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 16 / 02 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *निश्चयबुधी विजयंती स्थिति का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *मधुबन को अपना घर और अपने लोकिक स्थान को सेवास्थान समझा ?*

 

➢➢ *हार में भी जीत का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *कभी भी उदासी व अकेलेपन का अनुभव तो नहीं किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *मन्सा शक्ति का दर्पण है - बोल और कर्म।* चाहे अज्ञानी आत्मायें, चाहे ज्ञानी आत्मायें - दोनों के सम्बन्ध-सम्पर्क में बोल और कर्म शुभ- भावना, शुभ-कामना वाले हों। *जिसकी मन्सा शक्तिशाली वा शुभ होगी उसकी वाचा और कर्मणा स्वत: ही शक्तिशाली शुद्ध होगी, शुभ-भावना वाली होगी। मन्सा शक्तिशाली अर्थात् याद की शक्ति श्रेष्ठ होगी, शक्तिशाली होगी, सहजयोगी होंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं संगमयुगी ब्राह्मण चोटी महान आत्मा हूँ"*

 

✧  सदा अपने को संगमयुगी श्रेष्ठ आत्मायें, पुरुषोत्तम आत्मायें वा ब्राह्मण चोटी महान आत्मायें समझते हो? अभी से पुरुषोत्तम बन गये ना। *दुनिया में और भी पुरुष हैं लेकिन उन्हों से न्यारे और बाप के प्यारे बन गये इसलिए पुरुषोत्तम बन गये। औरों के बीच में अपने को अलौकिक समझते हो ना! चाहे सम्पर्क में लौकिक आत्माओंके आते लेकिन उनके बीच में रहते हुए भी मैं अलौकिक न्यारी हूँ यह तो कभी नहीं भूलना है ना!*

 

  क्योंकि आप बन गये हो हंस, ज्ञान के मोती चुगने वाले 'होली हंस' हो। वह हैं गन्द खाने वाले बगुले। वे गन्द ही खाते, गन्द ही बोलते...तो बगुलों के बीच में रहते हुए अपना होलीहंस जीवन कभी भूल तो नहीं जाते! कभी उसका प्रभाव तो नहीं पड़ जाता? वैसे तो उसका प्रभाव है मायावी और आप हो मायाजीत तो आपका प्रभाव उन पर पड़ना चाहिए, उनका आप पर नहीं। तो सदा अपने को होलीहंस समझते हो? *होलीहंस कभी भी बुद्धि द्वारा सिवाए ज्ञान के मोती के और कुछ स्वीकार नहीं कर सकते। ब्रह्मण आत्मायें जो ऊँच हैं, चोटी हैं वह कभी भी नीचे की बातें स्वीकार नहीं कर सकते। बगुले से होलीहंस बन गये। तो होलीहंस सदा स्वच्छ, सदा पवित्र।*

 

  पवित्रता ही स्वच्छता है। हंस सदा स्वच्छ है, सदा सफेद-सफेद। सफेद भी स्वच्छता वा पवित्रता की निशानी है। *आपकी ड्रेस भी सफेद है। यह प्यूरिटी की निशानी है। किसी भी प्रकार की अपवित्रता है तो होलीहंस नहीं। होलीहंस संकल्प भी अशुद्ध नहीं कर सकते। संकल्प भी बुद्धि का भोजन है। अगर अशुद्ध वा व्यर्थ भोजन खाया तो सदा तन्दुरुस्त नहीं रह सकते।* व्यर्थ चीज को फेका जाता, इक्क्ठा नहीं किया जाता इसलिए व्यर्थ संकल्प को भी समाप्त करो, इसी को ही होलीहंस कहा जाता है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *आत्माओं को सन्देश द्वारा अंचली देते रहेंगे तो दाता स्वरूप में स्थित रहेंगे, तो दातापन के पुण्य का फल शक्ति मिलती रहेगी।* चलते-फिरते अपने को आत्मा करावनहार है और यह कर्मेन्द्रियाँ करनहार कर्मचारी हैं, यह आत्मा की स्मृति का अनुभव सदा इमर्ज रूप में हो, ऐसे नहीं कि मैं तो हूँ ही आत्मा नहीं, स्मृति मे इमर्ज हो।

 

✧  मर्ज रूप में रहता है लेकिन इमर्ज रूप में रहने से वह नशा, खुशी और कन्ट्रोलंग पॉवर रहती है। मजा भी आता है, क्यों! साक्षी हो करके कर्म कराते हो। तो बार-बार चेक करो कि करावनहार होकर कर्म करा रही हूँ? *जैसे राजा अपने कर्मचारियों को ऑर्डर में रखते हैं, ऑर्डर से कराते हैं, ऐसे आत्मा करावनहार स्वरूप की स्मृति रहे तो सर्व कर्मेन्द्रियाँ ऑर्डर में रहेंगी।*

 

✧  माया के ऑर्डर में नहीं रहेंगी, आपके ऑर्डर में रहेंगी। नहीं तो माया देखती है कि करावनहार आत्मा अलबेली हो गई है तो माया ऑर्डर करने लगती है। कभी संकल्प शक्ति, कभी मुख की शक्ति माया के ऑर्डर में चल पडती है। इसलिए *सदा हर कर्मेन्द्रियों को अपने ऑर्डर में चलाओ। ऐसे नहीं कहेंगे - चाहते तो नहीं थे, लेकिन हो गया। जो चाहते हैं वही होगा। अभी से राज्य अधिकारी बनने के संस्कार भरेंगे तब ही वहाँ भी राज्य चलायेंगे।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  जैसे इस शरीर को लेना यह अनुभव सभी को है। वैसे ही जब चाहो तब शरीर का भान बिल्कुल छोड़कर अशरीरी बन जाना और जब चाहो तब शरीर का आधार लेकर कर्म करना यह अनुभव है? इस अनुभव को अब बढ़ना है। बिल्कुल ऐसे ही अनुभव होगा जैसे कि यह स्थूल चोला अलग है और चोले को धारण करने वाली आत्मा अलग है, यह अनुभव अब ज्यादा होना चाहिए। सदैव यही याद रखो कि अब गये कि गये। सिर्फ़ सर्विस के निमित शरीर का आधार लिया हुआ है लेकिन जैसे ही सर्विस समाप्त हो वैसे ही अपने को एकदम हल्का कर सकते है। *जैसे आप लोग कहाँ भी ड्यूटी पर जाते हो और फिर वापस घर आते हो तो अपने को हल्का समझते हो ना। डयूटी की ड्रेस बदलकर घर की ड्रेस पहन लेते हो वैसे ही सर्विस प्रति यह शरीर रूपी वस्त्र का आधार लिया फिर सर्विस समाप्त हुई और इन वस्रों के बोझ से हल्के और न्यारे हो जाने का प्रयत्न करो।* एक सेकेण्ड में चोले से अलग कौन हो सकेंगे? अगर टाइटनेस होगी तो अलग हो नहीं सकेंगे। *कोई भी चीज़ अगर चिपकी हुई होती है तो उनको खोलना मुश्किल होता है। हल्के होने से सहज ही अलग हो जाता है। वैसे ही अगर अपने संस्कारों में कोई भी इज़ीपन नहीं होगा तो फिर अशरीरीपन का अनुभव कर नहीं सकेंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल :- निश्चय बुद्धि विजयी रतन बनना"*

➳ _ ➳ *मैं आत्मा इस संगमयुग के रूहानी यूनिवर्सिटी में बैठी हूँ... ज्ञान सागर बाबा मुझ पर ज्ञान की बरसात कर रहे हैं... जिससे मुझ आत्मा की सारी अज्ञानता बाहर निकलती जा रही है... मैं आत्मा पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बन रही हूँ... स्वयं भगवान टीचर बनकर मुझे आदि-मध्य-अंत का ज्ञान दे रहे हैं...* मेरे जन्म-जन्म के अवगुणों को निकाल देवताई गुणों से श्रृंगार कर, स्वर्ग की राजाई के लायक बना रहे हैं... मैं आत्मा निश्चय बुद्धि बनकर, गॉडली स्टूडेंट के स्वमान में टिककर बैठ जाती हूँ, बाबा की शिक्षाओं को ग्रहण करने...

❉ *भविष्य की कमाई के लिए ज्ञान रत्नों से मुझे सजाते हुए मेरे सुप्रीम टीचर कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय पढ़ाई और योग से ही सतयुगी बादशाही है... *इसलिए सम्पूर्ण निश्चय बुद्धि होकर पढ़ाई से 21 जनमो का खुबसूरत भाग्य बनालो... संगम के वरदानी समय को याद और पढ़ाई से असीम कमाई की खान बना दो... ईश्वर पिता से पढ़कर अनन्त सुखो के मालिक बन जाओ...*

➳ _ ➳ *21 जन्मों के वर्सा की अधिकारी बनने का पुरुषार्थ करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो में ज्ञान रत्नों को पाकर दौलत मन्द होती जा रही हूँ... *21 जनमो के लिए अथाह सुखो को जमा कर मीठा मुस्करा रही हूँ... प्यारे बाबा आपने अपनी गोद में बिठा,सच्चे सुखो से सजा मेरा सदा का भाग्य चमका दिया है...”*

❉ *अथाह ज्ञान रत्नों की खान मेरे नाम लिखते हुए प्रेम के सागर मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता स्वयं धरा पर उतर कर राजयोग सिखा रहे... *ज्ञान रत्नों से मालामाल कर स्वर्ग के मीठे सुखो का अधिकारी बना रहे... तो पूरे निश्चय और दिली लगन से पढ़ाई कर श्रेष्ठतम भाग्य को अपनी तकदीर बना लो...* इन सुनहरे पलों का पूरा फायदा उठाओ...”

➳ _ ➳ *ज्ञान योग से ईश्वरीय रंगत में रंगकर, सात रंगों से सजी इन्द्रधनुष बनकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपको पाकर कितनी धन्य धन्य हो गई हूँ... प्यारे बाबा... आपने मेरी देह की दासता छुड़वाकर... *मुझे दमकती मणि सा चमकाया है... और अपनी फूलो सी गोद में बिठा विश्व मालिक बनाया है... असीम खानो को मेरी तकदीर में सजा मुझे शहंशाह बनाया है...”*

❉ *अपने प्यार से मेरे मन में खुशियों के फूलों को खिलाकर मेरे बागबान बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *यह ईश्वरीय पढ़ाई ही सच्चे सुखो का आधार है और महा भाग्य बनाने वाली है... इसलिए इस पढ़ाई में हर साँस संकल्प से जुट जाओ... यह ज्ञान रत्न अथाह सुखो के भण्डार बनकर जीवन में खुशियो को छलकायेंगे...* ईश्वर पिता से सारी दौलत लेकर 21 जनमो की अमीरी के पर्याय बन मुस्कराओ...”

➳ _ ➳ *बाबा के स्नेह की रिमझिम से दिव्य मणि बन पुलकित होकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा संगम पर आपके हाथ और साथ को पाकर कितनी निखर गई हूँ...* मेरी कुरूपता खत्म हो गई है, और सच्चे सौंदर्य से रोम रोम छलक उठा है... *प्यारे बाबा आपने अपने जादुई स्पर्श से मुझे ज्ञानवान धनवान् बना विश्व में सजा दिया है...”*

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  निश्चय बुद्धि विजयन्ती स्थिति का अनुभव*"

➳ _ ➳ 
मेरे कौड़ी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बनाने वाले, सर्व सम्बन्धो का मुझे सुख देकर मेरे जीवन को खुशहाल बनाने वाले मेरे दिलाराम बाबा ने मेरे जीवन मे आकर जो अनगिनत उपकार मुझ पर किये हैं, उनका तो बदला चुकाया भी नही जा सकता। *लेकिन उनके स्नेह का रिटर्न देने के लिए मैं सदा उनकी वफादार फरमानबरदार बनकर रहूँगी। अपने ऐसे सच्चे बाबा के प्रति निश्चय में मैं कभी कमी नही आने दूँगी। चाहे दुनिया कितने भी इल्जाम लगाए लेकिन अपने दिलाराम बाबा का हाथ और साथ मैं कभी नही छोडूंगी*। मन ही मन स्वयं से बातें करते हुए मैं बाबा के प्रति निश्चय में कभी भी ना हिलने की दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ और अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के बारे में विचार करती हूँ जिन्होंने समाज का विरोध सहन करके भी सम्पूर्ण निश्चय बुद्धि बन परमात्म कर्तव्य को सम्पूर्ण समर्पण भाव से पूरा किया और भगवान के दिल रूपी तख्त पर सदा के लिए विराजमान हो गए।

➳ _ ➳ 
ऐसे कदम - कदम पर फ़ॉलो फादर कर, ब्रह्मा बाप समान सम्पूर्ण निश्चय बुद्धि बन, परमात्म कार्य मे सदा सहयोगी बनने का संकल्प लेकर मैं अपने दिलाराम बाबा की दिल को आराम देने वाली मीठी सी प्यारी सी याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करती हूँ। *मन को शीतलता देने वाली सागर की मीठी - मीठी लहरों के समान मेरे मीठे बाबा की मीठी - मीठी याद मेरे मन और बुद्धि को भी शान्त और शीतल बना देती है और शरीर को पूरी तरह रिलैक्स कर देती है*। यह रिलैक्सेशन मेरे सारे शरीर से चेतना को धीरे - धीरे समेट कर मेरे सम्पूर्ण ध्यान को दोनों आईब्रोज के बीच भृकुटि के मध्य भाग पर केंद्रित कर देती है।  

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मैं महसूस कर रही हूँ देह का भान पूरी तरह समाप्त हो गया है और स्वयं को मैं अशरीरी आत्मा देख रही हूँ। केवल एक अति सूक्ष्म चमकता हुआ शाइनिंग स्टार मुझे दिखाई दे रहा है। जिसमे से निकल रही किरणे मन को आनन्दित करती हुई चारों और फैल रही हैं। *देह भान से पूरी तरह मुक्त यह अशरीरी स्थिति मुझे मेरे सातों गुणों और अष्ट शक्तियों से सम्पन्न, ओरिजनल स्वरूप का स्पष्ट अनुभव करवा रही है। अपने स्वधर्म में मैं पूरी तरह स्थित हो कर अपने सत्य स्वरूप का भरपूर आनन्द ले रही हूँ*। दुनियावी आकर्षणों से बोझ से मुक्त स्वयं को मैं बहुत ही हल्का अनुभव कर रही हूँ और हल्की हो कर ऊपर की औऱ उड़ रही हूँ। *पाँच तत्वों से निर्मित इस भौतिक जगत को पार करके, उससे ऊपर सूक्ष्म लोक को भी पार करके मैं पहुँच गई हूँ ब्रह्मलोक में अपने दिलाराम शिव पिता के पास जिनके साथ मेरा जन्म - जन्म का अनादि सम्बन्ध है*।

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अपनी अनन्त शक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरे मीठे शिव बाबा मेरे सामने खड़े हैं। बिना एक पल भी व्यर्थ गंवाये अपने प्यारे पिता के पास जाकर मैं उनकी किरणों रूपी बाहों में समा जाती हूँ। *पूरे पाँच हजार वर्ष उनसे बिछड़ कर उनसे दूर रहने की सारी पीड़ा को मैं उनकी किरणों रूपी बाहों में समाकर, अतीन्द्रिय सुख की गहन अनुभूति में खोकर, भुला रही हूँ*। प्यार के सागर अपने शिव पिता के प्यार की गहराई में समाकर मैं स्वयं को उनके निस्वार्थ प्यार से भरपूर कर रही हूँ। मेरे शिव पिता का अविनाशी प्यार उनके स्नेह की किरणों के रूप में निरन्तर मुझ पर बरस रहा है। *उनसे आ रही स्नेह की किरणों की मीठी फुहारें मुझे रोमांचित कर रही हैं और मेरे निश्चय को दृढ़ रखने का बल मुझे दे रही हैं*।

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अपने दिलाराम बाबा की सर्व शक्तियों से स्वयं को भरपूर करके, उनके प्यार के खूबसूरत मीठे मधुर अति सुखद एहसास के साथ अब मैं वापिस देह और देह की दुनिया में लौट रही हूँ। बड़े से बड़ी परिस्थितियां भी अब बाबा के प्रति मेरे निश्चय को डिगा नही पाती क्योंकि मेरे बाबा का प्यार ढाल बन कर मुझमें असीम शक्ति का संचार प्रतिपल करता रहता है। *अपने सर्वशक्तिवान बाबा की सर्वशक्तियों की छत्रछाया को मैं सदा अपने ऊपर महसूस करते हुए, सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि बन अब माया के हर पेपर को अपने पिता के सहयोग से सहज ही पार करती जा रही हूँ*। स्वयं पर, बाबा पर और ड्रामा पर सम्पूर्ण निश्चय मुझे व्यर्थ के हर संकल्प विकल्प से मुक्त रखते हुए, मेरी साइलेन्स की शक्ति को बढ़ाकर मेरी स्थिति को एकरस और अचल अडोल बनाता जा रहा है।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सच्ची सेवा द्वारा अविनाशी आत्मा हूँ।*
✺   *मैं अलौकिक खुशी के सागर में लहराने वाली आत्मा हूँ।*
✺   *मैं खुशनसीब आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ *मैं आत्मा सदा हर्षित रहती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा आकर्षण मूर्त हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा संतुष्टमणि हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *स्वयं सदा स्वमान में रह उड़ते रहो। स्वमान को कभी नहीं छोड़ो, चाहे झाडू लगा रहे हो लेकन स्वमान क्या है? विश्व की सर्व आत्माओं में श्रेष्ठ आत्मा हूँ। तो अपना रूहानी स्वमान कोई भी काम करते भूलना नहीं।* नशा रहता है ना, रूहानी नशा। हम किसके बन गये! भाग्य याद रहता है ना? भूलते तो नहीं हो? *जितना भी समय सेवा के लिए मिलता है उतना समय एक-एक सेकण्ड सफल करो।* व्यर्थ नहीं जाए, साधारण भी नहीं। *रूहानी नशे में रूहानी प्राप्तियों में समय जाए। ऐसा लक्ष्य रखते हो ना! अच्छा।*

 

✺   *ड्रिल :-  "सदा अपने रूहानी स्वमान में रहने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *मैं श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा देख रही हूँ स्वयं को, एक बड़ी ऊंची पहाड़ी पर प्रकृति के सानिध्य में बैठे हुए...* मैं आत्मा उन अद्वितीय, अविस्मरणीय मीठे अद्भुत पलों को याद कर रही हूँ... *जब इस कलियुग रूपी अन्धेरे में ज्योति बिन्दु शिव बाबा रोशनी बन मेरे जीवन में आये... और मुझ दिव्य आत्मा को अज्ञान अन्धेरे से बाहर निकाल ज्ञान प्रकाश  दिया...* मुझ विशेष आत्मा को मेरा सत्य परिचय दिया... *मुझ आत्मा का हाथ थामा मुझे अपना बनाया...* मैं आत्मा इस पहाड़ी से इस पूरे विश्व की आत्माओं को देख रही हूँ और अपने भाग्य को देख रही हूँ... *कितना श्रेष्ठ भाग्य, मुझ श्रेष्ठ आत्मा ने पाया हैं... इस संसार की आत्माओं से चुनकर बाबा ने मुझ आत्मा को कितना विशेष बना दिया है...* वाह मुझ श्रेष्ठ आत्मा का भाग्य जो, स्वयं बाबा ने आकर अपना सत्य परिचय दिया... सत्यता का प्रकाश मुझे दिया... और जीवन में सवेरा लाया...

 

 _ ➳  *मूर्छित अवस्था से सुरजीत किया... वाह मुझ श्रेष्ठ आत्मा का भाग्य जो इस ब्रम्हांड की परमसत्ता से मेरा मिलन हुआ...* उसने आते ही मुझ आत्मा के स्वमान को जगाया... मुझ आत्मा को जागरण की अवस्था मे लाया... *मुझ आत्मा को भिन्न-भिन्न स्वमानों से सजाया...* जैसे ही ये विचार मैं आत्मा जनरेट करती हूँ... तभी अचानक एक सतरंगी रंग का कमल का फूल, मुझ आत्मा के सामने आता है... *मैं आत्मा उठकर इस कमल फूल पर विराजमान हो जाती हूँ...* मैं कमल आसनधारी आत्मा जैसे ही कमल फूल पर बैठती हूँ... मुझ आत्मा का स्वरूप परिवर्तन हो जाता है...

 

 _ ➳  *अब मैं आत्मा डबल लाइट फरिशता स्वरूप धारण करती हूँ...* और सामने फरिशतों के बादशाह ब्रह्मा बाबा और उनकी भृकुटि में शिव बाबा चमक रहे है... *बाबा मुझ नन्हें फरिशते के पास आ जाते है... बाबा को सामने पाकर मैं आत्मा खुशी से भर गयी हूँ...* बाबा मुझ आत्मा पर रंग-बिरंगे फूलों रूपी शक्तियों की वर्षा कर रहे है... वाह मुझ आत्मा का भाग्य वाह, अपने भाग्य को देख-देख मैं आत्मा खुशी में झूम रही हूँ... *बापदादा मुझ आत्मा के सामने आकर बैठ जाते है... और मुझ आत्मा को भिन्न भिन्न स्वमानों की मालायें पहना रहे है...*

 

 _ ➳  *एक-एक स्वमान की माला अदभुत चमकीली है... भिन्न-भिन्न स्वमानों की माला से बाबा मुझ आत्मा का श्रृंगार कर रहे है...* अब मैं आत्मा भिन्न-भिन्न स्वमानों की मालाओं से सज गयी हूँ... फिर बाबा मेरे सिर पर हाथ रखते हैं... और *बाबा मुझ आत्मा को वरदान दे रहे "सदा स्वमानधारी" भव बच्चे...* मैं आत्मा अन्तर्मन से इस वरदान को स्वीकार करती हूँ... और अब मैं आत्मा देख रही हूँ स्वयं को अपने ब्राह्मण स्वरूप में कर्मक्षेत्र पर... *मैं आत्मा हर कार्य करते भिन्न-भिन्न स्वमानों की मालाएँ धारण कर रही हूँ...*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा विश्व की सर्व आत्माओं में श्रेष्ठ आत्मा हूँ... इस स्वमान के रूहानी नशे में रह हरदम उड़ती कला का अनुभव कर रही हूँ...* मैं आत्मा हर समय रूहानी नशे मे रह रूहानी प्राप्तियों में समय सफल कर रही हूँ... *स्वमान की भिन्न-भिन्न मालाओं से मैं आत्मा सजकर हर कार्य में सफलता प्राप्त कर रही हूँ...* मैं आत्मा अपना एक-एक सेकेंड सफल कर रही हूँ... *मैं श्रेष्ठ आत्मा स्वमान में स्थित होकर हर सेवा कर रही हूँ...* मैं आत्मा किसकी बन गयी हूँ... *सदा इस रूहानी नशे में उड़ती रहती हूँ... स्वमान में स्थित रह सबको सम्मान देती हूँ...* और सभी आत्माओं को स्वमान की दृष्टि से देखती हूँ... *बाबा के द्वारा मिला सदा स्वमानधारी भव का वरदान प्रत्यक्ष हो रहा है... शुक्रिया मीठे बाबा शुक्रिया...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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