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❍ 15 / 11 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *ज्ञान के शुद्ध नशे में रह बाप का शो किया ?*
➢➢ *अपनी अवस्था बड़ी मस्त, अचल अडोल बनाई ?*
➢➢ *सर्व प्राप्तियों की अनुभूति द्वारा माया को विदाई बधाई प्राप्त की ?*
➢➢ *स्व चिंतन और प्रभु चिंतन से व्यर्थ चिंतन समाप्त किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *किसी भी प्रकार का विघ्न बुद्धि को सताता हो तो योग के प्रयोग द्वारा पहले उस विघ्न को समाप्त करो।* मन-बुद्धि में जरा भी डिस्टरबेन्स न हो। *अव्यक्त स्थिति में स्थित होने का ऐसा अभ्यास हो जो रूह, रूह की बात को या किसी के भी मन के भावों को सहज ही जान जाये।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं रूहानी फरिश्ता हूँ"*
〰✧ सदा अपना रुहानी फरिश्तास्वरूप स्मृति में रहता? *ब्राह्मण सो फरिश्ता, फरिश्ता सो देवता - यह पहली हल कर ली है ना! पहेलियाँ हल करना आता है! सेकण्ड में ब्राह्मण सो देवता, देवता सो चक्र लगाते ब्राह्मण, फिर देखता।*
〰✧ *तो 'हम सो, सो हम' की पहेली सदा बुद्धि में रहती है? जो पहेजी हल करते उनहें ही प्राइज मिलती है। तो प्राइज मिली है ना! जो अभी मिली है, वह भविष्य में भी नहीं मिलेगी! प्राइज में क्या मिला है? स्वयं बाप मिल गया, बाप के बन गये।*
〰✧ *भविष्य की राजाई के आगे यह प्राप्ति कितना ऊंची है! तो सदा प्राइज लेने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ - इसी नशे और खुशी से सदा आगे बढ़ते रहो। पहेली और प्राइज दोनों स्मृति में सदा रहें तो आगे स्वत: बढ़ते रहेंगे।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *सभी आवाज से परे रहना सहज अनुभव करते हो वा आवाज में आना सहज अनुभव करते हो?* सहज क्या है? आवाज में आना या आवाज से परे होना? आवाज से परे होना अर्थात अशरीरी स्थिति का अनुभव होना। तो शरीर के भान में आना जितना सहज है, उतना ही अशरीरी होना भी सहज है कि मेहनत करनी पडती है?
〰✧ सेकण्ड में आवाज में तो आ जाते हो लेकिन सेकण्ड में कितना भी आवाज में हो, चाहे स्वयं हो या वायुमण्डल आवाज का हो लेकिन सेकण्ड में फुलस्टॉप लगा सकते हो कि कॉमा लगेगी, फुलस्टॉप नहीं? इसको कहा जाता है फरिश्ता वा *अव्यक्त स्थिति की अनुभूति में रहना, व्यक्त भाव से सेकण्ड में परे हो जाना।*
〰✧ *इसके लिए ये नियम रखा हुआ है कि सारे दिन में ट्रैफिक ब्रेक का अभ्यास करो।* ये क्यों करते हो? कि ऐसा अभ्यास पक्का हो जाये जो चारों ओर कितना भी आवाज का वातावरण हो लेकिन एकदम ब्रेक लग जाये।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *कोई भी सामने आये तो उनको यह नयन बल्ब दिखाई पड़े। ज्योति ही ज्योति दिखाई दे। जैसे अन्धियारे में सच्चे हीरे चमकते हैं ना? जैसे सर्च लाइट होती है बहुत फोर्स से और अच्छी रीति फैलाते हैं इस रीति से मस्तक के लाइट का साक्षात्कार एक-एक से होना है। तब कहेंगे यह तो जैसे फ़रिश्ता है।* साकार में नयन, मस्तक और माथे के क्राउन के साक्षात्कार स्पष्ट होंगे। नयनों तरफ़ देखते देखते लाइट देखेंगे। *तुम्हारी लाइट को देख दूसरे भी जैसे लाइट हो जायेंगे। कितना भी मन से वा स्थिति में भारीपन हो लेकिन आने से ही हल्का हो जाये। ऐसी स्टेज अब पकड़नी है।* क्योंकि आप लोगों को देख कर और सभी भी अपनी स्थिति ऐसी करेंगे। अभी से ही अपना गायन सुनेंगे। द्वापर का गायन कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन ऐसे साक्षात्कारमूर्त और साक्षात् मूर्त बनने से अभी का गायन अपना सुनेंगे।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- श्रीमत को धारण करना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मधुबन की पहाड़ी पर बैठ प्रकृति के नजारों को देखती हूँ... पहाड़ों के बीच से उगते हुए सूरज की लालिमा ने अपना सुनहरा आँचल फैलाकर पहाड़ों को और ही खूबसूरत बना दिया है...* ठंडी-ठंडी हवाओं के झोंकें मधुर संगीत सुना रही हैं... इस मधुर पावन धरती की गाथा गा रही है... मैं आत्मा हद की दुनिया से दूर बेहद के इस घर में बेहद बाबा को याद करती हूँ... तुरंत ही मीठे प्यारे बाबा मेरे सम्मुख हाजिर होकर अपने प्यार की खुशबू मुझ पर बरसाते हैं...
❉ *ऊँगली पकडकर श्रीमत की राह पर चलाकर श्रेष्ठ बनाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे बच्चे... अब यह विकारो से भरी दुनिया खत्म होने वाली है और दिव्य गुणो के महक वाली सतयुगी दुनिया आने वाली है... तो ईश्वर पिता की श्रीमत को जीवन का आधार बना लो... *यही श्रीमत और पवित्रता देवी देवता के रूप में श्रृंगारित कर सुखो के संसार में ले चलेगी...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने जीवन रूपी गाड़ी को श्रीमत रूपी पटरी पर चलाते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा इस पुरानी विकारी दुनिया से मन बुद्धि को निकाल श्रीमत का हाथ पकड़ सतयुगी दुनिया की और बढ़ती चली जा रही हूँ...* दिव्य गुणो से सजती जा रही हूँ... प्यारे बाबा संग निखरती जा रही हूँ...”
❉ *मीठा बाबा स्वर्ग सुखों से जीवन को आबाद कर खुशियों की शहजादी बनाते हुए कहते हैं:-* “मीठे प्यारे फूल बच्चे... इस दुःख भरी दुनिया से उपराम होकर मेरी महकती यादो में खो जाओ... *श्रीमत का हाथ सदा पकड़े रहो... तो काँटों से महकते फूल बन खिल उठेंगे... ईश्वर पिता का साथ सुखो के जन्नत में ले चलेगा...* जहाँ देवता बन मुस्करायेंगे...”
➳ _ ➳ *रावण की दुनिया से निकल एक राम की यादों में महकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा प्यारे बाबा से सारे गुण और शक्तियो से भरकर भरपूर हो गई हूँ... *इस मिटटी के नातो से निकल कर अपने सत्य स्वरूप के नशे में खो गई हूँ... और श्रेष्ठ कर्म से खिलती जा रही हूँ...”*
❉ *श्रीमत के झूले में झुलाकर दिव्यता से महकाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जिस दुनिया सा इतना दिल लगाकर दुखी हुए... खाली हो गए... अब उसका अंत आया की आया... *अब समय साँस संकल्पों को मीठे बाबा की यादो और श्रीमत के पालन में लगाओ... तो यह पवित्र जीवन सुख और शांति से खिल उठेगा... घर आँगन सुखो से लहलहायेगा...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सुन्दर परी बनकर पवित्रता की खुशबू चारों ओर फैलाते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी श्रीमत से खूबसूरत होती जा रही हूँ... मन बुद्धि को इस संसार से उपराम बनाती जा रही हूँ... *मीठे बाबा आपने जो सुंदर कर्म सिखाये है... पवित्रता का दामन थाम सुन्दरतम होती जा रही हूँ...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अपनी अवस्था बड़ी मस्त, अचल अडोल बनानी है*
➳ _ ➳ हर संकल्प, विकल्प से मुक्त, सम्पूर्ण एकाग्र चित अवस्था में स्थित होकर अपने तपस्वी स्वरूप का मैं आह्वान करती हूँ। सेकण्ड में मेरा तपस्वी स्वरूप मेरी आँखों के सामने प्रत्यक्ष हो जाता है। *देख रही हूँ अब मैं अपने उस स्वरूप को जो अपने प्यारे प्रभु की याद में मग्न है। नश्वर संसार की किसी भी बात से उसका कोई तैलूक नही। एक रस अवस्था। बुद्धि का योग केवल एक के साथ। सर्व सम्बन्ध केवल उस एक के साथ*। इंद्रियों के क्षण भंगुर सुख को छोड़, अतीन्द्रीय सुख के झूले में झूलती आत्मा अपने प्यारे पिता के प्रेम की लगन में ऐसे मग्न हो चुकी है कि सिवाए परमात्म प्रेम के उसे और कुछ भी दिखाई नही दे रहा। *कितनी न्यारी और प्यारी अवस्था है यह! कितना सुख समाया है प्रभु प्रेम में मग्न इस अवस्था में*।
➳ _ ➳ अपने इस अति सुख और आनन्दमयी तपस्वी स्वरूप में सदा स्थित रहने के लिए मुझे अपनी अवस्था को ऐसा एकाग्र चित बनाना है जो बुद्धि योग सदा एक बाप के साथ लगा रहे। पुराने घर, पुरानी दुनिया मे बुद्धि कभी ना जाये। *मन मे यह दृढ़ संकल्प करके, मैं फिर से अपनी बुद्धि को एकाग्र करती हूँ और अपने निराकारी सत्य स्वरुप पर अपने ध्यान को केंद्रित कर लेती हूँ*। देख रही हूँ अब मैं अपने सर्व गुणों और सर्व शक्तियों से सम्पन्न अपने निराकारी ज्योति बिंदु स्वरूप को जो एक प्वाइंट ऑफ लाइट, एक अति सूक्ष्म सितारे के रुप में भृकुटि पर चमक रहा है। सर्व गुणों, सर्वशक्तियों की किरणे मुझ आत्मा से निकल कर धीरे - धीरे चारों और फैल कर मेरे आस - पास के वायुमण्डल को शान्त और सुखमय बना रही है। *गहन शान्ति की स्थिति में मैं सहज ही स्थित होती जा रही हूँ*।
➳ _ ➳ अपने मन और बुद्धि को अपने इस सत्य स्वरूप पर पूरी तरह एकाग्र करके, अपने स्वरूप की सुखद अनुभूति करते - करते अब मैं अपने मन बुद्धि को अपने शिव पिता के स्वरुप पर एकाग्र करती हूँ। *बिल्कुल मेरे ही समान एक चमकता हुआ स्टार मेरी आँखों के सामने मुझे स्पष्ट दिखाई दे रहा है। अपने पिता को अपने ही समान पाकर एक गहन सुकून का अनुभव कर रही हूँ मैं*। कभी मैं अपने आप को देख रही हूँ और कभी अपने प्यारे पिता को निहार रही हूँ। प्रकाश की अनन्त किरणे बिखेरता हुआ उनका ये सुन्दर स्वरूप मुझे अपनी ओर खींच रहा है। *ऐसा लग रहा है जैसे अपनी सर्वशक्तियों की किरणो रूपी बाहों को फैलाये बाबा मुझे अपने साथ चलने के लिए बुला रहें हैं*।
➳ _ ➳ अपने प्यारे पिता की किरणों रूपी बाहों में समा कर इस नश्वर देह और देह की दुनिया को भूल अब मैं उनके साथ उनकी निराकारी दुनिया मे जा रही हूँ। *अपनी बाहों के झूले में झुलाते हुए बाबा मुझे इस छी - छी विकारी दुनिया से दूर, अपनी निर्विकारी दुनिया मे ले जा रहें हैं। पांच तत्वों की साकारी दुनिया को पार कर, सूक्ष्म लोक से भी पार अपने शिव पिता के साथ मैं पहुंच गई हूँ अपने निर्वाणधाम घर में*। संकल्पों - विकल्पों की हर प्रकार की हलचल से मुक्त, वाणी से परे अपने इस निर्वाणधाम घर में शांति के सागर अपने शिव पिता के सामने मैं गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ। *मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं अपलक शक्तियों के सागर अपने शिव पिता को निहारते हुए, उनसे अनेक जन्मों के बिछड़ने की सारी प्यास बुझा रही हूँ। उनके प्रेम से, उनकी शक्तियों से मैं स्वयं को भरपूर कर रही हूँ*।
➳ _ ➳ परमात्म शक्तियों से भरपूर हो कर, अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति का गहन अनुभव करके अब मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ और आकर अपने ब्राह्मण स्वरुप में स्थित हो गई हूँ। परमात्म प्रेम का सुखदाई अनुभव, साकारी देह में रहते हुए भी अब मुझे देह और देह से जुड़े बन्धनों से मुक्त कर रहा है। *किसी भी देहधारी के झूठे प्यार का आकर्षण अब मुझे आकर्षित नही कर रहा। सर्व सम्बन्धों का सच्चा रूहानी प्यार अपने मीठे बाबा से निरन्तर प्राप्त करने से, पुराने घर, पुरानी दुनिया से मेरा बुद्धियोग टूट कर, केवल एक बाबा के साथ जुट रहा है जो मेरी अवस्था को एकाग्रचित बना कर मुझे हर पल परमात्म प्यार और परमात्मा पालना का सुख प्रदान कर रहा है*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मै सर्व प्राप्तियों की अनुभूति द्वारा माया को विदाई दे बधाई पाने वाली खुशनसीब आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं स्वचिन्तन और प्रभुचिन्तन करके व्यर्थ चिंतन स्वतः समाप्त होने का अनुभव करने वाली सहजयोगी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. यह सब साधन आप बच्चों की सेवा के सहयोग के लिए निकले हैं। *ब्रह्मा बाप जब समाचार सुनते हैं - यह ई-मेल है, ये यह है, तो खुश होते हैं कि वाह बच्चे, वाह!* इतना सहज साधन ब्रह्मा बाप को भी साकार में नहीं मिला लेकिन बच्चों के पास हैं। खुश होते हैं। *सिर्फ सेवा का साधन समझकर यूज करना। सेवा के लिए साधन है क्योंकि विश्व-कल्याण करना है तो यह भी साधन सहयोग देते हैं। साधनों के वश नहीं होना।* लेकिन साधन को सेवा में यूज करना। यह बीच का समय है जिसमें साधन मिले हैं। आदि में भी कोई इतने साधन नहीं थे और अन्त में भी नहीं रहेंगे। यह अभी के लिए हैं। सेवा बढ़ाने के लिए हैं। लेकिन यह साधन हैं, साधना करने वाले आप हो। *साधन के पीछे साधना कम नहीं हो।* बाकी बापदादा खुश होते हैं। बच्चों की सीन भी देखते हैं। फटाफट काम कर रहे हैं। बापदादा आपके आफिस का भी चक्कर लगाते हैं। कैसे काम कर रहे हैं। बहुत बिजी रहते हैं ना! अच्छी तरह से आफिस चलती है ना! *जैसे एक सेकण्ड में साधन यूज करते हो ऐसे ही बीच-बीच में कुछ समय साधना के लिए भी निकालो। सेकण्ड भी निकालो।*
➳ _ ➳ *अभी साधन पर हाथ है और अभी अभी एक सेकण्ड साधना, बीच-बीच में अभ्यास करो।* जैसे साधनों में जितनी प्रैक्टिस करते हो तो आटोमेटिक चलता रहता है ना। ऐसे एक सेकण्ड में साधना का भी अभ्यास हो। ऐसे नहीं टाइम नहीं मिला, सारा दिन बहुत बिजी रहे। बापदादा यह बात नहीं मानते हैं। *क्या एक घण्टा साधन को अपनाया, उसके बीच में क्या 5-6 सेकण्ड नहीं निकाल सकते? ऐसा कोई बिजी है जो 5 मिनट भी नहीं निकाल सके, 5 सेकण्ड भी नहीं निकाल सके।* ऐसा कोई है? निकाल सकते हैं तो निकालो। बापदादा जब सुनते हैं आज बहुत बिजी हैं, बहुत बिजी कह करके शक्ल भी बिजी कर देते हैं। बापदादा मानते नहीं हैं। जो चाहे वह कर सकते हो। अटेन्शन कम है। *जैसे वह अटेन्शन रखते हो ना - 10 मिनट में यह लेटर पूरा करना है, इसीलिए बिजी होते हो ना - टाइम के कारण।* ऐसे ही सोचो 10 मिनट में यह काम करना है, वह भी तो टाइम-टेबल बनाते हो ना। इसमें एक दो मिनट पहले से ही एड कर दो। *8 मिनट लगना है, 6 मिनट नहीं, 8 मिनट लगना है तो 2 मिनट साधना में लगाओ।* यह हो सकता है?
✺ *ड्रिल :- "साधन और साधना का बैलेन्स रखना"*
➳ _ ➳ इस संगम युग की सुहानी बेला में... एकान्त में बैठी हुई मैं आत्मा... अपनी शांत स्वरूप स्थिति का आनंद ले रही हूँ... *मैं शांत... घर शांत... शांत वातावरण... मेरा बाबा शांति का सागर...* मेरे बाबा ऊपर से मुझ पर शांति और स्नेह की किरणें बरसा रहे हैं... मुझे बहुत ही प्रेम से अपने पास बुला रहे हैं... मैं आत्मा अपने फरिश्ता स्वरूप में स्थित हो जाता हूँ... अपने बाबा से दिव्य मिलन मनाने के लिए उड़ जाता हूँ...
➳ _ ➳ मैं फरिश्ता स्वरूप आत्मा... फरिश्तों की दुनिया में... ब्रह्मा बाबा के सम्मुख पहुँच जाता हूँ... स्नेह भरी दृष्टि और दिव्य मुस्कान के साथ... बाबा मेरा स्वागत करते हैं... शिवबाबा भी परमधाम से आकर... उनकी भृकुटि पर विराजमान हो जाते हैं... बापदादा अपने वरदानी हस्त मेरे सिर पर रखते हैं... वरदानों के शक्तियों भरे फव्वारे से... मुझे भिगोकर सराबोर कर देते हैं... *साधन तथा साधना का बैलेंस रखते हुए बाबा से सफलता स्वरूप भव का वरदान प्राप्त कर...* मैं फरिश्ता अपने कर्म क्षेत्र में आ जाता हूं
➳ _ ➳ मैं आत्मा पांच तत्वों की इस देह में प्रवेश कर... साधनों को देख निश्चय कर रही हूँ... यह साधन तो विश्व कल्याण करने के लिए सेवा अर्थ हैं... सेवाओं को आगे बढ़ाने के लिए हैं... *सेवा करते करते भी अपनी साररूपी बीजस्वरूप की स्थिति की अनुभूति कर रही हूँ... औरों को भी सार स्वरूप की अनुभूति करा रही हूँ...* आदि-अंत में तो यह साधन होंगे नहीं... मैं आत्मा अभी के समय में... यह सेवा अर्थ साधन पुरुषार्थ को तीव्र करने के लिए यूज़ कर रही हूँ...
➳ _ ➳ अलौकिक सेवाओं में बिजी रहकर... मैं आत्मा व्यर्थ को पूर्ण रूप से त्याग कर... समर्थ आत्मा बन रही हूँ... हर सेकंड... हर संकल्प... हर बोल को सफल बनाकर... सफलतामूर्त बन रही हूँ... ज्ञान के अनमोल रत्नों को धारण कर... धारणा स्वरूप बन रही हूँ... *एक पल सेवार्थ साधन... दूसरे ही पल साधना का उत्तम अभ्यास स्वतः ही हो रहा है...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा ऑफिस में भी हर कर्म करते हुए... स्वस्थिति को चेक कर रही हूँ... मुझे ज्ञात है... बापदादा मेरे ऑफिस का भी चक्कर लगाते हैं... मैं आत्मा विश्व कल्याणकारी सेवाओं के लिए साधनों को यूज़ कर रही हूँ... अलौकिक सेवा करते-करते... ईश्वरीय पढ़ाई में भी मग्न हो जाती हूँ... *साधन तथा साधना का बैलेन्स रखते हुए... पुरुषार्थ में तीव्रता लाकर... मैं आत्मा साधना स्वरूप बन गई हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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