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 05 / 07 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *वाणी से परे जाने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *सम्पूरण निर्विकारी बनने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *यह तन परमात्म हवाले कर बाप समान प्यूरीफाई होने का पुरुषार्थ किया ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *सच्चे वैष्णव बन पवित्रता की श्रेष्ठ स्थिति का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *हठ व मेहनत करने की बजाये रमणीकता से पुरुषार्थ किया ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *आत्माओं को शांति का अनुभव करवाया ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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➳ _ ➳  अभी समय अनुसार अनेक प्रकार के लोग चेकिंग करने आयेंगे। संगठित रूप में जो चैलेन्ज करते हो कि हम सब ब्राह्मण एक की याद में एकरस स्थिति में स्थित होने वाले हैं - *तो ब्राह्मण संगठन की चेकिंग होगी।* इन्डीविज्युवल तो कोई बडी बात नहीं है लेकिन आप सब विश्व कल्याणकारी विश्व परिवर्तक हो - *विश्व संगठन, विश्व कल्याणकारी संगठन विश्व को अपनी वृत्ति वा वायब्रेशन द्वारा वा अपने स्मृति स्वरूप के समर्थी द्वारा कैसे सेवा करते हैं - उसकी चेकिंग करने बहुत आयेंगे।* आज की साइंस द्वारा साइलेन्स शक्ति का नाम बाला होगा। योग द्वारा शक्तियाँ कौन-सी और कहाँ तक फैलती है उनकी विधि और गति क्या होती है यह सब प्रत्यक्ष दिखाई देंगे। ऐसे संगठन तैयार हैं? *समय प्रमाण अब व्यर्थ की वातों को छोड समर्थी स्वरूप वनो।* ऐसे विश्व सेवाधारी बनो। इतना बडा कार्य जिसके लिए निमित बने हुए हो उसको स्मृति में रखो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  एक परमात्मा से योग लगाओ तो अंत मति सो गति हो जायेगी"*

 

_ ➳  स्थूल जगत में कार्य करते हुए सहसा मन... मीठे बाबा के मिलन को मचल उठा और मै आत्मा प्रकाशमय काया में सूक्ष्म वतन पहुंची... ब्रह्मा तन में शिव पिता मेरे स्वागत को आतुर खड़े है... मै आत्मा मीठे बाबा के करीब जा रही हूँ... और उधर से बाबा मेरे करीब आ रहे है... जितनी दीवानगी मुझ आत्मा में है मीठे बाबा भी मेरे बिना अधूरे अधूरे से है... मुझे देखते ही उनके चेहरे पर स्नेहिल मुस्कान सज गयी... *मुझे प्रेम रश्मियों में डुबोकर, वरदानों की बौछार में भिगोने लगे.*..

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा को असीम प्यार से भरते हुए कहने लगे :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... सब जगह से स्वयं को समेटकर ईश्वरीय यादो में सांसो और संकल्प को लगाओ... *यह यादे ही सच्चे सुखो की नगरी में मालिक सा सजायेंगी.*.. देह के रिश्ते तो ठगकर खोखला बनायेगे... सिर्फ मीठे बाबा की यादे ही सुनहरे सुख दिलायेगी..."

 

_ ➳  मै आत्मा अपने बाबा को मुझ आत्मा के लिए इस कदर प्यार दुलार देख कहती हूँ :- "मीठे बाबा मुझ आत्मा ने प्रेम को... इस धरती पर रिश्तो में कितना ढूंढा... पर एक बून्द भी पा न स्की... प्यारे बाबा आपने प्रेम सागर में भिगो कर... मुझे सदा का तृप्त कर दिया है... *सच्चे प्यार से मेरा अंतर्मन भर दिया है.*.."

 

   प्यारे बाबा मुझ आत्मा के प्रेम प्याले को और भी सिक्त करते हुए बोले :- " मीठे लाडले बच्चे... *आप बच्चों के सुखो की खातिर ही तो धरती पर आ बेठा हूँ..*. मेरी यादो में सदा के लिए डूब जाओ... देह के भान और रिश्तो से निकल ईश्वरीय यादो को जीवन का आधार बनाओ... तो असीम सुख बाँहों में मुस्करायेंगे..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा को दिल से वादा करते हुए कहती हूँ :- "हाँ प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा अब आपको ही चाहूंगी और प्यार करूंगी... आप ही मेरा अब संसार हो... दुनियावी संसार तो मै आत्मा कब का भूल चली... *ईश्वरीय यादो में हर पल जीना और आपकी पुरी में आना ही अब जीवन का लक्ष्य है.*.."

 

   मीठे प्यारे बाबा मेरी बुद्धि रुपी दामन में ज्ञान रत्नों को सजाते हुए बोले :- "मीठे सिकीलधे बच्चे...  देह का भान और दैहिक रिश्ते में सुख रेतीले मरुस्थल में बून्द जैसा है...इन क्षणिक सुखो को सच्चा सुख न मानो... सिर्फ मीठे बाबा की यादो में सच्चे सुख समाये है... *इन यादो में गहरे डूबकर, सच्चे सुखो के अधिकारी बन मुस्कराओ.*.."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की बातो में गहरे डूबकर अतीन्द्रिय सुख में खो गयी और बोली :- "मीठे बाबा भगवान मुझे यू संवार रहा है... मुझे अपने से प्यार करना सिखा रहा है... *सच्चे सुखो की दुनिया में बिठा रहा है*... ऐसा प्यारा भाग्य पाने वाली मै सोभाग्यशाली आत्मा हूँ... आपकी यादो के गहरे सुख में डूबी हुई हूँ... यूँ अपना प्यार बाबा पर उंडेल कर, मै आत्मा अपने देह में लौट आयी..."

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *ड्रिल :- "रॉयल घराने में आने के लिए यह तन परमात्म हवाले कर बाप समान प्युरीफाई बनना*"

 

_ ➳  मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी हुई विकारों की कट को उतार, ज्ञान अमृत और योग अग्नि से मुझे प्युरीफाई करके रीयल गोल्ड बनाने वाले पतित पावन अपने प्यारे परम पिता परमात्मा शिव बाबा की मीठी मधुर स्मृतियों में खोई *मैं आत्मा विचार करती हूं कि जब मैं संपूर्ण पावन सतोप्रधान थी तो कितने ऊंच रॉयल घराने की मालिक थी! उस संपूर्ण सतोप्रधान दैवी दुनिया और देवताई घराने में सुख, शांति सम्पन्नता से मैं आत्मा भरपूर थी*। दुख का नाम निशान भी नहीं था। प्रकृति भी दासी बन सेवा करती थी। लेकिन विकारों की प्रवेशता ने मुझसे मेरे सारे सुख छीनकर मुझे क्या से क्या बना दिया! पतित हो कर कितनी कंगाल और दुखी हो गई मैं आत्मा!

 

_ ➳  अब जबकि संगम युग पर स्वयं भगवान ने आकर मुझे मेरे दुखी और सुखी होने का कारण मेरे सामने स्पष्ट कर दिया है तो मुझे भी अब अपने प्यारे परमपिता परमात्मा बाप की श्रीमत पर चल पावन बन फिर से उसी रॉयल घराने का मालिक अवश्य बनना है। *मुझ पतित बन चुकी आत्मा को प्युरीफाई बनाने के लिए ही तो मेरे परम पिता परमात्मा शिव बाबा को इस पतित दुनिया मे, पतित शरीर में आना पड़ा*। इन्हीं विचारों के साथ अपने शिव पिता परमात्मा का दिल से शुक्रिया अदा करते-करते अशरीरी बन मैं आत्मा स्वयं को प्युरीफाई बनाने के लिए चल पड़ती हूँ पतित पावन अपने प्यारे परमपिता परमात्मा शिव बाबा के पास उनके पावन धाम में।

 

_ ➳  मन बुद्धि रूपी नेत्रों से अब मैं देख रही हूँ स्वयं को परमधाम में जहां बीज रुप परमपिता परमात्मा शिव बाबा के सामने मैं मास्टर बीज रुप आत्मा विराजमान हूं। *बिंदु बाप से आ रही सर्व शक्तियां मुझ बिंदु आत्मा को अपनी ओर खींच रही हैं*। मैं बाबा के बिल्कुल समीप होती जा रही हूं। सर्वशक्तियों की ज्वलंत किरणे बाबा से निकलकर मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं। ऐसा लगता है जैसे बाबा मुझ आत्मा के विकारों रूपी किचड़े को अपनी जवलंत शक्तियों से भस्म कर रहे हैं।मेरा आंतरिक शुद्धिकरण हो रहा है। *परमात्म लाइट मुझ आत्मा में समाकर मुझे प्युरीफाई बना रही है*। मैं स्वयं में परमात्म शक्तियों की गहन अनुभूति कर रही हूं।

 

_ ➳  शक्ति स्वरुप बनकर अब मैं परम धाम से नीचे आकर लाइट का स्वरूप धारण कर पहुंच जाती हूं फ़रिश्तों की आकारी दुनिया में। लाइट की सूक्ष्म आकारी देह में मैं बाप दादा के सम्मुख हूं। *बाबा का कभी शक्ति स्वरूप और कभी शीतल स्वरूप मुझे दिखाई दे रहा है*। बाबा मुझे अपने पास बिठा कर मीठी दृष्टि दे कर अपना हाथ जैसे ही मेरे सिर के ऊपर रखते हैं मुझे ऐसा अनुभव होता है जैसे *बाबा के हस्तों से अनन्त शक्तियों की ज्वाला स्वरूप किरणे निकल कर मेरे मस्तक से होती हुई मेरे अंग अंग में समा कर मुझ आत्मा द्वारा किये हुए पापों को दग्ध कर रही हैं*। मैं बोझ मुक्त होता जा रहा हूँ। स्वयं को अब मैं बहुत ही हल्का अनुभव कर रहा हूँ।

 

_ ➳  इस लाइट और माइट स्वरूप स्थिति में समाए असीम आनन्द की अनुभूति करते हुए मैं फ़रिशता अब बाबा से अपने तन को परमात्म हवाले करने की प्रतिज्ञा करते हुए जैसे ही बाबा की ओर देखता हूँ। *बाबा की भृकुटि से मुझे बाबा जैसा ही एक फ़रिशता स्वरूप निकलता हुआ दिखाई देता है जो बाप समान सर्वशक्तियों से सम्पन्न हैं*। जिसमे बाबा के सभी गुण समाये हुए हैं। वह फ़रिशता धीरे धीरे मेरे पास आ कर मुझ फ़रिश्ते के अंदर समा जाता है। अब मैं फ़रिशता स्वयं को बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रहा हूँ। मुझ फरिश्ते की चमक अब करोड़ो गुणा बढ़ गई है। मुझ आत्मा की शक्तियां भी अब जैसे बाप समान हो गई हैं।

 

_ ➳  अपने तन को परमात्म हवाले कर, परमात्म आज्ञानुसार अब मैं फ़रिशता ईश्वरीय सेवा अर्थ, बापदादा के साथ कम्बाइंड हो कर सूक्ष्म वतन से नीचे आ जाता हूँ और चल पड़ता हूं सारे विश्व मे पवित्रता की किरणें फैलाने। *कम्बाइंड स्वरूप में अब मैं फ़रिश्ता सारे विश्व में भ्रमण कर रहा हूं और पवित्रता की किरणें चारों ओर फैला कर समस्त वायुमण्डल को प्युरीफाई बना रहा हूँ*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा सच्चा वैष्णव बन पवित्रता की श्रेष्ठ स्थिति का अनुभव करती हूँ।"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा सच्चा वैष्णव अर्थात्... सम्पूर्ण पवित्र हूँ... मुझ आत्मा के लिए सम्पूर्ण पवित्रता की परिभाषा बहुत श्रेष्ठ और सहज है... *स्वप्न-मात्र में भी अपवित्रता मुझ आत्मा के मन और बुद्धि को टच नही करता है...* मुझ आत्मा का पुरुषार्थ का लक्ष्य सम्पूर्ण पवित्रता है... और यह मेरे लिए सहज है क्योंकि असम्भव से सम्भव करने वाला... सर्वशक्तिमान् बाप का साथ है... मैं आत्मा सच्चा वैष्णव बन सम्पूर्ण पवित्रता की श्रेष्ठ स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- रमणिकता से पुरषार्थ कर सहजयोगी बनने का अनुभव करना "* 

 

 _ ➳  मैं आत्मा हंसते खेलते संगम युग का आनन्द उठा रही हूँ... *बाप का साथ पा कर एकदम लाईट हो उड़ती रहती हूँ...* मेरे पुरषार्थ की जिम्मेवारी भी बाबा को सौंप... सदा प्रशन्न रहती हूँ... जरा भी हठ या मेहनत ना  करते हुए बहुत रमणिकता से आगे बड़ रही हूँ... उमंग-उत्साह के पंख लगा उड़ रही हूँ... *पुरषार्थ की ऊँची नीची डगर पर... बाबा का हाथ पकड़े... पुरषार्थ के सफर का मजा ले रही हूँ...* मैं सहजयोगी हूँ...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

 

➳ _ ➳  सेवाधारियों को सदा बुद्धि में क्या याद रहता हैसिर्फ सेवा या याद और सेवा? *जब याद और सेवा दोनों का बैलेन्स होगा तो वृद्धि स्वत: होती रहेगी । वृद्धि का सहज उपाय ही है - ‘‘बैलेन्स''। वर्तमान समय के हिसाब से सर्व आत्माओं को सबसे ज्यादा शान्ति की चाहना हैतो जहाँ भी देखो सर्विस वृद्धि को नहीं पातीवैसे की वैसे रह जाती - वहाँ अपने सेवाकेन्द्र के वातावरण को ऐसा बनाओ जैसे ‘शान्ति-कुण्डहो।* एक कमरा विशेष इस वायुमण्डल और रूपरेखा का बनाओ जैसे बाबा का कमरा बनाते हो ऐसे ढंग से बनाओ जो घमसान के बीच में शान्ति का कोना दिखाई दे। ऐसा वायुमण्डल बनाने सेशान्ति की अनुभूति कराने से वृद्धि सहज हो जायेगी। म्यूजियम ठीक है लेकिन यह सुनने और देखने का साधन है। सुनने और जानने वालों के लिए म्यूजियम ठीक है लेकिन जो सुन-सुन करके थक गये हैं उन्हों के लिए शान्ति का स्थान बनाओ

 

➳ _ ➳  मैजारटी अभी यही कहते हैं कि आपका सब कुछ सुन लियासब देख लिया। लेकिन ‘‘पा लिया है'' - ऐसा कोई नहीं कहता। अनुभव कियापाया यह अभी नहीं कहते हैं। *तो अनुभव कराने का साधन है - याद में बिठाओशान्ति का अनुभव कराओ। दो मिनट भी शान्ति का अनुभव कर लें तो छोड़ नहीं सकते। तो दोनों ही साधन बनाने चाहिए। सिर्फ म्यूजियम नहीं लेकिन ‘शान्ति-कुण्डका स्थान भी।* जैसे आबू में म्यूजियम भी अच्छा है लेकिन शान्ति का स्थान भी आकर्षण वाला है। अगर चित्रों द्वारा नहीं भी समझते तो ‘दो घड़ीयाद में बिठाने से इम्प्रेशन बदल जाता है। इच्छा बदल जाती है। समझते हैं कि कुछ मिल सकता है। प्राप्ति हो सकती है। जहाँ पाने की इच्छा उत्पन्न होती वहाँ आने के लिए भी कदम उठना सहज हो जाता। तो ऐसे वृद्धि के साधन अपनाओ।

 

✺   *"ड्रिल :- आत्माओं को शांति का अनुभव करवाना*"

 

➳ _ ➳  *देह रूपी सुन्दर सीपी में जगमगाती मैं मुक्तक मणि... मेरे दिव्य प्रकाश से सराबोर ये देह रूपी सीपी पारदर्शी होती जा रही है... जैसे किसी शीशे की डिबियाँ में बन्द कोई झिलमिलाती मणि...* मुझ आत्मा मणि की प्रकाश रश्मियाँ आसपास के वातावरण में फैलकर समस्त तमोप्रधानता को दूर कर रही है... मन और बुद्धि से मैं बैठ गयी हूँ शान्ति स्तम्भ पर, ज्योतिपुंज के ठीक सामने... ज्योतिपुंज से झलकता मेरे बाबा का रूहानी प्रतिबिबं... *(दृश्य चित्र बनाकर कुछ देर निहारें उस रूहानी नूर की बारिश करते उस चेहरें को)*...

 

➳ _ ➳  *वो आँखें जो निरन्तर शान्ति, प्रेम और पावनता की मधुशाला बन गयी है*... वो अपनापन बिखेरती मुस्कुराहट जो पल में आह्वान कर अपना बना लेती है दुखी अशान्त आत्माओं को... *कुछ पल के लिए पलकों के परदें गिराकर कैद कर ले शान्ति के झर-झर झरते उस असीम सौन्दर्य को और उतर जाने दे दिल की गहराईयों में आहिस्ता आहिस्ता*... हुए लबालब उर के पैमाने, मौन हुई संकल्पों की माला... रोम रोम में भरने मदिरा उन नैनों से निकली मधुशाला...

 

➳ _ ➳ अतिन्द्रिय सुख में डूबी हुई, मैं मुक्तक मणि अब नन्हें फरिश्तें की चमचमाती पोशाक में... *बापदादा की उँगली पकडकर नन्हें नाटे से कदमों से मन्द मन्द चलती हुई... जानबूझकर चलने में देरी करती हुई... बापदादा मेरे मन की बात जानकर कन्धे पर बैठा लेते है मुझे*... और मैं खुशी और नशे से झूमती हुई अपने सौभाग्य पर इतराती हुई बापदादा के गोद की अधिकारी आत्मा... *मेरे सौभाग्य का कोई सानी नही है आज... उमंगों से भरकर उड चली मैं बापदादा  के साथ विश्व सेवा पर*...

 

➳ _ ➳  सुन्दर शान्त झील का किनारा, गहरा नीला, मगर पारदर्शी स्वच्छ जल... *शान्त जल में हम दोनों का झलकता प्रतिबिम्ब*... बापदादा मुझे लेकर उतर गये है इसी झील के किनारें... खिले हुए सुन्दर कमल और कुमुदिनियों के समूह... बाबा मुस्कुराते हुए बता रहें है *बच्चे-देखो कितना शान्त है झील का पानी, कि हम दोनो का प्रतिबिम्ब स्वच्छ दर्पण की तरह से नजर आ रहा था इसमें... ऐसी ही शान्ति जब तुम्हारे अन्दर होती है तभी तुम अपने गुणों शक्तियों एवं सच्चे स्वरूप के दर्शन कर सकते हो*...

 

➳ _ ➳  देखों उस खिले कमलदल को... कितना बैलेन्स है उसके जीवन में... *जडें पूरी तरह पानी में है मगर फूल और पत्तियाँ पानी की नमी को खुद पर कभी हावी नही होने देती*... कमल-सा बैलेन्स जीवन में जरूरी है... मैं आँखों ही आँखों में सहमति जताता हुआ, बाबा का मौन इशारा पाकर उड चला बापदादा के पीछे पीछे...

 

➳ _ ➳  बाबा एक सुन्दर बगीचे के ऊपर से गुज़रते हुए... बच्चे, देख रहे हो बगीचे की शोभा को... खुशबू और रंगों का सन्तुलन है इसमें... तभी तो हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है... *हर पौधे की वृद्धि में धूप और पानी का बैलेन्स जरूरी है तभी तो पौधा वृद्धि को पाया... तो बच्चे, याद की धूप और जल-रूपी सेवा का सदा बैलैन्स रखना तभी सेवा और पुरूषार्थ में विधि पूर्वक वृद्धि होगी*...

 

➳ _ ➳  और बातों ही बातों मे विश्व को सकाश देते हुए बाबा की याद का ये सुहाना सफर कब पूरा हो गया पता ही नही चला... बापदादा समझानी देते हुए वापस पहुँच गये है शान्ति स्तम्भ पर... और ज्योति पुंज में समा गये है... ज्योति पुंज से शांति की किरणें निकल समस्त संसार में चारों ओर फैल रही हैं सभी आत्माओं के दुख अशांति समाप्त हो रही है सभी आत्माएं शांति का अनुभव करती पाना था सो पा लिया के गीत गा रही हैं... मैं मणि भी वापस उसी देह रूपी सीपी में समाँ जाती हूँ... *शान्ति रूपी बारिश की अनुभूति और शान्ति की लहरे शान्ति स्तम्भ से टकराती हुई संसार की सभी आत्माओं को शान्ति की गहन अनुभूति कराती हुई*...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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