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❍ 18 / 03 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *पतितों को दान तो नहीं किया ?*
➢➢ *गुप्त ख़ुशी में रहे ?*
➢➢ *सर्व को उमंग उत्साह का सहयोग दे शक्तिशाली बनाया ?*
➢➢ *रूह को जब, जहां और जैसे चाहो स्थित करने की रूहानी ड्रिल की ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *जब मन ही बाप का है तो फिर मन कैसे लगायें! प्यार कैसे करें! यह प्रश्न ही नहीं उठ सकता क्योंकि सदा लवलीन रहते हैं, प्यार स्वरुप, मास्टर प्यार के सागर बन गये, तो प्यार करना नहीं पड़ता, प्यार का स्वरुप हो गये ।* जितना-जितना ज्ञान सूर्य की किरणें वा प्रकाश बढ़ता है उतना ही ज्यादा प्यार की लहरें उछलती हैं ।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं सदा याद की खुशी में रहने वाली भाग्यवान आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा याद की खुशी में रहते हो ना? *खुशी ही सबसे बड़े ते बड़ी दुआ और दवा है। सदा यह खुशी की दवा और दुआ लेते रहो तो सदा खुश होने के कारण शरीर का हिसाब-किताब भी अपनी तरफ खींचेगा नहीं। न्यारे और प्यारे होकर शरीर का हिसाब-किताब चुक्तू करेंगे। कितना भी कड़ा कर्मभेग हो, वह भी सूली से कांटा हो जाता है। कोई बड़ी बात नहीं लगती।* समझ मिल गई यह हिसाब-किताब है तो खुशी-खुशी से हिसाब-किताब चुक्तू करने वाले के लिए सब सहज हो जाता है। अज्ञानी हाय-हाय करेंगे और ज्ञानी सदा वाह मीठा बाबा! वाह ड्रामा की स्मृति में रहेंगे।
〰✧ *सदा खुशी के गीत गाओ। बस यही याद करो कि जीवन में पाना था वह पा लिया। जो प्राप्ति चाहिए वह सब हो गई। सर्व प्राप्ति के भरपूर भण्डार हैं। जहाँ सदा भण्डार भरपूर हैं वहा दु:ख-दर्द सब समाप्त हो जाते हैं। सदा अपने भाग्य को देख हर्षित होते रहो - वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य, यही सदा मन में गीत गाते रहो। कितना बड़ा आपका भाग्य है।* दुनिया वालों को तो भाग्य में सन्तान मिलेगी, धन मिलेगा, सम्पति मिलेगी लेकिन यहाँ क्या मिलता? स्वयं भाग्य विधाता ही भाग्य में मिल जाता है! भाग्य विधाता जब अपना हो गया तो बाकी क्या रह गया! यह अनुभव है ना! सिर्फ सुनी सुनाई पर तो नहीं चल पड़े। बड़ों ने कहा भाग्य मिलता है और आप चल पड़े इसको कहते हैं - सुनी-सुनाई पर चलना। तो सुनने से समझते हो वा अनुभव से समझते हो! सभी अनुभवी हो?
〰✧ संगमयुग है ही अनुभव करने का युग। इस युग में सर्व प्राप्ति का अनुभव कर सकते हो। अभी जो अनुभव कर रहे हो। यह सतयुग में नहीं होगा। यहाँ जो स्मृति है वह सतयुग में मर्ज हो जायेगी। यहाँ अनुभव करते हो कि बाप मिला है, वहाँ बाप की तो बात ही नहीं। संगमयुग ही अनुभव करने का युग है। तो इस युग में सभी अनुभवी हो गये! *अनुभवी आत्मायें कभी भी माया से धोखा नहीं खा सकती। धोखा खाने से ही दु:ख होता है। अनुभव की अथार्टी वाले कभी धोखा नहीं खा सकते। सदा ही सफलता को प्राप्त करते रहेंगे। सदा खुश रहेंगे। तो वर्तमान सीजन का वरदान याद रखना - 'सर्व प्राप्ति स्वरुप सन्तुष्ट आत्मायें हैं। सन्तुष्ट बनाने वाले हैं।'*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ यह अलौकिक ड्रिल जानते हो? वैसे भी अभी वह ड्रिल जो करते है, वे तन्दुरस्त रहते है। तन्दुरस्ती के साथ - साथ शक्तिशाली भी रहते हैँ। *तो यह अलौकिक ड्रिल जो जितनी करता है उतना ही तन्दुरस्त अर्थात माया की व्याधि नहीं आती और शक्तिशाली स्वरूप भी रहता है*।
〰✧ *जितना - जितना यह अलौकिक बुद्धि की ड्रिल करते रहेंगे उतना ही जो लक्ष्य है बनने का, वह बन पावेंगे*। ड्रिल में जैसे ड्रिल - मास्टर कहता है वैसे हाथ - पाँव चलाते है ना। यहाँ भी अगर सभी को कहा जाये - एक सेकण्ड में निराकारी बन जाओ, तो बन सकेंगे? जैसे स्थूल शरीर के हाथ - पाँव झट डायरक्शन प्रमाण ड्रिल में चलाते रहते है, वैसे एक सेकण्ड में साकारी से निराकारी बनने की प्रैक्टिस है?
〰✧ साकारी से निराकारी बनने में कितना समय लगता है? जबकि अपना ही असली स्वरूप है, फिर भी सेकण्ड में क्यों नहीं स्थित हो सकते? अब तक कर्म बन्धन? क्या अब तक भी कर्म बन्धन की आवाज सुनते रहेंगे? *जब यह पुराना शरीर छोड़ देंगे, तब तक कर्म बन्धन सुनते रहेंगे*।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ अपनी देह से ही जब न्यारे बनना है, तो सभी बातों में भी न्यारे हो जायेंगे। *अब पुरुषार्थ कर रहे हो न्यारे बनने का।* न्यारे बनने से फिर स्वत: ही सभी के प्यारे बन जाते हो। *प्यारे बनने का पुरुषार्थ नहीं होता है, पुरुषार्थ न्यारे बनने का होता है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बेहद नाटक को स्मृति में रख अपार ख़ुशी में रहना"*
➳ _ ➳ *सृष्टि रंगमंच पर चल रहे इस बेहद के ड्रामा में हीरो पार्ट धारी मैं आत्मा स्वयं के पार्ट को साक्षी होकर देख रही हूँ*... इस कल्याण कारी ड्रामा की हर सीन बेहद ही खूबसूरत है ... *सत्यं शिवं सुन्दरम् का गहरा एहसास करती हुई मैं आत्मा बुद्धि में स्वदर्शन चक्र फिराती हुई अपने फरिश्ता स्वरूप में स्थित हूँ बापदादा के सम्मुख*... और बापदादा आज *श्रीमत पर परफैक्ट बनने की विधि समझाते हुए विचार सागर मंथन के लिए समझानी दे रहे है*।
❉ *स्नेह शक्तियों और गुणों की मिठास खुद में समेटे, मीठा- मीठा कहकर मुझे मीठा बनाने वाले मेरे मीठे बाबा बोले:-*"मेरी मास्टर ज्ञानसागर बच्ची, *जो पास्ट हुआ है वह फिर रिपीट हो रहा है यह बहुत समझने की बात है*, क्या आप इस की गहराई समझ कर अपने इस संगम युगी जीवन के हीरो पार्ट के कर्तव्यों को भली भाँति समझती हो! *सतयुग के अपने यादगार जड चित्रों की महिमा का महत्व समझती हो*? *अपने फ्यूचर के फरिश्ता स्वरूप के फीचर का सबको साक्षात्कार कराती हो*?
➳ _ ➳ *इस पतित दुनिया में पावनता का बादल बन बरसते, बापदादा के रूहानी स्नेह में डूबकर दिव्य बुद्धि मैं आत्मा, पतित पावन बाप से बोली:-*"अपनी पावन ज्ञान गंगा से मेरी बुद्धि को निर्मल और दिव्य बनाने वाले मेरे मीठे बाबा! *स्वदर्शन चक्र की ये जो सौगात आपसे पायी है, इसने मुझ आत्मा की बुद्धि को दिव्य बुद्धि बनाया है। पग पग पर आपके साथ के अनुभवों की मीठी सी सौगात मेरी समझ को और भी गहरा बना रही है*... *इस बेहद के ड्रामा के आदि, मध्य, अन्त की सारी नाॅलिज अब मेरी बुद्धि में समाँ रही है*...
❉ *विकारों की कैद में कराहती आत्माओ को लिबरेट करने वाले मेरे लिबरेटर शिव बाबा स्नेह से मुस्कुराते हुए बोले:-*" मेरी शिवशक्ति बच्ची, बेहद के ड्रामा में मेरा परिचय सब आत्माओं को देने का दारोमदार तुम बच्ची पर है *गीता ज्ञान दाता मुझ शिव पिता को भूलकर कृष्ण को पूजती आत्माओं को, इस भ्रम से आप बच्ची लिबरेट कराओं... जाओ अब जाकर गीता को करेक्ट कराओं*।अपने जड चित्रों के उपासको को अब अपने चैतन्य रूप की झलक दिखाओं। *परदर्शन में डूबी हर आत्मा को स्वदर्शन का अनुभव कराओं*।
➳ _ ➳ *परम पिता के असीम रूहानी स्नेह की गहरी अनुभूतियों में खोई मैं कल्प कल्प की विशेष आत्मा गुप्त रूहानी सेना के रूहानी कमांडर शिव पिता से बोली:-*"गुप्त वेश में आपकी शक्ति सेना ये कमाल कर रही है बाबा! गीता ज्ञान दाता प्रत्यक्ष हो रहा है, *आप समान बनकर साक्षात चैतन्य मूर्तियाँ एक नये कुरूक्षेत्र में उतर रही है, शिव पिता की प्रत्यक्षता आप स्वयं ही देख रहे है*, श्वेतवस्त्रधारी ये दिव्यात्माए गीता के भगवान को प्रत्यक्ष कर रही है, *परदर्शन से मुक्त होकर, देखो, करोडो आत्माए -"यही है यही है" का अलख जगाती इधर ही आ रही है*।
❉ *दया के सागर, प्रेम के सागर, विषय सागर में डूबे बेडे को पार लगाने वाले हर्षित हो, मन्द मन्द मुस्काते बोले:-*" दिव्य बुद्धि से ड्रामा के हर राज़ को धारण करने वाली मेरी मीठी बच्ची, *ड्रामा ज्ञान के लेकर मूँझने वाली आत्माओं को एक बाप के सच्चे सच्चे रूप का अनुभव करा, सबके प्रति रहमभाव अपनाओं*, किनारा करने वालों के भी सहारा बन विश्वकल्याण के कार्यों को मंजिल तक ले जाओं। *अविनाशी प्यार के धागे में हर आत्मा को पिरोकर ही अपनी अवस्था अविनाशी बनाओ... सभी के कर्म भोग का वर्णन समाप्त कर कर्मयोग का जिक्र सुनो और सुनाओं*।
➳ _ ➳ *बुद्धि रूपी निर्मल आकाश में जगमगाते एक मात्र शिव सूर्य, और उनकी श्रीमत की दिव्य माला गले में धारण किये, मैं आत्मा विचार सागर मंथन से परफैक्ट बनती शिव शिक्षक से बोली:-*"बाबा आपके अविनाशी प्यार की सौगात ही सबको एक धागे से बाँधकर इस रूद्रज्ञान यज्ञ को सम्पूर्ण बना रही है, ड्रामा के आदि, मध्य, अन्त का राज सब आत्माओं की बुद्धि में प्रत्यक्ष हो रहा है, आप ही करावन हार है बाबा! मैने तो हाँजी का पार्ट बजाया है... विचार सागर मंथन के लिए भी आप ही मेरी बुद्धि चला रहे है।... *ये गीता ज्ञान भी आप ही प्रत्यक्ष करा रहे है... सभी आत्माए एक शिव पिता के कल्याणकारी रूप का जयकार कर रही है... और बापदादा मन्द मन्द मुस्कुराते वरदानों से मुझे नवाज़ रहे है*।
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल
:- बाप समान रहमदिल बनना है*"
➳ _ ➳ एकांत में बैठी अपने ब्राह्मण जीवन की अमूल्य प्राप्तियों के बारे में
विचार करते हुए, दया के सागर अपने प्यारे परम पिता परमात्मा का मैं दिल से
शुक्रिया अदा करती हूँ जिन्होंने मुझे मेरे घर का रास्ता बता कर भटकने से बचा
लिया। *जिस भगवान को पाने के लिए मैं कहाँ - कहाँ नही भटक रही थी, किस - किस से
उनका पता नही पूछ रही थी, किन्तु कोई भी मुझे उनका पता नही बता पाया*। मेरे उस
भगवान बाप ने स्वयं आ कर न केवल मुझे मेरा और अपना परिचय ही दिया बल्कि अपने उस
घर का भी पता बता दिया जहां अथाह शांति का अखुट भण्डार है।
➳ _ ➳ जिस शान्ति की तलाश में मैं भटक रही थी, अपने उस शान्ति धाम घर में जाने
का रास्ता बता कर, उस गहन शान्ति का अनुभव करवाकर मेरे पिता परमात्मा ने सदा के
लिए मेरी उस भटकन को समाप्त कर दिया। *दिल से अपने प्यारे भगवान का कोटि - कोटि
धन्यवाद करती हुई मैं मन ही मन प्रतिज्ञा करती हूँ कि जैसे दया के सागर मेरे
बाबा ने मुझे भटकने से छुड़ाया है ऐसे ही मुझे भी उनके समान रहमदिल बनकर भटकने
वाले अपने आत्मा भाइयो को घर का रास्ता बता कर उन्हें दर - दर की ठोकरें खाने
से बचाना है*।
➳ _ ➳ अपने भगवान बाप की सहयोगी बन उनके इस कार्य को सम्पन्न करना ही मेरे इस
ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य और कर्तव्य है। इस लक्ष्य को पाने और *इस कर्तव्य को
पूरा करने का संकल्प लेकर मैं घर से निकलती हूँ और एक पार्क में पहुँचती हूँ जहाँ
लोगों की बहुत भीड़ है*। यहाँ पहुँच कर अपने प्यारे पिता परमात्मा का मैं आह्वान
करती हूँ और स्वयं को अपने प्यारे बाबा की छत्रछाया के नीचे अनुभव करते हुए वहां
उपस्थित सभी मनुष्य आत्माओं को परमात्म सन्देश देने का कर्तव्य पूरा कर,
परमात्म याद में मगन हो कर बैठ जाती हूँ।
➳ _ ➳ मन बुद्धि का कनेक्शन अपने प्यारे पिता के साथ जुड़ते ही उनकी शक्तियों
का तेज प्रवाह मेरे ऊपर होने लगता है और मेरे चारों तरफ शक्तियों का एक बहुत ही
सुंदर औरा निर्मित होने लगता है। *मैं देख रही हूँ मेरे चारों और शक्तियों का
एक सुंदर आभामंडल निर्मित होकर दूर - दूर तक फैलता जा रहा है। शक्तियों के
वायब्रेशन वहां उपस्थित सभी आत्माओं तक पहुंच कर उन्हें आनन्द से भरपूर कर रहें
हैं*। सर्वशक्तियों के दिव्य कार्ब के साथ मैं आत्मा अब धीरे - धीरे ऊपर की ओर
उड़ रही हूँ। *मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे मेरे चारों और निर्मित दिव्य कार्ब वहाँ
उपस्थित सभी मनुष्य आत्माओं को आकर्षित कर उन्हें ऊपर खींच रहा है और सभी
निराकारी आत्मायें बन मेरे साथ ऊपर अपने निजधाम, शिव पिता के पास जा रही हैं*।
➳ _ ➳ मच्छरों सदृश चमकती हुई मणियों का झुंड, अपने प्यारे पिता की सर्वशक्तियों
की छत्रछाया के नीचे असीम आनन्द और सुख की अनुभूति करता हुआ साकार लोक को पार
कर, सूक्ष्म वतन से होता हुआ पहुँच गया अपने घर परमधाम। *सामने महाज्योति
शिव पिता परमात्मा और उनके सामने उपस्थित असंख्य चमकते हुए सितारे बहुत ही
शोभायमान लग रहे हैं। अपने सभी आत्मा भाइयों को अपने घर पहुँच कर अपने पिता
परमात्मा से मंगल मिलन मनाते देख मैं बहुत हर्षित हो रही हूँ*। बिंदु बाप अपनी
सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में अपने सभी बिंदु बच्चों को समाकर उन पर
अपने असीम स्नेह की वर्षा कर रहें हैं।
➳ _ ➳ अपने पिता परमात्मा का असीम दुलार पाकर और सर्वशक्तियों से भरपूर होकर,
*अपने पिता परमात्मा से बिछुड़ने की जन्म - जन्म की प्यास बुझाकर, तृप्त होकर अब
सभी आत्माये वापिस लौट रही है और साकारी दुनिया मे आ कर फिर से अपने साकारी तन
में प्रवेश कर रही हैं*। मैं भी वापिस अपने साकारी तन में प्रवेश कर अपने
ब्राह्मण स्वरूप में स्तिथ हो जाती हूँ। अपने पिता परमात्मा से मिलन मनाने का
सुख सभी के चेहरे से स्पष्ट दिखाई दे रहा हैं। *सभी के चेहरों की दिव्य
मुस्कराहट बयां कर रही है कि "पाना था सो पा लिया अब और बाकी क्या रहा"*।
➳ _ ➳ *अपने सभी आत्मा भाइयों को घर का रास्ता बताने और उन्हें सदा के लिए
भटकने से छुड़ाने के अपने कर्तव्य को पूरा कर, अब मैं वापिस शरीर निर्वाह अर्थ
कर्म करने के लिए अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं सर्व को उमंग-उत्साह देने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सबको शक्तिशाली बनाने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा रूहानी ड्रिल करती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा रूह को जब, जहाँ और जैसे चाहूँ स्थित कर लेती हूँ ।*
✺ *मैं समर्थ आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ हँसी की यह बात है - तो सभी कहते हैं कि पुरुषार्थ तो बहुत करते हैं, और *बापदादा को देख करके रहम भी आता है पुरुषार्थ बहुत करते हैं, कभी-कभी मेहनत बहुत करते हैं* और कहते क्या है - क्या करें, मेरे संस्कार ऐसे हैं! संस्कार के ऊपर कहकर अपने को हल्का कर देते हैं लेकिन बाप ने आज देखा कि यह जो आप कहते हो कि मेरा संस्कार है, तो क्या आपका यह संस्कार है? *आप आत्मा हो, आत्मा हो ना! बाडी तो नहीं हो ना! तो आत्मा के संस्कार क्या है? और ओरीजनल संस्कार कौन-से हैं?* जिसको आज आप मेरा कहते हो वह मेरा है या रावण का है? किसका है? आपका है? नहीं है? तो मेरा क्यों कहते हो! कहते तो ऐसे ही हो ना कि मेरा संस्कार ऐसा है? तो आज से यह नहीं कहना, मेरा संस्कार। नहीं। कभी यहाँ वहाँ से उड़के किचड़ा आ जाता है ना! *तो यह रावण की चीज आ गई तो उसको मेरा कैसे कहते हो!* है मेरा? नहीं है ना? तो अभी कभी नहीं कहना, जब मेरा शब्द बोलो तो याद करो मैं कौन और मेरा संस्कार क्या? *बाडी कानसेस में मेरा संस्कार है, आत्म-अभिमानी में यह संस्कार नहीं है। तो अभी यह भाषा भी परिवर्तन करना।* मेरा संस्कार कहके अलबेले हो जाते हो। कहेंगे भाव नहीं है, संस्कार है।
➳ _ ➳ अच्छा दूसरा शब्द क्या कहते हैं? मेरा स्वभाव। अभी स्वभाव शब्द कितना अच्छा है। स्व तो सदा अच्छा होता है। *मेरा स्वभाव, स्व का भाव अच्छा होता है, खराब नहीं होता है।* तो यह जो शब्द यूज करते हो ना, *मेरा स्वभाव है, मेरा संस्कार है, अभी इस भाषा को चेंज करो, जब भी मेरा शब्द आवे, तो याद करो मेरा संस्कार ओरीजनल क्या है?* यह कौन बोलता है? आत्मा बोलती है यह मेरा संस्कार है? तो जब यह सोचेंगे ना तो अपने ऊपर ही हँसी आयेगी, आयेंगी ना हँसी? हँसी आयेगी तो जो खिटखिट करते हो वह खत्म हो जायेगी।
➳ _ ➳ *इसको कहते हैं भाषा का परिवर्तन करना अर्थात् हर आत्मा के प्रति स्वमान और सम्मान में रहना। स्वयं भी सदा स्वमान में रहो, औरों को भी स्वमान से देखो।* स्वमान से देखेंगे ना तो फिर जो कोई भी बातें होती हैं, जो आपको भी पसन्द नहीं है, कभी भी कोई खिटखिट होती है तो पसन्द आता है? नहीं आता है ना? तो देखो ही एक दो को स्वमान से। *यह विशेष आत्मा है, यह बाप के पालना वाली ब्राह्मण आत्मा है।* यह कोटों में कोई, कोई में भी कोई आत्मा है। *सिर्फ एक बात करो - अपने नयनों में बिन्दी को समा दो, बस। एक बिन्दी से तो देखते हो, दूसरी बिन्दी भी समा दो तो कुछ भी नहीं होगा, मेहनत करनी नहीं पड़ेगी।* जैसे आत्मा, आत्मा को देख रही है। आत्मा, आत्मा से बोल रही है। आत्मिक वृत्ति, आत्मिक दृष्टि बनाओ। समझा - क्या करना है? *अभी मेरा संस्कार कभी नहीं कहना, स्वभाव कहो तो स्व के भाव में रहना।* ठीक है ना।
✺ *ड्रिल :- "सदा आत्मिक वृत्ति, आत्मिक दृष्टि में स्थित रहने का अनुभव"*
➳ _ ➳ देह के भान से किनारा कर... देह पर अपना अधिकार समाप्त कर... *देह रूपी वस्त्र को त्याग कर... साक्षीपन की सीट पर सेट होकर बैठ जाती हूँ...* मैं आत्मा स्वयं की देह को देख रही हूँ... यह पुरानी देह तो बापदादा द्वारा मिली हुई अमानत है... सेवा अर्थ अमानत है... मुझ आत्मा के सुख... शांति और प्रेम भरे... पवित्र संस्कारों ने... देहभान के रावण रूपी संस्कारों को नष्ट कर दिया है... मैं आत्मा देह से न्यारी होकर... एकरस अवस्था में स्थित हो गई हूँ... सब बोझ और थकावट दूर हो गए हैं... स्वतंत्र पंछी के समान... स्वयं को आसमान में उड़ता हुआ अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ बाबा की शक्तियों भरी किरणों के फव्वारे के नीचे बैठी हुई मैं आत्मा... सर्वशक्तियों व सर्वगुणों को... स्वयं में भरता हुआ अनुभव कर रही हूँ... *देहभान के रावण रूपी संस्कार... योग अग्नि में भस्म होते हुए प्रतीत हो रहे हैं...* ईश्वरीय शक्तियों और गुणों से भरपूर हो कर... प्रभु पिता से सर्व संबंधों की अनुभूतियों का आनंद उठाते हुए... अपने संस्कारों को... दैवी संस्कारों में परिवर्तित कर रही हूँ...
➳ _ ➳ स्नेह के सागर... ज्ञान सागर के समीप रहने वाली मैं आत्मा... सागर के खजाने को स्वयं में भरती हुई... ज्ञान रत्नों से खेलती हुई... खुशियों से... सुखों से भरपूर हो गई हूँ... *सदा बाप के समीप रहने से... संग का रंग स्वतः ही चढ़ता हुआ प्रतीत हो रहा है...* स्व का भाव भी... बाप समान... कल्याणकारी बनते हुए अनुभव कर रही हूँ... सर्व के प्रति शुभचिंतक... स्व कल्याणी... विश्व कल्याणी बनते हुए अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ सदा स्मृति में रहते हुए... प्रभु प्रेम में मग्न... बिना मेहनत के चलती चली जा रही हूँ... *हर संकल्प... हर बोल... हर कर्म चेक करती हुई... चेंज करती हुई... बाप समान बना रही हूँ...* स्वभाव व संस्कारों को श्रेष्ठ बनता हुआ अनुभव कर रही हूँ... बुद्धि योग से... सदा एक बाप की प्यारी... सर्व से न्यारी हूँ... अपने ओरिजिनल स्वभाव में... हर परिस्थिति में लाइट रहकर... ड्रामा में कुशलता से पार्ट बजाते हुए... सर्व को सम्मान देते हुए... आनंदमयी जीवन व्यतीत कर रही हूँ...
➳ _ ➳ *बिंदु रूप स्थिति में स्थित होकर... सर्व प्रकार के बिखरे हुए विस्तार को बिंदु लगा रही हूँ...* बीज बाप से लगन लगा कर... लगन की अग्नि में... हिसाब किताब के विस्तार को भस्म करना कितना सहज हो गया है... *चलते फिरते अपनी आत्मिक स्वरुप... ज्योति स्वरूप का अनुभव कर रही हूँ...* कर्म करने के लिए पुराने शरीर का आधार ले लेती हूँ... फिर अशरीरी स्थिति में स्थित हो जाने से... कितना लाइट अनुभव करती हूँ... स्वमान में रहकर... सम्मान से हर दूसरी आत्मा को देख रही हूँ... आत्मिक दृष्टि से सर्व को देखते हुए... सर्व को बिन्दु देखते हुए... सर्व को अपना सहयोगी बनते हुए अनुभव कर रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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