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 03 / 01 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *ऐसी सच्ची याद का अब्यास किया जो अंत में बाप के सिवाए कोई भी याद न आये ?*

 

➢➢ *सतगुरु की निंदा तो नहीं कराई ?*

 

➢➢ *स्वयं को अवतरित हुआ अवतार समझ सदा ऊंची स्थिति में स्थित रहे ?*

 

➢➢ *स्व परिवर्तन का तीव्र पुरुषार्थ कर बाप की दुआएं प्राप्त की ?*

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         ❂ *योगी जीवन प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं*

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✧  जैसे एक सेकेण्ड में स्वीच आन और आफ किया जाता है, ऐसे ही एक सेकेण्ड में शरीर का आधार लिया और एक सेकेण्ड में शरीर से परे अशरीरी स्थिति में स्थित हो गये। *अभी-अभी शरीर में आये, अभी-अभी अशरीरी बन गये, आवश्यकता हुई तो शरीर रूपी वस्त्र धारण किया, आवश्यकता न हुई तो शरीर से अलग हो गये। यह प्रैक्टिस करनी है, इसी को ही कर्मातीत अवस्था कहा जाता है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ योगी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाकर योगी जीवन का अनुभव किया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं विश्व को सर्वशक्तियों की किरणें देने वाला मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ"*

 

✧  ब्राह्मणों का विशेष कर्तव्य है-ज्ञान सूर्य बन सारे विश्व को सर्वशक्तियों की किरणें देना - सभी विश्व-कल्याणकारी बन विश्व को सर्वशक्तियों की किरणें दे रहे हो? मास्टर ज्ञान सूर्य हो ना। तो सूर्य क्या करता है? *अपनी किरणों द्वारा विश्व को रोशन करता है तो आप सभी भी मास्टर ज्ञान सूर्य बन सर्वशक्तियों को किरणें विश्व में देते रहते हो।*

 

✧  सारे दिन में कितना समय इस सेवा में देते हो? *ब्राह्मण जीवन का विशेष कर्तव्य ही यह है। बाकी निमित्त मात्र। ब्राह्मण जीवन वा जन्म मिला ही है विश्व कल्याण के लिए।* तो सदा इसी कर्तव्य में बिजी रहते हो?

 

  जो इस कार्य में तत्पर होंगे, वह सदा निर्विग्न होंगे। *विघ्न तब आते हैं जब बुद्धि फ्री होती है। सदा बिजी रहो तो स्वयं भी निर्विग्न और सर्व के प्रति भी विघ्न विनाशक। विघ्न विनाशक के पास विघ्न कभी भी आ नहीं सकता।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *स्वयं को इस स्वमान में स्थित कर अव्यक्त बापदादा से ऊपर दिए गए महावाक्यों पर आधारित रूह रिहान की ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  ब्रह्माबाप ने भी रोज दरबार लगाई है। कॉपी है ना। इन्हों को बताना, दिखाना। ब्रह्मा बाप ने भी मेहनत की, रोज दरबार लगाई तब कर्मातीत बनें। तो अभी कितना टाइम चाहिए? या एवररेडी हो? इस अवस्था से सेवा भी फास्ट होगी। क्यों? *एक ही समय पर मन्सा शक्तिशाली, वाचा शक्तिशाली, संबंध-सम्पर्क में चाल और चेहरा शक्तिशाली।*

 

✧  *एक ही समय पर तीनों सेवा बहुत फास्ट रिजल्ट निकालेगी।* ऐसे नहीं समझो कि इस साधना में सेवा कम होगी, नहीं। सफलता सहज अनुभव होगी। और सभी जो भी सेवा के निमित हैं अगर संगठित रूप में ऐसी स्टेज बनाते हैं तो मेहनत कम और सफलता ज्यादा होगी। तो विशेष अटेन्शन कन्ट्रोलिंग पॉवर को बढ़ाओ। संकल्प, समय, संस्कार सब पर कन्ट्रोल हो।

 

✧  बहुत बार बापदादा ने कहा है - आप सब राजे हो। जब चाहे, जैसे चाहो, जहाँ चाहो, जितना समय चाहो ऐसा मन-बुद्धि लाँ और ऑर्डर मे हो। आप कहो नहीं करना है, और फिर भी हो रहा है, कर रहे हैं तो यह लाँ और ऑर्डर नहीं है। तो *स्वराज्य अधिकारी अपने राज्य को प्रत्यक्ष स्वरूप मे लाओ।* लाना है ना? ला भी रहे हैं लेकिन बापदादा ने कहा ना - *'सदा' शब्द एड करो।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बुद्धि का योग एक बाप से लगाना"*

 

_ ➳  मैं श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा भाग्य विधाता बाप की श्रेष्ठ संतान हूँ... भाग्य विधाता परमात्मा ने स्वयं अपने हाथों से श्रेष्ठ भाग्य लिखने की कलम मुझ आत्मा को दे दी है... मैं आत्मा एकांत में बैठ सिर्फ एक बाबा से योग लगाती हूँ... *हर कर्म, हर सेवा को बाबा की याद में करती, अपने दिल को एक बाबा को समर्पित कर, एक की लगन में मगन होकर मैं आत्मा उड़ चलती हूँ प्यारे बाबा के पास प्यारे वतन में...* एक बाबा की याद से अपने मस्तक पर श्रेष्ठ भाग्य की रेखा बनाने मीठे बाबा के सम्मुख बैठ जाती हूँ

 

   *एक बाबा से बुद्धियोग लगाकर सच्ची सच्ची रूहानी यात्रा करने की समझानी देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... दुनियावी कार्यो को करते हुए भी बुद्धियोग ईश्वर पिता की यादो में खोया रहे... प्यार की ऐसी मीठी लहर दिल में बनी रहे... *ईश्वर पिता के साथ के यह मीठे सुंदर पल दिल की गहराइयो में बसा लो...* और संगम पथ पर अथक पथिक बन यादो की यात्रा कर लो...

 

_ ➳  *बाबा को निरतंर निहारते हुए यादों के समन्दर में डूबकर मैं आत्मा कहती हूँ:-*  हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा मनुष्य से देवतुल्य के महा सौभाग्य को प्राप्त कर रही हूँ... *मेरी यादो में मीठा बाबा सदा प्राण बन समाया है...* ये ईश्वरीय मीठी यादे मुझ आत्मा को अथाह सुख प्राप्तियां देकर मालामाल कर रही हैं...

 

   *मेरी धरती-गगन, मेरा सारा संसार बन सुख सघन देते हुए मेरे मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *मीठे बाबा की मीठी यादो में जितना दिल को भिगोयेगें यह यादे उतने ज्यादा सुख सम्पन्नता और सच्चे प्रेम के महकते फूल जीवन में खिलाएंगी...* प्रेम में ऐसी वफादारी तो मनुष्य मात्र तो दे न सके... इसलिए मीठी ईश्वरीय यादो में अनन्त खुशियां पा लो...

 

 ➳ _ ➳  *प्यारे बाबा की छवि को अपने अंतर में उतारकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा धरती के मटमैले रिश्तो में सच्चे प्रेम की बून्द भी पा न सकी और प्यारा बाबा प्यार का सागर सा जीवन में छलक उठा... *ऐसे प्यारे बाबा को एक पल भी अब न बिसरूँ मै... रोम रोम से यादकर सच्चे प्रेम को जीती जा रही हूँ...”*

 

   *परमधाम से पधारकर सारे खजानों को मुझ पर लुटाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जिस भगवान के जनमो से मुरीद होकर... मात्र एक झलक पाने को जर्रे जर्रे में खोज रहे थे... आज सम्पूर्ण दौलत सहित सामने है... *ऐसे प्यारे बाबा को जी भर के प्यार करो... हर पल हर घड़ी सिर्फ और सिर्फ उसे ही याद करो...* दिल में बसाकर दिल का सच्चा श्रृंगार करो...

 

_ ➳  *देह दुनिया का भान खोकर एक बाबा को हर श्वांस में बसाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा ईश्वर पिता को प्यार करने वाली उसे अपने दिल में समाकर रुहरिहान करने वाली दिलरुबा बनी हूँ...* अब मेरा सारा प्यार मीठे बाबा के लिए है... साँस का हर कतरा मीठे बाबा की मधुर थाप से गूंज रहा है...

 

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अपनी मनमत पर नही चलना है*"

 

_ ➳  आबू की ऊँची पहाड़ी पर, अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ, प्रकृति के सुंदर नजारो का मैं आनन्द ले रही हूँ और प्यार के सागर बाबा के प्यार की किरणों रूपी बाहों के आगोश में समा कर बाबा के प्यार की गहराई को अनुभव कर, मन ही मन आनंदित हो रही हूँ। *जैसे एक माँ अपने बच्चे के ऊपर अपना सारा स्नेह उड़ेलती हुई बलिहार जाती है ऐसे अपने शिव पिता को भी माँ के रुप अनुभव करते, अपने ऊपर बरसने वाले उनके स्नेह में समाई ममता को मैं महसूस कर रही हूँ*। यह ममतामई स्नेह की अनुभूति मुझे देह से न्यारा

बना रही है।

 

_ ➳  देह से बिल्कुल अलग एक चमकता हुआ चैतन्य सितारा बन अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों के झूले में झूलता हुआ अब मैं स्वयं को देख रही हूँ। *ऐसा लग रहा है जैसे शिव माँ अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों के झूले में झुलाती हुई मीठी लोरी देकर मुझे सुला रही है*। और मैं धीेरे - धीरे नींद के आगोश में समाती जा रही हूँ। *अर्धनिद्रा की अवस्था मे स्वयं को अब मैं अपने लाइट माइट स्वरूप में एक नन्हे से छोटे से बच्चे के रूप में देख रही हूँ*।

 

_ ➳  बापदादा अपनी गोद मे मुझे बिठाकर बड़े प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए अपने हाथ से मुझे टोली खिला रहें हैं। *मेरे साथ मीठी मीठी रूह रिहान कर रहें हैं। मेरा हाथ थामे आबू की पहाड़ी की सैर करवा रहें हैं। मेरे साथ अलग - अलग तरह से खेल पाल कर रहें हैं*। बापदादा के कम्बाइंड स्वरूप में अपनी शिव माँ की शक्तियों की किरणों के आंचल में बैठ उनकी ममतामयी गोद का सुख और अपने ब्रह्मा बाप का लाड़ - प्यार पाकर मन ही मन अपने इस सर्वश्रेष्ठ भाग्य पर मैं गौरान्वित हो रहा हूँ।

 

_ ➳  अपने नन्हे बालक स्वरूप में बापदादा से माँ बाप दोनों की कम्बाइंड पालना का असीम सुख लेकर अपने बालक स्वरूप से अपने सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं बापदादा के साथ उनके अव्यक्त वतन की ओर जा रहा हूँ। *आबू की पहाड़ी से उड़कर सारे विश्व का भ्रमण करते हुए बापदादा के साथ मैं फ़रिश्ता अब साकार लोक को पार कर, उससे और ऊपर फ़रिशतो की अव्यक्त दुनिया मे प्रवेश करता हूँ* और फ़रिशतो की दुनिया के अति सुंदर नजारों का आनन्द लेते हुए जा कर प्यारे बापदादा के साथ बैठ जाता हूँ।

 

_ ➳  अपनी शक्तिशाली दृष्टि से मुझे भरपूर करके बाबा मुझे "बालक सो मालिक" का टाइटल देते हुए बालक सो मालिकपन के बैलेंस द्वारा हर कार्य मे सदा सफलता प्राप्त करने का वरदान देते हैं। *बाबा से विजय का तिलक लेते हुए मन ही मन अब मैं बाबा को वचन देता हूँ कि सदा बालक सो मालिकपन की स्मृति में रहते हुए बालक बन बाबा की उंगली थामे कदम - कदम पर बाबा की मत पर चलते हुए, बाबा से मिले सर्व खजानों, सर्व गुणों और सर्व शक्तियों को मालिक बन यूज़ करूँगा*। अपनी मनमत पर कभी नही चलूँगा।

 

_ ➳  बाबा को मन ही मन यह वचन दे कर, उसे पूरा करने के लिए अब मैं अपने सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ वापिस साकारी दुनिया में आ जाता हूँ और अपने साकारी तन में आ कर विराजमान हो जाता हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में रहते हुए अब मैं सदा बालक सो मालिकपन की स्मृति में रहते हुए हर कर्म कर रही हूँ। *बालक बन हाँजी का पाठ पक्का कर बाबा की शिक्षाओं को मान कर, मालिक बन उन्हें अपने जीवन मे धारण कर रही हूँ। अपनी मनमत पर कभी ना चलते हुए केवल एक बाबा की मत पर चलकर, अपने कर्मो को श्रेष्ठ बना कर अब मैं स्वयं के साथ -साथ अनेकों आत्माओं का भी कल्याण कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं स्वयं को अवतरित हुआ अवतार समझ सदा ऊंची स्थिति में रहने वाला अर्श निवासी फरिश्ता हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं स्व परिवर्तन की तीव्र पुरुषार्थी बन बाप की दुआओं की मुबारक को पाने वाली भाग्यवान आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  याद की स्टेज में कई बच्चों का लक्ष्य भी अच्छा हैपुरुषार्थ भी अच्छा हैफिर जमा का खाता जितना होना चाहिए उतना कम क्योंबातेंरूह-रूहान चलते-चलते यही रिजल्ट निकली कि *योग का अभ्यास तो कर ही रहे हैं लेकिन योग के स्टेज की परसेन्टेज साधारण होने कारण जमा का खाता साधारण ही है*। *योग का लक्ष्य अच्छी तरह से है लेकिन योग की रिजल्ट है - योगयुक्त, युक्तियुक्त बोल और चलन। उसमें कमी होने के कारण योग लगाने के समय योग में अच्छे हैंलेकिन योगी अर्थात् योगी का जीवन में प्रभाव। इसलिए जमा का खाता कोई कोई समय का जमा होता हैलेकिन सारा समय जमा नहीं होता। चलते-चलते याद की परसेन्टेज साधारण हो जाती है। उसमें बहुत कम जमा खाता बनता है।*  

 

✺   *ड्रिल :-  "योग द्वारा जमा का खाता बढ़ाने का अनुभव"*

 

 _ ➳  देह रूपी घट में पारस मणि मैं आत्मा... इस देह को अपने प्रकाश से आलोकित करती हुई... मस्तिष्क में फैलता ये गहरा लाल प्रकाश... सम्पूर्ण देह में फैलता हुआ... वापस फिर से मस्तिष्क के मध्य भृकुटी में एकत्र हो रहा है... *प्रकाश का एक विशाल घेरा बनता जा रहा है मेरे मस्तिष्क के चारों ओर... शरीर जैसे कही लुप्त हो गया है... अब शेष है केवल रूहानी प्रकाश का एक विशाल बिन्दु*... मै देख रहा हूँ इस बिन्दु को श्वेत प्रकाश के शरीर में बदलते हुए... ये मेरा फरिश्ता स्वरूप... *कुछ क्षण के लिए स्थिर होकर मैं देख रहा हूँ... अपनी देह को, आस- पास के वातावरण को, जो योग की ऊर्जा से भरपूर है*...

 

 _ ➳  मैं आत्म फरिश्ता स्वरूप में उडकर पहुँच गया हूँ सूक्ष्म वतन में... *एक विशाल श्वेत पारदर्शी आवरण... स्वर्ण अक्षरों से जिस पर लिखा है, जमा खाता* थोडा और आगे चलता हूँ... *सूक्ष्म वतन में देख रहा हूँ जगमगाते रत्नो की अनेक बडी-बड़ी पहाडियाँ*... कोई एक दूसरे से आकार में बडी तो कोई चमक में ज्यादा... कुछ देर तक एकटक देखता हुआ मैं समझ गया हूँ इनके पीछे के रहस्य को... हर एक पहाडी पर प्रकाश की लडियों से कोई नाम लिखा है... ये पहाडियाँ लगातार अपना आकार बदल रही है...छोटी से बडी और बडी से छोटी... मैं ढूँढ रहा हूँ अपने नाम की कोई पहाडी... जैसे जैसे समय बीत रहा है... मै अपना नाम न पाकर अधीर हो रहा हूँमेरी बैचेनी बढती जा रही है...

 

 _ ➳  कुछ और आगे जाकर मै देख रहा हूँ, *योग की गहरी अनुभूतियों में खोये कुछ फरिश्ते... और इन फरिश्तों की सेवा में मगन मेरा ही दूसरा फरिश्ता रूप*... हर एक को जमा का खाता बढाने का तरीका बताता हुआ... *युक्ति युक्त बोल और कर्म से सेवा करता हुआ... योगी जीवन के उतार चढाव के सशंयो से ग्रस्त, कुछ दूसरें नवल फरिश्तों की शंकाओं का समाधान करता हुआ*... और मैं, सोच में पड गया हूँ कुछ पल के लिए, अपने इस सम्पूर्ण स्वरूप को देखकर... जमाखाता कितना हुआ इस बात से भी अनासक्त... बस, हर पल सबको आगे बढाने का प्रयास करता, मेरा सम्पूर्ण स्वरूप ही वास्तव में योग द्वारा अपना जमाखाता बढा रहा है...

 

 _ ➳  *मै तुलना कर रहा हूँ अपने योगी जीवन से उस योगी जीवन की... मैं जमा खाता तलाश रहा हूँ... अधीर हो गया हूँ... मगर वहाँ न कोई उतावला पन है,न आसक्ति है*... अनासक्त कर्म और बोल... यही है, योगयुक्त जीवन... *तभी आँखों के सामने जगमगाती भव्य रत्नों की बिना नाम की पहाडी*और उस पर मुस्कुरातें बापदादा... *मानों मेरा आह्वान कर रहे है उस पर अपना नाम लिखने के लिए*... मन में दृढ सकंल्प के साथ साथ बहुत से वादे स्वयं से करता हुआ मैं बिन्दु बन उड चला हूँ परमधाम की ओर...

 

 _ ➳  *परमधाम में मैं आत्मा बस एक ही संकल्प के साथ... मेरे एक तरफ बिन्दु रूप में ब्रह्मा बाबा और मम्मा... और ऊपर शिव ज्योति... सम्पूर्ण योगी जीवन का वरदान पाते हुए मै... देर तक वरदानों की शक्ति को स्वयं में समायें हुए... मैं लौट आया हूँ अपनी देह में... अपने सम्पूर्ण स्वरूप की गहरी अनुभूति मन में लिए*... युक्ति युक्त कर्म और बोल से... *बिना नाम की उस भव्य, विशाल और जगमगाती पहाडी पर अपना नाम बापदादा द्वारा लिखवाने का लक्ष्य मन में समायें*... जिसे मैं अभी सूक्ष्म वतन में देखकर आया हूँ... जो मेरे जमा खाते की प्रतीक है...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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