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 26 / 04 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *रूप बसंत बन मुख से ज्ञान रतन निकाले ?*

 

➢➢ *बाप समान सबको सुख दे सुखदाता बनकर रहे ?*

 

➢➢ *इच्छाओं रुपी मृगतृष्णा के पीछे भागने की बजाये सच्ची कमाई जमा की ?*

 

➢➢ *विघनो को विघन की बजाये खेल समझा ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  परमार्थ मार्ग में विघ्न-विनाशक बनने के लिए योगयुक्त बनकर साइलेन्स की शक्ति द्वारा परखने और निर्णय करने की शक्ति को अपनाओ। *यदि माया के भिन्न-भिन्न रूपों को परख नहीं सकेंगे तो उसे भगा भी नहीं सकेंगे क्योंकि परमार्थी बच्चों के सामने माया रॉयल ईश्वरीय रूप रच करके आती हैं जिसको परखने के लिए एकाग्रता की शक्ति चाहिए। एकाग्रता की शक्ति साइलेन्स की शक्ति से ही प्राप्त होती है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं रूहानी गुलाब हूँ"*

 

  सदा विस्तार को प्राप्त करने वाला रूहानी बगीचा है ना। और आप सभी रूहानी गुलाब हो ना। जैसे सभी फूलों में रूहे गुलाब श्रेष्ठ गाया जाता है। वह हुआ अल्पकाल की खुशबू देने वाला। आप कौन हो? *रूहानी गुलाब अर्थात् अविनाशी खुशबू देने वाले। सदा रूहानियत की खुशबू में रहने वाले और रूहानी खुशबू देने वाले।* ऐसे बने हो?

 

  सभी रूहानी गुलाब हो या दूसरेदूसरे। और भी भिन्न-भिन्न प्रकार के फूल होते हैं लेकिन जितना गुलाब के पुष्प की वैल्यु है उतनी औरों की नहीं। *परमात्म बगीचे के सदा खिले हुए पुष्प हो। कभी मुरझाने वाले नहीं। संकल्प में भी कभी माया से मुरझाना नहीं। माया आती है माना मुरझाते हो। मायाजीत हो तो सदा खिले हुए हो।*

 

  *जैसे बाप अविनाशी है ऐसे बच्चे भी सदा अविनाशी गुलाब हैं। पुरुषार्थ भी अविनाशी है तो प्राप्ति भी अविनाशी है।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आज आवाज़ से परे जाने का दिन रखा हुआ है। तो बापदादा भी आवाज़ में कैसे आयें? *आवाज़ से परे रहने का अभ्यास बहुत आवश्यक है।* आवाज़ में आकर जो आत्माओं की सेवा करते हो उससे अधिक आवाज़ से परे स्थिति में स्थित होकर सेवा करने से सेवा का प्रत्यक्ष प्रमाण देख सकेंगे।

 

✧  *अपनी अव्यक्त स्थिति होने से अन्य आत्माओं को भी अव्यक्त स्थिति का एक सेकण्ड में अनुभव कराया तो वह प्रत्यक्ष फल स्वरूप आपके सम्मुख दिखाई देगा।* आवाज़ से परे स्थिति में स्थित हो फिर आवाज़ में आने से वह आवाज़, आवाज़ नहीं लगेगा लेकिन उस आवाज़ में भी अव्यक्त वाय्ब्रेशन का प्रवाह किसी को भी बाप की तरफ आकर्षित करेगा। वह आवाज़ सुनते हुए उन्हों को आपकी अव्यक्त स्थिति का अनुभव होने लगेगा।

 

✧  जैसे इन साकार सृष्टी में छोटे बच्चों को लोरी देते हैं, वह भी आवाज़ होता है लेकिन वह आवाज़, आवाज़ से परे ले जाने का साधन होता है। ऐसे ही अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर आवाज़ में आओ तो आवाज़ से परे स्थिति का अनुभव करा सकते हो। *एक सेकण्ड की अव्यक्त स्थिति का अनुभव आत्मा को अविनाशी संबन्ध में जोड सकता हे।* ऐसा अटूट संबन्ध जुड जाता है जो माया भी उस अनुभवी आत्मा को हिला नहीं सकती।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  जैसे स्थूल चोले को कर्तव्य के प्रमाण धारण करते हो और उतार देते हो, वैसे ही इस साकार देह रूपी चोले को कर्तव्य के प्रमाण धारण किया और न्यारा हुआ। *लेकिन जैसे स्थूल वस्त्र भी अगर टाइट होते हैं तो सहज उतरते नहीं हैं, ऐसे ही आत्मा का देह रूपी वस्त्र देह, दुनिया के माया के आकर्षण में टाइट अर्थात खींचा हुआ है तो सरल उतरेगा नहीं अर्थात सहज न्यारा नहीं हो सकेंगे।* समय लग जाता है। थकावट हो जाती है। कोई भी कार्य जब सम्भव नहीं होता है तो थकावट व परेशानी हो ही जाती है; परेशानी कभी एक टिकाने टिकने नहीं देती। *तो यह भक्ति का भटकना क्यों शुरु हुआ? जब आत्मा इस शरीर रूपी चोले को धारण करने व न्यारे होने में असमर्थ हो गयी। यह देह का भान अपने तरफ खेंच गया तब परेशान होकर भटकना शुरू किया।* लेकिन अब आप सभी श्रेष्ठ आत्मायें इस शरीर की आकर्षण से परे एक सेकण्ड में हो सकते हो, ऐसी प्रेक्टिस है?

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अविनाशी ज्ञान रत्नों की कमाई करना और कराना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा भृकुटी सिहांसन पर चमकती हुए मणि इस देह से निकलकर पहुँच जाती हूँ वतन में... पारसनाथ बाबा के पास... पारसनाथ बाबा के हाथों से निकलती सुनहरी किरणों से मुझ आत्मा के लौह समान विकारी संस्कार... सुनहरे दिव्य संस्कारों में परिवर्तित हो रहे हैं...* अविनाशी बाबा, मुझ अविनाशी आत्मा की झोली को अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर कर रहे हैं...

 

  *प्यारे ज्ञान सागर बाबा ज्ञान की लहरों में मुझे लहराते हुए कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... *यह ज्ञान ही सारे सुखो का सच्चा आधार है इसलिए इस ज्ञान धन से सदा धनवान् रहो... और यह अमीरी हर दिल पर दिल खोल कर लुटाओ...* ज्ञान की यह दौलत भविष्य में विश्व का अधिकारी सा सजाएगी...

 

_ ➳  *मैं आत्मा एक-एक ज्ञान रत्न को संजोकर दूसरों की झोली भरते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी मुरली की दीवानी हो गयी हूँ... *यह मधुर तान सुनाकर हर दिल को खुशियो की दौलत में लबालब कर रही हूँ... और स्वयं भी भरपूर होकर सुनहरे सुखो की अधिकारी हो रही हूँ...”*

 

  *ज्ञान की रोशनी से मेरे जीवन को जगमगाते हुए मीठे रूहानी बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ज्ञान की मीठी कूक से सदा कूकते रहो... *सबके जीवन में इस ज्ञान झनकार की खुशियाँ बिखरते रहो... ज्ञान रत्नों से अपना दामन सदा भरपूर करो... सबके दिल आँगन को मुस्कराहटों का रंग देते रहो...* और विश्व धरा को अपनी बाँहों में पाओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा ज्ञान रत्नों से अपना श्रृंगार कर आनंद मगन होकर कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *स्वयं भगवान को सम्मुख देख उनके श्रीमुख से ज्ञान रत्नों को पाकर कितनी धनी हो गयी हूँ...* सारे दुखो से मुक्त होकर... ख़ुशी और आनंद से भरा जीवन जीने वाली महा सौभाग्यशाली मै आत्मा बन गयी हूँ...

 

  *ज्ञान संजीवनी की खुशबू से मुझ आत्मा को महकाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देह की झूठी दुनिया से व्यर्थ की बातो से प्यार कर जीवन को दुखो का पर्याय बना बैठे... अब जो ईश्वर पिता मिला है तो सच्चे प्यार की महक से भर जाओ... *सच्चे ईश्वरीय ज्ञान को दिल में समालो और इसकी खुशबु से सबको मन्त्रमुग्ध कर दो... यही रत्न विश्व धरा पर राज्याधिकारी बनाएंगे...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा सच्ची कमाई से मालामाल होकर औरों पर भी ज्ञान धन लुटाते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में कितनी खुबसूरत कितनी प्यारी कितनी धनवान् और कितनी निराली हो गयी हूँ... *मेरे पास अथाह ईश्वरीय दौलत है और मै आत्मा सबके दामन में यह दौलत भरती जा रही हूँ... मेरे साथ पूरा विश्व इस अमीरी को पाकर मुस्करा उठा है...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- रूप बसन्त बन मुख से ज्ञान रत्न निकालने है*"

 

_ ➳  अंतर्मुखता की गुफा में बैठ, एकांतवासी बन अपने प्यारे पिता  की याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे *मेरी ब्रह्मा माँ अविनाशी ज्ञान रत्नों से मेरा श्रृंगार कर, मुझे आप समान रूप बसन्त बनाने के लिए अपने अव्यक्त वतन में बुला रही हैं*। सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप में अपनी ब्रह्मा माँ और उनकी भृकुटि में चमक रहे अपने शिव पिता को मैं मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से देख रही हूँ और उनकी अव्यक्त आवाज जो मुझे पुकार रही है वो भी मैं स्पष्ट सुन रही हूँ। *बाहें पसारे अपने इंतजार में खड़ी अपनी ब्रह्मा माँ की यह अव्यक्त आवाज मुझे जल्दी से जल्दी उनके पास पहुंचने के लिए व्याकुल कर रही है*।

 

_ ➳  जैसे एक माँ अपने बच्चे के इंतजार में टकटकी लगा कर दरवाजे को देखती रहती है ऐसा ही स्वरूप अपने इंतजार में खड़ी अपनी ब्रह्मा माँ का मैं देख रही हूँ। *बिना एक पल की भी देरी किये अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर को मैं धारण करती हूँ और साकारी देह से बाहर निकल कर अपने अव्यक्त वतन की ओर चल पड़ती हूँ*। अपने लाइट के फ़रिश्ता स्वरूप में स्थित, जल्दी से जल्दी अपनी ब्रह्मा माँ और अपने शिव पिता के पास पहुँचने का संकल्प जैसे ज्ञान और योग के पंख लगाकर मुझे तीव्र गति से उड़ने का बल दे रहा है। *ज्ञान और योग के इन पँखो की सहायता से बहुत तीव्र उड़ान भर कर मैं फरिश्ता सेकेण्ड से भी कम समय में साकारी दुनिया को पार कर जाता हूँ और उससे ऊपर उड़कर अति शीघ्र पहुँच जाता हूँ अपनी ब्रह्मा माँ के पास*।

 

_ ➳  जैसे अपने बच्चे को देखते ही माँ दौड़ कर दरवाजे पर आती है और उसे अपने गले लगा लेती है ऐसे ही मुझे देखते ही मेरी ब्रह्मा माँ दौड़ कर मेरे पास आती है और अपनी बाहों में भरकर अपना असीम प्यार मुझ पर लुटाने लगती है। अपनी ब्रह्मा माँ के नयनों में अपने लिए समाये अथाह स्नेह को मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। *अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटाकर, मेरा हाथ पकड़ कर वो मुझे अपने पास बिठा कर, बड़े प्यार से मुझे निहार रही है और अपने हाथों से अब मेरा श्रृंगार कर रही है, ज्ञान के एक - एक अमूल्य रत्न से मुझे सजाते हुए मेरी ब्रह्मा माँ मुझ पर बलिहार जा रही है*। मुझे आप समान रूप बसन्त बनाने के लिए दिव्य गुणों से मुझे सजाकर, मर्यादाओं के कंगन पहना रही है।

 

_ ➳  एक दुल्हन की तरह अविनाशी ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से सज - धज कर अब मैं ज्ञान सागर अपने अविनाशी साजन के पास, स्वयं को ज्ञान के अखुट ख़ज़ानों से भरपूर करने उनके धाम जा रही हूँ। *ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से सजे अपने निराकारी सुन्दर सलौने स्वरूप में स्थित होकर, अब मैं अव्यक्त वतन से ऊपर निराकार वतन की ओर बढ़ रही हूँ*। देख रही हूँ अपने अविनाशी शिव साजन को अपने सामने विराजमान अपने अनन्त प्रकाशमय स्वरूप में अपनी किरणो रूपी बाहों को फैलाये हुए। बिना विलम्ब किये सम्पूर्ण समर्पण भाव से मैं उनकी किरणो रूपी बाहों में समा जाती हूँ। *मेरे ज्ञान सागर शिव साजन  के ज्ञान की रिमझिम फुहारें मुझ आत्मा सजनी के ऊपर बरसने लगती हैं*।

 

_ ➳  ज्ञान योग की रिमझिम फ़ुहारों के स्पर्श से रूप बसन्त बन मैं आत्मा परमधाम से नीचे आ जाती हूँ। विश्व ग्लोब पर स्थित होकर, विश्व की सर्व आत्माओं के ऊपर ज्ञान वर्षा करते हुए मैं साकार लोक में प्रवेश करती हूँ और अपने साकार तन में भृकुटि के अकालतख्त पर आकर मैं विराजमान हो जाती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर ज्ञान योग को अपने जीवन मे धारण कर, अपने मुख से सदा ज्ञान रत्न निकालते हुए, अब मैं सबको अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान दे रही हूँ। ज्ञान सागर अपने शिव पिता की याद में रहकर, स्वयं को उनके ज्ञान की किरणो की छत्रछाया के नीचे अनुभव करते, अपनी बुद्धि रूपी झोली सदा ज्ञान रत्नों से भरपूर करके, रूप बसन्त बन मैं सबको अविनाशी ज्ञान रत्नों से सम्पन्न बना रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं इच्छाओं रूपी मृगतृष्णा के पीछे भागने के बजाए सच्ची कमाई जमा करने वाली इच्छा मात्रम अविद्या आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं विघ्न को विघ्न के बजाए खेल समझने से खेल में हंसते गाते पास हो जाने वाली विघ्नविनाशक आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  धर्म में दो विशेषतायें होती हैं। धर्म सत्ता स्व को और सर्व को सहज परिवर्तन कर लेती है। परिवर्तन शक्ति स्पष्ट होगी। सारे चक्र में देखो जो भी धर्म सत्ता वाली आत्मायें आई हैं उन्हों की विशेषता है - मनुष्य आत्माओं को परिवर्तन करना। साधारण मनुष्य से परिवर्तन हो कोई बौद्धी, कोई क्रिश्चयन बना, कोई मठ पंथ वाले बने। लेकिन परिवर्तन तो हुए ना! तो धर्म सत्ता अर्थात् परिवर्तन करने की सत्ता। पहले स्वयं को फिर औरों को। धर्म सत्ता की दूसरी विशेषता है -परिपक्वता'। हिलने वाले नहीं। परिपक्वता की शक्ति द्वारा ही परिवर्तन कर सकेंगे। चाहे सितम हों, ग्लानी हो, आपोजिशन हो लेकिन अपनी धारणा में परिपक्व रहें। यह हैं धर्म सत्ता की विशेषतायें। धर्म सत्ता वाली हर कर्म में निर्मान। *जितना ही गुणों की धारणा सम्पन्न होगा अर्थात् गुणों रूपी फल स्वरूप होगा उतना ही फल सम्पन्न होते भी निर्मान होगा। अपनी निर्मान' स्थिति द्वारा ही हर गुण को प्रत्यक्ष कर सकेंगे। जो भी ब्राह्मण कुल की धारणायें हैं उन सर्व धारणाओं की शक्ति होना अर्थात् धर्म सत्ताधारी होना।*

 

✺  *"ड्रिल :- 'परिवर्तन करने की कला, परिपक्वता, निर्मानता' - इन 3 गुणों का विशेष रूप से अनुभव करना*"

 

_ ➳  मैं आत्मा *फर्श से न्यारी होती हुई एक बाबा से रिश्ता रख फरिश्ता बन उड़ चलती हूँ फरिश्तों की दुनिया में...* जहाँ बापदादा मेरे ही इन्तजार में बैठे हुए हैं... चारों ओर सफेद चमकीले प्रकाश की आभा बिखेरते हुए बापदादा अपने कोमल हाथों से मुझे अपनी गोदी में बिठाते हैं... बाबा अपनी मीठी दृष्टि देते हुए अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रखते हैं...

 

_ ➳  *बाबा की मीठी दृष्टि मुझ आत्मा में मिठास घोल रही है...* मैं आत्मा भी बाप समान मीठी बन रही हूँ... मुझ आत्मा के पुराने स्वभाव-संस्कार बाहर निकल रहे हैं... बाबा के हाथों से दिव्य अलौकिक गुण व शक्तियां निकलकर मुझ फरिश्ते में प्रवाहित हो रहे हैं... मुझ आत्मा के आसुरी अवगुण भस्म हो रहे हैं... मैं आत्मा दिव्य गुणों को धारण कर धारणा सम्पन्न अवस्था का अनुभव कर रही हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा स्व को परिवर्तित कर रही हूँ... मैं आत्मा कलियुगी संस्कारों से मुक्त हो रही हूँ... और संगमयुगी श्रेष्ठ संस्कारों को स्वयं में धारण कर रही हूँ... *अब मैं आत्मा श्रीमत अनुसार ब्राह्मण कुल की सर्व धारणाओं पर चल रही हूँ...* मैं आत्मा स्व-परिवर्तन द्वारा सर्व को परिवर्तित कर रही हूँ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा परिपक्वता की शक्ति द्वारा परिवर्तन कर रही हूँ...* हर परिस्थिति में अचल अडोल बन विजय प्राप्त कर रही हूँ... कैसी भी परिस्थिति अब मुझ आत्मा को हिला नहीं सकती है... मैं आत्मा हर परिस्थिति में अपनी धारणा में परिपक्व रहती हूँ... *हर प्रकार के मान-अपमान से परे होकर निर्मानता के गुण को स्वयं में अनुभव कर रही हूँ...*

 

_ ➳  *अब मैं आत्मा सदा अटेंशन रख परिवर्तन करने की कलासे माया के सभी रूपों को परिवर्तित कर रही हूँ...* परिपक्वताकी शक्ति से मैं आत्मा सर्व मर्यादाओं का पालन कर रही हूँ... *मैं आत्मा अपनी निर्मान' स्थिति द्वारा हर गुण को प्रत्यक्ष कर रही हूँ...* मैं आत्मा धर्म सत्ताधारी बन इन 3 गुणों का अनुभव कर रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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