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 12 / 12 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *ऐसा कोई कर्म तो नहीं किया जिससे पश्चाताप करना पड़े ?*

 

➢➢ *ब्रह्मा बाप समान सरेंडर हो ट्रस्टी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *निमित आत्माओं के डायरेक्शन के महत्व को जान पापों से मुक्त रहे ?*

 

➢➢ *आराम पसंद न बन प्रभु पसंद और विश्व पसंद बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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〰✧  *जैसे अन्य आत्माओ को सेवा की भावना से देखते हो, बोलते हो, वैसे निमित्त बने हुए लौकिक परिवार की आत्माओं को भी उसी प्रमाण चलाते रहो।* लौकिक में अलौकिक स्मृति, सदा सेवाधारी की, ट्रस्टीपन की स्मृति, सर्व प्रति आत्मिक भाव से शुभ कल्याण की, श्रेष्ठ बनाने की शुभ भावना रखो। *हद में नहीं आओ।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं अतिन्द्रिय सुख के झूले में झुलने वाली आत्मा हूँ"*

 

✧   सदा अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते रहते हो? बापदादा के सिकीलधे बच्चे हो। तो सिकीलधे बच्चों को माँ बाप सदा ऐसे स्थान पर बिठाते हैं, जहाँ कोई भी तकलीफ न हो। *बाप-दादा ने आप सिकीलधे बच्चों को कौन सा स्थान बैठने के लिए दिया है? दिलतख्त।* कितना बड़ा है। इस तख्त पर बैठकर जो चाहो वह कर सकते हो, तो सदा तख्तनशीन रहो। नीचे नहीं आओ।

 

✧  जैसे फारेन में जहाँ-तहाँ गलीचे लगा देते हैं कि मिट्टी न लगे। *बापदादा भी कहते हैं देहभान की मिट्टी में मैले न हो जाए इसलिए सदा दिल तख्तनशीन रहो।* जो अभी तख्तनशीन होंगे वही भविष्य में भी तख्तनशीन बनेंगे। तो चेक करो कि सदा तख्तनशीन रहते हैं या तरते चढ़ते हैं?

 

  तख्त पर बैठने के अधिकारी भी कौन बनते? जो सदा डबल लाइट रूप में रहते हैं। *अगर जरा भी भारीपन आया तो तख्त से नीचे आ जायेंगें। तख्त से नीचे आये तो माया से सामना करना पड़ेगा। तख्तनशीन हैं तो माया नमस्कार करेगी।* बापदादा द्वारा बुद्धि के लिए जो रोज शक्तिशाली भोजन मिलता है। उसे हजम करते रहो तो कभी भी कमजोरी आ नहीं सकती। माया का वार हो नहीं सकता।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  सभी को फील हो कि बस हमको भी अभी वैराग्य वृति में जाना है। अच्छा समझा क्या करना है? सहज है या मुश्किल है? थोडा-थोडा आकर्षण तो होगी या नहीं? साधन अपने तरफ नहीं खींचेंगे? *अभी अभ्यास चाहिए - जब चाहे, जहाँ चाहे, जैसा चाहिए - वहाँ स्थिति को सेकण्ड में सेट कर सके।*

 

✧  सेवा में आना है तो सेवा में आये। सेवा से न्यारे हो जाना है तो न्यारे हो जाएँ। ऐसे नहीं, सेवा हमको खींचे। सेवा के बिना रह नहीं सके। *जब चाहें, जैसे चाहें, विल पॉवर चाहिए।* विल पॉवर है? स्टॉप तो स्टॉप हो जाए।

 

✧  *ऐसे नहीं लगाओ स्टॉप और हो जाए क्वेचन मार्क।* फुलस्टॉप स्टॉप भी नहीं फुलस्टॉप जो चाहे वह प्रैक्टिकल में कर सकें। चाहते हैं लेकिन होना मुश्किल है तो इसको क्या कहेंगे? विल पॉवर है कि पॉवर है? संकल्प किया - व्यर्थ समाप्त, तो सकण्ड में समाप्त हो जाए।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *जैसे बाप चारों ओर चक्कर लगाते हैं वैसे आप भी भक्तों के चारों ओर चक्कर लगाती हो? कभी सैर करने जाती हो? आवाज़ सुनने में आती है, तो कशिश नहीं होती है?* बाप के साथ-साथ शक्तियों को भी पार्ट बजाना है। *जैसे शक्तियों का गायन है कि अन्त:वाहक शरीर द्वारा चक्कर लगाती थीं, वैसे बाप भी अव्यक्त रूप में चक्कर लगाते हैं। अन्त:वाहक अर्थात् अव्यक्त फ़रिश्ते रूप में सैर करना।* यह भी प्रैक्टिस चाहिए और यह अनुभव होंगे।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- शिवबाबा के सिवाए यहाँ कुछ भी नहीं"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा एकांत में घर में बाबा के कमरे में बैठी हूँ... इस देह और देह की दुनिया से अपना सारा ध्यान हटाकर भृकुटी के मध्य केन्द्रित करती हूँ... भृकुटी के भव्य सिंहासन पर बैठी मैं हीरे जैसे चमकती हुई मणि हूँ...* अविनाशी आत्मा हूँ... परमधाम में रहने वाले परमपिता परमात्मा की संतान हूँ... धीरे-धीरे फ़रिश्ता स्वरुप धारण कर आकाश मार्ग से होते हुए इस विनाशी दुनिया से परे सूक्ष्म वतन में पहुँच जाती हूँ... बापदादा के पास... और उनकी गोद में बैठ जाती हूँ... *प्यारे बाबा मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए प्यारी शिक्षाएं देते हैं...*

 

  *अपने प्यार की बरसात में मुझे भिगोते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... *अब ईश्वर पिता का मखमली हाथ थाम कर जो देह के मटमैलेपन से बाहर निकले हो तो इस मीठे भाग्य की मधुरता में खो जाओ... ईश्वर पिता से प्यार कर फिर देह की दुनिया की ओर रुख न करो...* इन मधुर यादो में खोकर अपना सुनहरा सतयुगी भाग्य सजाओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा मीठे बाबा की मीठी यादों में डूबकर बाबा से कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके हाथ और साथ को पाकर नये पवित्र जन्म को पा ली हूँ... *आपकी मीठी सी यादो में... देह की अपवित्र दुनिया से निकल कर सतयुगी खुबसूरत सुखो की मालकिन सी सज संवर रही हूँ...”*

 

  *मेरे हर श्वांस में अपना नाम लिखते हुए आप समान बनाते हुए मीठा बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... कितने मीठे भाग्य से सज गए हो... मीठे बाबा की पसन्द बनकर धरा पर खुशनुमा इठला रहे हो... *इन प्यारी यादो में इस कदर खो जाओ कि... सिवाय बाबा के जेहन में कोई भी याद शेष न हो... ऐसे गहरे दिल के तार ईश्वर पिता से जोड़ लो कि वही दिल पर हमेशा छाया रहे...”*

 

_ ➳  *विनाशी दुनिया से जीते जी मरकर अविनाशी सुखों में उड़ते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा दुखो की दुनिया से निकल कर सच्चे प्यार की छाँव में आ गयी हूँ... *प्यारे बाबा आपकी सुखभरी छत्रछाया मे पुरानी दुनिया से मरकर नये ब्राह्मण जन्म को पा गयी हूँ...* और यहाँ से घर चलकर सुखो की नगरी में आने का मीठा भाग्य पा रही हूँ..."

 

  *इस दुनिया से न्यारी बनाकर अपनी मीठी गोद की छत्र छाया में बिठाकर मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब पुरानी दुनिया की हर बात से उपराम होकर सच्ची यादो में अंतर्मन को छ्लकाओ... *सच्चे प्यार से सदा का नाता जोड़कर उसके प्रेम में प्रति पल भीग जाओ... इन यादो में इतने गहरे डूब जाओ कि... बस उसके सिवाय दुनिया भूली सी हो...*

 

_ ➳  *मेरा तो एक शिव बाबा- इस स्वमान में टिककर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार में रोम रोम से भीगकर... *सच्चे प्रेम को जीने वाली महान भाग्य की धनी हो गयी हूँ... मीठे बाबा अब आप ही मेरा सच्चा सहारा हो...* और आपके संग साथी बनकर ही मुझे अपने घर चलना है..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ऐसा कोई कर्म नही करना जिसके पीछे पश्चात्ताप करना पड़े*"

 

_ ➳  संगमयुग का यह अमूल्य समय जबकि भगवान स्वयं हमारे सम्मुख हैं और आ कर हमें अपने श्रेष्ठ मत देकर कल्प - कल्प, जन्म - जन्मांतर के लिए हमारा सर्वश्रेष्ठ भाग्य बना रहे हैं तो *कितने सौभाग्यशाली हैं वो बच्चे जिन्होंने भगवान को पहचान लिया है और उसकी श्रेष्ठ मत पर चल श्रेष्ठ कर्म करके भविष्य जन्म - जन्म के लिए अपनी श्रेष्ठ तकदीर बना रहें हैं*। और कितने दुर्भाग्यशाली है वो बच्चे जो भगवान का बन कर भी अपनी मत पर चल कर गलत कर्म करते ही जा रहें हैं , इस बात से भी अंजान है कि भगवान का बन कर विकर्म करना मांना स्वयं को बहुत बड़ा श्राप देना है।

 

_ ➳  यह विचार करते - करते भक्ति मार्ग की कुछ बातें स्मृति में आने लगती है जो शास्त्रों में लिखी हुई हैं कि जब कोई शिष्य अपने गुरु की किसी बात की अवज्ञा करता था तो गुरु उसे श्राप दे देता था। *यहां तो भगवान बाप बन कर अपने बच्चों के सम्मुख आया हैं तो एक बाप भला कैसे अपने बच्चों को श्राप दे सकता है*! भगवान कभी अपने बच्चों को श्राप नही देता वो तो करुणा, प्रेम, दया का सागर है, दाता है। अपनी श्रेष्ठ मत देकर, बच्चों को श्रेष्ठ कर्म करना सिखलाते है और उन्हें अविनाशी सुखों से भरपूर कर देते हैं। इसलिए *उनकी श्रेष्ठ मत पर चल श्रेष्ठ कर्म करना माना स्वयं पर कृपा करना और उनकी मत के विरुद्ध अपनी मत पर चलना या पर मत पर चलना माना स्वयं ही स्वयं को श्रापित करना*।

 

_ ➳  यह सभी विचार करते हुए मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि मैं अपने भगवान बाप की श्रीमत को छोड़, मनमत वा परमत पर चल कभी भी कोई ऐसा कर्म नही करूँगी जो अपने ऊपर कृपा के बजाए श्राप आ जाये। *मन मे इसी दृढ़ संकल्प को लेकर करुणा, प्रेम, दया के सागर अपने मीठे प्यारे बाबा की मीठी यादों के झूले में बैठ, उनके साथ जैसे ही मैं मन बुद्धि का कनेक्शन जोड़ती हूँ, बाबा अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाकर मुझे अपनी बाहों में भर लेते हैं*। मैं आत्मा अब अपने पिता की सर्वशक्तियों की किरणो रूपी बाहों को थामे नश्वर देह से बाहर आ जाती हूँ और अपने पिता के पास उनके मीठे वतन की ओर चल पड़ती हूँ।

 

_ ➳  अपने मीठे बाबा की शक्तिशाली किरणो रूपी बाहों के झूले में झूलती, उनके मधुर और पावन प्रेम का अनुभव करती, *बड़ी ही आनन्दमयी स्थिति में स्थित मैं पाँच तत्वों की साकारी दुनिया को पार कर, बापदादा की अव्यक्त दुनिया को भी पार कर, अपने प्राण प्रिय शिव पिता की निराकारी दुनिया में प्रवेश करती हूँ*। अपने शिव पिता की बाहों से नीचे उतर कर अपने बाबा के इस स्वीट साइलेन्स होम में विचरण करती, इस पूरे ब्रह्मांड में फैले सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के वायब्रेशन को गहराई तक अपने अंदर समाते हुए मैं असीम सुख का अनुभव करके, अपने प्यारे बाबा के पास आ कर बैठ जाती हूँ।

 

_ ➳  बाबा का अथाह स्नेह सर्वशक्तियों के रूप में मुझ पर बरस रहा है। अपनी शक्तियों का समस्त बल बाबा मुझ आत्मा में प्रवाहित कर मुझे आप समान सर्व शक्ति सम्पन्न बना रहे हैं ताकि वापिस कर्मभूमि पर जाकर, ऐसा कोई भी कर्म मुझ से ना हो जिससे मुझे श्रापित होना पड़े। *बाबा का प्यार, बाबा के गुण, बाबा की शक्तियों की वर्षा निरन्तर मुझ पर हो रही हैं और मैं स्वयं को सर्वगुण, सर्व शक्ति सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ*। भरपूर होकर अब मैं वापिस साकार सृष्टि रूपी कर्मभूमि पर कर्म करने के लिए लौट रही हूँ। *बाबा के स्नेह, गुणों और शक्तियों का बल मुझे कर्म करते हुए भी कर्म के बन्धन से नयारा बना रहा है*।

 

_ ➳  हर कर्म अपने प्यारे बाबा की याद में रह कर अब मैं कर रही हूँ और इस बात पर पूरा अटेंशन दे रही हूँ कि ऐसा कोई भी कर्म मुझ से ना हो जो मेरे इस अमूल्य ब्राह्मण जन्म को श्रापित करे। *बाबा ने जो समझानी मुझे दी है कि "ऐसा कोई भी कर्म नही करना है जो अपने ऊपर कृपा के बजाए श्राप आ जाये" को अब मैं सदा स्मृति में रखते हुए अपने हर कर्म को श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाने का पुरुषार्थ कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं  निमित्त आत्माओं के डायरेक्शन के महत्व को जान पापो से मुक्त्त होने वाली सेन्सिबुल आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आराम पसन्दी को त्याग कर, प्रभु पसन्द और विश्व पसन्द बनने वाली ऑनेस्ट आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *ऐसा कभी भी नहीं सुना होगा कि बाप का जन्म-दिन भी वही और बच्चों का भी जन्म-दिवस वही। यह न्यारा और प्यारा अलौकिक हीरे तुल्य जन्म आज आप मना रहे हो।* साथ-साथ सभी को यह भी न्यारा और प्यारा-पन स्मृति में है कि *यह अलौकिक जन्म ऐसा विचित्र है जो स्वयं भगवान बाप बच्चों का मना रहे हैं। परम आत्मा बच्चों काश्रेष्ठ आत्माओं का जन्म-दिवस मना रहे हैं।* दुनिया में कहने मात्र कई लोग कहते हैं कि हमको पैदा करने वाला भगवान हैपरम-आत्मा है। परन्तु न जानते हैंन उसी स्मृति में चलते हैं। आप सभी अनुभव से कहते हो - हम परमात्म-वंशी हैंब्रह्मा-वंशी हैं। *परम आत्मा हमारा जन्म-दिवस मनाते हैं। हम परमात्मा का जन्म-दिवस मनाते हैं।* 

 

✺   *ड्रिल :-  "परमात्मा द्वारा अपना अलौकिक जन्म दिवस मनाने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *वाह मैं पद्मापदम भाग्यशाली आत्मा... जो स्वयं भाग्य विधाता परमात्मा... मेरा जन्‍म-दिवस मनाते हैं... ऐसा भाग्‍य मुझ आत्मा को सिर्फ... संगमयुग पर ही प्राप्त होता है...* इस संगम युग पर बाबा अकेले नहीं आते हैं... बच्चों के साथ ही आते हैं... क्यूँकि बाबा इस संगम युग पर... यज्ञ रचते हैं... और यज्ञ में ब्राह्मण आहूति डालते हैं... और हम बच्चें वही कल्प वाले ब्राह्मण है... *वाह मैं आत्मा अपना अलौकिक जन्म-दिवस... स्वयं परमात्मा के साथ मना रही हूँ... यह जयंती सब जयंतियों से वंडरफुल है... सारे कल्प में... यही एक जयंती है... जो बाप और बच्चों का साथ में जन्म होता है... इसलिए इस जयंती को हीरे तुल्य कहा गया है...*

 

 _ ➳  *मुझ आत्मा के इस अलौकिक जन्म-दिवस पर... परमात्मा मुझ आत्मा को मुबारक देते हैं... और मैं आत्मा अपने परमपिता को मुबारक देती हूँ...* बाबा ने कहा है... बच्चे साथ रहेंगे... साथ उड़ेंगे... साथ आएंगे और... ब्रह्मा बाप के साथ राज्य करेंगे... साथ रहने का वादा है... मैं आत्मा भी कहती हूँ... *जहां बाप वहाँ साथ - साथ रहूँगी... यह है मुझ आत्मा का बाप से वादा... और बाप का मुझ आत्मा से वादा... शरीर द्वारा कही भी रहूँ... लेकिन दिल में सदा दिलाराम बाप साथ है...*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा सदा बाबा के साथ-साथ ही रहती हूँ... अकेले कभी नहीं रहती हूँ... क्योंकि अकेले रहने से माया अपना चांस ले लेगी... और साथ रहने से लाइट - हाउस के आगे माया स्वतः ही भाग जाती है... मुझ आत्मा के नजदीक भी नहीं आती है...* इसीलिए मैं आत्मा सदा बाबा के साथ रहने का वादा निभा रही हूँ... और बाबा भी सदा मेरे साथ रहकर अपना वादा निभा रहे हैं...

 

 _ ➳  *ऐसा कभी भी किसी ने भी नहीं सुना होगा कि... बाप का जन्म-दिन भी वही... और बच्चों का भी जन्म-दिवस वही... यह न्यारा और प्यारा अलौकिक हीरे तुल्य जन्म आज हम बच्चे मना रहे है...* मुझ आत्मा को... यह जन्‍म-दिवस न्यारा... और प्यारा-पन अनुभव करा रहा है... *यह अलौकिक जन्म ऐसा विचित्र है... जो स्वयं भगवान बाप... बच्चों का मना रहे हैं...* परम आत्मा बच्चों का...  श्रेष्ठ आत्माओं का जन्म-दिवस मना रहे हैं... दुनिया में सभी आत्माएँ... कहने मात्र कहती हैं कि... हमको पैदा करने वाला भगवान है... परम-आत्मा है... परन्तु न उनको जानते हैं... न उनकी स्मृति में चलते हैं... *हम सभी बाप के बच्चें... अनुभव से कहते है - हम परमात्म-वंशी हैं... ब्रह्मा-वंशी हैं... परम आत्मा हमारा जन्म-दिवस मनाते हैं... हम परमात्मा का जन्म-दिवस मनाते हैं...*

 

 _ ➳  आज मैं आत्मा अपना जन्म-दिवस... और परमात्मा बाप का जन्म-दिवस साथ-साथ मना रही हूँ... मैं बाप का बर्थडे मना रही हूँ... और बाप मुझ आत्मा का बर्थडे मना रहे हैं... *मैं आत्मा बाप को मुबारक देती हूँ... वाह बाबा वाह... और बाप मुझ आत्मा को मुबारक देते हैं... वाह बच्चे वाह...* आज इस अलौकिक और अनोखे... बाप और बच्चों के जन्म दिवस पर... *मैं आत्मा बाप के सामने... यह संकल्प लेती हूँ कि... सदा एक दो को उमंग - उत्साह दिलाते हुए... सहयोगी बनूँगी... अपने व्यर्थ संकल्पों के अक के फूल बाप को अर्पण करती हूँ...* अब मैं आत्मा व्यर्थ संकल्प न करती हूँ... न सुनती हूँ... और न संग में आकर... व्यर्थ संकल्पों के संग का रंग लगाती हूँ... क्योंकि *जहाँ व्यर्थ संकल्प होगा... वहाँ याद का संकल्प... ज्ञान के मधुर बोल... जिसको मुरली कहते हैं... वह शुध्द संकल्प स्मृति में नहीं रहेंगे...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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