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❍ 29 / 03 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *बहुत शुद्धी से भोजन बनाकर बाबा के साथ बैठकर खाया ?*
➢➢ *आवाज में न आकर चुप रहने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *अथॉरिटी के आसन पर स्थित रह सहजयोगी जीवन का अनुभव किया ?*
➢➢ *सदा खुश रह, ख़ुशी का खजाना बांटा और ख़ुशी की लहर फैलाई ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे लौकिक रीति से कोई किसके स्नेह में लवलीन होता है तो चेहरे से, नयनों से, वाणी से अनुभव होता है कि यह लवलीन है, आशिक है, ऐसे *जिस समय स्टेज पर आते हो तो जितना अपने अन्दर बाप का स्नेह इमर्ज होगा उतना स्नेह का बाण औरों को भी स्नेह में घायल कर देगा ।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं कोटो में कोई, कोई में भी कोई विशेष आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को इस सृष्टि के अन्दर कोटों में कोई और कोई में भी कोई... ऐसी विशेष आत्मा समझते हो? जो गायन है कोटों में कोई बाप के बनते हैं, वह हम हैं। यह खुशी सदा रहती है? *विश्व की अनेक आत्मायें बाप को पाने का प्रयत्न कर रहीं हैं और हमने पा लिया! बाप का बनना अर्थात् बाप को पाना। दुनिया ढूंढ रही है और हम उनके बन गये।*
〰✧ *भक्तिमार्ग और ज्ञान मार्ग की प्राप्ति में बहुत अन्तर है। ज्ञान है पढ़ाई, भक्ति पढ़ाई नहीं है। वह थोड़े समय के लिए आध्यात्मिक मनोरंजन है। लेकिन सदा काल की प्राप्ति का साधन 'ज्ञान' है। तो सदा इसी स्मृति में रह औरों को भी समर्थ बनाओ।*
〰✧ *जो ख्याल ख्वाब में न था - वह प्रैक्टिकल में पा लिया। बाप ने हर कोने से बच्चों को निकाल अपना बना लिया। तो इसी खुशी में रहो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ आपने पूछा ना कि वतन में बैठ क्या करते हो? यही देखते रहते हैं और अव्यक्त सहयोग देने की सर्वीस करते हैं। सभी समझते है कि बापदादा वतन में पता नहीं क्या बैठ करते होंगे। *लेकिन सर्वीस की स्पीड साकार वतन से वहाँ तेज है*। क्योंकि यहाँ तो साकार तन का भी हिसाब साथ था।
〰✧ अब तो इस बन्धन से भी मुक्त है, अपने प्रति नहीं है सर्व आत्माओं के प्रति है। जैसे इस शरीर को छोडना और शरीर को लेना यह अनुभव सभी को है। *वैसे ही जब चाहो शरीर का भान बिल्कुल छोडकर अशरीरी बन जाना और जब चाहे तब शरीर का आधार लेकर कर्म करना यह अनुभव है*? इस अनुभव को अब बढाना है।
〰✧ बिल्कुल ऐसे ही अनुभव होगा जैसे कि यह स्थूल चोला अलग है और चोले को धारण करने वाली आत्मा अलग है, यह अनुभव अब ज्यादा होना चाहिए। *सदैव यह याद रखो कि अब गये कि गये*। सिर्फ सर्वीस के निमित्त शरीर का आधार लिया हुआ है लेकिन जैसे ही सर्वीस समाप्त हो वैसे ही अपने को एकदम हल्का कर सकते हैं।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ यह शरीर बाप ने ईश्वरीय सर्विस के लिए दिया है। आप तो मर चुके हो ना। लेकिन यह पुराना शरीर सिर्फ ईश्वरीय सर्विस के लिए मिला हुआ है, ऐसे समझकर चलने से इस शरीर को भी अमानत समझेगे। *जैसे कोई की अमानत होती है तो अमानत में अपनापन नहीं होता है, ममता भी नहीं होती है। तो यह शरीर भी एक अमानत समझो। तो फिर देह की ममता भी नहीं होती है। तो यह शरीर भी एक अमानत समझो। तो फिर देह की ममता भी खत्म हो जायेगी।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप के आक्युपेशन और गुणों सहित उसे याद कर विकर्माजीत बनना"*
➳ _ ➳ अपने अनादि स्वरूप में मैं आत्मा परमधाम में अपने परमपिता परमात्मा शिव बाबा के सम्मुख हूँ... स्वयं को सर्व शक्तियों से भरपूर करके... *अपनी दिव्य अलौकिक आभा चारों और बिखेरती हुई मैं आत्मा परमधाम से नीचे आ जाती हूँ...* सूक्ष्म वतन में पहुँच कर अपनी लाइट की चमकीली ड्रेस धारण करती हूँ... और मेरे सामने फरिशता रूप में मीठे बाबा सम्मुख खड़े है... और बाबा मुझ आत्मा पर लाइट माइट की किरणें बिखेर रहे है... यह फरिश्ता का स्वरूप इन किरणों से चमक रहा है... ऐसा लग रहा है जैसे एक लाइट हाउस जगमग कर रहा है... और फिर *मैं आत्मा मीठे बाबा से मीठी-मीठी रूहरिहान करने लग जाती हूँ...*
❉ *मीठे बाबा मुझ आत्मा को यादों के झूले में झूलाते हुए कहते है :-* "मीठे-मीठे दिल के दुलारे बच्चे मेरे... ईशवरीय याद ही सच्चे सुखों का आधार है... इस याद में तुम अब नवीनता लाओ... बाप के आक्युपेशन और गुणों सहित याद कर विकर्माजीत बनते जाओ... *हर सांस से मीठे बाबा को... ऐसी अनूठी नवीनता से याद कर देवताई सुखों की अमीरी पाओ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की मीठी यादों के झूले में झूलते हुए कहती हूँ :-* "मीठे-मीठे सिकीलधे ओ बाबा मेरे... आपने अपना यादों भरा हाथ मेरे हाथों में देकर मुझे अथाह अनगिनत सच्चे सुखों से नवाजा है... हर सांस में आपकी यादों को पिरोकर... *याद की सच्ची कमाई से भरपूर होकर फिर से खोयी हुई बादशाही को पा रही हूँ... बाबा के आक्यूपेशन और गुणों सहित याद कर विकर्माजीत बनती जा रही हूँ..."*
❉ *लाडले बाबा याद के गहरे रंग में मुझ आत्मा को रंगते हुए कहते है :-* "प्यारे-प्यारे फूल बच्चे मेरे... *भाग्य ने जो खुबसूरत दिन दिखलाया है... और भगवान को पिता, टीचर, सतगुरू रूप में सम्मुख मिलवाया है...* अब हर पल आंनद के सागर... सुख के सागर... शांति के सागर... पतित-पावन बाप की याद में बिताओ... और 21 जन्मों के लिए मालामाल हो जाओ... ऐसी सच्ची और पक्की याद से विकर्माजीत बन जाओ..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा रंगीले बाबा की याद के गहरे रंग में रंग कर कहती हूँ :-* "लाडले दिलाराम बाबा मेरे... नियति ने कितना खुबसूरत दिन दिखलाया है... बाबा को टीचर, सतगुरु, पिता के रूप में सम्मुख मिलवाया है... अब हर पल सदगति दाता... *सत-चित-आनंद स्वरूप... दिव्य बुद्धि दाता... दिव्य दृष्टि विधाता मीठे बाबा की यादों में बिता रही हूँ... और ऐसी सच्ची पक्की याद से विकर्माजीत बनती जा रही हूँ..."*
❉ *प्यारे बाबा मुझ आत्मा को याद की डोर से बाधंते हुए कहते है :-* "मीठे आज्ञाकारी बच्चे मेरे... संगम के सुहावने पलों में, प्रेम के सागर... ज्ञान के सागर... *मीठे बाबा की यादों में... सदा के धनवान बन जाओं... हर कर्म करते हुए मन-बुद्धि के तार बाबा से लगाओं...* मीठे बाबा की महिमा के गीत गाओ... ऐसी गजब याद से विकर्माजीत बनते जाओ... यादों की सच्ची कमाई से देवताई सम्पन्नता से भरपूर हो जाओ..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा शिव पिता से याद की डोर बांधते हुए कहती हूँ :-* "मीठे जादूगर बाबा मेरे... आपने आकर कितना बेशकीमती मेरे जीवन को बना दिया है... सदा की गरीबी से छुड़ाकर, याद का जादू मन्त्र देकर... मुझ आत्मा को देवताई सुखों का ताज पहना दिया है... हर कर्म करते मन बुद्धि के तार बाबा से जोड़... *शिव बाबा के महिमा के गीत गा रही हूँ... और इस प्रकार अनूठी शक्तिशाली याद से विकर्माजीत बनती जा रही हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बहुत शुद्धि से भोजन बनाकर बाबा के साथ बैठ कर खाना है*"
➳ _ ➳ शास्त्रों में ब्रह्मा भोजन की कितनी महिमा की गई है! कितना सच कहा गया है कि देवता भी इस ब्रह्मा भोजन को तरसते थे! भले सतयुग में देवताओं का राज्य होगा,अपरम अपार सुख होंगे, शांति और सम्पन्नता होगी। भोजन भी 56 प्रकार का होगा किन्तु अपने हाथ से और साथ बैठ कर खाने वाला भगवान कहाँ होगा! *जिस परमात्म पालना में पलते हुए, अपने पिता परमात्मा के साथ बड़े प्यार के साथ भोजन स्वीकार करने का जो आनन्द मैं अब ले रही हूँ वो आनन्द पूरे कल्प में फिर कहाँ मिलेगा*! बड़े प्यार के साथ बाबा का आह्वान कर, भोजन बनाना और फिर बाबा के साथ बैठ कर भोजन खाने का आनन्द लेना! कितना सुख समाया है इसमें जिसका वर्णन भी नही हो सकता।
➳ _ ➳ मन ही मन अपने आप से बातें करती मैं रसोईघर, अपने प्यारे बाबा के भण्डारे की ओर चल पड़ती हूँ। अपने परम पवित्र श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट होकर मैं बाबा के इस भण्डार गृह में प्रवेश करती हूँ, उसकी सफाई करती हूँ और बड़े प्यार से बाबा का आह्वान करती हूँ। *मेरा आह्वान सुनते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे बाबा अपना घर परमधाम छोड़ कर नीचे उतर आयें है और इस भण्डारगृह में आकर मेरे सिर के ठीक ऊपर स्थित हो गए हैं*। उनकी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी छत्रछाया के नीचे मैं स्वयं को अनुभव कर रही हूँ। उनकी याद में मग्न, उनकी सर्वशक्तियों को स्वयं में भरते हुए मैं बड़ी शुद्धि से भोजन बना रही हूँ और महसूस कर रही हूँ कि परमात्म शक्तियों से यह भोजन कितना शुद्ध और पवित्र बन रहा है।
➳ _ ➳ अपने प्यारे बाबा की याद में, उच्च स्वमान के साथ बड़ी शुद्धि से भोजन बनाकर अब मैं बड़े प्यार के साथ भोग की थाली तैयार करती हूँ। *आसन बिछा कर, भोग की थाली को सामने रख मैं अशरीरी स्थिति में स्थित होकर अपने लाइट के फ़रिश्ता स्वरूप को धारण करती हूँ और बड़े प्यार से अपने हाथों में भोग की थाली उठाकर, अपने प्यारे बापदादा को भोग स्वीकार कराने उनके अव्यक्त वतन की ओर चल पड़ती हूँ*। सेकण्ड में सूर्य, चांद, तारागणों के विशाल समूह को पार कर मैं भोग की थाली के साथ पहुँच जाती हूँ सफेद प्रकाश की, फरिश्तो से सजी दुनिया में। अपने सामने अव्यक्त बापदादा को देखते हुए मैं उनके पास पहुँचती हूँ और भोग की थाली उनके आगे रख उन्हें भोग स्वीकार कराती हूँ।
➳ _ ➳ बापदादा बड़े प्यार से मुस्कराते हुए कभी मुझे और कभी भोग की उस थाली को देख रहें हैं। *बाबा की याद में बने उस भोग में मेरी भावना को देख बापदादा हर्षित होते हुए अपनी दृष्टि उस भोग के ऊपर डाल उसमें अपनी सारी शक्तियाँ प्रवाहित कर रहें हैं*। बापदादा की दृष्टि से आ रही सर्वशक्तियाँ मुझ फ़रिश्ते पर भी पड़ रही है और मुझ से होती हुई उस भोग में समा रही है। पवित्रता की सारी शक्ति भोजन में समाती जा रही है। भोजन के एक - एक कण में अथाह शक्तियाँ भर गई हैं। *बड़े प्यार से अपने हाथ से मैं बाबा को भोग खिला रही हूँ। बाबा एकटक मुझे निहार रहें हैं और मेरे हाथ से भोग स्वीकार कर अब अपने हाथ से मेरे मुख में छोटी सी गिटी डाल रहें हैं*। बाबा को भोग स्वीकार कराकर अब मैं वापिस आती हूँ।
➳ _ ➳ साकार लोक में अपने साकारी तन में अब मैं विराजमान हो जाती हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अलग - अलग सम्बन्धों के रूप में बाबा को अनुभव करते हुए बाबा के साथ बैठ कर अब मैं उस भोग को खाती हूँ। *कभी मैं अनुभव करती हूँ बाबा मेरे सामने मेरा छोटा सा नन्हा सा बच्चा बन कर बैठें हैं और मैं बड़े प्यार से, उन पर बलिहार जाते हुए अपने हाथ से छोटी - छोटी गिटी तोड़ कर उन्हें खिला रही हूँ। एक गिटी मैं उन्हें खिलाती हूँ और फिर एक गिटी अपने नन्हे हाथों से वो मुझे खिलाते हैं*। कभी मैं उन्हें अपने खुदा दोस्त के रूप में देखती हूँ। मेरा सबसे अच्छा दोस्त जो मेरे लिए सब कुछ करने को तैयार हैं उसके ऐसे निस्वार्थ प्यार को देख खुशी में गदगद होकर मैं उसके साथ बैठकर भोजन खा रही हूँ।
➳ _ ➳ कभी अपने अविनाशी साजन के रूप में, अपने जीवन के हर सुख - दुख में साथ निभाने वाला सच्चा साथी अनुभव करते हुए उनके साथ बड़े प्यार से भोजन खा रही हूँ। *इस प्रकार हर दिन बड़े प्यार से बहुत शुद्धि से भोजन बनाकर, सर्व सम्बन्धो से बाबा को याद कर उनके साथ बैठकर खाने का भरपूर आनन्द लेते हुए, अपने ब्राह्मण जीवन मे मैं हर पल परमात्म प्यार और परमात्म पालना का अनुभव कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं ऑथरिटी के आसन पर स्थित रह सहजयोगी जीवन का अनुभव करने वाली महान आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं सदा खुश रहकर, खुशी का खजाना बांटकर और सबमें खुशी की लहर फैलाकर श्रेष्ठ सेवा करने वाली सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *अभी बापदादा नम्बरवन की स्टेज चलन और चेहरे पर देखना चाहते हैं*। अब समय अनुसार नम्बरवन कहने वालों को हर चलन में दर्शनीय मूर्ति दिखाई देनी चाहिए। *आपका चेहरा बतावे कि यह दर्शनीय मूर्त है*। *आपके जड़ चित्र अन्तिम जन्म तक भी, अन्तिम समय तक भी दर्शनीय मूर्त अनुभव होते हैं।* तो चैतन्य में भी जैसे ब्रह्मा बाप को देखा, साकार स्वरूप में, फरिश्ता तो बाद में बना, लेकिन साकार स्वरूप में होते हुए आप सबको क्या दिखाई देता था? साधारण दिखाई देता था? अन्तिम 84वाँ जन्म, पुराना जन्म, 60 वर्ष के बाद की आयु, फिर भी आदि से अन्त तक दर्शनीय मूर्त अनुभव की। की ना? साकार रूप में की ना? ऐसे जिन्होंने नम्बरवन में हाथ उठाया, टी.वी. में निकाला है ना? बापदादा उनका फाइल देखेंगे, फाइल तो है ना बापदादा के पास। तो अब से *आपकी हर चलन से अनुभव हो, कर्म साधारण हो, चाहे कोई भी काम करते हो, बिजनेस करते हो, डाॅक्टरी करते हो, वकालत करते हो, जो कुछ भी करते हो लेकिन जिस स्थान पर आप सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हो वह आपकी चलन से ऐसे महसूस करते हैं कि यह न्यारे और अलौकिक हैं?* या साधारण समझते हैं कि ऐसे तो लौकिक भी होते हैं? *काम की विशेषता नहीं लेकिन प्रैक्टिकल लाइफ की विशेषता।*
➳ _ ➳ बहुत अच्छा बिजनेस है, बहुत अच्छा वकालत करता है, बहुत अच्छा डायरेक्टर है... यह तो बहुत हैं। एक बुक निकलता है जिसमें विशेष आत्माओं का नाम होता है। कितनों का नाम आता है, बहुत होते हैं। इसने यह विशेषता की, यह इसने विशेषता की, नाम आ गया। तो जिन्होंने भी हाथ उठाया, उठाना तो सबको चाहिए लेकिन जिन्होंने उठाया है और उठाना ही है। तो आपकी प्रैक्टिकल चलन में चेंज देखें। यह अभी आवाज नहीं निकला है, *चाहे इन्डस्ट्री में, चाहे कहाँ भी काम करते हो, एक-एक आत्मा कहे कि यह साधारण कर्म करते भी दर्शनीय मूर्त हैं*।
✺ *ड्रिल :- "साधारण कर्म करते भी दर्शनीय मूर्त दिखाई देने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *इस साधारण देह में मैं विशेष आत्मा*... महसूस कर रही हूँ अपनी विशेषताओं को... *दुनिया जिसकी एक-एक बूँद के लिए तरस रही है... मुझे वो पूरी मधुशाला ही हासिल है*... लम्हा लम्हा उनका साथ, मुझे उनके गुणों और शक्तियों से भर पूर कर रहा है... मैं आत्मा हर चलन में दर्शनीय मूरत बनती जा रही हूँ... मेरा लौकिक जीवन अलौकिक बनता जा रहा है... साक्षी होकर देख रही हूँ मैं अपने हर कर्म को...
➳ _ ➳ *शिव बिन्दु के साथ कम्बाइन्ड स्वरूप मैं आत्मा*... देह व कर्मेन्द्रियों को आॅर्डर प्रमाण कर्म में लीन कर... साक्षी भाव से देख रही हूँ... *भिन्न भिन्न व्यवसायों की मेरी वेशभूषा... भिन्न भिन्न कार्य स्थल... मगर उद्देश्य केवल एक... आत्माओं को सुख शान्ति, आनन्द की अनुभूति कराना*... मन में शुभभावना और शुभकामना, नयनों से रूहानी स्नेह बरसाती मैं आत्मा चेहरें से, चलन से दर्शनीय मूरत बनती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ *शुभभावनाओं का बिजनेस, श्रीमत की वकालत, अपनी रूहानी चाल चलन से इस ड्रामा की आत्माओं को, डायरेक्ट करती हुई... रूहानी डायरेक्टर, देह अभिमान की सर्जरी करती मैं रूहानी सर्जन*... अपने लौकिक कार्यों को परमात्म याद में रहकर अलौकिक बना रही हूँ... *मैं आत्मा, ज्ञान, प्रेम पवित्रता सुख शान्ति आनन्द और शक्तियों का अविरल झरना बहाती... सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को अपनी विशेषताओं का एहसास करा रही हूँ*...
➳ _ ➳ प्रेम, पवित्रता सुख, शान्ति की तलाश में भटकती इन आत्माओं के लिए, शिव पिता के साथ कम्बाइन्ड मैं आत्मा रूहानी प्रेम सुख शान्ति का लहराता सागर बन गयी हूँ... *मेरा हर संकल्प हर कर्म समय स्वाँस सफल हो रहा है... मुझसे अपनी समस्याओं का समाधान लेकर जाती ये आत्माऐं... मेरे चेहरें में, चलन में, बापदादा को प्रत्यक्ष देख रही है*...
➳ _ ➳ मेरे लौकिक कार्यों में रूहानियत की झलक पाती ये आत्माए मेरे साधारण कार्यों से असाधारण प्रेरणा ले रही हैं... *मेरा चलना, मेरा देखना, मेरा बोलना, सब कुछ रूहानी है... मेरे हर कर्म में सेवा भाव और भी गहरा होता जा रहा है*... देहभान से परे शिव पिता के निरन्तर साथ का सुनहरा एहसास मुझे दर्शनीय मूरत बनाता जा रहा है...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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