━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 20 / 09 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *बाप के साथ सारे विश्व को शांति का दान दिया ?*
➢➢ *आपस में देह अभिमान की बातें तो नहीं की ?*
➢➢ *इंतज़ार को छोड़ इंतज़ाम करने वाले बने ?*
➢➢ *अपने उमंग उत्साह द्वारा अनेक आत्माओं का उत्साह बढाया ?*
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ *कोई भी सेवा के प्लैन्स बनाते हो, भले बनाओ, भले सोचो, लेकिन क्या होगा! उस आश्चर्यवत होकर नहीं। विदेही, साक्षी बन सोचो। सोचा, प्लैन बनाया और सेकण्ड में प्लेन स्थिति बनाते चलो।* अभी आवश्यकता स्थिति की है। यह विदेही स्थिति परिस्थिति को बहुत सहज पार कर लेगी। *जैसे बादल आये, चले गये। विदेही, अचल-अडोल हो खेल देख रहे हैं।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✺ *"मैं सहजयोगी आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को सहज योगी आत्मायें अनुभव करते हो? सहज योग का आधार क्या है? विशेष दो बातें हैं। कौन-सी? *सहज का आधार है - स्नेह, लेकिन स्नेह का आधार सम्बन्ध है। सम्बन्ध से याद करना सहज होता है और सम्बन्ध से प्यार पैदा होता है। और दूसरी बात है प्राप्तियाँ। जहाँ प्राप्ति होगी, चाहे अल्पकाल की भी प्राप्ति हो तो मन और बुद्धि वहाँ सहज ही चली जायेगी। तो मुख्य दो बातें हैं-सम्बन्ध और प्राप्ति।* अनुभव है ना? वैसे भी देखो, 'बाबा' कहकर याद करो और 'मेरा बाबा' कहकर याद करो, तो फर्क पड़ता है? 'मेरा' कहने से सहज होता है ना। क्योंकि जहाँ मेरापन होता है वहाँ अधिकार होता है। और अधिकार होने के कारण अधिकारी को प्राप्ति जरूर होती है।
〰✧ तो सर्व सम्बन्ध है ना! कि एक-दो नहीं हैं, बाकी सब हैं! और प्राप्तियां कितनी हैं? सब हैं ना। जब देने वाला दे रहा है तो लेने में क्या हर्जा है? (कौन-सी प्राप्तियां?) जो बाप ने शक्तियों का, ज्ञान का, गुणों का ख़जाना दिया, सुख-शान्ति, आनन्द, प्रेम, सब ख़जाने दिये। तो कितनी प्राप्तियां हैं! क्योंकि बाप के पास ये खजाने हैं ही बच्चों के लिये। तो बच्चे नहीं लेंगे तो कौन लेंगे? तो बच्चे हैं या नहीं हैं-यह भी सोच रहे हो! फिर अधिकार लेने में क्यों कमी करते हो? अगर अभी अधिकार नहीं लिया तो कब लेंगे? *जो भी भिन्न-भिन्न प्राप्तियां हैं, उन प्राप्तियों को सामने रखो। प्राप्ति को इमर्ज करने से प्राप्ति की खुशी की अनुभूति होगी। सिर्फ बाप मेरा है, नहीं, लेकिन बाप के साथ वर्सा भी मेरा है। बच्चे को प्रापर्टी की खुशी होती है ना। तो यह बेहद की प्रापर्टी है। बालक सो मालिक हूँ-इस खुशी में सदा रहो।*
〰✧ कोटों में कोई और कोई में भी कोई जो गायन है वह किसका है? आप कोटों में कोई हो ना? बापदादा सभी बच्चों को इतना श्रेष्ठ आत्मा के रूप में देखते हैं। दुनिया भटक रही है और आप मौज मना रहे हो। मौज में रहते हो ना कि अभी भी यहाँ वहाँ भटकते हो? ठिकाना मिल गया ना! तो दिन-रात खुशी में नाचते रहो, खुशी में सो जाओ। *अगर जीवन है तो ब्राह्मण जीवन है। तो स्वयं के महत्व को सदा स्मृति में रखो। क्या थे और क्या बन गये! श्रेष्ठ बन गये ना। अपने इस श्रेष्ठ भाग्य को कर्म करते हुए भी स्मृति में रखो। वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य! दिल में यह आता है? जो भगवान के प्यारे हैं उसके जीवन में प्यार हर समय है। तो दिल से यही गीत गाते रहो-वाह बाबा वाह और वाह मेरा भाग्य वाह!*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ बहुत जन्म विस्तार में जाने की आदत पडी हुई है। इसलिए विस्तार में बहुत जल्दी चले जाते हैं लेकिन ब्रेक लगाने वा समेटने में टाइम लग जाता है तो टाइम नहीं लगना चाहिए। क्योंकि बापदादा ने सुनाया है - *लास्ट में फाइनल पेपर का क्वेचन ही यह होगा - सेकण्ड में फुलस्टॉप, यही क्वेचन आयेगा।*
〰✧ इसी में ही नम्बर मिलेंगे। तो इम्तिहान में पास होने के लिए तैयार हो? सेकण्ड से ज्यादा हो गया तो फेल हो जायेंगे। तो टाइम भी बता रहे हैं - 'एक सेकण्ड और क्वेचन भी सुना रहे हैं - और कोई याद नहीं आये बस फुलस्टॉप' *एक बाप और मैं, तीसरी कोई बात नहीं।*
〰✧ यह कर लूँ, यह देख लूँ. यह हुआ, नहीं हुआ। यह क्यों हुआ, यह क्या हुआ - *कोई बात आई तो फेल।* यह क्वेचन सहज है या मुश्किल?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ पहला विशेष परिवर्तन है स्वरूप का परिवर्तन। मै शरीर नहीं, लेकिन आत्मा हूँ -यह स्वरूप का परिवर्तन है। यह आदि परिवर्तन है। *इसमें भी चेक करो तो जब देहभान का फोर्स होता है तो आत्म अभिमान के स्वरूप में टिक सकते हो या बह जाते हो? अगर सेकण्ड में परिवर्तन शक्ति काम में आ जाए तो समय, संकल्प कितने बच जाते हैं। वेस्ट से बेस्ट में जमा हो जाते हैं।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा स्वयं को बाबा की कुटिया में बैठा हुआ अनुभव कर रही हूं... बाबा की मीठी मीठी यादों में खोई में आत्मा पहुंच जाती हूं परमधाम और बाबा को स्पर्श करती हूं... स्पर्श करते ही एक दिव्य अलौकिक प्रकाश मुझ आत्मा में भर जाता है और मैं आत्मा बहुत शक्तिशाली अनुभव करने लगती हूँ... शक्तिओं से भरपूर होकर मैं आत्मा स्वयं को नीचे उतरता हुआ देख रही हूं... वतन में पहुंच कर बापदादा को अपने सामने देख रही हूं... बाबा बाहें फैलाये सम्मुख खड़े हैं और मैं आत्मा नन्हा फ़रिश्ता बन बाबा की बाहों में समा जाती हूँ...*
❉ *बाबा मुझ आत्मा को अपनी बाहों में लेकर बहुत प्यार से बोले:-* "मेरे सिकीलधे बच्चे.... अब देही अभिमानी बनों बाप आये हैं तुम्हें राजयोग सिखाने, राजयोगी बन बाप से पूरा पूरा वर्सा लेने का पुरुषार्थ करो... *तुम्हें अपने पुरुषार्थ के बल से ही सूर्यवंशी घराने में आना है और बाप से विश्व की बादशाही लेनी है... मेरी आँखों के नूर मैं आया हूँ तुम्हें इस नरक से निकाल अपने साथ ले जाने इसलिए बाप की श्रीमत पर चल अब सम्पूर्ण पवित्र बनो...*"
➳ _ ➳ *बाबा के वाक्यों को अपने हृदय में समाते हुए मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मुझे पवित्रता का वरदान देकर मेरे इस खाली जीवन को आपने खुशिओं से भर दिया है... मैं आत्मा देही अभिमानी बन संपूर्ण सुखों से भरपूर हो गयी हूँ... आप मेरे गाईड बनें और मेरे जीवन को नया रास्ता मिल गया है... *मैं आत्मा आपके बताए रास्ते पर चलकर कितनी महान बनती जा रही हूं , सुख के सागर को पाकर मैं आत्मा धन्य हो गयी हूँ... पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बन गयी हूँ...*"
❉ *बाबा मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... बाप आये हैं तुम्हें बहुत बहुत मीठा बनाने, माया ने तुम्हें खाली कर दिया है बाप आये हैं फिर से तुम्हें ज्ञान के खजाने से मालामाल करने... *अपने को देही समझ एक बाप से योग लगाओ योग से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और तुम नई दुनिया के मालिक बन जायेंगे... मेरा तो एक बाबा दूसरा न कोई इस पाठ को पक्का करो, बाप की श्रीमत पर चलकर ही तुम राज्य के अधिकारी बनते हो... बाप से पूरा वर्सा लेने के लिए निरंतर बाप की याद में रहो...*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की प्रेमभरी वाणी को स्वयं में धारण करते हुए बाबा से कहती हूँ:-* "हां मेरे दिलाराम बाबा... आपकी श्रीमत पाकर मुझ आत्मा के जीवन में नई उमंग और नया उत्साह भर गया है... मैं आत्मा कितनी सौभाग्यशाली हूँ जिसको परमात्मा की पालना मिली है ये सोचते ही मेरे रोम रोम में खुशी और उल्लास की लहर सी दौड़ जाती है... *नाजाने कब से अंजान रास्तों पर चली जा रही थी अपने जीवन की मंजिल का कुछ पता न था आपने आकर मुझ आत्मा को मेरी मंजिल बताकर मुझे भटकने से बचा लिया... आपको पाकर अब और कुछ भी पाना बाकी नही रह गया...*"
❉ *बाबा मुझ आत्मा का ज्ञान श्रृंगार करते हुए मधुर वाणी में बोले:-* "मीठे बच्चे... ज्ञान से ही योग की धारणा होगी इसलिए पढ़ाई कभी मिस नही करनी... बाप से रोज़ पढ़ना है और स्वयं में ज्ञान धारण कर औरों को भी कराने की सेवा करनी है... *बाप रोज़ परमधाम से तुम्हें पढ़ाने आते हैं इस स्मृति में रहना है, निश्चय बुद्धि बनना है , कभी भी संशय में नही आना है... संगदोष में आकर पढ़ाई को कभी नही छोड़ना, ऐसा कोई काम नही करना जिससे बाप की अवज्ञा हो...*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा के महावाक्यों का रसपान करते हुए बाबा से बोली:-* "मेरे प्राणों से प्यारे बाबा... आपने मेरे जीवन को दिव्यता और सुख की अलौकिक चांदनी से चमचमा दिया है... जीवन की प्यास को अपने ज्ञानामृत से बुझा दिया और *मुझ आत्मा की बुद्धि का ताला खोलकर मुझे ज्ञानवान बना दिया...* मैं आत्मा स्वयं को बहुत हल्का अनुभव कर रही हूं... मेरे जन्मों जन्मों की जो खाद आत्मा में पड़ी हुई है उसे योग अग्नि से भस्म करती जा रही हूं... *बाबा आपने वरदानों से मेरा श्रृंगार करके मुझे और भी अलौकिक बना दिया है... आपने मेरे जीवन को ज्ञान और परमात्म प्रेम से भर दिया है आपका कितना भी शुक्रिया करूँ कम ही लगता है... मैं आत्मा बाबा को दिल की गहराइयों से शक्रिया कर अपने साकारी तन में लौट आती हूं...*"
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप के साथ सारे विश्व को शान्ति का दान देना है*"
➳ _ ➳ "विश्व की सर्व आत्मायें शांति की तलाश में भटक रही है, उन तड़पती हुई आत्माओं को शांति की अनुभूति करवाओ" अपने शिव पिता परमात्मा के इस फरमान का पालन करने के लिए, अपनी शांत स्वरूप स्थिति में स्थित हो कर मैं शांति के सागर अपने शिव पिता परमात्मा की याद में बैठ जाती हूँ। *अशरीरी स्थिति में स्थित होते ही मैं स्वयं को शान्तिधाम में शांति के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के सन्मुख पाती हूँ जो शांति की अनन्त शक्तियों से मुझे भरपूर कर रहें हैं*। अपने शिव पिता से आ रही शांति की शक्तिशाली किरणों को स्वयं में समा कर मैं जैसे शांति का पुंज बनती जा रही हूँ।
➳ _ ➳ शांति की असीम शक्ति का स्टॉक अपने अंदर जमा करके अब मैं परमधाम से नीचे आ कर विश्व की उन सर्व आत्माओं को शांति की अनुभूति करवाने चल पड़ती हूँ जो पल भर की शांति की तलाश में भटक रही हैं। *सूक्ष्म लोक में पहुंच कर अपना लाइट का फ़रिशता स्वरूप धारण कर, शांति दूत बन बापदादा के साथ कम्बाइंड हो कर अब मैं विश्व ग्लोब पर आ कर बैठ जाता हूँ*। मैं देख रहा हूँ बापदादा से अविरल शांति की धाराएं निकल रही हैं जो निरन्तर मुझ फ़रिश्ते में समा रही है। शांति की इन धाराओं को मैं फ़रिशता अब विश्व ग्लोब के ऊपर प्रवाहित कर रहा हूँ। *शांति की इन धाराओं के विश्व ग्लोब पर पड़ते ही शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन पूरे विश्व मे फैल रहें हैं*।
➳ _ ➳ जैसे - जैसे ये वायब्रेशन वायुमण्डल में फैल रहें हैं वैसे - वैसे वायुमण्डल में एक दिव्यता छाने लगी है। *जैसे सुबह की ताजी हवा शरीर को सुखद अहसास करवाती है वैसे ही वायुमण्डल में फैले ये शांति के वायब्रेशन आत्माओं को एक अद्भुत सुख का अनुभव करवा रहें हैं*। उनके अशांत मन शांति का अनुभव करके तृप्त हो रहे हैं। सबके चेहरे पर एक सकून दिखाई दे रहा है। *जन्म जन्मान्तर से शांति की एक बूंद की प्यासी आत्माओं की प्यास बुझ रही है*। शांति के सागर शिव पिता से आ रही शांति की किरणों का प्रवाह और भी तीव्र होता जा रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे शांति की शक्ति की किरणों की बरसात हो रही है।
➳ _ ➳ *जैसे चात्रक पक्षी अपनी प्यास बुझाने के लिए स्वांति की एक बूंद पाने की इच्छा से व्याकुल निगाहों के साथ निरन्तर आकाश की ओर देखता रहता है*। इसी प्रकार शांति की तलाश में भटकती और तड़पती हुई आत्मायें भी शांति की एक बूंद पाने की इच्छा से व्याकुल निगाहों से ऊपर देख रही है और शांति की किरणों की बरसात में नहा कर जैसे असीम शांति का अनुभव करके प्रसन्न हो रही हैं। *विश्व की सर्व आत्माओं को शांति की अनुभूति करवाकर अब मैं फ़रिशता बापदादा के साथ फिर से सूक्ष्म लोक में पहुंचता हूँ*। अपनी फ़रिशता ड्रेस को उतार कर अपने निराकारी स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं आत्मा अपने शांत स्वरूप में स्थित हो कर वापिस साकारी दुनिया मे अपने साकारी शरीर मे प्रवेश करती हूँ।
➳ _ ➳ साकारी दुनिया मे आ कर अब मैं आत्मा अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, निरन्तर अपने शांत स्वधर्म में रहकर शांति के वायब्रेशन चारों ओर फैला रही हूँ। सर्व आत्माओ को शांति के सागर बाप का परिचय दे कर, उन्हें भी अपने शांत स्वधर्म में स्थित हो कर शांति पाने का सहज उपाय बता रही हूं। *स्वयं को शांति के सागर अपने शिव पिता के साथ सदा कम्बाइंड अनुभव करने से मेरे सम्पर्क में आने वाली परेशान आत्मायें डेड साइलेन्स की अनुभूति करके सहज ही अपनी सर्व परेशानियों से मुक्त हो रही हैं*। "विश्व की सर्व आत्माओं को शांति का अनुभव कराना" यही मेरा कर्तव्य है। इस बात को सदा स्मृति में रख अब मैं इसी ईश्वरीय सेवा में निरन्तर लगी रहती हूँ।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं इन्तजार को छोड़ इंतजाम करने वाली वियोगी के बजाए सहयोगी सो सहजयोगी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं अपने उमंग-उत्साह द्वारा अनेक आत्माओं का उत्साह बढ़ाने की सच्ची सेवा करने वाली सेवाधारी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. *अगर कोई भी बच्चे थोड़ा भी नीचे-ऊपर होते हैं, अचल से हलचल में आते हैं तो उसका कारण सिर्फ 3 बातें मुख्य हैं,* वही तीन बातें भिन्न-भिन्न समस्या या परिस्थिति बनकर आती हैं। वह तीन बातें क्या हैं? अशुभ वा व्यर्थ सोचना। अशुभ वा व्यर्थ बोलना और अशुभ वा व्यर्थ करना। सोचना, बोलना और करना - इसमें टाइम वेस्टबहुत होता है। अभी विकर्म कम होते हैं, व्यर्थ ज्यादा होते हैं। *व्यर्थ का तूफान हिला देता है और पहले सोच में आता है, फिर बोल में आता है, फिर कर्म में आता है* और रिजल्ट में देखा तो किसी का बोल और कर्म में नहीं आता है लेकिन सोचने में बहुत आता है। जो समय बनाने का है, वह सोचने में बीत जाता है। तो बापदादा आज यह तीन बातें सोचना, बोलना और करना - इनकी गिफ्ट सभी से लेने चाहते हैं। तैयार हैं?
➳ _ ➳ 2. सभी ने यह दे दिया। वापस नहीं लेना। यह नहीं कहना कि मुख से निकल गया, क्या करें? मुख पर दृढ़ संकल्प का बटन लगा दो। दृढ़ संकल्प का बटन तो है ना?क्योंकि बापदादा को बच्चों से प्यार है ना। *तो प्यार की निशानी है, प्यार वाले की मेहनत देख नहीं सकते।* बापदादा तो उस समय यही सोचते कि बापदादा साकार में जाकर इनको कुछ बोले, लेकिन अब तो आकारी, निराकारी है। बिल्कुल सभी मेहनत से दूर मुहब्बत के झूले में झूलते रहो। *जब मुहब्बत के झूले में झूलते रहेंगे तो मेहनत समाप्त हो जायेगी।* मेहनत को खत्म करें, खत्म करें नहीं सोचो। सिर्फ मुहब्बत के झूले में बैठ जाओ, मेहनत आपेही छूट जायेगी। छोड़ने की कोशिश नहीं करो, बैठने की, झूलने की कोशिश करो।
➳ _ ➳ 3. *बाप को भी बच्चों पर फेथ है।* पता नहीं कैसे कोई-कोई किनारा कर लेते हैं जो बाप को भी पता नहीं पड़ता। छत्रछाया के अन्दर बैठे रहो। ब्राह्मण जीवन का अर्थ ही है झूलना, माया में नहीं।
➳ _ ➳ 4. तो माया भी झूला झुलाती है लेकिन माया के झूले में नहीं झूलना।
➳ _ ➳ 5. अभी *अतीन्द्रिय सुख* के झूले में झूलो, *खुशी* के झूले में झूलो। *शक्तियों की अनुभूतियों* के झूले में झूलो। अभी *प्रेम* के झूले में झूलो, अभी *आनंद* के झूले में झूलो। अभी *ज्ञान* के झूले में झूलो। तो झूले से उतरो नहीं।
✺ *ड्रिल :- "सदैव मुहब्बत के झूले में झूलते हुए मेहनत से मुक्त होने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *परम सत्ता के सानिध्य में बैठी मैं आत्मा... डूब जाती हूँ उसकी ही यादों में...* परम सत्ता... परम पिता मेरे... जिसकी यादों में दिल डूबा ही रहता हैं... जिसको भूलने की दरकार ही नहीं... हर घड़ी... हर पल अभुल बन के छाया है मुझ आत्मा के दिलों दिमाग पर... वह परम पवित्र आत्मा... *मुझ आत्मा का पिता... जिस के सानिध्य में मैं आत्मा परम शांति का अनुभव करती हूँ...* मनरूपी नाव पे सवार हो कर... समुन्दररूपी व्यर्थ के तूफानों को पार करती मैं आत्मा... पहुँच जाती हूँ परमधाम में... शांति के धाम में...
➳ _ ➳ बिंदु बन कर बिंदु रूपी बाप की छत्रछाया में समां रही हूँ... *उसकी अनंत शक्ति रूपी किरणों को अपने में धारण कर मैं बिंदु आत्मा बिंदु बाप की परछाई बन रही हूँ...* परमधाम में पिता के साथ चल मैं आत्मा पहुँचती हूँ सूक्ष्मवतन में... जहाँ मेरे ब्रह्माबाबा मेरा इंतजार कर रहे थे... *शिवबाबा का ब्रह्माबाबा के भालतख्त पर विराजमान होने का ऐतहासिक नजारा मैं आत्मा साक्षी होकर के देख रही हूँ...* एक चमकती हुई दिव्य ज्योति पुंज का अवतरण ब्रह्मा तन में... प्रत्यक्ष होता हुआ देख रही हूँ... बापदादा का कंबाइंड स्वरुप नजर को निहाल कर रहा है...
➳ _ ➳ बापदादा के संग संग चलती मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ... साकार मनुष्य लोक में... भक्ति मार्ग की रस्मों-रिवाज में उलझी हुई आत्माओं को देखा... *जप-व्रत-तीर्थ आदि में स्वयं को भूली आत्मा... परमात्मा को भूली आत्मा... ढूंढ रही हैं भगवान को...* परम शांति... परम सुख का मार्ग ढूंढती आत्मा... कभी ख़ुशी... कभी गम के झूले में... झूलती रहती हैं... ख़ुशी का पारा कभी ऊपर तो कभी नीचे होता ही रहता हैं... भगवान को पाने की मेहनत में संगमयुग व्यतीत कर रहे हैं... *संगमयुग की अनमोल घड़ियों को मुहब्बत के बजाये मेहनत से तोल रहे हैं...*
➳ _ ➳ बापदादा के संग संग... मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ... *ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में... जहाँ हर ब्राह्मण आत्मा... अपने संगमयुग की ऐतिहासिक पलों को अपने ही यादगार बनाने में लगी हैं... भगवान को स्वयं जान... स्वयं महसूस करती हर ब्राह्मण आत्मा... अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलती ही रहती हैं... बापदादा की यादों में अपने मन बुद्धि को सफल करती रहती हैं... सिर्फ मुहब्बत के झूले में बैठ... मेहनत से मुक्त आत्मायें... बापदादा के दिलतख्तनशीन बन जाते हैं... मुहब्बत के झूले में झूल मेहनत को समाप्त करती हर एक ब्राह्मण आत्मा...* शक्तियों की अनुभूतियों के झूले में... तो कभी प्रेम के झूले में... कभी आनंद के झूले में... कभी ज्ञान के झूले में झूलती ही रहती हैं...
➳ _ ➳ और मैं फ़रिश्ता आत्मा... अपने आप को भी देख रही हूँ मुहब्बत के झूले में झूलता हुआ... मेहनत से मुक्त... *बापदादा के दिलतख़्त पर विराजमान होता हुआ...* बापदादा अपनी शक्तियों रूपी किरणों को सभी सेंटर पर फैला रहें हैं और मैं आत्मा... सभी ब्राह्मण आत्माओं के साथ उस शक्ति रूपी किरणों की बारिश में भीग रही हूँ... पूर्णतः शक्तियों से भरपूर... सभी ब्राह्मण... संगमयुगी... आत्मायें... हर पल को यथार्थ रीति बापदादा की यादों में प्यार की वर्षा में बहाते जा रहे हैं... *सोचना... बोलना... और करना... बाप समान बनते जाते हैं...* बापदादा के नूरे रत्न बनते जा रहे हैं... ॐ शांति
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━