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 24 / 02 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *ज्ञानवान और योगी आत्माओं का ही संग किया ?*

 

➢➢ *मैं पन का त्याग कर निरहंकारी बन रूहानी सेवा की ?*

 

➢➢ *अपने फ़रिश्ते स्वरुप द्वारा सर्व को वर्से का ?*

 

➢➢ *औरों के मन के भावो को जानने के लिए मनमनाभव की स्थिति में स्थित रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जितना स्वयं को मन्सा सेवा में बिजी रखेंगे उतना सहज मायाजीत बन जायेंगे। *सिर्फ स्वयं के प्रति भावुक नहीं बनो लेकिन औरों को भी शुभ भावना और शुभ कामना द्वारा परिवर्तित करने की सेवा करो। भावना और ज्ञान, स्नेह और योग दोनों का बैलेन्स हो। कल्याणकारी तो बने हो अब बेहद विश्व कल्याणकारी बनो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं हीरो पार्टधारी हूँ"*

 

✧  *अपने को सदा हीरो पार्टधारी समझते हुए हर कर्म करो।*

 

  *जो हीरो पार्टधारी होते हैं उनको कितनी खुशी होती है, वह तो हुआ हद का पार्ट। आप सबका बेहद का पार्ट है। किसके साथ पार्ट बजाने वाले हैं! किसके सहयोगी हैं, किस सेवा के निमित हैं, यह स्मृति सदा रहे तो सदा हर्षित, सदा सम्पन्न, सदा डबल लाइट रहेंगे।*

 

 *हर कदम में उन्नति होती रहेगी। क्या थे और क्या बन गये! 'वाह मैं और वाह मेरा भाग्य!' सदा यही गीत खूब गाओ और औरों को भी गाना सिखाओ। 5 हजार वर्ष की लम्बी लकीर खिंच गई तो खुशी में नाचो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  अभी एक सेकण्ड में मन को एकाग्र कर सकते हो? *सब एक सेकण्ड में बिन्दु रूप में स्थित हो जाओ। (बापदादा ने ड्रिल कराई) अच्छा - ऐसा अभ्यास चलते-फिरते करते रहो।*

 

✧  अभी बाप बच्चों से क्या चाहते हैं? पूछते हैं ना - बाप क्या चाहते हैं? *तो बापदादा यही मीठे-मीठे बच्चों से चाहते हैं कि एक-एक बच्चा स्वराज्य अधिकारी राजा हो।*  सभी राजा हो? स्वराज्य है? स्व पर राज्य तो है ना। जो समझते हैं स्वराज्य अधिकारी राजा बना हूँ, वह हाथ उठाओ। बहुत अच्छा।

 

✧  बापदादा को बच्चों को देखकर प्यार आता कि 63 जन्म बहुत मेहनत की है, दु:ख-अशान्ति से दूर होने की। *तो बाप यही चाहते हैं कि हर बच्चा अभी स्वराज्य अधिकारी बने। मन-बुद्धि-संस्कार का मालिक बने, राजा बने।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *अव्यक्त स्थिति एक दर्पण है। जब आप अव्यक्त स्थिति में स्थित होते हो तो कोई भी व्यक्ति के भाव अव्यक्त स्थिति रूपी दर्पण में बिल्कुल स्पष्ट देखने में आयेगा।* फिर मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। दर्पण को मेहनत नहीं करनी पड़ती है कोई के भाव को समझने में। *जितनी-जितनी अव्यक्त स्थिति होती है, वह दर्पण साफ और शक्तिशाली होता है। इतना ही बहुत सहज एक-दो के भाव को स्पष्ट समझते हैं।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल :- अविनाशी ज्ञान रत्नों रूपी जवाहरात सबको देना"*

➳ _ ➳ *मैं आत्मा भृकुटी सिहांसन पर चमकती हुए मणि इस देह से निकलकर पहुँच जाती हूँ वतन में... पारसनाथ बाबा के पास... पारसनाथ बाबा के हाथों से निकलती सुनहरी किरणों से मुझ आत्मा के लौह समान विकारी संस्कार... सुनहरे दिव्य संस्कारों में परिवर्तित हो रहे हैं...* अविनाशी बाबा, मुझ अविनाशी आत्मा की झोली को अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर कर रहे हैं...

❉ *प्यारे ज्ञान सागर बाबा ज्ञान की लहरों में मुझे लहराते हुए कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... *यह ज्ञान ही सारे सुखो का सच्चा आधार है इसलिए इस ज्ञान धन से सदा धनवान् रहो... और यह अमीरी हर दिल पर दिल खोल कर लुटाओ...* ज्ञान की यह दौलत भविष्य में विश्व का अधिकारी सा सजाएगी...”

➳ _ ➳ *मैं आत्मा एक-एक ज्ञान रत्न को संजोकर दूसरों की झोली भरते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी मुरली की दीवानी हो गयी हूँ... *यह मधुर तान सुनाकर हर दिल को खुशियो की दौलत में लबालब कर रही हूँ... और स्वयं भी भरपूर होकर सुनहरे सुखो की अधिकारी हो रही हूँ...”*

❉ *ज्ञान की रोशनी से मेरे जीवन को जगमगाते हुए मीठे रूहानी बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ज्ञान की मीठी कूक से सदा कूकते रहो... *सबके जीवन में इस ज्ञान झनकार की खुशियाँ बिखरते रहो... ज्ञान रत्नों से अपना दामन सदा भरपूर करो... सबके दिल आँगन को मुस्कराहटों का रंग देते रहो...* और विश्व धरा को अपनी बाँहों में पाओ...”

➳ _ ➳ *मैं आत्मा ज्ञान रत्नों से अपना श्रृंगार कर आनंद मगन होकर कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *स्वयं भगवान को सम्मुख देख उनके श्रीमुख से ज्ञान रत्नों को पाकर कितनी धनी हो गयी हूँ...* सारे दुखो से मुक्त होकर... ख़ुशी और आनंद से भरा जीवन जीने वाली महा सौभाग्यशाली मै आत्मा बन गयी हूँ...”

❉ *ज्ञान संजीवनी की खुशबू से मुझ आत्मा को महकाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देह की झूठी दुनिया से व्यर्थ की बातो से प्यार कर जीवन को दुखो का पर्याय बना बैठे... अब जो ईश्वर पिता मिला है तो सच्चे प्यार की महक से भर जाओ... *सच्चे ईश्वरीय ज्ञान को दिल में समालो और इसकी खुशबु से सबको मन्त्रमुग्ध कर दो... यही रत्न विश्व धरा पर राज्याधिकारी बनाएंगे...”*

➳ _ ➳ *मैं आत्मा सच्ची कमाई से मालामाल होकर औरों पर भी ज्ञान धन लुटाते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में कितनी खुबसूरत कितनी प्यारी कितनी धनवान् और कितनी निराली हो गयी हूँ... *मेरे पास अथाह ईश्वरीय दौलत है और मै आत्मा सबके दामन में यह दौलत भरती जा रही हूँ... मेरे साथ पूरा विश्व इस अमीरी को पाकर मुस्करा उठा है...”*

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- कभी भी ईश्वरीय कुल का नाम बदनाम नही करना है*"

➳ _ ➳  एक खुले स्थान पर, ठन्डी हवाओ का आनन्द लेती अपने खुदा दोस्त को अपने साथ अनुभव करती मैं अपने खुदा दोस्त का शुक्रिया अदा करती हूँ जिन्होंने अपनी श्रेष्ठ मत द्वारा मेरे जीवन को सर्वश्रेष्ठ बना दिया। *अपने ऐसे खुदा दोस्त, भगवान बाप को मैं प्रोमिस करती हूँ कि उनकी निंदा कराने वाला कोई भी कर्म मैं कभी भी नही करूँगी*। हर कदम उनकी श्रेष्ठ मत पर चलते हुए, उनके हर फरमान का पालन करते अपने श्रेष्ठ संकल्प, बोल और कर्म द्वारा उनका नाम बाला करूँगी।

➳ _ ➳  मन ही मन अपने आप से दृढ़ प्रतिज्ञा करती अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी मधुर पालना के झूले में स्वयं को झूलते हुए अनुभव करती *मैं महसूस करती हूँ जैसे मेरी इस प्रतिज्ञा को पूरा करने में बाबा मेरे सहयोगी बन, मुझ में अपनी शक्तियाँ प्रवाहित कर, मुझे आप समान बलशाली बनाने के लिए अपने पास बुला रहें हैं*। परमधाम से अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की मीठी फ़ुहारों को अपने ऊपर गिरते हुए मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। *ये रंग बिरंगी मीठी फुहारे मेरे अन्तर्मन को छू कर मुझे देह से न्यारी एक अति प्यारी अवस्था का अनुभव करवा रही हैं*।

➳ _ ➳  इस न्यारी और प्यारी अवस्था मे मैं स्वयं को मस्तक के बीचों - बीच चमकते हुए एक अति सूक्ष्म गोल्डन स्टार के रूप में देख रही हूँ जिसकी रंग बिरंगी किरणों का प्रकाश चारों और फैलकर मन को बहुत ही सुखद अनुभूति करवा रहा है। *इस प्रकाश में मुझ आत्मा के सातों गुणों और अष्ट शक्तियों का मिश्रण समाया है जो मुझे मेरे सातों गुणों और अष्ट शक्तियों का अनुभव करवा कर बहुत ही शक्तिशाली स्थिति में स्थित कर रहा है*। स्वयं में से निकल रहे इस खूबसूरत प्रकाश को देखते और गहन आनन्द की अनुभूति करते - करते मैं गोल्डन स्टार अपनी रंग बिरंगी किरणो को फैलाता हुआ अब चमकते चैतन्य सितारों की उस गोल्डन दुनिया मे जा रहा हूँ जहाँ मेरे प्यारे पिता रहते हैं।

➳ _ ➳  अपने पिता के प्रेम की लग्न में मग्न, मैं जगमग करती ज्योति धीरे - धीरे ऊपर उड़ते हुए आकाश को पार करती हूँ और उससे ऊपर फरिश्तो की दुनिया को पार कर, अनन्त ज्योति के देश, अपने परमधाम घर मे प्रवेश कर जाती हूँ। *सामने महाज्योति मेरे शिव पिता अपनी सर्वशक्तियों की अनन्त किरणो को फैलाये ऐसे लग रहे है जैसे अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में मुझे भरने के लिए व्याकुल हो रहें हैं*। बिना कोई विलम्ब किये मैं चमकती हुई चैतन्य ज्योति अपने महाज्योति शिव पिता के पास पहुँचती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में समा जाती हूँ। 

➳ _ ➳  मेरे प्यारे पिता की सर्वशक्तियों की किरणें स्नेह की मीठी फ़ुहारों के रूप में मुझ पर बरसने लगती हैं। *सर्वशक्तिवान मेरे प्यारे मीठे बाबा अपना असीम स्नेह मुझ पर बरसाते हुए अपनी सर्वशक्तियों से मुझे बलशाली बनाने के लिए अपनी लाइट माइट को फुल फोर्स के साथ मुझ में प्रवाहित करने लगते हैं*। अपने प्यारे पिता की लाइट माइट पाकर, सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप बनकर, अपने संकल्प, बोल और कर्म को श्रेष्ठ बना कर, अपने प्यारे पिता का नाम बाला करने के लिए अब मैं साकार सृष्टि पर लौट आती हूँ। 

➳ _ ➳  अपने साकार तन का आधार लेकर, ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, इस सृष्टि रूपी कर्मभूमि पर अब मैं हर कर्म अपने प्यारे बाबा की याद में रहकर कर रही हूँ। *अपने हर संकल्प, बोल और कर्म पर पूरा अटेंशन देते हुए मैं इस बात का विशेष ध्यान रखती हूँ कि देह भान में आकर, मेरे मन मे कोई भी गलत संकल्प भी कभी उतपन्न ना हो, मेरे मुख से कभी भी, कोई भी ऐसा बोल ना निकले जो किसी को आहत करे या ऐसा कोई भी कर्म मुझ से ना हो जाये जो किसी को तकलीफ पहुँचे और मेरे प्यारे पिता की निंदा का कारण बनें*। इसलिये इन सभी बातों पर पूरा अटेंशन दे, अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाने का पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपने फरिश्ते स्वरूप द्वारा सर्व को वर्से का अधिकार दिलाने वाली आत्मा हूँ।*
✺   *मैं आकर्षण - मूर्त आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ *मैं औरों के मन के भावों को जानने वाली आत्मा हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदा मनमनाभव की स्थिति में स्थित रहती हूँ ।*
✺ *मैं एकरस आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  आज चारों ओर के सर्व स्वमानधारी बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। *इस संगम पर जो आप बच्चों को स्वमान मिलता है उससे बड़ा स्वमान सारे कल्प में किसी भी आत्मा को प्राप्त नहीं हो सकता है।* कितना बड़ा स्वमान है, इसको जानते हो? स्वमान का नशा कितना बड़ा है, यह स्मृति में रहता है? *स्वमान की माला बहुत बड़ी है। एक एक दाना गिनते जाओ और स्वमान के नशे में लवलीन हो जाओ।* यह स्वमान अर्थात् टाइटल्स स्वयं बापदादा द्वारा मिले हैं। परमात्मा द्वारा स्वमान प्राप्त हैं। इसलिए *इस स्वमान के रूहानी नशे को कोई अथारिटी नहीं जो हिला सके क्योंकि आलमाइटी अथारिटी द्वारा प्राप्त है।*

 

✺   *ड्रिल :-  "आलमाइटी अथारिटी द्वारा प्राप्त स्वमान के रूहानी नशे में रहने का अनुभव"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा रात्रि में खुले आसमान के नीचे बैठ कर... आकाश में चांदनी रात के सौंदर्य को निहार रही हूँ... चंद्रमा अपने संपूर्ण रूप में चमक रहा है... चंद्रमा की शीतल चांदनी रात्रि के गहन अंधकार को चीरती जा रही है... *चंद्रमा के शीतल स्वरुप को देख मेरा मन सहज ही अपने बाबा की स्मृतियों में मगन हो जाता है...* मैं आत्मा मीठे बाबा को बुद्धि के नेत्रों से निहार रही हूँ... *प्रभु का चंद्रमा सा शीतल सलोना रूप मैं आत्मा एकटक ही निहार रही हूँ...* चन्द्रमा समान बाबा की शीतल किरणों को... स्वयं में समा कर मैं आत्मा चांदनी के जैसे सारे विश्व में ज्ञान का, स्नेह का, पवित्रता का शीतल प्रकाश फैला रही हूँ...

 

 _ ➳  अपने ऊँचे भाग्य को देख कर मैं मन ही मन मुस्कुरा रही हूँ... अपना सुंदर भाग्य देख अति आनंदित हो रही हूँ... दुनिया में मनुष्य छोटा सा पद पाने के लिए क्या कुछ नहीं करते... साम, दाम, दंड, भेद हर तरीके अपनाते हैं जबकि वह पद प्रतिष्ठा तो अल्प काल की है, दुखदायी है... और *मुझ आत्मा को तो स्वयं भगवान ने अपने दिलतख्त पर बिठा लिया है...* इस तख्त के सामने दुनियावी ऊंचे से ऊंचा पद भी फीका महसूस हो रहा है... *कितना रूहानी स्नेह बाबा मुझ आत्मा पर बरसा रहे हैं... बाबा मुझे अपने सर्व खजानों का मालिक बना रहे हैं...*

 

 _ ➳  मीठे बाबा मुझे गुणों और शक्तियों के गहनो से सजा रहे हैं... कितने श्रेष्ठ टाइटल ऊंचे से ऊंचे स्वमान बाबा मुझे दे रहे हैं... मैं आत्मा हद के नाम-मान-शान इन सभी कामनाओं से मुक्त होती जा रही हूँ... *स्वयं भगवान जिसे मान दे रहा है, भगवान जिसकी महिमा के गुण गा रहे हैं, ऑलमाइटी बाबा जिस पर वरदान की वर्षा कर रहे हैं... वो भाग्यवान आत्मा हूँ मैं... अपने सुंदर भाग्य पर मैं मन ही मन इठला रही हूँ...* संगम पर बाबा से मुझ आत्मा को जो स्वमान मिले हैं उनसे बडा स्वमान सारे कल्प में किसी भी आत्मा को मिल नहीं सकता...

 

 _ ➳  स्वयं भगवान जो सर्व खजानों की चाबी है... वह कहते हैं बच्चे मैं तुम्हारा हूँ... तुम मेरे नयनों की नूर हो... मेरे मस्तक मणि हो... मेरे गले का हार हो... ऐसे श्रेष्ठ भाग्य के क्या कहने... मैं अपना 'वाह रे मैं, वाह मेरा बाबा, वाह मेरा भाग्य' के रूहानी नशे में झूम  रही हूँ... *बाबा से इतने ऊंचे स्वमान मुझ आत्मा को प्राप्त हुए हैं... मैं उन स्वमानो का स्वरुप बन गई हूँ... कितने स्वमान बाबा ने दिए हैं... कितनी बड़ी है ये स्वमानों की माला*... मैं आत्मा इस माला का एक-एक दाना गिन रही हूँ... और उस स्वमान में स्थित हो रही हूँ... ईश्वरीय स्नेह में लवलीन हो रही हूँ...

 

 _ ➳  मैं आत्मा स्वमान के नशे में, खुमारी में मगन हूँ... *ये स्वमान किसी मनुष्य या देहधारी ने नहीं, स्वयं भाग्य विधाता बाबा से, बापदादा से मुझ आत्मा को मिले हैं...* परमपिता परमात्मा मुझे ये स्वमान दे रहे हैं... स्वमानों के इस रूहानी नशे को दुनियावी कोई अथॉरिटी हिला नहीं सकती... आलमाइटी अथॉरिटी बाबा से ये श्रेष्ठ स्वमान मुझ आत्मा को प्राप्त हुए हैं... जो ऊंचे से ऊंची हस्ती है, ऊंचे से ऊंची अथॉरिटी है... *मैं स्वयं को ईश्वर पिता से प्राप्त स्वमानों के रूहानी नशे में देख रही हूँ... मैं स्वयं की ईश्वरीय खुमारी में, लवलीन अवस्था में मगन अनुभव कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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