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 27 / 04 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *मनुष्य आत्माओं को शीतल बनाने की सेवा की ?*

 

➢➢ *दादे की मिलकियत को याद कर आपार ख़ुशी में रहे ?*

 

➢➢ *"कराने वाला करा रहा है" - इस स्मृति से निमित बन हर कर्म किया ?*

 

➢➢ *अपने शांति और सुख की वाइब्रेशन से हर एक को सुख चैन की अनुभूति करवाई ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *अब चारों ओर सेवाकेन्द्र वा प्रवृत्ति के स्थान को शान्ति कुण्ड बनाओ, इसके लिए योग का किला मजबूत करो। किले को मजबूत करने का साधन है-प्युरिटी।* जहाँ पवित्र आत्माएं रहती हैं वहाँ के वायब्रेशन विश्व की आत्माओं को शान्ति की अनुभूति कराते हैं। *पवित्रता की शक्ति महान शक्ति है, उसकी महानता को जानकर मास्टर शान्ति देवा बनो। कैसी भी अशान्त आत्मा को शान्त स्वरूप, पवित्र स्वरूप में स्थित होकर शान्ति की किरणें दो तो अशान्त भी शान्त हो जायेंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं राजयोगी श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

  स्वयं को राजयोगी श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? राजयोगी अर्थात् राज्य अधिकारी तो राजा बने हो? या कभी राजा का राज्य, कभी प्रजा का? *राजयोगी माना सदा राजा बन राज्य चलाने वाले। कभी भी अधीन बनने वाले नहीं। राजयोगी कभी प्रजायोगी नहीं बन सकते। योगी का अर्थ ही है - निरन्तर याद में रहने वाले। तो योगी भी हो और राजा भी हो।*

 

  *योगी जीवन का अर्थ है याद कभी भूल नहीं सकती। योग लगाने वाले योगी नहीं। योगी जीवन वाले योगी हो। लगाने वाले का कब लगेगा कब नहीं लेकिन 'जीवन' सदा रहती है।* खाते-पीते, चलते जीवन होती है। या सिर्फ जब बैठते हो तब जीवन है चलते हो तब जीवन है?

 

  *हर कार्य करते जीवन है। तो यही स्मृति रहे कि हम 'योगी-जीवन' वाले हैं। अभी के भी राजे हैं और जन्मजन्म के भी राजे हैं। अभी राजे नहीं तो भविष्य में भी नहीं।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  सिर्फ आवाज़ द्वारा प्रभावित हुई आत्माएँ अनेक आवाज़ सुनने से आवागमन में आ जाती है। लेकिन अव्यक्त स्थिति में स्थित हुए आवाज़ द्वारा अनुभवी आत्मायें आवागमन से छूट जाती हैं। ऐसी आत्मा के ऊपर किसी भी रूप का प्रभाव नहीं पड सकता। *सदैव अपने को कम्बाइन्ड समझ, कम्बाइन्ड रूप की सर्वीस करो अर्थात अव्यक्त स्थिति और फिर आवाज़।* दोनों की कम्बाइन्ड रूप की सर्वीस वारिस बनायेगी।

 

✧  *सिर्फ आवाज़ द्वारा सर्वीस करने से प्रजा बनती जा रही है।* तो अब सर्वीस में नवीनता लाओ। ( इस प्रकार का सर्वीस करने का साधन कौन - सा है?) जिस समय सर्वीस करते हो उस समय मंथन चलता है, लेकिन याद में मगन यह स्टेज मंथन की स्टेज से कम होती है। दूसरे के तरफ ध्यान अधिक रहता है। अपनी अव्यक्त स्थिति की  तरफ ध्यान कम रहता है। इस कारण ज्ञान के विस्तार का प्रभाव पडता है लेकिन लगन में मगन रहने का प्रभाव कम दिखाई देता है।

 

✧  रिजल्ट में यह कहते हैं कि यह ज्ञान बहुत ऊचा है। लेकिन मगन रहना है यह हिम्मत नहीं रखते। क्योंकि अव्यक्त स्थिति द्वारा लगन का अर्थात सम्बन्ध जोडने का अनुभव नहीं किया है। बाकी थोडा कणा - दाना लेने से प्रजा बन जाती है। *अब के सम्बन्ध जुटने से ही भविष्य सम्बन्ध में आयेंगे।* नहीं तो प्रजा में। तो नवीनता यही लानी है। जो एक सेकण्ड में अव्यक्त अनुभव द्वारा सम्बन्ध जोडना है। सम्बन्ध और सम्पर्क दोनों में फर्क है। सम्पर्क में आते हैं, सम्बन्ध में नहीं आते। समझा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *प्रेक्टिस की परीक्षा का समय कौन-सा होता है? जब कर्मभोग का ज़ोर होता है?* कर्मेन्द्रियाँ बिल्कुल कर्मभोग के वश अपने तरफ आकर्षण करें, जिसको कहा जाता है बहुत दर्द है। *कहते हैं ना - बहुत दर्द है, इसलिए थोड़ा भूल गयी।* लेकिन यह तो टग ऑफ वार (रस्सा कशी) का समय है, *ऐसे समय कर्मभोग को कर्मयोग में परिवर्तन करने वाले, साक्षी हो कर कर्मेन्द्रियों को भोगवाने वाले जो होते उनको अष्ट रतन कहा जाता है, जो ऐसे समय विजयी बन दिखाते हैं।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- घर बैठे वंडरफुल रूहानी यात्रा पर रह पावन बनना"*

 

 _ ➳  *अमृतवेले के रूहानी समय में... उठो, जागो मेरे लाडले बच्चे... कहते हुए मीठे बाबा मुझे प्यार से जगाते हैं... मैं आत्मा अपने सामने प्यारे बाबा को देख मुस्कुराते हुए बाबा को गुड मॉर्निंग कर उठती हूँ...* और बाबा के गले लग जाती हूँ... मीठे बाबा प्यार से मुझे अपनी गोदी में बिठाते हैं और मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए वरदानों से भरपूर करते हैं... दृष्टि देते हुए बाबा मुझे अमृतपान कराते हैं... फिर वन्डरफुल रूहानी बाबा मुझे अपने साथ वन्डरफुल रूहानी सैर कराते हैं...   

 

  *यादों की महफिल में ज्ञान के फूल बरसाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... *मीठे बाबा के साथ का यह वरदानी युग कितना प्यारा है जिसमे पिता की याद भर से ही आप बच्चे 21जनमो के लिए सुखो भरे आलिशान जीवन और निरोगी स्वस्थ काया के हकदार बन जाते हो...* ईशरीय यादो में हर विकार से परे निष्कलंक जीवन पाते हो...

 

_ ➳  *वंडरफुल रूहानी यादों से अनुभवों और खजानों की मालकिन बन मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा देहभान में आकर स्वयं को शरीर समझ कितनी गरीब रोगी मोहताज हो गयी थी... *आपने मुझे रोगों से मुक्तकर खुशनुमा जीवन की स्वामिन् बना दिया है... मै आत्मा सुख समृद्धि और स्वस्थता की पर्याय बनती जा रही हूँ...”*

 

  *मीठे बाबा स्वर्णिम सुखों के सौगातों से मुझ आत्मा को सम्पन्न बनाते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... एक जन्म ईश्वर पिता के हाथो में देते हो और 21 जनमो तक अथाह सुख बाँहों में भर लेते हो... *कितने वन्डरफुल रूहानी यात्री हो... ईश्वर पिता की यादों से सारे सुख अपने नाम लिखवाते हो... और सतयुगी धरती पर सुंदर तन मन धन से मुस्कराते हो...”*

 

_ ➳  *मीठी यादों के सुनहरे नाव में बैठकर मंजिल के समीप पहुँचते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा मात्र देह नही खुबसूरत मणि हूँ और सदा रूहानी यात्रा पर हूँ... यह खुबसूरत लक्ष्य जीवन का पाकर तो धन्य धन्य हो गयी हूँ...* मीठे बाबा आपकी मीठी यादो में मै आत्मा रूहानियत से भरकर कितनी प्यारी और मीठी हो गयी हूँ...

 

  *यादों की जादू भरी छड़ी से अमरत्व का वरदान देते हुए मेरे जादूगर बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता संग रूहानी बन यादों की यात्रा पर हो... *कितनी प्यारी और वन्डरफुल जादूगरी है कि यह यात्रा सतयुगी सुनहरे सुखो के द्वार पर पूरी होती है... यादो की यह यात्रा जन्नत में सुखो के फूलो भरा खुबसूरत जीवन दे जाती है...”*

 

_ ➳  *यादों के खानों से अविनाशी खजाने निकालकर अपने 21 जन्मों को सजाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा वन्डरफुल बाबा को पाकर वन्डरफुल रूहानी यात्री बन गई हूँ...* मीठे बाबा की गहरी यादों में हर पल खोयी खोयी सी... मै आत्मा सारे खजानो को अपनी झोली में समेट कर सबसे धनी हो मुस्करा रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  बाप समान शीतल बन ज्ञान छींटा डाल मनुष्य आत्माओं को भी शीतल बनाने की सेवा करनी है*"

 

_ ➳  परमधाम में अपने अनादि बिंदु स्वरूप में अपने बिंदु बाप के सानिध्य में बैठ ज्ञान की शीतल फ़ुहारों का मैं आनन्द ले रही हूँ। *ज्ञान सागर मेरे शिव पिता के ज्ञान की रिमझिम फुहारें बारिश की हल्की - हल्की बूंदों की तरह मेरे ऊपर बरस रही हैं और विकारों की अग्नि में तपते मेरे मन को शीतल कर रही हैं*।  एक अद्भुत मीठी मधुर शीतलता का एहसास मेरे रोम - रोम को प्रफुल्लित कर रहा हैं। ऐसा लग रहा है जैसे किसी विशाल सागर के किनारे मैं बैठी हूँ और *सागर में उठ रही लहरों की शीतलता से हवाओं में जो ठंडक पैदा हो रही हैं उन ठंडी हवाओं का शीतल स्पर्श मुझे होले - होले छू कर मेरे अन्तर्मन को गुदगुदा रहा है*। गहन शीतलता का यह अनुभव मुझे मेरे शिव पिता के समान शीतल बना रहा है।

 

_ ➳  शीतलता के सुखद अनुभव में खो कर, असीम आनन्द से भरपूर होकर, बाप समान शीतल बन कर अब मैं परमधाम से नीचे आकर सूक्ष्म लोक में प्रवेश कर रही हूँ। *लाइट का एक खूबसूरत संसार जहाँ चारों और सफेद प्रकाश ही प्रकाश तथा लाइट के शरीर वाले फरिश्ते अपनी श्वेत रश्मियों को फैलाते हुए यहाँ - वहाँ उड़ते हुए दिखाई दे रहें हैं*। साकार देह के हर बन्धन से मुक्त आकारी देहधारियों की इस दुनिया में मन को भारी करने वाली कोई वस्तु नही। लाइट की इस अलौकिक दुनिया में पहुँच कर अपनी लाइट की दिव्य आकारी देह को धारण कर, *हर तरफ से स्वयं को हल्का अनुभव करते हुए इस खूबसूरत दुनिया के खूबसूरत नज़ारो को देखने के लिए मैं फ़रिश्ता अब सारे सूक्ष्म लोक का भ्रमण कर रहा हूँ और अनेक मनभावन सुन्दर दृश्यों का भरपूर आनन्द ले रहा हूँ*।

 

_ ➳  पूरे सूक्ष्म लोक की सैर करके, वतन के सुंदर नज़ारो का आनन्द लेकर मैं फ़रिश्ता अब अपने प्यारे बापदादा के पास जा रहा हूँ जो फूलों से सजी एक सुंदर शैया पर बैठे मेरा आह्वान कर रहें हैं। *अव्यक्त ब्रह्मा बाबा के मुख मण्डल पर फैली मीठी मधुर मुस्कान और उनके मस्तक से निकल रहा शिव पिता की अनन्त किरणो का तेज प्रकाश मन को गहराई तक छू रहा है और अपने पास आने का जैसे निमन्त्रण दे रहा है*। धीरे - धीरे मैं फ़रिश्ता आगे बढ़ता हूँ और अपने प्यारे बापदादा के पास जा कर खड़ा हो जाता हूँ। बापदादा मुस्कराते हुए अपने आसन को छोड़ मेरे पास आते हैं और बड़े प्यार से मुझे अपनी बाहों में भर लेते हैं।

 

_ ➳  जैसे एक बालक अपनी माँ के गले लगकर उसके ममतामई स्नेह का अनुभव करके स्वयं को सौभाग्यशाली समझता है ऐसे बापदादा के गले लगकर, उनका असीम स्नेह पाकर अपने सर्वश्रेष्ठ सौभाग्य पर मुझे सहज ही गर्व हो रहा है। *मन ही मन अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य पर नाज करता हुआ मैं फ़रिश्ता उनकी बाहों के घेरे से निकल अब बड़े प्यार से उन्हें निहार रहा हूँ*। बापदादा मन्द - मन्द मुस्कराते हुए मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने पास बिठा लेते हैं। मैं एकटक बाबा को देख रहा हूँ। बाबा के नयनों से अथाह स्नेह की धारायें निकल रही हैं जो मेरे ऊपर बरस कर मुझे शक्तिशाली बना रही हैं और *बाबा के मस्तक से निकल रहा ज्ञान की शीतल किरणो का फव्वारा, ज्ञान की छींटे मेरे ऊपर डाल कर मुझे शीतल बना रहा है*।

 

_ ➳  अपना असीम स्नेह और ज्ञान की शीतल छींटों को मुझ पर बरसाते हुए अव्यक्त इशारे से बाबा अब मुझे बाप समान शीतल बन ज्ञान छींटा डाल विश्व की सभी आत्माओं को शीतल बनाने का फरमान दे रहें हैं। *बापदादा के फरमान का पालन करने के लिए बाप समान शीतल बन सूक्ष्म वतन से मैं नीचे आ जाता हूँ और विश्व ग्लोब पर आकर बैठ जाता हूँ*। बापदादा का आह्वान कर, उनके साथ कम्बाइंड हो कर, विकारों की अग्नि में जल रही विश्व की सर्व आत्माओं पर ज्ञान छींटे डाल उन्हें शीतलता का अनुभव करवाकर मैं फ़रिश्ता सारे विश्व का चक्कर लगाकर, सबके ऊपर ज्ञान बरसात करता हुआ अब नीचे साकार सृष्टि पर आ जाता हूँ।

 

_ ➳  *अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ अपने साकारी तन में प्रवेश कर, सूक्ष्म सेवा के साथ - साथ, अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर ,अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को मुख से ज्ञान देकर, योगयुक्त होकर, बाप समान शीतल बन उन पर ज्ञान के छींटे डाल उन्हें शीतल बनाने की सेवा करते हुए बाबा के फरमान को मैं पूरा कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं आत्मा, कराने वाला करा रहा है - इस स्मृति द्वारा निमित्त बन हर कर्म करने वाली बेपरवाह बादशाह हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपने शांति और सुख के वाइब्रेशन से हर एक को सुख चैन की अनुभूति कराने वाली सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  *अब तो आगे बढ़ने का बहुत सहज साधन मिला हुआ है सिर्फ एक शब्द की गिफ्ट है - वह कौन सी? ‘मेरा बाबा', यही एक शब्द ऐसी लिफ्ट है जो एक सेकण्ड में नीचे से ऊपर जा सकते हो। क्या यह लिफ्ट यूज़ करने नहीं आती? अब लिफ्ट का जमाना है फिर सीढ़ी क्यों चढ़ते हो?* लिफ्ट में कोई थकावट नहीं होती। सोचा और पहुँचा। तो कौन हो? एक ही शब्द लिफ्ट है - ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं, एक शब्द एक नम्बर में पहुँचा देगा। जब मेरा बाबा हुआ तो मैं उसमें समा गई।' इतनी सहज लिफ्ट यूज़ करो - यूज़ करने वाले पहुँच जाते और देखने वाले, सोचने वाले रह जाते। *तो अब एक शब्द के स्मृति स्वरूप होकर सदा समर्थ आत्मा बन जाओ।*

 

✺  *"ड्रिल :- ‘मेरा बाबा’ शब्द की लिफ्ट को यूज़ करना*”

 

_ ➳  *अमृतवेले मीठे, लाडले बच्चे’- ये मधुर साज सुनते ही मैं आत्मा उठकर बैठ जाती हूँ...* सामने प्राण प्यारे बाबा मुस्कुराते हुए खड़े हैं... मैं आत्मा झट से बाबा के गले लग जाती हूँ... मैं आत्मा मेरा बाबाकहते हुए बाबा की गोदी में बैठ जाती हूँ... बाबा की मखमली रुई जैसे गोदी में अतीन्द्रिय सुख का अनुभव हो रहा है... *बाबा के स्पर्श से मैं आत्मा इस शरीर को भूल रही हूँ... और बाबा की यादों में खोकर मैं आत्मा भी रुई जैसे हलकी हो रही हूँ...*

 

_ ➳  मैं आत्मा हलकी होकर प्यारे बाबा के साथ उडती हुई अपने घर पहुँच जाती हूँ... *बाबा से निकलती दिव्य तेजस्वी किरणों को स्वयं में ग्रहण कर रही हूँ...* मैं आत्मा अलौकिकता को धारण कर अलौकिक बन रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा बाबा के साथ-साथ रहती हूँ... *मैं आत्मा सदा अविनाशी बाबा के अविनाशी प्रेम में एकरस रहती हूँ...*

 

_ ➳  मैं आत्मा सदा बेहद के नशे में रहती हूँ... मुझ आत्मा का हद का नशा पूरी तरह से बाहर निकल रहा है... *मैं आत्मा स्मृति स्वरुप होकर समर्थ आत्मा बन रही हूँ...* मैं आत्मा सदा मेरा बाबाशब्द के जादू से उड़ता पंछी बन उडती रहती हूँ... किसी भी हद के बन्धनों में नहीं पड़ती हूँ... मैं आत्मा एक बाबा से सर्व सम्बन्ध निभाती हुई अविनाशी बन्धन में बंध गई हूँ...

 

_ ➳  *‘मेरा बाबा' शब्द बोलते ही मुझ आत्मा की मैं, मेरेपन की भावना मिट रही है... मैं आत्मा मेरा बाबाशब्द की जादुई चाबी लगाकर सर्व खजानों की अधिकारी बन रही हूँ...* संपत्तिवान बन रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा उमंग-उत्साह में रह उडती कला का अनुभव कर रही हूँ... अब मैं आत्मा बिना किसी थकावट या मेहनत के सफलता प्राप्त कर रही हूँ...

 

_ ➳  अब मैं आत्मा *मेरा बाबा' शब्द की सहज लिफ्ट को यूज़ कर एक सेकण्ड में नीचे से ऊपर पहुँच जाती हूँ...* मैं आत्मा मेरा बाबाशब्द की लिफ्ट से बिना किसी रुकावट के आगे बढ रही हूँ... *मैं आत्मा जब चाहे तब मेरा बाबा' शब्द की लिफ्ट में थर्ड फ्लोर से सेकंड फ्लोर सूक्ष्मवतन... और फर्स्ट फ्लोर मूलवतन पहुँच जाती हूँ...* मैं आत्मा इस लिफ्ट से स्व-दर्शन चक्र फिराकर सदा अपने आदि, अनादि स्वरुप की स्मृति में रहती हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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