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 18 / 08 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *बाप जो ज्ञान की मीठी मीठी बातें सुनाते हैं, उसे धारण किया ?*

 

➢➢ *कोई भी काम क्रोध से न निकाल प्यार से निकाला ?*

 

➢➢ *बहादुर बन सेवा की ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *व्यर्थ संकल्पों के तेज़ बहाव को सेकंड में स्टॉप किया ?*

 

➢➢ *ख़ुशी के खजाने से संपन्न अवस्था का अनुभव किया ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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➳ _ ➳  *उडती कला का उडन आसन सदा तैयार हो।* जैसे आजकल के संसार में भी जब लडाई शुरू हो जाती है तो वहाँ के राजा हो वा प्रेजीडेन्ट हो उन्हों के लिए पहले से ही देश से निकलने के साधन तैयार होते हैं। उस समय यह तैयार करो, यह आर्डर करने की भी मार्जिन नहीं होती। लडाई का इशारा मिला और भागा। नहीं तो क्या हो जाए? प्रजीडेन्ट वा राजा के बदले जेल बर्ड बन जायेगा। आजकल की निमित बनी हुई अल्पकाल की अधिकारी आत्मायें भी पहले से अपनी तैयारी रखती हैं। तो अपना कौन हो? इस संगमयुग के हिरो पार्टधारी अर्थात विशेष आत्मायें, तो आप सबकी भी पहले से तैयारी चाहिए ना कि उस समय करेंगे? मार्जिन ही सेकण्ड की मिलनी है फिर क्या करेंगे? सोचने की भी मार्जिन नहीं मिलनी है। कहूँ, न कहूँ, यह कहूँ, वह कहूँ, ऐसे सोचने वाले साथी' के बजाए बाराती' बन जायेंगे। इसलिए *अन्त:वाहक स्थिति अर्थात कर्म बन्धन मुक्त कर्मातीत - ऐसे कर्मातीत स्थिति का वाहन अर्थात अन्तिम वाहन, जिस द्वारा ही सेकण्ड में साथ में उडेगे।* वाहन तैयार है? वा समय को गिनती कर रहे हो? अभी यह होना है, यह होना है, उसके बाद यह होगा, ऐसे तो नहीं सोचते हो? *तैयारी सब करो। सेवा के साधन भी भल अपनाओ।* नये-नये प्लैन भी भले बनाओ। लेकिन किनारों में रस्सी बांधकर छोड नहीं देना।

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  बहुत मीठा क्षीरखण्ड बनकर रहना,कभी लुन पानी नही होना"*

 

_ ➳  मीठे बाबा से ज्ञान वचनो को सुनते सुनते मै आत्मा... अपने मीठे भाग्य के नशे में डूब गयी... *स्वयं ईश्वर ही शिक्षक बनकर, जीवन में ज्ञान रत्नों की बहार लेकर आ गया है.*.. सच्चे प्रेम से भरकर, मुझ आत्मा की जनमो की प्यास बुझा रहा है... बस इन मीठे अहसासो में डूबी मै आत्मा... सूक्ष्म वतन में मीठे बाबा के पास पहुंचती हूँ... और रोम रोम से शुक्रिया कर... मीठे बाबा के गले लग... अपनी जनमो की थकान मिटाती हूँ...

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपने मीठे सुखो की याद दिलाते हुए कहते है :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *मीठे बाबा ने जो ज्ञान की जागीरों से भरकर, असीम खुशियो से मीठा बनाया है.*. यह आनन्द की मिठास सबको बांटो... बहुत मीठा प्यारा बनकर आपस में रहो... कभी भी लून पानी होकर... मीठे बाबा का नाम बदनाम न करो..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की जागीरों पर आनन्दित होते हुए कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा *आपकी यादो में, आपके मीठे प्यार की पालना में पलकर... कितनी मीठी और प्यारी हो गयी हूँ.*.. सदा ज्ञान रत्नों की गूंज में खोयी हुई हूँ... और  सबको सच्चा प्यार देकर, ईश्वरीय प्रेम से सींच रही हूँ..."

 

   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को सच्चे प्रेम की मिसाल बनाते हुए कहा :- "मीठे लाडले प्यारे बच्चे... सदा आत्मिक स्नेह से भरपूर रहकर, मीठेपन का पर्याय बनो... सबके सहयोगी बनकर... प्यार से एक दूसरे का सच्चा सहारा बनो... ईश्वरीय प्यार में पलकर, जो ज्ञान खजाने पाये है... जो सुख पाया है, वह हर दिल पर लुटाओ... *कभी भी आपस में टकराव न करो, सदा संस्कार मिलन की रास करो.*.."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा से सच्चे प्रेम की तरंगो को लेते हुए कहती हूँ :- "मेरे प्यारे साथी बाबा... *आपने मुझे कितना प्यारा, कितना मीठा, कितना सच्चा और खुबसूरत बना दिया है..*. मै आत्मा जहाँ भी कदम रखती हूँ... प्रेमतरंगो को पाकर हर दिल मुस्करा उठता है... और मुझसे इस ख़ुशी का राज पूछता हे... मै झट अपने मीठे बाबा का पता देती हूँ..."

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने मीठेपन से सजाते हुए कहा :- " मीठे सिकीलधे बच्चे... ईश्वरीय प्यार में ज्ञान रत्नों की अमीरी में जो सम्पन्न बने हो... इस सुख से सबको सम्पन्न बनाओ... अपनी मीठी रूहानी चलन से, ईश्वर पिता की झलक दिखाओ... *आपस में बहुत प्रेम और आत्मिक स्नेह से रहकर... श्रीमत की धारणा से, सबको ईश्वरीय दीवाना बनाओ.*.."

 

_ ➳  मै आत्मा अपने मीठे बाबा की सारी मिठास स्वयं में भरते हुए कहती हूँ :- "मेरे प्यारे प्यारे बाबा... आपसे पाया प्यार मै आत्मा... सब पर दिल खोल कर लुटा रही हूँ... सबको मीठे बाबा का, सच्चे ज्ञान का मुरीद बना रही हूँ... *आपकी मिठास की प्रतिमूर्ति बनकर, सबको सुख पहुंचा रही हूँ और शिव दीवाना बना रही हूँ.*..अपने प्यारे बाबा से स्वयं को मीठेपन भरकर मै आत्मा... साकार वतन में लोट आयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- आत्मा में पड़ी खाद को याद की अग्नि से निकालना और सदा देवताओं जैसा मुस्कराते रहना*"

 

_ ➳  एक मंदिर के सामने से गुजरते हुए, मन्दिर के अंदर एकत्रित भक्तो की भीड़ को देख कर मेरे कदम वही रुक जाते हैं और मन ही मन *मैं विचार करती हूं कि कितनी आकर्षणमयता है इन देवी देवताओं के जड़ चित्रों में, कि इनके दर्शन मात्र से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं* तभी तो इनके दर्शन के लिए भक्त घण्टो लम्बी - लम्बी कतारों में खड़े रहते हैं। यही विचार करते - करते मैं अपना देवताई स्वरूप धारण कर मन्दिर के अंदर पहुंच जाती हूँ और *अष्टभुजाधारी दुर्गा की जड़ मूर्ति में जा कर विराजमान हो जाती हूँ*।

 

_ ➳  मैं देख रही हूं मेरे सामने मेरे भक्तों की भीड़ लगी हुई है जो मेरी जयजयकार करते हुए मुझ पर पुष्पों की वर्षा कर रहें हैं। ढोल, मंजीरे बजाते हुए मेरी आरती गा रहें हैं। *अपना वरदानीमूर्त हाथ ऊपर उठाये मैं उन सबकी मनोकामनाओं को पूर्ण कर रही हूं*। मेरे दर्शन पा कर भाव - विभोर हो कर अब सभी भक्त वापिस अपने घर लौट रहे हैं।

 

_ ➳  अपने भक्तों को दर्शन दे कर,उनकी झोली वरदानों से भरपूर करके मैं मन्दिर से बाहर आ जाती हूँ और अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर चलते - चलते मैं फिर से विचार करती हूँ कि मेरे चैतन्य कर्मो का यादगार ही तो मेरे यह जड़ चित्र है। और *इस समय धारण किये हुए दैवी गुणों के कारण ही तो द्वापर में मेरा पूजन और गायन होगा*। इसलिए अब मुझे याद की अग्नि से आत्मा में पड़ी खाद को निकाल, सम्पूर्ण पावन बनना है और साथ ही साथ दैवी गुणों को धारण कर सदा देवताओ जैसा मुस्कराते रहना है।

 

_ ➳  मन में लक्ष्मी नारायण जैसा श्रेष्ठ बनने का दृढ़ संकल्प करते हुए मैं चलते - चलते अपने घर पहुंच जाती हूँ। आत्मा में पड़ी 63 जन्मो के विकर्मों की खाद को जल्दी से जल्दी योग अग्नि में भस्म करने के किये अब मैं अशरीरी हो, अपने पतित पावन, पवित्रता के सागर शिव बाबा की अव्यभिचारी याद में बैठ जाती हूँ। *बाबा की मीठी शक्तिशाली याद मुझमे असीम शक्ति का संचार करने लगती है और मैं आत्मा लाइट माइट बन हल्की हो कर अपनी साकारी देह से बाहर निकल आती हूँ*।देह और देह के हर बन्धन से मुक्त मैं आत्मा अब धीरे धीरे ऊपर की ओर उड़ रही हूँ।

 

_ ➳  मैं ज्योति बिंदु चमकता हुआ सितारा प्रकृति के पांचों तत्वों को पार कर, फरिश्तों की दुनिया से परे अब पहुंच गई अपने शिव पिता परमात्मा के पास उनके घर परमधाम। यहां मैं मास्टर बीज रूप आत्मा बीज रूप अपने शिव पिता परमात्मा के सम्मुख हूँ। *बिंदु का बिंदु से मिलन हो रहा है। कितना आलौकिक और दिव्य नजारा है। चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश दिखाई दे रहा है। बिंदु बाप से आ रही सर्वशक्तियों की ज्वलंत किरणे निरन्तर मुझ बिंदु आत्मा पर पड़ रही हैं*। मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ा हुआ विकारों का किचड़ा इन ज्वलंत शक्तिशाली किरणों के पड़ने से भस्म हो रहा है। आत्मा में पड़ी खाद जैसे - जैसे योग अग्नि में जल रही है वैसे - वैसे मैं आत्मा हल्की और चमकदार बनती जा रही हूँ।

 

_ ➳  हल्की और चमकदार बन कर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूं। अपने साकारी देह में विराजमान हो कर अब मैं फिर से इस सृष्टि रंग मंच पर अपना पार्ट बजा रही हूं। *कर्मयोगी बन हर कर्म करते बाबा की याद से मैं स्वयं को प्यूरीफाई कर रही हूं। सदा कम्बाइंड स्वरूप में रहने से परमात्म लाइट निरन्तर मुझ आत्मा में समाकर मुझे पावन बना रही है*। पावन बनने के साथ साथ अपने लक्ष्य को सदा स्मृति में रख अब मैं दैवी गुणों को जीवन मे धारण कर देवताई सम्राज्य में जाने का पुरुषार्थ कर रही हूँ।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  मैं आत्मा व्यर्थ संकल्पों के तेज बहाव को सेकण्ड में स्टॉप कर निर्विकल्प स्थिति बनाती हूँ।* 

 

 _ ➳  मैं भाग्यवान आत्मा परिवर्तन शक्ति द्वारा व्यर्थ संकल्पों के तेज बहाव को फुल स्टॉप लगाके मन बुद्धि को सकारात्मक संकल्पों से भरपूर करती हूँ... *क्यों... क्या... कैसे... के व्यर्थ संकल्पों से परे मैं आत्मा निर्विघ्न आत्मा बनती जा रही हूँ...* कोई भी गलती हो... कोई भी परिस्थिति हो... बापदादा को सच्चे मन से बताकर मैं आत्मा... क्षमा याचना करती हूँ... और *दया का सागर मेरा बाबा मुझे गोदी में उठाकर प्यार से माफ़ कर अपनी शक्तियों से भरपूर करता हैं...* व्यर्थ सोचने के कुसंस्कारो से मुक्त मैं आत्मा... *मन बुद्धि रूपी मंदिर को पवित्र रखती हूँ...* बापदादा के सतयुगी स्थापना के कार्य में... अपने आप को सफल करती हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- खुशी के खजानों से सम्पन्न बन, दूसरे खजानों की प्राप्ति का अनुभव"*

 

_ ➳  मैं सदा खुशी के खजाने में खेलने वाली खुशनसीब आत्मा हूँ... *सर्वशक्तिवान बाबा मिल गया... यह स्मृति सदा मुझ आत्मा को रूहानी नशे का अनुभव करवाती है*... खुशी के झूले में झूलने वाली आत्मा बनती जा रही हूँ... यह रूहानी नशा मुझ आत्मा को... सदा सर्व प्राप्तियों का अनुभव करवाता जा रहा है... मुझ आत्मा को जो खुशी का खजाना मिला है... उस खजाने से *अनेक आत्माएँ भी माला माल होती जा रही है*... मैं आत्मा अनुभव करती जा रही हूँ... जैसे खुशियों की खान मिल गई है... *अनगनित खजानों की प्राप्ति का अनुभव कर रही हूँ*... मैं आत्मा स्वयं को *खुशी के खजाने से सम्पन्न अनुभव करती जा रही हूँ*.. खुशी के खजाने से सम्पन्न मैं आत्मा... स्वतः अन्य सर्व खजानों को भी  प्राप्त करती जा रही हूं... *मैं आत्मा सदा के लिए सर्व खजानों से सम्पन्न बनती जा रही हूँ*...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳   *सहन करने में घबराओ मत। क्यों घबराते हो?* क्योंकि समझते हो कि झूठी बात में हम सहन क्यों करेंलेकिन सहन करने की आज्ञा किसने दी हैझूठ बोलने वाले ने दी है?  *कई बच्चे सहन करते भी हैं लेकिन मजबूरी से सहन करना और मोहब्बत में सहन करना, इसमें अन्तर है।*

➳ _ ➳  *बात के कारण सहन नहीं करते हो लेकिन बाप की आज्ञा है सहनशील बनो।* तो बाप की आज्ञा मानते हो तो परमात्मा की आज्ञा मानना ये खुशी की बात है ना कि मजबूरी हैतो कई बार सहन करते भी हो लेकिन थोड़ा मिक्स होता हैमोहब्बत भी होती है, मजबूरी भी होती है। *सहन कर ही रहे हो तो क्यों नहीं खुशी से ही करो। मजबूरी से क्यों करो! वो व्यक्ति सामने आता है ना तो मजबूरी लगती है और बाप सामने आवेकि बाप की आज्ञा पालन कर रहे हैं तो मोहब्ब्त लगेगीमजबूरी नहीं।* तो ये शब्द नहीं सोचो।

➳ _ ➳  आजकल ये थोड़ा कामन हो गया है - मरना पड़ेगामरना पड़ेगाकब तक मरना पड़ेगाअन्त तक या दो साल, एक साल, ६ मासफिर तो अच्छा मर जायें... लेकिन कब तक मरना है।  *लेकिन यह मरना नहीं है अधिकार पाना है। तो क्या करेंगे? मरेंगेयह मरना शब्द खत्म कर दो।*

✺   *ड्रिल :-  "बाप की आज्ञा प्रमाण खुशी से सहन करना"*

➳ _ ➳  *बाबा और मैं एक बहुत सुंदर बगीचे में बैठे हुए हैं... चारों ओर हरियाली ही हरियाली है...* किस्म किस्म के रंग-बिरंगे फूलों की क्यारियाँ लगी हुई हैं... जिनसे बहुत मनमोहक... भीनी-भीनी महक आ रही है... यह ताज़गी मेरे मन को मोह रही है...   

➳ _ ➳  इस खुशनुमा वातावरण को देखकर... मेरा मन खुशी से झूमने लगा... तभी मेरी नज़र एक फलों से लदे हुए वृक्ष पर पड़ती है... बाबा मुझे उस वृक्ष को दिखाते हुए कहते हैं... देखो *बच्ची... यह वृक्ष फलों से कितना भरा हुआ है... कितनी छाया दे रहा है... फिर भी इसे बहुत सहन करना पड़ता है... बाबा मुझे यह दिखा कर सहनशीलता का पाठ पक्का करा रहे थे...*

➳ _ ➳  *बाबा मुझसे कहते हैं... बच्ची... कभी कोई छोटी... बड़ी बात या झूठी बात भी सामने आ जाये तो सहन करो... सहन करने में घबराओ मत... खुशी से सहन करो... मजबूरी से नहीं... बाबा की याद में रहकर... आज्ञा समझ कर... कोई भी कर्म करोगे तो बोझ या... सहन करना नहीं लगेगा...* फिर बाबा कहने लगे... बच्ची... सृष्टि चक्र का नियम है... *जो हो गया वह फिर से रिपीट होगा... इसलिये नथिंग न्यू का पाठ भी पक्का करो...* सहनशील बनो...

➳ _ ➳  मैं बाबा से कहती हूँ... बाबा... *आपसे प्राप्त गुणों और शक्तियों को धारण कर अपने प्रैक्टिकल जीवन में... हर कर्म में... लाऊंगी... किसी भी परिस्थिति में मुझे सहन करना भी पड़े तो मैं खुशी खुशी सहन करुँगी...* उसका वर्णन फिर कभी नहीं करुँगी... मन-वाणी और कर्म में सहनशील बनूंगी... 

➳ _ ➳  *मुझे ही मरना पड़ता है... मुझे ही सहन करना पड़ता है... बाबा... इन शब्दों को मैं आत्मा अब कभी नहीं कहूँगी... इस बेहद की स्क्रीन पर हर सीन को मैं आत्मा साक्षी भाव से देखूँगी...* कोई भी परिस्थिति मुझे डगमग नहीं कर सकेगी... मैं आत्मा सर्व के प्रति शुभ भावना शुभ कामना रख अपना रोल प्ले करुँगी... *दिल व जान से आपकी बच्ची होने का सबूत हर आत्मा को कराऊँगी...*  

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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