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 27 / 01 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बहुत नम्रता और प्रेम भाव से मुस्कुराते हुए मित्र सम्बन्धियों की सेवा की ?*

 

➢➢ *लोकिक को अलोकिक में परिवर्तन कर सर्व कमजोरियों से मुक्त बने ?*

 

➢➢ *सर्व को संतुष्ट कर पुरुषार्थ में स्वतः हाई जम्प लगाया ?*

 

➢➢ *हर कर्म, संकल्प और वाणी में रेगुलर बनकर रहे ?*

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*अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *परमार्थ मार्ग में विघ्न-विनाशक बनने का साधन है - माया को परखना और परखने के बाद निर्णय करना* क्योंकि परमार्थी बच्चों के सामने माया भी रायल ईश्वरीय रुप रच करके आती है, जिसको *परखने के लिए एकाग्रता अर्थात् साइलेन्स की शक्ति को बढ़ाओ।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं निश्चयबुद्धि विजयी रत्न हूँ"*

 

  *'सदा निश्चयबुद्धि विजयी रत्न हैं।' - इसी नशे में रहो। निश्चय का फाउन्डेशन सदा पक्का है! अपने आप में निश्चय, बाप में निश्चय और ड्रामा की हर सीन को देखते हुए उसमें भी पूरा निश्चय।* सदा इसी निश्चय के आधार पर आगे बढ़ते चलो।

 

  *अपनी जो भी विशेषतायें हैं, उनको सामने रखो, कमजोरियों को नहीं, तो अपने आप में फेथ रहेगा। कमजोरी की बात को ज्यादा नहीं सोचना तो फिर खुशी में आगे बढ़ते जायेंगे। बाप का हाथ लिया तो बाप का हाथ पकड़ने वाले सदा आगे बढ़ते हैं, यह निश्चय रखो।*

 

  जब बाप सर्वशक्तिवान है तो उसका हाथ पकड़ने वाले पार पहुँचे कि पहुँचे। चाहे खुद भले कमजोर भी हो लेकिन साथी तो मजबूत है ना। इसलिए पार हो ही जायेंगे। *सदा निश्चयबुद्धि विजयी रत्न, इसी स्मृति में रहो। बीती सो बीती, बिन्दी लगाकर आगे बढ़ो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  ऑर्डर करें मधुरता स्वरूप बनना है और समस्या अनुसार, परिस्थिति अनुसार क्रोध का महारूप नहीं लेकिन सूक्ष्म रूप भी आवेश वा चिडचिडापन आ रहा है, क्या यह ऑर्डर है? ऑर्डर में हुआ? *ऑर्डर करें हमें निर्मान बनना है और वायुमण्डल अनुसार सोचो कहाँ तक दबकर चलेंगे, कुछ तो दिखाना चाहिए।*

 

✧  क्या मुझे ही दबना है? मुझे ही मरना है! मुझे ही बदलना है? क्या यह लव ऑर ऑर्डर है? इसलिए *विश्व के ऊपर, चिल्लाने वाले दु:खी आत्माओं के ऊपर रहम करने के पहले अपने ऊपर रहम करो।* अपना अधिकार सम्भालो। *आगे चल आपको चारों ओर सकाश देने का, वायब्रेशन देने का, मन्सा द्वारा वायुमण्डल बनाने का बहुत कार्य करना है।*

 

✧  पहले भी सुनाया कि अभी तक जो जो जहाँ तक सेवा के निमित हैं, बहुत अच्छी की है और करेंगे भी लेकिन अभी समय प्रमाण तीव्र गति और बेहद सेवा की आवश्यकता है। तो *अभी पहले हर दिन को चेक करो स्वराज्य अधिकारकहाँ तक रहा?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  ऐसे तो नहीं कि बहुत सुनते हो तो बिन्दु-स्वरूप में रहना मुश्किल हो जाता है? *परन्तु बिन्दु-रूप में स्थित रहने की कमी का कारण यही है कि पहला पाठ ही कच्चा है।* कर्म करते हुए अपने को अशरीरी आत्मा महसूस करें - यह सारे दिन में बहुत प्रैक्टिस चाहिए। *प्रैक्टिकल में न्यारा होकर कर्तव्य में आना - यह जितना-जितना अनुभव करेंगे उतना ही बिन्दु-रूप में स्थित होते जावेंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल :- बाप समान सबको सुख देना"*

➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की कुटिया में बैठी हूँ... कुटिया चारों तरफ से रंग बिरंगे फूलों से सजी हुई बहुत सुंदर लग रही है...* बाबा से अलौकिक प्रकाश निकल कर मुझ में समाता जा रहा है, मैं आत्मा बहुत हल्का अनुभव कर रही हूं...* बाबा अपने हाथों में मेरा हाथ लेकर मुझे सैर पर ले जाते हैं , और एक सुंदर बगीचे में मेरे साथ टहलने लगते हैं... मैं आत्मा मन ही मन ये विचार कर रही हूं कि कितना सुंदर बाग है और ये फूल चारों तरफ अपनी खुशबु बिखेरते कितने प्यारे लग रहे हैं...

❉ *बाबा मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर बोले:-* "मीठे बच्चे... जैसे बाप सबको सुख देते हैं वैसे ही सबको फूल बन सुख देना है... सुख दाता बाप के बच्चे कभी किसी को दुख नहीं दे सकते... *बाप की श्रीमत है, ना दुख दो न दुख लो* रूहे गुलाब बन सबको सुख देना है और दुआओं का खाता जमा करना है... *बाप की श्रीमत को धारण कर बाप से 21 जन्म की प्रालब्ध लेनी है...*

➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की प्यार भरी समझानी को अपने में समाते हुए बाबा से बोली:-* " हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपसे प्यार और दुलार पाकर स्वयं को दिव्य ज्ञान से सुसज्जित देख कर आनंद के सागर में डुबकियाँ लगा रही हूं... *आपकी श्रीमत पाकर मेरा जीवन अलौकिक शक्ति से और दिव्यता से चमक उठा है... मैं आत्मा कितनी भाग्यशाली हूं जिसको परमात्मा की पालना मिली... अपने भाग्य को देख मैं आत्मा असीम सुख का अनुभव कर रही हूं...*

❉ *बाबा एक बहुत सुंदर गुलाब को अपने हाथ में लेकर मुझे दिखाते हुए बोले:-* "मीठे सिकीलधे बच्चे... इस फूल में कितने कांटे हैं फिर भी सबकी नजर इस फूल पर ही पड़ती है क्योंकि फूल की सुंदरता, महक और मन को मोहने वाले सौंदर्य को देख कर सबका मन खिल जाता है ऐसे ही तुम्हें भी सुख देने वाला फूल बन सबको बाप समान सुख देना है... *बाप तुम्हें ज्ञान के खज़ानों से माला माल करने आये हैं,* इस ज्ञान को धारण कर तुम्हें दूसरों को भी कराने की सेवा करनी है... *इस पतित दुनिया से उपराम बनने के लिए इस ज्ञान सागर में रोज़ स्नान करो... निरंतर ज्ञान स्नान से तुम्हारे विकर्म विनाश हो जाएंगे और तुम पवित्र दुनिया के मालिक बन जाएंगे...*

➳ _ ➳ *ज्ञान रत्नों से अलंकृत होकर बाबा की मधुर वाणी को दिल में समाते हुए मैं आत्मा बाबा से कहती हूं:-* " प्राण प्यारे बाबा मेरे... मैं जन्मों जन्मों से भटकती हुई आज अपने दिलाराम बाबा को पाकर खुशी से झूम रही हूं... *अपने स्वरूप को निखरता हुआ देख कर मन में अपार खुशी का अनुभव कर रही हूं...* जीवन इतना खूबसूरत हो जाएगा कभी सोचा न था... *मेरी मंज़िल मुझे मिल गयी है आपकी श्रीमत को धारण कर मैं आत्मा निखर गयी हूं... आपका स्नेह और साथ पाकर मैं अतीन्द्रिय सुख के झूले में निरंतर झूल रही हूं...*

❉ *बाबा मेरे सर पर बहुत प्यार से हाथ फेरते हुए कहते हैं:-* " मेरे नैनों के नूर मेरे लाडले बच्चे... तुम्हारा भाग्य तुम्हारे ही हाथों में है जितना चाहे उतना बना सकते हो... दुनिया में कितनी आत्माएं भटक रही है उनको ठिकाना मिल जाये ऐसा अपना स्वरूप बनाओ... तुम्हें देख दूसरे भी अपने जीवन को परमात्म प्रेम से भरें ऐसा आत्मिक स्वरूप प्रत्यक्ष करो... एक बाप दूसरा न कोई इस मंत्र को सदैव स्मृति में रखो... *एक बाप से योग लगाकर अपने विकर्मों को भस्म कर मेरे साथ चलने की तैयारी करो... पवित्र बने बिना तुम मेरे साथ जा नही सकते इसलिए अशरीरी पन का निरंतर अभ्यास करो... सम्पूर्ण पवित्र बन बाप से पूरा वर्सा लो...*

➳ _ ➳ *बाबा की मीठी मीठी बातों को स्वयं में धारण करते हुए मैं आत्मा बाबा से कहती हूं:-* "मेरे मीठे जादूगर बाबा... आपने तो मेरा जीवन सचमुच कितना दिव्य बना दिया है... मैं क्या से क्या हो गयी हूँ ,अपने भाग्य को देख कर मेरा मन खुशी के गीत गा रहा है और झूम झूम कर नाच रहा है... मैं आत्मा कितना भी शुक्रिया करूं कम ही लगता है... आपकी रहमतों के आगे तो शुक्रिया शब्द भी बहुत छोटा लग रहा है... *मेरी बुद्धि को पत्थर से पारस बुद्धि बना दिया है... ज्ञान रत्नों से आपने मेरा श्रृंगार कर मेरे स्वरूप को निखार दिया है... आपकी श्रीमत पाकर मैं आत्मा धन्य धन्य हो गयी हूँ... मीठे बाबा को दिल की गहराइयों से शुक्रिया कर मैं आत्मा अपने साकार तन में लौट आती हूं...*

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- माया पर विजय प्राप्त करने के लिए याद की मेहनत करनी है*"
 
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एक खुले एकांत स्थान पर बैठ मैं इस रावण राज्य, माया नगरी में होने वाली गतिविधियों के बारे में विचार कर रही हूँ। विचार करते - करते इस मायानगरी के अनेक दृश्य मेरी आंखों के सामने उभरने लगते हैं। *मैं देख रही हूँ माया की इस दुनिया मे मन को आकर्षित करने वाले विनाशी सुख के साधन, भौतिक सुख सुविधाएं और ऐशो आराम की वस्तुएँ, जिन्हें पाकर मनुष्य बहुत खुश दिखाई दे रहें हैं*।
 
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इसी माया नगरी में, इन सभी सुख साधनों के बीच अब मैं स्वयं को देख रही हूँ। इन वस्तुयों का आकर्षण मुझे भी अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। *मैं जैसे ही आकर्षित हो कर उन वस्तुओं का सुख लेने के लिए उनके पास जाती हूँ अपने आप को एक जाल में फंसा हुआ महसूस करती हूँ*। उन सुख सुविधायों का प्रयोग करने वाला हर मनुष्य मुझे एक जाल में फंसा हुआ दिखाई दे रहा है। सभी उस जाल से निकलने का पूरा प्रयास कर रहें हैं। किंतु उनका हर प्रयास विफल हो रहा है।
 
➳ _ ➳ 
स्वयं को उस जाल से मुक्त करने के लिए मैं जैसे ही अपने हाथ - पैर चलाती हूँ, अनुभव करती हूँ कि जाल और उलझता जा रहा है। थक कर मैं शांन्त हो कर जैसे ही बैठती हूँ कानों में अव्यक्त बापदादा की आवाज सुनाई देती है, बच्चे:- अशरीरी हो कर बाप की याद में बैठ जाओ"। *हलचल की उस परिस्थिति में अब मैं अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ और सभी बातों से ध्यान हटा कर स्वयं को जैसे ही अशरीरी स्थिति में स्थित करती हूँ वैसे ही अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप को धारण कर उस जाल से स्वयं को मुक्त कर लेती हूँ*।
 
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निर्बन्धन हो कर अब मैं आत्मा ऊपर की और उड़ रही हूँ। हर प्रकार के बंधन से मुक्त इस स्थिति में मैं स्वयं को एक दम हल्का अनुभव कर रही हूँ। यह हल्का पन मन को आनन्दित कर रहा है। *एक आजाद पक्षी की भांति ऊंची उड़ान भर, मैं प्रकृति के सुंदर नजारो का आनन्द लेती हुई ऊपर ही ऊपर उड़ती जा रही हूँ*। उड़ते - उड़ते मैं आकाश को भी पार कर, फरिश्तो की दुनिया से होती हुई लाल प्रकाश की एक अति सुंदर दुनिया मे प्रवेश करती हूँ। *चमकते हुए चैतन्य सितारों की यह निराकारी दुनिया मेरे पिता परमात्मा का घर है*। अपने इस घर मे अब मैं स्वयं को अपने निराकार शिव पिता के सामने देख रही हूँ।
 
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अपने निराकार शिव पिता परमात्मा की सर्वशक्तियों की छत्रछाया के नीचे बैठ मैं गहन शांति, आनन्द की अनुभूति कर रही हूँ। गहन अतीन्द्रिय सुख में डूबती जा रही हूँ। *माया के जाल में फंस कर दुखी होने की सारी पीड़ा मेरे शिव पिता के स्नेह की शीतल छाया पा कर जैसे समाप्त हो गई है*। सर्वशक्तियों की किरणों की शीतल फुहारें मन को असीम शीतलता प्रदान कर रही हैं। सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर कर, अब मैं परमधाम से नीचे आ कर सूक्ष्म लोक में प्रवेश करती हूँ।
 
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अपने लाइट के फ़रिश्ता स्वरूप को धारण कर, बापदादा के साथ कम्बाइंड हो कर अब मैं फिर से उसी मायानगरी में आ जाती हूँ। और माया के जाल में फंसे अपने आत्मा भाइयों को छुड़ाने की सेवा में लग जाती हूँ। *बाबा की याद मेरे चारो और सेफ्टी का एक मजबूत किला बन कर अब मुझे माया के जाल में फंसने से बचाये रखती है*।
 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं लौकिक को अलौकिक में परिवर्तन करने वाली आत्मा हूँ।*
✺   *मैं सर्व कमजोरियों से मुक्त होने वाली आत्मा हूँ।*
✺   *मैं मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ *मैं संतुष्ट मणि हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सर्व को संतुष्ट करती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा पुरुषार्थ में सदैव हाई जंप लगाती हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. *आज समर्थ बाप अपने स्मृति स्वरूप, समर्थ स्वरूप बच्चों से मिलने के लिए आये हैं। आज विशेष चारों ओर के बच्चों में स्नेह की लहर लहरा रही हैं। विशेष ब्रह्मा बाप के स्नेह की यादों में समाये हुए हैं। यह स्नेह हर बच्चे के इस जीवन का वरदान है।* परमात्म स्नेह ने ही आप सबको नई जीवन दी है। हर एक बच्चे को स्नेह की शक्ति ने ही बाप का बनाया। यह स्नेह की शक्ति सब सहज कर देती है। जब स्नेह में समा जाते हो तो कोई भी परिस्थिति सहज अनुभव करते हो। *बापदादा भी कहते हैं कि सदा स्नेह के सागर में समाये रहो। स्नेह छत्रछाया है, जिस छत्रछाया के अन्दर कोई माया की परछाई भी नहीं पड़ सकती।* सहज मायाजीत बन जाते हो। *जो निरन्तर स्नेह में रहता है उसको किसी भी बात की मेहनत नहीं करनी पड़ती है। स्नेह सहज बाप समान बना देता है।* स्नेह के पीछे कुछ भी समर्पित करना सहज होता है।

 

 _ ➳  2. *जैसे इस विशेष स्मृति दिवस में अर्थात् स्नेह के दिन में स्नेह में समाये रहे ऐसे ही सदा समाये रहो, तो मेहनत का पुरुषार्थ करना नहीं पड़ेगा।*

 

✺   *ड्रिल :-  "परमात्म स्नेह की शक्ति का अनुभव"*

 

 _ ➳  *"आबू का तीर्थ तुमको पुकारे आजाओ ब्रह्मा बाबा हमारे, आना ही होगा, आना ही होगा, आना ही होगा"...* ये गीत सुनते सुनते मैं आत्मा अपने अलौकिक पिता *ब्रह्मा बाबा* के स्मृति दिवस को याद करती हूं... बाबा मेरे प्यारे बाबा कहाँ हो आप... उनकी यादों में खोई मैं पहुँचती हूं *पांडव भवन... अपने बाबा की तपस्या स्थली पर जहां मेरे अलौकिक पिता मेरे ब्रह्मा बाबा ने शिव पिता की याद में रह सम्पूर्णता प्राप्त की... ये भूमि कितनी पावन है...*

 

 _ ➳  स्मृति दिवस पर बाबा के सभी बच्चे बाबा से मिलन मनाने आए हुए हैं... सब बच्चे विशेष ब्रह्मा बाबा की याद में बैठे हैं... *आबू भूमि की इस धरती पर, इस पावन धरा पर चारों तरफ़ रूहानी खुशबू फैली हुई है... ये मेरे प्यारे बाबा के स्नेह की खुशबू है... और सुनाई दे रही है...* रूहानी स्नेह सरगम, इस सरगम की तरंगों में मैं आत्मा गुनगुनाने लगती हूं... *"स्नेह प्यार की तुझसे ओ बाबा बाँधी है जीवन डोर, बाँधी है जीवन ड़ोर"...*

 

 _ ➳  *मेरे पिता आदिदेव ब्रह्मा बाबा जो मुझ आत्मा की पालना कर रहे हैं... दिव्य गुणों से मुझे गुणवान बना रहे हैं... रोज़ शिव बाबा की श्रीमत को अपने मुख द्वारा सुना मुझे हीरे जैसे बना रहे हैं...* जहाँ कभी भी मैं अलबेलेपन में आती हूं बड़े प्यार से समझानी देते हैं... *बच्चे तुम्हें बाप समान बनना है...* उन्हीं मेरे स्नेही ब्रह्मा बाबा का आज स्मृति सो समर्थी दिवस है...

 

 _ ➳  *शान्ति स्तम्भ के आगे बैठते ही बाबा के स्नेह की छत्रछाया का अनुभव होने लगता है... बाबा अपने स्नेह पुष्पों की वर्षा कर रहे हैं... बाबा का स्नेह ही मुझ आत्मा को समर्थ बना रहा है... ये परमात्म स्नेह ही मुझे मायाजीत बना रहा है...* बाबा का वरदानी हाथ मुझे अपने सर पर महसूस होता है... इसी स्नेह शक्ति के बल को अपने अंदर समाये मैं सहज होती जा रही हूं...

 

 _ ➳  *बाबा के प्यार से मैं बिना मेहनत तीव्र गति से अपना पुरुषार्थ कर रही हूं...* और अपने ऊपर अलौकिक और अपने पारलौकिक पिता की छत्रछाया का अनुभव करती हूं... *बाबादादा का स्नेह रूपी हाथ और साथ मुझे हर परिस्थिति को उड़ाते हुए पार करा रहा है... मैं आत्मा समर्थी स्वरूप बन रही हूं...* ये बाबा के स्नेह सुमन की बरसात ही है, जिसमें भीग मैं आत्मा निरंतर आगे बढ़ती जा रही हूं... *ये परमात्म स्नेह की शक्ति ही है जो मुझ आत्मा को सब कुछ सहज लग रहा है...* अहो सौभाग्य! मुझ आत्मा का जो ये वरदानी जीवन मिला...   *बाबा के स्नेह में समाई मुझ आत्मा के अंदर एक ही धुन बज रही है... मैं बाबा की बाबा मेरा... मैं बाबा की बाबा मेरा...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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