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 19 / 04 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *स्वयं को विशेष आत्मा अनुभव किया ?*

 

➢➢ *दिलाराम बाप के दिल के स्नेह को अनुभव किया ?*

 

➢➢ *हर सेवा में नवीनता लाने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *सेवाओं में मनसा शक्ति से सहयोगी बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जैसे साइंस के साधन का यंत्र काम तब करता है जब उसका कनेक्शन मेन स्टेशन से होता है, *इसी प्रकार साइलेंस की शक्ति द्वारा अनुभव तब कर सकेंगे, जबकि बापदादा से निरन्तर क्लीयर कनेक्शन और रिलेशन होगा।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं रूहानी यात्री हूँ"*

 

✧  *सभी याद की यात्रा में आगे बढ़ते जा रहे हो ना। यह रूहानी यात्रा सदा ही सुखदाई अनुभव करायेगी। इस यात्रा से सदा के लिए सर्व यात्रायें पूर्ण हो जाती हैं। रूहानी यात्रा की तो सभी यात्रायें हो गई और कोई यात्रा करने की आवश्यकता ही नहीं रहती।*

 

✧  क्योंकि महान यात्रा है ना। महान यात्रा में सब यात्रायें समाई हुई है। पहले यात्राओंमें भटकते थे अभी इस रूहानी यात्रा से ठिकाने पर पहुँच गये। *अभी मन को भी ठिकाना मिला तो तन को भी ठिकाना मिला। एक ही यात्रा से अनेक प्रकार का भटकना बन्द हो गया।*

 

  *तो सदा रूहानी यात्री हैं इस स्मृति में रहो, इससे सदा उपराम रहेंगे, न्यारे रहेंगे, निर्मोही रहेंगे। किसी में भी मोह नहीं जायेगा। यात्री का किसी में भी मोह नहीं जाता। ऐसी स्थिति सदा रहे।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *अभी अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर व्यक्त देह का आधार लेकर देख रहे है, यह अनुभव कर रहे हो?* जैसे कोई स्थूल स्थान में प्रवेश करते हो वैसे ही इस स्थूल देह में प्रवेश कर यह कार्य कर रहे हैं। ऐसा अनुभव होता है? जब चाहें तब प्रवेश करें और जब चाहें तब फिर न्यारे हो जायें, ऐसा अनुभव करते हो? एक सेकण्ड में धारण करें और एक सेकण्ड में छोडें यह अभ्यास है?

  

✧  जैसे और स्थूल वस्तुओं को जब चाहे तब छोड सकते हैं ना। वैसे इस देह के भान को जब चाहे तब छोड देही - अभिमानी बन जायें - यह प्रैक्टीस इतनी सरल है, जितनी कोई स्थूल वस्तु की सहज होती है? रचयिता जब चाहे रचना का आधार ले जब चाहे तब रचना के आधार छोड दे ऐसे रचयिता बने हो? *जब चाहे तब न्यारे, जब चाहे तब प्यारे बन जायें।* इतना बन्धन - मुक्त बने हो?

 

✧  यह देह का भी बन्धन है। देह अपने बन्धन में बाँधती है। अगर देह बन्धन से मुक्त हो तो यह देह बन्धन नहीं डालेगी। लेकिन कर्तव्य का आधार समझ आधार को जब चाहे तब ले सकते हैं। ऐसी प्रैक्टीस चलती रहती है? देह को भान को छोडने अथवा उनसे न्यारे होने में कितना समय लगता है? एक सेकण्ड लगता है? सदैव एक सेकण्ड लगता है वा कभी कितना, कभी कितना? (कभी कैसी, कभी कैसी) *इसमे सिद्ध है कि आभी सर्व बन्धनों से मुक्त नहीं हुए हो।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *जैसे कोई भी व्यक्ति दर्पण के सामने खड़े होने से ही एक सेकण्ड में स्वयं का साक्षात्कार कर लेते हैं, वैसे आपके आत्मिक-स्थिति, शक्ति-रूपी दर्पण के आगे कोई भी आत्मा आवे तो क्या एक सेकेण्ड में स्व-स्वरूप का दर्शन वा साक्षात्कार नहीं कर सकते हैं?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- विशाल बुद्धि बनना"*

 

_ ➳  *परमधाम से ब्रह्मा तन में अवतरित होकर परमपिता परमात्मा ने रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा... परमात्मा इस यज्ञ में मेरे सारे अवगुणों, विकारों, विकर्मों को स्वाहा कर मुझे फिर से देवताई गुणों से सजाकर निर्विकारी और कर्मातीत बना रहे हैं...*  बाबा ने मुझ आत्मा को इस यज्ञ की सच्ची रक्षक बनाकर इसकी संभाल करने का जिम्मा दिया है... मैं आत्मा बाप समान रूहानी सेवा करने, सर्विस की भिन्न-भिन्न युक्तियाँ लेने पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन पारसनाथ बाबा के पास पारसबुद्धि बनने...

 

  *ज्ञान की नई-नई गुह्य बातो को समझाते हुए ज्ञान सागर प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... ज्ञान खजाने को पाकर जो खुशियो में झूम रहे हो... *इस सच्चे ज्ञान की झनकार से हर दिल को मन्त्रमुग्ध बनाओ... विशालबुद्धि बन बड़ी ही युक्ति से भक्तिमय दिल को जीत आओ... और सच के आइने में उन्हें भी देवताई सूरत दिखलाओ... सच्चे ज्ञान प्रकाश से ईश्वरीय प्रीत का दीवाना बनाओ..."*

 

_ ➳  *ज्ञान वीणा बजाकर सबके दिलों में ज्ञान की धुन से ज्ञानवान बनाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा ज्ञान मशाल लिए हर दिल को मान्यताओ के अँधेरे से बाहर निकाल... सदा का रौशन कर रही हूँ... *हर दिल को युक्ति से समझा कर ज्ञान अमृत का नशा चढ़ा रही हूँ... सच्चे ज्ञान को पाकर हर दिल खुशियो में झूम रहा है..."*

 

  *ज्ञान मानसरोवर में डुबोकर मेरे मन मंदिर में ज्ञान का शंख बजाते हुए मीठे रूहानी बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *युक्ति से विश्व का अँधेरा दूर करने वाली रूहानी जादूगर बनो... ईश्वर पिता धरा पर आकर ईश्वरीय खानो को लुटा रहा... यह खुशखबरी हर दिल को सुनाओ... और विशालबुद्धि से ज्ञान गुह्य राजो को बताकर ईश्वरीय ज्ञान से आबाद करो...* ज्ञान रत्नों से हर दिल का दामन सजाकर, सच्चे सुखो का पता दे आओ..."

 

_ ➳  *अमूल्य ज्ञान रत्नों से हर आत्मा को मालामाल करते हुए मैं रूहानी सेवाधारी आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मैं आत्मा आप समान हर दिल को खुशनसीब बना रही हूँ... *प्यारे बाबा आपकी मीठी यादो में गहरे उतरकर... यह सुख की लहर सबके दिल तक पहुंचा रही हूँ... सच्चे ज्ञान को पाने की चमक से हर दिल मुस्करा रहा है... मेरा बाबा आ गया यह गीत गुनगुना रहा है..."*

 

  *ज्ञान चन्द्रमा के मस्तक में चमकते हुए ज्ञान सूर्य प्यारे बाबा मुझ आत्मा सितारे से कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... सच्चे सुखो की बहारो से हर दिल पर सदा की मुस्कान सजाओ... *ज्ञान रत्नों की दौलत और गहन राजो से, अज्ञान अँधेरा मिटा कर, सदा का नूरानी हर दिल को बनाओ... हर भ्रम को दूरकर सच्चाई को छ्लकाओ... और युक्तियों से उन्हें सच भरी राहो में सुख का अधिकारी बनाओ..."*

 

_ ➳  *मीठे बाबा का पता हर दिल को देकर उनकी बगिया में सुखों के फूल बिखेरते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मैं आत्मा सबको खुशियो से भरने वाली ज्ञान परी बन मुस्करा रही हूँ... *सबको देह की मिटटी से निकाल आत्मिक नशे से भर रही हूँ... सत्य ज्ञान और सच्चे आनंद का सुख दिला रही हूँ... ईश्वरीय यादो में रोम रोम पुलकित करा, अनन्त दुआओ को पा रही हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- स्वयं को विशेष आत्मा अनुभव करना*"

 

 _ ➳  "मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, सर्वशक्तिवान की संतान हूँ" इस श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट होते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे परमधाम से सर्वशक्तिवान शिव बाबा अपनी सर्वशक्तियाँ बिखेरते हुए, मेरे सिर के बिल्कुल ऊपर आ कर स्थित हो गए हैं और उनकी सर्वशक्तियों से मेरे चारों और एक बहुत ही सुंदर औरा निर्मित हो गया है। *इस औरे का विस्तार जैसे - जैसे बढ़ रहा है वैेसे - वैसे मेरे चारों और का वायुमण्डल बहुत ही शक्तिशाली बनता जा रहा है*। एक - एक करके मेरी सभी शक्तियां इमर्ज रूप में मेरे सामने उपस्थित हो गई है और मैं स्वयं को बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। *अपनी इस शक्तिशाली स्थिति में स्थित हो कर अब मैं अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर लेती हूँ*।

 

 _ ➳  सर्वशक्तियों से सम्पन्न अपने फ़रिशता स्वरूप में स्थित हो कर, अपने सर्वशक्तिवान परम पिता परमात्मा की छत्रछाया के नीचे स्वयं को अनुभव करते, अब मैं फ़रिशता सारी दुनिया का चक्कर लगा रहा हूँ। *सर्वशक्तिवान मेरे शिव पिता परमात्मा से निरन्तर सर्वशक्तियाँ निकल कर मुझ फ़रिश्ते में और मुझ फ़रिश्ते से सारे विश्व में फैलती जा रही हूँ*। मैं देख रहा हूँ उन सभी तड़पती हुई, अशांत आत्माओं को जो पल भर की शांति की तलाश में भटक - भटक कर बिल्कुल निर्बल, शक्तिहीन हो चुकी हैं और मुझ फ़रिश्ते से निकल रही सर्वशक्तियों को पा कर स्वयं को शक्तिशाली अनुभव करने लगी है। *मुझ फ़रिश्ते से निकल रही सर्वशक्तियाँ उनमें शक्ति का संचार कर रही हैं*।

 

 _ ➳  सर्वशक्तिवान बाबा की सर्वशक्तियों की छत्रछाया के नीचे, विश्व की सर्व आत्माओं को शक्तियां प्रदान करता मैं फ़रिशता अब अपने सर्वशक्तिवान बाबा के साथ सूक्ष्म लोक की ओर जा रहा हूँ। *सूक्ष्म लोक में पहुंच कर बाबा अपने निर्धारित रथ, ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान हो जाते हैं और मुझे अपने पास बिठा कर, शक्तिशाली दृष्टि दे कर अपनी सर्वशक्तियों से मुझे भरपूर करने लगते हैं*। अपने हाथ मेरे हाथों पर रख कर बाबा अपनी सर्वशक्तियाँ मुझे विल करने के बाद अपने निराकार स्वरूप में परमधाम की ओर प्रस्थान करते हैं। मैं भी अपनी फ़रिशता ड्रेस को वही उतार कर, अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप में स्थित हो कर उनके पीछे परमधाम की ओर चल पड़ती हूँ।

 

 _ ➳  परमधाम में पहुंच कर, सर्वशक्तिवान बीज रूप अपने शिव पिता परमात्मा के सानिध्य में मैं मास्टर बीज रूप आत्मा जा कर बैठ जाती हूँ। बाबा से आती सर्वशक्तियों रूपी किरणों की मीठी - मीठी फुहारे मुझे असीम बल प्रदान कर रही हैं। सर्वशक्तियों से मैं सम्पन्न होती जा रही हूँ।  *ऐसा लग रहा है जैसे अपनी समस्त ऊर्जा का भंडार बाबा मेरे अंदर समाहित कर रहे हैं ताकि संपूर्ण ऊर्जावान बन मैं विश्व की समस्त आत्माओं का कल्याण करने के निमित बन बाबा के कार्य में मददगार बन सकूँ*। परमात्म शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर, शक्तियों का पुंज बन अब मैं परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और साकारी दुनिया मे आ कर अपने पांच तत्वों के बने शरीर में मैं प्रवेश करती हूँ, इस स्मृति के साथ कि अब मुझे मास्टर सर्व शक्तिवान आत्मा बन निर्बल आत्माओं को शक्ति स्वरुप स्थिति का अनुभव करवाना है।

 

 _ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं स्वयं को सदा इस श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट रखती हूँ कि "मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, सर्वशक्तिवान की संतान हूँ"। *इस श्रेष्ठ स्वमान की स्मृति में रहने से मैं स्वयं को सदैव अपने सर्वशक्तिवान शिव बाबा के साथ कम्बाइन्ड अनुभव करती हूँ*। जिससे मुझ आत्मा की शक्तियाँ सदैव इमर्ज रहती है और मेरा शक्तिसम्पन्न स्वरूप मेरे सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली निर्बल और कमजोर आत्माओं को भी, उनके शक्तियों से सम्पन्न ओरिजनल स्वरूप का रीयलाईजेशन करवा कर उन्हें भी शक्ति स्वरूप स्थिति का अनुभव करवाता रहता है।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं बालक और मालिकपन में समानता धारण करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सर्व खजानों में सम्पन्न आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा ज्ञान के अखुट ख़ज़ानों की अधिकारी हूँ  ।*

   *मैं आत्मा अधीनता को खत्म करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा ज्ञान ख़ज़ानों से संपन्न हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  जिस समय पावरफुल बनना चाहिए उस समय नालेजफुल बन जाते हैं। लेकिन नालेज की शक्ति है, उस नालेज को शक्ति रूप में यूज़ नहीं करते। प्वाइन्ट के रूप से यूज़ करते हैं लेकिन *हर एक ज्ञान की प्वाइन्ट शस्त्र है, उसे शस्त्र के रूप से यूज़ नहीं करते। इसलिए बीज को जानो। अलबेलेपन में आकर अपनी सम्पन्नता में वा सम्पूर्णता में कमी नहीं करो।*

 

✺  *"ड्रिल :- नॉलेज को शक्ति रूप में अनुभव करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा घर की छत पर खड़ी सूर्योदय को देख रही हूँ... उगते सूरज की लालिमा को निहार रही हूँ...* छूकर जाती हुई ठंडी हवा, फूलों की सुगंध, पक्षियों की चहचहाहट ऐसा लग रहा जैसे सब मुझे गुड मॉर्निंग कह रहे हों... *मैं आत्मा इस सुहावने वातावरण का आनंद लेते हुए प्यारे बाबा को बुलाती हूँ...* आह्वान करते ही प्यारे बाबा तुरंत मेरे सामने आ जाते हैं...

 

_ ➳  *मेरे सामने हजारों सूर्यों की लालिमा बिखेरते ज्ञान सूर्य बाबा चमक रहे हैं... मैं आत्मा ज्ञान सूर्य की किरणों रूपी आभा में समा रही हूँ...* मैं आत्मा ज्ञान के प्रकाश से चमक रही हूँ... मुझ आत्मा का दिव्य बुद्धि रूपी ताला खुल रहा है... *मुझ आत्मा की दिव्य बुद्धि में दिव्य ज्ञान भर रहा है...* मुझ आत्मा के दिव्य नेत्र खुल रहे हैं... मैं आत्मा त्रिनेत्री बन रही हूँ... मैं आत्मा तीनों कालों का नालेज प्राप्त कर त्रिकालदर्शी बन रही हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा ज्ञान धन से भरपूर हो रही हूँ... *ज्ञान के हर एक प्वाइन्ट की गहराई में जाकर विचार सागर मंथन करती हूँ... और स्वयं में धारण कर रही हूँ...* ज्ञान धन को शक्ति रूप में यूज़ कर सर्व प्राप्तियां कर रही हूँ... हर एक ज्ञान की प्वाइन्ट को शस्त्र के रूप से यूज़ कर दिव्य शस्त्रधारी होने का अनुभव कर रही हूँ... *मैं आत्मा ज्ञान रत्नों के शस्त्रों से सदा सुसज्जित रहती हूँ...*

 

_ ➳  ज्ञान सूर्य की किरणों से मुझ आत्मा की कमी-कमजोरियां, आलस्य-अलबेलापन खत्म हो रहा है... *मैं आत्मा कमजोरियों के बीज को आलस्य, अलबेलेपन का पानी देकर बढ़ने नही देती हूँ...* अब मै आत्मा हर पल चेक कर अपनी कमजोरियों के बीज को पहचानती हूँ... और जड़ सहित भस्म करती हूँ... *एक बाबा से कनेक्शन रख करेक्शन कर रही हूँ... बाबा से वेरीफाय कराकर प्यूरीफाय हो रही हूँ...* अब मैं आत्मा नॉलेज को शक्ति रूप में अनुभव कर रही हूँ... सम्पन्न वा सम्पूर्ण बन रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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