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 26 / 07 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *याद का पूरा पूरा चार्ट रखा ?*

 

➢➢ *भोजन भी शिव बाबा की याद में बनाया और खाया ?*

 

➢➢ *बाप द्वारा जो मन्त्र मिला है, वह सबको दिया ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *महानता के साथ निर्मानता को धारण कर सर्व का मन प्राप्त कर सुखदाई स्थिति का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *खुशियों का खजाना साथ रख उदासी को तलाक दिया ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *सदा दाता का बच्चा बन सर्व को देने की भासना से भरपूर रहे ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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➳ _ ➳  आप सभी अभी भी अपने को बहुत बिजी समझते हो लेकिन अभी फिर भी बहुत फ्री हो। *आगे चल और बिजी होते जायेंगे।* इसलिए ऐसे भिन-भिन्न प्रकार के स्व-अभ्यास, स्वसाधना अभी कर सकते हो। *चलते-फिरते स्व प्रति जितना भी समय मिले अभ्यास में सफल करते जाओ।* दिन-प्रतिदिन वातावरण प्रमाण एमर्जेन्सी केसेज ज्यादा आयेंगे। अभी तो आराम से दवाई कर रहे हो। *फिर तो एमर्जन्सी केसेज में समय और शक्तियाँ थोडे समय में ज्यादा केसेज करने पडेगे।* जब चैलेन्ज करते है कि अविनाशी निरोगी बनने की एक ही विश्व की हास्पिटल है तो चारों ओर के रोगी कहाँ जायेंगे? एमर्जेन्सी केसेज की लाइन होगी। उस समय क्या करेंगे? *अमरभव का वरदान तो देंगे ना।* स्व अभ्यास के आक्सीजन द्वारा साहस का शवांस देना पडेगा *होपलेस केस अर्थात चारों ओर के दिल शिकस्त के केसेज ज्यादा आयेंगे।* ऐसी होपलेस आत्माओं को साहस दिलाना यही श्वांस भरना है। *तो फटाफट आक्सीजन देना पडेगा।* उस स्व-अभ्यास के आधार पर ऐसी आत्माओं को शक्तिशाली बना सकेंगे! इसलिए *फुर्सत नहीं है, यह नहीं कहो।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  अमृतवेले बाप की याद रुपी घृत से, आत्म ज्योति को जगाना"*

➳ _ ➳  मीठे मधुबन के प्रांगण में...  मै आत्मा बाबा की यादो में  चहल कदमी करते हुए... अपने प्यारे से बाबा की यादो में डूब जाती हूँ... और यूँ यादो में खोयी खोयी सी... में आत्मा अपने कदमो का रुख मीठे बाबा के कमरे की ओर बढ़ाती हूँ... *मुझ आत्मा के स्वागत में पलके बिछाये बाबा मेरे ही इंतजार में बेठे है*... मुझे देखते ही बाबा खिल उठते है... अपने बच्चे को सम्मुख देख प्यारे पिता का असीम प्यार उमड़ आया है... और मै और बाबा एक दूजे के नयनों में खो से जाते है...
 
❉   मीठे बाबा मुझ आत्मा को देवताई सौंदर्य से दमकाते हुए बोले :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *सवेरे सवेरे उठकर मीठे बाबा की यादो में अपनी मद्धम हो गयी रौशनी को, पुनः प्रज्जवलित करो.*.. मीठे बाबा की यादो में अपने सारे विकर्मो को भस्म करके, दिव्य गुण और शक्तियो से सज जाओ... यह यादे ही खोया हुआ प्रकाश पुनः वापिस दिलायेगी..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा अपने मीठे बाबा को दिल से शुक्रिया करते हुए कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा... देह की दुनिया में लिप्त होकर मै आत्मा अपने वजूद को ही खो गयी थी... *आपने मुझे यादो के सत्य के प्रकाश में फिर से तेजस्वी बनाया है.*.. आपके प्यारे से साथ में, मै आत्मा अपनी रूहानियत को पाकर पुनः खुबसूरत होती जा रही हूँ..."
 
❉   प्यारे बाबा मुझ आत्मा को आत्मिक तेज से प्रकाशित करते हुए बोले :- "मीठे लाडले बच्चे... अमृतवेले यादो भरे मौसम में ईश्वरीय याद में गहरे डूब जाओ... और अपनी खोयी पवित्रता को पाकर देवताई सुखो में मुस्कराओ... यादो के घृत से आत्मिक तेज को बढ़ाओ... सवेरे मीठे बाबा संग प्यार भरी बातो में खो जाओ... और *यूँ ही यादो में के नशे में डूबे हुए, स्वर्ग के मीठे सुख अपनी हथेली पर सजाओ.*.."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की ओर बड़े ही प्रेम से निहारती हुई कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपको पाकर *आपकी मीठी यादो के साये तले, अपनी देवताई दिव्यता को पाती जा रही हूँ.*.. देह की मिटटी में विकारो की धूल से धूमिल हो गयी अपनी खोयी छवि को पुनः तेज से भर रही हूँ... मै आत्मा अमृतवेले यादो में तेजस्वी बन रही हूँ..."

❉   मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपनी सारी शक्तियो से भरपूर करते हुए बोले :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... *सवेरे उठकर मीठे बाबा की मधुर यादो में रहकर स्वयं को नूरानी बनाओ*... अपनी खोयी सुंदरता को पाकर विश्व राज्य तिलक को पाओ... यादो में गहरे डूबकर अपनी असीम शक्तियो से पुनः सज जाओ... और खुशियो भरे स्वर्ग पर मुस्कराता हुआ जीवन पाओ..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा अपने मीठे बाबा को दिल से वादा करते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... आपने जीवन में आकर *जिन सच्ची खुशियो से मुझे सजाया है, ज्ञान श्रंगार से मुझे बेशकीमती बनाया है,* और अपनी यादो की खुशबु में सदा का निखारा है, उसका मै किन शब्दों में शुक्रिया करूँ..." ऐसी मीठी प्यारी रुहरिहानं अपने बाबा सुनाकर... मै आत्मा साकार तन में आ गयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- याद का अभ्यास बढ़ाना और याद का पूरा पूरा चार्ट रखना*"

➳ _ ➳  देह और देह से जुड़े पदार्थो और सम्बन्धो की याद केवल दुख देने वाली है जबकि सुखदाई बाप की याद जीवन को सुख और शांति से भरपूर करने वाली है, मन को सुकून और चित को चैन देने वाली है। *यही विचार करते करते अपने मीठे प्यारे शिवबाबा की मीठी मधुर यादों में मैं खो जाती हूँ और उस सुखद पल को याद करती हूं जब पहली बार झूठे स्वार्थी दैहिक प्यार से परे निस्वार्थ सच्चे रूहानी प्यार का एहसास किया था*। जब मेरे दिलाराम भगवान ने सच्चा प्रीतम बन दैहिक सम्बन्धों के दुखदाई कड़वे वचनों से घायल हुए मेरे मन को अपने मीठे सुखदाई बोल से यह कह कर मरहम लगाया था कि *"मैं तुम्हारा हूँ, तुम्हारे लिए ही आया हूँ"। उनका यह कहकर अपने प्यार की शीतल छाया में मुझे समा लेना आज भी मन को उसी खूबसूरत एहसास से सरोबार कर देता है*।

➳ _ ➳  उस खूबसूरत एहसास को स्मृति में ला कर अगले ही पल इस नश्वर देह का त्याग कर अशरीरी आत्मा बन मैं उड़ चलती हूँ अपने दिलबर, दिलाराम शिव पिया के पास अपने स्वीट साइलेन्स होम में। यहां पहुँचते ही एक असीम गहन शांति का मैं अनुभव कर रही हूं। *ऐसा लग रहा है जन्म जन्म से मुझे जिस चीज की तलाश थी, जिसके लिए मैं आत्मा भटक रही थी वो तलाश अब पूरी हो गई*। मेरे सामने विराजमान है महाज्योति स्वरूप में मेरे दिलाराम शिव बाबा। उनसे निकल रही शक्तियों और गुणों की अनन्त किरणे मुझ पर पड़ रही हैं और असीम आनन्द से मैं आत्मा भरपूर हो रही हूं। अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते हुए मैं आत्मा सजनी प्रेम के सागर अपने शिव पिया के प्यार की गहराई में समाती जा रही हूं।

➳ _ ➳  ईश्वरीय प्रेम का सच्चा सुख प्राप्त कर, स्वयं को पूरी तरह तृप्त और शक्तियों से भरपूर करके अब मैं आत्मा साकारी दुनिया मे वापिस लौट रही हूं। *परमात्म प्रेम का सुखदाई अनुभव, साकारी देह में रहते हुए भी अब मुझे देह और देह से जुड़े बन्धनों से मुक्त कर रहा है*। किसी भी देहधारी के झूठे प्यार का आकर्षण अब मुझे आकर्षित नही कर रहा। सर्व सम्बन्धों का सच्चा रूहानी प्यार मेरे मीठे शिव बाबा से मुझे निरन्तर प्राप्त हो रहा है। "मुझ से श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा इस संसार मे और कोई नही"। *स्वयं भाग्यविधाता भगवान मेरा सर्व सम्बन्धी बन गया। इसी श्रेष्ठ भाग्य की स्मृति और नशे में रहते हुए अब मैं पुरानी दुनिया और इसके आकर्षणों से मुक्त हो रही हूं*।

➳ _ ➳  मेरे दिलाराम, दिलबर भगवान की याद मुझे इस पुरानी देह और देह के सम्बन्धो से सहज ही नष्टोमोहा बना रही है। मैं आत्मअभिमानी बनती जा रही हूं। *हर कर्म करते अपने दिलाराम शिव बाबा का हाथ और साथ अपने ऊपर मैं निरन्तर अनुभव करते हुए देह में रहते हुए भी देह से उपराम स्थिति का अनुभव कर रही हूं*। मैं अच्छी रीति जान गई हूं कि केवल परमात्मा की याद ही आत्मा को पुराने दैहिक कर्मबन्धनों से मुक्त कर सकती है। केवल परमात्म प्यार ही आत्मा को तृप्त कर सकता है। इसलिए परमात्म याद में निरन्तर रहने का अभ्यास बढ़ाना ही अब मेरे इस ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है।

➳ _ ➳  इस लक्ष्य को पाने के लिए अब मैं ब्राह्मण आत्मा इस देह और देह की दुनिया मे रहते हुए स्वयं को केवल ट्रस्टी समझ हर कर्तव्य कर रही हूं। यह सृष्टि एक विशाल नाटक हैं जहां मैं शरीर धारण कर पार्ट बजा रही हूँ। *मुझ बिन्दु आत्मा को बिंदु बाप की याद से पावन बन कर वापिस अपने धाम जाना है इस बात को सदा स्मृति में रख बिंदु रूप में स्थित हो, बिंदु बाप की याद में रह, ड्रामा की हर सीन को साक्षी हो कर देख हर बात पर बिंदु लगाने का अभ्यास करते, अब मैं याद के चार्ट को बढ़ाने का पुरुषार्थ कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  मैं आत्मा महानता के साथ निर्माणता को धारण कर सर्व का मान प्राप्त करती हूँ।"*

 

 _ ➳  मैं दिव्य जन्मधारी ब्राह्मण हूँ... *निर्माणता ब्राह्मणों के जीवन का विशेष श्रृंगार हैं... निर्माणता ही महानता है...* निर्माणता अर्थात्... सरल नेचुरल... मन में, वाणी में, बोल में, संबंध-सम्पर्क में धारण करने वाली आत्मा के चेहरे और चलन से सरलता स्वतः ही झलकती हैं... मैं आत्मा सर्व की स्नेही बन... *हर परिस्थिति में स्वयं को मोल्ड कर... रियल गोल्ड बन रही हूँ... निर्माणता को धारण कर निरंहकारी स्वतः बन रही हूँ...* मैं आत्मा औरों को आगे रख स्वयं... आगे बढ़ती जा रही हूँ... सदा प्रसन्नचित्त रह... हर आत्मा को सहयोग देतीे... सदा भरपूर रहती हूँ... सर्व का मान प्राप्त कर रही हूँ... मेरे मुख से सदा हीरे मोती ही निकलते हैं... अभिमान के बोल... दुख देने वाले कभी नहीं... जो भी करती हूँ... वह सुखदायी होता है... सबके प्रति शुभ भावना शुभ कामना रखती हूँ... जैसे *ब्रह्मा बाबा... उन्होंने अपना सब कुछ... शिव बाबा को देकर खुद ट्रस्टी बन कर रहे... हर कार्य में सदा माताओं को आगे रख... स्वयं नम्बरवन बन गए...* अब मैं आत्मा भी ऐसा पुरूषार्थ कर रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  उदासी को तलाक देने के लिए खुशियों का खजाना सदा साथ रखना"* 

➳ _ ➳  मैं विशेष आत्मा हूँ... खुश रहना और खुशिया बाँटना यही मेरा धंधा है... मैं आत्मा बाप समान विश्वकल्याणकारी हूँ... सर्व आत्माओं को सुखी करने के निमित्त हूँ... मैं स्वयं बाप से प्राप्त खुशियों के अखुट खजाने से भरपूर हूँ... खुशियों के खजाने सदा मेरे साथ हैं... उदासी को मुझ आत्मा ने कायम के लिए तलाक दे दिया हैं... *बाबा से मैंने सदा खुश रहने का वायदा किया हैं...* ख़ुशी जैसी खुराक नहीं... बाप को अपनी सभी चिंताए, समस्याएं दे मैं आत्मा निश्चिन्त हूँ, बेफिक्र हूँ...मैं सदा खुशियों के झूलों में झूलती रहती हूँ... मैं आत्मा सर्वप्राप्ति सम्पन्न हूँ... मैं आत्मा सबसे भाग्यवान आत्मा हूँ... करोड़ो आत्माओ में बाबा ने मुझ आत्मा को अपना सहयोगी बनाया हैं... बाबा मिला सबकुछ मिला... मैं आत्मा बेशुमार खुशियों की मालिक हूँ... *मेरी ख़ुशी के वायब्रेशन्स से सारा जहाँ खुशनुमा हो रहा हैं...* मेरे सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा अपने सर्व गम भूल... खुशियों से सराबोर हो रही हैं...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *सर्वंश त्यागीसदा विश्व-कल्याणकारी की विशेषता वाले होंगे। सदा दाता का बच्चा दाता बन सर्व को देने की भासना से भरपूर होंगे।* ऐसे नहीं कि यह करे वा ऐसी परिस्थिति हो, वायुमण्डल हो तब मैं यह करूँ। दूसरे का सहयोग लेकर के अपने कल्याण के श्रेष्ठ कर्म करने वाले अर्थात् लेकर फिर देनेे वाले, सहयोग लिया फिर दियातो लेना और देना दोनों साथ-साथ हुआ। लेकिन *सर्वंश त्यागी स्वयं मास्टर दाता बन परिस्थितियों को भी परिवर्तन करने काकमजोर को शक्तिशाली बनाने का, वायुमंडल वा वृत्ति को अपनी शक्तियों द्वारा परिवर्तन करने कासदा स्वयं को कल्याण अर्थ जिम्मेवार आत्मा समझ हर बात में सहयोग वा शक्ति के महादान वा वरदान देने का संकल्प करेंगे।* यह हो तो यह करें, नहीं। मास्टर दाता बन परिवर्तन करने कीशुभ भावना से शक्तियों को कार्य में लगाने अर्थात् देने का कार्य करता रहेगा। मुझे देना हैमुझे करना हैमुझे बदलना हैमुझे निर्मान बनना है। ऐसे ‘‘ओटे सो अर्जुन'' अर्थात् दातापन की विशेषता होगी।

 

✺   *"ड्रिल :- सदा दाता का बच्चा बन सर्व को देने की भासना से भरपूर रहना।*"

 

_ ➳  खुशनुमा संध्या की वेला में मैं आत्मा... मासूम... खिलखिलाते... महकते... चहकते बच्चों को एक गार्डन में खेलते... कूदते... मौज... मस्ती करते देख रही हूँ... अपनी ही खेल में व्यस्त... *न देह का भान... न दुनियादारी का भान... अपनी अलौकिक मासूमियत से भरे सभी बच्चों को देख मन हर्षित हो उठा...* छोटे छोटे बच्चे जो बोलना चलना भी ठीक से नहीं जानते वह बच्चे एक दूसरे के साथ खेल रहे हैं... *पवित्रता और मासूमियत से छलकते गागर के जैसे यह बच्चे...* न जान न पहचान... एक दूसरे से ऐसे घुलमिल गये हैं कि खुद का नास्ता... भी एक दूसरें को अपने हाथों से ख़िला रहे हैं...

 

_ ➳  एक दूसरे से गले मिलते... खेलते... कूदते बच्चों को देख मेरा मन भर आया... एक ही संकल्प चला... क्या मैं ऐसी नहीं बन सकती... *क्या मैं इन बच्चों के जैसे निःस्वार्थ प्यार नहीं कर सकती.... क्या मेरा तेरा किये बिगर एक दिन भी नहीं गुजर सकता...* कोई मेरा अच्छा करे तो ही क्या मैं उनका अच्छा करुं... मैं भी तो बचपन में ऐसी ही मासूम थी... पवित्रता और मासूमियत से भरे नयन... कहाँ गया सब... *क्या बड़े होने का यह मतलब है कि पवित्रता... मासूमियत को अलविदा कह दो...* अपने ही उलझन में उलझी मैं आत्मा... अपने इस सवाल के जवाब के लिए एक की ही ओर दृष्टि करती हूँ... और वह हैं मेरे बाबा... शिव पिता... जिन्हें मिलकर मेरी सारी उलझन सुलझ जाती हैं...

 

_ ➳  और मैं आत्मा... मन बुद्धि के पंख लगाकर पहुँच जाती हूँ मेरे पिता से मिलने... अपने सूक्ष्म शरीर में... पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन में... अपने ब्रह्मा बाबा के सामने... मंद मंद मुस्कुराते ब्रह्मा बाबा मेरा ही इंतजार कर रहे थे और बाबा का आह्वान करते हैं... *ब्रह्मा बाबा का आह्वान और शिवबाबा का सूक्ष्म वतन में आना...* मैं आत्मा निहार रही हूँ यह अलौकिक संगमयुग का अकल्पनीय नजारा... *शिवबाबा का अपने रथ... ब्रह्मा बाबा के तख़्त सिंहासन पर विराजमान होना... एक चमकती हुई दिव्य ज्योति का आगमन महसूस* करने के लिये लाखों आत्मायें इंतजार कर रही हैं... और मैं सौभाग्यशाली आत्मा... यह प्रत्यक्ष देख रही हूँ...

 

_ ➳  बापदादा का कंबाइंड भव्य रूप देखकर मैं आत्मा... भावविभोर हो जाती हूँ... बापदादा से आती हुई शीतल मधुर किरणों को अपने सूक्ष्म शरीर में महसूस कर रही हूँ... और मेरा सूक्ष्म शरीर... पवित्र फ़रिश्ता ड्रैस धारण कर लेता है... *बापदादा से आती हुई अनंत शक्तियों रूपी किरणों से मेरा फ़रिश्ता स्वरुप जगमगा रहा है...* और बापदादा मुझे मेरा सतयुगी स्वरुप दिखा रहा है... *सोलह कला संपूर्ण... संपूर्ण निर्विकारी... परम पवित्र... अलौकिक मासूमियत... स्वार्थ से परे मैं आत्मा* अपना ही स्वरुप देखती रहती हूँ... बोलना... चलना... उठना... बैठना... सभी कार्य में अलौकिकता दिखाई दे रही हैं... स्वार्थ की भावना से परे यह मेरा ही रूप मैं देख रही हूँ...

 

_ ➳  मेरे दैवीय रूप से निकलती शक्तियों रूपी किरणें सारे ब्रह्माण्ड में फ़ैल रही हैं... और सभी अशांत... दुःखी... हताश आत्माओं तक पहुँच रही हैं... *अपने आप निकलती यह किरणों की फव्वारे... बिना मांगे सभी की मनोकामनाएं पूर्ण कर रही हैं...* भक्ति मार्ग के मंदिर में पत्थर की मूर्त के रूप में सजा मेरा दैवीय रूप सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण कर रहा है... मैं आत्मा... मेरे फ़रिश्ते ड्रेस में अपने ही सतयुगी जन्म को देख रही थी... *सतयुगी जन्म में अपने दातापन के संस्कारों को उजागर होता देख मैं आत्मा...* दृढ संकल्प करती हूँ... दाता की बच्ची मैं आत्मा... संगमयुग में भी अपने दातापन के अधिकार को उजागर करुँगी...

 

_ ➳  *सदा स्वयं को कल्याण अर्थ जिम्मेवार आत्मा समझ हर बात में सहयोग वा शक्ति के महादान वा वरदान* देने का संकल्प करके मैं आत्मा बापदादा से विदाई लेकर पहुँच जाती हूँ अपने साकार लोक में... और *मास्टर दाता बन निःस्वार्थ भावना से कोई भी परिस्थिति को परिवर्तित कर रही हूँ...* मास्टर दाता बन परिवर्तन करने कीशुभ भावना से शक्तियों को कार्य में लगाने अर्थात् देने के कार्य में जुड़ जाती हूँ... पवित्र और मासूमियत से भरे बच्चों के रूप में मैं आत्मा मेरा ही सतयुगी स्वरुप को महसूस कर रही हूँ... *मैं आत्मा अपने दातापन के अधिकार से सज समस्त ब्रह्माण्ड में पवित्र... सुख... शांति के किरणों को फ़ैला रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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