━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 20 / 03 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *किसी भी तूफ़ान के कारण निश्चय में कमी तो नहीं आई ?*
➢➢ *किसी भी विकार ने टच तो नहीं किया ?*
➢➢ *मैं पन के दरवाज़े को बंद कर माया को विदाई दी ?*
➢➢ *स्वयं स्वच्छ बन दूसरों को स्वच्छ बनाया ?*
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ *कर्म में, वाणी में, सम्पर्क व सम्बन्ध में लव और स्मृति व स्थिति में लवलीन रहना है, जो जितना लवली होगा, वह उतना ही लवलीन रह सकता है ।* इस लवलीन स्थिति को मनुष्यात्माओं ने लीन की अवस्था कह दिया है । बाप में लव खत्म करके सिर्फ लीन शब्द को पकड़ लिया है । *आप बच्चे बाप के लव में लवलीन रहेंगे तो औरों को भी सहज आप-समान व बाप-समान बना सकेंगे ।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✺ *"मैं श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ"*
〰✧ सभी अपने को श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा अनुभव करते हो? *सबसे बड़ा भाग्य-भाग्यविधाता अपना बन गया। सदा इस श्रेष्ठ भाग्य की खुशी और नशा रहे।* यह रुहानी नशा है जो सदा रह सकता है। विनाशी नशा सदा रहे तो नुकसान हो जाए।
〰✧ *जो इस रुहानी नशे में होगा उसको स्वत: ही इस पुरानी दुनिया की आकर्षण भूली हुई होगी। ना पुरानी देह, न पुराने देह के सम्बन्ध, सभी सहज भी भूल जाते हैं। भूलने की मेहनत नहीं करनी पड़ती।* देह भान भी भूला हुआ होगा। आत्म अभिमानी होंगे। सदा देही-अभिमानी स्थिति ही सम्पूर्ण स्थिति है।
〰✧ *तो सदा इसी स्मृति में रहो कि हम भाग्यवान आत्मायें हैं, कोई साधारण भाग्यवान, कोई श्रेष्ठ भाग्यवान हैं। 'श्रेष्ठ'-शब्द सदा याद रखना, 'श्रेष्ठ आत्मा हूँ, श्रेष्ठ बाप का हूँ और श्रेष्ठ भाग्यवान हूँ' - यही वरदान सदा साथ रहे। जब श्रेष्ठ आत्मा, श्रेष्ठ समय, श्रेष्ठ संकल्प, श्रेष्ठ वृत्ति, श्रेष्ठ कृत्ति हो जायेगी तो आप सबको देखकर अनेक आत्माओंको श्रेष्ठ बनने की शुभ आशा उत्पन्न होगी। इससे सेवा भी हो जायेगी।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ यह फाइनल पेपर है जो समय पर निकलेगा - प्रैक्टिकल म़े। इस पेपर में अगर पास है गये तो और कोई बडी बात नहीं। *इस पेपर में पास होंगे अर्थात अव्यक्त स्थिति होंगी*। शरीर के भान से भी परे हुए तो बाकी क्या बडी बात है।
〰✧ इससे ही परखेंगे कि कहाँ तक अपने उस जीवन की नईया की रस्सियाँ छोडी हैँ। *एक है सोने की जंजीर, दूसरी है लोहे कि*। लोहे कि जंजीर तो छोडी, लेकिन अब सोने की भी महीन जंजीर है। यह फिर ऐसे है जो कोई को देखने में भी आ न सके।
〰✧ *इसलिए जैसे कोई भी बन्धन से मुक्त होते, वैसे ही सहज रीति शरीर के बन्धन से मुक्त हो सकें।* नहीं तो शरीर के बन्धन से भी बडा मुश्किल मुक्त होंगे। फाइनल पेपर है - अन्त मति सो गति।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ जो टीचर्स बनती हैं उन्हों को सिर्फ प्वाइन्ट बुद्धि में नहीं रखनी है व वर्णन करनी है लेकिन प्वाइन्ट रूप बनकर प्वाइन्ट वर्णन करनी है। *अगर स्वयं प्वाइन्ट स्थिति में स्थित नहीं होंगे तो प्वाइन्ट का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसलिए प्वाइन्ट् इकट्ठी करने के साथ अपना प्वाइन्ट रूप भी याद करते जाना।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- संगदोष में फंसकर कभी पढाई नहीं छोड़ना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मन-बुद्धि के विमान में बैठ मधुबन हिस्ट्री हाल में पहुँच जाती हूँ... यहाँ की तस्वीरों को देखते हुए बाबा की मीठी यादों में खो जाती हूँ...* सामने संदली पर बापदादा मुस्कुराते हुए बैठे हैं... मैं आत्मा बाबा को प्यार से निहारती हुई बाबा के सम्मुख बैठ जाती हूँ... मीठे बाबा मीठी मुरली की मधुर तान छेड़ते हैं... जिसकी धुन में मैं आत्मा परवश हो जाती हूँ और बाबा के संग के रंग में रंग जाती हूँ...
❉ *अपने प्यार के रंग में रंगते हुए संगदोष से अपनी सम्भाल करने की समझानी देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... *ईश्वर पिता ने जो अब अपने प्यार भरे हाथो में पाला है... तो बुरे संग की मिटटी में अपना उजला स्वरूप फिर से मटमैला न करो...* इस ईश्वरीय चमक को देहभान और बुरे संग में धुंधला न करो... ईश्वरीय गोद से नीचे उतरकर खुद को फिर से मलिन न करो... अपना हर पल ख्याल रखो...”
➳ _ ➳ *पवित्रता के सागर में डूबकर कौड़ी से हीरे तुल्य बनते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा देहभान और विकारो के संग में आकर अपने सत्य स्वरूप को खोकर किस कदर दुखी और मलिन से हो गई थी...* अब जो मीठे बाबा ने मुझे अपनी बाँहों में लेकर श्रृंगारा है... मै दमकती आत्मा यह ईश्वरीय चमक हर दिल पर सजा रही हूँ...”
❉ *परमात्म प्रेम के सुगंध से मेरे जीवन के हर श्वांस को महकाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वर बागबान से जो खुशबूदार फूल बन महके हो तो अब फिर से काँटों का संग न करो...* अपनी बहुत सम्भाल करो... ईश्वर प्रेम में खिली मन बुद्धि की पंखुड़ियों को बुरे संग की तेज धूप में फिर से न कुम्हलाओ... अपनी ईश्वरीय खुशबु और रंगत महकेपन का हर साँस से ध्यान रखो...”
➳ _ ➳ *बाबा के संग में रूहे गुलाब बन सुखों के चमन में महकती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा प्यारे बाबा संग जो खिला फूल हो गई हूँ... इस रूहानियत की खुशबु पूरे जहान में फैला रही हूँ...* संगदोष से दूर रह सबपर ईश्वरीय यादो का रंग चढ़ा रही हूँ... सबके जीवन में अपने जैसी बहार लाकर ऐसा ही खूबसूरत बना रही हूँ...”
❉ *अपने प्रेम की तरंगो में तरंगित करते हुए ज्ञान रत्नों को चुगने वाला हंस बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने सुंदर खिले हुए दामन में अब फिर संगदोष में आकर दाग न लगाओ... ईश्वरीय श्रीमत का हाथ थाम सदा हंसो के संग मुस्कराते रहो... *देहधारियों के प्रभाव से मुक्त रहकर सदा ज्ञान रत्नों से श्रृंगारित रहो... संगदोष फिर से विकारो की कालिमा से बेनूर कर देगा... इससे परे रहो...”*
➳ _ ➳ *बाबा की श्रीमत रूपी जादू से अपना श्रृंगार कर रूहानी फूल बन खिलखिलाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा की श्रीमत को दिल में समा कर प्रतिपल अपना ख्याल रख रही हूँ... *मीठे बाबा आपने जो समझ भरा तीसरा नेत्र दिया है उससे स्वयं को हर बुराई से परे रख हंसो संग झूम रही हूँ... और अपने उजले पन में मुस्करा रही हूँ...”*
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- विकारी दुनिया मे रहते हुए विकार टच ना करे, यह सम्भाल करनी है*"
➳ _ ➳ हंस कंकड़ पत्थर में से भी मोती चुग लेता है और कमल का पुष्प कीचड़ में उगकर भी कीचड़ की गंदगी से एकदम मुक्त, न्यारा और प्यारा रहता है। *ऐसे होली हंस और कमल पुष्प समान न्यारा और प्यारा ही मुझे बनना है मन ही मन अपने आप से बातें करती मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि विकारी दुनिया में रहते हुए भी विकारो के प्रभाव से स्वयं को बचाते हुए सम्पूर्ण निर्विकारी बनने का मेरे प्यारे प्रभु ने जो लक्ष्य मुझे दिया है, उस लक्ष्य को पाने के लिए मुझे स्वयं पर पूरा अटेंशन देना है*। और इसके लिए जरूरी है देह में रहते हुए, अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान अनादि स्वरूप की स्मृति में रह, सबको आत्मा भाई - भाई की दृष्टि से देखने का अभ्यास पक्का करना।
➳ _ ➳ यह विचार करते - करते ही अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप की स्मृति में मैं जैसे खो जाती हूँ और स्वयं को देह से एकदम न्यारा अनुभव करने लगती हूँ। *मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं स्पष्ट देख रही हूँ जैसे यह देह अलग है और इस देह को चलाने वाली मैं चैतन्य शक्ति इस देह से बिल्कुल अलग हूँ*। अपने इस अति न्यारे और प्यारे स्वरूप पर अब मेरा मन और बुद्धि पूरी तरह एकाग्र हैं। *एक चमकता हुआ चैतन्य सितारा जिसमे से निकल रहा प्रकाश मन को बहुत ही सुखद एहसास करा रहा है, ऐसा अपना स्वरूप देख कर मैं आनन्दित हो रही हूँ*।
➳ _ ➳ मुझ आत्मा सितारे से निकल रहे प्रकाश में मेरे अंदर निहित गुणों और शक्तियों का समावेश है जिन्हें मैं प्रकाश की रंग बिरंगी किरणो के रूप में स्वयं से निकलता हुआ देख रही हूँ और अपने इन सातों गुणों सुख, शांति, प्रेम, पवित्रता, ज्ञान और शक्ति का अनुभव करके तृप्त हो रही हूँ। *अपने इस सत्य स्वरूप को देखने और अनुभव करने का सुखद अनुभव मुझे सर्व गुणों और सर्वशक्तियों के सागर मेरे शिव पिता की याद दिला रहा है जिन्होंने आकर ना केवल मुझे मेरे इस सत्य स्वरूप से परिचित करवाया बल्कि मुझे मेरे उस निराकारी घर का भी पता बताया जहाँ अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरुप में मैं आत्मा अपने पिता के साथ रहती थी*।
➳ _ ➳ अपने उसी स्वीट साइलेन्स होम को याद करते ही, अपने शिव पिता के सानिध्य में बैठ उनसे मिलन मनाने का मधुर अहसास अब मुझे स्वत: ही मेरे उस परमधाम घर की ओर खींच रहा है। *ऐसा लग रहा है जैसे मेरे प्यारे पिता ने मुझे अपने पास बुलाने के लिए अपनी सर्वशक्तियों रूपी किरणों की बाहें फैला ली है और अपनी बाहों में समाकर मुझे अपने घर ले जा रहें हैं*। देह को छोड़ अपने प्यारे पिता की किरणों रूपी बाहों के झूले में झूलती, असीम आनन्द का अनुभव करती मैं उनके साथ ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। *चाँद, सितारों से सजे नीलगगन को पार कर, सफेद प्रकाश से प्रकाशित अव्यक्त वतन से होती हुई चैतन्य सितारों की दुनिया अपने परमधाम घर में मैं पहुँचती हूँ*।
➳ _ ➳ लाल सुनहरी प्रकाश की यह दुनिया मूल वतन जहाँ चारों ओर चमकती हुई मणियों का आगार है, अपने इस वतन में पहुँच कर मैं आत्मा एक गहन सुकून का अनुभव कर रही हूँ। *जैसे एक बच्चा अपनी माँ की गोद में सुख का अनुभव करता है ऐसे अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी गोद मे मैं स्वयं को महसूस करते हुए अतीन्द्रीय सुख का अनुभव कर रही हूँ*। सर्वशक्तियों की रंग बिरंगी शीतल किरणो के रूप में मेरे प्यारे पिता का अगाध प्रेम मुझ पर बरस रहा है। *अपनी पवित्रता की किरणें मुझ पर प्रवाहित करके बाबा मेरे अंदर पवित्रता का बल भर रहें हैं ताकि फिर से साकार वतन में लौट कर पार्ट बजाते हुए मैं हर प्रकार की अपवित्रता के प्रभाव से स्वयं को बचा सकूँ*।
➳ _ ➳ पवित्रता का बल स्वयं में भरकर औऱ अपने प्यारे पिता के प्यार की शक्ति अपने साथ लेकर अब मैं परमधाम से वापिस फिर से उसी अव्यक्त वतन से होती हुई, चांद, सितारों की दुनिया से नीचे साकारी दुनिया में आ जाती हूँ। *पवित्रता का और मेरे प्यारे पिता के निस्वार्थ प्यार का बल अब मुझ होली हंस बनाकर, कमल पुष्प समान न्यारा रहने की शक्ति दे रहा है*। कमल आसन पर सदा विराजमान रहते हुए अब मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सभी आत्माओं को उनके अनादि निराकारी स्वरूप में ही देखती हूँ इसलिए विकारी दुनिया में रहते हुए भी विकारो के प्रभाव से अब मैं सहज ही मुक्त रहती हूँ।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं-पन के दरवाजे को बन्द कर माया को विदाई देने वाली निम्मित और निर्माण आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं स्वच्छता को अपनी विशेषता बनाने वाली होलीहंस हूं, मैं स्वच्छ बन सबको स्वच्छ बनाने की सेवा करने वाली सेवाधारी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. बादादा ने सुनाया था - तो आप सब अपने स्वमान के शान की सीट पर रहो तो परेशान नहीं होंगे। स्वमान की शान में नहीं रहते हो तो परेशान होते हो। *छोटा-सा पेपर टाइगर होता है लेकिन परेशान हो जाते हैं। तो इस वर्ष एकाग्र होके स्वमान की सीट पर रहना।*
➳ _ ➳ 2. कुछ भी हो जाए, अपने स्वमान की सीट पर एकाग्र रहो, भटको नहीं, कभी किस सीट पर, कभी किस सीट पर, नहीं। *अपने स्वमान की सीट पर एकाग्र रहो। और एकाग्र सीट पर सेट होके अगर कोई भी बात आती है ना तो एक कार्टून शो के मुआफिक देखो, कार्टून देखना अच्छा लगता है ना, तो यह समस्या नहीं है, कार्टून शो चल रहा है।* कोई शेर आता है, कोई बकरी आती है, कोई बिच्छू आता है, कोई छिपकली आती है गंदी - कार्टून शो है। अपनी सीट से अपसेट नहीं हो। मजा आयेगा। अच्छा - शेर भी आया, कुत्ता भी आया, बिल्ली भी आई, आने दो - देखते रहो।
✺ *ड्रिल :- "स्वमान की सीट पर एकाग्र रहकर समस्या को कार्टून शो अनुभव करना"*
➳ _ ➳ अपने बाप दादा की मीठी संतान मैं संगमयुगी ब्राह्मण आत्मा अपने हर कर्म में बाबा के ज्ञान को यूज़ करते हुए आगे बढ़ती जा रही हूँ... मेरा हर कर्म बाबा की याद में मैं आत्मा कर रही हूँ... इस कल्प के अंत में मेरे बाबा ने स्वयं इस सारे सृष्टि चक्र का ज्ञान मुझे दिया है... *मैं आत्मा इस गुह्य ज्ञान को बुद्धि में बिठाकर बाबा की याद में बैठी हूँ... स्वयं को देह से अलग एक आत्मा देख रही हूँ...*इस देह से डिटैच होकर अपने जीवन की यात्रा को देख रही हूँ...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने इस जीवन में सुबह से लेकर रात तक अपने सभी कर्मों को करते हुए अपने पुरुषार्थ में भी आगे बढ़ती जा रही हूँ...* अन्य आत्माओं के सम्पर्क में आते कभी कभी मैं आत्मा भी परिस्थिति वश थोड़ा परेशान हो जाती हूँ... अपसेट हो जाती हूँ और अपने स्वमान की सीट से थोड़ा हट जाती हूँ... कभी वायुमंडल के प्रभाव में आकर स्वयं को देह के भान में ले आती हूँ... कभी कोई पेपर आता है तो उसमें मूँझ जाती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने को इन सब परिस्थितियों में देख कर अपने प्यारे बाबा के पास उनके कमरे में आकर बैठ जाती हूँ... और बाबा को बहुत प्यार से निहार रही हूँ... *बाबा के महावाक्य मुझे याद आ रहे हैं... *बाबा ने कहा है कि बच्चे कैसी भी परिस्थिति आये कभी भी अपसेट मत होना... कितना भी बड़ा पेपर आये उसे पेपर टाइगर समझ कर पार कर लेना...* बाबा की कही बातें याद करते हुए मैं आत्मा एकदम हल्की हो गयी हूँ... इस देह से निकल कर निराकारी रूप में इस साकार दुनिया को छोड़ कर ऊपर की ओर उड़ती जा रही हूँ... चाँद सितारों को भी पीछे छोड़ते हुए अपने घर परमधाम में आकर ठहरती हूँ...
➳ _ ➳ चारों ओर असीम शान्ति है और ये शान्ति मुझमे समाती जा रही है... मैं आत्मा भी अपने शान्त स्वरूप में स्थित होती जा रही हूँ... अब थोड़ा और आगे जाती हूँ और अपने पिता परमात्मा के सम्मुख पहुँच जाती हूँ... *बाबा से सुनहरी लाल रंग की किरणें निकल कर मुझ आत्मा में समा रही हैं... मैं बाबा के सानिध्य में आकर स्वयं को अत्यंत शक्तिशाली महसूस कर रही हूँ...* बाबा का प्यार उनकी किरणों के रूप में मुझ पर बरस रहा है... और मैं आत्मा इस रूहानी प्यार में स्वयं को भरती जा रही हूँ... कितना सुख का अनुभव मैं आत्मा कर रही हूँ... बाबा के प्यार को स्वयं में समा कर अब मैं आत्मा वापिस अपनी साकार देह में भृकुटि के बीच आकर बैठ गयी हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अब अपने को बहुत पॉवरफुल महसूस कर रही हूँ... स्वमान की सीट पर स्वयं को एकाग्र कर रही हूँ और ड्रामा की हर सीन को साक्षी होकर देख रही हूँ... कोई परिस्थिति आती भी है तो वो अब एक कार्टून शो की तरह लगती है... *परिस्थिति आने पर मैं आत्मा अब अपने स्वमान की सीट से डगमग नही होती और एकाग्रता और दृढ़ता से अपनी सीट पर सेट रहती हूँ...*
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━