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❍ 16 / 03 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *दिन में दो बार ज्ञान स्नान किया ?*
➢➢ *गन्दी तृष्णा रखने वालों के संग से दूर रहे ?*
➢➢ *अपने हर्षित चेहरे द्वारा प्रभु पसंद बनकर रहे ?*
➢➢ *निराकारी, निरहंकारी स्थिति में स्थित रह विश्व को प्रकाशित करने वाले चैतन्य दीपक बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *किसी भी बात के विस्तार में न जाकर, विस्तार को बिन्दी लगाए बिन्दी में समा दो, बिन्दी बन जाओ, बिन्दी लगा दो, बिन्दी में समा जाओ तो सारा विस्तार, सारी जाल सेकण्ड में समा जायेगी और समय बच जायेगा, मेहनत से छूट जायेंगे ।* बिन्दी बन बिन्दी में लवलीन हो जायेंगे । कोई भी कार्य करते बाप की याद में लवलीन रहो ।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं स्वराज्य अधिकारी श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ सभी अपने स्वराज्य अधिकारी श्रेष्ठ आत्मायें समझते हो? स्वराज्य का अधिकार मिल गया? ऐसी अधिकारी आत्मायें शक्तिशाली होंगी ना! राज्य को- 'सत्ता' कहा जाता है। सत्ता अर्थात शक्ति। आजकल की गवर्मेन्ट को भी कहते हैं - राज्य सत्ता वाली पार्टी है। तो राज्य की सत्ता अर्थात् शक्ति है। तो स्वराज्य कितनी बड़ी शक्ति है? ऐसी शक्ति प्राप्त हुई है? सभी कमेन्द्रियाँ आपकी शक्ति प्रमाण कार्य कर रही हैं? राजा सदा अपनी राज्य सभा को, राज्य दरबार को बुलाकर पूछते हैं कि - कैसे राज्य चल रहा है? *तो आप स्वराज्य अधिकारी राजाओंकी कारोबार ठीक चल रही है? या कहाँ नीचे-ऊपर होता है? कभी कोई राज्य कारोबारी धोखा तो नहीं देते हैं! कभी आंख धोखा दे, कभी कान धोखा दें, कभी हाथ, कभी पांव धोखा दें! ऐसे धोखा तो नहीं खाते हों!*
〰✧ *अगर राज्य सत्ता ठीक है तो हर संकल्प, हर सेकण्ड में पदमों की कमाई है। अगर राज्य सत्ता ठीक नहीं है तो हर सेकण्ड में पदमों की गँवाई होती है। प्राप्ति भी एक की पदमगुणा है तो और फिर अगर गँवाते हैं तो एक का पदमगुणा गँवाते हो। जितना मिलता है - उतना जाता भी है। हिसाब है। तो सारे दिन की राज्य कारोबार को देखो।* आंख रुपी मंत्री ने ठीक काम किया? कान रुपी मंत्री ने ठीक काम किया? सबकी डिपार्टमेन्ट ठीक रही या नहीं? यह चेक करते हो या थक कर सो जाते हो? वैसे कर्म करने से पहले ही चेक कर फिर कर्म करना है। पहले सोचना फिर करना। पहले करना पीछे सोचना, यह नहीं। टोटल रिजल्ट निकालना अलग बात है लेकिन ज्ञानी आत्मा पहले सोचेगी फिर करेगी। तो सोच-समझ कर हर कर्म करते हो? पहले सोचने वाले हो या पीछे सोचने वाले हो? अगर ज्ञानी पीछे सोचे उसको ज्ञानी नहीं कहेंगे। इसलिए सदा स्वराज्य अधिकारी आत्मायें हैं और इसी स्वराज्य के अधिकार से विश्व के राज्य अधिकारी बनना ही है। बनेंगे या नहीं - यह क्वेश्चन नहीं।
〰✧ स्वराज्य है तो विश्व राज्य है ही। तो स्वराज्य में गड़बड़ तो नहीं है ना? द्वापर से तो गड़बड़ शालाओंमें चक्र लगाते रहे। अब गड़बड़ शाला से निकल आये, अभी फिर कभी भी किसी भी प्रकार की गड़बड़ शाला में पांव नहीं रखना। *यह ऐसी गड़बड़ शाला है एक बार पांव रखा तो भूल भुलैया का खेल है! फिर निकलना मुश्किल हो जाता। इसलिए सदा एक रास्ता। एक में गड़बड़ नहीं होती। एक रास्ते पर चलने वाले सदा खुश-सदा सन्तुष्ट।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ कैसे भी परिस्थिति हो। क्योंकि फाइनल अनेक प्रकार के भयानक और न चाहते हुए भी अपने तरफ आकर्षित करने वाली परिस्थितियों के बीच होंगे। उनकी भेंट में जो आजकल कि परिस्थितियां हैँ वह कुछ नहीं है। *जो अन्तिम परिस्थितियाँ आने वाली है, उन परिस्थितियों के बीच पेपर होना है*। इसकी तैयारी पहले से करनी है। इसलिए जब अपने को देखो कि बहुत बिजी हूँ, बुद्धि बहुत स्थूल कार्य में बिजी है, चारों ओर सरकमस्टान्सेज अपने तरफ खैंचने वाले है, तो ऐसे समय पर यह अभ्यास करो। तब मालूम पडेगा कहाँ तक हम ड्रिल कर सकते है।
〰✧ *इसी ड्रिल में रहेंगे तो सफलता को पायेंगे*। एक - एक सबजेक्ट की नम्बर होती हैँ। मुख्य तो यही है। इसमें अगर अच्छे है तो नम्बर आगे ले सकते है। अगर इस सब्जेक्ट में नम्बर कम है तो फाइनल नम्बर आगे नहीं आ सकते।
〰✧ इसलिए सुनाया था ना कि ' ज्ञानी तू आत्मा' के साथ स्नेही भी बनना है। जो स्नेही होता है वह स्नेह पाता है। जिससे ज्यादा स्नेह होता है, तो कहते है यह तो सुध - बुध ही भूल जाते हैँ। *सुध - बुध का अर्थ ही है अपने स्वरूप की जो स्मृति रहते है वह भी भूल जाते हैँ*। बुद्धि की लगन भी उसके सिवाए कहाँ नहीं हो। ऐसे जो रहने वाले होते उनको कहा जाता है स्नेही।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ जो देहाभिमान को अर्पण करता है उसका हर कर्म दर्पण बन जाता है, *जैसे कोई चीज अर्पण की जाती है तो फिर वह अर्पण की हुई चीज़ अपनी नहीं समझी जाती है। तो इस देह के भान को भी अर्पण करने से जब अपनापन मिट जाता है तो लगाव भी मिट जाता है।* ऐसे समर्पण हुए हो?
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप समान निडर बन, अपनी अवस्था साक्षी रख सदा हर्षित रहना"*
➳ _ ➳ वाह बाबा वाह आपने तो सचमुच मुझ आत्मा को सच्चा सच्चा राजाओं का भी राजा बना दिया... *वह राजा तो कभी सीट पर बैठते कभी उतरते... लेकिन बाबा आपने तो मुझ आत्मा को सदा काल के लिए साक्षी पन के तख्त पर बिठा दिया...* वह तख्त जहां बैठ में आत्मा विश्व नाटक को हर्षित हो देख रही हूं... न कोई डर... न कोई चिंता मुझ आत्मा को सता रही है... चाहे प्रकृति की हलचल हो, या कोई भी कर्म भोग सामने आ जाए... मैं आत्मा साक्षी पन की सीट पर स्थित हूं... बाबा आपने तो बिल्कुल ही मुझ आत्मा को आप समान निडर बना दिया... *कितने ही अनुभव है बाबा जहां मुझ आत्मा ने साक्षी हो विजय पन का पार्ट बजाया... उन अनुभवों की स्मृति में खोई मैं आत्मा स्मृति स्वरूप हो चली हूं...* स्मृतियों के सागर में समाई मैं आत्मा उड़ चलती हूं अपने बाबा के घर...
❉ *मीठे बाबा निराकारी दुनिया में मुझ आत्मा का सच्चा सच्चा रूहानी श्रृंगार करते हुए कहते :-* मीठे बच्चे... *"काफी समय हुआ अपने साक्षी पन की सीट को छोड़ें... लो संभालो बच्चे अपने अविनाशी तख्त को... जहां के मालिक बन तुम आत्मा खुद पर, पूरे विश्व पर राज्य करती...* यही तो वह स्थिति थी जिसने आधा कल तुम्हें विजय बनाए रखा... यही वह तख्त है जहां बैठे खुशियों की कशिश तुम्हारे चेहरे से झलकती..."
➳ _ ➳ *बाबा की आंखों में अपने प्रति इतना स्नेह इतनी फिक्र देख मैं आत्मा स्नेह सागर के सागर में समाई मीठे बाबा से बोली:-* "हां मेरे सच्चे सच्चे गुरु शुक्रिया... धन्यवाद बाबा मुझे सच्चा सच्चा राज्य दिलाने के लिए... *एक वह समय था मेरे सतगुरु जब मैं आत्मा परिस्थितियों के आगे जीरो थी... लेकिन आपके बिठाए साक्षी पन के तख्त पर मैं आत्मा जीरो से हीरो बन गई...* कोटि कोटि धन्यवाद मेरे सतगुरु... कोटि-कोटि धन्यवाद..."
❉ *मीठे बाबा ज्ञान बरसात करते, उमंग उत्साह की पिचकारी मारते मुझ आत्मा से बोले :-* "मेरे रूहानी गुलाब... *अब बीती सो बीती कर... आगे देखो... खुशियों का सागर बाहें फैलाए तुम्हें बुला रहा है... अब दुख के बादल हट सुखों का स्वर्णिम पहाड़ तुम्हारे लिए मीठे मीठे गीत गा रहा है... स्वर्ग के गेट बाहें फैलाए तुम्हारे स्वागत में खड़े हैं... चारों ओर प्रत्यक्षता के नगाड़े बज रहे हैं...* देखो बच्चे देखो ज्ञान का तीसरा नेत्र खोले, दिव्य बुद्धि द्वारा इस विश्व नाटक का भरपूर आनंद लो..."
➳ _ ➳ *शिव शक्ति मैं आत्मा बाप के साथ कंबाइंड रूप में स्थित बाबा से बोलती हूं :-* "हां मीठे बाबा... देख रही हूं मैं आत्मा... चारों तरफ का नजारा देख रही हूं... सचमुच बाबा यह वही महाभारी लड़ाई है, जिससे अनेक धर्मों का विनाश हो एक सत्य धर्म की स्थापना हो रही है... *दुनिया वालों के लिए बाबा यह दुखों का पहाड़ है, मगर साक्षी पन की स्थिति में स्थित मैं आत्मा आपको अपना साथी बनाएं इन पहाड़ों को सुख का पहाड़ अनुभव कर रही हूं...* वाह बाबा वाह इतना तो एक ज्ञान का नशा चढ़ा हुआ है, जो पांव जमीन पर नहीं..."
❉ *मीठी मुस्कुराती दृष्टि देते हुए बाप दादा बोले :-* "हां बच्चे... ऐसे ही सदा उड़ती रहो... तुम हो ही फरिश्ता... फरिश्तों के पांव भी कभी धरती पर पड़े हैं क्या! तुम तो हो ही अवतरित इस पुरानी देह, पुरानी दुनिया में... यह दुनिया, यह देह, सब झूठ है... नाटक है... *साक्षी हो इस विश्व नाटक को देखते रहो उड़ते रहो... पूरे कल्प का यही वह समय है जब स्मृति है, ज्ञान है, बाप है... तो बस उड़ती रहो..."*
➳ _ ➳ *उड़ती कला के विमान में बाप के साथ स्थित मैं आत्मा बाबा के कंधे पर सिर रखे बाबा से कहती हूं :-* "हां बाबा... ये स्थिति... कोई शब्द नहीं... बस महसूसता है... *आप और मैं इस संगम पर एक साथ पार्ट बजा रहे हैं...* क्या तो मेरा सौभाग्य है! स्वयं भाग्य विधाता मुझे मिल गया! मेरे बाबा शुक्रिया... क्या तो मैं बोलूं... बस अब यह पल है *आप हो और मैं हूं और यह सारी कायनात जो मुझे आपसे मिलाने की साजिश में लगी है... और दिल यही गीत गुनगुना रहा है, तुमको पाया है तो जैसे खोया हूं... कहना चाहूं भी तो तुमसे क्या कहूँ... मैं अगर कहूं कि तुमसा हसीन कायनात में नहीं है कोई, तारीफ ये भी तो सच है कुछ भी नहीं..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बेहद के बाप से अथाह ज्ञान धन लेने के लिए दो बारी ज्ञान स्नान करना है*"
➳ _ ➳ अपने परम शिक्षक, परम सतगुरु शिव पिता परमात्मा से पढ़ने और अपनी बुद्धि रूपी झोली को ज्ञान रत्नों से भरपूर करने के लिए मैं अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित होती हूँ और ज्ञान स्नान करने के लिए अपने आश्रम की ओर चल देती हूँ। *अपने प्यारे प्रभु की याद में एक - एक कदम रखते हुए, अपने श्रेष्ठ भाग्य का मैं गुणगान करती हुई जा रही हूँ कि कोटो में कोई, कोई में भी कोई मैं कितनी महान भाग्यवान आत्मा हूँ जिसे डायरेक्ट भगवान के सम्मुख बैठ कर, उनसे अथाह ज्ञान धन अर्जित करने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है*। भगवान स्वयं अपना धाम छोड़ कर मुझे पढ़ाने के लिए आते हैं और हर रोज़ ज्ञान के अखुट ख़ज़ानों से मेरी बुध्दि रूपी झोली को भर कर मुझे दुनिया की सबसे सम्पत्तिवान आत्मा बना देते हैं।
➳ _ ➳ मन ही मन अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के गीत गाती, अपने गॉडली स्टूडेंट के श्रेष्ठ स्वमान के नशे में चलते - चलते मैं पहुँच जाती हूँ अपने ईश्वरीय विश्वविद्यालय में और जा कर क्लास रूम में बैठ जाती हूँ जहाँ और भी गॉडली स्टूडेंट ब्राह्मण बच्चे अपने परमशिक्षक से ज्ञान धन प्राप्त करने के लिए पहुँच चुके हैं। *सभी अपने परमशिक्षक बेहद के बाप की याद में मग्न हो कर उनका आह्वान कर रहें हैं। अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में आत्मिक स्मृति में स्थित होकर अपने परमशिक्षक का आह्वान करते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे परमधाम से अनन्त रंग बिरंगी किरणों के रूप में ज्ञान सागर के ज्ञान की वर्षा हो रही है* जो रिमझिम फ़ुहारों के रूप में पूरे क्लासरूम में बरस रही हैं।
➳ _ ➳ क्लासरूम में उपस्थित सभी गॉडली स्टूडेंट ब्राह्मण बच्चे ज्ञान की रिमझिम फ़ुहारों की शीतलता का सुखद अनुभव करके जैसे आनन्द विभोर हो रहें हैं। सभी के चेहरे एक दिव्य आभा से दमकते हुए स्पष्ट दिखाई दे रहें हैं। *पूरा क्लासरूम रंग बिरंगी किरणो के शक्तिशाली वायब्रेशन से भरा हुआ बहुत ही मनमोहक और आनन्दमयी लग रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे सर्वशक्तियों के इन्द्रधनुषी रंगों का एक बहुत ही शक्तिशाली आभामंडल क्लासरूम के चारों और निर्मित हो गया है* और इस आभामंडल के प्रभाव से सभी स्टूडेंट जैसे एकदम लाइट माइट स्थिति में स्थित होते जा रहें हैं।
➳ _ ➳ देखते ही देखते क्लासरूम में अव्यक्त बापदादा की प्रवेशता होती है। अपने लाइट माइट स्वरूप में बापदादा सामने संदली पर आकर बैठते हैं और अपने सामने लाइट माइट स्वरूप में उपस्थित अपने सभी गॉडली स्टूडेंट फरिश्तो को अपनी मीठी दृष्टि से निहारने लगते हैं। *अपनी मीठी दृष्टि से सबमे अपनी शक्तियों का बल भरते हुए बापदादा अब परमशिक्षक बन अपने मधुर महावाक्य उच्चारण कर सभी के ऊपर ज्ञान की वर्षा करने लगते हैं*। ऐसा लग रहा है जैसे अव्यक्त ब्रह्मा बाबा के मुख कमल से ज्ञान की बरसात हो रही है और सभी ज्ञान स्नान करके रिफ्रेश हो रहें हैं। *अपनी बुद्धि को पूरी तरह से अपने परमशिक्षक पर एकाग्र कर सभी ब्रह्मा मुख से उच्चारित बाबा के एक - एक महावाक्य को ध्यान से सुन कर अपनी बुद्धि रूपी झोली को अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर कर रहें हैं*।
➳ _ ➳ ब्रह्मा बाबा के मुख कमल से सबको अविनाशी ज्ञान धन देकर अब बापदादा एक - एक करके अपने हर गॉडली स्टूडेंट फ़रिश्ते बच्चे पर दृष्टि डाल रहें हैं। मै देख रही हूँ जैसे *अव्यक्त ब्रह्मा बाबा की भृकुटि से ज्ञान सागर शिव बाबा के ज्ञान की अनन्त किरणे प्रकाश की एक तेज धार के रूप में निकल रही है और प्रकाश की वो तेज धारा हर फ़रिश्ते के मस्तक को छू रही है*। ज्ञान सागर बाबा के ज्ञान की सम्पूर्ण शक्ति को मैं अपने अंदर भरता हुआ स्पष्ट महसूस कर रही है। ऐसा लग रहा है जैसे *ज्ञान के अखुट खजाने बाबा की भृकुटि से निकल कर मुझ में समाते जा रहें है और मैं अविनाशी ज्ञानधन से सम्पन्न बनती जा रही हूँ*।
➳ _ ➳ बेहद के बाप से अथाह ज्ञान धन ले कर, अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर मैं वापिस अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ। *प्रतिदिन दो बार ज्ञान स्नान से स्वयं को रिफ़्रेश करके, अपने परमशिक्षक शिव पिता के महावाक्यों को सदा स्मृति में रखते हुए, उन्हें धारणा में लाकर, लौकिक और अलौकिक हर कर्तव्य को निभाते, अविनाशी ज्ञान धन की कमाई जमा करने का भी पुरुषार्थ अब मैं बिल्कुल सहजता से कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं अपने हर्षित चेहरे द्वारा प्रभु पसंद बनने वाली खुशियों के खजाने से सम्पन्न आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं निराकारी, निरहंकारी स्थिति में स्थित रहकर, विश्व को प्रकाशित करने वाला चैतन्य दीपक हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ सोचो, *आप विशेष आत्माओं की अनादि आदि पर्सनैलिटी और रायल्टी कितनी ऊँची है!* अनादि रूप में भी देखो जब आप आत्मायें परमधाम में रहती तो कितनी चमकती हुई आत्मायें दिखाई देती हो। उस चमक की रायल्टी, पर्सनैलिटी कितनी बड़ी है। दिखाई देती है? *और बाप के साथ-साथ आत्मा रूप में भी रहते हो, समीप रहते हो।* जैसे आकाश में कोई-कोई सितारे बहुत ज्यादा चमकने वाले होते हैं ना! ऐसे आप आत्मायें भी विशेष बाप के साथ और विशेष चमकते हुए सितारे होते हो। *परमधाम में भी आप बाप के समीप हो और फिर आदि सतयुग में भी आप देव आत्माओं की पर्सनैलिटी, रायल्टी कितनी ऊँची है।*
➳ _ ➳ सारे कल्प में चक्कर लगाओ, धर्म आत्मा हो गये, महात्मा हो गये, धर्म पितायें हो गये, नेतायें हो गये, अभिनेतायें हो गये, ऐसी पर्सनैलिटी कोई की है, जो आप देव आत्माओं की सतयुग में है? *अपना देव स्वरूप सामने आ रहा है ना? आ रहा है या पता नहीं हम बनेंगे या नहीं? पक्का है ना!* अपना देव रूप सामने लाओ और देखो, पर्सनैलिटी सामने आ गई? कितनी रायल्टी है, प्रकृति भी पर्सनैलिटी वाली हो जाती है। पंछी, वृक्ष, फल, फूल सब पर्सनैलिटी वाले, रायल।
➳ _ ➳ अच्छा फिर आओ नीचे, तो *अपना पूज्य रूप देखा है? आपकी पूजा होती है!* डबल फारेनर्स पूज्य बनेंगे कि इण्डिया वाले बनेंगे? आप लोग देवियाँ, देवतायें बने हो? सूंढ वाला नहीं, पूंछ वाला नहीं। देवियाँ भी वह काली रूप नहीं, लेकिन देवताओं के मन्दिर देखा, आपके पूज्य स्वरूप की कितनी रायल्टी है, कितनी पर्सनैलिटी है? *मूर्ति होगी, 4 फूट, 5 फूट की और मन्दिर कितना बड़ा बनाते हैं। यह रायल्टी और पर्सनैलिटी है।*आजकल के चाहे प्राइम मिनिस्टर हो, चाहे राजा हो लेकिन धूप में बिचारे का बुत बना के रख देंगे, क्या भी होता रहे। और आपके पूज्य स्वरूप की पर्सनैलिटी कितनी बड़ी है। है ना बढिया! कुमारियाँ बैठी हैं ना! रायल्टी है ना आपकी? *फिर अन्त में संगमयुग में आप सबकी रायल्टी कितनी ऊँची है। ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी कितनी बड़ी है!* डायरेक्ट भगवान ने आपके ब्राह्मण जीवन में पर्सनैलिटी और रायल्टी भरी है। ब्राह्मण जीवन का चित्रकार कौन? स्वयं बाप। ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी *रायल्टी कौन-सी है? प्युरिटी। प्युरिटी ही रायल्टी है।*
✺ *ड्रिल :- "सारे कल्प में अपनी ऊंची रायल्टी और पर्सनालिटी का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं ज्योति बिंदु स्वरूप आत्मा अपने पंच तत्व के देह और देह की दुनिया को छोड़कर अपने पिता परमात्मा मीठे शिवबाबा से मिलन मनाने परमधाम जा रही हूं... *उज्ज्वल सितारा स्वरूप में मैं आत्मा अपने असली घर परमधाम में प्रवेश कर रही हूं...* जहां चारो ओर शांति ही शांति का अनुभव कर रही हूं... *वाणी से परे इस निर्वाण धाम में परम् शांति को अनुभव कर मैं आत्मा हल्का महसूस कर रही हूं...* थोड़ी देर के लिए मैं आत्मा तमाम जटिलताओं से मुक्त हो सहज और सरल अनुभव कर रही हूं...
➳ _ ➳ मीठे बाबा के सम्मुख बैठ मैं आत्मा मीठी किरणों को अपने अंदर समा रही हूं... बाबा की दृष्टि से मैं आत्मा निहाल हो रही हूं... *मुझ आत्मा पर सकाश ऊर्जा से भरपूर उजली किरणों की वर्षा हो रही है... मैं आत्मा अपने अंदर सर्व शक्तियों की ऊर्जा को महसूस कर रही हूं...* अंतर्मन के समस्त अज्ञान अन्धकार को मिटते हुए अनुभव कर रही हूं... सकाश ऊर्जा से भरपूर हो मैं उज्ज्वल प्रकाशमय हो रही हूं...
➳ _ ➳ *मीठे बाबा मुझ आत्मा को उज्ज्वल श्वेत प्रकाश का चमकीला वस्त्र सौगात दे रहे है...* इस उज्ज्वल वस्त्र की महिमा बता रहे है... सुकर्म द्वारा वस्त्र की आभा बनाये रखने का आदेश दे रहे है... *सदा सेवाधारी स्वरूप का परिचय लिए यह वस्त्र धारण कर विश्व कल्याण की सेवा करने की प्रेरणा दे रहे है...* मैं आत्मा सौगात प्राप्त कर धन्य अनुभव कर रही हूं... खुशी के झूले में झूल रही हूं...
➳ _ ➳ मीठे बाबा की मीठी दृष्टि द्वारा मैं आत्मा ज्ञान के गुह्य रहस्यों को बुद्धि में समा रही हूं... *अपने नए पुराने सभी स्वरूपों का बुद्धि से दर्शन कर रही हूं... सतयुगी देवताई स्वरूप की मुकुटधारी निर्मल काया देख देख हर्षित हो रही हूं... पवित्रता की चमक देख मैं आत्मा सहज ही पवित्र अनुभव कर रही हूं...* अपने आदि रॉयल रूप की उजली छटा को चारो ओर बिखरता हुआ अनुभव कर रही हूं... अपने स्वरूप की गरिमा देख मन ही मन वाह वाह के गीत गुनगुना रही हूं...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अब अपने मध्यकालीन स्वरूप अर्थात पूज्य स्वरूप की रॉयल पर्सनैलिटी को देख प्रफुल्लित अनुभव कर रही हूं...* ऊंची ऊंची शिखर युक्त मंदिरो की भव्यता देख भाव विभोर हो रही हूं... अपनी पर्सनालिटी की रॉयल्टी को स्मृति में रख अपने कर्मो को परिवर्तित होते हुए देख रही हूं... मन्दिर के प्रांगण में खड़े हुए सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण कर रही हूं... *आज की सेवाधारी ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर पूरे विश्व को परमात्म शक्तियों से भरपूर कर रही हूं...* मीठे बाबा के इस बेहद यज्ञ में अपना योगदान दे भाग्य बना रही हूं...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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