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❍ 24 / 12 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *ज्ञान रत्नों पर विचार सागर मंथन कर उन्हें धारण किया ?*
➢➢ *किसी से वाह्यात बातें तो नहीं की ?*
➢➢ *माया को दुश्मन के बजाये पाठ पढाने वाली सहयोगी समझा ?*
➢➢ *हर संकल्प में दृढ़ता की महानता से सफलता को प्राप्त किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *शरीर में होते निराकारी आत्मिक रुप में स्थित रहो तो यह साकार रूप गायब हो जायेगा।* जैसे साकार बाप को देखा, व्यक्त गायब हो अव्यक्त दिखाई देता था। *तो ऐसी अवस्था बनाने के लिए मन्सा में निराकारी स्टेज, वाचा में निरहंकारी और कर्म में निर्विकारी स्टेज हो। संकल्प में भी कोई विकार का अंश न हो।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं खुशी के खजाने से सम्पन्न आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा खुशी के खजानों से खेलने वाले हो ना? *खुशी भी एक खजाना है जिस खजाने द्वारा अनेक आत्माओंको माला माल बना सकते हो। आजकल विशेष इसी खजाने की आवश्यकता है।* और सब हैं लेकिन खुशी नहीं। आप सबको तो खुशियों की खान मिल गयी है। अनगिनत खजाना मिल गया है।
〰✧ खुशी के खजाने में भी वैराइटी है ना। कभी किस बात की खुशी कभी किस बात की खुशी। कभी बालक पन की खुशी तो मालिकपन की खुशी। *कितने प्रकार के खुशी के खजाने मिले हैं। वो वर्णन करते हुए औरों को भी मालामाल बना सकते हो। तो इन खजानों को सदा कायम रखो। और सदा खजानों के मालिक बनो।*
〰✧ सदा बाप द्वारा मिली हुई शक्तियों को कार्य में लगाते रहो। बाप ने तो शक्तियाँ दे दी हैं। अब सिर्फ उन्हें कार्य में लगाओ। *सिर्फ मिल गया है, इसमें खुश नहीं रहो लेकिन जो मिला है वो स्वयं के प्रति और सर्व के प्रति यूज करो तो सदा मालामाल अनुभव करेंगे।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ चाहे प्रकृति के पाँचों ही तत्व अच्छी तरह से हिलाने की कोशिश करेंगे परंतु *विदेही अवस्था की अभ्यासी आत्मा बिल्कुल ऐसा अचल-अडोल पास विद ऑनर होगा जो सब बातें पास हो जायेंगी लेकिन वह ब्रह्मा बाप के समान पास विद ऑनर का सबूत रहेगा।*
〰✧ बापदादा समय प्रति समय इशारे देते भी हैं और देते रहेंगे। *आप सोचते भी हो, प्लैन बनाते भी हो, बनाओ।* भले सोचो लेकिन क्या होगा! उस आश्चर्यवत होकर नहीं। विदेही, साक्षी बन सोची लेकिन सोचा, प्लैन बनाया और सेकण्ड में प्लेन स्थिति बनाते चलो।
〰✧ अभी आवश्यकता स्थिति की है। *यह विदेही स्थिति परिस्थिति को बहुत सहज पार कर लेगी।* जैसे बादल आये, चले गये। और विदेही, अचल-अडोल हो खेल देख रहे हैं। अभी लास्ट समय को सोचते हो लेकिन लास्ट स्थिति को सोची।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *फ़रिश्ते अर्थात् भक्तों को और वैज्ञानिकों को टचिंग कराने वाले* (दीदी से) वर्तमान समय महावीरों की वतन में विशेष महफिल लगती है। क्यों लगती है, वह जानती हो? आजकल बापदादा ने जैसे स्थापना में ब्रह्मा के सम्पूर्ण स्वरूप द्वारा साक्षात्कार कराने की सेवा ली, ऐसे *आजकल अष्ट रत्न सो इष्ट रत्न उनको भी शक्ति के रूप में साथ-साथ साक्षात्कार कराने की सेवा कराते हैं।* स्थूल शरीर द्वारा साकारी ईश्वरीय सेवा में बिजी रहते हो लेकिन आजकल अनन्य श्रेष्ठ आत्माओं की डबल सेवा चल रही है। जैसे ब्रह्मा द्वारा स्थापना की वृद्धि हुई वैसे अभी शिव-शक्ति के कम्बाइन्ड स्वरूप द्वारा साक्षात्कार और सन्देश मिलने का कार्य आपके सूक्ष्म शरीरों द्वारा भी हो रहा है। तो बापदादा अनन्य बच्चों को इस सेवा में भी सहयोगी बनाते हैं। इसलिए सूक्ष्म सेवा के प्रैक्टिकल प्लैन के कारण वहाँ महफिल लगती है। इसलिए *महावीर बच्चों को कर्म करते भी किसी भी कर्मबन्धन से मुक्त सदा डबल लाइट रूप में रहना है।* बाप ने सूक्ष्म वतन में इमर्ज किया, सेवा कराई- उसकी अनुभूति इस साकार सृष्टि से भी कर सकते हो। ऐसे अनुभव आगे चल कर बहुत करेंगे। डबल सेवा का पार्ट चल रहा है। *बापदादा अनन्य बच्चों के संगठन द्वारा भक्तों को और वैज्ञानिकों को, दोनों को टचिंग कराने की सेवा कराते रहते हैं।* उनमें अनन्य भक्ति के संस्कार भर रहे हैं जो आधा कल्प भक्ति मार्ग को चलाते रहेंगे। और वैज्ञानिकों को परिवर्तन करने और रिफ़ाइन साधन बनाने में। जो साधन जैसे ह सम्पन्न होंगे तो उसका सुख सम्पूर्ण आत्मायें लेंगी। ये (वैज्ञानिक) नहीं ले सकेंगे। तो दोनों ही कार्य सूक्ष्म सेव द्वारा हो रहे हैं। समझा?
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- चुप रहकर मामेकम याद करना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा के कमरे में बैठ बाबा का आह्वान करती हूँ... बाबा मेरी एक पुकार सुन तुरन्त आ जाते हैं और मुझे अपने साथ ले चलते हैं वतन में... और ज्ञान की बरसात करते हैं... ज्ञान सागर बाबा मुझे ज्ञान की नौका में बिठाकर विषय सागर को पार करा रहे हैं...* मैं आत्मा अपने जीवन रूपी नैया की पतवार रूहानी खिवैया के हाथों में सौम्पकर निश्चिन्त होकर बाबा की यादों में खो जाती हूँ...
❉ *काँटों के जंगल से निकाल फूलों की बगिया में मुस्कुराता हुआ फूल बनाकर प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे बच्चे... इस पुरानी खत्म होने के कगार पर खड़ी दुनिया से रगो को बाहर निकालो... सारा ममत्व मिटा दो... *देह और देह के नातो से निकल आत्मा के भान में आ जाओ... सिर्फ मीठे बाबा की यादो में खो जाओ... यही यादे सदा का साथ निभाएगी और सुखो की दुनिया में ले जाएँगी...”*
➳ _ ➳ *सर्व संबंधों का रस एक बाबा से लेते हुए एक बाबा को ही अपनी दुनिया बनाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा इस विकारी दुनिया से मन और बुद्धि को निकाल कर निर्मोही हो गई हूँ... *आपकी मीठी यादो में खोकर इस विनाशी दुनिया को भूल गई हूँ... अब बाबा ही मेरा संसार है...”*
❉ *यादों की महफिल सजाकर अमृत पान कराकर अमर बनाते हुए मीठा बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे फूल बच्चे... अब देह व देह के भान में लिपटे नातो से उपराम बनो... और आत्मिक सुंदरता से सज जाओ... *इस विनाशी संसार में दिल न फंसाओ... वक्त से पहले देवताई गुणी शक्तियो से सज जाओ... मीठे बाबा की याद को हर साँस में पिरो दो... वही सच्चा सहारा है... और स्वर्ग में ले जाने वाला है...”*
➳ _ ➳ *सत्य ज्ञान से दमकती अपने निज स्वरुप में मणि समान चमकती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अपने सत्य स्वरूप और सतयुगी सुखो को जानकर झूठ के जंजालों से परे होती जा रही हूँ... *समय और सांसो को मीठे बाबा पर ही लुटा रही हूँ... और विनाशी संसार के मोहपाश से मुक्त हो रही हूँ...”*
❉ *अंतर्मन में ज्ञान की ज्योत जगाकर अविनाशी सुखों के राह को रोशन करते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... यह शरीर के रिश्ते और ही गहरे गिराएंगे और गहरे दुखो के दलदल में उलझायेंगे... *इनसे मन बुद्धि को बाहर निकाल ईश्वरीय यादो में स्वयं को पावन बनाओ... और ज्ञान और योग से सजकर देवताई स्वराज्य पा जाओ... इस विकारी विनाशी दुनिया से दिल न लगाओ...”*
➳ _ ➳ *इस देह की दुनिया से न्यारी होकर प्रभु पिता के दिल में सदा के लिए सजकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *आपके प्यार में मै आत्मा मोह से मुक्त होती जा रही हूँ... इन देह के खोखले नातो के प्रभाव से आजाद होती जा रही हूँ... और सच्ची मीठी यादो में झूम रही हूँ...* और सतयुगी सुनहरे संसार में खोती जा रही हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अशरीरी बनने का अभ्यास करना है*"
➳ _ ➳ भगवान की पहचान मिलते ही ब्रह्मा बाबा ने जिस समर्पण भाव से अपना तन - मन - धन सब कुछ शिव बाबा के ऊपर बलिहार कर दिया और भगवान का मुरब्बी बच्चा बन, सभी ब्राह्मण बच्चों के लिए प्रेंरणा स्त्रोत बन गए, *ऐसे अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा को फॉलो करने और बुद्धि से सब कुछ अपने भगवान बाप के आगे सरेन्डर करने की स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर मैं अशरीरी स्थिति में स्थित होकर अपने अति प्यारे अति मीठे शिव बाबा की याद में मन बुद्धि को जैसे ही एकाग्र करती हूँ। मुझे बाबा की उपस्थिति का स्वत: ही अहसास होने लगता है*। बाबा की छत्रछाया को अपने ऊपर अनुभव करते हुए मैं महसूस करती हूँ जैसे एक महाज्योति जिसमे से अनन्त प्रकाश निकल रहा है, मेरे सिर के बिल्कुल ऊपर स्थित है।
➳ _ ➳ उस महाज्योति से निकल रहे प्रकाश की रंग बिरंगी किरणे एक खूबसूरत रंग बिरंगे इन्द्रधनुषी झरने के समान प्रतीत हो रही हैं। *जिनसे निकल रही सर्व गुणों और सर्वशक्तियों की मीठी - मीठी फ़ुहारों को मैं अपने ऊपर गिरता हुआ स्पष्ट कर रही हूँ। औंस की बूंदों की तरह ये फुहारें मुझ आत्मा के ऊपर गिरते हुए मुझे एक अद्भुत शीतलता की अनुभूति करवा रही हैं*। एक रूहानी नशा मेरे अंदर भरता जा रहा है जो मुझ आत्मा के ऊपर चढ़े देह के आवरण को पारदर्शी बना रहा है।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे देह नाम की कोई वस्तु है ही नही केवल एक प्वाइंट ऑफ लाइट मुझे दिखाई दे रही है। अशरीरीपन का यह अनुभव बहुत ही अद्भुत और निराला है।
*हर बन्धन से मुक्त यह निर्बन्धन स्थिति मुझे बहुत ही सुखद अनुभव करवा रही है। एक गहन शन्ति मैं अपने आप मे महसूस कर रही हूँ*। एक ऐसी शान्ति जिसकी तलाश में मैं ना जाने आज तक कहाँ - कहाँ नही भटक रही थी। लेकिन आज मुझे यह एहसास हो गया है कि वो शान्ति जिसे मैं बाहर ढूंढ रही थी वो तो मेरे ही अंदर समाई हुई है।
➳ _ ➳ आज इस अशरीरी स्थिति में अपने वास्तविक स्वरूप का अनुभव करके मैंने ये जान लिया कि मेरा निजी गुण ही शांति है। इसलिए जब चाहे अशरीरी बन, अपने स्वधर्म में स्थित होकर मैं गहन शांति की अनुभूति कर सकती हूँ। *इसी संकल्प के साथ अपने स्वधर्म में टिक कर, शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स चारों ओर फैलाती हुई मैं शांति के सागर अपने शिव पिता के पास अपने शांति धाम घर की ओर चल पड़ती हूँ*। झिल - मिल करती, जग - मग करती मैं चैतन्य शक्ति अपनी रूहानी यात्रा का आनन्द लेती, शीघ्र ही साकारी और आकारी दुनिया को पार कर अपनी निराकारी दुनिया मे प्रवेश करती हूँ और शांति के सागर अपने शिव पिता के पास पहुँच कर, *उनसे आ रही शांति की शीतल लहरों का स्पर्श पाकर शन्ति के गहरे अनुभवों में डूब जाती हूँ*।
➳ _ ➳ शान्ति के सुखद अनुभवों का असीम आनन्द लेकर अब मैं आत्मा अपने प्यारे पिता के बिल्कुल समीप जा कर उन्हें टच करती हूँ और उनसे आ रही सर्वगुणों और सर्वशक्तियों की शक्तिशाली किरणों से स्वयं को भरपूर करने लगती हूँ। *सर्व शक्तियों को स्वयं में भर कर, सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप बनकर और अपने प्यारे पिता के साथ अद्भुत मंगलमयी मिलन मनाकर अब मैं आत्मा लौट आती हूँ फिर से उसी साकारी दुनिया मे अपना पार्ट बजाने*। अपने साकारी तन में प्रवेश कर, भृकुटि के अकालतख्त पर आ कर मैं आत्मा विराजमान हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते, बुद्धि से सब कुछ सरेन्डर कर, बीच बीच मे अशरीरी बन अपने प्यारे पिता की याद से विकर्मो को दग्ध करने का पुरुषार्थ भी मैं अब साथ - साथ कर रही हूँ। *कर्मयोगी बन कर्म करते और फिर कर्म के समाप्त होते ही, अशरीरी बन बाप को याद करने का अभ्यास मुझे शान्ति का अनुभव करवाकर, मेरी स्थिति को शक्तिशाली बनाता जा रहा है। अपनी शक्तिशाली स्व स्थिति के कारण अब हर परिस्थिति का सामना करना मुझे सहज अनुभव होने लगा है*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं माया को दुश्मन के बजाए पाठ पढ़ाने वाली सहयोगी समझ एकरस रहने वाली मायाजीत आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं हर संकल्प में दृढ़ता की महानता को धारण कर सफलता प्राप्त करने वाली सफलतामूर्त आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बापदादा ने देखा है कि एक संस्कार या नेचर कहो, नेचर तो हर एक की अपनी-अपनी है लेकिन *सर्व का स्नेही और सर्व बातों में, सम्बन्ध में सफल, मन्सा में विजयी और वाणी में मधुरता तब आ सकती है जब इजी नेचर हो।* अलबेली नेचर नहीं। अलबेलापन अलग चीज है। इजी नेचर उसको कहा जाता है - *जैसा समय, जैसा व्यक्ति, जैसा सरकमस्टांश उसको परखते हुए अपने को इजी कर देवे। इजी अर्थात् मिलनसार।* टाइट नेचर बहुत टू-मच आफीशियल नहीं, आफीशियल रहना अच्छा है लेकिन टू-मच नहीं और समय पर जब समय ऐसा है, उस समय अगर कोई आफीशियल बन जाता है तो वह गुण के बजाए, उनकी विशेषता उस समय नहीं लगती। अपने को मोल्ड कर सके, मिलनसार हो सके, छोटा हो, बड़ा हो। बड़े से बड़ेपन में चल सके, छोटे से छोटेपन में चल सके। साथियों में साथी बनके चल सके, बड़ों से रिगार्ड से चल सके। इजी मोल्ड कर सके, शरीर भी इजी रखते हैं ना तो जहाँ भी चाहें मुड जाते हैं और टाइट होगा तो मुड नहीं सकेगा। अलबेला भी नहीं, इजी है तो जहाँ चाहे इजी हो जाए, अलबेला हो जाए। नहीं। *बापदादा ने कहा ना इजी हो जाओ तो इजी हो गये, ऐसे नहीं करना। इजी नेचर अर्थात् जैसा समय वैसा अपना स्वरूप बना सके।*
✺ *ड्रिल :- "इजी नेचर से जैसा समय, जैसा व्यक्ति, जैसा सरकमस्टांश वैसा अपना स्वरूप बनाना"*
➳ _ ➳ *कोटो में कोई और कोई में भी कोई मैं पदमापदम सौभाग्यशाली आत्मा... ब्रह्मामुख वंशावली ब्राह्मण आत्मा बन गई...* शुक्रिया अदा करती मैं संगमयुगी आत्मा... बैठी हूँ बाबा के कमरे में... बापदादा का भावपूर्ण आह्वान करती मैं आत्मा ज्योतिपुंज... अपने शरीर के अकालतख्त पर विराजमान हूँ... *देह अभिमान से मुक्त मुझ आत्मा का प्यार भरा आह्वान सुनकर बापदादा आ जाते हैं मेरे समीप...* बाबा का कमरा दिव्य अलौकिक खुशबू से भर जाता हैं... बापदादा का फ़रिश्ता स्वरुप गोल्डन तेजोमय किरणों से प्रकाशित हो रहा हैं...
➳ _ ➳ *बापदादा से आती हुई रंग बिरंगी चमकीली किरणों का फाउंटेन पूरे कमरे में फ़ैल गया हैं...* मैं आत्मा परिपूर्ण होती जा रही हूँ... मुझ आत्मा का स्थूल शरीर भी पवित्र होता जा रहा हैं... मैं आत्मा अपने स्थूल शरीर का त्याग कर फ़रिश्ता स्वरुप धारण करती हूँ... और मैं आत्मा अपने फ़रिश्ते स्वरुप में चल पड़ती हूँ बापदादा के साथ... एक ग्लोब की चोटी पर... *बापदादा के संग मैं आत्मा बैठी हूँ ग्लोब की चोटी पर...* बापदादा एक सीन दिखा रहे हैं... एक बड़ा हॉल हैं जहाँ एक फंक्शन चल रहा हैं... बच्चे... जवान... वृद्ध... सभी खुश खुशहाल नजर आ रहे हैं...
➳ _ ➳ खाना-पीना... ऐश-आराम की कोई कमी नहीं थी... भरपूरता ही भरपूरता थी... *बस कमी थी तो संस्कारों की... न बड़ो का लिहाज रखा जा रहा था और न बच्चों और छोटो से प्यार भरा आचरण था... युवा पीढ़ी अपने ही दैहिक आकर्षणों में उलझी हुई थी...* चारो तरफ वातावरण अस्त-व्यस्त दुराचार से भरा हुआ था... तभी वहाँ पर एक ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी के एक ग्रुप का आगमन होता हैं... *वाइट ड्रेस में... श्री लक्ष्मी श्री नारायण का बैच पहने... हाथों में बापदादा का झंडा लहराए...* द्वार पे खड़े थे... प्रोग्राम के आयोजक से परमिशन लेकर ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारियों ने शिव प्रदर्शनी का आयोजन किया...
➳ _ ➳ और पूरे हॉल में डीप साइलेंस छा जाता हैं... जब ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी का प्रवचन स्टार्ट होता हैं... *भगवान कौन... हम कौन... सारे सृष्टि चक्र का राज... संगमयुग में भगवान के अवतरण को जानकर* सभी उपस्थित अचम्भित हो जाते हैं... न कभी सुना ऐसा गुह्य ज्ञान... सुन कर भाव विभोर हो जाते हैं... *ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी का मिलनसार व्यक्तित्व... संयमपूर्वक वार्तालाप... नजरों में... वाणी में... एक एक बोल में... प्यार भरी मिठास* देख के... सुन के... सभी उपस्थित लोगों का दिल ख़ुशी के हिलोरे ले रहा हैं... और मैं फ़रिश्ता आत्मा यह नजारा देख मन ही मन बाबा को धन्यवाद कहती हूँ... बापदादा से प्रवाहित होता किरणों का झरना उन सभी उपस्थित और ब्रह्माकुमार - ब्रह्माकुमारियों पर प्रवाहित हो रहा हैं और सभी के व्यक्तित्व में निखार आ रहा हैं... *सभी को अपनी भूलों का अहसास होता है... और सभी का व्यवहार मिलनसार... खुशनुमा बनता जा रहा हैं...*
➳ _ ➳ *बाबा के पवित्र... रूहानी किरणों से सभी आत्माओं की ज्योति जग जाती हैं... और सभी बाबा के बच्चे बन जाते हैं...* ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में राजयोग मेडिटेशन का कोर्स कर बापदादा की श्रीमत पर पूरा पूरा बलिहार जाते हैं... सभी उपस्थित आत्मायें... *सर्व का स्नेही और सर्व बातों में, सम्बन्ध में सफल, मन्सा में विजयी और वाणी में मधुरता लाने में सक्षम हो जाते हैं... इजी नेचर - जैसा समय, जैसा व्यक्ति, जैसा सरकमस्टांश उसको परखते हुए अपने को इजी कर देना ही अब हम सभी ब्राह्मण आत्माओं का ईश्वरीय कर्तव्य बन गया हैं...* बाबा से आशीर्वाद लेती मैं आत्मा वापिस अपने स्थूल देह में प्रवेश करती हूँ और अपने लौकिक कार्य में इजी नेचर अर्थात् जैसा समय वैसा अपना स्वरूप अनुभव कर रही हूँ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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