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 25 / 08 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *याद में रह शांति का वायुमंडल बनाया ?*

 

➢➢ *पवित्र रहने की सच्ची राखी हर एक को बाँधी ?*

 

➢➢ *एक बाप के लव में लवलीन रह सर्व बातों में सेफ रहे ?*

 

➢➢ *पूर्वजपन की पोजीशन पर स्थित रह माया और प्रकृति के बन्धनों से मुक्त रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *अब डबल लाइट बन दिव्य बुद्धि रूपी विमान द्वारा सबसे ऊंची चोटी की स्थिति में स्थित हो विश्व की सर्व आत्माओं के प्रति लाइट और माइट की शुभ भावना और श्रेष्ठ कामना के सहयोग की लहर फैलाओ। इस विमान में बापदादा की रिफाइन श्रेष्ठ मत का साधन हो।* उसमें जरा भी मन-मत, परमत का किचड़ा न हो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं राजऋषि हूँ"*

 

✧  *अपने को राजऋषि समझते हो? राज भी और त्र+षि भी। स्वराज्य मिला तो राजा भी हो और साथ-साथ पुरानी दुनिया का ज्ञान मिला तो पुरानी दुनिया से बेहद के वैरागी भी हो इसलिये त्र+षि भी हो। एक तरफ राज्य, दूसरे तरफ त्र+षि अर्थात् बेहद के वैरागी।* तो दोनों ही हो? बेहद का वैराग्य है या थोड़ा-थोड़ा लगाव है। अगर कहाँ भी, चाहे अपने में, चाहे व्यक्ति में, चाहे वस्तु में कहाँ भी लगाव है तो राजत्र+षि नहीं। न राजा है, न त्र+षि है।

 

✧  क्योंकि स्वराज्य है तो मन-बुद्धि-संस्कार सब अपने वश में है। लगाव हो नहीं सकता। *अगर कहाँ भी संकल्प मात्र थोड़ा भी लगाव है, तो राजऋषि नहीं कहेंगे। अगर लगाव है तो दो नाव में पांव हुआ ना। थोड़ा पुरानी दुनिया में, थोड़ा नई दुनिया में। इसलिए एक बाप, दूसरा न कोई।* क्योंकि दो नाव में पांव रखने वाले क्या होते हैं? न यहाँ के, न वहाँ के। इसलिये राजऋषि राजा बनो और बेहद के वैरागी भी बनो। 63 जन्म अनुभव करके देख लिया ना? तो अनुभवी हो गये फिर लगाव कैसा?

 

✧  अनुभवी कभी धोखा नहीं खाते हैं। सुनने वाला, सुनाने वाला धोखा खा सकता है। लेकिन अनुभवी कभी धोखा नहीं खाता। तो दु:ख का अनुभव अच्छी तरह से कर लिया है ना फिर अब धोखा नहीं खाओ। यह पुरानी दुनिया का लगाव सोनी हिरण के समान है। यह शोक वाटिका में ले जाता है। तो क्या करना है? थोड़ा-थोड़ा लगाव रखना है? अच्छा नहीं लगता लेकिन छोड़ना मुश्किल है! खराब चीज को छोड़ना और अच्छी चीज को लेना मुश्किल होता है क्या? *अगर कोई सोचता है कि छोड़ना है, तो मुश्किल लगता है। लेना है तो सहज लगता है। तो पहले लेते हो, पहले छोड़ते नहीं हो। लेने के आगे यह देना तो कुछ भी नहीं है। तो क्या-क्या मिला है वह लम्बी लिस्ट सामने रखो।* सुनाया है ना कि गीत गाते रहो-पाना था वो पा लिया, काम क्या बाकी रहा? तो यह गीत गाना आता है? मुख का नहीं, मन का। मुख का गीत तो थोड़ा टाइम चलेगा। मन का गीत तो सदा चलेगा। अविनाशी गीत चलता ही रहता है। आटोमेटिक है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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समय की घण्टी बजे तो तैयार होंगे या अभी सोचते हो तैयार होना है। इसी अभ्यास के कारण अष्ट रत्नों की माला' विशेष छोटी बनी है। बहुत थोडे टाइम की है। जैसे आप लोग कहते हो ना सेकण्ड में मुक्ति वा जीवनमुक्ति का वर्सा लेना सभी का अधिकार है। तो समाप्ति के समय भी नम्बर मिलना थोडे समय की बात है। लेकिन जरा भी हलचल न हो। *बस बिन्दी कहा और बिन्दी में टिक जायें। बिन्दी हिले नहीं।* ऐसे नहीं कि उस समय अभ्यास करना शुरू करो - मैं आत्मा हूँ. मैं आत्मा हूँ. यह नहीं चलेगा। क्योंकि सुनाया - वार भी चारों ओर का होगा। लास्ट ट्रायल सब करेंगे। *प्रकृति में भी जितनी शक्ति होगी, माया में भी जितनी शक्ति होगी, ट्रायल करेगी।* उनकी भी लास्ट ट्रायल और आपकी भी लास्ट कर्मातीत, कर्मबन्धन मुक्त स्थिति होगी। दोनों तरफ की बहुत पॉवरफुल सीन होगी। वह भी फुल फोर्स, यह भी फुल फोर्सी लेकिन सेकण्ड की विजय, विजय के नगाडे बजायेगी। समझा लास्ट पेपर क्या है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *सदा योगयुक्त रहने की सहज विधि है - सदा अपने को 'सारथी' और 'साक्षी' समझ चलना। आप सभी श्रेष्ठ आत्मायें इस रथ के सारथी हो। रथ को चलाने वाली आत्मा सारथी हो। यह स्मृति स्वत: ही इस रथ अथवा देह से न्यारा बना देती है, किसी भी प्रकार के देहभान से न्यारा बना देती है।* देहभान नहीं तो सहज योगयुक्त बन जाते और हर कर्म में योगयुक्त, युक्तियुक्त स्वत: ही हो जाते है। *स्वयं को सारथी समझने से सर्व कर्मेन्द्रियाँ अपने कंट्रोल में रहती हैं अर्थात् सर्व कर्मेनिद्रयों को सदा लक्ष्य और लक्षण की मंजिल के समीप लाने की कण्ट्रोलिंग पावर आ जाती है।* स्वयं 'सारथी' किसी भी कर्मन्द्रिय के वश नहीं हो सकता। *क्योंकि माया जब किसी के ऊपर वार करती है तो माया के वार करने की विधि यही होती है कि कोई-न-कोई स्थूल कर्मेन्द्रियों अथवा सूक्ष्म शक्तियां - 'मन-बुद्धि-संस्कार' के परवश बना देती है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पवित्र रहने की कसम लेना ही सच्चा रक्षाबंधन है"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा के कमरे में बैठी हुई बाबा को निहार रही हूं... आज भी बाबा की साकार भासना मुझे मन्त्रमुग्ध कर देती है...*  बाबा जैसे आसपास हैं और कदम कदम पर  समझानी देते हुए मुझे सतयुगी दुनिया के योग्य बना रहे हैं... *बाबा कैसे मुझे पालना देकर मेरे जीवन को निखार रहे हैं इन्ही बातों का चिंतन करते करते मैं स्वयं को बाबा के पास मणियों के देश में चमकता हुआ अनुभव कर रही हूं...*  बाबा से प्रवाहित होती शक्तिओं को स्वयं में भरकर वतन में बापदादा के सम्मुख पहुँच जाती हूँ...

 

  *बाबा मुस्कुराते हुए मुझ आत्मा को अपने पास बिठा कर बहुत प्यार से मुझ आत्मा से बोले:-* "मेरे सिकीलधे बच्चे... *पवित्र रहने की कसम लेना ही सच्चा  रक्षाबंधन है...* इस दुनिया में कोई को नही पता कि रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है... तुम बच्चे जानते हो हमने बाबा के बनकर एक दो को पवित्रता की राखी बांधी है... *बाप से तुमने पवित्र रहने की प्रतिज्ञा की है, तुम्हें पवित्र बन औरों को भी पवित्र बनाने की सेवा करनी है..."*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा के मुख से निकलते ज्ञान रत्नों से अपनी झोली भरती हुई बाबा से बोली:-* "हाँ मेरे जादूगर बाबा... आपने ही मुझ आत्मा के जीवन में आकर मुझे पतित से पावन बनाया है... मेरी पत्थर बुद्धि को पारस बुद्धि बनाया है...  *ज्ञान स्नान से ही मैं आत्मा इतनी पावन बनी हूँ, मेरे जन्मों जन्मों के पाप योग अग्नि से भस्म होते जा रहे हैं... आपने मुझे इस विकारी दल दल से निकाल कर अत्यंत पवित्र और स्नेही बना दिया है..."*

 

  *मुझ आत्मा को अपनी गोद में बिठा कर बाबा मुझ आत्मा से बोले:-* "मेरे लाडले फूल बच्चे... बाप का बनकर *कभी भी विकारों के वशीभूत नही होना* इसलिए श्रीमत को पूरा पूरा धारण करना,  *श्रीमत का उलंघन करने से माया नाक से पकड़ लेगी...* निरंतर एक बाप की याद में रहो तो माया भी व्यस्त देखकर अपना रास्ता बदल लेगी... *तुम ब्राह्मण बच्चों को अमृतवेले से लेकर रात तक कि श्रीमत मिली हुई है... ब्राह्मण जीवन है ही मर्यादाओं का जीवन है..."*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा की बातों को सुनकर बाबा से बोली:-* "प्राणों से प्यारे बाबा मेरे... *मैं आत्मा स्वयं को अत्यंत सौभाग्यशाली अनुभव कर रही हूं* जो मुझे  परमात्मा की श्रीमत पर जीवन जीने का शुभ अवसर मिला... दुनिया में कोई जानते ही नही की हम बच्चे परमात्मा की गोद में पल रहे हैं... *वाह मेरा भाग्य दुनिया में दुख और अशांति है और मैं आत्मा सुखों के झूले में झूल रही हूं... आपके आने से जीवन अत्यंत सुंदर हो गया है..."*

 

  *बाबा मेरे सर को सहलाते हुए अपनी मधुर वाणी में मुझ आत्मा से बोले:-* "मीठे बच्चे... *अब बाप का बने हो तो सच्चा सच्चा रक्षाबंधन मनाओ और एक दो को पवित्रता की राखी बांध कर बाप के इस रुद्र ज्ञान यज्ञ में बाप के सहयोगी बनो...*  यही धारणा तुम्हारे लिए स्वर्ग के द्वार खोलेगी... बाप तुम्हारे लिए ही इस पतित दुनिया में आते हैं अब *बाप पर पूरा पूरा बलिहार जाओ..."*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा के प्यार में खोई हुई बाबा से कहती हूँ:-* "हाँ मेरे दिलाराम बाबा... जब तक ये शरीर है तब तक बाप की श्रीमत पर ही जीना है... *आपने इतना अमूल्य जीवन देकर मुझ आत्मा की झोली सुखों और वरदानों से भर दी है,*  मैं आत्मा आपका जितना भी आभार प्रकट करूँ कम ही लगता है... आपने मुझ आत्मा को *मेरे कखपन के बदले जन्मों जन्मों का सुख दे दिया है...* आपकी रहमतों के आगे शुक्रिया शब्द भी बहुत छोटा लगता है... *मैं आत्मा अपने अंतर्मन की गहराइयों से बाबा को शुक्रिया कर लौट आती हूँ अपने साकारी तन में..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पवित्रता की प्रतिज्ञा कर पवित्र रहने की सच्ची राखी हर एक को बाँधनी है*"

 

_ ➳  पवित्रता मुझ आत्मा का श्रृंगार है और पवित्रता ही मेरे ब्राह्मण जीवन का आधार है। अपने मूल स्वरूप में तो मैं आत्मा सदैव ही प्योर हूँ और मेरा आदि स्वरूप भी सम्पूर्ण पवित्र सतोप्रधान है। *किन्तु देह भान में आकर, विकारो में गिर कर अपनी जिस पवित्रता को खो कर मैं दुखी और अशांत हो गई थी अपने उसी पवित्र स्वरूप को पुनः पाने के लिए अपने प्यारे पिता की आज्ञाओ पर अब मुझे सम्पूर्ण रीति अवश्य चलना है*। सम्पूर्ण पावन बनने का जो ऑर्डिनेंस पवित्रता के सागर शिव बाबा ने आ कर हम सभी आत्माओं को दिया है उनके इस फरमान का पालन करते हुए, मैं स्वयं से और अपने प्यारे पिता से *मनसा, वाचा, कर्मणा सम्पूर्ण पवित्र बनने की और पवित्र रहने की सच्ची राखी हर एक को बाँधने की प्रतिज्ञा करती हूँ और याद करती हूँ अपने अनादि और आदि सम्पूर्ण पवित्र स्वरूप को*।

 

_ ➳  अपने अनादि स्वरूप में मैं स्वयं को अपने परमधाम घर मे अपने एवर प्योर शिव पिता के पास देख रही हूँ। यही मेरा वास्तविक सत्य स्वरूप है। *अपने इस स्वरूप में स्थित होकर मैं महसूस कर रही हूँ कि मुझ आत्मा में पवित्रता की कितनी अनन्त शक्ति है। अपने इस सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप में मैं आत्मा कितनी सुन्दर दिखाई दे रही हूँ*। ऐसा लग रहा है जैसे कोई बेदाग हीरा चमक रहा है। पवित्रता की किरणों का तेज प्रकाश मुझ आत्मा सितारे को कितना प्रकाशमय बना रहा है। अपने इस सुंदर स्वरूप का मैं आत्मा भरपूर आनन्द ले कर अब अपने इसी सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप को धारण किये नीचे साकार सृष्टि रूपी कर्मभूमि पर अवतरित होती हूँ। *देवी देवताओं से सजी एक सुन्दर मन को लुभाने वाली दैवी दुनिया में अपने सम्पूर्ण देवताई स्वरूप को धारण कर इस सृष्टि रंगमंच पर पार्ट बजाने का मेरा खेल प्रारम्भ होता है*।

 

_ ➳  देख रही हूँ अब मैं अपने सम्पूर्ण पवित्र देवताई स्वरूप को। पवित्रता का ताज और रत्न जड़ित ताज मेरी सुंदरता में चार चांद लगा रहें हैं। *पवित्रता, सुख, शांति और सम्पन्नता से भरपूर अपने देवताई जीवन के अनुभव का असीम आनन्द लेकर पुनः अपने ब्राह्मण स्वरूप में मैं लौट आती हूँ और सेकण्ड में ब्राह्मण सो फ़रिश्ता बन, पवित्रता की सच्ची राखी अपने प्यारे बापदादा से बंधवाने के लिए उनके अव्यक्त वतन की प्रस्थान कर जाती हूँ*। अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ मैं अति शीघ्र आकाश को पार कर अपने अव्यक्त वतन में प्रवेश करती हूँ और अपने प्यारे बापदादा के पास पहुँच जाती हूँ जो अपनी पवित्रता की लाइट सारे वतन में फैलाते हुए बहुत ही लुभायमान लग रहे हैं।

 

_ ➳  अपने प्यारे बापदादा के सम्मुख बैठ, उनसे पवित्रता की राखी बंधवा कर, उनकी पवित्रता की लाइट अपने अंदर समाकर मैं पवित्रता की शक्ति से भरपूर हो जाती हूँ और पवित्रता के सागर अपने प्यारे पिता के पास उनकी पवित्र निराकारी दुनिया में उनसे मिलन मनाने के लिए फिर से रूहानी यात्रा पर चल कर पहुँच जाती हूँ अपने परमधाम घर में। *आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में मास्टर बीज रूप बन अपने बीज रूप परमात्मा बाप के समीप जा कर, उनकी सर्वशक्तियो की किरणों की छत्रछाया के नीचे मैं बैठ जाती हूँ। पवित्रता की किरणों का तेज फव्वारा सीधा मुझ आत्मा के ऊपर प्रवाहित होने लगता है और मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की मैल धीरे - धीरे धुलने लगती है*। पुराने आसुरी स्वभाव संस्कारों की सारी अशुद्धता धीरे - धीरे पवित्रता की तेज किरणों की लाइट से जल कर भस्म हो जाती है और मेरा स्वरूप बहुत ही उज्ज्वल और चमकदार बन जाता है।

 

_ ➳  अपने लाइट माइट पवित्र स्वरूप में अब मै लौट आती हूँ वापिस साकारी दुनिया मे और अपने साकार शरीर रूपी रथ पर आकर विराजमान हो जाती हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर अपने प्यारे पिता के फरमान का पालन करते हुए, उनसे की हुई अपनी पवित्रता की प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए अपने ब्राह्मण जीवन मे अब मैं मनसा, वाचा कर्मणा सम्पूर्ण पावन बनने का पूरा पुरुषार्थ कर रही हूँ। *अपने जीवन को पवित्र बना कर, अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को भी, पवित्र रहने की सच्ची राखी बाँधपवित्रता का महत्व बता कर उन्हें भी पवित्र जीवन जीने की प्रेरणा दे रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं एक बाप के लव में लवलीन रह सर्व बातों से सेफ रहने वाली मायाप्रूफ आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं पूर्वजपन की पोजीशन पर स्थित रहकर माया और प्रकृति के बंधनों से मुक्त होने वाली बंधनमुक्त आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  १. *बापदादा ने देखा कि कमजोरी देते तो हो लेकिन फिर वापस ले लेते हो। देखोवो (वर्ष) अक्ल वाला है जो पांच हजार वर्ष के पहले वापस नहीं आयेगा और आप पुरानी चीजें वापस क्यों लेते हो?* चिटकी लिखकर देंगे-हाँ.. बाबा, बस, क्रोध मुक्त हो जायेंगे.... बहुत अच्छा लिखते हैं और रुहरिहान भी करते हैं तो बहुत अच्छा कांध हिलाते हैं, हाँ, हाँ करते हैं। फिर पता नहीं क्यों वापस ले लेते हैं। *पुरानी चीजों से प्रीत रखते हैं। फिर कहते हैं हमने तो छोड़ दिया वो हमको नहीं छोड़ती हैं।*

 

 _ ➳  *बाप कहते हैं आप चल रहे हो और चलते हुए कोई कांटा या ऐसी चीज आपके पीछे चिपक जाती है तो आप क्या करेंगेये सोचेंगे कि ये मुझे छोड़े या मैं छोडूँकौन छोड़ेगा? अच्छा, अगर फिर भी वो हवा में उड़ती हुई आपके पास आ जाये तो फिर क्या करेंगे?* फिर रख देंगे या फ़ेंक देंगेफेंकेंगे नातो ये चीज क्यों नहीं फेंकतेअगर गलती से आ भी गई तो जब आपको पसन्द नहीं है और वो चीज आपके पास फिर से आती है तो क्या आप वो चीज सम्भाल कर रखेंगेकोई भी किसको गलती से भी अगर कोई खराब चीज दे देवे तो क्या उसे आलमारी में सजाकर रखेंगे?  फ़ेंक देंगे ना? उसकी फिर से शक्ल भी नहीं दिखाई देऐसे फेंकेंगे । तो ये फिर क्यों वापस लेते हो? बापदादा की ये श्रीमत है क्या कि वापस लोफिर क्यों लेते हो? *वो तो वापस आयेगी क्योंकि उसका आपसे प्यार है लेकिन आपका प्यार नहीं है। उसको आप अच्छे लगते हो और आपको वो अच्छा नहीं लगता है तो क्या करना पड़े?*

 

 _ ➳  २. *तो अभी जब वर्ष पांच हजार वर्ष के लिये विदाई लेता है तो आप कम से कम ये छोटा सा ब्राह्मण जन्म एक ही जन्म हैज्यादा नहीं हैएक ही है और उसमें भी कल का भरोसा नहीं तो वो पांच हजार की विदाई लेता है तो आप कम से कम एक जन्म के लिए तो विदाई दो। दे सकते होहाँ जी तो करते हो। लेकिन जिस समय वो वापस आती है तो सोचते हो - बड़ा मुश्किल लगता हैछूटता ही नहीं हैक्या करें! छोड़ो तो छूटें। वो नहीं छूटेगा, *आप छोड़ो तो छूटेगा। क्योंकि आपने उनसे प्यार बहुत कर लिया है तो वो नहीं छोड़ेगा, आपको छोड़ना पड़ेगा। तो पुराने वर्ष को इस विधि से दृढ़ संकल्प और सम्पूर्ण निश्चयइस ट्रे में ये आठ ही बातें सजा कर उसको दे दो तो फिर वापस नहीं आयेंगीनिश्चय को हिलाओ नहीं।

 

 _ ➳  ३. *अलबेले मत बनना। रिवाइज करोबार-बार रिवाइज करो।* बापदादा ने सबका चार्ट चेक किया तो टोटल ५० परसेन्ट बच्चे दूसरों को देख स्वयं अलबेले रहते हैं। कहाँ कहाँ अच्छे-अच्छे बच्चे भी अलबेलेपन में बहुत आते हैं। ये तो होता ही है..... ये तो चलता ही है.... चलने दो... सभी चलते हैं.... *बापदादा को हंसी आती है कि क्या अगर एक ने ठोकर खाई तो उसको देखकर आप अलबेलेपन में आकर ठोकर खाते होये समझदारी हैतो इस अलबेलेपन का पश्चाताप् बहुत-बहुत-बहुत बड़ा है।* अभी बड़ी बात नहीं लगती हैहाँ चलो... लेकिन बापदादा सब देखते हैं कि कितने अलबेले होते हैं, कितने औरों को नीचे जाने में फालो करते हैंतो बापदादा को बहुत रहम आता है कि पश्चाताप् की घड़ियाँ कितनी कठिन होगी। *इसलिए अलबेलेपन की लहर को, दूसरों को देखने की लहर को इस पुराने वर्ष में मन से विदाई दो।*

 

✺   *ड्रिल :-  "दृढ़ संकल्प और सम्पूर्ण निश्चय से कमजोरी, अलबेलेपन को मन से विदाई देना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा अपने भृकुटि सिंहासन पर विराजमान... अपने स्वधर्म शांत स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ...* धीरे-धीरे बाहर की दुनिया से दूर डिटैच होती जा रही हूँ... सभी बाहर की आवाजें अब बंद हो गई है... और मैं आत्मा अपने इनर जर्नी पर चली जा रही हूँ... *गहरे और गहरे एकदम शांत जहां मन की भी आवाज खत्म हो जाती है...*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा अपने घर स्वीट होम परमधाम आ जाती हूँ...* महाज्योति से दिव्य किरणें चारों ओर फैल रही है... और मुझ आत्मा में भी समाती जा रही है... मैं आत्मा बाबा के समीप आती जा रही हूँ... उनके किरणों रूपी गोद में बैठ जाती हूँ... पवित्रता, स्नेह, शक्ति की लाइट का फाऊँटेन आती हुई परम ज्योति से... मुझ आत्मा पर आती हुई मुझमें समाती जा रही है... भरपूर करती जा रही है...

 

 _ ➳  सर्वशक्तिमान से शक्तियों की किरणें मेरे कमजोरियों को अलबेलेपन को दग्ध कर रही है... *कोई भी काँटा, गलती से भी आयी हुई चीज सभी समाप्त होती जा रही है...* अंश के वंश को भी समाप्त कर रही है... *जो बहुत प्यार से इन सब को पकड़ रखा था एक-एक को छोड़ती जा रही हूँ...  सब की विदाई कर दी है...*

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा धीरे-धीरे सूक्ष्म वतन आती हूँ अपने चमकते लाइट के ड्रेस में... *बापदादा मेरा हाथ अपने हाथों में थाम लेते हैं... बाबा अपनी दृढ़ता, निश्चयबुद्धि मुझे विल करते जा रहे हैं...* मैं आत्मा अपने अलबेलेपन के संस्कार से मुक्त होती जा रही हूँ... *परचिंतन परदर्शन से मुक्त होती जा रही हूँ...*

 

 _ ➳  *हाँ जी बाबा! अटेंशन रूपी पहरा रखती जा रही हूँ... यूँ ही अलबेलेपन में आकर ठोकर नहीं खाऊंगी...* अपने अंदर  परिवर्तन को महसूस कर रही हूँ... अब सिर्फ सारी प्रीत एक आप से ही है बाबा... मुझ आत्मा के संकल्प दृढ़ हो गये हैं... समर्थ हो गए हैं... सम्पूर्ण निश्चय से कमजोरियों अलबेलेपन को विदाई दे दी है... मैं आत्मा शक्तियों से भरपूर... *खुद पर निश्चय रखती हुई अपने स्थूल शरीर में आ जाती हूँ... ओम् शान्ति।*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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