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 24 / 01 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बाप से पवित्रता की प्रतिज्ञा की ?*

 

➢➢ *माया का घूँसा तो नहीं खाया ?*

 

➢➢ *अपनी श्रेष्ठ स्थिति द्वारा भटकती हुई आत्माओं को ठिकाना दिया ?*

 

➢➢ *कोई न कोई सेवा में बिजी रह आलराउंडर सेवाधारी बनकर रहे ?*

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*अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *मन्सा सेवा करने के लिए सदा एकाग्रता का अभ्यास चाहिए। इसके लिए व्यर्थ समात हो, सर्व शक्तियों का अनुभव जीवन का अंग बन जाये।* जैसे बाप परफेक्ट है ऐसे बच्चे भी बाप समान हों, कोई डिफेक्ट न हो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं अतीन्द्रिय सुख में रहने वाला सर्व प्राप्ति स्वरूप हूँ"*

 

  सदा अपने को सर्व प्राप्ति स्वरूप अनुभव करते हो? *प्राप्ति स्वरूप अर्थात् अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलने वाले। सदा एक बाप दूसरा न कोई....ऐसे साथ का अनुभव करेंगे।* जब बाप सर्व सम्बन्धों से अपना बन गया तो सदा बाप का साथ चाहिए ना! कितनी भी बड़ी परिस्थिति हो, पहाड़ हो लेकिन बाप के साथ-साथ ऊपर उड़ते रहो तो कभी भी रुकेंगे नहीं।

 

  जैसे प्लेन को पहाड़ नहीं रोक सकते, पहाड़ पर चढ़ने वालों को बहुत मेहनत करनी पड़ती लेकिन उड़ने वाले उसे सहज ही पार कर लेते। *तो कैसी भी बड़ी परिस्थिति हो, बाप के साथ उड़ते रहो तो सेकण्ड में पार हो जायेगी। कभी भी झूले से नीचे नहीं आओ, नहीं तो मैले हो जायेंगे। मैले फिर बाप से कैसे मिल सकते!* बहुत काल अलग रहे अभी मेला हुआ तो मनाने वाले मैले कैसे होंगे।

 

  बापदादा हरेक बच्चे को कुल का दीपक, नम्बरवन बच्चा देखना चाहते हैं। अगर बार-बार मैले होंगे तो स्वच्छ होने में कितना टाइम वेस्ट होगा? इसलिए सदा मेले में रहो। मिट्टी में पांव क्यों रखते हो! इतने श्रेष्ठ बाप के बच्चे और मैले, तो कौन मानेगा कि यह उस ऊँचे बाप के बच्चे हैं! इसलिए बीती सो बीती। *जो दूसरे सेकण्ड बीता वह समाप्त। कोई भी प्रकार की उलझन में नहीं आओ। स्वचिन्तन करो, परचिन्तन न सुनो, न करो, यही मैला करता है। अभी से क्वेश्चन-मार्क समाप्त कर बिन्दी लगा दो। बिन्दी बन बिन्दी बाप के साथ उड़ जाओ।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  चेक करो जैसे स्थूल साधनों के लिए बताते हैं कि भूकम्प आवे तो यह करना, तूफान आवे तो यह करना, आग लगे तो यह करना, वैसे *आप श्रेष्ठ आत्माओं के पास जो साधन हैं - सर्वशक्तियाँ योग का बल, स्नेह का चुम्बक, यह सब साधन समय के लिए तैयार है? सर्व शक्तियाँ हैं?*

 

✧  किसको शान्ति की शक्ति चाहिए लेकिन आप और कोई शक्ति दे दो तो वह सन्तुष्ट होगी? जैसे किसको पानी चाहिए और आप उसको 36 प्रकार के भोजन दे दो तो क्या वह सन्तुष्ट होगा? तो *एवररेडी बनना सिर्फ अपने अशरीरी बनने के लिए नहीं।* वह तो बनना ही है।

 

✧  *लेकिन जो साधन स्वराज्य आधिकार से प्राप्त हुए हैं, परमात्म वर्से में मिले हैं वह सब अधिकार एवररेडी हैं?* ऐसे तो नहीं जैसे समाचारों में सुनते हो कि मशीनरी इस समय चाहिए वह फारेन से आने के बाद कार्य में लगाया गया। तो साधन एवररेडी नहीं रहे ना! सर्व साधन समय पर कार्य में नहीं लगा सके। कितना नुकसान हो गया!

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *वैसे ही निर्णय शक्ति को बढ़ाने लिए मुख्य खुराक यही है, जो पहले भी सुनाया  अशरीरी, निराकारी और कर्म में न्यारे। निराकारी व अशरीरी अवस्था तो हुई बुद्धि तक, लेकिन कर्म से न्यारा भी रहे और निराला भी रहे, जो हर कर्म को देखकर के लोग भी समझे कि यह तो निराला हैं।* यह लौकिक नहीं, अलौकिक है। तो निर्णय शक्ति को बढ़ाने के लिए बहुत अवश्यक है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- राजऋषि बन पुरानी दुनिया का सन्यास कर राजाई पद पाना"*

 

_ ➳  मैं ज्योति बिंदु आत्मा स्वयं को शिव बाबा के सम्मुख अनुभव कर रही हूँ... *बाबा मीठी मुस्कान से मेरी ओर देख रहे हैं और मुझे अपनी पावन दृष्टि दे रहे हैं...* बाबा की पावन दृष्टि मुझे देह भान से मुक्त कर रही है... नश्वर देह को त्याग मैं आत्मा उड़ चलती हूँ... अपने शिव पिता के पास... अगले ही क्षण मैं पहुँच जाती हूँ परमधाम अपने प्यारे बाबा के पास और बाबा के पास जा कर बैठ जाती हूँ... बाबा ज्ञान के सुनहरे रंग से मुझ आत्मा को भरने लगते है...

 

 ❉  *ज्ञान की अति गहरी समझानी देते हुए बेहद के पिता शिव बाबा कहते है :-* "मीठे लकी सितारें बच्चे मेरे... ज्ञान सागर पिता ने है तुम्हें गहरा राज समझाया... तुम्हारे 84 जन्मों के राज से है पर्दा उठाया... इस पुरानी दुनिया का है अब अन्त आया... *राजाई पद दिलाने 16 कला समपन्न बनाने अब तुम्हें शिव पिता है इस धरा पर आया...*"

 

 ➳ _ ➳  *ज्ञान की हर बात को गहराई से समझते हुए मैं आत्मा कहती हूँ :-* "मीठे प्राणप्रिय बाबा मेरे... मैं आत्मा अपने अनोखे अद्भुत से भाग्य पर बलिहार हूँ... *कितना सुंदर ड्रामा का यह राज आपने है समझाया...* ज्ञान रत्नों से मेरे जीवन को है सजाया... 84 जन्मों के राज को जान है कितना ना मेरा मन हर्षायाँ..." 

 

  *राजऋषि की स्थिति का वर्णन करते हुए बाबा कहते है :-* "मीठे मीठे बच्चे मेरे... बेहद का पिता दे रहा है बेहद की समझानी... हदों के ताने-बाने को छोड़ अब बेहद के सन्यासी तुम बन जाओ... राज और ऋषि की स्थिति के बैलेंस द्वारा तुम अब भविष्य नई दुनिया में राजाई पद पाओ..."

 

 ➳ _ ➳  *बेहद के पिता की समझानी को दिल में गहरे से समाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ :-* "मीठे ओ लाडले राजदुलारे बाबा मेरे... इस बेहद की समझानी में है कितना गहरा ज्ञान समाया... आपकी बेहद की समझानी को दिल में समा रही हूँ... *इस प्रकार मैं आत्मा बेहद का सन्यास धारण कर राजऋषि बनती जा रही हूँ...*"

 

  *मुझ आत्मा को दिलतख्तनशीन बना कर बाबा कहते है :-* "मीठे प्यारे-प्यारे बच्चे मेरे... इस कलियुगी दुनिया का अब है अन्त आया... ज्ञान सागर पिता है... नई दुनिया की सौगात तुम्हारे लिए लाया... *बन कर राजऋषि अब तुम अपने भविष्य को उज्जवल बनाओं...* राजऋषि की इस स्थिति का अभी ही इस संगम पर आंनद उठाओ... खुबसुरत भाग्य को अपनी तकदीर में सजा दो..."

 

 ➳ _ ➳  *राजऋषि की स्थिति में स्थित होकर मैं आत्मा कहती हूँ :-* "मीठे सिकीलधे लाडले बाबा मेरे... चल कर आपकी श्रीमत पर अपना भविष्य उज्जवल बना रही हूँ... *राज और ऋषि की स्थिति के बैलेंस द्वारा राजाई पद पा रही हूँ... हर पल राजऋषि की स्थिति का आंनद उठा रही हूँ...* देख कर अपना ये श्रेष्ठ शानदार भाग्य मंद-मंद मुस्कुरा रही हूँ... खुबसूरत भाग्य को अपनी तकदीर में सजा रही हूँ..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- लायक बन स्वर्ग का पासपोर्ट बाप से लेना है*"

 

_ ➳  स्वर्ग की रचना करने वाले अपने रचयिता बाप द्वारा मिलने वाली सतयुगी दुनिया की बादशाही के बारे में विचार करते ही उस अति सुंदर दुनिया के अति सुंदर नज़ारे आंखों के सामने उभर आते हैं और मन बुद्धि से मैं पहुँच जाती हूँ उस अनुपम, अवर्णनीय सौंदर्य से परिपूर्ण सुख, शांति और सम्पन्नता से भरपूर सतयुगी दुनिया में जहाँ दुख का नाम निशान नही। *स्वयं को मैं अपने 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम देवताई स्वरूप में देख रही हूँ। अपने इस डबल ताज धारी दिव्य स्वरूप को देख मैं मन ही मन आनन्दित हो रही हूँ*। मन को लुभाने वाले प्रकृति के सुंदर नज़ारे मन को तृप्त कर रहें हैं। कुछ क्षणों के लिए मैं खो जाती हूँ अपने आदि स्वरूप की स्मृति में स्थित हो कर सतयुगी दुनिया के असीम सुखों में।

 

_ ➳  स्वर्ग के अथाह सुखों का अनुभव करके मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होती हूँ और ऐसी सुखों से भरपूर दुनिया का मालिक बनाने वाले स्वर्ग के रचयिता अपने शिव पिता को बड़े प्यार से याद करती हूँ और महसूस करती हूँ कि मेरी याद मेरे शिव पिता तक पहुँच रही है जिसका रिटर्न उनके प्रेम की अनन्त किरणो के रुप मे मुझ पर बरसता हुआ मुझे स्पष्ट अनुभव हो रहा हैं। *मेरे शिव पिता का प्रेम उनकी सर्वशक्तियों की किरणों के रूप में मुझ पर बरस कर मेरे अन्तर्मन में गहराई तक समाकर मुझे आप समान मास्टर प्रेम का सागर बना रहा है*। प्यार के सागर अपने प्यारे शिव पिता के प्रेम की डोर से बंधी मैं आत्मा उनके प्रेम के रस में डूबी हुई अब उनके पास उनके धाम की और चल पड़ती हूँ।

 

_ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे अपनी सर्वशक्तियों की किरणें की प्रेम की डोर से मुझे बांध कर मेरे शिव पिता मुझे तीव्र गति से अपनी ओर खींच रहें हैं। उनके प्रेम की गहराई में खोई हुई, असीम सुख की अनुभूति करते करते अब मैं देख रही हूँ स्वयं को उनके सम्मुख उनकी निराकारी दुनिया परमधाम में। *चारों और चमकते हुए चैतन्य सितारे और उनके बीच मे अपनी अनन्त किरणों को बिखेरते हुए ज्ञान सूर्य अपने शिव पिता को मैं अति समीप से देख रही हूँ और उनकी एक - एक किरण को निहारते हुए उन किरणों को स्वयं में समा कर मैं गहन अतीन्द्रीय सुख का अनुभव कर रही हूँ*। अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ स्वयं को पूरी तरह तृप्त करके मैं आत्मा अब परमधाम से नीचे आकर सूक्ष्म लोक में प्रवेश करती हूँ।

 

_ ➳  सफेद प्रकाश से प्रकाशित फरिश्तो की इस आकारी दुनिया में पहुँच कर मैं आत्मा अपने लाइट के फ़रिश्ता स्वरूप को धारण करती हूँ और बापदादा के पास पहुँचती हूँ। *अपने सामने लाइट माइट स्वरूप में विराजमान बापदादा को मैं देख रही हूँ जो अपनी बाहें पसारे मेरा आह्वान कर रहें हैं*। बापदादा के पास पहुँच कर उनकी बाहों में समाकर, उनके प्यार से मैं स्वयं को भरपूर करती हूँ। अपनी मीठी दृष्टि से मुझे निहाल करते हुए, अपनी सर्वशक्तियाँ बाबा मुझ में प्रवाहित कर अब मुझे सौगात दे रहें हैं।

 

_ ➳  " स्वर्ग के पासपोर्ट " के रूप में मिलने वाली बाबा की इस सौगात को लेकर इसे पाने के लायक बनने का पुरुषार्थ करने के लिए अब मैं वापिस साकारी दुनिया में लौटती हूँ और अपने ब्राह्मण स्वरूप को धारण कर इस स्वर्गिक दुनिया मे स्वयं को जाने लायक बनाने के पुरुषार्थ में लग जाती हूँ। *"मैं देवकुल की महान आत्मा हूँ" स्वयं को हर समय यह स्मृति दिलाते हुए, अपने अंदर दैवी संस्कार भरने के लिए अब मैं अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान अनादि और आदि स्वरुप को सदैव स्मृति में रखते हुए, निरन्तर याद की यात्रा पर चल, योग बल से अपने आसुरी संस्कारों को जल्द से जल्द भस्म करने का तीव्र पुरुषार्थ कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपनी श्रेष्ठ स्थिति द्वारा भटकती हुई आत्माओं को श्रेष्ठ ठिकाना देने वाली लाइट स्वरूप आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सेवा के महत्व को जानकर कोई न कोई सेवा में बिजी रहने वाले ऑलराउंड सेवाधारी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *आप ब्राह्मणों के एक श्रेष्ठ संकल्प में, शुभ संकल्प में इतनी शक्ति है जो आत्माओं को बहुत सहयोग दे सकते हो। संकल्प शक्ति का महत्व अभी और जितना चाहो उतना बढ़ा सकते हो।* जब साइंस का साधन रॉकेट, दूर बैठे जहाँ चाहे, जब चाहे, जिस स्थान पर पहुँचाने चाहे, एक सेकण्ड में पहुँचा सकते हैं। आपके शुभ श्रेष्ठ संकल्प के आगे यह रॉकेट क्या है! रिफाइन विधि से कार्य में लगाके देखो, आपकी विधि से सिद्धि बहुत श्रेष्ठ है। लेकिन *अभी अन्तर्मुखता की भट्टी में बैठो। तो इस नये वर्ष में अपने आप सर्व खजानों की बचत की स्कीम बनाओ। जमा का खाता बढ़ाओ। सारे दिन में स्वयं ही अपने प्रति अन्तर्मुखता की भट्टी के लिए समय फिक्स करो। आपे ही आप कर सकते हो, दूसरा नहीं कर सकता है।*

 

✺   *ड्रिल :-  "ब्राह्मण आत्माओं के श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति का अनुभव"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा भृकुटी सिंहासन में विराजमान एकांत बैठी हूँ... मैं मन-बुद्धि द्वारा एक समु्द्र के किनारे पहुँचती हूँ...* वहाँ मन को लुभाने वाली ठंडी-ठंडी हवायें चल रही हैं... समु्द्र की लहरे तेज़ी से बढ़ रही है... वहाँ एक द्वीप पर छोटी-छोटी रंग-बिरंगी सीपियाँ पड़ी हुई हैं... उसी के पास एक सुनहरे रंग का चिराग रखा हुआ हैं जिसमें मैं आत्मा रूपी जादुई जिन बैठी हुई हूँ...

 

_ ➳  बाबा ऊपर बैठे यह सब नज़ारे देख रहे हैं... *बाबा चिराग के अंदर शांति, पवित्रता, प्रेम, सुख, शक्ति, आनंद और ज्ञान की किरणें डाल रहे हैं... मैं चिराग में बैठी हुई आत्मा रूपी जिन पॉवरफुल होती जा रही हूँ...* मुझमें बाबा ने रूहानी पॉवर भरदी हैं... मैं तेज़ी से उस चिराग से बाहर निकलती हूँ... मेरे सामने बहुत-सी दुःखी आत्मायें खड़ी हैं... वह मुझसे तीन ख्वाहिशें माँग रही है... पहली-शुभभावना, दूसरी- सकारात्मक सोच और तीसरी- दुःखों से दूर करना... मैं यह तीनों ख्वाहिशें पूर्ण कर रही हूँ...

 

_ ➳  मैं संकल्प शक्ति द्वारा सर्व आत्माओं के दुःखों को जान पा रही हूँ और जिन सम्बन्धों में कड़वाहट हैं वो संकल्प शक्ति द्वारा सही होते जा रहे है... *मैं परमात्म पालन में सर्व प्राप्तियों का अनुभव कर रही हूँ... मुझे सर्व खजानों की मालिकपन की अनुभूति हो रही हैं... मैं अपने श्रेष्ठ संकल्पों और श्रेष्ठ समय को यूज़ करके स्व और सर्व का कल्याण कर रही हूँ...*

 

_ ➳  अब मैं क्यों, कैसे, क्या जैसे प्रश्नों में नहीं आती हूँ... अब मैं अपने को बिंदू स्थिति में स्थित करके सारी परिस्थितियों को बिंदी लगाती जाती हूँ... *मैं याद की शक्ति द्वारा अपनी संकल्प शक्ति को बढ़ाती जा रही हूँ... बाबा ने सर्व अधिकार देकर सर्व खजानों से भरपूर कर दिया... अब मैं बिल्कुल भी व्यर्थ संकल्प नहीं करती हूँ जिससे कि मेरे संकल्पों की बचत हो...* अब हर समय मैं यही चेकिंग करती हूं कि कही मेरे संकल्प व्यर्थ तो नहीं जा रहे हैं...

 

_ ➳  अपनी दिनचर्या में मैं नये-नये तरीके ढूंढती हूँ कि कैसे मैं जमा का खाता बढ़ा सकती हूँ... *अमृतवेले और नुमाशाम योग के समय में मैं अन्तर्मुख होकर परमधाम, सूक्ष्मवतन, साकारलोक की सैर करती हूँ... वहाँ की वाइब्रेशन्स से मेरा मन हर्षित हो उठता हैं... सभी के प्रति शुभ संकल्पों का संचार होने लगता हैं...* अब मैं सदा अटेंशन रखती हूँ कि किसी अन्य आत्मा की कमी-कमजोरी मेरे संकल्पों में धारण न हो...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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