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 06 / 02 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बीती को बीती कर पुरुषार्थ में आगे बड़े ?*

 

➢➢ *ड्रामा कहकर ठन्डे तो नहीं हुए ?*

 

➢➢ *अटेंशन और अभ्यास के निजी संस्कार द्वारा स्व और सर्व की सेवा में सफलता का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *ज्ञानयुक्त रहमदिल बन कमजोरियों से दिल का वैराग्य अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जब बाप समान बनना है तो *एक है - निराकार और दूसरा है - अव्यक्त फरिश्ता। तो जब भी समय मिलता है सेकण्ड में बाप समान निराकारी स्टेज पर स्थित हो जाओ, फिर कार्य करते फरिश्ता बनकर कर्म करो, फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट। कार्य का बोझ नहीं हो। तो बीच-बीच में निराकारी और फरिश्ता स्वरूप की मन की एक्सरसाइज करो तो थकावट नहीं होगी।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं कर्मभोग पर विजय पाने वाले विजयी रत्न हूँ"*

 

  कर्मभोग पर विजय पाने वाले विजयी रत्न हो ना! *वे कर्मभोग भोगने वाले होते और आप कर्मयोगी हो। भोगने वाले नहीं हो लेकिन सदा के लिए भस्म करने वाले हो।* ऐसा भस्म करते हो जो 21 जन्म कर्मभोग का नाम निशान न रहे। आयेगा तब तो भस्म करेंगे?

 

  *आयेगा जरूर लेकिन आता है भस्म होने के लिए, न कि भोगना के लिए। विदाई लेने के लिए आता है।*

 

〰✧  *क्योंकि कर्मभोग को भी पता है कि हम अभी ही आ सकते हैं फिर नहीं आ सकते। इसलिए थोड़ा थोड़ा बीच में चाँस लेता है। जब देखते यहाँ तो दाल गलने वाली नहीं है तो वापस चला जाता।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  सभी का लक्ष्य बाप समान बनने का है। तो *सारे दिन में यह ड़ि्ल करो - मन की ड़ि्ला शरीर की ड्रिल तो शरीर की तन्दरूस्ती के लिए करते हो, करते रहो क्योंकि आजकल दवाईयों से भी एक्सरसाइज आवश्यक है।*

 

✧  वह तो करो और खूब करो टाइम पर। *सेवा के टाइम एक्सरसाइज नहीं करते रहना। बाकी टाइम पर एक्सरसाइज करना अच्छा है।* लेकिन साथ-साथ मन की एक्सरसाइज बार-बार करो।

 

✧  *जब बाप समान बनना है तो एक है - निराकार और दूसरा है - अव्यक्त फरिश्ता तो जब भी समय मिलता है सेकण्ड में बाप समान निराकारी स्टेज पर स्थित हो जाओ, बाप समान बनना है तो निराकारी स्थिति बाप समान है।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  ऐसे ही अगर आप सभी भी मस्तक के मणि को ही देखते रहो तो फिर यह दृष्टि और वृत्ति शुद्ध सतोप्रधान बन जायेगी। *दृष्टि जो चंचल होती है उसका मूल कारण यह है। मस्तक के मणि को न देख, शारीरिक रूप को देखते हो।* रूप को न देखो लेकिन मस्तक के मणि को देखी। *जब रूप को दूखते हो तो ऐसे ही समझो कि सांप को देख रहे हैं। सांप के मस्तक में मणि होती है ना। तो मणि को देखना है, न कि सांप को।* अगर शरीर-भान में देखते हो तो मानों सांप को देखते हो। *सांप को देखा और सांप ने काटा। सांप तो अपना कार्य करेगा। सांप में विष भी होता है।* बापदादा के सामने तो बहुत प्रतिज्ञाएं की हैं, लेकिन आज अपने आपसे प्रतिज्ञा करो कि - "अब से लेकर सिवाए मणि के और कुछ नहीं देखेंगे और खुद ही माला के मणि बनकर के सारी सृष्टि के बीच चमकेंगे।” *जब खुद मणि बनेंगे तब चमकेगे। अगर मणि नहीं बनेंगे तो चमक नहीं सकेगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-घर बैठे भगवान बाप मिलने की अपार ख़ुशी में रहना"*

 

_ ➳  *घर में बाबा के कमरे में बैठ अमृतवेले के रूहानी समय में मैं रूहानी आत्मा रूहानी बाबा का आह्वान करती हूँ... प्यारे बाबा तुरंत हाजिर हो जाते हैं... दिव्य प्रकाश की आभा में चमकते हुए प्यारे बाबा की दिव्य किरणों से पूरा कमरा प्रकाशवान हो जाता है...* कितनी लकी हूँ मैं जो मेरे भाग्य के सितारे को चमकाने स्वयं भगवान् आयें हैं... मैं आत्मा कहाँ-कहाँ भटक रही थी पर कुछ भी नहीं मिला और अब मुझे घर बैठे भगवान् बाप, शिक्षक और सतगुरु के रूप में मिल गए...

 

   *मीठे सिकीलधे बच्चे कहते हुए प्यार से मुझे अपनी गोद में बिठाकर प्यारे सिकीलधे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... देह के दलदल से निकल अपने खुबसूरत मणि स्वरूप के नशे में खो जाओ... *ईश्वर पिता के दिल में मुस्कराने वाले भाग्य पर बलिहार जाओ... जनमो के बिछड़ेपन की वेदना को... मीठे मिलन की गहरी खुशियो में भुलाओ...* सुंदर सम्बन्धो से सजे देवताई जीवन के नशे में खो जाओ..."

 

_ ➳  *दुःखों के बन्धन से मुक्त होकर स्वयं भगवान् से सर्व सुखों का सम्बन्ध् निभाते हुए अपार ख़ुशी मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा *ईश्वरीय मिलन की गहरी अनुभूतियों में खोयी हुई अपने मीठे भाग्य की सराहना में निशब्द हो गई हूँ...* प्यारे बाबा किन पुण्यो का प्रतिफल... मुझे आप मिले हो यह सोच कर मुस्करा रही हूँ... *भगवान को पाने वाली भाग्यवान हो गई हूँ..."*

 

   *सर्व खजानों, वरदानों से भरपूर कर अथाह खुशियों के सागर में डुबोते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... अब दुःख के दिन बीत गए है... *अब खुशियो के सुहावने मौसम की आहट ने दिल आँगन में दस्तक दी है... अब मीठा बाबा अपार सुखो को हथेली पर सजाकर, उपहार ले आया है...* इन प्यारी खुशियो में डूबकर रोमांचित हो जाओ... अब मीठे सुखो में मुस्कराने के प्यारे दिन आ गए है... ख़ुशी के इस आनन्द में गहरे गोते लगाओ..."

 

_ ➳  *ऐसी अविनाशी ख़ुशी पाकर बाबा की स्नेहिल तरंगो में झूमते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मैं आत्मा अपने सत्य स्वरूप और सच्चे पिता को पाकर निहाल हो गयी हूँ... *भगवान को सम्मुख पाकर मैंने सब कुछ पा लिया है... सारी खुशियां इस ख़ुशी के आगे बोनी है...* सच्चा मनमीत मुझे मिल गया है... इस ख़ुशी पर तो सारे सुख न्यौछावर है..."

 

   *अपरम्पार खुशियों की सौगात देकर जीवन को खुशबूदार बनाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब देह की मिटटी में लथपथ होकर पाये दुखो के बन्धन खत्म हो गए है... अब खुबसूरत सम्बन्धो की खुशनुमा बहार दस्तक दे रही है... *देवताई खुशियां पलक पावड़े बिछाकर स्वागत को आतुर है... भगवान को पाकर अनन्त मीठे सुखो के अधिकारी बन रहे हो... इन सुखदायी अहसासो में खो जाओ..."*

 

_ ➳  *इन नजरों में प्यारे बाबा को बसाकर रात दिन उनको निहारती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सच्ची खुशियो को बाँहों में भरकर ख़ुशी के गीत गा रही हूँ... अपने भाग्य को देख देख पुलकित सी झूम रही हूँ... *ईश्वर मीत को पाकर उसकी हजार बाँहों में बेफिक्र बादशाह हो गई हूँ... दुखो की तमस से मुक्त होकर, सुखो की बगिया में घूम रही हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बीती को बीती कर पुरुषार्थ में गैलप करना है*"

 

_ ➳  एकांत में बैठ, अपने पुरुषार्थ को तीव्र बनाने की युक्तियां निकालते हुए मैं मन ही मन विचार करती हूँ कि विनाशी धन का सौदा करने वाले एक बिजनेसमैन को हर समय केवल अपने बिजनेस को ही ऊंचा उठाने का ख्याल रहता है *लेकिन यहाँ तो सौदा अविनाशी है और सौदा करने वाला भी कोई साधारण मनुष्य नही बल्कि स्वयं भगवान हैं और सौदा भी ऐसा जो एक जन्म के लिए नही बल्कि जन्मजन्मांतर की कमाई कराने वाला है तो एक पक्के बिजनेसमैन की तरह अपने इस अविनाशी सौदे से मुझे भविष्य 21 जन्मो की अविनाशी कमाई करने के लिए, भगवान द्वारा मिले हर खजाने को अब जमा करने का ही पुरुषार्थ करना है* और जमा करने की सहज विधि है बिंदी लगाना।

 

_ ➳  जैसे स्थूल खजाने में भी एक के साथ बिंदी लगाने से खजाना बढ़ता जाता है ऐसे ही अपने इस पुरुषार्थी ब्राह्मण जीवन में मैं आत्मा बिंदी, बाप बिंदी और ड्रामा में जो बीत चुका वह भी फुलस्टॉप अर्थात बिंदी इन तीन बिंदियों की स्मृति का तिलक अपने मस्तक पर हर समय लगा कर रखते हुए मुझे अपने पुरुषार्थ में गैलप करना है। *अपने प्यारे बाबा को साक्षी मान स्वयं से यह दृढ़ प्रतिज्ञा करते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे बापदादा इन तीन स्मृतियों का अविनाशी तिलक देने के लिए मुझे वतन में बुला रहें हैं*।अपनी लाइट की सूक्ष्म आकारी देह के साथ मैं आत्मा अपनी साकारी देह से बाहर निकलती हूँ और अव्यक्त फ़रिश्ता बन अव्यक्त वतन की ओर चल पड़ती हूँ।

 

_ ➳  मुझ फ़रिश्ते से श्वेत रश्मियां निकल - निकल कर चारों और फैल रही हैं। बापदादा से मिलने की लगन में मग्न, अपनी रंग बिरंगी किरणो को चारों और फैलाता हुआ मैं फ़रिश्ता आकाश को पार कर, अब सूक्ष्म वतन में प्रवेश करता हूँ। अपने सामने मैं बाप दादा को देख रहा हूँ। *बापदादा के अनन्त प्रकाशमय लाइट माइट स्वरूप से सर्व शक्तियों की अनन्त किरणें निकल कर पूरे सूक्ष्म वतन में फ़ैल रही हैं। पूरा सूक्ष्म वतन रंग - बिरंगी किरणों के प्रकाश से आच्छादित हो रहा है*। इन्द्रधनुषी रंगों से प्रकाशित सूक्ष्म वतन का यह नजारा मन को असीम आनन्द से भरपूर कर रहा है।

 

_ ➳  इस खूबसूरत दृश्य का आनन्द लेते - लेते, बाहें पसारे खड़े बाबा के मनमोहक स्वरूप को निहारते हुए अब मैं फ़रिश्ता बाबा की बाहों में समाकर बाबा के प्यार से स्वयं को भरपूर करने लिए धीरे - धीरे उनके पास पहुँचता हूँ। मुझे देखते ही बाबा मुझे अपनी बाहों में भरकर अपना असीम प्रेम और स्नेह मुझ पर बरसाने लगते हैं। *अपनी ममतामयी गोद मे बिठाकर अनेक दिव्य अलौकिक अनुभूतियां करवा कर, अपनी स्नेह भरी दृष्टि से मुझे देखते हुए बाबा मेरे अंदर अथाह स्नेह का संचार कर रहें हैं*। ऐसा लग रहा है जैसे बापदादा से स्नेह की सहस्त्रो धारायें एक साथ निकलकर मुझ फ़रिश्ते में समा कर मुझे बाप समान मास्टर स्नेह का सागर बना रही हैं।

 

_ ➳  स्नेह की अविरल धारा मेरे अंदर प्रवाहित कर मुझे असीम शक्तिवान बना कर अब बाबा मेरे मस्तक पर तीन बिंदियों की स्मृति का अविनाशी तिलक लगाकर, बीती को बीती कर पुरुषार्थ में गैलप करने का वरदान देकर मुझे विदा करते हैं। *बापदादा द्वारा मिले तीन बिंदियों की स्मृति के अविनाशी तिलक को अपने मस्तक पर सदा के लिए धारण कर, अपनी सूक्ष्म काया के साथ अब मैं सूक्ष्म वतन से वापिस साकार वतन में आती हूँ और अपने स्थूल शरीर में प्रवेश कर अपने अकालतख्त पर विराजमान हो जाती हूँ*।

 

_ ➳  अपने पुरुषार्थी ब्राह्मण जीवन में इन तीन बिंदियों की स्मृति का तिलक सदा अपने मस्तक पर लगाकर, *स्मृति सो समर्थी स्वरूप बन, बीती को बीती कर, अपने पुरुषार्थ में गैलप करते हुए अब मैं सम्पूर्णता को पाने की दिशा में निरन्तर आगे बढ़ रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अटेंशन और अभ्यास के निजी संस्कार द्वारा स्व और सर्व की सेवा में सफलतामूर्त आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं ज्ञानयुक्त रहमदिल बनकर कमजोरियों से दिल का वैराग्य रखने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  जब राजयोगी हैं तो राज्य अधिकारी बनना ही है। बापदादा कई बार याद दिलाते हैं कि *बाप आपके लिए सौगात लाये हैं* तो सौगात क्या लाये हैं? *सुनहरी दुनिया, सतोप्रधान दुनिया की सौगात लाये हैं।* तो निश्चय है, *निश्चय कि निशानी है रूहानी नशा। जितना अपने राज्य के समीप आ रहे हो, घर के भी समीप आ रहे हो और अपने राज्य के भी समीप आ रहे हो, तो बार-बार अपने स्वीट होम और अपने स्वीट राज्य की स्मृति स्पष्ट आनी ही चाहिए।* यह समीप आने की निशानी है। *अपना घर, अपना राज्य ऐसा ही स्पष्ट स्मृति में आये, तीसरे नेत्र द्वारा स्पष्ट दिखाई दे।* अनुभव हो आज यह, कल यह। *कितने बार पार्ट पूरा कर अपने घर और राज्य में गये हो,* याद आता है ना! और *अब फिर से जाना है।*

 

✺   *ड्रिल :-  "अपने स्वीट होम और अपने स्वीट राज्य की स्मृति का स्पष्ट अनुभव"*

 

 _ ➳  मै आत्मा आज बाबा को याद करने बैठीं तो अपने *स्वीट होम और स्वीट राजधानी की कशिश हो रही हैं... मैं आत्मा अभी संगम युग में स्वराज अधिकारी आत्मा हूँ... राजयोगी आत्मा हूँ...* इस संगम युग में स्वंय भगवान ने मुझे राजयोगी बनाया हैं... *अभी मै आत्मा स्वराज अधिकारी हूँ और भविष्य में राज्य अधिकारी बनूँगी...* मै आत्मा राज योगी सो राज्य अधिकारी आत्मा हूँ... स्वयं भगवान मुझ आत्मा को याद करते हैं... *मैं आत्मा कितनी सौभाग्यशाली हूं... कि परमात्मा मेरे लिए स्वर्ग की सौगात लाये हैं... वाह वह सुनहरी दुनियाँ मेरी हैं... जहां सभी आत्माये संपूर्ण पवित्र हैं...* 16 कला संपूर्ण हैं... उस सुख की दुनिया में सुख ही सुख हैं... *बाबा मुझ आत्मा को उस सुख की दुनियाँ में जाने के लिए लायक बना रहे हैं...*

 

 _ ➳  *मुझ आत्मा को यह निश्चय हैं कि इस संगम के बाद वह सुख की दुनियाँ आई कि आई... मै आत्मा इसी रूहानी नशे में हूँ कि मै अपने राजधानी में जाती हूँ... ये रूहानी नशा मुझ आत्मा को निश्चिंत बना रहा हैं...* मै आत्मा एकदम निश्चिंत बन चुकी हूँ... *मै आत्मा अपने स्वीट होम परमधाम की निवासी हूँ...* मै आत्मा इस सृष्टि में पार्ट बजाने के लिए आई हूँ... *मेरा स्वीट होम बहुत ही प्यारा हैं... वहाँ अपार शांति ही शांति है...* वहाँ मै आत्मा अपने पिता परमात्मा के साथ हूँ... *मै आत्मा संपूर्ण पवित्र हूँ... परमधाम में मै आत्मा अपार शांति का अनुभव कर रही हूँ...* वह मेरा स्वीट होम हैं...

 

 _ ➳  *अपने स्वीट होम से मै आत्मा अपने स्वीट राजधानी में आती हूँ...* वह सुख की दुनिया *जहाँ सभी आत्माये अपने पवित्र स्वरुप में हैं...* वहा किसी भी प्रकार के दुःख का नामोनिशान नहीं हैं... वहाँ सुख शांति की बहार हैं... *वहाँ संपूर्ण सुख हैं... परमात्मा ने मुझ आत्मा को स्वर्ग में जाने के लिए चुना हैं...* वाह मेरा भाग्य... जो मुझे सुख की दुनिया में जाना है... *अब मै आत्मा अपने स्वीट राज्य को एकदम समीप से अनुभव कर रही हूँ...* वाह कितना सुंदर समय हैं... *जहाँ प्रकृति भी अपने संपूर्ण स्वरुप में हैं...* वाह जहा सभी मौसम बसंत हैं... कितना सुंदर अनुभव हैं... *वाह कितना सुंदर रूहानी नशा हैं जो इस दुनियाँ के सारे सुखों से भी उपर हैं...*

 

 _ ➳  यह परमानंद और परमात्म्य अनुभति मुझे हो रही हैं... *मुझ आत्मा को अपना स्वीट होम और स्वीट राजधानी एकदम साफ़ समीप दिखाई दे रहा हैं... वहाँ स्वीट साइलेंस हैं... और चारों ओर सुनहरा प्रकाश फैला हुआ हैं...* वैसी ही सुनहरी दुनिया स्वयं भगवान् मुझ आत्मा के लिए बना रहे है... *मुझ आत्मा को स्पष्ट अनुभव हो रहा है कि मै अपने स्वीट राज्य में हूँ...* वहाँ के सुखों का आनंद ले रही हूँ... यह स्पष्ट स्मृति मुझ आत्मा को हैं... कि मुझे वहाँ जाना हैं... *ज्ञान का तीसरा नेत्र जो बाबा ने मुझ आत्मा को दिया हैं... उससे मै आत्मा स्पष्ट अपने राज्य को देख रही हूँ...* वाह मेरा भाग्य...

 

 _ ➳  *जो परमात्म्य प्यार मुझ आत्मा को मिला हैं... उसे मै शब्दों में बयान नहीं कर सकती... मै आत्मा ना जाने कितने बार यह पार्ट पूरा कर चुकी हूँ...* मै आत्मा स्वदर्शन चक्रधारी हूँ... *मेरे पिता परमात्मा प्यार के सागर है... वह सर्व शक्तिमान है...* अब इस कल्प में भी मै आत्मा अपना पार्ट पूरा कर अपने स्वीट होम से अपने स्वीट राजधानी में जा रही  हूँ... *यह सब मुझ आत्मा की स्मृति में इमर्ज हुआ हैं... कि अब फिर से मुझ आत्मा को आदि से अंत तक का पार्ट बजाना हैं...* मुझे सुख की दुनिया में जाना है... मै बहुत बहुत भाग्यशाली आत्मा हूँ... *जो परमात्म प्यार की अधिकारी बनी... और भविष्य राज्य अधिकारी बनूँगी... शुक्रिया बाबा, आपका बहुत बहुत शुक्रिया...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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