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 04 / 08 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *भोजन याद में रहकर किया ?*

 

➢➢ *नाम रूप की बीमारी से सदा दूर रहे ?*

 

➢➢ *विशेषता देखने का चश्मा पहन समबन्ध संपर्क में आये ?*

 

➢➢ *परचिन्तन और परदर्शन की शूल से साद दूर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *फरिश्ता स्थिति का अनुभव करने के लिए किसी भी प्रकार के व्यर्थ और निगेटिव संकल्प, बोल वा कर्म से मुक्त बनो। व्यर्थ वा निगेटिव-यही बोझ सदाकाल के लिए डबल लाइट फरिश्ता बनने नहीं देता।* तो ब्रह्मा बाप पूछते हैं-इस बोझ से सदा हल्के फरिश्ते बने हो?

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं राजयोगी आत्मा हूँ"*

 

  एक सेकेण्ड में अशरीरी स्थिति का अनुभव कर सकते हो? या टाइम लगेगा? *आप राजयोगी हो, राजयोगी का अर्थ क्या है? राजा हो ना। तो शरीर आपका क्या है? कर्मचारी है ना! तो सेकेण्ड में अशरीरी क्यों नहीं हो सकते? र्डर करो- अभी शरीर-भान में नहीं आना है; तो नहीं मानेगा शरीर?*

 

  राजयोगी अर्थात् मास्टर सर्वशक्तिवान। मास्टर सर्वशक्तिवान कर्मबन्धन को भी नहीं तोड़ सकते तो मास्टर सर्वशक्तिवान कैसे कहला सकते? *कहते तो यही हो ना कि हम मास्टर सर्वशक्तिवान हैं। तो इसी अभ्यास को बढ़ाते चलो। राजयोगी अर्थात् राजा बन इन कर्मेन्द्रियों को अपने र्डर में चलाने वाले। क्योंकि अगर ऐसा अभ्यास नहीं होगा तो लास्ट टाइम 'पास विद् नर' कैसे बनेंगे!*

 

  धक्के से पास होना है या 'पास विद् नर' बनना है? जैसे शरीर में आना सहज है, सेकेण्ड भी नहीं लगता है! क्योंकि बहुत समय का अभ्यास है। ऐसे शरीर से परे होने का भी अभ्यास चाहिए और बहुत समय का अभ्यास चाहिए। *लक्ष्य श्रेष्ठ है तो लक्ष्य के प्रमाण पुरुषार्थ भी श्रेष्ठ करना है। सारे दिन में यह बार-बार प्रैक्टिस करो-अभी-अभी शरीर में हैं, अभी-अभी शरीर से न्यारे अशरीरी हैं! लास्ट सो फास्ट और फर्स्ट आने के लिए फास्ट पुरुषार्थ करना पड़े।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *आवाज से परे अपनी श्रेष्ठ स्थित को अनुभव करते हो?* वह श्रेष्ठ स्थिति सर्व व्यक्त आकर्षण से परे शक्तिशाली न्यारी और प्यारी स्थिति है। *एक सेकण्ड भी इस श्रेष्ठ स्थिति में स्थित हो जाओ तो उसका प्रभाव सारा दिन कर्म करते हुए भी स्वयं में विशेष शान्ति की शक्ति अनुभव करेंगे।* 

 

✧  इसी स्थिति को - कर्मातीत स्थिति, बाप समान सम्पूर्ण स्थिति कहा जाता है। इसी स्थिति द्वारा हर कार्य में सफलता का अनुभव कर सकते हो। ऐसी शक्तिशाली स्थिति का अनुभव किया है? *ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है - कर्मातीत स्थिति को पाना।* तो लक्ष्य को प्राप्त करने के पहले अभी से इसी अभ्यास में रहेंगे तब ही लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे।

 

✧  *इसी लक्ष्य को पाने के लिए विशेष स्वयं में समेटने की शक्ति, समाने की शक्ति आवश्यक है।* क्योंकि विकारी जीवन वा भक्ति की जीवन दोनों में जन्म-जन्मांतर से बुद्धि का विस्तार में भटकने का संस्कार बहुत पक्का हो गया है। इसलिए *ऐसे विस्तार में भटकने वाली बुद्धि को सार रूप में स्थित करने के लिए इन दोनों शक्तियों की आवश्यकता है।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ बाप तो कहते हैं बेगर बनो। यह शरीर रूपी घर भी मेरा नहीं। यह लोन मिला हुआ है। सिर्फ ईश्वरीय सेवा के लिए बाबा ने लोन दे करके 'ट्रस्टी' बनाया है। यह ईश्वरीय अमानत है। *आपने तो सब कुछ तेरा कह करके बाप को दे दिया। यह वायदा किया ना वा भूल गये हो? वायदा किया है या आधा तेरा आधा मेरा। अगर तेरा कहा हुआ मेरा समझ कार्य में लगाते हो तो क्या होगा। उससे सुख मिलेगा? सफलता मिलेगी?* इसलिए अमानत समझ तेरा समझ चलते तो बालक सो मालिकपन के खुशी में नशे में स्वतः ही रहेंगे।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सच्चे दिल से एक बाप को याद करना"*

 

➳ _ ➳  *मैं आत्मा एकांत में सागर के किनारे बैठ सागर में उछलती लहरों को देख रही हूँ... मेरे जीवन में उछलती दुःख-अशांति की लहरों को ख़त्म कर... सदा के लिए सुख-शांति, प्रेम की लहरों में मुझे लहराने वाले... सर्व गुणों-शक्तियों के सागर बाबा के पास पहुँच जाती हूँ शांतिधाम में...* परमधाम की परम शांति का अनुभव कर रही हूँ... बस एक बाबा और मैं... बाबा से निकलती किरणें मुझमें दिव्य अलौकिक शक्तियों को भर रही हैं... *फिर मैं आत्मा शांति की दुनिया से नीचे उतरकर बिंदु रूप से फ़रिश्ता स्वरुप धारण कर फरिश्तों की दुनिया में पहुँच जाती हूँ... बापदादा के सम्मुख बैठ जाती हूँ...*

 

❉  *सच्चे प्रेम के अहसासों में मुझे डुबोकर मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... सच्चे प्यार की मुस्कराती मदमाती यादो में रग रग को डुबो दो... *सच्चे माशूक के साथ अपनी प्रीत जोड़कर... प्यार के अहसासो में डूब जाओ और प्राप्तियों के अनन्त खजाने अपने दामन में सजाओ*... योग और पढ़ाई की जादूगरी से सहज ही विश्व का अधिकार पाओ..."

 

➳ _ ➳  *बाबा की यादों में पवित्र, निर्मल, ओजस्वी बनकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... *मै आत्मा सच्चे प्यार को पाने वाली... ईश्वर माशूक संग हर पल मुस्कराने वाली सच्ची आशिक हूँ...* कभी मनुष्यो में प्यार की बून्द खोजने वाली... आज प्यार के सागर को ही पाकर... अपने महान भाग्य पर धन्य धन्य हो उठी हूँ... कितना प्यारा मेरा भाग्य है.."

 

❉  *मीठे प्रेम के तराने सुनाकर मुझे मदमस्त करते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय यादो में अनन्त खजाने सहज ही पाकर... सबसे महान भाग्य से भर जाओ... *ईश्वर पिता के सारे खजानो को प्यार में सहज ही लूट लो... प्यार के तार जोड़कर विश्व की अमीरी को बाहों में भर लो... आशिक बनकर सच्चे माशूक को अपनी यादो का दीवाना बना दो..."*

 

➳ _ ➳  *एक बाबा के दिल की तिजोरी में चमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मैं आत्मा भगवान को ही माशूक रूप में पाकर सच्चे प्यार का सुख हर पल हर साँस ले रही हूँ...* भगवान मुझे यूँ मिल जायेगा यूँ प्यार करेगा, और प्यार से भर जाएगा यह तो कल्पना में भी न था... *प्यारे बाबा किन शब्दों में आपका शुक्रिया करूँ..."*

 

❉  *महकता फूल बनाकर अपने गुलिस्तां में सजाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... *अपने सत्य स्वरूप में डूबकर, सच्चे पिता की मीठी महकती यादो में रोम रोम से भीग जाओ... इन सच्ची यादो में ही सच्चे सुखो के भण्डार समाये है... यह यादे ही सच्चे प्यार का पर्याय है.. सारे सुख इन यादो में निहित है...* इन यादो और ज्ञान रत्नों से जीवन को अनन्त ऊंचाइयों पर ले जाओ..."

 

➳ _ ➳  *मीठे बाबा की मीठी यादों में डूबकर बाबा की दीवानी बन मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्रेम में खोयी हुई अतीन्द्रिय सुख में डूबी हुई हूँ... *मीठे बाबा आपको पाकर मैंने सब कुछ पा लिया है... सच्चे प्रेम को दामन में सजा लिया है... और इसकी मीठी अनुभूतियों में हर पल खोयी खोयी सी हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप को साथ रखने की युक्ति रचनी है*

 

_ ➳  स्वयं भगवान मेरा साथी बन कैसे मेरे सब काज सँवारते हैं, मेरे हर कर्म में मेरे साथ रहते हैं और हर कदम में मेरी परछाई बन मेरे साथ चलते हैं। दुनिया मे ऐसा श्रेष्ठ भाग्यवान कोई नही होगा जिसकी पालना स्वयं भगवान करते हैं! *कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जिसके दिन की शुरआत ही भगवान के उठाने से होती हैं। कितने प्यार से मेरे मीठे दिलाराम बाबा, मीठे बच्चे कहकर मुझे जगाते हैं और उठते ही सर्वखजानो से मेरी झोली भरकर मुझे भरपूर कर देते हैं*। चलते - फिरते, उठते - बैठते हर कर्म में मेरे साथ रहकर, अपनी शक्तियों से मेरे अंदर बल भरते हुए, मुझे मेहनत से मुक्त कर, हर कार्य को सफ़लतापूर्वक सम्पन्न करवा देते हैं। अपने ऐसे भगवान साथी पर मैं कुर्बान जाती हूँ जिनकी एक झलक की दुनिया प्यासी हैं किंतु मेरे हर कर्म में वो मेरे साथी हैं।

 

 ➳ _ ➳  " वाह मैं आत्मा और वाह मेरा भाग्य " ऐसे वाह - वाह के गीत गाती अपने भगवान साथी को सदा अपने साथ रखने की युक्तियां सोचते हुए, अब मैं अपने विदेही पिता से मिलने का संकल्प लेकर स्वयं को उनके समान विदेही स्थिति में स्थित करने के लिए अपने मन और बुद्धि को सभी बातों से हटा लेती हूँ और सम्पूर्ण एकाग्रचित होकर केवल एक के अंत मे खो जाने के लिए अंतर्मुखता की गुफा में जाकर बैठ जाती हूँ। *अंतर्मुखी होकर बैठते ही बाहर की दुनिया से मेरा सम्पर्क जैसे टूटने लगता है और अपनी नश्वर देह और देह से जुड़ी हर चीज से स्वत: ही किनारा होने लगता है*। देह के भान से मुक्त होकर एक बहुत ही न्यारी और प्यारी स्थिति में मैं स्थित हो जाती हूँ और विदेही आत्मा बन, भृकुटि के अकालतख्त को छोड़, देह से बाहर आ जाती हूँ।

 

_ ➳  देख रही हूँ अब मैं स्वयं को देह से बाहर, देह से पूरी तरह अलग एक जगमग करती ज्योति के रूप में जो एक अति सूक्ष्म चैतन्य सितारे की तरह टिमटिमाता हुआ दिखाई दे रहा है। जिसमे से निकल रहा प्रकाश धीरे - धीरे चारों और फैल रहा है। *इस खूबसूरत प्रकाश में से सात रंग की अलग - अलग किरणे निकल रही हैं जिसमे आत्मा के सातों गुण समाये हैं। इन सतरंगी किरणों में से निकल रहे अपने सातों गुणों सुख, शांति, पवित्रता, प्रेम, आनन्द, ज्ञान और शक्ति के वायब्रेशन्स को मैं अपने चारों और फैलता हुआ देख रही हूँ*। ये वायब्रेशन्स चारों और फैलकर, वायुमण्डल को बहुत ही शक्तिशाली बना रहे हैं। ऐसा लग रहा है जैसे सारा वायुमण्डल एक अद्भुत रूहानी खुशबू से महक उठा है। *इन वायब्रेशन्स को अपने अंदर समाकर मैं अपने अंदर निहित गुणों का गहन अनुभव कर रही हूँ। यह अनुभव मुझे अनेक दिव्य अनुभूतियां करवा रहा है*।

 

_ ➳  इन अनेक सुन्दर अनुभूतियों का आनन्द लेते हुए मैं विदेही आत्मा अपने विदेही पिता से मिलने के लिए अब एक आनन्दमयी रूहानी यात्रा पर जा रही हूँ। *मन बुद्धि की इस अति सुखदाई यात्रा पर, रॉकेट जैसी तीव्र गति से उड़कर, आकाश को पार करके, सूक्ष्म वतन से होती हुई आत्माओं की निराकारी दुनिया मे मैं प्रवेश करती हूँ और कुछ क्षणों के लिए गहन शांति के गहन अनुभव में खो जाती हूँ*। शांति की इस दुनिया मे गहन शांति की अनुभूति करके, अब मैं मास्टर बीज रूप बन सम्पूर्णता के सागर, पवित्रता के सागर, सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के अखुट भंडार अपने बीज रूप शिव पिता के पास पहुँचती हूँ। कोई संकल्प कोई विचार मेरे मन में नही है। एकदम निर्संकल्प अवस्था। बस बाबा और मैं। *बीज रुप अपने प्यारे पिता के सम्मुख मैं मास्टर बीज रुप आत्मा डेड साइलेंस की स्थिति में स्थित होकर असीम अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर रही हूँ*।

 

_ ➳  गहन अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करके और अपने पिता से आ रही सर्वशक्तियो को स्वयं में समाकर शक्तिशाली बन कर मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट आती हूँ। अपने साकार शरीर रूपी रथ पर विराजमान होकर, साकार सृष्टि रूपी कर्म भूमि पर हर कर्म करते हुए अपने शिव पिता को अपने साथ रखने की युक्ति रचकर, अब मैं हर पल उनके सानिध्य में रहती हूँ। *उनका साथ मुझे सदैव स्फूर्ति और ताजगी से भरपूर रखता है। उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया मुझे सदैव निमित पन की स्मृति में स्थित रखती है जिससे लौकिक और अलौकिक हर कर्तव्य को सेवा समझ, उनके सहयोग से हर कार्य को मैं सफलतापूर्वक संपन्न करके, सदा उड़ती कला का अनुभव करती रहती हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं विशेषता देखने का चश्मा पहन सम्बन्ध - संपर्क में आने वाली विश्व परिवर्तक आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं परचिंतन और परदर्शन की धूल से सदा दूर रहकर बेदाग अमूल्य हीरा बन जाने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  एक हैं - आत्माओं को बाप का परिचय दे बाप के वर्से के अधिकारी बनाने के निमित्त सेवाधारी और दूसरे हैं - यज्ञ सेवाधारी। तो इस समय आप सभी यज्ञ सेवा का पार्ट बजाने वाले हो। यज्ञ सेवा का महत्व कितना बड़ा है - उसको अच्छी तरह से जानते हो?  *यज्ञ के एक-एक कणे का कितना महत्व हैएक-एक कणा मुहरों के समान है। अगर कोई एक कणें जितना भी सेवा करते हैं तो मुहरों के समान कमाई जमा हो जाती है। तो सेवा नहीं की लेकिन कमाई जमा की।*

➳ _ ➳  सेवाधारियों को - वर्तमान समय एक तो मधुबन वरदान भूमि में रहने का चांस का भाग्य मिला और दूसरा सदा श्रेष्ठ वातावरण उसका भाग्य और तीसरा सदा कमाई जमा करने का भाग्य। तो कितने प्रकार के भाग्य सेवाधारियों को स्वत: प्राप्त हो जाते हैं। इतने भाग्यवान सेवाधारी आत्मायें समझकर सेवा करते हो? इतना रूहानी नशा स्मृति में रहता है या सेवा करते करते भूल जाते हो?  *सेवाधारी अपने श्रेष्ठ भाग्य द्वारा औरों को भी उमंग उल्लास दिलाने के निमित्त बन सकते हैं।*

✺   *"ड्रिल :- यज्ञ सेवा के महत्व को समझना।"*


➳ _ ➳  रंग बिरंगी किरणें मेरे मस्तिष्क से निकलते हुए मैं अपने आपको देख रही हूं... मेरे चारों तरफ सफेद प्रकाश का औरा चमक रहा है... *मैं फरिश्ता रूप में आते हुए अपनी मन बुद्धि में उमंगों के पंख लगा कर उड़ी जा रही हूं... अपने वतन में... मेरे बाबा वतन में मेरा इंतजार कर रहे है... चारों तरफ लाल सुनहरा प्रकाश हीरों सी चमकती हुई आत्मा को अपने पास बुला रही है... उनके बीच में मैं अपने आप को देखती हूँ...* और सामने मेरे पास ज्योतिस्वरूप के रुप में अपनी रंग बिरंगी अद्भुत किरणें बिखेरते हुए... मुझे अपनी शक्तिशाली किरणों से नहला रहे हैं... बाबा की इन शक्तियों को अपने अंदर भरते हुए चली आती हूं मैं... सूक्ष्मवतन में... यहां मैं ब्रह्मा बाबा के तन में शिव बाबा को विराजमान अनुभव करती हूं...

➳ _ ➳  अब मैं अनुभव करती हूं... बापदादा मेरे सामने खड़े होकर मुझे अपनी बाहों में झूला झुलाने को आतुर हो रहे हैं... मैं दौड़कर अपने बाबा के पास जाती हूं... और अपने आपको बापदादा की छत्रछाया में अनुभव करती हूं... बापदादा की बाहों के झूले झूलने पर... मैं अपने आपको इस दुनिया की सबसे शक्तिशाली और भाग्यशाली आत्मा अनुभव करती हूं... मैं फ़रिश्ता स्वरूप  में बापदादा से मिलन मना रही हूं... *बापदादा मुझे अपनी बाहों के झूले झुलाते हुए मुझे अपने शुद्ध कर्मों का और कर्तव्यों का ध्यान दिला रहे है... मेरे बाबा मुझसे कहते हैं... मेरे मीठे बच्चे- तुम्हें ज्ञान रत्नों से सजाकर धनवान बना रहा हूं... तुम्हारा कर्तव्य भी अन्य आत्माओं को ज्ञान रत्नों से सजाना है...* बाबा के इन वाक्यों को सुनकर मेरा मन गदगद हो रहा है...

➳ _ ➳  अब कुछ देर बाद बाबा मुझे अपने साथ एक ऐसे स्थान पर ले जाते हैं... जहां चारों तरफ सफेद वस्त्र धारण किये हुए आत्माएं फ़रिश्ते की भांति घूम रही है... *मैं उन्हें उनकी सेवा करते बड़े ध्यान से देख रही हूं... और यह अनुभव करती हूं... कि इनका यह महान सौभाग्य है... कि जिन्होंने अपने सेवा का स्थान मधुबन पाया... यहाँ पर ये हर कदमों में पदमों की कमाई जमा कर रहे हैं... हर एक आत्मा श्रीमत की लकीर के अंदर रहकर काम कर रही है... और मैं यह देखती हूं... कि यह आत्माएं ज्ञान रत्नों से सुसज्जित होकर अपने आस पास रहने वाले सभी आत्माओं को ध्यान रखने से सजाने की सेवा कर रही हैं...* उनका यह कर्म मुझे नया संदेश दे रहा है... मैं उसी समय अपने आप से और बाबा से अंदर ही अंदर अपनी मन बुद्धि के तारों से यह वादा करती हूं... कि मैं ब्राह्मण आत्मा अपने आप को अन्य ब्राह्मण आत्माओं के सामने एक सैंपल आत्मा बनकर दिखाऊंगी...

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा अपने आप को फूल की कली के अंदर अनुभव करती हूं... और परमात्मा रुपी सूर्य की किरणों से धीरे-धीरे उन फूल की कलियों से बाहर निकलते हुए अनुभव करती हूं... जैसे-जैसे मैं बाहर आती हूं... वैसे ही मुझे उस फूल के सेवा भाव के बारे में जानकारी प्राप्त होती है कि... यह छोटी सी कली परमात्मा रूपी सूर्य की किरणों से नहाकर अपने आपको खिले हुए फूल की भांति बनाकर इस पूरे संसार में पवित्र किरणों रूपी खुशबू फैला रही है... तभी मुझे अपने सामने कुछ फरिश्तों सी घूमती हुई आत्माएं नजर आती है... और मैं आत्मा उन फरिश्तों रूपी आत्माओं से अपनी मन बुद्धि के तारों को जोड़ते हुए कहती हूँ... *हे आत्माओं आप की सेवा इस फूल की भांति है... जो अपने परमपिता से योग लगाकर इस संसार में अन्य आत्माओं को भी इस रुद्र ज्ञान यज्ञ का ज्ञान दे रहे हैं...*

➳ _ ➳  अब मैं बनकर फरिश्ता चली जा रही हूं अन्य आत्माओं की रूहानी सेवा करने... मैं इस पृथ्वी के ऊपर अपने बाबा के साथ बैठी हूं... और इस संसार की सभी आत्माओं को बाबा से पवित्र और शांति की किरणें लेकर देती जा रही हूं... और मैं अनुभव कर रही हूं कि... इस सृष्टि की सभी आत्माएं शांति की अवस्था का आनंद ले रही है... उनको इस स्थिति में देख मुझे गहन शांति का अनुभव होता है... और *मुझे सभी ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारी की सेवा के बारे में और गहराई से ज्ञान प्राप्त होता है... और अपने भाग्य का भी स्मरण होता है... मुझे अहसास होता है कि मेरी एक एक कण की सेवा भी मेरी पदमों की कमाई है...* ऐसी भावना को आगे बढ़ाते हुए जुट जाती हूँ... अपनी बेहद की सेवा में...  और परमात्मा की छत्रछाया में...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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