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❍ 11 / 07 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अच्छा होशियार सेल्समैन बन अविनाशी ज्ञान रत्नों का व्यापार किया ?*
➢➢ *निरंतर एक माशूक की याद में रहे ?*
➢➢ *इस मरजीवा जन्म में सदा संतुष्ट रहे ?*
➢➢ *कैसी भी परिस्थिति में स्वयं को मोल्ड किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *साइन्स वाले भी सोचते हैं ऐसी इन्वेंशन निकाले जो दु:ख समाप्त हो जाए, साधन सुख के साथ दुःख भी देता है। सोचते जरूर है कि दु:ख न हो, सिर्फ सुख की प्राप्ति हो लेकिन स्वयं की आत्मा में अविनाशी सुख का अनुभव नहीं है तो दूसरों को कैसे दे सकते हैं।* आप सबके पास तो सुख का, शान्ति का, निःस्वार्थ सच्चे प्यार का स्टॉक जमा है, तो उसका दान दो।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं दिलाराम बाप की दिल में रहने वाली आत्मा हूँ"*
〰✧ सदैव अपने को दिलाराम बाप की दिल में रहने वाले अनुभव करते हो? दिलाराम की दिल तख्त है ना। तो दिलतख्तनशीन आत्माएं हैं-ऐसे अपने को समझते हो? सदा तख्त पर रहते हो या कभी उतरते, कभी चढ़ते हो? अगर किसको तख्त मिल जाये तो तख्त कोई छोड़ेगा? *यह तो श्रेष्ठ भाग्य है जो भगवान् के दिलतख्त-नशीन बनने का भाग्य मिला है। इससे बड़ा भाग्य कोई हो सकता है? ऐसे प्राप्त हुए श्रेष्ठ भाग्य को भूल तो नहीं जाते हो? तो सदैव तख्त-नशीन आत्माएं हैं-इस स्मृति में रहो।*
〰✧ जो दिल में समाया हुआ रहेगा, परमात्म-दिल में समाए हुए को और कोई हिला सकता है? *दिलतख्त-नशीन आत्माएं सदा सेफ हैं। माया के तूफान से भी और प्रकृति के तूफान से भी-दोनों तूफान से सेफ न माया की हलचल हिला सकती है और न प्रकृति की हलचल हिला सकती है।* ऐसे अचल हो? या कभी-कभी अचल, कभी-कभी हिलते हो? यादगार अचलघर है। चंचल-घर तो बना ही नहीं। अनेक बार अचल बने हो। अभी भी अचल हो ना। हलचल में नुकसान होता है और अचल में फायदा है। कोई चीज हिलती रहे तो टूट जायेगी ना।
〰✧ सदा यह याद रखो कि हम दिलाराम के दिलतख्त-नशीन हैं। यह स्मृति ही तिलक है। तिलक है तो तख्त-नशीन भी हैं। इसीलिए जब तख्त पर बैठते हैं तो पहले राज्य-तिलक देते हैं। तो यह स्मृति का तिलक ही राज्य-तिलक है। तो तिलक भी लगा हुआ है। या मिट जाता है कभी? तिलक कभी आधा रह जाता है और कभी मिट भी जाता है-ऐसे तो नहीं। यह अविनाशी तिलक है, स्थूल तिलक नहीं है। जो तख्त-नशीन होता है, उसको कितनी खुशी होती है, कितना नशा होता है! आजकल के नेताओंको तख्त नहीं मिलता, कुर्सी मिलती है। तो भी कितना नशा रहता है-हमारी पार्टी का राज्य है! वो तो कुर्सी है, आपका तो तख्त है। *तो स्मृति नशा दिलाती है। अगर स्मृति नहीं है तो नशा भी नहीं है। तिलक है तो तख्त है। तो चेक करो कि स्मृति का तिलक सदा लगा हुआ है अर्थात् सदा स्मृतिस्वरूप हैं?*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ आस्ट्रेलिया वालोंने सेवा तो बढाई है ना। अभी कितने स्थान हैं वहाँ (5) हरेक को राज्य करने के लिए अपनी-अपनी प्रजा तो जरूर बनानी ही है। (विनाश में हम लोगों का क्या होगा?) विनाश में आस्ट्रेलिया सारा एक टापू बन जायेगा। कुछ पानी
में आ जायेगा कुछ ऊपर रह जायेगा। *आप लोग सेफ रहेंगे।*
〰✧ विनाश के पहले ही आप लोगों को आवाज पहुँचेगा। *जब तुम सभी सेफ स्थान पर पहुँच जायेंगे फिर विनाश होगा।* जैसे गायन है भट्ठी में बिल्ली के पूंगरे सेफ रहे। तो *जो बच्चे बाप की याद में रहने वाले हैं, वह विनाश में विनाश नहीं होंगे लेकिन स्वेच्छा से शरीर छोडेगे,* न कि विनाश के सरकमस्टान्सेज के बीच में छोडेगे।
〰✧ *इसके लिए एक बुद्धि की लाइन क्लियर हो और दूसरा अशरीरी बनने का अभ्यास बहुत हो।* कोई भी बात हो तो आप अशरीरी हो जाओ। अपने आप शरीर छोडने का जब संकल्प होगा तो संकल्प किया और चले जायेंगे। इसके लिए बहुत समय से प्रैक्टिस चाहिए।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *जैसे साइंस के साधनों द्वारा दूर की वस्तु समीप अनुभव करते हैं। ऐसे दिव्य बुद्धि द्वारा कितनी ही दूर रहने वाली आत्माओं को समीप अनुभव करेंगे।* जैसे स्थूल में साथ रहने वाली आत्मा को स्पष्ट देखते, बोलते, सहयोग देते और लेते हो, ऐसे चाहे अमेरिका में बैठी हुई आत्मा हो लेकिन दिव्य-दृष्टि, दिव्य दृष्टि ट्रान्स नहीं लेकिन रूहानियत भरी दिव्य दृष्टि - जिस दृष्टि द्वारा नैचुरल रूप में आत्मा और आत्माओं का बाप भी दिखाई देगा। *आत्मा को देखूं। यह मेहनत नहीं होगी, पुरुषार्थ नहीं होगा लेकिन हूँ ही आत्मा, हैं ही सब आत्मायें। शरीर का भान ऐसे खोया हुआ होगा जैसे द्वापर से आत्मा का भान खो गया था।* सिवाए आत्मा के कुछ दिखाई नहीं देगा। आत्मा चल रही है, आत्मा कर रहीं है। *सदा मस्तक मणी के तरफ तन की आँखे वा मन की आँखे जायेंगी। बाप और आत्माएँ- यही स्मृति निरन्तर नैचुरल होगी।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सारी सृष्टि का पालनकर्त्ता एक बाप- यह बात सबको समझाना"*
➳ _ ➳ *बाहर बहुत तेज़ बारिश होती देख... मैं आत्मा... अपने घर के आंगन में आकर बैठ गयी... वहाँ पर बैठते ही मुझ पर हल्की-हल्की... बारिश की फुहारे पडने लगी... और मैं आत्मा उन रिमझिम बूंदों का आनंद लेती हुई... मीठे बाबा के प्यार भरे गीत गुनगुना रही हूँ...* और सोच रही हूँ कि *ज्ञान सूर्य बाबा ने मुझ आत्मा को... गले लगाकर... मुझे गुणों और शक्तियों के श्रृंगार से श्रृंगारित कर अपने दिलतख्त पर बिठाकर... अति सौभाग्यशाली बना दिया है... भगवान के दिल की रानी बनकर, मैं आत्मा... अपने मीठे भाग्य पर बलिहार हूँ...* आज मैं आत्मा... भगवान के दिल में रहती हूँ... मीठी बातें करती हूँ... अपने दिल की हर बात बाबा से शेयर करती हूँ... बाबा की यादों के झूले में झूलती हुई... मैं आत्मा बाबा के पास वतन में उड़ चलती हूँ...
❉ *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को विश्व कल्याणकारी की भावना से ओतप्रोत करते हुए कहा :-"मेरे प्यारे मीठे लाडले बच्चे... सारी सृष्टि का पालनकर्ता... तुम्हारा बाबा...प्यारा शिवबाबा... मैं ही हूँ... मैं निराकार हूँ... मेरा कोई आकार नहीं... कोई देह नहीं... मैं तो जन्म मरण से न्यारा हूँ... मैं कभी किसी की पालना नहीं लेता हूँ...* प्यारे बच्चों... जिस ईश्वर पिता को पाकर, *जिन सच्ची खुशियों को... सुखों को, आप बच्चों ने पाया है... वही सब खुशियां सबके जीवन में भर दो...* सभी आत्माओं के जीवन को सुखों की... बहारों को खिलाने वाले... सदा के सुखदायी बन, मीठे बाबा के दिल में मुस्कराओ..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा प्यारे बाबा की अमूल्य शिक्षाओं को अपने दिल में गहरे समाकर कहती हूँ :-* "मेरे मीठे बाबा... मैं आत्मा आपके मीठे प्यार में, असीम सुखों की अनुभूतियों से भरकर... *यह अनुभव की दौलत... हर आत्मा को दिल खोलकर... लुटा रही हूँ... सभी आत्माओ को... आप... सृष्टि नियन्ता... पालनहार... पालनकर्ता... का परिचय देकर... सबको आप समान खुशियों की अधिकारी बना रही हूँ..."*
❉ *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा की देही अभिमानी स्थिति को पक्का करवाते हुए कहा :-* "मीठे बच्चे... सतगुरू पिता से जो आपने अपने आत्मिक सत्य को जाना है... उस सत्य को हर पल अपनी आत्मिक स्मृति में बनाये रखो... तो *आपके हर संकल्प से समस्त विश्व में सुख, शांति के वाइब्रेशन्स प्रवाहित होंगे... और हर आत्मा इन पावरफुल वाइब्रेशन्स को पाकर... सुख, शांति की अनुभूति करेंगी..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा प्यारे बाबा के सच्चे प्यार में सुख स्वरूप आत्मा बनकर कहती हूँ :-* "मेरे मीठे दुलारे बाबा... सारी सृष्टि के पालनकर्ता... *मैं आत्मा... आपकी मीठी पालना में पलकर... असीम सुखों की मालिक बनकर... अपने प्यारे बाबा से, हर बिछड़े दिल को मिलाकर... असीम दुआओं की हकदार बन रही हूँ...* सबको सच्चे आनंद की खुशियों से लबालब कर रही हूँ..."
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने महान भाग्य के नशे से भरते हुए कहा :-* "मीठे लाडले बच्चे... *ईश्वर पिता जो धरती पर अथाह ख़ज़ानों को ले आया है... उस रूहानी दौलत से हर दिल को रूबरू कराओ...* सबको प्यारे बाबा से मिलवाकर, अनेक जन्मों के दुखों से छुटकारा दिलवाओ... *सबकी सोयी हुई तकदीर को जगाकर... इन अनमोल खजानों का मालिक बनाओ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा से महा धनवान बनकर पूरे विश्व में इस ज्ञान धन की दौलत लुटाकर कहती हूँ :-* "मेरे सिकीलधे... प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपसे प्राप्त इन अनमोल धन सम्पदा को... अपनी बाँहो में भरकर, हर दिल को आपकी ओर आकर्षित कर रही हूँ... *मीठे बाबा को दिल के सारे जज्बात सुनाकर मैं आत्मा... अपने आंगन में पुनः लौट आयी...*"
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अविनाशी प्रालब्ध बनाने के लिए अपना बुद्धियोग एक बाप से लगाना है*
➳ _ ➳ भविष्य 21 जन्मों की अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध के बारे में विचार करते ही एक सेकण्ड में आँखों के सामने एक अति सुन्दर मन को लुभाने वाली सतयुगी दुनिया इमर्ज हो जाती है और मन उस सुंदर दुनिया के खूबसूरत दृश्य देखने मे मग्न हो जाता है। *देवी - देवताओं की एक ऐसी पावन दुनिया जहाँ चारों और खुशहाली है। सुख, शांति और सम्पन्नता से भरपूर, सोने के महलों से सजी इस स्वर्णिम दुनिया में हर चीज अपनी सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था मे असीम सुख देने वाली है*। रंग बिरंगे प्रकृति के अनेक खूबसूरत नज़ारे मन को गहन आनन्द का अनुभव करवाने वाले हैं। आत्मिक स्नेह से परिपूर्ण, हृदय में एक दूसरे के प्रति आदर भाव और सम्मान की भावना इस दैवी संसार में रहने वाली आत्माओं की मुख्य विशेषता है।
➳ _ ➳ अपरम अपार सुखों से भरपूर, देवी देवताओं की यह अति सुंदर दुनिया जो मेरी भविष्य श्रेष्ठ प्रालब्ध है, मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से उस दुनिया का आनन्द लेते - लेते, ऐसी अविनाशी प्रालब्ध बनाने वाले, स्वर्ग के रचयिता अपने प्यारे पिता का मैं कोटि - कोटि शुक्रिया अदा करती हूँ और बुद्धि का योग उनसे लगाकर अब अपने मन और बुद्धि को उनकी मीठी मधुर याद में स्थिर कर लेती हूँ। *मन बुद्धि को अपने परमधाम घर मे ले जाकर, अपने पिता के स्वरूप पर अपने ध्यान को केंद्रित करते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे परमधाम से मेरे शिव पिता परमात्मा की सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे नीचे साकार लोक में मुझ आत्मा के ऊपर पड़ रही हैं और धीरे - धीरे मुझे विदेही बना रही हैं*।
➳ _ ➳ विनाशी देह और देह की दुनिया के हर संकल्प विकल्प से मुक्त, मेरा मन और बुद्धि अब पूरी तरह से केवल अपने शांति धाम घर और इस शान्तिधाम घर मे रहने वाले शांति के सागर मेरे शिव पिता पर एकाग्र है।*सर्वशक्तियों की रंग बिरंगी किरणे चारों और बिखेरता हुआ मेरे पिता का अथाह तेजोमय स्वरूप मुझे अपनी खींच रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे अपनी सर्वशक्तियों की किरणे रूपी बाहें फैला कर बाबा मुझे अपने पास बुला रहें हैं। उनकी किरणों रूपी बाहों को थामे मैं आत्मा अब उनके पास, उनके निर्वाण धाम घर की ओर जा रही हूँ*। अपने प्यारे पिता की किरणों रूपी बाहों के झूले में झूला झूलते हुए, गहन आनन्द की अनुभूति करते हुए, धीरे - धीरे मैं साकार लोक को पार कर रही हूँ।
➳ _ ➳ प्रकृति के पांचों तत्वों से परे, सूक्ष्म लोक को पार कर अब मैं पहुँच गई हूँ अपने शिव पिता के पास उनके निर्वाणधाम, शान्तिधाम घर में जहाँ पहुंचते ही मैं अथाह शांति का अनुभव कर रही हूँ। *अपने अनन्त प्रकाशमय, महाज्योति शिव पिता को समीप से देखने और उनसे मिलने का अनुभव बहुत ही सुंदर और निराला है। ऐसा लग रहा है जैसे मैं सागर के किनारे बैठी हूँ और सागर से आ रही सुख, शांति, आनन्द की मीठी - मीठी लहरें बार - बार मुझे छू रही हैं और मुझे असीम सुख, शांति और आनन्द से भरपूर कर रही हैं*। इन लहरों में लहराते - लहराते मैं आत्मा धीरे - धीरे बाबा के बिल्कुल समीप पहुँच गई हूँ और ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसे मैं बाबा में समा गई हूँ।
➳ _ ➳ बाबा के साथ अटैच इस अवस्था मे मैं आत्मा गहन सुख की अनुभूति कर रही हूँ। बाबा से निरन्तर आ रही शक्तियों की शीतल फुहारें मेरे ऊपर बरस कर, मेरे मन को तृप्त कर रही हैं। प्यार के सागर अपने प्यारे मीठे बाबा के प्यार में मैं आत्मा गहराई तक समा कर स्वयं को धन्य - धन्य महसूस कर रही हूँ। *मेरे ऊपर बरसता हुआ बाबा का अथाह प्यार मुझे अतीन्द्रिय सुख के झूले में झुला रहा है*। अपने प्यारे पिता के साथ स्नेह मिलन मनाकर, अतीन्द्रिय सुख की गहन अनुभूति करके, तृप्त होकर अब मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने साकार तन में भृकुटि पर विराजमान होकर अब मैं आविनाशी प्रालब्ध बनाने के लिए, अपना बुद्धियोग केवल एक बाबा से लगाने का पूरा पुरुषार्थ कर रही हूँ। *अपने प्यारे पिता के सानिध्य में, अपने वर्तमान ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों का भरपूर आनन्द लेने के साथ - साथ, अपनी भविष्य अविनाशी प्रालब्ध बनाने के लिए कदम - कदम अपने पिता की शिक्षाओं को अपने जीवन मे धारण करने का प्रण लेकर, उसे दृढ़ता से पूरा कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं इस मरजीवा जीवन मे सदा संतुष्ठ रहने वाली इच्छा मात्रम अविद्या आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं अपने संस्कार इज़ी बनाकर किसी भी परिस्थिति में स्वयं को मोल्ड कर लेने वाली सरल आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ और कई अच्छी-अच्छी बातें सुनाते हैं - *मेरी इच्छा नहीं थी लेकिन किसी को खुश करने के लिए किया! क्या अज्ञानी आत्मायें कभी सदा खुश रह सकती हैं? ऐसे अभी खुश, अभी नाराज़ रहने वाली आत्माओं के कारण अपना श्रेष्ठ कर्म और धर्म छोड़ देते हो जो धर्म के नहीं वह ब्राह्मण दुनिया के नहीं*। *अल्पज्ञ आत्माओं को खुश कर लिया लेकिन सर्वज्ञ बाप की आज्ञा का उल्लंघन किया ना*! तो पाया क्या और गंवाया क्या! जो लोक अब खत्म हुआ ही पड़ा है। चारों ओर आग की लकड़ियाँ बहुत जोर शोर से इकट्ठी हो गई हैं। लकड़ियाँ अर्थात् तैयारियाँ। जितना सोचते हैं इन लकड़ियों को अलग-अलग कर आग की तैयारी को समाप्त कर दें उतना ही लकड़ियों का ढेर ऊँचा होता जाता है। जैसे होलिका को जलाते हैं तो बड़ों के साथ छोटे-छोटे बच्चे भी लकड़ियाँ इकट्ठी कर ले आते हैं। नहीं तो घर से ही लकड़ी ले आते। शौक होता है। तो आजकल भी देखो छोटे-छोटे शहर भी बड़े शौक से सहयोगी बन रहे हैं। तो ऐसे लोक की लाज के लिए अपने अविनाशी ब्राह्मण सो देवता लोक की लाज भूल जाते हो! कमाल करते हो! यह निभाना है या गंवाना है! इसलिए *ब्राह्मण लोक की भी लाज स्मृति में रखो। अकेले नहीं हो, बड़े कुल के हो तो श्रेष्ठ कुल की भी लाज रखो*।
✺ *"ड्रिल :- अज्ञानी आत्माओं को खुश करने के लिए बाप की आज्ञा का उल्लंघन नही करना*"
➳ _ ➳ शान्त, मगर निश्चय में अडोल... नदी का किनारा *उमंगों से भरपूर इठलाती... किनारों की मर्यादा में बहती नदी की धारा*... अपने प्रियतम सागर से मिलने को आतुर
गुनगुनाती हुई बहती जा रही है... *सफर लम्बा है, दुश्वारियों से भरा है, मगर प्रेम इन दुश्वारियों से कब डरा है*... नदी की धारा में मोती चुगती दूधिया हंसो की टोली... और *मैं आत्मा हंसिनी, उन्हीं किनारों पर सूर्य की किरणों के रथ पर सवार उतरते अपने शिव प्रियतम को निहारती हुई*... सुनहरें प्रकाश से चमक उठी है नदी की धाराएँ... मन खुशी से मानो गा उठा है... *यूँ खातिर मेरे तुम जो तशरीफ़ लाये, है मुझसे मोहब्बत, ये दिल मेरा गाये*...
➳ _ ➳ सोना बरसाती हुई मेरे शिव प्रियतम की किरणें, गहन शान्ति की अनुभूति करा रही है... मेरा मन पूरी तरह शान्ति की चरम अनुभूतियों में डूबा हुआ... *मैं आत्मा ड्रामा के इस चक्र में अपनी जन्म जन्मान्तर की यात्रा का दर्शन करती हुई*... परम धाम में बिन्दु रूप में... शान्ति सागर में गहराई में गोते लगाती हुई... सभी आत्माओं को शान्ति के प्रकंम्पन प्रदान कर रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा देवताई शरीर धारण कर सतयुगी सृष्टि में पार्ट बजा रही हूँ... सम्पूर्ण सुखों का उपभोग करते हुए अब मेरी गिरती कला की शुरूआत हो चुकी है... और मैं आत्मा, स्वयं को रावण की कैद में देख रही हूँ... *मैं बन्दी कैसे बनी, मुझे आहिस्ता- आहिस्ता सब कुछ याद आ रहा है*...
➳ _ ➳ मुझे याद आ रहा है... *अज्ञानी रावण को खुश करने के लिए श्रीमत का उल्लंघन करना, मर्यादा की लकीर को लांघकर कुटिया से बाहर कदम रखना... और फिर मेरा मेरे ही वजूद से लम्बा वनवास*... अशोक वाटिका से शोक वाटिका का मेरा आश्रय बन जाना...
➳ _ ➳ एक लम्बें इन्तज़ार और भटकन के बाद आज फिर से मेरे शिव प्रियतम ने मुझे ढूँढ लिया है... और मुझे याद दिलाई है मेरे शान्त स्वरूप, सुख स्वरूप की... कानो में धीरे से आकर गुनगुना दिया है... *अकेले नही हो तुम, बडे कुल के हो तो श्रेष्ठ कुल की भी लाज रखना*... मैं आत्मा प्रतिज्ञा कर रही हूँ... *अज्ञानी आत्माओं को खुश करने के लिए मैं अब कभी बाप की आज्ञा का उल्लंघन नही करूँगी...* कभी खुश कभी नाराज़ रहने वाली आत्माओं के लिए मैं अपनी ब्राह्मण कुल का श्रेष्ठ धर्म और कर्म नही छोडूगीँ, अल्पज्ञ के लिए मैं सर्वज्ञ की आज्ञा का उल्लघंन नही करूँगी..
➳ _ ➳ *आकाश से फूलों की बारिश करते बाप दादा... मेरे मस्तक पर विजय तिलक लगाते हुए, मेरे सर पर हाथ रखकर मुझे सफलता मूर्त का वरदान दे रहे है*... नदी से निकलकर हंसों की टोली ने मुझे चारों ओर से घेर लिया है... मानों मुझ में और मेरी प्रतिज्ञा में अपना निश्चय प्रकट कर अपनी खुशी जाहिर कर रहे हों... *ये लहरे ये किनारें, ये हंसों की टोली मेरे बाबा की मीठी बोली मेरे श्रेष्ठ कुल का गुणगान कर रही है*...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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