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 30 / 04 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *इस दुनिया में स्वयं को मेहमान समझा ?*

 

➢➢ *इस शरीर में ममत्व तो नहीं रखा ?*

 

➢➢ *ख़ुशी के खजाने से अनेक आत्माओं को मालामाल किया ?*

 

➢➢ *अन्य आत्माओं के व्यर्थ भाव को श्रेष्ठ भाव में परिवर्तित किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  अब अपने ईश्वरीय ब्राह्मणपन के, सर्वस्व त्यागी की पोजीशन में स्थित रहो। *हद की पोजीशन कि मैं सबसे ज्यादा सर्विसएबुल हूँ, प्लैनिंग-बुद्धि हूँ, इनवैन्टर हूँ, धन का सहयोगी हूँ, दिन-रात तन लगाने वाला हार्ड-वर्कर हूँ या इन्चार्ज हूँ. इस प्रकार के हद के नाम, मान और शान के उल्टे पोजीशन को छोड़ अब त्यागी और तपस्वीमूर्त बनो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं निर्विघ्न विजयी रतन हूँ"*

 

  अपने को सदा निर्विग्न, विजयी रतन समझते हो? विघ्न आना, यह तो अच्छी बात है लेकिन विघ्न हार न खिलायें। *विघ्नों का आना अर्थात् सदा के लिए मजबूत बनाना। विघ्न को भी एक मनोरंजन का खेल समझ पार करना-इसको कहते हैं 'निर्विग्न विजयी'।* तो विघ्नों से घबराते तो नहीं? जब बाप का साथ है तो घबराने की कोई बात ही नहीं। अकेला कोई होता है तो घबराता है। लेकिन अगर कोई साथ होता है तो घबराते नहीं, बहादूर बन जाते हैं। तो जहां बाप का साथ है, वहाँ विघ्न घबरायेगा या आप घबरायेंगे? सर्वशक्तिवान के आगे विघ्न क्या है? कुछ भी नहीं।

 

  इसलिए विघ्न खेल लगता, मुश्किल नहीं लगता। विघ्न अनुभवी और शक्तिशाली बना देता है। *जो सदा बाप की याद और सेवा में लगे हुए हैं, बिजी हैं,वह निर्विग्न रहते हैं। अगर बुद्धि बिजी नहीं रहती तो विघ्न वा माया आती है। अगर बिजी रही तो माया भी किनारा कर लेगी। आयेगी नहीं, चली जायेगी।* माया भी जानती है कि यह मेरा साथी नहीं है, अभी परमात्मा का साथी है। तो किनारा कर लेगी। अनगिनत बार बिजयी बने हो, इसलिए विजय प्राप्त करना बड़ी बात नहीं है। जो काम अनेक बार किया हुआ होता है, वह सहज लगता है। तो अनेक बार के बिजयी। सदा राजी रहने वाले हो ना? मातायें सदा खुश रहती हो? कभी रोती तो नहीं? कभी कोई परिस्थिति ऐसी आ जाये तो रोयेंगी? बहादुर हो। पाण्डव मन में तो नहीं रोते? यह 'क्यों हुआ', 'क्या हुआ'-ऐसा रोना तो नहीं रोते?

 

  *बाप का बनकर भी अगर सदा खुश नहीं रहेंगे तो कब रहेंगे? बाप का बनना माना सदा खुशी में रहना। न दु:ख है, न दु:ख में रोयेंगे। सब दु:ख दूर हो गये। तो अपने इस वरदान को सदा याद रखना।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आवाज़ से परे रहना अच्छा लगता है वा आवाज़ में रहना अच्छा लगता है? असली देश वा असली स्वरूप में आवाज़ है? *जब अपनी असली स्थिति में स्थित हो जाते हो आवाज़ से परे स्थिति अच्छी लगती है ना।* ऐसी प्रैक्टीस हरेक कर रहे हो? जब चाहे जैसे चाहे वैसे ही स्वरूप स्थित हो जायें।

  

✧  जैसे योद्धे जो युद्ध के मैदान में रहते हैं उन्हों को भी जब भी और जैसा जैसा आर्डर मिलता है वैसे करते ही जाते हैं। ऐसे ही रूहानी वारियर्स को भी जब और जैसा डायरक्शन मिले वेसे ही अपनी स्थिति को स्थित कर सकते हैं, क्योंकि मास्टर नाँलेजफुल भी हो और मास्टर सर्वशक्तिवान भी हो। तो दोनों ही होने कारण एक सेकण्ड से भी कम समय में जैसी स्थिति में स्थित होना चाहे उस स्थिति में टिक जायें, ऐसे रूहानी वारियार्स हो? अभी - अभी कहा जाये परमधाम निवासी बन जाओ तो ऐसी प्रैक्टीस है जो कहते ही इस देह, देह के देश भूल अशरीरी परमधाम निवासी बन जाओ?

 

✧   *अभी - अभी परमधाम निवासी से अव्यक्त स्थिति में स्थित हो जाओ, अभी - अभी सेवा के प्रति आवाज़ में आये, सेवा करते हुए भी अपने स्वरूप की स्मृति रहे, ऐसे अभ्यास बने हो?* ऐसा अभ्यास हुआ है? वा जब परमधाम निवासी बनने चाहो तो परमधाम निवासी के बजाय बार - बार आवाज़ में आ जायें ऐसा अभ्यास तो नहीं करते हो? अपनी बुद्धी को जहाँ चाहो वहाँ एक सेकण्ड से भी कम समय में लगा सकते हो? ऐसा अभ्यास हुआ है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  सेना के महारथी किसको कहा जाता है। उनके लक्षण क्या होते हैं। *महारथी अर्थात् इस रथ पर सवार, अपने को रथी समझे।* मुख्य बात कि अपने को रथी समझ कर इस रथ को चलाने वाले अपने को अनुभव करते हो? *अगर युद्ध के मैदान में कोई महारथी अपने रथ अर्थात् सवारी के वश हो जाए तो क्या वह महारथी, विजयी बन सकता है या और ही अपनी सेना के विजयी-रूप बनने की बजाये विघ्न-रूप बन जायेगा। हलचल मचाने के निमित्त बन जायेगा।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- कलियुगी दुनिया से लगाव नहीं रखना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा सेण्टर में बाबा के कमरे में बैठ स्वदर्शन चक्र फिराते हुए अपने  आदि  देवताई  स्वरुप को देखती हूँ... नई दुनिया में स्वर्ग सुखों को भोगती हुई मैं आत्मा, दैवीय गुणों से भरपूर, साक्षात् देवता रूप में कितनी ही सुन्दर दिख रही हूँ...* इस वरदानी संगम युग में स्वयं भगवान् अवतरित होकर मुझे इस कलियुगी दुखों से निकाल स्वर्गिक सुखों का अधिकारी बना रहे हैं... मैं आत्मा स्वदर्शन चक्र फिराते हुए, फ़रिश्ता स्वरुप धारण कर पहुँच जाती हूँ सूक्ष्मवतन में मीठे बाबा के पास...

 

  *उमंगो के पंख लगाकर खुशियों के आसमान में उड़ाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे बच्चे... *इस पुरानी सी दुखो भरी दुनिया से अब दिल न लगाना है... दिल तो गुणो से भरी मीठी दुनिया से लगाना है... खूबसूरत सुखो से लगाना है जो 21 जनमो तक आनन्द देंगे...* विनाशी दुनिया से आशा रखना स्वयं को ठगना है...

 

_ ➳  *मैं आत्मा विनाशी दुनिया से लगाव मिटाकर सतयुगी दुनिया को मन में बसाकर कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा इस दुखो की दुनिया को भूल गई हूँ... इन विनाशी आशाओ से मुक्त हो सतयुगी सुखो की ओर रुख ले रही हूँ...* आपके साये में पारस बन गुणो और शक्तियो से दमक उठी हूँ...

 

  *सुहावने संगम के हर पल को दिव्यता से सजाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे बच्चे... इस खोखली और खाली दुनिया से क्या पाओगे सिवाय तकलीफो के... यह रिश्ते ये बाते ये नाते ये आशाये सच्चे सुखो का पर्याय कभी न होंगी... *खूबसूरत सुखो की दुनिया बाँहो में भरकर बाबा लाया है... उसमे खो जाओ... और सदा आनन्दित हो जाओ...”*

 

_ ➳  *विनाशी देह के आवरण से निकल अंतर का सच्चा सुख पाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा इन मटमैले नातो से निकल सच्ची आत्मिक स्मृतियों से भर गई हूँ... *आपने मुझे जो खूबसूरत यात्रा सिखलाई है उस पर उड़ रही हूँ... इन बन्धनों आशाओ से मुक्त हो यादो के आसमान में झूम रही हूँ...”*

 

  *मेरे बाबा अपना सबकुछ लुटाते हुए मेरी झोली को सौगातों से भरते हुए कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे बच्चे... यहाँ जो सांसो को खपाया तो क्या सदा सुख पाया... *इस ढहती सी भुरभुरी सी दुनिया को यादो में भर कर स्वयं को ही ठग जाओगे... विश्व पिता की मीठी यादो में ही सुखो भरा निराला अनोखा खूबसूरत संसार पाओगे...* तो दिल को मीठे बाबा में ही लगाना...

 

_ ➳  *मैं आत्मा अविनाशी रत्नों से अपनी झोली भरकर सच्चे प्यार से भरपूर होते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा प्यारे बाबा के सानिध्य में निखर रही हूँ... *विनाशी दुनिया से उपराम हो सतयुगी दुनिया में अनन्त सुखो में खो रही हूँ.... सत्य को दिल में समा चुकी हूँ... और प्यारे बाबा पर निहाल हो रही हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  योग से आत्मा और शरीर रूपी बर्तन साफ करना है*"

 

_ ➳  एकांत में बैठ, पूरे कल्प की अपनी जीवन यात्रा के बारे में विचार करते हुए मन ही मन अपने आप से मैं बात करती हूँ कि *पूरे 63 जन्म देह भान में आकर मुझ आत्मा ने अनेक अलग - अलग शरीर रूपी रथ का आधार लेकर अनेक विकर्म किये और जन्म बाय जन्म विकारो की कट मुझ आत्मा के ऊपर इतनी जमा होती गई कि पतित बनने के कारण मैं आत्मा और मेरा शरीर रूपी बर्तन बिल्कुल ही अशुद्ध और अस्वच्छ हो गए*। यह विचार करते - करते अपने अब के तमोप्रधान स्वरूप और अपने अनादि सतोप्रधान स्वरूप को स्मृति में लाकर दोनो के अंतर को मैं बुद्धि के दिव्य नेत्र से देखने का प्रयास करती हूँ।

 

_ ➳  एक तरफ मुझे मेरा विकारों की कट से पूरी तरह मैला हो चुका, चमकहीन स्वरूप दिखाई दे रहा है और दूसरी तरफ मुझे मेरा सातों गुणों और अष्ट शक्तियों से सम्पन्न सम्पूर्ण चमकदार स्वरूप दिखाई दे रहा है जो मन को अथाह आनन्द का अनुभव करवा रहा है। *अपने अब के मैले, अस्वच्छ स्वरूप को फिर से शुद्ध, पवित्र बनाने का मैं मन में दृढ़ संकल्प करती हूँ और योग अग्नि से आत्मा और शरीर रूपी बर्तन को साफ करने के लिए, अपने पतित पावन शिव पिता द्वारा सिखाये सहज राजयोग की अति सहज यात्रा पर चलने के लिए स्वयं को तैयार करती हूँ*।

 

_ ➳  देह रूपी वस्त्र से स्वयं को अलग कर, अशरीरी बन अपने पतित पावन प्यारे पिता की याद में मैं बैठ जाती हूँ और सेकण्ड में विदेही बन देह से न्यारी होकर देह और देह की दुनिया के हर बन्धन से मुक्त होकर ऊपर आकाश की ओर चल पड़ती हूँ। *मन बुद्धि से की जाने वाली राजयोग की इस अति सहज यात्रा पर निरन्तर आगे बढ़ते हुए आकाश को पार कर, उससे भी ऊपर और ऊपर सफेद प्रकाश की दुनिया को पार कर मैं पहुँच जाती हूँ लाल प्रकाश की उस दुनिया में जहाँ चारों और चमकते हुए हीरो के समान, चमकती हुई चैतन्य मणियों से निकल रहा प्रकाश सब तरफ फैल कर पूरे ब्रह्मांड को प्रकाशित कर रहा है*।

 

_ ➳  चमकती हुई जगमग करती *चैतन्य मणियो के बीच में विराजमान अनन्त प्रकाशमय अपने पतित पावन शिव पिता को मैं देख रही हूँ जो अपनी अनन्त शक्तियों की किरणों को चारों और फैलाते हुए प्रकाश का एक विशाल पुंज दिखाई दे रहें हैं*। अपने ऊपर चढ़ी विकारों की कट को साफ करने के लिए मैं जैसे - जैसे उनके समीप जा रही हूँ मैं देख रही हूँ उनसे निकल रही सर्वशक्तियों की किरणों की तीव्रता धीरे - धीरे बढ़ते हुए जवालास्वरूप धारण करती जा रही है।

 

_ ➳  ज्ञान सूर्य अपने शिव पिता से आ रही उन जवालास्वरूप किरणों के नीचे पहुंचते ही मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे एक विशाल जवाला मेरे चारो और धधक रही है और उसकी तपश से मेरे ऊपर चढ़ी विकारों की कट जल रही है। *विकारो से मैले हुए अपने अशुद्ध, तमोप्रधान स्वरूप को फिर से शुद्ध सतोप्रधान स्वरूप में परिवर्तित होते मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। अपनी खोई हुई चमक को मैं पुनः प्राप्त करते हुए देख रही हूँ। अपनी खोई हुई शक्तियों और गुणों को पुनः इमर्ज होते हुए देख रही हूँ*। स्वयं को शुद्ध और पवित्र बना कर अब मैं आत्मा एकदम हल्केपन का अनुभव करते हुए अपने लाइट माइट स्वरूप में वापिस साकार सृष्टि पर लौट रही हूँ।

 

_ ➳  अपनी साकार देह को देखते हुए, अपनी लाइट और माइट से भरपूर स्वरूप के साथ, अपने सर्वशक्तिवान पतित पावन प्यारे पिता का आह्वान कर, *उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे स्थित होकर, उनसे आ रही सर्वशक्तियों को अपने अंदर समाहित कर, उन्हें अपने शरीर रूपी रथ पर प्रवाहित करते हुए, अपनी आत्मा और शरीर रूपी बर्तन को साफ, स्वच्छ बनाकर फिर से अपनी साकार देह में मैं प्रवेश करती हूँ और भृकुटि के अकाल तख्त पर विराजमान होकर फिर से अपना पार्ट बजाने के लिए तैयार हो जाती हूँ*। सृष्टि रंगमंच पर पार्ट बजाते हुए, राजयोग के अभ्यास द्वारा आत्मा और शरीर रूपी बर्तन की सफाई प्रतिदिन करते हुए, आत्मा और अपने शरीर रूपी बर्तन को अब मैं पूरी तरह शुद्ध और स्वच्छ बनाती जा रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं खुशी के ख़ज़ाने से अनेक आत्माओं को मालामाल बनाने वाली खुशनसीब  आत्मा हूँ।* 

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अन्य आत्माओं के व्यर्थ भाव को श्रेष्ठ में परिवर्तन कर देने वाली सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  सेवा बहुत अच्छी करो लेकिन सेवा और स्व दोनों कम्बाइण्ड हों... *जैसे बापदादा कम्बाइण्ड है ना... आत्मा और शरीर कम्बाइण्ड है ना! ऐसे स्व स्थिति और सेवा दोनों कम्बाइण्ड... परसेन्टेज में कोई कमी नहीं हो...* कभी सेवा की परसेन्टेज ज्यादा, कभी स्व की परसेन्टेज ज्यादा, नहीं, सदा बैलेन्स... तो आपके बैलेन्स द्वारा विश्व की आत्माओं को ब्लैसिंग मिलती रहेगी... *तो अभी विश्व की आत्माओं को ब्लैसिंग चाहिए। मेहनत नहीं चाहिए, ब्लैसिंग चाहिए... तो आपका बैलेन्स स्वतः ही ब्लैसिंग दिलायेगी...* अच्छा।

 

✺   *ड्रिल :-  "सदा स्व-स्थिति और सेवा का बैलेन्स रखना"*

 

 _ ➳  मेरा यह ब्राह्मण जीवन मेरे शिव पिता परमात्मा की देन है जिसका रिटर्न मुझे बाबा का मददगार बन कर अवश्य देना है... *मन ही मन स्वयं से यह दृढ़ प्रतिज्ञा कर, अपने मन बुद्धि की लाइन को क्लीयर कर, मैं जैसे ही बाबा के साथ जोड़ती हूँ वैसे ही मेरी मन बुद्धि बाबा के संकल्पो को कैच करने लगती है...* मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ कि बाबा मुझे स्व स्थिति और सेवा का बैलेन्स रख कर चलने की सलाह दे रहें हैं... बाबा मुझ से कह रहे हैं, मेरे विश्व परिवर्तक बच्चे:- "सदा याद रखो कि स्व स्थिति और सेवा का बैलेन्स ही स्व परिवर्तन सो विश्व परिवर्तन का आधार है"...

 

 _ ➳  बाबा के संकल्पो को कैच कर, स्व स्थिति और सेवा का बैलेंस सदा बना कर रखने की प्रतिज्ञा बाबा से करती हुई अब मैं बाबा की याद में अशरीरी हो कर बैठ जाती हूँ... *अशरीरी स्थिति में स्थित होते ही मुझे ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे बाबा मुझे अपने पास बुला रहे हैं...* ऐसा लग रहा है जैसे कोई शक्ति तीव्र गति से मुझे ऊपर की ओर खींच रही है... बहुत तेज प्रकाश की एक लाइट परमधाम से सीधी मुझ आत्मा पर पड़ रही है जो मुझे परमधाम तक पहुंचने का रास्ता दिखा रही है...

 

 _ ➳  सूर्य के प्रकाश से भी अधिक शक्तिशाली यह लाइट मुझे मेरे वास्तविक स्वभाव, संस्कार की अनुभूति कराने के लिए उस ज्योति के देश में खींच रही है... *फरिश्तों की दुनिया को पार करते हुए मैं जा रही हूँ उस ज्योति के देश मे जहां मेरे शिव पिता परमात्मा अपनी किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरे स्वागत के लिए खड़े हैं...* उनकी किरणों रूपी बाहों में समाकर अब मैं उनके बिल्कुल समीप पहुंच गई हूँ... बस मैं और मेरा बाबा...

 

 _ ➳  बाबा से आ रही सर्वशक्तियों के प्रकाश की एक - एक किरण मुझ आत्मा के अनेक जन्मों के नकारात्मक स्वभाव संस्कार को धोकर मुझे शुद्ध बना रही है... शक्तियों का औरा मुझ आत्मा के चारो और बढ़ रहा है... मेरी सारी कमी कमजोरियाँ जल कर भस्म हो रही हैं... *मेरे अंदर शक्तियों का संचार हो रहा है जो मुझमे असीम बल भरकर मुझे शक्तिशाली बना रहा है... मैं बेदाग हीरा बन रही हूँ...* स्वयं में सर्वशक्तियों को भरकर, शक्तिसम्पन्न स्वरूप बन कर अब मैं वापिस लौट रही हूँ और अपने साकारी तन में आकर विराजमान हो जाती हूँ...

 

 _ ➳  "बैलेन्स ही ब्लैसिंग का आधार है" इस बात को स्मृति में रख, अपने मन बुद्धि की तार को हर समय अपने पिता परमात्मा के साथ जोड़, कर्मयोगी बन अब मैं हर कर्म कर रही हूँ... *बाबा ने मुझे निमित बना कर इस धरा पर सेवा अर्थ भेजा है, यह स्मृति मुझे सदैव इस बात का अहसास दिलाती है कि मैं तो केवल निमित हूँ, करनकरावनहार बाबा मुझसे यह सेवा करवाकर मेरा सर्वश्रेष्ठ भाग्य बना रहे हैं और इस निमितपन की स्मृति में रह, करनकरावनहार बाबा की याद में रह हर कर्म करने से स्वत: ही मुझसे शक्तिशाली वायब्रेशन फैलते रहते हैं...* जिससे स्व स्थिति और सेवा का बैलेंस सहज ही बना रहता है...

 

 _ ➳  बाबा की याद से अब मैं अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को ऐसा श्रेष्ठ बना रही हूँ जो मेरा हर संकल्प, बोल और कर्म सहज ही औरों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन रहा है... *परमात्म याद में रहने से मनसा, वाचा, कर्मणा तीनो रूपो से शक्तिशाली बन सेवा के क्षेत्र में मैं सहज ही सफलता प्राप्त कर रही हूँ...* सेवा और स्व स्थिति का बैलेंस मुझे स्वयं के साथ - साथ सर्व का कल्याणकारी बनाकर सर्व की, और परमात्म दुआओं की अधिकारी आत्मा बना रहा है...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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