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 01 / 04 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सदा स्वयं को सुख की शैया पर सोया हुआ अनुभव किया ?*

 

➢➢ *दुःख के वायुमंडल के बीच भी कमल समान होकर रहे ?*

 

➢➢ *कोई आर्टिफीशियल आकर्षण व नकली रूप के पीछे तो आकर्षित नहीं हुए ?*

 

➢➢ *स्वयं की चेकिंग करना तो नहीं भूले ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  अभ्यास की प्रयोगशाला में बैठ, योग का प्रयोग करो तो एक बाप का सहारा और माया के अनेक प्रकार के विघ्नों का किनारा अनुभव करेंगे। *अभी ज्ञान के सागर, गुणों के सागर, शक्तियों के सागर में ऊपर-ऊपर की लहरों में लहराते हो इसलिए अल्पकाल की रिफ्रेशमेंट अनुभव करते हो। लेकिन अब सागर के तले में जाओ तो अनेक प्रकार के विचित्र अनुभव कर रत्न प्राप्त करेंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं विघ्न-विनाशक अचल-अड़ोल आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने को अचल अडोल आत्मायें अनुभव करते हो? किसी भी प्रकार की हलचल अचल अडोल स्थिति में विघ्न नहीं डाले। ऐसी विघ्न-विनाशक अचल अडोल आत्मायें बने हो। विघ्न-विनाशक आत्मायें हर विघ्न को ऐसे पार करती जैसे विघ्न नहीं - एक खेल है। तो खेल करने में सदा मजा आता है ना। कोई परिस्थिति को पार करना और खेल करना अन्तर होगा ना। *अगर विघ्न-विनाशक आत्मायें हैं तो परिस्थिति खेल अनुभव होती है। पहाड़ राई के समान अनुभव होता है। ऐसे विघ्न-विनाशक हो, घबराने वाले तो नहीं।*

 

  नालेजफुल आत्मायें पहले से ही जानती हैं कि यह सब तो आना ही है, होना ही है। जब पहले से पता होता है तो कोई बात-बड़ी बात नहीं लगती। अचानक कुछ होता है तो छोटी बात भी बडी लगती। पहले से पता होता तो बडी बात भी छोटी लगती। *आप सब नालेजफुल हो ना। वैसे तो नालेजफुल हो लेकिन जब परिस्थितियों का समय होता है उस समय नालेजफुल की स्थिति भूले नहीं, अनेक बार किया हुआ अब सिर्फ रिपीट कर रहे हो। जब नथिंग न्यु है तो सब सहज है।*

 

  आप सब किले की पक्की ईटें हो। एक-एक ईट का बहुत महत्व है। एक भी ईट हिलती तो सारी दिवार को हिला देती। *तो आप ईट अचल हो, कोई कितना भी हिलाने की कोशिश करे लेकिन हिलाने वाला हिल जाए आप न हिलें।  ऐसी अचल आत्माओंको, विघ्न विनाशक आत्माओंको बापदादा रोज मुबारक देते हैं।* ऐसे बच्चे ही बाप की मुबारक के अधिकारी हैं। ऐसे अचल अडोल बच्चों को बाप और सारा परिवार देखकर हर्षित होता है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  अपरोक्ष रीति से वतन का अनुभव बताया। अपरोक्ष रूप से कितना समय वतन में साथ रहते हो? जैसे इस वक्त जिसके साथ स्नेह होता है, वह कहां विदेश में भी है तो उनका मन ज्यादा उस तरफ रहता है। जिस देश में वह होता है उस देश का वासी अपने को समझते हैं। *वैसे ही तुमको अब सूक्ष्मवतनवासी बनना है*।

  

✧  सूक्ष्मवतन को स्थूलवतन में इमर्ज करते हो वा खुद को सूक्ष्मवतन में साथ समझते हो? क्या अनुभव है? *सूक्ष्मवतनवासी बाप को यहाँ इमर्ज करते हो वा अपने को भी सूक्ष्मवतनवासी बनाकर साथ रहते हो*? बापदादा तो यही समझते हैं कि स्थूलवतन में रहते भी सूक्ष्मवतनवासी बन जाते, यहाँ भी जो बुलाते हो यह भी सूक्ष्मवतन के वातावरण में ही सूक्ष्म से सर्वीस ले सकते हो। अव्यक्त स्थिती में स्थित होकर मदद ले सकते हो। व्यक्त रूप में अव्यक्त मदद मिल सकती है।

     

✧  *अभी ज्यादा समय अपने को फरिश्ते ही समझो*। फरिश्तों की दुनिया में रहने से बहुत ही हल्कापन अनुभव होगा जैसे कि सूक्ष्म वतन को ही स्थूलवतन में बसा दिया है। स्थूल और सूक्ष्म में अन्तर नहीं रहेगा। तब सम्पूर्ण स्थिती में भी अन्तर नहीं रहेगा। यह व्यक्त देश जैसे अव्यक्त देश बन जायेगा। सम्पूर्णता के समीप आ जायेगे।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *ऐसे समझें अन्त तक पहले पाठ के अभ्यासी रहेंगे?* अन्त तक अभ्यासी हो रहेंगे व स्वरूप भी बनेंगे? *अन्त के कितना समय पहले ये अभ्यास समाप्त होगा और स्वरूप बन जायेंगे? जब तक शरीर छोड़ेंगे तब तक अभ्यासी रहेंगे?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ब्राह्मणों का संसार बेगमपुर"*

 

 _ ➳  *वो गमों की गलियाँ, बिखरते रिश्तों के चबूतरें मुफ़लिसी में गुज़रती जिन्दगी*,मगर, फिर!.... *हथेली पर बहिश्त ले वो आये घर मेरे*... और देखते ही देखते मुझ आत्मा की गमों की ये दुनिया बेगमपुरी में बदल गयी... *बेगमपुर के बादशाह सर्व सम्बन्धों की सुखमयी सौगात और सर्व शक्तियों का खजाना लेकर आये, सुख स्वरूप और सर्वप्राप्ति स्वरूप, मैं संगमयुगी ब्राह्मण आत्मा, संगम युगी सुख शैय्या की सदा सदा की अनुभवी मूर्त बन रही हूँ*... और मेरे सामने बैठे है बेगमपुर के बादशाह... *सभी अविनाशी संबंधों के सूत्रधार, बाप, सदगुरू, शिक्षक और मेरे भाग्यविधाता...*

 

  *मुझ आत्मा को सुखों की नगरी के बादशाह बनाने वाले, वो सुख के सागर बापदादा, मुझ आत्मा से बोले:-* "संगम पर इस बेगमपुरी के सुखों की अनुभवी बन औरों को भी अनुभवी बनाने वाली, मेरी सुख स्वरूप बच्ची... कभी संकल्पों में भी दुख की लहर तो अनुभव नही करती? *बेगमपुर के बादशाह सदा सुख की शैय्या पर, सुखमय संसार में स्वयं को अनुभव करती हो? कभी मर्यादाओं की लकीर से बाहर आकर सीता के समान शोकवाटिका में तो नही पहुँच जाती?...*

 

 _ ➳  *संसार के सुखों से न्यारी और बापदादा की प्यारी मैं आत्मा, खुद को श्रीमत की सुनहरी मर्यादा रूपी कवच में सहेजने वाले बापदादा से बोली:-* "मीठे बाबा... सर्व गुणों का, सर्व शक्तियों, सर्व सम्बन्धों का खजाना पाकर मैं आत्मा सर्व प्राप्ति स्वरूप बन गयी हूँ... *अविनाशी सुखों का हर सम्बन्ध आपसे हो गया है अब... दुख की स्मृतियों से तो पूर्ण विस्मृति हो गयी है बाबा*!.. ज्ञानधन से भरपूर मेरी बुद्धि अब हर संकल्प को साक्षी हो देखती है... *संकल्प ही संकल्प का पहरेदार हो गया है... महादानी बन दान करती हूँ तो भी खजानों का अखुट भंडार हो गया है...*

 

  *आप समान बनाकर श्रेष्ठ भाग्य से संवारने वाले बापदादा मुझ लवलीन आत्मा से बोलें:-* "मीठी बच्ची... जैसे बाप समान आप आत्मा योग लगाने वाली नही *सदा लवलीन आत्मा बनी हो..  कदम कदम पर बापदादा के इशारों पर आगे चलने वाली हो, आगे बच्ची और पीछे पीछे बाप!... ऐसे अपनी महानताओं से इस संगठन को भी विशेष बनाओं खुद विशेष मनकों की माला बन बापदादा के गले की शोभा बनी, वैसे ही हर आत्मा को बापदादा के करीब लाओं, गमों से लहरों से मुक्त कर अब सबको नम्बर वार इस बेगमपुरी का बादशाह बनाओं...*

  

 _ ➳  *अपने श्रेष्ठ कर्मों से बापदादा का नाम बाला करने वाली मैं आत्मा बापदादा की उम्मीदों का ताज पहन इठलाती हुई बापदादा से बोलीं:-* "प्यारे बाबा... सदा उडती कला में रहने वाली ये ब्राह्मण आत्माए सदा विजयी बन विजय का झंडा लहरा रही है*... लगाव की हर रस्सी से स्वयं को मुक्त कर ये आत्माए पावन प्रेम की छाया में सिमटी चली आ रही है... *कही गाॅडली यूथ ग्रुप तो कहीं शक्ति स्वरूप ये ब्रह्मचारिणी ग्रुप*... संसार से दुखों की परछाई मिटाता हुआ संसार की सभी आत्माओं को सुखों की अनुभूति करा रहा है बाबा!... *वो देखों वो विशेष मणकों को समूह हर तरफ झिलमिला रहा है...*

 

  *लौकिक वृत्ति दृष्टि का परिवर्तन कर अलौकिकता का अनुभव कराने वाले, अज्ञान के अन्धेरों में भटकती मुझ आत्मा को ज्ञानी तू आत्मा बनाने वाले बापदादा बोले:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... चन्द्रमा की चांदनी सबको प्रिय लगती है ऐसे ज्ञान की रोशनी देने वाली बनो... *ज्ञान चन्द्रमा समान बन जैसे स्वयं के भाग्य का सितारा चमका है, ऐसे ही सदा औरों के भाग्य का सितारा चमकाओ... देह से भी बेगर आप बच्ची आप समान बेगर से प्रिन्स बनाओं...*

 

 _ ➳ *सतगुरु की कृपा वर्सै के रूप में पा निहाल हुई, मैं आत्मा सच्चे सच्चे सतगुरू की कृपा को गहराई से अनुभव कर वृक्षपति बाप से बोली:-* "बाबा... मुझ आत्मा को भिखारी से अधिकारी, और गमों से बेगमपुर में, लाकर आपने जिन सुखों से नवाजा है... उन प्राप्तियों के रिटर्न में मैं आत्मा अब हर संकल्प से जुटी हूँ... मांगने से छुडा, आपने दाता बना दिया... *अब मैं आत्मा स्वाँसो स्वाँस जो पाया वहीं लुटा रही हूँ... जो भूली बिसरी रह गयी, आप समान उनको भी बना रही हूँ*... और *मुस्कुराते हुए बेगमपुर के बादशाह मुझ मास्टर बेगमपुर आत्मा को गले लगा रहे है*...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- स्वयं को सदा सुख की शैया पर सोया हुआ अनुभव करना*"

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों को स्मृति में लाकर, अपने सर्व प्राप्ति सम्पन्न स्वरूप का अनुभव करते हुए, सुख के सागर अपने प्यारे पिता को मैं याद करती हूँ जिन्होंने मुझे ब्रह्मा मुख से एडॉप्ट कर अपना बच्चा बनाकर, सुख के अपरमअपार ख़ज़ानों से भरपूर कर दिया। *अपने सुख सागर शिव पिता के सुख की किरणों की छत्रछाया के नीचे मै हर पल ऐसे अनुभव करती हूँ जैसे हर गम, हर दुख से आजाद होकर मैं सुख की शैय्या पर विश्राम कर रही हूँ*। ऐसे अपने पिता के सानिध्य में मिलने वाले अथाह सुख को याद करते - करते, मन मे उनसे मिलने की तड़प पैदा हो उठती है और मैं आत्मा देह की दुनिया से किनारा कर, अशरीरी बन चल पड़ती हूँ अपने पिता परमात्मा के पास ले जाने वाली एक अति सुखदायी आंतरिक यात्रा पर।

 

_ ➳  अंतर्मुखता की गुफा में बैठ, मन बुद्धि के विमान पर सवार होकर, इस अति न्यारी और प्यारी रूहानी यात्रा पर अब मैं धीरे - धीरे आगे बढ़ती हूँ। *उस सुख के मधुर अहसास का, जो सुख के सागर मेरे पिता के पास जाकर मुझे मिलता है उसका आनन्द लेते - लेते मैं आकाश को पार कर, उससे ऊपर पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन और सूक्ष्म वतन को भी क्रॉस कर अपनी रूहानी यात्रा को आगे बढ़ाते हुए अपने पिता के पास उनके निर्वाण धाम घर मे प्रवेश करती हूँ*। वाणी से परे की यह दुनिया जहाँ ना कोई देह का बन्धन है और ना देह से जुड़ी किसी भी बात का कोई गम या दुख है। यहां तक कि देह से जुड़ा कोई संकल्प भी नही।

 

_ ➳  आत्माओं की यह निराकारी दुनिया जहाँ केवल आत्माओं का अपने पिता परमात्मा के साथ जुड़ा सच्चा सुखद स्नेही सम्बन्ध है। *ऐसे सुखद सम्बन्ध का अनुभव करने के लिए मैं आत्मा अब अपने प्यारे पिता के साथ स्नेह मंगल मिलन मनाने के लिए उनके पास पहुँचती हूँ*। सुख के सागर अपने शिव पिता की सुख की अनन्त किरणो को चारों ओर बिखरते हुए मैं देख रही हूँ। उनकी एक - एक किरण को निहारते हुए मैं धीरे - धीरे उनके बिल्कुल समीप पहुँच जाती हूँ और उनकी सुख की किरणो की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ।

 

_ ➳  अपने प्यारे मीठे शिव परम पिता परमात्मा के सानिध्य में बैठ मैं आत्मा अब उनसे आ रही सर्वशक्तियों को स्वयं में समाहित कर रही हूँ। *उनसे आ रही सर्वशक्तियों की असीम किरणे मुझ आत्मा पर ऐसे पड़ रही हैं जैसे सुख का कोई झरना मुझ आत्मा के ऊपर बह रहा है और मैं असीम सुख से भरपूर होती जा रही हूँ*। असीम सुख की अनुभूति करके, स्वयं को सर्वशक्तियों से सम्पन्न करके मैं आत्मा परमधाम से नीचे आती हूँ। सूक्ष्म वतन से होती हुई वापिस आकाश से नीचे साकार लोक में मैं आत्मा प्रवेश करती हूँ और इस साकार सृष्टि पर फिर से अपना पार्ट बजाने के लिए अपने शरीर रूपी रथ पर विराजमान हो जाती हूँ।

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, सुख के सागर अपने शिव पिता की छत्रछाया के नीचे स्वयं को सदा अनुभव करते हुए अब मैं हर पल गहन सुख की अनुभूति करती हूँ। *हर दुख, हर गम से अंजान, बेगमपुर का बादशाह बन मैं स्वयं को सदैव एक अद्भुत सुखमय संसार में महसूस करती हूँ जहाँ दुख का नाम निशान भी नही*। मुझ ब्राह्मण आत्मा के खजाने में अप्राप्त कोई वस्तु नही। सर्व प्राप्ति स्वरूप होने के कारण, सुख के साधन - सम्पति और सम्बन्ध से मैं सम्पन्न हूँ। *बाप के साथ अविनाशी सर्व सम्बन्ध और सर्व सम्पति के श्रेष्ठ खजाने, ज्ञान धन से स्वयं को सदा भरपूर अनुभव करते हुए मैं स्वयं को सदा सुख के संसार का बादशाह समझते हुए अपरमअपार खुशी से भरपूर रहती हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं लौकिक वृत्ति दृष्टि का परिवर्तन कर अलौकिकता का अनुभव करने वाली ज्ञानी तू आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपने श्रेष्ठ कर्म से विश्व पिता का नाम बाला करने वाली विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  आजकल के लोग एक तरफ स्व प्राप्ति के लिए इच्छुक भी हैं, लेकिन हिम्मतहीन हैं। हिम्मत नहीं है। सुनने चाहते भी हैं, लेकिन बनने की हिम्मत नहीं है। ऐसी आत्माओं को परिवर्तन करने के लिए पहले तो आत्माओं को हिम्मत के पँख लगाओ। हिम्मत के पँख के आधार है अनुभव। अनुभव कराओ। *अनुभव ऐसी चीज है, जरा सी अंचली मिलने के बाद अनुभव किया तो अनुभव के पँख कहो, या अनुभव के पाँव कहो उससे हिम्मत में आगे बढ़ सकेंगे।* इसके लिए विशेष इस वर्ष निरन्तर अखण्ड महादानी बनना पड़े, अखण्ड। मन्सा द्वारा शक्ति स्वरूप बनाओ। महादानी बन मन्सा द्वारा, वायब्रेशन द्वारा निरन्तर शक्तियों का अनुभव कराओ। वाचा द्वारा ज्ञान दान दो, कर्म द्वारा गुणों का दान दो। *सारा दिन चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे कर्म तीनों द्वारा अखण्ड महादानी बनो। समय प्रमाण अभी दानी नहीं, कभी-कभी दान किया, नहीं, अखण्ड दानी क्योंकि आत्माओं को आवश्यकता है।*

 

✺   *ड्रिल :-  "आत्माओं को हिम्मत के पँख लगाने का अनुभव"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा कितनी सौभाग्यशाली हूँ जो स्वयं भगवान ने मुझे ढूंढ लिया और सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान दे मुझे भटकने से बचा लिया... बाबा के दिये ज्ञान को बुद्धि में बिठा मैं आत्मा अपने जीवन को परिवर्तित कर रही हूँ... बाबा से योग लगा कर उनकी सर्व शक्तियों को स्वयं में भरकर अपने विकारों को दूर कर रही हूँ... *एक ओर जहां विश्व की अन्य आत्मायें ईश्वर को पाने के लिए भटक रही हैं और व्रत तप उपवास तीर्थ यात्रायें कर रही हैं वहीं मैं आत्मा हर रोज़ आपसे मिलन मना रही हूँ...* मेरे बाबा से मिले प्यार को और उनके परिचय को अब मुझे सभी आत्माओ को देना है... मैं आत्मा अपने प्राण प्यारे बाबा को याद कर रही हूँ और देह के बंधन से मुक्त होकर ऊपर की ओर उड़ जाती हूँ... फरिश्ता बन कर सूक्ष्म वतन में प्रवेश करती हूँ...

 

 _ ➳  सूक्ष्म वतन में ब्रह्मा बाबा के सम्मुख आकर ठहरती हूँ... *बाबा से निकलते सफेद प्रकाश से सारा सूक्ष्म वतन चांदनी सा जगमगा रहा है...* बाबा की ये शीतल किरणें मुझ पर पड़ने से मैं भी चमक उठी हूँ... मैं बड़े से प्यार से बाबा से दृष्टि ले रही हूँ और देखती हूँ कि ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में शिव बाबा प्रवेश करते हैं... *शिवबाबा के प्रवेश करने से ब्रह्मा बाबा दिव्य तेज से आलोकित होने लगते हैं...* और बापदादा की ये अत्यन्त ही पॉवरफुल किरणें मुझ फरिश्ते में भी समाने लगती हैं... मैं बापदादा के प्रेम में डूबती जा रही हूँ और उनके स्नेह को स्वयं में समाकर इस सृष्टि का चक्र लगाने नीचे की ओर आ रही हूँ...

 

 _ ➳  नीचे की ओर उतरते हुए मैं विश्व के ग्लोब पर आकर बैठ गई हूँ... और विश्व की समस्त आत्माओ को देख रही हूँ... मैं देखती हूँ कि कई आत्मायें जिन्होंने बाबा का ज्ञान भी सुना है और स्वयं को परिवर्तन भी करना चाहती हैं परंतु आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाती... स्वप्राप्ति की इच्छा रखती हैं पर हिम्मत की कमी से आगे नहीं बढ़ पा रही हैं... *ऐसी सभी आत्माओ को मैं शक्तिशाली वाइब्रेशन दे रही हूँ जिससे ये आत्मायें हिम्मतवान बन अपनी कमी कमज़ोरियों को दूर कर रही हैं और स्वयं को परिवर्तित कर रही हैं...*

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा साकार लोक में वापस आती हूँ और अपनी देह में फरिश्ते रूप से प्रवेश कर रही हूं... मैं आत्मा स्वयं को बेहद शक्तिशाली महसूस कर रही हूँ... मैं आत्मा अन्य आत्माओ के सम्पर्क में आती हूँ तो *मेरे चेहरे की मुस्कान और मीठे स्वभाव से आत्मायें महसूस करती हैं कि इन्हें ज़रूर कुछ मिल गया है जो ये इतने परिवर्तित हो गए हैं...* और मेरे साथ उनका ये अनुभव उन्हें भी परिवर्तित होने में मदद कर रहा है... मुझ आत्मा को देख कर उनमे भी हिम्मत आती है कि वे भी स्व को परिवर्तन कर सकती हैं... *मैं अपने अनुभव से उन्हें भी उमंग उत्साह के पंख देकर उनको आगे बढ़ाने के निमित बन रही हूँ...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा अपने सर्व ओर की आत्माओ को निरंतर पॉवरफुल वाइब्रेशन दे रही हूँ... सभी आत्मायें इन वाइब्रेशन को कैच करती हैं और स्वयं में शक्तियों को अनुभव कर रही हैं... *मैं आत्मा कभी उनको मन्सा द्वारा शक्तियों का अनुभव करा रही हूँ तो कभी वाणी से उन्हें ज्ञान देकर उनके मन को शक्तिशाली बना रही हूँ...* कभी कर्म द्वारा उन्हें गुणों का दान दे रही हूँ... अपने प्यारे बाबा की संतान मैं आत्मा मन्सा वाचा कर्मणा गुणों और शक्तियों का दान अपने सभी भाई बहनों को देकर उन्हें भी हिम्मत के पंख दे आगे बढ़ाती जा रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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