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 03 / 03 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अन्दर कोई बीमारी है तो सर्जन से राय ली ?*

 

➢➢ *पढाई के लिए कभी कोई बहाना तो नहीं दिया ?*

 

➢➢ *अपना सब कुछ सेवा में अर्पित किया ?*

 

➢➢ *हर बात प्रभु अर्पण कर मुश्किल को भी सहज अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *बच्चों से बाप का प्यार है इसलिए सदा कहते हैं बच्चे जो हो, जैसे हो-मेरे हो। ऐसे आप भी सदा प्यार में लवलीन रहो, दिल से कहो बाबा जो हो वह सब आप ही हो।* कभी असत्य के राज्य के प्रभाव में नहीं आओ।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं निश्चयबुद्धि विजयी रत्न हूँ"*

 

✧  सदा अपने को निश्चय बुद्धि विजयी रत्न समझते हो? *सदा के निश्चय बुद्धि अर्थात् सदा के विजयी। जहाँ निश्चय है वहाँ विजय स्वत: है। अगर विजय नहीं तो निश्चय में कहाँ न कहाँ कमी है। चाहे स्वयं के निश्चय में, चाहे बाप के निश्चय में, चाहे नॉलेज के निश्चय में, किसी भी निश्चय में कमी माना विजय नहीं। निश्चय की निशानी है - 'विजय'।* अनुभवी हो ना।

 

  *निश्चय बुद्धि को माया कभी भी हिला नहीं सकती। वह माया को हिलाने वाले होंगे, स्वयं हिलने वाले नहीं। निश्चय का फाउण्डेशन अचल है तो स्वयं भी अचल होंगे। जैसा फाउण्डेशन वैसी मजबूत बिल्डिंग बनती है। निश्चय का फाउण्डेशन अचल है तो कर्म रूपी बिल्डिंग भी अचल होगी।*

 

  माया को अच्छी तरह से जान गये हो ना। माया क्यों और कब आती है, यह ज्ञान है ना। जिसको पता है कि इस रीति से माया आती है। तो वह सदा सेफ रहेंगे ना। अगर मालूम है कि यहाँ से इस रीति से दुश्मन आयेगा तो सेफ्टी करेंगे ना। आप भी समझदार हो तो माया वार क्यों करे। माया की हार होनी चाहिए। *सदा विजयी रत्न हैं, कल्प-कल्प के विजयी हैं, इस स्मृति से समर्थ बन आगे बढ़ते चलो। कच्चे पत्तों को चिड़ियायें खा जाती है इसलिए पक्के बनो। पक्के बन जायेंगे तो माया रूपी चिड़िया खायेगी नहीं। सेफ रहेंगे।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  जैसे सइंस ने लाइट हाऊस, माइट हाऊस बनाया है, तो सेकण्ड में स्विच ऑन करने से लाइट हाऊस चारों ओर लाइट देने लगता है, माइट देने लगता है। *ऐसे आप स्मृति के संकल्प का स्विच ऑन करने से लाइट हाऊस, माइट हाऊस हाक आत्माओं का लाइट, माइट दे सकते हो?*

 

✧  *एक सेकण्ड का ऑर्डर हो अशरीरी बन जाओ, बन जायेंगे ना!* कि युद्ध करनी पडेगी? यह अभ्यास बहुत काल का ही अंत में सहयोगी बनेगा। *अगर बहुतकाल का अभ्यास नहीं होगा तो उस समय अशरीरी बनना, मेहनत करनी पडेगी।*

 

✧  इसलिए बापदादा यही इशारा देते हैं - कि सारे दिन में कर्म करते हुए भी बार-बार यह अभ्यास करते रहो। इसके लिए मन के कन्ट्रोलिंग पॉवर की आवश्यकता है। *अगर मन कन्ट्रोल में आ गया तो कोई भी कर्मेन्द्रिय वशीभूत नहीं कर सकती।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *जितना साक्षी रहेंगे उतना साक्षात्कारमूर्त और साक्षात् मूर्त बनेंगे।* साक्षीपन कम होने के कारण साक्षात् और साक्षात्कारमूर्त भी कम बने हैं। *इसलिए यह अभ्यास करो। कौन सा अभ्यास? अभी-अभी आधार लिया, अभी-अभी न्यारे हो गये। यह अभ्यास बढ़ाना अर्थात् सम्पूर्णता और समय को समीप लाना है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- इस पढाई से 21 जन्मों के लिए खजाना जमा करना"*

 

_ ➳  मैं आत्मा कितनी ही तकदीरवान हूँ जो की स्वयं परमपिता परमात्मा, भाग्यविधाता बन मेरी सोई हुई तकदीर को जगाने परमधाम से आये हैं... *अविनाशी बेहद बाबा अविनाशी ज्ञान देकर इस एक जन्म में मुझे पढ़ाकर, 21 जन्मों के लिए मेरी ऊँची तकदीर बना रहे हैं...* यह पढ़ाई ही सोर्स ऑफ़ इनकम है... *मैं रूहानी आत्मा, रूहानी बाबा से, रूहानी पढ़ाई पढने चल पड़ती हूँ रूहानी कालेज सेंटर में...*  

 

  *पुरुषोत्तम संगम युग की पढाई से उत्तम ते उत्तम पुरुष बनने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... *ईश्वर पिता की बाँहो में झूलने वाला खुबसूरत समय जो हाथ आया है तो इस वरदानी युग में पिता से अथाह खजाने लूट लो... 21 जनमो के मीठे सुखो से अपना दामन सजा लो...* ईश्वरीय पढ़ाई से उत्तम पुरुष बन विश्व धरा के मालिक हो मुस्करा उठो...

 

_ ➳  *बाबा की मीठी मुरली की मधुर तान पर फिदा होते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अपने महान भाग्य को देख देख निहाल हो गई हूँ... *मेरा मीठा भाग्य मुझे ईश्वर पिता की फूलो सी गोद लिए वरदानी संगम पर ले आया है... ईश्वरीय पढ़ाई से मै आत्मा मालामाल होती जा रही हूँ...”*

 

  *ज्ञान रत्नों के सरगम से मेरे मन मधुबन को सुरीला बनाकर मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... इस महान मीठे समय का भरपूर फायदा उठाओ... *ईश्वरीय ज्ञान रत्नों से जीवन में खुशियो की फुलवारी सी लगाओ... जिस ईश्वर को दर दर खोजते थे कभी... आज सम्मुख पाकर ज्ञान खजाने से भरपूर हो जाओ... और 21 जनमो के सुखो की तकदीर बनाओ...”*

 

_ ➳  *दिव्यता से सजधज कर सतयुगी सुखों की अधिकारी बन मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा संग ज्ञान और योग के पंख लिए असीम आनन्द में खो गयी हूँ... *ईश्वर पिता के सारे खजाने को बुद्धि तिजोरी में भरकर और दिव्य गुणो की धारणा से उत्तम पुरुष आत्मा सी सज रही हूँ...”*

 

  *इस संगमयुग में मेरे संग-संग चलते हुए सत्य ज्ञान की राह दिखाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *मीठे बाबा के साथ का संगम कितना मीठा प्यारा और सुहावना है...* सत्य के बिना असत्य गलियो में किस कदर भटके हुए थे... आज पिता की गोद में बैठे फूल से खिल रहे हो... *ईश्वरीय मिलन के इन मीठे पलों की सुनहरी यादो को रोम रोम में प्रवाहित कर देवता से सज जाओ...”*

 

_ ➳  *ईश्वरीय राहों पर चलकर ओजस्वी बन दमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा मीठे बाबा की गोद में ईश्वरीय पढ़ाई पढ़कर श्रेष्ठ भाग्य को पा रही हूँ... इस वरदानी संगम युग में ईश्वर को शिक्षक रूप में पाकर अपने मीठे से भाग्य पर बलिहार हूँ...* और प्यारा सा देवताई भाग्य सजा रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- संगदोष बहुत खराब है, इससे अपनी बहुत - बहुत सम्भाल करनी है*"
 
➳ _ ➳  *"
बचपन के दिन भुला ना देना, आज हंसे कल रुला ना देना" गीत की इन पंक्तियों पर विचार करते - करते मैं खो जाती हूँ अपने ईश्वरीय बचपन की उन सुखद अनमोल स्मृतियों में जब पहली बार मुझे मेरा सत्य परिचय मिला था*, अपने पिता परमात्मा का सत्य बोध हुआ था। उस सुखद एहसास का अनुभव करते - करते आंखों के सामने एक दृश्य उभर आता है।
 
➳ _ ➳ 
मैं देख रही हूं एक स्थान पर जैसे एक बहुत बड़ा मेला लगा हुआ है। एक छोटे बच्चे के रूप में मैं उस मेले में घूम रही हूं। सुंदर सुंदर नजारे देख कर आनन्दित हो रही हूं। बहुत देर तक उस मेले का आनन्द लेने के बाद मुझे अनुभव होता है कि मेरे साथ तो कोई भी नही। *मैं स्वयं को एकदम अकेला अनुभव करती हूं और अपने पिता को ढूंढने लगती हूं। मैं जोर - जोर से चिल्ला रही हूं किन्तु मेरी आवाज कोई नही सुन रहा*। सभी अपनी मस्ती में मस्त हैं। अब उस मेले की कोई भी वस्तु मुझे आकर्षित नही कर रही। घबरा कर मैं एकांत में बैठ अपना सिर नीचे कर रोने लगती हूँ। तभी कंधे पर किसी के हाथ का स्पर्श पा कर मैं जैसे ही अपना सिर ऊपर उठाती हूँ। *सामने एक लाइट का फ़रिशता जिसके मस्तक से बहुत तेज प्रकाश निकल रहा है मुझे दिखाई देता है और वो फ़रिशता मुझ से कह रहा है, बच्चे:- "घबराओ मत, मैं तुम्हारा पिता हूँ"*
 
➳ _ ➳ 
इस आवाज को सुनते ही मेरी चेतनता लौट आती है और याद आता है कि इतनी बड़ी दुनिया के मेले में, इतनी भीड़ में होते हुए भी मैं अकेली ही तो थी और ढूंढ रही थी अपने पिता परमात्मा को। मैं तो नही ढूंढ पाई लेकिन उन्होंने आकर मुझे ढूंढ लिया। *अपने ईश्वरीय जीवन का वो दिन याद आता है जब पहली बार खुद भगवान के उन शब्दों को सुना था कि तुम देह नही आत्मा हो, मेरे बच्चे हो, मेरी ही तरह ज्योति बिंदु रूप है तुम्हारा*। कितने जन्म हो गए तुम्हे मुझसे बिछुड़े हुए। आओ मेरे पास आओ। अपने पिता परमात्मा के सत्य परिचय को जान कर, उनके असीम स्नेह को अनुभव करने का वो एहसास स्मृति में आते ही मन अपने उस प्यारे पिता के प्रति असीम प्यार से भर जाता है और उनसे मिलने की तड़प मन मे उतपन्न हो उठती है।
 
➳ _ ➳ 
अपने पिता परमात्मा से मिलने के लिए अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित होकर, निर्बन्धन बन, अब मैं चमकता हुआ सितारा, ज्योति बिंदु आत्मा अपनी साकारी देह को छोड़ अपने निजधाम परमधाम की ओर चल पड़ती हूं और सेकंड में पहुंच जाती हूं प्रेम, सुख, शांति के सागर अपने शिव पिता के पास। *एक दम शांत और सुषुप्त अवस्था में मैं स्थित हूं। संकल्पों विकल्पों की हर प्रकार की हलचल से मुक्त इस शान्तिधाम में शांति के सागर अपने शिव पिता के सामने मैं गहन शांति का अनुभव कर रही हूं*। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं अपलक शक्तियों के सागर अपने शिव पिता को निहारते हुए, उनसे अनेक जन्मों के बिछड़ने की सारी प्यास बुझा रही हूँ। उनके प्रेम से, उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूं।
 
➳ _ ➳ 
परमात्म शक्तियों से भरपूर हो कर, अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति का गहन अनुभव करके अब मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूं। मेरे शिव पिता परमात्मा के प्रेम का अविनाशी रंग और मेरे ईश्वरीय बचपन की सुखद स्मृतियां अब मुझे देह और देह की दुनिया मे रहते हुए भी उनके संग के प्रभाव से  मुक्त कर रही हैं। *ईश्वरीय प्रेम के रंग के आगे दुनियावी प्रेम अब मुझे बहुत ही फीका दिखाई दे रहा है इसलिए हर प्रकार के संग दोष से अपनी सम्भाल करते हुए अब मैं ईश्वरीय प्रेम के रंग में रंग कर अपने जीवन को तथा औरों के जीवन को खुशहाल बना रही हूं*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं अपना सब कुछ सेवा में अर्पित करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं गुप्त दानी आत्मा हूँ।*

   *मैं पुण्य आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

  *मैं आत्मा हर बात प्रभु अर्पण करती हूँ ।*

  *मैं आत्मा आने वाली मुश्किलातें सहज अनुभव करती हूँ ।*

  *मैं आत्मा निमित्त हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *अन्तकाल चाहे जवान है, चाहे बुढ़ा है, चाहे तन्दरूस्त है, चाहे बीमार है, किसका भी कभी भी आ सकता है। इसलिए बहुतकाल साक्षीपन के अभ्यास पर अटेन्शन दो।* चाहे कितनी भी प्रकृतिक आपदायें आयेंगी लेकिन यह अशरीरीपन की स्टेज आपको सहज न्यारा और बाप का प्यारा बना देगी। इसलिए बहुतकाल शब्द को बापदादा अण्डरलाइन करा रहे हैं। *क्या भी हो, सारे दिन में साक्षीपन की स्टेज का, करावनहार की स्टेज का, अशरीरीपन की स्टेज का अनुभव बार-बार करो, तब अन्त मते फरिश्ता सो देवता निश्चित है।* बाप समान बनना है तो बाप निराकार और फरिश्ता है, ब्रह्मा बाप समान बनना अर्थात् फरिश्ता स्टेज में रहना। जैसे फरिश्ता रूप साकार रूप में देखा, बात सुनते, बात करते, कारोबार करते अनुभव किया कि जैसे बाप शरीर में होते न्यारे हैं। कार्य को छोड़कर अशरीरी बनना, यह तो थोड़ा समय हो सकता है लेकिन कार्य करते, समय निकाल अशरीरी, पावरफुल स्टेज का अनुभव करते रहो। आप सब फरिश्ते हो, बाप द्वारा इस ब्राह्मण जीवन का आधार ले सन्देश देने के लिए साकार में कार्य कर रहे हो। फरिश्ता अर्थात् देह में रहते देह से न्यारा और यह एक्जैम्पुल ब्रह्मा बाप को देखा है, असम्भव नहीं है। देखा अनुभव किया।

 

 _ ➳  जो भी निमित्त हैं, चाहे अभी विस्तार ज्यादा है लेकिन जितनी ब्रह्मा बाप की नई नालेज, नई जीवन, नई दुनिया बनाने की जिम्मेवारी थी, उतनी अभी किसकी भी नहीं है। तो सबका लक्ष्य है ब्रह्मा बाप समान बनना अर्थात् फरिश्ता बनना। शिव बाप समान बनना अर्थात् निराकार स्थिति में स्थित होना। मुश्किल है क्या? *बाप और दादा से प्यार है ना! तो जिससे प्यार है उस जैसा बनना, जब संकल्प भी है - बाप समान बनना ही है, तो कोई मुश्किल नहीं। सिर्फ बार-बार अटेन्शन। साधारण जीवन नहीं। साधारण जीवन जीने वाले बहुत हैं।* बड़े-बड़े कार्य करने वाले बहुत हैं। लेकिन आप जैसा कार्य, आप ब्राह्मण आत्माओं के सिवाए और कोई नहीं कर सकता है।

 

✺   *ड्रिल :-  "सारे दिन में करावनहार की स्टेज का बार-बार अभ्यास करना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा सभी बाहरी बातों से मन बुद्धि को हटाए भृकुटि के मध्य स्वयं को निहार रही हूं... *अपने अनादि स्वरुप में स्थित मैं आत्मा बाप समान निराकारी, निरहंकारी, संपूर्ण निर्विकारी स्थिति का अनुभव कर रही हूं...* रूप में बिंदु गुणों में सिंधु मैं आत्मा बाप समान अथक सेवाधारी बन संपूर्ण विश्व में अमूल्य ज्ञान रत्नों की बौछार करती हूं... *मैं आत्मा चैतन्य शक्ति हूं... इस देह से न्यारी... बाबा ने मुझ आत्मा को ये देह साकार लोग को परमात्म परिचय देने अर्थ दिया है...*

 

 _ ➳  *सारे दिन बीच-बीच में मैं करावनहार आत्मा कर्म से न्यारी हो अपनी इन्द्रियों को समेट अशरीरी पन का अभ्यास करती हूं...* इस बहुतकाल के अभ्यास द्वारा मैं आत्मा अपने आस-पास के सभी दृश्यों को साक्षी हो देख रही हूं... *मैं देखती हूं... मेरे चारों ओर दुःख ही दुःख अशांति ही अशांति है...* पापाचार, भ्रष्टाचार अकालमृत्यु बढ़ता ही जा रहा है... चारों ओर त्राहि त्राहि मची हुई है... *आत्माएं सच्ची शांति और सुख की तलाश में इधर उधर भटक रही हैं...*

 

 _ ➳  प्रकृति अपने आपे से बाहर हैं... पांच तत्व भी अपना कहर बरसा रहे हैं... *बीज रूप स्थिति में स्थित मैं करावनहार आत्मा इस दृश्य को बिना हिले बिना डुले साक्षी हो देख रही हूं...* मैं स्वयं इन सब दृश्यों को अचल अडोल हुए सामना करते हुए अनुभव कर रही हूं... अब मैं करावनहार निमित्त आत्मा स्वयं को फरिश्ता स्वरुप में इमर्ज कर बापदादा का आह्वान करती हूं... *फरिश्ता स्वरुप में मैं आत्मा ब्रह्मा बाप समान स्वयं को इस देह से न्यारी अशरीरी अनुभव कर रही हूं...*

 

 _ ➳  यह आ गए बापदादा मेरे सन्मुख... बापदादा और मैं मास्टर करावनहार आत्मा कंबाइंड स्वरुप में स्थित हो सर्व को साकाश दे रहे हैं... *समस्त आत्माएं हमारे सानिध्य में शांति और सुख  का अनुभव करती जा रही है...* चारों ओर शांति का वातावरण छा गया है... आत्माएं तृप्त होती जा रही हैं... *प्रकृति के पांच तत्व भी शांति को प्राप्त हैं...* चारों और रूहानी वातावरण छा जाता है... *धीरे-धीरे सभी आत्माएं सहज ही अपने शरीर से न्यारी कर्मातीत अवस्था को प्राप्त होती जा रही है...*

 

 _ ➳  भक्तिमार्ग में किये वायदे अनुसार *"प्रभु जब आप आएंगे तो और संग बुद्धियोग तोड़ आप संग जोड़ूंगी"...* सभी आत्माएं प्रभु प्रेम में मग्न बाप समान अवस्था का अनुभव कर रही हैं... *सभी अपनी आत्मिक कर्मातीत स्टेज में स्थित हो मच्छरों सदृश्य बापदादा संग परमधाम की ओर चल पड़ी हैं...* मैं आत्मा भी बापदादा संग स्वयं को अनुभव करती हूं... मैं असाधारण करावनहार निमित आत्मा अपने पाठ कों बेखूबी पूरा कर बाबा संग परमधाम की ओर रवाना हो रही हूं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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