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❍ 12 / 07 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *स्वयं को मास्टर बीजरूप समझ कर्मेन्द्रियों को समेट शांत में बैठने का अभ्यास किया *
➢➢ *ख़ुशी ख़ुशी से पुराना कर्मभोग चुक्तु किया ?*
➢➢ *मन को बिजी रखने की कला द्वारा व्यर्थ से मुक्त रहे ?*
➢➢ *ड्रामा के हर दृश्य को देख हर्षित रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ अब सर्व ब्राह्मण बच्चों को यह स्पेशल अटेंशन रखना है कि हमें चारों ओर पावरफुल याद के वायब्रेशन फैलाने हैं, क्योंकि *आप सब ऊंचे ते ऊंचे स्थान पर रहते हो। तो जो ऊंची टावर होती है, वह सकाश देती है, उससे लाइट माइट फैलाते हैं। तो रोज कम से कम 4 घण्टे ऐसे समझो हम ऊंचे ते ऊंचे स्थान पर बैठ विश्व को लाइट और माइट दे रहा हूँ।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं परमात्म प्यारा रूहानी गुलाब हूँ"*
〰✧ सदा अपने को रूहानी रूहे गुलाब समझते हो? रूहानी रूहे गुलाब अर्थात् सदा रूहानियत की खुशबू से सम्पन्न आत्मा। *जो रूहे गुलाब होता है उसका काम है सदा खुशबू देना, खुशबू फैलाना। गुलाब का पुष्प जितना खुशबूदार होता है उतने कांटे भी होते हैं, लेकिन कांटों के प्रभाव में नहीं आता।* कभी कांटों के कारण गुलाब का पुष्प बिगड़ नहीं जाता है, सदा कायम रहता है। कांटे हैं लेकिन कांटों से न्यारा और सभी को प्यारा लगता है। स्वयं न्यारा है तब प्यारा लगता है।
〰✧ अगर खुद ही कांटों के प्रभाव में आ जाए तो उसे कोई हाथ भी नहीं लगायेगा। *तो रूहानी गुलाब की विशेषता है, किसी भी प्रकार के कांटे हों-छोटे हों या बड़े हों, हल्के हों या तेज हों-लेकिन हो सदा न्यारा और बाप का प्यारा।* प्यारा बनने के लिए क्या करना पड़े? न्यारापन प्यारा बनाता है।
〰✧अगर किसी भी प्रभाव में आ गये तो न बाप के प्यारे और न ब्राह्मण परिवार के। *अगर सच्चा प्यार प्राप्त करना है तो उसके लिए न्यारा बनो-सभी हद की बातों से, अपनी देह से भी न्यारा। जो अपनी देह से न्यारा बन सकता है वही सबसे न्यारा बन सकता है।* कई सोचते हैं-हमको इतना प्यार नहीं मिलता, जितना मिलना चाहिए। क्यों नहीं मिलता? क्योंकि न्यारे नहीं हैं। नहीं तो परमात्म-प्यार अखुट है, अटल है, इतना है जो सर्व को प्राप्त हो सकता है। लेकिन परमात्म-प्यार प्राप्त करने की विधि है न्यारा बनना। विधि नहीं आती तो सिद्धि भी नहीं मिलती।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *जो बहुत समय के स्नेही और सहयोगी रहते हैं उनको अंत में मदद जरूर मिलती है।* ऐसे अनुभव करेंगे जैसे स्थूल वस्त्र उतार रहे हैं। ऐसे ही शरीर छोड देंगे।
〰✧ *सारा दिन में चलते-चलते बीच-बीच में अशरीरी बनने का अभ्यास जरूर करो।* जैसे ट्रैफिक कन्ट्रोल का रिकार्ड बजता है तो वैसे वहाँ कार्य में रहते भी बीच-बीच में अपना प्रोग्राम आपे ही सेट करो तो लिंक जुटा रहेगा। इससे अभ्यास होता जाएगा।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *संगमयुग को नवयुग भी कह सकते हैं क्योंकि सब कुछ नया हो जाता है। बातें भी नई, मिलना भी नया, सब नया।* देखेंगे तो भी आत्मा, आत्मा को देखेंगे! पहले शरीरधारी शरीर को देखते थे अब आत्मा को देखते हैं। *पहले सम्पर्क में आते थे तो कई विकारी भावना से आते थे। अभी भाई-भाई की दृष्टि से सम्पर्क में आते हो।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ज्ञान रत्नों की लेन-देन कर एक दो की पालना करना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मुझे पत्थरबुद्धि से पारस बुद्धि बनाने वाले ज्ञान सागर बाबा के पास परमधाम में पहुँच जाती हूँ... ज्ञान सागर बाबा से निकलती ज्ञान की किरणों से मुझ आत्मा से अज्ञानता का आवरण हटता जा रहा है... ज्ञान की किरणें मुझमें सारी सृष्टि के आदि-मध्य-अंत का ज्ञान भर रही हैं...* मेरे बाबा ने मेरे असली स्वरुप, मेरे असली पिता, मेरे असली घर का स्पष्ट ज्ञान देकर मुझे त्रिकालदर्शी बना दिया... *मैं आत्मा इन किरणों से सराबोर होकर बाबा के साथ धीरे-धीरे नीचे उतरती जाती हूँ और पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन में...* जहाँ शिवबाबा ब्रह्मा बाबा के मस्तक में विराजमान हो जाते हैं और मुझे ज्ञान रत्नों से सजाते हैं...
❉ *मुझ आत्मा को सच्चा सच्चा रूप बसन्त बनाकर ज्ञान रत्नों से मेरी पालना करते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे बच्चे... आप ईश्वरीय फूल हो गॉडली स्टूडेंट हो... *कितना प्यारा और मीठा सा भाग्य है कि धरती पर आकर ईश्वर की गोद में पढ़ाई पढ़ रहे हो... तो भाग्य की इस अमीरी को ज्ञान रत्नों से छ्लकाओ... रूप और बसन्त बन अपनी योगी छटा का जहान को दीवाना बनाओ...”*
➳ _ ➳ *गॉडली स्टूडेंट बन ज्ञान बरसात में नहाकर ज्ञान रत्नों को धारण करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ज्ञान की अमीरी में मुस्करा उठी हूँ... *अपने शानदार भाग्य को पाकर निहाल हो गई हूँ... रत्नों से भरपूर होकर... सुनहरा रूप पाकर बसन्त सी खिल उठी हूँ...”*
❉ *अपनी यादों की फुलवारी में मेरी ऊँची तकदीर बनाते हुए मेरे भाग्यविधाता मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वरीय स्टूडेंट हो तो हर बात हर चाल रूहानी हो... हर कर्म असाधारण हो... *सदा मुख से रत्नों की बरसात हो कि हर दिल सुख की भासना से पुलकित हो उठे... सच्चे पिता और सच्चे ज्ञान की चमक का पूरे विश्व को दीवाना बना आओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ज्ञान बदली बन आसमान में चमकते हुए, ज्ञान की बूंदों से विश्व को सराबोर करते हुए कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा बाबा से ज्ञान रत्नों का अथाह खजाना पाकर हर दिल पर लुटा रही हूँ... कौन मिला है मुझे इस रूहानी नूर से हर दिल को रौशन कर रही हूँ...* और टीचर बाबा के पते की दस्तक हर दिल को दे रही हूँ...”
❉ *अपने मधुर महावाक्यों से मेरी पालना करते हुए मेरे मीठे प्यारे पारलौकिक बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर ने पसन्द किया और अपना स्टूडेंट बनाया है... *यह भाग्य विरलो को ही नसीब होता है... तो जो खूबसूरत भाग्य हाथ आया है... उस की खूबसूरती को छ्लकाओ... भगवान बैठ पढ़ा रहा और सुंदर देवता सा सजा रहा... इस नशे में झूम जाओ... सबको ज्ञान रत्नों से मालामाल कर आओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मास्टर ज्ञान सागर बन ज्ञान की सरगम से पूरे विश्व में मिठास फैलाते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *आपसे पाये ज्ञान रत्नों की झनकार हर दिल को सुना रही हूँ... सच्चा रूप बसन्त बन मीठा मुस्करा रही हूँ...* ईश्वरीय स्टूडेंट हूँ... इस खुमारी में खोती जा रही हूँ... अपने मीठे भाग्य पर मन्द मन्द मुस्करा रही हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अपने को मास्टर बीज रूप समझ कर्मेन्द्रियों को समेट शान्त में बैठने का अभ्यास करना है*
➳ _ ➳ स्व स्थिति के आसन पर विराजमान होते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे *कोई राजा अपने सिहांसन पर विराजमान होकर, अपने अधिकारों का प्रयोग करता है और अपने राज्य की कारोबार को चलाने के लिए अपने मंत्रियों को आदेश देकर अपने शासन की बागडोर को अच्छी रीति सम्भलाता है ठीक उसी तरह मैं आत्मा भी अब स्वराज्य अधिकारी की सीट पर सेट हूँ और महसूस कर रही हूँ कि मैं आत्मा राजा हूँ और हर कर्मेंद्रिय मेरे ऑर्डर प्रमाण कार्य कर रही है*।
➳ _ ➳ अपने ऊँचे ते ऊँचे अधिकारीपन के आसन पर सेट होकर अब मैं अपनी सभी कर्मेन्द्रियों को समेट, मास्टर बीज रूप स्थिति में स्थित होकर शांति में बैठने का अभ्यास करती हूँ और धीरे - धीरे महसूस करती हूँ जैसे मैं आत्मा अंतर्मुखता की एक ऐसी गुफा में जा रही हूँ जहाँ कोई आवाज, कोई शोर नही यहां तक कि संकल्पो की भी हलचल नही। *अंतर्मुखता का यह अवस्था मुझे गहन शांति का अनुभव करवा रही है। अपने मस्तक से निकल रहे शांति के वायब्रेशन्स को मैं अपने चारों और फैलता हुआ देख रही हूँ। शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स धीरे - धीरे चारों ओर फैलते जा रहें हैं और मेरे आस पास के वायुमंडल को शांत बना रहे हैं*। मैं महसूस कर रही हूँ कि मुझ आत्मा से निकल रहे शांति के वायब्रेशन्स से एक शक्तिशाली आभामण्डल मेरे चारों तरफ बन गया है जो बाहरी वातावरण के हर प्रभाव से मुझे मुक्त कर रहा है।
➳ _ ➳ अंतर्मुखी बन, शांति की गहन अनुभूति करते हुए, शांति के सागर अपने प्यारे पिता को अब मैं याद करती हूँ और महसूस करती हूँ कि उन्हें याद करते ही मेरे मन बुद्धि का कनेक्शन शांति धाम में रहने वाले शांति के सागर अपने शिव पिता के साथ जुड़ गया है और यह कनेक्शन मुझे अपनी और खींच रहा है। *मन बुद्धि के विमान पर बैठ सेकण्ड में मैं साकार और सूक्ष्म लोक को पार करके अपने शांतिधाम घर मे पहुँच जाती हूँ। शांति के बहुत ही शक्तिशाली वायब्रेशन इस शांति धाम घर में फैले हुए हैं। जो मुझे गहन शांति से भरपूर कर रहे हैं*। गहन शांति की गहन अनुभूति करते हुए मैं आत्मा धीरे - धीरे शांति के सागर अपने प्यारे पिता के पास पहुँच जाती हूँ।
➳ _ ➳ सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के सागर अपने शांति दाता शिव बाबा के समीप बैठ अब मैं उनके सर्व गुणों, सर्व शक्तियों की एक - एक किरण को गहराई तक स्वयं में समाती जा रही हूँ। जैसे - जैसे बाबा की सर्वशक्तियों की किरणे मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं मैं स्वयं में असीम बल भरता हुआ अनुभव कर रही हूँ। *अपने बिंदु बाप की शीतल किरणों की छत्रछाया में गहन शीतलता की अनुभूति करते हुए अपने प्यारे बाबा के साथ इतना सुन्दर मधुर मंगल मिलन मनाने का सुख मैं प्राप्त कर रही हूँ*। मास्टर बीज रूप बन अपने बीज रूप बाप के साथ मंगल मिलन मनाने का यह सुख मुझे परम आनन्द प्रदान कर रहा है। परमात्म शक्तियों से मैं आत्मा भरपूर होती जा रही हूँ और बहुत ही शक्तिशाली स्थिति का अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने बीज रूप शिव पिता के सानिध्य में बैठ, उनकी सर्वशक्तियों को स्वयं में समाकर मैं मास्टर बीज रूप आत्मा उनके समान अति तेजस्वी, सर्वशक्तिसम्पन्न स्वरूप बन कर, अब वापिस अपने कर्म क्षेत्र पर लौट रही हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करके फिर अपने को देह से न्यारी मास्टर बीज रूप आत्मा समझ, कर्मेन्द्रियों को समेट शान्त में बैठने का अभ्यास निरन्तर करते हुए, गहन शांति की अनुभूति मैं हर पल स्वयं भी कर रही हूँ और दूसरों को भी करा रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं मन को बिजी रखने की कला द्वारा व्यर्थ से मुक्त रहने वाली सदा समर्थ स्वरूप आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं ड्रामा के हर दृश्य को देख हर्षित रहकर कभी अच्छे बुरे की आकर्षण में नहीं आने वाली हर्षित आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ‘‘आज बापदादा सर्व स्नेही और मिलन की भावना वाली श्रेष्ठ आत्माओं को देख रहे हैं। बच्चों की मिलन भावना का प्रत्यक्षफल बापदादा को भी इस समय देना ही है। भक्ति की भावना का फल डायरेक्ट सम्मुख मिलन का नहीं मिलता। लेकिन एक बार परिचय अर्थात् ज्ञान के आधार पर बाप और बच्चे का सम्बन्ध जुटा, तो ऐसे *ज्ञान स्वरूप बच्चों को अधिकार के आधार पर शुभ भावना, ज्ञान स्वरूप भावना, सम्बन्ध के आधार पर मिलन भावना का फल सम्मुख बाप को देना ही पड़ता है*। तो आज ऐसे ज्ञानवान मिलन की भावना स्वरूप आत्माओं से मिलने के लिए बापदादा बच्चों के बीच आये हुए हैं।
➳ _ ➳ *कई ब्राह्मण आत्मायें शक्ति स्वरूप बन, महावीर बन सदा विजयी आत्मा बनने में वा इतनी हिम्मत रखने में स्वयं को कमजोर भी समझती हैं लेकिन एक विशेषता के कारण विशेष आत्माओं की लिस्ट में आ गई हैं*। कौन-सी विशेषता? *सिर्फ बाप अच्छा लगता है*, श्रेष्ठ जीवन अच्छा लगता है। ब्राह्मण परिवार का संगठन, नि:स्वार्थ स्नेह- मन को आकर्षित करता है। बस यही विशेषता है कि *बाबा मिला, परिवार मिला, पवित्र ठिकाना मिला, जीवन को श्रेष्ठ बनाने का सहज सहारा मिल गया*। *इसी आधार पर मिलन की भावना में स्नेह के सहारे में चलते जा रहे हैं*।
✺ *"ड्रिल :- स्वयं को विशेष आत्मा समझना।"*
➳ _ ➳ शुभभावनाओं की शाखाओं पर झूलता, स्नेह वात्सल्य के पलनों में पलता, मैं आत्मपंछी, मन बुद्धि की सुन्दर मणियों समान चमचमाती आँखों से इस देह रूपी पिंजरें को साक्षी भाव से देख रहा हूँ... *पाँच तत्वों से बना ये देह रूपी पिंजरा... इसमे रहने का लम्बा अभ्यास और इसकी छदम् स्वर्ण मयी आभा मुझे लुभाती है, मगर दूर क्षितिज से आती और मेरे कानो में गुनगुनाती मीठी- सी मनुहार भी मुझे बुलाती है*... मिलन की भावना में स्नेह के सहारें, उमंग उत्साह के पंखो से चले आओं मेरे पास... मानों कोई पुकार रहा है... *आ जाओ लाडलों अब अव्यक्त है इशारें इन्तज़ार कर रहे है बाबा बाहें पसारे*...
➳ _ ➳ सप्तरंगों की इन्द्रधनुषी आभा से झिलमिलाती नन्हीं मणि के समान मैं आत्मा, उमंग उत्साह के पंखों से उडती जा रही हूँ परमधाम की ओर... और एक रूप होकर शिव पिता की गोद में समाँ गयी हूँ... *वो स्नेहमयी गोद, उनका वो दुलार, शुभ संकल्पों की माला बनकर सिज़रें की सभी रूहानी मणियों को शुभ भावों से भरपूर कर रहा है...* मैं आत्मा स्वयं को देर तक शान्ति प्रेम पवित्रता और शक्तियों से भरपूर करती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ *बारिश के बाद जैसे- भरपूर होकर बहता कोई झरना, झरने के नीचे भरपूर होकर झलकता कोई घट*... उसी तरह मेरे उर का घट भी छलक रहा है... छलछलाई उर में मधुशाला अंग अंग डूबा प्यार में, पाकर तेरी रहमते, खाक शेष इस संसार में... *ज्ञान स्वरूप बनकर, मैं अधिकारी बन, शुभभावना और सर्वसम्बन्धों का सुख पाती हुई, स्नेह मिलन का प्रत्यक्ष फल पा रही हूँ*... मिलन का ये सुख अनिर्वचनीय है... *न बता सकूँ न छुपा सकूँ कुछ-कुछ हालत मदहोशी की, अल्फ़ाज नहीं मिलते लबों को, और बोल रही है खामोशी भी...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा भरपूर होकर फरिश्ता रूप में बापदादा के संग विश्व सेवा पर... विश्व की सभी आत्माओं को मनसा सकाश दे रही हूँ... बापदादा के हाथों में मेरे दोनो हाथ... *मैं फरिश्ता महसूस कर रही हूँ उन हाथों की वरदानी शक्तियों को, जो मुझ फरिश्ते को शक्ति स्वरूप और महावीर बनने का वरदान दे रहे हैं*... बापदादा मुझे सदा विजयी बनने का तिलक लगा रहे हैं... *उनकी उँगलियों का वो स्नेहिल सा जादुई स्पर्श मैं देर तक अपनी भृकुटी पर महसूस कर रही हूँ... ये स्पर्श मुझे पल पल विशेष आत्मा होने का गहराई से एहसास करा रहा है* और मैं याद कर रही हूँ अपनी विशेषताओं को...
➳ _ ➳ सिर्फ एक बाप को पहचाना है मैंने, सिर्फ एक बाप अच्छा लगता है... और इसी एक सम्बन्ध से सब सम्बन्ध पा लिए है... *देखूँ आँचल को मैं अपने, ये सौगातो से भरपूर है, बन गयी मैं विशेष आत्मा ये तेरी रहमतों का नूर है... ये निशदिन स्नेह की बरसाते और सुख रूहानी रिश्तों का, मंजिले कदमों तले और संग मिला फरिश्तों का*...
➳ _ ➳ *बाबा मिला, परिवार मिला, जीवन को श्रेष्ठ बनाने का सहारा मिल गया*... पाना था जो पा लिया के नशे में चूर मैं आत्मपंछी लौट आयी हूँ फिर से उसी देह में... *अब ये देह मेरे लिए पिंजरा नही है... ये विशेष साधन है संगम पर विशेष कमाई का*... साक्षी भाव से देखती हुई मैं विशेष आत्मा बैठ गयी हूँ पंच तत्वो के इस विशेष रथ पर... अपनी विशेष सेवाओ के निमित्त... अपनी विशेषताओं के नशे में चूर... *क्योंकि इस संगम पर मेरा अब हर पल विशेष है*... ओम शान्ति...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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