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 17 / 10 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *ड्रामा के पट्टे पर अचल रहे ?*

 

➢➢ *"अभी हम वापस घर जाते हैं" - यह बुधी में रहा ?*

 

➢➢ *सहयोग की शुभ भावना द्वारा रूहानी वायुमंडल बनाया ?*

 

➢➢ *इच्छा मातरम् अविध्या की स्थिति द्वारा सर्व की इच्छाओं को पूरण करने वाले कामधेनु बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *हर ब्राहमण बाप-सामन चैतन्य चित्र बनो, लाइट और माइट हाउस की झाँकी बनो। संकल्प शक्ति का, साइलेन्स का भाषण तैयार करो और कर्मातीत स्टेज पर वरदानी मूर्त का पार्ट बजाओ तब सम्पूर्णता समीप आयेगी।* फिर सेकेण्ड से भी जल्दी जहाँ कर्तव्य कराना होगा वहाँ वायरलेस द्वारा डायरेक्शन दे सकेंगे। सेकंड में कर्मातीत स्टेज के आधार से संकल्प किया और जहॉ चाहें वहाँ वह संकल्प पहुंच जाए।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं निश्चयबुद्धि आत्मा हूँ"*

 

  सदा 'वाह-वाह' के गीत गाने वाले हो ना? *'हाय-हाय' के गीत समाप्त हो गये और 'वाह-वाह' के गीत सदा मन से गाते रहते। जो भी श्रेष्ठ कर्म करते तो मन से क्या निकलता? वाह मेरा श्रेष्ठ कर्म! या वाह श्रेष्ठ कर्म सिखलाने वाले! या वाह श्रेष्ठ समय, श्रेष्ठ कर्म कराने वाले!* तो सदा 'वाह-वाह!' के गीत गाने वाली आत्मायें हो ना?

 

  *कभी गलती से भी 'हाय' तो नहीं निकलता? हाय, यह क्या हो गया - नहीं। कोई दु:ख का नजारा देख करके भी 'हाय' शब्द नहीं निकलना चाहिए। कल 'हाय हाय' के गीत गाते थे और आज 'वाह-वाह' के गीत गाते हो। इतना अन्तर हो गया!*

 

  यह किसकी शक्ति है? बाप की या ड्रामा की? (बाप की) *बाप भी तो ड्रामा के कारण आया ना। तो ड्रामा भी शक्तिशाली हुआ। अगर ड्रामा में पार्ट नहीं होता तो बाप भी क्या करता। बाप भी शक्तिशाली है और ड्रामा भी शक्तिशाली है। तो दोनों के गीत गाते रहो - वाह ड्रामा वाह! जो स्वप्न में भी न था, वह साकार हो गया। घर बैठे सब मिल गया। घर बैठे इतना भाग्य मिल जाए - इसको कहते हैं डायमन्ड लाटरी।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *जितना ही कार्य बढ़ता जायेगा उतना ही हल्का-पन भी बढ़ता जायेगा।* कर्म अपनी तरफ आकर्षित नहीं करेगा लेकिन मालिक होकर कर्म कराने वाला करा रहा है और निमित करने वाले निमित्त बनकर कर रहे हैं। आत्मा के हल्के-पन की निशानी है - आत्मा की जो विशेष शक्तियाँ है मन, बुद्धि, संस्कार यह तीनों ही ऐसी हल्की होती जायेगी।

 

✧   *संकल्प भी बिल्कुल ही हल्की स्थिति का अनुभव करायेंगे।* बुद्धि की निर्णय शक्ति भी ऐसा निर्णय करेगी जैसे कि कुछ किया ही नहीं, *और कोई भी संस्कार अपनी तरफ आकर्षित नहीं करेगा।* जैसे बाप के संस्कार कार्य कर रहे हैं।

 

✧  यह मन-बुद्धिसंस्कार सूक्ष्म शक्तियाँ जो हैं, तीनों में लाइट (हल्का) अनुभव करेंगे। स्वतः ही सबके दिल से, मुख से यही निकलता रहेगा कि *जैसे बाप, वैसे बच्चे न्यारे और प्यारे हैं।* क्योंकि समय प्रमाण बाहर का वातावरण दिन-प्रतिदिन और ही भारी होता जायेगा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *चाहे सतयुग-त्रेता में श्रेष्ठ पद प्राप्त करना है, चाहे द्वापर, कलियुग में पूज्य पद पाना है लेकिन दोनों का जमा इस संगम पर करना है।* इस हिसाब से सोचो कि संगम समय के जीवन की, छोटे से जन्म के संकल्प, समय, श्वाँस कितने अमूल्य हैं? इसमें अलबेले नहीं बनना। *जैसा आया वैसे दिन बीत गया, दिन बीता नहीं लेकिन एक दिन में बहुत-बहुत गवाया। जब भी कोई फालतू संकल्प, फालतू समय जाता है तो ऐसे नहीं समझो - चलो ५ मिनट गया, बचाओ।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

*✺ "ड्रिल :- गृहस्थ व्यवहार में रहते सबसे तोड़ निभाना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा तालाब के किनारे बैठ खिले हुए कमल कुन्ज देख देख हर्षित हो रही हूँ... हौले-हौले मस्ती भरी हवाएं चल रही है... बरखा की मधुर फुहारें नए-नए साज गाकर सुना रही हैं...* सफ़ेदगुलाबी रंगत लिए ये कमल ऐसे लग रहे जैसे तालाब के पानी में राज करे रहे हों... एकदम साफ़ उजले उजले कमल एक बूंद कीचड या पानी भी अपने ऊपर ठहरने नहीं देते हैं... अपने मुस्कुराते मन कमल को बाबा को अर्पित करने मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ प्यारे वतन...

 

  प्यारे ज्ञान सूर्य बाबा अपने ज्ञान किरणों की बूंदों से मेरे मन कमल को भिगाते हुए कहते हैं:- "मेरे मीठे फूल बच्चे... *ईश्वरीय राहो पर चलकर फूलो जैसा मुस्कराता खुशनुमा जीवन पाओ... ऐसी खुबसूरत खुशियो से दामन सजाने वाले प्यारे बाबा पर दिल जान से बलिहार जाओ...* ईश्वर पिता पर रोम रोम से कुर्बान जाओ... एक बार बेहद का सन्यास कर 21 जन्म के मीठे सुखो की तकदीर को सहज ही पा लो...

 

 _ ➳  मैं आत्मा हद के संबंधों से तोड़ निभा एक बाबा से सर्व संबंधो का रस लेते हुए कहती हूँ:- "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपको पाकर अनन्त खुशियो को बाँहों में भर गई हूँ... प्यारे बाबा आपकी सारी दौलत सारे खजाने अपने नाम कर ली हूँ... *सच्चे दिल से बलि होकर कखपन देकर 21 जनमो की अमीरी पाने वाली महा भाग्यवान सज गयी हूँ..."*

 

  मीठे बाबा विषय विकारों के कीचड़ से मुझ आत्मा को बाहर निकाल कमल फूल समान पवित्र बनाते हुए कहते हैं:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता के साथ के यह मीठे पल खुबसूरत यादो से छ्लकाओ... और देवताई ताजो तख्त ईश्वर पिता से अपने नाम लिखवाओ... सच्चे प्रेम में बलि होईश्वर पिता पर अपना पूरा पूरा अधिकार जमाओ... *21 जनमो के सच्चे सुखो के खातिर यह एक जनम ईश्वर पिता को सौंप दो... गृहस्थ व्यवहार में रहते सबसे तोड़ निभाओ...”*

 

 _ ➳  मैं आत्मा संगम की इन सुहावनी घड़ियों को प्यारे बाबा के नाम करते हुए कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा सुख और शांति की खोज में किस कदर दर दर भटक रही थी... *प्यारे बाबा आपने तो सुखो का समन्दर ही मेरे नाम कर दिया है... आपको पाकर तो मैंने सारा जहान पा लिया है... यह कौड़ी तुल्य जीवन सौंप कर हीरों से दामन सजा लिया है..."*

 

  प्यारे बाबा मुझे रूहानियत से भरपूर कर पद्मापदम् भाग्यवान बनाते हुए कहते है:- "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता को दुखो में व्याकुल होकर जो पुकार रहे थे... *वह मीठा बाबा अखूट खजानो को हथेली पर सजा, उपहार सा लाया है... एक बार ऐसे पिता पर पूरा पूरा बलिहार जाओ... अधूरा नही, जितना ईश्वरीय दिल पर मर मिटोगे... उतनी सुखो की दौलत से मालामाल रहोगे..."*

 

 _ ➳ मैं आत्मा बाबा के इस अमूल्य ज्ञान की चाबी से 21 जन्मों के श्रेष्ठ भाग्य की प्रॉपर्टी अपने नाम करते हुए कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा देहधारियों पर मर मिटकर जो खाली और निष्प्राण हो गई थी... *आज मीठे बाबा आप मनमीत को पाकर, सच्चे दिल से अर्पण हो गई हूँ... गुणो और शक्तियो की दौलत पाकरअसीम धनदौलत को पा गई हूँ... 21 जनमो का शानदार भाग्य पाकर निहाल हो गयी हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बुद्धि में रहे कि अभी हम वापिस घर जाते है हम यात्रा पर है*

 

_ ➳  स्वयं भगवान पण्डा बन कर जिस रूहानी यात्रा पर हमें ले जा रहें हैं उस यात्रा पर बहुत सम्भल कर चलना होगा क्योंकि माया घड़ी - घड़ी उस रास्ते से हटाने की कोशिश करेगी। *इसलिए अपने पिता परमात्मा के श्रीमत रूपी हाथ को कसकर थामे, मुझे इस रूहानी यात्रा पर निरन्तर आगे बढ़ना है और उस मंजिल तक पहुंचना है जहाँ बाबा हमे ले जाना चाहते हैं। सम्पूर्णता की वो मंजिल जो ब्रह्मा बाबा ने शिव बाबा की श्रीमत पर सम्पूर्ण रीति चल कर हासिल की*। अपनी उसी सम्पूर्णता की मंजिल को अब मुझे हासिल करना है। मन ही मन एकांत में बैठ मैं अपने आप से बातें कर रही हूँ और यह चिंतन करते हुए मैं अपने आप से प्रतिज्ञा करती हूँ कि इस बात को अब मैं कभी नही भूलूँगी, हमेशा स्मृति में रखूँगी कि "मैं यात्रा पर हूँ" और इस यात्रा पर मुझे एक - एक कदम सम्भल - सम्भल कर चलना है।

 

_ ➳  इसी प्रतिज्ञा के साथ, मन बुद्धि की रूहानी यात्रा पर चलने के लिए मैं अब सभी बातों से अपने मन बुद्धि को समेट लेती हूँ और अपनी चेतना को मस्तक के सेन्टर में भृकुटि के मध्य भाग पर एकाग्र कर लेती हूँ। *एकाग्रता की यह शक्ति धीरे - धीरे संकल्पो की गति को धीमा कर मुझे बिल्कुल रिलैक्स कर देती हैं। मैं महसूस कर रही हूँ शरीर के किसी भी अंग में अब कोई हलचल नही है। मेरा सम्पूर्ण ध्यान अब केवल मेरे उस स्वरूप पर केंद्रित है जो एक सितारे के रूप में मुझे भृकुटि में चमकता हुआ स्पष्ट दिखाई दे रहा है*। मन बुद्धि के तीसरे नेत्र से मैं देख रही हूँ इस सितारे में से निकल रहे खूबसूरत प्रकाश की रंग बिरंगी किरणों को जो झिलमिल करती मन को असीम आनन्द प्रदान कर रही हैं।

 

_ ➳  एक गहन सुख, शांति और आनन्द से ये किरणे मुझे तृप्त कर रही हैं। इनसे निकल रहे सातो गुणों और अष्ट शक्तियों के वायब्रेशन्स औंस की बूंदों की तरह चारो और फैल रहें हैं। *हल्की - हल्की फुहारों की तरह इन्हें मैं अपने ऊपर गिरता हुआ महसूस कर रही हूँ और गहन शीतलता की अनुभूति कर रही हूँ। अपने इस आनन्दमयी, सुखदाई स्वरूप का अनुभव करते - करते मैं आत्मा मन बुद्धि के विमान पर बैठ इस रूहानी यात्रा पर और आगे बढ़ रही हूँ*। अब मैं जा रही हूँ भृकुटि के अकालतख्त को छोड़ ऊपर आकाश की ओर। सूर्य, चाँद, तारागणों को पार करके अपने परमधाम घर में मैं आत्मा प्रवेश करती हूँ। इस परमधाम घर में चारों ओर फैली गहन शान्ति के अनुभव में गहराई तक खोकर, इस अंतहीन निराकारी दुनिया मे विचरण करते - करते अपने महाज्योति शिव पिता के पास मैं पहुँच जाती हूँ।

 

_ ➳  देख रही हूँ अब मैं अपने प्यारे पिता के अति सुन्दर, मनभावन स्वरूप को। मुझ बिंदु आत्मा के समान मेरे पिता भी एक अति सूक्ष्म बिन्दु हैं किन्तु गुणों में सिंधु हैं। अपने ही समान अपने पिता के स्वरूप को देखकर मैं आत्मा आनन्दविभोर हो कर, उनसे मिलन मनाने के लिए अब उनके समीप जा रही हूँ। *उनके बिल्कुल समीप जा कर बड़े प्यार से उन्हें निहारते हुए, उनके प्यार की किरणों की शीतल छाया में बैठ, शीतल फ़ुहारों का आनन्द लेती हुए मैं स्वयं को उनकी सर्वशक्तियों से भरपूर कर रही हूँ* सर्वशक्तिवान मेरे शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणें मेरे अन्दर असीम ऊर्जा का संचार कर मुझे शक्तिशाली बना रही है। स्वयं को मैं बहुत ही बलशाली अनुभव कर रही हूँ।

 

_ ➳  शक्तियों का पुंज बन कर, अब मैं आत्मा अपने पिता द्वारा सिखाई रूहानी यात्रा पर निरन्तर आगे बढ़ने के लिए, परमधाम से नीचे वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अब मैं अपने प्यारे शिव पिता की याद में निरन्तर रहकर, स्वयं को बलशाली बनाकर, अपने रूहानी पिता द्वारा सिखाई रूहानी यात्रा पर सम्भल - सम्भल कर चलते हुए अपनी मंजिल पर पहुँचने का पूरा पुरुषार्थ कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मै सहयोग की शुभ भावना द्वारा रूहानी वायुमण्डल बनाने वाली मास्टर दाता आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं इच्छा मात्रम अविद्या की स्थिति द्वारा सर्व की इच्छाओं को पूर्ण कर कामधेनु बनने वाली आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  क्या सोचते हो ताली बजेगी तो बन जायेंगेऐसेक्या सोचते हो - ताली बजेगी उस समय बनेंगेक्या होगाबजायें ताली? बोलो तैयार होपेपर लेवें? *ऐसे थोड़ेही मान जायेंगे, पेपर लेंगे? टीचर्स बताओ- पेपर लें? सब छोड़ना पड़ेगा। मधुबन वालों को मधुबन छोड़ना पड़ेगा, ज्ञान सरोवर वालों को ज्ञान सरोवर, सेन्टर वालों को सेन्टर, विदेश वालों को विदेश, सब छोड़ना पड़ेगा। तो एवररेडी हैंअगर एवररेडी हो तो हाथ की ताली बजाओ* एवररेडी? पेपर लेंकल एनाउन्समेंट करेंवहाँ जाकर भी नहीं छोड़ना हैवहाँ जाकर थोड़ा ठीक करके आऊं, नहीं। *जहाँ हूँवहाँ हूँ। ऐसे एवररेडी। अपना दफतर भी नहींखटिया भी नहीं, कमरा भी नहीं, अलमारी भी नहीं। ऐसे नहीं कहना थोड़ा -सा काम है नादो दिन करके आयें। नहीं। आर्डर इज आर्डर।* सोचकर हाँ कहो। नहीं तो कल आर्डर निकलेगा, कहाँ जाना हैकहाँ नहीं जाना है। *निकालें आर्डरतैयार हैं? इतना हिम्मत से हाँ नहीं कह रहे हैं। सोच रहे हैं थोड़ा-सा एक दिन मिल जाये तो अच्छा है। मेरे बिना यह नहीं हो जाएयह नहीं हो जाए, यह वेस्ट संकल्प भी नहीं करना।*

 

 _ ➳  *ब्रह्मा बाप ट्रांसफर हुआ तो क्या सोचा कि मेरे बिना क्या होगाचलेगानहीं चलेगा। चलो एक डायरेक्शन तो दे दूं, डायरेक्शन दियाअपनी सम्पन्न स्थिति द्वारा डायरेक्शन दियामुख से नहीं।* ऐसे तैयार होआर्डर मिला और छोड़ो तो छूटा। हलचल करेंऐसा करना है - यह बता देते हैं। *आर्डर होगापूछकर नहींतारीख नहीं फिक्स करेंगे। अचानक आर्डर देंगे आ जाओबस। इसको कहा जाता है डबल लाइट फरिश्ता। आर्डर हुआ और चला।* जैसे मृत्यु का आर्डर होता है फिर क्या सोचते हैं, सेन्टर देखो, आलमारी देखो, जिज्ञासु देखो, एरिया देखो......!

 

 _ ➳  *आजकल तो मेरे-मेरे में एरिया का झमेला ज्यादा हो गया हैमेरी एरिया! विश्व-कल्याणकारी की क्या हद की एरिया होती है?* यह सब छोड़ना पड़ेगा। यह भी देह का अभिमान है। *देह का भान फिर भी हल्की चीज है, लेकिन देह का अभिमान यह बहुत सूक्ष्म है।* मेरा-मेरा इसको ही देह का अभिमान कहा जाता है। *जहाँ मेरा होगा ना वहाँ अभिमान जरूर होगा। चाहे अपनी विशेषता प्रति होमेरी विशेषता हैमेरा गुण हैमेरी सेवा हैयह सब मेरापन - यह प्रभू पसाद हैमेरा नहीं। प्रसाद को मेरा माननायह देह-अभिमान है।* यह अभिमान छोड़ना ही सम्पन्न बनना है। *इसीलिए जो वर्णन करते हो फरिश्ता अर्थात् न देह-अभिमानन देह-भान, न भिन्न-भिन्न मेरे-पन के रिश्ते होफरिश्ता अर्थात् यह हद का रिश्ता खत्म।*   

 

✺   *ड्रिल :-  "हद के भिन्न-भिन्न मेरे-पन से मुक्त होकर डबल लाइट फरिश्ता बनने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा इस पंच तत्व के शरीर से निकल कर... इस पंच तत्व की दुनिया से पार... उड़ कर पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन में... जहां बापदादा बाहें फैला कर... मेरा आह्वान कर रहे हैं...* आओ बच्चे मैं तुम्हारे ही इंतजार में बैठा हूँ... बाबा ने अपने पास बिठा लिया... और मुझे गुह्य - गुह्य बातें बता रहे हैं... *मुझ आत्मा को ज्ञान दे रहे हैं... बच्ची... देह और देह की दुनिया के भान से परे हो जाओ... नहीं तो अंत मति सो गति नहीं होगी... फिर पछताना पड़ेगा...* मैंने कहा जी बाबा मैं सब कुछ समझ गयी हूँ... बाबा के दिए इस ज्ञान से भरपूर हो मैं आत्मा... उड़ कर वापस पहुँच जाती हूँ... पंच तत्व की दुनिया में...

 

 _ ➳  *वाह मैं खुशनसीब आत्मा... स्वयं परमात्मा... भाग्य विधाता... मुझे मिल गया... इस संगम युग में मेरा भाग्‍य बना रहा है... वो भी 21 जन्मों के लिए...* मुझ आत्मा को अब कुछ नहीं चाहिये... ना ये पाँच तत्वों का बना शरीर... और ना पाँच तत्वों से बनी ये साकारी दुनिया... जो एक दिन खत्म होनी है... *मैं आत्मा इस साकारी देह के लगाव से मुक्त हो गयी हूँ... और इस देह के हर रिश्तों के लगाव से मुक्त हो गयी... अब मैं आत्मा एवररेडी हूँ... और हर पेपर को पार करने के लिए तैयार हूँ...*

 

 _ ➳  *बाबा अगर कल एनाउन्समेंट करें... की बच्ची सब कुछ छोड़ दो... तो मैं आत्मा एक पल में सब कुछ छोड़ दूंगी... और प्यारे बाबा के साथ चल पडूँगी... मैं सम्पूर्ण एवररेडी आत्मा हूँ... अब मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं है...* अपना दफ्तर... अपनी खटिया... अपना कमरा... अलमारी... इन सब से अब मैं डिटैच्ड हूँ... *ऐसे नहीं कहूँगी कि थोड़ा-सा काम... दो दिन करके आऊँगी... नहीं... आर्डर इज आर्डर... बाबा अभी आर्डर निकालें... मैं फरिश्ता सम्पूर्ण तैयार हूँ... इतनी हिम्मत से हाँ कह रही हूँ... मेरे बिना यह नहीं होगा... या हो जाएगा...  यह वेस्ट संकल्प भी मुझ आत्मा को अब नहीं होगा...*

 

 _ ➳  *जिस तरह ब्रह्मा बाप ट्रांसफर हुए... थोड़ा सा भी नहीं सोचा था कि हुआ मेरे बिना क्या होगा... चलेगा... नहीं चलेगा... चलो एक डायरेक्शन तो दे दूं... डायरेक्शन दिया लेकिन अपनी सम्पन्न स्थिति द्वारा डायरेक्शन दिया... मुख से नहीं...* ऐसे मैं आत्मा भी तैयार हूँ... आर्डर मिला और छोड़ो तो छोड़ दिया... मैं आत्मा रिन्चक मात्र भी हलचल में नहीं आऊँगी... *बाबा अचानक आर्डर दें आ जाओ... और मैं फरिश्ता पहुँच गयी... इसको ही डबल लाइट फरिश्ता कहा जाता... आर्डर हुआ और चला...*

 

 _ ➳  आजकल मेरे-मेरे एरिया का झमेला ज्यादा है... मेरी एरिया... मैं विश्व-कल्याणकारी आत्मा हूँ... *तो विश्व-कल्याणकारी की हद की एरिया नहीं होती... मुझ आत्मा ने यह सब छोड़ दिया... क्यूँकि यह भी देह का अभिमान... देह का भान हल्की चीज है... लेकिन देह का अभिमान यह बहुत सूक्ष्म है...* मेरा-मेरा इसको ही देह का अभिमान कहा जाता है... जहाँ मेरा होगा वहाँ अभिमान जरूर होगा... चाहे अपनी विशेषता प्रति हो... मेरी विशेषता है... मेरा गुण है... मेरी सेवा है... यह सब मेरापन मैं आत्मा छोड़ चुकी हूँ... और यह समझ गयी हूँ कि यह सब प्रभु पसाद है... मेरा नहीं... *प्रसाद को मेरा मानना... यह देह-अभिमान... यह अभिमान को छोड़ मैं आत्मा सम्पूर्ण और सर्व गुण सम्पन्न बन गयी हूँ...* इसीलिए बाबा ने जो वर्णन किया है फरिश्ता अर्थात् न देह-अभिमान... न देह-भान... न भिन्न-भिन्न मेरे-पन के रिश्ते हो... फरिश्ता अर्थात् यह हद का रिश्ता खत्म... *अब मैं आत्मा "हद के भिन्न-भिन्न मेरे-पन से मुक्त होकर डबल लाइट फरिश्ता बन गयी हूँ..."*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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