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 13 / 09 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *एक दो को बाप की याद दिलाने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *भोजन बनाते व खाते समय याद में जरूर रहे ?*

 

➢➢ *कर्मक्षेत्र पर कमल पुष्प समान रहते हुए माया की कीचड से सेफ रहे ?*

 

➢➢ *सफलता की चाबी द्वारा सर्व खजानों को सफल किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जैसे बाप को सर्व स्वरुपों से वा सर्व सम्बन्धों से जानना आवश्यक है, ऐसे ही बाप द्वारा स्वयं को भी जानना आवश्यक है।* जानना अर्थात् मानना। मैं जो हूँ, जैसा हूँ, ऐसे मानकर चलेंगे तो देह में विदेही, व्यक्त में होते अव्यक्त, चलते-फिरते फरिश्ता वा कर्म करते हुए कर्मातीत स्थिति बन जायेगी।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं संगमयुगी पुरुषोत्तम आत्मा हूँ"*

 

  अपने को संगमयुगी पुरुषोत्तम आत्मायें अनुभव करते हो? पुरुषोत्तम अर्थात् पुरुषों में उत्तम पुरुष। तो अभी साधारण नहीं हो पुरुषोत्तम हो। क्योंकि ब्राह्मण अर्थात् श्रेष्ठ। ब्राह्मणों को सदा ऊंचा दिखाते हैं। मुख वंशावली दिखाते हैं ना। *तो ब्राह्मण बन गये अर्थात् श्रेष्ठ बन गये। साधारण पुरुष आप पुरुषोत्तम आत्माओंकी पूजा करते हैं क्योंकि ब्राह्मण अर्थात् पवित्र बन गये ना। तो पवित्रता की ही पूजा होती है। साधारण आत्मा भी पवित्रता को धारण करती है तो महान् आत्मा कहलाती है।* तो आप सब पवित्र आत्मायें हो ना कि मिक्स आत्मा हो? थोड़ी-थोड़ी अपवित्रता, थोड़ी-थोड़ी पवित्रता! नहीं। पवित्र आत्मा बन गये। तो पवित्रता ही श्रेष्ठता है। पवित्रता ही पूज्य है। तो ये नशा रहता है कि हम पुजारी से पूज्य बन गये?

 

  ब्राह्मणों की पवित्रता का गायन है। कोई भी शुभ कार्य होगा तो ब्राह्मण से करायेंगे। अशुभ कार्य ब्राह्मण से नहीं करायेंगे। अशुभ कार्य ब्राह्मण करें तो कहेंगे ये नाम का ब्राह्मण है, काम का नहीं। तो आप नामधारी हो या कामधारी? नामधारी ब्राह्मण तो बहुत हैं। *लेकिन आप जैसा नाम वैसा काम करने वाले हो। साधारण आत्मा नहीं हो, विशेष आत्मा हो। ये खुशी है ना। कल साधारण थे और आज विशेष बन गये। तो विशेष आत्मा समझने से जैसी स्मृति होगी वैसी स्थिति होगी और जैसी स्थिति वैसे कर्म होंगे।* चेक करो जब स्थिति कमजोर होती है तो कर्म कैसे होते हैं। कर्म में भी कमजोरी आ जायेगी और स्थिति शक्तिशाली तो कर्म भी शक्तिशाली होंगे।

 

  तो स्थिति का आधार है स्मृति। स्मृति खुशी की है तो स्थिति भी खुश। कर्म भी खुशी-खुशी से करेंगे। फाउन्डेशन है स्मृति। तो बाप ने स्मृति बदल ली। साधारण से विशेष आत्मा बने तो स्मृति चेंज हो गई। चाहे कर्म साधारण हों लेकिन साधारण कर्म में भी विशेषता हो। मानो खाना बना रहे हो तो ये तो साधारण कर्म है ना, सब करते हैं लेकिन आपका खाना बनाना और दूसरों के खाना बनाने में फर्क होगा ना। *आपके याद का भोजन और साधारण भोजन में अन्तर है। वो प्रसाद है, वो खाना है। तो विशेषता आ गई ना। याद में जो खाना खाते हो या बनाते हो तो उसको ब्रह्मा भोजन कहते हैं। तो सदा याद रखना कि पुरुषोत्तम विशेष आत्मायें बन गये तो साधारण कर्म कर नहीं सकते।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  तो *राजा का ऑर्डर उसी घडी उसी प्रकार से मानना - यह है राज्य-अधिकारी की निशानी।* ऐसे नहीं कि तीन-चार मिनट के अभ्यास के बाद मन माने या एकाग्रता के बजाए हलचल के बाद एकाग बने, इसको क्या कहेंगे?

 

✧   अधिकारी कहेंगे? तो ऐसी चेकिंग करो। क्योंकि पहले से ही सुनाया है कि *अंतिम समय की अंतिम रिजल्ट का समय एक सेकण्ड का क्वेचन एक ही होगा।*

 

✧  इन सूक्ष्म शक्तियों के अधिकारी बनने का अभ्यास अगर नहीं होगा अर्थात *आपका मन राजा का ऑर्डर एक घडी के बजाए तीनचार घडियों में मानता है तो राज्य अधिकारी कहलायेंगे वा एक सेकण्ड के अंतिम पेपर में पास होगे?* कितने माक्र्स मिलेंगे?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ तो ब्राह्मणों का स्थान और स्थिति - दोनों ऊँची। अगर स्थान की याद होगी तो स्थिति स्वत: ऊँची हो जायेगी। *ब्राह्मणों की दृष्टि भी सदा ऊपर रहती है। क्योंकि आत्मा 'आत्माओं' को देखती है, आत्मा ऊपर है तो दृष्टि भी ऊपर जायेगी।* कभी भी किससे मिलते हो या बात करते हो तो आत्मा को देखकर बात करते हो, आत्मा से बात करते हो, आपकी दृष्टि आत्मा की तरफ जाती है। आत्मा मस्तक में है ना। *तो ऊँची स्थिति में रहना सहज है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  याद का पुरुषार्थ करना"*

 

➳ _ ➳  जीवन अपनी गति से चलते चला ही जा रहा था... कि अचानक जनमो के पुण्यो का फल सामने आ गया... मन्दिरो में प्रतिमा में खुदा छुपा था... *वह मेरा मीठा बाबा बनकर सामने आ गया..*. और जीवन सच्चे प्यार का पर्याय बन गया... ईश्वरीय प्रेम को पाकर मै आत्मा... दुखो की तपिश की भूल निर्मल हो गयी... मीठे बाबा के प्यार की मीठी अनुभूतियों में डूबी हुई मै आत्मा... बाबा की यादो में खोई सी, ठिठक जाती हूँ... और देखती हूँ... सम्मुख मेरा बाबा बाहें फैलाये मुस्करा रहा है...

 

❉   मीठे बाबा मुझ आत्मा को बेहद के सुखो का अधिकारी बनाते हुए कहते है:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *अपने समय साँस और संकल्पों को निरन्तर मीठे बाबा की मीठी यादो में पिरो दो..*. यह यादे ही असीम सुखो का खजाना दिलायेगी... मीठे बाबा की यादो में सतोप्रधान बन बाबा संग घर चलने की तैयारी करो... सिर्फ और सिर्फ मीठे बाबा को हर पल याद करो..."

 

➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा को अपनी बाँहों में भरकर कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... *अब जो मीठे भाग्य ने आपका हाथ और साथ मुझ आत्मा को दिलाया है.*.. मै आत्मा हर घड़ी हर पल आपकी ही यादो में खोयी हुई हूँ... देह और देहधारियों के ख्यालो से निकल कर अपने मीठे बाबा की मधुर यादो में मगन हूँ..."

 

❉   प्यारे बाबा मुझ आत्मा को अनन्त शक्तियो से भरते हुए कहते है :- "मीठे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता की यादो में निरन्तर खो जाओ... इन यादो में गहरे डूबकर, स्वयं को असीम सुखो से भरी खुबसूरत दुनिया का मालिक बनाओ... और *यादो में सतोप्रधान बनकर, विश्व धरा पर देवताई ताजोतख्त को पाओ.*.."

 

➳ _ ➳  मै आत्मा अपने प्यारे बाबा से अमूल्य ज्ञान खजाने को पाकर, खुशियो से भरपूर होकर कहती हूँ :- " मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा आपको पाकर कितनी खुशनसीब हो गयी हूँ.. श्रीमत को पाकर ज्ञानधन से भरपूर हो, मालामाल हो गयी हूँ... *आपके खुबसूरत साथ को पाकर सत्य से निखर गयी हूँ.*.."

 

❉   मीठे बाबा मुझ आत्मा को बेहद के सतोप्रधान पुरुषार्थ के लिए उमंगो से सजाते हुए कहते है :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... यह *अंतिम जन्म में देह के भान और परमत से निकल कर, आत्मिक सुख की अनुभूतियों में खो जाओ..*. हर साँस ईश्वरीय यादो में लगाओ... यह यादे ही समर्थ बना साथ निभाएगी... देह धारियों के याद खाली कर ठग जायेंगी... इसलिए हर पल यादो को गहरा करो..."

 

➳ _ ➳  मै आत्मा अपने शानदार भाग्य पर मुस्कराते हुए मीठे बाबा से कहती हूँ :- "प्यारे प्यारे बाबा मेरे... मेरे हाथो में अपना हाथ देकर, *आपने मुझे कितना असाधारण बना दिया है... ईश्वरीय खूबसूरती से सजाकर, मुझे पूरे विश्व में अनोखा बना दिया है.*.. मै आत्मा रग रग से आपकी यादो में डूबी हुई दिल से शुक्रिया कर रही हूँ..."मीठे बाबा को अपने प्यार की कहानी सुनाकर, मै आत्मा... साकारी तन में लौट आयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- एक दो को बाप की याद दिलाने का पुरुषार्थ करना है*"

 

_ ➳  परमात्म प्यार और परमात्मा पालना का सुख लेते हुए, अपने प्यारे बाबा की मीठी याद में बैठी मैं अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के बारे में विचार कर हर्षित हो रही हूँ और अपने आप से सवाल कर रही हूँ कि क्या कभी मैंने स्वप्न में भी यह सोचा था कि मैं परमात्म प्यार और परमात्मा पालना के झूले में ऐसे पलूँगी! *जिस भगवान को सारी दुनिया याद करती है, उसे नमन करती है वो भगवान मुझे याद करेगा, मुझे नमन करेगा, अपने से भी ऊँचा बना कर मुझे याद प्यार देगा, मुझ पर बलिहार जाएगा, यह तो कभी संकल्प में भी नही था*!

 

_ ➳  यही सब चिंतन करते - करते मैं खो जाती हूँ उन खूबसूरत पलों में जब पहली बार भगवान के साकार प्यार का अनुभव किया था। *आंखों से खुशी के आंसू बह रहे थे और मेरा भगवान अपने साकार रथ में बैठा मन्द - मन्द मुस्कराते हुए मुझे निहार रहा था। उसकी दृष्टि में मैं देख रही थी उस अथाह प्यार के सागर को जो मेरे लिए उमड़ रहा था। वो प्यार पाकर मैं आत्मा ऐसे तृप्त हो गई थी मानो उनसे मिलने की जन्म - जन्म की जो प्यास थी वो जैसे बुझ गई थी*। मन को गहन सुकून मिला था अपने पिता परमात्मा को जान कर और उनसे इतना सुंदर मिलन मना कर।

 

_ ➳  परमात्म मिलन की मीठी मधुर स्मृतियों में खो कर उस मिलन के आनन्द के खूबसूरत एहसास को फिर से तरोताजा करके, *अपने ऐसे भगवान बाप को सदा याद करने तथा औरों को भी उनकी याद दिलाने का पुरुषार्थ करने का संकल्प लेकर, अपने प्यारे पिता के पास उनके धाम जाने के लिए, अब मैं अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित होने का अभ्यास करती हूँ*। अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर, अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने स्वरूप पर एकाग्र करते ही मैं अपने अंदर समाये गुणों और शक्तियों का अनुभव करने लगती हूँ और इनका अनुभव करते - करते एक बहुत ही न्यारी और प्यारी स्थिति में सहज ही स्थित हो जाती हूँ।

 

_ ➳  यह न्यारी और प्यारी स्थिति मुझे देह भान से पूरी तरह मुक्त करके देह से ऐसे बाहर निकाल लेती है जैसे मक्खन से बाल बिल्कुल सहज रीति अलग हो जाता है। *ठीक इसी तरह मैं बड़ी आसानी से देह से बाहर निकल आती हूँ और अपने प्यारे पिता तक पहुंचाने वाली मन बुद्धि की एक अति ख़ूबसूरत रूहानी यात्रा पर चल पड़ती हूँ*। ज्ञान और योग के सुन्दर पंख लगाकर मैं आत्मा धीरे - धीरे उड़ान भर कर आकाश में पहुँच जाती हूँ। सूर्य, चाँद सितारों की इस दुनिया की सैर करते हुए मैं इसे भी पार कर लेती हूँ और फरिश्तों की सफेद प्रकाश की आकारी दुनिया मे प्रवेश कर जाती हूँ।

 

_ ➳  अपने लाइट के आकारी शरीर को धारण कर कुछ क्षण अपने इस अव्यक्त वतन में अपने प्यारे बापदादा के साथ बिताकर, उनसे मीठी - मीठी रूह रिहान करके, अपने निराकारी बिंदु स्वरूप में पुनः स्थित होकर मैं सूक्ष्म वतन से बाहर आकर ऊपर अपने परमधाम घर की ओर रवाना हो जाती हूँ। *अपने निराकार शिव पिता के सम्मुख जाकर, मैं उनसे आ रही सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे कुछ पलों के लिए निरसंकल्प स्थिति में स्थित होकर बैठ जाती हूँ और अपने प्यारे पिता के अति सुन्दर प्रकाशमय स्वरूप को निहारते हुए, उनसे आ रही सर्वशक्तियों की किरणों की मीठी फ़ुहारों का आनन्द लेते हुए, स्वयं को उनकी शक्तियों से पूरी तरह भरपूर करके वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ*।

 

_ ➳  साकार सृष्टि पर अपने साकार शरीर रूपी रथ में विराजमान होकर मैं फिर से अपने अमूल्य ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ और अपने प्यारे प्रभु की देन इस ईश्वरीय ब्राह्मण जन्म को सफल करने के लिए बाबा को याद करने तथा औरों को भी बाबा की याद दिलाने के पुरुषार्थ में पूरी तरह लग जाती हूँ। *अपने प्यारे पिता की याद में रह, परमात्म बल से स्वयं को भरपूर रखते हुए, अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सभी आत्माओं को भी सदा परमात्म याद में रहने की प्रेरणा देते हुए उन्हें भी घड़ी - घड़ी बाबा की याद दिलाने का पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सफलता की चाबी द्वारा सर्व खजानों को सफल करने वाली महादानीआत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं कर्मक्षेत्र पर कमल पुष्प समान रहते हुए माया की कीचड़ से सेफ रहने वाली कर्मयोगी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *वर्तमान समय आप बच्चों की विश्व को इस सेवा की आवश्यकता है जो चेहरे सेनयनों सेदो शब्द से हर आत्मा के दु:ख को दूर कर खुशी दे दो।* आपको देखते ही खुश हो जाएं। इसलिए खुशनुमा चेहरा या खुशनुमा मूर्त सदा रहे क्योंकि मन की खुशी सूरत से स्पष्ट दिखाई देती है। कितना भी कोई भटकता हुआ, परेशानदु:ख की लहर में आयेखुशी में रहना असम्भव भी समझते हों लेकिन आपके सामने आते ही आपकी मूर्तआपकी वृत्ति, आपकी दृष्टि आत्मा को परिवर्तन कर ले।

 

 _ ➳  आज मन की खुशी के लिए कितना खर्चा करते हैंकितने मनोरंजन के नये-नये साधन बनाते हैं। *वह हैं अल्पकाल के साधन और आपकी है सदाकाल की सच्ची साधना।* तो साधना उन आत्माओं को परिवर्तन कर ले। *हाय-हाय ले आवें और वाह-वाह लेकर जाये। वाह कमाल है - परमात्म आत्माओं की! तो यह सेवा करो।* समय प्रति समय जितना अल्पकाल के साधनों से परेशान होते जायेंगेऐसे समय पर आपकी खुशी उन्हों को सहारा बन जायेगी क्योंकि आप हैं ही खुशनसीब। 

 

✺   *ड्रिल :-  "सच्ची खुशी बाँटने की सेवा का अनुभव"*

 

 _ ➳  रात्रि को पूरे दिन का चार्ट देकर मैं आत्मा... अपना स्थूल शरीर बिस्तर पर छोड़कर *सूक्ष्म वतन में चली जाती हूँ... मीठी ब्रह्मा मां की स्नेह भरी गोदी में सो जाती हूँ... ब्रह्म मुहूर्त के सुनहरे समय में... मीठी माँ अपना प्यार भरा हाथ मेरे सिर पर फिराते हुए... मुझे मीठी वाणी से मीठे बच्चे, लाडले बच्चे कह कर जगा रही है...* मीठी माँ गुणों और वरदानों से मुझ आत्मा को सजा रही है...

 

 _ ➳  पूरी तरह चार्ज होकर... *अपनी सम्पन्न और भरपूर अवस्था में मैं आत्मा... अपने स्थूल शरीर में प्रवेश करती हूँ... मैं स्वयं को ईश्वरीय खजानों से भरपूर देख रही हूँ...* साक्षी होकर मैं देखती हूँ कि... आज संसार में चारों तरफ कितना दुःख, अशांति है... आत्मायें कष्टों और पीड़ाओं से कराह रही हैं... आत्माएं भिखारी की भांति तलाश रही हैं... कि उनके अंधकारमय जीवन में... कहीं से खुशी की हल्की सी रोशनी नज़र आ जाये...

 

 _ ➳  मैं आत्मा खुशियों के सागर पिता की संतान हूँ... *मैं खुशी के खजाने की मालिक हूँ... मैं आत्मा खुशी के खजाने से भरपूर हूँ... लबालब हूँ... मैं आत्मा अपने मुस्कुराते चेहरे से, नयनों से, बोल से सर्व को यह खजाना बांटती जा रही हूँ...* खुशियों के फव्वारे बाबा के नीचे स्थित मैं आत्मा... सर्व आत्माओं पर खुशी का खजाना बरसा रही हूँ...

 

 _ ➳  आत्माओं के कष्ट दूर हो रहे हैं... वे सच्ची खुशी प्राप्त कर स्वयं को धन्य धन्य महसूस रही हैं... *मुझ फरिश्ते के वरदानी बोल, मधुर बोल आत्माओं को कष्टों से मुक्त करते जा रहे हैं... उनके जीवन में मिठास घोल रहे हैं...* बाबा मुझे यह सबसे श्रेष्ठ सेवा कराने के निमित्त बना रहे हैं...

 

 _ ➳  मैं आत्मा यह सच्ची सेवा कर रही हूँ... सर्व को खुशी का खजाना बांटती जा रही हूँ... आत्मायें, जो कि मनोरंजन के साधन आदि पर कितना खर्चा करके अल्पकाल की खुशी की तलाश कर रही हैं... लेकिन फिर भी उनको खुशी नहीं मिल पा रही है... वे *दुःखी, अशांत आत्मायें परमपिता परमात्मा से प्राप्त सच्ची खुशी को प्राप्त कर वाह-वाह कर रही हैं... उन के जीवन की बगिया इस सच्ची खुशी के शीतल जल से लहलहा गयी हैं... सभी के दिलों में परमात्म प्रत्यक्षता हो रही है... चारों ओर वाह बाबा, वाह बाबा के मधुर बोल गूंज रहे हैं...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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