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 27 / 03 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *विघनो की परवाह तो नहीं की ?*

 

➢➢ *आत्मा अभिमानी बनने में गुप्त मेहनत की ?*

 

➢➢ *स्नेह और सहयोग की विधि द्वारा सहजयोगी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *"पहले सोचो, पीछे करो" की धारणा से समय और शक्ति को व्यर्थ जाने से रोका ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जो नम्बरवन परवाने हैं उनको स्वयं का अर्थात् इस देह- भान का, दिन-रात का, भूख और प्यास का, अपने सुख के साधनों का, आराम का, किसी भी बात का आधार नहीं । वे सब प्रकार की देह की स्मृति से खोये हुए अर्थात् निरन्तर शमा के लव में लवलीन रहते हैं ।* जैसे शमा ज्योति-स्वरुप है, लाइट माइट रुप है, वैसे शमा के समान स्वयं भी लाइट-माइट रुप बन जाते हैं ।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ"*

 

  स्वयं को सदा मास्टर ज्ञान सूर्य समझते हो? ज्ञान सूर्य का कार्य है सर्व से अज्ञान अंधेरे का नाश करना। *सूर्य अपने प्रकाश से रात को दिन बना देता है, तो ऐसे मास्टर ज्ञान सूर्य विश्व से अंधकार मिटाने वाले, भटकती आत्माओंको रास्ता दिखाने वाले, रात को दिन बनाने वाले हो ना!* अपना यह कार्य सदा याद रहता है?

 

  जैसे लौकिक आक्यूपेशन भूलाने से भी नहीं भूलता। वह तो है एक जन्म का विनाशी कार्य, विनाशी आक्यूपेशन, यह है सदा का आक्यूपेशन कि हम मास्टर ज्ञान सूर्य हैं। *तो सदा अपना यह अविनाशी आक्यूपेशन या ड्यूटी समझ अंधकार मिटाकर रोशनी लानी है। इससे स्वयं से भी अंधकार समाप्त हो प्रकाश होगा।*

 

  कयोंकि रोशनी देने वाला स्वयं तो प्रकाशमय हो ही जाता है। *तो यह कार्य सदा याद रखो और अपने आपको रोज चेक करो कि मैं मास्टर ज्ञान सूर्य प्रकाशमय हूँ! जैसे आग बुझाने वाले स्वयं आग के सेक में नहीं आते ऐसे सदा अंधकार दूर करने वाले अंधकार में स्वयं नहीं आ सकते। तो 'मैं मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ यह नशा व खुशी सदा रहे'।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  वह अनुभव, वह अन्तिम स्थिती की परख अपने आप में देखो कि कहाँ तक अन्तिम स्थिति के नजदीक है। जैसे सूर्य अपने जब पूरे प्रकाश में आ जाता है तो हर चीज स्पष्ट देखने में आती है। जो अन्धकार है, धूंध है वह सभी खत्म हो जाते है। *इसी रीती जब सर्वशक्तिवान ज्गान सूर्य के साथ अटुट सम्बन्ध है तो अपने आप में भी ऐसे ही हर बात स्पष्ट देखने में आयेगी*।

 

✧  *जो चलते - चलते पुरुषार्थ में माया का अंधकार वा धुंध आ जाता है, जो सत्य बात को छिपाने वाले हैं, वह हट जायेंगे*। इसके लिए सदैव दो बातें याद रखना। आज के इस अलौकिक मेले में जो सभी बच्चे आये हैं। वह जैसे लौकिक बाप अपने बच्चों को मेले में ले जाते हैं तो जो स्नेही बच्चे होते हैं उनको कोई-न-कोई चीज लेकर देते हैं।

 

✧  तो बापदादा भी आज के इस अनोखे मेले में आप सभी बच्चों को कौन - सी अनोखी चीज देंगे? *आज के इस मधुर मिलन के मेले का यादगार बापदादा क्या दे रहे हैं कि सदैव शुभ चिंतक और शुभ चिंतन में रहना*। शुभ चिंतक और शुभ चिंतन। यह दो बातें सदैव याद रखना।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  शुद्ध संकल्प स्वरूप स्थिति का अनुभव करते हो? जबकि अनेक संकल्पों की समाप्ति होकर एक शुद्ध संकल्प रह जाता है, इस स्थिति का अनुभव कर रही हो? इस स्थिति को ही शक्तिशाली, सर्व कर्म-बन्धनों से न्यारी और प्यारी स्थिति कहा जाता है। ऐसी न्यारी और प्यारी स्थिति में स्थित होकर फिर कर्म करने के लिए नीचे आते हैं। *जैसे कोई का निवास-स्थान ऊँचा होता है, लेकिन कोई कार्य के लिए नीचे उतरते हैं तो नीचे उतरते हुए भी अपना निजी स्थान नहीं भूलते हैं। ऐसे ही अपनी ऊँची स्थिति अर्थात् असली स्थान को क्यों भूल जाते हो? ऐसे ही समझकर चलो कि अभी-अभी अल्पकाल के लिए नीचे उतरे हैं कार्य करने अर्थ, लेकिन सदाकाल की ओरिजिनल स्थिति वही है।* फिर कितना भी कार्य करेंगे लेकिन कर्मयोगी के समान कर्म करते हुए भी अपनी निज़ी स्थिति और स्थान को भूलेंगे नहीं।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल :- कदम-कदम पर बाप से राय लेते रहना"*

➳ _ ➳ *मैं आत्मा एकांत में बैठ अपने मुस्कुराते हुए भाग्य को देख रही हूँ...* कितना सुन्दर भाग्य है मुझ आत्मा का... जो इस संगमयुग में हर पल भगवान के संग-संग रहती हूँ... सदा भगवान् की छत्रछाया, भगवान् का साथ, भगवान् की मदद का अनुभव करती हूँ... *स्वयं भगवान अपना परमधाम छोडकर, मुझे परम ज्ञान देकर, परम योगी बनाकर, परम पद देने के लिए ब्रह्मा तन में अवतरित हुए हैं... मैं आत्मा अपना सब समाचार देने, बाबा से श्रीमत लेने पहुँच जाती हूँ अव्यक्त वतन में अव्यक्त बापदादा के पास...*

❉ *कदम कदम पर श्रीमत पर चलने की शिक्षा देते हुए ब्रह्मा बाबा के मस्तक पर चमकते हुए प्यारे शिव बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... इस पराये देश परायी सी दुनिया के भूल भुलैया के खेल में... स्वयं के सच्चे स्वरूप और असली घर को ही भूलकर... दुखो का पर्याय बन गए हो... *अब सच्चे पिता की सच्ची श्रीमत पर चलकर... वही तेजस्वी स्वरूप को पुनः पा लो... और मीठे सुखो के मधुमास में खुशनुमा जीवन के अधिकारी बन मुस्कराओ...”*

➳ _ ➳ *बापदादा की शिक्षाओ को धारण कर खुशनुमा फूलों से सजते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा देह को ही अपना वास्तविक स्वरूप समझकर दुखो के दलदल में धँस गई थी... *आपने प्यारे बाबा मुझे अपनी श्रीमत का हाथ देकर सदा का सुखी बनाया है... श्रीमत को बाँहों में लेकर मै आत्मा ख़ुशी के आसमान में उड़ रही हूँ...”*

❉ *मुझे अपने मखमली गोद में बिठाकर वरदानों से नवाजते हुए मीठे प्यारे बापदादा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *हर कदम को मीठे बाबा की यादो और श्रीमत को रखकर... बेफिक्र बादशाह बनकर मुस्कराओ... बाबा की श्रीमत भरा हाथ हाथो में थामकर निश्चिन्त हो इठलाओ... अपनी हर साँस संकल्प को श्रीमत प्रमाण चलाओ...* और सुंदर देवताई संस्कारो को दामन में सजाओ...”

➳ _ ➳ *सच्चे प्यार के साये में बाबा के हर कदम में कदम रख चलते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा आपका साथ और साया पाकर कितनी भाग्यशाली बन गई हूँ...* प्यारे बाबा आपके बिना मै आत्मा... कितनी निराश थकी और टूटी सी हो उठी थी... *आपके प्यार और श्रीमत ने पुनः मुझे रूहानी फूल सा खिला दिया है...”*

❉ *निराकार बाबा, साकार बाबा के द्वारा अलौकिक दिव्य ज्ञान देते हुए मुझसे कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... मनुष्य मतो पर चलकर जीवन के खोखलेपन और शक्तिहीनता के गहरे अनुभवी हो गए हो... अब श्रीमत पर चलकर खुद ही खुद पर दया करो... *ईश्वर पिता जो सुख और खजाने हाथो में ले आया है उनके अधिकारी बन सुन्दरतम जीवन को पाओ... हर कदम श्रीमत प्रमाण ही उठाओ...”*

➳ _ ➳ *बापदादा के प्यार में अतीन्द्रिय सुखों के झूलों में झूलते हुए मैं तकदीरवान आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय ज्ञान को पाकर कितनी मीठी ख़ुशी से भर उठी हूँ... *प्यारे बाबा, जीवन कितना सरल प्यारा और श्रेष्ठ हो गया है... और ईश्वरीय हाथो में सदा का सुरक्षित हो गया है... आपकी श्रीमत ने मुझे दुखो की गुलामी से मुक्त करा दिया है...”*

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सदा खुशी रहे कि अभी हमारी वानप्रस्थ अवस्था है, हम वापस घर जा रहें हैं*

➳ _ ➳  वाणी से परे अपने स्वीट साइलेन्स होम में जाकर, वानप्रस्थ स्थिति का अनुभव करने के लिए, अंतर्मुखता की गुफा में बैठ, मन और मुख का मौन धारण कर, एकांतवासी बनते ही मैं अनुभव करती हूँ कि जैसे सम्पूर्ण मौन की शक्ति धीरे - धीरे मेरे अन्दर एक अद्भुत आंतरिक बल का संचार कर रही है। *यह आंतरिक बल मेरे शरीर के भिन्न - भिन्न अंगों में बिखरी हुई मेरी सारी चेतना को समेटने लगा है। शरीर का एक - एक अंग जैसे शिथिल होने लगा है और श्वांसों की गति बिल्कुल धीमी हो गई है*। अपने शरीर मे आये इस परिवर्तन को महसूस करते हुए मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे धीरे - धीरे मैं सवेंदना शून्य होती जा रही हूँ और देह के भान से परे एक अति आनन्दमयी स्थिति में स्थित हो गई हूँ।

➳ _ ➳  इस अति खूबसूरत स्थिति में मैं स्वयं को एक प्वाइंट ऑफ लाइट के रूप में देख रही हूँ जिसमे से निकल रही लाइट और माइट मन को तृप्त कर रही है। ये प्वाइंट ऑफ लाइट एक अति सूक्ष्म शाइनिंग स्टार के रूप में मेरे मस्तक पर चमकती हुई मुझे अनुभव हो रही है। *मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से अपने इस अति सुंदर स्वरूप को निहारते हुए मैं गहन आनन्द के सुखद अनुभव में डूबती जा रही हूँ*। देह के हर आकर्षण से मुक्त करता मेरा ये मन को लुभाने वाला स्वरूप जिससे मैं आज दिन तक अनजान थी उस स्वरूप का अनुभव करवाने वाले अपने प्यारे पिता का दिल से मैं बार - बार शुक्राना करती हूँ और अपने इस स्वरूप का भरपूर आनन्द लेते - लेते उनकी मीठी याद में खो जाती हूँ जो मुझे सेकण्ड में वाणी से परे मेरे निर्वाण धाम घर मे ले जाती है।

➳ _ ➳  अपने प्यारे पिता के इस निर्वाण धाम घर मे आकर मैं वाणी से परे वानप्रस्थ स्थिति का अनुभव कर रही हूँ। *एक गहन शांति, एक गहन निस्तब्धता इस शांतिधाम घर मे छाई  हुई है जो शांति की दिव्य अनुभूति करवाकर मेरी जन्म - जन्म से शांति की तलाश में भटकने की सारी वेदना को मिटाकर मुझे असीम सुकून दे रही है*। ऐसा लग रहा है जैसे शांति की शीतल लहरें दूर - दूर से आकर बार - बार मुझ आत्मा को स्पर्श करके अपनी सारी शीतलता मेरे अंदर समाकर चली जाती हैं। इन शीतल लहरों की शीतलता को स्वयं में समाते - समाते अब मैं शान्ति के सागर अपने प्यारे पिता के समीप जा रही हूँ।

➳ _ ➳  वो शांति का सागर मेरा प्यारा पिता जो अपनी अनन्त शक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरा आह्वान कर रहा है। अपने उस शांति सागर प्यारे पिता के पास पहुँच उनकी किरणों रूपी बाहों में जा कर मैं समा जाती हूँ। *उनकी शक्तिशाली किरणों के रूप में उनके अविरल प्रेम की अनन्त धाराएं मेरे ऊपर बरसने लगती हैं और अपने अथाह प्रेम से मुझे तृप्त करने लगती हैं*। बीज रूप स्थिति में स्थित होकर बीज रूप अपने प्यारे बाबा से यह मंगल मिलन मनाना मन को एक गहन परमआनन्द की अनुभूति करवा रहा है। बाबा से आती सर्वशक्तियों की किरणों की मीठी - मीठी फुहारे मेरे अंदर असीम बल भर रही हैं

➳ _ ➳  अपने प्यारे पिता के निष्काम प्रेम और उनकी शक्तियों का बल स्वयं में भरकर, अपने स्वीट साइलेन्स होम में अपने प्यारे *बाबा के साथ बिताए अनमोल पलों को मीठी यादो के रूप में अपने मन और बुद्धि में सँजो कर, अब मैं वापिस पार्ट बजाने के लिए आवाज की दुनिया में वापिस लौट आती हूँ और आकर अपनी देह में भृकुटि के अकाल तख्त पर विराजमान हो जाती हूँ*। देह का आधार लेकर, साकार सृष्टि पर अपना पार्ट बजाते हुए इस बात को अब मैं सदा स्मृति में रखती हूँ कि यह मेरी वानप्रस्थ अवस्था है और मुझे वाणी से परे स्वीट होम जाना है। यह स्मृति देह में रहते भी मुझे देह से न्यारा और प्यारा अनुभव करवाती है।

➳ _ ➳  *देह और देही दोनों को अलग - अलग देखते हुए अशरीरी बनने का अभ्यास बार - बार करने से अब मैं देह और देह की दुनिया से सहज ही उपराम होती जा रही हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं स्नेह और सहयोग की विधि द्वारा यज्ञ सहयोगी बनने वाली आत्मा हूँ।*
✺   *मैं सहज योगी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ *मैं आत्मा समय और शक्ति के व्यर्थ जाने से सदैव मुक्त हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदा पहले सोचती और पीछे करती हूँ ।*
✺ *मैं समर्थ आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा देखत है मातायें चाहे पाण्डव, बापदादा के सर्व सम्बन्धों से, प्यार तो सर्व संबंधों से हैं लेकिन किसको कौन-सा विशेष संबंध प्यारा है, वह भी देखते हैं। कई बच्चों को खुदा को दोस्त बनाना बहुत अच्छा लगता है। इसीलिए खुदा दोस्त की कहानी भी है। *बापदादा यही कहते, जिस समय जिस संबंध की आवश्यकता हो तो भगवान को उस संबंध में अपना बना सकते हो। सर्व संबंध निभा सकते हो। बच्चों ने कहा बाबा मेरा, और बाप ने क्या कहा, मैं तेरा।*

 

✺   *ड्रिल :-  "बापदादा के साथ सर्व सम्बन्धों का अनुभव"*

 

 _ ➳  स्थूल आँखों से बाबा के चित्र को निहारते निहारते मैं आत्मा अपने आप से बातें करती हूं... और सोचती हूं, कि आज जो भी कुछ हूं सब बाबा आपसे ही तो हूं... मेरे सब कुछ आप ही तो हो... *तपती धूप में छांव बनकर तूफानों में मांझी बनकर हर कदम पर मेरा हाथ पकड़ा है... और खो जाती हूं ईश्वर पिता से मिली प्राप्तियों में...*

 

 _ ➳  *"तुम्हीं हो माता पिता तुम्हीं हो, तुम्हीं हो बंधु सखा तुम्हीं हो..."* भक्ति मार्ग का ये गीत इस समय कितना सार्थक है..  *संगमयुग के इस स्वर्णिम समय में मैं आत्मा कितनी भाग्यवान हूँ... जिसे स्वयं भगवान ने अपना बनाया है... मुझे शिव पिता की छत्रछाया और ब्रह्मा मां की गोद मिली है...* वाह! वाह! "बनाया प्रभु ने है अपना, मिला सुख हमें है कितना..." *सर्वशक्तिमान की मैं संतान मास्टर सर्वशक्तिमान हूं...* इतना सोचने भर से ही रास्ते की सारी बाधाएँ दूर हो जाती हैं... *इतने शक्तिशाली पिता का हाथ मेरे सर पर है... अहो सौभाग्य!*

 

 _ ➳  *शिक्षक के रूप में बाबा हर पल मुझे समझानी देते हैं... मैं आत्मा उस श्रीमत पर चल अपना भाग्य बना रही हूं... और सतगुरू के रूप में मेरी जीवन नैया पार लगाने वाले हैं... मेरे खेवनहार... मेरे मांझी... मेरी पतवार... सब आप ही तो हो...* सतगुरू मैं तेरी पतंग हवा में उड़ती जाऊंगी बाबा ड़ोर  हाथों से छोड़ना मत नहीं तो कट जाऊँगी... और बाबा ये सुन मीठी मीठी मुस्कान दे देते हैं...

 

 _ ➳  *कभी सखा बन मेरे साथ खेलते हैं... कभी बड़ा भाई बन कदम कदम पर सम्भालते हैं...* मन की आँखों से जब भी देखती हूं उन्हें अपने साथ खड़ा पाती हूँ... *बालक के रूप में कोई भी कार्य सौपती हूं... तो आज्ञाकारी बालक के समान तुरंत पूरा करते हैं... और तो और मेरे शिव पिया सर्व गुणों से अपनी आत्मा सजनिया का श्रृंगार कर मुझे सम्पूर्ण बना रहे हैं...* अपने प्यार से मुझ आत्मा को हर सम्बंध से भरपूर कर रहे हैं...

 

 _ ➳  इन ईश्वरीय सम्बन्धों में जुडने के बाद, इनके रस को चखने के पश्चात मुझ आत्मा को सब दुनियावी सम्बन्द्ध खोखले नजर आ रहे हैं... *मैं आत्मा इसी ईश्वरीय नशे में रह अब अपने लौकिक अलौकिक सम्बंध निभा रही हूं... इससे मेरे सर्व सम्बन्धों में भी अलौकिकता झलकने लग गई है... उनमें एक मधुरता एक अलग सी मिठास आ गई है...* जिंदगी पहले तो कभी इतनी खूबसूरत नहीं लगी... बाबा आपने तो मुझे खूबसूरत बना दिया...

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा की बगिया की रूहे गुलाब बन गई हूं... मुझसे अब सबको रूहानियत आती अनुभव हो रही है...*इतने सुंदर अनुभवों और प्राप्तियों के लिए, बाबा आपका जितना भी धन्यवाद करूं, वो कम

है... *मीठे मीठे बाबा... मेरे प्यारे बाबा...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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