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❍ 27 / 06 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *ड्रामा को अच्छी रीति जानकार पार्ट बजाया ?*
➢➢ *आपस में लडाई झगडा तो नहीं किया ?*
➢➢ *हिम्मत के संकल्प द्वारा माया को हिम्मतहीन बनाया ?*
➢➢ *निर्माणचित के तख़्त पर बैठ, जिम्मेवारी का ताज धारण किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ अभी निर्भय ज्वालामुखी बन प्रकृति और आत्माओं के अन्दर जो तमोगुण है उसे भस्म करो। *तपस्या अर्थात् ज्वाला स्वरूप याद, इस याद द्वारा ही माया वा प्रकृति का विकराल रूप शीतल हो जायेगा। आपका तीसरा नेत्र, ज्वालामुखी नेत्र माया को शक्तिहीन कर देगा।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं खुशनसीब आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को सदा खुशनसीब आत्माएं समझते हो? खुशनसीब आत्माओंकी निशानी क्या होगी? *उनके चेहरे और चलन से सदा खुशी की झलक दिखाई देगी। चाहे कोई भी स्थूल कार्य कर रहे हों, साधारण काम कर रहे हों लेकिन हर कर्म करते खुशी की झलक दिखाई पड़े। इसको कहते हैं निरन्तर खुशी में मन नाचता रहे।* ऐसे सदा रहते हो? या कभी बहुत खुश रहते हो, कभी कम?
〰✧ खुशी का खजाना अपना खजाना हो गया। तो अपना खजाना सदा साथ रहेगा ना। या कभी-कभी रहेगा? बाप के खजाने को अपना खजाना बनाया है या भूल जाता है अपना खजाना? अपनी स्थूल चीज तो याद रहती है ना। वह खजाना आंखों से दिखाई देता है लेकिन यह खजाना आंखों से नहीं दिखाई देता, दिल से अनुभव करते हो। तो अनुभव वाली बात कभी भूलती है क्या? तो सदा यह स्मृति में रखो कि हम खुशी के खजाने के मालिक हैं। जितना खजाना याद रहेगा उतना नशा रहेगा। तो यह रूहानी नशा औरों को भी अनुभव करायेगा कि इनके पास कुछ है। *जब ब्राह्मण जीवन के लिए संसार ही एक बाप है, तो संसार के सिवाए और क्या याद आयेगा। सदा दिल में अपने श्रेष्ठ भाग्य के गीत गाते रहो।*
〰✧ ऐसा श्रेष्ठ भाग्य सारे कल्प में प्राप्त होगा? जो सारे कल्प में अभी प्राप्त होता है, तो अभी की खुशी, अभी का नशा सबसे श्रेष्ठ है। पाण्डव तो नष्टोमोहा हैं ना। व्यवहार में कुछ ऊपर-नीचे हो जाए, फिर नष्टोमोहा हैं? अभी भी बीच-बीच में माया पेपर तो लेती है ना। तो उसमें पास होते हो? या जब माया आती है तब थोड़ा ढीले हो जाते हो? *तो सदा खुशी के गीत गाते रहो। समझा? कुछ भी चला जाये लेकिन खुशी नहीं जाये। चाहे किसी भी रूप में माया आये लेकिन खुशी न जाये। ऐसे खुश रहने वाले ही सदा खुशनसीब हैं।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ वर्तमान समय सर्व की एक ही पुकार कौन-सी है, वह जानते हो? धर्मिक नेताओं, राजनेताओं और सर्वश्रेष्ठ साइन्स वा और साथ-साथ आम जनता की एक ही पुकार है कि अब जल्दी में कुछ बदलना चाहिए। *सर्व क्षेत्र की आत्मायें अब अपने को फेल अनुभव करने लगी हैं। अब कोई सुप्रीम पॉवर चाहिए।* सबकी चाहना का दीपक वा इस आवश्यकता को महसूस करने के संकल्प का दीपक जग चुका है।
〰✧ अब उसको और तेज करने के लिए आप सर्व आत्माओं के संकल्प घृत चाहिए जिससे सर्व की पुकार के ऊपर उपकार कर सकी। (आज दो-चार बार बीच-बीच में बिजली जाती रहती थी) देखो यह लाइट भी शिक्षा दे रही है। *जैसे लाइट एक सेकण्ड में आती और चली जाती है, ऐसे ही आप भी एक सेकण्ड में पुकार वालों के पास उपकारी बन पहुँच जाओ।*
〰✧ ऐसा अभ्यास आने और जाने का हो। अभी-अभी पुकार सुनी और अभी-अभी पहुँचे। अब सर्व की पुकार मेहनत से छूट सहज प्राप्ति करने की है। साइन्स वाले भी बहुत मेहनत कर थक गए हैं। धर्मिक आत्मायें भी साधना करके थक गई है। राजनैतिक लोग अनेक दल-बदलुओं के चक्र से थक गये हैं। और आम जनता समस्याओं से थक गई है। *अब सबकी थकावट उतारने वाला कौन?*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *तो विजय प्राप्त करने का साधन है - स्व-स्थिति द्वारा परिस्थिति पर विजय। यह देह भी पर है, स्व नहीं।* तो देह के भान में आना, यह भी स्वस्थिति नहीं है। तो चेक करो सारे दिन में स्व-स्थिति कितना समय रहती है? क्यों कि स्व-स्थिति व स्वधर्म सदा सुख का अनुभव करायेगा और *प्रकृति-धर्म अर्थात् पर-धर्म या देह की स्मृति किसी-न-किसी प्रकार के दु:ख का अनुभव जरूर करायेगी। तो जो सदा स्वस्थिति में होगा वह सदा सुख का अनुभव करेगा।* सदा सुख का अनुभव होता है कि दु:ख की लहर आती है। संकल्प में भी अगर दुख की लहर आई तो सिद्ध है स्व-स्थिति से, स्व-धर्म से नीचे आ गये।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- देह सहित सारी पुरानी दुनिया का त्याग करना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की कुटिया में बैठ मीठे बाबा की यादों के झूले में झूल रही हूँ... बाबा अपने स्नेह भरे नैनों से मुझ पर स्नेह की वर्षा कर रहे हैं... प्यार भरे वरदानी हाथों से मुझ पर वरदानों की वर्षा कर रहे हैं... इस स्नेह, प्यार की बारिश में मुझ आत्मा का सारा मैल धुल रहा है...* मुझ आत्मा का देह लोप होता जा रहा है... और मैं आत्मा इस देह और देह की दुनिया से न्यारी होती जा रही हूँ... फिर बाबा मुझे फ़रिश्ता ड्रेस पहनाकर अपनी गोद में बिठाकर मीठी-मीठी शिक्षाएं देते हैं...
❉ *प्यार की मीठी-मीठी रिमझिम करते हुए मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... *देहभान का त्यागकर सच्चे त्यागी बनकर, सदा का भाग्य बना लो... कर्मेन्द्रियों के आकर्षण से मुक्त होकर न्यारे और प्यारे होकर फ़रिश्ता बन उड़ जाओ...* अपने हर कर्म से न्यारे हो... निराकारी स्वरूप में खो जाओ... इस धरा पर मेहमान होकर महानता से सज जाओ..."
➳ _ ➳ *हद के वैभवों का त्याग कर बेहद बाबा के दिल की तिजोरी में बंद होकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... *मैं आत्मा इस मटमैली दुनिया और मिटटी के आकर्षण से स्वयं को मुक्त कराती जा रही हूँ और अपने तेजस्वी चमक को पाती जा रही हूँ... आपकी यादो में फ़रिश्ता रूप पाकर उड़ रही हूँ...* देहभान से मुक्त होकर... अपनी खुबसूरत आत्मा छवि पर फ़िदा हो गयी हूँ..."
❉ *यादों के विमान में बिठाकर ऊँचे आसमान की सैर कराते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वरीय यादो में गहरे डूब जाओ... और शक्तियो से सम्पन्न होकर सभी के सहयोगी हो जाओ... *सदा त्याग द्वारा श्रेष्ठ भाग्य का अनुभव करने वाले महान भाग्यशाली बन जाओ... हर कदम पर फॉलो फादर कर... इस दुनिया में स्वयं को मेहमान समझ सदा के महान बन जाओ... बेहद के सन्यासी बनकर सतयुगी सुखो के अधिकारी बनो..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा गुल-गुल फूल बनकर अपनी रूहानियत से इस विश्व को महकाते हुए कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मैं आत्मा आपके प्यार की छत्रछाया में स्वयं खिलकर सबकी सहयोगी बन गयी हूँ... *इस धरा पर मेहमान होकर... महानता से भर रही हूँ... ब्रह्मा बाबा के नक्शे कदम पर चलकर,फ़रिश्ता बन हदो से पार हो गयी हूँ..."*
❉ *अपने प्यार के ब्रश को गुण-शक्तियों के रंग में डुबोकर मुझे रंगते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... *ईश्वरीय प्यार में स्वयं को इतना भर दो... की खुबसूरत स्थिति से परिस्थिति के पहाड़ो पर से सहज ही उड़ जाओ... सदा समर्थ आत्मा बन मुस्कराओ...* निमित्त और निर्माणता से सजधज कर... सबको निर्विघ्न बनाने की सच्ची सेवा करते रहो..."
➳ _ ➳ *खुशियों की परी बनकर विश्व धरा पर स्नेह के फूल बरसाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मैं आत्मा सबको मीठी खुशियो का पता देने वाली,ज्ञान बुलबुल बन, बाबा की दिल बगिया में मुस्करा रही हूँ... *मीठे बाबा आपकी यादो में हल्की खुशनुमा हो, सदा की विजयी बन रही हूँ... और समर्थ संकल्पों से खुबसूरत दुनिया की मालिक बन रही हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप गाइड बन सबको लेने आया है, अब देह सहित सब कुछ भूल एक बाप को ही याद करना है*
➳ _ ➳ विश्व की सर्व आत्माओं को दुखो से लिबरेट कर उन्हें सदा के लिए सुखी बनने का रास्ता सिवाय भगवान के और कोई नही बता सकता। *वही भगवान बाप गाइड बन इस समय सबको वापिस ले जाने के लिए आये हैं इसलिए फरमान कर रहें हैं कि देह सहित सब कुछ भूल एक बाप को ही याद करना है। अपने भगवान बाप के इस फरमान का पालन करने का संकल्प लेकर, देह सहित देह के सर्व सम्बन्धो को बुद्धि से भूल, केवल बाबा की ही याद में मन और बुद्धि को निरन्तर लगाए रखने का अपने प्यारे पिता से प्रोमिस कर, अपने दुख हर्ता सुख कर्ता बाप की दिल को सुकून और चित को चैन देने वाली अति मीठी, प्यारी याद में अपने मन बुद्धि को लगाकर उसका मधुर अहसास करने के लिए अब मैं उनके पास उनके निराकारी वतन में जाने के लिए स्वयं को अशरीरी स्थिति में स्थित करने का अभ्यास करती हूँ*।
➳ _ ➳ अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर, स्वयं को देह से न्यारी आत्मा निश्चय करते ही एक अनोखी शक्ति का संचार मैं स्वयं में अनुभव करने लगती हूँ। *ऐसा लग रहा है जैसे ऊर्जा का कोई प्रवाह मेरे अंदर होने लगा है जो धीरे - धीरे मेरे सारे शरीर को सुप्त करता जा रहा है। शरीर के सभी अंग जैसे कि बिल्कुल शिथिल होने लगे हैं। स्वयं को मैं पूरी तरह रिलैक्स अनुभव करने लगी हूँ। देह का भान पूरी तरह समाप्त हो गया है और आत्मा अपने निज स्वरूप में स्थित होकर अपने गुणों और शक्तियों का आनन्द लेने लगी है*। जिन गुणों और शक्तियों को देह भान रूपी रबड़ ने ढक रखा था वो रबड़ उतरते ही उनका अनुभव करके मैं आत्मा जैसे तृप्त हो गई हूँ। एक झिलमिल करते, चमकते सितारे के समान अति सूक्ष्म अपने बिंदु स्वरूप को मैं अपनी दोनों आईब्रोज़ के बीच मे देख रही हूँ जो अपने गुणों और शक्तियों की रंग बिरंगी किरणों को फैलाता हुआ बहुत ही सुंदर दिखाई दे रहा है।
➳ _ ➳ मन को आनन्दित करने वाले अपने सतोगुणी, अष्ट शक्तिसम्पन्न स्वरूप को निहारते - निहारते मैं अब स्थूल जगत की हर चीज से किनारा कर चुकी हूँ और अपने परलोक, ब्रह्मलोक घर में जाने की उड़ान भरने के लिए पूरी तरह तैयार हूँ। ज्ञान और योग के पंख फैलाकर अब मैं देह रूपी पिंजड़े से बाहर आ गई हूँ और साक्षी होकर अपने आस पास की हर चीज को, हर नजारे को मैं देख रही हूँ। *मेरे आस - पास हो रही किसी भी गतिविधि का मेरे ऊपर कोई प्रभाव नही पड़ रहा। भौतिकता से मेरा सम्बन्ध टूट चुका है इसलिये प्रकृति के पांचो तत्व भी मुझे प्रभावित नही कर रहे। गर्मी, सर्दी, बरसात इन सबके प्रभाव से मुक्त होकर अब मैं इस स्थूल जगत को छोड़ ऊपर आकाश की और जा रही हूँ*। एक खूबसूरत रूहानी यात्रा जो रूह को अपनी मंजिल पर ले जा रही है उस यात्रा का आनन्द लेते - लेते मैं आकाश तत्व को पार कर जाती हूँ और समस्त तारामंडल सौरमण्डल को पार कर सूक्ष्म लोक में पहुंच जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर को मैं धारण करती हूँ और सूक्ष्मवतन वासी अपने प्यारे ब्रह्मा बाप के पास पहुँच जाती हूँ जिनकी सूक्ष्म देह में निराकार शिव भगवान विराजमान है। *बापदादा के सम्मुख बैठ, उनके अंग - अंग से निकल रही सर्वशक्तियों की फुहारों को मैं अपने ऊपर पड़ता हुआ स्पष्ट महसूस कर रही हूँ जो मुझे शीतलता देने के साथ - साथ मेरे अंदर एक अनोखी शक्ति भरती जा रही हैं। बड़े प्यार से बाबा मुझे निहार रहें हैं और अपनी मीठी दृष्टि देकर मुझे नजर से निहाल कर रहें हैं* बापदादा का असीम स्नेह पाकर और उनकी शक्तियों का बल अपने अंदर भरकर अपनी सूक्ष्म लाइट की देह से बाहर आकर अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर अब मैं सूक्ष्म लोक से ऊपर अपने परमधाम घर की ओर जा रही हूँ।
➳ _ ➳ लाल प्रकाश से प्रकाशित मेरा यह परमधाम घर जहाँ जगमग करती चैतन्य मणियो का आगार है, ऐसे अपने खूबसूरत घर में अब मैं पहुँच गई हूँ और अनुभव कर रही हूँ उस गहन शांति और उस पारलौकिक सुख का जिसे पाने की ख्वाहिश मुझे यहाँ खींच कर लाई थी। *अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाये, अपने प्यारे पिता का सुन्दर स्वरूप मुझे अपनी और आकर्षित कर रहा हैं। धीरे - धीरे मैं उनकी ओर बढ़ती हूँ और जाकर उनकी किरणों रूपी बाहों के आगोश में समा जाती हूँ। उनके स्नेह, उनकी शक्तियों से स्वयं को पूरी तरह भरपूर करके मैं कर्म करने के लिए वापिस साकारी दुनिया मे अपने साकारी तन में लौट आती हूँ* लेकिन इस स्मृति के साथ कि बाबा गाइड बन सबको लेने आया है इसलिए देह सहित सबको भूल केवल बाबा को ही याद करना है।
➳ _ ➳ यह स्मृति मुझे देह और देह की दुनिया से धीरे - धीरे उपराम करती जा रही है। *विदेही बन अपने पिता के साथ बिताए सुंदर सुखद पलों की मधुर स्मृति मुझे बार - बार अपनी ओर खींचती है और इसलिये बार - बार यह अनुभव करने के लिए मैं देह सहित सब कुछ भूल अशरीरी बनने का अभ्यास अब घड़ी - घड़ी करती रहती हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं हिम्मत के संकल्प द्वारा माया को हिम्मतहीन बनाने वाली हिम्मतवान आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं निर्माणचित्त के तख्त पर बैठ, जिम्मेवारी का ताज धारण करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ महात्यागी- सदा सम्बन्ध, संकल्प और संस्कार सभी के परिवर्तन करने के सदा हिम्मत और उल्लास में रहते। पुरानी दुनिया, पुराने सम्बन्ध से सदा न्यारे हैं। महात्यागी आत्मायें सदा यह अनुभव करती कि यह पुरानी दुनिया वा सम्बन्धी मरे ही पड़े हैं। इसके लिए युद्ध नहीं करनी पड़ती है। सदा स्नेही, सहयोगी, सेवाधारी शक्ति स्वरूप की स्थिति में स्थित रहते हैं, बाकी क्या रह जाता है! महात्यागी के फलस्वरूप जो त्याग का भाग्य है - महाज्ञानी, महायोगी, श्रेष्ठ सेवाधारी बन जाते हैं! इस भाग्य के अधिकार को कहाँ-कहाँ उल्टे नशे के रूप में यूज़ कर लेते हैं। पास्ट जीवन का सम्पूर्ण त्याग है लेकिन‘त्याग का भी त्याग नहीं है'। *लोहे की जंजीरे तो तोड़ दीं, आइरन एजड से गोल्डन एजड तो बन गये, लेकिन कहाँ-कहाँ परिवर्तन सुनहरी जीवन के सोने की जंजीर में बंध जाता है। वह सोने की जंजीरें क्या है? ‘‘मैं'' और‘‘मेरा''।* मैं अच्छा ज्ञानी हूँ, मैं ज्ञानी तू आत्मा, योगी तू आत्मा हूँ। यह सुनहरी जंजीर कहाँ-कहाँ सदा बन्धनमुक्त बनने नहीं देती।
✺ *"ड्रिल :- लोहे की जंजीरों को तोड़ स्वयं को सोने की जंजीरों में नहीं बाँधना।”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा झील के किनारे प्रकृति की गोद में बैठकर उसकी हरियाली का आनंद ले रही हूँ... खिली-खिली सुहानी धूप में तेज रूहानी हवायें गीत गुनगुना रही हैं... रंग-बिरंगी तितलियाँ फूलों पर अपना रंग-बिरंगी आँचल बिछाकर मुस्कुरा रहे हैं...* चीं-चीं करती चिड़िया, कूं-कूं करती कोयल, भूं-भूं करते भंवरे, झर-झर बहते झरने मेरे ह्रदय को प्रफुल्ल्ति कर रहे हैं... इतने में एक प्यासा हिरन झील का पानी पीने आता है और फुदक-फुदक कर इधर से उधर भागता है... मैं आत्मा उसके पीछे जाने की कोशिश करती हूँ... इतने में प्यारे बाबा मेरे सामने आ जाते हैं...
➳ _ ➳ प्यारे बाबा कहते हैं- मेरी मीठी बच्ची कहाँ भाग रही हो... मैं कहती हूँ मेरे प्यारे बाबा मैं आत्मा उस हिरन को पकड़ने की कोशिश कर रही हूँ... बाबा मुस्कुराते हुए मुझे अपने सामने बिठाकर कहते हैं- मेरी लाडली तुमने ये कहानी तो सुनी होगी... सीता वनवास के समय अपने राजमहल के सभी ठाठ-भाट छोड़कर वन में आई... पर वन में सोने के हिरन को पाने के लिए रावण के चंगुल में फंस गई... और राम से दूर होकर मायावी रावण के अधीन हो गई... *वैसे ही बच्ची चेक करो कि तुम भी सोने की जंजीरों में पड़कर फिर से मायावी रावण के चंगुल में तो नहीं फंस रही हो?*
➳ _ ➳ बाबा कहते हैं:- बच्ची- श्रेष्ठ ब्राह्मण जीवन अपनाकर तुमने पुरानी दुनिया, पुराने सम्बन्ध सबसे सदा न्यारे तो हो गए हो... *पुराने जीवन का सम्पूर्ण त्याग किया है, लेकिन ‘त्याग का भी त्याग किए हो? लोहे की जंजीरे तो तोड़ दीं, सोने की जंजीरों में तो नहीं बंधे हो?‘‘मैं'' और ‘‘मेरा' ये ऐसी सुनहरी जंजीरें हैं जो बन्धनमुक्त बनने नहीं देती हैं...* महाज्ञानी, महायोगी, श्रेष्ठ सेवाधारी बनकर महात्यागी तो बन गए हो लेकिन सर्वस्व त्यागी बने हो? बाबा मुझे समझानी देते हुए वरदान देते हैं- बच्चे सदा फालो फादर करते हुए बाप समान सर्वस्व त्यागी बनो, महादानी बनो...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा के महावाक्यों को धारण कर फालो फादर कर रही हूँ... बाबा दृष्टि देते हुए मुझे सर्व शक्तियों से सम्पन्न बना रहे हैं... *मैं आत्मा पुराने सम्बन्ध, सम्पर्क, पुरानी दुनिया का पूरी तरह त्याग कर चुकी हूँ... ‘‘मैं'' और ‘‘मेरा'' की सोने की जंजीरें बाबा की किरणों में भस्म हो रहे हैं... मैं आत्मा सर्व प्रकार के बन्धनों से मुक्त हो रही हूँ...* अब मैं आत्मा शिव शक्ति बन बाबा के साथ कंबाइंड रहकर हर कर्म करती हूँ... और कर्म के फल को भी बाबा को समर्पित कर देती हूँ... नाम, मान, शान की कभी भी अपेक्षा नहीं करती हूँ... करन करावनहार बाबा है मैं आत्मा निमित्त हूँ...
➳ _ ➳ *अब मैं आत्मा ‘‘मैं'' और ‘‘मेरा'' के स्वार्थ भावों को ‘‘मैं आत्मा'' और ‘‘मेरा बाबा'' में परिवर्तित कर चुकी हूँ...* अब मैं आत्मा ज्ञानी, योगी होने का अहंकार नहीं करती हूँ... ये ज्ञानसागर बाबा का दिया ज्ञान है... जिसने मुझे राजयोग सिखाकर ज्ञानी, योगी बनाया... मैं आत्मा निष्काम भाव से सर्व की सेवा कर रही हूँ... *मैं आत्मा वफादार, फरमानबरदार बन इस महायज्ञ में तन, मन, धन से अपना सबकुछ सम्पूर्ण स्वाहा कर सर्वस्व त्यागी बन गई हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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