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 14 / 05 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *"हम सो, सो हम" की स्मृति से स्वदर्शन चक्र फिराते रहे ?*

 

➢➢ *बाप समान अति मीठा और अति प्यारा बनकर रहे ?*

 

➢➢ *अपनी शुभ और शक्तिशाली भावनाओं द्वारा विश्व परिवर्तन करने की सेवा की ?*

 

➢➢ *त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित रह हर निर्णय किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *विनाशी साधनों के आधार पर आपकी अविनाशी साधना नहीं हो सकती।* साधन निमित्त मात्र हैं और साधना निर्माण का आधार है *इसलिए अब साधना को महत्व दो। साधना ही सिद्धि को प्राप्त करायेगी।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं रूप-बसंत हूँ"*

 

〰✧  सदा अपने को रुप-बसंत अनुभव करते हो? *रुप अर्थात् ज्ञानी तू आत्मा भी हैं और योगी तू आत्मा भी हैं। जिस समय चाहें रुप बन जायें और जिस समय चाहें बसंत बन जाएं। इसलिए आप सबको सलोगन है- 'योगी बनो और पवित्र बनो माना ज्ञानी बनो'। औरों को यह सलोगन याद दिलाते हैं ना। तो दोनों स्थिति सेकेण्ड में बन सकते हैं।* ऐसे न हो कि बनने चाहे रुप और याद आती रहें ज्ञान की बातें। सेकण्ड से भी कम टाइम में फुलस्टाप लग जाये। ऐसे नहीं- फुलस्टाप लगाओ अभी और लगे पांच मिनट के बाद। इसे पावरफुल ब्रेक नहीं कहेंगे। पावरफुल ब्रेक का काम है जहाँ लगाओ वहां लगे। सेकण्ड भी देर से लगी तो एक्सीडेंट हो जायेगा।

 

  फुलस्टाप अर्थात् ब्रेक पावरफुल हो। जहां मन-बुद्धि को लगाना चाहे वहाँ लगा लें। यह मन, बुद्धि- संस्कार आप आत्माओं की शक्तियाँ है। इसलिए सदा यह प्रैक्टिस करते रहो कि जिस समय, जिस विधि से मन-बुद्धि को लगाना चाहते हैं वैसा लगता है या टाइम लग जाता है? *जिसमें कंट्रोलिंग पावर नहीं वह रुलिंग पावर के अधिकारी बन नहीं सकते। स्वराज्य के हिसाब से अभी भी रुलर (शासक) हो। स्वराज्य मिला है ना! ऐसे नहीं आंख को कहो यह देखो और वह देखे कुछ और, कान को कहो कि यह नहीं सुनो और सुनते ही रहें। इसको कंट्रोलिंग पावर नहीं कहते। कभी कोई कर्मेन्द्रिय धोखा न दे - इसको कहते हैं 'स्वराज्य'।* तो राज्य चलाने आता है ना? अगर राजा को प्रजा माने नहीं तो उसे नाम का राजा कहेंगे या काम का? आत्मा का अनादि स्वरुप ही राजा का है, मालिक का है। यह तो पीछे परतंत्र बन गई है लेकिन आदि और अनादि स्वरुप स्वतंत्र है। तो आदि और अनादि स्वरुप स्वतंत्र है। तो आदि और अनादि स्वरुप सहज याद आना चाहिए ना। 

 

  स्वतंत्र हो या थोड़ा-थोड़ा परतंत्र हो? मन का भी बंधन नहीं। अगर मन का बंधन होगा तो यह बंधन और बंधन को ले आयेगा। कितने जन्म बंधन में रहकर देख लिया! अभी भी बंधन अच्छा लगता है क्या? बंधन्मुक्त अर्थात् राजा, स्वराज्य अधिकारी। क्योंकि बंधन प्राप्तियो का अनुभव करने नहीं देता। इसलिए सदा ब्रेक पावरफुल रखो, तब अन्त में पास-विद-ओनर होंगे अर्थात् फर्स्ट डिवीजन में आयेंगे। फर्स्ट माना फास्ट, ढीले-ढीले नहीं। ब्रेक फास्ट लगे। कभी भी ऊंचाई के रास्ते पर जाते हैं तो पहले ब्रेक चेक करते हैं। आप कितना ऊंचे जाते हो! तो ब्रेक पावरफुल चाहिए ना! बार-बार चेक करो। ऐसा ना हो कि आप समझो ब्रेक बहुत अच्छी है लेकिन टाइम पर लगे नहीं, तो धोखा हो जायेगा। इसलिए अभ्यास करो- स्टाप कहा और स्टाप हो जाये।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *क्या आवाज़ से परे शान्त स्थिति इतनी ही प्रिय लगती है कि जितनी आवाज़ में आने की स्थिति प्रिय लगती है?* आवाज़ में आना और आवाज़ से परे हो जाना यह दोनों ही एक समय सहज लगते हैं या आवाज़ से परे जाना मुश्किल लगता है? वास्णव में स्वधर्म शान्त स्वरूप होने के कारण आवाज़ से परे जाना अति सहज होना चाहिए।

  

✧  अभी - अभी एक सेकण्ड में जैसे स्थूल शरीर से बुद्धि  द्वारा परे जाना और आना यह दोनों ही सहज अनुभव होंगे। अर्थात क्या एक सेकण्ड में ऐसा कर सकते हो? जब चाहें शरीर का आधार ले और जब चाहे शरीर का आधार छोड कर अपने अशरीरी स्वरूप में स्थित हो जायें, क्या ऐसे अनुभव चलते - फिरते करते रहते हो? *जैसे शरीर धारण किया वैसे ही फिर शरीर से न्यारा हो जाना इन दोनों का क्या एक ही अनुभव करते हो?* यही अनुभव अंतिम पेपर में फस्ट नम्बर लाने का आधार है। जो लास्ट पेपर देने के लिए अभी से तैयार हो गये हो या हो रहे हो?

 

✧  जैसे विनाश करने वाले एक इशारा मिलते ही अपना कार्य सम्पन्न कर देंगे, अर्थात *विनाशकारी आत्मायें इतनी एवर - रेडी हैं कि एक सेकण्ड के इशारे से अपना कार्य अभी भी प्रारम्भ कर सकती हैं।* तो क्या विश्व का नव - निर्माण करने वाली अर्थात स्थापना के निमित्त बनी हुई आत्माएँ ऐसे एवर - रेडी हैं? अपनी स्थापना का कार्य ऐसे कर लिया है कि जिससे विनाशकारियों को इशारा मिले?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *सर्व पवाइन्ट्स का सार एक शब्द में सुनाओ? प्वाइन्ट्स का सार – प्वाइन्ट रूप अर्थात् बिन्दु रूप हो जाना।* बिन्दु रूप अर्थात् पॉवरफुल स्टेज, जिसमें व्यर्थ संकल्प नही चलते हैं *और बिन्दु अर्थात् 'बीती सो बीती'। इससे कर्म भी श्रेष्ठ होते हैं और व्यर्थ संकल्प न होने के कारण पुरूषार्थ की गति भी तीव्र होगी।* इसलिए बीती सो बीती को सोच-समझ कर करना है। *व्यर्थ देखना, सुनना व बोलना सब बन्द। समर्थ आंखें खुली हों अर्थात् साक्षीपन की स्टेज पर रहो।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सच्ची शांति की अनुभूति करने के लिए इस शरीर से डिटैच हो जाना"*

 

 _ ➳ मुझ आत्मा को सच्ची शांति की अनुभूति करवाने के लिए मेरा बाबा... *मेरा परमपिता स्वयम परमधाम से आकर मुझे यू पालेगा... मेरा ख्याल रखेगा... ये तो मैंने कभी भी ना सोचा था*... इस शरीर से अलग होकर परमधाम में स्थित होना... गहन शांति का अनुभव करना... सब सपना सा लगता हैं... बस ईश्वर के दर्शन हो जाये ये ही तो मुझ आत्मा ने चाहा था... वो मुझ से प्यार करेगा हर सम्बन्ध निभाएगा... अपने साथ रहने के तरीके बताएगा... *इस मीठे चिंतन ने तो आंखों को ही भिगो दिया* ... इन भीगी पलको से मैं आत्मा प्यार के सागर बाबा को निहारने उड़ चली वतन...

 

  *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को सच्ची शांति की अनुभूति कराते हुए, माया से सुरक्षित करते हुए कहा* :- "मीठे बच्चे... पिता से शांति की किरणें प्राप्त कर महानतम भाग्य के नशे में झूम जाओ... इस शांति की अनुभूति से कभी विमुख ना होना... *मीठे बाबा से शांति का खजाना पाकर इसको कभी ठुकराना मत* ... यह शांति ही तुम्हें सारे सुख दिलवाएगी..."

 

 _ ➳  *मैं आत्मा देही अभिमानी स्थिति मे स्थित होकर मीठे बाबा को कहती हूं* :- "मीठे मीठे बाबा... मैं आत्मा शरीर को ही सब कुछ मानती रही... *आपने अपनी गोद के झूले में मुझ आत्मा को झुला कर... मेरा सूंदर भाग्य का निर्माण किया हैं*... इस शरीर से डिटैच होकर मै आत्मा ईश्वरीय खजानों से भरपूर होना सीख रही हूँ..." 

 

  *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को उज्ज्वल भविष्य का आधार शरीर से डिटैच होना हैं बताते हुए कहा* :- "मीठे बाबा से जुड़ने के लिए... *ज्ञान धन एकत्रित करने के लिए... सदा अशरीरीपन में रहने का अभ्यास करो* ... किसी भी बात या देह अभिमान में आकर... बाप का हाथ और साथ कभी ना छोड़ो... माया के प्रभाव से दूर रहने के लिए... सच्ची शांति की अनुभूति... करते रहो, खुशी के नगमे गाते रहो अशरीरी बने रहो..."

 

 _ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा के सच्चे प्यार में कुर्बान होकर कहती हूँ* :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मैं आत्मा तो आपके बिना कितनी अकेली थी... सच्ची शांति की अनुभूति, सच्चा सुख, सच्ची खुशियां मुझ आत्मा के लिए... सदा एक अनसुलझी पहेली थी... *आपने मेरे बाबा मुझ आत्मा को अशरीरीपन का अहसास करा कर... आबाद कर दिया...* मैं आत्मा... अब आपका साथ कभी भी ना छोडूंगी..."

 

  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को शांति और अशरीरीपन में सदा स्थित होने की शक्तियों से नवाजते हुए कहा* :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *महान भाग्य सजाने वाली, देवताई सुखों से दामन को भरने वाली, परमात्म सुख की अनुभूति कराने वाली, इन अमूल्य शक्तियों को कभी मत छोड़ना*... यह शक्तियाँ बेहद के राज समझाएंगी... औऱ माया के विकारो से सुरक्षित रख, ईश्वरीय दिल की धड़कन बनाएंगी..."

 

 _ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा की प्यार भरी बाहों मे मुस्कुराते हुए कहती हूं* :- "प्यारे दुलारे बाबा मेरे... भला भगवान को पाकर औऱ मुझे क्या चाहिए... *शांति की शक्ति से भरपूर मै आत्मा... आपका दामन कभी भी ना छोडूंगी... हर समय अशरीरीपन में आपके साथ का अनुभव करती मै आत्मा... शांति की मूरत बन सदा आपकी बाहों के झूले में झुलूँगी* ... बाबा के संग सदा शांति से, और अशरीरीपन अर्थात शरीर से डिटैच रहने का वायदा कर ... मैं आत्मा भरपूर ज्ञान खजाने लिए वापिस अपने कर्म क्षेत्र पर आ जाती हूं..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  हम सो, सो हम की स्मृति से स्वदर्शन चक्र फिराते रूहानी नशे में रहना है*

 

_ ➳  हम सो, सो हम इस शब्द के वास्तविक अर्थ का ज्ञान सिवाय परमात्मा के और कोई भी मनुष्य आज तक बता नही सका। *बड़े - बड़े वेद, ग्रंथ, और शास्त्र लिखने वालो ने तो हम सो, सो हम का अर्थ आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा बता कर, परमात्मा को ही सर्वव्यापी कह सारी दुनिया को ही अज्ञान अंधकार में डाल दिया*। मन ही मन यह चिंतन करती अपने प्यारे प्रभु का मैं शुक्रिया अदा करती हूँ जिन्होंने आकर इस सत्यता का बोध कराया और हम सो, सो हम का यथार्थ अर्थ बताकर हमे हमारे 84 जन्मो के सर्वश्रेष्ठ पार्ट की स्मृति दिलाई।

 

_ ➳  अपने प्यारे पिता का मन ही मन धन्यवाद करके मैं हम सो, सो हम की स्मृति में जैसे ही स्थित होती हूँ, बुद्धि में स्वदर्शन चक्र स्वत: ही फिरने लगता है और मेरे 84 जन्मो की कहानी भिन्न - भिन्न स्वरूपों में मेरी आँखों के आगे चित्रित होने लगती है। *हम सो, सो हम अर्थात ब्राह्मण सो देवता, सो क्षत्रिय, सो वैश्य, सो शूद्र, सो फिर से ब्राह्मण बनने के बीच का पूरा चक्र अब अलग - अलग स्वरूपों में बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं देख रही हूँ*।

 

_ ➳  स्वदर्शन चक्रधारी बन बुद्धि में अपने 84 जन्मो का चक्र फिराते हुए, सबसे पहले मैं देख रही हूँ अपना अनादि स्वरूप जो परमधाम में एक चमकते हुए चैतन्य सितारे के रूप में मुझे दिखाई दे रहा है। *सर्व गुणों, सर्वशक्तियों से सम्पन्न, सम्पूर्ण सतोप्रधान, सच्चे सोने के समान चमकता हुआ मेरा यह सत्य स्वरूप मन को लुभा रहा है*। अपने इस स्वरूप का गहराई से अनुभव करने के लिए मन बुद्धि के विमान पर बैठ मैं पहुँच गई हूँ अपनी निराकारी दुनिया परमधाम में और अपने प्यारे पिता के सम्मुख बैठ अपने इस सम्पूर्ण सतोप्रधान अनादि स्वरूप का भरपूर आनन्द ले रही हूँ।

 

_ ➳  अपने इस अनादि स्वरूप में अपने अंदर निहित सातों गुणों और अष्ट शक्तियों का अनुभव करके मैं आत्मा तृप्त हो कर अब अपने आदि स्वरूप का अनुभव करने के लिए मन बुद्धि से पहुँच गई हूँ उस स्वर्णिम दुनिया में जहाँ अपरमअपार सुख, शांति और सम्पन्नता है। *दुख का यहाँ कोई नाम निशान नही। ऐसी सुखों से भरी अति सुंदर, मन भावन दुनिया में अपने आपको अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई स्वरूप में मैं देख रही हूँ जो 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम है*।

 

_ ➳  सतोप्रधान प्रकृति के सुन्दर नज़ारो और स्वर्ग के सुखों का अनुभव करके अब मैं मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से देख रही हूँ अपने पूज्य स्वरूप को जो पवित्रता की शक्ति से सम्पन्न है। *अष्ट भुजाओं के रूप में अष्ट शक्तियों को धारण किये, अपने अष्ट भुजाधारी दुर्गा स्वरूप में मैं मंदिर में विराजमान हूँ*। असुरों का सँहार और अपने भक्तों की रक्षा करने वाली असुर सँहारनी माँ दुर्गा के रूप में अपने भक्तो की मनोकामनाओं को मैं अपने वरदानी हस्तों से पूर्ण कर रही हूँ।

 

_ ➳  अपने परमपवित्र पूज्य स्वरूप का अनुभव करके अब मैं अपने सर्वश्रेष्ठ पदमापदम सौभागशाली ब्राह्मण स्वरूप को देख रही हूँ। *परम पिता परमात्मा की देन अपने, डायमंड तुल्य ब्राह्मण जीवन की अखुट प्राप्तियों की स्मृति, परमात्म प्यार और परमात्म पालना का अनुभव, स्वयं भगवान द्वारा प्राप्त सर्व सम्बन्धो का सुख, अतीन्द्रीय सुख के झूले में झूलने का सुखदाई अनुभव, आत्मा परमात्मा के मिलन से प्राप्त होने वाले परमआनन्द की अनुभूति, इन सभी प्राप्तियों का अनुभव करके मैं गहन आनन्द से भरपूर होकर अब अपने फ़रिश्ता स्वरूप को देखते हुए, अपने लाइट माइट स्वरूप को धारण कर रही हूँ*।

 

_ ➳  लाइट की सूक्ष्म आकारी देह धारण कर, मैं फ़रिश्ता देह और देह की दुनिया से हर रिश्ता तोड़, इस नश्वर दुनिया को छोड़ कर अब फरिश्तो की आकारी दुनिया की ओर जा रहा हूँ। पाँच तत्वों की साकारी दुनिया को पार कर, उससे और ऊपर उड़ते हुए मैं फ़रिश्ता अपने अव्यक्त वतन में पहुँच गया हूँ। *सफेद प्रकाश की इस दुनिया में अपने प्यारे बापदादा के पास जाकर उनसे मीठी दृष्टि और वरदान ले रहा हूँ*। उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रहा हूँ। उनके साथ कम्बाइंड हो कर सारे विश्व को सकाश दे रहा हूँ। *ऐसे अपने फरिश्ता स्वरूप का अनुभव करके, अपने निराकार स्वरूप में स्थित होकर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे लौटती हूँ*।

 

_ ➳  *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, इस सृष्टि रूपी कर्म भूमि पर कर्म करते, हम सो - सो हम की स्मृति से स्वदर्शन चक्र फिराते मन बुद्धि से अपने सभी स्वरूपों को देखते और उनका भरपूर आनन्द लेते हुए एक अलौकिक रूहानी नशे से अब मैं सदा भरपूर रहती हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपनी शुभ और शक्तिशाली भावनाओं द्वारा विश्व परिवर्तन करने वाली विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित रहकर निर्णय करने से हर कर्म में सफलता प्राप्त करने वाली सफलता मूर्त आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  और चतुराई सुनावें? ऐसे समय पर फिर ज्ञान की प्वाइन्ट यूज़ करते हैं कि अभी प्रत्यक्ष फल तो पा लो भविष्य में देखा जायेगा। लेकिन प्रत्यक्षफल अतीन्द्रिय सुख सदा का है, अल्पकाल का नहीं। कितना भी प्रत्यक्षफल खाने का चैलेन्ज करे लेकिन अल्पकाल के नाम से और खुशी के साथ-साथ बीच में असन्तुष्टता का कांटा फल के साथ जरूर खाते रहेंगे। मन की प्रसन्नता वा सन्तुष्टता अनुभव नहीं कर सकेंगे। इसलिए ऐसे गिरती कला की कलाबाजी नहीं करो। बापदादा को ऐसी आत्माओं पर तरस होता है - बनने क्या आये और बन क्या रहें हैं! *सदा यह लक्ष्य रखो कि जो कर्म कर रहा हूँ यह प्रभु पसन्द कर्म है? बाप ने आपको पसन्द किया तो बच्चों का काम है - हर कर्म बाप पसन्द, प्रभु पसन्द करना। जैसे बाप गुण मालायें गले में पहनते हैं वैसे गुण माला पहनों, कंकड़ो की माला नहीं पहनों। रत्नों की पहनो।*

 

✺  *"ड्रिल :- हर कर्म प्रभु पसंद करना*”

 

_ ➳  *मैं आत्मा एकांत में बैठकर अपने दिलाराम बाबा को याद करती हूँ और प्यारे बाबा को प्यार से ख़त लिखती हूँ...* फिर मैं आत्मा पंछी बन ख़त लेकर उड़ चलती हूँ और पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन प्यारे-प्यारे बाबा के पास... एक नन्हा फरिश्ता बन बाबा की गोद में बैठ जाती हूँ... बाबा से कहती हूँ... बाबा मैं आपके लिए ख़त लाई हूँ... *प्यारे बाबा मुस्कुराते हुए मेरे हाथों से ख़त लेकर पढ़ते हैं...*

 

_ ➳  ‘प्राण प्यारे बाबा’, ‘मेरे मीठे बाबा’- आप कितने ही प्यारे हो, मीठे हो... आपने मुझे नवजीवन दिया है... कौड़ी से हीरे तुल्य बना दिया है... *मीठे बाबाआपने अपने दिव्य कलम से कितना ही सुन्दर भाग्य लिखा है मेरा... अगर मैं सागर को स्याही बनाकर, जंगल को कलम बनाकर भी आपकी महिमा करूँ, आपको शुक्रिया करूँ तो भी कम है बाबा...* कैसे शुक्रिया करूँ मैं आपकी बाबा... मेरे बाबाआपका दिया जीवन आपको समर्पित... आपकी प्यारी लाडली...

 

_ ➳  प्यारे बाबा ख़त पढ़कर प्यार से मेरे सिर पर हाथ रखते हैं और अविनाशी वरदानों से भरपूर कर देते हैं... मैं आत्मा बाबा को देखते हुए बाबा के प्यार में खो जाती हूँ... बाबा के हाथों से, मस्तक से दिव्य तेजस्वी किरणें निकलकर मुझ पर पड़ रही हैं... *बाबा से निकलती दिव्य गुण, शक्तियों की किरणें मुझ फरिश्ते को दिव्य गुणधारी बना रही हैं...* बाबा अखूट ख़ज़ानों से मुझे भरपूर कर रहे हैं... *बाबा मुझे ज्ञान रत्नों की, दिव्य गुणों की माला पहना रहे हैं...*

 

_ ➳  मैं आत्मा भक्ति में बाबा को पाने के लिए कितना दर-दर भटकती थी... पर अब बाप ने मुझको पसन्द किया, अपना बनाया तो मैं सदा प्रभु पसंद बन बाबा के दिलतख्त पर रहती हूँ... सदा उडती कला में रहती हूँ... कोई भी काम गिरती कला वाली नहीं करती हूँ... *अल्पकाल के नाम, मान, शान का प्रत्यक्षफल नहीं खाती हूँ... अतीन्द्रिय सुख का अविनाशी प्रत्यक्षफल खाती हूँ...*

 

_ ➳  *अब मैं आत्मा सदा एक ही लक्ष्य रखकर हर कर्म कर रही हूँ... हर कर्म करने के पहले चेक करती हूँ कि ये प्रभु पसंद है या नहीं... मैं आत्मा सदा हर कर्म बाप पसन्द, प्रभु पसन्द कर बाबा को शुक्रिया अदा कर रही हूँ...* मैं आत्मा सदा बाबा द्वारा दिए दिव्य गुणों और रत्नों की माला पहने रहती हूँ... कभी भी अवगुणों की कंकड़ो की माला नहीं पहनती हूँ... *प्रभु पसंद कर्म करने से अब मैं आत्मा सदा प्रसन्नता वा सन्तुष्टता का अनुभव कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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