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❍ 13 / 06 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *माया के तूफानों में हिले तो नहीं ?*
➢➢ *सदा हर्षित रहे ?*
➢➢ *कंबाइंड रूपधारी बन सेवा में खुदाई जादू का अनुभव किया ?*
➢➢ *कमल आसनधारी बनकर कर्मयोगी अवस्था का अनुभव किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *आप बच्चों के पास पवित्रता की जो महान शक्ति है, यह श्रेष्ठ शक्ति ही अग्नि का काम करती है जो सेकण्ड में विश्व के किचड़े को भस्म कर सकती है।* जब आत्मा पवित्रता की सम्पूर्ण स्थिति में स्थित होती है तो उस स्थिति के श्रेष्ठ संकल्प से लगन की अग्नि प्रज्वलित होती है और किचड़ा भस्म हो जाता है, *वास्तव में यही योग ज्वाला है। अभी आप बच्चे अपनी इस श्रेष्ठ शक्ति को कार्य में लगाओ।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बैलेन्स द्वारा ब्लैसिंग प्राप्त करने वाली सफलता स्वरूप आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा बाप की ब्लैसिंग स्वत: ही प्राप्त होती रहे - उसकी विधि क्या है? ब्लैसिंग प्राप्त करने के लिए हर समय, हर कर्म में बैलेन्स रखो। जिस समय कर्म और योग दोनों का बैलन्स होता है तो क्या अनुभव होता है? ब्लैसिंग मिलती है ना। *ऐसे ही याद और सेवा दोनों का बैलेन्स है तो सेवा में सफलता की ब्लैसिंग मिलती है। अगर याद साधारण है और सेवा बहुत करते हैं तो ब्लैसिंग कम होने से सफलता कम मिलती है। तो हर समय अपने कर्म-योग का बैलेन्स चेक करो।*
〰✧ दुनिया वाले तो यह समझते हैं कि कर्म ही सब कुछ है लेकिन बापदादा कहते हैं कि कर्म अलग नहीं, कर्म और योग दोनों साथ-साथ ह्रैं। ऐसे कर्मयोगी कैसा भी कर्म होगा उसमें सहज सफलता प्राप्त करेंगे। चाहे स्थूल कर्म करते हो, चाहे अलौकिक करते हो। *क्योंकि योग का अर्थ ही है मन-बुद्धि की एकाग्रता। तो जहाँ एकाग्रता होगी वहाँ कार्य की सफलता बंधी हुई है। अगर मन और बुद्धि एकाग्र नहीं हैं अर्थात् कर्म में योग नहीं है तो कर्म करने में मेहनत भी ज्यादा, समय भी ज्यादा और सफलता बहुत कम।*
〰✧ कर्मयोगी आत्मा को सर्व प्रकार की मदद स्वत: ही बाप द्वारा मिलती है। ऐसे कभी नहीं सोचो कि इस काम में बहुत बिजी थे इसलिए योग भूल गया। ऐसे टाइम पर ही योग आवश्यक है। अगर कोई बीमार कहे कि बीमारी बहुत बड़ी है इसीलिए दवाई नहीं ले सकता तो क्या कहेंगे? बीमारी के समय दवाई चाहिए ना। तो जब कर्म में ऐसे बिजी हो, मुश्किल काम हो उस समय योग, मुश्किल कर्म को सहज करेगा। तो ऐसे नहीं सोचना कि यह काम पूरा करेंगे फिर योग लगायेंगे। *कर्म के साथ-साथ योग को सदा साथ रखो। दिन-प्रतिदन समस्यायें, सरकमस्टांश और टाइट होने हैं, ऐसे समय पर कर्म और योग का बैलेन्स नहीं होगा तो बुद्धि जजमेन्ट ठीक नहीं कर सकती। इसलिए योग और कर्म के बैलेन्स द्वारा अपनी निर्णय शक्ति को बढ़ाओ।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ वर्तमान समय का पुरुषार्थ क्या है? सुनना, सुनाना चलता रहता, *अभी अनुभवी बनना है।* अनुभवी का प्रभाव ज्यादा होता। वही बात अनुभवी सुनावे और वही बात सुनी हुई सुनावे तो अन्तर पड़ेगा ना? लोग भी अभी अनुभव करना चाहते। योग शिविर में विशेष अनुभव क्यों करते?
〰✧ क्योंकि *अनुभवी बनने का साधन है - सुनाने के साथ अनुभव कराया जाता है।* इससे रिज़ल्ट अच्छी निकलती है। जब आत्माएँ अनुभव चाहती है तो आप भी अनुभवी बनकर अनुभव कराओ। अनुभव कैसे हो? उसके लिए कौन - सा साधन अपनाना है? जैसे कोई इन्वेन्टर वह कोई भी इनवेन्शन निकालने के लिए बिल्कुल एकान्त में रहते है।
〰✧ तो यहाँ की एकान्त अर्थात् एक के अन्त में खोना है, तो *बाहर के आकर्षण से एकान्त चाहिए।* ऐसे नहीं सिर्फ कमरे में बैठने की एकान्त चाहिए, लेकिन मन एकान्त हो। *मन की एकाग्रता अर्थात् एक की याद में रहना,* एकाग्र होना यही एकान्त है। एकान्त में जाकर इन्वेन्शन निकालते है न। चारों ओर के वायब्रेशन से परे चले जाते तो यहाँ भी स्वयं को आकर्षण से परे जाना पड़े।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ ऐसे ही साक्षी दृष्टा बन कर्म *करने से कोई भी कर्म के बन्धन में कर्मबन्धनी आत्मा नहीं बनेंगे। कर्म का फल श्रेष्ठ होने के कारण कर्म सम्बन्ध में आवेंगे, बन्धन में नहीं।* सदा कर्म करते हुए भी न्यारे और बाप के प्यारे अनुभव करेंगे ऐसी न्यारी और प्यारी आत्मायें अभी भी अनेक आत्माओं के सामने दृष्टान्त अर्थात् एक्जैम्पुल बनते हैं- *जिसको देखकर अनेक आत्मायें स्वयं भी कर्मयोगी बन जाती हैं और भविष्य में भी पूज्यनीय बन जाती हैं।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- प्राण आधार आया है दुखों की पीड़ा से छुड़ाकर, स्वर्ग का वर्सा देने"*
➳ _ ➳ *‘ओ प्राणधन.. ओ प्राणधन.. ओ प्राणधन.. ओ प्राणधन.. तुझसे लागे रे लागे रे लागे रे लगन.. ओ प्राणधन.. ओ प्राणधन.. इस लगन से मेरा मन हो गया मगन.. संवर के जीवन, मेरा तन-मन, तेरी यादों में पाए सुख सघन’... सेण्टर में ये मधुर गीत सुनती हुई मैं आत्मा भाव-विभोर हो जाती हूँ...* और उड़ चलती हूँ वतन में.. मेरे जीवन को संवारने वाले, मेरी बिगड़ी बनाने वाले, दुखों से छुड़ाने वाले, मेरे प्राण आधार- मेरे प्यारे बाबा के पास... बाबा मुस्कुराते हुए, वरदानों की बरसात करते हुए अपने मीठे बोल से मेरा श्रृंगार करते हैं...
❉ *इस दुःख के लोक से निकाल सुख के धाम में ले जाते हुए मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... *अपने ही खुशनुमा फूलो को दुखो की तपिश से कुम्हलाया देख विश्व पिता भला कैसे चैन पाये... बच्चों को दुखो से निकालने को आतुर सा धरा पर दौड़ा चला आये...* अपनी गोद में बिठाकर दिव्य गुणो से सजाये और सच्चे सुखो से दामन भर जाये... तब ही पिता दिल आराम सा पाये...”
➳ _ ➳ *पल-पल प्रभु को याद कर स्नेह सुमन अपने प्रभु को अर्पण करती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा तो दुखो भरे जीवन की आदी हो गई थी... और उन्हें ही अपनी नियति समझ बैठी थी... *आपने प्यारे बाबा जीवन में आकर खुशियो के फूल खिलाये है... दिव्य गुणो से सजाकर मुझे देवतुल्य बना रहे हो...”*
❉ *मीठी यादों के उडनखटोले में बिठाकर खुशियों के गगन में उड़ाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... इस दुखधाम से निकल कर मीठे सुखो के अधिकारी बन जाओ... ईश्वरीय ज्ञान और यादो से विकारो से मुक्त हो जाओ... *पवित्र धाम में चलने के लिए पवित्रता के श्रृंगार से सजकर मुस्कराओ... ईश्वरीय याद और प्यार से निर्मलता को रोम रोम में छ्लकाओ...”*
➳ _ ➳ *कल्याणकारी संगमयुग में आकर सबका कल्याण कर स्वर्ग का वर्सा देने वाले बाबा से मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा आपकी मीठी यादो में सम्पूर्ण पवित्रता से सजधज कर मुस्करा उठी हूँ... जीवन कितना पवित्र प्यारा सा अलौकिक हो गया है...* मीठे बाबा आपने मुझे देह के मटमैलेपन से मुक्त करवाकर सुंदर सजीला बना दिया है...”
❉ *मेरा प्रीतम बाबा मुझ प्रीतमा को स्वर्ग की महारानी बनाने के लिए श्रृंगार करते हुए कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वरीय बाँहों में सुखो की बहारो को पाओ... असीम सुखो की जागीर ईश्वरीय खजानो और यादो में पाकर देवताओ के श्रृंगार से सजकर मीठा सा मुस्कराओ... *मीठा बाबा अपने बच्चों को फिर से खुशियो में खिलाने आया है तो पवित्र बनकर ईश्वरीय दिल पर छा जाओ...”*
➳ _ ➳ *देह की दुनिया से ऊपर पवित्र धाम की ओर उडान भरते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा देहभान की धूल में धूमिल सी थी... आज आत्मिक स्वरूप में दमक रही हूँ... *प्यारे बाबा आपने मुझे कमल समान पवित्र जीवन की धरोहर देकर आलिशान सुखो की मालकिन सा सजाया है... कौड़ी जीवन को हीरे सा चमकाया है...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- कभी भी कुल कलंकित नही बनना है*
➳ _ ➳ अपने प्यारे बापदादा की आशाओं को पूरा करने की मन ही मन स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा करते हुए मैं अपने सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों को स्मृति में लाती हूँ और अपने ऊँचे ब्राह्मण कुल के बारे में विचार करती हूँ कि कितना महान और ऊँचा कुल हैं मेरा, जिसे स्वयं भगवान ने अपने मुख कमल से रचा है। *वो ब्राह्मण कुल जिसे लौकिक रीति से भी आज दिन तक सम्माननीय माना जाता है। आज भी हर शुभ कार्य ब्राह्मण के हाथों सम्पन्न करवाया जाता है*। वास्तव में ये गायन, ये पूजन हम ब्राह्मण बच्चो के श्रेष्ठ कर्मो का ही तो यादगार है जो आज भी भक्ति मार्ग में ब्राह्मण कुल को सर्वश्रेष्ठ कुल मान कर ब्राह्मण को देवता का दर्जा दिया जाता है। *कितनी महान भाग्यवान हूँ मै आत्मा जो भगवान द्वारा रचे सबसे ऊँचे ब्राह्मण कुल का मैं हिस्सा हूँ*।
➳ _ ➳ अपने इस ऊँच ब्राह्मण कुल की मर्यादा को सदा बनाये रखना मेरा परम कर्तव्य है, मन ही मन स्वयं से मैं प्रतिज्ञा करती हूँ कि अपने इस ऊँच ब्राह्मण कुल को सदा स्मृति में रखते हुए मैं हर कर्म ऊँचा और श्रेष्ठ ही करूँगी। *कभी भी कुल कलंकित बनने वाला कोई कर्म मैं नही करुँगी। इसी दृढ़ प्रतिज्ञा और दृढ़ संकल्प के साथ अपने सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अपने ऊँच ब्राह्मण कुल के जन्मदाता अपने प्यारे पिता का दिल से शुक्रिया अदा करके, मन को सुकून देने वाली उनकी मीठी याद में मैं अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करती हूँ* और कुछ ही पलों में नश्वर देह के भान से मुक्त एक अति न्यारी और प्यारी अशरीरी स्थिति में स्थित हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ हर बन्धन से मुक्त यह अति प्यारी अवस्था एक विचित्र हल्केपन का मुझे अनुभव करवा रही है। धरती का आकर्षण पीछे छूटता जा रहा है और कोई चुम्बकीय शक्ति मुझे ऊपर खींच रही है। *ऐसा लग रहा है जैसे मुझ आत्मा को पंख मिल गए है और मैं आत्मा उड़ रही हूँ। अपने सामने आने वाली हर वस्तु को साक्षी भाव से देखते हुए मैं इस उन्मुक्त उड़ान का भरपूर आनन्द ले रही हूँ और धीरे - धीरे उड़ती हुई ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ*। विशाल अंतहीन नीलगगन की सैर करते हुए इस नीलगगन के उस पार, फरिश्तो की दुनिया से ऊपर उस विशाल ब्रह्म तत्व में मैं प्रवेश करती हूँ जो मुझ आत्मा का घर है। *उस मूल वतन घर में जहाँ मेरे पिता रहते हैं वहाँ मैं आत्मा अब स्वयं को देख रही हूँ*।
➳ _ ➳ शांति की एक ऐसी दुनिया जहाँ कोई आवाज नही, कोई संकल्प नही बस एक बेआवाज चुपी ही चारों और छाई हुई है। ऐसे अपने इस शांति धाम घर में आकर उस गहन शांति का मैं अनुभव कर रही हूँ जिस शांति की तलाश में मैं अनेकों जन्मों से भटक रही थी। *यहाँ चारों और फैले शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन मुझे डीप साइलेन्स का विचित्र अनुभव करवा रहें हैं। इस डीप साइलेन्स में एक ऐसे सुख का मै अनुभव कर रही हूँ जिसका वर्णन नही किया जा सकता। गहन शांति की यह सुखमय अनुभूति एक अद्भुत शक्ति का मेरे अंदर संचार कर रही है*।
➳ _ ➳ साइलेन्स की इस अनोखी शक्ति को स्वयं में भरकर अब मैं अपने प्यारे पिता के समीप पहुँचती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ स्वयं को उनकी शक्तियों से भरपूर करके वापिस साकार लोक में लौट आती हूँ। अपने साकार शरीर रूपी रथ का आधार लेकर मैं अब फिर से सृष्टि पर अपना पार्ट बजा रही हूँ। *"मैं सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण कुलभूषण आत्मा हूँ" इस श्रेष्ठ स्वमान को सदा स्मृति में रखते हुए अब मैं हर कर्म अपने जीवनदाता प्यारे शिव पिता की श्रीमत अनुसार कर रही हूँ*। इस बात का मैं विशेष ध्यान रखती हूँ कि अनजाने में भी मुझ से कभी कोई ऐसा कर्म ना हो जिससे मेरे इस ऊँच ब्राह्मण कुल को कलंक लगे। *बाबा की शिक्षाओं को सदा स्मृति में रखते हुए, अपने ऊँच ब्राह्मण कुल के नशे में रहते हुए अपने हर कर्म को श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाने और अपने कुल का नाम सदा ऊँचा रखने का ही पुरुषार्थ अब मैं कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं कंबाइंड रूपधारी बन सेवा में खुदाई जादू का अनुभव करने वाली खुदाई खिदमतगार आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं कमल आसनधारी (न्यारे और प्यारे) बनकर कर्मयोगी बनने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *दूसरा है विनाशी स्नेह और प्राप्ति के आधार पर वा अल्पकाल के लिए सहारा
बनने के कारण लगाव वा झुकाव। यह भी लौकिक, अलौकिक दोनों सम्बन्ध में बुद्धि को
अपनी तरफ खींचता है।* जैसे लौकिक में देह के सम्बन्धियों द्वारा स्नेह मिलता
है, सहारा मिलता है,प्राप्ति होती है तो उस तरफ विशेष मोह जाता है ना। उस मोह
को काटने के लिए पुरूषार्थ करते हो, लक्ष्य रखते हो कि किसी भी तरफ बुद्धि न
जाए। लौकिक को छोड़ने के बाद अलौकिक सम्बन्ध में भी यही सब बातें बुद्धि को
आकर्षित करती हैं। अर्थात् बुद्धि का झुकाव अपनी तरफ सहज कर लेती हैं। यह भी
देहधारी के ही सम्बन्ध हैं। *जब कोई समस्या जीवन में आयेगी, दिल में कोई उलझन
की बात होगी तो न चाहते भी अल्पकाल के सहारे देने वाले वा अल्पकाल की प्राप्ति
कराने वाले,लगाव वाली आत्मा ही याद आयेगी। बाप याद नहीं आयेगा।*
➳ _ ➳ फिर से ऐसे लगाव लगाने वाली आत्मायें अपने आपको बचाने के लिए वा अपने को
राइट सिद्ध करने के लिए क्या सोचती और बोलती हैं कि बाप तो निराकार और आकार है
ना! साकार में कुछ चाहिए जरूर। *लेकिन यह भूल जाती हैं अगर एक बाप से सर्व
प्राप्ति का सम्बन्ध, सर्व सम्बन्धों का अनुभव और सदा सहारे दाता का अटल
विश्वास है, निश्चय है तो बापदादा निराकार या आकार होते भी स्नेह के बन्धन में
बाँधे हुए हैं। साकार रूप की भासना देते हैं।* अनुभव न होने का कारण? नॉलेज
द्वारा यह समझा है कि सर्व सम्बन्ध एक बाप से रखने हैं लेकिन जीवन में सर्व
सम्बन्धों को नहीं लाया है। इसलिए साक्षात् सर्व सम्बन्ध की अनुभूति नहीं कर
पाते हैं। जब भक्ति मार्ग में भक्त माला की शिरोमणी मीरा को भी साक्षात्कार नहीं
लेकिन साक्षात् अनुभव हुआ तो क्या ज्ञान सागर के डायरेक्ट ज्ञान स्वरूप बच्चों
को साकार रूप में सर्व प्राप्ति के आधार मूर्त, सदा सहारे दाता बाप का अनुभव नहीं
हो सकता! तो फिर सर्वशक्तिवान को छोड़ यथा शक्ति आत्माओं को सहारा क्यों बनाते
हो!
✺ *"ड्रिल :- सर्वशक्तिवान को छोड़ यथा शक्ति आत्माओं को अपना सहारा नहीं बनाना*”
➳ _ ➳ *“मेरे परमपिता परमात्मा सदाशिव निराकार, ओ आनन्द के सागर तेरी महिमा
अपरम्पार... तेरी महिमा अपरम्पार"... मैं आत्मा परमात्म प्यार में मगन होकर ये
गीत गाती हुई झुला झूल रही हूँ...* याद करते ही बापदादा मुस्कुराते हुए मेरे
बाजू में झूले में बैठ जाते हैं... मैं आत्मा तुरंत बाबा की गोदी में बैठ जाती
हूँ... बाबा की गोदी के झूले में अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ बाबा की गोदी में मैं आत्मा कितना सुख, शांति का अनुभव कर रही हूँ...
कितना आराम, कितना सुकून मिल रहा है... बाबा के प्यार में, स्नेह में मैं आत्मा
डूबती जा रही हूँ... बाबा साकार रूप की भासना दे रहे हैं... *मैं आत्मा एक बाबा
से सर्व सम्बन्धों का अनुभव कर रही हूँ... बाबा ही मेरे मात-पिता, शिक्षक,
सतगुरु, साथी, साजन हैं...* बाबा से सर्व प्राप्तियों का अनुभव हो रहा है...
➳ _ ➳ *बाबा के अविनाशी स्नेह में मुझ आत्मा का विनाशी संबंधो का स्नेह खत्म हो
रहा है... मुझ आत्मा से लौकिक, अलौकिक दोनों संबंधो में आकर्षण मिट रहा है...*
ज्ञान सागर से प्राप्त ज्ञान को पाकर मैं आत्मा ज्ञान स्वरुप बन गई हूँ... मुझ
आत्मा की बुद्धि अब देहधारियों के मोह में नहीं पड़ रही हैं... अब एक बाबा का
प्यार ही मुझ आत्मा की बुद्धि को अपनी तरफ खींचता है... मैं आत्मा मन-बुद्धि से
पूरी तरह बाबा को समर्पित हो चुकी हूँ... अब बाबा ही मेरा संसार है, सर्वस्व
है...
➳ _ ➳ अब कोई भी समस्या जीवन में आये या दिल में कोई उलझन की बात हो तो मैं
आत्मा अल्पकाल के लिए सहारा देने वाले देहधारियों को याद नहीं करती हूँ... एक
बाबा को ही याद करती हूँ... बाबा से ही अपने दिल की हर बात को शेयर करती हूँ...
*अल्पकाल सहारा देने वाले आत्माओं को छोड़ एक सर्वशक्तिवान बाबा को ही दिल से
अपना सहारा बनाती हूँ... मैं आत्मा बाबा में अटल विश्वास, सम्पूर्ण निश्चय रख
हर परिस्थिति में बाबा की मदद का अनुभव कर रही हूँ...* बड़ी से बड़ी परिस्थिति को
भी सहज ही पार कर रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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