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 07 / 03 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *कोई भी ऐसा कर्म तो नहीं किया जो अपने ऊपर कृपा के बजाये श्राप आ जाए ?*

 

➢➢ *काम या क्रोध के वश तो नहीं हुए ?*

 

➢➢ *नथिंग न्यू की स्मृति से सब प्रश्नों को समाप्त किया ?*

 

➢➢ *सुखदाता बाप के सुख स्वरुप बच्चे बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जीवन में जो चाहिए अगर वह कोई दे देता है तो यही प्यार की निशानी होती है। तो बाप का आप बच्चों से इतना प्यार है जो जीवन के सुख- शान्ति की सब कामनायें पूर्ण कर देते हैं।* बाप सुख ही नहीं देते लेकिन सुख के भण्डार का मालिक बना देते हैं। *साथ-साथ श्रेष्ठ भाग्य की लकीर खींचने का कलम भी देते हैं, जितना चाहे उतना भाग्य बना सकते हो - यही परमात्म प्यार है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने को श्रेष्ठ भाग्यवान समझते हो? भाग्य में क्या मिला? *भगवान ही भाग्य में मिल गया। स्वयं भाग्य विधाता भाग्य में मिल गया। इससे बड़ा भाग्य और क्या हो सकता है? तो सदा ये खुशी रहती है कि विश्व में सबसे बड़े ते बड़े भाग्यवान हम आत्मायें हैं।*

 

  हम नहीं, हम आत्मायें। आत्मायें कहेंगे तो कभी भी उल्टा नशा नहीं आयेगा। *देही-अभिमानी बनने से श्रेष्ठ नशा - ईश्वरीय नशा रहेगा। भाग्यवान आत्मायें हैं, जिन्हों के भाग्य का अब भी गायन हो रहा है।*

 

  *'भागवत' - आपके भाग्य का यादागार है। ऐसा अविनाशी भाग्य जो अब तक भी गायन होता है, इसी खुशी में सदा आगे बढ़ते रहो। कुमारियां तो निर्बन्धन, तन से भी निर्बन्धन, मन से भी निर्बन्धन। ऐसे निर्बन्धन ही उड़ती कला का अनुभव कर सकते हैं।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  अभी बापदादा सभी को चाहे यहाँ समुख बैठे हैं, चाहे देश-विदेश में दूर बैठे सुन रहे हैं या देख रहे हैं, सभी बच्चों को ड़ि्ल कराते हैं। सभी रेडी हो गये। *सब संकल्प मर्ज कर दो, अभी एक सेकण्ड में मन-बुद्धि द्वारा अपने स्वीट होम में पहुँच जाओ।*

 

✧  *अभी परमधाम से अपने सूक्ष्म वतन में पहुँच जाओ। अभी सूक्ष्मवतन से स्थूल साकार वतन में अपने राज्य स्वर्ग में पहुँच जाओ। अभी अपने पुरुषोत्तम संगमयुग में पहुँच जाओ। अभी मधुबन में आ जाओ।* ऐसे ही बार-बार स्वदर्शन चक्रधारी बन चक्र लगाते रहो। अच्छा।

 

✧  *अभी एक सेकण्ड में अपने मन से सब संकल्प समाप्त कर एक सेकण्ड में बाप के साथ परमधाम में ऊँचे ते ऊंचे स्थान, ऊँचे ते ऊंचा बाप, उनके साथ ऊँची स्थिति में बैठ जाओ।* और बाप समान मास्टर सर्वशक्तिवान बन विश्व की आत्माओं को शक्तियों की किरणें दो। अच्छा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  सदैव अपने को अकालमूर्त समझते चलेंगे तो अकाले मृत्यु से भी, अकाल से, सर्व समस्याओं से बच सकेंगे । *मानसिक चिन्तायें, मानसिक परिस्थितियों को हठाने का एक ही साधन याद रखना है - सिर्फ अपने इस पुराने शरीर के भान को मिटाना है। इस देह अभिमान को मिटाने से सर्व परिस्थितियाँ मिट जायेंगी ।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अपना मिजाज बहुत मीठा बनाना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा अमृतवेले प्यारे बापदादा का आह्वान करती हूँ... उनसे दिव्य वरदानों और शक्तियों की किरणें लेकर अपने को भरपूर करती हूँ... फिर मैं आत्मा बापदादा का हाथ पकड मॉर्निंग वाक करने निकल जाती हूँ...* बाबा के साथ वाक करते-करते एक आम के बगीचे में पहुँच जाती हूँ... पेड़ों पर मीठे-मीठेसुन्दर-सुन्दर आम के रसीले फल लटके हुए हैं... बापदादा एक आम तोड़कर मुझे प्यार से खिलाते हैं... मैं बाबा को खिलाती हूँ... *मीठे-मीठे आम खिलाते हुए मीठे बाबा मीठा बनने की मीठी समझानी देते हैं...*

 

  *सबको सिर्फ सुख देने, अपना मिजाज बहुत-बहुत मीठा बनाने का मुझसे वायदा लेते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे लाडले बच्चे... *मीठे बाबा से मिलकर जो प्यार का दरिया बने हो यह प्यार पूरे जहान में लुटाओ... प्यार का प्रतिरूप बनकर सारे संसार को प्रेम सुधा पिलाओ...* सबको सुख देकर जीवन को खुशियो से खिला आओ... और आत्मिक भाव में रह न्यारे प्यारे हो प्यार लुटाओ...

 

_ ➳  *मास्टर प्रेम का सागर बन सब पर प्रेम बरसाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा आपके सागर समान प्रेम को पाकर प्रेम स्वरूप हो गयी हूँ... मेरा रोम रोम प्रेम से भरा हुआ है...* सबको ख़ुशी और सुखो की सौगात दिए जा रही हूँ... और न्यारी बन मुस्करा रही हूँ...

 

  *प्यारे बाबा मीठे बच्चे कहते हुए अपनी मीठी वाणी से मेरे मन में मिठास घोलते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे फूल बच्चे... देह की मिटटी में फसकर खुद के सुंदर सजीले चमकीले स्वरूप को ही भूल गए... विकारो में जीकर कड़वे विषैले से हो गए... *अब प्यार का सागर से मिले हो तो वही प्रेम वही मिठास इस विश्व में बहाओ... सब को सकून देकर तनमन खुशियो में खिला आओ...* अब इस मिटटी में मटमैले न बनो...

 

_ ➳  *मन के तार परमात्मा से जोड़कर प्रेम रस पीकर सबको पिलाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा आपकी मीठी यादो में प्रेम और मिठास की परी बन पूरे विश्व को प्रेम तरंगो से पुलकित कर रही हूँ... प्यारे बाबा से मिलने की ख़ुशी यूँ प्रेममय होकर लुटा रही हूँ...* सब सुखी हो खुशहाल हो यह कामना कर रही हूँ...

 

  *अपनी प्रेममय गोदी में अतीन्द्रिय सुखों की अनुभूति कराते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *यह ईश्वरीय प्राप्ति की खुशियो को अपने नूरानी खुशनुमा चेहरों से झलकाओ... सबको प्यार के आगोश में भर आओ...* खूबसूरत सितारे बन विश्व गगन पर मुस्कराओ... हर दिल को सुखो की बयार से आनन्दित कर आओ...

 

_ ➳  *प्रेम के सागर से प्रेम जल भरकर मैं आत्मा प्रेम की बदली बन प्रेम की वर्षा करते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सब को प्यार की मीठी पालना दे रही हूँ... *प्यारे पिता से पाये सुखो की बरसात विश्व गगन से आत्माओ पर कर रही हूँ...* यह पूरा संसार प्यारा है दुलारा है इस मीठे भाव से भर रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ऐसा कोई भी कर्म नही करना है जो अपने ऊपर कृपा के बजाए श्राप आ जाये*"

 

_ ➳  संगमयुग का यह अमूल्य समय जबकि भगवान स्वयं हमारे सम्मुख हैं और आ कर हमें अपने श्रेष्ठ मत देकर कल्प - कल्प, जन्म - जन्मांतर के लिए हमारा सर्वश्रेष्ठ भाग्य बना रहे हैं तो *कितने सौभाग्यशाली हैं वो बच्चे जिन्होंने भगवान को पहचान लिया है और उसकी श्रेष्ठ मत पर चल श्रेष्ठ कर्म करके भविष्य जन्म - जन्म के लिए अपनी श्रेष्ठ तकदीर बना रहें हैं*। और कितने दुर्भाग्यशाली है वो बच्चे जो भगवान का बन कर भी अपनी मत पर चल कर गलत कर्म करते ही जा रहें हैं , इस बात से भी अंजान है कि भगवान का बन कर विकर्म करना मांना स्वयं को बहुत बड़ा श्राप देना है।

 

_ ➳  यह विचार करते - करते भक्ति मार्ग की कुछ बातें स्मृति में आने लगती है जो शास्त्रों में लिखी हुई हैं कि जब कोई शिष्य अपने गुरु की किसी बात की अवज्ञा करता था तो गुरु उसे श्राप दे देता था। *यहां तो भगवान बाप बन कर अपने बच्चों के सम्मुख आया हैं तो एक बाप भला कैसे अपने बच्चों को श्राप दे सकता है*! भगवान कभी अपने बच्चों को श्राप नही देता वो तो करुणा, प्रेम, दया का सागर है, दाता है। अपनी श्रेष्ठ मत देकर, बच्चों को श्रेष्ठ कर्म करना सिखलाते है और उन्हें अविनाशी सुखों से भरपूर कर देते हैं। इसलिए *उनकी श्रेष्ठ मत पर चल श्रेष्ठ कर्म करना माना स्वयं पर कृपा करना और उनकी मत के विरुद्ध अपनी मत पर चलना या पर मत पर चलना माना स्वयं ही स्वयं को श्रापित करना*।

 

_ ➳  यह सभी विचार करते हुए मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि मैं अपने भगवान बाप की श्रीमत को छोड़, मनमत वा परमत पर चल कभी भी कोई ऐसा कर्म नही करूँगी जो अपने ऊपर कृपा के बजाए श्राप आ जाये। *मन मे इसी दृढ़ संकल्प को लेकर करुणा, प्रेम, दया के सागर अपने मीठे प्यारे बाबा की मीठी यादों के झूले में बैठ, उनके साथ जैसे ही मैं मन बुद्धि का कनेक्शन जोड़ती हूँ, बाबा अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाकर मुझे अपनी बाहों में भर लेते हैं*। मैं आत्मा अब अपने पिता की सर्वशक्तियों की किरणो रूपी बाहों को थामे नश्वर देह से बाहर आ जाती हूँ और अपने पिता के पास उनके मीठे वतन की ओर चल पड़ती हूँ।

 

_ ➳  अपने मीठे बाबा की शक्तिशाली किरणो रूपी बाहों के झूले में झूलती, उनके मधुर और पावन प्रेम का अनुभव करती, *बड़ी ही आनन्दमयी स्थिति में स्थित मैं पाँच तत्वों की साकारी दुनिया को पार कर, बापदादा की अव्यक्त दुनिया को भी पार कर, अपने प्राण प्रिय शिव पिता की निराकारी दुनिया में प्रवेश करती हूँ*। अपने शिव पिता की बाहों से नीचे उतर कर अपने बाबा के इस स्वीट साइलेन्स होम में विचरण करती, इस पूरे ब्रह्मांड में फैले सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के वायब्रेशन को गहराई तक अपने अंदर समाते हुए मैं असीम सुख का अनुभव करके, अपने प्यारे बाबा के पास आ कर बैठ जाती हूँ।

 

_ ➳  बाबा का अथाह स्नेह सर्वशक्तियों के रूप में मुझ पर बरस रहा है। अपनी शक्तियों का समस्त बल बाबा मुझ आत्मा में प्रवाहित कर मुझे आप समान सर्व शक्ति सम्पन्न बना रहे हैं ताकि वापिस कर्मभूमि पर जाकर, ऐसा कोई भी कर्म मुझ से ना हो जिससे मुझे श्रापित होना पड़े। *बाबा का प्यार, बाबा के गुण, बाबा की शक्तियों की वर्षा निरन्तर मुझ पर हो रही हैं और मैं स्वयं को सर्वगुण, सर्व शक्ति सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ*। भरपूर होकर अब मैं वापिस साकार सृष्टि रूपी कर्मभूमि पर कर्म करने के लिए लौट रही हूँ। *बाबा के स्नेह, गुणों और शक्तियों का बल मुझे कर्म करते हुए भी कर्म के बन्धन से नयारा बना रहा है*।

 

_ ➳  हर कर्म अपने प्यारे बाबा की याद में रह कर अब मैं कर रही हूँ और इस बात पर पूरा अटेंशन दे रही हूँ कि ऐसा कोई भी कर्म मुझ से ना हो जो मेरे इस अमूल्य ब्राह्मण जन्म को श्रापित करे। *बाबा ने जो समझानी मुझे दी है कि "ऐसा कोई भी कर्म नही करना है जो अपने ऊपर कृपा के बजाए श्राप आ जाये" को अब मैं सदा स्मृति में रखते हुए अपने हर कर्म को श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाने का पुरुषार्थ कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं नथिंगन्यू की स्मृति से सब प्रश्नों को समाप्त कर बिंदी लगाने वाली अचल अडोल आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सुखदाता बाप की सुख स्वरूप बच्चा बनकर रह दुख की लहर में ना आने वाली सुखस्वरूप आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा को फारेन वालों ने यह जो सेवा की थी - काल आफ टाइम वालों की, उसकी विधि अच्छी लगी कि छोटे से संगठन को समीप लाया... ऐसे हर जोन, हर सेन्टर अलग-अलग सेवा तो कर रहे हो लेकिन कोई सर्व वर्गों का संगठन बनाओ... *बापदादा ने कहा था कि बिखरी हुई सेवा तो बहुत है, लेकिन बिखरी हुई सेवा से कुछ समीप आने वाली योग्य आत्माओं का संगठन चुनो और समय प्रति समय उस संगठन को समीप लाते रहो ओर उन्हों को सेवा का उमंग बढ़ाओ...* बापदादा देखते हैं कि ऐसी आत्मायें हैं लेकिन अभी वह पावरफुल पालना, संगठित रूप में नहीं मिल रही है... अलग-अलग यथाशक्ति पालना मिल रही है, संगठन में एक दो को देखकर भी उमंग आता है... यह, ये कर सकता है, मैं भी कर सकता हूँ, मैं भी करूँगा, तो उमंग आता है... *बापदादा अभी सेवा का प्रत्यक्ष संगठित रूप में देखने चाहते हैं...* मेहनत अच्छी कर रहे हो, हर एक अपने वर्ग की, एरिया की, जोन की, सेन्टर की कर रहे हो, बापदादा खुश होते हैं... अब कुछ सामने लाओ...

 

✺   *ड्रिल :-  "संगठित रूप में पावरफुल पालना देने का अनुभव"*

 

_ ➳  अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर, मैं बापदादा के साथ सारे विश्व का भ्रमण कर रहा हूँ और बाबा के साथ स्थान - स्थान पर बने बाबा के सभी सेवा केंद्रों को देख रहा हूँ... *सभी सेवा केंद्रों की सेवायें बढ़ती जा रही हैं... दुखी अशांत आत्मायें इन सेवा केंद्रों पर आ कर शांति का अनुभव करके तृप्त हो रही हैं...* परमात्म पालना का अनुभव उनके जीवन को परिवर्तित कर रहा है... हर जोन, हर सेंटर

पर बहुत अच्छी तरह से सेवाएं हो रही हैं... बाबा के साथ इन सभी सेवा केंद्रों को देखता हुआ, मैं बाबा के मन मे चल रहे संकल्पो को पढ़ने का भी प्रयास कर रहा हूँ...

 

_ ➳  पूरे विश्व का भ्रमण करके, सभी सेवा स्थलों का निरीक्षण करके, अब मैं बापदादा के साथ वतन की ओर जा रहा हूँ... वतन में पहुंच कर बाबा सभी ब्राह्मण बच्चों को अपने सामने इमर्ज करते हैं और उन्हें निर्देश देते हैं कि:- *"अब बिखरी हुई सेवा से समीप आने वाली योग्य आत्माओं का संगठन चुनो और समय प्रति समय उस संगठन को समीप लाते हुए, उनमें सेवा का उमंग बढ़ाओ"*... संगठित रूप में पावरफुल पालना देने से सेवा वृद्धि को भी पायेगी और सेवाओं में सहज ही सफ़लतामूर्त बन जायेंगे। यह निर्देश दे कर बाबा सभी ब्राह्मण बच्चों को परमात्म शक्तियों से भरपूर कर रहें हैं...

 

_ ➳  अब सभी ब्राह्मण बच्चे बाबा के निर्देश अनुसार वापिस अपने सेवा केंद्रों पर लौट कर संगठित रूप में पावरफुल पालना देने का अनुभव यथाशक्ति बढ़ाते जा रहें हैं... *बापदादा के साथ मैं फ़रिशता फिर से सभी सेवा केंद्रों का भ्रमण कर रहा हूँ और देख रहा हूँ कि अलग अलग स्थानों पर अब अनेक ऐसे संगठन बन चुके हैं जहां बाबा के नए आने वाले और पुराने सभी ब्राह्मण बच्चों को संगठित रूप में पावरफुल पालना मिल रही है...* सभी उमंग उत्साह से स्वयं भी आगे बढ़ रहे हैं तथा एक दो को सहयोग दे कर उन्हें भी आगे बढ़ा रहें हैं...

 

_ ➳  संगठित रूप में पावरफुल पालना से सेवा स्थलों का वायुमण्डल पावरफुल बन रहा है जिससे सेवा भी वृद्धि को पाती जा रही है... *जैसे मन्दिर का वातावरण दूर से ही खींचता हैऐसे याद की खुशबू का संगठित वातावरण आत्माओं को दूर से ही आकर्षित कर रहा है...* आत्मायें स्वत: ही खिंचती चली आ रही हैं और संगठित रूप में पावरफुल पालना पा कर स्वयं को शक्तिशाली अनुभव कर रही हैं... दिलशिकस्त और निराश आत्मायें भी योग का संगठित बल पा कर स्वयं को हिम्मतवान अनुभव कर रही हैं...

 

_ ➳  अनेक प्रकार के विनाशी सुख शांति से विचलित हुई आत्मायें जो बाप को और स्वयं को भूल चुकी हैं, वे संगठित रूप की पावरफुल पालना पा कर ऐसा अनुभव कर रही है जैसे वे अपनी यथार्थ मंजिल पर पहुंच गई हैं... *हर सेवा स्थल पर संगठित रूप में ब्राह्मण आत्माओं की अव्यक्त स्थिति और उनकी रूहानी लाइट और माइट की स्थिति सभी आत्माओं को रूहानी पालना का अनुभव करवा कर उन्हें परमात्म प्यार की अनुभूति करवा रही हैं...* स्वयं को सभी परमात्म पालना में पलता हुआ अनुभव करके निरन्तर आगे बढ़ते हुए एक दूसरे को भी आगे बढ़ा रहे हैं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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