━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 07 / 11 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*5=25)
➢➢ *किसी भी देहधारी के नाम रूप में अटके तो नहीं ?*
➢➢ *नष्टोमोहा बनकर रहे ?*
➢➢ *दूसरी आत्माओं को भी पवित्र बनाने की युक्ति रची ?*
➢➢ *स्व परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन के निमित बने ?*
➢➢ *सर्व शक्तियों की लाइट सदा साथ रही ?*
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *तपस्वी जीवन प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ बुद्धि रुपी पांव पृथ्वी पर न रहें। *जैसे कहावत है कि फरिश्तों के पांव पृथ्वी पर नहीं होते। ऐसे बुद्धि इस देह रुपी पृथ्वी अर्थात् प्रकृति की आकर्षण से परे रहे।* प्रकृति को अधीन करने वाले बनो न कि अधीन होने वाले।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:- 10)
➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाये ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ जब आप सभी का टाइटल है मास्टर सर्व शक्तिवान, तो जैसा टाइटल है वैसा ही कर्म होना चाहिए ना *है मास्टर और शक्ति समय पर काम में नहीं आये - तो कमजोर कहेंगे या मास्टर कहेंगे?*
〰✧ तो सदा चेक करो और फिर चेन्ज (परिवर्तन) करो - कौन कौन-सी शक्ति समय पर कार्य में लग सकती है और कौन-सी शक्ति समय पर धोखा देती है? *अगर सर्व शक्तियाँ अपने ऑर्डर पर नहीं चलती तो क्या विश्व राज्य अधिकारी बनेंगे?*
〰✧ *विश्व राज्य अधिकारी वही बन सकता है जिसमें कन्ट्रोलिंग पॉवर, रूलिंग पॉवर हो।* पहले स्व पर राज्य, फिर विश्व पर राज्य स्वराज्य अधिकारी जब चाहे, जैसे
चाहे वैसे कन्ट्रोल कर सकते हैं। (पार्टियों के साथ)
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:- 15)
➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पतित पावन बाप से पावन बनकर सदगति प्राप्त करना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा समुन्दर के किनारे बैठ सागर की लहरों को निहारती हुई पवित्रता के सागर बाबा को याद करती हूँ... जिसने खिवैया बन पतवार को अपने हाथों में लेकर... मझधार में डूबती हुई मेरी नैया को किनारे लगा दिया... *पवित्रता के सागर में कई जन्मों की अपवित्रता को धोकर पवित्र बना दिया... पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बना दिया... मेरे जीवन के खारेपन को दूर कर मीठा बना दिया...* मैं आत्मा ऐसे मीठे बाबा के पास पहुँच जाती हूँ वतन में...
❉ पवित्रता का सागर प्यारा बाबा पवित्रता की किरणों को फैलाते हुए कहते हैं:- "मेरे लाडले बच्चे... खिलते फूल जेसे मुस्कराते जीवन को पवित्रता से ही पा सकोगे... ईश्वर पिता वही पावनता से सजाने आया है.. पिता की मीठी यादो से खूबसूरत तकदीर सदा के लिए बन जायेंगी... *मीठा बाबा सोई तकदीर को जगाकर महकाने आया है... पावन बनाकर पावन दुनिया का वर्सा देने आया है... सदगति देने आया है...*"
➳ _ ➳ मैं आत्मा पवित्रता की किरणों के झरने में नहाते हुए कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा अपनी फूल से तकदीर को देहभान के नशे में काँटों से भर चली थी... मीठे बाबा आपने आकर मेरा सोया भाग्य जगाया है... पावन बनाकर मेरा सुंदर जीवन सजाया है..."*
❉ पवित्रता के चमकीले हीरों से सजाते हुए मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... मिटटी के मटमैले रिश्तो ने स्वयं को देह समझने से खूबसूरत तकदीर दुखो का पहाड़ बन गयी... *अब मीठा बाबा फिर से सुनहरी सुंदरता से भरने धरा पर उतर आया है... पवित्रता के श्रृंगार से तकदीर को सुखो से महकाने आया है..."*
➳ _ ➳ मैं आत्मा रूहानियत की खुशबू से महकते हुए कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा विश्व पिता से मिलकर पवित्रता से जगमगाने लगी हूँ... *मेरी पवित्रता विश्व में चहुँ ओर फैल रही है... मेरा भाग्य खिला गुलाब बन सारे विश्व में खुशबु बिखेर रहा है..."*
❉ मेरा बाबा सर्व सुखों को मेरे झोली में डालते हुए कहते हैं:- "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... मीठे बाबा की मीठी यादो में खो जाओ... *सच्चे माशूक को हर साँस संकल्प में बसा लो... और इन मीठी यादो में सोई तकदीर को सारे सुखो से भरपूर बना दो... सच्चे पिता के साथ से पावन बनकर विश्व के मालिक बन मुस्कराओ..."*
➳ _ ➳ मैं आत्मा फ़रिश्ते समान पवित्र सुनहरे रंगों में सजते हुए हर्षित होकर कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा आपकी यादो में देह के मटमैलेपन से मुक्त हो सुनहरे पवित्र रंग में रंगती जा रही हूँ...* मेरा पावन दमकता स्वरूप देख देख मै आत्मा प्यारे बाबा पर निहाल होती जा रही हूँ..."
────────────────────────
∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अपनी देह में भी नही फंसना है, इसमें बहुत खबरदारी रखनी है*"
➳ _ ➳ मैं चैतन्य ज्योति बिंदु आत्मा, पाँच तत्वों की बनी अपनी स्थूल देह मे भृकुटी के अकाल तख्त पर विराजमान हो कर, दोनों स्थूल नेत्रों से देख रही हूँ अपनी इस साकारी देह को और विचार करती हूँ कि आज दिन तक मैं कितनी बड़ी भूल में थी जो स्वयं को शरीर समझ बैठी थी और इस शरीर को सजाने सवांरने में ही लगी हुई थी। *इस बात से मैं सर्वथा अनजान थी कि यह देह जिसे मैं सत्य मान बैठी हूँ यह तो विनाशी है जो एक दिन विनाश होनी है*। यह तो केवल एक वस्त्र है जो कर्म करने के लिए ही मैंने धारण किया हुआ है। फिर इससे ममत्व कैसा!
➳ _ ➳ यही विचार करते - करते एक दृश्य मुझे दिखाई देता है। *मैं देख रही हूँ मेरे सामने एक बहुत ही खूबसूरत ड्रेस रखी है। उसे देख कर उसे पहनने की इच्छा मन मे उतपन्न होती है और मैं उस ड्रेस को उठा कर पहन लेती हूँ किन्तु पहनने के बाद ही मुझे एक अजीब सी घुटन होने लगती है और मैं उस ड्रेस को उतारने की कोशिश करने लगती हूँ किन्तु ड्रेस इतनी टाइट है कि वो मुझ से उतरती ही नही*। इस दृश्य के बाद एक और दृश्य मेरी आंखों के सामने आता है। अब मैं देख रही हूँ एक पँछी एक पिंजरे में कैद है और उस पिंजरे से निकलने के लिए छटपटा रहा है। देखते ही देखते वो पिंजरा स्थूल शरीर की तरह दिखाई देने लगता है और उसमें कैद पँछी चमकते हुए एक सितारे की भांति दिखाई देने लगता है।
➳ _ ➳ इन दोनों अलग - अलग दृश्यों को देखते - देखते मैं आत्मा विचार करती हूँ कि जो देह रूपी वस्त्र मैंने धारण किया हुआ है, वो भी कहीं स्थूल वस्त्र की तरह टाइट तो नही और इस देह रूपी पिंजरे में मैं आत्मा पँछी कैद तो नही! *मन मे यह विचार आते ही यह देखने के लिए कि क्या मैं सेकण्ड में इस देह रूपी वस्त्र और देह के इस पिंजरे से बाहर आ सकती हूँ, मैं अपना ध्यान इस देह से निकाल अपने वास्तविक ज्योति बिंदु स्वरूप पर केंद्रित करती हूँ और अपने सत्य स्वरूप को देखने का प्रयास करती हूँ*। अपने सत्य स्वरूप पर अपने ध्यान को केंद्रित करते ही मैं स्पष्ट अनुभव करती हूँ कि यह देह अलग है और इस देह में विराजमान मैं आत्मा अलग हूँ।
➳ _ ➳ देह और आत्मा को अलग - अलग देखने का यह अति सुंदर और निराला अनुभव मुझे एक विचित्र अंतर्मुखता का अहसास करवा रहा है। *ज्ञान के दिव्य चक्षु से मैं स्वयं को इस साकारी देह से अलग एक चमकते हुए चैतन्य सितारे के रूप में स्पष्ट देख रही हूँ और हर चीज से उपराम अनुभव कर रही हूँ*। यह उपराम स्थिति धीरे - धीरे मुझे इस देह से न्यारा करते हुए ऊपर की ओर ले कर जा रही है। अंतर्मुखता की इस सुखदाई स्थिति में स्थित हो कर मैं एक ऐसी दुनिया में पहुँच जाती हूँ जहां चारों ओर हर तरफ केवल जगमग करती हुई रूहें दिखाई दे रही हैं। देह और देह से जुड़ी कोई भी वस्तु यहाँ नही है।
➳ _ ➳ स्वयं को मैं एक अति सुखद साक्षी स्थिति में अनुभव कर रही हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे देह से मैं संकल्प मात्र भी अटैच नही हूँ। देह से डिटैच होने का यह अनुभव कितना न्यारा और प्यारा है। *एक दिव्य अलौकिक सुखमय स्थिति में मैं सहज ही स्थित होती जा रही हूँ। निर्संकल्प हो कर अपने सामने उपस्थित अपने बीज रूप परम पिता परमात्मा बाप को मैं अपलक निहार रही हूँ*। उन्हें देखने का यह सुख कितना आनन्द देने वाला है। बहुत ही निराला अनुभव है यह ।
➳ _ ➳ बीज रूप बाबा से आती सर्वशक्तियों रूपी किरणों की मीठी - मीठी फुहारे मुझे असीम बल प्रदान कर रही हैं । सर्वशक्तियों से मैं सम्पन्न होती जा रही हूँ । अपने सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं लौट आती हूँ वापिस साकारी दुनिया में । *नीचे आ कर अपने पांच तत्वों के बने शरीर में मैं प्रवेश करती हूँ, इस स्मृति के साथ कि मैं आत्मा हूँ और यह शरीर रूपी वस्त्र मैंने ईश्वरीय सेवा अर्थ धारण किया है*।यह स्मृति देह में रहते भी देह से मुझे न्यारा और प्यारा अनुभव करवाती है। *देह और देही दोनों को अलग - अलग देखते हुए, देह में रहते हुए भी, देह में ना फंसते हुए, देह से न्यारे हो कर रहने का दिव्य अलौकिक अनुभव अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं स्व परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन के निम्मित बनने वाली सर्व खजानों की मालिक आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को स्वमान में स्थित करने का विशेष योग अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं सर्वशक्तियों की लाइट को सदा साथ रख माया को दूर से ही भगाने वाली आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ स्मृतियों में टिकाये रखने का विशेष योग अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *बापदादा बच्चों का प्यार भी देखते हैं,* कितने प्यार से भाग-भाग कर मिलन मनाने पहुंचते हैं और फिर आज हाल में भी मिलन मनाने के लिए कितनी मेहनत से, कितने प्यार से नींद, प्यास को भूलकर पहले नम्बर में नजदीक बैठने का पुरुषार्थ करते हैं। बापदादा सब देखते हैं, क्या-क्या करते हैं वह सारा ड्रामा देखते हैं। *बापदादा बच्चों के प्यार पर न्योछावर भी होते हैं* और यह भी बच्चों को कहते हैं *जैसे साकार में मिलने के लिए दौड़-दौड़ कर आते हो ऐसे ही बाप समान बनने के लिए भी तीव्र पुरुषार्थ करो, इसमें सोचते हो ना कि सबसे आगे ते आगे नम्बर मिले।* सबको तो मिलता नहीं है, यहाँ साकारी दुनिया है ना! तो साकारी दुनिया के नियम रखने ही पड़ते हैं।
➳ _ ➳ बापदादा उस समय सोचते हैं कि सब आगे-आगे बैठ जाएं लेकिन यह हो सकता है? हो भी रहा है, कैसे? *पीछे वालों को बापदादा सदा नयनों में समाया हुआ देखते हैं। तो सबसे समीप हैं नयन। तो पीछे नहीं बैठे हो लेकिन बापदादा के नयनों में बैठे हो। नूरे रत्न हो।* पीछे वालों ने सुना? दूर नहीं हो, समीप हो। शरीर से *पीछे बैठे हैं लेकिन आत्मा सबसे समीप है।* और बापदादा तो सबसे ज्यादा पीछे वालों को ही देखते हैं। *देखो नजदीक वालों को इन स्थूल नयनों से देखने का चांस है और पीछे वालों को इन नयनों से नजदीक देखने का चांस नहीं है इसलिए बापदादा नयनों में समा लेता है।*
➳ _ ➳ बापदादा मुस्कराते रहते हैं, दो बजता है और लाइन शुरू हो जाती है। बापदादा समझते हैं कि बच्चे खड़े- खड़े थक भी जाते हैं लेकिन *बापदादा सभी बच्चों को प्यार का मसाज कर लेते हैं। टांगों में मसाज हो जाता है। बापदादा का मसाज देखा है ना - बहुत न्यारा और प्यारा है।*
➳ _ ➳ *बाप से मिलन का उमंग-उत्साह सदा आगे बढ़ाता है। लेकिन बापदादा तो बच्चों को एक सेकण्ड भी नहीं भूलता है।* बाप एक है और बच्चे अनेक परन्तु अनेक बच्चों को भी एक सेकण्ड भी नहीं भूलते क्योंकि सिकीलधे हो।
✺ *ड्रिल :- "डायमंड हॉल में स्थूल में पीछे बैठने के बावजूद सूक्ष्म में बाबा की नयनों में बैठ प्रभु मिलन के असीम सुख का अनुभव करना "*
➳ _ ➳ *आज की यह स्वर्णिम सुबह, आज का यह स्वर्णिम दिवस ये मुझ आत्मा के जीवन की वो सुनहरी अनमोल घड़ी है जब मुझ आत्मा का इस संसार की सर्वोच्च सता से मिलन होने जा रहा है... मैं जगमगाती झिलमिलाती आत्मा सितारा स्वयं को प्रभु अवतरण भूमि मधुबन घर में देख रही हूँ... मुझ जगमगाती आत्मा की जीवन रुपी किताब का वो पन्ना जो प्रभु प्यार के रंग से रंगा है... उसकी साथ की हसीन अनुभवों से सजा है... आज वो पन्ना खुल गया हैं... मैं आत्मा आज साकार में प्रभु मिलन करने वाली हूँ... रंगने वाली हूँ आज उस एक के रंग में....* मीठे से मेरे बाबा की यादों में गुनगुनाती, मीठे बाबा की याद की लहरों में लहराती, *इस दिल को थामे जिसकी एक-एक धड़कन गा रही है... बाबा ओ मेरे मीठे प्यारे बाबा आ जाओ ना मीठे बाबा...* आज तो जैसे उसकी यादों की बाढ़ आ गयीं हो, और मैं आत्मा उसमें बहती जा रही हूँ... बहती जा रही हूँ... ना तन का भान है, ना देह की स्मृति भूल चुका है ये संसार, भूल चुकी है देह, *एक-एक पल, एक-एक सांस में बस उस एक की याद हैं...* बेचैन है ये नैन बाबा की एक झलक पाने को... *नैन बेचैन है... बस उसके दीदार को...* जैसे-जैसे समय बीत रहा है... *दिल में बाबा की यादों का सैलाब बढ़ता जा रहा है... ये दिल खुशी में गुनगुना रहा है...*
➳ _ ➳ *झिलमिल सितारे बन कर... उड़ के वतन में जाए, जाके परमपिता से मंगल मिलन मनाये...* आज तो लग रहा है जैसे मधुबन की हर गली बोल उठी हो... और ये प्रकृति भी जैसे झूम रही हो, गा रही हो... *मंद-मंद चलती ये रूहानी हवायें भी जैसे सिर्फ उसके ही आने का पैगाम दे रही हो...* दोपहर दो बजे का यह समय है... मैं आत्मा ध्यान से देख रही हूँ... बेहद डायमंड हाल को बस कुछ समय में ही मेरे लाडले बाबा यहाँ आने वाले है... कितनी हंसीन वो घड़ी होगी... मन ही मन बाबा से मीठी-मीठी बातें करती हुई देख रही हूँ... *उन सभी आत्माओं को जो दूर-दूर से उमंग-उत्साह के साथ प्रभु मिलन के लिए आई है... कितनी बेचैन है प्रभु मिलन मनाने को... उसके प्यार में समाने को* कैसे आत्माएँ सब छोड़ उसके समीप बैठने को कितने उंमग से लाइनों में लगी, डायमण्ड हाल में सबसे आगे बाबा के नजदीक बैठने के पुरुषार्थ में लग गए है... *सभी दिव्य फरिश्तों को देख रही हूँ मैं आत्मा, एक-एक आत्मा प्रभु मिलन की प्यासी उस एक से मिलने को बेताब है... ऐसा लग रहा है जैसे चारों ओर दिव्य फरिश्तों का मेला लगा है...* कितना अदभुत ये दृश्य है... मैं आत्मा भी बाबा के समीप आगे बैठने के पुरूषार्थ में खुशी-खुशी लग जाती हूँ... लेकिन देखते ही देखते सारा हाल भर गया है... प्रभु प्यारों से... साढे छहः बजे का ये समय है... *ऐसा लग रहा है मानों दिव्य फरिश्तों की महफिल लगी हुई हैं...*
➳ _ ➳ सभी दिल थाम कर, दिल में प्रभु प्यार लिए बैठे है... बाबा के इन्तजार में, *मैं आत्मा भी हाल की सबसे आखरी पंक्ति में बैठ जाती हूँ... और वहाँ से इस हाल का अदभुत नजारा देखते मन ही मन बाबा से बातें करती, बडे ध्यान से उस स्टेज को देख रही हूँ... जो यहाँ से बहुत दूर नजर आ रहा हैं...* जहाँ मेरे मीठे बाबा आने वाले है... और सोच रही हूँ बाबा तो यहाँ से काफी दूर बैठेंगा... पता नहीं बाबा की नजर यहाँ पीछे पड़ेगी या नहीं... और कहती हूँ मीठे बाबा मुझे भी नजदीक बैठना था... *बस इतना कह प्यार भरी नजरों से बाबा को देखती हूँ दिल को थामे खुद को मनाती हूँ...* और फिर मिलन की खुशी में मशगुल हो जाती हूँ... अब मैं आत्मा बाबा का आवाहन कर रही हूँ... *उड़ चली मैं आत्मा परमधाम आमंत्रण देने प्यारे बाबा को* मेरे प्यारे बाबा आ जाओ... *मेरे दिल के दिलाराम... इस दिल की भूमि पर चले आओ... इस मन के आंगन में चले आओ बाबा, बेचैन है नैन आज तेरा दीदार करने को, बस और इंतजार ना कराओ बाबा...* देख रही हूँ मैं आत्मा बाबा मेरे साथ नीचे उतर रहे है... वह ज्योति- महाज्योति धीरे-धीरे सूक्ष्म वतन में पहुंच शिव बाबा ब्रह्मा तन में प्रवेश कर रहे हैं... और मैं आत्मा अपने सूक्ष्म शरीर में... बापदादा नीचे उतर रहे हैं कितना अद्भुत दृश्य है यह... कितना भाग्य है मेरा जो भगवान को धरती पर आते हुए देख रही हूं... *दादी के तन में बाबा की पधरामणि चारों ओर डेड साइलेंस...* एक बेआवाज़ चुप्पी... सभी आत्माएँ ये अदभुत दृश्य देख रही है... अव्यक्त बापदादा दृष्टि दे रहे हैं *सबसे पहले बाबा की दृष्टि मुझ आत्मा पर पड़ती है...* मुझ आत्मा की आँख भर आती है... बाबा का ये प्यार देख कर और लग रहा है... जैसे बाबा कह रहे हो सिकीलधे बच्चे पीछे नहीं बैठे हो... *आप तो बाबा के नयनों में समाए हो...*
➳ _ ➳ जैसे ही बाबा की दृष्टि मुझ आत्मा पर पड़ती है... एक दिव्य दृष्टि की प्रवेशता मुझ आत्मा में हो रही हैं... *उसकी एक नजर ने ही मुझे निहाल कर दिया हैं...* अब देख रही हूँ मैं आत्मा नजदीक से *बाबा की इन सागर जैसे रूहानी नैनों को जिसमें कितना प्यार समाया है... कैसा जादू, कैसा जलवा इन नैनों में समाया है...* सारी दूरियाँ खत्म हो गयीं है... साकार में दूर बैठे भी बाबा के बेहद पास हूँ... *बाबा ने मुझे अपने नैनो में समा लिया है... बाबा की आंखों से प्यार बरस रहा है... नूर बरस रहा है... और बाबा की प्यार भरी दृष्टि की अविरल धाराएँ बह रही है जिसमें मैं आत्मा भीग गई हूँ... रंग गई हूँ उस एक के रंग में...* अपलक नयनों से मैं मीठे बाबा से दृष्टि ले रही हूँ... कैसी वरदानी दृष्टि हैं ये बाबा की, बाबा ने सर्व वरदानों शक्तियों से मुझ आत्मा को सजा दिया हैं... *स्वयं को बाबा के बेहद करीब नैनों में समाया हुआ अनुभव कर रही हूँ, मैं नूरे रत्न आत्मा...* अपने नैनों में समाकर बाबा ने, अपने प्यार की मसाज कर दी है... खुशी है उमंग है उत्साह है... *स्थूल में नहीं बैठे लेकिन स्वयं को बाबा के दिलतख्त पर बैठे अनुभव कर रही हूँ* मैं खुशनसीब आत्मा... दिल अब यही गा रहा हैं *पाना था सो पा लिया....*
➳ _ ➳ बाबा मुरली चला रहे हैं... *देख रही हूं मैं गोपिका उस गोपीवल्लभ को कैसे वो बोलता है... कैसे उसके नैन बोल रहे हैं... एकटक होकर सिर्फ और सिर्फ उस मुरलीधर को मैं गोपिका देख रही हूं...* सुन रही हूँ और खो गई हूँ... रंग गई हूँ... और बह रही हूँ, उसके मुरली की अविरल धाराओं में... *सुध-बुध खो बस उसको ही देखे जा रही हूँ... ज्ञान की बरसात हो रही है... इस ज्ञान बरसात में भीगकर मैं आत्मा भी ज्ञान स्वरूप बन गयीं हूँ...* मुरली पूरी हुई... अब मैं आत्मा देख रही हूँ... इस संसार की महान हस्तियों का मिलन दूसरी महान हस्ती से, दादीयाँ, वरिष्ठ भाई बाबा से मिल रहे है... *मैं आत्मा भी उनके साथ बाबा से मिल रही हूँ... कितना प्यार कर रहा है मीठा बाबा... बहुत करीब से प्यार के सागर को देख रही हूँ... ये प्यार देख मुझ आत्मा के नयन सजल हो रहे है...* सब कुछ भूल गया है समा गयी हूँ सिर्फ उस एक के प्यार में, बाबा को गुलदस्ते भेंट किए जा रहे है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा भी बाबा को रंगबिरंगा गुलदस्ता भेंट रही हूँ... और *देख रही हूँ मैं आत्मा बाबा के इन रुहानी नैनों को, इन खामोश निगाहों को देख रही हूँ जिसमें बेहद प्यार समाया हैं... जो खामोश होकर भी बहुत कुछ कह रहे है... तुम सा हंसीन बाबा कोई नहीं जहाँ में...* अब बाबा मुझ अपने हाथों से टोली खिला रहे है... नयन बस उस पर टिक गये है... और दिल कह रहा है... कौन करेगा ऐसा प्यार... *ओ मेरे मीठे बाबा, प्यारे बाबा... मेरे दिल की धड़कन मेरे बाबा... कहाँ मिलेगा बाबा ऐसा सतयुग में तेरा प्यार...* अपने हाथ से दृष्टि देकर... हम सब बच्चों को हमारे दिलाराम बाबा अपने हाथ से टोली खिला रहे है... कैसा अदभुत मंजर है ये... स्वयं परमसत्ता टोली खिला रहा है... देख रही हूँ मैं आत्मा कैसे वो हंसता है... कैसे उसके ये नयन बोल रहे है... *कैसा अजब सा जादू इन नयनों में हैं... कितना प्यार लुटा रहा है बाबा कैसी लीलाएँ वो मुरलीधर वो दिलाराम कर रहा है... देखा है तुमको बाबा रूहों से प्यार करते...* बाबा विदाई ले रहा है... देख रही हूँ... उसकी साक्षी स्थिति, उसका अनासक्त भाव एक तरफ वो प्यार लुटा रहा है... और अब ऐसे विदा हो रहा है जैसे यहाँ था ही नहीं... लग रहा है जैसे यूं ही बाबा सामने बैठा रहे और मैं गोपिका उसे ही देखती रहूँ... कह रही हूँ... *ना जाओ बाबा यहीं रह जाओ... ना जाओ मीठे बाबा... अभी ना जाओ छोड कर के दिल अभी भरा नहीं अभी-अभी तो आये हो...* आया था बाबा हमें अपने रंग में रंगने... वरदान अपना प्यार लुटाने आप समान बनाने... बाबा ने मुझ आत्मा को भरपूर कर दिया है सर्व शक्तियों, वरदानों से मुझ आत्मा को सजा दिया है... अब बस रह गयी हैं... उसकी अनमोल यादें और शिक्षाएँ, देख रही हूँ, मैं आत्मा स्वयं को बाबा की शिक्षाओं को स्वरूप में लाते अब *मुझ आत्मा का पुरुषार्थ तीव्र हो गया है... मैं बाबा की नूरे रत्न आत्मा बाबा के कदम पर कदम रख बाप समान बनने और फर्स्ट नम्बर लेने के पुरुषार्थ में जुट गयीं हूँ... और हर पल स्वयं को मीठे बाबा के नयनों में समाया हुआ अनुभव कर रही हूँ...* बाबा से मिले खजाने को सभी आत्माओं में बांट रही हूँ... वरदानी मूर्त बन उन्हें भी वरदानों, शक्तियों से सजाकर आप समान बना रही हूँ... *ओम शांति... शुक्रिया मीठे बाबा शुक्रिया...*
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━