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 16 / 11 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*5=25)

 

➢➢ *बाप के साथ वफादार, फरमानबरदार होकर रहे ?*

 

➢➢ *कम की चोट तो नहीं खायी ?*

 

➢➢ *दैवी मैनर्स धारण अकरने पर विशेष अटेंशन रहा ?*

 

➢➢ *अपने श्रेष्ठ दृष्टि वृत्ति द्वारा सृष्टि का परिवर्तन किया ?*

 

➢➢ *न्यारे और अधिकारी बन हर कर्म किया ?*

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         ❂ *तपस्वी जीवन प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं*

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〰✧  जैसे ब्रह्मा बाप ने निश्चय के आधार पर, रुहानी नशे के आधार पर, निश्चित भावी के ज्ञाता बन सेकेण्ड में सब सफल कर दिया। अपने लिए कुछ नहीं रखा। *तो स्नेह की निशानी है सब कुछ सफल करो। सफल करने का अर्थ है श्रेष्ठ तरफ लगाना।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाये ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  *आत्मा का आदि वा अनादि लक्षण तो शान्त है, तो सेकण्ड में ऑर्डर हो कि अपने अनादि स्वरूप में स्थित हो जाओ तो हो सकते हो कि टाइम लगेगा?* सुनाया था ना कि लगाना चाहे बिन्दी और लग जाये क्वेचन मार्क तो क्या होगा? इसको किस अवस्था का अभ्यास कहेंगे? सभी फरिश्ते स्थिति का अभ्यास करते हो?

 

✧  *अभी और अभ्यास करना है कि जितना समय चाहे उतना समय उस विधि से स्थित हो जायें।* अभी देखो कोई भी प्रकृति की आपदा या परिस्थिति की आपदा आती है तो अचानक आती हैना, और दिन-प्रतिदिन अचानक यह प्रकृति अपनी हलचल बढ़ाती जाती है। यह कम नहीं होनी है, बढ़नी ही है। *अचानक आपदा आ जाती है।*

 

✧  *तो ऐसे समय पर समाने वा समेटने की शक्ति की आवश्यकता है।* और कहाँ भी बुद्धि नहीं जाये, बस बाप और मैं, बुद्धि को जहाँ लगाना चाहें वहाँ लग जाये। क्यों-क्या में नहीं जाये, ये क्या हुआ, ये कैसे होगा, होना तो नहीं चाहिये, हो कैसे गया - इसको ब्रेक कहेंगे?

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:- 15)

 

➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  दैवी फजीलत (मैनर्स) धारण कर आसुरी अवगुणों को छोड़कर पावन बनना"*

 

_ ➳ *मैं आत्मा कस्तूरी मृग समान इस मायावी जंगल में भटक रही थी... सच्ची सुख, शांति के लिए कहाँ-कहाँ भाग रही थी... अपने निज स्वरुप को भूल, निज गुणों को भूल, आसुरी अवगुणों को धारण कर दुखी हो गई थी...* रावण के विकारों की लंका में जल रही थी... परमधाम से प्रकाश का ज्योतिपुंज इस धरा पर आकर मुझ आत्मा की बुझी ज्योति को जगाया... दैवीय गुणों की सुगंध से मेरे मन की मृगतृष्णा को शांत किया... *मैं आत्मा इस देह से न्यारी होती हुई उस ज्योतिपुंज मेरे प्यारे बाबा के पास पहुँच जाती हूँ...*

 

   *"प्यारे बाबा ज्ञान के प्रकाश से मेरी आभा को प्रकाशित करते हुए कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय यादे ही विकारो से मुक्त कराएंगी... मीठे बाबा की मीठी यादे ही सच्चे सुख दामन में सजायेंगी... *यह यादे ही आनन्द का दरिया जीवन में बहायेंगी... और दैवी गुणो की धारणा सुखो भरे स्वर्ग को कदमो में उतार लाएंगी..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा पद्मापदम् भाग्यशाली अनुभव करती हुई कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा आपकी मीठी यादो में सच्चे सुख दैवी गुणो के श्रृंगार से सज कर निखरती जा रही हूँ... साधारण मनुष्य से सुंदर देवता का भाग्य पा रही हूँ...* और विकारो से मुक्त हो रही हूँ..."

 

   *मीठा बाबा आसुरी अवगुणों के आवरण को हटाकर दैवीय गुणों से भरपूर करते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... देह के भान में आकर विकारो के दलदल में गहरे धँस गए थे... अब ईश्वरीय यादो से दुखो की कालिमा से सदा के लिए मुक्त हो जाओ... *दैवी गुणो को जाग्रत कर सुंदर देवताई स्वरूप से सज जाओ... और यादो से अथाह सुख और आनंद की दुनिया को गले लगाओ..."*

 

 ➳ _ ➳  *मैं आत्मा परमात्म आनंद के झूले में झूलती हुई कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय यादे ही सच्चे सुखो का आधार है... *यह रोम रोम में बसाकर देवताई गुणो से भरती जा रही हूँ...* देह के भान से निकल कर ईश्वरीय यादो में महक रही हूँ... और उज्ज्वल भविष्य को पाती जा रही हूँ..."

 

   *मेरे बाबा मेरा दिव्य श्रृंगार कर पावन बनाते हुए कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... विकारो रुपी रावण ने सच्चे सुखो को ही छीन लिया और दुखो के गर्त में पहुंचाकर शक्तिहीन किया है... *अब अपनी देवताई सुंदरता को पुनः ईश्वरीय यादो से पाकर... दैवी गुणो की खूबसूरती से दमक उठो...* यह दैवी गुण ही स्वर्ग के सच्चे सुखो का आधार है..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा दैवीय गुणों से सज धज कर खूबसूरत परी बनकर कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सच्चे ज्ञान को पाकर देवताई गुण स्वयं में भरने की शक्ति... मीठे बाबा की यादो से पाती जा रही हूँ... *और विकारो से मुक्त होकर अपने सुन्दरतम स्वरूप को पा रही हूँ... अपनी खोयी चमक को पुनः पा रही हूँ..."*

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- काम की चोट कभी नही खानी, इससे बहुत सावधान रहना है*"

 

_ ➳  एकान्त में बैठ, अपने अनादि और आदि स्वरुप के बारे में मैं विचार करती हूँ कि जब मैं आत्मा अपने अनादि स्वरूप में अपने शिव पिता परमात्मा के साथ परमधाम में थी तो कितनी शुद्ध, पावन और सतोप्रधान थी। *यह सोचते - सोचते अपने अनादि ज्योति बिंदु स्वरूप में स्थित हो, मन बुद्धि के विमान पर बैठ मैं पहुँच जाती हूँ परमधाम और ज्ञान के दिव्य चक्षु से अपने वास्तविक स्वरूप को निहारने लगती हूँ*। देख रही हूँ मैं स्वयं को अति सुंदर, अति उज्ज्वल एक चमकती हुई ज्योति के रूप में जो एक चमकते हुए सितारे की भांति दिखाई दे रहा है। जिसमे से निकल रहा प्रकाश अनन्त किरणो के रूप में चारों और फैल रहा है। मेरा यह अनादि स्वरूप कितना सुंदर और प्यारा है।

 

_ ➳  अपने इस अति सुंदर, सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप के साथ ही मैं आत्मा परमधाम से नीचे सृष्टि रूपी रंगमंच पर पार्ट बजाने के लिए आती हूँ। *अपने शिव पिता परमात्मा द्वारा स्थापित अति सुंदर, देवी देवताओं की सम्पूर्ण सतोप्रधान दुनिया स्वर्ग में मैं सम्पूर्ण सतोप्रधान दैवी शरीर धारण कर अवतरित होती हूँ*। देख रही हूँ अब मैं स्वयं को अपने अति सुंदर दैवी स्वरूप में सतयुगी दुनिया में। जहाँ सुख, शान्ति और सम्पन्नता भरपूर है। दुख का जहां कोई नाम निशान भी नही।

 

_ ➳  स्वर्ग के अपरमअपार सुखों को भोगते हुए सतयुग और त्रेता युग में अपना सुंदर पार्ट बजा कर मैं आत्मा जब द्वापर युग मे प्रवेश करती हूँ तो दैहिक भान आने से विकारों की उत्पत्ति होनी शुरू हो जाती है। *इन विकारों में से भी मुख्य काम विकार की चोट मुझ आत्मा के उज्ज्वल स्वरूप को काला कर देती है। मेरी सुख, शान्ति, समृद्धि छीन कर मुझे दुखी और अशांत, पूज्य से पुजारी बना देती है*। किन्तु संगम युग पर मेरे शिव पिता परमात्मा आ कर, सत्य ज्ञान दे कर, पवित्रता की धारणा कराकर मुझे फिर से उसी सुख और शन्ति को पाने का मार्ग दिखाते हैं।

 

_ ➳  यह विचार करते - करते मैं अब अपने संगमयुगी ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ और अपने ब्राह्मण जीवन की महान उपलब्धियों को स्मृति में लाकर अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य का गुणगान करती हुई अपने शिव पिता की मीठी यादों में खो जाती हूँ। *मेरे शिव पिता की मीठी याद मेरे दिल को सुकून दे रही है औऱ एक गहन शांत चित स्थिति में मुझे स्थित कर रही है*। इस शांत चित स्थिति में स्थित होते ही मुझे ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे मैं आत्मा इस साकारी देह से बिल्कुल डिटैच, अशरीरी हूँ।

 

_ ➳  अशरीरीपन की स्थिति में स्थित होकर अब मैं एक सुंदर रूहानी यात्रा पर जा रही हूँ और इस यात्रा को पूरा करके मैं एक ऐसी दुनिया मे प्रवेश कर रही हूँ जहाँ चारों ओर जगमग करती हुई निराकारी आत्माएं ही आत्माएं दिखाई दे रही है। देह और देह से जुड़े किसी भी पदार्थ का यहां संकल्प मात्र भी नहीं। *एक बहुत ही न्यारी और प्यारी साक्षी स्थिति में स्थित हो कर मैं पवित्रता के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के समीप जा रही हूँ*। उनसे आ रही सातों गुणों की सतरंगी किरणों और सर्वशक्तियों को स्वयं में समाने के साथ - साथ योग अग्नि में अपने विकर्मों को भी दग्ध कर रही हूँ।

 

_ ➳  *बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की ज्वाला स्वरूप किरणें जैसे - जैसे मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं वैसे - वैसे काम विकार के कारण मुझ आत्मा पर चढ़ी हुई मैल धुल रही है और मेरा स्वरूप फिर से सच्चे सोने के समान चमकदार हो रहा है*। सोने के समान शुद्ध बन कर अब मैं परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और फिर से अपनी स्थूल देह में प्रवेश कर जाती हूँ।

 

_ ➳  अपने इस संगमयुगी ब्राह्मण जीवन में मैं सम्पूर्ण पवित्र रहूँगी इस प्रतिज्ञा के साथ अब मैं फिर से अपनी सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था को पाने का पुरुषार्थ निरन्तर कर रही हूँ। *काम की चोट से स्वयं को बचा कर, कदम - कदम पर सावधानी रखते हुए गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल पुष्प समान जीवन जीते हुए, अपनी पवित्र मनसा वृति से मैं औरों को भी पवित्रता के इस मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे रही हूँ*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपनी श्रेष्ठ दृष्टि, वृत्ति द्वारा सृष्टि का परिवर्तन करने वाली विश्व की आधारमूर्त आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को स्वमान में स्थित करने का विशेष योग अभ्यास किया ?

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं न्यारी और अधिकारी बन कर्म करने वाली बंधनमुक्त आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ स्मृतियों में टिकाये रखने का विशेष योग अभ्यास किया ?

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. जब बाप के बने हैं तो सबसे पहले कौन-सा वायदा कियाबाबा तन-मन-धन जो भी हैकुमारों के पास धन तो ज्यादा होता नहीं फिर भी जो हैसब आपका है। यह वायदा किया हैतन भीमन भीधन भी और संबंध भी सब आपसे - यह भी वायदा पक्का किया है? *जब तन-मन-धनसम्बन्ध सब आपका है तो मेरा क्या रहा!* फिर कुछ मेरा-पन है? होता ही क्या है? तन, मन, धन, जन.... सब बाप के हवाले कर लिया।

 

 _ ➳  2. जब मन भी बाप का हुआमेरा मन तो नहीं है ना! या मन मेरा हैमेरा समझकर यूज करना है? *जब मन बाप को दे दिया तो यह भी आपके पास 'अमानतहै।* फिर युद्ध किसमें करते होमेरा मन परेशान हैमेरे मन में व्यर्थ संकल्प आते हैंमेरा मन विचलित होता है....जब मेरा है नहीं, अमानत है फिर अमानत को मेरा समझ कर यूज करनाक्या यह अमानत में ख्यानत नहीं है? *माया के दरवाजे हैं - 'मैं और मेरा'। तो तन भी आपका नहींफिर देह- अभिमान का मैं कहाँ से आया! *मन भी आपका नहींतो मेरा-मेरा कहाँ से आयातेरा है या मेरा है?* बाप का है या सिर्फ कहना हैकरना नहींकहना बाप का और मानना मेरा!

 

 _ ➳  *सिर्फ पहला वायदा याद करो कि न बाडी-कान्सेस की - 'मैं हैन मेरा'। तो जो बाप की आज्ञा हैतन को भी अमानत समझो। मन को भी अमानत समझो।* फिर मेहनत की जरूरत है क्या? *कोई भी कमजोरी आती है तो इन दो शब्दों से आती है - 'मैं और मेरा'। तो न आपका तन है बाडी-कान्सेस का मैं।*  मन में जो भी संकल्प चलते हैं अगर आज्ञाकारी हो तो बाप की आज्ञा क्या हैपाजिटिव सोचो, शुभ भावना के संकल्प करो। फालतू संकल्प करो - यह बाप की आज्ञा है क्यानहीं। तो जब आपका मन नहीं है फिर भी व्यर्थ संकल्प करते हो तो बाप की आज्ञा को प्रैक्टिकल में नहीं लाया ना! *सिर्फ एक शब्द याद करो कि-मैं 'परमात्म-आज्ञाकारी बच्चा हूँ'। बाप की यह आज्ञा है या नहीं हैवह सोचो। जो आज्ञाकारी बच्चा होता है वह सदा बाप को स्वत: ही याद होता है। स्वत: ही प्यारा होता है।* स्वत: ही बाप के समीप होता है। तो चेक करो मैं बाप के समीपबाप का आज्ञाकारी हूँएक शब्द तो अमृतवेले याद कर सकते हो - 'मैं कौन?' आज्ञाकारी हूँ या कभी आज्ञाकारी और कभी आज्ञा से किनारा करने वाले

 

✺   *ड्रिल :-  "'परमात्म-आज्ञाकारी बच्चा होने का अनुभव"*

 

 _ ➳  अमृतवेले मीठे शिवबाबा की कोमल स्पर्श से आँखे खुली... बाबा की मीठी मुस्कान देख रोमांचित हो उठी... बाबा का हाथ माथे पर अनुभव कर अपना दोनों हाथ उनकी ओर बढा दिया... बाबा का हाथ पकड अशरीरी हो चल पड़ी अनंत की सैर करने... मीठे बाबा की मधुर मुस्कान से मन पुलकित हो गया... *इतनी सहज सच्ची थी बाबा संग प्रेम अनुभूति...* बाबा संग रहने का दिल ने वायदा जो किया है... मीठे बाबा ही है तन मन धन संबंध में...

 

 _ ➳  जहां बाबा बसे हो वो तन है पवित्र, वो मन है मंदिर, वो संबंध है स्वर्णिम... *बाबा की शिक्षाऐं और ज्ञान की वर्षा से यह तन मन धन जन की सुधि खोने लगी...* मीठे बाबा के संग सहज ही सब विस्मृत सा अनुभव करती हूँ... मैं कौन और मेरा क्या ? *मैैं बाबा का और मीठा बाबा मेरा...* बड़ा ही सुंदर सरल अनुभव हुआ... स्वयं को बाबा के सान्निध्य में देखकर असीम संतोष का अनुभव किया... बाबा की समीपता से अंदर के भराव को महसूस कर रही हूँ...

 

 _ ➳  अपने पुराने जीर्ण शीर्ण देह और देह के परिचय के परत दर परत आवरण को अनायास चीरते हुए *अपने मूल स्वरूप के दर्शन कर हल्‍का महसूस कर रही हूँ... अंधकार की कालिमा से, समस्त व्यर्थ से मुक्ति को प्राप्त कर दीप्त आभामय हो गई हूँ... स्वयं को उज्जवल प्रकाश स्वरूप में देख पुराने मैं - पन, मेरा - पन से सहज भाव से किनारा कर समर्थ अनुभव करती हूँ... बाॅडी काॅन्शियस से वैराग महसूस हो रही है... बाबा की आज्ञाओं के पालन में रमता योगी बन आनंद ले रही हूँ...* कोई मेहनत नहीं, कोई परिश्रम नहीं केवल असीम शांति को महसूस कर भरपूर हो रही हूँ...

 

 _ ➳  सहज रीति से शुभ भावना व समर्थ संकल्प से परिपूर्ण हो तन मन धन के समर्पण से बोझ रहित प्रफुल्लित अनुभव कर रही हूँ... अपने इसी स्वरूप में स्थित होकर मैं आत्मा अपने कर्म क्षेत्र पर वापिस लौट आती हूँ... और अपने सभी कर्तव्यों का पालन कर... बाबा की आज्ञानुसार अपने *सर्व आत्मा भाईयों की निःस्वार्थ सेवा में अपना संगम का अनमोल समय व्यतीत करती हूँ...* मैं औैर मेरा को ज्योति स्वरूप का चोला पहनाकर  सदा समर्थ स्वरूप में रह *सर्व आत्माओं को  शांति प्रदान करने की सेवा में जुट जाती हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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