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 04 / 05 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अपने स्वीट होम को याद किया ?*

 

➢➢ *सच्चे बाप से सच्चा सौदा किया ?*

 

➢➢ *सर्व खजानों को स्वयं में समाकर, दिलशिकस्त-पन व इर्ष्या से मुक्त रहे ?*

 

➢➢ *स्वार्थ के बिना सच्चे दिल से सेवा की ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जैसे ब्रह्मा बाप के संस्कारों में बेहद का त्याग और बेहद की तपस्या देखी। हर संकल्प में यही रहा कि बेहद का कल्याण कैसे हो। *ऐसे बेहद के तपस्वी बनो। दो चार घण्टे के तपस्वी नहीं लेकिन हर सेकंड तपस्या-स्वरूप, तपस्वी मूर्त। मूर्त और सूरत से त्याग, तपस्या और सेवा-साकार रूप में प्रत्यक्ष करो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं राजयोगी, श्रेष्ठ योगी आत्मा हूँ"*

 

✧  राजयोगी, श्रेष्ठ योगी आत्मायें हो ना? *साधारण जीवन से सहजयोगी, राजयोगी बन गये। ऐसी श्रेष्ठ योगी आत्मायें सदा ही अतीइन्द्रिय सुख के झूले में झूलती हैं।* हठयोगी योग द्वारा शरीर को ऊंचा उठाते हैं और उड़ने का अभ्यास करते हैं। वास्तव में आप राजयोगी ऊंची स्थिति का अनुभव करते हो। इसको ही कापी करके वो शरीर को ऊंचा उठाते हैं।

 

  लेकिन आप कहाँ भी रहते ऊंची स्थिति में रहते हो, इसलिए कहते हैं - योगी ऊंचा रहते हैं। तो मन की स्थिति का स्थान ऊंचा है। क्योंकि डबल लाइट बन गये हो। वैसे भी फरिश्तों के लिए कहा जाता कि फरिश्तों के पांव धरनी पर नहीं होते। *फरिश्ता अर्थात् जिसका बुद्धि रूपी पांव धरती पर न हो, देहभान में न हो। देहभान से सदा ऊंचे - ऐसे फरिश्ते अर्थात् राजयोगी बन गये।*

 

  अभी इस पुरानी दुनिया से कोई लगाव नहीं। सेवा करना अलग चीज है लेकिन लगाव न हो। योगी बनना अर्थात् बाप और मैं, तीसरा न कोई। *तो सदा इसी स्मृति में रहो कि हम राजयोगी, सदा फरिश्ता हैं। इस स्मृति से सदा आगे बढ़ते रहेंगे। राजयोगी सदा बेहद का मालिक हैं, हद के मालिक नहीं। हद से निकल गये। बेहद का अधिकार मिल गया - इसी खुशी में रहो। जैसे बेहद का बाप है, वैसे बेहद की खुशी में रहो, नशे में रहो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  रूहानी ड्रिल जनते हो? जैसे शारीरिक ड्रिल के अभ्यासी एक सेकण्ड में जहाँ और जैसे अपने शरीर को मोडने चाहे वहाँ मोड सकते हैं, ऐसे रूहानी ड्रिल करने के अभ्यासी एक सेकण्ड में बुद्धि को जहाँ चाहो, जब चाहो उसी स्टेज पर, उसी परसेन्टेज से स्थित कर सकते हो? *ऐसे एवररेडी रूहानी मिलिट्री बने हो?*

 

✧  अभी - अभी आर्डर हो अपने सम्पूर्ण निराकारी, निरअहंकारी, निर्विकारी स्टेज पर स्थित है जाओ तो क्या स्थित हो सकते हो वा साकार शरीर, साकारी सृष्टि वा विकारी संकल्प न चाहते हुए भी आपने तरफ आकर्षित करेंगे। *इस देह के आकर्षण से परे एक सेकण्ड में हो सकते हो?* हार और जीत का आधार एक सेकण्ड होता है। तो एक सेकण्ड की बाजी जीत सकते हो?

 

✧  ऐसी विजयी अपने आप को समझते हो? *ऐसे सर्व शक्तियों के सम्पत्तिवान अपने को समझते हो वा अभी तक सम्पूर्ण सम्पत्तिवान बनना हैं?* दाता के बच्चे सदा सर्व सम्पत्तिवान होते हैं, ऐसे अपने को समझते हो वा अभी तक 63 जन्मों के भक्त - पन वा भिखारी - पन के संस्कार कब इमर्ज होते हैं?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  एवररेडी अर्थात् अभी-अभी किसी भी परिस्थिति व वातावरण में आर्डर मिले व श्रीमत मिले कि एक सेकण्ड में सर्व-कर्मेन्द्रियों की अधीनता से न्यारे हो कर्मेन्द्रिय-जीत बन एक समर्थ संकल्प में स्थित हो जाओ, तो श्रीमत मिलते हुए मिलना और स्थित होना साथ-साथ हो जाये। *बाप ने बोला और बच्चों की स्थिति ऐसी ही उस घड़ी बन जाये उसको कहते हैं एवररेडी।* जो पहले बातें सुनाई समानता की जिससे ही समीपता की स्टेज बनती है - ऐसे सब बातों में कहाँ तब समान बने है? यह चैकिंग करो। ऐसे तो नहीं डायरेक्शन को प्रेक्टिकल में लाने में एक सेकण्ड के बजाय एक मिनट लग जाये। *एक सेकेण्ड के बजाय एक मिनट भी हुआ तो फस्र्ट डिवीजन में पास नहीं होंगे, चढ़ते, उतरते व स्वयं को सैट करते फस्र्ट डिवीजन की सीट को गंवा देंगे। इसलिए सदा एवररेडी, सिर्फ एवररेडी भी नहीं, सदा एवररेडी।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पवित्रता के मैनर्स धारण करना और दूसरों को कराना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा अमृतवेले के समय अमृत पान करने चार धामों की यात्रा पर निकल पड़ती हूँ...* मन-बुद्धि के रॉकेट में बैठ अपने घर मधुबन पहुँच जाती हूँ... बाबा का कमरा, बाबा की कुटिया और हिस्ट्री हाल की रूहानी यात्रा करते हुए मैं आत्मा शांति स्तम्भ के सामने बैठ जाती हूँ... *मुस्कुराते हुए, दोनों हाथों को फैलाए मेरे प्राण प्यारे बाबा मुझे अपनी बाँहों में ले लेते हैं और शांति की ठंडी-ठंडी किरणें बरसाते हुए मीठी शिक्षाएं देते हैं...*

 

  *पवित्रता के सागर मेरे प्यारे बाबा पवित्र किरणों को बरसाते हुए कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे.... ईश्वर पिता की गोद में बैठ कमल फूल सी पवित्रता से सज जाओ... *मनसा वाचा कर्मणा पवित्र होकर सम्पूर्ण पवित्रता से विश्व मालिक बन खुशियो में झूम जाओ... पावनता से सजधज कर ईश्वर पिता के सहयोगी बन... सदा के सुखो में मुस्कराओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा लक्ष्य सोप से अपने मटमैलेपन को धोकर पवित्रता का कवच धारण करते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी फूलो सी गोद मेंरूहानी गुलाब सी खिल उठी हूँ... *आपकी यादो में पायी पावन खुशबु से... पूरे विश्व को सुवासित कर रही हूँ... पवित्रता की सुगन्ध में हर दिल को महका रही हूँ...”*

 

  *पवित्रता के सितारों से सजाकर मेरे जीवन को कंचन बनाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *फूल से बच्चों को दुखो के जंगल में भटकते देख... विश्व पिता को भला कैसे चैन आये... बच्चों के सुख की चाहना दिल में लिये धरा पर उतर आये... फिर से पावनता में खिलाकर अनन्त सुखो का अधिकारी सजाये...* तब कही विश्व पिता करार सा पाये... पवित्रता की चुनर ओढ़ा कर देव तुल्य बनाये...

 

_ ➳  *पवित्रता के मैनर्स धारण कर हीरे जैसा नया जीवन पाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा देह के भान से निकल पवित्रता से सजकर पुनः देवताई सुखो की अधिकारी बन रही हूँ...* प्यारे बाबा विश्व परिवर्तन के महान कार्य में... पावनता से सहयोगी बनकर ईश्वरीय दिल जीतने वाली भाग्यवान हो गयी हूँ...

 

  *रूहानी नजरों से निहाल कर पावन बनाते हुए मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देह के झूठे मटमैले आवरण से बाहर निकल... अपने दमकते स्वरूप को स्मृतियों में भर लो... *ईश्वरीय बाँहों में पावनता से भरपूर हो जाओ... विकारो की कालिमा से मुक्त होकर, उज्ज्वल धवल तेजस्वी रूप में खिल कर... पावन तरंगो से विश्व धरा को तरंगित करो...”*

 

_ ➳  *पावनता के रिमझिम से अतीन्द्रिय सुखों में झूमती हुई, बाबा को शुक्रिया करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा पावनता को पाकर कितनी अनोखी और अमूल्य हो गयी हूँ... आपने मुझे कौड़ी से हीरे सा बनाकर दिल तख्त पर सजा लिया है...* मुझे दिव्यता से भरकर देवताई सुखो से सजा दिया है... मै आत्मा आपकी रोम रोम से ऋणी हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  अंत मति सो गति के लिए पुरानी दुनिया से दिल हटाकर अपना मुख मोड़ लेना है*

 

_ ➳  अंतिम समय के एक सेकेण्ड के पेपर के बारे में एकान्त में बैठी मैं विचार कर रही हूँ कि कैसा होगा अंत समय का वो एक सेकण्ड का पेपर! *साधारण पढ़ाई में भी जब स्टूडेंट्स का सरप्राइज टेस्ट होता है तो उस टेस्ट को देख कई स्टूडेंट्स के माथे पर तो पसीना आ जाता है*। यहाँ तो कल्प - कल्प की बाजी है। एक बार असफल होना माना कल्प - कल्प के लिए असफल हो जाना।

 

_ ➳  यही सब चिंतन करते हुए अब अपने आप से मैं सवाल करती हूँ कि क्या मैं ऐसी तैयारी कर रही हूँ! *क्या मेरी ऐसी ऊँची स्थिति बन रही है जो अंत समय के एक सेकण्ड के पेपर को देख मुझे पसीने ना आयें बल्कि खुशी और सफलता के दृढ़ विश्वास के साथ मैं वो पेपर दे सकूँ और पास विद ऑनर हो सकूँ*! ऐसा तभी हो सकता है जब अंत मति सो गति का मेरा बहुत अच्छा पुरुषार्थ होगा।

 

_ ➳  अंत मति सो गति ही, अंतिम समय के एक सेकण्ड के पेपर में पास विद ऑनर का खिताब दिलाये मेरे सतयुगी ऊँच पद की प्राप्ति का आधार बनेंगी। *इसलिए अब मुझे अंत मति सो गति के पुरुषार्थ में तीव्र गति से लग जाना है। इस पुरानी दुनिया से दिल हटाकर, अपना मुख मोड़ लेना है और हर बात से उपराम होकर बुद्धि को अपने परमधाम घर मे स्थित कर देना है*। केवल अल्फ और बे इन दो शब्दों को स्मृति में रख, अपने प्यारे प्रभु की याद से विकर्मो को दग्ध करना है और विश्व की बादशाही प्राप्त करने का तीव्र पुरुषार्थ करना है।

 

_ ➳  मन ही मन स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर, इस प्रतिज्ञा को पूरा करने और इसमें सफल होने का वरदान अपने प्यारे प्रभु से प्राप्त करने करने के लिए और उनकी याद से विकर्मो को दग्ध करने के लिए अब मैं अशरीरी स्थिति में स्वयं को स्थित करती हूँ। *हर संकल्प विकल्प से अपने मन और बुद्धि को खाली करने के लिए अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने स्वरूप पर मैं एकाग्र कर लेती हूँ और अपने वास्तविक शान्त स्वरूप में स्थित होकर, शान्ति के एक अति सुखद अनुभव में कुछ पल के लिए खो जाती हूँ*।

 

_ ➳  अपने स्वधर्म में स्थित हो कर शांति की गहन अनुभूति करते हुए मेरी बुद्धि का कनेक्शन स्वत: ही शांति के सागर मेरे शिव पिता के साथ जुड़ जाता है और मेरे प्यारे पिता की सर्वशक्तियों की किरणें मुझे सेकेण्ड में अपनी ओर खींच लेती हैं। *उनकी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को थामे मैं देह के अकालतख्त को छोड़ देह से बाहर आ जाती हूँ और ऊपर अपने शिव पिता के पास उनकी निराकारी दुनिया की ओर प्रस्थान कर जाती हूँ*।

 

_ ➳  साकार और सूक्ष्म लोक को पार कर मैं मूल वतन में प्रवेश करती हूँ और अपने पिता की किरणों रूपी बाहों के झूले से नीचे उतर कर अपने इस ब्रह्मलोक, परमधाम घर की सैर करते हुए, इस अंतहीन ब्रह्मांड में फैले शांति के वायब्रेशन्स को अपने अंदर समाकर गहन शांति की अनुभूति करते हुए अब बाबा के पास जा कर बैठ जाती हूँ। *उनकी सर्वशक्तियों की अथाह किरणे एक मीठे झरने के रूप में मुझ पर बरसने लगती हैं और मुझे सर्वशक्तियों से भरपूर करके आप समान शक्तिशाली बना देती है*। बाबा की सर्वशक्तियों को स्वयं में समाकर मैं वापिस साकार लोक में लौट आती हूँ और फिर से अपने साकार शरीर रूपी रथ पर आकर विराजमान हो जाती हूँ।

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण जीवन में शक्तिसम्पन्न स्वरूप के साथ, अब मैं अंत मति सो गति के लिए निरन्तर सर्वशक्तिवान बाप की याद में रहने का सहज पुरुषार्थ कर रही हूँ। सर्वसम्बन्धो से बाबा को अपना बनाकर, हर सम्बन्ध का सुख बाबा से लेते हुए, देह और देह की दुनिया से मैं नष्टोमोहा बनती जा रही हूँ। *इस पुरानी दुनिया से मेरी दिल हटती जा रही है। अपना मुख इस विनाशी दुनिया से मोड़, नई आने वाली सतयुगी दुनिया की ओर करके,अंत मति सो गति द्वारा, अंतिम समय के पेपर में पास विद ऑनर होने का पुरुषार्थ मैं पूरी लग्न के साथ कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सर्व ख़ज़ानों को स्वयं में समाकर, दिलशिकस्त-पन वा ईर्ष्या से मुक्त्त रहने वाली सदा प्रसन्नचित आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं स्वार्थ के बिना सच्चे दिल से सेवा करने वाली स्वच्छ आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  सदा रूहानियत की खुशबू फैलाने वाले सच्चे-सच्चे रूहानी गुलाब:- *सभी बच्चे- सदा रूहानी नशे में रहने वाले सच्चे रूहानी गुलाब हो ना? जैसे रूहे गुलाब का नाम बहुत मशहूर है वैसे आप सभी आत्मायें रूहानी गुलाब हो। रूहानी गुलाब अर्थात् चारों ओर रूहानियत की खुशबू फैलाने वाले।* ऐसे अपने को रूहानी गुलाब समझते हो? सदा रूह को देखते और रूहों के मालिक के साथ रूह-रूहान करते यही रूहानी गुलाब की विशेषता है। सदा शरीर को देखते रूह अर्थात् आत्मा को देखने का पाठ पक्का है ना! इसी रूह को देखने के अभ्यासी रूहानी गुलाब हो गये। *बाप के बगीचे के विशेष पुष्प हो क्योंकि सबसे नम्बरवन रूहानी गुलाब हो। सदा एक की याद में रहने वाले अर्थात् एक नम्बर में आना है, यही सदा लक्ष्य रखो।*

 

✺  *"ड्रिल :- सदा रूहानियत की खुशबू फैलाने वाले सच्चे-सच्चे रूहानी गुलाब बनकर रहना*"

 

_ ➳  *मैं रूह रुई की तरह हलकी होकर हवा में उड़ती अपनी ही धुन में झूमती हुई पहुँच जाती हूँ रूहों के मालिक सुप्रीम रूह के पास...* मैं रूह सुप्रीम रूह को निहार रही हूँ... सुप्रीम रूह मुझ रूह को बड़े प्यार से देख रहे हैं... मैं सुप्रीम रूह के प्यार में समा रही हूँ... सुप्रीम रूह के संग के रंग में रंगती जा रही हूँ... रुहानी खुशबू को धारण कर रुहानी गुलाब बन रही हूँ...

 

_ ➳  *मैं रूहानी गुलाब सदा सुप्रीम रूह की छत्र छाया में ही रहती हूँ...* मेरी दृष्टि में सदा सुप्रीम रूह समाया हुआ रहता है... मैं सदा सुप्रीम रूह के साथ कम्बाइन्ड रहती हूँ... सदा इसी नशे में रहती हूँ कि सुप्रीम रूह मेरा और मैं सुप्रीम रूह की... *मैं रूहे गुलाब सदा सुप्रीम रूह को देखती, उनसे रूह-रूहान करती रहती हूँ...*

 

_ ➳  *मैं रूहानी नशे में रहने वाली रूहानी रूहे गुलाब चारों ओर अपनी खुशबू महका रही हूँ...* चारों ओर के वायुमंडल को सुगन्धित बना रही हूँ... मेरी रूहानियत की खुशबू से चारों ओर की तमोप्रधान प्रकृति सतोप्रधान बन रही है... मैं रूह सदा रूहों को देखती हूँ... उनके शरीर को नहीं देखती... सभी रूहें मेरे आत्मा भाई हैं... सभी अलग-अलग अपना पार्ट बजा रहे हैं... *मुझ रुहे गुलाब को देह वा देह की दुनिया, वस्तु, व्यक्ति देखते हुए भी नहीं दिखाई देते हैं...* पुरानी दुनिया भी रुहानी दुनिया, फरिश्तों की दुनिया दिखाई देती है...

 

_ ➳  *मुझ रूह का करावनहार सुप्रीम रूह है... मैं करनहार हूँ...* मैं हर संकल्प, बोल और कर्म सुप्रीम रूह की श्रीमत के आधार पर करती हूँ... वह चला रहा है, मैं चल रहीं हूँ... अब मैं आत्मा सदा रुहानी खुशबू में अविनाशी और एकरस रहती हूँ... *अब मैं आत्मा सदा एक की याद में रहकर एक नम्बर में आने का लक्ष्य रखकर चलती हूँ...*

 

_ ➳  *मैं रूहे गुलाब सदा इसी रुहानी भावना में रहती हूँ कि सर्व रूहें भी सुप्रीम रूह के वर्से के अधिकारी बन जायें...* मैं रुहानी गुलाब सुप्रीम रूह से सर्व गुणों, शक्तियों को धारण कर सर्व को भी गुण, शक्तियों का दान करती हूँ... सुख, शांति की शुभ भावना और श्रेष्ठ कामना के साथ सर्व रूहों की रुहानी सेवा करती हूँ... *मैं रूह नम्बर वन खुशबूदार रुहे गुलाब बन दूर दूर तक रुहानी खुशबू फैलाने वाली सच्ची-सच्ची रूहानी गुलाब हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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