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 12 / 08 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *"अपना रजिस्टर खराब न हो" - इस बात का ध्यान रखा ?*

 

➢➢ *कर्मेन्द्रियों से कोई भी भूल तो नहीं की ?*

 

➢➢ *ज्ञान अमृत पीया और पिलाया ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *नथिंग न्यू की युक्ति द्वारा हर परिस्थिति में मौज का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *शुभ भावना और शुभ कामना से शुभ वाइब्रेशन फैलाए ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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➳ _ ➳  आवाज से परे रहने वाला बाप, आवाज की दुनिया में आवाज द्वारा सर्व को आवाज से परे ले जाते हैं। बापदादा का आना होता ही है साथ ले जाने के लिए तो सभी साथ जाने के लिए एवररेडी हो वा अभी तक तैयार होने के लिए समय चाहिए? *साथ जाने के लिए बिन्दु बनना पडे। और बिन्दु बनने के लिए सर्व प्रकार के बिखरे हुए विस्तार अर्थात अनेक शाखाओं के वृक्ष को बीज में समाकर बीजरूप स्थिति अर्थात बिन्दु में सबको समाना पडे।* लौकिक रीति में भी जब बडे विस्तार का हिसाब करते हो तो सारे हिसाब को समाप्त कर लास्ट में क्या कहते? कहा जाता है - 'कहो शिव अर्थात बिन्दी।' ऐसे सृष्टि चक्र वा कल्प वृक्ष के अन्दर आदि से अंत तक कितने हिसाब-किताब के विस्तार में आये? अपने हिसाब-किताब की शाखाओं अथवा विस्तार रूपी वृक्ष को जानते हो ना? देह के हिसाब की शाखा, देह के सम्बन्धों के शाखायें, देह के भिन्न-भिन्न पदार्थों में बन्धनी आत्मा बनने की शाखा, भक्तिमार्ग और गुरुओं के बंधनों के विस्तार की शाखायें, भिन्न-भिन्न प्रकार के विकर्मों के बंधनों की शाखायें, कर्मभोग की शाखायें, कितना विस्तार हो गया। अब इन *सारे विस्तार को बिन्दु रूप बन बिन्दी लगा रहे हो?*

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  ज्ञान अमृत पीना और पिलाकर, स्वर्गवासी बनाने की सेवा करना"*

 

_ ➳  अपने *अमीर पिता भगवान को.... यूँ सहजता से पाकर, जो खुशियो की दौलत मुझ आत्मा ने पायी है.*.. वह दौलत गिनती हुई मै आत्मा... मधुबन में मीठे बाबा के कमरे में पहुंचती हूँ... मुझे देख मेरा अमीर शनशाह बाबा प्यारी मुस्कान से भर उठा है... मीठे बाबा की गोंद में बड़े ही अधिकार से बेठ जाती हूँ... और अपनी अमीरी को मीठे बाबा को दिखाती हूँ... मेरा प्यारा बाबा... जिसने मुझे इतना दौलतमंद बनाया... निरहंकारी सा, मेरे दिल की सारी दास्ताँ... मुस्कराता हुआ सुनता जा रहा है...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी सारी दौलत खजानो से भरपूर करते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पुत्र बनने के महान भाग्य को पाया है वह नशा सदा छलकाते रहो... *ज्ञान रत्नों की जो अमीरी पायी है उस अमीरी को सदा दिलो पर बरसाते रहो..*. आत्माओ को दुखो के दलदल से निकाल कर सुखो के स्वर्ग में ले जाने की सेवा करो..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा को असीम धन का दिल से धन्यवाद देते हुए कहती हूँ :- "मेरे मीठे बाबा... आपने मेरा जीवन फूलो जैसा खिला दिया है... *ज्ञान रत्नों से भरकर मुझे कितना दौलतमंद बना दिया है.*.. मै आत्मा जहाँ भी जाती हूँ इस दौलत को बाँटती हूँ.. और देखती हूँ हर दिल इस अमीरी का दीवाना है..."

 

   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपना सच्चा धर्म और कर्म समझाते हुए कहा:- "मेरे लाडले मीठे बच्चे...  *संगम के वरदानी समय पर सच्चे ब्राह्मण के धर्म और कर्म को सदा यादो में बसाओ.*.. सदा ज्ञान रत्नों की चर्चा में मगन रहो... अपने समान ही भाग्यवान हर दिल को भी बनाओ... सबको इन उजली रौशन राहो का पता दे आओ कि... अथाह सुख उन्हें पुकार रहे है..."

 

_ ➳  मै आत्मा अपने स्स्व्हे सहारे मीठे बाबा को पाकर धन्य हो कहती हूँ :- "मेरे जादूगर प्यारे बाबा... आपने मुझ आत्मा के जीवन को अपने हाथ में थामकर, कितने सुख और सुकून से भर दिया है... *मै आत्मा इस जहान में सबसे ज्यादा अमीर हूँ... क्योकि मेने भगवान को ही पा लिया है..*. अपनी यह ख़ुशी और ज्ञान रत्नों की झनकार मै हर दिल को सुना रही हूँ..."

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा पर वरदानों भरी किरणे उंडेलते हुए कहते है :- "मीठे सिकीलधे प्यारे बच्चे :- " सदा श्रीमत के हाथो को थामकर, खुशियो भरी राहो पर मुस्कराते रहो... *रत्नागर बाबा को पाकर जिस खजानो के मालिक बने हो... उस दौलत को हर समय गिनते रहो, और सबको बांटते रहो..*. इस विश्व धरा से दुखो का नामोनिशान मिटाकर.. सुखो का साम्रज्य लाने की सेवा करो..."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा की शिक्षाओ को दिल में समाते हुए कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा... *आपने मेरा सहारा बनकर... मुझे मिटटी के भुरभुरे सहारो की मोहताजी से मुक्त कर दिया है.*.. मै आत्मा आपकी गोद और अथाह रत्न पाकर... सोभाग्य से भर गयी हूँ... और यह खुशनसीबी मै पूरे विश्व में बिखेर रही हूँ..."अपने प्यारे बाबा का दिल से आभार करके मै आत्मा... स्थूल धरा पर आ गयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सर्वगुण सम्पन्न बनने के लिए कर्मेन्द्रियों से ऐसा कोई पाप कर्म नही करना जिससे विकर्म बने*"

 

 _ ➳  दुनिया मे हो रहे पापाचार, भ्रष्टाचार का दृश्य मैं देख रही हूँ और विचार करती हूं कि यही दुनिया कभी स्वर्ग हुआ करती थी। *एक दूसरे के प्रति सभी के हृदय आपसी स्नेह और प्यार से लबालब थे किंतु आज वो स्नेह, वो प्यार कहाँ चला गया*! अकेले बैठे मैं स्वयं से ही ये सवाल जवाब कर रही हूं।

 

 _ ➳  तभी मैं एक दृश्य देखती हूँ जैसे कोई राजदरबार लगी है। सामने सिहांसन पर कोई राजा बैठा है और उसके सामने उसके मंत्री बैठे हैं जिनके साथ वह कुछ विचार विमर्श कर रहा है। *मंत्री गलत सलाह दे कर राजा को गलत कामों के लिए उकसा रहें है। राजा में इतनी समर्थता नही कि वो समझ सके क्या सही है और क्या गलत*। उनके बहकावे में आ कर वो गलत कर्म कर रहा है उसे गलत कर्म करते देख उसके राज्य के सभी लोग भी गलत कर्म कर रहें हैं। मैं सोचती हूँ कि जिस देश का राजा ही भ्रष्ट है तो उस देश में स्वत: ही भ्रष्टाचार का बोलबाला होगा।

 

 _ ➳  इस दृश्य को देखते देखते एकाएक स्मृति आती है कि *मैं आत्मा भी तो राजा हूँ किन्तु कर्मेन्द्रियों रूपी मंत्रियों के बहकावे में आ कर जाने अनजाने में मुझ से कितने विकर्म हुए जिनका बोझ मुझ आत्मा पर चढ़ता चला गया*। 63 जन्मो के विकर्मों का बोझ अब मुझ आत्मा को उतारना है और उसे उतारने के लिए मेरे पास केवल यही एक जन्म है। मन में यह ख़्याल आते ही मैं आत्मा 63 जन्मो के विकर्मों की कट को योग अग्नि में भस्म करने के लिए, इस साकारी देह को छोड़ चल पड़ती हूँ शिव बाबा के पास।

 

_ ➳  साकारी और सूक्ष्म लोक से परे आत्माओं की निराकारी दुनिया परमधाम में अब मैं स्वयं को अपने शिव पिता परमात्मा के सम्मुख देख रही हूं। बुद्धि का योग उनसे लगा कर उनसे आ रही सर्वशक्तियों को मैं स्वयं में समा रही हूँ। धीरे धीरे ये शक्तियां जवालस्वरूप धारण करती जा रही है। ऐसा लग रहा है जैसे एक बहुत बड़ी ज्वाला प्रज्ज्वलित हो उठी हो। *अग्नि का एक बहुत बड़ा घेरा मेरे चारों ओर बनता जा रहा है और उस अग्नि की तपिश से मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकर्मों की कट और तमोगुणी संस्कार जल कर भस्म होने लगे हैं*। मैं आत्मा बोझमुक्त हो रही हूं। सच्चा सोना बनती जा रही हूं। स्वयं को अब मैं एकदम हल्का, पापमुक्त अनुभव कर रही हूं। हल्की हो कर अब मैं आत्मा वापिस लौट रही हूं।

 

_ ➳  साकारी दुनिया मे अपने साकारी शरीर मे विराजमान हो कर अब मैं आत्मा मस्तक पर स्वराज्य तिलक लगाए, स्वराज्य अधिकारी बन, मालिकपन की स्मृति में रह हर कर्म कर रही हूं। *राजा बन रोज कर्मेन्द्रियों रूपी मंत्रियों की राजदरबार लगा, उन्हें उचित निर्देश देने से अब मेरे जीवन रूपी शासन की बागडोर सुचारु रूप से चल रही है। अब हर कर्मेन्द्रिय मेरे अधीन है और मेरी इच्छानुसार कार्य कर रही है*। कर्मेन्द्रियों पर सम्पूर्ण नियंत्रण होने और बुद्धि की लाइन क्लीयर होने से अब मैं आत्मा आध्यात्मिक ऊंचाइयों को छूने लगी हूँ।

 

 _ ➳  व्यर्थ चिंतन के प्रभाव से अब मैं मुक्त हो गई हूं इसलिये परमात्म पालना के झूले में झूलती रहती हूं। परमात्म शक्तियों से भरपूर होने के कारण शक्तिशाली बन अब मैं सदा उड़ती कला में उड़ती रहती हूं। *परम आनन्द से सदा भरपूर रहने के कारण मास्टर दाता बन सर्व आत्माओं को देने की ही भावना अब मेरे मन मे निरन्तर रहती है* इसलिए सर्व आत्माओं के प्रति शुभभावना रखने से उनके साथ बने कार्मिक एकाउंट चुकतू होने लगे हैं, विकर्मों के खाते बन्द हो रहे हैं और मैं सहज ही विकर्माजीत बनती जा रही हूं। *तीन स्मृतियों का तिलक अब मेरे मस्तक पर सदैव लगा रहता है जिससे मुझे निरन्तर यह स्मृति रहती है कि अब मुझे कर्मेन्द्रियों से ऐसा कोई पाप कर्म नही करना जिससे विकर्म बने*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  मैं आत्मा नथिंगन्यु की युक्ति द्वारा परिस्थिति में मौज का अनुभव करती  हूँ।* 

 

 _ ➳  *पहाडों सी परिस्थिति में नथिंगन्यु का पाठ पक्का कर मैं आत्मा मौज का अनुभव करती हूँ...* बीती को बिंदी लगाकर हर उलझन को साक्षी भाव से देखती हूँ... *नथिंगन्यु की युक्ति से हर उलझन को सुलझाती रहती हूँ...* हर परिस्थिति को उड़ता पंछी बन पार करती जा रही हूँ... परिस्थिति रूपी परीक्षाओं को साक्षीपन के सीट पर सेट हो कर के नथिंगन्यु के पाठ रूपी बापदादा की शिक्षाओं द्वारा पास करती रहती हूँ... *हर खाई रूपी परिस्थिति में हनुमान बन हाई जम्प लगाती रहती हूँ...*

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- वृति में शुभ भावना और शुभ कामना को रख शुभ वायब्रेशन को फैलाने का अनुभव"*

 

_ ➳  मैं बाप समान सारे विश्व की आत्माओं प्रति... शुभ भावना और शुभ कामना रखने वाली विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ... बाबा से आती शुभ संकल्पों रूपी किरणें... सूर्य की किरणों के समान... मुझ आत्मा से होती हुई... *विश्व के चारों ओर फैलती जा रही है*... आज विश्व की आत्मायें चिंताओं में तपड रही है... *शुभ कामना और शुभ भावना... यही सेवा का फाउंडेशन है*... मैं आत्मा विश्व की आत्माओं के प्रति सदा यही शक्तिशाली... शुभ संकल्प करती हूँ कि... विश्व की सर्व आत्माओं का कल्याण हो...सभी को सुख-शांति का वर्सा मिले... जो उनका अधिकार है... मुझ आत्मा की शुभ भावना द्वारा .. सम्पर्क में आने वाली आत्माएँ...यह अनुभव कर रही है कि...  हमारे आने से वायुमंडल में शुभ वायब्रेशन फैलने लगे है... मुझ आत्मा की *शुभ भावना से आत्माओं के व्यर्थ  समाप्त होते जा रहे है*... मुझ आत्मा की शुभ व्रति से... *लोगो को वायब्रेशन आने लगे है...कि कोई शांति का पुंज...शांति की किरणें दे रहा है*...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  स्व-चिंतन का मतलब क्या है? स्वचिन्तन इसको नहीं कहा जाता है कि सिर्फ ज्ञान की पाइन्ट्स रिपीट कर दी या ज्ञान की पाइन्ट्स सुन लीसुना दी-सिर्फ यही स्वचिन्तन नहीं है। लेकिन *स्वचिन्तन अर्थात् अपनी सूक्ष्म कमजोरियों कोअपनी छोटी-छोटी गलतियों को चिन्तन करके मिटाना, परिवर्तन करनाये स्वचिन्तन है।*

➳ _ ➳  बाकी ज्ञान सुनना और सुनाना उसमें तो सभी होशियार हो। वो ज्ञान का चिन्तन हैमनन है लेकिन *स्वचिन्तन का महीन अर्थ अपने प्रति है। क्योंकि जब रिजल्ट निकलेगी तो रिजल्ट में यह नहीं देखा जायेगा कि इसने ज्ञान का मनन अच्छा किया या सेवा में ज्ञान को अच्छा यूज किया।* इस रिजल्ट के पहले स्वचिन्तन और परिवर्तन, *स्वचिन्तन करने का अर्थ ही है परिवर्तन करना।*

➳ _ ➳  तो *जब फाइनल रिजल्ट होगी, उसमें पहली मार्क्स प्रैक्टिकल धारणा स्वरूप को मिलेगी।* जो धारणा स्वरूप होगा वो नैचरल योगी तो होगा ही। *अगर मार्क्स ज्यादा लेनी है तो पहले जो दूसरों को सुनाते हो, आजकल वैल्यूज पर जो भाषण करते हो, उसकी पहले स्वयं में चेकिंग करो।* क्योंकि सेवा की एक मार्क तो धारणा स्वरूप की १० मार्क्स होती हैं, अगर आप ज्ञान नहीं दे सकते हो लेकिन अपनी धारणा से प्रभाव डालते हो तो आपके सेवा की मार्क्स जमा हो गई ना।  

✺   *ड्रिल :-  "स्वचिन्तन से अपनी सूक्ष्म कमजोरियों को मिटाना, परिवर्तन करना"*

➳ _ ➳  मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ... सर्वशक्तियों के सागर... अपने प्यारे पिता... शिवबाबा के पास... परमधाम में... जहाँ ज्ञान सूर्य अपनी सर्वशक्तियाँ चारों ओर बिखेर रहे हैं... *मैं आत्मा शिवबाबा के सम्मुख... ज्ञान सूर्य के तेज़ को स्वयं में अनुभव कर रही हूँ...* फिर बाबा को साथ लेकर सूक्ष्म वतन में जाती हूँ...

➳ _ ➳  मैं आत्मा बापदादा के सम्मुख... बाबा से कहती हूँ... बाबा मुझ आत्मा में अभी भी आलस्य, अलबेलेपन के सूक्ष्म संस्कार हैं... दूसरे की कमी कमजोरी दिखाई देती है... *बाबा... मैं आत्मा आपकी याद से... दृढ़ता की चाबी यूज़ करते हुए... इन सूक्ष्म संस्कारों पर विजय प्राप्त करुँगी...*

➳ _ ➳  बाबा... मुझ आत्मा को *"विजयी भव" का वरदान देते हुए कहने लगे... बच्ची... अब इन पुराने संस्कार... स्वभाव को  दृढ़ संकल्प की तीली द्वारा... चेक कर फिर चेंज करो...* यह समय उड़ती कला का है... इसलिये अब स्वचिंतन द्वारा स्वयं में परिवर्तन कर पुरुषार्थ को तीव्र करो...

➳ _ ➳  मैं आत्मा दृढ़ता की पेटी बाँध... स्व का चिंतन करती हूँ... *पुराने स्वभाव... संस्कार... बाबा की याद से परिवर्तित हो रहे हैं... मैं आत्मा बाप समान... मीठी बन रही हूँ...* दिव्य अलौकिक शक्तियां मुझ आत्मा में प्रवाहित हो रही हैं... अलबेलेपन और दूसरे की कमी कमजोरी देखने का संस्कार समाप्त हो गया है... *मैं आत्मा दिव्य गुणों को धारण कर... धारणा सम्पन्न अवस्था का अनुभव कर रही हूँ...*

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा समय की तीव्र गति के प्रमाण... स्वचिंतन द्वारा स्वयं के परिवर्तन की गति को तीव्र कर रही हूँ... श्रेष्ठ संस्कारों को स्वयं में धारण कर रही हूँ... मैं आत्मा संकल्प करते ही... निश्चित समय पर हर कर्म को करते हुए सफलता प्राप्त कर रही हूँ... बाबा द्वारा दी गयी *हर श्रीमत को फॉलो कर हर परिस्थिति में अचल, अडोल बन विजय प्राप्त कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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