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❍ 02 / 07 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *ऐसी कोई चलन तो नहीं चली जिससे नाम बदनाम हो ?*
➢➢ *बेहद की गुह्य पढाई को विस्तार से सुनते उसे सार में समाकर दूसरों की सेवा की ?*
➢➢ *समय की रफ़्तार प्रमाण सर्व प्राप्तियों से भरपूर रह मायाजीत बनकर रहे ?*
➢➢ *सत्यता और निर्भयता की शक्ति से अचल अवस्था का अनुभव किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *अन्त:वाहक अर्थात् अन्तिम स्थिति, पावरफुल स्थिति ही आपका अन्तिम वाहन है। अपना यह रूप सामने इमर्ज कर फरिश्ते रूप में चक्कर लगाओ,* सकाश दो, तब गीत गायेंगे कि शक्तियां आ गई..... *फिर शक्तियों द्वारा सर्वशक्तिवान स्वत: ही सिद्ध हो जायेगा।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं ड्रामा में श्रेष्ठ पार्टधारी हूँ"*
〰✧ सभी अपने को इस ड्रामा के अन्दर पार्ट बजाने वाली श्रेष्ठ पार्टधारी आत्मायें अनुभव करते हो? *जैसे बाप ऊंचे ते ऊंचा है, ऐसे ऊंचे ते ऊंचा पार्ट बजाने वाली आप श्रेष्ठ आत्माएं हो। डबल हीरो हो। हीरे तुल्य जीवन भी है और हीरो पार्टधारी भी हो। तो कितना नशा हर कर्म में होना चाहिए!*
〰✧ अगर स्मृति में यह श्रेष्ठ पार्ट है, तो जैसी स्मृति होती है वैसी स्थिति होती है और जैसी स्थिति होगी वैसे कर्म होंगे। तो सदा यह स्मृति रहती है? *जैसे शरीर रूप में जो भी हो, जैसा भी हो-वह सदा याद रहता है ना। तो आत्मा का आक्यूपेशन, आत्मा का स्वरूप जो है, जैसा है-वह भी याद रहना चाहिए ना। शरीर विनाशी है लेकिन उसकी याद अविनाशी रहती है।* आत्मा अविनाशी है, तो उसकी याद भी अविनाशी रहती है? जैसे यह आदत पड़ गई है कि मैं शरीर हूँ। है उल्टा, रांग है। लेकिन आदत तो पक्की हो गई। तो भूलने चाहते भी नहीं भूलता। वैसे यथार्थ अपना स्वरूप भी ऐसे पक्का होना चाहिए।
〰✧ शरीर का आक्यूपेशन स्वप्न में भी याद रहता है। कोई क्लर्क है, कोई वकील है, बिजनेस करने वाला है-तो भूलता नहीं। *ऐसे यह ब्राह्मण जीवन का आक्यूपेशन कि मैं हीरो पार्टधारी हूँ-यह पक्का होना चाहिए और नेचुरल होना चाहिए। तो चेक करो कि ऐसे नेचुरल जीवन है? जो नेचुरल चीज होती है वह सदा होती है और जो अननेचुरल (अस्वाभाविक) होती है वह कभी-कभी होती है। तो यह स्मृति सदा रहनी चाहिये कि हम डबल हीरो हैं।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *माया का रॉयल रूप और उस पर विजय प्राप्त करने की विधि* :- 'कर्मभोग है’, ‘कर्मबन्धन है’, ‘संस्कारों का बन्धन है’, ‘संगठन का बन्धन है' - इस व्यर्थ संकल्प रूपी जाल को अपने आप ही इमर्ज करते हो और अपने ही जाल में स्वयं फंस जाते हो, फिर कहते हैं कि अभी छुडवाओ।
〰✧ *बाप कहते हैं कि तुम हो ही छूटे हुए छोडो तो छूटे।* अब निर्बन्धनी हो या बन्धनी हो। पहले ही शरीर छोड चुके हो, मरजीवा बन चुके हो। यह तो सिर्फ विश्व की सेवा के लिए शरीर रहा हुआ है, पुराने शरीर में बाप शक्ति भर कर चला रहे हैं।
〰✧ जिम्मेवारी बाप की है, फिर आप क्यों ले लेते हो। जिम्मेवारी सम्भाल भी नहीं सकते हो लेकिन छोडते भी नहीं हो। *जिम्मेवारी छोड दो अर्थात मेरा-पन छोड दो।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *अशरीरी बनने के लिए विशेष ४ बातों का अटेन्शन रखो।* १. कभी भी अपने आपको भुलाना होता है तो दुनिया में भी एक सच्ची प्रीत में खो जाते हैं। तो सच्ची प्रीत ही भूलने का सहज साधन है। *प्रीत दुनिया को भुलाने का साधन है, देह को भुलाने का साधन है।* २. *दूसरी बात - सच्चा मीत भी दुनिया को भुलाने का साधन है।* अगर दो मीत आपस में मिल जाएँ तो उन्हें न स्वयं की, न समय की स्मृति रहती है। ३. *तीसरी बात दिल के गीत- अगर दिल से कोई गीत गाते हैं तो उस समय के लिए वह स्वयं और समय को भूला हुआ होता है।* ४. चौथी बात - यथार्थ रीत। *अगर यथार्थ रीत है तो अशरीरी बनना बहुत सहज है। रीत नहीं आती तब मुश्किल होता है। तो एक हुआ प्रीत २- मीत ३गीत ४- रीत।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप का राईट हैण्ड बन सर्विस का शौक रख श्रीमत पर चलना"*
➳ _ ➳ *अपने अलौकिक जीवन को देख मुस्कुराती हुई मैं आत्मा सोचती हूँ कितना प्यारा मीठा हो गया है हर पल मेरे इस जीवन का... देख रही हूँ अंतर- अज्ञानता में गुजरे कलियुगी जीवन के दुखों के पल और इस संगमयुग का एक-एक कीमती पल कितना सुहावना हो गया है...* बाबा जब से आयें हैं हर पल सुख-शांति की बरसात हो रही है... इन सुखद पलों की यादों को संजोये अपने दिलाराम बाबा के पास पहुँच जाती हूँ वतन में...
❉ *राइट हैन्ड बनने के लिए हर बात में राइटियस बन सदा श्रेष्ठ कर्म करने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे लाडले बच्चे... *मीठे बाबा के दिल पर राज करना है तो बाप समान बन राइट हैन्ड बनो... अपने खूबसूरत कर्मो से अपना भाग्य शानदार बनाओ... सदा श्रेष्ठ कर्म करके... बाबा के दिल में मणि बन मुस्कराओ...* ईश्वर पिता के दिल पर सदा का अधिकार पाओ..”.
➳ _ ➳ *भगवान् की मददगार बन विश्व कल्याण करते हुए अपने भाग्य पर इठलाती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा देही अभिमानी बन कर कर्मो को सुंदर बनाती जा रही हूँ... शुभ भाव और शुभ कर्मो को कर बाबा के दिल पर राज करती जा रही हूँ...* और यूँ अपने भाग्य की सुंदरता पर मोहित हो रही हूँ...”
❉ *अपनी स्नेह भरी दृष्टि से स्नेह प्यार का जादू मुझमें भरते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता जो जीवन में आ गया तो जीवन को श्रेष्ठता की ऊंचाइयों पर ले जाना है... *हर कर्म ईश्वर तुल्य हो ऐसा ही जादू इस धरा पर चलाना है... और देवता स्वरूप का आभास जमाने को कराना है... प्यारे बाबा का हाथ पकड़ राइट हैन्ड बनना है...”*
➳ _ ➳ *बाप समान बनने के लिए श्रीमत का हाथ थाम दिव्यता से भरते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा श्रेष्ठ कर्मो के आधार पर शानदार देवता स्वरूप में ढल रही हूँ... ज्ञान और योग से निखर कर बाबा के समकक्ष बन रही हूँ...* सच्चाई को थामे हुए सच्चे सौंदर्य का प्रतीक बन रही हूँ...”
❉ *अपने अनंत किरणों की आभा से मुझे आच्छादित करते हुए मेरे ज्ञान सूर्य बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... सदा शुभ भावो से स्वयं को भरो... सत्य का हाथ थाम निश्चिन्त हो मुस्कराओ... *श्रेष्ठ कर्मो के बीज बोकर सुखमय जीवन का प्रतिफल पाओ... और इस खूबसूरत संगम पर ईश्वर पिता के मददगार बनने का सुन्दरतम भाग्य पाओ...”*
➳ _ ➳ *बाबा के प्रेम की छत्रछाया में स्वर्णिम दुनिया के सपनों को संजोते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा श्रीमत के साये में सुंदर हो रही हूँ.... दुआओ से पुण्यो को बढ़ाकर धनी हो रही हूँ... *सबके हितों की कामनाओ में जीवन लगा रही हूँ.... और अपने जीवन को बाबा की बाँहो में महका रही हूँ...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बेहद की गुह्य पढ़ाई को विस्तार से सुनते उसे सार में समाकर दूसरों की सेवा करनी है*
➳ _ ➳ मधुबन के हिस्ट्री हाल में अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित होकर मैं बैठी हूँ और अपने प्राणप्रिय अव्यक्त बापदादा से बेहद की गुह्य पढ़ाई को विस्तार से सुन रही हूँ। *बापदादा बेहद की अति गुह्य बातें सुनाने के साथ - साथ उसे सार में समाकर सेकण्ड में मनमनाभव हो जाने की ड्रिल करवा रहें हैं। बापदादा का निर्देश मिलते ही मैं सेकण्ड में अपने ब्राह्मण स्वरूप से अपने निराकार अनादि स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ और मन बुद्धि के विमान पर बैठ पहुँच जाती हूँ एक ही पल में अपनी निराकारी दुनिया में अपने प्यारे पिता के पास*। अपने बिंदु स्वरूप में बिंदु बाप के साथ मैं स्नेह मिलन मनाती हूँ। उनके स्नेह की किरणों की शीतल छाया में बैठ स्वयं को उनके स्नेह से भरपूर करती हूँ और उनकी शक्तियों को स्वयं में भरकर सेकेण्ड में अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करके वापिस देह में लौट आती हूँ और फिर से अपने ब्राह्मण स्वरूप में आकर स्थित हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ सेकण्ड में विस्तार को सार में समा कर मनमनाभव हो जाने का यह अनुभव मुझे एक अद्भुत अलौकिक शक्ति से भरपूर कर देता है। मैं महसूस करती हूँ कि ज्ञान के विस्तार की गुह्य बाते सुनते हुए उसे सेकण्ड में सार में समाकर, बिंदु बन जाना ही सबसे बड़ी मंजिल भी है और बहुत बड़ी प्राप्ति का साधन भी है। *सेकण्ड में बुद्धि को सभी बातों से हटाकर अपने स्वरूप पर एकाग्र करने का अभ्यास ही अब मुझे बढ़ाना है और अपनी स्व स्थिति को शक्तिशाली बनाकर दूसरों की सेवा करनी है। मन ही मन यह संकल्प करके हिस्ट्री हॉल से मैं बाहर आती हूँ और इस संकल्प को पूरा करने का बल स्वयं में भरने के लिए बाबा के कमरे में पहुँच जाती हूँ*। यहाँ पहुँचते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे कानों में बापदादा की अव्यक्त आवाज सुनाई दे रही है। बाबा कह रहे हैं, बच्चे -: बाप समान शक्तिशाली बनने का संकल्प मन में उतपन्न हो तो बाबा के कमरे में आ जाना।
➳ _ ➳ बाबा के कमरे में बाबा के ट्रांसलाइट के चित्र के सामने मैं बैठी हूँ और महसूस कर रही हूँ जैसे मुझे आप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनाने के लिए बाबा मेरे सामने आकर बैठ गए हैं। *बाबा के मुखमण्डल पर फैली मीठी मुस्कान मन को गहन सुकून देने के साथ -साथ मुझे उनके समान अति मीठा बनने की प्रेरणा भी दे रही हैं। बाबा के नयन जिनमे अथाह स्नेह का सागर लहरा रहा है उस स्नेह सागर में समाकर मैं अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर रही हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे आप समान मास्टर स्नेह का सागर बनाने के लिए बाबा अपनी दृष्टि से अपनी शक्तियाँ मेरे अंदर भर रहें हैं*। बाबा के मुखकमल से निकलने वाले कल्याणकारी बोल, बाप समान कल्याणकारी बन, सबके प्रति शुभभावना, शुभकामना रख, सबका कल्याण करने की भावना मेरे मन मे उतपन्न कर रहें हैं। *बाबा का एक - एक कर्म मुझे भी हमेशा श्रेष्ठ कर्म करने की प्रेरणा दे रहा हैं*।
➳ _ ➳ मनसा, वाचा, कर्मणा सम्पूर्ण रूप से अपने प्यारे ब्रह्मा बाप को फॉलो करने की मैं मन ही मन स्वयं से और बाबा से प्रतिज्ञा करती हूँ और महसूस करती हूँ बाबा कैसे मेरे एक - एक संकल्प को कैच कर रहें हैं। *बाबा के मुख मण्डल पर आई मुस्कराहट मुझे सहज ही अनुभव करवा रही है कि बाबा मेरी प्रतिज्ञा को सुनकर मुस्कारते हुए ढेर सारी ब्लेसिंग मुझे दे रहें हैं। बाबा की दुआओं भरी दृष्टि एक अद्भुत जादू कर रही है*। बाबा से दृष्टि लेते हुए बाबा से मिलने वाले अथाह बल को अपने अंदर भरता हुआ मैं स्पष्ट महसूस कर रही हूँ। बाबा के मस्तक से शक्तियों की अविरल धाराएं निकल रही हैं जो मुझमे समाकर मुझे बहुत ही शक्तिशाली बना रही हैं। *परमात्म शक्तियों से मिलने वाला बल मेरे अंदर असीम ऊर्जा का संचार कर रहा है। बाप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनने का बल स्वयं में भरकर अब मैं वापिस अपने कर्मक्षेत्र पर लौट रही हूँ*।
➳ _ ➳ साकार सृष्टि रूपी कर्मक्षेत्र पर अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हूँ और शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करने के साथ - साथ ईश्वरीय सेवा भी कर रही हूँ। ज्ञान के विस्तार में जाकर भी, विस्तार को सार में समाकर, जब चाहे वाणी में आना और जब चाहे वाणी से परे जाकर, सेकेण्ड में अपने बिंदु स्वरूप में स्थित हो जाना यह अभ्यास मैं बार - बार करती रहती हूँ। *व्यक्त में रहते अव्यक्त स्थिति बनाने का अटेंशन अब मैं हर समय रखती हूँ इसलिए कर्मेन्द्रियों पर भी अब मैं सहज ही जीत प्राप्त करती जा रही हूँ। हर आत्मा को ज्ञान सुनाते समय अपनी अव्यक्त स्थिति में स्थित रहने से, मैं सहज ही सफलतामूर्त बनती जा रही हूँ। क्योकि अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर सेवा करने से बाबा के साथ और बाबा की मदद से सेवाएं स्वत: ही वृद्धि को पाती जा रही हैं*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं समय की रफ्तार प्रमाण सर्व प्राप्तियों से भरपूर रह मायाजीत बनने वाली तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं सत्यता और निर्भयता की शक्ति को साथ रखकर कोई भी कारण से हिल नहीं सकने वाली अचल अडोल आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ कोई शास्त्रार्थ करते शास्त्र में ही रह गये। कोई महात्मायें बन आत्मा और परमात्मा की छोटी सी भ्रान्ति में अपने भाग्य से रह गये। बच्चे बन बाप के अधिकार से वंचित रह गये। *बड़े-बड़े वैज्ञानिक खोजना करते उसी में खो गये। राजनीतिज्ञ योजनायें बनाते-बनाते रह गये। भोले भक्त कण-कण में ढूँढते ही रह गये। लेकिन पाया किन्हों ने? भोलेनाथ के भोले बच्चों ने।* बड़े दिमाग वालों ने नहीं पाया लेकिन सच्ची दिल वालों ने पाया। इसलिए कहावत है - सच्ची दिल पर साहब राजी।
➳ _ ➳ तो सभी सच्ची दिल से दिलतख्तनशीन बन सकते। सच्ची दिल से दिलाराम बाप को अपना बना सकते। दिलाराम बाप सच्ची दिल के सिवाए सेकण्ड भी याद के रूप में ठहर नहीं सकते। सच्ची दिल वाले की सर्वश्रेष्ठ संकल्प रूपी आशायें सहज सम्पन्न होती हैं। *सच्ची दिल वाले सदा बाप के साथ का साकार, आकार, निराकार तीनों रूपों में सदा साथ का अनुभव करते हैं।*
✺ *"ड्रिल :- सच्ची दिल से दिलाराम को अपना बनाना।”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा उद्यान में खडी सूरजमुखी के पुष्पों को देख रही हूँ... देखने में कितने आकर्षक लग रहे हैं... सारे उद्यान की शोभा बढ़ा रहे हैं...* सूरजमुखी पुष्प दिनभर सूर्य के चारों ओर घूमता रहता है... जिस दिशा में सूर्य होता है, सूरजमुखी का फूल उसी दिशा में अपना मुँह कर लेता है... सूरजमुखी के फूल सूर्यादय पर खिलते हैं, तथा सूर्यास्त के समय बन्द हो जाते हैं... जैसे सूर्य ही उनके लिए सबकुछ हो... *मैं आत्मा भी सूरजमुखी पुष्प बन परमधाम ज्ञान सूर्य बाबा के सम्मुख पहुँच जाती हूँ...*
➳ _ ➳ ज्ञान सूर्य बाबा से आती सुनहरी लाल प्रकाश की तेज रश्मियाँ मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं... मुझ आत्मा के जन्म-जन्मान्तर के विकर्म इन तेज रश्मियों में दग्ध हो रहे हैं... *देह रूपी तितली, देह के सम्बन्ध, देह के पदार्थ रूपी तितलियाँ मुझ आत्मा रूपी फूल को घेरे हुए थी, जिससे मैं आत्मा नीचे दबकर नीचे गिरती चली गई थी...* पुराना देह, देह के सम्बन्ध, देह के पदार्थ रूपी सभी तितलियाँ बाहर उड़ते जा रहे हैं... अब बची सिर्फ मैं बीजरूप आत्मा जो सब बोझों से मुक्त होकर सूरजमुखी पुष्प बन खिल रही हूँ... *मैं आत्मा सूरजमुखी पुष्प समान ज्ञान सूर्य को ही निहार रही हूँ...* ज्ञान सूर्य के सिवा सब कुछ भूल गई हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा ज्ञान सूर्य बाबा के साथ धीरे-धीरे निराकारी वतन से नीचे आती हूँ आकारी वतन में... जहाँ आकारी रूप में ब्रह्मा बाबा बैठे हुए हैं... निराकारी बाबा आकारी बाबा के मस्तक पर विराजमान होकर मुस्कुरा रहे हैं... *परमात्मा के इस अवतरण को प्रत्यक्ष देख मुझ आत्मा के नैनों से परमात्म प्रेम की अश्रुधारा बहने लगती है... भक्तिमार्ग में भोले भक्त कण-कण में ढूँढते ही रह गये... बड़े-बड़े वेदांती, शास्त्री भी शास्त्र में ही रह गये...* साधू, सन्यासी, महात्मा भी भगवान के असली स्वरूप को नहीं पहचान पाए... बड़े-बड़े वैज्ञानिक, राजनीतिज्ञ भी भगवान् को खोज नहीं पाये... किन्तु भोलेनाथ बाबा मिले भोले-भाले, सच्ची दिल वाले बच्चों को...
➳ _ ➳ मैं कितनी ही भाग्यशाली आत्मा हूँ जो परमात्मा ने मुझे अपना बनाया... भक्तिमार्ग के आडम्बरों से बचा लिया, दर-दर भटकने से मुक्त कर दिया... मैं आत्मा अपने भाग्य पर नाज करती बाबा को ही एकटक देखती जा रही हूँ... *मुझ आत्मा के नैनों से निकली अश्रुधारा में मेरे दिल की सारी गंदगी बाहर निकल रही है... सारा मैल खत्म होकर मुझ आत्मा का दिल का कोना-कोना बिल्कुल साफ़ और स्वच्छ हो गया है... मैं आत्मा सच्ची दिल वाली बन गई हूँ...* जिसके दिल में सिर्फ और सिर्फ एक दिलाराम बाबा है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा दिलाराम बाबा को अपने दिल में बिठाकर दिल भर-भर के मिलन मनाती रहती हूँ... मुझे अलग से बाबा को याद नहीं करना पड़ता क्योंकि बाबा सदैव मेरे दिल में ही रहते हैं... सहज याद से मुझ आत्मा के सभी सर्वश्रेष्ठ संकल्प सहज सम्पन्न हो रहे हैं... अमृतवेले से लेकर हर कर्म में बाबा मेरे साथ ही रहते हैं... हर पल मुझे साकार पालना का अनुभव कराते रहते हैं... मैं आत्मा हर कर्म बाबा की राय लेकर श्रीमत अनुसार कर रही हूँ... *मैं आत्मा साकार, आकार, निराकार तीनों रूपों में सदा बाबा के साथ का अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा सच्ची दिल से दिलाराम बाप को अपना बनाकर बाबा की दिलतख्तनशीन बन गई हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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