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 16 / 01 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बाबा से मीठी मीठी बातें की ?*

 

➢➢ *अपने हर कर्म व विशेषता द्वारा दाता की तरफ इशारा किया ?*

 

➢➢ *किसी भी प्राकार की अर्जी डालने की बजाये सदा अर्जी रहे ?*

 

➢➢ *"इस स्थूल देह में प्रवेश कर कर्मेन्द्रियों से कार्य कर रहे हैं" - यह अनुभव किया ?*

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*अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  अभी तक वाचा और कर्मणा की सेवा में जो तेरी-मेरी का, नाम, मान, शान का, स्वभाव, संस्कार का टकराव होता है, समय व सम्पत्ति का अभाव होता है, यह *सर्व विघ्न एकाग्रता के अभ्यास द्वारा मन्सा सेवा करने से सहज समाप्त हो जायेंगे।* रुहानी सेवा का एक संस्कार बन जायेगा।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं वृत्ति से वायुमण्डल बनाने वाली मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा हूँ"* 

 

  सभी अपने को सदा मास्टर सर्वशक्तिवान समझते हुए हर कार्य करते हो? *सदा सेवा के क्षेत्र में अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान समझकर सेवा करेंगे तो सेवा में सफलता हुई पड़ी है क्योंकि वर्तमान समय की सेवा में सफलता का विशेष साधन है - 'वृति से वायुमण्डल बनाना'।*

 

  *आजकल की आत्माओंको अपनी मेहनत से आगे बढ़ना मुश्किल है इसलिए अपने वाइब्रेशन द्वारा वायुमण्डल ऐसा पावरफुल बनाओ जो आत्मायें स्वत: आकर्षित होते आ जाएँ।*

 

  तो सेवा की वृद्धि का फाउण्डेशन यह है - बाकी साथ-साथ जो सेवा के साधन हैं वह चारों ओर करने चाहिए। *सिर्फ एक ही एरिया में ज्यादा मेहनत और समय नहीं लगाओ और चारों तरफ सेवा के साधनों द्वारा सेवा को फैलाओ तो सब तरफ निकले हुए चैतन्य फूलों का गुलदस्ता तैयार हो जायेगा।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आज दूरदेशी बापदादा अपने साकार दुनिया के भिन्न-भिन्न देश वासी बच्चों से मिलने आये हैं। बापदादा भिन्न-भिन्न देश वासियों को एक देशवासी देख रहे हैं। चाहे कोई कहाँ से भी आये हो लेकिन सबसे पहले सभी एक देश से आये हो। तो *अपना अनादि देश याद है ना प्यारा लगता है ना! बाप के साथ-साथ अपना अनादि देश भी बहुत प्यारा लगता है ना!*

 

✧  बापदादा आज सभी बच्चों के पाँच स्वरूप देख रहे हैं, जानते हो पाँच स्वरूप कौन-से हैं? जानते हो ना! 5 मुखी ब्रह्मा का भी पूजन होता है। तो बापदादा सभी बच्चों के 5 स्वरूप देख रहे हैं। *पहला- अनादि ज्योतिबिन्दु स्वरूप। याद है ना अपना स्वरूप?* भूल तो नहीं जाते?

 

✧  *दूसरा है - आदि देवता स्वरूप पहुँच गये देवता स्वरूप में? तीसरा - मध्य में पूज्य स्वरूप, वह भी याद है?* आप सबकी पूजा होती है या भारतवसियों की होती है? आपकी पूजा होती है? कुमार सुनाओ आपकी पूजा होती है? *तो तीसरा है पूज्य स्वरूप। चौथा है - संगमयुगी ब्राह्मण स्वरूप और लास्ट में है फरिश्ता स्वरूप।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  जैसे अज्ञान काल में भी कोई -कोई बच्चों में जैसे कि बाप ही नज़र आता है, उनके बोल-चाल से अनुभव होता है- जैसे कि बाप है। इसी रीति *से जो अनन्य बच्चे हैं उन एक - एक बच्चे द्वारा बाप के गुण प्रत्यक्ष होने चाहिए और होंगे। कैसे होंगे? उसका मुख्य प्रयत्न क्या है?* मुख्य बात यही है जो साकार रूप से भी सुनाई है कि - याद की यात्रा, *अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर हर कर्म करना है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल :- योगबल से विकर्म विनाश करना"*

➳ _ ➳ *मैं आत्मा सेंटर में बाबा कमरे में बैठ ड्रिल कर रही हूँ... चारों ओर की आवाजों, व्यक्ति, वस्तुओं और अपने इस देह से अपना सारा ध्यान हटाकर भृकुटी पर केंद्रित करती हूँ...* धीरे-धीरे इस भृकुटी से बाहर निकल... फरिश्ते स्वरूप में... नीले आसमान की ऊंचाइयों को छूते हुए और ऊपर सूक्ष्म वतन में पहुंच जाती हूँ... बापदादा की दृष्टि लेकर फिर बिंदु रूप धरकर उड़ते हुए परमधाम पहुंच जाती हूँ... *बाबा की किरणों से सराबोर होकर फिर से सूक्ष्म वतन में बापदादा के सम्मुख बैठ जाती हूँ...*

❉ *योग अग्नि की किरणों से मेरे विकर्मो का बोझा भस्म करते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... घर से निकले थे तो खुबसूरत फूल से महके थे... देहभान की मिटटी ने मटमैला कर विकर्मो से लद दिया है... *अब मीठे बाबा की यादो में स्वयं को पुनः उसी ओज से भर लो... और कर्मातीत अवस्था को पाकर कर्मभोगो से सदा के मुक्त हो जाओ..."*

➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा की मीठी यादों में जीवन को सुनहरा सजाते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके बिना दारुण दुखो को जीते जीते किस कदर टूट गई थी... *आपके मीठे प्यार ने दुःख भरे घावो को सुखाया है और जीवन खुशनुमा बनाया है... योगाग्नि में मै आत्मा विकर्मो से मुक्त होती जा रही हूँ..."*

❉ *मीठा बाबा अपनी वरदानी छत्रछाया के आगोश में मेरे हर श्वांस को खुशनुमा बनाते हुए कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... हर पल हर साँस हर संकल्प में ईश्वरीय यादो को पिरोकर कर्मभोगो से मुक्त हो कर्मातीत बन जाओ... *मीठे बाबा की यादे ही वह छत्रछाया है, जो सारे विकर्मो के बोझों को छुड़वायेगी... सच्चे पिता की यादो में खो जाओ और सदा के निरोगी बन मुस्कराओ"...*

➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने सिर पर से विकर्मों के बोझ से मुक्त होकर, सिर पर बाबा का वरदानी हाथ अनुभव करते हुए कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी छत्रछाया में सारे दुखो से निकल कर... सुखो के बगीचे की ओर रुख कर रही हूँ... *जीवन अब सुख शांति और खुशियो का पर्याय बन गया है... मै आत्मा निरोगी काया और सुनहरे स्वर्ग के सुखो की... अधिकारी बन मुस्करा रही हूँ..."*

❉ *विकर्मों की कालिमा को रूहानी यादों की पवित्रता से खुशबूदार बनाते हुए मेरा बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... धरती पर प्यारा सा खेल खेलने आये थे.... पर खुद को मात्र शरीर समझ दुखो के, विकारो के दलदल में फंस गए हो.... *अब ईश्वर पिता की महकती यादो में अपनी रूहानी अदा को पुनः पाओ... खुशनुमा रूहानी गुलाब सा बन सदा सुखो की बगिया में मुस्कराओ..."*

➳ _ ➳ *मैं आत्मा योग की ज्वाला में विकर्मों के खाद को भस्म कर सच्चा सोना बनते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा यादो की प्रचण्ड अग्नि में स्वयं को दमकता सोना बना रही हूँ... वही सुनहरी ओज वही तेज वही रंगत पाकर...* शरीर में मटमैले पन को धो रही हूँ... और कर्मातीत अवस्था को पा कर, मीठे सुखो में खुशियो के गीत गा रही हूँ..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप समान प्यार का सागर बनना है*

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प्यार के सागर अपने प्यारे पिता के प्यार के मीठे मधुर एहसास के बारे में विचार करते ही एक सिहरन सी पूरे शरीर मे दौड़ जाती है और मन व्याकुल हो उठता है फिर से उसी प्यार को पाने के लिए। *जैसे ही मन में बाबा के निःस्वार्थ, निष्काम प्यार को पाने का संकल्प मन मे आता है मैं महसूस करती हूँ जैसे प्यार के सागर मेरे बाबा मेरे हर संकल्प को पूरा करने और अपने स्नेह की मीठी फुहारे मेरे ऊपर बरसाने के लिए मेरे पास आ रहें हैं*। हवाओ में भी जैसे एक विचित्र रूहानी खुशबू फैल गई है जो उनके आने का मुझे पैगाम दे रही है। अपनी अनन्त शक्तियों की किरणों के रूप में मेरे प्यार के सागर बाबा अपने प्यार की शीतल फुहारे मुझ पर बरसाते हुए परमधाम से उतरकर धीरे - धीरे नीचे आ रहें हैं। 

➳ _ ➳ 
मैं महसूस कर रही हूँ जैसे कि शक्तियों का एक तेजोमय पुंज आकाश से नीचे आकर, अब सीधा मेरे सिर के ऊपर स्थित हो गया है और अपने स्नेह की अनन्त किरणे मेरे ऊपर बिखेर रहा है। *बारिश की हल्की - हल्की बूंदों की तरह अपने ऊपर पड़ती अपने स्नेह के सागर पिता के स्नेह की किरणों के वायब्रेशन्स को मैं महसूस कर रही हूँ और उनके स्नेह में डूबती जा रही हूँ*।प्यार का सागर अपना असीम प्यार मुझ पर लुटाता जा रहा है और उस प्यार के मधुर एहसास में मैं गहराई तक समाती जा रही हूँ। देह और देह की दुनिया से जुड़े सम्बन्ध जैसे कहीं पीछे छूट रहें हैं और सारे सम्बन्ध उस एक के साथ जुड़ते जा रहें हैं। *हर सम्बन्ध का अविनाशी सुख अपने प्यारे पिता के प्यार में खोकर मैं ले रही हूँ। उनके लव में लीन यह लवलीन स्थिति मुझे उनके समान स्थिति में स्थित करती जा रही है*।

➳ _ ➳ 
ऐसा लग रहा है जैसे देह से मेरा कोई सम्बन्ध नही। अपने स्वरूप में पूरी तरह डूब कर केवल दो सितारों की उपस्थिति को ही मैं अनुभव कर रही हूँ। एक अति सूक्ष्म चैतन्य स्टार के रुप में मैं स्वयं को देख रही हूँ और अपने सामने स्थित सुपर स्टार के रूप में अपने पिता को देख रही हूँ। *इन दोनों स्टार्स में ही जैसे सारी दुनिया समा गई है। अपने प्यार की अनन्त किरणों की वर्षा मुझ पर करते, प्यार के सागर मेरे सुपर स्टार शिव बाबा चुम्बक की तरह मुझे खींच कर अब अपने साथ ऊपर ले जा रहें हैं*। बाबा की सर्वशक्तियों की मैग्नेटिक पॉवर, नश्वर संसार की हर चीज से किनारा करवाकर मुझे खींचती हुई अब आकाश को पार कर, सूक्ष्म लोक से ऊपर मेरे स्वीट साइलेन्स होम में मुझे ले आई है। *अपने घर मे आकर मैं आत्मा शांति की गहन स्थिति का अनुभव कर रही हूँ*।

➳ _ ➳ 
इस शांतिधाम घर मे चारों और फैले शांति के वायब्रेशन्स मुझे गहन शांति की अनुभूति करवाकर एक अनोखी शक्ति का संचार मेरे अन्दर कर रहें हैं। *साइलेन्स का बल अपने अंदर भरकर अब मैं सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के सागर अपने प्यारे पिता के पास आकर बैठ गई हूँ और बड़े प्यार से उन्हें निहार रही हूँ*। मैं महसूस कर रही हूँ जैसे बाबा भी बड़े प्यार से मुझे निहार रहें हैं और अपना प्यार शीतल लहरों के रूप में धीरे - धीरे मुझ तक पहुँचा रहें हैं। बाबा के अथाह प्यार की शीतल लहरों की शीतलता मन को गहन सुख प्रदान कर रही है। धीरे - धीरे ये लहरे बढ़ रही हैं और मुझे अपने अंदर समाती जा रही हैं। 

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प्यार के सागर मेरे पिता के प्यार की लहरों का प्रवाह मुझे बहा कर अपने बिल्कुल समीप ले आया है। जहाँ पहुँच कर ऐसा लग रहा है जैसे प्यार का कोई सतरंगी झरना मेरे ऊपर बरस रहा है और उस झरने के नीचे खड़ी होकर मैं स्नान करके प्यार के सागर अपने पिता के समान बनती जा रही हूँ। *नफरत, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा के पुराने स्वभाव संस्कार जैसे प्यार के सागर की गहराई में डूब गए हैं और उसके स्थान पर सबको प्रेम देने, सहयोग देने के संस्कार जैसे इमर्ज हो गए हैं*। स्वयं को मैं बाप समान प्यार का सागर अनुभव कर रही हूँ। अपने प्यारे पिता के साथ स्नेह मिलन मनाकर, उनके समान बन कर अब मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट आती हूँ और अपने साकार तन में फिर से भृकुटि के अकालतख्त पर आकर विराजमान हो जाती हूँ। 

➳ _ ➳  *
प्यार के सागर अपने पिता से प्राप्त किये हुए प्यार का मधुर एहसास मेरी शक्ति बनकर अब मुझे भी बाप समान प्यार का सागर बन सबको सच्चा रूहानी प्यार देने के लिए प्रेरित करता रहता है इसलिए अपने प्यारे पिता के प्यार से स्वयं को हरपल भरपूर रखते हुए अब मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को आत्मिक स्नेह देकर उन्हें तृप्त करती रहती हूँ*

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपने हर कर्म वा विशेषता द्वारा दाता की तरफ इशारा करने वाली आत्मा हूँ।*
✺   *मैं सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ *मैं आत्मा किसी भी प्रकार की अर्जी डालने से सदैव मुक्त हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदा राज़ी हूँ ।*
✺ *मैं राज़ी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *बापदादा इस वर्ष में जो इस समय तक किया, उसमें संतुष्ट हैंआफरीन भी देते हैं। लेकिन अभी सेवा में अनुभूति कराना, शमा के ऊपर परवाने बनाना, चाहे सहयोगी बनाओचाहे साथी बनाओ, कुछ बनें। अनुभूति की खान खोलो*। अच्छा है - यहाँ तक ठीक है। लेकिन सिर्फ चक्कर लगाने वाले परवाने नहीं बनें। पक्के परवाने बनेंगे -अनुभूति का कोर्स कराने से। इतने तक अनुभूति होती है - बहुत अच्छा हैस्वर्ग है। यही यथार्थ ज्ञान हैनालेज हैइतना सेवा का रिजल्ट अच्छा है। *अभी अनुभूति स्वरूप बन अनुभव कराओ। अनुभव करने वाले अर्थात् बाप से डायरेक्ट सम्बन्ध रखने वाले।* ऐसे अनुभवी परवाने तैयार करो। सहयोगी बनाये हैंउसकी मुबारक है और बनाओ। यह स्थान हैयहाँ से ही प्राप्ति हो सकती हैइतने तक भी मानते हैं लेकिन बाप के साथ जरा-सा कनेक्शन तो जोड़ोजो शमा के पीछे ही भागते रहें। तो *इस वर्ष विशेष बापदादा सेवा में अनुभूति कराने का कोर्स कराना चाहते हैं। इससे ही साक्षात्कार भी होंगे और साक्षात बाप प्रत्यक्ष होंगे।* सुनाक्या करना है?

 

✺   *ड्रिल :-  "सेवा में अनुभूति कराने का कोर्स कराना"*

 

 _ ➳  *मैं स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूं... शान्त तन और मन लिए बापदादा के चित्र को देखते देखते उनसे बातें करते हुए बाबा के पास पहुँचती हूँ... अपने घर उस रूहानी लोक में, जहां है... असीम शान्ति, मेरा स्वीट होम*  कितना प्यारा कितना न्यारा है... सब कुछ यहां... अपने रोम-रोम में मैं शान्ति का अनुभव कर रही हूं... *अपने बिंदु स्वरूप बाबा से मुझ बिंदु पर निरंतर किरणें आ रही हैं... इन प्रकाश की किरणों में ना जाने कौन सा जादू है... कि मैं आत्मा आनंद की लहरों में लहराने लगती हूँ...*

 

 _ ➳  *इस अनोखे अलौकिक आनंद में झूमती मैं उस ज्योतिर्बिन्दु के इर्द गिर्द घूमने लगती हूं जैसे परवाना शमा के इर्दगिर्द घूमता है* और चाहती हूं कि ये घड़ियां बस अब यहीं रुक जाए... *ये परमात्म आनंद ये अलौकिक सुख..."पाना था जो पा लिया अब और ना कुछ बाकी रहा"...* इसी अनुभूति में लहराती मैं अपनी पाँच तत्वों की काया में प्रवेश करती हूं... *इतने प्यारे इतने रूहानी अनुभव के लिए बाबा को मेरा रोम-रोम धन्यवाद देता है... तभी एक बात जेहन में आती है... जैसे बाबा कह रहे हों बच्चे ऐसी ही अनुभति तुम्हें औरों को भी करानी होगी सच्चे परवाने तैयार करने हैं... जी बाबा!* कह मैं इस सेवा कोर्स को अन्य आत्माओं को कराने की तैयारी में लग जाती हूं...

 

 _ ➳  *बापदादा का हाथ और साथ अपने साथ लिए मैं अपने सेवास्थल पर पहुँचती हूं...* जहाँ मेरे भाई बहन बाबा की याद में बैठे हैं... मुझे इन आत्माओं को वही अलौकिक अनुभव कराना है... *जिस रूहानी यात्रा में मैंने इतना असीम सुख पाया वो इन्हें भी दिलाना है...* मैं अपनी पूरी शुभ भावना और शुभ कामना उनको देती हूं...

 

 _ ➳  बाबा ने जो रूहानी दृष्टि मुझे दी वो मैं अब इन आत्माओं को दे रही हूं... इस दृष्टि को लेते ही सब आत्माएँ रूहानियत के पंख लगा कर बाबा के पास परमधाम में परवाने के जैसे पहुंच रही हैं... *आनंद उत्साह में डूबे ये परवाने उस अलौकिक शमा के चारों ओर चक्कर लगा रहे हैं... झूम रहे हैं... मर मिटने को तैयार हैं...* बाबा की किरणें इन आत्माओं को परम शांति... परम सुख... की अनुभूति करा रही हैं... *बाबा को प्रत्यक्ष अनुभव कर इनके मन सुख, चैन से भर गए हैं सभी इस आनंद रस में भीग रहे हैं...*

 

 _ ➳  वापिस अपनी साकारी दुनिया में आती सभी आत्माएं अपने को *प्रेमधन* से भरपूर कर गुनगुना रही हैं... *"क्या क्या ना पाया बाबा हमने तेरे प्यार में"* इनको प्रभुप्रेम से भरा देख मैं भी हर्षित होती हूं... और अपने प्यारे मीठे बाबा को इस सेवा इस अनुभव के लिए दिल से शुक्रिया अदा करती हूं... *वाह वाह मेरे बाबा वाह वाह* ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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