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 09 / 06 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अपने शांत स्वधर्म में स्थित रहे ?*

 

➢➢ *पुरानी दुनिया से बेहद का वैराग्य रखा ?*

 

➢➢ *लोकिक को अलोकिक में परिवर्तित कर घर को मंदिर बनाया ?*

 

➢➢ *मन बुधी को दृढ़ता से एकाग्र कर कमजोरियों को भस्म किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *योग में सदा लाइट हाउस और माइट हाउस की स्थिति का अनुभव करो। ज्ञान है लाइट और योग है माइट।* ज्ञान और योग-दोनों शक्तियां लाइट और माइट सम्पन्न हो *इसको कहते हैं मास्टर सर्वशक्तिमान।* ऐसी शक्तिशाली आत्मायें किसी भी परिस्थिति को सेकण्ड में पार कर लेती हैं।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं मास्टर सर्वशक्तिवान श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

  अपने को सदा मास्टर सर्वशक्तिवान श्रेष्ठ आत्मायें हैं अनुभव करते हो? क्योंकि सर्वशक्तियां बाप का खजाना है और खजाना बच्चों का अधिकार है, बर्थ राइट है। तो बर्थ राइट को कार्य में लाना - यह तो बच्चों का कर्तव्य है। और खजाना होता ही किसलिए है? आपके पास स्थूल खजाना भी है, तो किसलिए है? खर्च करने के लिए, कि बैंक में रखने के लिए? बैंक में भी इसीलिए रखते हैं कि ऐसे समय पर कार्य में लगा सके। काम में लगाने का ही लक्ष्य होता है ना। *तो सर्वशक्तियां भी जन्म सिद्ध अधिकार हैं ना। जिस चीज पर अधिकार होता है तो उसको स्नेह के सम्बन्ध से, अधिकार से चलाते हैं। एक अधिकार होता है आर्डर करना और दूसरा होता है स्नेह का। अधिकार वाले को तो जैसे भी चलाओ वैसे वह चलेगा। सर्वशक्तियां अधिकार में होनी चाहिएं।* ऐसे नहीं - चार है दो नहीं है, सात है एक नहीं है।

 

  *अगर एक भी शक्ति कम है तो समय पर धोखा मिल जायेगा। सर्व शक्तियां अधिकार में होंगी तभी विजयी बन नम्बर वन में आ सकेगे। तो चेक करो सर्व शक्तियां कहाँ तक अधिकार में चलती हैं। हर शक्ति समय पर काम में आती है या आधा सेकेण्ड के बाद कार्य में आती है। सेकेण्ड के बाद भी हुआ तो सेकेण्ड में फेल तो कहेंगे ना।* अगर पेपर में फाइनल मार्क्स में दो मार्क भी कम है तो फेल कहेंगे ना। तो फेल वाला फुल तो नहीं हुआ ना? तो हर परिस्थिति में अधिकार से शक्ति से यूज करो, हर गुण को यूज करो। जिस परिस्थिति में धैर्यता चाहिए तो धैर्यता के गुण को यूज करो। ऐसा नहीं थोड़ा सा धैर्य कम हो गया। नहीं।

 

  अगर कोई दुश्मन वार करता है और एक सेकेण्ड भी कोई पीछे हो गया तो विजय किसकी हुई? इसीलिए ये दोनों चेकिंग करो। ऐसे नहीं सर्वशक्तियां तो हैं लेकिन समय पर यूज नहीं कर सकते। कोई बढिया चीज दे और उसको कार्य में लगाने नहीं आये तो उसके लिए वह बढिया चीज भी क्या होगी? काम की तो नहीं रही ना। तो सर्वशक्तियां यूज करने का बहुतकाल का अभ्यास चाहिए। यदि बहुतकाल से कोई बच्चा आपकी आज्ञा पर नहीं चलता तो समय पर क्या करेगा? धोखा ही देगा ना। तो यह सर्वशक्तियां भी आपकी रचना है। रचना को बहुत काल से कार्य में लगाने का अभ्यास करो। हर परिस्थिति से अनुभवी तो हो गये ना। अनुभवी कभी दुबारा धोखा नहीं खाते। तो हर समय स्मृति से तीव्र गति से आगे बढ़ते चलो। *सभी तपस्या की रेस में अच्छी तरह से चल रहे हो ना। सभी प्राइज लेंगे ना। सदा खुशी खुशी से सहज उड़ते चलो। मुश्किल है नहीं, मुश्किल बनाओ नहीं। कमजोरी मुश्किल बनाती है। सदा मुश्किल को सहज करते उड़ते रहो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आज अमृतवेले बापदादा बच्चों की ड्रिल देख रहे थे, क्या देखा? *ड्रिल करने के लिए समय की सीटी पर पहुँचने वाले नम्बरवार पहुँच रहे थे।* पहुँचने वाले काफी थे लेकिन तीन प्रकार के बच्चे देखे।

 

✧   *एक थे - समय बिताने वाले, दूसरे थे - संयम निभाने वाले, तीसरे थे - स्नेह निभाने वाले।* हरेक का पोज अपना - अपना था। बुद्धि को ऊपर ले जाने वाले बाप से, बाप समान बन, मिलन मनाने वाले कम थे।

 

✧  रूहानी ड्रिल करने वाले ड्रिल करना चाहते थे लेकिन कर नहीं पा रहे थे। कारण क्या होगा? जैसे आजकल स्थूल ड्रिल करने के लिए भी हल्का - पन चाहिए, मोटा - पन नहीं चाहिए, मोटा - पन भी बोझ होता है। *वैसे रूहानी ड्रिल में भी भिन्न - भिन्न प्रकार के बोझ वाले अर्थात मोटी बुद्धि - ऐसे बहुत प्रकार के थे।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ जैसे शारीरिक हल्केपन का साधन है एक्सरसाइज़। *वैसे आत्मिक एक्सरसाइज़ योग अभ्यास द्वारा अभी-अभी कर्मयोगी अर्थात् साकारी स्वरूपधारी बन साकार सृष्टि का पार्ट बजाना, अभी-अभी आकारी फरिश्ता बन आकारी वतनवासी अव्यक्त रूप का अनुभव करना- अभी-अभी निराकारी बन मूल वतनवासी का अनुभव करना, अभी-अभी अपने राज्य स्वर्ग अर्थात् वैकुण्ठवासी बन देवता रूप का अनुभव करना। ऐसे बुद्धि की एक्सरसाइज़ करो तो सदा हल्के हो जावेंगे।* भारीपन खत्म हो जावेगा। पुरुषार्थ की गति तीव्र हो जावेगी। सहारा लेने की आवश्यकता नहीं होगी।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मुख में मुहलरा डालना अर्थात अपने शांति स्वधर्म में स्थित हो जाना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा अपने को एक बहुत सुंदर पार्क में बैठा हुआ देख रही हूं... पार्क में हर तरफ रंग बिरंगे फूल खिले हुए हैं... पूरा पार्क खुशबु से महक रहा है... मीठे बाबा की यादों में मगन मैं आत्मा ये विचार करती हूं की कितना अलग हो गया है मेरा ये जीवन...* पहले मैं अज्ञान में परमात्मा को मंदिरों में ढूंढती थी और तड़पती थी उससे मिलने के लिए और अब वो पास बहुत पास है... *इन्ही यादों के झूले में झूलती मैं मन बुद्धि से पहुंच जाती हूं परमधाम निराकारी दुनिया में...* मेरे सामने शिव बाबा प्रकाश पुंज में दिखाई दे रहे हैं और उनसे शक्तिओं का झरना मुझ आत्मा में बहने लगता है... *मैं परमात्म शक्तिओं से भरपूर होकर सुक्ष्म वतन मैं उतर आती हूं यहां बाप दादा बाहें फैलाये खड़े हैं... और मैं फ़रिश्ता समा जाती हूँ अपने अलौकिक पिता की बाहों में...*

 

   *बाबा मुझ आत्मा को प्यार भरी दृष्टि देते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... इस विकारी दुनिया से उपराम होने के लिए मुह में मुलहरा डालना अर्थात अपने शांति स्वधर्म में स्थित करना ही श्रीमत पर चलना है... *ये विकार तुम्हें अपने स्वधर्म में टिकने नही देते इनको योग अग्नि से विनाश कर बाप के हाथ में हाथ दे दो तो माया तुम्हें छू भी नहीं सकेगी... शांति की शक्ति से ही इनपर विजय प्राप्त कर सकते हैं..."*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा के मधुर वाक्यों को अपने अंदर समाते हुए बाबा से बोली:-* "हां मेरे जीवन को सवारने वाले मेरे दिलाराम बाबा... *मैं आत्मा आपके कहे वाक्यों को धारण कर अपने को अत्यंत सुखी अनुभव कर रही हूं...* मेरा जीवन घोर अंधियारे में था आपने आकर उसे ज्ञान की रोशनी दी है... *मैं नाजाने कब से आपको पुकार रही थी अब आपने आकर मेरे अशांत मन को शान्त कर दिया है..."*

 

  *बाबा मुझ नन्ही परी को अपनी गोद में लेकर बहुत प्यार से बोले:-* "मेरे नैनों के तारे मेरे प्यारे बच्चे... स्वयं शांति में स्थित होकर दूसरों को शांत बनाने की सेवा करो... *अशान्त आत्माओं को शांति के सागर बाप से मिलाओ... यही सुकर्म तुम्हें 21 जन्मों की बादशाहत का मालिक बनाएंगे...* दुनिया में हर दुखी और अशान्त आत्मा अपने पिता परमात्मा को ढूंढ रही है तुम फ़रिश्ता बन उन आत्माओं को परमात्म प्यार से भरपूर करने में बाप के सहयोगी बनो..."

 

 _ ➳  *बाबा से ज्ञान मोतियों को लेकर अपनी झोली भरती मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ:-* "मेरे प्राणों से प्यारे बाबा... *आपने ज्ञान के खजाने से मेरी झोली भर दी है... मैं स्वयं को सौभाग्यशाली समझती हूं जो दुनिया को बनाने वाले इस दुनिया के मालिक ने मुझे अपनी गोद में जगह दी है...* आपका अथाह प्यार पाकर मैं धन्य धन्य हो गयी हूँ... असीम सुख की लहरें मेरे दिल में हिंडोले मार रही हैं... *मैं ये विचार कर फूली नही समाती कि मैं कितनी सुखी हो गयी हूँ..."*

 

 *मेरी बातों को बहुत प्यार से सुनकर बाबा मेरे सर पर अपना वरदानी हाथ रखकर सहलाते हुए बोले:-* "मेरे नूरे रत्न, प्यारे प्यारे सिकीलधे बच्चे... शांत स्वरूप में स्थित रहकर *भटकते हूओं को सहारा देना ही बाप समान बनना है...* एक बाप की याद में रह अपने को शांति के स्वधर्म में टिकाना है... बाप से वर्सा लेकर 21 जन्म की प्रालब्ध पानी है... आत्मा में जो खाद पड़ी है उसको योग अग्नि से भस्म करना है..."

 

 _ ➳  *मैं आत्मा स्वयं परमात्मा के सानिध्य में बैठी अनन्त सुखों से भरपूर हो बाबा से कहती हूं:- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मैं परमात्मा की संतान प्रेम और शांति से भरपूर हूँ ,* दुनिया जिस भगवान को पुकारती है वो मुझे मिल गया है मुझसे भाग्यशाली कोई और नही... *मैं आत्मा हर रोज परमात्म गुणों से संपन्न बन प्रभु की यादों में खोई रहती हूं...* जन्म जन्म *जिसे पाने को दिल तड़पता था उसने आकर मुझे अपनी गोद में बिठा लिया अब और क्या पाना बाकी रह गया* बस इस मधुर यादों में समाई मैं *अपने को शांत कर जीने का आनंद ले रही हूं...* बाबा आपने *मुझे क्या से क्या बना दिया* ये विचार कर मन खुशी के सागर में डुबकियां लगा रहा है... *मैं आत्मा बाबा को दिल की गहराईयों से शुक्रिया कर अपने साकारी तन मैं लौट आती हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- माया से बचने के लिए मुख में मुहलरा डाल लेना है*

 

_ ➳  एकान्त में बैठ परमात्म चिंतन करते हुए, बाबा के महावाक्यों को स्मृति में लाकर मैं विचार कर रही हूँ कि बाबा बार - बार मुरलियों में माया से सावधान रहने का इशारा देते हैं। *क्योंकि माया इतनी जबरदस्त है जो रॉयल से रॉयल रूप धारण करके ब्राह्मण बच्चो के जीवन मे प्रवेश कर उन्हें भगवान से भी बेमुख कर देती है*। इसलिए माया के रॉयल से रॉयल रूप को भी परखने की शक्ति मुझे अपने अंदर जमा करनी है और उसके लिए बाबा ने जो अति सहज उपाय बताया है कि माया से बचने के लिए मुख में मुहलरा डाल लो अर्थात अपने शांत स्वधर्म में स्थित हो जाओ। इस अभ्यास को ही अब मुझे बढ़ाना है।

 

_ ➳  माया के हर वार से स्वयं को बचाने के लिए साइलेन्स की शक्ति स्वयं में जमा करने का संकल्प लेकर, स्वयं को मैं अशरीरी स्थिति में स्थित करती हूँ और देह से डिटैच, अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर अपनें मन और बुद्धि को अपने निराकार शिव पिता की याद में स्थिर कर लेती हूँ। *सेकेण्ड में मैं अनुभव करती हूँ जैसे परमधाम से सर्वशक्तियों की तेज लाइट सीधी नीचे आ रही है और मेरे मस्तक को छू रही है। शक्तियों का एक तेज करेन्ट मेरे मस्तक से होता हुआ मेरे सारे शरीर मे दौड़ रहा है*। एक अद्भुत शक्ति जैसे मेरे अंदर भरती जा रही है जो मेरे अंदर असीम ऊर्जा का संचार करने के साथ - साथ मुझे लाइट स्थिति में भी स्थित करती जा रही है।

 

_ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे मैं देह के बन्धन से मुक्त होकर एक दम हल्की हो गई हूँ और अब अपने आप ही ऊपर की ओर उड़ने लगी हूँ। देह और देह की दुनिया के हर आकर्षण से मैं जैसे पूरी तरह मुक्त हो गई हूँ और बस सीधी अपनी मंजिल की ओर बढ़ती ही चली जा रही हूँ। *देह और देह की दुनिया पीछे छूटती जा रही है और मैं उस दुनिया से किनारा कर अब आकाश को पार कर, उससे भी ऊपर सूक्ष्म वतन को भी पार करके पहुँच गई हूँ अपने प्यारे पिता के पास उनके स्वीट साइलेन्स होम में*। अपने इस साइलेन्स होम में आकर गहन शान्ति की अनुभूति में जैसे मैं स्वयं को भी भूल गई हूँ। हर संकल्प, विकल्प से मुक्त एक अति सुंदर निरसंकल्प स्थिति में स्थित होकर मैं केवल अपने प्यारे प्रभु को निहार रही हूँ।

 

_ ➳  बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे चारों और फैली हुई बहुत ही लुभायमान लग रही है और मन को असीम आनन्द से भरपूर कर रही हैं। *एक - एक किरण को बड़े प्यार से निहारते हुए, उन्हें छूने की मन में आश लिए मैं धीरे - धीरे बाबा के पास जाती हूँ और एक - एक किरण को बड़े प्यार से टच करती हूँ। बाबा की सर्वशक्तियों की किरणो को छूते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे हर किरण में से शान्ति की शीतल फ़ुहारों का झरना फूट रहा है और उन शीतल फ़ुहारों से निकलने वाले शान्ति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स मेरे रोम - रोम को शांति की शक्ति से भर रहें हैं*। साइलेन्स की शक्ति का बल स्वयं में भरकर, इस बल से माया को हराने के  लिए अब मैं वापिस अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ।

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, मुख में मुहलरा डालने की अपने सर्वशक्तिवान पिता द्वारा बताई युक्ति द्वारा अब मैं माया के वार से स्वयं को बचाने में सहज ही सफलता प्राप्त कर रही हूँ। माया अनेक प्रकार के रॉयल रूप धारण करके मेरे पास आती है किंतु मुझे मेरे शांत स्वधर्म में स्थित देख, मेरे साइलेन्स के बल को देख वापिस लौट जाती है। *अपने शांत स्वधर्म में सदा स्थित रहकर, शांति के सागर अपने प्यारे पिता के साथ सदा स्वयं को कम्बाइंड रखने से माया का कोई भी वार अब मेरे ऊपर अपना कोई भी प्रभाव नही डालता। मेरे सर्वशक्तिवान शिव पिता की सर्वशक्तियों का बल मुझे हर समय सर्व शक्तियों से भरपूर शक्तिशाली स्थिति का अनुभव करवाकर, मेरे चारों और हर समय एक शक्तिशाली सेफ्टी का किला बना कर मुझे माया से पूरी तरह सेफ रखता है*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं  लौकिक को अलौकिक में परिवर्तन कर घर को मंदिर बनाने वाली आकर्षणमूर्त आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं मन बुद्धि को दृढ़ता से एकाग्र कर कमजोरियों को भस्म कर देने वाली सच्ची योगी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ विशेष आत्मा बनने के लिए सर्व की विशेषताओं को देखो- बापदादा सदा बच्चों की विशेषताओं के गुण गाते हैं। *जैसे बाप सभी बच्चों की विशेषताओं को देखते वैसे आप विशेष आत्मायें भी सर्व की विशेषताओं को देखते स्वयं को विशेष आत्मा बनाते चलो। विशेष आत्माओं का कार्य है विशेषता देखना और विशेष बनना। कभी भी किसी आत्मा के सम्पर्क में आते हो तो उसकी विशेषता पर ही नज़र जानी चाहिए।* जैसे मधुमक्खी की नज़र फूलों पर रहती ऐसे आपकी नज़र सर्व की विशेषताओं पर हो। हर ब्राह्मण आत्मा को देख सदा यही गुण गाते रहो - ‘‘वाह श्रेष्ठ आत्मा वाह''! अगर दूसरे की कमज़ोरी देखेंगे तो स्वयं भी कमजोर बन जायेंगे। तो आपकी नज़र किसी की कमज़ोरी रूपी कंकर पर नहीं जानी चाहिए। आप होली हंस सदा गुण रूपी मोती चुगते रहो।

✺ *"ड्रिल :- सर्व आत्माओं की विशेषता को देखना"*

➳ _ ➳ मैं आत्मा सागर के किनारे सुहाने मौसम में ठंडी हवाओं के बीच बैठी हुई हूं... ठंडी हवाओं के झोंके मेरे बालों को उड़ा रहे हैं... और समुंदर की लहरें मेरे पास आकर मेरे पैरों को छूती हुई जा रही है... बैठे-बैठे मैं आत्मा सागर को गहराई से देख रही हूँ... और जैसे ही सागर की लहरें शांत होती है तो मैं देखती हूं सागर के किनारे कुछ हंस मुझे दिखाई देते हैं... *उन्हें देखकर मैंने यह अनुभव किया कि वह हंस उस सागर से सिर्फ और सिर्फ मोती ही चुगते हैं और दूसरी तरफ मैंने देखा कि कुछ पक्षी है जो उसमें से सिर्फ कीड़े मकोड़े चुन रहे हैं... यह दृश्य बड़ा ही विचित्र था...* तभी मेरा अंतर्मन उस हंस के पास जाकर पूछता है तुम और यह पक्षी एक ही जगह पर रहते हुए भी अलग-अलग वस्तुएं क्यों चुन रहे हो ? हंस मुझे देख कर मुस्कुराने लगता है और कुछ सोचने लगता है...

➳ _ ➳ और कुछ समय बाद हंस मुस्कुराते हुए मुझे कहता है... इसी स्थान पर अच्छी और बुरी दोनों चीजें हैं परंतु मैं सिर्फ अच्छी चीजें ही चुनता हूं मेरी आदत सिर्फ अच्छाई को देखना है और अन्य जीव जंतु सिर्फ बुराई को चुनते हैं सिर्फ बुरी चीजों को चुनते हैं, अर्थात सिर्फ बुराई को चुनते हैं... इतना कहकर हंस फिर से मोती चुगने लग जाता है और मेरा अंतर्मन मेरे इस शरीर में आकर विराजमान हो जाता है फिर मैं सोचने लगती हूं... *हम मनुष्य की फितरत भी शायद इन जीव जंतुओं की तरह हो गई है जो सिर्फ एक दूसरे के अंदर बुराई ही देखते हैं... हम किसी की हम किसी की बुराई देखते हैं तो उसकी सभी अच्छाइयां उसके अंदर दब कर रह जाती है...*

➳ _ ➳ और सोचते सोचते जब मैं हंस के बारे में सोचती हूँ तो मैं यह अनुभव करती हूं कि बाबा ने आकर हम बच्चों को सिखाया है कि हम एक दूसरे की अच्छाइयों को देखें ... *और जब हम एक दूसरे की अच्छाइयों को देखते हैं तो उसकी सभी बुराइयां धीरे धीरे समाप्त हो जाती है...* इस दृश्य का अनुभव करने के बाद मैं चलते-चलते एक बगीचे में आ जाती हूं जहां पर मैं देखती हूं अलग-अलग तरह के फूल खिले हुए हैं... साथ ही मैं देखती हूं कि मधुमक्खी उन फूलों पर बैठ कर उनका रस पी रही है... वैसे तो उस बगीचे में और भी पौधे थे... और परंतु मधुमक्खी सिर्फ और सिर्फ खुशबूदार और रसीले फूलों पर ही बैठकर रस ले रहे हैं... इस दृश्य का आनंद लेने के लिए मैं कुछ देर बैठ जाती हूं...

➳ _ ➳ पर बैठे-बैठे मैं यह आभास करती हूं कि मधुमक्खी मेरे कान के पास आकर कहती है... मुझे सिर्फ फूलों के रस पीने की ही आदत है... इसलिए मैं सिर्फ यहां फूलों पर ही बैठती हूं... इतना कहकर वह मधुमक्खी उड़ जाती है... और दूसरे फूल पर जाकर बैठ जाती है और मैं अनुभव करती हूं कि यह मधुमक्खी फिर से मुझे वही गुण सिखा गई... *मधुमक्खी ने भी मुझे सिखाया कि हमेशा दूसरों के गुण ही देखो अगर दूसरों के गुण देखोगे तो गुणग्राही कहलाओगे और अगर अवगुण देखने की चेष्टा करोगे तो अवगुणी कहलाओगे... और मैं सोचती हूं कि अगर हम दूसरों की कमजोरियां देखते हैं तो उनका चिंतन करते करते हमारे में भी धीरे धीरे वही कमजोरियाँ आने लगती हैं और हमारी सभी शक्तियां कम होने लगती है...*

➳ _ ➳ इतना सब सोचकर मैं अपने सामने मेरे बाबा को इमर्ज करती हूं... और कहती हूं बाबा आप तो यह दृश्य लगातार देख रहे हो आपने मुझे बहुत समझाने का प्रयास किया कि बच्चे गुणग्राही बनो... आज जैसे मैंने उस हंस को मोती चुगते हुए देखा तो मुझे आभास हुआ कि इस संसार में अच्छाई और बुराई दोनों हैं... परंतु हम सिर्फ अच्छाई को देखेंगे तो आगे बढ़ते ही जाएंगे... मैं बाबा को बार-बार धन्यवाद कहती हूं और बाबा से यह वादा करते हैं *बाबा अब मैं हमेशा सभी आत्माओं का और अपना कल्याण करने के लिए सिर्फ और सिर्फ उनका गुण ही देखूंगी, गुणग्राही बनूंगी... कभी भी किसी आत्मा का अवगुण नहीं देखूंगी हमेशा उस आत्मा की सिर्फ और सिर्फ अच्छाई ही और गुण ही देखूंगी... जब मैं बाबा से यह वादा करती हूं तो बाबा बहुत खुश होते हैं और मेरे सर पर हाथ रखकर कहते हैं विजयी भव...*

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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