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 28 / 02 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *लाइट हाउस बनकर रहे ?*

 

➢➢ *एक आँख में शांतिधाम, दूसरी आँख में सुखधाम फिरता रहा ?*

 

➢➢ *जो नॉलेज मिली है, वह दूसरों को दी ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *बड़ी दिल रख सेवा कर सेवा के बड़े प्रतक्ष्य फल का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *कारण को निवारण में परिवर्तित कर शुभ चिंतन बनकर रहे ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *WHY को FLY में परिवर्तित किया ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे - बाप आये है, अनाथो को सनाथ बनाने, सबको दुखो से छुड़ाकर सुखधाम में ले जाने"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... इस देह को अपना सब कुछ समझ जो दुखो के दलदल में धँस गए हो... और अनाथो सा जीवन जी रहे हो... अब ईश्वर पिता प्यार भरी गोद में उठाकर सुखो के फूलो में बिठाता है... सत्य पिता सुनहरे सच्चे स्वरूप का पता देकर देहभान को मिटाता है... और *सच्चे सुखो का अधिकारी बना विश्व धरा पर सजाता है.*..

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके बिना कितनी निराश थकी और बोझिल जीवन जी रही थी... प्यारे बाबा आपने शिववंशी बनाकर मुझ अनाथ को सनाथ बना दिया है... *अपना वरदानी हाथ देकर जीवन खिला दिया है.*..

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... विश्व पिता जो परमधाम छोड़कर *बच्चों के सच्चे सुखो के लिए धरा पर उतर चला है.*.. तो उसकी मीठी महकती यादो से रोम रोम को भिगो दो... हर पल हर साँस में उसकी यादो को पिरो दो... और अथाह दौलत सच्चे सुखो के अधिकारी बन खुशियो में मुस्कराओ...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपका प्यार पाकर, आपका नाम पाने वाली महा सोभाग्यशाली आत्मा बन चलो हूँ... आपका मखमली हाथ पकड़कर...  दुखो के जंगल से निकल, *सुखो के बगीचे में, यादो के झूले में झूल रही हूँ.*.. कितना मीठा मेरा भाग्य है...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता अपना विशाल दिल लिए बच्चों को अथाह सुखो से भरपूर करने धरती की ओर रुख कर चला है... मेरे बच्चे सदा के सुखो हो जाये... *असीम खुशियो के मालिक बनकर विश्व राज्य को पाये.*.. फिर से हंसे खेले और मुस्कराये... बच्चों के सुख की आस दिल में लिए पुनः विश्व पिता आ चला है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा देहभान में आकर विकारो रुपी रावण के साये में अनाथ बन चली थी... दुखो को ही अपनी नियति समझ जी रही थी... आपने *प्यारे बाबा मुझे सनाथ बनाकर सच्चे सुखो से घर आँगन महकाया है.*.. मुझे अपने प्यार में फूलो सा खिलाया है...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा विश्व कल्याणकारी हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  मैं ब्राह्मण आत्मा *विश्व नव-निर्माणकर्ता* हूँ... मैं आत्मा सदा इसी स्मृति में रहती हूँ... मैं आत्मा इसी नशे में झूमते हुए प्यारे बाबा के सम्मुख स्वीट होम में पहुंच जाती हूँ... मुझ आत्मा पर प्यार के सागर की किरणें बरस रही हैं... मैं आत्मा सम्पूर्ण रूप से प्रेम सागर की किरणों में भीग चुकी हूँ...

 

➳ _ ➳  मुझ आत्मा में प्रेम की भावना बढ़ती जा रही है... मुझ आत्मा का पुराना  स्वभाव-संस्कार खत्म होता जा रहा है... मुझ आत्मा के मन-बुद्धि से जन्मों-जन्मों का स्वार्थ और संकुचित संस्कार समाप्त होता जा रहा है... *मैं और मेरेपन की भावना मिटती जा रही* है... मैं आत्मा मास्टर प्रेम का सागर बनती जा रही हूँ...

 

➳ _ ➳  अब मुझ आत्मा का हृदय विशाल बनता जा रहा है... अब मैं आत्मा बड़े दिल वाले *बाबा समान बडी दिल वाली* बनती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा बड़ी दिल रख सेवा करती जा रही हूँ... मैं आत्मा स्व प्रति और सर्व के प्रति भी बड़ा दिल रख हर कार्य कर रही हूँ...

 

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा कमजोर आत्माओं में बल भर कर शक्तिशाली बनाती जा रही हूँ... मैं आत्मा निःस्वार्थ सर्व की सेवा करती जा रही हूँ... मैं आत्मा सबकी सहयोगी बन हर कर्म और हर सेवा में सफलता प्राप्त करती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा बड़ी दिल रख सेवा का प्रत्यक्षफल निकालने वाली *विश्व कल्याणकारी स्थिति का अनुभव* कर रही हूँ...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  कारण को निवारण में परिवर्तन कर शुभचिंतक बनना"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा साक्षीदृष्टा... देहभान से न्यारी... देह की दुनिया के सब संकल्पों को समेटकर बाबा की याद में बैठी हूँ... मैं आत्मा अपने मीठे बाबा के हर इशारे को समझ रही हूँ... *स्मृति स्वरूप में...* स्वयं अपने को लाइट रूप में अनुभव करती हूँ व दूसरों को भी वही अनुभव करवाती हूँ... मुझ आत्मा के सामने कोई भी कारण आते ही उसी घड़ी बाबा की याद में रह उसको निवारण के रूप में बदली कर देती हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं स्वयं को जानकर... आत्मिक शक्ति जागृत करती हूँ... ऊर्जा के स्रोत...  परमात्मा से बुद्धि के तार जोड़कर समस्याओं को समाधान में... शत्रुता को प्रेम भावना में परिवर्तित करती हूँ... *निवारण स्वरूप बन हर कर्म... हर संकल्प द्वारा सेवा करती जाती हूँ...*

 

➳ _ ➳  प्रभु पिता के साथ कम्बाइन्ड स्वरूप... में रहने से पुरुषार्थ सहज होता जा रहा है... *निर्णय करने की...* निवारण करने की शक्ति सहज ही प्राप्त होती जा रही है... *मेरे साथ साथ और आत्माओं के भी सरलचित्त बनने से...* समस्याएं सरल होती दिखाई दे रहीं हैं...

 

➳ _ ➳  मास्टर सर्वशक्तिवान की स्टेज पर स्थित होकर... अपनी सर्वशक्तियों की किरणों से... अज्ञानता रुपी अंधकार मिटाकर रोशनी लाती हूँ... साइलेन्स की शक्ति से... *स्थिर बुद्धि से... औरों को सहयोग दे रही हूँ...* मैं आत्मा उड़ती कला का अनुभव कर औरों को भी उडती कला का अनुभव करवाने की सेवा कर रही हूँ...

 

➳ _ ➳  मुझ आत्मा को अशरीरीपन का... साक्षीपन का अनुभव करते हुये... परमात्म स्मृति की सेफ्टी की छत्रछाया में रहना है... कल्याणकारी वृत्ति में... *समाधान स्वरूप... निवारण स्वरूप में रहते हुए... सबकी शुभचिन्तक बन गई हूँ...* शुभभावना... शुभकामना के वायब्रेशन फैला कर... दुःखों से मुक्त होने के लिये और आत्माओं की मददगार हो रही हूँ...

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *बड़ी दिल रख सेवा का प्रत्यक्षफल निकालने वाले विश्व कल्याणकारी होते हैं...  क्यों और कैसे?*

 

 ❉  विश्वकल्याणकारी आत्मा अर्थात जो आत्मा सदा बेहद में रहे, हद में नही आए। विश्वकल्याणकारी आत्मा की सबसे बड़ी पहचान ही यह होती है उनका *हर एक संकल्प, बोल व कर्म स्वयं व दूसरी आत्माओं के कल्याणहित होता है।* सबसे बड़ी सेवा संगमयुग पर यही है कमजोर आत्माओं में बल भर देना और हर एक आत्मा को मुक्ति जीवनमुक्ति की सौग़ात देना।

 

 ❉  सेवा भी बाबा ने कहा की आत्मा तीन प्रकार से कर सकती है मनसा, वाचा व कर्मना... अर्थात तन,मन, धन। सेवा में बड़ी दिल है या नही इसकी चेकिंग कैसे करे? जिससे पता चले की हम आत्माओं की बड़ी दिल है या नही? क्योंकि हर एक आत्मा से अगर पूछा जाए की आपका लक्ष्य क्या है तो सभी कहते लक्ष्मी नारायण लेकिन फिर भी पद में इतना डिफ़्रेन्स आ जाता की बाबा को भी नम्बरवार शब्द का यूज़ करना होता। इसकी *चेकिंग का आधार है बेहद कि सदा ख़ुशी और संतुष्टमणि*।

 

 ❉  इसलिए बड़ी दिल रख सेवा करो क्योंकि जहा सेवा करने की बात आती है वहा बहुत सारी आत्माएँ एक साथ कार्य कर रही होती है ऐसे में हर आत्मा के पुराने स्वभाव संस्कार टकराने के पूरे चान्स रहते है। तो *जितना बड़ा दिल रख हम सेवा करेंगे उतने ही खुले दिल से हम सभी आत्माओ को स्वीकार कर सकेंगे* और तभी टकराव वाले संस्कार होते हुए भी मिलकर कार्य कर पाएंगे साथ ही साथी आत्माओ के अंदर ज्यादा उमंग उत्साह का बल भर पाएंगे। फिर उसका प्रत्यक्ष फल हमे सेवा में सफलता के रूप में आपसी रूहानी प्रेम के रूप में स्वतः मिल जायेगा।

 

 ❉  इसलिए सबसे पहले यह टाइटल तो शिवबाबा को ही जाता है जो निस्वार्थ भाव से हर एक आत्मा को पतित से पावन बनाने में लगे हुए है। *बाबा हमेशा कहते मीठे बच्चे, तुम जैसे हो, बस मेरे हो।* इसको भी बाबा ने प्रैक्टिकल में करके दिखाया जब बाबा अपने बच्चों पर इतना विश्वास रख कोई कार्य करते है तो वह क्यूँ क्या के प्रश्न में नही जाते... बल्कि नथिंग न्यू का पार्ट भी पक्का करवाते जिससे वह हर एक आत्मा के प्रति शुभ भावना व कामना रख विश्वकल्याणकारी बाप कहलाते ॥

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *कारण को निवारण में परिवर्तन करना ही शुभ - चिंतक बनना है... क्यों और कैसे* ?

 

❉   बाबा की श्रीमत वह महामन्त्र है जो सहज ही हर समस्या का समाधान कर देती है । इसलिए जिनका हर कदम श्रीमत की लकीर के अंदर होता है उन पर कोई भी समस्या कभी हावी नही हो सकती क्योंकि *श्रीमत के अनुसार चलकर वे हर कारण को निवारण में बदल लेते हैं* । श्रीमत की लकीर उन्हें हल्का रखती है इसलिए वे अपने जीवन से सदा संतुष्ट रहते हैं और सर्व के प्रति शुभ चिंतक वृति रखते हुए औरों को भी सदा संतुष्ट करते रहते हैं ।

 

❉   किसी भी कारण को निवारण में वही परिवर्तन कर सकते हैं जो अपने मन बुद्धि को एकाग्र रखते हैं । क्योकि *एकाग्रता की शक्ति उन्हें हर कारण का निवारण करने का बल प्रदान करती है* । इसलिए कोई भी घटना घटित होने पर या कोई भी परिस्थिति आने पर वे प्रश्नचित बन प्रश्नों का जाल नही बुनते बल्कि सेकण्ड में फुल स्टॉप लगा कर मन को एकाग्र कर समस्या का समाधान ढूंढ लेते हैं । समाधान स्वरूप बन वे अनेकों आत्माओं को भी समस्या मुक्त बनाने वाले शुभ चिंतक बन जाते हैं ।

 

❉   प्रभु प्रेम में मग्न रहने वाले और हर बात प्रभु अर्पण कर लाइट और माइट स्तिथि का अनुभव करने वाले हर कारण को सहज ही निवारण में बदल कर संतुष्टमणि बन स्वयं भी संतुष्ट रहते हैं तथा अपने सम्बन्ध संपर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को भी सदा संतुष्ट रखते हैं । *किसी की कोई भी बात अपने चित्त पर रख वे स्वयं को बोझिल नही बनाते* बल्कि स्नेही बन सबके साथ स्नेह युक्त रहते हैं ।  सर्व के प्रति स्नेह की भावना ही उन्हें सर्व का शुभ चिंतक बना देती है ।

 

❉  ब्राह्मण बनते ही परमात्मा बाप द्वारा हर बच्चे को संतुष्ट और प्रसन्न रहने का वरदान सहज ही प्राप्त होता है क्योकि परमात्मा बाप द्वारा रचे इस रूद्र ज्ञान यज्ञ की अंतिम आहुति का प्रत्यक्ष प्रमाण ब्राह्मणों की सदा प्रसन्नता है । और इस *प्रसन्नता का मुख्य आधार है संतुष्टता । क्यों कि सन्तुष्टता की निशानी प्रत्यक्ष रूप में प्रसन्नता ही होती है* । किंतु संतुष्टमणि बन स्वयं को तथा औरों को संतुष्ट वही कर सकते हैं जो हर कारण को निवारण में बदल कर सर्व के प्रति सदा शुभ चिंतक रहते है ।

 

❉   संगमयुग पर बापदादा द्वारा बच्चों को जो भी प्राप्तियां हुई है उनकी स्मृति को इमर्ज रूप में रखने से कोई भी परिस्थिति स्थिति को हिला नही सकती । *सर्व प्राप्तियों की ख़ुशी कभी भी उन्हें हलचल में ला कर दुखी नही बना सकती* । हलचल मे तब आते हैं, दुखी तब होते हैं जब स्वयं को खाली अनुभव करते हैं । लेकिन जो स्वयं को सदा सम्पन्न अनुभव करते हैं वे हर कारण को सहज ही निवारण में परिवर्तित करने वाले और सर्व को समस्यामुक्त बनाने वाले सर्व के शुभचिंतक बन जाते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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