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 26 / 05 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *देह का भान छोड़ अशरीरी बनने का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *पुरानी दुनिया से ममत्व मिटाया ?*

 

➢➢ *स्व स्थिति की शक्ति से किसी भी परिस्थिति का सामना किया ?*

 

➢➢ *सदा भाग्य के गुण गा भाग्यवान स्थिति का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *वर्तमान समय के प्रमाण अभी अपनी सेवा वा सेवा-स्थानों की दिनचर्या बेहद के वैराग्य वृत्ति की बनाओ। अभी आराम की दिनचर्या मिक्स हो गई है।* अलबेलापन शरीर की छोटी-छोटी बीमारियों के भी बहाने बनाता है। *अगर किसी पदार्थ की, साधनों की आकर्षण हैं तो साधना खण्डित हो जाती है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं निश्चयबुद्धि विजयी आत्मा हूँ"*

 

  निश्चय बुद्धि विजयी आत्माएं हैं - ऐसा अनुभव करते हो? सदा निश्चय अटल रहता है? वा कभी डगमग भी होते हो? *निश्चयबुद्धि की निशानी है - वो हर कार्य में, चाहे व्यावहारिक हो, चाहे परमार्थी हो, लेकिन हर कार्य में विजय का अनुभव करेगा। कैसा भी साधारण कर्म हो, लेकिन विजय का अधिकार उसको अवश्य प्राप्त होगा, क्योंकि ब्राह्मण जीवन का विशेष जन्म सिद्ध अधिकार विजय है।*

 

  कोई भी कार्य में स्वयं से दिल शिकस्त नहीं होगा, क्योंकि उसे निश्चय है कि विजय जन्म सिद्ध अधिकार है। तो इतना अधिकार का नशा रहता है। *जिसका भगवान मददगार है उसकी विजय नहीं होगी तो किसकी होगी! कल्प पहले का यादगार भी दिखाते हैं कि जहाँ भगवान है वहाँ विजय है। चाहे पांच पाण्डव दिखाते हैं, लेकिन विजय क्यों हुई? भगवान साथ है, तो जब कल्प पहले यादगार में विजयी बने हो तो अभी भी विजयी होंगे ना?*

 

  *कभी भी कोई कार्य में संकल्प नहीं उना चाहिए कि ये होगा, नहीं होगा, विजय होगी या नहीं, होगी.. - यह क्वेश्चन उठ नहीं सकता। कभी भी बाप के साथ वाले की हार हो नहीं सकती। यह कल्प-कल्प की नूंध निश्चित है।* इस भावी को कोई टाल नहीं सकता। इतना दृढ़ निश्चय सदा आगे उड़ाता रहेगा। तो सदा विजय की खुशी में नाचते गाते रहो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *अभी तो फिर भी रात और दिन में आराम करने का टाइम मिलता है, लेकिन फिर तो यह रेस्ट लेना, यह भी समाप्त है जायेगा।* लेकिन जितना अव्यक्त लाइट रूप में स्थित होंगे, उतना ही शरीर से परे का अभ्यास होने के कारण यदि दो - चार मिनिट अशरीरी बन जावेंगे, जैसे कि नींद से शरीर को खुराक मिल जाती है, वैसे ही यह भी खुराक मिल जायेगी।

 

✧  शरीर तो पुराने ही रहेंगे। हिसाब - किताब पुराना तो होगा ही। सिर्फ उसमें यह एडीशन होगी। *लाइट स्वरूप के स्मृति को मजबूत करने के हिसाब - किताब चुक्त करने में भी लाइट रूप हो जावेंगे।*

 

✧  *जैसे इन्जेक्शन लगाने से पाँच मिनिट में ही फर्क पड जाता है, वैसे ही नींद की गोली लेने से भी परेशानी समाप्त हो जाती है।* आप भी ऐसे ही समझो कि यह हम नींद की खुराक लेते हैं। ऐसी स्टेज लाने के लिये ही यह अभ्यास है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ क्या अपने को एक सेकण्ड में वाणी से परे वानप्रस्थ अवस्था में स्थित कर सकते हो? जैसे वाणी में सहज ही आ जाते हो, क्या वैसे ही वाणी से परे, इतना ही सहज हो सकते हो? कैसी भी परिस्थिति हो, वातावरण हो, वायुमण्डल हो या प्रकृति का तूफान हो लेकिन इन सबके होते हुए, देखते हुए, सुनते हुए, महसूस करते हुए, *जितना ही बाहर का तूफान हो, उतना स्वयं अचल, अटल, शान्त स्थिति में स्थित हो सकते हो? शान्ति में शान्त रहना बड़ी बात नहीं है, लेकिन अशान्ति के वातावरण में भी शान्त रहना इसको ही ज्ञान-स्वरूप, शक्ति-स्वरूप, याद-स्वरूप और सर्वगुण-स्वरूप कहा जाता है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- श्रीमत पर चल वर्से के लायक बनना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा जब परमधाम से इस सृष्टि पर आई थी तो बाबा की वरदानों से भरपूर होकर अपने सम्पन्न स्वरुप में थी... 16 कलाओं से सम्पन्न थी... फिर धीरे-धीरे माया के वश होती गई... आधे कल्प से मैं आत्मा माया के मत पर चलकर श्रापित हो गई थी...* बाबा के दिए हुए गुणों-शक्तियों को खोकर कलाविहीन हो गई थी... अब फिर बाबा आये हैं मुझे माया के श्राप से मुक्त कराने... फिर से सम्पन्न सृष्टि की मालिक बनाने... *मैं आत्मा उड़कर पहुँच जाती हूँ वतन में बाबा से श्रीमत लेने...*

 

  *दुःख देने वाले रावण की मत को छोड़ने श्रीमत देकर वर्से के लायक बनाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... देह और विकारो के आकर्षण में जीवन दारुण दुखो से भर गया है... *अब ईश्वरीय मत पर चलकर इसे मीठे सुख शांति और प्रेम की बगिया बना दो... श्रीमत के साये में फूलो सा खिल जाओ... और विकारो की परछाई से मुक्त होकरसदा के प्रकाशवान हो जाओ..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा श्रीमत की राह पर चलकर सहजता से अपनी मजिल को पाते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... *मैं आत्मा ईश्वरीय प्यार में और श्रीमत के हाथो में कितनी सुखी और खुशनुमा हो गयी हूँ... देह के भान से निकल कर आत्मिक स्मृति में सज गयी हूँ...* श्रीमत ने जीवन कितना प्यारा और बेफिक्र और खुशियो से सजा दिया है..."

 

  *मीठे बाबा श्रेष्ठ मत की झंकार को मेरे जीवन में गुंजाते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *श्रीमत ही अनन्त सतयुगी सुखो का सच्चा आधार है... जितना श्रीमत पर चलेंगे... उतना ही सुखो के मखमल पर देवताई कदम धरेंगे...* संगम पर श्रीमत को मन बुद्धि दिल में समायेंगे... उतने ही मीठे सुखो की जागीर को बाँहों में पाएंगे... दुःख रहित सतयुगी राज्य में सदा के मुस्करायेंगे..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा ज्ञान की रोशनी से रोशन होते हुए बाबा से कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपके प्यार को पाकर सच्चे प्रेम की बदली हो गई हूँ... *श्रीमत की सुखदायी राहो पर कदम रखकर... बेगमपुर की मालिक हो गयी हूँ... चहुँ ओर असीम सुख व्याप्त हो गया है...* और मै आत्मा आपका हाथ पकड़कर दुखो के दलदल से बाहर हो गयी हूँ..."

 

  *प्यारे बाबा अपने मखमली गोदी में बिठाकर सुखों की शहनाई बजाते हुए कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... श्रीमत के सुखदायी घेरे में रावण के दुखदायी पंजो सेसदा के सुरक्षित हो... *ईश्वर पिता की स्नेह छत्रछाया में फूलो सा महक रहे हो... सदा श्रीमत की मीठी बाँहों में झूलते रहो... ईश्वर पिता की गोद से कभी नीचे उतरपाँव मटमैले ना करो*... तो सुखो की स्निग्धता कोमलता और खुशबु सदा बनी रहेगी... और दुःख के काँटों से परे रहेंगे..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा श्रीमत को गले लगाकर 21 जन्मों के श्रेष्ठ भाग्य को पाकर कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा इस कदर मीठे भाग्य को पाऊँगी... ईश्वरीय दिल की धड़कन बन मुस्कराऊंगी... *और श्रीमत के आलिंगन में सदा प्रेमसुखशांति की तरंगो को पाऊँगी... मीठे बाबा ऐसा तो कभी कल्पनाओ में भी न सोचा था... आपने तो मुझे सुखो के आसमाँ पर बिठा दिया है..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  बाप को याद कर, बाबा की श्रीमत पर चल पूरा माया के श्राप से मुक्त होना है*

 

_ ➳  63 जन्मों से एकछत्र राज्य करने वाली माया का सिहांसन आज जब हिल रहा है तो माया कैसे भिन्न - भिन्न प्रकार के रॉयल रूप धारण कर सबको अपनी और आकर्षित कर रही है यह दृश्य, अपने फ़रिश्ता स्वरूप में स्थित हो कर इस मायावी दुनिया का चक्कर लगाते हुए मैं स्पष्ट देख रहा हूँ। और *मन ही मन विचार कर रहा हूँ कि माया के झूठे प्रलोभनों में फंसी सारी दुनिया बेचारी इस बात से भी अनजान है कि माया की यह चकाचौंध जो उन्हें आकर्षित कर रही है यही वास्तव में उनके दुख का कारण है*। और इस दुख से, अर्थात माया की गुलामी से अगर कोई उन्हें मुक्त कर सकता है तो वो केवल सर्वशक्तिवान भगवान ही कर सकते हैं।

 

_ ➳  कितनी सौभाग्यशाली है वो ब्राह्मण आत्मायें जिन्होंने उस सर्वशक्तिवान भगवान को अपना साथी बनाया है और उनकी श्रीमत पर चल, उनकी याद में रह, माया के श्राप से मुक्त होने का पुरुषार्थ कर रहे हैं। *यही विचार करता हुआ मैं फ़रिश्ता सारे विश्व मे चक्कर लगाकर अब ऊपर आकाश की ओर उड़ जाता हूँ। पूरे पोलार में विचरण करता, सौरमण्डल, तारामण्डल को पार कर उससे ऊपर फरिश्तो की आकारी दुनिया मे मैं प्रवेश करता हूँ*। सफेद प्रकाश से प्रकाशित फरिश्तो की यह आकारी दुनिया जहाँ अव्यक्त ब्रह्मा बाबा अपने सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप में अपने बच्चों को आप समान बनाने की सेवा आज भी कर रहें हैं। *अपने उस अति प्यारे मीठे ब्रह्मा बाप के पास मैं फरिश्ता पहुँचता हूँ और उनकी बाहों में जा कर समा जाता हूँ*।

 

_ ➳  ब्रह्मा बाबा की भृकुटी में विराजमान अपने निराकार शिव पिता को मैं स्पष्ट देख रहा हूँ, जो अपना सम्पूर्ण प्यार मुझ पर लुटाते हुए अपनी नजरों से मुझे निहाल कर रहें हैं। *बिना पलक झपकाए एकटक उन्हें निहारते हुए मैं उनके नयनों में अपने लिए समाये असीम प्यार को देख मन ही मन हर्षित हो रहा हूँ। बाबा की गोदी में अपना सिर रखकर परमात्म प्यार का मैं असीम सुख ले रहा हूँ*। सिर पर बाबा के हाथों का हल्का - हल्का स्पर्श मुझे परमात्म शक्तियों से भरपूर कर रहा है। परमात्म बल से भरपूर हो कर मैं स्वयं को एकदम हलका अनुभव कर रहा हूँ। *आंखों को बंद करके बाबा की गोद मे सिर रख कर परमात्म पालना के दिव्य अलौकिक आनन्द में गहराई तक समाकर अथाह सुकून पाकर अब मैं फ़रिश्ता बाबा की गोदी से उठकर उनके सामने बैठ जाता हूँ*।

 

_ ➳  अपना वरदानी हाथ बाबा मेरे सिर के ऊपर रख देते हैं और मुझे माया के श्राप से मुक्त रहने के लिए मायाजीत भव का वरदान देकर मेरे मस्तक पर विजय का अविनाशी तिलक लगा देते हैं। *अपना अष्ट शक्तियों का अलग - अलग स्वरुप धारण कर बापदादा मेरे सामने आकर अब एक - एक शक्ति से भरपूर अपनी शक्तिशाली किरणे मुझ फ़रिश्ते में प्रवाहित करते जा रहें हैं और मुझे अष्ट शक्तियों से सम्पन्न बना रहें हैं*। बापदादा के अष्ट शक्तियों के अष्ट स्वरूपों से आठों शक्तियों को स्वयं में भरपूर करके अब मैं सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप बन कर, अपने निराकार स्वरूप में स्थित होकर अपने सर्वशक्तिवान शिव पिता से शक्तियों का स्टॉक फुल करने के लिए उनके धाम की ओर चल पड़ती हूँ।

 

_ ➳  एक उड़ान भरकर ही मैं पहुँच जाती हूँ अपने सर्वशक्तिवान शिव पिता के पास और अपनी ओरिजनल बीज रूप स्थिति में स्थित हो कर अपने बीज रूप परमात्मा बाप के पास जा कर बैठ जाती हूँ। *उनके सानिध्य में बैठ, मैं गहन अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर रही हूँ। बीजरूप बाबा से आती सर्वशक्तियों रूपी किरणों की बौछारें मुझे असीम बल प्रदान कर रही हैं*। बाबा से आती सर्वशक्तियों को स्वयं में समाकर मैं जैसे शक्तियों का पुंज बनती जा रही हूँ और बहुत ही शक्तिशाली स्थिति का अनुभव कर रही हूँ।

 

_ ➳  शक्ति स्वरूप स्थिति में स्थित हो कर मैं पुनः लौट आती हूँ अपने साकारी ब्राह्मण तन में और भृकुटि पर विराजमान हो कर मैं बाबा का आहवाहन करती हूँ। मेरा आहवाहन सुन कर मेरे प्यारे शिव बाबा अपनी सर्वशक्तियां बिखेरते हुए परमधाम से नीचे आ जाते हैं। *अब मैं स्वयं को सर्वशक्तिवान बाबा की छत्रछाया के नीचे अनुभव कर रही हूँ। बाबा से आ रही सर्वशक्तियों से मेरे चारों ओर एक शक्तिशाली ओरा बनता जा रहा है। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे मेरे चारो और शक्तियों का एक किला बन गया है और इस किले में मैं पूरी तरह सुरक्षित हूँ क्योंकि इस किले के ऊपर निरन्तर मेरे सर्वशक्तिवान शिव पिता की छत्रछाया है*।

 

_ ➳  इस सेफ्टी के किले में अब स्वयं को सदा बाबा के साथ कम्बाइंड अनुभव करते हुए, बाबा की याद और बाबा की श्रीमत पर चलते हुए, अपने अष्ट शक्ति स्वरूप को सदा इमर्ज रखकर, माया के श्राप से अब मैं मुक्त होती जा रही हूँ और माया के हर वार को पहचान कर, उस पर विजय प्राप्त कर मायाजीत बनती जा रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं स्व - स्थिति की शक्त्ति से किसी भी परिस्थिति का सामना करने वाली मास्टर नॉलेजफुल आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं कमजोरियों के नहीं, सदा भाग्य के गुण गाने वाली भाग्यवान आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ सेवाधारी भी सब हो, धारणा मूर्त भी सब हो, परन्तु धारणा स्वरूप में नम्बरवार हो। कोई सर्वगुण सम्पन्न बने हैं, कोई गुण सम्पन्न बने हैं। कोई सदा धारणा स्वरूप हैं, कोई कभी धारणा स्वरूप, कभी डगमग स्वरूप। *एक गुण को धारण करेंगे तो दूसरा समय पर कर्त्तव्य में ला नहीं सकेंगे।* जैसे एक ही समय पर सहनशक्ति भी चाहिए और साथ-साथ समाने की शक्ति भी चाहिए। अगर एक शक्ति वा एक सहनशीलता के गुण को धारण कर लेंगे और समाने की शक्ति वा गुण को साथ-साथ यूज़ नहीं कर सकेंगे और कहेंगे कि इतना सहन तो किया ना? यह कोई कम किया क्या! यह भी मुझे मालूम है, मैंने कितना सहन किया,लेकिन सहन करने के बाद अगर समाया नहीं, समाने की शक्ति को यूज़ नहीं किया तो क्या होगा? यहाँ-वहाँ वर्णन होगा इसने यह किया, मैंने यह किया, तो सहन किया, यह कमाल जरूर की लेकिन कमाल का वर्णन कर कमाल को धमाल में चेन्ज कर लिया। क्योंकि *वर्णन करने से एक तो देह अभिमान और दूसरा परचिन्तन दोनों ही स्वरूप कर्म में आ जाते हैं।*

✺ *"ड्रिल :- सहनशक्ति और समाने की शक्ति दोनों का समान रूप से अनुभव करना"*

➳ _ ➳ चारों तरफ हरियाली ही हरियाली है... सभी पेड़-पौधे फूल-पत्तियों से सजकर खुश हो रहे है... ऊँचे-ऊँचे पहाड़ मानों इस जगह को घेरे हुए हैं... इस स्थान की ताजगी मेरे मन को मोह रही है... इस खुशनुमा वातावरण को मैं देखकर अति हर्षित हो रही हूँ... *तभी मेरी नज़र एक वृक्ष पर पड़ती है, जो फलों से लदा हुआ है...* उसे देखकर मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है... मानों ये मुझे अपने पास बुला रहा हो... मैं बिना कुछ देर किये उसके पास चली जाती हूँ... और महसूस करती हूँ की ये पेड़ मुझे कुछ कहने की कोशिश कर रहा है...

➳ _ ➳ कुछ समय रुकने के बाद मैं अपनी मन बुद्धि को एकाग्र कर, उस पेड़ की आवाज़ सुनने की कोशिश करती हूँ... मैं आत्मा महसूस करती हूँ... कि ये पेड़ मुझसे कह रहा है... अगर इस संसार का हर व्यक्ति अपने अंदर मेरे समान गुण धारण करें तो, सब सुखी होंगे... जैसे मैं सभी मनुष्यों को फल, छाँव, फूल, आदि सब देता हूँ... फिर भी इस सृष्टि के लोग अपने स्वार्थ के लिए मुझे कष्ट पहुंचाते हैं... *फल प्राप्त करने के लिए मुझे पत्थर मारते हैं... मैं उस समय सहनशक्ति को प्रयोग में लाकर उन्हें उनके लिये फल देता हूँ... और साथ ही अपने कर्तव्य का पालन भी करता हूँ...*

➳ _ ➳ और सहन शक्ति के प्रयोग के साथ ही मैं समानें की शक्ति का भी प्रयोग करता हूँ... *जब लोग मुझे अपने स्वार्थ के लिए कष्ट पहुंचाते हैं तब भी मैं उनके इस कार्य को भूलकर सब कुछ अपने अंदर समा लेता हूँ... और उनके प्रति कोई दुर्भावना नहीं रखते हुए उन्हें सदा फल-फूल देता ही रहता हूँ... और ना कभी इन्हें अपने कष्टों के बारे में बताता हूँ...* बस सहनशक्ति और समाने की शक्ति को प्रयोग करते हुए अपना कर्तव्य निभाता रहता हूँ... इतने में मेरा अंतर्मन अपने सामने बाबा को देखता है... और मैं स्थिर होकर बाबा की बातें सुनती हूँ...

➳ _ ➳ बाबा मुझसे कहते हैं मेरे मीठे-मीठे बच्चे तुम भी इस वृक्ष की तरह अपने जीवन को गुणों से सुसज्जित कर अपना कर्तव्य निभाते चलो... सभी गुणों का समय पर प्रयोग कर सदा उड़ती कला का अनुभव करो... एक समय पर कई शक्तियों का यूज़ करके सदा ऊंचाइयों की तरफ बढ़ते रहो... और अपने द्वारा किये हुए कार्य का कभी वर्णन नहीं करना... *क्योंकि अगर सेवा का वर्णन करेंगे तो तुम्हारे अंदर देहभान आएगा... और अगर देहभान आया तो तुम सेवा नहीं कर पाओगे... सेवा करके तुम हमेशा कमाल करते रहो... परन्तु सेवा का वर्णन करके धमाल नहीं करना...* सेवा का कमाल करते हुए सदा उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होते रहो...

➳ _ ➳ बाबा के ये वचन सुनकर मैं बाबा से कहती हूँ... बाबा- *अब सेवा करते समय हमेशा समाने की शक्ति और सहनशीलता के गुण का यूज़ करूँगी... और शक्तियों औऱ गुणों का एक साथ प्रयोग कर सच्ची सेवा करूँगी...* बिना किसी देहभान में आकर... अगर किसी परिस्थिति के कारण मुझे सहन करना भी पड़ा तो उसे वर्णन में नहीं लाऊंगी... और कभी भी परचिन्तन को अपने जीवन में शामिल नहीं करुँगी... क्योंकि अगर परचिन्तन आयेगा तो किसी भी गुण और शक्तियों को मैं सही तरह यूज़ नहीं कर पाऊंगी... इसलिए सदा एकसाथ सहनशीलता का गुण और समानें की शक्ति को प्रयोग में लाकर ही सेवा करूँगी... और आगे बढ़ती जाउंगी...
 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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