━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 29 / 10 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सद्गति दाता बाप में संशय तो नहीं उठाया ?*

 

➢➢ *वाह्यात बातें न सुनी और न सुनायी ?*

 

➢➢ *अपने शक्ति स्वरुप द्वारा अलोकिकता का अनुभव करवाया ?*

 

➢➢ *अपनी कर्मेन्द्रियों को योग की अग्नि में तपाया ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  कर्मातीत स्थिति को पाने के लिए विशेष स्वयं में समेटने की शक्ति, समाने की शक्ति धारण करना आवश्यक है। *कर्मबन्धनी आत्माएं जहाँ हैं वहाँ ही कार्य कर सकती हैं और कर्मातीत आत्मायें एक ही समय पर चारों ओर अपना सेवा का पार्ट बजा सकती हैं क्योंकि कर्मातीत हैं। उनकी स्पीड बहुत तीव्र होती है, सेकण्ड में जहाँ चाहे वहॉ पहुँच सकती हैं, तो इस अनुभूति को बढ़ाओ।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✺   *"मैं तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ"*

 

  स्वयं को तीव्र पुरूषार्थी आत्मायें अनुभव करते हो? *क्योंकि समय बहुत तीव्रगति से आगे बढ़ रहा है। जैसे समय आगे बढ़ रहा है, तो समय पर मंजिल पर पहुँचने वाले को किस गति से चलना पड़े? समय कम है और प्राप्ति ज्यादा करनी है। तो थोड़े समय में अगर ज्यादा प्राप्ति करनी हो तो तीव्र करना पड़ेगा ना।* समय को देख रहे हो और अपने पुरूषार्थ की गति को भी जानते हो। तो समय अगर तेज है और अपनी गति तेज नहीं है तो समय अर्थात् रचना आप रचता से भी तेज हुई।

 

  रचता से रचना तेज चली जाए तो उसे अच्छी बात कहेंगे? रचना से रचता आगे होना चाहिए। *सदा तीव्र पुरूषार्थी आत्मायें बन आगे बढ़ने का समय है। अगर आगे बढ़ते कोई साइडसीन को भी देख रूकते हो, तो रूकने वाले ठीक समय पर पहुँच नहीं सकेंगे। कोई भी माया की आकर्षण साइडसीन है।* साइडसीन पर रूकने वाला मंजिल पर कैसे पहुँचेगा? इसलिए सदैव तीव्र पुरूषार्थी बन आगे बढ़ते चलो।

 

  ऐसे नहीं समय पर पहुँच ही जायेंगे, अभी तो समय पड़ा है। ऐसे सोचकर आगर धीमी गति से चलेंगे तो समय पर धोखा मिल जायेगा। बहुत काल का तीव्र पुरूषार्थ का संस्कार अन्त में भी तीव्र पुरूषार्थ का अनुभव करायेगा। तो सदा तीव्र पुरूषार्थी। कभी तीव्र, कभी कमजोर नहीं। ऐसे नहीं थोड़ी-सी बात हुई कमजोर बन जाओ। इसको तीव्र पुरूषार्थी नहीं कहेंगे। *तीव्र पुरूषार्थी कभी रूकते नहीं, उड़ते हैं। तो उड़ते पंछी बन उड़ती कला का अनुभव करते चलो। एक-दो को भी सहयोग दे तीव्र पुरूषार्थी बनाते चलो। जितनी औरों की सेवा करेंगे उतना स्वयं का उमंग-उत्साह बढ़ता रहेगा।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  *राजा ऑर्डर करे - यह काम नहीं होना है।* तो प्रजा क्या करेगी? *मानना पडेगा ना।* आजकल तो राजा ही नहीं है, प्रजा का प्रजा पर राज्य है। इसलिए कोई किसका मानता ही नहीं है। लेकिन आप लोग तो राजयोगी हो ना।

 

✧  आपके यहाँ प्रजा का प्रजा पर राज्य नहीं है ना राजा का राज्य है ना तो बाप कहते हैं - हे राजे! आपके कन्ट्रोल में आपकी प्रजा है? *या कभी कन्ट्रोल से बाहर हो जाती है?*

 

✧   रोज राज्य दरबार लगाते हो?' *रोज रात्रि को राज्य दरबार लगाओ।* अपने राज्य कारोबारी कर्मेन्द्रियों' से हालचाल पूछो। जैसे राजा राज्य दरबार लगाता है ना तो आप अपनी राज्य दरबार लगाते हो? या भूल जाते हो, सो जाते हो? राज्य दरबार लगाने में कितना टाइम लगता है?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧  *फ़रिश्ता स्वरूप अर्थात् स्मृति स्वरूप में हो, साकार रूप में हो। सिर्फ़ समझने तक नहीं, स्मृति तक नहीं, स्वरूप में हो।* ऐसा परिवर्तन, किसी समय भी, किसी हालत में भी अलौकिक स्वरूप अनुभव हो। ऐसे है या थोड़ा बदलता हैं? *जैसी बात वैसे अपना स्वरूप नहीं बनाओ। बात आपको क्यों बदले, आप बात को बदलो। बोल आपको बदले या आप बोल को बदलो।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा मधुबन की पहाड़ी पर बैठ चारों ओर की सुन्दरता को निहार रही हूँ... बर्फ की चादर ओढ़ी पहाड़ियां चांदी की परत जैसी चमक रही हैं... सूरज की किरणें ठंडी ठंडी हवाओं के साथ खेल रही हैं... मैं आत्मा इन पहाड़ियों को देख विचार करती हूँ की मैं आत्मा इस देह, और देहधारियों के चक्रव्यूह में कई जन्मों से फंसी हुई थी...* मेरा प्यारा बाबा मुझे दुखों की पहाड़ियों से निकाल अपनी मखमली गोदी में बिठा दिया है... और मधुबन सा मेरा जीवन संवार दिया है... मैं आत्मा प्यारे बाबा का आह्वान करती हूँ... मीठे बाबा पहाड़ी पर बैठ मुझसे मीठी मीठी रूह-रिहान करते हैं...

 

   किसी भी देहधारी के नाम रूप में ना फंसने की समझानी देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- "मेरे मीठे फूल बच्चे... *अपने खुबसूरत मणि स्वरूप में स्थित होकर मीठे बाबा संग यादो में झूल जाओ... और अतीन्द्रिय सुख का आनन्द लो... अब इस मिटटी के मटमैले आवरण के आकर्षण में नही फंसो...* अशरीरी बनकर पिता को याद करो तो सदा के आयुष्मान निरोगी और सर्व सुखो से भरपूर हो जाओगे..."

 

_ ➳  मैं आत्मा अशरीरी बनकर एक बाप की याद में डूबकर कहती हूँ:- "हाँ मेरे प्यारे बाबा... *मैं आत्मा आपकी यादो में देह के भान से मुक्त होकर चमकती मणि सी खिल उठी हूँ...* प्यारे बाबा आपने मेरा जीवन अनन्त खुशियो से सजीला कर दिया है... मै आत्मा अपने दमकते रूप को पाकर सदा के सुखो से सज संवर गयी हूँ..."

 

   ज्ञान के सागर ऑलमाइटी अथॉरिटी बेहद बाबा बेहद स्वर्ग का वर्सा देते हुए कहते हैं:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... अब इस देह की दुनिया से निकल, अपने आत्मिक अप्रतिम सौंदर्य को यादो में भर लो... अनन्त गुणो और शक्तियो से सम्पन्न प्यारी आत्मा हो, इस नशे से हर रग को भर लो... *ईश्वर पिता की यादो में देह के मटमैले आवरण को त्याग दो... और आत्मिक खूबसूरती को पाकर प्रेम सुख शांति की दुनिया को बाँहों में भरो..."*

 

_ ➳  प्यारे बाबा की वाणी की वीणा से शक्तियों को भरते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी प्यारी सी गोद में किस कदर फूलो सी महक उठी हूँ... देह समझ जो खजाने खोई थी.... *आत्मा के भान में आकर सब कुछ पुनः पा रही हूँ... हर दुःख से मुक्त होकर, सदा की सुखदायी और निरोगी बनकर मुस्करा रही हूँ..."*

 

   प्यारे बाबा रूहानी यादों के रंगों से मेरे जीवन को उज्जवल बनाते हुए कहते हैं:- "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वरीय साथ का यह प्यारा और अमूल्य समय किसी देहधारी की यादो में न खपाओ... हर बन्धन से मुक्त होकर, ईश्वरीय नशे में गहरे डूब जाओ... *और मीठे बाबा की यादो में खोकर, विश्व की बादशाही, अथाह सुखो की दौलत और खुबसूरत निरोगी स्वस्थ जीवन पाओ..."*

 

_ ➳  प्यारे बाबा की यादों से जिन्दगी को हसीन बनाते हुए मैं आत्मा खुशियों में लहराते हुए कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा अपने आपको जानकर, अपने मीठे बाबा को जानकर, सुखो की, खुशियो की, जादूगर हो गई हूँ... प्यारे बाबा... आपने तो सारे ब्रह्माण्ड की खुशियो से मुझे सजा दिया है...* सब कुछ मेरे कदमो तले बिखेर दिया है... मुझे सत्य का पता देकर, सुखो की खान का मालिक बना दिया है...."

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *ड्रिल :- "वाहयात ( व्यर्थ ) बातें ना सुननी है, ना सुनानी हैं*"

 

_ ➳  अविनाशी ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा का श्रृंगार करने वाले ज्ञान सागर *अपने प्यारे शिव प्रीतम से मिलने की जैसे ही मन में इच्छा जागृत होती है। वैसे ही मैं आत्मा सजनी ज्ञान रत्नों का सोलह श्रृंगार कर चल पड़ती हूँ ज्ञान के अखुट खजानो के सौदागर अपने शिव प्रीतम के पास*। उनके साथ अपने प्यार की रीत निभाने के लिए देह और देह के साथ जुड़े सर्व संबंधों को तोड़, निर्बंधन बन, ज्ञान की पालकी में बैठ मैं आत्मा मन बुद्धि की यात्रा करते हुए अब जा रही हूं उनके पास।

 

_ ➳  उनका प्यार मुझे अपनी ओर खींच रहा है और उनके प्रेम की डोर में बंधी मैं बरबस उनकी ओर खिंचती चली जा रही हूँ। *उनके प्यार में अपनी सुध-बुध खो चुकी मैं आत्मा सजनी सेकंड में इस साकार वतन और सूक्ष्म वतन को पार कर पहुंच जाती हूं परमधाम अपने शिव साजन के पास*। ऐसा लग रहा है जैसे वह अपनी किरणों रूपी बाहें फैलाए मेरा ही इंतजार कर रहे हैं। उनके प्यार की किरणों रूपी बाहों में मैं समा जाती हूं। उनके निस्वार्थ और निश्छल प्यार से स्वयं को भरपूर कर, तृप्त होकर मैं आ जाती हूँ सूक्ष्म लोक।

 

_ ➳  लाइट का फरिश्ता स्वरूप धारण कर मैं फ़रिशता पहुंच जाता हूं अव्यक्त बापदादा के सामने। अव्यक्त बापदादा की आवाज मेरे कानों में स्पष्ट सुनाई दे रही है। *बाबा कह रहे हैं, हे आत्मा सजनी आओ:- "ज्ञान रत्नों का श्रृंगार करने के लिए मेरे पास आओ"।* बाप दादा की आवाज सुनकर मैं फ़रिशता उनके पास पहुंचता हूं। बाबा अपने पास बिठाकर बड़ी प्यार भरी नजरों से मुझे निहारने लगते हैं और अपनी सर्व शक्तियों रूपी रंग बिरंगी किरणों से मुझे भरपूर करने लगते हैं।

 

_ ➳  सर्वशक्तियों से मुझे भरपूर करके बाबा अब मुझे एक बहुत बड़े हॉल के पास ले आते हैं। जिसमें अमूल्य हीरे जवाहरात, मोती, रत्न आदि बिखरे पड़े हैं। किंतु उस पर कोई भी ताला चाबी नहीं है। उनकी चमक और सुंदरता को देखकर मैं आकर्षित होकर उस हॉल के बिल्कुल नजदीक पहुंच जाता हूं। *बाबा मुझे उस हॉल के अंदर ले जाते हैं और मुझसे कहते हैं:- "ये अविनाशी ज्ञान रत्न है। इन अविनाशी रत्नों का ही आपको श्रृंगार करना है"।* कितना लंबा समय अपने अविनाशी साथी से अलग रहे तो श्रृंगार करना ही भूल गए, अविनाशी खजानों से भी वंचित हो गए। किंतु अब बहुत काल के बाद जो सुंदर मेला हुआ है तो इस मेले से सेकेंड भी वंचित नहीं रहना।

 

_ ➳  यह कहकर बाबा उन ज्ञान रत्नों से मुझे श्रृंगारने लगते हैं। *मेरे गले मे दिव्य गुणों का हार और हाथों में मर्यादाओं के कंगन पहना कर बाबा मुझे सर्व ख़ज़ानों से भरपूर करने लगते है*। सुख, शांति, पवित्रता, शक्ति और गुणों से अब मैं फ़रिशता स्वयं को भरपूर अनुभव कर रहा हूँ। बाबा ने मुझे ज्ञान रत्नों के खजानों से मालामाल करके सम्पत्तिवान बना दिया है। सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के श्रृंगार से सजा मेरा यह रूप देख कर बाबा खुशी से फूले नही समा रहे। बाबा जो मुझ से चाहते हैं, बाबा की उस आश को मैं आत्मा सजनी बाबा के नयनो में स्पष्ट देख रही हूं।

 

_ ➳  मन ही मन अपने शिव प्रीतम से मैं वादा करती हूँ कि ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से अब मैं आत्मा सदा सजी हुई रहूँगी और मुख से सदैव ज्ञान रत्न ही निकालूंगी। *अपने शिव साथी से यह वादा करके अपनी फ़रिशता ड्रेस को उतार अब धीरे-धीरे मैं आत्मा वापिस इस देह में अवतरित हो गयी हूँ*। अब मैं बाबा से मिले सर्व ख़ज़ानों से स्वयं को सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ। जैसे मेरे अविनाशी साजन ने मुझ आत्मा को गुणों  और शक्तियों के गहनों से सजाया है वैसे ही मैं आत्मा भी वरदानीमूर्त बन अब अपने सम्बन्ध-सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को अपने मुख से ज्ञान रत्नों का दान दे कर उन्हें भी परमात्म स्नेह और शक्तियों का अनुभव करवा रही हूं।

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपने शक्त्ति स्वरूप द्वारा अलौकिकता का अनुभव कराने वाली ज्वाला रूप आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपनी कर्मेन्द्रियों को योग अग्नि में तपाकर सम्पूर्ण पावन बनने वाली पवित्र आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *पवित्रता ही महानता है। पवित्रता ही योगी जीवन का आधार है।* कभी-कभी बच्चे अनुभव करते हैं कि अगर चलते-चलते मन्सा में भी अपवित्रता अर्थात् वेस्ट वा निगेटिव, परचिंतन के संकल्प चलते हैं तो कितना भी योग पावरफुल चाहते हैंलेकिन होता नहीं है क्योंकि जरा भी अंशमात्र संकल्प में भी किसी प्रकार की अपवित्रता है तो  *जहाँ अपवित्रता का अंश है वहाँ पवित्र बाप की याद जो है, जैसा है वैसे नहीं आ सकती।* जैसे दिन और रात इकट्ठा नहीं होता। इसीलिए बापदादा वर्तमान समय पवित्रता के ऊपर बार-बार अटेन्शन दिलाते हैं। *कुछ समय पहले बापदादा सिर्फ कर्म में अपवित्रता के लिए इशारा देते थे लेकिन अभी समय सम्पूर्णता के समीप आ रहा है इसलिए मन्सा में भी अपवित्रता का अंश धोखा दे देगा।* तो मन्सा, वाचा, कर्मणा, सम्बन्ध-सम्पर्क सबमें पवित्रता अति आवश्यक है। मन्सा को हल्का नहीं करना क्योंकि मन्सा बाहर से दिखाई नहीं देती है लेकिन मन्सा धोखा बहुत देती है। *ब्राह्मण जीवन का जो आन्तरिक वर्सा सदा सुख स्वरूपशान्त स्वरूपमन की सन्तुष्टता हैउसका अनुभव करने के लिए मन्सा की पवित्रता चाहिए।* 

 

✺   *ड्रिल :-  "ब्राह्मण जीवन में पवित्रता की महानता का अनुभव करना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा पवित्र स्वरूप हूँ... जन्म-पुनर्जन्म में आते-आते अपने ही असली स्वरूप को भूल गयी थी...* सृष्टि नाटक के अन्त के भी अन्त समय बाप आकर हम आत्माओं को सूक्ष्म और स्थूल रीति से पवित्र बना रहे हैं... मैं आत्मा फरिशते रूप में एक झील किनारे आकर बैठ जाती हूँ... अपने ही  प्रतिबिंब को इस झील में देख रही हूँ...  कितने जन्मों से व्यर्थ संकल्पों का बोझ है... कर्मों में भी अपवित्रता... मन्सा में भी अपवित्रता, वेस्ट संकल्प, नेगेटिव संकल्पों का... परचिंतन के भी संकल्प चलते हैं... *अनुभव कर रही हूँ कि मन जो दिखता नहीं, जो सूक्ष्म है... वो कितना धोखा देती है...*

 

 _ ➳  मैं फरिश्ता मधुबन तपोभूमि आ जाती हूँ... और हिस्ट्री हॉल में सोफे पर बैठ जाती हूँ... महसूस कर रही हूँ यहां की पवित्र तरंगे... शांति की, सुख की... जन्म जन्मांतर के सारे बोझ से हल्की होती जा रही हूँ... एक दिव्य ज्योति जैसे कि विस्फोटित होती है... *रंग-बिरंगी किरणें चारों और फैलती हुई मुझ आत्मा में समाती जा रही है... मेरे अनादि गुणों को इमर्ज करती जा रही है...* मैं आत्मा दिव्य गुणों की स्वरूप बन गयी हूँ...

 

 _ ➳  *बाप स्मृति दिलाते हैं की पवित्रता से ही सुख, शान्ति की अनुभूति होती है...* पवित्रता मुझ आत्मा के ब्राह्मण जीवन का आधार है... मैं आत्मा सम्पूर्ण पवित्रता को अपने जीवन में अपना निरंतर बाबा की याद में रह स्मृति स्वरुप अवस्था का अनुभव कर रही हूँ... मन्सा में भी व्यर्थ संकल्प दग्ध हो रहे हैं... वाचा, कर्मणा से नेगेटिव, परचिन्तन करना समाप्त होते जा रहे है... *अटेंशन रूपी पहरा से किसी भी तरह की अंश मात्र अपवित्रता समाप्त होती जा रही है...*

 

 _ ➳  पवित्रता मुझ ब्राह्मण आत्मा का श्रृंगार है... संगमयुगी ब्राह्मण जीवन को श्रेष्ठ व महान बनाने वाला... सम्बन्ध-संपर्क में आने वाली हर ब्राह्मण आत्मा के प्रति भी पवित्र संकल्प होते जा रहे हैं... समय की संपूर्णता जैसे-जैसे समीप आती जा रही है... मैं आत्मा सम्पूर्ण पवित्र होती जा रही हूँ... सम्पूर्ण पवित्रता ही मन की संतुष्टि दे रही है... पवित्रता की शक्ति से मन निश्छल, निर्मल हो गया है... *मैं आत्मा अपने ब्राह्मण जीवन में पवित्रता की महानता का अनुभव कर रही हूँ... ओम् शान्ति...*

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━