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❍ 30 / 03 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *त्रिकालदर्शी बन पास्ट, प्रेजेंट और फ्यूचर को बुधी में रख पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *नॉलेज को धारण कर स्थायी ख़ुशी में रहे ?*
➢➢ *अपने चेहरे रुपी दर्पण द्वारा मन की शक्तियों का साक्षातकार करवाया ?*
➢➢ *सरल स्वभाव, सरल बोल और सरलता संपन्न कर्म से बाप का नाम बाला किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे साइंस प्रयोग में आती है तो समझते हैं कि साइंस अच्छा काम करती है, ऐसे साइलेन्स की शक्ति का प्रयोग करो, इसके लिए एकाग्रता का अभ्यास बढ़ाओ। *एकाग्रता का मूल आधार है-मन की कंट्रोलिंग पावर, जिससे मनोबल बढता है।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं एक बाप की मत पर चलने वाली एकरस आत्मा हूँ"*
〰✧ *अपने को एक ही बाप के, एक ही मत पर चलने वाले एकरस स्थिति में स्थित रहने वाले अनुभव करते हो? जब एक बाप है, दूसरा है ही नहीं तो सहज ही एकरस स्थिति हो जाती है।* ऐसे अनुभव है?
〰✧ जब दूसरा कोई है ही नहीं तो बुद्धि कहाँ जायेगी और कहाँ जाने की मार्जिन ही नहीं है। है ही एक। जहाँ दो चार बातें होती हैं तो सोचने को मार्जिन हो जाती। जब एक ही रास्ता है तो कहाँ जायेंगे! *तो यहाँ मार्ग बताने के लिए ही सहज विधि है - एक बाप, एक मत, एकरस एक ही परिवार। तो एक ही बात याद रखो तो वन नम्बर हो जायेंगे। एक का हिसाब जानना है, बस।*
〰✧ *कहाँ भी रहो लेकिन एक की याद है तो सदा एक के साथ हैं, दूर नहीं। जहाँ बाप का साथ है वहाँ माया का साथ हो नहीं सकता। बाप से किनारा करके फिर माया आती है।* ऐसे नहीं आती। न किनारा हो न माया आये। एक का ही महत्व है।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ जैसे आप लोग कहीं भी ड्यूटी पर जाते हो और फिर वापस घर आते हो तो अपने को हल्का समझते हो ना। *ड्यूटी के ड्रेस बदलकर घर की ड्रेस पहल लेते हो वैसे ही सर्वीस समाप्त हुई और इन वस्त्रों के बोंझ से हल्के और न्यारे हो जाने का प्रयत्न करो*। एक सेकण्ड में चोले से अलग कौन हो सकेंगे? अगर टाइटनेस होगी तो अलग हो नहीं सकेंगे।
〰✧ कोई भी चीज अगर चिपकी हुई होती है तो उनको खोलना मुश्किल होता है। हल्का होने से सहज ही अलग हो जाता है। *वैसे ही अगर अपने संस्कारों में कोई भी ईजी - पन नहीं होता तो फिर अशरीरी - पन का अनुभव नहीं कर सकेंगे*।
〰✧ सुनाया था ना कि क्या बनना है । इजी और एलर्ट। ऐसे भी नहीं कि ऐसा इजी रहे जो माया भी इजी आ जाये। कोई समय ईजी रहना पडता है, कोई समय एलर्ट रहना पडता है। *तो ईजी और एलर्ट, ऐसे रहने वाले ही इस अभ्यास में रह सकेंगे*।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ यह तो अमानत रूहानी बाप ने दी है, रूहानी बाप की याद रहेगी। *अमानत समझने से रूहानियत रहेगी और रूहानियत से सदैव बुद्धि मे राहत रहेगी, थकावट नहीं होगी। अमानत में ख्यानत करने से रूहानियत के बदली उलझन आ जाती है, राहत के बजाय घबराहट आ जाती है। इसलिए यह शरीर है ही सिर्फ ईश्वरीय सर्विस के लिए।* अमानत समझने से आटोमेटिकली रूहानियत की स्थिति रहेगी। जितना अपनी रूहानियत की स्थिति को पक्का करेंगे उतना प्रत्यक्ष फल दे सकेंगे।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- रूहानी याद की यात्रा में रहना"*
➳ _ ➳ मैं वन्डरफुल आत्मा अपनी हर एक साँस को वन्डरफुल बाबा की यादों में पिरोकर सूक्ष्म शरीर धारण कर सूक्ष्मवतन में बापदादा के सम्मुख बैठ जाती हूँ... बापदादा मुझे अपनी बाँहों में समेट लेते हैं... *बाबा की मखमली बाँहों में सिमटते ही मैं आत्मा देह और देह की दुनिया के सभी बातों को भूल अतीन्द्रिय सुख की अनुभूतियों में खो जाती हूँ...* फिर मीठे बापदादा रूहानी याद की यात्रा कराते हुए मीठी रूह-रिहान करते हैं...
❉ *घर बैठे-बैठे बिना किसी मेहनत के रूहानी यात्रा करने का सहज मार्ग बताते हुए प्यारे रूहानी बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता अपने दुखो में झुलसाये कुम्हलाये फूल बच्चों को 21जनमो का अथाह सुख लुटाने धरा पर उतर आया है... *अब शरीर के आवरण से अलग हो, अपने दमकते मणि स्वरूप के नशे में भर जाओ... और सच्चे पिता की मीठी महकती यादो में गहरे डूब जाओ..."*
➳ _ ➳ *प्यारे बाबा के यादों के गहरे समंदर में डूबकर दिव्य गुणों का श्रृंगार करते हुए मैं प्यारी आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी खोज में किस कदर दर दर भटक रही थी... आपने सहज ही जीवन में आकर मुझे कितना भाग्यवान बना दिया है... खुशियो से मेरा दामन सजा दिया है... *मै आत्मा हर पल यादो में खोयी गहरे सुख को पा रही हूँ..."*
❉ *यादों के विमान में बिठाकर संगमयुगी आसमान में उड़ाकर सतयुगी दुनिया में पहुंचाते हुए मीठे बाबा कहते हैं :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... हर साँस संकल्प और समय को यादो के तारो में पिरोकर... ईश्वरीय खजानो से सम्पन्न होकर सुखो की धरा पर इठलाओ... *सदा यादो में खोये रहो और ईश्वरीय दिल पर झूमते ही रहो... ऐसे सच्चे प्यार में अपने रोम रोम को भिगो कर अतीन्द्रिय सुखो की अनुभूतियों में डूब जाओ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने खूबसूरत भाग्य पर नाज करती हुई दिल से प्यारे बाबा का शुक्रिया अदा करते हुए कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मैं आत्मा आपको पाकर कितने खुबसूरत भाग्य की मालकिन हो गयी हूँ... *प्यारे बाबा आपने दिल में समाकर मुझे हर दुःख से मुक्त किया है...* फूलो की छाँव और दिव्य गुणो की महक से जीवन कितना खुबसूरत प्यारा बना दिया है..."
❉ *सारे खजाने मुझ पर लुटाकर सच्चे सुख, शांति के फव्वारों से मुझे सराबोर करते हुए मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... *देह की यात्राओ में मन तो सदा रिक्त ही रहा... अब रूहानी यात्री बनकर... मन को सदा की मौज और आनन्द के अहसासो में भिगो दो... हर पल रूहानी यादो में खोये रहो...* ईश्वरीय यादो की खुमारी में सच्चे सुखो को पाकर... सतयुगी सुखो के अधिकारी बन मुस्कराओ..."
➳ _ ➳ *यादों के महल में बैठकर मीठे बाबा के दिल की रानी बनकर राज करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता को पाने वाली सौभाग्यशाली हूँ... मीठे बाबा आपने दुखो के दलदल से बाहर निकाल... *मुझे सुखो से भरे फूलो के बगीचे में बिठा दिया है... ईश्वरीय गोद पाकर मै आत्मा हर दुःख से आजाद होकर, यादो में मुस्करा उठी हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सतोप्रधान सन्यास से आत्मा और शरीर दोनों को पवित्र बनाना है*"
➳ _ ➳ "मैं बेहद का सन्यास करने वाली परम पूज्य, परम पवित्र आत्मा हूँ" इस श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट होते ही अपने ऊंचे स्वरूप में मैं स्वयं को अनुभव करती हूँ। *कमल पुष्प आसन पर विराजमान अपने महान सर्वश्रेष्ठ स्वरूप को मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से देखते हुए मैं बहुत आनन्दित हो रही हूँ। अपना ये स्वरूप मुझे मेरे महान सौभाग्य की स्मृति दिला रहा है*। मैं सोच रही हूँ कि कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो स्वयं भगवान ने आकर घर गृहस्थ में रहते मुझे बेहद का सन्यासी बना दिया। *दुनिया के सन्यासी तो सन्यास करने के लिए अपने घर बार छोड़ जंगलों में चले जाते हैं किन्तु फिर भी तमोप्रधान सन्यास ही कर पाते हैं*।
➳ _ ➳ भल ब्रह्मचर्य का पालन कर शरीर को पवित्र रखते हैं किन्तु भगवान की मत पर चल मनसा, वाचा, कर्मणा सम्पूर्ण पवित्र बनने का सतोप्रधान सन्यास जो आत्मा और शरीर दोनों को पवित्र बनाकर, भविष्य जन्म - जन्म की ऊँच प्रालब्ध बनाता है, ऐसे सतोप्रधान सन्यास के बारे में ना तो वो कभी जान पाते हैं और ना ही भगवान से कभी मिल पाते हैं। *किन्तु वाह मेरा भाग्य जो भगवान की श्रेष्ठ मत पर चल मनसा, वाचा, कर्मणा सम्पूर्ण पवित्र बनने का सतोप्रधान सन्यास कर अपनी आत्मा और शरीर दोनों को पवित्र बनाने का पुरुषार्थ करते हुए, परमात्म प्यार और परमात्मा पालना के सुखद झूले में तो मै प्रतिपल झूल ही रही हूँ* किन्तु साथ ही साथ भविष्य 21 जन्मो के लिए अपनी श्रेष्ठ तकदीर भी बना रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करते, ऐसा सतोप्रधान सन्यास करवाने वाले अपने भगवान बाप का मन ही मन शुक्रिया अदा करके मैं उनकी याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र कर लेती हूँ और स्वयं को परमात्म प्यार और परमात्म शक्तियों से भरपूर करने के लिए, ज्ञान और योग के पंख लगाकर, भृकुटि के अकाल तख्त को छोड़, ऊपर अपने परमधाम घर की ओर चल पड़ती हूँ। *ज्ञान और योग के सुन्दर पँख लगाकर, उन्मुक्त होकर उड़ने का भरपूर आनन्द लेते हुए मैं ऊपर आकाश में पहुँच जाती हूँ और अपनी रूहानी यात्रा पर निरन्तर आगे बढ़ते हुए इस आकाश को भी मैं पार कर, सूक्ष्म वतन में प्रवेश करती हूँ*।
➳ _ ➳ अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के उस अव्यक्त वतन में जहां ब्रह्मा बाबा अपने सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप में अपने हर बच्चे को आप समान बनने का पदमगुणा सहयोग देने के लिए आज भी ठहरे हुए हैं। *ब्रह्मा बाप की मदद और परमात्म बल हर ब्राह्मण बच्चे को प्रवृति में रहते हुए भी, सतोप्रधान सन्यास करने की अद्भुद शक्ति दे रहा है*। ऐसे अपने प्यारे ब्रह्मा बाप से मिलने के लिए मैं अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित होती हूँ और आकारी फ़रिश्ता बन पहुँच जाती हूँ अपने अव्यक्त बापदादा के सामने। *मैं देख रही हूँ बापदादा से आ रही लाइट माइट कैसे पूरे वतन में फैल रही है*। जैसे चाँद की चाँदनी चारों तरफ छिटक जाती है ऐसे बापदादा की लाइट माइट चारों और दूर - दूर तक फैली हुई है
➳ _ ➳ बापदादा से आ रही इस लाइट और माइट को अपने अंदर भरते - भरते मैं फरिश्ता बापदादा के पास पहुँचता हूँ और उनकी बाहों में समाकर, स्वयं को उनके प्यार से तृप्त करके उनके सम्मुख बैठ जाता हूँ। *अपनी मीठी दृष्टि से बापदादा एकटक मुझे देख रहें हैं और अपनी सारी शक्ति अपनी दृष्टि के द्वारा मुझ फ़रिश्ते में प्रवाहित करते जा रहें हैं*। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे एक विचित्र एनर्जी मेरे अंदर भरती जा रही है। इस एनर्जी के साथ - साथ अपने निराकार शिव बाबा की सम्पूर्ण शक्तियों को स्वयं में भरने के लिए अब मैं अपनी फरिश्ता ड्रेस को उतार कर, अपने निराकारी स्वरुप में स्थित होकर सूक्ष्म वतन से ऊपर अपने शिव पिता के पास उनके परमधाम घर की ओर चल पड़ती हूँ।
➳ _ ➳ अपने इस परमधाम घर में सर्वशक्तिवान अपने शिव पिता के सानिध्य में बैठ स्वयं को उनकी सर्वशक्तियों से भरपूर कर, सम्पूर्ण ऊर्जावान बन कर अब मैं साकारी दुनिया मे वापिस लौट आती हूँ। *देह और देह की दुनिया में वापिस लौटकर, अपने लौकिक सम्बन्धियों के साथ घर - गृहस्थ में रह कर अपना पार्ट बजाते हुए, परमात्म शक्तियों के बल से सतोप्रधान सन्यास कर, आत्मा और शरीर दोनों को पवित्र बनाने का पुरुषार्थ मैं बिल्कुल सहज रीति कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं अपने चेहरे रूपी दर्पण द्वारा मन की शक्तियों का साक्षात्कार कराने वाली योगी तू आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं सरल स्वभाव, सरल बोल, सरलता सम्पन्न कर्म करते हुए बाप का नाम बाला करने वाली सम्पन्न आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *साधारण बोल अभी आपके भाग्य के आगे अच्छा नहीं लगता। कारण है 'मैं'।* यह मैं, मैं-पन, मैंने जो सोचा, मैंने जो कहा, मैं जो करता हूँ... वही ठीक है। *इस मैं-पन के कारण अभिमान भी आता है, क्रोध भी आता है।* दोनों अपना काम कर लेते हैं। *बाप का प्रसाद है, मैं कहाँ से आया! प्रसाद को कोई मैं-पन में ला सकता है क्या? अगर बुद्धि भी है, कोई हुनर भी है, कोई विशेषता भी है। बापदादा विशेषता को, बुद्धि को आफरीन देता है लेकिन 'मैं' नहीं लाओ। यह मैं-पन को समाप्त करो। यह सूक्ष्म मैं-पन है। अलौकिक जीवन में यह मैं-पन दर्शनीय मूर्त बनने नहीं देता।*
✺ *ड्रिल :- "बाप का प्रसाद समझ मैं-पन को समाप्त करने का अनुभव"*
➳ _ ➳ देख रही हूँ मैं श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा स्वयं को सेन्टर में बाबा के कमरें में बैठे हुए... *स्व स्वरूप में स्थित मैं आत्मा सातों गुणों का अनुभव कर रही हूँ... अनुभव कर रही हूँ मैं आत्मा शिव माँ की शीतल छत्रछाया के नीचे स्वयं को...* शिव माँ रगं-बिरंगी किरणों की लाइट मुझ पर डाल रही है... जैसे-जैसे मुझ आत्मा पर शिव मां से ये लाइट पड़ रही है... *मैं आत्मा अतिन्द्रिय सुख का अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा अतिन्द्रिय सुख के झूले में झूल रही हूँ... मैं आत्मा लाइट हाऊस, माइट हाऊस बनती जा रही हूँ...* मुझ आत्मा के दैवी संस्कार इमर्ज होते जा रहे है...
➳ _ ➳ तभी मुझ आत्मा की मन रुपी स्लेट पर बाबा के कहें गये अव्यक्त महावाक्य उभरने लगते है... *"अगर बुद्धि भी है, कोई हुनर भी है, कोई विशेषता भी है... बापदादा विशेषता को, बुद्धि को आफरीन देता है लेकिन मैं नहीं लाओ... यह मैं-पन को समाप्त करो... यह सूक्ष्म मैं-पन है... अलौकिक जीवन में यह मैं-पन दर्शनीय मूर्त बनने नहीं देता..."* एकाएक मैं आत्मा सामने लगे बापदादा की तस्वीर को देखती हूँ... ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में शिव बाबा चमक रहे है... और *बाबा की आँखों से लाइट मुझ आत्मा पर पड़ रही है... मैं आत्मा बाबा को अपने सम्मुख अनुभव कर रही हूँ...* और फिर से यहीं बाबा के महावाक्य मन रुपी स्लेट पर उभरते है...
➳ _ ➳ *"मैं नहीं लाओ यह मैं-पन समाप्त करो... अलौकिक जीवन में यह सूक्ष्म मै-पन दर्शनीय मूर्त बनने नहीं देता..."* मैं आत्मा बाबा के द्वारा कहें गये इन माहावाक्यों पर चितंन करती हूँ... मैं आत्मा बाबा की आँखों में देखते हुए... अपने आप से प्रश्न करती हूँ... *क्या मैं आत्मा मैं-पन से सम्पूर्ण मुक्त हो चुकी हूँ ? कहीं मैं-पन के कारण अहंकार वश और क्रोध वश तो नहीं हो जाती हूँ ? कोई भी विशेषता या हुनर जो प्रभु प्रसाद है... कहीं उसका अहंकार तो नहीं आ जाता है ? निमित्त भाव के बदले मैंने किया... मुझे आता है... मैं ही कर सकती हूँ कहीं ऐसी मैं-पन के बोझ की गठरी उठाएं तो नहीं चल रही हूँ* ताज के बदले कहीं मैं-पन की टोकरी उठाकर तो नहीं चल रही हूँ... कहीं ऐसा मैं-पन का अभिमान तो नहीं आता... क्योंकि यह मैं-पन अगर होगा तो बोझ अनुभव होगा...
➳ _ ➳ ये मन-पन क्रोध और अभिमान को साथ लायेगा... आत्मा कभी उड़ती कला का अनुभव नहीं कर पायेगी... ये मैं-पन *स्थिति को बार-बार नीचे गिरायेगा और इस अलौकिक मार्ग में यह मैं-पन दर्शनीय मूर्त बनने नहीं देगा...* मैं आत्मा बाबा के द्वारा कहें एक-एक महावाक्य को गहराई से समझ रही हूँ... तभी एकाएक बाबा से शक्तिशाली ज्ञान की किरणें मुझ आत्मा पर पड़ने लगती है... मुझ आत्मा के ऊपर जैसे-जैसे ये प्रकाश पड़ता जा रहा है... *मैं आत्मा ज्ञान स्वरूप बनती जा रही हूँ... सत्यता के प्रकाश से मैं आत्मा चमक रही हूँ... मैं आत्मा मैं और मेरेपन के झूठ से मुक्त होती जा रही हूँ... बाबा शक्तिशाली पवित्र किरणें मुझ आत्मा पर डाल रहे है... मुझ आत्मा की सूक्ष्म मैं और मेरेपन की रस्सियां जलकर भस्म हो रही है... अब मैं आत्मा मैं-पन से सम्पूर्ण मुक्त हूँ...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा हर कर्म निमित्त भाव और करनकरावनहार की स्मृति में रह कर करती हूँ... अपनी विशेषताओं को बाबा का प्रसाद समझ निमित्त, निर्माण भाव से सेवा में यूज करती हूँ...* अब मैं आत्मा हर प्रकार के सूक्ष्म ते अति सूक्ष्म मैं-पन से मुक्त हो बहुत हल्का महसूस कर रही हूँ... और हर कार्य में सफलता प्राप्त कर रही हूँ... *मैं-पन से मुक्त मैं आत्मा इस अलौकिक जीवन में दर्शनीय मूर्त बन गयी हूँ... उड़ती कला द्वारा तीव्र गति से आगे बढ़ रही हूँ... और सबको आगे बढ़ा रही हूँ... आप समान बना रही हूँ... शुक्रिया मीठे बाबा शुक्रिया...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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