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❍ 09 / 04 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *चनो के पीछे समय तो नहीं गंवाया ?*
➢➢ *"अब नाटक पूरा होता है" - यह स्मृति रही ?*
➢➢ *हद की सर्व इच्छाओं का त्याग किया ?*
➢➢ *कर्म के फल की सूक्षम कामना तो नहीं रखी ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ प्रयोगी आत्मा संस्कारों के ऊपर, प्रकृति द्वारा आने वाली परिस्थितियों पर और विकारों पर सदा विजयी होगी। *योगी वा प्रयोगी आत्मा के आगे ये पांच विकार रूपी सांप गले की माला अथवा खुशी में नाचने की स्टेज बन जाते हैं।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं सहजयागी आत्मा हूँ"*
〰✧ सभी सहजयोगी आत्मायें हो ना। *सदा बाप के सर्व सम्बन्धों के स्नेह में समाये हुए। सर्व सम्बन्धों का स्नेह ही सहज कर देता है। जहाँ स्नेह का सम्बन्ध है वहाँ सहज है। और जो सहज है वह निरंतर है।* तो ऐसे सहजयोगी आत्मा बाप के सर्व स्नेही सम्बन्ध की अनुभूति करते हो? ऊधव के समान हो या गोपियों के समान? ऊधव सिर्फ ज्ञान का वर्णन करता रहा। गोप-गोपियाँ प्रभु प्यार का अनुभव करने वाली।
〰✧ *तो सर्व सम्बन्धों का अनुभव यह है विशेषता। इस संगमयुग में यह विशेष अनुभव करना ही वरदान प्राप्त करना है। ज्ञान सुनना सुनाना अलग बात है। सम्बन्ध निभाना, सम्बन्ध की शक्ति से निरंतर लगन में मगन रहना वह अलग बात है।*
〰✧ *तो सदा सर्व सम्बन्धों के आधार पर सहयोगी भव। इसी अनुभव को बढ़ाते चलो। यह मगन अवस्था गोपगोपि यों की विशेष हैं। लगन लगाना और चीज है लेकिन लगन में मगन रहना यही श्रेष्ठ अनुभव हैं।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *अब मुख्य पुरुषार्थ यही करना है कि आवाज में आना जितना सहज है उतना ही आवाज से परे जाना सहज हो*। इसको ही सम्पूर्ण स्थिती के समीप की स्थिती कहा जाता है। जैसे बुद्धि से छोटा बिन्दु खिसक जाता है। ऐसे यह छोटा बिन्दु भी हाथ से खिसक जाता है।
〰✧ *जितना - जितना अपने देह से न्यारे रहेंगे उतना समय बात से भी न्यारे*। जैसे वस्त्र उतारना और पहनना सहज है कि मुश्किल? इस रीति न्यारे होंगे तो शरीर भान में आना, शरीर के भान से निकलना यह भी ऐसे लगेगा।
〰✧ *अभी - अभी शरीर का वस्त्र धारण किया, अभी - अभी उतारा*। मुख्य पुरुषार्थ आज इस विशेष बात पर करना है। जब यह मुख्य पुरुषार्थ करेंगे तब मुख्य रत्नों में आयेंगे। यह बिन्दी लगाना कितना सहज है। एसे ही बिन्दी रूप है जाना सहज है।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *जैसे एक सेकंड में स्विच आन आफ किया जाता है, ऐसे ही एक सेकेण्ड में शरीर का आधार लिया और फिर एक सेकेण्ड में शरीर से परे अशरीरी स्थिति में स्थित हो सकते हो? अभी-अभी शरीर में आये, फिर अभी-अभी अशरीरी बन गये - यह प्रैक्टिस करनी है। इसी को ही कर्मातीत अवस्था कहा जाता है।* ऐसा अनुभव होगा। जब चाहे कोई कैसा भी वस्त्र धारण करना वा न करना - यह अपने हाथ मे रहेगा। आवश्यकता हुई धारण किया, आवश्यकता न हुई तो शरीर से अलग हो गये। ऐसे अनुभव इस शरीर रूपी वस्त्र में हो। *कर्म करते हुए भी अनुभव ऐसा ही होना चाहिए जैसे कोई वस्त्र धारण कर और कार्य कर रहे हैं। कार्य पूरा हुआ और वस्त्र से न्यारे हुए।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप का पूरा-पूरा मददगार बनना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अमृतवेले उठ मीठे बाबा से मिलने की तमन्ना में फ़रिश्ता बन उड़ चलती हूँ मधुबन बाबा की कुटिया में... मीठे बाबा अपनी मीठी मुस्कान से मेरा स्वागत करते हैं और अपनी मीठी दृष्टि से मुझे निहाल करते हैं...* बाबा की दृष्टि से मुझ आत्मा के सूक्ष्म विकार, पुराने स्वभाव-संस्कार दैवीय गुणों में परिवर्तित होने लगे हैं... मुझ आत्मा की काया दिव्यता से चमकने लगी है... *फिर प्यारे बाबा मुझे अपने साथ रूहानी सैर पर ले जाते हैं और तीनों कालों के दर्शन कराते हैं... फिर ज्ञान सागर बाबा मुझ पर ज्ञान की बरसात करते हैं...*
❉ *भारत को दैवी स्वराज्य बनाने में मददगार बन श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता आप बच्चों के सुखो के लिए हथेली पर स्वर्ग धरोहर लाया है... *स्वर्ग के फाउंडेशन में मददगार बन सदा का सुनहरा भाग्य बनाओ... ईश्वरीय राहो पर चलकर असीम खुशियो में मुस्कराओ...* श्रीमत के हाथो में हाथ देकर, सदा के सुखो में झूम जाओ..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बेहद के सर्विस में जुटकर बाबा की राईट हैण्ड बन विश्व का कल्याण करते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपकी यादो में उज्ज्वल भविष्य को पाती जा रही हूँ... *ईश्वर पिता की मदद कर, मीठा प्यारा भाग्य सजा रही हूँ... श्रीमत के साये में विकारो की कालिमा से महफूज होकर,सदा की निश्चिन्त हो गयी हूँ..."*
❉ *मेरे भाग्य के सितारे को आसमान की बुलंदियों पर पहुंचाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता को खोज खोज कर थक से निकले थे कभी, आज उसकी मदद करने वाले खुबसूरत भाग्य के मालिक हो गए हो... *श्रेष्ठ भाग्य को लिखने की कलम पा गए हो... और अनन्त खुशियो को बाँहों में भरकर मुस्करा रहे हो... भगवान की मदद करने वाले महान हो गए हो..."*
➳ _ ➳ *मीठे बाबा के प्यार के फव्वारे में खुशियों की चरमसीमा पर पहुंचकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अपनी ही मदद को बेजार थी कभी... आपकी मदद को हर पल तरस रही थी... *आज आपका सारा प्यार आँचल में भरकर मुस्करा रही हूँ... मीठे बाबा भाग्य से युँ सम्मुख पाकर आपके प्यार में बावरी हो गयी हूँ... और असीम खुशियो में नाच रही हूँ..."*
❉ *काँटों के जंगल को फूलों का बगीचा बनाकर रूहानी फूलों का गुलदस्ता तैयार करते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता की श्रीमत पर चलकर जीवन को नये आयामो पर पहुँचाओ... मनुष्य मत ने कितना निस्तेज और बेहाल किया है... *अब श्रीमत के हाथो में पलकर फूलो सा खिलखिलाओ... दिव्य गुणो से सज संवर कर देवताई सौभाग्य को पाओ... सदा खुशियो में गुनगुनाओ..."*
➳ _ ➳ *करावनहार के हाथों को थाम श्रीमत के मार्ग पर चलते हुए मंजिल के समीप पहुंचती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अदनी सी, भगवान की कभी मददगार बनूंगी, ऐसा तो मीठे बाबा ख्वाबो में भी न सोचा था... *आज आपकी मदद का भाग्य पाकर, सतयुगी सुखो का हक पा रही हूँ... श्रीमत का हाथ और ईश्वरीय प्यार पाकर, अपना भाग्य शानदार बना रही हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अविनाशी ज्ञान रत्नों से अपनी मुट्ठी भरनी है*"
➳ _ ➳ अविनाशी ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा सजनी का श्रृंगार कर, मुझे सजा सँवार कर अपने साथ ले जाने के लिए मेरे शिव पिया आने वाले हैं। उनके इंतजार में मैं आत्मा इस देह रूपी कुटिया में भृकुटि रूपी दरवाजे पर पलके बिछाये खड़ी हूँ। *मेरे प्रेम की डोर से बंधे मेरे शिव पिया बिना कोई विलम्ब किए अपना धाम छोड़कर, अपने रथ पर विराजमान हो कर मेरे पास आ रहें हैं। हवाओं में फैली रूहानियत की खुशबू उनके आने का स्पष्ट संकेत दे रही है*। मुझ आत्मा पर पड़ रही उनके प्रेम की शीतल फुहारें मुझे उनकी उपस्थिति का स्पष्ट अनुभव करवा रही हैं। फिजाओं में एक दिव्य अलौकिक रूहानी मस्ती छा गई है जिसमे मैं आत्मा डूबती जा रही हूं।
➳ _ ➳ अपने शिव पिया को मैं अब अपने बिल्कुल समीप देख रही हूं। अपनी किरणों रूपी बाहों को फैला कर वो मुझे अपने साथ चलने का इशारा दे रहें हैं। उनकी किरणों रूपी बाहों को थामे अब मैं आत्मा सजनी उनके साथ चली जा रही हूं। *हर बन्धन से अब मैं मुक्त हो चुकी हूं। अपने शिव साजन का हाथ थामे मैं आत्मा सजनी इस दुख देने वाली दुनिया को छोड़ कर अपने शिव पिया के साथ उनके घर जा रही हूं*। पांच तत्वों से बनी साकारी दुनिया को पार करते हुए, अपने शिव पिया के साथ मैं आत्मा पहुंच गई सूक्ष्म लोक में जहां मेरे शिव पिया मुझ आत्मा का ज्ञान रत्नों से सोलह श्रृंगार कर मुझे अपनी निराकारी दुनिया मे ले जायेंगे।
➳ _ ➳ अब मैं देख रही हूं अपने शिव पिया को उनके लाइट माइट स्वरूप में। उनका यह स्वरूप बहुत ही आकर्षक, लुभावना और मन को मोहने वाला है। *अब मैं आत्मा भी अपनी फ़रिशता ड्रेस धारण कर लेती हूं और अविनाशी ज्ञान रत्नों का श्रृंगार करने के लिए अपने शिव पिया के सामने पहुंच जाती हूँ*। मुझे अपने पास बिठाकर बड़ी प्यार भरी नजरों से वो मुझे निहार रहे हैं और अपनी सर्वशक्तियों रूपी रंग बिरंगी किरणों से मुझे भरपूर कर रहें हैं।
➳ _ ➳ मन ही मन मैं विचार कर रही हूं कि कितना लंबा समय मैं अपने अविनाशी साजन से अलग रही। उनसे अलग रहने के कारण मैं तो श्रृंगार करना ही भूल गई थी। अविनाशी खजानों से वंचित हो गई थी। किंतु अब *बहुत काल के बाद मेरे शिव साजन मेरे सामने है और बहुत काल के बाद यह सुंदर मिलन हुआ है तो इस मिलन से अब मुझे सेकेंड भी वंचित नहीं रहना*। यह विचार मन मे आते ही अपने शिव पिया के प्रति प्यार और भी गहरा हो उठता है और मैं आत्मा सजनी उनके और समीप पहुंच जाती हूँ।
➳ _ ➳ मेरे शिव पिया अब स्वयं ज्ञान रत्नों से मेरा श्रृंगार कर रहें हैं। मेरे गले मे दिव्य गुणों का हार और हाथों में मर्यादाओं के कंगन पहना कर सर्व ख़ज़ानों से मेरी झोली भर रहें है। सुख, शांति, पवित्रता, शक्ति और गुणों से मुझे भरपूर कर रहें हैं। *ज्ञान रत्नों के खजानों से मालामाल करके मेरे शिव पिया ने मुझे कितना सम्पत्तिवान बना दिया है*। सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के श्रृंगार से सजा मेरा यह रूप देख कर मेरे शिव पिया खुशी से फूले नही समा रहे। अविनाशी ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से सजे अपने इस रूप को मैं मन रूपी दर्पण में देख कर मन ही मन अपने भाग्य पर गर्व कर रही हूं जो ऐसा अनुपम श्रृंगार करने वाले अविनाशी साजन मुझे मिले। *मन ही मन अपने शिव पिया से मैं प्रोमिस करती हूं कि इन अविनाशी ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से अब मैं आत्मा सदा सजी सजाई रहूँगी*।
➳ _ ➳ अविनाशी ज्ञान रत्नों से सज - धज कर अब मैं आत्मा वापिस साकारी लोक में आ कर अपने साकारी शरीर मे विराजमान हो गई हूं। *अपने शिव पिया से मिले सर्व ख़ज़ानों से अब मैं स्वयं को सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ*। हर रोज अपनी झोली अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरकर, अपना श्रृंगार करके मैं आत्मा वरदानीमूर्त बन अब अपने सम्बन्ध - सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को अपने मुख से ज्ञान रत्नों का दान दे कर उन्हें भी अविनाशी ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से सजाने वाले उनके अविनाशी प्रीतम से मिलवाने के रूहानी धन्धे में लग गई हूं।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं हद की सर्व इच्छाओं का त्याग करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सच्ची तपस्वी मूर्त आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा कर्म के फल की सूक्ष्म कामना रखने से भी मुक्त हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा फल को पकने से पहले ही खा लेने से सदैव मुक्त हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा कर्मयोगी हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ अभी बापदादा सभी बच्चों को सदा निर्विघ्न स्वरूप में देखने चाहते हैं, क्यों? जब आप निमित्त बने हुए निर्विघ्न स्थिति में स्थित रहो तब विश्व की आत्माओं को सर्व समस्याओं से निर्विघ्न बना सके... इसके लिए *विशेष दो बातों पर अण्डरलाइन करो... करते भी हो लेकिन और अण्डरलाइन करो... एक तो हर एक आत्मा को अपने आत्मिक दृष्टि से देखो... आत्मा के ओरिजिनल संस्कार के स्वरूप में देखो...* चाहे कैसे भी संस्कार वाली आत्मा है लेकिन आपकी हर आत्मा के प्रति शुभ भावना, शुभ कामना, परिवर्तन कर सकती है... आत्मिक भाव इमर्ज करो...
➳ _ ➳ जैसे शुरू-शुरू में देखो तो संगठन में रहते आत्मिक दृष्टि, आत्मिक वृत्ति, आत्मा-आत्मा से मिल रही है, बात कर रही है, इस दृष्टि से फाउण्डेशन कितना पक्का हो गया... अभी सेवा के विस्तार में, सेवा के विस्तार के सम्बन्ध में आत्मिक भाव से चलना, बोलना, समपर्क में आना मर्ज हो गया है... खत्म नहीं हुआ है लेकिन मर्ज हो गया है... *आत्मिक स्वमान, आत्मा को सहज सफलता दिलाता है* क्योंकि आप सभी कौन आकर इकट्ठे हुए हो? वही कल्प पहले वाले देव आत्मायें, ब्राह्मण आत्मायें इकट्ठे हुए हो... *ब्राह्मण आत्मा के रूप में सभी श्रेष्ठ आत्मायें हो, देव आत्माओं के हिसाब से भी श्रेष्ठ आत्मायें हो...* उसी स्वरूप से सम्बन्ध-सम्पर्क में आओ...
➳ _ ➳ हर समय चेक करो - मुझ देव आत्मा, ब्राह्मण आत्मा का श्रेष्ठ कर्तव्य, श्रेष्ठ सेवा क्या है? 'दुआयें देना और दुआयें लेना'... आपके जड़ चित्र क्या सेवा करते हैं? कैसी भी आत्मा हो लेकिन दुआयें लेने जाते, दुआयें लेकर आते... और कोई भी अगर पुरुषार्थ में मेहनत समझते हैं तो *सबसे सहज पुरुषार्थ है, सारा दिन दृष्टि, वृत्ति, बोल, भावना सबसे दुआयें दो, दुआयें लो...*
✺ *ड्रिल :- "निर्विघ्न स्थिति में स्थित रहने का अनुभव"*
➳ _ ➳ अपने स्वधर्म में स्थित हो कर, अपने प्राणेश्वर बाबा की याद में बैठ गहन शांति की अनुभूति करने के बाद, कुछ समय के लिए मैं जैसे ही अपनी आंखों को हल्के - हल्के बन्द करती हूँ, मैं स्वयं को एक बहुत बड़े मन्दिर में अपने ही दैवी स्वरूप में देखती हूँ... *अपना वरदानी हाथ ऊपर उठाये मैं सबकी मनोकामनाओं को पूर्ण कर रही हूँ... चाहे कैसी भी आत्मा मेरे सम्मुख आ रही है मैं सबको दुआयें देती जा रही हूँ...* अपने इस दैवी स्वरूप को देखते - देखते मैं जैसे ही अपने ब्राह्मण स्वरूप में वापिस लौटती हूँ... मेरे कानों में अव्यक्त बापदादा की आवाज सुनाई देती है:- "हर समय चेक करो - मुझ देव आत्मा, ब्राह्मण आत्मा का श्रेष्ठ कर्तव्य, श्रेष्ठ सेवा क्या है?
➳ _ ➳ अव्यक्त बापदादा के इन महवाक्यों को सुन इस बात पर अटेंशन देते हुए अब मैं अपनी चेकिंग करती हूँ कि क्या सारा दिन अपनी दृष्टि, वृत्ति, बोल, भावना से मैं सबको दुआयें देती और दुआयें लेती हूँ? *चेकिंग करते - करते मैं विचार करती हूँ कि आज दिन तक मेरे जड़ चित्रों का जो गायन है कि उनके सामने कैसी भी आत्मायें आएं लेकिन दुआयें लेने जाते, दुआयें लेकर आते हैं वो गायन तो तभी होगा जब अभी ब्राह्मण जीवन में वो कर्म होगा...* और यह तभी होगा जब मेरा ब्राह्मण जीवन निर्विघ्न होगा... इसलिए अब मुझे अपने इस ब्राह्मण जीवन को निर्विघ्न बनाने का ही पुरुषार्थ करना है...
➳ _ ➳ अपने आप से दृढ़ प्रतिज्ञा कर अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप से अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होती हूँ... अशरीरी बन बाबा की याद में बैठते ही मैं देह की दुनिया से किनारा कर, ज्ञान और योग के पंख लगाये *अपने निराकार शिव पिता परमात्मा की उस सुंदर सितारों की अद्भुत दुनिया की ओर चल पड़ती हूँ...* कुछ क्षणों की सुंदर, लुभावनी रूहानी यात्रा करके मैं पहुंच जाती हूँ उस अद्भुत दुनिया परमधाम में अपने प्यारे मीठे बाबा के पास... *संकल्पों विकल्पों की हलचल से दूर शांति के सागर बाप के सामने मैं आत्मा गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ...* मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं अपलक शक्तियों के सागर अपने बाबा को निहार रही हूँ...
➳ _ ➳ धीरे - धीरे अब मैं आत्मा अपने मीठे प्यारे बाबा की ओर बढ़ रही हूँ... उनके समीप पहुंच कर मैं जैसे ही उन्हें टच करती हूँ... *शक्तियों का झरना फुल फोर्स के साथ बाबा से निकल कर अब मुझ आत्मा में समाने लगता है... मेरा स्वरूप अत्यंत शक्तिशाली व चमकदार बनता जा रहा है...* मास्टर बीजरूप अवस्था में स्थित हो कर अपने बीज रूप परमात्मा बाप के साथ यह मंगलमयी मिलन मुझे अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करवा रहा है... परमात्म लाइट मुझ आत्मा में समाकर मुझे पावन बना रही है... मैं स्वयं में परमात्म शक्तियों की गहन अनुभूति कर रही हूँ...
➳ _ ➳ शक्ति स्वरुप बनकर अब मैं परमधाम से नीचे आ रही हूँ... अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, अपने इस जीवन मे निर्विघ्न स्थिति का अनुभव करने के लिए अब मैं निरन्तर आत्मिक स्मृति में रह, सबको आत्मिक दृष्टि से देखने का अभ्यास कर रही हूँ... *सबके साथ बातें करते उनके मस्तक में चमकती हुई आत्मा को ही अब मैं देख रही हूँ... यह सब भी शिव बाबा की अजर-अमर संताने हैं इसी समृति से अब मैं हर संबंध में आती हूँ...* मेरे सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली आत्मा चाहे कैसे भी स्वभाव संस्कार वाली हो लेकिन आत्मिक भाव इमर्ज करके मैं सबके प्रति शुभ भावना, शुभ कामना रखते हुए उन्हें परिवर्तन करने का पुरुषार्थ कर रही हूँ...
➳ _ ➳ *चाहे लौकिक परिवार हो या अलौकिक ब्राह्मण परिवार हो, दोनों में ही आत्मिक दृष्टि, आत्मिक वृति के आधार पर परिवार की फाउंडेशन को मजबूत करके* मैं निर्विघ्न स्थिति में स्थित रहने का अनुभव अब सहज ही करते हुए निरन्तर आगे बढ़ रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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