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 02 / 11 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अमृतवेले उठ ज्ञान सागर के ज्ञान का मनन किया ?*

 

➢➢ *"हमने इश्वर की गोद ली है और फिर देवताई गोद में जायेंगे" - इसी रूहानी नशे में रहे ?*

 

➢➢ *हर आत्मा के सम्बन्ध संपर्क में आते सब प्रश्नों से पार रहे ?*

 

➢➢ *अपने नयनो में बिंदु रूप बाप को समाया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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〰✧  *ब्रह्मा बाप से प्यार है तो प्यार की निशानियां प्रैक्टिकल में दिखानी है।* जैसे ब्रह्मा बाप का नम्बरवन प्यार मुरली से रहा जिससे मुरलीधर बना। तो जिससे ब्रह्मा बाप का प्यार था और अभी भी है उससे सदा प्यार दिखाई दे। *हर मुरली को बहुत प्यार से पढ़कर उसका स्वरूप बनना है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं विश्व रचता बाप की श्रेष्ठ रचना हूँ"*

 

  सदा अपने को विश्व-रचता बाप की श्रेष्ठ रचना अनुभव करते हो?  जीवन अर्थात् विश्व-रचता की श्रेष्ठ रचना। हर डायरेक्ट बाप की रचना हैं - यह नशा है? दुनिया वाले तो सिर्फ अन्जान बनके कहते हैं कि हमको भगवान ने पैदा किया है। *आप सभी भी पहले अन्जान होकर कहते थे लेकिन अभी जानते हो कि हम शिववंशी ब्रह्माकुमार-कुमारी हैं। तो अभी ज्ञान के आधार से, समझ से कहते हो कि हमको भगवान ने पैदा किया है, हम मुख वंशावली हैं।* 

 

  *डायरेक्ट बाप ने ब्रह्मा द्वारा रचना रची है। तो बापदादा वा मात-पिता की रचना हो। डायरेक्ट भगवान की रचना - यह अभी अनुभव से कह सकते हो। तो भगवान की रचना कितनी श्रेष्ठ होगी! जैसा रचयिता वैसी रचना होगी ना। यह नशा और खुशी सदा रहती है?* अपने को साधारण तो नहीं समझते हो? यह राज जब बुद्धि में आ जाता है तो सदा ही रुहानी नशा और खुशी चेहरे पर वा चलन में स्वत: ही रहती है।

 

  *आपका चेहरा देखकर के किसको अनुभव हो कि सचमुच यह श्रेष्ठ रचता की रचना हैं। जैसे राजा की राजकुमारी होगी तो उसकी चलन से पता चलेगा कि यह रायल घर की है। यह साहूकार घर की या यह साधारण घर की है। ऐसे आपके चलन से, चेहरे से अनुभव हो कि यह ऊंची रचना है, ऊंचे बाप के बच्चे हैं!*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  सदा अपने को जैसे बाप न्यारा और प्यारा है, ऐसे न्यारे और प्यारे अनुभव करते हो? बाप सबका प्यारा क्यों है? क्योंकि न्यारा है। *जितना न्यारा बनते हैं उतना सर्व का प्यारा बनते हैं।* न्यारा किससे? पहले अपनी देह की स्मृति से न्यारा।

 

✧  जितना देह की स्मृति से न्यारा होगे उतने बाप के भी प्यारे और सर्व के भी प्यारे होंगे। क्योंकि न्यारा अर्थात आत्मा-अभिमानी। जब बीच में देह का भान आता है तो प्यारा-पन खत्म हो जाता है।

 इसलिए *बाप समान सदा न्यारे और सर्व के प्यारे बनो, आत्मा रूप में किसको भी देखेंगे तो रूहानी प्यार पैदा होगा ना।*

 

✧  और देहभान से देखेंगे तो व्यक्त भाव होने के कारण अनेक भाव उत्पन्न होंगे - कभी अच्छा होगा, कभी बुरा होगा। लेकिन *आत्मिक भाव में, आत्मिक दृष्टि में, आत्मिक वृति में रहने वाला जिसके भी सम्बन्ध में आयेगा अति प्यारा लगेगा।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  जब हरेक की नेचर बदले तब आप लोगों के अव्यक्ति पिक्चर्स बनेंगे। *संगमयुग की सम्पूर्ण स्टेज की पिक्चर क्या है? (फ़रिश्ते)* फ़रिश्ते में क्या विशेषता होती है? एक तो बिल्कुल हल्कापन होता है। हल्कापन होने के कारण जैसी भी परिस्थिति हो वैसी अपनी स्थिति बना सकेंगे। जो भारी होते हैं वह कैसी भी परिस्थिति में अपने को सेट नहीं कर सकेंगे।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺  *"ड्रिल :-  मनुष्य को देवता बनाने की सर्विस करना"*

 

_ ➳  मैं आत्मा बादलों के विमान में बैठ बापदादा के साथ पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगा रही हूँ... बाबा के साथ सूरज, चाँद, सितारों, आसमान की सैर करते हुए आनंद की लहरों में डोल रही हूँ... परमधाम, सूक्ष्मवतन से होते हुए हम विश्व के गोले के ऊपर बैठ जाते हैं... *बापदादा सारे विश्व की प्यासी, दुखी आत्माओं, तमोप्रधान प्रकृति को दिखाकर मुझे विश्व सेवा करने की शिक्षाएं देते हैं...*

 

   प्यारे बाबा सबका कल्याण कर अन्धो की लाठी बनने के लिए प्रेरित करते हुए कहते है:- "मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की तरहा विश्व कल्याण की भावना से भर जाओ... *जो मीठे सुख जो खुशियां आपके जीवन में महकी है उन्हें सबके दिल आँगन में खिला आओ... सारा विश्व सच्ची खुशियो में खिलखिलाये और हर मन मीठा मुस्कराये ऐसी रूहानी सेवा करते रहो..."*

 

_ ➳  ज्ञान के प्रकाश को स्वयं में भरकर चारों ओर ज्ञान की रोशनी फैलाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा आप समान सबको सुखी और ईश्वरीय वर्से का अधिकारी बना रही हूँ... सबको सच्चे सुख का रास्ता दिखाने वाली मा सुखदाता हो गई हूँ...* ज्ञान के प्रकाश से हर दिल की राहे रौशन कर रही हूँ..."

 

   पतित पावन मीठे बाबा पवित्रता की किरणों से मुझे चमकाते हुए कहते हैं:- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे...  *दिन रात सदा सबके कल्याण के ख्यालातों में मगन रहो... स्वयं भी व्यर्थ से मुक्त रहेंगे और सबके जीवन को सुनहरे सुखो से सजाने वाले... विश्व कल्याणकारी बन मीठे बापदादा के दिल तख्त पर इठलायेंगे...* और खुबसूरत भाग्य के धनी बन जायेंगे..."

 

_ ➳  दिन रात अपनी बुद्धि में सर्विस के खयालातों को भरकर मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपसे पायी खुशियो की दौलत को हर दिल पर लुटा रही हूँ... *सच्चे ज्ञान की झनकार से हर दिल में सुख की बहार सजा रही हूँ... सबका जीवन खुशियो से खिल रहा है और पूरा विश्व मीठा मुस्करा रहा है..."*

 

   विश्व कल्याण का झंडा मेरे हाथों में सौंपते हुए मेरे बाबा कहते हैं:- "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता के सहयोगी बनने वाले और सबके जीवन को नूरानी बनाने वाले महा भाग्यशाली हो... *सच्चे सहारे होकर, सबको इन मीठी खुशियो का पैगाम देते जाओ... ज्ञान के तीसरे नेत्र से सबकी जिंदगी में उजाला कर सुखो का पता दे आओ..."*

 

_ ➳  मैं विश्व कल्याणी फरिश्ता पूरे विश्व और प्रकृति को सर्व गुणों और शक्तियों की साकाश देते हुए कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... *मैं आत्मा ईश्वरीय सेवा धारी बनकर अपने महान भाग्य पर मुस्करा उठी हूँ...* कभी अपने ही गमो में रोने वाली, आज धरा से दुःख के आँसू का सफाया कर रही हूँ... *चारो ओर खुशहाली और आनन्द के फूल खिलाने वाली खुबसूरत माली हो गई हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- एक की अव्यभिचारी याद में रहना है*"

 

_ ➳  अपनी सम्पूर्ण सतोप्रधान स्टेज को स्मृति में लाते ही मैं आत्मा स्वयं को अपने अनादि स्वरूप में परमधाम में देख रही हूँ। यहां मैं अपनी सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था में अपने शिव पिता के सम्मुख हूँ। *सातों गुणों और सर्वशक्तियों से मैं आत्मा सम्पन्न हूँ। हर प्रकार के कर्म के बंधन से मुक्त हूँ*। अपनी इसी अशरीरी स्थिति में अपने स्वीट साइलेन्स होम परमधाम को छोड़, साकारी लोक में आ कर, शरीर धारण कर इस सृष्टि रूपी कर्म क्षेत्र पर कर्म करने के लिए मैं अवतरित होती हूँ।

 

_ ➳  एक - एक करके मुझे अपनी सारी अवस्थाओं की स्मृति आ रही है। मैं देख रही हूँ स्वयं को पहले - पहले नई सतोप्रधान दुनिया सतयुग में। यहां मैं आत्मा सम्पूर्ण सतोप्रधान हूँ। *मेरा निर्विकारी सम्पूर्ण देवताई स्वरूप बहुत ही आकर्षणमय है। धीरे - धीरे त्रेता युग मे मैं आत्मा सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था से सतो में आ गई इसलिए मुझ आत्मा की आकर्षण शक्ति में थोड़ी सी गिरावट आ गई*। मुझ आत्मा की चमक थोड़ी फीकी पड़ गई। द्वापर युग में आ कर, विकारों की प्रवेशता ने मुझ आत्मा को रजो अवस्था मे पहुंचा दिया। यहां आ कर मुझ आत्मा की चमक बिल्कुल ही फीकी पड़ गई। कलयुग तक आते - आते मैं आत्मा तमो और कलयुग अंत तक आते - आते बिल्कुल ही तमोप्रधान हो गई।

 

_ ➳  सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था मे सोने के समान चमकने वाली मैं आत्मा तमोप्रधान हो जाने से लोहे के समान काली हो गई। किन्तु अब संगमयुग पर मेरे शिव पिता परमात्मा ने आ कर ज्ञान और योग सिखलाकर मुझे तमोप्रधान से दोबारा सतोप्रधान बनने का सहज उपाय बता दिया। *अब मैं जान गई हूँ कि मेरे शिव पिता परमात्मा की अव्यभिचारी याद ही मुझे तमोप्रधान से सतोप्रधान बना सकती है। इसलिए आत्मा के ऊपर चड़ी विकारों की कट को उतारने और स्वयं को सतोप्रधान बनाने के लिए मैं अपने शिव पिता परमात्मा की अव्यभिचारी याद में अपने मन बुद्धि को एकाग्र कर, अशरीरी हो कर बैठ जाती हूँ* और अगले ही पल इस नश्वर देह का त्याग कर निराकारी ज्योति बिंदु आत्मा बन उड़ चलती हूँ अपने शिव पिता परमात्मा के पास।

 

_ ➳  अब मैं देख रही हूं स्वयं को परमधाम में अपने निराकार शिव पिता परमात्मा के बिल्कुल पास। यहां मैं अपने प्यारे, मीठे शिव बाबा से आ रही सातों गुणों की सतरंगी किरणों और सर्वशक्तियों को स्वयं में भरपूर कर रही हूँ। *साथ ही साथ योग अग्नि में अपने विकर्मों को भी दग्ध कर रही हूं। बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की ज्वाला स्वरूप किरणें जैसे - जैसे मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं वैसे - वैसे मुझ आत्मा पर चढ़ी विकारों की कट जल कर भस्म हो रही है और मेरा स्वरूप फिर से सच्चे सोने के समान चमकदार हो रहा है*। विकारों की खाद निकल रही है और मैं आत्मा तमोप्रधान से दोबारा अपनी सतोप्रधान अवस्था को प्राप्त कर रही हूँ।

 

_ ➳  स्वयं को योग अग्नि में तपाकर, रीयल गोल्ड समान चमकदार बन कर अब मै आत्मा वापिस साकारी लोक में लौट रही हूँ और अपने साकारी तन में आ कर अब मैं *ब्राह्मण स्वरुप में स्थित हो कर एक बाप की अव्यभिचारी याद में रह, स्वयं को सतोप्रधान बनाने का पुरुषार्थ कर रही हूँ*। पिछले अनेक जन्मों के आसुरी स्वभाव संस्कार जो आत्मा  को तमोप्रधान बना रहे थे वे सभी आसुरी स्वभाव संस्कार बाबा की अव्यभिचारी याद में रहने से परिवर्तन हो रहें हैं। क्योकि *बाबा की याद मेरे अंदर बल रही है जिससे पुराने स्वभाव संस्कारों को बदलना सहज हो रहा है*।

 

_ ➳  इस बात को अब मैं सदैव स्मृति में रखती हूँ कि मैं आत्मा जिस सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था मे आई थी अब उसी सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था मे मुझे वापिस अपने धाम लौटना है। *इसलिए अब केवल एक बाप की अव्यभिचारी याद में ही मुझे रहना है क्योंकि मेरे शिव पिता परमात्मा की अव्यभिचारी याद ही मुझे उसी सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था तक ले जाएगी*। इसी स्मृति में निरन्तर रह कर अब मैं आत्मा किसी भी देहधारी के नाम रूप में ना फंस कर, केवल पतित पावन अपने परम पिता परमात्मा की अव्यभिचारी याद में रह स्वयं को सतोप्रधान बना रही हूं।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं हर आत्मा के सम्बन्ध - सम्पर्क में आते सब प्रश्नों से पार रहने वाली सदा प्रसन्नचित आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपने नयनों में बिंदु रूप बाप को समा कर और कोई को नहीं समाने वाली सहजयोगी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳ *कुछ भी होबाप साथ हैमूंझने की क्या बात है। कनफ्यूज़ होने की क्या बात है। बाप के साथ का सहयोग लो, अकेले समझते हो तो मौज के बजाए मूंझ जाते हो।* तो मूंझना नहीं। ठीक है ना? अभी भी मूंझेंगे। (नहीं) अभी नहीं मूंझ रहे होमौज में हो इसलिए कहते हो कि नहीं मूंझेंगे! *कुछ भी हो जाए लेकिन मौज नहीं जाए।* ठीक है ना या मौज चली जायेगी? मौज नहीं जानी चाहिए। *सेवा का बल है तो उस बल को कार्य में लगाओ। सिर्फ सेवा नहीं करो लेकिन सेवा का बल जो बाप से मिलता हैउसको काम में लगाओ।* सिर्फ सेवा कर रहे हैंसेवा कर रहे हैं तो थक जाते होमूंझ भी जाते हो लेकिन बाप के साथ का अनुभव *जहाँ बाप है वहाँ मौज ही मौज है। तो साथ को इमर्ज करो, सुनाया ना - याद करते हो लेकिन साथ को यूज नहीं करते, इसीलिए मूंझ जाते हो*।

 

 _ ➳  संगमयुग मौजों का युग है या मूंझने का युग हैमौज का है तो फिर मूंझते क्यों हो? *अभी अपने जीवन की डिक्शनरी से मूंझना शब्द निकाल दो।* निकाल लियापक्का। या थोड़ा-थोड़ा दिखाई देगाएकदम मिटा दो। *परमात्मा के बच्चे और मौज में नहीं रहे तो और कौन रहेगा* और कोई है क्यातो सदा मौज ही मौज है। सभी अपनी ड्युटी पर खुश होया थोड़ा-थोड़ा ड्युटी में खिटखिट है? *कुछ भी हो जाएयह पेपर पास करना है। बात नहीं हैपेपर है। तो पेपर पास करने में खुशी होती है ना। क्लास आगे बढ़ते हैं ना! तो बात हो गईसमस्या आ गई यह नहीं सोचो। पेपर आया पास हुआ, मौज मनाओ।* जब बच्चे पेपर पास करके आते हैं तो कितने मौज में होते हैंमूंझते हैं क्या! *यह पेपर तो आयेंगे। पेपर ही अनुभव में आगे बढ़ाते हैंइसलिए सदा मौज में रहने वाले। सेवाधारी नहीं लेकिन मौज में रहने वाले। सदा यह अपना टाइटल याद करो।*

 

✺   *ड्रिल :-  "बाप के साथ से मूंझना शब्द डिक्शनरी से निकाल देना"*

 

 _ ➳  संगमयुग पर मैं ब्राह्मण आत्मा... अपने भाग्य को देख देख हर्षित हो रही हूं... *वाह वाह रे आत्मा* इसी नशे इसी मस्ती में अपने मन मंदिर में बाबा को देखती हूं... *मन मग्न अवस्था में दिलाराम बाबा के हाथों में हाथ दे रूहानी मस्ती में हूं और गा रही हूं:- "मेरे बाबा हैं साथ मेरे बाबा हैं साथ..."*

 

 _ ➳  *तभी देखती हूं कि कुछ ब्राह्मण आत्मायें कन्फ्यूज हैं... "ये ऐसा क्यों, कैसे" से झूझ रही हैं... इसीलिए उदास हैं... माया के द्वारा बार बार कई तरह के पेपर आ रहे हैं...* परिस्थितियों के पहाड़ सामने खड़े हैं, वो उन्हें पार करने की कोशिश कर रही हैं, पर उन्हें पार नहीं कर पा रही... अपने ही बुने तानेबाने में उलझती जा रही हैं, मूँझ रही हैं... उनका यह हाल देख *मैं आत्मा उनके पास जाती हूं... और बाबा के महावाक्यों का गुँजन कर उन्हें समझाती हूँ:- "सब को ड्रामा समझ कर देखो तो पार हो जाएंगे, क्यों मूँझते हो...? ये तो पेपर हैं... जिन्हें पास करना बाबा के बच्चों के बाएं हाथ का खेल है... परमात्मा के बच्चे और उदास...? ये तो मौज में रहने के दिन है..."* पर मेरा गुंजन किसी को सुनाई नहीं दे रहा...

 

 _ ➳  *मैं आत्मा अपनी पूरी कोशिश कर रही हूं... ये क्या हो रहा है ? इनकी तकलीफ दूर क्यों नहीं हो रही...* ये सब मुझे सुन क्यों नहीं पा रहे...? तभी एकाएक एक लाइट सी कौंधती है... मुझमें जैसे एक स्पार्क सा होता है... ये मैं क्या कर रही हूं ! बाबा को बिना साथ लिए मैं सेवा करने चली थी... ना बाबा को साथ लिया, ना याद का, ना सेवा का बल भरा... *दिल से अपने दिलाराम बाबा को याद कर उनसे अपनी इस भूल के लिये माफ़ी मांगती हूं और देखती हूँ अब सबको मेरा रूहानी गुँजन सुनाई दे रहा है... बाबा को साथ ले मैं उड़ती पतंग बन उड़ने लगती हूं... अब मैं आत्मा नाचती, गाती, झूमती आकाश में उड़ सबको हिम्मत की, आशा की किरणें दे बल भर रही हूं... बाबा- अब से हम सब आत्माओं की डिक्शनरी में ये मूँझना शब्द नहीं होगा...* कभी नहीं होगा... कभी भी नहीं होगा...

 

 _ ➳  *अब सब आत्मायें बाबा को अंग संग ले खुशी खुशी मौज मस्ती में, ऊंची नीची बातों को खिटपिट को हँसते हँसते सहन कर रही हैं... और साथ साथ गुनगुना भी रही हैं:- "मेरे बाबा हैं साथ मेरे बाबा हैं साथ"* मुझ आत्मा संग सभी मेरे आत्मा भाई भी इस रूहानी मस्ती में रंग गए हैं... अब सभी आत्मायें किसी भी पेपर में मूँझ नहीं रहीं हैं... *परमात्म बल से स्वयं को भर अपने अगले पेपर की तैयारी कर रही हैं... और गा रही हैं:- "हंसते हंसते कट जाएं रस्ते, खुशी मिले या ग़म बदलेंगे ना हम दुनिया चाहे बदलती रहे...*"

 

 _ ➳  *कितना प्यारा है ये अनुभव... सभी आत्मायें अपने को चढ़ती कला में अनुभव कर रही हैं...* सबके मुख मंडल रूहानी मौज मस्ती से सरोबार हैं... *"बारम्बार शुक्रिया मेरे बाबा, मीठे बाबा"- यह कहते कहते सभी आत्मायें अपनी रूहानी ड्यूटी पर पहुँच रही हैं...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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