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 18 / 04 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *खान पान की शुधी के साथ पवित्र रहे ?*

 

➢➢ *कोई भी विकर्म कर आत्मा की लाइट कम तो नहीं की ?*

 

➢➢ *देह अभिमान के रॉयल रूप को भी समाप्त किया ?*

 

➢➢ *परमात्म श्रीमत रुपी जल के आधार से कर्म रुपी बीज को शक्तिशाली बनाया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जैसे कोई भी बात सामने आती है, तो स्थूल साधन फौरन ध्यान में आ जाते हैं *लेकिन स्थूल साधन होते हुए भी ट्रायल योगबल की ही करनी चाहिए। जैसे साइंस के यंत्रों द्वारा दूर का दृश्य सन्मुख अनुभव करते हो, वैसे साइलेंस की शक्ति से भी दूरी समाप्त हो सामने का अनुभव आप भी करेंगे और अन्य आत्मायें भी करेंगी, इसको ही योगबल कहा जाता है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं अमर बाप की अमर आत्मा हूँ"*

 

  सभी अमर बाप की अमर आत्मायें हो ना। अमर हो गई ना? शरीर छोड़ते हो तो भी अमर हो, क्यों? *क्योंकि भाग्य बना करके जाते हो। हाथ खाली नहीं जाते। इसलिए मरना नहीं है। भरपूर होकर जाना है। मरना अर्थात् हाथ खाली जाना। भरपूर होकर जाना माना चोला बदली करना।*

 

✧  तो अमर हो गये ना। *'अमर भव' का वरदान मिल गया। इसमें मृत्यु के वशीभूत नहीं होते। जानते हो जाना भी है फिर आना भी है। इसलिए अमर हैं। अमरकथा सुनते-सुनते अमर बन गये।* रोज-रोज प्यार से कथा सुनते हो ना।

 

  बाप अमरकथा सुनाकर अमरभव का वरदान दे देता है। *बस सदा इसी खुशी में रहो कि अमर बन गये। मालामाल बन गये। खाली थे, भरपूर हो गये। ऐसे भरपूर हो गये जो अनेक जन्म खाली नहीं हो सकते।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *दिन - प्रतिदिन सर्वीस बढती जानी है और समस्यायें भी बढती जानी हैं। और यह जो संकल्पों की स्पीड है वह भी दिन - प्रतिदिन बढेगी।* अभी एक सेकण्ड में जो दस संकल्प करते हो उसकी डबल - ट्रबल स्पीड तेज होगी। एक तरफ संकल्पों की, दूसरी तरफ ईविल स्प्रिटस (आत्माओं) की भी वृद्धि होगी। लेकिन *इसके लिए एक विशेष अटेन्शन रखना पडे, जिससे सर्व बातों का सामना कर सकेंगे।*

  

✧   वह यह है कि *जो भी बात होती है उसको स्पष्ट समझने के लिए दो शब्द याद रखना है। एक अन्तर और दूसरा मन्त्र।* जो भी बात होती है उसका अन्तर करो कि यह यथार्थ है या अयथार्थ है। बापदादा के सामने है वा नहीं है। बाप समान है वा नहीं? एक तो हर समय अन्तर (भेंट) करके उसका एक सेकण्ड में नाट या डाटा।करना नहीं है तो डाट देंगे, अगर करना है तो करने लग जायेंगे।

 

 

✧   *तो नाट और डाट यह भी स्मृति में रखना है।* अन्तर और मन्त्र यह दोनों प्रैक्टिकल में होंगे। दोनों को भूलेंगे नहीं तो कोई भी समस्या वा कोई भी ईविल स्प्रिटस सामना नहीं कर सकेगु। एक सेकण्ड में समस्या भस्म हो जायेगी। ईविल स्प्रिटस आपके सामने ठहर नहीं सकती है। तो यह पुरुषार्थ करना पडेँ। समझा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  कभी भी शव को न देखो अर्थात् इस देह को न देखो। इनको देखने से अथवा शरीर के भान में रहने से ला ब्रेक होता है। *अगर इस ला में अपने आपको सदा कायम रखो कि शव को नहीं देखना है; शिव को देखना है तो कब भी कोई बात में हार नहीं होगी, माया वार नहीं करेगी।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  पुरानी पतित दुनिया से बेहद का वैराग्य लाना"*

 

_ ➳  सुबह की गुलाबी सी धूप में सूर्य की सुनहरी किरणों को... गुलाब के फूलो पर गिरते हुए देख रही हूँ... कि *ये किरणे किस तरहा गुलाब के सौंदर्य में चार चाँद लगा रही है... उनका रूप लावण्य किस कदर चमक उठा है.*.. और फिर मै आत्मा अपने ज्ञान सूर्य बाबा की यादो में खो जाती हूँ... मुझ आत्मा के देह की संगति में कंटीले स्वरूप.... *कैसे मेरे बाबा ने अपनी शक्तियो और गुणो की किरणों में... रूहानियत से भर कर खिला हुआ, खुशबूदार फूल बना दिया है... कि आज मेरी सुगन्ध का विश्व मुरीद हो गया है..*. मुझे जो सौंदर्य मिला है वह स्वयं भगवान ने दिया है... जो पूरे विश्व में कहीं और मिल ही नही सकता है... सारा विश्व इस खूबसूरती को चाह रहा है... और *यह मेरी जागीर बन गया है क्योकि सिर्फ मेरे पास ही तो भगवान है.*..

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को देहभान से न्यारा बनाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... मीठे बाबा के साथ की ऊँगली पकड़कर... इस देह भान से उबर कर... स्वयं को आत्मिक स्वरूप में स्थित करो... इस पतित और विकारो से ग्रसित दुनिया में लिप्त रहकर... बुद्धि को और ज्यादा मलिन न करो... *ईश्वर पिता की यादो भरे हाथ को पकड़कर, बेहद के सन्यासी बनकर मुस्कराओ.*.."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा से देवताई श्रंगार पाकर कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा आपकी छत्रछाया में दुखो की दुनिया से निकलकर... सुखो भरी छाँव में आ गयी हूँ... *हद के दायरों से निकलकर, बेहद की सन्यासी बन, असीम खुशियो से भर गयी हूँ.*.. मेरा जीवन खुशनुमा बहारो से भर गया है..."

 

   *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को कांटे से खुशबूदार फूल बनाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... संगम के वरदानी समय में ईश्वरीय यादो की बहारो से सजे... खुशनुमा मौसम में अपने महान भाग्य के मीठे गीत गाओ... *पतित दुनिया की हदो से निकलकर... बेहद के गगन में, खुशियो भरा उन्मुक्त पंछी बन उड़ जाओ..*. बेहद के सन्यासी बन तपस्या में खो जाओ..."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा की बाँहों में अपना सतयुगी भाग्य सजाकर कहती हूँ :-* "ओ मेरे प्यारे बाबा... *आपने मेरा जीवन खुशियो का चमन बना दिया है... ज्ञान और याद की रौनक से झिलमिला कर, आत्मिक भाव में जगमगा दिया है.*.. मै आत्मा देह की सारी सीमाओ से निकल कर... बेहद के आसमाँ में खुशियो की परी बनकर उड़ रही हूँ...

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सतयुगी दुनिया का मालिक बनाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... सदा ईश्वरीय यादो में खोये रहो... भगवान को पाकर भी, अब देह की मिटटी में मनबुद्धि के हाथो को पुनः मटमैला न करो...इस पतित दुनिया में स्वयं को और न फंसाओ... *बेहद के वैराग्य को अपनाकर, यादो में मन बुद्धि को निर्मलता से सजाकर... असीम सुखो के अधिकारी बन मुस्कराओ.*.."

 

_ ➳  *मै आत्मा प्यारे बाबा की श्रीमत को दिल में समाकर जीवन को खुबसूरत बनाकर कहती हूँ :-* "प्यारे प्यारे बाबा मेरे... आपने मेरा जीवन बेहद के सन्यास से भरकर, कितना हल्का और प्यारा कर दिया है... मन और बुद्धि व्यर्थ से निकलकर... अब कितनी प्यारी और सुखदायी हो गयी है... *मेरे सारे बोझ काफूर हो गए है, और मै आत्मा बेफ़िक्र बादशाह बनकर मुस्करा रही हूँ.*.." मीठे बाबा को अपना प्यारा मन और बुद्धि की झलक दिखाकर, मै आत्मा... कर्मक्षेत्र पर लौट आयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- इस वैल्युबुल जीवन मे सर्विस कर बहुतों का जीवन श्रेष्ठ बनाना है*"

 

_ ➳  एकान्त में बैठ जैसे ही भगवान के रथ ब्रह्मा बाबा के बारे में मैं विचार करती हूँ मन सहज ही अपने प्यारे ब्रह्मा बाप के प्रति असीम प्रेम और स्नेह से सरोबार हो उठता है। *भगवान से मिलवाने के निमित बने ब्रह्मा बाप के लिए मन से कोटि - कोटि धन्यवाद स्वत: ही निकलने लगता है*। अपना तन - मन - धन सब कुछ ईश्वरीय यज्ञ में स्वाहा कर बाबा ने जिस निस्वार्थ भाव से सारे विश्व की सेवा की, उनके उस त्याग को याद कर, *दिल से उनका शुक्रिया अदा करते - करते मैं महसूस करती हूँ जैसे अव्यक्त ब्रह्मा बाप मेरे सामने खड़े मन्द - मन्द मुस्करा रहें हैं और अव्यक्त इशारे से मुझे कुछ कह रहे हैं*। बाबा के उन अव्यक्त ईशारो को समझने के लिए मैं सेकण्ड में देह भान का त्याग कर अपनी अव्यक्त स्थिति में स्थित होती हूँ।

 

_ ➳  अपनी अव्यक्त स्थिति में स्थित होते ही मैं स्पष्ट अनुभव करती हूँ कि जैसे बापदादा मुझे बेहद की सर्विस के लिए डायरेक्शन दे रहें हैं। *विश्व की जो दुर्दशा बाबा देख रहें हैं अब वो सब दृश्य मुझे दिखाई दे रहें हैं*। विकारों की अग्नि में जल रही दुखी और अशांत आत्माये, भगवान की एक झलक पाने के लिए दर - दर भटक रही, अपने शरीर को कष्ट देने वाले भक्ति के कर्म कांडों में फंसी भक्त आत्मायें। *कहीं प्रकृति के प्रकोप का शिकार हुई रोती बिलखती आत्मायें तो कहीं शरीर की भयंकर बीमारियों के रूप में कर्मभोग की भोगना भोगती दुखी आत्मायें और कही अकाले मृत्यु के कारण शरीर ना मिलने की वजह से भटकती आत्मायें*।

 

_ ➳  इन सभी दृश्यों को देखते - देखते, मन मे विरक्त भाव लिए मैं जैसे ही बाबा की ओर देखती हूँ। बाबा के नयनों में बाबा की इच्छा मुझे स्पष्ट समझ में आने लगती है। *बाबा के मन की आश को जान मैं मन ही मन स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि अपने इस ब्राह्मण जीवन को अब मुझे केवल बाबा की सर्विस में ही लगाकर सफल करना है*। अब मुझे केवल सर्विस का ही फुरना रखना है। स्वयं से प्रतिज्ञा करते - करते मैं जैसे ही बाबा के मुख मण्डल को निहारती हूँ, एक गुह्य मुस्कराहट के साथ बाबा के वरदानी हाथ को अपने सिर के ऊपर अनुभव करती हूँ। *बाबा के वरदानी हस्तों से निकल रही अदृश्य शक्ति को मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ जो मुझे बलशाली बना रही है*।

 

_ ➳  विश्व की सर्व आत्माओं के कल्याणार्थ मुझे निमित बनाने के लिए बाबा अपनी लाइट माइट से मुझे भरपूर कर रहें हैं ताकि लाइट हाउस बन मैं सभी को अज्ञान अंधकार से निकाल ज्ञान सोझरे में लाकर सबके दुखी अशांत जीवन को सुखदाई बना सकूँ। भक्त आत्माओं को दर - दर के धक्कों से छुड़ा कर उन्हें उनके पिता परमेश्वर से मिलवा सकूँ। *इस बेहद की सर्विस के लिए बाबा अपने सर्व गुणों, सर्व शक्तियों और सर्व ख़ज़ानों से मुझे सम्पन्न बना रहे हैं*। बापदादा से लाइट माइट, वरदान और शक्तियों का असीम बल ले कर अपने लाइट के फ़रिश्ता स्वरूप में स्वयं को अत्यन्त शक्तिशाली बनाकर अब मैं फ़रिश्ता विश्व ग्लोब पर पहुँचता हूँ।

 

_ ➳  विश्व ग्लोब पर बैठ, बापदादा का आह्वान कर, उनके साथ कम्बाइंड होकर, उनसे सुख, शांति और पवित्रता की शक्तियाँ लेकर अब मैं सारे विश्व मे प्रवाहित कर रहा हूँ। *मैं देख रहा हूँ इन सर्वशक्तियों के शक्तिशाली वायब्रेशन विश्व की सर्व आत्माओं तक पहुँच रहें हैं*। विकारों की अग्नि में जल रही आत्माओं पर ये वायब्रेशन शीतल फ़ुहारों का रूप लेकर बरस रहें हैं और उन्हें शीतलता का अनुभव करवा रहें हैं। *भक्त आत्माओं को ये वायब्रेशन परमात्म प्यार का अनुभव करवाकर उन्हें भटकने से छुड़ा रहें हैं। बीमारियों से पीड़ित आत्माओं पर ये वायब्रेशन मरहम का काम कर रहें हैं और उनकी पीड़ा को खत्म कर रहें हैं*। प्रकृति का प्रकोप सहन करती आत्माओं को ये वायब्रेशन धैर्य का बल दे रहें हैं।

 

_ ➳  विश्व की सर्व आत्माओं की बेहद की सेवा करके अब मैं अपने फ़रिश्ता स्वरूप के साथ वापिस साकार लोक में लौटती हूँ और अपने ब्राह्मण स्वरूप को धारण कर लेती हूँ। *बाप की सेवा का फुरना रख, अपने ब्राह्मण स्वरूप द्वारा मैं अपने संकल्प, बोल और कर्म के माध्यम से अपने सम्बन्ध, सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं की स्थूल सेवा और अपने फ़रिश्ता स्वरूप द्वारा विश्व की सर्व आत्माओं की बेहद की सेवा अब सदैव कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं देह अभिमान के रॉयल रूप को भी समाप्त करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं साक्षी द्रष्टा आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सदैव परमात्म श्रीमत रूपी जल के आधार से कर्म करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा कर्म रूपी बीज को सदा शक्तिशाली बनाती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा कर्मयोगी हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  माया का आना यह कोई बड़ी बात नहीं लेकिन वह अपना रूप न दिखाये। *अगर माया की मेहमान-निवाजी करते हो तो चलते- चलते उदासी' का अनुभव होगा। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे न आगे बढ़ रहे हैं न पीछे हट रहे हैं। पीछे भी नहीं हट सकते, आगे भी नहीं बढ़ सकते - यह माया का प्रभाव है। माया की आकर्षण उड़ने नहीं देती।* पीछे हटने का तो सवाल ही नहीं लेकिन अगर आगे नहीं बढ़ते तो बीज को परखो और उसे भस्म करो। *ऐसे नहीं - चल रहे हैं, आ रहे हैं, सुन रहे हैं, यथाशक्ति सेवा कर रहे हैं। लेकिन चेक करो कि अपनी स्पीड और स्टेज की उन्नति कहाँ तक है।*

 

✺  *"ड्रिल :- सदैव आगे बढते रहने का अनुभव"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा सबेरे उठकर एकांत में बैठती हूँ... मैं आत्मा स्वयं को चार्ज करने मन-बुद्धि के तार को सुप्रीम चार्जर से कनेक्शन जोडती हूँ... सुप्रीम चार्जर से दिव्य किरणों रूपी करंट मुझमें प्रवाहित हो रहा है...* हाई वोल्टेज करंट से मुझ आत्मा के विकारों रूपी तार जलकर भस्म हो रहे हैं... *मैं आत्मा देह, देह के बन्धनों से डिस-कनेक्ट हो रही हूँ...* मायावी आकर्षणों से मुक्त हो रही हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा चार्ज होकर पावरफुल बन रही हूँ... मुझ आत्मा का एक बाबा से कनेक्शन जुड़ रहा है... *मैं आत्मा एक बाबा के मुहब्बत में लवलीन हो रही हूँ...* मैं आत्मा प्रेम के सागर में समा रही हूँ... मास्टर प्रेम का सागर बन रही हूँ... *सर्व शक्तिवान बाबा की सभी शक्तियों का स्वयं में अनुभव कर रही हूँ...*

 

_ ➳  *अब मैं आत्मा माया के सभी रूपों पर अटेंशन रख हर कर्म कर रही हूँ...* मैं आत्मा चेक करती हूँ कि कहीं देह और कर्मेन्द्रियो का आकर्षण तो मुझे अपनी तरफ नहीं खींचता... मैं आत्मा हूँ, देह नहीं हूँ, मैं आत्मा करावनहार हूँ ये देह करनहार है... मै आत्मा इस देह से कर्म कराती हूँ... *आत्मिक स्मृति में रहने से मुझ आत्मा का देह का आकर्षण खत्म हो रहा है...*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा से सर्व संबंधो का अनुभव कर देह के संबंधो के आकर्षण से मुक्त हो रही हूँ...* जब ये देह ही मेरा नहीं है तो ये देह के सम्बन्धी भी मेरे नहीं हैं... देह के बन्धनों में पड़ने से मुझ आत्मा को दुःख, अशांति की ही प्राप्ति हुई... *मैं आत्मा चेक करती हूँ कि कोई भी देह की वस्तुओं का आकर्षण तो नहीं हैं... जिनके लोभ में पड़कर मुझ आत्मा की पुरुषार्थ की गति आगे नहीं बढती...* ये सभी आकर्षण नश्वर हैं... विनाशी हैं...

 

_ ➳  *मैं आत्मा सदा अटेंशन रख टेंशन रूपी माया से मुक्त हो रही हूँ... मैं आत्मा बाबा के हाथ और साथ का अनुभव कर हर कर्म करती हूँ... सदा उमंग-उत्साह में रह उदास होने के संस्कारों को खत्म कर रही हूँ...* माया के सभी रूपों को परख कर बीज सहित भस्म कर रही हूँ... *अपने पुरुषार्थ की स्पीड को बढ़ाकर उन्नति कर रही हूँ...* और आगे बढती जा रही हूँ... माया के प्रभाव से मुक्त होकर उड रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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