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❍ 26 / 12 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *किसी भी परिस्थिति में रोये तो नहीं ?*
➢➢ *सपूत बन बाप का नाम बाला किया ?*
➢➢ *शीतला देवी बन सर्व कर्मेन्द्रियों को शीतल शांत बनाया ?*
➢➢ *आज्ञाकारी बन बापदादा की स्वतः आशीर्वाद प्राप्त की ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *जैसे सेकण्ड में लाइट का स्विच आन करने से अंधकार भाग जाता है, ऐसे स्वमान की स्मृति का स्विच आन करो तो भिन्न-भिन्न देह-अभिमान समाप्त करने की मेहनत नहीं करनी पड़ती।* सहज आत्म अभिमानी स्थिति बन जायेगी। यही स्थिति रूहानी प्यार का अनुभव करायेगी।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं निश्चयबुद्धि विजयन्ति आत्मा हूँ"*
〰✧ निश्चयबुद्धि विजयन्ती हो ना! निश्चय में कभी डगमग तो नहीं होते हो? अचल, अडोल, महावीर हो ना? महावीर की विशेषता क्या है? *सदा अचल अडोल, संकल्प वा स्वपन में भी व्यर्थ संकल्प न आए इसको कहा जाता है अचल, अडोल महावीर। तो ऐसे हो ना? जो कुछ होता है-उसमें कल्याण भरा हुआ है।* जिसको अभी नहीं जानते लेकिन आगे चल करके जानते जायेंगे।
〰✧ कोई भी बात एक काल की दृष्टि से नहीं देखो, त्रिकालदर्शी हो करके देखो। अब यह क्यों? अब यह क्या? *ऐसे नहीं, त्रिकालदर्शी होकर देखने से सदा यही संकल्प रहेगा कि जो हो रहा है उसमें कल्याण है।* ऐसे ही त्रिकालदर्शी होकर चलते हो ना? सेवा के आधारमूर्त जितने मजबूत होंगे उतनी सेवा की बिल्डिंग भी मजबूत होगी।
〰✧ *जो बाबा बोले वह करते चलो, फिर बाबा जाने बाबा का काम जाने। जैसे बाबा वैसे चलो तो उसमें कल्याण भरा हुआ है।* बाबा कहे ऐसे चलो, ऐसे रहो-जी हाज़िर, ऐसे क्यों? नहीं। जी हाजिर। समझा-जी हजूर वा जी हाजिर। तो सदा उड़ती कला में जाते रहेंगे। रूकेगे नहीं, उड़ते रहेंगे क्योंकि हल्के हो जायेंगे ना।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ एक सेकण्ड में न्यारे होने का अभ्यास होगा, तो कोई भी बात हुई एक सेकण्ड में अपने अभ्यास से इन बातों से दूर हो जायेंगे। सोचा और हुआ। युद्ध नहीं करनी पडे। ,*युद्ध के संस्कार, मेहनत के संस्कार सूर्यवंशी बनने नहीं देंगे।*
〰✧ लास्ट घडी भी युद्ध में ही जायेगी, अगर विदेही बनने का सेकण्ड में अभ्यास नहीं है तो। और जिस बात में कमजोर होंगे, चाहे स्वभाव में, चाहे सम्बन्ध में आने में, चाहे संकल्प शक्ति में, वृति में, वायुमण्डल के प्रभाव में, *जिस बात में कमजोर होंगे, उसी रूप में जान-बूझकर भी माया लास्ट पेपर लेगी।*
〰✧ इसलिए विदेही बनने का अभ्यास बहुत जरूरी है। कोई भी रूप की माया आये, समझ तो है ही। *एक सेकण्ड में विदेही बन जायेंगे तो माया का प्रभाव नहीं पडेगा।* जैसे कोई मरा हुआ व्यक्ति हो, उसके ऊपर कोई प्रभाव नहीं पडता ना।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *फ़रिश्ते अर्थात् बापदादा समान और सम्पन्न।* आज हरेक बच्चे का डबल स्वरूप देख रहे हैं। कौन-सा डबल रूप? एक वर्तमान पुरुषार्थी स्वरूप, दूसरा वर्तमान जन्म का अन्तिम सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप। *इस समय ‘हम सो, सो हम' के मन्त्र में पहले हम सो फ़रिश्ता हैं फिर भविष्य में हम सो देवता हैं।* इस समय सभी का लक्ष्य पहले फ़रिश्ता स्वरूप, फिर देवता रूप है। आज वतन में, सभी बच्चों के नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार, जो अन्तिम फ़रिश्ता स्वरूप बनना है, उस रूप को इमर्ज किया। जैसे साकार ब्रह्मा और सम्पूर्ण ब्रह्मा दोनों के अन्तर को देखते और अनुभव करते थे कि पुरुषार्थी और सम्पूर्ण में क्या अन्तर है। ऐसे आज बच्चों के अन्तर को देख रहे थे। दृश्य बहुत अच्छा था। *नीचे तपस्वी पुरुषार्थी रूप और ऊपर खड़ा हुआ फ़रिश्ता रूप।* अपना-अपना रूप इमर्ज कर सकते हो? अपना सम्पूर्ण रूप दिखाई देता है? सम्पूर्ण ब्रह्मा और सम्पूर्ण ब्राह्मण।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- कल्याणकारी बाप सबका कल्याण करते हैं"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा स्वयं को मधुबन में डाइमंड हाल में बैठा हुआ अनुभव कर रही हूं, और बाबा मिलन की मीठी मीठी यादों में खोई मन बुद्धि से पहुँच जाती हूँ शिव बाबा के पास परमधाम, यहाँ चारों तरफ फैला हुआ अलौकिक प्रकाश मुझे दिव्यता और परमानंद की अनुभूति करा रहा है... निराकारी दुनिया में मैं आत्मा स्वयं को बिंदु रूप में चमकता हुआ देख रही हूं... बाबा से शक्तिओं का झरना मुझ आत्मा में निरंतर बहता जा रहा और इस ज्ञान स्नान से मुझ आत्मा में पड़ी हुई खाद भस्म होती जा रही है... मैं आत्मा स्वयं को अत्यंत पवित्र और हल्का अनुभव कर रही हूँ...* शक्तिओं से भरपूर हो अब मैं आत्मा नीचे उतर रही हूं और पहुंच जाती हूँ निज वतन... सफेद प्रकाश से ढका हुआ सूक्ष्म वतन यहाँ चारों तरफ शांति ही शांति और बापदादा मेरे सामने फ़रिश्ता स्वरूप में बाहें फैलाये खड़े हैं... *नन्हा फ़रिश्ता बन मैं आत्मा दौड़ कर बाबा की गोद में सिमट जाती हूँ...*
❉ *बाबा मुझे गोद में लेकर मेरे गालों को प्यार से सहलाते हुए मुझ आत्मा से बोले:-* "मेरे नन्हे फूल बच्चे... *संगमयुग मौजों का युग है, बाप आये हैं अपने ब्राह्मण बच्चों का कल्याण करने* इसलिए तो मुझे तुम बच्चे शिव बाबा कहते हो... *शिव का अर्थ ही है कल्याणकारी,* इसलिए सदा फखुर में रहो की विश्व के रचियता बाप ने तुम बच्चों को अपनी गोद दी है... *सारी दुनिया जिस भगवान को ढूंढ रही है तुम बच्चे उस भगवान की पालना में पल रहे हो...*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा आत्मविभोर होकर बाबा की मधुर वाणी को सुनते हुए बाबा से बोली:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... आपने मुझ आत्मा के जीवन में आकर मुझे अपना बनाया है, वाह मेरा भाग्य... *आपकी गोद मिली मानों त्रिलोकी का राज्य मिल गया हो... मेरा जीवन इतना सुंदर पहले कभी न था* आपने आकर इसे दिव्य और अलौकिक बना दिया है... *ज्ञान सागर में स्नान कर अलौकिकता और दिव्यता का प्रकाश मुझ आत्मा से निकल निरंतर विश्व में प्रवाहित हो रहा है...* ज्ञान और वरदानों से श्रृंगार कर मेरे स्वरूप को और निखार दिया है..."
❉ *अपनी बाहों के झूले में झुलाते हुए बाबा मुस्कुरा कर मुझ आत्मा से बोले:-* "सिकीलधे बच्चे... जो भी इन आँखों से दिखाई देता है वो सब खाक होना है , *इस पुरानी दुनिया से ममत्व मिटाकर बस एक बाप की याद में रहो* की अब वापस घर जाना है... बाप आए हैं तुम्हें विश्व की राजाई देने... माया ने तुम्हें कंगाल बना दिया है बाप फिर से तुम्हें सतयुगी वैभव देकर मालामाल करने आये हैं... *बाप एक ही बार आते हैं, संगम पर इस कल्याणकारी युग का लाभ उठाओ और पुरुषार्थ कर बाप से पूरा वर्सा लो...*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की श्रीमत को धारण करते हुए बाबा से कहती हूँ:-* "हाँ मेरे जादूगर बाबा... *आपकी मीठी मीठी बातों ने ऐसा जादू किया है* जो मैं आत्मा जिधर भी देखती हूं बस बाबा ही बाबा दिखाई देते हैं... *जीवन सुखों से भरपूर हो गया है...* इस ब्राह्मण जीवन को धारण कर मैं आत्मा आनंदित हो गई हूं... *जिस परमात्मा को संसार का हर प्राणी पाने के लिए दर दर भटक रहा है वो परम पिता परमात्मा मुझ आत्मा को मिला है,* ये स्मृति आते ही मुझ आत्मा की खुशी का ठिकाना नही रहता... बाबा आपने मुझे कौड़ी से हीरा बना दिया है... वाह मेरा भाग्य..."
❉ *मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर बाबा मुझे समझानी देते हुए बोले:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... बाप को बहुत तरस पड़ता है जब बच्चे माया से हार खाते हैं... *बाप की श्रीमत पर हर कार्य करो तो माया कभी हरा नही सकती...* तुम्हें एक बाप की याद में रहकर स्वमान की सीट पर सेट रहना है... *बाप परम कल्याणकारी हैं और तुम बच्चे मास्टर कल्याणकारी बन बाप के सहयोगी बनते हो...* बाप को खुशी होती है कि बच्चे बाप में सहयोगी बने हैं... बाप और बच्चे मिलकर विश्व को स्वर्ग बना रहे हैं... ये संगमयुग ब्राह्मणों के लिए कमाई करने का युग है जिसकी प्रालब्ध तुम बच्चे सतयुग में भोगेंगे... संगमयुग ब्राह्मणों के लिए कल्याणकारी है इसलिए सदा फखुर में रहो और निरंतर बाप को याद करो... बाप की श्रीमत को धारण कर औरों को भी कराने की सेवा करो... *ब्राह्मणों को चोटी कहा जाता है दूसरों का कल्याण करना ब्राह्मणों का परम कर्तव्य है , तुम बच्चे भी बाप समान कल्याणकारी बनों...*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा के महावाक्यों को स्वयं में धारण करते हुए बाबा से बोली:-* "हाँ मेरे प्राणों से प्यारे बाबा... आपकी श्रीमत मेरे ब्राह्मण जीवन का आधार है, *आपकी श्रीमत मिली अहो भाग्य...* मैं आत्मा कितने जन्मों से भटक रही थी आपने मुझे अपना बनाकर मेरा जीवन पवित्रता और परमात्म प्रेम से भर दिया है... *आपको पाकर मैं आत्मा धन्य धन्य हो गयी हूँ...* मैं आपका कितना भी शुक्रिया करूँ कम ही लगता है... मेरे जीवन को सवार कर कौड़ी से हीरे तुल्य बनाने वाले *बाबा का दिल की गहराई से शुक्रिया कर मैं आत्मा लौट आती हूँ अपने साकारी तन में...*"
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- किसी भी परिस्थिति में रोना व देह अभिमान में नही आना है*
➳ _ ➳ भगवान द्वारा रचे इस रुद्र ज्ञान यज्ञ को संभालने के निमित बनी, यज्ञ स्नेही *अपनी प्यारी दीदी, दादियों की अचल, अडोल स्थिति के बारे में सोचते ही मैं मन बुद्धि से पहुँच जाती हूँ मधुबन की उस परम पवित्र भूमि पर जहाँ का कण - कण उन महान आत्माओं के श्रेष्ठ कर्मो की खुशबू से आज भी महक रहा है*। उनके श्रेष्ठ कर्मो के यादगार के रूप में बने स्मृति स्थल आज भी जैसे उनकी साकार पालना का आभास कराते हैं औऱ उनके जैसा बनने की प्रेरणा देते हैं।
➳ _ ➳ मन बुद्धि के विमान पर बैठ, दीदी, दादियों के मधुबन में बने सभी यादगार स्थलों की सैर करते हुए मैं *मन ही मन स्वयं से उनके जैसा बनने और किसी भी परिस्थिति में क्यों, क्या के संकल्प से आंसू ना गिराने की, उनके जैसी अचल, अडोल, एकरस स्थिति बनाने की स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ और अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अपने आप से की प्रतिज्ञा को दृढ़ता के साथ पूरा करने के लिए अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ*। प्यारे बापदादा का वरदानी हाथ और यज्ञ स्नेही अपनी प्यारी दीदी, दादियों का दुआयों भरा हाथ अपने सिर के ऊपर अनुभव करते हुए, एक अद्भुत शक्ति का संचार अपने अंदर होते हुए मैं महसूस करती हूँ और इस शक्ति के बल से सेकेण्ड में अपने निराकार लाइट स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने प्वाइंट ऑफ लाइट स्वरूप में स्थित होकर, स्वयं को देह से एकदम न्यारा अनुभव करते हुए, इस देह और देह से जुड़ी *हर चीज को साक्षी होकर देखते हुए, अब मै इन सबसे किनारा कर ऊपर आकाश की ओर उड़ जाती हूँ और एक खूबसूरत रूहानी यात्रा पर चलते हुए, आकाश को पार कर, उससे ऊपर सूक्ष्म वतन को भी पार कर, मैं पहुँच जाती हूँ आत्माओं की उस निराकारी दुनिया में जो मेरे पिता का निवास स्थान है*। शांति की यह दुनिया जहाँ शांति के अथाह वायब्रेशन्स चारों और फैले हुए है, इन वायब्रेशन्स को अपने अंदर समाकर गहन शान्ति की अनुभूति करते हुए, अपने इस शांतिधाम घर की सैर करते - करते मैं शांति के सागर अपने शिव पिता के पास पहुँचती हूँ।
➳ _ ➳ अपने जिस परम पिता परमात्मा से मैं पूरा कल्प बिछड़ी रही उन्हें अपने सामने पाकर मैं महसूस कर रही हूँ जैसे कि जिस मंजिल की तलाश में मैं भटक रही थी वो मंजिल मुझे कितनी सहज रीति मिल गई है। *अपने बिल्कुल सामने, शांति, सुख, प्रेम, आनन्द, शक्ति, ज्ञान और पवित्रता के सागर अपने शिव पिता को अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाये, अपना आह्वान करते हुए मैं देख रही हूँ*। धीरे - धीरे आगे बढ़ कर उनकी किरणो रूपी बाहों में मैं जाकर समा जाती हूँ। अपनी सर्वशक्तियों की किरणो रूपी बाहों में बड़े प्यार से समाकर बाबा मुझमें अपनी सारी शक्ति भर रहें हैं। *स्वयं को मैं बहुत ही बलशाली, बहुत ही एनर्जेटिक अनुभव कर रही हूँ*।
➳ _ ➳ अपने प्यारे पिता के सर्व गुणों और सर्व शक्तियाँ को स्वयं में समाकर, बाप समान शक्तिशाली बन कर अब मैं वापिस साकार लोक की ओर लौट रही हूँ। *दीदी, दादियों जैसी एकरस, अचल, अडोल स्थिति में सदा स्थित रहने के लिए मैं उनके द्वारा किये श्रेष्ठ कर्मो को स्मृति में रख उनके समान अपने कर्मो को, बाबा की श्रेष्ठ मत पर चल श्रेष्ठ बनाने का पुरुषार्थ कर रही हूँ*। बापदादा के साथ की स्मृति से, स्वयं को सदा बापदादा के साथ कम्बाइंड अनुभव करते हुए, शक्तिशाली बन हर परिस्थिति को अपनी स्व स्थिति से अब मैं हँसते - हँसते पार कर रही हूँ। *किसी भी परिस्थिति में क्यों क्या के संकल्प से आंसू ना गिराने की स्वयं से की हुई प्रतिज्ञा को दृढ़ता के साथ पूरा करने के लिए ड्रामा की हर सीन को साक्षी होकर देखने का अभ्यास पक्का करने का मैं पूरा पुरुषार्थ कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं शीतला देवी बन सर्व कर्मेन्द्रियों को शीतल शान्त बनाने वाली स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आशीर्वाद मांगने की दरकार से मुक्त होकर, स्वतः आशीर्वाद की पात्र बनने वाली आज्ञाकारी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. बापदादा फिर भी मार्जिन देते हैं कि कम से कम इन 6 मास में, जो बापदादा ने पहले भी सुनाया है और अगले सीझन में भी काम दिया था, कि *अपने को जीवनमुक्त स्थिति के अनुभव में लाओ। सतयुग के सृष्टि की जीवनमुक्ति नहीं, संगमयुग की जीवनमुक्त स्टेज।* कोई भी विघ्न, परिस्थितियाँ, साधन वा मैं और मेरापन, मैं बाडीकान्सेस का और मेरा बाडीकान्सेस की सेवा का, इन सबके प्रभाव से मुक्त रहना। ऐसे नहीं कहना कि मैं तो मुक्त रहने चाहता था लेकिन यह विघ्न आ गया ना, यह बात ही बहुत बड़ी हो गई ना। छोटी बात तो चल जाती है, यह बहुत बड़ी बात थी, यह बहुत बड़ा पेपर था, बड़ा विघ्न था, बड़ी परिस्थिति थी। कितनी भी *बड़े ते बड़ी परिस्थिति, विघ्न, साधनों की आकर्षण सामना करें, सामना करेगी यह पहले ही बता देते हैं* लेकिन कम से कम 6 मास में 75 परसेन्ट मुक्त हो सकता है?
➳ _ ➳ 2. *शेर भी आयेगा, बिल्ली भी आयेगी, सब आयेंगे।* विघ्न भी आयेगा, परिस्थितियाँ भी आयेंगी, साधन भी बढ़ेंगे लेकिन साधन के प्रभाव से मुक्त रहना।
➳ _ ➳ 3. यह नहीं कहना हमको तो बहुत मरना पड़ेगा, मरो या जीओ लेकिन बनना है। यह मरना मीठा मरना है, इस मरने में दुःख नहीं होता है। यह मरना अनेकों के कल्याण के लिए मरना है। *इसीलिए इस मरने में मजा है।* दुःख नहीं है, सुख है। कोई बहाना नहीं करना, यह हो गया ना। इसीलिए हो गया। बहाने बाजी नहीं चलेगी। बहाने बाजी करेंगे क्या? नहीं करेंगे ना! *उड़ती कला की बाजी करना और कोई बाजी नहीं। गिरती कला की बाजी, बहाने बाजी, कमजोरी की बाजी यह सब समाप्त।* उड़ती कला की बाजी। ठीक है ना। सबके चेहरे तो खिल गये हैं। जब 6 मास के बाद मिलने आयेंगे तो कैसे चेहरे होंगे। तब भी फोटो निकालेंगे।
✺ *ड्रिल :- "संगमयुग की जीवनमुक्त स्टेज का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं इस संगमयुग की स्थिति के सर्व श्रेष्ठ आसन... नॉलेजफुल स्टेज पर स्थित *विद्या की देवी सरस्वती... सफेद वस्त्रधारी* जिसमे श्वेत रंग मेरी पवित्रता का प्रतीक है... ज्ञान की वीणा सदा बजाते रहने वाली अर्थात *सदा सेवाधारी रहने वाली... सदा शुद्ध संकल्प का भोजन बुद्धि द्वारा ग्रहण करने वाली...* सदा की सर्व आत्माओं द्वारा वा रचना द्वारा गुण धारण करने वाली... अर्थात मोती चुगने वाले हंस के आसन पर सूक्ष्मवतन में स्थित हूँ... *सूक्ष्मवतन से नीचे बापदादा मुझे भेज रहे है* अपने सेवा स्थान पर... मीठे बापदादा से विदाई लेकर... धीरे धीरे मैं अपने वाहन पर स्थित होकर स्थूलवतन में प्रवेश करती हूँ... बडे़ ही उमंग और उत्साह के साथ मैं *अपनी जिम्मेदारियों को निभा रही हूँ...* धीरे धीरे... *यहाँ मेरे सामने अनेक विघ्न... परिस्थितियाँ... साधन आते जा रहे है...*
➳ _ ➳ मैं और मेरापन... भी पीछे नहीं हैं... *मैं बाडीकान्सेस का और मेरा बाडीकान्सेस सेवा का दिखाई दे रहा हैं...* इन सबके प्रभाव के सूक्ष्म धागो से बंधी हुई मैं स्वयं को पाती हूँ... अनेक बार मुक्त रहना चाहने पर भी विघ्न आते जा रहे है... छोटी बड़ी बातें भी आ रही है... मुझे बापदादा के कहे हुए शब्द याद आ रहे है की बहुत बड़े ते *बड़ी परिस्थितियां और विघ्न आएंगे ही... साधनों के आकर्षण सामना करेंगे ही...* साथ ही साथ मुझे यह भी याद आ रहा है कि *बापदादा ने मुझे कम से कम 6 मास की मार्जिन देते हुए भी कहा था की जीवन मुक्त स्थिति को अनुभव में लाना है...* सतयुग के सृष्टि की जीवनमुक्ति नहीं, संगमयुग की जीवनमुक्त स्टेज को अनुभव में लाना है... जैसे जैसे आगे बढती जा रही हूँ वैसे वैसे बापदादा के कहने के अनुसार *शेर भी आ रहा है और बिल्ली भी आ रही है...* विध्न भी बढ़ रहे है... परिस्थितियाँ भी बढ़ रही है... साधन भी बढ़ रहे हैं...
➳ _ ➳ लेकिन इन सब प्रभावो से मुक्त रहने का मेरा लक्ष्य अभी भी बरकरार है... जैसे जैसे और ही आगे बढती जा रही हूँ तो लग रहा है कही पर तो कमी है... वो कमी यह है की *मैं आत्मा अभी भी पूरी तरह से मरी नहीं...* अभी भी मैं आधी अधूरी जिंदा हूँ... *मुझे संपूर्ण मरना है... मरना है पुराने संस्कारों से... मरना है शुद्रपने से... मरना है देह अभिमान से... बापदादा सूक्ष्मवतन से मुझे निहार रहे है...* मुझ आत्मा को इस स्थिति में देख वो अपना धाम छोडकर मेरे पास आ रहे है... *मेरे पास आकर मुझ पर अपने हाथो से सफेद मोतियों की बारिश कर रहे हैं...* उनका अनुपम तेज भी मुझमे समाता जा रहा है... इन मोतियों की बारिश की अनुभूति मेरे पूरे सूक्ष्म शरीर में हो रही है... इन सफेद पवित्र *मोतियों की वर्सा होते ही अंदर से कमी कमजोरियां छोटे छोटे कंकड़ और रेत के रूप में बाहर निकलती जा रही है...*
➳ _ ➳ जैसे ही कंकड़ और रेत के रूप में कमी और कमजोरियां बाहर निकलती जा रही हैं... *मुझे निर्विध्न स्थिति की अनुभूति हो रही है... मुझे परिस्थितियाँ जो पहाड़ दिख रही थी वो तो रूई के समान दिखने लगी है...* ऐसा लग रहा है की मानो वो है ही नहीं... इस पवित्र मोतियों की बारिश ने मुझे पूरा ही शुद्रपने से मार दिया... देह अभिमान से मैं पूरी तरह मर चुकी हूँ... *साधनो की आकर्षण होती क्या है इसकी मुझे अविद्या हो चुकी है...* बाडीकान्सेस का 'मैं' खतम होकर संपूर्ण और संपन्न आत्मा का 'मैं' इमर्ज हो चुका है... सेवा के बाडीकान्सेस 'मेरे' की जगह सब कुछ तेरा अर्थात बाबा का अनुभव हो रहा हैं... *शेर और बिल्ली भी पेपर के प्रतीत हो रहे है...* ये जो स्थिति है इसमे मैं विकारों की विद्या से संपूर्ण अनभिज्ञ हूँ... इस कारण मुझे *संगमयुग में जीवन मुक्ति की अनुभूति हो रही हैं...* चेहरा रूहानी चमक से भरपूर हो गया है... मेरा *यह जो मीठा मरना है उसमें कोई दुःख अनुभव नहीं हो रहा है...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा *जहाँ पर भी जाती हूँ, वहाँ सबका कल्याण ही कल्याण हो रहा है...* सबके दुःख, दर्द, पीडा़, तकलीफ मिटते जा रहे है... सबको अतिइन्द्रिय सुख की अनुभूति हो रही हैं... क्योंकि मैं आत्मा जिस किसी आत्मा के संबंध संपर्क में आती हूँ उन सभी को वही जीवनमुक्त अवस्था की अनुभूति हो रही है जो मैं कर रही हूँ... *अब सारे बहाने खतम हो गए... की यह हो गया... इसलिए हो गया... यह बहाने बाजी की बातें ही खतम हो गई... गिरती कला की बाजी, बहाने बाजी, कमजोरी की बाजी यह सब समाप्त... निरंतर उड़ती कला की बाजी शुरू* हो गई है... चारो ओर सुख ही सुख, आनंद ही आनंद का मौसम छाया है... ऐसी *कर्मातीत अवस्था और ऐसी जीवन मुक्त स्थिति की अनुभूति* जिसमे शांति ही धर्म है... प्रेम ही भाषा है... एकता ही संस्कृति है... और सुख ही जीवन जीने की कला है... मेरे इस अनुभव से चेहरा एकदम खिल उठ़ा है... सारी आत्माएं मन ही मन मुझे शुक्रिया अदा कर रही है और मैं आत्मा अपने मीठे प्यारे बापदादा को ढेर सारा शुक्रिया कर रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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