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 05 / 01 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *"अब नाटक पूरा हो रहा है" - इस स्मृति से उपराम अवस्था का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *सपूत बच्चा बन अनेकों को रास्ता बताया ?*

 

➢➢ *दिव्य बुधी के वाहन द्वारा तीनो लोकों की सैर की ?*

 

➢➢ *अपनी सर्वशक्तियों को अन्य आत्माओं के प्रति विल किया ?*

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         ❂ *योगी जीवन प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं*

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✧  *जैसे हठयोगी अपने श्वांस को जितना समय चाहें उतना समय रोक सकते हैं। आप सहजयोगी, स्वत: योगी, सदायोगी, कर्मयोगी, श्रेष्ठयोगी अपने संकल्प को, श्वांस को प्राणेश्वर बाप के ज्ञान के आधार पर जो संकल्प, जैसा संकल्प जितना समय करना चाहो उतना समय उसी संकल्प में स्थित हो जाओ।* अभी-अभी शुद्ध संकल्प में रमण करो, अभी-अभी एक ही लगन अर्थात् एक ही बाप से मिलन की, एक ही अशरीरी बनने के शुद्ध-संकल्प में स्थित हो जाओ।

 

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∫∫ 2 ∫∫ योगी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाकर योगी जीवन का अनुभव किया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं लाइट हाऊस बन विश्व को लाइट देने वाला रूहानी सेवाधारी हूँ"*

 

   रुहानी सेवाधारी का कर्तव्य है-लाइट हाउस बन सबको लाइट देना- सदा अपने को लाइट हाउस समझते हो? *लाइट हाउस अर्थात् ज्योति का घर। इतनी अथाह ज्योति अर्थात् लाइट जो विश्व को लाइट हाउस बन सदा लाइट देते रहें।*

 

  तो लाइटहाउस में सदा लाइट रहती ही है तब वह लाइट दे सकते हैं। अगर लाइट हाउस खुद लाइट के बिना हो तो औरों को कैसे दें? हाउस में सब साधन इक्ठे होते हैं। *तो यहाँ भी लाइट हाउस अर्थात् सदा लाइट जमा हो, लाइट हाउस बनकर लाइट देना यह ब्राह्मणों का आक्यूपेशन है।*

 

  *सच्चे रुहानी सेवाधारी महादानी अर्थात् लाइट हाउस होंगे। दाता के बच्चे दाता होंगे। सिर्फ लेने वाले नहीं लेकिन देना भी है। जितना देंगे उतना स्वत: बढ़ता जायेगा। बढ़ाने का साधन है 'देना'।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *स्वयं को इस स्वमान में स्थित कर अव्यक्त बापदादा से ऊपर दिए गए महावाक्यों पर आधारित रूह रिहान की ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  सेवा के लिए साधन है क्योंकि विश्व कल्याण करना है तो यह भी साधन सहयोग देते हैं। *साधनों के वश नहीं होना। लेकिन साधन को सेवा में यूज करना।* यह बीच का समय है जिसमें साधन मिले हैं। आदि में भी कोई इतने साधन नहीं थे और अंत में भी नहीं रहेंगे। यह अभी के लिए हैं।

 

✧  सेवा बढ़ाने के लिए हैं। लेकिन यह साधन हैं, साधना करने वाले आप हो। *साधन के पीछे साधना कम नहीं हो।* बाकी बापदादा खुश होते हैं। बच्चों की सीन देखते हैं। फटाफट काम कर रहे हैं। बापदादा आपके ऑफिस का भी चक्कर लगाते हैं। कैसे काम कर रहे हैं।

 

✧  बहुत बिजी रहते हैं ना। अच्छी तरह से ऑफिस चलती है ना! जैसे एक सेकण्ड में साधन यूज करते हो ऐसे ही बीच-बीच में कुछ समय साधना के लिए भी निकाली। सेकण्ड भी निकालो। *अभी साधन पर हाथ है और अभी-अभी एक सेकण्ड साधना, बीच-बीच में अभ्यास करो।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सुख-दुःख, मान-अपमान सब सहन करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा अंतर्मुखी बन परमत, परचिंतन को छोड़ ज्ञान योग के पर लगाकर मन बुद्धि रूपी विमान में बैठकर बाबा की झोपड़ी के बाहर पहुंच जाती हूँ...* सुंदर सुंदर पेड़ पौधों, फूलों से सजे हुए बगीचे में चारों ओर बाबा के प्रेम की सुगंध फैली हुई है... बापदादा झूले पर बैठ झूला झूलते हुए दोनों हाथों को फैलाए मुझे अपने पास बुलाते हैं और अपनी बाहों में समेटकर प्यार का झूला झुलाते हुए प्यारी प्यारी शिक्षाएं देते हैं...

 

   *निंदा स्तुति जय पराजय सबमे समान रह सब बातो में सहनशील बनने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे बच्चे... मीठा पिता सदा आपके साथ है... सम्मुख है... *अथाह दुखो को सहने के आदी जनमो से हो... तो इस समय भी सहनशील बनो... सब बातो से उपराम बन समय और सांसो को मीठे पिता में खपा दो...* और कहीं न उलझो... बस एक पिता की याद में मगन रहो..."

 

_ ➳  *सुनी सुनाई व्यर्थ बातो को छोड़ एक बाबा से ही सुनकर धारण करती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मुझ आत्मा ने सारा जीवन इन व्यर्थ भरी बातो में ही खपाया... *पर अब मै आत्मा प्यारे बाबा में खो गई हूँ... ईश्वर पिता के साथ सहनशीलता की मिसाल बन रही हूँ...* जीवन खूबसूरत होता जा रहा है..."

 

   *इस सृष्टि नाटक के सारे राजों को बताकर मेरे ज्ञान चक्षुओं को खोलते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे.... अब यह खेल पूरा हो गया है... *सारे हिसाब पूरे होने है... मान हो या अपमान दुनिया कुछ भी कहे.... आप प्यारे बाबा की यादो में स्थिर रहो...* यादो में हर कर्म को कर ईश्वरीय पिता के दिल पर राज करो... सिर्फ पिता की सुनो और याद करो..."

 

_ ➳  *स्मृति स्वरूप समर्थी स्वरूप बन सुख-दुख, मान-अपमान से परे होकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... सबको सुनकर मै आत्मा किस कदर भटक पड़ी थी... अब आप जो मिले हो बाबा तो आप ही को सुन रही... *आपकी यादो में इस कदर खो रही हूँ... कि सब भावो से न्यारी बन रही हूँ..."*

 

   *जन्म जन्मांतर के प्यास को बुझाकर ज्ञान अमृत पिलाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *जनमो से असत्य को सुनकर सत्य से कोसो दूर हो गए... अब और इन बातो में न फंसो... सच्चे पिता से सुनकर गहरे आनन्द में उतरो...* भगवान आ गया है जीवन में तो सारे दुखो से उबर जाओ... खुशियो संग नाचो और सदा का मुस्कराओ... पाना था सो पा लिया..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा स्वमान में स्थित रहकर एकरस अवस्था का अनुभव करते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा कितनी खुशनसीब हूँ... ईश्वर पिता को सुनने देखने जानने का सौभाग्य मिला है...* अब झूठ के भँवर से निकल पड़ी हूँ... अब मेरी ख़ुशी को दुनिया का कोई भी दुःख छीन ही न सके..."

 

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- यह नाटक अब पूरा हो रहा है इसलिए इस पुरानी दुनिया से उपराम रहना है*"

 

_ ➳  साक्षीदृष्टा बन ज्ञान के दिव्य नेत्र से मैं जैसे ही इस सृष्टि को देखती है यह सम्पूर्ण सृष्टि मुझे एक विशाल रंगमंच, एक नाटकशाला के रुप में दिखाई देती है जिस पर बेहद का नाटक चल रहा है। *मैं देख रही हूँ कि जैसे - जैसे इस नाटक में जिसका पार्ट है अपने - अपने समय अनुसार वो आत्मा परमधाम से नीचे आ रही है और मनुष्य शरीर धारण कर अपना पार्ट बजा रही है*। जिस आत्मा को जैसा पार्ट मिला है वो अपने उस पार्ट को एकदम एक्यूरेट बजा रही है।

 

_ ➳  इस दृश्य को देखते - देखते मैं विचार करती हूँ कि 5 हजार वर्ष से चल रहा यह नाटक अब पूरा हो रहा है। सब पार्टधारियों को अपना पार्ट बजा कर अब वापिस अपने धाम लौटना है और *अब जबकि बाबा ने आकर हमे इस सत्यता का बोध करवा दिया है कि यह पुरानी दुनिया अब जल्दी ही समाप्त होनी है तो अब हमें उनके फरमान पर चल इस पुरानी दुनिया से उपराम रहने का पुरुषार्थ अवश्य करना चाहिए* नही तो देह और देह की इस झूठी दुनिया के चक्रव्यूह में फंस कर अपनी तकदीर को लकीर लगा बैठेंगे और इस बेहद नाटक में फिर कल्प - कल्प के लिए हमारा ऐसा ही पार्ट निर्धारित हो जायेगा।

 

_ ➳  यही वह समय है जबकि स्वयं भाग्य विधाता बाप आये हुए हैं और आकर श्रेष्ठ मत देकर हमारा सर्वश्रेष्ठ भाग्य बना रहें हैं। तो ऐसे बाप की श्रीमत पर अच्छी रीति चल इस अन्तिम समय मे अब मुझे इस पुरानी दुनिया से उपराम रहने का तीव्र पुरुषार्थ अवश्य करना है। *इस देह और देह की इस दुनिया से जुड़ा हर सम्बन्ध नश्वर और दुख देने वाला ही तो है और भगवान के साथ जुड़ा हर सम्बन्ध अपरमअपार सुख देने वाला है*। यह स्मृति आते ही मन में इस पुरानी दुनिया के लिये वैराग्य उतपन्न होने लगता है और मन अपने प्यारे बाबा की तरफ खिंचने लगता है। *उनके प्यार का वो एहसास याद आते ही मन बुद्धि देह और देह की दुनिया से उपराम हो कर शिव पिता पर एकाग्र हो जाते हैं*।

 

_ ➳  मन बुद्धि की तार बाबा के साथ जुड़ते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे परमधाम से परमात्म लाइट सीधी मुझ आत्मा के साथ आ कर कनेक्ट हो गई हैं। *शक्तियों का तेज करंट मुझ आत्मा में प्रवाहित होने लगा है जो मुझे इस देह से उपराम कर, ऊपर अपनी ओर खींच रहा है*। इस परमात्म लाइट के साथ कनेक्ट होकर अब मैं आत्मा देह से निकल कर इस लाइट के साथ - साथ ऊपर जा रही हूँ। यह परमात्म लाइट मुझे खींच कर 5 तत्वों की इस दुनिया से पार ले कर जा रही है। *साकारी  और आकारी दोनों दुनियाओं को पार कर अब मैं अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की इस लाइट के साथ पहुँच गई हूँ परमधाम उनके पास*।

 

_ ➳  अनन्त शक्तियों का पुंज, वो पॉवर हाउस मेरे शिव पिता परमात्मा अब मेरे बिल्कुल समीप है उनकी समस्त पॉवर उनकी सर्वशक्तियों की किरणों के रूप में मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं। *मुझ आत्मा की बैटरी चार्ज हो रही है और मैं लाइट हाउस बनती जा रही हूँ*। परमात्म लाइट स्वयं में भर कर मैं अपने आप को बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। ऊर्जा का भण्डार बन, वापिस साकारी लोक में आ कर अपने साकारी तन में विराजमान हो कर इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर अब मैं अपना पार्ट फिर से बजा रही हूँ।

 

_ ➳  "सृष्टि का यह नाटक अब पूरा हो रहा है" यह स्मृति मुझे देह और देह की दुनिया से उपराम बनाती जा रही है। *देह और देह के सम्बन्धियों के बीच रहते, उनसे तोड़ निभाते, बुद्धि का योग अपने शिव पिता के साथ जोड़, मन बुद्धि से अब मैं ऊपर वास करती रहती हूँ और अपने शिव पिता के प्यार से स्वयं को सदा भरपूर रखते हुए, नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बन कर रहती हूँ*।

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं दिव्य बुद्धि के वाहन द्वारा तीनों लोकों की सैर करने वाली ज्ञान स्वरूप विद्यापति आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपनी सर्वशक्तियों को अन्य आत्माओं के प्रति विल कर श्रेष्ठ सेवा करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  सारे दिन में गलती नहीं की लेकिन समय, संकल्प, सेवा, सम्बन्ध-सम्पर्क में स्नेहसंतुष्टता द्वारा जमा कितना किया? *कई बच्चे सिर्फ यह चेक कर लेते हैं - आज बुरा कुछ नहीं हुआ। कोई को दुःख नहीं दिया। लेकिन अब यह चेक करो कि सारे दिन में श्रेष्ठ संकल्पों का खाता कितना जमा कियाश्रेष्ठ संकल्प द्वारा सेवा का खाता कितना जमा हुआ?* कितनी आत्माओं को किसी भी कार्य से सुख कितनों को दिया? योग लगाया लेकिन योग की परसेन्टेज किस प्रकार की रहीआज के दिन दुआओं का खाता कितना जमा किया?      

 

 _ ➳  *कोई कितना भी हिलावे, हिलना नहीं अखण्ड गुणदानी, अटलकोई कितना भी हिलावेहिलना नहीं।* हरेक एक दो को कहते होसभी ऐसे हैंतुम ऐसे क्यों अपने को मारता हैतुम भी मिल जाओ। कमजोर बनाने वाले साथी बहुत मिलते हैं। लेकिन *बापदादा को चाहिए हिम्मतउमंग बढ़ाने वाले साथी। तो समझा क्या करना है? सेवा करो लेकिन जमा का खाता बढ़ाते हुए करोखूब सेवा करो। पहले स्वयं की सेवाफिर सर्व की सेवा।*

 

✺   *ड्रिल :-  "दुआओं का खाता जमा करने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा भृकुटी सिंहासन में विराजमान बैठी हूँ... मैं मन-बुद्धि द्वारा आसमान की ओर उड़ती हूँ... धीरे-धीरे आसमान की तरफ उड़कर मैं एक सफेद प्रकाश की दुनिया सूक्षमवतन में पहुँच जाती हूँ...* वहाँ एकदम साइलेंस की दुनिया हैं... एक तिनके तक की आवाज़ नहीं हैं... एकदम सन्नाटा हैं... वहाँ ब्रह्मा बाबा शिव बाबा का इंतज़ार कर रहे है...

 

 _ ➳  सूक्ष्मवतन में शिव बाबा ब्रह्मा बाबा के तन में आते हैंं और उनके आते ही वहाँ का वातावरण फ़ूलों से भर जाता हैं... फ़ूलों की धीमी-धीमी खुशबू आने लगती हैं... बाबा मुझ आत्मा पर सुनहरी किरणें डाल रहे हैं... *मैं उन किरणों में खो चुकी हूँ... मुझ आत्मा का माँ वैष्णो देवी का स्वरूप इमर्ज हो रहा हैं... मुझ आत्मा के इस माँ वैष्णो देवी के स्वरूप से बाबा की किरणें भक्तों पर न्यौछावर हो रही हैं...*

 

 _ ➳  सभी भक्त बहुत ख़ुशी से झूम रहे हैं... उन्हें ऐसा लग रहा हैं मानों जैसे उनकी सभी मुरादे पूरी हो चुकी हैं... वह सब आसमान की ओर देखकर मन ही मन मुझ पूज्य स्वरूप का शुक्रिया कर रहे हैं... *उन करोड़ों आत्माओं की दुआएं मुझ आत्मा तक पहुँच रही हैं... अब मेरे मन मे श्रेष्ठ संकल्प ही चलते हैं... योग में भी वृद्धि हो रही हैं... मुझ आत्मा का दुआओं का खाता जमा होता जा रहा हैं...*

 

 _ ➳  अब कोई कितना भी बाबा से दूर करने की कोशिश करें, कोई भी कहे कि तुम कहाँ फँस चुके हो परन्तु मैं हिलती नहीं हूँ... मुझ आत्मा में हिम्मत बढ़ चुकी हैं... मैं किसी की उल्टी बातों पर ध्यान नहीं देती हूँ... *अब मैं सेवा तो करती हूँ परन्तु साथ-साथ जमा के खाते को बढ़ाकर करती हूँ... मैं आत्मा बाबा से वादा करती हूं कि मैं योग और ज्ञान से सर्व आत्माओं का कल्याण करूँगी...*

 

 _ ➳  *अपनी दिनचर्या में मैं आत्मा अब समय बरबाद नहीं करती हूँ... मुझ आत्मा के लौकिक व अलौकिक सम्बन्धों में स्नेह बढ़ता जा रहा है और मैं सदा संतुष्ट रहती हूँ... सभी के प्रति शुभभावना और शुभकामना रखती हूँ...* अब मैं सवेरे-सवेरे उठते ही पहले स्व को ज्ञान रत्नों से भरपूर करके स्व की सेवा स्वमान लेकर, अमृतवेला करकें और मुरली सुनकर करती हूँ... फिर सर्व आत्माओं की सेवा करती हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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