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 27 / 09 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बाप की महिमा में स्वयं को मास्टर बनाया ?*

 

➢➢ *किसी भी विकार के वशीभूत हो हिंसा तो नहीं की ?*

 

➢➢ *रूहानी आकर्षण द्वारा सेवा और सेवाकेंद्र को चढ़ती कला में ले गए ?*

 

➢➢ *सर्व बन्धनों एवं आकर्षणों से मुक्त रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  विदेही बनने की विधि है-बिन्दी बनना। *अशरीरी बनते हो, कर्मातीत बनते हो, सबकी विधि बिन्दी है इसलिए बापदादा कहते हैं अमृतवेले बापदादा से मिलन मनाते, रूहरिहान करते जब कार्य में आते हो तो पहले तीन बिन्दियों का तिलक मस्तक पर लगाओ और चेक करो-किसी भी कारण से यह स्मृति का तिलक मिटे नहीं।* अविनाशी, अमिट तिलक रहे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बाप की छत्रछाया में रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने को बाप की याद की छत्रछाया में रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? *यह याद की छत्रछाया सर्व विघ्नों से सेफ कर देती है। किसी भी प्रकार का विघ्न छत्रछाया में रहने वाले के पास आ नहीं सकता। छत्रछाया में रहने वाले निश्चित विजयी है ही। तो ऐसे बने हो? छत्रछाया से अगर संकल्प रूपी पाँव भी निकाला तो माया वार कर लेगी।*

 

  *किसी भी प्रकार की परिस्थिति आवे छत्रछाया में रहने वाले के लिए मुश्किल से मुश्किल बात भी सहज हो जायेगी। पहाड़ समान बातें रूई के समान अनुभव होंगी। ऐसी छत्रछाया की कमाल है।* जब ऐसी छत्रछाया मिले तो क्या करना चाहिए? चाहे अल्पकाल की कोई भी आकर्षण हो लेकिन बाहर निकला तो गया। इसलिए अल्पकाल की आकर्षण को भी जान गये हो। इस आकर्षण से सदा दूर रहना। हद की प्राप्ति तो इस एक जन्म में समाप्त हो जायेगी। बेहद की प्राप्ति सदा साथ रहेगी। तो बेहद की प्राप्ति करने वाले अर्थात् छत्रछाया में रहने वाले विशेष आत्मायें है, साधारण नहीं। यह स्मृति सदा के लिए शक्तिशाली बना देगी।

 

  जो सिक्कीलधे लाडले होते हैं वह सदा छत्रछाया के अन्दर रहते हैं। याद ही छत्रछाया है। इस छत्रछाया से संकल्प रूपी पाँव भी बाहर निकाला तो माया आ जायेगी। यह छत्रछाया माया को सामने नहीं आने देती। *माया की ताकत नहीं है - छत्रछाया में आने की। वह सदा माया पर विजयी बन जाते हैं। बच्चा बनना अर्थात् छत्रछाया में रहना। यह भी बाप का प्यार है जो सदा बच्चों को छत्रछाया में रखते हैं। तो यही विशेष वरदान याद रखना - कि लाडले बन गये, छत्रछाया मिल गई। यह वरदान सदा आगे बढ़ाता रहेगा।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आप चैलेन्ज करते हो कि हम आपको जीवन में मुक्ति डबल दिला सकते हैं - जीवन भी हो और मुक्ति भी हो, ऐसी चैलेन्ज की है ना? नशे से कहते हो कि जीवनमुक्ति आपका और हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है, तो *स्वदर्शन चक्रधारी अर्थात दु:ख के चक्करों से मुक्त रहने वाले और मुक्त करने वाले।* वशीभूत होने वाले नहीं लेकिन अधिकारी बन, मालिक बन सर्व कर्मेन्द्रियों से कर्म कराने वाले।

 

✧  धोखा खाने वाले नहीं लेकिन औरों को भी धोखे से छुडाने वाले। यही अभ्यास करते हो ना - *कर्म में आना और फिर न्यारे हो जाना,* तो याद का अभ्यास क्या रहा? - आना और जाना और पढाई अर्थात ज्ञान का सार क्या है? कर्मातीत बन घर जाना है और फिर राज्य करने का पार्ट बजाने अपने राज्य में आना है। यही ज्ञान का सार है ना। तो *जानाऔर आना' - यही ज्ञान और योग है,* इसी अभ्यास में दिन-रात लगे हुए हो।

 

✧  बुद्धि में घर जाने की और फिर राज्य में आने की खुशी है। जैसे मधुबन अपने घर में आते हो तो कितनी खुशी रहती है। जब से टिकेट बुक कराते हो तब से जाना है, जाना है - यह बुद्धि में याद रहता है ना! तो जब मधुबन घर की खुशी है तो आत्मा के घर जाने की भी खुशी है। लेकिन *खुशी से कौन जायेगा? जितना सदा यह 'आने' और जाने' का अभ्यास होगा।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ पाण्डव एक सेकण्ड में एकदम अलग हो सकते हो? आत्मा अलग मालिक और कर्मेन्द्रियां कर्मचारी अलग, यह अभ्यास जब चाहो तब होना चाहिए। *अच्छा, अभी-अभी एक सेकण्ड में न्यारे और बाप के प्यारे बन जाओ। पावरफुल अभ्यास करो बस मैं हूँ ही न्यारी। यह कर्मेन्द्रियाँ हमारी साथी हैं, कर्म की साथी हैं लेकिन मैं न्यारा और प्यारा हूँ। अभी एक सेकण्ड में अभ्यास दोहराओ।* (ड्रिल) सहज लगता है कि मुश्किल है? सहज है तो *सारे दिन में कर्म के समय यह स्मृति इमर्ज करो, तो कर्मातीत स्थिति का अनुभव सहज करेंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप को बाप, टीचर, सतगुरु रूप में याद करना"*

 

_ ➳  *मैं नन्हा फ़रिश्ता मधुबन के बगीचे में बाबा के साथ लुका-छिपी का खेल खेलता हुआ आनंद ले रहा हूँ... कभी मैं छिप जाता, बाबा मुझे ढूंढते... कभी बाबा छिप जाते , मैं उन्हें ढूंढता... बाबा को ढूंढते-ढूंढते एक मधुर मुरली की गूंज सुनाई देती है... मैं नन्हा फ़रिश्ता उस धुन के पीछे-पीछे चल पड़ता हूँ और पहुँच जाता हूँ हिस्ट्री हाल...* जहाँ बाबा शिक्षक बन मुरली बजा रहे हैं... फिर सतगुरु बन मनमनाभव का मन्त्र देकर अपनी यादों में समा लेते हैं... तीनों रूपों में बाबा को देख मंत्रमुग्ध हो जाता हूँ... और बाबा से ज्ञान वर्षा की सौगात लेता हूँ...

 

  *मेरे जीवन को खुशनुमा, खुशबूदार बनाकर मुझे खुशनसीब बनाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर की खोज में दर दर कितना भटके हो... जितना भटके हो उतना ही उलझे हो... *अब सच्चा पिता सच्चा टीचर सच्चा सतगुरु सहज ही सम्मुख है... तो अब व्यर्थ समय सांसो को न गंवाकर सच्ची यादो में खो जाओ... हर पल सच्ची कमाई में जुट जाओ...”*

 

_ ➳  *बाप, टीचर, सतगुरु के रूप में भगवान को पाकर खुशियों में झूमते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अब भटकन से दूर होकर सत्य भरी बाँहों में आनन्द के झूले में हूँ... देहधारियों से मुक्त होकर सच्चे सतगुरु को पा ली हूँ... *प्यारा बाबा मुझे मिल गया है जीवन आनन्द से खिल उठा है... पाना था वो पा लिया है...”*

 

  *अविनाशी प्रेम से सिक्त कर अविनाशी सुखों की महारानी बनाते हुए मीठे प्यारे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *एक पिता में सब कुछ प्राप्त कर रहे हो... बच्चों को हर भटकन से मुक्त कराकर सच्चा पिता जीवन में आ गया है... फूलो सी गोद में बिठाकर, ज्ञान रत्नों से सजाकर, सतयुगी सुखो में खिलायेगा,...* ऐसे मीठे पिता को सांसो में बसा लो... सच्ची कमाई से दामन सदा का सजा लो...

 

_ ➳  *परमात्म प्रेम के स्वर्णिम झूले में झूलती हुई प्रेम रस का पान करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा प्यारे से भाग्य से भरी हूँ... देहधारियों के पीछे लटककर सांसे खपाने वाली... *आज ईश्वर पिता को पाने वाली महान आत्मा बन गई हूँ... स्वयं भगवान मेरी पालना कर रहा है... कितना प्यारा और शानदार मेरा यह भाग्य हो गया है...”*

 

  *अपने स्नेहमयी आगोश में समाकर अपना दीवाना बनाते हुए मेरी बगिया को सुन्दर सजाने वाले प्यारे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... कितना सहज,कितना सरल, कितने साधारण रूप में भगवान मिला है... बच्चे अब एक तिनका भी तकलीफ न उठाये... यह भाव लिए सच्चा पिता जीवन में आ गया है... *सच्चे प्यार की महक लिए, ज्ञान रत्नों की खान लिए, सुखो भरे आलिशान महल लिए विश्व पिता धरा पर उतर गया है... इस मीठे नशे से भर जाओ और सच्ची यादो में झूम जाओ...”*

 

_ ➳  *बाबा के असीम प्यार और अमूल्य शिक्षाओं से अविनाशी भाग्य बनाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा सच्चे पिता, सच्चे शिक्षक, सच्चे सतगुरु को पाकर अपने मीठे भाग्य की मुरीद हूँ... कन्दराओं में,गुफाओ में, मनुष्यो में जिसे खोज रही थी... वह मीठा बाबा आज मेरे दिल में धड़कन बन समाया है...* और मै आत्मा सच्ची कमाई से मालामाल हो गई हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप का मददगार बन सबको पावन बनाने की सेवा करनी है*"

 

_ ➳  ज्ञान सागर में डुबकी लगाकर, ज्ञान गंगा बन ज्ञान के शीतल जल से पतितों को पावन बनाने की सेवा करने के लिए मैं ज्ञान के सागर, *पतित पावन अपने शिव पिता परमात्मा की याद में अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ और अंतर्मुखता की एक ऐसी यात्रा पर चल पड़ती हूँ जो मुझे सीधी ज्ञान सागर मेरे प्यारे पिता के पास ले जायेगी*। अंतर्मुखता की इस अति सुन्दर लुभावनी यात्रा पर अनेक सुन्दर अनुभवों की खान अपने साथ लेकर मैं इस यात्रा का आनन्द लेते हुए देह के आकर्षण से स्वयं को मुक्त कर विदेही बन अब नश्वर देह से बाहर निकलती हूँ और ऊपर की ओर चल पड़ती हूँ।

 

_ ➳  अपने अति सुंदर, उज्ज्वल स्वरूप में, दिव्य गुणों की महक चारों और फैलाते हुए, ज्ञान सागर अपने शिव पिता से मिलने की लगन में मगन मैं आत्मा ज्ञान और योग के सुंदर पंख लगा कर, उस रास्ते पर उड़ती जा रही हूँ जो मेरे स्वीट साइलेन्स होम को जाता है। *आनन्द से भरपूर, ज्ञान की रूहानी अलौकिक मस्ती में डूबी मैं आत्मा पंछी समस्त पृथ्वी लोक का चक्कर लगा कर, नीले गगन को पार करते हुए, फ़रिशतो की दुनिया से भी परें, अपने स्वीट साइलेन्स होम में प्रवेश करती हूँ*।

 

_ ➳  गहन शांति की यह दुनिया जहाँ अशांत करने वाली कोई बात नही, ऐसे अपने शांतिधाम घर मे पहुंच कर, गहन शांति का अनुभव करते - करते मैं आत्मा अपने बुद्धि रूपी बर्तन को ज्ञान से भरपूर करने के लिए अब अपने ज्ञान सागर बाबा की सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे जाकर बैठ जाती हूँ। *अनन्त रंग बिरंगी किरणों के रूप में ज्ञान सागर मेरे शिव पिता के ज्ञान की वर्षा मुझ पर हो रही है। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा ज्ञान की शक्तिशाली किरणे मुझ आत्मा में प्रवाहित कर मुझे आप समान मास्टर ज्ञान का सागर बना रहे हैं*। ज्ञान रत्नों से मैं भरपूर होती जा रही हूँ।

 

_ ➳  अपनी बुद्धि रूपी झोली में ज्ञान का अखुट भण्डार जमा कर, ज्ञान गंगा बन पतितों को पावन बनाने की सेवा करने के लिए अब मैं परमधाम से नीचे आती हूँ और अपने फ़रिश्ता स्वरूप को धारण कर विश्व ग्लोब पर बैठ बापदादा का आह्वान करती हूँ। *बापदादा की छत्रछाया को अपने ऊपर अनुभव करते हुए, बापदादा के साथ कम्बाइन्ड होकर अब ज्ञान सागर अपने शिव पिता से ज्ञान की अनन्त किरणों को स्वयं में भरकर, फिर उन्हें चारों और फैला रही हूँ*। मुझ ज्ञान गंगा से निकल रही ज्ञानअमृत की शीतल धारायें मुझ से निकल कर विश्व की सर्व आत्माओं के ऊपर पड़ रही है और उन्हें विकारों की तपन से मुक्त कर, गहन शीतलता का अनुभव करवा रही है।

 

_ ➳  विश्व की सर्व आत्माओं पर ज्ञान वर्षा करके, मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होती हूँ और ज्ञान गंगा बन सबको यह सच्चा ज्ञान देकर उन्हें पावन बनाने की सेवा के लिए चल पड़ती हूँ। *मुरली के माध्यम से बाबा जो अविनाशी ज्ञान रत्न हर रोज मुझे देते हैं उन अविनाशी ज्ञान रत्नों से अपनी बुद्धि रूपी झोली को भरकर, उन्हें कण्ठ कर, सबको उन ज्ञान रत्नों का मैं दान करती रहती हूँ*। अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को इस सत्य ज्ञान रूपी गंगा जल से पावन बनाने की सेवा करते हुए, सबको ज्ञान सागर उनके शिव पिता से मिलाने की प्रतिज्ञा को पूरा करने के पुरुषार्थ में अब मैं निरन्तर लगी रहती हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं रूहानी आकर्षण द्वारा सेवा और सेवाकेंद्र को चढ़ती कला में ले जाने वाली योगी तू आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सर्व बंधनों एवं आकर्षणों से मुक्त रहने वाली परमात्म ज्ञानी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *प्रसन्नचित आत्माकोई कैसी भी आत्मा परेशान हो, अशान्त हो उसको अपने प्रसन्नता की नजर से प्रसन्न कर देगी। जो बाप का गायन है 'नजर से निहाल करने वाले', वह सिर्फ बाप का नहीं है आपका भी यही गायन है* और अभी समय प्रमाण जितना समय समीप आ रहा है तो *नजर से निहाल करने की सेवा करने का समय आयेगा। सात दिन का कोर्स नहीं होगाएक नजर से प्रसन्नचित हो जायेंगे। दिल की आश आप द्वारा पूर्ण हो जायेगी*।

 

✺   *ड्रिल :-  "नजर से निहाल करने की सेवा का अनुभव करना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा मन बुद्धि को एकाग्र कर भृकुटी... के मध्य में स्वयं को अनुभव करती हूं... *आत्म पंछी उड़ान भरता है सूक्ष्म वतन की ओर जहां... ब्रह्मा बाबा और उनके मस्तक के बीचों बीच परम ज्योति बापदादा* को देख मैं आत्मा अपनी सुधबुध भूल जाती हूँ...

 

 _ ➳  बाबा बड़े प्यार से मुझे देख रहे हैं... हाथ से पास आने का इशारा करते हैं... मैं तुरंत उनके पास पहुंच जाती हूं... पाती हूं अपने आपको बाबा की गोद में... *बाबा बड़े प्यार से मेरे सर पर हाथ फिराते हैं... और आशीर्वाद देते हैं... प्रसन्नचित आत्मा भव* और दृष्टि दे रहे हैं... बाबा की नजर पड़ते ही मैं आत्मा... भूल जाती हूं सब कुछ... असीम शान्ति... आनन्द ही आनन्द... कैसा जादू है... *बाबा की नजर से ही मैं आत्मा निहाल हो चली हूं खो चली हूं... इस परम आनंद... परम सुख में...*

 

 _ ➳  *मेरे अंदर से दुख... अशांति... सब भाप बन कर उड़ता जा रहा है...* अपने अंदर प्रसन्नता का अनुभव होते ही... मेरी सबको देखने की नजर बदलती जा रही है... *मेरी दृष्टि सबके लिए प्यार भरी... रहम भरी... कल्याणकारी होती जा रही है...*

 

 _ ➳  *सुख और आनंद...* के झूले में झूलते हुए मैं एहसास करती हूं कि मुझे बाबा ने जो अनुभव कराया है... वैसा ही अनुभव मुझ आत्मा से विश्व की सर्व आत्माओं को हो रहा हैै... *बाप समान बन किसी के प्रति भी घृणा भाव न रख उन्हें सुख और आनंद दे रही हूं... अपनी शुभ भावना की दृष्टि द्वारा उनका कल्याण कर रही हूं... शान्ति को खोजती आत्माओं के दिल की आस पूर्ण कर रही हूं...*

 

 _ ➳  *इन संकल्पों के उदय होने के साथ ही मैं अपने अंदर एक नई ऊर्जा... और प्रसन्नता... को पाती हूं* और अपने इस सुंदर पावन स्वरूप के लिये... इस सेवा के लिए... बाबा को दिल से... धन्यवाद देती हूं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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