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 07 / 01 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *समेटने और समाने की शक्ति से सर्व प्रकार के विस्तार को सार रूप में समाया ?*

 

➢➢ *बुधी को जब चाहे, जहां चाहे उसी स्थिति में स्थित करने का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *सर्व सम्बन्ध एक बिंदु बाप द्वारा अनुभव किये ?*

 

➢➢ *सर्व संपत्ति (सुख, शांति, ख़ुशी) की प्राप्ति एक बाप द्वारा अनुभव की ?*

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         ❂ *योगी जीवन प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं*

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✧  अशरीरी स्थिति का अनुभव करने के लिए सूक्ष्म संकल्प रुप में भी कहाँ लगाव न हो, सम्बन्ध के रुप में, सम्पर्क के रुप में अथवा अपनी कोई विशेषता की तरफ भी लगाव न हो। *अगर अपनी कोई विशेषता में भी लगाव है तो वह भी लगाव बन्धन-युक्त कर देगा और वह लगाव अशरीरी बनने नहीं देगा।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ योगी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाकर योगी जीवन का अनुभव किया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं स्वदर्शन चक्रधारी सफलता मूर्त आत्मा हूँ"*

 

   सभी अपने को स्वदर्शन चक्रधारी समझते हो, बाप की जितनी महिमा है, उसी महिमा स्वरुप बने हो? *जैसे बाप के हर कर्म चरित्र के रुप अभी भी गाये जाते हैं ऐसे आपके भी हर कर्म चरित्र समान हो रहे हैं? ऐसे चरित्रवान बने हो, कभी साधारण कर्म तो नहीं होते हैं?*

 

  *जो बाप के समान स्वदर्शन चक्रधारी बने हैं उनसे कभी भी साधारण कर्म हो नहीं सकते। जो भी कार्य करेंगे उसमें सफलता समाई हुई होगी। सफलता होगी या नहीं होगी, यह संकल्प भी नहीं उठ सकता। निश्चय होगा- सफलता हुई पड़ी है।*

 

  *स्वदर्शन चक्रधारी मायाजीत होंगे। मायाजीत होने के कारण सफलतामूर्त होंगे। और जो सफलतामूर्त होंगे वह सदा हर कदम में पद्मापद्मपति होंगे।* ऐसे पद्मापद्मपति अनुभव करते हो? इतनी कमाई जमा कर ली है जो 21 जन्मों तक चलती रहे सूर्यवंशी अर्थात् 21 जन्मों के लिए जमा करने वाले। तो सदा हर सेकेण्ड में जमा करते रहो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *स्वयं को इस स्वमान में स्थित कर अव्यक्त बापदादा से ऊपर दिए गए महावाक्यों पर आधारित रूह रिहान की ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  कितना भी बिजी हो, लेकिन पहले से ही साधन के साथ साधना का समय एड करो। होता क्या है - सेवा तो बहुत अच्छी करते हो, समय भी लगाते हो, उसकी तो मुबारक है। लेकिन स्व-उन्नति या साधना बीच-बीच में न करने से थकावट का प्रभाव पडता है। बुद्धि भी थकती है, हाथ-पाँव भी थकता है और *बीच-बीच में अगर साधना का समय निकालो तो जो थकावट है ना, वह दूर हो जाए।*

 

✧  *खुशी होती है ना खुशी में कभी थकावट नहीं होती है।* काम में लग जाते हो, बापदादा तो कहते हैं कि काफी समय एक्शन-कान्सेस रहते हो। ऐसा होता है ना? एक्शन-कान्सेस की माक्र्स तो मिलती हैं, वेस्ट तो नहीं जाता है लेकिन सोल-कान्सेस की माक्र्स और एक्शन कान्सेस की माक्र्स में अन्तर तो होगा ना। फर्क होता है ना? तो अभी बैलेन्स रखो।

 

✧  लिंक को तोडो नहीं, जोडते रहो क्योंकि मैजारिटी डबल विदेशी काम करने में भी डबल बिजी रहते हैं। *बापदादा जानते हैं कि मेहनत बहुत करते हैं लेकिन बैलेन्स रखो।* जितना समय निकाल सको, सेकण्ड निकाली, मिनट निकालो, निकालो जरूरा हो सकता है? पाण्डव हो सकता है? टीचर्स हो सकता है? और जो ऑफिस में काम करते हैं, उनका हो सकता है? हाँ तो बहुत अच्छा करते हैं। अच्छा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- कर्मातीत स्थिति के लिए समेटने और समाने की शक्तियों का प्रयोग करना"*

 

_ ➳  अमृत की वेला में मनमोहक-मनभावन परम आन्दमय प्रभु मिलन का आनन्द लेकर मै आत्मा... मीठे बाबा के प्यार भरे गीत गुनगुनाती हुई... टहलते हुए... सूर्य को, धरती को, आलिंगन करती, नई नवेली रंग-बिरंगी किरणों को निहार रही हूँ... और विचार कर रही हूँ... कि *ज्ञान सूर्य बाबा ने मुझ आत्मा को... गले लगाकर... मुझे गुणों और शक्तियो से कितना सजा दिया है*...और श्रृंगारित करके मुझ आत्मा को सीधे अपने दिल में सजा दिया है... *बाबा के दिल की प्यारी राजदुलारी बनकर... मै आत्मा, अपने मीठे भाग्य पर बलिहार हूँ... आज मै आत्मा, बाबा के दिल में रहती हूँ, मीठी बाते करती हूँ, दिल की हर बात बताती हूँ.... उस के साथ हंसती मुस्कुराती हूँ...*.. इन मीठे अहसासो ने जनमो के दुःख ही विस्मृत कर दिए है... अब सुख ही सुख मेरे चारो ओर बिखरा है... वाह मेरा भाग्य जो सपने में भी नहीं सोचा था उसे साकार में पाया है... यही मनभावन जज्बात मीठे बाबा को सुनाने वतन में उड़ चलती हूँ...

 

_ ➳  *ज्ञान सागर बाबा ज्ञान का प्रकाश मुझ आत्मा पर डालते हुए कहते है :-* "मीठे लाडले बच्चे मेरे... समय की है अन्तिम वेला जरा गहरे से अब आप गौर फरमाओं... समय की इस अन्तिम वेला में कर्मातीत तुम बन जाओ... बच्चे गफलत छोड़ इस सच्चे सच्चे पुरूषार्थ में जुट जाओ... *कर्मातीत बनने की मंजिल पर पहुंचने के लिए उड़ान जरा जोर से लगाओ..."*

 

  *ज्ञान के प्रकाश को स्वयं में समाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ :-*  "मीठे-मीठे लाडले ओ बाबा मेरे... आप की इस गहरी सी समझानी को बुद्धि में बिठा रही हूँ... *कर्मातीत बनने के सच्चे-सच्चे पुरूषार्थ की ओर तेजी से कदम बढ़ा रही हूँ...* कर्मातीत स्थिति के प्रवाह में बहती जा रही हूँ... उड़ता पंछी बन अन्दर से अब मुस्कुरा रही हूँ..."

 

_ ➳  *ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा को सजाते हुए रत्नाकर बाबा बोले :-* "मीठे मीठे सिकीलधे प्यारे बच्चे मेरे... समाने और समेटने की शक्तियों को अब तुम कार्य में लगाओ... और कर्मातीत बन जाओ... उड़ता पंछी बन खुले आसमा में बाहे फैलाओं... *जरा अटेंशन देकर बच्चे तुम अब कर्मातीत स्थिति बनाने के पुरूषार्थ में लग जाओ..."*

 

  *ज्ञान रत्नों से सज-धज कर मैं आत्मा कहती हूँ :-* "राजदुलारे प्यारे बाबा मेरे... अटेंशन से कर्मातीत स्थिति के पुरूषार्थ में जुट गई हूं... समाने और समेटने की शक्तियों को कार्य में लगाए रही हूँ... अपनी स्थिति द्वारा सत्यता का प्रकाश फैला रही हूं... उड़ता पंछी बन आसमा में बाहें फैला रही हूँ... *कर्मों के बन्धन से भी मुक्त होने का अनुभव औरों को करा रही हूँ... इस प्रकार अपनी कर्मातीत स्थिति की ओर कदम बढ़ा रही हूँ..."*

 

_ ➳  *ज्ञान की रिमझिम वर्षा करते हुए मीठे बाबा मुझ आत्मा से कहते है :-* "मीठे प्यारे-प्यारे बच्चे मेरे... कर्मातीत स्टेज को अब तुम नजदीक लाओ... बच्चे अटेंशन से अब इस पुरूषार्थ में लग जाओ... अपनी इस अन्तिम अवस्था की तरफ अब तेजी से दौड़ी लगाओ... *जीवन की प्रयोगशाला में समेटने और समाने की शक्ति को प्रयोग में ला कर्मातीत स्थिति में स्थित हो जाओ..."*

 

  *ज्ञान की रिमझिम वर्षा में भीगकर मैं आत्मा कहती हूँ :-* "लाडले ज्ञान सागर बाबा मेरे... सुन के आपकी ये गहरी सी समझानी अटेंशन से इस पुरुषार्थ में जुट गई हूँ... *जीवन रूपी प्रयोगशाला में समाने और समेटने की शक्ति को प्रयोग में लाकर कर्मातीत स्थिति को नजदीक ला रही हूँ...* मुक्त पंछी बन उड़ती जा रही हूँ... तेजी से इस पुरूषार्थ में आगे बढ़ती जा रही हूँ... इस पुरूषार्थ में सफलता पा रही हूँ..."

 

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सर्व सम्बन्ध और सर्व संपत्ति की प्राप्ति एक बिंदु बाप द्वारा अनुभव करना*"

 

_ ➳  अपने स्वीट साइलेन्स होम में बिंदु बन अपने बिंदु बाप के साथ मिलन मनाने का असीम सुख मैं आत्मा प्राप्त कर रही हूँ। *मणियों से चमकते इस परमधाम घर में अपने बिंदु स्वरूप में स्थित मैं देह और देह की दुनिया के हर संकल्प, विकल्प से मुक्त एक अति सुंदर निरसंकल्प स्थिति में स्थित हो कर अपने बिंदु बाप को निहार रही हूँ*। जैसे मैं आत्मा बिंदु हूँ वैसे मेरे पिता परमात्मा भी मेरे ही समान एक बिंदु हैं। अपने ही समान अपने पिता परमात्मा को पाकर मैं असीम आनन्द का अनुभव कर रही हूँ। *कभी मैं स्वयं को और कभी उन्हें देख रही हूँ। वो सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के सागर हैं और मैं आत्मा सर्वगुण, सर्वशक्तिस्वरूप हूँ*।

 

_ ➳  अपने और अपने पिता परमात्मा के स्वरूप को निहारते - निहारते गहन आनन्द में खोई *मैं बिंदु आत्मा सर्व गुणों और सर्व शक्तियों के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के गुणों और शक्तियों को स्वयं में समाकर उनके समान बनने के लिए अब धीरे - धीरे अपने बिंदु बाप के पास जा रही हूँ*। उनके अति समीप पहुँच कर मैं देख रही हूँ उनसे निकल रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणों को जो चारों और फैल कर अति सुंदर लग रही है। एक - एक किरण को ज्ञान के दिव्य चक्षु से मैं देख रही हूँ।

 

_ ➳  अपनी सुध - बुध खो कर इस अति सुंदर दृश्य को निहारते - निहारते मैं अनुभव करती हूँ जैसे बाबा ने अपनी किरणों रूपी गोद मे मुझे बिठा लिया है और अपनी सर्वशक्तियों से मुझे भरपूर कर रहें हैं। *जैसे - जैसे बाबा की सर्वशक्तियों की किरणे मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं मैं स्वयं में असीम बल भरता हुआ अनुभव कर रही हूँ*। अपने बिंदु बाप की शीतल किरणों की छत्रछाया में गहन शीतलता की अनुभूति करते हुए अपने प्यारे बाबा के साथ इतना सुन्दर मधुर मंगल मिलन मनाने का सुख मैं प्राप्त कर रही हूँ।

 

_ ➳  बिदु बन बिंदु बाप के साथ मिलन मनाने का यह सुख मुझे परम आनन्द प्रदान कर रहा है। *मेरे शिव पिता से आ रहे सर्व गुणों और सर्वशक्तियों के शक्तिशाली वायब्रेशन मुझे टच करके मेरे अंदर असीम ऊर्जा भर रहें हैं*। परमात्म शक्तियों से मैं आत्मा भरपूर होती जा रही हूँ और बहुत ही शक्तिशाली स्थिति का अनुभव कर रही हूँ। अपने शिव पिता के सानिध्य में बैठ, उनकी सर्वशक्तियों को स्वयं में समाकर मेरा स्वरूप भी उनके समान अति तेजस्वी, पूर्ण प्रकाशित हो गया है।

 

_ ➳  अपने सर्वशक्तिवान बिंदु बाप की सर्वशक्तियों को स्वयं में समाकर शक्तियों का पुंज बन कर, बाबा को अपने संग लेकर अब मैं वापिस अपने कर्म क्षेत्र पर लौट रही हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में अब मैं स्थित हूँ और

*हर समय बाबा के संग में रहते हुए सर्व सम्बन्ध और सर्व संपत्ति की प्राप्ति अपने एक बिंदु बाप द्वारा अनुभव कर रही हूँ*। मैं भी बिंदु बाप भी बिंदु इस स्मृति से मेरा सारा संसार एक बिंदु बाप में समा गया है। सर्व सम्बन्धों का अनुभव एक से करते हुए, सर्व सम्पति की प्राप्ति अविनाशी खुशी, सुख, शांति का मैं सहज ही अनुभव कर रही हूँ।

 

_ ➳  *बिंदु बन, बिंदु बाप के संग रहते हुए अब मैं सदा सुख - शांति के, खुशी के, ज्ञान के और आनन्द के झूले में झूलते हुए, सर्व प्राप्तियों के सम्पन्न स्वरूप के अविनाशी नशे में रहते हुए, अपनी सम्पन्न स्थिति से सबको अपने बिंदु बाप के संग का अनुभव निरन्तर करवा रही हूँ*।

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं पवित्रता की विशेष धारणा द्वारा अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करने वाली ब्रह्माचारी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सेवा में त्रिकालदर्शी का सेन्स और रूहानियत का इसेन्स भरने वाली सर्विसएबुल आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  अब आप लोगों की सेवा हैवायब्रेशन्स द्वारा आत्माओं को समीप लाना... आपस में तो होना ही है... आपसी स्नेह औरों को वायब्रेशन द्वारा खींचेगा... अभी आप लोगों को यह साधारण सेवा करने की आवश्यकता नहीं है... *भाषण करने वाले तो बहुत हैंलेकिन आप लोग हरेक आत्मा को ऐसी भासना दो जो वह समझें कि हमको कुछ मिला...*  ब्राह्मण परिवार में भी आपके संगठन के वायब्रेशन द्वारा निर्विघ्न बनाना है... मन्सा सेवा की विधि को और तीव्र करो... वाचा वाले बहुत हैं... मन्सा द्वारा कोई न कोई शक्ति का अनुभव हो... *वह समझें कि इन आत्माओं द्वारा यह शक्ति का अनुभव हुआ... चाहे शान्ति का होचाहे खुशी का होचाहे सुख का होचाहे अपने-पन का...* तो जो भी अपने को महारथी समझते हैं उन्हों को अभी यह सेवा करनी है... सभी अपने को महारथी समझते होमहारथी होअच्छा है। (जगदीश भाई ने गीत गाया) अभी औरों को भी आप द्वारा ऐसा अनुभव हो... बढ़ता जायेगा... इससे ही अभी ऐसी अनुभूति शुरू करेंगे तब साक्षात्कार शुरू हो जायेगा...

 

 _ ➳  *बापदादा ने यह भी देखा की जो नये नये बच्चे आते है, उन्हो मे कई आत्मायें ऐसी भी है जिन्हों को बापदादा के सहयोग के साथ-साथ आप ब्राह्मण आत्माओं के द्वारा हिम्मत, उमंग, उत्साह,समाधान मिलने की आवश्यकता है...* छोटे-छोटे है ना! फिर भी है छोटे लेकिन हिम्मत रख ब्राह्मण बने तो है ना! तो छोटों को शक्तियों द्वारा पालना की आवश्यकता है... और पालना नहीशक्ति देने के पालना की आवश्यकता है... तो जल्दी से स्थापना की ब्राह्मण आत्मायें तैयार हो जाएं क्यों की कम से कम 9 लाख तो चाहिए ना! तो शक्तियों का सहयोग दोशक्तियों से पालना दोशक्तियाँ बढाओ... *ज्यादा डिसकस करने की शिक्षायें नही दो... शक्ति दो... उनकी कमजोरी नहीं देखो लेकिन उसमे विशेषता वा जो शक्ति की कमी हो वह भरते जाओ...* आजकल जो निमित्त है उन्हों को इस पालना के निमित्त बनने की आवश्यकता है... जिज्ञासु बढायें, सेवाकेन्द्र बढायें यह तो कामन है, लेकिन हर एक आत्मा को शक्तिशाली बाप की मदद से बनायेंअभी इसकी आवश्यकता है... सेवा तो सब कर रहे हो और करने के बिना रह भी नही सकते... लेकिन सेवा मे शक्ति स्वरूप के वायब्रेशन आत्माओं को अनुभव हो, शक्तिशाली सेवा हो... *साधारण सेवा तो आजकल की दुनिया मे बहुत करते है लेकिन आपकी विशेषता है -'शक्तिशाली सेवा'*... ब्राह्मण आत्माओं को भी शक्ति की पालना आवश्यक है... अच्छा...

 

✺   *ड्रिल :-  "अपने को महारथी समझ मन्सा सेवा द्वारा शक्तियों का अनुभव कराना"*

 

 _ ➳  समय की समीपता की ओर इशारा करती बाबा की अव्यक्त वाणियों पर विचार सागर मन्थन करते हुए मैं स्वय से ही सवाल करती हूं कि समय जिस तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है, क्या समय के हिसाब से मेरे पुरुषार्थ की गति भी उतनी ही तीव्र है? *समय की समीपता को देखते हुए आने वाले समय प्रमाण जो मनसा बल मेरे अंदर जमा होना चाहिए, क्या वो बल मैं जमा कर रही हूँ?* मन में उठ रहे इन सवालों जवाबों की उलझन के बीच मैं देखती हूँ अंत का वो सीन जिसमे मुझे महारथी बन लाचार, बेबस, दुखी आत्माओं को मनसा बल द्वारा शक्तिशाली बनाने की आवश्यकता है...

 

 _ ➳  अनेक प्रकार के सीन एक - एक करके मेरी आँखों के सामने आ रहें हैं... मैं देख रही हूँ *कहीं प्रकृति का विकराल रूप, कहीं विकारों का विकराल रूप, कहीं तमोगुणी आत्माओं का वार और कहीं भगवान को पुकारती भक्त आत्माओं की हृदय विदीर्ण पुकार... राज्य सत्ता, धर्म सत्ता, और अनेक प्रकार के बाहुबल सब हलचल की स्थिति में दिखाई दे रहें हैं...* सभी आशापूर्ण निगाहों से उन महारथी आत्माओं की इंतजार कर रहें हैं जो मसीहा बन कर उन्हें इन सभी मुसीबतों से बाहर निकाल कर, पल भर की शांति, सुख का अनुभव करवा सके...

 

 _ ➳  तभी एक और दृश्य आंखों के सामने उभर आता है... मैं देख रही हूँ *बापदादा के साथ अनेक महारथी ब्राह्मण आत्मायें मसीहा बन उन तड़पती हुई आत्माओं के पास आ रही है और अपनी शीतल दृष्टि से, अपनी शक्तिशाली मनसा शक्ति से उन्हें बल प्रदान कर रही हैं...* उन्हें शांति की अंचलि दे कर तृप्त कर रही हैं... एक तरफ हाहाकार और दूसरी तरफ जयजयकार हो रही है... इस दृश्य को देखते देखते मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूं कि समय की इन अंतिम घड़ियों के नजदीक आने से पहले मुझे अपने अंदर इतना बल जमा करना है कि महारथी बन, विश्व की सभी दुखी अशांत आत्माओ को मनसा द्वारा शक्तियों का अनुभव करवा सकूँ और भगवान की प्रत्यक्षता में सहयोगी बन सकूँ...

 

 _ ➳  इसी दृढ़ निश्चय के साथ अपने फ़रिशता स्वरूप को धारण कर मैं बापदादा के पास पहुंच जाती हूँ सूक्ष्म वतन और बाबा की सर्वशक्तियाँ स्वयं में समाहित कर, परमात्म बल से मैं भरपूर हो जाती हूँ... परमात्म शक्तियों से स्वयं को सम्पन्न कर अपने ब्राह्मण स्वरूप में आकर अब मैं निरन्तर परमात्म याद में रह, अपनी मनसा वृति को शक्तिशाली बनाने का पुरुषार्थ कर रही हूँ... *अपने अंदर मनसा बल को जमा करने के साथ - साथ मनसा शक्तियों के प्रयोग से अनेको आत्माओ को परमात्म पालना का अनुभव करवाकर उन्हें अपने ईश्वरीय परिवार के समीप ला रही हूँ...*

 

 _ ➳  महारथी बन अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली और सेवा स्थल पर आने वाली आत्माओं को मैं मनसा शक्ति द्वारा कोई ना कोई शक्ति का अनुभव करवा रही हूँ... *कोई आत्मा शांति का, कोई सुख का, कोई खुशी का और कोई अपनेपन का अनुभव करके जैसे तृप्त हो रही हैं...* इन मनसा शक्तियों के प्रयोग से सेवा स्थल का वायुमण्डल भी निर्विघ्न बन रहा है।

 

 _ ➳  सेवा स्थल का वायुमण्डल निर्विघ्न होने से ब्राह्मण संगठन भी शक्तिशाली बन रहा है जिससे सेवा स्थल पर आने वाले नए बच्चो को बापदादा के सहयोग के साथ साथ  ब्राह्मण आत्माओं के द्वारा उमंग, उत्साह, हिम्मत और समाधान मिलने से वो भी तीव्र गति से आगे बढ़ रहें हैं... *शक्तियों का सहयोग और शक्तियों की पालना मिलने से निर्बल और उत्साह हीन आत्मायें भी अपने अंदर शक्ति भरने से शक्तिशाली स्थिति का अनुभव कर रही है...*

 

 _ ➳  *सेवा मे शक्ति स्वरूप के वायब्रेशन आत्माओं को अनुभव हो, शक्तिशाली सेवा हो इसी लक्ष्य को ले कर अब सभी ब्राह्मण आत्मायें अपनी मनसा शक्ति को बढ़ा कर महारथी बन मनसा द्वारा शक्तियों का अनुभव कर और करवा रही है...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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