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❍ 24 / 11 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*5=25)
➢➢ *इस बेहद की दुनिया से वैराग्य रख इसे बुधी से भूलने का पुरुषार्थ किया *
➢➢ *नयी दुनिया के लिए बाप जो बातें सुनाते हैं वह याद रखी ?*
➢➢ *जीते जी मरने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *एकरस स्थिति के आसन पर मन बुधी को बिठाया ?*
➢➢ *दूसरों के विचारों को अपने विचारों से मिलकर सर्व को सम्मान दिया ?*
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❂ *तपस्वी जीवन प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं* ✰
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〰✧ *चलते - फिरते अपने को निराकारी आत्मा और कर्म करते अव्यक्त फरिश्ता समझो तो साक्षी दृष्टा बन जायेंगे।* इस देह की दुनिया में कुछ भी होता रहे, लेकिन फरिश्ता ऊपर से साक्षी हो सब पार्ट देखते, सकाश अर्थात् सहयोग देता है। सकाश देना ही निभाना है।
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:- 10)
➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाये ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ ऐसे नहीं, योग में बैटेंगे तो फुलस्टॉप लगेगा। हलचल में फुलस्टॉप। इतनी पॉवरफुल ब्रेक है? कि ब्रेक लगायेंगे यहाँ और ठहरेगी वहाँ। और समय पर फुलस्टॉप लगे, *समय बीत जाने के बाद फुलस्टॉप लगाया तो उससे फायदा नहीं है।* सोचा और हुआ।
〰✧ सोचते ही नहीं रहो कि मैं शरीर नहीं आत्मा हूँ, आत्मा हूँ, मेरे को फुलस्टॉप लगाना है और कुछ नहीं सोचना है, यह सोचते भी टाइम लग जायेगा। ये सेकण्ड का फुलस्टॉप नहीं हुआ। *ये अभ्यास स्वयं ही करो। कोई को कराने की आवश्यकता नहीं है।* क्योंकि नये चाहे पुराने, सभी यह विधि तो जानते हो ना!
〰✧ तो अभ्यास बहुतकाल का चाहिए। उस समय समझो - नहीं, मैं फुल स्टॉप लगा दूँगी! नहीं लगेगा, यह पहले से ही समझना उस समय, समय अनुसार कर लेंगे! नहीं, होगा ही नहीं। *बहुत काल का अभ्यास काम में आयेगा।* क्योंकि कनेक्शन है।
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:- 15)
➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- दिल में ख़ुशी की शहनाई बजाना क्योंकि बाप आये हैं हाथ में हाथ देकर साथ ले जाने"*
➳ _ ➳ मंद मंद मुस्कुराते पवन के झोंके... गुलाबी खुशबू से भरी समी संध्या की वेला में... मैं आत्मा बैठी हूँ... संगम नदी के तट पर... *मन-बुद्धि में शान्ति के सागर... शिवबाबा को याद करती...* दूर दूर से आते हुए... हल्के हल्के शहनाई के सुर सुनाई दे रहे हैं... मैं आत्मा... शहनाई के सुर में मग्न हो कर पहुँचती हूँ सूक्ष्म वतन में... *बाबा को धन्यवाद करने... अपने को... बाबा को समर्पित करने...*
❉ *मेरे मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपना बनाते हुए कहा :-* "मीठी प्यारी मेरी बच्ची... *मेरी श्रीमत पर चल... अविनाशी खजानों की मालिक... साम्राज्ञी महान आत्मा हो... रूहानी शक्तियों से अपनी रूह का श्रृंगार कर लो... मैं आया हूँ... तुम्हे अपने साथ ले जाने...* दैवीय गुणों की उत्तराधिकारी आत्मा... अपने साज श्रृंगार कर लो... *पवित्रता का गहना हो... सदाचारी श्रेष्ठ आत्मा हो..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा प्यारे बाबा का प्यार भरा पैगाम सुनकर अपनी खुशियों को अश्रु के रूप में छलकाते हुए कहती हूँ :-* "मेरे प्यारे बाबा... मैं *सदियों से जिसका इंतजार कर रही थी... आप आ गए... खुशियों के फूल खिल गए... बहार छा गई... मौसम बदल गया...* मेरे जैसा भाग्यवान... कोइ हो ही नही सकता... जिसका श्रृंगार स्वयं आप ने किया हो... योग अग्नि में तपा कर... *मुझ आत्मा को सच्चा सोना बनाया हैं..."*
❉ *अपने हाथों से मुझ पर फूलों की वर्षा करता मेरा मीठा बाबा रूहानी फुलो की खुशबू से मुझ आत्मा को तरबतर कर कहता हैं:-* "दुःख की शैया को छोड़... सुख के अमृत तुल्य झूले में झूलने वाली... *पवित्र... बालक समी मासूमियत से भरी आत्मा... मेरे दिल पर छा गईं हो...* असीम मासूमियत... इस कलियुगी दुनिया मे कोटो में कोई ही धारण कर पाता है... *नेचुरल मासूमियत के श्रृंगार से सजी मेरी बच्ची... तुझे अखंड सुरक्षा कवच में महफूज़ रखा हैं..."*
➳ _ ➳ *अपने आप को बाबा के आशीर्वचनों से भरपूर करती मैं आत्मा बाबा की दृष्टि लेती बाबा से कहती हूँ :-* "शुक्रिया मेरे बाबा... *आप की पालना बड़े सौभाय से प्राप्त होती हैं... मेरे जैसा सौभाग्यशाली आत्मा कोई हो ही नही सकती हैं...* मुझ पर अपनी प्यार की कृपा युही बरसातें रहना... अग्नि परीक्षा से पार उतारा है रूह को और यह शरीर को... पवित्रता के गहनो से सजाया हैं... *अपने लायक बनाया हैं... अब तू आया है ना तू ही संभाल... तेरा दामन पकड़ा हैं... जहाँ चाहे ले चल..."*
❉ *मंद मंद मुस्कुराते हुए बाबा अपनी मीठी नजरों से रंगबिरंगी किरणों को मुझ पर न्योछावर करते हुए कहते हैं:-* "मेरी बच्ची अपना हाथ मेरे हाथों में रख कर चलो... अब समय पूरा हुआ हैं... बहुत इंतजार करवाया हैं मुझे... अब सज-धज कर तैयार हो गयी हो... अब देर न करो... *बाप समान बन गई हो...* बाप की आखो के नूरे रत्न हो... पवित्रता की ऊंची शिखर पर विराजमान हो... *फरिश्ता बन कर पूरे ब्रह्मांड में सुखों की लहरों की तरह फैल गयी हो..."*
➳ _ ➳ *अपना दैवीय रूप को निहारती मैं आत्मा अपना हाथ अपने बाबा के हाथ में रख प्रकृति को आह्वान करती बाबा से कहती हूँ :-* "चलो मेरे मीठे बाबा... इस दुनिया से पार... *अपनी अनंत शक्तियों की वर्षा कर... मुझे ले चलो... अपना सर्वस्व तुझे समर्पित...* बिंदु बन कर तुझ में समा जाऊ... अपनी रूह को स्थूल शरीर से निकल सूक्ष्म स्वरूप में बाप के साथ... *हाथो में हाथ लिए झूमती हुई इस संगमयुग को अलविदा कहती पहुँचती हूँ परमधाम में...* सूक्ष्म वतन के इस अलौकिक मिलन के नज़ारे को अपने स्मृति पटल पर अंकित करती मैं आत्मा वापिस अपने स्थूल देह में समा जाती हूँ..."
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- इस बेहद की दुनिया से वैराग्य रख इसे बुद्धि से भूलना है*"
➳ _ ➳ देह और देह की यह झूठी दुनिया जिसमे बुद्धि को फंसा कर आज दिन तक सिवाय दुख और अशांति के कुछ प्राप्त नही हुआ ऐसी नश्वर दुनिया से वैराग्य रख उसे बुद्धि से भूल अपने मन बुद्धि को शन्ति, प्रेम, सुख, ज्ञान, शक्ति, आनन्द और पवित्रता के सागर अपने शिव पिता परमात्मा पर एकाग्र करना ही राजयोग है जो सच्चे सुख और शान्ति को पाने का एकमात्र उपाय है। *इसी चिंतन के साथ इस असार संसार की नश्वरता का विचार मन मे आते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे मेरा मन इस बेहद की दुनिया से वैरागी होने लगा है*। इस असार संसार मे होते हुए भी जैसे मैं इसमें नही हूँ।
➳ _ ➳ स्वयं को मैं केवल अपने लाइट स्वरूप में, एक चमकते हुए चैतन्य सितारे के रूप में देख रही हूँ और अनुभव कर रही हूँ कि *मेरा घर यह नश्वर दुनिया नही बल्कि 5 तत्वों से बनी इस दुनिया से परे, तारामंडल से भी परें, फ़रिश्तों की दुनिया के पार अनन्त प्रकाश की अति सुंदर दुनिया परमधाम हैं*। उस प्रकाश की दुनिया में अपने शिव पिता परमात्मा के साथ मैं रहने वाली हूँ। इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर मैं केवल पार्ट बजाने के लिए ही तो आई हूँ। हर आत्मा यहां इस बेहद की दुनिया मे आ कर ड्रामा प्लैन अनुसार अपना पार्ट ही तो बजा रही है।
➳ _ ➳ ड्रामा के इस अति गुह्य राज को स्मृति में रख इन सभी के पार्ट को अब मैं साक्षी हो कर देख रही हूँ। साक्षीदृष्टा की यह अवस्था मुझे इस बेहद की दुनिया से वैराग्य दिला रही है। *बुद्धि से इस दुनिया को भूल, अपनी अति सुंदर निराकारी दुनिया को स्मृति में लाकर अब मैं मन बुद्धि के विमान पर बैठ इस बेहद की दुनिया से किनारा कर प्रकाश की उस अति उज्ज्वल दुनिया की ओर जा रही हूँ*। स्वीट साइलेन्स होम की स्मृति मात्र से ही मेरे अंदर जैसे शक्ति भरने लगी है जो मुझे लाइट और माइट स्वरुप में स्थित कर, ऊपर की ओर ले जा रही है। हर प्रकार के बन्धन से मुक्त हल्के हो कर उड़ते हुए असीम आनन्द का अनुभव करते - करते आकाश मण्डल को मैं पार कर जाती हूँ।
➳ _ ➳ आकाश को पार कर, सफेद प्रकाश की दुनिया सूक्ष्म लोक को पार कर मैं पहुँच जाती हूँ अति दिव्य, अलौकिक लाल प्रकाश से प्रकाशित अपने स्वीट साइलेन्स होम शान्तिधाम में। *शान्ति की इस दुनिया मे पहुंचते ही गहन शांति की अनुभूति में मैं खो जाती हूँ और हर संकल्प, विकल्प से परें एक अति न्यारी और प्यारी निरसंकल्प स्थिति में स्थित हो जाती हूँ*। संकल्पो से रहित इस अति प्यारी अवस्था में मेरा सम्पूर्ण ध्यान केवल अपने सामने विराजमान मेरे शिव पिता की ओर है। मुझे केवल मेरा चमकता हुआ ज्योति बिंदु स्वरूप और अपने शिव पिता परमात्मा का अनन्त प्रकाशमय महाज्योति स्वरूप दिखाई दे रहा है।
➳ _ ➳ इस अतिशय प्यारी निरसंकल्प स्थिति में स्थित मैं आत्मा महाज्योति अपने शिव बाबा से आ रही अनन्त शक्तियों की किरणें को स्वयं में समाहित कर शक्तिसम्पन्न स्वरूप बनती जा रही हूँ। *शिव बाबा से आ रही सातों गुणों की सतरंगी किरणे मुझ आत्मा में समाहित होकर मेरे अंदर निहित सातों गुणों को विकसित कर रही हैं*। देह अभिमान में आ कर, अपने सतोगुणी स्वरूप को भूल चुकी मैं आत्मा अपने एक - एक गुण को पुनः प्राप्त कर फिर से अपने सतोगुणी स्वरूप में स्थित होती जा रही हूँ।
➳ _ ➳ हर गुण, हर शक्ति से मैं स्वयं को सम्पन्न बना कर वापिस देह की दुनिया में कर्म करने के लिए लौट रही हूँ। अपनी देह में पुनः भृकुटि के अकालतख्त पर अब मैं विराजमान हूँ। *बाबा के साथ सदा कम्बाइन्ड रहकर अपने गुणों और सर्वशक्तियों को सदा इमर्ज रखते हुए अब मैं साक्षीदृष्टा बन इस बेहद की दुनिया में अपना पार्ट बजा रही हूँ*। इस दुनिया मे स्वयं को मेहमान समझ इसमें रहते हुए बुद्धि से अब मैं इसे भूलती जा रही हूँ। *इस बेहद की दुनिया से बेहद की वैराग्य वृति रख, अपने शिव पिता पर अपनी बुद्धि को सदा एकाग्र रखते हुए, उनकी याद में रहते केवल निमित बन अब मैं हर कर्तव्य कर रही हूँ*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं एकरस स्थिति के आसन पर मन बुद्धि को बिठाने वाली सच्ची तपस्वी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को स्वमान में स्थित करने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *दूसरे के विचारों को अपने विचारों से मिलाकर सर्व को सम्मान देने वाली मैं माननीय आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ स्मृतियों में टिकाये रखने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *आज बापदादा ने जमा का खाता देखा इसलिए आज विशेष अटेन्शन दिला रहे हैं कि समय की समाप्ति अचानक होनी है। यह नहीं सोचो कि मालूम तो पड़ता रहेगा, समय पर ठीक हो जायेंगे।* जो समय का आधार लेता है, समय ठीक कर देगा, या समय पर हो जायेगा.... उनका टीचर कौन? समय या स्वयं परम-आत्मा? *परम-आत्मा से सम्पन्न नहीं बन सके और समय सम्पन्न बनायेगा, तो इसको क्या कहेंगे? समय आपका मास्टर है या परमात्मा आपका शिक्षक है?* तो ड्रामा अनुसार अगर समय आपको सिखायेगा या समय के आधार पर परिवर्तन होगा तो बापदादा जानते हैं कि प्रालब्ध भी समय पर मिलेगी क्योंकि समय टीचर है। *समय आपका इन्तजार कर रहा है, आप समय का इन्तजार नहीं करो। वह रचना है, आप मास्टर रचता हो। तो रचता का इन्तजार रचना करे, आप मास्टर रचता समय का इन्तजार नहीं करो।*
✺ *ड्रिल :- "समय का इन्तजार न कर सम्पन्न बनने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *मैं मास्टर रचयिता आत्मा हूँ... मैं सर्व शक्तियों से सम्पन्न आत्मा हूँ...* मेरे परम पिता परमात्मा ने मुझ आत्मा को ज्ञान दिया है कि... *समय आपकी रचना है... घड़ी के काँटे आप हो... आप ही रचयिता हो...* मैं आत्मा इस ज्ञान को धारण कर... पवित्र बन... कलयुगी समय को... सतयुगी समय में परिवर्तित कर रही हूँ... *मुझ आत्मा के पावन बनने से... पवित्र बनने से... सारा वायुमंडल... और सारी प्रकृति... पवित्र बन रही है... और सारा समय परिवर्तित हो रहा है...*
➳ _ ➳ *बाबा ने बताया है... समय से पहले सम्पूर्ण बनो... समय के बाद में सम्पूर्ण बने तो वह समय की महिमा होगी... आपकी नहीं...* मैं आत्मा बाबा के इन महावाक्यों को धारण कर... श्रेष्ठ और तीव्र पुरुषार्थ कर रही हूँ... *मैं आत्मा समय से पहले सम्पूर्ण बन गयी हूँ... जिससे सारे कल्प में मुझ आत्मा का महत्व रहता है... मुझ आत्मा की महिमा होती है...* क्यूँकि मैं आत्मा समय को परिवर्तित करने में... बापदादा की मददगार बनी हूँ... जैसे बाप की महिमा वैसे ही बच्चे की महिमा...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा का बाबा ने जमा का खाता देखा... और *बाबा ने मुझ आत्मा को विशेष अटेन्शन दिलाया... कि समय की समाप्ति अचानक होनी है...* मुझ आत्मा को समझ आ गया है कि... *अभी कमी रखने का समय बीत चुका है...* मैं आत्मा तीव्र पुरुषार्थ कर... समय से फास्ट निकल रही हूँ... और समय को नजदीक ला रही हूँ... मैं आत्मा समय को अपने अनुसार परिवर्तित कर रही हूँ... समय के परिवर्तित होने का इंतजार नहीं करती हूँ... *जो आत्मा समय का आधार लेती है... या सोचते हैं कि समय ठीक कर देगा... या समय पर हो जायेगा... उनका टीचर समय होता है... वो आत्मा फिर रचना बन जाती है... समय उनका रचयिता बन जाता है...* मैं आत्मा जानती हूँ कि... महिमा रचयिता की होती है... रचना की नहीं... इसलिए मैं आत्मा स्वयं परमात्मा से सम्पन्न बनती हूँ... समय मुझ आत्मा का मास्टर नहीं है... समय मुझ आत्मा का शिक्षक नहीं है... स्वयं परमात्मा मुझ आत्मा का शिक्षक है...
➳ _ ➳ *अगर ड्रामा अनुसार समय मुझ आत्मा को सिखाता है... या समय के आधार पर मुझ आत्मा का परिवर्तन होता है... तो प्रालब्ध भी समय पर मिलेगी... क्योंकि समय टीचर है...* बाबा ने मुझ आत्मा को बताया है कि... आप समय के रचयिता हो... *समय आप विश्व परिवर्तक आत्माओं का इन्तजार कर रहा है... आप समय का इन्तजार नहीं करो... समय रचना है... आप आत्मा मास्टर रचता हो... तो रचता का इन्तजार रचना करती है...* आप मास्टर रचता समय का इन्तजार नहीं करो... मैं आत्मा बाबा के दिए... इस ज्ञान को हमेशा बुद्धि में रखती हूँ... और समय और प्रकृति को अपने अनुसार... परिवर्तित करती हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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