➳ अपनी साकारी देह में विराजमान होकर भी अब मैं निरन्तर आत्मिक स्मृति में रहते हुए अपने पिता परमात्मा के स्नेह में सदा समाई रहती हूं। अब मैं एक के स्नेह के रस का रसपान करने वाली एकरस आत्मा बन गई हूँ। *देह और देह की दुनिया को अब मैं भूल चुकी हूं। अपने शिव पिता की मोहब्बत के झूले में झूलते हुए हर प्रकार की मेहनत से अब मैं मुक्त हो गई हूं*। अपनी हजारों भुजाओं के साथ बाबा चलते, फिरते, उठते, बैठते हर कर्म करते मुझे अपने साथ प्रतीत होते हैं।
➳ _ ➳ अब कोई भी परिस्थिति मेरी स्व स्तिथि के आगे टिकती नही। क्योंकि बाबा की छत्रछाया हर परिस्थिति रूपी पहाड़ को पानी जैसा हल्का बना कर मुझे सहज ही उस परिस्थिति से बाहर निकाल लेती है। बाबा के प्रेम का रंग मुझ पर इतना गहरा चढ़ चुका है कि *सुबह आंख खोलते बाबा, दिन की शुरुआत करते बाबा, कर्मयोगी बन हर कर्म करते एक साथी बाबा, दिन समाप्त करते भी एक बाबा के लव में लीन रहने वाली लवलीन आत्मा बन गई हूं*। स्नेह के सागर में सदा समाये रहने के अनुभव ने मुझे याद की मेहनत से मुक्त कर सहजयोगी, स्वत:योगी और निरन्तर योगी बना दिया है।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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