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❍ 08 / 05 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *विचार सागर मंथन कर स्थायी ख़ुशी में रहे ?*
➢➢ *"मैं आत्मा इस देह में रथी हूँ" - यह अभ्यास किया ?*
➢➢ *बाप के डायरेक्शन प्रमाण सेवा समझ हर कार्य किया ?*
➢➢ *भृकुटी की कुटिया में बैठकर तपस्वीमूरत होकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *जैसे वह तपस्वी सदैव आसन पर बैठते हैं, ऐसे आप अपनी एकरस आत्मा की स्थिति के आसन पर विराजमान रहो। इस आसन को नहीं छोड़ो तब सिंहासन मिलेगा।* आपकी हर कर्मेन्द्रिय से देह-अभिमान का त्याग और आत्म-अभिमानी की तपस्या प्रत्यक्ष रूप में दिखाई दे।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं हिम्मत से बाप की मदद प्राप्त करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ *हिम्मते बच्चे मददे बाप। बच्चों की हिम्मत पर सदा बाप की मदद पद्मगुणा प्राप्त होती है। बोझ तो बाप के ऊपर है। लेकिन ट्रस्टी बन सदा बाप की याद से आगे बढ़ते रहो। बाप की याद ही छत्रछाया है।* पिछला हिसाब सूली है लेकिन बाप की मदद से काँटा बन जाता है।
〰✧ *परिस्थितियाँ आनी जरूर हैं क्योंकि सब कुछ यहाँ ही चुक्तु करना है। लेकिन बाप की मदद काँटा बना देती है, बड़ी बात को छोटा बना देती है क्योंकि बड़ा बाप साथ है। सदा निश्चय से आगे बढ़ते रहो। हर कदम में ट्रस्टी। ट्रस्टी अर्थात् सब कुछ तेरा, मेरा-पन समाप्त।*
〰✧ *गृहस्थी अर्थात् मेरा। तेरा होगा तो बड़ी बात, छोटी हो जायेगी और मेरा होगा तो छोटी बात, बड़ी हो जायेगी। तेरा-पन हल्का बनाता है और मेरा-पन भारी बनाता है।* तो जब भी भारी अनुभव करो तो चेक करो कि कहाँ मेरा-पन तो नहीं? मेरे को तेरे में बदली कर दो तो उसी घड़ी हल्के हो जायेंगे, सारा बोझ एक सेकेण्ड में समाप्त हो जायेगा।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ शुरू में सभी साक्षात्कार हुए है। *फरिश्ते रूप में सम्पूर्ण स्टेज और पुरुषार्थी स्टेज दोनों अलग - अलग अनुभव थे।* जैसे साकार ब्रह्मा और सम्पूर्ण ब्रह्मा का अलग - अलग साक्षात्कार होता था, वैसे अनन्य बच्चों के साक्षात्कार भी होंगे।
〰✧ हंगामा जब होगा तो साकार शरीर द्वारा तो कुछ कर नहीं सकेंगे और प्रभाव भी इस सर्वीस से पडेगा। जैसे शुरू में भी साक्षात्कार से ही प्रभाव हुआ ना। परोक्ष - अपरोक्ष अनुभव से प्रभाव डाला। वैसे अन्त में भी यही सर्वीस होनी है। *अपने सम्पूर्ण स्वरूप का साक्षात्कार अपने आप को होता है?*
〰✧ अभी शक्तियों को पुकारना शुरू हो गया है। अभी परमात्मा को कम पुकारते है, शक्तियों की पुकार तेज रफ्तार से चालू हो गई है। तो ऐसी प्रैक्टिस बीच - बीच में करनी है। *आदत पड जाने से फिर बहुत आनंद फील होगा।* एक सेकण्ड में आत्मा शरीर से न्यारी हो जायेगी, प्रैक्टिस हो जायेगी। अभी यही पुरुषार्थ करना है। अच्छा।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *रूहानी गुलाब जो सदा अपने रूहानियत की स्थिति में स्थित रहते हुए सर्व को भी रूहानियत की दृष्टि से देखने वाले, सदा मस्तकमणि को देखने वाले हैं।* साथ-साथ अपनी रूहानियत की स्थिति से सदा अर्थात् हर समय सर्व आत्माओं को अपनी स्मृति, दृष्टि और वृत्ति से रूहानी बनाने के शुभ संकल्पों में रहने वाले *अर्थात् हर समय योगी तू आत्मा सेवाधारी आत्मा हो कर चलने वाले* - ऐसे रूहानी गुलाब चारों ओर फुलवारी के बीच बहुत थोड़े कही कही देखे।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- यह ज्ञान बड़े मजे का है, अपनी इस देह को भी भूल कमाई में लग जाना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अमृतवेले की अमृत घड़ियों में एकांत में बैठ स्वमानों का अभ्यास करती हूँ... मैं चमकती हुई एक सितारा इस देह की मालिक हूँ... अविनाशी आत्मा हूँ... स्वराज्य अधिकारी हूँ... स्वमान की सीट पर सेट होकर मैं आत्मा अपने पिता का आह्वान करती हूँ...* मेरे पिता तुरंत मेरे सामने आ जाते हैं और अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख, वरदानों की बरसात करते हैं... प्यारे बाबा के स्पर्श से मैं आत्मा इस देह को भी भूल एक मीठे बाबा के प्यार में खो जाती हूँ..
❉ *प्यारे बाबा मुझे अपने पलकों के झूले में झुलाते हुए कहते हैं:-* “मेरे मीठे बच्चे... ईश्वरीय गोद में खिले फूल हो... और अब समझ आ गई है तो सांसो को यादो में खोकर पूरा फायदा उठाओ... *जिस अमीरी से प्यारा बाबा भरने आया है... उसे सांसो के रहते अपनी यादो में भर लो... अपने अमीर बनने के लक्ष्य को यादो से पूरा करो...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अविनाशी कमाई से मालामाल होते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अब सत्य स्वरूप को जान गयी हूँ... और सतयुगी अमीरी को बाँहों में भरने को आतुर हूँ... *मीठी यादो में खो गयी हूँ... और अपनी कमाई को प्रतिपल बढ़ाती ही जा रही हूँ...”*
❉ *मजेदार ज्ञान से वंडरफुल कमाई कराते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे फूल बच्चे... हर पल हर घड़ी बाबा के प्यार में डूब जाओ... *कमाई का नशा कभी न उतरे ऐसी खुमारी से भर जाओ... भगवान खजाने लुटाने आया है तो उसे यादो से लूट कर मालामाल हो जाओ...* और सतयुगी सुखो के फूलो में विचरण कर अमीरी को जी लो...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा खुशियों के तराने गुनगुनाते हुए बाबा से कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ कि प्यारा बाबा मुझे अमीर बनाने परमधाम छोड़ धरती पर डेरा डाल दिया... *मेरे लिए यादो की मीठी सौगात ले आया... बाँहों में अथाह खजाने ले बलिहारी हो गया... ऐसे मीठे प्यारे बाबा को मै कितना न याद करूँ...”*
❉ *अपने सर्व खजानों की मालिक बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... विश्व पिता के बच्चे बने हो तो पूरे विश्व को बाँहों में समाओ... खजानो की खानो पर खड़े हो तो यूँ खाली न रहो... *हर पल मीठी यादो में खोकर महान भाग्यशाली बन जाओ... अपने लक्ष्य पर दृढता से नजर रखकर अपनी कमाई कर लो... भगवान से सारे खजाने ले लो और सदा के अमीर बन जाओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ज्ञान खजाने के कलश से 21 जन्मों के लिए कमाई करते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा आपकी यादो में हर साँस को पिरोकर कमाई कर अमीर हो गई हूँ... धरती आसमाँ सब अपने नाम कर रही हूँ... ज्ञानपरी बन उड़ रही हूँ...* और मीठे बाबा से सारे खजाने लेकर मालामाल हो रही हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- हम आत्मा इस देह में रथी हैं। रथी समझ देही अभिमानी बनने का अभ्यास करना है*
➳ _ ➳ एकान्त में बैठी एक दृश्य मैं इमर्ज करती हूँ और इस दृश्य में एक बहुत बड़े दर्पण के सामने स्वयं को निहारते हुए अपने आप से मैं सवाल करती हूँ कि मैं कौन हूँ ! *क्या इन आँखों से जैसा मैं स्वयं को देख रही हूँ मेरा वास्तविक स्वरूप क्या सच मे वैसा ही है! अपने आप से यह सवाल पूछते - पूछते मैं उस दर्पण में फिर से जैसे ही स्वयं को देखती हूँ, दर्पण में एक और दृश्य मुझे दिखाई देता है इस दृश्य में मुझे मेरा मृत शरीर दिखाई दे रहा है जो जमीन पर पड़ा है*। थोड़ी ही देर में कुछ मनुष्य वहाँ आते हैं और उस मृत शरीर को उठा कर ले जाते है और उसका दाह संस्कार कर देते हैं।
➳ _ ➳ इस दृश्य को देख मैं मन ही मन विचार करती हूँ कि शरीर के किसी भी अंग में छोटा सा कांटा भी कभी चुभ जाता था तो मुझे कष्ट होता था। लेकिन अभी तो इस शरीर को जलाया जा रहा है फिर भी इसे कोई कष्ट क्यो नही हो रहा! *इसका अर्थ है कि इस शरीर के अंदर कोई शक्ति है और जब तक वो चैतन्य शक्ति शरीर में है तब तक यह शरीर जीवित है और हर दुख - सुख का आभास करता है लेकिन वो चैतन्य शक्ति जैसे ही इस शरीर को छोड़ इससे बाहर निकल जाती है ये शरीर मृत हो जाता है*। फिर किसी भी तरह का कोई एहसास उसे नही होता। अपने हर सवाल का जवाब अब मुझे मिल चुका है।
➳ _ ➳ "मैं कौन हूँ" की पहेली सुलझते ही अब मैं उस चैतन्य शक्ति अपने निज स्वरूप को मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से देख रही हूँ जो शरीर रूपी रथ पर विराजमान होकर रथी बन उसे चला रही है। *स्वराज्य अधिकारी बन मन रूपी घोड़े की लगाम को अपने हाथ मे थामते ही मैं अनुभव करती हूँ कि मैं आत्मा रथी अपनी मर्जी से जैसे चाहूँ वैसे इस शरीर रूपी रथ को चला सकती हूँ*। यह अनुभूति मुझे सेकण्ड में देही अभिमानी स्थिति में स्थित कर देती है और इस स्थिति में स्थित होकर मैं स्वयं को सहज ही देह से न्यारा अनुभव करते हुए बड़ी आसानी से देह रूपी रथ का आधार छोड़ इस रथ से बाहर आ जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने शरीर रूपी रथ से बाहर आकर अब मैं इस देह और इससे जुड़ी हर चीज को बिल्कुल साक्षी होकर देख रही हूँ जैसे मेरा इनसे कोई सम्बन्ध ही नही। *किसी भी तरह का कोई भी आकर्षण या लगाव अब मुझे इस देह के प्रति अनुभव नही हो रहा, बल्कि एक बहुत ही न्यारी और प्यारी बन्धनमुक्त स्थिति में मैं स्थित हूँ जो पूरी तरह से लाइट है और उमंग उत्साह के पँख लगाकर ऊपर उड़ने के लिए तैयार है*। इस डबल लाइट देही अभिमानी स्थित में स्थित मैं आत्मा ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसे मेरे शिव पिता के प्यार की मैग्नेटिक पावर मुझे ऊपर अपनी और खींच रही है। *अपने प्यारे पिता के प्रेम की लग्न मे मग्न मैं आत्मा अपने विदेही पिता के समान विदेही बन, देह की दुनिया को छोड़ अब ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ*।
➳ _ ➳ परमधाम से अपने ऊपर पड़ रही उनके अविनाशी प्रेम की मीठी - मीठी फुहारों का आनन्द लेती हुई मैं साकार लोक और सूक्ष्म लोक को पार करके, अति शीघ्र पहुँच जाती हूँ अपने शिव परम पिता परमात्मा के पास उनके निराकारी लोक में। *आत्माओं की ऐसी दुनिया, जहां देह और देह की दुनिया का संकल्प मात्र भी नही, ऐसी चैतन्य मणियों की दुनिया मे मैं स्वयं को देख रही हूँ*। चारों और चमकते हुए चैतन्य सितारे और उनके बीच मे अत्यंत तेजोमय एक ज्योतिपुंज जो अपनी सर्वशक्तियों से पूरे परमधाम को प्रकाशित करता हुआ दिखाई दे रहा हैं।
➳ _ ➳ उस महाज्योति अपने शिव परम पिता परमात्मा से निकलने वाली सर्वशक्तियों की अनन्त किरणों की मीठी फ़ुहारों का भरपूर आनन्द लेने और उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को शक्तिशाली बनाने के लिए मैं निराकार ज्योति धीरे - धीरे उनके समीप जाती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणो की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ। *अपने प्यारे पिता के सानिध्य में बैठ, उनके प्रेम से, उनके गुणों और उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर करके अब मैं आत्माओं की निराकारी दुनिया से नीचे वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ*।
➳ _ ➳ कर्म करने के लिए फिर से अपने शरीर रूपी रथ पर आकर मैं विराजमान हो जाती हूँ किन्तु अब मै सदैव इस स्मृति में रह हर कर्म करती हूँ कि मैं आत्मा इस देह में रथी हूँ। *इस स्मृति को पक्का कर, कर्म करते हुए भी स्वयं को देह से बिल्कुल न्यारी आत्मा अनुभव करते हुए, देही अभिमानी बनने का अभ्यास मैं बार - बार करती रहती हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं बाप के डायरेक्शन प्रमाण सेवा समझ कर हर कार्य करने वाली सदा अथक और बन्धनमुक्त्त आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं भ्रकुटी की कुटिया में बैठ तपस्वीमूर्त होकर अंतर्मुखता का अनुभव करने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ चलते फिरते, बैठते, बातचीत करते पहली अनुभूति- यह शरीर जो हिसाबकिताब के वृक्ष का मूल तना है जिससे यह शाखायें प्रकट होती हैं, यह देह और आत्मा रूपी बीज, दोनों ही बिल्कुल अलग हैं। ऐसे आत्मा न्यारेपन का चलते फिरते बार-बार अनुभव करेंगे। नालेज के हिसाब से नहीं कि आत्मा और शरीर अलग हैं। लेकिन शरीर से अलग मैं आत्मा हूँ! यह अलग वस्तु की अनुभूति हो। *जैसे स्थूल शरीर के वस्त्र और वस्त्र धारण करने वाला शरीर अलग अनुभव होता है ऐसे मुझ आत्मा का यह शरीर वस्त्र है, मैं वस्त्र धारण करने वाली आत्मा हूँ। ऐसा स्पष्ट अनुभव हो। जब चाहे इस देह भान रूपी वस्त्र को धारण करें, जब चाहे इस वस्त्र से न्यारे अर्थात् देहभान से न्यारे स्थिति में स्थित हो जायें। ऐसा न्यारेपन का अनुभव होता है?* वस्त्र को मैं धारण करता हूँ या वस्त्र मुझे धारण करता है?चैतन्य कौन? मालिक कौन? तो एक निशानी - ‘न्यारेपन की अनुभूति'। अलग होना नहीं है लेकिन मैं हूँ ही अलग।
✺ *"ड्रिल :- 'शरीर से अलग मैं आत्मा हूँ' - ऐसा स्पष्ट अनुभव करना*”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा एकांत में बैठकर व्यर्थ संकल्पों की बहती हुई बाढ़ से किनारा कर मन के अंतर्द्वार खोलकर अन्दर प्रवेश करती हूँ...* चारों ओर अँधेरा ही अँधेरा है... मैं आत्मा और अन्दर अंतर्मन की गहराईयों में प्रवेश करती हूँ... अंतर्मन के अँधेरे कमरे में एक बुझती-जगती हुई, टिमटिमाती हुई लाइट दिखाई दे रही है... *इस लाइट के चारों ओर काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, देह अभिमान, कई जन्मों के विकर्म और विकारों रूपी राक्षस इस दीपक के घृत को पी रहे थे...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा इन राक्षसों से निपटने प्यारे बाबा को बुलाती हूँ... प्यारे बाबा तुरंत आ जाते हैं... बाबा का हाथ पकड़ मैं आत्मा अंतर्मन में प्रवेश करती हूँ... प्यारे बाबा के हाथों से शक्तिशाली किरणें निकल रही हैं... प्यारे बाबा की याद की शक्ति रूपी किरणों से इन सभी राक्षसों का खात्मा हो रहा है... *देह का भान, देह के बंधन, देह के पदार्थ, पुराने स्वभाव-संस्कार, सभी कमी-कमजोरियां भस्म होकर राख बन रही हैं... योग की तेज हवाएं इस राख को भी बाहर फेंक रही हैं...*
➳ _ ➳ अब मीठे बाबा इस दीपक में ज्ञान का घृत डालते हैं... *ज्ञान के घृत से टिमटिमाता हुआ दिया जगमगाता हुआ जलने लगता है...* अंतर्मन का कमरा चारों ओर से प्रकाशित हो रहा है... ये जगमगाता हुआ चैतन्य दीपक मैं आत्मा हूँ... *अब मुझ आत्मा के अंतर्मन में कोई भी किचड़ा नहीं है... पूरा कमरा बिल्कुल साफ़ हो चुका है... ज्ञान, योग से प्रकाशित हो चुका है...*
➳ _ ➳ *सर्व बंधनों से मुक्त मैं आत्मा इस देह की मालिक हूँ...* इस देह रूपी वस्त्र को धारण कर मैं आत्मा सर्व कर्म कर रही हूँ... *इस विनाशी देह में रहकर अपना पार्ट बजाने वाली मैं अविनाशी आत्मा हूँ...* मैं तो एक अशरीरी आत्मा हूँ... इस शरीर को धारण कर कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म करती हूँ... ये मन, बुद्धि भी मुझ आत्मा के ही सूक्ष्म शक्तियां हैं... मैं आत्मा अज्ञानता वश इनके अधीन होकर दुखी हो गई थी... अब मैं आत्मा इनको अपने अधीन कर जैसा चाहे वैसा कर्म करा रही हूँ...
➳ _ ➳ *अब मैं आत्मा स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ कि मैं इस देह से बिल्कुल अलग हूँ...* मैं आत्मा जब चाहे तब इस शरीर रूपी वस्त्र को धारण कर सकती हूँ... जब चाहे तब इस शरीर रूपी वस्त्र को छोडकर कहीं भी जा सकती हूँ... मैं आत्मा जब चाहे तब इस शरीर से डिटैच होकर न्यारेपन का अनुभव करती हूँ... *अब मैं आत्मा चलते-फिरते सदा इसी न्यारेपन की स्थिति में स्थित रहती हूँ कि मैं ये शरीर नहीं बल्कि देहरूपी वस्त्र धारण करने वाली चैतन्य आत्मा हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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