━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 01 / 05 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *इस शरीर से डीटेच होने का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *भारत को सुप्रीम शांति में ले जाने की सेवा की ?*

 

➢➢ *सदा बाप समान बन अपने संपन्न स्वरुप द्वारा सर्व को वरदान दिए ?*

 

➢➢ *याद की तीव्र दौड़ी लगा बाप के गले का हार बनने का पुरुषार्थ किया ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  *तपस्वी अर्थात् सदा बाप की लगन में लवलीन, प्रेम के सागर में समाए हुए, ज्ञान, आनन्द, सुख, शान्ति के सागर में समाये हुए को ही कहेंगे तपस्वी।* ऐसे त्याग, तपस्या वाले ही सेवाधारी कहे जाते हैं।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   *"मैं बाबा की अति स्नेही और सहयोगी आत्मा हूँ"*

 

   सदा बाप की अति स्नेही, सहयोगी आत्मायें अनुभव करते हो? स्नेही की निशानी क्या होती है? जिससे स्नेह होता है उसके हर कार्य में सहयोगी जरूर होंगे। *अति स्नेही आत्मा की निशानी सदा बाप के श्रेष्ठ कार्य में सहयोगी होगी। जितना जितना सहयोगी, उतना सहजयोगी क्योंकि बाप के सहयोगी हैं ना। दिन-रात यही लग्न रहे-बाबा और सेवा, इसके सिवाए कुछ है ही नहीं। अगर लौकिक कार्य भी करते हो तो बाप की श्रीमत प्रमाण करते हो, इसलिए वह भी बाप का कार्य है।*

 

  *लौकिक में भी अलौकिकता ही अनुभ्व करेंगे, कभी लौकिक कार्य समझ न थकेगे, न फंसेंगे, न्यारे रहेंगे। तो ऐसे स्नेही और सहयोगी आत्मायें हो। न्यारे होकर कर्म करेंगे तो बहुत अच्छा कर्म होगा। कर्म में फंसकर करने से अच्छा नहीं होता, सफलता भी नहीं होती, मेहनत भी बहुत और प्राप्ति भी नहीं। इसलिए सदा बाप के स्नेह में समाई हुई सहयोगी आत्मायें हैं।* सहयोगी आत्मा कभी भी माया की योगी हो नहीं सकती, उसका माया से किनारा हो जायेगा।

 

  *हर संकल्प में 'बाबा' और 'सेवा', तो जो नींद भी करेंगे, उसमें भी बड़ा आराम मिलेगा, शान्ति मिलेगी, शक्ति मेलेगी। नींद, नींद नहीं होगी, जैसे कमाई करके खुशी में लेटे हैं। इतना परिवर्तन हो जाता है! 'बाबा-बाबा' करते रहो। बाबा कहा और कार्य सफल हुआ पड़ा है। क्योंकि बाप सर्वशक्तिवान है। सर्वशक्तिवान बाप की याद स्वत: ही हर कार्य को शक्तिशाली बना देती है।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  मास्टर आलमाइटी अथार्टी अपने को समझते हो? *जब आलमाइटी अथार्टी भी हो तो क्या अपनी बुद्धि की लगन को अथार्टी से जहाँ चाहो वहाँ नहीं लगा सकते?* अथार्टी के आगे यह अभ्यास मुश्किल है वा सहज है? जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियों को जब चाहो, जहाँ चाहो वहाँ लगा सकते हो ना। 

 

✧  अभी हाथ को ऊपर या नीचे करना चाहो तो कर सकते हो ना। *तो जैसे स्थूल में इन्द्रियों का मालिक बन जब कार्य में लगा सकते हो वैसे ही संकल्प को वा बुद्धि को जहाँ लगाने चाहो वहाँ लगा सकते हो इसको ही ईश्वरीय अथार्टी कहा जाता है।* जो बुद्धि की लगन भी ऐसे ही सहज जहाँ चाहो वहाँ लगा सकते हो जैसे स्थूल हाथ - पाँव को बिल्कुल सहज रीति जहाँ चाहो वहाँ चलाते हैं। वा कर्म में लगाते हैं। ऐसे अभ्यासी को ही मास्टर सर्वशक्तिवान वा मास्टर नाँलेजफुल कहा जाता है।

 

✧  अगर यह अभ्यास नहीं है तो मास्टर सर्वशक्तिवान वा नाँलेजफुल नहीं कह सकते। *नाँलेजफुल का अर्थ ही है जिसको फुल नाँलेज हो कि इस समय क्या करना है, क्या नहीं करना है। इससे क्या लाभ है, और न करने से क्या  हानी है।* यह नाँलेज रखने वाले ही नाँलेजफुल हैं और साथ - साथ मास्टर सर्वशक्तिवान होने कारण सर्व शक्तियों के आधार से यह अभ्यास सहज और निरंतर बन ही जाता है।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧  सभी स्वयं को कर्मातीत अवस्था के नजदीक अनुभव करते जा रहे हो? *कर्मातीत अवस्था के समीप पहुँचने की निशानी जानते हो? समीपता की निशानी समानता है।* किस बात में? आवाज में आना व आवाज से परे हो जाना साकार स्वरूप में कर्मयोगी बनना और साकार स्मृति से परे न्यारे निराकारी स्थिति में स्थित होना, सुनना और स्वरूप होना, मनन करना और मग्न रहना, रूह-रूहान में आना और रूहानियत में स्थित हो जाना, सोचना और करना, कर्मेन्द्रियों द्वारा प्राप्त हुए साधनों को स्वयं प्रति कार्य में लगाना और प्रकति के साधनों से समय प्रमाण निराधार होना, देखना, सम्पर्क में आना और देखते हुए न देखना, सम्पक में आते कमल-पुष्प् के समान रहना, इन सभी बातों में समानता। *उसको कहा जाता है - कर्मातीत अवस्था की समीपता।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- रूहानी सोशल वर्कर बन भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा करना"*

 

 _ ➳  इन भारत की वादियों में खुशबू से भरी वायु का वेग, मधुर संगीत सा प्रतीत हो रहा हैं, मुझ आत्मा को... अपने सातो रंगों का जैसे साक्षात्कार हो गया हैं... *मेरे रूहानी पिता ने जैसे मेरे रूहानी सोशल वर्कर के संस्कार को प्रत्यक्ष कर दिया है*... सारे विकार न जाने कहाँ भस्म हो गए... और मैं आत्मा खुद को एक रूहानी सोशल वर्कर के रूप मे इस भारत भूमि पर स्वर्ग स्थापन करता देख रही हूँ... *अब मैं आत्मा अपने पिता से रूह रिहान करने सूक्ष्म वतन पहुंचती हूँ...*

 

  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को देखकर मुस्कुराते हुए कहा:-* "मीठे सर्व गुणों से सम्पन्न प्यारे बच्चे... *शिव बाबा ने धरा पर आकर, आप बच्चों को एक एक कर बड़े प्यार से चुना हैं, ताकि तुम इस पवित्र भूमि भारत को फिर से स्वर्ग बना सको...* इस कार्य में परमपिता तुम्हारे साथ है...  तुम्हें योग्य बन, ये कार्य बड़ी परिपक्वता से करना है... मुस्कुराते हुए रूहानी सोशल वर्कर बन इस धरा पर स्वर्ग स्थापन करना है..."

 

 _ ➳  *मैं आत्मा अपने मीठे बाबा के ज्ञान को दिल मे बड़े प्यार से धारण करते हुए कहती हूँ:-* "मेरे मीठे मीठे बाबा... *मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ... कि स्वयम भगवान ने मुझे चुना हैं...  सारे विकर्मो को दग्ध कर मुझे मेरे पिता ने... इस भारत खंड को, एक रूहानी सोशल वर्कर बन... स्वर्ग बनाने का कार्य सौंपा हैं*... मैं आत्मा... रूहानियत से सराबोर होकर बाबा का कार्य करने का प्लान बाबा से मिलकर बना रही हूँ..."

 

  *प्यारे बाबा मुझे रूहानियत से भरपूर कर अपने प्यार में डुबोते हुए मुझ आत्मा से कहता हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे… *इस संगम युग में... इस वरदानी समय में... पिता के साथ मिलकर... दिव्यता औऱ पवित्रता से भरपूर होकर... सोशल वर्कर बनकर... इस भारत को स्वर्ग बनाने के निमित्त बनकर... तुम पूज्य बन रहे हो...* तुम इस सृष्टि का उद्धार कर रहे हो..."

 

 _ ➳  *मै आत्मा अपने भाग्य पर इतराती हुई कहती हूं:-* "मीठे बाबा... *मैं आत्मा तो स्वयम को भूली हुए थी, आपने संगम पर आ कर मुझे चुना*... मेरी रूहानी सोशल वर्कर की काबलियत को निखारा... मुझे दिव्यता का दान दिया, मुझ को अपनी छत्रछाया मे रखकर... इस भारत को स्वर्ग बनाने का कार्य दिया... *मेरा खोया हुआ स्वरूप लौटाया... मेरा खोया हुआ गौरव वापिस दिला कर मुझे पूज्य बना दिया..."*

 

  *मेरे मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सोशल रूहानी सर्विस देखकर...भारत भूमि को स्वर्ग बनाने के कार्य में अपना सहयोगी बनाते हुए कहा:-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... इस रूहानियत के कार्य में... *तुम ब्राह्मण बच्चे ही... इस धरा पर स्वर्ग लाने का कार्य कर सकते हो...* फिर आप ही रूहे गुलाब बन कर... दिव्यता व पवित्रता की दौलत का भरपूर भंडार बन कर, इस स्थापित किये गए स्वर्ग का राज्ये पाते हो..."

 

 _ ➳  *मै आत्मा बाबा के मुख से अपने लिए इतने उच्च महवाक्य सुनकर भावविभोर होकर दिल की गहराई से बाबा से कहती हूं:-* "मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा कांटो से फूल बन गईं आपकी गोद मे बैठकर... *आपने जो शक्तिओ, वरदानों से मुझ आत्मा को सवारा हैं... तभी तो मैं आत्मा इस धरती पर स्वर्ग स्थापना की निमित बन पा रही हूँ*... औऱ आपसे प्राप्त सभी देवताई सुखों का अधिकार प्राप्त कर रही हूँ... मीठे बाबा से बेहद की रुहानियत, प्यार, समझ लेकर... मैं आत्मा वापिस इस कर्म क्षेत्र पर आकर... भारत को स्वर्ग बनाने के कार्य मे पूरी लगन से जुट जाती हूं..."

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  इस शरीर से डिटैच हो बाप की याद में रहकर शक्ति लेनी है*"

 

_ ➳  इस वर्ड ड्रामा की स्टेज पर खड़े होकर मैं इस सृष्टि रूपी रंगमंच और इस सृष्टि नाटक में पार्ट बजाने वाले करोड़ो पार्टधारियों को देख रही हूँ। *इस 5000 वर्ष के सृष्टि ड्रामा में हर आत्मा अपना पार्ट बजाते - बजाते आज उस पड़ाव पर पहुँच गई है जहाँ इस वर्ड ड्रामा का एन्ड होकर फिर से इसकी पुनरावृति होने वाली है*। सृष्टि ड्रामा का सारा चक्र मेरी आँखों के सामने घूम रहा है। सभी आत्माओं की सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था से लेकर सम्पूर्ण तमोप्रधान अवस्था तक पहुँचने का सफर मैं दिव्य बुद्धि के नेत्र से देख रही हूँ।

 

_ ➳  सृष्टि के नए से पुराने होने के चक्र को देखते हुए मन ही मन मैं विचार करती हूँ कि देहभान ने आज हर मनुष्य आत्मा को कितना शक्तिहीन बना दिया है। *अपने स्वधर्म को भूल परधर्म को अपनाकर आज आत्मायें कितनी दुखी और अशांत हो चुकी है। इस शरीर को अपना मान कर इसके साथ ममत्व रखकर, अपने गुणों और शक्तियों को ही भूल गई हैं इसलिए कितनी निर्बल और असहाय बन पड़ी है*। बलिहारी मेरे प्यारे प्रभु की जिन्होंने आकर सत्यता का बोध करवाने वाला यह सत्य ज्ञान हम मनुष्य आत्माओं को दिया।

 

_ ➳  परधर्म को छोड़ अर्थात देह से डिटैच हो कर, अशरीरी बन, अपने स्वधर्म में स्थित होकर, अपने प्यारे प्रभु को याद करके अपनी खोई हुई शक्ति को पुनः प्राप्त करने का बाबा ने कितना सहज रास्ता बताकर जैसे हर मुश्किल को आसान कर दिया है। *यही चिंतन करते, मन ही मन अपने प्यारे प्रभु का धन्यवाद करके, स्वयं को मैं अशरीरी में स्थित करती हूँ और स्वयं को देह से डिटैच निराकारी ज्योति बिंदु आत्मा निश्चय कर, अपनें मन और बुद्धि को अपने निराकार शिव पिता की याद में स्थिर कर लेती हूँ*।

 

_ ➳  मन बुद्धि की तार परमधाम निवासी मेरे प्यारे पिता के साथ जुड़ते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे परमधाम से सर्वशक्तिवान मेरे शिव पिता से समस्त शक्तियों की एक तेज लाइट मेरे मस्तक के ऊपर पड़ रही है और उस लाइट से निकल रहा करेन्ट मेरे अंदर नव शक्ति का संचार कर रहा है। *एक अनोखी शक्ति मेरे अंदर भरती जा रही है जो मुझे शक्तिशाली बनाने के साथ - साथ एक दम लाइट स्थिति में स्थित कर रही है*। स्वयं को एकदम हल्का अनुभव करते हुए मैं आत्मा अब अपने आप ही ऊपर की ओर उड़ने लगी हूँ। *देह और देह की दुनिया का आकर्षण जैसे पीछे छूटता जा रहा है और मैं बस एक पतंग की भांति अपने आप उस तरफ उड़ती जा रही हूँ जिसकी डोर बाबा के हाथ मे है और बाबा उसे अपनी ओर खींच रहें हैं*।

 

_ ➳  अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों के आगोश में लेकर, आंधी, तूफान आदि सबसे मुझे बचाते हुए मेरे प्यारे पिता मुझे मेरे स्वीट साइलेन्स होम में पहुँचा देते हैं। *अपने इस शान्तिधाम घर में आकर, मन बुद्धि से सब कुछ भूल, निरसंकल्प होकर अब मैं केवल स्वयं को और अपने प्यारे प्रभु को निहार रही हूँ*। उनकी एक - एक किरण को बड़े प्यार से निहारते हुए, उन्हें छूने की मन में आश लिए मैं धीरे - धीरे उनके पास जाने के लिए आगे बढ़ रही हूँ। जैसे मोर अपने पंख जब फैलाता है तो उसका सौंदर्य देखने वाले का मन मोह लेता है ऐसे ही *बाबा की सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे चारों ओर फैलकर, मन को लुभाते हुए अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं*।

 

_ ➳  बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की किरणों से निकल रहे वायब्रेशन मन को एक अति सुखद अनुभूति करवा रहें हैं। एक गहन सुकून का अनुभव करते, धीरे - धीरे आगे बढ़ते हुए मैं अपने प्यारे पिता के बिल्कुल समीप पहुँच कर अब उनकी किरणों को स्पर्श करती हूँ। *ये छुयन एक शक्तिशाली करन्ट की तरह मेरे रोम - रोम को पुलकित कर देती हैं और एक अद्भुत शक्ति से मुझे भर देती है*। बार -बार अपने सर्वशक्तिवान पिता की एक - एक शक्ति की अनन्त किरणों को छू कर, हर शक्ति से भरपूर होकर, मैं वापिस साकार सृष्टि पर लौट आती हूँ।

 

_ ➳  *फिर से वर्ल्ड ड्रामा की स्टेज पर अपना पार्ट बजाते हुए, शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते, बीच - बीच में शरीर से डिटैच होकर, बाबा की याद में बैठ, बाबा से शक्ति लेकर, स्वयं को सदा एनर्जेटिक महसूस करते हुए, अपने लौकिक और अलौकिक सभी कर्तव्यों को मैं अब बड़ी सहजता से खुशी - खुशी पूरा कर रही हूँ*।

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सदा बाप समान बन अपने सम्पन्न स्वरूप द्वारा सर्व को वरदान देने वाली वरदानी मूर्त आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं याद की तीव्र दौड़ी लगाकर बाप के गले का हार, विजयी मणके बन जाने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  ‘‘आज बापदादा अपने पावन बच्चों को देख रहे हैं। हरेक ब्राह्मण आत्मा कहाँ तक पावन बनी है - यह सबका पोतामेल देख रहे हैं। *ब्राह्मणों की विशेषता है ही पवित्रता'। ब्राह्मण अर्थात् पावन आत्मा। पवित्रता को कहाँ तक अपनाया है, उसको परखने का यन्त्र क्या है? ‘‘पवित्र बनो'', यह मन्त्र सभी को याद दिलाते हो लेकिन श्रीमत प्रमाण इस मन्त्र को कहाँ तक जीवन मे लाया है?* जीवन अर्थात् सदाकाल। जीवन में सदा रहते हो ना! तो जीवन में लाना अर्थात् सदा पवित्रता को अपनाना। इसको परखने का यन्त्र जानते हो?

 

✺  *"ड्रिल :- अपनी चेकिंग कर सदा पवित्रता को अपने जीवन में अपनाना”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा सागर के किनारे प्यारे बाबा का हाथ पकड़ मॉर्निंग वाक कर रही हूँ...* ठंडी-ठंडी हवाएं चल रही हैं... सागर की लहरें हमारे पैरों को भीगो रहे हैं... *लग रहा है जैसे सागर की लहरें भी प्यारे बाबा का कोमल स्पर्श पाकर ख़ुशी से लहरा रहे हों...* ठंडी हवाएं बाबा को छूकर ख़ुशी में झूम रही हों... मैं आत्मा भी बाबा का हाथ और जोर से पकड़ उनके मुलायम मखमली स्पर्श से ख़ुशी की अनुभूति कर रही हूँ... *मेरे प्राणों से प्यारे बाबा सतगुरु बन मुझ आत्मा को पवित्रता की विशेषताओं को समझाकर सम्पूर्ण पवित्र बनने की शिक्षा दे रहे हैं...* सतगुरु बाबा मुझ आत्मा को पवित्र बनो, योगी बनो का मन्त्र देते हैं...

 

_ ➳  मैं आत्मा चेकिंग करती हूँ कि क्या मैं पवित्रता को सदा अपने जीवन में अपनाती हूँ या कभी-कभी... *मैं आत्मा अपनी सूक्ष्म चेकिंग कर दिनचर्या को परखती हूँ...* क्या मैं आत्मा सदा सुख-शांति की अनुभूति करती हूँ या बीच-बीच में क्यों, क्या, कैसे के क्वेश्चन्स में फंसकर दुःखी-अशांत हो जाती हूँ... *अगर दुःख-अशांति का अनुभव करती हूँ अर्थात सम्पूर्ण पवित्रता की धारणा नहीं हुई है...*

 

_ ➳  *मैं आत्मा संसार सागर से ऊपर उड़ते हुए पहुँच जाती हूँ परमधाम में पवित्रता के सागर के पास...* मैं आत्मा पवित्रता के सागर में गोते खा रही हूँ... *पवित्रता के सागर से निकलती किरणें मुझ आत्मा के अन्दर तक समा रहे हैं...* मुझ आत्मा से विकारों रूपी मैल बाहर निकल रहा है... मुझ आत्मा की सारी अशुद्धता खत्म हो रही है... मैं आत्मा शुद्ध पवित्र बन रही हूँ... मैं आत्मा पवित्रता की शक्ति को धारण कर रही हूँ...

 

_ ➳  *अब मैं आत्मा श्रीमत प्रमाण पवित्रता की शक्ति पर चलती हूँ... मैं आत्मा हर क्यों, क्या, कैसे के सवालों से परे रहती हूँ...* मैं आत्मा पवित्रता की शक्ति को धारण कर स्मृति स्वरुप बन गई हूँ... मुझ आत्मा को फिर से उस विषय सागर में वापस नहीं जाना है... *मुझे तो पवित्र बन अपने घर वापस जाना है...* मैं आत्मा सदा पवित्र बनो, योगी बनो के मन्त्र की स्मृति में रहती हूँ... *अब मैं आत्मा पवित्रता को सदाकाल के लिए अपने जीवन में अपनाकर सुख-शांति की अनुभूति कर रही हूँ...*

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━