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❍ 11 / 10 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *साथ साथ सबसे तोड़ निभाते कमल फूल समान बनकर रहे ?*
➢➢ *ध्यान दीदार की आश तो नहीं रखी ?*
➢➢ *साइलेंस की शक्ति द्वारा जमा के खाते को बढाया ?*
➢➢ *नेचुरल अटेंशन से किसी भी प्रकार के टेंशन से मुक्त रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ पुरानी दुनिया में पुराने अन्तिम शरीर में किसी भी प्रकार की व्याधि अपनी श्रेष्ठ स्थिति को हलचल में न लाये। *स्वचिन्तन, ज्ञान-चिन्तन, शुभचिन्तक बनने का चिन्तन ही चले तब कहेंगे कर्मातीत स्थिति।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं विश्व में सबसे ज्यादा श्रेष्ठ भाग्यवान हूँ"*
〰✧ विश्व में सबसे ज्यादा श्रेष्ठ भाग्यवान अपने को समझते हो? सारा विश्व जिस श्रेष्ठ भाग्य के लिए पुकार रहा है कि हमारा भाग्य खुल जाए... आपका भाग्य तो खुल गया। इससे बड़ी खुशी की बात और क्या होगी! *भाग्यविधाता ही हमारा बाप है - ऐसा नशा है ना! जिसका नाम ही भाग्यविधाता है उसका भाग्य क्या होगा! इससे बड़ा भाग्य कोई हो सकता है? तो सदा यह खुशी रहे कि भाग्य तो हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार हो गया।* बाप के पास जो भी प्रापर्टी होती है, बच्चे उसके अधिकारी होते हैं। तो भाग्यविधाता के पास क्या है? भाग्य का खजाना। उस खजाने पर आपका अधिकार हो गया।
〰✧ *तो सदैव 'वाह मेरा भाग्य और भाग्य-विधाता बाप'! - यही गीत गाते खुशी में उड़ते रहो। जिसका इतना श्रेष्ठ भाग्य हो गया उसको और क्या चाहिए? भाग्य में सब कुछ आ गया। भाग्यवान के पास तन-मन-धन-जन सब कुछ होता है। श्रेष्ठ भाग्य अर्थात् अप्राप्त कोई वस्तु नहीं। कोई अप्राप्ति है? मकान अच्छा चाहिए, कार अच्छी चाहिए... नहीं। जिसको मन की खुशी मिल गई, उसे सर्व प्राप्तियाँ हो गई!* कार तो क्या लेकिन कारून का खजाना मिल गया! कोई अप्राप्त वस्तु है ही नहीं। ऐसे भाग्यवान हो! विनाशी इच्छा क्या करेंगे। जो आज है, कल है ही नहीं - उसकी इच्छा क्या रखेंगे। इसलिए, सदा अविनाशी खजाने की खुशियों में रहो जो अब भी है और साथ में भी चलेगा। यह मकान, कार वा पैसे साथ नहीं चलेंगे लेकिन यह अविनाशी खजाना अनेक जन्म साथ रहेगा। कोई छीन नहीं सकता, कोई लूट नहीं सकता।
〰✧ स्वयं भी अमर बन गये और खजाने भी अविनाशी मिल गये! जन्म-जन्म यह श्रेष्ठ प्रालब्ध साथ रहेगी। कितना बड़ा भाग्य है! जहाँ कोई इच्छा नहीं, इच्छा मात्रम् अविद्या है - ऐसा श्रेष्ठ भाग्य भाग्यविधाता बाप द्वारा प्राप्त हो गया। मैं बेफिकर बादशाह हूँ सदा अपने को बेफिकर बादशाह अनुभव करते हो? प्रवृति का या कोई भी कार्य का फिकर तो नहीं रहता है? बेफिकर रहते हो? बेफिकर कैसे बने? सब कुछ तेरा करने से। मेरा कुछ नहीं, सब तेरा है। जब तेरा है तो फिकर किस बात का? *जिन्होंने सब कुछ तेरा किया, वही बेफिकर बादशाह बनते हैं। ऐसे नहीं जो चीज मतलब की है वह मेरी है, जो चीज मतलब की नहीं वह तेरी। जीवन में हर एक बेफिकर रहना चाहता है। जहाँ फिकर नहीं, वहाँ सदा खुशी होगी। तो तेरा कहने से, बेफिकर बनने से खुशी के खजाने भरपूर हो जाते हैं।* बादशाह के पास खजाना भरपूर होता है। तो आप बेफिकर बादशाहों के पास अनगिनत, अखुट, अविनाशी खजाने हैं जो सतयुग में नहीं होंगे।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ इस पुरानी दुनिया की राज्य सभा का हालचाल तो अच्छी तरह से जानते हो - न लॉ है, न ऑर्डर है। लेकिन *आपकी राज्य दरबार लाँ फुल भी है और सदा हाँ जी, जी हाजिर - इस ऑर्डर में चलती है।*
〰✧ जितना राज्य अधिकारी शक्तिशाली है उतना राज्य सहयोगी कर्मचारी भी स्वत: भी सदा इशारे से चलते, *राज्य अधिकारी ने ऑर्डर दिया कि यह नहीं सुनना है और यह नहीं करना है, नहीं बोलना है, तो सेकण्ड में इशारे प्रमाण कार्य करें।* ऐसे नहीं कि आपने आर्डर
किया - नहीं देखो और वह देख करके फिर माफी मांगे कि मेरी गलती हो गई।
〰✧ करने के बाद सोचे तो उसको समझदार साथी कहेंगे? *मन को ऑर्डर दिया कि व्यर्थ नहीं सोचो, सेकण्ड में फुलस्टॉप, दो सेकण्ड भी नहीं लगने चाहिए।* इसको कहा जाता है - युक्ति-युक्त राज्य दरबार। ऐसे राज्य अधिकारी बने हो? रोज राज्य दरबार लगाते हो या जब याद आता है तब ऑर्डर देते हो?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *अनादि, आदि और अन्त - तीनों ही काल स्मृति स्वरूप हैं। विस्मृति तो बीच में आई। तो आदि, अनादि स्वरूप सहज होना चाइये या मध्य का स्वरूप? सोचते हो कि हाँ, मैं आत्मा हूँ लेकिन स्मृति स्वरूप हो चलना, बोलना, देखना उसमें अन्तर पड़ जाता है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बेहद के बाप को याद करना*"
➳ _ ➳ एक खुबसूरत उपवन में झूले में झूलती हुई मै आत्मा... झूले के ऊपर नीचे के खेल को देख... मीठे बाबा की यादो में खो जाती हूँ... कि कैसे मीठे बाबा ने मुझे ज्ञान और भक्ति के खेल को समझाकर... मझे जनमो की यात्रा का राज समझा दिया है... *मीठे बाबा की यादो में अपने आत्मिक वजूद को पाकर, मै आत्मा... पुनः पावनता की खुशबु को स्वयं में भरकर... इस बेहद के स्टेज पर पूज्य बन मुस्करा रही हूँ...* अपने इस खुबसूरत भाग्य का सिमरन करते हुए मै आत्मा... मीठे बाबा की बाँहों में झूलने वतन में पहुंचती हूँ...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को दिव्यगुण धारी बनाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की सच्ची यादो में सतोप्रधान पूज्य बनने का पुरुषार्थ करो... ज्ञान रत्नों से बुद्धि को भरपूर कर अथाह सम्पत्ति और सुखो के मालिक बनो... *मीठे बाबा की मीठी यादो में देहभान में लगे सारे दागो को मिटा दो... और पूज्य देवता बन शान से मुस्कराओ..."*
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा से दिव्यता के वरदान को लेकर मुस्करा कर कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा देह भान में आकर, अपनी सारी आत्मिक सुंदरता को खो गयी थी... मै क्या थी, और क्या हो गयी हूँ... *आपने मीठे बाबा मुझे सच्ची यादो की राहो पर चलाकर,कितना दिव्य और प्यारा बनाया है... आपके हाथ और सच्चे साथ ने पूज्य रूप में विश्व धरा पर सजा दिया है..."*
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपने अमूल्य रत्नों की जागीरों को सौंपते हुए कहते है :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वरीय यादो में हर पल हर संकल्प से डूबकर, सतोप्रधान पूज्य बन अनन्त सुखो का आनन्द उठाओ... यह ज्ञान और भक्ति का वन्डरफुल खेल है, इसमे पुनः सतोप्रधान बन विश्व बादशाही को पाओ...* मीठे बाबा की यादो में सारे विकारो को भस्म कर, पावनता से सज संवर कर मुस्कराओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा के ज्ञान मणियो को अपने दिल में समाते हुए कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा आपकी फूलो सी गोद में बैठकर, ज्ञान रत्नों से मालामाल हो रही हूँ... *इस प्यारे खेल में पुनः पावनता से खिलकर, सतोप्रधान बन रही हूँ... आपकी यादो में विकारो की कालिमा से मुक्त होकर, देवताई चमक से भर रही हूँ..."*
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को रत्नों की दौलत से खुबसूरत बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *ज्ञान और भक्ति के इस जादुई खेल में, ईश्वर पिता के साथ से रत्नों से लबालब होकर, देवताई सौंदर्य को पा रहे हो... मीठे बाबा के प्यार के साये तले अपने खोये ओज को पाकर... सच्चे सुखो में मुस्करा रहे हो...* पावन पिता के संग में सदा की पावनता को पा रहे हो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा से पायी ज्ञान की अतुलनीय धनसंपदा से सजकर कहती हूँ :-"मीठे दुलारे बाबा मेरे... मै आत्मा किस कदर देह भान में फंसी थी और विकारो के दलदल में धँसी थी... *मीठे बाबा आपने हाथ देकर... जो मुझे बाहर निकाला है, मै आत्मा कितनी प्यारी पावन बनकर महक उठी हूँ...* पूज्य बनकर निखर रही हूँ..."मीठे बाबा से पावनता का वरदान लेकर मै आत्मा... अपने वतन लौट आयी...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ज्ञान और योग से अपनी कमाई जमा करनी है*"
➳ _ ➳ एकांत में बैठ प्रभू चिन्तन करते हुए मैं अंतिम समय के बारे में विचार करती हूँ कि अन्त के समय जब सारी दुनिया मे हाहाकार हो रही होगी उस समय केवल वो चन्द आत्मायें उस हाहाकार में भी एकरस, अचल और अडोल होंगी जिन्होंने लम्बे समय से ज्ञान की धारणा और योग का बल जमा किया होगा। *बाबा के अव्यक्त इशारे बार - बार समय की समीपता का संकेत दे रहें हैं। तो बाबा के उन अव्यक्त इशारों को देखते हुए मैं स्वयं से ही सवाल करती हूँ कि क्या मैने अपने अंदर इतना योगबल जमा कर लिया कि अंत के समय, हलचल की परिस्थिति भी मेरी स्थिति को हिला ना सके*!
➳ _ ➳ इसी के साथ - साथ बाबा के महावाक्य स्मृति में आते हैं कि:- *"आगे चल कर आप मास्टर सर्वशक्तिवान आत्माओं के पास सब भिखारी बन कर आयेंगे। तो जब स्टॉक होगा तब तो देंगे ना! दान वही दे सकता जिसके पास अपने से ज्यादा हो। अगर अपने ही जितना होगा तो दान क्या करेगें "*। बाबा के इन महावाक्यों के स्मृति में आते ही मैं स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ कि इस संगमयुग पर अब मुझे अपने एक - एक सेकण्ड पर अटेंशन देते हुए अपने अंदर इतना योगबल जमा करना है कि अंत समय स्वयं के साथ - साथ मैं औरों का भी कल्याण कर सकूँ और बाबा के विश्व परिवर्तन के कार्य मे बाबा की मददगार बन बाबा का नाम बाला कर सकूँ।
➳ _ ➳ इसी दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ स्वयं को बलशाली बनाने के लिए अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित होकर, सर्वशक्तिवान अपने शिव पिता परमात्मा को मैं याद करती हूँ और अपने मन बुद्धि को पूर्ण रूप से अपने मीठे प्यारे बाबा पर एकाग्र करती हूँ। *इस एकाग्रचित अवस्था मे मैं बाबा को अपने अति समीप अनुभव करती हूँ और इस समीपता का अनुभव करते - करते अपनी नश्वर देह का त्याग कर मैं चल पड़ती हूँ अपने प्राणेश्वर बाबा के पास, उनके प्यार की शीतल छाया में बैठ स्वयं को तृप्त करने के लिए*। अपने शिव पिता परमात्मा के निराकारी धाम की ओर मैं निरन्तर बढ़ती जा रही हूँ।
➳ _ ➳ साकारी दुनिया को पार कर, सूक्ष्म लोक से परें अब मैं देख रही हूँ स्वयं को अपने स्वीट साइलेन्स होम में अपने शिव पिता परमात्मा के सम्मुख। मेरे दिलाराम बाबा की समीपता मुझे परमआनन्द का अनुभव करवा रही है। *सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे बिखेरता उनका सुंदर सलोना स्वरूप मन को जैसे तृप्त कर रहा है*। उनसे निकल रही शक्तियों की रंग बिरंगी किरणे बहते हुए झरने के समान मुझ पर पड़ रही है और मन को गहन शीतलता दे रही है। *गहन शांति के गहरे अनुभवों में मैं डूब रही हूँ और बाबा से आ रही सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूँ*।
➳ _ ➳ भरपूर हो कर अब मैं वापिस साकार सृष्टि पर लौट कर, कर्म करने के लिए फ़िर से अपने पांच तत्वों के बने भौतिक शरीर मे प्रवेश करती हूँ। अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हूँ और हर घड़ी बाबा को अपने समीप अनुभव कर रही हूँ। अब मेरे हर श्वांस में केवल मेरे दिलराम बाबा की याद बसी है। *मेरा रोम - रोम उनकी याद से पुलकित हो रहा है। मेरे मनबुद्धि की तार अब निरन्तर उनके साथ ही जुड़ी हुई है। मैं हर पल उनके लव में लीन होकर संगमयुग के एक - एक पल को उनकी याद में सफल करते हुए, अंतिम समय के लिए, अपने अंदर ज्ञान और योगबल जमा कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं साइलेन्स की शक्त्ति द्वारा जमा के खाते को बढ़ाने वाली श्रेष्ठ पद की अधिकारी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं अपने आप नेचुरल अटेंशन रखकर किसी भी प्रकार का टेंशन आने नहीं देने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ जब काम मिलता है तो लिखने में भी मार्क्स जमा होती हैं। अगर नहीं लिखा तो मार्क्स एकस्ट्रा कम हो गई, नुकसान कर दिया। *जो भी डायरेक्शन मिलते हैं, डायरेक्ट बाप द्वारा मिलते हैं, चाहे निमित्त आत्मायें दादियों द्वारा मिलते हैं, उसको रिगार्ड देना अति आवश्यक है।* इसमें न बहाना देना, न अलबेलापन करना। आगे के लिए बापदादा बता देता है कि मार्क्स जमा नहीं हुई। *इसलिए इसको महत्व देना अर्थात् महान बनना।* हल्की बात नहीं करो। बच्चे बड़े चतुर हैं, कहेंगे बापदादा तो जानते ही हैं ना। जानते तो हैं लेकिन कहा क्यों? जानते हुए कहा ना! तो ऐसे छुड़ाना नहीं चाहिए, *बहुत ऐसे कार्य हैं, छोटे-छोटे जिसको हाँ जी करने में एक्स्ट्रा मार्क्स जमा होती हैं।*
➳ _ ➳ *कई ऐसे स्टूडेन्टस हैं जो किसी भी पास्ट के संस्कार के वश बहुत अच्छे उमंग-उत्साह में बढ़ते हैं* लेकिन कोई न कोई सुनहरी धागा, बहुत महीन धागा उनको आगे बढ़ने नहीं देता। वह समझते भी हैं कि यह महीन धागा रहा हुआ है, लेकिन.... लेकिन ही कहेंगे। लेकिन *ऐसे भी पुरुषार्थी हैं जो छोटी-छोटी कामन बातों में हाँ जी करने से मार्क्स ले लेते हैं। और हो सकता है कि वह थोड़ी-थोड़ी मार्क्स इकट्ठी होते हुए वह आगे भी निकल सकते हैं,* ऐसे भी बापदादा के पास एक्जैम्पुल के रूप में हैं *इसलिए सहज तरीका है छोटी-छोटी हाँ जी करने में मार्क्स जमा करते जाओ। कट नहीं करो, जमा करो।*
✺ *ड्रिल :- "छोटे-छोटे कार्यों में 'हाँ जी' कर मार्क्स जमा करना"*
➳ _ ➳ *ठंडी-ठंडी हवाओं में, धुन्ध भरे मौसम में नीलाम्बर के नीचे हरी-हरी घास पर विचरण करती मैं दिव्य प्रकाशमय आत्मा...* अपने सुप्रीम टीचर की दी शिक्षाओं पर विचार करती, *मैं आत्मा एक मगन अवस्था में स्थित हूँ... मानों मैं आत्मा ज्ञान सागर में डूबती, ज्ञान के रहस्यों में गोते खा रही हूँ...* और समा गयी हूँ... ज्ञान के गहरे रहस्यों के तल में... एक-एक ज्ञान रत्न रूपी मोती इकट्ठा करती मैं दिव्य आत्मा... एकाएक मुझ आत्मा के सामने एक दृश्य उभरता हैं... मैं आत्मा देख रही हूँ... एक बहुत उबड़-खाबड रास्ता नजर आ रहा हैं... *जिस पर कुछ यात्री अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रहे है...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा देख रही हूँ... इस राह पर बीच-बीच में कुछ पत्थर पड़े हुए है... जिन पर लिखा है... "हाँ जी"* मैं प्रकाश पुंज आत्मा इस दृश्य को बड़े ध्यान से देख रही हूँ... कुछ आत्माएँ जिन पत्थर पर हाँ जी लिखा है... उसे रास्ते से अपनी जिम्मेदारी समझते रास्ते से हटाने में लग जाती हैं... और कुछ अन्य आत्माएं उसे देख कर अनदेखा कर उस से आगे बढ़ जाती है... *अचानक एक अजब सीन सामने आता है... जो यात्री हाँ जी वाले पत्थर को हटाने में लगे थे... अचानक वो पत्थर बदलकर एक लिफ्ट बन जाती हैं...* और उस लिफ्ट में वो यात्री बैठ *बाकि यात्रियों से 4 कदम आगे बिना किसी मेहनत के, बिना थके एक नये उमंग के साथ पहुँच जाते है...*
➳ _ ➳ और इस अजब दृश्य को देख मैं आत्मा अपने अनर्तमन की गहराइयों से धीरे-धीरे वापिस आती हूँ... और अब *मैं ज्योति स्वरूप आत्मा अनुभव कर रही हूँ... स्वयं को पांच तत्वों से बने देह में... और मैं आत्मा ज्ञान की कुछ नयी बातों से, उनके रहस्यों की स्पष्टता को पाकर सुप्रीम टीचर की शिक्षाओं को धारणा करने में अपने को और परिपक्व अनुभव कर रही हूँ...* मैं आत्मा मम्मा और ब्रह्मा बाबा उनकी भृकुटि में शिव पिता को सामने पाती हूँ... *लाइट की चमकीली ड्रेस में मम्मा दिव्य आलोक से भरपूर धीरे-धीरे मुझ आत्मा की तरफ आ रही है...* और मम्मा अपना लाइट का हाथ जैसे ही मेरे सिर पर रखती है... *मैं आत्मा दैहिक भान से परे हो जाती हूँ... इस देह और देह की दुनिया की सुध-बुध भूल जाती हूँ... देह से उपराम... अशरीरी हो जाती हूँ...*
➳ _ ➳ *मेरे चारों तरफ प्रकाश ही प्रकाश है... कभी सामने बीज रूप शिव बाबा निराकार स्वरूप में दिख रहे है...* कभी ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में शिव बाबा चमकते हुए दिखाई दे रही है... *लग रहा है जैसे लाइट की बारिश मुझ पर हो रही हो...* और मैं आत्मा इस लाइट में भीग कर इसमें समा गई हूँ... *अतिइन्द्रिय सुख के झूले में मैं आत्मा स्वयं को अनुभव कर रही हूँ सर्व शक्तियों और सर्व गुणों से सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ...* तभी मेरे सामने मम्मा के जीवन के वृतांत आने लगते है... जिसमें मैं आत्मा स्पष्ट देख रही हूँ... कैसे *मम्मा ने हर छोटी-छोटी बात में भी हाँ जी का पुरूषार्थ किया और कैसे आगे बढ़ी...* और अचानक सभी दृश्य मुझ आत्मा के सामने से गायब हो जाते है... और इन सभी दृश्यों को देख *एक नयी ज्ञान उर्जा का संचार मैं दिव्य आत्मा स्वयं में अनुभव कर रही हूँ... पहले से ज्यादा दिव्यता और मुझ आत्मा का प्रकाश बढ़ गया है... सर्व शक्तियों से सम्पन्न मैं आत्मा अनुभव कर रही हूँ...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अब देख रही स्वयं को इस सृष्टि रंग मंच पर पार्ट प्ले करते हुए...* अब मैं आत्मा इस धरा पर अपना पार्ट पले कर रही हूँ... मेरे सामने अंतर्मन की गहराइयों में जाकर जो दृश्य मैंने देखा, और मम्मा के जीवन के वृत्तांत मेरे सामने आ रहे है... *मुझ आत्मा को इन सब से प्रेरणा मिल रही है...* मैं दिव्य आत्मा देख रही हूँ... *स्वयं को मैं आत्मा मम्मा समान हर कार्य में, सभी छोटे-छोटे कार्य में भी निश्चय बुद्धि होकर सदा हाँ जी कर आगे बढ़ रही हूँ...* मैं निश्चयबुद्धि आत्मा हाँ जी रुपी लिफ्ट द्वारा तेजी से पुरूषार्थ में आगे बढने का अनुभव कर रही हूँ... *हाँ जी रूपी लिफ्ट को यूज़ कर मैं आत्मा एक नयी आत्मिक उर्जा, और दुआओं की गिफ्ट से स्वयं को भरपूर, हल्का और स्वयं में महानता का अनुभव कर रही हूँ...* मैं सन्तुष्ट महान आत्मा एक नये आत्मिक बल से, नये उंमग के साथ तीव्र गति से आगे बढ़ रही हूँ... *बाबा द्वारा जो निमित्त आत्मा द्वारा जो डायरेक्शन मिल रहे है उसमें मेरा हांजी का पाठ पक्का हो गया है...* इनको महत्व देते हुए, निमित्त को रिगार्ड देते हुए मैं स्वयं को एक महान आत्मा समझ रही हूं... ना कोई सूक्ष्म महीन बंधन है ना कोई पुराने संस्कारो की खिंचावट... *मैं निश्चिन्तता से सरलता से उमंग-उत्साह से हांजी करते हए अपने मार्क्स जमा करते हुए भाग्य बनाती जा रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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