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 10 / 07 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बुधीयोग सभी से तोड़ एक बाप की याद में रहे ?*

 

➢➢ *अपने साथ बातें कर स्वदर्शन चक्र फिराया ?*

 

➢➢ *एक की स्मृति द्वारा एकरस स्थिति बनाई ?*

 

➢➢ *शुद्ध संकल्पों के भोजन को स्वीकार कर सच्चे सच्चे वैष्णव बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  ज्ञान के मनन के साथ शुभ भावना, शुभ कामना के संकल्प, सकाश देने का अभ्यास, यह मन के मौन का या ट्रैफिक कण्ट्रोल का बीच-बीच में दिन मुकरर करो। अगर किसको छुट्टी नहीं भी मिलती हो, *सप्ताह में एक दिन तो छुट्टी मिलती है, उसी प्रमाण अपने-अपने स्थान के प्रोग्राम फिक्स करो। लेकिन विशेष एकान्तवासी और खजानों के एकानामी का प्रोग्राम अवश्य बनाओ।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ"*

 

  अलबेलापन छोड़ दो। ठीक हैं, चल रहे हैं, पहुँच जायेंगे-यह अलबेलापन है। अलबेले को इस समय तो मौज लगती है। जो अलबेला होता है उसे कोई फिक्र नहीं होता है, वह आराम को ही सब-कुछ समझता है। तो अलबेलापन नहीं रखना। पाण्डव सेना हो ना। सेना अलबेली रहती है या अलर्ट रहती है? *सेना माना अलर्ट, सावधान, खबरदार रहने वाले। अलबेला रहने वाले को सेना का सैनिक नहीं कहा जायेगा। तो अलबेलापन नहीं, अटेन्शन! लेकिन अटेन्शन भी नेचुरल विधि बन जाये।*

 

  *कई अटेन्शन का भी टेन्शन रखते हैं। टेन्शन की लाइफ सदा तो नहीं चल सकती। टेन्शन की लाइफ थोड़ा समय चलेगी, नेचुरल नहीं चलेगी। तो अटेन्शन रखना है लेकिन 'नेचुरल अटेन्शन' आदत बन जाये।* जैसे विस्मृति की आदत बन गई थी ना। नहीं चाहते भी हो जाता है। तो यह आदत बन गई ना, नेचुरल हो गई ना। ऐसे स्मृतिस्वरूप रहने की आदत हो जाये, अटेन्शन की आदत हो जाये। इसलिए कहा जाता है आदत से मनुष्यात्मा मजबूर हो जाती है। न चाहते भी हो जाता है-इसको कहते हैं मजबूर।

 

  तो ऐसे तीव्र पुरुषार्थी बने हो? *तीव्र पुरुषार्थी अर्थात् विजयी। तभी माला में आ सकते हैं। बहुतकाल का अभ्यास चाहिए। सदैव अलर्ट माना सदा एवररेडी! आपको क्या निश्चय है-विनाश के समय तक रहेंगे या पहले भी जा सकते हैं? पहले भी जा सकते हैं ना। इसलिए एवररेडी। विनाश आपका इन्तजार करे, आप विनाश का इन्तजार नहीं करो। वह रचना है, आप रचता हो। सदा एवररेडी।* क्या समझा? अटेन्शन रखना। जो भी कमी महसूस हो उसे बहुत जल्दी से जल्दी समाप्त करो। सम्पन्न बनना अर्थात् कमजोरी को खत्म करना। ऐसे नहीं-यहाँ आये तो यहाँ के, वहाँ गये तो वहाँ के। सभी तीव्र पुरुषार्थी बनकर जाना।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *समझा, समय की गति कितनी विकराल रूप लेने वाली है।* ऐसे सयम के लिए एवररेडी हो ना? या डेट बतायेंगे। तब तैयार होंगे। *डेट का मालूम होने से सोल कान्सेस के बजाए डेट कान्सेस हो जायेंगे।* फिर फुल पास हो नहीं सकेंगे। इसलिए डेट बताई नहीं जायेगी लेकिन डेट स्वयं ही आप सबको टच होगी।

 

✧  *ऐसे अनुभव करेंगे जैसे इन आँखों के आगे कोई दृश्य देखते हो तो कितना स्पष्ट दिखाई देता है।* ऐसे इनएडवान्स भविष्य स्पष्ट रूप में अनुभव करेंगे।

 

✧  लेकिन इसके लिए जहान के नूरों की आँखें सदा खुली रहें। अगर माया की धूल होगी तो स्पष्ट देख नहीं सकेंगे। समझा, क्या अभ्यास करना है? *ड्रेस बदली करने का अभ्यास करो।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ सभी सदा साक्षी स्थिति में स्थित हो, हर कर्म करते हो? *जो साक्षी हो कर्म करते हैं। उन्हें स्वत: ही बाप के साथी-पन का अनुभव भी होता है।* इसलिए सदा साक्षी अवस्था में स्थित रहो। देह से भी साक्षी जब देह के सम्बन्ध और देह के साक्षी बन जाते हो तो स्वत: ही इस पुरानी दुनिया से भी साक्षी हो जाते हो। यही स्टेज सहज योगी का अनुभव कराती है - तो सदा साक्षी इसको कहते हैं साथ में रहते हुए भी निर्लेप। *आत्मा निर्लेप नही है लेकिन आत्मअभिमानी स्टेज निर्लेप है अर्थात माया के लेप व आकर्षण से परे है।* न्यारा अर्थात निर्लेप। तो सदा ऐसी अवस्था में स्थित रहते हो? किसी भी प्रकार की माया का वार न हो।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सारा दिन याद बनी रहना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा मधुबन प्यारे बाबा की कुटिया में बैठ विचित्र बाबा के चित्र को निहार रही हूँ... मीठे बाबा की मीठी यादों की मीठी फुहारों के बीच बैठ भीग रही हूँ... निराकार बाबा साकार बाबा के द्वारा मुझे दृष्टि देते जा रहे हैं...* बाबा की मीठी दृष्टि से पवित्रता की सफ़ेद किरणें मुझमें समाती जा रही हैं... एक-एक किरण से मेरे अन्दर के विकारों की सारी मैल धुलती जा रही है... मैं आत्मा पावनता से सजधजकर मीठे बाबा के साथ रूह-रिहान करती हूँ...

 

  *प्रेम के भावों में मुझे डुबोकर प्रेम की तरंगो में लहराते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे बच्चे... *मीठे पिता के साये बैठे हो तो प्यार में डूब कर बैठो... यादो के अम्बार को लेकर बैठो... हर धड़कन को ईश्वरीय प्यार में भिगो कर बैठो... तो यह सारा आलम प्यार की तरंगो से खिल उठेगा...* इन मीठी तरंगो को बातो में नातो में न बिखराओ...

 

 _ ➳  *मैं आत्मा पावनता की खुशबू से महकते हुए प्यार के सागर बाबा से कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *आपकी मीठे अहसासो में डूबना कितना सुखद है ह्रदयस्पर्शी है... अपनी बुद्धि को बाहरी नातो में भटकाकर दुःख का स्वाद चख चुकी हूँ...* अब इस मीठे प्यार सागर में खो जाना चाहती हूँ...

 

  *शीतल नैनों की फुलवारी से मेरे मन आँगन को सींचते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे बच्चे... *मीठे पिता और बच्चे की समीपता ही सुंदर सत्य है... जिस संसार को बुद्धि में लिए घूम रहे वह भ्रम है... तो अब एक पल भी इस व्यर्थ में ना लगाओ...* हर साँस को ईश्वरीय प्यार में पिरो दो... और अंतर्मुखी बन प्यार का समां बना दो...

 

 _ ➳  *प्रभु की यादों को श्वांसों में निरंतर बहाकर मन में बाबा को बसाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा हर साँस रुपी तार में आपको पिरो ली हूँ... ईश्वरीय प्यार में रंग कर अपनी खूबसूरती को पाकर खिल उठी हूँ... सब जगह से बुद्धि को हटाकर सारा आलम ईश्वरीय प्यार के रंग से भर ली हूँ...

 

  *सारे खजानों को मुझ पर लुटाते हुए सर्व खजानों के सागर मेरे मीठे बाबा कहते हैं:-* प्यारे बच्चे... विश्व पिता सामने आ बैठा है... *सारे खजाने लेकर लुटाने बैठा है... पिता लुटने आया है तो सारा लूट लो... पास में बैठ कर बाहर न भटको वरना खजानो के प्राप्ति का समय हाथो से फिसल जाएगा...* और खालीपन से दामन भर जाएगा... इतना डूब जाओ ईश्वरीय प्यार में कि हवा के कण कण में यह मीठे अहसास समा जाय...

 

 _ ➳  *सागर से खजानों को लूटकर खुशियों के अम्बर में अपने भाग्य के सितारे को चमकाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी हो गई हूँ... सारा कचरा बुद्धि से निकाल ली हूँ... *अंतर्मुखी बन यादो में डूब गयी हूँ... मुझे अपने सुनहरे स्वरूप और खूबसूरत पिता के सिवाय कुछ भी याद नही है...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- शिवबाबा की कोठी बनाये उनकी अव्यभिचारी याद में बैठना है*

 

_ ➳  अपने लौकिक सेवा स्थान पर, तीन पैर पृथ्वी में अपने प्यारे शिवबाबा की कोठी बनाये मैं बड़े प्यार से अपने बाबा को याद कर रही हूँ और मन ही मन अपने आप से बातें कर रही हूँ कि मेरा तोे सारा संसार ही इस तीन पैर पृथ्वी में समाया हुआ है क्योंकि मेरा भगवान, मेरा बाबा इस छोटी सी कोठी में मेरे साथ है। *उनकी याद में यहाँ आकर बैठते ही मैं महसूस करती हूँ कि जिस भगवान को दुनिया तलाश कर रही है वो मेरे बुलाने पर मुझे अपनी नजरों से निहाल करने के लिए कैसे इस छोटी सी कोठी में दौड़ा चला आता है*। भक्तो ने उसके लिए बड़े - बड़े मन्दिर बनाए, मस्जिदे बनाई, गुरुद्वारे बनाये लेकिन वो उन आलीशान मन्दिरो में नही बल्कि इस अति साधारण छोटी सी कुटिया में मेरे एक संकल्प पर पहुँच जाता है और आकर अपने प्यार की अपने स्नेह की शक्ति से मेरे अंदर कितना बल भर देता है!

 

_ ➳  अपनी प्यारे बाबा की इस छोटी सी कोठी में आते ही कैसे मेरी हर समस्या का मुझे हल मिल जाता है! कैसे भगवान यहाँ मेरे साथ बैठ हर सम्बन्ध का मुझे सुख देकर मेरे लौकिक सम्बन्धों में भी रूहानी स्नेह भर देता है! यहाँ बैठ कर अपना असीम प्यार मेरे ऊपर बरसा कर कैसे मेरा बाबा मुझे तृप्त कर देता है! *मन ही मन अपने आप से बातें करते हुए अब मैं सब कुछ भूल, केवल उनकी ही याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करती हूँ और महसूस करती हूँ जैसे उनकी याद में बैठते ही संकल्पो की गति धीमी होने लगी है और मेरा मन हर संकल्प विकल्प से धीरे - धीरे मुक्त होकर उनकी सुखदाई याद के सुखद अनुभव में खोने लगा है*। देह, देह की दुनिया का भान समाप्त होने लगा है और अपने निज स्वरूप में मैं आत्मा स्थित होने लगी हूँ।

 

_ ➳  अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होते ही मैं अनुभव करती हूँ कि सिवाय एक परमात्मा के मेरा और किसी के साथ कोई सम्बन्ध नही। मेरे सारे सम्बन्ध केवल मेरे पिता के साथ हैं। *यह देह जो मैने पार्ट बजाने के लिए धारण की है यह तो विनाशी है इसलिए इससे जुड़ा हर सम्बन्ध भी नश्वर और विनाशी है केवल मैं आत्मा और मेरे पिता अजर, अमर और अविनाशी हैं और इसलिए केवल उनसे जुड़ा हर सम्बन्ध ही अजर, अमर और अविनाशी है*। उसी अविनाशी सम्बन्ध की स्मृति में अब मैं स्थित होकर, अपने प्यारे पिता की अव्यभिचारी याद में बैठते ही, सांसारिक दुनिया की हर वस्तु के आकर्षण से मुक्त, एक की लगन में मग्न, एक असीम आनन्दमयी स्थिति में सहज ही स्थित हो जाती हूँ।

 

_ ➳  इस अति न्यारी और प्यारी अवस्था मे मैं आत्मा देह और देह की नश्वर दुनिया को छोड़ अब ऊपर की और उड़ते हुए आकाश को पार करके, अंतरिक्ष से परें सूक्ष्म लोक को पार कर पहुँच जाती हूँ अपने शिव पिता की निराकारी दुनिया मे। *लाल प्रकाश से प्रकाशित, चैतन्य सितारों की इस निराकारी दुनिया स्वीट साइलेन्स होम में पहुँच कर मैं आत्मा एक गहन मीठी शांति का अनुभव कर रही हूँ। अपने प्यारे पिता के सामने बैठ उनसे मंगल मिलन मनाकर मैं आत्मा असीम तृप्ति का अनुभव कर रही हूँ*। उनके अति सुंदर मनमोहक स्वरूप को निहारते हुए मैं धीरे - धीरे उनके समीप जाकर उनकी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में समा जाती हूँ और इस समीपता के साथ अपने पिता की सर्वशक्तियों का बल स्वयं में भरकर असीम शक्तिशाली बन जाती हूँ।

 

_ ➳  अपने प्यारे पिता से मंगल मिलन मनाकर, उनसे अथाह शक्ति और असीम आनन्द प्राप्त करके अब मैं वापिस साकारी दुनिया में आ जाती हूँ और अपने साकार शरीर मे फिर से प्रवेश कर जाती हूँ। *किन्तु अपने पिता की अव्यभिचारी याद में बैठ, उनके साथ मनाये इस मंगल मिलन का सुखद अहसास अब भी मुझे उसी सुखमय स्थिति की अनुभूति करवा रहा है और यह सुखद एहसास बार - बार करने के लिए अब मैं अपने पिता की याद में रह शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करके, खाली होते ही अपने बाबा की कोठी में जाकर, उनकी अव्यभिचारी याद में बैठ जाती हूँ और सहज ही अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करती रहती हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं एक की स्मृति द्वारा एकरस स्थिति बनाने वाली ऊंच पद की अधिकारी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं शुद्ध संकल्पों का भोजन स्वीकार कर सच्ची-सच्ची वैष्णव बनने वाली शुद्ध आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  लेकिन फिर भी सम्बन्ध जोड़ने के कारण सम्बन्ध के आधार पर स्वर्ग का अधिकार वर्से में पा ही लेते हैं - क्योंकि ब्राह्मण सो देवताइसी विधि के प्रमाण देवपद की प्राप्ति का अधिकार पा ही लेते हैं। *सतयुग को कहा ही जाता है - देवताओं का युग। चाहे राजा हो, चाहे प्रजा हो लेकिन धर्म देवता ही है - क्योंकि जब ऊँचे ते ऊँचे बाप ने बच्चा बनाया तो उँचे बाप के हर बच्चे को स्वर्ग के वर्से का अधिकारदेवता बनने का अधिकार, जन्म सिद्ध अधिकार में प्राप्त हो ही जाता है। ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी बनना अर्थात् स्वर्ग के वर्से के अधिकार की अविनाशी स्टैम्प लग जाना।* सारे विश्व से ऐसा अधिकार पाने वाली सर्व आत्माओं में से कोई आत्मायें ही निकलती हैं। इसलिए ब्रह्माकुमार-कुमारी बनना कोई साधारण बात नहीं समझना। ब्रह्माकुमार-कुमारी बनना ही विशेषता है और इसी विशेषता के कारण विशेष आत्माओं की लिस्ट में आ जाते हैं। इसलिए ब्रह्माकुमार-कुमारी बनना अर्थात् ब्राह्मण लोक केब्राह्मण संसार के,ब्राह्मण परिवार के बनना।

 

✺   *"ड्रिल :- सतयुगी वर्से की स्मृति में रहना।"*

 

 _ ➳  *मैं फरिश्ता प्रेम सागर की लहरों में लहराती हुईखुशियों के झूले में झूलती हुई उमंग उत्साह के पंख लगाकर उड़ चलती हूँ और पहुंच जाती हूं इस धरती के स्वर्ग मधुबन पावन भूमि पर...* मधुबन की शांति और सुकून का अनुभव करती पूरे मधुबन का चक्कर लगा रही हूँ... मैं आत्मा सभी सांसारिक झमेलों से मुक्त होकर कल्प के सबसे बड़े मिलन मेले में आई हूँ... मधुबन के डायमंड हाल में पहुंच जाती हूँ... चारों ओर सफेद पोश फरिश्तों के बीच मैं फरिश्ता योगयुक्त अवस्था में बैठ जाती हूँ... अव्यक्त बापदादा आते ही अपनी मीठी दृष्टि देकर नजरों से निहाल करते हैं... *अव्यक्त बापदादा की पावन दृष्टि से मैं आत्मा अव्यक्त स्थिति में स्थित हो जाती हूँ... और स्टेज पर बाबा के सम्मुख पहुंच जाती हूँ...*

 

 _ ➳  अव्यक्त बापदादा से अव्यक्त मिलन मनाते हुए अतीन्द्रिय सुखों में खो जाती हूँ... *फिर बाबा मुझे दिव्य दर्पण सौगात में देते हैं... जैसे ही मैं आत्मा दिव्य दर्पण में देखती हूँ मुझे अपने तीनों काल स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं...* मैं आत्मा उत्सुकतावश अपना भविष्य देखती हूँ... *मैं फरिश्ता दिव्य दर्पण के रास्ते सतयुगी स्वर्णिम दुनिया में पहुँच जाती हूँ... जहाँ चारों ओर सोने, हीरों से सजे हुए भव्य जगमगाते हुए महल नजर आ रहे हैं... चारों ओर देवी-देवता नज़र आ रहे हैं...* जो आजकल के देवी देवताओं के चित्र हैं उनसे भी अत्यंत सुन्दर, सम्पन्न, दैवीय गुणों से भरपूर दिख रहे हैं... सभी आत्मिक स्वरुप में स्थित हैं... न कोई माया है, न अपवित्रता है, न कोई विकार हैं... प्रकृति भी सतोप्रधान है... यहाँ की प्रजा भी कितनी सम्पन्न और सुखी हैं...

 

 _ ➳  मैं फरिश्ता स्वयं को एक दिव्य अलौकिक शहजादी के रूप में महल में सोता हुआ देख रही हूँ... *सर्वगुण संपन्न, 16 कलाओं से सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी अवस्था में मैं अति तेजस्वी, दिव्य शहजादी के रूप में स्वयं को अनुभव कर रही हूँ...* अमृतवेले पंछियों की मधुर साज से उठ जाती हूँ... पंछी भिन्न-भिन्न सुन्दर आवाजों से मेरा मनोरंजन कर रहे हैं... नैचुरल पहाड़ों से क्रॉस करता हुआ झरना बह रहा है... सुगन्धित जडी-बूटियों वाले खुशबूदार झरने में नहाकर सुन्दर देवताई ड्रेस पहनती हूँ... सोने, हीरों के आभूषणों से दासियाँ मेरा श्रृंगार करती हैं... रत्नजडित ताज पहनकर मैं शहजादी देवताई परिवार के साथ वैरायटी प्रकार के स्वादिष्ट भोजन खाती हूँ... महल से बाहर निकलकर सुन्दर-सुन्दर फूलों और फलों से लदे हुए बगीचे में प्रवेश करती हूँ... एक फल तोड़कर उसका रस पीती हूँ... कितना मीठा, स्वादिष्ट और रसीला है... *रत्नजडित झूले में सखियों संग झूल रही हूँ... खेल-खेल में पढाई कर रही हूँ... सुन्दर चित्रकारी कर रही हूँ... रतन जडित नैचुरल साज बजाकर मधुर गायन कर रही हूँ...*

        

 _ ➳  फिर मैं देवता पुष्पक विमान में बैठकर आसमान में सैर करती हूँ... *सैर करते-करते मैं फरिश्ता गोल्डन ऐज से फिर से डायमंड युग में डायमंड हाल में पहुँच जाती हूँ...* सामने बापदादा मुझे देख मुस्कुरा रहे हैं... बाबा मुझे वरदानों से भरपूर कर रहे हैं... चारों ओर ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारी भाई-बहनें अपने पिता से मिलन मनाकर खुशियों में नाच रहे हैं... मैं अपने श्रेष्ठ अविनाशी भाग्य पर नाज कर रही हूँ... मुझ आत्मा के दिव्य चक्षु खुल गए हैं, मुझ आत्मा की बुद्धि का ताला खुल गया है... *मैं आत्मा ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी बनने की विशेषता को समझ गई हूँ... ब्रह्माकुमार-कुमारी बनना कोई साधारण बात नहीं है... कोटो में कोई कोई में भी कोई आत्मायें ही निकलती हैं...* ब्रह्माकुमार-कुमारी बनना अर्थात् स्वर्ग के वर्से के अधिकार की अविनाशी स्टैम्प लग जाना...

 

 _ ➳  *ब्राह्मण लोक कीब्राह्मण संसार कीब्राह्मण परिवार की बनकर स्वर्ग के वर्से के अधिकार की अविनाशी स्टैम्प लगाकर, मैं विशेष आत्माओं की लिस्ट में आ गई हूँ...* बाबा को शुक्रिया करती हूँ कितना ऊंचा भाग्य बना दिया है मेरा... बाबा ने अपना बच्चा बनाकर स्वर्ग के वर्से का अधिकार, देवता बनने का जन्म सिद्ध अधिकार दे दिया है... बाबा मिल गया सब कुछ मिल गया... अलौकिक परिवार मिल गया, खुशियों का खजाना मिल गया... मैं आत्मा *बाबा से दिव्य अनुभूतियों की सौगात लेकर वापस अपने अकालतख्त पर विराजमान हो जाती हूँ... और सदा सतयुगी वर्से की स्मृति में रहती हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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