━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 28 / 08 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *"जो कर्म हम करेंगे, हमें देखकर और करेंगे" - सदा यह स्मृति में रहा ?*
➢➢ *बिगर कहे सेवा में लगे रहे ?*
➢➢ *कभी भी आपस में लून पानी तो नहीं हुए ?*
────────────────────────
∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *अपने भरपूर स्टॉक द्वारा खुशियों का खजाना बांटा ?*
➢➢ *एक दो की राय को रीगार्ड दे संगठन को एकता के सूत्र में बाँधा ?*
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ सदा अपने को डबल लाइट अनुभव करते हो? *जो डबल लाइट रहता है वह सदा उडती कला का अनुभव करता है।* क्योंकि जो हल्का होता है वह सदा ऊँचा उडता है, बोझ बाला नीचे जाता है। तो *डबल लाइट आत्मायें अर्थात सर्व बोझ से न्यारे बन गये।* बाप का बनने से 63 जन्मों का बोझ समाप्त हो गया।
〰✧ सिर्फ अपने पुराने संकल्प वा व्यर्थ संकल्प का बोझ न हो। क्योंकि *कोई भी बोझ होगा तो ऊँची स्थिति में उडने नहीं देगा।* तो डबल लाइट अर्थात आत्मिक स्वरूप में स्थित होने से हल्का-पन स्वत: हो जाता है। ऐसे *डबल लाइट को ही 'फरिश्ता' कहा जाता है।* फरिश्ता कभी किसी भी बन्धन में नहीं बाँधता।
〰✧ तो कोई भी बन्धन तो नहीं है। मन का भी बन्धन नहीं। *जब बाप से सर्व शक्तियाँ मिल गई तो सर्व शक्तियों से निर्बन्धन बनना सहज है।* फरिश्ता कभी भी इस पुरानी दुनिया के, पुरानी देह के आकर्षण में नहीं आता। क्योंकि है ही डबल लाइट तो सदा ऊँची स्थिति में रहने वाले। *उडती कला में जाने वाले 'फरिश्ते' हैं, यही स्मृति अपने लिए वरदान समझ, समर्थ बनते रहना।* अच्छा।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सब कुछ करते चुप रह, बाप को याद कर, वर्सा पाना"*
➳ _ ➳ एक ऊँची पहाड़ी से प्रकर्ति के सौंदर्य को निहारते हुए मै आत्मा... *ईश्वर पिता को पाकर ऊँची हो चली, मन और बुद्धि की स्थिति के चिंतन में खो जाती हूँ..*. मीठे बाबा ने सच्चे ज्ञान को देकर... *भीतर के आनंद का जो स्वाद चखाया है... उसको जीकर मै आत्मा कितनी तृप्त हो गयी हूँ..*. कभी बाह्य मुखता और पुरानी दुनिया में गर्दन तक फंसी थी... आज अंतर्मुखता की गहरी गुफा में मीठे बाबा की यादो में मदमस्त हूँ... *शब्दों से परे, आवाज से परे भीतर, सच्चे आनन्द से छलक रही हूँ..*. कितना प्यारा जादु मीठे बाबा ने किया है... दिल की यह बात सुनाने... अपने प्रियतम बाबा के पास उड़ चलती हूँ...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अमूल्य ज्ञान रत्नों से भरपूर करते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... कर्मक्षेत्र पर कार्य करते हुए मनबुद्धि से ईश्वरीय यादो में खोये रहो... बुद्धि का योग निरन्तर मीठे बाबा संग जुड़ा रहे... *हर साँस हर संकल्प से मीठे बाबा को याद कर, सतयुगी वर्से के अधिकारी बनो.*..
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के असीम प्यार में झूमते हुए कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा *आपको पाकर, आपके असीम प्यार और ज्ञान रत्नों को पाकर कितनी मालामाल हूँ..*. मै आत्मा अंतर्मुखता की गुफा में आपकी मीठी यादो में हर पल खोयी हुई हूँ... सच्ची खुशियो में झूम रही हूँ..."
❉ प्यारे बाबा मुझ आत्मा को अपनी शक्तियो से भरकर समझाते हुए कहते है ;- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह के प्रभाव से मुक्त होकर, अशरीरी अवस्था को पक्का करो... *अपने आत्मिक स्वरूप में टिक कर, सच्चे बाबा की सच्ची यादो में सदा मुस्कराते रहो.*.. दिव्य गुणो की धारणा कर सतयुग के मीठे सुखो के मालिक बनो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा के गहरे प्यार के नशे में डूबकर कहती हूँ :- "मीठे प्यारे दुलारे बाबा... *आपने अपनी बाँहों में भरकर, मुझे दुखो के दलदल से निकाल, सदा का सुखी बनाया है.*.. मै आत्मा आपके दिए ज्ञान धन और यादो की सौगात से धनवान् हूँ... रोम रोम से आपके प्यार में डूबी हुई हूँ..."
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को पुरानी दुनिया के प्रभाव से मुक्त कराते हुए कहते है :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... ईश्वरीय यादे ही सच्चा सहारा है... यही आधार सारे सुखो का आधार है.. मीठे बाबा की यादो में मन बुद्धि को सदा ही लगाये रहो... *इन यादो में बाह्यमुखता की दरकार नही... बस भीतर ही भीतर मीठे बाबा संग जुड़े रहो..*.
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने प्यारे बाबा के सारे प्यार को अपने मन रुपी दामन में समाते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... *आपने मुझे ज्ञान और योग की सच्ची राहों पर चलाकर... जीवन की कितना प्यारा और दिव्यता से। हर दिया है.*.. आपकी यादो में सच्चे आनन्द को पाकर मुझ आत्मा ने सारे सुख पा लिए है..."मीठे बाबा संग सच्चे प्रेम के अहसासो को जीकर मै आत्मा... साकार जगत में लौट आयी...
────────────────────────
∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- श्रीमत के विपरीत विकारों के वश हो कोई भी कर्म नही करना*"
➳ _ ➳ *अपने श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ परम पिता परमात्मा शिव बाबा की श्रेष्ठ मत पर चल अपना श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाली मैं पदमापदम सौभाग्यशाली आत्मा अपने मीठे शिव बाबा का शुक्रिया अदा करने के लिए उन्हें बड़े प्यार से एक खत लिखती हूँ* और उस खत को ले कर उड़ चलती हूँ अपने सूक्ष्म आकारी फ़रिशता स्वरूप को धारण कर सूक्ष्म वतन की ओर जहां मेरे दिलाराम शिव बाबा अपने रथ पर विराजमान हो कर मेरी राह देख रहें हैं।
➳ _ ➳ वतन में पहुंच कर मैं देख रही हूँ वतन का खूबसूरत नज़ारा। पूरा सूक्ष्म लोक सफ़ेद चांदनी के प्रकाश से नहाया हुआ, रंग बिरंगे फूलो की खुशबू से महक रहा है। *प्रभु दर्शन की प्यासी मेरी निगाहें अपने दिलाराम बाबा को तलाश रही हैं ताकि जल्दी से जल्दी अपने दिल के जज्बात जो मैंने खत में अपने प्यारे बाबा के लिये लिखे हैं वो उन्हें दिखा सकूँ*। लेकिन ऐसा लगता है जैसे आज बाबा मेरे साथ आंख - मिचौली खेल रहें हैं। मायूस हो कर उस खत को वही रख मैं वापिस लौटने के लिए जैसे ही मुड़ती हूँ सामने बाबा दिखाई देते हैं।
➳ _ ➳ मंद - मंद मुस्कराते हुए बाबा की मीठी मधुर मुस्कराहट को देख मेरी सारी मायूसी पल भर में गायब हो जाती हूँ और मैं दौड़ कर बाबा की बाहों में समा जाती हूँ। बाबा के नयनों में अपने लिए समाये असीम स्नेह को मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। *बाबा का स्नेह, बाबा का प्यार बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की किरणों के रूप में अब मुझ पर बरस रहा है*। बाबा की स्नेह भरी दृष्टि मुझ में असीम बल भर कर मुझे शक्तिशाली बना रही है। स्नेह के सागर बाबा से अथाह स्नेह पा कर मेरी जन्म जन्म की प्यास जैसे बुझ गई है। *तृप्त हो कर अब मैं वापिस कर्म करने हेतू साकारी लोक में आने के लिए बाबा से विदाई लेती हूँ*।
➳ _ ➳ बाबा अपने दोनों हाथ मेरे आगे करते है। मैं देख रही हूं बाबा के एक हाथ मे एक छोटी सी खूबसूरत डिब्बी और दूसरे हाथ मे एक बहुत सुंदर सजा हुआ कार्ड हैं। बाबा उस खूबसूरत डिब्बी की ओर इशारा करते हुए कहते हैं:- *"ये बाबा के दिल की डिब्बी है जिसमे बाबा ने आपके दिल के जज्बात, जो आपने खत में लिखे है वो सम्भाल कर रखें है*। दूसरा ये श्रीमत का कार्ड है जिस पर बाबा की वो सारी श्रीमत लिखी हैं जिन पर अब आपको चल कर बाबा के स्नेह का रिटर्न देना है।
➳ _ ➳ श्रीमत के उस खूबसूरत कार्ड को ले कर अब मैं लौट आती हूँ साकारी दुनिया मे और अपने साकारी तन में विराजमान हो जाती हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं हर कर्म करने से पहले चेक करती हूं कि वो श्रीमत प्रमाण है या नही! *बाबा की आज्ञानुसार आत्म अभिमानी स्थिति में स्थित हो कर हर कर्म करने से अब मुझसे कोई भी कर्म ऐसा नही होता जो विकारों के वश हो*। बाबा की शिक्षाओं को जीवन मे धारण करने से मेरा जीवन हीरे तुल्य बन रहा है। हर कर्म में मम्मा, बाबा को फ़ॉलो करके अपने हर कर्म को मै श्रेष्ठ बना रही हूँ। *सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बन कर अपने श्रेष्ठ कर्म द्वारा अब मैं सबको श्रेष्ठता का अनुभव करवा रही हूँ*।
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा अपने भरपूर स्टॉक द्वारा खुशी का खज़ाना बांटती हूं।"*
➳ _ ➳ कलियुग के विषय सागर से निकल संगमयुग में मैं आत्मा बाप समान सुख, शांति, पवित्रता, शक्ति, ज्ञान एवं गुणों की दाता बनी हूँ... मुझ *संगमयुगी ब्राह्मण का कर्तव्य है सदा ख़ुश रहना और खुशी बांटना... इसके लिए मैं आत्मा सदा अपने ख़ज़ाने को भरपूर रखती हूं*... बाबा ने समय का ज्ञान देते समय यह बताया है कि अभी नाज़ुक समय नज़दीक आता जाएगा... अनेक आत्माएं हमसे थोड़े समय की खुशी की मांगनी करने के लिए आएँगी... मैं आत्मा अब इतनी सेवा कर रही हूं कि कोई भी खाली हाथ नहीं जाए... इसके लिए *मुझ आत्मा के मुखमंडल पर सदा खुशी का चिंह रहता है... कभी मूड ऑफ वाला, माया से हार खाने वाला या दिलशिकस्त वाला चेहरा नहीं रहता... मैं आत्मा सदा खुशी बांटते रहने वाली हीरो हीरोइन पार्टधारी हूं*...
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- एक दो की राय को रिगार्ड देते हुए संगठन को एकता के सूत्र में बांधते हुए अनुभव करना"*
➳ _ ➳ *मैं निर्मानचित्त आत्मा... सर्व की राय को रिगार्ड देने वाली...* सर्व की शुभचिंतक आत्मा हूँ... सर्व के प्रति सम्मान रखने वाली... कल्याणकारी आत्मा हूँ... *संगठन में सर्व को... माला में पिरोए हुए मणकों के समान अनुभव कर रही हूँ... सभी एक दूसरे को रिगार्ड देते हुए... एक दूसरे के समीप हैं...* एक दूसरे के गुणों को ग्रहण कर रहे हैं... गुणग्राहक दृष्टि वाली भाग्यवान आत्माएं... एक-दूसरे की शुभचिंतक हैं... *शुभभावना द्वारा... भाई भाई की दृष्टि में सहज ही स्थित हो रहे हैं...* एक दूसरे को आगे बढ़ाने में सहयोगी बन... संतुष्टता का अनुभव कर रहे हैं... सभी अल्लाह के बगीचे के पुष्प से प्रतीत हो रहे हैं... *वैरायटी फूलों का यह गुलदस्ता... अविनाशी रुहानियत की खुशबू विश्व में फैला रहे हैं...* हर कर्म प्रभुपसंद करते हुए... एकता के सूत्र में बंध गए हैं... ईश्वरीय सेवा के निमित्त बन... विश्व कल्याण का कार्य कर रहे हैं... *विश्व में स्नेह... प्यार और ब्रदरहुड की भावना फैला रहे हैं...*
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ १. माया के हल्के-हल्के रूपों को तो आप भी जान गये हो और माया भी सोचती है कि ये जान गये हैं लेकिन जब कोई भी विकराल रूप की माया आवे तो सदा साक्षी होकर खेल करो। जैसे वो कुश्ती का खेल होता है ना, देखा है कि दिखायें? यहाँ बच्चे करके दिखाते हैं ना! तो समझो कि ये कुश्ती का खेल, खेल रहे हैं, अच्छी तरह से मारो। घबराओ नहीं, खेल है। तो *साक्षी होकर खेल करने में मजा आता है और माया आ गई, माया आ गई तो घबरा जाते हैं। कुछ भी ताकत अभी माया में नहीं है। सिर्फ बाहर का शेर का रूप है लेकिन बिल्ली भी नहीं है।* सिर्फ आप लोगों को घबराने के लिए बड़ा रूप ले आती है फिर सोचते हो पता नहीं अब क्या होगा! तो यह कभी नहीं कहो - क्या करुँ, कैसे होगा, क्या होगा.., लेकिन बापदादा ने पहले भी यह पाठ पढ़ाया है कि जो हो रहा है वो अच्छा और जो होने वाला है वो और अच्छा। ब्राह्मण बनना अर्थात् अच्छा ही अच्छा है। चाहे बातें ऐसी होती हैं जो कभी आपके स्वप्न में भी नहीं होती और कई बातें ऐसे होती हैं जो अज्ञान काल में नहीं होगी लेकिन ज्ञान के बाद हुई हैं, अज्ञानकाल में कभी बिजनेस नीचे-ऊपर नहीं हुआ होगा और ज्ञान में आने के बाद हो गया, घबरा जाते हैं - हाय, ज्ञान छोड़ दें! लेकिन कोई भी परिस्थिति आती है उस परिस्थिति को अपना थोड़े समय के लिये शिक्षक समझो।
➳ _ ➳ २. तो *परिस्थिति आपको विशेष दो शक्तियों के अनुभवी बनाती है - एक-सहनशक्ति, न्यारापन, नष्टोमोहा और दूसरा-सामना करने की शक्ति का पाठ पढ़ाती है* जिससे आगे के लिए आप सीख लो कि ये परिस्थिति, ये दो पाठ पढ़ाने आई है।
➳ _ ➳ ३. घबराते हो ना तो माया समझ जाती है कि ये घबरा गया है, मारो अच्छी तरह से। इसलिए घबराओ नहीं। ट्रस्टी हैं अर्थात् पहले से ही सब कुछ छूट गया। *ट्रस्टी माना सब बाप के हवाले कर दिया। मेरा क्या होगा! - बस गा गा आता है ना तो गड़बड़ होती है। सब अच्छा है और अच्छा होना ही है, निश्चिन्त है - इसको कहा जाता है समर्थ स्वरूप।*
✺ *ड्रिल :- "माया और परिस्थितियों का साक्षी होकर सामना करना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा शांतिस्तंभ के सामने बैठी बाबा की यादों में मगन हूँ... मैं फरिश्ता अव्यक्त बापदादा की मधुर स्मृतियों में खोई हुई हूँ... *बादलों को चीरते हुए अति दिव्य फरिश्ता... संपन्न ब्रह्माबाबा प्रकट होते हैं... जिनके मस्तक पर ज्ञान सूर्य चमक रहे हैं... वे अपना हाथ आगे बढ़ाते हैं और... मैं फरिश्ता बाबा का हाथ पकड़े बाबा के साथ आ जाती हूँ फरिश्तों की दुनिया में*... जहां हर तरफ प्रकाश ही प्रकाश है... सफेद चांदनी सा प्रकाश छाया हुआ है...
➳ _ ➳ फरिश्तों की इस महफिल में मैं बापदादा को उनके अति तेजोमय, दिव्य स्वरुप में देख रही हूँ... बापदादा के नैनों से असीम प्यार, शक्तियां बरस रही हैं... *बाबा वरदानों से मुझ फरिश्ते को निहाल कर रहे हैं... बाबा वरदान देते हैं बच्चे साक्षीदृष्टा भव! नष्टोमोहा भव!...* वरदान देकर बाबा अपना हाथ मेरे सिर पर रख देते हैं... बाबा के हाथ से शक्तियों का फव्वारा निकलकर... मुझ आत्मा में समाता जा रहा है...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ड्रामा के हर सीन को साक्षी होकर देख रही हूँ... जैसे कि कोई खेल चल रहा है... और मैं आत्मा खेल को देखने का आनंद ले रही हूँ*... मैं डिटैच हो कर देख रही हूँ कि... यह ड्रामा संपूर्ण रुप से कल्याणकारी है... इसके हर सीन में कल्याण समाया हुआ है... जो हुआ वह भी अच्छा, जो हो रहा है वह भी अच्छा और जो होने वाला है वह भी अच्छा ही है... कल्याणकारी संगम युग के हर पल, हर क्षण में कल्याण ही कल्याण है...
➳ _ ➳ कोई भी सीन, कोई भी परिस्थिति जो... मुझ आत्मा के सामने आ रही है... अब मैं उससे परेशान नहीं हो रही... हलचल में नहीं आ रही हूँ... *मैं उसे एक शिक्षक के रूप में देख रही हूँ... जो मुझ आत्मा को अनुभवी बनाने का पाठ पढ़ाने के लिए आई है...* मुझ में सहनशक्ति, न्यारापन बढ़ाने के निमित्त बनकर आई है... मुझ आत्मा की सामना करने की शक्ति बढ़ती जा रही है...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा में निमित्त भाव, समर्पण भाव बढ़ता जा रहा है... सब कुछ बाबा का है... मैं तो ट्रस्टी मात्र हूँ... सेवा अर्थ निमित्त मात्र हूँ... *मैंने अपने सभी बोझ, सब चिंताएं, सभी जिम्मेवारियाँ बाबा को दे दी हैं... अब मैं स्वयं को हर प्रकार से हल्का, निश्चिंत अनुभव कर रही हूँ...* ईश्वरीय नशा, फ़खुर, ख़ुमारी बढ़ती जा रही है... मैं अतींद्रिय सुख में समाती जा रही हूँ...
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━