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 07 / 02 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *गृहस्थ व्यवहार में रहते माया को जीता ?*

 

➢➢ *मतभेद में तो नहीं आये ?*

 

➢➢ *हर आत्मा से आत्मिक अटूट प्यार रख स्नेह संपन्न व्यवहार किया ?*

 

➢➢ *"जिस समय चाहे आवाज़ में आये और जिस समय चाहे आवाज़ से परे हो जाए" - यह अभ्यास किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  देह-भान से परे होना है तो यह रूहानी एक्सरसाइज कर्म करते भी अपनी ड्युटी बजाते हुए भी एक सेकण्ड में अभ्यास कर सकते हो। *यह एक नेचुरल अभ्यास हो जाए - अभी-अभी निराकारी, अभी-अभी फरिश्ता। यह मन की ड्रिल जितना बार करेंगे उतना ही सहज योगी, सरल योगी बनेंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"कर्मयोगी की स्टेज द्वारा कर्मभोग पर विजय प्राप्त करने वाला 'विजयी रत्न' हूँ"*

 

  महावीर बच्चे सदा ही तंदुरस्त हैं। क्योंकि मन तंदुरस्त है, तन तो एक खेल करता है। *मन में कोई रोग होगा तो रोगी कहा जायेगा अगर मन निरोगी है तो सदा तंदुरस्त है।* सिर्फ शेश शैया पर विष्णु के समान ज्ञान का सिमरण कर हर्षित होते। यही खेल है। जैसे साकार बाप विष्णु समान टांग पर टांग चढ़ाए खेल करते थे ना। ऐसे कुछ भी होता है तो यह भी निमि मात्र खेल करते।

 

  सिमरण कर मनन शक्ति द्वारा और ही सागर के तले में जाने का चांस मिलता है। जब सागर में जायेंगे तो जरूर बाहर से मिस होंगे। तो कमरे में नहीं हो लेकिन सागर के तले में हो। नये-नये रत्न निकालने के लिए तले में गये हो। *कर्मभोग पर विजय प्राप्त कर कर्मयोगी की स्टेज पर रहना इसको कहा जाता है - 'विजयी रत्न'।*

 

  *सदा यही स्मृति रहती कि यह भोगना नहीं लेकिन नई दुनिया के लिए योजना है। फुर्सत मिलती है ना, फुर्सत का काम ही क्या है? नई योजना बनाना। पलंग भी लैनिंग का स्थान बन गया।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  कार्य करते फरिश्ता बनकर कर्म करो, फरिश्ता अर्थात डबल लाइट कार्य का बोझ नहीं हो। कार्य का बोझ अव्यक्त फरिश्ता बनने नहीं देगा। तो *बीच-बीच में निराकारी और फरिश्ता स्वरूप की मन की एक्सरसाइज करो ते थकावट नहीं होंगा।*

 

✧  जैसे ब्रह्मा बाप को साकार रूप में देखा - डबल लाइट सेवा का भी बोझ नहीं। अव्यक्त फरिश्ता रूप। तो सहज ही बाप समान बन जायेंगे। *आत्मा भी निराकार है और आत्मा निराकार स्थिति में स्थित होगी तो निराकार बाप की याद सहज समान बना देगी।*

 

✧  *अभी-अभी एक सेकण्ड में निराकारी स्थिति में स्थित हो सकते हो?* हो सकते हो? (बापदादा ने ड़ि्ल कराई) यह अभ्यास और अटेन्शन चलते-फिरते, कर्म करते बीच-बीच में करते जाना। तो *यह प्रैक्टिस मन्सा सेवा करने में भी सहयोग देगी और पॉवरफुल योग की स्थिति में भी वहुत मदद मिलेगी।* अच्छा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *दो बातें मुख्य याद रखनी हैं की एक तो मणि को देखना, देह रूपी सांप को न देखना। और दूसरी बात, अपने को अवतरित समझो। इस शरीर में अवतरित होकर कार्य करना हैं। यह प्रैक्टिस जरूर करो - एक सेकंड में आवाज में, एक सेकंड में संकल्प से परे, एक सेकंड में सर्विस के संकल्प में आये और एक सेकंड में संकल्प से परे स्वरूप में स्तिथ हो जाये। इस ड्रील पक्की होगी वह सभी परिस्तिथियों का सामना कर सकते हैं।* जैसे शारीरिक ड्रील सुबह कराई जाती हैं, वैसे यह अव्यक्त ड्रिल भी अमृतवेले विशेष रूप से करनी हैं। करना तो सारा दिन हैं लेकिन विशेष प्रैक्टिस करने का समय अमृतवेला हैं। *जब देखो बुद्धि बिज़ी हैं तो उसी समय यह प्रैक्टिस करो - परिस्तिथि में होते हुये भी हम अपनी बुद्धि को न्यारा कर सकते हैं। लेकिन न्यारे तब हो सकेंगे जब जो भी कार्य करते हो वह न्यारी अवस्था मे होकर करेंगे।* अगर उस कार्य मे अटेचमेंट होगी तो एक सेकंड में न्यारे  नही होंगे। इसलिए यह प्रैक्टिस करो। कैसी भी परिस्थिति हो। *क्योकि फाइनल पेपर अनेक प्रकार के भयानक और न चाहते भी अपनी तरफ आकर्षित करने वाली परिस्थितियों के बीच होंगे। उनकी भेंट में जो आजकल की परिस्थितिया हैं वो कुछ भी नही हैं।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- क्षीरखंड होकर रहना, मतभेद में नहीं आना है"*

 

_ ➳  *स्वयं शिवबाबा मेरे प्यारे पिता परमधाम से आकर, मेरे चमन में सुखों के फूल बिखेरेंगे... मुझे अपनी गोद में पालेंगे... श्रेष्ठ कर्म कराने सिखलायेंगे... और अपना श्रीमत रूपी हाथ मेरे हाथ में रख... इस पुरानी भयावान दुनिया से... दुःखों भरी उलझनों से... छुटकारा दिला... मुझे रूहे गुलाब जैसा खिलाएंगे... मुझे क्षीरखंड होकर रहना सिखलायेंगे... ऐसे ख्वाब तो कभी न संजोये थे...* इस मीठे चिंतन ने आँखों को भिगो दिया... और भीगी पलकें लिये प्यार के सागर बाबा को निहारने मैं आत्मा वतन में उड़ चली...

 

  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को श्रीमत देते हुए अपने हाथों में सुरक्षित करते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे रूहानी बच्चे... *सच्चे बाप से सच्चे ज्ञान को पाकर सच्ची राह के राही बनो... बुरा न देखो... बुरा न बोलो... बुरा न सुनो... बुरा न सोचो... सभी के साथ क्षीरखंड हो कर चलो...* सदा श्रीमत रूपी हाथ... हाथ में पकड़े... निश्चिन्त होकर, इस जीवन पथ पर यादों की छत्रछाया में आगे बढ़ो... *मीठे बाबा के साथ के खूबसूरत समय में अब किसी भी प्रकार के मतभेद में नहीं आना..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा मीठे बाबा से ईश्वरीय मत पाकर, खुशनुमा जीवन की मालिक बनकर कहती हूँ:-* "मेरे मीठे मीठे बाबा... मैं सदा आपके बताये गये मार्ग पर... आप द्वारा दी गई शिक्षाओं पर चल कर खुशी से झूम रही हूँ... *अनेक मतभेदों से छूटकर पवित्रता से सज संवर रही हूँ... आप सच्चे साथी को सदा साथ रख... सभी आत्माओं के साथ क्षीरखंड होकर... हर कर्म श्रेष्ठ बनाती जा रही हूँ..."*

 

  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने निराकारी रूप के नशे से भरते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *सदा क्षीरखंड होकर एक बाप की श्रेष्ठ मत पर चलकर हर कर्म करो... कभी किसी से लूनपानी होकर अपने कर्म  खोटे नही करना...* जो बाबा ने सिखलाया है... उन्ही श्रेष्ठ कर्मो और दिव्य गुणों की धारणा से, आपने जीवन को क्षीरखंड रह शानदार बनाओ..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा प्यारे बाबा की श्रीमत को दिल में समाते हुए कहती हूँ:-* "मेरे प्यारे मीठे सिकीलधे बाबा... मैं आपको पाकर सच्चे सोने के समान निखर गई हूँ... *आपने मेरे जीवन को रूहानियत से भर दिया है... मैं आत्मा आपकी यादों में... सदा हर कर्म को श्रेष्ठ और सुकर्म बनाती जा रही हूँ..."*

 

  *मीठे बाबा मुझ आत्मा को सही और गलत की समझानी देते हुए कहते हैं:-* "यह दुनिया तुम्हें सत्य के मार्ग पर चलने में परेशान करेगी... पर *तुम सदा श्रीमत रूपी सच की खूबसूरत राह पर चलते चलना... कभी आपसी मतभेद में नहीं आना... सदा क्षीरखंड होकर रहना..."*

 

_ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा की श्रीमत को गले लगाते हुए कहती हूँ:-* "मेरे जीवन के सहारे बाबा... *आपने मुझ आत्मा का हाथ पकड़ कर... मुझे कितना प्यारा जीवन दे दिया... आपकी श्रीमत को पाकर मैं आत्मा धन्य धन्य हो गयी हूँ...* हर कर्म आपके द्वारा दी गयी श्रीमत पर चल... सच्चे आनंद में झूम रही हूँ... मीठे बाबा को दिल से धन्यवाद देकर मैं आत्मा... अपनी स्थूल देह में लौट आई..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ज्ञान और योग सीख भगत से ज्ञानी तू आत्मा बनना है*"

 

_ ➳  ज्ञान और योग के सुन्दर सजीले पंख लगाकर, भक्तो के भगवान अपने रूहानी बाप से मंगल मिलन मनाने का मन मे संकल्प करते हुए एक बहुत ही खूबसूरत दृश्य मेरी आँखों के सामने उभर आता है और मैं उस खूबसूरत दृश्य में खो जाती हूँ। *मैं देख रही हूँ स्वयं को अपनी ब्रह्मा माँ और शिव बाबा के कम्बाइन्ड स्वरूप में उनकी ममतामयी गोद मे बैठे हुए। एक नन्ही सी परी बन बापदादा की गोद में बैठ उनके असीम स्नेह को स्वयं पर बरसते हुए मैं अनुभव कर रही हूँ*। अपने रुई समान कोमल हाथों से बापदादा मेरे बालों में उंगलियां फिराते हुए, अथाह प्यार से भरी मीठी दृष्टि से मुझे निहारते हुए जैसे अपना सारा प्यार और दुलार मुझ पर उड़ेल रहें हैं। *मेरे साथ मीठी - मीठी रूह रिहान कर रहें हैं। अपने हाथों से मुझे टोली खिला रहें हैं*।

 

_ ➳  इन अति सुंदर दृश्य को देख मन ही मन मुझे अपने भाग्य पर गर्व महसूस होता है और यह शुद्ध अहंकार मेरे अंदर जागृत होने लगता है कि "मैं भगवान की पालना में पलने वाली इस संसार की सबसे खुशनसीब आत्मा हूँ"। *यह स्मृति मेरे अंदर एक अद्भुत रूहानी नशे का संचार कर मुझे सहज ही अशरीरी स्थिति में स्थित कर देती है। इस स्थिति में स्थित होते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे मुझ आत्मा को ज्ञान और योग के खूबसूरत पँख लग गए है जो मुझे उड़ा कर इस दुख अशांति की दुनिया से बहुत दूर, ऊपर शांति की दुनिया में ले जा रहें है*। मैं आत्मा देह से बाहर निकल कर अब इन पँखो को फैला कर, ऊंची उड़ान भरते हुए ऊपर आकाश की दिशा में चल पड़ती हूँ।

 

_ ➳  ज्ञान और योग के पँख लगाकर ऊपर उड़ते हुए, असीम आनन्द का अनुभव करते - करते मैं जैसे ही नीचे पृथ्वी लोक के दृश्यों को देखती हूँ, *मन्दिरो में खड़े अराधना करते भक्तों की लंबी कतारों को देख मैं मन ही मन विचार करती हूँ कि ये भगत बेचारे क्षण भर के विनाशी सुखों को पाना ही जीवन का लक्ष्य समझते हैं*। केवल इस विनाशी जीवन की अल्पकाल की विनाशी इच्छाओं की पूर्ति ही ये करना चाहते हैं। लेकिन इस बात से बेचारे कितने अंजान है कि इस समय भगवान स्वयं आकर ज्ञान और योग सिखाकर केवल इस एक जन्म की नही बल्कि 21 जन्मों की अविनाशी प्राप्ति करवा रहे है।

 

_ ➳  कितनी खुशनसीब हैं वो आत्मायें जो इस समय भगवान को पहचान कर, उससे ज्ञान और योग सीख भगत से ज्ञानी तू आत्मा बन रही हैं। यह विचार करतेे, इस दृश्य से ध्यान हटा कर, ज्ञान और योग सिखलाने वाले अपने योगेश्वर बाप से मिलने के लिए अब मैं अति तीव्र गति से उड़ते हुए आकाश को पार करती हूँ और आकाश से भी ऊपर उड़ते उड़ते अपने योगेश्वर बाप के पास उनकी निराकारी दुनिया में पहुँच जाती हूँ। *हर बन्धन से मुक्त इस मुक्तिधाम घर में आ कर मैं आत्मा जीवन मुक्त अवस्था का अनुभव कर रही हूँ। लाल सुनहरी प्रकाश से प्रकाशित चमकती हुई मणियों की इस निराकारी दुनिया मे चारों ओर फैले शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन मुझ आत्मा को गहन शांति की गहन अनुभूति करवा रहें हैं*।

 

_ ➳  गहन शांति की गहन अनुभूति में खोई मैं धीरे धीरे शांति के सागर अपने शिव पिता के पास पहुँच कर उनके साथ कम्बाइंड हो जाती हूँ। *इस कम्बाइंड स्वरूप में मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे सर्व शक्तियों के फवारे के नीचे मैं आत्मा खड़ी हूँ और बाबा से निकल रही सर्वशक्तियों रूपी सतरंगी किरणों का झरना मुझ आत्मा पर बरस रहा है*। ऐसा लग रहा है जैसे प्यार के सागर बाबा अपना असीम प्यार मुझ पर लुटा रहे हैं। उनके प्यार की शीतल किरणे मुझे भी उनके समान मास्टर प्यार का सागर बना रही हैं। *उनकी लाइट माइट पाकर मैं स्वयं को एकदम हल्का डबल लाइट अनुभव कर रही हूँ और यह डबल लाइट स्थिति मुझे गहन अतीन्द्रीय सुख की अनुभूति करवा रही है*।

 

_ ➳  गहन सुख का अनुभव करके, शक्तिसम्पन्न बनकर मैं लौट आती हूँ साकारी लोक में और अपनी साकारी देह में आ कर फिर से भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हो जाती हूँ। *भगत बन सुख, शांति के लिए भगवान से प्रार्थना करने के बजाए ज्ञान और योग को अपने जीवन मे धारण कर गहन सुख और शांति का अनुभव बिल्कुल सहज रीति करते हुए ज्ञानी तू योगी आत्मा बन मैं स्वयं के साथ साथ अनेकों आत्माओं को ज्ञान योग की धारणा कराये उन्हें भी आप समान बना रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं हर आत्मा से आत्मिक अटूट प्यार रख स्नेह सम्पन्न व्यवहार करने वाली सफलतामूर्त आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं जिस समय चाहे आवाज में आकर और जिस समय चाहे आवाज से परे जाकर  अंतर्मुखता का अनुभव करने वाली आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  सबने अपना एकाउण्ट रखा, जिन्होंने एक्यूरेट अपना एकाउण्ट रखा है, नियम प्रमाण, काम चलाऊ नहीं, यथार्थ रूप से जैसा भी है लेकिन एकाउण्ट अपना पूरा रखा है, सच्चा-सच्चा एकाउण्ट, चलाऊ नहीं, वह बड़ा हाथ उठाओ। जिन्होंने रखा है, लिखा है नहीं, रखा है। थोड़ों ने रखा है। अच्छा पीछे वाले जिन्होंने रखा है, खड़े हो जाओ। अच्छा। डबल फारेनर्स जिन्होंने रखा है वह उठो। अच्छा मुबारक हो। अच्छा - जिन्होंने नहीं रखा है उन्हों से हाथ नहीं उठवाते हैं। उठाना अच्छा नहीं लगेगा ना। लेकिन *जिन्होंने सच्चा-सच्चा एकाउण्ट रखा है, बापदादा के पास तो स्पष्ट हो ही जाता है।* कइयों ने थोड़ा हिसाब से नहीं, जैसे एवरेज निकाला जाता है ना, ऐसे भी रखा है। एक्यूरेट बहुत थोड़ों ने लिखा है या रखा है। फिर भी *बाप के डायरेक्शन को माना इसलिए बापदादा ने दो प्रकार की एक्सट्रा मार्क्स उन्हों की बढ़ाई, क्योंकि श्रीमत पर चलना यही भी एक सबजेक्ट है।* तो श्रीमत पर चलने की सबजेक्ट में फुल पास हुए इसलिए फर्स्ट नम्बर वालों को बापदादा ने अपने तरफ से 25 मार्क्स बढ़ाई, जो पहला नम्बर हैं और जो दूसरा नम्बर हैं उसको 15 मार्क्स बढ़ाई। यह एक्सट्रा लिफ्ट बापदादा ने अपने तरफ से दी। *तो फाइनल पेपर में आपकी यह मार्क्स जो हैं वह जमा होंगी। पास विद आनर होने में मदद मिलेगी।*

 

 _ ➳  लेकिन जिन्होंने नहीं रखा है, कोई भी कारण है, है तो अलबेलापन और तो कुछ नहीं है लेकिन फिर भी कोई भी कारण से अगर नहीं रखा है तो बापदादा कहते हैं कि फिर भी एक मास अपना एकाउण्ट अभी से रखो और *अगर अभी से एक मास एक्यूरेट, नम्बरवन वाला एकाउण्ट रखेंगे, तो बापदादा उसकी मार्क्स कट नहीं करेंगे,* जो श्रीमत प्रमाण नहीं कर सके हैं। समझा। कट नहीं करेंगे लेकिन करना जरूरी है। *श्रीमत न मानने से मार्क्स तो कट होती हैं ना!* अन्त में जब आप अपना पोतामेल ड्रामा अनुसार दिल की टी.वी. में देखेंगे और टी.वी. नहीं, *अपने ही दिल की टी.वी. में बापदादा दिखायेंगे, तो उसमें इस श्रीमत की मार्क्स कट नहीं करेंगे। *फिर भी बापदादा का प्यार है।*

 

✺   *ड्रिल :-  "श्रीमत को फालो कर मार्क्स लेने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *आर्शीवाद की खान, अधिकार की पवित्र भूमि, परमात्म अवतरण की अति श्रेष्ठ भूमि मधुबन घर पांडव भवन में, मैं तपस्वी आत्मा स्वयं को देख रही हूँ...* पतित-पावन बाबा की याद में खोई मैं आत्मा परमात्म सानिध्य का अनमोल अविस्मरणीय अनुभव कर रही हूँ... *देख रही हूँ मैं तपस्वी आत्मा पतित-पावन बाबा से मुझ आत्मा पर पड़ती हुई तेजस्वी किरणों को, जैसे-जैसे ये तेजस्वी किरणें मुझ आत्मा पर पड़ रही है... मुझ आत्मा का तेज बढ़ता जा रहा है...* एक-एक किरण मुझ आत्मा में एक नयी उर्जा नयी शक्ति का संचार कर रही है... *सारे विकार-पाप भस्म हो रहे है... मुझ आत्मा की लाइट बढ़ती जा रही है... मैं आत्मा हल्कापन फील कर रही हूँ... देह में होते भी विदेही अवस्था का स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ...* मैं आत्मा बेहद पावरफुल स्टेज का अनुभव कर रही हूँ...

 

 _ ➳  तभी मैं आत्मा देखती हूँ... *बाबा फरिशता स्वरूप में मेरे सामने आकर खड़े हो जाते है...* मैं आत्मा एकटक बस बाबा को देखे जा रही हूँ... तभी *बाबा अपना हाथ आगे बढाते है... और मुझ आत्मा के सिर पर अपना हाथ रख देते है... बाबा के सिर पर हाथ रखते ही मैं आत्मा रिटर्न जर्नी चली जाती हूँ...* और ऐसे समय में पहुंच जाती हूं... जहाँ *अव्यक्त बापदादा हिस्ट्री हाल में मुरली चला रहे है... और बहुत बड़ी सभा लगी हुई है... मैं तपस्वी आत्मा बड़े ध्यान से इस फरिशतों की सभा को साक्षी होकर देख रही हूँ...* और मैं आत्मा भी बाबा के महावाक्यों को सुनने लग जाती हूँ...

 

 _ ➳  बाबा के महावाक्यों को मैं आत्मा बड़े ध्यान से सुनते हुए, बुद्धि रूपी डायरी में नोट करती जा रही हूँ... *श्रीमत पर चलना यह भी एक सबजेक्ट है*  मैं आत्मा देख रही हूँ कि बाबा सभी का एकाउंट चेक कर रहे है पुछ रहे है... *किस-किस ने एकाउंट रखा है... और किस-किस ने रखा भी है और लिखा भी है...* मैं तपस्वी आत्मा देख रही हूँ... कुछ आत्माओं ने नियम प्रमाण एक्यूरेट एकाउंट रखा भी है और लिखा भी है... *उनको बाबा 25 मार्क्स एक्सट्रा दे रहे है...* और दूसरे जिन्होंने एकाउंट रखा है... लेकिन एक्यूरेट लिखा नहीं है...

 

 _ ➳  *उनको बाबा 15 मार्क्स दे रहे है...* और कुछ आत्माएं ऐसी है जिन्होनें एकाउंट रखा भी नहीं है और लिखा भी नहीं है... *बाबा उनको एक और चांस दे रहे है...* तभी मैं आत्मा इस दृश्य को देख अपने आप से प्रश्न करती हूँ... *मैं आत्मा इन तीनों में से किस स्थिति में हूँ...* क्या मैं आत्मा श्रीमत पर चलना जो कि एक सबजेक्ट है... उस पर सही से चल रही हूँ... क्या मुझ आत्मा का हर कदम श्रीमत अनुसार है... क्योंकि *फाइनल पेपर में ये मार्क्स भी पास विद आनर होने में मदद करेगें...* तभी मुझ आत्मा के सामने से, ये सारे दृश्य गायब हो जाते है... *मैं आत्मा देख रही हूँ बाबा फरिशता स्वरूप में सामने खड़े है... बाबा मुझ तपस्वी आत्मा को शक्तिशाली दृष्टि दे रहे है...* बाबा की आँखों से शक्तिशाली किरणें मुझ आत्मा में भरती जा रही है... और *धीरे-धीरे इस दृश्य का राज मैं आत्मा समझ रही हूँ...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा समझ गयीं हूँ कि बाबा इस सीन द्वारा मुझे क्या समझाना चाह रहे है... *बाबा की सभी बातों को मैं आत्मा बुद्धि रूपी डायरी में नोट कर... इन सभी बातों को अटेनशन दे धारण कर रही हूँ...* अब मैं आत्मा देख रही हूँ स्वयं को इस कर्म स्थली पर... अब *मैं आत्मा हर कर्म बाबा की श्रीमत के अकॉर्डिंग कर रही हूँ...* मैं आत्मा श्रीमत रुपी जो सबजेक्ट है... उस पर सही से चल रही हूँ... मैं आत्मा अपना सच्चा-सच्चा एकाउंट रख हर कर्म बाबा की श्रीमत के अकॉर्डिंग कर  *फुल मार्क्स जमा कर रही हूँ...* मैं आत्मा दिल रूपी टी. वी द्वारा बाबा को अपना एकाउंट दिखा रही हूँ... जिसे देख *बापदादा भी फुल एक्सट्रा मार्क्स मुझ आत्मा को दे रहे है...* ये मार्क्स भी एकाउंट में जमा हो रहे है... और *मैं आत्मा उड़ती कला का अनुभव कर रही हूँ... शुक्रिया मीठे बाबा शुक्रिया....*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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