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 31 / 01 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *मुख से पत्थर के बजाये रतन निकाले ?*

 

➢➢ *समय निकाल ईश्वरीय सेवा की ?*

 

➢➢ *मन को श्रेष्ठ पोजीशन में स्थित कर पोज़ बदलने के खेल को समाप्त किया ?*

 

➢➢ *सदा ख़ुशी में रहे और ख़ुशी बांटी ?*

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*अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *भल शरीर बीमार हो लेकिन शरीर की बीमारी से मन डिस्टर्ब न हो, सदैव खुशी में नाचते रहो तो शरीर भी ठीक हो जायेगा।* मन की खुशी से शरीर को भी चलाओ तो दोनों एक्सरसाइज हो जायेंगी। खुशी है दुआ और एक्सरसाइज है दवाई। तो दुआ और दवा दोनों होने से सहज हो जायेगा।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं याद और सेवा द्वारा पद्मों की कमाई जमा करने वाला पद्मापद्म भाग्यवान हूँ"*

 

  सभी अपने को हर कदम में याद और सेवा द्वारा पद्मों की कमाई जमा करने वाले पद्मापद्म भाग्यवान समझते हो? *कमाई का कितना सहज तरीका मिला है! आराम से बैठे-बैठे बाप को याद करो और कमाई जमा करते जाओ।*

 

  *मंसा द्वारा बहुत कमाई कर सकते हो, लेकिन बीच-बीच में जो सेवा के साधनों में भाग-दौड़ करनी पड़ती है - यह तो एक मनोरंजन है।*

 

  वैसे भी जीवन में चेन्ज चाहते हैं तो यह चेन्ज हो जाती है। *वैसे कमाई का साधन बहुत सहज है, सेकण्ड में पद्म जमा हो जाते हैं, याद किया और बिन्दी बढ़ गई। तो सहज अविनाशी कमाई में बिजी रहो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  जो ब्रह्माबाप ने आज के दिन तीन शब्दों में शिक्षा दी, (निराकारी, निर्विकारी और निरहंकारी) इन तीनों शब्दों के शिक्षा स्वरूप बनो। *मन्सा में निराकारी, वाचा में निरहंकारी, कर्मणा में निर्विकारी। सेकण्ड में साकार स्वरूप में आओ, सेकण्ड में निराकारी स्वरूप में स्थित हो जाओ। यह अभ्यास सारे दिन में बार-बार करो।*

 

✧  ऐसे नहीं सिर्फ याद में बैठने के टाइम निराकारी स्टेज में स्थित रही लेकिन बीच-बीच में समय निकाल इस देहभान से न्यारे निराकारी आत्म स्वरूप में स्थित होने का अभ्यास करो। *कोई भी कार्य करो, कार्य करते भी यह अभ्यास करो कि मैं निराकार आत्मा इस साकार कर्मेन्द्रियों के आधार से कर्म करा रही हूँ। निराकारी स्थिति करावनहार स्थिति है।*

 

✧  कर्मेन्द्रियाँ करनहार हैं, आत्मा करावनहार हैं। तो *निराकारी आत्म स्थिति से निराकारी बाप स्वतः ही याद आता है। जैसे बाप करावनहार है ऐसे मैं आत्मा भी करावनहार हूँ। इसलिए कर्म के बन्धन में बंधेगे नहीं, न्यारे रहेंगे क्योंकि कर्म के बंधन में फंसने से ही समस्यायें आती हैं। सारे दिन में चेक करो - करावनहार आत्मा बन कर्म करा रही हूँ?* अच्छा! अभी मुक्ति दिलाने की मशीनरी तीव्र करो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  मैं आत्मा हूँ - इसमें तो भूलने की ही आवश्यकता नहीं रहती है। जैसे मुझ बाप को भूलने की ज़रूरत पड़ती है? *यह पहली-पहली बात है जो कि तुम सभी को बताते हो कि - मैं आत्मा हूँ, न कि शरीर।* जब आत्मा होकर बिठाते हो तभी उनको फिर शरीर भी भूलता है। अगर आत्मा होकर नहीं बिठाते, तो क्या फिर देह सहित देह के सभी सम्बन्ध भूल जाते! *जब उनको भुलाते हो, तो क्या अपने शरीर से न्यारा होकर, जो न्यारा बाप है उनकी याद में नहीं बैठ सकते हो ?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- 5 भूतों को जीत विश्व का मालिक बनना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा 5 भूतों से मुक्त होने, 5 तत्वों के इस देह, 5 तत्वों की इस दुनिया से दूर निकलकर सफ़ेद बादलों की दुनिया में पहुँच जाती हूँ... प्यारे बापदादा चमकीले प्रकाश के शरीर में सफ़ेद बादल की संदली पर बैठ मुझे देख मुस्कुरा रहे हैं...* बाबा की प्यारी मीठी मुस्कान से निकलती मीठी किरणों से मैं आत्मा सर्व बन्धनों से, काल के प्रभाव से, समय के प्रभाव से, सर्व विकारों के प्रभाव से पूरी तरह मुक्त अनुभव कर रही हूँ... मीठे बापदादा मीठी दृष्टि देते हुए मीठे वचनों की वर्षा करते हैं...

 

   *मेरे दिल रुपी दर्पण को ज्ञान के छीटों से साफ़ करते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... ज्ञान का तीसरा नेत्र पाकर जो त्रिनेत्री से सजे हो... गहराई से अपना चिंतन कर भीतर छुपे भूतो को, ज्ञान सूर्य के तेज से नामोनिशान मिटा दो... देह के प्रभाव में आकर जो तेज खो दिए हो... *यादो की प्रचण्ड अग्नि में तेजस्वी बन जाओ... विकारो के भूतो को भगाने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहो... और ईश्वरीय यादो और प्यार में निष्कलंक जीवन को पाओ...”*

 

_ ➳  *ज्ञान मुरली की लाठी से विकारों रूपी 5 भूतों को भगाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय यादो में हर विकार से मुक्त होकर प्यारा और खुबसूरत जीवन पाती जा रही हूँ... *मन बुद्धि के आइने में मै आत्मा दिव्य गुणो से सजती जा रही हूँ... मीठी यादो में गुणवान बन खिलती जा रही हूँ...”*

 

   *पवित्रता का सागर मीठा बाबा पवित्र किरणों की अग्नि से विकारों को भस्म करते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *मीठे बाबा की यादो में इस कदर खो जाओ की अंश मात्र भी विकारो का शेष न रहे...* जीवन कमल समान इस कदर खूबसूरती से खिल उठे कि... पवित्रता की अदा पर हर दिल दीवाना हो जाये... ऐसी पवित्रता की खुशबु सारे जहान में बिखेर सुवासित करो...

 

_ ➳  *अपने ह्रदय में पवित्रता का पुष्प खिलाकर चारों और सुवासित करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी प्यारी यादो दिव्य प्रतिमा सी सजकर हर दिल को ईश्वरीय जादू से भरती जा रही हूँ... *मीठे बाबा ने मुझे गुणवान चरित्रवान खुबसूरत बनाया है... यह सन्देश हवाओ में फैलाती जा रही हूँ...”*

 

   *दिव्य गुणों से सजाकर विश्व का मालिक बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपनी असली सुंदरता के निखार में हर पल जुटे रहो... देवताई श्रृंगार से सजे विश्व का मन मोहते रहो... *अपनी रूहानियत की खुशबु से सबको रूहानी पिता का पता देते जाओ... स्वयं को इतना पवित्र निर्मल और देवताओ सा प्यारा बनाओ...”*

 

_ ➳  *विकारों के रावण को जलाकर पवित्रता का ताज पहन पावन दुनिया की मालिक बनते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके साये में आप समान बनती जा रही हूँ... *यादो का पहरा लगाकर हर भूत को भगाती जा रही हूँ... और निर्मल पवित्र बनकर दिव्य गुणो की धारणा से... बाप दादा के दिल तख्त पर सजती जा रही हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप की सर्विस का फुरना रखना है*"

 

_ ➳  एकान्त में बैठ जैसे ही भगवान के रथ ब्रह्मा बाबा के बारे में मैं विचार करती हूँ मन सहज ही अपने प्यारे ब्रह्मा बाप के प्रति असीम प्रेम और स्नेह से सरोबार हो उठता है। *भगवान से मिलवाने के निमित बने ब्रह्मा बाप के लिए मन से कोटि - कोटि धन्यवाद स्वत: ही निकलने लगता है*। अपना तन - मन - धन सब कुछ ईश्वरीय यज्ञ में स्वाहा कर बाबा ने जिस निस्वार्थ भाव से सारे विश्व की सेवा की, उनके उस त्याग को याद कर, *दिल से उनका शुक्रिया अदा करते - करते मैं महसूस करती हूँ जैसे अव्यक्त ब्रह्मा बाप मेरे सामने खड़े मन्द - मन्द मुस्करा रहें हैं और अव्यक्त इशारे से मुझे कुछ कह रहे हैं*। बाबा के उन अव्यक्त ईशारो को समझने के लिए मैं सेकण्ड में देह भान का त्याग कर अपनी अव्यक्त स्थिति में स्थित होती हूँ।

 

_ ➳  अपनी अव्यक्त स्थिति में स्थित होते ही मैं स्पष्ट अनुभव करती हूँ कि जैसे बापदादा मुझे बेहद की सर्विस के लिए डायरेक्शन दे रहें हैं। *विश्व की जो दुर्दशा बाबा देख रहें हैं अब वो सब दृश्य मुझे दिखाई दे रहें हैं*। विकारों की अग्नि में जल रही दुखी और अशांत आत्माये, भगवान की एक झलक पाने के लिए दर - दर भटक रही, अपने शरीर को कष्ट देने वाले भक्ति के कर्म कांडों में फंसी भक्त आत्मायें। *कहीं प्रकृति के प्रकोप का शिकार हुई रोती बिलखती आत्मायें तो कहीं शरीर की भयंकर बीमारियों के रूप में कर्मभोग की भोगना भोगती दुखी आत्मायें और कही अकाले मृत्यु के कारण शरीर ना मिलने की वजह से भटकती आत्मायें*।

 

_ ➳  इन सभी दृश्यों को देखते - देखते, मन मे विरक्त भाव लिए मैं जैसे ही बाबा की ओर देखती हूँ। बाबा के नयनों में बाबा की इच्छा मुझे स्पष्ट समझ में आने लगती है। *बाबा के मन की आश को जान मैं मन ही मन स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि अपने इस ब्राह्मण जीवन को अब मुझे केवल बाबा की सर्विस में ही लगाकर सफल करना है*। अब मुझे केवल सर्विस का ही फुरना रखना है। स्वयं से प्रतिज्ञा करते - करते मैं जैसे ही बाबा के मुख मण्डल को निहारती हूँ, एक गुह्य मुस्कराहट के साथ बाबा के वरदानी हाथ को अपने सिर के ऊपर अनुभव करती हूँ। *बाबा के वरदानी हस्तों से निकल रही अदृश्य शक्ति को मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ जो मुझे बलशाली बना रही है*।

 

_ ➳  विश्व की सर्व आत्माओं के कल्याणार्थ मुझे निमित बनाने के लिए बाबा अपनी लाइट माइट से मुझे भरपूर कर रहें हैं ताकि लाइट हाउस बन मैं सभी को अज्ञान अंधकार से निकाल ज्ञान सोझरे में लाकर सबके दुखी अशांत जीवन को सुखदाई बना सकूँ। भक्त आत्माओं को दर - दर के धक्कों से छुड़ा कर उन्हें उनके पिता परमेश्वर से मिलवा सकूँ। *इस बेहद की सर्विस के लिए बाबा अपने सर्व गुणों, सर्व शक्तियों और सर्व ख़ज़ानों से मुझे सम्पन्न बना रहे हैं*। बापदादा से लाइट माइट, वरदान और शक्तियों का असीम बल ले कर अपने लाइट के फ़रिश्ता स्वरूप में स्वयं को अत्यन्त शक्तिशाली बनाकर अब मैं फ़रिश्ता विश्व ग्लोब पर पहुँचता हूँ।

 

_ ➳  विश्व ग्लोब पर बैठ, बापदादा का आह्वान कर, उनके साथ कम्बाइंड होकर, उनसे सुख, शांति और पवित्रता की शक्तियाँ लेकर अब मैं सारे विश्व मे प्रवाहित कर रहा हूँ। *मैं देख रहा हूँ इन सर्वशक्तियों के शक्तिशाली वायब्रेशन विश्व की सर्व आत्माओं तक पहुँच रहें हैं*। विकारों की अग्नि में जल रही आत्माओं पर ये वायब्रेशन शीतल फ़ुहारों का रूप लेकर बरस रहें हैं और उन्हें शीतलता का अनुभव करवा रहें हैं। *भक्त आत्माओं को ये वायब्रेशन परमात्म प्यार का अनुभव करवाकर उन्हें भटकने से छुड़ा रहें हैं। बीमारियों से पीड़ित आत्माओं पर ये वायब्रेशन मरहम का काम कर रहें हैं और उनकी पीड़ा को खत्म कर रहें हैं*। प्रकृति का प्रकोप सहन करती आत्माओं को ये वायब्रेशन धैर्य का बल दे रहें हैं।

 

_ ➳  विश्व की सर्व आत्माओं की बेहद की सेवा करके अब मैं अपने फ़रिश्ता स्वरूप के साथ वापिस साकार लोक में लौटती हूँ और अपने ब्राह्मण स्वरूप को धारण कर लेती हूँ। *बाप की सेवा का फुरना रख, अपने ब्राह्मण स्वरूप द्वारा मैं अपने संकल्प, बोल और कर्म के माध्यम से अपने सम्बन्ध, सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं की स्थूल सेवा और अपने फ़रिश्ता स्वरूप द्वारा विश्व की सर्व आत्माओं की बेहद की सेवा अब सदैव कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं मन को श्रेष्ठ पोजीशन में स्थित कर पोज बदलने के खेल को समाप्त करने वाली सहजयोगी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सदा खुशी में रहने वाली और खुशी बांटने वाली खुशियों के खान की अधिकारी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  आत्मिक खुशी सेवा द्वारा सभी को अनुभव है, *जब भी मनसा सेवा या वाणी द्वारा वा कर्म द्वारा भी सेवा करते हो तो उसकी प्रप्ति आत्मिक खुशी मिलती है*। तो चेक करो सेवा द्वारा खुशी की अनुभूति कहाँ तक की है? *अगर सेवा की और खुशी नहीं हुई, तो वह सेवा यथार्थ सेवा नहीं है*। सेवा में कोई न कोई कमी है, इसलिए खुशी नहीं मिलती। *सेवा का अर्थ है आत्मा अपने को खुशनुमः, खिला हुआ रूहानी गुलाब, खुशी के झूले में झूलने वाला अनुभव करेगी*। तो चेक करो - *सारा दिन सेवा की लेकिन सारे दिन की सेवा की तुलना में इतनी खुशी हुई या सोच-विचार ही चलते रहे*, यह नहीं ये, यह नहीं ये...? और *आपकी खुशी का प्रभाव एक तो सेवा स्थान पर, दूसरा सेवा साथियों पर, तीसरा जिन आत्माओं की सेवा की उन आत्माओं पर पड़े, वायुमण्डल भी खुश हो जाए। यह है सेवा का खजाना खुशी*।

 

✺   *ड्रिल :-  "यथार्थ, सच्ची सेवा की प्राप्ति का अनुभव करना"*

 

 _ ➳  संगम पर खुशियों का अखुट खजाना... *दूर दूर तक बिखरी हुई उमंग उत्साह की स्वर्ण अशर्फियाँ*... इसी खजाने को मन बुद्धि के आँचल में समेटती हुई... स्वयं को खुशियों के खजानों से भरपूर करती हुई मैं आत्मा... *चार विशेष पारस मणियों को देख रही हूँ स्वयं के श्रृंगार के लिए ... ज्ञान, योग, धारणा और सेवा की विशेष मणियाँ*... संगम के खजाने से मैं आत्मा सेवा मणि को चुनकर धारण कर रही हूँ, पद्मों की कमाई के लिए...

 

 _ ➳  *सेवा का उमंग और उत्साह रग-रग में समाता जा रहा है मुझ आत्मा के*... मनोरंजन और पदमों की कमाई का ये अनूठा सा साधन... *सेवा की चमचमाती इस मणि का त्रिकोणीय स्वरूप... मनसा, वाचा और कर्मणा... हर एक कोने से फैलता अलग रंग का प्रकाश हर पल मुझे खुशियों से भरपूर कर रहा है*... सेवा के निमित्त परमधाम से अवतरित *देह और देह की दुनिया में विराजमान मैं आत्मा सेवा के निमित्त हर अंग को उमंग व उत्साह से भरपूर कर रही हूँ*...

 

 _ ➳  *आत्मिक स्वरूप में टिक कर, किया जा रहा, मेरा हर कर्म सेवा बनता जा रहा है*... मेरा देखना, मेरा बोलना, मेरा चलना, सभी कुछ... भृकुटी के मध्य में तिलक के समान स्थित मै आत्मा साक्षी भाव से देख रही हूँ स्वयं को... मुझसे फैल रहा आत्मिक गुणों का प्रकाश... सम्पूर्ण देह में फैलकर चारों ओर के वातावरण को प्रकाशित कर रहा है... *प्रकृति और सभी आत्माओं को शुभकामना और शुभ भावना का दान देती मुझ आत्मा से सुख स्वरूप की किरणें सम्पूर्ण वातावरण को खुशनुमः बना रही है*...

 

 _ ➳  *इस वातावरण में प्रवेश करने वाली हर आत्मा स्वयं को इन खुश नुमः किरणों से भरपूर कर रही है*... कम्बाइन्ड स्वरूप की स्मृति से मैं देख रही हूँ स्वयं को शिव बाबा के साथ... ठीक मेरे सिर के ऊपर स्थित शिव ज्योति... अपना वरदानी हाथ मेरे ऊपर हमेशा के लिए रख दिया है बाबा ने... मुझमें हर पल शक्तियों का संचार करते, मेरा मार्ग दर्शन करते, निमित्त भाव से भरपूर करते... हर पल मेरे भाग्य की रेखा को गहरी करते जा रहे है...

 

 _ ➳  *यथार्थ स्वरूप में की जा रही यथार्थ सेवा मुझे हर पल यथार्थ खुशी से भरपूर कर रही है*... देह में रहने का अभिप्राय मैं आत्मा समझ गयी हूँ... स्वयं को शक्तियों से भरपूर करती हुई अपनी भृकुटी में ही शिव पिता के साथ परमधाम की बीज रूप स्थिति का गहराई से अनुभव कर रही हूँ... 

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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