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❍ 11 / 09 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *देह अभिमान का अवगुण निकालने का पूरा पूरा पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *मुख से सिर्फ ज्ञान रतन निकाले ?*
➢➢ *बाप समान निरहंकारी बनकर रहे ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *सर्व खजाने जमा कर रूहानी फखुर में रहे ?*
➢➢ *ज्ञान डांस के साथ साथ संस्कार मिलन की डांस भी की ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ बेहद के वैराग्य वृत्ति का अर्थ ही है - वैराग्य अर्थात किनारा करना नहीं, लेकिन सर्व प्राप्ति होते हुए भी हद की आकर्षण मन को वा बुद्धि को आकर्षण में नहीं लावें। बेहद अर्थात *मैं सम्पूर्ण सम्पन्न आत्मा बाप समान सदा सर्व कर्मेन्द्रियों की राज्य अधिकारी।*
〰✧ इन सूक्ष्म शक्तियों, मन-बुद्धि-संस्कार के भी अधिकारी। *संकल्प मात्र भी अधीनता न हो।* इसको कहते हैं राजऋषि अर्थात बेहद की वैराग वृति। यह पुरानी देह वा देह की दुनिया वा व्यक्त भाव, वैभवों का भाव - इस *सब आकर्षण से सदा और सहज दूर रहने वाले।*
〰✧ जैसे साइन्स की शक्ति धरनी की आकर्षण से परे कर लेती है, ऐसे *साइलेन्स की शक्ति इन सब हद की आकर्षणों से दूर ले जाती है।* इसको कहते हैं - सम्पूर्ण सम्पन्न बाप समान स्थिति तो ऐसी स्थिति के अभ्यासी बने हो?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- गरीब नवाज बाप से ज्ञान मुट्ठी ले, साहूकार बन, बाप समान बनना*
➳ _ ➳ खुबसूरत गुलाबो से महकते उपवन में टहलते हुए मै आत्मा... काँटों के साथ शान से मुस्कराते खुबसूरत गुलाब को देख... मीठे बाबा संग अपने महकते जीवन के चिंतन में डूबी हुई... मीठे बाबा के यादो की बाँहों में झूलने लगती हूँ... बाबा के बिना जीवन कितना गरीब और दुःख भरे काँटों से सना था... आज देह भान में आये दुःख के सारे कांटे नीचे हो गए है... और *रूहानियत से भरी मै आत्मा... महकता गुलाब बनकर, सब बातो से ऊपर उठकर, शिखर पर सजी हुई... पूरे विश्व को अपने गुणो की सुगन्ध से... बरबस दीवाना बना रही हूँ.*.. ईश्वर बागबाँ के साथ, जीवन गुणो और शक्तियो की खुशबु से अमीर हो गया है... यही जज्बात मीठे बाबा को सुनाने मै आत्मा झोपडी में पहुंचती हूँ..."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान धन से विश्व का मालिक सजाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... *ईश्वर पिता जो अतुलनीय खजाने और ज्ञान रत्नों का अम्बार, आप बच्चों के लिए प्यार की बाँहों में भरकर लाये है..*. उस ज्ञान धन को पाकर, सदा के लिए अमीरी से भरपूर हो जाओ... ईश्वरीय गुण और शक्तियो को स्वयं में धारण कर, बाप समान बनकर, इस विश्व धरा पर सुखो में मुस्कराओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा से पायी ज्ञान धन की दौलत से शहशाह बनकर कहती हूँ :-"मीठे दुलारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपकी प्यार भरी छत्रछाया में खुशनुमा फूल बनकर खिल गयी हूँ... गुणो और शक्तियो से सजधज कर बाप समान हो गयी हूँ... ज्ञान रत्नों को पाकर मालामाल हो गयी हूँ... और *आपके मीठे प्यार के साये तले रूहानी गुलाब हो, मुस्करा उठी हूँ,.*.."
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा का रूहानी श्रंगार करते हुए कहा :- मीठे प्यारे लाडले बच्चे... भगवान पिता बनकर, आप बच्चों के लिए ही तो धरा पर उतर आया है... *अपनी सारी जागीर आपको ही तो देने आया है... सुखो की अमीरी में, सदा की खुशियां से, झोली भरने आया है.*.. ऐसे प्यारे पिता की यादो में सदा के लिए, साहूकार बनकर मुस्कराओ... मीठे बाबा के प्यार की छाँव में, सहज ही बाप समान बन जाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के मीठे प्यार में पुलकित होकर झूमते हुए कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा मेरे... *आपने मुझ आत्मा के जीवन में आकर, मुझे महान भाग्यशाली बना दिया है.*.. देह के भान में आकर, मै आत्मा गुणहीन, शक्तिहीन होकर कितनी गरीब हो गयी थी... आपने प्यारे बाबा मुझे पुनः मेरी खोयी अमीरी से भर दिया है..."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को गुणो और शक्तियो से मालामाल करते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *ईश्वरीय ज्ञान धन ही सच्ची अमीरी है, जो देवताई सुखो को कदमो में सजाती है.*.. मीठे बाबा की याद और ज्ञान धन से साहूकार हो, स्वर्ग का सुखो भरा राज्य भाग्य पाओ... प्यारे बाबा को हर पल, यादो में बसाकर, बाप समान बन, खुशियो की बहारो में, सदा का खिल जाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा को बड़े ही प्यार से निहारते हुए कहती हूँ :- मीठे जादूगर बाबा मेरे... *आपने अपनी प्यार भरी गोद में मुझ आत्मा को बिठाकर, मुझे देवताई सौंदर्य से निखारा है.*.. मै आत्मा आपकी यादो के हाथ को पकड़कर, दुखो के जंगल से निकल, सुखो की पगडण्डी पर आ गयी हूँ... मेरा जीवन ईश्वरीय खुशियो से महक उठा है..."मीठे बाबा से अथाह धन दौलत को लेकर मै आत्मा... स्थूल देह में आ गयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- देह अभिमान के अवगुण को निकाल पूरा - पूरा देही अभिमानी बनना*"
➳ _ ➳ देह के भान से मुक्त, देही अभिमानी स्थिति में स्थित होते ही मुझे मेरे सत्य स्वरूप का अनुभव हो रहा है। मेरा सत्य स्वरूप अति सुंदर, अति प्यारा है। अपने इस सत्य स्वरूप को अब मैं मन बुद्धि रूपी नेत्रों से स्पष्ट देख रही हूँ। *एक ज्योति जो इस देह रूपी मन्दिर में भृकुटि पर विराजमान हो कर जगमग कर रही है। इस ज्योति से निकल रहे प्रकाश को मैं अपने चारों ओर महसूस कर रही हूँ*। प्रकाश का एक सुंदर औरा मेरे चारों और निर्मित हो रहा है। इस प्रकाश से निर्मित औरे में मुझ आत्मा के सातों गुण समाये हैं जिससे मुझे शांति, प्रेम, सुख, पवित्रता, शक्ति, ज्ञान और आनन्द की गहन अनुभूति हो रही है।
➳ _ ➳ देही अभिमानी स्थिति में स्थित हो कर, अपने वास्तविक गुणों की गहन अनुभूति मुझे गुणों के सागर मेरे शिव पिता परमात्मा के साथ जोड़ रही है। *मेरी बुद्धि का कनेक्शन परमधाम में रहने वाले मेरे शिव पिता परमात्मा से जुड़ रहा है*। मैं अनुभव कर रही हूँ गुणों के सागर शिव पिता से आ रही सातों गुणों की सतरंगी किरणों को स्वयं पर पड़ते हुए।
➳ _ ➳ शिव पिता परमात्मा से आ रही सर्व गुणों की शक्तिशाली किरणों के मुझ आत्मा पर पड़ने से मेरे चारों और निर्मित प्रकाश का औरा भी धीरे - धीरे बढ़ने लगा है। *प्रकाश के इस औरे के बढ़ने के साथ साथ इसमें समाये सातों गुण भी वायब्रेशन के रूप में चारों और फैलने लगे है*। दूर - दूर तक ये वायब्रेशन फैल रहें हैं और शक्तिशाली वायुमण्डल निर्मित कर रहें हैं।
➳ _ ➳ सर्व गुणों के शक्तिशाली वायब्रेशन चारो और फैलाते हुए अब मैं जागती ज्योति इस शरीर रूपी मन्दिर से बाहर निकल कर गुणों के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के पास जा रही हूँ। *एक प्वाइंट ऑफ लाइट, मैं आत्मा धीरे - धीरे ऊपर की और बढ़ते हुए अब आकाश को पार करके उससे भी ऊपर की ओर जा रही हूँ*। अब मैं देख रही हूँ स्वयं को लाल प्रकाश की एक अति सुंदर दुनिया में जहां चारों और चमकती हुई मणियां दिखाई दे रही हैं। मेरे बिल्कुल सामने है महाज्योति शिव बाबा जिनसे अनन्त प्रकाश की किरणें निकल कर पूरे परमधाम को प्रकाशित कर रही हैं।
➳ _ ➳ जैसे शमा की लौ परवाने को अपनी तरफ आकर्षित करती हैं ऐसे ही मेरे शिव पिता से आ रही शक्तिशाली रंग बिरंगी किरणे मुझे अपनी और आकर्षित कर रही है और मैं आत्मा परवाना बन शिव शमा के पास जा रही हूँ। *धीरे - धीरे मैं बाबा के अति पास पहुंच कर बाबा को टच कर रही हूँ। बाबा को टच करते ही बाबा के समस्त गुणों और शक्तियों को मैं स्वयं में समाता हुआ अनुभव कर रही हूँ*। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा के समस्त गुण और शक्तियाँ मुझ आत्मा में समा गए हैं और मैं बाबा के समान सर्वशक्तियों से सम्पन्न बन गई हूँ।
➳ _ ➳ सर्वशक्तियों से सम्पन्न शक्तिस्वरूप बन अब मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ। अपने साकारी तन में अब मैं भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हूँ। *इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर आ कर मैं फिर से अपना पार्ट बजा रही हूँ किन्तु अब मैं हर कर्म करते देही अभिमानी स्थिति में स्थित हूँ। इस देह से जुड़े अपने हर सम्बन्धी को भी अब मैं देह नही देही रूप में देख रही हूँ*। सभी को शिव पिता की अजर, अमर,अविनाशी सन्तान के रूप में देखते हुए निस्वार्थ भाव से सभी को सच्चा रूहानी स्नेह दे कर उन्हें सन्तुष्ट कर रही हूँ। देह अभिमान के अवगुण को निकाल देही अभिमानी बन सबको आत्मा भाई - भाई की दृष्टि से देखते हुए उन्हें भी देही अभिमानी स्थिति का अनुभव करवा रही हूँ।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा सर्व खजाने जमा कर रूहानी फखुर में रहती हूँ।”*
➳ _ ➳ बापदादा द्वारा मुझ आत्मा को अखूट खज़ाने मिले हैं… मुझ आत्मा ने *जितने खजाने जमा किये हैं… उतना मुझ आत्मा के चलन और चेहरे में वह रूहानी नशा दिखाई देता है*… जमा करने पर रूहानी नशा दिखाई देता है… जमा कर मैं आत्मा रूहानी फखुर अनुभव कर रही हूँ... आज बाबा ने बताया की वर्तमान समय जितना मुझ आत्मा के अन्दर रूहानी नशा दिखाई देता है… उतना ही मेरे अन्दर जमा करने का रूहानी फखुर अनुभव होता है… और *जितना मुझ आत्मा के अन्दर रूहानी फखुर होगा… उतना ही हर कर्म में बेफिक्र बादशाह की झलक दिखाई देती है… क्योकि जहाँ फखुर है वहां फिक्र नहीं रह सकती… मैं आत्मा ऐसी ही बेफिक्र बादशाह हूँ… और सदा प्रसन्नचित्त हूँ…*
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ज्ञान डांस के साथ संस्कार मिलन की डांस करते ज्ञानी तू आत्मा अनुभव करना"*
➳ _ ➳ नाॅलेजफुल बाप की संतान मैं आत्मा मा. नाॅलेजफुल हूँ... मुझ आत्मा को परमपिता शिव बाबा से सच्चा सच्चा ज्ञान मिल गया है कि *मैं कौन हूँ, मेरा कौन है...* दिव्य बुद्धि रुपी गिफ्ट मिल गया है... मैं आत्मा विश्व की हरेक आत्मा को भाई-भाई की दृष्टि से देख रही हूँ... *हर आत्मा का अपना पार्ट है... एक्यूरेट पार्ट है...* मैं आत्मा परमपिता से मिले ज्ञान खजानों से मालामाल हो रही हूँ... मैं आत्मा ज्ञान का मनन चिंतन करती ज्ञान डांस करती हर परिस्थिति को सहज पार कर रही हूं... *आत्मिक दृष्टि रखते हुए मैं आत्मा सरलता व सहजता से हर आत्मा के साथ संस्कारों की मिलान करते आगे बढ़ रही हूँ...* ज्ञान रत्नों से खेलती ज्ञान का मंथन करती दिव्य गुणों को धारण करती मैं आत्मा नाॅलेजफुल बनती जा रही हूँ...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बापदादा बहुत बच्चों की रंगत देखते हैं - आज कहेंगे बाबा,ओ *मेरे बाबा, ओ मीठा बाबा, क्या कहूं, क्या नहीं कहूं ...... आप ही मेरा संसार हो,* बहुत मीठी-मीठी बातें करते हैं और दो चार घण्टे के बाद अगर कोई बात आ गई तो भूत आ जाता है। बात नहीं आती,भूत आता है। बापदादा के पास सभी का भूत वाला फोटो भी है। देखो, एक यादगार भी भूतनाथ का है। तो भूतों को भी बापदादा देखते हैं- कहाँ से आया, कैसे आया और कैसे भगा रहे हैं। यह खेल भी देखते रहते हैं। कोई तो घबराकर, दिलशिकस्त भी हो जाते हैं। फिर बापदादा को यही शुभ संकल्प आता है कि इनको कोई द्वारा *संजीवनी बूटी खिलाकर सुरजीत करें* लेकिन वे मूर्छा में इतने मस्त होते हैं जो संजीवनी बूटी को देखते ही नहीं हैं। *ऐसे नहीं करना। सारा होश नहीं गंवाना, थोड़ा रखना। थोड़ा भी होश होगा ना तो बच जायेंगे।*
✺ *ड्रिल :- "संजीवनी बूटी खाकर सदा सुरजीत रहना"*
➳ _ ➳ *इस शरीर रूपी डिब्बी के अन्दर हीरे समान चमकने वाली मैं आत्मा हूँ...* मन-बुद्धि रूपी नेत्रों से स्वयं के इस स्वरूप को स्पष्ट देख और अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा देख रही हूँ स्वयं को इस दुनिया के सबसे पावरफुल स्थान मधुबन पांडव भवन के हिस्ट्री हाल में बापदादा के सामने, एक संगठन में बैठा हुआ... *ये वही स्थान है जहाँ स्वयं परम सत्ता शिव बाबा ने बहुत काल तक वास्तव्य किया है...* कई महान आत्माओं ने यहाँ बहुत काल तपस्या की है जिस कारण ये स्थान प्रचंड उर्जा से परिपूर्ण है... यहाँ पहुंच कर *मैं आत्मा भी स्वयं में इस प्रचंड उर्जा का प्रवाह अनुभव कर रही हूँ...* और सहज ही अशरीरी अनुभव कर रही हूँ... *स्वयं को परमात्म-एनर्जी से भरा हुआ अनुभव कर रही हूँ... बेहद पावरफुल स्टेज का अनुभव हो रहा है...* देह भान से ऊपर उठ देही अवस्था का स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ... देख रही हूँ मैं आत्मा हिस्ट्री हाल में *बापदादा संदली पर बैठ संगठन में बैठी आत्माओं को दृष्टि योग करा रहे हैं...*
➳ _ ➳ जैसे ही बाबा मुझ आत्मा को दृष्टि देते हैं... मुझ आत्मा के सामने एक दृश्य इमर्ज होता है... मैं आत्मा मन-बुद्धि रूपी नेत्रों से स्पष्ट देख रही हूँ... एक बहुत बड़ी नांव, एक विशाल सागर में जा रही है... जिस नांव पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है... *"भगवान हमारा साथी है"*... और इस नाव में बहुत सारे यात्री स्वार हैं... और *स्वयं बाबा इस नैया के खिवैया बन इसे चला रहे हैं...* सभी यात्रियों के चेहरे बड़े हर्षितमुख है... सभी यात्री प्रभु महिमा के गीत गाते हुए खुशी में झूमते हुए अपने लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ रहे हैं... इन सभी यात्रियों को देख लग रहा है मानो *बाबा ही इनका संसार है...* प्रभु महिमा से फुल ये आत्माएं हर्षा रही है और इस प्रकार ये नांव आगे बढती जा रही है... कुछ समय बीत जाने के बाद एक बड़ा अजब दृश्य सामने आता है... सागर में अचानक तूफान आता है... सागर में लहरें उठने लगती है... तेज हवाएं चलने लगती है... और नाव डोलने लगती हैं... कुछ यात्री जिनके चेहरे पर कुछ समय पहले खुशी थी... ये सीन देख उनके चेहरे पर घबराहट, चिंता, कई प्रकार के प्रश्रों के चिन्ह दिखाई दे रहे हैं... उनकी आँखों में डर और मुख से यह क्या, यह क्यों, यह कैसे शब्द निकल रहे हैं... और कुछ यात्री यह सीन देखते वैसे ही बैठे हैं जैसे पहले बैठे थे... *बाबा भी इस नांव में बैठ ये अजब दृश्य देख रहे है...*
➳ _ ➳ तभी वो दृश्य मुझ आत्मा की आँखों के सामने से गायब हो जाता है... मैं आत्मा सामने देखती हूँ... *महान ज्ञान सागर बाबा मुझ आत्मा को दृष्टि दे रहे हैं... बाबा की सागर जैसी आँखों से ज्ञान प्रकाश रूपी किरणें मुझ आत्मा के अन्दर समा रही है...* जैसे-जैसे मुझ आत्मा में ये ज्ञान प्रकाश रुपी किरणें मेरे अन्दर समा रही है, इस दृश्य का राज मुझ आत्मा के सामने स्पष्ट होता जा रहा है... मैं आत्मा विचार कर रही हूँ... *जिस जीवन रुपी नैया का खिवैया स्वयं सर्वशक्तिमान बाबा है... वह जीवन रुपी नैया में भल बातों रुपी कितने भी तूफान आएं... ये नैया कभी डूब नहीं सकती है...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा स्वयं से प्रश्र करती हूँ, अपने लक्ष्य की तरफ चलते-चलते, जब इस जीवन रूपी नैया में बातों रुपी भूत, बातों रुपी तूफान आते हैं तो कहीं मैं आत्मा लक्ष्य से भटक इन हलचल में तो नहीं आ जाती, घबरा तो नहीं जाती, बातों रूपी भूतों को देख भूतनाथ तो नहीं बन जाती ये जानते हुए भी की *इस जीवन रुपी नैया का खिवैया स्वयं बाबा है...* देखती हूँ सामने *बाबा से शक्तिशाली किरणों की अविरल धाराएँ मुझ आत्मा पर पड़ कर मेरे अन्दर समा रही है...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बेहद शक्तिशाली महसूस कर रही हूँ...* देख रही मैं आत्मा बाबा ने अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख दिया... बाबा के हाथों से ज्ञान प्रकाश की किरणें मेरे अन्दर समा रही हैं... जैसे-जैसे ये ज्ञान प्रकाश की किरणें अन्दर समा रही है... *मैं आत्मा शक्तिशाली... अचल अडोल अवस्था का अनुभव कर रही हूँ, पहले से और ज्यादा शक्तिशाली स्वयं को अनुभव कर रही हूँ...* अब देखती हूँ अपनी इस जीवन रूपी नैया को जिसका खिवैया स्वयं बाबा है... और मैं आत्मा बाबा संग आगे बढ़ रही हूँ... और देख रही हूँ... बातों रूपी भूत, कभी एक लहर कभी दूसरी लहर के रुप में सामने आ रहे हैं... लेकिन *मैं स्मृति स्वरूप हूँ... महावीर हूँ... अब ये बातें आती है और चली जाती है... मैं आत्मा एकरस अचल-अडोल होकर बाबा संग अपने लक्ष्य की ओर अभय होकर बढ़ रही हूँ...* मैं आत्मा अन्य आत्माओं को भी जो चलते-चलते, किसी-न-किसी बातों रूपी भूतों के कारण रुक गए हैं, बेहोश होकर अपने लक्ष्य से भटक गए है... उन्हें *ज्ञान और याद रूपी संजीवनी बूटी से सुरजीत बना रही हूँ...* देख रही हूँ अब वे सभी आत्माएं अचल-अडोल एकरस होकर इस जीवन रूपी नैया में *बाबा संग अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रही है... शुक्रिया लाडले बाबा शुक्रिया...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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