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 13 / 01 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *घर में रहते भी रूहानी सेवा की ?*

 

➢➢ *पवित्र बने और बनाया ?*

 

➢➢ *एक बाबा शब्द की स्मृति द्वारा कमजोरी शब्द को समाप्त किया ?*

 

➢➢ *गंभीरता की विशेषता से हर कार्य में स्वतः ही सिद्धि को प्राप्त किया ?*

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         ❂ *योगी जीवन प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं*

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✧  *कोई भी कार्य करते व पार्ट बजाते सागर समान ऊपर से भले हलचल दिखाई दे लेकिन अन्दर की स्थिति नथिंग न्यु की हो।* रचयिता और रचना के अन्त को जानने वाले त्रिकालदर्शी आराम से शान्ति की स्टेज पर ऐसे स्थित हो जाएं जो कोई भी कर्मेन्द्रियों की हलचल आन्तरिक स्टेज को हिला न सके।

 

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∫∫ 2 ∫∫ योगी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाकर योगी जीवन का अनुभव किया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं समर्थ बाप और समर्थ युग की स्मृति द्वारा व्यर्थ को समाप्त करने वाली समर्थ आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने को समर्थ आत्माएं समझकर चलते हो? जब सर्वशक्तिवान की स्मृति है तो स्वत: समर्थ हो। समर्थ आत्मा की निशानी क्या होगी? *जहाँ समर्थी है वहाँ व्यर्थ सदा के लिए समाप्त हो जाता है। समर्थ आत्मा अर्थात् व्यर्थ से किनारा करने वाले। संकल्प में भी व्यर्थ नहीं। ऐसे समर्थ बाप के बच्चे सदा समर्थ।*

 

आधा कल्प तो व्यर्थ सोचा, व्यर्थ किया-अब संगमयुग है समर्थ युग। समर्थ युग, समर्थ बाप और समर्थ आत्माएं। तो व्यर्थ समाप्त हो गया ना। *सदा यह स्मृति मे रखो कि हम समर्थ युग के वासी, समर्थ बाप के बच्चे, समर्थ आत्मा हैं। जैसा समय, जैसा बाप वैसे बच्चे।*

 

*कलियुग है व्यर्थ। जब कलियुग का किनारा कर चुके, संगमयुगी बन गये तो व्यर्थ से किनारा हो ही गया। तो सिर्फ समय की याद रहे तो समय के प्रमाण स्वत: कर्म चलेंगे।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *स्वयं को इस स्वमान में स्थित कर अव्यक्त बापदादा से ऊपर दिए गए महावाक्यों पर आधारित रूह रिहान की ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  बापदादा ने पहले भी कहा है कि जैसे अभी यह पक्का हो गया है कि मैं ब्रह्माकुमारी/ब्रह्माकुमार हूँ चलते-फिरते - सोचते - हम ब्रह्माकुमारी हैं, हम ब्रह्माकुमार ब्राह्मण आत्मा हैं। ऐसे *अभी यह नेचुरल स्मृति और नेचर बनाओ कि मैं फरिश्ता हूँ।”*

 

✧  *अमृतवेले उठते ही यह पक्का करो कि मैं फरिश्ता परमात्म श्रीमत पर नीचे इस साकार तन में आया हूँ,* सभी को सन्देश देने के लिए वा श्रेष्ठ कर्म करने के लिए कार्य पूरा हुआ और अपने शान्ति की स्थिति में स्थित हो जाओ।

 

✧  ऊँची स्थिति में

चले जाओ। एक-दो को भी फरिश्ते स्वरूप में देखो। *आपकी वृत्ति दूसरे को भी धीरे-धीरे फरिश्ता बनादेगी। आपकी दृष्टि दूसरे पर भी प्रभाव डालेगी।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- घर गृहस्थ में रहते पवित्र बनना"*

 

_ ➳  *सुहावने मौसम में कुदरती नजारों का आनंद उठाती मैं आत्मा तालाब के किनारे बैठ जाती हूँ... सूरज ने अपनी लालिमा की चादर पूरी प्रकृति पर ओढ़ दी है...*  ठंडी ठंडी हवाओं का लुत्फ़ उठाती मैं आत्मा खिले हुए कमल पुष्पों को देख रही हूँ... कीचड़ में भी खिलकर कीचड़ से परे रह मुस्कुराते हुए खड़े हैं... *मैं आत्मा भृकुटी कमल के सिहांसन पर विराजमान होकर प्यारे मीठे बाबा के पास उड़ जाती हूँ, प्यारी-प्यारी, मीठी-मीठी बातें सुनने और सुनाने...* 

 

   *अंतिम जन्म में गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र बनने की श्रीमत देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे बच्चे... *इस समय जबकि ईश्वर पिता सम्मुख है... तो इस अंतिम जन्म में पवित्रता को धारण करो... भले गृहस्थ में रहो पर कमल समान पवित्रता से महकते रहो...* और निरन्तर मीठे पिता की यादो में मगन रहो... भीतर ही भीतर यह याद का पुरुषार्थ करो...

 

_ ➳  *एक बाबा को सब सौंपकर पवित्रता के वायब्रेशंस से गृहस्थ जीवन को महकाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो में खो रही हूँ... *गृहस्थ को पवित्रता से सम्भाल कर निरन्तर निखर रही हूँ...* आपकी यादो में डूबने का गुप्त पुरुषार्थ कर रही हूँ... एक बाबा दूसरा न कोई में मगन हो गई हूँ...

 

    *मुझे आत्मस्मृति का तिलक लगाकर पवित्रता के पुष्प बरसाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे फूल बच्चे... सारे संसार को चाहकर तो देख लिया... खुद को अपवित्र बनाकर दुखी होकर भी तो देख लिया... अब ईश्वर पिता की यादो में डूबकर देखो जरा... *पवित्रता को बाँहों में भरकर सज संवर कर देखो जरा... यही यादे सुखो के सुनहरे संसार की सैर कराएगी...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा ज्योतिबिंदु स्वरुप में टिककर माया मोह के घेरे को तोड़कर कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपके बिना कितना भटक रही थी... दुखो के जंजालों को सत्य समझ फंस पड़ी थी... *आपने आकर बाबा मुझ पत्थर बुद्धि का उद्धार किया है... मुझे पवित्रता का सुन्दरतम श्रृंगार दिया है...”*

 

   *मन कमल को खिलाकर दिव्य गुणों की खुशबू से महकाते हुए मेरे सागर बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *विकारो की अपवित्रता से निकल कमल सी सुंदरता लिए पवित्र जीवन को जीओ...* सबसे बुद्धि को निकाल एक पिता में सर्व सुखो का सुख लो... यह गुप्त मेहनत आनंद की दुनिया का सुख दिलाएगी... और देवताई स्वरूप में सजाकर विश्व का मालिक बनाएगी...

 

_ ➳  *मैं आत्मा न्यारी प्यारी बन गृहस्थ को पवित्रता की चांदनी से रोशन करते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो में खो रही हूँ... *गृहस्थ में रहते हुए सम्पूर्ण पावन बन रही हूँ... आपकी यादो में सुंदर दिव्य गुणो से सज रही हूँ... और देवता बन मुस्करा उठी हूँ...”*

 

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- इस जीते जागते नर्क में रहते हुए भी बेहद के बाप से स्वर्ग का वर्सा लेना है*"

 

_ ➳  अपनी हथेली पर बहिश्त लाने वाले, स्वर्ग के रचयिता अपने शिव पिता की श्रीमत पर चल, *इस जीते जागते नरक में रहते हुए भी बाबा से स्वर्ग का वर्सा लेने के अपने लक्ष्य को समृति में लाकर, उसे पाने की स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा करते ही मन बुद्धि से मैं पहुँच जाती हूँ उस मनभावन स्वर्गिक दुनिया में जो मेरे शिव पिता मेरे लिए स्थापन कर रहें हैं*। कभी अपने संगमयुगी ब्राह्मण जीवन के तो कभी अपने भविष्य देवता जीवन के भिन्न भिन्न दृश्य मेरी आँखों के सामने बार - बार स्पष्ट हो रहें हैं।

 

_ ➳  नई दुनिया की स्थापना के निमित बने ब्रह्मा बाबा को मैं देख रही हूँ। *कभी भगवान का रथ बन कर अपनी अव्यक्त पालना से अपने ब्राह्मण बच्चों को हज़ार गुना मदद दे कर उन्हें आप समान बनाने का स्वरूप तो कभी उनका कृष्ण के बाल गोपाल रूप में सतयुग का प्रिंस बन खेल पाल करता हुआ अति सुन्दर मनमोहक रूप मेरी आँखों के सामने बार - बार स्पष्ट हो रहा है*। बाबा के दोनों ही स्वरूपों में मैं स्वयं को बाबा के अति समीप देख कर आनन्दविभोर हो रही हूँ। बाबा के दोनों स्वरूप मन को एक अद्भुत सुखद अनुभूति करवा रहें हैं।

 

_ ➳  इस विशेष सुखद अनुभूति में खोई मैं अनुभव करती हूँ कि जैसे बाबा अपने कमरे में बैठे मुझे आप समान सम्पन्न बनाने के लिए अपने पास बुला रहें हैं। मन बुद्धि के विमान पर बैठ, मैं पहुँच जाती हूँ मधुबन के पांडव भवन में। *बाबा के कमरे में मैं प्रवेश करती हूँ। बाबा सामने बैठे हैं मुझे आप समान सम्पन्न बनाने के लिये। बाबा के सामने मैं जाकर बैठ जाती हूँ और अनुभव करती हूँ जैसे बाबा अपनी सारी शक्तियाँ मेरे अन्दर भरते जा रहें हैं*। आप समान सम्पन्न स्थिति में सदा स्थित रहने के लिए बाबा मुझे विशेष बल प्रदान कर रहें हैं ताकि अपनी सम्पन्न स्थिति में सदा स्थित रह कर, इस जीते जागते नर्क में रहते हुए भी बेहद के बाप से स्वर्ग का वर्सा लेने के अपने ऊँचे लक्ष्य को मैं प्राप्त कर सकूँ।

 

_ ➳  बाबा के कमरे में बैठ, बाबा से शक्तियाँ लेकर बाप समान सम्पन्न और श्रेष्ठ स्थिति का अनुभव करके, बाबा के कमरे से अब मैं बाहर आ जाती हूँ। *इस कलयुगी नर्क में रहते हुए इस नरक का प्रभाव मुझ पर ना पड़े और मैं बेहद के बाप से स्वर्ग का वर्सा लेने के अपने लक्ष्य को अति शीघ्र प्राप्त कर सकूँ, इसके लिए अपने अंदर निहित सूक्ष्म शक्तियों को जागृत करने के लिए अब मैं अपने निराकारी स्वरूप में स्थित हो कर, शक्तियों के सागर सर्वशक्तिवान अपने शिव पिता के पास चल पड़ती हूँ*। अपने निराकार स्वरूप में, एक चमकते हुए सितारे के समान अपने गुणों और शक्तियों की किरणों को चारों और फैलाते हुए मैं चैतन्य सितारा साकार लोक को पार, सूक्ष्म लोक से होता हुआ उससे ऊपर अपने शिव पिता के घर परमधाम में प्रवेश करता हूँ।

 

_ ➳  निराकारी आत्माओं की यह दुनिया मेरा स्वीट साइलेन्स होम है, जहां मैं आत्मा आकर गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ। *बिंदु बन बिंदु बाप के सम्मुख बैठ शक्तियों के सागर अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों से अब मैं स्वयं को भरपूर कर रही हूँ*। अपने बीज रूप सर्वशक्तिवान शिव पिता के सम्मुख मास्टर बीज रूप स्थिति में स्थित होकर उनकी शक्तियों को स्वयं में समाने से मुझ आत्मा में निहित सूक्ष्म शक्तियाँ जो देह अभिमान में आने के कारण सोई हुई थी अब पुनः जागृत हो रही हैं। *कुछ देर तक इसी बीज रूप अवस्था में स्थित हो कर, अपनी सूक्ष्म शक्तियों को जागृत कर, सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बन अब मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट आती हूँ*।

 

_ ➳  *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, इस जीते जागते नरक में रहते हुए भी, अपनी सूक्ष्म शक्तियों के बल से इस दुनिया के प्रभाव से स्वयं को सदा मुक्त रखते हुए, बेहद के बाप से स्वर्ग का वर्सा लेने का तीव्र पुरुषार्थ मैं सहजता से कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं एक बाबा शब्द की स्मृति द्वारा कमजोरी शब्द को समाप्त करने वाली सदा समर्थ आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं गम्भीरता की विशेषता को धारण कर  हर कार्य में स्वतः सिद्धि प्राप्त करने वाली विशेष आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *सदा समय अनुसार अपने मनबुद्धि को स्वप्न तक भी सदा शुभ और शुद्ध रखो।* कई बच्चे रूहरूहान में कहते हैं - बापदादा तो शक्तियाँ देता है लेकिन समय पर शक्ति यूज नहीं होती। *बापदादा विशेष सब बच्चों के साथी होने के सम्बन्ध से विशेष ऐसे समय पर एक्सट्रा मदद देते हैंक्यों? बाप जिम्मेवार है बच्चों को सम्पन्न बनाए साथ ले जाने के लिए।* तो बाप अपनी जिम्मेवारी विशेष ऐसे समय पर निभाते हैं लेकिन कभी-कभी बच्चों के मन की कैचिंग पावर का स्विच आफ होता हैतो बाप क्या करेंबाप तो फिर भी स्विच आन करने कीखोलने की कोशिश करते हैं लेकिन टाइम लग जाता है। इसलिए जब फिर स्विच आन हो जाता है तो कहते हैं - करना तो नहीं चाहिए थालेकिन हो गया। *तो सदा अपने मन की कैचिंग पावर,जिसको आप कहते हैं टचिंगउस टचिंग व कैचिंग पावर का स्विच आन रखो।* माया कोशिश करती है आफ करने की, सेकण्ड में आफ करके चली जाती है, इसीलिए जैसा समय नाजुक होता जायेगा, अभी होना है और। डरते तो नहीं हो ना?   

 

✺   *ड्रिल :-  "मन की कैचिंग पावर का स्विच आन रख परिस्थितियों के समय बापदादा की एक्सट्रा मदद का अनुभव"*

 

 _ ➳  *देख रहा हूँ मैं नन्हा फरिशता स्वयं को बापदादा के साथ हाथों में हाथ लिए सांयकाल में छत पर घूमते हुए...* मैं नन्हा फरिशता बड़े ही फलक से अपने बापदादा के साथ चल रहा हूँ... तभी बाबा मुझ फरिशते को गोद में उठा लेते है... और सामने झूले पर बिठा देते है... *और मुझ फरिशते को झूला झूला रहे है... तभी मुझ आत्मा के मन में एक प्रश्न रूपी लहर आती है... बापदादा तो शक्तियाँ देता है लेकिन समय पर शक्ति यूज नहीं होती...* बाबा बिना कहें ही मुझ आत्मा के मन की बात समझ जाते है... और मुझे सामने देखने का इशारा करते है...

 

 _ ➳  मैं फरिशता सामने देखता हूँ... *कुछ यात्री एक पहाड़ी रास्ते से अपनी मंजिल की ओर प्रभु महिमा के गीत गाते खुशी से आगे बढ़ रहे है...* सबके हाथ में एक मशीन है... जिस पर लिखा है *मन-बुद्धि... और इसी मशीन पर एक बटन है जिसमें लिखा है अॉन, अॉफ* रास्ता बहुत संकरा है... सभी यात्री आगे बढ़ रहे है... रास्ते के साथ-साथ ही कई तरह के रंग-बिरंगे खेल चल रहें है... कई तरह की चमकीली दिखने वाली वस्तुएँ रास्ते के साईड में है... *कुछ यात्री बीच-बीच में चलते हुए इन साइड में चल रहे सीन को देखने में व्यस्त हो जाती है साथ में चल रहे रंग-बिरंगे खेलों को देखने में लग जाते है...*

 

 _ ➳  कुछ यात्री आगे बढ़ रहे है... *इसी बीच कुछ यात्री जो यहाँ वहाँ की साइड सीन में व्यस्त हो जाते है... उनके हाथ में जो मशीन है उसके बटन अॉफ हो जाता है...* और अचानक जिस रास्ते पर सभी यात्री चल रहे है उसमें ऊपर से बड़े-बड़े पत्थर आना शुरू हो जाते है... मैं आत्मा बड़े ध्यान से इस दृश्य को देख रही हूँ... तभी मैं आत्मा देखती हूँ... *ऊपर से बाबा सभी जो उस रास्ते पर चल रहे यात्री है... उनको सिगनल भेज रहे है... लेकिन कुछ यात्री जिनकी मन-बुद्धि रूपी मशीन अॉन है... वे उस सिगनल को कैच करते है... और हाई जम्प देकर उस पत्थर से आगे निकल जाते है...* लेकिन जिन यात्रियों की मशीन का बटन अॉफ था वो बाबा से मिल रहे सिगनल को कैच नहीं कर पा रहे है...

 

 _ ➳  तभी वो दृश्य मुझ आत्मा की आँखों के सामने से गायब हो जाता है... और बापदादा मुझ आत्मा के सामने आ जाते है... *बाबा मुझे दृष्टि दे रहे है... बाबा की दृष्टि से निकलती ज्ञान रूपी रोशनी मुझ आत्मा में समा रही है और इस दृश्य का राज मेरे सामने स्पष्ट होता जा रहा है...* बाबा मुझ आत्मा के सिर पर अपना वरदानी हाथ रखते है... बाबा के वरदानी हाथ से शक्तिशाली किरणें मुझ आत्मा में समा रही है... *मुझ आत्मा की बुद्धि दिव्य बनती जा रही है... मुझ आत्मा का मन रूपी दर्पण बिल्कुल स्वच्छ और शुद्ध बनता जा रहा है...* अब मैं आत्मा देख रही हूँ

 

 ➳ _ ➳  स्वयं को कर्म भूमि पर केवल एक बाबा की याद में भिन्न-भिन्न कर्म करते हुए... *मैं आत्मा देख रही हूँ... पत्थर रुपी कई तरह की परिस्थितियाँ मुझ आत्मा के जीवन में आ रही है लेकिन मुझ आत्मा की मन-बुद्धि की लाइन क्लियर होने के कारण मैं आत्मा सहज ही बाबा से मिली टचिंग को यूज कर रही हूँ... बापदादा की एकस्ट्रा मदद अनुभव कर रही हूँ...* और बडी सहजता से हाई जम्प देकर हर परिस्थिति रूपी पत्थर को पार कर रही हूँ... मैं आत्मा माया के रंग-बिरंगे खेल रूपी व्यर्थ से सदा मुक्त रह सदा स्वप्न तक भी  अपनी मन-बुद्धि को शुद्ध और स्वच्छ रखती हूँ... और *निडर होकर समय रहते निर्विघ्न हो आगे बढ़ रही हूँ... और दूसरों को भी निर्विघ्न बना कर आगे बढा रही हूँ... शुक्रिया मीठे बाबा शुक्रिया*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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