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 26 / 04 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *हर कर्म में उडती कला का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *"जो ओटे सो अर्जुन" की विशेषता को धारण किया ?*

 

➢➢ *शक्तिशाली संकल्पों का सहयोग दिया ?*

 

➢➢ *निमित सेवाधारी बन भाग्य की प्राप्ति का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  परमार्थ मार्ग में विघ्न-विनाशक बनने के लिए योगयुक्त बनकर साइलेन्स की शक्ति द्वारा परखने और निर्णय करने की शक्ति को अपनाओ। *यदि माया के भिन्न-भिन्न रूपों को परख नहीं सकेंगे तो उसे भगा भी नहीं सकेंगे क्योंकि परमार्थी बच्चों के सामने माया रॉयल ईश्वरीय रूप रच करके आती हैं जिसको परखने के लिए एकाग्रता की शक्ति चाहिए। एकाग्रता की शक्ति साइलेन्स की शक्ति से ही प्राप्त होती है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं रूहानी गुलाब हूँ"*

 

  सदा विस्तार को प्राप्त करने वाला रूहानी बगीचा है ना। और आप सभी रूहानी गुलाब हो ना। जैसे सभी फूलों में रूहे गुलाब श्रेष्ठ गाया जाता है। वह हुआ अल्पकाल की खुशबू देने वाला। आप कौन हो? *रूहानी गुलाब अर्थात् अविनाशी खुशबू देने वाले। सदा रूहानियत की खुशबू में रहने वाले और रूहानी खुशबू देने वाले।* ऐसे बने हो?

 

  सभी रूहानी गुलाब हो या दूसरेदूसरे। और भी भिन्न-भिन्न प्रकार के फूल होते हैं लेकिन जितना गुलाब के पुष्प की वैल्यु है उतनी औरों की नहीं। *परमात्म बगीचे के सदा खिले हुए पुष्प हो। कभी मुरझाने वाले नहीं। संकल्प में भी कभी माया से मुरझाना नहीं। माया आती है माना मुरझाते हो। मायाजीत हो तो सदा खिले हुए हो।*

 

  *जैसे बाप अविनाशी है ऐसे बच्चे भी सदा अविनाशी गुलाब हैं। पुरुषार्थ भी अविनाशी है तो प्राप्ति भी अविनाशी है।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आज आवाज़ से परे जाने का दिन रखा हुआ है। तो बापदादा भी आवाज़ में कैसे आयें? *आवाज़ से परे रहने का अभ्यास बहुत आवश्यक है।* आवाज़ में आकर जो आत्माओं की सेवा करते हो उससे अधिक आवाज़ से परे स्थिति में स्थित होकर सेवा करने से सेवा का प्रत्यक्ष प्रमाण देख सकेंगे।

 

✧  *अपनी अव्यक्त स्थिति होने से अन्य आत्माओं को भी अव्यक्त स्थिति का एक सेकण्ड में अनुभव कराया तो वह प्रत्यक्ष फल स्वरूप आपके सम्मुख दिखाई देगा।* आवाज़ से परे स्थिति में स्थित हो फिर आवाज़ में आने से वह आवाज़, आवाज़ नहीं लगेगा लेकिन उस आवाज़ में भी अव्यक्त वाय्ब्रेशन का प्रवाह किसी को भी बाप की तरफ आकर्षित करेगा। वह आवाज़ सुनते हुए उन्हों को आपकी अव्यक्त स्थिति का अनुभव होने लगेगा।

 

✧  जैसे इन साकार सृष्टी में छोटे बच्चों को लोरी देते हैं, वह भी आवाज़ होता है लेकिन वह आवाज़, आवाज़ से परे ले जाने का साधन होता है। ऐसे ही अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर आवाज़ में आओ तो आवाज़ से परे स्थिति का अनुभव करा सकते हो। *एक सेकण्ड की अव्यक्त स्थिति का अनुभव आत्मा को अविनाशी संबन्ध में जोड सकता हे।* ऐसा अटूट संबन्ध जुड जाता है जो माया भी उस अनुभवी आत्मा को हिला नहीं सकती।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  जैसे स्थूल चोले को कर्तव्य के प्रमाण धारण करते हो और उतार देते हो, वैसे ही इस साकार देह रूपी चोले को कर्तव्य के प्रमाण धारण किया और न्यारा हुआ। *लेकिन जैसे स्थूल वस्त्र भी अगर टाइट होते हैं तो सहज उतरते नहीं हैं, ऐसे ही आत्मा का देह रूपी वस्त्र देह, दुनिया के माया के आकर्षण में टाइट अर्थात खींचा हुआ है तो सरल उतरेगा नहीं अर्थात सहज न्यारा नहीं हो सकेंगे।* समय लग जाता है। थकावट हो जाती है। कोई भी कार्य जब सम्भव नहीं होता है तो थकावट व परेशानी हो ही जाती है; परेशानी कभी एक टिकाने टिकने नहीं देती। *तो यह भक्ति का भटकना क्यों शुरु हुआ? जब आत्मा इस शरीर रूपी चोले को धारण करने व न्यारे होने में असमर्थ हो गयी। यह देह का भान अपने तरफ खेंच गया तब परेशान होकर भटकना शुरू किया।* लेकिन अब आप सभी श्रेष्ठ आत्मायें इस शरीर की आकर्षण से परे एक सेकण्ड में हो सकते हो, ऐसी प्रेक्टिस है?

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- नववर्ष पर नवीनता की मुबारक"*

 

_ ➳  *नया युग, नया जन्म नया है हमसफर मेरा... लेकर हाथों में हाथ उसके गुजरता है हर लम्हा मेरा*... भक्ति में जिसकी एक झलक पाने को काशी कलवट खाये... वो इस समय बैठकर सम्मुख गुण मेरे गायें... उसकी श्रीमत का हाथ कभी वरदान बन मेरे सिर पर है तो कभी मन बुद्धि की डोर संभाले है... *आज सम्मुख बैठ महामिलन की बधाई दे रहे है वो रूहानी माशूक... और मेरे रोम रोम रूहानी उत्सव हिलोरें ले रहा है...*

 

  *संगम के महामिलन की बधाई देते हुए रूहानी आशिको के सच्चे माशूक बापदादा मुझ आत्मा से बोले:-* "मीठी बच्ची... *संगम की ये सौभाग्य शाली घडियाँ पदमापदम प्राप्तियों की घडियाँ है... महामिलन की इन सौगातों से स्वयं को भरपूर करों... अविनाशी साथ और हाथ मिला है आपकों...* अब निश्चय बुद्धि हो संभालों इसे... अब मायावी साथ से खुद को दूर करों...*"

 

_ ➳  *एक बाप पर अटूट निश्चय रखने वाली मैं आत्मा बापदादा से बोली:-* "मीठे बाबा... *बुद्धि दिव्य बुद्धि हो गई है जब से... श्रीमत की रोशनी इसमे जगमगाई है... इस अविनाशी साथ ने जीवन के दोराहो पर भी प्रीत निभाई है*... हर पल ये श्रीमत रूपी हाथ बुद्धि रूपी हाथ में रहा है बाबा... मायाजीत बन रही हूँ मैं... माया ने हर कदम पर मुहँ की खाई है..."

 

  *श्रीमत की गहराइयों की समझानी देते हुए बापदादा मुझ आत्मा से बोले:-* "मीठी बच्ची... *संसार में हाथ और साथ अविनाशी नही हैं... सच्चा साथ बस केवल यहीं हैं*... इस साथ की महिमा को पूरी तरह पहचानों... जैसे बाप ने सच्चा सहारा दिया आपको... वैसे ही सब आत्माओं का सच्चा सहारा बनों... प्यार बाँटों सबको और देह से भी न्यारा बनों..."

 

_ ➳  *श्रीमत की गहराईयों को स्वयं में समाती और स्वरूप बनती मैं आत्मा बापदादा से बोली*:- "कदम कदम पर आपकी ये समझानियाँ बडी ही अनमोल है बाबा... *संगम युगी नये उजालों में आत्मा अब ज्ञान सूर्य के प्रकाश से झिलमिला उठी है*... *माया के अंधेरों का बिस्तर सिमट रहा है... आपके साथ से लगता है कि उसकी परछाईयाँ भी झूठी है*"...

 

  *श्रेष्ठ श्रीमत से मायाजीत बनाने वाले बापदादा बोले:-* "मीठी बच्ची... *संकल्पों की रचना करने से पहले भी श्रीमत का सहारा लो... आत्माओं की सेवा के लिए ही आप इस देह और देह के संसार में हों*... बाप ने साथीपन का सम्मान दिया है आपको... इस साथ और हाथ को गिरने न देना... युगों- युगों का साथ है ये...  इस बात पर मन में कभी संशय मत आने देना"...

 

_ ➳  *मन बुद्धि से सम्पूर्ण समर्पित मैं आत्मा मीठे बाबा से बोली*:- "बाबा... *अब तो ये श्रीमत रूपी हाथ... प्राणों का आधार है... श्रीमत से आपकी दिलोजान से मुझ आत्मा को प्यार है*... हर  आत्मा को ये वफादारी सिखा रही हूँ... श्रीमत पर चलकर क्या से क्या बन रही हूँ ये प्रत्यक्ष और स्वरूप बन कर दिखा रही हूँ... और वरदानों की बारिश करते... बापदादा की आँखों से टपकता स्नेह मैं आत्मा महसूस कर रही हूँ..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- हर कर्म में उड़ती कला का अनुभव करना*"

 

 _ ➳  *बाबा की यादों में झूमती हुई मैं आत्मा... प्रातः काल एक उद्यान में भ्रमण कर रही हूँ... यहाँ चारों ओर हरियाली है... रंग बिरंगे खिले हुए फूल वातावरण को बेहद खुशनुमा बना रहे हैं... पक्षियों की चहचहाहट, फूलों की महक मन को आनंदित कर रही है...* उगता हुआ लाल सूर्य नई सुबह की दस्तक दे रहा है... ऐसे सुन्दर दृश्य को देखते हुए मन मीठे बाबा की ओर सहज खींचा चला जा रहा है... मैं आत्मा चिंतन करती हूं कि... कलियुगी दुखों की तपन में आत्मा झुलस रही थी... बाबा ने आकर अपनी शीतल स्नेह की वर्षा से मेरे जीवन को कैसे महका दिया है...

 

 _ ➳  बाबा अपनी मीठी मीठी शिक्षाओं से मेरे जीवन का श्रृंगार कर रहे हैं... मुझे उन शिक्षाओं का स्वरूप बनाने के लिए मुझ में शक्तियां, वरदान भर रहे हैं.... यह चिंतन करते करते मेरा मन आनंद सागर में हिलोरे ले रहा है... *बाबा से स्नेह, प्यार मुझ आत्मा को सहजयोगी, सहज पुरुषार्थी बनाता जा रहा है... ईश्वरीय स्नेहरूहानी नशा हर परिस्थिति रूपी पहाड़ को हंसते हंसते पार करने की शक्ति भर रहा है...*

 

 _ ➳  हिमालय पर्वत जैसे बड़े से बड़ी बात सामने आ जाए... उसे भी उड़ती कला से... सेकंड में पार कर रही हूँ... *किसी बात को सोच सोच कर बड़ा न कर के... साहस से उसका सामना कर रही हूँ... परिस्थिति रुपी पहाड़ को काटने में, ठोकने में अपना समय शक्तियां व्यर्थ नहीं गंवा रही हूँ... उड़ती कला द्वारा उस पहाड़ को जंप लगा कर... उड़ कर सहज क्रॉस कर रही हूँ...*

 

 _ ➳   मुझ आत्मा के कमजोर संकल्प जो बातों को बड़ा कर देते थे... मुझे व्यर्थ के मायाजाल में फसा देते थे... अब प्यारे बाबा के साथ और हाथ से उन बातों को सहज पार कर रही हूँ... *परिस्थिति में फंसकर भक्ति में ईश्वर को पुकारते थे वह पुकारने के भक्ति के संस्कार अब समाप्त हो गए हैं... मैं आत्मा सर्व प्राप्तियों का स्वरूप बन रही हूं...* संगम युग पर बाबा का साथ पाकर सर्व खजानों से... सर्व गुणों शक्तियों से भरपूर होने का अनुभव कर रही हूँ...

 

 _ ➳  मैं शक्तिशाली आत्मा सहजयोगी सहज पुरुषार्थी बन गई हूँ... *मेरे हर संकल्प में हर कदम में पद्मों की कमाई जमा हो रही है... परिस्थिति रुपी पहाड़ मुझ फरिश्ते के सामने राई व रूई के समान हल्का बन रहा है...* ईश्वरीय स्नेह पत्थरों को तोड़ने की मेहनत से मुक्त करके मोहब्बत के झूले में झूलने का मधुर अनुभव करा रहा है... संगमयुग के अतीन्द्रिय सुखों का अनुभव कर रही हूँ...

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं हर कर्म चरित्र के रूप में गायन योग्य बनाने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं महान आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा मान की इच्छा छोड़ती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदा स्वमान में टिक जाती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा मान परछाई की तरह पीछे आता हुआ अनुभव करती हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  धर्म में दो विशेषतायें होती हैं। धर्म सत्ता स्व को और सर्व को सहज परिवर्तन कर लेती है। परिवर्तन शक्ति स्पष्ट होगी। सारे चक्र में देखो जो भी धर्म सत्ता वाली आत्मायें आई हैं उन्हों की विशेषता है - मनुष्य आत्माओं को परिवर्तन करना। साधारण मनुष्य से परिवर्तन हो कोई बौद्धी, कोई क्रिश्चयन बना, कोई मठ पंथ वाले बने। लेकिन परिवर्तन तो हुए ना! तो धर्म सत्ता अर्थात् परिवर्तन करने की सत्ता। पहले स्वयं को फिर औरों को। धर्म सत्ता की दूसरी विशेषता है -परिपक्वता'। हिलने वाले नहीं। परिपक्वता की शक्ति द्वारा ही परिवर्तन कर सकेंगे। चाहे सितम हों, ग्लानी हो, आपोजिशन हो लेकिन अपनी धारणा में परिपक्व रहें। यह हैं धर्म सत्ता की विशेषतायें। धर्म सत्ता वाली हर कर्म में निर्मान। *जितना ही गुणों की धारणा सम्पन्न होगा अर्थात् गुणों रूपी फल स्वरूप होगा उतना ही फल सम्पन्न होते भी निर्मान होगा। अपनी निर्मान' स्थिति द्वारा ही हर गुण को प्रत्यक्ष कर सकेंगे। जो भी ब्राह्मण कुल की धारणायें हैं उन सर्व धारणाओं की शक्ति होना अर्थात् धर्म सत्ताधारी होना।*

 

✺  *"ड्रिल :- 'परिवर्तन करने की कला, परिपक्वता, निर्मानता' - इन 3 गुणों का विशेष रूप से अनुभव करना*"

 

_ ➳  मैं आत्मा *फर्श से न्यारी होती हुई एक बाबा से रिश्ता रख फरिश्ता बन उड़ चलती हूँ फरिश्तों की दुनिया में...* जहाँ बापदादा मेरे ही इन्तजार में बैठे हुए हैं... चारों ओर सफेद चमकीले प्रकाश की आभा बिखेरते हुए बापदादा अपने कोमल हाथों से मुझे अपनी गोदी में बिठाते हैं... बाबा अपनी मीठी दृष्टि देते हुए अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रखते हैं...

 

_ ➳  *बाबा की मीठी दृष्टि मुझ आत्मा में मिठास घोल रही है...* मैं आत्मा भी बाप समान मीठी बन रही हूँ... मुझ आत्मा के पुराने स्वभाव-संस्कार बाहर निकल रहे हैं... बाबा के हाथों से दिव्य अलौकिक गुण व शक्तियां निकलकर मुझ फरिश्ते में प्रवाहित हो रहे हैं... मुझ आत्मा के आसुरी अवगुण भस्म हो रहे हैं... मैं आत्मा दिव्य गुणों को धारण कर धारणा सम्पन्न अवस्था का अनुभव कर रही हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा स्व को परिवर्तित कर रही हूँ... मैं आत्मा कलियुगी संस्कारों से मुक्त हो रही हूँ... और संगमयुगी श्रेष्ठ संस्कारों को स्वयं में धारण कर रही हूँ... *अब मैं आत्मा श्रीमत अनुसार ब्राह्मण कुल की सर्व धारणाओं पर चल रही हूँ...* मैं आत्मा स्व-परिवर्तन द्वारा सर्व को परिवर्तित कर रही हूँ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा परिपक्वता की शक्ति द्वारा परिवर्तन कर रही हूँ...* हर परिस्थिति में अचल अडोल बन विजय प्राप्त कर रही हूँ... कैसी भी परिस्थिति अब मुझ आत्मा को हिला नहीं सकती है... मैं आत्मा हर परिस्थिति में अपनी धारणा में परिपक्व रहती हूँ... *हर प्रकार के मान-अपमान से परे होकर निर्मानता के गुण को स्वयं में अनुभव कर रही हूँ...*

 

_ ➳  *अब मैं आत्मा सदा अटेंशन रख परिवर्तन करने की कलासे माया के सभी रूपों को परिवर्तित कर रही हूँ...* परिपक्वताकी शक्ति से मैं आत्मा सर्व मर्यादाओं का पालन कर रही हूँ... *मैं आत्मा अपनी निर्मान' स्थिति द्वारा हर गुण को प्रत्यक्ष कर रही हूँ...* मैं आत्मा धर्म सत्ताधारी बन इन 3 गुणों का अनुभव कर रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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