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 05 / 01 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ दिल में सदैव एक दिलाराम बाप को समाये रखा ?

 

➢➢ सदा उमंग उत्साह से आगे बड़ते हुए निर्विघन सेवा की ?

 

➢➢ माया को चैलेंज किया ?

 

➢➢ दूसरों से संतुष्टता का सर्टिफिकेट प्राप्त किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  जैसे हठयोगी अपने श्वांस को जितना समय चाहें उतना समय रोक सकते हैं। आप सहजयोगी, स्वत: योगी, सदायोगी, कर्मयोगी, श्रेष्ठयोगी अपने संकल्प को, श्वांस को प्राणेश्वर बाप के ज्ञान के आधार पर जो संकल्प, जैसा संकल्प जितना समय करना चाहो उतना समय उसी संकल्प में स्थित हो जाओ। अभी-अभी शुद्ध संकल्प में रमण करो, अभी-अभी एक ही लगन अर्थात् एक ही बाप से मिलन की, एक ही अशरीरी बनने के शुद्ध-संकल्प में स्थित हो जाओ।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं सर्व श्रेष्ठ परमात्म दिलतख्तनशीन आत्मा हूँ"

 

  संगमयुग पर ब्राह्मणों का विशेष स्थान है- बापदादा का दिलतख्त-सभी अपने को बापदादा के दिलतख्त नशीन अनुभव करते हो? ऐसा श्रेष्ठ स्थान कभी भी नहीं मिलेगा।

 

✧  सतयुग में हीरे सोने का मिलेगा लेकिन दिलतख्त नहीं मिलेगा। तो सबसे श्रेष्ठ आप 'ब्राह्मण' और आपका श्रेष्ठ स्थान 'दिलतख्त'। इसलिए ब्राह्मण चोटी अर्थात् ऊंचे ते ऊंचे हैं। इतना नशा रहता है कि हम तख्तनशीन हैं?

 

  ताज भी हैं, तख्त भी है, तिलक भी है। तो सदा ताज, तख्त, तिलकधारी रहते हो, स्मृति भव का अविनाशी तिलक लगा हुआ है ना? सदा इसी नशे में रहो कि सारे कल्प में हमारे जैसा कोई भी नहीं। यही स्मृति सदा नशे में रहेगी और खुशी में झूमते रहेंगे।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  सेवा के लिए साधन है क्योंकि विश्व कल्याण करना है तो यह भी साधन सहयोग देते हैं। साधनों के वश नहीं होना। लेकिन साधन को सेवा में यूज करना। यह बीच का समय है जिसमें साधन मिले हैं। आदि में भी कोई इतने साधन नहीं थे और अंत में भी नहीं रहेंगे। यह अभी के लिए हैं।

 

✧  सेवा बढ़ाने के लिए हैं। लेकिन यह साधन हैं, साधना करने वाले आप हो। साधन के पीछे साधना कम नहीं हो। बाकी बापदादा खुश होते हैं। बच्चों की सीन देखते हैं। फटाफट काम कर रहे हैं। बापदादा आपके ऑफिस का भी चक्कर लगाते हैं। कैसे काम कर रहे हैं।

 

✧  बहुत बिजी रहते हैं ना। अच्छी तरह से ऑफिस चलती है ना! जैसे एक सेकण्ड में साधन यूज करते हो ऐसे ही बीच-बीच में कुछ समय साधना के लिए भी निकाली। सेकण्ड भी निकालो। अभी साधन पर हाथ है और अभी-अभी एक सेकण्ड साधना, बीच-बीच में अभ्यास करो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧  फ़रिश्ते अर्थात् बेहद में रहने वाले। सारे ज्ञान का वा इस पढ़ाई के चारों ही सबजेक्ट का मूल सार यही एक बात 'बेहद' है। बेहद शब्द के स्वरूप में स्थित होना यही फस्र्ट और लास्ट का पुरुषार्थ है। पहले बाप का बनना अर्थात् मरजीवा बनना। इसका भी आधार है - देह की हद से बेहद देही स्वरूप में स्थित होना और लास्ट में फ़रिश्ता स्वरूप बन जाना है। इसका भी अर्थ है - सर्व हद के रिश्ते से परे फ़रिश्ता बनना। तो आदि और अन्त पुरुषार्थ और प्राप्ति, लक्षण और लक्ष्य, स्मृति और समर्थी दोनों ही स्वरूप में क्या रहा? ‘बेहद'। आदि से लेकर अन्त तक किन-किन प्रकार की हदें पार कर चुके हो वा करनी हैं? इस लिस्ट को तो अच्छी तरह से जानते हो ना! जब सर्व हदों से पार बेहद स्वरूप में, बेहद घर, बेहद के सेवाधारी, सर्व हदों के ऊपर विजय प्राप्त करने वाले विजयी रत्न बन जाते तब ही अन्तिम कर्मातीत स्वरूप का अनुभव स्वरूप बन जाते। हद हैं अनेक, बेहद है एक। अनेक प्रकार की हदें अर्थात् अनेक - ‘मेरा मेरा”। एक मेरा बाबा दूसरा न कोई, इस बेहद के मेरे में अनेक मेरा समा जाता है। विस्तार सार स्वरूप बन जाता है। विस्तार मुश्किल होता है या सार मुश्किल होता है? तो आदि और अन्त का पाठ क्या हुआ? - बेहद। इसी अन्तिम मंज़िल पर कहाँ तक समीप आये हैं, इसको चेक करो। हद की लिस्ट सामने रख देखो कहाँ तक पार किया है!

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- तीन-तीन बातों का पाठ पढ़ना"

➳ _ ➳ मैं आत्मा सेण्टर में बाबा के कमरे में बैठ स्वदर्शन चक्र फिराते हुए अपने आदि देवताई स्वरुप को देखती हूँ... नई दुनिया में स्वर्ग सुखों को भोगती हुई मैं आत्मा, दैवीय गुणों से भरपूर, साक्षात् देवता रूप में कितनी ही सुन्दर दिख रही हूँ... इस वरदानी संगम युग में स्वयं भगवान् अवतरित होकर मुझे इस कलियुगी दुखों से निकाल स्वर्गिक सुखों का अधिकारी बना रहे हैं... मैं आत्मा स्वदर्शन चक्र फिराते हुए, फ़रिश्ता स्वरुप धारण कर पहुँच जाती हूँ सूक्ष्मवतन में मीठे बाबा के पास...

❉ उमंगो के पंख लगाकर खुशियों के आसमान में उड़ाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे बच्चे... इस पुरानी सी दुखो भरी दुनिया से अब दिल न लगाना है... दिल तो गुणो से भरी मीठी दुनिया से लगाना है... खूबसूरत सुखो से लगाना है जो 21 जनमो तक आनन्द देंगे... विनाशी दुनिया से आशा रखना स्वयं को ठगना है...”

➳ _ ➳ मैं आत्मा विनाशी दुनिया से लगाव मिटाकर सतयुगी दुनिया को मन में बसाकर कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा इस दुखो की दुनिया को भूल गई हूँ... इन विनाशी आशाओ से मुक्त हो सतयुगी सुखो की ओर रुख ले रही हूँ... आपके साये में पारस बन गुणो और शक्तियो से दमक उठी हूँ...”

❉ सुहावने संगम के हर पल को दिव्यता से सजाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मीठे प्यारे बच्चे... इस खोखली और खाली दुनिया से क्या पाओगे सिवाय तकलीफो के... यह रिश्ते ये बाते ये नाते ये आशाये सच्चे सुखो का पर्याय कभी न होंगी... खूबसूरत सुखो की दुनिया बाँहो में भरकर बाबा लाया है... उसमे खो जाओ... और सदा आनन्दित हो जाओ...”

➳ _ ➳ विनाशी देह के आवरण से निकल अंतर का सच्चा सुख पाकर मैं आत्मा कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा इन मटमैले नातो से निकल सच्ची आत्मिक स्मृतियों से भर गई हूँ... आपने मुझे जो खूबसूरत यात्रा सिखलाई है उस पर उड़ रही हूँ... इन बन्धनों आशाओ से मुक्त हो यादो के आसमान में झूम रही हूँ...”

❉ मेरे बाबा अपना सबकुछ लुटाते हुए मेरी झोली को सौगातों से भरते हुए कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे बच्चे... यहाँ जो सांसो को खपाया तो क्या सदा सुख पाया... इस ढहती सी भुरभुरी सी दुनिया को यादो में भर कर स्वयं को ही ठग जाओगे... विश्व पिता की मीठी यादो में ही सुखो भरा निराला अनोखा खूबसूरत संसार पाओगे... तो दिल को मीठे बाबा में ही लगाना...”

➳ _ ➳ मैं आत्मा अविनाशी रत्नों से अपनी झोली भरकर सच्चे प्यार से भरपूर होते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा प्यारे बाबा के सानिध्य में निखर रही हूँ... विनाशी दुनिया से उपराम हो सतयुगी दुनिया में अनन्त सुखो में खो रही हूँ.... सत्य को दिल में समा चुकी हूँ... और प्यारे बाबा पर निहाल हो रही हूँ...”

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- दिल में सदैव एक दिलाराम बाप को समाये रखना"

➳ _ ➳ दिल को आराम देने वाली, अपने दिलाराम बाबा की मीठी याद में खोई मैं उन पलों को याद करती हूँ जब मेरे दिलाराम बाबा ने पहली बार आ कर मेरे दिल पर दस्तक दी थी। उस पल का वो खूबसूरत एहसास जब दिल ने ये स्वीकार किया था कि यही है वो जिसे मैं इस दुनिया की भीड़ में आज दिन तक ढूंढ रही थी।

➳ _ ➳ गुरुओं के बताए मार्ग पर भी चल कर देखा,भक्ति मार्ग के कर्मकांडो को भी अपनाया परन्तु फिर भी हर पल उससे एक दूरी सदा बनी रही और अब जबकि उसने खुद आ कर ना केवल अपना परिचय दिया बल्कि अपनी उपस्थिति का, अपने प्यार का अनुभव भी करवाया तो अब दिल ने भी ये स्वीकार कर लिया कि इस दिल मे अब सिवाय दिलाराम के और कोई कभी नही बस सकता।

➳ _ ➳ दिलाराम को दिल दे, दिल मे उनकी याद को बसाये अब मैं अपने निराकारी स्वरूप में स्थित हो, उनसे मिलने, उनसे मीठी - मीठी रूहरिहान करने और उनके प्यार की शीतल छांव में बैठ कर स्वयं को तृप्त करने के लिए अपने मन की तार को उनके साथ जोड़ती हूँ। उनकी मीठी याद और उनके प्रेम के मधुर एहसास की स्मृति मुझे एक रूहानी नशे से भरपूर कर रही है और इसी रूहानी नशे में डूबी मैं आत्मा देह का आधार छोड़ चल पड़ती हूँ अपने दिलाराम शिव बाबा के पास।

➳ _ ➳ देह रूपी कुटिया से निकल कर अब मैं आत्मा ऊपर परमधाम की ओर जा रही हूँ। अपने दिलाराम बाबा के दिल रूपी तख्त पर बैठ, उनके प्रेम से स्वयं को भरपूर करने के लिए, और भी तीव्र गति से उड़ते हुए, आकाश और सूक्ष्म वतन को पार कर, अब मैं परमधाम में प्रवेश कर रही हूँ। अपने बिल्कुल सामने मैं अपने दिलराम बाबा को देख रही हूँ। उनको देखते ही मेरा रोम - रोम जैसे खिल उठा है। मेरी ख़ुशी का कोई पारावार नही है।

➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे अपने प्रेम की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरे दिलाराम बाबा भी मेरा ही इंतजार कर रहें हैं। उनके प्रेम की किरणों रूपी बाहों में अब मैं गहराई तक समाती जा रही हूँ। मेरे दिलाराम बाबा का प्रेम और स्नेह किरणों के रूप में निरन्तर मुझ पर बरस रहा है। मेरे प्राणेश्वर बाबा से निकल रही सर्व शक्तियों की शक्तिशाली किरणे मुझ पर पड़ रही हैं जो मुझे आनन्द विभोर कर रही हैं और शक्तिशाली बना रही हैं।

➳ _ ➳ अपने दिलाराम शिव बाबा के प्रेम और उनकी सर्व शक्तियों से भरपूर हो कर अब मैं धीरे - धीरे परमधाम से नीचे आ रही हूँ और प्रवेश कर रही हूँ अपनी साकारी देह में। मेरा मन अब परम आनन्द से भरपूर है। मेरा जीवन ईश्वरीय प्रेम से भर गया है। अपने दिल मे दिलाराम बाबा को बसा कर अब मै मन, वचन और कर्म से उनकी हो गई हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं मनसा बंधनो से मुक्त्त आत्मा हूँ।
✺   मैं अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति करने वाली आत्मा हूँ।
✺   मैं मुक्ति दाता आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं आत्मा खुशियों की खान से सदा संपन्न हूँ ।
✺ मैं आत्मा दुख की लहर से भी मुक्त हूँ ।
✺ मैं सुख स्वरूप आत्मा हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  सारे दिन में गलती नहीं की लेकिन समय, संकल्प, सेवा, सम्बन्ध-सम्पर्क में स्नेहसंतुष्टता द्वारा जमा कितना किया? कई बच्चे सिर्फ यह चेक कर लेते हैं - आज बुरा कुछ नहीं हुआ। कोई को दुःख नहीं दिया। लेकिन अब यह चेक करो कि सारे दिन में श्रेष्ठ संकल्पों का खाता कितना जमा कियाश्रेष्ठ संकल्प द्वारा सेवा का खाता कितना जमा हुआ? कितनी आत्माओं को किसी भी कार्य से सुख कितनों को दिया? योग लगाया लेकिन योग की परसेन्टेज किस प्रकार की रहीआज के दिन दुआओं का खाता कितना जमा किया?      

 

 _ ➳  कोई कितना भी हिलावे, हिलना नहीं अखण्ड गुणदानी, अटलकोई कितना भी हिलावेहिलना नहीं। हरेक एक दो को कहते होसभी ऐसे हैंतुम ऐसे क्यों अपने को मारता हैतुम भी मिल जाओ। कमजोर बनाने वाले साथी बहुत मिलते हैं। लेकिन बापदादा को चाहिए हिम्मतउमंग बढ़ाने वाले साथी। तो समझा क्या करना है? सेवा करो लेकिन जमा का खाता बढ़ाते हुए करोखूब सेवा करो। पहले स्वयं की सेवाफिर सर्व की सेवा।

 

✺   ड्रिल :-  "दुआओं का खाता जमा करने का अनुभव"

 

 _ ➳  मैं आत्मा भृकुटी सिंहासन में विराजमान बैठी हूँ... मैं मन-बुद्धि द्वारा आसमान की ओर उड़ती हूँ... धीरे-धीरे आसमान की तरफ उड़कर मैं एक सफेद प्रकाश की दुनिया सूक्षमवतन में पहुँच जाती हूँ... वहाँ एकदम साइलेंस की दुनिया हैं... एक तिनके तक की आवाज़ नहीं हैं... एकदम सन्नाटा हैं... वहाँ ब्रह्मा बाबा शिव बाबा का इंतज़ार कर रहे है...

 

 _ ➳  सूक्ष्मवतन में शिव बाबा ब्रह्मा बाबा के तन में आते हैंं और उनके आते ही वहाँ का वातावरण फ़ूलों से भर जाता हैं... फ़ूलों की धीमी-धीमी खुशबू आने लगती हैं... बाबा मुझ आत्मा पर सुनहरी किरणें डाल रहे हैं... मैं उन किरणों में खो चुकी हूँ... मुझ आत्मा का माँ वैष्णो देवी का स्वरूप इमर्ज हो रहा हैं... मुझ आत्मा के इस माँ वैष्णो देवी के स्वरूप से बाबा की किरणें भक्तों पर न्यौछावर हो रही हैं...

 

 _ ➳  सभी भक्त बहुत ख़ुशी से झूम रहे हैं... उन्हें ऐसा लग रहा हैं मानों जैसे उनकी सभी मुरादे पूरी हो चुकी हैं... वह सब आसमान की ओर देखकर मन ही मन मुझ पूज्य स्वरूप का शुक्रिया कर रहे हैं... उन करोड़ों आत्माओं की दुआएं मुझ आत्मा तक पहुँच रही हैं... अब मेरे मन मे श्रेष्ठ संकल्प ही चलते हैं... योग में भी वृद्धि हो रही हैं... मुझ आत्मा का दुआओं का खाता जमा होता जा रहा हैं...

 

 _ ➳  अब कोई कितना भी बाबा से दूर करने की कोशिश करें, कोई भी कहे कि तुम कहाँ फँस चुके हो परन्तु मैं हिलती नहीं हूँ... मुझ आत्मा में हिम्मत बढ़ चुकी हैं... मैं किसी की उल्टी बातों पर ध्यान नहीं देती हूँ... अब मैं सेवा तो करती हूँ परन्तु साथ-साथ जमा के खाते को बढ़ाकर करती हूँ... मैं आत्मा बाबा से वादा करती हूं कि मैं योग और ज्ञान से सर्व आत्माओं का कल्याण करूँगी...

 

 _ ➳  अपनी दिनचर्या में मैं आत्मा अब समय बरबाद नहीं करती हूँ... मुझ आत्मा के लौकिक व अलौकिक सम्बन्धों में स्नेह बढ़ता जा रहा है और मैं सदा संतुष्ट रहती हूँ... सभी के प्रति शुभभावना और शुभकामना रखती हूँ... अब मैं सवेरे-सवेरे उठते ही पहले स्व को ज्ञान रत्नों से भरपूर करके स्व की सेवा स्वमान लेकर, अमृतवेला करकें और मुरली सुनकर करती हूँ... फिर सर्व आत्माओं की सेवा करती हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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