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 08 / 01 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *विचार सागर मंथन की आदत डाली ?*

 

➢➢ *बालक सो मालिक के पाठ द्वारा निरहंकारी और निराकारी स्थिति का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *सदा प्रसन्नचित रहे ?*

 

➢➢ *सदा उमंग उत्साह और ख़ुशी में झूमते रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जितना अव्यक्त लाइट रुप में स्थित होंगे, उतना शरीर से परे का अभ्यास होने के कारण यदि दो-चार मिनट भी अशरीरी बन जायेंगे, तो मानों जैसे कि चार घण्टे का आराम कर लिया। *ऐसा समय आयेगा जो नींद के बजाए चार-पाँच मिनट अशरीरी बन जायेंगे और शरीर को आराम मिल जायेगा। लाइट स्वरूप के स्मृति को मजबूत करने से हिसाब-किताब चुक्त करने में भी लाइट रुप हो जायेंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं स्वदर्शन चक्रधारी सफलता मूर्त आत्मा हूँ"*

 

   सभी अपने को स्वदर्शन चक्रधारी समझते हो, बाप की जितनी महिमा है, उसी महिमा स्वरुप बने हो? *जैसे बाप के हर कर्म चरित्र के रुप अभी भी गाये जाते हैं ऐसे आपके भी हर कर्म चरित्र समान हो रहे हैं? ऐसे चरित्रवान बने हो, कभी साधारण कर्म तो नहीं होते हैं?*

 

  *जो बाप के समान स्वदर्शन चक्रधारी बने हैं उनसे कभी भी साधारण कर्म हो नहीं सकते। जो भी कार्य करेंगे उसमें सफलता समाई हुई होगी। सफलता होगी या नहीं होगी, यह संकल्प भी नहीं उठ सकता। निश्चय होगा- सफलता हुई पड़ी है।*

 

 *स्वदर्शन चक्रधारी मायाजीत होंगे। मायाजीत होने के कारण सफलतामूर्त होंगे। और जो सफलतामूर्त होंगे वह सदा हर कदम में पद्मापद्मपति होंगे।* ऐसे पद्मापद्मपति अनुभव करते हो? इतनी कमाई जमा कर ली है जो 21 जन्मों तक चलती रहे सूर्यवंशी अर्थात् 21 जन्मों के लिए जमा करने वाले। तो सदा हर सेकेण्ड में जमा करते रहो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  जो एक सेकण्ड में अपने संकल्प को जहाँ चाहे, जो सोचना चाहे वही सोच चलता रहे, ऐसे जो समझते हैं, वह हाथ उठाओ। *एक सेकण्ड में माइण्ड कन्ट्रोल हो जाए, ऐसे सेकण्ड में हो सकता है?* अगर कर सकते हो तो हाथ उठाओ।

 

✧  ऐसे कहने से नहीं, अगर कन्ट्रोल होता है तो हाथ उठाओ?

अच्छा जिन्होंने नहीं हाथ उठाया उन्हों को क्या एक मिनट लगता है? या उससे भी ज्यादा लगता है? *अभी यह अभ्यास वहुत जरूरी है क्योंकि अंत के समय यह अभ्यास वहुत काम में आयेगा।*

 

✧  जैसे इस शरीर के आरगन्स को, बाँह है, पाँव है, इनको सेकण्ड में जहाँ लेकर जाने चाहो वहाँ ले जा सकते हो ना! ऐसे मन-बुद्धि को भी मेरी कहते हो ना। *जब मन के मालिक हो, यह सूक्ष्म आरगन्स हैं, तो इसके ऊपर कन्ट्रोल क्यों नहीं?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *फ़रिश्ते अर्थात् साक्षात्कार कराने वाले।* जैसे अभी गोल्डन जुबली का दृश्य देखा। यह तो एक रमणीक पार्ट बजाया। लेकिन जब फाइनल दृश्य होगा उसमें तो आप साक्षात्कार कराने वाले होंगे या देखने वाले होंगे? क्या होंगे ? हीरो एक्टर हो ना! अभी इमर्ज करो वह दृश्य कैसा होगा। इसी अन्तिम दृश्य के लिए अभी से त्रिकालदर्शी बन देखो कि कैसा सुन्दर दृश्य होगा और कितने सुन्दर हम होंगे। *सजे-सजाये दिव्य गुणमूर्त फ़रिश्ते सो देवता, इसके लिए अभी से अपने को सदा फ़रिश्ते स्वरूप की स्थिति का अभ्यास करते हुए आगे बढ़ते चलो।* जो चार विशेष सब्जेक्ट हैं- ज्ञान मूर्त, निरन्तर यादमूर्त, सर्व दिव्यगुणमर्त, अथक सेवामूर्त- एक दिव्य गुण की भी कमी होगी तो १६ कला सम्पन्न नहीं कहेंगे। १६ कला, सर्व और सम्पूर्ण यह तीनों महिमा हैं। सर्वगुण सम्पन्न कहते हो, सम्पूर्ण निर्विकारी कहते हो और १६ कला सम्पन्न कहते हो। तीनों विशेषतायें चाहिएँ। *१६ कला अर्थात् सम्पन्न भी चाहिए, सम्पूर्ण भी चाहिए और सर्व भी चाहिए।* तो यह चेक करो। सुनाया था ना कि यह वर्ष बहुतकाल के हिसाब में जमा होने का है फिर बहुतकाल का हिसाब समाप्त हो जायेगा, फिर थोड़ा काल कहने में आयेगा, बहुतकाल नहीं। *बहुतकाल के पुरुषार्थ की लाइन में आ जाओ। तभी बहुतकाल का राज्य भाग्य प्राप्त करने के अधिकारी बनेंगे।* नहीं तो बहुत काल का राज्य भाग्य बदल कुछ कम राज्य भाग्य प्राप्त होने के अधिकारी बनेंगे।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल :- सवेरे-सवेरे उठ बाप से मीठी रूहरिहान करना"*

➳ _ ➳ *अमृतवेले के सतोप्रधान समय में मैं आत्मा अंतर्मुखी होकर बैठ जाती हूँ... मैं आत्मा इस शरीर की मालिक हूँ... अपने सभी कर्मेन्द्रियों को आर्डर प्रमाण चलाने वाली अधिकारी हूँ... मैं आत्मा परमपिता परमात्मा की संतान हूँ... परमधाम की रहने वाली हूँ... परमात्मा की वारिस हूँ... उनके सर्व खजानों, सर्व वरदानों की अधिकारी हूँ...* मेरे प्यारे बाबा ने आदि-मध्य-अंत का गुह्य ज्ञान देकर मुझे त्रिकालदर्शी बनाया... मैं आत्मा चिंतन करते-करते, स्वदर्शन चक्र फिराते-फिराते पहुँच जाती हूँ सूक्ष्मवतन में प्यारे बापदादा के पास...

❉ *विषय सागर में मझधार में अटकी मेरे जीवन की नैया को पार लगाने वाले मेरे प्यारे खिवैया बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... देह के रिश्तो को यादो में समाकर खाली हो गए... अब यादो में ईश्वर पिता को समाओ और गुणो और शक्तियो से भरपूर होकर सदा का मुस्कराओ... *अमृतवेले पिता जब दिल पर दस्तक देता है... उस दस्तक में... प्यार की गहराइयो में डूब जाओ और सुधबुध खो दो ऐसा प्यार का दरिया बहा दो...”*

➳ _ ➳ *काँटों को निकाल मुझे फूल बनाकर अपने बगीचे में सजाने वाले बागवान बाबा से मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके बिना कितनी दीन दुखी सी थी... *मीठे बाबा आपने जीवन में आकर फूलो सा खिलाया है... अमृतवेले दिल आँगन में उतरकर प्यार से सिक्त करते हो... और मुझे भरपूर कर देते हो...”*

❉ *ज्ञान अमृत का पान कराकर दैवीय गुणों से मेरा श्रृंगार करते हुए मीठे ज्ञान सागर बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... प्यारे बाबा की यादो में जो खुद को भिगो दोगे तो जीवन सुखो का पर्याय बन महक उठेगा... *यह यादे अथाह खुशियो को जीवन में उतार देवताओ सा सजा देंगी... इन यादो के गहरे मर्म को समझ अमृतवेले मीठे बाबा से दिली रुह रिहान करो...”*

➳ _ ➳ *अमृतवेले के समय रूहानी बाबा के साथ रूहानी सफर करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा खोखले रिश्तो को यादो में भरकर गहरे खालीपन की अनुभवी हूँ... अब सच्चे प्यार को जाना है... इन यादो में खोकर अतीन्द्रिय सुख पाया है... *अमृतवेले दिल पर आहट कर...अनन्त प्यार बाँहों में लिए उतरे मीठे बाबा को पाकर भाग्य को सराहा है...”*

❉ *प्रेम का समुन्दर मुझ पर उड़ेलते हुए प्रेम के सागर मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *ईश्वरीय प्रेम के प्याले को पीकर अपने सत्य स्वरूप की खुमारी में खो जाओ... इन यादो से जन्नत के मीठे सुख अपने कदमो तले बिखराओ...* डबल ताजधारी हो विश्व के मालिक बन मुस्कराओ... और ईश्वर पिता को अपनी पसन्द पर यूँ नाज सा करवाओ...”

➳ _ ➳ *ईश्वरीय यादों के सुनहरे अमृत पलों को अपने में संजोकर प्रेम की दीवानी बन मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा अमृतवेले प्यारे बाबा संग मिलन मना कर और ईश्वरीय यादो से अपने सुनहरे स्वरूप को पाकर जगमगा रही हूँ...* प्यारा बाबा मुझे सतोगुणी और देवताओ सा श्रृंगार देने धरा पर उतर आया है...”

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल :- ऐसा कोई कर्म न हो जिससे बाप, टीचर और सतगुरु की निंदा हो*"

➳ _ ➳ एक खुले स्थान पर, ठन्डी हवाओ का आनन्द लेती अपने खुदा दोस्त को अपने साथ अनुभव करती मैं अपने खुदा दोस्त का शुक्रिया अदा करती हूँ जिन्होंने अपनी श्रेष्ठ मत द्वारा मेरे जीवन को सर्वश्रेष्ठ बना दिया। *अपने ऐसे खुदा दोस्त, भगवान बाप को मैं प्रोमिस करती हूँ कि उनकी निंदा कराने वाला कोई भी कर्म मैं कभी भी नही करूँगी*। हर कदम उनकी श्रेष्ठ मत पर चलते हुए, उनके हर फरमान का पालन करते अपने श्रेष्ठ संकल्प, बोल और कर्म द्वारा उनका नाम बाला करूँगी।

➳ _ ➳ मन ही मन अपने आप से दृढ़ प्रतिज्ञा करती अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी मधुर पालना के झूले में स्वयं को झूलते हुए अनुभव करती *मैं महसूस करती हूँ जैसे मेरी इस प्रतिज्ञा को पूरा करने में बाबा मेरे सहयोगी बन, मुझ में अपनी शक्तियाँ प्रवाहित कर, मुझे आप समान बलशाली बनाने के लिए अपने पास बुला रहें हैं*। परमधाम से अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की मीठी फ़ुहारों को अपने ऊपर गिरते हुए मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। *ये रंग बिरंगी मीठी फुहारे मेरे अन्तर्मन को छू कर मुझे देह से न्यारी एक अति प्यारी अवस्था का अनुभव करवा रही हैं*।

➳ _ ➳ इस न्यारी और प्यारी अवस्था मे मैं स्वयं को मस्तक के बीचों - बीच चमकते हुए एक अति सूक्ष्म गोल्डन स्टार के रूप में देख रही हूँ जिसकी रंग बिरंगी किरणों का प्रकाश चारों और फैलकर मन को बहुत ही सुखद अनुभूति करवा रहा है। *इस प्रकाश में मुझ आत्मा के सातों गुणों और अष्ट शक्तियों का मिश्रण समाया है जो मुझे मेरे सातों गुणों और अष्ट शक्तियों का अनुभव करवा कर बहुत ही शक्तिशाली स्थिति में स्थित कर रहा है*। स्वयं में से निकल रहे इस खूबसूरत प्रकाश को देखते और गहन आनन्द की अनुभूति करते - करते मैं गोल्डन स्टार अपनी रंग बिरंगी किरणो को फैलाता हुआ अब चमकते चैतन्य सितारों की उस गोल्डन दुनिया मे जा रहा हूँ जहाँ मेरे प्यारे पिता रहते हैं।

➳ _ ➳ अपने पिता के प्रेम की लग्न में मग्न, मैं जगमग करती ज्योति धीरे - धीरे ऊपर उड़ते हुए आकाश को पार करती हूँ और उससे ऊपर फरिश्तो की दुनिया को पार कर, अनन्त ज्योति के देश, अपने परमधाम घर मे प्रवेश कर जाती हूँ। *सामने महाज्योति मेरे शिव पिता अपनी सर्वशक्तियों की अनन्त किरणो को फैलाये ऐसे लग रहे है जैसे अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में मुझे भरने के लिए व्याकुल हो रहें हैं*। बिना कोई विलम्ब किये मैं चमकती हुई चैतन्य ज्योति अपने महाज्योति शिव पिता के पास पहुँचती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में समा जाती हूँ।

➳ _ ➳ मेरे प्यारे पिता की सर्वशक्तियों की किरणें स्नेह की मीठी फ़ुहारों के रूप में मुझ पर बरसने लगती हैं। *सर्वशक्तिवान मेरे प्यारे मीठे बाबा अपना असीम स्नेह मुझ पर बरसाते हुए अपनी सर्वशक्तियों से मुझे बलशाली बनाने के लिए अपनी लाइट माइट को फुल फोर्स के साथ मुझ में प्रवाहित करने लगते हैं*। अपने प्यारे पिता की लाइट माइट पाकर, सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप बनकर, अपने संकल्प, बोल और कर्म को श्रेष्ठ बना कर, अपने प्यारे पिता का नाम बाला करने के लिए अब मैं साकार सृष्टि पर लौट आती हूँ।

➳ _ ➳ अपने साकार तन का आधार लेकर, ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, इस सृष्टि रूपी कर्मभूमि पर अब मैं हर कर्म अपने प्यारे बाबा की याद में रहकर कर रही हूँ। *अपने हर संकल्प, बोल और कर्म पर पूरा अटेंशन देते हुए मैं इस बात का विशेष ध्यान रखती हूँ कि देह भान में आकर, मेरे मन मे कोई भी गलत संकल्प भी कभी उतपन्न ना हो, मेरे मुख से कभी भी, कोई भी ऐसा बोल ना निकले जो किसी को आहत करे या ऐसा कोई भी कर्म मुझ से ना हो जाये जो किसी को तकलीफ पहुँचे और मेरे प्यारे पिता की निंदा का कारण बनें*। इसलिये इन सभी बातों पर पूरा अटेंशन दे, अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाने का पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं बालक सो मालिक का पाठ पढ़ने वाली आत्मा हूँ।*
✺   *मैं निरहंकारी आत्मा हूँ।*
✺   *मैं निराकारी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ *मैं प्रसन्नता को धारण करने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी को सदैव धारण करती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदा प्रसन्नचित हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  सदा शक्तियों को कोई को 4 भुजा, कोई को 6 भुजा, कोई को 8 भुजा, कोई को 16 भुजासाधरण नही दिखाते है... यह *भुजाये सर्व शक्तियों का सूचक हैं... इसलिए सर्वशक्तिवान द्वारा प्राप्त अपनी शक्तियों को इमर्ज करो...* इसके लिए यह नही सोचो की समय आने पर इमर्ज हो जायेंगी लेकिन सारे दिन मे स्वयं प्रति भिन्न-भिन्न शक्तियाँ यूज करके देखो...

 

 _ ➳  सबसे पहला अभ्यास स्वराज्य अधिकार सारे दिन में कहाँ तक कार्य में लगता है? *मैं तो हूँ ही आत्मा मालिकयह नही... मालिक हो के आर्डर करो और चेक करो कि हर कर्मेंन्द्रियां मुझ राजा के लव और ला में चलते है?* आर्डर करें 'मनमनाभव' और मन जाये निगेटिव और वेस्ट थाट्स मेंक्या यह लव और ला रहा? आर्डर करें मधुरता स्वरूप बनना है और समस्या अनुसार, परिस्थिति अनुसार क्रोध का महारूप नही लेकिन सूक्ष्म रूप में भी आवेश वा चिड़चिड़ापन आ रहा हैक्या यह आर्डर है? आर्डर में हुआ? आर्डर करें *हमें निर्मान बनना है और वायुमण्डल अनुसार सोचो कहां तक दबकर चलेंगे, कुछ तो दिखाना चाहिए...* क्या मुझे ही दबना हैमुझे ही मरना है! मुझे ही बदलना है? क्या यह लव और आर्डर है

 

 _ ➳  इसलिए विश्व के ऊपरचिल्लाना वाले दुःखी आत्माओं के ऊपर रहम करने के पहले अपने ऊपर रहम करो... अपना अधिकार संम्भालो। *आगे चल आपको चारों ओर सकाश देने कावायब्रेशन देने कामन्सा द्वारा वायुमंडल बनाने का बहुत कार्य करना है...* पहले भी सुनाया की अभी तक जो जो जहां तक सेवा के निमित्त हैबहुत अच्छी की है और करेंगे भी लेकिन अभी समय प्रमाण तीव्रगति और बेहद सेवा की आवश्यकता है...

 

 _ ➳  *तो अभी पहले हर दिन को चेक करो 'स्वराज्य अधिकार' कहाँ तक रहा?* आत्मा मालिक होके कर्मेन्द्रियों को चलाये... स्मृति स्वरूप रहे की मैं मालिक इन साथियों से, सहयोगियों से कार्य करा रहा हूँ... *स्वरूप  नशा रहे तो स्वतः ही यह सब कर्मेन्द्रियां आपके आगे जी हाजिरजी हजूर स्वतः ही करेंगी...* मेहनत नही करनी पडेगी... आज व्यर्थ संकल्प को मिटाओ, आज संस्कार को मिटाओआज निर्णय शक्ति को प्रगट करो... एक धक से सब कर्मेन्द्रियां और मन-बुद्धि-संस्कार जो आप चाहते है वह करेंगी...

 

✺   *ड्रिल :-  "कर्मेन्द्रियों को लव और ला से चलाकर स्वराज्य अधिकारी बनने का अनुभव"*

 

 _ ➳  अपनी सोई हुई सर्वशक्तियों को पुनः जागृत कर, सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप बनने के लिए मैं अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित हो कर, सर्वशक्तिवान शिव पिता परमात्मा की याद में बैठ जाती हूँ... और सेकण्ड में अशरीरी बन, अपनी साकारी देह से बाहर निकल कर, सर्वशक्तिवान अपने शिव पिता परमात्मा के पास चल पड़ती हूँ... *मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं स्पष्ट देख रही हूँ एक ज्योति पुंज भृकुटि सिहांसन से निकल कर, चारों और प्रकाश फैलाता हुआ ऊपर आकाश की ओर जा रहा है...* आकाश को पार करके, उससे परे सूक्ष्म लोक को पार करके मैं ज्योति पुंज, प्वाइंट ऑफ लाइट पहुंच गई लाल प्रकाश की दुनिया परमधाम में...

 

 _ ➳  स्वयं को देख रही हूँ मैं सर्वशक्तिवान शिव पिता परमात्मा के सम्मुख जिनसे निकल रही सर्वशक्तियों का प्रकाश मुझ आत्मा पर पड़ रहा हैं... *सर्वशक्तियों के इस प्रकाश के मुझ आत्मा पर पड़ते ही, मेरी सोई हुई शक्तियां पुनः इमर्ज हो रही हैं...* स्वयं को मैं सातों गुणों और अष्ट शक्तियों से सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ... सर्वशक्तियों से सम्पन्न हो कर अब मैं परमधाम से नीचे सूक्ष्म लोक में प्रवेश कर रही हूँ और अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर मे विराजमान हो कर बापदादा के पास जा रही हूँ...

 

 _ ➳  अपने सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ अब मैं बापदादा के सामने उपस्थित हूँ और देख रही हूं बापदादा से अलग - अलग शक्ति की अलग अलग - लाइट निकल रही है... एक - एक शक्ति की लाइट जैसे - जैसे मुझ पर पड़ रही है वैसे - वैसे मेरे सूक्ष्म शरीर पर उस शक्ति की सूचक भुजा निर्मित होती जा रही हैं... *देखते ही देखते अष्ट शक्तियों की अष्ट भुजायें मुझमें निर्मित हो गई है और मेरा स्वरूप अष्ट भुजाधारी दुर्गा का बन गया है...* अपने इसी अष्ट भुजाधारी स्वरूप के साथ अब मैं सूक्ष्म लोक से वापिस साकारी लोक में आकर अपने ब्राह्मण स्वरूप में प्रवेश कर रही हूँ...

 

 _ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं अपने अष्ट भुजाधारी स्वरूप को सदैव स्मृति में रख समय और परिस्थिति के अनुसार उचित समय पर उचित शक्ति का प्रयोग करके सहज ही मायाजीत बन रही हूँ... *अपने सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप को सदैव इमर्ज रखने के लिए अब मैं हर कर्म स्वराज्य अधिकारी की सीट पर सेट हो कर कर रही हूँ...* "इस शरीर रूपी रथ पर विराजमान मैं आत्मा राजा हूँ" इस स्मृति में रहने से अब हर कर्मेन्द्रिय मेरी इच्छानुसार कार्य कर रही है... *सदा स्मृति स्वरूप रहने से अब हर कर्मेन्द्रिय मेरी साथी और सहयोगी बन गई है...*

 

 _ ➳  सदैव मालिक पन के नशे में रहने से सर्व कर्मेन्द्रियां मेरे आगे जी हाजिरजी हजूर करने लगी है... *अब व्यर्थ संकल्पो, पुराने स्वभाव संस्कारों को मिटाने में मुझे मेहनत नही करनी पड़ रही, बल्कि स्वराज्य अधिकारी की सीट पर सेट रहने से परखने और निर्णय करने की शक्ति सहज ही प्रगट हो रही है...* इसलिए परख कर उचित समय पर उचित निर्णय लेने से अब हर कार्य मे मैं सहज ही सफ़लतामूर्त बन रही हूँ... मन बुद्धि की लगाम अपने हाथ मे लेकर अब मैं अपने मन बुद्धि को जहां चाहूँ वहां लगा कर सर्व प्राप्ति सम्पन्न स्वरूप बन गई हूँ... *अपने इस ब्राह्मण जीवन मे कर्मेन्द्रियों को लव और ला से चलाकर स्वराज्य अधिकारी बनने का अनुभव अब मैं निरन्तर कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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