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 02 / 03 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान किया ?*

 

➢➢ *कर्मेन्द्रियों से कोई उल्टा कर्म तो नहीं किया ?*

 

➢➢ *सेवा द्वारा योगयुक्त स्थित का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *आकृति को न देख निराकार बाप को देखा ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *बाप का बच्चों से इतना प्यार है जो रोज प्यार का रेसपान्ड देने के लिए इतना बड़ा पत्र लिखते हैं। याद प्यार देते हैं और साथी बन सदा साथ निभाते हैं,* तो इस प्यार में अपनी सब कमजोरियां कुर्बान कर दो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं पुण्य आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने को पुण्य आत्मा समझते हो? *सबसे बड़े ते बड़ा पुण्य है - बाप का सन्देश दे बाप का बनाना। ऐसा श्रेष्ठ कर्म करने वाली पुण्य आत्मा हो क्योंकि अब की पुण्य आत्मा सदाकाल के लिए पूज्य बन जाती है। पुण्य आत्मा ही पूज्य आत्मा बनती है।* अल्पकाल का पुण्य भी फल की प्राप्ति कराता है लेकिन वह है अल्पकाल का, यह है अविनाशी पुण्य। क्योंकि अविनाशी बाप का बनाते हो। इसका फल भी अविनाशी मिलता है।

 

  जन्म-जन्म के लिए पूज्य आत्मा बन जायेंगे। तो सदा पुण्य आत्मा समझते हुए हर कर्म पुण्य का करते रहो। पाप का खाता खत्म। पिछला पाप का खाता भी खत्म। क्योंकि पुण्य करते-करते पुण्य का तरफ ऊँचा हो जायेंगा तो पाप नीचे दब जायेगा। पुण्य करते रहो तो पुण्य का बैलेन्स बढ़ जायेगा और पाप नीचे हो जायेगा अर्थात् खत्म हो जायेगा। *सिर्फ चेक करो - हर संकल्प पुण्य का संकल्प हुआ, हर बोल पुण्य के बोल हुए? व्यर्थ बोल भी नहीं। व्यर्थ से पाप नहीं कटेगा। और पुण्य का फल भी नहीं मिलेगा इसलिए हर कर्म, हर बोल, हर संकल्प पुण्य का हो। ऐसे सदा श्रेष्ठ पुण्य का कर्म रने वाली पुण्य आत्मा हैं, यही सदा याद रखो।*

 

  संगमयुगी ब्रह्मणों का काम ही क्या है? पुण्य करना। और जितना पुण्य का काम करते हो उतनी खुशी भी होती है। चलते-फिरते किसको सन्देश देते हो तो उसकी खुशी कितना समय रहती है! तो पुण्य कर्म सदा खुशी का खजाना बढ़ाता है। और पाप कर्म खुशी गँवाता है। *अगर कभी खुशी गुम होती है तो समझो कोई न कोई बड़ा पाप नहीं तो छोटा अंश मात्र भी जरूर किया होगा। देह-अभिमान में आना यह भी पाप है ना क्योंकि बाप याद नहीं रहा तो पाप ही होगा ना। इसलिए 'सदा पुण्य आत्मा भव'।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *अपना स्वमान याद करो - मास्टर सर्वशक्तिवान, त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री, स्वदर्शन चक्रधारी, उसी स्वमान के आधार पर क्या सर्वशक्तिवान के बच्चे को कोई कमेंद्रिय आकर्षित कर सकती है?* क्योंकि समय की समीपता को देखते अपने को देखो - सेकण्ड में सर्व बन्धनों से मुक्त हो सकते हो?

 

✧  कोई भी ऐसा बन्धन रहा हुआ तो नहीं है? क्योंकि *लास्ट पेपर में नम्बरवन होने का प्रत्यक्ष प्रमाण है, सेकण्ड में जहाँ, जैसे मन-बुद्धि को लगाने चाहो वहाँ सेकण्ड में लग जाये।*

 

✧  हलचल में नहीं आये। जैसे स्थूल शरीर द्वारा जहाँ जाने चाहते हो, जा सकते हो ना! *ऐसे बुद्धि द्वारा जिस स्थिति में स्थित होने चाहो उसमें स्थित हो सकते हो?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *देह के सम्बन्ध और देह के पदार्थों से लगाव मिटाना सरल है लेकिन देह के भान से मुक्त होना मेहनत की बात है।* अभी क्या बन्धन रह गया है? यही। देह के भान से मुक्त हो जाना। जब चाहें तब व्यक्त में आयें। ऐसी प्रैक्टिस अभी जोर शोर से करनी है। *ऐसे ही समझे जैसे अब बाप आधार लेकर बोल रहे हैं वैसे ही हम भी देह का आधार लेकर कर्म कर रहे हैं। इस न्यारेपन की अवस्था प्रमाण ही प्यारा बनना है। जितना इस न्यारेपन की प्रैक्टिस में आगे होंगे उतना ही विश्व को प्यारे लगने में आगे होंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- देह सहित देह के सब संबंधों को भूल एक बाप को याद करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा घर की छत पर बैठी उड़ते हुए पंछियों को निहार रही हूँ... संध्या की सुमधुर वेला में सभी पंछी वापस अपने घोंसलों में लौट रहे हैं... इन पंछियों को देख मुझ आत्मा को अपना घर परमधाम याद आ गया... अब मुझे भी अपने घर वापस जाना है...* पहले मैं आत्मा भगवान को पाने के लिए दर-दर भटक रही थी... मंदिरों में, तीर्थों पर ढूंढ रही थी... जप, तप, पूजा, पाठ, यज्ञ, व्रत करते-करते थक गई थी... स्वयं भगवान ने कोटों में से मुझे ढूंढकर अपना बनाया और मेरी भटकन को समाप्त कर दिया... अब मीठे बाबा रूहानी पंडा बन मुझ आत्मा को रूहानी यात्रा करा रहे हैं... *मैं आत्मा चल पड़ती हूँ रूहानी यात्रा करती हुई रूहानी बाबा के पास...*

 

  *दर-दर की भटकन को खत्म कर स्वीट होम की याद दिलाते हुए स्वीट बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... खुबसूरत फूल से जो धरा पर खेलने आये थे... वह खेल अब अंतिम पड़ाव पर आ गया है... *इसलिए अब पिता का हाथ पकड़कर घर चलने की तैयारी में जुटो... बुद्धि को समेटो और साजो सामान को बिन्दु कर अशरीरी हो जाओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा इस देह और देह की दुनिया से न्यारी होकर मीठे बाबा की बाहों में मुस्कुराती हुई कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में खोकर अथाह सुख भरी दुनिया की अधिकारी बन रही हूँ... *अब हर भटकन से मुक्त होकर सत्य स्वरूप के नशे में खो गई हूँ... प्यारे बाबा आप संग घर चलने को तैयार हो रही हूँ...”*

 

  *जीवन की राह से कांटो को निकाल दिव्य किरणों की राह दिखाते हुए मनमीत मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... अब बेहद की रात पूरी होने को है... मीठे सुख भरे दिन आये की आये... बेहद के खुबसूरत खिले दिन के सच्चे सुखो में फिर आना है... *सच्चा हँसना और मुस्कराना है... इसलिए देह की दुनिया से उपराम हो सच्ची यादो में खो जाओ..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा रूहानी बाबा का हाथ थाम उनके संग रूहानी यात्रा करते हुए कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपका हाथ थाम कर हर भटकन से मुक्त हो गई हूँ... ईश्वर पिता के सच्चे साथ में महफूज़ हो गयी हूँ... *देह के दुखो से निजात पाकर अपने अविनाशी वजूद और निराकारी पिता की बाँहों में खो गयी हूँ..."*

 

  *मीठे यादों के जहाज में बिठाकर इस दुनियावी समंदर के पार ले जाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब स्वयं को कहीं भी उलझाने और भटकाने की जरूरत नही है... *अब मन्नतो का फल खुदा को ही पा लिए हो... तो उसके प्यार में फूलो सा मुस्कराओ और इन मीठी महकती यादो में खोये हुए अपने घर चलने की तैयारी करो..."*

 

_ ➳  *प्यारे बाबा की मधुर रागिनी से प्यार में डूबकर अशरीरी बन घर जाने को तैयार होती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ... मुझे तो स्वयं बाबा लेने आया है... मै आत्मा बाबा का हाथ पकड़कर सबसे आगे चलूंगी...* और मीठे सुखो की नगरी में सबसे पहले मै ही तो उतरूंगी..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  कर्मेंद्रियों से कभी कोई उल्टा कर्म नही करना है*

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स्वराज्य अधिकारी की सीट पर सेट होकर, अपनी कर्मेन्द्रियों की राजदरबार लगाकर मैं चेक कर रही हूँ कि सभी कर्मेन्द्रियाँ सुचारू रूप से कार्य कर रही हैं! *यह चेकिंग करते - करते मैं मन ही मन विचार करती हूँ कि पूरे 63 जन्म इन कर्मेन्द्रियों ने मुझ आत्मा राजा को अपना गुलाम बना कर ना जाने मुझ से क्या - क्या विकर्म करवाये*। इन विकर्मो का बोझ मुझ आत्मा के ऊपर इतना अधिक हो गया कि मैं अपने सत्य स्वरुप को ही भूल गई। मैं आत्मा अपना ही स्वधर्म, जो कि सदा शान्त और सुखमय है, उसे भूल कितनी दुखी और अशांत हो गई। किन्तु अब जबकि मेरे प्यारे पिता ने आकर मुझे फिर से मेरे सत्य स्वरूप की पहचान दे दी है कि मैं आत्मा कर्मेन्द्रियों की गुलाम नही हूँ, मैं तो राजा हूँ।

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इसलिए इस सत्य पहचान के साथ अब मुझे स्व स्वरूप में सदा स्थित रहकर, इन कर्मेन्द्रियों को अपने नियंत्रण में रखना है। *पुराने स्वभाव संस्कारो के कारण अगर कभी मन मे कोई विकल्प उतपन्न होता भी है तो भी मुझे कर्मेन्द्रियों से कोई विकर्म नही होने देना है और यह तभी होगा जब मैं सदैव स्व स्वरूप की स्थिति में स्थित रहूँगी*। मन ही मन यह चिन्तन करते हुए अपने स्व स्वरूप में स्थित होकर अब मैं अपने ही स्वरूप को देखने मे मगन हो जाती हूँ। सातों गुणों और अष्ट शक्तियों से सम्पन्न अपने अति सुन्दर निराकारी स्वरूप को मैं मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से देख रही हूँ। *दोनों आईब्रोज के बीच मस्तक पर चमकता हुए एक चैतन्य सितारे के रूप में मुझे मेरा यह स्वरूप बहुत ही लुभायमान लग रहा है*। देख रही हूँ 7 रंगों की रंगबिरंगी किरणों को मैं अपने मस्तक से निकलते हुए जिसका भीना - भीना प्रकाश मन को आनन्दित कर रहा है।

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इस प्रकाश में विद्यमान वायब्रेशन्स धीरे - धीरे मस्तक से बाहर निकल कर मेरे चारो और फैल कर मेरे आस पास के वायुमण्डल को शुद्ध और पावन बना रहे हैं।  वातावरण में एक दिव्य रूहानी खुशबू फैलती जा रही है, जो मुझे देह से डिटैच कर रही है। *देह, देह की दुनिया, देह के वैभवों, पदार्थो को भूल अब मैं पूरी तरह से अपने स्वरूप में स्थित हो गई हूँ और बड़ी आसानी से अपने अकाल तख्त को छोड़, देह से बाहर आ गई हूँ*। देह से बाहर आकर देख रही हूँ अब मैं स्वयं को देह से बिल्कुल न्यारे स्वरूप में। हर बन्धन से मुक्त इस डबल लाइट स्वरूप में स्थित होकर अब मैं धीरे - धीरे ऊपर की और जा रही हूँ।

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मन बुद्धि की एक खूबसूरत रूहानी यात्रा पर चलते - चलते मैं पांचो तत्वों की साकारी दुनिया को पार कर पहुँच गई हूँ आकाश से ऊपर और इससे भी ऊपर सौरमण्डल, तारामण्डल को पार करके, सूक्ष्म लोक से होकर अब मैं अपनी निराकारी दुनिया मे आ गई हूँ। *इस अनन्त प्रकाशमय अंतहीन निर्वाणधाम घर में अब मैं विचरण कर रही हूँ और यहाँ फैले शान्ति के वायब्रेशन्स को स्वयं में समाकर डीप साइलेन्स का अनुभव कर रही हूँ*। यह डीप साइलेन्स की अनुभूति मुझे ऐसा अनुभव करवा रही है जैसे मैं शांति की किसी गहरी गुफा में बैठी हूँ जहाँ संकल्पो की भी कोई हलचल नही। शांति की गहन अनुभूति करके अब मैं सर्वगुणों, सर्वशक्तियों के सागर अपने प्यारे पिता के पास पहुँचती हूँ । *एक अति प्रकाशमय ज्योतिपुंज के रूप में अपने शिव पिता को मैं अपने सामने देख रही हूँ*।

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उनके सानिध्य में गहन सुख और शांति की अनुभूति करते हुए मैं उनके बिल्कुल समीप पहुँच कर उन्हें टच करती हूँ। सर्वशक्तियों की तेज धारायें मुझ आत्मा में प्रवाहित होने लगती है और मुझ आत्मा पर चढ़े विकर्मो की कट उतरने लगती है। *पुराने सभी स्वभाव संस्कार सर्वशक्तियों की तेज आंच से जलने लगते हैं और मैं आत्मा स्वयं को एकदम हल्का अनुभव करने लगती हूँ*। मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकर्मो की कट को उतारने के साथ - साथ, कर्मेन्द्रियों पर जीत पाने के लिए बाबा अपनी सर्वशक्तियों का बल मेरे अंदर भरकर मुझे शक्तिशाली बना रहे हैं। सर्व शक्तियों से भरपूर होकर मैं आत्मा अब वापिस साकारी दुनिया की ओर लौट रही हूँ।

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अपने साकार तन में भृकुटि के भव्यभाल पर मैं आत्मा फिर से विराजमान हूँ और इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर अपना पार्ट बजा रही हूँ। हर कर्म अब मैं बाबा को अपने साथ रखकर, कम्बाइंड होकर करती हूँ। *बाबा की याद मेरे चारों और शक्तियों का एक ऐसा सुरक्षा कवच बना कर रखती है जिससे मैं आत्मा माया के धोखे से सदा बची रहती हूँ*। अपनी शक्तिशाली स्व स्थिति में अब मैं सदा स्थित रहती हूँ। मनसा में कोई विकल्प कभी आ भी जाये तो भी परमात्म बल के प्रयोग द्वारा, कर्मेन्द्रियों पर जीत पाकर, उनसे कोई भी विकर्म अब मैं कभी भी नही होने देती हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं सेवा द्वारा योगयुक्त स्थिति का अनुभव करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं रूहानी सेवाधारी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

  *मैं आत्मा आकृति को ना देख निराकार बाप को देखती हूँ ।*

  *मैं आत्मा आकर्षण मूर्त हूँ ।*

  *मैं निराकारी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *बापदादा ने देखा कि अमृतवेले मैजारिटी का याद और ईश्वरीय प्राप्तियों का नशा बहुत अच्छा रहता है। लेकिन कर्मयोगी की स्टेज में जो अमृतवेले का नशा है उससे अन्तर पड़ जाता है।* कारण क्या है? कर्म करते, सोल कान्सेस और कर्म कान्सेस दोनों रहता है। इसकी विधि है कर्म करते मैं आत्मा, कौन-सी आत्मा, वह तो जानते ही हो, जो भिन्न-भिन्न आत्मा के स्वमान मिले हुए हैं, ऐसी आत्मा करावनहार होकर *इन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म करने वाली हूँ, यह कर्मेन्द्रियाँ कर्मचारी हैं लेकिन कर्मचारियों से कर्म कराने वाली मैं करावनहार हूँ, न्यारी हूँ।* क्या लौकिक में भी डायरेक्टर अपने साथियों से, निमित्त सेवा करने वालों से सेवा कराते, डायरेक्शन देते, डयुटी बजाते भूल जाता है कि मैं डायरेक्टर हूँ? तो *अपने को करावनहार शक्तिशाली आत्मा हूँ, यह समझकर कार्य कराओ।*

 

 _ ➳  *यह आत्मा और शरीर, वह करनहार है वह करावनहार है, यह स्मृति मर्ज हो जाती है।* आप सबको, पुराने बच्चों को मालूम है कि ब्रह्मा बाप ने शुरू शुरू में क्या अभ्यास किया? एक डायरी देखी थी ना। सारी डायरी में एक ही शब्द - मैं भी आत्मा, जसोदा भी आत्मा, यह बच्चे भी आत्मा हैं, आत्मा है, आत्मा है... यह फाउण्डेशन सदा का अभ्यास किया। तो *यह पहला पाठ मैं कौन? इसका बार-बार अभ्यास चाहिए।* चेकिंग चाहिए, ऐसे नहीं मैं तो हूँ ही आत्मा। *अनुभव करें कि मैं आत्मा करावनहार बन कर्म करा रही हूँ। करनहार अलग है, करावनहार अलग है।*

 

✺   *ड्रिल :-  "कर्म करते कर्मयोगी स्टेज की स्थिति का अनुभव करना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा मास्टर सर्वशक्तिवान... मुझसे चारों ओर सर्व शक्तियों के वायब्रेशन्स फैल रहें हैं... मैं आत्मा सर्वशक्तिवान... शिवबाबा... से कंबाइंड हूँ... सर्वशक्तिवान की शक्तिशाली किरणें निरन्तर मुझ आत्मा पर पड़ रहीं हैं... मैं आत्मा सर्वशक्तियों से भरपूर हो रही हूँ... *वाह!! मैं पद्मापदम  सौभाग्यशाली आत्मा... जो स्वयं भगवान ने कोटो में कोई और कोई में भी कोई... मुझ आत्मा को अपना बना लिया... और मैं आत्मा परमात्म पालना में पल रही हूँ ...*

 

 _ ➳  शिवबाबा ने अपना बनाकर आत्मा और परमात्मा का... सृष्टि के आदि मध्य अंत... का सत्य ज्ञान दिया... *कर्म करने का अलौकिक ज्ञान दिया... मैं शरीर नहीं आत्मा हूँ... यह ज्ञान दिया... मैं... मेरा... मेरेपन का बोध कराया... आत्म अभिमानी और देह अभिमानी का अंतर समझाया... यह समझाया कि कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म करने वाली मैं आत्मा हूँ...* यह कर्मेन्द्रियाँ कर्मचारी हैं... लेकिन इन कर्मचारियों से *कर्म कराने वाली मैं करावनहार हूँ... न्यारी प्यारी आत्मा हूँ...*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बार बार अभ्यास करती हूँ कि मैं करावनहार बन कर्म कर रही हूँ... करनहार अलग है... करावनहार अलग है... मैं आत्मा हर कर्म बाबा की याद में रहकर करती हूँ...* योगयुक्त होकर कर्म करने से हर कर्म सहज हो जाता है... सही ढंग से... सफलतापूर्वक और समय से भी पहले हो जाता है...

 

 _ ➳  मेरा न्यारापन सभी आत्माओं को रूहानियत की ओर आकर्षित कर रहा है... यह न्यारापन ही ईश्वरीय ज्ञान को प्रत्यक्ष करेगा... *मैं आत्मा हर कर्म में न्यारी बन... कर्मयोगी स्थिति में कर्म करती हुई... श्वांसों श्वांस बाबा की याद में रह... स्वयं को करावनहार शक्तिशाली आत्मा समझ हर कर्म कर रही हूँ...*  

 

 _ ➳  *आत्मिक स्थिति में स्थित होकर कर्म करने से मैंपन समाप्त हो गया... कोई भी जिम्मेवारी बोझ नहीं लगती... निमित्त भाव, हल्के और शांत मन से कर्म करने से ख़ुशी का एहसास ही अलग है... बाबा की याद में... योगयुक्त होकर... उमंग उत्साह से कर्म बहुत सरलता से हो रहा है...* जैसे परमपिता से हमारा प्यार हमें योगी बनाता है... वैसे ही ईश्वरीय परिवार की सभी आत्माओं से प्यार हमें कर्मयोगी बना देता है...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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