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 27 / 02 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *कभी भी ऐसी हंसी मज़ाक तो नहीं की जिसमे विकारों की वायु हो ?*

 

➢➢ *आत्मा अभिमानी बनने की प्रैक्टिस की ?*

 

➢➢ *मान मांगने की बजाये सबको मान दिया ?*

 

➢➢ *"निमित और निर्मान" - यह दो शब्द सदा स्मृति में रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  परमात्म प्यार आनंदमय झूला है, इस सुखदाई झूले में झूलते *सदा परमात्म प्यार में लवलीन रहो तो कभी कोई परिस्थिति वा माया की हलचल आ नहीं सकती।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं एक बल और एक भरोसा' स्थिति में रहने वाली निश्चयबुद्धि आत्मा हूँ"*

 

  सदा एक बल और एक भरोसा' - इसी स्थिति में रहते हो? *एक में भरोसा अर्थात् बल की प्राप्ति। ऐसे अनुभव करते हो? निश्चयबुद्धि विजयी, इसी को दूसरे शब्दों में कहा जाता है - 'एक बल, एक भरोसा'। निश्चय बुद्धि की विजय न हो यह हो नहीं सकता।*

 

  *अपने में ही जरा-सा संकल्प मात्र भी संशय आता कि यह होगा या नहीं होगा, तो विजय नहीं। अपने में बाप में और ड्रामा में पूरा-पूरा निश्चय हो तो कभी विजय न मिले, यह हो नहीं सकता। अगर विजय नहीं होती तो जरूर कोई न कोई पाईन्ट में निश्चय की कमी है।*

 

  जब बाप में निश्चय है तो स्वयं में भी निश्चय है। मास्टर है ना। जब मास्टर सर्वशक्तिवान हैं तो ड्रामा की हर बात को भी निश्चयबुद्धि होकर देखेंगे! *ऐसे निश्चय बुद्धि बच्चों के अन्दर सदा यही उमंग होगा कि मेरी विजय तो हुई पड़ी है। ऐसे विजयी ही - विजय माला के मणके बनते हैं। विजय उनका वर्सा है। जन्म-सिद्ध अधिकार में यह वर्सा प्राप्त हो जाता है।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *यह फरिश्ते पन में या पुरुषार्थ में विशेष जो रूकावट होती है, उसके दो शब्द ही हैं - जो कॉमन शब्द हैं, मुश्किल भी नहीं है और सभी अनेक बार यूज भी करते हैं। वह क्या है? मैं और मेरा।* बापदादा ने बहुत सहज विधि पहले भी बताई है, इस मैं और मेरे को परिवर्तन करने की, याद है? देखो, *जिस समय आप मैं शब्द बोलते हो ना, उस समय सामने आये कि मैं हूँ ही आत्मा, मैं शब्द बोलो और सामने आत्मा रूप को लाओ।*

 

✧   मैं शब्द ऐसे नहीं बोलो, मैं आत्मा। यह नेचरल स्मृति में लाओ। मैं शब्द के पीछे आत्मा लगा दी। मैं आत्मा। जब मेरा शब्द बोलते हो तो पहले कहो मेरा बाबा, मेरा रूमाल, मेरी साडी, मेरा यह। लेकिन पहले मेरा बाबा। मेरा शब्द बोला, बाबा सामने आया। *मैं शब्द बोला आत्मा सामने आई, यह नेचर और नेचरल बनाओ, सहज है ना या मुश्किल है?*

 

✧  जानते ही हो मैं आत्मा हूँ। सिर्फ उस समय मानते नहीं हो जानना 100 परसेन्ट है, मानना परसेन्टेज में है। *जब बॉडी कान्सेस नेचरल हो गया, याद करना पडता है क्या कि मैं बॉडी (शरीर) हूँ, नेचरल याद है ना तो मैं शब्द मुख के पहले तो संकल्प में आता है ना तो संकल्प में भी मैं शब्द आवे तो फौरन आत्मा स्वरूप सामने आये।* यह अभ्यास करना सहज नहीं है?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *आप भी कोई कार्य करते हो वा बात करते हो तो बीच-बीच में यह संकल्पों की ट्रैफिक को स्टॉप करना चाहिए।* एक मिनट के लिए भी मन के संकल्पों को चाहे शरीर द्वारा चलते हुए कर्म को बीच में रोक कर भी यह प्रैक्टिस करना चाहिए। अगर यह प्रैक्टिस नहीं करेंगे तो बिन्दू रूप की पावरफुल स्टेज कैसे और कब ला सकेंगे? इसलिए यह अभ्यास करना आवश्यक है। *बीच-बीच में यह प्रैक्टिस प्रैक्टिकल में करते रहेंगे तो जो आज यह बिन्दु रूप की स्थिति मुश्किल लगती है वह ऐसे सरल हो जायेगी जैसे अभी मैजारिटी को अव्यक्त स्थिति सहज लगती है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल :- कोई भी आसुरी कर्म नहीं करना"*

➳ _ ➳ *मैं आत्मा सेण्टर में बाबा के कमरे में बैठ बाबा का आह्वान करती हूँ... बाहरी सभी बातों से अपने मन को हटाकर एक बाबा में लगाने की कोशिश करती हूँ... धीरे-धीरे सभी कर्मेन्द्रियाँ शांत होती जा रही हैं... भटकता हुआ मन स्थिर होने लगा है... मैं आत्मा अपना बुद्धि योग एक बाबा से कनेक्ट करती हूँ...* इस शरीर को भी भूल एक बाबा की लगन में मगन होने लगती हूँ... बाबा मेरे सम्मुख आकर बैठ जाते हैं... मैं आत्मा गहन शांति की अनुभूति कर रही हूँ... मैं और मेरा बाबा बस और कोई भी नहीं...

❉ *कदम-कदम पर बाप की श्रीमत लेकर कर्म में आने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... मीठे से भाग्य ने जो ईश्वर पिता का साथ दिलवाया है... उस महान भाग्य को सदा का सुखो भरा सौभाग्य बना लो... *हर पल मीठे बाबा की श्रीमत का हाथ पकड़कर सुखी और निश्चिन्त हो जाओ... जिन विकारो ने हर कर्म को विकर्म बनाकर जीवन को गर्त बना डाला... श्रीमत के साये में उनसे हर पल सुरक्षित रहो...”*

➳ _ ➳ *प्यारे बाबा को विकारों का दान देकर माया के ग्रहण से मुक्त होकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा सच्चे ज्ञान को पाकर कर्मो की गुह्य गति जान गई हूँ... *आपकी श्रीमत पर चलकर जीवन पुण्य कर्मो से सजा रही हूँ... आपके मीठे साथ ने जीवन को फूलो सा महका दिया है... सुकर्मो से दामन सजता जा रहा है...”*

❉ *हर कदम में मेरा साथ देकर मेरे भाग्य को श्रेष्ठ बनाते हुए खुदा दोस्त बन मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... श्रीमत ही वह सच्चा आधार है जो जीवन को खुशियो का पर्याय बनाता है... *स्वयं भगवान साथी बन हर कर्म में सलाह और साथ दे रहा है... तो इस महाभाग्य से रोम रोम सजा लो... सच्चे साथी की श्रीमत पर चलकर सुखदायी जीवन का भाग्य अपने नाम करालो...”*

➳ _ ➳ *सदा श्रेष्ठ संकल्प और कर्मों से अपने जीवन को सदा के लिए खुशहाल बनाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा मनुष्य मत के पीछे लटककर कितनी दुखी हो गई थी... अब आपकी छत्रछाया में कितनी सुखी कितनी बेफिक्र जिंदगी को पा रही हूँ... आपका साथ पाकर मै आत्मा सतयुगी सुखो की मालकिन बनती जा रही हूँ...* मेरे जीवन की बागडोर को थाम आपने मुझे सच्चा सहारा दिया है...”

❉ *अपने मीठे वरदानों की बारिश कर मुझे अपने दिल तख़्त पर बिठाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... यह वरदानी संगम सुकर्मो से दामन सजाने वाला खुबसूरत समय है कि मीठा बाबा बच्चों के सम्मुख है... *इसलिए हर कर्म को श्रीमत प्रमाण कर बाबा का दिल सदा का जीत लो... जब बाबा साथ है तो जीवन के पथ पर अकेले न चलो... सच्चे साथ का हाथ पकड़कर अनन्त खुशियो में उड़ जाओ...”*

➳ _ ➳ *ईश्वरीय प्रेम के साये में श्रेष्ठ कर्मों से व्यर्थ से मुक्त होकर समर्थ बनकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में कितनी खुशनुमा हो गई हूँ... *हर कदम पर श्रीमत के साथ अपने जीवन में खुशियो के फूल खिला रही हूँ... ईश्वर पिता के सच्चे साथ को पाकर, मै आत्मा हर कर्म को सुकर्म बनाती जा रही हूँ... और बेफिक्र बादशाह बनकर मुस्करा रही हूँ...”*

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- आत्म अभिमानी बनने की बहुत - बहुत प्रेक्टिस करनी है*

➳ _ ➳  एकान्त में बैठी एक दृश्य मैं इमर्ज करती हूँ और इस दृश्य में एक बहुत बड़े दर्पण के सामने स्वयं को निहारते हुए अपने आप से मैं सवाल करती हूँ कि मैं कौन हूँ ! *क्या इन आँखों से जैसा मैं स्वयं को देख रही हूँ मेरा वास्तविक स्वरूप क्या सच मे वैसा ही है! अपने आप से यह सवाल पूछते - पूछते मैं उस दर्पण में फिर से जैसे ही स्वयं को देखती हूँ, दर्पण में एक और दृश्य मुझे दिखाई देता है इस दृश्य में मुझे मेरा मृत शरीर दिखाई दे रहा है जो जमीन पर पड़ा है*। थोड़ी ही देर में कुछ मनुष्य वहाँ आते हैं और उस मृत शरीर को उठा कर ले जाते है और उसका दाह संस्कार कर देते हैं।

➳ _ ➳  इस दृश्य को देख मैं मन ही मन विचार करती हूँ कि शरीर के किसी भी अंग में छोटा सा कांटा भी कभी चुभ जाता था तो मुझे कष्ट होता था। लेकिन अभी तो इस शरीर को जलाया जा रहा है फिर भी इसे कोई कष्ट क्यो नही हो रहा! *इसका अर्थ है कि इस शरीर के अंदर कोई शक्ति है और जब तक वो चैतन्य शक्ति शरीर में है तब तक यह शरीर जीवित है और हर दुख - सुख का आभास करता है लेकिन वो चैतन्य शक्ति जैसे ही इस शरीर को छोड़ इससे बाहर निकल जाती है ये शरीर मृत हो जाता है*। फिर किसी भी तरह का कोई एहसास उसे नही होता। अपने हर सवाल का जवाब अब मुझे मिल चुका है।

➳ _ ➳  "मैं कौन हूँ" की पहेली सुलझते ही अब मैं उस चैतन्य शक्ति अपने निज स्वरूप को मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से देख रही हूँ जो शरीर रूपी रथ पर विराजमान होकर रथी बन उसे चला रही है। *स्वराज्य अधिकारी बन मन रूपी घोड़े की लगाम को अपने हाथ मे थामते ही मैं अनुभव करती हूँ कि मैं आत्मा रथी अपनी मर्जी से जैसे चाहूँ वैसे इस शरीर रूपी रथ को चला सकती हूँ*। यह अनुभूति मुझे सेकण्ड में देही अभिमानी स्थिति में स्थित कर देती है और इस स्थिति में स्थित होकर मैं स्वयं को सहज ही देह से न्यारा अनुभव करते हुए बड़ी आसानी से देह रूपी रथ का आधार छोड़ इस रथ से बाहर आ जाती हूँ।

➳ _ ➳  अपने शरीर रूपी रथ से बाहर आकर अब मैं इस देह और इससे जुड़ी हर चीज को बिल्कुल साक्षी होकर देख रही हूँ जैसे मेरा इनसे कोई सम्बन्ध ही नही। *किसी भी तरह का कोई भी आकर्षण या लगाव अब मुझे इस देह के प्रति अनुभव नही हो रहा, बल्कि एक बहुत ही न्यारी और प्यारी बन्धनमुक्त स्थिति में मैं स्थित हूँ जो पूरी तरह से लाइट है और उमंग उत्साह के पँख लगाकर ऊपर उड़ने के लिए तैयार है*। इस डबल लाइट देही अभिमानी स्थित में स्थित मैं आत्मा ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसे मेरे शिव पिता के  प्यार की मैग्नेटिक पावर मुझे ऊपर अपनी और खींच रही है। *अपने प्यारे पिता के प्रेम की लग्न मे मग्न मैं आत्मा अपने विदेही पिता के समान विदेही बन, देह की दुनिया को छोड़ अब ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ*।

➳ _ ➳  परमधाम से अपने ऊपर पड़ रही उनके अविनाशी प्रेम की मीठी - मीठी फुहारों का आनन्द लेती हुई मैं साकार लोक और सूक्ष्म लोक को पार करके, अति शीघ्र पहुँच जाती हूँ अपने शिव परम पिता परमात्मा के पास उनके निराकारी लोक में। *आत्माओं की ऐसी दुनिया, जहां देह और देह की दुनिया का संकल्प मात्र भी नही, ऐसी चैतन्य मणियों की दुनिया मे मैं स्वयं को देख रही हूँ*। चारों और चमकते हुए चैतन्य सितारे और उनके बीच मे अत्यंत तेजोमय एक ज्योतिपुंज जो अपनी सर्वशक्तियों से पूरे परमधाम को प्रकाशित करता हुआ दिखाई दे रहा हैं।

➳ _ ➳  उस महाज्योति अपने शिव परम पिता परमात्मा से निकलने वाली सर्वशक्तियों की अनन्त किरणों की मीठी फ़ुहारों का भरपूर आनन्द लेने और उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को शक्तिशाली बनाने के लिए मैं निराकार ज्योति धीरे - धीरे उनके समीप जाती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणो की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ। *अपने प्यारे पिता के सानिध्य में बैठ, उनके प्रेम से, उनके गुणों और उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर करके अब मैं आत्माओं की निराकारी दुनिया से नीचे वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ*।

➳ _ ➳  कर्म करने के लिए फिर से अपने शरीर रूपी रथ पर आकर मैं विराजमान हो जाती हूँ किन्तु अब मै सदैव इस स्मृति में रह हर कर्म करती हूँ कि मैं आत्मा इस देह में रथी हूँ। *इस स्मृति को पक्का कर, कर्म करते हुए भी स्वयं को देह से बिल्कुल न्यारी आत्मा अनुभव करते हुए, देही अभिमानी बनने का अभ्यास मैं बार - बार करती रहती हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं मान मांगने के बजाए सब को मान देने वाली आत्मा हूँ।*
✺   *मैं निष्काम आत्मा हूँ।*
✺   *मैं योगी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ *मैं विश्व का नवनिर्माण करने वाली आत्मा हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा निमित्त और निर्मान- ये दो शब्द याद रखती हूँ ।*
✺ *मैं आधारमूर्त आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. कई बच्चे मुश्किल पुरुषार्थ क्यों करते? सिर्फ सोचते हैं बिन्दु सामने आ जाए, बिन्दु-बिन्दु-बिन्दु... और बिन्दु खिसक जाती है। *बिन्दु तो है लेकिन कौन-सी बिन्दु? मैं कौन हूँ, यह अपने स्वमान स्मृति में लाओ तो रमणीक पुरुषार्थ हो जायेगा सिर्फ ज्योति बिन्दु कहते हो ना तो मुश्किल हो जाता है। सहज पुरुषार्थ, मौज का पुरुषार्थ करो।*

 

 _ ➳  2. *सहज योगी का यह मतलब नहीं है कि यह अलबेलेपन का पुरुषार्थ हो। श्रेष्ठ भी हो और सहज भी हो।*

 

✺   *ड्रिल :-  "सहज पुरुषार्थ करने का अनुभव"*

 

 _ ➳  कितनी सुंदर हैं संगम की अमूल्य घड़ियां... स्वयं भाग्यविधाता भाग्य बांटने के लिए इस धरा धाम पर पधारे हैं... भगवान मुझ आत्मा पर मेहरबान हो गए हैं... वे स्वयं कह रहे हैं कि सर्व संबंधों का रस मुझ एक बाप से लो... बाबा मेरा परमपिता, परम शिक्षक, परम सतगुरु है, मेरा साजन है, मेरा साथी, मेरा खुदादोस्त, गाइड है... *दुनिया के संबंध तो दुःख देने वाले हैं... सर्व संबंधों का सच्चा सुख, अविनाशी स्नेह एक बाबा से ही मिल सकता है...*

 

 _ ➳  परम सतगुरु बाबा मुझे वरदानों से निहाल कर रहे हैं... रोज नया वरदान देकर जीवन में अलौकिकता की खुशबू भर रहे हैं... ऐसी दिव्य, अलौकिक पालना अपने रूहानी बाबा से मुझ आत्मा को मिल रही है... जो पालना राजाओं, साहूकारों को भी नहीं मिल पाती... *परम शिक्षक बन रोज बाबा परमधाम से पढ़ाने के लिए आते हैं... ज्ञान के गुह्य रहस्यों को स्पष्ट करते हैं...* बाबा ने दिव्य बुद्धि के वरदान द्वारा मुझ आत्मा के जन्म जन्मांतर से बंद बुद्धि का ताला खोल दिया है...

 

 _ ➳  मैं आत्मा दिव्य बुद्धि और रूहानी दृष्टि के वरदान से संपन्न बन गई हूँ... *बाबा ने जन्म जन्म का अविनाशी भाग्य बनाने की कितनी सहज युक्तियाँ बताई हैं... मैं आत्मा बाबा की मोहब्बत में मगन होकर सर्व प्रकार की मेहनत से मुक्त हो गई हूँ...* मैं बाबा की शिक्षाओं का प्रैक्टिकल स्वरुप बन रही हूँ... बाबा की शब्दों को ही नहीं, शब्दों के साथ-साथ उनके पीछे के भाव को भी ग्रहण कर रही हूँ... *मैं आत्मा ज्योति बिंदु स्वरुप में स्वयं को स्थित कर बिंदु बाबा की याद से आत्मा की जन्मों की कालिख भस्म कर रही हूँ...*

 

 _ ➳  बाबा ने मुझ आत्मा को कितने श्रेष्ठ  स्वमान दिए हैं... *मैं एक एक स्वमान को याद कर उस स्वमान का स्वरुप बन रही हूँ...* मैं आत्मा बिंदु हूँ... साथ में कौन सी आत्मा हूँ... मैं विश्व परिवर्तक आत्मा हूँ... मैं महान आत्मा हूँ... मैं बाबा का चुना हुआ अमूल्य रत्न हूँ... जैसे स्वमानों की स्मृति से मुझ आत्मा का पुरुषार्थ बिल्कुल सहज हो गया है... *मन वैरायटी स्वमानों के अभ्यास में रमणीकता और मौज का अनुभव कर रहा है... मैं आत्मा इस सहज, रमणीक पुरुषार्थ से नित्य नवीन, सुंदर अनुभव कर रही हूँ... बाबा के स्नेह की गहराइयों में समाती जा रही हूँ...*

 

 _ ➳  मुझ आत्मा का पुरुषार्थ हठपूर्वक नहीं है... मैं स्वतः योगी, रमता योगी, सहज योगी, निरंतर योगी आत्मा हूँ... *सर्व प्रकार के आलस्य, अलबेलेपन से मुक्त मैं अलर्ट और एवररेडी आत्मा हूँ...* समय की समीपता को देखते हुए मैं आत्मा उड़ती कला का पुरुषार्थ कर रही हूँ... मैं अपना हर सेकंड याद और यज्ञ सेवा में सफल कर रही हूँ... ईश्वरीय स्नेह में समाई हुई मैं आत्मा सहज योगी, श्रेष्ठ योगी आत्मा हूँ... *मैं आत्मा पुरुषार्थ में नित्य नूतनता का अनुभव करते हुए... संगम की मौज मना रही हूँ... अतीन्द्रिय सुख की रास मना रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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