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❍ 18 / 09 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *सवेरे सवेरे उठ याद में बैठ कमाई जमा की?*
➢➢ *अपने आप से बातें की ?*
➢➢ *महावीर बन बाप का साक्षातकार कराया ?*
➢➢ *एकरस पुरुषार्थ द्वारा ऊंची स्थिति बनाई ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *जो भी परिस्थितियां आ रही हैं और आने वाली हैं, उसमें विदेही स्थिति का अभ्यास बहुत चाहिए इसलिए और सभी बातों को छोड़ यह तो नहीं होगा, यह तो नहीं होगा..... क्या होगा..., इस क्वेश्चन को छोड़ दो, अभी विदेही स्थिति का अभ्यास बढ़ाओ।* विदेही बच्चों को कोई भी परिस्थिति वा कोई भी हलचल प्रभाव नहीं डाल सकती।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं होली हँस हूँ"*
〰✧ सभी अपने को सदा होली हंस अनुभव करते हो? *होली हंस का अर्थ है संकल्प, बोल और कर्म जो व्यर्थ होता है उसको समर्थ में बदलना। क्योंकि व्यर्थ जैसे पत्थर होता है, पत्थर की वैल्यु नहीं, रत्न की वैल्यु होती है। तो व्यर्थ को समाप्त करना अर्थात् होली हंस बनना।* तो व्यर्थ आता है? होली हंस फौरन परख लेता है कि ये काम की चीज नहीं है, ये काम की है। तो आप होली हंस हो ना। तो व्यर्थ समाप्त हुआ?
〰✧ *क्योंकि अभी नॉलेजफुल बने हो कि अगर अभी संकल्प, बोल या कर्म व्यर्थ गंवाते हैं तो सारे कल्प के लिये अपने जमा के खाते में कमी हो जाती है। जानते हो ना, नोलेजफुल हो? तो जानते हुए फिर व्यर्थ क्यों करते हो?* चाहते नहीं हैं लेकिन हो जाता है-ऐसे कहेंगे? जो समझते हैं अभी भी हो सकता है वो हाथ उठाओ। आप हो कौन? (राजयोगी) राजयोगी का अर्थ क्या है? राजा हो ना, तो मन को कन्ट्रोल नहीं कर सकते! किंग में तो रुलिंग पॉवर होती है ना! तो आप में रुलिंग पॉवर नहीं है? अमृतवेले और फिर सारे दिन में बीच-बीच में अपना आक्यूपेशन याद करो-मैं कौन हूँ?
〰✧ क्योंकि काम करते-करते यह स्मृति मर्ज हो जाती है कि मैं राजयोगी हूँ। इसलिये इमर्ज करो। ये नियम बनाओ। ऐसे नहीं समझो कि हम तो हैं ही राजयोगी। लेकिन राजयोगी की सीट पर सेट होकर रहो। नहीं तो चलते-चलते कर्म में बिजी होने के कारण योग भूल जाता है, सिर्फ कर्म ही रह जाता है। लेकिन आप कर्मयोगी कम्बाइन्ड हो। *योगी सदा ही रुलिंग पॉवर, कन्ट्रोलिंग पॉवर में रहें। फिर राजयोगी डबल पॉवर वाले कभी भी व्यर्थ सोच नहीं सकते। तो अभी कभी नहीं कहना, सोचना भी नहीं कि राजयोगी वेस्ट कर सकते हैं। तो ये कौन-सा ग्रुप है? बेस्ट ग्रुप।* बापदादा को भी बेस्ट ग्रुप अति प्यारा है क्यों? 63 जन्म बहुत वेस्ट किया ना, अभी यह छोटा-सा जन्म बेस्ट ही बेस्ट।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ सभी शान्ति की शक्ति के अनुभवी बन गये हो ना! शान्ति की शक्ति बहुत सहज स्व को भी परिवर्तन करती और दूसरों को भी परिवर्तन करती है। याद के बल से विश्व को परिवर्तन करते हो। याद क्या है? शान्ति की शक्ति है ना! *इससे व्यक्ति भी बदल जायेंगे तो प्रकृति भी बदल जायेगी।* इतनी शान्ति की शक्ति अपने में जमा की है?
〰✧ व्यक्तियों को तो बदलना है ही लेकिन साथ में *प्रकृति को भी बदलना है।* प्रकृति को मुख का कोर्स तो नहीं करायेंगे ना! व्यक्तियों को तो कोर्स करा देते हो लेकिन प्रकृति को कैसे बदलेंगे? वाणी से वा शान्ति की शक्ति से? योगबल से बदलेंगे ना तो योग में जब बैठते हो तो क्या अनुभव करते हो?
〰✧ शान्ति का संकल्प भी जब शान्त हो जाते हैं, *एक ही संकल्प - ‘बाप और आप’, इसी को ही योग कहते हैं।* अगर और भी संकल्प चलते रहेंगे तो उसकी योग नहीं कहेंगे, ज्ञान का मनन कहेंगे। तो *जब पॉवरफुल योग में बैठते हो तो संकल्प भी शान्त हो जाते हैं,* सिवाए एक बाप और आप। बाप के मिलन की अनुभूति के सिवाए और सब संकल्प समा जाते हैं - ऐसे अनुभव है ना?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ आपकी ओरीजिनल स्टेज तो निराकारी है ना। निराकार आत्मा ने इस शरीर में प्रवेश किया है। शरीर ने आत्मा में प्रवेश नहीं किया, आत्मा ने शरीर में प्रवेश किया तो अनादि ओरीजिनल स्वरूप तो निराकारी है ना कि शरीरधारी है? शरीर का आधार लिया, लेकिन लिया किसने? *आप आत्मा ने, निराकार ने साकार शरीर का आधार लिया, तो ओरीजिनल क्या हुआ आत्मा या शरीर? आत्मा। यह पक्का है? तो ओरीजिनल स्थिति में स्थित होना सहज या आधार लेने वाली स्थिति में स्थित होना सहज?*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- आत्मा-परमात्मा का यथार्थ ज्ञान देना"
➳ _ ➳ इस सुहानी संगम के अमृतवेले मेरे प्राण प्यारे बाबा अलौकिक जन्मदिन की बधाई देते हुए मुझे प्यार से जगाते हैं... मैं आत्मा भी बाबा को जन्मदिन की बधाई देती हूँ... कितना अनोखा संगम है इस अनोखे संगम युग पर... बाप और बच्चे का जन्मदिन एक ही दिन... प्यारे बाबा मुझे गोदी में उठाकर वतन में लेकर जाते हैं... जहाँ चारों ओर रंग बिरंगे हीरों से सजे हुए बैलून्स हैं... इन बैलून्स से रंग बिरंगी किरणें निकलकर मुझ आत्मा की चमक और बढ़ा रही है... प्यारे बाबा मीठी रूह-रिहान करते हुए मुझे ज्ञानामृत पिलाते हैं...
❉ सर्व आत्माओं को बाप का परिचय देने सर्विस की भिन्न भिन्न युक्तियाँ बतलाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की गोद में फूल सा खिलने का जो सुख पाया है उस सुख को दूसरो के दामन में भी सजाओ... दुखो में तड़फ रहे पुकार रहे हताश और निराश हो चले भाई आत्माओ को सुख और शांति की राह दिखाओ... सच्चे पिता से मिलाकर उनको भी खजानो से भरपूर कर दो...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा प्रभु प्यार की कश्ती में डूबकर अनंत अविनाशी खुशियों से भरपूर होते हुए कहती हूँ:– “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपसे अथाह खुशियो को पाकर सबको इस खान का मालिक बना रही हूँ... पूरा विश्व खुशियो से गूंज उठे ऐसी परमात्म लहर फैला रही हूँ... प्यारे बाबा से हर दिल का मिलन करवा रही हूँ... और आप समान भाग्य सजा रही हूँ...”
❉ मीठे बाबा खिवैया बन काँटों के समुंदर से फूलों के बगीचे में ले जाते हुए कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... आप समान सबके दुखो को दूर करो... आनन्द प्रेम शांति से हर मन को भरपूर करो... सबको उजले सत्य स्वरूप के भान का अहसास दिलाओ... प्यारा बाबा आ गया है यह दस्तक हर दिल पर दे आओ... सब बिछड़े बच्चों को सच्चे पिता से मिलवाओ और दुआओ का खजाना पाओ...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा फ़रिश्ता बन चारों ओर ‘मेरा बाबा आ गया’ के ज्ञान फूल बरसाते हुए कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपसे पाये प्यार दुलार और ज्ञान रत्नों को हर दिल को बाटने वाली दाता बन गई हूँ... सबको देह से अलग सच्ची मणि आत्मा के नशे से भर रही हूँ... प्यारे बाबा का परिचय देकर उनके दुखो से मुरझाये चेहरे को सुखो से खिला रही हूँ...”
❉ मेरे बाबा कलियुगी अंधकार को दूर कर अखंड ज्योति बन ज्ञान की लौ जलाते हुए कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब ईश्वरीय प्रतिनिधि बन सबके जीवन को खुशियो से भर दो... विचार सागर कर नई योजनाये बनाओ... और ईश्वरीय पैगाम हर आत्मा तक पहुँचाओ... सबकी जनमो की पीड़ा को दूर कर ख़ुशी उल्लास उमंगो से जीवन सजा आओ... पिता धरा पर उतर आया है... पुकारते बच्चों को जरा यह खबर सुना आओ...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा सम्बन्ध संपर्क में आने वाली हर आत्मा को उमंग उत्साह के पंख दे उड़ाते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपसे पायी अनन्त खुशियो की चमक सबको दिखा रही हूँ... प्यारा बाबा खुशियो की खान ले आया है खजानो को लुटाने आया है... यह आहट हर दिल पर करती जा रही हूँ... भर लो अपनी झोलियाँ यह आवाज सबको सुना रही हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- देही - अभिमानी रहना है*
➳ _ ➳ एकान्त में बैठी एक दृश्य मैं इमर्ज करती हूँ और इस दृश्य में एक बहुत बड़े दर्पण के सामने स्वयं को निहारते हुए अपने आप से मैं सवाल करती हूँ कि मैं कौन हूँ ! *क्या इन आँखों से जैसा मैं स्वयं को देख रही हूँ मेरा वास्तविक स्वरूप क्या सच मे वैसा ही है! अपने आप से यह सवाल पूछते - पूछते मैं उस दर्पण में फिर से जैसे ही स्वयं को देखती हूँ, दर्पण में एक और दृश्य मुझे दिखाई देता है इस दृश्य में मुझे मेरा मृत शरीर दिखाई दे रहा है जो जमीन पर पड़ा है*। थोड़ी ही देर में कुछ मनुष्य वहाँ आते हैं और उस मृत शरीर को उठा कर ले जाते है और उसका दाह संस्कार कर देते हैं।
➳ _ ➳ इस दृश्य को देख मैं मन ही मन विचार करती हूँ कि शरीर के किसी भी अंग में छोटा सा कांटा भी कभी चुभ जाता था तो मुझे कष्ट होता था। लेकिन अभी तो इस शरीर को जलाया जा रहा है फिर भी इसे कोई कष्ट क्यो नही हो रहा! *इसका अर्थ है कि इस शरीर के अंदर कोई शक्ति है और जब तक वो चैतन्य शक्ति शरीर में है तब तक यह शरीर जीवित है और हर दुख - सुख का आभास करता है लेकिन वो चैतन्य शक्ति जैसे ही इस शरीर को छोड़ इससे बाहर निकल जाती है ये शरीर मृत हो जाता है*। फिर किसी भी तरह का कोई एहसास उसे नही होता। अपने हर सवाल का जवाब अब मुझे मिल चुका है।
➳ _ ➳ "मैं कौन हूँ" की पहेली सुलझते ही अब मैं उस चैतन्य शक्ति अपने निज स्वरूप को मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से देख रही हूँ जो शरीर रूपी रथ पर विराजमान होकर रथी बन उसे चला रही है। *स्वराज्य अधिकारी बन मन रूपी घोड़े की लगाम को अपने हाथ मे थामते ही मैं अनुभव करती हूँ कि मैं आत्मा रथी अपनी मर्जी से जैसे चाहूँ वैसे इस शरीर रूपी रथ को चला सकती हूँ*। यह अनुभूति मुझे सेकण्ड में देही अभिमानी स्थिति में स्थित कर देती है और इस स्थिति में स्थित होकर मैं स्वयं को सहज ही देह से न्यारा अनुभव करते हुए बड़ी आसानी से देह रूपी रथ का आधार छोड़ इस रथ से बाहर आ जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने शरीर रूपी रथ से बाहर आकर अब मैं इस देह और इससे जुड़ी हर चीज को बिल्कुल साक्षी होकर देख रही हूँ जैसे मेरा इनसे कोई सम्बन्ध ही नही। *किसी भी तरह का कोई भी आकर्षण या लगाव अब मुझे इस देह के प्रति अनुभव नही हो रहा, बल्कि एक बहुत ही न्यारी और प्यारी बन्धनमुक्त स्थिति में मैं स्थित हूँ जो पूरी तरह से लाइट है और उमंग उत्साह के पँख लगाकर ऊपर उड़ने के लिए तैयार है*। इस डबल लाइट देही अभिमानी स्थित में स्थित मैं आत्मा ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसे मेरे शिव पिता के प्यार की मैग्नेटिक पावर मुझे ऊपर अपनी और खींच रही है। *अपने प्यारे पिता के प्रेम की लग्न मे मग्न मैं आत्मा अपने विदेही पिता के समान विदेही बन, देह की दुनिया को छोड़ अब ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ*।
➳ _ ➳ परमधाम से अपने ऊपर पड़ रही उनके अविनाशी प्रेम की मीठी - मीठी फुहारों का आनन्द लेती हुई मैं साकार लोक और सूक्ष्म लोक को पार करके, अति शीघ्र पहुँच जाती हूँ अपने शिव परम पिता परमात्मा के पास उनके निराकारी लोक में। *आत्माओं की ऐसी दुनिया, जहां देह और देह की दुनिया का संकल्प मात्र भी नही, ऐसी चैतन्य मणियों की दुनिया मे मैं स्वयं को देख रही हूँ*। चारों और चमकते हुए चैतन्य सितारे और उनके बीच मे अत्यंत तेजोमय एक ज्योतिपुंज जो अपनी सर्वशक्तियों से पूरे परमधाम को प्रकाशित करता हुआ दिखाई दे रहा हैं।
➳ _ ➳ उस महाज्योति अपने शिव परम पिता परमात्मा से निकलने वाली सर्वशक्तियों की अनन्त किरणों की मीठी फ़ुहारों का भरपूर आनन्द लेने और उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को शक्तिशाली बनाने के लिए मैं निराकार ज्योति धीरे - धीरे उनके समीप जाती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणो की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ। *अपने प्यारे पिता के सानिध्य में बैठ, उनके प्रेम से, उनके गुणों और उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर करके अब मैं आत्माओं की निराकारी दुनिया से नीचे वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ*।
➳ _ ➳ कर्म करने के लिए फिर से अपने शरीर रूपी रथ पर आकर मैं विराजमान हो जाती हूँ किन्तु अब मै सदैव इस स्मृति में रह हर कर्म करती हूँ कि मैं आत्मा इस देह में रथी हूँ। *इस स्मृति को पक्का कर, कर्म करते हुए भी स्वयं को देह से बिल्कुल न्यारी आत्मा अनुभव करते हुए, देही अभिमानी बनने का अभ्यास मैं बार - बार करती रहती हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं महावीर बन बाप का साक्षात्कार कराने वाली वाहनधारी सो अलंकारधारी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं एकरस पुरुषार्थ द्वारा ऊंची स्थिति बनाकर हिमालय जैसा बड़ा पेपर भी रूई बनाने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ स्वभाव-संस्कारों को सेवा के समय देखो ही नहीं। देखते हैं ना-इसने यह किया, इसने यह कहा -तो सफलता दूर हो जाती है। देखो ही नहीं। बहुत अच्छा, बहुत अच्छा। हाँ जी और बहुत अच्छा, यह दो शब्द हर कार्य में यूज करो। स्वभाव वैरायटी हैं और रहने भी हैं। *स्वभाव को देखा तो सेवा खत्म। बाबा करा रहा है, बाबा को देखो, बाबा का काम है। इसकी ड्यूटी नहीं है, बाबा की है। तो बाप में तो स्वभाव नहीं है ना। तो स्वभाव देखने नहीं आयेगा।*
✺ *ड्रिल :- "दूसरों के स्वभाव-संस्कारों को सेवा के समय नहीं देखना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा आज अपने बाबा के सेंटर पर बाबा की मुरली हाथ में पकड़े... अपने सामने बैठी हुई कुछ आत्माओं को मुरली सुनाना प्रारंभ करती हूं... और उससे पहले मैं देखती हूं... की इन सामने बैठी आत्माओं में सभी आत्माओं के स्वभाव संस्कार बिल्कुल अलग है... और इन आत्माओं के सामने मैं अपने आप को मुरली सुनाने की स्टेज पर अनुभव नहीं कर पाती हूँ...* मैं देखती हूं कि कुछ आत्माएं ऐसी भी है... जो अपने पुराने स्वभाव संस्कारों के कारण हमेशा मुझे और अन्य आत्माओं को दुखी करने का प्रयास करती रहती हैं... और कुछ आत्माएं ऐसी हैं जो काफी समय से बाबा के बच्चे के रूप में पालना ले रही हैं और मुझ आत्मा को उन्होंने अपने ज्ञान से परिपूर्ण कर आज इस स्थिति पर विराजमान किया है...
➳ _ ➳ परंतु मेरी कुछ छोटी-छोटी गलतियों के कारण वह ज्ञानी आत्माएं मुझे क्रोध वश होकर मेरा कड़े शब्दों में अपमान कर देती है... जिस को मैं भुला नहीं पाती हूँ... और कुछ आत्माएं ऐसी भी थी जो हमेशा अपने आप को श्रीमत की लकीर के अंदर अनुभव करते हुए पुरुषार्थ कर रही थी... और इन सभी आत्माओं के स्वभाव संस्कार देखते-देखते मैं आत्मा बाबा की मुरली प्रारंभ नहीं कर पाती... तभी मेरा अंतर्मन मुझे श्रीमत का ज्ञान आभास कराता है... और मैं अपने आपको बाबा से जोड़ देती हूं... और महसूस करती हूं कि *मैं आत्मा इस देह में विराजमान हूँ और शिव बाबा मुझे निमित्त बना कर इन आत्माओं को मुरली सुना रहे हैं...*
➳ _ ➳ और जैसे ही मैं अपने आप को निमित्त आत्मा अनुभव करती हूँ... तो मुझे आभास होता है कि *सामने बैठी हुई आत्माएं सिर्फ और सिर्फ मेरे बाबा के रूहानी बच्चे हैं... मुझे सभी आत्माएं अपने सामने फ़रिश्ते की भांति नजर आ रही है... और मुझे किसी भी आत्मा के स्वभाव संस्कार का बिल्कुल आभास नहीं होता है...* और मैं आत्मा अपनी इन कर्म इंद्रियों द्वारा सामने बैठी हुई आत्माओं को मुरली सुनाना प्रारम्भ कर देती हूं... मुरली सुनाते सुनाते मैं अपने आप में एक अद्भुत परिवर्तन महसूस करती हूं... मुझे अनुभव होता है कि मैं आत्मा अब बिल्कुल हल्की और फरिश्ते की भांति इस उड़ती कला स्वरूप बन गई हूं...
➳ _ ➳ और अब मैं आत्मा बिल्कुल रमणीकता से बाबा की मुरली सुना रही हूं... और जैसे ही कुछ देर बाद मुरली समाप्त होती है... तो हम सभी आत्माएं एक संकल्प में बाबा को याद करते हैं... और अपनी बेहद की सेवा में जुट जाते हैं... जैसे-जैसे सभी आत्माएं मेरे साथ सेवा करते हैं तो मैं अनुभव करती हूं... कि *ये बहुत अच्छी आत्माएं हैं... ये देवकुल की महान आत्माएं हैं... यह मेरी ईश्वरीय घराने की... मैं और ये सब आत्माएं सुखधाम में एक साथ मिलजुल कर रहेंगी...* तो अब वह सभी आत्माएं मुझे बस अपने समान बाबा के बच्चे ही नजर आते हैं... और उनके प्रति मेरा रूहानी स्नेह बढ़ता जाता है.. अब सेवा के समय मुझे हमेशा अब दूसरी आत्माएं निमित्त सेवाधारी अनुभव हो रही है... और अपने आप को भी मैं निमित भावना से सजाकर सेवा में अग्रणी होती जा रही हूं...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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