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❍ 05 / 09 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *5 विकारों की बीमारी से मुक्त होने के लिए सर्जन की राय लेते रहे ?*
➢➢ *कोई भी बेकायदे चलन तो नहीं चली ?*
➢➢ *स्वदर्शन चक्रधारी बन हर कर्म चरित्र के रूप में किया ?*
➢➢ *ख़ुशी के समर्थ संकल्पों की रचना की ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *विशेष अमृतवेले पावरफुल स्थिति की सेटिंग करो।* पॉवरफुल स्टेज अर्थात् बाप समान बीजरूप स्थिति में स्थित रहने का अभ्यास करो। जैसा श्रेष्ठ समय है, वैसी श्रेष्ठ स्थिति होनी चाहिए। *साधारण स्थिति में तो कर्म करते भी रह सकते हो, लेकिन यह विशेष वरदान का समय है। इस समय को यथार्थ रीति यूज करो तो सारे दिन की याद की स्थिति पर उसका प्रभाव रहेगा।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं प्रवृत्ति में रहते न्यारी और परमात्मा की प्यारी आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को प्रवृत्ति में रहते न्यारे और प्यारे अनुभव करते हो? कि प्रवृत्ति में रहने से प्रवृत्ति के प्यारे हो जाते हो, न्यारे नहीं हो सकते हो? *जो न्यारा रहता है वही हर कर्म में प्रभु प्यार अर्थात् बाप के प्यार का अनुभव करता है। अगर न्यारे नहीं रहते तो परमात्म प्यार का अनुभव भी नहीं करते और परमात्म प्यार ही ब्राह्मण जीवन का विशेष आधार है।* वैसे भी कहा जाता है कि प्यार है तो जीवन है, प्यार नहीं तो जीवन नहीं। तो ब्राह्मण जीवन का आधार है ही परमात्म प्यार और वह तब मिलेगा जब न्यारे रहेंगे। लगाव है तो परमात्म प्यार नहीं। न्यारा है तो प्यार मिलेगा। इसीलिये गायन है जितना न्यारा उतना प्यारा।
〰✧ वैसे स्थूल रूप में लौकिक जीवन में अगर कोई न्यारा हो जाये तो कहेंगे कि ये प्यार का पात्र नहीं है। *लेकिन यहाँ जितना न्यारा उतना प्यारा। जरा भी लगाव नहीं, लेकिन सेवाधारी। अगर प्रवृत्ति में रहते हो तो सेवा के लिये रहते हो। कभी भी यह नहीं समझो कि हिसाब-किताब है, कर्म बन्धन है .. लेकिन सेवा है। सेवा के बन्धन में बंधने से कर्म-बन्धन खत्म हो जाता है।* जब तक सेवा भाव नहीं होता तो कर्मबन्धन खींचता रहता है। बाप ने डायरेक्शन दिया है उसी श्रीमत पर रहे हुए हो, अपने हिसाब किताब से नहीं। कर्मबन्धन है या सेवा का बन्धन है .. उसकी निशानी है अगर कर्म बन्धन होगा तो दु:ख की लहर आयेगी और सेवा का बन्धन होगा तो दु:ख की लहर नहीं आयेगी, खुशी होगी।
〰✧ तो कभी भी किसी भी समय अगर दु:ख की लहर आती है तो समझो कर्मबन्धन है। कर्मबन्धन को बदलकर सेवा का बन्धन नहीं बनाया है। परिवर्तन करना नहीं आया है। विश्व सेवाधारी हैं, तो विश्व में जहाँ भी हो तो विश्व सेवा अर्थ हो। यह पक्का याद रहता है या कभी कर्मबन्धन में फंस भी जाते हो? सेवाधारी कभी फंसेगा नहीं। वो न्यारा और प्यारा रहेगा। समझते तो हो कि न्यारे रहना है लेकिन जब कोई परिस्थिति आती है तो उस समय न्यारे रहो। कोई परिस्थिति नहीं है, उस समय तो लौकिक में भी न्यारे रहते हो। *लेकिन अलौकिक जीवन में सदा ही न्यारे। कभी-कभी न्यारे नहीं, सदा ही न्यारे। कभी-कभी वाले तो राज्य भी कभी-कभी करेंगे। सदा राज्य करना है तो सदा न्यारा भी रहना है ना। इसलिए सदा शब्द को अन्डरलाइन करो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ हे शान्ति देवा श्रेष्ठ आत्मायें। इस शान्ति की शक्ति को अनुभव में लाओ। जैसे वाणी की प्रैक्टिस करते-करते वाणी के शक्तिशाली हो गये हो, ऐसे *शान्ति की शक्ति के भी अभ्यासी बनते जाओ।* आगे चल वाणी वा स्थूल साधनों के द्वारा सेवा का समय नहीं मिलेगा।
〰✧ ऐसे समय पर शान्ति की शक्ति के साधन आवश्यक होंगे। क्योंकि जितना जो *महान शक्तिशाली शस्त्र होता है वह कम समय में कार्य ज्यादा करता है।* और जितना जो महान शक्तिशाली होता है वह अति सूक्ष्म होता है। तो *वाणी से शुद्धसंकल्प सूक्ष्म हैं,* इसलिए सूक्ष्म का प्रभाव शक्तिशाली होगा।
〰✧ अभी भी अनुभवी हो, जहाँ वाणी द्वारा कोई कार्य सिद्ध नहीं होता है तो कहते हो - यह वाणी से नहीं समझेंगे, *शुभ भावना से परिवर्तन होंगे।* जहाँ वाणी कार्य को सफल नहीं कर सकती, वहाँ *साइलेन्स की शक्ति का साधन शुभ-संकल्प, शुभ-भावना, नयनों की भाषा द्वारा रहम और स्नेह की अनुभूति कार्य सिद्ध कर सकती है।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ बॉडी-कान्शियस होगा तो अभिमान आयेगा, *आत्म-अभिमानी होंगे तो अभिमान नहीं आयेगा लेकिन रूहानी फखुर होगा और जहाँ रूहानी फखुर होता है वहाँ विघ्न नहीं हो सकता।* या तो है फिक्र या है फखुर। दोनों साथ नही होते।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- विशाल बुद्धि बन सर्विस की भिन्न-भिन्न युक्तियाँ निकालना"*
➳ _ ➳ *परमधाम से ब्रह्मा तन में अवतरित होकर परमपिता परमात्मा ने रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा... परमात्मा इस यज्ञ में मेरे सारे अवगुणों, विकारों, विकर्मों को स्वाहा कर मुझे फिर से देवताई गुणों से सजाकर निर्विकारी और कर्मातीत बना रहे हैं...* बाबा ने मुझ आत्मा को इस यज्ञ की सच्ची रक्षक बनाकर इसकी संभाल करने का जिम्मा दिया है... मैं आत्मा बाप समान रूहानी सेवा करने, सर्विस की भिन्न-भिन्न युक्तियाँ लेने पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन पारसनाथ बाबा के पास पारसबुद्धि बनने...
❉ *ज्ञान की नई-नई गुह्य बातो को समझाते हुए ज्ञान सागर प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... ज्ञान खजाने को पाकर जो खुशियो में झूम रहे हो... *इस सच्चे ज्ञान की झनकार से हर दिल को मन्त्रमुग्ध बनाओ... विशालबुद्धि बन बड़ी ही युक्ति से भक्तिमय दिल को जीत आओ... और सच के आइने में उन्हें भी देवताई सूरत दिखलाओ... सच्चे ज्ञान प्रकाश से ईश्वरीय प्रीत का दीवाना बनाओ..."*
➳ _ ➳ *ज्ञान वीणा बजाकर सबके दिलों में ज्ञान की धुन से ज्ञानवान बनाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा ज्ञान मशाल लिए हर दिल को मान्यताओ के अँधेरे से बाहर निकाल... सदा का रौशन कर रही हूँ... *हर दिल को युक्ति से समझा कर ज्ञान अमृत का नशा चढ़ा रही हूँ... सच्चे ज्ञान को पाकर हर दिल खुशियो में झूम रहा है..."*
❉ *ज्ञान मानसरोवर में डुबोकर मेरे मन मंदिर में ज्ञान का शंख बजाते हुए मीठे रूहानी बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *युक्ति से विश्व का अँधेरा दूर करने वाली रूहानी जादूगर बनो... ईश्वर पिता धरा पर आकर ईश्वरीय खानो को लुटा रहा... यह खुशखबरी हर दिल को सुनाओ... और विशालबुद्धि से ज्ञान गुह्य राजो को बताकर ईश्वरीय ज्ञान से आबाद करो...* ज्ञान रत्नों से हर दिल का दामन सजाकर, सच्चे सुखो का पता दे आओ..."
➳ _ ➳ *अमूल्य ज्ञान रत्नों से हर आत्मा को मालामाल करते हुए मैं रूहानी सेवाधारी आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मैं आत्मा आप समान हर दिल को खुशनसीब बना रही हूँ... *प्यारे बाबा आपकी मीठी यादो में गहरे उतरकर... यह सुख की लहर सबके दिल तक पहुंचा रही हूँ... सच्चे ज्ञान को पाने की चमक से हर दिल मुस्करा रहा है... मेरा बाबा आ गया यह गीत गुनगुना रहा है..."*
❉ *ज्ञान चन्द्रमा के मस्तक में चमकते हुए ज्ञान सूर्य प्यारे बाबा मुझ आत्मा सितारे से कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... सच्चे सुखो की बहारो से हर दिल पर सदा की मुस्कान सजाओ... *ज्ञान रत्नों की दौलत और गहन राजो से, अज्ञान अँधेरा मिटा कर, सदा का नूरानी हर दिल को बनाओ... हर भ्रम को दूरकर सच्चाई को छ्लकाओ... और युक्तियों से उन्हें सच भरी राहो में सुख का अधिकारी बनाओ..."*
➳ _ ➳ *मीठे बाबा का पता हर दिल को देकर उनकी बगिया में सुखों के फूल बिखेरते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मैं आत्मा सबको खुशियो से भरने वाली ज्ञान परी बन मुस्करा रही हूँ... *सबको देह की मिटटी से निकाल आत्मिक नशे से भर रही हूँ... सत्य ज्ञान और सच्चे आनंद का सुख दिला रही हूँ... ईश्वरीय यादो में रोम रोम पुलकित करा, अनन्त दुआओ को पा रही हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- राहु की दशा कभी ना बैठे इसके लिए बाप के फरमान पर सदा चलना है*"
➳ _ ➳ आज सारी दुनिया पर राहु की दशा बैठी हुई है। एक भी मनुष्य ऐसा नही है जो पाँच विकारों रूपी राहु के ग्रहण से बचा हुआ हो किन्तु *कितनी खुशनसीब है वो ब्राह्मण आत्माये जिन्हें राहु के ग्रहण से मुक्त कर वृक्षपति बाप ने स्वयं अपनी छत्रछाया में ले लिया है। मन ही मन यह विचार करती अपने भाग्य पर मैं नाज करती हूँ और अपने वृक्षपति भगवान बाप का दिल से शुक्रिया अदा करते हुए उनसे वायदा करती हूँ कि उनके फरमान पर मैं हमेशा चलती रहूँगी ताकि राहु की दशा मुझ पर कभी ना बैठे*।
➳ _ ➳ जिन पाँच विकारों रूपी राहु के ग्रहण ने मुझ आत्मा से मेरा चैन छीन लिया, मुझे दुखी और अशांत बना दिया, उन विकारो रूपी राहु के ग्रहण से स्वयं को सदा बचाये रखने के लिए मैं कदम - कदम अपने बाबा की मत पर चलने की और फरमानबरदार बन सदा उनका फरमान पालन करने की स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ और *परमात्म प्यार का सुखद अनुभव करने के लिए, अपने प्यारे पिता के पास जाने वाली रूहानी यात्रा पर चलने के लिए तैयार होती हूँ। अपने मन और बुद्धि को हर संकल्प विकल्प से हटाकर मैं पूरी तरह एकाग्र कर लेती हूँ और अपने शरीर के सभी अंगों से सारी चेतना को समेट कर अपने सारे ध्यान को अपने स्वरूप पर केंद्रित कर लेती हूँ*।
➳ _ ➳ यह अभ्यास सेकण्ड में मुझे अशरीरी स्थिति में स्थित कर देता है। देह भान से मुक्त एक न्यारी और प्यारी स्थिति में स्थित होकर मैं निराकार ज्योति भृकुटि की कुटिया से बाहर आ जाती हूँ और एक अति सूक्ष्म प्वाइंट ऑफ लाइट बन ऊपर आकाश की ओर उड़ जाती हूँ। *मेरे दिलाराम बाबा का प्रेम एक चुम्बकीय आकर्षण बन कर मुझे अपनी ओर खींच रहा है। उनके प्रेम की लग्न में मग्न मैं जगमग करती ज्योति अपनी रंगबिरंगी किरणे चारों ओर बिखेरती हुई निरन्तर ऊपर की ओर उड़ी चली जा रही हूँ*। परमात्म प्यार के सुंदर उड़नखटोले में बैठ अपने प्यारे प्रभु के प्रेम का आनन्द लेते - लेते मैं आकाश में पहुँच गई हूँ और इस नीलगगन से ऊपर सूक्ष्म वतन को पार कर पहुँच गई हूँ उस अनन्त ज्योति के देश मे जहाँ मेरे प्यारे पिता रहते हैं।
➳ _ ➳ शन्ति के सागर अपने शिव पिता के इस शांति धाम घर मे आकर मैं गहन शान्ति का अनुभव कर रही हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे शांति की मीठी - मीठी लहरें बार - बार मेरे पास आकर मुझे स्पर्श कर रही हैं और मुझे डीप साइलेन्स में ले जा रही हैं। *एक ऐसी अद्भुत शान्ति जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नही की थी उस अथाह शान्ति का अनुभव यहाँ पहुंच कर मैं आत्मा कर रही हूँ। कुछ क्षण अथाह शांति का अनुभव करके अब मैं धीरे - धीरे अपने दिलाराम बाबा के पास जा रही हूँ*। उनकी सर्वशक्तियों की एक - एक किरण को बड़े प्यार से निहारते हुए उनके बिल्कुल समीप जाकर मैं जैसे ही उन्हें टच करती हूँ, शक्तियों का एक तेज करेन्ट उनसे निकल कर सीधा मुझ आत्मा में प्रवाहित होने लगता है, और मैं आत्मा असीम शक्ति से भर जाती हूँ।
➳ _ ➳ कुछ क्षण अपने सर्वशक्तिवान बाबा के साथ टच रह कर स्वयं को पूरी तरह भरपूर करके मैं वापिस लौट आती हूँ। साकार सृष्टि पर फिर से अपने साकार शरीर रूपी रथ पर आकर मैं आत्मा विराजमान हो जाती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, राहु की दशा से स्वयं को बचाने के लिए अब मैं स्वयं को सदा सर्वशक्तिवान अपने प्यारे पिता की सर्वशक्तियों की छत्रछाया के नीचे रखती हूँ विकारो रूपी ग्रहण के रूप में राहु की दशा मुझ पर ना बैठ सके* इसके लिए अब मैं अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को परमात्म श्रीमत के अनुसार श्रेष्ठ बनाने का पूरा पुरुषार्थ कर रही हूँ और इसके लिए सदा बाबा के फरमान पर चलने और उनकी अनमोल शिक्षाओं को जीवन मे धारण करने का पूरा अटेंशन दे रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं स्वदर्शन चक्रधारी बन हर कर्म चरित्र के रूप में करने वाली मायाजीत, सफलतामूर्त आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं खुशी के समर्थ संकल्पों की रचना कर तन-मन से सदा खुश रहने वाली खुशनसीब आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *बापदादा ने देखा कि सेवा वा कर्म और स्व-पुरूषार्थ अर्थात् योगयुक्त तो दोनों का बैलेन्स रखने के लिए विशेष एक ही शब्द याद रखो - वह कौनसा? बाप 'करावनहार' है और मैं आत्मा, (मैं फलानी नहीं) आत्मा 'करनहार' हूँ।* तो करन-'करावनहार', यह एक शब्द आपका बैलेन्स बहुत सहज बनायेगा। स्व-पुरूषार्थ का बैलेन्स या गति कभी भी कम होती है, उसका कारण क्या? 'करनहार' के बजाए मैं ही करने वाली या वाला हूँ, 'करनहार' के बजाए अपने को 'करावनहार' समझ लेते हो। मैं कर रहा हूँ, जो भी जिस प्रकार की भी माया आती है, उसका गेट कौन सा है? *माया का सबसे अच्छा सहज गेट जानते तो हो ही - 'मैं'।* तो यह गेट अभी पूरा बन्द नहीं किया है। ऐसा बन्द करते हो जो माया सहज ही खोल लेती है और आ जाती है। अगर 'करनहार' हूँ तो कराने वाला अवश्य याद आयेगा। कर रही हूँ, कर रहा हूँ, लेकिन कराने वाला बाप है *बिना 'करावनहार' के 'करनहार' बन नहीं सकते हैं।* डबल रूप से 'करावनहार' की स्मृति चाहिए। *एक तो बाप 'करावनहार' है और दूसरा मैं आत्मा भी इन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराने वाली हूँ।* इससे क्या होगा कि *कर्म करते भी कर्म के अच्छे या बुरे प्रभाव में नहीं आयेंगे। इसको कहते हैं - कर्मातीत अवस्था।*
➳ _ ➳ *सेवा के अति में नहीं जाओ। बस मेरे को ही करनी है, मैं ही कर सकती हूँ, नहीं। कराने वाला करा रहा है, मैं निमित्त 'करनहार' हूँ।* तो जिम्मेवारी होते भी थकावट कम होगी। कई बच्चे कहते हैं - *बहुत सेवा की है ना तो थक गये हैं, माथा भारी हो गया है। तो माथा भारी नहीं होगा। और ही 'करावनहार' बाप बहुत अच्छा मसाज करेगा।* और माथा और ही फ्रेश हो जायेगा। थकावट नहीं होगी, एनर्जी एकस्ट्रा आयेगी। जब साइन्स की दवाइयों से शरीर में एनर्जी आ सकथी है, तो क्या बाप की याद से आत्मा में एनर्जी नहीं आ सकती? और आत्मा में एनर्जी आई तो शरीर में प्रभाव आटोमेटिकली पड़ता है। अनुभवी भी हो, कभी-कभी तो अनुभव होता है। फिर चलते-चलते लाइन बदली हो जाती है और पता नहीं पड़ता है। जब कोई उदासी, थकावट या माथा भारी होता है ना फिर होश आता है, क्या हुआ? क्यों हुआ? लेकिन *सिर्फ एक शब्द 'करनहार' और 'करावनहार' याद करो।*
✺ *ड्रिल :- "'करावनहार' की स्मृति से सेवा या कर्म करते सहज योगयुक्त रहने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मस्तक मणि मैं आत्मा... इस शरीर में विराजमान हूँ... एक दिव्य ज्योति पुंज समान मैं आत्मा... बैठी हूँ एक परमपिता परमात्मा की याद में... *मन बुद्धि रूपी मन के द्वार को एक शिवबाबा की ओर ही खोलती मैं आत्मा...* आह्वान करती हूँ... मेरे पिता परमेश्वर का... प्यार भरा आह्वान सुनकर मेरे पिता परमेश्वर अपने ब्रह्मा रथ में विराजमान होकर पहुँच जाते हैं मेरे मन के पास... *मन के द्वार पर खड़ी मैं आत्मा... बापदादा का फूलों से स्वागत करती हूँ...* उनका हाथ पकड़कर मैं आत्मा उनको रत्नजड़ित सिंहासन पर बिठाती हूँ... *बापदादा को प्यार से भोग की थाली अर्पण कर मैं आत्मा भावपूर्ण हो जाती हूँ...*
➳ _ ➳ *अपने हाथों से बापदादा मुझे भी भोग ख़िला रहे हैं...* और मैं आत्मा गदगद हो जाती हूँ... बापदादा से आती हुई वर्षा रूपी किरणों को अपने में धारण करती जा रही हूँ... जन्मों के विकारों को पिता को समर्पित कर मैं आत्मा हलकी फूल बनती जा रही हूँ... *संगमयुगी ब्राह्मण के कड़े विकार "मैं" और "मेरेपन" को संपूर्ण रूप से बापदादा को दान में दे रही हूँ....* और मंद मंद बापदादा मुस्कुरा रहे हैं... "मैं" और "मेरेपन" के सूक्ष्म संकल्पों को भी पूर्णतः त्याग करती मैं आत्मा... बापदादा की दिलतख्तनशीन बन जाती हूँ... *"करावनहार" सिर्फ एक बाप है और मैं आत्मा "करनहार" हूँ... इस स्मृति में झूमती मैं आत्मा...*
➳ _ ➳ अपने कलियुगी संस्कारों को एक बाप पर बलि चढ़ाती जा रही हूँ... और मैं आत्मा "करनहार" की स्मृति में अपना अलौकिक पार्ट बजा रही हूँ... *हर घड़ी हर पल "करावनहार" सिर्फ एक बाप की ही स्मृति से छलकती मैं आत्मा... सेवा या कर्म करते सहज योगयुक्त रहने का अनुभव कर रही हूँ...* अब तो हर पल... बापदादा को साथ साथ महसूस कर रही हूँ... मेरे को तेरे में बदलती... मेरेपन को तेरेपन में समर्पित करती मैं आत्मा... *बापदादा से... सेवा में... योग में... सफलतामूर्त का वरदानी तिलक लगवा रही हूँ...* बापदादा के हाथों से डबल ताज धारण करती हूँ... फूलों की माला से बापदादा द्वारा साज श्रृंगार होता देख रही हूँ...
➳ _ ➳ *कर्मातीत अवस्था की अधिकारी मैं आत्मा... कर्म के अच्छे या बुरे प्रभाव में नहीं उलझती हूँ...* जो पिता ने बोला वह किया... पिता ने जो करवाया वह मैं आत्मा अपने कर्मेन्द्रियों द्वारा करवा रही हूँ... हर कार्य को बापदादा को समर्पित करती मैं आत्मा.. *"मेरेपन" के रावण रूपी विकार को अग्निदाह दे... अशोक वाटिका रूपी देहाभिमानी स्थिति से मुझ सीता रूपी आत्मा से... एक रामरूपी शिवबाबा को प्रत्यक्ष करती रहती हूँ...* माया रूपी गेट को "करावनहार" रूपी चाबी से संपूर्ण लॉक करती मैं आत्मा... योग और सेवा को मेरेपन के विकारों से सुरक्षित रखती हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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