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❍ 18 / 06 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अपनी मत पर तो नहीं चले ?*
➢➢ *"हम बाबा के ही होकर रहेंगे" - इसी निश्चय में रहे ?*
➢➢ *बुधी के चमतकार द्वारा आकार में साकार का अनुभव किया ?*
➢➢ *त्याग के बल पर हर कर्म व कदम में सफलता का अनुभव किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *जब तक आपकी याद ज्वाला रुप नहीं बनी है तब तक यह विनाश की ज्वाला भी सम्पूर्ण ज्वाला रुप नहीं लेती है।* यह भड़कती है, फिर शीतल हो जाती है क्योंकि ज्वाला मूर्त और प्रेरक आधार-मूर्त आत्माएं अभी स्वयं ही सदा ज्वाला रुप नहीं बनी हैं। *अब ज्वाला-रुप बनने का दृढ़ संकल्प लो और संगठित रूप में मन-बुद्धि की एकाग्रता द्वारा पावरफुल योग के वायब्रेशन चारों ओर फैलाओ।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं श्रीमत पर चलने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को श्रीमत पर चलने वाली श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? नाम ही है श्रीमत। श्री का अर्थ है श्रेष्ठ। तो श्रेष्ठ मत पर चलने वाले श्रेष्ठ हुए ना। यह रूहानी नशा, बेहद का नशा रहता है ना। या कभी-कभी हद का नशा भी आ जाता है? इसलिये सदा अपने को देखो-चलते-फिरते कोई भी कार्य करते बेहद का रूहानी नशा रहता है? *चाहे कर्म मजदूरी का भी हो, साधारण कर्म करते अपने श्रेष्ठ नशे को भूलते तो नहीं हो? घर में रहने वाली, घर की सेवा करने वाली साधारण मातायें हैं- यह याद रहता है या जगत माता हूँ, जगत का कल्याण करने के निमित्त यह कार्य कर रही हूँ-यह याद रहता है?*
〰✧ जिसे यह रूहानी नशा होगा उसकी निशानी क्या होगी? वह खुशी में रहेगा, कोई भी कर्म करेगा लेकिन कर्म के बन्धन में नहीं आयेगा, न्यारा और प्यारा होगा। कर्म के बन्धन में आना अर्थात् कर्म में फंसना और जो न्यारा-प्यारा होता है वह कर्म करते भी कर्म के बन्धन में नहीं आता, कर्मयोगी बन कर्म करता है। *अगर कर्म के बन्धन में आयेंगे तो खुशी गायब हो जायेगी। क्योंकि कर्म अच्छा नहीं होगा। लेकिन कर्मयोगी बनकर कर्म करने से दु:ख की लहर से मुक्त हो जायेंगे। सदा न्यारा होने के कारण प्यारे रहेंगे।* तो समझा, कैसे रहना है? कर्मबन्धन मुक्त।
〰✧ कर्म का बन्धन खींचे नहीं, मालिक होकर कर्म करायें। मालिक न्यारा होता है ना। मालिक होकर कर्म कराना-इसे कहा जाता है बन्धन-मुक्त। ऐसी आत्मा सदा स्वयं भी खुश रहेगी और दूसरों को भी खुशी देगी। ऐसे रहते हो? सुनते तो बहुत हो, अभी जो सुना है वह करना है। करेंगे तो पायेंगे। अभी-अभी करना, अभी-अभी पाना। कभी दु:ख की लहर आती है? कभी मन से रोते हो? मन का रोना तो सबको आ सकता है। तो श्रीमत है-सदा खुश रहो। श्रीमत यह नहीं है कि कभी-कभी रो लो। बहुतकाल मन से वा आंखों से रोया, रावण ने रुलाया ना। लेकिन अभी बाप के बने हो खुशी में नाचने के लिये, रोने के लिये नहीं। रोना खत्म हो गया। दु:ख की लहर-यह भी रोना है। यह मन का रोना हो गया। *सुखदाता के बच्चे सदा सुख में झूलते रहो। दु:ख की लहर आ नहीं सकती। भूल जाते हो तब आती है। इसलिये अभूल बनो। अभी जो भी कमजोरी हो उसे महायज्ञ में स्वाहा करके जाना। साथ में लेकर नहीं जाना, यहाँ ही स्वाहा करके जाओ।* स्वाहा करना आता है ना। दृढ़ संकल्प करना अर्थात् स्वाहा करना। यही याद रखना कि महान् हैं और महान् बनाना है।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *एक सेकण्ड का वन्डरफुल खेल जिससे पास विद ऑनर बन जायें* :- एक सेकण्ड का खेल है *अभी-अभी शरीर में आना और अभी-अभी शरीर से अव्यक्त स्थिति में स्थित हो जाना।* इस सेकन्ड का खेल का अभ्यास है, जब चाहो जैसे चाहो उसे स्थिति में स्थित रह सको।
〰✧ *अंतिम पेपर सेकन्ड का ही होगा जो इस सेकन्ड के पेपर में पास हुआ वही पास विद आँनर होगा।* अगर एक सेकन्ड की हलचल में आया तो फेल, अचल रहा तो पास। ऐसी कंट्रोलिंग पावर है। अभी ऐसा अभ्यास तीव्र रूप का होना चाहिए। जितना हंगामा हो उतना स्वयं की स्थिति अति शान्त।
〰✧ जैसे सागर बाहर आवाज़ सम्पन होता अन्दर बिल्कुल शान्त, ऐसा अभ्यास चाहिए। *कन्ट्रोलिंग पाँवर वाले ही विश्व को कन्ट्रोल कर सकते हैं।* जो स्वयं को नहीं कर सकते वह विश्व का राज कैसे करेंगे। *समेटने की शक्ति चाहिए।* एक सेकन्ड में विस्तार से सार में चले जायें। और *एक सेकन्ड में सार से विस्तार में आ जायें यही वन्डरफुल खेल।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *पहला-पहला वायदा है सब बच्चों का कि तन-मन-धन तेरा न कि मेरा। जब तेरा है, मेरा है ही नहीं तो फिर बन्धन काहे का?* यह तो लोन पर बाप-दादा ने दिया है। आप ट्रस्टी हो, न कि मालिक। *जब मरजीवा बन गये तो ८ ३ जन्मों का हिसाब समाप्त हो गया।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- श्रीमत पर चलकर मनुष्य से देवता बनना"*
➳ _ ➳ *अमृतवेले के रूहानी समय में मैं आत्मा बगीचे के झूले में बाबा की गोदी में बैठी हूँ... बाबा की गोदी के झूले में झूलती हुई उनके रूहानी प्यार में समाती जा रही हूँ...* अभी तक जिस भगवान को ढूंढ रही थी, दुनिया वाले जिसे अभी भी ढूंढ रहे हैं, अब मैं भाग्यशाली आत्मा उनकी गोद में बैठ उनकी पालना और शिक्षाएं ले रही हूँ... मीठे बाबा प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए मुझे वरदानों, खजानों से भरपूर करते हैं... *मैं आत्मा बाबा का दिल से शुक्रिया करती हुई उनसे रूह-रिहान करती हूँ... बाबा मुझे अपनी श्रेष्ठ मत देकर श्रेष्ठ बनाते हैं...*
❉ *प्यार के मीठे तराने सुनाकर प्रेम रस में मुझे भिगोते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... साधारण मनुष्य मात्र से खुबसूरत देवताई राज्य भाग्य वाले... महानतम भाग्य को पा रहे हो... तो श्रीमत के हाथ को सदा थाम कर दिल से शुक्रिया के नगमे गुनगुनाते रहो... *सच्चे प्यार के सागर से हर पल प्रेम सुधा का रसपान करो... और रूहानी प्रेम की बदली बन विश्व धरा को सिक्त करो...."*
➳ _ ➳ *प्यारे प्रभु का साथ पाकर उनके हाथों में हाथ डालकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपके सच्चे प्यार की चन्दन महक में खोयी सी विश्व धरा को प्रेम तरंगो से सराबोर कर रही हूँ... *श्रीमत के मखमली हाथो में बेफिक्र सी खुशियो के अनन्त आसमाँ में झूम रही हूँ... सच्चे प्रेम में खोकर मदमस्त हो गई हूँ..."*
❉ *प्यार के चन्दन से मेरे जीवन फुलवारी को महकाकर खुशियों से मेरी झोली भरते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... जिस ईश्वर पिता की खोज में दर दर भटक रहे थे... *आज उनकी फूलो सी गोद में देवताई स्वरूप को पा रहे हो... तो ऐसे मीठे बाबा पर दिल का सारा स्नेह उंडेल कर... सच्चे प्रेम का पर्याय बन जाओ... श्रीमत को दिल की गहराइयो से अपनाकर जीवन को सुखो के स्वर्ग में बदल दो..."*
➳ _ ➳ *बाबा की श्रीमत पर चलते हुए दैवीय गुणों की धारणा करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ :-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मैं आत्मा आपकी बाँहों में अनन्त सुखो की हकदार हो गई हूँ... प्यारे बाबा सुख की एक बून्द को कभी व्याकुल *मै आत्मा,आज आपकी यादो में देवताओ सा निखर रही हूँ...मनुष्य मत पर पाये दुखो के दलदल से निकल श्रीमत से सम्पूर्ण सुखी हो गयी हूँ..."*
❉ *अपने पलकों पर बिठाकर मेरे भाग्य को संवारते हुए मीठे प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता मनुष्य से देवताओ सा श्रृंगार कर... स्वर्गधरा पर सजा रहे है... *ऐसे मीठे पिता का रोम रोम से शुक्रिया कर... सच्चे प्यार से दिल, सदा का आबाद करो... सच्ची मत को अपनाकर... दिव्यता से सम्पन्न हो, अनोखे सुखो को दामन में भर लो..."*
➳ _ ➳ *बाबा के प्यार की लहरों में लहराती हुई स्वर्ग सुखों की अधिकारी बन मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... *मैं आत्मा किन शब्दों में आपकी दरियादिली का शुक्रिया करूँ... मीठे बाबा मेरे, मै आत्मा तो दुखो को ही अपनी तकदीर मान ली थी... आपने तो मुझे देवतुल्य बना दिया है...* और असीम मीठे सुखो से मेरा जीवन संवार दिया है..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- हम बाबा के ही हो कर रहेंगे - इसी निश्चय में रहना है*
➳ _ ➳ हर सम्बन्ध का सुख देकर मेरे जीवन मे खुशियों के फूल खिलाने वाले मेरे मीठे प्यारे बाबा, जिन्हें याद करते ही दिल बार - बार उनका शुक्राना करता है, उन पर बलिहार जाता है और एक - एक करके वो सभी प्राप्तियाँ स्मृति में आने लगती हैं जो बाबा हर मुझे पल करवाते रहते हैं। *उन सभी मीठी मधुर स्मृतियों में खोई अपने दिलाराम बाबा को बड़े प्यार से मैं जैसे ही पुकारती हूँ मेरे दिलाराम बाबा मेरी एक पुकार सुनते ही सेकण्ड में मेरे पास पहुँच जाते हैं* और यह सोच कर अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य पर मुझे नाज़ होता है कि जिस भगवान को पाने के लिए दुनिया वाले कठिन से कठिन तपस्या करते हैं वो भगवान कितनी सहज रीति मुझे मिल गया!
➳ _ ➳ कैसे मेरे एक बुलावे पर मेरे बाबा दौड़े चले आते है। अपना हर वादा निभाते है। ऐसे भगवान बाप का हाथ और साथ मैं कभी नही छोड़ूंगी। चाहे दुनिया कितने सितम ढाये लेकिन मैं अपने दिलाराम बाबा की ही होकर रहूँगी। *मन ही मन स्वयं से प्रतिज्ञा करते हुए मैं महसूस करती हूँ जैसे मेरा हर संकल्प मेरे बाबा तक पहुँच रहा है और उनका प्रेम अनवरत मुझ पर उनकी सर्वशक्तियों की किरणों के रूप में मुझे अपने ऊपर बरसता हुआ स्पष्ट अनुभव होने लगा है*। परमधाम से आ रही मेरे प्यारे पिता के स्नेह की मीठी मधुर मन को तृप्त कर देने वाली शीतल फुहारें, बारिश की हल्की - हल्की बूंदों की तरह मेरे ऊपर पड़ रही हैं और मुझे अपने प्रेम के रंग में रंगती जा रही हैं। *एक अद्भुत अलौकिक रूहानी मस्ती मुझ पर छाने लगी है*।
➳ _ ➳ अपने दिलाराम बाबा के प्रेम की मस्ती में डूबी मैं आत्मा सजनी अब स्वयं को उनके ही समान देह से बिल्कुल न्यारा अनुभव करने लगी हूँ। अपने निराकार प्वाइंट ऑफ लाइट स्वरूप में स्थित होकर अब मैं मन बुद्धि के दिव्य चक्षु से उस सुप्रीम प्वाइंट ऑफ लाइट अपने पिता को देख रही हूँ जो परमधाम से अपने प्रेम की वर्षा मेरे ऊपर करते हुए मुझे अपने पास आने के लिए आमंत्रित कर रहें हैं। *अपने प्यारे प्रभु के आमंत्रण को हृदय से स्वीकार कर अब मैं प्वाइंट ऑफ लाइट, अपने पिता सुप्रीम प्वाइंट ऑफ लाइट से मिलने उनके ब्रह्मलोक घर की ओर जा रही हूँ*। देह की साकारी और फरिश्तो की आकारी दुनिया को पार कर आत्माओं की निराकारी दुनिया, अपने पिता के ब्रह्मलोक घर में अब मैं स्वयं को देख रही हूँ।
➳ _ ➳ लाल प्रकाश से सजे, अपने प्यारे पिता के परमधाम घर में आकर मैं एक ऐसी गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ जिसकी तलाश में मैं भटक रही थी। ऐसा लग रहा है शांति की तलाश में भटकने की मेरी सारी प्यास जैसे आज बुझ गई है और मैं आत्मा पूरी तरह से तृप्त हो गई हूँ। *गहन शांति की गहन अनुभूति करके अब मैं अपने दिलाराम बाबा के पास जाती हूँ और उनके समीप बैठ कर बड़े प्यार से उन्हें निहारने लगती हूँ। सूर्य के समान तेजोमय उनके अति सुंदर स्वरूप और उनसे निकल रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणों को एकटक निहारते हुए, उनकी एक - एक किरण से निकलने वाले उनके गुणों और शक्तियों के वायब्रेशन्स को मैं अपने अंदर समा रही हूँ* और उनके समान सर्व गुणों सर्वशक्तियों से सम्पन्न बन रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने दिलाराम बाबा से मिलन मना कर उनके गुणों और शक्तियों से स्वयं को भरपूर करके अब मैं साकार सृष्टि रूपी कर्मभूमि पर कर्म करने के लिए वापिस लौट आती हूँ। *कर्मक्षेत्र पर देह का आधार लेकर कर्म करते हुए भी अब मैं देह और देह की दुनिया से जैसे स्वयं को उपराम अनुभव कर रही हूँ*। मन बुद्धि से केवल अपने दिलाराम बाबा की होकर मैं हर सम्बन्ध का सुख उनसे ले रही हूँ। *" मैं बाबा की हूँ और बाबा की ही रहूँगी " इस निश्चय में रहते हुए बाबा को ही अपना संसार बनाकर, मैं बाबा के साथ अपने संगमयुगी ब्राह्मण जीवन का भरपूर आनन्द ले रही हूँ*। अमृतवेले दिन की शुरुआत से लेकर रात्रि सोने तक हर कर्म करते बाबा को साथी बना कर, बाबा से की हर प्रतिज्ञा को मैं सहज रीति पूरा कर रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं बुद्धि के चमत्कार द्वारा आकार में साकार का अनुभव करने वाली दिलाराम की दिलरुबा आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं हर कर्म वा कदम में सफलता को समाने वाली त्यागी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ‘‘आज बापदादा अपने सर्व विकर्माजीत अर्थात् विकर्म- संन्यासी आत्माओं को
देख रहे हैं। *ब्राह्मण आत्मा बनना अर्थात् श्रेष्ठ कर्म करना और विकर्म का
संन्यास करना। हरेक ब्राह्मण बच्चे ने ब्राह्मण बनते ही यह श्रेष्ठ संकल्प किया
कि हम सभी अब विकर्मी से सुकर्मी बन गये।* सुकर्मी आत्मा श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा
कहलाई जाती है। तो संकल्प ही है विकर्माजीत बनने का। यही लक्ष्य पहले-पहले सभी
ने धारण किया ना! इसी लक्ष्य को रखते हुए श्रेष्ठ लक्षण धारण कर रहे हो। तो अपने
आप से पूछो - विकर्मों का संन्यास कर विकर्माजीत बने हो?
✺ *"ड्रिल :- विकर्मों का संन्यास कर विकर्माजीत बनकर रहना।”*
➳ _ ➳ *माया रावण के इच्छा, तृष्णा, आसक्ति रूपी विकारों के जहर से भरी हुई मैं
आत्मा रूपी सर्प मधुर बीन की आवाज़ सुन उसकी तरफ चली जा रही हूँ... सर्व
शक्तिवान भोलेनाथ बाबा एक पेड़ के नीचे बैठकर मधुर मुरली की बीन बजा रहे हैं...*
मैं आत्मा रूपी सर्प इस मीठी मधुर मुरली की बीन पर डांस कर रही हूँ... मैं आत्मा
मधुर मुरली की तान में मगन होती जा रही हूँ... मुरली की मिठास से मुझ आत्मा रूपी
सर्प से देह रूपी खोल बाहर निकल रहा है...
➳ _ ➳ *बाबा बीन बजा-बजाकर सारा जहर बाहर निकाल रहे हैं... जन्म-जन्मांतर से
मैं आत्मा माया रावण की कैद में रहकर विकारों के वशीभूत होकर कई विकर्म करती गई
और विकर्मों के बंधन में बंधती चली गई थी...* रावण रूपी विकारों के सर्प ने डस
कर मुझमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार का जहर भर दिया था... और मैं आत्मा
इंद्रियों के आकर्षण में पड़कर पतित बनती गई... कर्मेन्द्रियों की कठपुतली बन कई
जन्मों तक दास बनकर रह गई थी...
➳ _ ➳ मीठे बाबा से आती दिव्य किरणों में मुझ आत्मा रूपी सर्प से विकारों रूपी
सारा जहर बाहर निकलता जा रहा है... विकारों का सूक्ष्म और रॉयल स्वरुप अंश सहित
मिट रहे हैं... मैं आत्मा काली से गोरी बन रही हूँ... *इंद्रियों के आकर्षण से
परे होकर मैं आत्मा इस देह रूपी खोल से बाहर निकलती हूँ और अपने असली सुन्दर
स्वरूप को देखती हूँ... मेरा निज स्वरुप कितना पवित्र, सतोगुणी, दिव्य गुणों,
शक्तियों से भरपूर संपन्न स्वरुप है...*
➳ _ ➳ प्यारे बाबा मुझे अपनी गोद में लेकर अपना बच्चा बनाकर कहते हैं- मीठे
बच्चे अब तुम ब्राह्मण आत्मा बन गई हो... ब्राह्मण आत्मा बनना अर्थात श्रेष्ठ
कर्म करना और विकर्म का सन्यास करना... अब विकर्मी से सुकर्मी बन श्रेष्ठ
ब्राह्मण आत्मा बनो... विकर्माजीत बनने का लक्ष्य सामने रख श्रेष्ठ लक्षण धारण
करो... *मैं ब्राह्मण आत्मा बाबा के सामने श्रेष्ठ संकल्प करती हूँ कि मैं अब
श्रेष्ठ कर्म कर सुकर्मी आत्मा बन श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा बनूँगी... विकारों के
वशीभूत होकर कोई भी विकर्म नहीं करुँगी... अब मैं आत्मा श्रेष्ठ कर्म करती हुई
विकर्मों का संन्यास कर विकर्माजीत बन रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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