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 07 / 11 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *देह को भोल्लने का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *अच्छी रीति पढाई पड़कर स्वयं को तकदीरवान बनाया ?*

 

➢➢ *दिव्य गुणों के आह्वान द्वारा सर्व अवगुणों की आहुति दी ?*

 

➢➢ *स्मृति की ज्योति सदा जगी हुई रही ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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〰✧  बुद्धि रुपी पांव पृथ्वी पर न रहें। *जैसे कहावत है कि फरिश्तों के पांव पृथ्वी पर नहीं होते। ऐसे बुद्धि इस देह रुपी पृथ्वी अर्थात् प्रकृति की आकर्षण से परे रहे।* प्रकृति को अधीन करने वाले बनो न कि अधीन होने वाले।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं बाप की याद की छत्रछाया में रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने को बाप की याद की छत्रछाया में रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा अनुभव करते हो? *छत्रछाया ही सेफ्टी का साधन है।*

 

  *इस छत्रछाया से संकल्प में भी अगर पावं बाहर निकलाते हो तो क्या होगा? रावण उठाकर ले जायेगा और शोक वाटिका में बिठा देगा। तो वहाँ तो जाना नहीं है।*

 

  *सदा बाप की छत्रछाया में रहने वाली, बाप की स्नेही आत्मा हूँ - इसी अनुभव में रहो। इसी अनुभव से सदा शक्तिशाली बन आगे बढ़ते रहेंगे।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  जब आप सभी का टाइटल है मास्टर सर्व शक्तिवान, तो जैसा टाइटल है वैसा ही कर्म होना चाहिए ना *है मास्टर और शक्ति समय पर काम में नहीं आये - तो कमजोर कहेंगे या मास्टर कहेंगे?*

 

✧  तो सदा चेक करो और फिर चेन्ज (परिवर्तन) करो - कौन कौन-सी शक्ति समय पर कार्य में लग सकती है और कौन-सी शक्ति समय पर धोखा देती है? *अगर सर्व शक्तियाँ अपने ऑर्डर पर नहीं चलती तो क्या विश्व राज्य अधिकारी बनेंगे?*

 

✧  *विश्व राज्य अधिकारी वही बन सकता है जिसमें कन्ट्रोलिंग पॉवर, रूलिंग पॉवर हो।* पहले स्व पर राज्य, फिर विश्व पर राज्य स्वराज्य अधिकारी जब चाहे, जैसे

चाहे वैसे कन्ट्रोल कर सकते हैं। (पार्टियों के साथ)

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧   फ़रिशतो को फ़र्श की कभी आकर्षण नहीं होती है। अभी-अभी आया और गया। कार्य समाप्त हुआ फिर ठहरते नहीं। *आप लोगों ने भी कार्य के लिए व्यक्त का आधार लिया, कार्य समाप्त किया फिर अव्यक्त एक सेकेण्ड में। यह प्रैक्टिस हो जाये फिर फ़रिश्ते कहलायेंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  बाप को याद कर बुद्धि का ताला खोलना"*

 

_ ➳  मीठे बाबा की मधुर यादो में खोयी खोयी मै आत्मा...मधुबन में मीठे बाबा की झोपडी में... मन बुद्धि से उड़ कर पहुंचती हूँ... *प्यारे बाबा बाहें फैलाये, मुझे प्यार करने को आतुर है... उनकी मखमली गोद में जाकर, मै आत्मा बैठ जाती हूँ.*.. और फूलो सा विश्राम पाती हूँ... मीठे बाबा मुझ आत्मा के सर पर... अपना वरदानी हाथ फेरते है...और असीम शक्तियो से भर देते है...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी मीठी यादो में डुबोते हुए कहते है :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *प्रकृति के शांत और सुगन्धित माहौल में... सवेरे सवेरे उठकर, मीठे बाबा की यादो में गहरे डूब जाओ.*.. यह मीठी यादे ही सुखो का आधार बन, सतयुगी दुनिया में ले जाएँगी... *इन मीठी यादो से ही पत्थर बुद्धि से... पारस बुद्धि बन, अनन्त सुखो के अधिकारी बनोगे..."*

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा के अमूल्य रत्नों को बुद्धि झोली में भरते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा सवेरे सवेरे आपकी मीठी यादो में डूबकर, अनन्त खजानो की मालिक बन रही हूँ... *आपकी यादो में, देहभान में किये विकर्मो को भस्म कर...पुनः पावनता से सज संवर रही हूँ... पवित्र बुद्धि की मालिक बन रही हूँ..."*

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा को पावनता के गहरे राज समझाते हुए कहते है :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *अमृतवेले उठकर मीठे बाबा को बड़े प्यार से, दिल से याद करो..*. मीठे बाबा से मीठी मीठी बाते करो... ईश्वरीय शक्तियो से स्वयं को भरपूर करो... *और देह के भान में पतित हो गयी बुद्धि को यादो में पावन बनाकर... देवताई सुखो के मालिक बनो...*

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा के प्यार में गहरे डूबकर कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... *आपकी यादो की खुशबु ने मेरे जीवन का कायाकल्प किया है...* दिव्यता और गुणो से सजाकर, आपने मुझ आत्मा को दिव्य और प्यारा बना दिया है... *पावनता के रंग में रंगकर... देवताई सुंदरता से भर दिया है.*.."

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा को ईश्वरीय याद के जादु को समझाते हुए कहते है :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *सवेरे के यादो भरे पलो में, दिल की गहराइयो से, मीठे बाबा की याद कर प्यार की जादूगरी को देखो..*. यह यादे कितना खूबसुरत बनाकर, अथाह सुखो का अधिकार दिलायेगी... *पतित बुद्धि को पावन बनाकर... असीम आनन्द का खजाना दिलायेगी..."*

 

_ ➳  मै आत्मा अपने पयरे बाबा को रोम रोम से सुक्रिया करते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा...मनुष्यो की यादो में जीवन दुखो का जंगल बन गया था...और मै आत्मा, उसमे गहरे उलझ... पत्थर बुद्धि बन गयी... *आपने अपनी यादो की गोद में बिठाकर मुझे खुशियो से भर दिया है... मेरी विकारी बुद्धि को अपनी यादो में पुनः पवित्र कर दिया है...* मीठे बाबा से मीठी रुह रिहान कर मै आत्मा... स्थूल वतन लौट आयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अच्छी रीति पढ़ाई पढ़ कर स्वयं को बख्तावर ( तकदीरवान ) बनाना है*"

 

_ ➳  आज के इस तमोप्रधान माहौल में तमोप्रधान बन चुकी हर चीज को और इस तमोप्रधान दुनिया को फिर से सतोप्रधान बनाने के लिए ही भगवान इस धरा पर आयें है और इस श्रेष्ठ कर्तव्य को सम्पन्न करने के लिए तथा सभी आत्माओं की बुद्धि को स्वच्छ, सतोप्रधान  बनाने के लिए परमपिता परमात्मा स्वयं परमशिक्षक बन जीवन को परिवर्तन करने वाली पढ़ाई हर रोज हमे पढ़ा रहें हैं। *तो कितनी महान सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो गॉडली स्टूडेंट बन भगवान से पढ़ रही हूँ। मन ही मन अपने भाग्य की सराहना करते, मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि अपने परमशिक्षक भगवान बाप द्वारा मिलने वाले ज्ञान को अच्छी रीति बुद्धि में धारण कर, अपनी बुद्धि को सतोप्रधान बनाने का मैं पूरा पुरुषार्थ करूँगी*।

 

_ ➳  अपने परमशिक्षक शिव बाबा द्वारा मिलने वाले ज्ञान के अखुट खजानों को बुद्धि में धारण कर बुद्धि को स्वच्छ और पावन बनाने के लिए अब मैं अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ और अपने बाबा द्वारा मुरली के माध्यम से हर रोज मिलने वाले मधुर महावाक्यों पर विचार सागर मंथन करने बैठ जाती हूँ। *एकांत में बैठ मुरली की गुह्य प्वाइंट्स पर विचार सागर मन्थन करते हुए मैं महसूस करती हूँ कि जितना इस पढ़ाई पर मैं मन्थन कर रही हूँ मेरी बुद्धि उतनी ही खुल रही है और इस पढ़ाई को जीवन मे धारण करना बिल्कुल सहज लगने लगा है*। नर से नारायण और नारी से लक्ष्मी बनाने वाली ये पढ़ाई ही परिवर्तन का आधार है जिसे मैं अपने जीवन मे स्पष्ट महसूस कर रही हूँ। *जैसे - जैसे इस पढ़ाई को मैं अपने जीवन मे धारण करती जा रही हूँ वैसे - वैसे मेरी बुद्धि सतोप्रधान बनती जा रही है*।

 

_ ➳  इस ईश्वरीय पढ़ाई से अपने जीवन मे आये परिवर्तन के बारे में विचार कर मन ही मन हर्षित होते हुए अपने परमशिक्षक शिव बाबा का मैं दिल से कोटि - कोटि शुक्रिया अदा करती हूँ और उनकी मीठी याद में खो जाती हूँ *जो मुझे सेकण्ड में अशरीरी स्थिति में स्थित कर देती है और मन बुद्धि के विमान पर बिठा कर मुझे मधुबन की उस पावन धरनी पर ले जाती है जहाँ भगवान स्वयं परमशिक्षक बन साकार में बच्चों को आकर ईश्वरीय पढ़ाई पढ़ाते हैं*।

 

_ ➳  देख रही हूँ मैं स्वयं को अपने गॉडली स्टूडेंट ब्राह्मण स्वरूप में डायमंड हाल में, जहाँ भगवान अपने साकार रथ पर विराजमान होकर मधुर महावाक्य उच्चारण कर रहें हैं। *एकटक अपने परमशिक्षक भगवान बाप को निहारते हुए उनके मुख कमल से निकलने वाले अनमोल ज्ञान को सुनकर उसे बुद्धि में धारण करके मैं वापिस लौट आती हूँ और इस पढ़ाई से अपनी बुद्धि को सतोप्रधान बनाने वाले अपने परमशिक्षक निराकार शिव बाबा से उनके ही समान बन उनसे मिलने मनाने की इच्छा से अब अपने मन और बुद्धि को सब बातों से हटाकर मन बुद्धि को पूरी तरह एकाग्र कर लेती हूँ*। एकाग्रता की शक्ति धीरे - धीरे देह भान से मुक्त कर, मेरे निराकारी सत्य स्वरूप में मुझे स्थित कर देती है और अपने सत्य स्वरूप में स्थित होते ही स्वयं को मैं देह से पूरी तरह अलग विदेही आत्मा महसूस करने लगती हूँ।

 

_ ➳  देह के भान से मुक्त होकर अपने प्वाइंट ऑफ लाइट स्वरूप में स्थित होकर मैं बड़ी आसानी से अपने शरीर रूपी रथ को छोड़ उससे बाहर आ जाती हूँ और हर बन्धन से मुक्त एक अद्भुत हल्केपन का अनुभव करते हुए, देह और देह की दुनिया से किनारा कर ऊपर आकाश की ओर उड़ जाती हूँ। *मन बुद्धि से दुनिया के खूबसूरत नजारो को देखती, अपनी यात्रा पर चलते हुए, मैं आकाश को पार कर, उससे ऊपर सूक्ष्म वतन से परें आत्माओं की उस खूबसूरत निराकारी दुनिया मे प्रवेश करती हूँ जहाँ मेरे शिव पिता रहते हैं*।

 

_ ➳  अपने इस शान्तिधाम, निर्वाणधाम घर मे आकर, गहन शांति की अनुभूति करते हुए इस अंतहीन ब्रह्मांड में विचरण करते - करते मैं पहुँच गई हूँ अपने प्यारे पिता के समीप जो अपनी सर्वशक्तियो की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरा आह्वान कर रहें हैं। *अपने पिता परमात्मा के प्रेम की प्यासी मैं आत्मा स्वयं को तृप्त करने के लिए अपने पिता के पास पहुँच  कर उनकी किरणों रूपी बाहों में समा जाती हूँ। अपनी किरणों रूपी बाहों में मुझे भरकर मेरे मीठे दिलाराम बाबा अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटा रहें हैं*। अपने अंदर निहित गुणों और  शक्तियों को जिन्हें मैं देह भान में आकर भूल गई थी, उन्हें बाबा अपने गुणों और सर्वशक्तियों की अनन्त धाराओं के रूप में मुझ पर बरसाते हुए पुनः जागृत कर रहे हैं।

 

_ ➳  अपनी खोई हुई शक्तियों को पुनः प्राप्त कर मैं आत्मा बहुत ही शक्तिशाली स्थिति का अनुभव करवा रही हैं। सर्वगुण और सर्वशक्तिसम्पन्न बनकर मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट आई हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अपने परमशिक्षक शिव बाबा द्वारा मुरली के माध्यम से हर रोज पढ़ाई जाने वाली पढ़ाई को अच्छी रीति पढ़कर, और अच्छी रीति धारण करके अपने बुद्धि रूपी बर्तन को मैं धीरे - धीरे साफ, स्वच्छ और सतोप्रधान बनाती जा रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं दिव्य गुणों के आह्वान द्वारा सर्व अवगुणों की आहुति देने वाली सन्तुष्ठ आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं स्मृति की ज्योति सदा जगाये रखने वाला ब्राह्मण कुल का दीपक हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *बापदादा बच्चों का प्यार भी देखते हैं,* कितने प्यार से भाग-भाग कर मिलन मनाने पहुंचते हैं और फिर आज हाल में भी मिलन मनाने के लिए कितनी मेहनत से, कितने प्यार से नींद, प्यास को भूलकर पहले नम्बर में नजदीक बैठने का पुरुषार्थ करते हैं। बापदादा सब देखते हैंक्या-क्या करते हैं वह सारा ड्रामा देखते हैं। *बापदादा बच्चों के प्यार पर न्योछावर भी होते हैं* और यह भी बच्चों को कहते हैं *जैसे साकार में मिलने के लिए दौड़-दौड़ कर आते हो ऐसे ही बाप समान बनने के लिए भी तीव्र पुरुषार्थ करो, इसमें सोचते हो ना कि सबसे आगे ते आगे नम्बर मिले।* सबको तो मिलता नहीं हैयहाँ साकारी दुनिया है ना! तो साकारी दुनिया के नियम रखने ही पड़ते हैं।

 

 _ ➳  बापदादा उस समय सोचते हैं कि सब आगे-आगे बैठ जाएं लेकिन यह हो सकता हैहो भी रहा है, कैसे? *पीछे वालों को बापदादा सदा नयनों में समाया हुआ देखते हैं। तो सबसे समीप हैं नयन। तो पीछे नहीं बैठे हो लेकिन बापदादा के नयनों में बैठे हो। नूरे रत्न हो।* पीछे वालों ने सुनादूर नहीं होसमीप हो। शरीर से *पीछे बैठे हैं लेकिन आत्मा सबसे समीप है।* और बापदादा तो सबसे ज्यादा पीछे वालों को ही देखते हैं। *देखो नजदीक वालों को इन स्थूल नयनों से देखने का चांस है और पीछे वालों को इन नयनों से नजदीक देखने का चांस नहीं है इसलिए बापदादा नयनों में समा लेता है।* 

 

 _ ➳  बापदादा मुस्कराते रहते हैंदो बजता है और लाइन शुरू हो जाती है। बापदादा समझते हैं कि बच्चे खड़े- खड़े थक भी जाते हैं लेकिन *बापदादा सभी बच्चों को प्यार का मसाज कर लेते हैं। टांगों में मसाज हो जाता है। बापदादा का मसाज देखा है ना - बहुत न्यारा और प्यारा है।*

 

 _ ➳  *बाप से मिलन का उमंग-उत्साह सदा आगे बढ़ाता है। लेकिन बापदादा तो बच्चों को एक सेकण्ड भी नहीं भूलता है।* बाप एक है और बच्चे अनेक परन्तु अनेक बच्चों को भी एक सेकण्ड भी नहीं भूलते क्योंकि सिकीलधे हो।

 

✺   *ड्रिल :-  "डायमंड हॉल में स्थूल में पीछे बैठने के बावजूद सूक्ष्म में बाबा की नयनों में बैठ प्रभु मिलन के असीम सुख का अनुभव करना "*

 

 _ ➳  *आज की यह स्वर्णिम सुबह, आज का यह स्वर्णिम दिवस ये मुझ आत्मा के जीवन की वो सुनहरी अनमोल घड़ी है जब मुझ आत्मा का इस संसार की सर्वोच्च सता से मिलन होने जा रहा है... मैं जगमगाती झिलमिलाती आत्मा सितारा स्वयं को प्रभु अवतरण भूमि मधुबन घर में देख रही हूँ... मुझ जगमगाती आत्मा की जीवन रुपी किताब का वो पन्ना जो प्रभु प्यार के रंग से रंगा है... उसकी साथ की हसीन अनुभवों से सजा है... आज वो पन्ना खुल गया हैं... मैं आत्मा आज साकार में प्रभु मिलन करने वाली हूँ... रंगने वाली हूँ आज उस एक के रंग में....* मीठे से मेरे बाबा की यादों में गुनगुनाती, मीठे बाबा की याद की लहरों में लहराती, *इस दिल को थामे जिसकी एक-एक धड़कन गा रही है... बाबा ओ मेरे मीठे प्यारे बाबा आ जाओ ना मीठे बाबा...* आज तो जैसे उसकी यादों की बाढ़ आ गयीं हो, और मैं आत्मा उसमें बहती जा रही हूँ... बहती जा रही हूँ... ना तन का भान है, ना देह की स्मृति भूल चुका है ये संसार, भूल चुकी है देह, *एक-एक पल, एक-एक सांस में बस उस एक की याद हैं...* बेचैन है ये नैन बाबा की एक झलक पाने को... *नैन बेचैन है... बस उसके दीदार को...* जैसे-जैसे समय बीत रहा है... *दिल में बाबा की यादों का सैलाब बढ़ता जा रहा है... ये दिल खुशी में गुनगुना रहा है...*

 

 _ ➳  *झिलमिल सितारे बन कर... उड़ के वतन में जाए, जाके परमपिता से मंगल मिलन मनाये...* आज तो लग रहा है जैसे मधुबन की हर गली बोल उठी हो... और ये प्रकृति भी जैसे झूम रही हो, गा रही हो... *मंद-मंद चलती ये रूहानी हवायें भी जैसे सिर्फ उसके ही आने का पैगाम दे रही हो...*  दोपहर दो बजे का यह समय है... मैं आत्मा ध्यान से देख रही हूँ... बेहद डायमंड हाल को बस कुछ समय में ही मेरे लाडले बाबा यहाँ आने वाले है... कितनी हंसीन वो घड़ी होगी... मन ही मन बाबा से मीठी-मीठी बातें करती हुई देख रही हूँ... *उन सभी आत्माओं को जो दूर-दूर से उमंग-उत्साह के साथ प्रभु मिलन के लिए आई है... कितनी बेचैन है प्रभु मिलन मनाने को... उसके प्यार में समाने को* कैसे आत्माएँ सब छोड़ उसके समीप बैठने को कितने उंमग से लाइनों में लगी, डायमण्ड हाल में सबसे आगे बाबा के नजदीक बैठने के पुरुषार्थ में लग गए है... *सभी दिव्य फरिश्तों को देख रही हूँ मैं आत्मा, एक-एक आत्मा प्रभु मिलन की प्यासी उस एक से मिलने को बेताब है... ऐसा लग रहा है जैसे चारों ओर दिव्य फरिश्तों का मेला लगा है...* कितना अदभुत ये दृश्य है... मैं आत्मा भी बाबा के समीप आगे बैठने के पुरूषार्थ में खुशी-खुशी लग जाती हूँ... लेकिन देखते ही देखते सारा हाल भर गया है... प्रभु प्यारों से... साढे छहः बजे का ये समय है... *ऐसा लग रहा है मानों दिव्य फरिश्तों की महफिल लगी हुई हैं...*

 

 _ ➳  सभी दिल थाम कर, दिल में प्रभु प्यार लिए बैठे है... बाबा के इन्तजार में, *मैं आत्मा भी हाल की सबसे आखरी पंक्ति में बैठ जाती हूँ... और वहाँ से इस हाल का अदभुत नजारा देखते मन ही मन बाबा से बातें करती, बडे ध्यान से उस स्टेज को देख रही हूँ... जो यहाँ से बहुत दूर नजर आ रहा हैं...* जहाँ मेरे मीठे बाबा आने वाले है... और सोच रही हूँ बाबा तो यहाँ से काफी दूर बैठेंगा... पता नहीं बाबा की नजर यहाँ पीछे पड़ेगी या नहीं... और कहती हूँ मीठे बाबा मुझे भी नजदीक बैठना था... *बस इतना कह प्यार भरी नजरों से बाबा को देखती हूँ दिल को थामे खुद को मनाती हूँ...* और फिर मिलन की खुशी में मशगुल हो जाती हूँ... अब मैं आत्मा बाबा का आवाहन कर रही हूँ... *उड़ चली मैं आत्मा परमधाम आमंत्रण देने  प्यारे बाबा को* मेरे प्यारे बाबा आ जाओ... *मेरे दिल के दिलाराम... इस दिल की भूमि पर चले आओ... इस मन के आंगन में चले आओ बाबा, बेचैन है नैन आज तेरा दीदार करने को, बस और इंतजार ना कराओ बाबा...* देख रही हूँ मैं आत्मा बाबा मेरे साथ नीचे उतर रहे है... वह ज्योति- महाज्योति धीरे-धीरे सूक्ष्म वतन में पहुंच शिव बाबा ब्रह्मा तन में प्रवेश कर रहे हैं... और मैं आत्मा अपने सूक्ष्म शरीर में... बापदादा नीचे उतर रहे हैं कितना अद्भुत दृश्य है यह... कितना भाग्य है मेरा जो भगवान को धरती पर आते हुए देख रही हूं... *दादी के तन में बाबा की पधरामणि चारों ओर डेड साइलेंस...* एक बेआवाज़ चुप्पी... सभी आत्माएँ ये अदभुत दृश्य देख रही है... अव्यक्त बापदादा दृष्टि दे रहे हैं *सबसे पहले बाबा की दृष्टि मुझ आत्मा पर पड़ती है...* मुझ आत्मा की आँख भर आती है... बाबा का ये प्यार देख कर और लग रहा है... जैसे बाबा कह रहे हो सिकीलधे बच्चे पीछे नहीं बैठे हो... *आप तो बाबा के नयनों में समाए हो...*

 

 _ ➳  जैसे ही बाबा की दृष्टि मुझ आत्मा पर पड़ती है... एक दिव्य दृष्टि की प्रवेशता मुझ आत्मा में हो रही हैं... *उसकी एक नजर ने ही मुझे निहाल कर दिया हैं...* अब देख रही हूँ मैं आत्मा नजदीक से *बाबा की इन सागर जैसे रूहानी नैनों को जिसमें कितना प्यार समाया है... कैसा जादू, कैसा जलवा इन नैनों में समाया है...* सारी दूरियाँ खत्म हो गयीं है... साकार में दूर बैठे भी बाबा के बेहद पास हूँ... *बाबा ने मुझे अपने नैनो में समा लिया है... बाबा की आंखों से प्यार बरस रहा है... नूर बरस रहा है... और बाबा की प्यार भरी दृष्टि की अविरल धाराएँ बह रही है जिसमें मैं आत्मा भीग गई हूँ... रंग गई हूँ उस एक के रंग में...* अपलक नयनों से मैं मीठे बाबा से दृष्टि ले रही हूँ... कैसी वरदानी दृष्टि हैं ये बाबा की, बाबा ने सर्व वरदानों शक्तियों से मुझ आत्मा को सजा दिया हैं... *स्वयं को बाबा के बेहद करीब नैनों में समाया हुआ अनुभव कर रही हूँ, मैं नूरे रत्न आत्मा...* अपने नैनों में समाकर बाबा ने, अपने प्यार की मसाज कर दी है... खुशी है उमंग है उत्साह है... *स्थूल में नहीं बैठे लेकिन स्वयं को बाबा के दिलतख्त पर बैठे अनुभव कर रही हूँ* मैं खुशनसीब आत्मा... दिल अब यही गा रहा हैं *पाना था सो पा लिया....*

 

 _ ➳  बाबा मुरली चला रहे हैं... *देख रही हूं मैं गोपिका उस गोपीवल्लभ को कैसे वो बोलता है... कैसे उसके नैन बोल रहे हैं... एकटक होकर सिर्फ और सिर्फ उस मुरलीधर को मैं गोपिका देख रही हूं...* सुन रही हूँ और खो गई हूँ... रंग गई हूँ... और बह रही हूँ, उसके मुरली की अविरल धाराओं में... *सुध-बुध खो बस उसको ही देखे जा रही हूँ... ज्ञान की बरसात हो रही है... इस ज्ञान बरसात में भीगकर मैं आत्मा भी ज्ञान स्वरूप बन गयीं हूँ...* मुरली पूरी हुई... अब मैं आत्मा देख रही हूँ... इस संसार की महान हस्तियों का मिलन दूसरी महान हस्ती से, दादीयाँ, वरिष्ठ भाई बाबा से मिल रहे है... *मैं आत्मा भी उनके साथ बाबा से मिल रही हूँ... कितना प्यार कर रहा है मीठा बाबा... बहुत करीब से प्यार के सागर को देख रही हूँ... ये प्यार देख मुझ आत्मा के नयन सजल हो रहे है...* सब कुछ भूल गया है समा गयी हूँ सिर्फ उस एक के प्यार में, बाबा को गुलदस्ते भेंट किए जा रहे है...

 

 _ ➳  मैं आत्मा भी बाबा को रंगबिरंगा गुलदस्ता भेंट रही हूँ... और *देख रही हूँ मैं आत्मा बाबा के इन रुहानी नैनों को, इन खामोश निगाहों को देख रही हूँ जिसमें बेहद प्यार समाया हैं... जो खामोश होकर भी बहुत कुछ कह रहे है... तुम सा हंसीन बाबा कोई नहीं जहाँ में...* अब बाबा मुझ अपने हाथों से टोली खिला रहे है... नयन बस उस पर टिक गये है... और दिल कह रहा है... कौन करेगा ऐसा प्यार... *ओ मेरे मीठे बाबा, प्यारे बाबा... मेरे दिल की धड़कन मेरे बाबा... कहाँ मिलेगा बाबा ऐसा सतयुग में तेरा प्यार...* अपने हाथ से दृष्टि देकर... हम सब बच्चों को हमारे दिलाराम बाबा अपने हाथ से टोली खिला रहे है... कैसा अदभुत मंजर है ये... स्वयं परमसत्ता टोली खिला रहा है... देख रही हूँ मैं आत्मा कैसे वो हंसता है... कैसे उसके ये नयन बोल रहे है... *कैसा अजब सा जादू इन नयनों में हैं... कितना प्यार लुटा रहा है बाबा कैसी लीलाएँ वो मुरलीधर वो दिलाराम कर रहा है... देखा है तुमको बाबा रूहों से प्यार करते...* बाबा विदाई ले रहा है... देख रही हूँ... उसकी साक्षी स्थिति, उसका अनासक्त भाव एक तरफ वो प्यार लुटा रहा है... और अब ऐसे विदा हो रहा है जैसे यहाँ था ही नहीं... लग रहा है जैसे यूं ही बाबा सामने बैठा रहे और मैं गोपिका उसे ही देखती रहूँ... कह रही हूँ... *ना जाओ बाबा यहीं रह जाओ... ना जाओ मीठे बाबा... अभी ना जाओ छोड कर के दिल अभी भरा नहीं अभी-अभी तो आये हो...* आया था बाबा हमें अपने रंग में रंगने... वरदान अपना प्यार लुटाने आप समान बनाने... बाबा ने मुझ आत्मा को भरपूर कर दिया है सर्व शक्तियों, वरदानों से मुझ आत्मा को सजा दिया है... अब बस रह गयी हैं... उसकी अनमोल यादें और शिक्षाएँ, देख रही हूँ, मैं आत्मा स्वयं को बाबा की शिक्षाओं को स्वरूप में लाते अब *मुझ आत्मा का पुरुषार्थ तीव्र हो गया है... मैं बाबा की नूरे रत्न आत्मा बाबा के कदम पर कदम रख बाप समान बनने और फर्स्ट नम्बर लेने के पुरुषार्थ में जुट गयीं हूँ... और हर पल स्वयं को मीठे बाबा के नयनों में समाया हुआ अनुभव कर रही हूँ...* बाबा से मिले खजाने को सभी आत्माओं में बांट रही हूँ... वरदानी मूर्त बन उन्हें भी वरदानों, शक्तियों से सजाकर आप समान बना रही हूँ... *ओम शांति... शुक्रिया मीठे बाबा शुक्रिया...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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