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❍ 26 / 03 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अपनी दृष्टि पवित्र रखी ?*
➢➢ *सदा उपराम रहने का अभ्यास किया ?*
➢➢ *श्रेष्ठ पालना की विधि द्वारा वृद्धि की ?*
➢➢ *सरल स्वभाव बना समाधान स्वरुप बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे कोई सागर में समा जाए तो उस समय सिवाय सागर के और कुछ नज़र नहीं आयेगा । *तो बाप अर्थात् सर्वगुणों के सागर में समा जाना, इसको कहा जाता है लवलीन स्थिति । तो बाप में नहीं समाना है, लेकिन बाप की याद में, स्नेह में समा जाना है ।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं हिम्मत और हुल्लासे के पँखों से उड़ने वाला हूँ"*
〰✧ सदा हिम्मत और हुल्लास के पंखों से उड़ने वाले हो ना! *उमंग उत्साह के पंख सदा स्वयं को भी उड़ाते और दूसरों को भी उड़ाने का मार्ग बताते हैं। यह दोनों ही पंख सदा ही साथ रहें। एक पंख भी ढीला होगा तो ऊंचा उड़ नहीं सकेंगे।* इसलिए यह दोनों ही आवश्यक हैं। हिम्मत भी, उमंग हुल्लास भी।
〰✧ *हिम्मत ऐसी चीज है जो असम्भव को सम्भव कर सकती है हिम्मत मुश्किल को सहज बनाने वाली है। नीचे से ऊंचा उड़ाने वाली है।* तो सदा ऐसे उड़ने वाले अनुभवी आत्मायें हो ना!
〰✧ *नीचे में आने से तो देख लिया क्या प्राप्ति हुई! नीचे ही गिरते रहे लेकिन अब उड़ती कला का समय है। हाई जम्प का भी समय नहीं। सेकण्ड में संकल्प किया और उड़ा। ऐसी शक्ति बाप द्वारा सदा मिलती रहेगी।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ कोई भी अपने बुद्धी में व मन में डीस्ट्रबेन्स होगा वा लाइन क्लियर न होने के कारण अपने संकल्पों कि मिक्सचेरिटी हो सकती है। *इसलिए हरेक को देखना चाहिए कि हमारी बुद्धी की लाइन क्लियर है*। बुद्धी में कोई भी किसी प्रकार का विघ्न तो नहीं सताता है? अटूट, अटल, अथक यह तीनों ही बातें जीवन में है। अगर इन तीनों में से एक बात में भी कमी है तो समझाना चाहिए कि बुद्धी की लाइन क्लियर नहीं है।
〰✧ जब बुद्धी की लाइन क्लियर हो जायेगी तो उसकी स्थिती, स्मृति क्या होगी? जितनी - जितनी बुद्धी की लाइन अर्थीत पुरुषार्थ की लाइन क्लियर होगी उतना - उतना क्या स्मृती में रहेगा? *कोई भी बात में उनके सामने भविष्य ऐसा स्पष्ट होगा जैसे वर्तमान स्पष्ट होता है*। उनके लिए वर्तमान और भविष्य एक समान हो जायोंगे।
〰✧ जैसे आजकल साइन्सदानों ने कहाँ - कहाँ की बातों को इतना स्पष्ट दिखाया है जो दूर की चीज भी नजदीक नजर आती है। *इसी रीती से जिनका पुरुषार्थ क्लियर होगा उनको भविष्य की हर बात दूर होते भी नजदीक दिखाई पडेगी*। जैसे आजकल टेलिविजन में देखते है तो सभी स्पस्ट दिखाईढं पडता है ना। तो उनकी बुद्धी और उनकी दृष्टि टेलिविजन की भाँती में सभी बातें स्पष्ट देखेंगी और जानेंगी। और कोई भी बात में पुरुषार्थ की मुश्किलात नहीं रहेंगी।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियों को जब चाहो, जहाँ चाहो वहाँ लगा सकते हो ना। अभी हाथ को ऊपर व नीचे करना चाहो तो कर सकते हो ना। अभी हाथ को ऊपर वा नीचे करना चाहो तो कर सकते हो ना। *तो जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियों का मालिक बन जब चाहो कार्य में लगा सकते हो, वैसे ही संकल्प को व बुद्धि को जहाँ लगाने चाहो वहाँ लगा सकते हो इसको ही ईश्वरीय अथॉर्टी कहा जाता है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल
:- बाप इस दादा के सिंहासन पर विराजमान हैं"*
➳ _ ➳ *संगमयुगी अमृतवेले के रूहानी समय में माया की गोद में सो रही मुझ आत्मा
को जगाकर परमात्मा ने अपनी गोद में बिठाया है... माया को ही अपना सबकुछ समझ मैं
आत्मा इस दुनिया के दुखों के गर्त में धंसते चले गई थी... परमपिता ने मुझे अपनी
गोद में बिठाकर मीठी पालना, मीठी शिक्षाएं देकर, वरदानों, खजानों से भरपूर कर
दिया है...* अब मैं आत्मा इस पुरानी दुनिया से जीते जी मरकर, नई दुनिया में
जाने के लिए श्रीमत लेने पहुँच जाती हूँ प्यारे बापदादा के पास...
❉ *अपने मखमली गोद में मुझे समाकर अतीन्द्रिय सुखों के झूलों में झुलाते हुए
प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... *जिस ईश्वर पिता के दर्शन
मात्र को नयन व्याकुल थे... आज उनकी पावन गोद में फूलो सा खिल रहे और दिव्य
गुणो की सुगन्ध से महक रहे हो...* अपने ऐसे मीठे महानतम भाग्य पर बलिहार जाओ...
कि ब्रह्मा तन द्वारा स्वयं परमात्मा दिल फ़िदा हो गया है..."
➳ _ ➳ *बाबा के गले का हार बनकर अपने श्रेष्ठ ईश्वरीय भाग्य के नशे में लहराते
हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... *मैं आत्मा श्रेष्ठ भाग्य
से सजी ईश्वरीय गोद में बैठी हूँ... भगवान को पाकर धन्य धन्य हो गयी हूँ...
प्यारे बाबा मुझे अपने नयनों का नूर बनाकर, प्रेम सुधा को मुझ आत्मा पर बरसाया
है...* मै आत्मा रोम रोम से शुक्रगुजार हूँ..."
❉ *अपना धाम छोड़ ब्रह्मा तन में अवतरित होकर मुझे अपना बनाकर मीठे प्यारे बाबा
कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *इस विश्व धरा पर सबसे खुबसूरत भाग्य से
सजे हुए आप ब्राह्मण बच्चे हो... दुखो से मुक्त होकर ईश्वरीय प्यार में पल रहे
हो... स्वयं विश्व पिता ने अपनी दिली पसन्द बनाया है...* और ब्रह्मा तन में आकर
हाले दिल सुनाया है... तो ऐसे प्यार के नशे की खुमारी में खो जाओ...”
➳ _ ➳ *अपना सबकुछबाबा के हवाले कर उनकी छत्रछाया में बेफिक्र बादशाह बनकर मैं
आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा भगवान की छत्रछाया में
पलकर कितनी निश्चिन्त और अनन्त सुखो की अधिकारी बन रही हूँ... प्यारे बाबा आपने
मुझ आत्मा को ब्रह्मा मुख से बेशकीमती ज्ञान रत्नों से सजाया है...* मै आत्मा
इन मीठी खुशियो में पुलकित हो उठी हूँ..."
❉ *अपनी हजार भुजाओं के प्यार के छांव के तले सुखों की बगिया में मुझे फूल
बनाकर खिलाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर
पिता के सच्चे प्यार और अमूल्य ज्ञान रत्नों से भरपूर होकर सदा के मालामाल हो
जाओ... *सदा यादो में रहकर हर साँस को बाबामय कर लो... ब्रह्मा तन से मिली
ईश्वरीय गोद में दिव्यता और पवित्रता से सजधज कर... देवताई सुखो को बाँहों में
भर लो... सच्चे आनन्द के नशे में डूब जाओ..."*
➳ _ ➳ *बाबा के गुलिस्तां की रूहानी फूल बनकर सुखों के परिस्तान में मुस्कुराते
हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा देह की मिटटी और
दुखो के काँटों को ही अपनी नियति मानकर जीती रही... प्यारे बाबा आपने ब्रह्मा
मुख से आवाज देकर मुझे गले लगाया... और अपनी मखमली गोद में गुलाबो सा खिलाया
है...* मीठे बाबा भगवान यूँ अपने दिल में बिठाएगा, चाहेगा और दुलार करेगा...
मैंने भला कब यह सोचा था..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल
:- सम्पूर्ण कर्मातीत अवस्था को प्राप्त करने के लिए सदा उपराम रहने का अभ्यास
करना है*"
➳ _ ➳ साक्षीदृष्टा बन ज्ञान के दिव्य नेत्र से मैं जैसे ही इस सृष्टि को देखती
है यह सम्पूर्ण सृष्टि मुझे एक विशाल रंगमंच, एक नाटकशाला के रुप में दिखाई
देती है जिस पर बेहद का नाटक चल रहा है। *मैं देख रही हूँ कि जैसे - जैसे इस
नाटक में जिसका पार्ट है अपने - अपने समय अनुसार वो आत्मा परमधाम से नीचे आ रही
है और मनुष्य शरीर धारण कर अपना पार्ट बजा रही है*। जिस आत्मा को जैसा पार्ट
मिला है वो अपने उस पार्ट को एकदम एक्यूरेट बजा रही है।
➳ _ ➳ इस दृश्य को देखते - देखते मैं विचार करती हूँ कि 5 हजार वर्ष से चल रहा
यह नाटक अब पूरा हो रहा है। सब पार्टधारियों को अपना पार्ट बजा कर अब वापिस
अपने धाम लौटना है और *अब जबकि बाबा ने आकर हमे इस सत्यता का बोध करवा दिया है
कि यह पुरानी दुनिया अब जल्दी ही समाप्त होनी है तो अब हमें उनके फरमान पर चल
इस पुरानी दुनिया से उपराम रहने का पुरुषार्थ अवश्य करना चाहिए* नही तो देह और
देह की इस झूठी दुनिया के चक्रव्यूह में फंस कर अपनी तकदीर को लकीर लगा बैठेंगे
और इस बेहद नाटक में फिर कल्प - कल्प के लिए हमारा ऐसा ही पार्ट निर्धारित हो
जायेगा।
➳ _ ➳ यही वह समय है जबकि स्वयं भाग्य विधाता बाप आये हुए हैं और आकर श्रेष्ठ
मत देकर हमारा सर्वश्रेष्ठ भाग्य बना रहें हैं। तो ऐसे बाप की श्रीमत पर अच्छी
रीति चल इस अन्तिम समय मे अब मुझे इस पुरानी दुनिया से उपराम रहने का तीव्र
पुरुषार्थ अवश्य करना है। *इस देह और देह की इस दुनिया से जुड़ा हर सम्बन्ध
नश्वर और दुख देने वाला ही तो है और भगवान के साथ जुड़ा हर सम्बन्ध अपरमअपार सुख
देने वाला है*। यह स्मृति आते ही मन में इस पुरानी दुनिया के लिये वैराग्य
उतपन्न होने लगता है और मन अपने प्यारे बाबा की तरफ खिंचने लगता है। *उनके
प्यार का वो एहसास याद आते ही मन बुद्धि देह और देह की दुनिया से उपराम हो कर
शिव पिता पर एकाग्र हो जाते हैं*।
➳ _ ➳ मन बुद्धि की तार बाबा के साथ जुड़ते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे परमधाम
से परमात्म लाइट सीधी मुझ आत्मा के साथ आ कर कनेक्ट हो गई हैं। *शक्तियों का
तेज करंट मुझ आत्मा में प्रवाहित होने लगा है जो मुझे इस देह से उपराम कर, ऊपर
अपनी ओर खींच रहा है*। इस परमात्म लाइट के साथ कनेक्ट होकर अब मैं आत्मा देह से
निकल कर इस लाइट के साथ - साथ ऊपर जा रही हूँ। यह परमात्म लाइट मुझे खींच कर 5
तत्वों की इस दुनिया से पार ले कर जा रही है। *साकारी और आकारी दोनों दुनियाओं
को पार कर अब मैं अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की इस लाइट के साथ पहुँच गई
हूँ परमधाम उनके पास*।
➳ _ ➳ अनन्त शक्तियों का पुंज, वो पॉवर हाउस मेरे शिव पिता परमात्मा अब मेरे
बिल्कुल समीप है उनकी समस्त पॉवर उनकी सर्वशक्तियों की किरणों के रूप में मुझ
आत्मा पर पड़ रही हैं। *मुझ आत्मा की बैटरी चार्ज हो रही है और मैं लाइट हाउस
बनती जा रही हूँ*। परमात्म लाइट स्वयं में भर कर मैं अपने आप को बहुत ही
शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। ऊर्जा का भण्डार बन, वापिस साकारी लोक में आ कर
अपने साकारी तन में विराजमान हो कर इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर अब मैं अपना पार्ट
फिर से बजा रही हूँ।
➳ _ ➳ "सृष्टि का यह नाटक अब पूरा हो रहा है" यह स्मृति मुझे देह और देह की
दुनिया से उपराम बनाती जा रही है। *देह और देह के सम्बन्धियों के बीच रहते,
उनसे तोड़ निभाते, बुद्धि का योग अपने शिव पिता के साथ जोड़, मन बुद्धि से अब मैं
ऊपर वास करती रहती हूँ और अपने शिव पिता के प्यार से स्वयं को सदा भरपूर रखते
हुए, नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बन कर रहती हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺
*मैं श्रेष्ठ पालना की विधि द्वारा वृद्धि करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सर्व बधाइयों की पात्र आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺
*मैं आत्मा अपना स्वभाव सदा सरल बनाती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा समाधान स्वरूप बनने की सहज विधि अपनाती हूँ ।*
✺ *मैं सरलचित्त आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *ज्ञान सुनना सुनाना तो सहज है लेकिन ज्ञान स्वरूप बनना है। ज्ञान को स्वरूप में लाया तो स्वतः ही हर कर्म नालेजफुल अर्थात् नालेज की लाइट माइट वाला होगा।* नालेज को कहा ही जाता है लाइट और माइट। *ऐसे ही योगी स्वरूप, योगयुक्त, युक्तियुक्त स्वरूप।* धारणा स्वरूप अर्थात् हर कर्म, हर कर्मेन्द्रिय, हर गुण के धारणा स्वरूप होगी। सेवा के अनुभवी मूर्त, *सेवाधारी का अर्थ ही है निरन्तर स्वतः ही सेवाधारी, चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे कर्मणा, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क हर कर्म में सेवा नेचुरल होती रहे,* इसको कहा जाता है चार ही सबजेक्ट में अनुभवी स्वरूप।
✺ *ड्रिल :- "चारों ही सबजेक्ट में अनुभवी स्वरूप बनना"*
➳ _ ➳ *भृकुटि में विराजमान मैं आत्मा... सभी बाहरी बातों से मन बुद्धि को हटाए स्वयं पर एकाग्र करती हूं... मैं चमकती हुई मणि... चैतन्य शक्ति हूं... सूक्ष्म शक्तियां मन बुद्धि संस्कार, कि मैं आत्मा मालिक हूं... मैं आत्मा राजा बन अपनी सम्पूर्ण राजधानी को नियन्त्रण किये हुए हूं...* मेरी सभी कर्मेन्द्रियां कर्मचारी बन मेरा आर्डर मान रही हैं... मैं आत्मा स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी हूं... स्वयं की पहचान दे मुझ आत्मा को बाबा ने नॉलेजफुल बना दिया हैं... अब मैं आत्मा अंधेरे से ज्ञान सोझरे में स्वयं को अनुभव करती हूं... स्वयं की पहचान पाकर मैं आत्मा गदगद हो रही हूं...
➳ _ ➳ *बाबा ने, मुझे आत्मा, परमात्मा तथा ड्रामा का गुह्य राज बतलाकर, आप समान मास्टर नॉलेजफुल बना दिया हैं...* मैं आत्मा स्वयं को बेहद के अविनाशी ज्ञान रत्नों से श्रृंगारी हुई देखती हूं... मास्टर त्रिकालदर्शी, मास्टर नॉलेजफुल की स्टेज पर मैं आत्मा स्वयं को अनुभव कर रही हूं... *अब मैं आत्मा शिव पिता से बुद्धि का योग लगाए... अपने पापों को भस्म करती जा रही हूं... बाबा से ज्वाला स्वरूप किरणे मैं स्वयं पर महसूस करती हूं... इस योग अग्नि में मैं आत्मा अपने सम्पूर्ण पापों को भस्म होते देख रही हूं...*
➳ _ ➳ धीरे - धीरे मैं आत्मा सतोप्रधान अवस्था को पा रही हूं... मैं आत्मा पतित पावन बाबा की छत्रछाया में पतित से पावन बन रही हूं... मैं आत्मा देखती हूं... *जितना जितना मैं बाबा को याद करती हूं उतना उतना मैं आत्मा विकर्माजीत अवस्था को प्राप्त कर रही हूं...* मैं आत्मा संपूर्णता के अति निकट स्वयं को देखती हूं... मुझ आत्मा का हर कार्य युक्तियुक्त, योगयुक्त अवस्था को प्राप्त हैं... *मुझ आत्मा का पुराना सारा हिसाब किताब चुक्तु होता जा रहा हैं... निरंतर योगयुक्त स्थिती मुझ आत्मा को भविष्य कमाई में मदद कर रही है... मैं ज्ञानी तू योगी आत्मा बनती जा रही हूं...*
➳ _ ➳ योगयुक्त रहने से मैं स्वयं को बहुत ही हल्का और शक्तिशाली स्थिति में देखती हूं... *लाइट माइट स्थिति में स्थित मेरा हर कार्य नॉलेजफुल और योगयुक्त है...* मैं आत्मा स्वयं को धारणा स्वरुप स्थिति में अनुभव कर रही हूं... सारा दिन में मैं आत्मा देखती हूं, कि मेरा हर कर्म ईश्वर अर्थ सेवा में समर्पित हैं... *मनसा-वाचा-कर्मणा संबंध संपर्क में मैं आत्मा बाप समान पतितों को पावन बनाने का धंधा कर रही हूं... ये स्थिति मुझे अथक बना रही हैं...*
➳ _ ➳ बाबा की सर्वशक्तियो, खजानों से संपन्न मैं आत्मा, अथक हो संगम का हर सेकेंड, स्वांस, संकल्प सफल कर रही हूं... मैं देखती हूं जैसे जैसे मैं आत्मा तीव्र गति से बढ़ रही हूं वैसे-वैसे मेरी खुशी का पारा भी बढ़ता जा रहा हैं... मैं आत्मा अतींद्रिय सुखों के झूले में स्वयं को अनुभव कर रही हूं... *इस तरह से मैं आत्मा स्वयं को चारों सबजेक्ट में पास विद ऑनर देखती हूं... चारों ही सब्जेक्ट में मैं आत्मा अनुभवी मूरत होती जा रही हूं...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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