━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 11 / 09 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अन्दर के अवगुणों की जाँच की ?*
➢➢ *भूतों को बाप की याद से भगाया ?*
➢➢ *सहज विधि द्वारा विधाता को अपना बनाया ?*
➢➢ *स्वयं से, सेवा से, सर्व से संतुष्टता का सर्टिफिकेट लिया ?*
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ *मैजॉरिटी भक्तों की इच्छा सिर्फ एक सेकेण्ड के लिये भी लाइट देखने की है, इस इच्छा को पूर्ण करने का साधन आप बच्चों के नयन हैं।* इन नयनों द्वारा बाप के ज्योतिस्वरुप का साक्षात्कार हो। *यह नयन, नयन नहीं दिखाई दें लाइट का गोला दिखाई दे।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✺ *"मैं सहजयोगी, कर्मयोगी आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को सहजयोगी अनुभव करते हो? सहज की निशानी क्या है? उसमें मेहनत नहीं होगी। वह सदा होगी, निरन्तर होगी। *मुश्किल काम होता है तो सदा नहीं कर सकते। जो सहज होगा वह स्वत: और निरन्तर चलता रहेगा। तो सहज योगी अर्थात् निरन्तर योगी। कभी साधारण, कभी योगी, ऐसे नहीं? योगी जीवन है तो जीवन सदा होता है। इसलिए योग लगाने वाले नहीं, लेकिन योगी जीवन वाले।*
〰✧ *ब्राह्मण जीवन है तो योग कभी नीचे-ऊपर हो ही नहीं सकता। क्योंकि सिर्फ योगी नहीं हो लेकिन कर्मयोगी हो। तो कर्म के बिना एक सेकण्ड भी रह नहीं सकते। अगर सोये भी हो तो सोने का कर्म तो कर रहे हो ना। तो जैसे कर्म के बिना रह नहीं सकते ऐसे योगी जीवन वाले योग के बिना रह नहीं सकते।* ऐसे अनुभव करते हो या योग टूटता है, फिर लगाना पड़ता है? फिर कभी लगता है, कभी टाइम लगता है-ऐसे तो नहीं है ना। योग का सहज अर्थ ही है याद। तो याद किसकी आती है? जो प्यारा लगता है। सारे दिन में देखो कि याद अगर आती है तो प्यारी चीज होती है। तो सबसे प्यारे से प्यारा कौन है? (बाबा) तो सहज और स्वत: याद आयेगा ना। अगर कहाँ भी, चाहे देह में, देह के सम्बन्ध में, पदार्थ में प्यार होगा तो बाप के बदले में वो याद आयेगा। कभी-कभी देह से प्यार हो जाता तो बॉडी कान्सेस हो जाते हो। तो चेक करना है कि सिवाय बाप के और कोई आकर्षित करने वाली वस्तु या व्यक्ति तो नहीं है?
〰✧ कर्मयोगी आत्मा का हर कर्म योगयुक्त, युक्तियुक्त होगा। अगर कोई भी कर्म युक्तियुक्त नहीं होता तो समझो कि योगयुक्त नहीं है। अगर साधारण कर्म होता, व्यर्थ कर्म हो जाता तो भी निरन्तर योगी नहीं कहेंगे। कर्मयोगी अर्थात् हर सेकण्ड, हर संकल्प, हर बोल सदा श्रेष्ठ है। तो सहज योगी अर्थात् कर्मयोगी और कर्मयोगी अर्थात् सहजयोगी। तो चेक करो कि सारे दिन में कोई साधारण कर्म तो नहीं होता? श्रेष्ठ हुआ? *श्रेष्ठ कर्म की निशानी होगी-स्वयं सन्तुष्ट और दूसरे भी सन्तुष्ट। ऐसे नहीं-मैं तो सन्तुष्ट हूँ, दूसरे हों या नहीं हो। योगी जीवन वाले का प्रभाव स्वत: दूसरों के ऊपर पड़ेगा। अगर कोई स्वयं से असन्तुष्ट है वा और उससे असन्तुष्ट रहते हैं तो समझना चाहिये कि योगयुक्त बनने में कोई कमी है।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ बेहद के वैराग्य वृत्ति का अर्थ ही है - वैराग्य अर्थात किनारा करना नहीं, लेकिन सर्व प्राप्ति होते हुए भी हद की आकर्षण मन को वा बुद्धि को आकर्षण में नहीं लावें। बेहद अर्थात *मैं सम्पूर्ण सम्पन्न आत्मा बाप समान सदा सर्व कर्मेन्द्रियों की राज्य अधिकारी।*
〰✧ इन सूक्ष्म शक्तियों, मन-बुद्धि-संस्कार के भी अधिकारी। *संकल्प मात्र भी अधीनता न हो।* इसको कहते हैं राजऋषि अर्थात बेहद की वैराग वृति। यह पुरानी देह वा देह की दुनिया वा व्यक्त भाव, वैभवों का भाव - इस *सब आकर्षण से सदा और सहज दूर रहने वाले।*
〰✧ जैसे साइन्स की शक्ति धरनी की आकर्षण से परे कर लेती है, ऐसे *साइलेन्स की शक्ति इन सब हद की आकर्षणों से दूर ले जाती है।* इसको कहते हैं - सम्पूर्ण सम्पन्न बाप समान स्थिति तो ऐसी स्थिति के अभ्यासी बने हो?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ यह स्वीट साइलेन्स की अनुभूति कितनी प्यारी है। अनुभवी तो हो ना। एक सेकण्ड भी आवाज से परे हो स्वीट साइलेन्स की स्थिति में स्थित हो जाओ। तो कितना प्यारा लगता है? साइलेन्स प्यारी क्यों लगती है? क्योंकि आत्मा का स्वधर्म ही शान्त है, ओरिजनल देश भी शान्ति देश है। इसलिए आत्मा को स्वीट साइलेन्स बहुत प्यारी लगती है। एक सेकण्ड में भी आराम मिल जाता है। *कितने भी मन से, तन से थके हुए हों, लेकिन अगर एक मिनट भी स्वीट साइलेन्स में चले जाओ तो तन और मन को आराम ऐसा अनुभव होगा जैसे बहुत समय आराम करके कोई उठता है तो कितना फ्रेश होता है।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- आत्माओं को पतित से पावन बनाना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा बादलों के विमान में बैठ बापदादा के साथ पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगा रही हूँ... बाबा के साथ सूरज, चाँद, सितारों, आसमान की सैर करते हुए आनंद की लहरों में डोल रही हूँ... परमधाम, सूक्ष्मवतन से होते हुए हम विश्व के गोले के ऊपर बैठ जाते हैं... बापदादा सारे विश्व की प्यासी, दुखी आत्माओं, तमोप्रधान प्रकृति को दिखाकर मुझे विश्व सेवा करने की शिक्षाएं देते हैं...
❉ प्यारे बाबा सबका कल्याण कर अन्धो की लाठी बनने के लिए प्रेरित करते हुए कहते है:- "मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की तरहा विश्व कल्याण की भावना से भर जाओ... जो मीठे सुख जो खुशियां आपके जीवन में महकी है उन्हें सबके दिल आँगन में खिला आओ... सारा विश्व सच्ची खुशियो में खिलखिलाये और हर मन मीठा मुस्कराये ऐसी रूहानी सेवा करते रहो..."
➳ _ ➳ ज्ञान के प्रकाश को स्वयं में भरकर चारों ओर ज्ञान की रोशनी फैलाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आप समान सबको सुखी और ईश्वरीय वर्से का अधिकारी बना रही हूँ... सबको सच्चे सुख का रास्ता दिखाने वाली मा सुखदाता हो गई हूँ... ज्ञान के प्रकाश से हर दिल की राहे रौशन कर रही हूँ..."
❉ पतित पावन मीठे बाबा पवित्रता की किरणों से मुझे चमकाते हुए कहते हैं:- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... दिन रात सदा सबके कल्याण के ख्यालातों में मगन रहो... स्वयं भी व्यर्थ से मुक्त रहेंगे और सबके जीवन को सुनहरे सुखो से सजाने वाले... विश्व कल्याणकारी बन मीठे बापदादा के दिल तख्त पर इठलायेंगे... और खुबसूरत भाग्य के धनी बन जायेंगे..."
➳ _ ➳ दिन रात अपनी बुद्धि में सर्विस के खयालातों को भरकर मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपसे पायी खुशियो की दौलत को हर दिल पर लुटा रही हूँ... सच्चे ज्ञान की झनकार से हर दिल में सुख की बहार सजा रही हूँ... सबका जीवन खुशियो से खिल रहा है और पूरा विश्व मीठा मुस्करा रहा है..."
❉ विश्व कल्याण का झंडा मेरे हाथों में सौंपते हुए मेरे बाबा कहते हैं:- "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता के सहयोगी बनने वाले और सबके जीवन को नूरानी बनाने वाले महा भाग्यशाली हो... सच्चे सहारे होकर, सबको इन मीठी खुशियो का पैगाम देते जाओ... ज्ञान के तीसरे नेत्र से सबकी जिंदगी में उजाला कर सुखो का पता दे आओ..."
➳ _ ➳ मैं विश्व कल्याणी फरिश्ता पूरे विश्व और प्रकृति को सर्व गुणों और शक्तियों की साकाश देते हुए कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मैं आत्मा ईश्वरीय सेवा धारी बनकर अपने महान भाग्य पर मुस्करा उठी हूँ... कभी अपने ही गमो में रोने वाली, आज धरा से दुःख के आँसू का सफाया कर रही हूँ... चारो ओर खुशहाली और आनन्द के फूल खिलाने वाली खुबसूरत माली हो गई हूँ..."
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप के साथ मंगल मिलन मनाते रहना है*"
➳ _ ➳ दिल को चैन और सुकून देने वाले अपने दिलाराम बाबा को दिल से याद करते ही उनके स्नेह का मधुर एहसास उनकी स्नेह की किरणों की मीठी फ़ुहारों के रूप में मुझे स्पर्श करता हुआ स्पष्ट महसूस होता है। *मैं अनुभव करती हूँ कि अपने पिता को याद करते ही मेरी याद उन तक पहुँच गई है और वो भी उस याद के रिटर्न में अपने स्नेह की शीतल फुहारें मुझ पर बरसा कर अपने प्रेम का इजहार कर रहें हैं*। उनके प्रेम के इस मधुर एहसास को अनुभव करते हुए मन ही मन मैं विचार करती हूँ कि कितना सच कहा है किसी ने कि बच्चा बुलाये और बाप ना आये ये भला कैसे हो सकता है।
➳ _ ➳ लौकिक रीति भी बच्चे बाप को याद करते है तो बाप उनसे मिले बिना रह नही सकता तो वो पारलौकिक बाप जो हम सब आत्माओं का बाप है वो भी तो अपने बच्चों के प्यार के बंधा हुआ है, वो भला कैसे अपने बच्चों से दूर रह सकता है, इसलिए याद करते ही सेकण्ड में अपनी उपस्थिति का एहसास कराता है। *बस दिल से उसे याद करें और वो एक बुलावे पर मिलने के लिए दौड़ा चला आता है। अपने बच्चों से किया हर वादा निभाता है। हर मुश्किल घड़ी में वो मसीहा पहुँच जाता है और हर मुश्किल का हल निकाल जीवन को कितना सहज बना देता है*। तो कितनी सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो स्वयं भगवान ने मुझे दिव्य बुद्धि का वरदान देकर स्वयं को पहचानने का बल दिया जिससे आज मैं अपने प्यारे पिता के साथ मंगल मिलन मनाने का आनन्द ले पा रही हूँ।
➳ _ ➳ मन ही मन यह चिंतन करते हुए इस सुहावने संगमयुग के बारे में मैं विचार करती हूँ कि कितना मोस्ट वैल्युबुल है यह समय! *यह थोड़ी सी ही घड़ियां है जब भगवान से डायरेक्ट मिलन का सुख मिलता है। पूरे कल्प में यह थोड़ा सा समय ही है जब भगवान का अपने बच्चों के साथ मंगल मिलन होता है तो इस बहुमूल्य समय का जितना फायदा उठा सकते हैं उतना क्यो ना उठाया जाए*! क्यों ना परमात्म याद में रह समय, संकल्प और श्वांसों के खजाने को सफल किया जाए! पूरे कल्प परमात्म मिलन का यह सुख फिर नसीब नही होगा यह विचार मन मे आते ही बाबा के साथ हर पल मंगल मिलन मनाने की इच्छा तीव्र होने लगती है और मैं आत्मा उनसे मिलने के लिए बेचैन हो उठती हूँ।
➳ _ ➳ ज्ञान और योग के खूबसूरत पंख लगाकर मैं आत्मा अब अपने प्यारे पिता से मंगल मिलन मनाने के लिए जा रही हूँ सूर्य, चाँद, सितारों की दुनिया से परे, अव्यक्त वतन से पार उस मूलवतन अपने परमधाम घर मे जहाँ मेरे पिता परमात्मा रहते हैं। *आत्माओं की एक बेहद खूबसूरत निराकारी दुनिया में मैं पहुँच गई हूँ और देख रही हूँ चारों और लाल प्रकाश से सजे अपने इस घर को जहाँ चारों और गहन शान्ति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स फैले हुए हैं और मन को गहन शान्ति की अनुभूति करवा रहें हैं*। शान्ति के सागर अपने शिव पिता को अपने सामने सूर्य के समान चमकते हुए एक ज्योतिपुंज के रूप में मैं देख रही हूँ जिनसे निकल रहे प्रकाश की अनन्त किरणें सर्वगुणों और सर्वशक्तियो के वायब्रेशन्स को चारों और फैला रही हैं। *पूरा परमधाम बाबा से आ रहे सर्वगुणों और सर्वशक्तियों की रंग बिरंगी किरणों से भरा हुआ बहुत ही सुन्दर दिखाई दे रहा है*।
➳ _ ➳ अपने इस परमधाम घर मे आकर अपने पिता के साथ मंगल मिलन मनाने का यह अनुभव मुझे परमआनन्द प्रदान कर रहा है। एक गहन अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति में स्थित होकर अपने प्यारे पिता के सानिध्य में बैठ उनकी सर्वशक्तियो की किरणों को मैं अपने अंदर भर रही हूँ। *रंग बिरंगी किरणों के रूप में मेरे ऊपर निरन्तर बरसता हुआ मेरे प्यारे बाबा का निस्वार्थ, निष्काम स्नेह मेरे अंदर एक अद्भुत शक्ति का संचार कर रहा है*। मेरे मीठे प्यारे बाबा का स्नेह और शक्तियाँ मेरे अंदर बल भर कर मुझे बहुत ही शक्तिशाली बना रहे हैं। सर्वगुणों और सर्वशक्तियों से सम्पन्न बन कर और अपने दिलाराम बाबा के साथ मंगल मिलन मनाकर मैं वापिस साकारी दुनिया की ओर लौट रही हूँ। *कर्म करने के लिए फिर से अपने साकार शरीर में मैं प्रवेश कर रही हूँ और भृकुटि सिहांसन पर आकर विराजमान हो गई हूँ*।
➳ _ ➳ भृकुटि के अकालतख्त पर बैठ अब मैं सृष्टि रूपी रंगमंच पर पहले की तरह फिर से अपना पार्ट बजा रही हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर बाबा की याद में रह मैं हर कर्म कर रही हूँ। *हर कर्म बाबा की याद में रहकर करने के साथ - साथ बाबा के साथ अलग - अलग सम्बन्ध बनाकर, सर्वसम्बन्धों से बाबा के साथ मिलन मनाने का आनन्द भी मैं साथ - साथ ले रही हूँ। सर्वसम्बन्धों के रूप में बाबा के साथ मंगल मिलन मनाते रहने का अनुभव मुझे हर पल अतीन्द्रिय सुख के झूले में झुला रहा है*।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं स्वयं से, सेवा से, सर्व से संतुष्टता का सर्टीफिकेट लेकर सिद्धि स्वरूप बनने वाली संतुष्ट आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं सहज विधि द्वारा विधाता को अपना बनाने वाली सर्व भाग्य के खजानों से भरपूर आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बापदादा बहुत बच्चों की रंगत देखते हैं - आज कहेंगे बाबा,ओ *मेरे बाबा, ओ मीठा बाबा, क्या कहूं, क्या नहीं कहूं ...... आप ही मेरा संसार हो,* बहुत मीठी-मीठी बातें करते हैं और दो चार घण्टे के बाद अगर कोई बात आ गई तो भूत आ जाता है। बात नहीं आती,भूत आता है। बापदादा के पास सभी का भूत वाला फोटो भी है। देखो, एक यादगार भी भूतनाथ का है। तो भूतों को भी बापदादा देखते हैं- कहाँ से आया, कैसे आया और कैसे भगा रहे हैं। यह खेल भी देखते रहते हैं। कोई तो घबराकर, दिलशिकस्त भी हो जाते हैं। फिर बापदादा को यही शुभ संकल्प आता है कि इनको कोई द्वारा *संजीवनी बूटी खिलाकर सुरजीत करें* लेकिन वे मूर्छा में इतने मस्त होते हैं जो संजीवनी बूटी को देखते ही नहीं हैं। *ऐसे नहीं करना। सारा होश नहीं गंवाना, थोड़ा रखना। थोड़ा भी होश होगा ना तो बच जायेंगे।*
✺ *ड्रिल :- "संजीवनी बूटी खाकर सदा सुरजीत रहना"*
➳ _ ➳ *इस शरीर रूपी डिब्बी के अन्दर हीरे समान चमकने वाली मैं आत्मा हूँ...* मन-बुद्धि रूपी नेत्रों से स्वयं के इस स्वरूप को स्पष्ट देख और अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा देख रही हूँ स्वयं को इस दुनिया के सबसे पावरफुल स्थान मधुबन पांडव भवन के हिस्ट्री हाल में बापदादा के सामने, एक संगठन में बैठा हुआ... *ये वही स्थान है जहाँ स्वयं परम सत्ता शिव बाबा ने बहुत काल तक वास्तव्य किया है...* कई महान आत्माओं ने यहाँ बहुत काल तपस्या की है जिस कारण ये स्थान प्रचंड उर्जा से परिपूर्ण है... यहाँ पहुंच कर *मैं आत्मा भी स्वयं में इस प्रचंड उर्जा का प्रवाह अनुभव कर रही हूँ...* और सहज ही अशरीरी अनुभव कर रही हूँ... *स्वयं को परमात्म-एनर्जी से भरा हुआ अनुभव कर रही हूँ... बेहद पावरफुल स्टेज का अनुभव हो रहा है...* देह भान से ऊपर उठ देही अवस्था का स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ... देख रही हूँ मैं आत्मा हिस्ट्री हाल में *बापदादा संदली पर बैठ संगठन में बैठी आत्माओं को दृष्टि योग करा रहे हैं...*
➳ _ ➳ जैसे ही बाबा मुझ आत्मा को दृष्टि देते हैं... मुझ आत्मा के सामने एक दृश्य इमर्ज होता है... मैं आत्मा मन-बुद्धि रूपी नेत्रों से स्पष्ट देख रही हूँ... एक बहुत बड़ी नांव, एक विशाल सागर में जा रही है... जिस नांव पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है... *"भगवान हमारा साथी है"*... और इस नाव में बहुत सारे यात्री स्वार हैं... और *स्वयं बाबा इस नैया के खिवैया बन इसे चला रहे हैं...* सभी यात्रियों के चेहरे बड़े हर्षितमुख है... सभी यात्री प्रभु महिमा के गीत गाते हुए खुशी में झूमते हुए अपने लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ रहे हैं... इन सभी यात्रियों को देख लग रहा है मानो *बाबा ही इनका संसार है...* प्रभु महिमा से फुल ये आत्माएं हर्षा रही है और इस प्रकार ये नांव आगे बढती जा रही है... कुछ समय बीत जाने के बाद एक बड़ा अजब दृश्य सामने आता है... सागर में अचानक तूफान आता है... सागर में लहरें उठने लगती है... तेज हवाएं चलने लगती है... और नाव डोलने लगती हैं... कुछ यात्री जिनके चेहरे पर कुछ समय पहले खुशी थी... ये सीन देख उनके चेहरे पर घबराहट, चिंता, कई प्रकार के प्रश्रों के चिन्ह दिखाई दे रहे हैं... उनकी आँखों में डर और मुख से यह क्या, यह क्यों, यह कैसे शब्द निकल रहे हैं... और कुछ यात्री यह सीन देखते वैसे ही बैठे हैं जैसे पहले बैठे थे... *बाबा भी इस नांव में बैठ ये अजब दृश्य देख रहे है...*
➳ _ ➳ तभी वो दृश्य मुझ आत्मा की आँखों के सामने से गायब हो जाता है... मैं आत्मा सामने देखती हूँ... *महान ज्ञान सागर बाबा मुझ आत्मा को दृष्टि दे रहे हैं... बाबा की सागर जैसी आँखों से ज्ञान प्रकाश रूपी किरणें मुझ आत्मा के अन्दर समा रही है...* जैसे-जैसे मुझ आत्मा में ये ज्ञान प्रकाश रुपी किरणें मेरे अन्दर समा रही है, इस दृश्य का राज मुझ आत्मा के सामने स्पष्ट होता जा रहा है... मैं आत्मा विचार कर रही हूँ... *जिस जीवन रुपी नैया का खिवैया स्वयं सर्वशक्तिमान बाबा है... वह जीवन रुपी नैया में भल बातों रुपी कितने भी तूफान आएं... ये नैया कभी डूब नहीं सकती है...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा स्वयं से प्रश्र करती हूँ, अपने लक्ष्य की तरफ चलते-चलते, जब इस जीवन रूपी नैया में बातों रुपी भूत, बातों रुपी तूफान आते हैं तो कहीं मैं आत्मा लक्ष्य से भटक इन हलचल में तो नहीं आ जाती, घबरा तो नहीं जाती, बातों रूपी भूतों को देख भूतनाथ तो नहीं बन जाती ये जानते हुए भी की *इस जीवन रुपी नैया का खिवैया स्वयं बाबा है...* देखती हूँ सामने *बाबा से शक्तिशाली किरणों की अविरल धाराएँ मुझ आत्मा पर पड़ कर मेरे अन्दर समा रही है...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बेहद शक्तिशाली महसूस कर रही हूँ...* देख रही मैं आत्मा बाबा ने अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख दिया... बाबा के हाथों से ज्ञान प्रकाश की किरणें मेरे अन्दर समा रही हैं... जैसे-जैसे ये ज्ञान प्रकाश की किरणें अन्दर समा रही है... *मैं आत्मा शक्तिशाली... अचल अडोल अवस्था का अनुभव कर रही हूँ, पहले से और ज्यादा शक्तिशाली स्वयं को अनुभव कर रही हूँ...* अब देखती हूँ अपनी इस जीवन रूपी नैया को जिसका खिवैया स्वयं बाबा है... और मैं आत्मा बाबा संग आगे बढ़ रही हूँ... और देख रही हूँ... बातों रूपी भूत, कभी एक लहर कभी दूसरी लहर के रुप में सामने आ रहे हैं... लेकिन *मैं स्मृति स्वरूप हूँ... महावीर हूँ... अब ये बातें आती है और चली जाती है... मैं आत्मा एकरस अचल-अडोल होकर बाबा संग अपने लक्ष्य की ओर अभय होकर बढ़ रही हूँ...* मैं आत्मा अन्य आत्माओं को भी जो चलते-चलते, किसी-न-किसी बातों रूपी भूतों के कारण रुक गए हैं, बेहोश होकर अपने लक्ष्य से भटक गए है... उन्हें *ज्ञान और याद रूपी संजीवनी बूटी से सुरजीत बना रही हूँ...* देख रही हूँ अब वे सभी आत्माएं अचल-अडोल एकरस होकर इस जीवन रूपी नैया में *बाबा संग अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रही है... शुक्रिया लाडले बाबा शुक्रिया...*
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━