━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 20 / 06 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बाप का बनकर बाप की बदनामी तो नहीं कराई ?*

 

➢➢ *अंतिम बिनाश का सीन देखने के लिए स्वयं को पक्का ब्राह्मण बनाया ?*

 

➢➢ *एक ही समय पर मन-वाणी और कर्म द्वारा साथ साथ सेवा की ?*

 

➢➢ *शुद्ध संकल्पों को अपने जीवन का अमूल्य खजाना बनाया ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  जितना स्थापना के निमित्त बने हुए ज्वाला-रुप होंगे उतना ही विनाश-ज्वाला प्रत्यक्ष होगी। संगठन रुप में ज्वाला-रुप की याद विश्व के विनाश का कार्य सम्पन्न करेगी। इसके लिए *हर सेवाकेन्द्र पर विशेष योग के प्रोग्राम चलते रहे तो विनाश ज्वाला को पंखा लगेगा। योग-अग्नि से विनाश की अग्नि जलेगी, ज्वाला से ज्वाला प्रज्जवलित होगी।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   *"मैं एक बल, एक भरोसा वाली निश्चयबुद्धि आत्मा हूँ"*

 

  सभी अपने को एक बल एक भरोसा-ऐसे अनुभव करते हो? एक बाबा दूसरा न कोई-यह पक्का है ना। या बाबा भी है तो बच्चे भी हैं, सम्बन्धी भी हैं? जब बच्चे हैं, पति है, सासू-ससुर हैं - इतने सारे हैं तो एक कैसे हुआ? सामने हैं, देख रहे हैं, सेवा कर रहे हैं, फिर एक कैसे हुआ? *ये मेरे नहीं हैं लेकिन बाप ने सेवा के लिये दिये हैं-ऐसी दृष्टि-वृत्ति रखने से एक ही याद रहेगा। चाहे कितने भी हों, कौन भी हों, लेकिन सभी बाप के बच्चे हैं और हमको सेवा के लिये ये आत्मायें मिली हैं। बाप ने सेवा अर्थ निमित्त बनाया है। घर में नही रहे हुए हो लेकिन सेवा-स्थान पर रहे हुए हो।*

 

  *मेरा सब तेरा हो गया। मेरा कुछ नहीं, शरीर भी मेरा नहीं। जब मेरा है ही नहीं तो बोडी-कोन्सेस कैसे हो सक्ता है।मेरे में ही आकर्षण होती है। जब मेरा समाप्त हो जाता है तो मन और बुद्धि को अपनी तरफ खींच नहीं सकते हैं। ब्राह्मण जीवन अर्थात् मेरे को तेरे में बदलना।* तो बार-बार यह चेक करो कि तेरा, मेरा तो नहीं बन गया? अगर मेरापन नहीं होगा, तेरा ही है तो डबल लाइट होंगे। अगर थोड़ा भी बोझ अनुभव करते हो तो समझो-मेरापन मिक्स हो गया है। भक्ति में कहते हैं कि सब-कुछ तेरा।

 

  ब्राह्मण जीवन में कहना नहीं है, करना है। यह करना सहज है ना। बोझ देना सहज होता है या लेना सहज होता है? *तेरा कहना माना बोझ देना और मेरा कहना माना बोझ लेना। तो अभी एक बल एक भरोसा। बस, एक ही एक। एक लिखना सहज है ना।* तो यह तेरा-तेरा कहने वाला ग्रुप है।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  अभी समय अनुसार अनेक प्रकार के लोग चेकिंग करने आयेंगे। संगठित रूप में जो चैलेन्ज करते हो कि हम सब ब्राह्मण एक की याद में एकरस स्थिति में स्थित होने वाले हैं - *तो ब्राह्मण संगठन की चेकिंग होगी।*

 

✧  इन्डीविज्युवल तो कोई बडी बात नहीं है लेकिन आप सब विश्व कल्याणकारी विश्व परिवर्तक हो - *विश्व संगठन, विश्व कल्याणकारी संगठन विश्व को अपनी वृत्ति वा वायब्रेशन द्वारा वा अपने स्मृति स्वरूप के समर्थी द्वारा कैसे सेवा करते हैं - उसकी चेकिंग करने बहुत आयेंगे।* आज की साइंस द्वारा साइलेन्स शक्ति का नाम बाला होगा।

 

✧  योग द्वारा शक्तियाँ कौन-सी और कहाँ तक फैलती है उनकी विधि और गति क्या होती है यह सब प्रत्यक्ष दिखाई देंगे। ऐसे संगठन तैयार हैं? *समय प्रमाण अब व्यर्थ की वातों को छोड समर्थी स्वरूप वनो।* ऐसे विश्व सेवाधारी बनो। इतना बडा कार्य जिसके लिए निमित बने हुए हो उसको स्मृति में रखो।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧ 'कर्मभोग है', 'कर्मबन्धन है', 'संस्कारों का बन्धन है', ‘संगठन का बन्धन है' - इस व्यर्थ संकल्प रूपी जाल को अपने आप ही इमर्ज करते हो और अपने ही जाल में स्वयं फंस जाते हो, फ़िर कहते है कि अभी छुड़वाओ। *बाप कहते हैं कि तुम हो ही छूटे हुए। छोड़ो तो छूटो।* अब निर्बन्धनी हो या बन्धनी हो। *पहले ही शरीर छोड़ चुके हो, मरजीवा बन चुके हो।* यह तो सिर्फ विश्व की सेवा के लिए शरीर रहा हुआ है, पुराने शरीरों में बाप शक्ति भर कर चला रहे हैं। ज़िम्मेवारी बाप की है, फिर आप क्यों ले लेते हो। *ज़िम्मेवारी सम्भाल भी नहीं सकते हो लेकिन छोड़ते भी नहीं हो। ज़िम्मेवारी छोड़ दो अर्थात् मेरा-पन छोड़ दो।* मेरा पुरुषार्थ, मेरा इन्वेन्शन, मेरी सर्विस, मेरी टचिंग, मेरे गुण बहुत अच्छे हैं, मेरी हैन्डलिंग-पॉवर बहुत अच्छी है। मेरी निर्णय शक्ति बहुत अच्छी है। मेरी समझ ही यथार्थ है। बाकी सब मिसअन्डरस्टैन्डिग में हैं। *यह मेरा-मेरा आया कहाँ से? यही रॉयल माया है, इससे मायाजीत बन जाओ तो सेकेण्ड में प्रकृति जीत बन जावेंगे। प्रकृति का आधार लेंगे लेकिन अधीन नहीं बनेंगे। प्रकृतिजीत ही विश्व जीत व जगतजीत है। फिर एक सेकेण्ड का डायरेक्शन अशरीरी भव का सहज और स्वत: हो जावेगा।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पुण्य आत्मा बनने के लिए परम शिक्षक की धारणाओं को धारण करना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा एकांत में बैठकर आसमान में उगते सूर्य को देख रही हूँ... अँधेरी रात खत्म होकर चारों ओर रोशनी हो गई है... खिलखिलाते हुए फूल, चहचहाते हुए पंछी अपने घोंसलों से निकल मुस्कुरा रहें हैं... ऐसे ही ज्ञान सूर्य बाबा ने मेरे जीवन को रोशन कर दिया है... अज्ञान अंधियारे को हरती हुई ये ज्ञान सूर्य की निर्मल किरणों ने मेरे जीवन में उजियारा कर दिया... और सदा के लिए मुस्कुराहट बिखेर दिया...* मैं आत्मा उड़ चलती हूँ हिस्ट्री हाल में परम शिक्षक के पास... रूहानी पढाई पढ़ने... उनकी शिक्षाओं को धारण करने...

 

  *अपनी मीठी शिक्षाओं से मेरी जिन्दगी को हसीन बनाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय पढ़ाई ही विश्वधरा पर सुनहरे सुखो को दिलायेगीं... *इसलिए इस असाधरण ज्ञान को दिल की गहराइयो में समा लो... जितना ज्ञान पर मन्थन करेंगे उतनी ही धारणा होगी और जीवन ज्ञान युक्त खूबसूरती से झलकेगा...”*

 

_ ➳  *ज्ञान के सागर में डूबकर ज्ञान के हीरे-मोतियों से मालामाल होकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय खजानो को पाने वाली अति धनवान् मालामाल हूँ... *ज्ञान रत्नों को जीवन में सजाने वाली महान भाग्य की धनी हूँ... एकांत में बैठकर रत्नों को बुद्धि की तिजोरी में भर रही हूँ...”*

 

  *मीठे बाबा परम शिक्षक बनकर श्रेष्ठ कर्म सिखलाकर मुझे पुण्य आत्मा बनाते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *कितने महान भाग्यशाली हो कि स्वयं भगवान शिक्षक बनकर रत्नों को लुटा रहा... तो इन रत्नों की खानो को अपने नाम कर लो...* जितना रत्नों के साथ खेलेंगे उतना ही मीठा इस विश्व धरा पर मुस्करायेंगे... ईश्वरीय पढ़ाई में जीजान से मेहनत कर ईश्वर पिता के दिल में बस जाओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा ज्ञान रत्नों को धारण कर ज़माने की सारी खुशियों को बटोरकर बाबा से कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा ईश्वरीय पढ़ाई पर मेहनत करके...  सवेरे सवेरे उठकर मन्थन से तीव्र पुरुषार्थी बनकर...  बापदादा के आँखों का तारे सा मुस्करा रही हूँ...* एकांत में ईश्वरीय पढ़ाई का गहन अध्ययन करज्ञान रत्नों की चमक भरा ईश्वरीय जीवन जीती जा रही हूँ...

 

  *अविनाशी बाबा अविनाशी खजानों को मुझ आत्मा पर लुटाते हुए कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *ईश्वरीय ज्ञान ही जीवन को जादू जैसा सुखमय और खुबसूरत बनाने वाला है... इस पढ़ाई को रोम रोम में उतार लो...* और एकांत में जितना घोटेंगे उतनी ईश्वरीय खूबसूरती जीवन से स्वतः झलकेगी... इसलिए सवेरे सवेरे ज्ञान रत्नों का मनन करो...

 

_ ➳  *अविनाशी कमाई पाकर आत्मिक ख़ुशी और नशे में झूमती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा स्वयं ईश्वर पिता के हाथो ज्ञान रत्नों से सजने वाली सौभाग्यवान आत्मा हूँ... *स्वयं भगवान पढ़ा रहा और सतयुगी सुखो का हकदार बना रहा... ज्ञान रत्नों से मेरी जनमो की निर्धनता को खत्म कर विश्व अधिकारी सा सजा रहा है...”*

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अंतिम विनाश की सीन देखने के लिए पक्का ब्राह्मण, सर्विसएबुल बनना है*

 

_ ➳  इस पुरानी दुनिया का जब विनाश होगा तो वो दृश्य कैसा होगा, और उस दृश्य को देखने के लिए कितनी शक्तिशाली स्थिति चाहिए! एकांत में बैठी, मैं जैसे ही ये विचार करती हूँ अनेक दृश्य मेरी आँखों के सामने उभर आते हैं। *कहीं बाढ़ के कारण भारी तबाही तो कहीं अकाल के कारण भूखे मरते लोग, कहीं बॉम्ब ब्लास्ट तो कहीं अर्थ क्वेक चारों तरफ मौत का तांडव। रोते बिलखते, चीखते-चिल्लाते लोग कोई कहाँ भाग रहें है कोई कहाँ लेकिन कहीं भी उन्हें कोई सेलवेज करने वाला नही*। इस दृश्य के साथ एक और दृश्य मैं देख रही हूँ कि बाबा के सर्विसएबुल पक्के ब्राह्मण बच्चे फरिश्ता रूप में मसीहा बन हर तरफ शन्ति सुख शक्ति की शीतल किरणे प्रवाहित कर रहे हैं। *बाबा के घर जैसे आश्रय स्थल बन गए है जहाँ मनुष्य आत्मायें सेफ्टी के लिए भाग - भाग कर आ रही हैं और सर्विसएबुल ब्राह्मण बच्चे उन्हें मुक्ति, जीवन मुक्ति की राह दिखा रहें हैं*।

 

_ ➳  इन दृश्यों को देखते हुए अब मैं मन ही मन विचार करती हूँ कि अंतिम विनाश की इस भयावह सीन को देखने और दुखी अशांत भटकती आत्माओं का कल्याण करने के लिए अब मुझे अपने अंदर ज्ञान और योग का बल जमाकर, पक्का ब्राह्मण, सर्विसएबुल बनना है। *इसी दृढ़ संकल्प के साथ अपने पुरुषार्थ को तीव्र करने की स्वयं से प्रतिज्ञा कर, मैं बाबा का दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ कि समय रहते उन्होंने आकर मुझे सम्भाल लिया। अपना बच्चा बना लिया और इस विनाश लीला को साक्षी होकर देखने का साहस स्वयं में भरने का सहज रास्ता भी मुझे बता दिया*।

 

_ ➳  ज्ञान और योग का बल ही ताकत बन कर, विनाश के अंतिम दृश्य को साक्षी होकर देखने में मेरी मदद करेगा। इसलिए अब इसी पुरुषार्थ को मुझे बढ़ाना है। मन को फिर से दृढ़ संकल्प देकर स्वयं को शक्तिशाली बनाने के लिए अपने सर्वशक्तिवान शिव पिता की याद में अब मैं शांत और स्थिर होकर बैठ जाती हूँ। *हर संकल्प और विकल्प से अपने ध्यान को हटाकर मनबुद्धि को मैं पूरी तरह से एकाग्र करती हूँ और स्वयं को अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित कर, अशरीरी हो जाती हूँ*। देह के भान का त्याग कर, अपने झिल मिल, जगमग करते प्वाइंट ऑफ लाइट स्वरूप के साथ मैं भृकुटि की कुटिया से बाहर आती हूँ और पांचो तत्वों के आकर्षण से मुक्त होकर, ऊपर आकाश की और उड़ जाती हूँ।

 

_ ➳  मन बुद्धि की एक खूबसूरत रूहानी यात्रा पर चलते हुए, सेकण्ड में पाँच तत्वों से बनी साकारी दुनिया को पार कर, उससे परे सूक्ष्म वतन को भी पार कर मैं पहुंच जाती हूँ अपनी निराकारी दुनिया परमधाम में। *संकल्पों विकल्पों की हलचल से दूर सर्वगुणों, सर्वशक्तियों के सागर अपने प्यारे पिता के सामने मैं आत्मा बैठी हूँ और मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं अपलक शक्तियों के सागर अपने बाबा को निहार रही हूँ*। धीरे - धीरे अब मैं उनके बिल्कुल समीप जाकर उन्हें टच करती हूँ। शक्तियों का झरना फुल फोर्स के साथ बाबा से निकल कर अब मुझ आत्मा में समाने लगा है। *बाबा से आ रही शक्तियों की शीतल किरणे पाकर मेरा स्वरूप बहुत ही शक्तिशाली और चमकदार बनने लगा है*।

 

_ ➳  निरसंकल्प, मास्टर बीजरूप अवस्था में स्थित हो कर अपने बीज रूप परमात्मा बाप के साथ का यह अद्भुत मंगल मिलन मुझे अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करवा रहा है।  *परमात्म लाइट मुझ आत्मा में समाकर मुझे पावन बना रही है। मैं स्वयं में परमात्म शक्तियों की गहन अनुभूति कर रही हूँ। शक्ति स्वरुप बनकर अब मैं परम धाम से नीचे आ रही हूँ*। अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, अब मैं शक्तिशाली स्व स्थिति बनाने का पूरा पुरुषार्थ कर रही हूँ।

 

_ ➳  अंतिम विनाश की सीन को साक्षी हो कर देखने के लिए, विनाश के भयावह दृश्य को स्मृति में रख उस स्थिति में अचल अडोल रहने के लिए और विनाश लीला में रोती बिलखती आत्माओं का कल्याण करने के लिए, अब मैं दृढ़ता के साथ अपने अंदर ज्ञान और योग का बल जमा कर रही हूँ। *सर्व शक्तियों, सर्व गुणों, सर्व खजानो से स्वयं को सदा भरपूर करके पक्का ब्राह्मण सर्विसएबुल बनने की स्वयं से की हुई प्रतिज्ञा को मैं लगन के साथ पूरा कर रही हूँ*।

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं एक ही समय मन-वाणी और कर्म द्वारा साथ-साथ सेवा करने वाली सफलता सम्पन्न आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं शुद्ध संकल्पों को अपने जीवन का अमूल्य खजाना बनाकर अपना और दूसरों का कल्याणहित संकल्प करने वाली शुद्ध आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ *जैसे लौकिक दुनिया में भी उच्च रॉयल कुल की आत्मायें कोई साधारण चलन नहीं कर सकतीं वैसे आप सुकर्मी आत्मायें विकर्म कर नहीं सकतीं।* जैसे हद के वैष्णव लोग कोई भी तामसी चीज स्वीकार कर नहीं सकते, ऐसे विकर्माजीत विष्णुवंशी - विकर्म वा विकल्प का तमोगुणी कर्म वा संकल्प नहीं कर सकते। यह ब्राह्मण धर्म के हिसाब से निषेध है। *आने वाली जिज्ञासु आत्माओं के लिए भी डायरेक्शन लिखते हो ना कि सहज योगी के लिए यह-यह बातें निषेध हैं तो ऐसे ब्राह्मणों के लिए वा अपने लिए क्या-क्या निषेध हैं वह अच्छी तरह से जानते हो?* जानते तो सभी हैं और मानते भी सभी हैं लेकिन चलते नम्बरवार हैं।

✺ *"ड्रिल :- अच्छे से मनन करना कि मुझ ब्राह्मण आत्मा के लिए क्या क्या निषेध है।”*

➳ _ ➳ *मैं आत्मा इंद्रियों की विषयासक्ति में फंसे हुए चंचल मन को खींचकर आत्म चिंतन में लगाती हूं... भृकुटी के अकाल तख्त पर विराजमान बिंदु रूप-ज्योति स्वरुप आत्मा पर मन को एकाग्र करती हूं...* व्यर्थ विचारों के आवेग पर अंकुश लगाकर मैं आत्मा बाबा का आह्वान करती हूं... बाबा मुझे अपने साथ हिस्ट्री हॉल लेकर चलते हैं... बाबा हिस्ट्री हॉल में संदली पर बैठकर मुरली चला रहे हैं... बाबा मुरली के माध्यम से मुझे गुह्य-गुह्य बातें समझा रहे हैं...

➳ _ ➳ बाबा कहते हैं कि बच्चे इस लौकिक दुनिया में भी उच्च रॉयल कुल की आत्मायें हमेशा उच्च रॉयल चलन ही चलती हैं वो कभी भी साधारण चलन नहीं चलते हैं... वैसे तुम तो विकर्माजीत विष्णुवंशी कुल की आत्मायें हो तो तुम कभी कोई भी विकर्म वा विकल्प का तमोगुणी कर्म वा संकल्प नहीं कर सकते... *तुम श्रेष्ठ, ऊँचे ते ऊँचे ब्राह्मण कुल की आत्मा हो... विकारों के वश होकर कोई भी तमोगुणी कर्म करना ब्राह्मण धर्म के हिसाब से निषेध है...* सहज योगी आत्मा बनना है तो सम्पूर्ण पवित्र बनो... सतोगुणी संस्कारों को धारण करो...

➳ _ ➳ बाबा मुरली चलाते हुए साथ-साथ मुझे दृष्टि देते जा रहे हैं... मैं आत्मा मगन होकर बाबा की मुरली के एक-एक महावाक्य ध्यान से सुन रही हूँ... और स्वयं में धारण कर रही हूँ... *मैं आत्मा चेक करती हूँ कि अमृतवेले से लेकर रात तक मैं आत्मा श्रेष्ठ कर्म कर रही हूँ या कोई व्यर्थ कर्म करती हूँ... क्या मैं आत्मा जो भी ब्राह्मणों के लिए निषेध है उन कार्यों को तो नहीं कर रही हूँ... क्या मैं श्रीमत पर चल रही हूँ?* या मैं परमत, मनमत में आ जाती हूँ...

➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने एक-एक कर्मेन्द्रिय को चेक करती हूँ... क्या मेरी आंखे न देखने वाली चीजों को तो नहीं देखती हैं... क्या मेरा मुख दूसरों के अवगुणों का वर्णन तो नहीं करती है... मेरे कान व्यर्थ बातों को तो नहीं सुन रहा... क्या मेरी जिह्वा निषेधित पदार्थों को खाने में, बाहर के खाने का लोभ तो नहीं रखती... *काम, क्रोध, अंहकार जैसे विकारों का अंश तो बाकी नहीं है... परचिन्तन, परदर्शन में पड़कर क्या मैं आत्मा अपना अमूल्य समय व्यर्थ तो नहीं गंवा रही हूँ...*

➳ _ ➳ मैं आत्मा स्वयं की चेकिंग करती हुई साथ-साथ चेंज करती जाती हूँ... बाबा की दृष्टि से, मस्तक से दिव्य किरणों रूपी फव्वारे मुझ पर पड़ रहे हैं... मुझ आत्मा से सारी नकारात्मक एनर्जी बाहर निकल रही है... मुझ आत्मा की दृष्टि, वृत्ति, बोल, कर्म, चलन से साधारणता खत्म हो रही है... मैं आत्मा बाबा के दिव्य किरणों से दैवीय गुणों को धारण कर रही हूँ... मैं आत्मा अपनी कर्मेन्द्रियों पर अपना अधिकार जमाकर स्वराज्य अधिकारी बन गई हूँ... और उनको अपने आर्डर और श्रीमत प्रमाण चला रही हूँ... *अब मैं आत्मा जो भी ब्राह्मणों के लिए श्रीमत रूपी मर्यादाएं हैं उन पर ख़ुशी-ख़ुशी चल रही हूँ... और बाबा का हाथ और साथ पाकर हर कर्म को सुकर्म बनाकर सफलता प्राप्त कर रही हूँ...*
 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━