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 24 / 04 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सवेरे अमृतवेले उठ अशरीरी बन बाप को याद करने का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *परमत व मनमत पर न चल एक बाप की श्रेष्ठ मत पर चले ?*

 

➢➢ *अपने कर्म और स्थिति द्वारा ब्रह्मा बाप को स्पष्ट दिखाया ?*

 

➢➢ *एकाग्रता के दृढ़ संकल्प से सागर के तले में जा अनुभव के हीरे मोती प्राप्त किये ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *संगमयुग की विशेष शक्ति साइलेन्स की शक्ति है।* संगमयुगी आत्माओं का लक्ष्य भी है कि अब स्वीट साइलेन्स होम में जाना है। *शान्त स्वरूप रहना और सर्व को शान्ति देना-यही संगमयुगी आत्माओं का मुख्य लक्षण है। वर्तमान समय विश्व में इसी शक्ति की आवश्यकता है, इसको ही योगबल कहा जाता है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं पवित्र आत्मा हूँ"*

 

✧   सदा पवित्रता की शक्ति से स्वयं को पावन बनाए औरों को भी पावन बनने की प्रेरणा देने वाले हो ना? *घर-गृहस्थ में रह पवित्र आत्मा बनना, इस विशेषता को दुनिया के आगे प्रत्यक्ष करना है।*

 

✧  ऐसे बहादुर बने हो! *पावन आत्मायें हैं, इसी स्मृति से स्वयं भी परिपक्व और दुनिया को भी यह प्रत्यक्ष प्रमाण दिखाते चलो।*

 

 कौन-सी आत्मा हो? *असम्भव को सम्भव कर दिखाने के निमित्त, पवित्रता की शक्ति फैलाने वाली आत्मा हूँ। यह सदा स्मृति में रखो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आज हरेक को अव्यक्त स्थिती का अनुभव करा रहे हैं। हरेक यथाशक्ति अनुभव कर रहे हैं, कहाँ तक हरेक निराकारी और अलंकारी बने है वह देख रहे हैं। दोनों ही आवश्यक हैं। *अलंकारी कभी भी देह अहंकारी नहीं बन सकेगा।* इसलिए सदैव अपने आप को देखो कि निराकारी और अलंकारी हूँ। यही है मनमनाभव, मध्याजीभव।

 

✧  स्व - स्थिति को मास्टर सर्वशक्तिवान कहा जाता है। तो मास्टर सर्वशक्तिवान बने हो ना। इस स्थिति में सर्व परिस्थितियों से पार हो जाते हैं। *इस स्थिति में स्वभाव अर्थात सर्व में स्व का भाव अनुभव होता है।* और अनेक पुराने स्वभाव समाप्त हो जाते हैं।

 

✧  स्वभाव अर्थात स्व में आत्मा का भाव देखो फिर यह भाव - स्वभाव की बातें समाप्त हो जायेगी। सामना करने की सर्व शक्तियाँ प्राप्त हो जायेगी। *जब तक कोई सूक्ष्म वा स्थूल कामना है तब तक सामना करने की शक्ति नहीं आ सकती।* कामना सामना करने नहीं देती।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *उन पण्डितो आदि के बोलने में भी पावर होती है। एक सेकण्ड में खुशी दिला देते, एक सेकण्ड में रुला देते हैं। जब उन्हों के भाषण में इतनी पावर होती है; तो क्या आप लोगों के भाषण में वह पावर नहीं हो सकती?* अशरीरी बनाना चाहो वह अनुभव करा सकते है? वह लहर छा जावे। सारी सभा के बीच बाप के स्नेह की लहर छा जावे। उसको कहा जाता है प्रैक्टिकल अनुभव कराना। अब ऐसी भाषण होना चाहिए, तब कुछ चेन्ज होगी। *वह भले भाषण सभा को हँसा लेते, रुला लेते लेकिन न तो अशरीरीपन का अनुभव करा सकते और न ही बाप से स्नेह नहीं पैदा कर सकते।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- श्रीमत ही श्रेष्ठ बनाएगी, श्रीमत को कभी भी भूलना नहीं"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा मधुबन की पहाड़ी पर बैठ प्रकृति के नजारों को देखती हूँ... पहाड़ों के बीच से उगते हुए सूरज की लालिमा ने अपना सुनहरा आँचल फैलाकर पहाड़ों को और ही खूबसूरत बना दिया है...* ठंडी-ठंडी हवाओं के झोंकें मधुर संगीत सुना रही हैं... इस मधुर पावन धरती की गाथा गा रही है... मैं आत्मा हद की दुनिया से दूर बेहद के इस घर में बेहद बाबा को याद करती हूँ... तुरंत ही मीठे प्यारे बाबा मेरे सम्मुख हाजिर होकर अपने प्यार की खुशबू मुझ पर बरसाते हैं...

 

  *ऊँगली पकडकर श्रीमत की राह पर चलाकर श्रेष्ठ बनाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे बच्चे... अब यह विकारो से भरी दुनिया खत्म होने वाली है और दिव्य गुणो के महक वाली सतयुगी दुनिया आने वाली है... तो ईश्वर पिता की श्रीमत को जीवन का आधार बना लो... *यही श्रीमत और पवित्रता देवी देवता के रूप में श्रृंगारित कर सुखो के संसार में ले चलेगी...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा अपने जीवन रूपी गाड़ी को श्रीमत रूपी पटरी पर चलाते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा इस पुरानी विकारी दुनिया से मन बुद्धि को निकाल श्रीमत का हाथ पकड़ सतयुगी दुनिया की और बढ़ती चली जा रही हूँ...* दिव्य गुणो से सजती जा रही हूँ... प्यारे बाबा संग निखरती जा रही हूँ...

 

  *मीठा बाबा स्वर्ग सुखों से जीवन को आबाद कर खुशियों की शहजादी बनाते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे फूल बच्चे... इस दुःख भरी दुनिया से उपराम होकर मेरी महकती यादो में खो जाओ... *श्रीमत का हाथ सदा पकड़े रहो... तो काँटों से महकते फूल बन खिल उठेंगे... ईश्वर पिता का साथ सुखो के जन्नत में ले चलेगा...* जहाँ देवता बन मुस्करायेंगे...

 

_ ➳  *रावण की दुनिया से निकल एक राम की यादों में महकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा प्यारे बाबा से सारे गुण और शक्तियो से भरकर भरपूर हो गई हूँ... *इस मिटटी के नातो से निकल कर अपने सत्य स्वरूप के नशे में खो गई हूँ... और श्रेष्ठ कर्म से खिलती जा रही हूँ...”*

 

  *श्रीमत के झूले में झुलाकर दिव्यता से महकाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जिस दुनिया सा इतना दिल लगाकर दुखी हुए... खाली हो गए... अब उसका अंत आया की आया... *अब समय साँस संकल्पों को मीठे बाबा की यादो और श्रीमत के पालन में लगाओ... तो यह पवित्र जीवन सुख और शांति से खिल उठेगा... घर आँगन सुखो से लहलहायेगा...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा सुन्दर परी बनकर पवित्रता की खुशबू चारों ओर फैलाते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी श्रीमत से खूबसूरत होती जा रही हूँ... मन बुद्धि को इस संसार से उपराम बनाती जा रही हूँ... *मीठे बाबा आपने जो सुंदर कर्म सिखाये है... पवित्रता का दामन थाम सुन्दरतम होती जा रही हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पूरा वर्सा लेने के लिए याद की रेस करनी है*"

 

_ ➳  अपने प्यारे पिता परमात्मा की मीठी याद से मिलने वाले अतींद्रिय सुख की अनुभूति को याद करते हुए, उस सुख को गहराई तक अपने अंदर समा लेने के लिए मैं अपनी आंखों को हल्के से बंद करती हूँ और परमात्म याद के अति मीठे मधुर आनन्द में खो जाती हूँ। *परमात्म याद का आनन्द लेते हुए एक ख़ूबसूरत दृश्य देखती हूँ कि एक बहुत बड़े खुले एकान्त स्थान में श्वेत वस्त्र धारण किये असंख्य ब्राह्मण आत्मायें परमात्म याद में मग्न बैठी हैं*। आत्मिक स्मृति में स्थित सभी ब्राह्मणों के मस्तक पर चमकती हुई मणियां ऐसी लग रही हैं जैसे आकाश से सितारे टूट कर धरती पर बिखर गए हों और अपनी दिव्य आभा चारों और बिखेर रहें हो।

 

_ ➳  इन चैतन्य चमकते सितारों से निकल रही रंग बिरंगी किरणें चारों और फैल कर एक बहुत ही खूबसूरत मनमोहक दृश्य का निर्माण कर रही हैं। *मन को आनन्दित करने वाले इस दृश्य को मैं पूरी तन्मयता से देख रही हूँ। एकाएक मैं देखती हूँ जैसे सभी चमकती हुई मणियां अपने अपने अकालतख्त को छोड़ अपनी साकार देह से बाहर निकल रही हैं और ऊपर आकाश की ओर जा रही हैं*। असंख्य चमकते सितारों को, अपना प्रकाश फैलाते हुए ऊपर की ओर जाते हुए मैं देख रही हूँ। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे कोई रेस चल रही है। *कभी आगे वाला सितारा पीछे हो जाता है तो कभी पीछे वाला सितारा आगे निकल जाता है*। सभी याद की इस रेस में निरन्तर आगे बढ़ने का प्रयास कर रहें हैं ओर अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे हैं।

 

_ ➳  इस अति खूबसूरत दृश्य को देखते - देखते मैं भी याद की इस रेस में शामिल हो जाती हूँ। अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर, चमकता हुआ चैतन्य सितारा बन अपनी साकार देह से मैं बाहर निकलता हूँ और याद की यात्रा में उन असंख्य चमकते सितारो के साथ रेस करते हुए अब ऊपर आकाश की ओर चल पड़ता हूँ। *अपने प्यारे प्रभु के प्रेम की लगन में मग्न सभी चमकती हुई मणियां याद की रेस में दौड़ती हुई आकाश को पार कर उससे भी ऊपर सूक्ष्म वतन को पार करके अब अपनी मंजिल पर पहुँच रही हैं*। चमकती मणियों की इस खूबसूरत दुनिया मूल वतन में भी जैसे रेस चल रही है। मैं देख रही हूँ इस रेस में हर आत्मा अपने पुरुषार्थ अनुसार अपना स्थान प्राप्त कर रही है। *कोई तो अपने प्यारे पिता के बिल्कुल समीप है, कोई उनसे थोड़ी दूरी पर है और कोई तो बहुत ही दूर है*।

 

_ ➳  याद की इस रेस को पूरा कर अब मैं अपने प्यारे मीठे बाबा के पास पहुँचती हूँ और उनके सुन्दर स्वरूप को निहारते हुए उनके पास जा कर बैठ जाती हूँ। बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की एक - एक किरण को बड़े प्यार से निहारते हुए मैं उन्हें स्वयं में समाहित कर रही हूँ। *सर्व गुणों, सर्वशक्तियों के शक्तिशाली वायब्रेशन्स बाबा से निकल कर चारों और फैल रहें हैं और मन को असीम सुख और आनन्द का अनुभव करवा रहें हैं*। इन शक्तियों के वायब्रेशन्स को अपने अंदर गहराई तक समाते हुए, मैं धीरे - धीरे बाबा के बिल्कुल समीप पहुँच जाती हूँ और जा कर जैसे ही उन्हें टच करती हूँ, उनकी सारी शक्तियाँ मुझ में समाने लगती हैं।

 

_ ➳  शक्तियों का एक सुनहरी फव्वारा जैसे मेरे ऊपर चलने लगता है और सर्वशक्तियों की मीठी फुहारें मुझ आत्मा के ऊपर बरसने लगती हैं। *रंग बिरंगी किरणो की मीठी फ़ुहारों का भरपूर आनन्द लेकर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया में लौट आती हूँ और आकर अपने साकार तन में फिर से भृकुटि के अकालतख्त पर विराजमान हो जाती हूँ*। अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित मैं आत्मा अब स्वर्ग के रचयिता अपने प्यारे पिता से पूरा वर्सा लेने के लिए याद की रेस हर समय कर रही हूँ। कर्म करने के लिए जब चाहे शरीर का आधार लेना और कर्म करके शरीर से डिटैच हो जाना यही अभ्यास अब मैं बार - बार करती रहती हूँ। *सेकेण्ड में साकारी सो आकारी, आकारी सो निराकारी इस ड्रिल के अभ्यास द्वारा याद की रेस मैं अब मैं सदा तत्पर रहती हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं आत्मा अपने कर्म और स्थिति द्वारा ब्रह्मा बाप को स्पष्ट दिखाने वाली मास्टर ब्रह्मा  हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं एकाग्रता के दृढ़ संकल्प से सागर के तले में जाकर अनुभव के हीरे मोती प्राप्त करने वाली अनुभवी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  *मातपिता के समान पालना की विशेषता अनुभव करते हो? जो भी आत्मायें सम्बन्ध वा सम्पर्क में आवें, वे अनुभव करें कि यही श्रेष्ठ आत्मायें हमारे पूर्वज' हैं। इन्हीं आत्माओं द्वारा जीवन का सच्चा प्रेम, और जीवन की उन्नति का साधन प्राप्त हो सकता है क्योंकि पालना द्वारा ही प्रेम और जीवन की उन्नति प्राप्त होती है।* पालना द्वारा आत्मा योग्य बन जाती है। छोटा सा बच्चा भी पालना द्वारा अपनी जीवन की मंजिल को पहुँचने के लिए हिम्मतवान बन जाता है। ऐसे रूहानी पालना द्वारा आत्मा निर्बल से शक्ति स्वरूप बन जाती है। अपनी मंजिल की ओर तीव्रगति से पहुंचने की हिम्मतवान बन जाती है। पालना में वह सदा प्रेम के सागर बाप द्वारा सच्चे अथाह प्रेम की अनुभूति करती है। *ऐसे राज्य सत्ता की निशानियां अपने में अनुभव करते हो?*

 

✺  *"ड्रिल :-  मातपिता के समान पालना की विशेषता स्वयं में अनुभव करना*"

 

_ ➳  *मैं सचेतन आत्मा अपने चेतन मन के सर्व हलचल को शांत करती हुई एकांत में बैठती हूँ...* सर्व बाहरी आकर्षणों से परे होते हुए अंतर्मुखी हो रही हूँ... मैं आत्मा इस देह को छोड़कर फरिश्ता स्वरुप धारण करती हूँ... *मैं फरिश्ता इस व्यक्त वतन से ऊपर उड़ते हुए अव्यक्त वतन में अव्यक्त बापदादा के सम्मुख बैठ जाती हूँ...*

 

_ ➳  अव्यक्त बापदादा से निकलती इन्द्रधनुषी किरणों का तेज प्रकाश मुझ फरिश्ते पर पड़ रहा है... *मैं आत्मा सर्व गुणों के खजाने, शक्तियों के खजाने, स्वमानों के खजाने, वरदानों के खजानों से भरपूर हो रही हूँ...* मुझ आत्मा के दिव्य चक्षु खुल रहे हैं... मैं आत्मा स्मृति स्वरुप बन रही हूँ... मैं आत्मा बाप समान बन रही हूँ...

 

_ ➳  मुझ आत्मा को पूर्वजपन की स्मृति आ रही है... *मैं आत्मा ही पूर्वज हूँ... दी ग्रेट-ग्रेट ग्रैंड फादर की वंशावली हूँ... मैं फरिश्ता भी मास्टर ग्रेट-ग्रेट ग्रैंड फादर हूँ...* विश्व कल्याणकारी हूँ... मात-पिता ने जैसे मुझ आत्मा की पालना की, शिक्षा दी, सर्व खजानों से सम्पन्न बनाकर सर्व वर्से का अधिकारी बनाया... *वैसे ही अब मुझ पूर्वज आत्मा का कर्तव्य है कि अपने भाई-बहनों को भी पालना देकर योग्य बनाना...*

 

_ ➳  *मैं फरिश्ता बापदादा के साथ विश्व ग्लोब के ऊपर बैठ जाती हूँ...* बापदादा से निकलती किरणें मुझ फरिश्ते से होती हुई पूरे विश्व की आत्माओं पर पड़ रही हैं... *अज्ञान-अंधकार में भटकती आत्माओं को सत्य ज्ञान की किरणों के प्रकाश से प्रकाशित कर रही हूँ... *मैं फरिश्ता सच्चे प्रेम के लिए भटकती आत्माओं को प्रेम की किरणों से भरपूर कर रही हूँ...* सर्व आत्माओं को प्रेम के सागर बाबा के सच्चे अथाह प्रेम की अनुभूति करा रही हूँ...

 

_ ➳  *मैं फरिश्ता बापदादा से निकलती सुख-शांति की किरणों का दान देकर सबके दुःख-अशांति को मिटा रही हूँ...* पवित्रता की किरणों से विकारों की अपवित्रता को भस्म कर रही हूँ... *आनंद की किरणों से सर्व को जीवन के सच्चे आनंद की अनुभूति करा रही हूँ...* मैं फरिश्ता शक्तियों की किरणों से निर्बल आत्माओं को शक्ति स्वरूप बना रही हूँ... तमोप्रधान प्रकृति को सतोप्रधान बना रही हूँ...

 

_ ➳  *मैं पूर्वज आत्मा अपने आक्युपेशन की स्मृति में रह सर्व आत्माओं की रूहानी पालना कर रही हूँ...* सबको उन्नति के मार्ग पर आगे बढा रही हूँ... अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए हिम्मतवान बना रही हूँ... *अब मैं आत्मा सदा पूर्वजपन की स्मृति में रह रहमदिल भावना से विश्व कल्याण कर रही हूँ... और मातपिता के समान पालना की विशेषता का स्वयं में अनुभव कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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