━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 13 / 03 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *ज्ञान देने वाले दलाल से प्रीत न रख एक शिवबाबा को ही याद किया ?*

 

➢➢ *इस बेहद नाटक को बुधी में रख आपार ख़ुशी में रहे ?*

 

➢➢ *देह का भान छोड़ अशरीरी बनने का अभ्यास किया ?*

────────────────────────

 

∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *पवित्रता के फाउंडेशन को मज़बूत कर अतीन्द्रिय सुख का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *सदा एक के अंत में खोये हुए रहे ?*

────────────────────────

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *स्वराज्य का मज़ा अनुभव किया ?*

────────────────────────

 

∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे - बाप ही तुम्हारा बाप, टीचर और गुरु है, उनका जीते जी बनकर माला में पिरो जाना है"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता ही सच्चा पिता टीचर और गुरु है, आप भाग्यवान हो कि सच्चे पिता को पाकर व्यर्थ के भटकन से मुक्त हो चले हो... तो अपने मीठे भाग्य के नशे में खो जाओ... जीते जी *इस देह की दुनिया को बुद्धि से निकाल* कर ईश्वर पिता के दिल में मणि सा सज जाओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपको पाकर तो धन्य धन्य हो चली हूँ... जीवन सच्ची खुशियो से दमक उठा है... दुखो की दुनिया से निकल कर *सच्चे आनन्द में मन मयूर नाच उठा है.*.. कितना खुबसूरत भाग्य बन गया है...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... जिस सत्य को पाने को दर दर भटक रहे थे... दुखो से मुक्ति के लिये दारुण पुकार कर रहे थे... *वह प्यारा पिता जीवन में सुखो की बहार ले आया है*... तो सम्पूर्ण समर्पित हो उसके प्यार में फ़िदा हो जाओ.... जीते जी उसके प्यार में इस कदर डूब जाओ कि यह पल अमर हो चले...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा देह की मिटटी में लथपथ होकर दुखो के दलदल में फंस जार जार रो रही थी... आपने *प्यारे बाबा मुझे मेरा सच्चा वजूद दिया है.*.. सच्चे सुकून से मेरा दामन भर दिया है... मै आत्मा दिल जान से आप पर कुर्बान हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता जिन बच्चों को माला में पिरो कर अपने कलेजे से लगाये उस भाग्य की खूबसूरती के क्या कहने.... *इस महान मीठे भाग्य को रोम रोम में समा लो*... हर पल यादो के नशे में खो जाओ... ईश्वर पिता के साथ के पलो का भरपूर सुख लेकर अथाह सुखो के अधिकारी बन जाओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा विकारी जीवन से मुक्त होकर पवित्रता से छलक उठी हूँ... *अपने भाग्य की खूबसूरती पर निहाल हूँ.*.. मीठे बाबा आपका सच्चा प्यार पाकर महक उठी हूँ... और तन मन धन से कुर्बान हो गयी हूँ...

────────────────────────

 

∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा सम्पूर्ण और सम्पन्न हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा रुपी सीता कई जन्मों से रावण की जंजीरों में कैद थी... मैं आत्मा विकारों की दलदल में धंसते चली गई थी... माया राक्षसी कड़ा पहरा देकर मुझ आत्मा को... रावण के चंगुल से निकलने नहीं देती थी... मुझ सीता को *प्यारे दिलाराम बाबा ने ज्ञान के तीर चलाकर* रावण की कैद से छुड़ाया...

 

➳ _ ➳  दिलाराम बाबा से योग अग्नि की किरणें निकलकर मुझ आत्मा रुपी सीता पर पड़ रही हैं... इस योग अग्नि में रावण की माया रूपी लंका पूरी तरह जलकर खाक होती जा रही है... काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार जैसे विकारों रूपी राक्षसों का खात्मा होता जा रहा है... प्यारे दिलाराम बाबा से निकलती इन शक्तिशाली किरणों में अपने *वंशजों सहित रावण भस्म होता जा रहा* है...

 

➳ _ ➳  प्यारे बाबा से पवित्रता की किरणें निकलकर मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं... मैं आत्मा सम्पूर्ण पवित्र बनती जा रही हूँ... मैं आत्मा *पवित्रता का व्रत धारण कर पवित्रता के फाउंडेशन को मजबूत* करती जा रही हूँ... मुझ आत्मा के मन-बुद्धि का व्यर्थ सोच खत्म होता जा रहा है... अब मैं आत्मा सिर्फ समर्थ और शुभ संकल्प करती जा रही हूँ...

 

➳ _ ➳  प्यारे बाबा की दृष्टि से पवित्र किरणें निकलकर... मुझ आत्मा की दृष्टि को पवित्र बना रही हैं... अब मैं आत्मा देह को न देख सबको आत्मिक दृष्टी से ही देख रही हूँ... अब मैं आत्मा इस पुरानी दुनिया को देखते हुए भी नहीं देखती हूँ... *प्यारे बाबा की मीठी वाणी से मैं आत्मा भी मीठी* होती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा सबके लिए मीठे बोल ही बोलती हूँ...

 

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा पवित्रता के व्रत से सिर्फ श्रेष्ठ और पवित्र कर्म ही करती हूँ... अब मैं आत्मा व्यर्थ को फुलस्टॉप लगाकर समर्थ में परिवर्तित करती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा रुपी सीता सदा एक राम की याद में रहकर सम्पूर्ण सुख, शांति का अनुभव कर रही हूँ... अब मैं आत्मा पवित्रता का व्रत धारण कर अतीन्द्रिय सुख वा स्वीट साइलेन्स का अनुभव करने वाली *संपूर्ण और सम्पन्न स्थिति की अनुभूति कर रही* हूँ...

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  सदा एक के अन्त में समाए एकान्तवासी स्थिति का अनुभव करना*"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा परमपिता परमात्मा की सन्तान हूँ... जैसे मैं आत्मा ज्योतिर्बिन्दु हूँ... वैसे ही मेरे परमपिता परमात्मा भी अति सूक्ष्म  ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप हैं... सर्व गुणों के सागर हैं... कल्याणकारी हैं... सर्वशक्तिवान हैं... *मुझ आत्मा को बिन्दु बन बिन्दु में लवलीन हो जाना है...* मैं बिन्दु... बाप बिन्दु और बिन्दु में ही सारा संसार समाया हुआ है...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपने शिवबाबा के सामने बैठी हूँ... खुशी के मोती आँखों में सजा कर  ईश्वर पिता को अपलक निहार रही हूँ... बाबा से कह रही हूँ कि बाबा जब आप से दूर थी तो कितनी दुःखी थी... आपके समीप आने से सब दुःख दूर हो गए... असीम सुख और आनन्द से भर उठी हूँ... *पुरानी विनाशी दुनिया भी अब याद नहीं...*

 

➳ _ ➳  इस ईश्वरीय आनन्द को जीती हुई मैं आत्मा... ईश्वर के प्रेम में देह भान से पूर्ण रूप से मुक्त होती जा रही हूँ... कुछ भी याद नहीं है... बस बाबा हैं और मैं आत्मा...  कितनी सुंदर अवस्था है ये... *सर्व सम्बन्धों का रस एक बाबा से ही प्राप्त हो रहा है...* मैं आत्मा आपको निहारते निहारते तो खो ही गई... सुखों के सागर में खो गई... बिल्कुल शांत लवलीन स्थिति...

 

➳ _ ➳ अपने बच्चों को तड़पते देख बाबा  स्वयं धरा पर प्रीत की रीत निभाने आ गए...  *सत्य ज्ञान से... स्मृति दिला कर... हर दुख दूर कर दिया...* परमात्म प्यार हर श्वांस श्वांस में समा गया...  एक तेरे सिवा बाबा और कुछ भी याद नहीं... आपकी याद को इस तरह संभाल लूँ कि क्षण भर के लिये भी इससे दूर न हो सकूँ... एक ही आरज़ु है बाबा कि आपकी आरज़ु ही बाकी रहे...

 

➳ _ ➳  शिवबाबा... आपने मुझे अपना बना लिया है... कितनी सौभाग्यशाली मैं आत्मा जो प्रभु प्रेम की पालना में पल रही हूँ... आपसे यह प्रेम केवल आज का ही तो नहीं है... तब का है जब से मुझ आत्मा का वजूद है... युगों युगों का है... कल्प कल्प की प्रीत है ये... *एक परमात्मा की सुखदायी याद में देहभान को भूल एकान्तवासी स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...*

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *पवित्रता के फ़ाउंडेशन को मज़बूत कर अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करने वाले सम्पूर्ण और सम्पन्न होते हैं...  क्यों और कैसे?*

 

 ❉  ब्राह्मण जीवन है ही निर्विकारी जीवन अर्थात सम्पूर्ण पवित्र जीवन , *केवल अन्न या ब्रह्मचर्य नहीं बल्कि आत्मा के संकल्पो में भी शुद्धि* होनी आवश्यक है तभी ब्राह्मण जीवन सबसे श्रेष्ठ बनता है और ब्रह्मणो की ऊँच चोटी होती है । आत्मा, ब्राह्मण बनने से पहले शूद्र होती है तभी शिवबाबा आते और पवित्रता की प्रतिज्ञा करवाते आत्माओं से जिससे उनके संकल्प बोल कर्म में शुद्धि होना शुरू हो जाता तभी वह सच्चे-सच्चे ब्राह्मण कहलाते है ।

 

 ❉  बाबा कहते तुम हो मुख वंशावली ब्राह्मण यानी *स्वयं भगवान ने ब्रह्मा के मुख द्वारा अडॉप्ट किया है और ज्ञान अमृत देकर वह डेली हमको पतित से पावन बनाने की युक्ति बता रहे है* जिससे हमारे पिछले 63जन्म का भी हिसाब किताब चूकतु हो जाए और हम सहज ही वापिस अपने घर परमधाम जा सके... और दुनिया वाले है कुख वंशावली ब्राह्मण जिनका धर्म ब्राह्मण है लेकिन कर्म नही, क्योंकि उन्हें भी यह ज्ञान नही की उनका स्वधर्म कौनसा है और यह तो तभी पता चले जब स्वयं भगवान आके समझाए ।

 

 ❉  इसलिए बापदादा पवित्रता के व्रत को पालन करने वाली आत्माओं को दिल से दुआओं सहित मुबारक देते हैं। बाबा कहते यह व्रत धारण करना कम बात नही है क्योंकि यदि अतीन्द्रिय सुख वा स्वीट साइलेन्स का अनुभव कम है तो ज़रूर पवित्रता का फ़ाउंडेशन कमज़ोर है। और *ब्राह्मण जीवन का फ़ाउंडेशन पवित्रता ही है*। और बाबा ने बहुत बार कहाँ की यह ज्ञान प्रवृति में रहने वाली आत्माओं के लिए है जो घर ग्रहस्त में रहते भी शिवबाबा की याद से पावन बनते।

 

 ❉  पवित्रता के फ़ाउंडेशन को या व्रत में सम्पूर्ण और सम्पन्न भव (१००% ) का वरदान प्राप्त करने के लिए व्यर्थ सोचने, देखने, बोलने और करने में फ़ुलस्टॉप लगाकर हर विपरीत परिस्थिति को परिवर्तन करना यही सम्पन्न वा सम्पूर्ण आत्मा की विशेषता है अर्थात *एक सेकंड में फ़ुलस्टॉप लगाना*... इसके लिए साइलेन्स की शक्ति को बढ़ानी होगी जिससे आत्मा अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करने लगेगी।

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *सदा एक के अंत में खोये हुए रहना - यही एकान्तवासी बनना है... क्यों और कैसे* ?

 

❉   जैसे परमात्मा बाप विदेही है वैसे ही हम आत्माये भी विदेही है जो देह धारण कर केवल इस सृष्टि रंग मंच पर पार्ट बजाने आई है । अब यह नाटक पूरा हुआ इसलिए *विदेही बन विदेही बाप के साथ वापिस अपने घर परमधाम जाना है, इस बात को जितना स्मृति में रखेंगे* उतना देह और दुनियावी पदार्थो से ममत्व समाप्त होता जायेगा और मन बुद्धि बाहर भटकने के बजाए अंतर्मुखता में स्थित होने लगेगी जिससे एकांतवासी बन एक के अंत में खोए रहना स्वत: ही सहज हो जायेगा ।

 

❉   शरीर के कई अंगो को हम जैसे चाहे वैसे मोड़ लेते हैं ऐसे मन बुद्धि को भी जहां एकाग्र करना चाहे वहीं उसे एकाग्र कर सकें इसके लिए जरूरी है अंतर्मुखी और एकांतवासी बनने का अभ्यास । क्योकि *अगर अंतर्मुखता के बजाए बाह्यमुखता में ज्यादा रहते हैं तो मन बुद्धि एक जगह पर कभी स्थिर नही रह सकते* बल्कि बाहरी जगत में ही भटकते रहते हैं । इसलिए अंतर्मुखी बन जितना मन बुद्धि को केवल एक बाबा की याद में स्थित करने का अभ्यास करेंगे उतना ही एकान्तवासी बन एक के अंत में खोने का अभ्यास पक्का होता जायेगा ।

 

❉   एकान्तवासी स्थिति का अनुभव आत्मा तभी कर सकेगी *जब सम्पूर्ण स्वतंत्र बनेंगे अर्थात जब चाहे कर्म करने के लिए देह का आधार ले* और जब चाहे देह के भान से ऐसे न्यारे हो जाएँ कि जरा भी यह देह अपनी तरफ खींच ना सके । ऐसे देह के लगाव से, पुराने स्वभाव संस्कार से मुक्त तभी हो सकेंगे जब अंतर्मुखता में रहने के अभ्यासी बनेंगे । क्योकि अंतर्मुखता में रह कर *जितना बाप को याद करेंगे उतना कर्मेन्द्रियों के बन्धन से मुक्त होते जायेंगे* और एक के अंत में खोना सहज होता जायेगा ।

 

❉   मछली पानी के अंदर रहते हुए पानी को ही अपना जी - दान महसूस करती है, उसका लगाव पानी से ही होता है । शरीर निर्वाह अर्थ यदि बाहर निकलती भी है तो एक सेकण्ड बाहर आई और फिर अंदर चली जाती है क्योकि बिना पानी के वह रह नही सकती । ऐसे ही *जब हमारी लग्न भी अपने निजी स्वरूप के भिन्न भिन्न अनुभव के सागर से होगी* तो केवल कार्य करने के किये बाह्य मुखता में आएंगे और कार्य करके फिर से अंतर्मुखी बन अनुभवों के सागर में खो जायेंगे तो यह अभ्यास आत्मा को एकान्तवासी स्थिति में स्थित कर देगा ।

 

❉   एकान्तवासी स्थिति अर्थात एक के अन्त में ऐसे खो जाना कि व्यक्त में आने पर भी व्यक्त भाव से परे न्यारी और प्यारी अव्यक्त स्थिति में सदा स्थित रहना । *जैसे शिव बाबा हम बच्चों से मिलने व्यक्त में आ कर भी अव्यक्त रहते हैं* । हमे भी इस स्थिति में स्थित रहना है और इस स्थिति में स्थित तभी हो सकेंगे जब मन बुद्धि एकाग्र होंगे । एकाग्रता आएगी अंतर्मुखता में रहने से । इसलिए अंतर्मुखी बन जितना बाबा की याद में रहने का अभ्यास पक्का होता जायेगा उतना ही एकान्तवासी बनना सहज होता जायेगा ।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━