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 07 / 06 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अच्छा फल प्राप्त करने के लिए याद में रहकर सर्विस की ?*

 

➢➢ *स्वच्छ बुधी वालों का संग कर स्वच्छ बनकर रहे ?*

 

➢➢ *मालिक बन कर्मेन्द्रियों से कर्म किया ?*

 

➢➢ *साक्षीपन की स्थिति में रह दिलाराम के साथ का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *पावरफुल मन की निशानी है-सेकण्ड में जहाँ चाहे वहाँ पहुच जाए। मन को जब उड़ना आ गया, प्रैक्टिस हो गई तो सेकण्ड में जहाँ चाहे वहाँ पहुंच सकता है।* अभी-अभी साकार वतन में, अभी-अभी परमधाम में, सेकण्ड की रफ़्तार है-अब इसी अभ्यास को बढ़ाओ।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बाबा के ब्राह्मण परिवार का श्रेष्ठ ब्राह्मण हूँ"*

 

  अपने को ब्राह्मण संसार का समझते हो। ब्राह्मण संसार ही हमारा संसार है, बाप ही हमारा संसार है - ऐसे अनुभव करते हो कि और भी कोई संसार है। बाप और छोटा सा परिवार यही संसार है। जब ऐसा अनुभव करेंगे तब न्यारे और प्यारे बनेंगे। अपना संसार ही न्यारा है। अपनी दृष्टि-वृत्ति सब न्यारी है। ब्राह्मणों की वृत्ति में क्या रहता है? किसी को भी देखते हो तो आत्मिक वृत्ति से, आत्मिक दृष्टि से मिलते हो। जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि। अगर वृत्ति और दृष्टि में आत्मिक दृष्टि है तो सृष्टि कैसी लगेगी? आत्माओंकी सृष्टि कितनी बिढ़या होगी? शरीर को देखते भी आत्मा को देखेंगे। *शरीर तो साधन है। लेकिन इस साधन में विशेषता आत्मा की है ना। आत्मा निकल जाती है तो शरीर के साधन की क्या वैल्यु है! आत्मा नहीं है तो देखने से भी डर लगता है। तो विशेषता तो आत्मा की है। प्यारी भी आत्मा लगती है। तो ब्राह्मणों के संसार में स्वत: चलते फिरते आत्मिक दृष्टि, आत्मिक वृत्ति है इसलिए कोई दु:ख का नाम- निशान नहीं।* क्योंकि दु:ख होता है शरीर भान से।

 

  *अगर शरीर भान को भूलकर आत्मिक स्वरूप में रहते हैं तो सदा सुख ही सुख है। सुखदायी-सुखमय जीवन। क्योंकि बाप को कहते ही हैं - सुखदाता। तो सुखदाता द्वारा सर्व सुखों का वर्सा मिल गया। माँ बाप कहा और वर्सा मिला। तो सुख की शैया पर सोने वाले।* चाहे स्थूल में बिस्तर पर सोते हो, लेकिन मन किस पर सोता है? चलते-फिरते क्या लगता है? सुख ही सुख है। संसार ही सुखमय है सुख ही सुख दिखाई देगा ना। दु:खधाम को छोड़ दिया। अभी भी दु:खधाम में रहते हो या कभी-कभी चक्कर लगाने जाते हो? दु:खधाम से किनारा कर दिया। संगम पर आ गये है ना। अभी संगमयुगी हो या कलियुगी हो?

 

  स्वप्न में भी दु:खधाम में नहीं जा सकते। नया जीवन है ना। युग भी बदल गया, जीवन भी बदल गया। अभी संगमयुगी श्रेष्ठ ब्रह्मण आत्मायें हैं - इसी नशे में सदा रहो। सुखमय संसार में रहने वाले सुख स्वरूप आत्मायें। दु:ख तो 63 जन्म देख लिया। *अभी संगम पर अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलने वाले हैं। यह बाहर का सुख नहीं है, अतीन्द्रिय सुख है। विनाशी सुख तो कलियुगी आत्मा को भी है। लेकिन आपको अतीन्द्रिय सुख है। तो सदा सुख के झूले में झूलते रहो। बाप कहते हैं - सदा बाप के साथ झुले में झूलते रहो। यही भक्ति का फल है।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *विश्व की अधिकतर आत्मायें आप की और इष्ट देवताओं की प्रत्यक्षता का आह्वान ज्यादा कर रही है और इष्ट देव उनका आह्वान कम कर रहे हैं।* इसका कारण क्या है? अपने हद के स्वभाव, संस्कारों की प्रवृत्ति में बहुत समय लगा देते हो।

 

✧  जैसे अज्ञानी आत्माओं को ज्ञान सुनने की फुर्सत नही हैं वैसे बहुत से ब्राह्मणों को भी इस पॉवरफुल स्टेज पर स्थित होने की फुर्सत नहीं मिलती है। *इसलिए ज्वाला रूप बनने की आवश्यकता है।*

 

✧  बापदादा हर एक की प्रवृत्ति को देख मुस्कुराते है कि कैसे टू - मच बिजी हो गए हैं। *बहुत बिजी रहते हो ना वास्तविक स्टेज में सदा फ्री रहेंगे। सिद्धि भी होगी और फ्री भी रहेंगे।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ सूर्यवंशी अपने वृत्ति और वायब्रेशन की किरणों द्वारा अनेक आत्माओं को स्वस्थ अर्थात स्वस्मृति में स्थित करने का अनुभव कराएंगे। *सूर्यवंशी की विशेष दो निशनियाँ अनुभव होगी - एक तो सदा निर्वाण स्थिति में स्थित हो वाणी में आना। दूसरा सदा स्थिति में स्वमान-बोल और कर्म में निर्माण अर्थात् निर्वाण और निर्माण दो निशानियाँ अनुभव होगी।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- साइलेंस के आधार पर विश्व में एक धर्म, एक राज्य की स्थापना करना"*

 

 _ ➳  *ईश्वर शिक्षक के जीवन मे आने से मुझ आत्मा को साइलेंस का आनंद आने लगा है... श्रीमत ना होने के कारण मैं आत्मा अज्ञान के अंधेरे में थी*... परमपिता ने मुझ आत्मा को अपना बनाया... मेरा ज्ञान श्रृंगार किया... *साइलेन्स की शक्ति का गहना क्या होता हैं मुझे बताया... साइलेन्स की शक्ति के आधार पर विश्व में एक धर्म, एक राज्य स्थापन करने की कला सिखाई* ... अपना सपूत बच्चा बना कर... पूरे विश्व मे शांति और साइलेंस की शक्ति की वाइब्रेशन फैलाने के निमित्त बनाया... यही सब बाबा को बताने मै आत्मा... बाबा की कुटिया मैं पंहुचती हूँ...

 

  *प्यारे बाबा ने साइलेन्स की किरणें फैलाने के निमित्त बनी, सपूत आत्मा से कहा* :- "मीठे प्यारे बच्चे... बड़ा भाग्य हैं जो बाप का साथ मिला है... इस को व्यर्थं मत गवाना... बाप जो चाहता हैं उसे पूरा करना... *विश्व मे एक धर्म स्थापन करने मे बाप का सहारा बनना*... बाप के आशीर्वाद का पूरा फायदा लेना... बाप ने तुमहे ये कार्य सौंपा हैं... *बाप पर पूरा बलिहार जाना* ..."

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बहुत ही खुश होकर बाबा से कहती हूँ* :- "मेरे बाबा... मै आत्मा आपको मिलने के पहले गरीब थी... जीवन की वास्तविकता से अनजान थी... *आपने अपनी गोद मे बिठा कर मुझ आत्मा का ज्ञान रत्नों से श्रृंगार किया... मुझे मेरी साइलेंस की शक्ति से रूबरू कराया... एक धर्म, एक राज्य क्या होता हैं ये समझाया* ... मुझे प्यार से भरपूर कर दिया... *मैं आत्मा अब साइलेंस की शक्ति का प्रयोग कर एक धर्म, एक राज्य पूरे विश्व में स्थापन करने की ओर अग्रसर हूँ* ..."

 

  *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा के तीव्र पुरुषार्थ को देखते हुए बड़े ही प्रेम से कहा* :- "सिकीलधे बच्चे... मैं तो तुमहे पूरे विश्व की राजाई देने ही आया हूँ... *परमधाम से मैं केवल तुम्हारे लिए ही तो आता हूँ... कभी भी बाप का हाथ और साथ मत छोड़ना* ... तुमहे 21 जन्मो का वर्सा साइलेंस की शक्ति मे स्थित होकर ही तो लेना है... *मै एक धर्म की स्थापना तुम से कराने ही तो आता हूँ* ..." 

 

 _ ➳  *बाबा का मुझ आत्मा पर इतना भरोसा देख के मै आत्मा भाव विभोर होकर बाबा से कहती हूँ* :- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... आज तक मैं आत्मा दर दर भटक रही थी... *आपने आते ही मुझ आत्मा को वरसे का हकदार बना कर मालामाल कर दिया... श्रीमत का जेवर पहना कर हर मुश्किल आसान कर दी... मै आत्मा पूरी तरह से आपके प्यार में रंग चुकी हूं* ..."

 

  *बाबा ने बड़े ही खुशनुमा अंदाज मे निहारते हुए मुझ आत्मा को मीठे शब्दो मे कहा* :- "कभी भी ना हारने वाले प्यारे गुल गुल बच्चे... मेरा तो काम ही हैं तुम्हें हर तरह की खुशियो से भरपूर करना... *कदम कदम मै तुम बच्चों का साथ देता हूं... तुम्हें वर्सा देता हूं... पूरे विश्व का मालिक बनाता हूँ* ... बदले में मै कुछ नही चाहता... *बस तुम्हें निमित्त बनाता हूँ साइलेंस की शक्ति से पूरा विश्व एक करने के लिए... बाप के प्यार का पूरा फायदा उठाना है कभी दुःखी नही होना* ..."

 

 _ ➳  *मै बाबा के सभी कार्यो मै निमित्त बनी आत्मा खुद पर बहुत गर्व करते हुए बाबा से कहती हूँ* :- "मेरे प्यारे न्यारे बाबा... आपने तो जीना सिखाया, वरसे का हकदार बनाया... *मै आत्मा पूरा आश्वासन देती हूं कि मै आपकी श्रीमत पर पूरा चल रही हूँ... आपकी साइलेंस की शक्ति के आधार का पूरा प्रयोग कर मै आत्मा... विश्व में एक धर्म, एक राज्य स्थापित कर रही हूँ* ... अपने प्यारे बाप से ये वायदा कर मै आत्मा... वापिस अपने लौकिक स्थान पर आ जाती हूँ..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  कर्मातीत बनने की रेस करनी है*

 

_ ➳  कर्म के हर अच्छे बुरे हिसाब किताब से मुक्त, हर कर्म से अतीत उस एकरस अचल अडोल अवस्था के बारे में विचार करते ही प्यारे ब्रह्मा बाबा का सम्पूर्ण स्वरूप आंखों के सामने उभर आता है और *मन बुद्धि के विमान पर बैठ मैं पहुँच जाती हूँ मधुबन के उस आँगन में जहाँ बाबा खड़े है बाहें पसारे अपने बच्चों को आप समान कर्मातीत बनाने के लिए और अपने बच्चों को पुकार रहें हैं*। बाबा का एक - एक चित्र बाबा के उस महान चरित्र की गाथा सुना रहा है जिसे जीवन मे धारण कर, बाबा ने कर्मातीत अवस्था को पाने का पुरुषार्थ किया। *बाबा के हर चित्र को निहारते हुए मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे बाबा का बस एक ही अरमान है कि उनके सभी बच्चे उनके समान जल्दी से जल्दी कर्मातीत बन उनके पास आ जायें*।

 

_ ➳  अपने प्यारे ब्रह्मा बाप के और अपने शिव पिता परमात्मा के इस अरमान को मैं बाबा के हर चित्र में बाबा के नयनों में स्पष्ट महसूस कर रही हूँ। बस एक ही आश मैं बाबा के नयनों में देख रही हूँ कि सभी बच्चे जल्दी से जल्दी उनके समान सम्पूर्ण बन जायें और जल्दी से जल्दी स्वर्ग के गेट खुल जायें। *बापदादा की आश को पूर्ण करती अपनी प्यारी दादियों के मनमोहक स्वरूपों को भी मैं देख रही हूँ जो कदम - कदम अपने प्यारे ब्रह्मा बाप को फॉलो करते हुए अपनी कर्मातीत अवस्था के अति समीप पहुँच रही हैं*। हर कर्म से अतीत होती जा रही उनकी अवस्था उनके चेहरे और चलन से स्वत: दिखाई देती है। अपने प्यारे ब्रह्मा बाप की आश को पूर्ण करती अपनी निमित दादियों के चरित्रों से शिक्षा लेते हुए अब मैं भी स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि *मुझे भी उनके समान कर्मातीत बनने की रेस करनी है और समय की समीपता को देखते हुए तीव्रता से इस पुरुषार्थ में लग जाना है*।

 

_ ➳  स्वयं से यह प्रतिज्ञा करते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे बाबा की मेहबानियाँ, बाबा के वरदानी हस्तों से मुझ पर बरस रही हैं और मेरे अन्दर एक अनोखी शक्ति का संचार कर रही हैं। *अपनी प्यारी दादियों की ढेरों दुआओं को और उनसे मिलने वाले शक्तिशाली वायब्रेशन्स को मैं स्पष्ट महसूस कर रही हूँ जो मुझे भी उनके समान अपनी कर्मातीत अवस्था बनाने की रेस करने के लिए प्रेरित कर रहें हैं*। अपने प्यारे बापदादा की इस वरदानी भूमि पर बैठे हुए मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ कि कैसे यहाँ के वायुमण्डल में फैले शक्तिशाली वायब्रेशन्स यहाँ आने वाले हर ब्राह्मण बच्चे को विशेष सहयोग दे कर उसे भी कर्मातीत बनने की रेस में शामिल होने का निमंत्रण देने के साथ - साथ उसे इस रेस में आगे बढ़ने का विशेष सहयोग भी दे रहें हैं।

 

_ ➳  अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा और दादियों के जीवन चरित्र से उनके समान बनने की शिक्षा लेकर *कर्मातीत बनने के अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए, पहले विकर्माजीत बन विकर्मो पर जीत पहनने का बल स्वयं में भरने और अपने विकर्मो को दग्ध करने के लिए मैं अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर अपने निराकार शिव पिता के पास उनके धाम की ओर चल पड़ती हूँ* ताकि उनके साथ योग लगाकर योग अग्नि से अपने 63 जन्मो के विकर्म विनाश कर सकूँ।

 

_ ➳  साकारी और सूक्ष्म लोक से परे आत्माओं की निराकारी दुनिया परमधाम में अब मैं अपने योगेश्वर शिव पिता परमात्मा के सम्मुख हूँ और अपनी बुद्धि का योग अपने योगेश्वर बाबा के साथ लगा कर उनसे आ रही सर्वशक्तियों को स्वयं में समा रही हूँ। *मैं देख रही हूँ बाबा से आ रही इन शक्तियों का स्वरूप धीरे - धीरे बदल रहा है और ज्वाला स्वरूप धारण करता जा रहा है। मेरे चारो और जैसे एक बहुत बड़ी ज्वाला प्रज्ज्वलित हो गई है जो मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकर्मों की कट और तमोगुणी संस्कारों को जला कर भस्म कर रही है*। विकर्मो के बोझ से मुक्त होने के साथ - साथ बाबा से आ रही ये शक्तियां विकर्मो पर जीत पहना कर, विकर्माजीत बनने का बल भी मुझे प्रदान कर रही हूँ।

 

_ ➳  विकर्मो को दग्ध करके, एकदम हल्केपन के साथ, कर्मातीत बनने की रेस करने के लिए मैं आत्मा वापिस साकार लोक में साकार तन में आ कर विराजमान हो गई हूँ। देह में रहते हर कर्म करते अब मैं इस बात का विशेष ध्यान रखती हूँ कि अनजाने में भी ऐसा कोई संकल्प मेरे मन में ना उठे, ऐसा कोई बोल मेरे मुख से ना निकले और ऐसा कोई कर्म मुझ से ना जिससे किसी भी प्रकार का कोई विकर्म बने। *इसलिए निरन्तर बाबा की याद और देही अभिमानी स्थिति में स्थित रह हर कर्म करने का अभ्यास बढ़ाते हुए अब मैं कर्मातीत बनने की रेस में बिल्कुल सहज रीति आगे बढ़ती जा रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं मालिक बन कर्मेन्द्रियों से कर्म कराने वाली कर्मयोगी, कर्मबन्धनमुक्त आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं साक्षीपन की स्थिति में रहकर दिलाराम के साथ का अनुभव करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ ‘‘बापदादा राजऋषियों की दरबार देख रहे हैं। राज अर्थात् अधिकारी और ऋषि अर्थात् सर्व त्यागी। त्यागी और तपस्वी। *तो बापदादा सर्व ब्राह्मण बच्चों को देख रहें हैं कि कहाँ तक अधिकारी आत्मा और साथ-साथ महात्यागी आत्मादोनों का जीवन में प्रत्यक्ष स्वरूप कहाँ तक लाया है! अधिकारी और त्यागी दोनों का बैलेन्स हो। अधिकारी भी पूरा हो और त्यागी भी पूरा हो।* दोनों ही इकट्ठे हो सकता है? इसको जाना है वा अनुभवी भी हो? *बिना त्याग के राज्य पा सकते हो? स्व का अधिकार अर्थात् स्वराज्य पा सकते हो? त्याग किया तब स्वराज्य अधिकारी बने। यह तो अनुभव है ना! त्याग की परिभाषा पहले भी सुनाई है।*

✺ *"ड्रिल :- राजऋषि बनकर रहना*"

➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा की याद में ख्वाबों के बिस्तर पर गहरी नींद में सो रही थी। तभी मुझे गहरी नींद में मीठे से स्वपन की अनुभूति होती है... *मैं अपने आप को बापदादा के साथ सूक्ष्म लोक में अनुभव करती हूँ... मैं अपने दिव्य चक्षु से देखती हूँ बाबा फरिश्तों का दरबार लगाये हुए हैं और सभी फ़रिश्ते सफ़ेद चमकीली पोशाक पहन कर बापदादा के सामने बैठे हुए हैं...* और समझा रहे हैं और कुछ पूछ रहे हैं... क्या तुम सभी अपने आप को राजऋषि समझते हो? राज अर्थात अधिकारी! बापदादा द्वारा दिए हुए सर्वखजानों पर अपना पूर्ण अधिकार और बापदादा पर भी अपना पूर्ण अधिकार... जब चाहे पूरे अधिकार से सभी खज़ाने प्राप्त कर लो...

➳ _ ➳ और फ़िर बाबा उन फरिश्तों को समझाते हैं... मन में कभी ये संकोच न रहे कि ये खज़ाना मेरा है या नहीं... *जैसे एक बच्चा अपने माता पिता से किसी भी प्रकार की चीज़ मांगता नहीं है बल्कि पूर्ण अधिकार से और प्रेम से हर चीज़ अपने माता पिता से प्राप्त करता है...* उस बच्चे के मन में कभी किसी भी प्रकार का कोई संकोच न होने के कारण और गहरे प्रेम और निः स्वार्थ के कारण वो ज़िद से भी अपनी हर चीज़ को माता पिता से ही लेता है और माता पिता भी अपने बच्चों को कोई भी चीज़ देने से इंकार नहीं करते... ऐसे अधिकारी बनो...

➳ _ ➳ कुछ समय बाद बाबा कहते हैं जिस तरह अपने ख़ज़ानों पर और अपने बाप पर पूर्ण अधिकार रखते हो उसी तरह अपनी कर्मेन्द्रियों पर भी पूरी तरह से राज़ करते हो? जब चाहे कर्मेन्द्रियों को वश में कर सकते हो? और जब चाहे स्वतंत्र कर सकते हो? क्या ऐसे राज़ अधिकारी बने हो? फिर बाबा कहते हैं *जैसे कछुआ कर्म करते हुए अपनी गर्दन और पैरों को बहार निकाल लेता है और जब उसका कर्म समाप्त होता है तो वह अपनी कर्मेन्द्रियों को अंदर समेट लेता है... क्या ऐसे कर्मेन्द्रियों के अधिकारी बने हो?* कुछ फ़रिश्ते खड़े हो कर बाबा से कहते हैं बाबा... सिर्फ कुछ ही कर्मेन्द्रियाँ हैं जिनको वश में करना बाकी है... काफी हद तक वश में हैं परंतु वश से बाहर हो जाती हैं...

➳ _ ➳ उस सूक्ष्म लोक में उस शीतल प्रकाश के बीच उन फरिश्तों को इस स्थिति में देख कर बाबा आश्चर्यचकित होते हैं और मुस्कुरा कर आगे बढ़ने का आदेश देते हैं... फिर बाबा पूछते हैं *बच्चों क्या अपने आप को त्याग और बलिदान की स्मृति में रखते हुए ऋषि की भाँति त्यागी जीवन का अनुभव करते हो... जैसे ऋषि अपना सर्वस्व त्याग कर तपस्या करता है वैसे ही आप सर्वस्व त्याग कर त्यागमूर्त बने हो?* तभी कुछ फ़रिश्ते बाबा को कहते हैं हाँ बाबा बस यह स्थिति भी पूरी होने ही वाली है बस कुछ समय और उनकी बात सुनकर बाबा फिर मुस्कुराते हैं और आगे बढ़ने का वरदान देते हैं...

➳ _ ➳ सूक्ष्म लोक के इस दृश्य को देखकर मेरे मन के सभी प्रश्न समाप्त हो गए और मैं आगे बढ़कर बापदादा के पास जाती हूँ और बाबा से कहती हूं बाबा सदा अधिकारी और त्यागी स्थिति में अपने आप को अनुभव करुँगी... दोनों स्थितियों का अपने पुरुषार्थ में बैलेंस रखूँगी... *कभी भी पुरुषार्थ के मार्ग में नहीं डगमगाऊँगी अपनी कर्मेन्द्रियों पर राज करके स्वराज अधिकारी स्थिति का अनुभव करूँगी और स्वराज अधिकारी बनूँगी...* और मैं बाबा से कहती हूं बाबा मुझे अच्छी तरह समझ आ गया है कि मैं बिना त्याग के राज्य पा नहीं सकती... इसलिए त्यागी मूर्त बनकर सेवा करुँगी... ये वादा कर के मैं वापिस अपने कर्म क्षेत्र पर आ जाती हूँ और बाबा की बातों को स्मृति में रखते हुए गहरी निद्रा से जाग जाती हूँ... तथा बाबा का शुक्रिया अदा करती हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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