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 06 / 03 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बाप की याद से आपार सुखों का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *भोलेनाथ बाप से अपनी झोली भरी ?*

 

➢➢ *तीन प्रकार की विजय का मैडल प्राप्त किया ?*

 

➢➢ *स्वयं की कर्मेन्द्रियों पर सम्पूरण राज्य किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  यह परमात्म प्यार की डोर दूर-दूर से खींच कर ले आती है। *यह ऐसा सुखदाई प्यार है जो इस प्यार में एक सेकण्ड भी खो जाओ तो अनेक दु:ख भूल जायेंगे और सदा के लिए सुख के झूले में झूलने लगेंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बाप के समीप रत्न हूँ"*

 

  सदा अपने को बाप के समीप रत्न समझते हो? जितना दूर रहते, देश से दूर भले हो लेकिन दिल से नजदीक हो। ऐसे अनुभव होता है ना। *जो सदा याद में रहते हैं, याद समीप अनुभव कराती है। सहज योगी हो ना। जब बाबा कहा तो 'बाबा' शब्द ही सहज योगी बना देता है। 'बाबा' शब्द जादू का शब्द है। जादू की चीज बिना मेहनत के प्राप्ति कराती है।*

 

  *आप सभी को जो भी चाहिए - सुख चाहिए, शान्ति चाहिए, शक्ति चाहिए जो भी चाहिए 'बाबा' शब्द कहेंगे तो सब मिल जायेगा। ऐसा अनुभव है!* बापदादा भी, बिछुड़े हुए बच्चे जो फिर से आकर मिले हैं, ऐसे बच्चों को देख खुश होते हैं। ज्यादा खुशी किसको? आपको है या बाप को?

 

  बापदादा सदा हर बच्चे की विशेषता सिमरण करते हैं। कितने लकी हो। अनुभव करते हो कि बाप हमको याद करते हैं? *सभी अपनी-अपनी विशेषता में विशेष आत्मा हो। यह विशेषता तो सभी की है - जो दूर देश में होते, दूसरे धर्म में जाकर फिर भी बाप को पहचान लिया। तो इस विशेष संस्कार से विशेष आत्मा हो गये।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *एकाग्रता की शक्ति विशेष संस्कार भस्म करने में आवश्यक है।* जिस स्वरूप में एकाग्र होने चाहो, जितना समय एकाग्र होने चाहो, ऐसी एकाग्रता संकल्प किया और भस्म। इसको कहा जाता है योग अग्नि। नाम-निशान समाप्त मारने में फिर भी लाश तो रहता है ना!

 

✧  *भस्म होने के बाद नाम निशान खत्मा तो इस वर्ष योग को पॉवरफुल स्टेज में लाओ।* जिस स्वरूप में रहने चाहो मास्टर सर्वशक्तिवान, ऑर्डर करो। समाप्त करने की शक्ति आपके ऑर्डर नहीं माने, यह हो नहीं सकता। मालिक हो, मास्टर कहलाते हो ना! तो मास्टर ऑर्डर करे और शक्ति हाजिर नहीं हो तो क्या वह मास्टर है?

 

✧  तो बापदादा ने देखा कि पुराने संस्कार का कुछ न कुछ अंश अभी भी रहा हुआ है और वह अंश बीच-बीच में वंश भी पैदा कर देता है, जो कर्म तक भी काम हो जाता है। युद्ध करनी पडती है। तो बापदादा बच्चों का समय प्रमाण युद्ध का स्वरूप भाता नहीं है। *बापदादा हर बच्चे को मालिक के रूप में देखने चाहता है।* ऑर्डर करो जी हजूर।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *ऐसे ट्रान्सपेरेंट हो जाओ जो अपकी शरीर के अन्दर जो आत्मा विराजमान है वह स्पष्ट सभी को दिखाई दे। आपका आत्मिक स्वरूप उन्हों को अपने आत्मिक स्वरूप का साक्षात्कार कराए।* इसको ही कहते हैं अव्यक्ती व आत्मिक स्थिति का अनुभव करना ।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अविनाशी ज्ञान रत्नों की कमाई जमा करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा भृकुटी सिहांसन पर चमकती हुए मणि इस देह से निकलकर पहुँच जाती हूँ वतन में... पारसनाथ बाबा के पास... पारसनाथ बाबा के हाथों से निकलती सुनहरी किरणों से मुझ आत्मा के लौह समान विकारी संस्कार... सुनहरे दिव्य संस्कारों में परिवर्तित हो रहे हैं...* अविनाशी बाबा, मुझ अविनाशी आत्मा की झोली को अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर कर रहे हैं...

 

  *प्यारे ज्ञान सागर बाबा ज्ञान की लहरों में मुझे लहराते हुए कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... *यह ज्ञान ही सारे सुखो का सच्चा आधार है इसलिए इस ज्ञान धन से सदा धनवान् रहो... और यह अमीरी हर दिल पर दिल खोल कर लुटाओ...* ज्ञान की यह दौलत भविष्य में विश्व का अधिकारी सा सजाएगी...

 

_ ➳  *मैं आत्मा एक-एक ज्ञान रत्न को संजोकर दूसरों की झोली भरते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी मुरली की दीवानी हो गयी हूँ... *यह मधुर तान सुनाकर हर दिल को खुशियो की दौलत में लबालब कर रही हूँ... और स्वयं भी भरपूर होकर सुनहरे सुखो की अधिकारी हो रही हूँ...”*

 

  *ज्ञान की रोशनी से मेरे जीवन को जगमगाते हुए मीठे रूहानी बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ज्ञान की मीठी कूक से सदा कूकते रहो... *सबके जीवन में इस ज्ञान झनकार की खुशियाँ बिखरते रहो... ज्ञान रत्नों से अपना दामन सदा भरपूर करो... सबके दिल आँगन को मुस्कराहटों का रंग देते रहो...* और विश्व धरा को अपनी बाँहों में पाओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा ज्ञान रत्नों से अपना श्रृंगार कर आनंद मगन होकर कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *स्वयं भगवान को सम्मुख देख उनके श्रीमुख से ज्ञान रत्नों को पाकर कितनी धनी हो गयी हूँ...* सारे दुखो से मुक्त होकर... ख़ुशी और आनंद से भरा जीवन जीने वाली महा सौभाग्यशाली मै आत्मा बन गयी हूँ...

 

  *ज्ञान संजीवनी की खुशबू से मुझ आत्मा को महकाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देह की झूठी दुनिया से व्यर्थ की बातो से प्यार कर जीवन को दुखो का पर्याय बना बैठे... अब जो ईश्वर पिता मिला है तो सच्चे प्यार की महक से भर जाओ... *सच्चे ईश्वरीय ज्ञान को दिल में समालो और इसकी खुशबु से सबको मन्त्रमुग्ध कर दो... यही रत्न विश्व धरा पर राज्याधिकारी बनाएंगे...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा सच्ची कमाई से मालामाल होकर औरों पर भी ज्ञान धन लुटाते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में कितनी खुबसूरत कितनी प्यारी कितनी धनवान् और कितनी निराली हो गयी हूँ... *मेरे पास अथाह ईश्वरीय दौलत है और मै आत्मा सबके दामन में यह दौलत भरती जा रही हूँ... मेरे साथ पूरा विश्व इस अमीरी को पाकर मुस्करा उठा है...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  याद को अग्नि का रूप दे आत्मा को सतोप्रधान बनाना है*"

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अपनी लाइट की सूक्ष्म आकारी देह के साथ मैं फ़रिश्ता अपनी साकारी देह से बाहर निकलता हूँ और ऊपर आकाश की ओर उड़ जाता हूँ। सारे विश्व का चक्कर लगाता हुआ मैं फ़रिश्ता एक अस्पताल के ऊपर से गुजरता हूँ और कुछ विचार कर उस अस्पताल के अंदर प्रवेश कर जाता हूँ। *यहाँ - वहाँ, जहाँ - तहाँ भयंकर बीमारियों से पीड़ित रोगियों को चीखते - चिल्लाते, रोते - बिलखते देख, बापदादा का आह्वान कर, उन्हें मनसा सकाश द्वारा राहत पहुँचा कर मैं फ़रिश्ता अस्पताल से बाहर आ जाता हूँ* और थोड़ी देर के लिए एक एकांत स्थान पर बैठ मैं विचार करता हूँ कि कितना दुख है आज की इस कलयुगी दुनिया में जहाँ ऐसे - ऐसे असाध्य रोगों से मनुष्य पीड़ित हो चुके हैं जिनका कोई इलाज भी नही! कितने दर्द से गुजर रहें हैं इन बीमारियों से पीड़ित ये सभी मनुष्य।

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रावण की दुखदाई दुनिया के ऐसे दुखदाई दृश्य को देखते - देखते अचानक उस सुखदाई दुनिया का दृश्य आंखों के सामने उभर आता है जहाँ ना कोई अस्पताल होगा और ना कभी कोई मनुष्य बीमार होगा। *ऐसी सुखदाई दुनिया स्थापन करने के लिए ही तो भगवान स्वयं इस धरती पर आए हैं और आ कर योग अग्नि से विकर्मो को दग्ध कर, सदा के लिए सब बीमारियों से मुक्त होने का कितना सहज रास्ता बता रहें हैं*! कितनी महान सौभाग्य शाली हैं वो सभी ब्राह्मण आत्मायें जिन्होंने भगवान को पहचाना है और उनके बताये रास्ते पर चल, योग अग्नि से अपने विकर्मो को दग्ध कर, सदा के लिए सब बीमारियो से मुक्त होने का सहज पुरुषार्थ कर रहें हैं। *मन ही मन यह विचार करता मैं फ़रिश्ता अब फिर से उड़ान भरता हुआ ऊपर आकाश की ओर उड़ जाता हूँ*।

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एक ही पल में आकाश को पार कर, उससे ऊपर उड़ता हुआ मैं फ़रिश्ता अपनी फरिश्तो की दुनिया मे पहुँच जाता हूँ। चाँदनी जैसे सफेद प्रकाश से प्रकाशित *अव्यक्त बापदादा की यह अलौकिक आकारी दुनिया जहाँ सभी ब्राह्मण सो फ़रिश्ता बच्चे अपने सम्पूर्णता के लक्ष्य को पाने के लिए, प्यारे बापदादा की अव्यक्त पालना लेने के लिए आते हैं और स्वयं में असीम बल भर कर जाते हैं*। फरिश्तो की इस आकारी दुनिया मे पहुँच कर मैं फरिश्ता अब अपने प्यारे बापदादा के पास जाता हूँ और उनकी बाहों में समाकर, उनका असीम स्नेह और उनकी ममतामई गोद का असीम सुख पाकर, अपने लाइट के फरिश्ता स्वरूप को बदली कर, अपने निराकर स्वरूप को धारण करता हूँ। 

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एक चमकता हुआ चैतन्य सितारा बन मैं सूक्ष्म वतन से ऊपर अपनी निराकारी दुनिया की ओर चल पड़ता हूँ। आत्माओ की  निराकारी दुनिया अपने शिव पिता के इस परमधाम घर में आकर मैं आत्मा गहन विश्राम की अवस्था में पहुँच जाती हूँ। *हर संकल्प, विकल्प से मुक्त यह शान्तमयी अवस्था मुझे अथाह शान्ति की अनुभूति करवा रही है*। गहन शान्ति की गहन अनुभूति करके, तृप्त होकर अब मैं चैतन्य ज्योति अपने विकर्मो को दग्ध करने के लिए, महाज्योति अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की ज्वालास्वरूप किरणों के आगे जाकर बैठ जाती हूँ।

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इन ज्वालास्वरूप किरणों से निकल रही योग अग्नि में मैं आत्मा स्वयं को तपता हुआ महसूस कर रही हूँ। *63 जन्मो के विकर्म और पुराने स्वभाव संस्कार इस योग अग्नि में जल कर भस्म हो रहें हैं। जैसे - जैसे विकारों की कट मुझ आत्मा के ऊपर से उतर रही है मेरा स्वरूप अति प्रकाशमय होता जा रहा है*। मैं शुद्ध और पवित्र बनती जा रही हूँ। स्वयं को मैं डबल लाइट अनुभव कर रही हूँ। और इसी डबल लाइट अवस्था में मैं आत्मा अब वापिस अपने कर्मक्षेत्र पर लौट रही हूँ। 

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अपने साकार शरीर मे प्रवेश कर, भृकुटि के अकाल तख्त पर बैठ, फिर से कर्मेन्द्रियों का आधार ले, हर कर्म करते, *अपने प्यारे पिता के साथ अपने मनबुद्धि को जोड़ कर, योग अग्नि से अपने विकर्मो को दग्ध कर, सब बीमारियों से सदा के लिए मुक्त होने का अब मैं सहज पुरुषार्थ कर रही हूँ। कर्म योग से अपने हर कर्मभोग को चुकतू कर, मैं सदा के लिए एवर हेल्दी, वेल्दी और हैपी बन रही हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं तीन प्रकार की विजय का मैंडल प्राप्त करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सदा विजयी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

  *मैं आत्मा स्वयं की कर्मेन्द्रियों पर सम्पूर्ण राज्य करती हूँ ।*

  *मैं आत्मा सच्चा राजयोगी हूँ ।*

  *मैं आत्मा स्वराज्य अधिकारी हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  ब्राह्मणों के दृढ़ संकल्प में बहुत शक्ति है... अगर ब्राह्मण दृढ़ संकल्प करें तो क्या नहीं हो सकता! सब हो जायेगा सिर्फ योग को ज्वाला रूप बनाओ... *योग ज्वाला रूप बन जायेगा तो ज्वाला के पीछे आत्मायें स्वतः ही आ जायेंगी क्योंकि ज्वाला (लाइट) मिलने से उन्हों को रास्ता दिखाई देगा...* अभी योग तो लगा रहे हैं लेकिन योग ज्वाला रूप होना है... सेवा का उमंग-उत्साह अच्छा बढ़ रहा है लेकिन योग में ज्वाला रूप अभी अण्डरलाइन करनी है... *आपकी दृष्टि में ऐसी झलक आ जाए तो दृष्टि से कोई न कोई अनुभूति का अनुभव करें...*

 

 

✺   *ड्रिल :-  "ब्राह्मणों के दृढ़ संकल्प की शक्ति का अनुभव"*

 

 _ ➳  शांति के सागर अपने शिव पिता की याद में बैठी मैं गहन शान्ति का आनन्द ले रही हूँ... और उसी गहन शान्ति की स्थिति में मैं अनुभव करती हूँ कि जैसे अनेकों आत्माओं की रोने, चिल्लाने की आवाज़ें मेरे कानों में सुनाई देने लगी है... उन आवाजों के साथ एक पीड़ादायक दृश्य मुझे दिखाई देता है... *मैं देख रही हूँ सारे विश्व की आत्मायें, प्रकृति से, वायुमण्डल से, अपने सम्बन्धियों से, अपने मन के कमजोर संस्कारों से, बीमारियों से पीड़ित हो कर तड़प रही हैं...* सुख शांति की एक अंचली की तलाश में भटक रही हैं, रो रही है, चिल्ला रही हैं...

 

 _ ➳  इस दृश्य को देखते - देखते एकाएक जैसे कानों में बापदादा की अव्यक्त आवाज सुनाई देती है... उन दृश्य से जैसे ही मैं ध्यान हटाती हूँ अपने सामने बापदादा को देखती हूँ जो मुझे अपने साथ चलने का इशारा कर रहें हैं... बाबा अपना हाथ आगे बढ़ाते हैं... बाबा के हाथ मे मैं जैसे ही अपना हाथ रखती हूँ, मेरा ब्राह्मण स्वरूप लाइट के फ़रिशता स्वरूप में बदल जाता है और *बाबा का हाथ थामे मैं फ़रिशता बाबा के साथ चल पड़ता हूँ... बाबा के साथ चलते - चलते मैं वही सब दृश्य फिर से देख रहा हूँ... हर तरफ चीखते - चिल्लाते शांति की तलाश में भटकते मनुष्य दिखाई दे रहें हैं...*

 

 _ ➳  इन सभी दृश्यों को देखते - देखते बाबा मुझे एक ऐसे स्थान पर ले आते हैं जहां बहुत सारी ब्राह्मण आत्मायें पहले से ही उपस्थित हैं... मैं भी अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर उन सभी ब्राह्मण आत्माओं के पास जा कर बैठ जाती हूँ... *बाबा सभी ब्राह्मण बच्चों को सम्बोधित करते हुए फ़रमान करते हैं:- "सभी योग को ज्वाला स्वरूप बनाओ और शांति के एक ही संकल्प में स्थित हो जाओ"...* देखते ही देखते सभी शांति के एक ही दृढ़ संकल्प में स्थित हो जाते हैं और बाबा की याद में बैठ जाते हैं... सेकण्ड में शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन से पूरा स्थान भर जाता है... और धीरे - धीरे शांति के वो शक्तिशाली वायब्रेशन दूर - दूर तक फैल जाते हैं...

 

 _ ➳  अब मैं देख रही हूँ उन सभी तड़पती हुई अशांत आत्माओं को जो शांति के उन शक्तिशाली वायब्रेशन से आकर्षित हो कर,भाग - भाग कर उस स्थान पर आ कर एकत्रित हो रही हैं... *ऐसा लग रहा है जैसे ब्राह्मणों के दृढ़ संकल्प और जवालस्वरूप योग से यह स्थान एक विशाल शांति कुंड बन गया है और शांति की शक्ति चारों तरफ फैल कर सबको शान्ति का अनुभव करवा रही है...* बाबा की याद में बैठी सभी ब्राह्मण आत्मायें शांतिस्वरूप की चुम्बक बन सभी दुखी और अशांत आत्माओं को अपनी ओर खींच रही हैं... सबके मुख से यही निकल रहा है कि केवल यहां से ही शांति मिलेगी... शांति की अंचली पा कर अब सभी आत्मायें शांति की अनुभूति करके, प्रसन्न हो कर वापिस लौट रही हैं...

 

 _ ➳  बापदादा अब सभी ब्राह्मण आत्माओं को संकल्पो की दृढ़ता पर विशेष अटेंशन खिंचवाते हुए हर ब्राह्मण आत्मा को अपनी सर्वशक्तियों और वरदानों से भरपूर कर रहें हैं... सभी ब्राह्मण आत्मायें बापदादा से सर्वशक्तियाँ और वरदान ले कर अब अपने सेवा स्थलों पर वापिस लौट रहे हैं... मैं भी अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित अब वापिस अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ... इस बात को सदा स्मृति में रखते हुए कि *"ब्राह्मणों के दृढ़ संकल्प में बहुत शक्ति है" अब मैं अपने संकल्पो को शुभ और श्रेष्ठ बना कर, अपनी मनसा शक्ति से, वृति से अपने सम्बन्ध, सम्पर्क में आने वाली सभी दुखी और अशांत आत्माओं को शांति की अनुभूति करवा रही हूँ...* और साथ ही साथ योग को जवालस्वरूप बनाने का दृढ़ संकल्प कर अब मैं याद की यात्रा पर निरन्तर आगे बढ़ रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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