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❍ 25 / 02 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *मुख से कुवचन तो नहीं निकले ?*
➢➢ *बाप की याद में रह सदैव हर्षित रहे ?*
➢➢ *पुरुषार्थ और प्रालब्ध के हिसाब को जानकार तीव्रगति से आगे बड़े ?*
➢➢ *प्रकृति को दास बना प्रकृतिजीत अवस्था का अनुभव किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *मन्सा-सेवा बेहद की सेवा है।* जितना आप मन्सा से, वाणी से स्वयं सैम्पल बनेंगे, तो सैम्पल को देखकर के स्वत: ही आकर्षित होंगे। *सिर्फ दृढ़ संकल्प रखो तो सहज सेवा होती रहेगी।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं डबल लाइट फरिश्ता हूँ"*
〰✧ सदा अपने को डबल लाइट फरिश्ता समझते हो? *फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट। जितना-जितना हल्कापन होगा उतना स्वयं को फरिश्ता अनुभव करेंगे। फरिश्ता सदा चमकता रहेगा, चमकने के कारण सर्व को अपनी तरफ स्वत: आकर्षित करता है।*
〰✧ *ऐसे फरिश्ते - जिसका देह और देह की दुनिया के साथ कोई रिश्ता नहीं। शरीर में रहते ही हैं सेवा के अर्थ, न कि रिश्ते के आधार पर। देह के रिश्ते के आधार पर नहीं रहते, सेवा के सम्बन्ध के हिसाब से रहते हो। सम्बन्ध समझकर प्रवृत्ति में नहीं रहना है, सेवा समझकर रहना है।* घर वहीं है, परिवार वही है, लेकिन सेवा का सम्बन्ध है। कर्मबन्ध के वशीभूत होकर नहीं रहते।
〰✧ सेवा के सम्बन्ध में क्या, क्यूँ नहीं होता। कैसी भी आत्माएँ हैं, सेवा का सम्बन्ध प्यारा है। जहाँ देह है वहाँ विकार हैं। देह के सम्बन्ध से विकार आते हैं, देह के सम्बन्ध नहीं तो विकार नहीं। *किसी भी आत्मा को सेवा के सम्बन्ध से देखो तो विकारों की उत्पत्ति नहीं होगी। ऐसे फरिश्ते होकर रहो। रिश्तेदार होकर नहीं। जहाँ सेवा का भाव रहता है वहाँ सदा शुभ भावना रहती है, और कोई भाव नहीं। इसको कहा जाता है - 'अति न्यारा और अति प्यारा, कमल समान'। सर्व पुरुषों से उतम फरिश्ता बनो तब देवता बनेंगे।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *जब चाहे, जैसे चाहे वैसे मन-बुद्धि-संस्कार को परिवर्तन कर सके।* टेन्शन फ्री लाइफ का अनुभव सदा इमर्ज हो। बापदादा देखते हैं कभी मर्ज हो जाता है। सोचते हैं यह नहीं करना है, यह राइट है, यह रांग है, लेकिन सोचते हैं स्वरूप में नहीं लाते हैं।
〰✧ *सोचना माना मर्ज रहना, स्वरूप में लाना अर्थात इमर्ज होना।* समय के लिए तो नहीं इन्तजार कर रहे हो ना! कभीकभी करते हैं। रूहरिहान करते है ना तो कई बच्चे कहते हैं, समय आने पर ठीक हो जायेंगे। *समय तो अपकी रचना है।*
〰✧ आप तो मास्टर रचता हो ना! तो मास्टर रचता, रचना के आधार पर नहीं चलते। *समय को समाप्ति के नजदीक आप मास्टर रचता को लाना है।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *एक सेकंड भी अव्यक्त स्थिति का अनुभव होता है तो उसका असर काफी समय तक रहता है।* अव्यक्त स्थिति का अनुभव पावरफुल होता है। जितना हो सके उतना अपना समय व्यक्त भाव से हटाकर अव्यक्त स्थिति में रहना है। *अव्यक्त स्थिति से सर्व संकल्प सिद्ध हो जाते हैं। इसमें मेहनत कम और प्राप्ति अधिक होती है।* और व्यक्त स्थिति में स्थित होकर पुरुषार्थ करने में मेहनत अधिक और प्राप्ति कम होती है। फिर चलते-चलते उलझन और निराशा आती है। *इसलिए अव्यक्त स्थिति से सर्व प्राप्ति का अनुभव बढ़ाओ।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप को यथार्थ रीति जानकर याद करना"*
➳ _ ➳ *ओम शांति बाबा... ये शब्द कितना गुह्य है बाबा, जिसका राज आपने अब सम्मुख
बैठ समझाया है... ओम अर्थात मैं आत्मा... शांति अर्थात शांत... अर्थात मैं आत्मा
शांत स्वरूप हूं...* पहले - पहले बाबा, मुझ आत्मा को न स्वयम का परिचय था, न आपका...
आप मिले, तो जाना, मैं आत्मा हूं... यह मेरा शरीर हैं... मैं आत्मा, माना स्टार
हूं... मेरे पिता परमपिता परमात्मा, वह भी स्टार है... *यह राज बाबा आपने हम
ब्राह्मण आत्माओं को बताया... संसार में कोई और इस यथार्थ परिचय को नहीं जानता...*
❉ *निराकारी बाबा मुझ आत्मा पर सात रंगों की किरणों की बौछार करते हुए बोले:-* "मीठी
बच्ची... *द्वापर से तुम मुझे पुकारती आई हो... मंदिरों में, मेरे लिंग चिन्ह को
पूजती आई हो...* दर - दर, तुमने कितने धक्के खाए!... अब, मैं आया हूं... तुम्हें सभी
धक्कों से छुड़ाने... तुम्हारी भक्ति का फल देने... *अब मेरे यथार्थ स्वरूप को
पहचान मुझे याद करो..."*
➳ _ ➳ *मीठे बाबा से शक्तिशाली किरणें स्वयं में भरती मैं आत्मा बाबा से बोली:-*
"हां बाबा... *अब मुझे आप का यथार्थ परिचय मिला है, मालूम हुआ है, कि आप कोई
शरीरधारी नहीं... जन्म मरण से न्यारे हो... मुझ समान ही स्टार हो...* ज्योति बिंदु
हो... परमधाम निवासी हो... अब मैं आत्मा, आपके अथार्थ स्वरूप को जान, मुझ आत्मा के
पिता जो कि मेरे समान है याद कर रही हूं..."
❉ *स्नेह सागर अपने स्नेह की रूहानी किरणों से मुझ आत्मा को भरपूर करते हुए बोले:-*
"मीठी बच्ची... *अब तक तुमने मेरे सही स्वरूप को याद नहीं कर अपने पापों को न काटा
है... अब, मेरे यथार्थ स्वरुप को जान तुम्हारे विकर्म विनाश हो रहे हैं... मीठी
बच्ची अब जरूरत हैं जवालामुखी याद की...* अब इस याद को ज्वालामुखी रूप दो, ताकि यह
विकर्म इस याद रूपी अग्नि में पूरी तरह भसम हो..."
➳ _ ➳ *स्नेह सागर की शिक्षाओं को सर माथे रख मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "जी बाबा...
*मैं आत्मा अब याद रूपी चिता पर स्थित हूं... बिंदु स्वरूप में स्थित मैं आत्मा
परमधाम में, आपके बिंदु स्वरूप को निहार रही हूं...* मैं देखती हूं आपसे पवित्रता
की किरणें मुझ आत्मा में समाती जा रही हैं... मैं आत्मा स्वयं को पवित्रता से
सम्पन्न महसूस कर रही हूं... भरपूर महसूस कर रही हूं..."
❉ *पवित्रता से ओतप्रोत मुझ आत्मा से निराकारी बाबा बोले:-* "मीठी बच्ची... *याद पर
ही सारा मदार है, जहां याद है वहाँ बाप भी बच्चो को याद करते हैं, मदद करते हैं...
जितना बच्चे बाप को याद करते हैं, उतना फिर बाप भी बच्चों को याद करते हैं...* जितना
उच्च भाग्य आप आत्माओं का है उतना किसी और मनुष्य का नहीं... तो इस भाग्य को याद कर
कितना रूहानी नशा रहना चाहिए..."
➳ _ ➳ *स्नेह सागर के स्नेह में खोई, लवलीन मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "हां मीठे
बाबा... अब कोई सुध नहीं... न इस शरीर की... न शरीर के संबंधों की... दुनिया के
चमकीले आकर्षणों से भी मैं आत्मा मुक्त हूं... *अभी याद है तो बस बाप... निरंतर आपकी
याद में खोई हुई, मैं आत्मा अपनी कर्मातीत अवस्था को देख रही हूं..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप की याद में रह सदैव हर्षित रहना है, कभी मुरझाना नही है*"
➳ _ ➳ स्वयं भगवान को बाप, टीचर, गुरु के रूप में पा कर, खुशी में गदगद होती हुई,
मैं मन ही मन विचार करती हूँ कि यह बात तो मैंने कभी स्वपन में भी नही सोची थी। *कभी
मन मे ये ख्याल भी नही आया था कि भगवान बाप बन पालना कर सकता है, टीचर बन पढ़ा सकता
है और गुरु बन मुझे सत्य मार्ग दिखा सकता है!*
➳ _ ➳ "वाह रे मैं आत्मा" जो आठ सौ करोड़ आत्माओं में से भगवान ने आ कर ना केवल मुझे
चुन कर अपना बनाया बल्कि बाप का स्नेह, टीचर का मार्गदर्शन और गुरु का सहारा दे कर
इस दुनिया की भीड़ में मुझेे खचित होने से बचा लिया। *इस पतित विकारी दुनिया मे फंस
कर मैं कितनी गन्दी, छी - छी बन गई थी किन्तु भगवान बाप ने आकर मुझे इस पतित विकारी
दुनिया से निकाल कर अपने मस्तक की चमकती हुई मणि बना लिया*। इस विकारी दुनिया के
विकारी सम्बन्धों के बन्धन से मुझे मुक्त कर जीवन मुक्ति का अनुभव करवा दिया। अपने
ऐसे मीठे बाप, टीचर, गुरु पर मुझे कितना ना बलिहार जाना चाहिए!
➳ _ ➳ मेरा यह अनमोल ब्राह्मण जीवन मेरे भगवान बाप, टीचर, गुरु की ही तो देन है।
इसलिए अब मुझे अपने इस ब्राह्मण जीवन को अपने भगवान बाप पर सम्पूर्ण रीति समर्पित
कर देना है। मन ही मन स्वयं से यह प्रतिज्ञा करते हुए मैं अपने भगवान बाप की मीठी
स्नेह भरी याद में खो जाती हूँ। *अपने मन की तार को अपने भगवान बाप के साथ जोड़,
बुद्धि के विमान पर मैं सवार होती हूँ और उस विमान को ऊपर आकाश की ओर ले कर चल पड़ती
हूँ*। बुद्धि के विमान पर बैठ रूहानी यात्रा का आनन्द लेते - लेते आकाश को पार कर,
सूक्ष्म लोक से परे मैं पहुंच जाती हूँ अपने निराकार भगवान बाप, टीचर, गुरु के पास
उनके धाम।
➳ _ ➳ आत्माओं की इस अति सुन्दर निराकारी दुनिया में मैं देख रही हूँ मणियों के
समान चमकते अपने आत्मा भाइयों को जो परमात्म शक्तियों की छत्रछाया में बैठ
अतीन्द्रिय सुख ले रहे हैं। अब मैं भी स्वयं को परमात्म छत्रछाया के नीचे देख रही
हूँ। *बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की शीतल छाया के नीचे बैठ मैं असीम आनन्द की
अनुभूति में सहज ही स्थित हो रही हूँ*। सर्वशक्तियों की किरणों का झरना मुझ आत्मा
पर बरसता हुआ मुझे अतींद्रिय सुख का अनुभव करवा रहा है। *ऐसा लग रहा है जैसे ऊर्जा
के भंडार मेरे शिव पिता अपनी समस्त ऊर्जा मुझ में प्रवाहित कर मुझे बलशाली बना रहे
हैं*। स्वयं को मैं बहुत ही ऊर्जावान अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ समस्त शक्तियों को स्वयं में समाकर शक्तिशाली बन कर अब मैं आत्मा परमधाम से
नीचे सूक्ष्म लोक में प्रवेश कर रही हूँ। *अपने भगवान बाप को अब मैं ब्रह्मा बाबा
की भृकुटि में टीचर के रूप में देख रही हूँ*। बापदादा मेरे सम्मुख आ कर ज्ञान के
अविनाशी खजाने से मुझे भरपूर कर रहें हैं। उनकी अनमोल शिक्षाओं को जीवन मे धारण करने
की दृढ़ प्रतिज्ञा कर, अब मैं सूक्ष्म लोक से नीचे साकार लोक की ओर आ रही हूँ।
➳ _ ➳ यहां मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हूँ और अपने भगवान बाप को गुरु के
रूप में निरन्तर अपने साथ अनुभव कर रही हूँ। *उनके वरदानों से स्वयं को हर समय
भरपूर अनुभव करते हुए मैं उनके दिखाए हुए सत्य मार्ग पर निरन्तर आगे बढ़ रही हूँ*।
स्वयं भगवान बाप, टीचर, गुरु के रूप में मुझे मिला है, इस बात को स्मृति में रख, सदा
हर्षित रहते हुए मैं संगमयुग की मौजों का आनन्द ले रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं पुरुषार्थ और प्रालब्ध को जानने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं तीव्रगति से आगे बढ़ने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं नॉलेजफुल आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा प्रकृति का दास बन उदास होने से मुक्त हूँ ।*
✺ *मैं प्रकृतिजीत आत्मा हूँ ।*
✺ *मैं खुशनुमा आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *फरिश्ता बनना वा निराकारी, कर्मातीत अवस्था बनने का विशेष साधन है निरंहकारी बनना। निरंहकारी ही निराकारी बन सकता है*। इसलिए बाप ने ब्रह्मा द्वारा लास्ट मन्त्र निराकारी के साथ निरंहकारी कहा। *सिर्फ अपनी देह या दूसरे की देह में फँसना, इसको ही देह अहंकार या देहभान नहीं कहा जाता है*। देह अहंकार भी है, देह भान भी है। अपनी देह या दूसरे की देह के भान में रहना, लगाव में रहना - उसमें तो मैजारिटी पास हैं। *जो पुरुषार्थ की लगन में रहते हैं, सच्चे पुरुषार्थी हैं, वह इस मोटे रूप से परे हैं*। लेकिन *देह-भान के सूक्ष्म अनेक रूप हैं*, इसकी लिस्ट आपस में निकालना। बापदादा आज नहीं सुनाते हैं। आज इतना ही इशारा बहुत हैं क्योंकि सभी समझदार हैं। आप सब जानते हो ना, अगर सभी से पूछेंगे ना, तो सब बहुत होशियारी से सुनायेंगे। लेकिन *बापदादा सिर्फ छोटा-सा सहज पुरुषार्थ बताते हैं कि सदा मन-वचन-कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क में लास्ट मन्त्र तीन शब्दों का (निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी) सदा याद रखो*। संकल्प करते हो तो चेक करो - महामन्त्र सम्पन्न है? ऐसे ही *बोल, कर्म सबमें सिर्फ तीन शब्द याद रखो और समानता करो*। यह तो सहज है ना? *सारी मुरली नहीं कहते हैं याद करो, तीन शब्द। यह महामन्त्र संकल्प को भी श्रेष्ठ बना देगा। वाणी में निर्माणता लायेगा। कर्म में सेवा भाव लायेगा। सम्बन्ध-सम्पर्क में सदा शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना की वृत्ति बनायेगा*।
✺ *ड्रिल :- "तीन शब्दों के महामन्त्र (निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी) की स्मृति में रहने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *मन, वचन, कर्म एवं सम्बन्ध- सम्पर्क में तीन मन्त्रों की स्मृति संजोयें मैं आत्मा*... साक्षी भाव से देख रही हूँ... अपने हर संकल्प बोल और कर्म को.. *मेरा हर संकल्प, बोल और कर्म बाप समान... बीजरूप और निराकारी... बस केवल एक की ही याद और उसी का स्वरूप बनती जा रही हूँ मैं... दूर दूर तक फैलता... मुझसे मेरे गुणों और शक्तियों का प्रकाश* मुझ आत्मा की विशेषताऐं सम्पूर्ण वातावरण को विशेष बना रही है...
➳ _ ➳ *प्रकाश की बदली बन... मेरी भृकुटि पर स्नेह और शक्तियों की बारिश करते शिव पिता*... और स्नेह की इस बारिश में मग्न... और पूरी तरह भीगी मैं आत्मा, चातक की तरह सम्पूर्ण स्नेह राशि को पीने की उत्कंठा मन में समायें... मैं उनके स्नेह को निरन्तर आत्मसात कर रही हूँ... *स्नेह का ये अटूट सा प्रवाह मेरे संकल्पों और बोल में समां रहा है... संकल्प और बोल में निरंहकारी मैं आत्मा अपने गुणों व शक्तियों के प्रति एकदम निमित्त भाव, निरंहकारी भाव रख... प्रभु प्रसाद मानकर उसको सफल कर रही हूँ*...
➳ _ ➳ मेरा हर संकल्प शुभ भाव और कर्म शुभ कामना बन सेवा कर रहा है... *मेरे हर बोल में निर्माणता आती जा रही है... सम्बन्ध सम्पर्क में शुभ वृत्ति मुझे प्यारा और न्यारा बना रही है... शिव पिता का स्नेह अब सागर का रूप लेता जा रहा है मेरे लिए*... स्नेह सागर की गहराईयों में समाती हुई मैं झिलमिलाती मणि... देह भान के हर स्थूल रूप पर विजयी मैं आत्मा लगाव के सूक्ष्म रूपों की सूक्ष्म चैकिंग कर रही हूँ...
➳ _ ➳ *स्वयं को लगाव झुकाव के सभी स्वर्ण धागों मुक्त करती जा रही हूँ*... उन्मुक्त गगन में उडते पंछी की भाति... *देह में, संबन्धों में, सेवा में, गुणों और शक्तियों में "मेरापन" भी एक विकार है*... मैं निराकारी निरंहकारी आत्मा इन सब "मैं" के विकारों से भी पूरी तरह मुक्त हो रही हूँ... फरिश्ता स्वरूप धारण कर मैं आत्मा बाप समान कर्मातीत अवस्था का अनुभव कर रही हूँ... अब मैं आत्मा सूक्ष्म वतन में बापदादा के सम्मुख... आईना के समान सत्य दिखलाती उनकी आँखों में अपना स्वरूप निहार रही हूँ...
➳ _ ➳ *और देख रही हूँ उनकी आँखों में स्वयं के लिए वो प्यार, वो प्रशंसा जो दुनिया के किसी शब्द कोश में नही है*... स्वयं को साक्षी होकर देखती हुई... *बाप समान ही मेरा ये निराकारी निरंहकारी और निर्विकारी रूप*... और तभी प्रकाश का एक विशाल घेरा हम दोनों को बिन्दु बना ले चला परम धाम की ओर... *परमधाम में मैं और बाबा एक समान*... बीज रूप स्थिति में स्वयं को भरपूर कर रहा हूँ... और अब लौट रहा हूँ अपनी देह में... *संकल्प, वाणी, कर्म, सम्बन्ध, सम्पर्क में एक दम बाप समान... श्रेष्ठता निर्माणता सेवा भाव और शुभभावनाओं से भरपूर*...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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