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 21 / 01 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अमृतवेले से लेकर रात्री तक संगमयुगी मर्यादाओं का पालन किया ?*

 

➢➢ *"मैं भी आत्मा, यह भी आत्मा" - यह पाठ पक्का किया ?*

 

➢➢ *बापदादा से स्मृति भव का वरदान स्वीकार किया ?*

 

➢➢ *कर्मबंधन को सेवा के सम्बन्ध में परिवर्तित किया ?*

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*अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  वर्तमान समय विश्व कल्याण करने का सहज साधन अपने श्रेष्ठ संकल्पों की एकाग्रता द्वारा, सर्व आत्माओं की भटकती हुई बुद्धि को एकाग्र करना है। *सारे विश्व की सर्व आत्मायें विशेष यही चाहना रखती हैं कि भटकी हुई बुद्धि एकाग्र हो जाए वा मन चंचलता से एकाग्र हो जाए। यह विश्व की मांग वा चाहना तब पूरी कर सकोगें। जब एकाग्र होने का अभ्यास होगा।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं याद की छत्रछाया के अनुभवी आत्मा हूँ"*

 

✧   सदा अपने ऊपर बाप के याद की छत्रछाया अनुभव करते हो? याद की छत्रछाया है। इस छत्रछाया को कभी छोड़ तो नहीं देते? *जो सदा छत्रछाया के अन्दर रहते हैं वे सर्व प्रकार के माया के विघ्नों से सेफ रहते हैं। किसी भी प्रकार से माया की छाया पड़ नहीं सकती।*

 

  *यह 5 विकार, दुश्मन के बजाए दास बनकर सेवाधारी बन जाते हैं। जैसे विष्णु के चित्र में देखा है - कि सांप की शय्या और सांप ही छत्रछाया बन गये। यह है विजयी की निशानी।* तो यह किसका चित्र है? आप सबका चित्र है ना। जिसके ऊपर विजय होती है वह दुश्मन से सेवाधारी बन जाते हैं। ऐसे विजयी रत्न हो।

 

  *शक्तियाँ भी गृहस्थी माताओंसे, शक्ति सेना की शक्ति बन गई। शक्तियों के चित्र में रावण के वंश के दैत्यों को पांव के नीचे दिखाते हैं। शक्तियों ने असुरों को अपने शक्ति रूपी पाँव से दबा दिया। शक्ति किसी भी विकारी संस्कार को ऊपर आने ही नहीं देगी।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *आज बापदादा विश्व के सर्व तरफ के अपने स्वराज्य अधिकारी बच्चों की राज्य सभा देख रहे हैं।* हर एक स्वराज्य अधिकारी, पवित्रता की लाइट के ताजधारी, अधिकारी की स्मृति के तिलकधारी, अपने-अपने भृकुटि के अकाल तख्तनशीन दिखाई दे रहे हैं।

 

✧  *इस समय जितना स्वराज्य अधिकार अनुभव करते हो उतना ही भविष्य विश्व राज्य अधिकारी है ही हैं।*

 

✧  *मैं कौन' वा 'मेरा भविष्य क्या?’* वह अब के स्वराज्य की स्थिति द्वारा स्वयं ही देख सकते हो। *बापदादा हर एक बच्चे के सदा स्वराज्य की स्थिति को देख रहे थे।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *सर्विस की सफलता का मुख्य गुण कौन-सा है? नम्रता। जितनी नम्रता उतनी सफलता। नम्रता आती है निमित समझने से।* निमित्त समझकर कार्य करना है। जैसे बाप शरीर का आधार निमित्त मात्र लेते हैं, वैसे आप समझो कि निमित्त -मात्र शरीर का आधार लिया है। *एक तो शरीर को  निमित्त-मात्र समझना है और दूसरा सर्विस में अपने को निमित्त समझना, तब नम्रता आयेगी। फिर देखो, सफलता आपके आगे चलेगी।* जैसे बापदादा टेम्पररी देह में आते हैं, ऐसे देह को निमित आधार समझो। बापदादा की देह में अटैचमेन्ट होती है क्या? *आधार समझने से अधीन नहीं होंगे। अभी देह के अधीन होते हो, फिर देह को अधीन करेंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- संगमयुगी मर्यादाओं पर चल पुरुषोतम बनना"*

 

*अपने भाग्य के गीत गाती दिल से मुस्कुराती चमचमाती खुशियों से भरपूर मैं आत्मा मधुबन घर के आंगन मे टहल रही हूँ...* वाह कैसा अद्भुत अद्वितीय श्रेष्ठ शानदार भाग्य मैने पाया है... जो बाबा को मैंने पाया है... उसने मुझे अपना बनाया है... काटें से फूल बनाया है... हर रंग से उसने मेरे बेरंग जीवन को सजाया हीरे तुल्य बनाया है... दिलाराम बाप ने मुझे अपने दिल में बिठाया है अपने नैनो का नूर बनाया है... कितना बाबा ने मुझ पर बेशुमार प्यार लुटाया है... *ये मीठे दिल के जज्बात सुनाने मैं आत्मा फरिशता रूप धारण किए अपने प्यारे बाबा के पास वतन पहुंचती हूँ...*

 

_ ➳  *मर्यादाओं की लकीर में मुझ आत्मा को बांधते हुए बाबा कहते है:-* "मीठे लाडले बच्चे मेरे... शिव पिता धरा पर है आया... बहिश्त की सौगात भी है साथ में लाया... *मर्यादा पुरूषोत्तम तुमको है बनाने आया... बांध कर अपने जीवन को तुम मर्यादाओ की लकीर से मर्यादा पुरूषोत्तम अब तुम बन जाओ...* उस्ताद बाप की इस बात को मान अब तुम अपने जीवन को हीरे तुल्य बनाओ..."

 

  *मर्यादाओं की लकीर के अंदर स्वयं को बांध मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मीठे सलोने बाबा मेरे... बहिश्त की ये सौगात देख कितना ना मुझ आत्मा का मन हर्षायाँ... उस्ताद बाप की हर बात को गहरे से समझ रही हूँ... *बांध कर मर्यादाओं की लकीर से अपने जीवन को सुखमय बना रही हूँ...* पुरूषोतम बनने के पुरूषार्थ में तेजी से आगे बढ़ती जा रही हूँ..."

 

_ ➳  *मर्यादाओं का कवच मुझ आत्मा को पहनाते हुए बाबा कहतें है:-* "मीठे राजदुलारे बच्चे मेरे... कल्प की है यह अंतिम बेला... इस पर गहरे से गौर फरमाओं... *पुरूषों में उत्तम बनने के इस समय में मर्यादाओं की सीढी पर अब चढ़ते जाओ...* एक-एक मर्यादा को सामने रख उसे जीवन मे लाओ... ऐसा उत्तम ते उत्तम, पुरूषोतम अपने जीवन को बनाओं..."

 

  *मर्यादाओं का कवच पहन कर मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मीठे प्यारे दिल के सच्चे सहारे बाबा मेरे... कल्प की अंतिम पुरूषोत्तम बेला में गहरे से आपकी हर समझानी को दिल में समा रही हूँ... और इसका स्वरूप बनती जा रही हूँ... चढ़ कर मर्यादाओं की सीढी सुरक्षित आगे ते आगे बढ़ती जा रही हूँ... *एक-एक मर्यादा को सामने रख उसे जीवन मे ला रही हूँ...* मर्यादाओं के इस कवच से जीवन को निश्चिंत और सुरक्षित बना रही हूँ... इस प्रकार पुरूषोत्तम बनती जा रही हूँ..."

 

_ ➳  *मर्यादाओं का कंगन मुझ आत्मा को बांधते हुए बाबा कहते है :-* "मीठे फूल बच्चे मेरे... बांध कर संगमयुगी मर्यादाओं का कंगन अब अपने जीवन को सुरक्षित बनाओ... *संगमयुगी मर्यादाओं के पथ पर चल अब पुरूषोत्तम तुम बन जाओ...* सजा कर अपने जीवन को मर्यादाओं से ऐसा श्रेष्ठ आदर्श बन दिखलाओं... अपनी मर्यादित जीवन से औरों को भी मर्यादा पुरूषोत्तम बनाओ..."

 

  *सर्व मर्यादाओं का स्वरूप बनकर मैं आत्मा कहती हूं:-* "मीठे मनमीत बाबा मेरे... मान कर आपकी ये बात... लिए है मर्यादाओं के कंगन बांध... इस प्रकार संगमयुगी मर्यादाओं के पथ पर चल पुरूषों में उत्तम बनती जा रही हूँ... सजा कर अपने जीवन को मार्यादाओ से सबके सामने आदर्श बनती जा रही हूँ... और *अपनी मर्यादा पुरुषोत्तम जीवन से औरों को आप समान बना रही हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बापदादा से स्मृति भव का वरदान स्वीकार करना*"

 

_ ➳  श्रेष्ठ स्मृति ही श्रेष्ठ स्थिति का आधार है। स्मृति उत्तम है तो वृति, दृष्टि और स्थिति स्वत: ही श्रेष्ठ है इसलिए इसी स्मृति में कि *"मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ और सर्व भी श्रेष्ठ बाप की श्रेष्ठ आत्मायें हैं" में स्थित होकर अपने आत्मिक स्वरूप में मैं जैसे ही टिक जाती हूँ अपने अंदर निहित मूल गुणों और शक्तियों का अनुभव मुझे सहज ही होने लगता है* और यही अनुभव करते - करते मैं आत्मा गहन शांत चित्त स्थिति में स्थित हो जाती हूँ। शांति से भरपूर यह शांत चित्त स्थिति मुझे एक विचित्र अंतर्मुखता का अनुभव करवा रही है।

 

_ ➳  इस गहन सुखद अनुभव में खोई हुई मन बुद्धि के विमान पर बैठ, मैं एक ऐसी दुनिया में पहुँच जाती हूँ जो निराकारी आत्माओं की दुनिया है। हर तरफ चमकती हुई मणियां दिखाई दे रही हैं। 5 तत्वों से बनी स्थूल देह और इस देह से जुड़ी कोई भी वस्तु यहां दिखाई नहीं दे रही। *रूह रिहान भी आत्मा का आत्मा से है सम्बन्ध भी आत्मिक है और दृष्टिकोण भी रूहानियत से भरा हुआ है*। यहां मैं स्वयं को एक अति न्यारी साक्षी स्थिति में अनुभव कर रही हूँ। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे कि देह से मैं संकल्प मात्र भी अटैच नहीं हूँ। बेहद न्यारी और प्यारी अवस्था है यह।

 

_ ➳  इसी न्यारी और प्यारी अवस्था में स्थित होकर मैं कर्म करने के लिए जैसे ही वापिस देह की दुनिया मे आती हूँ ऐसा अनुभव होता है जैसे मैं एक अलग ही दुनिया में आ गई हूँ। *देह में रहते, सबसे बातें करते, सुनते, देखते, बोलते चलते-फिरते हर कर्म करते जैसे अब मैं सब बातों से उपराम हूँ। सभी के मस्तक पर चमकती हुई आत्मा को ही अब मैं देख रही हूँ और सभी को आत्मिक दृष्टि से देखते हुए इसी समृति से अब मैं हर संबंध में आती हूँ कि ये सब भी शिव बाबा की अजर अमर अविनाशी सन्तान मेरे आत्मा भाई हैं*। सभी को आत्मा देखते हुए, आत्मा से आत्मा के अलौकिक मिलन का अनुभव मुझे स्मृति सो समर्थ स्वरूप में सहज ही स्थित कर रहा है।

 

_ ➳  इसी स्मृति सो समर्थ स्वरूप में सदा रहने के लिए अब मैं बापदादा से समृति भव का वरदान प्राप्त करने के लिए अपने प्यारे बापदादा को मन ही मन याद करती हूँ और उनकी मीठी यादों में खो कर, अपने फरिश्ता स्वरूप को धारण कर उनसे मिलन मनाने के लिए उनके अव्यक्त वतन की ओर चल पड़ती हूँ। *ऊपर की ओर उड़ता हुआ, नीचे साकारी दुनिया के हर दृश्य को मैं फ़रिश्ता साक्षी हो कर देखता जा रहा हूँ। तीव्र गति से अपनी मंजिल की ओर बढ़ते हुए मैं फ़रिश्ता आकाश को पार करता हूँ और उससे भी ऊपर जाकर फरिश्तो की आकारी दुनिया मे प्रवेश कर जाता हूँ*।

 

_ ➳  यहाँ मैं अपने प्यारे मीठे शिव बाबा को अव्यक्त ब्रह्मा बाबा के आकारी रथ में विराजमान होकर अपने सामने देख रहा हूँ। उनके सम्मुख जाकर अब मैं उनसे मीठी दृष्टि ले रहा हूँ। और उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रहा हूँ। *अपना वरदानी हाथ बाबा मेरे सिर पर रखकर मुझे "स्मृति सो समर्थी भव" का वरदान दे रहें हैं। बापदादा से स्मृति भव का वरदान ले कर इस वरदान को फलीभूत करने के लिए अब मैं बापदादा से विदाई लेकर वापिस नीचे लौटता हूँ*। अपने ब्राह्मण स्वरुप में स्थित होकर इस वरदान को अपने जीवन मे धारण करने के पुरुषार्थ में अब मैं लग जाती हूँ।

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण जीवन मे स्मृति भव के वरदान को अब मैं हमेशा यूज़ कर रही हूँ। हर कार्य करने से पहले इस वरदान के समर्थ स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर बैठ समर्थ और व्यर्थ का अच्छी तरह निर्णय करने के बाद ही मैं उस कर्म को करती हूँ और कर्म करने के बाद भी चेक करती हूँ कि उस कर्म का आदिकाल और अंतकाल कितना समर्थ रहा! *स्मृति सो समर्थ स्वरूप बन यह चेकिंग करने से मेरी निर्णय शक्ति स्वत: ही बढ़ती जा रही है जो मुझे सहज ही होलीहंस और त्रिकालदर्शी की श्रेष्ठ सीट पर सदा सेट रह कर कर्म करने में विशेष बल प्रदान कर रही है*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं करावनहार की स्मृति द्वारा बड़े से बड़े कार्य को सहज करने वाली निमित्त करनहार आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अर्जी डालने के बजाए सदा राजी रहने वाली ज्ञानी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳ 1. अभी किसमें होशियार बनेंगेमनसा सेवा में... नम्बर आगे ले लो... पीछे नहीं रहना... इसमें कोई कारण नहीं... समय नहीं मिलताचांस नहीं मिलतातबियत नहीं चलतीपूछा नहीं गयायह कुछ नहीं... सब कर सकते हो... *बच्चों ने दौड़ लगाने का खेल खेला था नाअभी इसमें दौड़ लगाना... मनसा सेवा में दौड़ लगाना...*

 

 _ ➳  2. अभी टीचर्स मनसा सेवा में रेस करनी है... लेकिन ऐसे नहीं करना कि सारा दिन बैठ जाओमैं मनसा सेवा कर रही हूँ... कोई कोर्स करने वाला आवे तो आप कहो नहींनहीं मैं मनसा सेवा कर रही हूँ... कोई कर्मयोग का टाइम आवे तो कहो मनसा सेवा कर रही हूँ,नहीं... बैलेन्स चाहिए... कोई कोई को ज्यादा नशा चढ़ जाता है ना! तो ऐसा नशा नहीं चढ़ाना... *बैलेन्स से ब्लैसिंग है... बैलेन्स नहीं तो ब्लैसिंग नहीं...* अच्छा...

 

✺   *ड्रिल :-  "बैलेन्स रख मनसा सेवा करने का अनुभव"*

 

 _ ➳  स्वयं में परमात्म बल जमा कर, अपनी मनसा वृति को शक्तिशाली बनाने के लिए, देह से न्यारे अपने निराकार स्वरूप में स्थित हो कर मैं अपने मन बुद्धि को अपने निराकार शिव पिता परमात्मा पर एकाग्र करती हूँ... *मन बुद्धि की तार अपने शिव पिता के साथ जुड़ते ही मैं उस परमात्म करेंट को अपने अंदर प्रवाहित होते स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ...* जैसे मोबाइल चार्जर से जुड़ते ही उसकी बैटरी चार्ज होने लगती है ऐसे ही मैं भी स्वयं को परमात्म शक्तियों से चार्ज होते अनुभव कर रही हूँ... *मुझ आत्मा की सोई हुई शक्तियां परमात्म बल पाकर जागृत हो रही हैं... मैं स्वयं को शक्तियों से भरपूर होता हुआ अनुभव कर रही हूँ...*

 

 _ ➳  मेरे शिव पिता परमात्मा से निकल रही अनन्त शक्तियों की शक्तिशाली किरणे मैगनेट की तरह मुझ आत्मा को अपनी तरफ खींच रही हैं... *मैं आत्मा परमात्म शक्तियों के चुम्बकीय आकर्षण से आकर्षित हो कर अब नश्वर देह का त्याग कर ऊपर की ओर उड़ रही हूँ...* रुई के समान स्वयं को मैं एकदम हल्का अनुभव कर रही हूँ... तीव्र गति से उड़ते हुए मैं सेकेण्ड में आकाश से भी पार पहुंच गई हूँ... अब आकाश से भी ऊपर, सूक्ष्म लोक को पार करके मैं पहुंच गई हूँ अपने शिव पिता परमात्मा की अनन्त शक्तियों की किरणों के बिल्कुल नीचे...

 

 _ ➳  अपने इस परमधाम घर मे अब मैं अपने शिव पिता परमात्मा के बिल्कुल समीप हूँ... शिव परमपिता परमात्मा से आ रही शक्तिशाली किरणों को स्वयं में समा कर मैं असीम ऊर्जावान बन रही हूँ... *अपने प्यारे शिव बाबा के सर्वगुणों, सर्वशक्तियों और सर्व खजानों को मैं स्वयं में जमा कर रही हूँ...* सर्व प्राप्तियों का फुल स्टॉक स्वयं में भर कर अब मैं वापिस साकार लोक की ओर आ रही हूँ... यहाँ आ कर अपने ब्राह्मण स्वरुप में स्थित हो कर अब मैं अपनी शक्तिशाली मनसा से अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सभी दुखी और अशांत आत्माओं को सुख और शांति की अनुभूति करवा रही हूँ...

 

 _ ➳  जिस ईश्वरीय सेवा अर्थ मुझे मेरे शिव पिता परमात्मा ने इस धरा पर भेजा है उस ईश्वरीय सेवा को अपने शिव पिता परमात्मा की याद में रह कर करने से सेवा में सहज ही सफलता प्राप्त हो रही है... *परमात्म याद और परमात्म छत्रछाया के नीचे स्वयं को अनुभव करते हर कर्म करने से मुझ आत्मा से स्वत: ही शक्तिशाली वायब्रेशन चारों और फैल रहें है जो सहज ही आत्माओं को अपनी ओर आकर्षित कर रहें है...* योग युक्त स्थिति में स्थित होकर, वाणी द्वारा आत्माओं को परमात्म सन्देश और अपनी मनसा शक्ति द्वारा परमात्म प्रेम का अनुभव करवा कर मैं अनेको आत्माओं को सच्चा ईश्वरीय मार्ग दिखा कर उनका कल्याण कर रही हूँ...

 

 _ ➳  एकाग्रता की शक्ति को बढ़ा कर, स्वयं में योग का बल जमा कर, मैं अनेक हिम्मतहीन और निर्बल आत्माओं को, स्वयं में जमा की हुई सर्वशक्तियों के आधार से सहयोग देकर आगे बढ़ा रही हूँ... *जैसे वृक्ष की छाया राही को आराम का अनुभव कराती है ऐसे शक्तिशाली याद में रह सेवा करने से विकारो की अग्नि में जल रही आत्माओं को मेरे सम्पर्क में आते ही शीतलता की छाया का अनुभव हो रहा है...* शीतलता का सुख और आनन्द लेकर वो आत्मायें शीतल हो रही हैं... योग और सेवा का बैलेन्स मुझे सर्व आत्माओं की दुआओं के साथ - साथ परमात्म ब्लेसिंग का भी अधिकारी बना रहा है...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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