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 01 / 06 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *हर कर्म से बाप, टीचर और सतगुरु का शो किया ?*

 

➢➢ *"साक्षात सर्व समर्थ बाप हमारे साथ हैं" - यह स्मृति में रख विघनो से घबराए तो नहीं ?*

 

➢➢ *अलोकिक स्वरुप की स्मृति द्वारा अलोकिक कर्म किया ?*

 

➢➢ *सबकी विशेषताएं देखते हुए स्व उन्नति का यथार्थ चश्मा पहना ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *समय प्रमाण अब सर्व ब्राह्मण आत्माओं को समीप लाते हुए ज्वाला स्वरूप का वायुमण्डल बनाने की सेवा करो,* उसके लिए चाहे भट्टियां करो या आपस में सगंठित होकर रूहरिहान करो लेकिन ज्वाला स्वरूप का अनुभव करो और कराओ, *इस सेवा में लग जाओ तो छोटी-छोटी बाते सहज परिवर्तन हो जायेंगी।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं एकरस स्थिति वाली तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने को एकरस स्थिति में अनुभव करते हो? एकरस स्थिति है या और हद के रस आकर्षित करते हैं? निरन्तर योगी बन गये? सदा पावरफुल योग है या फर्क पड़ता है? निरन्तर अर्थात् अन्तर न हो। ऐसे शक्तिशाली बने हो या बन रहे हो? कितने तक बने हो? 75 परसेन्ट तक पहुँचे हो? *क्योंकि सदा एकरस का अर्थ ही है एक के साथ सदा जैसे बाप, वैसे मैं, बाप समान। बनना तो बाप समान है। बाप तो शक्ति भरते ही हैं। रोज की मुरली क्या है? शक्ति भरती है ना! लेकिन भरने वाले भरते हैं।*

 

  *सदैव स्मृति रखो कि हम महावीर हैं, शिवशक्तियां हैं तो कभी भी निर्बल नहीं होंगे, कमजोर नहीं होंगे। क्योंकि कोई भी विघ्न तब आता है जब कमजोर बनते हैं। अगर कमजोर नहीं बनो तो विघ्न नहीं आ सकता। महावीर को कहते हैं विघ्न विनाशक।* तो यह किसका टाइटल है? आप सभी विघ्न विनाशक हो या विघ्नों में घबराने वाले हो? कोई भी शक्ति की कमी हुई तो मास्टर सर्व शक्तिवान नहीं कहेंगे। इसलिए सदा याद रखो कि सर्व शक्तियां बाप का वर्सा है। वर्सा तो पूरा मिला है या थोड़ा मिला है? तो एक भी शक्ति कम नहीं होनी चाहिए।

 

  इस समय सभी मधुबन निवासी हो ना! अभी मधुबन को साथ ले जाना। क्योंकि मधुबन अर्थात् मधुरता। मधुबन आपके साथ होगा तो सदा ही सम्पूर्ण और सदा ही सन्तुष्ट रहेंगे। ऐसे नहीं कहना कि मधुबन में तो बहुत अच्छा था। अभी बदल गये। मधुबन का बाबा भी साथ है। तो मधुबन की विशेषता भी साथ है। तो सदा अपने को मास्टर सर्व शक्तिवान अनुभव करेंगे। सभी तीव्र पुरुषार्थी हो या पुरुषार्थी हो? तीव्र पुरुषार्थी की निशानी क्या होती है? *तीव्र पुरुषार्थी सदा उड़ती कला वाला होगा, सदा डबल लाइट होगा। कभी ऊपर, कभी नीचे नहीं, सदा उड़ती कला। जितना-जितना विचित्र बाप से प्यार है तो जिससे प्यार होता है वैसा ही बनना होता है। स्वयं भी विचित्र आत्मा रूप में स्थित होंगे तो उड़ती कला में रहेंगे।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *वर्तमान समय माया ब्राह्मण बच्चों की बुद्धि पर ही पहला वार करती है।* पहले बुद्धि का कनेक्शन तोड देती है। जैसे जब कोई दुश्मन वार करता है तो पहले टेलिफोन, रेडियों आदि के कनेक्शन तोड देते है।

 

✧  लाइट और पानी का कनेक्शन तोड देते है फिर वार करते हैं, *ऐसे ही माया भी पहले बुद्धि का कनेक्शन तोड देती है जिससे लाइट, माइट शक्तियाँ और ज्ञान का  संग आँटोमेटिकली बन्द हो जाता है।* अर्थात मूर्छित बना देती है।

 

✧  अर्थात स्वयं के स्वरूप की स्मृति से वंचित कर देती है व बेहोश कर देती है। उसके लिए *सदैव बुद्धि पर अटेन्शन का पहरा चाहिए। तब ही निरंतर कर्मयोगी सहज बन पायेंगे।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ आप पद्मापद्म भाग्यशाली सिकीलधे बच्चों का भी बुद्धि रूपी पाँव सदा देहभान या देह की दुनिया की स्मृति से ऊपर रहना चाहिए। जब बाप-दादा ने मिट्टी से ऊपर कर तख्तनशीन बना दिया तो तख्त छोड़कर मिटी में क्यों जाते। *देहभान में आना माना मिट्टी में खेलना। संगमयुग चढ़ती कला का युग है, अब गिरने का समय पूरा हुआ, अब थोड़ा सा समय ऊपर चढ़ने का है इसलिए नीचे क्यों आते, सदा ऊपर रहो।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अशरीरी बनने का अभ्यास करना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा घर की छत पर खड़े होकर सामने स्कूल के मैदान में बच्चों को देख रही हूँ... सभी बच्चे सफ़ेद पोशाक में खड़े होकर ड्रिल कर रहे हैं... जैसे-जैसे ड्रिल मास्टर आदेश कर रहे, वैसे-वैसे ही बच्चे ड्रिल कर रहे हैं... *मैं आत्मा मीठे बाबा का आह्वान करती हूँ... मीठे बाबा मुझे अपने गोद में उठाकर ले चलते हैं सूक्ष्म वतन में... प्यारे बाबा ड्रिल मास्टर बनकर मुझे रूहानी ड्रिल सिखाते हैं... मैं आत्मा इस शरीर से डिटैच होकर अशरीरी बन बाबा की यादों में खो जाती हूँ...*  

 

  *मनमनाभव का मन्त्र देकर मुझे अशरीरी बनाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... अपने सत्य स्वरूप के नशे में गहरे डूब जाओ... *इस विकारी देह और देह के भान से स्वयं को मुक्त कर अशरीरी सच्चे वजूद की याद में खो जाओ... इस पराये शरीर के ममत्व से बाहर निकल अपने अविनाशी अस्तित्व की मस्ती में झूम जाओ...”*

 

_ ➳  *रावण की प्रॉपर्टी इस तन से न्यारी होकर अपने अविनाशी स्वरुप में टिकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में अपने असली स्वरूप को पाकर धन्य हो गयी हूँ... *दुःख को ही जीवन का अटल सत्य समझने वाली शरीरधारी से... इस कदर खुबसूरत मणि बन मुस्करा रही हूँ...”*

 

  *देह की दुनिया के दलदल से निकाल रूहानियत का इत्र लगाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... जिस लाल घर के लाल हो वहाँ यह पराया तन तो जा ही न सके... तो इससे फिर दिल लगाना ही क्यों... *इन झूठे नातो और विकारी सम्बन्धो के भँवर से ईश्वरीय यादो के सहारे बाहर निकल जाओ... और अपने खुबसूरत स्वरूप और सच्चे सौंदर्य को प्रतिपल याद करो...”*

 

_ ➳  *सुख के सागर में सत्यता की नाव में बैठकर अपने घर की ओर रुख करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... आपने धरा पर आकर मुझ भूली भटकी आत्मा को आवाज देकर सुखो से संवार दिया है... *मै आत्मा तो दुखो के लिए हूँ ही नही और सदा सुख की अधिकारी हूँ... यह मीठा सत्य सुनकर मै आत्मा आपकी रोम रोम से ऋणी हो गयी हूँ...”*

 

  *निराकारी बाबा मुझ आत्मा को आप समान निराकारी बनाते हुए कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... यह विकारी तन तो रावण का है यह कभी साथ जाना नही इसके मायाजाल से स्वयं को निकालो... *अपने अशरीरी के भान में खो जाओ और ईश्वर पिता की यादो में अपनी धुंधली सी हो गई रंगत को उसी ओज से भर लो...”*

 

_ ➳  *बाबा की यादों से अपने जीवन के हर एक पल को मीठा बनाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी प्यारी यादो में अपनी खोयी चमक को पाती जा रही हूँ... *शरीर के भान से मुक्त होकर सच्चे स्वरूप को प्रतिपल यादो में समाकर ईश्वरीय यादो में मालामाल होती जा रही हूँ... मै अजर अमर अविनाशी आत्मा हूँ इस सच्ची ख़ुशी से मुस्कराती जा रही हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  साक्षात सर्व समर्थ बाप हमारे साथ है इसलिए विघ्नों से घबराना नही है*

 

_ ➳  अपने सर्वसमर्थ सर्वशक्तिवान बाबा की याद में उनकी सर्वशक्तियों की छत्रछाया के नीचे स्वयं को अनुभव करते हुए मैं पैदल जा रही हूँ। चलते - चलते एक स्थान पर लगे हुए मेले को देख मैं उसमे प्रवेश कर जाती हूँ और एक स्थान पर खड़ी होकर वहाँ चल रही गतिविधियों को देखने लगती हूँ। *हजारों मनुष्य इस मेले में घूम रहे हैं, आनन्द भी ले रहे है किंतु फिर भी कहीं ना कहीं तनाव की रेखाये हर मनुष्य के चेहरे पर स्पष्ट दिखाई दे रही हैं*। चारों तरफ लोगों की भीड़ में देखते हुए, एक छोटे से बच्चे पर मेरी निगाह रुक जाती है। मैं देख रही हूँ उस छोटे बच्चे के चेहरे पर गहन निश्चिंतता के भाव, जो अपने पिता की अंगुली थामे बड़ी मस्ती से चल रहा है और हर नजारे का आनन्द ले रहा है। खुशी से झूम रहा है, हंस रहा है, तालियाँ बजा - बजा कर नाच रहा है।

 

_ ➳  मन ही मन मैं सोचती हूँ कि ये छोटा सा बच्चा कितना बेपरवाह होकर हर चीज का आनन्द ले रहा है क्योंकि इसे पता है कि मेरे पिता मेरे साथ है। कितना निश्चय, कितना विश्वास है इस बच्चे को अपने पिता पर कि वो उसे कुछ नही होने देंगे और यही निश्चिंतता का भाव ही उसे इस मेले का सच्चा आनन्द अनुभव करवा रहा है। *इस दृश्य को देख, उस मेले से बाहर आकर, फिर से अपनी यात्रा पर चलते हुए मैं विचार करती हूँ कि उस बच्चे के साथ तो केवल उसका लौकिक पिता है तो भी वो कितने निश्चिंत भाव से मेले के हर सीन का आनन्द ले रहा था। मेरे साथ तो सर्वशक्तिवान सर्व समर्थ भगवान है तो भला जीवन मे आने वाली परिस्थितियां और विघ्न मेरी खुशी को कैसे छीन सकते हैं*!

 

_ ➳  वो भगवान जिसके लिए दुनिया वाले कहते हैं कि उसकी मर्जी के बिना पत्ता भी नही हिल सकता, वो ऑल माइटी अथॉरिटी जब मेरे साथ है तो फिर भला मेरा अकल्याण कैसे हो सकता है! *मन ही मन स्वयं से बाते करते, अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य का गुणगान करते हुएउन सभी पलों को मैं एक - एक करके स्मृति में लाती हूँ जब हर विघ्न के समय मुख से बाबा निकला और बाबा ने कैसे सेकण्ड में आकर मुझे उस विघ्न से बाहर निकाल लिया*। अपने सर्वशक्तिवान बाबा की कदम - कदम पर मिलने वाली मदद को याद करते - करते मैं अपनी कर्मभूमि पर आ जाती हूँ। अपने प्यारे बाबा का शुक्रिया अदा करके अब मैं अन्तर्मुखी हो कर उनकी याद में बैठ जाती हूँ।

 

_ ➳  अपने मीठे बाबा की मीठी याद में बैठते ही एक अद्भुत से मधुर अहसास में मैं खो जाती हूँ। बाबा के मीठे प्यार के उस एहसास में जो उनकी मीठी - मीठी किरणो के रूप में मेरे ऊपर बरस रहा है। उनके प्यार की मीठी फ़ुहारों की मीठी शीतलता मन को तृप्त कर रही है और मैं जैसे खुद को ही भूलती जा रही हूँ। *मुझे केवल मेरे प्यारे मीठे बाबा का मन को लुभाने वाला सुन्दर सलौना स्वरूप और मुझ पर उनका निरन्तर बरसता हुआ प्यार दिखाई दे रहा है*। देह और देह की दुनिया को भूल अब मैं अपने प्यारे पिता के साथ मंगल मिलन मनाने उनके पास जा रही हूँ उनके उस निर्वाण धाम घर मे जो पाँच तत्वों की दुनिया से परें है जहाँ ना लौकिकता का कोई बन्धन है और ना अलौकिकता का कोई भान है।

 

_ ➳  झिलमिल सितारो की निराकारी दुनिया में आकर मैं गहन शान्ति का अनुभव कर रही हूँ। वाणी से परें की यह अवस्था मुझे डीप साइलेन्स की स्थिति में स्थित कर रही है। साइलेन्स का बल मुझे शक्तिशाली बना रहा है। थोड़ी देर इस डीप साइलेन्स का अनुभव करके अब मैं अपने प्यारे पिता के पास जाती हूँ और जाकर उनकी सर्वशक्तियों की किरणो रूपी बाहों में समा जाती हूँ। *अपनी शक्तियों की किरणो रूपी बाहों के झूले में झुलाते हुए बाबा अपना असीम प्यार मुझ पर बरसा रहें हैं। ज्ञान और योग के साबुन से मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारो की मैल को धोकर मुझे साफ और स्वच्छ बनाने के साथ - साथ अपनी शक्तियाँ मेरे अंदर भरकर मुझे शक्तिशाली भी बना रहें हैं* ताकि साकार सृष्टि पर पार्ट बजाते हुए अपने मार्ग में आने वाले हर विघ्न का मैं सामना कर सकूँ।

 

_ ➳  अपने प्यारे पिता के साथ मंगल मिलन मना कर, ज्ञान और योग का बल अपने अंदर भरकर मैं कर्म करने के लिए वापिस साकार सृष्टि पर लौट आती हूँ। हर कर्म करते अब मैं बाबा को सदैव अपने साथ रखती हूँ। *उनकी सर्वशक्तियों की छत्रछाया को सदा अपने ऊपर अनुभव करने से यह बात सदा मेरी स्मृति में रहती है कि मेरे इस ब्राह्मण जीवन में कदम - कदम पर साक्षात सर्व समर्थ बाबा मेरे साथ है*। यह स्मृति मुझे सदा निर्विघ्न स्थिति का अनुभव करवाती है। इसलिए जीवन मे आने वाले किसी भी विघ्न से घबराने की बजाए, अपने सर्वसमर्थ बाबा के साथ की स्मृति से मैं उस विघ्न पर सहज ही जीत प्राप्त कर लेती हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अलौकिक स्वरूप की स्मृति द्वारा अलौकिक कर्म करने वाली सदा समर्थ आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं स्व-उन्नति का यथार्थ चश्मा पहन कर  सबकी विशेषताओं को देखने वाली विशेष आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ रोब को त्याग, रूहाब को धारण करने वाले सच्चे सेवाधारी बनोः- सभी कुमार सदा रूहानियत में रहते हो? रोब में तो नहीं आते? यूथ को रोब जल्दी आ जाता है। यह समझते हैं हम सब कुछ जानते हैं, सब कर सकते हैं। जवानी का जोश रहता है। लेकिन *रूहानी यूथ अर्थात् सदा रूहाब में रहने वाले। सदा नम्रचित्त।* क्योंकि जितना नम्रचित्त होंगे उतना निर्माण करेंगे। *जहाँ निर्मान होंगे वहाँ रोब नहीं होगा, रूहानियत होगी। जैसे बाप कितना नम्रचित्त बनकर आते हैं, ऐसे फालो फादर। अगर जरा भी सेवा में रोब आता तो वह सेवा समाप्त हो जाती है।*

✺ *"ड्रिल :- रोब को त्याग, रुहाब को धारण करने वाले सच्चे सेवाधारी स्थिति का अनुभव करना"*

➳ _ ➳ मैं आत्मा सुहाने मौसम में, प्रकृति के बीच बहते हुए झरने के नीचे नहा रही हूँ... अपने लंबे केश खोले, बालों को हवा में उछाल रही हूँ... और मैं एक जगह से दूसरी जगह उछल-उछल कर अपनी खुशी का इजहार कर रही हूँ... तभी वहाँ मैं एक दृश्य को देखती हूँ... *एक माँ अपने बच्चे को बहुत प्यार से नहला रही है... और बच्चा बार बार माँ से हाथ छुडा रहा है... और माँ बार बार उस बालक को पकड़कर नहलाने लगती है... मैं उनके इस दृश्य को और माँ के प्रयास को बड़े ध्यान से देख रही हूँ...*

➳ _ ➳ कुछ देर बाद मेरे मन में ये विचार आता है कि *माँ कितनी विनम्र और नम्रचित्त होती है बिना किसी रोब के अपना सारा जीवन बच्चे और परिवार की सेवा में गुजार देती है...* और बिना थके, बिना कुछ कहे बच्चे की हर तमन्ना पूरी करती है... और बच्चे का सुंदर भविष्य का निर्माण करती है... ये सोचते-सोचते मेरा मन अचानक एक बिंदु रूप लिए आकाश में उड़ जाता है... और मैं उड़ते-उड़ते मधुबन पहुँच जाती हूँ... जहाँ सभी सेवाधारियों को बिना किसी रोब के रूहानियत से सेवा करते हुए देखती हूँ... कुछ दूर जाने के बाद मैं बाबा के कमरे के पास आकर बैठ जाती हूँ... और बाहर से ही बाबा के कमरे को निहारती हूँ...

➳ _ ➳ कुछ समय बाद मेरे पास बाबा आते हैं और बाबा मुझे छूते हैं... बाबा के छूते ही मैं फ़रिश्ता रूप में आ जाती हूँ... बाबा मुझे अपने साथ हाथ पकड़कर अपने कमरे में ले जाते है... मैं बाबा के सामने बैठ जाती हूँ... और बाबा की आँखों को निहारती हूँ... देखते देखते मैं अनुभव करती हूँ कि बाबा मुझे समझा रहे हैं... बाबा मुझसे कहते हैं... *बच्चे अगर सेवा में निरन्तर आगे जाना है और सच्चा सेवाधारी स्थिति का अनुभव करना है तो हमेशा याद रहे... किसी भी प्रकार की सेवा करते समय हमेशा रूहानियत में रहो... सेवा में कभी भी रोब नहीं आना चाहिए...*

➳ _ ➳ और बाबा मुझसे कहते है... बच्चे आजकल के युवा जल्दी ही सेवा करते रोब में आ जाते है... और अपने आपको सेवाधारी कहते है... नहीं, अगर सेवा में हर छोटी बात पर रोब दिखाओगे तो ये सेवा नहीं मानी जायेगी... सेवा में सदा नम्रचित्त रहो... विनम्रता से हम पत्थर रूपी कड़े संस्कारों वाली आत्मा को भी फूल के समान कोमल बना सकते हैं... अगर सेवा में जरा भी रोब आया तो वो सेवा उसी समय समाप्त हो जायेगी... बाबा की ये बातें सुनकर और अपने आपसे वा बाबा से ये वादा करके *कि मैं आज से हमेशा सभी प्रकार की सेवा सिर्फ और सिर्फ रूहानियत से करूँगी... हर आत्मा से नम्रचित्त रहकर उन्हें रूहानियत का अनुभव कराउंगी...* मैं वापिस झरने के नीचे आ जाती हूँ... और सच्ची सेवाधारी की स्थिति के लिए तैयार हो जाती हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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