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 17 / 05 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *जीते जी सर्व आत्माओं से छुट्टी ली ?*

 

➢➢ *ध्यान की आश तो नहीं रखी ?*

 

➢➢ *सच्ची दिल से बाप को राज़ी किया और सदा राज़ी रहे ?*

 

➢➢ *सच्ची दिल से दाता, विधाता और वरदाता को राज़ी कर रूहानी मौज में रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *किसी भी स्थान के वायुमण्डल को पॉवरफुल बनाने के लिए अपने अव्यक्त स्वरूप की साधना चाहिए, इसका बार-बार अटेंशन रहे। जिस बात की साधना की जाती है, उसी बात का ध्यान रहता है।* अगर एक टाँग पर खड़े होने की साधना है तो बार-बार वही अटेंशन रहेगा। तो यह साधना अर्थात् बार-बार अटेंशन की तपस्या।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बड़े-ते-बड़ा बिजनेसमैन हूँ"*

 

  *सभी बिजी रहते हो ना! जो बिजी होता है उसके पास माया नहीं आती। क्योंकि आपके पास उसे रिसीव करने का टाइम ही नहीं है।* तो इतने बिजी रहते हो या कभी-कभी रिसीव कर लेते हो? ब्राह्मण बने ही क्यों? बिजी रहने के लिए ना। बापदादा हंसी में कहते हैं कि बिजी रहने वाले ही बड़े-ते-बड़े बिजनिसमैन हैं। सारे दिन में कितना बड़ा बिजनेस करते हो!

 

  जानते हो हिसाब? हिसाब रखना आता है? हर कदमों में पद्मों की कमाई है। कदम में पद्म - सारे कल्प में ऐसा बिजनेस कोई नहीं कर सकता। तो जितना जमा होता है उस जमा की खुशी होती है। सबसे ज्यादा खुशी किसको रहती है? *नशे से कहो - 'हम नहीं खुश होंगे तो कौन होगा!' यह नशा भी हो किन्तु निर्मान।* जैसे अच्छे वृक्ष की निशानी है-फल वाला होगा लेकिन झुका होगा। ऐसा नशा है? तो दोनों साथ-साथ हों।

 

  आप सबकी नैचुरल जीवन ही यह हो गई है - किसी को भी देखेंगे तो उसी स्मृति से देखेंगे कि यह एक ही परिवार की आत्माएं हैं। इसलिए नुकसान वाला नशा नहीं है। *हर आत्मा के प्रति दिल का प्यार स्वत: ही इमर्ज होता है। कभी किसी के प्रति घृणा नहीं आ सकती। कभी कोई गाली देवे तो भी घृणा नहीं आ सकती, क्वेश्चन नहीं उठ सकता। जहां क्वेश्चनमार्क होगा वहां हलचल जरुर होगी। फुलस्टॉप लगाने वाले फुल पास होते हैं। फुलस्टॉप वही लगा सकते हैं। जिनके पास शक्तियों का फुलस्टॉक हो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  बाप समान तीन स्टेज नम्बरवार हैं। *एक है समान, दूसरी है समीप, तीसरी है सामने।* तो कहाँ तक पहूँचे हैं?  *समान वाले की निशानी *एक सेकण्ड में जहाँ और जैसे चाहें , जो चाहें वह कर सकते हैं व करते हैं।*

  

✧   सेकण्ड स्टेज - *एक सेकण्ड में बजाय कुछ घडियों में, स्वयं को सेट कर सकते हैं।* तीसरी स्टेज - *कुछ घण्टों व दिनों तक स्वयं को सेट कर सकते हैं।*

 

✧  *समान वाले, सदा बाप समान, स्वयं के महत्व को, स्वयं की सर्वशक्तियों के महत्व को और हर पुरुषार्थी की नम्बरवार स्टेज को, गुणदान, ज्ञानधन दान और स्वयं को समय का दान, इन सबके महत्व को जानने वाले और चलने वाले होते हैं।* वे कर्मों को, संस्कार और स्वभाव को जानने वाले ज्ञान स्वरूप होते हैं। क्या ऐसे ज्ञान स्वरूप बने हो?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ सदैव यह समझ कर चलो कि मैं विदेशी हूँ। पराये देश और पुराने शरीर में विश्व-कल्याण का पार्ट बजाने के लिए आया हूँ। *तो पहला पाठ कमजोर होने के कारण सेन्सीबल बने हैं, लेकिन इसैन्स कम है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- रूप बसंत बन बाप की याद में रहना और ज्ञान रत्नों का बीज बोना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा एकांत में बैठी ये विचार कर रही हूं कि कितनी भाग्यशाली हूँ मैं जो भगवान ने मुझे चुन लिया...* जिसको सारी दुनिया ढूंढ रही है वो भगवान मुझे इतनी सहज रीति मिल गया... मैं अपने दिल की हर बात शिव बाबा से कर सकती हूं... जीवन कितना महक उठा है... *रूप बसंत बन बाबा की यादों में खोई रहती हूं और हर रोज़ ज्ञान रत्नों से अपनी झोली भरती हूँ... ये विचार करते करते मैं आत्मा उड़ चलती हूँ निज वतन में...* यहाँ बाबा अपनी प्यार भरी बाहें फैलाये खड़े हैं और में नन्ही परी बन बाबा की बाहों में समा जाती हूं...

 

  *मीठे बाबा मुझ आत्मा को समझानी देते हुए कहते हैं:-* " मीठे प्यारे फूल बच्चे... *रूप बसंत बन बाप की याद में रहना ही इस समय को सफल करना है... ज्ञान रत्नों का बीज बोना ही अब तुम्हारा एक मात्र लक्ष्य होना चाहिए...* बाप की याद में रह अपने विकर्मों के बोझे को खत्म करो कि अब घर चलना है..."

 

 _ ➳  *बाबा की स्नेह भरी बातें सुनकर मैं बाबा से कहती हूँ:-* "मेरे जीवन आधार मेरे मीठे बाबा... आपने मुझे ये जीवन देकर मेरे दामन को खुशिओं से भर दिया  है... *क्या यह जीवन था दुखों से भरा हुआ आपने आकर इसे इतना खूबसूरत बना दिया है... मुझे दुखों से निकाल एक आनंदमय जीवन दे दिया है...* मैं आत्मा अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूल रही हूं... ज्ञान का बीज झाड़ बनकर पूरे विश्व को प्रकाशित कर रहा है..."

 

   *बाबा मेरे सर को सहलाते हुए बोले:-* "मीठी बच्ची... बाप की याद ही तुम्हे अलौकिक बनाएगी... *ज्ञान रत्नों की कमाई ही तुम्हें सदा काल के लिए धनवान बनाएगी... जितना हो सके बाप को याद करो... संगम पर मिले इस सुहावने समय का सदुपयोग कर जीवन को सुखों से भर लो...* बाप का हाथ पकड़ अपनी राहों के हर कांटे को फूल बना लो और अपनी जीवन यात्रा को सुखमय बनाओ..."

 

 _ ➳  *बाबा के मीठे मीठे महावाक्यों को अपने में धारण कर मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "हां मेरे दिलाराम बाबा... अज्ञान में मैं आत्मा अपना असली स्वरूप भूल गयी थी... *अब आपने आकर मुझे स्मृति दिलाई है मैं अपने स्वरूप को पाकर धन्य धन्य हो गयी हूँ... मैं गुणहीन, शक्तिहीन थी आपने आकर मुझे निखार दिया है..."*

 

  *बाबा मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर कहते हैं:-* "मीठे लाडले फूल बच्चे... ईश्वरीय याद ही जीवन को सजाती है और जीने की कला सिखाती है... *यादों के झूले में बैठकर अपने पिता परमात्मा की याद में डूबे रहना ही सच्ची कमाई है...* इससे अपने खजानों को भरकर इनका दान करने से ही तुम नई दुनिया के सुखों के मालिक बनते हो... *21 जन्म की राजाई लेकर अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाओ... ज्ञान रत्नों के बीज बोकर अपने आने वाले समय के लिए खजाने भरपूर करो...*"

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा को बहुत प्यार से निहारते हुए कहती हूँ:-* "बाबा... आपने मेरा जीवन खुशिओं से भर दिया है... *मुझे अपनी गोद में बिठाकर ईश्वरीय प्यार से मालामाल कर दिया है... शायद ही मुझ जैसा कोई भाग्यवान होगा जिसकी झोली परमात्म प्यार से भरी रहती है...* बाबा आपने मुझे दिव्य अलौकिक जन्म देकर मेरे जीवन की हर इच्छा को पूरा कर दिया है... मैं आपका कितना भी आभार प्रकट करूँ कम ही लगता है... मैं आत्मा बाबा को अपने दिल की गहराई से शुक्रिया कर अपने साकारी तन में लौट आती हूँ..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  किसी का भी चिंतन नही करना है*

 

_ ➳  63 जन्मो से देह और देहधारियों के चिंतन में फंसी आत्मा आज इतनी दुखी और अशांत हो गई है जिसका अनुभव आज हर मनुष्य कर रहा है, *मन ही मन अपने आप से यह बातें करती हुई मैं विचार करती हूँ कि जिस नश्वर देह और देह से जुड़े पदार्थो के साथ आज हर मनुष्य आत्मा ने अपनी प्रीत जोड़ रखी है वो झूठी प्रीत ही तो उसके दुख का कारण है*। इस दुख और अशांति से छूटने का केवल एक ही उपाय है जो इस समय स्वयं भगवान आ कर बता रहें हैं और वह है देह और देहधारियों के चिंतन को छोड़ स्व चिन्तन और परमात्म चिन्तन में मन बुद्धि को बिज़ी रखना।

 

_ ➳  अपने प्यारे पिता द्वारा दिये जा रहे इस सत्य ज्ञान को जीवन में धारण कर, अपने मन और बुद्धि को इस नश्वर देह और देह से जुड़ी हर बात से हटाकर, स्व चिंतन करते हुए, अपने सत्य स्वरूप का गहराई से अनुभव करने के लिए अब मैं अपना सम्पूर्ण ध्यान अपने स्वरूप पर एकाग्र करती हूँ और *महसूस करती हूँ कि धीरे - धीरे एकाग्रता की शक्ति ने मेरे मन बुद्धि को पूरी तरह मेरे उस निराकारी स्वरूप पर स्थित कर दिया है*। सिवाए मेरे निराकारी ज्योति बिंदु स्वरूप के अब औऱ कुछ भी मुझे दिखाई नही दे रहा। जैसे अर्जुन को सिवाय मछली की आँख के उस बिंदु के और कुछ भी दिखाई नही दे रहा था जहाँ उसे निशाना साधना था। ठीक *इसी प्रकार अपनी सम्पूर्ण देह में मुझे केवल भृकुटि के भव्य भाल पर चमकती हुई चैतन्य ज्योति ही दिखाई दे रही है*।

 

_ ➳  उस जगमग करती चैतन्य ज्योति को बड़े प्यार से मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से मैं निहार रही हूँ जो एक अति सूक्ष्म चमकते हुए चैतन्य सितारे की भांति दिखाई दे रहा है। *जैसे आकाश में चमकते हुए सितारे में से किरणे निकलती हैं ऐसे मुझ आत्मा सितारे में से भी शांति, प्रेम, आनंद, सुख, पवित्रता, ज्ञान और शक्ति की सतरंगी किरणे निकल रही हैं*। अपने मन और बुद्धि को पूरी तरह अपने सत्य स्वरूप, गुणों और शक्तियों पर फोकस कर, कुछ क्षणों के लिए मैं खो जाती हूँ अपने इस अति सुखमय स्वरुप में। बड़े प्यार से मैं अपने इस स्वरूप को निहार रही हूँ और *देख रही हूँ कि कितना शुद्ध और शक्तिशाली है मेरा वास्तविक स्वरूप, जिससे मैं आज दिन तक अनजान थी*।

 

_ ➳  मन ही मन मैं अपने प्यारे पिता का दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ जिन्होंने आकर मुझे मेरे इस सत्य स्वरूप की पहचान करवाई। *अपने इस अति सुखदाई सत्य स्वरुप का भरपूर आनन्द लेकर, अपने प्यारे पिता के स्वरूप पर अपने मन बुद्धि को एकाग्र कर, मन बुद्धि के विमान पर बैठ अब मैं पहुँच जाती हूँ अपने प्यारे पिता के पास उनके निजधाम परमधाम घर में*। देख रही हूँ मैं अपने प्यारे पिता को अपने बिल्कुल सामने जो दिखने में मेरी ही तरह बिंदु हैं किंतु गुणों में सिंधु है।

 

_ ➳  उनसे आ रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे फैलकर मेरे चारों और सुरक्षा का दायरा बना रही हैं। कभी मैं अपने आप को देखती हूँ तो कभी सर्वशक्तियों के दाता अपने शिव पिता को। कितना प्यारा और अलौकिक मिलन है यह। *कितनी निराली और प्यारी लाल प्रकाश की दुनिया है यह। यहाँ आकर, स्वयं को अपने प्यारे पिता के सानिध्य में मैं धन्य धन्य अनुभव कर रही हूँ*। वाह मैं आत्मा, वाह मेरे बाबा, जो मुझे अपनी सर्वशक्तियों से भरपूर कर रहे हैं। *इस बीज रूप स्थिति का सुंदर अनुभव करने के बाद मैं आत्मा लौट आती हूं साकारी दुनिया में*।

 

_ ➳  साकारी ब्राह्मण तन में भृकुटि पर विराजमान होकर, अपने वास्तविक स्वरुप की स्मृति में स्थित होकर अब मैं हर कर्म कर रही हूँ। स्व चिंतन करते हुए, अपने गुणों और शक्तियों का अनुभव मुझे मेरे आनन्दमयी, सुखमयी स्वरूप में स्थित रखने के साथ - साथ सबको आत्मिक दृष्टि से देखने की स्मृति दिलाता है। *सबको आत्मा भाई - भाई की दृष्टि से देखने के अभ्यास से मेरी दैहिक दृष्टि वृति परिवर्तन हो रही है इसलिए देह  और देह से जुड़ी हर बात के चिंतन से मैं स्वत: ही मुक्त होती जा रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सच्ची दिल से बाप को राजी करने वाली और सदा राजी रहने वाली राजयुकत     आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सच्ची दिल से दाता, विधाता, वरदाता को राज़ी कर रूहानी मौज में रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ *किसी भी प्रकार के विकारों के वशीभूत हो अपनी उल्टी होशियारी नहीं दिखाओ। यह उल्टी होशियारी अब अल्पकाल के लिए अपने को खुश कर लेगी वा ऐसे साथी भी आपकी होशियारी के गीत गाते रहेंगे लेकिन कर्म की गति को भी स्मृति में रखो। उल्टी होशियारी उल्टा लटकायेगी।* अभी अल्पकाल के लिए काम चलाने की होशियारी दिखायेंगे, इतना ही चलाने के बजाए चिल्लाना भी पड़ेगा। कई ऐसी होशियारी दिखाते हैं कि बापदादा दीदी दादी को भी चला लेंगे। यह सब तरीके आते हैं। अल्पकाल की उल्टी प्राप्ति के लिए मना भी लिया, चला भी लिया लेकिन पाया क्या और गंवाया क्या! दो तीन वर्ष नाम भी पा लिया लेकिन अनेक जन्मों के लिए श्रेष्ठ पद से नाम गंवा लिया। तो पाना हुआ या गंवाना हुआ?

✺ *"ड्रिल :- विकारों के वशीभूत हो उल्टी होशियारी नहीं दिखाना*”

➳ _ ➳ *अपने उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए मैं आत्मा ज्योति सुप्रीम ज्योतिषी के पास पहुँच जाती हूँ...* अपना श्रेष्ठ भाग्य बनाने के उपाय जानने की इच्छा जाहिर करती हुई... मैं आत्मा सुप्रीम ज्योतिषी बाबा के सम्मुख बैठ जाती हूँ... सुप्रीम ज्योतिषी बाबा मेरे भाग्य की रेखाओं को देख रहे हैं...

➳ _ ➳ *बाबा मुस्कुराते हुए मेरे हाथों में अविनाशी भाग्य बनाने की कलम दे देते हैं और कहते हैं- बच्चे श्रेष्ठ कर्म कर जितना चाहे उतना अपना ऊँचा भाग्य बनाओ...* पुरुषार्थ कर श्रेष्ठ कर्म की कलम से सर्व प्राप्तियों की भाग्य रेखायें खींच लो... वर्तमान में जैसे कर्म करोगे वैसे ही भविष्य प्रालब्ध प्राप्त करोगे...

➳ _ ➳ *बाबा कर्मों की गुह्य गति का ज्ञान देते हुए मेरे सिर पर अपना वरदानी हाथ रख अमर भव का वरदान देते हैं...* बाबा के हाथों से, मस्तक से सर्व गुण, शक्तियां निकलकर मुझ आत्मा में समा रही हैं... मैं आत्मा विकारों से मुक्त होकर सर्व खजानों से सम्पन्न हो रही हूँ... बाबा मेरे मस्तक में चमकती हुई ज्योति की रेखा खींचते हैं...

➳ _ ➳ *बाबा मेरे नयनों में रूहानियत की भाग्य रेखा खींचते हैं... मेरे मुख में श्रेष्ठ मीठी वाणी की भाग्य रेखा खींचते हैं...* मेरे होंठो में रूहानी मुस्कुराहट की भाग्य रेखा खींचते हैं... मेरे हाथों में सर्व परमात्म-खजाने की भाग्य रेखा खींचते हैं... मेरे कदमों में पद्मों की भाग्य रेखा खींचते हैं... मेरे ह्रदय में बाप के लव की लवलीन रेखा खींचते हैं...

➳ _ ➳ *मैं आत्मा अब वर्तमान में अपना तन, मन, धन, हर स्वांस को सफल कर रही हूँ... संगमयुग के समय के महत्व को जान हर घडी को सफल कर रही हूँ...* बाबा से प्राप्त ज्ञान, गुण, शक्तियों के खजानों को सफल कर रही हूँ... राज्य सत्ता और धर्म सत्ता की अधिकारी बन रही हूँ... तीव्र पुरुषार्थ कर अनेक जन्मों की प्रालब्ध बना रही हूँ...

➳ _ ➳ अब मैं आत्मा अल्पकाल की उल्टी प्राप्ति के लिए विकारों के वशीभूत होकर कोई भी उल्टा कर्म नहीं करती हूँ... मन, वचन, कर्म, संकल्पों से सदा श्रेष्ठ कर्म ही करती हूँ... और अनेक जन्मों के लिए श्रेष्ठ पद पाने की अधिकारी बन गई हूँ... *अविनाशी बाबा ने अविनाशी भाग्य की रेखायें खींचकर मुझ अविनाशी आत्मा को श्रेष्ठ भाग्यशाली बना दिया है...*

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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