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❍ 31 / 10 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*5=25)
➢➢ *विचार सागर मंथन कर मनुष्यों को दलदल से निकाला ?*
➢➢ *जो कुम्भकरण की नींद में सोये हैं, उन्हों को जगाया ?*
➢➢ *सबका बुधीयोग एक बाप से जुटाया ?*
➢➢ *मनसा द्वारा तीव्रगति की सेवा की ?*
➢➢ *अपने संतुष्ट और खुशनुमा जीवन से हर कदम में सेवा की ?*
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❂ *तपस्वी जीवन प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं* ✰
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〰✧ *पूरा ही दिन सर्व के प्रति कल्याण की भावना, सदा स्नेह और सहयोग देने की भावना, हिम्मत-हुल्लास बढ़ाने की भावना, अपनेपन की भावना और आत्मिक स्वरुप की भावना रखना है।* यही भावना अव्यक्त स्थिति बनाने का आधार है।
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:- 10)
➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाये ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ तो क्या हालचाल है आपकी राज्य दरबार का? ऊपर-नीचे तो नहीं है ना। सभी का हाल ठीक है? कोई गडबड तो नहीं है? *जो यहाँ कभी-कभी ऑर्डर में चला सकता है* और कभी-कभी चला सकता - *तो वहाँ भी कभी-कभी का राज्य मिलेगा,* सदा का नहीं मिलेगा।
〰✧ *फाउण्डेशन तो यहाँ से पडता है ना।* तो सदा चेक करो कि मैं सदा अकाल तख्तनशीन स्वराज्य चलाने वाली राजा ‘आत्मा’ हूँ?
〰✧ सभी के पास तख्त है ना खो तो नहीं गया है? *तखत पर बैठकर राज्य चलाया जाता है ना* या तखत पर आराम से अलबेले होकर सो जायेंगे?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:- 15)
➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सबको बाप का सत्य परिचय देना"*
➳ _ ➳ स्वयं को आत्मस्वरूप में देखते हुए अपने अकालतख्त पर बैठकर मैं आत्मा मधुबन की पहाड़ियों पर पहुंच जाती हूँ... प्यारे बापदादा का आह्वान करते ही बाबा तुरंत मेरे सामने खड़े हो जाते हैं... *बाबा अपनी मीठी मुस्कान से मुझे निहाल कर रहे हैं... परम प्रिय परमपिता परमात्मा को अपने सम्मुख देख अपने भाग्य पर नाज कर रही हूँ...* जिसने मुझे सत्य ज्ञान देकर अज्ञान अंधकार से बाहर निकाल, ज्ञान की रोशनी में ला दिया है... मेरा जीवन खुशहाल बना दिया है...
❉ प्यारे बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... जो खुशियां, जो सुख, जो प्यार,जो दुलार, जो ममता, जो अमूल्य खजाने आप बच्चों ने पाये है... *सबका दामन इन खुशियो से सजाकर पिता समान दरियादिल बनो... बिछड़े लालो को बाप से मिलाने का पुण्य कार्य करो... और दुआओ से दामन सजाकर मुस्कराओ...* सेन्सिबल बन चलते फिरते जहाँ भी सेवा हो, करते रहो, बाप का परिचय दो, सर्विस का शौक रखो"
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा के वरदानों से भरपूर अनुभव करते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा से पायी ख़ुशी और प्यार की दौलत से हर आत्मा को सजा रही हूँ... *मीठा बाबा आ गया... दुखो का जंगल अब साफ हुआ... यह ख़ुशी की लहर हर दिल आँगन तक फैला रही हूँ...*”
❉ मीठे बाबा मेरे हाथों में अपना हाथ डाल कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... इन हवाओ में यह खुशबु फैला दो... कि *सच्चा पिता अथाह सुखो को बच्चों को देने धरा पर आ पहुंचा है... सारे सुख बाबा से लेकर अपना दामन भर लो...* सुखो की खानो को नाम करने आया है... तो नाम लिखवाकर विश्व राज्य अधिकारी बनो...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा की बातों को ध्यान से सुनते हुए कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा कितना सुखद भाग्य बाँहों में भरकर मुस्करा रही हूँ... *वरदानी संगम पर ईश्वर पिता की मददगार बन सारे विश्व को बाबामय बना रही हूँ...* सच्चे पिता का परिचय देकर सबको सच्ची तसल्ली और सुख भरे महल बाबा से दिलवा रही हूँ...”
❉ मेरे बाबा प्यार भरी निगाहों से मुझे देख कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वरीय ज्ञान रत्नों और यादो भरे सच्चे पलों से सबका दामन सजाओ... *हर आत्मा के दिल में सुख भरी बहार सजाओ*... होठो पर सच्ची हंसी और सुख भरे जीवन का उपहार विश्व पिता से दिलवाओ... यह सच्ची सेवा कर अपना और औरों का भाग्य बनाओं...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा दिल से बाबा का शुक्रिया करते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा रोम रोम से आपकी सेवा में जुटी हूँ... *ईश्वर पिता का परिचय देकर सच्ची खुशियो से रूबरू करवा रही हूँ.*.. हर साँस में मीठे बाबा को समाकर मै दीवानी आत्मा सबको शिव पिता के आने की दस्तक दे रही हूँ...”
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- कुम्भकरण की नींद में सोए लोगों को जगाना*"
➳ _ ➳ अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर को धारण किये, मैं फ़रिशता एक विशाल समुन्द्र के किनारे टहल रहा हूँ और टहलते - टहलते विचार कर रहा हूँ कि कितनी खुशनसीब हैं वो आत्मायें जिन्होंने भगवान को पहचान लिया है और जो परमात्म पालना में पल रही हैं। *किंतु कितनी बदनसीब हैं वो आत्मायें जो परमात्म सन्देश मिलने के बाद भी इस बात को स्वीकार नही करना चाहती कि परमात्मा इस धरा पर अपने बच्चों से मिलने के लिए आये हुए हैं*।
➳ _ ➳ मन ही मन ऐसी आत्माओं के दुर्भाग्य के बारे में विचार करते हुए उन पर रहम आता है जो परमात्म परिचय मिलने के बाद भी कुम्भकर्ण की नींद में सोए हुए है। आलस्य, अलबेलेपन में संगम युग की अनमोल घड़ियों को व्यर्थ में गंवाते जा रहें हैं। *ऐसे कुम्भकर्ण की नींद में सोए लोगों को जगाना हर ब्राह्मण आत्मा का कर्तव्य भी है और यही परमात्म प्रेम का रिटर्न भी है*। मन मे यह विचार करके मैं फ़रिशता उस स्थान से उड़ कर अब सूक्ष्म लोक की और चल पड़ता हूँ। ऊपर आकाश में उड़ते - उड़ते नीचे धरती का नज़ारा मैं स्पष्ट देख रहा हूँ। *केवल खाने, पीने और सोने में ही समय को व्यर्थ गंवाने वाले, कुम्भकर्ण की नींद में सोये मनुष्यों को मैं देखता हुआ जा रहा हूँ*।
➳ _ ➳ मन मे साक्षी भाव और ऐसी आत्माओं के प्रति शुभभावना, शुभकामना लिए अब मैं आकाश को पार कर जाता हूँ और कुछ ही क्षणों में सफेद चांदनी के प्रकाश से प्रकाशित फरिश्तों की एक बहुत सुंदर दुनिया मे प्रवेश करता हूँ। *श्वेत रश्मियां फैलाते, प्रकाश की काया में फ़रिश्ते यहाँ - वहाँ उड़ रहें हैं*। पूरा वतन फरिश्तों की लाइट से जगमग कर रहा है। *सभी फरिश्तो के सिरताज अव्यक्त ब्रह्मा बाबा एक दिव्य प्रकाश की काया में सबसे अलग दिखाई दे रहें हैं*। उनके अंग - अंग से जैसे प्रकाश का झरना फूट रहा है। उनके मस्तक पर विराजमान शिव बाबा सूर्य के समान चमक रहें हैं।
➳ _ ➳ अपने सम्पूर्ण फ़रिशता स्वरुप में ब्रह्मा बाबा बॉहें पसारे, एक दिव्य मुस्कान के साथ, वतन में आने वाले अपने हर फ़रिशता बच्चे का स्वागत कर रहें हैं। बाबा बड़े प्यार से मुस्कराते हुए हर बच्चे को गले लगाते हैं और अपना वरदानी हाथ उसके सिर पर रख कर उसे वरदानों से भरपूर कर देते हैं। *इस खूबसूरत दृश्य को देखता हुआ, मैं फ़रिशता अब बापदादा के पास पहुंचता हूँ। बाबा मुस्कराते हुए मेरी ओर देख कर अपनी बाहें फैला लेते हैं और मैं फ़रिशता बाबा की बाहों में समाकर, बाबा के असीम स्नेह की गहराई में डूब जाता हूँ*। तृप्त हो कर मैं बाबा के सामने बैठ जाता हूँ। बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रखते हैं। वरदान दे कर अपनी सर्वशक्तियों से बापदादा मुझे भरपूर कर देते हैं।
➳ _ ➳ बापदादा से सर्वशक्तियाँ और वरदान ले कर अब मैं फ़रिशता कुम्भकर्ण की नींद में सोए लोगों का जगाने का संकल्प बापदादा के सामने रखता हूं और बापदादा को अपने साथ चलने का आग्रह करता हूँ। *बापदादा मेरा आग्रह स्वीकार कर, मेरा हाथ थामे अब मुझे विश्व ग्लोब पर ले आते हैं*। बापदादा के साथ कम्बाइंड हो कर अब मैं पूरे विश्व का चक्कर लगा रहा हूँ और कुम्भकर्ण की नींद में सोए मनुष्यों पर ज्ञान की किरणें बरसा कर उन्हें अज्ञान अंधकार रूपी नींद से जगा रहा हूँ। *परमात्म किरणे उन पर फैलाते हुए, परमात्म प्रेम का उन्हें अनुभव करवाकर, उन्हें परमात्मा के अवतरण का सन्देश दे रहा हूँ*।
➳ _ ➳ मैं देख रहा हूँ कुम्भकर्ण की नींद में सोये सभी मनुष्य परमात्म प्रेम का अनुभव करके अब अज्ञान अंधकार रूपी निद्रा से निकल कर ज्ञान के सोझरे में आ रहें हैं और परमात्म पालना का अनुभव करने के लिए अपने आस - पास के सेवा स्थलों पर जा रहें हैं। *ब्रह्माकुमारी बहने ज्ञान कलश हाथ मे लिए उन सभी को ज्ञान अमृत पिला कर, उनके जीवन को परमात्म प्रेम से भरपूर कर रही हैं*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं मनसा द्वारा तीव्रगति की सेवा करने वाली बाप समान मर्सिफुल आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को स्वमान में स्थित करने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा संतुष्टता और खुशी से हर कदम में सेवा करने वाली सच्ची सेवाधारी हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ स्मृतियों में टिकाये रखने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. समय की डेट नहीं देखो। 2 हजार में होगा, 2001 में होगा, 2005 में होगा, यह नहीं सोचो। चलो एवररेडी नहीं भी बनो इसको भी बापदादा छोड़ देते हैं, लेकिन सोचो बहुतकाल के संस्कार तो चाहिए ना! आप लोग ही सुनाते हो कि *बहुतकाल का पुरुषार्थ, बहुतकाल के राज्य-अधिकारी बनाता है*। अगर समय आने पर दृढ़ संकल्प किया, तो वह बहुतकाल हुआ या अल्पकाल हुआ? किसमें गिनती होगा? अल्पकाल में होगा ना! तो अविनाशी बाप से वर्सा क्या लिया? अल्पकाल का। यह अच्छा लगता है? नहीं लगता है ना! तो बहुतकाल का अभ्यास चाहिए, कितना काल है वह नहीं सोचो, जितना बहुतकाल का अभ्यास होगा, *उतना अन्त में भी धोखा नहीं खायेंगे।* बहुतकाल का अभ्यास नहीं तो अभी के बहुतकाल के सुख, बहुतकाल की श्रेष्ठ स्थिति के अनुभव से भी वंचित हो जाते हैं। इसलिए क्या करना है? बहुतकाल करना है? अगर किसी के भी बुद्धि में डेट का इन्तजार हो तो इन्तजार नहीं करना, इन्तजाम करो। *बहुतकाल का इन्तजाम करो*। डेट को भी आपको लाना है। *समय तो अभी भी एवररेडी हैं कल भी हो सकता है लेकिन समय आपके लिए रुका हुआ है। आप सम्पन्न बनो तो समय का पर्दा अवश्य हटना ही है*। आपके रोकने से रुका हुआ है।
➳ _ ➳ 2. इसलिए बापदादा की एक ही शुभ आशा है कि सब बच्चे चाहे नये हैं, चाहे पुराने हैं, जो भी अपने को ब्रह्माकुमारी या ब्रह्माकुमार कहलाते हैं, चाहे मधुबन निवासी, चाहे विदेश निवासी, चाहे भारत निवासी - *हर एक बच्चा बहुतकाल का अभ्यास कर बहुतकाल के अधिकारी बनें। कभी-कभी के नही।*
✺ *ड्रिल :- "बहुतकाल का अभ्यास कर बहुतकाल के अधिकारी बनना"*
➳ _ ➳ मैं मास्टर सर्वशक्ति मान स्थिति के स्वमान में स्थित होकर बाबा की याद में खो चुकी हूँ... चारो ओर कोई नहीं है ऐसा अनुभव हो रहा है... *सिर्फ मैं और बाबा और कोई नहीं है... मैं आत्मा ये महसूस कर रही हूँ कि जैसे जैसे मैं आत्मा बाबा कि याद में खोती जा रही हूँ वैसे वैसे बाबा भी मेरे पास आते जा रहे हैं... मुझ आत्मा का बहुत काल का देही- अभिमानी स्थिति का अभ्यास पक्का होता जा रहा है... मैं आत्मा बस अपने बाप की याद में पक्की होती जा रही हूँ... और आगे बढती जा रही हूँ... मैं आत्मा विनाश की कोई डेट नहीं देखते हुए* कि क्या होना है कैसे होना है... बस अपने पुरुषार्थ में आगे बढती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा हर बात में एवर रेडी हूँ... क्योंकि मैं कोई भी बात *समय पर ना छोड़ कर अपने पुरुषार्थ में लगी हुई हूँ*... मुझ आत्मा का *नष्टोमोहा ओर देही अभिमानी* स्थिति के संस्कार पक्के होते जा रहे है... और मुझ आत्मा का बहुत काल का ये अभ्यास है और मैं आत्मा बहुत काल के लिए परमात्म प्यार की अधिकारी बन चुकी हूँ... मैं आत्मा स्वराज्य अधिकारी बनती जा रही हूँ... *बहुत काल के अभ्यास से मुझ आत्मा की कंट्रोलिंग पॉवर बढती जा रही हैं*...
➳ _ ➳ मैं आत्मा हर बात में निश्चय बुद्धि हूँ... ड्रामा का हर सीन देखते हुए *हर हाल में खुश हूँ... मुझ आत्मा को मेरे अविनाशी बाप से पूरा वर्सा मिल रहा हैं... जिसके लिए ना जाने कितने जन्मों से मैं इन्तजार कर रही थी... अब उसका इन्तजाम मेरे परम पिता ने किया है... वाह मेरा भाग्य वाह... मुझ आत्मा का देही अभिमानी , नष्टोमोहा और ड्रामा के ज्ञान का बहुत काल के अभ्यास होने के कारण किसी भी बात में धोखा नहीं खा रही हूँ*... मै शरीर का भान खो चुकी हूँ...
➳ _ ➳ बहुत काल की अभ्यासी होने के कारण मैं आत्मा अपने *ब्राह्मण जीवन का सुख प्राप्त कर रही हूँ... और अतीन्द्रिय सुख का आनंद ले रही हूँ... मैं आत्मा किसी डेट का वेट ना करते हुए अपने अतीन्द्रिय सुख में डूबी हुई हूँ...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा मास्टर सर्वशक्तिमान की स्टेज से समय का आह्वान कर रही हूँ... बाबा भी बहुत *प्यारी दृष्टि से मुझ आत्मा को देख रहे है* कि वाह मेरे बच्चे वाह... बाबा की भी मुझ आत्मा के प्रति शुभ आशा है बच्चे *बहुत काल के अधिकारी* बने... और मैं आत्मा बहुत काल के अभ्यास से बहुत काल की अधिकारी बन चुकी हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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