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 16 / 10 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *समर्थ बाप का हाथ पकड़ कर रखा ?*

 

➢➢ *संगदोश से अपनी संभाल की ?*

 

➢➢ *सेवाओं में सदा सहयोगी बन सहजयोग का वरदान प्राप्त किया ?*

 

➢➢ *अपने मस्तक की मणि द्वारा स्वयं का स्वरुप और श्रेष्ठ मंजिल का साक्षातकार कराया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जैसे देखना, सुनना, सुनाना-ये विशेष कर्म सहज अभ्यास में आ गया है, ऐसे ही कर्मातीत बनने की स्टेज अर्थात् कर्म को समेटने की शक्ति से अकर्मी अर्थात् कर्मातीत बन जाओ। *एक है कर्म-अधीन स्टेज, दूसरी है कर्मातीत अर्थात् कर्म-अधिकारी स्टेज। तो चेक करो मुझ कर्मेंन्द्रिय-जीत स्वराज्यधारी राजाओं की राज्य कारोबार ठीक चल रही है?*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं फरिश्ता हूँ"*

 

  अपने को डबल लाइट फरिश्ता अनुभव करते हो? *डबल लाइट स्थिति फरिश्तेपन की स्थिति है। फरिश्ता अर्थात् लाइट। जब बाप के बन गये तो सारा बोझ बाप को दे दिया ना? जब बोझ हल्का हो गया तो फरिश्ते हो गये। बाप आये ही हैं बोझ समाप्त करने के लिए।* तो जब बाप बोझ समाप्त करने वाले हैं तो आप सबने बोझ समाप्त किया है ना? कोई छोटी-सी गठरी छिपाकर तो नहीं रखी है? सब कुछ दे दिया या थोड़ा-थोड़ा समय के लिए रखा है? थोड़े-थोड़े पुराने संस्कार हैं या वह भी खत्म हो गये? पुराना स्वभाव या पुराना संस्कार, यह भी तो खजाना है ना। यह भी दे दिया है?

 

  अगर थोड़ा भी रहा हुआ होगा तो ऊपर से नीचे ले आयेगा, फरिश्ता बन उड़ती कला का अनुभव करने नहीं देगा। कभी ऊंचे तो कभी नीचे आ जायेंगे। इसलिए बापदादा कहते हैं सब दे दो। यह रावण की प्रापर्टी है ना। रावण की प्रापर्टी अपने पास रखेंगे तो दु:ख ही पायेंगे। *फरिश्ता अर्थात् जरा भी रावण की प्रापर्टी न हो, पुराना स्वभाव या संस्कार आता हैं ना? कहते हो ना - चाहते तो नहीं थे लेकिन हो गया, कर लिया या हो जाता है। तो इससे सिद्ध है कि छोटी-सी पुरानी गठरी अपने पास रख ली है। किचड़-पट्टी की गठरी है।*

 

  *तो सदा के लिए फरिश्ता बनना - यही ब्राह्मण जीवन है। पास्ट खत्म हो गया। पुराने खाते भस्म कर दिये। अभी नई बातें, नये खाते हैं। अगर थोड़ा भी पुराना कर्जा रहा होगा तो सदा ही माया का मर्ज लगता रहेगा क्योंकि कर्ज को मर्ज कहा जाता है। इसलिए सारा ही खाता समाप्त करो। नया जीवन मिल गया तो पुराना सब समाप्त*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  महारथियों की स्थिति औरों से न्यारी और प्यारी स्पष्ट हो रही है ना। जैसे ब्रह्माबाप स्पष्ट थे, ऐसे नम्बरवार आप निमित आत्माएँ भी साकार स्वरूप से स्पष्ट होती जाती। *कर्मातीत अर्थात न्यारा और प्यारा।*

 

✧  कर्म दूसरे भी करते हैं और आप भी करते हो लेकिन आपके कर्म करने में अन्तर है। स्थिति में अन्तर है। जो कुछ बीता और न्यारा बन गया। *कर्म किया और वह करने के बाद ऐसा अनुभव होगा जैसे कि कुछ किया नहीं।*

 

✧  कराने वाले ने करा लिया। ऐसी स्थिति का अनुभव करते रहेंगे। हल्का-पन रहेगा। *कर्म करते भी तन का भी हल्का-पन, मन की स्थिति में भी हल्का-पन।* कर्म की रिजल्ट मन को खैच लेती है। ऐसी स्थिति है?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ बापदादा जब सुनते हैं आज बहुत बिजी, बहुत बिजी, शक्ल भी बिजी कर देते हैं, बापदादा मानते नहीं हैं। *जो चाहे वह कर सकते हो। अटेन्शन कम है। जैसे वह अटेन्शन रखते होना - १० मिनट में यह लेटर पूरा करना है, इसीलिए बिजी होते हो ना, टाइम के कारण। ऐसे ही सोचो १० मिनट में यह काम करना है, वह भी तो टाइमटेबल बनाते हो ना। इसमें एक-दो मिनट पहले से ही एड कर दो। ८ मिनट लगना है, ६ मिनट नहीं, ८ मिनट लगना है तो २ मिनट साधना में लगाओ। यह हो सकता है?* कितना भी बिजी हों, लेकिन पहले से ही साधन के साथ साधना का समय एड करो। लेकिन स्व-उन्नति या साधना बीच-बीच में न करने से थकावट का प्रभाव पड़ता है। बुद्धि भी थकती है, हाथ-पाँव भी थकता है और बीच-बीच में अगर साधना का समय निकालो तो जो थकावट है ना वह दूर हो जाये, खुशी होती है ना। खुशी में कभी थकावट नहीं होती है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- क्षीरसागर में जा रहे, लंगर उठ चुका है"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा रूपी चिड़िया इस संसार रूपी चिड़ियाघर में कैद थी... इसी चिड़ियाघर को अपना सबकुछ समझ बैठी थी...* चिड़ियाघर में बैठ आसमान को निहारती मुझ चिड़िया को आसमान से उतरता एक ज्योतिपुंज दिखाई दिया... उस प्रकाश की ज्योति से मेरे जीवन की ज्योति जग गई... मेरा भाग्य ही बदल गया... *उसने आकर ज्ञानयोग के पंखों से मुझे सजाकर खुले आसमान में उड़ना सिखा दिया... अब मैं आत्मा रूपी चिड़िया संसार रुपी चिड़ियाघर से आजाद होकर ऊपर उड़ते हुए अपने बाबा के पास पहुंच जाती हूँ...*

 

  *नई दुनिया के ख्वाबों को सजाकर पुरानी दुनिया की बातों को भूलने की समझानी देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे बच्चे... अब यह दुःख भरा सफर पूरा हुआ अब दुःख की बाते भूल जाओ... *अब खूबसूरत दुनिया में चलने के दिन आ गए है... बस पावन हो घर चलना और फिर सुखो में उतरना है... इन दुखो से अब कोई नाता नही... खुशियो भरा जहान सामने खड़ा है..."*

 

 _ ➳  *इस पुरानी विनाशी दुनिया को भूल नष्टोमोहा बन एक मीठे बाबा की यादों में डूबकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा... आपकी मीठी यादो में बैठकर सारे कष्टो को ही भूल रही हूँ... *मीठे याद के झरने में सारी कड़वी यादो को बहा रही हूँ.... और नयी दुनिया को यादो में भर रही हूँ..."*

 

  *मेरी तकदीर की तस्वीर को सतयुगी सुखों के बहारों में सजाते हुए मेरे प्यारे मनमीत बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे.... कितने खूबसूरत खिले फूलो से घर से निकले थे... चलते चलते दुखो के धाम में फस गए... मीठा बाबा अपने फूलो की दशा देख धरा पर ही आ गया है... *अब ये दर्द भरी दास्ताँ को सदा का भूलो... और उन सच्चे सुखो को याद करो...”*

 

 _ ➳  *प्रभु प्यार की किरणों में अपने सारे गमों को भूलकर प्रभु का शुक्रिया करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मुझ आत्मा की वेदनाएं और दर्द भरा जीवन ही मेरी हकीकत हो गए थे... आपने आकर मुझे मेरे सत्य का अहसास दिया है... *देह की मिटटी से मै आत्मा अब निकल गई हूँ... सब कुछ भुला कर सुन्दरतम यादो सुखो में खोती जा रही हूँ...”*

 

  *बड़े प्यार से अपनी पलकों में बिठाकर मेरे जीवन में खुशहाली बिखेरते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे बच्चे... सारे भोगे गए कष्टो को काले दुख भरे सायो को स्वप्न की तरहा विस्मृत कर दो... *खुशियो और सुखो से भरी दुनिया पर आप बच्चों का अधिकार है... अब यहाँ और रहना नही... मीठा बाबा दुखो से निकाल हाथ पकड़ कर सुखो के महलो में बिठाने आ गया है...”*

 

 _ ➳  *अपने जीवन के पलों को प्यारे बाबा की यादों के बाहों में सफल करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा गमो से निकल गयी हूँ.... आपकी सुखद यादो में सुखी हो गयी हूँ... *पुरानी बाते नाते और दुखो के भम्र से मुक्त हो गयी हूँ... और नई खूबसूरत दुनिया के ख्वाबो में डूब गई हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- *संग दोष से अपनी संभाल करनी है*

 

_ ➳  *"बचपन के दिन भुला ना देना, आज हंसे कल रुला ना देना" गीत की इन पंक्तियों पर विचार करते - करते मैं खो जाती हूँ अपने ईश्वरीय बचपन की उन सुखद अनमोल स्मृतियों में जब पहली बार मुझे मेरा सत्य परिचय मिला था*, अपने पिता परमात्मा का सत्य बोध हुआ था। उस सुखद एहसास का अनुभव करते - करते आंखों के सामने एक दृश्य उभर आता है।

 

_ ➳  मैं देख रही हूं एक स्थान पर जैसे एक बहुत बड़ा मेला लगा हुआ है। एक छोटे बच्चे के रूप में मैं उस मेले में घूम रही हूं। सुंदर सुंदर नजारे देख कर आनन्दित हो रही हूं। बहुत देर तक उस मेले का आनन्द लेने के बाद मुझे अनुभव होता है कि मेरे साथ तो कोई भी नही। *मैं स्वयं को एकदम अकेला अनुभव करती हूं और अपने पिता को ढूंढने लगती हूं। मैं जोर - जोर से चिल्ला रही हूं किन्तु मेरी आवाज कोई नही सुन रहा*। सभी अपनी मस्ती में मस्त हैं। अब उस मेले की कोई भी वस्तु मुझे आकर्षित नही कर रही। घबरा कर मैं एकांत में बैठ अपना सिर नीचे कर रोने लगती हूँ। तभी कंधे पर किसी के हाथ का स्पर्श पा कर मैं जैसे ही अपना सिर ऊपर उठाती हूँ। *सामने एक लाइट का फ़रिशता जिसके मस्तक से बहुत तेज प्रकाश निकल रहा है मुझे दिखाई देता है और वो फ़रिशता मुझ से कह रहा है, बच्चे:- "घबराओ मत, मैं तुम्हारा पिता हूँ"*

 

_ ➳  इस आवाज को सुनते ही मेरी चेतनता लौट आती है और याद आता है कि इतनी बड़ी दुनिया के मेले में, इतनी भीड़ में होते हुए भी मैं अकेली ही तो थी और ढूंढ रही थी अपने पिता परमात्मा को। मैं तो नही ढूंढ पाई लेकिन उन्होंने आकर मुझे ढूंढ लिया *अपने ईश्वरीय जीवन का वो दिन याद आता है जब पहली बार खुद भगवान के उन शब्दों को सुना था कि तुम देह नही आत्मा हो, मेरे बच्चे हो, मेरी ही तरह ज्योति बिंदु रूप है तुम्हारा*। कितने जन्म हो गए तुम्हे मुझसे बिछुड़े हुए। आओ मेरे पास आओ। अपने पिता परमात्मा के सत्य परिचय को जान कर, उनके असीम स्नेह को अनुभव करने का वो एहसास स्मृति में आते ही मन अपने उस प्यारे पिता के प्रति असीम प्यार से भर जाता है और उनसे मिलने की तड़प मन मे उतपन्न हो उठती है।

 

_ ➳  अपने पिता परमात्मा से मिलने के लिए अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित होकर, निर्बन्धन बन, अब मैं चमकता हुआ सितारा, ज्योति बिंदु आत्मा अपनी साकारी देह को छोड़ अपने निजधाम परमधाम की ओर चल पड़ती हूं और सेकंड में पहुंच जाती हूं प्रेम, सुख, शांति के सागर अपने शिव पिता के पास। *एक दम शांत और सुषुप्त अवस्था में मैं स्थित हूं। संकल्पों विकल्पों की हर प्रकार की हलचल से मुक्त इस शान्तिधाम में शांति के सागर अपने शिव पिता के सामने मैं गहन शांति का अनुभव कर रही हूं*। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं अपलक शक्तियों के सागर अपने शिव पिता को निहारते हुए, उनसे अनेक जन्मों के बिछड़ने की सारी प्यास बुझा रही हूँ। उनके प्रेम से, उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूं।

 

_ ➳  परमात्म शक्तियों से भरपूर हो कर, अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति का गहन अनुभव करके अब मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूं। मेरे शिव पिता परमात्मा के प्रेम का अविनाशी रंग और मेरे ईश्वरीय बचपन की सुखद स्मृतियां अब मुझे देह और देह की दुनिया मे रहते हुए भी उनके संग के प्रभाव से  मुक्त कर रही हैं। *ईश्वरीय प्रेम के रंग के आगे दुनियावी प्रेम अब मुझे बहुत ही फीका दिखाई दे रहा है इसलिए हर प्रकार के संग दोष से अपनी सम्भाल करते हुए अब मैं ईश्वरीय प्रेम के रंग में रंग कर अपने जीवन को तथा औरों के जीवन को खुशहाल बना रही हूं*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सेवाओं में सदा सहयोगी बन सहजयोग का वरदान प्राप्त करने वाली विशेषता सम्पन आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपने मस्तक की मणि द्वारा स्वयं का स्वरूप और श्रेष्ठ मंजिल का साक्षात्कार कराने वाला लाइट हाउस हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳   *ब्रह्मा बाप यही कहते कि बच्चे सोचते बहुत हैं,* क्या होगा, यह होगावह होगा... यह होगा वा नहीं होगा...! यह होगा! - इस सोच में ज्यादा रहते हैं। यह तो नहीं होगा! कभी सोचते होगाकभी सोचते नहीं होगा। यह होगाहोगा का गीत गाते रहते हैं। लेकिन अपने फरिश्ते पन केसम्पन्न सम्पूर्ण स्थिति में तीव्रगति से आगे बढ़ने का श्रेष्ठ संकल्प कम करते हैं। *होगाक्या होगा!... यह गा-गा के गीत ज्यादा गाते हैं।*

 

 _ ➳  बाप कहते हैं कुछ भी होगा लेकिन आपका लक्ष्य क्या है?  *जो होगा वह देखने और सुनने का लक्ष्य है वा ब्रह्मा बाप समान फरिश्ता बनने का है?*  उसकी तैयारी कर ली हैप्रकृति अपना कुछ भी रंग-रूप दिखाये, आप फरिश्ता बनबाप समान अव्यक्त रूपधारी बन प्रकृति के हर दृश्य को देखने के लिए तैयार होप्रकृति की हलचल के प्रभाव से मुक्त फरिश्ते बने होअपनी स्थिति की तैयारी में लगे हुए हो वा क्या होगाक्या होगा - इसी सोचने में लगे होक्या कोई भी परिस्थिति सामने आये तो आप प्रकृतिपति अपने प्रकृतिपति की सीट पर सेट होंगे वा अपसेट होंगेयह क्या हो गयायह हो गया, यह हो गया... इसी नजारों के समाचारों में बिजी होंगे वा *सम्पन्नता की स्थिति में स्थित हो किसी भी प्रकृति की हलचल को चलते हुए बादलों के समान अनुभव करेंगे?*    

 

✺   *ड्रिल :-  "सम्पन्नता की स्थिति में स्थित हो किसी भी प्रकृति की हलचल को चलते हुए बादलों के समान अनुभव करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा भृकुटी सिंहासन पर विराजमान होकर परमात्मा को आकाश सिंहासन छोड़कर नीचे आने का आग्रह करती हूँ...* आकाश से एक चमकता हुआ ज्योतिपुंज नीचे उतर रहा है... सूक्ष्मलोक में ब्रह्मा के तन का आधार लेकर परमप्रिय परमपिता परमात्मा मेरे सामने बाहे फैलाये आकर खड़े हो जाते हैं... बापदादा मेरा हाथ पकड एक मैदान में लेकर जाते हैं...   

 

_ ➳  बाबा मुझ आत्मा को मनमनाभव का मन्त्र देकर अपने सामने बिठाते हैं... *बाबा की दृष्टि से, मस्तक से ज्ञान-योग की ज्वाला प्रज्वलित हो रही है...* मैं आत्मा बाबा से निकलती ज्ञान-योग की शक्तिशाली किरणों को ग्रहण कर रही हूँ... *इन किरणों को ग्रहण कर मैं आत्मा दिव्य दृष्टि द्वारा इस देह से न्यारी हो एक ओर अपने आदि स्वरुप(देव स्वरुप) को देख रही हूँ, तो दूसरी ओर माया के जाल में फँसे हुए कमजोर स्वरुप को देख रही हूँ...* 

 

_ ➳  क्या होगा, कैसे होगा, कब होगा, होगा या नही होगा... इन व्यर्थ के संकल्पों में उलझकर मैं आत्मा माया के जाल में फंसी हुई थी, संशय बुद्धि बन गयी थी... *माया ने मुझ आत्मा के उमंग उत्साह के पंख काट दिए थे... मैं आत्मा अपना समय व्यर्थ गंवाती जा रही थी... बाबा से निकलती हुई शक्तिशाली किरणों में मुझ आत्मा के सभी व्यर्थ संकल्प भस्म हो गये है... अब मैं आत्मा व्यर्थ से समर्थ बन गयी हूँ... मुझ आत्मा के अनेक जन्मों के विकर्म स्वाहा हो रहे हैं... काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार जैसे विकार बीज सहित दग्ध हो रहे हैं... मैं आत्मा विकारो का त्यागकर कमजोर से महावीर बन जाती हूँ...* 

 

 _ ➳  महावीर स्थिति में स्थित हो मैं आत्मा सभी बंधनों से न्यारी... *बादलो को चीरती हुई उड़ती जा रही हूँ... सामने से आते हुए विघ्न रुपी बादलो को मैं आत्मा जम्प लगा क्रॉस करती हुई बाप समान फरिश्ता स्वरुप स्थिति का अनुभव करती हुई पुरुषार्थ में आगे बढ़ती जा रही हूँ...* प्यारे बापदादा मुझ फरिश्ते को अपने साथ सूक्ष्मवतन में ले जाते हैं...

 

_ ➳  *सूक्ष्मवतन से बापदादा वा एडवांस पार्टी की आत्माओ से भर भरके वरदान, ब्लेस्सिंग्स लेकर मैं फरिश्ता नीचे साकार लोक में आती हूँ...* अब मैं आत्मा ड्रामा के चक्र को बुद्धि में धारण कर, पांचो स्वरूपो का अभ्यास करती हुई साक्षी हो ड्रामा के हर सीन को..., सम्बन्ध-संपर्क में आयी हर आत्मा के स्वभाव संस्कारो को तथा तमोप्रधान प्रकृति के रूप रंग को अपनी सम्पन्नता की स्थिति में सेट हो देखती हुई, शांति का दान देती हूँ... प्रकृति की कोई भी हलचल मुझ आत्मा को अब अपने फरिश्तेपन की स्टेज से अपसेट नही कर सकती... *अपनी सम्पन्नता की स्टेज में स्थित हो मैं प्रकृतिपति आत्मा बापदादा से प्राप्त दिव्य शक्तियों को चारों ओर फैलाकर  तमोप्रधान प्रकृति को शुद्ध, सतोप्रधान बना रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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