━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 23 / 10 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *चलते फिरते अशरीरी बनने का अभ्यास किया ?*
➢➢ *भोजन एक बाप की याद में खाया ?*
➢➢ *ज्ञान स्वरुप बन कर्म फिलोसोफी को पहचान कर चले ?*
➢➢ *अपने स्वमान की सेट पर सेट रह माया को अपने आगे सरेंडर कराया ?*
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ अब सेवा के कर्म के भी बन्धन में नहीं आओ। *हमारा स्थान, हमारी सेवा, हमारे स्टूडेंट, हमारी सहयोगी आत्माएं, यह भी सेवा के कर्म का बन्धन है, इस कर्मबन्धन से कर्मातीत। तो कर्मातीत बनना है* और 'यह वही हैं, यही सब कुछ हैं,' यह महसूसता दिलाए आत्माओं को समीप ठिकाने पर लाना है।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✺ *"मैं हीरो पार्टधारी आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को इस विशाल ड्रामा के अन्दर हीरो पार्टधारी आत्मायें अनुभव करते हो? आप सबका हीरो पार्ट है। हीरो पार्टधारी क्यों बने? *क्योंकि जो ऊंचे ते ऊंचा बाप जीरो है - उसके साथ पार्ट बजाने वाले हो। आप भी जीरो अर्थात् बिन्दी हो। लेकिन आप शरीरधारी बनते हो और बाप सदा जीरो है।*
〰✧ *तो जीरो के साथ पार्ट बजाने वाले हीरो एक्टर हैं - यह स्मृति रहे तो सदा ही यथार्थ पार्ट बजायेंगे, स्वत: ही अटेन्शन जायेगा। जैसे हद के ड्रामा के अन्दर हीरो पार्टधारी को कितना अटेन्शन रहता है! सबसे बड़े ते बड़ा हीरो पार्ट आप सबका है। सदा इस नशे और खुशी में रहो - वाह, मेरा हीरो पार्ट जो सारे विश्व की आत्मायें बार-बार हेयर-हेयर करती हैं!*
〰✧ यह द्वापर से जो कीर्तन करते हैं यह आपके इस समय के हीरो पार्ट का ही यादगार है। कितना अच्छा यादगार बना हुआ है! आप स्वयं हीरो बने हो तब आपके पीछे अब तक भी आपका गायन चलता रहता है। अन्तिम जन्म में भी अपना गायन सुन रहे हैं। गोपीवल्लभ का भी गायन है तो ग्वाल बाप का भी गायन है, गोपिकाओंका भी गायन है। *बाप का शिव के रूप में गायन है तो बच्चों का शक्तियों के रूप में गायन है। तो सदा हीरो पार्ट बजाने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हैं - इसी स्मृति में खुशी में आगे बढ़ते चलो।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ सभी अपने को राजयोगी अनुभव करते हो? योगी सदा अपने आसन पर बैठते हैं तो आप सबका आसन कौन-सा है? आसन किसको कहेंगे? *भिन्न-भिन्न स्थितियाँ भिन्न-भिन्न आसन हैं।* कभी अपने स्वमान की स्थिति में स्थित होते हो तो स्वमान की स्थिति आसन है।
〰✧ कभी *बाप के दिलतख्तनशीन स्थिति में स्थित होते तो वह दिलतखत स्थिति आसन बन जाती है।* जैसे आसन पर स्थित होते हैं, एकाग्र होकर बैठते हैं, ऐसे आप भी भिन्न-भिन्न स्थिति के आसन पर स्थित होते हो।
〰✧ तो वेरायटी अच्छा लगता है ना। एक ही चीज कितनी भी बढिया हो, लेकिन वही चीज बार-बार अगर यूज करते रहो तो इतनी अच्छी नहीं लगेगी, वेरायटी अच्छी लगेगी। तो *बापदादा ने वेरायटी स्थितियों के वेरायटी आसन दे दिये हैं।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ *ब्राह्मण जीवन अर्थात वाह-वाह! हाय-हाय नहीं। शारीरिक व्याधि में भी हाय-हाय नहीं, वाह! यह भी बोझ उतरता है।* अगर १० मन से आपका ३-४ मन बोझ उतर जाये तो अच्छा है या हाय-हाय? क्या है? वाह बोझ उतरा! *हाय मेरा पार्ट ही ऐसा है! हाय मेरे को व्याधि छोड़ती ही नहीं है! आप छोड़ो या व्याधि छोड़ेगी? वाह-वाह! करते जाओ तो वाह-वाह! करने से व्याधि भी खुश हो जायेगी। तो व्याधि को भी वाह-वाह! कहो।* हाय यह मेरे पास ही क्यों आई, मेरा ही हिसाब है। प्राप्ति के आगे हिसाब तो कुछ भी नहीं है। *प्राप्तियाँ सामने रखो और हिसाब-किताब सामने रखो तो वह क्या है? क्या लगेगा? बहुत छोटी-सी चीज़ लगेगी। मतलब तो ब्राह्मण जीवन में कुछ भी हो जाये, पॉजिटिव रूप में देखो।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- याद में रह पारलौकिक मात-पिता की दुआएं लेना"*
➳ _ ➳ ईश्वर शिक्षक के जीवन में आने से दिव्य गुणों की सुगन्ध का आनंद लेते हुऐ मैं आत्मा सोचती हूं... *श्रीमत ना होने के कारण मैं आत्मा देह भान से चूर थी... विकारो की मूर्खता से भरी हुई... किसी भी तरह से बाबा का सपूत बच्चा नही बन सकती थी... प्यारे बाबा ने मुझे आसमान से निहार कर... और अपना सपूत बच्चा बना कर... माता पिता दोनो की पालना दे कर... कितना प्यारा औऱ महान बना दिया हैं* ... यही प्यारी मीठी गुफ्तगू प्यारे बाबा को सुनाने मैं आत्मा... मीठे बाबा के कमरे मैं पंहुचती हूँ...
❉ *प्यारे बाबा ने मुझ सपूत बनी आत्मा को बाप का असीम प्यार लुटाते हुए औऱ बहुत प्रसन्न होते हुऐ कहा* :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर को बाप के रूप में पाने वाले, महान भाग्यशाली हो... *सपूत बनकर अपने इस महान भाग्ये के नशे में झूलते ही रहो... एक दिन भी ऐसा कोई कार्य ना करना जिससे... माता पिता के आशीर्वाद से वंचित होना पड़े* ... यह आशीर्वाद ही एक दिन सतयुग में नवाब पद दिलाएगी..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा से सतयुगी सपूत बन कहती हूँ* :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... *मैं आत्मा आपसे मिलने से पहले कितनी गरीब थी... सदा खुशियों को तरसती दुसरो में खोजती थी... *आपने प्यारे बाबा मुझे अपना सपूत बच्चा बना कर... श्रीमत पर चलना सिखाकर... माता पिता का अलौकिक प्यार बरसा कर... मुझे प्यार के धन से भरपूर कर दिया* ... मैं आत्मा अब आपके प्यार में सतोगुणी बनकर... सतयुगी सपूत बन रही हूँ..."
❉ *प्यारे बाबा ने मुझ को अपने सारे आशीर्वाद, ज्ञान ख़ज़ाने देते हुए कहा* :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... 21 जन्मो तक स्वर्ग का राज्य भाग्य पाओ... यही ज्ञान खजाने, श्रीमत पर कायम रहना, तुम्हारा सपूत बन माता पिता का प्यार लेना... तुम्हें विश्व का मालिक बनायेंगे... *परमधाम से तुम्हारा असली बाप तुम्हें सपूत बना कर प्यार के खजाने देने आया हैं* ... यह बात कभी भी मत भूलना... बाप का हाथ और साथ कभी नही छोड़ना..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा के असीम प्यार को पूरी तरह से खुद में समेटते हुए कहती हूँ* :-"मेरे प्यारे बाबा... आपने अपना बना कर मुझ आत्मा का जीवन प्यार से भर दिया... दिव्य गुणों, शक्तियों से सजा कर... देवताई रूप दिया, सपूत बनाया... माता पिता बन कर आशीर्वाद लुटाए... *मेरा दामन खुशियों से भर दिया... मैं आत्मा सम्पूर्ण सन्तुष्टता को प्राप्त कर रही हूँ* ... मुश्किल से बाबा आप मिले हो... अब मैं आत्मा आपके साथ ही रहूँगी..."
❉ *मीठे बाबा ने बहुत प्यार से, मुस्कुराते हुए कहा* :- "मेरे बच्चे... ईश्वर पिता, सारे ख़ज़ाने, दौलत, अपना भरपूर प्यार तुम बच्चों के लिए ही तो लाया है... *तुम्हें सपूत इसिलए ही तो बनाया हैं... की सारे ख़ज़ानों पर अपना अधिकार जमा लो* ... भगवान से सब कुछ प्राप्त कर... देवताओं की खूबसूरत दुनिया में सपूत, नवाब बन कर मुस्कुराओ... *सारे सुखों को अपनी बाँहों में समा लो* ..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा के इस कदर उपकारों से अभिभूत होकर कहती हूँ* :- "मेरे प्यारे दुलारे बाबा... *मैं आत्मा परमात्मा का सपूत बच्चा बन... खुशी से झूम रही हूँ... स्वयं दुनिया का मालिक मेरा बाप हैं* ... बाबा की श्रीमत ने जीवन को खुशहाल, सुखी बनाया हैं... *श्रीमत पर चलना बाबा ने सिखाकर जीवन का ढंग निराला ही कर दिया* ... मीठे बाबा से सपूत बन हर समय श्रीमत का पालन करने का वायदा कर... मैं आत्मा अपने साकारी तन मे वापिस आ जाती हूँ..."
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ट्रस्टी हो कर रहना है*"
➳ _ ➳ अपने सभी बोझ बाबा को देकर, लौकिक और अलौकिक हर जिम्मेवारी को ट्रस्टी हो कर सम्भालते, डबल लाइट स्थिति का अनुभव करते हुए मैं बाबा की याद में कर्मयोगी बन हर कर्म कर रही हूँ। *बाबा का आह्वान कर, बाबा की छत्रछाया के नीचे स्वयं को अनुभव करते अपने सभी कार्य करने के बाद, मैं एकांत में अपनी पलकों को मूंदे अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी सी याद में जैसे ही बैठती हूँ* मुझे ऐसा आभास होता है जैसे मैं एक नन्ही सी बच्ची बन बाबा की गोद में बैठी हूँ और बाबा बड़े प्यार से अपना हाथ मेरे सिर पर फिराते हुए, अपने नयनो में मेरे लिए अथाह प्यार समेटे हुए मुझे निहार रहें हैं।
➳ _ ➳ हर बोझ से मुक्त, हर गम से अनजान सुंदर, सुहाने बचपन का यह दृश्य मेरे मन को आनन्द विभोर कर देता है। *अपनी पलको को खोल अब मैं विचार करती हूँ कि जब हम ट्रस्टी के बजाए स्वयं को गृहस्थी समझते हैं तो कितने बोझिल हो जाते हैं किंतु ट्रस्टी हो कर जब सब कुछ सम्भालते है तो ऐसी बेफिक्र और निश्चिन्त स्थिति का अनुभव स्वत: ही होता है जैसी निश्चिन्त स्थिति एक बच्चा अपने पिता की गोद मे अनुभव करता है*। संगमयुग पर परमात्म गोद मे पलने का अनुभव कोटो में कोई और कोई में भी कोई कर पाता है, तो *कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो स्वयं भगवान मेरे सारे बोझ ले कर, अपनी ममतामई गोद मे बिठा कर स्वयं मेरे हर कार्य को सम्पन्न करवा रहा है*।
➳ _ ➳ स्वयं से बातें करती, अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करती, अब मैं आत्मिक स्मृति में स्थित हो कर अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने भाग्यविधाता बाप की याद में एकाग्र करती हूँ और सेकण्ड में मन बुद्धि के विमान पर सवार हो कर, विदेही बन अपने विदेही बाबा से मिलने उनके धाम की ओर चल पड़ती हूँ। *देह से न्यारी इस विदेही अवस्था मे मैं आत्मा ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसा सुखद अनुभव पिंजरे में बंद पँछी पिंजरे से निकलने के बाद अनुभव करता है*। ऐसे ही आजाद पँछी की भांति उन्मुक्त होकर उड़ने का आनन्द लेते हुए मैं आत्मा पँछी अब आकाश को भी पार कर जाती हूँ। उससे और ऊपर फ़रिश्तों की आकारी दुनिया को पार करके अब मैं पहुँच जाती हूँ अपने शिव पिता के पास उनके धाम।
➳ _ ➳ आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में जहां चारों और चमकती हुई मणियों का आगार है ऐसी चैतन्य सितारों की जगमग करती अति सुंदर दुनिया परमधाम में पहुंच कर मैं असीम सुख की अनुभूति कर रही हूँ। *इस विदेही दुनिया मे, विदेही बन, अपने बीच रुप परम पिता परमात्मा, संपूर्णता के सागर, पवित्रता के सागर, सर्वगुण और सर्व शक्तियों के अखुट भंडार, ज्ञान सागर, शिव बाबा के सम्मुख बैठ उनसे मंगल मिलन मनाने का यह सुख बहुत ही निराला है*। कोई संकल्प कोई विचार मेरे मन में नही है। एकदम निर्संकल्प अवस्था। बस बाबा और मैं। *बीज रुप बाप के सामने मैं मास्टर बीज रुप आत्मा डेड साइलेंस की स्थिति का अनुभव करते हुए असीम अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति में स्थित हूँ*।
➳ _ ➳ गहन अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करके, अब मैं अपने शिव पिता से आ रही सर्वशक्तियो को स्वयं में समाकर शक्तिशाली बन कर वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। *अपने शिव पिता को हर पल अपने साथ रखते हुए अपने साकारी तन का आधार लेकर इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर मैं अपना पार्ट प्ले कर रही हूँ*। लौकिक और अलौकिक हर कर्तव्य निमित पन की स्मृति में रह कर करते हुए, बेफिक्र बादशाह बन, अपने सभी बोझ बाबा को दे कर उड़ती कला का अनुभव अब मैं निरन्तर कर रही हूँ। करन करावन हार बाबा करवा रहा है यह स्मृति मुझे सदा निश्चिन्त स्थिति का अनुभव करवाती है। *ट्रस्टी होकर सब कुछ सम्भालते, हर पल, हर सेकण्ड स्वयं को परमात्म गोद मे अनुभव करते मैं संगमयुग की मौजों का भरपूर आनन्द ले रही हूँ*।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं ज्ञान स्वरूप बन कर्म फिलोसोफी को पहचान कर चलने वाली कर्मबन्धन मुक्त्त आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं स्वमान की सीट पर सेट रह कर माया को अपने आगे सरेंडर करवाने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. *जिस भी बच्चे को देखें, जो भी मिले, संबंध-सम्पर्क में आये, उन्हों को यह लक्षण दिखाई दें कि यह जैसे परमात्मा बाप, ब्रह्मा बाप के गुण हैं, वह बच्चों के सूरत और मूरत से दिखाई दें।* अनुभव करें कि इनके नयन, इनके बोल, इन्हों की वृत्ति वा वायब्रेशन न्यारे हैं।
➳ _ ➳ 2. *जो बच्चा जहाँ भी रहता है, जो भी कर्मक्षेत्र है, हर एक बच्चे से बाप समान गुण, कर्म और श्रेष्ठ वृत्ति का वायुमण्डल अनुभव में आये, इसको बापदादा कहते हैं - बाप समान बनना।* जो अभी तक संकल्प है बाप समान बनना ही है, वह संकल्प अभी चेहरे और चलन से दिखाई दे। *जो भी संबंध-सम्पर्क में आये उनके दिल से यह आवाज निकले कि यह आत्मायें बाप समान हैं।*
➳ _ ➳ बापदादा अभी सभी बच्चों से यह प्रत्यक्षता चाहते हैं। जैसे वाणी द्वारा प्रत्यक्षता करते हो तो वाणी का प्रभाव पड़ता है, उससे भी ज्यादा प्रभाव गुण और कर्म का पड़ता है। *हर एक बच्चे के नयनों से यह अनुभव हो कि इन्हों के नयनों में कोई विशेषता है।* साधारण नहीं अनुभव करें। अलौकिक हैं। *उन्हों के मन में क्वेश्चन उठे कि यह कैसे बनें, कहाँ से बनें। स्वयं ही सोचें और पूछें कि बनाने वाला कौन?* जैसे आजकल के समय में भी कोई बढ़िया चीज देखते हो तो दिल में उठता है कि यह बनाने वाला कौन है! ऐसे अपने बाप समान बनने की स्थिति द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करो।
➳ _ ➳ आजकल मैजारिटी आत्मायें सोचती हैं कि क्या इस साकार सृष्टि में, इस वातावरण में रहते हुए ऐसे भी कोई आत्मायें बन सकती हैं! तो *आप उन्हों को यह प्रत्यक्ष में दिखाओ कि बन सकता है और हम बने हैं। आजकल प्रत्यक्ष प्रमाण को ज्यादा मानते हैं। सुनने से भी ज्यादा देखने चाहते हैं* तो चारों ओर कितने बच्चे हैं, हर एक बच्चा बाप समान प्रत्यक्ष प्रमाण बन जाए तो मानने और जानने में मेहनत नहीं लगेगी।
✺ *ड्रिल :- "बाप समान प्रत्यक्ष प्रमाण बनने का अनुभव"*
➳ _ ➳ अब तक मैं आत्मा झूठे जिस्मानी प्रेम की मृगतृष्णा में भटक रही थी... जिसके द्वारा जन्म जन्मांतर दुःख पाती रही... *मेरे मीठे बाबा ने कोटो में कोई और कोई में भी कोई... मुझ आत्मा को दुःखों से छुड़ा... अपने स्नेह... प्यार की पालना देकर... अपने गले से लगा लिया... वाह रे मैं भाग्यशाली आत्मा!!* जो परमात्मा स्वयं मुझे अपने जैसा बनने की पढ़ाई पढ़ाने रोज़ धरा पर आते हैं...
➳ _ ➳ अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य को देख कर गर्व करती मैं आत्मा... स्वयं भगवान मेरा है... उसका सबकुछ मेरा हो गया है... *उसने अपने सर्व वरदान और सर्वशक्तियां मुझे दे दी हैं... आहा!! मेरा सर्वश्रेष्ठ भाग्य... इस अंतिम जन्म में हर पल भगवान मेरे साथ है... स्वयं भगवान मुझ आत्मा को सर्व सम्बन्धों की पालना दे रहे हैं...* बाबा के सानिध्य से प्राप्त इन सर्व शक्तियों को धारण कर... मैं आत्मा धारणा स्वरूप बन गयी हूँ...
➳ _ ➳ जैसे ही मैं आत्मा अपने पवित्र स्वरूप में टिकती हूँ... मुझ आत्मा के सम्पर्क में जो भी आत्माऐं आती हैं... वह मन-वचन-कर्म से पवित्रता का अनुभव करती हैं... मैं आत्मा स्वराज्य के धर्म और बाबा द्वारा दी गई सभी मर्यादाओं का पालन करती हूँ... *संकल्प व स्वप्न में भी मेरे प्यारे शिवबाबा के सिवाय और कोई नही... मुझे बाबा को प्रत्यक्ष करना ही है... करना ही है... सभी आत्माओं को बाबा का बनाना ही है...*
➳ _ ➳ कर्मक्षेत्र में जो भी आत्माऐं मुझ आत्मा के सम्बन्ध सम्पर्क में आती हैं... मुझ आत्मा की रूहानियत उन्हें बाबा की ओर आकर्षित करती हैं... *मेरे मधुर बोल... उन्हें शांति का अनुभव कराते हैं... मेरे नयनों से उन्हें अलौकिकता... स्पष्ट दिखाई देती है... मेरे हर कर्म से... चाल चलन से... झलकती हुई दिव्यता उन्हें भरसक मेरी ओर आकर्षित करती है...*
➳ _ ➳ मेरा हर बोल बाप समान... जो बाबा का संकल्प... वही मुझ आत्मा का संकल्प... मेरी हर श्वांस... हर सेकंड... तन-मन-धन... बाप समान बन रहा है... *मैं आत्मा जहाँ भी जाती हूँ... सारे वातावरण को रूहानियत की खुशबू से महका देती हूँ... बाबा से प्राप्त गुणों और शक्तियों का प्रभाव... हर कर्म से झलकती दिव्यता... अलौकिकता... सभी आत्माओं को सोचने में मजबूर कर देती है... आखिर इन ब्रह्माकुमारियों को ऐसा क्या मिला है जो ये सदा खुश रहती हैं...*
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━