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 23 / 09 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *कोई भी शुभ कार्य कल पर तो नहीं छोड़ा ?*

 

➢➢ *किसी देहधारी की जाल में तो नहीं फंसे ?*

 

➢➢ *अंधों की लाठी बनकर रहे ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *अपने संकल्प रुपी बीज द्वारा अच्छा फल प्राप्त किया ?*

 

➢➢ *कर्म योगी बनकर हर कर्म किया ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  *पॉवरफुल मन की निशानी है - सेकण्ड में जहाँ चाहे वहाँ पहुँच जाएँ।* ऐसे पॉवरफुल हो या कभी कमजोर हो जाते हो।

 

✧  मन को जब उडना आ गया, *प्रैक्टिस हो गई तो सेकण्ड में जहाँ चाहे वहाँ पहुँच सकता है।*

 

✧  अभी-अभी साकार वतन में, अभीअभी परमधाम में एक सेकण्ड की रफ्तार है? *सदा अपने भाग्य के गीत बाते उडते रहो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  शरीर का कोई भरोसा नही,इसलिए जो शुभ कार्य आज ही करना"*

 

_ ➳  खुबसूरत मौसम का आनंद लेती हुई मै आत्मा... आत्म चिंतन और अपने प्यारे दिलबर बाबा की यादो में झूम रही हूँ... कि *मीठा बाबा गर न मिला होता... तो यह जीवन कितना खोखला और निर्रथक होता*... मीठे बाबा ने मेरे दिल पर अपनी प्यार भरी दस्तक देकर... मेरे जीवन में आनंद की फुहारे बिखेरी है...  और साधारण जीवन को असाधारण बनाकर, मुझ आत्मा को बहुमूल्य सा बना दिया है... *ईश्वरीय हाथो में मेरा देवताई सौंदर्यकरण हो रहा है... शरीर के मरने से पहले मै आत्मा... देवताई अमरता से सज संवर गयी हूँ..*. अपने मीठे मनमीत को अपने दिल की बात सुनाने.... मै आत्मा वतन में पहुंचती हूँ...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को संगम के वरदानी समय का महत्व समझाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वरीय यादो से भरा यह खुबसूरत समय आपके सम्मुख है... *संगम में वरदानों से, शक्तियो से सज संवर कर, देवताई सौंदर्य से दमक उठो*... अपनी हर साँस को ईश्वरीय याद में सफल कर... उज्ज्वल भविष्य को पाओ... शरीर के छूटने से पहले, ईश्वरीय ज्ञान और याद से लबालब हो जाओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा के अथाह प्यार को अपने आँचल में समेट कर कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा... मै आत्मा आपको पाकर महान भाग्य से सज गयी हूँ... *आपके मिलन के खुबसूरत समय में अपने जीवन को... नये आयामो से सजा रही हूँ.*..हर संकल्प से आपकी मीठी यादो में खोयी हुई, शुभ कार्य में मगन हूँ..."

 

   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अमूल्य ज्ञान धन से सजाकर, शरीर की नश्वरता का अहसास दिलाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय खजानो से समय रहते... स्वयं को भरपूर करके, सदा की अमीरी से सम्पन्न होकर, देवताई सुखो में मुस्कराओ... *देह के खत्म होने से पहले समय को शुभ कार्यो से सजा लो... जो करना है, वह आज ही सम्पन्न कर लो...कल का कोई भरोसा नही*..."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा की श्रीमत को दिल से अपनाते हुए कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा *इस जनम में आपको पाकर, किस कदर महान भाग्य की धनी हो गयी हूँ.*.. कभी सोचा भी न था, मीठे बाबा की यह अंतिम जनम... ईश्वर पिता को पाने वाला, इस कदर खूबसूरती से सज जायेगा... मै आत्मा हर साँस से आपकी मीठी यादो में डूबी हुई हूँ..."

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को देवताई शानो शौकत से सजाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे.... भगवान धरती पर आप बच्चों के खुबसूरत जीवन की खातिर ही तो उतर आया है... इसलिए *ईश्वरीय साथ और हाथ लिए यह कीमती समय ईश्वरीय प्यार में लुटा दो*... यह अंतिम जीवन नष्ट होने से पहले सांसो को... शिव पिता के नाम कर, सदा के देवताई सुखो को अपनी तकदीर में भर लो...

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा को अपनी हर साँस में पिरोकर कहती हूँ :-"मीठे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा *कितनी सोभाग्यशाली हूँ कि इस अंतिम जनम में भगवान को पा गयी हूँ... मेरी हर साँस और संकल्प आपके नाम है.*.. आपकी मीठी यादो से महकता यह खुशनुमा जीवन है... इस शरीर के खत्म होने से पहले... मै अथाह खजाने पाने वाली दौलतमंद हो गयी हूँ..."मीठे बाबा को अपने दिल के उदगार अर्पित कर मै आत्मा... देह की दुनिया में अपने सिहांसन पर लौट आयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप की याद से माया की जाल से निकलना*"

 

_ ➳  एक खुले एकांत स्थान पर बैठ मैं इस रावण राज्य, माया नगरी में होने वाली गतिविधियों के बारे में विचार कर रही हूँ। विचार करते - करते इस मायानगरी के अनेक दृश्य मेरी आंखों के सामने उभरने लगते हैं। *मैं देख रही हूँ माया की इस दुनिया मे मन को आकर्षित करने वाले विनाशी सुख के साधन, भौतिक सुख सुविधाएं और ऐशो आराम की वस्तुएँ, जिन्हें पाकर मनुष्य बहुत खुश दिखाई दे रहें हैं*।

 

_ ➳  इसी माया नगरी में, इन सभी सुख साधनों के बीच अब मैं स्वयं को देख रही हूँ। इन वस्तुयों का आकर्षण मुझे भी अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। *मैं जैसे ही आकर्षित हो कर उन वस्तुओं का सुख लेने के लिए उनके पास जाती हूँ अपने आप को एक जाल में फंसा हुआ महसूस करती हूँ*। उन सुख सुविधायों का प्रयोग करने वाला हर मनुष्य मुझे एक जाल में फंसा हुआ दिखाई दे रहा है। सभी उस जाल से निकलने का पूरा प्रयास कर रहें हैं। किंतु उनका हर प्रयास विफल हो रहा है।

 

_ ➳  स्वयं को उस जाल से मुक्त करने के लिए मैं जैसे ही अपने हाथ - पैर चलाती हूँ, अनुभव करती हूँ कि जाल और उलझता जा रहा है। थक कर मैं शांन्त हो कर जैसे ही बैठती हूँ कानों में अव्यक्त बापदादा की आवाज सुनाई देती है, बच्चे:- अशरीरी हो कर बाप की याद में बैठ जाओ"। *हलचल की उस परिस्थिति में अब मैं अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ और सभी बातों से ध्यान हटा कर स्वयं को जैसे ही अशरीरी स्थिति में स्थित करती हूँ वैसे ही अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप को धारण कर उस जाल से स्वयं को मुक्त कर लेती हूँ*।

 

_ ➳  निर्बन्धन हो कर अब मैं आत्मा ऊपर की और उड़ रही हूँ। हर प्रकार के बंधन से मुक्त इस स्थिति में मैं स्वयं को एक दम हल्का अनुभव कर रही हूँ। यह हल्का पन मन को आनन्दित कर रहा है। *एक आजाद पक्षी की भांति ऊंची उड़ान भर, मैं प्रकृति के सुंदर नजारो का आनन्द लेती हुई ऊपर ही ऊपर उड़ती जा रही हूँ*। उड़ते - उड़ते मैं आकाश को भी पार कर, फरिश्तो की दुनिया से होती हुई लाल प्रकाश की एक अति सुंदर दुनिया मे प्रवेश करती हूँ। *चमकते हुए चैतन्य सितारों की यह निराकारी दुनिया मेरे पिता परमात्मा का घर है*। अपने इस घर मे अब मैं स्वयं को अपने निराकार शिव पिता के सामने देख रही हूँ।

 

_ ➳  अपने निराकार शिव पिता परमात्मा की सर्वशक्तियों की छत्रछाया के नीचे बैठ मैं गहन शांति, आनन्द की अनुभूति कर रही हूँ। गहन अतीन्द्रिय सुख में डूबती जा रही हूँ। *माया के जाल में फंस कर दुखी होने की सारी पीड़ा मेरे शिव पिता के स्नेह की शीतल छाया पा कर जैसे समाप्त हो गई है*। सर्वशक्तियों की किरणों की शीतल फुहारें मन को असीम शीतलता प्रदान कर रही हैं। सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर कर, अब मैं परमधाम से नीचे आ कर सूक्ष्म लोक में प्रवेश करती हूँ।

 

_ ➳  अपने लाइट के फ़रिश्ता स्वरूप को धारण कर, बापदादा के साथ कम्बाइंड हो कर अब मैं फिर से उसी मायानगरी में आ जाती हूँ। और माया के जाल में फंसे अपने आत्मा भाइयों को छुड़ाने की सेवा में लग जाती हूँ। *बाबा की याद मेरे चारो और सेफ्टी का एक मजबूत किला बन कर अब मुझे माया के जाल में फंसने से बचाये रखती है*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  मैं आत्मा अच्छे संकल्प रूपी बीज द्वारा अच्छा फल प्राप्त करती हूँ ।* 

 

➳ _ ➳  *मैं आत्मा... अपने अच्छे संकल्पो रूपी बीज द्वारा... सिद्धि स्वरुप आत्मा का वरदान बापदादा के हाथों प्राप्त कर... सिद्धि स्वरुप बन गई हूँ...* मुझ आत्मा का हर कर्म... हर बोल... हर संकल्प... शुभ भावना के मोतियों से सजा हैं... *सत वचन... सत कर्म... सत संकल्प द्वारा मैं आत्मा बेहद बाप की बेहद की सेवा को यथार्थ रीति पूरा कर रही हूँ...* शुभ संकल्प रूपी बीज द्वारा ब्रह्माण्ड रूपी खेत को शुभ फल रूपी हरियाली से आच्छादित कर रही हूँ... *मुझ सिद्धि स्वरूप आत्मा का हर बोल सिद्धि प्राप्त हैं... व्यर्थ नहीं...* मैं आत्मा शुभ भावना रूपी संकल्पों की वर्षा कर... *सभी आत्माओं को शुभ फल प्राप्त कराने वाली सिद्धि समर्थ आत्मा हूँ...* संगमयुग के महान पर्व पर... बापदादा के नक्शेकदम पर चल मैं आत्मा *सिद्धि स्वरुप बन सब को सिद्धि प्राप्त करवा रही हूँ...*

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- कर्म योगी बनकर हर कर्म कर, दुःख की लहर से मुक्त होने का अनुभव"*

 

_ ➳  मैं कर्मयोगी आत्मा हूँ... मुझ आत्मा का हर कर्म योगयुक्त... युक्तियुक्त है... मैं आत्मा ऑलमाइटी अथॉरिटी बाबा को अपना साथी बना... हर कर्म करती जा रही हूँ... *बाप से कम्बाइंड होकर रहने वाली कर्म योगी आत्मा बनती जा रही हूँ*... मुझ आत्मा का हर सेकण्ड... हर संकल्प... हर बोल श्रेष्ठ बनता जा रहा है... मैं आत्मा न्यारे और प्यारे पन का अनुभव करने लगी हूँ... मैं आत्मा हल्कापन अनुभव करने लगी हूँ... सारे बोझ समाप्त होते जा रहे है... चलाने वाला चला रहा है... कराने वाला करा रहा है... *मैं आत्मा दुःखों से मुक्त होती जा रही हूँ*... स्वयं को सदा बाप में समाया हुआ अनुभव करने लगी हूँ... मैं और मेरा बाबा दूसरा न कोई... बाबा सदा साथ ही है यही अनुभव होता है... हर सेवा सहज ही होती जा रही है... शुक्रिया मेरे बाबा शुक्रिया....

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *आज से हर एक अपने में देखे - दूसरे का नहीं देखना। दूसरे की यह बातें देखने के लिए मन की आंख बंद करना।* यह आंखें तो बंद कर नहीं सकते नालेकिन मन की आंख बन्द करना - दूसरा करता है या तीसरा करता हैमुझे नहीं देखना है। *बाप इतना भी फोर्स देकर कहते हैं कि अगर कोई विरला महारथी भी कोई ऐसी कमजोरी करे तो भी देखने के लिए और सुनने के लिए मन को अन्तर्मुखी बनाना।*

 

 _ ➳  हंसी की बात सुनायें - बापदादा आज थोड़ा स्पष्ट सुना रहे हैंबुरा तो नहीं लगता है। अच्छा-एक और भी स्पष्ट बात सुनाते हैं। *बापदादा ने देखा है कि मैजारिटी समय प्रति समयसदा नहीं कभी-कभी महारथियों की विशेषता को कम देखते और कमजोरी को बहुत गहराई से देखते हैं और फालो करते हैं।* एक दो से वर्णन भी करते हैं कि क्या हैसबको देख लिया है। महारथी भी करते हैंहम तो हैं हीपीछे। अभी महारथी जब बदलेंगे ना तो हम बदल जायेंगे। *लेकिन महारथियों की तपस्या, महारथियों के बहुतकाल का पुरूषार्थ उन्हों को एडीशन मार्क्स दिलाकर भी पास विद आनर कर लेती है।* आप इसी इन्तजार में रहेंगे कि महारथी बदलेंगे तो हम बदलेंगे तो धोखा खा लेंगे इसलिए मन को अन्तर्मुखी बनाओ। समझा।

 

 _ ➳  यह भी बापदादा बहुत सुनते हैंदेख लिया... देख लिया। हमारी भी तो आंखे हैं नाहमारे भी तो कान हैं नाहम भी बहुत सुनते हैं। लेकिन महारथियों से इस बात में रीस नहीं करना। *अच्छाई की रेस करोबुराई की रीस नहीं करोनहीं तो धोखा खा लेंगे। बाप को तरस पड़ता है क्योंकि महारथियों का फाउन्डेशन निश्चय, अटूट-अचल है,उसकी दुआयें एक्स्ट्रा महारथियों को मिलती हैं।* इसलिए कभी भी मन की आंख को इस बात के लिए नहीं खोलना। बंद रखो। *सुनने के बजाए मन को अन्तर्मुखी रखो।* समझा।    

 

✺   *ड्रिल :-  "बुराई को देखने की मन की आँख बन्द करना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा अपने ईश्वरीय विश्व विद्यालय में... बापदादा के चित्र के आगे बैठी हूँ... सामने प्राण प्यारे बाबा मुझे देख मन्द मन्द मुस्करा रहें हैं...* मैं आत्मा झट से बाबा के गले लग जाती हूँ... मेरे बाबा... मेरे मीठे प्यारे बाबा... कहते हुए बाबा की गोद में बैठ जाती हूँ... *आहा!!... बाबा का स्पर्श पाते ही स्वयं को जन्नत की परी... जैसा अनुभव कर रही हूँ... बाबा की यादों में खोकर मैं आत्मा रुई जैसी हल्की हो रही हूँ...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा हल्की होकर...  उड़ती हुई पहुँच जाती हूँ अपने मीठे वतन में... जहाँ शिव बाबा... कोहिनूर हीरे से भी तेज़ चमक रहें हैं... उनसे निकलता किरणों रूपी प्रकाश चारों ओर अपनी लालिमा फैला रहा है... *मैं आत्मा बाबा से निकलती दिव्य तेजस्वी किरणों को स्वयं में धारण कर रही हूँ... स्वयं को समर्थ व शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ... मुझ आत्मा के आसुरी अवगुण भस्म हो रहे हैं...* अविनाशी बाबा के प्रेम में लवलीन हुई मैं आत्मा एकरस स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...

 

 _ ➳  *अब मैं आत्मा अन्तर्मुखी बन... साइलेन्स की शक्ति से स्वयं ही स्वयं की चेकिंग कर रही हूँ...* अब मुझ आत्मा में किसी की बुराई देखने का अवगुण तो नहीं है...? हरेक के पार्ट को साक्षीदृष्टा बन देख रही हूँ...? *मुझे बापदादा के शब्द याद आ रहें हैं... बदला नहीं लेना... बदल कर दिखाना है... सी नो ईविल...*अब मैं आत्मा साइलेन्स की शक्ति से किसी की बुरी बात या बुरे सम्बन्ध को... अच्छाई में परिवर्तित कर रही हूँ... साक्षीदृष्टा बन हरेक के पार्ट को देख रही हूँ...

 

 _ ➳  *अब मैं आत्मा महारथियों के पुरुषार्थ* को... उनकी विशेषताओं को... बहुत गहराई से देख रही हूँ... *उनका अमृतवेले उठना... मुरली क्लास सुनना... सुनाना... दुःखी अशांत आत्माओं को सकाश देना... उनका बहुतकाल का पुरुषार्थ... उनका बाबा पर... ड्रामा पर... अटूट निश्चय...* मैं आत्मा उनकी विशेषताओं को देख... उन्हें फॉलो कर... तीव्र पुरुषार्थी बन रही हूँ... हरेक के प्रति शुभ भावना शुभ कामना... रख रहीं हूँ...  

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा सदा अटेंशन रख... साइलेन्स की शक्ति द्वारा... अन्तर्मुखी बन... हरेक के गुणों को देख रहीं हूँ... *मैं आत्मा संकल्प शक्ति द्वारा हर एक की बुराई को देखते हुए भी उसे अच्छाई में परिवर्तित कर रही हूँ...* तीव्र पुरुषार्थी बन सदा उड़ती कला में रह अन्तर्मुखी स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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