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❍ 11 / 08 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *लाइट हाउस बन सबको मुक्ति जीवनमुक्ति की राह दिखाई ?*
➢➢ *एक बाप की अव्यभिचारी याद से अपनी अवस्था एकरस अचल अडोल बनाई ?*
➢➢ *ऊंची स्टेज पर रह प्रकृति की हलचल के प्रभाव से परे रहे ?*
➢➢ *अपने श्रेष्ठ वाइब्रेशन से सर्व आत्माओं को सहयोग की अनुभूति कराई ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *फरिश्ता बनने के लिए चेक करो कि चारों ओर के बन्धन से मुक्त होते जाते हैं! अगर नहीं होते तो सिद्ध है फरिश्ता जीवन समीप नहीं है।* एक के साथ सर्व रिश्ते निभाना यह है ठिकाना। सदा अपना *अन्तिम फरिश्ता स्वरूप स्मृति में रखो तो जैसी स्मृति होगी वैसी स्थिति बन जायेगी*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं सहजयोगी आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को सहजयोगी अनुभव करते हो? जो सहज बात होती है वो सदा सहज होती है। या कभी-कभी मुश्किल होती है? योग मुश्किल है या आप मुश्किल कर देते हो? तो मुश्किल क्यों करते हो? अच्छा लगता है मुश्किल? जब अपने में कोई न कोई कमजोरी लाते हो, तो मुश्किल हो जाता है। कमजोरी मुश्किल बनायेगी। तो कमजोरी आने क्यों देते हो? बच्चे किसके हो? आप अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान कहलाते हो या मास्टर कमजोर? मास्टर सर्वशक्तिवान! फिर कमजोर क्यों? अगर कमजोरी आ जाती है, चाहते नहीं हो लेकिन आ जाती है-तो आने-जाने का कारण क्या है? चेकिंग ठीक नहीं है। *चलते-चलते कहाँ न कहाँ किसी बात में अलबेलापन आ जाता है, तब कमजोरी आ जाती है। तो सदा अटेन्शन रखो कि कहाँ भी, कभी भी अलबेलापन नहीं हो। अलबेलापन अनेक प्रकार से आता है। सबसे रा@यल रूप अलबेलेपन का है पुरुषार्थ कर रहे हैं, हो जायेगा, समय पर जरूर करके ही दिखायेंगे।*
〰✧ पुरुषार्थ करते हैं लेकिन समय पर आधार रखते हैं, 'स्वयं' पर आधार नहीं रखते तो-अलबेले हो जाते हैं। तो आप कौन हो? अलबेले हो या तीव्र पुरुषार्थी? *'अनेकों' को याद करना मुश्किल होता है, 'एक' को याद करना तो सहज है। जब एक बाप के तरफ बुद्धि लग गई तो बाकी क्या करना है! यही तो पुरुषार्थ है। क्या मुश्किल है! जब है ही बाप याद, तो बाप की याद में माया तो कुछ नहीं कर सकती।* आ सकती है क्या माया? एवररेडी होकर के सेवा करेंगे तो सेवा में भी और सहयोग मिलेगा, सहज होती जायेगी, सफलता मिलेगी।
〰✧ तो सदा ये स्मृति में रखो कि-है ही एक बाप, दूसरा कुछ है ही नहीं। अगर वन बाप है तो विन जरूर है। सहज योगी हो ना। मास्टर सर्वशक्तिवान के आगे माया की हिम्मत नहीं जो वार कर सके। और ही माया सरेन्डर होगी, वार नहीं करेगी। *जब सर्वशक्तिवान बाप साथ है तो सदा ही जहाँ बाप है वहाँ विजय है ही है। कल्प-कल्प के विजयी हैं, अभी भी हैं और सदा रहेंगे। ये स्मृति है ना। कितनी बार विजयी बने हो? तो अनेक बार किया हुआ कार्य फिर से करना, उसमें क्या मुश्किल है!* नई बात तो नहीं है ना। तो नशे से कहो कि हम सहज योगी नहीं होंगे तो कौन होगा! ऐसा नशा है?
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ फुर्सत है तो अभी है फिर आगे नहीं होगी। जैसे लोगों को कहते ही फुर्सत मिलेगी नहीं, लेकिन फुर्सत करनी पडेगी। *समय मिलेगा नहीं लेकिन समय निकालना है।* ऐसे कहते ही ना! तो स्व-अभ्यास के लिए भी समय मिले तो करेंगे, नहीं। समय निकालना पडेगा।
〰✧ स्थापना के आदिकाल से एक विशेष विधि चलती आ रही है। कौन-सी? फुरी-फुरी तालाव (ढूंद-बूंद से तालाव) तो समय के लिए भी यही विधि है। जो समय मिले अभ्यास करते-करते सर्व अभ्यास स्वरूप सागर बन जायेंगे। *सेकण्ड मिले वह भी अभ्यास के लिए जमा करते जाओ, सेकण्ड सेकण्ड करते कितना हो जायेगा!*
〰✧ इकट्ठा करो तो आधा घण्टा भी बन जायेगा। चलते-फिरते के अभ्यासी बनो। जैसे चात्रक एक-एक बूंद के प्यासे होते हैं। *ऐसे स्व-अभ्यासी चात्रक एकएक सेकण्ड अभ्यास में लगावें तो अभ्यास स्वरूप बन ही जायेंगे।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ जैसे आप लोग कहते हो ना सेकण्ड में मुक्ति वा जीवनमुक्ति का वर्सा लेना सभी का अधिकार है। तो समाप्ति के समय भी नम्बर मिलना थोड़े समय की बात है लेकिन जरा भी हलचल न हो। बस बिन्दी कहा और बिन्दी में टिक जायें। बिन्दी हिले नहीं ऐसे नहीं कि उस समय अभ्यास करना शुरू करो - मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ। यह नहीं चलेगा। *क्योंकि सुनाया - वार भी चारों ओर का होगा। लास्ट ट्रायल सब करेंगे। प्रकृति में भी जितनी शक्ति होगी, माया में भी जितनी शक्ति होगी, ट्रायल करेगी। उनकी भी तरफ की बहुत पावरफुल सीन होगी। वह भी फुलफोर्स, यह भी फुलफोर्स। लेकिन सेकण्ड की विजय, विजय के नगाड़े बजायेगी।* समझा लास्ट पेपर क्या है। सब शुभ संकल्प तो यही रखते भी हैं और रखना भी है कि नम्बरवन आना ही है। *तो सबमें चारों ओर की बातों में विन होंगे तभी वन आयेंगे अगर एक बात में जरा भी व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ समय लग गया तो नम्बर पीछे हो जायेगा। इसलिए सब चेक करो। चारों ही तरफ चेक करो।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- एक बाप को याद करने का पुरुषार्थ करना"*
➳ _ ➳ विषय सागर में डूबी हुई मेरे जीवन की नईया को पार लगाने वाले मेरे खिवैया की यादों के नाव में बैठकर मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ सूक्ष्मवतन... विकारों के गर्त से निकाल शांतिधाम और सुखधाम का रास्ता बताने वाले मेरे स्वीट बाबा के सम्मुख जाकर बैठ जाती हूँ... *मुस्कुराते हुए बापदादा अपने मस्तक और रूहानी नैनों से मुझ पर पावन किरणों की बौछारें कर रहे हैं... एक-एक किरण मुझमें समाकर इस देह, देह की दुनिया, देह के संबंधो से डिटैच कर रही हैं... और मैं आत्मा सबकुछ भूल फ़रिश्तास्वरुप धारण कर बाबा की शिक्षाओं को ग्रहण करती हूँ...*
❉ *अपने सुनहरी अविनाशी यादों में डुबोकर सच्चे सौन्दर्य से मुझे निखारते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की यादो में ही वही अविनाशी नूर वही रंगत वही खूबसूरती को पाओगे... *इसलिए हर पल ईश्वरीय यादो में खो जाओ... बुद्धि को विनाशी सम्बन्धो से निकाल सच्चे ईश्वर पिता की याद में डुबो दो...”*
➳ _ ➳ *प्यारे बाबा के यादों की छत्रछाया में अमूल्य मणि बनकर दमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा देह अभिमान और देहधारियों की यादो में अपने वजूद को ही खो बैठी थी... *आपने प्यारे बाबा मुझे सच्चे अहसासो से भर दिया है... मुझे मेरे दमकते सत्य का पता दे दिया है...”*
❉ *मेरे भाग्य की लकीर से दुखों के कांटे निकाल सुखों के फूल बिछाकर मेरे भाग्यविधाता मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता धरा पर उतर कर अपने कांटे हो गए बच्चों को फूलो सा सजाने आये है... *तो उनकी याद में खोकर स्वयं को विकारो से मुक्त कर लो... ये यादे ही खुबसूरत जीवन को बहारो से भरा दामन में ले आएँगी...”*
➳ _ ➳ *शिव पिता की यादों के ट्रेन में बैठकर श्रीमत की पटरी पर रूहानी सफ़र करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी प्यारी सी गोद में अपनी जनमो के पापो से मुक्त हो रही हूँ... *मेरा जीवन खुशियो का पर्याय बनता जा रहा है... और मै आत्मा सच्चे सुखो की अधिकारी बनती जा रही हूँ...”*
❉ *देह की दुनिया के हलचल से निकाल अपनी प्यारी यादों में मुझे अचल अडोल बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपनी हर साँस संकल्प और समय को यादो में पिरोकर सदा के पापो से मुक्त हो जाओ... *खुशियो भरे जीवन के मालिक बन सुखो में खिलखिलाओ... यादो में डूबकर आनन्द की धरा, खुशियो के आसमान को अपनी बाँहों में भर लो...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा लाइट हाउस बन अपने लाइट को चारों और फैलाकर इस जहाँ को रोशन करते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ... मुझे ईश्वर पिता मिल गया है... मेरा जीवन सुखो से संवर गया है... *प्यारे बाबा आपने अपने प्यार में मुझे काँटों से फूल बना दिया है... और देवताई श्रृंगार देकर नूरानी कर दिया है...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- लाइट हाउस बन सबको मुक्ति जीवनमुक्ति की राह दिखानी है*
➳ _ ➳ सबको मुक्ति जीवन मुक्ति देने वाले अपने सच्चे सतगुरु शिव बाबा की याद में अपने मन बुद्धि को एकाग्र कर, एकांतवासी बन कर उस एक के अंत मे खो कर, उनके समान बन जाने का संकल्प ले कर मैं इस देह से खुद को डिटैच करती हूँ और अपने सत्य स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। *स्वयं को भृकुटि सिहांसन पर विराजमान एक दिव्य ज्योतिपुंज के रुप में मैं चमकता हुआ देख रही हूँ। मुझ से निकल रहा भीना - भीना प्रकाश मेरे अंदर समाये गुणों और शक्तियों को इमर्ज कर रंग बिरंगी किरणों के रूप में चारों और फैल कर वायुमण्डल को दिव्यता और अलौकिकता से भर रहा है*। मेरे अंदर समाये सातों गुणों और अष्ट शक्तियों के वायब्रेशन्स धीरे - धीरे प्रकाश की रंग बिरंगी किरणों के साथ, चारों और फैलते जा रहें हैं और वायुमण्डल को रूहानियत की शक्ति से भरपूर कर रहें हैं। *रूहानियत की यह शक्ति मुझे हर बोझ, हर बन्धन से मुक्त करके, डबल लाइट बना रही है*।
➳ _ ➳ एक अति न्यारे और प्यारे हल्केपन की अनुभूति के साथ, स्वयं को लाइट हाउस बना कर सबको मुक्ति जीवनमुक्ति की सच्ची राह दिखाने का संकल्प लेकर मैं आत्मा अब भृकुटि की कुटिया से बाहर आ जाती हूँ और अपने प्यारे पिता की सर्वशक्तियों की लाइट से स्वयं को लाइट माइट बनाने के लिये मुक्ति जीवनमुक्ति दाता अपने प्यारे प्रभु के पास उनके निर्वाणधाम घर की ओर प्रस्थान करती हूँ। *वाणी से परें अपने निर्वाणधाम घर जाने के लिए मन बुद्धि की आंतरिक यात्रा पर मैं चल पड़ी हूँ। अंतर्मन की यह यात्रा मन को बहुत सुकून देने वाली है। देह से जुड़ी किसी भी चीज की इस यात्रा में कोई दरकार नही केवल आत्म और परमात्म चिंतन ही मुझे मेरी मंजिल तक ले जाने का आधार है*। उसी आधार के सहारे मैं मन बुद्धि के विमान पर सवार होकर अब ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ।
➳ _ ➳ प्रभु मिलन का खूबसूरत मधुर अहसास मेरी गति को तीव्र कर मुझे अति शीघ्र आकाश से ऊपर अपने अव्यक्त वतन में ले आया है जहाँ मैं अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा को उनके सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप में देख रही हूँ। *अपने बच्चों को आप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण देखने की चाह में अपनी बाहों को पसारे सामने खड़े अव्यक्त ब्रह्मा बाबा को देखते हुए उनके समान बनने का संकल्प लेकर मैं वतन को भी पार करके अब अपने मूलवतन घर में प्रवेश कर रही हूँ*। मणियो से सजी इस दुनिया में चारो और फैली गहन शांति मन को गहन सुकून दे रही है। गहन शांति की गहरी अनुभूति करके मैं तृप्त हो गई हूँ। मेरी जन्म - जन्म की प्यास जैसे बुझ गई है।
➳ _ ➳ गहन शांति की अनुभूति करके अब मैं अपने प्यारे पिता के पास जा रही हूँ जो अपनी अनन्त शक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरे सामने खड़े हैं। सर्वशक्तियों की रंग बिरंगी किरणें बिखेरता बाबा का सुंदर स्वरूप मुझे अपनी और खींच रहा है। *उनकी एक - एक किरण को बड़े प्यार से निहारते हुए मैं उनके बिल्कुल समीप जाकर अब उन्हें छूती हूँ। बाबा को छूते ही शक्तियों का झरना जैसे मेरे ऊपर बरसने लगता है और एक अद्भुत शक्ति मेरे अंदर भरने लगती है*। जैसे - जैसे ये शक्तियाँ मेरे अंदर समाती जा रही हैं मैं महसूस कर रही हूँ कि बाबा से मिल रही शक्तियों का बल मुझे उनके समान तेजोमय बना रहा है। स्वयं को मैं बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। मेरा स्वरूप बहुत ही चमकदार और लुभावना बन गया है। *अपने इस अति मनभावन सुन्दर चमकीले स्वरूप को देख मैं आनन्द मगन हो रही हूँ*।
➳ _ ➳ अपने इस अति सुन्दर लुभावने स्वरूप के साथ अब मैं आत्मा परमधाम से नीचे आकर फिर से वतन में प्रवेश करती हूँ और अपने लाइट के फरिश्ता स्वरूप को धारण कर बापदादा के पास पहुँच जाती हूँ। *बापदादा के सामने बैठ, उनसे मीठी दृष्टि लेते हुए स्वयं को उनकी लाइट माइट से भरपूर करके, उनके साथ कम्बाइंड होकर अब मैं वतन से नीचे आकर विश्व ग्लोब के ऊपर स्थित हो जाती हूँ*। बापदादा अपनी सर्वशक्तियों की लाइट मेरे ऊपर प्रवाहित करते जा रहे है और मैं लाइट हाउस बनती जा रही हूँ। *मुझसे सर्वशक्तियों की ये लाइट निकल कर विश्व ग्लोब पर पड़ रही है और सारे विश्व की आत्माओं को परमात्म परिचय देकर उन्हें मुक्ति जीवन मुक्ति का रास्ता दिखा रही है*। ज्ञान की किरणों के रूप में सभी आत्माओ को परमात्म सन्देश मिल रहा है।
➳ _ ➳ अपने लाइट माइट स्वरूप में विश्व की सर्व आत्माओं को मुक्ति जीवनमुक्ति की राह दिखाकर अब मैं अपने बिंदु स्वरूप में स्थित होकर वापिस साकारी दुनिया में लौट आती हूँ। *अपने साकार तन में प्रवेश कर, भृकुटि सिहांसन पर विराजमान होकर अपने ब्राह्मण स्वरूप में मैं स्थित हो जाती हूँ और अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सभी आत्माओं को ईश्वरीय ज्ञान देकर उन्हें मुक्ति जीवनमुक्ति का रास्ता दिखाने की ईश्वरीय सेवा में लग जाती हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं ऊंची स्टेज पर रह प्रकृति के हलचल के प्रभाव से परे रहने वाली प्रकृतिजीत आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं अपने श्रेष्ठ वायब्रेशन से सर्व आत्माओं को सहयोग की अनुभूति कराने की तपस्या करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
➳ _ ➳ *बापदादा
तो सबकी दिल की बातें सुनते भी हैं, देखते
भी हैं। कोई कितना
भी छिपाने की कोशिश करे* सिर्फ बापदादा कहाँ-कहाँ लोक संग्रह के अर्थ खुला
इशारा नहीं देते, बाकी जानते
सब हैं,
देखते सब हैं। कोई कितना भी कहे कि नहीं, मैं
तो कभी नहीं करता,
बापदादा के पास रजिस्टर है, कितने
बार किया, क्या-क्या
किया,किस
समय किया, कितनों
से किया - यह सब रजिस्टर है। सिर्फ कहाँ-कहाँ चुप रहना
पड़ता है। तो दूसरी बात सुनाई-परचिन्तन।
➳ _ ➳
तीसरी बात है परदर्शन। दूसरे को देखने में मैजारिटी बहुत होशियार हैं। परदर्शन
–
जो
देखेंगे तो देखने के बाद
वह बात कहाँ जायेगी? बुद्धि
में ही तो जायेगी। और *जो दूसरे को देखने में समय लगायेगा उसको अपने को देखने का
समय कहाँ मिलेगा?* बातें
तो बहुत होती हैं ना, और
जो बातें होती हैं वो देखने में भी आती हैं, सुनने
में भी आती हैं, जितना
बड़ा संगठन उतनी बड़ी बातें होती हैं।
➳ _ ➳
और
*ये बातें ही तो पेपर हैं। जितनी बड़ी पढ़ाई उतने बड़े पेपर भी होते हैं।* यह
वायुमण्डल बनना - *यह सबके
लिए पेपर भी है कि परमत या परदर्शन या परचिन्तन में कहाँ तक अपने को सेफ रखते
हैं?* दो
बातें अलग हैं। एक
है जिम्मेवारी,
जिसके कारण सुनना भी पड़ता है, देखना
भी पड़ता है। तो उसमें कल्याण की भावना से सुनना और
देखना। जिम्मेवारी है, कल्याण
की भावना है, वो
ठीक है। लेकिन *अपनी अवस्था को हलचल में लाकर देखना, सुनना
या सोचना - यह रांग है। अगर आप अपने को जिम्मेवार समझते हो तो जिम्मेवारी के
पहले अपनी ब्रेक को पावरफुल
बनाओ।* जैसे पहाड़ी पर चढ़ते हैं तो पहले से ही सूचना देते हैं कि अपनी ब्रेक
को ठीक चेक करो। तो जिम्मेवारी
भी एक ऊंची स्थिति है, जिम्मेवारी
भले उठाओ लेकिन पहले यह चेक करो कि सेकण्ड में बिन्दी लगती है?
कि
लगाते हो बिन्दी और लग जाता है क्वेश्चनमार्क?
वो
रांग है। उसमें समय और इनर्जी वेस्ट जायेगी। इसलिए पहले अपना
ब्रेक पावरफुल करो। चलो - देखा, सुना, जहाँ
तक हो सका कल्याण किया और फुलस्टाप। अगर ऐसी स्थिति है
तो जिम्मेवारी लो, नहीं
तो देखते नहीं देखो, सुनते
नहीं सुनो,
स्वचिन्तन में रहो। फायदा इसमें है।
➳ _ ➳ *परमत, परचिन्तन
और परदर्शन इन तीन बातों से मुक्त बनो और एक बात धारण करो, वो
एक बात है पर-उपकारी
बनो।* तीन प्रकार की पर को खत्म करो और एक पर - पर-उपकारी बनो।
✺
*ड्रिल :- "परमत, परचिन्तन और परदर्शन से मुक्त रह पर-उपकारी बनना"*
➳ _ ➳ देह
रूपी कश्ती की खेवनहार,
मैं
आत्मा,
मन
बुद्वि रूपी पतवार से संसार सागर की लहरों पर रूहानी मस्ती में तैरती जा रही
हूँ... दृश्य चित्र बनाकर देखे स्वयं को रूहानी मल्लाह के रूप में) बेहद
खूबसूरत है मेरी इस यात्रा का हर पडाव... पुरानी दुनिया के किनारों पर बंधे
लंगर पूरी तरह खोल दिये है मैंने... मेरी कश्ती चल पडी है किनारों की ओर...
साथ- साथ है मेरे शिव बाबा ज्योति रूप में मेरा मार्ग दर्शन करते हुए... *लहरों
के बीच में बनी श्रीमत की सुनहरी-सी पगडंडियाँ,
जिन
पर मुझ आत्मा की कश्ती हौले- हौले अपने मुकाम की ओर बढती ही जा रही है निरन्तर
एक लय में...* श्रीमत की सुनहरी पगडंडियों को रोशनी से नहलाते शिव सूर्य ऊपर
आकाश में मुस्कुरा रहे हैं... आहिस्ता-आहिस्ता झिलमिलाते प्रकाश में मैं आत्मा
हल्की होकर ऊपर की ओर उडती जा रही हूँ... शिव बाबा संग उडती हुई मैं आत्मा
बिन्दु रूप में परम धाम में,
शिवसागर के प्रकाश में नहाती हुई... और कुछ ही पलों में शिवसागर में समाँ गयी
हूँ लवलीन अवस्था में...
➳ _ ➳
फरिश्ता रूप में मैं अब सूक्ष्म लोक में,
स्वयं को देख रही हूँ बापदादा के ठीक सामने... *घुटनों के बल बैठी मैं आत्मा
बापदादा से स्वराज्यधिकारी का तिलक ले रही हूँ,*
मेरे सिर पर हाथ रखते हुए *बाबा मुझे परमत,
परचिन्तन और परदर्शन से मुक्त रह उपकारी बनने का वरदान दे रहे है...* गहराई से
महसूस कर रही हूँ मैं उस वरदान की शक्ति को... अब बापदादा मेरा हाथ पकड मेरे
संग चल दिए है,
कुछ
गहरी अनुभूतियों के लिए... सागर में एक कश्ती पर सवार मैं और बापदादा...
बापदादा मुझे पार जाने के लिए मार्गदर्शन कर रहें है,
नीले साफ निर्मल आकाश में जगमगाते चाँद की बरसती चाँदनी में नहाते हुए हम दोनों
इस सुहाने सफर पर मगन अवस्था में बढे जा रहे हैं... आसपास दूसरी कश्तियाँ मगर
मेरा ध्यान पूरी तरह से बापदादा की ओर... कुछ कश्तियाँ मुझसे आगे और कुछ पीछे
दायें और बायें चल रही है...
➳ _ ➳
सहसा आकाश में बादलों के एक समूह ने चाँद को पूरी तरह से ढक लिया है... अंधेरा
होते देख मैंने कुछ घबराकर कश्ती की रफ्तार बढा दी... *अब मैं आगे वाली कश्ती
के पीछे चल पडा हूँ... मेरा ध्यान कुछ पल के लिए उस कश्ती के खेवनहार की तरफ जो
बडी कुशलता से आगे बढता जा रहा है...* मैं सोच रहा हूँ उसकी कुशलता के बारे
मैं... मैं देख रहा हूँ उसके नाव चलाने के तरीके को... पल भर के लिए मैं भूल ही
गया कि बापदादा भी मेरी कश्ती में सवार है... *अचानक सागर में तूफानी लहरें और
मेरे हाथ से पतवार गिर गयी है... मेरी निगाह बापदादा को ढूँढ रही है मगर वो भी
अब वहाँ नजर नही आ रहे... तूफानी लहरों के बीच मैं अकेला,
जूझ
रहा हूँ उन लहरों के बीच में...* चिल्ला चिल्लाकर पुकार रहा हूँ बापदादा को और
*अपनी गलतियों का पश्चाताप कर रहा हूँ... बापदादा को भूलकर परमत,
परचिन्तन और परदर्शन का परिणाम आज मेरी आँखों के सामने है...*
➳ _ ➳
अचानक आकाश में छाये बादल हट रहे है, *चाँद
फिर से अपनी चाँदनी का तोहफा लिए खडा मुस्कुरा रहा है,
शान्त होती समुन्द्र की लहरें और हाथ में पतवार लिए मेरे सामने खडे मुस्कुरा
रहे हैं बापदादा*... और अब पल भर में मैं समझ गया हूँ सारा दृश्य... *परमत
परदर्शन और परचिन्तन का पेपर था मेरे लिए...* मैं कितने अंको से पास हुआ ये तो
नही जानता मगर *गहराई से अनुभव कर लिया है परमत परचिन्तन और परदर्शन का
परिणाम*... बापदादा की ओर कृतज्ञता पूर्ण आँखों से देखते हुए मैं अनुभव कर रहा
हूँ... *सीख भी दी और समझ भी,
अनुभव कराये और दिये वरदान भी,
वाह
मेरे सतगुरू! कश्ती तेरे हाथों में है और है,
अब
पतवार भी...* अब मैं आत्मा पूरी तरह से अपनी कश्ती और पतवार बापदादा के हाथों
में सौपकर निश्चिन्त होकर बस मन्मनाभव होकर बढता जा रहा हूँ किनारों की ओर...
*आगे पीछे दायें बायें की सभी कश्तियाँ सब मेरे पीछे है... इन सबके प्रति भी
उपकार की गहरी भावना मन में लिए मैं बढता जा रहा हूँ मेरे सतगुरू की महिमा करता
और कराता हुआ*... इस भव सागर का किनारा कुछ ही दूर है... और दूसरी तरफ है मेरी
वो सतयुगी राजधानी...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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