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 13 / 03 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *ऐसा कोई कर्म तो नही किया, जो बाप द्वारा भक्त का टाइटल मिले ?*

 

➢➢ *इस छी छी दुनिया को भूलने का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *त्यागा तपस्या और सेवा भाव की विधि द्वारा सदा सफलता अनुभव की ?*

 

➢➢ *संकल्प द्वारा भी किसी को दुःख तो नहीं दिया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *बाप से सच्चा प्यार है तो प्यार की निशानी है-समान, कर्मातीत बनो । ' करावनहार' होकर कर्म करो, कराओ ।* कर्मेन्द्रियां आपसे नहीं करावें लेकिन आप कर्मेन्द्रियों से कराओ । कभी भी मन-बुद्धि वा संस्कारों के वश होकर कोई भी कर्म नहीं करो ।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं सृष्टि ड्रामा के अन्दर विशेष पार्टधारी हूँ"*

 

  सभी अपने को इस सृष्टि ड्रामा के अन्दर विशेष पार्टधारी समझते हो? कल्प पहले वाले अपने चित्र अभी देख रहे हो! यही ब्राह्मण जीवन का वन्डर है। *सदा इसी विशेषता को याद करो कि क्या थे और क्या बन गये! कौड़ी से हीरे तुल्य बन गये। दु:खी संसार से सुखी संसार में आ गये।*

 

  *आप सब इस ड्रामा के हीरो हीरोइन एक्टर हो। एक-एक ब्रह्माकुमार-कुमारी बाप का सन्देश सुनाने वाले सन्देशी हो। भगवान का सन्देश सुनाने वाले सन्देशी कितने श्रेष्ठ हुए!*

 

 *तो सदा इसी कार्य के निमित्त अवतरित हुए हैं। ऊपर से नीचे आये हैं यह सन्देश देने - यही स्मृति खुशी दिलाने वाली हैं। बस, आपना यही आक्यूपेशन सदा याद रखो कि खुशियों की खान के मालिक हैं। यही आपका टाइटिल है।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  मीठे - मीठे बच्चे किसके सामने बैठे हो और क्या होकर बैठे हो? बाप तो तुम बच्चों को बिन्दि रुप बनाने आये हैँ। मै आत्मा बिन्दु रुप हूँ। बिन्दि कितनी छोटी होती है और बाप भी कितना छोटा है। इतनी छोटी - सी बात भी तुम बच्चों को बुद्धि में नहीं आती है ? बाप तो  बच्चों के सामने ही है, दूर नहीं। दूर हुई चीज को भूल जाते हो। *जो चीज सामने ही रहती है उस चीज को भूलना - यह तुम बच्चों को शोभा नहीं देता है*।

 

✧  बच्चे! अगर बिन्दि को ही भूल जायेंगे, तो बोलो, किस आधार पर चलेंगे? आत्मा के ही तो आधार से शरीर भी चलती है। मैं आत्मा हूँ। *यह नशा होना चाहिए कि मै बिन्दु , बिन्दु की ही सन्तान हूँ*। सन्तान कहने से ही स्नेह में आ जाते हैँ। तो आज तुम बच्चों को बिन्दु रूप में स्थित होने कि प्रैक्टिस करायें?

 

✧    *मैं आत्मा हूँ - इसमें तो भूलने की ही आवश्यकता नहीं रहती है*। जैसे मुझ बाप को भूलने की जरूरत पडती है? हाँ, परिचय देने के लिए तो जरूर बोलना पडता है कि मेरा नाम, रूप, गुण, कर्तव्य क्या है और मै फिर कब आता हूँ, किस तन में आता हूँ। तुम बच्चों को ही अपना परिचय देता हूँ। तो क्या बाप अपने परिचय को भूल जाते है? बच्चे उस स्थिति में एक सेकण्ड भी नहीं रह सकते है? तो क्या अपने नाम, रुप, देश, को भी भूल जाते हैँ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  बिल्कुल इस दुनिया की बातों से, सम्बन्धों से न्यारे बनेंगे तब दैवी परिवार के बापदादा के और सारी दुनिया के प्यारे बनेंगे। *लेकिन यहाँ न्यारा बनना है ज्ञान सहित । सिर्फ बाहर से न्यारा नहीं बनना है। मन का लगाव न हो।* जब अपनी देह से भी न्यारा हो जाते हो तो न्यारेपन की अवस्था अपने आपको भी प्यारी लगती है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  बाप से सच्चे होकर रहना"*

 

_ ➳  मै आत्मा सच की रौशनी में जगमगाती हुई... अपने शानदार भाग्य पर मुस्कराती हुई... *सत्य पिता के साये में सत्य से रौशन हुए चमकते,उज्ज्वल, धवल जीवन को निहार रही हूँ.*.. प्यारे बाबा पर अपने दिल समन्दर को उंडेलने, मै आत्मा सूक्ष्म शरीर में उड़ चलती हूँ वतन की ओर... मुझे अपने दिल के पास आता देख बापदादा भी पुलकित है और बाँहों में समाने को आतुर मेरी बाट ले रहे है... *मै आत्मा सत्यपिता की बाँहों में समाकर अतीन्द्रिय सुख की अनुभूतियों से सराबोर हो रही हूँ...*

 

   *मीठे बाबा मुझ भाग्यवान आत्मा को... अपनी बाँहों में भरकर... मेरे कानो में अपनी मधुर रश्मियाँ बिखरते हुए कहते है...* जहान के नूर बच्चे... सत्य पिता की ऊँगली पकड़ सत्य राहो पर सदा के निश्चिन्त होकर, सतयुगी दुनिया के हकदार बनो... *सत्यता के नशे में रह ब्रह्माण्ड को बाँहों में भरो.*.. यही सत्यता की चमक देवताई चमक से सदा का नूरानी बनाएगी...

 

_ ➳  *प्यारे बाबा की प्यार भरी समझाइश पाकर मै आत्मा अपने सत्य प्रकाश से आलोकित जीवन को देख मुस्करा उठती हूँ...* प्यारे बाबा... आपके बिना सत्य से कितना विमुख सी थी... असत्य को हर पल जीती हुई दुखो के दलदल में लिप्त थी... मीठे बाबा कब सोचा था मेने कि *सच्चाई मेरे रोम रोम में समाकर जीवन में यूँ चार चाँद सजाएगी*.."

 

   *प्यारे से लाडले मेरे बाबा मुझ पर अनन्त प्रेममयी किरणे बिखेर रहे और कह् रहे...* रूहे गुलाब बच्चे... सच की ताकत से भरकर विश्व धरा पर शान से अपना अधिकार ले लो... *मीठे बाबा को जो अपने दिल का हमराज बनाया है तो हर पल हर बात में राजदार करो.*.. मनमीत को हालेदिल बयाँ करो... सच्चाई से ईश्वर पिता का दिल यूँ चुटकियो में जीत लो..."

 

_ ➳  *मीठे बाबा को अपने सम्मुख बैठ यूँ प्यार से समझाते हुए देख देख मै आत्मा ख़ुशी में चहक रही हूँ...* और प्यारे बाबा से कह रही... और सच्चे दिलबर बाबा श्रीमत की जादूगरी से, जीवन सत्य की खनक से भर दिया है... मेरा हर कर्म सत्य की झनकार लिए ब्रह्माण्ड में गूंज रहा है... ईश्वरीय ज्ञान रत्नों से आपने मेरा जीवन... *सत्य और श्रेष्ठ कर्मो से सजाकर मुझे देवताओ सा खुबसूरत बना दिया है.*.."

 

   *प्यारे बाबा मुझे अपनी अनन्त शक्तियो से भरपूर कर रहे और कह रहे...* सत्यता के सूर्य बनकर इस धरा पर अपनी किरणे इस कदर फैलाओ कि... हर दिल इन किरणों के प्रकाश में आने को मचल उठे... सच्चे पिता के साथ रोम रोम से सच्चे होकर रहो.. ईश्वरीय यादो में बीते यह सुनहरे पल.... *सच्ची दिल पर साहिब को राजी कर जायेंगे.*..ईश्वर पिता से स्वर्ग राज्य तिलक दिलाएंगे..."

 

_ ➳  *मनमीत बाबा की प्रेम अल्फाज सुनकर मै आत्मा खुशियो के आसमाँ में उड़ने लगी...* और बाबा से कहा... मीठे बाबा... मेरे तन मन धन सब आपको सौंप दिया है...मेरा सब कुछ आपका और आपके सारे खजाने मेरे है... बस आप मेरा हाथ और साथ कभी न छोड़ना... *आपके साये में, मै आत्मा सच का सूरज बन दमक रही हूँ.*.. ऐसी मीठी रुहरिहान को दिल में समाये, मै आत्मा अपने स्थूल जगत की ओर रुख करती हूँ..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- इस पुरानी दुनिया मे कोई चैन नही है, यह छी छी दुनिया है इसे भूलते जाना है*"
 
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अपने मीठे ते मीठे प्यारे बाबा के प्रेम की अमूल्य धरोहर जो मुझे उनसे मिली है, उस अमूल्य धरोहर को याद करते ही, आंखों से खुशी के आंसू मोतियों के रूप में छलक उठे है और अपने शिव प्रीतम द्वारा उन मोतियों को अपने दिल की डिब्बी में कैद कर लेने का अहसास मुझे उनके और करीब ले जा रहा है। *जितना मैं स्वयं को उनके नजदीक अनुभव कर रही हूँ उतना इस पुरानी दुनिया की हर बात से मेरा तैलुक समाप्त होता जा रहा है*। यह देह और देह की झूठी दुनिया मुझे बेरंग लगने लगी है। इसलिए मन रूपी पँछी बार - बार इस झूठी दुनिया से किनारा कर उस निराकारी दुनिया मे उड़ जाना चाहता है जहाँ प्यार के सागर मेरे शिव पिया रहते हैं।
 
➳ _ ➳ 
अपने रथ पर विराजमान हो कर, मेरे शिव पिया का साकार में आ कर मुझ से मिलना, मुझ से मीठी - मीठी रूह रिहान करना और अपने प्रेम की शीतल फ़ुहारों से मुझ आत्मा सजनी को तृप्त कर देना, इन सभी बातों की स्मृति मुझे विदेही बन, झट से उनके पास जाने के लिए प्रेरित कर रही है। *अपने माशूक के प्रेम की लगन में मग्न मैं आत्मा आशिक विदेही बन इस देह से किनारा कर अब जा रही हूँ अपने शिव पिया के पास उस विदेही दुनिया में जहां देह और देह की दुनिया का संकल्प मात्र भी नही*। देह की इस झूठी साकारी दुनिया से परें आत्माओं की वो निराकारी दुनिया बहुत ही न्यारी और प्यारी है जहाँ मेरे अति मीठे, प्यारे बाबा रहते हैं।
 
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अपने शिव पिता परमात्मा के उस धाम की ओर मैं निरन्तर बढ़ती जा रही हूँ। साकार दुनिया को पार कर, सूक्ष्म लोक से परें अब मैं देख रही हूँ स्वयं को अपने स्वीट साइलेन्स होम में अपने शिव पिता परमात्मा के सम्मुख। *शक्तियों की अनन्त किरणे बिखेरता उनका सलोना स्वरूप मन को असीम आनन्द का अनुभव करवा रहा है*। उनसे निकल रही शक्तियों की रंग बिरंगी किरणे बहते हुए झरने के समान मुझ पर पड़ रही है और मन को गहन शीतलता दे रही है।
 
➳ _ ➳ 
शक्तियों की रंग बिरंगी धाराएं जितनी तीव्र गति से मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं उतना ही मुझ आत्मा पर चढ़ा हुआ विकारों का किचड़ा समाप्त होने से मेरा स्वरूप निखरता जा रहा है। शक्तियों से मैं सम्पन्न हो कर शक्ति स्वरूप बनती जा रही हूँ। *बाबा का स्नेह और प्यार किरणों के रूप में निरन्तर मुझ पर बरस रहा है और मुझे नष्टोमोहा बना रहा है*। बाबा के प्रेम को अपने जीवन का आधार बना कर अब मैं वापिस साकारी दुनिया की और प्रस्थान कर रही हूँ।
 
➳ _ ➳ 
साकारी लोक में अपने साकारी तन में अब मैं विराजमान हूँ। देह और देह की दुनिया मे रहते हुए, अब मेरे शिव बाबा का प्रेम, उनका साथ मुझे देह और देह की दुनिया के हर आकर्षण से मुक्त कर रहा है। दुनियावी  सम्बन्धो से अब मेरा कोई लगाव, झुकाव और टकराव नही है। *पुरानी दुनिया की किसी भी बात से कोई तैलुक ना रख, केवल अपने शिव बाबा के साथ सर्व सम्बन्धों का सुख लेते हुए, उनकी मीठी यादों में खोए रहना ही अब मुझे अच्छा लगता है*।
 
➳ _ ➳  *
तुम्ही से बैठूं, तुम्ही से खाऊँ, तुम्ही संग रास रसाऊं इसे ही अपने जीवन का मंत्र बना कर, हर बात से उपराम हो कर, अब मैं अपने मीठे बाबा के साथ अपने जीवन के हर पल का आनन्द ले रही हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं त्याग, तपस्या और सेवा भावी आत्मा हूँ।*

   *मैं सदा सफलता स्वरूप आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

  *मैं आत्मा संकल्प द्वारा भी किसी को दुःख देने से मुक्त हूँ ।*

  *मैं आत्मा सम्पूर्ण अहिंसा का पालन करती हूँ ।*

  *मैं दयालु आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  अभी इस वर्ष बापदादा बच्चों के स्नेह में कोई भी बच्चे की किसी भी समस्या में मेहनत नहीं देखने चाहते। *समस्या समाप्त और समाधान समर्थ स्वरूप। क्या यह हो सकता है?* बोलो दादियाँ हो सकता है? टीचर्स बोलो, हो सकता है? पाण्डव हो सकता है? फिर बहाना नहीं बताना, यह था ना, यह हुआ ना! यह नहीं होता तो नहीं होता! बापदादा बहुत मीठे-मीठे खेल देख चुके हैं। *कुछ भी हो, हिमालय से भी बड़ा, सौ गुणा समस्या का स्वरूप हो, चाहे तन द्वारा, चाहे मन द्वारा, चाहे व्यक्ति द्वारा, चाहे प्रकृति द्वारा समस्या, पर-स्थिति आपकी स्व-स्थिति के आगे कुछ भी नहीं है और स्व-स्थिति का साधन है - स्वमान।*

 

 _ ➳  नेचरल रूप में स्वमान हो। याद नहीं करना पड़े, बार-बार मेहनत नहीं करनी पड़े, नहीं-नहीं मैं स्वदर्शन चक्रधारी हूँ, मैं नूरे रत्न हूँ, मैं दिलतख्तनशीन हूँ... हूँ ही। और कोई होने है क्या! कल्प पहले कौन बने थे? और बने थे या आप ही बने थे? आप ही थे, आप ही हैं, हर कल्प आप ही बनेंगे। यह निश्चिंत है। *बापदादा सब चेहरे देख रहे हैं यह वही कल्प पहले वाले हैं। इस कल्प के हो या अनेक कल्प के हो? अनेक कल्प के हो ना! हो?* हाथ उठाओ जो हर कल्प वाले हैं? फिर तो निश्चित है ना, *आपको तो पास सर्टीफिकेट मिल गया है ना कि लेना है? मिल गया है ना? मिल गया है या लेना है?* कल्प पहले मिल गया है, अभी क्यों नहीं मिलेगा। तो यही स्मृति स्वरूप बनो कि सर्टीफिकेट मिला हुआ है। *चाहे पास विद आनर का, चाहे पास का, यह फर्क तो होगा, लेकिन हम ही हैं। पक्का है ना।*

 

✺   *ड्रिल :-  "समाधान, समर्थ स्वरूप में स्थित होने का अनुभव"*

 

 _ ➳  भृकुटि सिंहासन पर विराजमान...  मैं चमकता हुआ सितारा... अपने स्वमान में स्थित ज्ञान स्वरूप हूं... मुझ आत्मा से नीले रंग की चमत्कारी किरणें चारों ओर फैल रही है... अपने लाइट माइट स्वरूप में चारों ओर का किचड़ा मैं आत्मा भस्म करती जा रही हूं... मैं देखती हूं चारों ओर का वातावरण साफ व शुद्ध होता जा रहा है... *अपने अनादि संबंध की स्मृति में... अपने चारों ओर की आत्माओं को भाई-भाई की दृष्टि से निहारती मैं आत्मा स्मृति स्वरूप हूं... यह स्मृति मुझ आत्मा को समर्थ बनाए हुए हैं... आत्माओं द्वारा समस्या रूपी विघ्न मैं आत्मा  सहज ही पार करती जा रही हूं...*

 

 _ ➳  आत्मा-आत्मा भाई-भाई की रूहानी दृष्टि में स्थित... मै ज्ञानी तू आत्मा सहज ही सामने वाली आत्मा के साथ अपने संस्कारों का मिलान कर रही हूं... *मैं आत्मा शांति के सागर परमपिता शिव की संतान हूं... यह स्मृति मुझे शांति से भरपूर किए हुए हैं.... मुझसे शांति की अनंत किरणें निकल चारों ओर फैल रही हैं... मैं देखती हूँ मेरे चारों ओर की आत्माएं व प्रकृति एकदम शांत हैं... पांचों तत्व सतोप्रधानता को प्राप्त  हैं...* मैं स्वयं को प्रकृतिजीत स्थिति में देख रही हूं...  मुक्ति द्वार पर स्थित मैं आत्मा मास्टर त्रिकालदर्शी हूं... ड्रामा के राज से परिचित मैं आत्मा साक्षी दृष्टा की सीट पर विराजमान हूं...

 

 _ ➳  साक्षीपन की ये स्मृति मुझ आत्मन को समस्या से समाधान स्वरूप बनाए हुए हैं... कोई भी विघ्न चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो मुझे चींटी समान प्रतीत हो रहा है... *मैं आत्मा उड़ती कला में स्थित तीव्र गति से हिमालय रूपी समस्याओं को पार करती हुई मंजिल की ओर बढ़ रही हूं...* मैं आत्मा मन की डांस में मगन हूं...  तन द्वारा आया कोई भी विघ्न मुझ आत्मा को कागज के शेर जैसा प्रतीत हो रहा है...  अंतिम जन्म की स्मृति... मुझ आत्मा को देह से न्यारे किए हुए है... मैं आत्मा अशरीरी पन का अनुभव करती जा रही हूं... मैं आत्मा सुख के सागर की संतान सुख स्वरूप... सागर के कंठे पर विराजमान अतींद्रिय सुख का अनुभव करती हूं...

 

 _ ➳  मेरे जीवन में दुःख का नाम निशान नहीं... दुःख की कोई भी लहर मुझ आत्मा से कोसों दूर है... मैं आत्मा सुख के सागर में समाई हुई सुखदाता की बच्ची मास्टर सुखदाता हूं... *मैं वही कल्प पहले वाली बाबा की बच्ची ब्राह्मण वंशावली हूं... सृष्टि मंच पर मैं आत्मा अपने 84 जन्मों का चक्कर लगाए स्वदर्शन चक्रधारी हूं...* अभी मैं आत्मा अपने अंतिम जन्म में स्थित पवित्र बन पवित्र दुनिया का मालिक बनने जा रही हूं...  कल्प कल्प की मैं आत्मा स्वराज्य सो विश्व राज्य अधिकारी हूं...

 

 _ ➳  अब फिर से मैं आत्मा वही इतिहास दोहरा रही हूं... *मैं आत्मा स्नेह के सागर की संतान सर्व की स्नेही हूं... मुझ आत्मा का यही गुण मुझे सर्व का सहयोगी बना रहा है... सब मेरे सहयोगी बनते जा रहे हैं...* सर्वशक्तिमान शिव बाबा की संतान मैं आत्मा शक्ति स्वरुप हूं... यह स्वमान मुझ आत्मा को समर्थ बनाये हुए हैं... *स्नेह और शक्ति के इस बैलेंस द्वारा मैं आत्मा सहज ही आगे बढ़ती जा रही हूं...* मैं आत्मा सर्व की प्यारी बाप की प्यारी हूं... चारों ओर बापदादा की प्रत्यक्षता का नगाड़ा मैं आत्मा बजा रही हूं... वही हैं यह वही हैं जिनकी हमें तलाश थी की आवाज चारों ओर गूंज रही हैं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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