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❍ 03 / 05 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *भ्रमरी की तरह भू भू कर मनुष्य को देवता बनाने की सेवा की ?*
➢➢ *सबको विषयसागर से क्षीरसागर में ले चलने के लिए बाप समान खवैया बनकर रहे ?*
➢➢ *रूहानी प्रसन्नता के वाइब्रेशन द्वारा सर्व को शांति और शक्ति की अनुभूति करवाई ?*
➢➢ *सदा स्मृति स्वरुप रह हर परिस्थिति को खेल अनुभव किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ तपस्वी की तपस्या सिर्फ बैठने के समय नहीं, तपस्या अर्थात् लगन, चलते-फिरते भोजन करते भी लगन लगी रहे। *एक की याद में, एक के साथ में भोजन स्वीकार करना-यह भी तपस्या हुई।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं खुशियों की खान का मालिक हूँ"*
〰✧ *बाप की याद से खुशियों के झूलों में झूलने वाले हो ना। क्योंकि इस संगमयुग में जो खुशियों की खान मिलती है, वह और किसी युग में प्राप्त नहीं हो सकती। इस समय बाप और बच्चों का मिलन है, वर्सा है, वरदान है। बाप के रूप में वर्सा देते, सतगुरू के रूप में वरदान देते हैं।* तो दोनों अनुभव हैं ना? दोनो ही प्राप्तियॉं सहज अनुभव कराने वाली हैं। वर्सा या वरदान - दोनों में मेहनत नहीं। इसलिए टाईटल ही है -'सहजयोगी'। क्योंकि आलमाइटी ओथोरिटी बाप बन जाए, सतगुरू बन जाए... तो सहज नहीं होगा? यही अन्तर परम-आत्मा और आत्माओंका है।
〰✧ कोई महान् आत्मा भी हो लेकिन प्राप्ति कराने के लिए कुछ न कुछ मेहनत जरूर देगी। 63 जन्म के अनुभवी हो ना। इसलिए बापदादा बच्चों की मेहनत देख नहीं सकते। *जब बाप से थोड़ा भी, संकल्प में भी किनारा करते हो तब मेहनत करते हो। उसी सेकेण्ड बाप को साथी बना दो तो सेकेण्ड में मुश्किल सहज अनुभव हो जायेगा।*
〰✧ *क्योंकि बापदादा आये ही हैं बच्चों की थकावट उतारने। 63 जन्म ढूँढ़ा, भटके। अब बापदादा मन की भी थकावट, तन की भी थकावट और धन के उलझन के कारण भी जो थकावट थी, वह उतार रहे हैं।* सभी थक गये थे ना! बच्चे जो अति प्यारे होते हैं, उन्हों के लिए कहावत है - नयनों पर बिठाकर ले जाते हैं। तो इतने हल्के बने हो जो नयनों पर बिठाकर बाप ले जाये? लाइट (हल्के) हो ना? जब बाप बोझ उठाने के लिए तैयार है तो आप बोझ क्यों उठाते हो?
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *एक सेकण्ड में वाणी से परे स्थिति में स्थित हो सकती हो?* जैसे और कर्म इन्द्रियों को जब चाहो जैसे चाहो वैसे हिला सकते हो। ऐसे ही बुद्धि की लगन को जहाँ चाहो, जब चाहे वैसे और वहाँ स्थित कर सकते हो? एसे पावरफुल बने हो?
〰✧ यह विधि वृद्धि को पाती जा रही है। *अगर विधि यथार्थ है तो विधि से सिद्धि अर्थात सफलता और श्रेष्ठता अवश्य ही दिन - प्रतिदिन वृद्धि को पाते हुए अनुभव करेंगे।* इस परिणाम से अपने पुरुषार्थ की यथार्थ स्थिति को परख सकते हो।
〰✧ यह सिद्धि विधि को परखने की मुख्य निशानी है। कोई भी बात को परखने के लिए निशानियाँ होती है। *तो इस निशानी से अपने सम्पूर्ण बुद्धि की निशानी को परख सकते हो।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ वातावरण हो तब याद की यात्रा हो, परिस्थिति न हो तब स्थिति हो, *अर्थात् परिस्थिति के आधार पर स्थिति व किसी भी प्रकार का साधन हो तब सफलता हो, ऐसा पुरुषार्थ फाइनल पेपर में फेल कर देगा। इसलिए स्वयं को बाप समान बनाने की तीव्रगति करो।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मातेले बन बाप से पूरा-पूरा वर्सा लेना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा घर की छत पर बैठ प्रकृति के नजारों को देख रही हूँ... सुबह-सुबह का शांत वातावरण मन को आह्लादित कर रहा है... *प्यारे बाबा को पाकर, उसकी श्रेष्ठ श्रीमत पर चलकर मुझ आत्मा का जीवन ही परिवर्तित हो गया है... पुराने कलियुगी स्वभाव-संस्कार बदल रहे हैं... अब मैं आत्मा श्रीमत पर चलते हुए सदा खुशियों के समुन्दर में तैरती रहती हूँ...* आसमान में उड़ते हुए पंछियों को देख मैं आत्मा भी पंछी बन उड़ चलती हूँ मेरे बाबा के पास उनकी मीठी वाणी सुनने...
❉ *प्यारे बाबा अपनी शक्तियों और वरदानों को प्यार से मुझ पर बरसाते हुए कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... जिस ईश्वर पिता को कन्दराओं में, तपस्याओ में खोज रहे थे... वह मीठा बाबा सम्मुख बैठ भाग्य सजा रहा है... *अपनी तकदीर को हीरे जैसा दमकाओ और ईश्वर पिता की अथाह धन सम्पत्ति के सहज ही मालिक बन... मीठे सुखो में सदा मुस्कराओ...* ऐसा पुरुषार्थ करो कि ईश्वर पिता की नजरो में हीरो बन इठलाओ...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा श्रीमत के साये में दिव्य परमात्म खजानों को पाकर अपना भाग्य बनाते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा देह की दुनिया में फंसी कभी दुखो के पत्थरो से लहूलुहान थी... *आज मीठे बाबा आपको पाकर खुशियो में खिल उठी हूँ... यादो में हर पल खोयी हुई... ईश्वरीय खजानो को पाने वाली महाभाग्य से सज गयी हूँ...”*
❉ *ज्ञान के अनहद नाद से 21 जन्मों के लिए मेरे जीवन को सुखों से सजाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... प्यारे बाबा की मीठी महकती यादो में खोकर खुबसूरत बहारो से दामन सजाओ... *प्रेम की लगन इस कदर बढ़ाओ कि ईश्वर पिता की सारी जागीर आपकी बाँहों में हो... सुनहरे सुखो में खिला हुआ खुबसूरत प्यारा जीवन हो...* ऐसा पुरुषार्थ कर बाबा के दिल में मुस्कराओ...”
➳ _ ➳ *अपने अंतःकरण के कण-कण में प्यारे बाबा के स्नेह, शक्तियों को संजोकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा आपकी मीठी यादो में अपने महान भाग्य की तकदीर लिखती जा रही हूँ...* आलिशान सुखो भरा जीवन पाने वाली... हीरो की खानो में खिलखिलाने वाली, श्रेष्ठ धनी आत्मा बनती जा रही हूँ...”
❉ *सद्गुणों के सागर मेरे बाबा, मेरे भाग्य के गागर को अविनाशी रत्नों से भरते हुए कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देह दुनिया की हर बात से उपराम हो,अपने अविनाशी सत्य स्वरूप के नशे में खो जाओ... *मीठे बाबा के साथ के मीठे पलों में तीव्र पुरुषार्थी बन, अपनी शहंशाही किस्मत को पा लो... ईश्वर पिता के सारे खजानो पर अपना अधिकार जमा कर सदा के खुशकिस्मत हो जाओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा के गुण गाते हुए प्यार के सागर की लहरों में लहराती हुई कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ... कभी देह की दुनिया में बदनसीब बन रोने वाली,आज ईश्वरीय बाँहों में ख़ुशी से झूम रही हूँ... *प्यारे बाबा आपकी सारी दौलत पर मेरी गहरी नजर है... और इसे पाकर मै हीरा आत्मा, हीरों से मालामाल हो रही हूँ...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सबको विषय सागर से क्षीर सागर में ले चलने के लिए बाप समान खिवैया बनना है*
➳ _ ➳ अपने जीवन की नैया को प्रभु हवाले कर, अपने निश्चित ब्राह्मण जीवन का भरपूर आनन्द लेती हुई, अपने प्यारे प्रभु की याद में मैं बैठी हूँ और एक दृश्य जो बार - बार मेरे मानस पटल पर उभर रहा है उसे समझने का प्रयास कर रही है। *मैं देख रही हूँ सारे संसार को एक विशाल नदी के रूप में, जो दलदल से भरी हुई है। दुनिया के सभी मनुष्य मात्र इस दलदल में गोते खा रहे हैं। जितना इस दलदल से बाहर निकलने के लिए हाथ पैर चला रहें हैं, उतना ही इसके अंदर गहराई में धँसते जा रहे हैं और रोते बिलखते इसी दलदल में शरीर का त्याग कर रहे हैं*।
➳ _ ➳ इस दर्दनांक दृश्य को देख मन ही मन मैं विचार करती हूँ कि विकारों की आग में जल कर आज सारा संसार विषय सागर ही तो बन गया है। *विषय वासनाओं की दलदल में सारी दुनिया इतनी गहराई तक डूबी हुई है कि भगवान जो स्वयं खिवैया बन सबको विषय सागर से क्षीर सागर में ले चलने के लिए आया है उसे भी पहचान नही पा रही*। कितनी सौभागशाली हैं वो ब्राह्मण आत्मायें जिन्होंने परमात्मा को पहचान लिया है और उसे अपने जीवन रूपी नैया का खिवैया बनाकर अपना जीवन उसे सौंप दिया है। मन ही मन यह विचार करते अब एक खूबसूरत दृश्य देख मैं आनन्द विभोर हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ मैं देख रही हूँ इस विषय सागर के ऊपर उदय होते हुए ज्ञान सूर्य शिव परम पिता परमात्मा को जो *अपनी सर्वशक्तियों की रंग बिरंगी किरणो की एक खूबसूरत नाव तैयार कर इस विषय सागर में उतर रहें हैं और इस विषय सागर से क्षीर सागर में चलने के लिए अपने सभी आत्मा बच्चों को निमंत्रण दे रहें हैं*। उनके इस निमंत्रण को स्वीकार कर रही चंद सौभागशाली ब्राह्मण आत्माये इस नौका में सवार हो रही हैं और भगवान खिवैया बन इस रंगबिरंगी किरणो की इस खूबसूरत नैया में उन सबको बिठाये धीरे - धीरे इस विषयसागर से बाहर निकल रहें हैं।
➳ _ ➳ मैं देख रही हूँ महाज्योति शिव पिता की सर्वशक्तियों की रंग बिरंगी किरणों रूपी नाव में सवार सभी चमकते हुए चैतन्य सितारों को जो महाज्योति अपने प्यारे पिता के साथ उनके धाम जा रहें हैं। *इस अति खूबसूरत दृश्य को देख, मन ही मन आनन्दित होकर, निराकारी ज्योति बन अपने महाज्योति शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणों की नाव में मैं भी सवार हो जाती हूँ और उनके साथ पहुँच जाती हूँ उनके निर्वाण धाम, शांति धाम घर मे*। अनन्त प्रकाश की यह दुनिया, निराकारी आत्माओं का यह घर जहाँ चारों और चैतन्य सितारे अपना प्रकाश फैलाते हुए इस अंतहीन ब्रह्मांड में विचरण कर रहें हैं।
➳ _ ➳ निराकारी आत्माओं की इस विचित्र दुनिया में ना साकार देह का कोई बन्धन और ना ही सूक्ष्म देह का भान। हर सम्बन्ध आत्मिक। देह और देह की दुनिया का संकल्प मात्र भी यहाँ नही। *कितनी न्यारी और प्यारी अवस्था है यह। एक आलौकिक सुखमय निर्संकल्प स्थिति में स्थित हो कर अपने बीज रूप परम पिता परमात्मा बाप को निहारते हुए मैं असीम सुख का अनुभव कर रही हूँ*। बीज रूप मेरे मीठे बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की किरणों की मीठी - मीठी फुहारे मुझे असीम बल प्रदान कर रही हैं। सर्वशक्तियों से सम्पन्न, शक्ति स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं लौट आती हूँ वापिस साकारी दुनिया में।
➳ _ ➳ पांच तत्वों के बने अपने पंचभूतक शरीर में मैं प्रवेश करती हूँ इस स्मृति के साथ कि भगवान ने मुझे ईश्वरीय सेवा अर्थ इस धरा पर भेजा है इसलिए बाप समान खिवैया बन सबको विषय सागर से क्षीर सागर में ले चलने का ईश्वरीय कर्तव्य मुझे जरूर करना है। अपने शिव पिता की श्रेष्ठ मत पर चल कर अपना और सर्व आत्माओं का कल्याण करना ही मेरे इस ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है, *इस स्मृति में स्थित हो कर, स्वयं को विश्व कल्याणकारी के स्वरूप में देखते हुए, अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सभी आत्माओं को परमात्म सन्देश देकर उनके जीवन की डूबती हुई नैया को बाप समान खिवैया बन मैं विषयसागर से क्षीर सागर में ले चलने की अपनी रूहानी मिशन को परमात्मा बाप के सहयोग से बिल्कुल सहज रीति सम्पन्न करते हुए अपने ईश्वरीय जीवन की खूबसूरत सुखदाई यात्रा पर निरन्तर आगे बढ़ती जा रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं रूहानी प्रसन्नता के वाइब्रेशन द्वारा सर्व को शांति और शक्त्ति की अनुभूति कराने वाली सर्व प्राप्ति स्वरूप आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं स्मृति स्वरूप रहकर कोई भी परिस्थिति को खेल अनुभव करने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ दूसरी बात - अगर आपकी मंसा द्वारा अन्य आत्माओं को सुख और शांति की अनुभूति नहीं होती अर्थात् पवित्र संकल्प का प्रभाव अन्य आत्मा तक नहीं पहुँचता तो उसका भी कारण चेक करो। किसी भी आत्मा की जरा भी कमज़ोरी अर्थात् अशुद्धि अपने संकल्प में धारण हुई तो वह अशुद्धि अन्य आत्मा को सुख-शान्ति की अनुभूति करा नहीं सकेगी। या तो उस आत्मा के प्रति व्यर्थ वा अशुद्ध भाव है वा अपनी मंसा पवित्रता की शक्ति में परसेन्टेज की कमी है। जिस कारण औरों तक वह पवित्रता की प्राप्ति का प्रभाव नहीं पड़ सकता। स्वयं तक है, लेकिन दूसरों तक नहीं हो सकता। लाइट है, लेकिन सर्चलाइट नहीं है। तो *पवित्रता के सम्पूर्णता की परिभाषा है - सदा स्वयं में भी सुख-शान्ति स्वरूप और दूसरों को भी सुख-शांति की प्राप्ति का अनुभव कराने वाले। ऐसी पवित्र आत्मा अपनी प्राप्ति के आधार पर औरों को भी सदा सुख और शान्ति, शीतलता की किरणें फैलाने वाली होगी।* तो समझा सम्पूर्ण पवित्रता क्या है?
✺ *"ड्रिल :- मंसा द्वारा अन्य आत्माओं को सुख और शांति की अनुभूति करवाना*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सुन्दर सरोवर के समीप बैठकर सरोवर के शांत जल को देख रही हूँ...* नीचे से एक कंकड़ उठाकर सरोवर के शांत जल में फेंकती हूँ... सरोवर के शांत जल में जल तरंगे उठने लगती हैं... ऐसे ही मुझ आत्मा के मन में एक व्यर्थ विचार का कंकड़ एक के बाद एक अन्य व्यर्थ विचारों को जन्म देता है... *मैं आत्मा अपने मन में उठने वाले व्यर्थ विचारों के तरंगो को शांत करती हुई मन-बुद्धि को भृकुटी के मध्य एकाग्र करती हूँ...* आत्मिक स्वरुप में टिकते ही मुझ आत्मा का मन शांत सरोवर की तरह शांत हो रहा है...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा इस स्थूल शरीर को छोड़ अशरीरी बन उड़ चलती हूँ शांतिधाम...* मैं आत्मा शांतिधाम की गहन शांति को गहराई से अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा बीजरूप अवस्था धारण कर बीजरूप बाबा के समीप बैठ जाती हूँ... बीजरूप बाबा से एक हो जाती हूँ... *बीजरूप बाबा से निकलती किरणों से मैं आत्मा अपनी अपवित्रता और अशुद्धि के संकल्पों को बीज सहित उखाड़कर खत्म कर रही हूँ...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सभी व्यर्थ संकल्पों से मुक्त होकर एकाग्रता का अनुभव कर रही हूँ...* निर्संकल्प स्थिति में स्थित हो रही हूँ... मैं आत्मा सभी संकल्प-विकल्पों से मुक्त हो रही हूँ... *अब मैं आत्मा व्यर्थ पर अटेंशन देकर समर्थ बन रही हूँ...* व्यर्थ को समर्थ में चेंज कर रही हूँ... अब मैं आत्मा पवित्र और सकारात्मक संकल्पों का निर्माण कर रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सदा चेक करती हूँ कि अपनी मंसा पवित्रता की शक्ति में परसेन्टेज की कमी तो नहीं है... *सदा अटेंशन रखती हूँ कि किसी भी अन्य आत्मा की जरा भी कमज़ोरी वा अशुद्धि मेरे संकल्पों में धारण न हो...* अब मैं आत्मा किसी भी आत्मा के प्रति व्यर्थ वा अशुद्ध भाव नहीं रखती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सदैव सम्बन्ध-सम्पर्क में आने वाले सर्व आत्माओं के प्रति शुद्ध और शुभ भावना रखती हूँ... शुभ कामना और निमित्त भाव के साथ सेवा करती हूँ... *अब मैं आत्मा लाइट होकर सर्चलाइट बन रही हूँ...* मैं आत्मा अपने पवित्र संकल्पों का प्रभाव अन्य आत्माओं तक पहुँचा रही हूँ... शुद्ध संकल्पों से सर्व आत्माओं का कल्याण कर रही हूँ... *मैं आत्मा मंसा द्वारा अन्य आत्माओं को सुख और शांति की अनुभूति करवा रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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