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❍ 01 / 08 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *बाप की श्रीमत पर चलकर सम्पूरण निर्विकारी बनने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *आत्मा में जो खाद पडी है, उसे योग अग्नि से निकाला ?*
➢➢ *पवित्रता की धारणा पर विशेष अटेंशन रहा ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *सर्व प्राप्तियों को सामने रख श्रेष्ठ शान में रहे ?*
➢➢ *योगी और पवित्र जीवन के आधार पर सर्व प्राप्तियों के अधिकारी बनकर रहे ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *समाने की शक्ति और समेटने की शक्ति का अनुभव किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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➳ _ ➳ अशरीरी के लिए विशेष 4 बातों का अटेन्शन रखो :- 1. कभी भी अपने आपको भूलाना होता है तो दुनिया में भी एक सच्ची प्रीत में खो जाते हैं। तो सच्ची प्रीत ही भूलने का सहज साधन है। *प्रीत दुनिया को भूलाने का साधन है, देह को भूलाने का साधन है।* 2. दूसरी बात *सच्चा मीत भी दुनिया को भूलाने का साधन है।* अगर दो मीत आपस में मिल जाएँ तो उन्हें न स्वयं की, न समय की स्मृति रहती है। 3. तीसरी बात दिल के गीत - *अगर दिल से कोई गीत गाते हैं तो उस समय के लिए वह स्वयं और समय को भूला हुआ होता है।* 4. चौथी बात - यथार्थ रीत। अगर *यथार्थ रीत है तो अशरीरी बनना बहुत सहज है।* रीत नहीं आती तब मुश्किल होता है। तो एक हुआ प्रीत, 2.- मीत, 3.- गीत, 4.- रीत।
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पावन बन पावन दुनिया का वर्सा लेना, पवित्र जरूर बनना*
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा की यादो में सुमन हो गये... अपने मन को निहार कर, आनन्द के सागर में डूब जाती हूँ... और मीठे बाबा की यादो में खो जाती हूँ... कि *कैसे चलते चलते बाबा ने मेरे विकारी हाथो में, अपना पावन मखमली हाथ देकर, मेरा कायाकल्प कर दिया है.*.. इस अंतिम जनम में भगवान को पिता, टीचर और सतगुरु रूप में पाकर... जनमो की यात्रा ही जेसे सफल हो गयी है... सृस्टि जगत के इस खेल में मुझ आत्मा ने... अंत में भगवान को ही जीत लिया है.. सब कुछ मेने पा लिया है...
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपनी देवताई शानोशौकत याद दिलाते हुए कहते है :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... सदा अपने मीठे भाग्य के नशे में खोये रहो... और पावनता के रंग में रंगकर मनुष्य से देवता बनने का सदा का अधिकार पा लो...ईश्वर पिता के साथ का यह खुबसूरत वरदानी संगम है... *इसमे पवित्रता से सजकर पिता की सम्पूर्ण दौलत को पा लो.*.."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के महावाक्यों को गहराई से दिल में समाकर कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... *अपनी यादो भरा मदद का हाथ देकर, मेरे भाग्य को कितना ऊंचाइयों पर ले जा रहे हो.*.. मै क्या हूँ और क्या मुझे बना रहे हो... विकारो के पतितपन को जीकर मै कितनी निकृष्ट से हो गयी थी... आज पावनता से सजाकर मुझे देवता बना रहे हो..."
❉ प्यारे बाबा मुझ आत्मा को सच्चे प्रेम के अहसासो से भरते हुए कहते है :- "मीठे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता की गोद में पलने का महाभाग्य पाकर अब पवित्रता की तरंगे पूरे विश्व में फैलाओ... पावन बनकर, पावन दुनिया के मालिक बन सदा के लिए मुस्कराओ... *इस अंतिम जनम में ईश्वर पिता की श्रीमत के रंग में रंगकर, सुंदर देवता बन जाओ.*..
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने मीठे बाबा के मुझ आत्मा पर लुटाते हुए संकल्पों को देख कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा... मनुष्य मन और मनमत ने मुझ आत्मा को विकारो के दकदल में गहरे डुबो दिया... आपने आकर जो मात्र चोटी बची थी... खींच कर निकाला और ज्ञान अमृत से मुझे उजला बनाया है... *आपकी प्यारी यादो में डूबकर मै आत्मा अब पवित्रता का आँचल ओढ़ मुस्करा रही हूँ.*.."
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को वरदानों से सजाते हुए कहते है :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता को पाकर, अब अपनी हर अदा में ईश्वरीय झलक दिखाओ... इस पतित हो गयी दुनिया को अपनी पावनता से पुनः खुबसूरत पवित्र बनाओ... विकारो के कालेपन से निकल कर, ज्ञान धारा में धवल बन, और *यादो में तेजस्वी होकर, देवताई सौंदर्य से विश्व धरा पर जगमगाओ.*.."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने भाग्य के ऊपर, ईश्वरीय जादूगरी को देख, मीठे बाबा से कहती हूँ :- " मेरे सच्चे साथी बाबा... आपके सच्चे साथ और यादो के हाथ को पाकर मै आत्मा विकारो के घने जंगल से बाहर निकल रही हूँ... *अपनी खोयी हुई पावनता से पुनः सज संवर रही हूँ.*.. अपने साथ इस प्रकर्ति को भी पावन बनाकर, सुखो के स्वर्ग में बदल रही हूँ..." मीठे बाबा को अपने दिल की सारी बात सुनाकर मै आत्मा इस धरती पर लौट आयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप की श्रीमत पर चल सम्पूर्ण निर्विकारी बनना*"
➳ _ ➳ अपने सम्पूर्ण निर्विकारी अनादि और आदि स्वरुप को स्मृति में लाते ही मन बुद्धि से मैं पहुंच जाती हूँ परमधाम। यहां मैं आत्मा अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप में स्थित हूँ। *निराकारी आत्माओं की इस दुनिया में अपनी स्वर्णिम किरणे बिखेरते हुए एक चमकते हुए सितारे के रुप में मैं स्वयं को देख रही हूं*। मेरा यह दिव्य ज्योतिर्मय स्वरूप मन को लुभाने वाला है। अपने इस सम्पूर्ण निर्विकारी स्वरूप में मैं आत्मा सातों गुणों से, सर्वशक्तियों से सम्पन्न हूँ। मेरे सामने महाज्योति मेरे शिव पिता परमात्मा एक ज्योतिपुंज के रूप में अपनी सर्वशक्तियों रूपी अनन्त किरणों के साथ सुशोभित हो रहें हैं।
➳ _ ➳ अपने शिव पिता परमात्मा के साथ आत्माओं की निराकारी दुनिया मे रहने वाली मैं सम्पूर्ण निर्विकारी आत्मा ड्रामा अनुसार पार्ट बजाने के लिए सृष्टि रंगमंच पर उतरती हूँ। *प्रकृतीक सौंदर्य से परिपूर्ण, एक स्वर्णिम दुनिया सतयुग में अपने सम्पूर्ण निर्विकारी देवताई स्वरुप को धारण किये मैं इस सुंदर धरा पर अवतरित होती हूँ जो मेरे पिता परमात्मा ने मेरे लिए रची है*। मेरा यह सम्पूर्ण निर्विकारी देवताई स्वरूप सोलह कलाओं से सम्पन्न है। दैवी गुणों से सजी मैं चैतन्य देवी अति शोभायमान लग रही हूं। मुख पर दिव्य आभा और दिव्य मुस्कराहट मन को लुभा रही है।
➳ _ ➳ अपने इस देवताई स्वरूप को देख मन ही मन आनन्दित होते हुए अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर याद करती हूं अपने शिव पिता परमात्मा को जिन्होंने ने मुझे ऐसा बनाया। *अपने प्यारे मीठे बाबा की याद मन मे उनसे मिलने की तीव्र इच्छा जागृत कर देती है और जैसे ही मैं उन्हें मिलने के लिए पुकारती हूँ। मेरे दिलराम शिव बाबा सेकण्ड में मेरे पास दौड़े चले आते हैं और आ कर अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में मुझे भर लेते हैं*। अपने शिव पिता परमात्मा की किरणों रूपी बाहों में समा कर इस नश्वर देह और देह की दुनिया को जैसे मैं बिल्कुल भूल जाती हूँ। केवल मेरे दिलाराम शिव बाबा मुझे दिखाई दे रहें हैं और मुझ पर निरन्तर बरसता हुआ उनका प्यार मुझे असीम आनन्द से भरपूर कर रहा है।
➳ _ ➳ अपनी बाहों के झूले में झुलाते हुए मेरे मीठे शिव बाबा मुझे अपने साथ इस छी छी विकारी दुनिया से दूर, अपने निर्विकारी धाम की ओर ले कर चल पड़ते हैं। *मैं देख रही हूं एक चमकती हुई ज्योति मैं आत्मा स्वयं को महाज्योति अपने शिव पिता की किरणों रूपी बाहों के झूले में, साकारी दुनिया से दूर ऊपर की ओर जाते हुए*। पांच तत्वों की इस दुनिया के पार, सूक्ष्म लोक से भी पार अपने शिव पिता के साथ मैं पहुंच गई निर्वाणधाम अपने असली घर। शिव पिता के साथ कम्बाइंड हो कर अब मैं स्वयं को उनकी सर्वशक्तियों से भरपूर कर रही हूं। *बाबा से आ रही सर्वशक्तियों का स्वरूप ज्वालामुखी बन कर मुझ आत्मा द्वारा किये हुए 63 जन्मो के विकर्मों को दग्ध कर रहा है*। विकारों की कट उतरने से मैं आत्मा सच्चा सोना बनती जा रही हूं। मुझ आत्मा की चमक करोड़ो गुणा बढ़ती जा रही है। स्वयं को मैं बहुत ही हल्का अनुभव कर रही हूं।
➳ _ ➳ अपने शिव पिता की लाइट माइट से स्वयं को भरपूर करके डबल लाइट बन अब मैं वापिस साकारी दुनिया मे अपने साकारी तन में आ कर विराजमान हो जाती हूँ और अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर *अब मैं बाबा की श्रीमत पर चल सम्पूर्ण निर्विकारी बनने का पुरुषार्थ कर रही हूं। बाबा की याद मेरे अंदर बल भर रही है और बाबा की शिक्षाओं को जीवन मे धारण करने से मेरे बोल सहज ही योगयुक्त औऱ युक्तियुक्त, मनसा वृति शक्तिशाली तथा कर्म श्रेष्ठ बन रहे हैं*। बाबा की श्रीमत पर चल अपने कर्मो को श्रेष्ठ बनाकर और बाबा की याद से सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बन कर अब मैं अपने श्रेष्ठ कर्मो द्वारा सर्व आत्माओं को भी श्रेष्ठता का अनुभव करवा रही हूं।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा सर्व प्राप्तियों को सामने रख श्रेष्ठ शान में रहती हूं ।"*
➳ _ ➳ *हम सर्वश्रेष्ठ आत्माएं है, ऊंचे ते ऊंचे भगवान के बच्चे हैं... यह मुझ आत्मा का सर्वश्रेष्ठ शान है*... मैं इस श्रेष्ठ शान में रहती हूं... मैं आत्मा कभी परेशान नहीं हो सकती... *देवताई शान से भी ऊंचा यह ब्राह्मणों का शान है*... मैं आत्मा सर्व प्राप्तियों की लिस्ट सामने रखती हूं... इससे मुझे अपना श्रेष्ठ शान सदैव स्मृति में रहता है... यही गीत गाती रहती हूं कि पाना था वह पा लिया... *सर्व प्राप्तियों की स्मृति से मुझ आत्मा की मास्टर सर्वशक्तिमान की स्थिति सहज बनी है...*
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- योगी और पवित्र जीवन को सर्वप्राप्तियों का आधार अनुभव करना"*
➳ _ ➳ मैं संगमयुगी ब्राह्मण आत्मा... परम पवित्र... महान आत्मा हूँ... निरंतर योगी आत्मा हूँ... बापदादा के वरदानी हस्त मेरे सिर पर हैं... *वरदाता बाप से सहजयोगी भव... पवित्र भव... दोनों वरदान प्राप्त कर रही हूँ... दोनों वरदानों को पुरुषार्थ प्रमाण जीवन में धारण कर रही हूँ...* पवित्रता मुझ आत्मा के ब्राह्मण जीवन का श्रृंगार है... *बापदादा समझा रहे हैं... ब्राह्मण जीवन का श्वास है- पवित्रता... इक्कीस जन्मों की प्रालब्ध का आधार पवित्रता है... सर्व संगमयुगी प्राप्तियों का आधार पवित्रता है...* मुझ आत्मा ने बाप को अपना कंपैनियन बना लिया है... बाबा की मोहब्बत की झूले में झूलते हुए पवित्रता अति सहज हो गई है... नेचुरल हो गई है... *निरंतर योगी रहते हुए पवित्र संकल्प... पवित्र कर्म मुझ ब्राह्मण आत्मा की विशेषता बन गई है...* सदा ब्राह्मण जीवन की महानता को धारण करने वाली... आदि अनादि पवित्र आत्मा हूँ... सदा एक बाप दूसरा ना कोई... यही गीत गाती हुई... *अपने वायब्रेशन द्वारा वायुमंडल को पवित्र तथा पावरफुल बना रही हूँ...*
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
➳ _ ➳ ‘‘बापदादा
इस साकारी देह और दुनिया में आते हैं, सभी
को इस देह और दुनिया से दूर ले जाने के लिए। दूर-देश वासी सभी को दूर-देश
निवासी बनाने के लिए आते हैं। दूर-देश में यह देह नहीं चलेगी। पावन आत्मा अपने
देश में बाप के साथ-साथ चलेगी। तो चलने के लिए तैयार हो गये हो वा अभी तक कुछ
समेटने के लिए रह गया है? *जब
एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हो तो विस्तार को समेट परिवर्तन करते हो। तो
दूर-देश वा अपने स्वीट होम में जाने के लिए तैयारी करनी पड़ेगी? सर्व
विस्तार को बिन्दी में समाना पड़े। इतनी समाने की शक्ति, समेटने
की शक्ति धारण करली है?*
✺
*"ड्रिल :- समाने की शक्ति और समेटने की शक्ति का अनुभव करना।*
➳ _ ➳
एकांत स्थान पर बैठकर मैं प्यारे बाबा से मीठी मीठी बातें कर रही हूं... बाबा
से अपने दिल की बातें और अपने अनुभव शेयर कर रही हूं... बाबा से बातें करते हुए
मैं आत्मा एकांत स्थान पर अपने आप को अन्य आत्माओं से दूर एक ऐसे स्थान पर
अनुभव करती हूं... जहां प्रकृति के पांचो तत्व मुझे अपनी ओर आकर्षित कर रहे
हैं... और इस खुशनुमा मौसम में बाबा के साथ दूर बैठकर मैं आत्मा अपने लौकिक
परिवार की आत्माओं को निहार रही हूं... और *उनके साथ बिताए हुए हर एक लम्हों को
याद कर रही हूं... मुझे उनकी कही हुई हर छोटी बड़ी बात याद आने लगती है... और
उनके द्वारा किए हुए हर कर्म मुझे प्रभावित करते हैं... और साथ ही कुछ ऐसे उनके
कर्म जो मुझे दुख की अनुभूति कराते हैं...* जैसे जैसे मैं उन आत्माओं को
निहारती हूं... वैसे वैसे ही मेरी मन बुद्धि उनके अंदर समाने लगती है...
➳ _ ➳
कुछ
समय के बाद मैं अपने आप को उन आत्माओं मैं इतना डुबो देती हूं... कि मुझे उन के
अलावा कुछ ना तो सुनाई देता है... और ना ही दिखाई देता है... तभी अचानक मुझे
अनुभव होता है... कि मैं यह क्या कर रही हूं... मेरे साथ मेरे परम पिता
परमात्मा बैठे हुए हैं और मैं अपनी मन बुद्धि इन आत्माओं में समाकर यह अमूल्य
समय गंवा रही हूं... और मैं आत्मा यह सोचते हुए *अपने मन बुद्धि को उन आत्माओं
से हटाने का पूरा प्रयत्न करती हूं... और इसके लिए मैं सर्वप्रथम निर्णय लेती
हूं... कि मुझे इस संगम के शुभ अवसर पर सिर्फ और सिर्फ अपनी मन बुद्धि अपने
परमपिता परमात्मा में ही लगानी है... और उनके द्वारा दी हुई श्रीमत का मुझे
पूरा पूरा पालन करना है... मैं आत्मा जैसे ही यह निर्णय लेती हूं... तो मैं
अपने अंदर एक अद्भुत परिवर्तन अनुभव करती हूँ...*
➳ _ ➳
और
धीरे-धीरे मैं इस निर्णय शक्ति के आधार पर अपनी मन बुद्धि इन आत्माओं से हटाने
में पूर्णतया सफल हो जाती हूं... और पहुंच जाती हूं अपने प्यारे बाबा को साथ
लिए मूल वतन में... जहां चारों तरफ लाल सुनहरा प्रकाश ही प्रकाश है... और वह
प्रकाश जैसे ही मुझ आत्मा को स्पर्श करता है... मुझे अपने अंदर गहन शांति का
अनुभव होता है... और *जैसे-जैसे मैं मूलवतन की शांति को अनुभव करती हूं... वैसे
ही मैं उस चमत्कारिक शांति को अपने अंदर समाने लगती हूं... और इस शांति को अपने
अंदर समाए हुए मुझे अपने सामने अपने रंग बिरंगी किरणें बिखेरते हुए मेरे परम
पिता नजर आते हैं...* जैसे ही मैं उनको अपने सामने अनुभव करती हूं... मेरा यह
ज्योति रूप और भी चमकीला हो जाता है...
➳ _ ➳
और
अपने इस चमकते हुए रूप को मैं बाबा की अद्भुत किरणों से अपने अंदर समाकर और भी
चमकदार और शक्तिशाली बना लेती हूं... कुछ समय इस स्थिति में रहने के बाद मैं
अपने साथ बाबा को लेकर सूक्ष्म वतन में पहुंच जाती हूं... यहां का सफेद प्रकाश
मेरे अंदर अति शीतलता का अनुभव करा रहा है... *मेरा यह फरिश्ता स्वरूप एकदम
शीतल और शांत प्रतीत हो रहा है... और सामने बापदादा मुझे फरिश्ता रूप में बैठे
हुए निहार रहे हैं... मैं दौड़कर बाबा की बाहों में समा जाती हूं... जैसे ही
मैं बाबा को स्पर्श करती हूं... मुझे उनकी बाहें झूले के समान प्रतीत होती
है... और मेरा मन यह महसूस करता है... कि बाबा मुझे अपनी मीठी मीठी बाहों में
लेकर झूला झुला रहे हैं...* और मैं डूब जाती हूं... कुछ देर के लिए इस सुखद
अनुभूति में...
➳ _ ➳
अब
मैं आत्मा फरिश्ता रूप में बाबा की बाहों के झूले झूलते हुए बाबा से कहती
हूं... बाबा यह संगम का जो महत्वपूर्ण समय है... उसमें मैंने अपनी मन बुद्धि इस
संसार के रिश्ते नातों में कुछ समय के लिए फंसा रखी थी... जिसके कारण मुझे आज
तक सिर्फ और सिर्फ दुख दर्द ही मिला है... *मैंने अपने आप को अब परमात्मा को
सौंपने का दृढ़ संकल्प किया है... और अपने इस निर्णय से मुझे गहन शांति की
अनुभूति हो रही है... और मैं बाबा से कहती हूं... मेरे मीठे बाबा अब मैंने आपकी
श्रीमत के अनुसार यह निर्णय शक्ति का प्रयोग कर अपनी मन बुद्धि इन झूठे रिश्ते
नातों से निकालकर आप में पूरी तरह से लगा दी है... अब मैं आत्मा स्थूल वतन में
जो भी कर्म करूंगी... सिर्फ और सिर्फ फरिश्ता बनकर और निमित्त भाव से ही
करूंगी...* और इतना कहकर मैं अपने मन बुद्धि इन सांसारिक रिश्ते-नातों से समेट
कर और अपनी निर्णय
शक्ति को अपने अंदर समाकर... सब बाबा को सौंप देती हूं... और चली आती हूँ मैं
अपनी इन कर्मेंद्रियों पर राज करने के लिए... और फरिश्ता बनकर निमित्त भाव से
सेवा करने लगती हूं... बाबा की याद में...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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