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 22 / 10 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *किसी का सामना तो नहीं किया ?*

 

➢➢ *भूल हो जाए तो बाप को सुनाकर क्षमा मांगी ?*

 

➢➢ *किनारा करने की बजाये स्वयं को एडजस्ट करने वाले सहनशीलता के अवतार बनकर रहे ?*

 

➢➢ *परमार्थ के आधार से व्यवहार को सिद्ध किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जैसे बाप के लिए सबके मुख से एक ही आवाज निकलती है- 'मेरा बाबा'। ऐसे आप हर श्रेष्ठ आत्मा के प्रति यह भावना हो, महसूसता हो। हरेक से मेरे-पन की भासना आये। हरेक समझे कि यह मेरे शुभचिन्तक सहयोगी सेवा के साथी हैं, इसको कहा जाता है-बाप सामान।* इसको ही कहा जाता है कर्मातीत स्टेज के तख्तनशीन।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं समर्थ बाप की समर्थ सन्तान हूँ"*

 

  सदा अपने को समर्थ बाप के समर्थ बच्चे अनुभव करते हो? कभी समर्थ, कभी कमजोर - ऐसे तो नहीं? *समर्थ अर्थात् सदा विजयी। समर्थ की कभी हार नहीं हो सकती। स्वप्न में भी हार नहीं हो सकती। स्वप्न, संकल्प और कर्म सबमें सदा विजयी - इसको कहते हैं 'समर्थ'।* ऐसे समर्थ हो?

 

  क्योंकि जो अब के विजयी हैं, बहुतकाल से वही विजय माला में गायन-पूजन योग्य बनते हैं। *अगर बहुतकाल के विजयी नहीं, समर्थ नहीं तो बहुतकाल के गायन-पूजन योग्य नहीं बनते हैं।*

 

  *जो सदा और बहुत काल विजयी हैं, वही बहुत समय विजय माला में गायन-पूजन में आते हैं और जो कभी-कभी के विजयी हैं, वह कभी-कभी की अर्थात् 16 हजार की माला में आयेंगे। तो बहुतकाल का हिसाब है और सदा का हिसाब है।* 16 हजार की माला सभी मन्दिरों में नहीं होती, कहाँ-कहाँ होती है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  चाहे अपना पार्ट भी कोई चल रहा हो लेकिन अशरीरी बन आत्मा साक्षी हो अपने शरीर का पार्ट भी देखें। मैं आत्मा न्यारी हूँ, शरीर से यह पार्ट करा रही हूँ। *यही न्यारे-पन की अवस्था अंत में विजयी या पास विद ऑनर का सर्टिफिकेट देंगी।* सभी पास विद ऑनर होने वाले हो?

 

✧  मजबूरी से पास होने वाले नहीं। कभी टीचर को भी एक-दो मार्क देकर पास करना पडता है। ऐसे पास होने वाले नहीं हैं। *खुशी-खुशी से अपने शक्ति से पास विद ऑनर होने वाले। ऐसे हो ना?* जब टाइटल भी डबल विदेशी है तो माक्र्स भी डबल लेंगे ना!

 

✧  भारतवासियों को क्या नशा है? भारतवासियों को फिर अपना नशा है। भारत में ही बाप आते हैं। लन्दन में तो नहीं आते ना। (आ तो सकते हैं) अभी तक ड्रामा में पार्ट दिखाई नहीं दे रहा है। *ड्रामा की भावी कभी भगवान भी नहीं टाल सकता।* ड्रामा को अथार्टी मिली हुई है। अच्छा। (पार्टियों के साथ)

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ मुश्किल है भी क्या? सहज को स्वयं ही मुश्किल बनाते हो। *मुश्किल है नहीं, मुश्किल बनाते हो। जब बाप कहते हैं जो भी बोझ लगता है वह बोझ बाप को दे दो। वह देना नहीं आता। बोझ उठाते भी हो, फिर थक भी जाते हो फिर बाप को उल्हाना भी देते हो क्या करें, कैसे करें। अपने ऊपर बोझ उठाते क्यों हो? बाप आफर कर रहा है अपना सब बोझ बाप के हवाले करो।* ६३ जन्म बोझ उठाने की आदत पड़ी हुई है ना! तो आदत से मजबूर हो जाते हैं, इसलिए मेहनत करनी पड़ती है। कभी सहज, कभी मुश्किल। *या तो कोई भी कार्य सहज होता है या मुश्किल होता है। कभी सहज कभी मुश्किल क्यों?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- याद की यात्रा करना"*

 

_ ➳  *अमृतवेले के रूहानी समय में... उठो, जागो मेरे लाडले बच्चे... कहते हुए मीठे बाबा मुझे प्यार से जगाते हैं... मैं आत्मा अपने सामने प्यारे बाबा को देख मुस्कुराते हुए बाबा को गुड मॉर्निंग कर उठती हूँ...* और बाबा के गले लग जाती हूँ... मीठे बाबा प्यार से मुझे अपनी गोदी में बिठाते हैं और मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए वरदानों से भरपूर करते हैं... दृष्टि देते हुए बाबा मुझे अमृतपान कराते हैं... फिर वन्डरफुल रूहानी बाबा मुझे अपने साथ वन्डरफुल रूहानी सैर कराते हैं...  

 

  *यादों की महफिल में ज्ञान के फूल बरसाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... *मीठे बाबा के साथ का यह वरदानी युग कितना प्यारा है जिसमे पिता की याद भर से ही आप बच्चे 21जनमो के लिए सुखो भरे आलिशान जीवन और निरोगी स्वस्थ काया के हकदार बन जाते हो...* ईशरीय यादो में हर विकार से परे निष्कलंक जीवन पाते हो...

 

_ ➳  *वंडरफुल रूहानी यादों से अनुभवों और खजानों की मालकिन बन मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा देहभान में आकर स्वयं को शरीर समझ कितनी गरीब रोगी मोहताज हो गयी थी... *आपने मुझे रोगों से मुक्तकर खुशनुमा जीवन की स्वामिन् बना दिया है... मै आत्मा सुख समृद्धि और स्वस्थता की पर्याय बनती जा रही हूँ...”*

 

  *मीठे बाबा स्वर्णिम सुखों के सौगातों से मुझ आत्मा को सम्पन्न बनाते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... एक जन्म ईश्वर पिता के हाथो में देते हो और 21 जनमो तक अथाह सुख बाँहों में भर लेते हो... *कितने वन्डरफुल रूहानी यात्री हो... ईश्वर पिता की यादों से सारे सुख अपने नाम लिखवाते हो... और सतयुगी धरती पर सुंदर तन मन धन से मुस्कराते हो...”*

 

_ ➳  *मीठी यादों के सुनहरे नाव में बैठकर मंजिल के समीप पहुँचते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा मात्र देह नही खुबसूरत मणि हूँ और सदा रूहानी यात्रा पर हूँ... यह खुबसूरत लक्ष्य जीवन का पाकर तो धन्य धन्य हो गयी हूँ...* मीठे बाबा आपकी मीठी यादो में मै आत्मा रूहानियत से भरकर कितनी प्यारी और मीठी हो गयी हूँ...

 

  *यादों की जादू भरी छड़ी से अमरत्व का वरदान देते हुए मेरे जादूगर बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता संग रूहानी बन यादों की यात्रा पर हो... *कितनी प्यारी और वन्डरफुल जादूगरी है कि यह यात्रा सतयुगी सुनहरे सुखो के द्वार पर पूरी होती है... यादो की यह यात्रा जन्नत में सुखो के फूलो भरा खुबसूरत जीवन दे जाती है...”*

 

_ ➳  *यादों के खानों से अविनाशी खजाने निकालकर अपने 21 जन्मों को सजाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा वन्डरफुल बाबा को पाकर वन्डरफुल रूहानी यात्री बन गई हूँ...* मीठे बाबा की गहरी यादों में हर पल खोयी खोयी सी... मै आत्मा सारे खजानो को अपनी झोली में समेट कर सबसे धनी हो मुस्करा रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  अपना रजिस्टर खराब होने नही देना है*"

 

_ ➳  बाबा के कमरे में बैठी, बाबा के चित्र को बड़े प्यार से निहारते हुए, मैं उनकी देन अपने इस ईश्वरीय ब्राह्मण जीवन के लिए मन ही मन उन्हें शुक्रिया अदा करते हुए उन अखुट प्राप्तियों को याद कर रही हूँ जो बाबा ने मुझे दी है। *उन अखुट प्राप्तियों को स्मृति में लाकर अपने बेरंग जीवन में खुशियों के रंग भरने वाले अपने दिलाराम बाबा के चित्र को निहारते हुए मैं महसूस करती हूँ जैसे बाबा के मुख मण्डल पर फैली मीठी मधुर मुस्कान मुझे कोई इशारा दे रही हैं और बाबा आंखों ही आंखों में मुझ से कुछ कह रहे हैं*। बाबा के अव्यक्त इशारे को समझने का प्रयास करते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे बाबा की अव्यक्त आवाज धीरे - धीरे मेरे कानों में सुनाई पड़ रही है।

 

_ ➳  बाबा कह रहे हैं, बच्चे-: "कभी कोई विकर्म करके अपने इस अमूल्य जीवन रूपी रजिस्टर पर दाग मत लगने देना। इसे कभी खराब नही होने देना। *जैसे एक विद्यार्थी अपनी स्टूडेंट लाइफ में पूरा ध्यान रखता है कि उससे ऐसा कोई भी गलत कर्म ना हो जिससे उसके चरित्र पर कोई आंच आये और उसका रजिस्टर खराब हो। ऐसे ही तुम्हारा ये ईश्वरीय जीवन पुरुषार्थी जीवन है जहाँ कदम - कदम पर सम्भल कर चलना पड़े एक छोटे से छोटी गलती भी रजिस्टर को दागी बना सकती है इसलिए अपनी बहुत सम्भल रखनी है*। बाबा के अव्यक्त इशारे को समझ कर, बाबा से ऐसा कोई भी कर्म ना करने का मैं प्रोमिस करती हूँ जो मेरे रजिस्टर को खराब करने के निमित बने।

 

_ ➳  अपने रजिस्टर को सदा साफ, स्वच्छ रखने का बाबा से वायदा करके, परमात्म बल से स्वयं को बलशाली बनाने के लिए अब मैं अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने मस्तक पर एकाग्र कर, अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होकर, अपने गुणों और शक्तियों की अनुभूति करते हुए, अपने पिता परमात्मा के पास  जाने वाली आंतरिक यात्रा पर चलने के लिए तैयार होती हूँ। *देह भान से न्यारी, मन बुद्धि की इस सुहावनी यात्रा पर चलने के लिए, मैं आत्मा भृकुटि के सिहांसन से उतर कर, देह रूपी मंदिर की गुफा से बाहर आती हूँ और एक दिव्य प्रकाश चारों ओर फैलाती हुई ऊपर नीले गगन की ओर चल पड़ती हूँ*।

 

_ ➳  अपने चारों और एक दिव्य प्रकाश के कार्ब को धारण किये हुए, मैं जगती ज्योति सेकण्ड में आकाश को पार करके, उससे ऊपर सूक्ष्म वतन को भी पार करके, मणियों की उस खूबसूरत दुनिया, अपने पिता परमात्मा के शान्तिधाम घर मे प्रवेश करती हूँ जहाँ चारो और शांति के अथाह वायब्रेशन्स फैले हुए हैं। *इन वायब्रेशन्स को अपने अंदर समा कर गहन शान्ति की अनुभूति करती हुई मैं धीरे - धीरे शांति के सागर अपने पिता के पास पहुँचती हूँ और उनकी एक - एक किरण को बड़े प्यार से निहारते हुए, उनकी किरणो रूपी बाहों के आगोश में समा जाती हूँ*। अपनी किरणों रूपी बाहों में भरकर, अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटा कर बाबा मुझे तृप्त कर देते हैं और अपनी समस्त शक्तियों का बल मेरे अंदर भरकर मुझे शक्तिशाली बना देते हैं।

 

_ ➳  बाबा का असीम स्नेह पाकर, बाबा की शक्तियों को स्वयं में समाकर, सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप बनकर, बाबा से किये हुए वायदे को पूरा करने के लिए मैं वापिस अपनी साकारी दुनिया में फिर से अपना पार्ट बजाने के लिए लौट आती हूँ। *अपने साकार शरीर रूपी रथ में भृकुटि के भव्य भाल पर बैठ, कर्मेन्द्रियों से कर्म करते, इस बात का अब मैं विशेष ध्यान देती हूँ कि जाने - अनजाने में भी मुझ से ऐसा कोई विकर्म ना हो जिससे मेरा रजिस्टर खराब हो*। अपने रजिस्टर को साफ स्वच्छ रखने के बाबा से किये हए अपने वायदे को निभाने के लिए, हर कदम श्रीमत प्रमाण चलने पर मैं पूरा अटेंशन दे रही हूँ। *कदम - कदम पर मम्मा, बाबा को फॉलो कर, मनसा - वाचा - कर्मणा श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनने का अब मैं पूरा पुरुषार्थ कर, अपने रजिस्टर को कभी भी खराब ना होने देने की अपनी प्रतिज्ञा का पालन पूरी दृढ़ता और लग्न के साथ कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं  किनारा करने के बजाए स्वयं को एडजेस्ट करने वाली सहनशीलता की अवतार       हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं परमार्थ के आधार से व्यवहार को सिद्ध करने वाली योगी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा ने यह भी देखा है कि *कोई-कोई बच्चे छोटी सी बात का विस्तार बहुत करते हैंइसमें क्या होता हैजो ज्यादा बोलता है ना तो जैसे वृक्ष का विस्तार होता है उसमें बीज छिप जाता है*वह ऐसे समझते हैं कि हम समझाने के लिए विस्तार कर रहे हैंलेकिन *विस्तार में जो बात आप समझाने चाहते हैं ना उसका सार छिप जाता है और बोलवाणी की भी एनर्जी होती है। जो वेस्ट बोल होते हैं तो वाणी की एनर्जी कम हो जाती है। ज्यादा बोलने वाले के दिमाग की एनर्जी भी कम हो जाती है। शार्ट और स्वीट यह दोनों शब्द याद रखो*। और कोई सुनाता है ना तो उसको तो कह देते हैं कि मेरे को इतना सुनने का टाइम नहीं है। लेकिन जब खुद सुनाते हैं तो टाइम भूल जाता है। इसलिए *अपने खजानों का स्टाक जमा करो। संकल्प का खजाना जमा करोबोल का खजाना जमा करोशक्तियों का खजाना जमा करोसमय का खजाना जमा करोगुणों का खजाना जमा करो*।

 

✺   *ड्रिल :-  "अपने खजानों का स्टाक जमा करना"*

 

 _ ➳  *ब्राह्मण कुल की दीपमाला का, मैं नन्हा सा दीप*... अपने अन्दर के तम से लडता हुआ और मुझमें तूफानों से जीतने का ज़ज्बा भरते शिव सूर्य... *स्वीट एन्ड शोर्ट की पल पल प्रेरणा देते*... विस्तार को सार में समाँ लेने की सीख देते और *धडकनों में बस गूँजने लगा है, एक ही गीत... शोर्ट एन्ड स्वीट मेरा बाबा*...

 

 _ ➳  मैं आत्मा बैठ गयी हूँ बापदादा की कुटिया में... बापदादा के ठीक सामने रखा महकतें फूलों का गुलदस्ता... मेरे मन को महका रहा है गहराई से... फूलों की सुन्दरता का सार इनकी खुशबू... और खुशबू का सार... रूहानी आनन्द जो मेरे रोम रोम में बह रहा है... और बापदादा की दिलकश सी मुस्कान को पढने की कोशिश करता हुआ मैं... *मेरी धडकनों का सार है ये... रूहानी निखार है ये... तरसे है कई पतझर जिसे, वो दिलकश बहार है ये*, बापदादा की भृकुटी से आती शिवसूर्य की किरणें मुझमें समाती हुई... और घट की तरह भरपूर होकर छलकता मैं... आकारी रूप में बापदादा के साथ उड चला एक अनोखी यात्रा पर...

 

 _ ➳  *मैं और बापदादा बादलों के विमान पर सवार*... सूर्य के करीब से गुजरता ये विमान सुनहरे रंग में रंगा हुआ... अचानक देख रहा हूँ बापदादा के हाथ में एक स्वर्ण और हीरों से जडी सुन्दर सुराही... बापदादा ने सुराही पर रखी रत्न जडित प्लेट को हटा दिया है... *सुराही के खुलते ही जगमगतें रत्नों का अम्बार लगता जा रहा है...* मानों रत्न उफ़न उफ़न कर बाहर आ रहे है... हैरानी से मैं देखे जा रहा हूँ एक एक कर उन सबको... *देखते ही देखते बडा सा ढेर लग गया है रत्नों का जमीन से आकाश तक... अब बापदादा एक महीन धागे में पिरों रहे है उन सबको... एक एक क्रिया बाबा मुझे दिखाकर कर रहे है... और देखते ही देखते वो सारा रत्नों का ढेर सिमट गया है एक धागें में...*

 

 ➳ _ ➳  *मनमनाभव का धागा*... और उस ढेर की जगह बस अब सुन्दर हार... बापदादा ने मुस्कुरातें हुए वो हार पहना दिया है मेरे गले में... *खजाने के विस्तार को सार में समेट दिया है बापदादा ने*... और ये खजानों का स्टाॅक अब मेरे अधिकार में... एक एक रत्न की बचत कैसे करनी है मुझे... मनमनाभव के सूत्र से सीख लिया है, मैने... *संकल्प का खजाना, बोल का खजाना, शक्तियों का खजाना, समय और गुणों का खजाना... और सारे खजानों से भरपूर मैं मालामाल आत्मा*... मनमनाभव के जादुई स्पर्श से सार में लाती और *समय संकल्प, बोल, गुण और शक्तियों की बचत करती हुई... अपनी स्थिति से ही परिस्थितियों को बदलती हुई*... वापस लौट आयी हूँ अपनी देह में... दीपमाला का दीपक बन अंधकार पर जीत पाती हुई... दुगुने आत्मविश्वास से...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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