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❍ 04 / 09 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *किसी भी चीज़ में ममत्व तो नहीं रखा ?*
➢➢ *"मेरा तो एक शिव बाबा... दूसरा न कोई" - यह पाठ पक्का किया ?*
➢➢ *"हीयर नो ईविल... सी नो ईविल... टाक नो ईविल" - बाप के इस डायरेक्शन पर चलते रहे ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *भिन्न भिन्न स्थितियों के आसन पर एकाग्र हो बैठने का अभ्यास किया ?*
➢➢ *संकल्प में भी किसी देहधारी ने आकर्षित तो नहीं किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ अपने देह भान से न्यारा - जैसे *साधारण दुनियावी आत्माओं को चलते-फिरते, हर कर्म करते स्वतः और सदा देह का भान रहता ही है,* मेहनत नहीं करते कि मैं देह हूँ न चाहते भी सहज स्मृति रहती ही है।
〰✧ *ऐसे कमल-आसनधारी ब्राह्मण आत्मायें भी इस देहभान से स्वतः ही ऐसे न्यारे रहें* जैसे अज्ञानी आत्म-अभिमान से न्यारे हैं। है ही आत्म-अभिमानी। शरीर का भान अपने तरफ आकर्षित न करें।
〰✧ जैसे ब्रह्मा बाप को देखा, चलते-फिरते फरिश्ता रूप वा देवता रूप स्वतः स्मृति में रहा। ऐसे *नैचुरल देहीअभिमानी स्थिति सदा रहे - इसको कहते हैं देहभान से न्यारे।* देहभान से न्यारा ही *परमात्म-प्यारा* बन जाता है।
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- रावण को भगाकर, जयजयकार से अशोक वाटिका में जाना"*
➳ _ ➳ मीठे मधुबन में मीठे बाबा के कमरे में बेठी हुई मै आत्मा... प्यारे बाबा की यादो में मन्त्र मुग्ध हूँ... और अपने मीठे भाग्य के बारे में सोच सोच कर मुस्करा रही हूँ... प्यारे बाबा का दिल से शुक्रिया कर रही हूँ... कि *प्यारे बाबा की बाँहों में आकर, मेरा जीवन कितना खुबसूरत, मीठा और प्यारा हो गया है.*.. देह के सारे जंजालों से निकल मै आत्मा... सुखो में झूमती, गाती आनन्द में मुस्कराती अपनी सुखो की जन्नत की ओर बढ़ती ही जा रही हूँ...
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को दुखो से मुक्त कराकर, सुखधाम का मालिक बनाते हुए कहा:-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... मीठे बाबा की यादो से इस देह की दुनिया और विकारो के जंजाल से छूटकर... मीठे सुखो की दुनिया में मुस्कराना... *रावण रुपी विकारो की सदा की विदाई कर... प्रेम, सुख, शांति की अशोक वाटिका में मौज मनाना है.*..
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा से अथाह सुखो की दौलत अपनी बुद्धि झोली में भरते हुए कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... आपकी मीठी प्यारी यादो ने मुझ आत्मा को *विकारो के जंगल से निकाल, सुख और खुशियो भरे फूलो संग महकाया है*... मै आत्मा देहभान से निकल, अपने सत्य आत्मिक आनन्द के नशे में डूबकर... अशोक वाटिका में जा रही हूँ..."
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को सुंदर देवताई जीवन का राज समझाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... मीठे बाबा की यादे ही सतयुगी जीवन का आधार है... इन यादो में गहरे डूबकर जनमो के दुखो से मुक्त होकर... अनन्त सुखो के हकदार बनो... *मीठे बाबा के सारे गुण और खजाने... अपनी बाँहों में भरकर,बड़ी ही शान से, हँसते मुस्कराते, जयजयकार से सुख और आनन्द की दुनिया के मालिक बनो..*."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा से सुखो के गहरे राज समझकर कहती हूँ :- "मीठे प्यारे दुलारे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो भरी गोद में... असीम सुखो को अपने भाग्य में भरती जा रही हूँ... आत्मिक भाव में डूबकर, देह के आकर्षण और विकारो से परे होकर... *जयघोष से देवताओ सा सुंदर जीवन, अपनी तकदीर में आपसे लिखवाती जा रही हूँ.*.."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी यादो में विकर्माजीत बनाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे.... अपने मीठे भाग्य के नशे में डूबकर सदा के लिए आनन्दित हो जाओ... *21 जनमो का खुबसूरत देवताई भाग्य पा रहे हो, इस मीठी खुमारी से भर जाओ.*.. प्यारे बाबा की पिता, टीचर, सतगुरु रूप में पाकर विकारो के दागो से मुक्त होकर, मीठे सुखो के अधिकारी बन रहे हो...
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने लाडले मीठे बाबा को गले लगाते हुए कहती हूँ :- " मेरे सच्चे साथी बाबा... आपने अपनी गोद में बिठाकर, गले लगाकर, मुझ आत्मा का कितना प्यारा भाग्य जगाया है... मै आत्मा *देह के दुखो से छूटकर, अनन्त सुखो की स्वामिन् बन रही हूँ... जयजयकार से मीठे सुखो के स्वर्ग में प्रवेश कर रही हूँ..*."मीठे प्यारे बाबा को अपने दिल के उदगार समर्पित करके, मै आत्मा... स्थूल जगत में आ गयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- हियर नो ईविल, सी नो ईविल... टाक नो ईविल... बाप के इस डायरेक्शन पर चल मन्दिर लायक बनना*"
➳ _ ➳ देह और देह की दुनिया की सभी बातों से मन बुद्धि को हटा कर जैसे ही मैं एकाग्रचित होकर बैठती हूं वैसे ही स्वयं को सूक्ष्म वतन में देखती हूँ। *यहां पहुंच कर मैं अपनी लाइट की फ़रिश्ता ड्रेस को धारण कर लेती हूं और सूक्ष्म वतन की सैर करने चल पड़ती हूँ*। सूक्ष्म वतन के सुंदर नजारे देखकर मैं मन ही मन आनंदित हो रही हूँ। पूरे सूक्ष्म वतन की सैर करके अब मैं पहुंच जाती हूँ बापदादा के पास। मैं देख रही हूं सामने लाइट माइट स्वरूप में बाप दादा विराजमान हैं। उनसे आ रही लाइट और माइट चारों ओर फैल रही है। बाप दादा की लाइट माइट जैसे - जैसे मुझ फ़रिश्ते पर पड़ रही है मेरी चमक बड़ती जा रही है। *एक दिव्य अलौकिक रूहानी चमक से मेरा फ़रिशता स्वरूप जगमगाने लगा है*।
➳ _ ➳ बापदादा अब मेरे बिल्कुल समीप आ कर, मेरा हाथ थामे मुझे साकारी लोक की ओर ले कर जा रहें हैं। बापदादा के साथ मैं पूरे विश्व का भ्रमण कर रही हूँ। प्रकृति के खूबसूरत नजारों का आनन्द ले रही हूँ। *प्रकृति के खूबसूरत नजारों का आनन्द लेते लेते अब मैं अपने फ़रिशता स्वरूप में नीचे भू लोक में आ जाती हूँ*। बापदादा के साथ अब मैं भू लोक पर विचरण कर रही हूँ। चलते चलते एक स्थान पर लगे म्यूजियम को देख मैं बापदादा के साथ उस म्यूजियम के अंदर प्रवेश कर जाती हूँ।
➳ _ ➳ भारत की अनेक ऐतिहासिक वस्तुएँ, राजनेताओ के चित्र इस म्यूजियम में जहां - तहां लगे हुए हैं। सामने बापू जी की विशाल प्रतिमा रखी है और उस प्रतिमा के सामने तीन बन्दरो के जड़ चित्र स्थापित किये गए है। *जिसमे एक बंदर ने अपने हाथों से अपने मुख को बंद किया हुआ है जो इस बात का प्रतीक है कि बुरा मत बोलो, एक बंदर अपने हाथ अपने कानों पर रख कर यह संदेश दे रहा है कि बुरा मत सुनो और एक बंदर अपने हाथों से अपनी आंखें बन्द कर यह समझा रहा है कि बुरा मत देखो*।
➳ _ ➳ बन्दरो की इन प्रतिमाओं को देख कर मैं मन मे विचार करती हूँ कि इन बन्दरो की तरह आज के मनुष्य भी तो बंदर बुद्धि बन गए हैं जो बुराई देख रहें हैं, बुरा सुन रहें हैं और बुरा ही बोल रहे हैं। ये चित्र और कहानियां तो केवल किताबो में ही बंद हो कर रह गई हैं। यही विचार करते - करते मैं बाबा की ओर देखती हूँ। बाबा मन्द मन्द मुस्कराते हुए मेरी ओर देखते हैं। *बाबा की जो डायरेक्शन है कि हियर नो ईविल, सी नो ईविल... टाक नो ईविल... उस डायरेक्शन को बाबा के मन के भावों से मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ*। स्वयं से और बाबा से मैं दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ कि अब मुझे बाबा के इस फरमान पर पूरी तरह चल कर मन्दिर लायक अवश्य बनना है। *इसी दृढ़ संकल्प के साथ अपने पूज्य स्वरूप को अपने सामने इमर्ज करके अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट आती हूँ*।
➳ _ ➳ ब्राह्मण स्वरूप में रहते हुए अब मुझे मेरा पूज्य स्वरूप सदा स्मृति में रहता है। स्वयं को सदा ईष्ट देव, ईष्ट देवी के रूप में अनुभव करने से अब मेरे अंदर दैवी गुण धारण होने लगे है। पुराने आसुरी स्वभाव संस्कार स्वत: ही समाप्त हो रहें हैं। सबके साथ बातें करते उनके मस्तक में चमकती हुई आत्मा को ही अब मैं देख रही हूँ। सबके साथ बातें करते, सुनते, देखते, बोलते चलते-फिरते हर कर्म करते जैसे अब मैं सब बातों से उपराम हूं। *बुरा ना बोलने, बुरा ना देखने और बुरा ना सुनने के साथ साथ बुरा ना सोचने और बुरा ना करने की भावना को अपने जीवन में धारण करने से अब मेरे अंदर दाता पन के संस्कार इमर्ज हो रहें हैं जो मुझे मंदिर लायक बना रहे हैं*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :-मैं आत्मा भिन्न भिन्न स्थितियों के आसन पर एकाग्र हो बैठती हूँ।”*
➳ _ ➳ मुझ *राजयोगी आत्मा के लिए भिन्न-भिन्न स्थिति ही आसन है… मैं स्वमान की स्थिति में स्थित होती हूं… अब मैं आत्मा लाइट हाउस स्थिति में… प्यार स्वरुप लवली स्थिति में… जैसे आसन पर एकाग्र होकर बैठते हैं*… ऐसे मैं आत्मा भी भिन्न-भिन्न स्थिति के आसन पर स्थित होती हूं… वैरायटी स्थितियों का अनुभव करती हूं… *जब चाहूं तब मन बुद्धि को आर्डर करूं… और संकल्प करते ही उस स्थिति में स्थित हो जाती हूँ … मैं राजयोगी स्वराज अधिकारी आत्मा हूँ…*
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- संकल्प में भी कोई देहधारी के प्रति आकर्षित न होने से वफादार होने का अनुभव करना "*
➳ _ ➳ सर्व संबंध एक बाप के साथ जोड़ने वाली... *बाप की वफादार... फरमान फालोफादर करने वाली... मैं शक्ति स्वरूप आत्मा हूँ...* देह के सर्व विस्तार को बिंदु लगाकर... मैं ज्योतिबिंदुरूप आत्मा... किसी भी देहधारी के आकर्षण से पूर्ण रुप से मुक्त हूँ... स्वतंत्र हूँ... मैं अशरीरी आत्मा हूँ... *देह की दुनिया के सारे बंधनों की रस्सियां तोड़ चुकी हूँ... संकल्प में भी किसी भी देहधारी के प्रति कोई लगाव... कोई झुकाव नहीं है...* कहीं भी कोई आसक्ति नहीं है... मैं आत्मा मायाजीत... विक्रमाजीत बन गई हूँ... बाबा के नयनों का सितारा बन गई हूँ... मैं शक्तिस्वरुप स्थिति में स्थित होकर... *बाप की प्यारी व सर्व से न्यारी होकर... वफादार होने की श्रेष्ठ अनुभूति कर रही हूँ...* डबल लाइट के उड़न आसन पर सवार होकर...हर कर्म कुशलता से करती हुई... *उड़ती कला का आनंद ले रही हूँ...*
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *सेवा में सफलता नहीं मिलती तो दिलशिकस्त मत बनो कुछ भी सेवा करो चाहे जिज्ञासू कोर्स वाले आवे या नहीं आवे लेकिन स्वयं, स्वयं से सन्तुष्ट रहो।* निश्चय रखो कि अगर मैं सन्तुष्ट हूँ तो आज नहीं तो कल यह मैसेज काम करेगा, करना ही है। इसमें थोड़ा सा उदास नहीं बनो। खर्चा तो किया.... प्रोग्राम भी किया.... लेकिन आया कोई नहीं। *स्टूडेन्ट नहीं बढ़े, कोई हर्जा नहीं आपने तो किया ना। आपके हिसाब-किताब में जमा हो गया* और उन्हों को भी सन्देश मिल गया। तो टाइम पर सभी को आना ही है, इसलिए करते जाओ। *खर्चा बहुत हुआ, उसको नहीं सोचो। अगर स्वयं सन्तुष्ट हो तो खर्चा सफल हुआ।* घबराओ नहीं, पता नहीं क्या हुआ!
➳ _ ➳ कई बच्चे ऐसे कहते हैं मेरा योग ठीक नहीं था, तभी यह हुआ। किससे योग था? और कोई है क्या जिससे योग था? *योग है और सदा रहेगा। बाकी कोई सीजन का फल है, कोई हर समय का फल है। तो अगर आया नहीं तो सीजन का फल है, सीजन आयेगी। दिलशिकस्त नहीं बनो।* क्योंकि श्रीमत को तो माना ना। श्रीमत प्रमाण कार्य किया। इसीलिए *श्रीमत को मानना यह भी एक सफलता है। बढ़ते जाओ, करते जाओ l* और ही पश्चाताप करके आपके पांव पड़ेंगे कि आपने कहा हमने नहीं माना। यहाँ ही आप देवियां बनेंगी। आपके पांव पर पड़ेंगे, तभी तो भक्ति में भी पांव पड़ेंगे ना। तो वह टाइम भी आना है जो सब आपके पांव पड़ेंगे कि आपने कितना अच्छा हमारा कल्याण किया।
➳ _ ➳ *जिस समय थकावट फील हो ना तो कहाँ भी जाकर डांस शुरू कर दो।* चाहे बाथरूम में। क्या है इससे मूड चेंज हो जायेगी। चाहे मन की खुशी में नाचो, अगर वह नहीं कर सकते हो तो स्थूल में गीत बजाओ और नाचो। फारेन में डांस तो सबको आता है। डांस करने में तो होशियार हैं। फरिश्ता डांस तो आता है। अच्छा।
✺ *ड्रिल :- "निश्चय और सन्तुष्टता से सेवा करने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सफलता का चमकता सितारा हूँ*... मैं आत्मा अपना फरिश्ता रूप धारण कर... उड़ कर पहुँच जाती हूँ... ज्ञान के सागर प्यारे बापदादा के पास... *उनसे ज्ञान की गुह्य से गुह्य बातों को अपने में धारण कर रही हूँ*... मैं आत्मा ज्ञान की देवी विश्व के ग्लोब पर विराजमान होकर... सारे विश्व की आत्माओं को... श्रेष्ठ ज्ञान का प्रकाश बांट रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं ज्ञान का फरिश्ता बन कर पहुँच जाती हूँ बाबा के प्रोग्राम में... और वहाँ पर मैं आत्मा जिज्ञासुओं को कोर्स करवा रही हूँ... इसमें कोई रेग्युलर स्टूडेंट नहीं भी बनता है... तो मैं आत्मा *दिलशिकस्त नहीं होती हूँ... क्योंकि बाबा ने समझाया है कि बच्चे... जो सीजन का फल है वो सीजन में ही आता है*... और कोई सदाबहार यानी हर समय का फल है... तो अगर नहीं आया माना सीजन का फल है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपनी सेवा श्रीमत के अनुसार कर रही हूँ... और *श्रीमत को मानना भी सफलता ही है*... और मैं आत्मा अपनी सेवा से सम्पूर्ण संतुष्ट हूँ... मुझे इस बात का सम्पूर्ण निश्चय है कि... *जो ज्ञान का बीज बोया है वो जरूर फलीभूत होगा...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपनी सेवा करते हुए निरंतर आगे बढ़ती जा रही हूँ... बाबा ने कहा है कि *बच्चे ऐसा दिन आएगा की सभी भक्त आत्माएँ... आप देवियों के पांव पड़ेंगे*... और वह समय आ गया है... मुझ आत्मा के सामने कुछ आत्माएँ पश्चाताप कर रही है... और मेरे पास आकर खड़ी है... मुझसे कह रही है... *आप ने हमें सत्य मार्ग दिखाया था... लेकिन हमने नहीं माना*... आप ने हमारा कितना अच्छा कल्याण किया है... कि आप ने हमें अपने परमपिता से मिला दिया... सारी भक्त आत्माएँ मेरा धन्यवाद कर रही है... और मैं बाबा का धन्यवाद कर रही हूँ कि... उन्होंने मुझ आत्मा को इतना ऊंचा उठा दिया...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा दृढ़ निश्चय और सन्तुष्टता से सदा सफलता प्राप्त कर रही हूँ*... जब भी मैं आत्मा मैं थकावट महसूस करती हूँ... तो मैं आत्मा अपने मूड को चेंज करने के लिए... डांस करने लगती हूँ... या मन का डांस करती हूँ... या कोई अच्छा बाबा का गीत सुनती हूँ... जिससे मुझ आत्मा का मूड फट से चेंज हो जाता है... और थकावट भी नहीं रहती है... मैं आत्मा अब समझ चुकी हूँ... *सेवा में सदा सफलता के लिए... एक ही मंत्र है "बाबा में निश्चय और सेवा से सन्तुष्टता"*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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