━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 12 / 06 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बुधी से सब कुछ बाप के हवाले कर उनकी परवरिश के नीचे पलने का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *पतितपने का कडवापन निकालने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *संगमयुग के इस नए युग में हर सेकंड नवीनता का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *परमात्म प्यार द्वारा जीवन में सदा अतीन्द्रिय सुख व आननद की अनुभूति की ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  *कई बच्चे कहते हैं कि जब योग में बैठते हैं तो आत्म-अभिमानी होने के बदले सेवा याद आती है। लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि लास्ट समय अगर अशरीरी बनने की बजाए सेवा का भी संकल्प चला तो सेकण्ड के पेपर में फेल हो जायेंगे।* उस समय सिवाय बाप के, निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी-और कुछ याद नहीं। सेवा में फिर भी साकार में आ जायेंगे इसलिए *जिस समय जो चाहे वह स्थिति हो नहीं तो धोखा मिल जायेगा।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✺   *"मैं सर्व खजानों से सम्पन्न आत्मा हूँ"*

 

  अपने को सदा सर्व खजानों से सम्पन्न आत्माएं अनुभव करते हो? कितने खजाने मिले हैं? खजानों को अच्छी तरह से सम्भालना आता है या कभी-कभी अन्दर से निकल जाता है ? *क्योंकि आप आत्माएं भी बाप द्वारा नालेजफुल बनने के कारण बहुत होशियार हो लेकिन माया भी कम नहीं है। वो भी शक्तिशाली बन सामना करती है।*

 

  *तो सर्व खजाने सदा भरपूर रहे और दूसरा जिस समय जिस खजाने की आवश्यकता हो उस समय वो खजाना कार्य में लगा सको। खजाना है लेकिन टाइम पर अगर कार्य में नहीं लगा सके तो होते हुए भी क्या करेंगे? जो समय पर हर खजाने को काम में लगाता है उसका खजाना सदा और बढ़ता जाता है।*

 

  तो चेक करो कि खजाना बढ़ता जाता है कि सिर्फ यही सोच करके खुश हो कि बहुत खजाने हैं। फिर ऐसे कभी नहीं कहो कि चाहते तो नहीं थे लेकिन हो गया। *ज्ञानी की विशेषता है - पहले सोचे फिर कर्म करे। ज्ञानी-योगी तू आत्मा को समय प्रमाण टच होता है और वह फिर कैच करके प्रैक्टिकल में लाता है। एक सेकेण्ड भी पीछे सोचा तो ज्ञानी तू आत्मा नहीं कहेंगे।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧   *कमल अर्थात कर्म करते हुए भी विगारी बन्धनों से मुक्त।* देह को देख भी रहे हैं लेकिन देखते हुए भी नयन कमल वाले, देह के आकर्षण के बन्धन में नहीं आयेंगे। जैसे कमल जल में रहते हुए जल से न्यारा अर्थात जल के आकर्षण के बन्धन से न्यारा, अनेक भिन्न-भिन्न सम्बन्ध से न्यारा रहता है। कमल के सम्बन्ध भी बहुत होते हैं।

 

✧  अकेला नहीं होता है, प्रवृत्ति मार्ग की निशानी का सूचक है। ऐसे ब्राह्मण अर्थात *कमल पुष्प  सामान बनने वाली आत्माएँ प्रवृत्ति मार्ग में रहते, चाहे  लौकिक चाहे अलौकिक साथ-साथ किचड अर्थात तमोगुणी पतित वातावरण रहते हुए भी न्यारे।* जो गुण रचना में है तो मास्टर रचता में वही गुण है।

 

✧   सदा इस आसन पर स्थित रहते हो वा कभी-कभी स्थित होते हो? *सदा अपने इस आसन को धारण करने वाले ही सर्व बन्धन मुक्त और सदा योगयुक्त बन सकते हैं।* अपने आप को देखो - पाँच विकार, पाँच प्रकृति के तत्वों के बन्धन से कितने परसेन्ट में मुक्त हुए हैं। लिप्त आत्मा वा मुक्त आत्मा हो?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧ *जितना अपने को महान अर्थात् श्रेष्ठ आत्मा समझेंगे उतना हर कर्म स्वत:ही श्रेष्ठ होगा। क्योंकि जैसी स्मृति वैसी स्थिति स्वत: ही होती है। जैसे अनुभवी हो कि आधा कल्प देह की स्मृति में रहे तो स्थिति क्या रही?* अल्पकाल का सुख और अल्पकाल का दुख। तो सदा आत्मिक स्वरूप की जब स्मृति रहेगी तो सदाकाल के सुख और शान्ति की स्थिति बन जायेगी।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ज्ञान सागर बाप से सम्मुख मिलन मनाना, बादल भरना"*

 

 _ ➳  मीठे बाबा से सम्मुख मिलन मनाने... *जब मैं आत्मा शांतिवन के प्रांगण मे पहुँचती हूँ... सुंदर सतयुग के मनमोहक दृश्यों को सामने देख पुलकित हो उठती हूँ* ... मै आत्मा आनंद की चरम सीमा पर हूँ... हर नजारा दिल के कितना करीब है... *भगवान ने सतयुगी दुनियां के ये नज़ारे मेरे नाम लिख दिए है... प्यारा बाबा ही चारो औऱ दिखाई दे रहा हैं जैसे* ... मै आत्मा अब साक्षात मिलन मनाने डायमण्ड हॉल की तरफ चल पड़ती हूं...

 

  *मेरे प्यारे लाडले बाबा ने बड़े प्यार से, मेरे उच्च से उच्च भाग्य को सराहते हुए, मुझे देखते हुऐ कहा* :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... भगवान को अपनी बाहों में भरने वाले अति भाग्यशाली हो... *व्यर्थं चिंतन से परे हो कर, बादलों समान भरपूर होकर... आज बाप से मिल रहे हो* ... मन की ये विशाल ख़ुशी तन पर भी झलक रही हैं... *ये मन और तन दोनो ही बहुत प्यारे हैं... जो बाप से मिलन मना रहे है* ..."

 

 _ ➳  *मै आत्मा बाप से मिलती हुई, खुशी की खुराक लेती हुई... भाव विभोर हो अपने पिता से बड़े ही कोमल हृदय से कहती हूँ* :-" वाह मेरे प्राणप्रिये बाबा... आप ने मुझ आत्मा को मिल कर... जैसे सारे दुःखो से ही मुक्त कर दिया... *जन्मो जन्मो से भटकती, एक झलक आपकी पाने को तरसती मुझ आत्मा का तो... आपने जीवन ही बदल दिया... इतना प्यार मिलेगा ये तो मैंने कभी सोचा भी न था* ..."

 

  *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा के शुभ वचनों औऱ शुभ संस्कारो को पक्का कराते हुए कहा* :-"मीठे प्यारे बच्चे... *ईश्वरीय मिलन मे सहयोगी, बादल समान भरपूर होकर, इस पुराने तन को वाह वाह कर चलाओ... बाबा से मिल रहे हो कभी भी दिल शिकस्त नही होना है* ... माया के तूफानो को दूर कर... गुण और शक्तियों को खूब भरपूर करते जाना है..."

 

 _➳  *मुझ आत्मा ने बाबा के इन प्यारे वचनों को सुनते हुऐ बाबा को बड़े प्यार से कहा* :- "मेरे सच्चे साथी बाबा... आप जीवन में आये हो... खुशियों की बहार संग लाये हो... जीवन को खुशियों से महका दिया हैं... *मै आत्मा आप से मिल कर, आपके साये में बेहद खूबसूरत होती जा रही हूँ... जैसे बादल पानी से भरपूर हो बरसते ही अच्छे होते है... मैं आत्मा भी आपके प्यार में भरपूर हो मिलन मना कर... अत्याधिक प्रसन्न हो रही हूँ* ..."

 

  *मीठे बाबा ने मेरी सुंदर सोच में छुपी मेरी भावनाओ को उजागर करते हुए कहा* :-"प्यारे सिकीलधे बच्चे... सदा शुभ भावनाये रख कर... *सब को अपना बनाओ... औऱ अन्य आत्माओ को भी बाप से मिलाने के निमित्त बनते रहो... हर बात मे बीच बीच मे बाबा को लाओ* ... बाबा ही बाबा हो दूसरा न कोई... इसका पाठ पक्का करते रहो..."

 

 _ ➳  *मै बाबा के इतने प्यारे वचन सुन कर अपने प्यारे बाबा से कहती हूँ* :-"मेरे प्रियतम बाबा... आपने तो सभी ख़ज़ानों से भरपूर कर दिया हैं... *आज ज्ञान सागर बाप से मिलकर तो... मैं आत्मा ऐसे भरपूर हो गईं हूँ, जैसे बादल सागर के जल को ग्रहण कर भरपूर होता हैं... पूरी दुनियां की खुशियां मुझ आत्मा को आज मिल गई हैं*... अब मैं आत्मा बाबा से मिलन मना कर ... बादलों समान भरपूर होकर... वापिस अपने लौकिक स्थान पर पहुँच जाती हूं..."

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ऊंची मंजिल पर जाने के लिए बाप - टीचर - गुरु के रूप में हमे तीन ईंजन मिले हैं - सदा इसी स्मृति से आगे बढ़ना है*

 

_ ➳  एक ऊँची पहाड़ी पर बैठी प्रकृति के खूबसूरत नजारों का आनन्द लेते हुए अपने ब्राह्मण जीवन के बारे में मैं विचार करती हूँ और *मन ही मन यह सोच कर अपने भाग्य की सराहना करती हूँ कि मेरी तकदीर कितनी ऊँची और श्रेष्ठ है जो मेरे जीवन की गाड़ी को मंजिल तक पहुँचाने के लिए बाप - टीचर - गुरु के रूप में मुझे तीन इंजन मिले हैं*। कितनी महान पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो स्वयं भगवान बाप - टीचर - गुरु बन अपनी पालना, शिक्षाओं और अपनी श्रेष्ठ मत द्वारा मेरे ब्राह्मण जीवन की गाड़ी को माया के हर तूफान से बचाकर उसे उस ऊँची मंजिल तक ले जाने में मेरी सहायता कर रहें हैं जिस मंजिल के बारे में दुनिया वाले जानते ही नही।

 

_ ➳  मुक्ति, जीवन मुक्ति की वो मंजिल जहाँ *बड़े - बड़े महा मण्डलेश्वर, साधू सन्यासी जाने की चाह तो रखते हैं लेकिन जाना कैसे है ये नही जानते और उसी ऊंची मंजिल पर भगवान स्वयं मेरा हाथ पकड़ कैसे मुझे अपने साथ ले जा रहें हैं मन ही मन ये विचार कर, एक गहन सुखमय अनुभूति में मैं खो जाती हूँ* और इसी सुखद अनुभूति में खोई हुई चल पड़ती हूँ मन बुद्धि की उस आंतरिक यात्रा पर जो मुझे मेरी मंजिल तक पहुंचाने वाली है। मन बुद्धि की मन को सुकून देने वाली उस परम आनन्दमयी यात्रा पर मैं आत्मा ज्ञान और योग के पंख लगाकर, अब भृकुटि के अकाल तख्त से उतर कर, देह से बाहर आ जाती हूँ।

 

_ ➳  अपने आस - पास की हर चीज को साक्षी होकर देखते हुए मैं स्वयं को इन सबके आकर्षण से मुक्त अनुभव करते हुए, अब एक ऊंची उड़ान भरती हूँ और सेकण्ड में पाँच तत्वों की बनी साकारी दुनिया को पार कर, आसमान की ऊंचाइयों को छूने लगती हूँ। *सूर्य, चाँद, तारामंडल, सौरमण्डल इन सबको पार कर, इनसे ऊपर सफेद प्रकाश की फरिश्तो की दुनिया से होती हुई मैं पहुँच जाती हूँ आत्माओं की निराकारी दुनिया अपनी मंजिल, अपने मुक्तिधाम घर में*। यहाँ पहुँच कर मैं जीवन मुक्त स्थिति का अनुभव कर रही हूँ। देह, देह की दुनिया, देह के हर संकल्प, विकल्प से मुक्त ये जीवन मुक्त अवस्था बहुत ही न्यारी और प्यारी है।

 

_ ➳  एक बहुत ही प्यारी लाइट माइट स्थिति में स्थित, मास्टर बीज रूप बन, बीज रूप अपने प्यारे पिता के साथ मैं अद्भुत मंगल मिलन मना रही हूँ। उनकी सर्वशक्तियो की किरणों के रूप में अपने ऊपर निरन्तर बरस रहे उनके निस्वार्थ प्यार का अनुभव करके मैं गहन आनन्द से भरपूर हो रही हूँ। *उनकी सर्वशक्तियों की लाइट माइट मेरे अंदर समाकर मुझे बहुत ऊर्जावान बना रही है। इस ऊर्जा के प्रभाव से मेरी सारी कमी कमजोरियाँ जलकर समाप्त हो रही हैं और पुराने सभी स्वभाव संस्कार परिवर्तित हो रहें है*। अपने सर्वशक्तिवान शिव पिता के सानिध्य में बैठ, उनसे अपार शक्ति लेकर अब मै आत्मा परमधाम से नीचे आती हूँ और अपने अव्यक्त वतन सूक्ष्म लोक में प्रवेश करती हूँ।

 

_ ➳  अपनी लाइट की चमकीली फ़रिश्ता ड्रेस को धारण कर, अव्यक्त वतनवासी अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के पास मैं पहुँचती हूँ और जा कर उनके समुख बैठ जाती हूँ। *सेकण्ड में अपने सर्वशक्तिवान शिव पिता को मैं उनकी भृकुटि पर विराजमान अनुभव करती हूँ और देखती हूँ बापदादा को बाप, टीचर और सतगुरु के तीन भिन्न - भिन्न स्वरूपों में। इन तीनो स्वरूपों में बाबा की भृकुटि से निकल रही प्रकाश की अनन्त रंग बिरंगी धारायें, रंग बिरंगी फुहारों का रूप धारण कर मेरे ऊपर बरसने लगती हैं और मुझे अपनी शक्तियों से भरपूर करने लगती हैं*। अपनी शक्तियों का सारा बल बापदादा अपने इन तीनो स्वरूपो के द्वारा मेरे अंदर भर देते हैं।

 

_ ➳  बाप, टीचर और सतगुरु के रूप में बाबा का असीम स्नेह, शक्ति और ब्लेसिंग लेकर अब मैं फिर से अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होकर वापिस साकार लोक में लौट आती हूँ। अपने साकार तन में फिर से भृकुटि के अकाल तख्त पर आकर मैं विराजमान हो जाती हूँ और *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ, इस स्मृति के साथ कि मेरे ब्राह्मण जीवन रूपी गाड़ी को ऊंची मंजिल तक ले जाने के लिए बाप, टीचर और गुरु के रूप में मुझे तीन ईंजन मिले हैं। इस स्मृति में के साथ अब मैं सदा उमंग उत्साह से भरपूर रहते हुए अपनी मंजिल की और निरन्तर आगे बढ़ती जा रही हूँ*।

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं संगमयुग के इस नये युग मे हर सेकन्ड नवीनता का अनुभव करने वाली फ़ास्ट पुरुषार्थी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं परमात्मा प्यार द्वारा जीवन में सदा अतींद्रिय सुख और आनंद की अनुभूति करने वाली सहजयोगी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ आज बापदादा अपने महादानी वरदानी विशेष आत्माओं को देख रहे हैं। महादानी वरदानी बनने का आधार है - ‘महात्यागी' बनने के बिगर महादानी वरदानी नहीं बन सकते। *महादानी अर्थात् मिले हुए खजाने बिना स्वार्थ के सर्व आत्माओं प्रति देने वाले -‘नि:स्वार्थी’। स्व के स्वार्थ से परे आत्मा ही महादानी बन सकती है। वरदानी, सदा स्वयं में गुणों, शक्तियों और ज्ञान के खजाने से सम्पन्न आत्मा सदा सर्व आत्माओं प्रति श्रेष्ठ और शुभ भावना तथा सर्व का कल्याण हो, ऐसी श्रेष्ठ कामना रखने वाली सदा रूहानी रहमदिल, फराखदिल, ऐसी आत्मा ‘वरदानी' बन सकती है।* इसके लिए‘महात्यागी' बनना आवश्यक है।

➳ _ ➳ *त्याग की परिभाषा भी सुनाई है कि पहला त्याग है - अपने देह की स्मृति का त्याग। दूसरा देह के सम्बन्ध का त्याग। देह के सम्बन्ध में पहली बात कर्मेंन्द्रियों के सम्बन्ध की सुनाई - क्योंकि 24 घण्टे का सम्बन्ध इन कर्मेन्द्रियों के साथ है।* इन्द्रियजीत बनना, अधिकारी आत्मा बनना यह दूसरा कदम। इसका स्पष्टीकरण भी सुना। अब तीसरी बात यह है - देह के साथ व्यक्तियों के सम्बन्ध की। इसमें लौकिक तथा अलौकिक सम्बन्ध आ जाता है। इन दोनों सम्बन्ध में महात्यागी अर्थात् ‘नष्टोमोहा'।

✺ *"ड्रिल :- महात्यागी बन महादानी वरदानी स्थिति का अनुभव करना*”

➳ _ ➳ *मैं आत्मा इस वरदानी संगम युग में बाबा से वरदान लेकर स्वयं को वरदानों से भरपूर करने वरदाता बाबा को अपने पास बुलाती हूं...* बाबा अपने साथ मुझे बादलों की पहाड़ी पर बिठाकर सैर करने ले जाते हैं... मैं आत्मा बाबा के साथ प्रकृति के सौंदर्य को देखते हुए उड़ रही हूं... एक तरफ बाबा का मखमली कोमल स्पर्श का अनुभव करती हुई, एक तरफ मुलायम रुई समान बादलों को छूकर मैं आत्मा भी हलकी होती जा रही हूँ... नदी, तालाब, समुंदर, पहाड़ों, चांद, सितारों को पार करते हुए सफेद बादलों की दुनिया में बाबा मुझे ले जाते हैं...

➳ _ ➳ *बादलों की दुनिया में बाबा मुझे वरदानों से भरे बादलों के नीचे बिठाते हैं... बादलों से वरदानों की बारिश हो रही है...* मैं आत्मा इस बारिश में नहा रही हूं... देखते देखते मुझ आत्मा का स्थूल शरीर पूरी तरह गायब होता जा रहा है... मैं आत्मा इस देह और कर्मेंन्द्रियों के संबंध से न्यारी होती जा रही हूं और इन्द्रियजीत बन रही हूं... मैं आत्मा आकारी प्रकाश का शरीर धारण करती हूँ... मेरा ये लाइट का शरीर हजारों लाइट्स के समान जगमगा रहा है...

➳ _ ➳ आकारी शरीर धारण करते ही मैं आत्मा देह की स्मृति से न्यारी होती जा रही हूं... *देह की स्मृति का त्याग करते ही... मुझ आत्मा का देह के संबंधों से ममत्व मिट रहा है... मैं आत्मा बुद्धि से लौकिक अलौकिक संबंधों का त्याग कर रही हूं...* लौकिक अलौकिक संबंधों के मोह को नष्ट कर नष्टमोहा बन गई हूं... महात्यागी बन गई हूं... मैं आत्मा गुण शक्तियों और ज्ञान के खजानों से संपन्न बन रही हूं... गुण स्वरुप, धारणा स्वरूप बन रही हूँ...

➳ _ ➳ बाबा मेरे सिर पर अपना वरदानी हाथ रख सर्व वरदानों से मुझे भरपूर कर रहे हैं... मैं आत्मा वरदानी मूर्त होने का अनुभव कर रही हूं... अब मैं आत्मा स्व के स्वार्थ से परे निस्वार्थ भाव से, बाबा से मिले खजानों को सर्व आत्माओं को दान कर रही हूं... सर्व आत्माओं प्रति श्रेष्ठ और शुभ भावना तथा शुभकामना रख सबका कल्याण कर रही हूं... मैं आत्मा हद की कामनाओं से परे निष्काम सेवा कर रही हूँ... *मैं आत्मा रूहानी रहमदिल फराख दिल बन सर्व आत्माओं का उद्धार कर रही हूं... मैं आत्मा महात्यागी बन महादानी वरदानी स्थिति का अनुभव कर रही हूं...*
 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━