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 31 / 10 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *राजऋषि बन तपस्या की ?*

 

➢➢ *रमणीकता से पढाई पडी ?*

 

➢➢ *वरदानो की दिव्य माला सहज और श्रेष्ठ जीवन का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *बाप के साथ साथ सर्व आत्माओं के स्नेही बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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〰✧  *पूरा ही दिन सर्व के प्रति कल्याण की भावना, सदा स्नेह और सहयोग देने की भावना, हिम्मत-हुल्लास बढ़ाने की भावना, अपनेपन की भावना और आत्मिक स्वरुप की भावना रखना है।* यही भावना अव्यक्त स्थिति बनाने का आधार है।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं रूहानी यात्री हूँ"*

 

  सदा अपने को रूहानी यात्री समझते हो? यात्रा करते क्या याद रहेगा? जहाँ जाना है वही याद रहेगा ना। अगर और कोई बात याद आती है तो उसको भुलाते हैं। अगर कोई देवी की यात्रा पर जाएंगे तो 'जय माता-जय माता' कहते जाएंगे। अगर कोई और याद आएगी तो अच्छा नहीं समझते हैं। एक दो को भी याद दिलाएंगे - 'जय माता' याद करो, घर को वा बच्चें को याद नहीं करो, माता को याद करो। *तो रूहानी यात्रियों को सदा क्या याद रहता है? अपना घर परमधाम याद रहता है ना? वहाँ ही जाना है। तो अपना घर और अपना राज्य स्वर्ग-दोनों याद रहता है या और बातें भी याद रहती हैं? पुरानी दुनिया तो याद नहीं आती है ना?*

 

  ऐसे नहीं- यहाँ रहते हैं तो याद आ जाती है। रहते हुए भी न्यारे रहना, क्योंकि जितना न्यारे रहेंगे उतना ही प्यार से बाप को याद कर सकेगे। *तो चेक करो पुरानी दुनिया में रहते पुरानी दुनिया में फँस तो नहीं जाते हैं? कमल-पुष्प कीचड़ में रहता है लेकिन कीचड़ से न्यारा रहता है। तो सेवा के लिए रहना पड़ता है, मोह के कारण नहीं।* तो माताओंको मोह तो नहीं है? अगर थोड़ा धोत्रे-पोत्रे को कुछ हो जाए, फिर मोह होगा? अगर वह थोड़ा रोए तो आपका मन भी थोड़ा रोएगा? क्योंकि जहाँ मोह होता है तो दूसरे का दु:ख भी अपना दु:ख लगता है। ऐसे नहीं-उसको बुखार हो तो आपको भी मन का बुखार हो जाए। मोह खींचता है ना। पेपर तो आते हैं ना। कभी पोत्रा बीमार होगा, कभी धोत्रा। कभी धन की समस्या आएगी, कभी अपनी बीमारी की समस्या आएगी। यह तो होगा ही।

 

  लेकिन सदा न्यारे रहें, मोह में न आएं-ऐसे निर्मोही हो? माताओंको होता है सम्बन्ध से मोह और पाण्डवों को होता है पैसे से मोह। पैसा कमाने में याद भी भूल जाएगी। *शरीर निर्वाह करने के लिए निमित्त काम करना दूसरी बात है लेकिन ऐसा लगे रहना जो न पढ़ाई याद आए, न याद का अभ्यास हो...उसको कहेंगे मोह। तो मोह तो नहीं है ना! जितना नष्टोमोहा होंगे उतना ही स्मृतिस्वरूप होंगे।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  तो क्या हालचाल है आपकी राज्य दरबार का? ऊपर-नीचे तो नहीं है ना। सभी का हाल ठीक है? कोई गडबड तो नहीं है?  *जो यहाँ कभी-कभी ऑर्डर में चला सकता है* और कभी-कभी चला सकता - *तो वहाँ भी कभी-कभी का राज्य मिलेगा,* सदा का नहीं मिलेगा।

 

✧  *फाउण्डेशन तो यहाँ से पडता है ना।* तो सदा चेक करो कि मैं सदा अकाल तख्तनशीन स्वराज्य चलाने वाली राजा आत्माहूँ?

 

✧  सभी के पास तख्त है ना खो तो नहीं गया है? *तखत पर बैठकर राज्य चलाया जाता है ना* या तखत पर आराम से अलबेले होकर सो जायेंगे?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  नये वर्ष में यह समान बनने का दृढ़ संकल्प करो। *लक्ष्य रखो कि हमें फ़रिश्ता बनना ही है।* अब पुरानी बातों को समाप्त करो। अपने अनादि और आदि संस्कारों को इमर्ज करो। *स्मृति में रखो- चलते-फिरते मैं बाप समान फरिश्ता हूँ, मेरा पुराने संस्कारों से, पुरानी बातों से कोई रिश्ता नहीं। समझा?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- निराकार का ब्रह्मा रथ उधार लेना"*

 

_ ➳  *संगमयुगी अमृतवेले के रूहानी समय में माया की गोद में सो रही मुझ आत्मा को जगाकर परमात्मा ने अपनी गोद में बिठाया है... माया को ही अपना सबकुछ समझ मैं आत्मा इस दुनिया के दुखों के गर्त में धंसते चले गई थी... परमपिता ने मुझे अपनी गोद में बिठाकर मीठी पालना, मीठी शिक्षाएं देकर, वरदानों, खजानों से भरपूर कर दिया है...* अब मैं आत्मा इस पुरानी दुनिया से जीते जी मरकर, नई दुनिया में जाने के लिए श्रीमत लेने पहुँच जाती हूँ प्यारे बापदादा के पास...

 

  *अपने मखमली गोद में मुझे समाकर अतीन्द्रिय सुखों के झूलों में झुलाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... जिस ईश्वर पिता के दर्शन मात्र को नयन व्याकुल थे... आज उनकी पावन गोद में फूलो सा खिल रहे और दिव्य गुणो की सुगन्ध से महक रहे हो... *अपने ऐसे मीठे महानतम भाग्य पर बलिहार जाओ... कि ब्रह्मा तन द्वारा स्वयं परमात्मा दिल फ़िदा हो गया है..."*

 

_ ➳  *बाबा के गले का हार बनकर अपने श्रेष्ठ ईश्वरीय भाग्य के नशे में लहराते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... *मैं आत्मा श्रेष्ठ भाग्य से सजी ईश्वरीय गोद में बैठी हूँ... भगवान को पाकर धन्य धन्य हो गयी हूँ... प्यारे बाबा मुझे अपने नयनों का नूर बनाकर, प्रेम सुधा को मुझ आत्मा पर बरसाया है...* मै आत्मा रोम रोम से शुक्रगुजार हूँ..."

 

  *अपना धाम छोड़ ब्रह्मा तन में अवतरित होकर मुझे अपना बनाकर मीठे प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *इस विश्व धरा पर सबसे खुबसूरत भाग्य से सजे हुए आप ब्राह्मण बच्चे हो... दुखो से मुक्त होकर ईश्वरीय प्यार में पल रहे हो... स्वयं विश्व पिता ने अपनी दिली पसन्द बनाया है... और ब्रह्मा तन में आकर हाले दिल सुनाया है...* तो ऐसे प्यार के नशे की खुमारी में खो जाओ...

 

_ ➳  *अपना सबकुछबाबा के हवाले कर उनकी छत्रछाया में बेफिक्र बादशाह बनकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा भगवान की छत्रछाया में पलकर कितनी निश्चिन्त और अनन्त सुखो की अधिकारी बन रही हूँ... प्यारे बाबा आपने मुझ आत्मा को ब्रह्मा मुख से बेशकीमती ज्ञान रत्नों से सजाया है...* मै आत्मा इन मीठी खुशियो में पुलकित हो उठी हूँ..."

 

  *अपनी हजार भुजाओं के प्यार के छांव के तले सुखों की बगिया में मुझे फूल बनाकर खिलाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता के सच्चे प्यार और अमूल्य ज्ञान रत्नों से भरपूर होकर सदा के मालामाल हो जाओ... *सदा यादो में रहकर हर साँस को बाबामय कर लो... ब्रह्मा तन से मिली ईश्वरीय गोद में दिव्यता और पवित्रता से सजधज कर... देवताई सुखो को बाँहों में भर लो... सच्चे आनन्द के नशे में डूब जाओ..."*

 

_ ➳  *बाबा के गुलिस्तां की रूहानी फूल बनकर सुखों के परिस्तान में मुस्कुराते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा देह की मिटटी और दुखो के काँटों को ही अपनी नियति मानकर जीती रही... प्यारे बाबा आपने ब्रह्मा मुख से आवाज देकर मुझे गले लगाया... और अपनी मखमली गोद में गुलाबो सा खिलाया है...* मीठे बाबा भगवान यूँ अपने दिल में बिठाएगा, चाहेगा और दुलार करेगा... मैंने भला कब यह सोचा था..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- राजऋषि बन तपस्या करनी है*"

 

_ ➳  राजयोग के अभ्यास द्वारा अपनी सोई हुई शक्तियों को पुनः जागृत कर, स्वयं को सर्व गुणों, सर्वशक्तियों और सर्व खजानों से सम्पन्न करने के लिए मैं अशरीरी बन बैठ जाती हूँ सर्व गुणों, सर्व शक्तियों के सागर अपने शिव पिता परमात्मा की याद मे। *जैसे - जैसे मैं अपने शिव पिता परमात्मा की याद में गहराई तक डूबती जा रही हूँ वैसे - वैसे देह का भान समाप्त होता जा रहा है*।

 

_ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे देह रूपी वस्त्र धीरे - धीरे उतर रहा है और उसके भीतर छुपी जगमग करती चैतन्य शक्ति आत्मा अपने प्रकाश की रंग बिरंगी किरणे फैलाती उजागर हो रही है। *जैसे सूर्य की किरणें रात के अंधेरे को अपने प्रकाश से दिन के उजाले में परिवर्तित कर देती है ऐसे सूर्य की किरणों के समान प्रकाश मुझ आत्मा से निकल निकल कर मेरे चारों ओर फैल रहा है*। यह प्रकाश निरन्तर बढ़ता हुआ मुझ आत्मा के चारो और एक सुंदर औरे का निर्माण कर रहा है।

 

_ ➳  अपने चारों और निर्मित प्रकाश के इस औरे के साथ अब मैं आत्मा धीरे - धीरे देह रूपी वस्त्र का पूरी तरह त्याग कर ऊपर की बढ़ रही हूँ। *शक्तियों के सागर अपने शिव पिता के सानिध्य में बैठ उनकी सर्वशक्तियों को स्वयं में समा कर उनके समान बनने की इच्छा लिए अब मैं आकाश को पार कर, सूक्ष्मवतन से परें पहुँच गई अपने शिव पिता परमात्मा के पास निर्वाण धाम*। वाणी से परें मेरे शिव पिता परमात्मा का यह धाम शांति की शक्तिशाली किरणों से भरपूर हैं। यहाँ पहुंच कर मैं आत्मा गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ।

 

_ ➳  सुख के सागर, प्रेम के सागर, आनन्द  के सागर, पवित्रता, ज्ञान और शक्तियों के सागर मेरे शिव पिता मेरे बिल्कुल सामने हैं और अपने इन सभी गुणों की शक्तिशाली किरणों की वर्षा मुझ आत्मा पर करके मुझे इन सभी गुणों से सम्पन्न बना रहे हैं। *अपनी शक्तियों को मुझ में प्रवाहित कर मुझे आप समान शक्तिशाली बना रहे हैं*। बाबा के साथ टच हो कर मैं उनके सभी गुणों, सर्वशक्तियों और सर्व खजानों को स्वयं में समाती जा रही हूँ।

 

_ ➳  भरपूर हो कर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे प्रवेश करती हूँ और अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, तपस्वीमूर्त बन, राजयोग की तपस्या करने एक ऊंचे खुले स्थान पर जाकर बैठ जाती हूँ और अपने पिता परमात्मा का आह्वान करती हूँ। *सेकेंड में मैं स्वयं को सर्वशक्तियों के सागर अपने शिव पिता के साथ कम्बाइंड अनुभव करती हूँ*। सर्वशक्तिवान बाबा से सर्वशक्तियाँ ले कर मैं समस्त वायुमण्डल में चारों ओर प्रवाहित कर रही हूँ और विश्व की सर्व आत्माओं को सुख शांति की अनुभूति करवा कर अपने सेवा स्थल पर वापिस लौट रही हूँ।

 

_ ➳  *अपने तपस्वी स्वरूप को सदा इमर्ज रूप में रख, राजयोग की तपस्या करते, अब मैं अपने सम्बन्ध संपर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को राजयोग द्वारा राजाई पद प्राप्त कर उन्हें भी मुक्ति, जीवनमुक्ति का वर्सा पाने की अधिकारी आत्मा बना रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं वरदानों की दिव्य पालना द्वारा सहज और श्रेष्ठ जीवन का अनुभव करने वाली सदा खुशनसीब आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं बाप के साथ-साथ सर्व आत्माओं की स्नेही बनकर सच्ची सद्भावना अपनाने वाली स्नेही आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. समय की डेट नहीं देखो। 2 हजार में होगा, 2001 में होगा, 2005 में होगायह नहीं सोचो। चलो एवररेडी नहीं भी बनो इसको भी बापदादा छोड़ देते हैंलेकिन सोचो बहुतकाल के संस्कार तो चाहिए ना! आप लोग ही सुनाते हो कि *बहुतकाल का पुरुषार्थ, बहुतकाल के राज्य-अधिकारी बनाता है*। अगर समय आने पर दृढ़ संकल्प कियातो वह बहुतकाल हुआ या अल्पकाल हुआकिसमें गिनती होगा? अल्पकाल में होगा ना! तो अविनाशी बाप से वर्सा क्या लिया? अल्पकाल का। यह अच्छा लगता हैनहीं लगता है ना! तो बहुतकाल का अभ्यास चाहिए, कितना काल है वह नहीं सोचो, जितना बहुतकाल का अभ्यास होगा, *उतना अन्त में भी धोखा नहीं खायेंगे।* बहुतकाल का अभ्यास नहीं तो अभी के बहुतकाल के सुख, बहुतकाल की श्रेष्ठ स्थिति के अनुभव से भी वंचित हो जाते हैं। इसलिए क्या करना हैबहुतकाल करना हैअगर किसी के भी बुद्धि में डेट का इन्तजार हो तो इन्तजार नहीं करनाइन्तजाम करो। *बहुतकाल का इन्तजाम करो*। डेट को भी आपको लाना है। *समय तो अभी भी एवररेडी हैं कल भी हो सकता है लेकिन समय आपके लिए रुका हुआ है। आप सम्पन्न बनो तो समय का पर्दा अवश्य हटना ही है*। आपके रोकने से रुका हुआ है।

 

 _ ➳  2.  इसलिए बापदादा की एक ही शुभ आशा है कि सब बच्चे चाहे नये हैंचाहे पुराने हैंजो भी अपने को ब्रह्माकुमारी या ब्रह्माकुमार कहलाते हैंचाहे मधुबन निवासी, चाहे विदेश निवासीचाहे भारत निवासी - *हर एक बच्चा बहुतकाल का अभ्यास कर बहुतकाल के अधिकारी बनें। कभी-कभी के नही।*

 

✺   *ड्रिल :-  "बहुतकाल का अभ्यास कर बहुतकाल के अधिकारी बनना"*

 

 _ ➳  मैं मास्टर सर्वशक्ति मान स्थिति के स्वमान में स्थित होकर बाबा की याद में खो चुकी हूँ... चारो ओर कोई नहीं है ऐसा अनुभव हो रहा है... *सिर्फ मैं और बाबा और कोई नहीं है... मैं आत्मा ये महसूस कर रही हूँ कि जैसे जैसे मैं आत्मा बाबा कि याद में खोती जा रही हूँ वैसे वैसे बाबा भी मेरे पास आते जा रहे हैं... मुझ आत्मा का बहुत काल का देही- अभिमानी स्थिति का अभ्यास पक्का होता जा रहा है... मैं आत्मा बस अपने बाप की याद में पक्की होती जा रही हूँ... और आगे बढती जा रही हूँ... मैं आत्मा विनाश की कोई डेट नहीं देखते हुए* कि क्या होना है कैसे होना है... बस अपने पुरुषार्थ में आगे बढती जा रही हूँ...

 

 _ ➳  मैं आत्मा हर बात में एवर रेडी हूँ... क्योंकि मैं कोई भी बात *समय पर ना छोड़ कर अपने पुरुषार्थ में लगी हुई हूँ*... मुझ आत्मा का *नष्टोमोहा ओर देही अभिमानी* स्थिति के संस्कार पक्के होते जा रहे है... और मुझ आत्मा का बहुत काल का ये अभ्यास है और मैं आत्मा बहुत काल के लिए परमात्म प्यार की अधिकारी बन चुकी हूँ... मैं आत्मा स्वराज्य अधिकारी बनती जा रही हूँ... *बहुत काल के अभ्यास से मुझ आत्मा की कंट्रोलिंग पॉवर बढती जा रही हैं*...

 

 _ ➳  मैं आत्मा हर बात में निश्चय बुद्धि हूँ... ड्रामा का हर सीन देखते हुए *हर हाल में खुश हूँ... मुझ आत्मा को मेरे अविनाशी बाप से पूरा वर्सा मिल रहा हैं... जिसके लिए ना जाने कितने जन्मों से मैं इन्तजार कर रही थी... अब उसका इन्तजाम मेरे परम पिता ने किया है... वाह मेरा भाग्य वाह... मुझ आत्मा का देही अभिमानी , नष्टोमोहा और ड्रामा के ज्ञान का बहुत काल के अभ्यास होने के कारण किसी भी बात में धोखा नहीं खा रही हूँ*... मै शरीर का भान खो चुकी हूँ... 

 

 _ ➳  बहुत काल की अभ्यासी होने के कारण मैं आत्मा अपने *ब्राह्मण जीवन का सुख प्राप्त कर  रही हूँ... और अतीन्द्रिय सुख का आनंद ले रही हूँ... मैं आत्मा किसी डेट का वेट ना करते हुए अपने अतीन्द्रिय सुख में डूबी हुई हूँ...* 

 

 _ ➳⁠⁠⁠⁠  मैं आत्मा मास्टर सर्वशक्तिमान की स्टेज से समय का आह्वान कर रही हूँ... बाबा भी बहुत *प्यारी दृष्टि से मुझ आत्मा को देख रहे है* कि वाह मेरे बच्चे वाह... बाबा की भी मुझ आत्मा के प्रति शुभ आशा है बच्चे *बहुत काल के अधिकारी* बने... और मैं आत्मा बहुत काल के अभ्यास से बहुत काल की अधिकारी बन चुकी हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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