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 26 / 11 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*5=25)

 

➢➢ *संकल्प रुपी बीज को इतना शक्तिशाली बनाया जो प्रतक्ष्य रूप में रौनक दिखाई दी ?*

 

➢➢ *हर गुण, शक्ति और ज्ञान की पॉइंट का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *"पा लिया" - इसी ख़ुशी की चमक चेहरे से दिखाई दी ?*

 

➢➢ *"सदा महावीर बन विजयी रहेंगे" - यह विशेष संकल्प किया ?*

 

➢➢ *स्वयं निर्विघन बन सेवा को भी निर्विघन बनाया ?*

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         ❂ *तपस्वी जीवन प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं*

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〰✧  बाप को अव्यक्त रूप में सदा साथी अनुभव करना और सदा उमंग-उत्साह और खुशी में झूमते रहना। *कोई बात नीचे ऊपर भी हो तो भी ड्रामा का खेल समझकर बहुत अच्छा, बहुत अच्छा करते अच्छा बनना और अच्छे बनने के वायब्रेशन से नगेटिव को पॉजिटिव में बदल देना।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाये ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  बहुत न्यारा और बहुत प्यारा चाहिए। समझा क्या अभ्यास करना चाहिए? मुश्किल तो नहीं लगता है ना? कि थोडा-थोडा मुश्किल लगता है? कर्मेन्द्रियों के मालिक हो ना? राजयोगी अपने को कहलाते हो, किसके राजा हो? अमेरिका के, आफ़िका के! *कर्मन्द्रियों के राजा हो ना! और राजा बन्धन मे आ गया तो राजा रहा?*

 

✧  सभी का टाइटल तो बहुत अच्छा है। *सब राजयोगी हैं तो राजयोगी हो या प्रजायोगी हो?* कभी प्रजायोगी, कभी राजयोगी? तो डबल विदेशी सभी पास विद ऑनर होंगे? बापदादा को तो बहुत खुशी होगी - यदि सब विदेशी पास विद ऑनर हो जायें।

 

✧  थोडा-सा मुश्किल है कि सहज है? अच्छा मुश्किल शब्द आपके डिक्शनरी से निकल गया है। ये ब्राह्मण जीवन भी एक डिक्शनरी है। तो *ब्राह्मण जीवन के डिक्शनरी में मुश्किल शब्द है ही नहीं* कि कभी-कभी उडकर आ जाता है?

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:- 15)

 

➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  सहजयोगी बनने का साधन- अनुभवों की अथॉरिटी का आसन"*

 

_ ➳  मधुबन के प्रांगण में बाबा की कुटिया में बैठी हुई मैं आत्मा... बाबा से रुहरिहान कर रही हूँ... ब्राहमण जीवन की अनुभव स्मृति में आ रहे हैं... मैं आत्मा मन में चिन्तन करती हूँ... कि सारे कल्प में सबसे श्रेष्ठ जन्म यही ब्राह्मण जन्म है... *स्वयं भगवान ने मुझे अपनी गोदी में बिठा लिया है... भगवान की गोद के बच्चे बन गए... उनकी पालना में पल रहे हैं... वाह रे मेरा भाग्य...* स्वयं भगवान हर पल, हर कर्म में मेरा साथी है... सोते, जागते, खेलते, खाते, हर कर्म करते बाबा मेरा साथी है... *ऐसा रूहानी मौजों से, अतीन्द्रिय सुखों से भरा हुआ अति श्रेष्ठ मरजीवा जन्म है ये...* बापदादा की भृकुटी से, मस्तक से, नैनों से दिव्य तेज बरस रहा है... मुझ फरिश्ते में समाता जा रहा है... मैं फरिश्ता इस रूहानी नूर को स्वयं में समाती जा रही हूँ...

 

  *मेरे जीवन रूपी बगिया को महकाने वाले बागवान शिवबाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... *ब्राह्मण बनने के बाद दिन प्रतिदिन जो सुख सावन बरसता है... रिमझिम रिमझिम अतींद्रिय सुख की जो बारिश होती है... जिसमें तुम हर पल स्नान करते हो... यह अनुभवों की रसना ही सहजयोगी बनने का साधन है...* इस अनुभव की अथॉरिटी को बढ़ाते जाओ... फिर योग लगाना नहीं पड़ेगा स्वतः ही बाबा की याद हर पल बनी रहेगी..."

 

_ ➳  *बाबा के स्नेह की किरणों रूपी बाहों में बैठी हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे मीठे प्यारे बाबा... आपके स्नेह का जो झरना मुझ पर अनवरत बरसता रहता है... सच्चे आनंद की आप हर क्षण मुझ आत्मा को भासना दे रहे हैं... इन अनुभवों को मैं आत्मा सदा बढ़ाती रहूँगी... *अनुभव की अथॉरिटी, खुशी की झलक मेरे चेहरे पर स्पष्ट दिखाई दे रही है... मैं आत्मा एक आप की ही लगन में मगन होती जा रही हूँ..."*

 

  *ज्ञान के गुह्य राज समझाते हुए ज्ञान चंद्रमा बाबा कहते हैं:-* "मेरे प्यारे रूहानी गुलाब बच्चे... *अनुभव की अथॉरिटी सबसे बड़ी अथॉरिटी है...* जिस भंवर ने एक बार पुष्प के मधुर रस का पान कर लिया, वह फिर फिर के उस की ही तरफ जाएगा... कोई कितना भी उसे दूर करना चाहे लेकिन दूर कर नहीं सकता...  इसी प्रकार *अनुभवी आत्मा कभी भी किसी प्रकार के माया के रॉयल रुप से धोखा नहीं खा सकती... इसलिए तुम सदा ईश्वरीय स्नेह के सागर में गोते लगाते रहो..."*

 

_ ➳  *बाबा से मिले ज्ञान रत्नों को बुद्धि रूपी झोली में समेटते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे जीवन के आधार मीठे बाबा... जिस जिव्हा ने आपके स्नेह का अमृत पी लिया है... वह अब माया रुपी नीम की कड़वी पतियों को कैसे चख सकती है... मीठे बाबा... *मैं आत्मा आपके बताए हुए मार्ग पर ही चलूंगी... आपके स्नेह में समा कर मैं आत्मा हर गुण, हर शक्ति की, ज्ञान के हर पॉइंट की अनुभवी मूर्त बनती जा रही हूँ..."*

 

  *स्वाति नक्षत्र की प्रेम बूंदें बरसाकर मेरे जीवन को बहुमूल्य मोती समान बनाने वाले बाबा कहते हैं:-* "प्यारे रूहानी बच्चे... जैसे बीज भरपूर होता है... ऐसे ही तुम भी ज्ञान, गुण, शक्तियों सभी से भरपूर बनो... अथॉरिटी की महानता सबको झुकाती है... *अनुभवों की अथॉरिटी वाली आत्मा माया को झुकाएगी ना कि स्वयं झुकेगी... योगी आत्मा की झलक चेहरे से स्पष्ट दिखाई देती है... अपने ईश्वरीय नशे व खुमारी को सदा बढ़ाते रहो..."*

 

_ ➳  *मीठे बाबा की स्नेह वर्षा में झूमती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे मीठे-मीठे बाबा... मैं आत्मा ज्ञान, गुण और शक्तियों को स्वयं में धारण कर इनकी अनुभवी मूर्त बनती जा रही हूँ... अनुभव के सागर में समाई हुई मैं आत्मा अपने चेहरे से, मुखडे से एक आपका ही दीदार करा रही हूँ... क्योंकि *चेहरा ही मन की शक्ति का दर्पण है... अनुभवों के आसन पर स्थित हो करके मैं... निरंतर योगी, स्वतः योगी, सहजयोगी बनती जा रही हूँ..."*

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- संकल्प रुपी बीज को इतना शक्तिशाली बनाना जो प्रतक्ष्य रूप में रौनक दिखाई दे*"

 

_ ➳  "ब्राह्मणों के श्रेष्ठ और शक्तिशाली संकल्प से ही सृष्टि परिवर्तन का कार्य सम्पन्न होगा" बाबा के इन महावाक्यों को स्मृति में ला कर मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि सृष्टि परिवर्तन के कार्य मे भगवान का मददगार बनने के लिए मुझे अपने मन मे उठने वाले हर संकल्प पर विशेष अटेंशन देना होगा। *संकल्प रूपी बीज को इतना शक्तिशाली बनाना होगा जो  शुद्ध संकल्प की चमक मेरे चेहरे पर चमकती हुई सर्व आत्माओं को स्पष्ट दिखाई दे*। और चेहरे पर उमंग - उत्साह की चमक लाने के लिए जरूरी है स्वयं को हर गुण, हर शक्ति और हर ज्ञान के प्वाइंट के अनुभव से सम्पन्न बनाना।

 

_ ➳  इसी चिंतन के साथ स्वयं को ज्ञान, गुण और शक्तियों से भरपूर करने के लिए अब मैं *ज्ञान, गुण और शक्तियों के सागर अपने शिव पिता के पास जाने के लिए स्वयं को देह के भान से मुक्त कर देही अभिमानी स्थिति में स्थित होती हूँ*। इस स्थिति में स्थित होते ही अपने सत्य स्वरूप का अब मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से अपने वास्तविक ज्योतिर्मय स्वरूप को मैं स्पष्ट देख रही हूँ।

 

_ ➳  एक चमकता हुआ चैतन्य सितारा जिसमे से निकल रहा प्रकाश धीरे - धीरे फैलता हुआ मेरे चारों और प्रकाश का एक बहुत ही सुंदर कार्ब निर्मित कर रहा है जिसमे मुझ आत्मा में निहित सातों गुण समाये हुए है जो मन को  शांति, प्रेम, सुख, पवित्रता, शक्ति, ज्ञान और आनन्द की गहन अनुभूति करवा रहें हैं। *अपने सत्य स्वरूप और गुणों की यही अनुभूति मुझे गुणों के सागर मेरे शिव पिता परमात्मा के साथ जोड़ रही है*। मेरी बुद्धि का कनेक्शन परमधाम में रहने वाले मेरे शिव पिता परमात्मा से जुड़ रहा है जो मुझे अपनी और खींच रहा है।

 

_ ➳  मैं चैतन्य सितारा अब भृकुटि से निकल कर ज्ञान, गुण और शक्तियों के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के पास जा रहा हूँ। *एक जगमग करती ज्योति मैं आत्मा धीरे - धीरे ऊपर की और बढ़ते हुए अब आकाश को पार करके उससे भी ऊपर पहुँच गई लाल प्रकाश की एक अति सुंदर दुनिया में जहां चारों और चमकती हुई मणियां दिखाई दे रही हैं*। मेरे बिल्कुल सामने है महाज्योति मेरे शिव पिता जिनसे अनन्त प्रकाश की किरणें निकल कर पूरे परमधाम को प्रकाशित कर रही हैं।

 

_ ➳  बाबा से आ रही सर्व गुणों और सर्वशक्तियों की ये शक्तिशाली रंग बिरंगी किरणे मुझे अपनी और आकर्षित कर रही है और मैं धीरे - धीरे बाबा के पास जा रही हूँ। बाबा के पास पहुँच कर अब मैं बाबा को टच कर रही हूँ। *बाबा को टच करते ही बाबा के समस्त गुणों और शक्तियों को मैं स्वयं में समाता हुआ अनुभव कर रही हूँ*। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा के समस्त गुण और शक्तियाँ मुझ आत्मा में समा गए हैं और मैं बाबा के समान सर्वशक्तियों से सम्पन्न बन गई हूँ।

 

_ ➳  सर्वशक्तियों से सम्पन्न शक्तिस्वरूप बन अब मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ। *अपने साकारी तन में भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हो कर अब मैं निरन्तर बाबा की याद में रह संकल्प रूपी बीज को शक्तिशाली बना रही हूँ*। शुभ और श्रेष्ठ संकल्प की चमक मेरे चेहरे पर उमंग उल्लास की रौनक के रूप में स्पष्ट दिखाई दे रही है। हर गुण, हर शक्ति और हर ज्ञान के प्वाइंट के अनुभवों से सम्पन्न अनुभवीमूर्त बन अनुभव की अथॉरिटी से स्वयं को भरपूर अनुभव करते हुए मैं अपने सम्बन्ध, सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को गुण, ज्ञान और शक्तियों के खजाने से भरपूर कर रही हूँ।

 

_ ➳  *"सर्व अनुभवों की अथॉरिटी के आसन" पर सदा स्थित रहते हुए अपने सहज योगी, स्वत: योगी स्वरूप द्वारा मैं सर्व आत्माओं को परमात्म प्रेम का प्रत्यक्ष अनुभव करवा रही हूँ*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं एकाग्रता के अभ्यास द्वारा मन बुद्धि को अनुभवों की सीट पर सेट करने वाली निर्विघ्न आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को स्वमान में स्थित करने का विशेष योग अभ्यास किया ?

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सेकण्ड में विस्तार को सार में समाने के अभ्यास द्वारा अंतिम सर्टिफिकेट पाने वाली आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ स्मृतियों में टिकाये रखने का विशेष योग अभ्यास किया ?

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *वाह मेरा परिवार! वाह मेरा भाग्य! और वाह मेरा बाबा! ब्राह्मण जीवन अर्थात् वाह-वाह! हाय-हाय नहीं।* शारीरिक व्याधि में भी हाय-हाय नहींवाह! यह भी बोझ उतरता है। अगर 10 मण से आपका 3-4 मण बोझ उतर जाए तो अच्छा है या हाय-हायक्या है?वाह बोझ उतरा! हाय मेरा पार्ट ही ऐसा है! हाय मेरे को व्याधि छोड़ती ही नहीं है! आप छोड़ो या व्याधि छोड़ेगी? *वाह-वाह करते जाओ तो वाह-वाह करने से व्याधि भी खुश हो जायेगी।* देखोयहाँ भी ऐसे होता है नाकिसकी महिमा करते हो तो वाह-वाह करते हैं। तो व्याधि को भी वाह-वाह कहो। हाय यह मेरे पास ही क्यों आईमेरा ही हिसाब है! प्राप्ति के आगे हिसाब तो कुछ भी नहीं है। *प्राप्तियां सामने रखो और हिसाब किताब सामने रखोतो वह क्या लगेगाबहुत छोटी सी चीज लगेगी।* मतलब तो ब्राह्मण जीवन में कुछ भी हो जाए, पाजिटिव रूप में देखो। निगेटिव से पाजिटिव करना तो आता है ना। निगेटिव पाजिटिव का कोर्स भी तो कराते हो ना! तो उस समय अपने आपको कोर्स कराओ तो मुश्किल सहज हो जायेगा। *मुश्किल शब्द ब्राह्मणों की डिक्शनरी में नहीं होना चाहिए। अच्छा - कोई भी हिसाब हैआत्मा से हैशरीर से है या प्रकृति से हैक्योंकि प्रकृति के यह 5 तत्व भी कई बार मुश्किल का अनुभव कराते हैं। कोई भी हिसाब-किताब योग अग्नि में भस्म कर लो।*

 

✺   *ड्रिल :-  "ब्राह्मण जीवन में वाह-वाह करते हिसाब-किताब से छूटने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *कोहिनूर समान चमकती हुई मैं नूर भृकुटी सिंहासन पर विराजमान हो जाती हूँ...* मुझ नूर से चमकती हुई किरणें निकल कर चारों ओर फैल रही है... इस शरीर से बाहर निकलकर चमकते हुए प्रकाश के कार्ब में बैठकर मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ सूक्ष्मवतन... श्वेत प्रकाश की दुनिया में... *जहाँ बापदादा हिसाब-किताब के लिस्ट देख रहे हैं...*  मैं आत्मा बाबा के पास जाकर बैठ जाती हूँ...   

 

 _ ➳  मैं आत्मा बाबा से पूछती हूँ प्यारे बाबा- इस लिस्ट में मेरे और कितने हिसाब किताब रह गए हैं... बाबा बोले- *मीठी बच्ची 63 जन्मों के हिसाब किताब हैं... यूं ही थोड़ी खत्म हो जायेंगे...* हाँ बाबा कब से मैं आप को ढूंढ रही थी... पर आपने मुझे ढूंढ लिया... *कितने समय के बाद बाबा आप मिले हो कह कर मैं आत्मा बाप दादा के गले लग जाती हूँ...*      

 

 _ ➳  *मेरी सिकीलधि बच्ची कहकर बापदादा मुझे अपनी गोदी में बिठाकर... मुझ पर अनन्त प्यार बरसा रहे हैं...* मैं आत्मा बाबा के प्यार में समा रही हूँ... मुझ आत्मा का कितना ऊंचा भाग्य है जो ऊँचे ते ऊँचे परमात्मा के साथ विशेष पार्ट है... अब मैं सदा इसी स्मृति में रहती हूँ कि मैं श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा गुणों के सागर की संतान हूँ... मैं आत्मा स्मृति स्वरूप बन रही हूँ...  

 

 _ ➳  बाबा मुझे वाह-वाह के गीत गाकर सुनाते हैं... *मुझ आत्मा के सभी हिसाब-किताब इस प्यारे से मीठे से वाह-वाह के गीत सुनकर चुक्तू हो रहे हैं...* वाह बाबा वाह ! आपने कितना सरल उपाय बताकर मुझ आत्मा के बोझ को हल्का कर दिया... प्यारे मीठे बाबा इस हाय-हाय की जंजीर से मुझ आत्मा को आपने मुक्त कर दिया है...  

 

 _ ➳  *अब मैं नूर सदा निगेटिव को पॉजिटिव कर बाबा की नूरे रतन बन गई हूँ...* प्रभु पसन्द बन गई हूँ... *अब मैं आत्मा सदा योग अग्नि से अपने हिसाब किताब चुक्तू करती हूँ...* मैं आत्मा बाबा से मिली अनन्त प्राप्तियों का, अखण्ड खजानों का अनुभव करती हूँ...  *अब मैं आत्मा सदा वाह मेरा परिवार ! वाह मेरा भाग्य ! और वाह मेरा बाबा ! के गीत गाते अपने को सरलता से सभी हिसाब किताब से छूटने का अनुभव कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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