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❍ 26 / 12 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *रावण के वर्से को हाथ तो नहीं लगाया ?*
➢➢ *बाप की हर राय को मानकर उस पर चले ?*
➢➢ *योग की करंट के वाइब्रेशन द्वारा किले को मज़बूत बनाया ?*
➢➢ *कर्म साधारण होते हुए भी स्थिति पुरुषोत्तम रही ?*
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❂ *योगी जीवन प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं* ✰
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〰✧ *जैसे सेकण्ड में लाइट का स्विच आन करने से अंधकार भाग जाता है, ऐसे स्वमान की स्मृति का स्विच आन करो तो भिन्न-भिन्न देह-अभिमान समाप्त करने की मेहनत नहीं करनी पड़ती।* सहज आत्म अभिमानी स्थिति बन जायेगी। यही स्थिति रूहानी प्यार का अनुभव करायेगी।
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∫∫ 2 ∫∫ योगी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाकर योगी जीवन का अनुभव किया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं कोटो में कोई आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को सदा विश्व के अन्दर कोटों में कोई, कोई में भी कोई, ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें समझते हो? ऐसे अनुभव होता है कि यह हमारा ही गायन है? एक होता है ज्ञान के आधार पर जानना, दूसरा होता है किसी का अनुभव सुनकर उस आधार पर मानना और तीसरा होता है स्वयं अनुभव करके महसूस करना।
〰✧ तो ऐसे महसूस होता है कि हम कल्प पहले वाली कोटों में से कोई, कोई में से कोई श्रेष्ठ आत्मायें हैं? ऐसी आत्माओंकी निशानी क्या होगी? ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें सदा बाप शमा के पीछे परवान बन फिदा होने वाली होंगी।
〰✧ चक्र लगाने वाली नहीं। आए चक्र लगाया, थोड़ी सी प्राप्ति की, ऐसे नहीं। लेकिन फिदा होना अर्थात् मर जाना-ऐसे जल मरने वाले परवाने हो ना? *जलना ही बाप का बनना है। जो जलता है वही बनता है। जलना अर्थात् परिवर्तन होना।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *स्वयं को इस स्वमान में स्थित कर अव्यक्त बापदादा से ऊपर दिए गए महावाक्यों पर आधारित रूह रिहान की ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ एक सेकण्ड में न्यारे होने का अभ्यास होगा, तो कोई भी बात हुई एक सेकण्ड में अपने अभ्यास से इन बातों से दूर हो जायेंगे। सोचा और हुआ। युद्ध नहीं करनी पडे। ,*युद्ध के संस्कार, मेहनत के संस्कार सूर्यवंशी बनने नहीं देंगे।*
〰✧ लास्ट घडी भी युद्ध में ही जायेगी, अगर विदेही बनने का सेकण्ड में अभ्यास नहीं है तो। और जिस बात में कमजोर होंगे, चाहे स्वभाव में, चाहे सम्बन्ध में आने में, चाहे संकल्प शक्ति में, वृति में, वायुमण्डल के प्रभाव में, *जिस बात में कमजोर होंगे, उसी रूप में जान-बूझकर भी माया लास्ट पेपर लेगी।*
〰✧ इसलिए विदेही बनने का अभ्यास बहुत जरूरी है। कोई भी रूप की माया आये, समझ तो है ही। *एक सेकण्ड में विदेही बन जायेंगे तो माया का प्रभाव नहीं पडेगा।* जैसे कोई मरा हुआ व्यक्ति हो, उसके ऊपर कोई प्रभाव नहीं पडता ना।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 5 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ज्ञान रत्नों का दान करना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सागर के किनारे बैठ सागर में उठते हुए लहरों को निहार रही हूँ... ये लहरें कभी हवाओं की बाँहों को थाम आसमान को छूने की कोशिश कर रही हैं... कभी चट्टानों से टकराकर खेल रही हैं... *मेरे जीवन की उथल पुथल की लहरों को समाप्त करने वाले ज्ञान सागर बाबा का मैं आत्मा आह्वान करती हूँ... तुरंत ज्ञान सागर बाबा सागर के किनारे मुस्कुराते हुए खड़े हो जाते हैं...* मैं आत्मा होली हंस बन ज्ञान रत्नों को चुगने के लिए ज्ञान सागर में डुबकी लगा देती हूँ...
❉ *विचार सागर मन्थन कर अथाह खजानों से संपन्न बनने के लिए ज्ञान धन का दान करने की युक्ति बतलाते हुए ज्ञान सागर प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय खजानो को बाँहों में भरकर मुस्कराने वाले महान भाग्यवान धनवान् हो... *यह दौलत जितना लुटाओगे अमीरी को अपने इर्दगिर्द सदा ही छलकता पाओगे... इस ज्ञान धन की खान की झलक हर दिल को दिखाओ... सबके जीवन में यह ईश्वरीय बहार खिला आओ...”*
➳ _ ➳ *मैं होलीहंस आत्मा ज्ञान सागर की गहराई में गोते लगाकर मोतियों को चुगते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता की गोद में आकर मालामाल हो गई हूँ... *कभी दीन हीन और गरीब सी आत्मा आज दौलतमंद हो गई हूँ... और आप समान सबको धनवान् भाग्यवान बनाकर सुखो के फूल बिखेर रही हूँ...”*
❉ *लहराता प्यार का सागर मीठा बाबा प्यार की लहरों से जीवन को मुस्कराहट देते हुए कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... यह ज्ञान धन ही जादूगरी है जो सुखो की खान में बदल जायेगी... दिलो ही दिल में इसे गिनते रहो... और अथाह खजानो को हर दिल पर लुटाओ... *इस अविनाशी ज्ञान धन से सबके जीवन में खुशियो को खिलाओ... सबके दिल आँगन में आनन्द की फिजां महका आओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ज्ञान नदी बनकर पूरे विश्व को ज्ञान जल की धाराओं से भिगोते हुए कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा ईश्वरीय ज्ञान धन से सबकी झोली भरकर अथाह सुखो का मालिक बना रही हूँ... *मीठे बाबा से पाये अमूल्य खजाने का मालिक हर दिल को बना रही हूँ... मा ज्ञान सूर्य होकर औरो को भी प्रकाशित कर रही हूँ...”*
❉ *ज्ञान के जादूगर मेरे बाबा ज्ञान की छड़ी मुझ आत्मा को देते हुए कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *वरदानी संगम पर ईश्वर पिता से पाये अमूल्य रत्नों को... विचार सागर मन्थन से गहराई से दिल में समाओ...* और यह ज्ञान की महक सबके दिलो तक पहुँचाओ... यह ज्ञान दान महान पुण्य सा प्रतिफल देकर मालामाल करेगा...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ज्ञान की छड़ी घुमाकर सबके जीवन से काँटों को निकालकर ज्ञान के फूलों से सजाते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा आपकी फूलो सी गोद में पाये रत्नों को दान कर सबके भाग्य को जगा रही हूँ...* फूलो भरी राह पर हर दिल को चला रही हूँ... जनमो के देह समझ थके पाँवो को सुख भरी मरहम लगा रही हूँ...”
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- रावण के वर्से को हाथ नही लगाना है*"
➳ _ ➳ अपने डबल लाइट फरिश्ता स्वरूप को धारण कर, इस रावण राज्य में रावण के वर्से को अपना समझने वाले, रावण की कैद में फंसे सारी दुनिया के सभी मनुष्य मात्र को देखता हुआ मैं सारे विश्व में भ्रमण करता हुआ जा रहा हूँ। *इस रावण राज्य में एक भी मनुष्य ऐसा दिखाई नही दे रहा जो रावण का वर्सा पाकर सुख का अनुभव कर रहा हो बल्कि वो सभी मनुष्य जो रावण के वर्से को सुख का संसार समझने की भूल कर रहें है वो वास्तव में एक बहुत बड़ी मृगतृष्णा में जी रहें हैं*। क्षणभंगुर सुख को पाने की लालसा में अपने अनमोल हीरे तुल्य जीवन को कौड़ी तुल्य व्यर्थ गंवाते जा रहें हैं।
➳ _ ➳ बेचारे मनुष्य इस बात से भी कितने अंजान है कि राम राज्य स्थापित करने के लिए स्वयं भगवान इस रावण राज्य में आकर 21 जन्मो के लिए अविनाशी सुख, शांति का वर्सा दे रहें हैं। और *कितनी दुर्भाग्यशाली है वो आत्मायें जो रावण के क्षण भर के विनाशी सुख के वर्से को पाने की लालसा में स्वयं भगवान द्वारा मिलने वाले 21 जन्मो के अविनाशी सुख के वर्से को गंवा रही हैं*। ऐसे रावण के वर्से को पाने की इच्छा रखने वाले सारी दुनिया के सभी मनुष्यों को देखता हुआ मैं फरिश्ता विचार करता हूँ कि कितनी सौभाग्यशाली हैं वो ब्राह्मण आत्मायें जिन्हों ने अपने प्रभु राम को पहचान कर, रावण के वर्से को हाथ ना लगाने का प्रण लिया है।
➳ _ ➳ स्वयं के और उन सभी सौभाग्यशाली ब्राह्मण बच्चों के सर्वश्रेष्ठ भाग्य की मन ही मन सराहना करता हुआ अब मैं फरिश्ता अपने भाग्यविधाता भगवान बाप से मिलने और उनसे रावण पर जीत पाने का वरदान प्राप्त करने के लिए उनके अव्यक्त वतन सूक्ष्म लोक की ओर चल पड़ता हूँ। *फरिश्तों की इस दुनिया सूक्ष्म लोक में अपने शिव पिता परमात्मा को उनके भाग्यशाली रथ अव्यक्त ब्रह्मा बाबा के आकारी तन में उनकी भृकुटि पर विराजमान हुए मैं स्पष्ट देख रहा हूँ*। ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में शिव बाबा चमक रहें हैं और उनके मस्तक से बहुत तेज लाइट माइट निकलकर पूरे वतन में फैल रही है।
➳ _ ➳ बापदादा बड़े प्यार से निहारते हुए अपनी मीठी दृष्टि मुझ पर डाल रहे हैं। उनकी शक्तिशाली दृष्टि से मुझ फरिश्ते के अंदर परमात्म बल भरता जा रहा है जो मुझे शक्तिशाली बना रहा है। मैं एकटक उनकी ओर निहार रहा हूँ। *उनकी मीठी दृष्टि में अपने लिए समाये असीम प्यार को देख कर मैं मन ही मन हर्षित हो रहा हूँ। बाबा के पास बैठकर बाबा के घुटनों में अपना सिर रखकर मैं परमात्म प्यार का असीम सुख ले रहा हूँ*। अपना वरदानी हाथ बाबा मेरे सिर के ऊपर रख कर मुझे माया रावण के चंगुल से सदा मुक्त रहने का वरदान दे रहें हैं। सिर पर बाबा के हाथों का हल्का - हल्का स्पर्श मुझे परमात्म शक्तियों से भर रहा है।
➳ _ ➳ बाबा से वरदान ले कर, परमात्म शक्तियों से भरपूर हो कर, रावण के वर्से को कभी भी हाथ ना लगाने का बाबा से प्रोमिस करके अब मैं *अपने सभी आत्मा भाइयों को रावण के वर्से से मुक्त कर उन्हें भी अपने प्रभु राम से वर्सा पाने का उपाय बताने के लिए विश्व ग्लोब पर आ जाता हूँ और बापदादा का आह्वान कर, कम्बाइंड स्वरुप में स्थित हो जाता हूँ*।
➳ _ ➳ बाबा से सर्वशक्तियाँ स्वयं में भरकर अब मैं इन शक्तियों को बाबा से ले कर सारे विश्व मे फैला रहा हूँ। *रावण के वर्से को अपना बनाने वाली, काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार की अग्नि में जल रही आत्माओं पर ये शक्तियां शीतल फुहारों के रूप में बरस रही हैं और उनके अंदर के विकारो की अग्नि की बुझाकर, उन्हें शीतलता का अनुभव करवा रही है*। शीतलता का अनुभव करके वो आत्मायें तृप्त हो रही हैं।
➳ _ ➳ अब मैं फ़रिशता उन आत्माओं को परमात्म परिचय दे कर उन्हें रावण के वर्से से मुक्त होने का उपाय बताने की रूहानी सेवा करके वापिस साकारी दुनिया मे आकर अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, *सदैव अपने प्रभु राम की छत्रछाया में रहते हुए, स्वयं भी रावण के वर्से से दूर रहते औरों को भी रावण के वर्से से मुक्त रहने और परमात्म वर्सा पाने की युक्ति बताने की सेवा सदैव करती रहती हूँ*।
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं योग की कर्रेंट के वाइब्रेशन द्वारा किले को मजबूत करने वाली यज्ञ रक्षक आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं कर्म साधारण होते भी स्थिति को पुरूषोत्तम रखने वाली ज्ञानी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. बापदादा फिर भी मार्जिन देते हैं कि कम से कम इन 6 मास में, जो बापदादा ने पहले भी सुनाया है और अगले सीझन में भी काम दिया था, कि *अपने को जीवनमुक्त स्थिति के अनुभव में लाओ। सतयुग के सृष्टि की जीवनमुक्ति नहीं, संगमयुग की जीवनमुक्त स्टेज।* कोई भी विघ्न, परिस्थितियाँ, साधन वा मैं और मेरापन, मैं बाडीकान्सेस का और मेरा बाडीकान्सेस की सेवा का, इन सबके प्रभाव से मुक्त रहना। ऐसे नहीं कहना कि मैं तो मुक्त रहने चाहता था लेकिन यह विघ्न आ गया ना, यह बात ही बहुत बड़ी हो गई ना। छोटी बात तो चल जाती है, यह बहुत बड़ी बात थी, यह बहुत बड़ा पेपर था, बड़ा विघ्न था, बड़ी परिस्थिति थी। कितनी भी *बड़े ते बड़ी परिस्थिति, विघ्न, साधनों की आकर्षण सामना करें, सामना करेगी यह पहले ही बता देते हैं* लेकिन कम से कम 6 मास में 75 परसेन्ट मुक्त हो सकता है?
➳ _ ➳ 2. *शेर भी आयेगा, बिल्ली भी आयेगी, सब आयेंगे।* विघ्न भी आयेगा, परिस्थितियाँ भी आयेंगी, साधन भी बढ़ेंगे लेकिन साधन के प्रभाव से मुक्त रहना।
➳ _ ➳ 3. यह नहीं कहना हमको तो बहुत मरना पड़ेगा, मरो या जीओ लेकिन बनना है। यह मरना मीठा मरना है, इस मरने में दुःख नहीं होता है। यह मरना अनेकों के कल्याण के लिए मरना है। *इसीलिए इस मरने में मजा है।* दुःख नहीं है, सुख है। कोई बहाना नहीं करना, यह हो गया ना। इसीलिए हो गया। बहाने बाजी नहीं चलेगी। बहाने बाजी करेंगे क्या? नहीं करेंगे ना! *उड़ती कला की बाजी करना और कोई बाजी नहीं। गिरती कला की बाजी, बहाने बाजी, कमजोरी की बाजी यह सब समाप्त।* उड़ती कला की बाजी। ठीक है ना। सबके चेहरे तो खिल गये हैं। जब 6 मास के बाद मिलने आयेंगे तो कैसे चेहरे होंगे। तब भी फोटो निकालेंगे।
✺ *ड्रिल :- "संगमयुग की जीवनमुक्त स्टेज का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं इस संगमयुग की स्थिति के सर्व श्रेष्ठ आसन... नॉलेजफुल स्टेज पर स्थित *विद्या की देवी सरस्वती... सफेद वस्त्रधारी* जिसमे श्वेत रंग मेरी पवित्रता का प्रतीक है... ज्ञान की वीणा सदा बजाते रहने वाली अर्थात *सदा सेवाधारी रहने वाली... सदा शुद्ध संकल्प का भोजन बुद्धि द्वारा ग्रहण करने वाली...* सदा की सर्व आत्माओं द्वारा वा रचना द्वारा गुण धारण करने वाली... अर्थात मोती चुगने वाले हंस के आसन पर सूक्ष्मवतन में स्थित हूँ... *सूक्ष्मवतन से नीचे बापदादा मुझे भेज रहे है* अपने सेवा स्थान पर... मीठे बापदादा से विदाई लेकर... धीरे धीरे मैं अपने वाहन पर स्थित होकर स्थूलवतन में प्रवेश करती हूँ... बडे़ ही उमंग और उत्साह के साथ मैं *अपनी जिम्मेदारियों को निभा रही हूँ...* धीरे धीरे... *यहाँ मेरे सामने अनेक विघ्न... परिस्थितियाँ... साधन आते जा रहे है...*
➳ _ ➳ मैं और मेरापन... भी पीछे नहीं हैं... *मैं बाडीकान्सेस का और मेरा बाडीकान्सेस सेवा का दिखाई दे रहा हैं...* इन सबके प्रभाव के सूक्ष्म धागो से बंधी हुई मैं स्वयं को पाती हूँ... अनेक बार मुक्त रहना चाहने पर भी विघ्न आते जा रहे है... छोटी बड़ी बातें भी आ रही है... मुझे बापदादा के कहे हुए शब्द याद आ रहे है की बहुत बड़े ते *बड़ी परिस्थितियां और विघ्न आएंगे ही... साधनों के आकर्षण सामना करेंगे ही...* साथ ही साथ मुझे यह भी याद आ रहा है कि *बापदादा ने मुझे कम से कम 6 मास की मार्जिन देते हुए भी कहा था की जीवन मुक्त स्थिति को अनुभव में लाना है...* सतयुग के सृष्टि की जीवनमुक्ति नहीं, संगमयुग की जीवनमुक्त स्टेज को अनुभव में लाना है... जैसे जैसे आगे बढती जा रही हूँ वैसे वैसे बापदादा के कहने के अनुसार *शेर भी आ रहा है और बिल्ली भी आ रही है...* विध्न भी बढ़ रहे है... परिस्थितियाँ भी बढ़ रही है... साधन भी बढ़ रहे हैं...
➳ _ ➳ लेकिन इन सब प्रभावो से मुक्त रहने का मेरा लक्ष्य अभी भी बरकरार है... जैसे जैसे और ही आगे बढती जा रही हूँ तो लग रहा है कही पर तो कमी है... वो कमी यह है की *मैं आत्मा अभी भी पूरी तरह से मरी नहीं...* अभी भी मैं आधी अधूरी जिंदा हूँ... *मुझे संपूर्ण मरना है... मरना है पुराने संस्कारों से... मरना है शुद्रपने से... मरना है देह अभिमान से... बापदादा सूक्ष्मवतन से मुझे निहार रहे है...* मुझ आत्मा को इस स्थिति में देख वो अपना धाम छोडकर मेरे पास आ रहे है... *मेरे पास आकर मुझ पर अपने हाथो से सफेद मोतियों की बारिश कर रहे हैं...* उनका अनुपम तेज भी मुझमे समाता जा रहा है... इन मोतियों की बारिश की अनुभूति मेरे पूरे सूक्ष्म शरीर में हो रही है... इन सफेद पवित्र *मोतियों की वर्सा होते ही अंदर से कमी कमजोरियां छोटे छोटे कंकड़ और रेत के रूप में बाहर निकलती जा रही है...*
➳ _ ➳ जैसे ही कंकड़ और रेत के रूप में कमी और कमजोरियां बाहर निकलती जा रही हैं... *मुझे निर्विध्न स्थिति की अनुभूति हो रही है... मुझे परिस्थितियाँ जो पहाड़ दिख रही थी वो तो रूई के समान दिखने लगी है...* ऐसा लग रहा है की मानो वो है ही नहीं... इस पवित्र मोतियों की बारिश ने मुझे पूरा ही शुद्रपने से मार दिया... देह अभिमान से मैं पूरी तरह मर चुकी हूँ... *साधनो की आकर्षण होती क्या है इसकी मुझे अविद्या हो चुकी है...* बाडीकान्सेस का 'मैं' खतम होकर संपूर्ण और संपन्न आत्मा का 'मैं' इमर्ज हो चुका है... सेवा के बाडीकान्सेस 'मेरे' की जगह सब कुछ तेरा अर्थात बाबा का अनुभव हो रहा हैं... *शेर और बिल्ली भी पेपर के प्रतीत हो रहे है...* ये जो स्थिति है इसमे मैं विकारों की विद्या से संपूर्ण अनभिज्ञ हूँ... इस कारण मुझे *संगमयुग में जीवन मुक्ति की अनुभूति हो रही हैं...* चेहरा रूहानी चमक से भरपूर हो गया है... मेरा *यह जो मीठा मरना है उसमें कोई दुःख अनुभव नहीं हो रहा है...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा *जहाँ पर भी जाती हूँ, वहाँ सबका कल्याण ही कल्याण हो रहा है...* सबके दुःख, दर्द, पीडा़, तकलीफ मिटते जा रहे है... सबको अतिइन्द्रिय सुख की अनुभूति हो रही हैं... क्योंकि मैं आत्मा जिस किसी आत्मा के संबंध संपर्क में आती हूँ उन सभी को वही जीवनमुक्त अवस्था की अनुभूति हो रही है जो मैं कर रही हूँ... *अब सारे बहाने खतम हो गए... की यह हो गया... इसलिए हो गया... यह बहाने बाजी की बातें ही खतम हो गई... गिरती कला की बाजी, बहाने बाजी, कमजोरी की बाजी यह सब समाप्त... निरंतर उड़ती कला की बाजी शुरू* हो गई है... चारो ओर सुख ही सुख, आनंद ही आनंद का मौसम छाया है... ऐसी *कर्मातीत अवस्था और ऐसी जीवन मुक्त स्थिति की अनुभूति* जिसमे शांति ही धर्म है... प्रेम ही भाषा है... एकता ही संस्कृति है... और सुख ही जीवन जीने की कला है... मेरे इस अनुभव से चेहरा एकदम खिल उठ़ा है... सारी आत्माएं मन ही मन मुझे शुक्रिया अदा कर रही है और मैं आत्मा अपने मीठे प्यारे बापदादा को ढेर सारा शुक्रिया कर रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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