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❍ 25 / 01 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 2*5=10)
➢➢ *अशरीरी बनने का अभ्यास किया ?*
➢➢ *मुरली मिस तो नहीं की ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:3*10=30)
➢➢ *बालक सो मालिक की सीडी चड़ने और उतरने का अभ्यास किया ?*
➢➢ *स्वयं को पुरुष(आत्मा) समझ रथ(शरीर) द्वारा कार्य करवाया ?*
➢➢ *अपने तपस्वी स्वरुप द्वारा चारों और साकाश देने का, वाइब्रेशन देने का, मनसा द्वारा वायुमंडल बनाने का कार्य किया ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *किसी भी समस्या व संस्कार के आधीन बन उदास तो नहीं हुए ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - देह अभिमान में आने से ही विकर्म बनते है, इसलिए प्रतिज्ञा करो की और सब संग तोड़ एक संग जोड़ेंगे"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... जब घर से चले थे कितने खुबसूरत फूल थे... *पर देह के भान ने उजले स्वरूप को निस्तेज कर दिया.*.. और विकर्मो से दामन भर दिया... अब ईश्वर पिता के सच्चे प्रेम रंग में रंग जाओ और सतयुगी सुखो के अधिकारी बन सदा के मुस्कराओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा *आपके सच्चे प्रेम को पाकर दुनियावी रिश्तो से उपराम हो चली हूँ.*.. विकारो से मुक्त होकर खुबसूरत जीवन की मालिक बन... मीठे बाबा आपकी गोद में फूलो सा मुस्करा रही हूँ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह के मटमैले संग में आकर अपने सत्य मणि स्वरूप को ही भूल चले हो... *अब ईश्वर पिता की मीठी यादो में उसी ओज से भरकर सुखो की बहारो में झूम जाओ.*.. सब संग तोड़ सच्चे साथी के संग सदा के जुड़ जाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा देह के भान में विकर्मो का खाते को किस कदर बढ़ाती जा रही थी... *प्यारे बाबा आपने मेरा जीवन खुशियो से भर दिया है.*.. मेरे आत्मिक स्वरूप का परिचय कराकर मुझे गुणो से सजा दिया है...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जिस देह के भान ने जीवन विकारो की कालिमा से भरकर दारुण दुखो से भर दिया... उसे छोड़ अब आत्मिक नशे में डूब जाओ... मीठे बाबा के सच्चे संग में आनन्द के गीत गाओ... *सब जगह से बुद्धि निकाल ईश्वर पिता के प्यार में* खो जाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने सत्य स्वरूप को पाकर सदा खुशनसीब हो गयी हूँ... मीठे बाबा आपका प्यार पाकर मै आत्मा विकारो के जंजाल से निकल *अपने खुबसूरत मणि रूप में खिल गयी हूँ.*..
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा डबल लाइट हूँ।"*
➳ _ ➳ मैं अशरीरी आत्मा हूँ... मैं आत्मा इस *स्थूल शरीर को छोड़ देह व देह के सम्बंधों से परे* इस विनाशी दुनिया से दूर ऊपर जा रही हूँ... चांद तारों की दुनिया से भी परे... मैं अविनाशी आत्मा पहुंच गई अपने बापदादा के पास सूक्ष्म वतन में...
➳ _ ➳ फरिश्तों के शहजादे के पास मैं आत्मा चमकीली ड्रेस पहन बापदादा के सामने लाइट के शरीर में... बस बिल्कुल हल्की... *बापदादा से आती निरंतर शक्तियों से भरपूर होकर शक्तिशाली* अनुभव कर रही हूं... मैं आत्मा बस अपने तेजस्वी स्वरुप को अनुभव कर रही हूँ... मैं लाइट के शरीर में बस चमकती मणि हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बिंदु बाबा से आती प्रखर किरणों रुपी गोद में बैठ बस उड चली परमधाम... *मैं और मेरा बाबा*... अपने घर परमधाम में सुनहरे प्रकाश की दुनिया में... बाबा से आती प्रखर सर्वशक्तियों की किरणें मुझ आत्मा के एक एक विकर्म को नष्ट कर रही है... मैं आत्मा अपने परमपिता से सर्वशक्तियों, गुणों, खजानों से सम्पन्न होकर बाप के वर्से की अधिकारी बन रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा *एक बाप की याद में रह व्यर्थ से मुक्त* हो रही हूँ... शुद्ध सोना बनती जा रही हूँ... मैं आत्मा सर्व के प्रति आत्मिक भाव रखती हूँ... आत्मिक भाव होने से मैं आत्मा सर्व के प्रति शुभ भावना शुभ कामना रखती हूँ... जिससे मैं आत्मा किसी की बात से दुःखी नही होती हूँ... न ही किसी को दुःख देती हूँ... सदा हल्की रहती हूँ...मैं आत्मा लाइट रहती हूँ... व दूसरों को भी लाइट रखती हू...
➳ _ ➳ मैं आत्मा *बाबा की शक्तिशाली व यथार्थ याद* में रह आत्मा रुपी बैटरी को चार्ज करती हूं... अपने प्यारे बाबा की गोद में बच्चा बन बैठ जाती हूँ... सारी जिम्मेवारी बाबा को सौंप हल्की रहती हूँ... बालक बन रहने से बेफिक्र डबल लाइट रहती हूं... कभी बालक बन व कभी मालिक बन ये सीढ़ी चढ़ती उतरती रहती हूँ... मैं आत्मा बालक सो मालिकपन के रुहानी नशे में रह डबल लाइट स्थिति का अनुभव करती हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पुरूष(आत्मा) समझ, रथ(शरीर) द्वारा कार्य करा सच्चे पुरषार्थी बनना"*
➳ _ ➳ मैं एक चमकती हुई ज्योति... भृकुटि के मद्य चमकती... एक सितारे के समान... इस शरीर में रहती... इस शरीर को चलाने वाली... इस शरीर की रथी... मैं आत्मा एक चैतन्य शक्ति हूँ... मेरा शरीर रथ हैं... *जिसे मैं आत्मा मन बुद्धि की लगाम से कण्ट्रोल करती हूँ...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अलग, ये शरीर अलग... मैं आत्मा इस शरीर को चलाने वाली अति सूक्ष्म ज्योतिर बिंदु हूँ... *मैं आत्मा सत्य हूँ, चैतन्य हूँ...* ये शरीर स्थूल है, जड़ है... ये शरीर भारी है... मैं आत्मा तो एकदम हल्की हूँ... मैं आत्मा इस शरीर को धारण कर... इस शरीर से सभी कर्म करवाती हूँ...
ये शरीर मेरा इंस्ट्रूमेंट हैं...
➳ _ ➳ मैं कर्मयोगि आत्मा... हर कार्य करते सदा ये स्मृति में रखती... की मैं आत्मा इस शरीर द्वारा कर्म करवाती हूँ... मैं आत्मा करावनहार हूँ... *मैं अपनी सभी कर्मेन्द्रियों की मालिक... स्वराज्य अधिकारी हूँ...*
➳ _ ➳ *मैं आत्म अभिमानी बन... सच्ची पुरषार्थि बन गई हूँ...* परमपिता परमात्मा शिवबाबा को प्यारी... इस जगत का नूर हूँ... देहि अभिमानी बन... सर्व को आत्मा ही देखती हूँ... बाबा की दी गई पहली शिक्षा की स्वयं को आत्मा निश्चय कर परमात्मा को याद करना हैं... इसे मुझ आत्मा ने भली भाँति पक्का किया हैं...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *बालक सो मालिक की सीढ़ी चढ़ने और उतरने वाले बेफिक्र डबल लाइट होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ बालक सो मालिक अर्थात *मैं आत्मा ही बालक हुँ मैं आत्मा ही मालिक हुँ* ... बालक मतलब बच्चा, जैसे छोटे बच्चे ग़लती होने का नही पता बस कर्म करते रहते है ऐसे बाबा कहते पढ़ाई पढ़ते रहो , ओर यह याद रखो हम शिवबाबा के बच्चे है ।
❉ मालिक अर्थात यही स्मृति में रखना की मैं आत्मा इस देह की मालिक हुँ , अधिकारी हुँ, मास्टर ऑल्माइटी अथॉरिटी हुँ जिससे किसी भी आत्मा को *स्वमान में स्थित* होके समझाएँगे या राय देंगे तो सम्मान भी मिलेगा ओर ज्ञान का तीर भी लगेगा ।
❉ जैसे ब्रह्माबाबा बच्चा बनकर शिवबाबा से मुरली सुनते ओर मालिक बनकर उसको धारण करते ओर कराते थे । ऐसे ही हम सब आत्माओं को भी कुछ भी *सिखने के समय बच्चा बन जाना चाहिए ओर समझाने के समय मलिकपन की स्टेज* होनी चाहिए जिससे अनुभव हो की यह शिक्षा डायरेक्ट भगवान दे रहे है ।
❉ बाबा ने कहा यह सीढ़ी है जिसपर हमको हर वक़्त उतरना चढ़ना पढ़ता है ओर *सदा बेफ़िकर , डबल लाइट स्थिति* में तब स्थित रहेंगे जब जैसा समय हो उस वक़्त वह स्वरूप धारण करना आता हो , जैसे ब्रह्माबाप मम्मा जब मुरली की प्वाइंट को कर्म में लाते थे या ओर आत्माओं के साथ सहयोग में सेवा करते थे तब वह बच्चे बन जाते ओर जैसे ही बाबा की श्रीमत को अमल में लाने की बात होती तो मालिक बन जाते ।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *जो पुरुष ( आत्मा ) समझ, रथ ( शरीर ) द्वारा कार्य कराते हैं वही सच्चे पुरुषार्थी हैं... क्यों और कैसे* ?
❉ बाबा की पहली पहली श्रीमत वा डायरेक्शन ही यही है कि देह सहित देह के सब संबंधों को भूल मामेकम याद करो । क्योंकि *अगर देह को याद रखेंगे तो देह का बहुत बड़ा संसार है* । इसलिए बाबा कहते इससे भी निवृत बनो । खुद का यह जो शरीर है यह प्रवृति भी हमें नीचे खींचती है इसलिए इसे भी परिवर्तन करके देही बनाना है । इसके लिए जरूरी है निरंतर आत्मिक स्थिति में स्थित रहना और इस देह को रथ समझ कर इससे कार्य कराना । यही सबसे बड़ा पुरुषार्थ है ।
❉ आत्मिक स्थिति में स्थित तभी रह सकेंगे । जब निरंतर अशरीरी बनने का ही चिंतन और मनन बुद्धि में चलता रहेगा तथा अशरीरी बंनने का ही अभ्यास करते रहेंगे । *अशरीरी बनने का निरंतर अभ्यास ही वास्तव में राजयोग है* । क्योंकि राजयोग का अर्थ ही है इस शरीर से परे अपनी स्व स्मृति में स्थित होना । एक मैं आत्मा और एक मेरा पिता परमात्मा इस स्थिति में रहकर डेड साइलेन्स का अनुभव करना । यह अनुभव करने वाले ही आत्मिक स्मृति में स्थित रह अपने ( रथ ) द्वारा कार्य करने वाले सच्चे पुरुषार्थी कहलाते हैं ।
❉ देह अभिमान में आने से हर कर्म विकर्म बनता है क्योकि विकारों के वशीभूत हो कर किया जाता है । और *देही अभिमानी बन हर कर्म करने से वह कर्म अकर्म हो जाता है* । कर्मों की इस गुह्य गति को ध्यान में रख जो देही अभिमानी बन हर कर्म करते हैं वे देह का आधार लेकर देह द्वारा कर्म करते हुए भी कर्म के बंधन से मुक्त रहते हैं । तो ऐसे आत्मिक स्मृति में स्थित रह अपने रथ द्वारा कर्म कराते हुए भी कर्म के प्रभाव में ना आने वाले ही वास्तव में सच्चे पुरुषार्थी हैं ।
❉ जैसे सितारे आकाश में अपने अपने स्थान पर चमकते रहते हैं । वैसे ही हम आत्माएं भी ब्रह्म तत्व में जाकर बाप के साथ साइलेंस की शक्ति का अनुभव कर सकते हैं । किन्तु *साइलेन्स की शक्ति का अनुभव तभी होगा जब साइलेन्स में निरन्तर रहने का अभ्यास होगा* । साइलेन्स की शक्ति जैसे जैसे बढ़ती जायेगी । आत्मिक स्थिति में स्थित रहना एकदम सहज अनुभव होने लगेगा । और जितना आत्मिक स्मृति में रहने का अभ्यास पक्का होगा अपने रथ ( शरीर ) द्वारा कार्य कराना भी सहज होगा । यही सच्चा पुरुषार्थ है ।
❉ जितना स्वयं को आत्मा निश्चय करने तथा सर्व को आत्मा देखने का अभ्यास पक्का करेंगे उतना आत्मिक स्मृति में रहना सहज होता जायेगा । और *जब हर कर्म करते आत्मिक स्मृति बनी रहेगी तो कोई भी कर्म विकर्म नही बनेगा* । क्योकि स्वयं को आत्मा रथी समझ जब इस शरीर रूपी रथ से कार्य करायेंगे तो कर्मेन्द्रियां कभी भी चलायमान नही होंगी । कर्मेन्द्रियों का राजा बन जिन्हें कर्मेन्द्रियों से अपनी इच्छानुसार कार्य करवाना आ जाता है । वही स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी बनने वाले सच्चे पुरुषार्थी कहलाते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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