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 08 / 10 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बाप का मददगार बन रूहानी सोशल सेवा की ?*

 

➢➢ *हीयर नो ईविल, सी नो ईविल" - इस धारणा पर अमल किया ?*

 

➢➢ *सरल संस्कारों द्वारा अछे, बुरे की आकर्षण से परे रहे ?*

 

➢➢ *सर्व प्राप्तियों से संपन्न रह इच्छा मातरम् अविध्या स्थिति का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *कर्म करते तन का भी हल्कापन, मन की स्थिति में भी हल्कापन। कर्म की रिजल्ट मन को खींच न ले। जितना ही कार्य बढ़ता जाये उतना ही हल्कापन भी बढ़ता जाये।* कर्म अपनी तरफ आकर्षित नहीं करे लेकिन मालिक होकर कर्म कराने वाला करा रहा है और करने वाले निमित्त बनकर कर रहे हैं- *यह अभ्यास बढ़ाओ तो सम्पन्न कर्मातीत सहज ही बन जायेंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं एकरस रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

  सभी सदा एकरस स्थिति में स्थित रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो ना। *अनुभवी आत्मायें बन गई ना। सब दुनिया के रस अनुभव कर लिये। अब इस ईश्वरीय रस का अनुभव किया, तो वह रस क्या लगते है? फीके लगते हैं ना। जब है ही एक रस मीठा तो एक ही तरफ अटेन्शन जायेगा ना।*

 

  *एक तरफ मन लग ही जाता है, मेहनत नहीं लगती है। बाप का स्नेह, बाप की मदद, बाप का साथ, बाप द्वारा सर्व प्राप्तियां सहज बना देती है। हरेक इसी अनुभव से आगे बढ़ रहे हो, यह देख बाप भी हर्षित होते हैं।|*

 

  जितना भी देश में दूर स्थान पर हो, उतना ही दिल में नजदीक हो। बापदादा सेकेण्ड में सभी बच्चों को आह्वान कर इमर्ज कर लेते हैं, भल वह कितना भी दूर हो। आपको भी अनुभव होता है ना - बाप अमृतवेले कैसे मिलन मनाते हैं!

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  अपने आपको सफलता के सितारे हैं - ऐसे अनुभव करते हो? *जहाँ सर्व शक्तियाँ हैं, वहाँ सफलता जन्म-सिद्ध अधिकार है।* कोई भी कार्य करते हो, चाहे शरीर निर्वाह अर्थ, चाहे ईश्वरीय सेवा अर्थ, कार्य में कार्य करने के पहले यह निश्चय रखो।

 

✧   निश्चय रखना अच्छी बात है लेकिन प्रैक्टिकल अनुभवी आत्मा बन निश्चय और नशे में रहो'। *सर्वशक्तियाँ इस ब्राह्मण जीवन में सफलता के सहज साधन हैं।* सर्व शक्तियों के मालिक हो इसलिए किसी भी शक्ति को जिस समय ऑर्डर करो, उस समय हाजिर हो।

जैसे कोई सेवाधारी होते हैं, सेवाधारी को जिस समय ऑर्डर करते हैं तो सेवा के लिए तैयार होता हैं। ऐसे सर्व शक्तियाँ आपके ऑर्डर में हो।

 

✧  *जितना-जितना मास्टर सर्वशक्तिवान की सीट पर सेट होंगे उतना सर्वशक्तियाँ सदा ऑर्डर में रहेंगी।* थोडा भी स्मृति की सीट से नीचे आते हैं तो शक्तियाँ ऑर्डर नहीं मानेंगी। सर्वेन्ट भी होते है तो कोई ओबीडियेन्ट होते हैं, कोई थोडा नीचे-ऊपर करने वाले होते हैं। तो आपके आगे सर्व शक्तियाँ कैसे हैं? *ओबिडियेन्ट हैं या थोडी देर के बाद पहुँचती है।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *जिस बात में कमजोर होंगे, उसी रूप में जान बूझकर भी माया लास्ट पेपर लेगी। इसलिए विदेही बनने का अभ्यास बहुत ज़रूरी है।* कोई भी रूप की माया आये, समझ तो है ही। *एक सेकण्ड में विदेही बन जायेंगे तो माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा। जैसे कोई मरा हुआ व्यक्ति हो, उसके ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है ना* विदेही माना देह से न्यारा हो गया तो देह के साथ ही स्वभाव, संस्कार, कमजोरियाँ सब देह के साथ हैं, और देह से न्यारा हो गया तो सबसे न्यारा हो गया। इसलिए यह ड्रिल बहुत सहयोग देगी, *इसमें कण्ट्रोलिंग पावर चाहिए। मन को कण्ट्रोल कर सकें, बुद्धि को एकाग्र कर सकें। नहीं तो आदत होगी तो परेशान होते रहेंगे। पहले एकाग्र करें तब ही विदेही बनें।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺  *"ड्रिल :-  स्वयं भगवान हमें पढ़ा रहे हैं इस निश्चय में रहना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा रूपी गोपिका जन्म जन्मान्तर से ढूंढ रही अपने मुरलीधर को सामने पाकर अलौकिक सुखों के नशे में डूब जाती हूँ... वो हर पल मेरी ऊँगली पकड मेरे संग-संग चल रहा हैमाया के छल में फिर से फंसने से पल पल बचा रहा है...* ऐसे मुरलीधर की मधुर मुरली का रस पान करने मैं आत्मा गॉडली स्टूडेंट बन सेण्टर में बाबा के सामने बैठ जाती हूँ...

 

  प्यारे बाबा रूहानी पाठशाला में नर से नारायण बनने की शिक्षा देते हुए कहते हैं:- "मेरे मीठे फूल बच्चे... कितने महान भाग्यशाली हो... *जिस ईश्वर पिता को दर दर खोज रहे थे... आज वह पिताटीचरऔर सतगुरु रूप में सम्मुख मौजूद है... और साधारण नर से श्रेष्ठतम नारायण बना रहा है...* अपने इस बेमिसाल भाग्य के नशे में गहरे डूब जाओ..."

 

 _ ➳  मैं आत्मा परमात्मा को अपने सामने हाजिर नाजिर पाकर धन्य धन्य होती हुई कहती हूँ:- "हाँ मेरे प्यारे बाबा... *मैं आत्मा अपने महान भाग्य को देख देख पुलकित हूँ और खुशियो में झूम रही हूँ... प्यारा भगवान मुझे यूँ सहज मुफ़्त में मिल गया... मेरा भाग्य सदा का खुबसूरत हो गया...* यह गीत में धरती अम्बर में गुनगुना रही हूँ...” 

 

  मीठे बाबा निश्चय बुद्धि विजयंती का पाठ पक्का कराते हुए मुझसे कहते हैं:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *सोचा था कल्पनाओ में भी कभी... कि भगवान यूँ बैठ पढ़ायेगाज्ञान रत्नों से सजाएगाऔर हाथ में हाथ लिए अपने मीठे घर को ले जायेगा... फिर अनन्त सुखो से भरी दुनिया में राज्याधिकार दिलाएगा...* ऐसे भाग्य को पाने वाले खुबसूरत देवता हो... सदा इस निश्चय में निश्चिन्त रहो...

 

 _ ➳  मैं आत्मा ईश्वर को पाकरपाना था सो पा लिया का गीत गुनगुनाती हुई कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता को ही सतगुरु रूप पाकर दुनियावी गुरुओ से मुक्त हो गई हूँ... *देह के हर नाते से उपराम होकर ईश्वरीय यादो में खोती जा रही हूँ...* और अपने देवताई स्वरूप की यादो में रोमांचित हो रही हूँ... मीठे बाबा आपको पाकर मैंने सब कुछ पा लिया है...

 

 प्यारे बाबा गॉडली गोल्डन गिफ्ट के स्टॉक से मुझे भरपूर करते हुए कहते हैं:- "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता ने स्वयं अपनी पलको से चुना है और अपनी निराली पाठशाला का फूल बनाया है... इस महानतम नशे को रग रग में समालो... *ईश्वर स्वयं पिताटीचर और सतगुरु बन पालना कर रहा... ज्ञान रत्नों से झोली भर कर सदा का मालामाल कर रहा है... सदा इस निश्चय में अटल रहो..."*

 

 _ ➳  मैं आत्मा निश्चय बुद्धि बन प्यारे बाबा की गोदी में निश्चिन्त होकर सुखों का अनुभव करते हुए कहती हूँ:-"हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा न जाने कौन से पुण्य से आज भगवान को पा गई हूँ... *मीठे बाबा आपने हर भटकन से छुड़ाकरकदमो तले सुखो के फूल बिछाए है... और श्रीमत के हाथो में जीवन कितना महफूज कर दिया है... मै आत्मा ईश्वरीय पालना में कितनी सुखी और निश्चिन्त हो गयी हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सच्चे - सच्चे रूहानी सेलवेशन आर्मी बन भारत को विकारों से सेलवेज करना है*"

 

_ ➳  5 विकारों रूपी माया रावण की जेल में कैद सभी आत्मा रूपी सीताओं को इस जेल से छुड़ाये, उन्हें सेल्वेज करने के लिए स्वयं जगत के नियन्ता प्रभु राम अर्थात *परम पिता परमात्मा शिव बाबा ने आकर जो ईश्वरीय सेल्वेशन आर्मी बनाई है, उस ईश्वरीय सेल्वेशन आर्मी का प्रमुख सैनिक और अपने प्रभु राम का सच्चा - सच्चा खुदाई खिदमतगार बन सभी आत्मा रूपी सीताओं को रावण की कैद से छुड़ाना और सबको माया से लिबरेट करना हर ब्राह्मण बच्चे का मुख्य कर्तव्य है*।

 

_ ➳  इस बात को स्मृति में लाकर अपने लाइट के फ़रिश्ता स्वरूप को धारण कर, सच्चा - सच्चा खुदाई खिदमतगार बन सबको माया से लिबरेट करने के, अपने खुदा बाप के फरमान का पालन करने के लिए मैं उड़ चलता हूँ ऊपर की ओर। *सारे विश्व मे भ्रमण करते हुए मैं देख रहा हूँ विश्व की सर्व आत्माओं को जो विकारों की अग्नि में जल रही हैं। माया रावण के चंगुल से छूटने का भरसक प्रयास कर रही हैं किन्तु सामर्थ्य ना होने के कारण उसके आकर्षक जाल में और ही फँस कर दुर्गति को पाती जा रही हैं*।

 

_ ➳  अपने इन सभी आत्मा भाइयों को माया से लिबरेट करने के लिये अब मैं अपने प्यारे बापदादा का आह्वान करती हूँ। *बापदादा के साथ कम्बाइंड हो कर, विश्व ग्लोब पर बैठ, बापदादा से सर्वशक्तियाँ ले कर अब मैं विश्व की सर्व आत्माओं में प्रवाहित कर रही हूँ*। 5 विकारों काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार की अग्नि में जल रही आत्माओं पर ये शक्तियां शीतल फुहारों के रूप में बरस कर विकारों की अग्नि को शांत कर, उन्हें शीतलता का अनुभव करवा रही है। *शीतलता की यह अनुभूति उन्हें सुकून दे रही हैं। सर्व आत्माओं को परमात्म सन्देश और परमात्म परिचय मिल रहा है*।

 

_ ➳  सच्चा सच्चा खुदाई ख़िदमतगार बन विश्व की सर्व आत्माओं को परमात्म परिचय दे कर, उन्हें माया से लिबरेट होने का सहज रास्ता बता कर, अब मैं स्वयं को परमात्म बल से भरपूर करने के लिए अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होकर अपनी निराकारी दुनिया की ओर चल पड़ती हूँ। *विश्व ग्लोब से ऊपर, सूक्ष्म वतन को पार कर मैं पहुंच जाती हूँ निराकारी आत्माओं की दुनिया परमधाम में। परमधाम में अपने मीठे प्यारे शिव बाबा के सानिध्य में बैठ अब मैं स्वयं को उनकी सर्वशक्तियों से भरपूर कर रही हूँ*।

 

_ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे बाबा अपनी सारी शक्तियाँ मुझ आत्मा में भरकर अपनी समस्त पावर मेरे अंदर समाहित कर रहे हैं ताकि *संपूर्ण ऊर्जावान बन मैं विश्व की सर्व आत्माओं को, जो 5 विकारों रूपी माया रावण की जेल में फंस कर दुखी हो रही हैं और उसकी कैद से छूटने के लिए छटपटा रही हैं, उन सबको माया से लिबरेट कर,

परमात्म शक्तियों से उन्हें बलशाली बना कर विकारों से मुक्त होने का बल उनमें भर सकूँ*।

 

_ ➳  परमात्म शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर, सम्पूर्ण ऊर्जावान बन अब मैं परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और साकारी दुनिया मे आकर अपने साकारी तन में प्रवेश कर, अपने ब्राह्मण स्वरूप को धारण कर लेती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरुप में स्थित होकर सच्चा - सच्चा खुदाई ख़िदमतगार बन, अपने शुद्ध और श्रेष्ठ संकल्पों की शक्ति से, सबको माया से लिबरेट करने की ऑन गॉडली सर्विस पर अब मैं सदैव तत्पर रहती हूँ*। सेल्वेशन आर्मी बन सबको विकारों की दुबन से निकाल उन्हें सेल्वेज करने का रूहानी धन्धा अब मैं हर समय कर रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सरल संस्कारों द्वारा अच्छे, बुरे की आकर्षण से परे रहने वाली सदा हर्षितमूर्त आत्मा  हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न होकर इच्छा मात्रम् अविद्या स्थिति का अनुभव करने वाली आत्मा हूँ  ।* 

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. *अनुभवी होजब कोई अच्छा कर्म करते हो तो कर्म का फल उसी समय प्रत्यक्ष रूप में खुशीशक्ति और सफलता के कारण डबल लाइट रहते हो क्योंकि याद रहता है बाप के साथ से कर्म किया।* और अगर अभी कोई विकर्म होता है तो उसका पश्चाताप बहुत लम्बा है। वैसे *अभी विकर्म तो कोई होना नहीं चाहिएवह तो टाइम अभी बीत गया,* लेकिन अभी कोई व्यर्थ संकल्प वा व्यर्थ कर्म, व्यर्थ बोलव्यर्थ संबंध-सम्पर्क भी न हो। क्योंकि व्यर्थ संबंध-सम्पर्क भी बहुत धोखा देता है। जैसा संग वैसा रंग लग जाता है। कई बच्चे बड़े चतुर हैं कहते हैं हम तो संग नहीं करतेलेकिन वह मेरे को नहीं छोड़तेमैं नहीं करतीवह नहीं छोड़ते। तो क्या किनारा करना नहीं आता?  *अगर कोई बुरी चीज दे तो आप लेते क्यों हो! लेने वाला नहीं लेगा तो देने वाला क्या करेगा?* इसीलिए व्यर्थ सम्बन्ध और सम्पर्क भी एकाउण्ट खाली कर देता है।

 

 _ ➳  2. बापदादा को बच्चों के भिन्न-भिन्न खेल देख हँसी भी आती हैरहम भी आता है और *बापदादा उस समय टच करता हैयह भी अनुभव करते हैं। नहीं करना चाहिएश्रीमत नहीं हैयह बाबा समान बनना नहीं हैटच भी होता है लेकिन अलबेलापन सुला देता है।* इसलिए अभी स्व के प्रति ज्यादा खजाने खर्च नहीं करो। *जमा भले करो लेकिन खर्च नहीं करो। सेवा भले करोव्यर्थ खर्च नहीं करो। बहुत जमा करना है ना!*

 

✺   *ड्रिल :-  "व्यर्थ संकल्प वा व्यर्थ कर्म, व्यर्थ बोल, व्यर्थ संबंध-सम्पर्क से किनारा करना"*

 

 _ ➳  व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करती मैं आत्मा... बैठी हूँ... बाबा के कमरे में... मन के तार एक बाप से जुड़ते ही... पहुँच जाती हूँ... एक ऊँची पहाड़ी की चोटी पर...शांत... खुशनुमा... वातावरण... ठंडे ठंडे पवन के झोंको के बीच बैठी मैं आत्मा... देख रही हूँ... *बापदादा के अलौकिक... दिव्य रूप... का आगमन... इस पावन धरती पर...* प्रकृति भी बापदादा के स्वागत में सुगन्धित फूलों की बौछार कर रही हैं... मैं दौड़ कर बाबा के गले लग जाती हूँ... बापदादा अपना रूहानी हाथ मेरे मस्तक पर रखते हैं और मुझ आत्मा को अपनी शक्तियों से भर रहे हैं... *63 जन्मों की थकान... 63 जन्मों के विकार... पल भर में दूर हो जाते हैं...*

 

 _ ➳  बापदादा के साथ मैं आत्मा... पहुँच जाती हूँ... मधुबन... जहां हज़ारों आत्मायें... *बाबा को मिलने... बाबा की एक नजर से निहाल होने आयें हैं...* मैं आत्मा फ़रिश्ता स्वरुप में डायमंड हॉल में भव्य अलौकिक नजारे को साक्षी होकर देख रही हूँ... ब्रह्मा बाबा के साथ खड़ी मैं आत्मा... देख रही हूँ... *एक दिव्य परम पवित्र ज्योति का अवतरण...* सभी आत्माओं की झोली... प्यार का सागर... प्यार से भर रहा है... अखूट खजाने से सबको मालामाल कर रहा है... सभी आत्मायें... धन्यता से भरपूर हो गई हैं... *बापदादा के एक एक बोल को अपने मन बुद्धि में सुनहरे अक्षरों से अंकित करती सभी आत्मायें...* अलौकिक मिलन को अपनी स्मृति में छुपाकर अपने साथ लौकिक जीवन में लेकर जाते हैं...

 

 _ ➳  मैं आत्मा... बापदादा के साथ सभी ब्राह्मण आत्मायें जो बाबा मिलन प्रत्यक्ष मनाकर आये थे... उनकी बाबा मिलन के बाद की स्थिति का अवलोकन करने चल पड़ती हूँ... बापदादा मेरा हाथ थाम कर ले चलते हैं मुझे सभी ब्राह्मण आत्माओं के लौकिक घर पर... सुख... शांति... पवित्रता से सजा हुआ वातावरण... *अलौकिक प्यार और अलौकिक पवित्रता के पालने में झूलते बच्चे... श्रीमत पर बलिहार जाते पवित्र गृहस्थ जीवन...* मन ख़ुशी में झूम उठा जब देखा *बाबा का झंडा* हर ब्राह्मण आत्मा के घर पर लहरा रहा हैं... *बापदादा की श्रीमत "व्यर्थ संकल्प वा व्यर्थ कर्मव्यर्थ बोलव्यर्थ संबंध-सम्पर्क से किनारा करना"* को फॉलो कर हर ब्राह्मण आत्मायें अपने पुरुषार्थ को हाई जम्प दे रहे हैं... ब्राह्मण होने का प्रत्यक्ष सबूत हर सपूत बच्चा दे रहा हैं...

 

 _ ➳  बहुत सी ऐसी ब्राह्मण आत्माओं को भी देखा जो अलबेले थे... पुरुषार्थ के प्रति सजग नहीं थे... अपने ब्राह्मण संस्कारों को... व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ कर्मव्यर्थ बोल, व्यर्थ संबंध-सम्पर्क में उलझें हुए थे... *संगमयुग की अनमोल घड़ियों को व्यर्थ गवां रहे थे...* पुरुषार्थ से प्रालब्ध तक के रूहानी सफर को अलबेलेपन के संस्कारों द्वारा कांटों का जंगल बना रहे थे... व्यर्थ संकल्प... व्यर्थ कर्म... व्यर्थ बोल और व्यर्थ सम्बन्ध-संपर्क से किनारा नहीं कर पा रहे थे... *बापदादा अपनी शक्तियों रूपी रंग बिरंगी किरणों को सभी अलबेली ब्राह्मण आत्माओं पर फैलाने लगें... अपनी ज्ञान रूपी अनंत किरणों को सभी पर न्यौछावर कर रहे हैं...*

 

 _ ➳  सभी ब्राह्मण आत्मायें अपने अलबेले संस्कारों का त्याग कर... पुरुषार्थ की उड़ती कला के भागीदार बन गये हैं... चढ़ती कला के हक़दार बन गये हैं... बाबा की श्रीमत को सुनहरे अक्षरों से मन बुद्धि में अंकित कर फॉलो कर रहे हैं... उतरती कला से चढ़ती कला में परिवर्तन कर अपने कुल का उद्धार कर रहे हैं... *बापदादा का झंडा लहरा कर आने सपूत बच्चे होने का सबूत दे रहे हैं...* मैं आत्मा बापदादा के साथ यह परिवर्तन का दिव्य नजारा देख भाव विभोर हो जाती हूँ... अब तो घर घर में *बापदादा का झंडा* लहराता हुआ दिखाई दे रहा हैं... सभी आत्मायें बापदादा की बन चुकी हैं... व्यर्थ संकल्प... व्यर्थ बोल... व्यर्थ कर्म और व्यर्थ सम्बन्ध-संपर्क से मुक्त हो कर अपने बुद्धि को सिर्फ एक बाप में लगा रहे हैं... और मैं आत्मा... बापदादा का हाथ अपने हाथों में रख... *"व्यर्थ संकल्प... व्यर्थ बोल... व्यर्थ कर्म और व्यर्थ सम्बन्ध-संपर्क से किनारा करने का संकल्प करती हूँ... और संगमयुग की अनमोल घड़ियों को व्यर्थ न गवां कर समर्थ घड़ियों में परिवर्तित कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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