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 09 / 08 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *शरीर में होते हुए सबसे नाता तोड़ अशरीरी बनने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *मुरली सुनकर व पड़कर धारण करने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *निमित और नम्रचित की विशेषता द्वारा सेवा में फ़ास्ट और फर्स्ट नंबर लेने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *बुधी द्वारा ज्ञान रत्नों को धारण कर सच्चे होली हंस बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *फरिश्ता अर्थात् जिसका एक बाप के साथ सर्व रिश्ता हो अर्थात् सर्व सम्बन्ध हो।* एक बाप दूसरा न कोई जिसके सर्व सम्बन्ध एक बाप के साथ होंगे *उसको और सब सम्बन्ध निमित्त मात्र अनुभव होंगे। वह सदा खुशी में नाचने वाले होंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं पद्मापद्म भाग्यवान आत्मा हूँ"*

 

✧  सदा अपने को पद्मापद्म भाग्यवान अनुभव करते हो? क्योंकि बाप द्वारा वर्सा मिला है। तो वर्से में कितने अविनाशी खजाने मिले हैं? जब खजाने अविनाशी हैं तो भाग्य की स्मृति भी अविनाशी चाहिए। अविनाशी का अर्थ क्या है? सदा या कभी-कभी? *सदा अपने को पद्मापद्म भाग्यवान आत्मायें हैं-यह स्मृति में रखो और खजानों को सदा सामने इमर्ज रूप में रखो। कितने खजाने मिले हैं? अगर सदा खजानों को सामने रखेंगे तो नशा वा खुशी भी सदा रहेगी और कभी भी कम-ज्यादा नहीं रहेगी, बेहद की रहेगी।* तो खजाने को बढ़ाओ भी और इमर्ज रूप में भी रखो। बढ़ाने का साधन क्या है? जितना बांटेंगे उतना बढ़ेगा।

 

✧  सदा यह सोचो कि आज के दिन खजाने को बढ़ाया या जितना था उतना ही है? *खजाना जितना बढ़ेगा, तो बढ़ने की निशानी है-खुशी बढ़ेगी। तो बढ़ते जाते हैं ना। क्योंकि यह खजाने सदा खुशी को बढ़ाने वाले हैं। इसलिए कभी भी खुशी कम नहीं होनी चाहिए। कितना भी बड़ा विघ्न आ जाये लेकिन विघ्न खुशी को कम ना करे।* किसी भी प्रकार का विघ्न खुशी को कम तो नहीं करता है ? बापदादा ने पहले भी कहा है कि शरीर चला जाये लेकिन खुशी नहीं जाये। इतनी अपने आपसे दृढ़ प्रतिज्ञा की है? तो सदा यह दृढ़ संकल्प करो कि-खुशी नहीं जायेगी।

 

✧  *ब्राह्मण जीवन का आधार ही है 'खुशी'। अगर खुशी नहीं तो ब्राह्मण जीवन नहीं। ब्राह्मण जीवन अर्थात् खुश रहना और दूसरों को भी खुशी बांटना। वर्तमान समय में सभी को अविनाशी खुशी की आवश्यकता है, खुशी के भिखारी हैं। और आप दाता के बच्चे हो। दाता के बच्चों का काम है-देना। जो भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आये-खुशी बांटते जाओ, देते जाओ। कोई खाली नहीं जाये।* इतना भरपूर हो ना! हर समय देखो कि मास्टर दाता बनकर के कुछ दे रहा हूँ या सिर्फ अपने में ही खुश हैं। जिस समय जिसको कोई भी चीज की आवश्यकता होती है और आवश्यकता के समय अगर कोई वही चीज उसको देता है, तो उसके दिल से दुआयें निकलती हैं। वो दुआयें भी आपको सहज पुरुषार्थी बनने में सहयोगी बन जायेंगी। तो आपका कर्तव्य है - दुआयें देना और दुआयें लेना। इसी में बिजी रहते हो ना! सारे विश्व को इसकी आवश्यकता है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  एकाग्रता की शक्ति से किसी भी आत्मा का मैसेज उस आत्मा तक पहुँचा सकते हो। किसी भी आत्मा का आह्वान कर सकते हो। किसी भी आत्मा की आवाज को कैच कर सकते हो। किसी भी आत्मा को दूर बैठे सहयोग दे सकते हो। वह एकाग्रता जानते हो ना।  *सिवाए एक बाप के और कोई भी संकल्प न हो।*

 

✧  एक बाप में सारे संसार की सर्व प्राप्तियों की अनुभूति हो। एक ही एक हो। पुरुषार्थ द्वारा एकाग्र बनना वह अलग स्टेज है। लेकिन *एकाग्रता में स्थित हो जाना, वह स्थिति इतनी शक्तिशाली है। ऐसी श्रेष्ठ स्थिति का एक संकल्प भी बाप समान का बहुत अनुभव कराता है।* अभी इस रूहानी शक्ति का प्रयोग करके देखो।

 

✧  इसमें एकान्त का साधन आवश्यक है। *अभ्यास होने से लास्ट में चारों ओर हंगामा होते हुए भी आप सभी एक के अंत में खो गये तो हंगामे के बीच भी एकांत का अनुभव करेंगे।* लेकिन ऐसा अभ्यास बहुत समय से चाहिए। तब ही चारों ओर के अनेक प्रकार के हंगामे होते हुए भी अपने को एकान्तवासी अनुभव करेंगे। *वर्तमान समय ऐसे गुप्त शक्तियों द्वारा अनुभवी मूर्त बनना अति आवश्यक है।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *चारों ओर कितना भी वातावरण हो, हलचल हो लेकिन आवाज में रहते आवाज से परे स्थिति का अभ्यास अभी बहुत काल का चाहिए।* शान्त वातावरण में शान्ति की स्थिति बनाना यह कोई बड़ी बात नहीं है। अशान्ति के बीच आप शान्त रहो, यह अभ्यास चाहिए। ऐसा अभ्यास जानते हो? चाहे अपनी कमजोरियों की हलचल हो, संस्कारों के व्यर्थ संकल्पों की हलचल हो। ऐसी हलचल के समय स्वयं को अचल बना सकते हो वा टाइम लग जाता है? *क्योंकि टाइम लगना यह कभी भी धोखा दे सकता है। समाप्ति के समय में ज्यादा समय नहीं मिलना है। फाइनल रिजल्ट का पेपर कुछ सेकण्ड और मिनटों का ही होना है।* लेकिन चारों और की हलचल के वातावरण में अचल रहने पर ही नम्बर मिलना है। *अगर बहुतकाल हलचल की स्थिति से अचल बनने में समय लगने का अभ्यास होगा तो समाप्ति के समय कया रिजल्ट होगी?* इसलिए यह रूहानी एक्सरसाइज का अभ्यास करो। मन को जहाँ और जितना समय स्थित करना चाहो उतना समय वहाँ स्थित कर सको। *फाइनल पेपर है बहुत ही सहज। और पहले से ही बता देते हैं कि यह पेपर आना है। लेकिन नम्बर बहुत थोड़े समय में मिलना है। स्टेज भी पावरफुल हो।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- परवाने बन शमा पर फ़िदा हो पावन बनना"*

 

 _ ➳  *मीठे बाबा के कमरे में बैठी हुई मैं आत्मा... एकटक... प्यारे बाबा को निहार रही हूँ...* बाबा की वरदानी... महादानी किरणों से मैं आत्मा शक्ति सम्पन्न बन रही हूँ... और मीठे चिंतन में खो रही हूँ... *प्यारे बाबा ने जब से मुझ आत्मा को अपना बच्चा बनाया है... तब से हर घड़ी सुखों की बन गयी है... हर पल कितना सुहावना बन गया है... इस पावन सुंदर वेला में... मैं आत्मा... किस कदर बाबा की याद में मदमस्त हो... बाबा से प्यारी-प्यारी बातें करने पहुंच जाती हूँ...*

 

  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने प्यार के आगोश में भरते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *यह कलयुगी पतित दुनिया की महफिल बहुत बड़ी है...* यहाँ हर प्राणी मात्र दुःखो से झूझ रहा है... अब मैं आया हूँ... *तुम्हें इस अंधयारी रात से निकाल... सुख भरी दुनिया में... सदा मेरी याद में रह... निश्चिंत होकर, इस जीवन पथ पर यादों की छत्रछाया में आगे बढ़ो..."*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा मीठे बाबा की यादों में खोई हुई... मुस्कराती हुई मीठे बाबा से कहती हूँ*:- "मेरे सच्चे सहारे बाबा... आपने मुझ आत्मा को कितना प्यारा और शानदार भाग्य दिया है... *मुझे काँटो से फूलों जैसा महका दिया है... मैं आत्मा आपकी यादों में और ज्ञान रत्नों की दौलत में कितनी सुखी हो गयी हूँ...* विकर्मो की कालिमा से छूटकर... पवित्रता से सज संवर रही हूँ... आप सच्चे साथी को साथ रख... हर कर्म को श्रेष्ठ बनाती जा रही हूँ... "

 

  *मीठे प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को प्यार से समझाते हुए कहा :-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... आप कितने खिले से... *महकते फूल से... धरा पर उतरे थे... पर खेलते-खेलते काले पतित बन गये हो... अब इस पतित दुनिया से निकल... शिव बाबा की यादों में रहो...  परवाने बन... शमा पर फिदा हो जाओ..."* 

 

 _ ➳  *मैं आत्मा प्यारे बाबा की श्रीमत को दिल मे समाते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... मैं आत्मा अपने खोये रूप को... सौन्दर्य को आपकी यादों में पुनः पा रही हूँ... और कंचन काया की अधिकारी बन रही हूँ... आपकी हर श्रीमत का सच्चे दिल से पालन कर रही हूँ... *मैं आत्मा आपको पाकर... सत्य की चमक से निखर गयी हूँ... मैं मात्र देह नहीं... अपितु प्यारी पवित्र आत्मा हूँ... इन मीठे अहसासों में हर पल झूम रही हूँ...* आपने मुझे पवित्रता का मार्ग दिखला... मेरा जीवन कमल फूल समान बना दिया है... *जैसे कमल फूल कीचड़ में रहते हुए भी कितना न्यारा प्यारा रहता है..."*

 

  *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को पवित्रता के सच्चे रास्ते पर चलाते हुए  कहा :-* मेरे मीठे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता की मीठी गोद में बैठ, देह के मटमैले आकर्षण से निकलकर, अपनी आत्मिक तरंगो के आकर्षण में डूब जाओ... *इस कलयुगी दुनिया में रहते हुए... प्रवृत्ति में कार्य करते हुए, सदा निराकारी पिता की यादों में खोये रहो... और महान भाग्य की खुमारी में दिव्य कर्म करते रहो..."*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा मीठे बाबा की यादों की धारा में बहते हुए सुंदर कमल फूल बन खिलते हुए कहती हूँ :-* "मेरे प्राण प्रिय बाबा... मैं आत्मा आपकी मीठी यादों में अपनी खोयी सुंदरता को पाकर मुस्कुरा रही हूँ... *दिव्य गुणों को धारण कर... पवित्रता के श्रृंगार से सजकर देवताई स्वरूप में... देवताओं की दुनिया घूम रही हूँ...* मीठे बाबा को दिल से धन्यवाद देकर मैं आत्मा... अपनी स्थूल देह में लौट आयी..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  शरीर मे होते सब से तैलुक तोड़ अशरीरी बनने का पुरुषार्थ करना*

 

_ ➳  अपने प्यारे पिता के मधुर महावाक्यों को स्मृति में लाकर मैं एकांत में बैठ उन पर विचार सागर मंथन करते हुए, इस नश्वर देह और देह से जुड़े सम्बन्धों के बारे में चिंतन करते, अपने आप से ही सवाल करती हूँ कि जिस देह और देह की दुनिया, देह के सम्बन्धो, देह के पदार्थो के पीछे आज तक मैं भागती रही, उनसे मुझे क्या मिला! सिवाय दुख और अशांति के और कुछ भी इनसे मुझे प्राप्त नही हुआ। *लेकिन मेरे प्यारे बाबा ने आकर मुझे एक ही सेकण्ड में उस अविनाशी सुख और शांति को पाने का कितना सहज रास्ता बता दिया। शरीर मे होते सब से तैलुक तोड़ अशरीरी बनने का अनुभव कितना निराला कितना सुखदाई है*। सेकेण्ड में मन को सुकून और शांति देने वाला है। जिस विनाशी देह और दुनियावी सम्बन्धो में मैं रस ढूंढ रही थी उनमें कोई सार है ही नही। ये सारा संसार ही असार संसार है। *अगर सार है तो केवल अपने स्वरूप में स्थित हो अशरीरी बन अपने प्यारे पिता की याद में है*। इसलिए इस शरीर में होते हुए भी अब मुझे सबसे तैलुक तोड़, अशरीरी बनने का पुरुषार्थ निरन्तर करना है।

 

_ ➳  मन ही मन इस संकल्प को दृढ़ता का ठप्पा लगा कर अब मैं सभी बातों से अपने मन और बुद्धि को हटाती हूँ और अपने ध्यान को एकाग्र करके अशरीरी बनने का अभ्यास करती हूँ। *शरीर के सभी अंगों से धीरे - धीरे चेतना को समेट कर अपने ध्यान को अपने स्वरूप पर एकाग्र करते ही मैं स्वयं को बोडिलेस अनुभव करने लगती हूँ। स्वयं को मैं इतना रिलेक्स अनुभव कर रही हूँ कि लगता है जैसे मैं देह में हूँ ही नही*। भृकुटि के बीच चमकती एक अति सूक्ष्म ज्योति को मैं देख रही हूँ जो बहुत ही प्रकाशवान है। देह से न्यारे अपने इस अति सूक्ष्म, सुन्दर स्वरूप को देख, इसके अंदर समाये गुणों और शक्तियों का अनुभव मुझे आनन्दविभोर कर रहा है। *अपने इस स्वरूप से अनजान मैं आत्मा आज अपने इस सत्य स्वरुप का अनुभव करके तृप्त हो गई हूँ*।

 

_ ➳  मन ही मन अपने प्यारे पिता का मैं शुक्रिया अदा कर रही हूँ जिन्होंने आकर मेरे इस अति सुन्दर स्वरूप की पहचान मुझे दी। *सबसे तैलुक तोड़ अशरीरी बन अपने इस सुंदर स्वरूप को देखने और अनुभव करने का सहज तरीका यह राजयोग मुझे सिखलाकर मेरे प्यारे पिता ने मेरे जीवन को सुखमय, शांतिमय और आनन्दमय बना दिया*। अपने प्यारे बाबा का बारम्बार धन्यवाद करते हुए अब मैं अशरीरी आत्मा नश्वर देह का भी आधार छोड़ उससे बाहर निकलती हूँ और देह से पूरी तरह अलग हो कर, अपने जड़ शरीर को अपने सामने पड़ा हुआ मैं देख रही हूँ किन्तु उससे अब कोई भी अटैचमेंट मुझे महसूस नही हो रही। *साक्षी हो कर मैं उसे देख रही हूँ और धीरे - धीरे उससे दूर होती जा रही हूँ। ऊपर आकाश की ओर अब मैं उड़ रही हूँ और अपने प्यारे बाबा के पास उनके धाम जा रही हूँ*।

 

_ ➳  देह, देह की दुनिया, देह के वैभवों, पदार्थो के आकर्षण से मुक्त होकर, निरन्तर ऊपर की ओर उड़ते हुए मैं आकाश को पार करती हूँ और उससे भी परें सूक्ष्म लोक को पार कर पहुँच जाती हूँ आत्माओं की उस निराकारी दुनिया मे जहाँ मेरे मीठे शिवबाबा रहते हैं। *लाल प्रकाश से प्रकाशित, चैतन्य सितारों से सजे अपने स्वीट साइलेन्स होम में पहुँच कर मैं आत्मा एक गहन मीठी शांति का अनुभव कर रही हूँ*। मेरे पिता मेरे बिल्कुल सामने है। उनसे मिलन मनाकर मैं असीम तृप्ति का अनुभव कर रही हूँ। बड़े प्यार से अपने पिता के सुंदर मनमोहक स्वरूप को निहारते हुए मैं धीरे - धीरे उनके समीप जा रही हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में समा कर उनके अथाह निस्वार्थ प्यार से स्वयं को भरपूर कर रही हूँ।

 

_ ➳  प्यार के सागर अपने प्यारे बाबा के प्रेम की गहराई में खोकर मैं उनके बिल्कुल समीप होती जा रही हूँ। इतना समीप कि ऐसा लग रहा है जैसे मैं बाबा में समाकर बाबा का ही रूप बन गई हूँ। *यह समीपता मेरे अंदर मेरे प्यारे पिता की सर्वशक्तियों का बल भरकर मुझे असीम शक्तिशाली बना रही है*। स्वयं को मैं सर्वशक्तियों का एक शक्तिशाली पुंज अनुभव कर रही हूँ।  सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप बन कर अब मैं फिर से कर्म करने के लिए अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ। फिर से देह रूपी रथ पर विराजमान होकर शरीर निर्वाह अर्थ हर कर्म अब मैं कर रही हूँ किन्तु इस स्मृति में स्थित होकर कि मैं देह से न्यारी हूँ। *ईश्वरीय सेवा अर्थ मैंने ये शरीर रूपी चोला धारण किया है बुद्धि में यह धारण कर, शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करने के लिए देह में आना और फिर कर्म करके देह में होते भी, देह से न्यारे अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित हो कर, अशरीरी हो जाना, यह अभ्यास अब मैं घड़ी - घड़ी करती रहती हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं निमित्त और नम्रचित की विशेषता द्वारा सेवा में फ़ास्ट और फर्स्ट नम्बर लेने वाली सफलता मूर्त आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं बुद्धि द्वारा सदा ज्ञान रत्नों को धारण करने वाला सच्चा होलीहंस हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  *व्यक्ति भी क्या हैमिट्टी है ना! मिट्टी-मिट्टी में मिल जाती है।* देखने में आपको बहुत सुन्दर आता हैचाहे सूरत सेचाहे कोई विशेषता सेचाहे कोई गुण सेतो कहते हैं कि और मुझे कोई लगाव नहीं हैस्नेह नहीं है लेकिन इनका ये गुण बहुत अच्छा है। तो गुण का प्रभाव थोड़ा पड़ जाता है या कहते हैं कि इसमें सेवा की विशेषता बहुत है तो सेवा की विशेषता के कारण थोड़ा सा स्नेह हैशब्द नहीं कहेंगे लेकिन अगर विशेष किसी भी व्यक्ति के तरफ या वैभव के तरफ बार-बार संकल्प भी जाता है-ये होता तो बहुत अच्छा.... ये भी आकर्षण है। *व्यक्ति के सेवा की विशेषता का दाता कौनवो व्यक्ति या बाप देता है?* कौन देता हैतो व्यक्ति बहुत अच्छा हैअच्छा है वो ठीक है लेकिन जब *कोई भी विशेषता को देखते हैंगुणों को देखते हैं, सेवा को देखते हैं तो दाता को नहीं भूलो। वह व्यक्ति भी लेवता है, दाता नहीं है।*

➳ _ ➳  *बिना बाप का बने उस व्यक्ति में ये सेवा का गुण या विशेषता आ सकती हैया वह विशेषता अज्ञान से ही ले आता है? ईश्वरीय सेवा की विशेषता अज्ञान में नहीं हो सकती।* अगर अज्ञान में भी कोई विशेषता या गुण है भी लेकिन ज्ञान में आने के बाद उस गुण वा विशेषता में ज्ञान नहीं भरा तो वो विशेषता वा गुण ज्ञान मार्ग के बाद इतनी सेवा नहीं कर सकता। *नेचरल गुण में भी ज्ञान भरना ही पड़ेगा। तो ज्ञान भरने वाला कौनबाप।* तो किसकी देन हुईदाता कौनतो आपको लेवता अच्छा लगता है या दाता अच्छा लगता है? तो लेवता के पीछे क्यों भागते हो?

✺   *ड्रिल :-  "किसी भी व्यक्ति की विशेषता, गुणों व् सेवा को देखते हुए सदैव दाता को स्मृति में रखना"*

➳ _ ➳  *कृष्ण के रंग में रंगी... कृष्ण के प्यार में समर्पित राधा...* कृष्णमयी राधा का दिव्य... अलौकिक जन्म... *पवित्र प्रेम की साम्राज्ञी राधा... स्वार्थ से परे निर्मल प्रेम की अविरत बहती धारा* राधा... सतयुगी प्रिन्स... प्रिन्सेस की दिव्य छबि देख मन हर्षित हो जाता हैं... संपूर्ण पवित्र... संपूर्ण समर्पित... राधा जो सिर्फ कृष्ण को ही देखती... कृष्ण को ही जानती... कृष्ण को ही महसूस करती... कृष्ण की ही यादों में खोयी... कृष्ण की ही स्नेह से बंधी सिर्फ कृष्ण की ही विशेषता को देखती... *क्या मैं राधा बन पाई हूँ...* क्या मेरे मन बुद्धि में शिव बाबा के प्रति दिव्य और अलौकिक... निःस्वार्थ प्रेम के झरने बहते हैं... क्या मेरा मन देह धारियो में और उनके प्रति आकर्षणों में तो बंधा नहीं हैं... *क्या मेरा मन कोई विशेष व्यक्ति प्रति... उसकी सेवाओ प्रति तो स्नेहित नहीं हो रहा हैं...*

➳ _ ➳  क्या मैं सेवा में विशेषता प्रदान कराने वाले दाता को न देख सेवाधारी को तो देखती नहीं हूँ... अपने इस मनः स्थिति से उलझी मैं आत्मा... *राधा बनने की कतार में कोसो दूर खड़ी... बापदादा को पुकार रही हूँ...* मेरा प्यार भरा आह्वान सुनकर बापदादा अपने रूहानी स्वरुप में मुझ आत्मा के सामने उपस्थित हो जाते हैं... *मुझ आत्मा को अपनी अनंत शक्तियों से आच्छादित करते जा रहे हैं...* प्यार भरी दृष्टि से भिगोते जा रहे हैं... और मैं आत्मा बापदादा के साथ... सूक्ष्म वतन की सैर पर चल पड़ती हूँ... *सूक्ष्म वतन का रूहानी नजारा... एडवांस पार्टियों का रूहानी समारोह देख रही हूँ...* मेरा और बापदादा का आगमन इस रूहानी समारोह में चार चांद लगा रहा हैं...

➳ _ ➳  *बापदादा से आती हुई... चमकीली श्वेत किरणें सारे सूक्ष्म वतन में फ़ैल रही हैं...* फूलों की रंग बिरंगी पंखुड़ियों से हमारा स्वागत हो रहा है... और बापदादा के समीप ही मुझ आत्मा के फ़रिश्ते स्वरुप को बिठाया जाता हैं... अचरज भरी नैनों से मैं आत्मा इस रूहानी सभागृह को देखती रहती हूँ... बापदादा सभी एडवांस पार्टियों की आत्माओं की विशेषता को मुझ आत्मा को बता रहे हैं... और मैं आत्मा ऐसी महान हस्तिओं को देख गर्व से फूली नहीं समाती हूँ... *उनकी सेवा के प्रति लगन... बापदादा के प्रति सच्चा सच्चा रूहानी प्यार... सच्चा सच्चा समर्पण... निःस्वार्थ स्नेह का झरना प्रत्यक्ष बहता देख रही हूँ...* न अपने सेवा के प्रति अभिमान... न मेरेपन के जंज़ीरों में बंधे और न ही किसी भी देहधारी के प्रति... उसकी सेवा के प्रति स्नेह पूर्ण लगाव...

➳ _ ➳  अपने अपने अलौकिक पार्ट को बापदादा की आशीर्वादों से परिपूर्ण कर बापदादा के दिलतख्तनशींन बन गए हैं... *गुणों को देखा... सेवा को देखा... लेकिन दाता को नहीं भूले...* दाता के बच्चे दाता को ही देखते हैं... दाता के बच्चे दाता को छोड़ लेवता में अपनी शक्तियों को व्यर्थ नहीं करते हैं... *ईश्वरीय सेवा की विशेषता अज्ञान में नहीं हो सकती... ऐसी महान एडवांस पार्टी की सभी आत्माओं का श्रृंगार आज बापदादा अपने हाथों से कर रहे थे... बिना बाप का बने  व्यक्ति में सेवा का गुण या विशेषता आ ही नहीं सकती हैं...* सभी की विशेषताओ को रूहानी सभा में बापदादा संबोधित कर रहे थे और बाबा के यह महावाक्य सभी योगी... तपस्वी आत्माओं तक... विश्व के सभी सेंटर तक... पहुँच रहे थे...

➳ _ ➳  *ज्ञान भरने वाला कौनबाप... सेवा की विशेषता में चार चांद लगाने वाला कौन ? बाप... व्यक्ति के सेवा की विशेषता का दाता कौनबाप...*  जब सब कुछ एक बाप का ही दिया हुआ हैं तो बुद्धि सिर्फ एक बाप में ही तो लगानी हैं... *सच्ची सच्ची राधाओं का रूहानी मेला* देखकर मैं आत्मा अपने आप को सच्ची राधा बनाने के रास्ते पर चल पड़ी हूँ... *सेवा को देखती... सेवाधारियों को नहीं... सेवा की विशेषता को देखती... व्यक्ति की विशेषता को नहीं...* और मैं आत्मा राधा बनने की कतार में पहली खड़ी हूँ... संगमयुग में बापदादा से सतयुगी स्वराज्य का राजतिलक लगा रही हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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