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 02 / 10 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सर्विस की जवाबदारी ली ?*

 

➢➢ *कदम कदम पर श्रीमत लेते रहे ?*

 

➢➢ *भ्रकुटी की कुटिया में बैठ अंतर्मुखता का रस लिया ?*

 

➢➢ *राज़युक्त बन हर परिस्थिति में राज़ी रह ग्यानी तू आत्मा बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *कर्मातीत बनने के लिए अशरीरी बनने का अभ्यास बढ़ाओ।* शरीर का बंधन, कर्म का बंधन, व्यक्तियों का बंधन, वैभवों का बंधन, स्वभाव-संस्कारों का बंधन.... कोई भी बंधन अपने तरफ आकर्षित न करे। *यह बंधन ही आत्मा को टाइट कर देता है। इसके लिए सदा निर्लिप्त अर्थात् न्यारे और अति प्यारे बनने का अभ्यास करो |*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं हर कल्प की अधिकारी आत्मा हूँ"*

 

✧  हम हर कल्प के अधिकारी आत्मायें हैं, सिर्फ अब के नहीं, अनेक बार के अधिकारी हैं - यह खुशी रहती है? *आधाकल्प बाप के आगे भिखारी बन मांगते रहे लेकिन बाप ने अब अपना बना लिया, बच्चे बन गये। बच्चा अर्थात् अधिकारी। अधिकारी समझने से बाप को जो भी वर्सा है, वह स्वत: याद रहता है।*

 

✧  कितना बड़ा खजाना है! इतना खजाना है जो खाते खुटता नहीं है और जितना ओरों को बांटो उतना बढ़ता जाता है! ऐसा अनुभव है? परमात्म-वर्से के अधिकारी हैं इससे बड़ा नशा और कोई हो सकता है? *तो यह अविनाशी गीत सदा गाते रहो और खुशी में नाचते रहो कि हम परमात्मा के बच्चे परमात्म-वर्से के अधिकारी हैं। यह गीत गाते रहो तो माया सामने आ नहीं सकती, मायाजीत बन जायेंगे। यही विशेष वरदान याद रखना कि परमात्म-वर्से के अधिकारी आत्मायें हैं।* इसी अधिकार से भविष्य में विश्व के राज्य का अधिकार स्वत: मिलता है।

 

✧  शक्तियाँ सदा खुश रहने वाली हो ना? कभी कोई दु:ख की लहर तो नहीं आती? *दु:ख की दुनिया छोड़ दी, सुख के संसार में पहुँच गये। दु:ख के संसार में सिर्फ सेवा के लिए रहते, बाकी सुख के संसार में। बाप के अधिकार से सब सहज हो जाता है।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  बाप की प्रापर्टी है 'सर्वशक्तियाँ' इसलिए बाप की महिमा ही है सर्वशक्तिवान आलमाइटी अथार्टी'। सर्व शक्तियों का स्टॉक जमा हैं? *या इतना ही है - कमाया और खाया, बस!* बापदादा ने सुनाया है कि आगे चलकर आप मास्टर सर्वशक्तिवान के पास सब भिखारी बनकर आयेंगे।

 

✧  पैसे या अनाज के भिखारी नहीं लेकिन *शक्तियों' के भिखारी आयेंगे।* तो जब स्टॉक होगा तब तो देंगे ना! दान वही दे सकता जिसके पास अपने से ज्यादा है। अगर अपने जितना ही होगा तो दान क्या करेंगे? तो इतना जमा करो। संगम पर और काम ही क्या है?

 

✧  जमा करने का ही काम मिला है। सारे कल्प में और कोई युग नहीं है जिसमें जमा कर सको। फिर तो खर्च करना पडेगा, जमा नहीं कर सकेंगे। तो *जमा के समय अगर जमा नहीं किया तो अंत में क्या कहना पडेगा* - 'अब नहीं तो कब नहीं" *फिर टू लेट का बोर्ड लग जायेगा।* अभी तो लेट का बोर्ड है, टू लेट का नहीं। (पार्टियों के साथ)

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *वह राज़े तो कभी तख्त पर बैठते, कभी नहीं बैठते लेकिन साक्षीपन का तख्त ऐसा है जिसमें हर कार्य करते भी तख्तनशीन, उतरना नहीं पड़ता है।* सोते भी तख्तनशीन, उठते-चलते, सम्बन्ध-सम्पर्क में आते तख्तनशीन। तख्त पर बैठना आता है कि बैठना नहीं आता है, खिसक जाते हो? *साक्षीपन के तख्तनशीन आत्म कभी भी कोई समस्या में परेशान नहीं हो सकती। समस्या तख्त के नीचे रह जायेगी और आप ऊपर तख्तनशीन होंगे। समस्या आपके लिए सिर नहीं उठा सकेगी, नीचे दबी रहेगी। आपको परेशान नहीं करेगी और कोई को भी दबा दो तो अन्दर ही अन्दर खत्म हो जायेगा।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  सदा ख़ुशी में रहना"*

 

_ ➳  अपने मीठे भाग्य के नशे में झूमती हुई मै आत्मा... सोच रही हूँ कि कब सोचा था... *यह जीवन ईश्वरीय हाथो में देवत्व की प्रतिमा सा सज जायेगा...* भगवान की सबसे सुन्दरतम रचना देवता बनकर मै आत्मा... सुखो की नगरी में राज्य करूंगी... *यह तो सपने भी नही थे,जो आज जीवन का... खुबसूरत सत्य बनकर, मुझे असीम ख़ुशी से सराबोर कर रहा है*... जो भगवान की बपौती है... वह सारी जागीरे मेरे द्वार पर सजी है... और *मै मालिक बनकर, उनका भरपूर लुत्फ़ उठाने वाली भाग्यवान हूँ...* स्वयं ईश्वर मेरे समक्ष उपस्थित है... और मै जो कहती हूँ करता चला जा रहा है... *मेरे हाथो में ईश्वरीय हाथ आ गया है, और कदमो तले सुख के फूल बिखरे है... वाह रे प्यारे भाग्य मेरे*...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी प्रेम तरंगो में रूहानी बनाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... भगवान को पाने वाले खुबसूरत भाग्य के धनी हो... कितना मीठा भाग्य है की ईश्वर *पिता सम्मुख हाजिर नाजिर है... और स्वर्ग की सौगात हथेली पर सजाकर ले आये है...* सदा इन मीठी यादो में रहकर, अपने मीठे भाग्य के नशे में झूम जाओ... सदा अपार खुशियो में मुस्कराओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा से ईश्वरीय जागीर को अपनी बाँहों में भरकर कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपको पाकर, जमी आसमाँ को बाँहों में समाकर मुस्करा रही हूँ... *मुझे दिव्यता से संवारने, अपना सब कुछ मुझे देने, भगवान धरती पर आ गया है...* यह मेरे भाग्य की कितनी निराली शान है... और भला मुझे क्या चाहिए..."

 

   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान योग से श्रृंगारित कर देवात्मा बनाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे,... सदा मीठी खुशियो में नाचते रहो... कि *ईश्वर की गोद में पलने वाली, उनकी बाँहों में झूलने वाली, शानदार किस्मत की धनी, मै आत्मा हूँ...* मीठा बाबा असीम सुखो का उपहार बहिश्त... आपके लिए ही तो लाया है... इससे बड़ी ख़ुशी भला और क्या होगी... सदा इन मीठी स्मृतियो में डूबे रहो..."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा से सर्व शक्तियो की मालिक बनकर कहती हूँ ;- "प्यारे प्यारे बाबा... मै आत्मा भगवान को पाकर भी खुश नही रहूंगी, तो भला कब रहूंगी... यही तो मेरी जनमो की चाहत थी... कि मात्र एक झलक मै आत्मा भगवान की पाऊं... *आज साक्षात् भगवान के सम्मुख बेठ, अथाह ज्ञान रत्नों से मालामाल हो रही हूँ... यह कितना अनोखा मेरा भाग्य है...*"

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को खुशनसीब आत्मा के नशे से भरते हुए कहा :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता परमधाम से उतरकर, सारे खजाने और खानों को लेकर, सुखो और खुशियो से लबालब करने आये है... तो इन मीठी प्राप्तियों की यादो में रहकर... सदा खुशियो के शिखर पर सजे रहो... *भगवान गुणो और शक्तियो के सौंदर्य से, खुबसूरत बना रहा है... इन सच्ची खुशियो में सदा पुलकित रहो...*"

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा के  प्यार में खुशनुमा फूल बनकर, खिलते हुए कहती हूँ:- मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा सच्ची खुशियो को सदा ही तरसती रही... देह की मिटटी में लथपथ होकर, आपसे पायी सुखो की जागीर को खो चुकी थी... *अब भाग्य ने मुझे वरदानी संगम युग में पुनः आपसे मिलवाकर... असीम खुशियो से जीवन सजाया है...* आपको पाकर मैंने तो सब कुछ पा लिया है..."मीठे बाबा से खुशियो की सम्पत्ति लेकर मै आत्मा... अपने कर्मक्षेत्र में आ गयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- महादानी जरूर बनना है*"

 

_ ➳  ज्ञान के सागर अपने शिव पिता परमात्मा द्वारा मुरली के माध्यम से हर रोज प्राप्त होने वाले मधुर महावाक्यों को एकांत में बैठ मैं पढ़ रही हूँ और *पढ़ते - पढ़ते अनुभव कर रही हूँ कि ब्रह्मा मुख द्वारा अविनाशी ज्ञान के अखुट खजाने लुटाते मेरे शिव पिता परमात्मा परमधाम से नीचे साकार सृष्टि पर आकर मेरे सम्मुख विराजमान हो गए हैं*। अपने मुख कमल से मेरी रचना कर मुझे ब्राह्मण बनाने वाले मेरे परम शिक्षक शिव बाबा, ब्रह्मा बाबा की भृकुटि पर बैठ ज्ञान की गुह्य बातें मुझे सुना रहें हैं और *मैं ब्राह्मण आत्मा ज्ञान के सागर अपने शिव पिता के सम्मुख बैठ, ब्रह्मा मुख से उच्चारित मधुर महावाक्यों को बड़े प्यार से सुन रही हूँ और ज्ञान रत्नों से अपनी बुद्धि रूपी झोली को भरपूर कर रही हूँ*।

 

_ ➳  मुरली का एक - एक महावाक्य अमृत की धारा बन मेरे जीवन को परिवर्तित कर रहा है। *आज दिन तक अज्ञान अंधकार में मैं भटक रही थी और व्यर्थ के कर्मकांडो में उलझ कर अपने जीवन के अमूल्य पलों को व्यर्थ गंवा रही थी*। धन्यवाद मेरे शिव पिता परमात्मा का जिन्होंने ज्ञान का तीसरा नेत्र देकर मुझे अज्ञान अंधकार से निकाल मेरे जीवन मे सोझरा कर दिया। अपने शिव पिता परमात्मा के समान महादानी बन अब मुझे उनसे मिलने वाले अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान सबको कर, सबको अज्ञान अंधकार से निकाल सोझरे में लाना है।

 

_ ➳  अपने शिव पिता के स्नेह का रिटर्न अब मुझे उनके फरमान पर चल, औरो को आप समान बनाने की सेवा करके अवश्य देना है। *अपने आप से यह प्रतिज्ञा करते हुए मैं देखती हूँ मेरे सामने बैठे बापदादा मुस्कराते हुए बड़े प्यार से मुझे निहार रहें हैं। उनकी मीठी मधुर मुस्कान मेरे दिल मे गहराई तक समाती जा रही है*। उनके नयनों से और भृकुटि से बहुत तेज दिव्य प्रकाश निकल रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे प्रकाश की सहस्त्रो धारायें मेरे ऊपर पड़ रही है और उस दिव्य प्रकाश में नहाकर मेरा स्वरूप बहुत ही दिव्य और लाइट का बनता जा रहा है। *मैं देख रही हूँ बापदादा के समान मेरे लाइट के शरीर में से भी प्रकाश की अनन्त धारायें निकल रही हैं और चारों और फैलती जा रही हैं*।

 

_ ➳  अब बापदादा मेरे पास आ कर मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर अपने सभी अविनाशी खजाने, गुण और शक्तियां मुझे विल कर रहें हैं। *बाबा के हस्तों से निकल रहे सर्व ख़ज़ानों, सर्वशक्तियों को मैं स्वयं में समाता हुआ स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ*। बापदादा मेरे सिर पर अपना वरदानी हाथ रख मुझे "अविनाशी ज्ञान रत्नों के महादानी भव" का वरदान दे रहें हैं। वरदान दे कर, उस वरदान को फलीभूत कर, उसमे सफलता पाने के लिए बाबा अब मेरे मस्तक पर विजय का तिलक दे रहें हैं। *मैं अनुभव कर रही हूँ मेरे लाइट माइट स्वरूप में मेरे मस्तक पर जैसे ज्ञान का दिव्य चक्षु खुला गया है जिसमे से एक दिव्य प्रकाश निकल रहा है और उस प्रकाश में ज्ञान का अखुट भण्डार समाया है*।

 

_ ➳  महादानी बन, अपने लाइट माइट स्वरूप में सारे विश्व की सर्व आत्माओ को अविनाशी ज्ञान रत्न देने के लिए अब मैं सारे विश्व मे चक्कर लगा रही हूँ। मेरे मस्तक पर खुले ज्ञान के दिव्य चक्षु से निकल रही लाइट से ज्ञान का प्रकाश चारों और फैल रहा है और सारे विश्व में फैल कर विश्व की सर्व आत्माओं को परमात्म परिचय दे रहा हैं। *सर्व आत्माओं को परमात्म अवतरण का अनुभव हो रहा है। सभी आत्मायें अविनाशी ज्ञान रत्नों से स्वयं को भरपूर कर रही हैं*। सभी का बुद्धि रूपी बर्तन शुद्ध और पवित्र हो रहा है। ज्ञान रत्नों को बुद्धि में धारण कर सभी परमात्म पालना का आनन्द ले रहे हैं।

 

_ ➳  लाइट माइट स्वरूप में विश्व की सर्व आत्माओं को अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान दे कर, अब मैं साकार रूप में अपने साकार ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर महादानी बन मुख द्वारा अपने सम्बन्ध संपर्क में आने वाली सभी आत्माओं को आविनाशी ज्ञान रत्नों का दान दे कर, सभी को अपने पिता परमात्मा से मिलाने की सेवा निरन्तर कर रही हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में, डबल लाइट स्थिति का अनुभव करते अपनी स्थिति से मैं अनेको आत्माओं को परमात्म प्यार का अनुभव करवा रही हूँ। परमात्म प्यार का अनुभव करके वो सभी आत्मायें अब परमात्मा द्वारा मिलने वाले अविनाशी ज्ञान रत्नों को धारण कर अपने जीवन को खुशहाल बना रही हैं*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं भ्रकुटी की कुटिया में बैठ अंतर्मुखता का रस लेने वाली सच्ची तपस्वी मूर्त आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं राजयुक्त बनकर हर परिस्थिति में राज़ी रहने वाली ज्ञानी तू आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *ब्राह्मण जीवन की नेचुरल नेचर है ही गुण स्वरूपसर्व शक्ति स्वरूप और जो भी पुरानी नेचर्स हैं वह ब्राह्मण जीवन की नेचर्स नहीं हैं।* कहते ऐसे हो कि मेरी नेचर ऐसी है लेकिन कौन बोलता है मेरी नेचरब्राह्मण वा क्षत्रियवा पास्ट जन्म के स्मृति स्वरूप आत्मा बोलती है? *ब्राह्मणों की नेचर - जो ब्रह्मा बाप की नेचर वह ब्राह्मणों की नेचर।* तो सोचो जिस समय कहते हो मेरी नेचरमेरा स्वभाव ऐसा हैक्या ब्राह्मण जीवन में ऐसा शब्द - मेरी नेचरमेरा स्वभाव... हो सकता हैअगर अब तक मिटा रहे हो और पास्ट की नेचर इमर्ज हो जाती है तो समझना चाहिए इस समय मैं ब्राह्मण नहीं हूँक्षत्रिय हूँयुद्ध कर रहा हूँ मिटाने की।

 

 _ ➳  तो क्या कभी ब्राह्मणकभी क्षत्रिय बन जाते होकहलाते क्या होक्षत्रिय कुमार या ब्रह्माकुमारकौन होक्षत्रिय कुमार हो क्याब्रह्माकुमारब्रह्माकुमारियां। दूसरा नाम तो है ही नहीं। कोई को ऐसे बुलाते हो क्या कि हे क्षत्रिय कुमार आओऐसा बोलते हो या अपने को कहते हो कि मैं ब्रह्माकुमार नहीं हूँमैं क्षत्रिय कुमार हूँतो ब्राह्मण अर्थात् जो ब्रह्मा बाप की नेचर वह ब्राह्मणों की नेचर। *यह शब्द अभी कभी नहीं बोलनागलती से भी नहीं बोलनान सोचना,क्या करूं मेरी नेचर है! यह बहानेबाजी है। यह कहना भी अपने को छुड़ाने का बहाना है।* नया जन्म हुआनये जन्म में पुरानी नेचर,पुराना स्वभाव कहाँ से इमर्ज होता हैतो पूरे मरे नहीं हैंथोड़ा जिंदा हैंथोड़ा मरे हैं क्या? *ब्राह्मण जीवन अर्थात् जो ब्रह्मा बाप का हर कदम हैं वह ब्राह्मणों का कदम हो।*

 

✺   *ड्रिल :-  "नाजुक नेचर को छोड़ ब्राह्मण जीवन की नेचुरल नेचर, ब्रह्मा बाप की नेचर को धारण करने का अनुभव"*

 

 _ ➳  मैं संगमयुगी ब्राह्मण आत्मा स्वयं को सर्व बंधनों से मुक्त कर, इस देह के बंधन को छोड़ अपना सूक्ष्म फरिश्ता रूप धारण करती हूँ... और इस साकारी दुनिया से ऊपर की ओर उड़ती हूँ... आकर अपने बाबा के पास सूक्ष्म वतन में ठहरी हूँ... अत्यंत सुंदर नज़ारा मुझे दिख रहा है... हर तरफ सफेद रंग का प्रकाश ही प्रकाश है... थोड़ा आगे जाती हूँ तो बाबा मुझे दिखाई देते हैं... *उनके दिव्य तेज से ये सारा सूक्ष्म वतन जगमगा रहा है और उनकी किरणें मुझ पर पड़ने से मैं फरिश्ता भी जगमगाने लगता हूँ...*

 

 _ ➳  मैं ब्राह्मण आत्मा अब इस कलयुगी दुनिया को बहुत पीछे छोड़ आयी हूँ और संगमयुग में अपना श्रेष्ठ पार्ट प्ले कर रही हूँ... मेरे बाबा ने मुझे इस पुरानी दुनिया से निकाल सारे कल्प का गुह्य राज़ मुझे समझाया है... *इस ब्राह्मण जन्म के मिलते ही बाबा ने मुझे इस दिव्य अलौकिक जन्म की गुण और शक्तियों से भी मेरा परिचय कराया...* जो शक्तियां मेरे अपने अंदर ही समाहित हैं परंतु इस पूरे कल्प में भिन्न भिन्न पार्ट बजाते मैं उन्हें विस्मृत कर चुकी थी... अब बाबा की मदद से मैं आत्मा फिर से अपनी शक्तियों को इमर्ज कर रही हूँ...

 

 _ ➳  मैं उस पुरानी दुनिया से निकल आयी हूँ और इस संगमयुग में अपने सभी मूल गुणों को स्वयं में धारण कर रही हूँ... उस पुरानी दुनिया से अब मेरा कोई नाता नहीं रहा और उस जीवन के संस्कार, और अपनी पुरानी नेचर को भी मैं पीछे छोड़ आयी हूँ... *अब मैं संगमयुग में ब्राह्मण आत्मा हूँ और ब्राह्मण जीवन के जो संस्कार हैं वो अब मेरे भी संस्कार बन गए हैं... मैं गुण स्वरुप हूँ, सर्व शक्ति स्वरूप हूँ और यही अब मेरी नेचुरल नेचर है...*

 

 _ ➳  पास्ट के जन्म की कोई भी स्मृति अब मुझे नहीं है... मेरे शिवबाबा ने मुझे ब्रह्मा बाप द्वारा एडॉप्ट किया और ये हीरे तुल्य ब्राह्मण जन्म मुझे दिया... और मेरे सभी पुराने स्वभाव संस्कार मिट गए... *बाबा ने मुझे ब्राह्मण जीवन दिया मुझे क्षत्रिय नहीं बनना है युद्ध नहीं करना है... मैं ब्रह्मा बाप की संतान ब्रह्माकुमार ब्रह्माकुमारी हूँ और  ब्राह्मण जीवन के संस्कार मेरी नेचुरल नेचर बन गयी है...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा अपने पुराने जीवन से पूरी तरह मर गयी हूँ... *ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रखकर मुझे अपने इस नए ब्राह्मण जन्म में आगे बढ़ना है...* जो ब्रह्मा बाबा की नेचर वही मुझ ब्राह्मण आत्मा की भी नेचर है... कोई भी पुराना संस्कार अब मुझे इमर्ज नहीं करना है... मुझे इस ब्राह्मण जीवन की स्मृति में रहना है...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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