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❍ 08 / 11 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*5=25)
➢➢ *बाप से कुछ भी छिपाया तो नहीं ?*
➢➢ *वाचा व कर्मणा सेवा कर सर्व आत्माओं की आशीर्वाद ली ?*
➢➢ *अपना टाइम सफल किया ?*
➢➢ *श्रेष्ठ स्मृति द्वारा सुखमय स्थिति का अनुभव किया ?*
➢➢ *समय रुपी खजाने को व्यर्थ से बचाया ?*
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❂ *तपस्वी जीवन प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं* ✰
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〰✧ *चेक करो - जो भी संकल्प उठता है वह स्वयं वा सर्व के प्रति कल्याण का है? सेकेण्ड में कितने संकल्प उठे - उसमें कितने सफल हुए और कितने असफल हुए?* संकल्प और कर्म में अन्तर न हो। संकल्प जीवन का अमूल्य खजाना है। *जैसे स्थूल खजाने को व्यर्थ नहीं करते वैसे एक संकल्प भी व्यर्थ न जाये।*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:- 10)
➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाये ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ *बिन्दु स्वरूप में स्थित होना अर्थात डबल लाइट बनना।* बडी चीज को उठाना मुश्किल होता है, छोटी चीज को उठाना सहज होता है। छोटे बिन्दु रूप को स्मृति में रखते हो या लम्बे शरीर को याद रखते हो?
〰✧ याद के लिए कहा जाता है - बुद्धि में याद रखना। मोटी चीज को याद रखते हो और छोटी चीज को छोड देते हो, इसलिए मुश्किल हो जाता है। लाइफ में भी देखो - छोटा बनना अच्छा है वा बडा बनना अच्छा है? छोटा बनना अच्छा है। तो *छोटा स्वरूप याद रखना अच्छा है ना।*
〰✧ क्या याद रखेंगे? बिन्दु। सहज काम दिया है या मुश्किल? तो फिर ‘कभी-कभी’ क्यों करते हो? *सहज काम तो ‘सदा' हो सकता है ना।* जब बाप भी बिन्दु, आप भी बिन्दु काम भी बिन्दु से है तो बिन्दु को याद करना चाहिए। तो अभी डॉट को नहीं भूलना बोझ नहीं उठाना। अच्छा! यह वैरायटी गुलदस्ता है।
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:- 15)
➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सबका भला करने का धंधा करना"*
➳ _ ➳ *'अमृतवेला हो गई भोर चल रे मनवा वतन की ओर'- ये गाना सुनते ही मैं आत्मा उठकर बैठ जाती हूँ... प्यारे बाबा को गुड मॉर्निंग कहकर उड़ चलती हूँ वतन की ओर...* मेरा ही इन्तजार करते हुए बाबा बाहें फैलाए खड़े हैं... बाबा की बाँहों में मैं आत्मा सिमट जाती हूँ... *बाबा के प्यार में लवलीन होकर मेरा दिल गा रहा है... अपने प्यार को उजागर कर रहा है -- 'सूरज से किरणें जैसे, सागर से लहरें जैसे करते प्यार हैं, फूलों से खुशबू जैसे, ओ बाबा तुमसे- ऐसे इस दिल का प्यार है...'*
❉ मेरे प्यारे बाबा खुश होकर मुझ पर मीठे मीठे प्यार के फूल बरसाते हुए कहते हैं:- "मेरे मीठे फूल बच्चे... जो मीठा सुखद जीवन आप बच्चों ने ईश्वरीय छाँव में पाया है वह सुखदायी बहार विश्व के कोने कोने में महका आओ... *सच्चे ज्ञान से सबके दामन में खुशियो के फूल खिला आओ... सुखो की जन्नत भरी राह हर नजर में समा आओ... आप समान सबको खुशनुमा जीवन की सौगात दे आओ...* ज्ञान की बुलबुल बनकर आप समान बनाने का धंधा करो..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा खुशियों के अम्बार से अपनी झोली भरते हुए कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा दुखो में कभी कांव कांव करने वाली आज खुबसूरत सी ज्ञान की बुलबुल हो चली हूँ... *मीठा सा रूहानी रूप मीठी वाणी और सच्चे ज्ञान की झनकार लिये... खुशियो का पर्याय बन सबको आप समान मीठी मुस्कान से सजा रही हूँ..."*
❉ मीठे सागर बाबा सुख, शांति की किरणों से रोशन करते हुए कहते हैं:- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता ने अपनी गोद में बिठा *प्यार के जादू भरे हाथो से ज्ञान बुलबुल के रूप में संवारा है.*.. तो वह ज्ञान की मीठी सी कूक हर आत्मा दिल को सुना आओ... सबको जनमो के दुखो से सच्ची आथत राहत दे आओ... खुद को यादो के सागर में भिगोते हुए इन ज्ञान की सुखद लहरो से हर मन को शीतल कर आओ..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा सच्चे दिल से प्यारे बाबा को शुक्रिया अदा करते हुए कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... आपसे पाये सच्चे ज्ञान ने मेरा जीवन पारस सा कीमती बना दिया है... आपकी मीठी यादो में बुलबुल बन ज्ञान से चहक रही हूँ... *सच्चे ज्ञान से पायी खुशियां हर दिल पर दिल खोलकर लुटा रही हूँ...*"
❉ मेरे बाबा जन्म जन्म की मेरी प्यास को बुझाते हुए कहते हैं:- "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर के लिए जो दिल जनमो से व्याकुल था आज ईश्वर पिता को पाकर मीठी यादो में डूबा है, की नही अपने दिल से पूछो... *यादो के समन्दर में गहरे खोया है या संसार में गोते लगा रहा*... अपनी यादो के पैमाने को जांचते हुए ईश्वरीय यादो की खुशबु से पूरे विश्व को सुवासित कर आओ..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा अविनाशी खजानों को बटोरते हुए, सबको बांटते हुए कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपसे पाये सुख, ज्ञान खजाने और *शक्तियो रुपी अपार दौलत से हर दिल को दीवाना बना रही हूँ... सबको सुखो का सच्चा रास्ता बताकर सदा का सुखी बना रही हूँ...* सबके दिलो में सच्ची मुस्कराहट भर रही हूँ..."
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सर्व की आशीर्वाद लेने के लिए वाचा वा कर्मणा सेवा जरूर करनी है*"
➳ _ ➳ "मैं खुदाई खिदमतगार हूँ"। स्वयं खुदा शिव भगवान ने सृष्टि परिवर्तन के महान कार्य मे मुझे अपना मददगार बनाया है, इस बात को स्मृति में लाते ही मेरे खुदा शिव बाबा की अनमोल शिक्षायें स्वत: ही स्मृति में आने लगती है। *कानों में बाबा के महावाक्य सुनाई पड़ते हैं कि "सर्व की आशीर्वाद लेने के लिए वाचा वा कर्मणा सेवा जरूर करनी है"*। बाबा का यह फ़रमान स्मृति में आते ही मैं स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ कि अब मुझे सबसे पहले *अपनी मनसा, वाचा, कर्मणा को शक्तिशाली बनाना है तभी मेरे मुख से निकला हर वचन और मेरे द्वारा किया हर कर्म दूसरों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन सर्व आत्माओं का कल्याण कर सकता है*।
➳ _ ➳ इस प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए अब मुझे आत्म शक्ति और परमात्म शक्ति से स्वयं को भरपूर करना है, यह संकल्प ले कर अब मैं आत्मिक स्मृति में स्थित हो कर, अपने मन और बुद्धि को सभी बातों से हटा कर भृकुटि के मध्य भाग पर एकाग्र करती हूँ। *एकाग्रता की शक्ति से शरीर के सभी भागों से अपनी चेतना को समेटते ही मैं अपने सत्य स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ और स्वयं को देह से बिल्कुल न्यारे, एक अति सुंदर चमकते हुए सितारे के रूप में देखती हूँ*। मैं देख रही हूँ भृकुटि के बीचों बीच एक चमकती हुई दीप शिखा जिसकी लौ से बहुत तेज प्रकाश निकल रहा है और मन को एक विचित्र सुख की अनुभूति करवा रहा है।
➳ _ ➳ अपने इस अति उज्ज्वल, न्यारे और अति प्यारे स्वरूप को देख, असीम आनन्द का अनुभव करती हुई मैं चैतन्य शक्ति आत्मा अब एक सुन्दर रूहानी यात्रा पर रवाना हो जाती हूँ। *अपने शिव पिता के पास पहुंचने की यह रूहानी यात्रा बहुत ही सुहावनी है*। मेरे शिव पिता का प्यार उनकी सर्वशक्तियों की किरणों के रूप में मुझ पर बरसता हुआ मुझे इस आनन्दमयी रूहानी यात्रा पर आगे बढ़ा रहा है। *अपने खुदा शिव बाबा के प्रेम की डोर से बंधी अब मैं आकाश को पार करती हुई, सूक्ष्म लोक से परें, पहुँच गयी हूँ अपने शिव पिता के घर परमधाम में जहां अपरमअपार शान्ति ही शान्ति है*।
➳ _ ➳ शान्ति के इस धाम में, थोड़ी देर गहन शान्ति की अनुभूति करने के बाद अब मैं निराकार ज्योति, शान्ति के सागर अपने शिव पिता के बिल्कुल समीप पहुँच जाती हूँ।मुझ आत्मा के पिता भी मेरे ही समान एक दिव्य ज्योति पुंज हैं जो रूप में बिंदु किन्तु गुणों में सिंधु के समान हैं। *उनके सानिध्य में, उनकी सर्वशक्तियों की किरणों के नीचे मैं स्वयं को असीम शक्ति से भरपूर अनुभव कर रही हूँ*। परमधाम में अपने परमपिता परमात्मा शिव बाबा के सामने निराकारी, निर्संकल्प स्थिति में स्थित हो कर मैं गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ। मेरे शिव पिता परमात्मा से सतरंगी किरणे निकल कर मुझ आत्मा में समा रही हैं और मैं स्वयं को सातों गुणों से सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ बीज रूप अवस्था की गहन अनुभूति करने के बाद अब मैं आत्मा वापिस लौट आती हूँ अपने साकारी ब्राह्मण तन में और भृकुटि पर विराजमान हो जाती हूँ। *बीजरूप स्थिति के अतीन्द्रिय सुख के अनुभव की स्मृति अब मेरे हर संकल्प और कर्म को दिव्य और अलौकिक बना रही है*। मेरे संकल्प, बोल और कर्म में श्रेष्ठता की झलक सहज ही सबको बाबा का परिचय देने के निमित बन रही है। मेरे मुख से निकला हर बोल बाबा का गुणगान कर रहा है और सबको परमात्म प्यार का अनुभव करवा रहा है। *मनसा,वाचा और कर्मणा तीनो रूपो से ईश्वरीय सेवा करते हुए अब मैं सर्व आत्माओं की आशीर्वाद और अपने शिव पिता की ब्लैसिंग प्राप्त कर रही हूँ*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं श्रेष्ठ स्मृति द्वारा सुखमय स्थिति बनाने वाली सुख स्वरूप आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को स्वमान में स्थित करने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं समय रूपी खजाने को व्यर्थ से बचाने वाली तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ स्मृतियों में टिकाये रखने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *विश्व में एक तरफ भ्रष्टाचार, अत्याचार की अग्नि होगी, दूसरे तरफ आप बच्चों का पावरफुल योग अर्थात् लगन की अग्नि ज्वाला रूप में आवश्यक है*। यह ज्वाला रूप इस भ्रष्टाचार, अत्याचार के अग्नि को समाप्त करेगी और सर्व आत्माओं को सहयोग देगी। *आपकी लगन ज्वाला रूप की हो अर्थात् पावरफुल योग हो, तो यह याद की अग्नि, उस अग्नि को समाप्त करेगी और दूसरे तरफ आत्माओं को परमात्म सन्देश की, शीतल स्वरूप की अनुभूति करायेगी*। बेहद की वैराग्य वृत्ति प्रज्जवलित करायेगी। एक तरफ भस्म करेगी दूसरे तरफ शीतल भी करेगी। *बेहद के वैराग्य की लहर फैलायेगी*।
➳ _ ➳ बच्चे कहते हैं - मेरा योग तो है, सिवाए बाबा के और कोई नहीं, यह बहुत अच्छा है। परन्तु *समय अनुसार अभी ज्वाला रूप बनो*। *जो यादगार में शक्तियों का शक्ति रूप, महाशक्ति रूप, सर्व शस्त्रधारी दिखाया है, अभी वह महा शक्ति रूप प्रत्यक्ष करो*। चाहे पाण्डव हैं, चाहे शक्तियां हैं, सभी सागर से निकली हुई ज्ञान नदियां हो, सागर नहीं हो, नदी हो। ज्ञान गंगाये हो।तो *ज्ञान गंगायें अब आत्माओं को अपने ज्ञान की शीतलता द्वारा पापों की आग से मुक्त करो*। यह है वर्तमान समय का ब्राह्मणों का कार्य।
✺ *ड्रिल :- "ज्वाला रूप की योग अग्नि से भ्रष्टाचार, अत्याचार की अग्नि को समाप्त करना"*
➳ _ ➳ भृकुटी की कुटिया में बैठी मैं शिव सूर्य को एकटक निहारती हुई... *उनके रूहानी नयनों के प्यालों से बहता रूहानी प्रकाश... शक्तियों को मेरे रोम-रोम में भरता हुआ*... प्रकाश की एक तीव्र धारा मेरे मस्तिष्क में समाती हुई... *मन के सभी प्रकार के व्यर्थ के अंश को भस्म करती हुई... किसी तेज शावर की तरह यह मस्तिष्क से आँखों तक पहुँच रही है, और आँखो में बसे हर भ्रष्ट आचरण के अंश को पूरी तरह नष्ट कर रही है*... और बस आँखों में एक की ही सूरत... और उसी से लगी है पूरी लगन... बाकी अन्य सभी लगन विदाई लेती हुई... ये तेज शावर सभी ज्ञानेन्द्रियों से विकार के अंश को जलाकर भस्म कर रहा है... प्रकाश की दूसरी धारा शीतल पावन गंगाजल की भाँति मेरे रोम रोम में शीतलता प्रवाहित करती हुई... विकारों की भस्म को धोकर पूरी तरह साफ करती हुई...
➳ _ ➳ किसी पारदर्शी पावन दर्पण की तरह जगमगा उठा है मेरा अस्तित्व... शीशे की दीवारो में जगमगाती हुई जैसे कोई जगमग ज्योति... *एक विशाल ज्योति के रूप में मेरे ठीक ऊपर शिव पिता... मेरे साथ साथी बनकर*... सैकडों मील दूर तक फैली आकाश गंगा की भाँति उनसे निरन्तर मुझ तक आती हुई प्रकाश की धारा... और अब *ये प्रकाश ज्वाला का रूप धारण कर सारी सीमाओं को तोडता हुआ स्वछन्दता से आस पास के वातावरण में फैल रहा है... दूर दूर तक फैले हुए भ्रष्टाचार, और अत्याचार के कंटीले जंगल को जलाता हुआ*... उसके अंश को भस्म करता हुआ... *ये घने कैक्टस की झाडियाँ, ये विषैली नागफनियाँ*... जिन्होनें शिष्टाचार की कोमल कलियों को बंधक बना लिया था... आज जलकर भस्म हो रही है... शिव के साथ निरन्तर कम्बांइन्ड रूप में, मैं आत्मा शीतलता की धारा से इन कोमल कलियों को शीतल कर रही हूँ... मुक्त हुई ये कलियाँ बेहद के वैराग्य से भरकर निहार रही है शिव पिता की ओर... और हर एक अपने शक्ति स्वरूप को इमर्ज कर महाशक्ति रूप धारण कर रही है... देखते ही देखते इनसे एक साथ असंख्य ज्वालाएँ प्रकट होकर चारों दिशाओं में फैल गयी है... भ्रष्टाचार के वंश मात्र को भस्म करती हुई...
➳ _ ➳ और अब मैं आत्मा, शीतल गंगा की धारा बन, भ्रष्टाचार की इस भस्म को, इन पाँच तत्वों से बहुत दूर बहाकर ले जा रही हूँ... अपने पीछे की सृष्टि को सतोप्रधान बनाती हुई... एक नई ऊर्जा से भरकर ये धरा मुस्कुरा रही है... *सदाचार और नैतिकता के नन्हें अंकुर इसकी गोद में मुस्कुरानें लगें है... हवाऐं सौरभ लेकर गुनगुना रही है... मानों जगती का चप्पा चप्पा आज यही कह रहा है... जन्नत ने द्वार खटखटाया है आज... खोल सखी पट घूँघट के संदेशा प्रियतम का कोई लाया है आज*... निरन्तर अटैन्शन से, मैं आत्मा शिव बाबा के साथ कम्बाइन्ड रूप में... अब प्रवेश कर रही हूँ अपनी शीशे के समान पारदर्शी देह में... शिव शक्ति रूप में हर भ्रष्ट संकल्प के प्रति अटैन्शन रखती हुई... ओम शान्ति...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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