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 19 / 08 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सदा सहज प्राप्ति के अनुभवी मूरत बनकर रहे ?*

 

➢➢ *विधि से सिद्धि को प्राप्त किया ?*

 

➢➢ *"मैंने किया" - इस हद के संकल्प द्वारा कचचा फल तो नहीं खाया ?*

 

➢➢ *दृढ़ता से सफलता को प्राप्त किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जैसे लाइट के कनेक्शन से बड़ी-बड़ी मशीनरी चलती है। आप सभी हर कर्म करते कनेक्शन के आधार से स्वयं भी डबल लाइट बन चलते रहो। *जहाँ डबल लाइट की स्थिति है वहाँ मेहनत और मुश्किल शब्द समाप्त हो जाता है। अपनेपन को समाप्त कर ट्रस्टीपन का भाव और ईश्वरीय सेवा की भावना हो तो डबल लाइट बन जायेंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं विशेष आत्मा हूँ"*

 

〰✧  सदा यह नशा रहता है कि हम विशेष आत्मायें हैं? *तो गाया हुआ है कोटों में कोई, कोई में भी कोई तो पहले सुनते थे लेकिन अभी अनुभव कर रहे हो कि हम ही कोटों में कोई आत्मायें थी और हैं और सदा बनेंगी। कभी सोचा था कि इतना विशेष पार्ट इस ड्रामा के अन्दर हमारा नूँधा हुआ है!* लेकिन अभी प्रैक्टिकल में अनुभव कर रहे हो।

 

  पक्का निश्चय है ना। कल्प-कल्प कौन बनता है? क्या कहेंगे? *हम ही थे, हम ही हैं और हम ही रहेंगे। तीनों काल का ज्ञान अभी आ गया है। त्रिकालदर्शी बन गये ना। एक सेकेण्ड में तीनों काल को देख सकते हो? क्या थे, क्या हैं और क्या होंगे-स्पष्ट है ना। कल पुजारी, आज पूज्य बन रहे हैं। जब त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित होते हो तो कितना मजा आता है।* जैसे कोई भी देश में जब टॉप पॉइंट पर खड़े होकर सारे शहर को देखते हैं तो मजा आता है ना। ऐसे ही यह संगमयुग टॉप पॉइंट है तो इस पर खड़े होकर देखो तो मजा आयेगा। कल थे और कल बनने वाले हैं। इतना स्पष्ट अनुभव होता है? कल क्या बनने वाले हो? देवता। कितने बार बने हो? अनेक बार बने हो।

 

  तो कितना सहज और स्पष्ट हो गया। फलक से कहते हो ना-हम ही तो थे और कौन होंगे। *अभी तो यही दिल कहता है ना कि और कौन बनेगा, हम थे, हम ही बन रहे हैं इसको कहते हैं मास्टर नॉलेजफुल। फुल नॉलेज आ गई है ना। एक काल की नहीं, तीनों काल की।* तो जैसे बाप नॉलेजफुल है, बाप की महिमा में फुल के कारण सागर कहते हैं। सागर सदा फुल रहता है। तो नॉलेजफुल बन गये। एक काल के भी ज्ञान की कमी नहीं। भरपूर। इतना नशा है?

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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सदा फॉलो फादर करने के लिए अपनी बुद्धि को दो स्थितियों में स्थित रखो। *बाप को फॉलो करने की स्थिति है - सदा अशरीरी भव। विदेही भव, निराकारी भवा दाता अर्थात ब्रह्मा बाप को फॉलो करने के लिए सदा अव्यक्त स्थिति भव, फरिश्ता स्वरूप भव, आकारी स्थिति भव इन दोनों स्थिति में स्थित रहना फॉलो फादर बनना है।* इससे नीचे व्यक्त भाव - नीचे ले आने का आधार है। इसलिए सबसे परे इन दो स्थितियों में सदा रहो। तीसरी के लिए ब्राह्मण जन्म होते ही बापदादा की शिक्षा मिली हुई है कि इस गिरावट की स्थिति में संकल्प से वा स्वप्न में भी नहीं जाना। यह पराई स्थिति है। जैसे अगर कोई बिना आज्ञा के परदेश चला जाए तो क्या होगा? बापदादा ने भी यह आज्ञा की लकीर खींच दी है। इससे बाहर नहीं जाना है। अगर अवज्ञा करते हैं तो परेशान भी होते हैं। पश्चाताप भी करते हैं। इसलिए सदा शान में रहने का, सदा प्राप्ति स्वरूप स्थिति में स्थित होने का सहज साधन है - 'फॉलो फादर"।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *तो जहाँ खुशी नहीं, वहाँ उमंग-उत्साह नहीं होता और योग लगाते भी अपने से सन्तुष्ट नहीं होते,* थके हुए रहते है। सदा सोच की मूड में रहते, सोचते ही रहते। *खुशी क्यों नहीं आती, इसका भी कारण है। क्योंकि सिर्फ यह सोचते हो कि मैं आत्मा हूँ,* बिन्दु हूँ, ज्योतिस्वरूप हूँ, बाप भी ऐसा ही है। *लेकिन मैं कौन-सी आत्मा हूँ। मुझ आत्मा की विशेषता क्या है?* जैसे मैं पद्मापद्म भाग्यवान आत्मा हूँ, मैं आदि रचना वाली आत्मा हूँ, मैं बाप के दिलतख्तनशीन होने वाली आत्मा हूँ। *यह विशेषतायें जो खुशी दिलाती हैं, वह नहीं सोचते हो।* सिर्फ बिन्दी हूँ, शान्तस्वरूप हूँ - तो निल में चले जाते हो। इसलिए माथा भारी हो जाता हैं।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- संगमयुग सहजप्राप्ति का युग"*

 

 _ ➳  *मैं ज्योति परमज्योति के संग, नूर बेहद का बरसाती... मेहनत से मुक्त हुई... सुख उनकी मोहब्बतों में पाती*... मैं ज्योर्तिबिन्दु आत्मा प्रकाश के शरीर में झिलमिलाती, ज्ञान, प्रेम, सुख, शान्ति, पवित्रता के बादलों संग इठलाती हुई बापदादा संग सूक्ष्म वतन में कमल आसन पर विराजमान हूँ... *मेरे सामने मुस्कुराते हुए... आनन्द की बारिशो में मुझे नहलाते हुए बापदादा... संगम युग की सहज प्राप्तियों का अनुभव कराते हुए*...

 

  *हर फिक्र से फारिग करने वाले बापदादा मुझ फरिश्ता स्वरूप आत्मा से बोले:-* "मेरी जहान की नूर, जागती ज्योति बच्ची... आपका ये संगमयुगी जीवन बेहद मूल्यवान है... क्या आपको इसकी सहज प्राप्तियों की भली प्रकार पहचान है? *आप जागती हो तो जहान की आत्माए जाग जाती है... आपकी चढती कला से ये सभी कल्याण का वर्सा पाती है... संगम पर सुख शान्ति की अजंलि पाकर आपसे ये ही भक्ति में आपके गुण गाती है..."*

 

 _ ➳  *लाइट के कार्ब में चमकती मैं आत्मा मणि बापदादा से बोली:-* "मीठे बाबा... सब खजानों से आपने *इतना भरपूर किया है दुख एक जन्म का नही जन्मो जन्मों का दूर किया है*...  कुछ भी तो अप्राप्त नही रहा अब... संगम पर आपने त्रिलोकीनाथ और त्रिकालदर्शी बनाया है... *आपका मिलना तो खुद में ही एक महामिलन था... फिर आपने स्वर्ग की सौगातों का भी अंबार लगाया है*"...

 

  *स्व का दर्शन करा चक्रधारी बनाने वाले बापदादा मुझ आत्मा से बोले:-* "मेरी विघ्न विनाशक बच्ची...  *विघ्नों को दूर करने का सहज उपाय जानते हो आप... हर दुविधा से बचने का उपाय बस श्रेष्ठ संकल्प को पहचानते हो आप*... जैसे आप अपनी खुशियों के रचनाकार बन रहे हो... बाप के अंग संग रह हर प्राप्ति के हकदार बन रहे हो... *अब सबको इस भाग्य का अधिकारी बनाओं... दुआओं से मालामाल हो जाओगें... बाप से उसके बिछुडे बच्चों को मिलाओं*"...

 

 _ ➳  *स्व सेवा और सर्व की सेवा का बैलेन्स रखने वाली मैं आत्मा बापदादा से बोली:-* "मीठे बाबा... *आप समान सेवाधारी बनने की तात अब तो हर पल लगी रहती है... स्वयं के विघ्नों पर नही हर आत्मा के विघ्न दूर करने पर अब नजर लगी रहती है*... दुआओ से डबल मालामाल हुई जा रही हूँ मैं... चहुँ ओर से ही खुशियों की अनूठी सौगात पा रही हूँ मैं..."

 

  *एक बाबा शब्द की जादुई चाबी से सब प्राप्तियाँ सहज ही कराने वाले बापदादा मुझ आत्मा से बोले:-* "मीठी बच्ची... अपने परमपद की ओर शीघ्रता से बढते हुए आप संगमयुग की सहज प्राप्तियों की डायरेक्ट अधिकारी बनी हो... *आपकी बडी ते बडी विशेषता यही है कि आपने गुप्त वेशधारी बाप को पहचाना है... विशेषताओं के खजानों से भरपूर होते जा रहे हो आप... ये ही तो संगम युग का नजराना है..."*

 

 _ ➳  *अपनी विशेषताओं के बीज को सर्वशक्तियों के जल से सींच कर फलदायक बनाने वाली मैं वरदानी आत्मा बापदादा से बोली:-* "मीठे बाबा... *संगम पर जो जो भी सौगातें पा रही हूँ... आप समान ही निमित्त बन हर सेवा में लगा रही हूँ... हर आत्मा संगमयुगी खजानों से अब भरपूर हो रही... निश्चय बढता ही जा रहा है उनमें, अब हर एक पावनता का नूर हो रही है*... और मन्द मन्द मुस्कुराते हुए बापदादा की मीठी वरदानी दृष्टि मुझ आत्मा को मेरे सम्पूर्ण रूप का साक्षात्कार करा रही है..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- "मैंने किया" - इस हद के संकल्प द्वारा कच्चा फल नहीं खाना है*"

 

_ ➳  करनकरावनहार भगवान स्वयं कैसे हम बच्चों को निमित बनाकर ईश्वरीय कार्य को सम्पन्न करा रहें हैं, एकांत में बैठ यही विचार करते हुए मैं अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करती हूँ कि कितनी महान सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो स्वयं भगवान ने मुझे अपने ईश्वरीय कार्य मे अपना मददगार बनाया। *करनकरावन हार भगवान मुझे निमित बनाकर, सब काम गुप्त रीति मुझसे करवाकर, मेरा कितना ऊँचा भाग्य बना रहे हैं। "वाह मैं आत्मा वाह", "वाह मेरा भाग्य वाह" जो भगवान ने निमित बना कर ईश्वरीय सेवायों का गोल्डन चान्स मुझे दिया*। इस बात को मैं कभी नही भूलूँगी कि मैं केवल निमित मात्र हूँ। सब कुछ मेरे मीठे करनकरावन हार बाबा मुझसे करवा रहें हैं। *"मैंने किया" इस हद के संकल्प द्वारा कभी भी कच्चा फल खाकर मैं अपने भाग्य को लकीर नही लगाऊंगी, मन ही मन इस दृढ़ संकल्प के साथ अपने करन करावनहार बाबा का दिल से मैं शुक्रिया अदा करती हूँ और खो जाती हूँ अपने ईश्वरीय जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों की स्मृति में*।

 

_ ➳  डायरेक्ट सर्व प्राप्तियों के दाता, सर्व शक्तियों के विधाता, सेकेण्ड में सर्व अधिकार देने वाले वरदाता, श्रेष्ठ भाग्यविधाता, अविनाशी बाप ने करोड़ो आत्माओं में से चुन कर मुझे अपना बच्चा बनाया, यह स्मृति एक अद्भुत रूहानी नशे से मुझे भर देती है और अपने भाग्यविधाता दिलाराम बाबा की मन को सुकून देने वाली मीठी यादों में मैं धीरे - धीरे खोने लगती हूँ। *मेरे प्यारे प्रभु की मीठी यादें मुझे इस नश्वर संसार की हर बात से किनारा कराते हुए मेरे उस सुंदर स्वरूप में स्थित कर देती है जो शांत स्वरूप, सुख स्वरूप, आनन्द स्वरूप, प्रेम स्वरूप, ज्ञान स्वरूप, शक्ति स्वरूप और पवित्र स्वरूप है*। अपने इस सतोगुणी स्वरूप में स्थित होकर अब मैं अपने अंदर समाये इन सातों गुणों का गहराई से अनुभव करते हुए अपने इस स्वरूप का आनन्द लेने में मग्न हो जाती हूँ।

 

_ ➳  देख रही हूँ मैं स्वयं को भृकुटि की कुटिया में विराजमान होकर चमक रहे एक अति सुन्दर छोटे से स्टार के रूप में जिसमे से सतरँगी किरणों का प्रकाश निकल रहा है और अपने सातों गुणों के शक्तिशाली वायब्रेशन्स चारों और फैलाता हुआ सारे वायुमण्डल को रूहानियत की एक दिव्य अलौकिक शक्ति से भर रहा है। *मुझ से निकल रहे सातों गुणों के वायब्रेशन्स से मेरे चारों ओर प्रकाश का एक सुंदर कार्ब निर्मित हो गया है और इस प्रकाश के कार्ब में मैं अति तेजस्वी आत्मा ऐसे लग रही हूँ जैसे सोने की डिब्बी में कोई छोटा सा हीरा चमक रहा हो*।

 

_ ➳  मैं अति तेजस्वी मस्तक मणि आत्मा अपने इस खूबसूरत स्वरूप का आनन्द लेते हुए अब भृकुटि के अकालतख्त को छोड़ती हूँ और प्रकाश के उस कार्ब के साथ ऊपर की ओर उड़ चलती हूँ। *एक दिव्य प्रकाश से चारों और के वायुमण्डल को प्रकाशित करते हुए, अपनी किरणों का प्रकाश चारों और फैलाते हुए मैं आकाश के पास पहुँच जाती हूँ* और इस अंतहीन आकाश में विचरण करते, सौरमण्डल, तारामण्डल को पार कर सफेद प्रकाश की फरिश्तो की एक सुन्दर दुनिया में प्रवेश कर जाती हूँ।

 

_ ➳  फ़रिश्तो की यह खूबसूरत दुनिया जहाँ मेरे प्यारे ब्रह्मा बाबा अपने सम्पूर्ण फरिश्ता स्वरूप में इस लोक में रहते हुए बच्चों को आप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनाने की बेहद की सेवा कर रहें हैं। *अपने इस अव्यक्त वतन में आकर मैं अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के अति सुंदर संपूर्ण स्वरूप को निहारते हुए उनके समान बनने का संकल्प मन मे लिए अब धीरे - धीरे सूक्ष्म वतन को पार करके उससे ऊपर अपने निराकारी घर मे पहुँच जाती हूँ*। चमकती हुई जगमग करती चैतन्य मणियों का यह सुन्दर मनभावन संसार मेरा परमधाम घर है जहाँ मेरे प्यारे प्रभु मेरे दिलाराम शिव बाबा रहते हैं। *मेरे ही समान अपने निराकार बिंदु स्वरूप में चमक रहें अखण्ड ज्योतिमय ज्ञानसूर्य अपने प्यारे शिव बाबा को मैं अपने इस घर मे अपने बिल्कुल सामने देख रही हूँ* जो अपनी शक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरा इंतजार करते हुए मुझे दिखाई दे रहें है।

 

_ ➳  अपने पिता के सुंदर सलौने स्वरूप को निहारते हुए मैं धीरे - धीरे उनके समीप पहुँचती हूँ और उनकी किरणों रूपी बाहों में जाकर समा जाती हूँ। उनके असीम स्नेह से स्वयं को तृप्त कर उनकी सर्वशक्तियो की किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ स्वयं को शक्तियों से भरपूर करने के बाद ईश्वरीय सेवा अर्थ मैं वापिस लौट आती हूँ फिर से साकार सृष्टि पर और अपने साकार तन का आधार ले कर, परमात्मा के मददगार अपने संगमयुगी ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। *अपने सर्वश्रेष्ठ, बहुमूल्य ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अपने प्यारे पिता का राइट हैंड बन उनकी श्रीमत पर चल, संकल्प रूपी बीज को शक्तिशाली बनाकर सेवायों में पदमापदम अविनाशी फल की प्राप्ति करते हुए, मेहनत से मुक्त, सहजयोगी, अनुभूतियो के खजाने से भरपूर अधिकारी आत्मा बन, अपने अधिकारों को स्मृति में रख मैं सदा रूहानी नशे और खुशी के झूले में अब हर पल हर घड़ी झूल रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सेवा के क्षेत्र में स्व-सेवा और सर्व की सेवा का बैलेन्स रखने वाली मायाजीत आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपनी विशेषताओं के बीज को सर्व शक्तियों के जल से सींचकर उन्हें फलदायक बनाने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  कोई भी इच्छा होगी तो अच्छा बनने नहीं देगी। या इच्छा पूर्ण करो या अच्छा बनो। आपके हाथ में है। और देखा जाता है कि ये इच्छा ऐसी चीज है जैसे धूप में आप चलते हो तो आपकी परछाई आगे जाती है और आप उसको पकड़ने की कोशिश करोतो पकड़ी जाएगी? और आप पीठ करके आ जाओ तो वो परछाई कहाँ जायेगीआपके पीछे-पीछे आयेगी। तो *इच्छा अपने तरफ आकर्षित कर रुलाने वाली है और इच्छा को छोड़ दो तो इच्छा आपके  पीछे-पीछे आयेगी।*

➳ _ ➳  *मांगने वाला कभी भी सम्पन्न नहीं बन सकता। और कुछ नहीं मांगते हो लेकिन रायल मांग तो बहुत है।* जानते हो ना-रायल मांग क्या हैअल्पकाल का कुछ नाम मिल जायेकुछ शान मिल जायेकभी हमारा भी नाम विशेष आत्माओं में आ जायेहम भी बड़े भाइयों में गिने जायेंहम भी बड़ी बहनों में गिने जायें, आखिर हमको भी तो चांस मिलना चाहिए।

➳ _ ➳  लेकिन *जब तक मंगता हो तब तक कभी खुशी के खजाने से सम्पन्न नहीं हो सकते।* ये मांग के पीछे या कोई भी हद की इच्छाओं के पीछे भागना ऐसे ही समझो जैसे मृगतृष्णा है। इससे सदा ही बचकर रहो। छोटा रहना कोई खराब बात नहीं है। *छोटे शुभान अल्लाह हैं। क्योंकि बापदादा के दिल पर नम्बर आगे हैं।*

✺   *ड्रिल :-  "हद की इच्छाओं की मृगतृष्णा से मुक्त होने का अनुभव"*

➳ _ ➳  मैं आत्मा फरिश्ता स्वरुप की चमकीली ड्रेस पहनकर पहुंच जाती हूँ सूक्ष्मवतन में... जहां मेरे प्यारे बापदादा बड़े प्यार से मुझे बुला रहे हैं... *मैं फरिश्ता बापदादा की बाहों में समा जाती हूँ... बापदादा गुणों और शक्तियों से मेरा श्रृंगार कर रहे हैं... अब बापदादा मेरा हाथ पकड़कर मुझे सैर पर ले जा रहे हैं...* मैं बाबा की किरणें सारे विश्व में फैला रही हूँ... मीठे बापदादा मुझे कभी पहाड़ों पर ले जाते हैं... कभी लहलहाते खेतों में... कभी मैदान में तो कभी रेगिस्तान में...

➳ _ ➳  अचानक मेरी नजर रेगिस्तान में चलते हुए उन यात्रियों की ओर जाती है... जो प्यास से बेहाल हैं... सूरज की चमकती किरणें जैसे जैसे रेत पर पड़ती है... तो उन्हें वहां पानी होने का भ्रम होता है और वे पथिक... उस ओर भागते चले जा रहे हैं... जहां पहुंचकर उन्हें सिर्फ निराशा हाथ लगती है...  तभी *कुछ दूरी पर आगे पानी होने का वही भ्रम होता है... और निराशा भरी भाग-दौड़ का सिलसिला चलता रहता है*...

➳ _ ➳  मैं फरिश्ता चिंतन करती हूँ कि... मेरा मन भी तो इच्छाओं रूपी मृगतृष्णा में इसी तरह से भटक रहा था... इच्छाओं की गुलाम होकर मैं आत्मा भी इसी तरह से कष्ट पा रही थी... फिर *बाबा का मीठा ज्ञान सुनकर... उनका प्यार भरा हाथ अपने सिर पर पा कर... मैं आत्मा इच्छाओं की गुलामी से मुक्त होती जा रही हूँ... मैं आत्मा मन का मालिक बनती जा रही हूँ...* अंतहीन इच्छाओं के पीछे भागना तो ऐसे ही हो रहा था जैसे कि... मैं आत्मा अपनी परछाई को पकड़ने की नाकाम कोशिश कर रही थी...

➳ _ ➳  इच्छाओं की भागमभाग में कभी स्व पर ध्यान ही नहीं दिया था लेकिन... अब मैं आत्मा स्व पुरुषार्थ पर ध्यान दे रही हूँ... इच्छाओं के, आसक्तियों के बंधनों से मुक्त होती जा रही हूँ... *मैं आत्मा स्थूल इच्छाओं से स्वयं को मुक्त करती जा रही हूँ... साथ ही स्व चेकिंग के द्वारा हर प्रकार की रॉयल, सूक्ष्म इच्छाओं से भी... मुक्त होती जा रही हूँ... हद के नाम मान शान की... रॉयल कामनाओं का भी त्याग करती जा रही हूँ*...

➳ _ ➳  मैं आत्मा दाता पिता की संतान हूँ... *मैं सब प्रकार के रॉयल भिखारीपन से मुक्त हूँ... मैं आत्मा ईश्वरीय खजानों से, खुशी के खज़ाने से संपन्न हूँ*... मैं आत्मा पूरी तरह संतुष्ट हूँ... तृप्त हूँ... सदा ईश्वरीय नशे और ख़ुमारी में मगन हूँ... बापदादा के स्नेह में समाकर उनके विशेष स्नेह का अनुभव कर रही हूँ... बापदादा के दिलतख्त पर स्थित होकर अपने श्रेष्ठ भाग्य का अनुभव कर रही हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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