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❍ 04 / 10 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *"मेरा तो एक सर्वोत्तम टीचर दूसरा न कोई" - इसी निश्चय से मात - पिता समान पढाई पडी ?*
➢➢ *देह के बंधन को बुधी से तोडा ?*
➢➢ *तन मन और दिल की स्वच्छता द्वारा साहेब को राज़ी किया ?*
➢➢ *सब कुछ सहन कर शहनशाह बनने का पुरुषार्थ किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *बहुतकाल* अचल-अडोल, निर्विघ्न, निर्बन्धन, निर्विकल्प, निर-विकर्म अर्थात् *निराकारी निर्विकारी और निरहंकारी-स्थिति में रहो तब कर्मातीत बन सकेंगे।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं पद्मापद्म भाग्यवान हूँ"*
〰✧ सदा अपने को हर कदम में पद्मों की कमाई जमा करने वाले पद्मापद्म भाग्यवान समझते हो? *जो भी कदम याद में उठाते हो, तो एक सेकण्ड की याद इतनी शक्तिशाली है जो एक सेकण्ड की याद पद्मों की कमाई जमा करने वाली है। अगर साधारण कदम उठाते हैं, याद में नहीं उठाते तो कमाई नहीं है। याद में रहकर कदम उठाने से पदमों की कमाई है।* और हर कदम में पद्म तो कितने पदम हो गये! इसलिए पद्मापद्म भाग्यवान कहा जाता है। पद्म तो आपके आगे कुछ भी नहीं है।
〰✧ लेकिन इस दुनिया के हिसाब से कहने में आता है। तो जब किसी की अच्छी कमाई होती है तो उसके चेहरे की फलक ही और हो जाती है। गरीब का चेहरा भी देखो और राजकुमार का चेहरा भी देखो, कितना फर्क होगा! उसके शक्ल की झलक-फलक और गरीब के चेहरे की झलक-फलक में रात-दिन का फर्क होगा। *आप तो राजाओंके भी राजा बनाने वाले बाप के डायरेक्ट बच्चे हो। तो कितनी झलक-फलक है! शक्ल में वह पद्मों की कमाई का नशा दिखाई देता है या गुप्त रहता है?*
〰✧ *रूहानी नशा, रूहानी खुशी जो कोई भी देखे तो अनुभव करे कि यह न्यारे लोग हैं, साधारण नहीं हैं। तो सदा यही वरदान स्मृति में रखना कि हम अनेक बार पद्मापद्मपति बने हैं।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ जितना ही आधा कल्प विश्व की राज्य सता प्राप्त करते हो, उस अनुसार ही जितना शक्तिशाली राज्य पद वा पूज्य पद मिलता है, उतना ही भक्ति मार्ग में भी श्रेष्ठ पुजारी बनते हो। *भक्ति में भी श्रेष्ठ आत्मा मन-बुद्धि-संस्कारों के ऊपर कन्ट्रोलिंग पॉवर रहती है।*
〰✧ भक्तों में भी नम्बरवार शक्तिशाली भक्त बनते हैं। अर्थात जिस इष्ट की भक्ति करना चाहे, जितना समय चाहे, जिस विधि से करने चाहे - ऐसी भक्ति का फल भक्ति की विधि प्रमाण संतुष्टता, एकाग्रता, शक्ति और खुशी को प्राप्त कराता है। लेकिन *राज्य-पद और भक्ति के शक्ति की प्राप्ति का आधार यह ‘ब्राह्मण जन्म' है।*
〰✧ तो इस संगमयुग का छोटा-सा एक जन्म सारे कल्प के सर्व जन्मों का आधार है। जैसे राज्य करने में विशेष बनते हो वैसे ही भक्त भी विशेष बनते हो, साधारण नहीं। भक्त-माला वाले भक्त अलग है लेकिन *आपे ही पूज्य आपे ही पूजारी आत्माओं की भक्ति भी विशेष है।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *ब्रह्मा बाप ने समय को शिक्षक नहीं बनाया, बेहद का वैराग्य आदि से अन्त तक रहा। आदि में देखा इतना तन लगाया, मन लगाया, धन लगाया, लेकिन जरा भी लगाव नहीं रहा। तन के लिए सदा नेचुरल बोल यही रहा - बाबा का रथ है। मेरा शरीर है, नहीं। बाबा का रथ है। बाबा के रथ को खिलाता हूँ, मैं खाता हूँ, नहीं। तन से भी बेहद का वैराग्य।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- देही-अभिमानी बन बाप की याद में रहना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा स्वयं को बाबा की कुटिया में बैठा हुआ अनुभव कर रही हूं... बाबा की मीठी मीठी यादों में खोई में आत्मा पहुंच जाती हूं परमधाम और बाबा को स्पर्श करती हूं... स्पर्श करते ही एक दिव्य अलौकिक प्रकाश मुझ आत्मा में भर जाता है और मैं आत्मा बहुत शक्तिशाली अनुभव करने लगती हूँ... शक्तिओं से भरपूर होकर मैं आत्मा स्वयं को नीचे उतरता हुआ देख रही हूं...* वतन में पहुंच कर बापदादा को अपने सामने देख रही हूं... बाबा बाहें फैलाये सम्मुख खड़े हैं और मैं आत्मा नन्हा फ़रिश्ता बन बाबा की बाहों में समा जाती हूँ...
❉ *बाबा मुझ आत्मा को अपनी बाहों में लेकर बहुत प्यार से बोले:-* "मेरे सिकीलधे बच्चे.... अब देही अभिमानी बनों बाप आये हैं तुम्हें राजयोग सिखाने, राजयोगी बन बाप से पूरा पूरा वर्सा लेने का पुरुषार्थ करो... *तुम्हें अपने पुरुषार्थ के बल से ही सूर्यवंशी घराने में आना है और बाप से विश्व की बादशाही लेनी है... मेरी आँखों के नूर मैं आया हूँ तुम्हें इस नरक से निकाल अपने साथ ले जाने इसलिए बाप की श्रीमत पर चल अब सम्पूर्ण पवित्र बनो...*"
➳ _ ➳ *बाबा के वाक्यों को अपने हृदय में समाते हुए मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मुझे पवित्रता का वरदान देकर मेरे इस खाली जीवन को आपने खुशिओं से भर दिया है... मैं आत्मा देही अभिमानी बन संपूर्ण सुखों से भरपूर हो गयी हूँ... आप मेरे गाईड बनें और मेरे जीवन को नया रास्ता मिल गया है... *मैं आत्मा आपके बताए रास्ते पर चलकर कितनी महान बनती जा रही हूं , सुख के सागर को पाकर मैं आत्मा धन्य हो गयी हूँ... पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बन गयी हूँ...*"
❉ *बाबा मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... बाप आये हैं तुम्हें बहुत बहुत मीठा बनाने, माया ने तुम्हें खाली कर दिया है बाप आये हैं फिर से तुम्हें ज्ञान के खजाने से मालामाल करने... *अपने को देही समझ एक बाप से योग लगाओ योग से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और तुम नई दुनिया के मालिक बन जायेंगे... मेरा तो एक बाबा दूसरा न कोई इस पाठ को पक्का करो, बाप की श्रीमत पर चलकर ही तुम राज्य के अधिकारी बनते हो... बाप से पूरा वर्सा लेने के लिए निरंतर बाप की याद में रहो...*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की प्रेमभरी वाणी को स्वयं में धारण करते हुए बाबा से कहती हूँ:-* "हां मेरे दिलाराम बाबा... आपकी श्रीमत पाकर मुझ आत्मा के जीवन में नई उमंग और नया उत्साह भर गया है... मैं आत्मा कितनी सौभाग्यशाली हूँ जिसको परमात्मा की पालना मिली है ये सोचते ही मेरे रोम रोम में खुशी और उल्लास की लहर सी दौड़ जाती है... *नाजाने कब से अंजान रास्तों पर चली जा रही थी अपने जीवन की मंजिल का कुछ पता न था आपने आकर मुझ आत्मा को मेरी मंजिल बताकर मुझे भटकने से बचा लिया... आपको पाकर अब और कुछ भी पाना बाकी नही रह गया...*"
❉ *बाबा मुझ आत्मा का ज्ञान श्रृंगार करते हुए मधुर वाणी में बोले:-* "मीठे बच्चे... ज्ञान से ही योग की धारणा होगी इसलिए पढ़ाई कभी मिस नही करनी... बाप से रोज़ पढ़ना है और स्वयं में ज्ञान धारण कर औरों को भी कराने की सेवा करनी है... *बाप रोज़ परमधाम से तुम्हें पढ़ाने आते हैं इस स्मृति में रहना है, निश्चय बुद्धि बनना है , कभी भी संशय में नही आना है... संगदोष में आकर पढ़ाई को कभी नही छोड़ना, ऐसा कोई काम नही करना जिससे बाप की अवज्ञा हो...*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा के महावाक्यों का रसपान करते हुए बाबा से बोली:-* "मेरे प्राणों से प्यारे बाबा... आपने मेरे जीवन को दिव्यता और सुख की अलौकिक चांदनी से चमचमा दिया है... जीवन की प्यास को अपने ज्ञानामृत से बुझा दिया और *मुझ आत्मा की बुद्धि का ताला खोलकर मुझे ज्ञानवान बना दिया...* मैं आत्मा स्वयं को बहुत हल्का अनुभव कर रही हूं... मेरे जन्मों जन्मों की जो खाद आत्मा में पड़ी हुई है उसे योग अग्नि से भस्म करती जा रही हूं... *बाबा आपने वरदानों से मेरा श्रृंगार करके मुझे और भी अलौकिक बना दिया है... आपने मेरे जीवन को ज्ञान और परमात्म प्रेम से भर दिया है आपका कितना भी शुक्रिया करूँ कम ही लगता है... मैं आत्मा बाबा को दिल की गहराइयों से शक्रिया कर अपने साकारी तन में लौट आती हूं...*"
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ईश्वरीय सेवा करनी है*"
➳ _ ➳ इस पुरानी दुनिया के डूबे हुए बेड़े को पार लगाने के लिए स्वयं परम पिता परमात्मा *शिव बाबा ने आ कर जो रूहानी मिशनरी चलाई है उस ईश्वरीय मिशनरी में रूहानी सेवाधारी बन रूहों को सेल्वेज करने के कार्य मे स्वयं भगवान ने मुझे अपना मददगार बना कर जो श्रेष्ठ भाग्य बनाने का गोल्डन चाँस मुझे दिया है उसके लिए अपने शिव पिता परमात्मा का मैं दिल से कोटि कोटि धन्यवाद करती हूँ* और रूहानी सेवा करने के उनके फ़रमान को पूरा करने और सेवा मे सफ़लता प्राप्त करने के लिए स्वयं को मनसा,वाचा, कर्मणा तीनो रूपो से शक्तिशाली बनाने के लिए अब मैं अपने शिव पिता की याद में अशरीरी हो कर बैठ जाती हूँ।
➳ _ ➳ अशरीरी स्थिति में स्थित होते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे शरीर के सभी अंगों से चेतना सिमट कर भृकुटि पर एकाग्र हो गई है। *एकाग्रता की इस अवस्था मे अपने सत्य स्वरूप का मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। स्वयं को मैं एक चैतन्य सितारे के रूप में भृकुटि के बीचोंबीच चमकता हुआ देख रही हूँ*। ऊर्जा का एक ऐसा स्त्रोत जिसके बिना इस शरीर का कोई अस्तित्व नही। अपने इसी वास्तविक स्वरूप में स्थित हो कर मैं जागती ज्योति आत्मा अब भृकुटि सिहांसन को छोड़ ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। विशाल तारामण्डल और अंतरिक्ष को पार करके अब मैं सूक्ष्म वतन में प्रवेश करती हूँ।
➳ _ ➳ सूक्ष्म वतन में प्रवेश करते ही मैं देख रही हूँ सामने सृष्टि के रचयिता सर्वशक्तिवान मेरे शिव पिता परमात्मा अपने लाइट माइट स्वरूप में अव्यक्त ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान हैं। *अपनी बाहों को फैलाये स्वागत की मुद्रा में खड़े बाबा मेरा आह्वान कर रहें हैं। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा मेरा ही इंतजार कर रहे थे*। अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित हो कर, चमकीली फ़रिशता ड्रेस पहन कर अब मैं बापदादा के पास जा रही हूँ। अपनी बाहों में समाकर असीम स्नेह लुटाने के बाद अब बाबा अपनी शक्तिशाली दृष्टि से अपनी सम्पूर्ण लाइट और माइट मुझ फ़रिश्ते में प्रवाहित करके मुझे आप समान बलशाली बना रहे हैं। *सेवा में सदा सफ़लता प्राप्त करने के लिए बाबा अपने वरदानी हस्तों से मुझे सफ़लतामूर्त भव का वरदान दे रहें हैं और मेरे मस्तक पर विजय का तिलक लगा रहें हैं*।
➳ _ ➳ बाबा से वरदान और विजय का तिलक ले कर सूक्ष्म रूहानी सेवा करने के लिए अब मैं फ़रिशता बापदादा के साथ कम्बाइंड हो कर विश्व ग्लोब के ऊपर पहुँच जाता हूँ और उन आत्माओं को जो अपने पिता परमात्मा से बिछुड़ कर उन्हें पाने के लिए दर - दर भटक रही है और दुखी हो रही हैं। *उन भटकती आत्माओं को मनसा साकाश द्वारा परमात्म पहचान और परमात्म पालना का अनुभव करवाकर अब मै स्थूल सेवा करने के लिए अपनी बुद्धि रूपी झोली को ज्ञान के अखुट खजानों से भरपूर करने के लिए ज्ञान सागर अपने शिव पिता परमात्मा के पास जाने के लिए अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होती हूँ* और परमधाम की ओर चल पड़ती हूँ।
➳ _ ➳ यहाँ पहुँच कर मैं आत्मा अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों और सर्वगुणों की किरणों की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ। ज्ञान की शक्तिशाली किरणो का फव्वारा मेरे ज्ञान सागर शिव पिता से सीधा मुझ आत्मा पर प्रवाहित होने लगता है। *अपनी बुद्धि रूपी झोली को ज्ञान के अखुट अविनाशी खजानों से भरपूर करके स्थूल सेवा करने के लिए मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ*।
➳ _ ➳ अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हूँ और रूहानी सेवाधारी बन अपने सम्बन्ध - सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को अपने मुख से ज्ञान रत्नों का दान दे कर उनकी बुद्धि रूपी झोली में भी अविनाशी ज्ञान रत्न डाल कर उन्हें भी उनके परमपिता परमात्मा बाप से मिलवाने की रूहानी सेवा कर रही हूँ। *अपने शिव पिता द्वारा मिले ज्ञान रत्नों को स्वयं धारण कर ज्ञान स्वरुप बन मैं अनेको आत्माओं का कल्याण कर रही हूँ*। मेरे मुख से निकले वरदानी बोल अनेकों आत्माओं को मुक्ति, जीवन मुक्ति का रास्ता दिखा रहें हैं।
➳ _ ➳ *बाप समान निरहंकारी बन, सर्व आत्माओं को ज्ञान रत्न दे कर, उनका कल्याण करने की रूहानी सेवा ही मेरे ब्राह्मण जीवन का उद्देश्य है इस बात को सदा स्मृति में रख सच्ची रूहानी सेवाधारी बन अब मैं रूहों की सेवा के कार्य पर सदैव तत्पर रहती हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं तन मन और दिल की स्वच्छता द्वारा साहेब को राजी करने वाली सच्ची होलीहंस आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं इस समय सब कुछ सहन करते हुए शहनशाह बनने वाली सहनशील आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बापदादा देखते हैं *जो सच्ची दिल से नि:स्वार्थ सेवा में आगे बढ़ते जाते हैं, उन्हों के खाते में पुण्य का खाता बहुत अच्छा जमा होता जाता है।* कई बच्चों का एक है अपने पुरुषार्थ के प्रालब्ध का खाता, दूसरा है सन्तुष्ट रह सन्तुष्ट करने से दुआओं का खाता और तीसरा है यथार्थ योगयुक्त, युक्तियुक्त सेवा के रिटर्न में पुण्य का खाता जमा होता है। यह तीनों खाते बापदादा हर एक का देखते रहते हैं। *अगर कोई का तीनों खाते में जमा होता है तो उसकी निशानी है - वह सदा सहज पुरुषार्थी अपने को भी अनुभव करते हैं और दूसरों को भी उस आत्मा से सहज पुरुषार्थ की स्वत: ही प्रेरणा मिलती है।* वह सहज पुरुषार्थ का सिम्बल है। मेहनत नहीं करनी पड़ती, *बाप से, सेवा से और सर्व परिवार से मुहब्बत है तो यह तीनों प्रकार की मुहब्बत मेहनत से छुड़ा देती है।*
➳ _ ➳ *अभी बापदादा सभी बच्चों के चेहरे पर सदा फरिश्ता रूप, वरदानी रूप, दाता रूप, रहमदिल, अथक, सहज योगी वा सहज पुरुषार्थी का रूप देखने चाहते हैं।* यह नहीं कहो बात ही ऐसी थी ना। *कैसी भी बात हो लेकिन रूप मुस्कराता हुआ, शीतल, गम्भीर और रमणीकता दोनों के बैलेन्स का हो।* कोई भी अचानक आ जाए और आप समस्या के कारण वा कार्य के कारण सहज पुरुषार्थी रूप में नहीं हो तो वह क्या देखेगा? आपका चित्र तो वही ले जायेगा। कोई भी समय, कोई भी किसी को भी चाहे एक मास का हो, दो मास का हो, अचानक भी आपके फेस का चित्र निकाले तो ऐसा ही चित्र हो जो सुनाया। *दाता बनो। लेवता नहीं, दाता।*
➳ _ ➳ *कोई कुछ भी दे, अच्छा दे वा बुरा भी दे लेकिन आप बड़े ते बड़े बाप के बच्चे बड़ी दिल वाले हो अगर बुरा भी दे दिया तो बड़ी दिल से बुरे को अपने में स्वीकार न कर दाता बन आप उसको सहयोग दो, स्नेह दो, शक्ति दो। कोई न कोई गुण अपने स्थिति द्वारा गिफ्ट में दे दो।* इतनी बड़ी दिल वाले बड़े ते बड़े बाप के बच्चे हो। *रहम करो। दिल में उस आत्मा के प्रति और एकस्ट्रा स्नेह इमर्ज करो। जिस स्नेह की शक्ति से वह स्वयं परिवर्तित हो जाए।* ऐसे बड़ी दिल वाले हो या छोटी दिल है? समाने की शक्ति है? समा लो। सागर में कितना किचड़ा डालते हैं, डालने वाले को, वह किचड़े के बदले किचड़ा नहीं देता। *आप तो ज्ञान के सागर, शक्तियों के सागर के बच्चे हो, मास्टर हो।*
✺ *ड्रिल :- "सच्ची और बड़ी दिल से नि:स्वार्थ सेवा कर जमा का खाता बढ़ाने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *नशवर संसार और नशवर देह की स्मृतियों से परे मैं जगमगाता नन्हा फरिश्ता* देख रहा हूँ स्वयं को बाबा के कमरे के बाहर... मैं नन्हा फरिश्ता बिना देर किए... जल्दी से दबे पांव बाबा के कमरे की तरफ जाता हूँ और देखता हूँ... *मेरे लाडले बाबा फरिश्ता स्वरूप में बिस्तर पर बैठे कुछ लिख रहे हैं... मैं फरिश्ता बाबा को बड़े ध्यान से देख रहा हूँ...* बाबा का ये फरिश्ता स्वरूप कितना चमकीला है... मैं नन्हा फरिश्ता अपलक नयनों द्वारा बस एकटक मेरे मीठू बाबा को देख रहा हूँ... तभी अचानक बाबा वहाँ से गायब हो जाते है... मैं अन्दर यहाँ-वहाँ देखता हूँ... कोई नजर नहीं आता *मुझ फरिश्ते की निगाहें मीठे बाबा को देखने के लिए बेचैन हो रही हैं...* तभी छोटी-छोटी लाल-नीली तितलियाँ मुझ फरिश्ते के चारों तरफ घूमती हुई मुझे बाहर आने का ईशारा करती हैं... मैं फरिश्ता बाहर देखता हूँ... *हिस्ट्री हाल के बाहर बाबा बाहें फैलाएं मुझ नन्हें फरिश्ते को बुला रहे है...* और बाबा अपने फरिश्ता स्वरूप में ऊपर की तरफ जाने लगते हैं... और मुझे भी इशारा करते है... अपने पास आने का... *मैं फरिश्ता भी बाबा के पीछे-पीछे चल पड़ता हूँ...*
➳ _ ➳ *मैं फरिश्ता ऊँचा उड़ते हुए... साकारी दुनिया के भिन्न-भिन्न दृश्य स्पष्ट देखते हुए आगे बढ़ रहा हूँ...* अब मैं फरिश्ता उड़ रहा हूँ एक विशाल सागर के ऊपर से... देख रहा हूँ... बड़ी-बड़ी नदियाँ उछाल खाते हुए सागर की तरफ आ रही है... और सागर आराम से इन्हें अपने में समा रहा है ये दृश्य ऐसा लग रहा है *जैसे सागर बाहें फैलाएँ, मुस्कुराते हुए, नम्रतापूर्वक इन सबका स्वागत कर रहा हो...* तभी फिर से मैं फरिश्ता बाबा को देखता हूँ... बाबा मुस्कुराते आगे की तरफ जाते हुए मुझे अपने पीछे-पीछे आने का ईशारा कर रहे हैं... और मैं फरिश्ता एक बहुत सुंदर बड़े से बगीचे में पंहुच गया हूँ... जहाँ फलों से लदे हुएँ वृक्षों को देख रहा हूँ... और मुझ आत्मा के मन में इस दृश्य को देख संकल्प उठता है... कि कैसे *निस्वार्थ भाव से ये वृक्ष सबको फल देते है... छाया देते है... कोई कुछ दे या ना दे और ये दाता बन सबको देते ही जाते है...* मुझ फरिश्ते की नजर साथ के ही रंग-बिरंगे फूलों से भरे बगीचे पर जाती है... जहाँ रंग-बिरंगे हरे, नीले, लाल, पीले, नारंगी, सफेद रंग के फूल खिले हुए हैं... *इन फूलों को देख लग रहा जैसे ये सब मुस्कुरा रहे हो... और अपनी खुशबू से वातावरण को महका रहे हैं... निस्वार्थ भाव से...*
➳ _ ➳ तभी मैं फरिश्ता देखता हूँ... *बाबा सामने रंग-बिरंगे फूलों के बीच खड़े होकर मुस्कुरा रहे है... और बड़ी मीठी और प्यार भरी नजरों से मुझे देख रहे है...* मैं नन्हा सा फरिश्ता दौड़ कर बाबा के पास जाता हूँ... बाबा मुझे गोदी में उठा लेते हैं... और मेरे सिर पर हाथ फेरते हैं... इन सभी दृश्यों को देख कर जो मुझ आत्मा के मन में विचारों रूपी लहरें उठ रही थी वो अब शांत हो गयी है... *बाबा की आंखों से ज्ञान प्रकाश निकल मुझ फरिश्ते में समा रहा है... बाबा जो मुझे इन दृश्यों द्वारा समझाना चाह रहे हैं... वो सब इस ज्ञान प्रकाश से स्पष्ट होता जा रहा हैं...* बाबा मुझ फरिश्ते के सर पर हाथ रखते हुए मुझे वरदानों से शक्तियों से भर रहे है... *मुझ फरिश्ते में नव उर्जा का संचार हो रहा हैं... ईश्वरीय शक्तियों का फ्लो मुझ आत्मा में हो रहा हैं... स्वयं को भरपूर, सम्पन्न अनुभव कर रहा हूँ...*
➳ _ ➳ *इस नव उर्जा के साथ मैं फरिश्ता फिर से वापिस साकारी दुनिया के चोले में प्रवेश करता हूँ...* और अब देख रही हूँ मैं आत्मा स्वयं को कर्म क्षेत्र पर जहाँ *मैं आत्मा बाबा की याद में सेवा कर रही हूं... बाबा की याद से सहज ही मुझ आत्मा में निमित्त भाव आ गया है...* जिससे हर सेवा हल्का होकर अथक होकर, सच्ची दिल से सेवा कर रही हूँ... *फूलों के समान मैं आत्मा हर सेवा निःस्वार्थ भाव से करते रूहानी खुशबू चारों ओर फैला रही हूँ...* मैं आत्मा देख रही हूँ सामने से कोई भी कुछ भी दे, लेकिन सागर के समान *मैं आत्मा नम्रतापूर्वक, बड़ी दिल कर, रहमदिल बन सबको और ही स्नेह और शक्ति रूपी मोती दे रही हूँ...*
➳ _ ➳ फलों से लदे वृक्ष के समान सबको मास्टर दाता बन सुख, शांति, शक्ति, प्रेम दे रहा हूँ... और ही सभी को भरपूर बना रही हूँ... सबका कल्याण हो, सभी सुखी हो ऐसी श्रेष्ठ भावना से हर सेवा कर रही हूँ... इस प्रकार कई गुणों का मुझ आत्मा में विकास हो रहा हैं... और *ये सब करते हुए एक अजब सी खुशी और भरपूरता का अनुभव मैं आत्मा कर रही हूँ... मैं आत्मा सहजयोगी, सहज पुरुषार्थी बन गयी हूँ...* मुझे देख अन्य आत्माओं को भी सहज पुरूषार्थ की, सच्ची और बड़ी दिल से, निःस्वार्थ भाव से सेवा करने की प्रेरणा मिल रही हैं... *वे सभी आत्माएं भी इस मार्ग में आगे बढ़ रही हैं... उनका भी कल्याण हो रहा है...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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