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❍ 07 / 09 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *स्वयं में ज्ञान का घृत डाल सदा जागती ज्योत बनकर रहे ?*
➢➢ *आत्माओं को रूहानी और जिस्मानी बाप का परिचय दिया ?*
➢➢ *बिंदु रूप में स्थित रह सारयुक्त, योगयुक्त, युक्तियुक्त स्थिति का नुभव किया ?*
➢➢ *"बाबा" शब्द की डायमंड चाबी साथ रख सर्व खाजनाओ की अनुभूति की ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *एकान्तवासी अर्थात् कोई भी एक शक्तिशाली स्थिति में स्थित होना।* चाहे बीजरूप स्थिति में स्थित हो जाओ, चाहे लाइट-हाउस, माइट-हाउस स्थिति में स्थित हो जाओ अर्थात् विश्व को लाइट-माइट देने वाले-इस अनुभूति में स्थित हो जाओ। *तो यह एक मिनट की स्थिति भी स्वयं को और औरों को भी बहुत लाभ दे सकती है।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं नवजीवन वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ"*
〰✧ *अपने को नव जीवन अर्थात् ब्राह्मण जीवन वाली आत्मायें अनुभव करते हो? सभी ब्रह्मण आत्मायें हो? तो नये जीवन में आपकी जन्म पत्री बदल गयी है या थोड़ी-थोड़ी पुरानी भी है? तो ब्राह्मणों की जन्म पत्री क्या है? आदि देवी-देवता हो और अभी बी.के. हो ना, पक्के?*
〰✧ *तो आपकी रोज की जन्म पत्री क्या है? गुरुवार अच्छा है, बुद्धवार अच्छा नहीं है, क्या कहेंगे? (हर दिन अच्छा है) तो जन्म पत्री बदल गयी ना। ब्राह्मणों की जन्म पत्री में तीनों ही काल अच्छे से अच्छा है। जो हुआ वह भी अच्छा और जो हो रहा है वो और अच्छा और जो होने वाला है वह बहुत-बहुत-बहुत अच्छा।*
〰✧ *सिर्फ कहने मात्र नहीं लेकिन ब्राह्मण जीवन की जन्म पत्री सदा ही अच्छे से अच्छी है। सभी के मस्तक पर श्रेष्ठ तकदीर की लकीर खींची हुई है। अपने तकदीर की लकीर देखी है? अच्छी है ना?*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ बाह्यमुखता में आना सहज है लेकिन *अन्तर्मुखी का अभ्यास अभी समय प्रमाण बहुत चाहिए।*
कई बच्चे कहते हैं - एकान्तवासी बनने का समय नहीं मिलता, अन्तर्मुखी स्थिति का अनुभव करने का समय नहीं मिलता क्योंकि सेवा की प्रवृत्ति, वाणी के शक्ति की प्रवृत्ति बहुत बढ़ गई है।
〰✧ लेकिन इसके लिए कोई इकट्ठा आधा वा एक घण्टा निकालने की आवश्यकता नहीं है। *सेवा की प्रवृति में रहते भी बीच-बीच मे इतना समय मिल सकता है* जो एकान्तवासी बनने का अनुभव करो। एकान्तवासी अर्थात कोई भी एक शक्तिशाली स्थिति में स्थित होना चाहे बीजरूप स्थिति में स्थित हो जाओ, चाहे लाइटहाउस, माइट-हाउस स्थिति में स्थित हो जाओ अर्थात *विश्व को लाइट-माइट देने वाले* - इस अनुभूति में स्थित हो जाओ।
〰✧ *चाहे फरिश्ते-पन की स्थिति द्वारा औरों को भी अव्यक्त स्थित का अनुभव कराओ।* एक सेकण्ड वा एक मिनट अगर इस स्थिति में एकाग्र हो स्थित हो जाओ तो *यह एक मिनट की स्थिति स्वयं आपको और औरों को भी वहुत लाभ दे सकती है।* सिर्फ इसकी प्रैक्टिस चाहिए।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ किसी को भी देखते हो तो आत्मिक वृत्ति से, आत्मिक दृष्टि से मिलते हो। जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि। *अगर वृत्ति और दृष्टि में आत्मिक दृष्टि है तो सृष्टि कैसी लगेगी? आत्माओं की सृष्टि कितनी बढ़िया होगी।* शरीर को देखते भी आत्मा को देखेंगे। शरीर तो साधन है। लेकिन इस साधन में विशेषता आत्मा की है ना। आत्मा निकल जाती है तो शरीर के साधन की क्या वैल्यु है। *आत्मा नहीं है तो देखने से भी डर लगता है। तो विशेषता तो आत्मा की है। प्यारी भी आत्मा लगती है।* तो ब्राह्मणों के संसार में स्वत: चलते-फिरते आत्मिक दृष्टि, आत्मिक वृत्ति है इसलिए कोई दु:ख का नाम-निशान नहीं। क्योंकि दु:ख होता है तो शरीर भान से। *अगर शरीरभान को भूलकर आत्मिक-स्वरूप में रहते हैं तो सदा सुख-ही-सुख है। सुखदायी-सुखमय जीवन।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अपनी ज्योति जगाकर विश्व के मालिक बन जाना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ज्योति परमज्योति से मिलने पहुँच जाती हूँ परमधाम... परमज्योति से निकलती दिव्य किरणों को मैं आत्मा ज्योति अपने में समा रही हूँ... ज्ञान सूर्य बाबा ने मेरी बुझी हुई ज्योति को ज्ञान घृत डालकर जगा दिया है...* और मेरी तकदीर में चार चाँद लगा दिया है... सुन्दर नई सृष्टि रचकर मुझे विश्व का मालिक बना दिया है... दिव्य किरणों से दिव्यता को ग्रहण कर मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन में बापदादा के पास...
❉ *मुझ आत्मा को ज्ञान का तीसरा नेत्र देकर त्रिनेत्री बनाकर ज्ञानसागर प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे बच्चे... ज्ञानसागर पिता सारे खजाने हथेली पर लेकर धरती की ओर रुख कर दिया... *बच्चों के जीवन में सुख के फूल खिलाने बागबाँ बन गया... आत्मा की मन्द हुई ज्योति को ज्ञान के प्रकाश से रौशन कर दिया...”*
➳ _ ➳ *देह के झूठे आवरण से निकल आत्मदर्शन करते हुए मैं आत्मा मणि कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा शक्तिहीन होकर मद्धम हो गई थी... *देह की मिटटी में धस कर उर्जाहीन हो गई थी... आपने आकर मेरी चेतना को जागृत किया है... मेरी ज्योति को जगा दिया है...”*
❉ *अज्ञानता के अंधकार से निकाल मेरे ज्ञान चक्षुओं को खोलकर ज्ञान सूर्य प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे बच्चे... विकारो में फस कर देहभान में घिर कर फूल से खिलते महकते बच्चे कुम्हला रहे... *धीमे से प्रकाश में धुंधला रहे हो... मै पिता ज्ञान का उजला धवल प्रकाश ले आया हूँ... अपने बुझते चिराग बच्चों को प्रज्जवलित कर सदा का रौशन करने आया हूँ...”*
➳ _ ➳ *ज्ञान के प्रकाश में अपने चमकते हुए अविनाशी सत्य स्वरुप को देख मैं आत्मा बिंदु कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ज्ञान के तीसरे नेत्र को पाकर अपने ही खूबसूरत रूप को देख मोहित हो गई हूँ... *अपनी ज्योति को प्रकाशित देख सदा की खूबसूरती से सज रही हूँ...”*
❉ *राहू के ग्रहण की कालिमा को धोकर बृहस्पति की दशा बिठाकर मेरे जीवन को उज्जवल करते हुए वृक्षपति बाबा कहते हैं:-* “प्यारे बच्चे... मिटटी के नेत्रो से दुनिया देखते देखते मटमैले हो गए हो... *अब मीठा बाबा ज्ञान प्रकाश से निखार रहा... ज्ञान के खूबसूरत नेत्र से जीवन खूबसूरत बहारो से रंग रहा... बच्चों को ज्ञान खजाना देकर विश्वमालिक बना रहा...”*
➳ _ ➳ *पवित्र किरणों की तरंगो से सजधजकर महाभाग्यवान बन मुस्कराते हुए मैं ज्योतिर्मय आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ज्ञान के रत्नों से लबालब हो गई हूँ... *अपनी रौशनी को पाकर निहाल हो उठी हूँ... गुणो और शक्तियो से महक उठी हूँ... आपके प्यार में चमक रही हूँ...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- स्वयं में ज्ञान का घृत डालते सदा जगती ज्योत रहना है*
➳ _ ➳ अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर को धारण किये सारे विश्व का भ्रमण करते हुए मैं देख रही हूँ सारे संसार की गतिविधियों को, दुख और अशांति से मुरझाये लोगो के चेहरों को, जिन पर एक पीड़ा, एक दर्द की झलक स्पष्ट दिखाई दे रही है। *उन सबकी आत्मा रूपी ज्योति को मैं देख रही हूँ जो बिल्कुल उझाई हुई है और इस लिए दुख, निराशा से सबके चेहरे भी मुरझाये हुए है तो आत्मा की ज्योति भी धूमिल दिखाई दे रही है*। यह दृश्य देखती हुई मैं विचार करती हूँ कि इन सबको दुखो से लिबरेट कर अगर इन्हें कोई सदा के लिए सुखी बना सकता है तो वो है सर्व का लिबरेटर केवल एक परम पिता परमात्मा। *वही ज्ञानसूर्य शिव भगवान सारे विश्व की आत्माओं की उझाई हुई ज्योति को फिर से जगाने के लिए ही इस धरा पर पधारे हैं और सभी आत्मा रूपी दीपको में ज्ञान का घृत डाल सबकी ज्योति जगा रहें हैं*।
➳ _ ➳ देख रही हूँ अब मैं उन सभी ब्राह्मण बच्चों के दिव्य आभा से दमकते चेहरों और उनके मस्तक पर चमक रही मणियों को जिन्होंने भगवान को पहचाना है और उनसे हर रोज ज्ञान का घृत लेकर आत्मा रूपी दीपक में डाल कर अपनी ज्योति को जगा रहे हैं। *कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हैं ये सभी ब्राह्मण आत्मायें जो भगवान की पालना में पल रही हैं, यही विचार करते - करते अपने ब्राह्मण स्वरूप को स्मृति में लाकर मैं फरिश्ता उन अखुट अविनाशी प्राप्तियों को याद करके आनन्दविभोर हो जाता हूँ जो ब्राह्मण बनते ही बाबा से मुझे प्राप्त हुई है*। सर्वगुण, सर्व शक्तियाँ और सर्व खजाने जो जन्मते ही बाबा ने मुझे प्रदान किये हैं, उनकी स्मृति मात्र से ही मैं आत्मा अविनाशी नशे से झूम उठती हूँ और उनसे मिलने के लिए व्याकुल हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपनी लाइट की सूक्ष्म आकारी देह को धारण किये, अव्यक्त वतन की और मैं उड़ान भरती हूँ और सेकण्ड में सूर्य, चाँद, तारागणों को पार कर फरिश्तो की उस अव्यक्त दुनिया मे आ जाती हूँ जहाँ प्यारे ब्रह्मा बाबा अपने सम्पूर्ण फरिश्ता स्वरूप में अपने बच्चों को आप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनाने के लिए वतन में इंतजार कर रहे हैं। *फरिश्तो की इस जगमगाती दुनिया मे आकर देख रही हूँ मैं यहाँ के खूबसूरत नज़ारो को। मेरे बिल्कुल सामने है अव्यक्त ब्रह्मा बाबा और उनकी भृकुटि में चमक रहे ज्ञानसूर्य शिवबाबा जिनसे निकल रही सर्वशक्तियों की अनन्त धाराएं सारे वतन में फैल रही हैं और पूरा वतन सफेद चाँदनीे के प्रकाश की तरह जगमगा रहा है*। इन खूबसूरत नज़ारो का आनन्द लेते हुए धीरे - धीरे मैं बापदादा के पास पहुँचती हूँ। अपनी मीठी दृष्टि मुझ पर डालते हुए बाबा अपनी नजरों से मुझे निहाल कर रहें हैं और अपनी सारी शक्तियां मेरे अन्दर भर रहें हैं।
➳ _ ➳ बापदादा से मिलन मना कर, शक्तियों से भरपूर होकर, अपनी फरिश्ता ड्रेस को उतार, निराकारी स्वरूप को धारण कर अब मैं जा रही हूँ अपनी निराकारी दुनिया में। *आत्माओं की इस निरकारी दुनिया मे आकर अपने निराकार शिव पिता की किरणों रूपी बाहों में समाकर मैं स्वयं को तृप्त कर रही हूँ। ज्ञान सागर मेरे प्यारे पिता से, ज्ञान की शीतल किरणो की बरसात निरन्तर मेरे ऊपर हो रही है और इन रिमझिम फ़ुहारों का आनन्द लेते, अपने पिता के सानिध्य में बैठ मैं ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसे ज्ञान सागर में मैं डुबकी लगा रही हूँ और ज्ञान के शीतल जल से स्नान करके, बाप समान मास्टर ज्ञान का सागर बन रही हूँ*। अपने प्यारे पिता के सर्व गुणों तथा सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर करके मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट आती हूँ और अपनी साकार देह में भृकुटि के अकालतख्त पर आकर विराजमान हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अपनी आत्म ज्योति को सदा जगाये रखने के लिए मैं स्वयं में ज्ञान का घृत अब निरन्तर डाल रही हूँ। ज्ञान सागर अपने प्यारे पिता के ज्ञान के अखुट ख़जानो से अपनी बुद्धि रूपी झोली को सदा भरपूर रखने के लिए मैं स्वयं को सदा ज्ञान सागर अपने पिता के साथ कम्बाइंड रखती हूँ। *मुरली के माध्यम से बाबा जो अविनाशी ज्ञान रत्न हर रोज मुझे देते हैं उन अविनाशी ज्ञान रत्नों को स्वयं में धारण कर, दूसरों को भी उन अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान देकर, सबमे ज्ञान का घृत डाल उनकी ज्योति को जगा कर उन्हें भी सदा जगती ज्योत बनाने का कर्तव्य मैं निरन्तर कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मै बिन्दू रूप में स्थित रह सारयुक्त्त, योगयुक्त्त, युक्तियुक्त स्वरूप का अनुभव करने वाली सदा समर्थ आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं "बाबा" शब्द की डायमंड चाबी साथ रखकर सर्व खजानों की अनुभूति करने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *ब्राह्मण जीवन की मूड सदा चियरफुल और केयरफुल। मूड बदलना नहीं चाहिए।* फिर रायल रूप में कहते हैं आज मुझे बड़ी एकान्त चाहिए। क्यों चाहिए? क्योंकि सेवा वा परिवार से किनारा करना चाहते हैं, और कहते हैं शान्ति चाहिए, एकान्त चाहिए। आज मूड मेरा ऐसा है। तो मूड नहीं बदली करो। कारण कुछ भी हो, लेकिन आप कारण को निवारण करने वाले हो, कि कारण में आने वाले हो? निवारण करने वाले। ठेका क्या लिया है? *कान्ट्रैक्टर हो ना? तो क्या कान्ट्रैक्ट लिया है? कि प्रकृति की मूड भी चेंज करेंगे।* प्रकृति को भी चेंज करना है ना? *तो प्रकृति को परिवर्तन करने वाले अपने मूड को नहीं परिवर्तन कर सकते?*
➳ _ ➳ मूड चेंज होती है कि नहीं? कभी-कभी होती है? *फिर कहेंगे सागर के किनारे पर जाकर बैठते हैं, ज्ञान सागर नहीं, स्थूल सागर।* फारेनर्स ऐसे करते हैं ना? *या कहेंगे आज पता नहीं अकेला, अकेला लगता है। तो बाप का कम्बाइण्ड रूप कहाँ गया?* अलग कर दिया? कम्बाइण्ड से अकेले हो गये, क्या इसी को प्यार कहाँ जाता हैं? तो किसी भी प्रकार का मूड, एक होता है - मूड आफ, वह है बड़ी बात, लेकिन मूड परिवर्तन होना यह भी ठीक नहीं। मूड आफ वाले तो बहुत भिन्न-भिन्न प्रकार के खेल दिखाते हैं, बापदादा देखते हैं, बड़ों को बहुत खेल दिखाते हैं या अपने साथियों को बहुत खेल दिखाते हैं। ऐसा खेल नहीं करो। क्योंकि बापदादा का सभी बच्चों से प्यार है। बापदादा यह नहीं चाहता कि जो विशेष निमित्त हैं, वह बाप समान बन जाएं और बाकी बने या नहीं बनें, नहीं। *सबको समान बनाना ही है, यही बापदादा का प्यार है।*
✺ *ड्रिल :- "बाप के साथ कम्बाइण्ड रह सदा चियरफुल और केयरफुल रहने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा एक शांत स्थान पर प्रकृति के बीच बैठी हूँ... चारों ओर हरे भरे पेड़ दिखाई दे रहे हैं और यहां की शान्ति मुझ आत्मा में समा रही है... मैं आत्मा अब इस देह को छोड़कर अपने बापदादा के पास सूक्ष्म वतन में आकर ठहरी हूँ... *मेरे बापदादा बेहद प्यार भरी दृष्टि मुझे दे रहे हैं और मैं आत्मा अपने बाबा की शक्तिशाली किरणों से चमक उठी हूँ...*
➳ _ ➳ बाबा के सानिध्य में आकर मैं आत्मा एकदम चियरफुल हो गई हूं... बाबा की स्नेह भरी दृष्टि से ये समझ मुझ आत्मा में भर रही है कि मैं आत्मा हर परिस्थिति में चियरफुल हूँ... *मैं आत्मा चाहे सबके साथ हूँ चाहे अकेले हूँ मेरा मूड सदा खुशनुमा है...*
➳ _ ➳ मेरे मीठे बाबा आपने मुझे विश्व परिवर्तन की ज़िम्मेदारी सौंपी है... मुझे प्रकृति को भी श्रेष्ठ वाइब्रेशन दे उसे भी परिवर्तित करना है... इसके लिए मुझे सर्वप्रथम स्वयं को परिवर्तित करना है... बाबा आपकी ये शक्तिशाली किरणें मेरे पुराने स्वभाव संस्कार को भी परिवर्तित कर रही है... *मेरे स्थूल और सूक्ष्म पुराने संस्कार स्वभाव आपकी शीतल किरणों से भस्म हो रहे हैं...*
➳ _ ➳ मीठे बाबा आप अपना हज़ार भुजाओं वाला हाथ मेरे सिर पर रखते हैं और मैं आत्मा अब आपके साथ कंबाइंड रूप में हूँ... आपके साथ कंबाइंड हो मैं आत्मा अब बेहद शक्तिशाली हो गयी हूँ... *आपके साथ कंबाइंड रूप का अनुभव करते हुए मैं आत्मा अब हर परिस्थिति में चियरफुल हूँ... और सर्व आत्माओं के प्रति केयरफुल हूँ...* और मेरा मूड हर जगह हर समय चियरफुल है...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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