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 22 / 07 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *कोई भी भूल को छिपाया तो नहीं ?*

 

➢➢ *मास्टर प्यार का सागर बनकर रहे ?*

 

➢➢ *श्रीमत का उल्लंघन तो नहीं किया ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *साधन व सैलवेशन के प्रभाव में आने की बजाये प्रकृति को दासी बनाया ?*

 

➢➢ *हर घड़ी को अंतिम घड़ी समझ एवर रेडी बनकर रहे ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *विघनो को अपने पुरुषार्थ में बाधा न बना तीव्र गति से पुरुषार्थ करते रहे ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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➳ _ ➳  सभी स्वतन्त्र हो? बिगुल बजे और भाग आयें। ऐसे नष्टोमोहा हो? *जरा भी 5 परसेन्ट भी अगर मोह की रग होगी तो 5 मिनट देरी लगायेंगे और खत्म हो जायेगा।* क्योंकि सोचेंगे, निकलें या न निकलें। तो सोच में ही समय निकल जायेगा। *इसलिए सदा अपने को चेक करो कि किसी भी प्रकार का देह का, सम्बन्ध का, वैभवों का बन्धन तो नहीं है।* जहाँ बन्धन होगा वहाँ आकर्षण होगी। इसलिए *बिल्कुल स्वतन्त्र। इसको ही कहा जाता है- बाप समान कर्मातीत स्थिति।* सभी ऐसे हो ना?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  मा प्यार का सागर बनकर, एक दो के साथ बड़े प्यार से रहना"*

 

_ ➳  इस विश्व धरा के वरदानी स्थल... मधुबन में तपस्या धाम में मीठे बाबा की यादो में खोयी खोयी सी हूँ... मै आत्मा मीठे बाबा की शक्तिशाली तरंगो को महसूस कर रही हूँ... और *दिल की सच्ची पुकार ने बाबा को मेरे सम्मुख प्रकट कर दिया है.*.. मीठे बाबा को कहती हूँ :- " बाबा मेरे जज्बातों को अपने दिल में समाकर आपने मुझ आत्मा कितना अमूल्य अनोखा बना दिया है... मनुष्य प्रेम में निस्तेज हो गयी मै आत्मा... आज ईश्वरीय दिल में धड़क रही हूँ...

 

   प्यारे बाबा आप समान प्यार का सागर बनाते हुए बोले :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... प्यार के सागर बाबा से मिलकर मा प्यार का सागर बन.., इस धरा पर प्रेम की तरंगो को फैलाओ... *हर दिल को सच्चे प्यार का अहसास कराकर... ईश्वरीय यादो का सुख दिलाओ.*.. श्रीमत को थाम कर बहुत ही स्नेह और मिठास भरी खुशबु विश्व में फैलाओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा से मिलकर प्रेम गंगा बन इस विश्व धरा पर बह रही हूँ और मीठे बाबा से कहती हूँ :- "मेरे प्यारे प्यारे बाबा... आपने ही तो मुझ आत्मा को सच्चे प्रेम का पर्याय बनाया है... *आपके स्नेह तले मै आत्मा अथाह खुशियो में जीती जा रही हूँ..*. और सबको स्नेह से सींच रही हूँ..."

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा को सुखो के अम्बार पर बैठाते हुए हीरो सा सजाते हुए बोले :- "मीठे लाडले बच्चे... आप महान भाग्यशाली आत्माओ ने भगवान को जाना है... और उसके प्यार में फल फूल रहे हो, जबकि सारी दुनिया सच्चे प्यार की बून्द मात्र को भी तरस रही है...ऐसे में ईश्वरीय प्यार की फुहार हर तपते मन पर डाल कर शीतल राहत दे आओ... *प्रेम सुधा बनकर हर दिल को सिक्त कर आओ*..."

 

_ ➳  मै आत्मा ईश्वरीय पालना और प्रेम की अधिकारी बनकर मुस्करा कर मीठे बाबा से कह रही :- "मीठे मनमीत बाबा... *आपने मुझ आत्मा को प्रेम की बदली बनाकर दुखो की तपिश पर बरसाया है*... ईश्वरीय प्रेम की हर आत्मा प्यासी है, और मै आत्मा स्नेह की दौलत लुटाकर सबको असीम सुख दे रही हूँ..."

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा को विश्व कल्याणकारी और मा प्यारसागर की नजरो से देखते हुए बोले :- "मीठे मीठे बच्चे... ईश्वरीय गोद में खिलकर जो गुणो की खुशबु से महके हो और ज्ञान रत्नों से लबालब हुए हो... *यह अनोखी खुशनसीबी हर मन के आँगन में भी बिखेरते चलो.*.. अपनी हर अदा, स्नेह भरी नजरो में ईश्वर पिता की झलक दिखाओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा से बड़े प्यार से कहती हूँ :- "मीठे लाडले बाबा मेरे... *आपने अथाह प्रेम देकर मुझ आत्मा को रोम रोम से तृप्त किया है*... सच्चे स्नेह को देकर मेरी जनमो की प्यास बुझाई है... और आपसे पाया यही सुख में सब पर दिल खोल कर लुटा रही हूँ... और अपनी चलन से पिता का नाम बाला कर रही हूँ..." इन मीठे वादों और दिली जज्बातों की बयानगी मीठे बाबा से कर... मै आत्मा साकार वतन में आ गयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- माया की ग्रहचारी से बचने के लिए सच्चे बाप से सदा सच्चे रहना*"

 

_ ➳  देख रही हूं मैं स्वयं को एक सुंदर से फूलो के बगीचे में एक छोटे से, नन्हे से इनोसेंट बालक के रूप में जो इस बात से बिल्कुल अनजान है कि माया क्या है! माया की गृहचारी क्या होती है। *यही जानने की उत्सुकता से मैं नन्हा सा बालक अपने शिव पिता को बुलाता हूँ और मेरी पुकार सुनते ही मेरे पिता मेरे पालनहार शिव बाबा अपने लाइट माइट स्वरूप में मेरे सामने उपस्थित हो जाते है*। उन्हें अपने सामने देखते ही मेरा उदास चेहरा एक दम फूल के समान खिल उठता है और मैं दौड़ कर उनके पास पहुंच जाता हूँ। *बाबा मुझे अपनी गोद मे ले लेते हैं और मुझे बड़े प्यार से दुलारते हुए कहते हैं, आओ मेरे मीेठे लाडले बच्चे:- "मैं तुमको बताता हूँ कि माया की ग्रहचारी क्या होती है"*।

 

_ ➳  अपने शिव पिता की गोद में मैं नन्हा बालक स्वयं को एकदम सुरक्षित अनुभव करते हुए बिना किसी भय के ऊंचे ऊंचे पहाड़ों, नदियों, समुन्द्र के ऊपर से उड़ता हुआ जा रहा हूँ। प्रकृति के खूबसूरत नजरों को देखता हुआ, उनका आनन्द लेता हुआ अब मैं बाबा के साथ एक ऐसे स्थान पर पहुंचता हूँ जो देखने में बहुत ही आकर्षक है। ऐशो आराम की हर भौतिक सुख सुविधाएं यहां उपस्थित है। *हर वस्तु देखने मे इतनी लुभायमान है कि कोई भी उनके आकर्षण में आकर्षित हुए बिना नही रह सकता*। इन सभी लुभावनी चीजों को देखते हुए मैं जैसे ही बाबा की ओर प्रश्नचित निगाहों से देखता हूँ। बाबा मुस्कराते हुए मेरी ओर देख कर मुझे जवाब देते हैं, मेरे बच्चे:- "यही तो माया की नगरी है"।

 

_ ➳  बाबा अब मेरा हाथ थामे मुझे उस माया नगरी के अंदर ले आते हैं। मन को चकाचौंध कर देने वाले लुभावने दृश्य मैं देख रहा हूँ। लेकिन तभी मेरी निगाह एक बहुत ही खूबसूरत दिखाई देने वाले राजसिहांसन पर जाती है जिस पर एक विशाल दैत्य बैठा हुआ है। उसे देख, डर कर मैं बाबा की गोद मे छिप जाता हूँ। *बाबा कहते, बच्चे:- "यह माया रावण है, किन्तु यह आपका कुछ नही बिगाड़ सकता क्योंकि मैं आपके साथ हूँ"। मैं देख रहा हूँ उसका रूप घड़ी घड़ी बदलता हुआ दिखाई दे रहा है*। कभी बहुत ही आकर्षक और कभी भयानक। भयंकर अट्ठहास  करता हुआ वो विशालकाय दैत्य अपने सैनिकों को आदेश दे रहा है कि भू लोक के हर मनुष्य को अपने मोह जाल में फंसा कर मेरे पास ले कर आओ। उसका आदेश सुन कर सैनिक जाते है और एक एक करके भू लोक के वासियों को वहां ला रहें हैं। अपने राज्य को बढ़ता देख वो दैत्य और भी भयानक अट्ठहास करता है।

 

_ ➳  इन सभी दृश्यों के बीच एक और बहुत ही खूबसूरत दृश्य अब मैं देख रहा हूँ। *श्वेत वस्त्र धारण किये अनेक ब्राह्मण बच्चो को जो भगवान की सच्ची अराधना कर रहें हैं*। सच्चे मन से बाबा को याद करते हुए बाबा की छत्रछाया के नीचे गहन तपस्या में मग्न है। माया रावण के सैनिक उनके पास जा कर अनेक प्रकार के प्रलोभन उन्हें दे कर अपनी नगरी में लाने के लिए उन्हें उकसा रहें हैं। लेकिन *बाबा के प्रेम का अतीन्द्रिय सुख उन्हें माया के हर प्रलोभन से मुक्त कर रहा है*। उन्हें आकर्षित करने के माया रावण के सभी उपाय फेल हो रहें हैं। ब्राह्मण बच्चो की विजय हो रही है और माया रावण की नगरी विध्वंस हो रही है। माया भी दासी बन उन बच्चों के आगे सरेन्डर हो चुकी है।

 

_ ➳  बाबा अब मुस्कुराते हुए मेरी ओर देख रहे हैं जैसे आंखों ही आंखों में मुझसे पूछ रहे हैं, समझे बच्चे:- "माया और माया की गृहचारी क्या होती है"! अपना सिर हिलाते हुए मैं मीठी सी मुस्कुराहट के साथ बाबा को जवाब देता हूं, हां बाबा। मैं सब कुछ समझ गया। *माया की गृहचारी से बचने के लिए अब मुझे सदा आपके साथ रहना है, एक पल के लिए भी आपसे दूर नही होना*।

 

_ ➳  बाबा को अपने साथ लिए अब मैं निराकारी आत्मा बन अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट रही हूँ। चलते, फिरते हर कर्म करते कम्बाइंड स्वरूप की स्मृति में रह अब मैं माया के हर वार का सामना सहज रीति कर रही हूं। *सच्चे बाप का सच्चा बच्चा बन बाबा के साथ अंदर बाहर सदा सच्चे हो कर रहने से अब मैं बाबा को कदम कदम पर अपने साथ अनुभव कर रही हूं*। बाबा की छत्रछाया सेफ्टी का किला बन माया के हर वार से मुझे बचा रही है।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा साधन वा सैलवेशन के प्रभाव में आने के बजाए प्रकृति को दासी बनाती हूँ।"* 

 

 _ ➳  मैं ब्राह्मण कुलभूषण पुरूषोत्तम और योगी आत्मा हूँ... मैं आत्मा कभी भी प्रकृति के प्रभाव में नहीं आती हूँ... मैं प्रकृतिजीत हूँ... प्रकृति की मालिक हूँ... और प्रकृति मेरी दासी है... इसलिए प्रकृति के कोई भी साधन वा सैलवेशन मुझे अपने प्रभाव में प्रभावित नहीं कर सकते हैं... *मैं आत्मा साधना के लिए साधनों का आधार नहीं लेती हूँ... हद के साधनों के अल्पकाल के सुखों का गलत आधार लेकर अपने पुरुषार्थ के मार्ग में रुकावट नहीं आने देती हूँ...* मैं आत्मा सदा अविनाशी सुखों की स्मृति में रहकर हद के साधन वा सैलवेशन के प्रभाव से मुक्त रहती हूँ... *मैं ब्राह्मण आत्मा सहज और निरंतर योगी बनकर सदा सर्वस्व त्यागी के पोजीशन में स्थित रहती हूँ...* और अपनी साधना से साधनों को आधार बनाकर विजयी आत्मा बन गई हूँ... 

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- एवरेडी बन हर घड़ी को अंतिम घड़ी समझ कर चलने का अनुभव करना"*

 

_ ➳  ब्राह्मण जीवन का सबसे अच्छा स्लोगन है... अब की घड़ी अंतिम घड़ी... *अब नही तो कभी नही*... बाबा मुझ आत्मा पर अनेक वरदानों की बरसात कर... मुझ आत्मा को गुणों व शक्तियों से सजा रहे है... *मैं आत्मा नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बनती जा रही हूँ*... हर घड़ी अंतिम घड़ी है... यह अटेंशन रख अपने *अलबेलेपन को समाप्त कर... एवररेडी बनती जा रही हूँ*... स्वयं प्रति समय न लगाकर... विश्व की सेवा में समय लगा... विश्व कल्याणकारी बनती जा रही हूँ... यह *परिवर्तन का समय है... किसी के लिए ठहरेगा नही*... बाबा के यह महावाक्य सदा स्मृति में रख... मैं आत्मा विश्व कल्याणी बनकर... सेवा में आगे बढ़ती जा रही हूँ... *मैं आत्मा हर कर्मबन्धनों से मुक्त होती जा रही हूँ*... निश्चिंत हो मैं बाबा से कहती हूँ... *बाबा कुछ भी हो जाए...बाबा मैं तैयार हूँ*...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  चांस लेने चाहो तो ले लो फिर यह उल्हना भी कोई नहीं सुनेगा कि मैं कर सकता था लेकिन यह कारण हुआ। पहले आता तो आगे चला जाता था। यह परिस्थितियाँ नहीं होती तो आगे चला जाता। यह उल्हने स्वयं के कमज़ोरी की बातें हैं। *स्व-स्थिति के आगे परिस्थिति कुछ कर नहीं सकती। विघ्न विनाशक आत्माओं के आगे विघ्न पुरूषार्थ में रूकावट डाल नहीं सकता। समय के हिसाब से रफ्तार का हिसाब नहीं। दो साल वाला आगे जा सकतादो मास वाला नहीं जा सकतायह हिसाब नहीं। यहाँ तो सेकण्ड का सौदा है। दो मास तो कितना बड़ा है। लेकिन जब से आये तब से तीव्रगति हैतो सदा तीव्रगति वाले कई अलबेली आत्माओं से आगे जा सकते हैं।*

 

_ ➳  इसलिए वर्तमान समय को और मास्टर सर्वशक्तिवान आत्माओं को यह वरदान है - जो अपने लिए चाहो जितना आगे बढ़ना चाहोजितना अधिकारी बनने चाहो उतना सहज बन सकते हो क्योंकि - वरदानी समय है। वरदानी बाप की वरदानी आत्माएं होसमझा - वरदानी बनना है तो अभी बनोफिर वरदान का समय भी समाप्त हो जायेगा। फिर मेहनत से भी कुछ पा नहीं सकेंगे। इसलिए *जो पाना है वह अभी पा लो। जो करना है अभी कर लो। सोचो नहीं लेकिन जो करना है वह दृढ़ संकल्प से कर लो। और सफलता पा लो।*

 

✺   *"ड्रिल :- विघ्नों को अपने पुरुषार्थ में बाधा न बना तीव्र गति से पुरुषार्थ करते रहना।"*

 

_ ➳  एकांत अवस्था में एकांत स्थान पर मैं शान्त स्वरूप अवस्था में बाप दादा की तस्वीर के सामने एक शांति भरे कमरे में बैठी हुई हूं... और बाप दादा को लगातार निहार रही हूं... जैसे-जैसे मैं बाप-दादा को निहारने लगती हूँ... वैसे वैसे मैं अपने अंदर नई शक्तियों का अनुभव करने लगती हूं... मैं बाबा की दृष्टि पाकर बापदादा की आंखों में प्रकाश बनकर डूब जाती हूं... और *अपने आप को अलौकिक मां के ममता भरी गोद में अनुभव करती हूं... अपनी अलौकिक मां की गोद में मैं छोटी सी बालिका बनकर मां से खेल, खेल रही हूं...* और मां से कहती हूं... कि माँ कुछ समय मेरे साथ खेलिये... और मेरी मां मेरे साथ प्यार से बालक के भाव से खेलने लगती है...

 

_ ➳  कुछ समय बाद मेरी अलौकिक मां मुझे अपने मित्र के साथ खेलने के लिए कहती है... और मुझे अपनी गोद से उतार देती है... मैं अपनी अलौकिक मां के आदेश का पूर्णतया पालन करते हुए अपने परमात्मा रूपी मित्र के साथ खेलने के लिए खुले वातावरण में प्रकृति की गोद में खेलने के लिए चली जाती हूं... मेरा वह मित्र भी बालक बनकर मेरे साथ खेलने लगता है... और मेरा हाथ थामे एक ऐसे स्थान पर ले जाता है... जहां पर गहरी नदी तेज बहती हुई कल कल आवाज करती हुई नजर आती है... *मेरा मित्र धीरे धीरे मुझे उस नदी के अंदर ले जाने का प्रयास करता है मैं कुछ डरी सहमी सी उस नदी के अंदर चली जाती हूं... और मैं उस तेज बहाव के कारण अपने आप को उस नदी में स्थित नहीं कर पाती हूं... और ना ही खेलने की इस अवस्था को अनुभव कर पाती हूं...* मैं अपने आप को असक्षम अनुभव करती हूं...

 

_ ➳  और मैं अपने मित्र के साथ उस नदी में अपने मित्र का हाथ थामे खड़ी होने का प्रयास करती हूं... परंतु जैसे ही नदी में पानी का बहाव तेज होता है... मैं उस पानी में स्थित नहीं हो पाती और उस पानी के साथ बहने लगती हूं... और बहते-बहते मैं देखती हूं... कि *मेरा वह छोटा सा मित्र बिल्कुल आराम से उस तेज पानी के तेज बहाव में खड़ा है... मैं उसकी यह अवस्था देख आश्चर्यचकित हो जाती हूं... और उसके मनोबल की सराहना करती हूं... और मैं देखती हूं... कि जैसे ही मैं पानी में गिरती हूं... मेरा वह मित्र मुझे पानी से उठाकर अपने साथ फिर से खड़ा कर लेता है...* और खेलने के लिए कहता है... मैं अपने मित्र की इस प्रक्रिया में पूर्ण तरह से सहायक नहीं हो पाती हूं... क्योंकि मेरी अवस्था मेरे मित्र से बहुत ही कमजोर हो रही है... मेरा मित्र मेरा यह रूप देखकर मेरी भावनाओं को समझते हुए... मुझे उस पानी के बहाव से बाहर निकालकर ले आता है...

 

_ ➳  और मेरे मित्र द्वारा पानी से बाहर आने के बाद... मैं अपने मित्र से अपने डर का इजहार करती हूं... और अपनी कमी कमजोरियों का वर्णन करती हूं... मेरा मित्र मुझे हाथ पकड़कर एक चट्टान पर बिठा देता है... और स्वयं भी मेरे सामने एक चट्टान पर बैठ जाता है... और मुझे कहता है कि... अगर तुम ऐसे ही इन पानी के बहाव रूपी विघ्नों से घबराती रही तो कभी भी अपने पुरुषार्थ में आगे नहीं बढ़ पाओगे... और ना ही अपनी स्थिति मजबूत कर पाओगी... तथा ना ही तुम हर परिस्थिति का आनंद ले पाओगी... *हमेशा विघ्नों रूपी इन कठिनाइयों में अपने आप को बांध लोगी... अगर तुम्हें इन विघ्नों को पार करना है... तो अपने अंदर नई शक्तियों को भरना होगा... अपने मनोबल को बढ़ाना होगा... जब तक तुम्हारा मनोबल नहीं बढ़ेगा तुम्हारी शक्तियां कभी भी तुम्हारा साथ नहीं देगी... इसलिए हमेशा यह संकल्प करो कि यह जो भी विघ्न आते है... वह तुम्हारी स्थिति को और भी मजबूत बनाने के लिए आए हैं...* 

 

_ ➳  मेरे मित्र की इन बातों को सुनकर मेरे अंदर मनोबल का नया विकास होता है... और मैं अपने आप को शक्तिशाली स्थिति में अनुभव करने लगती हूं... *मैं अपने आप को मास्टर सर्वशक्तिमान की स्टेज पर लाते हुए... अपने मित्र का हाथ पकड़कर उस नदी में पानी के तेज बहाव के बीचो बीच ले आती हूं... और मजबूत चट्टान रूपी अवस्था में खड़ी हो जाती हूं... और जैसे ही वह पानी का तेज बहाव आता है... मैं अपने अंदर यह एहसास लाती हूं कि यह पानी का बहाव मुझे और भी मजबूत करते हुए जाएगा... और मैं देखती हूं... कि यह पानी मेरे पास होकर गुजर जाता है... और मुझे इसके बहाव का जरा भी एहसास नहीं होता...* कि इसका वेग कितना होगा कितना है... इस तरह मैं अपनी अवस्था को धीरे-धीरे मजबूत बना लेती हूं... और उस परमात्मा रुपी मित्र का कोटि-कोटि धन्यवाद करती हूँ... और वहां पर अपनी अलौकिक मां की गोद में प्यारे से बच्चे के रूप में आकर बैठ जाती हूं... और अपने पुरुषार्थ की ओर बढ़ती जाती हूं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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