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❍ 25 / 11 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *सर्व प्रकार के विस्तार को सिर्फ एक में समाया ?*
➢➢ *अपने देवताई संस्कारों को इमर्ज किया ?*
➢➢ *आपकी रूलिंग पॉवर और कण्ट्रोलिंग पॉवर ने यथार्थ रूप से कार्य किया ?*
➢➢ *सदा याद और सेवा का डबल लॉक लगाए रखा ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *यदि किसी भी प्रकार का भारीपन अथवा बोझ है तो आत्मिक एक्सरसाइज करो।* अभी - अभी कर्मयोगी अर्थात् साकारी स्वरूपधारी बन साकार सृष्टि का पार्ट बजाओ, अभी-अभी आकारी फरिश्ता बन आकारी वतनवासी अव्यक्त रूप का अनुभव करो, अभी-अभी निराकारी बन मूलवतनवासी का अनुभव करो, इस एक्सरसाइज से *हल्के हो जायेंगे, भारीपन खत्म हो जायेगा।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं ड्रामा के अन्दर विशेष पार्ट बजाने वाली विशेष आत्मा हूँ"*
〰✧ इस ड्रामा के अन्दर विशेष पार्ट बजाने वाली विशेष आत्मायें हैं - ऐसे अनुभव करते हो? *जब अपने को विशेष आत्मा समझते हैं तो बनाने वाला बाप स्वत: याद रहता है, याद सहज लगती है। क्योंकि 'सम्बन्ध' याद का आधार है। जहाँ सम्बन्ध होता है वहाँ याद स्वत: सहज हो जाती है। जब सर्व सम्बन्ध एक बाप से हो गये तो और कोई रहा ही नहीं। एक बाप सर्व सम्बन्धी है - इस स्मृति से सहजयोगी बन गये।*
〰✧ कभी मुश्किल तो नहीं लगता? जब माया का वार होता है तब मुश्किल लगता है? *माया को सदा के लिए विदाई देने वाले बनो। जब माया को विदाई देंगे तब बाप की बधाइयाँ बहुत आगे बढ़ायेंगी। भक्ति मार्ग में कितनी बार मांगा कि दुआयें दो, ब्लैसिंग दो। लेकिन अभी बाप से ब्लैसिंग लेने का सहज साधन बता दिया है - जितना माया को विदाई देंगे उतनी ब्लैसिंग स्वत: मिलेंगी।*
〰✧ परमात्म-दुआयें एक जन्म नहीं लेकिन अनेक जन्म श्रेष्ठ बनाती हैं। सदा यह स्मृति में रखना कि हम हर कदम में बाप की, ब्राह्मण परिवार की दुआयें लेते सहज उड़ते चलें। ड्रामा में विशेष आत्मायें हो, विशेष कर्म कर अनेक जन्मों के लिए विशेष पार्ट बजाने वाले हो। साधारण कर्म नहीं विशेष कर्म, विशेष संकल्प और विशेष बोल हों। *विशेष सेवा यही करो कि अपने श्रेष्ठ कर्म द्वारा, अपने श्रेष्ठ परिवर्तन द्वारा अनेक आत्माओंको परिवर्तन करो। अपने को आइना बनाओ और आपके आइने में बाप दिखाई दे। ऐसी विशेष सेवा करो। तो यही याद रखना कि मैं दिव्य आइना हूँ मुझ आइने द्वारा बाप ही दिखाई दे।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ यहाँ *बहुतकाल का अभ्यास बहुतकाल का राज्य-भाग्य प्राप्त करायेगा।* अगर अल्पकाल का अभ्यास है तो प्राप्ति भी अल्पकाल की होगी। तो ये अभ्यास सारे दिन में जब भी चांस मिले करते रहो। एक सेकण्ड में कुछ बिगडता नहीं है। फिर काम करना शुरू कर दो।
〰✧ लेकिन हलचल में फुलस्टॉप लगता है या नहीं - ये चेक करो। कर्म के सम्बन्ध में आना और कर्म के बन्धन में आना इसमें भी फर्क है। अगर कर्म के बन्धन में आते हैं तो कर्म आपको खींचेगा, फुलस्टॉप नहीं लगाने देगा। और *न्यारे-प्यारे होकर किसी कर्म के सम्बन्ध में हो तो सेकण्ड में फुलस्टॉप लगेगा।* क्योंकि बन्धन नहीं है।
〰✧ बन्धन भी खींचता है और सम्बन्ध भी खींचता है लेकिन *न्यारे होकर सम्बन्ध में आना* - यह अण्डरलाइन करना। *इसी अभ्यास वाले ही पास विद ऑनर होंगे।* ये लास्ट कार्मतीत अवस्था है। बिल्कुल न्यारे होकर, अधिकारी होकर कर्म में आयें, बन्धन वश नहीं। तो चेक करो कर्म करते-करते कर्म के बन्धन में तो नहीं आ जाते?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *याद को भी सहज करो। जब यह याद का कोर्स सहज हो जायेगा। तब कोई को कोर्स देने में याद का फोर्स भी भर सकेंगे। सिर्फ कोर्स देने से प्रजा बनती है लेकिन फोर्स के साथ कोर्स से समीप सम्बन्ध में आते हैं।* बिल्कुल ऐसे अनुभव करेंगे जैसे न्यारे और प्यारे। तो सभी सहज पुरुषार्थ में भी अगर मुश्किलातों में ही रहेंगे तो सहज और स्वत: का अनुभव कब करेंगे? *इसको कहते भी सहज योग हो ना? कठिन योग तो नहीं है। यह सहज योग वहाँ सहज राज्य करायेगा। वहाँ भी कोई मुश्किलात नहीं होगी। यहाँ के संस्कार ही वहाँ ले जायेंगे। अगर अन्त तक भी मुश्किल के संस्कार होंगे तो वहाँ सहज राज्य कैसे करेंगे?* देवताओं के चित्र भी जो बनाते हैं तो उनकी सूरत में सरलता ज़रूर दिखाते हैं। यह विशेष गुण दिखाते हैं। *फीचर्स में सरलता जिसको आप भोलापन कहते हो। जितना जो सहज पुरुषार्थी होगा वह मनसा में भी सरल, वाचा में सरल, कर्म में भी सरल होगा। इनको ही फ़रिश्ता कहते हैं। अच्छा।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
*✺ "ड्रिल :- एक का हिसाब"*
➳ _ ➳ *श्रीमत की ये सुनहरी सी पंगडंडियाँ... जब से इन पर कदम पडे, मैं रूहानी मुसाफिर धन्य हो उठी, साथ ही अनुभवों की टकसाल से मैं मालामाल हो गयी हूँ... हर कदम पर आभार प्रकट करती हुई बढी जा रही हूँ, मेरे जन्मजन्मान्तर को जगमग कर देने वाले इस प्रकाश की दिशा में...* अंधकार का वो काँटो भरा जंगल दूर कही पीछे छूट चुका है... पगडंडी के उस छोर पर बाहें फैलाए इन्तज़ार करते मेरे बापदादा...
❉ *सर्व सम्बन्धों का प्यार एक में समेटे, स्नेह प्यार का रूहानी दर्पण बनी रूहानी पलकों पर मुझे बिठाकर बापदादा बोले:-* "मेरे इस ईश्वरीय कुल की सिरताज मीठी बच्ची... ज्ञान योग के खजानों से भरपूर आपने सबको बाप का परिचय तो दिया, सदा हर सेकेन्ड ड्रामा की पटरी पर चलते मन की स्थिति एकाग्र रही... *मगर क्या मन की एकाग्रता द्वारा सदा एक मत एक ही रास्ते से एक रस स्थिति का अनुभव भी कराया?"*
➳ _ ➳ *रोम रोम में बापदादा के स्नेह व आभार को समाये मैं विश्वकल्याणी आत्मा बापदादा के वरदानों की छत्रछाया को महसूस कर कहती हूँ:-* "मेरे मीठे बाबा... अपने इन्तजार में गीत गाते नगाडे बजाते और जोर जोर से चिल्लाते भक्तों की पुकार भला मैं कैसे भूल सकती हूँ... *हर पल हर दम उनकी पुकार कानों में गूँजती है, अलग अलग मतें अलग अलग रास्ते और करूण पुकार करते ये भक्त... अब इन भटकनों से मुक्ति का समय मैं बहुत करीब देख रही हूँ..."*
❉ *समर्थ संकल्पों और दिव्यगुणों की माला मेरे गले में पहनाते हुए मेरे सर्वशक्तिमान बापदादा समर्थ दृष्टि से भरपूर करते हुए बोले:-* "मेरी शिवशक्ति दिव्य गुण धारी बाप समान बनने का लक्ष्य धारण करने वाली मीठी बच्ची... *ज्ञान योग और धारणा एक सेकेन्ड के है, खुशियों की शक्ति से भरपूर हो अपने सम्पूर्ण स्वरूप की मूर्ति मन मन्दिर मे सजाकर अपने दिव्य स्वरूपों का भी संकल्पो से साक्षात्कार कराओं, एकाग्रता के गहन अनुभूतियों में लीन हो सबको एकाग्रता की शक्ति का अनुभव कराओं...* संकल्पों की फाउन्डेशन पक्की कर अव्यक्ति कशिश बढाओं..."
➳ _ ➳ *मनसा महादानी मैं आत्मा, दृढता का कंगन पहने, नयनों से ही मन के भाव जान लेने वाले बापदादा से बोली:-* *"बाबा शब्द की डायमण्ड "की’’ (चाबी) जो आपसे पायी है मैने, ये सर्व खजानों की चाबी है, निरन्तर अपने स्वमानो की सीट पर सैट मैं आत्मा सदा एक रस स्थिति का अनुभव कर रही हूँ और करा रही हूँ सब कुछ स्वतः ही होता जा रहा है बाबा!...* हर बीती को स्वतः ही बिन्दी लग गयी है पूर्णतया एकाग्र होते संकल्प सामने वाली आत्मा के सकंल्पों को कैच कर रहे है..."
❉ *मेरे हर संकल्प को गहराई से देखते परखते बापदादा वरदानी हाथ मेरे सर पर रखते हुए बोलें:-* "आप मन्मनाभव मोहजीत आत्मा... सर्व समर्पित आत्मा हो, आप बच्ची ने सच्चे साहिब को आपने राजी किया है *संकल्पों के विस्तार का बिस्तर बन्द कर अब औरों के संकल्पों को भी सार में लाओं...* मुरझाये चेहरे लिए कोई मनमत के चौराहों पर न भटके सबको श्रीमत की सुनहरी पगडंडियों की सैर कराओं..."
➳ _ ➳ *मास्टर सर्व शक्तिमान की सीट पर सैट मैं आत्मा, अपनी शक्तियों का आह्वान कर बापदादा के सम्मुख संसार की सभी आत्माओं को इमर्ज कर बोली:-* "देखिए बापदादा... वो आ रही है सभी आत्माए आपके सम्मुख... आपके वरदानों और शक्तियों की वारिस आत्माए... *श्रीमत पर चलने का जज्बा दिल में समाये... मैं साक्षी होकर देख रही हूँ... श्रीमत की एक रस रोशन राहों से गुजरती ये आत्माऐ एक एक कर बापसमान बन बापदादा की बाहों में समाती जा रही है...* और बापदादा निरन्तर मुझे देखकर... वो मुस्कुराये जा रहे है... शिद्दत से महसूस कर रही हूँ वो दुआए... जो बिना माँगे ही व दिए जा रहे है..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अपने देवताई संस्कारो को इमर्ज करना*"
➳ _ ➳ मनुष्य से देवता बनाने वाले अपने परम प्रिय परम पिता परमात्मा शिव बाबा को याद करते करते मैं एक रास्ते से गुजरती हूं और उस रास्ते पर चलते चलते एक मंदिर के पास भक्तों की बहुत भारी भीड़ देख कर रुक जाती हूँ। *भक्तों की इतनी भीड़ देख कर मेरे कदम स्वत:ही मंदिर की ओर चल पड़ते हैं* और मैं पहुंच जाती हूँ मन्दिर के अंदर जहां देवी देवताओं की बहुत सुंदर प्रतिमाएं स्थापित की हुई है, जिनके आगे भक्त हाथ जोड़ कर खड़े हैं।
➳ _ ➳ देवी देवताओं की सुंदर-सुंदर प्रतिमाओं को देख कर मैं विचार करती हूं कि चित्रकारों द्वारा बनाए हुए इन जड़ चित्रों में भी जब इतनी आकर्षणता है। *इन जड़ चित्रों में भी देवी देवताओं के चेहरे से जब इतनी दिव्यता और पवित्रता की झलक दिखाई दे रही है तो चैतन्य में तो इन देवी देवताओं के चेहरों की दिव्यता और पवित्रता अवर्णनीय होगी*।
➳ _ ➳ अपने ही जड़ चित्रों की सुंदरता को देखते देखते मैं मन बुद्धि से पहुंच जाती हूँ सृष्टि के आदि अर्थात देव लोक में। अब मैं देख रही हूं स्वयं को अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई स्वरूप में देवभूमि पर, जहां चारों ओर प्रकृति का अद्भुत सौंदर्य है। *हरे भरे पेड़ पौधे, टालियों पर चहचहाते रंग-बिरंगे खूबसूरत पक्षी, वातावरण में गूंजती कोयल की मधुर आवाज, फूलों पर इठलाती रंग बिरंगी तितलियां, बागों में नाचते सुंदर मोर, कल-कल करते सुगंधित मीठे जल के झरने, रस भरे फलों से लदे वृक्ष, सतरंगी छटा बिखेरती सूर्य की किरणें*। ऐसा प्रकृति का सौंदर्य मैं अपनी आंखो से देख रही हूं।
➳ _ ➳ स्वर्ण धागों से बनी हीरे जड़ित अति शोभनीय ड्रेस पहने नन्हे नन्हे राजकुमार राजकुमारियां खेल रहे हैं। सोलह कलाओं से युक्त, मर्यादा पुरुषोत्तम देवी-देवता इस स्वर्ग लोक में विचरण कर रहे हैं, अपने पुष्पक विमानों में विहार कर रहे हैं। *लक्ष्मी नारायण की इस पुरी में राजा हो या प्रजा सभी असीम सुख, शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर हैं*। चारों ओर ख़ुशी की शहनाइयाँ बज रही हैं। रमणीकता से भरपूर देवलोक के इन नजारों को देख मैं मंत्रमुग्घ हो रही हूँ। 16 कला सम्पूर्ण, डबल सिरताज, पालनहार विष्णु के रूप में मैं स्वयं को स्पष्ट देख रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने देवताई स्वरूप का भरपूर आनन्द ले कर मैं फिर से अपने ब्राह्मण स्वरूप में उसी मन्दिर में लौट आती हूँ और स्वयं को अपने पूज्य स्वरूप में स्थित करती हूं। अब मैं आत्मा कमल आसन पर विराजमान, शक्तियों से संपन्न स्वयं को अष्ट भुजा धारी दुर्गा के रूप में देख रही हूं । असंख्य भक्त मेरे सामने भक्ति कर रहे हैं, मेरा गुणगान कर रहे हैं, तपस्या कर रहे हैं, मुझे पुकार रहे हैं, मेरा आवाहन कर रहे हैं। मैं उनकी सभी शुद्ध मनोकामनाएं पूर्ण कर रही हूं। *मेरे भक्तगण और मंदिर में विद्यमान समस्त आत्मायें सर्वशास्त्रों से श्रृंगारी हुई मां दुर्गा के रूप में मेरे दिव्य स्वरूप का साक्षात्कार कर रहे हैं*। मेरा अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित स्वरूप संपूर्ण मानवता को आत्म विभोर कर रहा है।
➳ _ ➳ अपने इष्ट देवी स्वरूप में भक्तों को अपना साक्षात्कार करवा कर फिर से *अपने ब्राह्मण स्वरुप में स्थित हो कर मैं मन्दिर से बाहर आ जाती हूँ* और मन ही मन स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूं कि अब मुझे अपने इस ब्राह्मण जीवन में ही देवताई संस्कार धारण करने का पुरुषार्थ अवश्य करना है।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं समेटने की शक्त्ति द्वारा सेकण्ड में फुलस्टॉप लगाने वाली नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं स्वमान का अभिमान ना रखकर सदा निर्माण रहने वाली निर्माणचित्त आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ सहज को स्वयं ही मुश्किल बनाते हो। मुश्किल है नहीं, मुश्किल बनाते हो। *जब बाप कहते हैं जो भी बोझ लगता है वह बोझ बाप को दे दो।* वह देना नहीं आता। बोझ उठाते भी हो फिर थक भी जाते हो फिर बाप को उल्हना भी देते हो - क्या करें, कैसे करें...! अपने ऊपर बोझ उठाते क्यों हो? बाप आफर कर रहा है *अपना सब बोझ बाप के हवाले करो।* 63 जन्म बोझ उठाने की आदत पड़ी हुई है ना! तो आदत से मजबूर हो जाते हैं, इसलिए मेहनत करनी पड़ती है। कभी सहज, कभी मुश्किल। या तो कोई भी कार्य सहज होता है या मुश्किल होता है। कभी सहज कभी मुश्किल क्यों? कोई कारण होगा ना! कारण है - आदत से मजबूर हो जाते हैं और *बापदादा को बच्चों की मेहनत करना, यही सबसे बड़ी बात लगती है। अच्छी नहीं लगती है।*
➳ _ ➳ मास्टर सर्वशक्तिमान और मुश्किल? टाइटल अपने को क्या देते हो? मुश्किल योगी या सहज योगी? नहीं तो अपना टाइटल चेंज *करो कि हम सहज योगी नहीं हैं।* कभी सहजयोगी हैं, कभी मुश्किल योगी? और योग है ही क्या? बस, याद करना है ना। और *पावरफुल योग के सामने मुश्किल हो ही नहीं सकती। योग लगन की अग्नि है। अग्नि कितना भी मुश्किल चीज को परिवर्तन कर देती है। लोहा भी मोल्ड हो जाता है। यह लगन की अग्नि क्या मुश्किल को सहज नहीं कर सकती है?* कई बच्चे बहुत अच्छी-अच्छी बातें सुनाते हैं, बाबा क्या करें वायुमण्डल ऐसा है, साथी ऐसा है। हंस, बगुले हैं, क्या करें पुराने हिसाब-किताब हैं। बातें बहुत अच्छी-अच्छी कहते हैं। बाप पूछते हैं आप ब्राहमणों ने कौन सा ठेका उठाया है? ठेका तो उठाया है -विश्वपरिवर्त न करेंगे। *तो जो विश्व-परिवर्तन करता है वह अपनी मुश्किल को नहीं मिटा सकता?*
✺ *ड्रिल :- "सब बोझ बाप को देकर सहज योगी बनने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा की याद में खोती जा रहीं हूँ... *बाबा ने मुझ आत्मा को सहज योगी का वरदान दिया हैं...* मैं आत्मा कोई भी मुश्क़िल को सहज ही पार कर लेती हूँ... *कैसी भी परिस्थिति में मैं आत्मा मुश्क़िल में नही आती हूँ...* और ना ही किसी और आत्मा के लिए मुश्क़िल पैदा करती हूँ... प्राण प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को ऑफर किया हैं कि *जिस बोझ से मैं आत्मा भारी हो गई थी... उसे मुझे दे दो... मैं आत्मा अपने सारे बोझ बाप को देकर एकदम हल्की हो चुकी हूँ...*
➳ _ ➳ मुझ आत्मा को किसी भी प्रकार का बोझ महसूस नही हो रहा हैं... *मैं आत्मा अपने सारे बोझ बाप को सौंपकर परमात्म प्यार, सुख और ईश्वरीय जीवन का सुख ले रही हूँ...* मैं आत्मा किसी भी प्रकार का बोझ ना उठाते हुए उड़ रही हूँ... मुझ आत्मा को किसी भी प्रकार की थकावट नही हैं... ना मन की और ना ही तन की... *मुझ आत्मा को कोई उल्हना ना बाप से हैं और ना ही किसी और आत्मा से हैं... मैं सर्व स्नेही आत्मा हूँ...* मैं आत्मा ड्रामा के नॉलेज से एकदम हल्की हो गई हूं...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा क्या, क्यों, कैसे या और कोई भी क्वेश्चन में मूँझती नही हूँ...* क्योंकि परमात्मा मेरे साथ हैं, वो मुझ आत्मा को अपने पलकों में बिठाए हुए हैं... *मेरा सारा बोझ परमात्मा बाप ने ले लिया है...* वो पिता की तरह मेरी पालना कर रहे हैं... *मुझ आत्मा के 63 जन्मों के जो संस्कार हैं वो धीरे धीरे ख़त्म हो चुके हैं...* मैं आत्मा किसी भी प्रकार की मेहनत से मुक्त हूँ... मै आत्मा शिव साजन की मोहब्बत से आगे बढती जा रही हूँ... *मै आत्मा कभी भी किसी भी मुश्किल में नहीं आती हूँ...* मै आत्मा निरंतर योगी हूँ... मुझ आत्मा को किसी भी प्रकार के संस्कार मजबूर नहीं करते हैं... *मै स्वराज्य अधिकारी बन सहज योगी आत्मा बन गई हूँ... बापदादा के साथ मै आत्मा मेहनत मुक्त बन गई हूँ...* मुझ आत्मा के पुराने संस्कार समाप्त हो चुके हैं... *व्यर्थ संकल्प और संस्कारो के पीछे मैं आत्मा समय का अमूल्य ख़जाना व्यर्थ नहीं करती हूँ...*
➳ _ ➳ *मै आत्मा मास्टर सर्व शक्तिमान के स्वमान से निरंतर अपने आपको शक्तिशाली बना रही हूँ... मुझ मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा को कोई भी बात मुश्किल नहीं लगती हैं... बापदादा ने मुझ आत्मा को मास्टर सर्वशक्तिमान का टाइटल दिया हैं...* मुझ आत्मा के पास परमात्मा की दी हुई सर्व शक्तियाँ हैं... और उन्हें मै आत्मा समयानुसार यूज़ करती हूँ... *मै आत्मा निरंतर सहज योगी हूँ...* मेरा योग निरंतर एक बाप के साथ हैं... मै आत्मा कभी नही, अल्पकाल या कभी कभी की योगी नहीं हूँ... *बाबा के साथ पावरफुल योग द्वारा मैं आत्मा हर मुश्किल को आसान बना लेती हूँ... योग की अग्नि से मै आत्मा सारे विकारो, पुराने संस्कारों को भस्म कर रही हूँ...* जिस प्रकार अग्नि में कुछ भी चीज़ परिवर्तित हो जाती हैं... उसी प्रकार योग अग्नि से मेरे कड़े और पुरानें संस्कार भी परिवर्तित हो चुके हैं... *योग अग्नि और योग के प्रयोग से मुझ आत्मा के चारों ओर एक दिव्य आभामंडल बना हुआ हैं... जिससे हर बात सहज होती जा रही हैं... और ऐसा वायुमंडल बन गया है कि किसी भी अन्य आत्माओं और संस्कारों का असर मुझ आत्मा में नहीं पड़ता हैं...* बाबा ने मुझ आत्मा को विश्व परिवर्तन का कार्य सौपा हैं... *मैं आत्मा स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन के कार्य में बाप की साथी हूँ...*
➳ _ ➳ मै आत्मा बाप के साथ और याद द्वारा अपनी सारी मुश्किलों को मिटाती जा रही हूँ... *मै आत्मा अपने सारे बोझ और सारी मुश्किलें एक बाप को देकर एकदम मुक्त हो चुकी हूँ...* जहाँ बाप ने मुझ आत्मा को इतना बड़ा कार्य सौपा हैं, वहां मैं आत्मा किसी भी बात में हार नहीं खा रही हूँ... *सदैव एक बाप का हाथ पकड़ कर आगे और आगे बढती जा रही हूँ... सफ़लता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार हैं...* और दृढ़ संकल्प द्वारा हर कमी कमज़ोरी को समाप्त कर सफ़लता मूर्त बन गई हूँ... *बाबा ने मेरे सारे बोझ ले करके मुझे सहज योगी बना दिया हैं... धन्यवाद बाबा, आपका बहुत बहुत शुक्रिया...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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