━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 27 / 03 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *ज्ञान डांस की और कराई ?*

 

➢➢ *इस पुरानी दुनिया से जीते जी मरने का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *उडती कला के वरदान द्वारा सदा आगे बड़ते रहे ?*

 

➢➢ *सर्व शक्तियों के स्टॉक से प्रकृति को अपना दासी बनाया ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  *जो नम्बरवन परवाने हैं उनको स्वयं का अर्थात् इस देह- भान का, दिन-रात का, भूख और प्यास का, अपने सुख के साधनों का, आराम का, किसी भी बात का आधार नहीं । वे सब प्रकार की देह की स्मृति से खोये हुए अर्थात् निरन्तर शमा के लव में लवलीन रहते हैं ।* जैसे शमा ज्योति-स्वरुप है, लाइट माइट रुप है, वैसे शमा के समान स्वयं भी लाइट-माइट रुप बन जाते हैं ।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   *"मैं मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ"*

 

  स्वयं को सदा मास्टर ज्ञान सूर्य समझते हो? ज्ञान सूर्य का कार्य है सर्व से अज्ञान अंधेरे का नाश करना। *सूर्य अपने प्रकाश से रात को दिन बना देता है, तो ऐसे मास्टर ज्ञान सूर्य विश्व से अंधकार मिटाने वाले, भटकती आत्माओंको रास्ता दिखाने वाले, रात को दिन बनाने वाले हो ना!* अपना यह कार्य सदा याद रहता है?

 

  जैसे लौकिक आक्यूपेशन भूलाने से भी नहीं भूलता। वह तो है एक जन्म का विनाशी कार्य, विनाशी आक्यूपेशन, यह है सदा का आक्यूपेशन कि हम मास्टर ज्ञान सूर्य हैं। *तो सदा अपना यह अविनाशी आक्यूपेशन या ड्यूटी समझ अंधकार मिटाकर रोशनी लानी है। इससे स्वयं से भी अंधकार समाप्त हो प्रकाश होगा।*

 

  कयोंकि रोशनी देने वाला स्वयं तो प्रकाशमय हो ही जाता है। *तो यह कार्य सदा याद रखो और अपने आपको रोज चेक करो कि मैं मास्टर ज्ञान सूर्य प्रकाशमय हूँ! जैसे आग बुझाने वाले स्वयं आग के सेक में नहीं आते ऐसे सदा अंधकार दूर करने वाले अंधकार में स्वयं नहीं आ सकते। तो 'मैं मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ यह नशा व खुशी सदा रहे'।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  वह अनुभव, वह अन्तिम स्थिती की परख अपने आप में देखो कि कहाँ तक अन्तिम स्थिति के नजदीक है। जैसे सूर्य अपने जब पूरे प्रकाश में आ जाता है तो हर चीज स्पष्ट देखने में आती है। जो अन्धकार है, धूंध है वह सभी खत्म हो जाते है। *इसी रीती जब सर्वशक्तिवान ज्गान सूर्य के साथ अटुट सम्बन्ध है तो अपने आप में भी ऐसे ही हर बात स्पष्ट देखने में आयेगी*।

 

✧  *जो चलते - चलते पुरुषार्थ में माया का अंधकार वा धुंध आ जाता है, जो सत्य बात को छिपाने वाले हैं, वह हट जायेंगे*। इसके लिए सदैव दो बातें याद रखना। आज के इस अलौकिक मेले में जो सभी बच्चे आये हैं। वह जैसे लौकिक बाप अपने बच्चों को मेले में ले जाते हैं तो जो स्नेही बच्चे होते हैं उनको कोई-न-कोई चीज लेकर देते हैं।

 

✧  तो बापदादा भी आज के इस अनोखे मेले में आप सभी बच्चों को कौन - सी अनोखी चीज देंगे? *आज के इस मधुर मिलन के मेले का यादगार बापदादा क्या दे रहे हैं कि सदैव शुभ चिंतक और शुभ चिंतन में रहना*। शुभ चिंतक और शुभ चिंतन। यह दो बातें सदैव याद रखना।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧  शुद्ध संकल्प स्वरूप स्थिति का अनुभव करते हो? जबकि अनेक संकल्पों की समाप्ति होकर एक शुद्ध संकल्प रह जाता है, इस स्थिति का अनुभव कर रही हो? इस स्थिति को ही शक्तिशाली, सर्व कर्म-बन्धनों से न्यारी और प्यारी स्थिति कहा जाता है। ऐसी न्यारी और प्यारी स्थिति में स्थित होकर फिर कर्म करने के लिए नीचे आते हैं। *जैसे कोई का निवास-स्थान ऊँचा होता है, लेकिन कोई कार्य के लिए नीचे उतरते हैं तो नीचे उतरते हुए भी अपना निजी स्थान नहीं भूलते हैं। ऐसे ही अपनी ऊँची स्थिति अर्थात् असली स्थान को क्यों भूल जाते हो? ऐसे ही समझकर चलो कि अभी-अभी अल्पकाल के लिए नीचे उतरे हैं कार्य करने अर्थ, लेकिन सदाकाल की ओरिजिनल स्थिति वही है।* फिर कितना भी कार्य करेंगे लेकिन कर्मयोगी के समान कर्म करते हुए भी अपनी निज़ी स्थिति और स्थान को भूलेंगे नहीं।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- देही-अभिमानी बन बाप के गले का हार बनने का पुरुषार्थ करना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा एकांत में बैठ अपने मन को एकाग्रचित करती हूँ... इस देह से अपना ध्यान हटाती हुई भृकुटी पर अपना ध्यान केन्द्रित करती हूँ... धीरे-धीरे इस देह से बाहर निकलती हूँ...* मैं आत्मा इस देह रूपी आवरण से निकल प्रकाश की काया धारण कर इस देह की दुनिया से न्यारी होती हुई उड़ चलती हूँ सफ़ेद प्रकाश की दुनिया में... जहाँ चारों ओर सफ़ेद चमकीला प्रकाश फैला हुआ है... बापदादा सफ़ेद प्रकाशमय चमकीली काया में मुस्कुराहट बिखेरते हुए सफ़ेद बादलों के झूले में बैठे हैं... *मुझे देख बापदादा अपने साथ बादलों के झूले में बिठाते हैं... और झुला झुलाते हुए मीठी रूह रिहान करते हैं...*   

 

  *विजयी रतन होने का वरदान देकर देही अभिमानी बनने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... *देह के भान में आने से ही विकारो में फंस गए और दुखो के घने जंगल में गुमराह से हो गए... अब मीठे बाबा के रूहानी संग में रुह का अभ्यास करो...* अपने सतरंगी रंगो का श्रृंगार करो और सतयुग के अथाह सुखो में मुस्कराते हुए शान से रहो...

 

_ ➳  *मैं आत्मा सीपी से निकली मोती की तरह चमचमाती हुई अपने सत्य स्वरूप में स्थित होकर कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा आपकी श्रीमत को थामे देहभान के दलदल से बाहर निकल दुखो से मुक्त हो गई हूँ...* अपने सुंदर स्वरूप को बाबा से जानकर मै आत्मा मीठे बाबा पर मुग्ध हो गयी हूँ... और उनके मीठे प्यार में खो गयी हूँ...

 

  *अपने सतरंगी किरणों से मेरे दिव्य स्वरूप को सजाते हुए मीठे जादूगर बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... मिटटी के मटमैले पन ने पापो से लथपथ कर दिया... खुबसूरत सितारे अपने वजूद को खोकर धुंधले हो गए... अब *अपने सच्चे स्वरूप सच्ची चमक को मीठे पिता के साये में फिर से पा लो और 21 जनमो तक सुख आनन्द से लबालब हो जाओ..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा कांटो के रेगिस्तान से निकल मीठे रूहानी खुशियों के झरने में नाचती हुई कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अब सारे विकराल दुखो को भूल अपने सच्चे सौंदर्य में खिल उठी हूँ... *मै यह देह नही खुबसूरत प्यारी और पिता की दुलारी आत्मा हूँ इस नशे से भर गई हूँ... और खजाने पाकर मालामाल हो गयी हूँ..."*

 

  *सुखों के गगन में मुझे दिव्य सितारा बनाकर पूरे विश्व को रोशन करते हुए सुखों के सागर मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *अपने आत्मिक स्वरूप को जितना यादो में ले आओगे उतना ही निखरते चले जाओगे... देह के भान में किये सारे विकर्मो से सहज ही मुक्त होते चले जायेंगे...* और सुखो के अम्बार अपने कदमो में बिछे पाओगे... पूरा विश्व आपका और आप मालिक बन मुस्करायेंगे..."

 

_ ➳  *अपने निज धाम में निज पिता की गोद में अपने निज स्वरूप में जगमगाती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी खुशनसीब हूँ कि स्वयं ईश्वर पिता मुझे सच बता रहा... मीठे पिता की गोद में मै आत्मा कितनी सुखी होकर बैठी हूँ... और *शरीर के झूठे भ्रम से निकल कर अपने आत्मिक स्वरूप को पाकर सच्ची खुशियो से भर उठी हूँ..."*

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- चात्रक बन ज्ञान डांस करनी और करानी है*"

 

_ ➳  अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी मधुर याद में बैठ मैं चात्रक बन उनके निराकारी अति सुखदायी स्वरूप को मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से निहारती हुई अथाह सुख के सागर में गोते लगा रही हूँ। *उनसे निकलने वाली सर्व गुणों और सर्वशक्तियों की रंग बिरंगी किरणों से आ रहे सुख, शांति, प्रेम, आनन्द, पवित्रता, ज्ञान और शक्ति के वायब्रेशन चारों ओर फैल कर मन को आनन्दित कर रहें हैं*। आनन्दमग्न हो कर मेरा मन मयूर ऐसे नाच रहा है जैसे वीणा के सात स्वरों की मधुर झनकार सुनकर  किसी के भी पैर स्वत: ही थिरकने लगते हैं। *ऐसे मैं आत्मा भी ज्ञान सागर अपने शिव पिता के ज्ञान की मीठी फुहारें अपने ऊपर महसूस कर, आनन्द से भरपूर होकर, ज्ञान डांस कर रही हूँ*।

 

_ ➳  मन को सुकून देने वाली इस ज्ञान डांस को करते - करते मैं मन बुद्धि से की जाने वाली एक ऐसी खूबसूरत आंतरिक यात्रा पर चल पड़ती हूँ जो मुझे उस स्थान पर ले जा रही है *जहां ज्ञान सागर मेरे शिव पिता के अथाह ज्ञान की सतरँगी किरणो का झरना निरन्तर बहता रहता है और उस झरने के नीचे आकर आत्मायें आनन्द विभोर होकर स्वत: ही चात्रक बन ज्ञान डांस करते हुए अतीन्द्रीय सुख के झूले में झूलने लगती हैं*। ज्ञानसागर अपने शिव पिता के उस परमधाम घर और उनसे मिलने वाले उस अतीन्द्रीय सुख के मधुर अहसास में खोई मैं इस आतंरिक यात्रा पर निरन्तर आगे बढ़ते हुए साकार लोक को पार कर जाती हूँ और सूक्ष्म लोक में प्रवेश कर उसको भी पार कर अपने पिता के पास उनके धाम पहुँच जाती हूँ।

 

_ ➳  आत्माओं की उस निराकारी दुनिया, अपने स्वीट साइलेन्स होम में शांति की गहन अनुभूति करके मैं उस महाज्योति अपने ज्ञानसागर शिव पिता के पास जाकर बैठ जाती हूँ जिनसे निकल रही सर्वगुणों, सर्व शक्तियों की अनन्त किरणें एक पानी के झरने से आ रही रिमझिम करती शीतल फ़ुहारों के समान प्रतीत हो रही हैं। *ज्ञान के इस शीतल झरने के नीचे बैठ ज्ञान स्नान करके मैं बहुत ही आनन्दित हो रही हूँ। जैसे वर्षा की रिमझिम फुहारें प्रकृति में नवजीवन का संचार करती हैं ऐसे ज्ञान सागर मेरे शिव पिता के ज्ञान की बरसात मेरे अन्दर नई उमंग और ताजगी का संचार कर रही हैं*। ज्ञान की इन रिमझिम फ़ुहारों के मेरे ऊपर पड़ने से मेरी सोई हुई शक्तियां पुनः जागृत हो रही हैं। स्वयं को मैं बहुत ही एनर्जेटिक अनुभव कर रही हूँ।

 

_ ➳  ज्ञान सागर अपने शिव पिता के ज्ञान चंदन से स्वयं को महका कर परमधाम से मैं नीचे आ जाती हूँ और अपने प्यारे बापदादा के अव्यक्त वतन में पहुँचती हूँ। *फरिश्तो की आकारी दुनिया इस सूक्ष्म वतन में जहाँ अव्यक्त ब्रह्मा बाबा के आकारी तन का आधार ले कर प्यारे शिव बाबा हम बच्चों से मिलन मनाते हैं, मीठी - मीठी रूहरिहान करते हैं*। इस सूक्ष्म वतन में आ कर मैं आत्मा भी अपना आकारी स्वरूप धारण कर लेती हूँ और सामने खड़े बापदादा के पास पहुँचती हूँ जो अपनी दोनों बाहों को फैलाये मेरा आह्वान कर रहें हैं। *उनकी बाहों में समाकर, उनसे असीम स्नेह पाकर, मैं उनके पास बैठ जाती हूँ*।

 

_ ➳  अपने प्यारे बापदादा की समीपता के मधुर एहसास में खोई हुई एक बहुत ही खूबसूरत दृश्य देखने मे मैं मगन हो जाती हूँ। *मैं देख रही हूँ अपने सामने बाबा को नटखट कृष्ण कन्हिया के रूप में जो ज्ञान की मीठी बाँसुरी बजा रहें हैं और उस बाँसुरी की मीठी धुन कर बाबा के सभी ब्राह्मण बच्चे गोप गोपियाँ बन ज्ञान डाँस कर रहें हैं*। नटखट कान्हा के रूप में बाबा हर गोप गोपी के साथ डांस करते हुए दिखाई दे रहें हैं। इस बहुत ही खूबसूरत दृश्य को देखते - देखते अव्यक्त बापदादा की मीठी मधुर आवाज सुन मेरी चेतनता लौटती है। *मेरी दृष्टि बाबा की ओर जाते ही मैं देखती हूँ बाबा बड़े प्यार से मुस्कराते हुए मुझे निहार रहें हैं*।

 

_ ➳  बाबा के नयनों की भाषा को मैं स्पष्ट पढ़ रही हूँ। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे बाबा मुझ से पूछ रहे हैं कि यह ज्ञान डाँस करके कितना आनन्द आया! *मेरी आँखों मे समाये उस परमआनन्द को बाबा साफ देख रहें हैं इसलिए मुस्कराते हुए अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख कर मुझे सदा इस अतीन्द्रीय सुख के झूले में झूलने का वरदान दे रहें हैं*। अपने प्यारे बापदादा के साथ ज्ञान डाँस करके, और वरदान लेकर मैं अपने निराकार स्वरूप में वापिस साकारी दुनिया में लौट आती हूँ और फिर से अपने साकार शरीर रूपी रथ पर आ कर विराजमान हो जाती हूँ।

 

_ ➳  *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, इस सृष्टि रूपी कर्मभूमि पर कर्म करते बीच - बीच में इसी रूहानी ड्रिल द्वारा ज्ञान डाँस का आनन्द अब मैं स्वयं भी लेती रहती हूँ तथा औरों को भी यह ड्रिल करवाकर उन्हें भी यह ज्ञान डाँस करवाती रहती हूँ*।

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं उड़ती कला के वरदान द्वारा सदा आगे बढ़ने वाली सर्व बन्धन मुक्त्त आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सर्व शक्तियों का स्टॉक जमा कर प्रकृति को दासी बनाने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा देखत है मातायें चाहे पाण्डव, बापदादा के सर्व सम्बन्धों से, प्यार तो सर्व संबंधों से हैं लेकिन किसको कौन-सा विशेष संबंध प्यारा है, वह भी देखते हैं। कई बच्चों को खुदा को दोस्त बनाना बहुत अच्छा लगता है। इसीलिए खुदा दोस्त की कहानी भी है। *बापदादा यही कहते, जिस समय जिस संबंध की आवश्यकता हो तो भगवान को उस संबंध में अपना बना सकते हो। सर्व संबंध निभा सकते हो। बच्चों ने कहा बाबा मेरा, और बाप ने क्या कहा, मैं तेरा।*

 

✺   *ड्रिल :-  "बापदादा के साथ सर्व सम्बन्धों का अनुभव"*

 

 _ ➳  स्थूल आँखों से बाबा के चित्र को निहारते निहारते मैं आत्मा अपने आप से बातें करती हूं... और सोचती हूं, कि आज जो भी कुछ हूं सब बाबा आपसे ही तो हूं... मेरे सब कुछ आप ही तो हो... *तपती धूप में छांव बनकर तूफानों में मांझी बनकर हर कदम पर मेरा हाथ पकड़ा है... और खो जाती हूं ईश्वर पिता से मिली प्राप्तियों में...*

 

 _ ➳  *"तुम्हीं हो माता पिता तुम्हीं हो, तुम्हीं हो बंधु सखा तुम्हीं हो..."* भक्ति मार्ग का ये गीत इस समय कितना सार्थक है..  *संगमयुग के इस स्वर्णिम समय में मैं आत्मा कितनी भाग्यवान हूँ... जिसे स्वयं भगवान ने अपना बनाया है... मुझे शिव पिता की छत्रछाया और ब्रह्मा मां की गोद मिली है...* वाह! वाह! "बनाया प्रभु ने है अपना, मिला सुख हमें है कितना..." *सर्वशक्तिमान की मैं संतान मास्टर सर्वशक्तिमान हूं...* इतना सोचने भर से ही रास्ते की सारी बाधाएँ दूर हो जाती हैं... *इतने शक्तिशाली पिता का हाथ मेरे सर पर है... अहो सौभाग्य!*

 

 _ ➳  *शिक्षक के रूप में बाबा हर पल मुझे समझानी देते हैं... मैं आत्मा उस श्रीमत पर चल अपना भाग्य बना रही हूं... और सतगुरू के रूप में मेरी जीवन नैया पार लगाने वाले हैं... मेरे खेवनहार... मेरे मांझी... मेरी पतवार... सब आप ही तो हो...* सतगुरू मैं तेरी पतंग हवा में उड़ती जाऊंगी बाबा ड़ोर  हाथों से छोड़ना मत नहीं तो कट जाऊँगी... और बाबा ये सुन मीठी मीठी मुस्कान दे देते हैं...

 

 _ ➳  *कभी सखा बन मेरे साथ खेलते हैं... कभी बड़ा भाई बन कदम कदम पर सम्भालते हैं...* मन की आँखों से जब भी देखती हूं उन्हें अपने साथ खड़ा पाती हूँ... *बालक के रूप में कोई भी कार्य सौपती हूं... तो आज्ञाकारी बालक के समान तुरंत पूरा करते हैं... और तो और मेरे शिव पिया सर्व गुणों से अपनी आत्मा सजनिया का श्रृंगार कर मुझे सम्पूर्ण बना रहे हैं...* अपने प्यार से मुझ आत्मा को हर सम्बंध से भरपूर कर रहे हैं...

 

 _ ➳  इन ईश्वरीय सम्बन्धों में जुडने के बाद, इनके रस को चखने के पश्चात मुझ आत्मा को सब दुनियावी सम्बन्द्ध खोखले नजर आ रहे हैं... *मैं आत्मा इसी ईश्वरीय नशे में रह अब अपने लौकिक अलौकिक सम्बंध निभा रही हूं... इससे मेरे सर्व सम्बन्धों में भी अलौकिकता झलकने लग गई है... उनमें एक मधुरता एक अलग सी मिठास आ गई है...* जिंदगी पहले तो कभी इतनी खूबसूरत नहीं लगी... बाबा आपने तो मुझे खूबसूरत बना दिया...

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा की बगिया की रूहे गुलाब बन गई हूं... मुझसे अब सबको रूहानियत आती अनुभव हो रही है...*इतने सुंदर अनुभवों और प्राप्तियों के लिए, बाबा आपका जितना भी धन्यवाद करूं, वो कम

है... *मीठे मीठे बाबा... मेरे प्यारे बाबा...*

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━