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 08 / 07 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *अने स्वधर्म में स्थित रह साइलेंस का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *किसी को भी दुःख तो नहीं दिया ?*

 

➢➢ *कांटो को फूल बनाने की सेवा की ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *मुरली के साधन द्वारा व्यर्थ को ख़तम किया ?*

 

➢➢ *बालक और मालिकपन का बैलेंस रखा ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *सदा अपना शिव शक्ति स्वरुप स्मृति में रहा ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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➳ _ ➳  *सदा एक लक्ष्य हो की हमें दादा का बच्चा बन सर्व आत्माओं को देना है न कि लेना है*-  यह करें तो मैं करूँ, नहीं। *हर एक दाता -  पन की भावना रखे तो सब देने वाले अर्थात सम्पन्न आत्मा हो जायेंगे।* सम्पन्न नहीं होंगे तो दे भी नहीं  सकेंगे। तो *जो सम्पन्न आत्मा होगी वह सदा तृप्त आत्मा ज़रूर होगी।* मैं देने वाले दादा का बच्चा हूँ - देना ही लेना है। जितना देना उतना लेना ही है। प्रैक्टिकल में लेने वाला नहीं लेकिन देने वाला बनना है। दाता-पन की भावना सदा निर्विघ्न, इच्छा मात्रम्  अविद्या की स्थिति का अनुभव कराती है - सदा एक लक्ष्य की तरफ ही नजर रहे। वह लक्ष्य है बिन्दु। एक लक्ष्य अर्थात बिन्दी की तरफ सदा देखने वाले। अन्य कोई भी बातों को देखते हुए भी नहीं देखें। नजर एक बिन्दु की तरफ ही हो - जैसे यादगार रूप में भी दिखाया है कि मछली के तरफ नजर नहीं थी लेकिन आँख की भी बिन्दु में थी। तो मछली है विस्तार और सार है बिन्दु। तो *विस्तार को नहीं देखा लेकिन सार अर्थात एक बिन्दु को देखा।* इसी प्रकार अगर कोई भी बातों के विस्तार को देखते तो विघ्नों में आते - और सार अर्थात एक बिन्दु रूप स्थिति बन जाती और फुलस्टॉप अर्थात बिन्दु लग जाती। *कर्म में भी फुलस्टॉप अर्थात बिन्दु। स्मृति में भी बिन्दु अर्थात बीजरूप स्टेज हो जाती। यह विशेष अभ्यास करना है।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  बाप की नजर से निहाल हो, स्वर्ग का मालिक बनना"*

 

_ ➳  मै आत्मा अपने मनमीत बाबा को याद करते करते उड़ चली... और शांतिवन के कमरे में पहुंची... मीठे बाबा, ब्रह्मा तन में मुस्कराते बाहें फैलाये कहने लगे... आओ मेरे मीठे बच्चे... मै आत्मा मीठे बाबा के8 स्नेह वचनो की प्यासी... यह मधुर वाक्य सुनते ही तृप्त सी हो गयी... *प्यारे बाबा मुझे अपनी अनन्त शक्तियो से लबालब कर रहे है.*.. और मै आत्मा दीवानी अपलक सी... अपने प्यारे दीवाने बाबा को निहारती जा रही हूँ... मीठे बाबा का कमरा हमारे मधुर मिलन की स्थली बन गया...

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा को नई दुनिया का मालिक बनाने को आतुर हो बोले :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे...  ईश्वर पिता के सिवाय कोई और इस धरती पर सदा के सुखो की जागीर दे नही सकता... *ईश्वर ही सतगुरु बन नजरो से निहाल करता है.*.. और खुशियो भरे जीवन को गढ़ने का राज समझाता है... ऐसे जादूगर पिता को हर पल यादो में बसा लो..."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा के ज्ञान रत्नों को अपनी बुद्धि रुपी झोली में समाते हुए बोली :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... ईश्वर को ही सतगुरु रूप में पा लिया... ऐसा प्यारा भाग्य पाकर, अपने मीठे भाग्य की भी मै आत्मा  शुक्रगुजार हूँ... *कब सोचा था कि यूँ कारुन का खजाना मेरे हाथ आ जायेगा.*.. और ईश्वरीय दौलत से मै मालामाल हो जाउंगी..."

 

   प्यारे बाबा मुस्कराते हुए और बड़ी ही उम्मीदों से मुझे निहारते हुए बोले :- "मीठे लाडले बच्चे... ईश्वरीय खजानो से सम्पन्न बनकर, सदा के समझदार बन जाओ... *ईश्वर पिता ने अपनी सारी खाने आप बच्चों के लिए खोल दी है.*.. जितनी चाहे उतनी दौलत बटोर लो... और अशरीरी बनकर मीठी प्यारी यादो में डूब जाओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा अपने मीठे भाग्य को निहारते हुए बाबा से कह रही हूँ :- "ओ प्यारे प्यारे बाबा मेरे...  देह और देह की दुनिया से दिल लगाकर, मुझ आत्मा ने खुद को कितना ठगा सा है... अब जो *आपने जीवन में आकर ज्ञान और योग की खुबसूरत बहार खिलाई है.*.. मै आत्मा अपने खोये खजाने पुनः पाती जा रही हूँ..."

 

   मीठे प्यारे बाबा गुणो और शक्तियो की वर्षा से मेरे मन बुद्धि को भिगोते हुए बोले :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... शरीर के अहसासो से अछूते बन, अशरीरी का अभ्यास कर, निरन्तर यादो में रहो... अपने *मीठे घर की स्मर्तियो में खोये हुए, सदा साइलेन्स की स्थिति का अनुभव करो.*.. और सदा मीठे बाबा के सम्मुख रह नजरो से निहाल बनो..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा का रोम रोम से शुक्रगुजार करते हुए बोली :- "मेरे मन के मीत बाबा... *आपने सच्चे प्रेम को देकर मेरे जीवन को कितना प्यारा और गुणो से सुगन्धित बना दिया है.*.. मै आत्मा आपकी नजरो के साये में रह, खुबसूरत सुखो की स्वामिन् होती जा रही हूँ... अपना खोया साम्राज्य पाकर पुनः विश्व की मालिक सी सज रही हूँ..." ऐसी प्यारी बाते करके, तृप्त होकर मै आत्मा धरती पर आ चली...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अपने स्वधर्म में स्थित रह साइलेन्स का अनुभव करना*"

 

_ ➳  अपने शांत स्वधर्म में स्थित हो शांति की गहन अनुभूति करने के लिए शांति के सागर अपने शिव पिता की याद में मैं आत्मा अशरीरी होकर बैठ जाती हूं और पहुंच जाती हूँ अंतर्मुखता एक ऐसी गुफा में जहां किसी भी प्रकार की कोई आवाज, शोरगुल यहां तक की संकल्पों की भी हलचल नहीं। *अंतर्मुखता की गुफा में बैठ एकांतवासी बन एक के अंत में खो जाने की यह अवस्था मन को गहन शांति की अनुभूति करवा रही है*। इस गहन शांति की अवस्था में मुझे आत्मा से निकल रहे शांति के प्रकंपन चारों ओर वायुमंडल में फैल कर वायुमंडल को भी शांत बना रहे हैं। *शांति की शक्तिशाली किरणों का एक ऐसा औरा मेरे चारों तरफ बन गया है कि बाहर की स्थूल आवाजों का प्रभाव भी अब मुझे प्रभावित नही कर रहा*।

 

_ ➳  शांति की गहन अनुभूति करते हुए अब मैं अपने मन बुद्धि का कनेक्शन शांति धाम में रहने वाले अपने शिव पिता परमात्मा के साथ जोड़ती हूं और मन बुद्धि से पहुंच जाती हूँ शांति धाम, शांति के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के पास। *शांति के बहुत ही शक्तिशाली वायब्रेशन इस शांति धाम में फैले हुए हैं। जो मुझे असीम शांति से भरपूर कर रहे हैं*। इस असीम शांति का अनुभव करते-करते मैं आत्मा पहुंच जाती हूं अपने शांति दाता मीठे शिव बाबा के पास। जिनसे सर्वशक्तियों की शक्तिशाली किरणे निकल रही हैं। *इन शक्तिशाली किरणों के फव्वारे के नीचे बैठ मैं स्वयं को सर्वशक्तियों से भरपूर कर रही हूं*।

 

_ ➳  भरपूर हो कर अब मैं आत्मा लौट आती हूँ वापिस साकारी दुनिया में और अपने साकारी ब्राह्मण तन में विराजमान हो जाती हूं। *साकार देह में होते हुए भी अब मैं स्वयं को शांति से भरपूर अनुभव कर रही हूं*। और मन में विचार करती हूं कि काश संसार की हर आत्मा जो आज स्वयं को न जानने के कारण दुखी और अशांत हो चुकी है और शांति की तलाश में भटक रही है। वह भी इस गहन शांति का अनुभव कर पाती। जैसे ही यह संकल्प मन में उत्पन्न होता है तभी जैसे बाबा के महावाक्य कानों में गूंजने लगते हैं। *ऐसे लगता है जैसे बाबा निर्देश दे रहे हैं:- "अपने शांत स्वधर्म में स्थित होकर शांति के लिए भटक रही आत्माओं को भटकने से छुड़ाओ"।*

 

_ ➳  बाबा के फरमान का पालन करने के लिए अब मैं अपने लाइट के फ़रिश्ता स्वरूप को धारण कर कल्प वृक्ष की जड़ों में जाकर बैठ जाता हूं और शांति के सागर अपने प्यारे परम पिता परमात्मा शिव बाबा का आहवाहन करता हूं। *मेरा आहवाहन सुनते ही परमधाम से बाबा की शक्तिशाली सतरंगी किरणे सीधी मुझ फ़रिश्ते पर पड़ने लगी हैं और मुझ से निकल कर कल्पवृक्ष की टाल टालियों और पत्ते-पत्ते तक पहुंच कर सर्व आत्माओं रुपी पत्तों को शांति का अनुभव करा रही है*। मैं देख रहा हूँ कि मम्मा, बाबा, वरिष्ठ दादियां और समस्त ब्राह्मण परिवार की आत्माएं भी अब कल्पवृक्ष की जड़ों में आ कर बैठ गई हैं और बाबा से सर्वशक्तियाँ लेकर पूरे कल्प वृक्ष को साकाश दे रही हैं। धीरे-धीरे शक्तियों का प्रवाह निरंतर बढ़ता जा रहा है। कल्पवृक्ष की सभी आत्माएं अब स्वयं को शांति, शक्ति और सर्व गुणों से संपन्न अनुभव कर रही हैं।

 

_ ➳  कल्प वृक्ष से अब मैं फ़रिशता बापदादा के साथ कम्बाइंड हो कर विश्व ग्लोब पर आ गया हूँ और बाबा से शांति की शक्तिशाली किरणे ले कर विश्व की सभी अशांत और दुखी आत्माओं में प्रवाहित कर रहा हूँ। *मैं स्पष्ट देख रहा हूं कि सभी मनुष्य आत्माएं गहन शांति का आनंद ले रही है। अब मैं उन्हें उनका और परमात्मा का वास्तविक परिचय देकर, अपने शांत स्वधर्म में स्थित रहने और सच्ची शांति पाने का सहज रास्ता बता रहा हूं*। सच्ची शांति को पाने का सहज और सत्य रास्ता जानकर सभी आत्माएं प्रसन्नचित्त मुद्रा में दिखाई दे रही है।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा हर रोज़ की मुरली के साधन द्वारा व्यर्थ को खत्म करती हूँ।"* 

 

 _ ➳  मैं आत्मा हर रोज़ की मुरली रूपी हथियार से अपने व्यर्थ संकल्पो को ख़त्म करती हूँ... *बाबा के महावाक्यों को अपने स्मृतिपटल पर रोज सुबह सुनहरे अक्षरों से अंकित करती हूँ...* मैं आत्मा पूरे दिन में अपनी बुद्धि रूपी घोड़े को बाबा के महावाक्यों रूपी लगाम से कंट्रोल करती रहती हूँ... फाइनल पेपर में पास विद ऑनर होने वाली मैं आत्मा अपने को मनसा वाचा कर्मणा सेवा में इतना बिजी कर देती हूँ कि व्यर्थ संकल्पों के तूफान को सेवा रूपी अखण्ड़ सुरक्षा कवच को तोड़ना नामुमकिन हो जाता है...

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- प्लेन को प्रेक्टिकल में लाने के लिए बालक और मालिक पन का बैलेंस अनुभव करना"*

 

_ ➳  मैं भगवान द्वारा चुनी... कल्प पहले वाली *विश्व कल्याण की सेवा के निमित्त आत्मा हूँ*... बापदादा मुझ आत्मा को शक्तियों से भरपूर करते जा रहें है... मैं आत्मा *बालक बन बाप के हर फरमान को मान... आज्ञाकारी सपूत बच्चा* बनती जा रही हूँ... बाबा से मिली शक्तियां और गुण... मुझ आत्मा को अपनी कर्मन्द्रियों का मालिक बनाती जा रही है... *बाबा मुझ आत्मा को वरदान दे रहें है बच्चे तुम ब्रह्मांड के मालिक हो*... बाबा की सभी शिक्षाओं को मैं आत्मा धारण करती जा रही हूँ... सदा स्वमान की सीट पर स्थित रह... समय आने पर जिस भी कर्मेन्द्रिय से... *जो भी कार्य करवाना है मालिक बन करवाती जा रही हूँ*... जिस शक्ति की आवयश्कता है... उसे यूज़ कर आगे बढ़ती जा रही हूँ...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳   *कुमारी वा सेवाधारी के बजाय अपने को शक्ति स्वरूप समझो:- सदा अपना शिव-शक्ति स्वरूप स्मृति में रहता हैशक्ति स्वरूप समझने से सेवा में भी सदा शक्तिशाली आत्माओं की वृद्धि होती रहेगी। जैसी धरनी होती है वैसा फल निकलता है। तो जितनी अपनी स्वयं की शक्तिशाली स्टेज बनातेवायुमण्डल को शक्ति स्वरूप बनाते उतना आत्मायें भी ऐसी आती हैं।* नहीं तो कमजोर आत्मायें आयेंगी और उनके पीछे बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। तो सदा अपना ‘शिव-शक्ति स्वरूप' ‘स्मृति भव'। कुमारी नहींसेवाधारी नहीं - ‘शिव शक्ति'। सेवाधारी तो बहुत हैंयह टाइटल तो आजकल बहुतों को मिल जाता है लेकिन आपकी विशेषता है - ‘शिव शक्ति कम्बाइन्ड'। इसी विशेषता को याद रखो। सेवा की वृद्धि में सहज और श्रेष्ठ अनुभव होता रहेगा। सेवा करने के लिफ्ट की गिफ्ट जो मिली है उसका रिटर्न देना है। रिटर्न क्या हैशक्तिशाली - सफलता मूर्त्त।

 

✺   *"ड्रिल :- सदा अपना शिव शक्ति स्वरुप स्मृति में रहना*"

 

_ ➳  मैं आत्मा अपना फ़रिश्ता स्वरुप में बापदादा के साथ पूरे ब्रह्माण्ड में घूम रही हूँ... घूमते घूमते हम एक प्रदेश में पहुँच जाते हैं *जहाँ हरियाली ही हरियाली हैं... चारो और प्रकृति का असीम सौंदर्य हैं... धरती नीली रंग की चुंदरी ओढ़े मिट्टी की भीनी भीनी खुशबू फैला रही हैं... खुशबूदार रंग बिरंगी फूलों की खुशबू का साम्राज्य छाया हुआ हैं...* और मैं आत्मा यह असीम सुखद नजारा देख कर हर्षित हो रही हूँ... सभी आत्मायें अपने-अपने लौकिक पार्ट को सुखरूप होकर निभा रहे थे...

 

_ ➳  बापदादा मेरा हाथ पकड़कर ले चलते हैं एक ऐसी जगह पर जहाँ मेरा मन बहुत ही विचलित हो जाता हैं... *बंजर जमीन... न मिट्टी की भीनी भीनी खुशबू न खुश्बूदार हवा का झोंका हैं... मानों बच्चे से बिछुड़ी हुई माँ बैठी हैं अपने बच्चे के इंतजार में... जैसे बारिश की इंतजार में बैठी हैं बंजर जमीन...* और यह नजारा देखकर मन ही मन बाबा को पूछ रही हूँ बाबा यह सब क्या हैं और क्यूँ ऐसा हो रहा हैं... क्या यह भूमि का दोष हैं कि आत्माओं की शक्तियां क्षीण होती जा रही हैं...

 

_ ➳  बापदादा मेरी मनोस्थिति को जान कर मुझ आत्मा को अपने पास बिठाकर मुझ आत्मा को एक सीन दिखा रहा है... *एक खेत में बैठे सभी आत्मायें बापदादा का आह्वान कर रहे हैं...* खेत में अच्छी फसल हो जाये... खेत धन धान्य से भरपूर हो जाये... जमीन अखूट खजानों का भंडार बन जाये... बंजर जमीन से हीरे मोती तुल्य अनाज की हरियाली छा जाये... और *मैं आत्मा देख रही हूँ कि बापदादा स्वयं इस खेत में खड़े हैं और पूरी धरती को प्यार से दृष्टि दे रहे हैं... और बंजर खेत को अपने रूहानी हाथों से प्यार से नहला रहे हैं...*

 

_ ➳  और *देखते ही देखते बंजर खेत हीरे मोती तुल्य धन धान्य से भरपूर हो गया...* हरियाली ही हरियाली छा गयीं ... बंजर खेत फलद्रुप हो गया और सभी आत्मायें बापदादा का शुक्रिया कर रही हैं... और उनको देख के दूसरे खेत में भी सभी आत्मायें बापदादा का आह्वान करने लग गये हैं... धीरे धीरे पूरे बंजर प्रदेश में *बापदादा की शक्तियों रूपी बारिश की वर्षा से बंजर प्रदेश को फलद्रुप बनता देख... सभी खेत में बापदादा का झंडा लहराता देख* मैं आत्मा ख़ुशी से झूम उठती हूँ... *बापदादा के सुनहरे बोल "अपने चहरे और चलन से बापदादा को प्रत्यक्ष करो... शक्ति स्वरुप हो... शक्तियों की वर्षा करो..."*

 

_ ➳  मैं आत्मा यह सुनहरे बोल को अपने दिल में सुवर्ण अक्षरों में अंकित करके... सर्व शक्तियों को अपने में धारण कर... शक्ति स्वरूपा बन हर सेवा को बापदादा की श्रीमत पर परिपूर्ण करती जा रही हूँ... *जैसी धरनी वैसा फल यह स्लोगन को यथार्थ रीति जान अपने आप की सभी कमी कमजोरियों को... विकारों को योग अग्नि में स्वाहा करती जा रही हूँ... अपने शक्ति स्वरुप से शक्तियों की वर्षा बापदादा के संग करती जा रही हूँ...* पूरे वायुमंडल को शक्तिस्वरूप बनाती जा रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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