━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 25 / 01 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *कोई की भी देह में लगाव तो नहीं रखी ?*

 

➢➢ *समय को महत्व को जान स्वयं को संपन्न बनाया ?*

 

➢➢ *स्वयं को संपन्न बना विशाल कार्य में स्वतः सहयोगी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *सर्व गुणों में फुल बन सम्पूरण फ़रिश्ता बनकर रहे ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  एकाग्रता अर्थात् एक ही श्रेष्ठ संकल्प में सदा स्थित रहना। जिस एक बीज रूपी संकल्प में सारा वृक्ष रूपी विस्तार समाया हुआ है। एकाग्रता को बढ़ाओ तो सर्व प्रकार की हलचल समाप्त हो जायेगी। *एकाग्रता के आधार पर जो वस्तु जैसी है, वैसी स्पष्ट देखने में आयेगी। ऐसी एकाग्र स्थिति में स्थित होने वाला स्वयं जो है, जैसा है अथवा जो वस्तु जैसी है वैसी स्पष्ट अनुभव होगी।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   *"मैं ब्राह्मण सो फरिश्ता हूँ"*

 

   सभी अपने को ब्राह्मण सो फरिश्ता समझते हो? अभी ब्राह्मण हैं और ब्राह्मण से फरिश्ता बनने वाले हैं फिर फरिश्ता सो देवता बनेंगे -वह याद रहता है? *फरिश्ता बनना अर्थात् साकार शरीरधारी होते हुए लाइट रूप में रहना अर्थात् सदा बुद्धि द्वारा ऊपर की स्टेज पर रहना। फरिश्ते के पांव धरनी पर नहीं रहते।* ऊपर कैसे रहेंगे? बुद्धि द्वारा। बुद्धि रूपी पांव सदा ऊँची स्टेज पर। ऐसे फरिश्ते बन रहे हो या बन गये हो?

 

  ब्राह्मण तो हो ही - अगर ब्राह्मण न होते तो यहाँ आने की छुट्टी भी नहीं मिलती। लेकिन ब्राह्मण ने फरिश्तेपन की स्टेज कहाँ तक अपनाई है? *फरिश्तों को ज्योति की काया दिखाते हैं। प्रकाश की काया वाले। जितना अपने को प्रकाश स्वरूप आत्मा समझेंगे - प्रकाशमय तो चलते फिरते अनुभव करेंगे जैसे प्रकाश की काया वाले फरिश्ते बनकर चल रहे हैं।*

 

 *फरिश्ता अर्थात् अपनी देह के भान का भी रिश्ता नहीं, देहभान से रिश्ता टूटना अर्थात् फरिश्ता। देह से नहीं, देह के भान से। देह से रिश्ता खत्म होगा तब तो चले जायेंगे लेकिन देहभान का रिश्ता खत्म हो।* तो यह जीवन बहुत प्यारी लगेगी। फिर कोई माया भी आकर्षण नहीं करेगी।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  तो हे विश्व कल्याणी, विश्व परिवर्तक आत्मायें सर्व साधन एवररेडी हैं? सर्वशक्तियाँ आपके ऑर्डर में हैं? ऑर्डर किया अर्थात संकल्प किया- निर्णय शक्तिा तो सेकण्ड से भी कम समय मं निर्णय शक्ति हाजिर हो जाए, कहे स्वराज्य अधिकारी हाजिर।

 

✧  ऐसे ऑर्डर में है? या एक मिनट अपने में लाने में लगेगा फिर दूसरे को दे सकेंगे? *अगर समय पर किसको जो चाहिए वह नहीं दे सके तो क्या होगा?* तो सभी बच्चों के दिल में यह संकल्प तो चल ही रहा है - आगे क्या होना है और क्या करना है?

 

✧  होना तो बहुत कुछ है। सुनाया ना यह तो रिहर्सल है। यह 6 मास के तैयारी की घण्टी बजी है, घण्टा नहीं बजा है। *पहले घण्टा बजेगा, फिर नगाडा बजेगा। डरेंगे? थोडा-थोडा डरेंगे?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧  *हर वक्त अव्यक्त स्थिति में रहें उसके लिए क्या पुरुषार्थ करना है? सिर्फ एक अक्षर बताओ, जिस एक अक्षर से अव्यक्त स्थिति रहे।* जितना -जितना अव्यक्त स्थिति में स्थित होंगे - कोई मुख से बोले, न बोले लेकिन उनके अन्दर का भाव पहले से ही जान लेंगे। ऐसा समय आयेगा। इसलिए यह प्रैक्टिस कराते हैं। *अपने को मेहमान समझना। अगर मेहमान समझेंगे तो फिर जो अन्तिम सम्पूर्ण स्थिति का वर्णन है वह इस मेहमान बनने से होगी।* अपने को मेहमान समझेंगे तो फिर व्यक्त में होते हुए भी अव्यक्त में रहेंगे। *मेहमान का किसके साथ भी लगाव नहीं होता है,* हम इस शरीर में भी मेहमान हैं, इस पुरानी दुनिया में भी मेहमान हैं। *जब शरीर में ही मेहमान हैं तो शरीर से भी क्या लगन रखें। सिर्फ थोड़े समय के लिए यह शरीर काम में लाना है।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल :- इस अंतिम जन्म में सब हिसाब-किताब चुक्तु कर पावन बनना"*

➳ _ ➳ *मैं आत्मा स्वीट बाबा की यादों में मगन होकर उड़ चलती हूँ स्वीट होम... और बाबा के सामने बैठ जाती हूँ... स्वीट बाबा से स्वीट रंगीन चमकती हुई किरणें निकलकर मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं...* मुझ आत्मा के जन्म-जन्मान्तर के विकर्म भस्म हो रहे हैं... मैं आत्मा स्वीट बाबा के साथ स्वीट होम से नीचे उतरकर फ़रिश्ता स्वरुप धारण कर अव्यक्त वतन में पहुँच जाती हूँ... मीठे बाबा मीठी दृष्टि देते हुए मीठी शिक्षाएं देते हैं...

❉ *योग अग्नि से पापो को भस्म कर सम्पूर्ण सतोप्रधान बनने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... खूबसूरत महकते फूल आत्मा से... देहभान में लिप्त साधारण मनुष्य बनकर... विकारो में फंस पड़े हो... *अब स्वयं के सत्य स्वरूप को ईश्वरीय यादो में उजला करो... योग अग्नि में... सारे पापो को भस्म कर वही दमकता चमकता स्वरूप पुनः पा लो...”*

➳ _ ➳ *मैं आत्मा योग अग्नि से सारे हिसाब-किताब चुक्तु करते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा आपको पाकर निहाल हो गई हूँ... और पिता की मीठी यादो में देहभान के सारे पापो से मुक्त होती जा रही हूँ...* अपने दमकते स्वरूप को पाती जा रही हूँ... और बाबा का हाथ थामे खुशियो में उड़ती जा रही हूँ...”

❉ *मीठे बाबा सतयुगी स्वर्णिम सुखों से मुझ आत्मा को मालामाल करते हुए कहते हैं:-* “मीठे प्यारे फूल बच्चे... अब भगवान को पाकर जीवन को सच्चा बनाओ... *अब और नए हिसाब किताब बनाकर स्वयं को मत उलझाओ... पुराने सारे पापो को ईश्वरीय यादो में जलाओ...* और हल्के खुशनुमा होकर अथाह खुशियो में डूब जाओ... सुंदर देवता बन मुस्कराओ...”

➳ _ ➳ *मैं आत्मा पवित्रता के सफ़ेद किरणों से विकारों की कालिमा को भस्म करते हुए कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा मीठे बाबा को पाकर सारे विकारो से मुक्त हो गई हूँ... बाबा ने मुझे दमकता सा सुनहरा रंग दे दिया है... *मै आत्मा गुणो और शक्तियो से भरपूर होती जा रही हूँ... और अपने पापो के सारे बोझों को यादो में स्वाहा कर रही हूँ...”*

❉ *सुखों के आसमान तले मेरे भाग्य के सितारे को पारसमणि समान चमकाते हुए पारसनाथ बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जब घर से निकले थे तो सतोप्रधान स्थिति से भरपूर थे... अथाह सुखो के मालिक थे... फिर नीचे उतरते विकारो में गिरकर पापो से भर गए... *अब मीठा बाबा अपनी गोद में बिठा सारे पापो को मिटाकर... स्वर्ग की खूबसूरत सौगात हथेली पर रख ले आया है... और वही सच्चा सोना बनाने आया है...”*

➳ _ ➳ *बिंदु बाबा के यादों के सहारे पुराने सारे हिसाब-किताब को बिंदु लगाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता की यादो में सतोप्रधान होती जा रही हूँ... फिर से सजकर देवताई स्वरूप पा रही हूँ... *पापो की दुनिया से सारे हिसाबो को खत्म कर... नई सुख़ शांति आनन्द की दुनिया का राज्य भाग्य पा रही हूँ...”*

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- स्वयं को माया के धोखे से बचाना है*

➳ _ ➳ 
एकान्त में बैठ परमात्म चिंतन करते हुए, बाबा के महावाक्यों को स्मृति में लाकर मैं विचार कर रही हूँ कि बाबा बार - बार मुरलियों में माया से सावधान रहने का इशारा देते हैं। *क्योंकि माया इतनी जबरदस्त है जो रॉयल से रॉयल रूप धारण करके ब्राह्मण बच्चो के जीवन मे प्रवेश कर उन्हें भगवान से भी बेमुख कर देती है*। इसलिए माया के रॉयल से रॉयल रूप को भी परखने की शक्ति मुझे अपने अंदर जमा करनी है और उसके लिए बाबा ने जो अति सहज उपाय बताया है कि माया से बचने के लिए मुख में मुहलरा डाल लो अर्थात अपने शांत स्वधर्म में स्थित हो जाओ। इस अभ्यास को ही अब मुझे बढ़ाना है।

➳ _ ➳ 
माया के हर वार से स्वयं को बचाने के लिए साइलेन्स की शक्ति स्वयं में जमा करने का संकल्प लेकर, स्वयं को मैं अशरीरी स्थिति में स्थित करती हूँ और देह से डिटैच, अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर अपनें मन और बुद्धि को अपने निराकार शिव पिता की याद में स्थिर कर लेती हूँ। *सेकेण्ड में मैं अनुभव करती हूँ जैसे परमधाम से सर्वशक्तियों की तेज लाइट सीधी नीचे आ रही है और मेरे मस्तक को छू रही है। शक्तियों का एक तेज करेन्ट मेरे मस्तक से होता हुआ मेरे सारे शरीर मे दौड़ रहा है*।
एक अद्भुत शक्ति जैसे मेरे अंदर भरती जा रही है जो मेरे अंदर असीम ऊर्जा का संचार करने के साथ - साथ मुझे लाइट स्थिति में भी स्थित करती जा रही है।

➳ _ ➳ 
ऐसा लग रहा है जैसे मैं देह के बन्धन से मुक्त होकर एक दम हल्की हो गई हूँ और अब अपने आप ही ऊपर की ओर उड़ने लगी हूँ। देह और देह की दुनिया के हर आकर्षण से मैं जैसे पूरी तरह मुक्त हो गई हूँ और बस सीधी अपनी मंजिल की ओर बढ़ती ही चली जा रही हूँ। *देह और देह की दुनिया पीछे छूटती जा रही है और मैं उस दुनिया से किनारा कर अब आकाश को पार कर, उससे भी ऊपर सूक्ष्म वतन को भी पार करके पहुँच गई हूँ अपने प्यारे पिता के पास उनके स्वीट साइलेन्स होम में*। अपने इस साइलेन्स होम में आकर गहन शान्ति की अनुभूति में जैसे मैं
स्वयं को भी भूल गई हूँ। हर संकल्प, विकल्प से मुक्त एक अति सुंदर निरसंकल्प स्थिति में स्थित होकर मैं केवल अपने प्यारे प्रभु को निहार रही हूँ।

➳ _ ➳ 
बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे चारों और फैली हुई बहुत ही लुभायमान लग रही है और मन को असीम आनन्द से भरपूर कर रही हैं। *एक - एक किरण को बड़े प्यार से निहारते हुए, उन्हें छूने की मन में आश लिए मैं धीरे - धीरे बाबा के पास जाती हूँ और एक - एक किरण को बड़े प्यार से टच करती हूँ। बाबा की सर्वशक्तियों की किरणो को छूते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे हर किरण में से शान्ति की शीतल फ़ुहारों का झरना फूट रहा है और उन शीतल फ़ुहारों से निकलने वाले शान्ति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स मेरे रोम - रोम को शांति की शक्ति से भर रहें हैं*। साइलेन्स की शक्ति का बल स्वयं में भरकर, इस बल से माया को हराने के  लिए अब मैं वापिस अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ।

➳ _ ➳ 
अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, मुख में मुहलरा डालने की अपने सर्वशक्तिवान पिता द्वारा बताई युक्ति द्वारा अब मैं माया के वार से स्वयं को बचाने में सहज ही सफलता प्राप्त कर रही हूँ। माया अनेक प्रकार के रॉयल रूप धारण करके मेरे पास आती है किंतु मुझे मेरे शांत स्वधर्म में स्थित देख, मेरे साइलेन्स के बल को देख वापिस लौट जाती है। *अपने शांत स्वधर्म में सदा स्थित रहकर, शांति के सागर अपने प्यारे पिता के साथ सदा स्वयं को कम्बाइंड रखने से माया का कोई भी वार अब मेरे ऊपर अपना कोई भी प्रभाव नही डालता। मेरे सर्वशक्तिवान शिव पिता की सर्वशक्तियों का बल मुझे हर समय सर्व शक्तियों से भरपूर शक्तिशाली स्थिति का अनुभव करवाकर, मेरे चारों और हर समय एक शक्तिशाली सेफ्टी का किला बना कर मुझे माया से पूरी तरह सेफ रखता है*।

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं समय के महत्व को जानने वाली आत्मा हूँ।*
✺   *मैं स्वयं को सम्पन्न बनाने वाली आत्मा हूँ।*
✺   *मैं विश्व की आधारमूर्त आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺  *मैं स्वयं को संपन्न बनाने वाली आत्मा हूँ ।*
✺  *मैं विशाल कार्य में स्वतः सहयोगी बनने वाली आत्मा हूँ ।*
✺  *मैं आत्मा सर्वगुण सम्पन्न हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. बापदादा प्रत्यक्षता वर्ष के पहले इस वर्ष को 'सफलता भव का वर्ष' कहते हैं। *सफलता का आधार हर खजाने को सफल करना। सफल करो, सफलता प्राप्त करो। सफलता प्रत्यक्षता को स्वतः ही प्रत्यक्ष करेगी।* वाचा की सेवा बहुत अच्छी की लेकिन *अब सफलता के वरदान द्वारा बाप की, स्वयं की प्रत्यक्षता को समीप लाओ। हर एक ब्राह्मणों की जीवन में सर्व खजानों की सम्पन्नता का आत्माओं को अनुभव हो।* आजकल की आत्मायें आपके अनुभवी मूर्त द्वारा अनुभूति करने चाहती है। सुनने कम चाहती हैं, अनुभूति ज्यादा चाहती हैं। *'अनुभूति का आधार है - खजानों का जमा खाता'।* अभी सारे दिन में बीच-बीच में यह अपना चार्ट चेक करो, सर्व खजाने जमा कितने किये? *जमा का खाता निकालो, पोतामेल निकालो।* एक मिनट में कितने संकल्प चलते हैं? संकल्प की फास्ट गति है ना। कितने सफल हुए, कितने व्यर्थ हुए? कितने समर्थ रहे, कितने साधारण रहे?

 

 _ ➳  2. *अब ऐसे एवररेडी बनो जो हर संकल्प, हर सेकण्ड, हर श्वांस जो बीते वह वाह, वाह हो।* व्हाई नहीं हो, वाह, वाह हो। अभी कोई समय वाह-वाह होता है, कोई समय वाह के बजाए व्हाई हो जाता है। कोई समय बिन्दी लगाते हैं, कोई समय क्वेश्चन मार्क और आश्चर्य की मात्रा लग जाती है। *आप सबका मन भी कहे वाह! और जिसके भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हो, चाहे ब्राह्मणों के, चाहे सेवा करने वालों के वाह! वाह! शब्द निकले। अच्छा।*

 

✺   *ड्रिल :-  "सर्व खजानों को सफल करने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *पीस पार्क में बाबा की याद की छत्रछाया में बैठी मैं पीसफुल आत्मा बड़ी गहराई से बाबा के महावाक्यों पर मनन कर रही हूँ...* मैं पीसफुल आत्मा मनन की लगन में एक मगन अवस्था में स्थित हूँ... ज्ञान की एक-एक प्वाइंट पर बड़ी गहराई से मंथन कर रही हूँ... बाबा के कहे महावाक्य मन रुपी स्लेट पर प्रत्यक्ष हो रहे है... *"सफलता का आधार हर खजाने को सफल करना। सफल करो, सफलता प्राप्त करो"* मैं आत्मा बाबा से मिले सर्व अखूट खजानों को सामने लाती हूँ... *वाह बाबा वाह कितने सारे अखूट अविनाशी खजाने बाबा ने मुझ आत्मा को दिए है...* एक-एक खजाना अविनाशी है... *जितना बांटो उतना ही बढ़ता जाता है...*

 

 _ ➳  वाह कितने अखूट खजाने बाबा ने मुझ आत्मा को दिए है... *जिन्हें मुझ से कोई छीन नहीं सकता जो कभी खुटते नहीं है... मैं सर्व खजानों की मालिक आत्मा हूँ...* तभी मुझ आत्मा के कानों में बाबा के कहे महावाक्य गूंजने लगते है... *"सफलता का आधार हर खजाने को सफल करना"* तभी मैं आत्मा अन्तर्मन से प्रश्न करती हूँ... क्या मैं आत्मा बाबा से मिले हर खजाने को सफल कर हमेशा सफलता प्राप्त कर रही हूं ? *मैं आत्मा स्व चेकिंग करती हूँ... सारे दिन में, मैं आत्मा कितने खजाने जमा कर रही हूँ... कहीं कोई खजाना व्यर्थ तो नहीं जा रहा है ?* मैं आत्मा अपना पोतामेल निकाल रही हूँ... और अब मैं आत्मा देख रही हूँ स्वयं को मधुबन पांड़व भवन बाबा की कुटिया में...

 

 _ ➳  *सम्मुख ब्रह्मा बाबा और उनकी भृकुटि में शिव बाबा चमक रहे है... मैं आत्मा सच्चाई से बाबा को अपना खजानों के जमा खाते का पोतामेल दे रही हूँ...* बापदादा मुझे दृष्टि दे रहे है... बाबा की दृष्टि से निकलती शक्तिशाली अविरल धाराएं मुझ आत्मा में समा रही है... *बाबा ने अपना वरदानी हाथ मुझ आत्मा के सिर पर रख दिया है... बाबा मुझे "सफलतामूर्त भव" का वरदान दे रहे है... मैं आत्मा अन्तर्मन से इस वरदान को स्वीकार कर रही हूँ...* बाबा सर्व शक्तियों से मुझ आत्मा को भरपूर रहे है... *मैं आत्मा बेहद शक्तिशाली स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...* और बहुत हल्का फील कर रही हूँ...

 

 _ ➳  सर्व शक्तियों और वरदानों से भरपूर हो *मैं आत्मा अब देख रही हूँ... स्वयं को कर्मक्षेत्र पर शिव बाबा की याद में कर्म करते हुए... अब मैं आत्मा बाबा से मिले हर खजाने को सफल कर रही हूँ... और निरंतर सफलता प्राप्त कर रही हूँ...* मैं आत्मा एवररेडी बन हर संकल्प, हर सेकंड, हर श्वांस को मैं आत्मा सफल कर, वाह वाह कर रही हूँ... सफलता प्राप्त कर रही हूँ... *बाबा से मिला सफलता भव का वरदान प्रत्यक्ष हो रहा है... मैं आत्मा जिन भी आत्माओं के सम्पर्क में आ रही हूँ... वे सभी आत्माएँ मुझ आत्मा से सर्व खजानों की सम्पन्नता का अनुभव कर रही है...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा खजानों की मालिक खजानों से मालामाल आत्मा, *सभी आत्माओं को भी खजानों से मालामाल सम्पन्न बना रही हूँ... वे सभी भी वाह वाह के गीत गा रहे है... सभी सम्बन्ध-सम्पर्क में आने वाली आत्माएँ सन्तुष्ट हो रही है...* हर खजाने को सफल कर मैं आत्मा सफलता प्राप्त कर बाप की प्रत्यक्षता को समीप ला रही हूँ... *सफलता प्रत्यक्षता को स्वतः ही प्रत्यक्ष कर रही है... शुक्रिया मीठे बाबा शुक्रिया...*

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━