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❍ 08 / 06 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *बुधी को ज्ञान का भोजन दे शक्तिशाली बनाया ?*
➢➢ *"हमने विचित्र बाप का हाथ पकड़ा है" - इसी निश्चय से घड़ी घड़ी बाप को याद किया ?*
➢➢ *अपने अनादी संस्कारों को इमर्ज कर सर्व समस्याओं को पार किया ?*
➢➢ *हर आत्मा को शांति का ठिकाना देने की सच्ची सेवा की ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *पावरफुल याद के लिए सच्चे दिल का प्यार चाहिए।* सच्ची दिल वाले सेकण्ड में बिन्दु बन बिन्दु स्वरूप बाप को याद कर सकते हैं। *सच्ची दिल वाले सच्चे साहेब को राजी करने के कारण, बाप की विशेष दुआयें प्राप्त करते हैं, जिससे सहज ही एक संकल्प में स्थित हो ज्वाला रूप की याद का अनुभव कर सकते हो, पावरफुल वायब्रेशन फैला सकते हो।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं रॉयल बाप का बच्चा हूँ"*
〰✧ *सदा रॉयल फैमिली वाले हो ना। रॉयल फैमली वाले सदा गलीचों में चलते, मिट्टी में नहीं। तो झूले में झूलो। नीचे आना अर्थात् मिट्टी में आना।*
〰✧ *यह देह भी मिट्टी है ना। तो देह भान में नीचे आना अर्थात् मिट्टी में पांव रखना। तो जब गलती से भी मिट्टी में पांव रखते हो उस समय अपने से पूछो कि हम रॉयल बाप के बच्चे और मिट्टी में पांव कैसे रखा?*
〰✧ *माँ बाप के जो लाडले बच्चे होते हैं तो कोशिश करते हैं सदा गोदी में खेलता रहे। नीचे नहीं रखेंगे। तो आप भी लाडले हो। जब बाप ने इतना सिकीलधा लाडला बना दिया तो लाडले होकर चलो ना, साधारण नहीं बनो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *जब साइन्स के साधन धरती पर बैठे हुए स्पेस में गए हुए यन्त्र को कन्ट्रोल कर सकते हैं, जैसे चाहे जहाँ चाहे वहाँ मोड सकते हैं, तो साइलेन्स के शक्ति स्वरूप, इस साकार सृष्टी में श्रेष्ठ संकल्प के आधार से जो सेवा चाहे, जिस आत्मा की सेवा करना चाहे वो नहीं कर सकते? *लेकिन अपनी - अपनी प्रवृत्ति से परे अर्थात उपराम रहो।*
〰✧ *जो सभी खजाने सुनाए वह स्वयं के प्रति नहीं, विश्व कल्याण के प्रति यूज करो। समझा अब क्या करना है?*
〰✧ *आवाज़ द्वारा सर्विस, स्थूल साधनों द्वारा सर्विस और आवाज से परे 'सूक्ष्म साधन संकल्प' की श्रेष्ठता, संकल्प शक्ति द्वारा सर्विस का बैलेन्स प्रत्यक्ष रूप में दिखाओ तब विनाश का नगाडा बजेगा।* समझा?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ बीजरूप स्टेज सबसे पावर फुल स्टेज है, उसके बाद सब नम्बरवार स्टेज हैं, *यहाँ स्टेज लाइट हाउस का कार्य करती है।* सारे विश्व में लाइट फैलाने के निमित्त बनते हैं। *जैसे बीज द्वारा स्वत: ही सारे वृक्ष को पानी मिल जाता है ऐसे जब बीजरूप स्टेज पर स्थित रहते तो आटोमेटिकली विश्व को लाइट का पानी मिलता रहता।* जैसे लाइट हाउस एक स्थान पर होते हुए चारों ओर अपनी लाइट फैलाते हैं ऐसे लाइट हाउस बन विश्व-कल्याणकारी बन विश्व तक अपनी लाइट फैलाने के लिए पावरफुल स्टेज चाहिए।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- चित्र को देखते हुए भी विचित्र बाप को याद करना"*
➳ _ ➳ खूबसूरत बगीचे मे टहलते हुए, *बाबा के चित्र को मन और बुद्धि में बसाकर मैं आत्मा... उस चित्र में छुपी विचित्रता को मन ही मन देख मुस्कुरा रही हूँ*... बाबा के बिना ये आत्मा क्या थी... औऱ अब क्या हूँ यही विचार कर रही हूँ... *बाबा ने तो मुझ आत्मा में हजारों रंग भर दिए हैं... उस बिंदु रूप विचित्र बाप को याद करते करते मै आत्मा सूक्ष्म वतन पहुँच जाती हूँ...*
❉ *बाबा तो मानो मुझ आत्मा का इंतजार ही कर रहा था, बाबा ने मुझ आत्मा को अपने बिंदु रूप पर मोहित होते देख कहा* :- "प्यारे बच्चे... मेरे मीठे बच्चे... तुम्हें इस चित्र मे छुपे विचित्र रूप वाले चित्र को ही याद रखना है... *ये विचित्र रूप ही तुम्हें इस दुनिया का मालिक बनाता हैं... जितना इस चित्र की विचित्रता में गहराई से उतरोगे उतना ही भरपूर होते जाओगे* ... मै तो तुम्हें भरपूर करने ही इस संगमयुग पर आता हूँ..."
➳ _ ➳ *मीठे बाबा को अपने से बात करता देख खुशी मे लवलीन हुई मैं आत्मा बाबा से कहती हूं*... मेरे प्यारे बाबा... आपके इस विचित्र रूप ने, *बिंदु रूप ने तो मुझे आप संग बांध ही दिया हैं... इस बिंदु से मिली शांति, प्रेम, आनंद का तो वर्णन ही नही किया जा सकता* ... कल्प कल्प तरसती आत्मा को अब इस बिंदु ने आकर भरपूर किया हैं..."
❉ *मीठे बाबा मेरे हर्षित मुख को देख कर बोले* :- "मेरे रूप मे डूबने वाले सिकीलधे बच्चे... *मैं तो तुम पर अपना सब कुछ न्योछावर करने ही तो अपना धाम छोड़ कर आता हूँ... तुम्हें 21 जन्मो की बादशाही देता हूँ... तुम्हें विश्व का राजा बनाता हूँ* ... हमेशा इस मेरे विचित्र रूप से प्यार करते रहना... हमेशा आनंदित रहना और श्रीमत का पालन करना..."
➳ _ ➳ *मै आत्मा बाबा की इतनी प्यारी मन को मोह लेने वाली बातों को सुन कर कहती हूँ* :- "मेरे प्यारे हम पर सर्वस्व लुटाने वाले बाबा... मैं आत्मा आपका प्यार पा कर धन्य हो गईं हूँ... *खुशियाँ क्या होती हैं मुझे पता ही नही था... आपने आते ही मुझ आत्मा को रंक से राजा बना दिया... तीनो लोक का मालिक बन दिया* ... बाबा आपके इस विचित्र रूप ने तो कमाल कर दिया..."
❉ *परमपिता मेरी बातों से खुश हो कहते है* :- "मेरे सपूत बच्चे... तुझे इस रूप मे इस कदर मगन देख बाप का प्यार और भी गहरा हो गया... *बस इसी तरह इस इस चित्र को देखते हुए अपने विचित्र बाप का हाथ पकड़े रहना... कभी भी मुझ को छोड़ना नही... ये विचित्र बाप ही तुम्हारी नैया का खिवैया हैं... इस को पूरा पूरा यूज़ करना घबराना नही* ..."
➳ _ ➳ *बाबा के इतने प्यार में डूबे अनमोल वचन सुनकर मैं आत्मा जैसे भावुक ही हो जाती हूँ औऱ बाबा को बोलती हूँ* :- "वाह मेरे सबसे प्यारे बाबा... तूने तो इस छोटे से बिंदु रूप में कमाल ही कर दिया... *इस छोटी सी मुझ आत्मा को मस्तक मणी ही बना दिया... मै आत्मा भी आज आप से वायदा कर रही हूं कि मै दिन पर दिन औऱ भी गहराई से, पूरी शिद्दत से... बाबा के इस विचित्र रूप में डूबती जा रही हूँ* ... विचित्र बाप की यादों को अपनी पूरी दिनचर्या बनाती जा रही हूँ... बाप से ये मीठा वायदा कर मैं आत्मा ख़ुशी ख़ुशी अपने साकार लोक में, साकार शरीर में वापिस आ जाती हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बुद्धि को रोज ज्ञान का भोजन दे, शक्तिशाली बनाना है*
➳ _ ➳ ज्ञान के सागर अपने शिव पिता से मुरली के माध्यम से हर रोज मिलने वाले ज्ञान के पोष्टिक भोजन को खाकर अपनी बुद्धि को स्वच्छ और शक्तिशाली बनाती जा रही मैं ब्राह्मण आत्मा एकान्त में बैठ उस ज्ञान रूपी भोजन को पचाने के लिए ज्ञान की प्वाइंट्स को स्मृति में लाकर, विचार सागर मंथन कर रही हूँ और साथ ही साथ अपने सर्वक्षेष्ठ भाग्य की भी सराहना कर रही हूँ। *मन ही मन अपने भगय का मैं गुणगान कर रही हूँ कि कितनी विशेष, कितनी महान और कितनी सौभागशाली हूँ मैं आत्मा जो मेरी बुद्धि को शक्तिशाली बनाने के लिए स्वयं भगवान हर रोज मुझे ज्ञान का शक्तिशाली भोजन खिलाते हैं*। सवेरे आंख खुलते ही ज्ञान रत्नों की थालियां लेकर बाबा मेरे पास पहुँच जाते है और ज्ञान का वो भोजन सारा दिन मेरी बुद्धि को शक्तिशाली रखता है और माया के हर वार से मुझे बचा कर रखता है।
➳ _ ➳ मन ही मन यह विचार करते हुए अपने भाग्य की स्मृति में मैं खो जाती हूँ और महसूस करती हूँ जैसे ज्ञान सागर मेरे शिव पिता अपने आकारी रथ पर विराजमान होकर ज्ञान रत्नों के अखुट ख़ज़ाने लेकर मेरे सामने खड़े हैं और मुस्कराते हुए उन ज्ञान रत्नों से मेरी बुद्धि रूपी झोली को भरने के लिए मेरा आह्वान कर रहें हैं। *ज्ञान सूर्य अपने शिव पिता को अपने सामने पाकर मन ही मन मैं आत्म विभोर हो रही हूँ। उनकी लाइट माइट को मैं अपने ऊपर स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। बापदादा से आ रही लाइट माइट मुझे भी लाइट और माइट बना रही है*। स्वयं को मैं पूरी तरह रिलेक्स महसूस कर रही हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे कोई सवेंदना मेरी देह में नही हो रही और मैं देह से बिल्कुल न्यारी हो चुकी हूँ। अपनी लाइट की सूक्ष्म देह को मैं अपनी स्थूल देह से पूरी तरह अलग महसूस कर रही हूँ।
➳ _ ➳ लाइट के बहुत ही सुंदर फ़रिशता स्वरूप में मैं अब स्वयं को देख रही हूँ जिसमे से रंग बिरंगी श्वेत रश्मियां निकल रही है जो चारों और फैल कर सारे वायुमंडल को शुद्ध, दिव्य और अलौकिक बना रही हैं। *अपनी लाइट माइट चारो और बिखेरता हुआ, अपनी रंग बिरंगी किरणो से वायुमण्डल को शुद्ध और पवित्र बनाता हुआ मैं फ़रिशता अब धरनी के आकर्षण से मुक्त होकर, अपने प्यारे बापदादा का हाथ थामे उनके साथ उनके अव्यक्त वतन की ओर जा रहा हूँ*। सारे विश्व का चक्कर लगाकर, आकाश को पार कर, उससे ऊपर अब मैं पहुँच गया बापदादा के साथ एक ऐसी दुनिया में जहां चारों और सफेद चांदनी सा प्रकाश फैला हुआ है।
➳ _ ➳ लाइट के सूक्ष्म शरीर को धारण किये फ़रिश्ते ही फ़रिश्ते इस लोक में मुझे दिखाई दे रहें हैं जिनसे निकल रही प्रकाश की रश्मियां पूरे वतन में फैल रही हैं। इस अति सुन्दर दिव्य अलौकिक दुनिया में मैं फ़रिशता अब बापदादा के सम्मुख बैठ , स्वयं को बापदादा से आ रही सर्वशक्तियों से भरपूर कर रहा हूँ। *बाबा की भृकुटि से निकल रहे ज्ञान के प्रकाश की तेज धारायें मुझ फ़रिश्ते पर पड़ रही हैं और ज्ञान की शक्ति से मुझे भरपूर कर रही हैं। अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रखकर बाबा अपनी हजारों भुजायें मेरे ऊपर फैला कर ज्ञान के अखुट खजाने मुझ पर लुटा रहें हैं* और मैं फ़रिश्ता इन खजानो को अपने अंदर समाता जा रहा हूँ। ज्ञान की शक्तिशाली खुराक खाकर, ज्ञान की शक्ति से भरपूर होकर अपने लाइट माइट स्वरूप के साथ अब मैं वापिस लौट रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने लाइट की सूक्ष्म देह के साथ, अपनी स्थूल देह में प्रवेश कर अब मैं फिर से अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हूँ और ज्ञान की शक्तिशाली खुराक हर रोज अपनी बुद्धि को खिलाकर उससे प्राप्त होने वाली परमात्म शक्ति को मैं अपने कर्मक्षेत्र व कार्य व्यवहार में प्रयोग करके अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को सहज ही व्यर्थ से मुक्त कर, उन्हें समर्थ बना कर समर्थ आत्मा बनती जा रही हूँ। *बुद्धि में सदा ज्ञान का ही चिंतन करते, ज्ञान के सागर अपने शिव पिता के ज्ञान की लहरों में शीतलता, खुशी व आनन्द का अनुभव करते, बुद्धि को रोज ज्ञान का शक्तिशाली भोजन देकर उसे शक्तिशाली बना उस शक्ति के प्रयोग से माया पर भी मैं सहज ही विजय प्राप्त करती जा रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं अपने अनादि संस्कारों को इमर्ज कर सर्व समस्याओ को पार करने वाली उड़ता पंछी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं हर कदम में कल्याण समझ हर आत्मा को शांति की शक्ति का दान देने वाली सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *यह हैं बहुत छोटी सी कर्मेन्द्रियाँ, आँख, कान कितने छोटे हैं लेकिन यह
जाल बहुत बड़ी फैला देते हैं। जैसे छोटी सी मकड़ी देखी है ना! खुद कितनी छोटी
होती। जाल कितनी बड़ी होती। यह भी हर कर्मेन्द्रिय का जाल इतना बड़ा है, ऐसे फँसा
देगा जो मालूम ही नही पड़ेगा कि मैं फँसा हुआ हूँ। यह ऐसा जादू का जाल है जो
ईश्वरीय होश से, ईश्वरीय मर्यादाओं से बेहोश कर देता है।* जाल से निकली हुई
आत्मायें कितना भी उन दास आत्माओं को महसूस करायें लेकिन बेहोश को महसूसता क्या
होगी? स्थूल रूप में भी बेहोश को कितना भी हिलाओ, कितना भी समझाओ, बड़े-बड़े माइक
कान में लगाओ लेकिन वह सुनेगा? तो यह जाल भी ऐसा बेहोश कर देता है और फिर क्या
मजा होता है? बेहोशी में कई बोलते भी बहुत हैं। लेकिन वह बोल बेअर्थ होता है।
ऐसे रूहानी बेहोशी की स्थिति में अपना स्पष्टीकरण भी बहुत देते हैं। लेकिन वह
होता बेअर्थ है। दो मास की, 6 मास की पुरानी बात, यहाँ की बात, वहाँ की बात
बोलते रहेंगे। ऐसी है यह रूहानी बेहोशी। तो है छोटी सी आँख लेकिन बेहोशी की जाल
बहुत बड़ी है।
➳ _ ➳ इससे निकलने में भी टाइम बहुत लग जाता है क्योंकि जाल की एक-एक तार को
काटने का प्रयत्न करते हैं। जाल कभी देखी है? आप लोगों के प्रदर्शनी के चित्रों
में भी है। जाल खत्म करने का साधन है - सारी जाल को अपने में खा लो। खत्म कर
लो। मकड़ी भी अपनी जाल को पूरा स्वयं ही खा लेती है। *ऐसे विस्तार में न जाकर
विस्तार को बिन्दी लगाए बिन्दी में समा दो। बिन्दी बन जाओ। बिन्दी लगा दो।
बिन्दी में समा जाओ। तो सारा विस्तार, सारी जाल सेकण्ड में समा जायेगी। और समय
बच जायेगा। मेहनत से छूट जायेंगे।* बिन्दी बन बिन्दी में लवलीन हो जायेंगे। तो
सोचों जाल में बेहोश होने की स्थिति अच्छी वा बिन्दी बन बिन्दी में लवलीन होना
अच्छा! तो बाप की मर्ज़ी क्या हुई? लवलीन हो जाओ।
➳ _ ➳ जबकि झाड़ को अभी परिवर्तन होना ही है। तो झाड़ के अन्त में क्या रह जाता
है? आदि भी बीज, अन्त भी बीज ही रह जाता है। *अभी इस पुराने वृक्ष के परिवर्तन
के समय पर वृक्ष के ऊपर मास्टर बीजरूप स्थिति में स्थित हो जाओ। बीज है ही -
‘बिन्दु'। सारा ज्ञान, गुण, शक्तियाँ सबका सिन्धु व बिन्दु में समा जाता है।
इसको ही कहा जाता है - बाप समान स्थिति।* बाप सिन्धु होते भी बिन्दु है। ऐसे
मास्टर बीज रूप स्थिति कितनी प्रिय है! इसी स्थिति में सदा स्थित रहो। समझा
क्या करना है?
✺ *"ड्रिल :- बिंदी बन बिंदी लगा विस्तार को सार में समाना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने लौकिक घर में बाबा की याद में मगन होकर घर की सफाई कर रही
हूँ... सफाई करते समय मेरी नजर अचानक एक कोने में लगे मकड़ी के जाले पर पड़ती
है... मैने देखा वह जाल दूर तक फैला हुआ है और मकड़ी उसमे फंसी हुई है... और
मकड़ी चाह कर भी उस जाले से निकल नहीं पा रही है... *मैंने उस जाले के पास जाकर
उसे छुआ और बहुत आवाज करने लगी... परंतु उस मकड़ी को बिल्कुल भी यह आभास भी
नहीं हुआ की उसको कोई छू रहा है अर्थात उसके जाले को कोई छूने की कोशिश कर रहा
है...* कुछ समय बाद मैं दूर खड़े होकर उस जाले को लगातार निहारने लगती हूं ...
और मैं देखती हूं वह मकड़ी अपने उस बने हुए जाले को स्वयं ही खाने लगती है और
वह धीरे-धीरे मेरे देखते देखते वह मकड़ी सारे जाले को खा जाती है... और अपने
अंदर समा लेती है और वह मकड़ी एक बिंदु के रूप में स्थित हो जाती है...
➳ _ ➳ कुछ समय बाद मैं आत्मा उस मकड़ी को देख कर यह अनुभव करती हूँ कि कुछ समय
पहले यह मकड़ी अपने ही द्वारा बने हुए जाले में कैद थी और वह चाहकर भी उस जाले
से निकल नहीं पा रही थी... ना ही इस मकड़ी को किसी भी प्रकार का अनुभव हो पा
रहा था... यह ऐसा प्रतीत हो रही था जैसे यह बेहोश अवस्था में लेटी हो जिससे इस
दुनिया की कुछ खबर भी ना हो उसे इस अवस्था में देखकर मैं मन ही मन यह विचार
करती हूं कि *जैसे यह मकड़ी अपने ही बुने जाले को सेकंड में अपने अंदर समा लेती
है वैसे ही मुझे आत्मा में भी यह गुण होना चाहिए... कि मैं विस्तार को एक
सैकेंड में सार बनाकर व्यर्थ से सदा के लिए मुक्त हो जाऊं...* जैसे मकड़ी कितनी
छोटी होती है और वह जाला कितना बड़ा होता है फिर भी मकड़ी सेकंड में उस बड़े से
जाले को अपने अंदर समा लेती है और बिंदु रूप में समा जाती है और मैं सोचती हूं
क्या मैं भी इस मकड़ी की तरह अपनी कर्मेंद्रियों को अपने वश में कर सकती हूं
सोचने लगती हूं...
➳ _ ➳ कुछ समय बाद मेरा अंतर्मन बाबा के पास सूक्ष्म वतन में पहुंच जाता है और
मैं बाबा से कहती हूं बाबा मुझे इस दृश्य के बारे में समझाइए... बाबा बड़े
प्यार से मेरे सर पर हाथ रखते हैं और कहते हैं... *बच्चे जब तक तुम अपने घर में
इंद्रियों के बस में होकर कार्य करोगे तब तक तुम ईश्वरीय मर्यादाओं में रहकर
कार्य नहीं कर पाओगे... यह कर्मेंद्रियां बिल्कुल ही बेहोश कर देती है अगर कोई
ईश्वरीय ज्ञान से होश में आई हुई आत्माएं कर्मेंद्रियों द्वारा बेहोश आत्माओं
को जगाने का प्रयास करते हैं तो वह आत्माएं कितना भी जगाने पर जाग ही नहीं पाती
है...* कुछ कर्मेंद्रियों के इतने वश में हो जाते हैं कि वह कुछ सुनने को तैयार
ही नहीं होते और ना ही अपने असली स्वरूप को पहचान पाते है... सिर्फ और सिर्फ
कर्मेंद्रियों के वश में हो कर रह जाते हैं...
➳ _ ➳ बाबा मुझसे कहते हैं बच्चे अगर तुम बिंदी बनकर हर विस्तार पर बिंदी
लगाओगे तो इस मायाजाल में फंसने से बच जाओगे और जब बिंदु रूप स्थिति का अनुभव
करोगे तो सहज ही बाप की याद में लवलीन हो पाओगे ... *अगर तुम एक बार
कर्मेंद्रिय रूपी जाल में फंस जाते हो तो फिर तुम्हें इस जाल को काटने में बहुत
मेहनत करनी पड़ेगी और जब तुम इस जाल को काटने में इतनी मेहनत लगाओगे तो
तुम्हारा पुरुषार्थ धीरे हो जाएगा तुम पुरुषार्थ में आगे नहीं बढ़ पाओगे ...*
इसलिए तुम्हें हर कर्म, इंद्रियों को अपने वश में रखकर, करना होगा जिससे
तुम्हारा समय भी बचेगा और पुरुषार्थ भी आगे बढ़ेगा और एक बाप की याद में बड़ी
ही सरलता से रह पाएंगे...
➳ _ ➳ बाबा के यह वचन सुनकर मैं आत्मा बाबा को कोटि-कोटि धन्यवाद करती हूं और
कहती हूं... *बाबा अब से मैं जो भी कार्य करूंगी कर्मेंद्रियों को अपने वश में
रखकर ही करूंगी... कर्म इंद्रियों के वश में होकर कोई कार्य नहीं करूंगी...
हमेशा विस्तार से सार में आऊंगी... किसी भी बात के विस्तार में नहीं जाऊंगी सार
रूपी बिंदी लगाकर अपने आपको बिंदु रूप स्थिति का अनुभव करूंगी और बिंदी बनकर
परमात्मा रुपी बिंदी में लवलीन हो जाऊंगी...* बिंदु रूप स्थिति में स्थित होकर
ज्ञान गुण शक्तियों का अनुभव करूंगी और कराऊंगी... बाप समान बिंदु बनकर पुराने
कल्पवृक्ष के ऊपर स्थित होकर मास्टर बीज रूप स्थिति का अनुभव करूंगी...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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