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❍ 06 / 08 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अन्दर में बाबा बाबा कहते बाबा समान स्वीट बनकर रहे ?*
➢➢ *याद की अग्नि से विकारों की खाद निकालने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *समानता द्वारा समीपता की सीट ले फर्स्ट डिवीज़न में आने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *सुखदाता बन अनेक आत्माओं को दुःख अशांति से मुक्त करने की सेवा की ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ पहले अपनी देह के लगाव को खत्म करो तो संबंध और पदार्थ से लगाव आपे ही खत्म हो जायेगा। *फरिश्ता बनने के लिए पहले यह अभ्यास करो कि यह देह सेवा अर्थ है, अमानत है, मैं ट्रस्टी हूँ। फिर देखो, फरिश्ता बनना कितना सहज लगता है!*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बाबा की आँखों का तारा हूँ"*
〰✧ सदा अपने को कौनसे सितारे समझते हो? (सफलता के सितारे, लक्की सितारे, चमकते हुए सितारे, उम्मीदों के सितारे) बाप की आंखों के तारे। तो नयनों में कौन समा सकता है? जो बिन्दु है। *आंखों में देखने की विशेषता है ही बिन्दु में। जितना यह स्मृति रखेंगे कि हम बाप के नयनों के सितारे हैं, तो स्वत: ही बिन्दु रूप होंगे।* कोई बड़ी चीज आंखों में नहीं समायेगी। स्वयं आंख ही सूक्ष्म है, तो सूक्ष्म आंख में समाने का स्वरूप ही सूक्ष्म है। बिन्दु-रूप में रहते हो? यह बड़ा लम्बा- चौड़ा शरीर याद आ जाता है?
〰✧ बापदादा ने पहले भी सुनाया था कि हर कर्म में सफलता वा प्रत्यक्षफल प्राप्त करने का साधन है-रोज अमृतवेले तीन बिन्दु का तिलक लगाओ। तो तीन बिन्दु याद हैं ना। लगाना भी याद रहता है? *क्योंकि अगर तीनों ही बिन्दी का तिलक सदा लगा हुआ है तो सदैव उड़ती कला का अनुभव होता रहेगा। कौनसी कला में चल रहे हो? उड़ती कला है? या कभी उड़ती, कभी चलती, कभी चढ़ती? सदा उड़ती कला। उड़ने में मजा है ना। या चढ़ने में मजा है?* चारों ओर के वायुमण्डल में देखो कि समय उड़ता रहता है। समय चलता नहीं है, उड़ रहा है। और आप कभी चढ़ती कला, कभी चलती कला में होंगे तो क्या रिजल्ट होगी? समय पर पहुँचेंगे? तो पहुँचने वाले हो या पहुँचने वालों को देखने वाले हो? सभी पहुँचने वाले हो, देखने वाले नहीं। तो सदा उड़ती कला चाहिए ना।
〰✧ उड़ती कला का क्या साधन है? बिन्दु रूप में रहना। डबल लाइट। बिन्दु तो है लेकिन कर्म में भी लाइट। डबल लाइट हो तो जरूर उड़ेंगे। आधा कल्प बोझ उठाने की आदत होने कारण बाप को बोझ देते हुए भी कभी-कभी उठा लेते हैं। तंग भी होते हो लेकिन आदत से मजबूर हो जाते हो। कहते हो 'तेरा' लेकिन बना देते हो 'मेरा'। *स्वउन्नति के लिए वा विश्व-सेवा के लिए कितना भी कार्य हो वह बोझ नहीं लगेगा। लेकिन मेरा मानना अर्थात् बोझ होना। तो सदैव क्या याद रखेंगे? मेरा नहीं, तेरा। मन से, मुख से नहीं। मुख से तेरा-तेरा भी कहते रहते हैं और मन से मेरा भी मानते रहते हैं। ऐसी गलती नहीं करना।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *संसार में एक सम्बन्ध, दूसरी है सम्पति। दोनों विशेषतायें बिन्दू बाप में समाई हुई हैं।* सर्व सम्बन्ध एक द्वारा अनुभव किया है? सर्व सम्पत्ति की प्राप्ति सुख-शान्ति, खुशी यह भी अनुभव किया है या अभी करना है? तो क्या हुआ? विस्तार सार में समा गया ना!
〰✧ *अपने आप से पूछो अनेक तरफ विस्तार में भटकने वाली बुद्धि समेटने के शक्ति के आधार पर एक में एकाग्र हो गई है?* वा अभी भी कहाँ विस्तार में भटकती है! समेटने की शक्ति और समाने की शक्ति का प्रयोग किया है? या सिर्फ नॉलेज है। अगर इन दोनों शक्तियों को प्रयोग करना आता है तो उसकी निशानी सेकण्ड में जहाँ चाहो जब चाहो बुद्धि उसी स्थिति में स्थित हो जायेगी।
〰✧ जैसे स्थूल सवारी में पॉवरफुल ब्रेक होती है तो उसी सेकण्ड में जहाँ चाहें वहाँ रोक सकते हैं। जहाँ चाहें वहाँ गाडी को या सवारी को उसी दिशा में ले जा सकते हैं। ऐसे स्वयं यह शक्ति अनुभव करते हो वा एकाग्र होने में समय लगता है? वा व्यर्थ से समर्थ की ओर बुद्धि को स्थित करने में मेहनत लगती है? *अगर समय और मेहनत लगती है तो समझो इन दोनों शक्तियों की कमी है।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ विदेही बापदादा को देह का आधार लेना पड़ता है। किसलिए? बच्चों को भी विदेही बनाने के लिए। जैसे बाप विदेही, देह में आते हुए भी विदेही स्वरूप में, विदेहीपन का अनुभव कराते है। ऐसे आप सभी जीवन में रहते, *देह में रहते विदेही आत्म-स्थिति में स्थित हो इस देह द्वारा करावनहार बन करके कर्म कराओ। यह देह करनहार है। आप देही करावनहार हो। इसी स्थिति को 'विदेही स्थिति' कहते हैं। इसी को ही फालो फादर कहा जाता है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- खुशबूदार फूल बनना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा फूलों के सुन्दर बगीचे में बैठ रंग-बिरंगे फूलों को देख मन्त्रमुग्ध हो रही हूँ... रंग-बिरंगे फूलों पर बैठ रंग-बिरंगी तितलियाँ भी मुस्कुरा रही हैं... चारों ओर का वातावरण भी सुगन्धित फूलों की खुशबू से महक उठा है...* जन्म-जन्मान्तर से मुझ आत्मा में चुभे हुए विकारों रूपी काँटों को निकाल मुझे भी खुशबूदार फूल बनाने वाले मीठे बागबान बाबा का आह्वान करती हूँ... फूलों को देखते हुए प्यारे बाबा मुझसे रूह-रिहान करते हैं...
❉ *मुझ पर फूलों की बारिश कर रूहानी सुगंध भरते हुए प्यारे बागबान बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... अब दुखदायी कांटे क्रोध को छोड़ मीठे बाबा संग मधुरता के पर्याय बनो... और *अपने दिव्य गुणो की खुशबु से सबके जीवन में खुशियो के फूल खिलाओ... सारे विश्व को अपनी ईश्वरीय दिव्यता पवित्रता का मुरीद बना आओ...”*
➳ _ ➳ *फूलों की रानी बन चारों ओर अपनी रूहानियत को फैलाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आप संग मिलकर तो पारस हो गई हूँ... *हर दिल आत्मा को आपसे पाये मीठे प्यार और गुणो की झलक दिखा रही हूँ... कौन मुझे मिला है और किसने इतना खुबसूरत फूल मुझे बनाया है... यह खुशबु पूरे जहान में फैला रही हूँ...”*
❉ *उमंगो के पंख लगाकर मेरे मन में खुशियों के पुष्प बरसाते हुए मीठा बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... महान भाग्य को पाकर ईश्वर पुत्र जो बन गए हो तो बाप समान स्वरूप की अदा सारे विश्व में दिखाओ... *सबको प्रेम वर्षा से सिंचित कर रूहानियत के फूल खिला आओ... ईश्वरीय छत्रछाया में विकारो से मुक्त होकर सुंदर देवताई स्वरूप से सज जाओ... प्यार के मोती सबके दामन में सजा आओ...”*
➳ _ ➳ *विकारों से मुक्त होकर देवताई गुणों के सौंदर्य से महकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में तो क्रोध के जहरीले कांटे से मीठा महकता प्यार का फूल बन गई हूँ... *हर दिल को दुखो से दूर कर ईश्वरीय प्यार से सींचने वाली ज्ञान गंगा बन मुस्करा रही हूँ... रूहानी गुलाब बन चारो ओर खुशबु फैला रही हूँ...”*
❉ *स्नेह प्यार की मीठी रिमझिम कर मुझे पावनता से सजाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... विश्व पिता के प्यार भरी छाँव में रूखेपन को छोड़ रूहानियत से भर जाओ... *मीठे पिता की यादो के सुनहरे संग में स्वयं को निखार कर अपने निखरे स्वरूप की झलक से सबके दुःख दूर करने वाले दुखहर्ता बन जाओ... सच्चे सच्चे फूल बन मुस्कराओ...”*
➳ _ ➳ *खुशियों के रंगों से अपने बेरंग जीवन को सजाकर आनंद के सागर में लहराते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा जो कभी मिठास क्या होता है... सच्चा प्रेम क्या होता है जानती ही न थी... *आज ईश्वरीय यादो में कितना प्यारा मीठा महकता फूल बन मुस्करा रही हूँ... सुख का पर्याय बन पूरे विश्व में सुख की लहर फैला रही हूँ...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अन्दर में बाबा - बाबा कहते बाबा समान स्वीट बनना है*
➳ _ ➳ मन मे अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी याद को बसाये अन्दर में बाबा - बाबा कहते मैं हर कर्म कर रही हूँ और साथ ही साथ अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के बारे में भी विचार कर रही हूँ कि मेरे जैसा भाग्यवान इस दुनिया में कोई नही, जिसके हर कर्म में भगवान साथी बन उसका हर कार्य कैसे सहजता से करवा रहें है। *ना कोई थकावट, ना कोई मेहनत हर काम अपने आप सम्पन्न हो रहा है। कर्म करते हुए भी, कर्म के प्रभाव से मुक्त, मैं स्वयं को कितना लाइट अनुभव कर रही हूँ*। मेरे मीठे बाबा की मीठी याद मुझे कितना बल दे रही हैं। ऐसा लग रहा है जैसे मेरे सोचने का काम भी बाबा कर रहें हैं।
➳ _ ➳ ऐसे अन्दर में बाबा - बाबा कहते, अपने मीठे बाबा की मीठी याद में कर्म करते हुए मैं अपने अति मीठे शिव भोला भगवान के गुणों का चिंतन करते हुए अपने आप से ही बात करती हूँ कि बाबा कितने स्वीट हैं। *उनकी मीठी याद जीवन की दुखदाई स्मृतियो की सारी कड़वाहट को भुला कर मन को कितना सुकून देती है। बाबा के समान मुझे भी बहुत स्वीट बन कर दुखी अशांत आत्माओं के जीवन से दुख की कड़वाहट को समाप्त कर उनके जीवन में मिठास लाने की सेवा कर बाबा के स्नेह का रिटर्न देना है*।
➳ _ ➳ मन ही मन स्व चिंतन करते हुए, अपने स्वीटेस्ट बाबा के समान स्वीट बनने की प्रतिज्ञा स्वयं से करके, *मैं अपने स्वीट बाबा और अपने स्वीट साइलेन्स होम को जैसे ही याद करती हूँ, ऐसा लगता है जैसे मेरी हर प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए, परमधाम से बाबा की सर्वशक्तियों की अनन्त शक्तिशाली किरणो के रूप में परमात्म ब्लैसिंग मुझ आत्मा पर बरसने लगी है*। यह परमात्म प्रेम और परमात्म शक्तियाँ मेरे अंदर एक बल भर रही है और मुझे बहुत ही लाइट और माइट बना रही हैं। इस लाइट और माइट स्थिति में मैं स्वयं को धीरे - धीरे देह से डिटैच अनुभव कर रही है। देह में होते हुए भी मैं स्वयं को देह से एकदम अलग अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ साक्षी होकर मैं अपनी देह और अपने आस पास की हर वस्तु को देखते हुए, अब इन सबसे किनारा कर ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। *अपने स्वीट साइलेन्स होम में जाकर अपने स्वीट बाबा से मिलने की इस खूबसूरत रूहानी यात्रा पर मैं धीरे - धीरे आगे बढ़ रही हूँ और कुछ ही सेकण्ड में इस यात्रा को पूरा कर मैं पहुँच गई हूँ अपने स्वीट साइलेन्स होम में, जहाँ आकर मन को गहन शान्ति और सुकून का अनुभव हो रहा है*।
अपने सामने सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के सागर अपने शिव पिता को मैं देख रही हूँ जो अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरा आह्वान कर रहें हैं। धीरे - धीरे मैं अपने मीठे बाबा के समीप जाकर मैं उनकी किरणो रूपी बाहों में समा जाती हूँ। *अपनी बाहों के झूले में झुलाते हुए बाबा अपने सारे गुण और अपनी सारी शक्तियाँ मेरे अंदर भर कर मुझे आप समान बना रहें हैं*।
➳ _ ➳ अपने स्वीटेस्ट बाबा के समान सर्व गुणों और सर्वशक्तियों से भरपूर होकर अब मैं ईश्वरीय सेवा अर्थ वापिस साकार लोक की ओर लौट रही हूँ। साकार सृष्टि पर अपने साकार शरीर मे प्रवेश कर भृकुटि के अकाल तख्त पर विराजमान होकर मैं फिर से अपना पार्ट बजा रही हूँ। *अपने स्वीटेस्ट बाबा की याद में निरन्तर रहते, हर कर्म करते अन्दर में बाबा - बाबा कहते, बाबा के गुणों को अपने जीवन में धारण कर, उनके समान स्वीट बन मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को सच्चा रूहानी स्नेह और सम्मान देकर सबके जीवन में मिठास घोल रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं समानता द्वारा समीपता की सीट ले फर्स्ट डिवीज़न में आने वाली विजयी रत्न आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं सुखदाता बन अनेक आत्माओं को दुःख अशांति से मुक्त करने की सेवा करने वाली सुखदेव आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
➳ _ ➳
हर
एक बच्चा निश्चय और फलक से कहते हैं कि *मेरा बाबा मेरे साथ है।*
➳ _ ➳
कोई
भी पूछे परमात्मा कहाँ है? तो
क्या कहेंगे? मेरे
साथ है। *फलक से कहेंगे कि अब तो बाप भी मेरे बिना
रह नहीं सकता। तो इतने समीप, साथी
बन गये हो।* आप भी एक सेकण्ड भी बाप के बिना नहीं रह सकते हो।
➳ _ ➳
बापदादा बच्चों का यह खेल भी देखते रहते हैं कि *बच्चे एक तरफ कह रहे हैं मेरा
बाबा, मेरा
बाबा और दूसरे
तरफ किनारा भी कर लेते हैं।*
➳ _ ➳
बाप
को देखने की दृष्टि बन्द हो जाती है और माया को देखने की दृष्टि खुल जाती है।
तो *आंख मिचौनी खेल
कभी-कभी खेलते हो? बाप
फिर भी बच्चों के ऊपर रहमदिल बन माया से किसी भी ढंग से किनारा करा लेता है।
वो बेहोश करती और बाप होश में लाता है कि तुम मेरे हो। बन्द आंख याद के जादू से
खोल देते हैं।*
✺
*ड्रिल :- "बाबा की मदद से माया से किनारे का अनुभव"*
➳ _ ➳ *नीले
आसमान सी चुनरिया और सिंदूरी श्याम सी बिंदिया,
पेड़ पत्तों की खनखनाहट है हाथों में और मुख पर सुर्ख हवाओं का पर्दा गिरा कर
देखो यह प्रकृति कितनी मुस्कुरा रही है... दूर एक छोटे से टापू पर बैठ कर मैं
आत्मा यह नजारा देख रही हूं... और मुझे यह प्रकृति इस श्रृंगार में अति मनमोहक
लग रही है...* यह दृश्य मुझे अति आनंदित अनुभव करा रहा है... और इसी आनंद की
स्थिति में मैं और गहराई में चली जाती हूं... और पहुंच जाती हूं आबू पर्वत...
जहां पर बाबा के बच्चे फरिश्ते की तरह निमित्त भाव से सेवा करते नजर आ रहे
हैं... मैं उनको और उनके सेवाभाव को तथा उनकी बाबा से लगन को जानने के लिए उनके
पास जाकर गहराई से उनके मनोभाव को जानने का प्रयास करती हूं...
➳ _ ➳
और
जैसे ही मैं आत्मा उन फरिश्तों रूपी बाबा के बच्चों के पास जाती हूँ... तो मुझे
यह ज्ञात होता है कि... उन सभी ब्राहमण आत्माओं के पास एक चाबी है... जिसका नाम
है *मेरा बाबा और जिसके कारण वह आत्माएं हर बंद ताले को खोल सकती है... और अपने
हर कार्य में सफल हो जाती है...* मैं उन आत्माओं से पूछती हूं... कि क्या यह
चाबी आपके पुरुषार्थ में तुम्हारी मदद करती है... तो वह आत्माएं हमें कहती
है... हमारे सामने चाहे कोई भी परिस्थिति आए... चाहे कितनी भी खुशी रहे इस मेरे
बाबा रूपी चाबी को कभी नहीं भूलती... जिसके कारण हम आत्माएं फरिश्ते रूप में
अपने आप को सहज ही अनुभव कर निमित्त सेवाधारी का पार्ट बजा पा रही हैं...
➳ _ ➳
फिर
मैं उन फरिश्तों रूपी आत्माओं को इस स्थिति में देखकर मैं आत्मा पहुंच जाती हूं
मन बुद्धि से उसी स्थान पर... जहां से मुझे यह प्रकृति अति मनमोहक लग रही है...
और उसी टापू पर बैठकर मैं सोचने लगती हूँ... की बाबा मुझे रोज सच्चा ज्ञान दे
रहे हैं,
मुझे माया से जीतना सिखा रहे हैं... अपना घर शांति धाम छोड़ कर... *यहां
कलियुगी दुनिया में आकर मुझे इस कलियुग की दुनिया से निकालकर सुखधाम ले जाने के
लिए आए हैं... तो मेरा भी यह पूरा-पूरा कर्तव्य होना चाहिए... कि मेरे दिल में
सिर्फ और सिर्फ मेरा प्यारा बाबा ही हो ना कि कोई और... अगर मैं हमेशा इन
फरिश्तों की भांति अपने आप को देखना चाहती हूं... और सभी दुख दर्द से छुटकारा
पाना चाहती हूं... तो मुझे भी इस मेरे बाबा रूपी चाबी का शत प्रतिशत उपयोग करना
होगा...* मैं अपने आप से यह दृढ़ संकल्प करती हूं कि... आज से मेरे दिल में
मेरे हर संकल्प में सिर्फ और सिर्फ मेरा प्यारा बाबा ही होगा...
➳ _ ➳
और
जैसे ही मैं अपने आपसे यह वादा करती हूं... तो मैं अनुभव करती हूं... कि मैं इस
सृष्टि की सबसे सौभाग्यशाली आत्मा हूं... क्योंकि मुझे स्वयं परमपिता सच्चा
ज्ञान दे रहे हैं... और अपनी गोद में बिठाकर मायावी दुनिया से मुझे बचा रहे
हैं... और जैसे ही मुझे इस स्थिति का अपने अंदर पूर्ण आभास होता है... तो मैं
देखती हूं की मेरे सामने स्वयं बापदादा खड़े होकर मुस्कुरा रहे हैं... बाबा का
मुस्कुराता हुआ चेहरा देख मैं अपनी मुस्कान कभी रोक नहीं पाती और मैं बाबा से
कहती हूं... मेरे मीठे बाबा मैं बार-बार आपका हाथ छोड़ कर माया के पास चली जाती
हूं... और माया मुझे बेहोश कर देती है... परंतु मेरे मीठे बाबा इस मायावी
बेहोशी से हर बार मेरे खिवैया बनकर... आप मुझे इस विषय सागर से निकाल ही लेते
हो... और मैं कहती हूं... *बाबा आप हार नहीं मानते तो मैं भी आपकी बच्ची हूं...
मैं भी हार नही मानूंगी... और हमेशा आपका नाम लेकर आपके नाम के सहारे से मैं इस
विषय सागर से निकलकर किनारे पर आ जाऊंगी...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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