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 25 / 02 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *विघनो में याद की यात्रा को भूले तो नहीं ?*

 

➢➢ *आत्माओं को पारलोकिक बाप का परिचय दिया ?*

 

➢➢ *सर्व जिम्मेवारियों के बोझ बाप को दिए ?*

 

➢➢ *दिल और दिमाग में आनेस्टी रही ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *मन्सा-सेवा बेहद की सेवा है।* जितना आप मन्सा से, वाणी से स्वयं सैम्पल बनेंगे, तो सैम्पल को देखकर के स्वत: ही आकर्षित होंगे। *सिर्फ दृढ़ संकल्प रखो तो सहज सेवा होती रहेगी।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं डबल लाइट फरिश्ता हूँ"*

 

  सदा अपने को डबल लाइट फरिश्ता समझते हो? *फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट। जितना-जितना हल्कापन होगा उतना स्वयं को फरिश्ता अनुभव करेंगे। फरिश्ता सदा चमकता रहेगा, चमकने के कारण सर्व को अपनी तरफ स्वत: आकर्षित करता है।*

 

  *ऐसे फरिश्ते - जिसका देह और देह की दुनिया के साथ कोई रिश्ता नहीं। शरीर में रहते ही हैं सेवा के अर्थ, न कि रिश्ते के आधार पर। देह के रिश्ते के आधार पर नहीं रहते, सेवा के सम्बन्ध के हिसाब से रहते हो। सम्बन्ध समझकर प्रवृत्ति में नहीं रहना है, सेवा समझकर रहना है।* घर वहीं है, परिवार वही है, लेकिन सेवा का सम्बन्ध है। कर्मबन्ध के वशीभूत होकर नहीं रहते।

 

  सेवा के सम्बन्ध में क्या, क्यूँ नहीं होता। कैसी भी आत्माएँ हैं, सेवा का सम्बन्ध प्यारा है। जहाँ देह है वहाँ विकार हैं। देह के सम्बन्ध से विकार आते हैं, देह के सम्बन्ध नहीं तो विकार नहीं। *किसी भी आत्मा को सेवा के सम्बन्ध से देखो तो विकारों की उत्पत्ति नहीं होगी। ऐसे फरिश्ते होकर रहो। रिश्तेदार होकर नहीं। जहाँ सेवा का भाव रहता है वहाँ सदा शुभ भावना रहती है, और कोई भाव नहीं। इसको कहा जाता है - 'अति न्यारा और अति प्यारा, कमल समान'। सर्व पुरुषों से उतम फरिश्ता बनो तब देवता बनेंगे।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *जब चाहे, जैसे चाहे वैसे मन-बुद्धि-संस्कार को परिवर्तन कर सके।* टेन्शन फ्री लाइफ का अनुभव सदा इमर्ज हो। बापदादा देखते हैं कभी मर्ज हो जाता है। सोचते हैं यह नहीं करना है, यह राइट है, यह रांग है, लेकिन सोचते हैं स्वरूप में नहीं लाते हैं।

 

✧  *सोचना माना मर्ज रहना, स्वरूप में लाना अर्थात इमर्ज होना।* समय के लिए तो नहीं इन्तजार कर रहे हो ना! कभीकभी करते हैं। रूहरिहान करते है ना तो कई बच्चे कहते हैं, समय आने पर ठीक हो जायेंगे। *समय तो अपकी रचना है।*

 

✧  आप तो मास्टर रचता हो ना! तो मास्टर रचता, रचना के आधार पर नहीं चलते। *समय को समाप्ति के नजदीक आप मास्टर रचता को लाना है।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *एक सेकंड भी अव्यक्त स्थिति का अनुभव होता है तो उसका असर काफी समय तक रहता है।* अव्यक्त स्थिति का अनुभव पावरफुल होता है। जितना हो सके उतना अपना समय व्यक्त भाव से हटाकर अव्यक्त स्थिति में रहना है। *अव्यक्त स्थिति से सर्व संकल्प सिद्ध हो जाते हैं। इसमें मेहनत कम और प्राप्ति अधिक होती है।* और व्यक्त स्थिति में स्थित होकर पुरुषार्थ करने में मेहनत अधिक और प्राप्ति कम होती है। फिर चलते-चलते उलझन और निराशा आती है। *इसलिए अव्यक्त स्थिति से सर्व प्राप्ति का अनुभव बढ़ाओ।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- याद में रहने का पुरुषार्थ करना"*

 

_ ➳  विषय सागर में डूबी हुई मेरे जीवन की नईया को पार लगाने वाले मेरे खिवैया की यादों के नाव में बैठकर मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ सूक्ष्मवतन... विकारों के गर्त से निकाल शांतिधाम और सुखधाम का रास्ता बताने वाले मेरे स्वीट बाबा के सम्मुख जाकर बैठ जाती हूँ... *मुस्कुराते हुए बापदादा अपने मस्तक और रूहानी नैनों से मुझ पर पावन किरणों की बौछारें कर रहे हैं... एक-एक किरण मुझमें समाकर इस देह, देह की दुनिया, देह के संबंधो से डिटैच कर रही हैं... और मैं आत्मा सबकुछ भूल फ़रिश्तास्वरुप धारण कर बाबा की शिक्षाओं को ग्रहण करती हूँ...*

 

  *अपने सुनहरी अविनाशी यादों में डुबोकर सच्चे सौन्दर्य से मुझे निखारते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की यादो में ही वही अविनाशी नूर वही रंगत वही खूबसूरती को पाओगे... *इसलिए हर पल ईश्वरीय यादो में खो जाओ... बुद्धि को विनाशी सम्बन्धो से निकाल सच्चे ईश्वर पिता की याद में डुबो दो...”*

 

_ ➳  *प्यारे बाबा के यादों की छत्रछाया में अमूल्य मणि बनकर दमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा देह अभिमान और देहधारियों की यादो में अपने वजूद को ही खो बैठी थी... *आपने प्यारे बाबा मुझे सच्चे अहसासो से भर दिया है... मुझे मेरे दमकते सत्य का पता दे दिया है...”*

 

  *मेरे भाग्य की लकीर से दुखों के कांटे निकाल सुखों के फूल बिछाकर मेरे भाग्यविधाता मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता धरा पर उतर कर अपने कांटे हो गए बच्चों को फूलो सा सजाने आये है... *तो उनकी याद में खोकर स्वयं को विकारो से मुक्त कर लो... ये यादे ही खुबसूरत जीवन को बहारो से भरा दामन में ले आएँगी...”*

 

_ ➳  *शिव पिता की यादों के ट्रेन में बैठकर श्रीमत की पटरी पर रूहानी सफ़र करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी प्यारी सी गोद में अपनी जनमो के पापो से मुक्त हो रही हूँ... *मेरा जीवन खुशियो का पर्याय बनता जा रहा है... और मै आत्मा सच्चे सुखो की अधिकारी बनती जा रही हूँ...”*

 

  *देह की दुनिया के हलचल से निकाल अपनी प्यारी यादों में मुझे अचल अडोल बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपनी हर साँस संकल्प और समय को यादो में पिरोकर सदा के पापो से मुक्त हो जाओ... *खुशियो भरे जीवन के मालिक बन सुखो में खिलखिलाओ... यादो में डूबकर आनन्द की धरा, खुशियो के आसमान को अपनी बाँहों में भर लो...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा लाइट हाउस बन अपने लाइट को चारों और फैलाकर इस जहाँ को रोशन करते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ... मुझे ईश्वर पिता मिल गया है... मेरा जीवन सुखो से संवर गया है... *प्यारे बाबा आपने अपने प्यार में मुझे काँटों से फूल बना दिया है... और देवताई श्रृंगार देकर नूरानी कर दिया है...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- यह बना बनाया ड्रामा है इसलिये विघ्नों से घबराना नही है*"

 

_ ➳  इस कल्याणकारी संगमयुग में कल्याणकारी भगवान की पालना में पलने वाली मैं पदमा पदम खुशनसीब आत्मा हूँ इसलिए किसी भी बात में मेरा अकल्याण कभी नही हो सकता। *ड्रामा प्लैन अनुसार मेरे जीवन में अगर कोई  विघ्न आता भी है तो वो भी मेरे लिए एक तोहफा है क्योंकि स्वयं कल्याणकारी भगवान मेरे साथ हैं। इस लिए जीवन मे आने वाले हर विघ्न, हर परिस्थिति को मुझे ड्रामा के पट्टे पर मजबूती से खड़े होकर देखना है*। किसी भी बात में संशय ना उठाकर, ड्रामा की निहित भावी समझा हमेशा इस फ़खुर मे रहना है कि इस ड्रामा में जो कुछ भी हो रहा है वो बिल्कुल एक्यूरेट है, सदैव कल्याणकारी है।

 

_ ➳  मन मे चल रहे इन श्रेष्ठ संकल्पों के साथ स्वयं में एक अद्भुत शक्ति का संचार अनुभव करते हुए अब मैं अपने सर्वश्रेष्ठ तीनों कालों को स्मृति में लाती हूँ और इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर अपने सर्वश्रेष्ठ पार्ट को जैसे ही साक्षी होकर देखती हूँ जीवन बिल्कुल सहज लगने लगता है। *क्या, क्यो और कैसे के सभी सवालों से मुक्त एक बहुत ही न्यारी और प्यारी स्थिति में मैं सहज ही स्थित हो जाती हूँ। यह न्यारी और प्यारी स्थिति मुझे हर बोझ से मुक्त एकदम लाइट बना देती है और लाइट होकर जैसे ही मैं अपने मन बुद्धि को अपने स्वरूप पर एकाग्र करती हूँ देह का भान सेकेण्ड समाप्त हो जाता है और अपने ओरिजनल स्वरूप में मैं स्थित हो जाती हूँ*। मन बुद्धि के दिव्य चक्षु से अपने आप को निहारते हुए, अपने अंदर निहित गुणों और शक्तियों को मैं गहराई से अनुभव करने लगती हूँ।

 

_ ➳  अपने अंदर समाये गुणों और शक्तियों का अनुभव करते हुए मैं इन गुणों और शक्तियों के वायब्रेशन्स को अपने मस्तक से प्रकाश की रंग बिरंगी किरणों के रूप में निकलता हुआ अनुभव करती हूँ। *देख रही हूँ मैं अपने आप को भृकुटि की कुटिया में विराजमान एक प्रकाशमय टिमटिमाते हुए सितारे के रूप में जिसमे से हल्का - हल्का प्रकाश निकल कर चारों और फैल रहा हैं और सर्वगुणों, सर्वशक्तियों के वायब्रेशन्स को चारों और फैलाकर वायुमण्डल को शक्तिशाली बना रहा है*। इंद्रधनुषी रंगों से बना शक्तियों का एक खूबसूरत आभामण्डल मेरे चारों और निर्मित होकर ऐसा लग रहा है जैसे किसी सतरँगी पारदर्शी शीशे के बॉक्स में एक हीरा चमक रहा है जिसकी चमकीली रश्मियाँ इस बॉक्स से बाहर निकल कर अपनी चमक चारों और बिखेर रही हैं।

 

_ ➳  हीरे के समान अपने इस अति सुंदर स्वरूप का अनुभव करके अब मैं अपने प्यारे पिता की मन को सुकून देने वाली मीठी याद में खोकर उनसे मिलन मनाने के लिए उनकी निराकारी दुनिया की और चल पड़ती हूँ। *भृकुटि की कुटिया से बाहर आकर एक ऊँची उड़ान भरकर सेकेंड में मैं साकारी दुनिया को पार करके सूक्ष्म लोक में पहुँचती हूँ और अपनी लाइट की सुन्दर फ़रिश्ता ड्रेस पहनकर फरिश्तो की इस अव्यक्त दुनिया की सैर करके, अपने अव्यक्त बापदादा से मिलकर, उनके पास बैठ उनसे मीठी - मीठी रूह रिहान करके, उनसे लाइट माइट लेकर, अपनी फ़रिश्ता ड्रेस को उतार फिर से अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होकर सूक्ष्म वतन को छोड़ उससे ऊपर अपने निराकारी वतन की और चल पड़ती हूँ*। अति शीघ्र आत्माओं की निराकारी दुनिया अपने परमधाम घर मे मैं प्रवेश करती हूँ।

 

_ ➳  मेरा यह परमधाम घर जहाँ मेरे प्यारे पिता रहते हैं, वाणी से परे अपने इस निर्वाणधाम घर मे आकर मैं गहन शांति के गहरे अनुभवों की अनुभूति में खो जाती हूँ और कुछ क्षण शांति की सुखद अनुभूति करके शांति के सागर अपने प्यारे पिता के पास पहुँच जाती हूँ। *उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ, उन शक्तियों की किरणों की मीठी फुहारों का आनन्द ले कर और अपने ऊपर चढ़ी विकारों की कट को उन फुहारों से धोकर अपने बुद्धि रूपी बर्तन को स्वच्छ बना कर मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट आती हूँ*।

 

_ ➳  अपने साकार शरीर मे प्रवेश कर फिर से अपने ब्राह्मण स्वरूप में मैं स्थित हो जाती हूँ। *परमात्म पालना में पलते हुए, अपने संगमयुगी ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों को सदैव स्मृति में रख, निश्चय बुद्धि बन, जीवन मे आने वाले किसी भी विघ्न में संशय ना उठाकर, ड्रामा की निहित भावी समझ अब मैं सदा फ़खुर में रहती हूँ और हर बात में कल्याण अनुभव करते हुए सदा उमंग उत्साह में उड़ती रहती हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं सर्व जिम्मेवारियों के बोझ बाप को दे कर अपनी उन्नति करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सहजयोगी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा दिल और दिमाग में सदैव ऑनेस्टी रखती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदा बाप वा परिवार की विश्वासपात्र हूँ  ।*

   *मैं सदा ऑनेस्ट आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳   *फरिश्ता बनना वा निराकारी, कर्मातीत अवस्था बनने का विशेष साधन है  निरंहकारी बनना। निरंहकारी ही निराकारी बन सकता है*। इसलिए बाप ने ब्रह्मा द्वारा लास्ट मन्त्र निराकारी के साथ निरंहकारी कहा। *सिर्फ अपनी देह या दूसरे की देह में फँसना, इसको ही देह अहंकार या देहभान नहीं कहा जाता है*। देह अहंकार भी है, देह भान भी है। अपनी देह या दूसरे की देह के भान में रहना, लगाव में रहना - उसमें तो मैजारिटी पास हैं। *जो पुरुषार्थ की लगन में रहते हैं, सच्चे पुरुषार्थी हैं, वह इस मोटे रूप से परे हैं*। लेकिन *देह-भान के सूक्ष्म अनेक रूप हैं*, इसकी लिस्ट आपस में निकालना। बापदादा आज नहीं सुनाते हैं। आज इतना ही इशारा बहुत हैं क्योंकि सभी समझदार हैं। आप सब जानते हो ना, अगर सभी से पूछेंगे ना, तो सब बहुत होशियारी से सुनायेंगे। लेकिन *बापदादा सिर्फ छोटा-सा सहज पुरुषार्थ बताते हैं कि सदा मन-वचन-कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क में लास्ट मन्त्र तीन शब्दों का (निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी) सदा याद रखो*। संकल्प करते हो तो चेक करो - महामन्त्र सम्पन्न है? ऐसे ही *बोल, कर्म सबमें सिर्फ तीन शब्द याद रखो और समानता करो*। यह तो सहज है ना? *सारी मुरली नहीं कहते हैं याद करो, तीन शब्द। यह महामन्त्र संकल्प को भी श्रेष्ठ बना देगा। वाणी में निर्माणता लायेगा। कर्म में सेवा भाव लायेगा। सम्बन्ध-सम्पर्क में सदा शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना की वृत्ति बनायेगा*।

 

✺   *ड्रिल :-  "तीन शब्दों के महामन्त्र (निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी) की स्मृति में रहने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *मन, वचन, कर्म एवं सम्बन्ध- सम्पर्क में तीन मन्त्रों की स्मृति संजोयें मैं आत्मा*... साक्षी भाव से देख रही हूँ... अपने हर संकल्प बोल और कर्म को.. *मेरा हर संकल्प, बोल और कर्म बाप समान... बीजरूप और निराकारी... बस केवल एक की ही याद और उसी का स्वरूप बनती जा रही हूँ मैं... दूर दूर तक फैलता... मुझसे मेरे गुणों और शक्तियों का प्रकाश* मुझ आत्मा की विशेषताऐं सम्पूर्ण वातावरण को विशेष बना रही है...

 

 _ ➳  *प्रकाश की बदली बन... मेरी भृकुटि पर स्नेह और शक्तियों की बारिश करते शिव पिता*... और स्नेह की इस बारिश में मग्न... और पूरी तरह भीगी मैं आत्मा, चातक की तरह सम्पूर्ण स्नेह राशि को पीने की उत्कंठा मन में समायें... मैं उनके स्नेह को निरन्तर आत्मसात कर रही हूँ... *स्नेह का ये अटूट सा प्रवाह मेरे संकल्पों और बोल में समां रहा है...  संकल्प और बोल में निरंहकारी मैं आत्मा अपने गुणों व शक्तियों के प्रति एकदम निमित्त भाव, निरंहकारी भाव रख... प्रभु प्रसाद मानकर उसको सफल कर रही हूँ*... 

 

 _ ➳  मेरा हर संकल्प शुभ भाव और कर्म शुभ कामना बन सेवा कर रहा है... *मेरे हर बोल में निर्माणता आती जा रही है... सम्बन्ध सम्पर्क में शुभ वृत्ति मुझे प्यारा और न्यारा बना रही है... शिव पिता का स्नेह अब सागर का रूप लेता जा रहा है मेरे लिए*...  स्नेह सागर की गहराईयों में समाती हुई मैं झिलमिलाती मणि... देह भान के हर स्थूल रूप पर विजयी मैं आत्मा लगाव के सूक्ष्म रूपों की सूक्ष्म चैकिंग कर रही हूँ...

 

 _ ➳ *स्वयं को लगाव झुकाव के सभी स्वर्ण धागों मुक्त करती जा रही हूँ*... उन्मुक्त गगन में उडते पंछी की भाति... *देह में, संबन्धों में, सेवा में, गुणों और शक्तियों में "मेरापन" भी एक विकार है*...  मैं निराकारी निरंहकारी आत्मा इन सब "मैं" के विकारों से भी पूरी तरह मुक्त हो रही हूँ... फरिश्ता स्वरूप धारण कर मैं आत्मा बाप समान कर्मातीत अवस्था का अनुभव कर रही हूँ... अब मैं आत्मा सूक्ष्म वतन में बापदादा के सम्मुख... आईना के समान सत्य दिखलाती उनकी आँखों में अपना स्वरूप निहार रही  हूँ...

 

 _ ➳  *और देख रही हूँ उनकी आँखों में स्वयं के लिए वो प्यार, वो प्रशंसा जो दुनिया के किसी शब्द कोश में नही है*... स्वयं को साक्षी होकर देखती हुई... *बाप समान ही मेरा ये निराकारी निरंहकारी और निर्विकारी रूप*...  और तभी प्रकाश का एक विशाल घेरा हम दोनों को बिन्दु बना ले चला परम धाम की ओर... *परमधाम में मैं और बाबा एक समान*... बीज रूप स्थिति में स्वयं को भरपूर कर रहा हूँ... और अब लौट रहा हूँ अपनी देह में... *संकल्प, वाणी, कर्म, सम्बन्ध, सम्पर्क में एक दम बाप समान... श्रेष्ठता निर्माणता सेवा भाव और शुभभावनाओं से भरपूर*...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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