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❍ 11 / 04 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *किसी देहधारी से दिल तो नहीं रखी ?*
➢➢ *याद में रहने की अपने आप से प्रतिज्ञा की ?*
➢➢ *सर्व संबंधो से बाप को अपना बनाकर एकरस स्थिति का अनुभव किया ?*
➢➢ *प्रकृति को अपना दासी बनाया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *जैसे कोई भी साइन्स के साधन को यूज करेंगे तो पहले चेक करेंगे कि लाइट है या नहीं है। ऐसे जब योग का, शक्तियों का, गुणों का प्रयोग करते हो तो पहले ये चेक करो कि मूल आधार आत्मिक शक्ति, परमात्म शक्ति वा लाइट (हल्की) स्थिति है?* अगर स्थिति और स्वरूप डबल लाइट है तो प्रयोग की सफलता बहुत सहज कर सकते हो।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं विशेष आत्मा हूँ"*
〰✧ सभी सदा अपने को विशेष आत्मायें अनुभव करते हो? सारे विश्व में ऐसी विशेष आत्मायें कितनी होंगी? जो कोटों में कोई गायन है, वह कौन हैं? आप हो ना! तो सदा अपने को कोटों में कोई, कोई में भी कोई ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें समझते हो? कभी स्वप्न में भी ऐसा नहीं सोचा होगा कि इतनी श्रेष्ठ आत्मा बनेंगे लेकिन साकार रूप में अनुभव कर रहे हो। तो सदा अपना यह श्रेष्ठ भाग्य स्मृति में रहता है? *वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य। जो भगवान ने खुद आपका भाग्य बनाया है। डायरेक्ट भगवान ने भाग्य की लकीर खींची, ऐसा श्रेष्ठ भाग्य है। जब यह श्रेष्ठ भाग्य स्मृति में रहता है तो खुशी में बुद्धि रूपी पाँव इस पृथ्वी पर नहीं रहते।* ऐसे समझते हो ना।
〰✧ वैसे भी फरिश्तों के पाँव धरनी पर नहीं होते। सदा ऊपर। तो आपके बुद्धि रूपी पाँव कहाँ रहते हैं? नीचे धरनी पर नहीं। देह-अभिमान भी धरनी है। देह-अभिमान की धरनी से ऊपर रहने वाले। इसको ही कहा जाता है - 'फरिश्ता'। तो कितने टाइटिल हैं - भाग्यवान हैं, फरिश्ते हैं, सिकीलधे हैं - जो भी श्रेष्ठ टाइटिल हैं वह सब आपके हैं। तो इसी खुशी में नाचते रहो। *सिकीलधे धरती पर पाँव नहीं रखते, सदा झूले में रहते। क्योंकि नीचे धरनी पर रहने के अभ्यासी तो 63 जन्म रहे। उसका अनुभव करके देख लिया। धरनी में मिट्टी में रहने से मैले हो गये। और अभी सिकीलधे बने तो सदा धरनी से ऊपर रहना। मैले नहीं, सदा स्वच्छ।*
〰✧ *सच्ची दिल, साफ दिल वाले बच्चे सदा बाप के साथ रहते हैं। क्योंकि बाप भी सदा स्वच्छ है ना। तो बाप के साथ रहने वाले भी सदा स्वच्छ हैं।* बहुत अच्छा, मिलन मेले में पहुँच गये। लगन ने मिलन मनाने के लिए पहुँचा ही दिया। बापदादा बच्चों को देख खुश होते हैं क्योंकि बच्चे नहीं तो बाप भी अकेला क्या करेगा? भले पधारे अपने घर में। मौज मनाते हुए पहुँच गये।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ बाप कब निराशा होते है? परिस्थितयों से घबराते है? तो बच्चे फिर क्यों घबराते है? ज्यादा परिस्थितियों को सामना करने का साकार सबूत भी देखा। कभी उनका घबराहट का रूप देखा? सुनाया था ना कि *सदैव यह याद रखो कि स्नेह में सम्पूर्ण होना है*। कोई मुश्किल नहीं है। स्नेही को सुधा - बुध रहती है? जब अपने आप को मिटा ही दिया फिर यह मुश्किल क्यों? मिटा दिया ना।
〰✧ जो मिट जाते हैं वह जल जाते है। *जितना अपने को मिटाना उतना ही अव्यक्त रुप से मिलना*। मिटना कम तो मिलना भी कम। अगर मेले में भी कोई मिलन न मनाये तो मेला समाप्त हो जायेगा फिर कब मिलन होगा? स्नेह को समानता में बदली करना है। स्नेह को गुप्त और समानता को प्रत्यक्ष करो। सभी समाया हुआ है सिर्फ प्रत्यक्ष करना है। अपने कल्प पहले के समाये हुए संस्कारों को प्रत्यक्ष करना है।
〰✧ कल्प पहले की अपनी सफलता का स्वरूप याद आता है ना। *अभी सिर्फ समाये हुए को प्रैक्टिकल प्रत्यक्ष रूप में लाओ*। सदैव अपनी सम्पूर्णता का स्वरूप और भविष्य 21 जन्मों का रूप सामने रखना है। कई लोग अपने घर को सजाने के लिए अपने बचपन से लेकर, अपने भिन्न - भिन्न रूपों का यादगार रखते है। तो आप अपने मन मन्दिर में अपने सम्पूर्ण स्वरुप की मूर्ती, भविष्य के अनेक जन्मों की मूर्तियाँ स्पष्ट रूप में सामने रखो। फिर कोई तरफ संकल्प नहीं जायेगा।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ निरन्तर देह का भान भूल जाए- उसके लिए हरेक यथाशक्ति नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार मेहनत कर रहे हैं। पढ़ाई का लक्ष्य ही है देह-अभिमान से न्यारे हो देही-अभिमानी बनना। *देह-अभिमान से छूटने के लिए मुख्य युक्ति यह है सदा अपने स्वमान में रहो तो देह-अभिमान मिटता जायेगा। स्वमान में स्व का भान भी रहता है अर्थात् आत्मा का भान। स्वमान - मैं कौन हूँ।* अपने इस संगमयुग के और भविष्य के भी अनेक प्रकार के स्वमान जो समय प्रति समय अनुभव कराए गये हैं, उनमें से अगर कोई भी स्वमान में स्तिथ रहते रहे तो देह - अभिमान मिटता रहे।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- हिसाब-किताब चुक्तु कर योगबल से विकर्माजीत बनना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा स्वीट बाबा की यादों में मगन होकर उड़ चलती हूँ स्वीट होम... और बाबा के सामने बैठ जाती हूँ... स्वीट बाबा से स्वीट रंगीन चमकती हुई किरणें निकलकर मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं...* मुझ आत्मा के जन्म-जन्मान्तर के विकर्म भस्म हो रहे हैं... मैं आत्मा स्वीट बाबा के साथ स्वीट होम से नीचे उतरकर फ़रिश्ता स्वरुप धारण कर अव्यक्त वतन में पहुँच जाती हूँ... मीठे बाबा मीठी दृष्टि देते हुए मीठी शिक्षाएं देते हैं...
❉ *योग अग्नि से पापो को भस्म कर सम्पूर्ण सतोप्रधान बनने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... खूबसूरत महकते फूल आत्मा से... देहभान में लिप्त साधारण मनुष्य बनकर... विकारो में फंस पड़े हो... *अब स्वयं के सत्य स्वरूप को ईश्वरीय यादो में उजला करो... योग अग्नि में... सारे पापो को भस्म कर वही दमकता चमकता स्वरूप पुनः पा लो...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा योग अग्नि से सारे हिसाब-किताब चुक्तु करते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा आपको पाकर निहाल हो गई हूँ... और पिता की मीठी यादो में देहभान के सारे पापो से मुक्त होती जा रही हूँ...* अपने दमकते स्वरूप को पाती जा रही हूँ... और बाबा का हाथ थामे खुशियो में उड़ती जा रही हूँ...”
❉ *मीठे बाबा सतयुगी स्वर्णिम सुखों से मुझ आत्मा को मालामाल करते हुए कहते हैं:-* “मीठे प्यारे फूल बच्चे... अब भगवान को पाकर जीवन को सच्चा बनाओ... *अब और नए हिसाब किताब बनाकर स्वयं को मत उलझाओ... पुराने सारे पापो को ईश्वरीय यादो में जलाओ...* और हल्के खुशनुमा होकर अथाह खुशियो में डूब जाओ... सुंदर देवता बन मुस्कराओ...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा पवित्रता के सफ़ेद किरणों से विकारों की कालिमा को भस्म करते हुए कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा मीठे बाबा को पाकर सारे विकारो से मुक्त हो गई हूँ... बाबा ने मुझे दमकता सा सुनहरा रंग दे दिया है... *मै आत्मा गुणो और शक्तियो से भरपूर होती जा रही हूँ... और अपने पापो के सारे बोझों को यादो में स्वाहा कर रही हूँ...”*
❉ *सुखों के आसमान तले मेरे भाग्य के सितारे को पारसमणि समान चमकाते हुए पारसनाथ बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जब घर से निकले थे तो सतोप्रधान स्थिति से भरपूर थे... अथाह सुखो के मालिक थे... फिर नीचे उतरते विकारो में गिरकर पापो से भर गए... *अब मीठा बाबा अपनी गोद में बिठा सारे पापो को मिटाकर... स्वर्ग की खूबसूरत सौगात हथेली पर रख ले आया है... और वही सच्चा सोना बनाने आया है...”*
➳ _ ➳ *बिंदु बाबा के यादों के सहारे पुराने सारे हिसाब-किताब को बिंदु लगाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता की यादो में सतोप्रधान होती जा रही हूँ... फिर से सजकर देवताई स्वरूप पा रही हूँ... *पापो की दुनिया से सारे हिसाबो को खत्म कर... नई सुख़ शांति आनन्द की दुनिया का राज्य भाग्य पा रही हूँ...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- किसी भी देहधारी से दिल नही लगानी है*"
➳ _ ➳ अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ मैं फरिश्ता अपनी साकार देह से बाहर आता हूँ ओर ऊपर आकाश की ओर उड़ जाता हूँ। *साकारी दुनिया के हर नज़ारे को साक्षी होकर देखता हुआ मैं सारे विश्व का चक्कर लगाते हुए एक श्मशान के ऊपर से गुजरता हुआ, वहां जल रही चिताओं को देख नीचे उतरता हूँ और श्मशान के अंदर प्रवेश कर जाता हूँ*। मैं देखता हूँ एक अर्थी को उठाये कुछ मनुष्य उस श्मशान भूमि में प्रवेश करते हैं और उसे जमीन पर रख उस पर लकड़ियों का ढ़ेर लगाकर उसे अग्नि देकर उसका दाह संस्कार कर वापिस लौट जाते हैं। वहाँ खड़ा ऐसे ही ना जाने कितने मृत शरीरों को मैं अग्नि में जलते देख रहा हूँ।
➳ _ ➳ इस दृश्य को देख मैं उस श्मशान भूमि से बाहर आता हूँ और मन ही मन विचार करता हूँ कि जिन देह के सम्बन्धियों से प्रीत निभाने के लिए मनुष्य अपने पूरा जीवन लगा देता है, उनके मोह में फंस कर कितने विकर्म करता है उसके वही सम्बन्धी उसके मरते ही उससे हर सम्बन्ध तोड़, उसे अग्नि देकर कैसे वापिस लौट जाते हैं। *इस श्मशान से आगे की यात्रा तो आत्मा को अकेले ही तय करनी होती है। केवल श्मशान तक साथ देने वाले इन देह के सम्बन्धियों से दिल लगाकर हर मनुष्य कैसे अपने आप को ठग रहा है*! इस बात से भी बेचारे मनुष्य कितने अनजान है कि इस नश्वर संसार में अगर कोई प्रीत की रीत निभा सकता है तो वो केवल एक निराकार परमात्मा है, कोई देहधारी नही।
➳ _ ➳ मन ही मन अपने आप से बातें करता मैं फ़रिश्ता अपने श्रेष्ठ भाग्य के बारे में विचार कर हर्षित होता हूँ कि कितना महान सौभाग्य है मेरा जो सर्व सम्बन्धों से भगवान ने मुझे अपना बना लिया। *इसलिए दिल को आराम देने वाले अपने दिलाराम बाबा से मैं मन ही मन प्रोमिस करता हूँ कि किसी भी देहधारी से दिल ना लगाते हुए, केवल अपने दिलाराम बाबा से ही मैं दिल की प्रीत रखूँगा और उस प्रीत की रीत निभाने में कभी कोई कमी नही आने दूँगा*। स्वयं से और अपने प्यारे मीठे बाबा से प्रोमिस करके दिल को सुकून देने वाले अपने दिलाराम बाबा को मैं याद करते ही महसूस करता हूँ जैसे मेरे दिलाराम बाबा अपने स्नेह की मीठी फुहारे मुझ पर बरसाते हुए, अपने लाइट माइट स्वरूप में मेरे सामने आकर उपस्थित हो गए हैं।
➳ _ ➳ अपने हाथ मे मेरा हाथ थामे मेरे मीठे बाबा अब मुझे अपने अव्यक्त वतन की ओर ले कर जा रहें हैं। बापदादा के साथ, प्रकृति के खूबसूरत नजारों का आनन्द लेता हुआ उनका हाथ थामे मैं ऊपर आकाश को पार करता हुआ, उससे भी ऊपर उड़ते हुए बापदादा के साथ सूक्ष्म वतन में पहुँचता हूँ। *अपने प्यारे बापदादा के पास बैठ, उनके नयनों में समाये अथाह प्यार के सागर में डुबकी लगाकर, उनका असीम प्यार पाकर, और उनसे सर्व सम्बन्धो का अविनाशी सुख लेकर अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होकर मैं चमकती हुई मस्तक मणि अब अपने अति सूक्ष्म ज्योति बिंदु स्वरूप को धारण कर, अब सूक्ष्म वतन से ऊपर अपने परमधाम घर की ओर चल पड़ती हूँ*।
➳ _ ➳ अपने इस परमधाम घर में पहुँच कर, यहाँ चारों और फैले अथाह शान्ति के वायब्रेशन्स को अपने अंदर गहराई तक समाती हुई, गहन शांति की अनुभूति करके *मैं धीरे - धीरे अपने दिलाराम बाबा के पास पहुँचती हूँ और उनके समीप पहुँच कर जैसे ही मैं उन्हें टच करती हूँ उनकी शक्तियों का शीतल झरना मुझ आत्मा के ऊपर बरसने लगता है औऱ मुझे असीम आनन्द देने के साथ - साथ असीम शक्ति से भरपूर कर देता है*। अपने दिलाराम बाबा की किरणों को बार - बार छूते हुए, उनके प्यार का सुखद अनुभव करके मैं आत्मा वापिस सृष्टि ड्रामा पर अपना पार्ट बजाने के लिए अब परमधाम से नीचे आ जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अपने दिलाराम बाबा के निस्वार्थ प्यार की छाप को अपने दिल दर्पण पर अंकित कर, उस प्यार के मधुर अहसास को घड़ी - घड़ी याद कर, अब मैं अपने दिलाराम बाबा के प्यार के झूले में हर पल झूल रही हूँ। *देह और देह की दुनिया मे रहते हुए, देह के सम्बन्धों से ममत्व निकाल, अब किसी भी देहधारी से दिल ना लगाते हुए, सर्व सम्बन्धों का सुख अपने दिलाराम बाबा से लेते हुए,अतीन्द्रीय सुख का सुखद अनुभव मैं हर समय कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं सर्व सम्बन्धो से बाप को अपना बनाकर एकरस रहने वाली नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं प्रकृति को दासी बनाकर उदासी को दूर भगाने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ब्रह्मा बाप का त्याग ड्रामा में विशेष नूंधा हुआ है। आदि से ब्रह्मा बाप का त्याग और आप बच्चों का भाग्य नूंधा हुआ है। *सबसे नम्बरवन त्याग का एक्ज़ाम्पल ब्रह्मा बाप बना। त्याग उसको कहा जाता है - जो सब कुछ प्राप्त होते हुए त्याग करे। समय अनुसार, समस्याओं के अनुसार त्याग - श्रेष्ठ त्याग नहीं है। शुरू से ही देखो तन, मन, धन, सम्बन्ध, सर्व प्राप्ति होते हुए त्याग किया। शरीर का भी त्याग किया, सब साधन होते हुए स्वयं पुराने में ही रहे।* साधनों का आरम्भ हो गया था। होते हुए भी साधना में अटल रहे। *यह ब्रह्मा की तपस्या आप सब बच्चों का भाग्य बनाकर गई।* ड्रामानुसार ऐसे त्याग का एक्ज़ाम्पल रूप में ब्रह्मा ही बना और इसी त्याग ने संकल्प शक्ति की सेवा का विशेष पार्ट बनाया। जो नये-नये बच्चे संकल्प शक्ति से फास्ट वृद्धि को प्राप्त कर रहे हैं। तो सुना ब्रह्मा के त्याग की कहानी।
✺ *"ड्रिल :- सब कुछ प्राप्त होते हुए भी त्याग का पार्ट बजाना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा व्यक्त भाव और व्यक्त दुनिया से न्यारी होती हुई... अव्यक्त वतन में अव्यक्त बापदादा से मिलन मनाने पहुँच जाती हूँ...* मैं फरिश्ता बापदादा के सम्मुख बैठ उनको निहार रही हूँ... बापदादा के मस्तक से दिव्य अलौकिक किरणें निकलकर मुझ फरिश्ते पर पड़ रही हैं... *मैं फरिश्ता अलौकिकता का अनुभव कर रही हूँ...*
➳ _ ➳ मैं फ़रिश्ता बाप समान बन रही हूँ... *मैं फरिश्ता ब्रहमा बाप समान परमात्म प्यार में लवलीन हो रही हूँ... ब्रह्मा बाप समान त्यागी बन रही हूँ...* मैं आत्मा तन, मन, धन से एक बाबा को समर्पित हो रही हूँ... हर कर्म बाबा की याद में कर रही हूँ... सबकुछ बाबा को सौंपकर हलकी होकर उड़ रही हूँ...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा का विनाशी धन, वैभव और साधनों की आसक्ति खतम हो रही है... विनाशी संबंधो का मोह मिट रहा है... ये सब नश्वर हैं... मैं आत्मा भी ब्रह्मा बाप समान... *एक बाबा में ही सर्व संबंधो का सुख अनुभव कर रही हूँ... एक की लगन में मगन हो रही हूँ...*
➳ _ ➳ मुझ आत्मा का मन विनाशी साधनों से हटकर साधना में लीन हो रहा है... *मैं आत्मा ब्रह्मा बाप के आदर्शों पर चल रही हूँ... ब्रह्मा बाप समान सादगी का जीवन अपना रही हूँ...* फालो फादर कर कदम से कदम मिलाकर चल रही हूँ... *हर कदम में पद्मों की कमाई कर रही हूँ...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अब समझ गई हूँ... कि *अल्पकाल के साधनों से सिर्फ अल्पकाल का ही सुख मिलता है...* और अविनाशी बाबा की याद से ही अविनाशी खजानों... अविनाशी सुख की प्राप्ति होती है... *अब मैं आत्मा ब्रह्मा बाप के त्याग के एक्ज़ाम्पल को सामने रख... त्याग की भावना से... श्रेष्ठ कर्म करते हुए... श्रेष्ठ भाग्य बना रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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