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 28 / 05 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अपने को दर्पण में देख भूतों को निकाल गुणवान बनने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *बाप की मुरली सुन धारण कर औरों को कराई ?*

 

➢➢ *निश्चयबुधी बन हलचल में भी अचल रहे ?*

 

➢➢ *देह के सब रिश्तों से मुक्त रह उड़ता पंछी बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  अभी चारों ओर साधना का वायुमण्डल बनाओ। *समय समीप के प्रमाण अभी सच्ची तपस्या वा साधना है ही बेहद का वैराग्य। सेकंड में अपने को विदेही, अशरीरी वा आत्म-अभिमानी बना लो, एक सेकण्ड में मन-बुद्धि को जहाँ चाहो वहाँ स्थित कर लो, इसको कहा जाता है-साधना।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं होली हँस हूँ"*

 

  अपने को होली हंस समझते हो? होलीहंस का विशेष कर्म क्या है? (हरेक ने सुनाया) जो विशेषताएं सुनाई वह प्रैक्टिकल में कर्म में आती हैं? क्योंकि सिवाए आप ब्राह्मणों के होलीहंस और कौन हो सकता है? *इसलिए फलक से कहो। जैसे बाप सदा ही प्योर हैं, सदा सर्वशक्तियां कर्म में लाते हैं, ऐसे ही आप होलीहंस भी सर्वशक्तियां प्रैक्टिकल में लाने वाले और सदा पवित्र हैं। थे और सदा रहेंगे। तीनों ही काल याद है ना?* बापदादा बच्चों का अनेक बार बजाया हुआ पार्ट देख हर्षित होते हैं। इसलिए मुश्किल नहीं लगता है ना।

 

  मास्टर सर्वशक्तिवान के आगे कभी मुश्किल शब्द स्वपन में भी नहीं आ सकता। ब्राह्मणों की डिक्शनरी में मुश्किल अक्षर है? कहाँ छोटे अक्षरों में तो नहीं है? माया के भी नालेजफुल हो गये हो ना? जहाँ फुल है वहाँ फेल नहीं हो सकते। फेल होने का कारण क्या होता है? जानते हुए भी फेल क्यों होते हो? अगर कोई जानता भी हो और फेल भी होता है तो उसे क्या कहेंगे? *कोई भी बात होती है तो फेल होने का कारण है कि कोई न कोई बात फील कर लेते हो। फीलिंग फ्लू हो जाता है। और फ्लू क्या करता है - पता है? कमजोर कर देता है। उससे बात छोटी होती है लेकिन बड़ी बन जाती है तो अभी फुल बनो। फेल नहीं होना है, पास होना है। जो भी बात होती है उसे पास करते चलो तो पास विथ ऑनर हो जायेंगे। तो पास करना है, पास होना है और पास रहना है।*

 

  *जब फलक से कहते हो कि बापदादा से जितना मेरा प्यार है उतना और किसी का नहीं है। तो जब प्यार है तो पास रहना है या दूर रहना है? तो पास रहना है और पास होना है।* यू.के. वाले तो बापदादा की सर्व आशाओंको पूर्ण करने वाले हो ना। सबसे नम्बरवन बाप की शुभ आशा कौन सी है? खास यू.के. वालों के लिए कह रहे हैं। बड़े बड़े माइक लाने हैं। जो बाप को प्रत्यक्ष करने के निमित्त बनें और बाप के नजदीक आएं। अभी यू.के. में, अमेरिका में और भी विदेश के देशों में माइक निकले जरूर है लेकिन एक हैं सहयोगी और दूसरे हैं सहयोगी-समीप वाले। तो ऐसे माइक तैयार करो। वैसे सेवा में वृद्धि अच्छी हो रही है, होती भी रहेगी। अच्छा- रशिया वाले छोटे बच्चे हैं लेकिन लकी हैं। आपका बाप से कितना प्यार है! अच्छा है बापदादा भी बच्चों की हिम्मत पर खुश हैं। अभी मेहनत भूल गई ना।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *निराकारी, आकारी और साकारी - इन तीनों स्टेजिस को समान बनाया है?* जितना साकारी रूप में स्थित होना सहज अनुभव करते हो, उतना ही आकारी स्वरूप अर्थात अपनी सम्पूर्ण स्टेज व अपने अनादि स्वरूप - निराकारी स्टेज - में स्थित होना सहज अनुभव होता है?

 

✧   *साकारी स्वरूप आदि स्वरूप है, निराकारि अनादि स्वरूप है।* तो आदि स्वरूप सहज लगता है या अनादि रूप में स्थित होना सहज लगता हे?

 

✧   *वह अविनाशी स्वरूप है और साकारी स्वरूप परिवर्तन होने वाला स्वरूप है।* तो सहज कौन - सा होना चाहिए? साकारी स्वरूप की स्मृति स्वतः रहती है या निराकारी स्वरूप की स्मृति यहती है या स्मृति लानी पडती है?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ अशरीरी बनना इतना ही सहज होना चाहिए। जैसे स्थूल वस्त्र उतार देते हैं वैसे यह देह अभिमान के वस्त्र सेकेण्ड में उतारने हैं। जब चाहें धारण करें, जब चाहें न्यारे हो जाएं। लेकिन यह अभ्यास तब होगा जब किसी भी प्रकार का बन्धन नहीं होगा। *अगर मन्सा संकल्प का भी बंधन है तो डिटैच हो नहीं सकेंगे। जैसे कोई तंग कपड़ा होता है तो सहज और जल्दी नहीं उतार सकते हो। इस प्रकार से मन्सा, वाचा, कर्मणा, सम्बन्ध में अगर अटैचमेन्ट है, लगाव है तो डिटैच नहीं हो सकेंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पूरा सन्यास कर पवित्रता की प्रतिज्ञा करना"*

 

 _ ➳  *बाप की श्रीमत पर चलो तो कोई तकलीफ नहीं, कोई दुख नहीं...* बाबा आपके यह महावाक्य... मैं आत्मा प्रेक्टिकल में अनुभव कर रही हूं... सच में बाबा पवित्रता ही आधार है... वाह हमारा भाग्य... जो स्वयं भगवान हमारे भाग्य की महिमा कर रहा है... आप समान भगवान भगवती बना रहा है... सन्मुख बैठ बतला रहा है कि हम हैं ऊंचे ते ऊंची महान आत्माएं... हमारा है सतोप्रधान सन्यास, बाकी सन्यासियों का है हठयोग रजो प्रधान सन्यास...

 

   *मीठे बाबा सतगुरु बन मीठी शिक्षाएं देते हुए मुझ आत्मा से बोले:- "मीठी बच्ची... अब मैं आया हूं तुम्हारा गाइड बन वापस घर ले जाने... अब मुझे फॉलो करो... मेरे फॉलोवर बनो...* इस एक जन्म पवित्र बनो, तो मैं तुम्हें मच्छरों सदृश्य अपने साथ वापस घर ले जाऊंगा... फिर वहां से तुम आत्माएं सुखधाम के संबंध में आओगी..."

 

 _ ➳  *मीठे बाबा की शिक्षाओं को स्वयं में धारण करते हुए मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "हां मेरे मीठे बाबा... बहुत जन्म हुए विकारी गुरुओं, अन्य सन्यासियों को फॉलो करते... जो स्वयं ही शुभ मार्ग ना जानते हो, भला फिर हमें कैसे बताएं... *अब आप हमें सच्चा सच्चा शुभ मार्ग बता रहे हैं... अब हम आत्माएं सब संग तोड़... आप संग जोड़े वर्सा ले रही हैं..."*

 

   *मीठे बाबा प्यार भरी समझानी को जारी रखते हुए मुझ आत्मा से बोले:-* "मीठी बच्ची... तुम्हारा है सतोप्रधान सन्यास, तुम हो बेहद के सन्यासी... *इस समय तुम आत्माएं मुझ बाप से अदल-बदल करती हो... अपना कखपन नया शरीर, नया धन दे सब नया लेती हो... तो पूरा सन्यास करो,* संपूर्ण रूप से मैं और मेरे का त्याग कर, देह सहित देह के सब धर्मों को छोड़ मामेकम याद करो..."

 

 _ ➳  *मीठे बाबा के गुह्य बातों को स्वयं के रोम-रोम में धारण करती मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "जी हां मेरे मीठे बाबा... भक्ति मार्ग में जो वायदा किया था, तुम आएंगे तो पूरा पूरा कुर्बान जाएंगे... अब उस वायदे को हम आत्माएं पूर्ण रीति से पूर्ण कर रहे हैं... निमित्त मात्र... ट्रस्टी स्वरूप की स्मृतियां हमें संपूर्ण बेहद के संन्यास से तृप्त किए हुए हैं... *हम राइटर्स बाप का राइट हैंड बन पवित्रता की मदद से पवित्र भारत के कार्य में तत्पर हैं..."*

 

  *मीठे बाबा आशाओ भरी दृष्टि देते हुए मुझ आत्मा से बोले:-* "मीठी बच्ची... जैसे आदि में यज्ञ में *प्राण जाए पर धरत ना छोड़िए* महावाक्यो के ऊपर आत्माएं अटल रही... *अंत मे भी अब उसी अटल निश्चय की आवश्यकता है...* पवित्रता ही सबसे बड़ी सेवा है... आपकी शुभ, शक्तिशाली कल्याणकारी भावनाएं... आसपास की आत्माओं को परिवर्तित कर रही है... यही शुभ अटल कल्याणकारी भावनाएं प्रकृति को भी परिवर्तित करेंगी... और वह दिन दूर नहीं जब नया भारत फिर से धरती पर अवतरित होगा..."

 

 _ ➳  *स्वर्णिम भारत की छवि आंखों में लिए मैं आत्मा बाबा से बोल उठी:-* "हां मीठे बाबा... अब कितने भी तूफान आए... परंतु हम आत्माएं टस से मस न होंगी... बाप और वर्से को निरंतर याद करती रहेंगी... *जब तक जान है... प्राण है... श्वासों श्वास यह याद कायम रहेगी... पवित्रता कायम रहेगी... अब नहीं तो कभी नहीं...*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  अपने को दर्पण में देख भूतों को निकाल गुण वान बनना है*

 

_ ➳  अंतर्मुखता की गुफा में बैठ, अपने मन रूपी दर्पण में मैं अपने आपको निहार रही हूँ और विचार कर रही हूँ कि *अपने अनादि स्वरूप में मैं आत्मा कितनी पवित्र और सतोप्रधान थी और आदि स्वरूप में भी 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण गुणवान थी किन्तु देह भान में आकर मैं आत्मा पतित और कला विहीन हो गई इसलिए कोई भी गुण मुझ आत्मा में नही रहा*। यह सोचते - सोचते कुछ क्षणों के लिए अपने अनादि और आदि स्वरूप की अति सुखदाई मधुर स्मृतियों में मैं खो जाती हूँ और मन बुद्धि से पहुँच जाती हूँ अपने अनादि स्वरूप का आनन्द लेने के लिए अपनी निराकारी दुनिया परमधाम में।

 

_ ➳  देख रही हूँ अब मैं अपने उस सम्पूर्ण सत्य स्वरूप को जो मैं आत्मा वास्तव में थी। सर्वगुणों, सर्वशक्तियों से सम्पन्न अपने इस अति चमकदार, सच्चे सोने के समान दिव्य आभा से दमकते निराकार बिंदु स्वरूप को देख मन ही मन आनन्दित हो रही हूँ। *लाल प्रकाश की एक अति खूबसूरत दुनिया मे, चारों और चमकती हुई जगमग करती मणियों के बीच, अपना दिव्य प्रकाश फैलाते हुए एक अति तेजोमय चमकते हुए सितारे के रूप मे मैं स्वयं को देख रही हूँ*। अपने इस सम्पूर्ण सतोप्रधान अनादि स्वरूप की स्मृति में स्थित होकर, अपने गुणों और शक्तियों का भरपूर आनन्द लेने के बाद अब मैं अपने आदि स्वरूप का आनन्द लेने के लिए मन बुद्धि के विमान पर बैठ अपनी सम्पूर्ण निर्विकारी सतयुगी दुनिया में पहुँच जाती हूँ।

 

_ ➳  अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई स्वरूप में मैं स्वयं को एक अति सुंदर मनभावनी स्वर्णिम दुनिया मे देख रही हूँ। सोने के समान चमकती हुई कंचन काया, नयनों में समाई पवित्रता की एक दिव्य अलौकिक चमक और मस्तक पर एक अद्भुत रूहानी तेज से सजे अपने इस स्वरूप को देख मैं गदगद हो रही हूँ। *पवित्रता और सम्पन्नता का डबल ताज मेरी सुन्दरता में चार चांद लगा रहा है। 16 कलाओं से सजे अपने इस सम्पूर्ण पवित्र, सर्व गुणों से सम्पन्न स्वरूप को बड़े प्यार से निहारते हुए मैं अपने इस आदि स्वरूप का भरपूर आनन्द लेने के बाद फिर से अपने ब्राह्मण स्वरूप की स्मृति में स्थित हो जाती हूँ* और मन ही मन विचार करती हूँ कि अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप को पुनः प्राप्त करने का ही अब मुझे तीव्र पुरुषार्थ करना है।

 

_ ➳  इसी संकल्प के साथ अब मैं अपने मन रूपी दर्पण में अपने आपको देखने का प्रयास करती हूँ और बड़ी महीनता के साथ अपनी चेकिंग करती हूँ कि कौन - कौन से भूतों की समावेशता अभी भी मेरे अन्दर है! *कहीं ऐसा तो नही कि मोटे तौर पर स्थूल विकारो रूपी भूतों पर तो मैंने जीत पा ली हो किन्तु सूक्ष्म में अभी भी देह भान में आने से कुछ सूक्ष्म भूत मेरे अंदर प्रवेश कर जाते हो! यह चेकिंग करने के लिए अब मैं स्वराज्य अधिकारी की सीट पर सेट हो जाती हूँ और आत्मा राजा बन अपनी कर्मेन्द्रियों की राजदरबार लगाती हूँ* कि कौन - कौन सी कर्मेन्द्रिय मुझे धोखा देती है और भूतों को प्रवेश होने में सहायक बनती है।

 

_ ➳  अपनी एक - एक कर्मेन्द्रिय की महीन चेकिंग करते हुए और स्वयं को मन रूपी दर्पण में देखते हुए, अपने अंदर विद्यमान भूतों को दृढ़ता से बाहर निकालने का दृढ़ संकल्प लेकर, स्वयं को गुणवान बनाने के लिए अब मैं अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर गुणों के सागर अपने शिव पिता के पास उनके धाम की ओर रवाना हो जाती हूँ। *सैकेंड में साकारी और आकारी दुनिया को पार कर आत्माओ की निराकारी दुनिया में पहुँच कर, गुणों की खान अपने गुणदाता बाबा के सर्वगुणों और सर्वशक्तियों की किरणो की छत्रछाया के नीचे जाकर बैठ जाती हूँ*। अपनी सारी विशेषताएं, सारे गुण बाबा अपनी शक्तियों की किरणों के रूप में मुझ आत्मा पर लुटाकर मुझे आप समान बना देते हैं।

 

_ ➳  अपने प्यारे बाबा से सर्वगुण, सर्वशक्तियाँ लेकर मैं लौट आती हूँ वापिस साकारी दुनिया में। फिर से ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर अब मैं अपने पुरुषार्थ पर पूरा अटेंशन दे रही हूँ। *अपने प्यारे पिता की याद से विकर्मो को भस्म कर पावन बनने के साथ - साथ अपने अनादि और आदि गुणों को जीवन मे धारण कर, गुणवान बनने के लिए, अपने मन दर्पण में अपने आपको को देखते हुए अब मैं बार बार अपनी चेकिंग कर, भूतों को निकाल कर दिव्य गुणों को धारण करती जा रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं निश्चयबुद्धि बन हलचल में भी अचल रहने वाली विजयी रत्न आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं देह के सब रिश्तों से मुक्त रहकर फरिश्ता बनने का पुरुषार्थ करने वाला उड़ता पंछी हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :- 
 
➳ _ ➳ *शक्ति अर्थात् सहयोगी। अभिमान के सिर वाली शक्ति नहीं लेकिन सदा सर्व भुजाधारी अर्थात् सर्व परिस्थिति में ‘सहयोगी'। रावण के 10 सिर वाली आत्मायें हर छोटी-सी परिस्थिति में भी कभी सहयोगी नहीं बनेगी। क्यों, क्या, कैसे के सिर द्वारा अपना उल्टा अभिमान प्रत्यक्ष करती रहेंगी। क्यों का क्वेश्चन हल करेंगी तो फिर कैसे का सिर ऊँचा हो जायेगा अर्थात् एक बात को सुलझायेंगी तो फिर दुसरी बात शुरू कर देंगी। दूसरी बात को ठीक करेंगी तो तीसरा सिर पैदा हो जायेगा।* बार-बार कहेंगे यह बात ठीक है लेकिन यह क्यों? वह क्यों? इसको कहा जाता है कि एक बात के10 शीश लगाने वाली शक्ति। सहयोगी कभी नहीं बनेंगे,सदा हर बात में अपोजीशन करेंगे। तो अपोजीशन करने वाले रावण सम्प्रदाय हो गये ना। चाहे ब्राह्मण बन गये लेकिन उस समय के लिए आसुरी शक्ति का प्रभाव होता है, वशीभूत होते हैं। और शक्ति स्वरूप हर परिस्थिति में,हर कार्य में सदा सहयोगी बन औरों को भी सहयोगी बनायेंगे। चाहे स्वयं को सहन भी करना पड़े, त्याग भी करना पड़े लेकिन सदा सहयोगी होंगे। सहयोग की निशानी भुजायें हैं, इसलिए कभी भी कोई संगठित कार्य होता है तो क्या शब्द बोलते हो? अपनी-अपनी अँगुली दो, तो यह सहयोग देना हुआ ना। अँगुली भी भुजा में है ना। तो भुजायें सहयोग की ही निशानी दिखाई हैं। तो समझा शक्ति की भुजायें और रावण के सिर। तो अपने को देखो कि सदा के सहयोगी मूर्त बने हैं?
 
✺ *"ड्रिल :- शक्ति स्वरुप बन सहयोगी बन कर रहना तथा औरों को भी सहयोगी बनाना*"
 
➳ _ ➳ मैं आत्मा प्यारे बाबा के साथ कोयले के काले धुंए से बाहर उड़ते हुए पहुँच जाती हूँ सूक्ष्मवतन चमकीले सफेद प्रकाश की दुनिया में... मैं आत्मा रावण राज्य में कलियुगी रूपी कोयले के खदान में पड़ी थी... विकारों, विकर्मों की कालिख में लिपटी थी... *सुप्रीम जौहरी बाबा ने आकर मुझ आत्मा को कोयले की खदान से निकाला... मुझे तराशकर कौड़ी से हीरे तुल्य बना दिया...*
 
➳ _ ➳ बाबा मुझे अपने सम्मुख बिठाते हैं... बाबा ज्ञान-योग की किरणें मुझ आत्मा पर प्रवाहित कर रहे हैं... मैं आत्मा इन किरणों के झरने में बैठ जाती हूँ... मुझ आत्मा का अज्ञानता रूपी अन्धकार दूर हो रहा है... *विकारों, विकर्मों रूपी कालिख इन किरणों में बाहर बहता जा रहा है...* मैं आत्मा देह, देह के सम्बन्ध, देह के पदार्थों के बंधन रूपी जंजीरों से मुक्त हो रही हूँ...
 
➳ _ ➳ मुझ आत्मा की आंखों से जन्म-जन्मान्तर के अज्ञानता रूपी परदे हट गए हैं... मैं आत्मा त्रिकालदर्शी बन गई हूँ... मैं आत्मा स्वयं के असली स्वरुप को देख रही हूँ... *एक चमकता हुआ हीरा, ज्योतिबिंदु, तेजोमय प्रकाश से भरपूर जगमगाता हुआ एक सितारा हूँ...* मैं आत्मा अपने असली पिता, असली घर को पहचान गई हूँ... मैं आत्मा अपने पिता से लिपट जाती हूँ...
 
➳ _ ➳ प्यारे बाबा मुझे प्यार से अपनी गोदी में बिठाकर रंग-बिरंगी गुण, शक्तियों की मालाओं से सजा रहे हैं... मैं आत्मा सर्व गुण, शक्तियों के खजानों से भरपूर अनुभव कर रही हूँ... *सर्व भुजाधारी शक्ति स्वरूप स्थिति में स्थित हो रही हूँ... अब मैं आत्मा शक्ति स्वरुप बन रावण के 10 शीश का अंत कर रही हूँ... क्यों, क्या,कैसे के रावण के सिर को अंश सहित खत्म कर रही हूँ...* अब मुझ आत्मा में आसुरी शक्तियों का कोई भी प्रभाव शेष नहीं है...
 
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा रावण के अभिमान के सिर का नाश कर रावण सम्प्रदाय को खत्म कर चुकी हूँ... अब मैं आत्मा सदा सर्व भुजाधारी शक्ति बन सर्व परिस्थिति में सर्व की सहयोगी बन रही हूँ... *अब मैं शक्ति स्वरूप बन हर परिस्थिति में, हर कार्य में सदा सहयोगी बन औरों को भी सहयोगी बना रही हूँ...* चाहे मुझ आत्मा को सहन भी करना पड़े, त्याग भी करना पड़े लेकिन सदा की सहयोगी मूर्त बनकर रहती हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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