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 22 / 07 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सहजयोगी, स्वराज्य अधिकारी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *मेहनत को मोहब्बत में परिवर्तित किया ?*

 

➢➢ *ट्रस्टी बनकर हरव कार्य किया ?*

 

➢➢ *हर कर्म करते कनेक्शन के आधार से स्वयं को डबल लाइट अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *अगर आपकी वृत्ति में श्रेष्ठ भावना, श्रेष्ठ कामना है तो अपने संकल्प से, दृष्टि से, दिल की मुस्कराहट से सेकण्ड में किसी को बहुत कुछ दे सकते हो। जो भी आवे उसको गिफ्ट दो, खाली हाथ नहीं जाये।* जितना निश्चय रूपी फाउण्डेशन पक्का है उतना ही आदि से अब तक सहज योगी, निर्मल स्वभाव, शुभ भावना की वृत्ति और आत्मिक दृष्टि सदा नेचुरल रूप में अनुभव होगी।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं संगमयुगी पुरुषोत्तम आत्मा हूँ"*

 

  सदा संगमयुगी पुरुषोत्तम आत्मा हैं-ऐसे अनुभव करते हो? *संगमयुग का नाम ही है पुरुषोत्तम। अर्थात् पुरुषों से उत्तम पुरुष बनाने वाला युग। तो संगमयुगी हो? आप सभी पुरुषोत्तम बने हो ना। आत्मा पुरुष है और शरीर प्रकृति है। तो पुरुषोत्तम अर्थात् उत्तम आत्मा हूँ। सबसे नम्बरवन पुरुषोत्तम कौन है? (ब्रह्मा बाबा) इसीलिए ब्रह्मा को आदि देव कहा जाता है।* 'फरिश्ता ब्रह्मा' भी उत्तम हो गया और फिर भविष्य में देव आत्मा बनने के कारण पुरुषोत्तम बन जाते। लक्ष्मी-नारायण को भी पुरुषोत्तम कहेंगे ना।

 

  *तो पुरुषोत्तम युग है, पुरुषोत्तम मैं आत्मा हूँ। पुरुषोत्तम आत्माओंका कर्तव्य भी सर्वश्रेष्ठ है। उठा, खाया-पीया, काम किया-यह साधारण कर्म नहीं, साधारण कर्म करते भी श्रेष्ठ स्मृति, श्रेष्ठ स्थिति हो। जो देखते ही महसूस करे कि यह कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं।* जो असली हीरा होगा वह कितना भी धूल में छिपा हुआ हो लेकिन अपनी चमक जरूर दिखायेगा, छिप नहीं सकता। तो आपकी जीवन हीरे तुल्य है ना। कैसे भी वातावरण में हों, कैसे भी संगठन में हों लेकिन जैसे हीरा अपनी चमक छिपा नहीं सकता, ऐसे पुरुषोत्तम आत्माओंकी श्रेष्ठ झलक सबको अनुभव होनी चाहिए। तो ऐसे है या दफ्तर में जाकर, काम में जाकर आप भी वैसे ही साधारण हो जाते हो? अभी गुप्त में हो, काम भी साधारण है। इसीलिए पाण्डवों को गुप्त रूप में दिखाया है। गुप्त रूप में राजाई नहीं की, सेवा की। तो दूसरों के राज्य में गवर्मेन्ट-सर्वेन्ट कहलाते हो ना। चाहे कितना भी बड़ा आफीसर हो लेकिन सर्वेन्ट ही है ना। तो गुप्त रूप में आप सब सेवाधारी हो लेकिन सेवाधारी होते भी पुरुषोत्तम हो। तो वह झलक और फलक दिखाई दे।

 

  जैसे ब्रह्मा बाप साधारण तन में होते भी पुरुषोत्तम अनुभव होता था। सभी ने सुना है ना। देखा है या सुना है? अभी भी अव्यक्त रूप में भी देखते हो-साधारण में पुरुषोत्तम की झलक है! तो फालो फादर है ना। ऐसे नहीं-साधारण काम कर रहे हैं। मातायें खाना बना रही हैं, कपड़े धुलाई कर रही हैं-काम साधारण हो लेकिन स्थिति साधारण नहीं, स्थिति महान् हो। ऐसे है? या साधारण काम करते साधारण बन जाते हैं? *जैसे दूसरे, वैसे हम-नहीं। चेहरे पर वो श्रेष्ठ जीवन का प्रभाव होना चाहिए। यह चेहरा ही दर्पण है ना। इसी से ही आपकी स्थिति को देख सकते हैं। महान् हैं या साधारण हैं-यह इसी चेहरे के दर्पण से देख सकते हैं।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  जब साइन्स के साधन सेकण्ड में अन्धकार से रोशनी कर सकते हैं तो हे ज्ञान सूर्य बच्चे, आप कितने समय में रोशनी कर सकते हो? *साइन्स से तो साइलेंस की शक्ति अति श्रेष्ठ है।* तो ऐसे अनुभव करते हो कि *सेकण्ड में स्मृति का स्विच ऑन करते अंधकार में भटकी हुई आत्मा को रोशनी में लाते हैं?*

 

क्या समझते हो? सात दिन के सात घण्टे का कोर्स दे अंधकार से रोशनी में ला सकते हो वा तीन दिन के योग शिविर से रोशनी में ला सकते हो? वा सेकण्ड की स्टेज तक पहुँचे गये हो? क्या समझते हो?

 

✧  अभी घण्टों के हिसाब से सेवा की गति है वा मिनट व सेकण्ड की गति तक पहुँच गये हो? क्या समझते हो? *अभी टाइम चाहिए वा समझते हो कि सेकण्ड तक पहुँच गये हैं?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *तो स्व-अभ्यास के लिए भी समय मिले तो करेंगे, नहीं। समय निकालना पड़ेगा।* स्थापना के आदिकाल से एक विशेष विधि चलती आ रही है। कौस सी? फुरी-फुरी तालाब (बूंद-बूंद से तालाब) तो समय के लिए भी यही विधि है। जो समय मिले अभ्यास करते-करते सर्व अभ्यास स्वरूप सागर बन जायेंगे। *सेकण्ड मिले वह भी अभ्यास के लिए जमा करते जाओ, सेकण्ड-सेकण्ड करते कितना हो जायेगा! इकट्ठा करो तो आधा घण्टा भी बन जायेगा।* चलते-फिरते के अभ्यासी बनी। *जैसे चात्रक एक-एक बूंद के प्यासे होते हैं। ऐसे स्व अभ्यासी चात्रक एक-एक सेकण्ड अभ्यास में लगावें तो अभ्यास स्वरूप बन ही जायेंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- डबल लाइट की स्थिति से मेहनत समाप्त"*

 

➳ _ ➳  *जब से मीठे प्यारे शिवबाबा ने मुझे अपना बच्चा बनाया है... जीवन खुशियों के फूलों से महक उठा है...* हर पल, हर कर्म... मीठे बाबा की यादों से सज गया है... *मैने तो कभी ख्यालों खवाबों में भी नहीं सोचा था कि एक दिन स्वयं भाग्यविधाता... मुझे अपने दिल का हिस्सा बना लेगा... वाह!! मैं खुशनसीब आत्मा!!* मीठे बाबा को पाकर, सच की अमीरी से जीवन छलक रहा है... बाबा ने दुःख भरी जिंदगी से निकाल... सुख भरी जिंदगी से भरपूर कर दिया है... जीवन को बेशकीमती बना दिया है... और यूँ *मीठे चिन्तन में डूबी हुई मैं आत्मा... मीठे बाबा से रूहरिहान करने, सूक्ष्म वतन में उड़ चलती हूँ...*

 

❉  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को डबल लाइट स्थिति के बारे में समझाते हुए कहा:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता के साथ भरा यह वरदानी समय... बहुत कीमती है, इसे अब यूँ ही व्यर्थ में न गंवाओ... *सर्वशक्तिवान बाप की शक्ति से... अर्थात... स्मृति के कनेक्शन से... हर कर्म को डबल लाइट स्थिति में स्थित होकर... सच्ची कमाई से सम्पन्न करो... हर श्वास में मीठे बाबा को याद कर, डबल लाइट स्थिति में स्थित रहने का अभ्यास पक्का करो..."*

 

➳ _ ➳  *मैं आत्मा प्यारे बाबा पर अपना अधिकार जमाते हुए कहती हूँ:-* "मेरे मीठे मीठे बाबा... *आपने अपना यादों भरा हाथ, मेरे हाथ में देकर... मुझ आत्मा का कितना प्यारा और शानदार भाग्य सजाया है... आपको पाकर मैं आत्मा... अपने सारे खोये खजाने लेकर... विश्व का ताजोतख्त पा रही हूँ...* सच्ची कमाई से भरपूर होकर फिर से खोयी हुई बादशाही को पा रही हूँ..."

 

❉  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को श्रीमत देते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे बच्चे... *सदा ट्रस्टीपन का भाव रखो... हर कर्म को ईश्वरीय सेवा की भावना से करो... जो भी डायरेक्शन मिले... उसे निश्चिंत और न्यारे होकर करते चलो... तो हर कर्म बिना किसी मेहनत के होता रहेगा...* और तुम्हारे हर कर्म से रूहानियत की खुशबू फैलती रहेगी... तुम रूहानी गुलाब बन हर क्षेत्र में... अपनी रूहानियत की खुशबू फैलाते रहो..."

 

➳ _ ➳  *मैं आत्मा श्रीमत की बाँहो में महफूज होकर मुस्कराती हुई मीठे बाबा से कहती हूँ :-* "मेरे जीवन के सच्चे सहारेदाता बाबा... *आपने मेरे कौड़ी तुल्य जीवन को... हीरे जैसा बना दिया... अब मैं आत्मा आपकी हर श्रीमत का पालन कर... अपने जीवन को खुशियों के दामन से भर रही हूँ...* मीठे बाबा आप आये, तो जीवन में आनंद ही आनंद की बहारें आ गयी हैं... मैं आत्मा अच्छे कर्मों से रुबरु हुई हूँ, और विकर्मो से बेमुख हुई हूँ..."

 

❉  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को बेहद का समझदार बनाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *आपकी रूहानियत की शक्ति अनेकों के अंदर की वृतियों को बदल देगी, जैसे फूलों में खुशबू समाई हुई होती है... ऐसे ही आप बच्चों में रुहनियत की खुशबू समाई हुई हो...* आपकी रूहानियत विश्व को आकर्षित करेगी... इसलिये सदा लाइट माइट स्थिति में स्थित हो... हर कर्म को ईश्वरीय सेवा समझ करते चलो... तो मेहनत और मुश्किल शब्द समाप्त हो जायेगा..."

 

➳ _ ➳  *मैं आत्मा प्यारे बाबा के प्यार में अतीन्द्रिय सुख पाते हुए कहती हूँ :-* "मेरे दिलरुबा... मेरे रहबर बाबा... *मैं आत्मा श्वांसों श्वास... आपकी याद में रह... डबल लाइट स्थिति में स्थित हो... हर कर्म को  करती हुई... मेहनत से मुक्त होती जा रही हूँ...* मैं आत्मा ईश्वरीय यादों में अथाह खुशियों को अपने दामन में भर रही हूँ... मीठे बाबा से प्यारी सी रूहरिहान कर मैं आत्मा... स्थूल तन में लौट आयी..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मेहनत को मोहब्बत में परिवर्तित करना*

 

➳ _ ➳  मेरे दिलाराम बाबा के साथ की स्मृति, किसी भी कार्य मे लगने वाली मेहनत से मुझे मुक्त कर हर कार्य को सफलतापूर्वक और बिल्कुल सहज रीति सम्पन्न कर देती है *इसका प्रेक्टिकल अनुभव करते हुए अपने दिलाराम बाबा का दिल से मैं शुक्रिया अदा करती हूँ और उनकी मोहब्बत के झूले में झूलते हुए, उनसे स्नेह मिलन मनाने के लिए मन बुद्धि की उस खूबसूरत यात्रा पर चलने के लिए अग्रसर होती हूँ जो मुझे मेरे दिलाराम भगवान बाप से मिलाने वाली है*। उस यात्रा पर आगे बढ़ने के लिए, स्वयं को अशरीरी स्थिति में स्थित करने के लिए, मैं देह और देह की दुनिया से किनारा करके, अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करती हूँ और अपनी चेतना को समेट कर अपना सारा ध्यान अपने मस्तक के बीच मे उस प्वाइंट पर केंद्रित कर लेती हूँ जो मुझ आत्मा का निवास स्थान है।

 

➳ _ ➳  इस देह में भृकुटि के बिल्कुल बीच में अपने मन को एकाग्र करके अब मैं उस प्वाइंट ऑफ लाइट को देख रही हूँ जिसमे से भीना - भीना सात रंगों का प्रकाश निकल रहा है। *मन को गहन तृप्ति का अनुभव करवाने वाले इस प्रकाश की किरणों को मैं धीरे - धीरे मस्तक से बाहर निकलता हुआ देख रही हूँ। इस खूबसूरत प्रकाश की किरणों से मेरे चारों तरफ एक शक्तिशाली औरा बनता जा रहा है। इस औरे में समाये सुख, शांति, पवित्रता, प्रेम, आनन्द, ज्ञान और शक्ति इन सातों गुणों के वायब्रेशन्स को मैं अपने चारों और वायुमण्डल में फैलता हुआ अनुभव कर रही हूँ*। वायुमण्डल को दिव्य और अलौकिक बनाते ये वायब्रेशन्स एक अद्भुत रूहानी नशे से मुझे भरपूर कर रहें हैं।

 

➳ _ ➳  रूहानी मस्ती में डूबी मैं आत्मा अब अपनी रूहानी यात्रा पर आगे चलने के लिए भृकुटि को छोड़ देह से बाहर आती हूँ और ऊपर की ओर चल पड़ती हूँ। *अपने दिलाराम बाबा से मिलने के सुखद एहसास में खोई मैं चैतन्य शक्ति धीरे - धीरे अपनी रूहानी यात्रा का आनन्द लेते हुए, आकाश को पार करके, सूक्ष्म वतन में प्रवेश करती हूँ। सफेद प्रकाश से प्रकाशित फरिश्तो की इस दुनिया के खूबसूरत नजारों को देखते - देखते मैं इसे भी पार करके पहुँच जाती हूँ अपने मूलवतन परमधाम घर मे*। देख रही हूँ सूर्य के समान चमकते अपनी अनन्त किरणों को बिखेरते अपने महाज्योति शिव पिता को जो मेरे बिल्कुल सामने उपस्थित हैं। उनकी मोहब्बत में खोकर, उनकी किरणों रूपी बाहों में समाने के लिए मैं धीरे - धीरे उनके पास पहुँचती हूँ और उनकी बाहों के आगोश में जाकर समा जाती हूँ।

 

➳ _ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे अपनी किरणों रूपी बाहों के आगोश में मुझे भरकर बाबा अपना सारा प्यार, अपनी सारी मोहब्बत मुझ पर लुटाने के लिए मुझे अपने बिल्कुल समीप खींच रहें हैं। बाबा की किरणों रूपी बाहों का घेरा टाइट होता जा रहा है और मैं आत्मा बाबा के इतना समीप होती जा रही हूँ कि ऐसा लग रहा है जैसे मैं बाबा में पूरी तरह समा गई हूँ और बाबा का ही रूप बन गई हूँ। *दो बिंदु जैसे एक हो गए हैं। बहुत ही शक्तिशाली स्थिति का मैं अनुभव कर रही हूँ। हर गुण, हर शक्ति से मैं स्वयं को सम्पन्न महसूस कर रही हूँ। बाप समान शक्तिशाली स्थिति का अनुभव करके अब मैं बाबा की किरणों रूपी बाहों के घेरे से निकल कर बाबा के सामने बैठ गई हूँ*। बड़े प्यार से उन्हें निहारते हुए, अपने ऊपर पड़ रही उनके स्नेह की शीतल फुहारों से मिलने वाली शीतलता का मैं भरपूर आनन्द ले रही हूँ।

 

➳ _ ➳  अपने दिलाराम बाबा से इतना मधुर, इतना आनन्दमयी स्नेह मिलन मनाकर, उनके प्यार से भरपूर होकर मैं वापिस साकारी दुनिया मे आ रही हूँ। अपने साकार तन में प्रवेश करके, अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर अब मैं अपने पिता की मोहब्बत के झूले में हर पल झूल रही हूँ। *मेरे दिलाराम बाबा की मोहब्बत मुझे मेहनत से छुड़ा कर सहजयोगी जीवन का अनुभव करवा रही है*। स्वयं को निमित समझ, करनकरावनहार बाबा की याद में रहने से, स्मृति के कनेक्शन के आधार से, उनसे मिल रही लाइट और माइट पाकर मैं हर कर्म अब डबल लाइट स्थिति में स्थित होकर कर रही हूँ। *तन - मन - धन सब कुछ बाबा को समर्पित करके, ट्रस्टी बन हर कर्तव्य को सेवा समझ कर करने से मैं उड़ता पँछी बन हर सेकेण्ड उड़ती कला का अनुभव कर रही हूँ और मेहनत को मोहब्बत में परिवर्तित कर, अपने दिलाराम बाबा के प्यार के झूले में हर पल झूल रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपनी शक्तिशाली स्थिति द्वारा दान और पुण्य करने वाली पुजनीय और गायन योग्य आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं परिस्थितियों में घबराने के बजाए साक्षी होकर विजयी बनने वाली विजयीमूर्त आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  चांस लेने चाहो तो ले लो फिर यह उल्हना भी कोई नहीं सुनेगा कि मैं कर सकता था लेकिन यह कारण हुआ। पहले आता तो आगे चला जाता था। यह परिस्थितियाँ नहीं होती तो आगे चला जाता। यह उल्हने स्वयं के कमज़ोरी की बातें हैं। *स्व-स्थिति के आगे परिस्थिति कुछ कर नहीं सकती। विघ्न विनाशक आत्माओं के आगे विघ्न पुरूषार्थ में रूकावट डाल नहीं सकता। समय के हिसाब से रफ्तार का हिसाब नहीं। दो साल वाला आगे जा सकतादो मास वाला नहीं जा सकतायह हिसाब नहीं। यहाँ तो सेकण्ड का सौदा है। दो मास तो कितना बड़ा है। लेकिन जब से आये तब से तीव्रगति हैतो सदा तीव्रगति वाले कई अलबेली आत्माओं से आगे जा सकते हैं।*

 

_ ➳  इसलिए वर्तमान समय को और मास्टर सर्वशक्तिवान आत्माओं को यह वरदान है - जो अपने लिए चाहो जितना आगे बढ़ना चाहोजितना अधिकारी बनने चाहो उतना सहज बन सकते हो क्योंकि - वरदानी समय है। वरदानी बाप की वरदानी आत्माएं होसमझा - वरदानी बनना है तो अभी बनोफिर वरदान का समय भी समाप्त हो जायेगा। फिर मेहनत से भी कुछ पा नहीं सकेंगे। इसलिए *जो पाना है वह अभी पा लो। जो करना है अभी कर लो। सोचो नहीं लेकिन जो करना है वह दृढ़ संकल्प से कर लो। और सफलता पा लो।*

 

✺   *"ड्रिल :- विघ्नों को अपने पुरुषार्थ में बाधा न बना तीव्र गति से पुरुषार्थ करते रहना।"*

 

_ ➳  एकांत अवस्था में एकांत स्थान पर मैं शान्त स्वरूप अवस्था में बाप दादा की तस्वीर के सामने एक शांति भरे कमरे में बैठी हुई हूं... और बाप दादा को लगातार निहार रही हूं... जैसे-जैसे मैं बाप-दादा को निहारने लगती हूँ... वैसे वैसे मैं अपने अंदर नई शक्तियों का अनुभव करने लगती हूं... मैं बाबा की दृष्टि पाकर बापदादा की आंखों में प्रकाश बनकर डूब जाती हूं... और *अपने आप को अलौकिक मां के ममता भरी गोद में अनुभव करती हूं... अपनी अलौकिक मां की गोद में मैं छोटी सी बालिका बनकर मां से खेल, खेल रही हूं...* और मां से कहती हूं... कि माँ कुछ समय मेरे साथ खेलिये... और मेरी मां मेरे साथ प्यार से बालक के भाव से खेलने लगती है...

 

_ ➳  कुछ समय बाद मेरी अलौकिक मां मुझे अपने मित्र के साथ खेलने के लिए कहती है... और मुझे अपनी गोद से उतार देती है... मैं अपनी अलौकिक मां के आदेश का पूर्णतया पालन करते हुए अपने परमात्मा रूपी मित्र के साथ खेलने के लिए खुले वातावरण में प्रकृति की गोद में खेलने के लिए चली जाती हूं... मेरा वह मित्र भी बालक बनकर मेरे साथ खेलने लगता है... और मेरा हाथ थामे एक ऐसे स्थान पर ले जाता है... जहां पर गहरी नदी तेज बहती हुई कल कल आवाज करती हुई नजर आती है... *मेरा मित्र धीरे धीरे मुझे उस नदी के अंदर ले जाने का प्रयास करता है मैं कुछ डरी सहमी सी उस नदी के अंदर चली जाती हूं... और मैं उस तेज बहाव के कारण अपने आप को उस नदी में स्थित नहीं कर पाती हूं... और ना ही खेलने की इस अवस्था को अनुभव कर पाती हूं...* मैं अपने आप को असक्षम अनुभव करती हूं...

 

_ ➳  और मैं अपने मित्र के साथ उस नदी में अपने मित्र का हाथ थामे खड़ी होने का प्रयास करती हूं... परंतु जैसे ही नदी में पानी का बहाव तेज होता है... मैं उस पानी में स्थित नहीं हो पाती और उस पानी के साथ बहने लगती हूं... और बहते-बहते मैं देखती हूं... कि *मेरा वह छोटा सा मित्र बिल्कुल आराम से उस तेज पानी के तेज बहाव में खड़ा है... मैं उसकी यह अवस्था देख आश्चर्यचकित हो जाती हूं... और उसके मनोबल की सराहना करती हूं... और मैं देखती हूं... कि जैसे ही मैं पानी में गिरती हूं... मेरा वह मित्र मुझे पानी से उठाकर अपने साथ फिर से खड़ा कर लेता है...* और खेलने के लिए कहता है... मैं अपने मित्र की इस प्रक्रिया में पूर्ण तरह से सहायक नहीं हो पाती हूं... क्योंकि मेरी अवस्था मेरे मित्र से बहुत ही कमजोर हो रही है... मेरा मित्र मेरा यह रूप देखकर मेरी भावनाओं को समझते हुए... मुझे उस पानी के बहाव से बाहर निकालकर ले आता है...

 

_ ➳  और मेरे मित्र द्वारा पानी से बाहर आने के बाद... मैं अपने मित्र से अपने डर का इजहार करती हूं... और अपनी कमी कमजोरियों का वर्णन करती हूं... मेरा मित्र मुझे हाथ पकड़कर एक चट्टान पर बिठा देता है... और स्वयं भी मेरे सामने एक चट्टान पर बैठ जाता है... और मुझे कहता है कि... अगर तुम ऐसे ही इन पानी के बहाव रूपी विघ्नों से घबराती रही तो कभी भी अपने पुरुषार्थ में आगे नहीं बढ़ पाओगे... और ना ही अपनी स्थिति मजबूत कर पाओगी... तथा ना ही तुम हर परिस्थिति का आनंद ले पाओगी... *हमेशा विघ्नों रूपी इन कठिनाइयों में अपने आप को बांध लोगी... अगर तुम्हें इन विघ्नों को पार करना है... तो अपने अंदर नई शक्तियों को भरना होगा... अपने मनोबल को बढ़ाना होगा... जब तक तुम्हारा मनोबल नहीं बढ़ेगा तुम्हारी शक्तियां कभी भी तुम्हारा साथ नहीं देगी... इसलिए हमेशा यह संकल्प करो कि यह जो भी विघ्न आते है... वह तुम्हारी स्थिति को और भी मजबूत बनाने के लिए आए हैं...* 

 

_ ➳  मेरे मित्र की इन बातों को सुनकर मेरे अंदर मनोबल का नया विकास होता है... और मैं अपने आप को शक्तिशाली स्थिति में अनुभव करने लगती हूं... *मैं अपने आप को मास्टर सर्वशक्तिमान की स्टेज पर लाते हुए... अपने मित्र का हाथ पकड़कर उस नदी में पानी के तेज बहाव के बीचो बीच ले आती हूं... और मजबूत चट्टान रूपी अवस्था में खड़ी हो जाती हूं... और जैसे ही वह पानी का तेज बहाव आता है... मैं अपने अंदर यह एहसास लाती हूं कि यह पानी का बहाव मुझे और भी मजबूत करते हुए जाएगा... और मैं देखती हूं... कि यह पानी मेरे पास होकर गुजर जाता है... और मुझे इसके बहाव का जरा भी एहसास नहीं होता...* कि इसका वेग कितना होगा कितना है... इस तरह मैं अपनी अवस्था को धीरे-धीरे मजबूत बना लेती हूं... और उस परमात्मा रुपी मित्र का कोटि-कोटि धन्यवाद करती हूँ... और वहां पर अपनी अलौकिक मां की गोद में प्यारे से बच्चे के रूप में आकर बैठ जाती हूं... और अपने पुरुषार्थ की ओर बढ़ती जाती हूं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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