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❍ 04 / 01 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *ज्ञान योग की संजीवनी बूटी से स्वयं को माया की बेहोशी से बचाया ?*
➢➢ *रूप बसंत बन सर्विस की ?*
➢➢ *दिव्य बुधी और रूहानी दृष्टि के वरदान द्वारा नंबर वन लेने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *संकल्प, बोल और कर्म में पवित्रता को धारण किया ?*
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❂ *योगी जीवन प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं* ✰
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〰✧ *बापदादा अचानक डायरेक्शन दे कि इस शरीर रुपी घर को छोड़, देह-अभिमान की स्थिति को छोड़ देही-अभिमानी बन जाओ, इस दुनिया से परे अपने स्वीट होम में चले जाओ तो जा सकते हो?* युद्ध स्थल में युद्ध करते करते समय तो नहीं बिता देंगे! अशरीरी बनने में अगर युद्ध करने में ही समय लग गया तो अंतिम पेपर में मार्क्स वा डिवीजन कौन-सा आयेगा!
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∫∫ 2 ∫∫ योगी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाकर योगी जीवन का अनुभव किया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं सर्व श्रेष्ठ परमात्म दिलतख्तनशीन आत्मा हूँ"*
〰✧ *संगमयुग पर ब्राह्मणों का विशेष स्थान है- बापदादा का दिलतख्त-सभी अपने को बापदादा के दिलतख्त नशीन अनुभव करते हो? ऐसा श्रेष्ठ स्थान कभी भी नहीं मिलेगा।*
〰✧ सतयुग में हीरे सोने का मिलेगा लेकिन दिलतख्त नहीं मिलेगा। *तो सबसे श्रेष्ठ आप 'ब्राह्मण' और आपका श्रेष्ठ स्थान 'दिलतख्त'। इसलिए ब्राह्मण चोटी अर्थात् ऊंचे ते ऊंचे हैं।* इतना नशा रहता है कि हम तख्तनशीन हैं?
〰✧ ताज भी हैं, तख्त भी है, तिलक भी है। तो सदा ताज, तख्त, तिलकधारी रहते हो, स्मृति भव का अविनाशी तिलक लगा हुआ है ना? *सदा इसी नशे में रहो कि सारे कल्प में हमारे जैसा कोई भी नहीं। यही स्मृति सदा नशे में रहेगी और खुशी में झूमते रहेंगे।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *स्वयं को इस स्वमान में स्थित कर अव्यक्त बापदादा से ऊपर दिए गए महावाक्यों पर आधारित रूह रिहान की ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *सेकण्ड में बिन्दी स्वरूप बन मन-बुद्धि को एकाग्र करने का अभ्यास बार-बार करो।* स्टॉप कहा और सेकण्ड में व्यर्थ देहभान से मन-बुद्धि एकाग्र हो जाए।
〰✧ *ऐसी कन्ट्रोलिंग पॉवर सारे दिन में यूज करके देखो।* ऐसे नहीं ऑर्डर करो - कन्ट्रोल और दो मिनट के बाद कन्ट्रोल हो, 5 मिनट के बाद कन्ट्रोल हो, इसलिए बीच-बीच में कन्ट्रोलिंग पॉवर को यूज करके देखते जाओ।
〰✧ *सेकण्ड में होता है, मिनट में होता है, ज्यादा मिनट में होता है, यह सब चेक करते जाओ।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 5 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- श्रीमत पर औरों को भी देवता बनाने की सेवा करना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सरोवर के किनारे बैठ पानी में अपने प्रतिबिम्ब को निहारती हुई अपने अंतर्मन के सरोवर में डूब जाती हूँ... और अपने निज स्वरुप को निहारती हूँ...* चमकते हीरे समान तेज दिव्य स्वरुप है मेरा... जिसको भूल मैं आत्मा अपने को देह समझ देह के सर्व बन्धनों में फंस गई थी... अपने निज गुणों को भूलकर अवगुणों को धारण कर ली थी... अब परमप्रिय परमपिता परमात्मा इस संगम युग में अपने संग के रंग में रंग कर मुझे फिर से देवता बना रहे हैं... *मैं आत्मा उड़ते हुए प्यारे बाबा के पास पहुँच जाती हूँ... प्यारे बाबा से श्रीमत पर सर्वगुण संपन्न देवता बनने और बनाने का हुनर सीखने...*
❉ *श्रीमत पर सबकी रूहानी खातिरी करने का हुनर सिखाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... जिस परमात्मा को इतना पुकारा वह कितना सहज जीवन में मौजूद है यह कितनी बड़ी ख़ुशी है जागीर है... *यह ईश्वर प्राप्ति की ख़ुशी की दौलत अपने चेहरे और चलन से हर पल छ्लकाओ... जो ईश्वरीय खजाना सहजता से यूँ पा लिए हो उस खजाने की झनकार जमाने को भी सुनाओ...*
➳ _ ➳ *खुशी की खुराक खाती और सर्व को खिलाती मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा श्रीमत का हाथ थामे आपसे पायी अनन्त खुशियो को हर दिल आत्मा पर उंडेल रही हूँ...* अपने पिता से सेवा का हुनर सीख सच्ची रूहानी सेवा कर रही हूँ... आपसे पायी अथाह ख़ुशी के प्रकम्पन्न पूरे विश्व में फैला रही हूँ...”
❉ *मीठे बाबा देवताई गुणों से 16 श्रृंगार कर मुझे सजाते हुए कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... विश्व पिता की गोद में बैठे हो उसके दिल तख्त पर मुस्करा रहे... जिस भाग्य की कभी कल्पना भी न कर सके... वह भाग्य जीवन का सुंदर सच बनकर सम्मुख है... *सच्ची ख़ुशी का पर्याय ईश्वरीय बाँहों में ही है... अपनी रूहानी चलन से यह ईश्वरीय अमीरी सबको दिखाओ...”*
➳ _ ➳ *मन मधुबन को सच्चा हीरा बनाने के लिए बाबा का शुक्रिया करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... ईश्वरीय यादो में खुशियो की अपार दौलत मुझ आत्मा ने पायी है.. कितना सुख कितनी शांति कितनी ख़ुशी की अनुभवी हूँ... *मै आत्मा जनमो बाद सच्ची मुस्कराहट को जी पायी हूँ... और श्रीमत को साथ लिए सबके होठो पर यह मुस्कराहट सजा रही हूँ...”*
❉ *मेरे बागबान बाबा सुन्दर रूहानी बगीचे का निर्माण कर सेवा की जिम्मेवारी मुझे सौंपते हुए कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *श्रीमत के साथ पूरे विश्व की रूहानी सेवा कर सबको महा भाग्यशाली बनाओ...* सबको अपने साथ की सच्ची खुशियो का भागीदार बनाओ और ईश्वर पिता के कन्धों पर चढ़ मुस्कराओ... दुखो से कुम्हलाये मेरे हर फूल को खुशियो का पानी देकर खिला आओ...”
➳ _ ➳ *बाबा की पालना और शिक्षाओं से रूहे गुलाब बन जहाँ में खुशबू फैलाकर सबके जीवन को सजाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा आपकी श्रीमत की सुखमय राहो पर चलकर सच्चे सुख और सच्चे प्यार की गहरी अनुभवी होकर... अनुभव की दौलत सबको बाँट रही हूँ...* आपके मीठे प्यार में सबके दुखो को दूर करने वाली जादूगर बन गई हूँ...”
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ज्ञान - योग की संजीवनी बूटी से स्वयं को माया की बेहोशी से बचाते रहना है*"
➳ _ ➳ "मैं महावीर आत्मा हूँ" इस श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर बैठ अपने शक्तिशाली स्वरूप में स्थित होकर, सर्वशक्तिवान अपने प्रभु राम की याद में बैठते ही *मैं अनुभव करती हूँ जैसे मेरे प्रभु राम, मेरे शिव पिता परमात्मा माया की बेहोशी से मुझे बचाने के लिए, ज्ञान योग की संजीवनी बूटी देने के लिए मुझे अपने पास बुला रहें हैं*। परमधाम से मेरे शिव पिता की सर्वशक्तियों की अनन्त किरणें मेरे ऊपर पड़ कर चुम्बक के समान मुझे अपनी और खींच रही हैं। देह का आकर्षण समाप्त हो रहा है और मैं स्वयं को इस देह से एकदम न्यारा अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे बाबा की सर्वशक्तियों की किरणों की चुम्बकीय शक्ति ने मुझे अपनी और खींच लिया है और मैं आत्मा उन किरणों के साथ चिपक कर देह से बाहर निकल आई हूँ। देह के बन्धन से मुक्त इस अवस्था में मैं स्वयं को बहुत ही हल्का अनुभव कर रही हूँ। हल्केपन का यह अहसास मुझे असीम आनन्द की अनुभूति करवा रहा है। *हर संकल्प, विकल्प से मुक्त स्वयं को मैं बिल्कुल शून्य अनुभव कर रही हूँ।
अपनी इस न्यारी और प्यारी निर्बन्धन शून्य अवस्था का आनन्द लेते - लेते अब मैं अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को थामे ऊपर आकाश की और जा रही हूँ*।
➳ _ ➳ अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी गोद मे मैं ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसे एक नवजात शिशु अपनी माँ की ममतामई गोद मे अपने आपको एक दम सुरक्षित अनुभव करता है। *इसी सुखद अनुभूति के साथ अपने शिव पिता के स्नेह की छत्रछाया को अपने ऊपर अनुभव करते अब मैं आकाश को पार कर जाती हूँ* और उससे ऊपर की रूहानी यात्रा पर निरन्तर आगे बढ़ते हुए सूक्ष्म वतन से होती हुई उस परलोक में पहुँच जाती हूँ जहाँ मेरे शिव पिता रहते हैं।
➳ _ ➳ निराकारी आत्माओ की इस दुनिया में प्रवेश करते ही *मैं देखती हूँ लाल प्रकाश की इस अदभुत दुनिया में अनन्त टिमटिमाते चैतन्य सितारे और उन सितारों के बीच विराजमान महाज्योति शिव पिता परमात्मा एक ज्योतिपुंज के रूप में अति शोभायेमान लग रहे हैं*। उनसे निकल रही सर्वशक्तियों की सहस्त्रो धारायें सभी टिमटिमाते चैतन्य सितारों के ऊपर पड़ कर उनकी चमक को करोड़ो गुणा बढ़ा रही हैं।
➳ _ ➳ इस अति सुन्दर नज़ारे को देखते हुए अब मैं चमकता सितारा, मैं जगमग करती ज्योति धीरे - धीरे अपने शिव पिता के पास जा कर उनके साथ अटैच हो कर उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूँ और योग की अग्नि में अपने ऊपर चढ़ी विकारों की कट को जला कर भस्म कर रही हूँ। *विकर्मों को भस्म कर, शक्तिशाली बन कर अब मैं आत्मा परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और फरिश्तो की आकारी दुनिया में प्रवेश कर जाती हूँ*। अपनी चमकीली फ़रिश्ता ड्रेस को धारण कर मैं बापदादा के पास पहुंचती हूँ। अपनी बाहों में समाकर अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटाते हुए बापदादा मुझे अपने पास बिठा लेते हैं।
➳ _ ➳ अब बाबा मेरे हाथ के ऊपर अपना हाथ रख कर, अपनी सर्वशक्तियों के रूप में, माया की बेहोशी से स्वयं को बचाने के लिए ज्ञान और योग की संजीवनी बूटी मुझे देते हैं। *इस संजीवनी बूटी को लेकर, फिर से अपने निराकारी ज्योति बिंदु स्वरूप में स्थित हो कर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे लौटती हूँ और अपने संगमयुगी ब्राह्मण चोले को धारण कर, माया के साथ युद्ध करने के लिए कर्मभूमि रूपी युद्ध स्थल पर पहुंच जाती हूँ*।
➳ _ ➳ कुरुक्षेत्र के इस मैदान अर्थात इस कर्मभूमि में आकर हर कर्म करते, *कदम - कदम पर माया के साथ युद्ध करते अब मैं हर समय अपने सर्वशक्तिवान शिव पिता से मिली ज्ञान योग की संजीवनी बूटी से स्वयं को माया की बेहोशी से बचाते हुए महावीर बन माया के हर वार का सामना कर, माया जीत बन रही हूँ*।
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं दिव्य बुद्धि और रूहानी दृष्टि के वरदान द्वारा नम्बर वन लेने वाली श्रेष्ठ पुरुषार्थी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं संकल्प, बोल और कर्म में पवित्रता धारण कर फीचर्स में रूहानियत की झलक दिखलाने वाली पवित्र आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ सेवा तो बहुत करते हैं, दिन-रात बिजी भी रहते हैं। प्लैन भी बहुत अच्छे-अच्छे बनाते हैं और सेवा में वृद्धि भी बहुत अच्छी हो रही है। फिर भी मैजारिटी का जमा का खाता कम क्यों? तो रूह-रूहान में यह निकला कि सेवा तो सब कर रहे हैं, अपने को बिजी रखने का पुरुषार्थ भी अच्छा कर रहे हैं। फिर कारण क्या है? तो यही कारण निकला *सेवा का बल भी मिलता है, फल भी मिलता है। बल है स्वयं के दिल की संतुष्टता और फल है सर्व की संतुष्टता।* अगर सेवा की, मेहनत और समय लगाया तो दिल की संतुष्टता और सर्व की संतुष्टता, चाहे साथी, चाहे जिन्हों की सेवा की दिल में सन्तुष्टता अनुभव करें, बहुत अच्छा, बहुत अच्छा कहके चले जायें, नहीं। दिल में सन्तुष्टता की लहर अनुभव हो। कुछ मिला, बहुत अच्छा सुना, वह अलग बात है। कुछ मिला, कुछ पाया, जिसको *बापदादा ने पहले भी सुनाया - एक है दिमाग तक तीर लगाना और दूसरा है दिल पर तीर लगाना।* अगर सेवा की और स्व की संतुष्टता, अपने को खुश करने की संतुष्टता नहीं, बहुत अच्छा हुआ, बहुत अच्छा हुआ, नहीं। दिल माने स्व की भी और सर्व की भी।
➳ _ ➳ और दूसरी बात है कि *सेवा की और उसकी रिजल्ट अपनी मेहनत या मैंने किया... मैंने किया यह स्वीकार किया अर्थात् सेवा का फल खा लिया। जमा नहीं हुआ।* बापदादा ने कराया, बापदादा के तरफ अटेन्शन दिलाया, अपने आत्मा की तरफ नहीं। यह बहन बहुत अच्छी, यह भाई बहुत अच्छा, नहीं। *बापदादा इन्हों का बहुत अच्छा, यह अनुभव करना - यह है जमा का खाता बढ़ाना।* इसलिए देखा गया टोटल रिजल्ट में मेहनत ज्यादा, समय- एनर्जी ज्यादा और थोड़ा-थोड़ा शो ज्यादा। इसलिए जमा का खाता कम हो जाता है। जमा के खाते की चाबी बहुत सहज है, वह डायमण्ड चाबी है, गोल्डन चाबी लगाते हो लेकिन *जमा की डायमण्ड चाबी है 'निमत्त भाव और निर्मान भाव'।* अगर हर एक आत्मा के प्रति, चाहे साथी, चाहे सेवा जिस आत्मा की करते हो, दोनों में सेवा के समय, आगे पीछे नहीं *सेवा करने के समय निमित्त भाव, निर्मान भाव, निःस्वार्थ शुभ भावना और शुभ स्नेह इमर्ज हो तो जमा का खाता बढ़ता जायेगा।* बापदादा ने जगत अम्बा माँ को दिखाया कि इस विधि से सेवा करने वाले का जमा का खाता कैसे बढ़ता जाता है। बस, *सेकण्ड में अनेक घण्टों का जमा खाता जमा हो जाता है।* जैसे टिक-टिक-टिक जोर से जल्दी-जल्दी करो, ऐसे मशीन चलती है। तो जगत अम्बा बड़बी खुश हो रही थी कि जमा का खाता, जमा करना तो बहुत सहज है।
✺ *ड्रिल :- "सेवा द्वारा सहज जमा का खाता बढ़ाने का अनुभव"*
➳ _ ➳ पांडव भवन में... बापदादा के कमरे में बैठी मैं आत्मा... अपने मन को बाहरी दुनिया से समेट कर लगा देती हूँ सिर्फ एक बिंदु रूपी बाप पर... *मन बुद्धि के तार बापदादा से जुड़ते ही बाबा के कमरे में दिव्य सुगंध की लहर फ़ैल जाती हैं...* बापदादा का फ़रिश्ता स्वरुप प्रत्यक्ष मुझ आत्मा को प्रतीत हो रहा हैं... *बापदादा का चमकता हुआ ओरा... चांदनी सा प्रकाश फैला रहा हैं... दैदीप्यमान स्वरुप मेरे बापदादा का देख मैं आत्मा भाव विभोर हो जाती हूँ...* बापदादा से निकलती पवित्र किरणों का झरना मुझ आत्मा में स्वतः धारण होता जा रहा हैं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा शक्तियों से परिपूर्ण होती जा रही हूँ... अपने 63 जन्मो के विकर्मो को नष्ट होता हुआ देख रही हूँ... अपने आप को एक संपूर्ण फ़रिश्ते स्वरुप में परिवर्तित होता देख रही हूँ.... लेकिन *मेरा फ़रिश्ता स्वरुप आधा ही इमर्ज होता हुआ दिखाई दे रहा हैं...* और मैं आत्मा अचरज भरी निगाहों से बापदादा को देख रही हूँ... मेरे संकल्पों को जान बापदादा मुझ आत्मा को एक सीन दिखा रहे हैं... जहाँ मैं आत्मा देख रही हूँ अपने आप को... *बापदादा के महायज्ञ में अपने मन वचन कर्म से सेवा को सफल करने में लग गई हूँ...*
➳ _ ➳ हर घड़ी... हर पल बापदादा को प्रत्यक्ष करने की सेवा में मग्न रहती मैं आत्मा... स्वयं को संतुष्ट करती जा रही हूँ... सेवा में संकल्प को... बोल को... पूर्ण रूप से सफल कर रही हूँ... *मुझ आत्मा का सेवा के प्रति लगन में सिर्फ एक ही कमी रह जाती थी... निमित्त और निर्माण भाव की प्रत्यक्षता...* मैं आत्मा सेवा में निमित्त भाव को प्रत्यक्ष नहीं कर पा रही थी... देह अभिमान रूपी संस्कार के वशीभूत मैं आत्मा... मेरेपन को पूर्ण रूप से मिटा नहीं पा रही थी... बापदादा को प्रत्यक्ष करने की सेवा में देह अभिमान रूपी कंटक को दूर नहीं का पा रही थी... *दिल की सेवा नहीं दिमाग की सेवा में उलझ गई थी...*
➳ _ ➳ *अपने जमा के खाते को न बढ़ाते... खर्च करती जा रही तो...* सेवा में परिपूर्णता का झलक नहीं दिखाई दे रही थी... इसीलिए मुझ आत्मा का फ़रिश्ता स्वरुप आधा दिखाई दे रहा था... मैं आत्मा अब अपने फ़रिश्ता स्वरुप को इमर्ज न करने का कारण जान कर बापदादा को कोटि बार धन्यवाद करती हूँ... और सेवा को सच्ची दिल की लगन से सफल करने का पक्का और सच्चा वादा करती हूँ... मेरेपन का संकल्प भी त्याग करती हूँ... *बापदादा का कार्य... बापदादा ने करवाया... मैं सिर्फ निमित्त हूँ... यह भावना... यह संकल्प को सुनहरे अक्षरों से अपने दिल-दिमाग में अंकित करती हूँ...*
➳ _ ➳ बापदादा को एक वादा करती हूँ... *मेरेपन के अभिमान का त्याग कर दूगी...* और दिल की सेवा जो दिल में तीर बन कर लग जाये... बापदादा की प्रत्यक्षता हो जाये न कि मुझ आत्मा का मान बढे... ऐसे अब यज्ञ में खुद को स्वाहा कर देना हैं... *सेवा के समय निमित्त भाव... शुभ भाव इमर्ज हो जाये और न कि खुद आत्मा के वाह वाह के भाव इमर्ज हो जाये...* निःस्वार्थ शुभ भाव... शुभ कामना रूपी शक्तियों का आह्वान करती मैं आत्मा लौकिक का हर कार्य अब तो बापदादा को प्रत्यक्ष करने में मग्न हो गई हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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