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 01 / 09 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *मास्टर नॉलेजफुल और त्रिकालदर्शी बन श्री कृषण और परमात्मा शिव के अंतर को स्पष्ट किया ?*

 

➢➢ *बाबा जो निबंध देते है, उस पर विचार सागर मंथन किया ?*

 

➢➢ *ख़ुशी के खजाने से संपन्न बन सदा खुश रह ख़ुशी का दान दिया ?*

 

➢➢ *"उपकार दया और क्षमा" - अपने यह तीन कर्तव्य निभाये ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *कोई भी हिसाब-चाहे इस जन्म का, चाहे पिछले जन्म का, लग्न की अग्नि-स्वरूप स्थिति के बिना भस्म नहीं होता।* सदा अग्नि-स्वरूप स्थिति अर्थात् शक्तिशाली याद की स्थिति, बीजरूप लाइट हाउस, माइट हाउस स्थिति इस पर अब विशेष अटेंशन दो तब रहे हुए सब हिसाब-किताब पूरे होंगे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं कमल पुष्प समान न्यारा और बाप का प्यारा हूँ"*

 

✧  सदा अपने को कमल पुष्प समान न्यारे और बाप के प्यारे अनुभव करते हो? *क्योंकि जितना न्यारापन होगा उतना ही बाप का प्यारा होगा। चाहे कैसी भी परिस्थितियां हो, समस्यायें हों लेकिन समस्याओंके अधीन नहीं, अधिकारी बन समस्याओ को ऐसे पार करें, जैसे खेल-खेल में पार कर रहे हैं। खेल में सदा खुशी रहती है।* चाहे कैसा भी खेल हो, लेकिन खेल है तो कैसा भी पार्ट बजाते हुए अन्दर खुशी में रहते हो? चाहे बाहर से रोने का भी पार्ट हो लेकिन अन्दर हो कि यह सब खेल है। तो ऐसे ही जो भी बातें सामने आती हैं-ये बेहद का खेल है, जिसको कहते हो ड्रामा और ड्रामा के आप सभी हीरो एक्टर हो, साधारण एक्टर तो नहीं हो ना।

 

✧  तो हीरो एक्टर अर्थात् एक्यूरेट पार्ट बजाने वाले। तब तो उसको हीरो कहा जाता है। तो सदा ये बेहद का खेल है-ऐसे अनुभव करते हो? कि कभी-कभी खेल भूल जाता है और समस्या, समस्या लगती है। कैसी भी कड़ी परिस्थिति हो लेकिन खेल समझने से कड़ी समस्या भी हल्की बन जाती है। *तो जो न्यारा और प्यारा होगा वो सदा हल्का अनुभव करने के कारण डबल लाइट होगा। कोई बोझ नहीं। क्योंकि बाप का बनना अर्थात् सब बोझ बाप को दे दिया।* तो सब बोझ दे दिया है या थोड़ा-थोड़ा अपने पास रख लिया है? थोड़ा बोझ उठाना अच्छा लगता है। सब कुछ बाप के हवाले कर दिया या थोड़ा-थोड़ा जेबखर्च रख लिया है? छोटे बच्चे जेबखर्च नहीं रखते हैं। रोज उनको जेब खर्च देते हैं, खाओ, पीयो, मौज करो। कोई भी चीज रखी होती है तो डाकू आता है।

 

  जब पता होता है कि ये मालदार है, कुछ मिलेगा तब डाका लगाते हैं। यदि पता हो कि कुछ नहीं मिलेगा तो डाका लगाकर क्या करेंगे। अगर थोड़ा भी रखते हैं तो डाकू माया जरूर आती है और वह अपनी चीज तो ले ही जाती है लेकिन जो बाप द्वारा शक्तियां मिली हैं वो भी साथ में ले जाती है। इसीलिये कुछ भी रखना नहीं है। सब दे दिया। *डबल लाइट का अर्थ ही है सब-कुछ बाप-हवाले करना। तन भी मेरा नहीं। ये तन तो सेवा अर्थ बाप ने दिया है। आप सबने तो वायदा कर लिया ना कि तन भी तेरा, मन भी तेरा, धन भी तेरा।* ये वायदा किया है कि तन तेरा है बाकी आपका है? जब तन ही नहीं तो बाकी क्या। तो सदा कमल पुष्प का दृष्टान्त स्मृति में रहे कि मैं कमल पुष्प समान न्यारी और प्यारी हूँ।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  अपने ही दर्पण में अपने तकदीर की सूरत को देखो। यह ज्ञान अर्थात नॉलेज दर्पण है। तो सबके पास दर्पण है ना तो अपनी सूरत देख सकते हो ना। *अभी बहुत समय के अधिकारी बनने का अभ्यास करो।* ऐसे नहीं अंत में तो बन ही जायेंगे। *अगर अंत में बनेंगे तो अंत का एक जन्म थोडा-सा राज्य कर लेंगे।*

 

✧  लेकिन यह भी याद रखना कि अगर बहुत समय का अब से अभ्यास नहीं होगा वा आदि से अभ्यासी नहीं बने हो, आदि से अब तक यह विशेष कार्यकर्ता आपको अपने अधिकार में चलाते हैं वा डगमग स्थिति करते रहते हैं अर्थात धोखा देते रहते हैं, *दु:ख की लहर का अनुभव कराते रहते हैं तो अंत में भी धोखा मिल जायेगा।*

 

✧  धोखा अर्थात दु:ख की लहर जरूर आयेगी। तो अंत में भी पचाताप के दु:ख की लहर आयेगी। इसलिए बापदादा सभी बच्चों को फिर से स्मृति दिलाते हैं कि *राजा बनो* और अपने विशेष सहयोगी कर्मचारी वा *राज्य कारोबारी साथियों को अपने अधिकार से चलाओ।* समझा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ जैसे ब्रह्मा बाप ने साकार जीवन में कर्मातीत होने के पहले न्यारे और प्यारे रहने के अभ्यास का प्रत्यक्ष अनुभव कराया। जो सभी बच्चे अनुभव सुनाते हो - सुनते हुए न्यारे, कार्य करते हुए न्यारे, बोलते हुए न्यारे रहते थे। सेवा को वा कोई कर्म को छोड़ा नहीं लेकिन न्यारे हो लास्ट दिन भी बच्चों की सेवा समाप्त की। *न्यारापन हर कर्म में सफलता सहज अनुभव कराता है। करके देखो। एक घंटा किसको समझाने की भी मेहनत करके देखो और उसके अंतर में 15 मिनट में सुनते हुए, बोलते हुए न्यारेपन की स्थिति में स्थित होके दूसरी आत्मा को भी न्यारेपन की स्थिति का वायब्रेशन देकर देखो। जो 15 मिनट में सफलता होगी वह एक घंटे में नहीं होगी। यही प्रेक्टिस ब्रह्मा बाप ने करके दिखाई। तो समझा। कया करना है!*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- विचार सागर मंथन कर श्रीकृष्ण और परमात्मा शिव के महान अंतर को स्पष्ट करना"*

 

 _ ➳  *अपने आंगन के सुंदर से... छोटे से... बाग में टहलती हुई मैं आत्मा... काँटो के साथ शान से मुस्कराते खूबसूरत गुलाब के फूलों को देख... मीठे बाबा के संग अपने महकते जीवन के चिंतन में डूबी हुई...* मीठे बाबा के यादों की बाँहों में झूलने लगती हूँ... बाबा के बिना जीवन कितना दुःख भरे काँटो से सना हुआ था... आज देह भान में आये दुःख के सारे काँटे नीचे हो गये हैं... और *रूहानियत से भरी मैं आत्मा... महकता गुलाब बनकर, सब बातों से ऊपर उठकर... शिखर पर सजी हुई... पूरे विश्व को अपने गुणों की सुगंध से... बरबस दीवाना बना रही हूँ...* अपने मन के मीठे जज्बात मीठे बाबा को सुनाने... मैं आत्मा बाबा की यादों में खो जाती हूँ..."

 

  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान धन से विश्व का मालिक सजाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *श्रीकृष्ण और परमात्मा शिव के महान अंतर को समझ... विचार सागर मंथन करो... गीता का भगवान कौन है... शिव हैं या श्रीकृष्ण हैं... मुक्ति... जीवनमुक्ति दाता कौन हैं..."*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा प्यारे बाबा से पायी ज्ञान धन की दौलत से शहंशाह बनकर कहती हूँ :-* "मीठे दुलारे बाबा मेरे... मैं आत्मा आपकी प्यार भरी छत्रछाया में रह परमात्मा शिव और श्रीकृष्ण के महान अंतर को समझ गयी हूँ... *ज्ञान सागर "शिवबाबा" निराकार हैं... उनकी पधरामणि हुई है, किसी को भी उनकी प्रवेशता का पता नहीं... वे तो कभी बच्चा बने ही नहीं... जबकि श्रीकृष्ण ने माता के गर्भ से जन्म लिया... वह भी रात्रि के समय... और शिवबाबा... बूढ़े तन में प्रवेश कर... कल्प के आदि-मध्य-अंत का ज्ञान देते हैं... वह एक सेकेंड में जीवनमुक्ति में भेज देते हैं... घर बैठे ही दिव्य दृष्टि दे देते हैं... साक्षात्कार करा देते हैं..."*

 

  *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा का रूहानी श्रृंगार करते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *शिवपिता के जन्म की कोई तिथि नही, श्रीकृष्ण की तो तिथि तारीख है... शिवभगवान पिता बनकर, आप बच्चों के लिये ही तो धरा पर उतर आया है... अपनी सारी जागीर आपको ही तो देने आया है...*  सुखों की अमीरी में, सदा की खुशियों से, झोली भरने आया है... ऐसे प्यारे पिता की यादों में सदा के लिये... साहूकार बनकर मुस्कराओ... मीठे बाबा के प्यार की छाँव में, सहज ही बाप समान बन जाओ..."

 

 _ ➳  *मैं आत्मा मीठे बाबा के मीठे प्यार में पुलकित होकर झूमते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... *आपने मुझ आत्मा के जीवन मे आकर, मुझे महान भाग्यशाली बना दिया है...* मैं आत्मा देह भान में आकर, गुणहीन, शक्तिहीन हो गयी थी... प्यारे बाबा... आपने मुझे पुनः मेरी खोयी हुई अमीरी से भर दिया है..."

 

  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को "परमात्मा शिव" और श्रीकृष्ण के भेद को स्पष्ट करते हुए कहा :-* "मेरे प्यारे फूल बच्चे... शिवपिता... ज्ञान सागर का नाम तो कभी बदलता ही नहीं... उनका नाम तो "सदाशिव" है... बाबा गीता के भगवान के बारे में बताते हुए कहते... *कृष्ण गीता कैसे सुना सकता है... वह तो बच्चा है... गर्भ से आया है... रात और दिन तो ब्रह्मा का गाया जाता है, ब्रह्मा का दिन है... "कृष्ण"... और ब्रह्मा की रात है... "ब्रह्मा"... ब्रह्मा ही फिर सो कृष्ण बनता है... कृष्ण की तो 8 पीढ़ी चलती हैं... छोटेपन में उनको कृष्ण कहते हैं... फिर स्वयम्वर बाद श्रीकृष्ण ही "श्री नारायण"... बनते हैं..."*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा प्यारे बाबा को बड़े ही प्यार से निहारते हुए कहती हूँ :-* "मीठे जादूगर बाबा मेरे... आपने अपनी प्यार भरी गोद में मुझ आत्मा को बिठाकर... देवताई सौन्दर्य से निखार दिया है... *मैं आत्मा आपकी यादों के हाथ को पकड़कर, दुःखो के जंगल से निकल... सुखों की पगडण्डी पर आ गयी हूँ...* मेरा जीवन ईश्वरीय खुशियों से महक उठा है... मीठे बाबा से प्यार की अथाह धन दौलत को लेकर मैं आत्मा... स्थूल देह में आ गयी..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मास्टर नॉलेजफुल और त्रिकालदर्शी बन श्री कृष्ण और परमात्मा शिव के महान अंतर को स्पष्ट कर घोर अंधियारे से निकालने की सेवा करनी है*"

 

_ ➳  आज सारी दुनिया इस घोर अंधियारे में रमण कर रही है कि गीता का भगवान श्रीकृष्ण है और इस घोर अंधियारे में भटकने के कारण कृष्ण को ही सारी दुनिया भगवान माने बैठी है *इसलिए उन सर्व प्राप्तियों से भी वंचित है जो परमात्मा को उनके यथार्थ स्वरूप में जानकर उन्हें यथार्थ रीति याद करने से होती है और वो यथार्थ परिचय सिवाय उस स्वयं भू के और कोई नही दे सकता*। और अब जबकि उस निराकार भगवान शिव ने स्वयं इन धरती पर अवतरित होकर अपना यथार्थ परिचय हम बच्चों को दिया है। अगम निगम के सब भेद उन्होंने आकर खोल दिये हैं। हर सच्चाई से हमे अवगत करवा दिया है।

 

_ ➳  सृष्टि के आदि मध्य अंत और तीनों लोको का ज्ञान देकर हमे मास्टर नॉलेजफुल, त्रिकालदर्शी बना दिया है तो अब हमारा ये कर्तव्य है कि इस सत्य राज को जान कर, *मास्टर नॉलेजफुल और त्रिकालदर्शी बन श्री कृष्ण और परमात्मा शिव के महान अंतर को स्पष्ट कर सारी दुनिया के सभी मनुष्यों को घोर अंधियारे से निकालने की सेवा करें और उन्हें परमात्मा शिव का यथार्थ परिचय देकर अपने उस प्यारे पिता से मिलवायें जिनसे वो इतने लंबे समय से बिछड़े हुए है और दुखी और अशांत हो गए हैं*। इन्ही विचारों के साथ इस सेवा का कार्यभार संभालने की स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर अपने प्यारे शिव पिता की याद में बैठ स्वयं को परमात्म शक्तियों से सम्पन्न करने के लिए मैं मन बुद्धि की उस अद्भुत रूहानी यात्रा पर चल पड़ती हूँ जो यात्रा मेरे पिता ने आ कर स्वयं मुझे सिखाई है।

 

_ ➳  राजयोग की उस यात्रा पर चलने के लिए, सभी बातों से किनारा कर मैं अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ और अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपनी दोनों आईब्रोज़ के बीच मस्तक के मध्य भाग पर केंद्रित कर लेती हूँ। *अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने स्वरूप पर एकाग्र करते ही उस शक्ति को मैं एक शाइनिंग स्टार के रूप में अपने मस्तक पर चमकता हुआ अनुभव करती हूँ। मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से अब मैं देख रही हूँ उस चैतन्य शक्ति को जो इस देह में होते हुए भी देह के किसी भी भाग को स्पर्श नही कर रही किन्तु अपनी एनर्जी से इस शरीर के सभी अंगों का संचालन कर रही है*। उस प्वाइंट ऑफ लाइट को मैं देख रही हूँ, उसमे समाये गुणों और शक्तियों का अनुभव कर रही हूँ। अपने इस सत्य स्वरूप को देखने और इसे अनुभव करने का एहसास बहुत ही निराला है, मन को अथाह सुकून देने वाला है।

 

_ ➳  अपने इस सुंदर स्वरूप का आनन्द लेते - लेते अब मैं भृकुटि के भव्यभाल को छोड़ देह से बाहर आ जाती हूँ और धीरे - धीरे अपनी रूहानी यात्रा पर बढ़ते हुए ऊपर आकाश की और उड़ जाती हूँ। दुनिया के खूबसूरत नज़ारो को देखती हुई मैं आकाश को पार कर पहुँच जाती हूँ फरिश्तो की आकारी दुनिया मे और कुछ ही सेकेंड में उस दुनिया को भी पार कर आत्माओं की निराकारी दुनिया अपने स्वीट साइलेन्स होम में आ जाती हूँ। *शांति के सागर अपने प्यारे पिता के इस शान्ति धाम घर मे आकर कुछ पल गहन शांति की अनुभूति करने के बाद मैं अपने शिव पिता के पास पहुँच कर उनकी सर्वशक्तियो की किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ स्वयं को उनके गुणों और शक्तियों से भरपूर करके, ईश्वरीय सेवा करने के लिए वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ*।

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप को धारण कर, मास्टर नॉलेजफुल और त्रिकालदर्शी बन श्री कृष्ण और परमात्मा शिव के महान अंतर को स्पष्ट कर सभी को घोर अंधियारे से निकालने की ईश्वरीय सेवा के अपने कर्तव्य को अंजाम देने के लिए, *कभी अलग - अलग स्थानों पर प्रदर्शनियों आदि में जा कर लोगो को यह अंतर चित्रो के माध्यम से अच्छी रीति समझाकर, उन्हें अंधकार से निकालने की रूहानी सेवा करते हुए सबको ईश्वर बाप से मिलवाने की बाबा की आश को मैं पूरा कर रही हूँ*। कभी अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली आत्माओं के पास जा कर उन्हें वाणी द्वारा समझाकर तो कभी अपने लाइट के फरिश्ता स्वरूप को धारण कर मनसा सकाश द्वारा सारे विश्व की आत्माओं को परमात्म सन्देश देकर इस सत्यता को सब तक पहुंचा रही हूँ। *नई - नई युक्तियां निकाल कर इस अंतर को लोगो के सामने स्पष्ट कर, अपने पिता परमात्मा से बिछुड़े अपने सभी आत्मा भाइयों को उनसे मिलाने की सेवा मैं हर पल कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मै खुशी के खजाने से सम्पन्न बन सदा खुश रहने और खुशी का दान देने वाली महादानी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं परम कर्तव्य- उपकार, दया और क्षमा को निभाने वाली महान आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *कई बच्चे कहते हैं हम तो बहुत सेवा करते हैंबहुत मेहनत करते हैं लेकिन प्राप्ति इतनी नहीं होती है। उसका कारण क्या? वरदान सबको एक है६० साल वालों को भी एक तो एक मास वाले को भी एक है। खजाने सभी को एक जैसे हैं। पालना सबको एक जैसी हैदिनचर्यामर्यादा सबके लिए एक जैसी है।* दूसरी-दूसरी तो नहीं है ना! ऐसे तो नहींविदेश की मर्यादायें और हैंइण्डिया की और हैंऐसे तो नहींथोड़ा-थोड़ा फर्क हैनहीं हैतो जब सब एक है फिर किसको सफलता मिलती हैकिसको कम मिलती है - क्यों?कारणबाप मदद कम देता है क्याकिसको ज्यादा देता हो, किसको कम, ऐसे हैनहीं है।

 

 _ ➳  फिर क्यों होता हैमतलब क्या हुआअपनी गलती है। *या तो बाडी-कान्सेस वाला मैं-पन आ जाता हैया कभी-कभी जो साथी हैं उन्हों की सफलता को देख ईर्ष्या भी आ जाती है। उस ईर्ष्या के कारण जो दिल से सेवा करनी चाहियेवो दिमाग से करते हैं लेकिन दिल से नहीं।* और फल मिलता है दिल से सेवा करने का। कई बार बच्चे दिमाग यूज करते हैं लेकिन दिल और दिमाग दोनों मिलाके नहीं करते। दिमाग मिला है उसको कार्य में लगाना अच्छा है लेकिन सिर्फ दिमाग नहीं। जो दिल से करते हैं तो दिल से करने के दिल में बाप की याद भी सदा रहती है। सिर्फ दिमाग से करते हैं तो थोड़ा टाइम दिमाग में याद रहेगा-हाँबाबा ही कराने वाला हैहाँ बाबा ही कराने वाला है लेकिन कुछ समय के बाद फिर वो ही मैं-पन आ जायेगा। *इसलिए दिमाग और दिल दोनों का बैलेन्स रखो।*

 

✺   *ड्रिल :-  "सेवा में दिमाग और दिल दोनों का बैलेन्स रखना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा चांदनी रात में एकांत में बैठी हुई हूँ... *ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान शिव बाबा के पास मैं सफेद प्रकाश का आकारी शरीर धारण किये धीरे-धीरे सूक्ष्मवतन में पहुँचती हूँ...* वहाँ चारों तरफ फूलों से सजावट है... जैसे ही मैं वहां पहुँचती हूँ, बाबा मुझ फ़रिश्ते पर फूलों की बरसात करना शुरू कर देते है...

 

 _ ➳  बाबा की दृष्टि से, मस्तक से निकलता लाल रंग की ठंडी किरणों का फव्वारा मुझ फ़रिश्ते पर पड़ रहा है... मैं किरणों से भीग चुकी हूँ...अनेक जन्मों के विकारों भरे संस्कार जलकर राख बन रहे है... *मैं अब सर्व गुणों का अनुभव कर रही हूँ...* विकार के वशीभूत देहअभिमान, ईर्ष्या, मेरापन सब समाप्त हो रहा है...

 

 _ ➳  बाबा मुझे लाल रंग का तिलक लगा रहे हैं... बाबा मुझे हीरों का बना ताज पहना रहे है... *मैं अब भूल चुकी हूँ कि देहअभिमान क्या होता है, मैं भूल चुकी हूँ ईर्ष्या क्या होती हैं... मैं भूल चुकी हूँ मेरापन क्या होता है...*

 

 _ ➳  अब मैं विकारों के वशीभूत देहअभिमान में नही आती हूँ... *जैसे ही मैं स्थूल या मन्सा सेवा करने लगती हूँ तो बाबा का लगाया हुआ लाल तिलक ही याद आता है... सब बाबा करा रहे हैं... मैं अब निमित्त भाव से हर कर्म कर रही हूँ... केवल सेवा के लिए निमित्त हूँ...* मेरे जो साथी है उनकी सफलता देख मैं खुशी से झूम उठती हूँ... हर कर्म करते मुझे बाबा ही याद आ रहे हैं...

 

_  ➳  *अब मैं दिल और दिमाग दोनों का बैलेंस रखकर देहीअभिमानी का अनुभव कर रही हूँ...* दिल से सेवा करने पर मैं दिलाराम बाप की सबसे स्नेही बच्ची बन चुकी हूँ... सभी आत्माएं मेरे इस अनुभव से बाबा की ओर आकर्षित हो रही है... मैं अब चढ़ती कला का अनुभव कर रही हूँ और सर्व को करा रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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