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 28 / 01 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बापदादा से "पवित्र भव, योगी भव" का वरदान स्वीकार किया ?*

 

➢➢ *"मैं विश्व की विशाल स्टेज पर पार्ट बजाने वाली विशेष पार्टधारी आत्मा हूँ" - यह स्मृति रही ?*

 

➢➢ *प्यूरिटी की पर्सनैलिटी और रॉयल्टी को धारण किया ?*

 

➢➢ *अपने जीवन परिवर्तन द्वारा दूसरी आत्माओं की सेवा की ?*

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*अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *मन को एकरस बनाने के लिए हर घण्टे 5 सेकण्ड वा 5 मिनट अपने पांचों ही रूप सामने लाओ और उस रूप का अनुभव करो। इस एक्सरसाइज से व्यर्थ वा अयथार्थ संकल्पों में मन नहीं जायेगा। मन में अलबेलापन भी नहीं आयेगा।* मनमनाभव का मन्त्र मन के अनुभव से मायाजीत बनने में यन्त्र बन जायेगा।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं हर कदम में पुण्य करने वाली पुण्य आत्मा हूँ"*

 

✧   सदा स्वयं को स्वमान की सीट पर बैठा हुआ अनुभव करते हो? *पुण्य आत्मा हैं, ऊँचे ते ऊँची ब्राह्मण आत्मा हैं, श्रेष्ठ आत्मा हैं, महान आत्मा हैं, ऐसे अपने को श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर अनुभव करते हो? कहाँ भी बैठना होता है तो सीट चाहिए ना! तो संगम पर बाप ने श्रेष्ठ स्वमान की सीट दी है, उसी पर स्थित रहो। स्मृति में रहना ही सीट वा आसन है।*

 

  *तो सदा स्मृति रहे कि मैं हर कदम में पुण्य करने वाली पुण्य आत्मा हूँ। महान संकल्प, महान बोल, महान कर्म करने वाली महान आत्मा हूँ। कभी भी अपने को साधारण नहीं समझो।* किसके बन गये और क्या बन गये? इसी स्मृति के आसन पर सदा स्थित रहो।

 

 *इस आसन पर विराजमान होंगे तो कभी भी माया नहीं आ सकती। हिम्मत नहीं रख सकती। आत्मा का आसन स्वमान का आसन है, उस पर बैठने वाले सहज ही मायाजीत हो जाते हैं।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आत्मा मालिक होके कर्मेन्द्रियों को चलाये। स्मृति स्वरूप रहे कि मैं मालिक इन साथियों से, सहयोगियों से कार्य करा रहा हूँ। *स्वरूप में नशा रहे तो स्वतः ही यह सब कर्मेन्द्रियाँ आपके आगे जी हाजिर, जी हजूर स्वतः ही करेंगी। मेहतन नहीं करनी पडेगी।*

 

✧  *आज व्यर्थ संकल्प को मिटाओ, आज संस्कार को मिटाओ, आज निर्णय शक्ति को प्रगट करो।* एक धक से सब कर्मेन्द्रियाँ और मन-बुद्धि-संस्कार जो आप चाहते हैं, वह करेंगी। अभी कहते हैं ना - बाबा चाहते तो यह हैं लेकिन अभी इतना नहीं हुआ है. फिर कहेंगे जो चाहते हैं वह हो गया, सहज।

 

✧  तो समझा क्या करना है? *अपने अधिकार की सिद्धियों को कार्य में लगाओ। ऑर्डर करो संस्कार को।* संस्कार आपको क्यों ऑर्डर करता? संस्कार नहीं मिटता, क्यों? बंधा हुआ है संस्कार आपके ऑर्डर में। *मालिक-पन लाओ।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  आप ध्यान रखो तो जैसी-जैसी परिस्थिति उसी प्रमाण अपनी प्रैक्टिस बढ़ा सकते हो। इस अभ्यास में तो सभी बच्चे हैं। *वास्तव में बिन्दु-रूप में स्थित होना कोई मुश्किल बात नहीं है।* बिन्दु रूप तो है ही न्यारा। निराकार भी है तो न्यारा भी है। *आप भी निराकारी और न्यारी स्थिति में स्थित होंगे तो बिन्दु रूप का अनुभव करेंगे। चलते-फिरते अव्यक्त स्थिति का अनुभव कर सकते हो।* प्रैक्टिस ऐसी सहज हो जायेगी कि जब भी चाहो तभी अव्यक्ति स्थिति में ठहर जाओगे। *एक सेकण्ड के अनुभव से कितनी शक्ति अपने में भर सकते हो वह भी अनुभव करेंगे और ब्रेक देने, मोड़ने की शक्ति भी अनुभव में आ जायेगी।* तो बिन्दु रूप का अनुभव कोई मुश्किल नहीं है। *संकल्प ही नीचे लाता है, संकल्प को ब्रेक देने की पावर होगी तो ज्यादा समय अव्यक्त स्थिति में स्थित रह सकेंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- रूहानी पर्सनैलिटी में रहना"*

 

_ ➳  मैं आत्मा मेरे जीवन को यूँ सुंदरता के रंगों से सजाने वाले... *पवित्रता के सागर... शिवबाबा की यादों में खो जाती हूँ... प्यारे बाबा ने पवित्रता के रंग में डुबो कर... मुझ आत्मा को महकता हुआ फूल बना दिया है...*  शिवपिता और ब्रह्मा माँ के आंगन में खिलने वाला... खूबसूरत... महकता गुलाब का फूल मैं आत्मा... *ज्ञान और योग के पानी से निरन्तर खिली हुई... याद और सेवा से सनी हुई मैं आत्मा... पूरे विश्व की आत्माओं को अपनी रूहानियत की खुशबू से सरोबार कर रही हूँ...*

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा का रूहानी श्रृंगार करते हुए वरदान दिया और कहा :-* "मीठे बच्चे... *"पवित्र भव, योगी भव"... सदा पवित्रता की पर्सनैलिटी और रॉयलिटी से सजी रहना...* यही पवित्रता की पर्सनैलिटी विश्व की अन्य आत्माओं को पवित्रता की ओर आकर्षित करेगी... *अपनी चलन से आत्माओं को रूहानी रॉयलिटी का अनुभव कराओ... रूहानी दर्पण बन जाओ...* जो भी देखे... बस देखता रह जाये..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा प्यारे बाबा की श्रीमत का पालन करते हुए कहती हूँ:-* "मीठे प्यारे बाबा... मैं आपको पाकर रूहानी गुलाब बन निखर गई हूँ... *अब मैं मात्र शरीर नहीं, अपितु प्यारी पवित्र आत्मा हूँ,* आपने मेरे नीरस जीवन को रसीला बना दिया है... *मैं आत्मा आपकी याद के नशे में मदमस्त... पूरे विश्व को अपनी रूहानियत की खुशबू से महका रही हूँ...*"

 

  *मीठे बाबा मुझ आत्मा को मेरे श्रेष्ठ भाग्य का नशा दिलाते हुए कहते :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *कितनी सौभाग्यशाली आत्मा हो तुम... जो स्वयं भगवान ने दिल की तिजोरी में छुपा कर रखा है..."* इसी तरह पवित्र जीवन अपना... अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाकर खुशियों के झूले में झूलते रहो और सबके जीवन आप समान खुशियो से महकाओ... महादानी, वरदानी बन सबकी आशायें पूरी करो..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा के स्नेह प्यार की बरसात में रंगी हुई कहती हूँ :-* "मेरे मीठे प्यारे बाबा... *आपने मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर... मुझ साधारण आत्मा को विशेष बना दिया..."* खूबसूरत ज्ञान परी बना दिया... चमकता हुआ हीरा बना दिया... *ऐसे प्यार करने वाले "शिव साजन" को पाकर मैं आत्मा तो धन्य धन्य हो गई...* और यह भाग्य हरेक के दिल पर सजा रही हूँ..."

 

  *बाबा बड़े प्यार से संगमयुग में सबसे बड़ी सौगात सबसे बड़े खजाने का महत्व बताते हुए कहते हैं:-* "मीठी बच्ची... *खुशी का खजाना सबसे बड़ा है... इस खुशी के लिये लोग तरसते हैं... तड़पते हैं... बच्ची... आप सदा ख़ुशी के झूले में नाचने वाली हो...* अमृतवेले से लेकर इस खुशी के खजाने को यूज़ करो... सारा दिन खुशी बनी रहेगी... और सारा दिन रूहानियत फैलाते रहोगे..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा मीठे बाबा की श्रीमत को गले लगाते हुए कहती हूँ :-* "मेरे मन के मीत... मेरे सिकीलधे बाबा... *मैं स्वयं भी खुश रहती हूँ और सबको खुशी बांटती हूँ... और अपनी वृति, दृष्टि, कृति और वाणी द्वारा सबको अपनी रूहानी रॉयलिटी का अनुभव करवा रही हूँ..."* मीठे बाबा को दिल से धन्यवाद देकर मैं आत्मा... अपनी स्थूल देह में लौट आई..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बापदादा से "पवित्र भव, योगी भव" का वरदान स्वीकार करना*"

 

_ ➳  पवित्रता ही मेरे ब्राह्मण जीवन का श्रृंगार है इस बात को स्मृति में लाकर, अपने पतित पावन शिव पिता परमात्मा से पवित्रता की प्रतिज्ञा करते हुए, अपने मन को शांत और स्थिर तथा बुद्धि को एकाग्र करके अपने मन बुद्धि को मैं जैसे ही अपने पतित पावन परम पिता परमात्मा शिव बाबा के साथ जोड़ती हूँ। *मुझे ऐसा अनुभव होता है जैसे मेरे अंदर पवित्रता का बल भरने के लिए परम धाम से मेरे पतित पावन परम पिता परमात्मा शिव बाबा की पवित्रता की अनंत किरणों का झरना सीधा मुझ आत्मा पर प्रवाहित होने लगा है* जो मुझे सहज ही लाइट माइट स्थिति में स्थित कर रहा है।

 

_ ➳  अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित होते ही अब मैं लाइट का सूक्ष्म शरीर धारण कर, पवित्रता का फरिश्ता बन अपनी साकारी देह से बाहर निकलता हूँ और अपने प्यारे बापदादा से "पवित्र भव, योगी भव" का वरदान लेने के लिए उनके अव्यक्त वतन की ओर चल पड़ता हूँ। *सेकण्ड में पांच तत्वों की बनी साकारी दुनिया को पार कर मैं फ़रिश्ता एक ऐसी दिव्य प्रकाशमयी दुनिया में प्रवेश करता हूँ जहाँ चारों ओर सफेद चांदनी सा उज्ज्वल प्रकाश फैला हुआ है*। श्वेत प्रकाश से प्रकाशित इस अव्यक्त वतन में अव्यक्त ब्रह्मा बाबा अपने सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप में उपस्थित हैं। उनकी भृकुटि में चमक रहे पवित्रता के सागर अपने शिव पिता को मैं देख रही हूँ।

 

_ ➳  बापदादा इशारा करते हुए मुझे अपने पास बुला रहे हैं। धीरे - धीरे मैं फ़रिश्ता बापदादा के पास पहुँचता हूँ। मुझे अपने पास बिठा कर, अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख कर बापदादा मुझे "पवित्र भव, योगी भव" का वरदान देकर, अपनी शक्तिशाली दृष्टि द्वारा पवित्रता की शक्तिशाली किरणे मेरे अंदर प्रवाहित कर रहे हैं। *परमात्म लाइट मुझ फ़रिश्ते में समाकर मुझे पावन बना रही है। मैं स्वयं में परमात्म शक्तियों की गहन अनुभूति कर रहा हूँ*। बापदादा की बाहों में समाकर, उनसे दृष्टि लेते हुए उनकी लाइट माइट से स्वयं को भरपूर कर पवित्रता का फ़रिश्ता बन अब मैं सारे विश्व की आत्माओं को पावन बनाने के लिए सूक्ष्म वतन से नीचे आ जाता हूँ।

 

_ ➳  आकाश में विचरण करता हुआ मैं पवित्रता का फ़रिश्ता अब सारे विश्व का भ्रमण कर रहा हूँ और पतित पावन, पवित्रता के सागर अपने शिव पिता से सर्व गुण और सर्व शक्तियों की किरणो को स्वयं में समाकर फिर उन्हें धरती पर प्रवाहित कर रहा हूँ। *पवित्रता, सुख, शांति और शक्ति की किरणें बापदादा से मुझ आत्मा में और मुझ से फिर सारे विश्व में फ़ैल रही हैं और पतित हो चुकी सर्वं आत्माओं को छू कर उन्हें पावन बना रही हैं*। मुझ से निकल रही पावन किरणे सभी आत्माओं को पाप मुक्त होने में मदद कर रही हैं। मुझसे चारों और पवित्र वायब्रेशन फ़ैल रहे हैं।

 

_ ➳  विश्व की सर्व आत्माओ को पवित्रता के शुभ और श्रेष्ठ वायब्रेशन देकर सबको सुखमय स्थिति का अनुभव करवाकर अब *मैं फ़रिश्ता बापदादा से मिले "पवित्र भव, योगी भव" के वरदान को स्वीकार कर उसे फलीभूत करने के लिए, स्वयं में पवित्रता का बल भरने के सूक्ष्म आकारी देह के बन्धन को भी त्याग अपने अनादि सतोप्रधान स्वरुप में स्थित होती हूँ और डीप साइलेन्स का गहराई तक अनुभव करते हुए, सूक्ष्म वतन से ऊपर अपने शिव पिता के पास परमधाम की ओर चल पड़ती हूँ*। अपनी विदेही, निराकार और मास्टर बीज रुप स्थिति में अपने बीच रुप परम पिता परमात्मा, संपूर्णता के सागर, पवित्रता के सागर, सर्वगुण और सर्व शक्तियों के अखुट भंडार, ज्ञान सागर, पारसनाथ बाप के सामने जा कर मैं बैठ जाती हूँ

 

_ ➳  सम्पूर्ण निरसंकल्प अवस्था मे स्थित मैं आत्मा अपने इस परमधाम घर मे अपने सम्पूर्ण अनादि सतोप्रधान स्वरूप का अनुभव कर रही हूँ। *मास्टर बीजरूप अवस्था में स्थित हो कर अपने बीज रूप परमात्मा बाप के साथ का यह मंगलमयी मिलन मुझे अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करवा रहा है*। परमात्म लाइट मुझ आत्मा में समाकर मुझे पावन बना रही है। मैं स्वयं में परमात्म शक्तियों की गहन अनुभूति कर रही हूँ।

 

_ ➳  शक्ति स्वरुप बनकर अब मैं परम धाम से नीचे आ जाती हूँ और साकार सृष्टि पर आकर अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर अब मैं बापदादा द्वारा मिले "पवित्र भव योगी भव" के वरदान को स्वीकार कर, उसे अपने ब्राह्मण जीवन में धारण कर, घर गृहस्थ में कमल पुष्प समान रहकर अपनी रूहानियत की खुश्बू चारों और फैला रही हूँ। *संसार के सभी मनुष्य मात्र मेरे भाई बहन है। वे सब भी पवित्र आत्मायें हैं। इन्ही शुभ और श्रेष्ठ संकल्पो के साथ प्रवृति में रहते पवित्रता का श्रृंगार कर, अब मैं सबको पवित्रता की राह पर चलने का रास्ता बता रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अभ्यास की एक्सरसाइज द्वारा सूक्ष्म शक्तियों को जीवन मे समाने वाली शक्ति सम्पन्न आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं स्वमान में स्थित रहकर दूसरों को भी मान दे आगे बढ़ाने वाली स्वमानधारी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *अब बापदादा सभी बच्चों से यही चाहते हैं कि बाप के प्यार का सबूत समान बनने का दिखाओ। सदा संकल्प में समर्थ हो, अब व्यर्थ के समाप्ति समारोह मनाओ क्योंकि व्यर्थ समर्थ बनने नहीं देंगे और जब तक आप निमित्त बने हुए बच्चे सदा समर्थ नहीं बने हैं तो विश्व की आत्माओं को समर्थी कैसे दिलायेंगे!* सर्व आत्मायें शक्तियों से बिल्कुल खाली हो, शक्तियों की भिखारी बन चुकी हैं। ऐसे भिखारी आत्माओं को हे समर्थ आत्मायें, इस भिखारीपन से मुक्त करो। *आत्मयें आप समर्थ आत्माओं को पुकार रही हैं - हे मुक्तिदाता के बच्चे मास्टर मुक्तिदाता, हमें मुक्ति दो। क्या यह आवाज आपके कानों में नहीं पड़ता?* सुनने नहीं आता? अब तक अपने को ही मुक्त करने में बिजी हैं क्या? विश्व की आत्माओं को बेहद स्वरूप से मास्टर मुक्तिदाता बनने से स्वयं की छोटी-छोटी बातों से स्वतः ही मुक्त हो जायेंगे। *अब समय है कि आत्माओं की पुकार सुनो। पुकार सुनने आती है या नहीं आती है? परेशान आत्माओं को सुख- शान्ति की अंचली दो। यही है ब्रह्मा बाप को फालो करना।*

 

✺   *ड्रिल :-  "भिखारी आत्माओं को भिखारीपन से मुक्त करने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *मैं फरिश्ता मास्टर मुक्तिदाता की स्मृति में विश्व के ग्लोब पर हूँ... ऊपर हैं ज्ञान सूर्य शिवबाबा... उनसे निरन्तर सुख शांति की किरणें मुझ आत्मा पर आ रही हैं... मैं आत्मा इन समर्थ शक्तिशाली किरणों से भरपूर हो रही हूँ...* मुझ आत्मा से शांति और शक्ति के वायब्रेशन्स चारों ओर फैल रहें हैं... मैं आत्मा फरिश्ता स्वरूप द्वारा ग्लोब पर बैठ कर परमधाम की स्थिति में स्थित होकर सारे विश्व की आत्माओं को सकाश दे रही हूँ...

 

 _ ➳  *मैं आत्मा विश्व का नव निर्माण करने वाली आधारमूर्त आत्मा हूँ... मैं आत्मा स्व का परिवर्तन कर रही हूँ... मैं आत्मा विश्व की दुःखी, अशांत, परेशान आत्माओं को सुख शांति की अंचली दे रही हूँ...*  मैं आत्मा इस बेहद ड्रामा में हीरो एक्टर हूँ... मैं आत्मा हीरों तुल्य जीवन जीने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ... यह नशा मेरी हर एक्ट को समर्थ बना देता है... मैं आत्मा अपनी समर्थ स्थिति द्वारा व्यर्थ से पूरी तरह मुक्त हो गई हूँ...    

 

 _ ➳  मुझ आत्मा को बापदादा के महावाक्य याद आते हैं... बाबा कहते हैं- *बच्ची, तुम मास्टर मुक्तिदाता हो... तुम्हें स्वयं को परिवर्तन कर... सर्व आत्माओं को मुक्ति दिलाने के निमित्त बनना है...* मैं आत्मा विश्व की समस्त दुःखी, हताश, परेशान, अशांत... भिखारी आत्माओं को दुःखों से, अशांति से... मुक्ति दिला रही हूँ... मैं अपने फरिश्ते स्वरूप द्वारा पवित्र वायब्रेशन्स विश्व की सर्व आत्माओं को दे रही हूँ... उनके दुःख दूर कर रही हूँ...

 

 _ ➳  *मैं आत्मा ब्रह्मा बाबा को फॉलो कर रही हूँ...* उनकी तरह सदा एकरस... अचल... अडोल... निश्चिन्त रहती हूँ... जैसे ब्रह्मा बाबा चाहे जैसी भी आत्मा हो... हरेक के प्रति उनकी सहयोग की भावना रहती थी... वैसे ही *मैं आत्मा सर्व की सहयोगी बन रही हूँ... मन से... सर्व के प्रति श्रेष्ठ व शुभ भावना रख रही हूँ...* किसी भी आत्मा के प्रति इर्ष्या, द्वेष या घृणा की भावना नहीं रखती...  

 

 _ ➳  मैं आत्मा विश्व कल्याणकारी बन हर आत्मा के प्रति रहम की भावना... शुभ भावना... शुभ कामना रख रही हूँ... मुझ आत्मा के हर बोल से... हर कर्म से निरुत्साहित आत्मा के जीवन में भी उमंग उत्साह भर रहा है... *बाबा मेरे साथ कंबाइंड हैं... मेरे साथ हैं... उनके साथ की अनुभूति में रहती हूँ... सदा इस स्मृति में... स्वमान में रह चारों और सुख शांति के वायब्रेशन्स फैलाकर... दुःखी, अशांत आत्माओं को दुःखों से मुक्त कर रही हूँ... मुझ आत्मा से निकलती शक्तियों की अद्भुत किरणें हर आत्मा तक पहुँच कर उन्हें तृप्त कर रही हैं...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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