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❍ 18 / 01 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *"लक्ष्य और लक्षण," "कथनी और करनी" समान रही ?*
➢➢ *सेवा करते हुए याद के अनुभवों की रेस की ?*
➢➢ *सिद्धि को स्वीकार तो नहीं किया ?*
➢➢ *निश्चय के आधार पर अपना सब कुछ सफल किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *अभी एकाग्रता का दृढ़ संकल्प करने वाला ग्रुप तैयार होना चाहिए,* जो सागर के तले में जाकर अनुभव के हीरे, मोती लेकर आये। *लहरों में लहराने का अनुभव तो किया अब अन्दर तले में जाना है। अमूल्य खजाने तले में मिलते हैं, इससे आटोमेटिक सब बातों से किनारा हो जायेगा।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बापदादा के साथ रहने वाली सदा विजयी आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा अपने को बापदादा के साथी समझते हो? *जब सदा बाप का साथ अनुभव होगा तो उसकी निशानी है - 'सदा विजयी'। अगर ज्यादा समय युद्ध में जाता है, मेहनत का अनुभव होता है तो इससे सिद्ध है - बाप का साथ नहीं। जो सदा साथ के अनुभवी हैं वे मुहब्बत में लवलीन रहते हैं।*
〰✧ प्रेम के सागर में लीन आत्मा किसी भी प्रभाव में आ नहीं सकती। माया का आना यह कोई बड़ी बात नहीं लेकिन वह अपना रूप न दिखाये। *अगर माया की मेहमान-निवाजी करते हो तो चलते-चलते 'उदासी' का अनुभव होगा। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे न आगे बढ़ रहे हैं न पीछे हट रहे हैं। पीछे भी नहीं हट सकते, आगे भी नहीं बढ़ सकते - यह माया का प्रभाव है।*
〰✧ माया की आकर्षण उड़ने नहीं देती। पीछे हटने का तो सवाल ही नहीं लेकिन अगर आगे नहीं बढ़ते तो बीज को परखो और उसे भस्म करो। *ऐसे नहीं - चल रहे हैं, आ रहे हैं, सुन रहे हैं, यथाशक्ति सेवा कर रहे हैं। लेकिन चेक करो कि अपनी स्पीड और स्टेज की उन्नति कहाँ तक है।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ 5 सेकण्ड कभी भी निकाल सकते हो या नहीं? *ऐसा कोई बिजी है, जो 5 सेकण्ड भी नहीं निकाल सके!* है कोई तो हाथ उठाओ। फिर तो नहीं कहेंगे - क्या करें टाइम नहीं मिलता? यह तो नहीं कहेंगे ना! टाइम नहीं मिलता है? *तो यह एक्सरसाइज बीच-बीच में करो।*
〰✧ *किसी भी कार्य में हो 5 सेकण्ड की यह मन की एक्सरसाइज करो। तो मन सदा ही दुरुस्त रहेगा, ठीक रहेगा।* वापदादा तो कहते हैं - हर घण्टे में यह 5 सेकण्ड की एक्सरसाइज करो। हो सकती है? देखो, सभी कह रहे हैं - हो सकती है। याद रखना। ओम शान्ति भवन याद रखना, भूलना नहीं तो जो मन की भिन-भिन्न कम्पलेन है ना!
〰✧ क्या करें मन नहीं टिकता! मन को मण बना देते हो। वजन करते हैं ना! पहले जामने में पाव, सेर और मण होता था, आजकल बदल गया है। तो *मन को मण बना देते हैं बोझ वाला और यह एक्सरसाइज करते रहेंगे तो बिल्कुल लाइट हो जायेंगे।* अभ्यास हो जायेगा।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *बीजरूप स्तिथि में स्तिथ रहेंगे तो अनेक आत्माओं में समय की पहचान और बाप की पहचान का बीज पड़ेगा।* अगर बीजरूप स्थिति में स्थित न रहे, सिर्फ विस्तार में चले गए तो क्या होगा? *ज्यादा विस्तार से भी वैल्यु नहीं रहेगी, व्यर्थ हो जायेगा। इसलिए बीजरूप स्थिति में स्थित हो बीजरूप की याद में स्थित हो, फिर बीज डालो। फिर देखना, यह बीज का फल कितना अच्छा और सहज निकलता है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल
:- अपनी चलन बहुत रॉयल रखना"*
➳ _ ➳ बरसात के भीगे भीगे खुबसूरत मौसम में... मै आत्मा ठंडी फुहारों का आनन्द
लेती हुई... अपने प्रियतम बाबा को पुकारती हूँ... मीठे बाबा एक पल में हाजिर हो
जाते है...और मै आत्मा... *अपने प्यारे बाबा के असीम प्यार की बदौलत... मीठे हो
गए, अपने मन को निहारती हूँ..*. यह मन बिना बाबा के कितना कटु और शुष्क था...
आज सच्चे प्रेम में पोर पोर से डूबा हुआ है... मीठे बाबा ने मुझे प्रेम की
मिसाल बना दिया है... आज सारा विश्व मेरी प्रेम तंरगों का दीवाना है... और मुझे
यूँ खोया देख बाबा मुस्करा रहे है...
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सतयुगी सुखो से आबाद बनाते हुए कहा :-* "मीठे
प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता को टीचर, और सतगुरु को पाकर सब कुछ पा लिया
है... मीठे बाबा के सारे खजाने सारी खाने आपकी है.. इतनी दौलत के मालिक बनकर...
*अपनी श्रीमत के रंग में रंगी, मीठी दैवी चलन का, दीवाना विश्व को बनाओ.*..
सबको आप समान सुखो से भर आओ..."
➳ _ ➳ *मै आत्मा मीठे बाबा सागर से मीठेपन को स्वयं में भरकर कहती हूँ :-*
"मेरे मीठे मीठे बाबा... *आपने जीवन में आकर, अपने प्यार की मिठास से, मुझ
आत्मा को कितना, मीठा, प्यारा बना दिया है.*.. मै आत्मा इस सच्चे प्रेम की
तरंगे, सारे विश्व पर बरसा रही हूँ... सबको सुखो का अधिकारी बनाती जा रही
हूँ..."
❉ *प्यारे बाबा मुझ आत्मा को विश्वकल्याण की भावना से ओतप्रोत करते हुए कहते है
:-* "मीठे लाडले बच्चे मेरे... *मीठे बाबा को पाकर, जो सुखो की दौलत पायी है...
खुशियो की जागीरे दिल में समायी है.*.. उनकी झलक अपनी रूहानियत से सारे जहान
में फैलाओ... अपनी देवताई चलन से सहज ही ईश्वर पिता का परिचय दे आओ... बिछड़े
हुए बच्चों को प्यारे पिता से मिलवाओ..."
➳ _ ➳ *मै आत्मा मीठे बाबा की सारी रत्नों भरी खाने, अपने नाम, करते हुए कहती
हूँ :-* "मीठे दुलारे बाबा मेरे... आप जीवन में न थे बाबा... तो मै आत्मा कितनी
कँटीली और कड़वी थी... सच्ची मिठास से कितनी अनजान और अनभिज्ञ थी... *आपने अपने
मीठे प्यार से सींच सींचकर... मुझे रूहानी गुलाब बना दिया है.*.. मै आत्मा
दिव्यता की खुशबु हर दिल पर महका रही हूँ..."
❉ *मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपनी सम्पत्ति का मालिक बनाते हुए कहते है :-* "मीठे
सिकीलधे बच्चे... मीठे बाबा ने जो इतना मीठा प्यारा और दिव्य स्वरूप खिलाया
है... *इस दिव्यता का मुरीद सबको बनाकर, सच्चे पिता की छवि, अपनी मीठी चलन से
दिखाओ.*.. सबको मीठे बाबा के वर्से का अधिकारी, आप समान बना आओ..."
➳ _ ➳ *मै आत्मा प्यारे बाबा को बड़े ही प्रेम से निहारते हुए कहती हूँ :-*
"मेरे सच्चे साथी बाबा... *आपने अपनी प्यार भरी बाँहों में समाकर, मुझे रूहानी
बना दिया है.*.. अपनी असली सुंदरता को पाकर, मै आत्मा... गुणो की खान बनकर
मुस्करा रही हूँ... और इस दैवी सुन्दरता की छटा, पूरे विश्व में बिखेर कर, आपके
करीब ला रही हूँ..."मीठे बाबा पर यूँ अपना प्यार उंडेल कर मै आत्मा... धरा की
ओर रुख करती हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺
*"ड्रिल :- रॉयल चलन का अनुभव करना*"
➳ _ ➳ आप समान अति मीठा बनाने वाले,
मेरे अति मीठे शिव बाबा की मीठी याद मेरे अंदर एक ऐसी मिठास घोल देती है
जिसमे विकारों की कड़वाहट घुलने लगती है। *अपने ऐसे अति मीठे बाबा की मीठी याद
में बैठी मैं जैसे ही उनका आह्वान करती हूँ परमधाम से सीधे अपने ऊपर गिरती उनकी
सर्वशक्तियों रूपी किरणों के मीठे झरने के नीचे स्वयं को अनुभव करती हूँ*।
सातों गुणों की रंग बिरंगी किरणों का यह मधुर झरना मेरे तन - मन को शीतलता
प्रदान कर रहा है। शीतलता की इसी गहन अनुभूति के बीच मैं अनुभव करती हूँ कि मुझ
आत्मा को अपनी शीतल किरणों से शीतल बनाने वाले मेरे फर्स्टक्लास मीठे बाबा जैसे
परमधाम से नीचे मेरे पास आ रहें हैं।
➳ _ ➳ उनकी उपस्थिति से उनकी समीपता का एहसास मुझे स्पष्ट अनुभव होने
लगा है। अपने सिर के बिल्कुल ऊपर मुझे उनकी छत्रछाया की अनुभूति हो रही है। मेरे
पूरे कमरे में जैसे शीतलता की मीठी लहर दौड़ रही है। पूरे घर मे मेरे मीठे शिव
बाबा के शक्तिशाली वायब्रेशन फैल रहें हैं। *एक अति मीठी सुखदाई स्थिति में मैं
सहज ही स्थित होती जा रही हूँ। यह स्थिति मुझे देह और देह के झूठे भान से मुक्त
कर,
लाइट माइट स्वरूप का अनुभव करवा रही है*। धीरे - धीरे मैं इस साकारी देह
के बंधन से स्वयं को मुक्त कर अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर रही हूँ।
➳ _ ➳ मेरा यह लाइट का फ़रिशता स्वरूप मुझे धरती के आकर्षण से मुक्त कर,
ऊपर की ओर ले जा रहा है। मैं स्वयं को धरती से ऊपर उड़ता हुआ अनुभव कर रहा
हूँ। छत को पार करते हुए अब मैं खुले आकाश के नीचे पूरी दुनिया मे विचरण कर रहा
हूँ। धीरे - धीरे अब मैं आकाश को भी पार करता हुआ लाइट की सूक्ष्म आकारी फरिश्तो
की दुनिया मे प्रवेश कर रहा हूँ। इस अति सुन्दर फरिश्तो की दुनिया मे विचरण करता
हुआ अब मैं स्वय को अव्यक्त ब्रह्मा बाप के सामने देख रहा हूँ। *फर्स्टक्लास
मीठा और रॉयल बन बाप का नाम बाला करने वाले अपने प्यारे ब्रह्मा बाप के सामने
बैठ मैं मन ही मन प्रतिज्ञा करता हूँ कि मुझे भी ब्रह्मा बाप समान फर्स्टक्लास
मीठा और रॉयल बन बाप का नाम अवश्य बाला करना है*।
➳ _ ➳ इस प्रतिज्ञा को पूरा करने का बल मुझमें भरने के लिए अब परमधाम
से मेरे अति मीठे शिव बाबा फरिश्तों की इस दुनिया मे प्रवेश करते हैं और आ कर
ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान हो जाते हैं। *बाप दादा अपने वरदानी हस्तों
से अब मुझे विजयी भव का वरदान देते हुए,
अपनी सर्वशक्तियाँ मेरे अंदर प्रवाहित करते हुए मुझ आत्मा में बल भर रहें
हैं ताकि कदम - कदम पर फॉलो फादर कर,
अपने शिव बाबा का नाम मैं बाला कर सकूँ*। बापदादा की शक्तिशाली दृष्टि
से मेरे पुराने आसुरी स्वभाव संस्कार जल कर भस्म हो रहें हैं और उसके स्थान पर
फर्स्टक्लास मीठा और बहुत - बहुत रॉयल बनने के संस्कार इमर्ज हो रहें हैं।
➳ _ ➳ आसुरी संस्कारों का त्याग कर इन दैवी संस्कारों को ही अब मुझे
अपने जीवन में धारण करने का पुरुषार्थ करना है,
इसी दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ अपने लाइट माइट स्वरूप को अपने ब्राह्मण
स्वरूप में मर्ज करके अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। अपने
ब्राह्मण जीवन के नियमो और मर्यादाओं पर चलते हुए अब मैं हर कर्म में ब्रह्मा
बाप को फॉलो कर रही हूँ। *अपने मीठे शिव बाबा की श्रीमत पर कदम - कदम चलते हुए
अब मैं आसुरी अवगुणों का त्याग करती जा रही हूँ। मेरे मुख से अब किसी भी आत्मा
को दुख देने वाले कड़वे बोल नही निकलते। बाप समान सबको सुख देने वाले मीठे बोल
ही अपने मुख से बोलते हुए अब मैं सबके जीवन को खुशियों की मिठास से भर रही
हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺
*मैं सेवाधारी आत्मा हूँ।*
✺ *मैं याद के अनुभवों की रेस करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सदा लवलीन आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
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*मैं आत्मा भविष्य प्रालब्ध को समाप्त करने से सदा मुक्त हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सिद्धि को अस्वीकार करती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा भविष्य प्रालब्ध को सदैव बढ़ाती हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. बापदादा को चारों ओर के बच्चों से अभी तक एक आश रही हुई है। बतायें वह कौन-सी आश है? जान तो गये हो! टीचर्स जान गई हो ना! सभी बच्चे यथा शक्ति पुरुषार्थ तो कर रहो हो। *बापदादा पुरुषार्थ को देख करके मुस्कराते हैं। लेकिन एक आश यह है कि पुरुषार्थ में अभी तीव्र गति चाहिए। पुरुषार्थ है लेकिन अभी तीव्रगति चाहिए। इसकी विधि है - 'कारण' शब्द समाप्त हो जाए और निवारण स्वरूप सदा बन जायें।* कारण तो समय अनुसार बनते ही हैं और बनते रहेंगे। लेकिन आप सब निवारण स्वरूप बनो क्योंकि आप सभी बच्चों को विश्व के निवारण कर सभी को, मैजारिटी आत्माओं को निर्वाणधाम भेजना है। तो जब स्वयं को निवारण स्वरूप बनाओ तब विश्व की आत्माओं को निवारण स्वरूप द्वारा सब समस्याओं का निवारण कर निर्वाणधाम में भेज सकेंगे। अभी विश्व की आत्मायें मुक्ति चाहती हैं तो बाप द्वारा मुक्ति का वर्सा दिलाने वाले निमित्त आप हो। तो निमित्त आत्मायें पहले स्वयं को भिन्न-भिन्न समस्याओं के कारण को निवारण कर मुक्त बनायेंगे तब विश्व को मुक्ति का वर्सा दिला सकेंगे। तो मुक्त हैं? किसी भी प्रकार की समस्या का कारण आगे नहीं आये, यह कारण है, यह कारण है, यह कारण है... जब कोई कारण सामने बनता है तो कारण का सेकण्ड में निवारण सोचो, यह सोचो कि जब विश्व का निवारण करने वाली हूँ तो क्या स्वयं की छोटी-छोटी समस्याओं का स्वयं निवारण नहीं कर सकती! नहीं कर सकता! अभी तो आत्माओं की क्यू आपके सामने आयेगी 'हे मुक्तिदाता मुक्ति दो' क्योंकि मुक्ति दाता के डायरेक्ट बच्चे हो, अधिकारी बच्चे हो। मास्टर मुक्तिदाता तो हो ना। लेकिन क्यू के आगे आप मास्टर मुक्तिदाताओं के तरफ से एक रुकावट का दरवाजा बन्द है। क्यू तैयार है लेकिन कौन-सा दरवाजा बन्द है? पुरुषार्थ में कमजोर पुरुषार्थ का, एक शब्द का दरवाजा है, वह है 'क्यों'। क्वेश्चन मार्क (?)क्यों, यह 'क्यों' शब्द अभी क्यू को सामने नहीं लाता। *तो बापदादा अभी देश-विदेश के सभी बच्चों को यह स्मृति दिला रहे हैं कि आप समस्याओं का दरवाजा 'क्यों', इसको समाप्त करो।*
➳ _ ➳ 2. *हर एक समझें मुझे करना है। टीचर्स समझें मुझे करना है, स्टूडेन्ट समझें मुझे करना है, प्रवृत्ति वाले समझें मुझे करना है, मधुबन वाले समझें हमें करना हैं।* कर सकते हैं ना? समस्या शब्द ही समाप्त हो जाये, कारण खत्म होके निवारण आ जाए।
➳ _ ➳ 3. *कुछ भी हो, सहन करना पड़े, माया का सामना करना पड़े, एक-दो के सम्बन्ध-सम्पर्क में सहन भी करना पड़े, मुझे समस्या नहीं बनना है।*
✺ *ड्रिल :- "पुरुषार्थ की गति में तीव्रता का अनुभव"*
➳ _ ➳ *अमृतवेले मै आत्मा बाबा को गुड मॉर्निंग कह, एक एकांत स्थान पर बैठ, अंतर्मन की गहराइयों से प्यारे बाबा को याद करती हूँ...* मै आत्मा मस्तक में चमकता हुआ सितारा इस देह से न्यारी हो, उड़ती चली जा रही हूँ... उड़ते-उड़ते मै आत्मा सामने से चमकते हुए वस्त्र में बाबा को आता हुआ अनुभव कर रही हूँ... *सामने से आते हुए बाबा मुस्कुराते हुए मुझ आत्मा का आह्वान कर रहे है...*
➳ _ ➳ मै आत्मा झट से बाबा की गोद में जाकर बैठ जाती हूँ... *बाबा का स्पर्श पाते ही उन से निकलती हुई दिव्य शक्तियाँ मुझ आत्मा में प्रवाहित होने लगती है... इन शक्तियॉ को समाती हुई मै आत्मा एक दम फरिश्ता स्वरुप हल्की होती जा रही हूँ...* बाबा मुझ आत्मा को सूक्ष्मवतन की सैर करवाते है... चारो तरफ प्रकाश ही प्रकाश दिखाई दे रहा है... फ़रिश्ते ही फ़रिश्ते दिखाई दे रहे है... बाबा मुझ आत्मा को एक ऐसे स्थान पर ले जाते है जहाँ फ़रिश्ते गोला बना कर बैठे है, और बीच में बाबा बैठ जाते है... आ जाओ बच्ची अपना स्थान ग्रहण करो, इस फरिश्तों की दुनिया में तुम्हारा स्वागत है... मै फरिश्ता स्वरुप आत्मा उस गोले में बैठ जाती हूँ...
➳ _ ➳ बाबा के नैनो से वा मस्तक से निकलती हुई तेजोमय किरणों से फरिश्तो के चारो ओर एक गोला बनता जा रहा है... इस गोले में बैठी हुई मै फरिश्ता स्वरुप आत्मा बाबा से निकलती हुई दिव्य गुणों वा शक्तियों को अपने में समाती जा रही हूँ... *इन शक्तियों में समाई हुई मै आत्मा अपने सामने सृष्टि के चक्र को फिरता हुआ देख रही हूँ...* इस चक्र के द्वारा मुझ आत्मा में 5000 वर्ष पहले वाली स्मृतियाँ जागृत हो रही है... मै आत्मा दिव्य दृष्टि द्वारा अपने 5000 वर्ष पहले वाले देव स्वरूप को स्पष्ट देख रही हुँ... *जैसे-जैसे चक्र आगे फिरता जा रहा है, मै त्रिकालदर्शी आत्मा अपने पूरे 84 जन्मो को जान गई हूँ...*
➳ _ ➳ *मै साधारण नही, देव आत्मा हूँ... मै भाग्यशाली आत्मा हूँ, स्वयं भाग्य विधाता मुझ आत्मा को कर्मो की गुह्य गति को समझा श्रेष्ठ भाग्य बनाने की विधि बता रहे है...* मै विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ... इन स्मृतियो के साथ मैं आत्मा पुनः अपने पुराने शरीर में प्रवेश करती हूँ... मै ब्राह्मण आत्मा हूँ... मुझ आत्मा को स्व परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन के कार्य में बाबा का सहयोगी बनना है... *अपने आदि स्वरुप को स्मृति में रख मै आत्मा काम चिता से उतर ज्ञान चिता पर बैठ जाती हूँ...*
➳ _ ➳ इस योग अग्नि में मुझ आत्मा से विकारो रुपी खाद निकलती जा रही है... *इस योग अग्नि में तप मै आत्मा सच्चा सोना बनती जा रही हूँ...* अब इस योग अग्नि द्वारा मुझ आत्मा की कृति, दृष्टि, वृत्ति वा संकल्प शुद्ध बन गए है... अब मैं आत्मा कारण को समाप्त कर निवारण स्वरुप बन गयी हूँ... मै आत्मा संतुष्टमणि बन हर परिस्थिति में समाधान स्वरुप बन तीव्र पुरुषार्थ द्वारा निरतंर आगे बढ़ती जा रही हूँ... *मै आत्मा अपने देव स्वरुप को बुद्धि द्वारा अनुभव करती रॉकेट की भांति हर आकर्षण को चीरती हुई पुरानी दुनिया से अलग होती जा रही हूँ...*
➳ _ ➳ मै मास्टर मुक्तिदाता आत्मा सर्व प्रकार के क्यों, क्या रुकावट रुपी दरवाजो को समाप्त कर, इस पुरानी दुनिया में स्वयं को मेहमान समझ क्यू में खड़ी सभी दुखी आत्माओ को निमित्त भाव से मुक्ति का रास्ता बताती जा रही हूँ... *मैने भगवान को नही ढूंढा, भगवान ने स्वयं मुझे ढूँढा है... मैं आत्मा श्रीमत पर चलते हुए परमात्मा के कार्य में सहयोगी बन रही हूँ... सभी विकारो का त्याग कर तीव्र पुरुषार्थी बन, पवित्रता को धारण कर पवित्र दुनिया में चलने के लिए तैयार हो रही हूँ... मेरा तो एक शिव बाबा और... दूसरा ना कोई...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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