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 24 / 04 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *एक बाप से ही अव्यभिचारी ज्ञान सुना ?*

 

➢➢ *देहि अभिमानी बनने का पूरा पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *फॉलो फादर के पाठ द्वारा मुश्किल को सहज बनाया ?*

 

➢➢ *सच्चाई सफाई को धारण कर अपने स्वभाव को सरल बनाया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *संगमयुग की विशेष शक्ति साइलेन्स की शक्ति है।* संगमयुगी आत्माओं का लक्ष्य भी है कि अब स्वीट साइलेन्स होम में जाना है। *शान्त स्वरूप रहना और सर्व को शान्ति देना-यही संगमयुगी आत्माओं का मुख्य लक्षण है। वर्तमान समय विश्व में इसी शक्ति की आवश्यकता है, इसको ही योगबल कहा जाता है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं पवित्र आत्मा हूँ"*

 

✧   सदा पवित्रता की शक्ति से स्वयं को पावन बनाए औरों को भी पावन बनने की प्रेरणा देने वाले हो ना? *घर-गृहस्थ में रह पवित्र आत्मा बनना, इस विशेषता को दुनिया के आगे प्रत्यक्ष करना है।*

 

✧  ऐसे बहादुर बने हो! *पावन आत्मायें हैं, इसी स्मृति से स्वयं भी परिपक्व और दुनिया को भी यह प्रत्यक्ष प्रमाण दिखाते चलो।*

 

 कौन-सी आत्मा हो? *असम्भव को सम्भव कर दिखाने के निमित्त, पवित्रता की शक्ति फैलाने वाली आत्मा हूँ। यह सदा स्मृति में रखो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आज हरेक को अव्यक्त स्थिती का अनुभव करा रहे हैं। हरेक यथाशक्ति अनुभव कर रहे हैं, कहाँ तक हरेक निराकारी और अलंकारी बने है वह देख रहे हैं। दोनों ही आवश्यक हैं। *अलंकारी कभी भी देह अहंकारी नहीं बन सकेगा।* इसलिए सदैव अपने आप को देखो कि निराकारी और अलंकारी हूँ। यही है मनमनाभव, मध्याजीभव।

 

✧  स्व - स्थिति को मास्टर सर्वशक्तिवान कहा जाता है। तो मास्टर सर्वशक्तिवान बने हो ना। इस स्थिति में सर्व परिस्थितियों से पार हो जाते हैं। *इस स्थिति में स्वभाव अर्थात सर्व में स्व का भाव अनुभव होता है।* और अनेक पुराने स्वभाव समाप्त हो जाते हैं।

 

✧  स्वभाव अर्थात स्व में आत्मा का भाव देखो फिर यह भाव - स्वभाव की बातें समाप्त हो जायेगी। सामना करने की सर्व शक्तियाँ प्राप्त हो जायेगी। *जब तक कोई सूक्ष्म वा स्थूल कामना है तब तक सामना करने की शक्ति नहीं आ सकती।* कामना सामना करने नहीं देती।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *उन पण्डितो आदि के बोलने में भी पावर होती है। एक सेकण्ड में खुशी दिला देते, एक सेकण्ड में रुला देते हैं। जब उन्हों के भाषण में इतनी पावर होती है; तो क्या आप लोगों के भाषण में वह पावर नहीं हो सकती?* अशरीरी बनाना चाहो वह अनुभव करा सकते है? वह लहर छा जावे। सारी सभा के बीच बाप के स्नेह की लहर छा जावे। उसको कहा जाता है प्रैक्टिकल अनुभव कराना। अब ऐसी भाषण होना चाहिए, तब कुछ चेन्ज होगी। *वह भले भाषण सभा को हँसा लेते, रुला लेते लेकिन न तो अशरीरीपन का अनुभव करा सकते और न ही बाप से स्नेह नहीं पैदा कर सकते।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सर्वोत्तम संगमयुग में परमात्मा बाप से मिलना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा मधुबन के डायमंड हाल में पहुँच जाती हूँ अपने प्यारे पिता से मिलने... मेरे पिता परमधाम से आयें हैं मुझे पतित से पावन बनाने... अपने साथ घर ले जाने... सभी फ़रिश्ते प्यार के सागर में डूबने बड़े ही आतुरता से प्यार के सागर मेरे बाबा का इन्तजार कर रहे हैं...* फिर वो मिलन की घडी आ जाती है और प्यारे बापदादा दादी के तन में विराजमान होकर दृष्टि देकर सबको निहाल कर रहे हैं... और मुझे अपने पास बुलाकर मेरे मन के मीत बाबा मुझसे प्यारी-प्यारी बातें करते हैं...

 

  *रूहानी मिलन मेले में सबको अविनाशी सौगातों को बांटते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे बच्चे... *प्यारे पिता से मिलन के यह खूबसूरत पल सदा के है... यह ख़ुशी अविनाशी है एक दिन की नही... सदा की ख़ुशी सदा का आनन्द... सदा ज्ञान गुणो का श्रृंगार है...* ईश्वरीय पिता के बच्चे सदा ही उमंगो के उत्सव् में है... दुनिया एक दिन के त्योहारो में खुशियां पाती है आप हर पल त्योहारो को जीते हो...

 

_ ➳  *मिलन मेले में खुशियों के खजानों को समेटते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा खुशियो की कितनी प्यासी थी... एक दिन की ख़ुशी का बरस भर इंतजार सा था... *आज हर दिन खुशियो के मेले में मस्त हूँ... हर लम्हा श्रृंगार है हर पल ख़ुशी का खजाना मेरे पास है...”*

 

  *खुशियों की बरसात कर श्रेष्ठ भाग्य के झूले में झुलाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे बच्चे... *परमात्मा से मिलन के मेले में पिता समान श्रेष्ठ हो गए हो... गुणो और शक्तियो से सजेधजे मुस्करा उठे हो... आपस में गुणो को लिए दिए चले जा रहे हो...* और खुशियो संग यूँ खेलते ही चले जा रहे हो... कितना मीठा और प्यारा यह महा सौभाग्य आप बच्चों का है कि सदा की खुशियो में जीते जा रहे हो...

 

_ ➳  *मैं आत्मा प्यार के सागर के प्यार की लहरों में उछलती हुई कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा प्यार के पल आपकी यादो में जीती जा रही हूँ... खुशियो में खिलती ही जा रही हूँ.... *गुणो के लेन देन में सुखी होती जा रही हूँ... मिलन के मेले में खुशियो भरी तकदीर जगाती जा रही हूँ...”*

 

  *ज्ञान सूर्य मेरे बाबा चारों ओर ज्ञान की किरणों की बौछारें करते हुए कहते हैं:-* मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... *मधुर परमात्म मिलन के मेले में खोये रहो... प्रवृत्ति में रहते हुए भी सदा न्यारे और प्यारे बन पिता के दिल पर सितारे रहो... राजऋषि बन मुस्कराते रहो...* निर्विघ्न रह विजय पताका लहराते ही रहो... लक्की सितारे होकर बाबा के दिल पर इठलाते रहो... और चमकदार हीरे बन अपनी रश्मियों से संसार में आभा फैलाते रहो...

 

_ ➳  *प्रेम की लहरों में समाकर अमूल्य मणि बन चमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... आपकी खूबसूरत सी छत्रछाया में जादू हो गया है... *मै आत्मा चमकता हीरा हो गई हूँ हर विघ्न पर विजयी हो कर न्यारी सी प्यारी सी अनोखी बन जहान में खुशियो की जादुई परी हो गयी हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पुरुषोत्तम बनने के लिए कनिष्ट बनाने वाली ईविल बातें नही सुननी है*"

 

_ ➳  देह और देह की दुनिया की सभी बातों से मन बुद्धि को हटा कर जैसे ही मैं एकाग्रचित होकर बैठती हूं वैसे ही स्वयं को सूक्ष्म वतन में देखती हूँ। *यहां पहुंच कर मैं अपनी लाइट की फ़रिश्ता ड्रेस को धारण कर लेती हूं और सूक्ष्म वतन की सैर करने चल पड़ती हूँ*। सूक्ष्म वतन के सुंदर नजारे देखकर मैं मन ही मन आनंदित हो रही हूँ। पूरे सूक्ष्म वतन की सैर करके अब मैं पहुंच जाती हूँ बापदादा के पास। मैं देख रही हूं सामने लाइट माइट स्वरूप में बाप दादा विराजमान हैं। उनसे आ रही लाइट और माइट चारों ओर फैल रही है। बाप दादा की लाइट माइट जैसे - जैसे मुझ फ़रिश्ते पर पड़ रही है मेरी चमक बड़ती जा रही है। *एक दिव्य अलौकिक रूहानी चमक से मेरा फ़रिशता स्वरूप जगमगाने लगा है*।

 

_ ➳  बापदादा अब मेरे बिल्कुल समीप आ कर, मेरा हाथ थामे मुझे साकारी लोक की ओर ले कर जा रहें हैं। बापदादा के साथ मैं पूरे विश्व का भ्रमण कर रही हूँ। प्रकृति के खूबसूरत नजारों का आनन्द ले रही हूँ। *प्रकृति के खूबसूरत नजारों का आनन्द लेते लेते अब मैं अपने फ़रिशता स्वरूप में नीचे भू लोक में आ जाती हूँ*। बापदादा के साथ अब मैं भू लोक पर विचरण कर रही हूँ। चलते चलते एक स्थान पर लगे म्यूजियम को देख मैं बापदादा के साथ उस म्यूजियम के अंदर प्रवेश कर जाती हूँ।

 

_ ➳  भारत की अनेक ऐतिहासिक वस्तुएँ, राजनेताओ के चित्र इस म्यूजियम में जहां - तहां लगे हुए हैं। सामने बापू जी की विशाल प्रतिमा रखी है और उस प्रतिमा के सामने तीन बन्दरो के जड़ चित्र स्थापित किये गए है। *जिसमे एक बंदर ने अपने हाथों से अपने मुख को बंद किया हुआ है जो इस बात का प्रतीक है कि बुरा मत बोलो, एक बंदर अपने हाथ अपने कानों पर रख कर यह संदेश दे रहा है कि बुरा मत सुनो और एक बंदर अपने हाथों से अपनी आंखें बन्द कर यह समझा रहा है कि बुरा मत देखो*।

 

_ ➳  बन्दरो की इन प्रतिमाओं को देख कर मैं मन मे विचार करती हूँ कि इन बन्दरो की तरह आज के मनुष्य भी तो बंदर बुद्धि बन गए हैं जो बुराई देख रहें हैं, बुरा सुन रहें हैं और बुरा ही बोल रहे हैं। ये चित्र और कहानियां तो केवल किताबो में ही बंद हो कर रह गई हैं। यही विचार करते - करते मैं बाबा की ओर देखती हूँ। बाबा मन्द मन्द मुस्कराते हुए मेरी ओर देखते हैं। *बाबा की जो डायरेक्शन है कि हियर नो ईविल, सी नो ईविल... टाक नो ईविल... उस डायरेक्शन को बाबा के मन के भावों से मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ*। स्वयं से और बाबा से मैं दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ कि अब मुझे बाबा के इस फरमान पर पूरी तरह चल कर मन्दिर लायक अवश्य बनना है। *इसी दृढ़ संकल्प के साथ अपने पूज्य स्वरूप को अपने सामने इमर्ज करके अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट आती हूँ*।

 

_ ➳  ब्राह्मण स्वरूप में रहते हुए अब मुझे मेरा पूज्य स्वरूप सदा स्मृति में रहता है। स्वयं को सदा ईष्ट देव, ईष्ट देवी के रूप में अनुभव करने से अब मेरे अंदर दैवी गुण धारण होने लगे है। पुराने आसुरी स्वभाव संस्कार स्वत: ही समाप्त हो रहें हैं। सबके साथ बातें करते उनके मस्तक में चमकती हुई आत्मा को ही अब मैं देख रही हूँ। सबके साथ बातें करते, सुनते, देखते, बोलते चलते-फिरते हर कर्म करते जैसे अब मैं सब बातों से उपराम हूं। *बुरा ना बोलने, बुरा ना देखने और बुरा ना सुनने के साथ साथ बुरा ना सोचने और बुरा ना करने की भावना को अपने जीवन में धारण करने से अब मेरे अंदर दाता पन के संस्कार इमर्ज हो रहें हैं जो मुझे मंदिर लायक बना रहे हैं*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं फालो फादर का पाठ पढ़ने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं मुश्किल को सहज बनाने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा अपने स्वभाव को सदैव सरल बनाती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सच्चाई, सफाई को धारण करती हूँ  ।*

   *मैं सरलचित्त आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  *मातपिता के समान पालना की विशेषता अनुभव करते हो? जो भी आत्मायें सम्बन्ध वा सम्पर्क में आवें, वे अनुभव करें कि यही श्रेष्ठ आत्मायें हमारे पूर्वज' हैं। इन्हीं आत्माओं द्वारा जीवन का सच्चा प्रेम, और जीवन की उन्नति का साधन प्राप्त हो सकता है क्योंकि पालना द्वारा ही प्रेम और जीवन की उन्नति प्राप्त होती है।* पालना द्वारा आत्मा योग्य बन जाती है। छोटा सा बच्चा भी पालना द्वारा अपनी जीवन की मंजिल को पहुँचने के लिए हिम्मतवान बन जाता है। ऐसे रूहानी पालना द्वारा आत्मा निर्बल से शक्ति स्वरूप बन जाती है। अपनी मंजिल की ओर तीव्रगति से पहुंचने की हिम्मतवान बन जाती है। पालना में वह सदा प्रेम के सागर बाप द्वारा सच्चे अथाह प्रेम की अनुभूति करती है। *ऐसे राज्य सत्ता की निशानियां अपने में अनुभव करते हो?*

 

✺  *"ड्रिल :-  मातपिता के समान पालना की विशेषता स्वयं में अनुभव करना*"

 

_ ➳  *मैं सचेतन आत्मा अपने चेतन मन के सर्व हलचल को शांत करती हुई एकांत में बैठती हूँ...* सर्व बाहरी आकर्षणों से परे होते हुए अंतर्मुखी हो रही हूँ... मैं आत्मा इस देह को छोड़कर फरिश्ता स्वरुप धारण करती हूँ... *मैं फरिश्ता इस व्यक्त वतन से ऊपर उड़ते हुए अव्यक्त वतन में अव्यक्त बापदादा के सम्मुख बैठ जाती हूँ...*

 

_ ➳  अव्यक्त बापदादा से निकलती इन्द्रधनुषी किरणों का तेज प्रकाश मुझ फरिश्ते पर पड़ रहा है... *मैं आत्मा सर्व गुणों के खजाने, शक्तियों के खजाने, स्वमानों के खजाने, वरदानों के खजानों से भरपूर हो रही हूँ...* मुझ आत्मा के दिव्य चक्षु खुल रहे हैं... मैं आत्मा स्मृति स्वरुप बन रही हूँ... मैं आत्मा बाप समान बन रही हूँ...

 

_ ➳  मुझ आत्मा को पूर्वजपन की स्मृति आ रही है... *मैं आत्मा ही पूर्वज हूँ... दी ग्रेट-ग्रेट ग्रैंड फादर की वंशावली हूँ... मैं फरिश्ता भी मास्टर ग्रेट-ग्रेट ग्रैंड फादर हूँ...* विश्व कल्याणकारी हूँ... मात-पिता ने जैसे मुझ आत्मा की पालना की, शिक्षा दी, सर्व खजानों से सम्पन्न बनाकर सर्व वर्से का अधिकारी बनाया... *वैसे ही अब मुझ पूर्वज आत्मा का कर्तव्य है कि अपने भाई-बहनों को भी पालना देकर योग्य बनाना...*

 

_ ➳  *मैं फरिश्ता बापदादा के साथ विश्व ग्लोब के ऊपर बैठ जाती हूँ...* बापदादा से निकलती किरणें मुझ फरिश्ते से होती हुई पूरे विश्व की आत्माओं पर पड़ रही हैं... *अज्ञान-अंधकार में भटकती आत्माओं को सत्य ज्ञान की किरणों के प्रकाश से प्रकाशित कर रही हूँ... *मैं फरिश्ता सच्चे प्रेम के लिए भटकती आत्माओं को प्रेम की किरणों से भरपूर कर रही हूँ...* सर्व आत्माओं को प्रेम के सागर बाबा के सच्चे अथाह प्रेम की अनुभूति करा रही हूँ...

 

_ ➳  *मैं फरिश्ता बापदादा से निकलती सुख-शांति की किरणों का दान देकर सबके दुःख-अशांति को मिटा रही हूँ...* पवित्रता की किरणों से विकारों की अपवित्रता को भस्म कर रही हूँ... *आनंद की किरणों से सर्व को जीवन के सच्चे आनंद की अनुभूति करा रही हूँ...* मैं फरिश्ता शक्तियों की किरणों से निर्बल आत्माओं को शक्ति स्वरूप बना रही हूँ... तमोप्रधान प्रकृति को सतोप्रधान बना रही हूँ...

 

_ ➳  *मैं पूर्वज आत्मा अपने आक्युपेशन की स्मृति में रह सर्व आत्माओं की रूहानी पालना कर रही हूँ...* सबको उन्नति के मार्ग पर आगे बढा रही हूँ... अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए हिम्मतवान बना रही हूँ... *अब मैं आत्मा सदा पूर्वजपन की स्मृति में रह रहमदिल भावना से विश्व कल्याण कर रही हूँ... और मातपिता के समान पालना की विशेषता का स्वयं में अनुभव कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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