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 08 / 03 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *निश्चयबुधी बन पढाई पडी ?*

 

➢➢ *किसी भी विघन से बाप का हाथ तो नहीं छोड़ा ?*

 

➢➢ *योग से तंदरुस्ती और पढाई से राजाई लेने पर विशेष अटेंशन रहा ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *पवित्रता की श्रेष्ठ धारणा को धारण कर सदा शुभ कार्य किया ?*

 

➢➢ *स्वयं द्वारा सर्व आत्माओं को सुख की अनुभूति करा मास्टर सुखदाता बनकर रहे ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *प्रीत की रीति निभा सर्व प्राप्तियों का अनुभव किया ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे - तुम्हारे पास जो कुछ है, उसे ईश्वरीय सेवाओ में लगाकर सफल करो, कालेज कम हॉस्पिटल खोलते जाओ"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... *अपना तन मन धन ईश्वरीय राहो में सफलकर सदा के धनवान् बन चलो.*.. यह सच्चा सौदा कर सदा कर... सुखो के मालिक बन मुस्कराओ... और सबके दुखो को दूर करने वाले कालेज कम हॉस्पिटल खोलकर... थके मनो को सच्ची राहत पहुँचाओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता को सम्मुख तन मन धन अर्पण करने वाली महान भाग्यशाली हूँ... मीठे बाबा आपकी ऊँगली पकड़कर मै आत्मा सदा की निश्चिन्त हो चली हूँ... *सबको सत्य ज्ञान का पता देकर आप समान भाग्यशाली बना रही हूँ..*.

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *जो सुख आप बच्चों ने पाया है वह विश्व में भी लुटाओ.*.. सच्चे ज्ञान की रूहानी महक सारे विश्व में महकाओ... अपना सर्वस्व ईश्वर पिता को सौंप...  सफलकर ईश्वर पिता के खजानो के अधिकारी बन चलो...और स्वर्ग के सुखो को अपने नाम कर चलो...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा कख देकर आलिशान वैभव की स्वामिन् बन रही हूँ... प्यारे बाबा आपकी वसीयत की अधिकारी बन चली हूँ... और सबको इन सच्चे सुखो का पता दे रही हूँ... *सच्चे ज्ञान से हर दिल को वैभवशाली बना रही हूँ.*..

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *रूहानी हॉस्पिटल खोल कर सबके जीवन में सत्य का प्रकाश* भर चलो... दुखो के दलदल से निकाल कर विश्व धरा को सुखो की नगरी बनाने में ईश्वरीय सहयोगी बन चलो... सबके दामन में सच्चे सुखो के फूल खिलाओ... आप समान सबको सुखी और निश्चिन्त बनाओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय राहो में मददगार बन सबको खुशियो का पता देने वाली रूहानी जादूगर हो चली हूँ... *प्यारे बाबा को अपना वारिस बनाकर बाबा के सारे वर्से की अधिकारी बनकर* सदा की मुस्कराहट से भर उठी हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा पुरुषोत्तम व विशेष हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा एकांत में बैठती हूँ... प्यारे बाबा का आह्वान करती हूँ... मै आत्मा बाबा से रूह-रिहान करती हूँ... प्यारे बाबा पुरुषार्थ में उमंग-उत्साह की कमी लग रही है... *बाबा बोले चलो बेहद का ड्रामा दिखाता हूँ...* प्यारे बाबा मुझ आत्मा को एक सुन्दर से बगीचे में ले जाते हैं... सामने सुन्दर सा झरना बह रहा है... झरने में सुन्दर सा सीन दिख रहा है...    

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा शांतिधाम में ज्योति स्वरुप में चमक रही हूँ... चारों ओर शांति ही शांति है... परम पवित्र परमात्मा के सामने *मै आत्मा अपने सम्पूर्ण पवित्र बिंदु रूप में* हूँ... चारों ओर मुझ आत्मा से पवित्रता की किरणें फैल रही है... फिर मै आत्मा धीरे-धीरे नीचे आ रही हूँ... मैं आत्मा पवित्र परमधाम से पवित्र स्वरुप में इस सृष्टि पर आई थी...   

 

➳ _ ➳ मै आत्मा *सतयुगी दुनिया में पवित्र देवता स्वरुप का पार्ट* बजा रही हूँ... मै आत्मा सतोप्रधान, 16 कलाओं से सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी स्थिति में हूँ... चारों ओर की प्रकृति भी सतोप्रधान है... आधा कल्प मुझ आत्मा ने कितना सुख समृद्धि का जीवन व्यतीत किया था... मध्य काल में मुझ आत्मा के पवित्र पूजनीय स्वरूप की विधिपूर्वक पूजा अर्चना कर रहे हैं... 

 

➳ _ ➳  कलियुगी दुनिया में मै आत्मा रावण के चंगुल में फंस कर विकारों में गिरती गई... और दुःख अशांति को पाती गई... इस विशेष संगमयुग में मुझ आत्मा को स्वयं परमपिता परमात्मा ने आकर रावण की कैद से छुड़ाया... सत्यज्ञान देकर मुझ आत्मा का जीवन ही बदल दिया... प्यारे बाबा ने *वर्ल्ड ड्रामा दिखाकर मुझ आत्मा को स्मृति स्वरुप* बना दिया...

 

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा अनुभवों की स्मृति स्वरुप बनती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा अनुभव की सीट पर सेट रहती हूँ... मैं ही वो पवित्र आत्मा हूँ जो बेहद के ड्रामा में विशेष पार्ट बजा रही हूँ... मै आत्मा विश्व की हाईएस्ट और होलीएस्ट आत्मा हूँ... प्यारे बाबा से आती पवित्र किरणों को मै आत्मा धारण करती जा रही हूँ... अब मै आत्मा एक बाबा की याद में रहकर पवित्र और श्रेष्ठ कर्म करती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा पवित्रता की श्रेष्ठता को धारण कर *सदा शुभ कार्य करने वाली पुरुषोत्तम व विशेष* होने का अनुभव कर रही हूँ...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- स्वयं द्वारा सर्व आत्माओं को सुख की अनुभूति कराकर  मास्टर सुखदाता  बनना"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा सुख सागर की सन्तान मास्टर सुखकर्ता-दुखहर्ता हूँ... मैं सुख स्वरूप आत्मा सदैव ही सर्व आत्माओं पर सुख बरसाती हूँ... *सर्व को सुखी करना, खुश करना ही मेरा धर्म हैं...* मेरे सानिध्य में आने वाली हर आत्मा सहज ही मुझसे सुख की अनुभूति करती हैं...

 

➳ _ ➳  मेरे सुख के वायब्रेशन पूरे विश्व में फ़ैल रहे हैं... *मैं पूज्य देव अपने नैनों से, मस्तिक से और अपने हाथों से सुख की किरणें सभी भक्तों पर फैला रहा हूँ...* हर आत्मा दुखों से मुक्त हो कर, गहन सुख को अनुभव कर, भाव विभोर हो रही हैं... हर आत्मा के चेहरे पर सुख की चमक दिखाई दे रही हैं...

 

➳ _ ➳  संगम पर मैं ब्राह्मण आत्मा अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते हुए... अन्य आत्माओं को भी सुख की अनुभूति कराती हूँ... *मेरा हर कर्म, हर बोल, हर संकल्प... आत्माओं को सुख और ख़ुशी प्रदान करता है...* मैं सुख सागर शिव बाबा में समाई स्वतः भी निरन्तर सुख का अनुभव करती हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं फ़रिश्ता पूरे विश्व पर पीले रंग की सुख की किरणे फैला रहा हूँ... शिव बाबा से सुख की किरणे मुझ फ़रिश्ते पर पड़ रही हैं... और मुझसे पूरे विश्व पर बरस रही हैं... *पूरे विश्व से दुखों के काले बादल छटते जा रहे हैं... और चहु ओर सुख का प्रकाश फ़ैल रहा हैं...*  सभी आत्मायें सच्चे सुख का अनुभव कर रही हैं...

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *पवित्रता की श्रेष्ठता को धारण कर सदा शुभ कार्य करने वाले पुरुषोत्तम व विशेष आत्मा होते हैं...  क्यों और कैसे?*

 

 ❉  ब्राह्मण जीवन है ही निर्विकारी जीवन अर्थात सम्पूर्ण पवित्र जीवन , *केवल अन्न या ब्रह्मचर्य नहीं बल्कि आत्मा के संकल्पो में भी शुद्धि* होनी आवश्यक है तभी ब्राह्मण जीवन सबसे श्रेष्ठ बनता है और ब्रह्मणो की ऊँच चोटी होती है । आत्मा, ब्राह्मण बनने से पहले शूद्र होती है तभी शिवबाबा आते और पवित्रता की प्रतिज्ञा करवाते आत्माओं से जिससे उनके संकल्प बोल कर्म में शुद्धि होना शुरू हो जाता तभी वह सच्चे-सच्चे ब्राह्मण कहलाते है ।

 

 ❉  साधारण आत्माएँ जब पवित्रता को धारण करती हैं तो महान आत्मा कहलाती हैं। पवित्रता ही श्रेष्ठता है, पवित्रता ही पूज्य है। ब्राह्मणों की पवित्रता का ही गायन है। कोई भी शुभ कार्य होगा तो ब्राह्मणों से लराएँगे। वैसे तो नामधारी ब्राह्मण बहुत हैं लेकिन बाबा के सच्चे-सच्चे ब्राह्मण बच्चें *जैसा नाम वैसा काम करने वाली विशेष आत्मा* है। क्योंकि कोई साधारण कर्म भी बाप की याद में रहकर करते है तो वह विशेष हो जाता है और गायन योग्य बन जाता है।

 

 ❉  जैसे ब्रह्माबाबा ने अपने जीवन से हमको दिखाया की कैसे वह *छोटे बड़े कर्म एक शिवबाबा की याद में करते थे जिससे उनका आज वह कर्म आज दिन तक भक्ति में भी गायन और पूजनीय लायक* है... जैसे बाबा भोजन करने के समय सबसे पहले शिवबाबा को याद करते और उनके साथ ही खाते तो आज भक्ति में वो भी भोग लगाने की रस्म रिवाज शुरू हो गयी और भक्त आत्मा सोचती की हम भगवान को खिला रही है जबकि भगवान तो अभोक्ता है, उन्हों के पास ख़ुद का शरीर ही नही जो वह भोजन ग्रहण करे लेकिन आज उनका यह साधारण कर्म भी पूजनीय लायक बन गया।

 

 ❉  संगमयुग है ही पुरुषोत्तम संगमयुग, अर्थात पुरुषों में सबसे उत्तम बनने का युग , *यह एक ही युग है जिसमें आत्मा ख़ुद पुरुषार्थ करके अपनी आत्मा में योगबल से पवित्रता को धारण करती है* और सदा कोशिश करती है की वह हर एक कर्म शिवबाबा की याद में करे जिससे वह विशेष आत्मा बन ऊँच पद पाएँ क्योंकि संगम तो हर एक युग के बाद होता है लेकिन कलयुग और सतयुग के बीच के संगम को ही पुरुषोत्तम कहलाते है, इसलिए ऐसे विशेष कर्म करनी वाली पुरुषोत्तम व विशेष आत्मा बनना है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *स्वयं द्वारा सर्व आत्माओं को सुख की अनुभूति कराना ही मास्टर सुखदाता बनना है... क्यों और कैसे* ?

 

❉   जैसे एयर कंडीशन में सर्दी व गर्मी का अनुभव करते हैं कि सचमुच गर्मी से ठंडी हवा में आ गए हैं । ठंडी से गर्मी में आ गए हैं । ऐसे ही *जो मन बुद्धि से सदा सुख सागर बाप के साथ रहते हैं वे सुख से सदा भरपूर रहते हैं* इसलिए मास्टर सुखदाता बन अपने चेहरे और चलन द्वारा, संकल्प शक्ति द्वारा सुख शांति के वायब्रेशन से दुखी और अशांत लोगों को भी सुखचैन की अनुभूति करवाते रहते हैं ।

 

❉   स्वयं के प्रति शांति व शक्ति का अनुभव करना कोई बड़ी बात नहीं है । लेकिन *सच्चे सेवाधारी वही कहला सकते हैं जो अपने याद की शक्ति द्वारा अपने सुख और शांति के वायब्रेशन से ऐसा पावरफुल वायुमंडल बना देते हैं* जो दुखी और अशांत आत्माएं सहज ही सुख शांति की अनुभूति करने लगती हैं । और स्वयं द्वारा सर्व आत्माओं को सुख शांति की अनुभूति कराना ही मास्टर सुखदाता बनना है ।

 

❉   जैसे बिजली का स्विच ऑन करते ही सेकंड में अंधकार भाग जाता है, *ऐसे ही " बाबा " कहना अर्थात अंधकार या दुःख, अशांति, उलझन, उदासी और टेंशन सब की सेकंड में समाप्ति हो जाती है* । जो इस " बाबा " शब्द के मंत्र को विधि पूर्वक समय पर कार्य में लगाते हैं वे सेकंड में अपने सुख शांति के वायब्रेशन से लोगों को सुख चैन की अनुभूति करवा सकते हैं और ऐसे सर्व आत्माओं को सुख की अनुभूति कराने वाले को ही मास्टर सुखदाता कहते हैं ।

 

❉   आवाज में आना अर्थात अशांत होना और आवाज से परे रहना अर्थात शांति की स्थिति में स्थित हो जाना । तो *जितना आवाज से परे की शांत स्वरूप स्थिति में स्थित रहने का अभ्यास बढ़ता जायेगा उतना सदा अतींद्रिय सुख की अनुभूति करते रहेंगे* और मास्टर सुखदाता बन अपनी पावरफुल अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति द्वारा अनेक दुखी और अशांत आत्माओं को अपने पावरफुल शक्तिशाली वायब्रेशन द्वारा सुख शांति का अनुभव करवा सकेंगे ।

 

❉   एक फलों से लदा हुआ पेड़ हर राहगीर को अपने मीठे फल प्रदान करने के साथ साथ अपनी शीतलता की छाया से उन्हें शीतलता का भी अनुभव कराता है । ऐसे ही *जो सदा स्वयं को परमात्म प्राप्तियों से संपन्न अनुभव करते हैं* वे सर्व प्राप्ति स्वरूप बन सर्व आत्माओं को सर्व प्राप्तियों का अनुभव कराने के साथ साथ मास्टर सुखदाता बन अपने सुख शांति के वायब्रेशन से सब को सुख शांति का अनुभव भी करवाते रहते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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