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❍ 29 / 01 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *सजाओं स एबचने के लिए योग बल जमा किया ?*
➢➢ *अपने पूर्वज स्वरुप की स्मृति द्वारा सर्व आत्माओं को शक्तिशाली बनाया ?*
➢➢ *मास्टर ज्ञान सूर्य बन सर्व शक्तियों की किरणों को चारों और फैलाया ?*
➢➢ *बीच बीच में संकल्पों की ट्रैफिक को स्टॉप करने का अभ्यास किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे मोटेपन को मिटाने का साधन है खान-पान की परहेज और एक्सरसाइज। वैसे यहाँ भी *बुद्धि द्वारा बार-बार अशरीरीपन की एक्सरसाइज करो और बुद्धि का भोजन संकल्प है उनकी परहेज रखो, तो मन लाइट एकरस और शक्तिशाली बन जायेगा।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बंधनमुक्त सहजयोगी आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा स्वयं को बन्धनमुक्त आत्मा अनुभव करते हो? स्वतन्त्र बन गये या अभी कोई बन्धन रह गया है? *बन्धनमुक्त की निशानी है - 'सदा योगयुक्त'। योगयुक्त नहीं तो जरूर बन्धन है।* जब बाप के बन गये तो बाप के सिवाए और क्या याद आयेगा?
〰✧ सदा प्रिय वस्तु या बढीया वस्तु याद आती है ना। तो बाप से श्रेष्ठ वस्तु या व्यक्ति कोई है? *जब बुद्धि में यह स्पष्ट हो जाता है कि बाप के सिवाए और कोई भी श्रेष्ठ नहीं तो 'सहजयोगी' बन जाते हैं।*
〰✧ *बन्धनमुक्त भी सहज बन जाते हैं, मेहनत नहीं करनी पड़ती। सब सम्बन्ध बाप के साथ जुड़ गये। मेरा-मेरा सब समाप्त, इसको कहा जाता है - सर्व सम्बन्ध एक के साथ।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ तो औरों के सेवा की बहुतबहुत-बहुत आवश्यकता है। तो यह तो कुछ भी नहीं है। बहुत नाजुक समय आना ही है। *ऐसे समय पर आप उडती कला द्वारा फरिश्ता बन चारों ओर चक्कर लगाते, जिसको शान्ति चाहिए, जिसको खुशी चाहिए, जिसको सन्तुष्टता चाहिए, फरिश्ते रूप में सकाश देने का चक्कर लगायेंगे और वह अनुभव करेंगे।*
〰✧ जैसे अभी अनुभव करते हैं ना, पानी मिल गया बहुत प्यास मिटी खाना मिल गया, टेन्ट मिल गया, सहारा मिल गया। ऐसे अनुभव करेंगे फरिश्तों द्वारा शान्ति मिल गई, शक्ति मिल गई, खुशी मिल गई। *ऐसे अन्त: वाहक अर्थात अन्तिम स्थिति, पॉवरफुल स्थिति आपका अन्तिम वाहन बनेगा।*
〰✧ और चारों ओर चक्कर लगाते सबको शक्तियाँ देंगे, साधन देंगे। अपना रूप सामने आता है? इमर्ज करो। कितने फरिश्ते चक्कर लगा रहे हैं। सकाश दे रहे हैं, तब कहेंगे जो आप एक गीत बाजते हो ना - शक्तियाँ आ गई... *शक्तियों द्वारा ही सर्वशक्तिवान स्वतः सिद्ध हो जायेगा।* सुना।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ अपने को आत्मा समझ उस स्वरूप में स्थित होना है। *जब स्व-स्थिति में स्थित होंगे, तो भी अपने जो गुण हैं वह तो अनुभव होंगे ही। जिस स्थान पर पहुँचा जाता है उसके गुण न चाहते हुए भी अनुभव होते हैं। आप किसी शीतल स्थान पर जायेंगे, तो न चाहते हुए भी शीतलता का अनुभव होगा।* आत्माभिमानी अर्थात् बाप की याद। *आत्मिक-स्वरूप में बाबा की याद नहीं रहे - यह तो हो नहीं सकता है। जैसे बाप-दादा - दोनों अलग-अलग नहीं है, वैसे आत्मिक निश्चय बुद्धि से बाप की याद भी अलग नहीं हो सकती है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल
:- बाप की श्रीमत पर चलते रहना"*
➳ _ ➳ *सागर किनारे बैठी मैं आत्मा बाबा को स्नेह से याद कर रही हूँ... सागर की
कल कल करती लहरों को देखते-देखते, प्रकृति के सामीप्य में... सहज ही मन मीठे
बाबा की यादों में मगन हो रहा है... मैं अनुभव करती हूँ बापदादा ने पीछे से आकर
मेरे कंधे पर अपना मजबूत हाथ रख दिया है... पीछे मुड़ती हूँ तो अपने समीप अपने
मीठे बाबा को देखती हूँ...* बाबा के चेहरे का प्रकाश चारों और दिव्यता फैला रहा
है... उनकी हंसी मुझे असीम आनंद से भर रही है... बाबा की मंद मंद मुस्कान, दमकते
चेहरे को देखकर यह महसूस हो रहा है कि... आज बाबा से बहुत सुंदर रुहरुहान होने
वाली है... मेरे मन में भी उत्सुकता हो रही है कि आज बाबा मुझे क्या कहने वाले
हैं...
❉ *अपनी मीठी मुस्कान से आत्मा में आनंद रस घोलते हुए बाबा कहते हैं:-* "मेरे
मीठे लाडले बच्चे... तुम आधाकल्प से अपने को भूले हुए माया के थपेड़े खाते भटकते
आए हो... अब मैं तुम्हें सच्चा रास्ता दिखाने आया हूँ... *यह तुम्हारा अंतिम
जन्म है... इसलिए तुम एक मुझ में ही निश्चय रखो... परमत, मनमत का त्याग कर एक
मेरी ही श्रीमत पर चलो... जो सभी तरह से सुख देने वाली है..."*
➳ _ ➳ *बाबा के सच्चे स्नेह में लीन होती मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे दिलाराम
बाबा... आपने आकर मुझे सच्चा सुख दिया है... मुझे जन्म जन्म की भटकन से बचा लिया
है... अब मैं सिर्फ आपको ही अपनी यादों में समाया हुआ पाती हूँ... *आपकी बताई
शिक्षाओं पर, आपके बताये मार्ग पर ही चल रही हूँ... मैं कितनी भाग्यवान आत्मा
हूँ... स्वयं भगवान सतगुरु बनकर आ गए हैं... मुझे मुक्ति और जीवनमुक्ति का
मार्ग दिखा रहे हैं..."*
❉ *मुझ आत्मा को अपने दिलतख्त पर बिठाके बेहद प्यार बरसाते हुए बाबा कहते
हैं:-* "मीठे मीठे सपूत बच्चे... मैं तुम्हें कलियुगी दलदल से निकालकर पहले
मुक्तिधाम ले जाता हूँ... फिर वहाँ से सतयुगी सुखों की दुनिया में ले जाता
हूँ... *इसके लिए मैं जो मत तुम्हें देता हूँ... वह सबसे न्यारी है... कोई भी
देहधारी गुरू, सन्त महात्मा यह मत नहीं दे सकते... इसलिए ही गाया जाता है...
तुम्हारी गत मत तुम ही जानो... तुम मेरी इस श्रेष्ठ मत को अपने जीवन में धारण
करो..."*
➳ _ ➳ *बाबा की गोद में बैठ पुलकित होती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे मन के
मीत मीठे बाबा... आपकी श्रीमत मुझ आत्मा के लिए हर प्रकार से कल्याणकारी है...
*मनमत, परमत पर चल के तो आधा कल्प दुःख पाया, भटकते रहे... अब मैं आपकी शिक्षाएं
ही धारण करूँगी... आपकी ही मत पर चलके भविष्य के लिए अपना श्रेष्ठ भाग्य जमा
करूँगी..."*
❉ *मुझे सभी चिंताओं से मुक्त कर बेगमपुर का बादशाह बनाते हुए बाबा कहते हैं:-*
"मेरे लाडले सिकीलधे बच्चे... गति सदगति करने की मत मैं ही आकर बताता हूँ...
मनुष्य गुरु कोई भी सदगति नहीं कर सकते... वे कोई भी कह नहीं सकते कि... *मैं
तुम्हें अपने साथ ले जाऊँगा... सर्व का सदगति दाता, लिबरेटर एक मैं ही हूँ...
तुम कदम कदम पर मुझ से राय लो... एक मेरी शिक्षाओं को ही अमल में लाओ..."*
➳ _ ➳ *बाबा के हाथ और साथ से संगम के हर पल में मौज मनाती मैं आत्मा कहती
हूँ:-* "मेरे दिल के सहारे प्यारे बाबा... मैंने एक दिलाराम को ही अपने दिल में
बसा लिया है... *आपकी शिक्षाएं ही मेरे जीवन का श्रृंगार कर रही हैं... आपकी
बाहों में ही मैंने सच्चा सुख पाया है... अब मैं सदा आपकी श्रीमत पर ही चल रही
हूँ...* आप मुझे सर्व सुखों की जागीर देने आए हैं... उसे पाने के लिए मैं स्वयं
को हर प्रकार से योग्य बनाती जा रही हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल
:- पास विद ऑनर बनने का पूरा - पूरा पुरुषार्थ करना है*"
➳ _ ➳ स्वयं भगवान द्वारा पढ़ाई जाने वाली इस ईश्वरीय पढ़ाई में पास विद
ऑनर होने के लक्ष्य को पाने के लिये मुझे इस बात का पूरा ख्याल रखना है कि कभी
भी मनसा - वाचा - कर्मणा मुझ से कोई भी भूल ना हो। *मन ही मन स्वयं से यह दृढ़
प्रतिज्ञा कर मैं एकांत में बैठ अपनी चेकिंग करती हूँ कि क्या मेरे हर संकल्प,
बोल और कर्म में सर्व के प्रति कल्याण की भावना समाई रहती है*! मेरे
संकल्प व्यर्थ और अकल्याणकारी तो नही होते! मेरे बोल दूसरों को दुख देने का
कारण तो नही बनते और मुझसे ऐसा कोई कर्म तो नही होता जिससे किसी को कष्ट हो!
➳ _ ➳ यह सोचते और अपनी चेकिंग करते हुए मैं विचार करती हूँ कि दुख
हर्ता सुख कर्ता बाप की सन्तान मैं आत्मा भी तो उनके समान मास्टर दुख हर्ता सुख
कर्ता हूँ तो *बाप समान सर्व आत्माओं को दुःखो से छुड़ा कर उन्हें सुख देना मेरा
परम कर्तव्य है और इस कर्तव्य को पूरा करने के लिए अपने हर संकल्प,
बोल और कर्म पर मुझे विशेष अटेंशन अवश्य देना है*। इसी दृढ़ संकल्प के
साथ मनसा वाचा कर्मणा तीनो रूपों से स्वयं को शक्तिशाली बनाने के लिए अब मैं
अपने शिव पिता के पास जाने का संकल्प कर,
अशरीरी स्थिति के अभ्यास द्वारा अपने दिव्य ज्योतिर्मय स्वरूप में स्थित
होती हूँ और मन बुद्धि को हर चीज के प्रभाव से मुक्त कर,
अपने सम्पूर्ण ध्यान को केवल भृकुटि पर एकाग्र कर लेती हूँ।
➳ _ ➳ एकाग्रता की शक्ति सेकण्ड में मुझे देह और देह की दुनिया के हर
प्रकार के आकर्षण से मुक्त कर अति न्यारी और प्यारी स्थिति में स्थित कर देती
है। *ज्ञान के दिव्य चक्षु से मुझे मेरा पूर्ण प्रकाशित स्वरूप स्पष्ट दिखाई
देने लगता है*। मेरा यह अति सुन्दर न्यारा और प्यारा स्वरूप मुझे डीप साइलेन्स
का गहराई तक अनुभव करवा रहा है। देह,
देह से जुड़ी हर वस्तु से मैं स्वयं को पूर्णतया मुक्त अनुभव करने लगी
हूँ।
➳ _ ➳ इस न्यारी अवस्था में स्थित होते ही मैं स्वयं को विदेही,
निराकार और मास्टर बीज रुप स्थिति में अपने बीच रुप परम पिता परमात्मा,
संपूर्णता के सागर,
पवित्रता के सागर,
सर्वगुण और सर्व शक्तियों के अखुट भंडार,
ज्ञान सागर,
पारसनाथ बाप के सामने परम धाम में देख रही हूँ। *कोई संकल्प कोई विचार
अब मेरे मन में नही है। एकदम निर्संकल्प अवस्था। बस बाबा और मैं। बीज रुप बाप
के सामने मैं मास्टर बीज रुप आत्मा डेड साइलेंस की स्थिति में स्थित हो कर
अतीन्द्रिय सुख का सहज अनुभव कर रही हूँ*।
➳ _ ➳ स्वयं को निराकार महाज्योति अपने प्यारे परम पिता परमात्मा शिव
बाबा के सम्मुख देखते हुए उनसे निकल रही अनन्त शक्तियों को स्वयं में समा कर
मैं स्वयं को शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। उनकी किरणों की शीतल छाया मुझे गहन
शांति का अनुभव करवा रही हैं। *सर्वशक्तियों से भरपूर हो कर मैं आ जाती हूँ
परमधाम से नीचे फरिश्तों की जगमग करती हुई दुनिया में*। सफेद चमकीली फरिश्ता
ड्रेस धारण कर मैं फरिश्ता पहुँच जाता हूँ अव्यक्त वतन वासी अपने प्यारे ब्रह्मा
बाबा के सामने जिनकी भृकुटि में शिवबाबा चमक रहें हैं। *बापदादा बड़े प्यार से
निहारते हुए अपनी मीठी दृष्टि मुझ पर डाल रहे हैं। उनकी शक्तिशाली दृष्टि से
मुझ फरिश्ते के अंदर परमात्म बल भरता जा रहा है जो मुझे शक्तिशाली बना रहा है*।
➳ _ ➳ परमात्म बल,
परमात्म शक्तियों से भरपूर हो कर मैं आत्मा अब वापिस अपनी कर्मभूमि पर
लौट आती हूँ और अपना देह रूपी वस्त्र धारण कर पास विद ऑनर होने के पुरुषार्थ
में लग जाती हूँ। *अपनी अवस्था जमाने के लिए मैं हर कर्म अब अपने प्राण प्रिय
शिव बाबा की याद मे रहकर करती हूँ*। चलते फिरते बुद्धि का योग केवल अपने शिवपिता
के साथ जोड़ कर,
अपनी मनसा,
वाचा,
कर्मणा पर मैं सम्पूर्ण अटेंशन देती हूँ। मनसा वाचा कर्मणा तीनो रूपों
में किसी को भी मेरे कारण दुख न पहुंचे,
इस बात पर सम्पूर्ण ध्यान देते हुए,
अपने सम्पूर्णता के लक्ष्य को पाकर पास विद होने का पुरुषार्थ अब मैं
निरन्तर कर रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺
*मैं अपने पूर्वज स्वरूप की स्मृति द्वारा सर्व आत्माओं को शक्तिशाली बनाने वाली
आत्मा हूँ।*
✺ *मैं आधारमूर्त आत्मा हूँ।*
✺ *मैं उद्धारमूर्त आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺
*मैं आत्मा सर्व शक्तियों रूपी किरणों को सदा चारों ओर फैलाती हूँ ।*
✺ *मैं मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ ।*
✺ *मैं शक्तिशाली आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *जो ब्रह्मा बाप ने आज के दिन तीन शब्दों में शिक्षा दी, (निराकारी, निर्विकारी और निरअहंकारी) इन तीन शब्दों के शिक्षा स्वरूप बनो। मनसा में निराकारी, वाचा में निरअहंकारी, कर्मणा में निर्विकारी। सेकण्ड में साकार स्वरूप में आओ, सेकण्ड में निराकारी स्वरूप में स्थित हो जाओ। यह अभ्यास सारे दिन में बार-बार करो।* ऐसे नहीं सिर्फ याद में बैठने के टाइम निराकारी स्टेज में स्थित रहो लेकिन बीच-बीच में समय निकाल इस देहभान से न्यारे निराकारी आत्मा स्वरूप में स्थित होने का अभ्यास करो। *कोई भी कार्य करो, कार्य करते भी यह अभ्यास करो कि मैं निराकार आत्मा इस साकार कर्मेन्द्रियों के आधार से कर्म करा रही हूँ। निराकारी स्थिति करावनहार स्थिति है। कर्मेन्द्रियाँ करनहार हैं, आत्मा करावनहार हैं। तो निराकारी आत्म स्थिति से निराकारी बाप स्वतः ही याद आता है।* जैसे बाप करावनहार हैं ऐसे मैं आत्मा भी करावनहार हूँ। इसलिए कर्म के बन्धन में बंधेंगे नहीं, न्यारे रहेंगे क्योंकि कर्म के बन्धन में फँसने से ही समस्यायें आती हैं। सारे दिन में चेक करो -करावनहार आत्मा बन कर्म करा रही हूँ? अच्छा! अभी मुक्ति दिलाने की मशीनरी तीव्र करो।
✺ *ड्रिल :- "निराकारी, निर्विकारी और निरअहंकारी बनने का अनुभव"*
➳_ ➳ *मैं आत्मा भृकुटी सिंहासन में विराजमान मन-बुद्धि द्वारा आत्मा रूपी रंग-बिरंगी मोरनी एक बगीचे में पहुँचती हूँ...* मेरे पँखो पर विकार रूपी मैल चढ़ी हुई हैं... अहंकार रूपी कीचड़ में गलकर टूट चुकें हैं... अहंकार के वश रहकर मैं अपने आप को ही भूल चुकी हूँ कि मैं कौन हूँ... आस-पास का वातावरण भी मेरी मैल से दूषित हो चुका है... मैं खुशी रूपी बारिश में न ही नृत्य कर पाती हूँ, न ही उसका लुफ्त उठा पाती हूँ...
➳ _ ➳ अचानक परमधाम से शिव बाबा आ रहे है... *बाबा मुझ आत्मा रूपी मोरनी पर अपनी सुनहरी किरणें न्यौछावर कर रहे हैं... मेरे पँखो से मैल धीरे-धीरे साफ हो रही हैं... वह सोने के पँख बन चुके हैं... अब मैं मनसा में निराकारी, वाचा में निरअहंकारी, कर्मणा में निर्विकारी स्थिति में स्थित रहती हूँ...* देही-अभिमानी स्थिति में स्थित रहती हूँ... अंश मात्र भी अहंकार नहीं करती हूँ... अब कोई भी विकारों के वश कर्म नहीं करती हूँ...
➳ _ ➳ मैं एक सेकंड में साकार स्वरूप में, सेकण्ड में निराकारी स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ... यह अभ्यास सारे दिन में बार-बार करती हूँ... सिर्फ याद पर बैठने के समय ही नहीं बल्कि हर समय देहभान से न्यारे निराकारी आत्मा स्वरूप में स्थित होने का अभ्यास करती हूँ... *जब कोई भी कार्य करती हूँ तो यह अभ्यास करती हूँ कि मैं निराकार आत्मा इस साकार कर्मेन्द्रियों के आधार से कर्म करा रही हूँ...*
➳ _ ➳ *कर्मेन्द्रियाँ करनहार हैं, आत्मा करावनहार हैं... अब मैं आत्मा कर्म के बन्धन में नहीं बंधती हूँ... हमेशा न्यारी रहती हूँ...* सारे दिन में चेक करती हूँ कि मैं करावनहार आत्मा बन कर्म करा रही हूँ या नहीं... मैं आत्मा सभी को दुःखों से मुक्ति दिला रही हूँ... मैं आत्मा बाबा से मिली हुई शक्तियों को यूज़ करके मुक्ति दिलाने की मशीनरी तीव्र कर रही हूँ... मैं आत्मा उमंग-उत्साह में रहकर चढ़ती कला का अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं हर कर्म करते वक्त बाबा को ही याद करती हूँ... *मैं जो भी कर्म करती हूँ उसमें सफलता मिलती जा रही हैं... बाबा ने हर कार्य आसान कर दिया हैं... अब मैं बाप समान होने की अनुभूति कर रही हूँ...* एक बाप की याद में रहकर मैं ऊँच स्थान प्राप्त करने के लिए बाबा की श्रीमत को अच्छे से फॉलो कर रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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