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 11 / 04 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *"हम बाप का कितना रीगार्ड रखते हैं ?" - यह अपने दिल से पूछा ?*

 

➢➢ *बाप के कर्तव्य में गुप्त मददगार बनकर रहे ?*

 

➢➢ *संतुष्टता की विशेषता द्वारा सेवा में सफलता का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *विघनो रुपी पत्थर को तोड़ने में समय ना गंवाकर उसे हाई जम्प देकर पार किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जैसे कोई भी साइन्स के साधन को यूज करेंगे तो पहले चेक करेंगे कि लाइट है या नहीं है। ऐसे जब योग का, शक्तियों का, गुणों का प्रयोग करते हो तो पहले ये चेक करो कि मूल आधार आत्मिक शक्ति, परमात्म शक्ति वा लाइट (हल्की) स्थिति है?* अगर स्थिति और स्वरूप डबल लाइट है तो प्रयोग की सफलता बहुत सहज कर सकते हो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं विशेष आत्मा हूँ"*

 

✧  सभी सदा अपने को विशेष आत्मायें अनुभव करते हो? सारे विश्व में ऐसी विशेष आत्मायें कितनी होंगी? जो कोटों में कोई गायन है, वह कौन हैं? आप हो ना! तो सदा अपने को कोटों में कोई, कोई में भी कोई ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें समझते हो? कभी स्वप्न में भी ऐसा नहीं सोचा होगा कि इतनी श्रेष्ठ आत्मा बनेंगे लेकिन साकार रूप में अनुभव कर रहे हो। तो सदा अपना यह श्रेष्ठ भाग्य स्मृति में रहता है? *वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य। जो भगवान ने खुदपका भाग्य बनाया है। डायरेक्ट भगवान ने भाग्य की लकीर खींची, ऐसा श्रेष्ठ भाग्य है। जब यह श्रेष्ठ भाग्य स्मृति में रहता है तो खुशी में बुद्धि रूपी पाँव इस पृथ्वी पर नहीं रहते।* ऐसे समझते हो ना।

 

  वैसे भी फरिश्तों के पाँव धरनी पर नहीं होते। सदा ऊपर। तो आपके बुद्धि रूपी पाँव कहाँ रहते हैं? नीचे धरनी पर नहीं। देह-अभिमान भी धरनी है। देह-अभिमान की धरनी से ऊपर रहने वाले। इसको ही कहा जाता है - 'फरिश्ता'। तो कितने टाइटिल हैं - भाग्यवान हैं, फरिश्ते हैं, सिकीलधे हैं - जो भी श्रेष्ठ टाइटिल हैं वह सब आपके हैं। तो इसी खुशी में नाचते रहो। *सिकीलधे धरती पर पाँव नहीं रखते, सदा झूले में रहते। क्योंकि नीचे धरनी पर रहने के अभ्यासी तो 63 जन्म रहे। उसका अनुभव करके देख लिया। धरनी में मिट्टी में रहने से मैले हो गये। और अभी सिकीलधे बने तो सदा धरनी से ऊपर रहना। मैले नहीं, सदा स्वच्छ।*

 

  *सच्ची दिल, साफ दिल वाले बच्चे सदा बाप के साथ रहते हैं। क्योंकि बाप भी सदा स्वच्छ है ना। तो बाप के साथ रहने वाले भी सदा स्वच्छ हैं।* बहुत अच्छा, मिलन मेले में पहुँच गये। लगन ने मिलन मनाने के लिए पहुँचा ही दिया। बापदादा बच्चों को देख खुश होते हैं क्योंकि बच्चे नहीं तो बाप भी अकेला क्या करेगा? भले पधारे अपने घर में। मौज मनाते हुए पहुँच गये।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  बाप कब निराशा होते है? परिस्थितयों से घबराते है? तो बच्चे फिर क्यों घबराते है? ज्यादा परिस्थितियों को सामना करने का साकार सबूत भी देखा। कभी उनका घबराहट का रूप देखा? सुनाया था ना कि *सदैव यह याद रखो कि स्नेह में सम्पूर्ण होना है*। कोई मुश्किल नहीं है। स्नेही को सुधा - बुध रहती है? जब अपने आप को मिटा ही दिया फिर यह मुश्किल क्यों? मिटा दिया ना।

  

✧  जो मिट जाते हैं वह जल जाते है। *जितना अपने को मिटाना उतना ही अव्यक्त रुप से मिलना*। मिटना कम तो मिलना भी कम। अगर मेले में भी कोई मिलन न मनाये तो मेला समाप्त हो जायेगा फिर कब मिलन होगा? स्नेह को समानता में बदली करना है। स्नेह को गुप्त और समानता को प्रत्यक्ष करो। सभी समाया हुआ है सिर्फ प्रत्यक्ष करना है। अपने कल्प पहले  के समाये हुए संस्कारों को प्रत्यक्ष करना है।

 

✧  कल्प पहले की अपनी सफलता का स्वरूप याद आता है ना। *अभी सिर्फ समाये हुए को प्रैक्टिकल प्रत्यक्ष रूप में लाओ*। सदैव अपनी सम्पूर्णता का स्वरूप और भविष्य 21 जन्मों का रूप सामने रखना है। कई लोग अपने घर को सजाने के लिए अपने बचपन से लेकर, अपने भिन्न - भिन्न रूपों का यादगार रखते है। तो आप अपने मन मन्दिर में अपने सम्पूर्ण स्वरुप की मूर्ती, भविष्य के अनेक जन्मों की मूर्तियाँ स्पष्ट रूप में सामने रखो। फिर कोई तरफ संकल्प नहीं जायेगा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  निरन्तर देह का भान भूल जाए- उसके लिए हरेक यथाशक्ति नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार मेहनत कर रहे हैं। पढ़ाई का लक्ष्य ही है देह-अभिमान से न्यारे हो देही-अभिमानी बनना। *देह-अभिमान से छूटने के लिए मुख्य युक्ति यह है सदा अपने स्वमान में रहो तो देह-अभिमान मिटता जायेगा। स्वमान में स्व का भान भी रहता है अर्थात् आत्मा का भान। स्वमान - मैं कौन हूँ।* अपने इस संगमयुग के और भविष्य के भी अनेक प्रकार के स्वमान जो समय प्रति समय अनुभव कराए गये हैं, उनमें से अगर कोई भी स्वमान में स्तिथ रहते रहे तो देह - अभिमान मिटता रहे।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  निरन्तर बाप को याद करना"*

 

_ ➳  *जीवन अपनी गति से चलते ही जा रहा था... कि अचानक जनमो के पुण्यो का फल सामने आ गया... मन्दिरो में प्रतिमा में खुदा छुपा था... वह मेरा मीठा बाबा बनकर सामने आ गया...* और जीवन सच्चे प्यार का पर्याय बन गया... ईश्वरीय प्रेम को पाकर मै आत्मा... दुखो की तपिश की भूल निर्मल हो गयी... मीठे बाबा के प्यार की मीठी अनुभूतियों में डूबी हुई मै आत्मा... बाबा की यादो में खोई सी, ठिठक जाती हूँ... और देखती हूँ... सम्मुख मेरा बाबा बाहें फैलाये मुस्करा रहा है...

 

   *मीठे बाबा मुझ आत्मा को बेहद के सुखो का अधिकारी बनाते हुए कहते है:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *अपने समय साँस और संकल्पों को निरन्तर मीठे बाबा की मीठी यादो में पिरो दो..*. यह यादे ही असीम सुखो का खजाना दिलायेगी... मीठे बाबा की यादो में सतोप्रधान बन बाबा संग घर चलने की तैयारी करो... सिर्फ और सिर्फ मीठे बाबा को हर पल याद करो..."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा को अपनी बाँहों में भरकर कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... *अब जो मीठे भाग्य ने आपका हाथ और साथ मुझ आत्मा को दिलाया है.*.. मै आत्मा हर घड़ी हर पल आपकी ही यादो में खोयी हुई हूँ... देह और देहधारियों के ख्यालो से निकल कर अपने मीठे बाबा की मधुर यादो में मगन हूँ..."

 

   *प्यारे बाबा मुझ आत्मा को अनन्त शक्तियो से भरते हुए कहते है :-* "मीठे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता की यादो में निरन्तर खो जाओ... इन यादो में गहरे डूबकर, स्वयं को असीम सुखो से भरी खुबसूरत दुनिया का मालिक बनाओ... और *यादो में सतोप्रधान बनकर, विश्व धरा पर देवताई ताजोतख्त को पाओ.*.."

 

_ ➳  *मै आत्मा अपने प्यारे बाबा से अमूल्य ज्ञान खजाने को पाकर, खुशियो से भरपूर होकर कहती हूँ :-* " मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा आपको पाकर कितनी खुशनसीब हो गयी हूँ.. श्रीमत को पाकर ज्ञानधन से भरपूर हो, मालामाल हो गयी हूँ... *आपके खुबसूरत साथ को पाकर सत्य से निखर गयी हूँ.*.."

 

   *मीठे बाबा मुझ आत्मा को बेहद के सतोप्रधान पुरुषार्थ के लिए उमंगो से सजाते हुए कहते है :-* "मीठे सिकीलधे बच्चे... यह *अंतिम जन्म में देह के भान और परमत से निकल कर, आत्मिक सुख की अनुभूतियों में खो जाओ..*. हर साँस ईश्वरीय यादो में लगाओ... यह यादे ही समर्थ बना साथ निभाएगी... देह धारियों के याद खाली कर ठग जायेंगी... इसलिए हर पल यादो को गहरा करो..."

 

_ ➳  *मै आत्मा अपने शानदार भाग्य पर मुस्कराते हुए मीठे बाबा से कहती हूँ :-* "प्यारे प्यारे बाबा मेरे... मेरे हाथो में अपना हाथ देकर, *आपने मुझे कितना असाधारण बना दिया है... ईश्वरीय खूबसूरती से सजाकर, मुझे पूरे विश्व में अनोखा बना दिया है.*.. मै आत्मा रग रग से आपकी यादो में डूबी हुई दिल से शुक्रिया कर रही हूँ..."मीठे बाबा को अपने प्यार की कहानी सुनाकर, मै आत्मा... साकारी तन में लौट आयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- भविष्य के लिए अपना बैग - बैगेज ट्रांसफर कर देना है*"

 

_ ➳  अपने अनादि स्वरूप में मैं आत्मा सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था मे अपने निराकारी घर परमधाम में हूँ। मुझ आत्मा में पवित्रता की अनन्त शक्ति है। *सर्व गुणों, सर्व शक्तियों से मैं आत्मा सम्पन्न हूँ*। मेरा स्वरूप रीयल गोल्ड के समान अति चमकदार है। पवित्रता की लाइट मुझ आत्मा से निरन्तर निकल रही है।

 

_ ➳  अपनी इसी सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था मे मैं आत्मा अपनी निराकारी दुनिया परमधाम को छोड़ इस सृष्टि रंगमंच रूपी *कर्मभूमि पर पार्ट बजाने के लिए, सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई स्वरूप धारण कर सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई दुनिया मे अवतरित होती हूँ*। एक ऐसी दुनिया जिसे स्वर्ग कहतें हैं, जो मेरे पिता परमात्मा ने मेरे लिए स्थापन की थी। जहां अपरमपार सुख, शांति और सम्पन्नता थी।

 

_ ➳  लक्ष्मी नारायण के इस सुखमयी राज्य में दो युग अपरमपार सुख भोगने के बाद मैं आत्मा जब द्वापरयुग में आई तो देह भान में आ कर विकारो में गिरने से मुझ आत्मा की कलाये कम हो गई। *मैं आत्मा जो सच्चा सोना थी, अब कॉपर की बन गई और अपने गुणों, अपनी शक्तियों को ही भूल गई*। कलयुग अंत तक आते आते मै आत्मा बिल्कुल कला विहीन हो गई। सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था से तमोप्रधान अवस्था मे पहुंच गई। किन्तु संगमयुग पर मेरे पिता परमात्मा ने आ कर मुझे स्वयं अपना और मेरा यथार्थ परिचय दे कर राजयोग द्वारा मुझे फिर से चढ़ती कला में जाने की यथार्थ विधि बता दी।

 

_ ➳  बाबा ने आ कर यह स्पष्ट कर दिया कि अब यह सृष्टि का नाटक पूरा हुआ इसलिए मुझे वापिस अब उसी सतोप्रधान अवस्था मे अपनी उसी निराकारी दुनिया परमधाम लौटना है जहां से मैं आत्मा अपनी सपूर्ण सतोप्रधान अवस्था के साथ आई थी। *अपने पिता परमात्मा के साथ वापिस अपने धाम जाने के लिए अब मुझे सम्पूर्ण सतोप्रधान बनने का पुरुषार्थ करना है* इसके लिए पुराना कखपन बाबा को दे बैग बैगेज सब ट्रांसफर कर देना है।

 

_ ➳  बाबा की श्रेष्ठ मत पर चल कर अब मैं आत्मा राजयोग के द्वारा अपनी खोई हुई शक्तियों को पुनः जागृत कर सम्पूर्ण सतोप्रधान बन फिर से सतयुगी राजाई प्राप्त करने का पुरुषार्थ कर रही हूं। *देह भान में आने के कारण मुझ आत्मा पर विकारों की जो कट चढ़ गई थी उन विकारों की कट को अपने पिता परमात्मा की याद से, योगअग्नि द्वारा भस्म करने के लिए मैं आत्मा अपने निराकारी स्वरूप में स्थित हो कर, मन बुद्धि से अब जा रही हूँ परमधाम*।

 

_ ➳  अब मैं स्वयं को परमधाम में अपने प्राणेश्वर शिव बाबा के सम्मुख देख रही हूं। मुझ पर निरन्तर मेरे प्राणेश्वर बाबा की शक्तिशाली किरणे पड़ रही हैं। इन शक्तिशाली किरणों को स्वयं में समा कर मैं शक्ति स्वरूप बन रही हूं। *अपने प्यारे परमपिता परमात्मा की सर्व शक्तियों से भरपूर हो कर और अमर भव का वरदान ले कर अब मैं धीरे - धीरे परमधाम से नीचे आ रही हूँ और प्रवेश कर रही हूँ अपनी साकारी देह में*। मेरा मन अब परम आनन्द से भरपूर है। मेरा जीवन ईश्वरीय प्रेम से भर गया है।

 

_ ➳  इस सत्यता को अब मैं जान गई हूं कि यह सृष्टि नाटक अब पूरा हुआ और इस नश्वर संसार को छोड़ अब मुझे अपने शिव पिता के साथ वापिस अपने धाम जाना है। इस विनाशी दुनिया का कोई भी सामान साथ नही जा सकता इसलिए *बाबा के साथ वापिस जाने के लिए पुराना कखपन दे बैग बैगेज भविष्य नई दुनिया के लिए ट्रांसफर कर देने में ही कल्याण है*। इस बात को स्मृति में रख तीन स्मृतियों का तिलक सदा मस्तक पर लगाये अब मैं बिंदु बन बिंदु बाप की याद में रह, विकारों रूपी कखपन बाबा को दे,भविष्य नई दुनिया के लिए अपने जीवन को हीरे तुल्य बना रही हूं।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं सेवा में सफलतामूर्त आत्मा हूँ।*

   *मैं सन्तुष्टमणि आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा विघ्नों रूपी पत्थर को तोड़ने में समय गंवाने से मुक्त हूँ  ।*

   *मैं आत्मा विघ्नों को सदा हाई जंप देकर पार करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा विघ्न विनाशक हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  ब्रह्मा बाप का त्याग ड्रामा में विशेष नूंधा हुआ है। आदि से ब्रह्मा बाप का त्याग और आप बच्चों का भाग्य नूंधा हुआ है। *सबसे नम्बरवन त्याग का एक्ज़ाम्पल ब्रह्मा बाप बना। त्याग उसको कहा जाता है - जो सब कुछ प्राप्त होते हुए त्याग करे। समय अनुसार, समस्याओं के अनुसार त्याग - श्रेष्ठ त्याग नहीं है। शुरू से ही देखो तन, मन, धन, सम्बन्ध, सर्व प्राप्ति होते हुए त्याग किया। शरीर का भी त्याग किया, सब साधन होते हुए स्वयं पुराने में ही रहे।* साधनों का आरम्भ हो गया था। होते हुए भी साधना में अटल रहे। *यह ब्रह्मा की तपस्या आप सब बच्चों का भाग्य बनाकर गई।* ड्रामानुसार ऐसे त्याग का एक्ज़ाम्पल रूप में ब्रह्मा ही बना और इसी त्याग ने संकल्प शक्ति की सेवा का विशेष पार्ट बनाया। जो नये-नये बच्चे संकल्प शक्ति से फास्ट वृद्धि को प्राप्त कर रहे हैं। तो सुना ब्रह्मा के त्याग की कहानी

 

✺  *"ड्रिल :- सब कुछ प्राप्त होते हुए भी त्याग का पार्ट बजाना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा व्यक्त भाव और व्यक्त दुनिया से न्यारी होती हुई... अव्यक्त वतन में अव्यक्त बापदादा से मिलन मनाने पहुँच जाती हूँ...* मैं फरिश्ता बापदादा के सम्मुख बैठ उनको निहार रही हूँ... बापदादा के मस्तक से दिव्य अलौकिक किरणें निकलकर मुझ फरिश्ते पर पड़ रही हैं... *मैं फरिश्ता अलौकिकता का अनुभव कर रही हूँ...*

 

_ ➳  मैं फ़रिश्ता बाप समान बन रही हूँ... *मैं फरिश्ता ब्रहमा बाप समान परमात्म प्यार में लवलीन हो रही हूँ... ब्रह्मा बाप समान त्यागी बन रही हूँ...* मैं आत्मा तन, मन, धन से एक बाबा को समर्पित हो रही हूँ... हर कर्म बाबा की याद में कर रही हूँ... सबकुछ बाबा को सौंपकर हलकी होकर उड़ रही हूँ...

 

_ ➳  मुझ आत्मा का विनाशी धन, वैभव और साधनों की आसक्ति खतम हो रही है... विनाशी संबंधो का मोह मिट रहा है... ये सब नश्वर हैं... मैं आत्मा भी ब्रह्मा बाप समान... *एक बाबा में ही सर्व संबंधो का सुख अनुभव कर रही हूँ... एक की लगन में मगन हो रही हूँ...*

 

_ ➳  मुझ आत्मा का मन विनाशी साधनों से हटकर साधना में लीन हो रहा है... *मैं आत्मा ब्रह्मा बाप के आदर्शों पर चल रही हूँ... ब्रह्मा बाप समान सादगी का जीवन अपना रही हूँ...* फालो फादर कर कदम से कदम मिलाकर चल रही हूँ... *हर कदम में पद्मों की कमाई कर रही हूँ...*

 

_ ➳  मैं आत्मा अब समझ गई हूँ... कि *अल्पकाल के साधनों से सिर्फ अल्पकाल का ही सुख मिलता है...* और अविनाशी बाबा की याद से ही अविनाशी खजानों... अविनाशी सुख की प्राप्ति होती है... *अब मैं आत्मा ब्रह्मा बाप के त्याग के एक्ज़ाम्पल को सामने रख... त्याग की भावना से... श्रेष्ठ कर्म करते हुए... श्रेष्ठ भाग्य बना रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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