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 15 / 10 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *मात पिता पर दिल से कुर्बान गए ?*

 

➢➢ *ज्ञान दान करने में महारथी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *अपनी जिम्मेवारियों के सब बोझ बाप को दे सदा निश्चिंत रहे ?*

 

➢➢ *बेहद ड्रामा के हर दृश्य को निश्चित जानकार सदा निश्चिंत रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जैसे आपकी रचना कछुआ सेकेण्ड में सब अंग समेट लेता है। समेटने की शक्ति रचना में भी है। आप मास्टर रचता समेटने की शक्ति के आधार से सेकेण्ड में सर्व संकल्पों को समाकर एक संकल्प में सेकेण्ड में स्थित हो जाओ। *जब सर्व कर्मेन्द्रियों के कर्म की स्मृति से परे एक ही आत्मिक स्वरूप में स्थित हो जायेंगे तब कर्मातीत अवस्था का अनुभव होगा।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं स्वदर्शन चक्रधारी हूँ"*

 

  अपने को सदा स्वदर्शन-चक्रधारी समझते हो? स्व का दर्शन हो गया है ना? *आत्मा का इस सृष्टि-चक्र में क्या-क्या पार्ट है, उनको जानना अर्थात् स्वदर्शन-चक्रधारी बनना। स्वदर्शन-चक्रधारी आत्मा सदा माया से मुक्त है।*

 

  *स्वदर्शन-चक्रधारी ही बाप के प्रिय हैं क्योंकि ज्ञानी तू आत्मा बन गये ना। स्व के चक्र को जानना अर्थात् ज्ञानी तू आत्मा बनना। जो स्वदर्शन चक्रधारी हैं, उनके आगे माया ठहर नहीं सकती। वह सहज ही माया को समाप्त कर देते हैं।* तो सभी स्वदर्शन-चक्रधारी हो या कभी-कभी चक्र गिर जाता है?

 

  *ज्ञान को बुद्धि में धारण करना अर्थात् स्वदर्शन-चक्र चलाना। 'स्वदर्शन चक्र ही भविष्य में चक्रवर्ती राजा बनायेगा'। तो यह वरदान सदा याद रखना।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  कर्मातीत स्थिति के समीप आ रहे हैं। कर्म भी वृद्धि को प्राप्त होता रहता है। लेकिन *कर्मातीत अर्थात कर्म के किसी भी बंधन के स्पर्श से न्यारे।* ऐसा ही अनुभव बढ़ता रहे। जैसे मुझ आत्मा ने इस शरीर द्वारा कर्म किया ना, ऐसे ही न्यारा-पन रहे।

 

✧  न कार्य के स्पर्श करने का और करने के बाद जो रिजल्ट हुई - उस फल को प्राप्त करने में भी न्यारा-पना कर्म का फल अर्थात जो रिजल्ट निकलती है उसका भी स्पर्श न हो, बिल्कुल ही न्यारा-पन अनुभव होता रहे।

 

✧  जैसे कि *दूसरे कोई ने कराया और मैंने किया।* किसी ने कराया और मैं निमित बनी। लेकिन *निमित बनने में भी न्यारा-पना ऐसी कर्मातीत स्थिति बढ़ती जाती है* - ऐसा फील होता है?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *बापदादा आपके आफिस का भी चक्कर लगाते हैं। कैसे काम कर रहे हैं। बहुत बिजी रहते हैं ना।* अच्छी तरह से आफिस चलती है ना! जैसे एक सेकण्ड में साधन यूज करते हो ऐसे ही बीच-बीच में कुछ समय साधना के लिए भी निकालो। सेकण्ड भी निकालो। *अभी साधन पर हाथ है और अभी-अभी एक सेकण्ड साधना बीच-बीच में अभ्यास करो।* जैसे साधनों में जितनी प्रेक्टिस करते हो तो ऑटोमेटिक चलता रहता है ना। ऐसे एक सेकण्ड में साधना का भी अभ्यास हो। *ऐसे नहीं टाइम नहीं मिला, सारा दिन बहुत बिजी रहे। बापदादा यह बात नहीं मानते हैं। क्या एक घण्टा साधन को अपनाया, उसके बहुत में क्या ५६ सेकण्ड नहीं निकाल सकते?* ऐसा कोई बिजी है जो ५ मिनट भी नहीं निकाल सके, ५ सेकण्ड भी नहीं निकाल सके। *ऐसा कोई है? निकाल सकते हैं?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बेहद सर्विस के लिए बुद्धि चलाना"*

 

 _ ➳  मीठे बाबा ने जब से मेरा हाथ पकड़ा हैंमुझे अपना बनाया हैं... *जीवन फूलो से महकने लगा है... चलते फिरते बस यही विचार रहता हैं कि कैसे मै ज्ञान रत्नों का अलग अलग तरह से विचार सागर मंथन करू...* जन्मो से प्यासी आत्मा को बाबा का हाथ और साथ मिलेगा... ये तो स्वप्नों में भी सोचा ना था... *आज मीठे बाबा को पाकर मैं आत्मा अमीर बन गईं हूँ सही मायने में... बाबा की प्रत्यक्षता की सर्विस की नई नई युक्तियाँ मन मे सजाकर... मैं आत्मा उड़ चली सूक्ष्म वतन बाबा को सब बताने... हाले दिल सुनाने* ...

 

  *मेरे प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को विचार सागर मंथन के गहरे राज बताते हुए कहा:-* "मीठे सिकीलधे बच्चे... *मुझ बाप का संग बहुत वरदानी हैं... इसको हर हाल मे सफल बनाना है... चलते फ़िरते हर कर्म में बाप को याद रखसर्विस की नई नई युक्तियाँ निकालनी हैं...* समर्थ चितंन से बाप कोबाप की याद को सफल बनाना है... सच्ची कमाई से देवताई अमीरी को पाना हैं..."

 

 _ ➳  *मै आत्मा बाबा को पूरे हक सेअधिकार से कहती हूं :-* "मेरे प्यारे मीठे बाबा... *आपने अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख करमुझे ज्ञानरत्नो से भरपूर किया हैं* ... नए नए सर्विस की युक्तिओ से नवाजा हैं... इस सच्ची कमाई को ग्रहण कर मैं पूरे विश्व मे बाँट रही हूं... सभी आत्माओ की रूहानी सर्विस कर रही हूँ..."

 

  *परमपिता ने मुझे स्वर्ग के सुखों को याद दिलाते हुए कहा:-* "मेरे प्यारेनैनो के तारे बच्चे... *किस्मत ने अति उत्तम दिन दिखाया हैं... स्वयम भगवान को हर सम्बन्ध में मिलवाया हैं... तो अब सच्ची कमाई करो* ... चलते फिरते बस एक बाबा की याद... दूसरा न कोई... सार्थक कर लो ये जीवनहर सांस मे पिरो लो बाबा का प्यार... इतनी सर्विस की युक्तियाँ निकालो की... 21 जन्मो के लिए भरपूर हो जाओ..."

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा की वसीयतवर्सा की हकदार बनते हुए बाबा को कहती हूं :-* "प्राणों से भी प्यारे मेरे बाबा... *मै आपकी याद में सदा खोई हुई... प्यार के झूले में झूलती हुईहर क्षण बस आपको याद कर आनन्दित हो रही हूँ* ... हर पल अन्य आत्माओ को भी आप से जुड़ने की नई नई युक्तियाँ बता कर... खुद को भाग्यशाली बना रही हूँ..."

 

  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को बड़े प्यार से निहारते हुए कहा:-* "मीठे मीठे बच्चे... इस संगम की मौज में, बाबा की सर्विस से... *धनवान बन जाओ... एक पल भी बाबा की याद ना छोड़ो... सच्ची कमाई करो और कराओ... यादों की कमाई से देवताओ की तरह सम्पन्न बन जाओ* ... भरपूर होकर 21 जन्मो तक मौज मनाओ... हर कर्म करते हुए बुद्धि योग मुझ बाप संग लगाओ..."

 

 _ ➳  *मै आत्मा बाबा से सम्पूर्ण ज्ञान खजाने बटोरते हुएसारे विश्व की मालिक बन कहती हूं:-* प्यारे बाबा... "हमेशा से आपने मुझ आत्मा को महारानी का ताज पहनाया हैं... *मुझ आत्मा को चलते फिरतेरूहानी सर्विस करने के निमित्त बनाया हैं* ... कर्म करते आप को याद रखने की शक्ति दी हैं... इस तरह रूह रिहान कर मै आत्मा वापिस अपने लौकिक वतन आ जाती हूं..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- *ज्ञान दान करने में महारथी बनना है*

 

_ ➳  अपने रूप बसन्त प्यारे बाबा की सर्वशक्तियों की छत्रछाया के नीचे,एक झील के किनारे बैठी हुई मैं शीतल हवाओं का आनन्द ले रही हूँ औऱ अपने प्यारे बाबा के साथ सर्व सम्बन्धो के गहन सुख का अनुभव करके मन ही मन आनन्दित हो रही हूँ। *अपने निराकार भगवान को कभी अपने प्यारे पिता के रूप में आप समान बनाने की समझानी देते हुए तो कभी माँ के रूप में अपनी किरणों रूपी बाहों में समाकर अपने ऊपर असीम स्नेह बरसाते हुए, कभी सच्चे दोस्त के रूप में अपने साथ मीठी - मीठी रूह रिहान करते हुए और कभी साजन बन ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा सजनी का श्रृंगार करते हुए मैं देख रही हूँ*।

 

_ ➳  हर सम्बन्ध के सुख का अनुभव बाबा के साथ करते हुए मैं दिल से अपने प्यारे बाबा का शुक्रिया अदा करती हूँ और बाबा के असीम प्यार का, उनके उपकारों का रिटर्न उन्हें देने के लिए उनसे और स्वयं से ये प्रोमिस करती हूँ कि  *जैसे रूप बसन्त मेरे प्यारे बाबा ने मेरे जीवन मे आकर ज्ञान और योग के चन्दन से मेरे जीवन की फुलवारी को महका दिया है, जीवन को सरस और आनन्दमयी बनाने वाला सत्य ज्ञान देकर मुझे जीने का नया ढंग सिखा दिया है ऐसे ही अपने अति मीठे और प्यारे रूप बसन्त बाबा के समान बन कर अब मैं भी औरों के जीवन को महकाऊंगीं*। अपने ज्ञान सागर शिव पिता द्वारा दिये ज्ञान का अच्छी तरह विचार सागर मन्थन कर उनके समान रूप बसन्त बन कर अब मैं सबको ज्ञान दान देकर सबके जीवन को खुशहाल बनाऊंगी।

 

_ ➳  मन ही मन स्वयं से यह प्रतिज्ञा करके परमात्म बल से स्वयं को भरपूर करने के लिए *अपने रूप बसन्त प्यारे बाबा की याद में अपने मन औऱ बुद्धि को मैं स्थिर करती हूँ* और एक अद्भुत रूहानी यात्रा पर चलने के लिए तैयार हो जाती हूँ। मन बुद्धि जैसे ही एकाग्र होते हैं मेरी ये रूहानी यात्रा शुरू हो जाती है। देख रही हूँ अब मै स्वयं को देह, देह की दुनिया और देह के सर्व सम्बन्धो से एकदम अलग एक अति सूक्ष्म बिंदु के रूप में भृकुटि सिहांसन पर विराजमान होकर चमकते हुए। मुझ बिंदु आत्मा से निकल रहा भीना - भीना प्रकाश मन को सुकून दे रहा है। *अपने इस अति न्यारे और प्यारे स्वरूप को मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से निहारते हुए मैं अपने इस स्वरूप का आनन्द लेते हुए अब एक प्वाइंट ऑफ लाइट के रूप में भृकुटि सिहांसन को छोड़ देह की कुटिया से बाहर आ जाती हूँ और धीरे - धीरे इस यात्रा पर आगे बढ़ने लगती हूँ*।

 

_ ➳  मुझ चैतन्य शक्ति आत्मा से निकल रहा प्रकाश मेरे चारों और एक दिव्य कार्ब का निर्माण कर रहा है और इस दिव्य कार्ब के साथ अपने सातों गुणों के शक्तिशाली वायब्रेशन्स चारों और फैलाती हुई मैं ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। *सेकेंड में आकाश को पार कर, उससे ऊपर अव्यक्त बापदादा के अव्यक्त वतन में पहुँच कर, अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर को धारण कर, ज्ञान श्रृंगार करने के लिए मैं बापदादा के पास पहुँचती हूँ*। बड़े प्यार से अपनी बाहों में भरकर बाबा अपना सारा स्नेह मुझ पर लुटाकर, मुझे मीठी दृष्टि देते हुए मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने पास बिठा लेते हैं और बड़े प्यार से अपने हाथों से मेरा श्रृंगार करते हैं।

 

_ ➳  *ज्ञान के एक - एक अमूल्य रत्न से बाबा मुझे सजाते हुए मुझ पर बलिहार जा रहें हैं। मुझे आप समान रूप बसन्त बनाने के लिए मेरे गले मे दिव्य गुणों की माला और हाथों में मर्यादाओं के कंगन पहना रहें हैं* ज्ञान, गुण और शक्तियों से मेरा श्रृंगार कर एक दुल्हन की तरह बाबा मुझे सजा रहें हैं। अविनाशी ज्ञान रत्नों के श्रृंगर से सज - धज कर अब मैं स्वयं को ज्ञान के अखुट ख़ज़ानों से भरपूर करने के लिए अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर, ज्ञान सागर अपने शिव पिता के पास उनके धाम पहुँचती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर करने के लिए उनके समीप जाकर उन्हें टच करती हूँ। *बाबा को छूते ही ज्ञान की मीठी फुहारों का झरना मेरे ऊपर बरसने लगता है और परमात्म ज्ञान की शक्ति से मैं आत्मा भरपूर हो जाती हूँ*।

 

_ ➳  ज्ञान योग की रिमझिम फ़ुहारों का स्पर्श पाकर, बाबा के समान रूप बसन्त बन कर मैं आत्मा परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और साकार लोक में प्रवेश कर अपने साकार तन में भृकुटि के अकालतख्त पर विराजमान हो जाती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर ज्ञान योग को अपने जीवन मे धारण कर, अपने मुख से सदा ज्ञान रत्न निकालते हुए, मैं सबको अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान दे रही हूँ*। ज्ञान सागर अपने शिव पिता की याद में रहकर, स्वयं को उनके ज्ञान की किरणो की छत्रछाया के नीचे अनुभव करते, *अपनी बुद्धि रूपी झोली सदा ज्ञान रत्नों से भरपूर करके, रूप बसन्त बन, विचार सागर मन्थन कर, अब मैं सबको ज्ञान दान देकर सबके जीवन की फुलवारी को महकाने की सेवा दृढ़ता और लगन के साथ कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपनी  जिम्मेवारियों के सब बोझ बाप को दे सदा निश्चिन्त रहने वाली सफलता सम्पन्न सेवाधारी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं बेहद ड्रामा के हर दृश्य को निश्चित जानकर सदा निश्चिंत रहने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  चारों ओर की सेवाओं के समाचार बापदादा सुनते रहते हैं और दिल से सभी अथक सेवाधारियों को मुबारक भी देते हैं, सेवा बहुत अच्छे उमंग-उत्साह से कर रहे हैं और आगे भी करते रहो लेकिन सेवा और स्थिति का बैलेन्स थोड़ा -सा कभी इस तरफ झुक जाता हैकभी उस तरफ इसलिए सेवा खूब करो, *बापदादा सेवा के लिए मना नहीं करते और जोर-शोर से करो लेकिन सेवा और स्थिति का सदा बैलेन्स रखते चलो।* स्थिति बनाने में थोड़ी मेहनत लगती है और सेवा तो सहज हो जाती है। इसलिए सेवा का बल थोड़ा स्थिति से ऊंचा हो जाता है। *बैलेन्स रखो और बापदादा कीसर्व सेवा करने वाले आत्माओं कीसंबंध-सम्पर्क में आने वाले ब्राह्मण परिवार की ब्लैसिंग लेते चलो।* यह दुआओं का खाता बहुत जमा करो।

 

 _ ➳  *अभी की दुआओं का खाता आप आत्माओं में इतना सम्पन्न हो जाए जो द्वापर से आपके चित्रों द्वारा सभी को दुआयें मिलती रहेंगी। अनेक जन्म में दुआयें देनी हैं लेकिन जमा एक जन्म में करनी हैं।* इसलिए क्या करेंगेस्थिति को सदा आगे रख सेवा में आगे बढ़ते चलो। क्या होगा, यह नहीं सोचो।ब्राह्मण ब्राह्मण आत्माओं के लिए अच्छा हैअच्छा ही होना है। लेकिन बैलेन्स वालों के लिए सदा अच्छा है। बैलेन्स कम तो कभी अच्छाकभी थोड़ा अच्छा। सुना क्या करना हैक्वेश्चन मार्क सोचने के हिसाब से आश्चर्यवत होके सोचने को फिनिश करो, यह तो नहीं होगायह तो नहीं होगा....। वह स्थिति को नीचे ऊपर करता है। समझा।

 

✺   *ड्रिल :-  "सेवा और स्थिति का बैलेन्स करना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा मन और बुद्धि से शक्ति स्तम्भ पर... शक्तियों के सुरक्षित घेरे के अन्दर... *शिव बिन्दु से आता लाल सुनहरें प्रकाश का तेजमेरी भृकुटी पर स्थित हो गया है...* मेरे मस्तिष्क में फैलता नीले रंग का प्रकाश मेरे हृदय स्थल में हरे रंग व उदर भाग में जाकर पीले रंग में बदल रहा है... पूरी ही देह सतरंगी प्रकाश की आभा से दमक रही है... आहिस्ता आहिस्ता मैं आत्मा देह से अलग होती हुई... देहभान से मुक्त मैं आकारी फरिश्ता... *सामने से मुस्कुराते आ रहे है बापदादा मेरी ही ओर... इन्तजार के लम्हों पर एकाएक विराम सा लग गया है*... और मैं बापदादा संग उड चला सूक्ष्म वतन की ओर नन्हें हाथों में उनकी उगँली थामें हुए...

 

 _ ➳  सूक्ष्म वतन में बापदादा के सम्मुख बैठा हूँ मैं... और बापदादा समझा रहे है... *सेवा और स्व स्थिति का बैलेन्स रखना है सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली ब्राह्मण आत्माओं से ब्लैसिंग लेनी है, अनेक जन्म में दुआए देनी है मगर इस जन्म में लेनी है...* मैं फरिश्ता सब कुछ ध्यान पूर्वक सुनता हुआ... अब मैं और बापदादा विश्व सेवा पर... ग्लोब के ऊपर खडा हूँ मैं, ठीक मेरे पीछे मेरी छत्रछाया बने बापदादा... बापदादा के हाथों में मेरे दोनों हाथ, शान्ति की, पावनता की, शक्तिशाली किरणें बापदादा से लेकर ग्लोब पर बिखराता हुआ... प्रकृति को सकाश देता हुआ... और साक्षी होकर अपनी ऊँची स्थिति को देखता हुआ... मैं देख रहा हूँ पूरे ग्लोब पर प्रकाश का प्रसरण... सचमुच ऊँचाई पर स्थित होकर ही मैं ऐसा कर पा रहा हूँ...

 

 _ ➳  *तभी सागर में उठती मनोरम लहरों से आकर्षित होता हुआ मैं उतर जाता हूँ सागर के किनारें पर मगर ये क्या?* मेरी शक्तियाँ तो सीमित होती जा रही है, मैं स्वयं को अशक्त सा महसूस करने लगा हूँ... सागर में भयंकर लहरों का उत्पात... *मैं शान्ति की किरणें भेज रहा हूँ... मगर मेरी कोशिशें असर हीन सी साबित हो रही है... घबराकर मैं देख रहा हूँ बापदादा की ओर... ग्लोब पर खडे बापदादा मुस्कुरा रहे है मुझे देखकर... मगर ये मुस्कान मेरी गलती का एहसास कराने वाली मुस्कान है... मैं समझ गया हूँ, सेवा में स्व स्थिति का बैलैन्स कैसे रखना है...* बापदादा के पास उडकर वापस लौटता हुआ मैं... फिर से ग्लोब पर, और फिर से बाबा के हाथों में मेरे हाथ... और शान्त होती सागर की लहरें...

 

 _ ➳  *मेरे पास लौटकर आती हुई दुआएं, मैं भरपूर महसूस कर रहा हूँ स्वयं को* मन के निर्मल गगन में विचरता द्वापर युगीन विमान... स्वयं को इस विमान पर सवार, द्वापर युग में देख रहा हूँ... भव्य राजमहलों और मन्दिरों को अपने आँगन में सजाये ये द्वापर युग... स्वर्ण कलश से सुशोभित सुनहरी आभा छिटकाता मेरा भव्य और विशाल मन्दिर... और मन्दिर के गर्भ गृह में दिव्य प्रकाश फैलाती मेरी पावन प्रतिमा... मगंल गायन करते भक्त जन... घन्टे और घडियाल बजाते पुजारी... और *द्वार पर भक्तों की लंबी कतार... और मन्द मन्द मुस्कुरातें हुए एक एक भक्त की मनोकामनाओं को पूरा करता हुआ मैं...* भक्तों की कतार कम होने का नाम नही ले रही... मगर मैं बडी उदारता से सबकी मनोकामनाएं पूरा करता जा रहा हूँ, और अब मैं आत्मा लौट आयी हूँ वापस उसी देह में... सेवा और स्वस्थिति का बैलेन्स का गहरा अनुभव लिए... ओम शान्ति...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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