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❍ 04 / 04 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *रूप बसंत बन मुख से सदैव रतन निकाले ?*
➢➢ *ज्ञान और योग में तीखा बन अपना और दूसरों का कल्याण किया ?*
➢➢ *माया व विघनो से सेफ रह बापदादा की छत्रछाया का अनुभव किया ?*
➢➢ *संतुष्टता का गुण धारण कर प्रभु प्रिय, लोक प्रिय और स्वयं प्रिय बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ शान्ति की शक्ति का प्रयोग पहले स्व के प्रति, तन की व्याधि के ऊपर करके देखो। इस शक्ति द्वारा कर्मबन्धन का रूप, मीठे सम्बन्ध के रूप में बदल जायेगा। *यह कर्मभोग, कर्म का कड़ा बन्धन साइलेन्स की शक्ति से पानी की लकीर मिसल अनुभव होगा। भोगने वाला नहीं, भोगना भोग रही हूँ-यह नहीं लेकिन साक्षी दृष्टा हो इस हिसाब-किताब का दृश्य भी देखते रहेंगे।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं पुण्य आत्मा हूँ"*
〰✧ पुण्य आत्मायें बने हो? *सबसे बड़ा पुण्य है - दूसरों को शक्ति देना। तो सदा सर्व आत्माओंके प्रति पुण्य आत्मा अर्थात् अपने मिले हुए खजाने के महादानी बनो।*
〰✧ *ऐसे दान करने वाले जितना दूसरों को देते हैं उतना पद्मगुणा बढ़ता है। तो यह देना अर्थात् लेना हो जाता है।* ऐसे उमंग रहता है? इस उमंग का प्रैक्टिकल स्वरूप है सेवा में सदा आगे बढ़ते रहो।
〰✧ *जितना भी तन-मन-धन सेवा में लगाते उतना वर्तमान भी महादानी पुण्य आत्मा बनते और भविष्य भी सदाकाल का जमा करते। यह भी ड्रामा में भाग्य है जो चांस मिलता है अपना सब कुछ जमा करने का।* तो यह गोल्डन चांस लेने वाले हो ना। सोचकर किया तो सिल्वर चांस, फराखदिल होकर किया तो गोल्डन चांस तो सब नम्बरवन चांसलर बनो।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ जो ज्यादा न्यारी अवस्था में रहते हैं, उनकी स्थिती में विशेषता क्या होती है? उनकी बोली से उनके चलन से उपराम स्थिती का औरों को अनुभव होंगा। *जितना ऊपर स्थिती जायेगी, उतना उपराम होते जायेंगे*। शरीर में होते हुए भी इस उपराम अवस्था तक पहूँचना है। बिल्कूल देह और देही अलग महसूस हो। उसको कहा जाता है याद के यात्रा की सम्पूर्ण स्टेज वा योग की प्राक्टिकल सिद्धि, बात करते - करते जैसे न्यारा - पन खींचे। बात सुनते भी जैसे कि सुनते नहीं।
〰✧ ऐसी भासना औरों को भी आये। ऐसी स्थिती की स्टेज को कर्मातीत अलस्था कहा जाता है। *कर्मातीत अर्थात देह के बन्धन से भी मुक्त*। कर्म कर रहे है लेकिन उनके कर्मों का खाता नहीं बनेगा जैसे कि न्यारे होकर, कोई अटैचमेन्ट नहीं होंगी। कर्म करने वाला अलग और कर्म अलग है - ऐसे अनुभव दिन - प्रतिदिन होता जायेगा। इस अवस्था में जास्ती बुद्धि चलाने की भी आवश्यकता नहीं है। संकल्प उठा और जो होना है वही होगा। ऐसी स्थिती में सभी को आना होगा।
〰✧ मूलवतन जाने के पहले वाया सूक्ष्मवतन जायेंगे। *वहाँ सभी को आकर मिलना है फिर अपने घर चलकर फिर अपने राज्य में आ जायेंगे*। जैसे साकार वतन में मिला हुआ वैसे ही सूक्ष्मवतन में होगा। वह फरिश्तों का मेला नजदीक है। कहानियाँ बताते है ना। फरिश्ते आपस में मिलते थे। रूह रूहों से बात करते थे। वही अनुभव करेंगे। तो जो कहानियाँ गाई हुई है उसका प्रैक्टिकल में अनुभव होगा। उसी मेले के दिनों का इन्तजार है।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *साक्षात्कारमूर्त तब बनेंगे जब आकार में होते निराकार अवस्था में होंगे। इस आत्म-अभिमानी की स्थिति में ही सर्व आत्माओं को साक्षात्कार कराने के निमित बनेंगे। तो यह अटेन्शन रखना पड़े।* आत्मा समझना - यह तो अपने स्वरूप की स्थिति में स्तिथ होना हैं ना।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- देही-अभिमानी होकर बैठना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा स्वयं को बाबा की कुटिया में बैठा हुआ अनुभव कर रही हूं... बाबा की मीठी मीठी यादों में खोई में आत्मा पहुंच जाती हूं परमधाम और बाबा को स्पर्श करती हूं... स्पर्श करते ही एक दिव्य अलौकिक प्रकाश मुझ आत्मा में भर जाता है और मैं आत्मा बहुत शक्तिशाली अनुभव करने लगती हूँ... शक्तिओं से भरपूर होकर मैं आत्मा स्वयं को नीचे उतरता हुआ देख रही हूं... वतन में पहुंच कर बापदादा को अपने सामने देख रही हूं... बाबा बाहें फैलाये सम्मुख खड़े हैं और मैं आत्मा नन्हा फ़रिश्ता बन बाबा की बाहों में समा जाती हूँ...*
❉ *बाबा मुझ आत्मा को अपनी बाहों में लेकर बहुत प्यार से बोले:-* "मेरे सिकीलधे बच्चे.... अब देही अभिमानी बनों बाप आये हैं तुम्हें राजयोग सिखाने, राजयोगी बन बाप से पूरा पूरा वर्सा लेने का पुरुषार्थ करो... *तुम्हें अपने पुरुषार्थ के बल से ही सूर्यवंशी घराने में आना है और बाप से विश्व की बादशाही लेनी है... मेरी आँखों के नूर मैं आया हूँ तुम्हें इस नरक से निकाल अपने साथ ले जाने इसलिए बाप की श्रीमत पर चल अब सम्पूर्ण पवित्र बनो...*"
➳ _ ➳ *बाबा के वाक्यों को अपने हृदय में समाते हुए मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मुझे पवित्रता का वरदान देकर मेरे इस खाली जीवन को आपने खुशिओं से भर दिया है... मैं आत्मा देही अभिमानी बन संपूर्ण सुखों से भरपूर हो गयी हूँ... आप मेरे गाईड बनें और मेरे जीवन को नया रास्ता मिल गया है... *मैं आत्मा आपके बताए रास्ते पर चलकर कितनी महान बनती जा रही हूं , सुख के सागर को पाकर मैं आत्मा धन्य हो गयी हूँ... पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बन गयी हूँ...*"
❉ *बाबा मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... बाप आये हैं तुम्हें बहुत बहुत मीठा बनाने, माया ने तुम्हें खाली कर दिया है बाप आये हैं फिर से तुम्हें ज्ञान के खजाने से मालामाल करने... *अपने को देही समझ एक बाप से योग लगाओ योग से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और तुम नई दुनिया के मालिक बन जायेंगे... मेरा तो एक बाबा दूसरा न कोई इस पाठ को पक्का करो, बाप की श्रीमत पर चलकर ही तुम राज्य के अधिकारी बनते हो... बाप से पूरा वर्सा लेने के लिए निरंतर बाप की याद में रहो...*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की प्रेमभरी वाणी को स्वयं में धारण करते हुए बाबा से कहती हूँ:-* "हां मेरे दिलाराम बाबा... आपकी श्रीमत पाकर मुझ आत्मा के जीवन में नई उमंग और नया उत्साह भर गया है... मैं आत्मा कितनी सौभाग्यशाली हूँ जिसको परमात्मा की पालना मिली है ये सोचते ही मेरे रोम रोम में खुशी और उल्लास की लहर सी दौड़ जाती है... *नाजाने कब से अंजान रास्तों पर चली जा रही थी अपने जीवन की मंजिल का कुछ पता न था आपने आकर मुझ आत्मा को मेरी मंजिल बताकर मुझे भटकने से बचा लिया... आपको पाकर अब और कुछ भी पाना बाकी नही रह गया...*"
❉ *बाबा मुझ आत्मा का ज्ञान श्रृंगार करते हुए मधुर वाणी में बोले:-* "मीठे बच्चे... ज्ञान से ही योग की धारणा होगी इसलिए पढ़ाई कभी मिस नही करनी... बाप से रोज़ पढ़ना है और स्वयं में ज्ञान धारण कर औरों को भी कराने की सेवा करनी है... *बाप रोज़ परमधाम से तुम्हें पढ़ाने आते हैं इस स्मृति में रहना है, निश्चय बुद्धि बनना है , कभी भी संशय में नही आना है... संगदोष में आकर पढ़ाई को कभी नही छोड़ना, ऐसा कोई काम नही करना जिससे बाप की अवज्ञा हो...*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा के महावाक्यों का रसपान करते हुए बाबा से बोली:-* "मेरे प्राणों से प्यारे बाबा... आपने मेरे जीवन को दिव्यता और सुख की अलौकिक चांदनी से चमचमा दिया है... जीवन की प्यास को अपने ज्ञानामृत से बुझा दिया और *मुझ आत्मा की बुद्धि का ताला खोलकर मुझे ज्ञानवान बना दिया...* मैं आत्मा स्वयं को बहुत हल्का अनुभव कर रही हूं... मेरे जन्मों जन्मों की जो खाद आत्मा में पड़ी हुई है उसे योग अग्नि से भस्म करती जा रही हूं... *बाबा आपने वरदानों से मेरा श्रृंगार करके मुझे और भी अलौकिक बना दिया है... आपने मेरे जीवन को ज्ञान और परमात्म प्रेम से भर दिया है आपका कितना भी शुक्रिया करूँ कम ही लगता है... मैं आत्मा बाबा को दिल की गहराइयों से शक्रिया कर अपने साकारी तन में लौट आती हूं...*"
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- रूप बसन्त बन मुख से सदैव रत्न निकालने हैं*"
➳ _ ➳ अंतर्मुखता की गुफा में बैठ, एकांतवासी बन अपने प्यारे पिता की याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे *मेरी ब्रह्मा माँ अविनाशी ज्ञान रत्नों से मेरा श्रृंगार कर, मुझे आप समान रूप बसन्त बनाने के लिए अपने अव्यक्त वतन में बुला रही हैं*। सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप में अपनी ब्रह्मा माँ और उनकी भृकुटि में चमक रहे अपने शिव पिता को मैं मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से देख रही हूँ और उनकी अव्यक्त आवाज जो मुझे पुकार रही है वो भी मैं स्पष्ट सुन रही हूँ। *बाहें पसारे अपने इंतजार में खड़ी अपनी ब्रह्मा माँ की यह अव्यक्त आवाज मुझे जल्दी से जल्दी उनके पास पहुंचने के लिए व्याकुल कर रही है*।
➳ _ ➳ जैसे एक माँ अपने बच्चे के इंतजार में टकटकी लगा कर दरवाजे को देखती रहती है ऐसा ही स्वरूप अपने इंतजार में खड़ी अपनी ब्रह्मा माँ का मैं देख रही हूँ। *बिना एक पल की भी देरी किये अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर को मैं धारण करती हूँ और साकारी देह से बाहर निकल कर अपने अव्यक्त वतन की ओर चल पड़ती हूँ*। अपने लाइट के फ़रिश्ता स्वरूप में स्थित, जल्दी से जल्दी अपनी ब्रह्मा माँ और अपने शिव पिता के पास पहुँचने का संकल्प जैसे ज्ञान और योग के पंख लगाकर मुझे तीव्र गति से उड़ने का बल दे रहा है। *ज्ञान और योग के इन पँखो की सहायता से बहुत तीव्र उड़ान भर कर मैं फरिश्ता सेकेण्ड से भी कम समय में साकारी दुनिया को पार कर जाता हूँ और उससे ऊपर उड़कर अति शीघ्र पहुँच जाता हूँ अपनी ब्रह्मा माँ के पास*।
➳ _ ➳ जैसे अपने बच्चे को देखते ही माँ दौड़ कर दरवाजे पर आती है और उसे अपने गले लगा लेती है ऐसे ही मुझे देखते ही मेरी ब्रह्मा माँ दौड़ कर मेरे पास आती है और अपनी बाहों में भरकर अपना असीम प्यार मुझ पर लुटाने लगती है। अपनी ब्रह्मा माँ के नयनों में अपने लिए समाये अथाह स्नेह को मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। *अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटाकर, मेरा हाथ पकड़ कर वो मुझे अपने पास बिठा कर, बड़े प्यार से मुझे निहार रही है और अपने हाथों से अब मेरा श्रृंगार कर रही है, ज्ञान के एक - एक अमूल्य रत्न से मुझे सजाते हुए मेरी ब्रह्मा माँ मुझ पर बलिहार जा रही है*।मुझे आप समान रूप बसन्त बनाने के लिए दिव्य गुणों से मुझे सजाकर, मर्यादाओं के कंगन पहना रही है।
➳ _ ➳ एक दुल्हन की तरह अविनाशी ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से सज - धज कर अब मैं ज्ञान सागर अपने अविनाशी साजन के पास, स्वयं को ज्ञान के अखुट ख़ज़ानों से भरपूर करने उनके धाम जा रही हूँ। *ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से सजे अपने निराकारी सुन्दर सलौने स्वरूप में स्थित होकर, अब मैं अव्यक्त वतन से ऊपर निराकार वतन की ओर बढ़ रही हूँ*। देख रही हूँ अपने अविनाशी शिव साजन को अपने सामने विराजमान अपने अनन्त प्रकाशमय स्वरूप में अपनी किरणो रूपी बाहों को फैलाये हुए। बिना विलम्ब किये सम्पूर्ण समर्पण भाव से मैं उनकी किरणो रूपी बाहों में समा जाती हूँ। *मेरे ज्ञान सागर शिव साजन के ज्ञान की रिमझिम फुहारें मुझ आत्मा सजनी के ऊपर बरसने लगती हैं*।
➳ _ ➳ ज्ञान योग की रिमझिम फ़ुहारों के स्पर्श से रूप बसन्त बन मैं आत्मा परमधाम से नीचे आ जाती हूँ। विश्व ग्लोब पर स्थित होकर, विश्व की सर्व आत्माओं के ऊपर ज्ञान वर्षा करते हुए मैं साकार लोक में प्रवेश करती हूँ और अपने साकार तन में भृकुटि के अकालतख्त पर आकर मैं विराजमान हो जाती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर ज्ञान योग को अपने जीवन मे धारण कर, अपने मुख से सदा ज्ञान रत्न निकालते हुए, अब मैं सबको अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान दे रही हूँ। ज्ञान सागर अपने शिव पिता की याद में रहकर, स्वयं को उनके ज्ञान की किरणो की छत्रछाया के नीचे अनुभव करते, अपनी बुद्धि रूपी झोली सदा ज्ञान रत्नों से भरपूर करके, रूप बसन्त बन मैं सबको अविनाशी ज्ञान रत्नों से सम्पन्न बना रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं माया वा विघ्नों से सेफ रहने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं बापदादा के छत्रछाया की अधिकारी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा संतुष्टता का गुण सदा धारण करती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदैव प्रभु प्रिय, लोकप्रिय और स्वयं प्रिय हूँ ।*
✺ *मैं संतुष्ट मणि हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ संगमयुग का विशेष् वरदान कौन-सा है? अमर बाप द्वारा ‘अमर भव'। *संगमयुग पर ही ‘अमर भव' का वरदान मिलता है। इस वरदान को सदा याद रखते हो? नशा रहता है, खुशी रहती है, याद रहती है लेकिन अमर भव के वरदानी बने हो? जिस युग की जो विशेषता है, उस विशेषता को कार्य में लगाते हो? अगर अभी यह वरदान नहीं लिया तो फिर कभी भी यह वरदान मिल नहीं सकता।* इसलिए समय की विशेषता को जानकर सदा यह चेक करो कि ‘अमर भव' के वरदानी बने हैं? अमर कहो, निरन्तर कहो इस विशेष शब्द को बार-बार अण्डरलाइन करो। अमरनाथ बाप के बच्चे अगर ‘अमर भव' के वर्से के अधिकारी नहीं बने तो क्या कहा जायेगा? कहने की जरूरत है क्या!
✺ *"ड्रिल :- बापदादा से अमर भव का वरदान स्वीकार करना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सृष्टि चक्र का चक्कर लगाते-लगाते संगम के ऊँची चोटी पर पहुँच जाती हूँ...* यहाँ ऊँचे-ते-ऊँचे सर्व शक्तिमान परमात्मा, सुप्रीम शिक्षक, अमरनाथ बाबा... मुझ आत्मा रूपी पार्वती का ऊँचा भाग्य बनाने... ऊँचे-ते-ऊँच शिक्षाओं की धारणा कराते हैं... बाबा मुझ आत्मा को संगम युग की घडी दिखाते हैं और कहते हैं- बच्चे- संगम युग का समय अब खत्म होने वाला है... थोड़े की भी थोड़ी रही... *इस संगम की अमृतवेला को अलबेला बन मत गवाओं... अभी नहीं तो कभी नहीं...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा रूपी पार्वती इस देह से निकल अमरनाथ बाबा के साथ उड़ चलती हूँ... * बाबा मुझ आत्मा को मधुबन की पहाड़ियों पर ले जाते हैं... अमरनाथ बाबा मुझ पार्वती को अमरकथा सुना रहे हैं... *प्यारे बाबा मुझ आत्मा को आदि-मध्य-अंत का ज्ञान देकर, तीनों कालों का दर्शन करा रहे हैं... मैं आत्मा मास्टर त्रिकालदर्शी बन रही हूँ...*
➳ _ ➳ *अमरनाथ बाबा मुझ आत्मा को ‘अमर भव'का वरदान दे रहे हैं... पूरे कल्प में संगमयुग पर ही अमरनाथ बाबा से ‘अमर भव' का वरदान मिलता है...* विशेष वरदानी संगम युग में... प्यारे बाबा से विशेष वरदान प्राप्त कर मैं आत्मा विशेष आत्मा होने का अनुभव कर रही हूँ... पदमा पदम् भाग्यशाली होने का अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ *प्यारे बाबा इस वरदानी संगमयुग में एक कदम का पदम् गुना दे रहे हैं...* मैं आत्मा समय की विशेषता को जानकर श्रेष्ठ पुरुषार्थ कर रही हूँ... श्रेष्ठ आत्मा बन रही हूँ... *मैं आत्मा सर्व गुण, शक्तियों को धारण कर... गुण स्वरूप, शक्ति स्वरूप बन रही हूँ... सिद्धि स्वरुप बन रही हूँ...* मैं आत्मा सदा अपने श्रेष्ठ स्वमानों में ही स्थित रहती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा ज्ञान-योग की शक्ति से पवित्र बन रही हूँ... निरंतर योगी बन रही हूँ... सदा एक की लगन में ही मगन रहती हूँ... *मैं आत्मा ‘अमर भव के वरदान को सदा याद रख... इसी नशे और खुशी में रह हर कर्म श्रीमत प्रमाण कर रही हूँ...* और ‘अमर भव' के वर्से की अधिकारी बन रही हूँ...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा संगमयुग के इस वरदानी समय का उपयोग कर-रही हूँ...* बाबा से प्राप्त विशेषताओं... सर्व खजानों को स्व प्रति और सर्व के प्रति... यूज कर रही हूँ... और अपना अविनाशी भाग्य बना रही हूँ... मैं आत्मा स्मृति स्वरूप, समर्थी स्वरुप बन रही हूँ... *अब मैं आत्मा सदा ‘अमर भव' के वरदानी स्वरूप में स्थित होने का अनुभव कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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