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❍ 14 / 07 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *बाप समान महिमा योग्य बनने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *बहुत बहुत बहादुर बन पवित्रता को धारण किया ?*
➢➢ *छोटी छोटी अवग्याओं के बोझ को समाप्त कर सदा समर्थ स्थिति का अनुभव किया ?*
➢➢ *सम्मान मांगने की बजाये सबको सम्मान दिया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *सबसे तीव्रगति की सेवा है–'वृत्ति द्वारा वायब्रेशन फैलाना'। वृत्ति बहुत तीव्र राकेट से भी तेज है।* वृत्ति द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन कर सकते हो। जहाँ चाहो, जितनी आत्माओं के प्रति चाहो वृत्ति द्वारा यहाँ बैठे-बैठे पहुंच सकते हो। *वृत्ति द्वारा दृष्टि और सृष्टि परिवर्तन कर सकते हो। सिर्फ वृत्ति में सर्व के प्रति शुभ भावना, शुभ कामना हो।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बालक सो मालिक हूँ"*
〰✧ डबल नशा रहता है कि मैं श्रेष्ठ आत्मा मालिक भी हूँ और फिर बालक भी हूँ? एक है मालिकपन का रूहानी नशा और दूसरा है बालकपन का रूहानी नशा। यह डबल नशा सदा रहता है या कभी-कभी रहता है? 'बालक' सदा हो या कभीकभी हो? *बालक सदा बालक ही है ना। परमात्म-बालक हैं और फिर सारे आदि-मध्य-अन्त को जानने वाले मालिक हैं। तो ऐसा मालिकपन और ऐसा बालकपन सारे कल्प में और कोई समय नहीं रह सकता।*
〰✧ सतयुग में भी परमात्म-बच्चे नहीं कहेंगे, देवात्माओंके बच्चे हो जायेंगे। *तीनों कालों को जानने वाले मालिक-यह मालिकपन भी इस समय ही रहता है। तो जब इस समय ही है, बाद में मर्ज हो जायेगा, तो सदा रहना चाहिए ना। डबल नशा रखो। इस डबल नशे से डबल प्राप्ति होगी मालिकपन से अपनी अनुभूति होती है और बालकपन के नशे से अपनी प्राप्ति।* भिन्न-भिन्न प्राप्तिया हैं ना। यह रूहानी नशा नुकसान वाला नहीं है। रूहानी है ना। देहभान के नशे नुकसान में लाते हैं। वो नशे भी अनेक हैं। देहभान के कितने नशे हैं? बहुत हैं ना-मैं यह हूँ, मैं यह हूँ, मैं यह हूँ.......। लेकिन सभी हैं नुकसान देने वाले, नीचे लाने वाले।
〰✧ यह रूहानी नशा ऊंचा ले जाता है, इसलिए नुकसान नहीं है। हैं ही बाप के। तो बाप कहने से बचपन याद आता है ना। बाप अर्थात् मैं बच्चा हूँ तभी बाप कहते हैं। तो सारा दिन क्या याद रहता है? 'मेरा बाबा'। या और कुछ याद रहता है? 'बाबा' कहने वाला कौन? बच्चा हुआ ना। तो सदा बच्चे हैं और सदा ही रहेंगे। सदा इस भाग्य को सामने रखो अर्थात् स्मृति में रखो-कौन हूँ, किसका हूँ और क्या मिला है! क्या मिला है-उसकी कितनी लम्बी लिस्ट है! लिस्ट को याद करते हो या सिर्फ कॉपी में रखते हो? कॉपी में तो सबके पास होगा लेकिन बुद्धि में इमर्ज हो-मैं कौन? तो कितने उत्तर आयेंगे? बहुत उत्तर हैं ना। उत्तर देने में, लिस्ट बताने में तो होशियार हो ना। *अब सिर्फ स्मृतिस्वरूप बनो। स्मृति आने से सहज ही जैसी स्मृति वैसी स्थिति हो जाती है।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ बापदादा आपस में बोले कि अशरीरी आत्मा को अशरीरी बनने में मेहनत क्यों? ब्रह्मा बाप बोले - '*84 जन्म चोला धारण कर पार्ट बजाने के कारण पार्ट बजाते-बजाते शरीरधारी बन जाते हैं।*' शिव बाप बोले - ‘पार्ट बजाया लेकिन अब समय कौन-सा है? समय की स्मृति प्रमाण कर्म भी स्वतः ही वैसे होता है। यह तो अभ्यास है ना?’
〰✧ बाप बोले - ‘‘*अब पार्ट समाप्त कर घर जाना है।* पार्ट की ड्रेस तो छोडनी पडेगी ना? घर जाना है तो भी *यह पुराना शरीर छोडना पडेगा,* राज्य में अर्थात स्वर्ग में जाना है तो भी यह पुरानी ड्रेस छोडनी पडेगी।
〰✧ तो जब *जाना ही है तो भूलना मुश्किल क्यों?* जाना है, क्या यह भूल जाते हो? आप सभी तो जाने के लिए एवररेडी हो ना कि अब भी कुछ रस्सियाँ बँधी हुई हैं? एवररेडी हो ना?’
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ 'बिन्दु' शब्द ही कमाल का शब्द है। जादू का शब्द है। *बिन्दु बनो और आर्डर करो तो सब तैयार है। संकल्प की ताली बजाओ और सब तैयार हो जायेगा। लेकिन बिन्दु की ताली प्रकृति भी सुनेगी, सर्व कर्मइन्द्रियाँ भी सुनेंगी और सर्वसाथी भी सुनेंगे। बिन्दु बन करके ताली बजाने आती है?*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप से जीवनमुक्ति का वर्सा प्राप्त करना"*
➳ _ ➳ *जीवन मुक्ति अर्थात जीवन मुक्त जीवन... कोई बंधन नहीं... ना दैहिक धर्म का... मैं हिंदू... मैं मुस्लिम... न दैहिक संबंधों का... मैं बेटी... मै माँ...* सभी... तो सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त, उड़ता पंछी... ऐसा जीवन बाबा से विरासत में मिला है... *21 जन्म मैं आत्मा देही अभिमानी हो रहूंगी... मुझ आत्मा को एक शरीर छोड़ दूसरा धारण करना है, यह ज्ञान मुझ आत्मा में होगा... बड़े-बड़े महल जो स्वपन में भी नहीं देखे होंगे, मैं आत्मा उन महलों में पलूंगी... खेलूंगी... सुख ही सुख होगा... अपार शांति पवित्रता कि मैं आत्मा धनी होंगी...* धन्य हो गई मैं आत्मा ऐसा जीवन पाकर... ऐसा जीवन विधाता पाकर... *मेरी तकदीर की तस्वीर सजाने वाले तुझे दिल याद करें... यही गीत गुनगुनाते मैं फरिश्ता स्वरूप आत्मा उड़ चलती हूं सूक्ष्म वतन की ओर...*
❉ *मीठे बाबा मीठी सी मुस्कान देते बोलते हैं:- "मीठी रूहानी बच्ची... जरा बताओ तो, जीवन मुक्त जीवन कैसा अनुभव हो रहा है?... पिंजरे की मैना से, उड़ता पंछी बन क्या अनुभूतियां हो रही है?...* 63 जन्म तुमने मुझे पुकारा... अब मैं आया हूं तुम्हें दुःखों से लिबरेट करने... तो अब यह संगम का सुहावना... मौजो से भरा युग कैसा बीत रहा है?... *पहले जीवन क्या थी? और अब क्या है? यह तो तुम अब खुद ही जज करो..."*
➳ _ ➳ *मीठे बाबा को एकटक निहारती, प्यारी सी मुस्कान देते, आंखों में पिता के लिए सम्मान भरे मैं आत्मा बाबा से बोली:- "मीठे बाबा... क्या बताऊं... बस अनुभवो में डूबी हुई हूं...* शब्द भी कम लगते हैं... कितना तो जीवन खुशियों से महक उठा है... कोई अप्राप्त वस्तु नहीं... *दिल दर्पण में देखती हूं तो सारे पुराने कर्मों के खाते चुक्तु होते जाते नजर आ रहे हैं... सब आपकी याद का ही कमाल है बाबा... मैं आत्मा खुद को लक्ष्मी को वरने लायक देख रही हूं..."*
❉ *मीठे बाबा खिलखिलाहट भरे चेहरे से हर्षित होते हुए बोल उठे:- "अहो सौभाग्य मीठे बच्चे...* बाप को भी अच्छा लग रहा है कि बच्चे लायक बन रहे हैं... *शाबाश मीठे बच्चे... खूब दौड़ी लगाओ... लगाती जाओ और बाप के गले का हार बन जाओ...* अभी रूद्र माला में पिरो, फिर विष्णु की माला में फिर आओगे... *खूब दौड़ो और जीत लो मम्मा बाबा का तख्त..."*
➳ _ ➳ *पूरे उमंग उत्साह में भरी मैं आत्मा चेहरे पर रूहानी चमक लिए बाबा से बोली:-* "मीठे बाबा... जैसे-जैसे मैं आत्मा मंजिल की ओर बढ़ती जा रही हूं, यह उमंग उत्साह थमने का नाम ना ले बढ़ता ही जा रहा है... *सभी विघ्नों को मैं आत्मा हाई जंप लगाती उड़ती जा रही हूं... मैं आत्मा निर्विघ्न हूं, मैं आत्मा विजय हूं... अखण्ड स्मृतियों में विघ्न मानो साइड सीन शोभित हो रहे हैं..."*
❉ *मीठे बाबा प्यारी सी मीठी सी जोश से भरी थपथपाहट देते हुए मुझ आत्मा से बोले:- "शाबाश मेरे जवान, शाबाश... माया पहलवान भल पछाड़े, मगर याद रखना समर्थ उस्ताद भी आपके साथ खड़ा है...* जैसे बाप समर्थ है वैसे आप भी समर्थ मास्टर सर्वशक्तिमान हो... *वर्से को प्राप्त करके ही दिखाना, सिर्फ पास ही नहीं पास विद ऑनर बन विजय माला में उतरना है... यही शुभ आश हैं बाप की आप बच्चों से..."*
➳ _ ➳ *मीठे बाबा को गले लगाते हुए कंधे पर सिर रखे मैं आत्मा बाबा से बोली:- "बाबा... आपकी संतान हूं... आपकी मातेली सपूत बच्ची हूं... भरोसा रखना... बाप का नाम कलंकित नहीं होने दूंगी...* कल्प कल्प मैं ही तो आपकी माला का मनका बनी हूं... आपकी रचना स्वर्ग की उत्तराधिकारी... *पूरे विश्व पर कल्प कल्प मैं ही तो राज्य करती आई हूं... बाबा अभी भी मैं आत्मा स्वराज्य अधिकारी बन इन कर्मेंद्रियों से कर्म ले रही हूं... यही संस्कार लिए मैं आत्मा स्वर्ग में प्रस्थान करूंगी..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- विजयमाला में शिरोमणि बनने के लिए माया के बंधनों को काटते जाना है*
➳ _ ➳ रुद्रमाला में पिरोने अर्थात अपने प्यारे पिता के गले का हार बनने के लक्ष्य को सामने रखते ही मेरी आंखों के आगे खूबसूरत जगमग करती चैतन्य मणियों की माला स्वत: ही आ जाती है और विजयमाला के उन खूबसूरत मणकों को निहारते हुए मैं मन ही मन संकल्प करती हूँ कि इस विजयमाला में मुझे भी शिरोमणि बन, बाबा के गले मे अवश्य पिरोना है। *इसी संकल्प को दृढ़ता के साथ पूरा करने की प्रतिज्ञा कर, अपने मन और बुद्धि को अपने प्यारे पिता की याद में स्थिर करते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे अव्यक्त बापदादा की आवाज धीरे - धीरे मेरे कानों में सुनाई दे रही है और बाबा जैसे मुझ से कह रहे हैं, बच्चे -: "विजयमाला में शिरोमणि बनने के लिए माया के बंधनों को काटते जाओ"*।
➳ _ ➳ बापदादा के इस अव्यक्त इशारे को समझ कर माया के बंधनों को काटने के लिए अब मैं मास्टर सर्वशक्तिवान के श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट होती हूँ और अपनी शक्तियों के प्रयोग से माया के हर वार से स्वयं को बचाने के लिए, स्वयं को सर्वशक्तियों से सम्पन्न बनाने और अपनी सोई हुई शक्तियों को पुनः जागृत करने के लिए सर्वशक्तिवान अपने शिव पिता की याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करती हूँ। *सर्वशक्तिवान अपने प्यारे बाबा की याद में अपने इस श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट होते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे मेरे अंदर एक अद्भुत शक्ति स्वत: ही भरने लगी है जो मुझे मेरे सर्वगुण और सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप में स्थित कर रही है*। अपने सर्वगुण, सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप में स्थित होते ही मैं महसूस कर रही हूँ जैसे मेरे अंदर से एक प्रकाश निकल रहा है जिसमे से सात रंगों की किरणें निकल कर धीरे - धीरे मेरे चारों और फैलने लगी हैं।
➳ _ ➳ प्रकाश की इन सात रंगों की किरणों से निकल रहे वायब्रेशन्स जैसे - जैसे चारों और फैल रहें हैं वैसे - वैसे वातावरण में रूहानियत छा रही है। पूरा वायुमण्डल जैसे बहुत ही सुखमय और शांतमय अनुभव होने लगा है। *एक गहन शांत और सुखमय स्थिति का मैं अनुभव करने लगी हूँ। अपने इस शांत और सुखमय स्वरूप में स्थित होकर गहन शांति का अनुभव करते हुए, मैं आत्मा अपने सुख, शांति के वायब्रेशन्स चारों और फैलाती हुई अब देह की कुटिया से बाहर आ जाती हूँ औऱ अपरमअपार सुख देने वाले अपने सुख सागर सर्वशक्तिवान बाबा के पास उनके शान्तिधाम घर की ओर चल पड़ती हूँ*। अपने निराकारी बिंदु स्वरूप में, प्वाइंट ऑफ लाइट मैं आत्मा अब धीरे - धीरे ऊपर आकाश की और बढ़ रही हूँ। आकाश को पार कर, सूक्ष्म वतन से होती हुई अपने ऊँचे ते ऊँचे धाम में मैं आत्मा प्रवेश करती हूँ।
➳ _ ➳ चैतन्य आत्माओं की निराकारी दुनिया अपने इस मूलवतन घर में जहाँ कोई साकार या स्थूल बन्धन नही, कोई समय की सीमा नही, ऐसे अपने प्यारे वतन में, प्यार के सागर अपने प्यारे पिता की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में समाय चैतन्य सितारों को मैं देख रही हूँ। *अपने स्नेह की शीतल किरणों से बाबा अपने सभी चैतन्य सितारों को भरपूर कर रहें हैं। इस अति खूबसूरत स्नेह मिलन के नजारे को देखते हुए अब मैं अपने प्यारे पिता के पास पहुँचती हूँ और उन्हें जाकर स्पर्श करती हूँ। एक तेज करेण्ट मुझ आत्मा में प्रवाहित होने लगता है और सर्वशक्तियों की अनन्त धारायें मुझ आत्मा के ऊपर बरसने लगती है*। मैं आत्मा परमात्म शक्तियों को स्वयं में समाने लगती हूँ। असीम ऊर्जा से भरपूर होकर, अब मैं वापिस साकार सृष्टि की ओर लौटती हूँ।
➳ _ ➳ अपनी साकार देह में, भृकुटि पर विराजमान होकर अब मैं विजयमाला में पिरोने के तीव्र पुरुषार्थ में लग गई हूँ। विजयमाला में शिरोमणि बनने के लिए, माया के बन्धनों को अब मैं अपने प्यारे पिता की याद से काटती जा रही हूँ। *चलते, फिरते हर कर्म कम्बाइंड स्वरूप की स्मृति में रह करने से, माया अनेक प्रकार के रॉयल रूप धारण करके मेरे पास आती तो है किंतु मुझे बाबा के साथ देख वापिस लौट जाती है। सदा बाबा की छत्रछाया में रहने से माया का कोई भी वार अब मुझे प्रभावित नही करता। बाबा की सर्वशक्तियों की छत्रछाया मेरे चारों और एक सुरक्षा कवच बना कर, माया के हर बन्धन को काट कर, मुझे माया के हर वार से बचा लेती है*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं छोटी - छोटी अवज्ञाओं के बोझ को समाप्त कर सदा समर्थ रहने वाली श्रेष्ठ चरित्रवान आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं सम्मान मांगने के बजाए सब को सम्मान देते हुए सबका सम्मान प्राप्त करने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बापदादा ऐसे आदि रत्नों को लाख-लाख बधाईयाँ देते हैं क्योंकि आदि से सहन कर स्थापना के कार्य को साकार स्वरूप में वृद्धि को प्राप्त कराने के निमित्त बने हो। तो जो स्थापना के कार्य में सहन किया वह औरों ने नहीं किया है। *आपके सहनशक्ति के बीज ने यह फल पैदा किये हैं। तो बापदादा आदि-मध्य- अन्त को देखते हैं - कि हरेक ने क्या-क्या सहन किया है और कैसे शक्ति रूप दिखाया है। और सहन भी खेल-खेल में किया।* सहन के रूप में सहन नहीं किया, खेल-खेल में सहन का पार्ट बजाने के निमित्त बन अपना विशेष हीरो पार्ट नूँध लिया। इसलिए आदि रत्नों का यह निमित्त बनने का पार्ट बापदादा के सामने रहता है। और इसके फलस्वरूप आप सर्व आत्मायें सदा अमर हो। समझा अपना पार्ट? कितना भी कोई आगे चला जाये - लेकिन फिर भी... फिर भी कहेंगे। बापदादा को पुरानी वस्तु की वैल्यु का पता है।
✺ *"ड्रिल :- खेल खेल में सहन करने का पार्ट बजाना"*
➳ _ ➳ वर्षा ऋतु आने पर चारों तरफ फूल ही फूल खिल रहे हैं हरियाली छा रही है... यह प्रकृति बहुत ही मनमोहक लग रही है... इस दृश्य को देखकर मेरा मन अति आनंदित हो रहा है... जैसे ही वर्षा प्रारंभ होती है, मैं इस वर्षा ऋतु का आनंद लेने के लिए घर से बाहर आ जाती हूं और हरे भरे खेतों की तरफ दौड़ने लगती हूँ... बारिश में नहाते हुए मैं ऐसे स्थान पर आ पहुँचती हूँ... *जहां फूल ही फूल खिल रहे हैं और ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो इन फूलों को प्रकृति नहलाने आई हो... इसी दौरान मैं खिले हुए फूलों से बातें करने लगती हूं... और मैं उन फूलों से कहती हूं, तुम कितने सुंदर प्रतीत हो रहे हो... तुम्हें ऐसा कौन बनाता है...* जिससे तुम सबके दिलों को वश में कर लेते हो और उनके दिल पर राज करते हो...
➳ _ ➳ तभी उन फूलों में से कुछ फूल मुझे कहते हैं कि हम बहुत कुछ सहन करने पर ऐसे खिले हुए फूल बनते हैं... फिर वह फूल मुझे कहते हैं कि आओ हम तुम्हें अपना राज बताते हैं जिससे हम सबके दिलों पर राज करते हैं... वह फूल मेरे आगे औऱ मैं उनके पीछे पीछे चलने लगती हूं... और मुझे एक ऐसे स्थान पर ले आते हैं जहां एक किसान अपने खेत में बीज बो रहा होता है और मुझे यह दृश्य दिखाकर कहने लगते हैं... कि इस किसान को देख तुम्हें कैसा प्रतीत होता है, यह किसान अपने खेत में इन बीजों को कुछ इस तरह से डाल रहा है कि यह बड़े होकर हमें फूल फल दे सके... *उसने अपना कर्तव्य करके छोड़ दिया बाकी अब सारा कार्यभार इन बीजों पर आ जाता है कि उन्हें अब आगे अपना कर्तव्य किस प्रकार निभाना है...*
➳ _ ➳ फिर वह फूल मुझे कहते हैं कि आप इन बीजों को देखो कैसे यह मिट्टी में रहकर अपना बलिदान देते हैं और अपने आप को इस मिट्टी में छुपा कर रखते हैं... फिर यह कुछ दिनों तक इस मिट्टी में इसी प्रकार दबे रहते हैं और फिर कुछ दिनों बाद यह मिट्टी से अंकुरित होकर बाहर निकलने लगते हैं तो इन्हें सबसे पहले सूर्य की किरणों का सामना करना पड़ता है... ताकि यह सूर्य की तेज किरणों का सामना करके एक पौधे का निर्माण कर सकें... इसके बाद इन्हें तेज धूप और तेज हवाओं का सामना करना पड़ता है... तेज हवाएं इन्हें अपनी मंजिल से भटकाने की पूरी कोशिश करते हैं... परंतु ये *मिट्टी में रहकर अपनी जड़ें इतनी मजबूत कर लेते हैं कि इनका तेज हवा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती... और फिर तेज हवा को सहन करते-करते इसे अपनी आदत बना लेते हैं जिससे वह अपने आने वाले सुन्दर भविष्य का निर्माण करते हैं... तेज धूप से निडर होकर यह इस धूप को अपना साथी बना लेते हैं...*
➳ _ ➳ और यह इस तरह इन प्रकृति रुपी कठिनाइयों का सामना कर लेते हैं और इन्हें अपना साथी बना लेते हैं... और यह एक मजबूत पौधे बन जाते हैं और धीरे-धीरे इनकी डालियों से कलियां निकलने लगती है... और उन कलियों से फिर रंग बिरंगे फूल खिलने लगते हैं... जिसे देखकर सभी अति आनंदित हो उठते है... जब फूलों ने मुझे यह दृश्य दिखाया तो मुझे भी सब समझ आने लगता है... और मैं उन फूलों को कहने लगती कि कैसे *इन छोटी छोटी कठिनायों का डटकर सामना करने से तुम्हारा निर्माण हुआ है... ऐसे ही मैं भी अपने पुरुषार्थ से उज्जवल भविष्य का निर्माण करूंगी...* इतना कहकर मैं बारिश में नहाती हुई आगे की ओर चल पड़ती हूं और ठंडी ठंडी बारिश की फुहारों का आनंद लेती हूं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा परमात्मा की याद में बैठती हूँ... परमात्मा से शक्तियों को ग्रहण कर अपनी स्थिति को और भी मजबूत बना रही हूँ... जो भी परिस्थितियां आती हैं, मैं आत्मा परिस्थिति का चिंतन नहीं करती हूँ बल्कि परमात्म चिंतन में रहकर.. सहन शक्ति के द्वारा, परिस्थिति को आगे बढ़ने का साधन समझ खेल-खेल में पार कर लेती हूँ... यह परिस्थिति मुझे और भी मजबूत बनाने आई है... इसलिए इन छोटी-छोटी परेशानियों का चिंतन करके और बड़ी परेशानी नहीं बनाती हूँ... *बल्कि शक्ति स्वरूप बन खेल-खेल में सहन करने का पार्ट बजाती हूँ... और ड्रामा में अपना विशेष हीरो पार्ट नूँध रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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