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 26 / 02 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *नथिंग न्यू का पाठ पक्का किया ?*

 

➢➢ *ज्ञान के अच्छे अच्छे गीत सुनकर स्वयं को रिफ्रेश किया ?*

 

➢➢ *अनेक प्रकार की प्रवृति से निवृत रहे ?*

 

➢➢ *कमल फूल समान न्यारे रह प्रभु का प्यार प्राप्त किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  कोई भी स्थूल कार्य करते हुए मन्सा द्वारा वायब्रेशन्स फैलाने की सेवा करो। *जैसे कोई बिजनेसमेन है तो स्वपन में भी अपना बिजनेस देखता है, ऐसे आपका काम है-विश्व-कल्याण करना। यही आपका आक्यूपेशन है, इस आक्यूपेशन को स्मृति में रख सदा सेवा में बिजी रहो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बेगमपुर का बादशाह हूँ"*

 

✧  सभी बेगमपुर के बादशाह, गमों से परे सुख के संसार का अनुभवी समझते हुए चलते हो? पहले दु:ख के संसार के अनुभवी थे, अभी दु:ख के संसार से निकल सुख के संसार के अनुभवी बन गये। *अभी एक सुख का मंत्र मिलने से, दु:ख समाप्त हो गया। सुखदाता की सुख स्वरूप आत्माएँ हैं, सुख के सागर बाप के बच्चे हैं, यही मंत्र मिला है।*

 

  *जब मन बाप की तरफ लग गया तो दु:ख कहां से आया! जब मन को बाप के सिवाए और कहाँ लगाते हो तब मन का दु:ख होता। 'मन्मनाभव' हैं तो दु:ख नहीं हो सकता।* तो मन बाप की तरफ है या और कहाँ हैं? उल्टे रास्ते पर लगता है, तब दु:ख होता है। जब सीधा रास्ता है तो उल्टे पर क्यों जाते हो?

 

  जिस रास्ते पर जाने की मना है उस रास्ते पर कोई जाए तो गवर्मेन्ट भी दण्ड डालेगी ना। जब रास्ता बन्द कर दिया तो क्यों जाते हो? *जब तन भी तेरा, मन भी तेरा, धन भी तेरा, मेरा है ही नहीं तो दु:ख कहाँ से आया। तेरा है तो दु:ख नहीं। मेरा है तो दु:ख है। तेरा-तेरा करते तेरा हो गया।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *एक सेकण्ड में मन के मालिक बन मन को ऑर्डर कर सकते हो?* कर सकते हो? *मन को एकाग्र कर सकते हो? फुलस्टॉप लगा सकते हो कि लगायेंगे फुलस्टॉप और लग जायेगा क्वेचन मार्क?* क्यों, क्या, कैसे, यह क्या, वह क्या, आश्चर्य की मात्रा भी नहीं।

 

✧  *फुलस्टॉप सेकण्ड में प्बाइंट बन जाओ। और कोई मेहनत नहीं है, एक शब्द सिर्फ अभ्यास में लाओ 'प्बाइंट'।* प्बाइंट स्वरूप बनना है, वेस्ट को प्बाइंट लगानी है और महावाक्य जो सुनते हो उस प्बाइंट पर मनन करना है, और कोई भी तकलीफ नहीं है। प्बाइंट याद रखो, प्बाइंट लगाओ, प्बाइंट बन जाओ।

 

✧  यह अभ्यास सारे दिन में बीच-बीच में करो, कितने भी बिजी हो लेकिन यह ट्रायल करो एक सेकण्ड में प्बाइंट बन सकते हो? एक सेकण्ड में प्बाइंट लगा सकते हो? *जब यह अभ्यास बार-बार का होगा तब ही आने वाले अंतिम समय में फुल प्वाइंटस ले सकेंगे। पास विद ऑनर बन जायेंगे। यही परमात्म पढाई है, यही परमात्म पालना है।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *बिन्दु रूप में अगर ज्यादा नहीं टिक सकते तो इसके पीछे समय न गंवाओ।* बिन्दी रूप में तब टिक सकेंगे जब पहले शुद्ध संकल्प का अभ्यास होगा। अशुद्ध संकल्पों को शुद्ध संकल्पों से हटाओ। *जैसे कोई एक्सीडेन्ट होने वाला होता है। ब्रेक नहीं लगती तो मोड़ना होता है। बिन्दी रूप है ब्रेक। अगर वह नहीं लगता तो व्यर्थ संकल्पों से बुद्धि को मोड़कर शुद्ध संकल्पों में लगाओ।* कभी-कभी ऐसा मौका होता है जब बचाव के लिए ब्रेक नहीं लगाई जाती है, मोड़ना होता है। *कोशिश करो कि सारा दिन शुद्ध संकल्पों के सिवाय कोई व्यर्थ संकल्प न चले। जब यह सब्जेक्ट पास करेंगे तो फिर बिन्दी रूप की स्थिति सहज रहेगी।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल :- आत्म-अभिमानी बन बाप को याद करना"*

➳ _ ➳ *मैं आत्मा स्वयं को बाबा की कुटिया में बैठा हुआ अनुभव कर रही हूं... बाबा की मीठी मीठी यादों में खोई में आत्मा पहुंच जाती हूं परमधाम और बाबा को स्पर्श करती हूं... स्पर्श करते ही एक दिव्य अलौकिक प्रकाश मुझ आत्मा में भर जाता है और मैं आत्मा बहुत शक्तिशाली अनुभव करने लगती हूँ... शक्तिओं से भरपूर होकर मैं आत्मा स्वयं को नीचे उतरता हुआ देख रही हूं... वतन में पहुंच कर बापदादा को अपने सामने देख रही हूं... बाबा बाहें फैलाये सम्मुख खड़े हैं और मैं आत्मा नन्हा फ़रिश्ता बन बाबा की बाहों में समा जाती हूँ...*

❉ *बाबा मुझ आत्मा को अपनी बाहों में लेकर बहुत प्यार से बोले:-* "मेरे सिकीलधे बच्चे.... अब देही अभिमानी बनों बाप आये हैं तुम्हें राजयोग सिखाने, राजयोगी बन बाप से पूरा पूरा वर्सा लेने का पुरुषार्थ करो... *तुम्हें अपने पुरुषार्थ के बल से ही सूर्यवंशी घराने में आना है और बाप से विश्व की बादशाही लेनी है... मेरी आँखों के नूर मैं आया हूँ तुम्हें इस नरक से निकाल अपने साथ ले जाने इसलिए बाप की श्रीमत पर चल अब सम्पूर्ण पवित्र बनो...*"

➳ _ ➳ *बाबा के वाक्यों को अपने हृदय में समाते हुए मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मुझे पवित्रता का वरदान देकर मेरे इस खाली जीवन को आपने खुशिओं से भर दिया है... मैं आत्मा देही अभिमानी बन संपूर्ण सुखों से भरपूर हो गयी हूँ... आप मेरे गाईड बनें और मेरे जीवन को नया रास्ता मिल गया है... *मैं आत्मा आपके बताए रास्ते पर चलकर कितनी महान बनती जा रही हूं , सुख के सागर को पाकर मैं आत्मा धन्य हो गयी हूँ... पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बन गयी हूँ...*"

❉ *बाबा मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... बाप आये हैं तुम्हें बहुत बहुत मीठा बनाने, माया ने तुम्हें खाली कर दिया है बाप आये हैं फिर से तुम्हें ज्ञान के खजाने से मालामाल करने... *अपने को देही समझ एक बाप से योग लगाओ योग से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और तुम नई दुनिया के मालिक बन जायेंगे... मेरा तो एक बाबा दूसरा न कोई इस पाठ को पक्का करो, बाप की श्रीमत पर चलकर ही तुम राज्य के अधिकारी बनते हो... बाप से पूरा वर्सा लेने के लिए निरंतर बाप की याद में रहो...*"

➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की प्रेमभरी वाणी को स्वयं में धारण करते हुए बाबा से कहती हूँ:-* "हां मेरे दिलाराम बाबा... आपकी श्रीमत पाकर मुझ आत्मा के जीवन में नई उमंग और नया उत्साह भर गया है... मैं आत्मा कितनी सौभाग्यशाली हूँ जिसको परमात्मा की पालना मिली है ये सोचते ही मेरे रोम रोम में खुशी और उल्लास की लहर सी दौड़ जाती है... *नाजाने कब से अंजान रास्तों पर चली जा रही थी अपने जीवन की मंजिल का कुछ पता न था आपने आकर मुझ आत्मा को मेरी मंजिल बताकर मुझे भटकने से बचा लिया... आपको पाकर अब और कुछ भी पाना बाकी नही रह गया...*"

❉ *बाबा मुझ आत्मा का ज्ञान श्रृंगार करते हुए मधुर वाणी में बोले:-* "मीठे बच्चे... ज्ञान से ही योग की धारणा होगी इसलिए पढ़ाई कभी मिस नही करनी... बाप से रोज़ पढ़ना है और स्वयं में ज्ञान धारण कर औरों को भी कराने की सेवा करनी है... *बाप रोज़ परमधाम से तुम्हें पढ़ाने आते हैं इस स्मृति में रहना है, निश्चय बुद्धि बनना है , कभी भी संशय में नही आना है... संगदोष में आकर पढ़ाई को कभी नही छोड़ना, ऐसा कोई काम नही करना जिससे बाप की अवज्ञा हो...*"

➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा के महावाक्यों का रसपान करते हुए बाबा से बोली:-* "मेरे प्राणों से प्यारे बाबा... आपने मेरे जीवन को दिव्यता और सुख की अलौकिक चांदनी से चमचमा दिया है... जीवन की प्यास को अपने ज्ञानामृत से बुझा दिया और *मुझ आत्मा की बुद्धि का ताला खोलकर मुझे ज्ञानवान बना दिया...* मैं आत्मा स्वयं को बहुत हल्का अनुभव कर रही हूं... मेरे जन्मों जन्मों की जो खाद आत्मा में पड़ी हुई है उसे योग अग्नि से भस्म करती जा रही हूं... *बाबा आपने वरदानों से मेरा श्रृंगार करके मुझे और भी अलौकिक बना दिया है... आपने मेरे जीवन को ज्ञान और परमात्म प्रेम से भर दिया है आपका कितना भी शुक्रिया करूँ कम ही लगता है... मैं आत्मा बाबा को दिल की गहराइयों से शक्रिया कर अपने साकारी तन में लौट आती हूं...*"

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बेहद का बाप हमे बेहद की बादशाही दे रहें हैं - इस खुशी में रहना है*"

➳ _ ➳  अपनी पलकों को मूंदे, अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी मधुर स्मृतियों में खोई मैं अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के बारे में विचार कर, मन ही मन *अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करती हुई मन्द - मन्द मुस्करा रही हूँ और सोच रही हूँ कि इस दुनिया की सबसे खुशनसीब आत्मा हूँ मैं जिसे स्वयं भगवान ने अपनी चल और अचल प्रॉपर्टी का मालिक बनाया है*। दुनिया मे कोई कितना भी धनवान क्यों ना हो लेकिन मुझ से अधिक धनवान कोई भी नही। "वाह मेरा भाग्य वाह" "वाह रे मैं खुशनसीब आत्मा वाह"। 

➳ _ ➳  वाह - वाह के गीत गाते हुए, अपार खुशी और नशे में डूबी मैं आत्मा मन ही मन अपने शिव पिता का दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ और अपने मन बुद्धि को देह की दुनिया से निकाल अपने शिव पिता के पास ले चलती हूँ। *अपने मन बुद्धि को शिव पिता पर एकाग्र करते ही मैं अनुभव करती हूँ कि मेरे शिव पिता अपने रथ पर सवार हो कर मेरे सम्मुख आ कर खड़े हो गए हैं और मन्द - मन्द मुस्कराते हुए मुझे निहार रहें हैं*। अपने लाइट माइट स्वरूप में अपने स्नेह की शीतल छाया में बिठा कर मुझ पर अपने असीम प्रेम की वर्षा कर रहें हैं।

➳ _ ➳  जन्म - जन्म से मेरी निगाहें जिसके दर्शनों की प्यासी थी। वो भगवान, मेरे शिव पिता मेरे बिल्कुल सामने खड़े हैं यह सोच कर ही मैं असीम आनन्द का अनुभव कर रही हूँ। आंखों से खुशी के आँसू छलक रहें हैं और मेरे बाबा अपने हाथ में उन आंसुओं को उठा कर कीमती मोती की तरह उन्हें अपने दिल की डिब्बी में कैद कर रहें हैं। *भगवान के साथ मुझ आत्मा का ऐसा सुन्दर मिलन होगा यह ख्याल तो कभी स्वप्न में भी नही आया था*।  स्वयं भगवान मेरा हो जायेगा, अपने सर्व खजाने वो मुझ पर लुटायेगा और अपनी चल - अचल प्रॉपर्टी का मुझे मालिक बना देगा। मन ही मन स्वयं से बातें करती हुई मैं एकटक अपने शिव पिता को निहार रही हूँ।

➳ _ ➳  बड़े प्यार से मुस्कराते हुए अब बाबा मेरे श्रेष्ठ भाग्य का गुणगान करते हुए मुझ से कह रहें हैं:- *तुम साधारण नही हो। मैंने तुम्हे संसार की करोड़ो आत्माओं में से चुना है इसलिये तुम बहुत महान हो। अपनी सर्वशक्तियाँ, सर्व खजाने मैंने तुम्हे दे दिए हैं। तुम मास्टर सर्वशक्तिवान हो। मंदिरों में तुम्हारी ही पूजा हो रही है*। तुम इष्ट देवी हो। सबके विघ्नों को हरने वाले तुम ही विघ्न विनाशक गणेश हो। तुम पूर्वज हो। तुम विजय माला के मणके हो। तुम्हारी माला सिमर कर आज भी भक्त समस्यायों से मुक्त हो रहें हैं। तुम दुनिया की सभी आत्माओं को दुखो से छुड़ाने वाले फरिश्ते हो। 

➳ _ ➳  भगवान के मुख से अपनी महिमा सुनकर मैं अलौकिक रूहानी नशे से भरपूर, अपने लाइट माइट स्वरुप में स्थित हो कर अब अपने शिव पिता का हाथ थामे उनके साथ ऊपर की ओर जा रही हूँ। *अपने शिव पिता की शक्तिशाली किरणों रूपी छत्रछाया के नीचे गहन आनन्द की अनुभूति करते हुए मैं आत्मा अब पहुँच गई अपने घर परमधाम*। अपने शिव पिता के सम्मुख बैठ, उनकी सर्वशक्तियों को स्वयं में समाने के बाद, शक्ति शाली स्थिति में स्थित हो कर अब मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। 

➳ _ ➳  *अपने ब्राह्मण स्वरुप में अब मैं स्थित हूँ और एक दिव्य अलौकिक रूहानी मस्ती से स्वयं को भरपूर अनुभव कर रही हूँ। "भगवान बाप की चल - अचल प्रॉपर्टी की मैं मालिक हूँ"  इसी खुशी और नशे में रहते हुए मैं उड़ती कला का सदा अनुभव करते हुए अब निरन्तर आगे बढ़ रही हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अनेक प्रकार की प्रवृत्ति से निवृत होने वाली आत्मा हूँ।*
✺   *मैं नष्टोमोहा आत्मा हूँ।*
✺   *मैं स्मृति स्वरूप आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ *मैं आत्मा कमल फूल समान न्यारी रहती हूँ ।*
✺ *मैं प्रभु का प्यार पाने वाली आत्मा हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा प्रभु प्यारी हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा सेवा समाचार भी सुनते हैं, सेवा में आजकल भिन्न-भिन्न कोर्स कराते हो, लेकिन अभी एक कोर्स रह गया है। वह है हर आत्मा में जो शक्ति चाहिए, वह फोर्स का कोर्स कराना। *शक्ति भरने का कोर्स, वाणी द्वारा सुनाने का कोर्स नहीं, वाणी के साथ-साथ शक्ति भरने का कोर्स भी हो।* जिससे अच्छा-अच्छा कहें नहीं लेकिन अच्छा बन जाएं। यह वर्णन करें कि आज मुझे शक्ति की अंचली मिली। अंचली भी अनुभव हो तो उन आत्माओं के लिए बहुत है। *कोर्स कराओ लेकिन पहले अपने को कराके फिर कहो।*

 

✺   *ड्रिल :-  "फोर्स का कोर्स कराने का अनुभव"*

 

 _ ➳  मैं अशरीरी आत्मा अपने भृकुटि सिंहासन त्याग अपने पिता परमात्मा संग मिलन मनाने मूलवतन की ओर जा रही हूं... प्रकाश स्वरूप में स्थित होकर दिव्य बुद्धि से मैं आत्मा लाल ही लाल प्रकाश की दुनिया में अपने घर परमधाम पहुंच गई हूं... मैं आत्मा मीठे शिवबाबा के समक्ष जाकर बैठ जाती हूं... *मीठे बाबा की मीठी दृष्टि से मैं आत्मा निहाल हो रही हूं...* मैं आत्मा बाबा की मीठी किरणों की बरसात में भीग रही हूं...

 

 _ ➳  सफेद प्रकाश की उजली किरणों को अपने अंदर समाकर मैं आत्मा और उज्ज्वल से उज्ज्वलतम हो रही हूं... *सर्व गुणों व सर्व शक्तियों से भरे प्रकाश ऊर्जा की बरसात से सारी शक्तियां सारे गुण मुझ आत्मा में फ़ोर्स के साथ भर रहे है...* मैं आत्मा सम्पूर्ण हो रही हूं... भरपूर हो रही हूं... सर्व शक्तियों एवं सर्व गुणों से सम्पन्न होकर शक्तिवान बन रही हूं...

 

 _ ➳  मीठे बाबा की ज्ञान की किरणों से मुझ आत्मा के अज्ञानता के अंधकार मिट रहे है... *मैं आत्मा ज्ञान सागर के ज्ञान तरंगों को धारण करने और धारण कराने योग्य बन रही हूं...* मुझ आत्मा के संकल्प, बोल, कर्म उज्ज्वल प्रकाशमय हो रहे है... *पुराने संस्कार पुराने देह के साथ मिटते हुए अनुभव कर रही हूं...* आत्मा सहजरूप से नए योग्यताओं को धारण कर रही है ...

 

 _ ➳  सर्व शक्तियों का दान सर्व गुणों का दान करने का वायदा कर मीठे बाबा से विदाई ले रही हूं... *मीठे बाबा मुझ आत्मा के मस्तक पर विजय का तिलक लगा कर्म क्षेत्र में विजयी भव का वरदान दे रहे है...* अब मैं आत्मा मीठे बाबा से विदाई ले अपने स्थूल वतन की ओर लौट रही हूं... विश्व गोले की ओर बढ़ रही हूं...

 

 _ ➳  मैं उज्ज्वल सितारा सभी आत्माओं को ज्ञान प्रकाश का दान कर रही हूं... विश्व की सभी आत्माएं अनायास ही आत्म अनुभूति में लीन होते हुए दिखाई दे रहे है... सभी के मस्तक पर आत्म ज्योति जगी हुई है... *सभी आत्माएं ज्ञान प्रकाश धारण कर सहजता से अंधकार मुक्त हो रहे है... सभी की आंतरिक कालिमा मिट रही है...* सभी आत्माओं को आत्मा होने का ज्ञान सहज भाव से महसूस हो रहा है... सभी आत्मानुभूति की सुख सागर में डुबकी लगाकर आत्म चिंतन में विभोर हो रहे है... तृप्त हो रहे है... *अविनाशी प्राप्ति कर सन्तुष्ट हो रहे है...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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