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 09 / 04 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बाप के आज्ञाकारी, वफादार बनकर आशीर्वाद लेने के पात्र बनकर रहे ?*

 

➢➢ *धरमराज की सजाओ का डर रखा ?*

 

➢➢ *स्वचिन्तन और स्वदर्शन द्वारा हीरे समान अमूल्य जीवन का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *विचित्र बाप के चित्र और चरित्र को याद किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  प्रयोगी आत्मा संस्कारों के ऊपर, प्रकृति द्वारा आने वाली परिस्थितियों पर और विकारों पर सदा विजयी होगी। *योगी वा प्रयोगी आत्मा के आगे ये पांच विकार रूपी सांप गले की माला अथवा खुशी में नाचने की स्टेज बन जाते हैं।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं सहजयागी आत्मा हूँ"*

 

✧  सभी सहजयोगी आत्मायें हो ना। *सदा बाप के सर्व सम्बन्धों के स्नेह में समाये हुए। सर्व सम्बन्धों का स्नेह ही सहज कर देता है। जहाँ स्नेह का सम्बन्ध है वहाँ सहज है। और जो सहज है वह निरंतर है।* तो ऐसे सहजयोगी आत्मा बाप के सर्व स्नेही सम्बन्ध की अनुभूति करते हो? ऊधव के समान हो या गोपियों के समान? ऊधव सिर्फ ज्ञान का वर्णन करता रहा। गोप-गोपियाँ प्रभु प्यार का अनुभव करने वाली।

 

  *तो सर्व सम्बन्धों का अनुभव यह है विशेषता। इस संगमयुग में यह विशेष अनुभव करना ही वरदान प्राप्त करना है। ज्ञान सुनना सुनाना अलग बात है। सम्बन्ध निभाना, सम्बन्ध की शक्ति से निरंतर लगन में मगन रहना वह अलग बात है।*

 

*तो सदा सर्व सम्बन्धों के आधार पर सहयोगी भव। इसी अनुभव को बढ़ाते चलो। यह मगन अवस्था गोपगोपि यों की विशेष हैं। लगन लगाना और चीज है लेकिन लगन में मगन रहना यही श्रेष्ठ अनुभव हैं।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *अब मुख्य पुरुषार्थ यही करना है कि आवाज में आना जितना सहज है उतना ही आवाज से परे जाना सहज हो*। इसको ही सम्पूर्ण स्थिती के समीप की स्थिती कहा जाता है। जैसे बुद्धि से छोटा बिन्दु खिसक जाता है। ऐसे यह छोटा बिन्दु भी हाथ से खिसक जाता है।

 

✧   *जितना - जितना अपने देह से न्यारे रहेंगे उतना समय बात से भी न्यारे*। जैसे वस्त्र उतारना और पहनना सहज है कि मुश्किल? इस रीति न्यारे होंगे तो शरीर भान में आना, शरीर के भान से निकलना यह भी ऐसे लगेगा।

 

✧  *अभी - अभी शरीर का वस्त्र धारण किया, अभी - अभी उतारा*। मुख्य पुरुषार्थ आज इस विशेष बात पर करना है। जब यह मुख्य पुरुषार्थ करेंगे तब मुख्य रत्नों में आयेंगे। यह बिन्दी लगाना कितना सहज है। एसे ही बिन्दी रूप है जाना सहज है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *जैसे एक सेकंड में स्विच आन आफ किया जाता है, ऐसे ही एक सेकेण्ड में शरीर का आधार लिया और फिर एक सेकेण्ड में शरीर से परे अशरीरी स्थिति में स्थित हो सकते हो? अभी-अभी शरीर में आये, फिर अभी-अभी अशरीरी बन गये - यह प्रैक्टिस करनी है। इसी को ही कर्मातीत अवस्था कहा जाता है।* ऐसा अनुभव होगा। जब चाहे कोई कैसा भी वस्त्र धारण करना वा न करना - यह अपने हाथ मे रहेगा। आवश्यकता हुई धारण किया, आवश्यकता न हुई तो शरीर से अलग हो गये। ऐसे अनुभव इस शरीर रूपी वस्त्र में हो। *कर्म करते हुए भी अनुभव ऐसा ही होना चाहिए जैसे कोई वस्त्र धारण कर और कार्य कर रहे हैं। कार्य पूरा हुआ और वस्त्र से न्यारे हुए।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- माया के वश हो ईश्वरीय मत के विरुद्ध कोई कार्य नहीं करना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा अपने मन मंदिर में एक दिलाराम बाबा को बसाकर उड़ चलती हूँ तपस्या धाम में...* बाबा के सम्मुख बैठ बाबा को निहारती हुई सोचने लगती हूँ... की मीठे प्यारे बाबा परमधाम से पधारकर मुझे पढ़ा रहे हैं... अपनी श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ श्रीमत देकर नर से नारायण बना रहे हैं... मैं आत्मा विकारों के वश होकर माया के जाल में फंस गई थी... *प्यारे बाबा मुझे इस माया जाल से छुड़ाकर सतयुगी दुनिया का मालिक बना रहे हैं... मुझे चिन्तन में खोई हुई देख सामने बाबा मुस्कुराकर मीठी बच्ची कहते हुए रूह-रिहान करने लगते हैं...*

 

  *ज्ञान से समझदार बन हर कार्य करते हुए माया से सम्भाल करने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय गोद में जो खुबसूरत फूल बन मुस्कराये हो... माया की धूप से फिर न कुम्हलाना... *ईश्वरीय बुद्धि को पाकर जो समझदार बने हो.... माया की बेसमझी में फिर न फंस जाओइसका पूरा ख्याल रखो... हर कार्य श्रीमत का हाथ थामे हुए करो...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा ईश्वरीय मत के अनुसार अपना हर कदम रखते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके मीठे साये में कितनी प्यारी और दिव्य बुद्धि की मालिक बन मुस्करा उठी हूँ... *मेरा हर कदम श्रीमत प्रमाण है और मै आत्मा ईश्वरीय समझ लिए अथाह सुखो की अधिकारी बन गई हूँ...”*

 

  *मीठे बाबा अपने ज्ञान योग की किरणों का सुरक्षा कवच मुझे पहनाते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सच्चे ज्ञान को पाकर जो ज्ञानवान बने हो,तो हर संकल्प को श्रीमत की कसौटी पर परख लो... *अब माया के चंगुल और आकर्षण को दूर से पहचानने वाले दूरदृष्टि बनो... जिन कर्मो ने जीवन को दुखो का दलदल बना डाला हैउनसे स्वयं की सम्भाल करो...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा दिल की गहराईयों से प्राण प्यारे बाबा का शुक्रिया करते हुए कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपके बिनाविकारो से भरी मलिन बुद्धि से दारुण दुखो में भटक सी रही थी... *आपने प्यारे बाबा मेरा हाथ पकड़ करदुखो की गहरी खाई से बाहर निकाला है...* अब जीवन सुख की बगिया बन खिल उठा है...

 

  *संगम के वरदानी समय का महत्व समझाकर वरदानों से भरपूर करते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता के साथ का यह वरदानी समय अमूल्य है... *इस अनमोल समय को ईश्वरीय यादो से भरपूर कर अनन्त सुनहरे सतयुगी सुखो के अधिकारी बनो... हर साँस संकल्प को श्रीमत के साथ दिव्यता से भर लो...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा माया की विकारी नगरी से निकल बाबा के सत्य ज्ञान से अपने जीवन को खुशहाल बनाते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके सच्चे ज्ञान और प्यार में मनुष्य से देवताई बुद्धि वाली खुबसूरत आत्मा बन मुस्करा रही हूँ... *पापकर्मो की छाया से दूर होकरदिव्य जीवन को जीती हुई अनन्त खुशियो में लहरा रही हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- कभी कोई उल्टी चलन चल कर अपनी तकदीर को लकीर नही लगानी है*"

 

_ ➳  अपनी पलकों को मूंदे, परमात्म प्यार की मस्ती में डूबी, अपने प्यारे प्रभु की याद में मैं मग्न होकर बैठी हूँ और मन की आँखों से अनेक खूबसूरत दृश्य देख रही हूँ। *कभी अपने प्यारे प्रभु को नटखट कान्हा के रूप में अपने सँग रास करते हुए, कभी सखा के रूप में उनसे मीठी - मीठी रूह रिहान करते हुए, कभी उन्हें भोग स्वीकार कराते हुए और कभी उनके साथ सारे विश्व का भ्रमण करते हुए मै स्वयं को उनके साथ देख रही हूँ* और इन सभी दृश्यों का भरपूर आनन्द ले रही हूँ। ऐसे अपने प्यारे प्रभु के साथ अनेक खूबसूरत नजारों को देखती मैं मन ही मन अपनी श्रेष्ठ तकदीर के बारे में विचार कर हर्षित हो रही हूँ।

 

_ ➳  अपनी श्रेष्ठ तकदीर की श्रेष्ठ तस्वीर बनाने वाले अपने भाग्यविधाता भगवान बाप का मैं कोटि - कोटि शुक्रिया अदा करके, *अपने निराकार भगवान बाप से मंगल मिलन मनाने के लिए अब उनके समान स्वयं को अपने वास्तविक निराकारी स्वरूप में स्थित करती हूँ और चमकता हुआ सितारा बन देह की कुटिया से बाहर निकल खुले आसमान की ओर चल पड़ती हूँ*। मन बुद्धि के दिव्य चक्षु से मैं देख रही हूँ मस्तक से निकलती एक जगमग करती ज्योति को जो अपने प्रकाश की किरणें चारों ओर फैलाती हुई, अपने प्यारे प्रभु की प्रेम की लगन में मग्न उनसे मिलन मनाने के लिये, हर विघ्न को पार कर, ऊपर की ओर बस उड़ती ही जा रही है।

 

_ ➳  रॉकेट से भी तेज उड़ान भरकर मैं आत्मा सेकेण्ड में आकाश को पार कर, उससे भी उपर उड़ते हुए सूक्ष्म वतन से होती हुई अपनी निराकारी दुनिया मे प्रवेश करती हूँ। *चमकते सितारों की यह निराकारी दुनिया जो मेरे पिता का घर है, अपने इस घर में आकर मैं डीप साइलेन्स की गहन अनुभूति में खो जाती हूँ*। गहन शांति का अनुभव करते हुए अब मैं पहुँच जाती हूँ सर्वगुणों, सर्वशक्तियों के सागर अपने शिव पिता के पास जिनसे आ रही सर्वगुणों और सर्वशक्तियों की शीतल फुहारें मन को शीतलता का अनुभव करवा कर अपनी और खींच रही हैं। *उन शीतल फ़ुहारों के नीचे बैठ गहन शीतलता का अनुभव करके, सर्वगुणों, सर्वशक्तियों से भरपूर होकर मैं आत्मा अब परमधाम से नीचे सूक्ष्म लोक में आ जाती हूँ*।

 

_ ➳  सूक्ष्म आकारी फरिश्तो की इस दुनिया मे आकर अपने लाइट के फ़रिश्ता स्वरूप को धारण कर अब मैं फरिश्ता अपने भाग्यविधाता भगवान बाप के पास पहुँचता है जो *अपने आकारी रथ पर विराजमान होकर मेरे सामने खड़े हैं और मेरे हाथ मे सर्वश्रेष्ठ भाग्य लिखने की कलम मुझे दे कर कह रहे है :- "लो बच्चे, इस कलम से जितना श्रेष्ठ भाग्य लिखना चाहो लिख लो"*। अपनी तकदीर की तस्वीर जैसी बनाना चाहो बना लो। भाग्य लिखने की कलम मेरे हाथ मे देकर  बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख कर "श्रेष्ठ भाग्यवान भव" का वरदान देते हुए मेरे मस्तक पर विजय का तिलक लगा रहे हैं और अपनी शक्तियों से मुझे शक्तिशाली भी बना रहे हैं। *अपनी लाइट माइट मुझे देते हुए बाबा अपनी शक्तियों का बल मेरे अंदर भरते जा रहें हैं*।

 

_ ➳  अपने भाग्यविधाता बाप से वरदान, सर्वशक्तियाँ और सर्वश्रेष्ठ भाग्य लिखने की कलम अपने साथ लेकर, अब मैं अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होकर सूक्ष्म लोक से नीचे आ जाती हूँ और साकार सृष्टि पर लौट कर, अपने साकार शरीर मे प्रवेश कर, भृकुटि पर आ कर विराजमान हो जाती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर अपने हर संकल्प, बोल और कर्म पर पूरा अटेंशन देते हुए अब मैं इस बात का विशेष ध्यान रखती हूँ कि ऐसा कोई भी विकर्म मुझ से न हो या ऐसी कोई भी उल्टी चलन मुझ से ना चली जाए* जिससे मेरी तकदीर को लकीर लग जाये।

 

_ ➳  *इसलिए हर कदम श्रीमत प्रमाण चलते हुए, अपने भाग्यविधाता भगवान बाप द्वारा मिली भाग्य की कलम से अपने भाग्य का निर्माण करने के लिए श्रेष्ठ पुरुषार्थ कर, अपनी तकदीर की श्रेष्ठ तस्वीर बना रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं स्वचिन्तन और स्वदर्शन द्वारा हीरे समान अमूल्य जीवन का अनुभव करने वाली बेदाग आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं विचित्र बाप के चित्र और चरित्र को याद कर चरित्रवान बनने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  अभी बापदादा सभी बच्चों को सदा निर्विघ्न स्वरूप में देखने चाहते हैं, क्यों? जब आप निमित्त बने हुए निर्विघ्न स्थिति में स्थित रहो तब विश्व की आत्माओं को सर्व समस्याओं से निर्विघ्न बना सके... इसके लिए *विशेष दो बातों पर अण्डरलाइन करो... करते भी हो लेकिन और अण्डरलाइन करो... एक तो हर एक आत्मा को अपने आत्मिक दृष्टि से देखो... आत्मा के ओरिजिनल संस्कार के स्वरूप में देखो...* चाहे कैसे भी संस्कार वाली आत्मा है लेकिन आपकी हर आत्मा के प्रति शुभ भावना, शुभ कामना, परिवर्तन कर सकती है... आत्मिक भाव इमर्ज करो...

 

 _ ➳  जैसे शुरू-शुरू में देखो तो संगठन में रहते आत्मिक दृष्टि, आत्मिक वृत्ति, आत्मा-आत्मा से मिल रही है, बात कर रही है, इस दृष्टि से फाउण्डेशन कितना पक्का हो गया... अभी सेवा के विस्तार में, सेवा के विस्तार के सम्बन्ध में आत्मिक भाव से चलना, बोलना, समपर्क में आना मर्ज हो गया है... खत्म नहीं हुआ है लेकिन मर्ज हो गया है... *आत्मिक स्वमान, आत्मा को सहज सफलता दिलाता है* क्योंकि आप सभी कौन आकर इकट्ठे हुए हो? वही कल्प पहले वाले देव आत्मायें, ब्राह्मण आत्मायें इकट्ठे हुए हो... *ब्राह्मण आत्मा के रूप में सभी श्रेष्ठ आत्मायें हो, देव आत्माओं के हिसाब से भी श्रेष्ठ आत्मायें हो...* उसी स्वरूप से सम्बन्ध-सम्पर्क में आओ...

 

 _ ➳  हर समय चेक करो - मुझ देव आत्मा, ब्राह्मण आत्मा का श्रेष्ठ कर्तव्य, श्रेष्ठ सेवा क्या है? 'दुआयें देना और दुआयें लेना'... आपके जड़ चित्र क्या सेवा करते हैं? कैसी भी आत्मा हो लेकिन दुआयें लेने जाते, दुआयें लेकर आते... और कोई भी अगर पुरुषार्थ में मेहनत समझते हैं तो *सबसे सहज पुरुषार्थ है, सारा दिन दृष्टि, वृत्ति, बोल, भावना सबसे दुआयें दो, दुआयें लो...*

 

✺   *ड्रिल :-  "निर्विघ्न स्थिति में स्थित रहने का अनुभव"*

 

 _ ➳  अपने स्वधर्म में स्थित हो कर, अपने प्राणेश्वर बाबा की याद में बैठ गहन शांति की अनुभूति करने के बाद, कुछ समय के लिए मैं जैसे ही अपनी आंखों को हल्के - हल्के बन्द करती हूँ, मैं स्वयं को एक बहुत बड़े मन्दिर में अपने ही दैवी स्वरूप में देखती हूँ... *अपना वरदानी हाथ ऊपर उठाये मैं सबकी मनोकामनाओं को पूर्ण कर रही हूँ... चाहे कैसी भी आत्मा मेरे सम्मुख आ रही है मैं सबको दुआयें देती जा रही हूँ...* अपने इस दैवी स्वरूप को देखते - देखते मैं जैसे ही अपने ब्राह्मण स्वरूप में वापिस लौटती हूँ... मेरे कानों में अव्यक्त बापदादा की आवाज सुनाई देती है:- "हर समय चेक करो - मुझ देव आत्मा, ब्राह्मण आत्मा का श्रेष्ठ कर्तव्य, श्रेष्ठ सेवा क्या है?

 

 _ ➳  अव्यक्त बापदादा के इन महवाक्यों को सुन इस बात पर अटेंशन देते हुए अब मैं अपनी चेकिंग करती हूँ कि क्या सारा दिन अपनी दृष्टि, वृत्ति, बोल, भावना से मैं सबको दुआयें देती और दुआयें लेती हूँ? *चेकिंग करते - करते मैं विचार करती हूँ कि आज दिन तक मेरे जड़ चित्रों का जो गायन है कि उनके सामने कैसी भी आत्मायें आएं लेकिन दुआयें लेने जाते, दुआयें लेकर आते हैं वो गायन तो तभी होगा जब अभी ब्राह्मण जीवन में वो कर्म होगा...* और यह तभी होगा जब मेरा ब्राह्मण जीवन निर्विघ्न होगा... इसलिए अब मुझे अपने इस ब्राह्मण जीवन को निर्विघ्न बनाने का ही पुरुषार्थ करना है...

 

 _ ➳  अपने आप से दृढ़ प्रतिज्ञा कर अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप से अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होती हूँ... अशरीरी बन बाबा की याद में बैठते ही मैं देह की दुनिया से किनारा कर, ज्ञान और योग के पंख लगाये *अपने निराकार शिव पिता परमात्मा की उस सुंदर सितारों की अद्भुत दुनिया की ओर चल पड़ती हूँ...* कुछ क्षणों की सुंदर, लुभावनी रूहानी यात्रा करके मैं पहुंच जाती हूँ उस अद्भुत दुनिया परमधाम में अपने प्यारे मीठे बाबा के पास... *संकल्पों विकल्पों की हलचल से दूर शांति के सागर बाप के सामने मैं आत्मा गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ...* मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं अपलक शक्तियों के सागर अपने बाबा को निहार रही हूँ...

 

 _ ➳  धीरे - धीरे अब मैं आत्मा अपने मीठे प्यारे बाबा की ओर बढ़ रही हूँ... उनके समीप पहुंच कर मैं जैसे ही उन्हें टच करती हूँ... *शक्तियों का झरना फुल फोर्स के साथ बाबा से निकल कर अब मुझ आत्मा में समाने लगता है... मेरा स्वरूप अत्यंत शक्तिशाली व चमकदार बनता जा रहा है...* मास्टर बीजरूप अवस्था में स्थित हो कर अपने बीज रूप परमात्मा बाप के साथ यह मंगलमयी मिलन मुझे अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करवा रहा है... परमात्म लाइट मुझ आत्मा में समाकर मुझे पावन बना रही है... मैं स्वयं में परमात्म शक्तियों की गहन अनुभूति कर रही हूँ...

 

 _ ➳  शक्ति स्वरुप बनकर अब मैं परमधाम से नीचे आ रही हूँ... अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, अपने इस जीवन मे निर्विघ्न स्थिति का अनुभव करने के लिए अब मैं निरन्तर आत्मिक स्मृति में रह, सबको आत्मिक दृष्टि से देखने का अभ्यास कर रही हूँ... *सबके साथ बातें करते उनके मस्तक में चमकती हुई आत्मा को ही अब मैं देख रही हूँ... यह सब भी शिव बाबा की अजर-अमर संताने हैं इसी समृति से अब मैं हर संबंध में आती हूँ...* मेरे सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली आत्मा चाहे कैसे भी स्वभाव संस्कार वाली  हो लेकिन आत्मिक भाव इमर्ज करके मैं सबके प्रति शुभ भावना, शुभ कामना रखते हुए उन्हें परिवर्तन करने का पुरुषार्थ कर रही हूँ...

 

 _ ➳  *चाहे लौकिक परिवार हो या अलौकिक ब्राह्मण परिवार हो, दोनों में ही आत्मिक दृष्टि, आत्मिक वृति के आधार पर परिवार की फाउंडेशन को मजबूत करके* मैं निर्विघ्न स्थिति में स्थित रहने का अनुभव अब सहज ही करते हुए निरन्तर आगे बढ़ रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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