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❍ 10 / 06 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अपने हर कर्म से बापदादा को प्रतक्ष्य किया ?*
➢➢ *"तुरंत दान महापुण्य" - इसी संस्कार को साकार रूप में लाये ?*
➢➢ *कर्मयोगी, अथक सेवाधारी और वरदानी स्वरुप का प्रतक्ष्य सैंपल बनकर रहे ?*
➢➢ *सोने के हिरण के पीछे आकर्षित तो नहीं हुए ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *ज्वाला स्वरूप की स्थिति का अनुभव करने के लिए निरन्तर याद की ज्वाला प्रज्वलित रहे। इसकी सहज विधि है-सदा अपने को ''सारथी' और 'साक्षी' समझकर चलो। आत्मा इस रथ की सारथी है-* यह स्मृति स्वत: ही इस रथ (देह) से वा किसी भी प्रकार के देहभान से न्यारा बना देती है। *स्वयं को सारथी समझने से सर्व कर्मेन्द्रियाँ अपने कण्ट्रोल में रहती हैं। सूक्ष्म शक्तियां 'मन-बुद्धि-संस्कार' भी ऑर्डर प्रमाण रहते हैं।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं स्वदर्शन चक्रधारी श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को स्वदर्शन चक्रधारी श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? *सिर्फ स्व का दर्शन किया तो सृष्टि चक्र का स्वत: ही हो जायेगा। आत्मा को जाना तो आत्मा के चक्र को सहज ही जान गये। वैसे तो 5000 वर्ष का विस्तार है। लेकिन आप सबके बुद्धि में विस्तार का सार आ गया। सार क्या है? कल और आज-कल क्या थे, आज क्या है और कल क्या बनेंगे। इसमें सारा चक्र आ गया ना।* कल और आज का अन्तर देखो कितना बड़ा है! कल कहाँ थे और आज कहाँ हैं, रात और दिन का अन्तर है। तो जब विस्तार का सार आ गया तो सार को याद करना सहज होता है ना। कल और आज का अन्तर देखते कितनी खुशी होती है! बेहद की खुशी है? ऐसे नहीं आज थोड़ी खुशी कम हो गई, थोड़ा सा उदास हो गये। उदास कौन होता है? जो माया का दास बनता है।
〰✧ क्या करें, कैसे करें, ये क्वेश्चन आना माना उदास होना। जब भी क्यों का क्वेश्वन आता है - क्यों हुआ, क्यों किया तो इससे सिद्ध है कि चक्र का ज्ञान पूरा नहीं है। अगर ड्रामा के राज को जान जाये तो क्यों क्या का क्वेश्चन उठ नहीं सकता। जब स्वयं भी कल्याणकारी और समय भी कल्याणकारी है तो यह क्या.. का क्वेश्चन उठ सकता है? तो ड्रामा का ज्ञान और ड्रामा में भी समय का ज्ञान इसकी कमी है तो क्यों और क्या का क्वेश्चन उठता है। तो कभी उठता है कि क्या यह मेरा ही हिसाब है.. मेरा ही कड़ा हिसाब है दूसरे का नहीं... कितना भी कड़ा हो लेकिन योग की अग्नि के आगे कितना भी कड़ा हिसाब क्या है! कितना भी लोहा कड़ा हो लेकिन तेज आग के आगे मोम बन जाता है। *कितनी भी कड़ी परीक्षा हो, हिसाब किताब हो, कड़ा बन्धन हो लेकिन योग अग्नि के आगे कोई बात कड़ी नहीं, सब सहज है। कई आत्मायें कहती हैं - मेरे ही शरीर का हिसाब है और किसका नहीं.. मेरे को ही ऐसा परिवार मिला है.. मेरे को ही ऐसा काम मिला है.. ऐसे साथी मिले हैं.. लेकिन जो हो रहा है वह बहुत अच्छा। यह कड़ा हिसाब शक्तिशाली बना देता है। सहन शक्ति को बढ़ा देता है।*
〰✧ तेज आग के आगे कोई भी चीज परिवर्तन न हो - यह हो ही नहीं सकता। तो यह कभी नहीं कहना - कड़ा हिसाब है। कमजोरी ही सहज को मुश्किल बना देती है। ईश्वरीय शक्ति का बहुत बड़ा महत्व है। *तो सदा स्व को देखो, स्वदर्शन चक्रधारी बनो। और बातों में जाना, औरों को देखना माना गिरना और बाप को देखना, बाप का सुनना अर्थात् उड़ना।* स्वदर्शन चक्रधारी हो या परदर्शन चक्रधारी हो? यह प्रकृति भी पर है, स्व नहीं है। अगर प्रकृति की तरफ भी देखते हैं तो परदर्शनधारी हो गये। बोडी कोंन्शसनेस होना माना परदर्शन और आत्म अभिमानी होना माना स्वदर्शन। परदर्शन के चक्र में आधाकल्प भटकते रहे ना। संगमयुग है स्वदर्शन करने का युग। सदा स्व के तरफ देखने वाले सहज आगे बढ़ते हैं।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ जैसे *मोटे शरीर* की भी *वैरायटी* होती है, वैसे ही *आत्माओं के भारी-पन* के पोज भी *वैरायटी* थे। अगर अलौकिक कैमरा से फोटो निकालो वा शीशा महल में यह वैरायटी पोज देखो तो बड़ी हँसी आए।
〰✧ जैसे आपकी दुनिया में वैरायटी पोज का खूब हँसी का खेल दिखाते हैं ना, वैसे *यहाँ भी खूब हँसाते हैं।* देखेंगे हँसी का खेल?
〰✧ बहुत ऐसे भी थे जो *मोटे-पन के कारण* अपने को मोडना चाहते भी *मोड नहीं सकते।* ऊपर जाने के बदले बार-बार नीचे आ जाते थे। बीज रूप स्टेज को अनुभव करने के बदले, विस्तार रूपी वृक्ष में अर्थात अनेक संकल्पों के वृक्ष में उलझ जाते हैं।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ जैसे पहले-पहले मौन व्रत रखा था तो सब फ्री हो गए थे, टाइम बच गया था- तो ऐसा कोई साधन निकालो जिससे सबका टाइम बच जाए-मन का मौन हो व्यर्थ संकल्प आवे ही नहीं। यह भी मन का मौन है ना। *जैसे मुख से आवाज न निकले वैसे व्यर्थ संकल्प न आयें - यह भी मन का मौन है। तो व्यर्थ खत्म हो जावेगा। सब समय बच जावेगा, तब फिर सेवा आरम्भ होगी।* मन के मौन से नई इन्वेन्शन निकलेगी - जैसे शुरु के मौन से नई रंगत निकली वैसे इस मन के मौन से नई रंगत होगी।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ब्रह्मा बाप की बच्चों से एक आशा"*
➳ _ ➳ *अपने ही घर में मीठे बाबा के कमरे में बैठी हुई मैं आत्मा... अपलक अपने प्यारे मीठे बाबा को निहार रही हूँ...* बाबा की वरदानी किरणों से शक्ति सम्पन्न बन रही हूँ... और मीठे चिंतन में खो रही हूँ... कि *प्यारे बाबा ने मुझे मेरे आत्मिक रूप का अहसास देकर... जीवन जीने की कला सिखा दी है...* स्वयं को देह समझकर जीना कितना दुखदायी था... और आत्मिक भाव ने मुझ आत्मा को किस कदर हल्का, प्यारा, सुखी कर, सच्चे आनन्द से भर दिया है... अब मैं आत्मा शिवबाबा की यादों में मदमस्त हो गयी हूँ...
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सच्ची कमाई के गहरे राज समझाते हुए कहा :-"मीठे मीठे फूल बच्चे...* चलते फिरते हर कर्म करते... ईश्वर पिता की याद में रह... अपनी हर श्वांस को पिरो दो... और *हर कर्म में ब्रह्मा बाप को फॉलो कर... सदा निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी रहना और विश्व के आगे चित्रकार बन... बाप का चित्र दिखाने वाले बनो..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा प्यारे बाबा से ज्ञान धन की दौलत पाकर खुशी से नाचती हुई... बाबा से कहती हूँ :-"मेरे मीठे सिकीलधे बाबा... मैं आत्मा आपकी प्यार भरी छत्रछाया में खुशनुमा फूल बन खिल गयी हूँ...* गुणों और शक्तियों से सजधज कर बाप समान बन रही हूँ... ज्ञान रत्नों को पाकर मालामाल हो गयी हूँ..."
❉ *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा का रूहानी श्रृंगार करते हुए कहा :-"मेरे मीठे लाडले बच्चे... बाप की सदा यह आश रहती है कि हर बच्चा... हर कर्म में... हर संकल्प में... फॉलो फादर कर बाप समान... अव्यक्त फरिश्ता बने...* इसलिये तुम कर्मयोगी बन... अपने कर्मो के दर्पण द्वारा बाप का साक्षात्कार करवाओ..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा की मीठी मीठी बातों से पुलकित होकर... इठलाती हुई कहती हूँ :-"मेरे प्यारे बाबा... आपने मुझ आत्मा को पद्मापद्म... महान भाग्यशाली बना दिया है...* देह के भान में आकर मैं आत्मा गुणहीन, शक्तिहीन हो गयी थी... प्यारे बाबा आपने मेरा जीवन सत्य की रोशनी से भर दिया है... मैं आत्मा आपकी यादों में, हर कर्म को सुकर्म बनाती जा रही हूँ..."
❉ *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने प्यारे वजूद में गहरे डुबाते हुए कहा :-*"मीठे लाडले अथक सेवाधारी बच्चे... *चाहे किसी भी तरह के सरकमस्टांस तुम्हारी बुद्धि रूपी पाँव को हिलाने के लिये आये... लेकिन तुम सदा अचल, अडोल, नष्टोमोहा रहना... बोलना कम... करना ज्यादा, मुख द्वारा बताना नही... अपितु करके दिखाना है...* तभी तुम उड़ते पंछी बन उड़ सकोगे..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा से अखुट खजाने लेकर... समस्त विश्व की मालिक बनकर कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा... आपने मुझ आत्मा के साधारण जीवन में आकर, जीवन को बेशकीमती बना दिया है...* मुझे जीवन जीने की कला सिखा दी है... मैं आत्मा ईश्वरीय यादों में अथाह खुशियों को अपनी बाँहो में भर रही हूँ... मीठे बाबा से प्यारी सी रूहरिहान कर मैं आत्मा... स्थूल तन में लौट आयी..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- कर्मयोगी, अथक सेवाधारी और वरदानी स्वरुप का प्रतक्ष्य सैंपल बनकर रहना*
➳ _ ➳ अपने अव्यक्त फ़रिश्ता स्वरूप में, अव्यक्त वतन में, अपने अति मीठे अति प्यारे अव्यक्त बापदादा के सम्मुख बैठ उनके नयनों की भाषा को समझने का मैं प्रयास कर रही हूँ। *अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के नयनों में उनकी उस आश को मैं स्पष्ट महसूस कर रही हूँ जो बाबा को अपने हर ब्राह्मण बच्चे से है कि हर बच्चा कर्मयोगी, अथक सेवाधारी और वरदानी स्वरूप का प्रत्क्षय सैम्पल बन कर रहे ताकि हर बच्चे में बाप दिखाई दे*। बाबा के नयनों में समाई इस आश को पूरा करने की मन ही मन मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करते हुए फिर से अपने प्यारे बापदादा की ओर देखती हूँ जो एकटक मुझे निहार रहें हैं जैसे मेरे मन की हर बात को जान गए हैं। *मन्द - मन्द मुस्कारते, स्वयं को निहारते हुए अपने प्यारे पिता को देख मैं मन ही मन प्रफुलित हो रही हूँ और अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना कर रही हूँ*।
➳ _ ➳ अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की स्मृति में खोई हुई मैं एक दृश्य देख रही हूँ। इस दृश्य में मुझे बाबा के दो स्वरूप दिखाई दे रहें हैं। एक बाबा का साकार स्वरूप जो बिल्कुल साधारण होते हुए भी विशेष है। *देख रही हूँ बाबा कैसे कर्मयोगी बन हर कर्म करते हुए एक दम लाइट स्थिति में स्थित है। स्वयं को निमित समझ हर कर्म करते हुए बाबा जैसे हर कर्म के बन्धन से मुक्त दिखाई दे रहें हैं*। एक दिव्य अलौकिक चमक बाबा के चेहरे पर स्पष्ट दिखाई दे रही है। कर्मयोगी के साथ अथक सेवाधारी बन बाबा हर सेवा निमित बन बिल्कुल हल्के रहकर करते जा रहें है। बस एक ही संकल्प की ये सेवा मेरी नही शिव बाबा की है। *सेवा में सम्पूर्ण समर्पणता का भाव ही बाबा को अथक बना कर हर सेवा में सहज ही सफलतामूर्त बना रहा है। वरदानी स्वरुप का प्रत्क्षय सैम्पल बाबा के साकार स्वरूप में मैं बाबा के हर कर्म और हर सेवा में देख रही हूँ*।
➳ _ ➳ दूसरी तरफ मैं बाबा का अव्यक्त स्वरूप देख रही हूँ जो बहुत ही न्यारा और प्यारा है। बाबा का ये सम्पूर्ण स्वरूप देह के बन्धनों से परें बेहद की सेवा करता हुआ, विश्व की सर्व आत्माओं का कल्याण करता हुआ, अपने बच्चों को आप समान बनाने के लिए उन्हें अपना बल देकर आगे बढ़ाता हुआ और ज्ञान, गुण और शक्तियों के अखुट खजानो से अपने हर बच्चे को सदा भरपूर करता हुआ दिखाई दे रहा है। *बाबा के इस अव्यक्त स्वरूप में बाबा के बेहद सेवाधारी और महावरदानी स्वरुप को मैं देख रही हूँ। बाबा के साकार और अव्यक्त दोनों स्वरूपों को देख बाबा जैसा बनने की स्वयं से मैं फिर से प्रतिज्ञा करती हूँ और बाबा के सम्मुख बैठी अनुभव करती हूँ जैसे बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रखकर मुझे कर्मयोगी, अथक सेवाधारी और वरदानीमूर्त भव का वरदान दे रहें है*।
➳ _ ➳ वरदान देकर अब बाबा मेरी प्रतिज्ञा को पूरा करने का बल मेरे अंदर भर रहें हैं। शक्तियों की रंग बिरंगी सुनहरी किरणो को बाबा के वरदानी हस्तों से निकल कर अपने अंदर समाते हुए मैं महसूस कर रही हूँ। सर्वशक्तियों की किरणों की मीठी फुहारें मेरे मस्तक को स्पर्श करके सीधी मुझ आत्मा में प्रवाहित होकर मुझे बलशाली बना रही हैं। *ऐसा लग रहा है जैसे आप समान बनाने के लिए बाबा अपनी शक्तियों का समस्त बल मुझमें भर रहें हैं। एक विशेष दिव्य शक्ति मैं अपने अंदर अनुभव कर रही हूँ। यह शक्ति मुझे बहुत ही लाइट और माइट स्थिति में स्थित कर रही है*। अपने सम्पूर्ण लाइट माइट स्वरूप के साथ बाबा से की हुई प्रतिज्ञा और अपने प्यारे ब्रह्मा बाप की आश को पूरा करने के लिए अब मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ और आकर अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अपने प्यारे ब्रह्मा बाप की आश को पूर्ण करने और परमात्म कार्य को सम्पन्न करने का पुरुषार्थ अब मैं दृढ़ता के साथ कर रही हूँ। *अपने कर्मो के दर्पण द्वारा सबको बाप का साक्षात्कार कराने और बाप समान अव्यक्त फ़रिश्ता बन कर्मयोगी का पार्ट बजाने की अपने प्यारे बाबा की आश को पूरा करने के लिए मैं कदम - कदम पर उन्हें फॉलो कर रही हूँ*। उनके एक - एक कर्म को कॉपी करते हुए, उनके समान कर्मयोगी, अथक सेवाधारी और वरदानी स्वरुप का प्रतक्ष्य सैंपल बनने का पुरुषार्थ पूरी लगन के साथ करते हुए उनकी अमूल्य पालना का रिटर्न देने का मैं हर सम्भव प्रयास कर रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं दया भाव को धारण कर सर्व की समस्याओं को समाप्त करने वाली मास्टर दाता आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं अपने रहमदिल स्वरूप वा दृष्टि से हर आत्मा को परिवर्तन कर देने वाली पुण्यात्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ समय और स्वयं के महत्व को स्मृति में रखो तो महान बन जायेंगे *संगम युग
का एक-एक सेकण्ड सारे कल्प की प्रालब्ध बनाने का आधार है। ऐसे समय के महत्त्व
को जानते हुए हर कदम उठाते हो? जैसे समय महान है वैसे आप भी महान आत्मा हो -
क्योंकि बापदादा द्वारा हर बच्चे को महान आत्मा बनने का वर्सा मिला है। तो
स्वयं के महत्व को भी जानकर हर संकल्प, हर बोल और हर कर्म महान करो।* सदा इसी
स्मृति में रहो कि हम ‘महान बाप के बच्चे महान हैं।' इससे ही जितना श्रेष्ठ
भाग्य बनाने चाहो बना सकते हो। संगमयुग को यही वरदान है। सदा बाप द्वारा मिले
हुए खजानों से खेलते रहो। कितने अखुट खजाने मिले है, गिनती कर सकते हो! तो सदा
ज्ञान रत्नों से, खुशी के खजाने से शक्तियों के खजाने से खेलते रहो। सदा मुख से
रतन निकलें, मन में ज्ञान का मनन चलता रहे। ऐसे धारणा स्वरूप रहो। महान समय है,
महान आत्मा हूँ - यही सदा याद रखो।
✺ *"ड्रिल :- समय और स्वयं के महत्व को स्मृति में रखना"*
➳ _ ➳ सुबह सुबह जब मैं दाना पानी लेकर छत पर गई और चिड़िया को खिलाने लगी...
तो मैंने देखा कुछ पंछी बहुत तेजी से आकाश में उड़ते हुए जा रहे हैं... उनमें
से एक पक्षी उडकर मेरे पास आ जाता है... और दाना चुगने लगता है दाना चुगकर जैसे
ही वह पक्षी पानी पीकर उड़ने लगता है तो मैं उसे रोकती हूं और कहती हूं... तुम
सभी पक्षी इतनी तेजी से कहां उड़े चले जा रहे हो... *तो वह पक्षी मुझे समय का
महत्व समझाते हुए कहता है कि मैं अपने समय के इस महत्व को अच्छी रीती जानते हुए
उस दिशा में अपने घोंसले में छोड़े हुए छोटे-छोटे बच्चे हैं उनके लिए भोजन
एकत्रित करने के लिए उस दिशा की तरफ जा रहा हूं... इतना कहकर वह पक्षी फर्र से
उड़ जाता है...*
➳ _ ➳ तभी अचानक वहां पर मेरे सामने चिड़िया आकर छोटे से पेड़ की टहनी पर बैठ
जाती है और मैं उससे कहती हूं... चिड़िया रानी मुझे इस समय के महत्व के बारे
में पूर्ण रीति से समझाइए... चिड़िया मेरी बात सुनकर खुश हो जाती है... और चहक
चहक कर मुझे सारा हाल बताती हैंऔर कहती है... *हम पक्षियों को बस दिन ही मिलता
है जिसमें हम हमारा भोजन जुटा सकते हैं... इसमें बीच-बीच में आंधी और तूफान भी
आते हैं जिससे हमें अपनी रक्षा करनी होती है... इसलिए हम कम समय में अपना भोजन
एकत्रित करने का प्रयास करते हैं....* और वह चिड़िया मुझसे कहती है जब मुझे
उड़ना भी नहीं आता था मैं अपने घोंसले में सारा दिन व्यतीत करती थी और मेरी मां
मेरे लिए दाना अर्थात भोजन इकट्ठा करने के लिए सुबह ही घर से निकल जाती थी...
और शाम को जब मेरी मां घोंसले में आती तो मेरे लिए अपनी चोंच में भोजन लेकर आती
थी... इतना कहकर वह चिड़िया भी उड़ जाती है...
➳ _ ➳ पक्षियों के इन विचारों को सुनकर मेरे मन में एक अलग ही अनुभूति होती
है... मुझे भी यह विचार आता है कि इस संगम युग पर परमपिता परमात्मा सिर्फ हमारे
लिए इस धरा पर आए हैं... और मुझे भी यह आभास होता है कि यह संगम युग मेरे लिए
कितना महत्वपूर्ण है... यह सोचते हुए मैं फरिश्ता बनकर मेरे बाबा के पास
सूक्ष्म वतन में पहुंच जाती हूं... और बाबा से कहती हूं बाबा मुझ आत्मा को इस
संगम युग के महत्व के बारे में विस्तार से बताइए... बाबा मेरा हाथ पकड़ कर
फरिश्ते स्वरूप में उड़ते हुए चंद्रमा के ऊपर बैठ जाते हैं... और उस शीतल
वातावरण में मुझे समझाते हैं... *बच्चे इस संगम युग का जन्म तुम्हारे लिए हीरे
तुल्य जन्म है... तुम इस संगम युग में पुरूषार्थ करके 21 जन्मों की सुख की
अनुभूति और सुख समृद्धि को प्राप्त कर सकते हो... यह समय तुम्हारे लिए बहुत
महत्वपूर्ण है... इस समय का एक एक सेकंड तुम्हारे लिए 100 वर्षों के समान है...
अगर तुमने 1 सेकंड भी व्यर्थ में गवाया तो मानो 100 वर्ष तुमने व्यर्थ में गवा
दिए...*
➳ _ ➳ कुछ समय बाद मैं अपने आप को एक तारे पर बाबा के साथ बैठा हुआ अनुभव करती
हूं और बाबा मुझसे कह रहे हैं... (बच्चे इस संगम युग में तुम्हें अधिक-से-अधिक
पुरुषार्थ करके पुरुषोत्तम बनना है... इसी समय तुम परमात्मा द्वारा दिए हुए
खजानो को बटोर सकते हो... और *इसी समय परमात्मा से प्रीत बुद्धि बनकर उनके
दिलतख्तनशीन बन सकते हो परमात्मा तुम्हें महान बनाने आए हैं... तुम्हें महान
स्थिति का अनुभव करते हुए अपने हर बोल, संकल्प , कर्म को महान बनाना है... और
इस महान संगम युग में तुम्हें अपने आप को और अपने कर्मों को महान बनाना है...*
➳ _ ➳ फिर बाबा मुझे फरिश्ते स्वरूप में उड़ा कर सूक्ष्म वतन में ले जाते
हैं... और बाबा मुझे कहते हैं बच्चे जो मैंने तुम्हें अभी शिक्षा दी है जिस समय
के महत्व के बारे में बताया है आज से उस समय के महत्व को जानते हुए और अपना
महत्व जानकर इस स्मृति में रहना...कि यह समय तुम्हारे लिए कितना महत्वपूर्ण
है... मैं बाबा को धन्यवाद करते हुए और यह वादा करते हुए कि मैं आपके द्वारा दी
हुई इन शिक्षाओं का अनुसरण करूंगी और वापस छत पर आ जाती हूं... जहां मैं
चिड़िया को दाना पानी डाल रही थी और *मैं अब उस पुरुषार्थ में जुट जाती हूं कि
आज से संगम युग मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है... इस समय और स्वयं की
महत्वपूर्णता की स्मृति में मैं हर कर्म, बोल और संकल्प को महान बनाने में जुट
जाती हूं...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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