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❍ 27 / 02 / 21 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *कोई भी बुरा कर्म तो नहीं किया ?*
➢➢ *किसी देहधारी को तो याद नहीं किया ?*
➢➢ *सदा अपने रॉयल कुल की स्मृति द्वारा ऊंची स्टेज पर रहे ?*
➢➢ *अपने हर्षितमुख द्वारा प्यूरिटी की रॉयल्टी का अनुभव करवाया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ परमात्म प्यार आनंदमय झूला है, इस सुखदाई झूले में झूलते *सदा परमात्म प्यार में लवलीन रहो तो कभी कोई परिस्थिति वा माया की हलचल आ नहीं सकती।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं एक बल और एक भरोसा' स्थिति में रहने वाली निश्चयबुद्धि आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा एक बल और एक भरोसा' - इसी स्थिति में रहते हो? *एक में भरोसा अर्थात् बल की प्राप्ति। ऐसे अनुभव करते हो? निश्चयबुद्धि विजयी, इसी को दूसरे शब्दों में कहा जाता है - 'एक बल, एक भरोसा'। निश्चय बुद्धि की विजय न हो यह हो नहीं सकता।*
〰✧ *अपने में ही जरा-सा संकल्प मात्र भी संशय आता कि यह होगा या नहीं होगा, तो विजय नहीं। अपने में बाप में और ड्रामा में पूरा-पूरा निश्चय हो तो कभी विजय न मिले, यह हो नहीं सकता। अगर विजय नहीं होती तो जरूर कोई न कोई पाईन्ट में निश्चय की कमी है।*
〰✧ जब बाप में निश्चय है तो स्वयं में भी निश्चय है। मास्टर है ना। जब मास्टर सर्वशक्तिवान हैं तो ड्रामा की हर बात को भी निश्चयबुद्धि होकर देखेंगे! *ऐसे निश्चय बुद्धि बच्चों के अन्दर सदा यही उमंग होगा कि मेरी विजय तो हुई पड़ी है। ऐसे विजयी ही - विजय माला के मणके बनते हैं। विजय उनका वर्सा है। जन्म-सिद्ध अधिकार में यह वर्सा प्राप्त हो जाता है।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *यह फरिश्ते पन में या पुरुषार्थ में विशेष जो रूकावट होती है, उसके दो शब्द ही हैं - जो कॉमन शब्द हैं, मुश्किल भी नहीं है और सभी अनेक बार यूज भी करते हैं। वह क्या है? मैं और मेरा।* बापदादा ने बहुत सहज विधि पहले भी बताई है, इस मैं और मेरे को परिवर्तन करने की, याद है? देखो, *जिस समय आप मैं शब्द बोलते हो ना, उस समय सामने आये कि मैं हूँ ही आत्मा, मैं शब्द बोलो और सामने आत्मा रूप को लाओ।*
〰✧ मैं शब्द ऐसे नहीं बोलो, मैं आत्मा। यह नेचरल स्मृति में लाओ। मैं शब्द के पीछे आत्मा लगा दी। मैं आत्मा। जब मेरा शब्द बोलते हो तो पहले कहो मेरा बाबा, मेरा रूमाल, मेरी साडी, मेरा यह। लेकिन पहले मेरा बाबा। मेरा शब्द बोला, बाबा सामने आया। *मैं शब्द बोला आत्मा सामने आई, यह नेचर और नेचरल बनाओ, सहज है ना या मुश्किल है?*
〰✧ जानते ही हो मैं आत्मा हूँ। सिर्फ उस समय मानते नहीं हो जानना 100 परसेन्ट है, मानना परसेन्टेज में है। *जब बॉडी कान्सेस नेचरल हो गया, याद करना पडता है क्या कि मैं बॉडी (शरीर) हूँ, नेचरल याद है ना तो मैं शब्द मुख के पहले तो संकल्प में आता है ना तो संकल्प में भी मैं शब्द आवे तो फौरन आत्मा स्वरूप सामने आये।* यह अभ्यास करना सहज नहीं है?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *आप भी कोई कार्य करते हो वा बात करते हो तो बीच-बीच में यह संकल्पों की ट्रैफिक को स्टॉप करना चाहिए।* एक मिनट के लिए भी मन के संकल्पों को चाहे शरीर द्वारा चलते हुए कर्म को बीच में रोक कर भी यह प्रैक्टिस करना चाहिए। अगर यह प्रैक्टिस नहीं करेंगे तो बिन्दू रूप की पावरफुल स्टेज कैसे और कब ला सकेंगे? इसलिए यह अभ्यास करना आवश्यक है। *बीच-बीच में यह प्रैक्टिस प्रैक्टिकल में करते रहेंगे तो जो आज यह बिन्दु रूप की स्थिति मुश्किल लगती है वह ऐसे सरल हो जायेगी जैसे अभी मैजारिटी को अव्यक्त स्थिति सहज लगती है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप आयें हैं रावण राज्य से लिबरेट कर सदगति देने"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा निराकार परमपिता परमात्मा की संतान हूँ... परमधाम की रहने वाली मैं निराकार आत्मा इस सृष्टि पर अपना पार्ट बजाते-बजाते इस दुनिया से ही दिल लगा बैठी... अपने असली पिता को भूल, अपने असली घर को भूल, अपने असली वजूद को ही भूल गई थी...* इस देह, देह के संबंधों, देह के वैभवों के आकर्षण में पड़ गई थी... प्यारे बाबा ने आकर मेरी अज्ञानता के परदे को उठाकर मुझे सत्य ज्ञान दिया... मैं आत्मा इस देह और इस दुनिया को छोड़ उड़ चलती हूँ वतन में प्यारे बाबा के पास गुह्य राज जानने...
❉ *अपनी हथेली पर बहिश्त लाकर मुझे स्वर्ग की बादशाही देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... *अपने खिलते हुए फूल बच्चों को पिता भला दुखो में तड़फता कैसे देख पाया... बाप भला बिना बच्चों के सुख के कैसे सुख और चैन पाये... मीठा बाबा हथेली पर स्वर्ग सौगात ले आया है...* बादशाह बनाने आया है... ऐसे सुखदायी सच्चे पिता की यादो में खो जाओ..."
➳ _ ➳ *हद की दुनिया से बुद्धि निकाल बेहद बाबा की यादों में खोकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा प्यारे प्यारे पिता की यादो में सुखो से महकते हुए स्वर्ग को पा रही हूँ... कभी सोचा भी न था कि विश्व की मालिक बनूंगी और आज अपने शानदार भाग्य पर मुस्करा रही हूँ...* मीठे बाबा की यादो में तपते कदमो तले फूलो की छुअन आ रही है...”
❉ *नश्वर दुनिया के काँटों को निकाल मेरे जीवन में स्वर्ग सुखों के फूल खिलाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह के मटमैले रिश्तो को याद करके दुखी होकर कितना थक गए हो... *अब ईश्वर पिता की यादो में सदा का आराम पाकर इस कदर खो जाओ... ईश्वर पिता की सारी जागीर बाँहों में भरकर सुखो के स्वर्ग में खिलखिलाओ...”*
➳ _ ➳ *खुशियों की पंछी बन सुखों के आसमान में विचरण करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता से ज्ञान रत्नों को पाकर सारे सत्य को जान ली हूँ... *दुखो के दलदल से निकल सुखो के स्वर्ग में कदम बढ़ा रही हूँ... मीठे बाबा के प्यार में खोकर अपनी देवताई गरिमा को पाती जा रही हूँ...”*
❉ *अपने निस्वार्थ अविनाशी प्रेम के फव्वारों में मुझे भिगोते हुए मेरे मनमीत प्यारे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जिन बन्धनों को सत्य समझ अपने कीमती समय साँस संकल्पों को पानी सा बहा रहे वह ठग जायेंगे खोखला और खाली तन्हा सा बनायेगे... *इन सांसो और संकल्पों को ईश्वरीय प्रेम में लुटा दो... अपने निश्छल प्रेम को ईश्वर पिता पर अर्पण कर दो जो सच्चे सुखो का आधार बन खुशियो को लाएगा...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा गोपिका बन मुरलीधर के मधुर तान में अपना सुध-बुध खोकर कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार की छाँव तले सुखो की अधिकारी बन रही हूँ... *मीठी मीठी यादो में जन्नत अपने नाम लिखवा रही हूँ... और पूरे विश्व धरा पर फूलो सा मुस्कराने वाली शहजादी बन रही हूँ...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- एक बाप को ही याद करना है, किसी देहधारी को नही*"
➳ _ ➳ मनमनाभव के महामन्त्र को स्मृति में रखते हुए, देह और देह के सर्व सम्बन्धों से किनारा कर, एक परमात्मा की अव्यभिचारी याद में मैं आत्मा अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ। उस एक *अपने परम प्रिय प्रभु की अव्यभिचारी याद में बैठते ही इस देह रूपी पिंजड़े में कैद मैं आत्मा रूपी पँछी इस देह के पिंजड़े के हर बंधन को तोड़ उड़ चलती हूँ अपने उस परमप्रिय प्रभु, अपने स्वामी, शिव पिता परमात्मा के पास जिनके साथ मेरा जन्म - जन्म का अनादि सम्बन्ध है*। अपने सच्चे शिव प्रीतम की याद मुझे उनसे मिलने के लिए बेचैन कर रही है इसलिए ज्ञान और योग के पंख लगाए मैं आत्मा पँछी और भी तीव्र उड़ान भरते हुए पहुंच जाती हूँ अपने प्रभु के धाम, शांति धाम, निर्वाणधाम में।
➳ _ ➳ अपने शिव प्रभु को अपने सामने पा कर बिना कोई विलम्ब किये मैं पहुंच जाती हूँ उनके पास और उनकी किरणों रूपी बाहों में समा जाती हूँ। *जन्म जन्मान्तर से अपने शिव पिता परमेश्वर से बिछुड़ी मैं आत्मा अपने शिव प्रभु की किरणों रूपी बाहों में अतीन्द्रिय सुख की गहन अनुभूति में मैं इतना खो जाती हूँ कि देह और देह की दुनिया संकल्प मात्र भी याद नही रहती*। केवल मैं और मेरे प्रभु, दूसरा कोई नही। प्रेम के सागर अपने परम प्रिय मीठे बाबा के अति प्यारे, अति सुन्दर, चित को चैन देने वाले अनुपम स्वरूप को निहारते - निहारते मैं डूब जाती हूँ उनके प्रेम की गहराई में और उनके सच्चे निस्वार्थ रूहानी प्रेम से स्वयं को भरपूर करने लगती हूँ।
➳ _ ➳ मेरे शिव प्रीतम का प्यार उनकी सर्वशक्तियों की किरणों के रूप में निरन्तर मुझ पर बरस रहा है। *उनसे आ रही सर्वशक्तियों रूपी किरणों की मीठी फुहारें मन को रोमांचित कर रही हैं, तृप्त कर रही हैं और साथ ही साथ रावण की जेल में कैद होने के कारण निर्बल हो चुकी मुझ आत्मा को बलशाली बना रही हैं*। अपने शिव प्रभु की सर्व शक्तियों से स्वयं को भरपूर करके, उनके प्यार को अपनी छत्रछाया बना कर अब मैं वापिस देह और देह की दुनिया की में लौट रही हूं। किन्तु *अब मेरे शिव प्रभु का प्यार मेरे लिए ढाल बन चुका है* जो मुझे इस आसुरी दुनिया मे रहते हुए भी आसुरी सम्बन्धों के लगाव से मुक्त कर रहा है।
➳ _ ➳ देह और देह की दुनिया मे रहते हुए भी अब इस दुनिया से मेरा कोई ममत्व नही रहा। यह तन - मन - धन मेरा नही, मेरे बाबा का है, यह सम्बन्धी भी मेरे नही, बाबा ने मुझे इनकी सेवा अर्थ निमित बनाया हैं। *इस स्मृति में रहने से मैं और मेरे से अटैचमेन्ट समाप्त हो गई है। प्रवृति को ट्रस्टी बन कर सम्भालने से अब मैं स्वयं को हर बन्धन से मुक्त, न्यारा और प्यारा अनुभव कर रही हूं*। परमात्म प्रीत से मेरे सभी लौकिक सम्बन्ध भी अलौकिक बन गए हैं इसलिए देह और दैहिक सम्बन्धो में होने वाला लगाव, झुकाव और टकराव अब समाप्त हो गया है।
➳ _ ➳ साक्षी भाव से हर आत्मा के पार्ट को अब मैं साक्षी हो कर देख रही हूं और हर कर्म साक्षी पन की सीट पर सेट हो कर करने से सदा बाप के साथीपन का अनुभव कर रही हूं। *देह और देह के सम्बन्धो के प्रति साक्षीभाव मुझे इस पुरानी दुनिया से स्वत: ही उपराम बना रहा है*। दैहिक दृष्टि और वृति परिवर्तित हो कर रूहानी बन गई है। इसलिए अब सदैव यही अनुभव होता है कि मैं इस देह में मेहमान हूँ। *मैं रूह हूँ और मुझ रूह का करन करावनहार सुप्रीम रूह है। वह चला रहे हैं, मैं चल रही हूं। सदा मैं रूह और सुप्रीम रूह कम्बाइंड हैं*। निरन्तर इस स्मृति में रहने से किसी भी देहधारी के नाम रूप की अब मुझे याद नही आती। केवल अपने शिव प्रभु की अव्यभिचारी याद में रह, मैं उनके ही प्रेम का रसपान करते हुए सदा अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलती रहती हूं।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं सदा अपने रॉयल कुल की स्मृति द्वारा ऊंची स्टेज पर रहने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं गुणमूर्त आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं रॉयल आत्मा हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदा हर्षितमुख हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा प्योरिटी की रॉयल्टी का अनुभव कराती हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. कई बच्चे मुश्किल पुरुषार्थ क्यों करते? सिर्फ सोचते हैं बिन्दु सामने आ जाए, बिन्दु-बिन्दु-बिन्दु... और बिन्दु खिसक जाती है। *बिन्दु तो है लेकिन कौन-सी बिन्दु? मैं कौन हूँ, यह अपने स्वमान स्मृति में लाओ तो रमणीक पुरुषार्थ हो जायेगा सिर्फ ज्योति बिन्दु कहते हो ना तो मुश्किल हो जाता है। सहज पुरुषार्थ, मौज का पुरुषार्थ करो।*
➳ _ ➳ 2. *सहज योगी का यह मतलब नहीं है कि यह अलबेलेपन का पुरुषार्थ हो। श्रेष्ठ भी हो और सहज भी हो।*
✺ *ड्रिल :- "सहज पुरुषार्थ करने का अनुभव"*
➳ _ ➳ कितनी सुंदर हैं संगम की अमूल्य घड़ियां... स्वयं भाग्यविधाता भाग्य बांटने के लिए इस धरा धाम पर पधारे हैं... भगवान मुझ आत्मा पर मेहरबान हो गए हैं... वे स्वयं कह रहे हैं कि सर्व संबंधों का रस मुझ एक बाप से लो... बाबा मेरा परमपिता, परम शिक्षक, परम सतगुरु है, मेरा साजन है, मेरा साथी, मेरा खुदादोस्त, गाइड है... *दुनिया के संबंध तो दुःख देने वाले हैं... सर्व संबंधों का सच्चा सुख, अविनाशी स्नेह एक बाबा से ही मिल सकता है...*
➳ _ ➳ परम सतगुरु बाबा मुझे वरदानों से निहाल कर रहे हैं... रोज नया वरदान देकर जीवन में अलौकिकता की खुशबू भर रहे हैं... ऐसी दिव्य, अलौकिक पालना अपने रूहानी बाबा से मुझ आत्मा को मिल रही है... जो पालना राजाओं, साहूकारों को भी नहीं मिल पाती... *परम शिक्षक बन रोज बाबा परमधाम से पढ़ाने के लिए आते हैं... ज्ञान के गुह्य रहस्यों को स्पष्ट करते हैं...* बाबा ने दिव्य बुद्धि के वरदान द्वारा मुझ आत्मा के जन्म जन्मांतर से बंद बुद्धि का ताला खोल दिया है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा दिव्य बुद्धि और रूहानी दृष्टि के वरदान से संपन्न बन गई हूँ... *बाबा ने जन्म जन्म का अविनाशी भाग्य बनाने की कितनी सहज युक्तियाँ बताई हैं... मैं आत्मा बाबा की मोहब्बत में मगन होकर सर्व प्रकार की मेहनत से मुक्त हो गई हूँ...* मैं बाबा की शिक्षाओं का प्रैक्टिकल स्वरुप बन रही हूँ... बाबा की शब्दों को ही नहीं, शब्दों के साथ-साथ उनके पीछे के भाव को भी ग्रहण कर रही हूँ... *मैं आत्मा ज्योति बिंदु स्वरुप में स्वयं को स्थित कर बिंदु बाबा की याद से आत्मा की जन्मों की कालिख भस्म कर रही हूँ...*
➳ _ ➳ बाबा ने मुझ आत्मा को कितने श्रेष्ठ स्वमान दिए हैं... *मैं एक एक स्वमान को याद कर उस स्वमान का स्वरुप बन रही हूँ...* मैं आत्मा बिंदु हूँ... साथ में कौन सी आत्मा हूँ... मैं विश्व परिवर्तक आत्मा हूँ... मैं महान आत्मा हूँ... मैं बाबा का चुना हुआ अमूल्य रत्न हूँ... जैसे स्वमानों की स्मृति से मुझ आत्मा का पुरुषार्थ बिल्कुल सहज हो गया है... *मन वैरायटी स्वमानों के अभ्यास में रमणीकता और मौज का अनुभव कर रहा है... मैं आत्मा इस सहज, रमणीक पुरुषार्थ से नित्य नवीन, सुंदर अनुभव कर रही हूँ... बाबा के स्नेह की गहराइयों में समाती जा रही हूँ...*
➳ _ ➳ मुझ आत्मा का पुरुषार्थ हठपूर्वक नहीं है... मैं स्वतः योगी, रमता योगी, सहज योगी, निरंतर योगी आत्मा हूँ... *सर्व प्रकार के आलस्य, अलबेलेपन से मुक्त मैं अलर्ट और एवररेडी आत्मा हूँ...* समय की समीपता को देखते हुए मैं आत्मा उड़ती कला का पुरुषार्थ कर रही हूँ... मैं अपना हर सेकंड याद और यज्ञ सेवा में सफल कर रही हूँ... ईश्वरीय स्नेह में समाई हुई मैं आत्मा सहज योगी, श्रेष्ठ योगी आत्मा हूँ... *मैं आत्मा पुरुषार्थ में नित्य नूतनता का अनुभव करते हुए... संगम की मौज मना रही हूँ... अतीन्द्रिय सुख की रास मना रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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