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 27 / 04 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अंतर्मुखी बन शरीर के भान से परे रहने का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *"हमिएँ लक्ष्मी नारायण जैसा ही बनना है" - यह बात गाँठ बाँधी ?*

 

➢➢ *कर्मभोग रुपी परिस्थिति की आकर्षण को भी समाप्त किया ?*

 

➢➢ *पवित्रता के व्रत से अतीन्द्रिय सुख का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *अब चारों ओर सेवाकेन्द्र वा प्रवृत्ति के स्थान को शान्ति कुण्ड बनाओ, इसके लिए योग का किला मजबूत करो। किले को मजबूत करने का साधन है-प्युरिटी।* जहाँ पवित्र आत्माएं रहती हैं वहाँ के वायब्रेशन विश्व की आत्माओं को शान्ति की अनुभूति कराते हैं। *पवित्रता की शक्ति महान शक्ति है, उसकी महानता को जानकर मास्टर शान्ति देवा बनो। कैसी भी अशान्त आत्मा को शान्त स्वरूप, पवित्र स्वरूप में स्थित होकर शान्ति की किरणें दो तो अशान्त भी शान्त हो जायेंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं राजयोगी श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

  स्वयं को राजयोगी श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? राजयोगी अर्थात् राज्य अधिकारी तो राजा बने हो? या कभी राजा का राज्य, कभी प्रजा का? *राजयोगी माना सदा राजा बन राज्य चलाने वाले। कभी भी अधीन बनने वाले नहीं। राजयोगी कभी प्रजायोगी नहीं बन सकते। योगी का अर्थ ही है - निरन्तर याद में रहने वाले। तो योगी भी हो और राजा भी हो।*

 

  *योगी जीवन का अर्थ है याद कभी भूल नहीं सकती। योग लगाने वाले योगी नहीं। योगी जीवन वाले योगी हो। लगाने वाले का कब लगेगा कब नहीं लेकिन 'जीवन' सदा रहती है।* खाते-पीते, चलते जीवन होती है। या सिर्फ जब बैठते हो तब जीवन है चलते हो तब जीवन है?

 

  *हर कार्य करते जीवन है। तो यही स्मृति रहे कि हम 'योगी-जीवन' वाले हैं। अभी के भी राजे हैं और जन्मजन्म के भी राजे हैं। अभी राजे नहीं तो भविष्य में भी नहीं।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  सिर्फ आवाज़ द्वारा प्रभावित हुई आत्माएँ अनेक आवाज़ सुनने से आवागमन में आ जाती है। लेकिन अव्यक्त स्थिति में स्थित हुए आवाज़ द्वारा अनुभवी आत्मायें आवागमन से छूट जाती हैं। ऐसी आत्मा के ऊपर किसी भी रूप का प्रभाव नहीं पड सकता। *सदैव अपने को कम्बाइन्ड समझ, कम्बाइन्ड रूप की सर्वीस करो अर्थात अव्यक्त स्थिति और फिर आवाज़।* दोनों की कम्बाइन्ड रूप की सर्वीस वारिस बनायेगी।

 

✧  *सिर्फ आवाज़ द्वारा सर्वीस करने से प्रजा बनती जा रही है।* तो अब सर्वीस में नवीनता लाओ। ( इस प्रकार का सर्वीस करने का साधन कौन - सा है?) जिस समय सर्वीस करते हो उस समय मंथन चलता है, लेकिन याद में मगन यह स्टेज मंथन की स्टेज से कम होती है। दूसरे के तरफ ध्यान अधिक रहता है। अपनी अव्यक्त स्थिति की  तरफ ध्यान कम रहता है। इस कारण ज्ञान के विस्तार का प्रभाव पडता है लेकिन लगन में मगन रहने का प्रभाव कम दिखाई देता है।

 

✧  रिजल्ट में यह कहते हैं कि यह ज्ञान बहुत ऊचा है। लेकिन मगन रहना है यह हिम्मत नहीं रखते। क्योंकि अव्यक्त स्थिति द्वारा लगन का अर्थात सम्बन्ध जोडने का अनुभव नहीं किया है। बाकी थोडा कणा - दाना लेने से प्रजा बन जाती है। *अब के सम्बन्ध जुटने से ही भविष्य सम्बन्ध में आयेंगे।* नहीं तो प्रजा में। तो नवीनता यही लानी है। जो एक सेकण्ड में अव्यक्त अनुभव द्वारा सम्बन्ध जोडना है। सम्बन्ध और सम्पर्क दोनों में फर्क है। सम्पर्क में आते हैं, सम्बन्ध में नहीं आते। समझा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *प्रेक्टिस की परीक्षा का समय कौन-सा होता है? जब कर्मभोग का ज़ोर होता है?* कर्मेन्द्रियाँ बिल्कुल कर्मभोग के वश अपने तरफ आकर्षण करें, जिसको कहा जाता है बहुत दर्द है। *कहते हैं ना - बहुत दर्द है, इसलिए थोड़ा भूल गयी।* लेकिन यह तो टग ऑफ वार (रस्सा कशी) का समय है, *ऐसे समय कर्मभोग को कर्मयोग में परिवर्तन करने वाले, साक्षी हो कर कर्मेन्द्रियों को भोगवाने वाले जो होते उनको अष्ट रतन कहा जाता है, जो ऐसे समय विजयी बन दिखाते हैं।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अपनी उन्नति के लिए रोज पोतामेल निकालना"*

 

   *प्यारे बाबा :-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... सत्य पिता के साथ *सदा सत्य भरी राहो पर मुस्कराते हुए सदा उमंगो संग झूमो.*..अपने दिल की हर बात को सत्य पिता को बयाँ करो... हर पल हर कदम पर मीठे बाबा से राय लेते रहो... और श्रीमत का हाथ पकड़े हुए यूँ सदा निश्चिन्त, बेफिक्र बन मौजो से भरा ईश्वरीय जीवन जियो..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा :-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपके साये में सत्य स्वरूप में खिल उठी हूँ... श्रीमत को पाकर जीवन मूल्यों से भर गयी हूँ... *दिल के हर जज्बातों में आपको साझा कर रही हूँ.*.. आपके साथ और अमूल्य प्यार को पाकर, खुशनुमा जीवन को मालिक हो गयी हूँ..."

 

   *मीठे बाबा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... जनमो की भटकन के पश्चात जो ईश्वर पिता को पाया है तो *उनकी श्रीमत पर चलकर जीवन अनन्त मीठे सुखो का पर्याय बना लो.*.. सच्चे साथी से हर कदम राय लेकर, जीवन को खुशियो की बहार बना दो... सच्चा पोतामेल ईश्वर पिता को देकर, प्यार में वफादारी का सबूत दे दो..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा :-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा परमात्मा पिता को पाकर कितनी भाग्यशाली हो गई हूँ... कभी कहाँ भला सोचा था कि *जीवन ईश्वरीय मत पर चलकर यूँ सुखो का समन्दर हो उठेगा.*.. प्यारे बाबा आपके प्यार को पाने वाले, अपने भाग्य की जादूगरी पर निहाल हो गयी हूँ... "

 

   *प्यारे बाबा :-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... जनमो के भटके मन को अब ईश्वरीय मत पर चलाकर निर्मल पवित्र बनाओ.... *श्रीमत के हाथो में पलकर, अथाह खुशियो से सजा योगी जीवन पाओ.*.. हर कर्म में मीठे बाबा को सच्चा साथी बनाकर राय लो... तो यह जीवन सच्चे सुख प्रेम शांति से भर उठेगा....और इनकी खुशबु से विश्व भी महक उठेगा...."

 

_ ➳  *मैं आत्मा :-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार के साये तले कितनी मालामाल हो गयी हूँ... श्रीमत को पाकर खुबसूरत जीवन की मालिक हो गयी हूँ... *जीवन असीम खुशियो से लबालब है और ईश्वर पिता हर पल, हर कदम मेरे साथ है.*.. ऐसे प्यारे भाग्य पर कितना न बलिहार जाऊं..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अंतर्मुखी बनकर शरीर के भान से परे रहने का अभ्यास करना है*"

 

 _ ➳  अंतर्मुखता की गुफा में बैठ, एकांतवासी बन अपने शिव पिता के साथ मीठी - मीठी रूह रिहान करते, असीम आनन्द का अनुभव करके मैं रियलाइज करती हूँ कि कितना सुकून है इस अंतर्मुखता में! *आज दिन तक मैं इस बात से कितनी अनभिज्ञ थी। इसलिए बाहरमुखता में, भौतिक संसधानों में सुख तलाश कर रही थी*। शुक्रिया मेरे शिव पिता का जिन्होंने आ कर मुझे अंदर की इस खूबसूरत रूहानी यात्रा पर चलना सिखा कर ऐसे अथाह सुख का अनुभव करवाया। *तो अब मुझे अंतर्मुखी बन केवल अपने शिव पिता से ही सुनते, उनसे सदा मीठी - मीठी रूहरिहान करते इस असीम आनन्द का अनुभव निरन्तर करते रहना है*। बाहरमुखता में नही आना है।

 

 _ ➳  मन ही मन स्वयं से बातें करती अब मैं अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने सत्य स्वरूप पर एकाग्र करती हूँ और *अपने मौलिक गुणों और शक्तियों का अनुभव करते, अंतर्मुखता की एक ऐसी असीम आनन्दमयी शांन्तचित स्थिति में स्थित हो जाती हूँ जहां किसी भी प्रकार की कोई आवाज, शोरगुल यहां तक की संकल्पों की भी हलचल नही*। इस गहन शांति की अवस्था में स्थित होते ही मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ कि मुझ आत्मा से शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन निकल कर चारों ओर वायुमंडल में फैल रहें है और आस - पास के वायुमंडल को शांत बना रहे हैं। *शांति की शक्तिशाली किरणों का एक शक्तिशाली औरा मेरे चारों तरफ निर्मित होता जा रहा है*।

 

 _ ➳  शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन चारों और फैलाती मैं चैतन्य शक्ति आत्मा अब सहजता से देह का आधार छोड़ ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। *अंतरिक्ष को पार करके, उससे ऊपर सूक्ष्म लोक से भी परें मैं जागती ज्योति अब स्वयं को एक ऐसी दुनिया में देख रही हैं जहां लाल प्रकाश ही प्रकाश है। चारों और चमकती हुई जगमग करती मणियां दिखाई दे रही हैं*। देह और देह से जुड़ी हर वस्तु का यहां अभाव है। केवल रूहें ही रूहें हैं इसलिए रूह रिहान भी आत्मा का आत्मा से। सम्बन्ध भी आत्मिक और दृष्टिकोण भी रूहानियत से भरा।

 

 _ ➳  चैतन्य मणियों की जगमग करती इस अति सुंदर दुनिया में अब मैं स्वयं को महाज्योति अपने शिव पिता के सम्मुख देख रही हूँ जिनसे निकल रही प्रकाश की अनन्त किरणे पूरे परमधाम को प्रकाशित कर रही है। *मन्त्रमुग्ध हो कर इस अति सुंदर नजारे को मैं देख रही हूँ और अनुभव कर रही हूँ कि महाज्योति मेरे शिव पिता से आ रही अनन्त गुणों और शक्तियों की ये किरणें मुझे अपनी ओर खींच रही हैं*। धीरे - धीरे मैं आत्मा अब उनकी ओर बढ़ रही हूँ। उनके समीप पहुंच कर उन्हें टच करके उनके समस्त गुणों और सर्वशक्तियों को अब मैं स्वयं में भर रही हूँ।

 

 _ ➳  बाबा के सर्वगुणों और सर्वशक्तियों को स्वयं में भरकर मैं स्वयं को सर्वशक्तियों से सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ और सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बन कर वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। *अपने साकारी तन में अब मैं भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हूँ और फिर से अपनी साकार देह का आधार ले कर इस कर्मभूमि पर अपना पार्ट बजा रही हूँ*। किन्तु अब मैं सदैव अंतर्मुखता में रहते केवल अपने शिव पिता से सुनते, हर सेकण्ड उन्हें अपने साथ अनुभव करती हूँ।

 

 _ ➳  *सर्व सम्बन्धो का सुख बाबा से लेते अपने हर संकल्प, बोल और कर्म में बाबा की याद को बसा कर, अंतर्मुखता की गुफा में बैठ एकांतवासी बन अपने प्यारे बाबा के सानिध्य में अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति अब मैं सदैव कर रही हूँ और बाहरमुखता से सहज ही दूर होती जा रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं कर्मभोग रूपी परिस्थिति की आकर्षण को भी समाप्त करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सम्पूर्ण नष्टोमोहा आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा पवित्रता का व्रत लेती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सबसे श्रेष्ठ सत्यनारायण का व्रत लेती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा अतींद्रिय सुख का अनुभव करती हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  *अब तो आगे बढ़ने का बहुत सहज साधन मिला हुआ है सिर्फ एक शब्द की गिफ्ट है - वह कौन सी? ‘मेरा बाबा', यही एक शब्द ऐसी लिफ्ट है जो एक सेकण्ड में नीचे से ऊपर जा सकते हो। क्या यह लिफ्ट यूज़ करने नहीं आती? अब लिफ्ट का जमाना है फिर सीढ़ी क्यों चढ़ते हो?* लिफ्ट में कोई थकावट नहीं होती। सोचा और पहुँचा। तो कौन हो? एक ही शब्द लिफ्ट है - ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं, एक शब्द एक नम्बर में पहुँचा देगा। जब मेरा बाबा हुआ तो मैं उसमें समा गई।' इतनी सहज लिफ्ट यूज़ करो - यूज़ करने वाले पहुँच जाते और देखने वाले, सोचने वाले रह जाते। *तो अब एक शब्द के स्मृति स्वरूप होकर सदा समर्थ आत्मा बन जाओ।*

 

✺  *"ड्रिल :- ‘मेरा बाबा’ शब्द की लिफ्ट को यूज़ करना*”

 

_ ➳  *अमृतवेले मीठे, लाडले बच्चे’- ये मधुर साज सुनते ही मैं आत्मा उठकर बैठ जाती हूँ...* सामने प्राण प्यारे बाबा मुस्कुराते हुए खड़े हैं... मैं आत्मा झट से बाबा के गले लग जाती हूँ... मैं आत्मा मेरा बाबाकहते हुए बाबा की गोदी में बैठ जाती हूँ... बाबा की मखमली रुई जैसे गोदी में अतीन्द्रिय सुख का अनुभव हो रहा है... *बाबा के स्पर्श से मैं आत्मा इस शरीर को भूल रही हूँ... और बाबा की यादों में खोकर मैं आत्मा भी रुई जैसे हलकी हो रही हूँ...*

 

_ ➳  मैं आत्मा हलकी होकर प्यारे बाबा के साथ उडती हुई अपने घर पहुँच जाती हूँ... *बाबा से निकलती दिव्य तेजस्वी किरणों को स्वयं में ग्रहण कर रही हूँ...* मैं आत्मा अलौकिकता को धारण कर अलौकिक बन रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा बाबा के साथ-साथ रहती हूँ... *मैं आत्मा सदा अविनाशी बाबा के अविनाशी प्रेम में एकरस रहती हूँ...*

 

_ ➳  मैं आत्मा सदा बेहद के नशे में रहती हूँ... मुझ आत्मा का हद का नशा पूरी तरह से बाहर निकल रहा है... *मैं आत्मा स्मृति स्वरुप होकर समर्थ आत्मा बन रही हूँ...* मैं आत्मा सदा मेरा बाबाशब्द के जादू से उड़ता पंछी बन उडती रहती हूँ... किसी भी हद के बन्धनों में नहीं पड़ती हूँ... मैं आत्मा एक बाबा से सर्व सम्बन्ध निभाती हुई अविनाशी बन्धन में बंध गई हूँ...

 

_ ➳  *‘मेरा बाबा' शब्द बोलते ही मुझ आत्मा की मैं, मेरेपन की भावना मिट रही है... मैं आत्मा मेरा बाबाशब्द की जादुई चाबी लगाकर सर्व खजानों की अधिकारी बन रही हूँ...* संपत्तिवान बन रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा उमंग-उत्साह में रह उडती कला का अनुभव कर रही हूँ... अब मैं आत्मा बिना किसी थकावट या मेहनत के सफलता प्राप्त कर रही हूँ...

 

_ ➳  अब मैं आत्मा *मेरा बाबा' शब्द की सहज लिफ्ट को यूज़ कर एक सेकण्ड में नीचे से ऊपर पहुँच जाती हूँ...* मैं आत्मा मेरा बाबाशब्द की लिफ्ट से बिना किसी रुकावट के आगे बढ रही हूँ... *मैं आत्मा जब चाहे तब मेरा बाबा' शब्द की लिफ्ट में थर्ड फ्लोर से सेकंड फ्लोर सूक्ष्मवतन... और फर्स्ट फ्लोर मूलवतन पहुँच जाती हूँ...* मैं आत्मा इस लिफ्ट से स्व-दर्शन चक्र फिराकर सदा अपने आदि, अनादि स्वरुप की स्मृति में रहती हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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