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 27 / 10 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *याद की यात्रा में रेस्ट तो नहीं ली ?*

 

➢➢ *श्रीमत में कभी भी शंका उठाकर अपनी मनमत तो नहीं चलाई ?*

 

➢➢ *अपनी सूक्षम शक्तियों को स्थापना के कार्य में लगाया ?*

 

➢➢ *स्वच्छता और मधुरता से सेवा में सफलता प्राप्त की ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  आवाज से परे अपनी श्रेष्ठ स्थिति में स्थित हो जाओ तो सर्व व्यक्त आकर्षण से परे शक्तिशाली न्यारी और प्यारी स्थिति बन जायेगी। *एक सेकण्ड भी इस श्रेष्ठ स्थिति में स्थित होंगे तो इसका प्रभाव सारा दिन कर्म करते हुए भी स्वयं में विशेष शान्ति की शक्ति अनुभव करेंगे। इसी स्थिति को कर्मातीत स्थिति, बाप समान सम्पूर्ण स्थिति कहा जाता है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं स्वदर्शन चक्रधारी आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने को स्वदर्शन चक्रधारी आत्मायें अनुभव करते हो? *स्वदर्शन चक्रधारी अर्थात् जहाँ स्वदर्शन चक्र है वहाँ अनेक माया के चक्कर समाप्त हो जाते हैं। तो माया के अनेक चक्करों से बचने वाले अर्थात् स्वदर्शन चक्रधारी। जहाँ माया के चक्कर हैं वहाँ स्वदर्शन चक्र नहीं। क्योंकि स्वदर्शन चक्र शक्तिशाली है, इस शक्तिशाली चक्र के आगे माया स्वत: ही भाग जाती है।* तो ऐसे बने हो?

 

  स्वप्न में भी माया का चक्कर वार न करे। पहले भी सुनाया है कि जो बाप के गले का हार हैं, वह कभी माया से हार खा नहीं सकते। अगर माया से हार खाते हैं तो बाप के गले का हार नहीं बन सकते। तो गले का हार हो या हार खाने वाले हो? *बाप ने सभी बच्चों को महावीर विजयी बनाया, एक भी कमजोर नहीं। तो महावीर की निशानी है यह - 'स्वदर्शन चक्र'। सदा स्वदर्शन चक्र चलता रहे तो स्वत: सहज विजयी रहेंगे। यह बाप की विशेषता है जो सभी को चक्रधारी बनाते हैं, सभी को श्रेष्ठ भाग्यवान बनाते हैं।* बाप किसी को भी कम नहीं बनाते। बाप एक जैसा सभी को मालामाल बनाते हैं।

 

  *बाप एक ही समय सभी को सब खजाने देता है, अलग नहीं देता। लेकिन नम्बर क्यों बनते हैं? लेने वाले नम्बरवार बन जाते हैं। देने वाला नम्बरवार नहीं बनाता। सब बाप के स्नेही सहयोगी तो हो ही। लेकिन शक्तिशाली बनने में अन्तर पड़ जाता है। बापदादा तो सबको महावीर रूप में देखता है।* अच्छा! सदा बाप की दिल में रहने वाले और सदा बाप को दिल पर बिठाने वाले। सदा बाप की दिल में रहने वाले ही निरन्तर योगी हैं।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  जब ऊँची पहाडी पर चढ़ते हैं तो क्या लिखा हुआ होता है? *ब्रेक चेक करो। क्योंकि ब्रेक सेफ्टी का साधन है।* तो कन्ट्रोलिंग पॉवर का वा ब्रेक लगाने का अर्थ यह नहीं कि लगाओ यहाँ और ब्रेक लगे वहाँ कोई व्यर्थ को कन्ट्रोल करना चाहते है, समझते हैं - यह रांग है।

 

✧  तो *उसी समय रांग को राइट में परिवर्तन होना चाहिए।* इसको कहा जाता है कन्ट्रोलिंग पॉवर ऐसे नहीं कि सोच भी रहे हैं लेकिन आधा घण्टा व्यर्थ चला जाये, पीछे कन्ट्रोल में आये। *बहुत पुरुषार्थ करके आधे घण्टे के बाद परिवर्तन हुआ तो उसको कन्ट्रालिंग पॉवर नहीं, रूलिंग पॉवर नहीं कहा जाता।*

 

✧  यह हुआ थोडा-थोडा अधीन और थोडा-थोडा अधिकारी - मिक्स। तो उसको राज्य अधिकारी कहेंगे या पुरुषार्थी कहेंगे? तो *अब पुरुषार्थी नहीं, राज्य अधिकारी बनो।* यह राज्य अधिकारी का श्रेष्ठ मजा है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ बापदादा तो कहते हैं सबसे सहज पुरुषार्थ है दुआयें दो और दुआयें लो। *दुआओं से जब खाता भर जायेगा तो भरपूर खाते में माया भी डिस्टर्ब नहीं करेगी। जमा का बल मिलता है। राज़ी रहो और सर्व को राज़ी करो। हर एक के स्वभाव का राज़ जानकर राज़ी करो। ऐसे नहीं कहो यह तो है ही नाराज़। आप स्वयं राज़ को जान जाओ, उसकी नब्ज को जान जाओ फिर दुआ की दवा दो तो सहज हो जायेगा। तो सहज पुरुषार्थ करो, दुआयें देते जाओ। लेने का संकल्प नहीं करो देते जाओ तो मिलता जायेगा। देना ही लेना है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

*✺ "ड्रिल :- दुःख के दिन पूरे हुए सुख के दिन आ रहे"*

 

_ ➳ झील के किनारे बैठी मैं आत्मा प्यारे बाबा का आह्वान करती हूँ... प्यारे बाबा के आगमन से झील की लहरें ख़ुशी से उछल रही हैं... हवा और पानी साथ साथ खेल रहे हैं... पेड़ पौधे झुक झुककर सलाम कर रहे हैं... मौसम की मस्ती से मेरे मन में भी उमंग उल्लास की लहरें दौड़ रही हैं... *ऐसा लग रहा पूरी प्रकृति प्रेम के सागर की आने की खुशी में प्रेम की कविताएं सुना रही हैं... इस दुख की दुनिया से निकाल सुख, शांति की दुनिया में ले जाने आए मेरे बाबा के सामने मैं आत्मा बैठ प्यार की बातें करती हूँ...*

 

  *सुख-शांति के सागर मेरे प्यारे बाबा हथेली पर स्वर्ग की सौगात सजाकर कहते हैं:-* "मेरे लाडले बच्चे... मै विश्व का पिता आप बच्चों की झोली सदा के लिए सुख से भरने आया हूँ... *अमन ही अमन हो ऐसी चैन की दुनिया बसाने आया हूँ... सुख शांति भरपूर हो ऐसी मीठी सुखो की दुनिया बच्चों के लिए सौगात स्वरूप लाया हूँ..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा खुशियों के सागर में झूमती लहराती हुई कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके बिना किस कदर दुखमय जीवन को अपनी नियति समझ रही थी... *आपने मीठे बाबा... मेरा दामन खुशियो से खिलाया है... सुख शांति से भरे जीवन का अधिकारी बना सजाया है..."*

 

  *प्यारे बाबा परमात्म माइट और परमात्म दिव्य लाइट से मुझे भरपूर करते हुए कहते है:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... इस घोर पाप की दुनिया से ईश्वर पिता के सिवाय कोई निकाल ही न सके... *सुख भरा चैन सिर्फ पिता ही जीवन में ला सके... ऐसे मीठे बाबा को हर पल यादो में सजाओ... जो परमधाम से उतर आये और सुख शांति के सौगातों से लबालब कर जाय..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा शांतिधाम और सुखधाम की स्मृतियों को मन में बसाकर कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... आप महा पिता मेरे लिए कितनी दूर से आते हो... *सुनहरे सुखो से और शांतिमय जीवन से मेरी सदा के लिए दुनिया सजाते हो... अपनी मीठी यादो से मुझे आप समान सुंदर बनाते हो... जिंदगी को महकाते हो..."*

 

  *मेरे बाबा पाप की दुनिया से मुझे निकाल चैन की दुनिया में ले जाने दूर देश से आकर कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *अपने खिलते हुए खुशबूदार फूलो को इस कदर विकारो रुपी काँटों में झुलसता तो मै पिता देख ही न सकूँ... और बच्चों को मुस्कराहटों से सजाने महकाने धरती पर चला आऊं...* बच्चे सुख शांति के जीवन में चैन से रहे तो मै पिता सदा का आराम पाऊँ..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा अपने घर को, स्वर्णिम दुनिया के सुखों को याद कर आनंदोल्लास में डूबकर कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा पाप की दुनिया में गहरे धस गई थी... *आपसे मेरी दारुण सी दशा देखी न गई... आप दौड़े से आये और मेरा जीवन सुखो की सौगातों से महका दिया... यूँ जीवन मीठा और प्यारा बना दिया..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- याद की यात्रा में रेस्ट नही लेनी है*"

 

_ ➳  अपने प्यारे पिता परमात्मा की मीठी याद से मिलने वाले अतींद्रिय सुख की अनुभूति को याद करते हुए, उस सुख को गहराई तक अपने अंदर समा लेने के लिए मैं अपनी आंखों को हल्के से बंद करती हूँ और परमात्म याद के अति मीठे मधुर आनन्द में खो जाती हूँ। *परमात्म याद का आनन्द लेते हुए एक ख़ूबसूरत दृश्य देखती हूँ कि एक बहुत बड़े खुले एकान्त स्थान में श्वेत वस्त्र धारण किये असंख्य ब्राह्मण आत्मायें परमात्म याद में मग्न बैठी हैं*। आत्मिक स्मृति में स्थित सभी ब्राह्मणों के मस्तक पर चमकती हुई मणियां ऐसी लग रही हैं जैसे आकाश से सितारे टूट कर धरती पर बिखर गए हों और अपनी दिव्य आभा चारों और बिखेर रहें हो।

 

_ ➳  इन चैतन्य चमकते सितारों से निकल रही रंग बिरंगी किरणें चारों और फैल कर एक बहुत ही खूबसूरत मनमोहक दृश्य का निर्माण कर रही हैं। *मन को आनन्दित करने वाले इस दृश्य को मैं पूरी तन्मयता से देख रही हूँ। एकाएक मैं देखती हूँ जैसे सभी चमकती हुई मणियां अपने अपने अकालतख्त को छोड़ अपनी साकार देह से बाहर निकल रही हैं और ऊपर आकाश की ओर जा रही हैं*। असंख्य चमकते सितारों को, अपना प्रकाश फैलाते हुए ऊपर की ओर जाते हुए मैं देख रही हूँ। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे कोई रेस चल रही है। *कभी आगे वाला सितारा पीछे हो जाता है तो कभी पीछे वाला सितारा आगे निकल जाता है*। सभी याद की इस रेस में निरन्तर आगे बढ़ने का प्रयास कर रहें हैं ओर अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे हैं।

 

_ ➳  इस अति खूबसूरत दृश्य को देखते - देखते मैं भी याद की इस रेस में शामिल हो जाती हूँ। अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर, चमकता हुआ चैतन्य सितारा बन अपनी साकार देह से मैं बाहर निकलता हूँ और याद की यात्रा में उन असंख्य चमकते सितारो के साथ रेस करते हुए अब ऊपर आकाश की ओर चल पड़ता हूँ। *अपने प्यारे प्रभु के प्रेम की लगन में मग्न सभी चमकती हुई मणियां याद की रेस में दौड़ती हुई आकाश को पार कर उससे भी ऊपर सूक्ष्म वतन को पार करके अब अपनी मंजिल पर पहुँच रही हैं*। चमकती मणियों की इस खूबसूरत दुनिया मूल वतन में भी जैसे रेस चल रही है। मैं देख रही हूँ इस रेस में हर आत्मा अपने पुरुषार्थ अनुसार अपना स्थान प्राप्त कर रही है। *कोई तो अपने प्यारे पिता के बिल्कुल समीप है, कोई उनसे थोड़ी दूरी पर है और कोई तो बहुत ही दूर है*।

 

_ ➳  याद की इस रेस को पूरा कर अब मैं अपने प्यारे मीठे बाबा के पास पहुँचती हूँ और उनके सुन्दर स्वरूप को निहारते हुए उनके पास जा कर बैठ जाती हूँ। बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की एक - एक किरण को बड़े प्यार से निहारते हुए मैं उन्हें स्वयं में समाहित कर रही हूँ। *सर्व गुणों, सर्वशक्तियों के शक्तिशाली वायब्रेशन्स बाबा से निकल कर चारों और फैल रहें हैं और मन को असीम सुख और आनन्द का अनुभव करवा रहें हैं*। इन शक्तियों के वायब्रेशन्स को अपने अंदर गहराई तक समाते हुए, मैं धीरे - धीरे बाबा के बिल्कुल समीप पहुँच जाती हूँ और जा कर जैसे ही उन्हें टच करती हूँ, उनकी सारी शक्तियाँ मुझ में समाने लगती हैं।

 

_ ➳  शक्तियों का एक सुनहरी फव्वारा जैसे मेरे ऊपर चलने लगता है और सर्वशक्तियों की मीठी फुहारें मुझ आत्मा के ऊपर बरसने लगती हैं। *रंग बिरंगी किरणो की मीठी फ़ुहारों का भरपूर आनन्द लेकर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया में लौट आती हूँ और आकर अपने साकार तन में फिर से भृकुटि के अकालतख्त पर विराजमान हो जाती हूँ*। अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित मैं आत्मा अब स्वर्ग के रचयिता अपने प्यारे पिता से पूरा वर्सा लेने के लिए याद की रेस हर समय कर रही हूँ। कर्म करने के लिए जब चाहे शरीर का आधार लेना और कर्म करके शरीर से डिटैच हो जाना यही अभ्यास अब मैं बार - बार करती रहती हूँ। *सेकेण्ड में साकारी सो आकारी, आकारी सो निराकारी इस ड्रिल के अभ्यास द्वारा याद की रेस मैं अब मैं सदा तत्पर रहती हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपनी सूक्ष्म शक्तियों को स्थापना के कार्य में लगाने वाली मास्टर रचयिता आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं स्वच्छता और मधुरता को धारण कर सेवा में सफलता को प्राप्त करने वाली सफल आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *बापदादा कहते हैं आप लोगों ने ही प्रकृति को सेवा दी है कि खूब सफाई करो, उसको लम्बा-लम्बा झाडू दिया हैसफा करो। तो घबराते क्यों हो?* आपके आर्डर से वह सफाई करायेगी तो आप क्यों हलचल में आते होआपने ही तो आर्डर दिया है। *तो अचल-अडोल बन मन और बुद्धि को बिल्कुल शक्तिशाली बनाए अचल-अडोल स्थिति में स्थित हो जाओ। प्रकृति का खेल देखते चलो। घबराना नहीं।* आप अलौकिक होसाधारण नहीं हो। साधारण लोग हलचल में आयेंगे, घबरायेंगे। अलौकिकमास्टर सर्वशक्तिवान आत्मायें खेल देखते अपने विश्व-कल्याण के कार्य में बिजी रहेंगे। अगर मन और बुद्धि को फ्री रखा तो घबरायेंगे। *मन और बुद्धि से लाइट हाउस होलाइट फैलायेंगेइस कार्य में बिजी रहेंगे तो बिजी आत्मा को भय नहीं होगा, साक्षीपन होगा; और कोई भी हलचल हो अपने बुद्धि को सदा ही क्लीयर रखना, क्यों क्या में बुद्धि को बिजी वा भरा हुआ नहीं रखनाखाली रखना*।

 

 _ ➳  *एक बाप और मैं.. तब समय अनुसार चाहे पत्रटेलीफोन, टी.वी. वा आपके जो भी साधन निकले हैंवह नहीं भी पहुंचे तो बापदादा का डायरेक्शन क्लीयर कैच होगा।* यह साइंस के साधन कभी भी आधार नहीं बनाना। यूज करो लेकिन साधनों के आधार पर अपनी जीवन को नहीं बनाओ। कभी-कभी साइंस के साधन होते हुए भी यूज नहीं कर सकेंगे। *इसलिए साइलेन्स का साधन - जहाँ भी होंगेजैसी भी परिस्थिति होगी बहुत स्पष्ट और बहुत जल्दी काम में आयेगा। लेकिन अपने बुद्धि की लाइन क्लीयर रखना। समझा*।

 

 _ ➳  चारों ओर हलचल हैप्रकृति के सभी तत्व खूब हलचल मचा रहे हैंएक तरफ भी हलचल से मुक्त नहीं हैंव्यक्तियों की भी हलचल हैप्रकृति की भी हलचल हैऐसे समय पर जब इस सृष्टि पर चारों ओर हलचल है तो आप क्या करेंगेसेफ्टी का साधन कौन -सा है? *सेकण्ड में अपने को विदेही, अशरीरी वा आत्म-अभिमानी बना लो तो हलचल में अचल रह सकते हो। इसमें टाइम तो नहीं लगेगा? क्या होगाअभी ट्रायल करो - एक सेकण्ड में मनबुद्धि को जहाँ चाहो वहाँ स्थित कर सकते हो? (ड्रिल) इसको कहा जाता है -'साधना'*। अच्छा।

 

✺   *ड्रिल :-  "दुनियावी वा प्राकृतिक हलचल को देखते हुए विदेही बन अचल-अडोल रहने का अनुभव"*

 

 _ ➳  बाबा के इन महावाक्यों को पढ़ मैं आत्मा बाबा के कहे अनुसार अभ्यास शुरू करती हूं... विदेही होने का क्योंकि ऐसी परिस्थितियों में बहुकाल का अभ्यास चाहिए... *आँखों के आगे उस दृश्य को लाती हूं... प्रकृति के सारे तत्व अपना पेपर ले रहे हैं... इस  सृष्टि पर सब कुछ हलचल में है क्या धरती, क्या आसमान, कहीं आग, कहीं बाढ़, कहीं तूफ़ान, हर ओर तबाही का ही मंज़र है, सब तरफ त्राहि त्राहि मची हुई है... ऐसे में दुनियावी आत्मायें चीख़ चिल्ला रही हैं...*

 

 _ ➳  *याद आते हैं बाबा के महावाक्य जब चारों ओर हलचल होगी साइंस के साधन भी काम नहीं आएंगे तब तुम्हें ही मन बुद्धि से अचल अडोल बन कार्य करना होगा साइलेन्स की शक्ति काम करेगी...* ऐसे में मैं आत्मा अपने को इस हलचल से उपराम कर अशरीरी बन अपने मन बुद्धि को बाबा में लगाती हूं...

 

 _ ➳  मन बुद्धि से पहुँचती हूं *परमधाम* में और बीज रूप में स्थित होकर अपने *ज्योति स्वरूप शिव बाबा* की किरणों के साये तले बैठ जाती हूँ... *ज्योतिरबिन्दु से आती किरणों से मैं आत्मा प्रकाशित हो रही हूं... ये सुख स्वरूप किरणें, ये आनंद स्वरूप किरणें, ये प्रेम स्वरूप किरणें जैसे जैसे मुझ पर पड़ रहीं हैं...* वैसे वैसे मैं शीतलता की लहरों में लहराने लगती हूँ... कितना अलौकिक है ये... इस अलौकिकता में मैं स्वयं को भी अलौकिक महसूस कर रही हूं... मन और बुद्धि से स्वयं को एकदम हल्का अनुभव कर रही हूं... *परमपिता परमात्मा की छत्रछाया में मैं स्वयं को बेहद शक्तिशाली अनुभव करती हूं...*

 

 _ ➳  परमात्म प्रेम में डूबी मैं आत्मा वापिस इस धरा पर आती हूं... साइलेन्स की इस अवस्था में मुझे एक विशेष अनुभूति हो रही है... *बाबादादा की क्लियर डायरेक्शनस मुझ तक पहुंच रही हैं बच्चे तुम साधारण नहीं हो तुम अलौकिक हो मास्टर सर्वशक्तिमान हो अचल अडोल बन विश्व कल्याण के कार्य में हाथ बँटाओ...*

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा साक्षी दृष्टा बन प्रकृति द्वारा जो उथल पुथल हो रही है वो देखती हूं... पर अब वो विनाश नहीं प्रकृति द्वारा की जा रही सफ़ाई दिख रही है... बिना हलचल में आये मैं अचल अडोल होकर इस सारी प्रक्रिया को देख रही हूं... *मन बुद्धि को  सेवा में बिजी कर दु:ख में डूबी दुःखी आत्माओं को शांति का दान दे रही हूं... उनको शुभ भावना दे रही हूं... विश्व कल्याण के कार्य में सहयोग दे रही हूं... शान्ति की, शुभ भावना की, शुभ कामना की तरंगें सब तरफ फैल रही हैं...*

 

 _ ➳  शनैः शनैः प्रकृति के पांचों तत्त्व शांत हो रहे हैं... हलचल धीरे धीरे समाप्त हो रही है... संसार की सभी आत्मायें आसानी से अपने देह से निकल शान्ति धाम को प्रस्थान कर रही हैं... *बापदादा से निरंतर मेरे मन बुद्धि को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिल रही है... और मैं आत्मा चल पड़ी हूं साधना के इस नवीनतम पथ पर अनवरत बिना रुके बिना थके... ओम शांति बाबा*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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