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 10 / 09 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सच्चे बाप से सच्चा होकर रहे ?*

 

➢➢ *एक सत बाप के संग में रहे ?*

 

➢➢ *श्रेष्ठ कर्मधारी बन ऊंची तकदीर बनायी ?*

 

➢➢ *अपने संतुष्टता की पर्सनालिटी द्वारा अनेकों को संतुष्ट किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *बीजरूप स्थिति या शक्तिशाली याद की स्थिति यदि कम रहती है तो इसका कारण अभी तक लीकेज है, बुद्धि की शक्ति व्यर्थ के तरफ बंट जाती है।* कभी व्यर्थ संकल्प चलेंगे, कभी साधारण संकल्प चलेंगे। जो काम कर रहे हैं उसी के संकल्प में बुद्धि का बिजी रहना इसको कहते हैं साधारण संकल्प। याद की शक्ति या मनन शक्ति जो होनी चाहिए वह नहीं होती इसलिए पावरफुल याद का अनुभव नहीं होता *इसलिए सदा समर्थ संकल्पों में, समर्थ स्थिति में रहो तब शक्तिशाली बीजरूप स्थिति का अनुभव कर सकेंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं कल्प-कल्प की पूज्य आत्मा हूँ"*

 

✧  अपने को कल्प-कल्प की पूज्य आत्मायें अनुभव करते हो? स्मृति है कि हम ही पूज्य थे, हम ही हैं और हम ही बनेंगे? पूज्य बनने का विशेष साधन क्या है? कौन पूज्य बनते हैं? *जो श्रेष्ठ कर्म करते हैं और श्रेष्ठ कर्मो का भी फाउन्डेशन है पवित्रता। पवित्रता पूज्य बनाती है। अभी भी देखो जो नाम से भी पवित्र बनते हैं तो पूज्य बन जाते हैं। लेकिन पवित्रता सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं। ब्रह्मचर्य व्रत को धारण किया इसमें ही सिर्फ श्रेष्ठ नहीं बनना है।* यह भी श्रेष्ठ है लेकिन साथ में और भी पवित्रता चाहिये।

 

✧  *अगर मन्सा संकल्प में भी कोई निगेटिव संकल्प है तो उसे भी पवित्र नहीं कहेंगे, इसलिए किसी के प्रति भी निगेटिव संकल्प नहीं हो। अगर बोल में भी कोई ऐसे शब्द निकल जाते हैं जो यथार्थ नहीं है तो उसको भी पवित्रता नहीं कहेंगे। यदि संकल्प और बोल ठीक हों लेकिन सम्बन्ध-सम्पर्क में फर्क हो, किससे बहुत अच्छा सम्बन्ध हो और किससे अच्छा नहीं हो तो उसे भी पवित्रता नहीं कहेंगे।* तो ऐसे मन्सा-वाचा-कर्मणा अर्थात् सम्बन्ध-सम्पर्क में पवित्र हो? ऐसे पूज्य बने हो? अगर मानो कोई भी बात में कमी है तो उसको खण्डित कहा जाता है। खण्डित मूर्ति की पूजा नहीं होती है।

 

✧  इसलिए जरा भी मन्सा, वाचा, कर्मणा में खण्डित नहीं हो अर्थात् अपवित्रता न हो, तब कहा जायेगा पूज्य आत्मा। तो ऐसे पूज्य बने हो? जड़ मूर्ति भी खण्डित हो जाती है तो पूजा नहीं होती। उसको पत्थर मानेंगे, मूर्ति नहीं मानेंगे। म्यूजियम में रखेंगे, मन्दिर में नहीं रखेंगे। *तो ऐसे पवित्रता का फाउन्डेशन चेक करो-कोई भी संकल्प आये, तो स्मृति में लाओ कि मैं परम पूज्य आत्मा हूँ। यह याद रहता है या जिस समय कोई बात आती है उस समय भूल जाता है, पीछे याद आता है?* फिर पश्चाताप होता है-ऐसे नहीं करते तो बहुत अच्छा होता। तो सदा पवित्र आत्मा हूँ, पावन आत्मा हूँ। पवित्रता अर्थात् स्वच्छता।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  साइलेन्स की शक्ति के साधनों द्वारा नजर से निहाल कर देंगे। *शुभ संकल्प से आत्माओं के व्यर्थ संकल्पों को समाप्त कर देंगे।* शुभ भावना से बाप की तरफ स्नेह की भावना उत्पन्न करा लेंगे।

 

✧  ऐसे उन आत्माओं को शान्ति की शक्ति से सन्तुष्ट करेंगे, तब आप चैतन्य शान्ति देव आत्माओं के आगे *शान्ति देवा, शान्ति देवा' कह करके महिमा करेंगे और यही अंतिम संस्कार ले जाने के कारण द्वापर में भक्त आत्मा बन आपके जड चित्रों की यह महिमा करेंगे।*

 

✧  यह ट्रैफिक कन्ट्रोल का भी महत्व कितना बडा है और कितना आवश्यक है - यह फिर सुनायेंगे। लेकिन *शान्ति की शक्ति के महत्व को स्वयं जानो और सेवा में लगाओ।* समझा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *जैसे आवाज में आना अति सहज लगता है ऐसे ही आवाज से परे हो जाना इतना सहज है? यह बुद्धि की एक्सरसाइज सदैव करते रहना चाहिए।* जैसे शरीर की एक्सरसाइज शरीर को तन्दरुस्त बनाती है ऐसे आत्मा की एक्सरसाइज आत्मा को शक्तिशाली बनाती है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  कुसंग से अपनी सम्भाल करना"*

 

➳ _ ➳  मधुबन के तपस्या धाम में बैठी हुई मै आत्मा... मीठे बाबा को बड़े ही प्यार से निहारती हुई सोचती हूँ... कि मीठे बाबा ने अगर मेरा हाथ न पकड़ा होता... मै आत्मा स्वयं को और प्यारे बाबा को कभी भी न जान पाती... *मीठे बाबा ने मुझे देह की मिटटी से निकाल कर... यादो में उजला खुबसूरत बना दिया है..*. विकारी दुनिया में जंग लगी मुझ आत्मा को... अपने प्यार और गुणो रुपी पानी में सोने सा दमकाया है... पारस बाबा ने अपने साये में बिठाकर... *मुझे भी आप समान चमकीला बनाकर... मेरी दिव्यता और पवित्रता का सारे विश्व में डंका बजवाया है... आज पूरा विश्व मुझे और मेरी पवित्रता को सम्मानित कर रहा है.*.. ऐसे मीठे बाबा का मै आत्मा कितना न शुक्रिया करूँ...

 

❉   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी अमूल्य शिक्षाओ से हीरे जैसा सजाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... जनमो तक दुखो के दलदल में फंसे रहे... और विकारो में लिप्त रहकर अपनी खुबसूरत को खो बेठे... *अब जो मीठे बाबा का साथ और हाथ मिला है... तो यह सच्चा साथ, प्यार और पालना कभी छोड़ना.*.. अपने संग की सदा सम्भाल कर... ईश्वरीय प्यार और पालना में... सदा रूहानी गुलाब बन महकना..."

 

➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की छत्रछाया में फूलो जैसा मुस्कराते हुए कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा आपकी पालना में कितनी गुणवान और शक्तिवान बनकर... देवताई श्रंगार से सज गयी हूँ... *आपने सच्चे ज्ञान और प्यार को देकर... मुझे देह की मिटटी से छुड़ाकर... सदा के लिए उजला खुबसूरत बना दिया है.*..आपकी श्रीमत के हाथो में माया के काले साये से महफूज हूँ...

 

❉   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा अपनी प्यार भरी गोद में लेकर माया से बचाते हुए कहा:-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... मीठे बाबा ने *जो ज्ञान का प्रकाश देकर मा नॉलेजफुल बनाया है... उस ज्ञान प्रकाश में, मायावी आकर्षण को दूर से ही परख कर सदा दूर रहो.*.. अब जो ईश्वरीय साथ को पाया है... तो माया के साथ से किनारा करो.. विकारी संग से सदा खबरदार रहो....

 

➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की श्रीमत को अपने दिल की गहराइयो में समाकर कहती हूँ:-"प्यारे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपसे पायी ज्ञान धन की, असीम दौलत में मालामाल हो गयी हूँ... और तीसरे नेत्र को पाकर... *विवेक शक्ति से, बेहद की समझदार हो गयी हूँ... और आपकी यादो में देह के प्रभाव से मुक्त होकर...अपनी आत्मिक रूप में चमक रही हूँ.*.."

 

❉   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सतयुगी दुनिया के सुख ऐश्वर्य से मेरी झोली सजाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे.... *सदा प्यारे बाबा संग यादो के झूले में झूलते रहो... और माया के हर झोंके से सुरक्षित रहकर... मीठे बाबा के प्यार भरे आँचल में छुपे रहो.*.. सदा ज्ञान और योग के पंख लिए... खुशियो के अनन्त आसमाँ में... इतना ऊँचा उड़ते रहो कि माया का संग छु भी न सके...

 

➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की गोद में बैठकर माया के चंगुल से सुरक्षित होकर कहती हूँ :-"मीठे सच्चे साथी बाबा,.. आपने *मुझ आत्मा को अपने गले से लगाकर... अपनी अमूल्य शिक्षाओ से सजाकर... मेरा जीवन खुशियो की फुलवारी बना दिया है.*.. मेरा दिव्य गुणो और पवित्रता से श्रंगार कर... मेरा कायाकल्प कर दिया है... अब मै आत्मा माया के विकारी संग से सदा परे रह... इस सच्चे आनन्द में मगन रहूंगी..."मीठे बाबा को अपनी दिली दास्ताँ सुनाकर... मै आत्मा अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- दैवी गुण धारण कर स्वयं की जीवन को पलटाना है*"

 

_ ➳  एकांत में अंतर्मुखी बन कर बैठी मैं ब्राह्मण आत्मा विचार करती हूँ कि मेरा यह जीवन जो कभी हीरे तुल्य था आज रावण की मत पर चलने से कैसा कौड़ी तुल्य बन गया है! *दैवी गुणों से सम्पन्न थी मैं आत्मा और आज आसुरी अवगुणों से भर गई हूँ। रावण रूपी 5 विकारों की प्रवेशता ने मेरे दैवी गुण छीन कर मेरे अंदर काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहँकार पैदा कर मेरे जीवन को ही श्रापित कर दिया है और अब जबकि स्वयं भगवान आकर मेरे इस श्रापित जीवन से मुझे छुड़ा कर फिर से पूज्य देवता बना रहे हैं तो मेरा भी यह परम कर्तव्य बनता है कि उनकी श्रेष्ठ मत पर चल कर, अपने जीवन मे दैवी गुणों को धारण कर अपने जीवन को पलटा कर भविष्य जन्म जन्मान्तर के लिए सुख, शांति और पवित्रता का वर्सा उनसे ले लूँ*। मन ही मन इन्ही विचारो के साथ अपने दैवी गुणों से सम्पन्न स्वरूप को मैं स्मृति में लाती हूँ और अपने उस अति सुन्दर दिव्य स्वरूप को मन बुद्धि के दिव्य चक्षु से निहारने मे मगन हो जाती हूँ।

 

_ ➳  दैवी गुणों से सजा मेरा पूज्य स्वरूप मेरे सामने है। लक्ष्मी नारायण जैसे अपने स्वरूप को देख मैं मन ही मन आनन्दित हो रही हूँ। अपने सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम स्वरूप में मैं बहुत ही शोभायमान लग रही हूँ। *मेरे चेहरे की हर्षितमुखता, नयनो की दिव्यता, मुख मण्डल पर पवित्रता की दिव्य आभा मेरे स्वरूप में चार चांद लगा रही है। अपने इस अति सुन्दर स्वरूप का भरपूर आनन्द मैं ले रही हूँ । मन ही मन अपनी इस ऐम ऑब्जेक्ट को बुद्धि में रख, ऐसा बनने की मन मे दृढ़ प्रतिज्ञा कर, अपने जीवन को पलटाने के लिए दैवी गुणों को धारण करने का संकल्प लेकर, पुजारी से पूज्य बनाने वाले अपने परमपिता परमात्मा का दिल की गहराइयों से मैं शुक्रिया अदा करती हूँ* और 63 जन्मो के आसुरी अवगुणों को योग अग्नि में दग्ध करने के लिए अपने प्यारे पिता की याद में अब सम्पूर्ण एकाग्रचित होकर बैठ जाती हूँ।

 

 

_ ➳  एकाग्रता की शक्ति जैसे - जैसे बढ़ने लगती है मेरा वास्तविक स्वरूप मेरे सामने पारदर्शी शीशे के समान चमकने लगता है और अपने स्वरूप का मैं आनन्द लेने में व्यस्त हो जाती हूँ। एक चमकते हुए बहुत ही सुन्दर स्टार के रूप में मैं स्वयं को देख रही हूँ। *उसमे से निकल रही रंगबिरंगी किरणें चारों और फैलते हुए बहुत ही आकर्षक लग रही हैं। उन किरणों से मेरे अंदर समाये गुण और शक्तियों के वायब्रेशन्स जैसे - जैसे मेरे चारों और फैल रहें है, एक सतरंगी प्रकाश का खूबसूरत औरा मेरे चारो और बनता जा रहा है*। प्रकाश के इस खूबसूरत औरे के अंदर मैं स्वयं को ऐसे अनुभव कर रही हूँ जैसे किसी कीमती खूबसूरत जगमगाती डिब्बी के अंदर कोई बहुमूल्य हीरा चमक रहा हो और अपनी तेज चमक से उस डिब्बी की सुंदरता को भी बढ़ा रहा हो।

 

_ ➳  सर्वगुणों औऱ सर्वशक्तियों की किरणें बिखेरते अपने इस सुन्दर स्वरूप का अनुभव करके और इसका भरपूर आनन्द लेकर अब मैं चमकती हुई चैतन्य शक्ति देह की कुटिया से निकल कर, स्वयं को कौड़ी से हीरे तुल्य बनाने वाले अपने प्यारे शिव बाबा के पास उनके धाम की ओर चल पड़ती हूँ। *प्रकाश के उसी खूबसूरत औरे के साथ मैं ज्योति बिंदु आत्मा अपनी किरणे बिखेरती हुई अब धीरे - धीरे ऊपर उड़ते हुए आकाश में पहुँच कर, उसे पार करके, सूक्ष्म वतन से होती हुई अपने परमधाम घर मे पहुँच जाती हूँ*। आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में चारों और चमकती जगमग करती मणियों के बीच मैं स्वयं को देख रही हूँ। चारों और फैला मणियो का आगार और उनके बीच मे चमक रही एक महाज्योति। ज्ञानसूर्य शिव बाबा अपनी सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे फैलाते हुए इन  चमकते हुए सितारों के बीच बहुत ही लुभावने लग रहे हैं। *उनकी सर्वशक्तियों की किरणों का तेज प्रकाश पूरे परमधाम घर मे फैल रहा है जो हम चैतन्य मणियों की चमक को कई गुणा बढ़ा रहा है*।

 

_ ➳  अपने प्यारे पिता के इस सुंदर मनमनोहक स्वरूप को देखते हुए मैं चैतन्य शक्ति धीरे - धीरे उनके नजदीक जाती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में ऐसे समा जाती हूँ जैसे एक बच्चा अपनी माँ के आंचल में समा जाता है। मेरे पिता का प्यार उनकी अथाह शक्तियों के रूप में मेरे ऊपर निरन्तर बरस रहा है। *मेरे पिता के निस्वार्थ, निष्काम प्यार का अनुभव, उनका प्यार पाने की मेरी जन्म - जन्म की प्यास को बुझाकर मुझे तृप्त कर रहा है। परमात्म प्यार से भरपूर होकर योग अग्नि में अपने विकर्मों को दग्ध करने के लिए अब मैं बाबा के बिल्कुल समीप जा रही हूँ और उनसे आ रही जवालास्वरूप शक्तियों की किरणों के नीचे बैठ, योग अग्नि में अपने पुराने आसुरी स्वभाव संस्कारों को जलाकर भस्म कर रही हूँ*। बाबा की शक्तिशाली किरणे आग की भयंकर लपटों का रूप धारण कर मेरे चारों और जल रही है, जिसमे मेरे 63 जन्मो के विकर्म विनाश हो रहें हैं और मैं आत्मा शुद्ध पवित्र बन रही हूँ।

 

_ ➳  सच्चे सोने के समान शुद्ध और स्वच्छ बनकर अपने प्यारे पिता की श्रेष्ठ मत पर चल कर, अब मैं अपने जीवन को पलटाने और श्रेष्ठ बनाने के लिए स्वयं में दैवी गुणों की धारणा करने के लिए फिर से साकार सृष्टि पर लौट आती हूँ और अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर पूज्य बनने के पुरुषार्थ में लग जाती हूँ। *अपने आदि पूज्य स्वरूप को सदा स्मृति में रखते हुए, बाबा की याद से पुराने आसुरी स्वभाव संस्कारों को दग्ध कर, नए दैवी संस्कार बनाने का पुरुषार्थ करते हुए अब मैं स्वयं का परिवर्तन बड़ी सहजता से करती जा रही हूँ*

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपनी संतुष्टता की पर्सनैलिटी द्वारा अनेकों को संतुष्ट करने वाली संतुष्टमणि हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं श्रेष्ठ कर्मधारी बन ऊंची तकदीर बनाने वाली पदमापदम भाग्यशाली आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  कोई भी बात नीचे ऊपर नहीं समझना। अच्छा है और अच्छा ही रहेगा। *बहुत अच्छा, बहुत अच्छा करते आप भी अच्छे बन जायेंगे और ड्रामा की हर सीन भी अच्छी बन जायेगी क्योंकि आपके अच्छे बनने के वायब्रेशन कैसी भी सीन हो नगेटिव को पाजिटिव में बदल देगीइतनी शक्ति आप बच्चों में है सिर्फ यूज करो।* शक्तियां बहुत हैंसमय पर यूज करके देखो तो बहुत अच्छे-अच्छे अनुभव करेंगे।

 

✺   *ड्रिल :-  "शक्तियों को समय पर यूज कर अच्छे-अच्छे अनुभव करना"*

 

 _ ➳  चारों तरफ हरियाली ही हरियाली ठंडी ठंडी हवाएं... और भीनी-भीनी प्रकृति की खुशबू के बीच... मैं आत्मा एक ऊंचे स्थान पर बैठी हुई हूं... और अपने आप को परमात्मा से मन बुद्धि से जोड़ते हुए... अपने अंदर नई शक्तियां भर रही हूं... *मैं आत्मा अनुभव कर रही हूँ... कि सीधा परमधाम से और शिव परमात्मा से शक्तिशाली किरणें मुझ पर गिर रही है... और मुझ आत्मा में समाती जा रही है... जैसे-जैसे वो किरणें मुझमें समा रही है... मुझे अनुभव हो रहा है की मुझमें अद्भुत शक्तियों का समावेश हो रहा है...* और मैं इस स्थिति को गहराई से फील करते हुए... कुछ देर इस आनंदमय स्थिति में बैठ जाती हूँ...

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा अपने आप को मास्टर सर्वशक्तिमान अवस्था में अनुभव कर रही हूं... *मुझे प्रतीत हो रहा है कि अब मेरे अंदर सभी शक्तियां समा गई है... और मैं अब हर परिस्थिति का दृढ़ता के साथ और पूरे आनंद के साथ सामना कर सकती हूं...* और इसी स्थिति की स्मृति में मैं उस खुशनुमा मनमोहक वातावरण से नई राह पर चलने लगती हूं... चलते-चलते मुझे बहुत ही थकान का अनुभव हो रहा है... और मैं साथ ही यह भी महसूस कर रही हूं... कि अभी मुझे काफी लंबा सफर तय करना है... और इस लंबे सफर पर चल़ने के लिए मुझे सहनशक्ति का उपयोग करना होगा...

 

 _ ➳  और उसी समय मैं आत्मा अपनी मन बुद्धि से संकल्प लेती हूं... कि मैं सफलता मूर्त आत्मा हूं... और इस दृढ़ संकल्प से और पॉजिटिव संकल्प से मैं अंदर ही अंदर यह तय कर लेती हूं... कि मैं फरिश्ता इस मखमली रास्ते पर अपने फूल से कदम रख रही हूं... और मैं अनुभव करती हूं कि चलते-चलते मुझे बिल्कुल भी थकान का अनुभव नहीं हो रहा... और ना ही अपने इस देह का बोझ अनुभव कर पा रही हूं... तभी मैं पीछे मुड़कर देखती हूं... तो मैं आश्चर्यचकित हो जाती हूं... मैं देखती हूं कि मैंने कुछ ही समय में इतना लंबा सफर तय कर लिया है... जिसको करने में मुझे काफी समय लग सकता था... *मैंने अपने अंदर की इस छुपी हुई शक्ति द्वारा अपनी कठिन राह को बहुत ही कोमल बना दिया है... और मैं बहुत आनंदित होती हूं... और मन ही मन अपने परम पिता को धन्यवाद कहती हूं...*

 

 _ ➳  और अब मैं आत्मा अपने अंदर परमात्मा की शक्तियों रूपी आभा अनुभव करते हुए अपनी राह पर चलने लगती हूँ... और मैं अब चलते चलते एक ऐसे स्थान पर आ जाती हूं... जहां पर कुछ आत्माएं आपस में पुरानी दुख देने वाली बातों को चिंतन कर रही हैं... और अपनी स्थिति चिंतामय बना लेती है... उनको देखकर मैं आत्मा एक स्थान पर बैठ जाती हूं... और मनन करती हूं... आज से मैं भी अपनी मजबूत अवस्था बनाऊंगी... इन आत्माओं की तरह चिंतित नहीं होऊँगी... *और मैं समाने की शक्ति को यूज करते हुए... पिछली दुख देने वाली व्यर्थ बातों को अपने अंदर समाते हुए... अपने मन बुद्धि के तार सिर्फ और सिर्फ अपने परमात्मा से जोड़ने का संकल्प लेती हूँ...*   

 

 _ ➳  और जैसे ही मैं आत्मा अपने मन ही मन यह संकल्प लेती हूं... तो मैं अनुभव करती हूं... कि मेरा चित्त एकदम शांत हो गया है... जैसे मन रूपी समन्दर में लहरों के समान हजारों सवाल उमड़े थे... मानो उन सवालों की उठती हुई लहरें... एकदम समंदर में समा गई हो... और समंदर एकदम शांत हो गया हो... और ऐसे ही मैं अपने परमात्मा द्वारा दी हुई हर शक्तियों का सही समय पर उपयोग करते हुए पहुंच जाती हूं अपने बाबा के कमरे में और अपनी रूहानी दृष्टि से और संकल्पों के द्वारा मन-ही-मन बाबा को धन्यवाद कह रही हूँ... और *अब अपने पुरुषार्थ को परमात्मा द्वारा दी हुई शक्तियों और पॉजिटिव संकल्पों से और भी तीव्र कर देती हूं...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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