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❍ 14 / 08 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *किसी की ग्लानी तो नहीं की ?*
➢➢ *आपस में कलह तो नहीं की ?*
➢➢ *समर्थ स्थिति के आसन पर बैठ व्यर्थ और समर्थ का निर्णय किया ?*
➢➢ *साइलेंस की शक्ति से अनेक प्रकार के मानसिक रोगों को दूर भगाया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ डबल जिम्मेवारी होते भी डबल लाइट रहो। *डबल लाइट रहने से लौकिक जिम्मेवारी कभी थकायेगी नहीं क्योंकि ट्रस्टी हो। ट्रस्टी को क्या थकावट।* अपनी गृहस्थी, अपनी प्रवृत्ति समझेंगे तो बोझ है। अपना है ही नहीं तो बोझ किस बात का। बिल्कुल न्यारे और प्यारे, बालक सो मालिक।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं तीन तख्तनशीन और त्रिकालदर्शी आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को तख्त-नशीन आत्मायें अनुभव करते हो? अभी तख्त मिला है या भविष्य में मिलना है, क्या कहेंगे? सभी तख्त पर बैठेंगे? (दिलतख्त बहुत बड़ा है) दिलतख्त तो बड़ा है लेकिन सतयुग के तख्त पर एक समय में कितने बैठेंगे? तख्त पर भले कोई बैठे लेकिन तख्त अधिकारी रॉयल फैमली में तो आयेंगे ना। तख्त पर इक्ठे तो नहीं बैठ सकेगे! इस समय सभी तख्त-नशीन हैं। इसलिए इस जन्म का महत्व है। जितने चाहें, जो चाहें दिलतख्त-नशीन बन सकते हैं। इस समय और कोई तख्त है? कौनसा है? (अकालतख्त) आप अविनाशी आत्मा का तख्त ये भृकुटी है। *तो भृकुटी के तख्त-नशीन भी हो और दिलतख्त-नशीन भी हो। डबल तख्त है ना! नशा है कि मैं आत्मा भृकुटी के अकालतख्त-नशीन हूँ! तख्त-नशीन आत्मा का स्व पर राज्य है, इसीलिए स्वराज्य अधिकारी हैं। स्वराज्य अधिकारी हूँ-यह स्मृति सहज ही बाप द्वारा सर्व प्राप्ति का अनुभव करायेगी।*
〰✧ तो तीनों ही तख्त की नॉलेज है। नॉलेजफुल हो ना! पावरफुल भी हो या सिर्फ नॉलेजफुल हो? जितने नॉलेजफुल हो, उतने ही पावरफुल हो। या नॉलेजफुल अधिक, पावरफुल कम? *नॉलेज में ज्यादा होशियार हो! नॉलेजफुल और पावरफुल-दोनों ही साथ-साथ। तो तीनों तख्त की स्मृति सदा रहे। ज्ञान में तीन का महत्व है। त्रिकालदर्शी भी बनते हैं। तीनों काल को जानते हो।* या सिर्फ वर्तमान को जानते हो? कोई भी कर्म करते हो तो त्रिकालदर्शी बनकर कर्म करते हो या सिर्फ एकदर्शी बनकर कर्म करते हो? क्या हो-एक दर्शी या त्रिकालदर्शी?
〰✧ तो कल क्या होने वाला है-वह जानते हो? कहो-हम यह जानते हैं कि कल जो होगा वह बहुत अच्छा होगा। ये तो जानते हो ना! तो त्रिकालदर्शी हुए ना। *जो हो गया वो भी अच्छा, जो हो रहा है वह और अच्छा और जो होने वाला है वह और बहुत अच्छा! यह निश्चय है ना कि अच्छे से अच्छा होना है, बुरा नहीं हो सकता। क्यों? अच्छे से अच्छा बाप मिला, अच्छे से अच्छे आप बने, अच्छे से अच्छे कर्म कर रहे हो। तो सब अच्छा है ना।* कि थोड़ा बुरा, थोड़ा अच्छा है? जब मालूम पड़ गया कि मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, तो श्रेष्ठ आत्मा का संकल्प, बोल, कर्म अच्छा होगा ना! तो यह सदा स्मृति रखो कि-कल्याणकारी बाप मिला तो सदा कल्याण ही कल्याण है।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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कमजोर अर्थात अधीन प्रजा। मालिक अर्थात शक्तिशाली राजा। तो आह्वान करो मालिक बन करके। स्वस्थिति के श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठो। *सिंहासन पर बैठ के शक्ति रूपी सेवाधारियों का आह्वान करो। ऑर्डर दो।* हो नहीं सकता कि आपके सेवाधारी आपके ऑर्डर पर न चलें। फिर ऐसे नहीं कहेंगे क्या करें सहन शक्ति न होने के कारण मेहनत करनी पडती है। समाने की शक्ति कम थी इसलिए ऐसा हुआ। आपके सेवाधारी समय पर कार्य में न आवें तो सेवाधारी क्या हुए? कार्य पूरा हो जाए फिर सेवाधारी आवें तो क्या कहेंगे! *जिसको स्वयं समय का महत्व है उसके सेवाधारी भी समय पर महत्व जान हाजिर होंगे।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ अपने देह भान से न्यारा। *जैसे साधारण दुनियावी आत्माओं को चलते-फिरते, हर कर्म करते स्वत: और सदा देह का भान रहता ही है, मेहनत नहीं करते कि मैं देह हूँ, न चाहते भी सहज स्मृति रहती ही है। ऐसे कमल-आसनधारी ब्राह्मण आत्मायें भी इस देहभान से स्वत: ही ऐसे न्यारे रहें जैसे अज्ञानी आत्म-अभिमान से न्यारे हैं।* है ही आत्म-अभिमानी। शरीर का भान अपने तरफ आकर्षित न करे। जैसे ब्रह्मा बाप को देखो, चलते-फिरते फरिश्ता-रूप व देवता-रूप स्वत: स्मृति में रहा। ऐसे नैचुरल देही-अभिमानी स्थिति सदा रहे-इसको कहते हैं देहभान से न्यारे। *देहभान से न्यारा ही परमात्म-प्यारा बन जाता है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- हमारी तकदीर स्वयं बाप ने जगाई, इसका नशा होना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सेण्टर में बाबा के कमरे में बैठ अपने दिल दर्पण में देख रही हूँ- अपने तकदीर की तस्वीर को... स्वयं भाग्यविधाता परमात्मा ने मेरी सोई हुई तकदीर को जगाकर, मेरा सुन्दर भाग्य बनाया है... परमात्मा ने अपने ज्ञान-योग के जल से मेरी तकदीर को सींचा है... अपने स्नेह-प्यार के फूलों की खुशबू से खुशबूदार बना दिया है...* 21 जन्मों तक सुख-शांति का वर्सा देकर मुझे एवर हेल्थी, एवर वेल्थी बना दिया है... अपने भाग्य के गुण गाती मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन में मेरे भाग्यविधाता बाबा के पास...
❉ *मुझे राजयोग सिखलाकर मेरी बिगड़ी को सुधारकर तकदीरवान बनाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे बच्चे... मुझ पिता के सिवाय दुःख भरी दुनिया से छुड़ा न सके... सुख भरे जीवन जो दुखो के पहाड़ बन गए है... मेरे सिवाय परिवर्तन हो न सके... *मेरे सोने से फूल बच्चों की बिगड़ी तकदीर को मै ही संवार सकता हूँ... अपनी सारी शक्तिया ज्ञान देकर मै ही भाग्यवान बना सकता हूँ कोई और नही...”*
➳ _ ➳ *अपने सुन्दर भाग्य के नशे में खुशियों के गगन में उड़ते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा... आप संग ज्ञानवान बन रही हूँ... *अपने बिगड़ी सी किस्मत को हीरों से सजा रही हूँ... ज्ञान रत्नों से चमकती जा रही हूँ... और भाग्यवान आत्मा बनती जा रही हूँ...”*
❉ *ज्ञान रत्नों की झंकार से मेरे जीवन को सुरीला बनाकर प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे फूल बच्चे.... कितने सुखो और आनंद खुशियो से भरपूर दुनिया के रहवासी थे... और किस विकारो के दलदल में फस कर धस से गए हो.... *मुझ विश्व पिता से बच्चों की यह दशा देखी न जाय... बच्चों की तकदीर जगाने आया हूँ... ज्ञान रत्नों का खजाना लिए उतर आया हूँ...”*
➳ _ ➳ *विकारी दलदल से निकल खुबसूरत दुनिया की मालिक बनने की अधिकारी बन मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मुझ आत्मा ने तो दुखो को ही जीवन का अटल सत्य मान लिया था... *आपने आकर भाग्य की लकीर ही बदल दी... सुंदर जीवन का आधार दे दिया... सारे रत्न भरे खजाने मेरे हाथो में देकर सुखो से मेरा श्रृंगार कर दिया...”*
❉ *प्रेम के खजाने मुझ पर बरसाते हुए प्रेम के सागर मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे बच्चे... *जब सब ही खेल में उतर गए तो बाहर तो सिवाय ईश्वर पिता के कोई निकाल न सके... इन दर्दो से परमपिता ही उबार सके... वही खूबसूरत सुख दामन में वही सजा सके...* फूलो भरा महकता सतयुग वही तो बना सके... सारे विश्व को सम्पन्नता की दौलत से आबाद कर दे...”
➳ _ ➳ *स्वर्ग का राज्य तिलक अपने नाम कर बाबा के दिल तख़्त पर बैठकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा खुशनुमा भाग्य को पाकर निखरती जा रही हूँ... *अपनी काली हो गई तकदीर को सुनहरा सजाती जा रही हूँ... आपके दिए ज्ञान धन से विश्व की मालिक बन सुंदर तकदीर पाती जा रही हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप का मददगार बन उनसे इजाफा (ईनाम) लेना है*"
➳ _ ➳ सृष्टि परिवर्तन के जिस कार्य को सम्पन्न करने के लिए भगवान स्वयं इस धरा पर अवतरित हुए हैं उनके इस कर्तव्य में जो ब्राह्मण आत्मायें मददगार बन इस ईश्वरीय कर्तव्य को सम्पन्न कर रही है वो आत्मायें कितनी पदमापमदम सौभाग्यशाली और कितने ऊँच पद की अधिकारी हैं। *मन ही मन एकांत में बैठी मैं अपने आप से बातें कर रही हूँ और उन महान सौभाग्यशाली आत्माओं के बारे में चिंतन कर रही हूँ जिन्होंने परमात्मा द्वारा रचे इस ईश्वरीय रुद्र ज्ञान यज्ञ में अपना तन - मन - धन सब कुछ स्वाहा कर दिया*।
➳ _ ➳ हम सबके सामने प्रत्क्षय उदाहरण हमारे प्यारे ब्रह्मा बाबा और मम्मा और उसके बाद यज्ञ स्नेही दीदी, दादियां और हमारे अनेक वरिष्ठ भाई, बहन जो आज भी सम्पूर्ण समर्पण भाव से भगवान के मददगार बन ईश्वरीय सेवाओ में तत्पर है। *उन सभी महान तपस्वीमूर्त आत्माओं के बारे में विचार करते हुए मैं मन ही मन स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि अपने इस ब्राह्मण जीवन मे फॉलो मदर फादर कर मुझे भी बाप का मददगार बन उनसे इजाफा ( प्राइज ) लेना है*।
➳ _ ➳ इसी दृढ़ प्रतिज्ञा और दृढ़ संकल्प के साथ अब मैं अपने मन बुद्धि को स्थिर करके उस प्राइज के बारे में विचार करती हूँ जो भगवान हम बच्चों के लिए ले कर आये हैं। *अपनी हथेली पर बहिश्त ले कर आये अपने हेविनली गॉड फादर द्वारा मिलने वाली ईश्वरीय सौगात की स्मृति मुझे मन बुद्धि के विमान पर बिठाकर उस खूबसूरत दुनिया में ले जाती हैं जिसकी रचना भगवान स्वयं आकर इस समय हम बच्चों के लिए कर रहें हैं*। मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से उस नई दुनिया के नए मनभावन दृश्यों को मैं अब देख रही हूँ।
➳ _ ➳ हीरे जवाहरातों से सजी वो सुन्दर दुनिया मेरी आँखों के सामने हैं और उस दुनिया में विचरण करते हुए मैं देख रही हूँ स्वयं को अपने अति सुंदर दैवी स्वरूप में। *मन को लुभाने वाले बहुत ही सुंदर - सुन्दर नजारों से सजी इस सतयुगी दुनिया में सुख, शान्ति और सम्पन्नता की भरमार है। दुख का यहाँ कोई नाम निशान भी नही। सभी सुखमय, शान्तमय जीवन का आनन्द ले रहें हैं*। इस पावन दुनिया मे प्रकृति भी दासी बन सुख दे रही है। सदाबहार मौसम, हरे भरे सुंदर खुशबूदार पेड़ पौधे, पेड़ो पर लगे रसीले सुन्दर फल और प्रकृति के बहुत ही खूबसूरत नज़ारे मैं इस दुनिया मे देख - देख कर आनन्दित हो रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने प्यारे पिता द्वारा इजाफे ( ईनाम ) के रूप में मिलने वाली स्वर्गिक दुनिया के सुंदर नजारों का भरपूर आनन्द लेकर, ऐसी खूबसूरत सौगात देने वाले अपने शिव पिता से सदा उनकी मददगार बन उनके कार्य मे सहयोगी बनने की प्रतिज्ञा करके अपने मीठे बाबा की मीठी यादों में मैं खो जाती हूँ और उनकी याद में बैठते ही मैं अनुभव करती हूँ *जैसे परमधाम से मेरे शिव पिता की सर्वशक्तियों की अनन्त किरणें मेरे ऊपर पड़ कर चुम्बक के समान मुझे अपनी और खींच रही हैं*। देह का भान समाप्त होता जा रहा है और मैं स्वयं को देह से अलग अनुभव करते हुए, बाबा की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को थामे देह से बाहर आ कर अब ऊपर आकाश की ओर उड़ने लगी हूँ।
➳ _ ➳ अपने शिव पिता के स्नेह की शीतल छत्रछाया को अपने ऊपर अनुभव करते,आकाश को पार कर, उससे ऊपर सूक्ष्म वतन से होती हुई मैं पहुँच गई हूँ परे ते परे उस परलोक अर्थात ब्रह्मलोक में, जहाँ मेरे शिव पिता रहते हैं। यहाँ पहुंचते ही मैं महसूस करती हूँ स्वयं को हर संकल्प विकल्प से मुक्त एक अति सुन्दर शून्य अवस्था में। *शांति से भरपूर इस अति सुखदाई अवस्था मे स्थित होकर अब मैं अपने प्यारे पिता के साथ बहुत सुन्दर स्नेह मिलन मना रही हूँ*। बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की सहस्त्रों धाराओं को मैं एक साथ अपने ऊपर पड़ता हुआ महसूस कर रही हूँ जो मुझे बहुत ही बलशाली बनाने के साथ - साथ मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की कट को धोकर मुझ आत्मा को भी साफ और स्वच्छ बना रही हैं।
➳ _ ➳ सर्वशक्तियों से सम्पन्न, साफ स्वच्छ बनकर, बाबा का मददगार बनने के लिए अब मैं फिर से साकार सृष्टि पर लौट रही हूँ और अपनी साकार देह में विराजमान होकर मैं फिर से अपना पार्ट बजा रही हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, बाबा की शिक्षाओं पर चलकर, उनका मददगार बन उनसे इज़ाफा ( इनाम ) लेने के लिए अपने पुरुषार्थ पर अब मैं पूरा अटेंशन दे रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं समर्थ स्थिति के आसन पर बैठ व्यर्थ और समर्थ का निर्णय करने वाली स्मृति स्वरूप आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं अनेक प्रकार के मानसिक रोगों को दूर भगाने का साधन- साइलेंस की शक्ति धारण करने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
➳ _ ➳ *जब
सर्वशक्तिमान् बाप साथ है तो सर्वशक्तिमान् के आगे अपवित्रता आ सकती है? नहीं
आ सकती।* लेकिन
आती तो है! तो आती फिर कहाँ से है? कोई
और जगह है? चोर
लोग जो होते हैं वो अपना स्पेशल गेट बना लेते
हैं। चोर गेट होता है। तो *आपके पास भी छिपा हुआ चोर गेट तो नहीं है? चेक
करो। नहीं तो माया आई कहाँ से?* ऊपर
से आ गई? अगर
ऊपर से भी आ गई तो ऊपर ही खत्म हो जानी चाहिये।
➳ _ ➳
कोई
छिपे हुए गेट से आती है जो आपको पता नहीं पड़ता है तो चेक करो कि माया ने कोई
चोर गेट तो नहीं बनाकर रखा है?
और
गेट बनाती भी कैसे है, मालूम
है? *आपके
जो विशेष स्वभाव या संस्कार कमजोर होंगे तो वहीं माया अपना गेट बना देती है।
क्योंकि जब कोई भी स्वभाव या संस्कार कमजोर है तो आप कितना भी गेट बन्द करो, लेकिन
कमजोर गेट है, तो
माया तो जानीजाननहार
है,उसको
पता पड़ जाता है* कि ये गेट कमजोर है, इससे
रास्ता मिल सकता है और मिलता भी है।
➳ _ ➳ *चलते-चलते
अपवित्रता के संकल्प भी आते हैं, बोल
भी होता, कर्म
भी हो जाता है। तो गेट खुला हुआ है ना, तभी तो
माया आई।* फिर साथ कैसे हुआ? कहने
में तो कहते हो कि सर्वशक्तिमान् साथ है तो ये कमजोरी फिर कहाँ से आई? कमजोरी
रह सकती है?
नहीं ना? तो
क्यों रह जाती है? चाहे
पवित्रता में कोई भी विकार हो,
मानो लोभ है, लोभ
सिर्फ खाने-पीने का नहीं होता। कई समझते हैं हमारे में पहनने,
खाने या रहने का ऐसा तो कोई आकर्षण नहीं है, जो
मिलता है, जो
बनता है, उसमें
चलते हैं। लेकिन जैसे आगे बढ़ते हैं तो माया लोभ भी रायल और सूक्ष्म रूप में लाती
है।
➳ _ ➳ *मानो
स्टूडेण्ट है, बहुत
अच्छा निश्चयबुद्धि, सेवाधारी
है,
सबमें अच्छा है लेकिन जब आगे बढ़ते हैं तो ये रायल लोभ
आता है कि मैं इतना कुछ करता हूँ, सब
रूप (तरह) से मददगार हूँ,* तन
से,
मन
से, धन
से और जिस समय चाहिये
उस समय सेवा में हाजिर हो जाता हूँ फिर भी मेरा नाम कभी भी टीचर वर्णन नहीं
करती कि ये जिज्ञासु बहुत अच्छा
है। अगर मानों ये भी नहीं आवे तो फिर दूसरा रूप क्या होता है? अच्छा, नाम
ले भी लिया तो *नाम सुनते-सुनते- मैं
ही हूँ, मैं
ही करता हूँ, मैं
ही कर सकता हूँ, वो
अभिमान के रूप में आ जायेगा।*
✺
*ड्रिल :- "माया के रायल और सूक्ष्म रूप की चेकिंग करना"*
➳ _ ➳
मन
बुद्धि रूपी विमान में बैठ मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ *शांतिवन में... बाबा रूम
में... संकल्पों विकल्पों की हलचल से दूर... शांति के सागर शिवबाबा के
सामने...* अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ...
शक्तियों के सागर अपने प्यारे पिता को एकटक निहार रही हूँ... उनसे निकल रही
शांति की किरणों से भरपूर कर रही हूँ स्वयं को...
➳ _ ➳
मैं
बाबा से कहती हूँ... बाबा,
जब
सर्वशक्तिवान आप मेरे साथ हो तो माया चोर गेट बना कर कैसे आ सकती है... पर
बाबा... *माया बड़ी दुस्तर है... मेरे ऊपर बहुत कड़ी निगरानी रखती है...* कभी एक
सेकंड के लिये भी क्रोध का सूक्ष्म अंश आ जाता है... या किसी बात में थोड़ा सा
देहभान आ जाता है तो माया बिना एक पल गवांये वार कर देती है...
➳ _ ➳ *बाबा,
जब
मैं आपकी बन गई... पवित्रता का कंगन बांध लिया तो फिर संकल्प में... बोल में...
कर्म में... अपवित्रता सूक्ष्म में भी क्यों आ जाती है... मैं और मेरापन क्यों
आ जाता है...* बाबा...
जब पवित्रता के सागर... आप स्वयं मेरे साथ हो तो फिर यह अपवित्रता क्यों...
बाबा,
मेरे मीठे बाबा... *अब मैं अपने हर संकल्प... हर बोल... हर कर्म... की सूक्ष्म
चेकिंग करुँगी... अटेंशन रूपी पहरेदार को अपनी इन सूक्ष्म कमजोरियों पर कड़ी
निगरानी रखने के लिये कहूँगी...*
➳ _ ➳ *माया
की इन रॉयल और सूक्ष्म कमजोरियों पर काबू पाने के लिये मुझे परखने की... समाने
की... सहन करने की... शक्तियों का बल जमा करना है... मैं और मेरेपन के सूक्ष्म
अहंकार को समाप्त करना है...* पुराने स्वभाव और संस्कार के वंश के अंश पर जीत
पहननी है... जहाँ "मैं" शब्द याद आये वहाँ बाबा... आप याद आओ... और जहाँ "मेरा"
याद आये... वहाँ आपकी श्रीमत याद आये...
➳ _ ➳
बाबा के हाथ में अपना हाथ देकर... मैं बाबा से कहती हूँ... प्यारे बाबा... *आज
मैं आपसे प्रतिज्ञा करती हूँ मैं माया के इस चोर गेट को अटेंशन रूपी डबल लॉक
द्वारा बंद करुँगी... और हर कदम पर आपकी श्रीमत पर चलकर सम्पूर्ण पावन बन माया
के रॉयल और सूक्ष्म रूप की गहराई से चेकिंग करुँगी...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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