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❍ 29 / 04 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *स्वयं को सच्ची सच्ची महान आत्मा अनुभव किया ?*
➢➢ *अमृतवेले से लेकर रात्री तक श्रेष्ठ योगी जीवन का अनुभव किया ?*
➢➢ *"सब कुछ तेरा" - इस स्मृति से स्वयं को डबल लाइट अनुभव किया ?*
➢➢ *संकल्प, बोल और कर्म में पुण्य आत्मा बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *तपस्या अर्थात् एक बाप की लगन में रहना। किसी भी कार्य में सफलता-मूर्त बनने के लिये त्याग और तपस्या चाहिए।* त्याग में महिमा का भी त्याग, मान का भी त्याग और प्रकृति दासी का भी त्याग-जब ऐसा त्याग हो तब तपस्या द्वारा सफलता स्वरूप बनेंगे।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं श्रेष्ठ स्मृति स्वरूप आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा बाप और वर्से की स्मृति में रहते हो! श्रेष्ठ स्मृति द्वारा श्रेष्ठ स्थिति का अनुभव होता है। *स्थिति का आधार है - 'स्मृति'। स्मृति कमजोर है तो स्थिति भी कमजोर हो जाती है। स्मृति सदा शक्तिशाली रहे। वह शक्तिशाली स्मृति है - 'मैं बाप का और बाप मेरा'।* इसी स्मृति से स्थिति शक्तिशाली रहेगी और दूसरों को भी शक्तिशाली बनायेंगे। तो सदा स्मृति के ऊपर विशेष अटेन्शन रहे।
〰✧ *समर्थ स्मृति, समर्थ स्थिति, समर्थ सेवा स्वत: होती रहे। स्मृति, स्थिति और सेवा तीनों ही समर्थ हों। जैसे स्विच आन करो तो रोशनी हो जाती, आफ करो तो अंधियारा हो जाता, ऐसे ही यह स्मृति भी एक 'स्विच' है।*
〰✧ *स्मृति का स्विच अगर कमजोर है तो स्थिति भी कमजोर है। सदा 'स्मृति रूपी स्विच का अटेन्शन'। इसी से ही स्वयं का और सर्व का कल्याण है। नया जन्म हुआ तो नई स्मृति हो। पुरानी स्मृतियाँ सब समाप्त। तो इसी विधि से सदा सिद्धि को प्राप्त करते चलो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *दो - चार बारी भी कोई बात प्रेक्टिकल में लाई जाती है तो प्रैक्टिकल में लाने से प्रैक्टीस हो जाती है।* यहाँ इस भट्ठी में अथवा मधुपन में इस अभ्यास को प्रैक्टिकल में लाते हो ना। जब यहाँ प्रैक्टिकल में लाते हो और प्रैक्टीस हो जाती है तो वह प्रैक्टीस की हुई चीज़ क्या बन जानी चाहिए? नेचरुल और नेचर बन जानी चाहिए। समझा।
〰✧ जैसे कहते हैं ना यह मेरी नेचर है। तो यह अभ्यास प्रैक्टीस में नेचुरल और नेचर बन जान चाहिए। यह स्थिति जब नेचर बन जायेगी फिर क्या होगा। नेचुरल केलेमिटीज हो जायेगी। *आपकी नेचर न बनने के कारण यह नेचुरल केलेमिटीज रुकी हुई है।* क्योंकि अगर सामना करने वाले अपने स्व - स्थिति से उन परिस्थितियों को पार नहीं कर सकेंगे तो फिर वह परिस्थितियाँ आयेंगी कैसे।
〰✧ *सामना करने वाले अभी तैेयार नहीं हैं। इसलिए यह पर्दा खुलने में देरी पड रही है।* अभी तक इन पुरानी आदतों से, पुरानी संस्कारों से , पुरानी बातों से, पुरानी दुनिया से, पुरानी देह के सम्बन्धियों से वैराग्य नहीं हुआ है। कहाँ भी जाना होता है तो जिन चीजों को छोडना होता है उनसे पीठ करनी होती है। तो अभी पीठ करना नहीं आता है। एक तो पीठ नहीं करते हो, दूसरा जो साधन मिलता है उसकी पीठ नहीं करते हो।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ जैसे अभी सभी का एक संकल्प चल रहा था, वैसे ही सभी एक ही लगन अर्थात् एक ही बाप से मिलन की, एक ही 'अशरीरी-भव' बनने के शुद्ध-संकल्प में स्थित हो जाओ। तो सभी के संगठन रूप का शुद्ध-संकल्प क्या कर सकता है। किसी के भी ओर दूसरे संकल्प न हों। *सभी एक-रस स्थिति में स्थित हों तो बताओ वह एक सेकण्ड के शुद्ध-संकल्प की शक्ति क्या कमाल कर देती है तो ऐसे संगठित रूप में एक ही शुद्ध संकल्प अर्थात् एक-रस स्थिति बनाने का अभ्यास करना है। तब ही विश्व के अंदर शक्ति सेना का नाम बाला होगा।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- उडती कला में जाने की विधि और पुण्य आत्माओं की निशानियाँ"*
➳ _ ➳ अमृतवेले आंख खुलते ही मैं आत्मा मीठे बापदादा को अपने सामने देखती हूँ... बापदादा बड़े प्यार से मीठे बच्चे- मीठे बच्चे कहकर मुझे जगाते हैं... बड़ी प्यार भरी दृष्टि दे रहे हैं... *बाबा के रूहानी नयन मुझ आत्मा को प्रभु प्यार में पूरी तरह लवलीन कर रहे हैं...* मैं आत्मा तहे दिल से अपने *मीठे बाबा का शुक्रिया करती हूँ... जिन्होंने मेरे जीवन में आकर जीवन रूपी बगिया को खुशियों से महका दिया है... बापदादा से होने वाली असीम स्नेह की वर्षा से मैं आत्मा भीगती जा रही हूँ...*
❉ *अपनी मीठी मीठी शिक्षाओं से मेरे जीवन का श्रृंगार करते हुए बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे बच्चे... उड़ती कला का श्रेष्ठ साधन जानते हो... *उड़ती कला का अनुभव करने के लिए एक शब्द का परिवर्तन करना है... वह एक शब्द है सब कुछ तेरा... मेरा शब्द को बदल कर तेरा कर देना है...* यह शब्द सदा के लिए लाइट बना देता है और डबल लाइट बन जाने से सहज उड़ती कला वाला बन जाते हैं..."
➳ _ ➳ *बाबा के मीठे बोल सुनकर गदगद होती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणेश्वर मीठे बाबा... आप हमें उड़ती कला में ले जाने की कितनी सहज युक्ति बता रहे हैं... अब मैं आत्मा हर *मेरे को तेरे में परिवर्तन* कर रही हूँ... *इस 'तेरा हूं' से आत्मा तो लाइट है ही और सब कुछ जिम्मेवारी तेरा कर देने से मैं हल्कापन अनुभव कर रही हूँ... डबल लाइट बन जाने से मैं आत्मा सहज ही उड़ती कला में जा रही हूँ..."*
❉ *अपने श्रेष्ठ और महान ब्राह्मण कुल की स्मृति दिलाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे-मीठे फूल बच्चे... सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण कुल वाली आत्माओं का लक्ष्य है सदा महादानी और सदा पुण्य आत्मा बनना... *पुण्य आत्माएं कभी भी संकल्प में भी विकार के वश नहीं हो सकती... वे हर संकल्प में, बोल में, कर्म में सदा पुण्य आत्मा रहती हैं... जब पुण्य आत्मा बन गई तो पाप का नाम निशान भी नहीं रह सकता... तो सदा इसी स्मृति में रहो कि हम ब्राह्मण आत्माएं सदा की पुण्य आत्मायें हैं..."*
➳ _ ➳ *बाबा की शिक्षाओं को अपने जीवन में धारण करती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "सतगुरु मीठे बाबा... मैं आत्मा अब इसी स्मृति में स्थित हूँ कि *मैं सर्वश्रेष्ठ कुल वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ... पुण्य आत्मा हूँ...* मैं आत्मा हर कर्म से पुण्य का खाता जमा करती जा रही हूँ... *हर आत्मा के प्रति सदैव श्रेष्ठ भावना और शुभ भावना रख रही हूँ... और अपनी पुण्य की पूंजी को बढ़ाती जा रही हूँ..."*
❉ *ज्ञान रत्नों से मेरा श्रृंगार करते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* "मेरे प्यारे बच्चे... पुण्य आत्माओं की निशानी जानते हो... पुण्य आत्मा कभी भी किसी भी आत्मा से *अल्पकाल की प्राप्ति की कामना नहीं रखती... वह कभी भी अपने पुण्य के बदले प्रशंसा लेने की कामना भी नहीं रखती...* वे सदा अपने *हर बोल द्वारा औरों को खुशी, बाप के स्नेह, अतींद्रिय सुख, रूहानी आनन्दमय जीवन का अनुभव कराते हैं... तो ऐसे पुण्य आत्मा बनो..."*
➳ _ ➳ *बाबा द्वारा कही गई एक एक बात का स्वरूप बनती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "नयनों के नूर मीठे बाबा... मैं आत्मा अपनी दातापन की स्थिति में स्थित हूँ... *हद की नाम मान शान की सभी कामनाओं से मुक्त हूँ... अपने हर बोल द्वारा आत्माओं को खुशी की खुराक दे रही हूँ... अपने हर कर्तव्य द्वारा सभी को सहयोग की अनुभूति करा रही हूँ... पुण्य आत्मा के सभी लक्षण, निशानियाँ स्वयं में धारण करती जा रही हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अमृतवेला से लेकर रात्रि तक श्रेष्ठ योगी जीवन का अनुभव*"
➳ _ ➳ *अपने आप को महान योगी, महान तपस्वी कहलाने वाले महा मंडलेश्वर, साधू सन्यासी और उन्हें महान योगी, महान तपस्वी का टाइटल देने वाले उनके फॉलोअर्स के बारे में एकान्त में बैठी मैं विचार कर रही हूँ और सोच रही हूँ* कि अपने शरीर को तकलीफ देकर, जिस कठिन साधना और तपस्या द्वारा ये परमात्मा को पाने का प्रयास कर रहें हैं उस कठोर साधना और तपस्या के द्वारा उन्हें आखिर क्या प्राप्त होगा!
➳ _ ➳ खुदा को पाने का सत्य मार्ग अगर कोई बता सकता है तो वो स्वयं खुदा ही बता सकता है और वो खुदा इस समय स्वयं आकर कह रहा है कि जप - तप, और भक्ति मार्ग के कर्मकांडो से मेरी प्राप्ति नही हो सकती। *मुझे पाने का सहज उपाय तो ये सहज राजयोग है और जो परमात्मा की श्रीमत को मान कर, राजयोग के मार्ग पर चल रहे हैं वही सही मायने में महान योगी और महान तपस्वी है*। मन ही मन अपने आप से बातें करते हुए मैं अपने योगी जीवन के बारे में विचार करती हूँ और अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करती हूँ कि कितनी महान पदमापदम सौभाग्य शाली हूँ मैं आत्मा, जो अमृतवेले से रात्रि तक श्रेष्ठ योगी जीवन का अनुभव करती हूँ।
➳ _ ➳ स्नेह के सागर में समाकर, याद की मेहनत से मुक्त, अपने सहजयोगी, स्वत:योगी और निरन्तर योगी जीवन के बारे में चिंतन करते ही अब एक - एक करके अनेक स्मृतियाँ अनेक दृश्यों के रूप में मेरे मानसपटल पर उभर आती है। *सुबह अमृतवेले भगवान का स्वयं मेरे पास आकर मुझे मीठे लाडले बच्चे कह कर जगाना और अपने वरदानीमूर्त हस्तों को मेरे ऊपर फैलाकर, वरदानो से मेरी झोली भरना, परम शिक्षक बन अविनाशी ज्ञान रत्नों के अखुट खजाने मुझ पर लुटाना, सतगुरु बन अपनी श्रेष्ठ मत देकर मुझे श्रेष्ठ कर्म सिखलाना और सर्व सम्बन्धो का मुझे सुख देना*। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से इन सभी दृश्यों को देखते - देखते एक अलौकिक रूहानी नशा मुझ पर छाने लगता है।
➳ _ ➳ रूहानी मस्ती में डूबी मैं आत्मा अपने प्यारे प्रभु का दिल से कोटि - कोटि धन्यवाद करती हुई, उनसे मिलने के लिए आतुर, अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होकर, एक अति सूक्ष्म चमकते हुए चैतन्य सितारे के रूप में भृकुटि की कुटिया से बाहर निकलती हूँ और सीधे ऊपर आकाश की दिशा में चल पड़ती हूँ। *अमृतवेले से लेकर रात्रि तक के अपने श्रेष्ठ योगी जीवन के अनुभवों की मधुर स्मृतियाँ मेरी इस आंतरिक यात्रा को आनन्दमयी बनाकर मुझे सेकण्ड में मेरी मंजिल तक पहुंचा देती हैं*।
➳ _ ➳ देख रही हूँ मैं स्वयं को अपने परमधाम घर में, महाज्योति अपने प्यारे प्रभु की सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे। *सर्वशक्तियों की किरणों की मीठी फ़ुहारों के रूप में मुझ पर निरन्तर बरस रहे उनके असीम स्नेह को पाकर मैं परम आनन्द का अनुभव कर रही हूँ*। प्यार के सागर मेरे पिता अपने प्यार की शीतल फुहारें मुझ पर बरसाते हुए अपना सारा प्यार मुझ पर लुटा रहें हैं। उनका ये अनकंडीशनल, निस्वार्थ प्यार मुझमें अथाह ऊर्जा का संचार कर रहा है।
➳ _ ➳ अपने शिव पिता के प्यार के अति सुखद खूबसूरत एहसास को अपने अंदर समाकर, अब मैं वापिस साकार लोक में आ जाती हूँ। इस प्यार के मधुर अहसास को अपने ब्राह्मण जीवन का आधार बनाकर, अपने इस अलौकिक जीवन का मैं भरपूर आनन्द ले रही हूँ। *सुबह आंख खोलते बाबा, दिन की शुरुवात करते बाबा, कर्मयोगी बन हर कर्म करते एक साथी बाबा, दिन समाप्त करते भी एक बाबा के लव में लीन रहने वाली लवलीन आत्मा बन कर, अमृतवेले से लेकर रात्रि तक श्रेष्ठ योगी जीवन का अनुभव मैं हर पल कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा सुख स्वरूप बन सारे विश्व में सुख की किरणें फैलाने वाली मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं अपने बोल, संकल्प और कर्म से दिव्यता का अनुभव कराने वाली दिव्य जन्म धारी ब्राह्मण आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *समय के प्रमाण स्वयं को परिवर्तन करो:- अभी समय के प्रमाण परिवर्तन की गति तीव्र चाहिए।* जब समय तीव्रगति में जा रहा है और परिवर्तन करने वाले तीव्रगति में नहीं होंगे तो समय परिवर्तन हो जायेगा और स्वयं कमी वाले ही रह जायेंगे। कमी वाली आत्माओं की निशानी क्या दिखाई है? कमान। तो कमानधारी बनना है वा छत्रधारी बनना है? *सूर्यवंशी बनना है ना? तो सूर्य सदा तेज होता है और तीव्रगति में कार्य करता है। सूर्य के अन्तर में चन्द्रमा शीतल गाया जाता है। तो पुरूषार्थ में शीतल नहीं होना है। पुरूषार्थ में शीतल हुए तो चन्द्रवंशी हो जायेंगे। सूर्यवंशी की निशानी है - तीव्र पुरूषार्थ।* सोचा और किया। ऐसे नहीं, सोचा एक वर्ष पहले और किया दूसरे वर्ष में। तीव्र पुरूषार्थ अर्थात् उड़ती कला वाले। अभी चढ़ती कला का समय भी चला गया।
✺ *"ड्रिल :- तीव्र पुरुषार्थ द्वारा सूर्यवंशी घराने की अवस्था का अनुभव करना*”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मन-बुद्धि रूपी टाइम मशीन में बैठकर रूहानी सैर पर निकलती हूँ...* मैं आत्मा टाइम मशीन को सतयुगी दुनिया के समय में सेट करती हूँ... *बादलों के ऊपर से उड़ते हुए टाइम मशीन को लैंड करती हूँ स्वर्णिम युग में...* मैं आत्मा अति सुंदर, अवर्णनीय स्वर्णिम युग के नज़ारों को देखते हुए चल रही हूँ...
➳ _ ➳ *चारों ओर की सतोप्रधान प्रकृति, सुन्दर-सुन्दर पहाड़ियां, सुंदर-सुंदर बाग-बगीचे , सोने-हीरे-जवाहरातों के बड़े-बड़े महल बहुत ही मनोहारी लग रहे हैं...* दूध की नदियाँ बह रही हैं... पंछियों की आवाज़ कानों में मधुर रस घोल रही है... *चारों ओर सुख, शांति, प्रेम, आनंद से भरी बहुत ही अद्वितीय स्वर्णिम दुनिया है...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मनमोहक नजारों को देखते-देखते एक बहुत बड़े सुन्दर से महल में प्रवेश करती हूँ...* मैं आत्मा स्वयं को रत्न-जडित सिंहासन पर विश्व के बादशाह के रूप में देख रही हूँ... *मैं आत्मा 16 कला सम्पूर्ण, संपूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम सम्पूर्ण देवताई स्वरुप में स्वयं को देख रही हूँ...* ऊँचे कद काठी, कंचन वर्ण, कानों में कुंडल, मस्तक पर चमकता हुआ मणि, हीरे, सोने के आभूषणों, सुंदर दिव्य वस्त्रों से सुसज्जित मेरी ये छबि देखते ही बनती है...
➳ _ ➳ *सूर्यवंशी घराने की मैं हीरो पार्टधारी आत्मा हूँ...* मुझ आत्मा ने श्रीकृष्ण के साथ पूरे 84 जन्मों का पार्ट निभाया है... सुख-समृद्धि से संम्पन्न जीवन व्यतीत किया है... *पुरुषार्थ में शीतल होकर चन्द्रवंशी बनना मतलब 1250 वर्षों की सुख, शांति, सम्पन्नता के जीवन से वंचित रहना...* मुझ आत्मा को फिर से सूर्यवंशी बनना है तो तीव्र पुरुषार्थ करना ही होगा...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सूर्यवंशी बनने के लक्ष्य को सामने रख टाइम मशीन में बैठकर पहुँच जाती हूँ परमधाम...* ज्ञान सूर्य के सामने बैठ जाती हूँ... मैं आत्मा ज्ञान सूर्य के तेज को स्वयं में अनुभव कर रही हूँ... मुझ आत्मा के आलस्य, अलबेलेपन के संस्कार मिट रहे हैं... *मैं आत्मा स्वयं में फुर्ती, उमंग-उत्साह का अनुभव कर रही हूँ...* अपनी सभी कमी-कमजोरियों को शक्ति रूप में परिवर्तित कर रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा दृढ़ता की शक्ति को धारण कर रही हूँ... अब मैं आत्मा समय की तीव्रगति के प्रमाण स्वयं की परिवर्तन की गति को तीव्र कर रही हूँ... *मैं आत्मा सूर्यवंशी बनने के लक्षण धारण कर रही हूँ...* और समय को समीप लाकर विजय प्राप्त कर रही हूँ... अब मैं आत्मा संकल्प करते ही निश्चित समय पर हर कार्य को करते हुए सफलता प्राप्त कर रही हूँ... *अब मैं आत्मा पुरूषार्थ में शीतल नहीं होती हूँ... तीव्र पुरुषार्थ करते हुए सदा उडती कला में रह सूर्यवंशी घराने की अवस्था का अनुभव कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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