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❍ 01 / 02 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *रहमदिल बन अपकारी पर भी उपकार किया ?*
➢➢ *अमृतवेले विशेष याद में रहने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *मीठे झाड का सैपलिंग लगाने में बाप का मददगार बनकर रहे ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *अकालतख़्त पर बैठकर कर्मेन्द्रियों से सदा श्रेष्ठ कर्म कराया ?*
➢➢ *ब्राह्मण कल्चर से प्यार रख ब्रह्मा बाप के प्यारे बनकर रहे ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *"मेरा बाबा" - मेरा, मेरा कह स्वयं को अधिकारी आत्मा अनुभव किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - रोज अमृतवेले ज्ञान और योग की वासधूप जगाओ, तो विकारो रुपी भूत भाग जायेंगे"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता के प्यार में *अमृतबेले के खुबसूरत समय में यादो में गहरे डूब चलो.*.. अपने सत्य स्वरूप के नशे में डूबकर सत्य पिता की यादो में खो जाओ... यही यादे और सच्चा ज्ञान विकारो रुपी भूतो को भगाकर जीवन अनन्त सुखो से भर देंगी...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा स्वयं को और ईश्वर पिता को भूल चली तो विकारो के गहरे जाल में फंस गयी थी... अब मीठे बाबा आपके मीठे से साये में, सच्चे ज्ञान की समझ से अपने *जीवन को यूँ इतना प्यारा और खुशनुमा देखकर निहाल हूँ.*..
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे.... अमृतवेला अमृत बरसाने वाला, मीठे बाबा की यादो में स्वर्गीय सुख देने वाला खुबसूरत समय है... ईश्वर पिता बाहें फैलाये अपने आगोश में भरने धरा पर उतरता है... इन ईश्वरीय बाँहों में स्वयं को समाकर *विकारो की कालिमा से बेदाग हो चलो.*..
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ की ईश्वर पिता के प्यार को, उनके अथाह खजानो को सम्मुख पा रही हूँ... भगवान स्वयं मुझसे मिलने धरा पर हर रोज चला आता है... और उनकी *मीठी बाँहों में अतीन्द्रिय सुख लुटने वाली* मै भाग्यवान आत्मा हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *अमृतवेले मिलन के मीठे पलो में मीठा सा मिलन मनाओ*, और देह के भान से. विकारो के प्रभाव से मुक्त होकर सच्चे ओज और तेज से पुनः दमक उठो... ज्ञान और योग की वास धूप से विकारो रुपी सभी भूतो को भागकर निर्मल स्वच्छ हो चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार में खो चली हूँ... *अमृतवेले ईश्वर पिता की बाँहों में झूल रही हूँ.*.. मीठे बाबा के मीठे साये में जीवन कितना निश्चिन्त प्यारा निर्भय और निर्मल हो चला है... और मै आत्मा पवित्रता की चुनरी में सज उठी हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा कर्मयोगी हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अंतर्मुखी होकर बैठ जाती हूँ... मैं आत्मा इस देह और देह की दुनिया से डिटैच होती जा रही हूँ... मैं आत्मा अपने *भृकुटी की गुफा में* बैठ जाती हूँ... मैं आत्मा अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित होती जा रही हूँ... मैं आत्मा एक की लगन में मगन होती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा *एकरस अवस्था का अनुभव* कर सर्व गुणों, शक्तियों को आत्मसात करती जा रही हूँ... मुझ आत्मा का स्पर्श रस ख़त्म होकर काम विकार ख़त्म होते जा रहा है... नेत्र रस ख़त्म होकर क्रोध का विकार ख़त्म होते जा रहा है... मुझ आत्मा का जीभ रस ख़त्म होकर लोभ विकार ख़तम होते जा रहा है...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा का नक रस ख़त्म होकर मोह का विकार ख़त्म होता जा रहा है... मुझ आत्मा का कन रस ख़त्म होकर अहंकार ख़तम होता जा रहा है... मुझ आत्मा के सभी विकारों रुपी रस ख़त्म होते जा रहे हैं... अब मैं आत्मा एकरस का पान कर रही हूँ... मुझ आत्मा के *सभी अंग कमल पुष्प समान* बनते जा रहे हैं...
➳ _ ➳ अब मुझ आत्मा की सभी *कर्मेंद्रियां लॉ और ऑर्डर पर* चल रही हैं...अब मैं आत्मा अकाल तख्तनशीन बन स्व पर राज्य कर रही हूँ... मैं आत्मा स्वराज्य अधिकारी बन बाप के वर्से की राज्य-भाग्य अधिकारी भी बन रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा अकाल तख्त पर बैठकर श्रेष्ठ कर्म कर रही हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं तख्तनशीन आत्मा बन सदा यथार्थ कर्म और यथार्थ कर्म का प्रत्यक्ष फल खा रही हूँ... मैं आत्मा सदा खुशी और शक्ति का अनुभव कर रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा कर्मेंद्रियों पर अटेन्शन रखती हूँ... अब मैं आत्मा अकाल तख्त पर बैठकर कर्मेंद्रियों से सदा श्रेष्ठ कर्म कराने वाली *कर्मयोगी अवस्था का अनुभव* कर रही हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ब्राह्मण कल्चर से प्यार कर ब्रह्मा बाप के प्यारे बनना"*
➳ _ ➳ मैं संगमयुगी ब्राह्मण आत्मा हूँ... ब्राह्मण बन मुझे मरजीवा जीवन मिला हैं... *मैं ब्राह्मण इस विश्व की चोटी हूँ... सर्वश्रेष्ठ और हाईएस्ट आत्मा हूँ...* शुद्र से ब्राह्मण बनना अर्थात ब्राह्मण कल्चर को फॉलो करना... मैं ब्राह्मण आत्मा ब्रह्मा मुखवंशावली... ब्रह्मा के नक्शे कदम पर चलने वाली आत्मा हूँ...
➳ _ ➳ ब्राह्मण बन अपने शुद्रपने के सभी संस्कार त्याग... सम्पूर्ण ब्रह्माचारी बनी हूँ... अर्थात ब्रह्मा बाप समान बनी हूँ... ब्रह्मा बाप को प्यारी... ब्राह्मण कल्चर को एक्यूरेट फॉलो करती हूँ... ब्राह्मणों की मर्यादाएं और कल्चर में... मैं आत्मा ढल गई हूँ... *मेरी पूरी दिनचर्या ब्राह्मण कल्चर अनुसार ही होती है...*
➳ _ ➳ *जैसे ब्रह्मा बाबा सेम्पल बना हैं... मैं आत्मा भी अन्य आत्माओं के लिए सेम्पल बनी हूँ...* मुझ आत्मा को अपने ब्राह्मण कल्चर से बेहद प्यार है... और ब्राह्मण कल्चर से प्यार करने से... मैं आत्मा ब्रह्मा बाप की अति प्यारी आत्मा बन गई हूँ...
➳ _ ➳ ब्राह्मण कल्चर मुझे माया के सभी प्रकार के तूफानों से सेफ़ रखता है... ब्राह्मण कल्चर फॉलो करने से... मुझे ब्राह्मण परिवार में भी स्नेह और सम्मान प्राप्त होता हैं... *जब तक जान है मुझे इस ब्राह्मण कल्चर फॉलो करना है... धरत परिये धर्म न छोड़िये...* ये सदा स्मृति में रहता हैं... मेरा धर्म ब्राह्मण है... और ब्राह्मण धर्म की हर बात से मुझे प्यार है...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *अकालतख़्त पर बैठकर कर्मइंद्रियों से सदा श्रेष्ठ कर्म कराने वाले कर्मयोगी होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ अकालतख़्त अर्थात जहाँ पर मुझ आत्मा का रहने का स्थान हैं... मैं आत्मा भृकुटि के बीच चमकता हुआ सितारा हुँ वही मुझ आत्मा का अकालतख़्त है ... *अकाल माना जिसको कभी काल नही ख़ा सकता ओर तख़्त माना बैठने की सीट* । इस सीट पर बैठकर आत्मा मालिक सर्व कर्मेंद्रियों पर जीत पहनती अर्थात स्वराज्यअधिकारी बनती ।
❉ जैसे शिवबाबा , ब्रह्माबाबा के अकालतख़्त पर बैठकर उनके देह की हेल्प से मुरली चलाने का श्रेष्ठ कार्य करते ओर कर्मयोगि भी कैसे बनना है स्वयं करके दिखलाया, दृष्टि देना, टोली खिलाना , स्नेह ओर शक्ति का बैलेन्स रखना , मीठे बच्चे कहकर ज्ञान को धारण करवाना ... *जैसा कर्म मैं करूँगा मुझे देख सब करेंगे* इस स्लोगन को प्रैक्टिकल में दिखाकर कर्मयोगि बनाया ।
❉ आत्मा अकालतख़्त पर तब बैठ सकती है जब उसका *मन ओर बुद्धि की एकमत हो* अर्थात जब मन में विचार आए की मैं एक आत्मा हुँ ओर बुद्धि भी निर्णय ले की हाँ मैं एक आत्मा हुँ तब जाकर आत्मा अपनी सीट पर सेट हो जाएगी ओर आत्मा मालिक बन कर्मइंद्रियों से सेवा ले कर्मयोगी का पार्ट प्ले करेंगी ।
❉ *स्वमान की सीट पर सेट* होने से आत्मा सदा अपने अकालतख़्त पर सेट रह सकती है ओर हर एक कर्म बाबा की याद में होने से सम्बंध सम्पर्क व सर्व आत्माओं से मान भी मिलता ओर वह सब कर्म सकर्म बन जाते जिसका अफ़जा आने वाली २१जन्मो में प्राप्त होगा ओर प्रत्यक्ष रूप में ख़ुशी की खुराक मिलती ।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *ब्रह्मा बाप के प्यारे वह हैं जिनका ब्राह्मण कल्चर से प्यार है... क्यों और कैसे* ?
❉ सारे कल्प में एक ही बार इतना बड़ा ईश्वरीय परिवार मिलता है । इसलिए इस ईश्वरीय परिवार की विशेषता को जानना और परिवार में एकमत होकर चलना यहीं महान कर्तव्य है । *इस ईश्वरीय ज्ञान का फाउंडेशन है निश्चय और निश्चय* केवल एक बात में नही बल्कि चार बातों में अर्थात बाप में, नॉलेज में, ड्रामा में और ब्राह्मण परिवार में निश्चय । ऐसे निश्चयबुद्धि बन जो ब्राह्मण परिवार से स्नेह रखते हैं वही ब्रह्मा बाप के प्यारे बन सकते हैं ।
❉ भाव स्वभाव हर परिवार में होता है । छोटी-छोटी गलतियां भी होती है । विघ्न भी आते हैं और अगर परिवार में चलने में, तोड़ निभाने में कोई भी कमी आती है तो यह विघ्न बहुत बड़ा रूप ले लेते हैं । *यह भी हमारा ब्राह्मण परिवार है जहां पुराने स्वभाव संस्कार बाधक बनते हैं* । किन्तु हमें इस परिवार की प्रीत निभानी है क्योंकि यह ईश्वर बाप का परिवार है । इसलिए जो परिवार के निश्चय में नॉलेजफुल हो कर, बाप समान साक्षी पन की स्थिति में साथ में आते हैं, रहते हैं वही ब्रह्मा बाप के प्यारे बन जाते हैं ।
❉ बाप को प्रत्यक्ष करना ही हम ब्राह्मणों का अंतिम लक्ष्य है और सभी में उमंग उत्साह भी है । किन्तु अभी तक ब्रह्माकुमारियाँ ब्रह्माकुमार प्रत्यक्ष हुए हैं । *भगवान बाप आ गया यह बाप की प्रत्यक्षता गुप्त है* । अभी यह प्रत्यक्षता होनी है । और इसके लिए जरूरी है पुराने स्वभाव संस्कार को परिवर्तन कर पूरे ब्राह्मण परिवार का एकमत होना । तभी एक एक के चेहरे और चलन से बाप प्रत्यक्ष होगा । इसलिए ब्राह्मण परिवार के महत्व को जान जो ब्राह्मण कल्चर से प्यार करते हैं वही ब्रह्मा बाप के प्यारे बनते हैं ।
❉ बाप से दिल के स्नेह की निशानी है ब्राह्मण परिवार से स्नेह । अगर परिवार से स्नेह नहीं है तो माया के विघ्न ज्यादा आते हैं । क्योंकि पानी डाला ही नहीं तो फल कैसे मिलेगा ? इसलिए *कई बच्चे कहते हैं कि ज्ञान तो समझ गए हैं, बाप से सर्व संबंध भी है लेकिन अनुभव नहीं होता* । तो अनुभव है फल । इसलिए बाप समझाते हैं कि सूखे ज्ञानी नहीं बनो । अनुभवी मूर्त बन बाप के स्नेही बनो । हर एक को स्नेह की वृत्ति से देखो और सबको उमंग उत्साह दिलाते हुए आगे बढाओ ।
❉ ब्राह्मणों का जन्म ही आलौकिक है तो जैसा आलौकिक जन्म, आलौकिक बाप और आलौकिक परिवार है वैसे ही कर्म भी आलौकिक हों । क्योकि *ब्राह्मण जीवन का विशेष कर्म ही है लौकिक को आलौकिक बनाना* । इसलिए जितना अपने आलौकिक जन्म के कर्म का अटेंशन देंगे । तो यह आलौकिक बनने और बनाने का पुरुषार्थ सहज ही सर्व कमजोरियों, सर्व समस्याओं को समाप्त कर देगा । इसलिए ब्राह्मण कल्चर से स्नेह रखते हुए जितना जीवन में अलौकिकता को धारण करेंगे । उतना ब्रह्मा बाप के प्यारे बनेंगे ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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