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❍ 08 / 08 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *बाप से की हुई प्रतिज्ञा को तोडा तो नहीं ?*
➢➢ *सबका बुधी से त्याग कर अशरीरी बनने का अभ्यास किया ?*
➢➢ *योगबल से माया के तूफानों पर विजय प्राप्त की ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *सर्व शक्तियों की सम्पन्नता द्वारा विश्व के विघनो को समाप्त किया ?*
➢➢ *सदा शुभ संकल्पों की रचना कर डबल लाइट स्थिति का अनुभव किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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➳ _ ➳ जो चैलेन्ज करते हो - सेकण्ड में मुक्ति-जीवनमुक्ति का वर्सा प्राप्त करो, उसको प्रैक्टिकल में लाने लिए तैयार हो? *स्व-परिवर्तन की गति सेकण्ड तक पहुँची है?* क्या समझते हो? पुराना वर्ष समाप्त हो रहा है, नया वर्ष आ रहा है, अभी संगम पर बैठे हो। तो *पुराने वर्ष में स्व-परिवर्तन व विश्व परिवर्तन की गति कहाँ तक पहुँची है?* तीव्र गति रही? रिजल्ट तो निकालेंगे ना? तो इस वर्ष की रिजल्ट क्या रही? स्व-प्रति, सम्बन्ध और सम्पर्क प्रति वा विश्व की सेवा के प्रति। इस वर्ष का लक्ष्य मिला? जानते है ना। ‘उडता पंछी वा उडती कला’ तो इसी लक्ष्य प्रमाण गति क्या रही? *जब सबकी गति सेकण्ड तक पहुँचेगी तो क्या होगा? अपना घर और अपना राज्य, अपने घर लौटकर राज्य में जायेंगे।*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पवित्रता की राखी बांधने से राजाई तिलक का मिलना"*
➳ _ ➳ प्रकर्ति की खुबसूरत कृति हिमालय की तराइयों में घूमते हुए... मै आत्मा, हिमालय से निकली गंगा की धारा को निहारती हुई... अपने मीठे भाग्य पर... शिव पिता की मीठी नजरो से बदले प्यारे नजारो... में खो जाती हूँ... *शिव पिता से निकली मै ज्ञान गंगा...अपने मीठे भाग्य पर मुस्कराती हूँ.*.. खुद कभी जो गर्त में गहरे डूबी थी... आज सबको पुण्यो भरा रास्ता दिखा रही हूँ... आज मीठे बाबा ने पावन बनाकर, मुझ आत्मा को कितना धवल, उज्ज्वल और अनोखा बना दिया है...
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को सतयुगी ताज पहनाते हुए कहते है :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *ईश्वर पिता की फूलो सी गोद में खिलकर, अपने बुद्धि पात्र को सोने सा दमकता बनाओ..*. ज्ञान और योग की लहरों में स्वयं को गहरा डुबो दो... और मन वचन कर्म से सम्पूर्ण पवित्र बनकर सतयुगी बादशाही का तिलक पाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा से सारे रत्नों को समेटते हुए कहती हूँ :- "प्यारे प्यारे बाबा मेरे... देह के भान और विकारी जीवन ने कितने दुःख भरे दिन दिखलाये... अब आपकी गोद में बैठकर सुख के अहसासो में जी रही हूँ... *पवित्रता से सज कर मै आत्मा कितनी खुबसूरत और प्यारी हो गयी हूँ.*.. मेरा सौंदर्य मुझसे छलकता सारे ब्रह्माण्ड में फैल रहा है..."
❉ प्यारे बाबा मुझ आत्मा को पवित्रता की चुनरिया ओढाते हुए कहते है :- " *इस पवित्रता की ओढ़नी में ही आत्मा के सम्पूर्ण सौंदर्य की छवि है.*.. यह पवित्रता ही सारे सच्चे सुखो का आधार है... इसलिए ईश्वरीय यादो में रहकर खुद को इस सुंदरता से इस कदर निखार लो... कि स्वर्ग की राजाई सहज ही बाहों में मुस्कराये..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा को अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए चिंतन में देख कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... मेरे सच्चे सुखो की व्यवस्था में आप परमधाम छोड़ धरा पर उतर आये हो... मै आत्मा रोम रोम से आपकी उपकारी हूँ... और *आपकी यादो में पावनता से भरकर, ज्ञान रत्नों की दौलत पाकर, मालामाल हो रही हूँ..*."
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को अथाह सुखो का अधिकार देते हुए कहते है :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... *ईश्वरीय ज्ञान धन से बुद्धि पात्र को सोने जैसा बनाकर, पवित्रता के रंग से रंगकर देवताई शानोशौकत में मुस्कराओ.*.. पावन बनकर पावन दुनिया के मालिक बनो... ईश्वरीय यादो में दैहिक संस्कारो को मिटा दो... और पवित्रता से देवताई लक्ष्य को पाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा की यादो में पवित्रता से दमकते हुए कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... देह के अहंकार और झूठे रिश्तो ने मुझे कितना गर्त में गिरा मैला कर दिया... आपने अपना हाथ देकर मुझे उस दलदल से निकाला है... और *ज्ञान अमृत से धुला कर, अपनी यादो में पावनता से सजाया है.*..मै आत्मा रोम रोम से आपकी ऋणी हूँ..." प्यारे बाबा से असीम शक्ति लेकर, मै आत्मा अपनी कर्म धरा पर आ गयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पवित्रता औऱ पढ़ाई से आत्मा को गोल्डन एजेड बनाना*"
➳ _ ➳ अपने गोल्डन एजेड, सिल्वर एजेड, कॉपर एजेड और आयरन एजेड स्वरूप के बारे में विचार करते ही इन *चारों स्टेज में मुझ आत्मा का जो स्वरूप था वह मुझे स्पष्ट अनुभव होने लगता है*।
➳ _ ➳ मैं देख रही हूं कि जब मैं आत्मा सतयुग में गोल्डन एजेड थी तो मेरा स्वरूप कितना चमकदार था। कितनी कशिश और आकर्षणमयता थी मुझ आत्मा में। क्योकि उस समय मुझ आत्मा में पवित्रता का बल था। उस समय मेरी संपूर्ण सतोप्रधान अवस्था थी। *त्रेता में दो कलाएं कम होने से मैं आत्मा गोल्डन एजेड से सिल्वर एजेड में आ गई। सम्पूर्ण सतोप्रधान से सतो अवस्था मे आ गई इसलिए मेरी चमक थोड़ी फीकी पड़ गई*। द्वापर तक आते - आते मुझ आत्मा में केवल 8 कलाये ही रह गई। विकारों की प्रवेशता ने मुझ आत्मा को कॉपर का बना दिया और मैं चमक विहीन हो गई। कलयुग अंत तक आते - आते तो मुझ आत्मा में कोई कला नही रही इसलिए मेरा स्वरूप बिल्कुल ही काला हो गया। *पतित बनने के कारण सोने के समान चमकने वाली मैं आत्मा लोहे की बन गई*। किन्तु अब संगमयुग पर मेरे शिव पिता परमात्मा ने आ कर ज्ञान और योग सिखलाकर मुझे आयरन एजेड से गोल्डन एजेड बनने का सहज उपाय बता दिया।
➳ _ ➳ मुझे गोल्डन एजेड बनाने वाले अपने प्यारे शिव पिता परमात्मा का मन ही मन शुक्रिया अदा करते हुए उनकी याद में अपने मन बुद्धि को एकाग्र करके मैं अशरीरी हो कर बैठ जाती हूँ और अगले ही पल इस नश्वर देह का त्याग कर अशरीरी आत्मा बन मैं उड़ चलती हूँ अपने शिव पिता परमात्मा के पास। *अब मैं परमधाम निवासी बन अपने पिता परमात्मा से सातों गुणों की सतरंगी किरणों और सर्वशक्तियों को स्वयं में भरपूर करने के साथ - साथ योग अग्नि में अपने विकर्मों को भी दग्ध कर रही हूं*। बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की ज्वाला स्वरूप किरणें जैसे - जैसे मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं वैसे - वैसे मुझ आत्मा पर चढ़ी विकारों की कट जल कर भस्म हो रही है और मेरा स्वरूप फिर से सच्चे सोने के समान चमकदार हो रहा है।
➳ _ ➳ स्वयं को सर्वशक्तियों से भरपूर करके, सोने के समान शुद्ध बन कर अब मैं परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और अपने सम्पूर्ण फरिश्ता स्वरूप को धारण कर मैं बापदादा के सम्मुख पहुंच जाती हूँ। *सफेद चांदनी के प्रकाश से प्रकाशित इस अव्यक्त वतन में अव्यक्त ब्रह्मा बाबा अपने सम्पूर्ण फ़रिशता स्वरुप में मेरे सामने खड़े है और उनकी भृकुटि में शिवबाबा चमक रहें हैं। बाबा के मस्तक से आ रही पवित्रता की सफेद लाइट से पूरा सूक्ष्म वतन प्रकाशित हो रहा है*। पवित्रता के शक्तिशाली वायब्रेशन इस पूरे अव्यक्त वतन में चारों और फैले हुए हैं। मैं फ़रिशता धीरे धीरे बाबा के पास पहुंचता हूँ। बाबा के मस्तक से आ रही पवित्रता की तेज लाइट अब सीधी मुझ फ़रिश्ते पर पड़ रही है और मैं फ़रिशता पवित्रता की शक्ति से भरपूर हो रहा हूँ।
➳ _ ➳ पवित्रता का फ़रिशता बन मैं नीचे आ जाता हूँ और पवित्रता के शक्तिशाली वायब्रेशन सारे विश्व मे फैलाने के बाद अपने साकारी शरीर मे प्रवेश कर जाता हूँ। *ज्ञान और योग को अपने जीवन का अभिन्न अंग बना कर अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर सम्पूर्ण पावन बनने का तीव्र पुरुषार्थ कर रही हूं*। बाबा की श्रेष्ठ मत पर चल कर अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को मैं शुद्ध और पवित्र बना रही हूं। अपने परम शिक्षक, परम सतगुरु शिव बाबा द्वारा मिल रहे दिव्य ज्ञान को जीवन मे धारण कर, उनके द्वारा दिखाई *पवित्रता की राह पर चल कर अब मैं आत्मा फिर से गोल्डन एजेड बन रही हूं*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा सर्व शक्तियों की संपन्नता द्वारा विश्व के विघ्नों को समाप्त करती हूं।"*
➳ _ ➳ राजयोग के माध्यम से मैं आत्मा ईश्वरीय शक्तियों से संपन्न बनी हूं... मेरे पिता शिवबाबा की शक्तियों पर मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है... मैं इन्हें जब चाहे तब इस्तेमाल कर सकती हूं... आज बाबा ने कहा कि *जो सर्व शक्तियों से संपन्न है वही विघ्न विनाशक बन सकता है...* विघ्न विनाशक के आगे कोई भी विघ्न नहीं आ सकता... लेकिन यदि मुझ आत्मा के अंदर कोई भी शक्ति की कमी होगी तो मैं विघ्न विनाशक नहीं बन सकूंगी... इसीलिए बाबा की आज्ञा अनुसार मैं चेक करती हूं कि क्या मेरे अंदर सर्वशक्तियों का स्टॉक भरपूर है?... मैं अब *सदा इसी स्मृति वा नशे में हूँ कि सर्व शक्तियां मेरा वर्सा है... मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूं मेरे सामने कोई विघ्न ठहर नहीं सकता...*
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सदा शुभ संकल्पों की रचना करते रहने से डबल लाइट स्थिति का अनुभव करना "*
➳ _ ➳ शुभ संकल्पों की रचना करने वाली... मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ... निरंतर योगी... डबल लाइट फरिश्ता स्वरूप हूँ... *मैं योगयुक्त बंधनमुक्त आत्मा... स्वतंत्र होकर उड़ते पंछी की तरह उड़ती कला का आनंद ले रही हूँ...* रूहानी नशे में... ड्रामा के हर सीन के खेल का आनंद लेती हुई... मैं आत्मा श्रेष्ठ योगी जीवन जीती जा रही हूँ... व्यर्थ को समाप्त करके समर्थ व श्रेष्ठ चिंतन कर रही हूं... *यह संगमयुगी समय... मौज मनाने का... खुशियां मनाने का... बाप के दिलतख्तनशीन बन जाने का... बाप से वरदान प्राप्त करने का है...* मुझ ब्राह्मण आत्मा का हर सेकंड... हर संकल्प बहुत ही मूल्यवान है... शुभ तथा श्रेष्ठ संकल्पों की रचना करती हुई... हर सेकेंड को सफल बना रही हूँ... *अटेंशन और चेकिंग की विधि द्वारा... व्यर्थ के खाते को समाप्त कर... डबल लाइट फरिश्ता बनकर... अलौकिक खुशी का अनुभव कर रही हूँ...*
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
➳ _ ➳ *गम्भीरता
का गुण बहुत आगे बढ़ाता है।* कोई भी बात बोल दी ना, समझो
अच्छा किया और बोल दिया तो आधा
खत्म हो जाता है, आधा
फल खत्म हो गया, आधा
जमा हो गया। और *जो गम्भीर होता है उसका फुल जमा होता
है। कहते हैं ना-देखो जगदम्बा गम्भीर रही,*
चाहे सेवा स्थूल में आप लोगों से कम की, आप
लोग ज्यादा कर रहे हो
लेकिन ये गम्भीरता के गुण ने फुल खाता जमा किया है। कट नहीं हुआ है। कई करते
बहुत हैं लेकिन आधा, पौना कट
हो जाता है। करते हैं, कोई
बात हुई तो पूरा कट हो जाता है या थोड़ी बात भी हुई तो पौना कट हो जाता है। ऐसे ही
अपना वर्णन किया तो आधा कट हो जाता है। बाकी बचा क्या? तो
जब जगदम्बा की विशेषता - जमा का खाता ज्यादा
है। गम्भीरता की देवी है।
➳ _ ➳ *ऐसे
और सभी को गम्भीर होना चाहिए, चाहे
मधुबन में रहते हैं, चाहे
सेवाकेन्द्र में रहते हैं*
लेकिन बापदादा सभी को कहते हैं कि गम्भीरता से अपनी मार्क्स इकट्ठी करो, वर्णन
करने से खत्म हो जाती हैं। चाहे
अच्छा वर्णन करते हो, चाहे
बुरा। *अच्छा अपना अभिमान और बुरा किसका अपमान कराता है।* तो हर एक गम्भीरता
की देवी और गम्भीरता का देवता दिखाई दे। अभी गम्भीरता की बहुत-बहुत आवश्यकता
है। अभी बोलने की
आदत बहुत हो गई है क्योंकि भाषण करते हैं ना तो जो भी आयेगा वो बोल देंगे।
*लेकिन प्रभाव जितना गम्भीरता का
पड़ता है इतना वाणी का नहीं पड़ता।*
✺
*ड्रिल :- "गंभीरता के गुण से सेवा में फुल मार्क्स जमा करना"*
➳ _ ➳
स्कूल की घंटी बजते ही बच्चों का तूफान के जैसे भागना... नाचते... कूदते बच्चों
का स्कूल छूटते ही भागना... *मैं आत्मा निहार रही थी.... सभी बच्चों के तरंगों
को... बच्चों की चंचल वृति को...* और सोच रही थी... यही तो वह बच्चे हैं जो
बचपन की दीवार तोड़ कर यौवन की तगार पर खड़े हैं... और पूरे देश के भविष्य के
नींव समान यह बच्चे... डूबे हुए हैं... *बाहरीय जगमगाहट में... स्थूल चीज़ों में
अपनी बुद्धि को वेस्ट करते... मोबाइल इंटरनेट... होटल... घूमना फिरना... इसे
ही दुनिया समझते यह बच्चे...* अज्ञान वश... अपने ही उज्जवल भविष्य को अपनी ही
चंचल वृत्ति के हाथों बर्बाद कर रहे हैं... *दैवीय संस्कारों की कमी को उजागर
होता देख मैं आत्मा हतप्रभ हो जाती हूँ...*
➳ _ ➳
और
मन ही मन इन बच्चों को सच्ची शिक्षा रूपी ज्ञान दान के अधिकारी बनाने में मैं
आत्मा... एक नजर प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय पे डालती
हूँ... यह वही संस्था हैं जहाँ बड़े बड़े वेल एजुकेटेड और कम पढ़े हुए... बच्चे
बुढ्ढे... गरीब-अमीर... *सब एक ही साथ बैठ कर ईश्वरीय पढ़ाई पढ़ते हैं... यह वह
संस्था हैं जहाँ मनुष्य से देवी-देवता बनना सिखाया जाता हैं... कैसी होगी वह
शिक्षा जहाँ स्वयं भगवान आकर पढ़ाते हैं...* खुशनसीब मैं आत्मा... जो इसी
विद्यालय की स्टूडेन्ट हूँ... काम क्रोध लोभ मोह माया के विकारों रूपी काले
बादलों को योग अग्नि रूपी ज्ञान अमृत से नष्ट होता देख रही हूँ....
➳ _ ➳ *स्वयं
शिव परमात्मा द्वारा स्थापित संस्था... प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय
विश्वविद्यालय...* पूरे विश्व में एक ही विद्यालय हैं जहाँ विकारों से मुक्त
किया जाता हैं... *दर दर भटकते भक्तों को भगवान मिल जाते हैं...* सच्चा सच्चा
गीता ज्ञान... मिलता हैं... स्वयं भगवान की प्रत्यक्षता जहाँ होती हैं ऐसी
संस्था की मैं भाग्यवान स्टूडेंट *आज अपने भगवान को याद करूं और भगवान न आये
ऐसा हो ही नहीं सकता...* भगवान को प्रत्यक्ष हाजिरहजुर देखना... जानना... महसूस
करना है तो प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में आओ... जहाँ
स्वयं भगवान के हाथों विजय भव का स्वराज्य अधिकारी तिलक लगाया जाता है...
➳ _ ➳
ऐसी
खुशनसीब मैं आत्मा बापदादा के साथ... उनका हाथ पकडे... चल पड़ती हूँ... सभी
स्कूल... कॉलेज में... अपने फ़रिश्ते रूप में सज मैं आत्मा... *बापदादा से आती
हुई ज्ञान रत्नों रूपी शिक्षाओं को अपने में धारण कर विश्व की सभी स्कूल...
कॉलेज पर... सभी विद्यार्थियों पर फैलाती जा रही हूँ...* बापदादा का हाथ अपने
हाथों में पकड़ें... मैं आत्मा... देख रही हूँ... बापदादा की पवित्रता... शांति
से भरी किरणें सभी स्कूल... कॉलेज के बच्चों को मिल रही है... *उनकी चंचलता...
बाहरीय चमक दमक की झूठी माया रूपी विकारों की अग्नि को बापदादा की शक्तियों
रूपी किरणों से स्वाहा होता देख रही हूँ...*
➳ _ ➳
चंचलता को गंभीरता में परिवर्तित होता देखती मैं आत्मा... खुद भी गम्भीर होती
जा रही हूँ... पुरुषार्थ में... योग में... हर संकल्प... हर स्वांस में सिर्फ
एक की ही याद रहें... ऐसी गंभीर स्थिति में मग्न होती जा रही हूँ... गम्भीरता
के गुण से फुल खाता जमा करती जा रही हूँ... सभी बच्चों को प्रजापिता
ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के स्टुडेन्ट बनता देख यह आँखे अश्रु से
भर जाती हैं... *कोटि बार धन्यवाद उस परमपिता परमात्मा का जो हर घड़ी... हर
पल... अपने भक्तों की लाज रखने चला आता है... कोटि बार धन्यवाद प्रजापिता
ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय का जहाँ अनाथ को सनाथ बनाने स्वयं भगवान
आते हैं...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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