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 25 / 08 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *देह से ममत्व निकालने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *एक परमात्मा माशूक का सच्चा आशिक बनकर रहे ?*

 

➢➢ *घरबार संभालते राजऋषि बनकर रहे ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *ज्ञान जल में तैरते रहे और ऊंची स्थिति में उड़ते रहे ?*

 

➢➢ *मणि मन बाप के मस्तक के बीच चमकते रहे ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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➳ _ ➳  एकाग्रता की शक्ति से किसी भी आत्मा का मैसेज उस आत्मा तक पहुँचा सकते हो। किसी भी आत्मा का आह्वान कर सकते हो। किसी भी आत्मा की आवाज को कैच कर सकते हो। किसी भी आत्मा को दूर बैठे सहयोग दे सकते हो। वह एकाग्रता जानते हो ना। *सिवाए एक बाप के और कोई भी संकल्प न हो।* एक बाप में सारे संसार की सर्व प्राप्तियों की अनुभूति हो। एक ही एक हो। पुरुषार्थ द्वारा एकाग्र बनना वह अलग स्टेज है। लेकिन *एकाग्रता में स्थित हो जाना, वह स्थिति इतनी शक्तिशाली है। ऐसी श्रेष्ठ स्थिति का एक संकल्प भी बाप समान का बहुत अनुभव कराता है।* अभी इस रूहानी शक्ति का प्रयोग करके देखो। इसमें एकान्त का साधन आवश्यक है। *अभ्यास होने से लास्ट में चारों ओर हंगामा होते हुए भी आप सभी एक के अंत में खो गये तो हंगामे के बीच भी एकांत का अनुभव करेंगे।* लेकिन ऐसा अभ्यास बहुत समय से चाहिए। तब ही चारों ओर के अनेक प्रकार के हंगामे होते हुए भी अपने को एकान्तवासी अनुभव करेंगे। *वर्तमान समय ऐसे गुप्त शक्तियों द्वारा अनुभवी मूर्त बनना अति आवश्यक है।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  ज्ञान योग से सच्चा श्रंगार कर, देह से ममत्व निकलना"*

 

_ ➳  मीठे बाबा की मीठी यादो में डूबी हुई मै आत्मा... मीठे बाबा से मिलने वतन में पहुंची... वतन में मीठे बाबा कब से मेरी राह निहार रहे है... मुझे अपनी शक्तियो और गुणो की तरंगो में मालामाल कर रहे है... मीठे बाबा *मुझे अपने हाथो से सजाकर... मेरा श्रंगार करके, मुझे सतयुगी दुनिया में सुखो का अधिकारी बना रहे है..*. मीठे बाबा की यादो में मै आत्मा... अशरीरी बनकर मुस्करा रही हूँ...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञानी और योगी बनाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... मीठे बाबा के श्रीमत की पालना में ज्ञान और योग के श्रंगार से सज जाओ... देह और देह के भान से परे रहकर, सदा की सुंदरता को अपनाओ... *देह की मिटटी से उपराम होकर, आत्मिक भाव के सौंदर्य से सज धज कर मुस्कराओ.*.."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा से ज्ञान और योग के खजानो से स्वयं को लबालब करते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... आपने मुझे अपनी प्यारी गोद में बिठाकर कितना सुंदर बना दिया है... मै आत्मा विकारो से देह भान से मुक्त होकर भीतरी सौंदर्य से सज गयी हूँ... *अपने खोये गुण और शक्तियो को पाकर कितनी धनी बन गयी हूँ.*.."

 

   प्यारे बाबा मुझ आत्मा को ज्ञान और योग की खुशबु से भरते हुए कहते है :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे.... देह के नशे में घिर कर जनमो तक दुखो को झेलते आये हो... *अब इसके दलदल से मन बुद्धि को निकाल कर... मीठे बाबा की यादो में तेजस्वी बनकर, स्वर्ग धरा पर इठलाओ.*.. मीठे बाबा ज्ञान और योग से सुंदर बनाने आये है... देह से पूरी तरहा ममत्व हटाकर ईश्वरीय यादो में खो जाओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा से असीम खुशियो को पाकर कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... *आपकी प्यारी यादो में सत्य के प्रकाश में मै आत्मा कितनी ओजस्वी बन रही हूँ.*.. आपने मुझे ज्ञान और योग से भरकर मालामाल कर दिया है... मै आत्मा आपकी यादो आंतरिक सौंदर्य से सजती जा रही हूँ..."

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी यादो में खुबसूरत बनाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे.... *ज्ञान और योग से श्रंगारित होकर अथाह सुखो से भरी दुनिया के मालिक बन जाओ..*. अपने सत्य स्वरूप के नशे में इस कदर खो जाओ... कि देह का आकर्षण ही न रहे... और ईश्वरीय यादो के प्रकाश में इस मिटटी के प्रभाव से पूरी तरहा से मुक्त हो जाओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा के प्यार में फूलो सी खिलकर कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... *मुझ आत्मा को आपके मीठे साये और साथ ने देवताई सुंदरता से सजाया है.*.. कितना प्यारा और खुबसूरत मेरा भाग्य आपने बनाया है... आपकी मीठी यादो में मै आत्मा स्वर्ग के मीठे सुखो के लिए श्रंगारित हो रही हूँ..."अपने प्यारे बाबा से मीठी रुहरिहानं कर मै आत्मा साकार वतन में लौट आयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- एक परमात्मा माशूक का सच्चा आशिक बनना*"

 

_ ➳  दिल मे सच्चे प्यार की आश ले कर, अपने परमात्मा माशूक की सच्ची आशिक बन, मैं उनके प्रेम की लगन में मगन हो कर उन्हें याद कर रही हूँ। *मेरी याद उन तक पहुंच रही है, मेरे प्यार की तड़प की वो महसूस कर रहें हैं तभी तो मेरे प्रेम के आकर्षण में आकर्षित हो कर वो मेरे पास आ रहें हैं*। उनके आने का मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। अपने प्रेम की शीतल फुहारें मुझ पर बरसाते हुए मेरे सच्चे माशूक शिव बाबा अपना घर परमधाम छोड़ मुझ से मिलने के लिए इस साकार लोक में आ रहें हैं।

 

_ ➳  प्यार के सागर मेरे शिव पिता परमात्मा मुझे मेरे सच्चे प्यार का प्रतिफल देने के लिए अब मेरे सम्मुख हैं। उनके प्रेम की शीतल किरणों की शीतलता मुझे अपने आस - पास उनकी उपस्थिति का स्पष्ट अनुभव करवा रही हैं। *ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे मैं किसी विशाल सागर के किनारे बैठी हूँ और सागर की लहरों की शीतलता, शीतल हवाओं के झोंको के रूप में बार - बार आ कर मुझे स्पर्श कर रही हैं*। मेरे शिव पिता परमात्मा से आ रहे  सर्वशक्तियों के शक्तिशाली वायब्रेशन मुझे ऐसी ही शीतलता का अनुभव करवा रहें हैं। शीतल हवाओं के झोंको के रूप में मेरे शिव माशूक का प्यार निरन्तर मुझ पर बरस रहा है और मेरे मन को तृप्त कर रहा है।

 

_ ➳  अपने प्रेम की किरणों के आगोश में भरकर मेरे शिव साजन अब मुझ आत्मा को इस देह के पिजड़े से निकाल, अपने साथ ले जा रहें हैं। *देह के बन्धन से मुक्त हो कर मैं स्वयं को एकदम हल्का अनुभव कर रही हूँ। उन्मुक्त हो कर उड़ने का आनन्द कितना निराला, कितना लुभावना है*। अपने सच्चे माशूक की बाहों के झूले में झूलती, अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य पर इतराती मैं आत्मा आशिक उनके साथ उनके धाम जा रही हूँ। *देह और देह की दुनिया के झूठे रिश्तों के मोह की जंजीरो की कैद से निकल, अपने शिव पिया के साथ अब मैं पहुंच गई उनकी निराकारी दुनिया में*।

 

_ ➳  देख रही हूँ अब मैं स्वयं को परमधाम में अपने सच्चे माशूक शिव पिता परमात्मा के सामने। उनके प्यार की शीतल छाया के नीचे बैठी मैं आशिक आत्मा अपलक उन्हें निहार रही हूँ। *63 जन्मो से जिनके दर्शनों की आश मन में लिए इधर - उधर भटक रही थी। वो मेरे माशूक, मेरे शिव बाबा आज मेरे बिल्कुल सामने हैं। प्रभु दर्शन की प्यासी मैं आत्मा आज उन्हें अपने सामने पा कर तृप्त हो गई हूँ*। उनके प्यार की शीतल फुहारे रिम - झिम करती बारिश की बूंदों की तरह निरन्तर मुझ पर पड़ रही हैं। उनकी सर्वशक्तियाँ मेरे अंदर असीम बल भर रही हैं। *बीज रूप स्थिति में स्थित हो कर अपने बीज रूप शिव पिता परमात्मा के साथ मैं मंगल मिलन मना रही हूँ*। यह मंगल मिलन मुझे अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करवा रहा है।

 

_ ➳  इस अतीन्द्रिय सुख का गहन अनुभव करने के बाद, अपने माशूक शिव पिता परमात्मा के इस अदभुत, अद्वितिय प्यार का सुखद एहसास अपने साथ ले कर मै उनकी आशिक आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ। अब मैं अपने साकारी तन में विराजमान हूँ और स्वयं को अपने शिव पिया के साथ कम्बाइंड अनुभव कर रही हूँ। *उनके निस्वार्थ प्यार का मधुर एहसास मुझे हर पल उनकी उपस्थिति का अनुभव कराता रहता है*। एक पल के लिए भी मैं उनसे अलग नही होती। चलते - फिरते, खाते - पीते हर कर्म करते वो मुझे अपने साथ अनुभव होते हैं। अपने माशूक शिव परमात्मा की सच्ची आशिक बन अब मैं हर पल उनकी ही यादों में खोई रहती हूँ।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल* :-   *मैं आत्मा ज्ञान जल में तैरती और ऊँची स्थिति में उड़ती हूँ।* 

 

 _ ➳  *होलीहंस मैं आत्मा... ज्ञान मनन... चिंतन करती... ऊँची स्थिति में स्थित रह... उड़ती और सबको उड़ाती रहती हूँ...* बीती को बिंदी लगाकर मैं आत्मा... ज्ञान सागर की मौजों में लहराती रहती हूँ... *हर पल हर क्षण नया ब्राह्मण जन्म महसूस करती मैं आत्मा...* अपने संगमयुग को यथार्थ रीति सफल करती जा रही हूँ... मैं बिंदी... ड्रामा बिंदी... बाबा भी बिंदी... तीन बिंदियों का राजसी तिलक बापदादा के हाथों लगाती मैं आत्मा... तीव्र पुरुषार्थ से हाई जम्प लगाती रहती हूँ... *बिन्दी रूपी ऊँची स्थिति में स्थित स्वराज्य अधिकारी बनती जा रही हूँ...* संगमयुग... प्रालब्ध की प्राप्ति करवाने के युग में... मैं आत्मा... ज्ञान रत्नों से अपनी झोली भरती रहती हूँ... कर्मातीत अवस्था की ऊंची उड़ान की स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप के मस्तक के बीच मणि बनकर चमकने वाले मस्तकमणि का अनुभव"*

 

_ ➳  मैं चैतन्य शक्ति आत्मा... स्वयं को अपने फरिश्ता स्वरूप में देखती हूँ... मुझ फ़रिश्ते से चमकती हुई... *रंग-बिरंगी किरणें निकल-निकल कर चारों ओर फैलती जा रही है*... मैं फरिश्ता सूक्ष्म वतन में बाबा के सामने खड़ी हो जाती हूँ... बाबा से लगातार निकलती किरणों का झरना मुझ फ़रिश्ते पर प्रवाहित हो रहा है... मैं फरिश्ता अपना सूक्ष्म शरीर यहाँ छोड़... चमकता सितारा बन उड़ चलती हूँ शान्ति धाम की ओर... *जहाँ चारों ओर शांति ही शांति फैली हुई है*... पूरा आभामंडल मणियों से चमक रहा है... मैं आत्मा शांति के पुंज में समाती जा रही हूँ... कितना सुन्दर अनुभव है... *मैं चमकता सितारा निराकार परमात्मा में समा जाती हूँ*... कोई भी संकल्प नही... बस मैं और मेरा बाबा... स्थिर हो जाती हूँ मैं आत्मा... ऐसा अनुभव होता है... जैसे मैं आत्मा मणि बन... *बाप के मस्तक के बीच चमकने वाली... मस्तकमणि बनती जा रही हूँ*... मस्तकमणि बन चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश फैलाती जा रही हूँ... *इस प्रकाश से पांचो तत्व... विश्व की सर्व आत्माएँ सब पावन बनते जा रहे है*...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  १. *बापदादा ने देखा कि कमजोरी देते तो हो लेकिन फिर वापस ले लेते हो। देखोवो (वर्ष) अक्ल वाला है जो पांच हजार वर्ष के पहले वापस नहीं आयेगा और आप पुरानी चीजें वापस क्यों लेते हो?* चिटकी लिखकर देंगे-हाँ.. बाबा, बस, क्रोध मुक्त हो जायेंगे.... बहुत अच्छा लिखते हैं और रुहरिहान भी करते हैं तो बहुत अच्छा कांध हिलाते हैं, हाँ, हाँ करते हैं। फिर पता नहीं क्यों वापस ले लेते हैं। *पुरानी चीजों से प्रीत रखते हैं। फिर कहते हैं हमने तो छोड़ दिया वो हमको नहीं छोड़ती हैं।*

 

 _ ➳  *बाप कहते हैं आप चल रहे हो और चलते हुए कोई कांटा या ऐसी चीज आपके पीछे चिपक जाती है तो आप क्या करेंगेये सोचेंगे कि ये मुझे छोड़े या मैं छोडूँकौन छोड़ेगा? अच्छा, अगर फिर भी वो हवा में उड़ती हुई आपके पास आ जाये तो फिर क्या करेंगे?* फिर रख देंगे या फ़ेंक देंगेफेंकेंगे नातो ये चीज क्यों नहीं फेंकतेअगर गलती से आ भी गई तो जब आपको पसन्द नहीं है और वो चीज आपके पास फिर से आती है तो क्या आप वो चीज सम्भाल कर रखेंगेकोई भी किसको गलती से भी अगर कोई खराब चीज दे देवे तो क्या उसे आलमारी में सजाकर रखेंगे?  फ़ेंक देंगे ना? उसकी फिर से शक्ल भी नहीं दिखाई देऐसे फेंकेंगे । तो ये फिर क्यों वापस लेते हो? बापदादा की ये श्रीमत है क्या कि वापस लोफिर क्यों लेते हो? *वो तो वापस आयेगी क्योंकि उसका आपसे प्यार है लेकिन आपका प्यार नहीं है। उसको आप अच्छे लगते हो और आपको वो अच्छा नहीं लगता है तो क्या करना पड़े?*

 

 _ ➳  २. *तो अभी जब वर्ष पांच हजार वर्ष के लिये विदाई लेता है तो आप कम से कम ये छोटा सा ब्राह्मण जन्म एक ही जन्म हैज्यादा नहीं हैएक ही है और उसमें भी कल का भरोसा नहीं तो वो पांच हजार की विदाई लेता है तो आप कम से कम एक जन्म के लिए तो विदाई दो। दे सकते होहाँ जी तो करते हो। लेकिन जिस समय वो वापस आती है तो सोचते हो - बड़ा मुश्किल लगता हैछूटता ही नहीं हैक्या करें! छोड़ो तो छूटें। वो नहीं छूटेगा, *आप छोड़ो तो छूटेगा। क्योंकि आपने उनसे प्यार बहुत कर लिया है तो वो नहीं छोड़ेगा, आपको छोड़ना पड़ेगा। तो पुराने वर्ष को इस विधि से दृढ़ संकल्प और सम्पूर्ण निश्चयइस ट्रे में ये आठ ही बातें सजा कर उसको दे दो तो फिर वापस नहीं आयेंगीनिश्चय को हिलाओ नहीं।

 

 _ ➳  ३. *अलबेले मत बनना। रिवाइज करोबार-बार रिवाइज करो।* बापदादा ने सबका चार्ट चेक किया तो टोटल ५० परसेन्ट बच्चे दूसरों को देख स्वयं अलबेले रहते हैं। कहाँ कहाँ अच्छे-अच्छे बच्चे भी अलबेलेपन में बहुत आते हैं। ये तो होता ही है..... ये तो चलता ही है.... चलने दो... सभी चलते हैं.... *बापदादा को हंसी आती है कि क्या अगर एक ने ठोकर खाई तो उसको देखकर आप अलबेलेपन में आकर ठोकर खाते होये समझदारी हैतो इस अलबेलेपन का पश्चाताप् बहुत-बहुत-बहुत बड़ा है।* अभी बड़ी बात नहीं लगती हैहाँ चलो... लेकिन बापदादा सब देखते हैं कि कितने अलबेले होते हैं, कितने औरों को नीचे जाने में फालो करते हैंतो बापदादा को बहुत रहम आता है कि पश्चाताप् की घड़ियाँ कितनी कठिन होगी। *इसलिए अलबेलेपन की लहर को, दूसरों को देखने की लहर को इस पुराने वर्ष में मन से विदाई दो।*

 

✺   *ड्रिल :-  "दृढ़ संकल्प और सम्पूर्ण निश्चय से कमजोरी, अलबेलेपन को मन से विदाई देना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा अपने भृकुटि सिंहासन पर विराजमान... अपने स्वधर्म शांत स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ...* धीरे-धीरे बाहर की दुनिया से दूर डिटैच होती जा रही हूँ... सभी बाहर की आवाजें अब बंद हो गई है... और मैं आत्मा अपने इनर जर्नी पर चली जा रही हूँ... *गहरे और गहरे एकदम शांत जहां मन की भी आवाज खत्म हो जाती है...*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा अपने घर स्वीट होम परमधाम आ जाती हूँ...* महाज्योति से दिव्य किरणें चारों ओर फैल रही है... और मुझ आत्मा में भी समाती जा रही है... मैं आत्मा बाबा के समीप आती जा रही हूँ... उनके किरणों रूपी गोद में बैठ जाती हूँ... पवित्रता, स्नेह, शक्ति की लाइट का फाऊँटेन आती हुई परम ज्योति से... मुझ आत्मा पर आती हुई मुझमें समाती जा रही है... भरपूर करती जा रही है...

 

 _ ➳  सर्वशक्तिमान से शक्तियों की किरणें मेरे कमजोरियों को अलबेलेपन को दग्ध कर रही है... *कोई भी काँटा, गलती से भी आयी हुई चीज सभी समाप्त होती जा रही है...* अंश के वंश को भी समाप्त कर रही है... *जो बहुत प्यार से इन सब को पकड़ रखा था एक-एक को छोड़ती जा रही हूँ...  सब की विदाई कर दी है...*

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा धीरे-धीरे सूक्ष्म वतन आती हूँ अपने चमकते लाइट के ड्रेस में... *बापदादा मेरा हाथ अपने हाथों में थाम लेते हैं... बाबा अपनी दृढ़ता, निश्चयबुद्धि मुझे विल करते जा रहे हैं...* मैं आत्मा अपने अलबेलेपन के संस्कार से मुक्त होती जा रही हूँ... *परचिंतन परदर्शन से मुक्त होती जा रही हूँ...*

 

 _ ➳  *हाँ जी बाबा! अटेंशन रूपी पहरा रखती जा रही हूँ... यूँ ही अलबेलेपन में आकर ठोकर नहीं खाऊंगी...* अपने अंदर  परिवर्तन को महसूस कर रही हूँ... अब सिर्फ सारी प्रीत एक आप से ही है बाबा... मुझ आत्मा के संकल्प दृढ़ हो गये हैं... समर्थ हो गए हैं... सम्पूर्ण निश्चय से कमजोरियों अलबेलेपन को विदाई दे दी है... मैं आत्मा शक्तियों से भरपूर... *खुद पर निश्चय रखती हुई अपने स्थूल शरीर में आ जाती हूँ... ओम् शान्ति।*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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