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❍ 11 / 12 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *"बाप की हर बात में कल्याण है" - यह समझकर निश्चयबुधी होकर चले*
➢➢ *ड्रामा में हर एक्टर के अनादी पार्ट को साक्षी होकर देखा ?*
➢➢ *हर एक की विशेषता को देख उन्हें सेवा में लगाया ?*
➢➢ *बापदादा के साथ ऐसे कंबाइंड रहे जो आप द्वारा दूसरों को बाप की याद आई ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *याद में निरन्तर रहने का सहज साधन है - प्रवृत्ति में रहते पर - वृत्ति में रहना। पर - वृत्ति अर्थात् आत्मिक रूप।* ऐसे आत्मिक रूप में रहने वाला सदा न्यारा और बाप का प्यारा होगा। कुछ भी करेगा लेकिन ऐसे महसूस होगा जैसे काम नहीं किया लेकिन खेल किया है। *यह रूहानी नयन, यह रूहानी मूर्त ऐसे दिव्य दर्पण बन जायेंगे जिस दर्पण में हर आत्मा बिना मेहनत के आत्मिक स्वरूप ही देखेगी।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं विजयी रत्न हूँ"*
〰✧ सब विजयी रत्न हो ना? विजय का झण्डा पक्का है ना। *विजय हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है।* यह मुख का नारा नहीं लेकिन प्रैक्टिकल जीवन का नारा है।
〰✧ *कल्प-कल्प के विजय हैं, अब की बार नहीं, हर कल्प के, अनगिनत बार के विजयी हैं।* ऐसे विजयी सदा हर्षित रहते हैं। हार के अन्दर दुख की लहर होती है।
〰✧ *सदा विजयी जो होंगे वह सदा खुश रहेंगे, कभी भी किसी सरकमस्टांस में भी दुख की लहर नहीं आ सकती।* दुख की दुनिया से किनारा हो गया, रात खत्म हुई, प्रभात में आ गये तो दुख की लहर कैसे आ सकती? विजय का झण्डा सदा लहराता रहे, नीचे न हो।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *डायमण्ड जुबली वाले क्या करेंगे? लहर फैलायेंगे ना?* आप लोग तो अनुभवी हैं। शुरू का अनुभव है ना! सब कुछ था, देशी घी खाओ जितना खा सकते, फिर भी बेहद की वैराग्य वृति। दुनिया वाले तो देशी घी खाते हैं लेकिन आप तो पीते थे। घी की नदियाँ देखी।
〰✧ तो डायमण्ड जुबली वालों को विशेष काम करना है - *आपस में इकट्ठे हुए हो तो रूहरिहान करना।* जैसे सेवा की मीटिंग करते हो वैसे इसकी मीटिंग करो। जो बापदादा कहते हैं, चाहते हैं *सेकण्ड में अशरीरी हो जायें - उसका फाउण्डेशन यह बेहद की वैराग्य वृत्ति है,* नहीं तो कितनी भी कोशिश करेंगे लेकिन सेकण्ड में नहीं हो सकेंगे।
〰✧ युद्ध में ही चले जायेंगे और *जहाँ वैराग्य है तो ये वैराग्य है योग्य धरनी, उसमें जो भी डालो उसका फल फौरन निकलता।* तो क्या करना है?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *अपने को फ़रिश्तों की सभा में बैठने वाला फ़रिश्ता समझते हो? फ़रिश्ता अर्थात् जिसके सर्व सम्बन्ध वा सर्व रिश्ते एक के साथ हों। एक से सर्व रिश्ते और सदा एकरस स्थिति में स्थित हों।* एक-एक सेकेण्ड, एक-एक बोल, एक की ही लगन में और एक की ही सेवा प्रति हों। चलते-फिरते, देखते-बोलते और कर्म करते हुए व्यक्त भाव से न्यारे अव्यक्त अर्थात् इस व्यक्त देह रूपी धरनी की स्मृति से बुद्धि रूपी पाँव सदा ऊपर रहे अर्थात् उपराम रहे। *जैसे बाप ईश्वरीय सेवा-अर्थ वा बच्चों को साथ ले जाने की सेवा-अर्थ वा सच्चे भक्तों को बहुत समय के भक्ति का फल देने अर्थ, न्यारे और निराकार होते हुए भी अल्पकाल के लिए आधार लेते हैं वा अवतरित होते हैं ऐसे ही फ़रिश्ता अर्थात् सिर्फ ईश्वरीय सेवा अर्थ यह साकार ब्राह्मण जीवन मिला है।* धर्म स्थापक धर्म स्थापना का पार्ट बजाने के लिए आये हैं- इसलिए नाम ही है शक्ति अवतार-इस समय अवतार हूँ, धर्म स्थापक हूँ। *सिवाये धर्म स्थापन करने के कार्य के और कोई भी कार्य आप ब्राह्मण अर्थात् अवतरित हुई आत्माओं का है ही नहीं। सदा फ़रिश्ता डबल लाइट रूप है। एक लाइट अर्थात् सदा ज्योति स्वरूप, दूसरा लाइट अर्थात् कोई भी पिछले हिसाब-किताब के बोझ से न्यारा अर्थात् हल्का। ऐसे डबल लाइट स्वरूप अपने को अनुभव करते हो?*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- श्रीमत पर सदा चलते रहना"*
➳ _ ➳ सृष्टि चक्र का चक्कर लगाते-लगाते मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ, घोर कलियुग में... जहाँ चारों और अज्ञान अंधकार फैला हुआ था... मैं आत्मा माया को अपना समझ उसकी गोदी में सुखों को ढूंढ रही थी... और दुखों के गर्त में धंसती जा रही थी... मेरी ये हालत देख मेरे प्यारे पिता अपना धाम छोड़ इस धरती पर आ गया... मुझे दुखों से छुड़ाने, सुख की दुनिया में ले जाने... *मेरा प्यारा बाबा कलियुगी काली दुनिया से मुझे निकाल सुहाने संगमयुग में लाकर ख़ज़ानों से भरपूर कर दिया... अविनाशी खुशियों से जीवन आबाद कर दिया... प्यारे बाबा शिक्षक बन मीठी शिक्षाएं दे रहा है...*
❉ *प्यारे बाबा श्रीमत रूपी श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत देकर कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... जब घर से निकले थे किस कदर खिले खुशनुमा फूल थे... अब अपनी सारी रूहानियत की महक खो चुके हो... खत्म से खाली और निस्तेज बन गए हो... अब मीठा बाबा वही खिलता फूल बनाने आया है... *अपनी गोद में बिठा पावनता से सजा धजा कर घर ले जाने आया है... इसलिए पिता की श्रीमत रुपी हाथ कभी न छोडो... श्रीमत पर चलकर हर डायरेक्शन अमल में लाओ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा गॉडली स्टूडेंट बन बाबा की श्रीमत को धारण करते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके साये में प्रतिपल निखरती जा रही हूँ... दिव्य गुणो से सजकर खूबसूरत हो रही हूँ... *आपकी यादो में डूबी हुई... श्रीमत को बाँहों में भरकर अनन्त सुखो को जी रही हूँ... आपके साथ से यह जीवन कितना मीठा प्यारा है..."*
❉ *मीठा बाबा मेरा हाथ अपने हाथ में लेते हुए प्यार से कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... परमत और मनमत पर चलकर अंजाम को देख लिया... दुखो के दरिया में डूबकर भँवर को भी जी लिया... *अब भाग्य ने ईश्वर पिता के हाथो में जो ऊँगली थमाई है... उसे कसकर पकड़े रहो... तो फूलो के गलीचे पर बैठकर सतयुग में पहुंच जायेंगे... मीठा बाबा कन्धों पर बिठाकर नई दुनिया में ले जायेगा..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ज्ञान योग के पंखों से सजते हुए कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा सच्ची श्रीमत को पाकर फूलो सी खिल गयी हूँ... पतित जीवन को छोड़ पावनता से सजकर चमकीली परी हो गयी हूँ... *आपकी मीठी यादो में मगन होकर मुस्कराती हुई... हाथ पकड़ कर घर साथ चलने की तैयारी में जुट गयी हूँ..."*
❉ *मेरे बाबा ब्लेस्सिंग्स देकर मुझे भरपूर करते हुए कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... विश्वपिता की श्रीमत को सदा सर आँखों पर लगाये रहो... यह श्रीमत ही सच्चा साथी है जो दुखो के समन्दर से निकाल सुखो के बगीचे में बसायेगी... *मीठे बाबा की श्रीमत ही सच्चा साथ निभाएगी... कदम कदम पर रक्षक बन सोने सा दमकायेगी... और पावनता से श्रंगारित कर मीठे सुख दिलाएगी..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा प्यारे बाबा के हर डायरेक्शन को पालन करने का दृढ संकल्प लेते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा बिना ईश्वरीय मत के निर्रथक से जीवन की गहरी अनुभवी रही हूँ... अब मुझे सच्चा साथ और सच्चे सुखो से भरा जीवन मिला है... *आपकी श्रीमत ने पावन बनाकर अनन्त सुखो से भर दिया है... बाबा... अब मैं आपका श्रीमत रूपी हाथ कभी नही छोडूंगी... और अब मै ईश्वर पिता की साथी बन गयी हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- श्रीमत को यथार्थ रीति समझना है*
➳ _ ➳ मन बुद्धि का कनेक्शन अपने शिव पिता के साथ जुड़ते ही इस नश्वर भौतिक जगत से कनेक्शन टूटने लगता है और मन मगन हो जाता है प्रभु प्यार में। *मन को सुकून देने वाली मीठे बाबा की मीठी याद में मैं जैसे खो जाती हूँ और प्रभु यादों की डोली में बैठ उड़ कर पहुँच जाती हूँ उस खूबसूरत लाल प्रकाश की दुनिया में जहाँ मेरे मीठे बाबा रहते हैं*। देह, देह की दुनिया से बहुत दूर आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में निराकार अपने शिव पिता को अनन्त प्रकाश के एक ज्योतिपुंज के रूप में मैं देख रही हूँ। मन को तृप्ति प्रदान करने वाला उनका अति मनमोहक प्रकाशमय स्वरूप मुझे अपनी ओर खींच रहा है। उनके आकर्षण में बंधी मैं आत्मा एक चमकती हुई ज्योति अब धीरे धीरे उस महाज्योति के पास जा रही हूँ।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे मेरे मन और बुद्धि की तार उस महाज्योति के साथ जुड़ी हुई है और उस तार में बिजली के तार की भांति एक तेज करेन्ट निकल रहा है जो मेरे शिव पिता से सीधा मुझ बिंदु आत्मा के साथ कनेक्ट हो रहा है और अपनी सारी शक्तियों का प्रवाह मेरे अंदर प्रवाहित करता जा रहा है। *ये सर्व शक्तियाँ मुझ आत्मा में समाकर मेरे अंदर अनन्त शक्ति का संचार कर रही है और मुझे शक्तिशाली बनाने के साथ - साथ ये शक्तियाँ मुझे छू कर अनन्त फ़ुहारों के रूप में चारों और फैल रही हैं और मेरे ऊपर बरस कर मुझे गहन शीतलता का अनुभव करवा रही हैं*। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे शक्तियों का कोई सतरँगी फव्वारा मेरे ऊपर चल रहा है और अपनी मीठी - मीठी, हल्की - हल्की फ़ुहारों से मेरे अन्तर्मन की सारी मैल को धोकर साफ कर रहा है।
➳ _ ➳ एक बहुत ही प्यारी लाइट माइट स्थिति का मैं अनुभव कर रही हूँ। हर बोझ, हर बन्धन से मुक्त यह लाइट स्थिति मुझे परम आनन्द प्रदान कर रही है। अतीन्द्रीय सुख के सुखदाई झूले में मैं आत्मा झूल रही हूँ। *परम आनन्द की गहन अनुभूति करते - करते अब मैं बिंदु आत्मा सम्पूर्ण समर्पण भाव से अपने महाज्योति शिव पिता की किरणों रूपी बाहों में समाकर उनके और भी समीप पहुँच गई हूँ। समर्पणता के उस अंतिम छोर पर मैं स्वयं को देख रही हूँ जहाँ दोनों बिंदु एक दिखाई दे रहे हैं*। यह अवस्था मुझे बाबा के समान सम्पूर्ण स्थिति का अनुभव करवा रही है। अपनी इस सम्पूर्ण स्थिति में मैं स्वयं को सर्व गुणों और सर्वशक्तियों के मास्टर सागर के रूप में देख रही हूँ। अपने इस सम्पूर्ण स्वरूप के साथ मैं आत्मा परमधाम से नीचे आकर सूक्ष्म वतन में प्रवेश कर जाती हूँ।
➳ _ ➳ दिव्य प्रकाश की काया वाले फरिश्तो के इस अव्यक्त वतन में अपने सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप को धारण कर, अव्यक्त बापदादा के सामने मैं उपस्थित होती हूँ और अपने अव्यक्त स्वरूप में स्थित होकर, बाहें पसारे खड़े अव्यक्त बापदादा की बाहों में समाकर, उनके प्रेम से स्वयं को भरपूर करके उनके सम्मुख बैठ जाती हूँ। *अपनी मीठी दृष्टि और मधुर मुस्कान के साथ बाबा मुझे निहारते हुए अपनी लाइट और माइट मुझ फ़रिश्ते में प्रवाहित करते जा रहें हैं*। बाबा की शक्तिशाली दृष्टि मेरे अंदर एक अनोखी शक्ति का संचार कर रही है और मुझे बाबा की श्रीमत पर चलने और उनके हर फरमान का पालन करने की प्रेरणा दे रही है।
➳ _ ➳ बाबा से दृष्टि लेते हुए मैं मन ही मन सदा बाबा की श्रीमत पर चलने की स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ और अपने निराकारी बिंदु स्वरूप में स्थित होकर अब उस प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए वापिस अपनी कर्मभूमि पर लौट आती हूँ। *कर्म करने के लिए जो शरीर रूपी रथ मुझ आत्मा को मिला हुआ है उस शरीर रूपी रथ पर पुनः विराजमान होकर मैं आत्मा अब फिर से सृष्टि रंगमंच पर अपना पार्ट बजा रही हूँ*। शरीर का आधार लेकर हर कर्म करते हुए अब बुद्धि का कनेक्शन केवल अपने शिव पिता के साथ निरन्तर जोड़ कर, उनकी जो श्रीमत मिलती है उसे राइट समझ उस पर चलने का पूरा पुरुषार्थ अब मैं कर रही हूँ और अपने प्यारे पिता के साथ अपने सँगमयुगी ब्राह्मण जीवन का भरपूर आनन्द ले रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं हर एक की विशेषता को देखते उन्हें सेवा में लगाने वाली दुआओं की पात्र आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं बापदादा के साथ कम्बाइन्ड रहने से अपने द्वारा दूसरों को बाप की याद दिलाने वाली भाग्यवान आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ हर गुण वा शक्ति का अनुभव कराने की रिसर्च करो यह बहुत बड़ा ग्रुप है। स्पार्क वाले रीसर्च करते हैं ना! स्पार्क वालों को विशेष यह अटेन्शन में रहे कि जैसे साइन्स प्रत्यक्ष अनुभव कराती है, मानो गर्मी है तो साइन्स के साधन ठण्डी का प्रत्यक्ष अनुभव कराते हैं। ऐसे रीसर्च वालों को विशेष ऐसा प्लैन बनाना चाहिए कि *हर एक जो बाप की या आत्मा की विशेषतायें हैं, ज्ञान स्वरूप, शान्त स्वरूप, आनन्द स्वरूप, शक्ति स्वरूप... इस एक-एक विशेषता का प्रैक्टिकल में अनुभव क्या होता है। वह ऐसा सहज साधन निकालो जो कोई भी अनुभव करने चाहे तो चाहे थोड़े समय के लिए भी अनुभव कर सके कि शान्ति इसको कहते हैं, शक्ति की अनुभूति इसको कहते हैं। एक सेकण्ड, दो सेकण्ड भी अनुभव कराने की विधि निकालो।* तो एक सेकण्ड भी अगर किसको अनुभव हो गया तो वह अनुभव आकर्षित करता है। *ऐसी कोई इन्वेन्शन निकालो। आपके सामने आवे और जिस विशेषता का अनुभव करने चाहे वह कर सके।* क्या-क्या भिन्न-भिन्न स्थिति होती है, जैसे साधना करने वाले जो साधु हैं वह प्रैक्टिकल में उन्हों को अनुभव कराते हैं, चक्र नाभी से शुरू हुआ फिरऊपर गया, फिर ऊपर जाके क्या अनुभूति होती है। ऐसे आप अपने विधि पूर्वक, मन और बुद्धि द्वारा उनको अनुभव कराओ। लाइट बैठकर नहीं दिखाना है लेकिन लाइट का अनुभव करें।
➳ _ ➳ *रीसर्च का अर्थ ही है - 'प्रत्यक्ष विधि द्वारा अनुभव करना, कराना'। तो ऐसा प्लैन बनाके प्रैक्टिकल में इसकी विधि निकालो।* जैसे योग शिविर की विधि निकाली ना तो टैम्प्रेरी टाइम में योग शिविर में जो भी आते हैं वह उस समय तो अनुभव करते हैं ना! और उन्हों को वह अनुभव याद भी रहता है। ऐसे कोई-न-कोई गुण, कोई-न-कोई शक्ति, कोई-न -कोई अनादि संस्कार, उन्हों की अनुभूति कराओ। तो ऐसी रीसर्च वालों को पहले स्वयं अनुभूति करनी पड़ेगी फिर विधि बनाओ और दूसरों को अनुभूति कराओ। आजकल लोगों को भक्ति में जैसे चमत्कार चाहिए ना, मेहनत नहीं - 'चमत्कार'। ऐसे आध्यात्मिक रूप में अनुभव चाहिए। अनुभवी कभी बदल नहीं सकता। जल्दी-जल्दी अनुभव के आधार से बढ़ते जायेंगे सुना। *अभी नई-नई विधि निकालो। आप कहते जाओ वह अनुभव करते जायें, इसके लिए बहुत पावरफुल अभ्यास करना पड़ेगा।*
✺ *ड्रिल :- "हर गुण वा शक्ति का प्रत्यक्ष विधि द्वारा अनुभव करना और कराना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा मस्तक मणि हूं... भ्रुकुटी में अपने सिंहासन पर विराजमान... *मैं आत्मा अपने इस ब्राह्मण जीवन को देख हर्षित होती हूँ...* बाबा ने मुझे अपनाया तो मुझे अपने रूप, काल, घर के बारे में पता चला है... नहीं तो कहां वो कलयुग का शूद्र जीवन और कहाँ यह संगमयुग का ब्राह्मण जीवन... *बाबा ने दुःखों के जाल में फँसी मुझ आत्मा के बंधन काट मुक्त कराया... मुझे मेरा तारणहार मिल गया...* मैं आत्मा नीलगगन में उन्मुक्त पंछी की भांति उड़ान भरती हुई गुनगुना रही हूं... *कि तुम जो मिल गए हो तो जहान मिल गया...*
➳ _ ➳ *पहुँचती हूं अपने घर परमधाम...* जहां चहुँ ओर लाल प्रकाश फैला हुआ है... कितना सुंदर कितना सुनहरा प्रकाश है यह, कितनी शान्ति है यहां... खो जाती हूं मैं इस शांत वातावरण में... इन लाल प्रकाश की किरणों में मैं समा जाती हूँ... *ज्योतिरबिन्दु शिव पिता मुझ को लेकर आते हैं सूक्ष्म वतन में...*
➳ _ ➳ *सामने है मेरे पिता, मेरे ईश्वर, मेरे आराध्य, मेरे परमात्मा , मेरे बापदादा* क्या बोलूं ! कैसे पुकारूँ! नहीं जानती बस इतना ही बोलती हूं... *"मेरे बाबा मेरे प्राण मेरे जीवन मेरी जान"* कब से बिछड़ी हुई थी आपसे... कहाँ थे आप? क्यों मुझे इस दुनिया की भीड़ में अकेला छोड़ दिया? जानते भी हैं? कि कैसे गुजारे मैंने ये बरस, ये सदियां आपके बिना... मेरी ये बातें सुन बाबा को मुझ पर बेहद प्यार आता है... बाबा मेरे सर पर बड़े प्यार से हाथ फिराते हैं... मुझे मनभावनी दृष्टि देते हैं... और मीठी मीठी वाणी में बड़े प्रेम से ड्रामा का राज़ बतलाते हैं... *मैं आत्मा बाबा के प्रेम में डूबने लगती हूं... बाबा के मस्तक से आती सफ़ेद किरणें मेरे अंदर शीतलता भर रही हैं... इन निरंतर आती किरणों के प्रवाह से मैं अपने को बेहद शक्तिशाली अनुभव कर रही हूं... ये किरणों का झरना मुझे पवित्रता से, ज्ञान से, प्रेम से, आनंद से, सर्व शक्तियों से भरपूर कर रहा है।*
➳ _ ➳ *बाबा मुझ आत्मा को गुण और शक्तियों से भरपूर कर रहे हैं... इन गुण शक्तियों को अपने अंदर भर मैं बाप समान बनती जा रही है... मैं अपने को पूरी तरह से तृप्त अनुभव कर रही हैं...* इसके उपरांत मैं बाबा से विदाई लेकर वापिस आती हूं... *बाबा से मिले गुण शक्तियों और वरदानों के निरंतर अभ्यास ने मुझे बहुत दिव्य और अलौकिक बना दिया है...*
➳ _ ➳ अनुभव करती हूं कि मेरा प्रभामंडल अन्य आत्माओं को आकर्षित करने लगा है... *मुझ आत्मा में भरा बाबा का स्नेह उन्हें चुम्बक की तरह आकर्षित कर रहा है उस स्नेह को पाने के लिए सब मेरी ओर खिंचीं चली आ रही हैं...* दिव्य गुणों शक्तियों को धारण कर मैं आत्मा अपने संबंध सम्पर्क में आने वाली अन्य आत्माओं को भी सुख, शांति, प्रेम व आनन्द को दे रही हूं... *मेरी बाप समान पवित्र दृष्टि पड़ते ही वे एक अलग ही आनंद में डूब रही हैं... शान्ति के सागर में लहरा रही हैं... इस सुख, शान्ति की अनुभूति होते ही सभी अपने आप को बेहद भाग्यवान महसूस कर रही हैं... जैसे डूबती किश्ती को किनारा मिल गया...* मैं भी बाबा से मिले इस अखुट ख़जाने को पाकर और बांटकर असीम शान्ति और खुशी का अनुभव कर रही हूं... *"धन्यवाद मेरे प्यारे बाबा, मेरे मीठे मीठे बाबा"* आपका भी जवाब नहीं! कैसे अपने सब बच्चों के कल्याण का कार्य करते हो... "वाह मेरे करनकरावनहार बाबा..."
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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