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❍ 18 / 11 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*5=25)
➢➢ *एक दो को सावधान करते बाप की याद दिलाई ?*
➢➢ *अपना टाइम वेस्ट तो नहीं किया ?*
➢➢ *परचिंतन न किया, न सुना ?*
➢➢ *ज्ञान के साथ साथ गुणों को भी इमर्ज कर नंबर वन बनने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *साइलेंस की पॉवर द्वारा नेगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तित किया ?*
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❂ *तपस्वी जीवन प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं* ✰
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〰✧ संघठित रूप में शक्तिशाली वायुमण्डल बनाने की जिम्मेवारी समझकर रहना। *जब देखो कि कोई व्यक्त भाव में ज्यादा है तो उनको बिना कहे अपना ऐसा अव्यक्ति शान्त रूप धारण कर लो जो वह इशारे से समझकर शान्त हो जाए, इससे वातावरण अव्यक्त बन जायेगा।*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:- 10)
➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाये ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ *एक बल, एक भरोसा - ऐसी श्रेष्ठ आत्मा हैं, ऐसे अनुभव करते हो?* एक बल, एक भरोसा है या अनेक बल, अनेक भरोसे हैं? एक बल कौन-सा है? साइलेन्स का बल, योग का बल। आज साइन्स की शक्ति का प्रभाव है लेकिन वह भी निकली कहाँ से? शान्ति की शक्ति से निकली ना?
〰✧ एक बाप में भरोसा अर्थात निश्चय होने से यह साइलेन्स का बल, योग का बल स्वतः ही अनुभव होता है तो साइलेन्स की शक्ति वाले हैं, योग बल वाले हैं - यह स्मृति रहती है? *शान्ति की शक्ति सर्व श्रेष्ठ शक्ति है।* क्योंकि और सभी शक्तियाँ कहाँ से निकलती हैं? शान्ति की शक्ति से ना!
〰✧ तो शान्ति की शक्ति द्वारा जो चाहो वह कर सकते हो। असम्भव को भी सम्भव कर सकते हो। *जो दुनिया वाले आज असम्भव कहते हैं आपके लिए वह सम्भव है ना!* तो सम्भव होने के कारण सहज लगता है। मेहनत नहीं लगती।
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:- 15)
➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- एक विदेही बाप को याद कर, दूसरों को भी बाप की याद दिलाना"*
➳ _ ➳ *वर्षा के बाद आसमान में निकले इन्द्रधनुष को मैं आत्मा निहार रही हूँ... इन्द्रधनुषी रंगों से सजा ये आसमान ऐसे लग रहा, जैसे आसमान ने अपने माथे पर रंग-बिरंगी बिंदिया लगाईं हो... गले में सतरंगी माला पहनी हो...* एक तरफ बादलों के पीछे से सूरज निकल रहा जैसे ज्ञान सूर्य बाबा मुझे ऊपर बुला रहे हों... मैं आत्मा इस देह से न्यारी होती हुई ऊपर उडती हुई पहुँच जाती हूँ वतन में बाबा के पास...
❉ *प्यारे बाबा मुझे अपने निज स्वरुप की स्मृति दिलाते हुए कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... इस देह और देहधारियों के सम्बन्धो में फसकर स्वयं के सच्चे दमकते आत्मिक स्वरूप को ही भूल गए हो... इस खेल को ही अपना वजूद समझ दुखी हो गए हो... *अब अपने उसी सच्चे स्वरूप के भान में खो जाओ... और अपने सच्चे पिता शिवबाबा को याद करो... और दूसरों को भी बाप की याद दिलाओ... यह याद ही सारे सुखो का आधार है..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा प्यारे बाबा के प्यार में मीठी डुबकी लगाती हुई कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके बिना तो देह के दलदल में गर्दन तक गहरे धँसी थी... *आपने प्यारे बाबा मुझे मेरे दमकते सौंदर्य का अहसास कराया... और सच्चे पिता का सच्चा रिश्ता मेरे दिल में सजाया...* मै आत्मा आपकी अथाह प्यार की गहराई में डूब गयी हूँ..."
❉ *मीठा बाबा मेरे देहभान का आवरण उतारते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... इस देह में मात्र खेल के लिए अवतरित हुए हो... अपने अविनाशी सुन्दरतम स्वरूप के नशे में डूब जाओ... किसके हो क्या हो और कहाँ से आये हो इस खुमारी में खो जाओ... *एकमात्र सच्चे सहारे वफादार साथी शिवबाबा को ही याद करो जो सदा की वफादारी निभायेगा..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सच्चे साफ दिल में सिर्फ प्यारे बाबा को बिठाकर कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में अपने रूप के नशे में खो गई हूँ... *विदेही बन मुस्करा रही हूँ और मीठे बाबा की प्यारी सी बाँहों में राजकुमारी सी इठला रही हूँ...* भगवान मुझे प्यार कर रहा है और मै उसके प्यार डूबती जा रही हूँ..."
❉ *मेरे बाबा अविनाशी सुखों के रस का पान कराते हुए कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... विनाशी रिश्तो को विनाशी देह को प्यार करके अपनी सारी शक्तियो और गुणो को गवांया... अब इस भ्रम से बुद्धि को निकालो... अपने सुंदर आत्मिक नशे में झूम उठो... *विदेही हो... इस भान में आकर प्यारे बाबा को प्यार करो और असीम आनन्द से भर जाओ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा देहधारियों से बुद्धियोग निकाल एक विदेही बाबा की याद में मग्न होकर कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा विदेही बन मुस्करा रही हूँ... मीठे बाबा से अपने अविनाशी स्वरूप को जानकर... अनन्त खुशियो में खिलखिला रही हूँ... प्यारे बाबा के प्यार की गहराई में डूबी हुई अपने और दूसरों के शानदार भाग्य को सहार रही हूँ..."
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पास विद ऑनर होने के लिए मनसा - वाचा - कर्मणा कोई भी भूल नही करनी है*"
➳ _ ➳ स्वयं भगवान द्वारा पढ़ाई जाने वाली इस ईश्वरीय पढ़ाई में पास विद ऑनर होने के लक्ष्य को पाने के लिये मुझे इस बात का पूरा ख्याल रखना है कि कभी भी मनसा - वाचा - कर्मणा मुझ से कोई भी भूल ना हो। *मन ही मन स्वयं से यह दृढ़ प्रतिज्ञा कर मैं एकांत में बैठ अपनी चेकिंग करती हूँ कि क्या मेरे हर संकल्प, बोल और कर्म में सर्व के प्रति कल्याण की भावना समाई रहती है*! मेरे संकल्प व्यर्थ और अकल्याणकारी तो नही होते! मेरे बोल दूसरों को दुख देने का कारण तो नही बनते और मुझसे ऐसा कोई कर्म तो नही होता जिससे किसी को कष्ट हो!
➳ _ ➳ यह सोचते और अपनी चेकिंग करते हुए मैं विचार करती हूँ कि दुख हर्ता सुख कर्ता बाप की सन्तान मैं आत्मा भी तो उनके समान मास्टर दुख हर्ता सुख कर्ता हूँ तो *बाप समान सर्व आत्माओं को दुःखो से छुड़ा कर उन्हें सुख देना मेरा परम कर्तव्य है और इस कर्तव्य को पूरा करने के लिए अपने हर संकल्प, बोल और कर्म पर मुझे विशेष अटेंशन अवश्य देना है*। इसी दृढ़ संकल्प के साथ मनसा वाचा कर्मणा तीनो रूपों से स्वयं को शक्तिशाली बनाने के लिए अब मैं अपने शिव पिता के पास जाने का संकल्प कर, अशरीरी स्थिति के अभ्यास द्वारा अपने दिव्य ज्योतिर्मय स्वरूप में स्थित होती हूँ और मन बुद्धि को हर चीज के प्रभाव से मुक्त कर, अपने सम्पूर्ण ध्यान को केवल भृकुटि पर एकाग्र कर लेती हूँ।
➳ _ ➳ एकाग्रता की शक्ति सेकण्ड में मुझे देह और देह की दुनिया के हर प्रकार के आकर्षण से मुक्त कर अति न्यारी और प्यारी स्थिति में स्थित कर देती है। *ज्ञान के दिव्य चक्षु से मुझे मेरा पूर्ण प्रकाशित स्वरूप स्पष्ट दिखाई देने लगता है*। मेरा यह अति सुन्दर न्यारा और प्यारा स्वरूप मुझे डीप साइलेन्स का गहराई तक अनुभव करवा रहा है। देह, देह से जुड़ी हर वस्तु से मैं स्वयं को पूर्णतया मुक्त अनुभव करने लगी हूँ।
➳ _ ➳ इस न्यारी अवस्था में स्थित होते ही मैं स्वयं को विदेही, निराकार और मास्टर बीज रुप स्थिति में अपने बीच रुप परम पिता परमात्मा, संपूर्णता के सागर, पवित्रता के सागर, सर्वगुण और सर्व शक्तियों के अखुट भंडार, ज्ञान सागर, पारसनाथ बाप के सामने परम धाम में देख रही हूँ। *कोई संकल्प कोई विचार अब मेरे मन में नही है। एकदम निर्संकल्प अवस्था। बस बाबा और मैं। बीज रुप बाप के सामने मैं मास्टर बीज रुप आत्मा डेड साइलेंस की स्थिति में स्थित हो कर अतीन्द्रिय सुख का सहज अनुभव कर रही हूँ*।
➳ _ ➳ स्वयं को निराकार महाज्योति अपने प्यारे परम पिता परमात्मा शिव बाबा के सम्मुख देखते हुए उनसे निकल रही अनन्त शक्तियों को स्वयं में समा कर मैं स्वयं को शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। उनकी किरणों की शीतल छाया मुझे गहन शांति का अनुभव करवा रही हैं। *सर्वशक्तियों से भरपूर हो कर मैं आ जाती हूँ परमधाम से नीचे फरिश्तों की जगमग करती हुई दुनिया में*। सफेद चमकीली फरिश्ता ड्रेस धारण कर मैं फरिश्ता पहुँच जाता हूँ अव्यक्त वतन वासी अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के सामने जिनकी भृकुटि में शिवबाबा चमक रहें हैं। *बापदादा बड़े प्यार से निहारते हुए अपनी मीठी दृष्टि मुझ पर डाल रहे हैं। उनकी शक्तिशाली दृष्टि से मुझ फरिश्ते के अंदर परमात्म बल भरता जा रहा है जो मुझे शक्तिशाली बना रहा है*।
➳ _ ➳ परमात्म बल, परमात्म शक्तियों से भरपूर हो कर मैं आत्मा अब वापिस अपनी कर्मभूमि पर लौट आती हूँ और अपना देह रूपी वस्त्र धारण कर पास विद ऑनर होने के पुरुषार्थ में लग जाती हूँ। *अपनी अवस्था जमाने के लिए मैं हर कर्म अब अपने प्राण प्रिय शिव बाबा की याद मे रहकर करती हूँ*। चलते फिरते बुद्धि का योग केवल अपने शिवपिता के साथ जोड़ कर, अपनी मनसा, वाचा, कर्मणा पर मैं सम्पूर्ण अटेंशन देती हूँ। मनसा वाचा कर्मणा तीनो रूपों में किसी को भी मेरे कारण दुख न पहुंचे, इस बात पर सम्पूर्ण ध्यान देते हुए, अपने सम्पूर्णता के लक्ष्य को पाकर पास विद होने का पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं ज्ञान के साथ साथ गुणों को इमर्ज कर नम्बरवन बनने वाली सर्वगुण सम्पन्न आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को स्वमान में स्थित करने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं साइलेंस की पावर द्वारा निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन करने वाली सेवाधारी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ स्मृतियों में टिकाये रखने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ वह प्रकृति का खेल तो देख लिया। लेकिन बापदादा पूछते हैं कि आप लोगों ने सिर्फ प्रकृति का खेल देखा या अपने उड़ती कला के खेल में बिजी रहे? या सिर्फ समाचार सुनते रहे? समाचार तो सब सुनना भी पड़ता है, परन्तु जितना समाचार सुनने में इन्ट्रेस्ट रहता है *उतना अपनी उड़ती कला की बाजी में रहने का इन्ट्रेस्ट रहा? कई बच्चे गुप्त योगी भी हैं, ऐसे गुप्त योगी बच्चों को बापदादा की मदद भी बहुत मिली है और ऐसे बच्चे स्वयं भी अचल, साक्षी रहे और वायुमण्डल में भी समय पर सहयोग दिया।* जैसे स्थूल सहयोग देने वाले, चाहे गवर्मेन्ट, चाहे आस-पास के लोग सहयोग देने के लिए तैयार हो जाते हैं,
➳ _ ➳ ऐसे *ब्राह्मण आत्माओं ने भी अपना सहयोग - शक्ति, शान्ति देने का, सुख देने का जो ईश्वरीय श्रेष्ठ कार्य है, वह किया?* जैसे वह गवर्मेन्ट ने यह किया, फलाने देश ने यह किया... फौरन ही अनाउन्समेंट करने लग जाते हैं, तो बापदादा पूछते हैं - आप ब्राह्मणों ने भी अपना यह कार्य किया? *आपको भी अलर्ट होना चाहिए। स्थूल सहयोग देना यह भी आवश्यक होता है, इसमें बापदादा मना नहीं करते लेकिन जो ब्राह्मण आत्माओं का विशेष कार्य है, जो और कोई सहयोग नहीं दे सकता* ऐसा सहयोग अलर्ट होके आपने दिया? देना है ना! या सिर्फ उन्हों को वस्त्र चाहिए, अनाज चाहिए? *लेकिन पहले तो मन में शान्ति चाहिए, सामना करने की शक्ति चाहिए। तो स्थूल के साथ सूक्ष्म सहयोग ब्राह्मण ही दे सकते हैं* और कोई नहीं दे सकता है। तो यह कुछ भी नहीं है, *यह तो रिहर्सल है। रीयल तो आने वाला है। उसकी रिहर्सल आपको भी बाप या समय करा रहा है।*
✺ *ड्रिल :- "प्राकृतिक हलचल के समय स्थूल के साथ सूक्ष्म शक्तियों के सहयोग देने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *भृकुटि की गुफा में बैठी मैं महातेजस्वी, परम पवित्र अति तेजोमय स्वराज अधिकारी आत्मा हूँ... तपस्वियों में अति श्रेष्ठ तपस्वी मैं आत्मा हूँ...* देख रही और महसूस कर रही हूँ... मैं आत्मा अपने इस महान तेजस्वी स्वरूप को बहुत गहराई से... कितना तेजस्वी मुझ आत्मा का यह स्वरूप है... जैसे प्रकाश की एक तेजोमय दिव्य किरण हो... *देख रही हूँ मैं आत्मा स्वयं को त्याग और तपस्या की अति श्रेष्ठ पवित्र भूमि मधुबन घर में, शांतिवन बाबा के कमरे में बैठे हूए...* संध्या का यह समय है... अपने निराकारी तेजोमय स्वरूप में स्थित मैं तेजोमय आत्मा गहराई से अपने स्वरूप का अनुभव करते हुए एक शिव पिता की याद में स्थित हो जाती हूँ... देख रही हूं बाबा से अनंत शक्तियों की अविरल धाराएं मुझ पर गिर रही है... मैं आत्मा वरदानों और शक्तियों से भरपूर होती जा रही हूँ... अनुभव हो रहा है जैसे इस देह में होते भी इसमें नहीं हूँ... *देह भान से मैं आत्मा ऊपर उठ चुकी हूँ... एक शक्तिशाली स्थिति का अनुभव मैं आत्मा कर रही हूँ...* और मुझ से ये शकितयों की किरणें चारों ओर फैल रही है...
➳ _ ➳ तभी एकाएक कुछ दृश्य मुझ आत्मा के सामने आते है... *कुछ आवाजें कानों में गुंजने लगती है... हमें बचाओं... कोई तो हमारी मदद करों...* और एक दर्दनाक दृश्य मुझ आत्मा के सामने उभरता है... भूकम्प, बाढ, चक्रवात के कारण कुछ जगह पर भारी नुकसान हुआ है... लोग यहाँ वहाँ भाग रहे है... अपने परिजनों को ढूंढ रहे है... खून से लथपथ लाशें यहाँ वहाँ गिरी है... सबकी आँखों में दर्द है... लोग यहाँ-वहाँ भाग रहे है... और *तभी कुछ लोग उनकी मदद के लिए आ रहे है...* तभी ये दृश्य गायब हो जाता हैं... और *ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे बाबा कह रहे हो बच्चे इन आत्माओं को स्थूल के साथ सुक्ष्म शक्तियों का भी सहयोग दो...* इनकों शांति दो... मैं आत्मा बिना देरी किए अपनी सूक्ष्म लाइट की ड्रेस धारण कर, अपना श्रेष्ठ ईश्वरीय कार्य (सुख, शांति देने ) करने उस स्थान पर पहुंच जाता हूँ... देख रहा हूँ... चारों तरफ यही समाचार फैला हुआ हैं... *और अन्य जगह से लोग यहाँ मदद देने के लिए आ रही है...* गवर्नमेंट भी स्थूल सहयोग अनाज कपड़ा, दवाएं पहुंचा रही है... *आपदा ग्रसित आत्माओं को स्थूल साधनों द्वारा मदद मिल रही है...*
➳ _ ➳ *लेकिन फिर भी प्राकृतिक आपदाओं से ग्रसित आत्माओं की आखों में आँसू और दर्द है... बेचैनी है... अन्दर से बेहद अशांत है...* उनकी नजरें ये दर्दनाक मंजर देखकर काँप उठी है... लेकिन *मैं आत्मा ये प्रकृति का खेल साक्षी होकर देख रही हूँ... एक अचल अवस्था में...* और अब मैं श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा अनुभव कर रहा हूँ स्वयं को बाबा की छत्रछाया के नीचे, बाबा से निकलती सुख, शांति की किरणें मुझ फरिशते पर पड़ रही है और *मुझ आत्मा से ये सुख, शांति की किरणें इन सभी आपदा से ग्रसित आत्माओं पर और प्रकृति को जा रही है...* मेरे साथ और भी ब्राह्मण आत्माएं फरिशता ड्रेस धारण कर इन सभी आत्माओं को शांति की किरणों द्वारा सहयोग दे रही है... जैसे-जैसे ये किरणें इन आत्माओं पर पड़ रही है... *इन आत्माओं का मन शांत हो रहा है... इनके अन्दर सामना करने की शक्ति आ गई है... ये आत्माएँ मजबूत बन रही है... इनकी सारी हलचल समाप्त हो गई है...* अब ये आत्माएँ दर्द से बाहर निकल गई है... और मानसिक तौर पर मजबूत हो गई है... और अब प्रकृति की हलचल भी समाप्त हो गई है... चारों तरफ शांति हो गई है... आपदा से ग्रसित आत्माएँ भी हल्का अनुभव कर रही है... *स्थूल के साथ अब इन आत्माओं को सूक्ष्म में भी सहयोग मिल रहा है...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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