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 22 / 12 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *ब्रह्मा बाप समान त्यागी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *अन्धो को राह बतायी ?*

 

➢➢ *दुआ और दवा द्वारा तन मन की बीमारी से मुक्त रहे ?*

 

➢➢ *विस्तार में भी सार को देख स्थिति सदा एकरस रही ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जैसे अनेक जन्म अपने देह के स्वरूप की स्मृति नेचुरल रही है, वैसे ही अपने असली स्वरूप की स्मृति का अनुभव होना चाहिए। *इस आत्म - अभिमानी स्थिति से सर्व आत्माओं को साक्षात्कार कराने के निमित्त बनेंगे। यही स्थिति विजयी माला का दाना बना देगी।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं बाप के साथ द्वारा साक्षी स्थिति का अनुभव करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

✧   सभी सदा साक्षी स्थिति में स्थित हो, हर कर्म करते हो? जो साक्षी हो कर्म करते हैं उन्हें स्वत: ही बाप के साथी-पन का अनुभव भी होता है। साक्षी नहीं तो बाप भी साथी नहीं इसलिए सदा साक्षी अवस्था में स्थित रहो। *देह से भी साक्षी जब देह के सम्बन्ध और देह के साक्षी बन जाते हो तो स्वत: ही इस पुरानी दुनिया से साक्षी हो जाते हो।*

 

✧  देखते हुए, सम्पर्क में आते हुए सदा न्यारे और प्यारे। यही स्टेज सहज योगी का अनुभव कराती है - तो सदा साक्षी इसको कहते हैं साथ में रहते हुए भी निर्लेप। *आत्मा निर्लेप नहीं है लेकिन आत्मअभिमानी स्टेज निर्लेप है अर्थात माया के लेप व आकर्षण से परे है। न्यारा अर्थात निर्लेप।* तो सदा ऐसी अवस्था में स्थित रहते हो?

 

✧  किसी भी प्रकार की माया का वार न हो। *बाप पर बलिहार जाने वाले माया के वार सदा बचे रहेंगे। बलिहार वालों वार नहीं हो सकता।* तो ऐसे हो ना? जैसे फर्स्ट चाँस मिला है वैसे ही बलिहार और माया के बार से परे रहने में भी फर्स्ट। फर्स्ट का अर्थ ही है फास्ट जाना। तो इस स्थिति में सदा फर्स्ट। सदा खुश रहो, सदा खुश नशीब रहो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आप लोग एक चित्र दिखाते हो ना! साधारण अज्ञानी आत्मा को कितनी रस्सियों से बंधा हुआ दिखाते हो। वह है अज्ञानी आत्मा के लिए लोहे की जंजीरा मोटे-मोटे बंधन हैं। लेकिन *ज्ञानी तू आत्मा बच्चों के बहुत महीन और आकर्षण करने वाले धागे हैं।*

 

✧  *लोहे की जंजीर अभी नहीं है, जो दिखाई देवे बहुत महीन भी है, रॉयल भी है।* पर्सनैलिटी फील करने वाले भी है, लेकिन वह धागे देखने में नहीं आते, अपनी अच्छाई महसूस होती है।

 

✧  अच्छाई है नहीं लेकिन महसूस ऐसे होती है कि हम बहुत अच्छे हैं। हम बहुत आगे बढ़ रहे हैं। तो बापदादा देख रहे थे - *यह जीवन बन्ध के धागे मैजारिटी में हैं।* चाहे एक हो, चाहे आधा हो लेकिन जीवनमुक्त बहुत थोडे देखे।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  अपने को चलते-फिरते लाइट के कार्ब के अन्दर आकारी फ़रिश्ते के रूप में अनुभव करते हो? जैसे ब्रह्मा बाप अव्यक्त फ़रिश्ते के रूप में चारों ओर की सेवा के निमित्त बने हैं ऐसे बाप समान स्वयं को भी लाइट स्वरूप आत्मा और लाइट के आकारी स्वरूप फ़रिश्ते स्वरूप में अनुभव करते हो? *बापदादा दोनों के समान बनना है ना? दोनों से स्नेह है ना? स्नेह का सबूत है- समान बनना। जिससे स्नेह होता है तो जैसे वह बोलेगा वैसे ही बोलेगा। स्नेह अर्थात् संस्कार मिलाना और संस्कार मिलन के आधार पर स्नेह भी होता। संस्कार नहीं मिलता तो कितना भी स्नेही बनाने की कोशिश करो, नहीं बनेगा। तो दोनों बाप के स्नेही हो ?* बाप समान बनना अर्थात् लाइट रूप आत्मा स्वरूप में स्थित होना और दादा समान बनना अर्थात् फ़रिश्ता। *दोनों बाप को स्नेह का रिटर्न देना पड़े। तो स्नेह का रिटर्न दे रहे हो? फ़रिश्ता बन कर चलते हो कि पाँच तत्वों से अर्थात् मिट्टी से बनी हुई देह अर्थात् धरनी अपने तरफ आकर्षित करती?* जब आकारी हो जायेंगे तो यह देह (धरनी) आकर्षित नहीं करेगी। बाप समान बनना अर्थात् डबल लाइट बनना। दोनों ही लाइट हैं? वह आकारी रूप में, वह निराकारी रूप में। तो दोनों समान हो ना? *समान बनेंगे तो सदा समर्थ और विजयी रहेंगे। समान नहीं तो कभी हार, कभी जीत- इसी हलचल में होंगे। अचल बनने का साधन है समान बनना।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- इस पाठशाला में आने से प्रत्यक्षफल की प्राप्ति होती है"*

 

_ ➳  *ये रूहानी पाठशाला  जहाँ देवत्व जन्म ले रहा है*... रेखाओं के त्रिकोण नही, हस्त रेखाओं में जहाँ सतयुगी भाग्य का वर्सा लिखा जा रहा है... *सतयुगी दुनिया की नींव ये रूहानी पाठ- शाला... ज्ञानसागर लुटा रहा जहाँ, भर भर ज्ञानमधु का प्याला*... *ज्ञान सागर की लहरों मे डूबती उतरती मैं आत्मा पढाने वाले की मुरीद हुई*... *निहार रही हूँ एकटक उसे*... *जैसे चातक पक्षी एकटक निहारता है बादलों की ओर*... परमधाम से आकर सामने बैठा है मेरा सतगुरू और मैं रूहानी शागिर्द उसकी, और उनका एक एक महावाक्य अन्तर की गहराईयों में उतारता हुआ...

 

  *रूहानी नयनों से रूह को स्नेह परम शान्ति और रूहानी स्नेह का अमृत पिलाते मेरे सच्चे सच्चे रूहानी सदगुरू बोलें:-* "मीठी बच्ची... *मनुष्य से देवता बनाने वाले इस ज्ञानामृत की सच्ची सच्ची हकदार, कोटो में कोई, कोई में भी कोई, आप बच्ची संगम पर प्रत्यक्ष हुए इस गुप्त ज्ञान अमृत का महत्व समझती हो ना?* इस वंडर फुल पाठशाला में पढने का अपना परम लक्ष्य याद है आप बच्ची को?... *क्या आपको मालूम है मेरे परमधाम को छोडकर इस पतित दुनिया में आने का लक्ष्य?...*"

 

_ ➳  *सच्चे सच्चे सदगुरू की नजरों से निहाल, नयनों में उनकी सम्पूर्ण छवि को उतारती हुई मैं आत्मा बोली:-* "मीठा मीठा कहकर मुझे मीठे बनाने वाले प्यारे सदगुरू...  *आपने इसी रूहानी पाठशाला में, मुझे खुद की पहचान दिलाई है... मेरे भाग्य की लेखनी आपने मेरे ही हाथों में पकडा दी, आपके इस पतित दुनिया में आने का वो पावन सा मकसद मेरी ही खुशियों के इर्द गिर्द ही तो घूमता है... निज रूप को भूली आत्माए विषय वासनाओं के सागर में गोते लगाती हुई अपने स्वरूप को  पहचानने के लिए तडप रही थी... और फिर... आप आए, साथ में बहिश्त भी हथेली पर ले आए*... आपने नर से नारायण बनने का दिव्य लक्ष्य दिया और उन दिव्य लक्षणों से आप हर रोज मुझ आत्मा को संवार रहे है..."

 

 ❉  *कदम कदम पर मेरे मददगार, मुझे स्वयं ही आगे बढा शाबाशियों से नवाज़ने वाले मेरे रूहानी सतगुरू बोले:-* "स्वांसो स्वांस मुझे और स्वर्ग को याद कर सेवा करने वाली मेरी मददगार बच्ची... आप इस वन्डर फुल पाठशाला की खूबियाँ सबको बताओं, *आप रूहानी मैसेन्जर बच्ची हर आत्मा को खुद के समान भाग्यशाली बनाओं...* इन गुणों का दिव्य आईना बनकर हर एक को ये गुण धारण कराओं... *अपने चेहरे और चलन से विश्व की आत्माओं को अपने सच्चे सच्चे सदगुरू का चेहरा दिखाओं...*"

 

 ➳ _ ➳  *ज्ञान सूर्य शिव सदगुरू के  शीतल ज्ञान झरनों में सराबोर मैं आत्मा ज्ञान रत्नों की खानियाँ उँडेलने वाले सतगुरू से बोली:-* "स्वदर्शन चक्रधारी बनाने वाले मेरे रूहानी सतगुरू... *ये वंडर पाठशाला अब प्रत्यक्ष हो रही है... ज्ञान सागर से ज्ञान गंगाए निकलकर इस धरती के हर कोने में फैल रही है बाबा*... हर आत्मा बच्ची, ज्ञानगंगा और गऊमुख बनकर आपको प्रत्यक्ष कर रही है, *मैं आत्मा भी अंग अंग में ज्ञान रत्नों को सजाकर आपको प्रत्यक्ष करने निकली हूँ..."*     

 

  ❉  *ज्ञानामृत पिला पतितों को पावन बनाने वाले बापदादा बोले:-* "प्यारी बच्ची... मुँझारें में भटकती आत्माओं को अब सोझंरे में लाओं, *तीर्थ, व्रत, उपवास करती आत्माओं को ज्ञान सागर में डुबकियाँ लगवा पावन बनाने इस पाठशाला तक लाओ... परमधाम से आता है निराकार पढाने अब ये संदेश मनसा सेवा से हर रूह तक पहुँचाओ..."*

 

_ ➳  *विश्व का मालिक बनाने वाले सच्चे सच्चे सौदागर बाप से मैं 21 जन्मों के लिए अखुट खजानों की मालिक आत्मा बोली:-* "मीठे बाबा... मेरे इस जीवन को आपने पारसमणि बनाया है... अब वो देखो! वो सैकडों आत्माए जो मुझ पारसमणि आत्मा के सकंल्पों को छूते ही स्वयं अपना जीवन हीरे तुल्य बना रही है... *आपकी ये बच्ची चलती फिरती रूहानी पाठशाला बन रही है बाबा ! और दूसरों को भी आप समान बना रही है...* और बापदादा मेरे सर पर वरदानों की बारिश करते मुझे सारी सूक्ष्म शक्तियाँ विल कर रहे है..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  सर्विसएबुल बनने के लिए नष्टोमोहा बनना है*"

 

_ ➳  देह और देह की दुनिया से डिटैच हो कर, अपने सत्य स्वरूप में स्थित हो कर मैं मन बुद्धि रूपी नेत्रों से स्वयं को देख रही हूं। इस देह से उपराम, भृकुटि सिहांसन पर विराजमान मैं एक चमकती हुई मणि हूँ। *अपने इस वास्तविक स्वरूप में स्थित होते ही मैं स्वयं को लगावमुक्त अनुभव कर रही हूं। देह और देह से जुड़ी हर वस्तु से जैसे मैं अनासक्त हो गई हूँ*। संसार के किसी भी पदार्थ में मुझे कोई आसक्ति नही। इस नश्वर संसार से अनासक्त होते ही एक बहुत प्यारी और हल्की स्थिति का अनुभव मैं कर रही हूं। ऐसा लग रहा है जैसे देह और देह के सम्बन्धो की रस्सियों ने मुझ आत्मा को बांध रखा था इसलिए मैं उड़ नही पा रही थी लेकिन अब मैं सभी बन्धनों से मुक्त हो गई हूँ।

 

_ ➳  बन्धनमुक्त हो कर अब मैं आत्मा इस देह से निकल कर चली ऊपर की ओर। आकाश के पार मैं पहुंच गई फरिश्तों की दुनिया में। फरिश्तों की इस दुनिया मे पहुंच कर अपने सम्पूर्ण निर्विकारी, सम्पूर्ण पावन फ़रिशता स्वरूप को मैने धारण कर लिया। *अब मैं फ़रिशता देख रहा हूँ स्वयं भगवान अपने लाइट माइट स्वरूप में मेरे सम्मुख हैं। उनकी पावन दृष्टि जैसे जैसे मुझ फ़रिश्ते पर पड़ रही है मैं फ़रिशता अति तेजस्वी बनता जा रहा हूँ*। बापदादा की शक्तिशाली किरणे मोती बन कर मेरे ऊपर बरस रही हैं और हर मोती से निकल रही रंग बिरंगी शक्तियों की किरणें मुझे शक्तिशाली बना रही हैं। बापदादा की लाइट माइट मुझ फ़रिश्ते में समा कर मुझे डबल लाइट बना रही है।

 

_ ➳  अपने इसी लाइट माइट स्वरूप में मैं फ़रिशता अब वापिस धरती की ओर लौट रहा हूँ। अब मैं सम्पूर्ण लगावमुक्त हूँ, विरक्त हूँ। संसार के सब प्रलोभनों से ऊपर हूँ। *देह की आकर्षण से मुक्त, देह के सम्बन्धो और देह से जुड़ी सभी इच्छाओं से मुक्त मैं फ़रिशता अब अपनी साकारी देह में प्रवेश कर रहा हूँ*।

 

_ ➳  अब मैं देह में रहते हुए भी निरन्तर अव्यक्त स्थिति में स्थित हूँ। स्वयं को निरन्तर बापदादा की छत्रछाया के नीचे अनुभव कर रहा हूँ। *अब मेरे सर्व सम्बन्ध केवल एक बाबा के साथ हैं। मेरे हर संकल्प, हर बोल और हर कर्म में केवल बाबा की याद समाई है*। बाबा की स्वर्णिम किरणों का छत्र निरन्तर मेरे ऊपर रहता है जो मुझे अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति से सदैव भरपूर रखता है।

 

_ ➳  देह में रहते अव्यक्त स्थिति में स्थित होने के कारण अब मैं आत्मा स्वयं को सदा बाबा के साथ अटैच अनुभव करती हूं और उनकी लाइट माइट से स्वयं को हर समय भरपूर करती रहती हूँ। *साकारी देह में रहते हुए सम्पूर्ण नष्टोमोहा बन मैं अपने पिता परमात्मा के स्नेह में निरन्तर समाई रहती हूँ*। देह और देह की दुनिया से अब मेरा कोई रिश्ता नही।

 

_ ➳  बाबा के प्रेम के रंग में रंगी मुझ आत्मा को सिवाय बाबा के और कुछ नजर नही आता। सुबह आंख खोलते बाबा, दिन की शुरुवात करते बाबा, हर संकल्प, हर बोल में बाबा, हर कर्म करते एक साथी बाबा, दिन समाप्त करते भी एक बाबा के लव में लीन रहने वाली मैं लवलीन आत्मा बन गई हूं। *मुख से और दिल अब केवल यही निकलता है "दिल के सितार का गाता तार - तार है, बाबा ही संसार मेरा, बाबा ही संसार है"*

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं दुआ और दवा द्वारा तन - मन की बीमारी से मुक्त्त रहने वाली सदा संतुष्ट         आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं विस्तार में भी सार को देखने का अभ्यास करके स्थिति सदा एकरस बनाने वाली आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा को एक बात पर बच्चों को देख करके मीठी-मीठी हँसी आती है। किस बात परचैलेन्ज करते हैंपर्चा छपाते हैंभाषण करते हैंकोर्स कराते हैं। क्या कराते हैंहम विश्व को परिवर्तन करेंगे। यह तो सभी बोलते हैं ना! या नहींसभी बोलते हैं या सिर्फ भाषण करने वाले बोलते हैंतो *एक तरफ कहते हैं विश्व को परिवर्तन करेंगे,मास्टर सर्वशक्तिवान हैं! और दूसरे तरफ अपने मन को मेरा मन कहते हैं, मालिक हैं मन के और मास्टर सर्वशक्तिवान हैं। फिर भी कहते हैं मुश्किल है?* तो हंसी नहीं आयेगी! आयेगी ना हंसी! तो *जिस समय सोचते होमन नहीं मानताउस समय अपने ऊपर मुस्कराना।*

 

 _ ➳  मन में कोई भी बात आती है तो बापदादा ने देखा है तीन लकीरें गाई हुई हैं। एक पानी पर लकीरपानी पर लकीर देखी है, लगाओ लकीर तो उसी समय मिट जायेगी। लगाते तो है ना! तो दूसरी है किसी भी कागज परस्लेट पर कहाँ भी लकीर लगाना और *सबसे बड़ी लकीर है पत्थर पर लकीर। पत्थर की लकीर मिटती बहुत मुश्किल है।* तो बापदादा देखते हैं कि कई बार बच्चे अपने ही मन में पत्थर की लकीर के मुआफिक पक्की लकीर लगा देते हैं। जो मिटाते हैं लेकिन मिटती नहीं है। ऐसी लकीर अच्छी है? *कितना वारी प्रतिज्ञा भी करते हैं, अब से नहीं करेंगे। अब से नहीं होगा। लेकिन फिर-फिर परवश हो जाते हैं। इसलिए बापदादा को बच्चों पर घृणा नहीं आती हैरहम आता है। परवश हो जाते हैं। तो परवश पर रहम आता है।* 

 

✺   *ड्रिल :-  "अपने मन के मालिक होने का अनुभव"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा स्व स्वरूप का गहराई से चिंतन कर रही हूँ... *मैं अति सूक्ष्म जगमगाती, चमकती हुई प्रकाश की मणि हूँ... अपनी रूहानी दिव्य आभा फैलाती हुई, झिलमिल करती हुई मैं ज्योति का सितारा हूँ*... मैं दिव्य बुद्धि के नेत्रों से स्वयं को देख रही हूँ... मेरा औरा चारों ओर बढ़ता जा रहा है... मैं आत्मा चलती हूँ... अपने रूहानी घर की ओर... अपने मीठे प्यारे वतन की ओर... लाल प्रकाश की दुनिया में... यहाँ मैं आत्मा सर्व बंधनों से, सर्व हदों से मुक्त हूँ, स्वतंत्र हूँ...

 

 _ ➳  निर्वाण धाम, शांति धाम की असीम शांति मैं स्वयं में समाती जा रही हूँ... मैं आत्मा के सातों गुणों का स्वरुप बनती जा रही हूँ... निराकारी आत्माओं के झाड़ को मैं निहार रही हूँ... हर एक आत्मा यहां अपने संपूर्ण प्रकाशमय स्वरुप में जगमगा रही है... *झाड़ के बीज में मेरे प्यारे शिव बाबा बैठे हैं... मैं आत्मा बाबा के बिल्कुल समीप चली जाती हूँ... बाबा की गोदी में बैठ जाती हूँ...*

 

 _ ➳  सर्वशक्तिमान बाबा की शक्तियों रूपी सागर में... मैं आत्मा गहरे, गहरे और गहरे उतरती जा रही हूँ... परमात्म शक्तियां मुझ में समाती जा रही हैं... मैं शक्तिशाली आत्मा हूँ... मैं स्व परिवर्तक सो विश्व परिवर्तक आत्मा हूँ... अपनी रूहानी स्थिति द्वारा समस्त विश्व में रूहानियत की खुशबू फैला रही हूँ... *मैं सर्वशक्तिमान बाबा की संतान मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हूँ... स्वराज्य अधिकारी हूँ... भृकुटी तख्त पर विराजमान हूँ... मैं आत्मा राजा हूँ... मालिक हूँ...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा स्थूल कर्मेन्द्रियों की, मन-बुद्धि-संस्कारों की मालिक हूँ... मैं आत्मा राजा मन को श्रीमत प्रमाण चला रही हूँ... *मैं आत्मा राजा अपनी शक्तिशाली स्थिति में मन मंत्री को आर्डर करती हूँ... और मन मंत्री मेरे आर्डर को सहर्ष स्वीकार कर रहा है... मेरा मन व्यर्थ और नेगेटिव से मुक्त होकर... समर्थ और श्रेष्ठ संकल्पों की रचना कर रहा है*... मेरे हर संकल्प में मजबूती है, दृढ़ता है... *मैं पत्थर की लकीर के समान अपने संस्कार परिवर्तन के लिए दृढ़ प्रतिज्ञा कर रही हूँ...*

 

 _ ➳  मैं शक्तिशाली आत्मा बाबा की शक्तियों के फव्वारे के नीचे हूँ... उनसे शक्तियों की लाल-लाल किरणें मुझ आत्मा में समाती जा रही हैं... मैं संपूर्ण दृढ़ता से संस्कार परिवर्तन की रूहानी यात्रा पर आगे बढ़ रही हूँ... *मैं आत्मा राजा अपने श्रेष्ठ, शुभ संकल्पों को दृढ़ संकल्प और दृढ़ प्रतिज्ञा के जल से सींच रही हूँ... उन्हें मजबूती प्रदान कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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