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❍ 07 / 01 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 2*5=10)
➢➢ *"भगवान आकर हमारी माया से रक्षा करते हैं" - इसी ख़ुशी में रहे ?*
➢➢ *"सच्चा सप्पोत बन बाप का पूरा पूरा मददगार बनकर रहे ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:3*10=30)
➢➢ *शुधि की विधि द्वारा किले को मज़बूत बनाया ?*
➢➢ *यथार्थ कर्म कर ख़ुशी और शक्ति के प्रतक्ष्य फल का अनुभव किया ?*
➢➢ *एकरस आत्मा की स्थिति के आसन पर विराजमान रहे ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *चेक किया की क्या हमारे मन की प्लेट व्यर्थ और बीती से बिलकुल साफ़ है ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - प्यार से मुरली सुनो और सुनाओ, ज्ञान रत्नों से अपनी झोली भरपूर करो, तब भविष्य में राजअधिकारी बनेगे"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... यह ज्ञान ही सारे सुखो का सच्चा आधार है *इसलिए इस ज्ञान धन से सदा धनवान् रहो.*.. और यह अमीरी हर दिल पर दिल खोल कर लुटाओ... ज्ञान की यह दौलत भविष्य में विश्व का अधिकारी सा सजाएगी...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी मुरली की दीवानी हो गयी हूँ... *यह मधुर तान सुनाकर हर दिल को खुशियो की दौलत में लबालब कर रही हूँ.*.. और स्वयं भी भरपूर होकर सुनहरे सुखो की अधिकारी हो रही हूँ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ज्ञान की मीठी कूक से सदा कूकते रहो... *सबके जीवन में इस ज्ञान झनकार की खुशियाँ बिखरते रहो.*.. ज्ञान रत्नों से अपना दामन सदा भरपूर करो... सबके दिल आँगन को मुस्कराहटों का रंग देते चलो... और विश्व धरा को अपनी बाँहों में पाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... स्वयं भगवान को सम्मुख देख उनके *श्रीमुख से ज्ञान रत्नों को पाकर कितनी धनी हो गयी हूँ.*.. सारे दुखो से मुक्त होकर... ख़ुशी और आनंद से भरा जीवन जीने वाली महा सोभाग्यशाली मै आत्मा बन गयी हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देह की झूठी दुनिया से व्यर्थ की बातो से प्यार कर जीवन को दुखो का पर्याय बना बेठे... अब जो ईश्वर पिता मिला है तो सच्चे प्यार की महक से भर चलो... *सच्चे ईश्वरीय ज्ञान को दिल में समालो* और इसकी खुशबु से सबको मन्त्रमुग्ध कर चलो... यही रत्न विश्व धरा पर राज्याधिकारी बनाएंगे...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में कितनी खुबसूरत कितनी प्यारी कितनी धनवान् और कितनी निराली हो गयी हूँ... मेरे पास अथाह ईश्वरीय दौलत है और *मै आत्मा सबके दामन में यह दौलत भरती जा रही हूँ.*.. मेरे साथ पूरा विश्व इस अमीरी को पाकर मुस्करा उठा है...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा सदा विजयी वा निर्विघ्न हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा विश्व कल्याणकारी हूँ... परमात्मा के सृष्टि परिवर्तन के इस कार्य में मुझ ब्राह्मण आत्मा का विशेष कर्तव्य है... मुझ आत्मा को प्यारे बाबा ने अपना राइट हेंड बनाया है... सहयोगी बनाया है... बाबा ने मुझ आत्मा को *विश्व परिवर्तन की जिम्मेवारी का ताज* पहनाया है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा *सदा एकरस स्थिति में रह* अपने को ज्ञान, गुण, शक्तियों से भरपूर करती हूँ... मैं आत्मा विशेष सेवा शुरू करने, बाबा का संदेश विश्व के सर्व आत्माओं तक पहुँचाने अपने ब्राह्मण संगठन को साथ लेकर चलती हूँ... हम ब्राह्मण आत्माओं का आक्युपेशन ही है विश्व कल्याण करना...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने ब्राह्मण आत्माओं के संगठन के साथ सूक्ष्म वतन में बापदादा के सम्मुख बैठ जाती हूँ... बापदादा हम सभी को शक्तियों से भरपूर कर *विघ्न-विनाशक, सर्व शक्तिवान* बना रहें हैं... बाबा हम सभी को फरिश्तों की चमकीली ड्रेस पहनाकर रूहानियत की खुशबू छिड़क रहें हैं...
➳ _ ➳ अब हम सब फरिश्ते बापदादा के साथ चारों ओर अपनी रूहानियत की खुशबू फैला रहें हैं... हम फरिश्ते एक साथ, एक ही वृत्ति, एक ही संकल्प के वायब्रेशन्स चारों ओर फैलाकर वायुमंडल को शुद्ध कर रहें हैं... अज्ञानता के अंधकार में तड़पती, भटकती आत्माओं को *लाइट हाउस बन राह दिखा* रहें हैं...
➳ _ ➳ दुखी, अशांत आत्माओं को प्रेम, शांति, आनंद, सर्व शक्तियों का दान दे रहें हैं... शुभ भावनाओं, शुभ कामनाओं द्वारा वायुमंडल को परिवर्तन कर रहें हैं... अब सेवाओं में आए सभी प्रकार के विघ्न समाप्त होते जा रहें हैं... सभी निर्विघ्न वा विजयी बनते जा रहें हैं... अब मैं आत्मा संगठन की शक्ति से शुद्धि की विधि द्वारा किले को मजबूत बनाने वाली *सदा विजयी वा निर्विघ्न* बन गई हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल - यथार्थ कर्म का प्रत्यक्ष फल है-- ख़ुशी और शक्ति की प्राप्ति*"
➳ _ ➳ कर्म करें तो बाप को फॉलो करें, *याद करें तो शिव बाबा को करें।* शिव बाबा को याद करने से पुराने विक्रम विनाश होंगे।* नए अच्छे कर्म ब्रह्मा बाबा को याद करने से बनेंगे। तो और कोई कर्म, मैं आत्मा क्यों करूँ? किसी और को क्यों देखूं। कर्म में कभी थकावट न हो, हर कर्म करते ख़ुशी और प्राप्तियों का अनुभव हो
➳ _ ➳ मैं आत्मा कर्मयोगी आत्मा हूँ... मैं आत्मा कर्म का प्रत्यक्ष फल उसी समय... और भविष्य के लिए शक्तियों को... अनुभव करने वाली आत्मा हूँ... मैं आत्मा कर्म में फंसने वाली आत्मा नही हूँ... *कर्म बन्धन से न्यारी आत्मा हूँ*...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सदा न्यारी और बाप की प्यारी आत्मा हूँ*... मैं डबल फल लेने वाली आत्मा हूँ... मेरी यह स्थिति मुझे हर बड़े कार्य में भी... ऐसा अनुभव करवाती है... जैसे की कार्य किया ही नही... हल्का अनुभव करवाती है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा ने अभी-अभी कर्म किया... और कर्म करते ही ख़ुशी और शक्ति का अनुभव करने वाली आत्मा हूँ... *मैं आत्मा कर्मयोगी आत्मा हूँ*... सदा इसी स्मृति से आगे बढ़ते जाने वाली आत्मा हूँ*... कभी भी न रुकने वाली आत्मा हूँ...
➳ _ ➳ याद में किए हर कार्य शक्ति का अनुभव कराती है... यह शक्ति सर्वश्रेष्ठ अनूभुति है... और यह शक्ति मुझ आत्मा को सफलता भी प्राप्त कराती है... मैं आत्मा स्वयं को सदा सुख में अनुभव करती हूँ... *कोई भी खिंचाव नही... कोई भी बोझ नही*...
➳ _ ➳ मैं आत्मा हर कर्म को... बाबा की याद में करने वाली आत्मा हूँ... बाप का साथ, साथी रूप में अनुभव करती हूँ... ऐसा साथी हो तो... बाप की मदद है ही... मैं आत्मा अपने जीवन में *सर्व प्राप्तियों का अनुभव करती जा रही हूँ*...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *शुद्धि की विधि द्वारा किले को मजबूत बनाने वाले सदा विजयी वा निर्विघ्न होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ शुद्धि की विधि द्वारा किले को मजबूत बनाने वाले सदा विजयी वा निर्विघ्न होते हैं क्यूँकि... *जैसे हम कोई भी कार्य को शुरू* करते हैं तो उस कार्य को शुरू करने से पहले शुद्धि की विधि को अपनाते हैं, ऐसे ही जब किसी स्थान पर कोई विशेष सेवा शुरू करते हैं तो शुद्धि की विधि के प्रभाव से सिद्धि को प्राप्त करते हैं।
❉ शुद्धि की विधि किले को मजबूत बनाती है तथा *शुद्धि ही हमें सदा विजयी और निर्विघ्न* बनाती है। इसी लिये! हम अपनी विशेष सेवाओं को शुद्धि के द्वारा निर्विघ्न व सुगम बनाते हैं तथा अंत में विजय को प्राप्त करते हैं, क्योंकि... योग की शक्ति में ही सर्व सिद्धियाँ निहित हैं।
❉ इसलिये! हम ब्राह्मण जब भी विशेष सेवाओं की शुरुवात करते हैं तो! कभी - कभी चलते - चलते, हमारी सेवाओं में कई प्रकार के विघ्न आ जाते हैं, *तब हम संगठित रूप में एकत्रित हो कर चारों ओर विशेष टाइम* पर एक साथ योग का दान देते हैं।
❉ इस प्रकार से एक ही समय पर व एक ही स्वमान में स्थित हो कर तथा संगठित रूप से योग करने से हमारे जीवन में आने वाले सभी प्रकार के विघ्न स्वतः ही टल जाते हैं, क्योंकि... *उस समय सर्व आत्माओं का एक ही संकल्प* होता है। सर्व आत्माओं का एक ही संकल्प होने के कारण से अत्यधिक शक्ति की उत्पत्ति होती है।
❉ अतः अधिक शक्ति प्राप्ति हेतु, सर्व आत्माओं का एक ही शुद्ध संकल्प होना चाहिये। वह संकल्प है विजयी होने का। सदा सर्व आत्माओं के मन में एक ही संकल्प के धुन की गूँज होनी चाहिये... *हम विजयी आत्मा हैं। यही है शुद्धि की विधि* इस से सभी विजयी व निर्विघ्न बन जायेंगे तथा किला भी मजबूत भी हो जायेगा।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *यथार्थ कर्म का प्रत्यक्ष फल है - खुशी और शक्ति की प्राप्ति... क्यों और कैसे* ?
❉ अप्राप्त नही कोई वस्तु ब्राह्मणों के खजाने में । यह गायन हम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मणों का ही है । क्योंकि स्वयं *परमपिता परमात्मा शिव बाबा ने ब्रह्मा मुख द्वारा हम बच्चों को एडॉप्ट कर के सच्चा सच्चा ब्राह्मण बनाया है* और अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर किया है । जो इस बात को सदा समृति में रखते हैं और स्वयं को सर्व प्राप्तियों से संपन्न अनुभव करते हैं । उनके द्वारा किया हर कर्म यथार्थ होता है और हर कर्म का प्रत्यक्ष फल खुशी और शक्ति की प्राप्ति के रूप में सबको स्पष्ट दिखाई देता है ।
❉ रोज अमृतवेले बाबा अपने हर एक बच्चे को श्रेष्ठ टाइटल दे कर, श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर बिठा कर उसे सर्व प्राप्तियों की मौज का अनुभव करवाते हैं । इस रूहानी नशे में जो सदा रहते हैं वे हर परिस्थिति में बाबा द्वारा मिले *श्रेष्ठ टाइटल को स्मृति में रख अपनी स्थिति को समर्थ बनाये रखते हैं* । ऐसे श्रेष्ठ स्वमान धारी हर परिस्थिति में सदा अचल, अडोल रहते हैं तथा प्रभु मिलन की मस्तियों में सदा खोये रहते हैं इसलिए उनके हर यथार्थ कर्म का प्रत्यक्ष फल ख़ुशी के रूप में और उनकी शक्तिशाली स्थिति से सदा झलकता रहता है ।
❉ संगमयुग पर परमात्मा बाप द्वारा हर ब्राह्मण बच्चे को संतुष्ट और प्रसन्न रहने का वरदान सहज ही प्राप्त होता है । क्योकि परमात्मा बाप द्वारा रचे *इस रूद्र ज्ञान यज्ञ की अंतिम आहुति का फल सर्व ब्राह्मणों की सदा प्रसन्नता है* । जब सभी सदा प्रसन्न रहेंगे तब प्रत्यक्षता का आवाज गूंजेगा अर्थात विजय का झंडा लहराएगा । और सदा प्रसन्नता का आधार है संतुष्टता । संतुष्ट और परमात्म स्नेही आत्मा का हर कर्म यथार्थ होता है जिसका प्रत्यक्ष फल उसके चेहरे की ख़ुशी से तथा उसकी शक्तिशाली स्व स्थिति से सर्व आत्माओं को स्वत: ही अनुभव होता है ।
❉ दुनिया वाले विनाशी पदार्थो की प्राप्ति में भी जब ख़ुशी का अनुभव करते हैं तो उस विनाशी ख़ुशी की झलक उनके चेहरे से औरों को दिखाई देती है । लेकिन हम ब्राह्मण बच्चो को तो स्वयं *परमात्मा बाप ने आ कर संगम युग पर अखुट अविनाशी प्राप्तियों से सम्पन्न कर दिया है* । तो इन अविनाशी प्राप्तियों की स्मृति को जो सदा इमर्ज रूप में अपने सामने रखते हैं उनका हर कर्म यथार्थ होता है और उनके मुख से सदैव यही गीत निकलता है " पाना था सो पा लिया अब और बाकी क्या रहा " और इस खुशी की झलक उनके हर कर्म से प्रत्यक्ष होती है ।
❉ जब से ब्राह्मण बने तब से अपने श्रेष्ठ भाग्य को यदि स्मृति में रखें और अनुभव करें कि *स्वयं भाग्यविधाता बाप मेरे सर्वश्रेष्ठ भाग्य की महिमा का गुणगान कर रहे हैं* । बाप के रूप में स्वयं भगवान मेरी पालना कर रहें हैं । ऐसी परमात्म पालना जिसमे आत्मा को सर्व प्राप्ति स्वरूप का अनुभव होता है और ऐसा परमात्म प्यार जो सर्व सम्बन्धो का अनुभव कराता है । ऐसे परमात्म प्यार और परमात्म प्राप्तियों की मौज में रहने वाली आत्मा का हर कर्म यथार्थ होता है जो उसे ख़ुशी और शक्ति की प्राप्ति करवाता है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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