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 30 / 11 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बाप का सिमरन कर सदा ख़ुशी में रहे ?*

 

➢➢ *बाप दादा समान निराकरी और निरहंकारी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *सारथि बन न्यारी और प्यारी स्थिति का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *बाप के आज्ञाकारी बन गुप्त दुआएं प्राप्त की ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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〰✧  अनेक प्रकार के व्यक्ति, वैभव अथवा अनेक प्रकार की वस्तुओं के सम्पर्क में आते आत्मिक भाव और अनासक्त भाव धारण करो। *यह वैभव और वस्तुयें अनासक्त के आगे दासी के रूप में होंगी और आसक्त भाव वाले के आगे चुम्बक की तरह फंसाने वाली होंगी।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं अकालतख्तनशीन श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

✧  सदा अपने को अकालतख्तनशीन श्रेष्ठ आत्मा समझते हो? आत्मा अकाल है तो उसका तख्त भी अकालतख्त हो गया ना! इस तख्त पर बैठकर आत्मा कितना कार्य करती है। *'तख्तनशीन आत्मा हूँ' - इस स्मृति से स्वराज्य की स्मृति स्वत: आती है। राजा भी जब तख्त पर बैठता है तो राजाई नशा, राजाई खुशी स्वत: होती है। तख्तनशीन माना स्वराज्य अधिकारी राजा हूँ - इस स्मृति से सभी कर्मेन्द्रियाँ स्वत: ही र्डर पर चलेंगी। जो अकाल-तख्त-नशीन समझ कर चलते हैं उनके लिए बाप का भी दिलतख्त है।* क्योंकि आत्मा समझने से बाप ही याद आता है। फिर न देह है, न देह के सम्बन्ध हैं, न पदार्थ हैं, एक बाप ही संसार है। इसलिए अकाल-तख्त-नशीन बाप के दिल-तख्त-नशीन भी बनते हैं।

 

  *बाप की दिल में ऐसे बच्चे ही रहते हैं जो 'एक बाप दूसरा न कोई' हैं। तो डबल तख्त हो गया। जो सिकीलधे बच्चे होते हैं, प्यारे होते हैं उन्हें सदा गोदी में बिठायेंगे, ऊपर बिठायेंगे नीचे नहीं। तो बाप भी कहते हैं तख्त पर बैठो, नीचे नहीं आओ। जिसको तख्त मिलता है वह दूसरी जगह बैठेगा क्या?* तो अकालतख्त वा दिलतख्त को भूल देह की धरनी में, मिट्टी में नहीं आओ। देह को मिट्टी कहते हो ना। मिट्टी, मिट्टी में मिल जायेगी - ऐसे कहते हैं ना! तो देह में आना अर्थात् मिट्टी में आना। जो रोंयल बच्चे होते हैं वह कभी मिट्टी में नहीं खेलते। परमात्म-बच्चे तो सबसे रॉयल हुए। तो तख्त पर बैठना अच्छा लगता है या थोड़ी-थोड़ी दिल होती है - मिट्टी में भी देख लें।

 

  कई बच्चों की आदत मिट्टी खाने की वा मिट्टी में खेलने की होती है। तो ऐसे तो नहीं है ना! 63 जन्म मिट्टी से खेला। अब बाप तख्तनशीन बना रहे हैं, तो मिट्टी से कैसे खेलेंगे, जो मिट्टी में खेलता है वह मैला होता है। तो आप भी कितने मैले हो गये। अब बाप ने स्वच्छ बना दिया। सदा इसी स्मृति से समर्थ बनो। शक्तिशाली कभी कमजोर नहीं होते। *कमजोर होना अर्थात् माया की बीमारी आना। अभी तो सदा तन्दुरुस्त हो गये। आत्मा शक्तिशाली हो गई। शरीर का हिसाब-किताब अलग चीज है लेकिन मन शक्तिशाली हो गया ना।* शरीर कमजोर है, चलता नहीं है, वह तो अंतिम है, वह तो होगा ही लेकिन आत्मा पावरफुल हो। शरीर के साथ आत्मा कमजोर न हो। तो सदा याद रखना कि डबल तख्तनशीन सो डबल ताजधारी बनने वाले हैं।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  हर कर्म के लिए श्रीमत है। चलना, खाना, पीना, सुनना, सुनाना - सबकी श्रीमत है। है, कि नहीं है? मानो आप परचिंतन कर रहे हो तो क्या ये श्रीमत है? *श्रीमत को ढीला किया तो मन को चांस मिलता है चंचल बनने का।*

 

✧  फिर उसकी आदत पड जाती है। तो आदत डालने वाला कौन? आप ही हो ना! तो पहले मन का राजा बनो। *चेक करो - अन्दर ही अन्दर ये मन्त्री अपना राज्य तो नहीं स्थापन कर रहे हैं?*

 

✧  जैसे आजकल के राज्य में अलग गुप बना करके और पॉवर में आ जाते हैं। और पहले वालों को हिलाने की कोशिश करते हैं तो ये मन भी ऐसा करता है, बुद्धि को भी अपना बना लेता है। *मुख को, कान को, सबको अपना बना लेता है।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *जो इच्छा मात्रम् अविद्या की स्थिति में स्थित होगा वही किसी की भी इच्छाओं की पूर्ति कर सकता है। अगर स्वयं में ही कोई इच्छा रही होगी तो वह दूसरे की इच्छाओं को पूर्ण नहीं कर सकते। इच्छा मात्रम् अविद्या की स्टेज तब रह सकती है जब स्वयं युक्तियुक्त, सम्पन्न, नॉलेजफुल और सदा सक्सेसफुल अर्थात् सफलता मूर्त होंगे।* जो स्वयं सफलता मूर्त नहीं होगा तो वह अनेक आत्माओं के संकल्प को भी सफल नहीं कर सकता। *इसलिए जो सम्पन्न नहीं तो उसकी इच्छायें ज़रूर होंगी क्योंकि सम्पन्न होने के बाद ही इच्छा मात्रम् अविद्या की स्टेज आती है। तब कोई अप्राप्त वस्तु नहीं रह जाती तो ऐसी स्टेज को ही कर्मातीत अथवा फ़रिश्तेपन की स्टेज कहा जाता है।* ऐसी स्थिति वाला ही हर आत्मा को यथार्थ परख सकता है और दूसरों को प्राप्ति करा सकता है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

*✺   "ड्रिल :- ब्राह्मणों का नया झाड़ है, इसकी वृद्धि और संभाल करनी है"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बगीचे में खिले हुए रंग बिरंगी फूलों को देख मन्त्र मुग्ध हो रही हूँ... इस सुन्दर प्रकृति में रंग भरने वाले प्यारे बागबान बाबा का आह्वान करती हूँ...* मीठे बाबा मेरी एक पुकार सुन तुरंत हाजिर हो जाते हैं और मेरा हाथ पकड संग संग बगीचे में सैर करते हुए प्यारी प्यारी बाते करते हैं... *फिर प्यारे बाबा कल्प वृक्ष को इमर्ज करते हैं और अपने साथ मुझे कल्पवृक्ष की जड़ों में बिठाते हैं...*

   

   *ज्ञान के चन्दन से जीवन फुलवारी को महकाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... मीठे वरदानी संगम पर अपने सहयोगी ही सहजयोगी के वरदान को अनुभूतियों में भर लो... स्मृति में समर्थी रख अल्बेलेपन से मुक्त बनो... *सदा सहयोगी बन विश्वकल्याणकारी के भाव से भरकर पूरे वृक्ष को रूहानी जल से सिंचित करो... मनसा वाचा कर्मणा सहयोग देकर दातापन के भावो से भर जाओ...”*

 

_ ➳  *मेरे दिल के दर्पण में एक बाबा की यादों को बसाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे प्यारे बाबा... *मै आत्मा मीठे बाबा की यादो में सहजयोगी बनकर सारे विश्व के कल्याण के भाव से भरकर हर आत्मा पत्ते को शुभ भावो से सींच रही हूँ...* वरदानी संगम पर मीठे बाबा से पाये हर वरदान को अनुभव कर सबको इन मीठी खुशियो का अनुभवी बनाती जा रही हूँ...

 

   *रूहानी प्यार का सकाश देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे फूल बच्चे... अपनी उमंगों से औरो में भी उत्साह के रंग भरो... *वायुमण्डल में शुभवृति की लहर फैलाकर अपनी हर्षित अवस्था से खुशियो की तरंगे फैलाओ...* साइलेन्स की शक्ति से देवी राज्य की स्थापना करने वाले... रूहानी बाबा के रूहानी बच्चे बनकर सबको सहयोग देकर खुशियो के खजानो को बढ़ाते जाओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा कल्पवृक्ष की जड़ों को उमंग उत्साह के जल से सींचते हुए कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा प्यारे बाबा से पाये खुशियो के खजाने पूरे विश्व पर बरसाकर हर दिल को धनवान् बनाती जा रही हूँ.... *सबको उत्साह से भरकर उमंगो में उड़ाती जा रही हूँ...  हर दिल की सहयोगी बन सहजयोगी बन मुस्करा रही हूँ...”*

 

   *मेरे बाबा अपनी गोद में बिठाकर प्रेम सिन्धु में डुबोकर हर मुश्किल का सहज मार्ग बताते हुए कहते हैं:-* मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... *माया के रंग बिरंगे रूपो से घबराओ नहीं... इन्हे खेल खिलोने समझ खेलते रहो... सहज मार्ग में व्यर्थ संकल्पों को भरकर घबराओ नही...* छोटी बात को बड़ा नही बल्कि बड़ी बात को भी छोटा करने वाले जादूगर बन जाओ... हर संकल्प और हर सेकण्ड बेस्ट कर सम्पूर्ण और सम्पन्न बन जाओ...

 

_ ➳  *नथिंग न्यू की स्मृति से हर बात में कल्याण की बिंदी लगाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा आपके प्यार के साये तले हर विघ्न से हल्की होती जा रही हूँ... अपनी शक्तिशाली स्थिति से विघ्नो को खिलोने समझ मुस्कराती जा रही हूँ...* हर बात पर बिन्दु लगाकर अपने बिन्दु स्वरूप में खोती जा रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  बापदादा समान निराकारी और निरहंकारी बनना है*

 

_ ➳  अपने प्यारे बाबा के मीठे मधुर महावाक्यों को पढ़ते हुए मैं विचार करती हूँ कि कितने निरहंकारी है बाबा। कैसे हम बच्चों की गुप्त रीति पालना कर रहें हैं! कितना सम्मान देते हैं हमे! सब कुछ खुद कर रहें हैं और मान हम बच्चों को देते हैं! रोज मीठे बच्चे कहकर याद प्यार देते हैं, बच्चो को नमस्ते करते हैं। *वाह मेरा भाग्य वाह जो ऐसे ईश्वर बाप की पालना में पलने का सर्वश्रेष्ठ सौभाग्य मुझे प्राप्य हुआ। अपना असीम स्नेह बरसाने वाले अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी सी याद की मीठी सी मस्ती में डूबी मैं आत्मा मन बुद्धि के विमान पर सवार हो कर अब पहुँच जाती हूँ अपने उस मीठे से मधुबन घर में जहाँ भगवान स्वयं आकर अपने बच्चों के साथ उनके जैसा साकार रूप धारण करके उनसे मिलते हैं*, उनसे रूह रिहान करते हैं और उनसे मंगल मिलन मनाकर, अपना प्यार उन पर बरसा कर वापिस अपने धाम लौट जाते हैं।

 

_ ➳  परमात्मा की इस दिव्य अवतरण भूमि अपने मीठे मधुबन घर में पहुंचते ही हवाओं में फैली रूहानी खुशबू को मैं महसूस कर रही हूँ। *अपने इस घर के आंगन मे प्रवेश करते ही मैं देखती हूँ सामने ब्रह्मा बाबा के एक बहुत बड़े चित्र को जिसमे बाबा बाहें पसारे अपने बच्चों के स्वागत में खड़े हैं*। अपने इस साकार रथ पर विराजमान होकर भगवान कैसे अपने बच्चों का आह्वान करते हैं यह देखकर मन में खुशी की लहर दौड़ रही है और मन खुशी में गा रहा है "वाह बाबा वाह"। *अपने इस मीठे मधुबन घर मे आकर अब मैं देख रही हूँ यहाँ के कण - कण में समाई ब्रह्मा बाबा की साकार यादों को जिन्हें उनके हर कर्म के यादगार चित्रों के रूप में चित्रित किया गया है*।

 

_ ➳  हर चित्र में कर्म करते हुए बाबा का स्वरूप कितना न्यारा और प्यारा दिखाई दे रहा है। उनके ओरिजनल निराकारी स्वरुप की दिव्य चमक और निरहंकारिता की झलक उनके हर चित्र में मैं देख रही हूँ और उन चित्रों को देखते हुए उसी साकार पालना का अनुभव कर रही हूँ। *बाप समान बनने का दृढ़ संकल्प करके अब मैं मन बुद्धि के विमान पर बैठ पहुँच जाती हूँ बाबा के कमरे में जहाँ बाबा बैठे है अपने हर बच्चे को आप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनाने के लिए*। बाबा के ट्रांस लाइट के चित्र के सामने बैठ, बाबा को निहारते - निहारते मैं महसूस करती हूँ जैसे अपने लाइट माइट स्वरुप में मेरे सामने बैठ कर बाबा अपनी सारी लाइट माइट मुझ में प्रवाहित कर मुझे आप समान बना रहें हैं।

 

_ ➳  अपने लाइट माइट फ़रिश्ता स्वरूप में स्थित होकर मैं देख रही हूँ जैसे बाबा की भृकुटि से प्रकाश की अनन्त धाराएं निकल कर पूरे कमरे में फैल रही हैं और पूरा कमरा एक अलौकिक दिव्य आभा से जगमगा रहा है। *इन दिव्य अलौकिक किरणों को स्वयं में समा कर मैं गहन आनन्द का अनुभव कर रही हूँ। बाबा के मस्तक से निकल रही शक्तियों की धारायें और भी तीव्र होती जा रही हैं। ऐसा लग रहा है जैसे मेरे ऊपर शक्तियों का कोई झरना बह रहा हो*। रूहानी मस्ती में खो कर शक्तियों की इन किरणों को स्वयं में समाते हुए मैं स्वयं को बहुत ही बलशाली अनुभव कर रही हूँ।

 

_ ➳  स्वयं को परमात्म बल से भरपूर करके, ब्रह्मा बाप समान निराकारी, निर्विकारी और निरहंकारी बनने का दृढ़ संकल्प करके मैं बापदादा से प्रोमिस करती हूँ कि *जैसे ब्रह्मा बाप निराकारी सो साकारी बन सदा सर्व से न्यारे और शिव बाप के प्यारे बन कर रहे, वाणी से सदा निरहंकारी अर्थात् सदा रूहानी मधुरता और निर्मानता से भरपूर रहे और कर्म में हर कर्मेन्द्रिय द्वारा निर्विकारी अर्थात् प्युरिटी की पर्सनैलिटी से सदा सम्पन्न रहे ऐसा पुरुषार्थ ही अब मुझे करना है और बाप समान सम्पन्न बनना है*। स्वयं से और बाबा से यह प्रतिज्ञा करते हुए मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे बाबा अपने वरदानी हस्तों से मुझे वरदान देकर, मेरी इस प्रतिज्ञा को पूरा करने की शक्ति मेरे अंदर भर रहें हैं। आप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनाने का बल मेरे अंदर भरकर बाबा जैसे फिर से अपने उसी स्वरूप में स्थित हो गए है।

 

_ ➳  मन बुद्धि के विमान पर बैठ मैं भी अब फिर से अपनी कर्मभूमि पर लौट आई हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरुप में स्थित होकर ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रखते हुए, बाप समान निराकारी और निरहंकारी बनने का पूरा पुरुषार्थ अब मैं कर रही हूँ और अपने सम्पूर्णता के लक्ष्य को पाने की दिशा में निरन्तर आगे बढ़ रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सारथी बन न्यारी और प्यारी स्थिति का अनुभव कराने वाली नम्बरवन सिद्धि स्वरूप आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं बाप की आज्ञाकारी होकर रह गुप्त दुआओं द्वारा समय पर मदद प्राप्त करते रहने वाली आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. मातायें तो सदा खुशी के झूले में झूलती हैंझूलती हैं ना! माताओं को बहुत नशा रहता हैक्या नशा रहता है? हमारे लिए बाप आया है। नशा है ना! *द्वापर से सभी ने नीचे गिरायाइसलिए बाप को माताओं पर बहुत प्यार है और खास माताओं के लिए बाप आये हैं।* खुश हो रहे हैंलेकिन सदा खुश रहना। ऐसे नहीं अभी हाथ उठा रहे हैं और ट्रेन में जाओ तो थोड़ा-थोड़ा नशा उतरता जाएसदा एकरस, अविनाशी नशा हो। कभी-कभी का नशा नहींसदा का नशा सदा ही खुशी प्रदान करता है।

 

 _ ➳  *आप माताओं के चेहरे सदा ऐसे होने चाहिए जो दूर से रूहानी गुलाब दिखाई दो क्योंकि इस विश्व विद्यालय की जो बात सबको अच्छी लगती हैविशेषता दिखाई देती है वह यही कि मातायें रूहानी गुलाब समान सदा खिला हुआ पुष्प हैं और मातायें ही जिम्मेवारी उठाएमातायें इतना बड़ा कार्य कर रही हैं।* चाहे महामण्डलेश्वर भी हैं लेकिन वह भी समझते हैं कि मातायें निमित्त बनी हैं और ऐसे श्रेष्ठ कार्य सहज चला रही हैं। माताओं के लिए कहावत है - सच है नहींलेकिन कहावत है तो दो मातायें भी इकट्ठा कोई कार्य करें, बड़ा मुश्किल है। लेकिन यहाँ कौन निमित्त हैंमातायें ही हैं ना! जब भी मिलने आते हैं तो क्या पूछते हैंमातायें चलाती हैं, आपस में लड़ती नहीं हैं? खिटखिट नहीं करती हैंलेकिन उन्हों को क्या पता कि यह साधारण मातायें नहीं हैं, *यह परमात्मा द्वारा बनी हुई आत्मायें, मातायें हैं। परमात्म वरदान इन्हों को चला रहा है।*

 

 _ ➳  2. *अगर माताओं को बाप निमित्त नहीं बनाता तो नया ज्ञाननई सिस्टम होने कारण पाण्डवों को देखकर बहुत हंगामा होता। मातायें ढाल हैं क्योंकि नया ज्ञान है ना। नई बातें हैं।*   

 

✺   *ड्रिल :-  "साधारण मातायें नहीं, परमात्मा द्वारा बनी हुई आत्मायें होने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *अमृतवेले.. प्यारे बाबा, मीठे बच्चे, प्यारे बच्चे कह मुझ आत्मा को उठाने आते है... उठो बच्ची वरदानों से अपनी झोली भर लो, कानो में यह मधुर स्वर पड़ते ही मै आत्मा उठकर बैठ जाती हूँ...* मै आत्मा सफ़ेद चमकीले वस्त्र में बाबा को आता हुआ देख रही हूँ...

 

 _ ➳  कुछ देर के लिए मै आत्मा बाबा के सम्मुख बैठ जाती हूँ... बाबा के मस्तक से वा नैनो से आती हुई दिव्य किरणे मुझ आत्मा में समाती जा रही है... *इन किरणों में समाती हुई मै आत्मा इस देह से न्यारी हो एक दम हल्का अनुभव कर रही हूँ... अब मैं आत्मा प्यारे बाबा के साथ उड़ चलती हूँ सूक्ष्म वतन में, जहाँ चारो तरफ सफ़ेद चमकीला प्रकाश ही प्रकाश दिखाई दे रहा है... हर तरफ फ़रिश्ते ही फ़रिश्ते दिखाई दे रहे है...*  बाबा हाथ में चमचमाती छड़ी ले  सफेद चमकीली पहाड़ियों पर आगे ही आगे चलते जा रहे है... मै आत्मा बाबा के पीछे-पीछे चलती जा रही हूँ... बाबा चमकीली छड़ी से एक स्थान की ओर इशारा करते है...    

 

 _ ➳  आहा!!!... क्या मनोहर दृश्य है, मै आत्मा स्वयं को एक ऐसी दुनिया में देख रही हूँ  *जहाँ शुद्ध हवा चल रही है, पशु पक्षी मधुर स्वर में चहचहा रहे है, शीतल जल की नदियां बह रही है, मै सुनहरे वस्त्र धारण कर, हीरे के आभूषणों से सजी हुई हूँ... सिर पर लाइट और माइट का ताज धारण कर स्वयं को राज सिंहासन पर महारानी स्वरूप में देख रही हूँ...*अपना यह स्वरुप देख मैं बाबा की और देखती हूँ... तो प्यारे मीठे बाबा छड़ी घुमाकर दूसरी तरफ इशारा करते हुए एक ओर दृश्य दिखाते है... जहाँ मै आत्मा स्वयं को जीवन बंधन में बंधा हुआ देखती हूँ... जहाँ कर्मो का बंधन है तो रिश्ते नातो का बंधन है, माया का बंधन है तो जिम्मेवारियों का बंधन है... इन बंधनो में बंधी मै आत्मा बहुत समय से गिरती चली आयी थी... बोझ से दबी हुई, अत्याचारों को सहन करती हुई, दुखो की जंजीरों में जकड़ी हुई मै आत्मा अपने वास्तविक रूप को भूल गयी थी... 

 

 _ ➳  दोनों दृश्यों को देख, *मै आत्मा त्रिकालदर्शी बाबा की तेजोमय किरणों में स्वयं के पूरे 84 जन्मो के चक्र को देख रही हूँ...* इन किरणों में डूबती हुई मै आत्मा अब पुरानी दुनिया, पुराने संस्कार, पुराने सम्बन्ध, पुरानी हर चीज जो विनाशवान है उसे भूलती जा रही हूँ... परमात्मा ने स्वयं मुझे ढूंढा है, मै साधारण नही विशेष आत्मा हूँ... अब मै आत्मा पवित्रता को धारण कर रूहे गुलाब बन सर्व आत्माओ को रूहानियत की खुशबू से महका रही हूँ... स्नेह और सहयोग द्वारा सर्व आत्माओ में उमंग उत्साह भर आत्मिक भाव में स्थित हो परमात्म प्यार में पलते हुए विश्व परिवर्तन के कार्य में परमात्मा का सहयोगी बन संगमयुग में ज्ञान-रत्नों को धारण करती जा रही हूँ... *जो कोई भी देखे तो उनको यह अनुभव हो रहा है कि यह साधारण आत्मा(माता) नही परमात्मा की पालना में पलने वाली देव आत्मा है...*   

 

 _ ➳  अब मै आत्मा इस धरा पर सदा रूहानी नशे में रह जिम्मेवारियों का ताज पहन इस अंतिम जन्म में हर आत्मा के साथ अपने हिसाब-किताब चुक्तु कर, ड्रामा के हर सीन को साक्षी भाव से देखती हुई... पवित्र दुनिया में चलने के लिए हर परिस्थिति में एकरस स्थिति का अनुभव करती जा रही हूँ... *मै आत्मा कर नही रही, करन करावनहार करा रहा है... परमात्म प्यार में डूबी हुई मै आत्मा मेहनत से नही मोहब्बत से पुरुषार्थी जीवन में निरन्तर आगे बढ़ती जा रही हूँ... परमात्मा ने स्वयं मुझ आत्मा (माताओ) पर ज्ञान का कलश रखा है, मै साधारण नही, विशेष आत्मा हूँ... मेरी एक आँख में मुक्तिधाम और एक आँख में जीवन्मुक्तिधाम समाया हुआ है...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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