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 15 / 07 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सम्पूरंता की स्थिति की और तीव्र गति से आगे बड़ते रहे ?*

 

➢➢ *"सोचा, डायरेक्शन मिला और किया" - इसी विधि से स्व के प्रति और सेवा के प्रति प्रतक्ष्य फल खाया ?*

 

➢➢ *ब्रह्मा बाप समान तुरंत दानी महापुन्य आत्मा बनकर रहे ?*

 

➢➢ *तन और मन दोनों से डबल सेवाधारी बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *विश्व कल्याण करने के लिए आपकी वृत्ति, दृष्टि और स्थिति सदा बेहद की हो।* वृत्ति में जरा भी किसी आत्मा के प्रति निगेटिव या व्यर्थ भावना नहीं हो। *निगेटिव बात को परिवर्तन कराना, वह अलग चीज़ है। लेकिन जो स्वयं निगेटिव वृत्ति वाला होगा वह दूसरे के निगेटिव को पॉजेटिव में चेंज नहीं कर सकता।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं कल्प-कल्प की विजयी आत्मा हूँ"*

 

  माया को जीत लिया है? मायाजीत बन गये हो? कि अभी विजयी बनना है? माया का काम है खेल करना और आपका काम है खेल देखना। खेल में घबराना नहीं। घबराते हैं तो वह समझ जाती है कि ये घबरा तो गये हैं, अब लगाओ इसको अच्छी तरह से। *माया भी तो जानने में होशियार है ना। कुछ भी हो जाये, घबराना नहीं। विजय हुई ही पड़ी है। इसको कहा जाता है सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि।*

 

  पता नहीं क्या होगा, हार तो नहीं जाऊंगा, विजय होगी वा नहीं -ये नहीं। सदैव यह नशा रखो कि पाण्डव सेना की विजय नहीं होगी तो किसकी होगी! कौरवों की होगी क्या? तो आप कौन हो? पाण्डवों की विजय तो निश्चित है ना। कोई भी बड़ी बात को छोटा बनाना या छोटी बात को बड़ी बनाना अपने हाथ में है। किसका स्वभाव होता है छोटी बात को बड़ा बनाने का और किसका स्वभाव होता है बड़ी बात को छोटा बनाने का। *तो माया की कितनी भी बड़ी बात सामने आ जाये लेकिन आप उससे भी बड़े बन जाओ तो वह छोटी हो जायेगी। आप नीचे आ जायेंगे तो वह बड़ी दिखाई देगी और ऊपर चले जायेंगे तो छोटी दिखाई देगी।*

 

  *कितनी भी बड़ी परिस्थिति आये, आप ऊंची स्व-स्थिति में स्थित हो जाओ तो परिस्थिति छोटी-सी बात लगेगी और छोटी-सी बात पर विजय प्राप्त करना सहज हो जायेगा। निश्चय रखो कि अनेक बार के विजयी हैं। अभी कोई इस कल्प में विजयी नहीं बन रहे हैं, अनेक बार विजयी बने हैं।* इसलिए कोई नई बात नहीं है, पुरानी बात है। लेकिन उस समय याद आये। ऐसे नहीं-टाइम बीत जाये, पीछे याद आये कि ये तो छोटी बात है, मैंने बड़ी क्यों बना दी। समय पर याद आवे की मैं कल्प-कल्प का विजयी हूँ।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *ये तो बाप-दादा ने सेवा के लिए समय दिया है।* सेवाधारी का पार्ट बजा रहे हो। तो अपने को देखो *यह शरीर का बन्धन तो नहीं है* अथवा यह पुराना चोला टाइट तो नहीं है

 

✧  टाइट ड्रेस तो पसन्द नहीं करते हो ना? ड्रेस टाइट होगी तो एवररेडी नहीं होंगे। *बन्धन मुक्त अर्थात लूज ड्रेस, टाइट नहीं।*

 

✧  आर्डर मिला और सेकण्ड में गया। ऐसे बन्धन-मुक्त, योग-युक्त बने हो? *जब वायदा ही है एक बाप दूसरा न कोई तो बन्धन मुक्त हो गये ना।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ लौकिक में जब वृद्धि होती है तो एक-एक बिन्दी लगाते जाते हैं। आपको भी बिन्दी लगाना है। मैं भी बिन्दी, बाप भी बिन्दी। *बड़े ते बड़े व्यापारी हो लेकिन लगाना है बिन्दी। सारे दिन में कितनी बिन्दी लगाते हो? जब क्वेश्चन होता है तो बिन्दी मिट जाती है। बिन्दी के बिना क्वेचन भी हल नहीं होता।* मैं भी बिन्दी, बाबा भी बिन्दी। इसके लिए यह भी कोई नहीं कह सकता कि समय नहीं है। *सेकण्ड की बात है।* तो जितने सेकण्ड मिलें बिन्दी लगाओ फिर रात को गिनो कितनी बिन्दी लगाई! *किसी बात को सोचो नहीं, जो बात ज्यादा सोचते हो वो ज्यादा बढ़ती है। सब सोच छोड़ एक बाप को याद करो, यही दुआ हो जायेगी।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- तुरंत दान महापुण्य"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा अमृतवेले के रूहानी समय में, शांत सुनहरे वातावरण में अंतर्मुखी होकर बैठ जाती हूँ... अमृत बरसाते मीठे बाबा की यादों में खो जाती हूँ... यादों की मीठी उडान भरते हुए मैं आत्मा इस दुनिया को छोड़ वतन में पहुँच जाती हूँ... सफ़ेद प्रकाश से सजा हुआ प्यारा वतन अति मनमोहक लग रहा है...* बापदादा बड़े प्यार से मुझे अपने समीप बुलाते हैं... वहां सुन्दर-सुन्दर सजे हुए फरिश्तों के चित्रों को दिखाते हैं... वहां मेरा ही सम्पूर्ण फ़रिश्ते स्वरुप का चित्र है जो अति मनभावन है... बाबा मेरे चित्र को दिखाकर मुझे इस स्वरुप में स्थित होने का गुह्य राज समझाते हैं...   

 

  *ज्ञान योग की पिचकारी से मुझे रंगते हुए प्यारे मीठे मेरे बाबा कहते हैं:–* “मेरे मीठे बच्चे… आपके खूबसूरती से दमकते चित्र को देखो जरा... *ज्ञान के सुनहरे रंग, यादो के लाल रंग, धारणा के सफेद रंग, और सेवा की हरियाली से भरी तकदीर देख मीठे बाबा मुस्करा रहे है... वतन के चित्रो से स्थूल के अंतर को समाप्त कर समान हो जाओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा अपने सम्पूर्ण स्वरुप में समाकर सम्पूर्णता का अनुभव करते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा अपने ही सुंदर रूप को वतन में देख मोहित हो गई हूँ... *और संकल्पों में और करना एक कर समानता के रंग से रंगती जा रही हूँ...”*

 

  *तुरंत दान महापुण्य का मन्त्र मेरे कानों में गुंजाते हुएप्यारे बाबा कहते हैं:–* “मीठे प्यारे बच्चे... अपने अंतर की समाप्ति के लिए संकल्पों को प्रैक्टिकल में कर दिखाओ... *कथनी और करनी की समानता से भेद को मिटाओ... तुरन्त दान महा पुण्य से सदा की खूबसूरती से भर जाओ...”*

 

_ ➳  *फालो फादर कर हर कर्म को श्रेष्ठ बनाकर महादानी बनते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा आपकी मीठी यादो से कारण को निवारण में बदल चुकी हूँ... सारे विघ्नो समाप्त कर विघ्न विनाशक बन गई हूँ...* चमकते रूप को पाकर मुस्करा रही हूँ...

 

  *मेरे हर सेकंड, हर संकल्प, हर बोल को सफल कराते हुए सर्व खजानों के दाता मेरे बाबा कहते हैं:–*“मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने खूबसूरत तीर्थ की स्मृतियों से भर जाओ... और सुंदर भाग्य को सराहो... *स्वदर्शन चक्रधारी की याद से सफलताओ को गले लगाओ... चैतन्य दीपक बन सबके अंधेरो को सदा का रौशन करो... और अंतर्मुखी बन विघ्नो पर विजयी बनो...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा तुरंत दान महापुण्य से ताजे फलों का रस पीकर एवरहेल्थी बनते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा संकल्पों की बचत से विघ्नो पर विजयी हो गई हूँ... सबके जीवन को रौशन कर सुख शांति के फूलो से हर दिल को महका रही हूँ...* स्वदर्शन चक्रधारी बन मायाजीत हो गई हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- "सोचा, डायरेक्शन मिला और किया" - इसी विधि से स्व के प्रति और सेवा के प्रति प्रतक्ष्य फल खाना*

 

_ ➳  बापदादा के ट्रांसलाइट के चित्र के सामने बैठ उन्हें बड़े प्यार से निहारते हुए, यज्ञ के आदि रत्न अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा और अपनी प्यारी मम्मा के बारे में मैं विचार कर रही हूँ कि कैसे ब्रह्मा बाबा ने सम्पूर्ण निश्चय बुद्धि बन, भगवान द्वारा रचे इस ईश्वरीय रुद्र ज्ञान यज्ञ में, सेकेण्ड में स्वयं को स्वाहा कर दिया! कभी किसी बात में कोई संशय नही लाया। *"सोचा, डायरेक्शन मिला और किया" इस विधि से बाबा और मम्मा तीव्र गति से आगे बढ़ कर नम्बरवन पद पाने के अधिकारी बन गए। "तुरन्त दान महापुण्य" इसे अपने जीवन मे चरितार्थ करने वाले अपने प्यारे मम्मा बाबा को फॉलो करने की स्वयं से प्रतिज्ञा कर, बापदादा के ट्रांसलाइट के चित्र के सामने बैठे हुए, उन्हें निहारते हुए मैं महसूस करती हूँ जैसे बापदादा अव्यक्त इशारे से मुझे बुला रहें हैं*।

 

_ ➳  यह संकल्प मन मे आते ही मैं सेकण्ड में अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर को धारण करती हूँ और अपने फरिश्ता स्वरूप में स्थित होकर अपने प्यारे बापदादा के पास उनके अव्यक्त वतन की ओर चल पड़ती हूँ। *अपने लाइट माइट स्वरूप में सारे विश्व का चक्कर लगाकर, मैं आकाश को पार करती हूँ और पहुँच जाती हूँ अपने प्यारे बापदादा के पास। अपनी बाहों को फैलाकर, बच्चो के इंतजार में खड़े ब्रह्ना बाबा अपने सम्पूर्ण फरिश्ता स्वरूप में मुझे मेरे सामने दिखाई दे रहें हैं*। उनके मस्तक पर चमक रहे ज्ञानसूर्य शिव बाबा को मैं देख रही हूँ। बाबा के मस्तक से आ रही ज्ञानसूर्य शिव बाबा की अनन्त शक्तियों की किरणें चारों और फैल रही हैं। *ऐसा लग रहा है जैसे प्रकाश का कोई झरना बाबा के मस्तक से निकल रहा है जिसका तेज प्रकाश पूरे वतन में फैल रहा है*।

 

_ ➳  बापदादा के इस अति तेजोमय, प्रकाशवान स्वरूप को निहारते - निहारते मैं धीरे धीरे बापदादा के समीप पहुँच जाती है। बड़े प्यार से मुस्कराते हुए बापदादा मेरा स्वागत करते हैं और मुझे अपनी बाहों में समा लेते हैं। *अपना असीम स्नेह बाबा मुझ पर लुटाते हुए मुझे अपने पास बिठा लेते हैं। अपनी मीठी दृष्टि देकर, अपनी नजरो से मुझे निहाल करते हुए बाबा अपना हाथ ऊपर उठाते हैं और एक बहुत रसीला फल अपने हाथ में लेकर उसे मेरे मुख के पास ले आते हैं*। उसका रस मुख में पड़ते ही ऐसा लगता है जैसे उसकी एक बून्द ने ही मुख में मिठास घोल दी है। इतना स्वादिष्ट और मीठा फल खाकर, मैं आनन्द विभोर होकर, मुस्कराते हुए बाबा की और देखती हूँ। *बाबा उस फल की मिठास का रहस्य मुझे इशारे ही इशारे में समझा देते हैं कि "सोचा, डायरेक्शन मिला और किया" यही स्व के प्रति और सेवा के प्रति स्वदिष्ट प्रत्क्षय फल खाना है*।

 

_ ➳  बाबा के इन अव्यक्त इशारों को समझ मैं मन ही मन स्वयं से प्रोमिस करती हूँ कि स्व के प्रति और सेवा के प्रति मुझे जो भी डायरेक्शन मिलते हैं, उसके प्रति "कर लूंगी या हो जाएगा" के संकल्प मन मे लाने के बजाए उसे तुरंत करके यह प्रत्यक्ष फल अब मैं सदा खाती रहूँगी। *"कर लेंगे, हो जाएगा, होना तो है" यह संकल्प ताजे फल को बासी बना देते हैं और बासी फल से वो शक्ति, वो ताकत नही मिल सकती जो ताजे फल से मिलती है। इसलिए डायरेक्शन मिला और उसी वेला में उसे उमंग से करके, ताजा फल प्राप्त कर स्वयं को शक्तिशाली आत्मा बना कर, फॉलो मदर फादर कर, उनके समान बनने का पुरुषार्थ मैं अवश्य करूँगी*। इसी दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ अपने प्यारे बापदादा से वरदान और शक्तियाँ लेकर अब मैं उसे पूरा करने के लिए वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ।

 

_ ➳  अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ, अपने साकार तन में मैं फिर से प्रवेश करती हूँ और भृकुटि के अकालतख्त पर विराजमान हो जाती हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर अब मैं मम्मा बाबा के समान "तुरन्त दान महापुण्य" इस मूल मंत्र को समृति में रख, स्व प्रति और सेवा प्रति मिलने वाले डायरेशन को उसी समय पूरा करने के पुरुषार्थ में लग गई हूँ। *स्व प्रति या सेवा के प्रति मन मे जो भी संकल्प उतपन्न होता है उसे उसी समय दृढ़ता के साथ अब मैं पूरा करती जा रही हूँ। सेवा प्रति किसी भी प्रकार का डायरेशन मिलते ही उसे उसी वेला में उमंग से करके मैं सेवा का प्रत्क्षय फल खाकर, शक्तिशाली आत्मा बनती जा रही हूँ। स्व प्रति और सेवा प्रति मिलने वाले प्रत्क्षय फल की यह शक्ति ही मेरे ब्राह्मण जीवन को उमंग उत्साह से निरन्तर आगे बढाती जा रही है*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं बालक और मालिकपन के बैलेंस से पुरुषार्थ और सेवा में सदा सफलतामूर्त आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं निमित्त और निर्माणचित्त बनने के लिए मन और बुद्धि को प्रभु अर्पण कर देने वाली सहजयोगी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  कर्म बन्धन से मुक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए कर्मयोगी बनो:- सदा हर कर्म करतेकर्म के बन्धनों से न्यारे और बाप के प्यारे - ऐसी न्यारी और प्यारी आत्मायें अपने को अनुभव करते होकर्मयोगी बनकर्म करने वाले कभी भी कर्म के बन्धन में नहीं आते हैंवे सदा बन्धनमुक्त-योगयुक्त होते। *कर्मयोगी कभी अच्छे वा बुरे कर्म करने वाले व्यक्ति के प्रभाव में नहीं आते। ऐसा नहीं कि कोई अच्छा कर्म करने वाला कनेक्शन में आये तो उसकी खुशी में आ जाओ और कोई अच्छा कर्म न करने वाला सम्बन्ध में आये तो गुस्से में आ जाओ - या उसके प्रति ईर्ष्या वा घृणा पैदा हो। यह भी कर्मबन्धन है। कर्मयोगी के आगे कोई कैसा भी आ जाए - स्वयं सदा न्यारा और प्यारा रहेगा।* नॉलेज द्वारा जानेगाइसका यह पार्ट चल रहा है। घृणा वाले से स्वयं भी घृणा कर ले यह हुआ कर्म का बन्धन। ऐसा कर्म के बन्धन में आने वाला एकरस नहीं रह सकता। कभी किसी रस में होगा कभी किसी रस में। इसलिए अच्छे को अच्छा समझकर साक्षी होकर देखो और बुरे को रहमदिल बन रहम की निगाह से परिवर्तन करने की शुभ भावना से साक्षी हो देखो। इसको कहा जाता है - ‘कर्मबन्धन से न्यारे'

 

_ ➳  क्योंकि ज्ञान का अर्थ है समझ। तो समझ किस बात कीकर्म के बन्धनों से मुक्त होने की समझ को ही ज्ञान कहा जाता है। ज्ञानी कभी भी बन्धनों के वश नहीं होंगे। सदा न्यारे। ऐसे नहीं कभी न्यारे बन जाओ तो कभी थोड़ा सा सेक आ जाए। *सदा विककर्माजीत बनने का लक्ष्य रखो। कर्मबन्धन जीत बनना है। यह बहुतकाल का अभ्यास बहुतकाल की प्रालब्ध के निमित्त बनायेगा।* और अभी भी बहुत विचित्र अनुभव करेंगे। तो सदा के न्यारे और सदा के प्यारे बनो। यही बाप समान कर्मबन्धन से मुक्त स्थिति है।

 

✺   *"ड्रिल :- कर्म बंधनों से मुक्त रहना।"*

 

 _ ➳  इस हलचल भरी सृष्टि पर मैं आत्मा कुछ आत्माओं के बीच बैठकर अपनी बुद्धि से शांतिधाम में स्थित हूं और शांतिधाम की गहन शांति को अपने अंदर अनुभव कर रही हूं.... जैसे-जैसे मैं इस शांति को अपने अंदर फील करती हूं वैसे वैसे मैं अपने आप को बहुत ही हल्का अनुभव करती हूँ... और *शांति धाम में उस लाल सुनहरे प्रकाश में मैं अपने साथ अनेक आत्माओं को भी देखती हूं जो शांति स्वरूप स्थिति में बैठकर अपना प्रकाश उस स्थान पर फैला रही है... और कुछ देर बाद में देखती हूं कि उस स्थान पर मेरे परम पिता परमात्मा ज्योति स्वरूप में विराजमान है और उनसे अनेक रंग बिरंगी किरणे निकल रही है जिसे देख कर मेरा मन अति आनंदित हो रहा है... परमात्मा की शीतल किरणें जैसे जैसे मुझ पर गिरने लगती है मैं बहुत ही आनंदित अवस्था को महसूस करती हूं...* 

 

 _ ➳  इसी शांति स्वरूप स्थिति में मैं धीरे-धीरे अपनी कर्मभूमि पर आती हूं और *अपने आप पर शांतिधाम से आती हुई किरणों को अनुभव करती हूं... जिसके कारण मैं उस हलचल भरी दुनिया से अपने आप को दूर रख पाती हूं और यहां के तेज भागते हुए संकल्पों से अपने आप को डिटेच अनुभव करती हूँ...* जैसे जैसे मैं अपने इस स्थिति में स्थित होती हूँ वैसे ही वहां बैठी अन्य आत्माओं को मेरी स्थिति का अनुभव होता है और सभी आत्माएं व्याकुल होते हुए अपनी इस व्याकुलता भरे प्रश्न से मुझे अवगत कराते हुए इसका उत्तर जानने का प्रयास करते हैं... और मुझसे कहती हैं... यहां पर इस हलचल भरी दुनिया में रहते हुए भी तुम इस आनंदित भरी स्थिति का कैसे अनुभव कर पाती हो... क्या तुम्हें यहां की हलचल अपने वश में नहीं करती... तुम्हें यहां की गतिविधियां हलचल में नहीं लाती... जैसे ही यह आत्माएं मुझसे यह पूछती है तो मैं परमात्मा का धन्यवाद करती हूं और उनकी व्याकुलता को समझते हुए उनके सभी प्रश्नों का उत्तर देने के लिए उन्हें कहती हूं... हे आत्माओं अगर हमें इस हलचल भरी दुनिया से अपने आप को शांति भरी दुनिया में अनुभव करना है तो तुम्हें एक दृश्य को समझना होगा... इस दृश्य को देखकर तुम सहज ही अनुभव कर पाओगी कि मैं इस स्थिति का कैसे अनुभव कर पा रही हूं...  

 

 _ ➳  कुछ समय बाद मैं उन आत्माओं को ज्योति स्वरुप में ही अपने साथ एक ऐसे स्थान पर ले जाती हूं जहां पर उन्हें अपने सभी प्रश्नों का उत्तर बड़ी ही सरलता से मिल सके... और हम अपना प्रकाश फैलाते हुए एक ऐसे स्थान पर आकर विराजमान हो जाते हैं जहां से हमें कमल कीचड़ में खिलता हुआ साफ साफ नजर आ रहा है... मैं उन आत्माओं से कहती हूं... हे आत्माओं अब आप इस दृश्य को बहुत ही गहराई से देखिए और समझिए... वह आत्माएं एकाग्रचित होकर उस दृश्य को देखती है और मेरे द्वारा कही हुई बातों को ध्यान से सुनने लगती है... मैं उन्हें कहती हूं कि इस कमल को देखिए यह सिर्फ कीचड़ में खिलता है परंतु कीचड़ में रहते हुए भी अपने आप को कीचड़ को छूने भी नहीं देता कीचड़ इसे छू भी नहीं पाती है... अगर यह कीचड़ में खिलकर कीचड़ में ही लिपट जाए तो इसे कोई भी मनुष्य देखेगा भी नहीं... क्योंकि कीचड़ के कारण इसकी सुंदरता और पवित्रता नष्ट हो जाएगी इसलिए *यह कमल अपनी ऊंची स्थिति के लिए अपने आप को कीचड़ में रखते हुए भी इससे दूर अनुभव करता है... इसके इसी गुण के कारण सभी मनुष्य इसकी सुंदरता और पवित्रता को गहराई से अनुभव करते हैं...*

 

 _ ➳  मेरी इतनी बात सुनकर वह सभी आत्माएं संतुष्ट हो जाती है... और उसी समय यह कहती है कि इस कमल की तरह आज से हम भी इस मायावी दुनिया के कर्म बंधनों से अपने आप को दूर रखेंगे... और कहती हैं कि *हम जब भी कोई भी कर्म करेंगे और हमारे सामने कैसे भी संकल्पों वाली आत्माएं आये तो हमें उनके संकल्पों से कोई असर नहीं पड़ेगा और ना ही हम अपनी स्थिति को हलचल में आने देंगे... ऐसा करने पर ही हम हमारी ऊंची इस स्थिति को सहज ही अनुभव कर पाएंगे और प्रभु के प्यारे बन पाएंगे...*  इतना कहकर वह सभी आत्माएं वहां से मेरे साथ प्रस्थान करने लगती है... और उसी समय से अपने आप को शांतिधाम में अनुभव करती हैं... रास्ते में चलते समय कई बार ऐसी परिस्थिति आई जिसके कारण हमारी स्थिति में हलचल आ सकती थी... परंतु हमने अपने आपको परमात्म प्यार में अनुभव किया और कर्मयोगी स्थिति का अनुसरण किया... जिससे हमारी स्थिति बनी रहे और हम चलते चलते वापिस अपने इस देह में विराजमान हो जाते हैं...

 

_ ➳  *और हमारा यह छोटा सा समूह इस दुनिया में रहते हुए भी बहुत ही गहन शांति का अनुभव करती है... जिसे देखकर अन्य आत्माएं बहुत ही आकर्षित और खुश होती हैं और हम सभी अब अन्य आत्माओं के किसी भी कर्म को अपने ऊपर हावी नहीं होने देते और ना ही उनके कोई भी संकल्प हमारी स्थिति को हलचल में ला सकते हैं...* अब हम केवल इस स्थिति का अनुभव करते हैं जैसे कि एक व्यक्ति फांसी पर लटका हुआ हो अर्थात हमारा यह देह इस संसार में दिखाई देगा कर्मयोगी के रूप में और हम मन बुद्धि से शांतिधाम में अपने परमपिता परमात्मा के साथ अपने आप को अनुभव करते हैं... इन्हीं विचारों के साथ और इन्हीं संकल्पों के साथ हम वापस अपने इस देह में रहते हुए अपने आप को शांतिधाम में परमात्मा के साथ अनुभव करते हैं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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