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❍ 02 / 02 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अपनी निंदा सुनकर गुस्से में तो नहीं आये ?*
➢➢ *नींद को जीतने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *शांति के अवतार बन विश्व में शांति की किरणें फैलाई ?*
➢➢ *स्वयं पर व्यक्तिगत अटेंशन दे अंतर्मुखी बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे कोई शरीर में भारी है, बोझ है तो अपने शरीर को सहज जैसे चाहे वैसे मोल्ड नहीं कर सकोगें। ऐसे ही *अगर मोटी-बुद्धि है अर्थात् किसी न किसी प्रकार का व्यर्थ बोझ वा व्यर्थ किचड़ा बुद्धि में भरा हुआ है, कोई न कोई अशुद्धि है तो ऐसी बुद्धि वाला जिस समय चाहे, वैसे बुद्धि को मोल्ड नहीं कर सकेगा* इसलिए बहुत स्वच्छ, महीन अर्थात् अति सूक्ष्म-बुद्धि, दिव्य बुद्धि, बेहद की बुद्धि, विशाल बुद्धि चाहिए। ऐसी बुद्धि वाले ही सर्व सम्बन्ध का अनुभव जिस समय, जैसा सम्बन्ध वैसे स्वयं के स्वरूप का अनुभव कर सकोगें।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं एक बाप दूसरा न कोई ऐसी स्मृति में रहने वाला 'महावीर' हूँ"*
〰✧ सदा अपने को महावीर समझते हो? *महावीर की विशेषता - एक राम के सिवाए और कोई याद नहीं! तो सदा एक बाप दूसरा न कोई ऐसी स्मृति में रहने वाले 'सदा महावीर'। सदा विजय का तिलक लगा हुआ हो।*
〰✧ जब एक बाप दूसरा न कोई तो अविनाशी तिलक रहेगा। संसार ही बाप बन गया। *संसार में व्यक्ति और वस्तु ही होती, तो सर्व सम्बन्ध बाप से तो व्यक्ति आ गये और वस्तु, वह भी सर्व प्राप्ति बाप से हो गई।*
〰✧ *सुख-शान्ति-ज्ञान-आनन्द-प्रेम.. सर्व प्राप्तियॉं हो गई। जब कुछ रहा ही नहीं तो बुद्धि और कहाँ जायेगी, कैसे? अच्छा-*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ डबल फारेनर्स को एक सेकण्ड में कोई भी व्यर्थ बात, कोई भी निगेटिव बात, कोई भी बीती बात, उसको मन से बिन्दी लगाना आता है? डबल फारेनर्स जो समझते हैं कि कैसी भी बीती हुई बात, अच्छी बात तो भूलनी है ही नहीं, भूलनी तो व्यर्थ बातें ही होती हैं। तो *कोई भी बात जिसको भूलने चाहते हैं, उसको सेकण्ड में बिन्दी लगा सकते हैं?*
〰✧ जो फारेनर्स लगा सकते हैं, वह सीधा, लम्बा हाथ उठाओ। मुबारक हो। अच्छा, *जो समझते हैं कि एक सेकण्ड में नहीं एक घण्टा तो लगेगा ही? सेकण्ड तो बहुत थोडा है ना! एक घण्टे के बाद बिन्दी लग सकती है, वह हाथ उठाओ। जो घण्टे में बिन्दी लगा सकते हैं, वह हाथ उठाओ।*
〰✧ देखा, फारेनर्स तो बहुत अच्छे हैं। भारतवासी भी जो समझते हैं एक घण्टे में नहीं आधे दिन में बिन्दी लग सकती है, वह हाथ उठाओ। (कोई ने हाथ नहीं उठाया) हैं तो सही, बापदादा को पता है। बापदादा तो देखता रहता है, हाथ नहीं उठाते, लेकिन लगता है। लेकिन *समझो आधा दिन लगे, एक घण्टा लगे और आपको एडवांस पार्टी का निमन्त्रण आ जाए तो? तो क्या रिजल्ट होगी?*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ अगर आवाज से परे निराकार रूप में स्थित हो फिर साकार में आयेंगे, तो फिर औरों को भी उस अवस्था में ला सकेंगे। *एक सेकण्ड में निराकार एक सेकण्ड में साकार - ऐसी ड़िल सीखनी है। अभी-अभी साकारी। जब ऐसी अवस्था हो जायेगी तब साकार रूप में हर एक को निराकार रूप का आप से साक्षात्कार हो।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- देह सहित सबसे पूरा बेगर बन शिवपुरी और विष्णुपुरी को याद करना"*
➳ _ ➳ आज दिन तक इस देह... देह की दुनिया... देह के संबंधों, पदार्थों को ही वास्तविक समझ रही थी... मगर आज सच्चाई से रूबरू हुई हूं... की *वास्तव में ये घर... ये दुनिया... अपनी नही... एक मुसाफिर खाना हैं... और मैं आत्मा मुसाफ़िर...* अपने 84 जन्मों की मुसाफिरी करते करते... इस कब्रिस्तान में अब मुझ आत्मा का ये अंतिम जन्म हैं... *मैं हीरो पार्टधारी... इस वर्ल्ड ड्रामा में अपना पार्ट निभा रही हूं... अब मुझ आत्मा के वास्तविक पिता आये हैं... मुझे वापिस घर ले जाने... अपने वास्तविक घर... शिवपुरी में...* इसी चिंतन में खोई मैं आत्मा एक अलौकिक दुनिया मे खो जाती हूं...
❉ *मीठे बाबा मुझ आत्मा का सच्चा सच्चा ज्ञान श्रृंगार करते हुए कहते हैं:- "मेरे फूल बच्चे... देखो अपने आस पास... ये देह का भान... देह के संबंध... ये विकारी दुनिया... ये सब विनाशी हैं... झूठ हैं... अब इसमें बुद्धि को न फसा अपने असली घर परमधाम को याद करो...* अब मैं आया ही हूं तुम्हें वापिस ले जाने... ज्ञान योग सिखाने..."
➳ _ ➳ *मीठे बाबा की आंखों में देखते हुये, प्रेम लहरों में खोई हुई मैं आत्मा कहती हूं:- "हां मेरे मीठे बाबा... बहुत समय हुआ खुद को भूले... अपने घर से बिछुड़े... आप से बिछुड़े... बाबा पूरे 5000 वर्ष... अब देर नही बाबा...* चलो अब चलते हैं अपनी निराकारी दुनिया मे... जहाँ सच्ची सच्ची शांति का वास हैं..."
❉ *मीठे बाबा प्यार से पुचकारते हुये बाहों में भरते हुये बोले:-* "हाँ मेरी बच्ची बहुत दुःख देख लिए... ये दुनिया... ये देह... ये देह के संबंध है ही दुखदाई... बस अब और नही... *अब इसे भूल अपने घर को शिवपुरी को याद करो... उस सुखदाई दुनिया को याद करो जहां का भविष्य... गद्दी... स्वर्ण जड़ित ताज तुम्हारा इंतजार कर रहा है..."*
➳ _ ➳ *प्रेम विभोर हुई मैं आत्मा बाबा के हाथों को अपने हाथों में लेते हुए एक टक निहारते हुए कहती हूं:- "बाबा मुझे अब स्मृति आ गई है उस सुखदाई दुनिया की... जहां अपना राज्य था... प्रकृति भी सतोप्रधान थी... सब रिश्ते... देह... पशु-पक्षी सब सुखदाई थे...* हां बाबा हां मैं वही कल्प पहले वाली स्वर्णीय सुख भोगने वाली आत्मा हूं..."
❉ *मीठे बाबा प्यार भरा हाथ मेरे सिर पर फेरते हुए मीठी समझानी देते हुए कहते हैं:-* "मीठी बच्ची मुझे खुशी है तुम्हें सब याद आ गया... मगर खबरदार... माया बड़ी प्रबल है... इसके आकर्षण से बच कर रहना... *याद रहे निरंतर याद से ही अंत मति सो गति निश्चित है... इसलिए अब बहुत काल के अभ्यास द्वारा सिर्फ और सिर्फ शिवपुरी और विष्णुपुरी को ही याद करो..."*
➳ _ ➳ *बेफिक्र बादशाह के नशे में चूर मैं आत्मा प्यारी सी मुस्कान दिए बाबा से कहती हूं:- "हां मेरे बाबा उस्ताद बाप साथ है तो मैं आत्मा हार खा नहीं सकती...* अब तो बस तुम ही मेरा संसार हो... यह देह... देह की दुनिया... सर्व आकर्षण मुझसे भूले हुए हैं... *अब तो बाबा दिल यही गीत गा रहा है अब घर जाना है अब घर जाना है..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- नींद को जीतने वाला बनना है*"
➳ _ ➳ जिस विश्वास, प्यार और त्याग की तलाश देह और देह के सम्बन्धो में मैं कर रही थी वो विश्वास, प्यार और त्याग मुझे कभी कोई देहधारी दे ही नही सकता इस बात का एहसास मुझे मेरे साथी दोस्त शिव भगवान ने आकर करवा दिया। *और अब जबकि इतनी तलाश के बाद, इतना भटकने के बाद मेरी आँखों के सामने मेरा वो भगवान खुद चल कर मेरे सामने आ गया है तो मेरी पलकें एक सेकंड के लिए भी कैसे झपक सकती है! मुझे नींद कैसे आ सकती है*! जिन नयनों में अपने सांवरे सलौने श्याम की सूरत बसी हो वो नयन उसे देखे बिना कैसे रह सकते हैं!
➳ _ ➳ मन ही मन स्वयं से बातें करती मैं अपने नयनों में अपने निराकार भगवान बिंदु बाप को बसाये उनके पास जाने के लिए अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होती हूँ। *अपने मन बुध्दि को हर संकल्प, विकल्प से मुक्त कर अपना सम्पूर्ण ध्यान मैं जैसे ही अपने स्वरूप पर एकाग्र करती हूँ। देह के भान से मैं मुक्त होकर पॉइंट ऑफ लाइट बन बड़ी आसानी से अपने शरीर रूपी रथ को छोड़ उससे बाहर आ जाती हूँ*। देह से बाहर निकलते ही देह के हर बन्धन से मुक्त एक अति सुखद, एक दम हल्केपन का अनुभव मुझे आनन्द विभोर कर देता है। ऐसा आनन्द, ऐसा हल्कापन तो मैंने आज तक महसूस नही किया था। *यह हल्कापन मन को असीम सुकून दे रहा है और मुझे इस नश्वर देह की दुनिया के हर लगाव से मुक्त कर ऊपर की ओर ले जा रहा है*।
➳ _ ➳ स्वयं को मैं धरती के हर आकर्षण से मुक्त अनुभव कर रही हूँ और एक बैलून की भांति एकदम हल्की होकर ऊपर की ओर उड़ती जा रही हूँ। *प्रकृति के खूबसूरत नजारो का मैं आनन्द लेती इस अति मनभावन सुखदाई आंतरिक यात्रा पर निरन्तर बढ़ते हुए मैं आकाश को भी पार कर जाती हूँ। उससे और आगे की यात्रा पर निरन्तर बढ़ते हुए अब मैं सफेद प्रकाश की दुनिया को पार कर एक ऐसी दुनिया में प्रवेश करती हूँ जहां चारों और एक गहन शांतमयी लाल सुनहरी प्रकाश ही प्रकाश फैला हुआ है*। शांति की यह दुनिया वही ब्रह्म तत्व है जिसमे समा जाने का लक्ष्य रख साधू महात्माये कठोर तपस्या करते हैं लेकिन इस स्थान तक कभी नही पहुँच पाते।
➳ _ ➳ ऐसे निर्वाणधाम अपने ब्रह्म तत्व घर में अब मैं गहन शांति की अनुभूति करते हुए इस अंतहीन ब्रह्मांड में बिल्कुल उन्मुक्त अवस्था में विचरण कर भरपूर आनन्द का अनुभव कर रही हूँ। *जिस भगवान का पता सारी दुनिया का कोई भी मनुष्य मात्र नही जानता अपने उस निराकारी भगवान बाप के साथ उसकी निराकारी दुनिया में मैं स्वयं को उसके सम्मुख देख रही हूँ*। उसकी सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे मुझे ऐसा आभास करवा रही हैं जैसे अपनी किरणो रूपी बाहों को फैलाये वो मुझे अपनी बाहों में भर कर अपने असीम प्यार से मुझे तृप्त करने के लिए मुझे अपने पास बुला रहा है।
➳ _ ➳ अपने पिता परमात्मा से पूरे एक कल्प की बिछड़ी मैं प्यासी आत्मा स्वयं को तृप्त करने के लिए अपने पिता के पास पहुँचती हूँ और जा कर उनकी किरणों रूपी बाहों में समा जाती हूँ। *अपनी किरणों रूपी बाहों के झूले में मुझे झुलाते अपना सारा प्यार मेरे मीठे बाबा मुझ पर उड़ेल कर मेरी जन्म - जन्म की प्यास बुझा रहें हैं*। देह भान में आने से मेरे सर्व गुण, सर्वशक्तियाँ जिन्हें मैं भूल गई थी उन गुणों, उन शक्तियों को बाबा अपने गुणों औए सर्वशक्तियों की अनन्त धाराओं के रूप में मुझ पर बरसाते हुए उन्हें पुनः जागृत कर रहे हैं।
➳ _ ➳ अपने बाबा की सर्वशक्तियों की अनन्त किरणों को मैं जैसे - जैसे अपने ऊपर अनुभव कर रही हूँ मुझे मेरी सोई हुई शक्तियाँ जागृत होती हुई स्पष्ट अनुभव हो रही हैं जो मुझे बहुत ही शक्तिशाली स्थिति का अनुभव करवा रही हैं। *अपने निराकार भगवान बाप के साथ अपने निराकारी घर में मिलन मनाने का सुखद एहसास अपने साथ लेकर, सर्वगुण और सर्वशक्तिसम्पन्न बनकर मैं वापिस कर्म करने के लिए अपनी कर्मभूमि पर लौटती हूँ*।अपने साकार शरीर रूपी रथ पर बैठ हर कर्म करते, अपने निराकार भगवान बाप के अति सुन्दर स्वरूप को अपने नयनों में बसाये, मैं उनके सुन्दर सलौने स्वरूप का रसपान हर समय करती रहती हूँ।
➳ _ ➳ मेरे मन बुध्दि रूपी नयन हर समय अपने भगवान बाप के अति सुंदर मनमोहक निराकार स्वरूप को देखने के लिए व्याकुल रहते हैं *इसलिए निद्रा का त्याग कर, निद्रा जीत बन मैं मन बुद्धि की रूहानी यात्रा करते, मन बुद्धि के नेत्रों से अपने शिव पिता का दीदार करती रहती हूँ और उनके साथ सदा अतीन्द्रीय सुख के झूले में झूलती रहती हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं शांति का अवतार बन विश्व मे शान्ति की किरणें फैलाने वाली शान्ति देवा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं स्वयं पर व्यक्तिगत अटेंशन रखते हुए अंतर्मुखी बनकर फिर बाह्यमुखता में आने वाली आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ (बापदादा ने बहुत पावरफुल ड्रिल कराई) अच्छा - यही अभ्यास हर समय बीच-बीच में करना चाहिए। *अभी-अभी कार्य में आये, अभी-अभी कार्य से न्यारे, साकारी सो निराकारी स्थिति में स्थित हो जाएं।* ऐसे ही यह भी अनुभव देखा, *कोई समस्या भी आती है तो ऐसे ही एक सेकण्ड में साक्षीदृष्टा बन, समस्या को एक साइडसीन समझ, तूफान को तोहफा समझ उसको पार करो।* अभ्यास है ना? आगे चलकर तो ऐसे अभ्यास की बहुत आवश्यकता पड़ेगी। फुल स्टाप। क्वेश्चन मार्क नहीं, यह क्यों हुआ, यह कैसे हुआ? हो गया। *फुलस्टाप और अपने फुल शक्तिशाली स्टेज पर स्थित हो जाओ। समस्या नीचे रह जायेगी, आप ऊँची स्टेज से समस्या को साइडसीन देखते रहेंगे।* अच्छा।
✺ *ड्रिल :- "समस्या को साइड-सीन समझ पार करने का अनुभव करना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा फरिश्ता स्वरुप की प्रकाशमय काया में हूँ... मेरे सामने मीठे बापदादा खड़े हैं... जिन्हें देखकर मैं फरिश्ता अति आनंदित हो रहा हूँ... मीठे बापदादा मुझे सर्व शक्तियों और गुणों से श्रृंगार रहे हैं...* अपने बापदादा के साथ के ये पल कितने सुंदर हैं... कितने सुहाने हैं... बापदादा मेरा हाथ पकड़ मुझे सैर के लिए ले जाते हैं... मैं आत्मा रूहानी नशे और ख़ुमारी में मगन हो... प्यारे बापदादा के साथ चल रही हूँ...
➳ _ ➳ *बापदादा मुझे प्रकृति के भिन्न-भिन्न सीन दिखा रहे हैं...* मुझे कभी लहलहाते खेतों में ले जाते हैं... कभी सुरम्य वादियों में... जहां की हरियाली मन को आनंदित कर रही है... बाबा कभी मुझे नदी, झील, झरनों के किनारे ले जाते हैं... जहां का कल कल करता जल समूचे वातावरण में... मधुर ध्वनि घोल रहा है... चारों और शीतलता फैला रहा है... पक्षियों का कलरव कानों में मधुरस बरसा रहा है... कभी बापदादा मुझे दुर्गम रास्तों पर, दुर्गम पहाड़ियों पर ले जाते हैं... जहां कुछ कदम चलना ही जोखिम भरा है... कभी बाबा मुझे रेगिस्तान में चिलचिलाती धूप का, कभी अतिवृष्टि, तो कभी अनावृष्टि का सीन दिखाते हैं... *ये विभिन्न सीन सीनरियाँ दिखाते हुए मानो बाबा कह रहे हैं कि... यह विविधता ही प्रकृति का सौंदर्य है... हमें हर सीन का आनंद लेना है...*
➳ _ ➳ बाबा से मिली इस टचिंग पर मैं आत्मा गहराई से चिंतन कर रही हूँ... बाबा अब मुझे रूहानी ड्रिल करा रहे हैं... मैं निराकारी स्थिति में स्थित हूँ... मैं प्रकाश की मणि हूँ... ज्योतिबिंदु आत्मा हूँ... अपने बिंदी बाबा से सर्व शक्तियां स्वयं में समाती जा रही हूँ... *मैं प्रकाशमय आत्मा अपने स्थूल शरीर में प्रवेश करती हूँ... मैं सब प्रकार के कर्मबन्धनों से, कर्मों के प्रभाव से मुक्त हूँ...* मैं देह से न्यारी निराकार आत्मा हूँ... मैं आत्मा निमित्त मात्र ट्रस्टी बनकर हर कर्म कर रही हूँ... देह, कर्म का बंधन मुझे बांध नहीं सकता... मैं सर्व बंधनों से मुक्त न्यारी और प्रभु प्यारी आत्मा हूँ... *मैं आत्मा सेकेंड में देह से न्यारे होने का अभ्यास कर रही हूँ... कर्म में आना और सेकंड में अशरीरी बनना... मुझ आत्मा के लिए सहज बनता जा रहा है...*
➳ _ ➳ मैं साक्षी होकर हर परिस्थिति को देख रही हूँ... जीवन में सुखदाई पल भी आते हैं... तो चैलेंजिंग घड़ियाँ भी आती हैं... *हर परिस्थिति में मैं आत्मा स्वयं को डिटैच देख रही हूँ... मैं आत्मा हर पल का आनंद ले रही हूँ...* जैसे ट्रेन, बस में यात्रा करते हैं उसमें हर सीन का हम आनंद लेते हैं क्योंकि हमें पता होता है कि यह साइड सीन हैं... ये आने ही हैं... इन्हें हम बदल नहीं सकते... ठीक इसी प्रकार *मैं आत्मा जीवन में आने वाली हर परिस्थिति को साक्षी होकर देख रही हूँ...*
➳ _ ➳ जीवन यात्रा में आने वाला हर विघ्न, समस्या मुझ शक्तिशाली आत्मा के लिए एक तोहफा बन रही है... जो मुझे आगे बढ़ाने की, सफलता और संपूर्णता की ओर ले जाने की सीढ़ी बन गई है... *मैं सेकंड में बिंदी रूप में स्थित हो रही हूँ... क्यों, क्या के प्रश्नों से मुक्त होकर मैं प्रसन्नचित आत्मा बन रही हूँ...* मैं व्यर्थ बातों से मुक्त होती जा रही हूँ... मैं कल्याणकारी आत्मा, कल्याणकारी बाबा और कल्याणकारी ड्रामा की स्मृति से व्यर्थ को सेकंड में फुलस्टॉप लगा रही हूँ... बातों को जल्दी जल्दी खत्म कर रही हूँ... *फुलस्टॉप लगाने और अपने शक्तिशाली फरिश्ता स्टेज की ऊंची स्थिति में... स्थित होने के कारण बातें नीचे ही रह जाती हैं... और बातों का प्रभाव मुझ पर नहीं हो रहा है...* मैं बातों को साइडसीन मानकर उन्हें सहजता से क्रॉस कर रही हूँ... जीवन के हर पल का मीठे बाबा के साथ से आनंद ले रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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