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 17 / 01 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अमृतवेले के शुद्ध और शांत समय में उठकर बाप को याद किया ?*

 

➢➢ *पास्ट सो पास्ट कर इस अंतिम जन्म में बाप को पवित्रता की मदद की ?*

 

➢➢ *अपने आदि और अंत दोनों स्वरूप को सामने रख ख़ुशी व नशे में रहे ?*

 

➢➢ *ज्ञान के अथाह धन से सम्पन्नता का अनुभव किया ?*

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*अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जो भी आत्मायें वाणी द्वारा व प्रैक्टिकल लाईफ के प्रभाव द्वारा सम्पर्क में आई हैं, वा सम्पर्क में आने के उम्मींदवार हैं, उन आत्माओं को रुहानी शक्ति का अनुभव कराओ।* जैसे भक्त लोग स्थूल भोजन का व्रत रखते हैं, तो सर्विसएबल ज्ञानी तू आत्माओं को व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल, व्यर्थ कर्म की हलचल से परे एकाग्रता अर्थात् रुहानियत में रहने का व्रत लेना है तब आत्माओं को ज्ञान सूर्य का चमत्कार दिखा सकोगें।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं भगवान के साथ पार्ट बजाने वाली श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ"*

 

   *कितने भाग्यवान हो जो भगवान के साथ पिकनिक कर रहे हो! ऐसा कब सोचा था - कि ऐसा दिन भी आयेगा जो साकार रूप में भगवान के साथ खायेंगे, खेलेंगे, हंसेंगे... यह सवप्न में भी नहीं आ सकता लेकिन इतना श्रेष्ठ भाग्य है जो साकार में अनुभव कर रहे हो।*

 

  *कितनी श्रेष्ठ तकदीर की लकीर है - जो सर्व प्राप्ति सम्पन्न हो। वैसे जब किसी को तकदीर दिखाते हैं तो कहेंगे इसके पास पुत्र है, धन है, आयु है लेकिन थोड़ी छोटी आयु है... कुछ होगा कुछ नहीं। लेकिन आपके तकदीर की लकीर कितनी लम्बी है।*

 

  21 जन्म तक सर्व प्राप्तियो के तकदीर की लकीर है। 21 जन्म गेरेंटी है और बाद में भी इतना दुख नहीं होगा। सारे कल्प का पौना हिस्सा तो सुख ही प्राप्त होता है। *इस लास्ट जन्म में भी अति दुखी की लिस्ट में नहीं हो। तो कितने श्रेष्ठ तकदीरवान हुए! इसी श्रेष्ठ तकदीर को देख सदा हर्षित रहो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  तो 5 ही रूप याद आ गये?

*अच्छा एक सेकण्ड में यह 5 ही रूपों में अपने को अनुभव कर सकते हो?* वन, टू, त्री, फोर, फाइव तो कर सकते हो! यह 5 ही स्वरूप कितने प्यारे हैं?

 

✧  *जब चाहे, जिस भी रूप में स्थित होने चाहो, सोचा और अनुभव किया। यही रूहानी मन की एक्सरसाइज है।* आजकल सभी क्या करते हैं? एक्सरसाइज करते हैं ना। जैसे आदि में भी आपकी दुनिया में (सतयुग में) नेचुरल चलते-फिरते की एक्सरसाइज थी

 

✧  खडे होकर के वन, टु, थ्री एक्सरसाइज नहीं तो *अभी अंत में भी बापदादा मन की एक्सरसाइज कराते हैं।* जैसे स्थूल एक्सरसाइज से तन भी दुरुस्त रहता है ना! तो *चलते-फिरते यह मन की एक्सरसाइज करते रहो। इसके लिए टाइम चाहिए।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *अव्यक्त स्थिति में महान बनने के लिए एक बात जो कहते रहते हैं -वह धारण कर ली तो बहुत जल्दी और सहज अव्यक्त स्थिति में स्थित हो जायेंगे। वह कौन-सी बात? अभी मेहमान हैं।* क्योंकि आप सभी को भी वाया सूक्ष्मवतन होकर घर चलना है। *हम मेहमान हैं - ऐसा समझने से महान स्थिति में स्तिथ रहेंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बेहद का पक्का सन्यासी बनना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा हद की दुनिया, वस्तु, वैभव, हद के संबंधों से न्यारी होती हुई बेहद बाबा के पास बेहद की दुनिया में पहुँच जाती हूँ...* वतन में बेहद बाबा के सम्मुख बैठ उनको निहारती हुई उनकी आँखों में खो जाती हूँ... मैं आत्मा इस देह की भी सुध-बुध खो बैठी हूँ... कई जन्मों से मैं आत्मा इस देह, देह के सम्बन्धी, देह के पदार्थों के वश होकर काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार जैसे विकारों को अपना संस्कार बना ली थी... और अपने निज स्वरुप और निज गुणों को भूल गई थी... *मैं आत्मा बेहद की सन्यासी बनने वतन में आकारी शरीर धारण कर आकारी बाबा की शिक्षाओं को धारण कर रही हूँ...* 

 

   *नई दुनिया का निर्माण करते हुए इस पुरानी दुनिया से बेहद का वैरागी बनाने प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... *इस पुरानी दुखदायी विकारी दुनिया से दिल जो लगाओगे तो उन्ही दुखो में अपना दामन उलझाओगे...* तो अब समझदार बन अपना भला करो... अपनी कमाई अपने फायदे के बारे में निरन्तर सोचो... और दिल उस मीठी सुखदायी दुनिया से लगाओ जो पिता से तोहफा मिल रहा...

 

_ ➳  *मैं आत्मा पुरानी दुनिया से सन्यास लेकर निज स्वरुप में चमकते हुए, गुणों की खुशबू से महकते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा अब नये घर नयी दुनिया के सपनो में खोयी हूँ यह दुखदायी दुनिया मेरे काम की नही है...* मै आत्मा बाबा के बसाये सुखभरे स्वर्ग को यादो में बसाकर मुस्कराती ही जा रही हूँ...

 

   *दुखों का साया मिटाकर स्वर्ग के नजारों को दिखाते हुए मेरे प्रीतम प्यारे मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *इस दुःख धाम से अब बेहद के वैरागी बनो... इस दुनिया में अब ऐसा कुछ नही है जिससे दिल लगाया जाय...* अब तो ईश्वर पिता सम्मुख है... उससे उसकी सारी सम्पत्ति खजानो को बाँहों में भरने का खबसूरत समय है... तो यादो में डूबकर ईश्वर पिता को पूरा लूट लो...

 

_ ➳  *सुखों के दीप जलाकर सद्गुणों का श्रृंगार कर दिव्य जीवन बनाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा मीठे बाबा की सारी सम्पत्ति की हकदार बन रही हूँ... सिर्फ यादो मात्र से सच्चे स्वर्ग को घर रूप में पाने वाली महान भाग्यशाली बन रही हूँ... *और इस पतित दुनिया को सदा का भूल गई हूँ... और नयी दुनिया में खो गयी हूँ...”*

 

   *अंतर्मन की प्यास बुझाकर जीवन को ज्योतिर्मय बनाते हुए मेरे ज्योतिर्बिन्दु बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... कितने महान भाग्यशाली हो ईश्वर स्वयं धरती पर उतर आया है और *पत्थरो की दुनिया से निकाल कर सोने की दुनिया स्वर्ग में स्थापित कर रहा है...* इस महान भाग्य के नशे से रोम रोम को भिगो दो... *और इस पुरानी दुनिया से उपराम होकर ईश्वरीय सौगात के स्वर्ग में विचरण करो...”*

 

_ ➳  *प्यारे बागबान बाबा के गुलदस्ते में सजकर मन उपवन में मयूरी बन नाचते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा को पाकर निहाल हूँ अपने अदभुत से भाग्य पर चकित सी हूँ... *इस दुनिया में खपकर एक कण सच्चा प्यार न मिला और बाबा की यादो भर में सुखो का स्वर्ग घर रूप में मिला...* तो क्यों न इस सच्चे रिश्ते में भीगूँ और रोम रोम से मीठे बाबा को याद करूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पास्ट सो पास्ट कर इस अंतिम जन्म में बाप को पवित्रता की मदद करनी है*"

 

_ ➳  अपने इस अंतिम मरजीवा ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों को एकांत में बैठ मैं याद कर रही हूँ और *स्वयं को स्मृति दिला रही हूँ कि मेरा ये अखुट प्राप्तियों से सम्पन्न जीवन मेरे शिव पिता की देन है और अपने शिव पिता की इस देन का रिटर्न यही है कि अपने इस जन्म को मैं अपने शिव पिता पर सम्पूर्ण रीति कुर्बान कर दूँ और अपने शिव पिता के फरमान पर पूरी रीति चल, पास्ट सो पास्ट कर, इस अंतिम जन्म में उन्हें पवित्रता की मदद दे कर उनके विश्व परिवर्तन के कार्य मे उनकी सहयोगी बन जाऊँ*।

 

_ ➳  स्वयं को यह स्मृति दिलाते, अपने जीवन मे सम्पूर्ण पवित्रता को धारण करने की स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर, अपने अंदर पवित्रता का बल जमा करने के लिए मैं अपने अनादि परम पवित्र स्वरुप को स्मृति में लाकर, पवित्रता के सागर अपने शिव पिता की याद में अपने मन और बुद्धि को स्थिर करती हूँ। *अब मैं देख रही हूँ अपने प्रकाशमय दिव्य ज्योति बिंदु स्वरूप को जो इस देह में भृकुटि की कुटिया में विराजमान हो कर चमक रही है और ऊपर परमधाम से पवित्रता के सागर शिव पिता की पवित्रता की किरणें सफेद प्रकाश की एक तेज धारा के रूप में सीधी मुझ आत्मा पर पड़ रही है और पवित्रता की शक्ति से मुझे भरपूर कर रही हूँ*।

 

_ ➳  स्वयं को मैं एकदम हल्का अनुभव कर रही हूँ और महसूस कर रही हूँ जैसे मेरे शिव पिता की पवित्रता की शक्ति मुझे ऊपर अपनी और खींच रही है। *परमधाम से आ रही अपने शिव पिता की पवित्रता की शक्ति की श्वेत धारा से बंधी मैं आत्मा अब देह के बंधन से मुक्त हो कर ऊपर की ओर उड़ रही हूँ*। नीले आकाश को पार करके, श्वेत चांदनी के प्रकाश से प्रकाशित दिव्य अलौकिक लोक सूक्ष्म वतन से होती हुई अब मैं पवित्रता के सागर, पतित पावन अपने शिव परम पिता परमात्मा के पावन लोक परमधाम में प्रवेश करती हूँ और जा कर उनके सम्मुख बैठ जाती हूँ।

 

_ ➳  देख रही हूँ अब मैं स्वयं को पतित पावन अपने प्यारे शिव बाबा की पवित्रता की शक्ति की अनन्त किरणो की छत्रछाया के नीचे। *अपनी पवित्र किरणों की फुहारों से बाबा मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की मैल को धो कर मुझे शुद्ध, पवित्र बना रहे हैं*। पवित्रता की शक्तिशाली किरणों से मैं स्वयं को भरपूर अनुभव कर रही हैं। विकारों की कट उतरने से मेरा स्वरूप अति उज्ज्वल, चमकदार बन गया है और पवित्रता का एक शक्तिशाली कार्ब मेरे चारों और निर्मित हो गया है। *पवित्रता के इस शक्तिशाली कार्ब के साथ अब मैं आत्मा परमधाम से वापिस नीचे लौट रही हूँ और अपने साकारी ब्राह्मण तन में प्रवेश कर रही हूँ*।

 

_ ➳  अपने साकारी ब्राह्मण तन में अब मैं विराजमान हूँ। मेरे चारों और निर्मित पवित्रता का कार्ब एक अलौकिक रूहानी शक्ति में परिवर्तित हो कर इस अंतिम जन्म में मुझे मनसा, वाचा, कर्मणा सम्पूर्ण पवित्र बनने का बल दे रहा है। *"ब्राह्मण जीवन की विशेषता ही पवित्रता है" इस बात को सदा स्मृति में रख ब्रह्मचारी बनने के साथ - साथ ब्रह्माचारी अर्थात ब्रह्मा बाप के आचरण पर चल, सम्पूर्ण पवित्रता को जीवन मे धारण करने के पुरुषार्थ पर अब मैं हर समय अटेंशन दे रही हूँ*।

 

_ ➳  "पवित्रता ही सुख शांति की जननी है" इसी सुख शांति के प्राप्ति स्वरुप के आधार पर मनसा पवित्रता को चेक करते हुए, *अपनी मनसा को सम्पूर्ण पवित्र रखने का अटेंशन देकर, सुख शांति स्वरूप का अनुभव करते हुए मैं औरों को भी सुख, शांति की प्राप्ति का अनुभव करवाकर उन्हें भी पवित्र जीवन जीने की प्रेरणा दे रही हूँ और इस अंतिम जन्म में बाबा को पवित्रता की मदद दे कर उनके अथाह स्नेह का थोड़ा सा रिटर्न देने का प्रयास कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपने आदि और अन्त दोनों स्वरूप को सामने रख खुशी व नशे में रहने वाली स्मृति स्वरूप आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं ज्ञान का अथाह धन प्राप्त  कर  सम्पन्नता की अनुभूति करने वाली सम्पन्न आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा सभी बच्चों को बहुत सहज पुरुषार्थ की विधि सुना रहे हैं। माताओं को सहज चाहिए ना! तो बापदादा सब माताओं, बच्चों को कहते हैंलेकिन *सबसे सहज पुरुषार्थ का साधन है - 'सिर्फ चलते-फिरते सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हर एक आत्मा को दिल से शुभ भावना की दुआयें दो और दूसरों से भी दुआयें लो'। चाहे आपको कोई कुछ भी देबददुआ भी दे लेकिन आप उस बददुआ को भी अपने शुभ भावना की शक्ति से दुआ में परिवर्तन कर दो।* आप द्वारा हर आत्मा को दुआ अनुभव हो। उस समय अनुभव करो जो बददुआ दे रहा है वह इस समय कोई-न-कोई विकार के वशीभूत है। *वशीभूत आत्मा के प्रति वा परवश आत्मा के प्रति कभी भी बददुआ नहीं निकलेगी। उसके प्रति सदा सहयोग देने की दुआ निकलेगी।*

 

 _ ➳  सिर्फ एक ही बात याद रखो कि *हमें निरन्तर एक ही कार्य करना है - 'संकल्प द्वाराबोल द्वाराकर्मणा द्वारासम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा दुआ देना और दुआ लेना'।* अगर किसी आत्मा के प्रति कोई भी व्यर्थ वा निगेटिव संकल्प आवे भी तो यह याद रखो मेरा कर्तव्य क्या है! जैसे कहाँ आग लग रही हो तो आग बुझाने वाले होते हैं तो वह आग को देख जल डालने का अपना कार्य भूलते नहींउन्हों को याद रहता है कि हम जल डालने वाले हैंआग बुझाने वाले हैंऐसे अगर कोई भी विकार की आग वश कोई भी ऐसा कार्य करता है जो आपको अच्छा नहीं लगता है तो *आप अपना कर्तव्य याद रखो कि मेरा कर्तव्य क्या है - किसी भी प्रकार की आग बुझाने कादुआ देने का। शुभ भावन की भावना का सहयोग देने का।* बस एक अक्षर याद रखोमाताओं को सहज एक शब्द याद रखना है - 'दुआ देनादुआ लेना'  

 

✺   *ड्रिल :-  "सबसे सहज पुरुषार्थ की विधि का अनुभव"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा इस देह में भ्रूकुटी के मध्य विराजमान हूँ... मैं इस देह से अलग हो फरिश्ता रूप में स्थित हो गयी हूँ... *मेरा ये लाइट का शरीर एक दम हल्का है... मैं आत्मा फरिश्ता रूप में कही भी पहुँच जाती हूँ... मैं फरिश्ता आबू तीरथ की यात्रा पे निकल पड़ी हूँ... यहाँ ऊंचे - ऊंचे पहाड़ों से होते हुए, नाचते - गाते, झूमते हुए पहुँच जाती हूँ... बाबा की तपस्या भूमि पाण्डव भवन में...* सबसे पहले मैं फरिश्ता हिस्ट्री हॉल में जाता हूँ... यहाँ में *अपने सारे व्यर्थ और कमजोर संकल्प बाबा की झोली में डाल देती हूँ... बाबा मुझे दृष्टि दे रहे हैं... जिससे मेरे अशुद्ध और व्यर्थ विचार जल कर भस्म हो गए हैं...* मैं फरिश्ता सम्पूर्ण पवित्र बन गया हूँ... अब मैं शांति स्तंभ पे पहुंच कर बाप समान मास्टर शक्तिशाली बन गया हूँ... बाबा ने मुझे सर्व शक्तियों से भरपूर कर दिया है... *बाबा ने मेरा हाथ पकड़ के अपने कमरे में बिठा लिया और अपने समान निराकारी, निर्विकारी और निरंहकारी बना दिया...* अब मैं फरिश्ता उड़ कर पहुँच जाता हूँ... बाबा की झोपड़ी में जहाँ मैं बाबा से रूह - रिहान कर रही हूँ... *मेरे मन की जितनी भी उदासी, दुख और ग्लानि है सब निकल रही है... और आनंद और खुशी से भरपूर हो रही हूँ... मैं फरिश्ता बापदादा से सर्व शक्तियां लेकर कर सम्पूर्ण फरिश्ता बन गयी हूँ...*

 

 _ ➳  मैं फरिश्ता वापस अपने स्थान पर पहुँच जाता हूँ... *मैं फरिश्ता सहज पुरुषार्थी हूँ... चलते - फिरते और कर्म करते हुए निरंतर बाबा को याद कर रहा हूँ... मुझ फरिश्ते के सम्बन्ध-सम्पर्क में जो भी आत्मा आती है उन सब को दिल से शुभ भावना की दुआयें दे रही हूँ...* जिससे मुझे स्वतः दुआयें मिल रही है... चाहे मुझ आत्मा को कोई कुछ भी दे... बददुआ भी दे... *लेकिन मैं आत्मा उस आत्मा की बददुआ को भी अपने शुभ भावना की शक्ति से दुआ में परिवर्तन कर रही हूँ...* मुझ आत्मा द्वारा हर आत्मा को दुआ अनुभव हो रही है...

 

 _ ➳  जब भी मुझ आत्मा को कोई आत्मा भला बुरा बोलती है... उस समय मैं आत्मा अनुभव करती हूँ जो आत्मा बददुआ दे रही है वह इस समय कोई-न-कोई विकार के वशीभूत है... *मैं आत्मा बाबा के कहे अनुसार उस वशीभूत आत्मा के प्रति या परवश आत्मा के प्रति कभी भी बददुआ नहीं निकालती हूँ... उसके प्रति सदा सहयोग देने की दुआ ही निकाल रही हूँ... उसको शुभ भावना की बौछार देकर परिवर्तित कर रही हूँ...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा सदैव सिर्फ एक ही बात याद रखती हूँ कि... *मुझे निरन्तर सिर्फ बाबा की छत्र छाया में रहना है... जिसके अंदर में आत्मा सम्पूर्ण सुरक्षित हूँ... मैं आत्मा सिर्फ एक ही कार्य कर रही हूँ... संकल्प द्वारा... बोल द्वारा... कर्म द्वारा... सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा... दुआ दे रही हूँ और दुआ ले रही हूँ...* अगर किसी आत्मा के प्रति कोई भी व्यर्थ या निगेटिव संकल्प आता भी है तो उसे बाबा को समर्पित कर हल्का हो रही हूँ... मुझ आत्मा को हमेशा स्मृति रहती है... कि मेरा कर्तव्य है... लगी हुई आग को बुझाना... मैं आत्मा हमेशा याद रखती है कि मेरा कार्य जल डालने का है... और *मैं आत्मा अपना यही कार्य कर रही हूँ... विकारों की लगी हुई आग बुझा रही हूँ...*

 

 _ ➳  अगर कोई आत्मा विकार की आग वश होकर... कोई भी ऐसा कार्य करती है जो मुझ आत्मा को अच्छा नहीं लगता है... *तो मैं आत्मा ऐसी परवश आत्मा को शुभ भावना और दुआएँ देकर उसके विकारों की आग ठंडा कर रही हूँ...* उस आत्मा को शुभ भावना का सहयोग दे रही हूँ... जिससे वो स्वत: परिवर्तित हो रही है... *बाबा ने माताओं को सहज पुरुषार्थ करने के लिए एक शब्द याद रखने को कहा कि दुआ देना है... और दुआ लेना है... अब मैं आत्मा चलते - फिरते सिर्फ दुआ देने और लेने का ही काम कर रही हूँ... यही सहज पुरुषार्थ की विधि है...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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