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❍ 22 / 09 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अपने ऊपर बहुत खबरदारी रखी ?*
➢➢ *जीते जी सब बाप के हवाले कर सफल किया ?*
➢➢ *स्वयं को संगमयुगी समझ व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तित किया ?*
➢➢ *ईश्वरीय विधान पर चल ब्रह्मा बाप समान मास्टर विधाता बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *सारे दिन में बीच-बीच में एक सेकण्ड भी मिले, तो बार-बार यह विदेही बनने का अभ्यास करते रहो। दो चार सेकण्ड भी निकालो इससे बहुत मदद मिलेगी। नहीं तो सारा दिन बुद्धि चलती रहती है,* तो विदेही बनने में टाइम लग जाता है और अभ्यास होगा तो जब चाहे उसी समय विदेही हो जायेंगे *क्योंकि अन्त में सब अचानक होना है। तो अचानक के पेपर में यह विदेही पन का अभ्यास बहुत आवश्यक है।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं कल्प-कल्प की विजयी आत्मा हूँ"*
〰✧ जो अनेक बार विजयी आत्मायें हैं, उन्हों की निशानी क्या होगी? उन्हें हर बात बहुत सहज और हल्की अनुभव होगी। *जो कल्प-कल्प की विजयी आत्मायें नहीं उन्हें छोटा-सा कार्य भी मुश्किल अनुभव होगा। सहज नहीं लगेगा।*
〰✧ *हर कार्य करने के पहले स्वयं को ऐसे अनुभव करेंगे जैसे यह कार्य हुआ ही पड़ा है। होगा या नहीं होगा यह क्वेश्चन नहीं उठेगा। हुआ ही पड़ा है यह महसूसता सदा रहेगी। पता है सदा सफलता है ही, विजय है ही - ऐसे निश्चयबुद्धि होंगे।*
〰✧ *कोई भी बात नई नहीं लगेगी, बहुत पुरानी बात है। इसी स्मृति से स्वयं को आगें बढ़ाते रहेंगे।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ कोई भी संकल्प न आये, *फुलस्टॉप कहा और स्थित हो गये।* क्योंकि लास्ट पेपर अचानक आना है। अचानक के कारण ही तो नम्बर बनेंगे ना। लेकिन होना एक सेकण्ड में हैं। तो कितना अभ्यास चाहिए?
〰✧ अगर अभी से नष्टोमोहा हैं, मेरा-मेरा समाप्त है तो फिर मुश्किल नहीं है, सहज है। तो सभी पास होने वाले हो ना। *जो निश्चय बुद्धि हैं उनकी बुद्धि में यह निश्चत रहता है कि मैं विजयी बना था, बनेंगे और सदा ही बनेंगे।* बनेंगे या नहीं बनेंगे, यह क्वेचन नहीं होता है।
〰✧ तो ऐसे बुद्धि में निश्चत है कि हम ही विजयी है? लेकिन वहुतकाल का अभ्यास जरूर चाहिए। अगर उस समय कोशिश करेंगे, बहुतकाल का अभ्यास नहीं होगा तो मुश्किल हो जायेगा। *बहुत काल का अभ्यास अंत में मदद देगा।* अच्छा
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *पुरुषार्थ भी रमणीक करो।* कई याद में बैठते हैं सोचते हैं 'मैं ज्योति बिन्दु, मैं ज्योति बिन्दु' और ज्योति टिकती नहीं, शरीर भूलता नहीं। ज्योति बिन्दु तो हैं ही लेकिन कौन-सी ज्योति बिन्दु हैं। *हर रोज़ अपना नया नया टाइटल याद रखो कि ज्योति बिन्दु भी कौन सी है? रोज़ सर्वप्राप्तियो में से कोई-न-कोई प्राप्ति को याद करो।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- संगदोष से अपनी संभाल करनी"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मन-बुद्धि के विमान में बैठ मधुबन हिस्ट्री हाल में पहुँच जाती हूँ... यहाँ की तस्वीरों को देखते हुए बाबा की मीठी यादों में खो जाती हूँ...* सामने संदली पर बापदादा मुस्कुराते हुए बैठे हैं... मैं आत्मा बाबा को प्यार से निहारती हुई बाबा के सम्मुख बैठ जाती हूँ... मीठे बाबा मीठी मुरली की मधुर तान छेड़ते हैं... जिसकी धुन में मैं आत्मा परवश हो जाती हूँ और बाबा के संग के रंग में रंग जाती हूँ...
❉ *अपने प्यार के रंग में रंगते हुए संगदोष से अपनी सम्भाल करने की समझानी देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... *ईश्वर पिता ने जो अब अपने प्यार भरे हाथो में पाला है... तो बुरे संग की मिटटी में अपना उजला स्वरूप फिर से मटमैला न करो...* इस ईश्वरीय चमक को देहभान और बुरे संग में धुंधला न करो... ईश्वरीय गोद से नीचे उतरकर खुद को फिर से मलिन न करो... अपना हर पल ख्याल रखो...”
➳ _ ➳ *पवित्रता के सागर में डूबकर कौड़ी से हीरे तुल्य बनते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा देहभान और विकारो के संग में आकर अपने सत्य स्वरूप को खोकर किस कदर दुखी और मलिन से हो गई थी...* अब जो मीठे बाबा ने मुझे अपनी बाँहों में लेकर श्रृंगारा है... मै दमकती आत्मा यह ईश्वरीय चमक हर दिल पर सजा रही हूँ...”
❉ *परमात्म प्रेम के सुगंध से मेरे जीवन के हर श्वांस को महकाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वर बागबान से जो खुशबूदार फूल बन महके हो तो अब फिर से काँटों का संग न करो...* अपनी बहुत सम्भाल करो... ईश्वर प्रेम में खिली मन बुद्धि की पंखुड़ियों को बुरे संग की तेज धूप में फिर से न कुम्हलाओ... अपनी ईश्वरीय खुशबु और रंगत महकेपन का हर साँस से ध्यान रखो...”
➳ _ ➳ *बाबा के संग में रूहे गुलाब बन सुखों के चमन में महकती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा प्यारे बाबा संग जो खिला फूल हो गई हूँ... इस रूहानियत की खुशबु पूरे जहान में फैला रही हूँ...* संगदोष से दूर रह सबपर ईश्वरीय यादो का रंग चढ़ा रही हूँ... सबके जीवन में अपने जैसी बहार लाकर ऐसा ही खूबसूरत बना रही हूँ...”
❉ *अपने प्रेम की तरंगो में तरंगित करते हुए ज्ञान रत्नों को चुगने वाला हंस बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने सुंदर खिले हुए दामन में अब फिर संगदोष में आकर दाग न लगाओ... ईश्वरीय श्रीमत का हाथ थाम सदा हंसो के संग मुस्कराते रहो... *देहधारियों के प्रभाव से मुक्त रहकर सदा ज्ञान रत्नों से श्रृंगारित रहो... संगदोष फिर से विकारो की कालिमा से बेनूर कर देगा... इससे परे रहो...”*
➳ _ ➳ *बाबा की श्रीमत रूपी जादू से अपना श्रृंगार कर रूहानी फूल बन खिलखिलाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा की श्रीमत को दिल में समा कर प्रतिपल अपना ख्याल रख रही हूँ... *मीठे बाबा आपने जो समझ भरा तीसरा नेत्र दिया है उससे स्वयं को हर बुराई से परे रख हंसो संग झूम रही हूँ... और अपने उजले पन में मुस्करा रही हूँ...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप के साथ सच्चा रहना है*"
➳ _ ➳ भगवान बाप के साथ साकार मिलन की यादों की स्मृति मुझे बार - बार मधुबन घर की याद दिला रही है। मेरा मन रूपी पँछी उन यादों को ताजा करने के लिए, अपने पंख फड़फड़ाता हुआ बार - बार उड़कर अपने परम पिता परमात्मा की उस अवतरण भूमि मधुबन में जा रहा है। *मधुबन के आंगन में परमात्म पालना के असीम सुख की अनुभूति में खोई मैं स्वयं को बाबा की कुटिया में देख रही हूँ*। बाबा के ट्रांसलाइट के चित्र के सामने बैठते ही मुझे ऐसा अनुभव होता है जैसे मेरे सामने अव्यक्त ब्रह्मा बाबा बैठे हैं और उनकी भृकुटि में मेरे सच्चे साहिब शिवबाबा विराजमान हैं। *उन्हें देख कर मन से बार - बार आवाज आ रही है "सच्चे दिल पर साहिब राजी"*
➳ _ ➳ इस शब्द को स्मृति में रख अपने सच्चे साहिब शिव बाबा के साथ अंदर बाहर साफ रहने की प्रतिज्ञा करते हुए मैं जैसे ही अपने सच्चे साहिब की ओर देखती हूँ उस ट्रांसलाइट के चित्र के स्थान पर अव्यक्त बापदादा को अपनी दोनों बाहों को पसारे अपने सामने पाती हूँ। *अपनी स्नेह भरी दृष्टि से बाबा मुझे निहार रहें हैं और मेरी इस प्रतिज्ञा को सुन मन्द - मन्द मुस्कराते हुए जैसे मुझ पर बलिहार जा रहें हैं*। जिस भगवान पर दुनिया बलिहार जाती है वो भगवान अपने बच्चों पर कैसे बलिहार जाता है, यह देख कर मन खुशी से गदगद हो रहा है। अपनी खुशी को अपने भीतर समाये अब मैं बाप दादा की और बढ़ रही हूँ।
➳ _ ➳ बापदादा की शक्तिशाली दृष्टि से आ रही लाइट माइट मुझे भी लाइट माइट स्थिति में स्थित कर रही है। अपने लाइट माइट स्वरूप में बाबा के सामने पहुंच कर मैं बाबा की बाहों में समा जाती हूँ। बाबा की बाहों के झूले में झूलते हुए मैं अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति की अनुभूति कर रही हूँ। *जैसे एक छोटा बच्चा माँ की गोद मे आकर स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है और पलक झपकते ही सो जाता है ऐसे ही बापदादा की ममतामयी गोद मे बैठ, बाबा के प्रेम की शीतल छांव में मैं गहन सुख का अनुभव कर रही हूँ*। मेरे माथे पर रुई के समान बाबा के स्नेहमयी हाथों का हल्का - हल्का स्पर्श मुझे आनन्दित कर रहा है।
➳ _ ➳ परमात्म गोद का सुख पा कर मैं स्वयं को दुनिया की सबसे सौभाग्यशाली आत्म अनुभव कर रही हूँ। अब मैं बापदादा के सामने बैठ, परमात्म शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूँ। बाबा का वरदानी हाथ मेरे सिर के ऊपर है। वरदानों से बाबा मेरी झोली भर रहें हैं। *परमात्म बल से मुझे भरपूर कर रहें हैं ताकि कोई भी परिस्थिति मुझे सच के रास्ते से हटाकर झूठ की ओर ना ले जाये*। सच्चे साहिब के साथ अंदर बाहर सदा सच्चे रहने की प्रतिज्ञा पर मैं सदा अटल रहूँ इसके लिए बाबा अपनी शक्तियों से मुझे शक्तिशाली बना रहे हैं और मेरे मस्तक पर विजय का तिलक लगा रहें हैं।
➳ _ ➳ परमात्म बल से मुझे भरपूर करके अब बाबा मुझे मधुबन घर की सैर करवा रहें हैं। *अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप में मैं बापदादा के साथ आबू की पहाड़ियों पर घूम रही हूँ। प्रकति के सुंदर नज़ारो का आनन्द ले रही हूँ। बाबा के साथ पिकनिक मना रही हूँ*। अव्यक्त पालना में भी बाबा मुझे साकार पालना का अनुभव करवा रहें हैं। अपने सच्चे साहिब के साथ अपने मधुबन घर की सैर करके अब मैं वापिस अपने ब्राह्मण स्वरूप में अपने कार्य स्थल पर लौट आती हूँ।
➳ _ ➳ *अपने सच्चे साहिब के सच्चे प्यार को अपने दिल मे बसाये, उनके साथ अंदर, बाहर सदा सच्चे रहने की प्रतिज्ञा को पूरा करते हुए हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी बात उन्हें बता कर अब मैं अपने साहिब के दिल रूपी तख्त पर सदा विराजमान रहती हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं स्वयं को संगमयुगी समझ व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने वाली समर्थ आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं सदा ईश्वरीय विधान पर चलकर ब्रह्मा बाप समान मास्टर विधाता बनने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *देखा गया है कि क्रोध की सबजेक्ट में बहुत कम पास हैं। ऐसे समझते हैं कि शायद क्रोध कोई विकार नहीं है, यह शस्त्र है, विकार नहीं है*। लेकिन क्रोध ज्ञानी तू आत्मा के लिए महाशत्रु है। क्योंकि क्रोध अनेक आत्माओं के सम्बन्ध, सम्पर्क में आने से प्रसिद्ध हो जाता है और *क्रोध को देख करके बाप के नाम की बहुत ग्लानी होती है*। कहने वाले यही कहते हैं, देख लिया ज्ञानी तू आत्मा बच्चों को। *क्रोध के बहुत रूप हैं। एक तो महान रूप आप अच्छी तरह से जानते हो, दिखाई देता है - यह क्रोध कर रहा है।*
➳ _ ➳ *दूसरा - क्रोध का सूक्ष्म स्वरूप अन्दर में ईर्ष्या, द्वेष, घृणा होती है। इस स्वरूप में जोर से बोलना या बाहर से कोई रूप नहीं दिखाई देता है,* लेकिन जैसे बाहर क्रोध होता है तो क्रोध अग्नि रूप है ना, वह अन्दर खुद भी जलता रहता है और दूसरे को भी जलाता है। ऐसे *ईर्ष्या, द्वेष, घृणा - यह जिसमे है, वह इस अग्नि में अन्दर ही अन्दर जलता रहता है*। बाहर से लाल, पीला नहीं होता, लाल पीला फिर भी ठीक है लेकिन वह काला होता है।
➳ _ ➳ *तीसरा क्रोध की चतुराई का रूप भी है*। वह क्या है? *कहने में समझने में ऐसे समझते हैं वा कहते हैं कि कहाँ-कहाँ सीरियस होना ही पड़ता है। कहाँ-कहाँ ला उठाना ही पड़ता है - कल्याण के लिए।* अभी कल्याण है या नहीं वह अपने से पूछो। *बापदादा ने किसी को भी अपने हाथ में ला उठाने की छुट्टी नहीं दी है*। क्या कोई मुरली में कहा है कि भले लाॅ उठाओ, क्रोध नहीं करो? लाॅ उठाने वाले के अन्दर का रूप वही क्रोध का अंश होता है। जो निमित्त आत्मायें हैं वह भी ला उठाते नहीं हैं, लेकिन उन्हों को लाॅ रिवाइज कराना पड़ता है। लाॅ कोई भी नहीं उठा सकता लेकिन निमित्त हैं तो बाप द्वारा बनाये हुए ला को रिवाइज करना पड़ता है। निमित्त बनने वालों को इतनी छुट्टी है, सबको नहीं।
✺ *ड्रिल :- "क्रोध के बहुरूपों को पहचान क्रोध की सब्जेक्ट में पास होने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *मन रूपी आकाश में बिखरे संकल्प रूपी बादल... कुछ श्वेत कुछ श्याम, और कुछ सबसे अलग अँगारों के समान, गहरे लाल रंग के... जैसे किसी ज्वाला मुखी से बिखरा लावा...* एक एक संकल्प को साक्षी भाव से देखते हुए... मैं आत्मा बैठ गयी हूँ बापदादा की कुटिया में, और अब एक एक कर शान्त होते मेरे ये संकल्प... मन बिल्कुल स्वच्छ, शान्त, होता जा रहा है... बापदादा के चित्र से आती प्रकाश की किरणें... मेरी भृकुटी पर स्थित होकर... आहिस्ता आहिस्ता मेरे मस्तिष्क में प्रवेश कर रही है... और इस प्रकाश की धारा से जगमगाता मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व...
➳ _ ➳ मैं आत्मा फरिश्ता रूप में बापदादा के साथ हिस्ट्री हाॅल में... बापदादा आज बच्चों को उनके अलौकिक जन्मदिन की बधाई दे रहे है... एक एक करके... बारी-बारी से सबको... मेरा नम्बर सबसे आगे... मगर बापदादा मुझे इशारे से पीछे होने का संकेत करते हुए... एक एक आत्मा को वरदान और पावर फुल दृष्टि, साथ बेशकीमती सौगातें... और मैं एक एक कर अपने सामने से उमंगों से भरपूर होकर जाती एक एक आत्मा को देख रहा हूँ... लम्बे इन्तजार के बाद मेरा नम्बर आता है... और बापदादा मेरी उपेक्षा कर चले जाते है हिस्ट्री हाॅल से... मैं बैठकर सोच रहा हूँ इस उपेक्षा का कारण... और *एक एक आत्मा के प्रति ईर्ष्या से भरता जा रहा हूँ मैं... अन्दर ही अन्दर एक बेचैनी और घुटन... एक बेबसी की भावना... क्योंकि मुझे बाहर से शान्त भी दिखना है...* एक अन्तहीन सा संघर्ष... जिसकी पीडा मैं ही जानता हूँ... तभी कन्धे पर किसी का प्यार भरा स्पर्श... और जैसे किसी ने कोई पीडानाशक घोल पिला दिया हो... और सारी कटुता सारी ईर्ष्या बह गयी है आँखो से आसुँओं की धारा बनकर...
➳ _ ➳ मैं अब बापदादा के साथ एक अनोखी यात्रा पर... मैं और बाबा एक ऊँची पहाडी पर... दूर कहीं फटता ज्वालामुखी और बहकर आता हुआ उसका गहरा लाल लावा... बेहद डरावना और जलाने वाला... मैं देख रहा हूँ बाबा के मनोभावों को और समझने की कोशिश कर रहा हूँ... हिस्ट्री हाॅल का उनका व्यवहार और अब ये ज्वाला मुखी... और सहसा समझ में आ रहा है मुझे सब कुछ... *क्रोध का भीषण रूप ठीक इस ज्वालामुखी की तरह से जलाने वाला... और सूक्ष्म रूप ईर्ष्या...* सोचकर खुद से ही नजरें चुरा रहा हूँ मैं और बाबा रहस्यपूर्ण नजरों से देखे जा रहें है मुझे... मगर मैं नजरें उठाने की हिम्मत नही जुटा पा रहा अब... और तभी बापदादा मेरा हाथ पकड कर एक झील के पास ले जाते हुए... मुझे झील के पानी में पैर उतारने का आह्वान करते हुए... और मैं देख रहा हूँ पानी से उठता धुआँ... गरम खौलता झील का पानी... कुछ ही पल में समझ रहा हूँ क्रोध के तीसरे रूप को... शीतलता का प्रतीक झील का पानी, मगर आज ये गरम और खौलता हुआ... *ठीक वैसे ही जैसे निमित्त बनी आत्मा लाॅ को हाथ में उठाये और कल्याण के नाम पर क्रोध को करें*...
➳ _ ➳ क्रोध के विभिन्न रूपों की पहचान कर मैं क्रोध मुक्त बनने के लिए बैठ गया हूँ... शान्त पहाडी झरने के नीचे... झरने के ऊपर बापदादा... मुझ आत्मा से क्रोध के अंश मात्र को धोते हुए... और निर्मल और शान्त होती हुई मैं आत्मा... *बिन्दु बन परमधाम की ओर जाती हुई मैं आत्मा... और अन्य आत्माओं को मुझसे आगे निकलने का आह्वान करते बापदादा... मगर मैं शान्त और यथा स्थिति में... न कोई संकल्प और न ही हलचल*... क्रोध के पेपर में पास मैं शान्त स्वरूप आत्मा... और अब बापदादा के एकदम करीब... बिल्कुल करीब... मैं बापदादा के सबसे करीब की आत्मा... भरे जा रही हूँ स्वयं को उनके स्नेह से... स्नेह सागर में समाती हुई... ॐ शान्ति...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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