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❍ 10 / 05 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *इस शरीर से मोह निकाल नष्टोमोहा बनकर रहे ?*
➢➢ *सपूत बच्चा बन निरंतर बाप को याद करने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *सब कुछ बाप हवाले कर संगमयुगी बादशाही का अनुभव किया ?*
➢➢ *आपका एक एक वाक्य महावाक्य रहा ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जब तपस्वी तपस्या करते हैं तो वृक्ष के नीचे तपस्या करते हैं। इसका भी बेहद का रहस्य है, *इस सृष्टि रूपी वृक्ष में आप लोग भी नीचे जड़ में बैठकर तपस्या कर रहे हो। वृक्ष के नीचे बैठने से सारे वृक्ष की नॉलेज बुद्धि में आ जाती है। यह जो आपकी स्टेज है, उसका यादगार भक्तिमार्ग में चलता आया है। यह है प्रैक्टिकल, भक्ति मार्ग में फिर स्थूल वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या करते हैं।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं ईश्वरीय सुख के अधिकारी आत्मा हूँ"*
〰✧ अविनाशी सुख और अल्पकाल का सुख - दोनों के अनुभवी हो ना? *अल्पकाल का सुख है - स्थूल साधनों का सुख और अविनाशी सुख है - ईश्वरीय सुख। तो सबसे अच्छा सुख कौनसा हैं! ईश्वरीय सुख जब मिल जाता है तो विनाशी सुख आपे ही पीछे-पीछे आता है।* जैसे कोई धूप में चलता है तो उसके पीछे परछाई आपे ही आती है और अगर कोई परछाई के पीछे जाये तो कुछ नहीं मिलेगा।
〰✧ *तो जो ईश्वरीय सुख के तरफ जाता है, उसके पीछे अल्पकाल का सुख स्वत: ही परछाई की तरह आता रहेगा, मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। जैसे कहते हैं - जहाँ परमार्थ होता है, वहाँ व्यवहार स्वत: सिद्ध हो जाता है। ऐसे ईश्वरीय सुख है 'परमार्थ' और विनाशी सुख है 'व्यवहार'।* तो परमार्थ के आगे व्यवहार आपे ही आता है।
〰✧ तो सदा इसी अनुभव में रहना जिससे दोनों मिल जाएं। नहीं तो, एक मिलेगा और वह भी विनाशी होगा। कभी मिलेगा, कभी नहीं मिलेगा। क्योंकि चीज ही विनाशी है, उससे मिलेगा ही क्या? *जब ईश्वरीय सुख मिल जाता है तो सदा सुखी बन जाते हैं, दु:ख का नामनिशान नहीं रहता। ईश्वरीय सुख मिला माना सब कुछ मिला, कोई अप्राप्ति नहीं रहती। अविनाशी सुख में रहने वाले विनाशी चीजों को न्यारा होकर यूज करेगा, फंसेगा नहीं।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *अपने आपको एक सेकण्ड में शरीर से न्यारा अशरीरी आत्मा समझ आत्म - अभिमानी वा देही - अभिमानी स्थिति में स्थित हो सकते हो?* अर्थात एक सेकण्ड में कर्मेन्द्रियों का आधार लेकर कर्म किया और एक सेकण्ड में फिर कर्मेंन्द्रियों से न्यारा, ऐसी प्रैक्टिस हो गई है? कोई भी कर्म करते कर्म के बन्धन में तो नहीं फंस जाते हो?
〰✧ *हर कर्मेन्द्रियों को जैसे चलाना चाहो वैसे चला सकते हो वा आप चाहते एक हो, कर्मेन्द्रियाँ दूसरा कर लेती है?* रचयिता बनकर रचना को चलाते हो? जैसे और कोई भी जड वस्तु को चैतन्य आत्मा वा चैतन्य मनुष्यात्मा जैसे चाहे वैसे कर्तव्य में लगा सकती है, जहाँ चाहे वहाँ रख सकती है।
〰✧ जड वस्तु चैतन्य के वश में है, चैतन्य जड वस्तु के वश में नहीं होता है। *ऐसे ही 5 तत्वों के जड शरीर को चैतन्य आत्मा जैसे चलाना चाहे वैसे नहीं चला सकती है?* जैसे जड वस्तु को किस भी रुप में परिवर्तन कर सकते हो वैसे कर्मेन्द्रियों को विकारी से निर्विकारी वा विकारों के वश आग में जले हुए कर्मेन्द्रियों को शीतलता में नहीं ला सकते हो? क्या चैतन्य आत्मा में यह परिवर्तन की शक्ति नहीं आई हैं ?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ बाप-समान निराकारी, देह की स्मृति से न्यारे, आत्मिक स्वरूप में स्थित होते हुए, साक्षी होकर अपना और सर्व आत्माओं का पार्ट देखने का अभ्यास मजबूत होता जाता है? सदा साक्षीपन की स्टेज स्मृति में रहती है? *जब तक साक्षी स्वरूप की स्मृति सदा नहीं रहती तो बाप-दादा को अपना साथी भी नहीं बना सकते। साक्षी अवस्था का अनुभव, बाप के साथीपन का अनुभव कराता है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सब शरीरधारियों को भूल अशरीरी बाप को याद करने का अभ्यास करना"*
➳ _ ➳ मैं अशरीरी आत्मा जन्म-जन्म अनेक शरीरों को धारण कर इस शरीर को ही सबकुछ समझ बैठी थी... शरीर के भान में आकर मैं आत्मा देह के संबंधो, देह के वैभवों, देह की दुनिया के जंजीरों में फंस गई थी... परम ज्योति परमात्मा ने मुझे स्मृति दिलाई की मैं ये शरीर नहीं बल्कि एक आत्मा हूँ... *इस देह के सम्बन्धी जिनको अपना समझ मोह के बंधन में फंस गई... वो तो हर जन्म में अलग-अलग हैं... हर जन्म के माता-पिता अलग हैं... सिर्फ एक जिससे मेरा स्थाई सम्बन्ध है वो सिर्फ परमात्मा हैं... वही मेरे असली पिता हैं...* मैं आत्मा अपने सच्चे-सच्चे पिता को याद करती हुई उनके पास उड़ चलती हूँ...
❉ *इस देह सहित इन आँखों से जो कुछ भी दिखता है उसे भूल एक बाप को याद करने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... *अब इस मिटटी और मटमैली दुनिया से और दिल न लगाओ... पुरानी दुनिया को भूलकर, नई सतयुगी दुनिया के सुखो में खो जाओ... सच्चे सहारे मीठे बाबा को प्रतिपल याद करो...* जो हाथ में हाथ डालकर मीठे घर ले जायेगा... और पुनः अनन्त सुखो की बहारो को दामन में सजाएगा...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा की यादों के उपवन में रूहानी फूल बन महकते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा विकारी दुनिया के मायाजाल से मुक्त होकर... आपकी यादो में काँटे से फूल बन रही हूँ... *ईश्वरीय प्यार को पाकर रूहानियत से भर गयी हूँ... पुरानी दुनिया को भूल सुख भरी दुनिया के आनन्द में खो रही हूँ... आपके प्यार की गहराई में डूबकर खुशियो में चहक उठी हूँ..."*
❉ *विनाशी दुनिया के अंधकार से निकाल प्रकाशमय सतयुगी दुनिया की ओर ले जाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... अब यह खेल समाप्ति की ओर है... इस देह और देह की दुनिया से सारे नाते तोड़कर आत्मिक नशे से भर जाओ... *मीठे बाबा की यादो में देवताई निखार को पा जाओ... यह पुरानी दुनिया के सारे मंजर स्वाहा हो जायेंगे... सिर्फ यादो में बीते पल ही सच्चा साथ निभाएंगे...* इसलिए सब कुछ भूल रोम रोम को ईश्वरीय प्यार में डुबो दो..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा काले बादलों के साये से निकल इन्द्रधनुषी रंगों से अपने जीवन को सजाते हुए कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता की बाँहों में मुस्कराने वाली बेहद भाग्यशाली हूँ... *मीठे बाबा आपने जीवन में आकर मेरे कदमो तले खुशियो के फूल बिछा दिए है... और मेरी तकदीर को अपने प्यार के खुबसूरत रंगो से सजा दिया है... आपकी यादो में मै सारी दुनिया ही भूल रही हूँ..."*
❉ *मेरे मनमीत प्यारे जादूगर बाबा अपने प्रेम की छड़ी से इस दुनिया के भंवर जाल को ख़त्म करते हुए कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वरीय प्यार की छत्रछाया में मन बुद्धि को देह के मायाजाल से मुक्त करो... *हर साँस समय संकल्प को ईश्वर पिता के प्यार में लुटा दो... यह सच्चे प्रेम का रिश्ता ही सच्चा साथ निभायेगा... और सतयुगी दुनिया के असीम सुख को आँचल में भर कर... सच्ची प्रीत की रीत निभायेगा..."*
➳ _ ➳ *प्यारे बाबा के सच्चे प्रेम के आगोश में डूबकर खुशियों के जहान में लहराते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सच्चे प्रेम की बून्द को प्यासी, दर दर भटक रही थी... प्यारे बाबा आपको न जाने कहाँ कहाँ तो खोज रही थी... आज आपको पाकर मैंने सारा जहान पा लिया है... *सच्चा प्रेम, ईश्वरीय यादो भरा सच्चा सुख पाकर, मै आत्मा सदा की तृप्त हो गयी हूँ... और मीठी यादो में खोकर, देह की दुनिया ही भूल गयी हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सपूत बच्चा बन निरन्तर बाप को याद करने का पुरुषार्थ करना है*
➳ _ ➳ अपने प्यारे परम पिता परमात्मा का सपूत बच्चा बन उनकी आज्ञानुसार, उनके फरमान का पालन करते हुए, अपने मन औऱ बुद्धि को याद की उस खूबसूरत रूहानी यात्रा पर मैं ले चलती हूँ, जो यात्रा जन्म जन्मांतर के पापों को भस्म कर, मुझे भविष्य 21 जन्मों के लिए अपरमअपार सुख देने वाली है। *चित को चैन देने वाली और मन को अमन कर देने वाली याद की उस यात्रा पर चलने के लिए मैं नश्वर संसार की हर बात से किनारा कर, हर संकल्प, विकल्प से अपने मन बुद्धि को हटाकर अपने ध्यान को एकाग्र करती हूँ* और अपनी सभी कर्मेन्द्रियों से चेतनता को समेट कर, मस्तक के बिल्कुल सेन्टर पर स्थित कर लेती हूँ।
➳ _ ➳ एकाग्रता की शक्ति द्वारा, अपने वास्तविक स्वरूप को ज्ञान के दिव्य चक्षु से निहारते हुए, अपने अंदर समाये गुणों और शक्तियों का आनन्द लेते हुए, याद की इस खूबसूरत यात्रा पर अब मैं धीरे - धीरे आगे बढ़ती हूँ। *एक चैतन्य सितारे के रूप में स्वयं को भृकुटि के भव्यभाल पर चमकता हुआ मैं देख रही हूँ जो अपने गुणों और शक्तियों की किरणें चारों और फैलाता हुआ धीरे - धीरे भृकुटि सिहांसन को छोड़, देह रूपी गुफा से बाहर आ रहा है*। अपनी सम्पूर्ण निराकारी स्थिति में अब मैं स्वयं को देह से बिल्कुल न्यारा देख रही हूँ। मेरा यह सतोगुणी स्वरूप मुझे गहन सुखमय स्थिति का अनुभव करवा रहा है। *देह और देह की दुनिया के हर बन्धन, हर बोझ से मुक्त एकदम लाइट स्थिति में स्थित होकर अब मैं धीरे - धीरे ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ*।
➳ _ ➳ अपने गुणों और शक्तियों की रंग बिरंगी किरणो को चारों औऱ फैलाते हुए, याद की इस अति मनभावनी रूहानी यात्रा का आनन्द लेते हुए, मैं सारे विश्व का चक्कर लगाती हुई पहुँच जाती हूँ विशाल नीलगगन में। *सूर्य, चाँद, तारागणों के इस मांडवे को देखते - देखते इस विशाल नीलगगन को पार कर अब मैं इससे और आगे की यात्रा पर चलते हुए, सूक्ष्म लोक को पार करके, पहुँच जाती हूँ अपनी मंजिल अपने मूलवतन घर में*। साकारी और आकारी दोनों दुनियाओं से परें शान्ति की यह दुनिया जहाँ संकल्पों की भी हलचल नही, अपने इस मूलवतन घर में आकर याद की अपनी रूहानी यात्रा को मैं विराम देती हूँ और *इस यात्रा से मिलने वाले अतीन्द्रीय सुख के मधुर एहसास में डूब जाने के लिए, सुख के सागर अपने निराकार शिव पिता के पास पहुँचती हूँ*।
➳ _ ➳ सर्वगुणों, सर्वशक्तियों के सागर अपने प्यारे पिता को ज्योतिपुंज के रूप में अपने सामने मैं देख रही हूँ जो अपनी किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरा आह्वान कर रहें हैं। *अपना सम्पूर्ण ध्यान महाज्योति अपने शिव पिता पर केंद्रित कर, मन बुद्धि रूपी नेत्रों से उनके सुन्दर स्वरूप को और उनसे निकल रहे प्रकाश की एक - एक किरण को निहारते हए मैं असीम आनन्द का अनुभव कर रही हूँ*। शक्तियों के सागर सर्वशक्तिवान मेरे शिव पिता की सर्वशक्तियों की अनन्त किरणें मुझ आत्मा के ऊपर पड़ रही हैं और मुझे गहन शीतलता की अनुभूति करवा रही हैं। *एक दिव्य अलौकिक आनन्द का अनुभव करते हुए, अतीन्द्रिय सुख के झूले में मैं झूल रही हूँ*।
➳ _ ➳ मेरे प्यारे पिता की सर्वशक्तियों की शक्तिशाली किरणें मेरे अंदर प्रवाहित हो कर मुझमे असीम बल भर रहीं हैं। स्वयं को मैं बहुत ही शक्तिशाली और तृप्त अनुभव कर रही हूँ। सुख, शांति के सागर अपने शिव पिता से मिल कर, उनसे शक्तियों की खुराक ले कर, असीम ऊर्जावान बन कर अब मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। *अपने साकारी तन में विराजमान हो कर, अपने शिव पिता की याद को सदा अपने हृदय में बसा कर अब मैं सदा स्मृति स्वरूप रहती हूँ। बाबा का सपूत बच्चा बन, बाबा की आज्ञा अनुसार निरन्तर बाप को याद करने का बाबा ने जो फरमान दिया है उसे पूरा करने के लिए, कर्मयोगी बन, मन बुद्धि से याद की यात्रा पर चलने का पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं सब कुछ बाप हवाले कर संगमयुगी बादशाही का अनुभव करने वाली अविनाशी राजतिलक अधिकारी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं कोई भी बोल व्यर्थ न गंवा कर, एक-एक वाक्य को महावाक्य बनाने वाला मास्टर सतगुरु हूं ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ माया की छाया से बचने के लिए छत्रछाया के अन्दर रहो:- सदा अपने ऊपर बाप के याद की छत्रछाया अनुभव करते हो? याद की छत्रछाया है। इस छत्रछाया को कभी छोड़ तो नहीं देते? *जो सदा छत्रछाया के अन्दर रहते हैं वे सर्व प्रकार के माया के विघ्नों से सेफ रहते हैं। किसी भी प्रकार से माया की छाया पड़ नहीं सकती। यह 5 विकार, दुश्मन के बजाए दास बनकर सेवाधारी बन जाते हैं। जैसे विष्णु के चित्र में देखा है - कि सांप की शय्या और सांप ही छत्रछाया बन गये। यह है विजयी की निशानी।* तो यह किसका चित्र है? आप सबका चित्र है ना। जिसके ऊपर विजय होती है वह दुश्मन से सेवाधारी बन जाते हैं। ऐसे विजयी रत्न हो। शक्तियाँ भी गृहस्थी माताओं से, शक्ति सेना की शक्ति बन गई। शक्तियों के चित्र में रावण के वंश के दैत्यों को पांव के नीचे दिखाते हैं। शक्तियों ने असुरों को अपने शक्ति रूपी पाँव से दबा दिया। *शक्ति किसी भी विकारी संस्कार को ऊपर आने ही नहीं देगी।*
✺ *"ड्रिल :- अपने विष्णु स्वरुप का अनुभव करना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बगीचे में झूला झूलती हुई आसमान को निहार रही हूँ...* 16 कलाओं से परिपूर्ण पूर्णमासी का चाँद चारों ओर अपनी चांदनी बिखेर रहा है... आसमान में सितारे जगमग चमकते हुए अति सुंदर नजर आ रहे हैं... *सितारों की सुन्दरता को देखते हुए मैं आत्मा एकाएक चिंतन करने लगती हूँ कि मैं आत्मा भी एक सितारे मिसल हूँ...* आसमान के सितारों से भी ज्यादा चमक है मुझ आत्मा में...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने भव्य स्वरूप को देखने लगती हूँ... *जैसे ही आत्मानुभूति करने लगती हूँ प्यारे बाबा की याद आ जाती है...* प्यारे बाबा का आह्वान करती हूँ... प्यारे बाबा को बुलाते ही चंद्रमा में बाबा मुस्कुराते हुए नज़र आने लगते हैं... परमधाम जैसा नज़ारा अनुभव हो रहा है... बाबा के चारों ओर आत्मा सितारे जगमगा रहे हैं... पूरा आसमान छत्रछाया लग रहा है...
➳ _ ➳ *बाबा अपनी शीतल किरणों की वर्षा कर रहे हैं...* पूरे आसमान से दिव्य किरणों की बौछारें मुझ पर पड़ रही हैं... मुझ आत्मा से एक-एक विकार बाहर निकलते जा रहे हैं... काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार सभी विकार बाहर निकलकर माया रावण का पुतला बन सामने खड़े हो जाते हैं... *बाबा से निकलती दिव्य तेजोमय किरणों से रावण का पुतला बीज सहित भस्म हो रहा है...* मेरे सामने विकारों रूपी रावण का वंश सहित अंत हो चुका है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा माया की छाया से मुक्त हो चुकी हूँ... और सदा बाबा की छत्र छाया का अनुभव कर रही हूँ... *मैं आत्मा सभी विकारों पर विजय प्राप्त कर विजयी रत्न होने का अनुभव कर रही हूँ...* माया के सभी विघ्नों से सेफ अनुभव कर रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा बाबा की छत्रछाया के अन्दर ही रहती हूँ... पांचो विकार अब मुझ आत्मा के अधीन हो गए हैं... सभी कर्मेन्द्रियाँ मेरे वश हो गए हैं...
➳ _ ➳ *ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे पांचो विकारों रूपी नाग सेवाधारी बन मेरी सेवा कर रहे हैं...* मुझ आत्मा को ये झूला शेषशैया अनुभव हो रहा है जिस पर मैं आत्मा विष्णु स्वरुप में लेटी हुई हूँ... क्षीरसागर में लेटी मैं अपने विष्णु स्वरुप में मायाजीत, प्रकृतिजीत, जगतजीत होने का अनुभव कर रही हूँ... *मैं आत्मा अपने विष्णु स्वरुप का अनुभव करती हुई बाबा की याद की गोदी में सो जाती हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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