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❍ 29 / 11 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *शिव शक्ति बन विश्व कल्याण किया ?*
➢➢ *शमा पर फ़िदा होने वाला परवाना बनकर रहे ?*
➢➢ *सदा अपने को सारथि और साक्षी समझ देह भान से न्यारे रहे ?*
➢➢ *"अटेंशन और अभ्यास" - इसे अपना निजी संस्कार बनाया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *फरिश्ता वा अव्यक्त जीवन की विशेषता है - इच्छा मात्रम् अविद्या।* देवताई जीवन में तो इच्छा की बात ही नहीं। *जब ब्राह्मण कर्मातीत स्थिति को प्राप्त हो जाते हैं तब किसी भी शुद्ध कर्म, व्यर्थ कर्म, विकर्म वा पिछला कर्म, किसी भी कर्म के बन्धन में नहीं बंध सकते।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को स्वराज्य अधिकारी समझते हो? स्व का राज्य मिला है या मिलने वाला है? *स्वराज्य अर्थात् जब चाहो, जैसे चाहो वैसे कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म करा सको। कर्मेन्द्रिय-जीत अर्थात् स्वराज्य अधिकारी।* ऐसे अधिकारी बने हो या कभी-कभी कर्मेन्द्रियां आपको चलाती हैं? कभी मन आपको चलाता है या आप मन को चलाते हो? कभी मन व्यर्थ संकल्प करता है या नहीं करता है? अगर कभी-कभी करता है तो उस समय स्वराज्य अधिकारी कहेंगे? राज्य बहुत बड़ी सत्ता है। राज्य सत्ता चाहे जो कर सकती है, जैसे चलाने चाहे वैसे चला सकती है।
〰✧ यह मन-बुद्धि-संस्कार आत्मा की शक्तियाँ हैं। आत्मा इन तीनों की मालिक है। यदि कभी संस्कार अपने तरफ खींच लें तो मालिक कहेंगे? तो स्वराज्य-सत्ता अर्थात् कर्मेन्द्रिय-जीत। जो कर्मेन्द्रिय-जीत है वही विश्व की राज्य-सत्ता प्राप्त कर सकता है। *स्वराज्य अधिकारी विश्व-राज्य अधिकारी बनता है। तो आप ब्राह्मण आत्माओंका ही स्लोगन है कि 'स्वराज्य ब्रह्मण जीवन का जन्म-सिद्ध अधिकार है।' स्वराज्य अधिकारी की स्थिति सदा मास्टर सर्वशक्तिवान है, कोई भी शक्ति की कमी नहीं।* स्वराज्य अधिकारी सदा धर्म अर्थात् धारणामूर्त भी होगा और राज्य अर्थात् शक्तिशाली भी होगा। अभी राज्य में हलचल क्यों है? क्योंकि धर्म-सत्ता अलग हो गई है और राज्य-सत्ता अलग हो गई है। तो लंगड़ा हो गया ना! एक सत्ता हुई ना। इसलिए हलचल है। ऐसे आप में भी अगर धर्म और राज्य - दोनों सत्ता नहीं हैं तो विघ्न आयेंगे, हलचल में लायेंगे, युद्ध करनी पड़ेगी। और दोनों ही सत्ता हैं तो सदा ही बेपरवाह बादशाह रहेंगे, कोई विघ्न आ नहीं सकता। तो ऐसे बेपरवाह बादशाह बने हो? या थोड़ी-थोड़ी शरीर की, सम्बन्ध की .... परवाह रहती है?
〰✧ पांडवों को कमाने की परवाह रहती है। परिवार को चलाने की परवाह रहती है या बेपरवाह रहते हैं? *चलाने वाला चला रहा है, कराने वाला करा रहा है - ऐसे निमित्त बन कर करने वाले बेपरवाह बादशाह होते हैं। 'मैं कर रहा हूँ' - यह भान आया तो बेपरवाह नहीं रह सकते। लेकिन 'बाप द्वारा निमित्त बना हुआ हूँ' - यह स्मृति रहे तो बेफिकर वा निश्चिंत जीवन अनुभव करेंगे। कोई चिंता नहीं। कल क्या होगा - उसकी भी चिंता नहीं।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *सेकण्ड में एवररेडी बन सकते हो?* सेकण्ड में अशरीरी बन सकते हो? कि युद्ध करनी पडेगी कि नहीं, मैं शरीर नहीं हूँ, मैं शरीर नहीं हूँ ऐसे तो नहीं ना! *सोचा और हुआ।* सोचना और स्थित होना (बापदादा ने कुछ मिनटों तक ड्रिल कराई) अच्छा लगता है ना! तो सारे दिन में वीच-बीच में ये अभ्यास करो। कितने भी विजी हो लेकिन बीच-बीच में एक सेकण्ड भी अशरीरी होने का अभ्यास करो। इसके लिए कोई नहीं कह सकता - मैं बिजी हूँ।
〰✧ *एक सेकण्ड निकालना ही है, अभ्यास करना ही है।* अगर किसी से वातें भी कर रहे हो, किसके साथ कार्य कर रहे हो, तो उन्हों को भी एक सेकण्ड ये ड्रिल कराओ, क्योंकि समय प्रमाण ये अशरीरी-पन का अनुभव, यह अभ्यास जिसको ज्यादा होगा वो नम्वर आगे ले लेगा। क्योंकि सुनाया कि समय समाप्त अचानक होना है। *अशरीरी होने का अभ्यास होगा तो फौरन ही समय की समाप्ति का वायब्रेशन आयेगा।*
〰✧ इसलिए *अभी से अभ्यास वढाओ। ऐसे नहीं, अगले साल में डायमण्ड जुवली है तो अब नहीं करना है, पीछे करना है।* जितना बहुतकाल एड करेंगे उतना राज्य-भाग्य के प्राप्ति में भी नम्बर आगे लेंगे। *अगर बीच-बीच में यह अभ्यास करेंगे तो स्वत: ही शक्तिशाली स्थिति सहज अनुभव करेंगे।* ये छोटी-छोटी बातों में जो पुरुषार्थ करना पडता है वो सब सहज समाप्त हो जायेगा।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *जैसे बाप के लिए कहा हुआ है कि वह जो है वैसा ही उनको जानने वाला सर्व प्राप्तियाँ कर सकता हैं वैसे ही स्वयं को जानने के लिए भी जो हूँ, जैसा हूँ, ऐसा ही जान कर और मान कर सारा दिन चलते-फिरते हो?* क्योंकि जैसे बाप को सर्व स्वरूपों से वा सर्व सम्बन्धों से जानना आवश्यक है ऐसे ही बाप द्वारा स्वयं को भी ऐसा जानना आवश्यक है। *जानना अर्थात् मानना। मैं जो हूँ, जैसा हूँ- ऐसे मान कर चलेंगे तो क्या स्थिति होगी ? देह में विदेही, व्यक्त में होते अव्यक्त, चलते-फिरते फ़रिश्ता वा कर्म करते हुए कर्मातीत।* क्योंकि जब स्वयं को अच्छी तरह से जान और मान लेते हैं तो जो स्वयं को जानता है उस द्वारा कोई भी संयम अर्थात् नियम नीचे ऊपर नहीं हो सकता। संयम को जानना अर्थात् संयम में चलना। *स्वयं को मान कर के चलने वाले से स्वत: ही संयम साथ-साथ रहता है। उनको सोचना नहीं पड़ता कि यह संयम है वा नहीं, लेकिन स्वयं की स्थिति में स्थित होने वाला जो कर्म करता है, जो बोलता है, जो संकल्प करता है वही संयम बन जाता है।* जैसे साकार में स्वयं की स्मृति में रहने से जो कर्म किया वही ब्राह्मण परिवार का संयम हो गया ना? यह संयम कैसे बने? *ब्रह्मा द्वारा जो कुछ चला वही ब्राह्मण परिवार के लिए संयम बना। तो स्वयं की स्मृति में रहने से हर कर्म संयम बन ही जाता है और साथ-साथ समय की पहचान भी उनके समाने सदैव स्पष्ट रहती है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप ज्ञान रूपी मक्खन देकर विश्व का मालिक बना देते हैं"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा मधुबन बाबा की कुटिया में बैठे बाबा को निहारती हुई सोचती हूँ... जिस भगवान् को पाने के लिए मैं ना जाने कहाँ-कहाँ भटक रही थी... भक्ति के कितने आडम्बरों में फसी थी... आज वो मेरे सम्मुख बैठा है... *मैं भगवान को ढूँढ रही थी... और भगवान् ने स्वयं मुझे ढूंढकर अपना वारिस बना लिया... अपनी सारी प्रॉपर्टी का हकदार बना दिया... मुझे मेरी भक्ति का फल ज्ञान देकर मेरे भाग्य का पिटारा खोल दिया...*
❉ *देवी-देवता कुल की स्मृति दिलाकर पुजारी से पूज्य बनाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... अभी कल ही की तो बात है मीठे सुखो में खेलपाल करते देवता तुम्ही तो थे... उन सुखद स्मृतियों को पुनः ताजा करो... *ईश्वर पिता आये है पुजारी से फिर से वही खुबसूरत देवता सजाने... तो विश्व पिता के सच्चे प्यार में अपने सुनहरे भाग्य की मीठी याद में झूम जाओ...”*
➳ _ ➳ *मन दर्पण में स्वयं के मीठे स्वरुप को गुण, शक्तियों से सजाती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार में देवताओ सी सज संवर रही हूँ... *भक्ति का फल मुझे भगवान मिल गया है... ईश्वर पिता के सारे खजाने जागीरे अब मेरे है...* मै भाग्यशाली आत्मा पुनः देवता घराने में आने वाली हूँ... यह ख़ुशी हर पल मुझे रोमांचित कर रही है...”
❉ *भटकते बच्चों की भटकन को समाप्त कर अपनी मीठी गोदी के झूले में झुलाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... जिस मीठे पिता को दर दर खोज रहे थे... गुफाओ और तपस्याओ में ढूंढ रहे थे, *वह भक्ति का फल मीठा स्वर्ग हथेली पर लेकर धरा पर उतर आया है...* विकारो में धूमिल बच्चों को देवताई श्रंगार से सुनहरा सजा रहे है... अब पूजा नही, पूजनीय बनना है... अपने सुंदर कुल में जाना है...”
➳ _ ➳ *ज्ञान के उजाले में अपने सपनों को साकार होते हुए देख ख़ुशी से मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा देह की संगति में असुर कुल की हो गयी थी... *प्यारे बाबा आपने मेरा अविनाशी दमकता स्वरूप दिखाकर मुझे देवी भाग्य दिलाया है...* मै महान खुशनसीब आत्मा देवता बन स्वर्ग धरा परअनन्त सुखो की अधिकारी बन रही हूँ... वाह मेरा खुबसूरत भाग्य...”
❉ *अपनी कमाल जादूगरी से मेरे सारे जीवन को खुशहाल करते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... साधारण देह में छुपे हुए चमकीली मणि हो... मनुष्य मात्र नही देवता कुल के देव हो... अपने इस मीठे भाग्य के नशे में झूम जाओ... *और ईश्वरीय यादो में, अपने उसी वर्से को, अथाह खजानो को पाकर मीठे सुखो को लूटो... सारे सम्बन्ध् मीठे बाबा से जोड़कर उसके प्रेम में भीग जाओ...”*
➳ _ ➳ *बाबा की मीठी दृष्टि से निहाल होकर तहे दिल से धन्यवाद करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मुझ आत्मा ने तो कभी ऐसे ख़्वाब भी न संजोये थे कि... प्यारा पिता यूँ अचानक गोद में उठा लेगा... *देह के मटमैले पन को धोकर मुझे देवता बना देगा... सारे सम्बन्धो का सुख देकर मुझे भरपूर कर देगा... मीठे प्यारे बाबा मै आत्मा हर रोम से शुक्रगुजार हूँ...*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- शमा पर फिदा होने वाला परवाना बनना है*"
➳ _ ➳ जैसे शमा पर फिदा परवाना, अपनी सुध - बुध खो कर, उसकी लौ में जल कर भस्म हो जाता है ऐसे इस पुरानी दुनिया से जो जीते जी मरकर अपने भगवान बाप पर फिदा होने वाले परवाने बनते हैं वही उनके गले का हार बन रुद्र माला में पिरोए जाते हैं। *मन ही मन यह विचार करती अब मैं अपनी चेकिंग करते हुए अपने आप से सवाल करती हूँ कि क्या मैं जीते जी मरकर पूरा परवाना बनी हूँ*! इस देह, देह की दुनिया से क्या मैं मर चुकी हूँ! क्या अभी भी देह के सम्बन्धों में कोई लगाव, झुकाव या टकराव तो नही है! *अगर एक भी चीज में मेरा ममत्व बाकी है तो इसका अर्थ है कि मैं शमा पर मर मिटने वाला परवाना नही बल्कि चक्कर काटने वाला परवाना बनी हूँ और चक्कर काटने वाले माला का मणका कैसे बन सकते हैं*?
➳ _ ➳ इसलिए अगर मुझे बाबा के गले का हार बनना है तो मुझे जीते जी मरकर पूरा परवाना बनने का पुरुषार्थ करना होगा। मन ही मन स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर, उसे पूरा करने का बल अपने अन्दर भरने के लिए अपने प्यारे पिता का मैं आह्वान करती हूँ। *उनकी मीठी याद में अपने मन बुद्धि को मैं जैसे ही स्थिर करती हूँ उनकी मीठी याद का प्रतिफल उनके स्नेह की मीठी फ़ुहारों के रूप में मुझे अपने ऊपर बरसता हुआ अनुभव होता है*। मैं महसूस करती हूँ कि परमधाम से आ रही बाबा के स्नेह की अनन्त किरणे मुझे बहुत ही न्यारी और प्यारी स्थिति में स्थित कर रही है और यह न्यारी और प्यारी अवस्था मुझे देह और देह की दुनिया के हर लगाव से मुक्त कर रही है।
➳ _ ➳ देह और देह की दुनिया के हर आकर्षण से मुक्त, बिल्कुल अशरीरी स्थिति में अब मैं स्थित हो चुकी हूँ। *सच्चा परवाना बन अपनी शिव शमा पर फिदा होने के लिए उनके प्रेम की लग्न में मग्न हो कर मैं आत्मा सजनी विदेही बन, देह के हर बन्धन से मुक्त होकर, अब उनसे मिलने उनकी निराकारी दुनिया परमधाम की ओर जा रही हूँ*। परमधाम से अपने ऊपर पड़ रही उनके प्रेम की मीठी - मीठी फुहारों का आनन्द लेती हुई मैं साकार लोक और सूक्ष्म लोक को पार करके, अब पहुंच गई अपने शिव परम पिता परमात्मा के पास उनके निराकारी लोक में *निराकारी आत्माओं की एक ऐसी दुनिया जहाँ देह और देह से जुड़ी किसी बात का संकल्प मात्र भी नही*।
➳ _ ➳ आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में मैं देख रही हूँ चारों और चमकते चैतन्य सितारों को और उन चमकते सितारों के बीच एक चमकते हुए ज्योतिपुंज अपने शिव पिता को जो अपनी सर्वशक्तियों से पूरे परमधाम को प्रकाशित कर रहें हैं। *उस महाज्योति अपने शिव पिता परमात्मा से निकलने वाली अनन्त किरणों के प्रकाश से आकर्षित होकर सभी चैतन्य सितारे उनके समीप जा रहें हैं और उनके अनन्त प्रकाश में ऐसे विलीन होते हुए दिखाई दे रहें हैं जैसे शमा की लौ पर परवाना फिदा होता है*। इस खूबसूरत दृश्य को मैं देख रही हूँ और परवाना बन अब अपनी शिव शमा पर फिदा होने के लिए उनके समीप जा रही हूँ। मैं महसूस कर रही हूँ जैसे मेरे शिव पिता के अनन्त प्रकाश की किरणों रूपी बाहों ने मुझे अपने अन्दर समा लिया है और मैं उनका ही रूप बन गई हूँ।
➳ _ ➳ अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में समाकर, उनके प्रेम, गुणों और उनकी शक्तियों से भरपूर होकर अब मैं आत्माओं की निराकारी दुनिया से नीचे वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। *परवाना बन शिव शमा पर फिदा होकर मिलने वाले परमआनन्द के एहसास को अपने साथ लिए अपने ब्राह्मण स्वरूप में अब मैं स्थित हूँ*। अपने सारे सम्बन्ध केवल अपने शिव पिता के साथ जोड़, इस देह और देह की दुनिया के नश्वर सम्बन्धो से अब मैं ममत्व निकालती जा रही हूँ। *देह और देह की दुनिया मे रहते हुए भी, बेहद की वैराग्य वृति को धारण कर, हर चीज से अब मैं सहज ही उपराम होकर, इस दुनिया से जीते जी मरकर पूरा परवाना बनने का पुरुषार्थ कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मै सदा अपने को सारथी और साक्षी समझ देह-भान से न्यारे रहने वाली योगयुक्त आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं अटेंशन और अभ्यास को निजी संस्कार बनाने वाली विजयी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ दुनिया वाले कहते हैं हाइएस्ट इन दी वर्ल्ड और वह भी एक जन्म के लिए लेकिन *आप बच्चे हाइएस्ट श्रेष्ठ इन दी कल्प हैं। सारे कल्प में आप श्रेष्ठ रहे हैं।* जानते हो ना? अपना अनादि काल देखो अनादि काल में भी आप सभी आत्मायें बाप के नजदीक रहने वाले हो। देख रहे हो, *अनादि रूप में बाप के साथ-साथ समीप रहने वाले श्रेष्ठ आत्मायें हो।* रहते सभी हैं लेकिन आपका स्थान बहुत समीप है। तो अनादि रूप में भी ऊंचे-ते-ऊंचे हो।
➳ _ ➳ फिर आओ *आदिकाल में सभी बच्चे देव-पदधारी देवता रूप में हो।* याद है अपना दैवी स्वरूप? आदिकाल में *सर्व प्राप्ति स्वरूप हो।* तन-मन-धन और जन चार ही स्वरूप में श्रेष्ठ हैं। सदा सम्पन्न हो, सर्व प्राप्ति स्वरूप हो। ऐसा देव-पद और किसी भी आत्माओं को प्राप्ति नहीं होता। चाहे धर्म आत्मायें हैं, महात्मायें हैं लेकिन ऐसा *सर्व प्राप्तियों में श्रेष्ठ, अप्राप्ति का नाम-निशान नहीं, कोई भी अनुभव नहीं कर सकता।*
➳ _ ➳ फिर आओ मध्यकाल में, तो *मध्यकाल में भी आप आत्मायें पूज्य बनते हो। आपके जड़ चित्र पूजे जाते हैं।* कोई भी आत्माओं की ऐसे विधि-पूर्वक पूजा नहीं होती। जैसे पूज्य आत्माओं की विधि-पूर्वक पूजा होती है तो सोचो ऐसे विधि-पूर्वक और किसकी पूजा होती है! *हर कर्म की पूजा होती है क्योंकि कर्मयोगी बनते हो।* तो पूजा भी हर कर्म की होती है। चाहे धर्म आत्मायें या महान आत्माओं को साथ में मन्दिर में भी रखते हैं लेकिन विधि-पूर्वक पूजा नहीं होती। तो मध्यकाल में भी हाइएस्ट अर्थात् श्रेष्ठ हो।
➳ _ ➳ फिर आओ वर्तमान अन्तकाल में, तो *अन्तकाल में भी अब संगम पर श्रेष्ठ आत्मायें हो।* क्या श्रेष्ठता है? स्वयं बापदादा- परमात्म-आत्मा और आदि -आत्मा अर्थात् *बापदादा, दोनों द्वारा पालना भी लेते हो, पढ़ाई भी पढ़ते हो, साथ में सतगुरू द्वारा श्रीमत लेने के अधिकारी बने हो।*
➳ _ ➳ तो अनादिकाल, आदिकाल, मध्यमकाल और अब अन्तकाल में भी हाइएस्ट हो, श्रेष्ठ हो। इतना नशा रहता है? *बापदादा कहते हैं इस स्मृति को इमर्ज करो।* मन में, बुद्धि में इस प्राप्ति को दोहराओ। *जितना स्मृति को इमर्ज रखेंगे उतना स्मृति से रूहानी नशा होगा। खुशी होगी, शक्तिशाली बनेंगे।* इतना हाइएस्ट आत्मा बने हैं।
✺ *ड्रिल :- "तीनों कालों में हाइएस्ट श्रेष्ठ इन दी कल्प होने का अनुभव"*
➳ _ ➳ बापदादा की मधुर... अनमोल वाणियाँ पढ़ते हुए... मन व बुद्धि नशे में झूमने लग जाता है... मैं आत्मा बार-बार बलिहारी जाती हूँ... *इन वाणियों के माध्यम से... ईश्वर स्वयं मुझसे बात करते हैं... मुझे पढ़ाते हैं... इस पुरानी दुनिया में... जीवन का जीना आसान कर देते हैं...* मैं तेजस्वी मणि ज्योतिस्वरूप... बिंदुस्वरूप भृकुटी के मध्य में विराजमान हूँ... *त्रिकालदर्शीपन की स्थिति में स्थित होकर... दिव्य बुद्धि के यंत्र द्वारा... अपने तीनों कालों को देख रही हूँ...* हाईएस्ट... श्रेष्ठ इन द कल्प होने का अनुभव कर रही हूँ... एक सेकंड में ही अपने मूलवतन... परमधाम पहुंच जाती हूँ... अपने अनादिस्वरुप में... अनादिकाल को देख रही हूँ... सभी आत्माएं चमकती मणियाँ सी प्रतीत हो रहीं हैं... *मुझ आत्मा का स्थान बाबा के बहुत ही समीप है... मुक्त अवस्था... पूर्ण निर्संकल्पता... दिव्यता ही दिव्यता... मैं बीजरूप... बस बाबा को निहारती हुई... गहरी शांति में डूबी हुई...* स्वयं को बाबा के बहुत समीप अनुभव कर रही हूँ... कुछ देर इसी अवस्था में स्थित हो जाती हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा स्वयं को आदिकाल में... देवता स्वरुप में अनुभव कर रही हूँ... *संपूर्ण सुख शांति संपन्न... दिव्य व पवित्र देह की मालिक... मैं आत्मा सर्व प्राप्तियों में श्रेष्ठ... डबल ताजधारी... सोने के सिंहासन पर विराजमान हूँ...* मुझ आत्मा का दैवी स्वरूप सर्वगुण संपन्न... सोलह कला संपूर्ण है... तन मन धन से सदा संपन्न हूँ... यहाँ सभी जन भी निर्विकारी हैं... *चारों ओर संपूर्ण खुशहाली... समृद्धि...* अप्राप्ति का तो नाम निशान ही नहीं है... सोने के महल... पुष्पक विमान... *चहुं ओर देवी-देवता भ्रमण कर रहे हैं... सतोप्रधान प्रकृति का सौंदर्य...* सुगंधित पानी के झरने... ऐसे अद्भुत आनंद में... पशु पक्षी भी चहचहा रहे हैं... यह दृश्य देखते हुए... मैं आत्मा आनन्दविभोर हो रही हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा स्वयं के मध्यकाल को देख रही हूँ... अपने जड़ चित्र को मंदिरों में देख रही हूँ... *मैं अष्ट भुजा धारी दुर्गा हूँ... पापनाशिनी हूँ... असुर संहारिनी हूँ... जग उद्धारक हूँ...* भक्त लोग विधिपूर्वक... बहुत ही प्रेम से... मुझ आत्मा की जड़ चित्रों की पूजा कर रहे हैं... श्रेष्ठ कर्म की पूजा हो रही है... धर्मात्मा व महान आत्माओं के चित्र भी मंदिरों में साथ ही रखे हुए हैं... मुझ आत्मा की जड़ चित्रों से... *मेरे मस्तक से... शक्तिशाली किरणें निकलकर सभी पर पड़ रही हैं...* सभी का कल्याण कर रही हैं... सभी की मनोकामनाएं पूर्ण हो रही हैं...
➳ _ ➳ अब अंतकाल में इस वरदानी संगमयुग पर... स्वयं को श्रेष्ठ आत्मा अनुभव कर रही हूँ... *बापदादा मुझ ब्राह्मण आत्मा पर... ज्ञान रत्नों के... खुशियों के... शक्तियों के व सर्वगुणों के खजाने लुटा रहे हैं...* इन अखुट खज़ानों से खेलती... मुझ आत्मा के मुख से... *सदा रतन ही निकल रहे हैं... मन में सदैव ज्ञान का मनन चल रहा है...* इस महान समय में... मुझ संगमयुगी ब्राह्मण आत्मा को... बापदादा की पालना का... श्रीमत लेने का... श्रेष्ठ भाग्य प्राप्त हुआ है...
➳ _ ➳ त्रिकालदर्शी की स्थिति में स्थित रहकर... मैं आत्मा अपने अनादिकाल... आदिकाल... मध्यमकाल तथा अंतकाल को देख रही हूँ... *हाईएस्ट... श्रेष्ठ इन द कल्प की अनुभूति करके... बहुत हर्षित हो रही हूँ...* अति आनन्दित हो रही हूँ... सर्व प्राप्ति संपन्न... सदा स्मृति स्वरूप हूँ... बापदादा के नयनों का नूर हूँ... *श्रेष्ठ भाग्य की स्मृति के रूहानी नशे में मस्त... मैं श्रेष्ठ आत्मा सदैव हर्षित... सर्वशक्तिसंपन्न अनुभव कर रही हूँ...* मास्टर सर्वशक्तिमान की स्मृति द्वारा... अंधकार को मिटाकर... विश्व को उज्जवल कर रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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