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 15 / 02 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *देह अभिमान छोड़ अपने से बड़ों को आगे किया ?*

 

➢➢ *"चैरिटी बेगिन्स ऐट होम" - पहले अपने गृहस्थ व्यवहार को कमल फूल समान बनाया ?*

 

➢➢ *तीनो कालों, तीनो लोकों की नॉलेज को धारण कर बुधीवान बनकर रहे ?*

 

➢➢ *अपने चलन और चेहरे से सत्यता की सभ्यता का अनुभव करवाया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  मन्सा सेवा के लिए मन, बुद्धि व्यर्थ सोचने से मुक्त होना चाहिए। मनमनाभवके मन्त्र का सहज स्वरूप होना चाहिए। *जिन श्रेष्ठ आत्माओं की श्रेष्ठ मन्सा अर्थात् संकल्प शक्तिशाली है, शुभ-भावना, शुभ-कामना वाले हैं वह मन्सा द्वारा शक्तियों का दान दे सकते हैं।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ"*

 

✧  सदा अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान अनुभव करते हो? *इस स्वरूप की स्मृति में रहने से हर परिस्थिति ऐसे अनुभव होगी जैसे परिस्थिति नहीं लेकिन एक साइडसीन है। परिस्थिति समझने से घबरा जाते लेकिन साइडसीन अर्थात् रास्ते के नजारे हैं तो सहज ही पार कर लेते।*

 

  क्योंकि नजारों को देख खुशी होती है, घबराते नहीं। *तो विघ्न, विघ्न नहीं हैं लेकिन विघ्न आगे बढ़ने का साधन है। परीक्षा क्लास आगे बढ़ाता है।*

 

  तो यह विघ्न, परिस्थिति, परीक्षा आगे बढ़ाने के लिए आते हैं ऐसे समझते हो ना! कभी कोई बात सोचते यह क्या हुआ, क्यों हुआ? तो सोचने में भी टाइम जाता है। *सोचना अर्थात् रुकना। मास्टर सर्वशक्तिवान कभी रुकते नहीं। सदा अपने जीवन में उड़ती कला का अनुभव करते हैं।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *शिव बाप समान बनना अर्थात निराकार स्थिति में स्थित होना। मुश्किल है क्या?* बाप और दादा से प्यार है ना! तो जिससे प्यार है उस जैसा बनना, जब संकल्प भी है - बाप समान बनना ही है, तो कोई मुश्किल नहीं है।

 

✧  सिर्फ बार-बार अटेन्शन। साधारण जीवन नहीं। साधारण जीवन वाले बहुत हैं। बडे-बडे कार्य करने वाले बहुत हैं। लेकिन आप जैसा कार्य, आप ब्राह्मण आत्माओं के सिवाए और कोई नहीं कर सकता है। *तो आज स्मृति दिवस पर बापदादा समानता में समीप आओ, समीप आओ, समीप आओ का वरदान दे रहे हैं।*

 

✧  सभी हद के किनारे, चाहे संकल्प, चाहे बोल, चाहे कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क कोई भी हद का किनारा, अपने मन की नईया को इन हद के किनारों से मुक्त कर दो। *अभी से जीवन में रहते मुक्त ऐसे जीवनमुक्ति का अलौकिक अनुभव बहुतकाल से करो। अच्छा।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  व्यक्तभाव से अव्यक्त भाव में कहाँ तक आगे बढ़े - यह चेकिंग करनी है। अगर अव्यक्ति स्थिति बढ़ी है तो अपने चलन में भी अलौकिक होंगे। *अव्यक्त स्थिति की प्रैक्टिकल परख क्या है? आलौकिक चलन।* इस लोक में रहते अलौकिक कहाँ तक बने हो? यह चेक करना है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप आये हैं बेहद सृष्टि की सेवा पर, नर्क को स्वर्ग बनाने"*

 

_ ➳  झील के किनारे बैठी मैं आत्मा निहार रही हूँ झील में ऊपर से गिरते झरने के पानी को... झर झर करते हुए ये झरना झील को भरपूर कर रहा है... उसकी सुन्दरता को बढ़ा रहा है... प्यारे बाबा ऊपर अपने धाम से नीचे उतरकर मुझ आत्मा को सुन्दर बना रहे हैं, भरपूर कर रहे हैं... *बेहद का बाबा बेहद की सेवा कर नरक को स्वर्ग बना रहे हैं... पुरानी दुनिया को नई बना रहे हैं... मैं आत्मा और ज्यादा सुन्दर बनने मीठे बाबा के पास वतन में पहुँच जाती हूँ...*     

 

   *ब्रह्मा तन में अवतरित होकर राजयोग सिखलाते हुए निराकार प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे बच्चे... *यह भारतभूमि भी किस कदर भाग्यशाली है कि स्वयं भगवान यहाँ ही उतरता है... और आप बच्चे का भाग्य भी कितना खूबसूरत है की भगवान स्वयं सेवा में उपस्थित होकर राज योग सिखाता है...* इस मीठे नशे में भर जाओ...

 

_ ➳  *अपने सत्य स्वरुप को पहचान हीरे जैसी सजकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा किस कदर भाग्य शाली हूँ.... *ईश्वर पिता ने आकर मुझे राज योग सिखाकर मेरा जीवन सच्चे सुखो से भर दिया...* मै आत्मा सदा की मुस्करा उठी हूँ...

 

   *सबको पतित से पावन बनाने की सेवा करते हुए निरहंकारी प्यारे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे बच्चे... भारत देश ईश्वरीय जन्मभूमि होकर महानता को छू रहा है... *अपने फूल से बच्चों को विकारो की अग्नि में झुलसता देख पिता का कलेजा द्रवित हो यही उतरता है... बच्चे फिर से वही राजभाग से भर जाय... इस सेवा में जुटता है...”*

 

_ ➳  *बाबा की मत पर चलकर दैवीय गुणों को धारण कर स्वर्ग में जाने लायक बनते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपके मीठे साये में बैठ राजयोग से निखर रही हूँ... *वही खूबसूरत आभा वही नूर पाकर दमक रही हूँ... कितना मीठा भाग्य कि विश्व पिता मेरी सेवा कर रहा है...”*

 

   *मेरे बाबा इस धरा पर आकर हथेली पर बहिश्त की सौगात लाकर कहते हैं:-* प्यारे बच्चे... *आप बच्चों की सेवा में धरती पर आता हूँ... सदा का राजा बना सुख के अथाह खजाने देने आया हूँ...* भारत भूमि पर ही आता हूँ और महान भाग्य जगाता हूँ... इन मीठे अहसासो में डूब जाओ... और यादो की गहराई में उतर जाओ...

 

_ ➳  *बेहद की सेवा के लिए प्यारे बाबा का तहे दिल से शुक्रिया अदा करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा राजयोगी बन गई हूँ... आपकी खूबसूरत सेवा की मुरीद हो गई हूँ...* इस महान भूमि पर हूँ जिस पर निराकार बाबा आया है... इन सुखद अहसासो में डूब गयी हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- देह अभिमान छोड़ अपने से बड़ो को आगे करना है*"

 

_ ➳  मन बुद्धि से प्रकृति के खूबसूरत नजारो का आनन्द लेते हुए, एक सागर के किनारे जा कर मैं बैठ जाती हूँ। *सागर की शीतल लहरों की शीतलता का आनन्द लेते, सागर की गहराई का अनुमान लगाते - लगाते मैं मन ही मन विचार करती हूँ कि ये स्थूल सागर अपने अंदर कितना कुछ समाने की क्षमता रखता है*! सारी नदियों का किचड़ा सागर में समा जाता है और सब कुछ अपने अंदर समा कर भी इसकी गहराई में जाने वाला मनुष्य कीमती सीप, मोती ही लेकर बाहर आता है। *इस स्थूल सागर के समान, सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के सागर मेरे शिव बाबा भी तो अपने हर ब्राह्मण बच्चे की हर बात को अपने अंदर समाकर, अथाह ख़ज़ानों से उसे भरपूर कर देते हैं। निरहंकारी बन, हर बात में बच्चों को आगे रखते हैं*।

 

_ ➳  ऐसे प्रेम के सागर, दया के सागर अपने प्यारे बाबा के समान निरहंकारी बन कर इस ईश्वरीय यज्ञ में बाबा का मददगार बनना ही बाबा के स्नेह का रिटर्न है और *बाबा के स्नेह का रिटर्न देने के लिए मैं स्वयं से और बाबा से दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ कि देह अभिमान को छोड़, हमेशा बड़ो को आगे करते हुए, छोटे बड़े सभी को रिगार्ड देते हुए, सर्व की सहयोगी बन इस ईश्वरीय सेवा में मैं सदा तत्पर रहूँगी*। यह प्रतिज्ञा करते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे सागर के उस तट पर एक अद्भुत रूहानी महक फैलने लगी है। यह रूहानी खुशबू मुझे मेरे शिव पिता की उपस्थिति का स्पष्ट अनुभव करवा रही है।

 

_ ➳  स्थूल सागर की लहरों की शीतलता के साथ - साथ अब मैं सर्वगुणों, सर्वशक्तियों के सागर अपने शिव बाबा से आ रही सर्वगुणों और सर्वशक्तियों की शीतल फ़ुहारों का भी आनन्द ले रही हैं। *ऐसा लग रहा है जैसे सर्वशक्तियों की रंग बिरंगी किरणो का झरना मेरे ऊपर बह रहा है और उसकी रिमझिम रंग बिरंगी फुहारें मेरे ऊपर बरस रही हैं*। सतरंगी प्रकाश का यह खूबसूरत झरना मुझ आत्मा के ऊपर चढ़े देह के आवरण को पारदर्शक बना रहा है। *मुझे मेरी देह एक पारदर्शी शीशे के समान दिखाई दे रही है और उस शीशे में मैं अपने चैतन्य स्वरूप को देख रही हूँ*। एक चैतन्य सितारे की तरह चमकता मेरा दिव्य ज्योतिर्मय स्वरूप मुझे बहुत ही आकर्षक लग रहा हैं।

 

_ ➳  अपने इस अति प्यारे और अति सुंदर स्वरूप को निहारते हुए मैं इसमें से निकल रही सतरँगी किरणों में अपने सातो गुणों और अष्ट शक्तियों को देख रही हूँ। *ये सातो गुण और अष्ट शक्तियाँ मुझे मेरे सम्पूर्ण स्वरूप का अनुभव करवा रहें हैं*। अपने इस सम्पूर्ण स्वरूप की सम्पूर्णता का आनन्द लेते हुए मैं आत्मा देह के आवरण से बाहर निकल कर अब सीधे ऊपर की ओर चल पड़ती हूँ। *याद की यह खूबसूरत यात्रा मुझे सीधी मेरे शिव पिता के पास उनके धाम ले जाती है*।

 

_ ➳  इस मुक्तिधाम, निर्वाणधाम घर में पहुंचकर मैं अपने शिव पिता के पास उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ और उनकी एक - एक किरण को बड़े प्यार से निहारते हुए स्वयं को उनकी शक्तियों से भरपूर करने लगती हूँ। *ऐसा लग रहा है जैसे बाबा भी अपना सम्पूर्ण प्यार अपनी इन शक्तियों रूपी किरणो में भरकर मुझ पर लुटा रहें हैं*। एक गहन सुखमय स्थिति में डूबी मैं बाबा के प्यार को गहराई तक अपने अंदर समाती जा रही हूँ ओर एक असीम अतीन्द्रीय सुख का अनुभव कर रही हूँ। *बाबा का यह रूहानी प्यार मुझे बाबा के समान मास्टर प्यार का सागर बना रहा है*।

 

_ ➳  प्यार के सागर अपने शिव बाबा का अथाह प्यार अपने अंदर भरकर सबको यह रूहानी प्यार देने के लिए अब मैं अपनी साकारी देह में प्रवेश करती हूँ और अपने अकाल तख्त पर आ कर बैठ जाती हूँ। *देह अभिमान को छोड़ सबको रूहानी प्यार देते हुए, हर कार्य में अपने से बड़ो को आगे कर, छोटे, बड़े सभी को रिगार्ड देकर, बाबा से और स्वयं से की हुई हर प्रतिज्ञा को अब मैं पूरी लगन से निभा रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं तीनों कालो, तीनो लोकों की नॉलेज को धारण कर बुद्धिवान बनने वाली विघ्न विनाशक आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपने चलन और चेहरे से सत्यता की  सभ्यता का अनुभव कराने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  देवता बनने वाले माना देने वाले। लेवता नहीं देवता... कितने बार देवता बने हो, अनेक बार बने हो ना... तो देवता अर्थात् देने के संस्कार वाले... *कोई कुछ भी दे लेकिन आप सुख की अंचली, शान्ति की अंचली, प्रेम की अंचली दो*... लोगों के पास है ही दुःख अशान्ति तो क्या देंगे वो ही देंगे ना... और आपके पास क्या है - सुख-शान्ति... सब ठीक है ना! अच्छा...

 

✺   *ड्रिल :-  "देवता बन सुख-शान्ति की अंचली देने का अनुभव"*

 

 _ ➳  अपने देवता स्वरूप को स्मृति में लाते ही दाता पन के संस्कार स्वत: ही इमर्ज होने लगते हैं और *अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर मैं फ़रिशता चल पड़ता हूँ विश्व की उन सभी दुखी और अशांत आत्माओं को सुख शांति की अनुभूति करवाने जो पल भर की सुख शांति पाने के लिए दर - दर भटक रहे हैं, भक्ति मार्ग के अनेक कर्मकांडो में फंस कर स्वयं को कष्ट दे रहें हैं*... लम्बी - लम्बी पैदल यात्रायें करके मंदिरों, तीर्थो पर जा रहें हैं... किन्तु सुख, शांति की अंचली मात्र से भी कोसों दूर हैं...

 

 _ ➳  सुख, शांति की तलाश में भटक रही इन आत्माओं के बारे में विचार करते ही मुझे अनुभव होता है जैसे ये सभी तड़पती हुई आत्मायें मेरे ही भक्त हैं और सुख, शांति की अंचली पाने के लिए मुझे पुकार रहें हैं... अपने भक्तों के रोने -चिल्लाने की करुण आवाजें अब मेरे कानों में स्पष्ट सुनाई दे रही हैं... *अपने भक्तों की करुणामयी, दुखदाई पुकार को सुन कर अब मैं फ़रिशता अपने देवता स्वरूप को धारण करता हूँ और अपने भक्तों को सुख, शांति की अंचली देने मंदिर की ओर चल पड़ता हूँ*...

 

 _ ➳  मन्दिर के बाहर पहुंच कर अब मैं मन्दिर के अंदर का दृश्य देख रहा हूँ... मन्दिर में प्रतिस्थापित मेरे जड़ चित्रों के सामने खड़े भक्तों को मैं देख रहा हूँ... उनके चेहरों पर पड़ी दुख की रेखाएं मुझे स्पष्ट दिख रही हैं ... दोनों हाथ जोड़ कर सुख, शांति की भीख मांग रहें हैं... *विनाशी साधनों में सुख शांति समझने के कारण उन साधनों को पाने के लिये लम्बी - लम्बी अरदासें कर रहें हैं*... अपने भक्तों की यह दुर्दशा देख, रहम दिल बन अब मैं अपनी उस जड़ मूर्ति में प्रवेश करता हूँ... और अपने शिव पिता परमात्मा का आह्वान करता हूँ...

 

 _ ➳  पलक झपकते ही मैं अपने बिल्कुल ऊपर अपने पिता परमात्मा शिव बाबा की छत्रछाया को अपने ऊपर अनुभव करता हूँ... *बाबा से निकल रही सुख, शांति की शक्तिशाली किरणे सीधी मेरे ऊपर पड़ रही हैं और मेरे देव स्वरूप से निकल कर अब धीरे - धीरे पूरे मन्दिर में फैल रही हैं*... मेरे वरदानी हस्तों से सुख, शांति के पुष्पों की वर्षा हो रही हैं... सुख शांति के ये पुष्प भक्तों की झोली में गिर रहें हैं और उन्हें पल भर के लिए गहन सुख, शांति की अनुभूति करवा रहें हैं... सुख, शांति की अंचली पाने की उनकी आश जैसे पूरी हो रही है...

 

 _ ➳  सुख शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन धीरे - धीरे पूरे मन्दिर में फैल कर मन्दिर से बाहर चारों और फैल रहें हैं और सबको अपनी और आकर्षित कर रहें हैं... दूर दूर से आत्मायें खिंची आ रही हैं और मन्दिर में आ कर सुख, शांति की अनुभूति करके तृप्त हो रही हैं... *पल भर की सुख, शांति पाकर सभी के दुखी चेहरे जैसे खिल उठे हैं... उनकी खोई हुई मुस्कान पुनः लौट आई है*... आंखों में खुशी के आंसू लिए मेरे भक्त मेरी जयजयकार करते हुए अपने घर लौट रहे हैं...

 

 _ ➳  वरदानी मूरत बन, अपने वरदानी हस्तों से अपने भक्तों को सुख शांति की अंचली देकर अब मैं अपने देव स्वरूप से अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट आती हूँ... अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर *अब मैं अपने देवताई स्वरूप को सदा स्मृति में रख, स्वयं को परमात्म शक्तियों से सम्पन्न कर, मास्टर दाता बन, अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को सुख, शांति की अनुभूति करवाती रहती हूँ*...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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