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 04 / 02 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *काम महाशत्रु पर विजयी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *अत्याचारों से डरे तो नहीं ?*

 

➢➢ *सब धर्म वालो को सन्देश देने की सेवा की ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *मन बुधी की एकाग्रता द्वारा हर कार्य में सफलता प्राप्त की ?*

 

➢➢ *अन्दर से अनासक्त व मनमनाभव की स्थिति में स्थित रहे ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *बाबा से अविनाशी फ्रेंडशिप का सम्बन्ध अनुभव किया ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे - सिर पर विकर्मो का बोझा बहुत है, इसलिए अब तक शारीरिक बीमारियां आदि आती है , जब कर्मातीत बनेगे तो कर्मभोग चुकतु हो जायेंगे"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... घर से चले थे तो खुबसूरत फूल से महके थे... देहभान की मिटटी ने मटमैला कर विकर्मो से लद दिया है... अब मीठे बाबा की *यादो में स्वयं को पुनः उसी ओज से भर चलो.*.. और कर्मातीत अवस्था को पाकर क्रमभोगो से सदा के मुक्त हो जाओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके बिना दारुण दुखो को जीते जीते किस कदर टूट चली थी... आपके मीठे प्यार ने दुःख भरे घावो को सुखाया है और *जीवन खुशनुमा बनाया है.*.. योगाग्नि में मै आत्मा विकर्मो से मुक्त होती जा रही हूँ...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... हर पल हर साँस हर संकल्प में ईश्वरीय यादो को पिरोकर क्रमभोगो से मुक्त हो कर्मातीत बन चलो... मीठे बाबा की यादे ही वह छत्रछाया है, जो सारे विकर्मो के बोझों को छुड़वायेगी... *सच्चे पिता की यादो में खो जाओ और सदा के निरोगी बन मुस्कराओ*...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी छत्रछाया में सारे दुखो से निकल कर... सुखो के बगीचे की ओर रुख कर रही हूँ... *जीवन अब सुख शांति और खुशियो का पर्याय बन चला है*... मै आत्मा निरोगी काया और सुनहरे स्वर्ग के सुखो की... अधिकारी बन मुस्करा रही हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... धरती पर प्यारा सा खेल खेलने आये थे.... पर खुद को मात्र शरीर समझ दुखो के, विकारो के दलदल में फंस गए हो.... अब ईश्वर पिता की *महकती यादो में अपनी रूहानी अदा को पुनः पाओ*... खुशनुमा रूहानी गुलाब सा बन सदा सुखो की बगिया में मुस्कराओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा यादो की प्रचण्ड अग्नि में स्वयं को दमकता सोना बना रही हूँ... वही सुनहरी ओज वही तेज वही रंगत पाकर... शरीर में मटमैले पन को धो रही हूँ... और कर्मातीत अवस्था को पा कर, *मीठे सुखो में खुशियो के गीत गा रही हूँ*..

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा कर्मयोगी हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  मैं *संगमयुगी श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा* हूँ... मुझ जैसा भाग्यवान कोई नहीं जो स्वयं भगवान मुझ आत्मा को मिल गए... मुझ आत्मा का श्रेष्ठ भाग्य बना दिया... मुझ आत्मा की स्वयं परमात्मा पालना करते हैं... शिक्षक बन रोज पढ़ाते हैं... गाइड बनकर मार्ग दिखाते हैं... स्वयं परमात्मा सतगुरु बन मुझ आत्मा को लक्ष्य प्राप्त करने का महामंत्र देते हैं...

 

➳ _ ➳  मुझ आत्मा के मन-बुद्धि पहले बिना लक्ष्य के मायावी आकर्षणों में भटकते रहते थे... अब मैं आत्मा लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए *मन-बुद्धि को एकाग्र* करती हूँ... एक प्राण प्यारे बाबा से योग लगाती हूँ... एक बाबा की याद में रहने से मुझ आत्मा के मन-बुद्धि का भटकन समाप्त होता जा रहा है...

 

➳ _ ➳  पहले मैं आत्मा अपने मन-बुद्धि को व्यर्थ संकल्पों का बांसी भोजन खिलाती थी... अब मैं आत्मा अपने मन-बुद्धि को *श्रेष्ठ संकल्पों का शुद्ध भोजन* खिलाती हूँ... मुझ आत्मा के व्यर्थ संकल्प स्वतः समाप्त होते जा रहे हैं... अब मैं आत्मा समर्थ और स्मृति स्वरूप बनती जा रही हूँ...

 

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा कर्म और योग दोनों को साथ-साथ रखती हूँ... अब मैं आत्मा मन और बुद्धि की एकाग्रता से स्थूल कर्म और अलौकिक कर्म सबमें सफलता प्राप्त कर रही हूँ... कर्मयोगी स्थिति में रहने से मुझ आत्मा को बाप की मदद भी स्वतः मिलती जा रही है... अब मैं आत्मा मन-बुद्धि की एकाग्रता द्वारा हर कार्य में सफलता प्राप्त करने वाली *कर्मयोगी अवस्था का अनुभव* कर रही हूँ...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल -  बाप के स्नेह का रिटर्न देने के लिए अंदर से अनासक्त व् मनमनाभव रहना*"

 

➳ _ ➳  बाप का स्नेह मुझ आत्मा को जो मिला है उसका रिटर्न अपनी चेकिंग कर, मेरी वृत्ति कहाँ तक अनासक्त है, कहाँ रग तो नही जाती है, मेरे को कोई खीचंता तो नहीं। अपने मन से पूछना है कहाँ तक मनमनाभव रहती हूँ, सदैव *मनमनाभव का मंत्र याद करते बुद्धियोग एक बाप के साथ लग जाए।*

 

➳ _ ➳  मैं सदा बाप के स्नेह में समाई हुई आत्मा हूँ... *बाप के स्नेह की दुआओं में पलने वाली आत्मा हूँ*... मुझ आत्मा को बाप के स्नेह का रिटर्न अपनी चैकिंग कर लौटाना हैं...

 

➳ _ ➳  मैं अनासक्त वृति में स्थित आत्मा हूँ... मुझ आत्मा की बुद्धि एक बाप की ही याद में समाई रहती है... *मुझ आत्मा में ममत्व मिटता जा रहा है*... मैं आत्मा किसी भी चिंतन में नही जा रही... मैं आत्मा स्मृति स्वरूप बनती जा रही हूँ... 

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा साइलेन्स का अनुभव करती जा रही हूँ... मैं आत्मा प्रेम... आनन्द... में खोती जा रही हूँ... मुझ आत्मा को कोई भी इच्छा अनुभव नही हो रही... *मुझ आत्मा ने भगवान को पहचान लिया*... वही मुझ आत्मा के सच्चे सच्चे पिता है... साथी है... साजन है...

 

➳ _ ➳  मुझ आत्मा का मोह अब विनाशी दुनिया से नष्ट होता जा रहा है... मैं आत्मा व्यक्तियों... वैभवों... किसी के सूक्ष्म रग से मुक्त होती जा रही हूँ... मैं आत्मा गुणों... *सर्व आकर्षणों से मुक्त अनुभव करती जा रही हूँ*...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपने को... बाबा की लाइट के फाउंटेन के नीचे अनुभव कर रही हूँ... मुझ आत्मा में लाइट और माइट भरती जा रही है... मैं आत्मा अनुभव कर रही हूँ... जैसे बाबा मेरे कानों में कह रहे हो... *ओ मेरे नयनों के नूर, नयनों के सितारे*... मैं आत्मा बस एक सच्चे मीत की प्रीत में लवलीन हूँ... मेरा तो बस एक शिव बाबा दूसरा न कोई...

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *मन-बुद्धि की एकाग्रता द्वारा हर कार्य में सफलता प्राप्त करने वाले कर्मयोगी होते हैं...  क्यों और कैसे?*

 

❉   मन-बुद्धि की एकाग्रता द्वारा हर कार्य में सफलता प्राप्त करने वाले कर्मयोगी होते हैं क्योंकि...  दुनिया वाले समझते हैं कि...  कर्म ही सब कुछ है लेकिन!  बापदादा कहते हैं कि... *कर्म अलग नहीं है। कर्म और योग दोनों साथ साथ हैं।* बस कर्म में एकाग्रता की शक्ति होना अति आवश्यक है।

 

❉   ऐसी दिव्य एकाग्रता से परिपूर्ण कर्मयोगी, के पास कैसा भी कार्य होगा अर्थात!  कैसा भी कर्म होगा उसमें वह सहज ही सफलता को प्राप्त कर लेता है। *फिर कर्म चाहे स्थूल हो या लौकिक होया फिर चाहे अलौकिक हो।* लेकिन! जब कर्म के साथ योग भी है और एकाग्रता भी है तो उस कार्य में सफलता हुई ही पड़ी है।

 

❉   अतः हमें अपने जीवन के सभी कर्मों  करते हुए बाबा को सदा ही अपने साथ रखना है और *अपने मन व अपनी बुद्धि को बाप के स्वरूप पर टिका कर रखना है* और मन व बुद्धि की एकाग्रता की शक्ति के द्वारा अपने हर कार्य में सफलता को प्राप्त करने वाले कर्मयोगी बनना है तथा अपने हर कार्य को सरलता से सहज रीति योग सहित परिपूर्ण भी करना है।

 

❉   माना कि... अगर हमारा, हमारे हर कर्म के साथ योग है और मन व बुद्धि की एकाग्रता भी है तो सफलता भी हमारे हर कर्म के साथ बंधी हुई है। *साथ ही बाप की मदद भीहम कर्मयोगी आत्माओं को, स्वतः ही मिलती रहेगी।* इसलिये!  हमें अपने मन और बुद्धि को, स्वयं की ही शक्ति, एकाग्रता की शक्ति द्वारा साध लेना है।

 

❉   अपनी एकाग्रता की शक्ति द्वारा, जब हमारा मन  और बुद्धि सध जायेंगेतो फिर चाहे स्थूल कर्म हो या फिर चाहे अलौकिक कर्म होदोनों ही प्रकार के कार्यों मेंसफल हो जाते हैं और *तब हम सही मायने में सच्चे सच्चे कर्मयोगी बनते हैं और साथ ही हम सफलतामूर्त आत्मा भी बन जाते हैं।* अपने हर कार्य में सफलतामूर्त आत्मा।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *बाप के स्नेह का रिटर्न देने के लिए अंदर से अनासक्त और मनमनाभव रहो... क्यों और कैसे* ?

 

❉   हर ब्राह्मण बच्चे के प्रति बापदादा की एक ही आश है, संपूर्ण पावन और योगी बन संपूर्णता को प्राप्त करना । जैसे *ब्रह्मा बाप ने अनासक्त और मनमनाभव रह कर संपूर्ण समर्पण भाव से शिव बाबा के इस फरमान का पालन किया* और संपूर्णता को प्राप्त कर लिया तो ऐसे फॉलो फादर करते हुए जो अनासक्त और मनमनाभव रह कर कार्य व्यवहार में रहते न्यारे और प्यारे बन बाप की इस आश को पूरा करने के प्रयास में लगे रहेंते हैं वही संपूर्ण पावन और योगी बन बाबा के स्नेह का रिटर्न देते हैं ।

 

❉   माँ बाप की हर आज्ञा का पालन करना ही एक बच्चे का अपने माँ बाप के प्रति स्नेह का रिटर्न होता है इसलिए *लौकिक में भी जो बच्चे अपने माता-पिता की हर आज्ञा का पालन करते हैं । वही सपूत बच्चे कहलाते हैं* । इसी प्रकार परम पिता परमात्मा बाप का भी हम बच्चों के लिए फरमान है कि हम संपूर्ण पवित्र और योगी बने और वह तभी बन सकेंगे जब देह अभिमान को छोड़ देही अभिमानी बन अंदर से अनासक्त और मनमनाभव रहेंगे । बाबा के इस फरमान का पालन करना ही उनके स्नेह का रिटर्न देना है ।

 

❉   हर एक ब्राह्मण आत्मा सदा ऊँचे ते ऊँचे  बाप के साथ ऊंची स्थिति में स्थित है । जैसा ऊंचा नाम वैसा ऊंचा काम । *जैसा विश्व के आगे ऊँचा मान है ऐसा ही स्वमान वा शान सदा कायम रहे* । यही बाप दादा की हर ब्राह्मण आत्मा में श्रेष्ठ कामना है । और बाप दादा की इस श्रेष्ठ कामना को पूरा करना ही  बापदादा के स्नेह का रिटर्न देना है । जिसे वही पूरा कर सकेंगे जो अंदर से अनासक्त और मनमनाभव रह कर अपनी सर्वश्रेष्ठ अथॉरिटीज को सदा स्मृति में रख अपनी ऊँची सर्वश्रेष्ठ स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर सदा स्थित रहेंगे ।

 

❉   जैसे एक स्टूडेंट पहले अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करता है और फिर उस लक्ष्य को पाने में दिन रात एक कर देता है । किन्तु जिस विद्यार्थी के सामने उसके जीवन का लक्ष्य स्पष्ट नहीं होता उसकी बुद्धि सदा भटकती रहती है । हम ब्राह्मणों को भी बाबा ने विश्व महाराजन बनने का लक्ष्य दिया है । *अगर हम अपने इस लक्ष्य को सामने रख पुरुषार्थ नही करेंगे तो लक्षण भी नहीं आएंगे* । इसलिए इस लक्ष्य को सामने रख जितना अंदर से अनासक्त और मनमनाभव रहने का पुरुषार्थ करेंगे । तो ही बाबा के सपूत बच्चे बन बाबा के स्नेह का रिटर्न दे सकेंगे ।

 

❉   वरदाता बाप से वरदान प्राप्त करने का सहज साधन है योग युक्ति और युक्ति युक्त रहना । जिसके लिए जरूरी है अनासक्त वृति और निरन्तर मनमनाभव की स्थिति । इन्ही घड़ियों का *भक्तों ने भी गायन किया है कि एक घड़ी, आधी घड़ी, आधी की पुन आध* ।  तो जितना बाहरी दुनिया से अनासक्त हो कर योगयुक्त रह, कर्म करते, सेवा करते दूसरों को सुख देते हैं । वह घड़ियां वरदान रुप में मिल जाती हैं और जो इन वरदानों से झोली भरकर जितना दान करते हैं । वह बाबा के स्नेह का रिटर्न देने वाले स्नेही बच्चे कहलाते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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