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❍ 03 / 07 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अपनी ऊंची तकदीर बनाने में गफलत तो नहीं की ?*
➢➢ *प्राणेश्वर बाप की याद में रह सबको प्राण दिए ?*
➢➢ *सदा सेफ्टी के स्थान पर रह निर्भय और निश्चिंत रहे ?*
➢➢ *बुधी पर किसी भी प्रकार का बोझ न रख डबल लाइट फ़रिश्ता स्थिति का अनुभव किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *अभी तो कुछ नहीं है, अभी तो सब कुछ होना है, डरना नहीं, खेल है। विनाश नहीं, परिवर्तन होना है।* सबमें वैराग्य वृत्ति उत्पन्न होनी है इसलिए रहमदिल बन सर्व शक्तियों द्वारा परेशान आत्माओं को शक्ति की सकाश दे रहम करो।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बाप के हर कार्य का साथी हूँ"*
〰✧ अपने को बाप के हर कार्य में सदा साथी समझते हो? जो बाप का कार्य है वह हमारा कार्य है। बाप का कार्य है-पुरानी सृष्टि को नया बनाना, सबको सुख-शान्ति का अनुभव कराना। यही बाप का कार्य है। तो जो बाप का कार्य है वह बच्चों का कार्य है। *तो अपने को सदा बाप के हर कार्य में साथी समझने से सहज ही बाप याद आता है। कार्य को याद करने से कार्य- कर्ता की याद स्वत: ही आती है। इसी को ही कहा जाता है सहज याद। तो सदा याद रहती है या करना पड़ता है?*
〰✧ जब कोई माया का विघ्न आता है फिर याद करना पड़ता है। वैसे देखो, आपका यादगार है विघ्न-विनाशक। गणेश को क्या कहते हैं? विघ्नविनाशक। तो विघ्न-विनाशक बन गये कि नहीं? *विघ्न-विनाशक अर्थात् सारे विश्व के विघ्न-विनाशक। अपने ही विघ्नविनाशक नहीं, अपने में ही लगे रहे तो विश्व का कब करेंगे? तो सारे विश्व के विघ्न-विनाशक हो। इतना नशा है? कि अपने ही विघ्नों के भाग-दौड़ में लगे रहते हो?*
〰✧ विघ्न-विनाशक वही बन सकता है जो सदा सर्व शक्तियों से सम्पन्न होगा। कोई भी विघ्न विनाश करने के लिए क्या आवश्यकता है? शक्तियों की ना। *अगर कोई शक्ति नहीं होगी तो विघ्न विनाश नहीं कर सकते। इसलिए सदा स्मृति रखो कि बाप के सदा साथी हैं और विश्व के विघ्न-विनाशक हैं। विघ्न-विनाशक के आगे कोई भी विघ्न आ नहीं सकता। अगर अपने पास ही आता रहेगा तो दूसरे का क्या विनाश करेंगे।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ मेरा पुरुषार्थ, मेरा इन्वेन्शन, मेरी सर्विस, मेरी टचिंग, मेरे गुण बहुत अच्छे हैं। मेरी हैन्डलिंग पॉवर बहुत अच्छी है, मेरी निर्णय शक्ति बहुत अच्छी है, मेरी समझ ही यथार्थ है। बाकी सब मिसअन्डरस्टैन्डिंग में हैं। *यह मेरा-मेरा आया कहाँ से?*
〰✧ यही रॉयल माया है, इससे मायाजीत बन जाओ तो सेकण्ड में प्रकृतिजीत बन जायेंगे। प्रकृति का आधार लेंगे लेकिन अधीन नहीं बनेंगे। प्रकृतिजीत ही विश्वजीत व जगतजीत है। *फिर एक सेकण्ड का डायरेक्शन अशरीरी भव का सहज और स्वत: हो जायेगा।*
〰✧ खेल क्या देखा। तेरे को मेरे बनाने में बडे होशियार हैं। जैसे जादू मन्त्र से जो कोई कार्य करते हैं तो पता नहीं पडता कि हम क्या कर रहे हैं। *यह रॉयल माया भी जादू-मन्त्र कर देती है जो पता नहीं पडता कि हम क्या कर रहे हैं।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ तो जहाँ प्रभु प्रीत है वहाँ अशरीरी बनना क्या लगता है? *प्रीत के आगे अशरीरी बनना एक सेकण्ड के खेल के समान है। बाबा बोला और शरीर भूला। बाबा शब्द ही पुरानी दुनिया को भूलने का आत्मिक बाम्ब है।* (बिजली बन्द हो गई) जैसे यह स्विच बदली होने का खेल देखा ऐसे वह स्मृति का स्विच है *बाप का स्विच ऑन और देह और देह की दुनिया की स्मृति का स्विच ऑफ। यह है एक सेकण्ड का खेल।* मुख से बाबा बोलने में भी टाइम लगता है लेकिन स्मृति में लाने में कितना समय लगता है। तो प्रीत में रहना अर्थात अशरीरी सहज बनना।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पढाई में तत्पर रह अपनी तकदीर ऊंच बनाना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने मन-बुद्धि को बाह्य सभी बातों से हटाकर भृकुटी के मध्य केन्द्रित करती हूँ... इस देह रूपी ड्रेस से मैं आत्मा बाहर निकल फ़रिश्ता ड्रेस धारण करती हूँ... और इस धरा से ऊपर उड़ते हुए, सागर, नदियों, जंगलों, पहाड़ों को पार करती हुई आसमान में बादलों के ऊपर बैठ जाती हूँ...* आसमान में चाँद, सितारों से मिलकर और ऊपर उड़कर सूक्ष्म वतन में बापदादा के सम्मुख जाकर बैठ जाती हूँ राजयोग की पढाई पढने...
❉ *मुझे डबल सिरताज बनाकर विश्व की राजाई मेरे नाम करने के लिए अमूल्य ज्ञान देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... यह ईश्वरीय पढ़ाई वह जागीर, वह दौलत है जो विश्व का राज्य भाग्य दिलायेगी... *इसलिये इस महान पढ़ाई में रग रग से जुट जाओ... ईश्वर पिता की गोद में बैठ पढ़ते हो और यादो से विश्व अधिकारी सहज ही बन जाते हो... कितना प्यारा और मीठा सा यह भाग्य है... इसके नशे में डूब जाओ...”*
➳ _ ➳ *बाबा के मोहब्बत की रोशनी में सच्ची कमाई कर हीरे समान चमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार भरी छाँव में, *सुखो भरी गोद में बैठ राजाई भाग्य पा रही हूँ... देवताई संस्कारो से सजकर मीठा सा मुस्करा रही हूँ, और सुनहरे सुखो की ओर कदम बढ़ाती जा रही हूँ...”*
❉ *अपने पलकों में बिठाकर यादों के समुन्दर की गहराईयों में डुबोते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *सच्ची पढ़ाई को दिल जान से पढ़कर अधिकारी बन जाओ... अमूल्य खजानो को और अथाह सुखो की दौलत से मालामाल बन जाओ...* ईश्वर पिता से सब कुछ लेकर देवताओ सा खुबसूरत जीवन बाँहों में भरकर खिलखिलाओ... डबल सिरताज बन सदा की मुस्कान से सज जाओ...”
➳ _ ➳ *रूहानी नशे में खोकर बाबा को अपने नैनों में बसाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा आपकी मीठी यादो और अमूल्य ज्ञान रत्नों से अथाह सुखो की मालकिन और देवताओ सा रूप रंग पा रही हूँ...* कभी दुखो में गरीब सी... मै आत्मा आज शिव बाबा आपकी बाँहों में पूरे विश्व धरा का अधिकार पा रही हूँ...”
❉ *अमूल्य ज्ञान रत्नों की निधियों से मुझे मालामाल करते हुए मेरे रत्नाकर बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *ईश्वरीय पढ़ाई ही सारे सच्चे सुखो का आधार है... सारा मदार इस पढ़ाई पर ही है... जितना ज्ञान रत्नों को मन और बुद्धि में समाओगे उतना ही प्यारा सतयुगी सुखो में इठलाओगे... इसलिए इस पढ़ाई में जीजान से जुट जाओ...* और डबल ताज धारी बन विश्वधरा पर राजाई का लुत्फ़ उठाओ...”
➳ _ ➳ *इस एक जन्म की पढाई से 21 जन्मों की ऊँची तकदीर बनाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा ईश्वरीय पढ़ाई से अथाह अमीरी का खजाना पा रही हूँ... राजयोगी बनकर किस कदर धनवान् होती जा रही हूँ...* दुखो की मोहताज से मुक्त होकर ईश्वरीय बाँहों में अमीर और अमीर होती जा रही हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- प्राणेश्वर बाप की याद में रह सबको प्राण दान देना है*
➳ _ ➳ अपने अति मीठे प्यारे खुदा दोस्त के साथ, सारे विश्व का भ्रमण करने का मन मे जैसे ही संकल्प उतपन्न होता है वैसे ही मैं महसूस करती हूँ जैसे मेरा संकल्प सेकण्ड में मेरे स्वीट दोस्त के पास पहुँच गया है और मेरे संकल्प को कैच करते ही बिना कोई विलम्ब किये वो मेरे पास आ रहें हैं। *मन ही मन अपने भाग्य पर मुझे नाज होता है कि जिस भगवान को दुनिया ढूंढ रही है वो मेरे संकल्प को कितनी जल्दी पढ़ लेता है और उसे पूरा करने का अपना वायदा निभाने के लिए कैसे दौड़ा चला आता है*! मुझसे भाग्यशाली इस संसार मे और कोई नही जिसका साथी स्वयं भगवान बन गया है। कितनी खूबसूरती से हर रिश्ता निभाता है मेरा सच्चा साथी। *देह के साथी तो स्वार्थ की भावना से रिश्ता निभाते है लेकिन मेरा खुदा दोस्त तो निस्वार्थ और निष्काम भाव से अपने दिये हुए हर वचन को निभाता है*।
➳ _ ➳ अपने श्रेष्ठ भाग्य की स्मृति में खोई हुई, मैं महसूस करती हूँ मेरे प्राणेश्वर, मेरे दिलाराम दोस्त अपनी अनन्त शक्तियों की किरणों को बिखेरते हुए अपने नन्दीगण पर सवार हो कर मेरे पास आ गए हैं। उनकी सर्वशक्तियों की किरणों को मैं अपने ऊपर पड़ता हुआ स्पष्ट महसूस कर रही हूँ। *अपनी किरणों के रूप में अपना असीम स्नेह मुझ पर बरसाते हुए वो अपने लाइट माइट स्वरूप में मेरे बिल्कुल सामने आकर उपस्थित हो गए हैं। अपने प्यारे बापदादा को अपने सामने देखकर मैं आनन्द विभोर हो रही हूँ*। मन ही मन हर्षित होते हुए मैं उनके मुखकमल को निहार रही हूँ और महसूस कर रही हूँ उनके मस्तक से निकल रहे उस तेज प्रकाश को जो देह भान रूपी वस्त्र को हटाकर सीधा मुझ आत्मा को छू रहा है। *बापदादा के मस्तक से निकल रही लाइट का स्पर्श पाकर मैं डबल लाइट स्थिति में सहज ही स्थित होती जा रही हूँ*।
➳ _ ➳ अपनी स्थूल देह को प्रकाश की एक अति सुंदर काया के रूप में परिवर्तित होते हुए मैं स्पष्ट महसूस कर रही हूँ। मेरी ये डबल लाइट फ़रिश्ता स्थिति मुझे बहुत ही हल्केपन का अनुभव करवा रही है। *स्थूल देह से जुड़ी हर चीज का आकर्षण जैसे पूरी तरह समाप्त हो गया है और मैं फ़रिश्ता निर्बन्धन होकर अब अपने प्राणेश्वर, अपने दिलाराम दोस्त की किरणों रूपी बाहों को थामे उनके साथ ऊपर आकाश की और उड़ कर जा रहा हूँ*। सारे विश्व मे उनके साथ भ्रमण करता हुआ अपने संकल्प को मैं पूरा होते देख रहा हूँ और अपने भगवान साथी का दिल से आभार व्यक्त कर रहा हूँ जो मेरे इस संकल्प को उन्होंने आकर पूरा किया। *जहाँ प्रकृति के अनेक खूबसूरत नजारों का आनन्द मैं फरिश्ता अपने साथी के साथ सैर करते हुए ले रहा हूँ वही दूसरी और पृथ्वीलोक पर फैली दुख, अशांति, को भी देख रहा हूँ*।
➳ _ ➳ अपने ही आत्मा भाइयो की इस हालत को देख कर मन जैसे विचलित हो रहा है और मन मे एक ही इच्छा जागृत हो रही है कि काश ये सभी आत्मायें भी मेरी तरह भगवान को अपना साथी बना ले, इन्हें भी प्राणदान मिल जाये। *मन ही मन ये संकल्प करता हुआ अपने खुदा साथी के साथ अब मैं आकाश को पार करके उनकी खूबसूरत उस दुनिया में प्रवेश कर रहा हूँ जहाँ स्थूल देह और देह से जुड़ी किसी वस्तु का कोई बंधन नही। चारों और सूक्ष्म देहधारी डबल लाइट फरिश्ते दिखाई दे रहें हैं*। इस दिव्य अलौकिक दुनिया में आकर असीम सुख का मैं अनुभव कर रहा हूँ। अपने साथी के साथ बैठ कर इस वतन के सुन्दर - सुन्दर नजारों को देखने के साथ - साथ अपने दोस्त से मैं मीठी - मीठी रूह रिहान भी कर रहा हूँ। *उन्हें अपने मन की हर बात बताते हुए मैं उनसे गुजारिश करता हूँ कि विश्व की सर्व आत्मायें जो उनसे बिछुड़ कर प्राणों से रहित बहुत ही दुखी जीवन जी रही है उन्हें भी प्राणदान मिल जाये*।
➳ _ ➳ मेरी हर बात को मेरे साथी बड़े ध्यान से सुन रहें हैं और मुस्कारते हुए अपने हाथ मे मेरा हाथ लेकर अपनी शक्तियाँ मुझे प्रदान करके, अब मेरे साथ वतन से नीचे आ रहें है। देख रहा हूँ मैं फ़रिश्ता अब स्वयं को विश्व ग्लोब के ऊपर अपने खुदा साथी के साथ। *अपने स्नेह की अनन्त शीतल धाराएं वो मेरे ऊपर बरसा रहें हैं और मैं महसूस कर रहा हूँ जैसे मेरे अंग - अंग से स्नेह की वो शीतल फुहारे निकल कर अब नीचे पृथ्वी लोक पर जा रही हैं*। सारे विश्व की एक - एक आत्मा के ऊपर वो शीतल फुहारे बरस रही हैं और उन्हें परमात्म प्यार का सुख प्रदान कर रही हैं। मैं देख रहा हूँ ये शीतल धाराएं उनकी जन्म - जन्म की प्यास बुझा कर उन्हें परमात्म परिचय भी दे रही हैं। *मेरे हर आत्मा भाई को इस बात का एहसास हो रहा है कि प्राणों की रक्षा करने वाले सच्चे प्राणेश्वर भगवान बाप की याद ही उन्हें प्राणदान दे सकती हैं*। उस प्राणदान को लेने के लिए अब सभी उन स्थानों की तलाश कर रही है जहाँ उन्हें उनके प्राणेश्वर बाबा का परिचय मिल सकता है। *बाबा के उन घरों में जाकर सभी बाबा का परिचय पाकर अब बाबा की याद में रहकर, फिर से प्राणदान पाकर सुख शांति का अनुभव कर रही हैं*।
➳ _ ➳ जीवन के सहारे, अपने दिलाराम सच्चे साथी के साथ विश्व भ्रमण की अपनी इच्छा पूरी करने के साथ - साथ अपने सभी आत्मा भाइयो को बाप की याद में रह प्राणदान देने के अपने संकल्प को अपने दिलाराम साथी की मदद से पूरा करके अब मैं उनका शुक्रिया अदा करके अपने सूक्ष्म आकारी लाइट के शरीर के साथ वापिस अपने कर्मक्षेत्र पर आकर फिर से कर्म करने के लिए अपनी स्थूल देह में लौट आती हूँ। *फिर से अपनी साकार देह में भृकुटि के अकालतख्त पर मैं आत्मा विराजमान होकर अब अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सभी आत्माओ को परमात्म परिचय देकर उन्हें भी प्राणेश्वर बाबा की याद में रह प्राणदान देने की सेवा निरन्तर कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं सदा सेफ्टी के स्थान पर रह निर्भय और निश्चिन्त रहने वाली बापदादा की दिलतख्तनशींन आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं बुद्धि पर किसी भी प्रकार का बोझ नहीं रखने वाला डबल लाइट फरिश्ता हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *संगमयुगी श्रेष्ठ दरबार, भविष्य की राज्य दरबार दोनों में कितना अन्तर है! अब की दरबार जन्म-जन्मान्तर की दरबार का फाउन्डेशन है। अभी के दरबार की रूपरेखा भविष्य दरबार की रूपरेखा बनाने वाली है। तो अपने आपको देख सकते हो कि अभी के राज्य अधिकारी सहयोगी दरबार में हमारा स्थान कहाँ है?* चेक करने का यन्त्र सभी के पास है? जब साइन्स वाले नये-नये यन्त्रों द्वारा धरनी से ऊपर के आकाशमण्डल के चित्र खींच सकते हैं, वहाँ के वायुमण्डल के समाचार दे सकते हैं, इनएडवांस प्रकृति के तत्वों की हलचल के समाचार दे सकते हैं तो आप सर्व शक्ति-सम्पन्न बाप के अथॉरिटी वाली श्रेष्ठ आत्मायें अपने दिव्य बुद्धि के यन्त्र द्वारा तीन काल की नॉलेज के आधार से अपना वर्तमान काल और भविष्य काल नहीं जान सकते?
➳ _ ➳ यन्त्र तो सभी के पास है ना? दिव्य बुद्धि तो सबको प्राप्त है। इस दिव्य बुद्धि रूपी यन्त्र को कैसे यूज़ करना है, किस स्थान पर अर्थात् किस स्थिति पर स्थित हो करके यूज़ करना है, यह भी जानते हो *त्रिकालदर्शी-पन की स्थिति के स्थान पर स्थित हो तीनों काल की नॉलेज के आधार पर यन्त्र को यूज़ करो! यूज़ करने आता है? पहले तो स्थान पर स्थित होने आता है अर्थात् स्थिति में स्थित होने आता है? तो इसी यन्त्र द्वारा अपने आपको देखो कि मेरा नम्बर कौन-सा है?* समझा!
✺ *"ड्रिल :- दिव्य बुधी के यंत्र द्वारा खुद को चेक करना कि मेरा नंबर कौन सा है।”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा के कमरे में एकांत में बैठती हूँ... अपने मन को एकाग्र करने की कोशिश करती हूँ... अपने देह को देखती हूँ... ये देह जो अनेक कर्मेन्द्रियों के संगठन से बना है... पैरों से लेकर सिर तक के सभी कर्मेंर्दियों पर से ध्यान हटाते हुए अपनी सांसों पर मन को एकाग्र करती हूँ...* भीतर आ रही, बाहर जा रही सांसों को ध्यान से अवलोकन करती हूँ... धीरे-धीरे मन शांत होता जा रहा है... बहिर्मुखी मन अंतर्मुखी हो रहा है... मन की आंखों से अंतर्मन की गहराईयों में झांकती हूँ... आत्मनिरीक्षण करती हूँ... जन्म-जन्मान्तर के विकारों और विकर्मों से अभिभूत आत्मा को देख रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा और अन्दर गहराईयों में उतरकर जाती हूँ जब इसके कारण तक पहुँचती हूँ तो पाती हूँ कि मेरी बुद्धि रूपी यंत्र में व्यर्थ संकल्पों, विचारों की जंग लगी हुई है... जिसके कारण मेरी बुद्धि मेरे चंचल मन को कंट्रोल करने में असमर्थ होकर स्वयं ही विषय विकारों में आसक्त हो गई... *मैं आत्मा परमप्रिय परमात्मा का आह्वान करती हूँ... बाबा के कमरे के छत से दिव्य प्रकाश की किरणें मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं... सारा कमरा लाल सुनहरे प्रकाश की किरणों से भर गया है...*
➳ _ ➳ *परमात्मा की दिव्य तेजस्वी किरणें बुद्धि रूपी यंत्र का ओइलिंग कर रही हैं... मुझ आत्मा के बुद्धि रूपी यंत्र से व्यर्थ संकल्पों, व्यर्थ विचारों, विकर्मों की जंग खत्म हो रही है... अब प्यारे बाबा के दिव्य ज्ञान की किरणें मुझ आत्मा की बुद्धि रूपी यंत्र में समाते जा रहे हैं...* मैं दिव्य बुद्धिधारी बन गई हूँ... दिव्य ज्ञान के पेट्रोल से मुझ आत्मा की दिव्य बुद्धि रूपी यंत्र सुचारू रूप से श्रीमत प्रमाण कार्य करना शुरू कर दिया है... मैं आत्मा दिव्य बुद्धि रूपी यंत्र द्वारा तीनों कालों की नॉलेज को प्राप्त कर त्रिकालदर्शी बन गई हूँ...
➳ _ ➳ *अब मैं आत्मा त्रिकालदर्शी-पन की स्थिति में स्थित होकर अपना राज्य दरबार लगाती हूँ... और दिव्य बुद्धि रूपी यंत्र द्वारा चेक करती हूँ कि कौन-कौन से कर्मेन्द्रिय रूपी कर्मचारी अपना काम सच्चाई-सफाई से नहीं कर रहा है...* सभी इंद्रियों को उकसाने वाले चंचल, उद्विग्न मन को प्यार से समझाती हूँ कि... ये देह, देह के पदार्थ, देह के संबंध सब विनाशी हैं इनमे आसक्ति दिखाने से दुःख-अशांति ही मिलेगी... एक बाबा से ही अविनाशी सम्बन्ध रखने से अतीन्द्रिय सुख, शांति मिलती है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने मन को समझानी देते हुए अपने सभी कर्मेन्द्रियों को अपने अधीन करने की रूपरेखा तैयार कर रही हूँ... *इस संगमयुगी श्रेष्ठ राज्य दरबार में भविष्य की जन्म-जन्मान्तर की दरबार का फाउन्डेशन लगा रही हूँ... भविष्य दरबार की रूपरेखा बना रही हूँ...* बाबा की ज्ञान मुरली को धारण कर अपने मन के विचारों को ज्ञानयुक्त बना रही हूँ... श्रेष्ठ और समर्थ संकल्पों से भर रही हूँ... *अपने दिव्य बुद्धि रूपी यंत्र को मन की निगरानी के कार्य में बिजी कर दी हूँ... अब मैं आत्मा अपने दरबार की राज्याधिकारी बन पहला स्थान प्राप्त करने, भविष्य विश्व राज्याधिकारी बनने का श्रेष्ठ पुरुषार्थ कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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