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 18 / 03 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *मीठा बन मां बाप का शो किया ?*

 

➢➢ *"जो तकदीर में होगा, देखा जाएगा" - ऐसे खयालात तो नहीं किये ?*

 

➢➢ *कोई भी काम श्रीमत के बिना तो नहीं किया ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *संगमयुग के महत्व को जान श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *सर्व आत्माओं को स्नेह और सहयोग दिया ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *"संकल्प किया और अनुभूति हुई" - ऐसे सहज अभ्यासी बनकर रहे ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे - ज्ञान मार्ग में तुम्हारे ख्यालात बहुत शुद्ध होने चाहिए, सच्ची कमाई में झूठ बोला, कुछ उल्टा किया तो बहुत घाटा पड़ जायेगा"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... स्वयं भगवान टीचर बनकर पढ़ा रहा है... तो देवताई संस्कारो को भरकर, श्रेष्ठतम जीवन के अधिकारी बन चलो... पुरानी दुनिया के विकारी ख्यालातों को छोड़कर... *सोने जैसा दमकता श्रेष्ठ जीवन अपनाओ.*.. सुंदर संस्कारो को अपनाकर जीवन सुखो के फूलो में खिलाओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा सच्ची शिक्षाओ को धारण कर.. सच्चाई से छलकता हुआ जीवन जीने वाली महान आत्मा बन चली हूँ... *खुबसूरत ख्यालो वाली खुबसूरत आत्मा बनकर आपकी बाँहों में मुस्करा रही हूँ.*.. जीवन कितना प्यारा और सुंदर हो चला है...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सच्ची कमाई करने के सुन्दरतम दिनों में सुंदर भाग्य की कहानी लिख चलो... विकारो के ख्यालातों से इस मीठे भाग्य को दाग न लगाओ... *ईश्वर पिता की खुशनुमा यादो में जीवन इस कदर गुणो से महका दो.*.. की धर्मराज का कोई डर न रहे...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा सच की कमाई से मालामाल होती जा रही हूँ... आपका हाथ पकड़ कर ज्ञान और योग से, मै आत्मा देवताई स्वभाव पाती जा रही हूँ... मीठे और *सच्चे दिल को पाकर बापदादा के दिलतख्त पर मुस्करा* रही हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... मीठा बाबा अपना धाम छोड़कर... धरा पर उतर, शिक्षक बन सुख और खुशियो भरी दुनिया का अधिकारी बना रहा है... तो *हर साँस से सच्ची कमाई कर सदा के धनवान् हो चलो.*.. रोम रोम से सच्चाई को छलकाने वाले ईश्वरपुत्र बनकर ईश्वरीय अदा जहान में दिखाओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके मीठे प्यार की बाँहों में जीकर... दुखो के दुनिया में अपनाये हर विकार से मुक्त होती जा रही हूँ... *सच्चाई भरा निर्मल और पवित्र जीवन जीने वाली.*.. सच्ची सच्ची ब्राह्मण बन मुस्करा रही हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-   मैं आत्मा तीव्र पुरुषार्थी हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा कलियुगी रात में मायावी निद्रा में थी... प्यारे शिव बाबा ने आकर *ज्ञान जल छिडककर मुझ आत्मा को जगाया...* मुझ आत्मा को अज्ञानता के अंधकार से बाहर निकाल एक पहाड़ी पर लेकर जाते हैं... पहाड़ी के इस तरफ घोर अंधकार से भरी कलियुगी दुनिया है... पहाड़ी के उस तरफ बहुत ही सुन्दर सुख, समृद्धी की स्वर्णिम दुनिया है...

 

➳ _ ➳  दोनों के बीच में संगम पर मैं आत्मा खडी हूँ... प्यारे बाबा मुझ आत्मा को ज्ञान अमृत पिलाकर... संगम युग का महत्व समझाते हैं... मैं आत्मा पवित्र बनकर, राजयोगी बनकर ही स्वर्णिम युग में जा सकती हूँ... मैं आत्मा अमृतवेले समान छोटे से संगमयुग के महत्व को जान सदा प्यारे बाबा की याद में रहती हूँ... प्यारे बाबा मुझ *आत्मा को पुरुषोतम संगम युग में कौड़ी से हीरे तुल्य* बना रहे हैं...   

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा प्यारे बाबा की याद से सर्व शक्तियों को धारण करती जा रही हूँ... प्यारे बाबा के वरदानों से भरपूर होती जा रही हूँ... मुझ आत्मा का पुराना स्वभाव-संस्कार मिटता जा रहा है... आलस्य अलबेलापन खत्म होता जा रहा है... मैं आत्मा *बाबा की श्रीमत पर चलकर श्रेष्ठ कर्म करती जा रही* हूँ... अब मैं आत्मा व्यर्थ समय नहीं गंवाती हूँ... मैं आत्मा हर सेकंड तीव्र पुरुषार्थ करती जा रही हूँ...   

 

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा सदा बाबा का हाथ पकडकर हर कर्म करती जा रही हूँ... मैं आत्मा बाबा के हाथ और साथ से पूरे कल्प के लिए श्रेष्ठ प्रालब्ध जमा करती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा ऊँचे बाप के साथ, सतयुग में उंच पद पाने के लिए, ऊँचे संगम युग में, ऊँची कमाई करती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा *तीव्र पुरुषार्थी बन संगम युग के महत्व को जान श्रेष्ठ प्रालब्ध* बनाती जा रही हूँ...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल -  सर्व को स्नेह और सहयोग देना ही विश्व सेवाधारी की स्थिति का अनुभव करना"* 

 

➳ _ ➳  मैं बाप की राईट हैण्ड सेवाधारी आत्मा हूँ... गुप्त सेवाधारी बन सफलता की ख़ुशी में भरपूर रहने वाली आत्मा हूँ... नाम-मान शान से परे मैं बेफिकर बादशाह आत्मा हूँ... सच्ची सेवा करने वाली आत्मा हूँ... *त्याग और तपस्या से सदा सफलता को प्राप्त कर आगे बढ़ने वाली आत्मा हूँ*....

 

➳ _ ➳  बाबा मुझ आत्मा को सर्व खजानों से... सर्व शक्तिओं से सम्पन्न बनाते जा रहें हैं... विकारों के वशीभूत मनुष्य आत्माएँ... जो आपस में लड़ती रहती है... *जिनका किसी से कोई स्नेह, प्यार नही है... ऐसी आत्माओं को स्नेह की शक्ति का दान... मैं आत्मा देती जा रही हूँ*... सभी आत्माऐं मेरे मीठे बाबा के मीठे बच्चे हैं... मैं आत्मा मास्टर दाता हूं...

 

➳ _ ➳ मैं आत्मा अनुभव कर रही हूँ... बाबा मुझ आत्मा द्वारा... कमजोर व दुःखी आत्माओं में रहम और स्नेह की शक्ति भर उन्हें आगे बढ़ाते जा रहें हैं... *बाबा की मीठी शिक्षायें सीप में मोती की तरह... मुझ आत्मा के अंदर धारण होती अनुभव हो रही हैं*... सर्व के प्रति आत्मिक भाव रखते हुए रुहानी स्नेह व सहयोग देकर कल्याण की भावना रख आगे बढ़ाने के निमित्त बनती हूँ

 

➳ _ ➳  बाबा मुझ आत्मा को निमित्त बना... यहां बैठे-बैठे... सारी दुनिया को शांति की... पवित्रता की किरणें... लाइट की किरणें... दूर-दूर तक फैलती अनुभव... करा रहें हैं... *मुझ आत्मा को अपनी नजरों से सर्व आत्माओं को... बाबा की याद की छाप ऐसी देनी है*... जो वह आत्माएँ निहाल हो जाएं..."

 

➳ _ ➳  मुझ सेवाधारी आत्मा को... *कितना बड़ा विश्व सेवा का पार्ट मिला है... कितनी भाग्यशाली हूँ* जो बाबा ने मुझ आत्मा को चुना... मैं आत्मा अपने इस पार्ट को देख हर्षित होती जा रही हूँ... मुझ आत्मा को हर्षित देख... अन्य आत्माएँ भी हर्षित होती जा रही हैं...

 

➳ _ ➳  मैं विश्व सेवाधारी आत्मा हूँ... उद्धारमूर्त आत्मा हूँ... पुरानी वृति-दृष्टि सब समाप्त होती जा रही है... मैं आत्मा स्वयं भी हल्का रह... और सर्व को हल्का बनाती जा रही हूँ... हदों से परे... बेहद में रह... विश्व-सेवाधारी आत्मा हूँ... *सदा बाप की हूँ, बेहद की हूँ...*

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *संगमयुग के महत्त्व को जान श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने वाले तीव्र पुरुषार्थी होते हैं...  क्यों और कैसे?*

 

❉   संगमयुग के महत्त्व को जान श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने वाले तीव्र पुरुषार्थी होते हैं क्योंकि... संगमयुग छोटा सा युग है और *इस युग में ही बाप के साथ रहने का अनुभव भी हमें होता है।* तथा यह युग हीरे तुल्य भी है इसलिये!  हमें इस युग की महिमा को जान कर व समझ करइस का एक पल भी नहीं गवांना है।  

 

❉   क्योकि...  इस संगमयुग का एक एक पल अनमोल हीरों के समान है, *जिसके मूल्य को आंकना किसी के भी बस में नहीं है।* बाबा ने इस संगम के समय पर, स्वयं अवतरित हो करइस समय के महत्त्व को हम बच्चों के समक्ष रखा है। उन्होंने इस वेला को नर से नारायण बनने की वेला कहा है।

 

❉   इस पुरुषोत्तम संगम युग के महत्व के विषय में बाबा ने हम बच्चों को ये भी बताया है कि... इस संगम के समय में एक का पद्म गुणा मिलता है। *ये संगम का समय और यह जीवनदोनों ही हीरे तुल्य हैं।* इसलिये! इनका इतना महत्व जानते हुएहमें एक सेकण्ड भी बाबा के साथ को नहीं छोड़ना है।

 

❉   क्योंकि सेकण्ड का जाना केवल सेकण्ड ही गवांना नहीं है। बल्कि!  बहुत कुछ गवांना है। *कल्प कल्प की श्रेष्ठ प्रालब्ध को गवाँ देना है।* अतः  अभी तो कदम में पद्म खिल रहे हैं। इसलिये!  ये क़दमों में पद्मों की कमाई को प्राप्त करने की वेला है।

 

❉   सारे कल्प की श्रेष्ठ प्रालब्ध को जमा करने का यह छोटा सा युग है। *अगर हम इस युग के महत्त्व को भी याद रखेंगे तो तीव्र पुरुषार्थी बन जायेंगे* और अपने तीव्र पुरुषार्थ के द्वारा राज्य के अधिकार को भी प्राप्त कर लेंगे। अतः इस संगम के समय के महत्व को जान कर, अब तो! एक सेकण्ड भी बाबा के साथ को नहीं छोड़ना है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *सर्व को स्नेह और सहयोग देना ही विश्व सेवाधारी बनना है... क्यों और कैसे* ?

 

❉   स्नेही की निशानी ही है सहनशीलता । जिसके प्रति स्नेह होता है उसके प्रति सहन करना सहज होता है । जैसे *लौकिक में बच्चे पर कोई मुसीबत आती है तो स्नेह के कारण माँ सब कुछ सहन करने के लिए तैयार हो जाती है* । इसी प्रकार जो बाप के स्नेही होते हैं वे संगठन में भी एक दूसरे की हर बात को सहन करते हुए, एक दूसरे को स्नेह और सहयोग देते हुए विश्व सेवाधारी बन विश्व कल्याण के कार्य में लगे रहते हैं ।

 

❉   स्नेह का प्रत्यक्ष रिटर्न हैं अपने स्नेही मूर्त द्वारा अनेको को बाप का स्नेही बनाना । *सिर्फ ज्ञान के स्नेही या श्रेष्ठ आत्माओं के स्नेही नहीं, लेकिन डायरेक्ट बाप के स्नेही* । आप अच्छे हो, ज्ञान अच्छा है, जीवन अच्छा है यहाँ तक नहीं, लेकिन बाप अच्छे - ते - अच्छा है यह अनुभव अनेको को कराना, इसको कहा जाता है बाप के स्नेही बनाना और जो ऐसे बाप के स्नेही बन औरों को भी बाप का स्नेही बनाने में सहयोगी बनते हैं वे ही विश्व सेवाधारी कहलाते हैं ।

 

❉   जितना जो सभी को रिगार्ड देता है उतना ही अपने रिकार्ड को ठीक रख सकता है । *दूसरों का रिगार्ड रखना अर्थात अपने रिकार्ड को अच्छा बनाना है । रिगार्ड देना ही रिगार्ड लेना है*। एक बार देना और अनेक बार लेने के हकदार बन जाना । ऐसे जो सभी को बड़ा समझकर रिगार्ड देते हैं वे स्वत: ही बाप के और सर्व के स्नेही बन जाते हैं और सच्चे विश्व सेवाधारी बन अपने स्नेह और सहयोग से वे सर्व आत्माओं को आगे बढ़ाते रहते हैं ।

 

❉   भक्ति में जो गोवर्धन पर्वत को उठाने का दृष्टान्त है जिसमे हर एक की अंगुली दिखाई है वास्तव में यह ब्राह्मणों के स्नेह और सहयोग का यादगार है । *संगमयुग पर हम बच्चे ही बापदादा के स्नेही और सहयोगी बनते हैं तब यादगार बना है* और हर कार्य में स्वत: सहयोगी वही बनते हैं जो स्नेही मूर्त बन बाप के स्नेह में सदा समाये रहते हैं । बाप के स्नेह में समाए रहने वाली ऐसी विश्व सेवाधारी आत्मायें ही अपने स्नेही स्वरूप से सर्व आत्माओं को बाप के स्नेह का अनुभव करवाती रहती हैं ।

 

❉   जो सदा सर्व सम्बन्धों से प्रीति की रीति प्रैक्टिकल में एक बाप से निभाते है । एक सम्बन्ध की भी प्रीति निभाने में कमी नहीं रखते । जो बाप से ऐसा अटूट स्नेह रखते हैं कि *कितनी भी परिस्थितियाँ वा व्यक्ति उस स्नेह के धागे को तोड़ने की कोशिश करें* लेकिन हर दीवार को पार कर सदा स्नेह के धागे को अटूट रखते है । वे परमात्म मदद से सर्व के स्नेही और सहयोगी बन विश्व की सर्व आत्माओं का कल्याण करते रहते हैं । ऐसे सर्व की सहयोगी और स्नेही आत्मायें ही विश्व सेवाधारी कहलाती हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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