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❍ 01 / 11 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *ज्ञान दान से अपनी प्रालब्ध बनाई ?*
➢➢ *अति मीठा बनकर रहे ?*
➢➢ *कर्मभोग को कर्मयोग में परिवर्तित कर सेवा के निमित बने ?*
➢➢ *दृष्टि में रहम और शुभ भावना रख अभिमान व अपमान की दृष्टि को समाप्त किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ अपने हर संकल्प को हर कार्य को अव्यक्त बल से अव्यक्त रुप द्वारा वेरीफाय कराना है। *बापदादा को अव्यक्त रुप से सदा सम्मुख और साथ रखकर हर संकल्प, हर कार्य करना है।* ‘‘साथी’’ और ‘‘साथ’’ के अनुभव से बाप समान साक्षी अर्थात् न्यारा और प्यारा बनना है।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं ऊंच ते ऊंच ब्राह्मण आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को ऊंचे ते ऊंचे बाप की ऊंचे ते ऊंची ब्राह्मण आत्मायें समझते हो? *ब्राह्मण सबसे ऊंचे गाये जाते हैं, ऊंचे की निशानी सदा ब्राह्मणों को चोटी पर दिखाते हैं। दुनिया वालों ने नामधारी ब्राह्मणों की निशानी दिखा दी है। तो चोटी रखने वाले नहीं लेकिन चोटी की स्थिति में रहने वाले। उन्होंने स्थूल निशानी दिखा दी है, वास्तव में हैं ऊंची स्थिति में रहने वाले।*
〰✧ *ब्राह्मणों को ही पुरुषोत्तम कहा जाता है। पुरुषोत्तम अर्थात् पुरुषों से उत्तम, साधारण मनुष्य आत्माओं से उत्तम। ऐसे पुरुषोत्तम हो ना! पुरुष आत्मा को भी कहते हैं श्रेष्ठ आत्मा बनने वाले अर्थात् पुरुषों से उत्तम पुरुष बनने वाले। देवताओंको भी पुरुषोत्तम कहते हैं क्योंकि देव-आत्मायें हैं। *आप देव-आत्माओंसे भी ऊंचे ब्राह्मण हो - यह नशा सदा रहे। दूसरे नशे के लिए कहेंगे - कम करो, रुहानी नशे के लिए बाप कहते हैं - बढ़ाते चलो।*
〰✧ क्योंकि यह नशा नुकसान वाला नहीं है, और सभी नशे नुकसान वाले हैं। यह चढ़ाने वाला है, वह गिराने वाले हैं। *अगर रुहानी नशा उतर गया तो पुरानी दुनिया की स्मृति आ जायेगी। नशा चढ़ा हुआ होगा तो नई दुनिया की स्मृति रहेगी। यह ब्राह्मण संसार भी नया संसार है। सतयुग से भी यह संसार अति श्रेष्ठ है! तो सदा इस स्मृति से आगे बढ़ते चलो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ तखत पर रहना अर्थात राज्य अधिकारी बनना। तो तख्त नशीन हो या कभी उतर आते हो? सदा स्मृति रखो कि - ‘मैं आत्मा तो हूँ लेकिन कौन-सी आत्मा? *राजा आत्मा, राज्य अधिकारी आत्मा हूँ, साधारण आत्मा नहीं हूँ।'*
〰✧ राज्य अधिकारी आत्मा का नशा और साधारण आत्मा का नशा - इसमें कितना फर्क होगा ! तो राजा बन अपनी राज्य कारोवार को चेक करो - कौन-सी कर्मेन्द्रिय वार-वार धोखा देती है? *अगर धोखा देती है तो उसको चेक करके अपने ऑर्डर में रखो।*
〰✧ अगर अलबेले होकर छोड देंगे तो उसकी धोखा देने की आदत और पक्की हो जायेगी और नुकसान किसको होगा? अपने को होगा ना। इसलिए क्या करना है? *अकालतखा-नशीन बन चेक करो।* (पार्टियों के साथ)
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ इस परिवर्तन के संकल्प को, जैसे बीज को पानी देते रहते हैं ना, तो फल निकलता है। पानी भी चाहिए, धूप भी चाहिए तो इस संकल्प को, बीज को स्मृति का पानी और धूप देते रहना। *बार-बार रिवाइज करो- मेरा बापदादा से वायदा क्या है!*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- भारत को पावन हीरे जैसे बनाना"*
➳ _ ➳ जब मै आत्मा देह की मिटटी में गहरे धँसी थी तो... विकारो की बदबू से सनी थी... मेरे तपते जीवन में दूर दूर तक सुखो की कोई छाया नही थी... कि *भाग्य ने अचानक परमात्म हाथो को मेरे जीवन की छत्रछाया बनाकर,मेरे ऊपर सजा दिया... मेरा विकारी जीवन गुणो की सुगन्ध में बदल गया... ईश्वरीय यादो में पोर पोर खुशबु से खिल गया..*. अंग अंग से पवित्रता छलकने लगी... आज तन और मन पावन बनकर.. पांचो तत्वों को, इस विश्व धरा को, पावन तरंगो से सिंचित करने लगे है... *यह कितनी प्यारी जादूगरी ईश्वर पिता ने मेरे जीवन पर दिखाई है.*.. उस जादूगर बाबा को अपनी पावनता का दिल से... धन्यवाद करने मै आत्मा... बढ़ चलती हूँ मीठे बाबा के कमरे की ओर....
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी शक्तियाँ देकर रूहानी सोशल वर्कर बनाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... सतगुरु पिता से मिलकर जो शक्तियो और गुणो का प्रतीक बनकर मुस्करा रहे हो... यह दौलत सबके दिलो में उंडेल आओ... *भारत को अपनी पावन किरणों से भरकर, पावनता और महानता का प्रतीक बनाओ.*.. सब आत्माओ के दुखो को दूर करने वाले... और सच्चे सुखो से जीवन को सजाने वाले... रूहानी सेवाधारी बनकर, बापदादा के दिल तख्त पर मुस्कराओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के प्यार के रंग में रंगकर प्रेम स्वरूप बनकर कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे...मै आत्मा आपसे पाये असीम खजाने पूरे विश्व पर बिखेर रही हूँ... और सबके आँगन में सच्ची खुशियो के फूल खिला रही हूँ... *सदा हँसती, मुस्कराती और खुशियो की बहारो को लुटाती... राह में आने वाले सारे विघ्नो को खत्म कर... सबका जीवन आप समान प्यारा बनाती जा रही हूँ.*.."
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को विश्व का कल्याण करने के लिए पावनता से सजाकर कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे...ईश्वर पिता के मददगार बनने वाले कितने महान भाग्यशाली हो... कि भारत को पावन बनाने में दिल जान से मीठे बाबा के साथी बने हो... सदा इस मीठे नशे से भरकर, ईश्वरीय दिल पर इतराओ... *भारत को पवित्र बनाने की सेवा कर, आने वाली सारी मुश्किलो को अपनी शक्तियो से दूर कर... उमंग उत्साह के पंखो से सदा खुशियो के आसमाँ में उड़ते रहो.*.."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा से पवित्रता की किरणे लेकर मा सागर बनकर कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा...मै आत्मा कभी खुद के वजूद को भूली थी... आज आपसे मिलकर भारत को पवित्रता से सजाने आप संग चल पड़ी हूँ... यह कितनी प्यारी जादूगरी है... यह कितना प्यारा मेरा भाग्य है... कि मै आत्मा *हर दिल को सच्चे आनन्द. प्रेम से भरकर, खुशियो से सजी खुबसूरत सतयुगी दुनिया में देवताओ सा सजा देख रही हूँ.*..
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी सारी खानों का मालिक बनाकर कहा :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... मीठे बाबा ने जिन सच्ची खुशियो दिव्यता और पवित्रता... से आपको श्रंगारित किया है...आप इस श्रंगार से पूरे विश्व को सजाओ... पतित हो गए भारत को पुनः इसकी दिव्यता से भरपूर करो... और *देवताओ वाली सुंदर सतयुगी दुनिया इस धरा पर पुनः लाओ.... सदा खुशियो में चहकते हुए, इस ईश्वरीय सेवा में.अपना भाग्य बनाओ.*.."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा की बाँहों में महानता से सज संवर कर कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे...मै आत्मा आपकी यादो में गहरे डूबकर, आज इस कदर महान बन गयी हूँ कि दिव्य गुणो से हर मन को सजा रही हूँ... *आपकी यादो भरी पवित्रता की चुनरी, हर दिल को ओढ़ा रही हूँ... और आपकी यादो के श्रंगार से देवताई सौंदर्य से दिलवा रही हूँ.*.. सच्ची सेवाधारी बनकर सबको खुशनुमा जीवन की अधिकारी बना रही हूँ..."मीठे बाबा को दिल की भावनाये अर्पित कर, सच्ची सेवा का व्रत लेकर... मै आत्मा धरा पर लौट आयी...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ज्ञान दान से अपनी परालब्ध बनानी है*"
➳ _ ➳ अपनी आंखों को मूंदे, बाबा के मधुर गीतों को सुनती एक रूहानी, अलौकिक मस्ती में बैठी मैं एक खूबसूरत दृश्य देख रही हूँ। इस दृश्य में मैं स्वयं को डबल ताज पहने सतयुग की महारानी के रूप में एक बहुत बड़े राजमहल में देख रही हूँ। *सोने से जड़ित राज सिहांसन पर विश्व महारानी के रूप में मैं बैठी हुई हूँ। सोने से जड़ित एक सुंदर छत्र मेरे सिर के ऊपर शोभायमान हो रहा है*। राजसी ठाठ - बाठ से सुसज्जित मेरे राहमहल में हर चीज आलीशान है। *दास - दासियां, नौकर - चाकर और प्रजा सभी मेरे राज्य में सुख, शांति, सम्पन्नता से भरपूर सुखमय जीवन व्यतीत कर रहें हैं*।
➳ _ ➳ विश्व महारानी की अपनी इस अतिश्रेष्ठ भविष्य प्रालब्ध के इस अति सुंदर नजारे को देख मन ही मन मैं असीम खुशी और रोमांच से भर जाती हूँ और विचार करती हूँ कि मेरी इस भविष्य ऊंच प्रालब्ध का सारा मदार मेरे अब के ब्राह्मण जीवन के पुरुषार्थ पर है। *अपने ब्राह्मण जीवन की स्मृति आते ही अब मैं अपने ब्राह्मण जीवन की उपलब्धियों में खो जाती हूँ*। अपने सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण जीवन को देख मैं विचार करती हूं कि कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा, जिसे स्वयं भगवान ने करोड़ो आत्माओं में से चुना हैं।
➳ _ ➳ कोटो में कोई, कोई में भी कोई के गायन वाली वो विशेष आत्मा मैं हूँ जिसकी महिमा के गीत रोज स्वयं भगवान गाता है। रोज मुझे स्मृति दिलाता है कि मैं महान आत्मा हूँ। मैं विशेष आत्मा हूँ। मैं इस दुनिया की पूर्वज आत्मा हूँ। *अपने सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण जीवन की स्मृति, मुझे मेरे जीवन को ऐसा सर्वश्रेष्ठ बनाने वाले दिलाराम बाबा की याद दिला रही है*। अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य को याद करते - करते मैं अपने दिलाराम बाबा की मीठी - मीठी यादों में खो जाती हूँ। *मेरी याद संकल्प के रूप में जैसे ही मेरे दिलाराम बाबा तक पहुंचती है उनकी याद का रिटर्न उनकी शक्तिशाली किरणों के रूप में परमधाम से सीधे मुझ आत्मा पर बरसने लगता है*।
➳ _ ➳ मैं अनुभव करती हूँ कि परमधाम से आ रही सर्वशक्तियों की शक्तिशाली किरणों से शरीर का भान जैसे धीरे - धीरे समाप्त हो रहा है और मैं अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित होने लगी हूँ। मुझे केवल मेरा जगमग करता ज्योतिबिंदु स्वरूप ही दिखाई दे रहा है। *अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप में स्थित होते ही अब मैं साकारी दुनिया को छोड़ दिव्य प्रकाश से प्रकाशित उस निराकारी दुनिया परमधाम की और जा रही हूँ जो मेरा वास्तविक घर है*। मेरे पिता परमात्मा का घर है। अपने इस मुक्तिधाम, शान्तिधाम घर मे मैं परममुक्ति का, गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ। मेरे शिव पिता परमात्मा से सतरंगी किरणे निकल कर मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं और मैं स्वयं को सातों गुणों से सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ सर्वगुण सम्पन्न स्वरूप बनकर अब मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ इस स्मृति और दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ कि अब मुझे अपने इस ब्राह्मण जीवन मे श्रेष्ठ पुरुषार्थ करके ऊंच प्रालब्ध बनानी है। *अपने संगमयुगी ब्राह्मण जीवन के सर्वश्रेष्ठ सौभाग्य और अपनी भविष्य 21 जन्मो की ऊंच प्रालब्ध को स्मृति में रख अब मैं केवल अपने पुरुषार्थ पर ध्यान दे रही हूँ*। इस रावण राज्य की विनाशी चीजो को प्राप्त करने में समय ना गंवाकर, ज्ञानी तू योगी आत्मा बन अपने समय को सफल करते हुए अब मैं अपने लक्ष्य की ओर निरन्तर आगे बढ़ रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मै कर्मभोग को कर्मयोग में परिवर्तन कर सेवा के निमित्त बनने वाली भाग्यवान आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं दृष्टि में रहम और शुभ भावना रखकर अभिमान व अपमान की दृष्टि को समाप्त करने वाली रहमदिल आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *बापदादा एक-एक बच्चे के मस्तक में सम्पूर्ण पवित्रता की चमकती हुई मणी देखना चाहते हैं। नयनों में पवित्रता की झलक,* पवित्रता के दो नयनों के तारे, रूहानियत से चमकते हुए देखने चाहते हैं। *बोल में मधुरता*, विशेषता, अमूल्य बोल सुनने चाहते हैं। *कर्म में सन्तुष्टता, निर्माणता सदा देखना चाहते हैं। भावना में - सदा शुभ भावना और भाव में सदा आत्मिक भाव, भाई-भाई का भाव। सदा आपके मस्तक से लाइट का, फरिश्ते पन का ताज दिखाई दे*। दिखाई देने का मतलब है अनुभव हो। ऐसे सजे सजाये मूर्त देखने चाहते हैं। और ऐसी मूर्त ही श्रेष्ठ पूज्य बनेगी। *वह तो आपके जड़ चित्र बनायेंगे लेकिन बाप चैतन्य चित्र देखने चाहते हैं।*
✺ *ड्रिल :- "बापदादा के सामने सजे सजाये चैतन्य मूर्त बनने का अनुभव"*
➳ _ ➳ तारक जडित गगन की नीली चुनरिया... चुनरियाँ ओढे मधुबन की पावन सी ये धरनी... और उस पर लहराता पावनता का अनन्त सागर... सागर में छिपे एक से एक बहुमूल्य रत्न... और शान्ति स्तम्भ रूपी वो लाईट हाऊस... जो तूफानों से घिरी कश्तियों का मार्ग दर्शक बन गया है... *मैं आत्मा बैठ गयी हूँ देह रूपी कश्ती सहित, इस लाईट हाऊस के सामने...* और भरपूर होती जा रही हूँ... *पावनता से, मधुरता से, सन्तुष्टता से*... मैं आत्मा फरिश्तें रूप में तैर रही हूँ पावनता के इस सागर में... *सामने से हाऊसबोट की तरह तैरकर आती हुई कुटिया* और उसमें हाथ पकडकर, मुझे बिठाते हुए बापदादा *आनन्द से विभोर होता हुआ मैं*...
➳ _ ➳ देख रहा हूँ हाऊस बोट पर मैं दैवीय श्रृंगार की सारी सामग्री बडे करीने से सजाकर रखी है एक बडे से थाल में... और *बापदादा श्रृंगार कर रहे है किसी दिव्य मूरत का बडी तल्लीनता से... नयनों मे जडे है पावनता के दो तारें*... पावनता की उस कशिश में बंधकर मैं मानो पलके ही झपकाना भूल गया हूँ... और देखे जा रहा हूँ अपलक उस दिव्य से चैतन्य श्रृंगार की एक एक बारीकी को... *वाणी में वीणा की सरगम भरी जा रही है*... वो मिश्री सी मिठास और जादुई सी प्रेरणा से भरते रूहानी बोल... अचानक दिव्य मूरत के शालीनता से हिलते हाथ... *कर्म में सन्तुष्टता और निर्माणता का परिचय देते हुए*...
➳ _ ➳ और अब एकाएक भावों की एक दिलकश सी धारा भिगो जाती है मुझे... *शुभ भावना का ज्वार सा फूट रहा है मेरे रोम रोम से... उस शुभ भाव की धारा के मुझे छूते ही*... और अब केवल आत्मीयता का गहरा भाव शेष है वहाँ... *मैं भूल गया हूँ निज रूप को भी पलभर के लिए* और *बेहद आत्मीयता महसूस कर रहा हूँ उस दिव्य मूरत में*... और अब अन्तिम श्रृंगार के इन्तजार में... मै श्वाँस रोके देख रहा हूँ उत्सुकता से... *बापदादा ने फरिश्ते पन का ताज थमा दिया है मेरे हाथों में*... इशारा पाकर मैं ताज पहनाने आगे बढ रहा हूँ आहिस्ता आहिस्ता... *और हैरान हो गया हूँ अपनी ही हमशक्ल चैतन्य मूरत को देखकर*... बापदादा की हसरतों का परचम लहराने का वादा मन ही मन करता हुआ... पहन लेता हूँ वो ताज स्वयं ही अधिकार पूर्वक...
➳ _ ➳ *कुछ देर पहले तक मन में चल रही सभी जिज्ञासाओं का समाधान पा लिया है मैने... वो मैं ही हूँ जिसे बापदादा अकेले में और मेले में हर समय श्रृंगारते हैं*... और मूरत की जगह चैतन्य मूरत बनकर खडा हो गया हूँ मैं... अपनी वरदानी दृष्टि से मुझे भरपूर करते बापदादा... और *सजी सजायी चैतन्य मूरत का गहराई से अनुभव करता मैं*... देर तक बापदादा से दृष्टि लेकर मैं लौट आया हूँ अपनी देह रूपी कश्ती में... पावनता के उस सागर को कश्ती में समेटने का मजबूत संकल्प लिए हुए...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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