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 14 / 10 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अपनी श्रेष्ठता और विशेषता को भूले तो नहीं ?*

 

➢➢ *"मैं बापदादा के गले की माला का विजयी अमूल्य रतन हूँ" - ऐसा अनुभव किया ?*

 

➢➢ *"तुम्ही से बैठूं, तुम्ही से खाऊँ, तुम्ही से सदा साथ रहूँ" - ऐसा अनुभव किया ?*

 

➢➢ *"एक एक महावाक्य, एक एक सेकंड, एक एक श्वास कितना श्रेष्ठ है" - ऐसा अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *किसी भी प्रकार का देह का, सम्बन्ध का, वैभवों का बन्धन अपनी ओर आकर्षित न करे, ऐसे स्वतन्त्र बनो इसको ही कहा जाता है-बाप-समान कर्मातीत स्थिति।* प्रैक्टिस करो अभी-अभी कर्मयोगी, अभी-अभी कर्मातीत स्टेज।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं डबल लाइट फरिश्ता हूँ"*

 

  अपने को सदा डबल लाइट अनुभव करते हो? *डबल अर्थात् फरिश्ता और फरिश्ते की निशानी है - उनका कोई भी देह और देहधारियों से रिश्ता नहीं अर्थात् मन का लगाव नहीं। तो सदा फरिश्ते होकर हर कार्य करते हो? क्योंकि फरिश्तों का पाँव सदा ही ऊंचा रहता है, धरनी पर नहीं रहता। धरनी से ऊंचा अर्थात् देह-भान की स्मृति से ऊंचा।* ऐसे फरिश्ते बने हो? देह और देह की दुनिया दोनों का अनुभव अच्छी तरह से कर लिया है ना?

 

  तो जब अनुभव कर लिया तो अनुभव करने के बाद अभी फिर से देह व देह की दुनिया में बुद्धि जा सकती है? *देह और देह की दुनिया की स्मृति से ऊंचा रहने वाले फरिश्ते बनो। फरिश्ते अर्थात् सर्व बन्धनों से मुक्त। तो सब बन्धन समाप्त हुए या अभी समाप्त करेंगे? दुनिया वालों को तो कहते हो कि 'अब नहीं तो कब नहीं'।* यह पहले अपने को कहते या दूसरों को ही?

 

  दूसरों को कहना अर्थात् पहले अपने को कहना। जब किसी से बात करते हो तो पहले कौन सुनता है? पहले अपने कान सुनते हैं ना। *तो किसी को भी कहना अर्थात् पहले अपने आप को कहना। तो सदा हर कार्य में 'अब' करने वाले आगे बढ़ेंगे। अगर 'कब' पर छोड़ेंगे तो नम्बर आगे नहीं ले सकेंगे, पीछे नम्बर में आयेंगे।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  सभी अपने को इस समय भी तख्तनशीन आत्माएँ अनुभव करते हो? डबल तख्त है या सिंगल? आत्मा का अकाल

तख्त भी याद है और दिल तख्त भी याद है। अगर अकाल तख्त को भूलते हो तो बॉडी कानशेस में आते हो। फिर परवश हो जाते हो। *सदैव यही स्मृति रखो कि मैं इस समय इस शरीर का मालिक हूँ।* तो मालिक अपनी रचना के वश कैसे हो सकता है?

 

✧  अगर मालिक अपनी रचना के वश हो गया तो मोहताज हो गया ना! तो अभ्यास करो और कर्म करते हुए बीच-बीच में चेक करो कि मैं मालिक-पन की सीट पर सेट हूँ? या नीचे तो नहीं आ जाता? सिर्फ रात को चेक नहीं करो। *कर्म करते बीच-बीच में चेक करो।* वैसे भी कहते हैं कि कर्म करने से पहले सोचो, फिर करो।

 

✧  ऐसे नहीं कि पहले करो, फिर सोची। फिर निरंतर मालिक-पन की स्मृति और नशे में रहेंगे। संगमयुग पर बाप आकर मालिक-पन की सीट पर सेट करता है। *स्वयं भगवान आपको स्थिति की सीट पर बिठाता है। तो बैठना चाहिए ना!* अच्छा। (पार्टियों के साथ)

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ सेकण्ड में बिन्दी स्वरूप बन मन-बुद्धि को एकाग्र करने का अभ्यास बार-बार करो। स्टॉप कहा और सेकण्ड में व्यर्थ देह-भान से मन-बुद्धि एकाग्र हो जाए। ऐसी कण्ट्रोलिंग पावर सारे दिन में यूज करके देखो। *ऐसे नही आर्डर करो - कण्ट्रोल और दो मिनट के बाद कण्ट्रोल हो, ५ मिनट के बाद कण्ट्रोल हो, इसलिए बीच-बीच में कण्ट्रोलिंग पावर को यूज करके देखते जाओ। सेकण्ड में होता है, मिनट में होता है, ज्यादा मिनट में होता है, यह सब चेक करते चलो।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल :- ब्राह्मण जीवन अमूल्य जीवन"*

 

 _ ➳  मधुबन घर में डायमण्ड हाल में अपने शिव पिता को निहार कर मै आत्मा.. घनेरे सुखो में खो जाती हूँ... सम्मुख बैठे भगवान को देखख़ुशी में बावरी हो रही हूँ... *मन ही मन मीठे बाबा को प्यार कर रही हूँ... दुलार कर रही हूँ... ख़ुशी के अंसुवन सेदिल के भावो को,बयान कर रही हूँ...* मेरे लिए धरती पर उतर आया है भगवान... मुझे संवारनेनिखारने और देवताई शानो शौकत से सजाने... यह सोच सोचकर निहाल हुई जा रही हूँ... *कितना दूर दूर ढूंढ रही थी.. इस मीठे भगवान् को... और मीठे बच्चे की आवाज सुनकरजो मुड़कर निहारा... तो भगवान को अपने सम्मुख खड़ा पाया...* अपने इस मीठे भाग्य को देख देख पुलकित हूँ... जिसने यूँ चुटकियो में मुझे भगवान से मिला दिया... मुझे क्या से क्या बना दिया...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा के महान भाग्य का नशा दिलाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... आपका भाग्य कितना प्यारा और महान है कि... परमधाम से स्वयं भगवान ने आकर आपको चुना है... *अपनी मखमली गोद में बिठाकरफूलो जैसा खिलाया है... अथाह ज्ञान रत्नों से सजाकरपूरे विश्व में अनोखा बनाया है... अपने इस खुबसूरत भाग्य के नशे में रहकर... पुरुषार्थ के शिखर पर पहुंचकर मीठा सा मुस्कराओ..."*

 

 _ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा को अपनी बाँहों में भरकर गले लगाती हुए कहती हूँ :- "प्यारे प्यारे बाबा मेरे... आप जो जीवन में न थे बाबा तो यह जीवन दुखो की गठरी सा बोझिल था... मै अकेली किस कदर इसे उठाकर टूट गयी थी... *आपने मीठे बाबा मेरे जीवन में आकर, गुणो की खुशबु से महके... सुख भरे फूल खिलाये है... मुझे अपना प्यारा बच्चा बनाकर मेरा सोया हुआ भाग्य जगा दिया है...”*

 

   प्यारे बाबा ने मुझे ज्ञान रत्नों से सजाकर विश्व की बादशाही देते हुए कहा :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सदा अपने मीठे भाग्य की यादो में रहकर मीठे बाबा को याद करो... *सोचो जराकितना शानदार भाग्य है कि शिव पिता और ब्रह्मा मां... जीवन को नये आयामो से सजाने के लिए मिली है... देह की मिटटी से उठकरईश्वरीय दिल में बस गए हो..."*

 

 _ ➳  मै आत्मा अपनी खुशनसीबी पर झूमते गाते हुए मीठे बाबा को गले लगाकर कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा *अपने इस अनोखे भाग्य पर कितना ना इठलाऊँ झूमूँनाचू और मुस्कराऊ... कि भगवान को पाकर खुबसूरत देवता बन रही हूँ... गुणो और शक्तियो से सजधज कर विश्व की मालिक बन रही हूँ...*

 

   मीठे बाबा मुझे अपने दिल में बसाकरअप्रतिम सौंदर्य से सजाकर कहते है :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता को पा लेने की सच्ची खुशियो में सदा, सदा मुस्कराओ... अपने प्यारे भाग्य के गीत गाकरमीठे बाबा की प्यारी प्यारी यादो में खो जाओ... *शिव शिल्पकार पिता और ब्रह्मा सी माँ मिलकर देवताई सौंदर्य में ढाल रहे है... पावनता से भरकर विश्व का बादशाह बना रहे है... सदा इस मीठी खुमारी में खोये रहो..."*

 

 _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की श्रीमत पर चलकर जीवन को खुबसूरत बनाते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे साथी मेरे... मै आत्मा आपकी यादो के साये में गुणो और शक्तियो से भरपूर होकर... सतयुगी दुनिया की हकदार बन रही हूँ... *शिव पिता और ब्रह्मा माँ का हाथ थामकर खुशियो की बगिया में घूम रही हूँ... साधारण मनुष्य से ऊँचा उठकरखुबसूरत देवता बन रही हूँ...* प्यारे बाबा से असीम प्यार पाकर मै आत्मा... इस देह के भृकुटि सिहांसन पर लौट आयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- तुम्ही से बैठूँ, तुम्ही से खाऊं, तुम्ही से सदा साथ रहूँ - यह अनुभव करना*"

 

 _ ➳  स्वयं भगवान की पालना में पलने वाली मैं खुशनसीब आत्मा एकांत में बैठ विचार करती हूँ कि कभी ख्वाबों, ख्यालों में भी नही सोचा था कि जिस भगवान के केवल दर्शन मात्र की प्यासी थी मेरी आँखें। *वो भगवान मेरे नयनों में आ कर बस जायेगा*। बाप बन स्वयं मेरी पालना करेगा। टीचर बन मुझे पढ़ायेगा और सतगुरु बन मुझे सत्य मार्ग दिखायेगा। *ऐसे भगवान बाप, टीचर, सतगुरु  पर मुझे कितना ना बलिहार जाना चाहिए जिसने आकर मेरे मुरझाये हुए जीवन को हरा - भरा कर दिया*।

 

 _ ➳  सम्पूर्ण सृष्टि को चलाने वाले, ऑल माइटी अथॉरिटी भगवान बाप के भंडारे से मेरी पालना हो रही है। यह स्मृति ही मुझे एक अलौकिक नशे से भरपूर कर देती है और एक रूहानी मस्ती मुझ आत्मा पर सहज ही चढ़ने लगती है। *इस रूहानी मस्ती में खोई अब मैं स्वयं को मधुबन के पांडव भवन में एक छोटी सी बच्ची के रूप में देख रही हूँ*। कभी ब्रह्मा बाबा अपनी गोद मे बिठा कर मुझे टोली खिला रहें हैं, कभी मम्मा मुझे अपने हाथों से नहला - धुला कर तैयार कर रही है, सुन्दर - सुंदर कपड़े पहना रही है। मम्मा, बाबा की उंगली पकड़ कर मैं चलना सीख रही हूँ। *बड़े लाड़ - प्यार से मम्मा, बाबा मेरी पालना कर रहें हैं*।

 

 _ ➳  इस अति सुन्दर दृश्य को देख मन खुशी से सरोबार हो उठता है और मन ही मन मैं अपने भाग्य की सराहना करती हूँ कि *"वाह मेरा भाग्य वाह" जो आज भी बाबा अव्यक्त हो कर मुझे ऐसी पालना दे रहे हैं जिससे आज भी साकार पालना की ही भासना आती है*। अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य का गुणगान करती हुई अब मैं आत्मा अव्यक्त स्थिति में स्थित हो कर, साकारी देह को छोड़ अव्यक्त वतन में अपने अव्यक्त बापदादा से मिलन मनाने चल पड़ती हूँ।

 

 _ ➳  एक अति सुंदर लाइट की फ़रिशता ड्रेस धारण किये, चहुँ और *अपनी श्वेत रश्मियां फैलाते हुए मैं फ़रिशता अपने लाइट माइट स्वरूप में ऊपर की और उड़ रहा हूँ*।

कुछ ही क्षणों में मैं भू - लोक को पार कर, आकाश मार्ग से होता हुआ पहुंच जाता हूँ अव्यक्त वतन में अव्यक्त बापदादा के सामने।

मैं देख रहा हूँ मेरे सामने मम्मा बाबा बैठे हैं। मुझे देखते ही बाबा इशारे से मुझे अपने पास बुलाते हैं।

 

 _ ➳  बाबा के पास पहुंचते ही मैं देखता हूँ मेरा स्वरूप अति सूक्ष्म हो गया है। एक नन्हे बच्चे की तरह मैं बाबा की गोदी में जा कर बैठ जाता हूँ। *अपना हाथ मेरे सिर पर रख कर बाबा अपनी सारी शक्तियां मेरे अंदर भरते जा रहें हैं*। बाबा की ममतामयी गोदी में मैं अवर्णनीय सुख की अनुभूति कर रहा हूँ। बाबा की गोदी में बैठे - बैठे ही मम्मा अपने हाथों से मुझे मीठी टोली खिला रही हैं।

 

 _ ➳  *मम्मा बाबा की अव्यक्त पालना ले कर, शक्तियों से भरपूर हो कर अब मैं फ़रिशता इस अव्यक्त वतन से वापिस साकारी दुनिया की और प्रस्थान करता हूँ*। फिर से आकाश मार्ग से होता हुआ वापस भू - लोक में प्रवेश करता हूँ और अपने सूक्ष्म लाइट के शरीर के साथ अपने साकारी तन में आ कर विराजमान हो जाता हूँ।

 

 _ ➳  अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर सदा इस नशे में रहती हूँ कि मैं ईश्वरीय पालना में पल रही हूँ। *अपने ईश्वर बाप से मैं यह दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ कि जो बाबा खिलायें वही खाना है, जो बाबा पहनाएं वही पहनना है, जो लेना है केवल शिव बाबा के भण्डारे से ही लेना है*। इसी प्रतिज्ञा को दृढ़ता के साथ पालन करते हुए अपने शिव बाबा की पालना में पलते हुए मैं अपने इस ईश्वरीय ब्राह्मण जीवन का भरपूर आनन्द ले रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सेवा द्वारा प्राप्त मान मर्तबे का त्याग कर अविनाशी भाग्य बनाने वाली महात्यागी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं साक्षी होकर हर आत्मा का पार्ट देखने वाला और सकाश देने वाला फरिश्ता हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *अभी से विदेही स्थिति का बहुत अनुभव चाहिए। जो भी परिस्थितियां आ रही हैं और आने वाली हैं उसमें विदेही स्थिति का अभ्यास बहुत चाहिए।* इसलिए और सभी बातों को छोड़ यह तो नहीं होगायह तो नहीं होगा। क्या होगाइस क्वेश्चन को छोड़ दो। *विदेही अभ्यास वाले बच्चों को कोई भी परिस्थिति वा कोई भी हलचल प्रभाव नहीं डाल सकती।* चाहे प्रकृति के पांचों ही तत्व अच्छी तरह से हिलाने की कोशिश करेंगे परन्तु विदेही अवस्था की अभ्यासी आत्मा बिल्कुल ऐसा अचल-अडोल पास विद आनर होगा जो सब बातें पास हो जायेंगी लेकिन वह ब्रह्मा बाप के समान पास विद आनर का सबूत रहेगा।

 

 _ ➳  बापदादा समय प्रति समय इशारे देते भी हैं और देते रहेंगे। आप सोचते भी होप्लैन बनाते भी होबनाओ। भले सोचो लेकिन क्या होगा!... उस आश्चर्यवत होकर नहीं। *विदेही, साक्षी बन सोचो लेकिन सोचा, प्लैन बनाया और सेकण्ड में प्लैन स्थिति बनाते चलो।* अभी आवश्यकता स्थिति की है। *यह विदेही स्थिति परिस्थिति को बहुत सहज पार कर लेगी। जैसे बादल आयेचले गये।* और विदेही, अचल-अडोल हो खेल देख रहे हैं। *अभी लास्ट समय को सोचते हो लेकिन लास्ट स्थिति को सोचो।*    

 

✺   *ड्रिल :-  "लास्ट स्थिति के लिए विदेही स्थिति का अभ्यास करना"*

 

 _ ➳  आज जब मैं आत्मा बाबा को याद कर रही थी तो बाबा ने अनुभव कराया कि बच्चे जब से तुम्हारा नया जन्म हुआ ये मरजीवा जन्म हुआ है तब से *अपने को विदेही आत्मा अनुभव करने का बहुत काल का अनुभव चाहिए...* मैं आत्मा बाबा की याद में विदेही बनती जा रही हूँ... देह का भान भूलता जा रहा है... मैं एकदम हल्की हो चुकी हूँ...

 

 _ ➳  जैसे जैसे मैं आत्मा आगे बढ़ती जा रही हूँ तो देख रही हूँ कि *जब तक बहुत काल का विदेही स्थिति का अनुभव नही होगा तो अंत में आत्मिक स्थिति का अनुभव नही कर पाएंगे...* और हलचल में आ जाएंगे... फिर मैं बाबा की याद में विदेही होती जा रही हूँ...

 

 _ ➳  फिर मैं आत्मा ये फील कर रही हूँ कि जो भी परिस्थिति या हलचल आ रही है या आने वाली है उन्हें मैं विदेही स्थिति से पार करती जा रही हूँ... बाबा भी मेरे साथ है हम दोनों का एक अटूट कनेक्शन है... *मैं आत्मा और सब बातों को छोड़ कि क्या होगा कैसे होगा आगे बढ़ती जा रही हूँ*... इस देह ओर देह के संबंधों को भूलतीं जा रही हूँ...

 

 _ ➳  मुझ आत्मा का विदेही पन का बहुत काल का अभ्यास हैं... जिसके कारण कोई भी परिस्थिति और हलचल का मुझ आत्मा पर कोई प्रभाव नही पड़ रहा है... बस मैं आत्मा बाबा की याद में मग्न हूँ... *मैं आत्मा देख रही हूँ कि प्रकृति के पांचों तत्व अपने विनाशी स्वरूप में हैं फिर भी मैं आत्मा विदेही बन सब साक्षी होकर देख रही हूँ*... और प्रकृति के पांचो तत्वों को सकाश दे रही हूँ.. और इस हलचल की स्थिति में भी मुझ आत्मा पर कोई प्रभाव नही पड़ रहा है...

 

 _ ➳  विदेही स्थिति में बाबा के सूक्ष्म इशारे मुझे अनुभव हो रहे है... और इन इशारों से मैं आत्मा और आत्माओं के साथ प्लान बना रही हूँ... और अचल अडोल स्थिति बनती जा रही है... *मैं आत्मा आश्चर्यवत नही हूँ कि ये क्या हो रहा है क्यों हो रहा है... क्योंकि बाबा ने पहले की ड्रामा के राज को स्पष्ट किया है... आदि से अंत तक का ज्ञान मुझ आत्मा में है*... और हर सेकेण्ड बाबा की याद से विदेही बनती जा रही हूँ... और जो भी परिस्थिति मेरे सामने आती जा रही हैं उसे मैं आत्मा ड्रामा के एक सीन की तरह देखते आगे बढ़ती जा रही हूँ... मैं आत्मा देख रही हूँ कि ये अंतिम समय है... प्रकृति अपने विनाशी स्वरूप में है... खून की नदियां बह रही है... लेकिन *मैं आत्मा अपने लास्ट स्टेज अपने फ़रिश्ता स्वरूप में ये सब देख रही हूँ...और उड़कर बाबा के गोद में समा चुकी हूँ*...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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