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 24 / 06 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *ज्ञान के तीसरे नेत्र से जीवन में सुख और शांति का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *माया को मिटने का अर्थात 5 विकारों को जीतने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *स्वदर्शन चक्र फिराया ? अर्थात स्व का दर्शन किया ?*

 

➢➢ *गुप्त दान की ताकत का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *अभी अच्छा-अच्छा कहते हैं, लेकिन अच्छा बनना है यह प्रेरणा नहीं मिल रही है।* उसका एक ही साधन है-संगठित रुप में ज्वाला स्वरुप बनो। एक एक चैतन्य लाइट हाउस बनो। सेवाधारी हो, स्नेही हो, एक बल एक भरोसे वाले हो, यह तो सब ठीक है, *लेकिन मास्टर सर्वशक्तिवान की स्टेज, स्टेज पर आ जाए तो सब आपके आगे परवाने के समान चक्र लगाने लगेंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं मास्टर दाता हूँ"*

 

  आप कौन हो? मास्टर दाता हो ना। वास्तव में देना अर्थात् बढ़ना। *जितना देते हो उतना बढ़ता है। विनाशी खजाना देने से कम होता है और अविनाशी खजाना देने से बढ़ता है-एक दो, हजार पाओ।* तो देना आता है कि सिर्फ लेना आता है? दे कौन सकता है? जो स्वयं भरपूर है। अगर स्वयं में ही कमी है तो दे नहीं सकता।

 

  *तो मास्टर दाता अर्थात् सदा भरपूर रहने वाले, सम्पन्न रहने वाले। तो सहज याद क्या हुई? 'प्यारा बाबा'। मतलब से याद नहीं करो। मतलब से याद करने में मुश्किल होता है, प्यार से याद करना सहज होता है। मतलब से याद करना याद नहीं, फरियाद होती है।* तो फरियाद करते हो? ऐसा कर देना, ऐसा करो ना, ऐसा होना चाहिए ना....-ऐसे कहते हो?

 

  याद से सर्व कार्य स्वत: ही सफल हो जाते हैं, कहने की आवश्यकता नहीं। सफलता जन्मसिद्ध अधिकार है। अधिकार मांगने से नहीं मिलता, स्वत: मिलता है। तो अधिकारी हो या मांगने वाले हो? अधिकारी सदा नशे में रहते हैं-मेरा अधिकार है। मांगना तो बन्द हो गया ना। बाप से भी मांगना नहीं है। यह दे दो, थोड़ी खुशी दे दो, थोड़ी शान्ति दे दो....-ऐसे मांगते हो? बाप का खजाना मेरा खजाना है। जब मेरा खजाना है तो मांगने की क्या दरकार है। तो अधिकारी जीवन का अनुभव करने वाले हो ना। अनेक जन्म भिखारी बने, अभी अधिकारी बने हो। *सदा इसी अधिकार के नशे में रहो। परमात्म-प्यार के अनुभवी आत्माएं हो। तो सदा इसी अनुभव से सहजयोगी बन उड़ते चलो। अधिकारी आत्मायें स्वप्न में भी मांग नहीं सकतीं। बालक सो मालिक हो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *विस्तार को देखते भी न देखें, सुनते हुए भी न सुनें - यह प्रैक्टिकल अभी से चाहिए।* तब अंत के समय चारों ओर की हलचल की आवाज जो बडी दु:खदायी होगी, दृश्य भी अति भयानक होगे - अभी की बातें उसकी भेंट में तो कुछ भी नहीं है - *अगर अभी से ही देखते हुए न देखना, सुनते हुए न सुनना यह अभ्यास नहीं होगा तो अंत में इस विकराल दृश्य को देखते एक घडी के पेपर में सदा के लिए फेल माक्र्स मिल जावेगी।*

 

✧  इसलिए यह भी विशेष अभ्यास चाहिए। *ऐसी स्टेज हो जिसमें साकार शरीर भी आकारी रूप में अनुभव हो।* जैसे साकार रूप में देखा साकार शरीर भी आकरी फरिश्ता रूप अनुभव किया ना। चलते-फिरते कार्य करते आकारी फरिश्ता अनुभव करते थे।

 

✧  शरीर तो वही था ना - लेकिन स्थूल शरीर का भान निकल जाने कारण स्थूल शरीर होते भी आकारी रूप अनुभव करते थे। तो सर्व के सहयोग के वायब्रेशन का फैला हुआ हो - *जिस भी स्थान पर जाए तो यह फरिश्ता रूप दिखाई दे।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ सिर्फ संकल्प शक्ति अर्थात मन और बुद्धि सदा मनमत से खाली रखो। *मन को चलाने की आदत बहुत है ना।* एकाग्र करते हो फिर भी चल पड़ता है। फिर मेहनत करते हो । *चलाने से बचने का साधन है* जैसे आजकल अगर कोई कन्ट्रोल में नहीं आता, बहुत तंग करता है, बहुत उछलता है, या पागल हो जाता है तो उनको ऐसा इन्जेक्शन लगा देते हैं जो वह शान्त हो जाता है। तो ऐसे अगर संकल्प शक्ति आपके कण्ट्रोल में नहीं आती तो *अशरीरी भव का इन्जेक्शन लगा दो। बाप के पास बैठ जाओ। तो संकल्प शक्ति व्यर्थ नहीं उछलेगी।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ज्ञान का तीसरा नेत्र ही लाइफ में सुख और शांति का आधार"*

 

 _ ➳  *ज्ञान सागर की लहरों में तैरती, सुख शान्ति के दुर्लभ मोतियों से खेलती, मैं आत्मा अपने ऊपर झिलमिलाते ज्ञान सूर्य को एक टक निहारते जा रही हूँ*... मेरे ठीक ऊपर सुनहरी किरणों का बरसता झरना... और उस झरने में झरती हुई सुखों की लडिया शान्ति की फुलझडियाँ, भाव विभोर हुई जा रही हूँ मैं आत्मा, *तभी फरिश्ते के रूप में मुस्कुराते हुए मेरे सम्मुख है बापदादा... मैं, और बाबा सूक्ष्म वतन में*...

 

  *ज्ञान रत्नों से मेरी बुद्धि को दिव्य बनाने वाले रत्नाकर बाप बोलें:-* "मेरी त्रिनेत्री बच्ची... संगम पर नित ज्ञान रत्नों से खेलते आपकी बुद्धि में ज्ञान का सोझरा हुआ है... *यही वो ज्ञान का तीसरा नेत्र है, जो बाप, बच्ची को देने आया है... आप बच्ची ने सुख शान्ति का वर्सा सहज ही पाया, मगर क्या अब अनुभवों के गहरें सागर में भी उतरना आया है*"...?

 

 _ ➳  *ज्ञान सागर की गहराइयों से सुख शान्ति के अमूल्य मोतियों को धारण कर मैं आत्मा बाप से बोली:-* "मीठे बाबा... *अपने भाग्य पर बलिहारी हूँ मैं, सुख शान्ति की तलाश में संसार की आत्माए चाँद का सफर तय कर खाली हाथ लौट आयी है और मैने निरन्तर बरसती उन सौगातो को अपने अन्तर मे ही पा लिया है...*  अनुभवों की गहराई जितनी बढती जा रही है... बेहद के खजानों से माला-माल होती जा रही हूँ मैं..."

 

  *माया के भिन्न रूपों की समझानी दे माया जीत बनाने वाले बापदादा बोले:-* "मीठी बच्ची... मायावी विकारों की समझानी भी आपने अब पायी है...  और मायाजीत बनने की युक्तियाँ भी अभी आई है... *अज्ञानता के भोले पन से निकल अब चतुर सुजान बनी हो... इस ज्ञान नेत्र से देखों तुम अब आदि, मध्य और अन्त में भी कितनी धनी हो...*"

  

 _ ➳  *सर्व गुणों और शक्तियों के खजानों से सम्पन्न मैं आत्मा मीठे बाबा से बोली:-* "प्यारे बाबा... *ज्ञान के इसी नेत्र ने शुभकामनाओ का मोल समझाया है, संगम पर भी आपकी तलाश में भटकती आत्माओं के जीवन का अंधकार दिखाया है*... जीवन को लक्ष्य दिया है...  राहें दिखाई है और उजालों से भरपूर किया है... *विघ्नों से बचने के लिए स्वदर्शन का कवच प्रदान किया है...*"

 

  *विश्वकल्याण का मन में उमंग भरने वाले कल्याणकरी बापदादा बोले:-* "मेरी विश्वकल्याणी बच्ची... *सुख शान्ति की तलाश में, चाँद पर भी रोशनी के परचम लहराती, साइंस के साधनो में सुख शान्ति खोजती, इन आत्माओं को भी सुख शान्ति का वर्सा दिलाओं*... वाणी से नही अब स्वरूप बन *बाप के संग का रंग लगाओं...*"

 

 _ ➳  *रहम के सागर रहनुमा बाप से मैं आत्मा बोली:- "मीठे बाबा... चाँद तारें, सागरों तक का लम्बा सफर तय कर सुख शान्ति के मोती नही बल्कि दुख का गहन अंधकार ही अपनी मुट्ठी में समेटे ये आत्माए मेरे दिव्य ज्ञान नेत्रों से अब शान्ति की अनुभूति कर रही है*... स्वकल्याणी से मैं आत्मा अब विश्वकल्याणी बन रही हूँ... और *रहम की भावना से भर, मनसा से ही ज्ञान की मीठी रिमझिम करती मुझ आत्मा को बापदादा वरदानों से नवाज रहे है...*"

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- गुप्त दान की ताकत का अनुभव करना*

 

_ ➳  "गुप्त दान महाकल्याण" इस कहावत पर चिंतन करते हुए मैं विचार करती हूँ कि कितना गहरा राज छुपा है इन तीन शब्दो में। *भक्ति में भी लोग कितना दान पुण्य करते हैं जबकि वहाँ भगवान अप्रत्यक्ष हैं। लेकिन क्योकि कहीं न कहीं हद के नाम, मान, शान की कामना जुड़ी होती है इसलिए प्राप्ति भी अल्पकाल की ही होती है*। लेकिन अब इस समय तो स्वयं भगवान सम्मुख हैं। तो इस समय उनसे प्राप्त किये हुए अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान, या तन - मन - धन से ईश्वरीय सेवा अर्थ किया हुआ कोई भी दान जितना गुप्त रीति किया जाए उतना उसकी ताकत का अनुभव ब्राह्मण आत्मा इस समय कर सकती है। *जो दान हद के मान सम्मान को पाने की इच्छा से किया जाए उससे प्राप्त होने वाला फल तो जैसे कच्चा फल है और कच्चा फल कभी उस स्वाद का अनुभव नही करवा सकता जो स्वाद एक पक्के हुए फल का होता है*।

 

_ ➳  मन ही मन यह विचार करते हुए गुप्त दान की ताकत का अनुभव करने के लिए, परमात्म शिक्षाओं को जीवन मे धारण कर, अपने कर्मो को श्रेष्ठ बनाकर, अपना ऊँचा भाग्य बनाने का दृढ़ संकल्प लेकर मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि *जैसे ब्रह्मा बाप ने सम्पूर्ण समर्पण भाव से गुप्त रीति ईश्वरीय यज्ञ में अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया। कभी मन में यह संकल्प भी नही आने दिया कि मैं यज्ञ में देता हूँ। बस एक ही संकल्प कि सब कुछ शिव बाबा का है*। करावनहार करा रहा है, मैं निमित हूँ इसी एक दृढ़ निश्चय के आधार पर ब्रह्मा बाप ने शिव बाबा से ताकत लेकर उस सम्पूर्णता को प्राप्त कर लिया कि वो भी शिव बाबा के समान उनका ही प्रतिरूप बन गए।

 

_ ➳  उसी ताकत का अनुभव अपने जीवन मे हर पल करके ब्रह्मा बाप समान सम्पूर्णता को पाने का लक्ष्य मन मे लेकर अब मैं अपने मन बुद्धि को ब्रह्मा बाप के अव्यक्त वतन की ओर ले जाती हूँ। *मन बुद्धि से मैं देख रही हूँ वतन का खूबसूरत नज़ारा। अपने सम्पूर्ण फरिश्ता स्वरूप में ब्रह्मा बाप और उनकी भृकुटि में चमक रहे ज्ञानसूर्य अपने अति प्यारे शिव बाबा को मैं देख रही हूँ। शक्तियों की बहुत सारी धाराएं बाबा की भृकुटि से निकल कर पूरे वतन में फैल रही हैं*। मैं महसूस कर रही हूँ जैसे शक्तियों की एक तेज लाइट वतन से सीधी नीचे मुझ आत्मा के ऊपर पड़ रही है और मुझे आप समान लाइट और माइट बना रही है। बापदादा की लाइट और माइट पाकर मैं धीरे - धीरे अपने फरिश्ता स्वरूप को धारण करती जा रही हूँ।

 

_ ➳  एक अति सूक्ष्म लाइट का फरिश्ता बन कर अपनी स्थूल देह से मैं बाहर निकल रही हूँ और अपनी श्वेत रश्मियों को चारों और फैलाते हुए ऊपर नीले आकाश की और जा रही हूँ। *श्वेत प्रकाश की इस काया में एक अद्भुत हल्केपन का अनुभव करते हुए मैं आकाश को पार करके अब पहुँच गई हूँ श्वेत प्रकाश के खूबसूरत अव्यक्त वतन में। अव्यक्त बापदादा को बच्चों के इंतजार में अपनी बाहें पसारे खड़ा हुआ मैं देख रही हूँ और बाबा के मन मे अपने बच्चों को आप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण देखने के जो भाव हैं उन्हें भी मैं अनुभव कर रही हूँ*। बच्चो को आप समान बनाने के लिए ही बाबा वतन में रुके हुए है और अपने हर बच्चे को विशेष करेंट और सकाश देकर उनमे बल भर रहें हैं इसका अनुभव मैं बापदादा के सामने खड़े होकर स्पष्ट रूप से कर रही हूँ।

 

_ ➳  साकार रूप में बच्चों द्वारा ईश्वरीय सेवा अर्थ किये हुए गुप्त दान का प्रत्यक्ष फल बाबा उन्हें ईश्वरीय शक्तियों का बल प्रदान करके कैसे देते हैं इसका प्रत्यक्ष अनुभव मैं यहाँ पहुंचकर कर रही हूँ। *बाबा की लाइट और माइट की ताकत मेरे अंदर भरती जा रही है और एक अनोखी शक्ति का संचार मैं अपने अंदर महसूस कर रही हूँ। बाबा के नयनो से, मस्तक से और हाथों से शक्तियों का जैसे कोई तेज फव्वारा निकल रहा है और रिमझिम फुहारों के रूप में निरन्तर मेरे ऊपर बरस कर मुझे सर्व शक्तियों से सम्पन्न बना रहा है*। सर्व शक्तियों से सम्पन्न होकर अब मैं वापिस लौट रही हूँ और अपने सूक्ष्म लाइट के शरीर के साथ फिर से अपनी स्थूल देह में प्रवेश कर रही हूँ। *गुप्त दान के महत्व को स्मृति में रख कर ईश्वरीय सेवा में अपने तन - मन - धन को सफल करते हुए, गुप्त दान की ताकत का अनुभव परमात्म प्रेम, परमात्म पालना, और परमात्म शक्तियों के रूप में मैं हर पल कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं बाप समान बेहद की वृत्ति रखने वाली मास्टर विश्वकल्याणकारी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं निंदा-स्तुति, मान-अपमान, हानि-लाभ में समान रहने वाली योगी तू आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :

➳ _ ➳ मायाजीत बनने के लिए स्वमान की सीट पर रहो: सदा स्वयं को स्वमान की सीट पर बैठा हुआ अनुभव करते हो? पुण्य आत्मा हैं, ऊंचे ते ऊंची ब्राह्मण आत्मा हैं, श्रेष्ठ आत्मा हैं, महान आत्मा हैं, ऐसे अपने को श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर अनुभव करते हो? कहाँ भी बैठना होता है तो सीट चाहिए ना! तो *संगम पर बाप ने श्रेष्ठ स्वमान की सीट दी है, उसी पर स्थित रहो। स्मृति में रहना ही सीट वा आसन है। तो सदा स्मृति रहे कि मैं हर कदम में पुण्य करने वाली पुण्य आत्मा हूँ। महान संकल्प, महान बोल, महान कर्म करने वाली महान आत्मा हूँ। कभी भी अपने को साधारण नहीं समझो। किसके बन गये और क्या बन गये? इसी स्मृति के आसन पर सदा स्थित रहो।* इस आसन पर विराजमान होंगे तो कभी भी माया नहीं आ सकती। हिम्मत नहीं रख सकती। आत्मा का आसन स्वमान का आसन है, उस पर बैठने वाले सहज ही मायाजीत हो जाते हैं।

✺ *"ड्रिल :- सदा स्वमान की सीट पर सेट रहना"*

➳ _ ➳ मै आत्मा तालाब के किनारे बैठकर तालाब के पानी को अपने हाथों से उछाल रही हूं... तभी अचानक मैं देखती हूं कि *एक मछली मेरे पास आ जाती है और मछली के मुंह से एक पानी का बुलबुला निकलता है... मैं उस बुलबुले में जाकर बैठ जाती हूं और हवा में ऊपर उड़ने लगती हूं... और उड़ते-उड़ते मैं बगीचे की घास पर जाकर बैठ जाती हूं... सूरज की किरणें मुझ पर गिर रही है और मुझसे रंग-बिरंगी किरणे निकल रही है...* तभी मुझे आभास होता है कि सूरज की किरणे जो मुझ पर गिर रही है वह मेरे बाबा की शक्तिशाली किरणे हैं... जैसे जैसे वह किरणे मुझ पर गिरती हैं वैसे-वैसे मुझे अनुभव होता है कि मेरे बाबा मुझे कुछ समझाने की कोशिश कर रहे हैं... मैं बुलबुला ऊपर उड़ रही हूं और मेरे बाबा की किरणों पर जाकर बैठ जाती हूं...

➳ _ ➳ और जब मैं बाबा की किरणों पर बैठकर झूलने लगती हूं तो मुझे आभास होता है कि बाबा मुझे अपनी बाहों में झूला रहे हैं और झुलाते झुलाते शिक्षा दे रहे हैं... मेरे बाबा मुझे कहते हैं कि *तुम्हें हमेशा अपने स्वमान की सीट पर विराजमान रहना चाहिए... जब तुम स्वमान में स्थित होकर कोई भी कार्य करोगे तो तुम हमेशा अपनी स्थिति स्थिर रख सकते हो... तुम्हारी स्थिति में कोई भी हलचल पैदा नहीं होगी...* अगर तुम्हारे मन में हलचल पैदा हुई तो तुम इधर-उधर हवा में उड़ने लगोगे और उड़ते उड़ते कई बार ऐसी जगह पर बैठ जाओगे जिसको छूते ही तुम नष्ट हो जाओगे...

➳ _ ➳ बाबा ने मुझे कहा की अगर तुम ऐसे ही खुशियों की मौज में उड़ना चाहते हो और हमेशा अपने अस्तित्व को बचाए रखना चाहते हो तो तुम्हें स्वमान में ही रहना होगा अपने आप को ऐसा स्वमान दो... जैसे, मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूं और उस सर्वशक्तिमान सीट पर आप विराजमान हो... *बाबा कहते हैं अपने आप को उस सीट पर हमेशा बैठा कर रखोगे तो तुम बड़ी ही सरलता से किसी भी कठिनाई को पार कर लोगे और वह कठिनाई या परिस्थिति तुम्हारी कुर्सी के नीचे से होकर गुजर जाएगी तुम्हें एहसास भी नहीं होगा कि अभी तुम्हारे सामने कितनी बड़ी परिस्थिति आई थी*... जब जब तुम इस स्वमान की कुर्सी पर विराजमान रहोगे तब तब तुम अपने आप को श्रेष्ठ और ऊंची अवस्था में अनुभव करोगे...

➳ _ ➳ बाबा की यह बातें सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगता है और मैं बाबा को कहती हूं कि... बाबा मैं इस स्वमान की सीट को कभी नहीं छोडूंगी साथ ही कहती हूं... बाबा अगर मैं कभी इस *स्वमान की सीट को छोड़कर अपनी स्थिति हलचल में लाई तो यह सांसारिक मोह-माया मुझे अपने अंदर समा लेगी...* यह मोह माया रूपी मछली मुझे अपने अंदर समा लेगी... इसलिए मैं हमेशा अपने आप को परिस्थिति के अनुसार स्वमान की सीट पर विराजमान रखूंगी... अपनी इस सीट को कभी नहीं छोडूंगी...

➳ _ ➳ बाबा से यह बातें करके मैं वापिस अपनी दुनिया में आ पहुंचती हूं... नीचे आते समय मुझे कई ऐसी चीजें छूने की कोशिश करती हैं जिससे मेरा अस्तित्व समाप्त हो सकता है... परंतु मैं अपने स्वमान की सीट पर विराजमान थी... इसलिए वह परिस्थिति रूपी वस्तुएं मुझे छू भी नहीं पाई और मेरे कुर्सी के नीचे से निकल गई... और मैं जब नीचे आकर पहुंचती हूं तो उसी मछली को देखती हूं और उससे कहती हूं.. *अब तुम मुझे कभी भी अपने अंदर नहीं समा सकती हो... क्योंकि अब मैं तुमसे कहीं शक्तिशाली स्थिति में विराजमान हूं... मछली दूर से ही मुझे निहारती है... लाख प्रयास के कारण भी वह मुझे छू नहीं पाती है... और मैं इस स्थिति का दूर बैठे ही आनंद लेती हूं...*

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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