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 09 / 11 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *याद में रहने की आदत डाली ?*

 

➢➢ *सभी को बाप का सत्य परिचय दिया ?*

 

➢➢ *श्रेत्श कर्म रुपी डाली में लटकने की बजाये उड़ता पंछी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *चेहरा कभी खुश्क न रख सदा ख़ुशी का रखा ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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〰✧  *लगाव की रस्सियों को चेक करो।* बुद्धि कहीं कच्चे धागों में भी अटकी हुई तो नहीं है? कोई सूक्ष्म बंधन भी न हो, अपनी देह से भी लगाव न हो - *ऐसे स्वतन्त्र अर्थात् स्पष्ट बनने के लिए बेहद के वैरागी बनो तब अव्यक्त स्थिति में स्थित रह सकोगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बाप का हाथ सदा अपने मस्तक पर अनुभव करने वाली भाग्यवान आत्मा हूँ"*

 

*बाप का हाथ सदा मस्तक पर है ही - ऐसा अनुभव करते हो? श्रेष्ठ मत श्रेष्ठ हाथ है।*

 

  *तो जहाँ हर कदम में बाप का हाथ अर्थात् श्रेष्ठ मत है, वहाँ श्रेष्ठ मत से श्रेष्ठ कार्य स्वत: ही होता है। सदा हाथ की स्मृति से समर्थ बन आगे बढ़ते चलो।*

 

  *बाप का हाथ सदा ही आगे बढ़ाने का अनुभव सहज कराता है। इसलिए, इस श्रेष्ठ भाग्य को हर कार्य में स्मृति में रख आगे बढ़ते रहो। सदा हाथ है, सदा जीत है।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  अच्छा! सभी एक-दो के साथी हैं। विन करना सहज है। क्यों सहज है? (बाबा साथ है) और अनेक बार विजयी बने हैं तो रिपीट करने में क्या मुश्किल है। कोई नई बात करनी होती है तो मुश्किल लगता है और किया हुआ काम फिर से करो तो मुश्किल लगता है क्या?

 

✧  तो *कितनी बार विजयी बने हो?* कितना सहज है! *किये हुए कार्य में कभी क्वेचन नहीं उठेगा* - कैसे होगा, क्या होगा, ठीक होगा, नहीं होगा? किया हुआ है तो इजी हो गया ना। कितना इजी? बहुत इजी है! अभी इजी लग रहा है। वहाँ जा के मुश्किल हो जायेगा? *सदा इजी।*

 

✧  जब मुश्किल लगे तो याद करो - *कितने बारी किया है तो मुश्किल के बजाये इजी हो जायेगा।* सभी बहादुर हैं। क्या याद रखेंगे? बिन्दु बनना भी बिन्दु है, लगाना भी बिन्दु है। फुलस्टॉप लगाना अर्थात बिन्दु लगाना। तो इसको भूलना नहीं। अच्छा (पार्टियों के साथ)

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  सभी एवररेडी बन कर बैठे हुए हो? कोई भी देह के हिसाब-किताब से भी हल्का। वतन में शुरू शुरू में पंछियों का खेल दिखलाते थे, पंछियों को उड़ाते थे। वैसे *यह आत्मा भी पंछी है जब चाहे तब उड़ सकती है। वह तब हो सकता है जब अभ्यास हो। जब खुद उड़ता पंछी बनें तब औरों को भी एक सेकेण्ड में उड़ा सकते हैं। अभी तो समय लगता है।* अपरोक्ष रीति से वतन का अनुभव बताया। अपरोक्ष रूप से कितना समय वतन में साथ रहते हो?

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप को यथार्थ पहचान कर याद करना"*

 

_ ➳  *ओम शांति बाबा... ये शब्द कितना गुह्य है बाबा, जिसका राज आपने अब सम्मुख बैठ समझाया है... ओम अर्थात मैं आत्मा... शांति अर्थात शांत... अर्थात मैं आत्मा शांत स्वरूप हूं...* पहले - पहले बाबा, मुझ आत्मा को न स्वयम का परिचय था, न आपका... आप मिले, तो जाना, मैं आत्मा हूं... यह मेरा शरीर हैं... मैं आत्मा, माना स्टार हूं... मेरे पिता परमपिता परमात्मा, वह भी स्टार है... *यह  राज बाबा आपने हम ब्राह्मण आत्माओं को बताया... संसार में कोई और इस यथार्थ परिचय को नहीं जानता...*

 

  *निराकारी बाबा मुझ आत्मा पर सात रंगों की किरणों की बौछार करते हुए बोले:-* "मीठी बच्ची... *द्वापर से तुम मुझे पुकारती आई हो... मंदिरों में, मेरे लिंग चिन्ह को पूजती आई हो...* दर - दर, तुमने कितने धक्के खाए!... अब, मैं आया हूं... तुम्हें सभी धक्कों से छुड़ाने... तुम्हारी भक्ति का फल देने... *अब मेरे यथार्थ स्वरूप को पहचान मुझे याद करो..."*

 

_ ➳  *मीठे बाबा से शक्तिशाली किरणें स्वयं में भरती मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "हां बाबा... *अब मुझे आप का यथार्थ परिचय मिला है, मालूम हुआ है, कि आप कोई शरीरधारी नहीं... जन्म मरण से न्यारे हो... मुझ समान ही स्टार हो...* ज्योति बिंदु हो... परमधाम निवासी हो... अब मैं आत्मा, आपके अथार्थ स्वरूप को जान, मुझ आत्मा के पिता जो कि मेरे समान है याद कर रही हूं..."

 

  *स्नेह सागर अपने स्नेह की रूहानी किरणों से मुझ आत्मा को भरपूर करते हुए बोले:-* "मीठी बच्ची... *अब तक तुमने मेरे सही स्वरूप को याद नहीं कर अपने पापों को न काटा है... अब, मेरे यथार्थ स्वरुप को जान तुम्हारे विकर्म विनाश हो रहे हैं... मीठी बच्ची अब जरूरत हैं जवालामुखी याद की...* अब इस याद को ज्वालामुखी रूप दो, ताकि यह विकर्म इस याद रूपी अग्नि में पूरी तरह भसम हो..."

 

_ ➳  *स्नेह सागर की शिक्षाओं को सर माथे रख मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "जी बाबा... *मैं आत्मा अब याद रूपी चिता पर स्थित हूं... बिंदु स्वरूप में स्थित मैं आत्मा परमधाम में, आपके बिंदु स्वरूप को निहार रही हूं...* मैं देखती हूं आपसे पवित्रता की किरणें मुझ आत्मा में समाती जा रही हैं... मैं आत्मा स्वयं को पवित्रता से सम्पन्न महसूस कर रही हूं... भरपूर महसूस कर रही हूं..."

 

  *पवित्रता से ओतप्रोत मुझ आत्मा से निराकारी बाबा बोले:-* "मीठी बच्ची... *याद पर ही सारा मदार है, जहां याद है वहाँ बाप भी बच्चो को याद करते हैं, मदद करते हैं... जितना बच्चे बाप को याद करते हैं, उतना फिर बाप भी बच्चों को याद करते हैं...* जितना उच्च भाग्य आप आत्माओं का है उतना किसी और मनुष्य का नहीं... तो इस भाग्य को याद कर कितना रूहानी नशा रहना चाहिए..."

 

_ ➳  *स्नेह सागर के स्नेह में खोई, लवलीन मैं  आत्मा बाबा से बोली:-* "हां मीठे बाबा... अब कोई सुध नहीं... न इस शरीर की... न शरीर के संबंधों की... दुनिया के चमकीले आकर्षणों से भी मैं आत्मा मुक्त हूं... *अभी याद है तो बस बाप... निरंतर आपकी याद में खोई हुई, मैं आत्मा अपनी कर्मातीत अवस्था को देख रही हूं..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- फादर शोज़ सन, सन शोज़ फादर, सभी को बाप का सत्य परिचय देना है*"

 

_ ➳  स्वराज्य अधिकारी आत्मा बन स्वदर्शन चक्र फिराते हुए अपने आदि देव स्वरूप को स्मृति में लाते ही मन बुद्धि से मैं पहुँच जाती हूँ भविष्य आने वाली नई सतयुगी दुनिया में और उस दुनिया के अति सुन्दर, मन को लुभाने वाले नज़ारो में मैं खो जाती हूँ। *स्वयं को मैं देख रही हूँ विश्व महाराजन के रूप में। विष्णु चतुर्भुज के रूप में मेरा यह स्वरूप संपूर्ण सतोप्रधान, सर्वगुण सम्पन्न है*। अपने इस सतोप्रधान, सर्वगुण सम्पन्न स्वरूप को देख एक अद्भुत नारायणी नशे से मैं आत्मा भरपूर होती जा रही हूँ।

 

_ ➳  लक्ष्मी नारायण का यह कम्बाइंड स्वरूप ही मेरा लक्ष्य है। अपने इस स्वरूप को जल्दी से जल्दी प्राप्त करने के इस लक्ष्य को पाने का पुरुषार्थ करने के लिए अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होती हूँ और खो जाती हूँ अपने ब्राह्मण जीवन की उन सुखद स्मृतियों में जो हर रोज मेरे शिव परमात्मा मुझे करवाते हैं। *उन अखुट प्राप्तियों को स्मृति में लाते ही मैं आत्मा उड़ती कला का अनुभव करने लगती हूँ और अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ*। अपने फ़रिशता स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं औरों को भी बाप का परिचय दे लक्ष्मी नारायण की सच्ची कथा सुना कर, उन्हें भी विष्णुपुरी में जाने का मार्ग दिखाने के लिए चल पड़ती हूँ।

 

_ ➳  मैं फ़रिशता पूरे विश्व का भ्रमण करता हुआ लक्ष्मी नारायण के एक - एक मंदिर को देख रहा हूँ। इन सभी मन्दिरो को देखते - देखते मैं नीचे उतरता हूँ और एक मंदिर में प्रवेश कर जाता हूँ। *मंदिर में बिल्कुल सामने विष्णु चतुर्भुज की एक बहुत बड़ी प्रतिमा मैं देख रहा हूँ। अलंकारों से सजी यह प्रतिमा सबको अपनी और आकर्षित कर रही है*। लक्ष्मी नारायण के इस कम्बाइंड स्वरूप अर्थात विष्णु चतुर्भुज के सामने खड़े भक्त अराधना कर रहें हैं। लक्ष्मी नारायण की कथा चल रही है। भक्त हाथ जोड़े बैठें हैं और ब्राह्मण के मुख से उच्चारित लक्ष्मी नारायण की कथा सुन रहें हैं।

 

_ ➳  शास्त्रों में लिखी सत्य नारायण की इस कथा को सुनते भक्तों को वास्तविकता का बोध करवाने के लिए मैं फ़रिशता विष्णु चतर्भुज की उस विशाल प्रतिमा में प्रवेश कर जाता हूँ। *अपने अलंकारों को धारण कर मैं फ़रिशता बापदादा का आह्वान करता हूँ और सेकण्ड में बापदादा की छत्रछाया को अपने ऊपर स्पष्ट अनुभव करता हूँ*। बाबा की सर्वशक्तियां लक्ष्मी नारायण के उस जड़ चित्र में विराजमान मुझ फ़रिश्ते पर पड़ते ही मुझसे सर्वशक्तियां निकल कर अब पूरे मन्दिर में फैलने लगती है। *देखते ही देखते मन्दिर का वातावरण एक अद्भुत रूहानियत, दिव्यता और अलौकिकता से भरपूर होने लगता है*।

 

_ ➳  बापदादा की आज्ञानुसार अब मैं फ़रिशता मन्दिर में उपस्थित सभी भक्तों को सत्य बाप का परिचय दे उन्हें लक्ष्मी नारायण की सत्य जीवन कहानी सुना रहा हूँ। *सभी इस बात को स्वीकार कर रहें हैं कि नर से नारायण और नारी से लक्ष्मी बनाने वाला सत्य परमात्मा बाप आया हुआ है जो सच्ची - सच्ची सत्यनारायण की कथा सुना रहा है*। इस सत्यता को जान कर और परमात्मा का सत्य परिचय पा कर सभी के चेहरे खुशी से चमक रहें हैं। सबको बाप का सत्य परिचय दे कर और लक्ष्मी नारायण की सच्ची कहानी सुना कर मैं फ़रिशता अब लक्ष्मी नारायण की उस जड़ प्रतिमा से बाहर निकल कर अब बापदादा के साथ ऊपर की ओर उड़ता हुआ, सूक्ष्म वतन में पहुँचता हूँ।

 

_ ➳  बापदादा के साथ मीठी - मीठी रूह रिहान करके और बाबा के सानिध्य में बैठ, उनसे सर्व प्राप्तियां करके मैं फ़रिशता वापिस साकारी दुनिया में लौट कर अपने साकारी तन में आ कर विराजमान हो जाता हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित रहते हुए अब मैं सबको बाप का सत्य परिचय देती रहती हूँ और सबको लक्ष्मी नारायण की सच्ची जीवन कहानी सुनाती रहती हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं श्रेष्ठ कर्म रूपी डाली में लटकने के बजाए उड़ता पंछी बनने वाली हीरो पार्टधारी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *अंदर की स्थिति का दर्पण चेहरा है, मैं चेहरे को कभी खुश्क न होने देने वाली, खुशी का चेहरा रखने वाली खुशनसीब आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा पहली सेवा यही बताते हैं कि अभी समय अनुसार सभी बच्चे वानप्रस्थ अवस्था में हैंतो *वानप्रस्थी अपने समय, साधन सभी बच्चों को देकर स्वयं वानप्रस्थ होते हैं। तो आप सभी भी अपने समय का खजाना, श्रेष्ठ संकल्प का खजाना अभी औरों के प्रति लगाओ।* अपने प्रति समय, संकल्प कम लगाओ। औरों के प्रति लगाने से स्वयं भी उस सेवा का प्रत्यक्षफल खाने के निमित्त बन जायेंगे। *मन्सा सेवावाचा सेवा और सबसे ज्यादा - चाहे ब्राह्मणचाहे और जो भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हैं उन्हों को कुछ न कुछ मास्टर दाता बनके देते जाओ। नि:स्वार्थ बन खुशी दो, शान्ति दोआनंद की अनुभूति कराओ, प्रेम की अनुभूति कराओ।* देना है और देना माना स्वत: ही लेना। *जो भी जिस समय, जिस रूप में सम्बन्ध-सम्पर्क में आये कुछ लेकर जाये। आप मास्टर दाता के पास आकर खाली नहीं जाये।* जैसे ब्रह्मा बाप को देखा - चलते-फिरते भी अगर कोई भी बच्चा सामने आया तो कुछ न कुछ अनुभूति के बिना खाली नहीं जाता। यह चेक करो जो भी आया, मिलाकुछ दिया वा खाली गया? *खजाने से जो भरपूर होते हैं वह देने के बिना रह नहीं सकते। अखुट, अखण्ड दाता बनो। कोई मांगेनहीं। दाता कभी यह नहीं देखता कि यह मांगे तो दें।*अखुट महादानी, महादाता स्वयं ही देता है। तो पहली सेवा इस वर्ष - महान दाता की करो। आप दाता द्वारा मिला हुआ देते हो। ब्राह्मण कोई भिखारी नहीं हैं लेकिन सहयोगी हैं। तो *आपस में ब्राह्मणों को एक दो में दान नहीं देना है, सहयोग देना है। यह है पहला नम्बर सेवा।*

 

✺   *ड्रिल :-  "मास्टर दाता बन हर एक आत्मा को कुछ ना कुछ देने का अनुभव"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा इस स्थूल शरीर को छोड़ अशरीरी बन उड़ चलती हूँ शान्तिधाम... शान्तिधाम की गहन शान्ति को गहराई से अनुभव करती हूँ... मैं आत्मा मास्टर दाता की स्थिति धारण कर... सर्वशक्तिवान... शिवबाबा... दाता के समीप बैठ जाती हूँ... *शिवबाबा से निकलती शक्तिशाली किरणों को मैं आत्मा स्वयं में धारण करती जा रही हूँ... भरपूर होती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा... दाता की बच्ची... मास्टर दाता बन हर एक आत्मा को दातापन की दृष्टि से देख रही हूँ...*

 

 _ ➳  मैं बाबा की बच्ची... शांतिदाता की बच्ची... शान्त स्वरूप हूँ... मास्टर दाता हूँ... *बाबा ने मुझ आत्मा को वरदानों से... गुणों से श्रृंगारित कर सर्व आत्माओं को दुःखों से... विघ्नों से... अशांति से मुक्त कराने के निमित्त बनाया है... मुझ आत्मा को सर्व आत्माओं को सुख... शांति... प्रेम की अनुभूति करानी है... मैं आत्मा अशरीरी बन सर्व आत्माओं के प्रति शांति के वायब्रेशनस फैला रही हूँ... स्वदर्शन चक्रधारी बन सुख के वाइब्रेशन्स फैला रही हूँ...*

 

 _ ➳  मैं पद्मापदम् सौभाग्यशाली आत्मा हूँ... बाबा ने मुझे अपना बनाकर... खजानों से सम्पन्न बना दिया... मैं आत्मा सदा भरपूरता के नशे में रहती हूँ... ख़ुशी का पारा चढ़ा रहता है... *बाबा कहते हैं... बच्ची, देना ही लेना है... इसलिये बांटते चलो... तुम्हारी झोली स्वतः ही भरती जायगी... तो जिस शक्ति का जिस समय आह्वान करती हूँ... वह शक्ति उस समय जी हाज़िर हो जाती है... और मैं आत्मा शक्ति स्वरूप बन औरों को बाँट कर उन्हें ख़ुशी व शांति की अनुभूति कराती हूँ...*

 

 _ ➳  मैं शांत स्वरूप आत्मा, आत्मिक स्वरूप में स्थित होकर... शांति सागर परमात्मा से योगयुक्त होकर... गहन शांति में स्थित हो फिर शांति की किरणों का प्रवाह अन्य आत्माओं पर प्रवाहित करती हूँ... *सर्वशक्तिवान से बुद्धि जोड़ने से असीम शक्तियों का प्रवाह कमजोर आत्माओं में बल भर रहा है... और उन्हें शांति की अनुभूति हो रही है... जो भी आत्मा मेरे सम्बन्ध सम्पर्क में आती है... उसे बिना मांगे... बिना कहे शांति का अनुभव होने लगता है...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा सदा सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं के प्रति शुद्ध और शुभ भावना रखती हूँ... *शुभ कामना और निमित्त भाव के साथ मास्टर दाता बन हर एक को सुख शांति की अनुभूति करा रही हूँ...* मैं आत्मा अपने पवित्र संकल्पों का प्रभाव सभी आत्माओं तक पहुँचा रही हूँ... शुद्ध संकल्पों से सर्व आत्माओं का कल्याण कर रही हूँ... *मैं आत्मा मनसा सकाश द्वारा सर्व आत्माओं को परमात्म स्नेह की पालना का एहसास करवा रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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