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❍ 05 / 07 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *नींद को जीत श्वांसो श्वास बाप को याद किया ?*
➢➢ *बुधी की मथानी चलाई ?*
➢➢ *ब्राह्मण जीवन में सदा मेहनत से मुक्त अवस्था का अनुभव किया ?*
➢➢ *बुधी को हल्का व महीन बनाया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *इस देह की दुनिया में कुछ भी होता रहे, लेकिन फरिश्ता ऊपर से साक्षी हो सब पार्ट देखते सकाश देता रहे।* आप सब बेहद विश्व कल्याण के प्रति निमित्त हो तो साक्षी हो सब खेल देखते सकाश अर्थात् सहयोग देने की सेवा करो। *सीट से उतर कर सकाश नहीं देना। ऊंची स्टेज पर स्थित होकर देना तो किसी भी प्रकार के वातावरण का सेक नहीं आयेगा।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं परमात्मा-शमा का परवाना हूँ"*
〰✧ सभी अपने को परमात्म-शमा के परवाने समझते हो? *परवाने दो प्रकार के होते हैं-एक हैं चक्र लगाने वाले और दूसरे हैं सेकेण्ड में फिदा होने वाले। तो आप सभी कौनसे परवाने हो? फिदा हो गये हो या होने वाले हो? या अभी थोड़ा सोच रहे हो? सोचना अर्थात् चक्र लगाना।* फिदा होने के बाद फिर चक्र नहीं काटना पड़ेगा। सभी हो गये?
〰✧ जब कोई अच्छी चीज मिल जाती है और समझ में आता है कि इससे अच्छी चीज कोई है ही नहीं-तो सोचने की आवश्यकता नहीं होती। ऐसे ही सौदा किया है ना। बापदादा को भी ऐसे निश्चयबुद्धि विजयी रत्नों को देख हर्ष होता है। ज्यादा खुशी किसको होती है-बाप को या आपको? *बाप कहते हैं-बच्चों को ज्यादा खुशी है तो बाप को पहले है। बापदादा ने, देखो, कहाँ-कहाँ से चुनकर एक बगीचे के रूहानी गुलाब बना दिया। इसी एक परिवार का बनने में कितनी खुशी है!* इतना परिवार किसी का भी होगा? फालोअर्स हो सकते हैं लेकिन परिवार नहीं। कितनी
〰✧ *खुशियां हैं-बाप की खुशी, अपने भाग्य की खुशी, परिवार की खुशी! खुशियाँ ही खुशियाँ हैं ना। आंख खुलते ही अमृतवेले खुशी के झूले में झूलते हो और सोते हो तो भी खुशी के झूले में। अतीन्द्रिय सुख पूछना हो तो किससे पूछें? हर एक कहेगा-मेरे से पूछो।* यह शुद्ध नशा है, यह देह-भान का नशा नहीं है। हर एक आत्मा को अपना-अपना रूहानी नशा है। सिर्फ रूहानी नशे को हद का नशा नहीं बनाना।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ सभी सदा प्रवृति में रहते भी न्यारे और बाप के प्यारे, ऐसी स्थिति में स्थित हो चलते हो? *जितने न्यारे होंगे उतने ही बाप के प्यारे होंगे।*
〰✧ तो हमेशा न्यारे रहने का विशेष अटेन्शन है? *सदा देह से न्यारे आत्मिक स्वरूप में स्थित रहना।* जो देह से न्यारा रहता है वह प्रवृति के बन्धन से भी न्यारा रहता है।
〰✧ *निमित मात्र डायरेक्शन प्रमाण प्रवृति में रह रहे हो, सम्भाल रहे हो* लेकिन अभी-अभी ऑर्डर हो कि चले आओ तो चले आयेंगे या बन्धन आयेगा।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *जैसे साकार में देखा बीच-बीच में कारोबार में रहते भी गुम अवस्था की अनुभूति होती थी ना।* सुनते-सुनाते डायरेक्शन देते अण्डरग्राउण्ड हो जाते थे। तो अभी इस अभ्यास की लहर चाहिए। *चलते-चलते देखें कि यह जैसे कि गायब है। इस दुनिया में है नहीं।* यह फरिश्ता इस देह की दुनिया और देह के भान से परे हो गये। *इसको ही सब साक्षात्कार कहेंगे। जो भी सामने आयेगा वह इसी स्टेज में साक्षात्कार का अनुभव करेगा।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- शिवपुरी और विष्णुपुरी से अपना बुद्धियोग लगाना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मधुबन की ऊंची पहाड़ी पर बैठी खुले आसमान को देख रही हूँ... ठंडी ठंडी हवाएं मुझे छूकर बहती जा रही हैं... इन हवाओं में आज भी बाबा की साकार भासना आती है जो मुझे मंत्र मुग्ध कर रही है...* बाबा की यादों में मगन मैं आत्मा पहुंच जाती हूँ परमधाम यहाँ चारों और प्रकाश ही प्रकाश है... *शिव बाबा से प्रवाहित होती अनन्त किरणें मुझ आत्मा में समाती जा रही हैं...* सर्व शक्तियों से भरपूर हो अब मैं आत्मा स्वयं को वतन मैं अनुभव कर रही हूँ यहाँ बाप दादा बाहें फैलाये मेरा इंतज़ार कर रहे हैं... बाबा मुस्कुराते हुए बोले आओ मेरी लाडली बच्ची...
❉ *बाबा मुझे अपनी गोद बिठाकर मुझ आत्मा से बोले:-* "फूल बच्ची... *शिवपुरी और विष्णुपुरी में अपना बुद्धि योग लगाओ अब तुम्हें वापस अपने घर चलना है...* बाप तुम आत्माओं को साथ ले जाने आये हैं निर्विकारी दुनिया का मालिक बनाने... *बाप की श्रीमत को पूरा पूरा फॉलो कर तुम्हें बाप से पूरा वर्सा लेना है...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ईश्वरीय गोद में बैठी अपने सौभाग्य पर आनंदित होती हुई बाबा से कहती हूँ:-" हाँ मेरे जीवन दाता मेरे प्राण प्यारे बाबा... मैं आत्मा ईश्वरीय गोद पाकर धन्य हो गयी हूँ... आपकी श्रीमत पाकर मैं कोड़ी से हीरे तुल्य बनती जा रही हूं... *आपने मुझ आत्मा की बुद्धि का ताला खोलकर मुझे गुणों का भंडार बना दिया है... आप मिले और मेरा जीवन ही बदल गया, अपने इस दुर्लभ जीवन को देखकर मैं आत्मा असीम आनंद का अनुभव कर रही हूँ...*
❉ *बाबा मेरी और बहुत प्यार भरी दृष्टि से देखकर बोले:-* "मेरी फूल बच्ची... बाप ने तुम्हें नया जीवन दिया है इस ब्राह्मण जीवन को कभी नहीं भूलना... सतगुरु का निंदक नहीं बनना... बाप की श्रीमत पर चलकर बाप का नाम बाला करना है... *माया से हार नही खानी है, शिवपुरी और वैकुण्ठ की याद में रह अपनी स्थिति ऊंच बना ऊंच ते ऊंच पद पाने का पूरा पुरुषार्थ करना है... इसी से तुम सुखधाम के मालिक बन जाएंगे...*
➳ _ ➳ *बाबा की मधुर वाणी को अपने हृदय में धारण करती मैं आत्मा मीठे बाबा से कहती हूँ:-* " मेरी जीवन नैया को पार लगाने वाले मेरे दिलाराम बाबा... आपने मेरी झोली सुखों से भर दी है... अब इस दुनिया से कुछ भी पाने की इच्छा शेष नहीं रह गयी है... *जो पाना था वो पा लिया अब और बाकी क्या रहा... *जिस परमात्मा को समस्त जगत के प्राणी ढूंढ रहे हैं वो ईश्वर मेरा पिता है इस स्मृति से मन गद गद हो जाता है... अब भला मुझे और क्या चाहिये... इस दुनिया का रचयिता मेरा पिता मुझे मिल गया है यही बात सदैव मुझे आनंदित और मन्त्र मुग्ध करती है...*
❉ *बाबा मेरी बातों को सुनकर मुस्कुराते हुए मुझसे बोले:-* " मेरी सिकीलधी बच्ची... *बाप के बनकर तुम वर्से के अधिकारी बन गए हो परंतु तीव्र पुरुषार्थ ही तुम्हें पहले नम्बर में लाएगा इसलिए बुद्धि में सदैव शिवपुरी और वैकुंठ की याद समाई रहे... बाप तुम्हें मत देते हैं नर से श्री नारायण और नारी से श्री लक्ष्मी बनने की...* देहभान को भूल बस एक बाप को और वर्से को याद करो, व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करो... *संगमयुग का एक एक पल लाखों वर्षों के समान है इसे गंवाना माना अपने भाग्य पर लकीर लगाना... इसलिये अब बाप को याद कर अपने विकर्मों को स्वाहा करो और बाप से 21 जन्मों का वर्सा पाओ...*
➳ ➳ *बाबा की प्यार भरी समझानी को स्वयं में आत्मसात करती मैं आत्मा बाबा से बोली:-* " हाँ मेरे प्यारे बाबा... *आपने इन ज्ञान रत्नों से मेरा श्रृंगार कर मुझे अत्यन्त सुंदर बना दिया है... इस नरक जैसी जीवन से निकाल एक नया जीवन दिया है, और मुझ आत्मा को आप समान पवित्र बना दिया है...* परम पवित्र बाप की बनकर मैं आत्मा अलौकिक शक्ति से भर गई हूँ... आपके महावाक्यों को धारण कर मैं आत्मा योग अग्नि में तपकर निर्विकारी बन गयी हूँ... *मुझे मेरे पिता परमात्मा से कितना अलौकिक जीवन मिला है ये स्मृति आते ही मेरा हृदय खुशी के गीत गाने लगता है , मेरे प्राण प्यारे बाबा आपका कितना भी आभार व्यक्त करूँ कम ही लगता है... मैं आत्मा बाबा को हृदय की गहराइयों से शुक्रिया कर अपने साकारी तन में पुनः लौट आती हूँ...*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- याद का कवच सदा पहन कर रखना है*
➳ _ ➳ अपने प्यारे पिता की याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे बाबा की सर्वशक्तियों की किरणें मुझ आत्मा के ऊपर बरसने लगी है और उनसे एक सतरंगी खूबसूरत आभामण्डल निर्मित होने लगा है। *सात रंगों से निर्मित उस खूबसूरत आभामण्डल को, मैं देह की कुटिया में भृकुटि के अकालतख्त पर बैठ कर निहार रही हूँ और उस रंगबिरंगे आभामण्डल से निकल रहे प्रकाश को, रंगबिरंगी किरणों के रूप में चारों और फैलता हुआ देख रही हूँ*। अपने मस्तक से निकल रही इन किरणों को निहारते हुए इनमे समाये गुणों और शक्तियों को महसूस करके मैं गहन तृप्ति का अनुभव कर रही हूँ। इनसे निकल रहें वायब्रेशन्स मुझे एक खूबसूरत एहसास करवा कर मेरे मन को बहुत सूकून दे रहें हैं। *ऐसा लग रहा है जैसे मैं सुख, शांति, आनन्द के एक वन्डरफुल आंतरिक जगत में विचरण कर रही हूँ*।
➳ _ ➳ यह आंतरिक जगत एक ऐसे स्वप्नलोक की भांति मुझे दिखाई दे रहा है, जहाँ कुछ ना होते हुए भी जैसे सब कुछ है। *देह और देह की दुनिया से जुड़ी हर वस्तु का यहाँ अभाव है। लेकिन एक गहन सुख, शांति और आनन्द की अनुभूति आत्मा को हो रही है। मन को तृप्त करने वाली इस गहन अनुभूति के साथ अब मैं आत्मा इस आंतरिक जगत की सैर करने के लिए, मन बुद्धि की इस आंतरिक यात्रा पर आगे बढ़ने के लिए भृकुटि के अकालतख्त से उतर कर देह की कुटिया से बाहर आ जाती हूँ*। उसी खूबसूरत सतरंगी आभामण्डल के साथ अब मैं स्वयं को देह से बाहर, देह से पूरी तरह अलग देख रही हूँ और महसूस कर रही हूँ कि बाबा की याद से निर्मित, सर्वशक्तियों का आभामण्डल एक सुरक्षा कवच का काम कर रहा है जो मेरे आसपास फैली नेगेटिविटी को समाप्त कर उसे पॉजिटिव बनाता जा रहा हैं।
➳ _ ➳ जैसे - जैसे मैं आत्मा ऊपर आकाश की और जा रही हूँ मैं स्पष्ट महसूस कर रही हूँ कि बाबा की सर्वशक्तियों से, मुझ आत्मा के चारों और बने हुए औरे को एक कवच की भांति अपने चारों और लपेटे, मैं आत्मा हर तूफान को चीरते हुए अपनी मंजिल की ओर बढ़ती ही जा रही हूँ। *याद के इस शक्तिशाली कवच के साथ मैं आत्मा अब सारे विश्व का चक्कर लगाकर आकाश को पार करती हूँ और उससे ऊपर सूक्ष्म वतन को क्रॉस कर पहुँच जाती हूँ अपनी निराकारी दुनिया, अपने स्वीट साइलेन्स होम में जहाँ चारों और गहन शन्ति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स फैले हुए हैं*। अपने इस घर मे आकर मैं आत्मा शन्ति के गहरे अनुभव में खो जाती हूँ और शान्ति की गहन अनुभूति करने के बाद, सर्व गुणों और सर्वशक्तियों के सागर अपने प्यारे पिता के पास पहुँच कर उनके सम्मुख जाकर बैठ जाती हूँ।
➳ _ ➳ देख रही हूँ अब मैं अपने अति उज्ज्वल स्वरूप को और अपने प्यारे पिता के अनन्त प्रकाशमय स्वरूप को उस महाज्योति के रूप में जिनसे शक्तियों की अनन्त किरणे निकल रही हैं और मुझ निराकार बिंदु आत्मा पर पड़ रही है। *शक्तियों से मैं आत्मा भरपूर होती जा रही हूँ। मेरे शिव पिता परमात्मा से आ रही सतरंगी किरणे मुझ आत्मा में निहित सातों गुणों को विकसित कर रही हैं। देह अभिमान में आ कर, अपने सातो गुणों को भूल चुकी मैं आत्मा अपने एक - एक गुण को पुनः प्राप्त कर फिर से अपने सतोगुणी स्वरूप में स्थित होती जा रही हूँ*। अपने हर गुण, हर शक्ति को पुनः प्राप्त कर स्वयं को मैं अब सर्वगुण, सर्वशक्ति सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ बाबा से आ रही शक्तिशाली किरणों का प्रवाह मुझे बढ़ता हुआ महसूस हो रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा इन शक्तियों की अनन्त किरणों को मुझ आत्मा में प्रवाहित कर मुझे आप समान बना रहे हैं। *इन शक्तिशाली किरणों की तपिश मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की कट को जला कर भस्म कर रही है। मेरा स्वरूप बहुत ही उज्ज्वल बनता जा रहा हैं। सातों गुणों और सर्वशक्तियों से भरपूर, अपने उज्ज्वल स्वरूप के साथ अब मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ*।
➳ _ ➳ साकारी दुनिया में फिर से अपने साकारी तन में भृकुटि सिहांसन पर अब मैं विराजमान हो कर सृष्टि रंगमंच पर अपना पार्ट बजा रही हूँ। सर्व सम्बन्ध बाबा के साथ जोड़ कर, हर सम्बन्ध का सुख उनसे लेते हुए, अब मैं देह और देह की दुनिया से उपराम होती जा रही हूँ। *चलते - फिरते, उठते - बैठते हर कर्म करते स्वयं को मैं बाबा की छत्रछाया के नीचे अनुभव करती हूँ। बाबा की याद का कवच सदा पहन कर रखने से अब माया का हर वार भी बेकार चला जाता है और मैं आत्मा बाबा की याद रूपी सेफ्टी के किले के अंदर बाबा के साथ अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलती रहती हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं ब्राह्मण जीवन मे सदा मेहनत से मुक्त्त रहने वाली सर्व प्राप्ति सम्पन्न आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *बुद्धि के हल्केपन व महीनता से सबसे सुंदर पर्सनालिटी बनाने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ सेवाधारियों को सदा बुद्धि में क्या याद रहता है? सिर्फ सेवा या याद और सेवा? *जब याद और सेवा दोनों का बैलेन्स होगा तो वृद्धि स्वत: होती रहेगी । वृद्धि का सहज उपाय ही है - ‘‘बैलेन्स''। वर्तमान समय के हिसाब से सर्व आत्माओं को सबसे ज्यादा शान्ति की चाहना है, तो जहाँ भी देखो सर्विस वृद्धि को नहीं पाती, वैसे की वैसे रह जाती - वहाँ अपने सेवाकेन्द्र के वातावरण को ऐसा बनाओ जैसे ‘शान्ति-कुण्ड' हो।* एक कमरा विशेष इस वायुमण्डल और रूपरेखा का बनाओ जैसे बाबा का कमरा बनाते हो ऐसे ढंग से बनाओ जो घमसान के बीच में शान्ति का कोना दिखाई दे। ऐसा वायुमण्डल बनाने से, शान्ति की अनुभूति कराने से वृद्धि सहज हो जायेगी। म्यूजियम ठीक है लेकिन यह सुनने और देखने का साधन है। सुनने और जानने वालों के लिए म्यूजियम ठीक है लेकिन जो सुन-सुन करके थक गये हैं उन्हों के लिए शान्ति का स्थान बनाओ।
➳ _ ➳ मैजारटी अभी यही कहते हैं कि आपका सब कुछ सुन लिया, सब देख लिया। लेकिन ‘‘पा लिया है'' - ऐसा कोई नहीं कहता। अनुभव किया, पाया यह अभी नहीं कहते हैं। *तो अनुभव कराने का साधन है - याद में बिठाओ, शान्ति का अनुभव कराओ। दो मिनट भी शान्ति का अनुभव कर लें तो छोड़ नहीं सकते। तो दोनों ही साधन बनाने चाहिए। सिर्फ म्यूजियम नहीं लेकिन ‘शान्ति-कुण्ड' का स्थान भी।* जैसे आबू में म्यूजियम भी अच्छा है लेकिन शान्ति का स्थान भी आकर्षण वाला है। अगर चित्रों द्वारा नहीं भी समझते तो ‘दो घड़ी' याद में बिठाने से इम्प्रेशन बदल जाता है। इच्छा बदल जाती है। समझते हैं कि कुछ मिल सकता है। प्राप्ति हो सकती है। जहाँ पाने की इच्छा उत्पन्न होती वहाँ आने के लिए भी कदम उठना सहज हो जाता। तो ऐसे वृद्धि के साधन अपनाओ।
✺ *"ड्रिल :- आत्माओं को शांति का अनुभव करवाना*"
➳ _ ➳ *देह रूपी सुन्दर सीपी में जगमगाती मैं मुक्तक मणि... मेरे दिव्य प्रकाश से सराबोर ये देह रूपी सीपी पारदर्शी होती जा रही है... जैसे किसी शीशे की डिबियाँ में बन्द कोई झिलमिलाती मणि...* मुझ आत्मा मणि की प्रकाश रश्मियाँ आसपास के वातावरण में फैलकर समस्त तमोप्रधानता को दूर कर रही है... मन और बुद्धि से मैं बैठ गयी हूँ शान्ति स्तम्भ पर, ज्योतिपुंज के ठीक सामने... ज्योतिपुंज से झलकता मेरे बाबा का रूहानी प्रतिबिबं... *(दृश्य चित्र बनाकर कुछ देर निहारें उस रूहानी नूर की बारिश करते उस चेहरें को)*...
➳ _ ➳ *वो आँखें जो निरन्तर शान्ति, प्रेम और पावनता की मधुशाला बन गयी है*... वो अपनापन बिखेरती मुस्कुराहट जो पल में आह्वान कर अपना बना लेती है दुखी अशान्त आत्माओं को... *कुछ पल के लिए पलकों के परदें गिराकर कैद कर ले शान्ति के झर-झर झरते उस असीम सौन्दर्य को और उतर जाने दे दिल की गहराईयों में आहिस्ता आहिस्ता*... हुए लबालब उर के पैमाने, मौन हुई संकल्पों की माला... रोम रोम में भरने मदिरा उन नैनों से निकली मधुशाला...
➳ _ ➳ अतिन्द्रिय सुख में डूबी हुई, मैं मुक्तक मणि अब नन्हें फरिश्तें की चमचमाती पोशाक में... *बापदादा की उँगली पकडकर नन्हें नाटे से कदमों से मन्द मन्द चलती हुई... जानबूझकर चलने में देरी करती हुई... बापदादा मेरे मन की बात जानकर कन्धे पर बैठा लेते है मुझे*... और मैं खुशी और नशे से झूमती हुई अपने सौभाग्य पर इतराती हुई बापदादा के गोद की अधिकारी आत्मा... *मेरे सौभाग्य का कोई सानी नही है आज... उमंगों से भरकर उड चली मैं बापदादा के साथ विश्व सेवा पर*...
➳ _ ➳ सुन्दर शान्त झील का किनारा, गहरा नीला, मगर पारदर्शी स्वच्छ जल... *शान्त जल में हम दोनों का झलकता प्रतिबिम्ब*... बापदादा मुझे लेकर उतर गये है इसी झील के किनारें... खिले हुए सुन्दर कमल और कुमुदिनियों के समूह... बाबा मुस्कुराते हुए बता रहें है *बच्चे-देखो कितना शान्त है झील का पानी, कि हम दोनो का प्रतिबिम्ब स्वच्छ दर्पण की तरह से नजर आ रहा था इसमें... ऐसी ही शान्ति जब तुम्हारे अन्दर होती है तभी तुम अपने गुणों शक्तियों एवं सच्चे स्वरूप के दर्शन कर सकते हो*...
➳ _ ➳ देखों उस खिले कमलदल को... कितना बैलेन्स है उसके जीवन में... *जडें पूरी तरह पानी में है मगर फूल और पत्तियाँ पानी की नमी को खुद पर कभी हावी नही होने देती*... कमल-सा बैलेन्स जीवन में जरूरी है... मैं आँखों ही आँखों में सहमति जताता हुआ, बाबा का मौन इशारा पाकर उड चला बापदादा के पीछे पीछे...
➳ _ ➳ बाबा एक सुन्दर बगीचे के ऊपर से गुज़रते हुए... बच्चे, देख रहे हो बगीचे की शोभा को... खुशबू और रंगों का सन्तुलन है इसमें... तभी तो हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है... *हर पौधे की वृद्धि में धूप और पानी का बैलेन्स जरूरी है तभी तो पौधा वृद्धि को पाया... तो बच्चे, याद की धूप और जल-रूपी सेवा का सदा बैलैन्स रखना तभी सेवा और पुरूषार्थ में विधि पूर्वक वृद्धि होगी*...
➳ _ ➳ और बातों ही बातों मे विश्व को सकाश देते हुए बाबा की याद का ये सुहाना सफर कब पूरा हो गया पता ही नही चला... बापदादा समझानी देते हुए वापस पहुँच गये है शान्ति स्तम्भ पर... और ज्योति पुंज में समा गये है... ज्योति पुंज से शांति की किरणें निकल समस्त संसार में चारों ओर फैल रही हैं सभी आत्माओं के दुख अशांति समाप्त हो रही है सभी आत्माएं शांति का अनुभव करती पाना था सो पा लिया के गीत गा रही हैं... मैं मणि भी वापस उसी देह रूपी सीपी में समाँ जाती हूँ... *शान्ति रूपी बारिश की अनुभूति और शान्ति की लहरे शान्ति स्तम्भ से टकराती हुई संसार की सभी आत्माओं को शान्ति की गहन अनुभूति कराती हुई*...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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