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❍ 06 / 05 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *ड्रामा के हर दृश्य को सदा ऊंची स्थिति में स्थित होकर देखा ?*
➢➢ *किसी भी परिस्थिति में क्यों क्या के संकल्प से आंसू तो नहीं गिराए ?*
➢➢ *किसी भी विशेष स्थान व विशेष सेवा का बंधन अनुभव न कर स्वतंत्र पंछी बनकर रहे ?*
➢➢ *सदा जिम्मेवारी का ताज पहने रखा ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *जैसे स्थूल अग्नि वा प्रकाश अथवा गर्मी दूर से ही दिखाई देती वा अनुभव होती है। वैसे आपकी तपस्या और त्याग की झलक दूर से ही आकर्षण करे।* हर कर्म में त्याग और तपस्या प्रत्यक्ष दिखाई दे तब ही सेवा में सफलता पा सकेंगे।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं संगमयुगी श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को संगमयुगी श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? ब्राह्मणों को सदा ऊंचे ते ऊंची चोटी पर दिखाते हैं। चोटी का अर्थ ही है ऊंचा। *तो संगमयुगी अर्थात् ऊंचे ते ऊंची आत्मायें। जैसे बाप ऊंचे ते ऊंचा गाया हुआ है, ऐसे बच्चे भी ऊंचे और संगमयुग भी ऊंचा है। सारे कल्प में संगमयुग जैसा ऊंचा कोई युग नहीं है क्योंकि इस युग में ही बाप और बच्चों का मिलना होता है।* और कोई युग में आत्मा और परमात्मा का मेला नहीं होता है।
〰✧ तो जहाँ आत्मा और परमात्मा का मेला है, वही श्रेष्ठ युग हुआ ना। ऐसे श्रेष्ठ युग की श्रेष्ठ आत्मायें हो! आप श्रेष्ठ ब्राह्मणों का कार्य क्या है? *ब्राह्मणों का काम है - पढ़ना और पढ़ाना। नामधारी ब्राह्मण भी शास्त्र पढ़ेंगे और दूसरों को सुनायेंगे। तो आप ब्राह्मणों का काम है ईश्वरीय पढ़ाई पढ़ना और पढ़ाना जिससे ईश्वर के बन जाएं।*
〰✧ तो ऐसे करते हो? पढ़ते भी हो और पढ़ाते अर्थात् सेवा भी करते हो। *यह ईश्वरीय ज्ञान देना ही ईश्वरीय सेवा है। सेवा का सदा ही मेवा मिलता है। कहावत है ना - 'करो सेवा तो मिले मेवा'। तो ईश्वरीय सेवा करने से अतीन्द्रिय सुख का मेवा मिलता है, शक्तियों का मेवा मिलता है, खुशी का मेवा मिलता है।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ जैसै एक सेकण्ड में स्विच आँन और आँफ किया जाता हे, ऐसे ही एक सेकण्ड में शरीर का आधार लिया और फिर एक सेकण्ड में शरीर से परे अशरीरी स्थिति में स्थित हो सकते हो? *अभी - अभी शरीर में आये फिर अभी - अभी अशरीरी बन गये, यह प्रैक्टीस करनी है।* इसी को ही कर्मातीत अवस्था कहा जाता है। ऐसे अनुभव होगा जब चाहे कोई कैसा वस्त्र धारण करना वा न करना यह अपने हाथ में रहेगा। आवश्यकता हुई धारण किया, आवश्यकता न हुई तो शरीर से अलग हो गये। एसे अनुभव इस शरीर रूपी वस्त्र में हो।
〰✧ कर्म करते हुए भी अनुभव ऐसा ही होना चाहिए जैसे कोई वस्त्र धारण कर और कार्य कर रहे हैं। कार्य पूरा हुआ और वस्त्र से न्यारे हुए। *शरीर और आत्मा दोनों का न्यारापन चलते - फिरते भी अनुभव होना है।* जैसे कोई प्रैक्टिस हो जाती है ना। लेकिन यह प्रैक्टिस किनको हो सकती है?
〰✧ जो शरीर के साथ वा शरीर के संबन्ध में जो भी बातें है, शरीर की दुनिया, संबन्ध वा अनेक जो भी वस्तुएँ है उनसे बिल्कुल डिटैच होंगे, जरा भी लगाव नहीं होगा तब न्यारे हो सकेंगे। *अगर सूक्ष्म संकल्प में भी हल्का - पन नहीं है, डिटैच नहीं हो सकते तो न्यारापन का अनुभव नहीं कर सकेंगे।* तो अब महारथियों को यह प्रैक्टिस करनी है। बिल्कुल ही न्यारापन का अनुभव हो। इसी स्टेज पर रहने से अन्य आत्माओं को भी आप लोगों से न्यारे - पन का अनुभव होगा, लह भी महसूस करेंगे।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *जैसे प्रकृति के पांच रूप विकराल रूप धारण करेंगे, वैसे ही पांच विकार भी अपना शक्तिशाली रूप धारण कर अन्तिम वार अति सूक्ष्म रूप में ट्रायल करेंगे अर्थात् माया और प्रकृति दोनों ही अपना फुल फोर्स का अन्तिम दाव लगायेंगे।* जैसे किसी भी स्थूल युद्ध में भी अन्तिम दृश्य हास पैदा करने वाला होता है और हिम्मत बढ़ाने वाला भी होता है, ऐसे ही कमजोर आत्माओं के लिए भी हास पैदा करने वाला दृश्य होगा - मास्टर सर्वशक्तिवान आत्माओं के लिए वह हिम्मत और हुल्लास देने वाला दृश्य होगा।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- जहाँ सच्चा स्नेह है, वहां दुःख की लहर नहीं"*
➳ _ ➳ *मधुबन... श्रेष्ठ भूमि पर... मीठे बाबा के कमरे में रुहरिहान करने के लिये... जब मैं आत्मा... पांडव भवन के प्रांगण में पहुँचती हूँ... सुंदर सतयुग और मनमोहिनी सूरत... श्रीकृष्ण को सामने देख पुलकित हो उठती हूँ...* मीठे बाबा ने ज्ञान के तीसरे नेत्र को देकर... चित्रो में चैतन्यता को सहज ही दिखाया है... भक्ति में सबकुछ कल्पना मात्र लगता था... परन्तु आज बाबा की गोद में बैठकर... हर नज़ारा दिल के कितने करीब है... *बाबा ने सतयुगी दुनिया के ये प्यारे नज़ारे मेरे नाम लिख दिये हैं... मन के यह भाव... मीठे बाबा को सुनाने मैं आत्मा... कमरे की और बढ़ चलती हूँ...*
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने महान भाग्य की खुशी से भरते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *इस ऊँचे स्थान... मधुबन में, ऊँची स्थिति पर, ऊँची नॉलेज से, ऊँचे ते ऊँचे बाप की याद में, ऊँचे ते ऊँची सेवा स्मृति स्वरूप रहोंगे तो सदा समर्थ रहोगे..."* जहाँ समर्थ है वहाँ व्यर्थ सदा के लिये समाप्त हो जाता है... *इसलिये मधुबन श्रेष्ठ भूमि पर... बाप के साथ सदा सच्चे स्नेही बनकर रहना..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा प्यारे बाबा के ज्ञान रत्नों को अपनी झोली में समेटते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा... मैं आत्मा अपने मीठे भाग्य पर क्यों न इतराऊ... कि स्वयं भगवान ने मुझे अपनी *फूलो की बगिया में बिठा कर... मुझे भी सुंदर खिलता हुआ फूल बना दिया है... आपने मेरा जीवन सत्य की रोशनी से भर दिया है..."*
❉ *बाबा ने मुझ आत्मा को विश्वकल्याणकारी की भावना से ओतप्रोत बनाते हुए कहा :-* "मीठी लाडली बच्ची... ईश्वर पिता को पाकर, अब अपनी हर श्वांस को ईश्वरीय यादों में पिरो दो... *जब भी तुम ड्रामा के हर दृश्य को ड्रामा चक्र संगमयुगी टॉप पर स्थित हो कुछ भी देखोगी तो स्वतः ही अचल, अडोल रहोगी...* तुम तो कल्प पहले वाली... स्नेही, सहयोगी, अटल, अचल स्थिति में रहने वाली विजयी आत्मा हो..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ईश्वरीय यादों के खजानों से सम्पन्न होकर, मीठे बाबा से कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा...* आपने मुझ आत्मा के जीवन में आकर... विश्व कल्याण की सुंदर भावना से भर दिया है... मैं आत्मा *आपसे सच्चा स्नेह रख सबके जीवन से दुःखों की लहर निकाल... सुख की किरणें फैलाती हूँ... सबके जीवन में आनंद और खुशियों के फूल खिला रही हूँ..."*
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान रत्नों से भरपूर करते हुए कहा :-* "मीठी बच्ची... *जहाँ सच्चा, श्रेष्ठ स्नेह है... वहाँ दुःख की लहर आ नही सकती...* परिवार के स्नेह के धागे में तो सभी बंधे हुए हो, लेकिन अब सच्चे सच्चे शिवबाबा की लग्न में मगन... *सदा एक की याद में रह... कभी भी क्या, क्यों के संकल्प में फंस नहीं जाना... नहीं तो सब व्यर्थ के खाते में जमा हो जायेगा..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा के सच्चे प्यार में दिल से कुर्बान होकर कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे मेरे बाबा... मैं आत्मा आपसे सच्चा स्नेह... सच्चा सुख पाकर धन्य धन्य हो गयी हूँ... *मीठे बाबा... आपने तो मेरे जीवन को दुःखों से सुलझाया है...* और सच्चे प्यार और मीठे ज्ञान रत्नों से सजाया है... *मैं आत्मा अब आपका साथ कभी भी नहीं छोडूंगी...* मीठे बाबा से सदा साथ रहने का वायदा करके मैं आत्मा... अपने कर्मक्षेत्र पर वापिस लौट आई..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- किसी भी परिस्थिति में क्यों क्या के संकल्प से आंसू नहीं गिराने हैं*
➳ _ ➳ भगवान द्वारा रचे इस रुद्र ज्ञान यज्ञ को संभालने के निमित बनी, यज्ञ स्नेही *अपनी प्यारी दीदी, दादियों की अचल, अडोल स्थिति के बारे में सोचते ही मैं मन बुद्धि से पहुँच जाती हूँ मधुबन की उस परम पवित्र भूमि पर जहाँ का कण - कण उन महान आत्माओं के श्रेष्ठ कर्मो की खुशबू से आज भी महक रहा है*। उनके श्रेष्ठ कर्मो के यादगार के रूप में बने स्मृति स्थल आज भी जैसे उनकी साकार पालना का आभास कराते हैं औऱ उनके जैसा बनने की प्रेरणा देते हैं।
➳ _ ➳ मन बुद्धि के विमान पर बैठ, दीदी, दादियों के मधुबन में बने सभी यादगार स्थलों की सैर करते हुए मैं *मन ही मन स्वयं से उनके जैसा बनने और किसी भी परिस्थिति में क्यों, क्या के संकल्प से आंसू ना गिराने की, उनके जैसी अचल, अडोल, एकरस स्थिति बनाने की स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ और अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अपने आप से की प्रतिज्ञा को दृढ़ता के साथ पूरा करने के लिए अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ*। प्यारे बापदादा का वरदानी हाथ और यज्ञ स्नेही अपनी प्यारी दीदी, दादियों का दुआयों भरा हाथ अपने सिर के ऊपर अनुभव करते हुए, एक अद्भुत शक्ति का संचार अपने अंदर होते हुए मैं महसूस करती हूँ और इस शक्ति के बल से सेकेण्ड में अपने निराकार लाइट स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने प्वाइंट ऑफ लाइट स्वरूप में स्थित होकर, स्वयं को देह से एकदम न्यारा अनुभव करते हुए, इस देह और देह से जुड़ी *हर चीज को साक्षी होकर देखते हुए, अब मै इन सबसे किनारा कर ऊपर आकाश की ओर उड़ जाती हूँ और एक खूबसूरत रूहानी यात्रा पर चलते हुए, आकाश को पार कर, उससे ऊपर सूक्ष्म वतन को भी पार कर, मैं पहुँच जाती हूँ आत्माओं की उस निराकारी दुनिया में जो मेरे पिता का निवास स्थान है*। शांति की यह दुनिया जहाँ शांति के अथाह वायब्रेशन्स चारों और फैले हुए है, इन वायब्रेशन्स को अपने अंदर समाकर गहन शान्ति की अनुभूति करते हुए, अपने इस शांतिधाम घर की सैर करते - करते मैं शांति के सागर अपने शिव पिता के पास पहुँचती हूँ।
➳ _ ➳ अपने जिस परम पिता परमात्मा से मैं पूरा कल्प बिछड़ी रही उन्हें अपने सामने पाकर मैं महसूस कर रही हूँ जैसे कि जिस मंजिल की तलाश में मैं भटक रही थी वो मंजिल मुझे कितनी सहज रीति मिल गई है। *अपने बिल्कुल सामने, शांति, सुख, प्रेम, आनन्द, शक्ति, ज्ञान और पवित्रता के सागर अपने शिव पिता को अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाये, अपना आह्वान करते हुए मैं देख रही हूँ*। धीरे - धीरे आगे बढ़ कर उनकी किरणो रूपी बाहों में मैं जाकर समा जाती हूँ। अपनी सर्वशक्तियों की किरणो रूपी बाहों में बड़े प्यार से समाकर बाबा मुझमें अपनी सारी शक्ति भर रहें हैं। *स्वयं को मैं बहुत ही बलशाली, बहुत ही एनर्जेटिक अनुभव कर रही हूँ*।
➳ _ ➳ अपने प्यारे पिता के सर्व गुणों और सर्व शक्तियाँ को स्वयं में समाकर, बाप समान शक्तिशाली बन कर अब मैं वापिस साकार लोक की ओर लौट रही हूँ। *दीदी, दादियों जैसी एकरस, अचल, अडोल स्थिति में सदा स्थित रहने के लिए मैं उनके द्वारा किये श्रेष्ठ कर्मो को स्मृति में रख उनके समान अपने कर्मो को, बाबा की श्रेष्ठ मत पर चल श्रेष्ठ बनाने का पुरुषार्थ कर रही हूँ*। बापदादा के साथ की स्मृति से, स्वयं को सदा बापदादा के साथ कम्बाइंड अनुभव करते हुए, शक्तिशाली बन हर परिस्थिति को अपनी स्व स्थिति से अब मैं हँसते - हँसते पार कर रही हूँ। *किसी भी परिस्थिति में क्यों क्या के संकल्प से आंसू ना गिराने की स्वयं से की हुई प्रतिज्ञा को दृढ़ता के साथ पूरा करने के लिए ड्रामा की हर सीन को साक्षी होकर देखने का अभ्यास पक्का करने का मैं पूरा पुरुषार्थ कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं स्वराज्य अधिकारी बन कर्मेन्द्रियों को आर्डर प्रमाण चलाने वाली अकालतख्त सो दिलतख्तनशींन आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं निर्णय करने, परखने और ग्रहण करने की शक्ति को धारण कर होलीहंस बनने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ सदा सुख की शैय्या पर सोई हुई आत्मा के लिए यह विकार भी छत्रछाया बन जाता हैं -दुश्मन बदल सेवाधारी बन जाते हैं। *अपना चित्र देखा है ना! तो ‘शेष शय्या' नहीं लेकिन ‘सुख-शय्या'। सदा सुखी और शान्त की निशानी है - सदा हर्षित रहना। सुलझी हुई आत्मा का स्वरूप सदा हर्षित रहेगा। उलझी हुई आत्मा कभी हर्षित नहीं देखेंगे। उसका सदा खोया हुआ चेहरा दिखाई देगा* और वह सब कुछ पाया हुआ चेहरा दिखाई देगा। जब कोई चीज खो जाती है तो उलझन की निशानी क्यों, क्या, कैसे ही होता है। तो रूहानी स्थिति में भी जो भी पवित्रता को खोता है, उसके अन्दर क्यों, क्या और कैसे की उलझन होती है। तो समझा कैसे चेक करना है? *सुख-शांति के प्राप्ति स्वरूप के आधार पर मंसा पवित्रता को चेक करो।*
✺ *"ड्रिल :- सदा सुख की शैय्या पर सोये हुए अनुभव करना*”
➳ _ ➳ *"अमृतवेला शुद्ध पवन है, मेरे लाडले जागो..." मीठे बाबा की मीठी आवाज़ सुन मैं जाग जाती हूँ...* अमृतवेले अमृत पिलाने के लिए मीठे बाबा मुझे जगा रहे हैं... मैं प्यारे बाबा को गुड मॉर्निंग कहकर उनकी गोदी में बैठ जाती हूँ... मेरी लाडली शहजादी कहकर बाबा मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरते हैं... मैं आत्मा रूहानी खिवैया की गोदी में बैठकर अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर रही हूँ... *रूहानी खिवैया ने विषय सागर में डोलती हुई मेरे जीवन रूपी नैया को मझधार से निकालकर किनारे पर लगा दिया है...*
➳ _ ➳ अब बाबा ही मेरे जीवन के दाता हैं... मेरे सांसो के स्वामी हैं... अब मैं आत्मा अपने जीवन रूपी नैया की पतवार बाबा के हाथों सौंपती हूँ... *प्यारे बाबा ने ज्ञान अमृत पिलाकर नया ब्राह्मण जन्म दिया है... सर्व गुण, शक्तियों के खजाने दिए हैं... विकारों रूपी विष को खत्म कर पवित्रता की शक्ति दी है...* सर्व गुण सम्पन्न, 16 कलाओं से सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी बनाकर स्वर्ग सुखों का अविनाशी वरदान दिया है...
➳ _ ➳ *प्यारे बाबा मुझे प्यार से अपनी गोदी में उठाकर ले चलते हैं परमधाम...* परमधाम में मैं आत्मा अपने बाबा में समाकर उनसे एक हो जाती हूँ... मैं आत्मा सर्व गुणों, शक्तियों से सम्पन्न बन रही हूँ... अखूट खजानों की मालिक बन रही हूँ... *पवित्रता के सागर में डुबकी लगाकर मैं आत्मा सम्पूर्ण पवित्र बन रही हूँ...* पवित्रता की शक्ति से मुझ आत्मा के जन्म-जन्मान्तर के विकर्म दग्ध हो रहे हैं...
➳ _ ➳ *पवित्रता की शक्ति को धारण करने से मुझ आत्मा के अन्दर क्यों, क्या और कैसे की उलझन समाप्त हो रही है...* मैं आत्मा सदा सुख-शांति की अनुभूति कर रही हूँ... सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न अवस्था का अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा सबकुछ पाकर सदा हर्षित रहती हूँ... *अब मैं आत्मा उलझन की शय्या से निकल सदा सुख की शय्या पर रहती हूँ...*
➳ _ ➳ *सदा सुख की शय्या पर रहने से मुझ आत्मा के विकार भी छत्रछाया बन गए हैं...* दुश्मन भी बदलकर सेवाधारी बन गए हैं... जिस परमात्मा को जन्म-जन्म से ढूंढ रही थी उसने मुझे ढूंढकर अपना बना लिया... सर्व अधिकार देकर सर्व खजानों से सम्पन्न बना दिया... मेरे प्यारे बाबा मुझे उलझन और काँटों की शय्या से निकाल अपनी गोदी की सुख की शय्या पर सुलाते हैं... *प्यारे बाबा मुझ आत्मा को 21 जन्मों का वर्सा देकर 21 जन्म तक सदा सुख की शय्या का वरदान देते हैं...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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