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 26 / 02 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *किसी के पार्ट से रीस तो नहीं की ?*

 

➢➢ *"मैं इस शरीर की कर्मेन्द्रियो से अलग हूँ" - यह अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *सदा देह अभिमान और देह की बदबू से दूर रहे ?*

 

➢➢ *अपने तन मन धन को सफल किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  कोई भी स्थूल कार्य करते हुए मन्सा द्वारा वायब्रेशन्स फैलाने की सेवा करो। *जैसे कोई बिजनेसमेन है तो स्वपन में भी अपना बिजनेस देखता है, ऐसे आपका काम है-विश्व-कल्याण करना। यही आपका आक्यूपेशन है, इस आक्यूपेशन को स्मृति में रख सदा सेवा में बिजी रहो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बेगमपुर का बादशाह हूँ"*

 

✧  सभी बेगमपुर के बादशाह, गमों से परे सुख के संसार का अनुभवी समझते हुए चलते हो? पहले दु:ख के संसार के अनुभवी थे, अभी दु:ख के संसार से निकल सुख के संसार के अनुभवी बन गये। *अभी एक सुख का मंत्र मिलने से, दु:ख समाप्त हो गया। सुखदाता की सुख स्वरूप आत्माएँ हैं, सुख के सागर बाप के बच्चे हैं, यही मंत्र मिला है।*

 

  *जब मन बाप की तरफ लग गया तो दु:ख कहां से आया! जब मन को बाप के सिवाए और कहाँ लगाते हो तब मन का दु:ख होता। 'मन्मनाभव' हैं तो दु:ख नहीं हो सकता।* तो मन बाप की तरफ है या और कहाँ हैं? उल्टे रास्ते पर लगता है, तब दु:ख होता है। जब सीधा रास्ता है तो उल्टे पर क्यों जाते हो?

 

  जिस रास्ते पर जाने की मना है उस रास्ते पर कोई जाए तो गवर्मेन्ट भी दण्ड डालेगी ना। जब रास्ता बन्द कर दिया तो क्यों जाते हो? *जब तन भी तेरा, मन भी तेरा, धन भी तेरा, मेरा है ही नहीं तो दु:ख कहाँ से आया। तेरा है तो दु:ख नहीं। मेरा है तो दु:ख है। तेरा-तेरा करते तेरा हो गया।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *एक सेकण्ड में मन के मालिक बन मन को ऑर्डर कर सकते हो?* कर सकते हो? *मन को एकाग्र कर सकते हो? फुलस्टॉप लगा सकते हो कि लगायेंगे फुलस्टॉप और लग जायेगा क्वेचन मार्क?* क्यों, क्या, कैसे, यह क्या, वह क्या, आश्चर्य की मात्रा भी नहीं।

 

✧  *फुलस्टॉप सेकण्ड में प्बाइंट बन जाओ। और कोई मेहनत नहीं है, एक शब्द सिर्फ अभ्यास में लाओ 'प्बाइंट'।* प्बाइंट स्वरूप बनना है, वेस्ट को प्बाइंट लगानी है और महावाक्य जो सुनते हो उस प्बाइंट पर मनन करना है, और कोई भी तकलीफ नहीं है। प्बाइंट याद रखो, प्बाइंट लगाओ, प्बाइंट बन जाओ।

 

✧  यह अभ्यास सारे दिन में बीच-बीच में करो, कितने भी बिजी हो लेकिन यह ट्रायल करो एक सेकण्ड में प्बाइंट बन सकते हो? एक सेकण्ड में प्बाइंट लगा सकते हो? *जब यह अभ्यास बार-बार का होगा तब ही आने वाले अंतिम समय में फुल प्वाइंटस ले सकेंगे। पास विद ऑनर बन जायेंगे। यही परमात्म पढाई है, यही परमात्म पालना है।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *बिन्दु रूप में अगर ज्यादा नहीं टिक सकते तो इसके पीछे समय न गंवाओ।* बिन्दी रूप में तब टिक सकेंगे जब पहले शुद्ध संकल्प का अभ्यास होगा। अशुद्ध संकल्पों को शुद्ध संकल्पों से हटाओ। *जैसे कोई एक्सीडेन्ट होने वाला होता है। ब्रेक नहीं लगती तो मोड़ना होता है। बिन्दी रूप है ब्रेक। अगर वह नहीं लगता तो व्यर्थ संकल्पों से बुद्धि को मोड़कर शुद्ध संकल्पों में लगाओ।* कभी-कभी ऐसा मौका होता है जब बचाव के लिए ब्रेक नहीं लगाई जाती है, मोड़ना होता है। *कोशिश करो कि सारा दिन शुद्ध संकल्पों के सिवाय कोई व्यर्थ संकल्प न चले। जब यह सब्जेक्ट पास करेंगे तो फिर बिन्दी रूप की स्थिति सहज रहेगी।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺  *"ड्रिल :- सब आत्माएं एक्टर्स हैं, एक का पार्ट ना मिले दूसरे से"*

 

_ ➳  *मधुबन पाड़व भवन की बगियाँ में झूले पर बैठी मैं आत्मा मीठे रंगीले बाबा की रंगीली यादों में खो जाती हूँ... कि कैसे-कैसे रंगों से उसने मेरे बेरंग जीवन को रंगों से सजा कर खुबसूरत बनाया है... कितना उसने मुझे अपने बेपनाह प्यार से नवाजा है...* किस कदर उसने बेपनाह प्यार मुझ पर लुटाया है... कितना शानदार श्रेष्ठ मुझ आत्मा का भाग्य बनाया है... तभी अचानक रंगीले बाबा झुले पर रूबरू हो ज्ञान के रंग से मुझ आत्मा को रंगने लगते है

 

  *बेहद के महानायक मीठे बाबा ज्ञान की गोली देते हुए मुझ आत्मा से बोले :-* "मीठे लाडले बच्चे मेरे... ड्रामा का यह राज इस संगम पर आकर बाबा ने तुम्हें है समझाया... इस ड्रामा के एक-एक पन्ने में है कल्याण समाया... *इस ड्रामा में हर आत्मा का अपना-अपना पार्ट है यह गुह्य राज तुम बच्चों को है बताया इस राज को अब तुम प्रैक्टिकल जीवन में लाओ और इसका स्वरूप बन जाओ इसे बुद्धि में बिठाओ..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा से मिली इस ज्ञान की गोली को खाते हुए कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे ओ लाडले बाबा मेरे इस राज को जान कितना सुकुन मुझ आत्मा ने है पाया... *इस खेल में हर पार्टधारी का पार्ट एक दुसरे से जुदा है वाह बाबा इस राज ने मुझे बड़ा निश्चित बनाया है... इस राज को मुझ आत्मा ने बुद्धि में बिठाया है"*

 

  *ज्ञान की किरणों की रिमझिम बारिश करते हुए मीठे बाबा मुझ आत्मा से कहते है :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे मेरे बेहद बाबा की दृष्टि से तुम भी इस ड्रामा पर नजर फिराओ... *हर एक के अनादि पार्ट को जान अब तुम निश्चित अचल बन जाओ.."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा मीठे बाबा की हर बात को दिल में समाते हुए कहती हूँ :-* "मीठे ज्ञान सागर बाबा मेरे... *आपकी पनाहों में बैठ मैं आत्मा इस सृष्टि ड्रामा को आपकी नजर से देख रही हूँ...* और हर के अनादि अविनाशी पार्ट को समझ निश्चित अवस्था में टिक गयी हूँ..."

 

  *सर्व शक्तियों को मुझ आत्मा में भरते हुए मीठे बाबा मुझ आत्मा से कहते है :-* "मेरे प्यारे राजदुलारे बच्चे... सबके अविनाशी, अनादि पार्ट को जान... साक्षी हो आगे बढ़ते जाओ... *नथिग न्यू के पाठ को प्रैक्टिकल में लाओ... बनी बनाई बन बन रही है इस राज को जान अब सदा हर्षाओ हर सीन को देख वाह ड्रामा वाह के गीत गाओ..."*

 

_ ➳  *इस बेहद ड्रामा के राज को जान नशे से मैं आत्मा कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे-प्यारे बाबा मेरे... कितना सुंदर और शानदार रूप से आपने इस आनादि खेल के राज को है समझाया... हर आत्मा का अपना-अपना पार्ट है इस राज को जान साक्षी भाव मुझ आत्मा में आया है... *बेहद दृष्टि से देख रही इस ड्रामा को मैं आत्मा इसकी हर सीन में कल्याण समाया है... आपकी सुंदर सरल समझानी ने मुझे नथिग न्यू का पाठ है पक्का कराया... इस गुह्य राज को जान और मान मुझ आत्मा का है मन हर्षाया..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अभ्यास करना है - मैं इन शरीर की कर्मेन्द्रियों से अलग हूँ*

 

_ ➳  अपने प्यारे पिता के मधुर महावाक्यों को स्मृति में लाकर मैं एकांत में बैठ उन पर विचार सागर मंथन करते हुए, इस नश्वर देह और देह से जुड़े सम्बन्धों के बारे में चिंतन करते, अपने आप से ही सवाल करती हूँ कि जिस देह और देह की दुनिया, देह के सम्बन्धो, देह के पदार्थो के पीछे आज तक मैं भागती रही, उनसे मुझे क्या मिला! सिवाय दुख और अशांति के और कुछ भी इनसे मुझे प्राप्त नही हुआ। *लेकिन मेरे प्यारे बाबा ने आकर मुझे एक ही सेकण्ड में उस अविनाशी सुख और शांति को पाने का कितना सहज रास्ता बता दिया। शरीर मे होते सब से तैलुक तोड़ अशरीरी बनने का अनुभव कितना निराला कितना सुखदाई है*। सेकेण्ड में मन को सुकून और शांति देने वाला है। जिस विनाशी देह और दुनियावी सम्बन्धो में मैं रस ढूंढ रही थी उनमें कोई सार है ही नही। ये सारा संसार ही असार संसार है। *अगर सार है तो केवल अपने स्वरूप में स्थित हो अशरीरी बन अपने प्यारे पिता की याद में है*। इसलिए इस शरीर में होते हुए भी अब मुझे सबसे तैलुक तोड़, अशरीरी बनने का पुरुषार्थ निरन्तर करना है।

 

_ ➳  मन ही मन इस संकल्प को दृढ़ता का ठप्पा लगा कर अब मैं सभी बातों से अपने मन और बुद्धि को हटाती हूँ और अपने ध्यान को एकाग्र करके अशरीरी बनने का अभ्यास करती हूँ। *शरीर के सभी अंगों से धीरे - धीरे चेतना को समेट कर अपने ध्यान को अपने स्वरूप पर एकाग्र करते ही मैं स्वयं को बोडिलेस अनुभव करने लगती हूँ। स्वयं को मैं इतना रिलेक्स अनुभव कर रही हूँ कि लगता है जैसे मैं देह में हूँ ही नही*। भृकुटि के बीच चमकती एक अति सूक्ष्म ज्योति को मैं देख रही हूँ जो बहुत ही प्रकाशवान है। देह से न्यारे अपने इस अति सूक्ष्म, सुन्दर स्वरूप को देख, इसके अंदर समाये गुणों और शक्तियों का अनुभव मुझे आनन्दविभोर कर रहा है। *अपने इस स्वरूप से अनजान मैं आत्मा आज अपने इस सत्य स्वरुप का अनुभव करके तृप्त हो गई हूँ*।

 

_ ➳  मन ही मन अपने प्यारे पिता का मैं शुक्रिया अदा कर रही हूँ जिन्होंने आकर मेरे इस अति सुन्दर स्वरूप की पहचान मुझे दी। *सबसे तैलुक तोड़ अशरीरी बन अपने इस सुंदर स्वरूप को देखने और अनुभव करने का सहज तरीका यह राजयोग मुझे सिखलाकर मेरे प्यारे पिता ने मेरे जीवन को सुखमय, शांतिमय और आनन्दमय बना दिया*। अपने प्यारे बाबा का बारम्बार धन्यवाद करते हुए अब मैं अशरीरी आत्मा नश्वर देह का भी आधार छोड़ उससे बाहर निकलती हूँ और देह से पूरी तरह अलग हो कर, अपने जड़ शरीर को अपने सामने पड़ा हुआ मैं देख रही हूँ किन्तु उससे अब कोई भी अटैचमेंट मुझे महसूस नही हो रही। *साक्षी हो कर मैं उसे देख रही हूँ और धीरे - धीरे उससे दूर होती जा रही हूँ। ऊपर आकाश की ओर अब मैं उड़ रही हूँ और अपने प्यारे बाबा के पास उनके धाम जा रही हूँ*।

 

_ ➳  देह, देह की दुनिया, देह के वैभवों, पदार्थो के आकर्षण से मुक्त होकर, निरन्तर ऊपर की ओर उड़ते हुए मैं आकाश को पार करती हूँ और उससे भी परें सूक्ष्म लोक को पार कर पहुँच जाती हूँ आत्माओं की उस निराकारी दुनिया मे जहाँ मेरे मीठे शिवबाबा रहते हैं। *लाल प्रकाश से प्रकाशित, चैतन्य सितारों से सजे अपने स्वीट साइलेन्स होम में पहुँच कर मैं आत्मा एक गहन मीठी शांति का अनुभव कर रही हूँ*। मेरे पिता मेरे बिल्कुल सामने है। उनसे मिलन मनाकर मैं असीम तृप्ति का अनुभव कर रही हूँ। बड़े प्यार से अपने पिता के सुंदर मनमोहक स्वरूप को निहारते हुए मैं धीरे - धीरे उनके समीप जा रही हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में समा कर उनके अथाह निस्वार्थ प्यार से स्वयं को भरपूर कर रही हूँ। 

 

_ ➳  प्यार के सागर अपने प्यारे बाबा के प्रेम की गहराई में खोकर मैं उनके बिल्कुल समीप होती जा रही हूँ। इतना समीप कि ऐसा लग रहा है जैसे मैं बाबा में समाकर बाबा का ही रूप बन गई हूँ। *यह समीपता मेरे अंदर मेरे प्यारे पिता की सर्वशक्तियों का बल भरकर मुझे असीम शक्तिशाली बना रही है*। स्वयं को मैं सर्वशक्तियों का एक शक्तिशाली पुंज अनुभव कर रही हूँ।  सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप बन कर अब मैं फिर से कर्म करने के लिए अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ। फिर से देह रूपी रथ पर विराजमान होकर शरीर निर्वाह अर्थ हर कर्म अब मैं कर रही हूँ किन्तु इस स्मृति में स्थित होकर कि मैं देह से न्यारी हूँ। *ईश्वरीय सेवा अर्थ मैंने ये शरीर रूपी चोला धारण किया है बुद्धि में यह धारण कर, शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करने के लिए देह में आना और फिर कर्म करके देह में होते भी, देह से न्यारे अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित हो कर, अशरीरी हो जाना, यह अभ्यास अब मैं घड़ी - घड़ी करती रहती हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं सदा देह - अभिमान व देह की बदबू से दूर रहने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं इन्द्रप्रस्थ निवासी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा अपने तन, मन, धन को सदैव सफल करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सर्व खजानों को सदा बढ़ाती हूँ  ।*

   *मैं समझदार आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा सेवा समाचार भी सुनते हैं, सेवा में आजकल भिन्न-भिन्न कोर्स कराते हो, लेकिन अभी एक कोर्स रह गया है। वह है हर आत्मा में जो शक्ति चाहिए, वह फोर्स का कोर्स कराना। *शक्ति भरने का कोर्स, वाणी द्वारा सुनाने का कोर्स नहीं, वाणी के साथ-साथ शक्ति भरने का कोर्स भी हो।* जिससे अच्छा-अच्छा कहें नहीं लेकिन अच्छा बन जाएं। यह वर्णन करें कि आज मुझे शक्ति की अंचली मिली। अंचली भी अनुभव हो तो उन आत्माओं के लिए बहुत है। *कोर्स कराओ लेकिन पहले अपने को कराके फिर कहो।*

 

✺   *ड्रिल :-  "फोर्स का कोर्स कराने का अनुभव"*

 

 _ ➳  मैं अशरीरी आत्मा अपने भृकुटि सिंहासन त्याग अपने पिता परमात्मा संग मिलन मनाने मूलवतन की ओर जा रही हूं... प्रकाश स्वरूप में स्थित होकर दिव्य बुद्धि से मैं आत्मा लाल ही लाल प्रकाश की दुनिया में अपने घर परमधाम पहुंच गई हूं... मैं आत्मा मीठे शिवबाबा के समक्ष जाकर बैठ जाती हूं... *मीठे बाबा की मीठी दृष्टि से मैं आत्मा निहाल हो रही हूं...* मैं आत्मा बाबा की मीठी किरणों की बरसात में भीग रही हूं...

 

 _ ➳  सफेद प्रकाश की उजली किरणों को अपने अंदर समाकर मैं आत्मा और उज्ज्वल से उज्ज्वलतम हो रही हूं... *सर्व गुणों व सर्व शक्तियों से भरे प्रकाश ऊर्जा की बरसात से सारी शक्तियां सारे गुण मुझ आत्मा में फ़ोर्स के साथ भर रहे है...* मैं आत्मा सम्पूर्ण हो रही हूं... भरपूर हो रही हूं... सर्व शक्तियों एवं सर्व गुणों से सम्पन्न होकर शक्तिवान बन रही हूं...

 

 _ ➳  मीठे बाबा की ज्ञान की किरणों से मुझ आत्मा के अज्ञानता के अंधकार मिट रहे है... *मैं आत्मा ज्ञान सागर के ज्ञान तरंगों को धारण करने और धारण कराने योग्य बन रही हूं...* मुझ आत्मा के संकल्प, बोल, कर्म उज्ज्वल प्रकाशमय हो रहे है... *पुराने संस्कार पुराने देह के साथ मिटते हुए अनुभव कर रही हूं...* आत्मा सहजरूप से नए योग्यताओं को धारण कर रही है ...

 

 _ ➳  सर्व शक्तियों का दान सर्व गुणों का दान करने का वायदा कर मीठे बाबा से विदाई ले रही हूं... *मीठे बाबा मुझ आत्मा के मस्तक पर विजय का तिलक लगा कर्म क्षेत्र में विजयी भव का वरदान दे रहे है...* अब मैं आत्मा मीठे बाबा से विदाई ले अपने स्थूल वतन की ओर लौट रही हूं... विश्व गोले की ओर बढ़ रही हूं...

 

 _ ➳  मैं उज्ज्वल सितारा सभी आत्माओं को ज्ञान प्रकाश का दान कर रही हूं... विश्व की सभी आत्माएं अनायास ही आत्म अनुभूति में लीन होते हुए दिखाई दे रहे है... सभी के मस्तक पर आत्म ज्योति जगी हुई है... *सभी आत्माएं ज्ञान प्रकाश धारण कर सहजता से अंधकार मुक्त हो रहे है... सभी की आंतरिक कालिमा मिट रही है...* सभी आत्माओं को आत्मा होने का ज्ञान सहज भाव से महसूस हो रहा है... सभी आत्मानुभूति की सुख सागर में डुबकी लगाकर आत्म चिंतन में विभोर हो रहे है... तृप्त हो रहे है... *अविनाशी प्राप्ति कर सन्तुष्ट हो रहे है...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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