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 16 / 08 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *देह सहित देह के सब धर्मों को बुधी से भूलने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *दैवीगु धारण करने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *ज्ञान का रमणीकता से सिमरन कर आगे बड़ते रहे ?*

 

➢➢ *हर नस में सेवा के उमंग उत्साह का खूब भरा रहा ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  डबल लाइट अर्थात् संस्कार स्वभाव का भी बोझ नहीं, व्यर्थ संकल्प का भी बोझ नहीं-इसको कहा जाता है हल्का। जितने हल्के होंगे उतना सहज उड़ती कला का अनुभव करेंगे। *अगर योग में जरा भी मेहनत करनी पड़ती है तो जरूर कोई बोझ है। तो बाबा-बाबा का आधार ले उड़ते रहो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं सहजयोगी हूँ"*

 

〰✧  सदा अपने को सहज योगी अनुभव करते हो? कितनी भी परिस्थितियां मुश्किल अनुभव कराने वाली हों लेकिन मुश्किल को भी सहज करने वाले सहजयोगी हैं-ऐसे हो या मुश्किल के समय मुश्किल का अनुभव होता है? सदा सहज है? *मुश्किल होने का कारण है बाप का साथ छोड़ देते हो। जब अकेले बन जाते हो तो कमजोर पड़ जाते हो और कमजोर को तो सहज बात भी मुश्किल लगती है। इसलिये बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि सदा कम्बाइन्ड रूप में रहो। कम्बाइन्ड को कोई अलग नहीं कर सकता।* जैसे इस समय आत्मा और शरीर कम्बाइन्ड है ऐसे बाप और आप कम्बाइन्ड रहो। मातायें क्या समझती हो? कम्बाइन्ड हो या कभी अलग, कभी कम्बाइन्ड? ऐसा साथ फिर कभी मिलना है? फिर क्यों साथ छोड़ देती हो? काम ही क्या दिया है?

 

✧  सिर्फ यह याद रखो कि 'मेरा बाबा'। इससे सहज काम क्या होगा? मुश्किल है? (63 जन्मों का संस्कार है) अभी तो नया जन्म हो गया ना। नया जन्म, नये संस्कार। अभी पुराने जन्म में हो या नये जन्म में? या आधा-आधा है? तो नये जन्म में स्मृति के संस्कार हैं या विस्मृति के? फिर नये को छोड़कर पुराने में क्यों जाते हो? नई चीज अच्छी लगती है या पुरानी चीज अच्छी लगती है? फिर पुराने में क्यों चले जाते हो? *रोज अमृतवेले स्वयं को ब्राह्मण जीवन के स्मृति का तिलक लगाओ। जैसे भक्त लोग तिलक जरूर लगाते हैं तो आप स्मृति का तिलक लगाओ। वैसे भी देखो मातायें जो तिलक लगाती है वो साथ का तिलक लगाती हैं।*

 

✧  *तो सदा स्मृति रखो कि हम कम्बाइन्ड हैं तो इस साथ का तिलक सदा लगाओ। अगर युगल होगा तो तिलक लगायेंगे, अगर युगल नहीं होगा तो तिलक नहीं लगायेंगे। यह साथ का तिलक है। तो रोज स्मृति का तिलक लगाती हो या भूल जाता है? कभी लगाना भूल जाता, कभी मिट जाता! जो सुहाग होता है, साथ होता है वह कभी भूलता नहीं। तो साथी को सदा साथ रखो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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आज विश्व रचयिता बाप अपने मास्टर रचयिता बच्चों को देख रहे हैं। मास्टर रचयिता अपने रचना-पन की स्मृति में कहाँ तक स्थित रहते हैं। *आप सभी रचयिता की विशेष पहली रचना यह देह है।* इस देह रूपी रचना के रचयिता कहाँ तक बने हैं? देह रूपी रचना कभी अपने तरफ रचयिता को आकर्षित कर रचना-पन विस्मृत तो नहीं करा देती है? मालिक बन इस रचना को सेवा में लगाते रहते? जब चाहें जो चाहें मालिक बन करा सकते हैं? पहले-पहले *इस देह के मालिक-पन का अभ्यास ही प्रकृति का मालिक वा विश्व का मालिक बना सकता है।* अगर देह के मालिक-पन में सम्पूर्ण सफलता नहीं तो विश्व के मालिक-पन में भी सम्पन्न नहीं बन सकते हैं। *वर्तमान समय की यह जीवन - भविष्य का दर्पण है। इसी दर्पण द्वारा स्वयं का भविष्य स्पष्ट देख सकते हो।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ कर्मातीत स्थिति वाला देह के मालिक होने के कारण कर्मभोग होते हुए भी न्यारा बनने का अभ्यासी है। बीच-बीच में अशरीरी-स्थिति का अनुभव बिमारी से परे कर देता है। *जैसे साइन्स के साधन द्वारा बेहोश कर देते हैं तो दर्द होते भी भूल जाते हैं, दर्द फील नहीं करते हैं क्योंकि दवाई का नशा होता है। तो कमतिीत अवस्था वाले अशरीरी बनने के अभ्यासी होने कारण बीच-बीच में यह रूहानी इन्जेक्शन लग जाता है। इस कारण सूली से कांटा अनुभव होता है।* और बात-फालो फादर होने के कारण विशेष आज्ञाकारी बनने का प्रत्यक्ष फल बाप से विशेष दिल की दुआयें प्राप्त होती हैं। *एक अपना अशरीरी बनने का अभ्यास दूसरा आज्ञाकारी बनने का प्रत्यक्षफल बाप की दुआयें, वह बीमारी अर्थात् कर्मभोग को सूली से कांटा बना देती है।* कर्मातीत श्रेष्ठ आत्मा कर्मभोग को, कर्मयोग की स्थिति में परिवर्तन कर देगी।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- देही-अभिमानी बन बाप की याद में रहना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा स्वयं को बाबा की कुटिया में बैठा हुआ अनुभव कर रही हूं...    बाबा की मीठी मीठी यादों में खोई में आत्मा पहुंच जाती हूं परमधाम और बाबा को स्पर्श करती हूं... स्पर्श करते ही एक दिव्य अलौकिक प्रकाश मुझ आत्मा में भर जाता है और मैं आत्मा बहुत शक्तिशाली अनुभव करने लगती हूँ... शक्तिओं से भरपूर होकर मैं आत्मा स्वयं को नीचे उतरता हुआ देख रही हूं... वतन में पहुंच कर बापदादा को अपने सामने देख रही हूं... बाबा बाहें फैलाये सम्मुख खड़े हैं और मैं आत्मा नन्हा फ़रिश्ता बन बाबा की बाहों में समा जाती हूँ...*

 

  *बाबा मुझ आत्मा को अपनी बाहों में लेकर बहुत प्यार से बोले:-* "मेरे सिकीलधे बच्चे.... अब देही अभिमानी बनों बाप आये हैं तुम्हें राजयोग सिखाने, राजयोगी बन बाप से पूरा पूरा वर्सा लेने का पुरुषार्थ करो... *तुम्हें अपने पुरुषार्थ के बल से ही सूर्यवंशी घराने में आना है और बाप से विश्व की बादशाही लेनी है... मेरी आँखों के नूर मैं आया हूँ तुम्हें इस नरक से निकाल अपने साथ ले जाने इसलिए बाप की श्रीमत पर चल अब सम्पूर्ण पवित्र बनो...*"

 

 _ ➳  *बाबा के वाक्यों को अपने हृदय में समाते हुए मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मुझे पवित्रता का वरदान देकर मेरे इस खाली जीवन को आपने खुशिओं से भर दिया है... मैं आत्मा देही अभिमानी बन संपूर्ण सुखों से भरपूर हो गयी हूँ... आप मेरे गाईड बनें और मेरे जीवन को नया रास्ता मिल गया है... *मैं आत्मा आपके बताए रास्ते पर चलकर कितनी महान बनती जा रही हूं , सुख के सागर को पाकर मैं आत्मा धन्य हो गयी हूँ... पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बन गयी हूँ...*"

 

  *बाबा मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... बाप आये हैं तुम्हें बहुत बहुत मीठा बनाने, माया ने तुम्हें खाली कर दिया है बाप आये हैं फिर से तुम्हें ज्ञान के खजाने से मालामाल करने... *अपने को देही समझ एक बाप से योग लगाओ योग से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और तुम नई दुनिया के मालिक बन जायेंगे... मेरा तो एक बाबा दूसरा न कोई इस पाठ को पक्का करो, बाप की श्रीमत पर चलकर ही तुम राज्य के अधिकारी बनते हो... बाप से पूरा वर्सा लेने के लिए निरंतर बाप की याद में रहो...*"

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा की प्रेमभरी वाणी को स्वयं में धारण करते हुए बाबा से कहती हूँ:-* "हां मेरे दिलाराम बाबा... आपकी श्रीमत पाकर मुझ आत्मा के जीवन में नई उमंग और नया उत्साह भर गया है... मैं आत्मा कितनी सौभाग्यशाली हूँ जिसको परमात्मा की पालना मिली है ये सोचते ही मेरे रोम रोम में खुशी और उल्लास की लहर सी दौड़ जाती है... *नाजाने कब से अंजान रास्तों पर चली जा रही थी अपने जीवन की मंजिल का कुछ पता न था आपने आकर मुझ आत्मा को मेरी मंजिल बताकर मुझे भटकने से बचा लिया... आपको पाकर अब और कुछ भी पाना बाकी नही रह गया...*"

 

  *बाबा मुझ आत्मा का ज्ञान श्रृंगार करते हुए मधुर वाणी में बोले:-* "मीठे बच्चे... ज्ञान से ही योग की धारणा होगी इसलिए पढ़ाई कभी मिस नही करनी... बाप से रोज़ पढ़ना है और स्वयं में ज्ञान धारण कर औरों को भी कराने की सेवा करनी है... *बाप रोज़ परमधाम से तुम्हें पढ़ाने आते हैं इस स्मृति में रहना है, निश्चय बुद्धि बनना है , कभी भी संशय में नही आना है... संगदोष में आकर पढ़ाई को कभी नही छोड़ना, ऐसा कोई काम नही करना जिससे बाप की अवज्ञा हो...*"

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा के महावाक्यों का रसपान करते हुए बाबा से बोली:-* "मेरे प्राणों से प्यारे बाबा... आपने मेरे जीवन को दिव्यता और सुख की अलौकिक चांदनी से चमचमा दिया है... जीवन की प्यास को अपने ज्ञानामृत से बुझा दिया और *मुझ आत्मा की बुद्धि का ताला खोलकर मुझे ज्ञानवान बना दिया...* मैं आत्मा स्वयं को बहुत हल्का अनुभव कर रही हूं... मेरे जन्मों जन्मों की जो खाद आत्मा में पड़ी हुई है उसे योग अग्नि से भस्म करती जा रही हूं... *बाबा आपने वरदानों से मेरा श्रृंगार करके मुझे और भी अलौकिक बना दिया है... आपने मेरे जीवन को ज्ञान और परमात्म प्रेम से भर दिया है आपका कितना भी शुक्रिया करूँ कम ही लगता है... मैं आत्मा बाबा को दिल की गहराइयों से शक्रिया कर अपने साकारी तन में लौट आती हूं...*"

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- चित्र को भूल विचित्र बन विचित्र बाप को याद करना है*"

 

_ ➳  इस शरीर रूपी चित्र में भृकुटि के भव्यभाल पर विराजमान मैं मस्तकमणि विचित्र आत्मा हूँ यह समृति में लाकर मैं जैसे ही अपने विचित्र देही स्वरूप में स्थित होने का प्रयास करती हूँ, मैं स्पष्ट अनुभव करती हूँ जैसे देह रूपी चित्र का भान समाप्त होने लगा है और मैं अपने उस सत्य विचित्र स्वरूप में टिकने लगी हूँ जो देह रूपी चित्र के अन्दर छुपी हुई थी। *इन स्थूल आंखों से अपने उस विचित्र स्वरूप को ना देख पाने के कारण आज दिन तक देह रूपी चित्र को ही मैं सच माने बैठी थी और इसलिए अपने वास्तविक विचित्र स्वरूप से अनजान मैं आत्मा अपने विचित्र बाप को भी भूल गई थी*। इसी विस्मृति ने मेरी सुख शांति छीन मुझे दुखी और अशांत बना दिया था।

 

_ ➳  शुक्रिया मेरे विचित्र बाप का जिन्होंने आकर देह रूपी चित्र में छुपे मेरे सत्य विचित्र स्वरूप का और अपने सत्य स्वरूप का मुझे यथार्थ परिचय देकर, मेरे ही अंदर समाये गुणों और शक्तियों से मुझे अवगत कराकर, हर दुख, हर पीड़ा से मुझे मुक्त होने का अति सहज रास्ता बता दिया। *मन ही मन अपने प्यारे पिता का शुक्रिया अदा करके अब मैं अपने देह रूपी चित्र को भूल अपने अति सूक्ष्म निराकारी ज्योति बिंदु विचित्र स्वरूप में स्थित होकर अपने विचित्र बाबा की याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र कर लेती हूँ*। सेकण्ड में देह और देह की नश्वर दुनिया से किनारा कर अपने मूल स्वरूप में मैं स्थित हो जाती हूँ और अपने विचित्र स्वरूप का आनन्द लेने में मग्न हो जाती हूँ।

 

_ ➳  सातों गुणों और अष्ट शक्तियों से सम्पन्न मेरे विचित्र स्वरूप का अनुभव मुझे गहन सन्तुष्टता का अनुभव करवा रहा है। जिस सुख शान्ति और आनन्द को पाने के लिए मैं बाह्यमुखता में भटक रही थी वो सुख शान्ति तो मेरे अपने ही अंदर रची बसी हुई है जिसे महसूस करने का सत्य ज्ञान आज पाकर मैं धन्य - धन्य हो गई हूँ। *अब जब चाहे अपने विचित्र स्वरूप में स्थित होकर मैं सेकण्ड में सुख शांति प्राप्त कर सकती हूँ। यही संकल्प करते - करते अपने विचित्र स्वरूप की गहन अनुभूति करने के लिए अब मैं अंतर्मुखता की गुफा में पहुँच जाती हूँ* जहाँ मैं स्वयं को साकारी देह से अलग एक चमकते हुए चैतन्य सितारे के रूप में देख रही हूँ और हर चीज से स्वयं को उपराम अनुभव कर रही हूँ।

 

_ ➳  इस उपराम स्थिति में स्थित हो कर धीरे - धीरे अब मैं ऊपर की ओर जा रही है। आकाश को पार करके, सूक्ष्म लोक से परें, एक ऐसी दुनिया में मैं पहुँच गई हूँ जहाँ मैं अपने चारों तरफ अपने ही समान जगमग करते हुए चैतन्य सितारों को देख रही हैं। *देह और देह से जुड़ी कोई भी वस्तु इस निराकारी दुनिया में नही है। एक अति सुखद साक्षी स्थिति में स्थित होकर मैं ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसे देह से मैं संकल्प मात्र भी अटैच नही हूँ*। देह से डिटैच होने का यह अनुभव बहुत ही न्यारा और प्यारा है।

 

_ ➳  एक दिव्य अलौकिक सुखमय स्थिति का अनुभव करते हुए निर्संकल्प हो कर अब मैं अपने सामने उपस्थित अपने विचित्र बाप को निहार रही हूँ। उन्हें देखने का यह सुख असीम आनन्द देने वाला है। *अपने विचित्र पिता को निहारते - निहारते अब मैं उनके बिल्कुल समीप पहुँच गई हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ स्वयं को उनकी शक्तियों से भरपूर कर रही हूँ*। मेरे विचित्र पिता से आ रही शक्तियों की किरणों की मीठी - मीठी फुहारे मुझे असीम बल प्रदान कर रही हैं । सर्वशक्तियों से मैं सम्पन्न होती जा रही हूँ ।

 

_ ➳  अपने सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं लौट आती हूँ वापिस साकारी दुनिया में । नीचे आ कर अपने पांच तत्वों के बने शरीर में मैं प्रवेश करती हूँ, इस स्मृति के साथ कि मैं विचित्र हूँ और अपने विचित्र बाप की सेवा अर्थ मैंने इस शरीर रूपी चित्र का आधार लिया है। *यह स्मृति देह में रहते भी देह से मुझे न्यारा और प्यारा अनुभव करवाती है। चित्र और विचित्र दोनों को अलग - अलग देखते हुए, चित्र को भूल, विचित्र बन, विचित्र बाप की याद में रह, अनेक दिव्य अलौकिक अनुभूतियों का आनन्द अपने ब्राह्मण जीवन में मैं हर पल ले रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं ज्ञान को रमणीकता से सिमरण कर आगे बढ़ने वाली सदा हर्षित, खुशनसीब      आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं हर नस अर्थात संकल्प में सेवा के उमंग उत्साह का खून भरने वाली सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  *सबसे सहज है कि पहले स्वयं को झमेले मुक्त करो। दूसरे के पीछे नहीं पड़ो।* ये स्टूडेन्ट ऐसा हैये साथी ऐसा हैये सरकमस्टांश ऐसे हैं- उसको नहीं देखो लेकिन अपने को झमेला मुक्त करो।

➳ _ ➳  जहाँ झमेला हो वहाँ अपने मन को, बुद्धि को किनारे कर लो। आप सोचते हो-ये झमेला पूरा होगा तो बहुत अच्छा हो जायेगा, हमारी सेवा भी अच्छीहमारी अवस्था भी अच्छी हो जायेगी। लेकिन झमेले पहाड़ के समान हैं। *क्या पहाड़ से माथा टकराना हैपहाड़ हटेगा क्यास्वयं किनारा कर लो या उड़ती कला से झमेले के पहाड़ के भी ऊपर चले जाओ।* तो पहाड़ भी आपको एकदम सहज अनुभव होगा।

➳ _ ➳  मुझे बनना है। अमृतवेले से ये स्वयं से संकल्प करो कि मुझे झमेला मुक्त बनना है। बाकी तो है ही झमेलों की दुनियाझमेले तो आयेंगे ही। आपकी दुनिया आपका सेवाकेन्द्र है तो आपकी दुनिया ही वो हैतो वहाँ ही आयेंगे ना। आप पेपर देने के लिए अमेरिका, लण्डन जायेंगी क्या? सेन्टर पर ही देंगी ना! *तो झमेला नहीं आवे- यह नहीं सोचो। झमेला मुक्त बनना है-ये सोचो।*

✺   *ड्रिल :-  "झमेला मुक्त बनना"*

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपनी शांत स्वरूप स्थिति में मीठे बाबा की यादों में खोई हुई हूं... तभी मुझे बाबा के यह महावाक्य स्मृति में आते हैं कि *"जैसे विश्व ड्रामा को मैं साक्षी होकर देखता हूं वैसे ही तुम भी देखो"...* यह स्मृति आते ही मेरे मानस पटल पर विश्व ड्रामा  के सीन उभरने लगते हैं... सहज रुप से एक के बाद एक सीन आता है और चला जाता है... *मैं आत्मा पूर्णत: डिटैच होकर हर सीन को देख रही हूं...*

➳ _ ➳  *इस साक्षी स्थिति में मैं क्या, क्यों के सभी प्रश्नों से मुक्त हूँ... प्रसन्नचित्त अवस्था में हूँ... मेरा मानस अब शांत होता जा रहा है...* इस सुखदाई, आनंदमई स्थिति में मैं अपने प्यारे शिव बाबा को अपने सामने देख रही हूं... बाबा से अनंत शक्तियां मुझ आत्मा में समाती जा रही हैं... मुझ आत्मा के आसुरी अवगुण नष्ट होते जा रहे हैं...

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा स्वयं को सभी विकारों और विकृतियों की मैल से मुक्त देख रही हूं... *मैं परदर्शन और परचिंतन की धूल से मुक्त होती जा रही हूं... सभी प्रकार के झमेलों से स्वयं को न्यारा करती जा रही हूं...* मुझ आत्मा में स्वचिंतन और परमात्म चिंतन की लगन बढ़ती जा रही है... स्वदर्शन चक्र फ़िराते हुए माया के बंधनों से मैं मुक्त होती जा रही हूं...

➳ _ ➳  मैं आत्मा अब उड़ती कला का अनुभव कर रही हूं... *परिस्थितियों रूपी पहाड़ों से टकराने में अपना समय गंवाने की बजाय स्वयं को मोल्ड, स्वयं को परिवर्तित करती जा रही हूं...* कोई बदले फिर मैं बदलू ऐसे झमेलों से मुक्त होकर एक बाबा की लगन में मगन होती जा रही हूं...

➳ _ ➳  सेवा केंद्र हो या कार्यक्षेत्र जो भी बातें आती हैं, विघ्न आते हैं... उन सभी विघ्नों को मैं एक बाबा की याद में रहकर पार करती जा रही हूं... हर पेपर को बाबा की याद में रह क्रॉस करती जा रही हूं... परिस्थितियां तो आनी ही है... *विघ्न ना आए इस व्यर्थ चिंतन में समय को नष्ट ना कर मैं आत्मा अपने को सर्व झमेलों से मुक्त करती जा रही हूं...* बाबा की शक्तियों और गुणों से मैं स्वयं को संपन्न अनुभव कर रही हूं...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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