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❍ 03 / 04 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *"हम राजऋषि हैं" - यह स्मृति रही ?*
➢➢ *कर्मभोग को याद में रहकर चुक्तु किया ?*
➢➢ *परिस्थितियों को साइड सीन समझ पार कर आगे बड़े ?*
➢➢ *"आपको देखने से ही दूसरों का योग लग जाए" - ऐसे सहजयोगी बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *वर्तमान समय के प्रमाण सर्व आत्मायें प्रत्यक्षफल अर्थात् प्रैक्टिकल प्रूफ देखने चाहती हैं।* तो तन, मन, कर्म और सम्पर्क-सम्बन्ध में साइलेन्स की शक्ति का प्रयोग करके देखो। *शान्ति की शक्ति से आपका संकल्प वायरलेस से भी तेज किसी भी आत्मा प्रति पहुंच सकता है। इस शक्ति का विशेष यंत्र है 'शुभ संकल्प' इस संकल्प के यंत्र द्वारा जो चाहे वह सिद्धि स्वरूप में देख सकते हो।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं पुरानी दुनिया के आकर्षण से न्यारा और एक बाप का प्यारा हूँ"*
〰✧ सदा अपने को इस पुरानी दुनिया की आकर्षण से न्यारे और बाप के प्यारे, ऐसे अनुभव करते हो? जितना न्यारे होंगे उतना स्वत: ही प्यारे होंगे। न्यारे नहीं तो प्यारे नहीं। तो न्यारे हैं और प्यारे हैं या कहाँ न कहाँ लगाव है? *जब किसी से लगाव नहीं तो बुद्धि एक बाप तरफ स्वत: जायेगी। दूसरी जगह जा नहीं सकती। सहज और निरंतर योगी की स्थिति अनुभव होगी।* अभी नहीं सहजयोगी बनेंगे तो कब बनेंगे?
〰✧ इतनी सहज प्राप्ति है, सतयुग में भी अभी की प्राप्ति का फल है। तो अभी सहजयोगी और सदा के राज्य भाग्य के अधिकारी सहजयोगी बच्चे सदा बाप के समान समीप हैं। तो अपने को बाप के समीप साथ रहने वाले अनुभव करते हो? जो साथ हैं उनको सहारा सदा है। साथ नहीं रहते तो सहारा भी नहीं मिलता। *जब बाप का सहारा मिल गया तो कोई भी विघ्न आ नहीं सकता। जहाँ सर्व शक्तिवान बाप का सहारा है। तो माया स्वयं ही किनारा कर लेती है।* ताकत वाले के आगे निर्बल क्या करेगा? किनारा करेगा ना। ऐसे माया भी किनरा कर लेगी सामना नहीं करेगी। तो सभी मायाजीत हो?
〰✧ भिन्न-भिन्न प्रकार से, नये-नये रूप से माया आती है लेकिन नालेजफुल आत्मायें माया से घबराती नहीं। वह माया के सभी रूप को जान लेती हैं। और जानने के बाद किनारा कर लेती। *जब मायाजीत बन गये तो कभी कोई हिला नहीं सकता। कितनी भी कोई कोशिश करे लेकिन आप न हिलो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ बापदादा भी यहाँ बैठे हैं और आप भी बैठे हो। लेकिन बापदादा और आप में क्या अन्तर है? पहले भी साकार रूप में यहाँ बैठते थे लेकिन अब जब बैठते हैं तो क्या फील होता है? जैसे साकार रूप में बाप के लिए समझते थे कि लोन ले आये हैं। उसी समान अनुभव अभि होता है। *अभी आते हैं मेहमान बनकर*।
〰✧ यूं तो आप सभी भी अपने को मेहमान समझते हो। लेकिन आप और बाप के समझने में फर्क है। *मेहमान उनको कहा जाता है जो आता है और जाता है*। अभि आते हैं फिर जाने के लिए। वह था बुद्धियोग का अनुभव यह है प्रैक्टिकल अनुभव।
〰✧ दूसरे शरीर में प्रवेश हो कैसे कर्तव्य करना होता, यह अनुभव बाप के समान करना है। दिन - प्रतिदिन तुम बच्चों की बहुत कुछ समान स्थिती होती जायेंगी। आप लोग भी ऐसे अनुभव करेंगे। सचमुच जैसे लोन लिया हुआ है, कर्तव्य के लिए मेहमान हैं। *जब तक अपने को मेहमान नहिं समझते हो तब तक न्यारी अवस्था नहीं हो सकती हैं*।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ आत्मिक स्वरूप हो चलना वा देही हो चलना - यह अभ्यास नहीं है? अभी साकार को व आकार को देखते आकर्षण इस तरफ जाती है व आत्मा तरफ जाती है? आत्मा को देखते हो ना। *आकार में निराकार को देखना- यह प्रेक्टिकल और नेचरल स्वरूप हो ही जाना चाहिए? अब तक शरीर को देखेंगे क्या? सर्विस तो आत्मा की करते हो ना। जिस समय भोजन स्वीकार करते हो, तो क्या आत्मा को खिलाते हैं व शारीरिक भान में करते हैं?*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ज्ञान अमृत और योग अग्नि से सब दुःख-दर्द दूर करना"*
➳ _ ➳ *शिवबाबा भोलेनाथ... मेरे प्यारे बाबा, परमधाम से आकर, मेरी झोली खुशियों से भर देंगे... मेरे दामन में सुख रूपी फूलों का गुलदस्ता... सजा देंगे... मुझे पालेंगे... पढ़ायेंगे... मेरा इस कदर ख्याल रखेंगे...* पुरानी दुनिया के दुःखों के जंगल से निकाल... सुखों के बगीचे में सजाकर... मुझे रूहे गुलाब सा महकायेंगे... ऐसा तो कभी दूर दूर तक ख्वाबों में भी नहीं सोचा था... *मीठे बाबा ने ज्ञान अमृत पिलाकर सब दुःख दूर कर दिये...*
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने महान भाग्य की खुशी से भरते हुए कहा :-* "मेरे मीठे प्यारे फूल बच्चे ... *तुम तो पदमापदम् सौभाग्यशाली आत्मा हो... तुमने मुझ भोलेनाथ को पहचान कर अपना बना लिया.. अब तुम्हें किस बात की चिंता है... अब तो तुम्हारे सब दुःख दर्द मिट गये समझो...* अब तो तुम यह सोचकर मुस्कराओ... कि यह मन और तन... शिवबाबा के हैं... जो भगवान से मिलने का आधार बने हैं..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा से खुशी की खुराक लेकर... शक्तिशाली बनकर कहती हूँ:-* "मेरे मीठे मीठे बाबा... मैं आत्मा अपनी इस नश्वर देह के अभिमान में कितनी उलझी हुई थी कि व्यर्थ सोचना ही मुझ आत्मा का संस्कार बन गया था... *प्यारे बाबा... आपने मुझे कितना खूबसूरत जीवन दिया... मुझे... धरती से उठाकर... अपनी गोद की पालना दे रहे हो..."*
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को शक्तिशाली किरणें देते हुए कहा :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... अब हर पल बस मुझे याद करते रहो... योग अग्नि से और ज्ञानामृत से तुम्हारे तो सब दुःख दूर होंगे ही... पर अब तुम्हें सबके दुःख दूर करने हैं...* हर आत्मा के प्रति शुभ भावना... शुभ कामना रख... हर दिल को अपना बनाओ... हर बात में बाबा को बीच में लाओ"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने मीठे प्यारे बाबा के प्यार पर न्योछावर होकर कहती हूँ :-* "मीठे बाबा... आपने मुझे इतना सुखदाई... निराला जीवन देकर भाग्यवान बना दिया... *मैं आत्मा अपनी पुरानी दुःखों भरी जिंदगी से सहज ही किनारा करती जा रही हूँ... और आपसे पवित्र वाइब्रेशन्स लेकर... विश्व की सभी आत्माओं पर प्रवाहित कर रही हूँ... जिससे उन्हें भी दुःखों से छुटकारा मिलता जा रहा है..."*
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने सच्चे वजूद के नशे से भरते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता... भोला बाबा बनकर... तुम्हे कौड़ी से हीरे जैसा बनाने आया है... *अब अपनी हर श्वांस को मेरी यादों से पिरो दो... जितना तुम मेरी याद में रहोगी उतना ही माया के आकर्षणों से... दुःखों से बची रहोगी... सेफ रहोगी..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ईश्वरीय यादों के खजानों से सम्पन्न होकर, मीठे बाबा से कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा... मैं आत्मा तो आपको पाकर धन्य धन्य हो गयी हूँ... आपने मुझ आत्मा को नारकीय जीवन से... दलदल से निकाल... सुखों की डाली पर बिठा दिया है... *अब मैं आत्मा सबको दुःखों से छुटकारा दिला... उनके जीवन में आनंद और खुशियों के फूल खिला रही हूँ... सबके जीवन को सुख भरी मुस्कान से सजा रही हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- योग अग्नि से विकर्मो को दग्ध कर सब बीमारियों से सदा के लिए मुक्त होना है*"
➳ _ ➳ अपनी लाइट की सूक्ष्म आकारी देह के साथ मैं फ़रिश्ता अपनी साकारी देह से बाहर निकलता हूँ और ऊपर आकाश की ओर उड़ जाता हूँ। सारे विश्व का चक्कर लगाता हुआ मैं फ़रिश्ता एक अस्पताल के ऊपर से गुजरता हूँ और कुछ विचार कर उस अस्पताल के अंदर प्रवेश कर जाता हूँ। *यहाँ - वहाँ, जहाँ - तहाँ भयंकर बीमारियों से पीड़ित रोगियों को चीखते - चिल्लाते, रोते - बिलखते देख, बापदादा का आह्वान कर, उन्हें मनसा सकाश द्वारा राहत पहुँचा कर मैं फ़रिश्ता अस्पताल से बाहर आ जाता हूँ* और थोड़ी देर के लिए एक एकांत स्थान पर बैठ मैं विचार करता हूँ कि कितना दुख है आज की इस कलयुगी दुनिया में जहाँ ऐसे - ऐसे असाध्य रोगों से मनुष्य पीड़ित हो चुके हैं जिनका कोई इलाज भी नही! कितने दर्द से गुजर रहें हैं इन बीमारियों से पीड़ित ये सभी मनुष्य।
➳ _ ➳ रावण की दुखदाई दुनिया के ऐसे दुखदाई दृश्य को देखते - देखते अचानक उस सुखदाई दुनिया का दृश्य आंखों के सामने उभर आता है जहाँ ना कोई अस्पताल होगा और ना कभी कोई मनुष्य बीमार होगा। *ऐसी सुखदाई दुनिया स्थापन करने के लिए ही तो भगवान स्वयं इस धरती पर आए हैं और आ कर योग अग्नि से विकर्मो को दग्ध कर, सदा के लिए सब बीमारियों से मुक्त होने का कितना सहज रास्ता बता रहें हैं*! कितनी महान सौभाग्य शाली हैं वो सभी ब्राह्मण आत्मायें जिन्होंने भगवान को पहचाना है और उनके बताये रास्ते पर चल, योग अग्नि से अपने विकर्मो को दग्ध कर, सदा के लिए सब बीमारियो से मुक्त होने का सहज पुरुषार्थ कर रहें हैं। *मन ही मन यह विचार करता मैं फ़रिश्ता अब फिर से उड़ान भरता हुआ ऊपर आकाश की ओर उड़ जाता हूँ*।
➳ _ ➳ एक ही पल में आकाश को पार कर, उससे ऊपर उड़ता हुआ मैं फ़रिश्ता अपनी फरिश्तो की दुनिया मे पहुँच जाता हूँ। चाँदनी जैसे सफेद प्रकाश से प्रकाशित *अव्यक्त बापदादा की यह अलौकिक आकारी दुनिया जहाँ सभी ब्राह्मण सो फ़रिश्ता बच्चे अपने सम्पूर्णता के लक्ष्य को पाने के लिए, प्यारे बापदादा की अव्यक्त पालना लेने के लिए आते हैं और स्वयं में असीम बल भर कर जाते हैं*। फरिश्तो की इस आकारी दुनिया मे पहुँच कर मैं फरिश्ता अब अपने प्यारे बापदादा के पास जाता हूँ और उनकी बाहों में समाकर, उनका असीम स्नेह और उनकी ममतामई गोद का असीम सुख पाकर, अपने लाइट के फरिश्ता स्वरूप को बदली कर, अपने निराकर स्वरूप को धारण करता हूँ।
➳ _ ➳ एक चमकता हुआ चैतन्य सितारा बन मैं सूक्ष्म वतन से ऊपर अपनी निराकारी दुनिया की ओर चल पड़ता हूँ। आत्माओ की निराकारी दुनिया अपने शिव पिता के इस परमधाम घर में आकर मैं आत्मा गहन विश्राम की अवस्था में पहुँच जाती हूँ। *हर संकल्प, विकल्प से मुक्त यह शान्तमयी अवस्था मुझे अथाह शान्ति की अनुभूति करवा रही है*। गहन शान्ति की गहन अनुभूति करके, तृप्त होकर अब मैं चैतन्य ज्योति अपने विकर्मो को दग्ध करने के लिए, महाज्योति अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की ज्वालास्वरूप किरणों के आगे जाकर बैठ जाती हूँ।
➳ _ ➳ इन ज्वालास्वरूप किरणों से निकल रही योग अग्नि में मैं आत्मा स्वयं को तपता हुआ महसूस कर रही हूँ। *63 जन्मो के विकर्म और पुराने स्वभाव संस्कार इस योग अग्नि में जल कर भस्म हो रहें हैं। जैसे - जैसे विकारों की कट मुझ आत्मा के ऊपर से उतर रही है मेरा स्वरूप अति प्रकाशमय होता जा रहा है*। मैं शुद्ध और पवित्र बनती जा रही हूँ। स्वयं को मैं डबल लाइट अनुभव कर रही हूँ। और इसी डबल लाइट अवस्था में मैं आत्मा अब वापिस अपने कर्मक्षेत्र पर लौट रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने साकार शरीर मे प्रवेश कर, भृकुटि के अकाल तख्त पर बैठ, फिर से कर्मेन्द्रियों का आधार ले, हर कर्म करते, *अपने प्यारे पिता के साथ अपने मनबुद्धि को जोड़ कर, योग अग्नि से अपने विकर्मो को दग्ध कर, सब बीमारियों से सदा के लिए मुक्त होने का अब मैं सहज पुरुषार्थ कर रही हूँ। कर्म योग से अपने हर कर्मभोग को चुकतू कर, मैं सदा के लिए एवर हेल्दी, वेल्दी और हैपी बन रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं परिस्थितियों को साइडसीन समझ पार कर आगे बढ़ने वाली मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *जिसे देखने से ही दूसरों का योग लग जाए मैं वो सहजयोगी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ प्यार के सागर से प्यार पाने की विधि - न्यारा बनो:- *कई बच्चों की कम्पलेन है कि याद में तो रहते हैं लेकिन बाप का प्यार नहीं मिलता है। अगर प्यार नहीं मिलता है तो जरूर प्यार पाने की विधि में कमी है।* प्यार का सागर बाप, उससे योग लगाने वाले प्यार से वंचित रह जाएँ, यह हो नहीं सकता। *लेकिन प्यार पाने का साधन है - ‘न्यारा बनो'। जब तक देह से वा देह के सम्बन्धियों से न्यारे नहीं बने हो तब तक प्यार नहीं मिलता। इसलिए कहाँ भी लगाव न हो। लगाव हो तो एक सर्व सम्बन्धी बाप से। एक बाप दूसरा न कोई... यह सिर्फ कहना नहीं लेकिन अनुभव करना है।* खाओ, पियो, सोओ... बाप-प्यारे अर्थात् न्यारे बनकर। देहधारियों से लगाव रखने से दुख अशान्ति की ही प्राप्ति हुई। जब सब सुन, चखकर देख लिया तो फिर उस जहर को दुबारा कैसे खा सकते? *इसलिए सदा न्यारे और बाप के प्यारे बनो।*
✺ *ड्रिल :- "न्यारे बन बाप के प्यार का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा भृकुटि के मध्य चमकती हुई ज्योति... इस देह की मालिक... सर्व कर्मेन्द्रियों से... दुनियावी बातों से अपने को समेटते हुए... अपने घर शांतिधाम... प्यारे शिवबाबा के सम्मुख बैठ जाती हूँ... *मैं आत्मा परम धाम की परम शांति की अनुभूति कर रही हूँ... डीप साइलेंस में उतर रही हूँ...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अंतर्मुखता की गहराईयों में डूब रही हूँ... मुझ आत्मा का देहभान छूट रहा है... *कई जन्मों की कर्मेन्द्रियों की अधीनता खत्म हो रही है...* अब मैं आत्मा कर्मेन्द्रियों को अपने कंट्रोल में कर रही हूँ... मेरी सभी कर्मेन्द्रियाँ आर्डर प्रमाण कार्य कर रही हैं... *मैं आत्मा स्वराज्य-अधिकारी बन रही हूँ...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा *“एक बाप दूसरा न कोई” इस स्थिति में स्थित हो रही हूँ... मैं आत्मा सर्व संबंधो का सुख एक बाबा से अनुभव कर रही हूँ...* मैं आत्मा बाबा के अनकंडीशनल लव में डूब रही हूँ... जन्मों-जन्मों का देह के सम्बन्धियों का लगाव खत्म हो रहा है... जिनसे मुझ आत्मा को दुख अशान्ति की ही प्राप्ति हुई... और मैं आत्मा नीचे ही गिरती चली गई...
➳ _ ➳ जन्मों-जन्मों से मैं आत्मा सुख, शांति, प्यार के लिए भटक रही थी... अब प्यार का सागर, सुख, शांति का सागर ही मेरा हो गया... *अब मैं आत्मा प्यार के सागर के प्यार में हिलोरे खा रही हूँ... एकरस स्थिति में स्थित हो रही हूँ...* परम आनंद की अनुभूति कर रही हूँ... सर्व गुण, शक्तियों से भरपूर होकर चढ़ती कला का अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा एक बाबा के संग खाती हूँ... पीती हूँ... बाबा की गोदी में ही सोती हूँ... अब मैं आत्मा तन, मन, धन से एक बाबा को समर्पित हो रही हूँ... अब मैं आत्मा इस पुराने देह व देह के सम्बन्धियों के आकर्षण में नहीं पड़ती हूँ... *न्यारी रहकर हर कर्म बाबा की याद में कर रही हूँ... और बाबा की प्यारी बनकर बाबा के प्यार का अनुभव कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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