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❍ 22 / 02 / 21 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *ड्रामा का आदि मध्य अंत का ज्ञान बुधी में रहा ?*
➢➢ *नयी दुनिया को याद कर सदा ख़ुशी में रहे ?*
➢➢ *एक साथ मन वचन कर्म से सेवा की ?*
➢➢ *अपने शक्ति से बुरे को अच्छे में बदला ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *अभी मन्सा की क्वालिटी को बढ़ाओ तो क्वालिटी वाली आत्मायें समीप आयेंगी। इसमें डबल सेवा है - स्व की भी और दूसरों की भी।* स्व के लिए अलग मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। प्रालब्ध प्राप्त है, ऐसी स्थिति अनुभव होगी। *इस समय की श्रेष्ठ प्रालब्ध है ‘‘सदा स्वयं सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न रहना और सम्पन्न बनाना’’।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं सारे विश्व के अंदर विशेष आत्मा हूँ"*
〰✧ सारे विश्व में विशेष आत्मायें हैं, यह स्मृति सदा रहती है? *विशेष आत्माएं सेकण्ड भी एक संकल्प, एक बोल भी साधारण नहीं कर सकती। तो यही स्मृति सदा समर्थ बनाने वाली है। समर्थ आत्मायें हैं, विशेष आत्मायें हैं यह नशा और खुशी सदा रहे। समर्थ माना व्यर्थ को समाप्त करने वाले।*
〰✧ जैसे सूर्य अन्धकार और गन्दगी को समाप्त कर देता है। *ऐसे समर्थ आत्मायें व्यर्थ को समाप्त कर देती हैं। व्यर्थ का खाता खत्म, श्रेष्ठ संकल्प, श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ बोल, सम्पर्क और सम्बन्ध का खाता सदा बढ़ता रहे। ऐसा अनुभव है! हम हैं ही समर्थ आत्मायें यह स्मृति आते ही व्यर्थ खत्म हो जाता।* विस्मृति हुई तो व्यर्थ शुरू हो जायेगा। स्मृति स्थिति को स्वत: बनाती हैं। तो स्मृति स्वरूप हो जाओ। स्वरूप कभी भी भूलता नहीं। आपका स्वरूप है स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप। बस यही अभ्यास और यही लगन। इसी लगन में सदा मग्न - यही जीवन है।
〰✧ कभी भी किसी परिस्थिति में वायुमण्डल में उमंग-उत्साह कम होने वाला नहीं। सदा आगे बढ़ने वाले। क्योंकि संगमयुग है ही उमंग-उत्साह प्राप्त कराने वाला। *यदि संगम पर उमंग-उत्साह नहीं होता तो सारे कल्प में नहीं हो सकता। अब नहीं तो कब नहीं। ब्राह्मण जीवन ही उमंग-उत्साह की जीवन है। जो मिला है वह सबको बाँटे यह उमंग रहे। और उत्साह सदा खुशी की निशानी है। उत्साह वाला सदा खुश रहेगा। उत्साह रहता - बस, पाना था वो पा लिया।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *मन के ऊपर ऐसी कन्ट्रोलिंग पॉवर हो, जैसे यह स्थूल कर्मेन्द्रियाँ हाथ हैं, पाँव है, उसको जब चाहो जैसे चाहो वैसे कर सकते हो, टाइम लगता है क्या!* अभी सोचो हाथ ऊपर करना है, टाइम लगेगा? कर सकते हो ना! अभी बापदादा कहे हाथ ऊपर करो, तो कर लेंगे ना! करो नहीं, कर सकते हो।
〰✧ *ऐसे मन के ऊपर इतना कन्ट्रोल हो, जहाँ एकाग्र करने चाहो, वहाँ एकाग्र हो जाए।* मन चाहे हाथ, पाँव से सूक्ष्म है लेकिन है तो आपका ना! मेरा मन कहते हो ना, तेरा मन तो नहीं कहते हो ना! तो *जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियाँ कन्ट्रोल में रहती हैं, ऐसे ही मन-बुद्धि-संस्कार कन्ट्रोल में हो तब कहेंगे नम्बरवन विजयी।*
〰✧ साइन्स वाले तो राकेट द्वारा व अपने साधनों द्वारा इसी लोक तक पहुँचते हैं, ज्यादा में ज्यादा ग्रह तक पहुँचते हैं। लेकिन आप ब्राह्मण आत्मायें तीनों लोक तक पहुँच सकते हो। सेकण्ड में सूक्ष्म लोक, निराकारी लोक और स्थूल में मधुबन तक तो पहुँच सकते हो ना! *अगर मन को ऑर्डर करो मधुबन में पहुँचना है तो सेकण्ड में पहुँच सकते हो? तन से नहीं, मन से।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ जैसे बुद्धि से छोटा बिन्दु खिसक जाता है। ऐसे यह छोटा बिन्दु भी हाथ से खिसक जाता है। *जितना-जितना अपने देह से न्यारे रहेंगे उतना समय बात से भी न्यारे। जैसे वस्त्र उतारना और पहनना सहज है कि मुश्किल?* इस रीति न्यारे होंगे तो शरीर के भान में आना, शरीर के भान से निकलना यह भी ऐसे लगेगा। *अभी-अभी शरीर का वस्त्र धारण किया, अभी-अभी उतारा। मुख्य पुरुषार्थ इस विशेष बात पर करना है। जब यह मुख्य पुरुषार्थ करेंगे तब मुख्य रत्नों में आयेंगे।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप से सतयुगी बादशाही का वर्सा लेना"*
➳ _ ➳ *शिवबाबा परमधाम से आकर, मेरे दामन में सुखों के... खुशियों के फूल बिखेरेंगे... मुझे अपना बनाकर... इस कदर मेरा ख्याल रखेंगे... अपनी श्रीमत देकर, पुरानी दुनिया के दुःख भरे जंजाल से निकाल... सुखों की बाड़ सजाकर... मुझे खिलता हुआ रूहानी गुलाब सा महकाएँगे...* ऐसा तो मैने कभी सोचा भी न था... मैं तो इस सांसारिक दुनिया के चक्कर में फंसकर उन्हें भूल गयी थी... लेकिन उन्होंने सदा मेरा ध्यान रखा... बस इस मीठे चिंतन ने आँखों को भिगो दिया... और भीगी पलकें लिए प्यार के सागर बाबा को निहारने मैं आत्मा... वतन में उड़ चली...
❉ *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को उज्ज्वल भविष्य का आधार श्रीमत को समझाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सदा यह याद रखो कि *तुम बच्चे ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा से स्वर्ग की बादशाही पाने के लिये राजयोग सीख रहे हो... शिवबाबा तुमको जो समझाते हैं... वह फिर तुम्हें औरों को समझाना है...* जैसे तुम निरन्तर एक बाप की याद में रह... हर कर्म करते हो... वैसे ही सभी आत्माओं को बाप का परिचय दे... इस संगमयुग के महत्व को समझाओ... उन्हे भी सतयुगी वर्से का अधिकारी बनाओ..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा प्यारे बाबा के सच्चे प्यार में सुख स्वरूप आत्मा बनकर कहती हूँ :-* "मेरे मीठे मीठे अविनाशी बाबा... *मुझे इस जीवन में आप... अविनाशी साजन के रूप में... प्रेम करने का श्रेष्ठ अवसर मिला... खुद भगवान ने आकर मुझे अपनी प्रियतमा बनाया... वाह!! यह तो मेरा परम् सौभाग्य है... जो मुझे अविनाशी साजन मिला है...* मैं आप द्वारा सिखाये राजयोग का अभ्यास... आदि-मध्य-अंत का ज्ञान... सभी आत्माओं को बता रही हूँ..."
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को विश्व कल्याणकारी की भावना से ओतप्रोत बनाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता को पाकर, जिन सच्ची खुशियों को, मीठे सुखों को, आप बच्चों ने पाया है... इन मीठी खुशियों से हर दिल आंगन को भर आओ... सबके कौड़ी जैसे जीवन को हीरे तुल्य बनाने की कला सिखा दो... *सबके जीवन में सुखों की बहारों को खिलाने वाले... सदा के सुखदाई बन, मीठे बाबा के दिल में मुस्कराओ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा प्यारे बाबा की अमूल्य शिक्षाओं को अपने दिल में गहरे समाकर कहती हूँ :-* "मीठे बाबा... मैं आत्मा आपके मीठे प्यार में, असीम सुखों की अनुभूतियों से भरकर... *आपसे प्राप्त वर्से के अनुभव की दौलत को हर दिल पर... दिल खोलकर... लुटा रही हूँ...* अपने प्यारे बाबा का परिचय... हर दिल को देकर... सबको आप समान खुशियों की अधिकारी बना रही हूँ..."
❉ *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा में श्रेष्ठ संस्कारो को पक्का कराते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे राजदुलारे बच्चे... *शिवपिता से जो आपने... अपने आत्मिक सत्य को जाना है... उस परम सत्य को सदा स्मृति में रखना... अर्थात स्मृति स्वरूप बन सदा ईश्वरीय नशे में रह हर आत्मा को इस परम् सत्य से रूबरू करवाना...* तो तुम्हारा यह जीवन सहज ही सफल हो जायेगा..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ईश्वरीय यादों के खजानों से सम्पन्न होकर, मीठे बाबा से कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा... आपने मुझ आत्मा के जीवन में आकर, मुझ आत्मा को विश्व कल्याण की सुंदर भावना से भर दिया है... *मैं आत्मा हर पल सबको सुख देने की भावना दिल में लिये हुए हूँ... सबको मीठे बाबा से मिलवाकर, सबके जीवन में आनंद और खुशियों के फूल खिला रही हूँ...* बेहद के पिता का परिचय देकर... सबके जीवन को सुख भरी मुस्कान से सजा रही हूँ... *मीठे बाबा को अपनी मीठी भावनायें सुनाकर मैं आत्मा... अपने कर्म क्षेत्र पर आ गयी..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अपनी नई दुनिया को याद कर सदा खुशी में रहना है*"
➳ _ ➳ अपने लाइट माइट स्वरुप में मैं फ़रिश्ता धरती के आकर्षण से मुक्त होकर, ऊपर की और उड़ता जा रहा हूँ। *सारे विश्व की सैर करने की इच्छा से मैं फ़रिश्ता अब पूरे विश्व का चक्कर लगाते हुए ऊपर आकाश में पहुँच नीचे धरती के खूबसूरत नजारों को देखता जा रहा हूँ*। ऊँचे - ऊँचे पहाड़ों के बीच से होता हुआ, कल - कल करती नदियों, झर - झर बहते झरनों के मधुर स्वर सुनता हुआ प्रकृति के सुन्दर नजारों का मैं आनन्द ले रहा हूँ। धरती आकाश में उन्मुक्त होकर विचरण करते - करते अचानक मेरी निगाह उन सभी बॉर्डर लाइन्स पर चली जाती है जो एक देश को दूसरे देश से अलग कर रही हैं।
➳ _ ➳ इस दृश्य को देख मैं फ़रिश्ता मन ही मन विचार करता हूँ कि आज देह अभिमान में आ कर मनुष्यों ने इस धरती आकाश का भी बटवारा कर दिया है। एक देश दूसरे देश की सीमा में प्रवेश नही कर सकता। धर्म, जाति के नाम पर कितने लड़ाई झगड़े होते हैं। किन्तु ये सब अब समाप्त होने वाला है। *इस कलयुगी दुनिया की घनघोर अंधेरी रात समाप्त हो, सतयुगी सवेरा बस अब आने ही वाला है। और कितना खूबसूरत होगा वो सवेरा जब धरती आसमान सब पर हमारा अधिकार होगा*। एक धर्म, एक राज्य, एक भाषा, एक मत होगा। सब आपस मे मिलजुल कर रहेंगे। कोई ईर्ष्या द्वेष, नफरत की भावना नही होगी। आपस मे भाईचारा होगा।
➳ _ ➳ इन्ही शुद्ध और श्रेष्ठ संकल्पो के साथ मन ही मन उस दैवी दुनिया की कल्पना करता हुआ मैं फ़रिश्ता अनुभव करता हूँ जैसे विश्व का मालिक बनाने वाले, स्वर्ग के रचयिता मेरे शिव पिता अव्यक्त ब्रह्मा बाबा के आकारी तन में विराजमान हो कर मेरे सम्मुख उपस्थित हो गए हैं और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने साथ ले कर जा रहें हैं। *बापदादा के साथ अब मैं फिर से सारी दुनिया की सैर कर रहा हूँ और देख रहा हूँ बापदादा की दृष्टि पड़ते ही सारी बॉर्डर लाइन्स समाप्त हो गई है*। पूरी धरती और आकाश एक दिखाई दे रहें हैं। किसी चीज का कोई बटवारा नही। सारा विश्व एक बहुत खूबसूरत दुनिया में परिवर्तित हो चुका है।
➳ _ ➳ इस अति खूबसूरत दुनिया में मुझे छोड़, बापदादा मेरी आँखों के सामने से ओझल हो जाते हैं और मैं इस अति सुंदर मनभावन दुनिया मे प्रवेश कर जाता हूँ। *इस दुनिया मे प्रवेश करते ही मैं अनुभव करता हूँ जैसे मेरी काया एक दम कंचन के समान चमकने लगी है। और मैं विश्व महाराजन की पोशाक पहन इस दुनिया पर राज कर रहा हूँ*। डबल ताज धारण किये दैवी गुणों वाले मनुष्यों की इस खूबसूरत दुनिया में सुख, शांति, सम्पन्नता भरपूर है। सभी के चेहरे एक दिव्य आभा से दमक रहें हैं। *राजा, प्रजा सभी खुशहाल है और बड़े प्रेम से सभी आनन्द और खुशी से अपना जीवन यापन कर रहें हैं*।
➳ _ ➳ इस खूबसूरत मनभावन स्वर्ग के अपने भविष्य जीवन का भरपूर आनन्द लेकर अब मैं अपने लाइट माइट स्वरूप के साथ वापिस अपनी कर्मभूमि पर आती हूँ और अपने सूक्ष्म शरीर के साथ 5 तत्वों के बने अपने स्थूल शरीर मे प्रवेश कर फिर से अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। *अपने वर्तमान ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों का भरपूर आनन्द लेते हुए अपने भविष्य जीवन की अनन्त प्राप्तियों को सदैव स्मृति में रख अब मैं सदा उमंग उत्साह के पंखों पर सवार होकर उड़ती रहती हूँ। धरती आसमान सब पर हमारा अधिकार होगा इस नशे और खुशी में रहते हुए, बेफिक्र बादशाह बन, संगमयुग के हर पल का मैं भरपूर आनन्द ले रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं एक साथ तीन रूप में सेवा करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं मास्टर त्रिमूर्ति आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं ऊंच ब्राह्मण आत्मा हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदैव अपनी शक्ति से बुरे को अच्छे में बदल देती हूँ ।*
✺ *मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *सभी का लक्ष्य बाप समान बनने का है। तो सारे दिन में यह ड्रिल करो - मन की ड्रिल।* शरीर की ड्रिल तो शरीर के तन्दरूस्ती के लिए करते हो, करते रहो क्योंकि आजकल दवाईयों से भी एक्सरसाइज आवश्यक है। वह तो करो और खूब करो टाइम पर। सेवा के टाइम एक्सरसाइज नहीं करते रहना। बाकी टाइम पर एक्सरसाइज करना। *जब बाप समान बनना है तो एक है - निराकार और दूसरा है - अव्यक्त फरिश्ता। तो जब भी समय मिलता है सेकण्ड में बाप समान निराकारी स्टेज पर स्थित हो जाओ, बाप समान बनना है तो निराकारी स्थिति बाप समान है। कार्य करते फरिश्ता बनकर कर्म करो, फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट। कार्य का बोझ नहीं हो। कार्य का बोझ अव्यक्त फरिश्ता बनने नहीं देगा।*
➳ _ ➳ *तो बीच-बीच में निराकारी और फरिश्ता स्वरूप की मन एक्सरसाइज करो तो थकावट नहीं होगी। जैसे ब्रह्मा बाप को साकार रूप में देखा - डबल लाइट। सेवा का बोझ नहीं।अव्यक्त फरिश्ता रूप। तो सहज ही बाप समान बन जायेंगे। आत्मा भी निराकार है और आत्मा निराकार स्थिति में स्थित होगी तो निराकार बाप की याद सहज समान बना देगी।* अभी-अभी एक सेकण्ड में निराकारी स्थिति में स्थित हो सकते हो? हो सकते हो? (बापदादा ने ड्रिल कराई) यह अभ्यास और अटेन्शन चलते-फिरते, कर्म करते बीच-बीच में करते जाना। तो *यह प्रैक्टिस मन्सा सेवा करने में भी सहयोग देगी और पावरफुल योग की स्थिति में भी बहुत मदद मिलेगी।*
✺ *ड्रिल :- "निराकारी और फरिश्ता स्वरूप की मन की एक्सरसाइज करना"*
➳ _ ➳ नीले गगन में भोर से कुछ पहले चन्द्रमा की शीतल चांदनी के साथ टिमटिमाते इका दुक्का सितारे अभी भी नभ में छाए हुए हैं... मैं आत्मा एकटक एक चमकीले सितारे को निहार रही हूं... ये तेज चमकता सितारा कल्पना मे लाती हूं... *अपने पारलौकिक पिता का निराकारी स्वरूप समस्त ब्रह्मांड का इकलौता अलौकिक सितारा जिसके आगे नभ मण्डल के सब सितारे एक साथ आ जायें तो भी उनकी चमक फीकी है... ऐसा है मेरा प्यारा निराकारी शिव बाबा...*
➳ _ ➳ *स्थूल देह से निकल निराकारी स्वरूप में... बादलों से ऊपर... चांद सितारों से भी आगे... मैं आत्मा उड़ चली मूल वतन की ओर... मिलन मनाने अपने जन्म जन्मांतर के बिछड़े साथी से...* पहुँचती हूं, मैं आत्मा अपने घर में... कितनी अद्भुत छटा है इसकी! *बाबा अपनी किरणें फैलाये मेरा स्वागत करते हैं... इन किरणों रूपी बाहों से लिपट... मैं आत्मा उस अतीन्द्रिय सुख में खो जाती हूं... असीम शान्ति मेरे अंदर भरती जा रही है...*
➳ _ ➳ अपनी अनंत किरणें बाहें सा पसार कर... गुण शक्तियों की माला पहनाकर... *निराकार शिव पिता मुझे अपनी किरणों रूपी बाहों में समाए लेकर चलते हैं मुझे एक और अलौकिक अनुभव कराने पहुंचते हैं... सूक्ष्म वतन में जहाँ बापदादा मुझे सजाते हैं... फ़रिश्ताई ड्रेस में... जिसे पहन मैं फ़रिश्ता डबल लाइट स्थिति का अनुभव करती हूं...*
➳ _ ➳ *बाबा की छत्रछाया तले बैठ, मैं फ़रिश्ता अपने को बहुत शक्तिशाली पाता हूँ...* इस हल्केपन को प्राप्त कर... मैं फ़रिश्ता उड़ के जाता हूँ... साकारी दुनिया के ऊपर... और विश्व की सभी आत्माओं को बाबा से प्राप्त प्रेम, आनन्द और पवित्रता की किरणें दे रहा हूं... *बाबा की अनुभूति मात्र से ही समस्त आत्माएँ आनन्द विभोर हो उठी हैं...*
➳ _ ➳ *कितना आनन्दमयी अनुभव है ये निराकारी और फरिश्ते स्वरूप का... एकदम हल्का... निर्बोझ स्थिति... अंतर्मन में शांति ही शान्ति, मैं अपने आत्मिक स्वरूप में एकदम सरलचित्त आनंदचित्त अनुभव कर रही हूं...* और इसी स्वरूप में टिके रहना चाहती हूं बार बार... *पल में निराकारी पल में फ़रिश्ता बाप समान बनने का ये अनुभव बड़ा निराला है... अब मैं यह अभ्यास मन को लगातार करवाती हूं... और इसी अभ्यास से मनसा सेवा को निर्विघ्न करती हूं... धन्यवाद मीठे बाबा प्यारे बाबा...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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