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 20 / 02 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सिर्फ एक बाप को याद किया ?*

 

➢➢ *मोहजीत बनकर रहे ?*

 

➢➢ *बाह्यमुखी चतुराई से मुक्त रहे ?*

 

➢➢ *मुख से सदा मीठे बोल बोले ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जितना अभी तन, मन, धन और समय लगाते हो, उससे *मन्सा शक्तियों द्वारा सेवा करने से बहुत थोड़े समय में सफलता ज्यादा मिलेगी।* अभी जो अपने प्रति कभी-कभी मेहनत करनी पड़ती है-अपनी नेचर को परिवर्तन करने की वा संगठन में चलने की वा सेवा में सफलता कभी कम देख दिलशिकस्त होने की, यह सब समाप्त हो जायेगी।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं सर्व बन्धनों से मुक्त डबल लाइट आत्मा हूँ"*

 

✧  सदा अपने को डबल लाइट अर्थात् सर्व बन्धनों से मुक्त हल्के समझते हो? हल्के-पन की निशानी क्या है? *हल्का सदा उड़ता रहेगा। बोझ नीचे ले आता है। सदा स्वयं को बाप के हवाले करने वाले सदा हल्के रहेंगे।*

 

✧  *अपनी जिम्मेवारी बाप को दे दो अर्थात अपना बोझ बाप को दे दो तो स्वयं हल्के हो जायेंगे। बुद्धि से सरेन्डर हो जाओ। अगर बुद्धि से सरेन्डर होंगे तो और कोई बात बुद्धि में नहीं आयेगी।*

 

  *बस सब कुछ बाप का है, सब कुछ बाप में है तो और कुछ रहा ही नहीं। जब रहा ही नहीं तो बुद्धि कहाँ जायेगी कोई पुरानी गली, पुराने रास्ते रह तो नहीं गये हैं! बस एक बाप, एक ही याद का रास्ता, इसी रास्ते से मंजिल पर पहुँचो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  बापदादा बच्चों के निमित बन नि:स्वार्थ विश्व सेवा को देख खुश होते हैं। *बापदादा करावनहार हो, करनहार बच्चों के हर कदम को देख खुश होते हैं क्योंकि सेवा की सफलता का विशेष अधार ही है - करावनहार बाप मुझ करनहार आत्मा द्वारा करा रहा है।*

 

✧  *मैं आत्मा निमित हूँ क्योंकि निमित भाव से निर्मान स्थिति स्वतः हो जाती है।* मैं-पन जो देहभान में लाता है वह स्वतः निर्मान भाव से समाप्त हो जाता है।

 

✧  *इस ब्राह्मण जीवन में सबसे ज्यादा विघ्न रूप बनता है तो देहभान का मैं-पना करावनहार करा रहा है, मैं निमित करनहार बन कर रहा हूँ, तो सहज देह-अभिमान मुक्त बन जाते हैं और जीवनमुक्ति का मजा अनुभव करते हैं।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  अब मास्टर सर्वशक्तिवान का नशा कम रहता है, इसलिए एक सेकण्ड में आवाज़ में आना, एक सेकण्ड में आवाज़ से परे हो जाना इस शक्ति की प्रैक्टिकल-झलक चेहरे पर नहीं देखते। जब ऐसी अवस्था हो जायेगी, *अभी-अभी आवाज़ में, अभी-अभी आवाज़ से परे। यह अभ्यास सरल और सहज हो जायेगा तब समझो सम्पूर्णता आई है। सम्पूर्ण स्टेज की निशानी यह है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  खुदाई खिदमतगार बनना"*

➳ _ ➳  *ओम शान्ति सेण्टर में बैठी मैं आत्मा बाबा के गीतों पर झूमते हुए बाबा के प्यार में खो जाती हूँ... प्यारे बाबा दीदी के मस्तक में विराजमान होकर मीठी मुरली सुना रहे हैं... बाबा के आते ही चारों ओर लाल प्रकाश छा गया है...* परमधाम जैसा नज़ारा अनुभव कर रही हूँ... सिर्फ मैं और मेरा बाबा दिख रहे हैं... सुप्रीम टीचर मुझे सेवा का महत्व समझा रहे हैं... मैं आत्मा गॉडली स्टूडेंट के स्वमान बैठकर बाबा की ज्ञान मुरली को सुन रही हूँ...
 
❉  *खुद खुदा अपनी खुदाई जादू मुझ पर बिखरते हुए कहते हैं:-* "मेरे मीठे बच्चे... खुदाई खिदमतगार बच्चे हो तो सफलता तो कदमो में बिखरी पड़ी है... *याद और सेवा से सारे कार्य सिद्ध हो जाते है... महा भाग्यशाली हो की ईश्वर पिता के सहयोगी हो...* तो इस महान नशे को यादो में प्रतिपल गहरा करो... की ईश्वर पिता हर कदम पर मेरा साथी है... और फिर कदम उठाओ तो जादू हुआ पड़ा है..."
 
➳ _ ➳  *मैं आत्मा प्यारे बाबा की राईट हैण्ड होने का अनुभव करती हुई कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा के साथ से सफल हो रही हूँ... *बाबा के हाथ और साथ से विजयी बन मुस्करा रही हूँ... खुदा मेरी बाँहो में है और मै सेवाओ के शिखर छूती जा रही हूँ..."*
 
❉  *मेरे प्यारे बाबा सेवाओं के सफलता की चाबी मुझे देते हुए कहते है:-* "मीठे प्यारे बच्चे... जब भगवान आसमान छोड़ धरती पर आ गया है तो अकेले भटकना क्यों... यूँ मायूस होकर फिर जीना क्यों... साथी बनाकर देखो जरा... *यादो में डूबकर अधिकार जमा कर देखो जरा... खुदाई जादू आजमा कर देखो जरा... सफलताओ के पहाड़ो पर विजयी पताका लिए सदा का मुस्कराओगे..."*

➳ _ ➳  *मैं आत्मा विश्व कल्याण के स्टेज पर सफलता का झन्डा लहराते हुए कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा भगवान को साथ लेकर उड़ रही हूँ सफल हूँ विजेता हूँ इस नशे से भर गई हूँ... *बाबा को साथ लिए सबके जीवन को सुंदर बना रही हूँ... चारो ओर खुशियो भरे फूल खिला रही हूँ..."*
 
❉  *करन करावनहार मेरे बाबा मुझे सारे फिक्रों से फारिग करते हुए कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... सारे बोझ बाबा को दे चलो... और हल्के होकर उड़ते रहो... अभिमान और अपमान के जाल में न फंसो... पिता की मीठी यादो में जीकर न्यारे और प्यारे बनो... *एक बाबा और न कोई के नशे में डूब जाओ... निमित्त बन पार्ट बजाओ... ईश्वरीय सेवा है... सारी फ़िक्र मीठे बाबा की है... आप याद के आनन्द में भीगे कदम सुख की हवाओ में उठाओ..."*
 
➳ _ ➳  *मैं आत्मा खुदाई जादूगरी के समुन्दर में गोते लगाती हुई कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा खुशियो के परम् आनन्द में हूँ... निमित्त हूँ विघ्नो से मुक्त हूँ... और ईश्वरीय सेवाओ में न्यारी प्यारी हूँ...* इस नशे में गहरे समा रही हूँ... आपके मीठे साथ से उन्मुक्त हो खुशियो के आसमान में उड़ रही हूँ..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- कोई भी देहधारी से लगाव नही रखना है*"

➳ _ ➳  अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ मैं फरिश्ता अपनी साकार देह से बाहर आता हूँ ओर ऊपर आकाश की ओर उड़ जाता हूँ। *साकारी दुनिया के हर नज़ारे को साक्षी होकर देखता हुआ मैं सारे विश्व का चक्कर लगाते हुए एक श्मशान के ऊपर से गुजरता हुआ, वहां जल रही चिताओं को देख नीचे उतरता हूँ और श्मशान के अंदर प्रवेश कर जाता हूँ*। मैं देखता हूँ एक अर्थी को उठाये कुछ मनुष्य उस श्मशान भूमि में प्रवेश करते हैं और उसे जमीन पर रख उस पर लकड़ियों का ढ़ेर लगाकर उसे अग्नि देकर उसका दाह संस्कार कर वापिस लौट जाते हैं। वहाँ खड़ा ऐसे ही ना जाने कितने मृत शरीरों को मैं अग्नि में जलते देख रहा हूँ। 
➳ _ ➳  इस दृश्य को देख मैं उस श्मशान भूमि से बाहर आता हूँ और मन ही मन विचार करता हूँ कि जिन देह के सम्बन्धियों से प्रीत निभाने के लिए मनुष्य अपने पूरा जीवन लगा देता है, उनके मोह में फंस कर कितने विकर्म करता है उसके वही सम्बन्धी उसके मरते ही उससे हर सम्बन्ध तोड़, उसे अग्नि देकर कैसे वापिस लौट जाते हैं। *इस श्मशान से आगे की यात्रा तो आत्मा को अकेले ही तय करनी होती है। केवल श्मशान तक साथ देने वाले इन देह के सम्बन्धियों से दिल लगाकर हर मनुष्य कैसे अपने आप को ठग रहा है*! इस बात से भी बेचारे मनुष्य कितने अनजान है कि इस नश्वर संसार में अगर कोई प्रीत की रीत निभा सकता है तो वो केवल एक निराकार परमात्मा है, कोई देहधारी नही।

➳ _ ➳  मन ही मन अपने आप से बातें करता मैं फ़रिश्ता अपने श्रेष्ठ भाग्य के बारे में विचार कर हर्षित होता हूँ कि कितना महान सौभाग्य है मेरा जो सर्व सम्बन्धों से भगवान ने मुझे अपना बना लिया। *इसलिए दिल को आराम देने वाले अपने दिलाराम बाबा से मैं मन ही मन प्रोमिस करता हूँ कि किसी भी देहधारी से दिल ना लगाते हुए, केवल अपने दिलाराम बाबा से ही मैं दिल की प्रीत रखूँगा और उस प्रीत की रीत निभाने में कभी कोई कमी नही आने दूँगा*। स्वयं से और अपने प्यारे मीठे बाबा से प्रोमिस करके दिल को सुकून देने वाले अपने दिलाराम बाबा को मैं याद करते ही महसूस करता हूँ जैसे मेरे दिलाराम बाबा अपने स्नेह की मीठी फुहारे मुझ पर बरसाते हुए, अपने लाइट माइट स्वरूप में मेरे सामने आकर उपस्थित हो गए हैं।

➳ _ ➳  अपने हाथ मे मेरा हाथ थामे मेरे मीठे बाबा अब मुझे अपने अव्यक्त वतन की ओर ले कर जा रहें हैं। बापदादा के साथ, प्रकृति के खूबसूरत नजारों का आनन्द लेता हुआ उनका हाथ थामे मैं ऊपर आकाश को पार करता हुआ, उससे भी ऊपर उड़ते हुए बापदादा के साथ सूक्ष्म वतन में पहुँचता हूँ।
*अपने प्यारे बापदादा के पास बैठ, उनके नयनों में समाये अथाह प्यार के सागर में डुबकी लगाकर, उनका असीम प्यार पाकर , और उनसे सर्व सम्बन्धो का अविनाशी सुख लेकर अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होकर मैं चमकती हुई मस्तक मणि अब अपने अति सूक्ष्म ज्योति बिंदु स्वरूप को धारण कर, अब सूक्ष्म वतन से ऊपर अपने परमधाम घर की ओर चल पड़ती हूँ*।

➳ _ ➳  अपने इस परमधाम घर में पहुँच कर, यहाँ चारों और फैले अथाह शान्ति के वायब्रेशन्स को अपने अंदर गहराई तक समाती हुई, गहन शांति की अनुभूति करके  *मैं धीरे - धीरे अपने दिलाराम बाबा के पास पहुँचती हूँ और उनके समीप पहुँच कर जैसे ही मैं उन्हें टच करती हूँ उनकी शक्तियों का शीतल झरना मुझ आत्मा के ऊपर बरसने लगता है औऱ मुझे असीम आनन्द देने के साथ - साथ असीम शक्ति से भरपूर कर देता है*। अपने दिलाराम बाबा की किरणों को बार - बार छूते हुए, उनके प्यार का सुखद अनुभव करके मैं आत्मा वापिस सृष्टि ड्रामा पर अपना पार्ट बजाने के लिए अब परमधाम से नीचे आ जाती हूँ। 

➳ _ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अपने दिलाराम बाबा के निस्वार्थ प्यार की छाप को अपने दिल दर्पण पर अंकित कर, उस प्यार के मधुर अहसास को घड़ी - घड़ी याद कर, अब मैं अपने दिलाराम बाबा के प्यार के झूले में हर पल झूल रही हूँ। *देह और देह की दुनिया मे रहते हुए, देह के सम्बन्धों से ममत्व निकाल, अब किसी भी देहधारी से दिल ना लगाते हुए, सर्व सम्बन्धों का सुख अपने दिलाराम बाबा से लेते हुए,
अतीन्द्रीय सुख का सुखद अनुभव मैं हर समय कर रही हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं बाह्यमुखी चतुराई से मुक्त्त रहने वाली आत्मा हूँ।*
✺   *मैं बाप पसंद आत्मा हूँ।*
✺   *मैं सच्ची सौदागर आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺  *मैं आत्मा सर्व का स्नेह प्राप्त करती हूँ ।*
✺  *मैं आत्मा मुख से सदा मीठे बोल बोलती हूँ ।*
✺  *मैं स्नेही आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बाप आपकी हर सेवा में सहयोग देने वाले हैं *बापदादा सभी बच्चों को कहते हैं कि आप सभी 'आप और बाप' कम्बाइण्ड हैं। तो कम्बाइण्ड हैं तो सिंगल हुए क्या*? लौकिक जीवन अलग चीज है, लेकिन ब्राह्मण जीवन में कम्बाइण्ड रूप में हो। *ऐसे कम्बाइण्ड हो जो कोई भी अलग नहीं कर सकता*। ऐसे कम्बाइण्ड हो ना? या अकेले हो? कम्बाइण्ड हो। *सदा बाप हर कार्य में सहयोगी हैं, साथी हैं*। यह नशा रहता है ना? *कभी अपने को अकेले तो नहीं समझते? कभी-कभी समझते हो*? नहीं। पहले *बापदादा आप सबका साथी है और अविनाशी साथ निभाने वाले है। बाबा कहा और बाबा हाजिर है। कहते हैं हजूर सदा हाजिर है। तो मौज में रहते हो ना*? उदास तो नहीं होते? होते हैं? हाँ ना नहीं करते? उदास तो नहीं है ना? मौज में रहते हो ना! *मौज ही मौज है, हम बाप के, बाप हमारे*। *बाप आपकी हर सेवा में सहयोग देने वाले हैं। इसलिए इसी रूहानी नशे में सदा रहना* - हम कम्बाइण्ड हैं। कम्बाइण्ड हैं ना? बहुत अच्छे रूहानी नशे वाले हैं। नशा है ना? बापदादा को अति प्रिय से भी प्रिय हैं।

 

✺   *ड्रिल :-  "सदा कम्बाइण्ड स्वरूप के रूहानी नशे में रहने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *फूल और खूशबू... सागर और लहरें... बादल और बरखा... सूरज और धूप जैसे कम्बाइंड है, वैसे ही संगम पर शिव से कम्बाइंड मैं शिव शक्ति*... उनकी सारी शक्तियाँ और गुण मेरी अमानतें है... मैं आत्मा भृकुटी तख्त पर कम्बाइन्ड रूप में... दूर दूर तक फैलता आत्मिक गुणों का प्रकाश... और इस प्रकाश की परिधि में आने वाली हर आत्मा सुख शान्ति और पवित्रता की गहरी अनुभूति कर रही है... मुझ आत्मा का अविनाशी सहारा, अविनाशी साथी... हर पल  हर सेवा में मेरा सहयोगी...

 

 _ ➳  उस रूहानी माशूक के संग के नशे में चूर मैं आत्मा... मेरे हर सकंल्प, हर बोल, हर कर्म में रूहानियत... *धडकनों में बाबा शब्द की सरगम साफ साफ सुनाई दे रही है*... और देख रही हूँ... फरिश्ता स्वरूप बापदादा को... *जो मेरे सम्मुख खडे हो गये है मेरे धडकनों की आवाज सुनकर*... मुस्कुराते हुए आगे बढकर मेरे सर पर हाथ रख दिया है उन्होनें... *उनके हाथों का  ये कोमल स्पर्श हर उदासी से, हर रंजो गम से बेपरवाह कर रहा है, मुझे*...

 

 _ ➳  *सदा मौजों में रहने का वरदान दे रहे है बाबा मुझे*... वरदान की शक्तियों को स्वयं में समाती जा रही हूँ मैं... रूहानी नशे में चूर, मैं बिन्दु रूप में सिमटती जा रही हूँ... *मैं आत्मा जा पहुँची हूँ परमधाम में*... एक एक आत्मा मणि को बेहद ध्यान से देखती हुई... *चमकती हुई हर आत्मा अपने अपने सैक्शन में*... अपनी पवित्रता का प्रकाश फैलाती हुई... दूर दूर तक शान्ति का अटल साम्राज्य...

 

 _ ➳  *हर आत्मा को बेहद करीब से अनुभव करती हुई... मैं देख रही हूँ शिव बिन्दु को*... मन की आँखों से उनके स्नेह का पान करती हुई मैं एकदम उनके करीब आकर कुछ पल के लिए स्थिर हो गयी हूँ... *झरने के नीचे जैसे घट रख दिया हो किसी ने... उनके पावन से स्नेह से स्वयं को भरपूर करती हुई... उन्ही का स्वरूप बनती जा रही हूँ... और अब उनके स्नेह का आकर्षण मुझे खींच रहा है अपनी ओर... मैं बूँद समाती जा रही हूँ उस सागर में...*

 

 _ ➳  *देर तक कम्बाइंड स्वरूप की गहरी अनुभूति*... और अब मैं आत्मा अपने गहरे अनुभवों के साथ, लौट रही हूँ साकार तन और साकारी दुनिया की ओर... *देह में अवतरित मैं आत्मा अब भी कम्बाइंड स्वरूप की गहरी और ठहरी अनुभूतियों के साथ*... शिव शक्ति के रूप में बापदादा का हर सेवा में सहयोग अनुभव कर रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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