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 28 / 03 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *साइलेंस बल से इस सृष्टि को पावन बनाने की सेवा की ?*

 

➢➢ *ड्रामा को अच्छी तरह समझ हर्षित रहे ?*

 

➢➢ *रूहानियत के प्रभाव द्वारा फ़रिश्तेपन का मेकअप किया ?*

 

➢➢ *ब्रह्मचर्य, योग तथा दिव्य गुणों की धारणा की ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *सेवा में सफलता का मुख्य साधन है-त्याग और तपस्या ।* ऐसे त्यागी और तपस्वी अर्थात् सदा बाप की लग्न में लवलीन, प्रेम के सागर में समाए हुए, ज्ञान, आनन्द, सुख, शान्ति के सागर में समाये हुए को ही कहेंगे-तपस्वी । *ऐसे त्याग तपस्या वाले ही सच्चे सेवाधारी हैं ।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं साक्षीपन की सीट पर स्थित आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने को साक्षीपन की सीट पर स्थित आत्मायें अनुभव करते हो? *यह साक्षीपन की स्थिति सबसे बढिया श्रेष्ठ सीट है। इस सीट पर बैठ कर्म करने या देखने में बहुत मजा आता है।* जैसे सीट अच्छी होती है तो बैठने में मजा आता है ना। सीट अच्छी नहीं तो बैठने में मजा नहीं।

 

  *यह 'साक्षीपन की सीट' सबसे श्रेष्ठ सीट है।* इसी सीट पर सदा रहते हो? दुनिया में भी आजकल सीट के पीछे भाग-दौड़ कर रहे हैं। आपको कितनी बिढ़या सीट मिली हुई है। जिस सीट से कोई उतार नहीं सकता।

 

  उन्हों को कितना डर रहता है, आज सीट है कल नहीं। आपको अविनाशी है निर्भय होकर बैठ सकते हो। *तो साक्षी-पन की सीट पर सदा रहते हो। अपसेट वाला सेट नहीं हो सकता। सदा इस सीटपर सेट रहो। यह ऐसी आराम की सीट है जिस पर बैठकर जो देखने चाहो जो अनुभव करने चाहे वह कर सकते हो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  वह अनुभव, वह अन्तिम स्थिती की परख अपने आप में देखो कि कहाँ तक अन्तिम स्थिति के नजदीक है। जैसे सूर्य अपने जब पूरे प्रकाश में आ जाता है तो हर चीज स्पष्ट देखने में आती है। जो अन्धकार है, धूंध है वह सभी खत्म हो जाते है। *इसी रीती जब सर्वशक्तिवान ज्गान सूर्य के साथ अटुट सम्बन्ध है तो अपने आप में भी ऐसे ही हर बात स्पष्ट देखने में आयेगी*।

 

✧   *जो चलते - चलते पुरुषार्थ में माया का अंधकार वा धुंध आ जाता है, जो सत्य बात को छिपाने वाले हैं, वह हट जायेंगे*। इसके लिए सदैव दो बातें याद रखना। आज के इस अलौकिक मेले में जो सभी बच्चे आये हैं। वह जैसे लौकिक बाप अपने बच्चों को मेले में ले जाते हैं तो जो स्नेही बच्चे होते हैं उनको कोई-न-कोई चीज लेकर देते हैं।

 

✧  तो बापदादा भी आज के इस अनोखे मेले में आप सभी बच्चों को कौन - सी अनोखी चीज देंगे? *आज के इस मधुर मिलन के मेले का यादगार बापदादा क्या दे रहे हैं कि सदैव शुभ चिंतक और शुभ चिंतन में रहना।* शुभ चिंतक और शुभ चिंतन। यह दो बातें सदैव याद रखना।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *एक होता है डायरेक्ट विकर्म विनाश की स्टेज में स्थित हो फुल फोर्स से विकर्मों का नाश करना। दूसरा तरीका है जितना-जितना शुद्ध संकल्प वा मनन की शक्ति से अपनी बुद्धि को बिज़ी रखते हो, वह जो शक्तियां जमा होती हैं, तो उनसे वह धीरे-धीरे खत्म हो जायेगा।* बुद्धि में यह भरने से वह पहले वाला स्वयं ही निकल जायेगा। *एक होता है पहले सारा निकाल कर फिर भरना, दूसरा होता है भरने से निकालना। अगर खाली करने की हिम्मत नहीं है तो दूसरा भरते जाने से पहला आपेही खत्म हो जायेगा।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल :- ज्ञान से शीतल बनना"*

➳ _ ➳ *मीठे बाबा के प्यार भरे गीत गुनगुनाती हुई... सूर्य की नई नवेली किरणों को... धरती का आलिंगन करते हुए निहार रही हूँ...* और सोच रही हूँ कि *ज्ञान सूर्य शिवबाबा ने मुझ आत्मा को, गले लगाकर... गुणों और शक्तियों से श्रृंगारित कर दिया...* और अपने दिल में सजा लिया है... *भगवान के दिल की रानी बनकर, मैं आत्मा... अपने मीठे भाग्य पर बलिहार हूँ... आज मैं आत्मा भगवान के दिल में रहती हूँ, बाबा को अपने दिल की हर बात बताती हूँ...* इन मीठे अहसासों ने कई जन्मों के दुखों को विस्मृत कर दिया है... अब मेरे चारों और सुख ही सुख है... यही जज्बात मीठे बाबा को सुनाने वतन में उड़ चलती हूँ...

❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सच्ची कमाई के गहरे राज़ समझाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *इस समय सभी मनुष्य आत्माएं काम विकार की अग्नि में जल रहीं हैं... उन्हें काम चिता से उतार ज्ञान चिता पर बिठाना है... हर आत्मा को पवित्र बनाने की सेवा करनी है... तुम्हें हर रूह को ज्ञान का इंजेक्शन लगाकर पवित्र बनाना है...* ईश्वर पिता का साथ भरा यह वरदानी समय ... बहुत कीमती है... इस कीमती समय को रूहानी सेवा में लगा... सच्ची कमाई करो..."

➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा पर अपना अधिकार जमाते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... आपने अपना प्यार भरा हाथ... मेरे हाथों में देकर, मुझे देवताओं की अमीरी से नवाज़ा है... *अब मैं आत्मा आपकी हर बात को श्रीमत मान कर सच्ची कमाई कर रही हूँ... और फिर से खोयी हुई बादशाही को प्राप्त कर रही हूँ..."*

❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को वरदान देते हुए कहा :-* "मेरे मीठे सिकीलधे बच्चे... *तुम हो रूहानी सोशल वर्कर... तुम्हें सभी रूहों को ज्ञान के ठंडे छींटे डाल हरेक आत्मा को शीतल बनाने की सेवा करनी है... हर आत्मा पर ज्ञान के छींटे डाल... उनकी तपत बुझा... उन्हें शीतल बनाना है...* क्योंकि इस समय सभी आत्माएं विकारों रूपी अग्नि में जल रही हैं... और जली हुई आत्माएं... ज्ञान की ठंडी छांव पाकर तृप्त हो जायेगी..."

➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा से ईश्वरीय मत पाकर खुशनुमा जीवन की मालिक होकर कहती हूँ :-* "मेरे मीठे मीठे बाबा... मैं आत्मा *आपकी यादों में और ज्ञान रत्न रूपी धन पाकर बहुत सुखी हो गयी हूँ... मैं आत्मा आपसे प्राप्त इस ज्ञान के ठंडे छींटे डाल हरेक आत्मा को शीतल बना रही हूँ...* मीठे बाबा... आप सच्चे साथी को साथ रख... हर आत्मा के प्रति ज्ञान रूपी ठंडा जल बरसा रही हूँ..."

❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को प्यार से समझानी देते हुए कहा :-"मीठे लाडले बच्चे... अब तुम्हे अपनी एकाग्रचित्त अवस्था बनानी है... बुद्धि का योग सदा एक बाप से लगा रहे...* बाप के सर्व गुण स्वयं में धारण करने हैं... सदा बाप की अपना साथी बना... साथ रखना है, पुराने घर... पुरानी दुनिया में बुद्धि न जाये... इस का विशेष ध्यान रखना..."

➳ _ ➳ *मैं आत्मा प्यारे बाबा के प्यार में अतीन्द्रिय सुख पाते हुए कहती हूँ :-* "मेरे दिल के राम बाबा... *मैं आत्मा आपसे प्राप्त हर श्रीमत को धारण कर... सदा आपके बताये मार्ग पर चल... हर आत्मा को ज्ञान रूपी जल पिला... उन्हें पवित्र बनाने की भरसक प्रयत्न कर रही हूँ...* मीठे बाबा... आपने मेरे जीवन को सुखों सा महका दिया है... मीठे बाबा को दिल की गहराईयों से शुक्रिया कर मैं आत्मा... साकार वतन में लौट आयी..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल :- संगदोष से अपनी बहुत - बहुत सम्भाल करनी है*"
 
➳ _ ➳ *"बचपन के दिन भुला ना देना, आज हंसे कल रुला ना देना" गीत की इन पंक्तियों पर विचार करते - करते मैं खो जाती हूँ अपने ईश्वरीय बचपन की उन सुखद अनमोल स्मृतियों में जब पहली बार मुझे मेरा सत्य परिचय मिला था*, अपने पिता परमात्मा का सत्य बोध हुआ था। उस सुखद एहसास का अनुभव करते - करते आंखों के सामने एक दृश्य उभर आता है।
 
➳ _ ➳ मैं देख रही हूं एक स्थान पर जैसे एक बहुत बड़ा मेला लगा हुआ है। एक छोटे बच्चे के रूप में मैं उस मेले में घूम रही हूं। सुंदर सुंदर नजारे देख कर आनन्दित हो रही हूं। बहुत देर तक उस मेले का आनन्द लेने के बाद मुझे अनुभव होता है कि मेरे साथ तो कोई भी नही। *मैं स्वयं को एकदम अकेला अनुभव करती हूं और अपने पिता को ढूंढने लगती हूं। मैं जोर - जोर से चिल्ला रही हूं किन्तु मेरी आवाज कोई नही सुन रहा*। सभी अपनी मस्ती में मस्त हैं। अब उस मेले की कोई भी वस्तु मुझे आकर्षित नही कर रही। घबरा कर मैं एकांत में बैठ अपना सिर नीचे कर रोने लगती हूँ। तभी कंधे पर किसी के हाथ का स्पर्श पा कर मैं जैसे ही अपना सिर ऊपर उठाती हूँ। *सामने एक लाइट का फ़रिशता जिसके मस्तक से बहुत तेज प्रकाश निकल रहा है मुझे दिखाई देता है और वो फ़रिशता मुझ से कह रहा है, बच्चे:- "घबराओ मत, मैं तुम्हारा पिता हूँ"*
 
➳ _ ➳ इस आवाज को सुनते ही मेरी चेतनता लौट आती है और याद आता है कि इतनी बड़ी दुनिया के मेले में, इतनी भीड़ में होते हुए भी मैं अकेली ही तो थी और ढूंढ रही थी अपने पिता परमात्मा को। मैं तो नही ढूंढ पाई लेकिन उन्होंने आकर मुझे ढूंढ लिया। *अपने ईश्वरीय जीवन का वो दिन याद आता है जब पहली बार खुद भगवान के उन शब्दों को सुना था कि तुम देह नही आत्मा हो, मेरे बच्चे हो, मेरी ही तरह ज्योति बिंदु रूप है तुम्हारा*। कितने जन्म हो गए तुम्हे मुझसे बिछुड़े हुए। आओ मेरे पास आओ। अपने पिता परमात्मा के सत्य परिचय को जान कर, उनके असीम स्नेह को अनुभव करने का वो एहसास स्मृति में आते ही मन अपने उस प्यारे पिता के प्रति असीम प्यार से भर जाता है और उनसे मिलने की तड़प मन मे उतपन्न हो उठती है।
 
➳ _ ➳ अपने पिता परमात्मा से मिलने के लिए अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित होकर, निर्बन्धन बन, अब मैं चमकता हुआ सितारा, ज्योति बिंदु आत्मा अपनी साकारी देह को छोड़ अपने निजधाम परमधाम की ओर चल पड़ती हूं और सेकंड में पहुंच जाती हूं प्रेम, सुख, शांति के सागर अपने शिव पिता के पास। *एक दम शांत और सुषुप्त अवस्था में मैं स्थित हूं। संकल्पों विकल्पों की हर प्रकार की हलचल से मुक्त इस शान्तिधाम में शांति के सागर अपने शिव पिता के सामने मैं गहन शांति का अनुभव कर रही हूं*। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं अपलक शक्तियों के सागर अपने शिव पिता को निहारते हुए, उनसे अनेक जन्मों के बिछड़ने की सारी प्यास बुझा रही हूँ। उनके प्रेम से, उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूं।
 
➳ _ ➳ परमात्म शक्तियों से भरपूर हो कर, अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति का गहन अनुभव करके अब मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूं। मेरे शिव पिता परमात्मा के प्रेम का अविनाशी रंग और मेरे ईश्वरीय बचपन की सुखद स्मृतियां अब मुझे देह और देह की दुनिया मे रहते हुए भी उनके संग के प्रभाव से मुक्त कर रही हैं। *ईश्वरीय प्रेम के रंग के आगे दुनियावी प्रेम अब मुझे बहुत ही फीका दिखाई दे रहा है इसलिए हर प्रकार के संग दोष से अपनी सम्भाल करते हुए अब मैं ईश्वरीय प्रेम के रंग में रंग कर अपने जीवन को तथा औरों के जीवन को खुशहाल बना रही हूं*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं रूहानियत के प्रभाव द्वारा फरिश्ते पन का मेकअप करने वाली आत्मा हूँ।*
✺   *मैं सर्व की स्नेही आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ *मैं आत्मा ब्रह्मचर्य, योग तथा दिव्य गुणों को सदा धारण करती हूँ ।*
✺ *मैं वास्तविक पुरुषार्थ करने वाली आत्मा हूँ ।*
✺ *मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳ *मधुबन, मधुबन ही है। विदेश में भी सुन रहे हैं। लेकिन वह सुनना और मधुबन में आना, इसमें रात-दिन का फर्क है।*बापदादा साधनों द्वारा सुनने, देखने वालों को भी यादप्यार तो देते हैं, कोई बच्चे तो रात जागकर भी सुनते हैं। ना से अच्छा जरूर है लेकिन अच्छे ते अच्छा मधुबन प्यारा है। मधुबन में आना अच्छा लगा है, या वहाँ बैठकर मुरली सुन लो! क्या अच्छा लगता है? वहाँ भी तो मुरली सुनेंगे ना। यहाँ भी तो पीछे-पीछे टी.वी. में देखते हैं। *तो जो समझते हैं मधुबन में आना ही अच्छा है, वह हाथ उठाओ। (सभी ने हाथ उठाया) अच्छा। फिर भी देखो भक्ति में भी गायन क्या है? मधुबन में मुरली बाजे। यह नहीं है लण्डन में मुरली बाजे।* कहाँ भी हो, मधुबन की महिमा का महत्व जानना अर्थात् स्वयं को महान बनाना।

 

✺   *ड्रिल :-  "मधुबन की महिमा का महत्व अनुभव करना"*

 

 _ ➳  *अमृतवेले आज, मैं आत्मा... उमंग उत्साह के पंख लगाए उड़ चलती हूँ... मधुबन, अपने प्यारे बाबा के घर... आह! क्या मनोरम वातावरण है... चारो ओर एकदम शान्ति ही शान्ति है...* फूलो की धीमी-धीमी खुशबू वातावरण को महका रही है... साथ ही साथ रूहानी बाप की रूहानी खुशबू मन को महका रही है... बाबा का रूहानी प्यार अपनी ओर आकर्षित कर रहा है... मै आत्मा फरिश्तो की दुनिया में पहुच गयी हूँ... जहाँ देखो हर तरफ सफ़ेद वस्त्रधारी फ़रिश्ते ही फ़रिश्ते दिखाई दे रहे है...  

 

 _ ➳  *मै आत्मा मधुबन का चक्र लगाती पहुंच जाती हूँ बाबा के कमरे में, जहाँ मेरे प्यारे मीठे बाबा बाहें फैलाये मुझ आत्मा का आह्वान कर रहे है...* कुछ देर के लिए मै आत्मा बाबा के कमरे में बैठ बाबा से रूहरिहान करती हूँ... बाबा की दृष्टि में समाती हुई मै आत्मा एकदम हल्की होती जा रही हूँ... बाबा के साथ उड़ती हुई अब मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ तपस्या भवन में...      

 

 _ ➳  *तपस्या भवन में योगियो की सभा सजी हुई है... बाबा के मस्तक से निकलते हुए तेजोमय प्रकाश में समाती हुई मै आत्मा योगयुक्त हो शिव बाबा से योग लगा रही हूँ...* योग से मुझ आत्मा के विकर्म विनाश होते जा रहे है... बाबा से निकलती हुई किरणों से मुझ आत्मा में सातो गुण वा शक्तियाँ समाती जा रही है... बुद्धि से सभी व्यर्थ संकल्प समाप्त होते जा रहे है... योगयुक्त मै आत्मा शांत स्वरुप होती जा रही हूँ...  

 

 _ ➳  *अब मैं शांत स्वरुप आत्मा पहुँच जाती हूँ प्रकाश स्तंभ पर...* यहाँ बैठ मै आत्मा दादी प्रकाशमणि जी की शिक्षाओं को जीवन में धारण कर चमकती हुई मणि का अनुभव कर अपने फ़रिश्ताई स्वरुप में स्थित हो पहुँच जाती हूँ डायमंड हॉल में... 

 

 _ ➳  *आह! डायमंड हॉल का क्या नजारा है... चारो ओर फरिश्ते ही फ़रिश्ते दिखाई दे रहे है... फरिश्तो की महफ़िल सजी हुई है... सभी फरिश्ते अपने-अपने योग सिंहासन पर बैठे शिव परमपिता परमात्मा से रूहानी पढ़ाई पढ़ रहे है...* इस रूहानी पाठशाला में मैं फरिश्ता स्वरुप आत्मा अपने योग सिंहासन पर विराजमान हो अपने प्यारे पारलौकिक पिता के सम्मुख बैठ जाती हूँ...

 

 _ ➳  *वाह! बाबा वाह!..., वाह! मेरा भाग्य वाह!... मै कितनी सौभाग्यशाली आत्मा हूँ जो परमपिता परमात्मा शिव स्वयं परम शिक्षक बन मुझ आत्मा को ज्ञान रत्नों से श्रृंगार कर मनुष्य से देवता बनाने की रूहानी पढ़ाई पढ़ा रहे है...* मै आत्मा ज्ञान रत्नों से सजती जा रही हूँ... बाबा के उच्चारित महावाक्य मुझ आत्मा में उसी तरह समाते जा रहे जैसे माँ के हाथ की गरमा गरम रोटी डायरेक्ट तवा टू माउथ हो... मुरली का एक-एक महावाक्य मुझ आत्मा को उमंग-उत्साह से भरता जा रहा है... मधुबन में बैठी मै आत्मा मुरली के एक-एक पोइन्ट को गहराई से धारण कर रही हूँ... *बाबा की मुरली सभी बच्चो के लिए पूरे विश्व में एक जैसी चलती है... बाबा का याद प्यार सभी बच्चो को मिल रहा है परन्तु मधुबन की मुरली वा मधुबन के बाबा का प्यार जो मधुबन में बरस रहा है उसका तो, क्या कहना...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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