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❍ 02 / 01 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ ज्ञान का सिमरन कर अतीन्द्रिय सुख में रहे ?
➢➢ एकरस स्थिति द्वारा सदा एक बाप को फॉलो किया ?
➢➢ आत्मिक शक्ति के आधार पर सदा स्वस्थ रहने का अनुभव किया ?
➢➢ कर्म करते हुए बीच बीच में अव्यक्त स्थिति बनाने का अटेंशन रहा ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ अभ्यास करो - देह और देह के देश को भूल अशरीरी परमधाम निवासी बन जाओ, फिर परमधाम निवासी से अव्यक्त स्थिति में स्थित हो जाओ, फिर सेवा के प्रति आवाज में आओ, सेवा करते हुए भी अपने स्वरूप की स्मृति में रहो, अपनी बुद्धि को जहाँ चाहो वहाँ एक सेकेण्ड से भी कम समय में लगा लो तब पास विद आनर बनेंगे।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं हर कदम में चढ़ती कला का अनुभव करने वाली विशेष आत्मा हूँ"
〰✧ सदा चढ़ती कला में जा रहे हो? हर कदम में चढ़ती कला के अनुभवी। संकल्प, बोल, कर्म सम्पर्क और सम्बन्ध सबमें सदा चढ़ती कला। क्योंकि समय ही है चढ़ती कला का और कोई भी युग चढ़ती कला का नहीं है।
〰✧ संगमयुग ही चढ़ती कला का युग है, तो जैसा समय वैसा ही अनुभव होना चाहिए। जो सेकण्ड बीता उसके आगे का सेकण्ड आया, तो चढ़ती कला।
〰✧ ऐसे नहीं दो मास पहले जैसे थे वैसे ही अभी हो। हर समय परिवर्तन। लेकिन परिवर्तन भी चढ़ती कला का। किसी भी बात में रुकने वाले नहीं। चढ़ती कला वाले रुकते नहीं हैं, वे सदा औरों को भी चढ़ती कला में ले जाते हैं।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ तो कर्मातीत बनना है ना? बापदादा भी कहते हैं आप को ही बनना है। और कोई नहीं आयेंगे, आप ही हो। आपको ही साथ में ले जायेंगे लेकिन कर्मातीत को ले जायेंगे ना। साथ चलेंगे या पीछे-पीछे आयेंगे? (साथ चलेगे)
〰✧ यह तो बहुत अच्छा बोला। साथ चलेंगे, हिसाब चुक्त करेंगे? इसमें हाँ जी नहीं बोला। कर्मातीत बनके साथ चलेंगे ना। साथ चलना अर्थात साथी बनकर चलना। जोडी तो अच्छी चाहिए या लम्बी और छोटी? समान चाहिए ना!
〰✧ तो कर्मातीत बनना ही है। तो क्या करेंगे? अभी अपना राज्य अच्छी तरह से सम्भालो। रोज अपनी दरबार लगाओ। राज्य अधिकारी तो हो ना! तो अपनी दरबार लगाओ, कर्मचारियों से हालचाल पूछो। चेक करो ऑर्डर में हैं?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ फ़रिश्ते अर्थात् अपने फ्युचर द्वारा अन्य आत्माओं के फ्युचर बनाने वाले सदा अपना फ्युचर सामने रहता है? जितना निमित्त बनी हुई आत्मायें अपने फ्युचर को सदा सामने रखेंगी उतना अन्य आत्माओं को भी अपना फ्युचर बनाने की प्रेरणा दे सकेंगी। अपना फ्युचर स्पष्ट नहीं तो दूसरों को भी स्पष्ट बनाने का रास्ता नहीं बता सकेंगी। अपना फ्युचर स्पष्ट है? महाराजा या महारानी- जो भी बने, लेकिन उससे पहले अपना भविष्य फ़रिश्तेपन का, कर्मातीत अवस्था का- वह सामने स्पष्ट आता है? ऐसा अनुभव होता है कि मैं हर कल्प में फ़रिश्ते स्वरूप में ये पार्ट बजा चुकी हूँ और अभी बजाना है? वो झलक सामने आती है? जैसे दर्पण में अपने स्वरूप की झलक देखते हो ऐसे नॉलेज के दर्पण में अपने पुरुषार्थ से फ़रिश्तेपन की झलक स्पष्ट दिखाई देती है? जब तक फ़रिश्तेपन की झलक स्पष्ट दिखाई नहीं देगी तब तक भविष्य भी स्पष्ट नहीं होगा। यह संकल्प आता ही रहेगा कि शायद मैं ये बनूँ या वो बनूँ? लेकिन फ़रिश्तेपन की झलक स्पष्ट दिखाई देगी तो वह भी स्पष्ट दिखाई देगी। तो वह दिखाई देता है या अभी घूंघट में है? जैसे चित्र का अनावरण कराते हो तो अपने फ़रिश्ते स्वरूप का अनावरण कब करेंगे? आपे ही करेंगे या चीफ़ गेस्ट को बुलायेंगे? यह पुरुषार्थ की कमज़ोरी का पद हटाओ तो स्पष्ट फ़रिश्ता रूप हो जायेगा।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- अपने को आत्मा समझना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा घर में बाबा के कमरे में बैठ आत्मचिंतन करती हूँ... मैं एक
चैतन्य ज्योतिपुंज हूँ... जो इस शरीर में विराजमान होकर पार्ट बजा रही हूँ...
ना ये तन मेरा है, ना ये धन मेरा है, ना कोई वस्तु-वैभव मेरे हैं... ना ये
संसार मेरा है... मेरे तो एक शिवबाबा हैं... और मेरा घर परमधाम है... मैं तो
एक अशरीरी आत्मा हूँ... चिंतन करते-करते मैं आत्मा इस देह और इस देह की दुनिया
से निकलकर पहुँच जाती हूँ आकारी वतन में बापदादा के पास...
❉ प्यारे मीठे बाबा सत्य स्वरुप के ज्ञान की सच्चाई से मेरे जीवन को रोशन करते
हुए कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... स्वयं को देह समझ और देहधारियों से
दिल लगाकर दुखो के घने जंगल में भटक गए... अब ईश्वर पिता से सत्य को जान अपने
ज्योति स्वरूप के भान में खो जाओ... अपनी निराकारी सत्यता को हर साँस संकल्प
में जीकर... सुनहरे सुखो के अधिकारी बन सदा का मुस्कराओ...”
➳ _ ➳ शरीर के भान से मुक्त होकर खुशियों के आसमान में जगमगाती मैं आत्मा
सितारा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा शरीर नही खुबसूरत
मणि हूँ... मीठे बाबा आप जैसी ही निराकार खुबसूरत हूँ इस सत्य को बाँहों में
भर कर खुशियो के गगन में उड़ रही हूँ... और स्वयं के सत्य भान में टिक कर पुनः
तेजस्वी बनती जा रही हूँ...”
❉ इस देह और देह की दुनिया से न्यारी बनाकर सत्यता के ओज से चमकाते हुए मीठे
बाबा कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... अब इस देह की मिटटी में मन
बुद्धि रुपी हाथो को और नही सानो... अपने ओजस्वी तेजस्वी स्वरूप को यादो में
बसाओ... ईश्वर पिता समान अशरीरी के भान में खो जाओ... देह के सब रिश्तो नातो
से उपराम होकर... अशरीरी पन के नशे में गहरे उतर जाओ...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा प्यारे बाबा के यादों के दर्पण में अपने सत्य स्वरूप को
निखारते हुए कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा देह भान के दलदल से
निकल कर... ईश्वरीय प्यार की खुशबू से रंगती जा रही हूँ... मै अविनाशी आत्मा
हूँ इस सत्य को हर पल अपनाती जा रही हूँ... अपने असली अशरीरी सौंदर्य को यादो
में बसाकर मीठे बाबा की ऊँगली पकड़ घर चलने की तैयारी कर रही हूँ...”
❉ मीठे जादूगर मेरे बाबा अपने प्यार के झरने में मुझे कमल फूल समान खिलाते हुए
कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जब घर से निकले थे कितने महकते फूल
थे... धरा की मिटटी में खेलते खेलते अपने दमकते स्वरूप को भूल कर मात्र
शरीरधारी हो गए... अब उसी महक उसी रंगत उसी नूर को यादो में ताजा करो... अपने
अविनाशी पन को हर साँस में पिरोकर पिता संग घर की ओर लौटने की तैयारी में जुट
जाओ...”
➳ _ ➳ माया के मायाजाल से मुक्त होकर सत्यपिता के सत्य ज्ञान से सत्य स्वरुप
में स्थित होकर मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी
मीठी यादो में अपनी सच्ची अशरीरी सुंदरता को पाती जा रही हूँ... इस देह के
मायाजाल से निकल कर अविनाशी गौरव को यादो में बसा रही हूँ... मै आत्मा मीठे
बाबा के साथ घर चलने को सज संवर रही हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- ज्ञान का सिमरण कर अतींद्रिय सुख में रहना है"
➳ _ ➳ "अतींद्रिय सुख पूछना है तो गोप गोपियों से पूछो" बाबा के ये महावाक्य
स्मृति में आते ही मैं खो जाती हूँ उस अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति में जो अपने
गोपीवल्लभ बाप की याद में बैठते ही मैं आत्मा रूपी गोपी प्राप्त करती हूँ।
अपने गोपी वल्लभ बाप के साथ मनाई साकार मिलन की मीठी यादें अब एक - एक करके
अनेक चित्रों के रूप में मेरी आँखों के सामने स्पष्ट हो रही हैं। साकार मिलन
का वो सुख मुझे बार - बार उस पावन धरती की याद दिला रहा है और मन रूपी पँछी बार
- बार उड़ कर उस स्थान पर जा रहा है।
➳ _ ➳ देख रही हूँ अब मैं स्वयं को मधुबन के आंगन में। बाबा की कुटिया के बाहर
बने पार्क में मैं बैठी हूँ और एक खूबसूरत दृश्य देख रही हूँ। सामने नटखट
कान्हा मुरली बजा रहें हैं और उस मुरली की मीठी तान सबको मदहोश कर रही है।
गोपियाँ मुरली की मीठी तान को सुन कर अपनी सुध - बुध गंवा कर दौड़ी चली आ रही
है। हर गोपी के साथ कान्हा रास करता हुआ दिखाई दे रहा है। सभी गोपिकाएं एक
अलौकिक मस्ती में मस्त हो कर अपने नटखट कान्हा के साथ, नृत्य कर रही हैं।
देखते ही देखते यह दृश्य एक और खूबसूरत दृश्य में परिवर्तित हो जाता है।
➳ _ ➳ अब मैं देख रही हूँ स्वयं को डायमण्ड हाल में अपने गोपीवल्लभ बाबा के
सामने जो अपने निर्धारित रथ गुलजार दादी की भृकुटि में विराजमान हो कर, उनके
मुख से मधुर महावाक्य उच्चारण कर रहें हैं। वहां उपस्थित सभी आत्मा रूपी
गोपिकाएं उन मधुर महावाक्यों को सुन कर, देह के भान से मुक्त, एक अलौकिक रूहानी
मस्ती में डूबी हुई दिखाई दे रही हैं। अपने गोपीवल्लभ बाबा की मीठी मुरली के
मधुर महावाक्य मैं आत्मा गोपी एकाग्र हो कर सुन रही हूँ और इन मधुर महावाक्यो
के एक - एक शब्द में समाये अपने गोपी वल्लभ बाबा के प्रेम का मैं गहराई तक
अनुभव कर रही हूँ। उनके प्रेम का यह मधुर एहसास मुझे असीम सुख की अनुभूति करवा
रहा है।
➳ _ ➳ मुरली के मधुर महावाक्य उच्चारण करने के साथ - साथ अब मेरे गोपीवल्लभ
बाबा अपनी मीठी दृष्टि से मुझे निहाल कर रहें हैं। उनकी मीठी दृष्टि से आ रही
लाइट और माइट पाकर मैं भी लाइट माइट स्वरूप में स्थित हो कर, मास्टर बीजरूप
स्थिति का अनुभव कर रही हूँ। और इस स्थिति में स्थित होते ही अब मै अपने
गोपीवल्लभ बाबा को उनके निराकार बीजरूप स्वरूप में अपने बिल्कुल सामने देख रही
हूँ। उनसे आ रही सर्वशक्तियाँ चारों और फैल रही है और उनसे निकल रहे वायब्रेशन
शांति की गहन अनुभूति करवा रहें हैं।
➳ _ ➳ गहन शांति की अनुभूति में गहराई तक खोई मैं आत्मा गोपी धीरे धीरे अपने
गोपीवल्लभ बाप के बिल्कुल समीप पहुंच कर अब उनके साथ कम्बाइंड हो जाती हूँ। इस
कम्बाइंड स्थिति में स्थित होते ही अब मैं उनसे आ रही अनन्त शक्तियों को स्वयं
में समाता हुआ स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। परमात्म शक्तियां मुझ आत्मा में समाकर
मुझे बहुत ही शक्तिशाली बना रही हैं। मेरे गोपीवल्लभ का प्रेम उनकी अनन्त
किरणों के रूप में निरन्तर मुझ पर बरस रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे सुख का कोई
झरना मुझ आत्मा के ऊपर बह रहा है और मैं असीम सुख से भरपूर होती जा रही हूँ।
➳ _ ➳ इस अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति का गहराई तक अनुभव करके अब मैं स्वयं को
वापिस अपने ब्राह्मण स्वरूप में और अपने गोपी वल्लभ बाप को उनके रथ पर विराजमान
देख रही हूँ। उनकी मीठी याद में समाये अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति को अपने साथ
लेकर अब मैं मधुबन से वापिस अपने कर्मक्षेत्र पर लौट रही हूँ। कर्मयोगी बन, हर
कर्म करते अपने मीठे बाबा की याद में रह अब मैं हर समय अतीन्द्रिय सुख का अनुभव
कर रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं
एकरस स्थिति में स्थित रहने वाली आत्मा हूँ।
✺ मैं सदा एक बाप को फॉलो करने वाली आत्मा हूँ।
✺ मैं प्रसन्नचित आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं
आत्मा आत्मिक शक्ति का सदैव अनुभव करती हूँ ।
✺ मैं आत्मा सदा स्वस्थ रहने का अनुभव करती हूँ ।
✺ मैं शक्तिशाली आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ अभी समय अनुसार जैसे कहाँ-कहाँ पानी के प्यासी हैं, ऐसे वर्तमान समय शुद्ध, शान्तिमय, सुखमय वायब्रेशन के प्यासी हैं। फरिश्ते रूप से ही वायब्रेशन फैला सकते हो। फरिश्ता अर्थात् सदा ऊँच स्थिति में रहने वाले। फरिश्ता अर्थात् पुराने संसार और पुराने संस्कार से नाता नहीं। अभी संसार परिवर्तन आप सबके संस्कार परिवर्तन के लिए रुका हुआ है। इस नये वर्ष में लक्ष्य रखो - संस्कार परिवर्तन, स्वयं का भी और सहयोग द्वारा औरों का भी। कोई कमजोर है तो सहयोग दो, न वर्णन करो, न वातावरण बनाओ। सहयोग दो।
➳ _ ➳ इस वर्ष की टापिक 'संस्कार परिवर्तन'। फरिश्ता संस्कार, ब्रह्मा बाप समान संस्कार। तो सहज पुरुषार्थ है या मुश्किल है? थोड़ा-थोड़ा मुश्किल है? कभी भी कोई बात मुश्किल होती नहीं है, अपनी कमजोरी मुश्किल बनाती है। इसीलिए बापदादा कहते हैं 'हे मास्टरसर्वशक्तिवान बच्चे, अभी शक्तियों का वायुमण्डल फैलाओ'। अभी वायुमण्डल को आपकी बहुत-बहुत-बहुत आवश्यकता है। जैसे आजकल विश्व में पोल्यूशन की प्राब्लम है, ऐसे विश्व में एक घड़ी मन में शान्ति सुख के वायुमण्डल की आवश्यकता है क्योंकि मन का पोल्यूशन बहुत है, हवा की पोल्यूशन से भी ज्यादा है। अच्छा।
✺ ड्रिल :- "संस्कार परिवर्तन से मन का पोल्यूशन हटाकर, शक्तियों का वायुमण्डल फैलाना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा के प्यार की वर्सा के नीचें उनकीं याद में खोई हुईं हूँ... बाबा बड़े प्यार से ज्ञान स्नान करा रहे हैं... चारों ओर प्रकृति भी मुझ आत्मा को देख हर्षित हो रही हैं... मैं आत्मा प्रकृति और सर्व आत्माओ को शुद्ध, शांतिमय और सुखमय वायब्रेशन दे रही हूँ... बाबा की याद से मुझ आत्मा से शक्तिशाली वायब्रेशन निकल रहे हैं... जिससे सर्व आत्माओं को सुख की अनुभूति हो रही हैं... सर्व आत्माओं को लग रहा हैं कि कोई उन्हें शांति की अनुभूति करा रहा है... उनके विचलित और अशांत मन शांत हो रहे हैं... मैं आत्मा फ़रिश्ता बन सारे ग्लोब में सुख, शांति का वायब्रेशन दे रही हूँ... जिससे सारे विश्व में शांति और सुख की किरणें फ़ैल रही हैं... मै आत्मा देख रही हूँ... कि प्रकृति के पाचों तत्व शांत हो गये हैं...
➳ _ ➳ फ़रिश्ता पन की स्थिति से मै आत्मा अपने ऊचें ते ऊचें स्वमान में अपने ऊचें ते ऊचें बाप की याद से सर्व आत्माओं को सुख और शांति का वायब्रेशन दे रही हूँ... और ना ही इस पुरानीं दुनियाँ से कोई रिश्ता हैं... मैं फ़रिश्ता सारे विश्व की सेवा में बिजी हूँ... मुझ आत्मा के सारे पुराने और कड़े संस्कार परिवर्तित हो चुके है... और मुझ आत्मा में दैवीय संस्कार आ चुके हैं... स्व के सहयोग और सर्व के सहयोग से मुझ आत्मा के सारे पुरानें संस्कार ख़त्म हो चुकें हैं...
➳ _ ➳ मै आत्मा मास्टर सर्व शक्तिमान की स्टेज से सर्व कमज़ोर आत्माओं को सकाश दे रही हूँ... और उन्हें सहयोग की शक्ति दे रही हूँ... मै आत्मा किसी और आत्माओं की कमी कमज़ोरी ना देख, ना ही उनका वर्णन कर उन आत्माओं को सहयोग दे रही हूँ... और उन्हें आगे बढ़ा रही हूँ...
➳ _ ➳ बाबा ने मुझ आत्मा को संस्कार परिवर्तन का वरदान दिया हैं... बाबा के साथ और सर्व शक्तियों से मैं आत्मा अपने सारे पुरानें संस्कार परिवर्तन कर चुकी हूँ... जैसे ब्रह्मा बाप ने सेकंड में अपने सारे संस्कार परिवर्तित कर के फ़रिश्ता बन गए... वैसे मै आत्मा भी अपने सारे संस्कार परिवर्तन कर चुकी हूँ... कोई भी बात अब मुझ आत्मा के लिए मुश्किल नहीं हैं... और ना ही कोई कमज़ोरी मुझ आत्मा में हैं... मै आत्मा सर्व कमज़ोरियो को समाप्त कर आगे बढ़ चुकी हूँ...
➳ _ ➳ बाबा की दी हुई शक्तियों से चारों ओर दिव्य वायुमंडल बन गया हैं... जिससे सर्व आत्माओ को सुख, शांति का अनुभव हो रहा है... चारों तरफ़ दिव्य और पवित्र वायुमंडल बन चुका हैं... सारी प्रकृति और सर्व आत्माओं को सुख और शांति की अनुभूति हो रही हैं... सारे विश्व में शांति का वायुमंडल बन गया हैं... कितना सुखद अनुभव हैं... कि चारों ओर शांति का वायुमंडल हैं... सबके मन से अशुद्ध संकल्प, विकल्प सब ख़त्म हो चुकें हैं... और सर्व का सर्व शक्तियों से भर चूका हैं... मुझ फ़रिश्ता आत्मा के साथ सारा विश्व बाबा का दिल से धन्यवाद कर रहे हैं... कि पाना था जो वो पा लिया...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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