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 23 / 02 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अशरीरी आत्मिक स्वरुप का नशा रहा ?*

 

➢➢ *अलोकिक जीवन का नशा रहा ?*

 

➢➢ *फ़रिश्तेपन का नशा रहा ?*

 

➢➢ *भविष्य का नशा रहा ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *समय प्रमाण अब मन्सा और वाचा की इकट्ठी सेवा करो।* लेकिन वाचा सेवा सहज है, मन्सा में अटेन्शन देने की बात है इसलिए *सर्व आत्माअों के प्रति मन्सा में शुभ भावना, शुभ कामना के संकल्प हों। बोल में मधुरता, सन्तुष्टता, सरलता की नवीनता हो तो सहज सफलता मिलती रहेगी।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं 'अंगद' के समान अचल-अडोल स्थिति में रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

✧  सदा अचल अडोल स्थिति में रहने वाली 'अंगद' के समान श्रेष्ठ आत्मायें हैं, इसी नशे और खुशी में रहो। *क्योंकि सदा एक के रस में रहने वाले, एकरस स्थिति में रहने वाले सदा अचल रहते हैं।*

 

✧  जहाँ एक होगा वहाँ कोई खिटखिट नहीं। दो होता तो दुविधा होती। एक में सदा न्यारे और प्यारे। *एक के बजाए दूसरे कहाँ भी बुद्धि न जाये। जब एक में सब कुछ प्राप्त हो सकता है तो दूसरे तरफ जाएं ही क्यों!* कितना सहज मार्ग मिल गया।

 

  *एक ही ठिकाना, एक से ही सर्व प्राप्ति और चाहिए ही क्या! सब मिल गया बस जो चाहना थी, बाप को पाने की वह प्राप्त हो गया तो इसी खुशी में नाचते रहो, खुशी के गीत गाते रहो। दुविधा में कोई प्राप्ति नहीं इसलिए एक में ही सारा संसार अनुभव करो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  ऑर्डर करो सूक्ष्मवतन जाना है, निराकारी वतन में जाना है तो तीनों लोकों में जब चाहे मन को पहुँचा सकते हो? है प्रैक्टिस? अभी इस अभ्यास की आवश्यकता ज्यादा है। *बापदादा ने देखा है अभ्यास तो करते हो लेकिन जब चाहे, जितना समय चाहे एकाग्र हो जाए, अचल हो जाए, हलचल में नहीं आये, इसके ऊपर और अटेन्शन।* जो गायन है मन जीत जगत जीत, अभी कभी-कभी मन धोखा भी दे देता है।

 

✧  तो बापदादा आज के समर्थ दिवस पर यही समर्थी विशेष अटेन्शन मे दे रहे हैं। *हे स्वराज्य अधिकारी बच्चे, अभी इस विशेष अभ्यास को चलते-फिरते चेक करो क्योंकि समय प्रमाण अभी अचानक के खेल बहुत देखेंगे।* इसके लिए एकाग्रता की शक्ति आवश्यक है। एकाग्रता की शक्ति से दृढ़ता की शक्ति भी सहज आ जाती है और दृढ़ता सफलता स्वत: प्राप्त कराती है।

 

✧  तो विशेष समर्थ दिवस पर इस समर्थी का अभ्यास विशेष अटेन्शन में रखो। इसलिए भक्ति मार्ग में भी कहते हैं मन के हारे हार, मन के जीते जीता तो जब मेरा मन कहते हो, तो मेरे के मालिक बन शक्तियों की लगाम से विजय प्राप्त करो। *इस नये वर्ष में इस होमवर्क पर विशेष अटेन्शन! इसी को ही कहा जाता है योगी तो हो लेकिन अभी प्रयोगी बनो।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  स्नेही बनने लिए क्या करना पड़ेगा? *जितना जो विदेही होगा उतना वो स्नेही होगा। तो विदेही बनना अर्थात् स्नेही बनना क्योंकि बाप विदेही है ना।* ऐसे ही देह में रहते विदेही रहने वाले सर्व के स्नेही रहते हैं। *यही नोट करना है कितना विदेही रहते है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  पुराना संसार और पुराना संस्कार भुलाना"*
 
➳ _ ➳  मीठे बाबा की यादो में खोयी हुई मै आत्मा इस देह को छोड़ प्रकाश की काया में वतन की सैर को निकलती हूँ... मुझे देखते ही बाबा ख़ुशी से पुलकित हो उठे और बोले :- "मीठे बच्चे *निश्चय ही सच्चे प्रेम की आधारशिला है... और इसी में मंजिल का पता छुपा है.*. निश्चय और गहरा विश्वास ईश्वर पिता और बच्चों के बीच एक पुल की तरहा है... जिस पर चलकर सहज ही मंजिल बाँहों में दौड़ी आयेगी... मै आत्मा मीठे बाबा के प्यार में खोयी हुई सी, बाबा के इन कथनो पर सहर्ष स्वीकृति दे रही हूँ..."
 
❉   *मीठे बाबा मेरे प्रेम से भरे भावो पर मुस्कराये और बोले :-* "मेरे प्यारे से रूहानी गुल... जिन इंसानी रिश्तो को गहराई से बुनते आये... वहाँ भी तो निश्चय ही आधार रहा... ईश्वरीय राहो की भी वही बुनियाद है... *जितनी गहराई से, इस सच्चे प्रेम समन्दर में डूबोगे, उतने अथाह खजाने बाँहों में भर पाओगे.*..और देवताई मंजिल  कदमो में स्वतः ही खिंची चली आएगी..."
 
➳ _ ➳  *प्यारे बाबा को अपने सर पर वरदानी हाथ फेरते... प्यार से समझाते सुनकर, मै आत्मा अपने भाग्य पर झूम उठी और बोली :-* "मीठे प्यारे बाबा मेरे... आपके बिना जीवन कितना सूना और वीरान था... जीवन का न कोई लक्ष्य न ठिकाना था... आज आपने मुझे खुबसूरत देवताई लक्ष्य देकर क्या से क्या बना दिया है... *इतना प्यारा भाग्य मेरे हाथो में सजा दिया है.*.."
 
❉   *प्यारे बाबा मेरे दिल के अरमान सुनकर... मीठी नजरो से निहारने लगे और बोले :-* "सिकीलधे लाडले बच्चे... जनमो से सच्चे सुख और प्रेम के लिए तड़फते रहे हो... ईश्वरीय प्रेम को सदा तरसते रहे हो... *आज ईश्वर पिता बनकर सारे जज्बात, सतगुरु बनकर सारी मुरादे पूरी करने के लिए, दिल के द्वार पर खड़ा दस्तक दे रहा है.*.. तो निश्चय और गहरे विश्वास संग अपनी मंजिल की ओर बढ़ते जाओ..."
 
➳ _ ➳  *मीठे बाबा के वरदानी बोल और स्नेह दृष्टि में भीगती हुई मै आत्मा बाबा को कह रही :-* "सबसे प्यारे मेरे बाबा... *आप ईश्वर पिता यूँ मेरे दिल पर प्रेम की थाप दे.*.. और मै आत्मा न झूमूँ  यह भला कैसे हो सकता है बाबा... आप ही तो सदा की मेरी पुकार रहे है... आपको पाने की चाहत में तो मै आत्मा कितना भटकी हूँ... अब जो मिले हो बाबा तो रोम रोम से कुर्बान हूँ..."
 
❉   *मीठे बाबा मेरी प्रेम भावनाओ में खो गये... और प्रेम की तरंगे जेसे पूरे वतन में तरंगित हो गई... और कहने लगे :-* "ईश्वरीय राहो पर सम्पूर्ण निश्चय के साथ, अपनी मंजिल को सहज ही पाने वाले बनकर, सदा की मुस्कराहट से सज जाओ... *देवताओ सी शानो शौकत और सुख, ईश्वरीय पुत्रो की बपौती है.*.. उसे तकदीर में भरकर, अनन्त खुशियो को चिर स्थायी बनाओ..."
 
➳ _ ➳  *अपने प्यारे बाबा का इस कदर प्यार पाकर... ऐसी मीठी रुहरिहानं करते हुए, मै आत्मा बोली :-* "मेरे सच्चे साथी बाबा मेने तो अपनी चाहतो में आपको ही बसाया था... बस आपको ही चाहा और दुआओ में सदा माँगा था... *कब सोचा था कि आपके पीछे स्वर्ग के मीठे सुख कतारो में खड़े, मेरा इंतजार कर रहे है.*.. ऐसा जादू भरा जीवन तो मेरी कल्पनाओ में भी न था... मीठे बाबा और मै आत्मा मुस्करायी और अपने स्थूल जगत मै लौट आई..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  निश्चयबुद्धि बन कर रहना*"
 
➳ _ ➳  वाणी से परे वानप्रस्थ में जाने का अभ्यास ही वो सर्वोच्च प्राप्ति करने का आधार है जहाँ पहुंच कर आत्मा उस गहन परम आनन्द की अनुभूति करती है जिस परमानन्द का बड़े बड़े साधू सन्यासियों, महा मण्डलेश्वरों ने वर्णन तो किया किन्तु उसका अनुभव नही कर पाए। क्योकि *उस सर्वोच्च स्थिति को वही पा सकता है जो सम्पूर्ण निश्चय बुद्धि बन सम्पूर्ण समर्पण भाव से उस सत्य परमपिता परमात्मा पर कुर्बान हो जाता है*। यही विचार करते - करते मुझे अपने सर्वश्रेष्ठ सौभाग्य पर नाज होता है और मैं सोचती हूँ कि कितनी सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो जब चाहे तभी वाणी से परे वानप्रस्थ स्थिति में जा कर सेकेंड में उस परमानन्द का अनुभव कर लेती हूँ।
 
➳ _ ➳  अपने परम पिता परमात्मा शिव बाबा के सानिध्य में बैठ उस परमानन्द की अनुभूति का संकल्प ही मुझे मेरी शांत अशरीरी स्थिति में स्थित कर देता है। *मन बुद्धि रूपी नेत्रों से अब मैं अपने चैतन्य निराकारी ज्योति बिंदु स्वरूप को स्पष्ट देख रही हूं और स्वयं को एक ऐसी चैतन्य शक्ति के रूप में अनुभव कर रही हूँ जो इस देह को चला रही है*। अपने इस सत्य स्वरुप में स्थित होते ही मुझ आत्मा के अंदर निहित गुण और शक्तियां स्वत: ही इमर्ज हो रहें हैं। इस अवस्था में मेरी सर्व कर्मेन्द्रियां शांत और शीतल होती जा रही हैं । मेरे विचार स्थिर हो रहे हैं।
 
➳ _ ➳  इसी गहन शांति की अवस्था में मैं आत्मा अशरीरी बन इस देह से निकलकर अब अपने घर निर्वाण धाम की ओर चल पड़ती हूं। *मन बुद्धि रूपी नेत्रों से इस साकार दुनिया के वन्डरफुल नजारों को देखती हुई अपने पिता परमात्मा के प्रेम में मगन उनसे मिलन मनाने की तीव्र लग्न में मैं आत्मा वाणी से परे की इस आंतरिक यात्रा पर निरंतर बढ़ती जा रही हूँ*। साकार लोक को पार कर, सूक्षम लोक को भी पार कर, मैं आत्मा पहुंच गई निर्वाणधाम अपने शिव पिता परमात्मा के पास।
 
➳ _ ➳  वाणी से परे इस निर्वाणधाम में देह और देह की दुनिया के संकल्प मात्र से भी मैं मुक्त हूँ। लाल प्रकाश से प्रकाशित इस घर मे मुझे चारों और चमकती हुई मणियां ही दिखाई दे रही है। *चारों ओर शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन फैले हुए हैं। शांति की गहन अनुभूति करते हुए इस पूरे ब्रह्माण्ड में मैं विचरण रही हूँ*। विचरण करते - करते शांति के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के पास मैं पहुंच जाती हूँ। बाबा से आ रहे शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन मुझे गहन शान्ति का अनुभव करवा रहें हैं। इनके आकर्षण में आकर्षित हो कर मैं आत्मा अपने शिव पिता के और भी समीप पहुंच जाती हूँ और जा कर उनके साथ कम्बाइंड हो जाती हूं।
 
➳ _ ➳  बाबा के साथ कम्बाइंड होते ही ऐसा आभास होता है जैसे सर्व शक्तियों के फवारे के नीचे मैं आत्मा स्नान कर रही हूं। *बाबा से निकल रही सर्वशक्तियों रूपी सतरंगी किरणों का झरना मुझ आत्मा पर बरस रहा हैं। मैं असीम आनन्द का अनुभव कर रही हूँ। एक अलौकिक दिव्यता से मैं आत्मा भरपूर होती जा रही हूँ*। प्यार के सागर बाबा अपना असीम प्यार मुझ पर लुटा रहे हैं। उनके प्यार की शीतल किरणे मुझे भी उनके समान मास्टर प्यार का सागर बना रही हैं। बाबा की सर्वशक्तियों को स्वयं में समाकर मैं शक्तियों का पुंज बनती जा रही हूँ। *लाइट माइट स्वरूप में स्थित हो कर मैं मास्टर बीजरूप स्थिति का अनुभव कर रही हूँ*।
 
➳ _ ➳  मास्टर बीजरूप स्थिति में स्थित हो, गहन अतीन्द्रीय सुख की अनुभूति करके मैं लौट आती हूँ साकारी लोक में और अपनी साकारी देह में आ कर फिर से भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हो जाती हूँ किन्तु अब देह का कोई भी आकर्षण मुझे अपनी ओर आकर्षित नही कर रहा। *देह में रहते हुए वाणी से परे की वानप्रस्थ स्थिति का दिव्य अलौकिक अनुभव मुझे रुहानी नशे से भरपूर कर रहा है*।
 
➳ _ ➳  इस रूहानी नशे से स्वयं को सदा भरपूर रखने के लिए अब मैं ब्राह्मण आत्मा देह अभिमान में आ कर की हुई भूलों को, बाबा की श्रीमत पर चल, सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि बन सुधारती जा रही हूँ। *स्वयं पर, बाबा पर और ड्रामा पर सम्पूर्ण निश्चय मेरे मन मे उठने वाले व्यर्थ संकल्पो, विकल्पों से मुझे मुक्त कर रहा है। जिससे साइलेन्स का बल मेरे अंदर जमा होता जा रहा है और डीप साइलेन्स की अनुभूति करते हुए वाणी से परे वानप्रस्थ स्थिति में स्थित रहने का अनुभव बढ़ता जा रहा है जो मुझे हर समय अतीन्द्रिय सुख से भरपूर कर रहा है*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सर्व समस्याओं का विदाई का समारोह मनाने वाली आत्मा हूँ।*
✺   *मैं समाधान स्वरूप आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺  *मैं आत्मा सदा ज्ञान का सिमरण करती हूँ ।*
✺  *मैं आत्मा माया की आकर्षण से बचे रहती हूँ ।*
✺  *मैं ज्ञानी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  वर्तमान समय माया के विशेष दो रूप बच्चों का पेपर लेते हैं। जानते हो? जानते तो हो। एक व्यर्थ संकल्प, विकल्प नहीं, व्यर्थ संकल्प। दूसरा भी सुनायें क्या? दूसरा है मैं ही राइट हूँ। जो किया, जो कहा, जो सोचा... मैं कम नहीं, राइट हूँ। *बापदादा समय के प्रमाण अब यही चाहते - एक शब्द सदा स्मृति में रखो - बाप से हुई सर्व प्रप्तियों का, स्नेह का, सहयोग का रिटर्न करना है। रिटर्न करना अर्थात् बाप समान बनना। दूसरा - अब हमारी रिटर्न-जर्नी (वापसी यात्रा) है।* एक ही शब्द रिटर्न सदा याद रहे। इसके लिए बहुत सहज साधन है - *हर संकल्प, बोल और कर्म को ब्रह्मा बाप से टेली करो।* बाप का संकल्प क्या रहा? बाप का बोल क्या रहा? बाप का कर्म क्या रहा? इसको ही कहा जाता है फालो फादर। फालो फादर करना तो सहज होता है ना!

 

 _ ➳  *नया सोचना, नया करना उसकी आवश्यकता है ही नहीं, जो बाप ने किया वह फालो फादर।* सहज है ना! अभी-अभी निराकारी, अभी-अभी फरिश्ता बापदादा वाली एक्सरसाइज याद है? अभी-अभी निराकारी, अभी-अभी फरिश्ता... यह है चलते फिरते बाप और दादा के प्यार का रिटर्न। *तो अभी-अभी यह रूहानी एक्सरसाइज करो। सेकण्ड में निराकारी, सेकण्ड में फरिश्ता।* (बापदादा ने ड्रिल कराई) अच्छा - चलते-फिरते सारे दिन में यह एक्सरसाइज बाप की सहज याद दिलायेगी।

 

✺   *ड्रिल :-  "हर संकल्प, बोल और कर्म में फालो फादर करने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *मैं एक ब्राह्मण आत्मा हूँ... मैं आत्मा परमात्मा की श्रेष्ठ रचना हूँ... भाग्यविधाता की भाग्‍यशाली संतान हूँ...* मैं आत्मा बापदादा की छत्रछाया के नीचे अपना पुरुषार्थ कर रही हूँ... *मैं बाप समान और फॉलो फादर करने वाली आत्मा हूँ...* इस साकारी ब्राह्मण तन से निकल कर मैं आत्मा अपने सूक्ष्म वतन की ओर चलती हूँ... अपने वतन में पहुंच कर मैं आत्मा असीम सुख और शांति का अनुभव कर रही हूँ... बापदादा मेरे सम्मुख खड़े हैं, उनको देखते ही मैं आत्मा उनके गले लग जाती हूँ... *बाबा ने अपने रूई से कोमल हाथ मेरे मस्तक पर रख दिए... बाबा का स्पर्श मिलते ही मैं आत्मा भी एकदम रूई समान हल्की होकर उड़ने लगी हूँ...* बाबा से शक्ति की किरणें मुझ आत्मा पर निरंतर प्रवाहित हो रही है जिससे मैं आत्मा बाबा के समान मास्टर सर्व शक्तिमान बन रही हूँ... बाबा ने मुझे अपने वरदानी बोल से शिक्षाएँ दे रहे हैं... *बच्ची हमेशा बाप को फॉलो करो... उनके बोल, संकल्प, और कर्मों को फॉलो करो... तुम्हें कुछ भी नया करने की जरूरत नहीं है... सिर्फ कदम पे कदम रखते हुए आगे बढ़ो...*  मुझ आत्मा ने हाँ जी कह कर पक्का वादा किया कि आज से बाबा *मैं आत्मा सिर्फ और सिर्फ "सी फादर और फॉलो फादर ही कर करूँगी...* मैं आत्मा बाबा की शिक्षाओं से भरपूर होकर वापस उड़ कर पहुँच जाती हूँ अपने स्थूल वतन...

 

 _ ➳  मैं आत्मा लाइट - माइट हाउस फरिश्ता बाबा से प्राप्त शिक्षाओं से संपन्न  होकर विश्व के ग्लोब पर बैठ जाती हूँ... *मैं फरिश्ता सारे विश्व की आत्माओं का आह्वान करती हूँ... सारे विश्व की आत्माएँ मेरे सामने मर्ज हो रही है... मैं फरिश्ता सारी आत्माओं को अपने नैनो और मस्तक से सर्व शक्तियों के वायब्रेशन दे कर भरपूर कर रही हूँ...* सर्व आत्माओं को व्यर्थ मुक्त बना रही हूँ... बाबा के बच्चों को समझा रही हूँ कि *माया विशेष दो रूप से पेपर लेती है... एक तो व्यर्थ संकल्प और दूसरा मैं ही राइट हूँ’...* जो किया... जो कहा... जो सोचा... मैं कम नहीं... राइट हूँ... इस तरह के माया के प्रभाव से बचने के लिए एक ही बात याद रखती हूँ... *जो भी मैं आत्मा कर रही वो सब करावनहार बाबा है मैं आत्मा तो सिर्फ निमित्त मात्र हूँ...* सब आत्माएँ इस बात को अच्छे से धारण कर रही है...

 

 _ ➳  मैं आत्मा समय के प्रमाण सेवा करते हुए एक ही शब्द सदा स्मृति में रखती हूँ... जो भी मुझे प्राप्त है वो सब बाबा से प्राप्त हुआ है... *मैं आत्मा बाबा से प्राप्त सर्व प्राप्तियों का... स्नेह का... सहयोग का... रिटर्न कर रही हूँ... जिससे मैं आत्मा बाप समान बनना रही हूँ...* अब मुझ आत्मा की रिटर्न-जर्नी (वापसी यात्रा) है... इसके लिए बाबा ने बहुत ही सहज साधन बताया है... हर संकल्प... बोल... और कर्म में ब्रह्मा बाबा को फॉलो करो... अब मैं आत्मा शिव बाबा के कहे अनुसार ब्रह्मा बाबा को फॉलो कर रही हूँ...

 

 _ ➳  जिस तरह ब्रह्मा बाबा ने कर्म किए... बिना थके दिन - रात यज्ञ सेवा में दिया उसी तरह मैं आत्मा भी *ब्रह्मा बाबा के कदम पे कदम रखते हुए आगे बढ़ रही हूँ... मैं आत्मा कुछ भी नया नहीं सोच रही हूँ और ना ही कुछ नया कर रही हूँ... जो बाबा ने किया और कहा है उसी को फालो कर रही हूँ... जिससे मुझ आत्मा के पुरुषार्थ में रफ्तार आ गयी है...* अब मैं आत्मा हमेशा फॉलो फादर ही कर रही हूँ... *फॉलो फादर करना अति सहज है...*

 

 _ ➳  जब भी मैं आत्मा अपने कर्म क्षेत्र पर जाती हूँ तो बापदादा की करायी हुई ड्रिल अभी-अभी निराकारी... अभी-अभी फरिश्ता को करती हूँ और एक सेकंड में भरपूर हो जाती हूँ... अभी-अभी निराकारी... *अभी-अभी फरिश्ता... इस ड्रिल को चलते फिरते करना माना बाप और दादा के प्यार का रिटर्न देना...* मैं आत्मा चलते-फिरते सारे दिन में यह एक सेकंड की एक्सरसाइज कर रही हूँ... जिससे बाबा की याद सहज और निरंतर बनी रहती है... *मैं आत्मा एक सेकेन्ड की ड्रिल से दिन भर खुद को रिफ्रेश अनुभव कर रही हूँ... और बाबा की याद से बिजी देख माया भी मुझ आत्मा से दूर ही भाग जाती है...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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