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 21 / 05 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *आसुरी सम्रदाय वाला कोई भी कर्तव्य तो नहीं किया ?*

 

➢➢ *यग अग्नि से अपने विकर्म दग्ध किये ?*

 

➢➢ *रूहानी गुलाब बन चारो औ र्रुहानियत की खुशबू फैलाई ?*

 

➢➢ *स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन करने के निमित बने ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *एक बाप दूसरा न कोई-यही आपकी अखण्ड-अटल साधना है। यह अखण्ड-अटल साधना वहाँ अखण्ड राज्य का अधिकारी बना देती है।* यहाँ का छोटा-सा संसार बापदादा, मात-पिता और बहन-भाई, वहाँ के छोटे संसार का आधार बनता है।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बापदादा के स्नेह की दुआओंसे पलने वाली आत्मा हूँ"*

 

  हर समय ऐसा अनुभव करते हो कि बापदादा के स्नेह की दुआये हम ब्राह्मण-आत्माओंकी पालना कर आगे बढ़ा रही है। जहां दुआये होती है, वहां बाप का सर्व सम्बंध की प्रगति बहुत सहज और तीव्र होती है। तो सहज लगता है या कभी-कभी मुश्किल हो जाता है? *जब मेहनत का अनुभव हो तो उस समय चेक करना चाहिए कि किस श्रीमत की लकीर से बाहर जा रहे हैं? चाहे संकल्प में, चाहे बोल में, चाहे कर्म वा सेवा की लकीर से बाहर निकलते हो तब माया की आकर्षण मेहनत कराती है।* ब्राह्मण-जीवन की मर्यादाएं पसंद है या मुश्किल लगती है? कौन-सी मर्यादा मुश्किल लगती है? जो भी मार्यादाएं हैं, उससे देखो- इसमें फायदा क्या है? अगर फायदा सामने आयेगा तो मुश्किल नहीं लगेंगी। जब कोई कमजोरी आती है तब मुश्किल लगता है। यह मर्यादाएं बनाने वाला कौन है, किसने बनाई है? बाप ने बनाई है!

 

  बाप का बच्चों से बेहद का प्यार है, जिससे प्यार होता है उसके लिए हमेशा कोई भी उसकी मुश्किल होगी तो सहज की जायेगी। कोई सैलवेशन चाहिए तो ले सकते हो लेकिन मुश्किल है नहीं। जो निमित्त बने हैं, उनसे स्पष्ट बोलो, अपने दिल का भाव सुनाओ फिर अगर राइट होगा तो उसी प्रमाण सैलवेशन मिलेगी। क्योकि जिसे आप समझते हो कि यह होना चाहिए और वह नहीं होता तो मुश्किल लगता है लेकिन जिसे आप समझते हो - होना चाहिए, उससे कितना फायदा, कितना नुकशान है - वह बाप और अनुभवी आत्माएं ज्यादा जानती हैं। *जहां प्यार होता है वहां कुछ मुश्किल नहीं होता है। और बापदादा ऐसी बात तो कहेंगे नहीं जिससे बच्चों का कोई नुकसान हो, इसलिए ये मर्यादाएं भी बाप का प्यार है, क्योंकि इसमें चलने से शक्ति आती है, सेफ रहते हो और खुशी होती है।* बापदाद जानते हैं - आस्ट्रेलिया के बच्चे मैजारिटी पुराने, अनुभवी और मजबूत हैं। इसलिए जो मजबूत हैं, उसे सदा ही सहज अनुभव होता है।

 

  अगर शक्तियां आगे बढ़ती है तो पांडवों को खुशी होती है ना? किसको आगे बढ़ाना इसमें स्वयं को आगे बढ़ाना समाया हुआ है। जो सब बातों में विन करता है वह वन है। फलक से कहो 'हम नहीं विजयी होंगे तो कौन होगा!' भले दूसरे आयें लेकिन आप तो हो ना? सदा विजयी बन आगे बढ़ने और औरों को आगे बढ़ाने के वरदानी हो। बापदादा देखते हैं कि अच्छा औरों के लिए एग्जाम्पुल बने हुए हैं। एक-दो के प्रत्यक्ष जीवन को देखकर दूसरों में भी हिम्मत आ जाती है। तो यह सेवा भी बहुत श्रेष्ठ है। *अपनी जीवन को सदा ही संतुष्ट और खुशनुमा बनाने वाले हर कदम में सेवा करते हैं। वाणी द्वारा तो सेवा करते रहेंगे, लेकिन वाणी के साथ-साथ अपने चेहरे और चलन से निरंतर सेवा करते रहना। जो भी संपर्क में आये, उसके दिल से स्वत: ही वाह-वाह के गीत निकलें।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧   *आँर्डर हो कि मास्टर रचयिता बन अपनी रचना को शुभ भावना से व शुभ चिन्तक बन, भिखारियों को उनकी माँग प्रमाण सन्तुष्ट करो तथा महादानी और वरदानी बनो तो क्या सर्व को सन्तुष्ट कर सकते हो?* या कोई सन्तुष्ट हैंगे और कोई वंचित रह जवेंगे?

 

✧  *सर्व शक्तियों के भण्डारे से क्या स्वयं को भरपूर अनुभव करते हो?* क्या सर्व शस्त्र आपके सदा साथ रहते हैं? सर्व शस्त्र अर्थात सर्व शक्तियाँ।

 

✧  *अगर एक भी शस्त्र या शक्ति कम है व कमजोर है, तो क्या वह एवररेडी कहला सकेंगे?* जैसे बाप एवरेडी अर्थात सर्व शक्तियों से सम्पन्न हैं, तो क्या वैसे फाँलो फादर हो?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *बाप बच्चों की माला सुमरते हैं। माला सुमरने में नम्बर वन कौन आयेंगे? जो न्यारे अथवा समान होंगे।* ऐसे नहीं - हम तो पीछे आये हैं हमको कोई जानते नहीं है। बाप तो सब बच्चों को जानते है। इसलिए प्यारा बनने का आधार न्यारा बनना है - यह पक्का करो। इसी पहले पाठ के पेपर में फुल माकर्स मिलने हैं। इसलिए चेक करो - चल रहा हूँ, बोल रहा हूँ जो भी कर रहा हूँ वह करते हुए, कराने वाला बन करके करा रहे हैं। *आत्मा कराने वाली है और कर्मेन्द्रियां करने वाली हैं। इसी पाठ को पक्का करने से सदा सर्व खजाने के मालिकपन का नशा रहेगा। कोई अप्राप्त वस्तु अनुभव नहीं होगी।* बाप मिला, सब मिला। सिर्फ कहने मात्र नहीं - उसे सर्व प्राप्ति का अनुभव होगा, सदा, खुशी, शान्ति, आनन्द में मग्न रहेगा। 'मिल गया, पा लिया' - यही नशा रहेगा।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- एक बाप की श्रीमत पर चल आत्म अभिमानी बनना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा एकांत में बैठ ड्रिल करती हूँ... मैं एक आत्मा हूँ... ये शरीर नहीं हूँ... इस शरीर को चलाने वाली एक चैतन्य शक्ति हूँ... मैं आत्मा भृकुटी सिहांसन पर बैठ राज करने वाली स्वराज्य अधिकारी हूँ...* धीरे-धीरे मैं आत्मा इस शरीर से बाहर निकल रही हूँ... चमकीले प्रकाश का सूक्ष्म शरीर धारण कर स्वदर्शन चक्र फिराती हूँ... *अपने पांचो स्वरूपों का दर्शन करती हुई पहुँच जाती हूँ मधुबन तपस्या धाम में... प्यारे बाबा से रूह रिहान करने...*

 

  *अपनी दुआओं और वरदानों से मुझे मालामाल करते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... देह को सत्य समझ जीते आये और दुःख के गहरे दलदल में धँस चले... *अब अपने आत्मिक सत्य स्वरूप की हर पल प्रैक्टिस करो... और अपने अविनाशीपन के भान में डूब जाओ...* मीठे बाबा की मीठी यादो में इस कदर खो जाओ कि देह का भान ही न रहे...और यूँ यादो में खोये हुए से घर को चलें...

 

_ ➳  *मैं आत्मा देहभान को भूल अपने सत्य स्वरुप में टिककर कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अब शरीर के दायरे से ऊपर उठ अपने सत्य स्वरूप के भान में डूबी हुई आपकी यादो में... सच्चे प्यार के मीठे रंग में रंगी हुई हूँ.... *एक बाबा ही मेरा संसार है और मीठी यादे ही मेरे जीने का आधार है*...

 

  *अपनी श्रीमत से देवताई पद पाने की राह दिखाते हुए मीठा बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह समझने के अनुभवी जनमो तक रहे हो... *अब आत्मिक स्थिति के गहरे अनुभवी बनकर जीवन में अथाह सुखो के जादू को महसूस करो...* शिवबाबा की मीठी यादो में खोकर स्वयं को दिव्य गुण और शक्तियो से भरपूर कर लो... अशरीरीपन के भान में डूब जाओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा अपने निज स्वरुप में अविनाशी सुखों की अनुभूति करते हुए कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अपने सत्य स्वरूप की पहचान को आपसे पाकर खुशनुमा हो चली हूँ... *मै नश्वर नही अविनाशी आत्मा हूँ इस अहसास ने जीवन में सुखो की बहार ला दी है... और आत्मिक स्थिति में डूबकर आपके प्यार को जीती जा रही हूँ...”*

 

  *पवित्रता की किरणों का ताज पहनाकर मुझे गले लगाते हुए मेरे मीठे बाबा कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *यह विनाशी देह नही हो खुबसूरत मणि हो... अपने अप्रतिम सौंदर्य में खो जाओ... दिव्य गुण और शक्तियो से सजकर देवताई सुंदरता को पाओ...* मीठे बाबा की यादो में अपनी खोयी शक्तियो और खजानो को पाकर मालामाल हो जाओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा की बाँहों में समाकर सबकुछ भूल एकरस स्थिति में स्थित होकर कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार भरे आगोश में कितनी सुखी कितनी महफूज हूँ... *इस देह के मटमैलेपन से मुक्त हो रही  हूँ और आपके प्यार भरे साये में देवताई गुणो से सज संवर रही हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  सबको सुख दे दैवी सम्प्रदाय का बनना है*

 

_ ➳  जिस दैवी सम्प्रदाय की स्थापना करने के लिए भगवान इस धरती पर आये हैं उस दैवी सम्प्रदाय का बनने के लिए पहले मुझे अपने अंदर वो दैवी मैनर्स धारण करने होंगे जो आज भी मन्दिरो में स्थापित देवी देवताओं के जड़ चित्रों में दिखाई देते हैं। *उनके हर्षित मुख चेहरे की मन को मोहने वाली मधुर मुस्कान, मस्तक पर दिव्य तेज, नयनों में समाई एक अलौकिक दिव्य रूहानी चमक जो भक्तो को नजरो से निहाल कर, उनके हर दुख को हर लेती है*। वरदान लुटाते हुए उनके हस्त जो भक्तो की हर मनोकामना को पूर्ण करते हैं। उनके अंग - अंग से निकलने वाले सुख, शांति के वायब्रेशन्स जो भक्तो को सुख, शांति का अनुभव करवाते हैं।

 

_ ➳  देवी देवताओं के इन सभी चरित्रों को मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से देखते हुए अपने आप से मैं प्रतिज्ञा करती हूँ कि मन्दिरो में स्थापित अपने इन जड़ यादगार चित्रों के इन सभी चरित्रों को अपने ब्राह्मण जीवन मे धारण कर, चैतन्य में दैवी सम्प्रदाय का बनने  का पुरुषार्थ मैं अवश्य करूँगी। *अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को अपने शिव पिता की श्रेष्ठ मत पर चल श्रेष्ठ बनाने का पक्का प्रोमिस अपने प्यारे पिता से करके, अपने अंदर दैवी मैनर्स धारण करने का बल भरने और पुराने आसुरी स्वभाव संस्कारो को योग अग्नि में दग्ध करने के लिए मैं एकाग्रचित्त होकर अपने मन बुद्धि को अपने मीठे बाबा की याद में स्थिर कर लेती हूँ*।

 

_ ➳  मन बुद्धि का कनेक्शन बाबा के साथ जुड़ते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे बाबा मुझे अपनी ओर खींच रहें हैं। मेरा आह्वान कर रहें हैं। मुझे अपने पास बुला रहें हैं। बाबा के प्यार की मैग्नेटिक पावर मुझे देह से बिल्कुल न्यारा बना रही है। *देह और देह की दुनिया के सभी बन्धन टूट रहें हैं और वह अद्भुत चुम्बकीय शक्ति मुझे खींच कर अब ऊपर आकाश की ओर ले कर जा रही है*। एक सतरँगी प्रकाश का खूबसूरत झरना परमधाम से मेरे ऊपर बह रहा है और अपनी रिमझिम फ़ुहारों की बरसात मेरे ऊपर करके मेरी इस रूहानी यात्रा को आनन्दमयी बना रहा है। *अपने प्यारे पिता के प्यार की शीतल फ़ुहारों का भरपूर आनन्द लेते हुए मैं आकाश को पार कर, सूक्ष्म वतन में पहुँचती हूँ और सूक्ष्म वतन को भी पार कर अपने परमधाम घर में प्रवेश कर जाती हूँ*।

 

_ ➳  अखण्ड ज्योति के इस देश मे मैं देख रही हूँ सामने अपने शिव पिता परमात्मा को जो अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरा इंतजार कर रहें हैं। उनकी किरणों रूपी बाहों में समाकर, उनके प्यार का मधुर एहसास करते हुए मैं उनके बिल्कुल समीप पहुंच गई हूँ। *इस अंतहीन ब्रह्मांड में मैं केवल अपने आप को और अपने प्यारे पिता को देख रही हूँ। बस मैं और मेरा बाबा। बड़े प्यार से अपने पिता की एक - एक किरण को मैं निहार रही हूँ और अपने ऊपर पड़ने वाले उन किरणो के प्रकाश का आनन्द ले रही हूँ*। बाबा की एक - एक किरण योग अग्नि बन कर मेरे अनेक जन्मों के नकारात्मक आसुरी स्वभाव संस्कारों को धो कर मुझे शुद्ध बना रही है। शक्तियों का प्रकाश मुझ आत्मा के चारो और बढ़ रहा है और मेरी कमजोरियों को बाहर निकाल कर, मुझे शुद्ध और पावन बना रहा है। मैं बेदाग हीरा बन रही हूँ।

 

_ ➳  अपने गुणों और शक्तियों को मुझ में प्रवाहित कर बाबा मुझे आप समान बना रहे हैं। अपने सुख सागर बाबा के समान मास्टर सुख का सागर बन कर अब मैं दैवी सम्प्रदाय में ऊँच पाने का पुरुषार्थ करने के लिए वापिस साकार लोक में लौट रही हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर अब मैं दैवी मैनर्स धारण करने का पूरा पुरुषार्थ कर रही हूँ। अपने हर संकल्प बोल और कर्म को अपने शिव पिता की श्रेष्ठ मत पर चल कर मैं श्रेष्ठ और सुखदायी बना रही हूँ*। मन्दिरो में स्थापित अपने पूज्य जड़ चित्रों के चरित्रों को अपने जीवन मे धारण कर, मनसा, वाचा, कर्मणा सबको सुख दे,अपने दैवी सम्प्रदाय के लक्ष्य को पाने की दिशा मैं सहजता से आगे बढ़ती जा रही हूँ

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं रूहानी गुलाब बन चारों ओर रूहानियत की खुशबू फैलाने वाली आकर्षण मूर्त आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं स्व-परिवर्तन से विश्व परिवर्तन करने के निमित्त बनने वाली परोपकारी आत्मा हूँ   ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ ब्रह्माकुमार वा ब्रह्माकुमारी तो सब कहलाते हो लेकिन ब्रह्माकुमार-कुमारियों में से ही कोई माला का नम्बरवन दाना बना, कोई लास्ट दाना बना - लेकिन हैं दोनों ही ब्रह्माकुमार-कुमारी। शूद्र जीवन सबने त्याग दी फिर भी नम्बरवन और लास्ट का अन्तर क्यों? चाहे प्रवृत्ति में रह ट्रस्टी बन चल रहे हो, चाहे प्रवृत्ति से निवृत्त हो सेवाधारी बन सदा सेवाकेन्द्र पर रहे हुए हो लेकिन दोनों ही प्रकार की ब्राह्मण आत्मायें चाहे ट्रस्टी, चाहे सेवाधारी, दोनों ही नाम एक ही ब्रह्माकुमार-कुमारी कहलाते हो। सरनेम दोनों का एक ही है लेकिन दोनों का त्याग के आधार पर भाग्य बना हुआ है। *ऐसे नहीं कह सकते कि सेवाधारी बन सेवाकेन्द्र पर रहना यही श्रेष्ठ त्याग वा भाग्य है। ट्रस्टी आत्मायें भी त्याग वृत्ति द्वारा माला में अच्छा नम्बर ले सकती हैं। लेकिन सच्चे और साफ दिल वाला ट्रस्टी हो। भाग्य प्राप्त करने का दोनों को अधिकार है।*

✺ *"ड्रिल :- सच्चे और साफ़ दिल वाले ट्रस्टी बनकर रहना*”

➳ _ ➳ मैं आत्मा अपना अलौकिक जन्मदिन मनाने पहुँच जाती हूँ वतन में प्यारे बाबा के पास... प्यारे बाबा ने मुझे गोद लेकर अपना बच्चा बनाया... शूद्र से ब्राह्मण बनाकर मेरा सरनेम चेंज कर दिया... *अब मैं आत्मा शिववंशी प्रजापिता ब्रह्मा मुखवंशावली ब्राह्मण कुलभूषण हूँ... कितना ऊँचा नाम है...* कितनी ऊँची महिमा है ब्राह्मणों की... सबसे श्रेष्ठ जीवन ब्राहमण जीवन है...

➳ _ ➳ मैं आत्मा प्यारे बाबा के समीप बैठ जाती हूँ... *प्यारे बाबा मुझे अलौकिक जन्मदिन की मुबारकबाद देते हैं... और कई वरदानों रूपी सौगातों से भरपूर करते हैं...* ज्ञान, गुण, शक्तियों के खजानों से सम्पन्न करते हैं... मैं आत्मा अपने पुराने जन्म के संस्कारों, विकारों, विकर्मों से मुक्त हो रही हूँ... मैं आत्मा अपने निजी गुणों को धारण कर रही हूँ...

➳ _ ➳ *मैं आत्मा शूद्र जीवन के संस्कारों का सम्पूर्ण रूप से त्याग कर चुकी हूँ...* मुझ आत्मा के मन-बुद्धि की अशुद्ता खत्म हो गई है... मैं आत्मा ब्राह्मण जीवन की पवित्रता, सच्चाई और सफाई को धारण कर रही हूँ... मुझ आत्मा के दिल में सबके प्रति प्रेम की भावना भर रही है... अब मैं आत्मा सर्व के प्रति बेहद की शुभ-भावना, शुभ-कामना रखती हूँ...

➳ _ ➳ अब मैं आत्मा निमित्त भाव से हर कर्म कर रही हूँ... मैं आत्मा तन, मन, धन सम्पूर्ण रूप से बाबा को समर्पित हो चुकी हूँ... इस पुरानी दुनिया में मेरा कुछ भी नहीं है... मैं सिर्फ ट्रस्टी हूँ... *मैं आत्मा त्याग वृत्ति और निःस्वार्थ सेवा भावना द्वारा हर कर्म कर रही हूँ...* सब कुछ बाबा को सौंप ट्रस्टी समझने से मैं आत्मा सर्व प्रकार के बोझों से मुक्त हो गई हूँ... हलकी होकर सदा उड़ते रहती हूँ...

➳ _ ➳ *मैं आत्मा सच्ची और साफ़ दिल वाली ट्रस्टी बनकर माला का नम्बरवन दाना बनने का पुरुषार्थ कर रही हूँ...* मैं आत्मा अब जरा भी अशुद्धता को ग्रहण नहीं करती हूँ... अब सदा मैं आत्मा उंच ते उंच ब्राह्मण होने की स्मृति में रहकर हर कदम में सफलता प्राप्त कर रही हूँ... एक की याद में, एकरस स्थिति में रहकर मैं आत्मा एक नंबर में आने का भाग्य प्राप्त कर रही हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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