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❍ 08 / 09 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *सिमरन लायक बनने के लिए सबको सुख दिया ?*
➢➢ *कभी भी काम व क्रोध के वश हो उल्टा काम तो नहीं किया ?*
➢➢ *सर्व रूहानी खजानों से संपन्न बन सदा संतुष्ट स्थिति का अनुभव किया ?*
➢➢ *शुभ भावना, शुभ कामना की गोल्डन गिफ्ट से आत्माओं को परिवर्तित किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *बीजरूप स्थिति का अनुभव करने के लिए एक तो मन और बुद्धि दोनों को पावरफुल ब्रेक चाहिए और मोड़ने की भी शक्ति चाहिए। इसी को ही याद की शक्ति वा अव्यक्ति शक्ति कहा जाता है। अगर ब्रेक नहीं दे सके तो भी ठीक नहीं। अगर टर्न नहीं कर सके तो भी ठीक नहीं।* तो ब्रेक देने और मोड़ने की शक्ति से बुद्धि की शक्ति व्यर्थ नहीं जायेगी। इनर्जी जितना जमा होगी उतना ही परखने की, निर्णय करने की शक्ति बढ़ेगी।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं ऊँचे से ऊँची श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा हूँ"*
〰✧ जैसे ऊंचे से ऊंचा बाप है ऐसे हम आत्मायें भी ऊंचे से ऊंची श्रेष्ठ आत्मायें हैं-यह अनुभव करते हुए चलते हो? *क्योंकि दुनिया वालों के लिये तो सबसे श्रेष्ठ, ऊंचे से ऊंचे हैं बाप के बाद देवतायें। लेकिन देवताओंसे ऊंचे आप ब्राह्मण आत्मायें हो, फरिश्ते हो-ये दुनिया वाले नहीं जानते। देवता पद को इस ब्राह्मण जीवन से ऊंचा नहीं कहेंगे। ऊंचा अभी का ब्राह्मण जीवन है।* देवताओंसे भी ऊंचे क्यों हो, उसको तो अच्छी तरह से जानते हो ना।
〰✧ *देवता रूप में बाप का ज्ञान इमर्ज नहीं होगा। परमात्म मिलन का अनुभव इस ब्राह्मण जीवन में करते हो, देवताई जीवन में नहीं। ब्राह्मण ही देवता बनते हैं लेकिन इस समय देवताई जीवन से भी ऊंच हो, तो इतना नशा सदा रहे, कभी-कभी नहीं। क्योंकि बाप अविनाशी है और अविनाशी बाप जो ज्ञान देते हैं वह भी अविनाशी है, जो स्मृति दिलाते हैं वह भी अविनाशी है, कभी-कभी नहीं।* तो यह चेक करो कि सदा यह नशा रहता है वा कभी-कभी रहता है? मजा तो तब आयेगा जब सदा रहेगा। कभी रहा, कभी नहीं रहा तो कभी मजे में होंगे, कभी मूँझे हुए रहेंगे। तो अभी-अभी मजा, अभी-अभी मूँझ नहीं, सदा रहे। जैसे यह श्वास सदा ही चलता है ना। यदि एक सेकण्ड भी श्वास रुक जाये या कभी-कभी चले तो उसे जीवन कहेंगे? तो इस ब्राह्मण जीवन में निरन्तर मजे में हो? अगर मजा नहीं होगा तो मूँझेंगे जरूर।
〰✧ आधा कल्प हार खाई, अभी विजय प्राप्त करने का समय है तो विजय के समय पर भी यदि हार खायेंगे तो विजयी कब बनेंगे? *इसलिये इस समय सदा विजयी। विजय जन्म-सिद्ध अधिकार है। अधिकार को कोई छोड़ते नहीं, लड़ाई-झगड़ा करके भी लेते हैं और यहाँ तो सहज मिलता है। विजय अपना जन्म-सिद्ध अधिकार है।* अधिकार का नशा वा खुशी रहती है ना? हद के अधिकार का भी कितना नशा रहता है! प्राइम मिनिस्टर को भूल जायेगा क्या कि मैं प्राइम मिनिस्टर हूँ? सोयेगा, खायेगा तो भूलेगा क्या कि मैं प्राइम मिनिस्टर हूँ? तो हद का अधिकार और बेहद का अधिकार कितना भी कोई भुलाये भूल नहीं सकता। माया का काम है भुलाना और आपका काम है विजयी बनना क्योंकि समझ है ना कि विजय और हार क्या है? हार के भी अनुभवी हैं और विजय के भी अनुभवी हैं। तो हार खाने से क्या हुआ और विजय प्राप्त करने से क्या हुआ-दोनों के अन्तर को जानते हो इसलिये सदा विजयी हैं और सदा रहेंगे। क्योंकि अविनाशी बाप और अविनाशी प्राप्ति के अधिकारी हम आत्मायें हैं-यह सदा इमर्ज रूप में रहे।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ अब ऐसा कौन है जिसको एक मिनट भी फुर्सत नहीं मिल सकती? जैसे पहले ट्रैफिक कन्ट्रोल का प्रोग्राम बना तो कई सोचते थे - यह कैसे हो सकता? सेवा की प्रवृति बहुत बडी है, बिजी रहते हैं। लेकिन *लक्ष्य रखा तो हो रहा है ना प्रोग्राम चला रहा है ना।*
〰✧ *सेन्टर्स पर यह ट्रैफिक कन्ट्रोल का प्रोग्राम चलाते हो वा कभी मिस करते, कभी चलाते?* यह एक ब्राह्मण कुल की रीति-रसम है, नियम है। जैसे और नियम आवश्यक समझते हो, ऐसे *यह भी स्व-उन्नति के लिए वा सेवा की सफलता के लिए, सेवाकेन्द्र के वातावरण के लिए आवश्यक है।*
〰✧ ऐसे अन्तर्मुखी, एकान्तवासी बनने के अभ्यास के लक्ष्य को लेकर अपने दिल की लगन से बीच-बीच में समय निकाली। *महत्व जानने वाले को समय स्वत: ही मिल जात है।* महत्व नहीं है तो समय भी नहीं मिलता। *एक पॉवरफुल स्थिति में अपने मन को, बुद्धि को स्थित करना ही एकान्तवासी बनना है।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *लास्ट समय चारों ओर व्यक्तियों का, प्रकृति का हलचल और आवाज़ होगा - चिल्लाने का, हिलाने का - यही वायुमण्डल होगा। ऐसे समय पर ही सेकण्ड में अव्यक्त फरिश्ता सो निराकारी अशरीरी आत्मा हूँ - यह अभ्यास ही विजयी बनायेगा। यह स्मृति सिमरणी अर्थात् विजय माला में लायेगी। इसलिये यह अभ्यास अभी से अति आवश्यक है। इसको कहते हैं- प्रकृतिजीत, मायाजीत।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ज्ञान सागर बाप से वर्सा लेने पढाई जरुर पढना"*
➳ _ ➳ *रोज की तरह अमृतवेले के समय सोई हुई मुझ आत्मा को जगाकर वरदानों से भरपूर करने शिवपिता आ जाते हैं... मैं आत्मा गुड मॉर्निंग कह बाबा की गोदी में बैठ जाती हूँ... बाबा मुझे अपनी गोद में उठाकर ले चलते हैं मधुबन हिस्ट्री हाल में...* जहाँ मेरे प्राण प्यारे बाबा टीचर बन ऊँचे ते ऊँची शिक्षाओं से मुझे 21 जन्मों के लिए उंच पद दे रहे हैं... मैं आत्मा गॉडली स्टूडेंट बन बापदादा के सम्मुख बैठ जाती हूँ ऊँची पढाई पढने...
❉ *रूहानी पढाई का महत्व समझाकर अविनाशी सुख का वर्सा देते हुए सुप्रीम शिक्षक मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... *खुबसूरत देवताई सुखो का आधार ही यह ईश्वरीय पढ़ाई है...* जिन देवताओ की महिमा करते अघाते नही थे, वैसा ही जीवन पाने के मीठे पल सम्मुख है... *अपने भीतर के कालेपन को ईश्वरीय यादो में भस्म कर दो... और देवताओ सी सुंदरता और सुखो को जीने के अधिकारी बन कर शान से मुस्कराओ...”*
➳ _ ➳ *अपने अन्दर की खामियों को निकाल अच्छी रीति पढाई पढकर धारण करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में देह की मिटटी से मुक्त हो रही हूँ... अपने अप्रतिम सौंदर्य को पुनः पाकर ओजस्वी हो रही हूँ... *प्यारे बाबा आपने मुझे चुनकर, अपनी गोद में बिठाकर मेरा कायाकल्प कर दिया है... गुणो के सच्चे सोंदर्य से मुझे श्रुंगारित किया है...”*
❉ *राजयोग के गुह्य राज समझाकर राज सिंहासन की अधिकारी बनाते हुए अति मीठे ते मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... बेहद के पिता की अथाह धन दौलत को पाने वाले महान भाग्यशाली बन जाओ... और 21 जनमो तक बेफिक्र बादशाह बन मुस्कराओ... *ईश्वर पिता के अतुल खजानो को, ज्ञान रत्नों को बाँहों में भर कर अनन्त सुखो में मौज मनाओ... ज्ञान रत्नों के भंडारी बनकर यह दौलत औरो पर भी लुटाओ...”*
➳ _ ➳ *ज्ञान कोयल बन ज्ञान सरगम से सबके दिलों में मिठास घोलते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा धरती पर सुख की बून्द को तरसती, आज ईश्वर पिता की अतुलनीय धन सम्पदा की अधिकारी हो गयी हूँ... *मनुष्य बन जो मैली हो गई थी देवता बन खुबसूरत हो रही हूँ... प्यारे बाबा आपके प्यार की जादूगरी में ज्ञानपरी बन गयी हूँ...”*
❉ *ज्ञान ज्योति जगाकर जीवनमुक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हुए मेरे ज्ञान सागर बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *ज्ञान रत्नों से लबालब होकर विश्व धरा पर देवताई सुखो में खिलखिलाओ...* अपने भीतर की सारी कमियो को निकाल निर्मलता से सज जाओ... *मीठे बाबा से गुण और शक्तियो के खजाने पाकर स्वर्ग का राज पाओ... यह देवता बनने की खूबसूरत पढ़ाई हर दिल को भी पढ़ाओ...”*
➳ _ ➳ *बहुमूल्य पढाई से पद्मापद्म भाग्यशाली बन सुखों की नगरी में उड़ते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मैं आत्मा ईश्वर पिता की सारी सम्पत्ति को पाने वाली और ज्ञान रत्नों की धारणा से खुशनुमा और महकता जीवन जीने वाली महा भाग्यवान हूँ... *यही सच्ची और मीठी ख़ुशी सबको बाँट कर सुखो के फूल खिला रही हूँ...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सिमरण लायक बनने के लिए सबको सुख देना है
➳ _ ➳ अपने पूज्य स्वरूप को स्मृति में लाते ही मन्दिरो में स्थापित देवी देवताओं के अति सुंदर जड़ चित्र आंखों के सामने उभर आते है और *उन रमणीक चित्रों को मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से ,देखते - देखते मैं मन ही मन यह सोच कर विचारमग्न हो जाती हूँ कि ये चित्र कितने आकर्षणमूरत है और इनकी आकर्षणशक्ति का कारण है इनके चेहरे की हर्षितमुखता, मस्तक का तेज, नयनो की दिव्यता और इनके अंग - अंग से निकलने वाले वो पवित्र वायब्रेशन्स जो सबके दुखों को हर कर उन्हें सुख शांति का अनुभव करवाते है* ।किन्तु इन्हें सिमरण लायक बनाने वाला सुख का सागर हम सबका प्यारा परम पिता परमात्मा है। जो संगमयुग पर आकर हम ब्राह्मण बच्चों को सत्य ज्ञान देकर, दैवी गुण धारण करना सिखाते हैं और राजयोग की सुंदर विधि द्वारा साधारण मनुष्य को भी देवता बना देते हैं।
➳ _ ➳ ऐसा ही सिमरण लायक बनने के लिए मुझे भी अपने प्यारे पिता की आज्ञाओ पर चल, मास्टर सुख दाता बन सबको सुख देने का श्रेष्ठ कर्तव्य अब सदैव करना है, मन ही मन यह विचार करके, अपने सुख सागर प्यारे पिता को मैं कोटि - कोटि धन्यवाद देती हूँ जो मुझे टीचर बन हर रोज ऐसा सिमरण लायक बनाने के लिये, मनुष्य से देवता बनाने वाली पढ़ाई पढ़ाने के लिए अपना धाम छोड़ मेरे पास आते है। *अपने ऐसे प्यारे शिव पिता पर मन ही मन कुर्बान जाते हुए मैं उनकी मीठी मन को गहन सुकून देने वाली सुखदाई याद में खो जाती हूँ और उनके सुन्दर स्वरूप को स्मृति में लाकर उन्हें मन बुद्धि के दिव्य चक्षु से निहारते हुए उनके पास जाने की रूहानी यात्रा पर चलने के लिए तैयार हो जाती हूँ*
➳ _ ➳ मन बुद्धि की इस आंतरिक यात्रा पर निरन्तर बढ़ते हुए, अनेक आनन्दमयी, अद्भुत, सुन्दर अनुभूतियाँ करते हुए, अपने निराकार शिव पिता से मंगल मिलन मनाने के लिए उनकी निराकारी दुनिया की ओर अब मैं जा रही हूँ । *सूर्य, चांद, सितारों से सजे नीले गगन को पार करके, सूक्ष्म लोक से भी परें उस अपने निर्वाणधाम घर की ओर मैं जा रही हूँ जहाँ मेरे बाबा रहते हैं। उनकी शक्तिशाली किरणें मुझे छू कर मेरे चारों ओर एक दिव्य आभामंडल निर्मित करती जा रही हैं*। प्रकाश के दिव्य कार्ब को धारण किये, परमात्म शक्तियों का आनन्द लेते हुए अपने प्यारे पिता के मैं बिल्कुल समीप पहुँच गई हूँ और निर संकल्प बीज रूप स्थिति में स्थित हो कर बीज रूप अपने पिता को अब मैं मन बुद्धि के दिव्य चक्षु से निहार रही हूँ।
➳ _ ➳ उनकी एक - एक किरण को निहारते हुए, उनके अति सुन्दर स्वरूप को देखते हुए, मन बद्धि रूपी मेरे दिव्य नैन जैसे तृप्त हो गए हैं। बाबा को निहारते हुए अब मैं बाबा की सर्वशक्तियों की किरणों रुपी बाहों में समाती जा रही हूँ। *बाबा से आ रही शक्तियों की अनन्त किरणें मुझ आत्मा में समा कर, मुझे भी बाप समान शक्तिशाली बना रही हैं। परमात्म शक्तियों से मैं भरपूर होती जा रही हूँ*। भरपूर होकर, शक्तिसम्पन्न बनकर और अपने प्यारे पिता के प्रेम में समाकर, उनके साथ स्नेह मिलन मनाकर मैं वापिस लौट रही हूँ। साकार सृष्टि पर आकर, अपने साकार शरीर रूपी रथ का आधार लेकर इस रंगमंच पर मैं फिर से अपना पार्ट बजा रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने शिव पिता परमात्मा के अविनाशी प्रेम के रंग में रंग कर, आसुरी दुनिया के आसुरी स्वभाव संस्कारों को मैं धीरे - धीरे परिवर्तित करके दैवी गुण धारण करती जा रही हूँ। *अपने पूज्य स्वरूप को सदा स्मृति में रखते हुए सिमरण लायक बनने के लिए मैं पूज्यपन के संस्कारों को जो देहभान में आने के कारण मर्ज हो चुके थे, को पुनः इमर्ज कर रही हूँ*। परमात्म याद में रह, योगबल से अपने सभी पुराने आसुरी स्वभाव संस्कारों को दग्ध करने का मैं पूरा पुरुषार्थ कर रही हूँ। *आसुरी दुनिया और आसुरी मनुष्यों के प्रभाव से स्वयं को बचाने के लिए निंदा,चुगली छोड़ सभी को सुख देने का कर्तव्य अब मैं हर समय कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं सर्व रूहानी खजानों से सम्पन्न बन सदा सन्तुष्ट रहने वाली आलराउंड सेवाधारी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं शुभभावना, शुभकामना की गोल्डन गिफ्ट को साथ रखकर किसी भी आत्मा का परिवर्तन कर सकने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ कभी-कभी सक्सेसफुल क्यों नहीं होते, उसका कारण क्या है? *जब अपना जन्म सिद्ध अधिकार है, तो अधिकार प्राप्त होने में, अनुभव होने में कमी क्यों?* कारण क्या?बापदादा ने देखा है - मैजारिटी अपने कमजोर संकल्प पहले ही इमर्ज करते हैं, पता नहीं होगा या नहीं! *तो यह अपना ही कमजोर संकल्प प्रसन्नचित्त नहीं लेकिन प्रश्नचित्त बनाता है।* होगा, नहीं होगा? क्या होगा? पता नहीं..... *यह संकल्प दीवार बन जाती है और सफलता उस दीवार के अन्दर छिप जाती है।*
➳ _ ➳ *निश्चयबुद्धि विजयी - यह आपका स्लोगन है ना!* जब यह स्लोगन अभी का है, भविष्य का नहीं है, वर्तमान का है तो सदा प्रसन्नचित्त रहना चाहिए या प्रश्नचित्त? *तो माया अपने ही कमजोर संकल्प की जाल बिछा लेती है और अपने ही जाल में फँस जाते हो। विजयी हैं ही - इससे इस कमजोर जाल को समाप्त करो।* फँसो नहीं, लेकिन समाप्त करो। समाप्त करने की शक्ति है? धीरे-धीरे नहीं करो, फट से सेकण्ड में इस जाल को बढ़ने नहीं दो। अगर एक बार भी इस जाल में फँस गये ना तो निकलना बहुत मुश्किल है। विजय मेरा बर्थराइट है, सफलता मेरा बर्थराइट है। यह बर्थराइट, परमात्म बर्थराइट है, इसको कोई छीन नहीं सकता - *ऐसा निश्चयबुद्धि, सदा प्रसन्नचित्त सहज और स्वतः रहेगा। मेहनत करने की भी जरूरत नहीं।*
✺ *ड्रिल :- "निश्चयबुद्धि विजयी बन सदा प्रसन्नचित्त रहने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं शिव शक्ति आत्मा हूँ... मैं परमपिता शिव बाबा की संतान हूँ... मैं आत्मा इस साकारी तन से निकल... उड़ कर पहुंच गयी हूँ... अपने परमपिता की छत्रछाया के नीचे... जैसे ही बाबा ने मुझे देखा... वैसे ही उन्होंने मुझे करीब बुलाया... और मुझे अपनी प्यार भरी गोद में बिठा लिया... *बाबा ने मेरे मस्तक पर अपना वरदानी हाथ रख दिया... और कहा बच्ची निश्चय बुद्धि सदा विजयन्ती...*
➳ _ ➳ बाबा ने कहा बच्चे- *सफलता तुम्हारा जन्म सिद्ध अधिकार है...* बाबा के इतना कहते ही... *मैंने अपने सारे कमजोर संकल्पों को बाबा की झोली में डाल दिया...* क्या, क्यूँ, होगा या नहीं होगा ऐसे कमजोर संकल्पों को बाबा के सम्मुख रख दिया... बाबा मुझे हाथ पकड़कर एक दीवार के पास ले गए... जो मेरे ही कमजोर संकल्पों से बनी थी... बाबा ने इस दीवार को तोड़ दिया...
➳ _ ➳ फिर बाबा ने कहा देखो बच्ची तुम्हारी सफलता के बीच... ये तुम्हारे कमजोर संकल्पों की दीवार थी... मैं अपनी सफलता को देख नाचने लगी... और बाबा से वादा किया... बाबा आज के बाद मैं हमेशा दृढ़ निश्चयी बन कर... हमेशा सफलता को प्राप्त करूंगी... इन कमजोर संकल्पों का जाल अब कभी नहीं बनने दूँगी... *और ना इन कमजोर संकल्पों के जाल में कभी फसुंगी... सारे जाल एक सेकंड में फट से समाप्त हो गए...*
➳ _ ➳ जब से मेरा ईश्वरीय जनम हुआ... तब से ही विजय मेरा बर्थराइट है... *यह मेरा बर्थराइट, परमात्म बर्थराइट है... इसको अब मुझसे कोई छीन नहीं सकता है...* मैं परमपिता की संतान हूँ... इस दृढ़ निश्चय के नशे को अब कभी उतरने नहीं दूँगी... *मैं आत्मा अब सदा प्रसन्न चित्त रहूँगी...* आज से यह सहज और स्वत: ही होगा... इसके लिए अब मुझे *मेहनत की जरूरत नहीं है...* मैं सफलता के सागर शिवपिता की संतान हूँ... *सफलता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है... इसका नशा मुझे हमेशा रहेगा...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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