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 18 / 07 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *साक्षी हो हर एक एक्टर के पार्ट को देखा ?*

 

➢➢ *"हम पार्ट पूरा कर झुशी से वापिस जा रहे हैं" - इस स्मृति में सदा रहे ?*

 

➢➢ *अपने मस्तक पर श्रेष्ठ भाग्य की लकीर देखते हुए सर्व चिंताओं से मुक्त रहे ?*

 

➢➢ *एकाग्रता की शक्ति द्वारा रूहों का आह्वान कर रूहानी सेवा की ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जैसे स्थापना के आदि में साधन कम नहीं थे, लेकिन बेहद के वैराग्य वृत्ति की भट्ठी में पड़े हुए थे।* यह 14 वर्ष जो तपस्या की, यह बेहद के वैराग्य वृत्ति का वायुमण्डल था। बापदादा ने अभी साधन बहुत दिये हैं, साधनों की कोई कमी नहीं हैं लेकिन होते हुए बेहद का वैराग्य हो। *आपके वैराग्य वृत्ति के वायुमण्डल के बिना आत्मायें सुखी, शान्त बन नहीं सकती, परेशानी से छूट नहीं सकती।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बाप समान न्यारा और प्यारा हूँ"*

 

  सदा अपने को जैसे बाप न्यारा और प्यारा है, ऐसे न्यारे और प्यारे अनुभव करते हो? बाप सबका प्यारा क्यों है? क्योंकि न्यारा है। जितना न्यारा बनते हैं उतना सर्व का प्यारा बनते हैं। न्यारा किससे? *पहले अपनी देह की स्मृति से न्यारा। जितना देह की स्मृति से न्यारे होंगे उतने बाप के भी प्यारे और सर्व के भी प्यारे होंगे। क्योंकि न्यारा अर्थात् आत्म-अभिमानी। जब बीच में देह का भान आता है तो प्यारापन खत्म हो जाता है। इसलिए बाप समान सदा न्यारे और सर्व के प्यारे बनो।*

 

  आत्मा रूप में किसको भी देखेंगे तो रूहानी प्यारा पैदा होगा ना। और देहभान से देखेंगे तो व्यक्त भाव होने के कारण अनेक भाव उत्पन्न होंगे-कभी अच्छा होगा, कभी बुरा होगा। लेकिन आत्मिक-भाव में, आत्मिक दृष्टि में, आत्मिक वृत्ति में रहने वाला जिसके भी सम्बन्ध में आयेगा अति प्यारा लगेगा। तो सेकेण्ड में न्यारे हो सकते हो? कि टाइम लगेगा? *जैसे शरीर में आना सहज लगता है, ऐसे शरीर से परे होना इतना ही सहज हो जाये। कोई भी पुराना स्वभाव-संस्कार अपनी तरफ आकर्षित नहीं करे और सेकेण्ड में न्यारे हो जाओ।*

 

  सारे दिन में, बीच-बीच में यह अभ्यास करो। *ऐसे नहीं कि जिस समय याद में बैठो उस समय अशरीरी स्थिति का अनुभव करो। नहीं। चलते-फिरते बीच-बीच में यह अभ्यास पक्का करो- 'मैं हूँ ही आत्मा!' तो आत्मा का स्वरूप ज्यादा याद होना चाहिए ना! सदा खुशी होती है ना!* कम नहीं होनी चाहिए, बढ़नी चाहिए। इसका साधन बताया-मेरा बाबा। और कुछ भी भूल जाये लेकिन 'मेरा बाबा' यह भूले नहीं।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  बापदादा सभी बच्चों को सम्पन्न स्वरूप बनाने के लिए रोज-रोज भिन्न-भिन्न प्रकार से प्वाइंटस बताते रहते हैं। *सभी प्वाइंटस का सार है, सभी को सार में समाए बिन्दु बन जाओ।* यह अभ्यास निरंतर रहता है?

 

✧  कोई भी कर्म करते हुए यह स्मृति रहती है कि - *मैं ज्योति बिन्दु इन कर्मेन्द्रियों द्वारा यह कर्म कराने वाला हूँ।'* यह पहला पाठ स्वरूप में लाया है? आदि भी यही है और अंत में भी इसी स्वरूप में स्थित हो जाना है। तो सेकण्ड का ज्ञान, सेकण्ड के ज्ञान स्वरूप बने हो? विस्तार को समाने के लिए एक सेकण्ड का अभ्यास है।

 

✧  जितना विस्तार में आना सहज है उतना ही सार स्वरूप में आना सहज अनुभव होता है? सार स्वरूप में स्थित हो फिर विस्तार में आना यह बात भूल तो नहीं जाते हो? सार स्वरूप में स्थित हो विस्तार में आने से कोई भी प्रकार के विस्तार की आकर्षण नहीं होगी। *विस्तार को देखते, सुनते, वर्णन करते ऐसे अनुभव करेंगे जैसे एक खेल कर रहे हैं। ऐसा अभ्यास सदा कायम रहे। *इसको ही सहज याद' कहा जाता है।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *एवररेडी अर्थात् साथ चलने के लिए समान बनी हुई आत्मा साक्षात्कार द्वारा आत्मा को नहीं देखेंगी लेकिन बुद्धियोग द्वारा सदा स्वयं को साक्षात् 'ज्योति बिन्दु आत्मा' अनुभव करेगी। साक्षात् स्वरूप बनना सदाकाल है और साक्षात्कार अल्पकाल का है।* साक्षात स्वरूप आत्मा कभी भी यह नहीं कह सकती कि मैंने आत्मा का साक्षात्कार नहीं किया है। मैंने देखा नहीं है। लेकिन वह अनुभव द्वारा साक्षात् रूप की स्थिति में स्थित रहेंगी। *जहाँ साक्षात स्वरूप होगा वहाँ साक्षात्कार की आवश्यकता नहीं। ऐसे साक्षात आत्मा स्वरूप की अनुभूति करने वाले अथार्टी से, निश्चय से कहेंगे कि मैंने आत्मा को देखा तो क्या लेकिन अनुभव किया है। क्योंकि देखने के बाद भी अनुभव नहीं किया तो फिर देखना कोई काम का नहीं।* तो ऐसे साक्षात् आत्म-अनुभवी चलते-फिरते अपने ज्योति-स्वरूप का अनुभव करते रहेंगे।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप को याद करना यही विश्व के लिए योगदान है"*

 

➳ _ ➳  प्रातः विचरण करते हुए मैं आत्मा एक उपवन में जाती हूँ... यहाँ पक्षी मधुर कलरव कर रहे हैं... पास ही कल कल करता हुआ झरना बह रहा है... यहां का वातावरण बहुत ही सुंदर और आकर्षक है... *यहां के सुरम्य वातावरण में प्रकृति के सामीप्य में बैठी... मैं आत्मा अपने शिव साजन की यादों में खो जाती हूँ...* बाबा के स्नेह का शीतल झऱना मुझ आत्मा पर बह रहा है... मेरा रोम रोम उस वर्षा में भीग रहा है... *अपने बाबा को मैं अपने सामने देख रही हूँ... और उनसे दृष्टि ले रही हूँ...*

 

❉  *अपनी स्नेहसिक्त वाणी से मुझे आनंदमग्न करते हुए बाबा कहते हैं:-* "मीठे मीठे लाडले बच्चे... तुम मुझ एक बाप को याद करो... *बाप की याद से सभी सुख प्राप्त होते हैं... बाप की याद ही विश्व के लिए योगदान है... इसी से ही विश्व पावन बनेगा... विश्व का बेड़ा पार हो जाएगा...* तुम अपार सुखों की दुनिया में चले जाओगे और असीम सुख प्राप्त करोगे..."

 

➳ _ ➳  *बाबा की मधुर वाणी सुनकर खुशी में झूमती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे मीठे प्यारे बाबा... आपकी याद मुझे अतींद्रिय सुख देने वाली है... कब से पुकारते पुकारते अब संगम युग पर आप मुझे मिले हो... *अब मैं आपको ही हर क्षण याद कर रही हूँ... इस याद से समूचे विश्व को पावन बनाने में योगदान दे रही हूँ... मैं आत्मा आपकी स्नेह वर्षा में मग्न हो खुशी में झूम रही हूँ..."*

 

❉  *ज्ञान की गहराइयों में ले जाते हुए ज्ञानसागर बाबा कहते हैं:-* "मीठे फूल बच्चे... इस संसार पर दु:खों के पहाड़ टूटने वाले हैं... *बाप का बनने से एक सेकंड में सुख का वर्सा मिल जाता है... तुम ईश्वर की गोद में आए हो... वही सबसे मीठा सबसे प्यारा है...* वही तुम्हारा ऊंचे से ऊंचा प्रीतम है, जिससे तुम प्रीतमाओं को सुख घनेरे मिलते हैं... *शिव बाबा खिवैया है, जो तुम्हें इस विषय सागर से पार ले जाते हैं...* आत्मा अज्ञान सागर से उस पार जा रही है..."

 

➳ _ ➳  *ज्ञान सागर की लहरों में लहराते हुए ज्ञान गंगा रूपी मैं आत्मा कहती हूँ:-* "प्राणों के आधार मीठे बाबा... *मैं आत्मा आप की सजनी बन अविनाशी साजन की याद में समाई हुई हूँ...* हर संबंध से अपने मीठे बाबा को याद कर रही हूँ... मैं आत्मा *ईश्वर पिता की गोद में आकर आपका बच्चा बन आपसे अविनाशी वर्सा प्राप्त कर रही हूँ...* आपको अपनी *जीवन नैया का खिवैया बनाकर विषय सागर से सहज ही पार होती जा रही हूँ..."*

 

❉  *मुझ आत्मा को अपनी गोदी में बिठाकर मुझ पर अपार स्नेह लुटाते हुए बाबा कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे बच्चे... *तुम्हें मुख से राम राम कहने की दरकार नहीं है... बाबा अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान देते हैं... तुम मीठी-मीठी लाडली आत्माएं मुझ बाप को ही याद करो... यही बाप की याद विश्व के लिए योगदान है...* एक शिव बाबा को याद करो... बाप के बनोगे तब बाबा की मदद भी मिलेगी... *बाप की याद में रहना है और सबको याद दिलाना है... यही दान करते रहना है... बाप पर बलि चढ़ जाना है और ट्रस्टी बन संभालना है..."*

 

➳ _ ➳  *बाबा की गोदी में बैठ अपने भाग्य पर इठलाती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणेश्वर मीठे बाबा... *मैं आत्मा आपकी मधुर शिक्षाओं को अपने जीवन में आत्मसात कर रही हूँ...* आपका बच्चा बन आपसे वर्सा ले रही हूँ... हर क्षण आपकी मीठी यादों में समाई हुई हूँ... सबको आपकी याद दिला रही हूँ... *अपना तन मन धन ईश्वर सेवा अर्थ बलिहार कर रही हूँ... आपकी याद से विश्व को पावन बनाने में योगदान दे रही हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- हम पार्ट पूरा कर खुशी से वापस जा रहें हैं - इस स्मृति में सदा रहना है*

 

➳ _ ➳  साक्षीपन की सीट पर सेट होकर , इस सृष्टि पर चल रहे बेहद के ड्रामा को मैं मन बुद्धि के नेत्र से जैसे ही देखती हूँ, हर पार्टधारी का पार्ट मुझे एक्यूरेट लगने लगता है। *मन से सारे संशय दूर हो जाते हैं और दृष्टि वृति इस बेहद के नाटक को साक्षी होकर देखने और इसका आनन्द लेने में बिजी हो जाती है। जिन आत्माओं के पार्ट को देख मन मे क्यों, क्या, कैसे के सवाल उठते थे, साक्षीदृष्टा बनते ही वो सभी सवाल जैसे अब समाप्त हो गए हैं और मन मे यही खुशी है कि हम पार्ट पूरा कर अब वापिस जा रहे हैं, अपने उस स्वीट साइलेन्स होम में जो हमारा घर हैं, जहाँ से हम इस सृष्टि ड्रामा में पार्ट बजाने के लिए आये थे*। वो 84 जन्मों का पार्ट अब पूरा हुआ।

 

➳ _ ➳  मन मे चल रहे इन सभी विचारों का चित्रण करते हुए, बुद्धि से इस बेहद के नाटक को देखते हुए, अपने प्यारे पिता के साथ वापिस अपने निर्वाण धाम घर जाने की खुशी मुझे अपने प्यारे पिता से मिलने के लिए व्याकुल करने लगती है। *मन रूपी पँछी उड़कर  सेकण्ड में अपने मीठे बाबा के पास पहुँच कर उनकी किरणों रूपी बाहों के आगोश में समा जाना चाहता है। अपने पिता से मिलने की मेरे मन की व्याकुलता मुझे देह के भान से धीरे - धीरे मुक्त करती जा रही है। अपने निराकारी स्वरूप में मैं स्वत: ही स्थित होती जा रही हूँ*। स्वयं को मैं देह से अलग एक चैतन्य ज्योति के रूप में मस्तक के बीच मे चमकता हुआ स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। मुझ आत्मा ज्योति से निकल रहा प्रकाश मुझे मेरे गुणों और शक्तियों का अनुभव करवा कर एक गहन सन्तुष्टता और आनन्द प्रदान कर रहा है।

 

➳ _ ➳  अपने अंदर निहित गुणों और शक्तियों को वायब्रेशन्स के रूप में अपने मस्तक से निकलते हुए मैं स्पष्ट देख रही हूँ। प्रकाश की रंग बिरंगी किरणों के रूप में, औंस की मीठी मीठी फुहारों की तरह ये वायब्रेशन्स मेरे चारों और फैल रहें हैं। *एक गहन शन्ति और असीम सुख की अनुभूति करते हुए, अपने इस अति सुंदर न्यारे और प्यारे स्वरुप का भरपूर आनन्द लेकर, अब मैं बिंदु आत्मा एक अति सूक्ष्म स्टार बन कर, भृकुटि की कुटिया से बाहर निकलती हूँ और कुछ क्षणों के लिए अपनी नश्वर देह को और अपने आस - पास की नश्वर चीजो को साक्षी होकर देखने के बाद, उन सबसे किनारा कर ऊपर की और उड़ जाती हूँ*। एक अद्भुत हल्केपन का अनुभव करते हुए और इस बन्धनमुक्त स्थिति का भरपूर आनन्द लेते हुए, मैं आकाश को पार करती हूँ और अव्यक्त वतन से होती हुई अपनी निराकारी दुनिया मे प्रवेश करती हूँ।

 

➳ _ ➳  चमकते हुए अति सूक्ष्म चैतन्य सितारों की यह दुनिया जो मेरे पिता का घर है, अपने इस निर्वाण धाम घर मे अब मैं पहुँच गई हूँ और अपने प्यारे पिता से मिलने उनके पास जा रही हूँ। एक अखण्ड महाज्योति के रूप में अपने पिता को मैं अपने सामने देख रही हूँ जो अपनी किरणों रूपी बाहों को फैलाये मुझे  बुला रहें हैं। *अपने बाबा की किरणों रूपी बाहों में समाकर, गहन शांति और सुख का अनुभव करते हुए, उनकी सर्वशक्तियों की छत्रछाया के नीचे बैठ अब मैं विश्राम कर रही हूँ*। स्वयं को उनके प्यार से, उनकी शक्तियों से, उनके गुणों से भरपूर कर रही हूँ। अपने पिता के साथ एक मधुर स्नेह मिलन मैं मना रही हूँ और इस मिलन का भरपूर आनन्द ले रही हूँ।

 

➳ _ ➳  अपने पिता के साथ मनाए इस मंगल मिलन से मिलने वाले मेरे पिता के प्यार और उनकी शक्तियों ने मेरे अंदर अथाह बल भर दिया है। ऐसा लग रहा है जैसे मैं बहुत उर्जावान बन गई हूँ। हर शक्ति, हर गुण से सम्पन्न बन गई हूँ। इन गुणों और शक्तियों को स्वयं में धारण कर, सृष्टि पर अपने पार्ट को एक्युरेट बजाने के लिए मैं वापिस साकार सृष्टि की ओर लौट रही हूँ। *अपने साकार तन में मैं आत्मा अब प्रवेश करके भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हो कर इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर अपने और हर आत्मा के पार्ट को साक्षी होकर देख रही हूँ। हर आत्मा अपना पार्ट पूरा कर अब खुशी से वापिस जा रही है यह स्मृति मुझे क्या, क्यों और कैसे के प्रश्नों की क्यू से बाहर निकाल कर, अति प्रसन्नचित स्थिति का अनुभव अब सदैव करवा रही है*। सारे गिले शिकवे समाप्त हो गए हैं और मन हर समय खुशी से यही गीत गाता रहता है कि "अब घर जाना है" और वापिस घर जाने की यह स्मृति ही मुझे देह और देह की दुनिया से उपराम करती जा रही है।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपने मस्तक पर श्रेष्ठ भाग्य की लकीर देखते हुए सर्व चिंताओं से मुक्त्त बेफिक्र बादशाह हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं एकाग्रता की शक्ति द्वारा रूहों का आह्वान कर रूहानी सेवा करने वाली सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  अपने को सदा सेवाधारी समझकर सेवा पर उपस्थित रहते हो नासेवा की सफलता का आधारसेवाधारी के लिए विशेष क्या हैजानते हो? सेवाधारी सदा यही चाहते हैं कि सफलता हो लेकिन सफल होने का अधार क्या हैआजकल विशेष किस बात पर अटेन्शन दिला रहे हैं? (त्याग पर) *बिना त्याग और तपस्या के सफलता नहीं। तो सेवाधारी अर्थात् त्याग मूर्त और तपस्वी मूर्त*।

 

_ ➳  *तपस्या क्या है? ‘एक बाप दूसरा न कोईयह है हर समय की तपस्या।*

 

_ ➳  और त्याग कौनसा हैउस पर तो बहुत सुनाया है लेकिन *सार रूप में सेवाधारी का त्याग - जैसा समयजैसी समस्यायें होजैसे व्यक्ति हों वैसे स्वयं को मोल्ड कर स्व कल्याण और औरों का कल्याण करने के लिए सदा इजी रहें।* जैसी परिस्थिति हो अर्थात् कहाँ अपने नाम का त्याग करना पड़ेकहाँ संस्कारों काकहाँ व्यर्थ संकल्पों काकहाँ स्थूल अल्पकाल के साधनों का... तो उस परिस्थिति और समय अनुसार अपनी श्रेष्ठ स्थिति बना सकें,  *कैसा भी त्याग उसके लिए करना पड़े तो कर लेंअपने को मोल्ड कर लेंइसको कहा जाता है - ‘त्याग मूर्त'।* त्यागतपस्या फिर सेवा। त्याग और तपस्या ही सेवा की सफलता का आधार है। *तो ऐसे त्यागी जो त्याग का भी अभिमान न आये कि मैंने त्याग किया। अगर यह संकल्प भी आता तो यह भी त्याग नहीं हुआ*।

 

✺   *"ड्रिल :- त्याग और तपस्या के आधार पर सेवा में सफलता प्राप्त करना।"*

 

_ ➳  देह रूपी पारदर्शी डिबिया में दमकती, मैं आत्मा मणि, अपने गुणों व शक्तियों के प्रकाश से इस देह को भी आभा युक्त कर रही हूँ... *(दृश्य चित्र बनाकर कुछ देर महसूस कीजिए इस दृश्य को)* मैं आत्मा, उदय होता हुआ सूर्य और मेरे आसपास ये देह रूपी बादल... आहिस्ता-आहिस्ता ये बादल मेरे चारों और से हटने लगे है... और अब मैं आत्मा, अपने सम्पूर्ण प्रकाशमान रूप में... मेरा प्रकाश आसपास के वातावरण में प्रकाश के दरिया के रूप प्रवाहित हो रहा है... देखे स्वयं कों, प्रकाश के सागर में तैरते हुए... इस सागर की रंग बिरंगी लहरें कभी मुझे गहराई में लेकर जा रही है और कभी मैं लहरों के ऊपर अठखेलियाँ कर रही हूँ... *तपस्या की लगन में डूबी, एक बाप दूसरा न कोई इसी एक सकंल्प को लिए मैं मस्तक मणि, जा पहुँचती हूँ परम धाम में*...

 

_ ➳  असंख्य सुन्दर मणियों से भरा हुआ जैसे कोई पारदर्शी -सा, भव्य और  विशाल शीशे का जार... जार के ऊपर चमकता लाल रंग का शिव रत्नाकर, चमचमाती मणि के रूप में... और इस मणि के सबसे करीब, अपनी सम्पूर्ण आभा बिखेरता मैं नन्हा सा प्रकाश कण... अपनी किस्मत पर इठलाता हुआ... बस एक की ही लगन में मगन होता हुआ... फरिश्ता रूप में मैं रूहानी मणि उतरती हूँ अब सूक्ष्म लोक में... और बापदादा का हाथ पकडे उसी झील के किनारे जो, मेरे और बापदादा के रूहानी स्नेह की साक्षी है... *मैं देख रही हूँ आकाश में, बादलों के पीछे से झाँकने का प्रयास करता सूरज, और सूरज की लालिमा से सिन्दूरी रंग में रंगे ये बादल... बादल और सूरज दोनों ही अथक सेवाधारी है...*

 

_ ➳  तभी बापदादा मेरे हाथ पकडे मुझे सामने के पर्वत पर चलने का इशारा कर रहे है... मैं फरिश्ता शिखर पर जाकर बैठ गया हूँ बादलों के ढेर के ऊपर और छोटी-छोटी सी गेंद बनाकर फेंक रहा हूँ उन्हें झील के पानी में... अपना वजूद मिटाकर पानी होते ये बादल... मगर दूसरे ही पल फिर झील से धुएँ के रूप में फिर से बनकर उडते ये बादल... *सर्वस्व त्याग का पाठ पढा रहे हैं... धरा की तपन मिटाने की सेवा और उस एक धुन में सर्वस्व त्याग का अनोखा उदाहरण बन गये है ये... तभी बाप दादा मेरे हाथों में पकडे हुए छोटे छोटे नन्हें रंगीन गुब्बारों की तरफ इशारा करके मानों पूछ रहें हों*, बच्चे- "ये नाम, संस्कार, व्यर्थ संकल्पों और अल्पकाल के साधनों का त्याग कब तक करोगे...

 

_ ➳  और मैं, तुलना कर रहा हूँ, इन बादलों की त्यागवृत्ति से स्वयं की... कितना लचीलापन है इनमें, हवाओं के अनुसार स्वयं को किसी भी आकार में ढाल लेते है ये... *जो स्वयं को कैसे भी त्याग के लिए मोल्ड कर ले, ऐसी ही त्याग वृत्ति मुझे धारण करनी है, और ऐसा निश्चय कर मैंने वो सभी रंगीन गुब्बारें हवा में छोड दिए... आकाश में दूर दूर तक फैल गये है ये संस्कार, व्यर्थ संकल्पों और अल्पकाल के साधन रूपी गुब्बारें*... हवाओं में कलाबाजियाँ खाते हुए... और मैं देख रहा हूँ इनको खुद से दूर जाते हुए... दूर... बहुत दूर... और देखते ही देखते आँखों से ओझल हो गये है वे सभी...

 

_ ➳  *मैं देख रहा हूँ अपने दोनो हाथों को, कितना आराम महसूस कर रहे हैं मेरे दोनो हाथ... मुद्दतों के बाद आज मैं अपनी हथेली खोल रहा हूँ, बन्द कर रहा हूँ, आजादी के साथ*... असीम सुख का एहसास... *त्याग के सुख की गहरी अनुभूति हो रही है आज मुझे*... एक लम्बी और गहरी स्वाँस के साथ, मैं देख रहा हूँ बापदादा की ओर... और बस देखे जा रहा हूँ एकटक, कृतज्ञता आँखों में भर कर... जैसे कोई चातक पक्षी दिन रात बादलों को निहारता है... और बापदादा बरसते बादलों की तरह स्नेह बरसा रहे हैं मेरे ऊपर... *त्याग के भी त्याग का सुख आज महसूस हुआ है मुझ आत्मा को*... सर्व के कल्याण की भावना मन में समाये, मैं आत्मा वापस लौट आयी हूँ, अपनी देह रूपी डिबियाँ में... *त्याग और तपस्या के आधार पर सेवा में सफलता प्राप्त करने का दृढ निश्चय मन में लिए*... ओम शान्ति...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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