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 14 / 01 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 2*5=10)

 

➢➢ *सर्विसएबुल बन बाप की आशीर्वाद ली ?*

 

➢➢ *किसी देहधारी में लगाव तो नहीं रखा ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:3*10=30)

 

➢➢ *अपनी निश्चिंत स्थिति द्वारा श्रेष्ठ टचिंग के आधार पर कार्य किया ?*

 

➢➢ *हर संकल्प, हर सेकंड समर्थ बना ज्ञान स्वरुप आत्मा बनकर रहे ?*

 

➢➢ *तपस्वी स्वरुप में स्थित हो अपनी शुभ वृत्ति द्वारा कल्याणकारी किरने चारों और फैलाई ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 10)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *निरंतर योगी और निरंतर रूहानी सेवाधारी बनकर रहे ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे - तुम्हारे सुख के दिन अब आ रहे है, लोकलाज कलयुगी कुल की मर्यादाये छोड़ अब तुम कमाई करो, बाप से पूरा वर्सा लो"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... शरीर के भान में आकर जो खुद को भूले तो दुखो के गहरे दलदल में धँस गए... *अब मीठा बाबा सुख की दुनिया में फूल बच्चों को खुशियो से महकाने आ चला है.*.. तो ईश्वर पिता से गुणो और शक्तियो की खुशबु लेकर स्वयं को रूहानी रूप और रंगत भर चलो...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार भरे साये तले अथाह सुखो की मालकिन होती जा रही हूँ... *अपना खोया रूप रंग पाकर देवताई श्रंगार से सजती जा रही हूँ.*.. ईश्वरीय यादो में सतयुगी राजराजेश्वरी बनती जा रही हूँ...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह और देह के सम्बन्धो को निभाते निभाते अविनाशी आत्मा होने के भान को ही भूल चले हो... *अब अपने सत्य स्वरूप को हर पल यादो में ताजा करो.*.. और ईश्वरीय यादो में गहरे डूबकर असीम सतयुगी दौलत सुख सम्रद्धि के हकदार बनो...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अब शरीर की सीमाओ में बांधने वाले सारे नियम मर्यादाओ को छोड़ अपने बेहद के वजूद में खो चली हूँ... *मै शरीर नही खुबसूरत चमकती मणि हूँ इस नशे में खो चली हूँ.*.. और मीठे बाबा आपकी यादो में सुखो की जागीर पाती जा रही हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता को जो पाया है जाना है तो उसकी अथाह सम्पत्ति के वारिस बनो... ईश्वर पिता को पाकर भी बच्चे शहंशाह न बने तो पिता को केसा लगेगा सोचो जरा... *इसलिए हर साँस संकल्प में यादे समा दो.*.. और अथाह सुखो को पाकर ईश्वर पिता के दिल को सुख पहुँचाओ

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा महान भाग्यशाली हूँ की मीठे बाबा के दिल के यूँ करीब हूँ... *ईश्वर पिता के दिली भाव और भावनाओ से रूबरू हूँ.*.. मीठे बाबा को अथाह प्रेम करने वाली और प्रेम पाने वाली... मै आत्मा प्रेम मणि बन बाबा के दिल में दमक रही हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा सफलतामूर्त हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा पतंग बन आसमान में उड़ रहीं हूँ... हवा में इधर से उधर लहरा रहीं हूँ... खुशी में झूम रहीं हूँ... प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा रुपी पतंग पर *ज्ञान, प्रेम, सुख, शांति, आनंद, पवित्रता के सतरंगी किरणों* से पेंट कर रंग-बिरंगी बना दिया है... शक्तियों रुपी डोर को बाँध दिया है... बाबा की सतरंगी किरणों से मुझ आत्मा रुपी पतंग के पुराने विकारों रुपी काले धब्बे मिट गए हैं...

 

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा *सदा निश्चिंत स्थिति में रहती* हूँ... क्योंकि मुझ आत्मा रुपी पतंग की डोर अब प्यारे बाबा के हाथ में है... पहले मुझ पतंग की डोर देहधारियों के हाथों में थी... मोह की, कर्मबंधनों की ज़ंजीरें मुझ पतंग की डोर काट देते थे... मैं आत्मा मोहजाल में, विकारों के कांटों में फंसकर उड़ नहीं पाती थी...

 

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा फिक्र की बादशाही छोड़ *बेफिक्र बादशाह बन सदा उड़ते रहती* हूँ... अब मैं आत्मा फिक्र में समय और शक्तियों को व्यर्थ नहीं गँवाती हूँ... फिक्र में कोई भी काम बिगाड़ती नहीं हूँ... अब मैं आत्मा कोई भी कार्य करते सदा इसी स्मृति में रहती हूँ कि "बड़ा बाबा बैठा है"... मुझ आत्मा को चिंता करने की जरूरत ही नहीं है...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा इस दुनिया से न्यारी और बाबा की प्यारी हो गई हूँ... निश्चिंत रहने से मुझ आत्मा को समय पर बाबा की श्रेष्ठ टचिंग होती है... और मैं आत्मा सेवाओं में सदा सफलता प्राप्त करते रहती हूँ... सदा उड़ती कला का अनुभव करती हूँ... अब मैं आत्मा अपनी निश्चिंत स्थिति द्वारा श्रेष्ठ टचिंग के आधार पर कार्य करने वाली *सफलतामूर्त बन गई* हूँ...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल -  ज्ञान स्वरूप आत्मा बन हर संकल्प, हर सेकण्ड समर्थ बनाना"*

 

➳ _ ➳  संगमयुग की घड़ियाँ पदमगुणा कमाई की है, हर सेकंड, हर संकल्प में कमाई है। *ज्ञान स्वरूप आत्मा का सबसे बड़ा खजाना श्रेष्ठ संकल्पों का है,* ज्ञान स्वरूप होकर के कर्म करने से सफलता अवश्य प्राप्त होती है।

 

➳ _ ➳  मैं सफलता मूर्त आत्मा हूँ... *मैं व्यर्थ को समाप्त करने वाली समर्थ आत्मा हूँ*... मुझ आत्मा का सबसे बड़ा खजाना... सदैव श्रेष्ठ संकल्प हैं... मुझ आत्मा का हर संकल्प कल्याण अर्थ है... चाहे स्व की उन्नति... चाहे दूसरों की उन्नति...

 

➳ _ ➳  मैं व्यर्थमुक्त आत्मा हूँ... अर्थात् व्यर्थ की समाप्ति... मैं आत्मा सर्व खजानों, सर्व शक्तियों में सफल करने वाली समर्थ आत्मा हूँ... *सेकंड गवाना अर्थात् पदमापद्म गंवाना*...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा इस समय की वेल्यू को सामने रख... अपने हर संकल्प... हर सेकंड को सफल करने वाली समर्थ आत्मा हूँ... *सफलता मुझ समर्थ आत्मा का जन्मसिद्ध अधिकार है*... मैं आत्मा हर कर्म को ज्ञान स्वरूप में स्थित होकर करती हूँ...

 

➳ _ ➳  *संगमयुग के पुरुषार्थ के आधार पर सारे कल्प की प्रालब्ध है*...  एक सेकंड...एक-एक श्वांस... एक-एक गुण की कितनी वेल्यू है... मुझ समर्थ आत्मा को कोई भी खजाने को व्यर्थ नही गवाना है... मुझ आत्मा को खजानों को बढ़ाना है...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपने सर्व खजानों को... कार्य में लगाती हूं... मुझ आत्मा का हर कर्म दुआओं से भरपूर होता जा रहा है... *मैं आत्मा हर संकल्प में भरपूर कमाई का अनुभव करती जा रही हूँ*...

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *अपनी निश्चिन्त स्थिति द्वारा श्रेष्ठ टचिंग के आधार पर कार्य करने वाले सफलतामूर्त होते हैं...  क्यों और कैसे?*

 

❉   अपनी निश्चिन्त स्थिति द्वारा श्रेष्ठ टचिंग के आधार पर कार्य करने वाले सफलतामूर्त होते हैं क्योंकि...  *कोई भी कार्य करते हुए हमें सदा ये ही स्मृति* में रहे कि...  हमारा "बड़ा बाबा बैठा है"। बाबा की यादसदा ही हमारी स्मृति में बनी रहने से हमारी स्थिति भी सदा के लिये निश्चिन्त बन जाती है।

 

❉   अपनी निश्चिन्त स्थिति के द्वारा ही हम बाबा से सदा  श्रेष्ठ टचिंग की प्राप्ति करते रहते हैं और श्रेष्ठ टचिंग की प्राप्ति के आधार पर अपने कार्य भी करते रहते हैं। हम *अपने सभी कार्य जब परमात्म टचिंग के आधार* पर करते हैं तब हमारेसभी कार्य भी सफलता को प्राप्त हो जाते हैं और तब हम सफलतामूर्त भी बन जाते हैं।

 

❉   क्योंकि...  आज के समय के प्रमाणइस प्रकार से निश्चिन्त अवस्था में स्थित रहना भी,, अपने आप में सब से बड़ी बादशाही होगी। चूँकि! आजकल तो सब *फिक्र के बादशाह हैं और हम बेफिक्र बादशाह* हैं। हम बाबा के भरोसे रहते हैं। हमारे जीवन का आधार केवल और सिर्फ केवल बाबा ही है।

 

❉   अतः हमारे सभी कर्मबाबा की श्रेष्ठ टचिंग के आधार पर होते हैं। इसलिये! ही तो! हम बेफिक्र बादशाह हैं। हम तमाम फिक्रों से फारिग हैं। जो *फिक्र करने वाले होते हैं, वे कभी भी सफल नहीं होते हैं अर्थात!  उन्हें कभी भी सफलता नहीं मिलती है।* 

 

❉   उन्हें सफलता इसलिये!  नहीं मिलती क्योंकि...  वह फिक्र में हीअपने समय और अपनी शक्ति को व्यर्थ में ही गवां देते हैं। वे *जिस काम के लिये फिक्र करते हैंउसी काम को बिगाड़* देते हैं।  लेकिन!  हम निश्चिन्त रहते हैं, तो! समय पर हमें श्रेष्ठ टचिंग हो जाती है और हमें अपनी श्रेष्ठ सेवाओं में सफलता मिल जाती है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *ज्ञान स्वरुप आत्मा वह है जिसका हर संकल्प, हर सेकंड समर्थ है... क्यों और कैसे* ?

 

❉   हर सेकण्ड हर संकल्प उनका समर्थ हो सकता है जो अपने आप को व्यर्थ से मुक्त रखते हैं । क्योंकि *जहां व्यर्थ है वहां समर्थ कभी हो नही सकता* । इस लिए ज्ञान स्वरूप आत्मा वही हो सकती है जो अपने मन बुद्धि को ज्ञान मंथन में बिजी रखती है । क्योंकि जिनका *मन और बुद्धि जितना समर्थ चिंतन में बिजी रहते हैं* उतना वे व्यर्थ चिंतन के रूप में माया के वार से बचे रहते हैं और अपने हर संकल्प, हर सेकण्ड को सफल बना सकते है ।

 

❉   जिन्हें ज्ञान को सही रीति यूज़ करना आता है वही नॉलेजफुल आत्मा बन सही समय पर ज्ञान की उचित प्वाइंट को यथार्थ रीति धारण कर किसी भी परिस्थिति पर जीत प्राप्त कर सकते हैं । क्योकि *नॉलेजफुल आत्मा अपने नॉलेज की ऑथोरिटी से सेकण्ड में ड्रामा के राज को स्मृति में ला कर* समाधान स्वरूप बन, समस्या का समाधान कर हर सेकण्ड और संकल्प को व्यर्थ जाने से बचा कर उसे समर्थ बना लेती है ।

 

❉   ज्ञानस्वरूप आत्मा बन, अपने हर सेकण्ड हर संकल्प को वही समर्थ बना सकते हैं जिन्हें सेकण्ड में फुलस्टॉप लगाना आता है । जो फुल स्टॉप लगाने के बजाए क्या, क्यों और कैसे की क्यू में उलझे रहते हैं । *उनका समय और संकल्प समर्थ जाने के बजाय व्यर्थ चला जाता है* । समय और संकल्पो का खजाना संगम युग का सबसे वैल्यूबुल खजाना है । इसलिए जो इस खजाने को जितना सफल करते हैं वही ज्ञानस्वरूप आत्मा कहलाते हैं ।

 

❉   कहा जाता है कि जो समय की कद्र करना नही जानते, समय भी उनकी कद्र नही करता इसलिए वे समय आने पर हमेशा धोखा खाते हैं । किंतु *ज्ञान स्वरूप आत्मा की मुख्य निशानी ही यह होती है कि वे अपना समय व्यर्थ संकल्पो और विकल्पों में व्यर्थ नही गंवाते* बल्कि अपने हर संकल्प, हर सेकण्ड को समर्थ और श्रेष्ठ चिंतन में लगा कर उसे सफल कर लेते हैं । और भविष्य के लिए भी श्रेष्ठ कमाई जमा कर लेते हैं ।

 

❉   अव्यक्त बापदादा के महावाक्य है कि समय के शिक्षक बनने से पहले स्वयं ही स्वय के शिक्षक बनो । क्योकि समय या परिस्थिति आने पर सीखने वालों के मस्तक पर कभी भी विजय का तिलक नही लगाया जाता । *विजय का तिलक उन्हें लगता है जो समय से पहले हर कार्य को सफलतापूर्वक सम्पन्न कर विजयी बनते हैं* । और समय से पहले विजय का झण्डा वही लहराते हैं जो ज्ञानस्वरूप आत्मा बन अपने हर संकल्प और समय को समर्थ बनाते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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