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 30 / 04 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *तेरी मेरी की चिंताओं को छोड़ आप समान बनाने की सेवा की ?*

 

➢➢ *किसी भी चीज़ में लोभ तो नहीं रखा ?*

 

➢➢ *प्रैक्टिकल जीवन द्वारा परमात्म ज्ञान का प्रूफ दिया ?*

 

➢➢ *परमातम स्मृति से मन की उलझनों को समाप्त किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  अब अपने ईश्वरीय ब्राह्मणपन के, सर्वस्व त्यागी की पोजीशन में स्थित रहो। *हद की पोजीशन कि मैं सबसे ज्यादा सर्विसएबुल हूँ, प्लैनिंग-बुद्धि हूँ, इनवैन्टर हूँ, धन का सहयोगी हूँ, दिन-रात तन लगाने वाला हार्ड-वर्कर हूँ या इन्चार्ज हूँ. इस प्रकार के हद के नाम, मान और शान के उल्टे पोजीशन को छोड़ अब त्यागी और तपस्वीमूर्त बनो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं निर्विघ्न विजयी रतन हूँ"*

 

  अपने को सदा निर्विग्न, विजयी रतन समझते हो? विघ्न आना, यह तो अच्छी बात है लेकिन विघ्न हार न खिलायें। *विघ्नों का आना अर्थात् सदा के लिए मजबूत बनाना। विघ्न को भी एक मनोरंजन का खेल समझ पार करना-इसको कहते हैं 'निर्विग्न विजयी'।* तो विघ्नों से घबराते तो नहीं? जब बाप का साथ है तो घबराने की कोई बात ही नहीं। अकेला कोई होता है तो घबराता है। लेकिन अगर कोई साथ होता है तो घबराते नहीं, बहादूर बन जाते हैं। तो जहां बाप का साथ है, वहाँ विघ्न घबरायेगा या आप घबरायेंगे? सर्वशक्तिवान के आगे विघ्न क्या है? कुछ भी नहीं।

 

  इसलिए विघ्न खेल लगता, मुश्किल नहीं लगता। विघ्न अनुभवी और शक्तिशाली बना देता है। *जो सदा बाप की याद और सेवा में लगे हुए हैं, बिजी हैं,वह निर्विग्न रहते हैं। अगर बुद्धि बिजी नहीं रहती तो विघ्न वा माया आती है। अगर बिजी रही तो माया भी किनारा कर लेगी। आयेगी नहीं, चली जायेगी।* माया भी जानती है कि यह मेरा साथी नहीं है, अभी परमात्मा का साथी है। तो किनारा कर लेगी। अनगिनत बार बिजयी बने हो, इसलिए विजय प्राप्त करना बड़ी बात नहीं है। जो काम अनेक बार किया हुआ होता है, वह सहज लगता है। तो अनेक बार के बिजयी। सदा राजी रहने वाले हो ना? मातायें सदा खुश रहती हो? कभी रोती तो नहीं? कभी कोई परिस्थिति ऐसी आ जाये तो रोयेंगी? बहादुर हो। पाण्डव मन में तो नहीं रोते? यह 'क्यों हुआ', 'क्या हुआ'-ऐसा रोना तो नहीं रोते?

 

  *बाप का बनकर भी अगर सदा खुश नहीं रहेंगे तो कब रहेंगे? बाप का बनना माना सदा खुशी में रहना। न दु:ख है, न दु:ख में रोयेंगे। सब दु:ख दूर हो गये। तो अपने इस वरदान को सदा याद रखना।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आवाज़ से परे रहना अच्छा लगता है वा आवाज़ में रहना अच्छा लगता है? असली देश वा असली स्वरूप में आवाज़ है? *जब अपनी असली स्थिति में स्थित हो जाते हो आवाज़ से परे स्थिति अच्छी लगती है ना।* ऐसी प्रैक्टीस हरेक कर रहे हो? जब चाहे जैसे चाहे वैसे ही स्वरूप स्थित हो जायें।

  

✧  जैसे योद्धे जो युद्ध के मैदान में रहते हैं उन्हों को भी जब भी और जैसा जैसा आर्डर मिलता है वैसे करते ही जाते हैं। ऐसे ही रूहानी वारियर्स को भी जब और जैसा डायरक्शन मिले वेसे ही अपनी स्थिति को स्थित कर सकते हैं, क्योंकि मास्टर नाँलेजफुल भी हो और मास्टर सर्वशक्तिवान भी हो। तो दोनों ही होने कारण एक सेकण्ड से भी कम समय में जैसी स्थिति में स्थित होना चाहे उस स्थिति में टिक जायें, ऐसे रूहानी वारियार्स हो? अभी - अभी कहा जाये परमधाम निवासी बन जाओ तो ऐसी प्रैक्टीस है जो कहते ही इस देह, देह के देश भूल अशरीरी परमधाम निवासी बन जाओ?

 

✧   *अभी - अभी परमधाम निवासी से अव्यक्त स्थिति में स्थित हो जाओ, अभी - अभी सेवा के प्रति आवाज़ में आये, सेवा करते हुए भी अपने स्वरूप की स्मृति रहे, ऐसे अभ्यास बने हो?* ऐसा अभ्यास हुआ है? वा जब परमधाम निवासी बनने चाहो तो परमधाम निवासी के बजाय बार - बार आवाज़ में आ जायें ऐसा अभ्यास तो नहीं करते हो? अपनी बुद्धी को जहाँ चाहो वहाँ एक सेकण्ड से भी कम समय में लगा सकते हो? ऐसा अभ्यास हुआ है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  सेना के महारथी किसको कहा जाता है। उनके लक्षण क्या होते हैं। *महारथी अर्थात् इस रथ पर सवार, अपने को रथी समझे।* मुख्य बात कि अपने को रथी समझ कर इस रथ को चलाने वाले अपने को अनुभव करते हो? *अगर युद्ध के मैदान में कोई महारथी अपने रथ अर्थात् सवारी के वश हो जाए तो क्या वह महारथी, विजयी बन सकता है या और ही अपनी सेना के विजयी-रूप बनने की बजाये विघ्न-रूप बन जायेगा। हलचल मचाने के निमित्त बन जायेगा।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- एक बाप की श्रीमत पर चलना"*

 

_ ➳  *मैं अल्लाह के बगीचे की रूहानी गुलाब रूहानी बागबान संग गुलाब के बगीचे में, बाबा का हाथ पकड सैर कर रही हूँ... बाबा संग झूले में बैठ झूला झूल रही हूँ... फूल बरसाकर प्यारे बाबा के साथ खेल रही हूँ... प्यारे बाबा के क़दमों में कदम रख चल रही हूँ...* मीठे बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख वरदानों की बरसात करते हैं... सारे खजानों को मुझ पर लुटाते हुए श्रेष्ठ मत देते हैं... मैं आत्मा सर्व वरदानों से अपनी झोली भरते हुए प्यारे बाबा की श्रीमत पर चलते हुए पद्मों की कमाई करने की प्रतिज्ञा करती हूँ...

 

   *प्यारे बाबा मेरा श्रेष्ठ भाग्य बनाने श्रेष्ठ और ऊँची मत देते हुए कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... *श्रीमत के हाथो में ही देवताई जादू को पा सकते हो... गर जीवन को खुबसूरत बनाना है और सुखो का अधिकारी बन मुस्कराना है तो श्रीमत पर हर कदम को उठाओ...* श्रीमत से ही जीवन दिव्यता से सजकर अथाह सुख दिलाएगा...

 

_ ➳  *मैं आत्मा पंछी खुला आसमान पाकर इठलाती हुई खुशियों में लहराते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता को शिक्षक रूप में पाकर श्रीमत के  जादू से स्वयं को देवताई स्वरूप में निखार रही हूँ... *श्रीमत ही मेरे जीवन की साँस है, मीठे बाबा आपका साथ ही मुझ आत्मा के प्राण है... ऐसा सच्चा साथ मुझे देवताओ सा सजा रहा है...”*

 

   *मीठा बाबा मीठी मुरली से मेरे सांसों का श्रृंगार करते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे.... इंसानी मतो पर चलकर जीवन को दुःख भरे दलदल में समा दिया है... *अब श्रीमत की ऊँगली पकड़कर इस दलदल से बाहर निकल सुन्दरतम स्वरूप में मुस्कराओ... श्रीमत ही सच्चे सुखो के फूलो की बहार जीवन में खिलाएंगी... श्रीमत पर ही जीवन को हरपल चलाना है...”*

 

_ ➳  *इस जीवन में सबसे बड़ा उपहार प्यारे बाबा की श्रीमत को पाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपके मीठे साये में फूल समान खिलती जा रही हूँ... मेरा जीवन गुणो की खुशबु से भर गया है... *मै आत्मा श्रीमत को अपनाकर कितना मीठा प्यारा जीवन जीती जा रही हूँ... और श्रेष्ठता की ओर बढ़ती चली जा रही हूँ...”*

 

   *मेरे बाबा दिव्य ज्ञान देकर हाथ पकड़कर श्रीमत पर चलना सिखाते हुए कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *श्रीमत ही सुनहरे सुखो का सच्चा सच्चा आधार है इसलिए श्रीमत को हर पल हर संकल्प हर साँस में भर लो... और खुबसूरत देवताई श्रंगार से सज जाओ...* ईश्वरीय मत जीवन को श्रेष्ठ बनाकर अथाह सुख सम्पदा को दामन में भर देगी...

 

_ ➳  *मैं आत्मा प्यारे बाबा के स्नेह भरे पलकों में बैठ बाबा की दुआओं को लेते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा ईश्वरीय मत पर चलकर सदा की सुखी हो गई हूँ... मुझ आत्मा का जीवन सच्चे प्रेम, सच्चे ज्ञान, सच्चे सुखो का पर्याय हो गया है...* मीठे बाबा... आपकी राहो का पथिक बनकर मै आत्मा खुशियो के बगीचे में पहुंच गयी हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- तेरी - मेरी की चिंताओं को छोड़ आप समान बनाने की सेवा करनी है*"

 

 _ ➳  लाइट की सूक्ष्म आकारी देह को धारण कर मैं फ़रिशता अपनी साकारी देह से बाहर निकलता हूँ और दुनिया के नज़ारो को देखने चल पड़ता हूँ। सड़क पर लोगों की भीड़ के बीच मैं चल रहा हूँ। कोई मुझे नही देख पा रहा लेकिन मैं सबको देख रहा हूँ। *हर व्यक्ति का चेहरा मैं देख भी रहा हूँ और उनके चेहरे के हाव - भाव भी पड़ रहा हूँ। हर व्यक्ति एक अजीब सी कशमकश में उलझा हुआ दिखाई दे रहा है*। दुनिया की अन्धी दौड़ में सब भाग रहें है लेकिन जाना कहाँ है, मंजिल कहाँ हैं, किसी को नही पता। चेहरे पर उदासी और दुख की रेखाये लिए सब अपना जीवन जी रहें हैं।

 

 _ ➳  किसी के चेहरे पर खुशी की कोई झलक दिखाई नही दे रही। कोई हंसता हुआ अगर दिखाई भी दे रहा है तो ऐसा लग रहा है जैसे झूठी हंसी हंस रहा है। *लोगों के ऐसे उदास चेहरे देख मन मे विचार आता है कि ये सब मेरे आत्मा भाई ही तो है*। जैसे मेरे मीठे बाबा ने आ कर मेरे जीवन को खुशियों से भरपूर कर दिया है ऐसे ही मेरा भी ये फर्ज बनता है कि अपने इन आत्मा भाईयों को आप समान बना कर मैं इन्हें भी सच्ची खुशी पाने का सहज मार्ग दिखा कर इनके जीवन मे भी खुशियां ले आऊँ। *इसी दृढ़ संकल्प के साथ अब मैं तीव्र उड़ान भरते हुए आकाश को पार कर पहुँच जाता हूँ अपने अति परम प्रिय, खुशियों के वरदाता बापदादा के पास उनके अव्यक्त वतन में*।

 

 _ ➳  बापदादा मेरे आने का आश्रय समझ प्रसन्नचित मुद्रा में, अपनी बाहें फैला कर मेरा स्वागत करते हुए मुझे अपनी बाहों में भर लेते हैं। *अपना असीम स्नेह और प्यार मुझ पर लुटा कर, बाबा खुशी के अथाह खजाने से मेरी झोली भरते हुए मुझे "सदा खुशी में रह, सबको आप समान बनाने" का वरदान देते हुए, अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख देते हैं*। खुशी के खजाने और वरदान ले कर अब मैं फ़रिशता वापिस साकारी दुनिया मे लौट आता हूँ। बापदादा का आह्वान कर, कम्बाइन्ड स्वरूप में अब मैं फ़रिशता सारे विश्व का चक्कर लगा रहा हूँ। *बाबा की सर्वशक्तियाँ मुझ फ़रिश्ते में समा रही हैं और श्वेत रश्मियो के रूप में मुझ फ़रिश्ते से निकल कर सारे विश्व में चारों और फैल रही हैं*।

 

_ ➳  मेरे चारों ओर प्रकाश का एक शक्तिशाली औरा बनता जा रहा है। इस औरे से निकल रहे शक्तिशाली वायब्रेशन सबको सुख, शांति की अनुभूति करवा रहें हैं। *डबल लाइट फरिश्ता स्वरूप धारण किये, परमपिता परमात्मा का संदेशवाहक बन, सूक्ष्म रीति मैं सारे विश्व की आत्माओं को परमात्मा के इस धरा पर अवतरित होने का संदेश दे रहा हूँ*। परमात्म सन्देश पा कर सभी आत्माओं के चेहरे एक दिव्य अलौकिक मुस्कान से खिल उठे हैं। सबके चेहरे पर खुशी की झलक मैं स्पष्ट देख रहा हूँ। विश्व की सर्व आत्माओं को सच्ची खुशी की अनुभूति करवा कर अब मैं फ़रिशता अपने साकारी तन में प्रवेश करता हूँ।

 

 _ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को आप समान बना कर, असीम खुशी का अनुभव करते हुए, उन्हें भी सच्ची खुशी का अनुभव करवा रही हूँ। मेरे मुख से निकले वरदानी बोल उनके दुखी जीवन को सुखमय बना रहे हैं। *खुशी के खजाने से मुझे सम्पन्न करके, खुशियों के सागर मेरे शिव पिता परमात्मा ने सबकी झोली खुशियों से भरने के मुझे निमित बना कर मुझे सर्व की दुआयों की पात्र आत्मा बना दिया है*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं प्रैक्टिकल जीवन द्वारा परमात्म ज्ञान का प्रूफ देने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं धर्मयुद्ध में विजयी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा परमात्म स्मृति से मन की उलझनों को सदा समाप्त करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदैव स्वयं को उज्ज्वल बनाती हूँ  ।*

   *मैं सहज योगी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  सेवा बहुत अच्छी करो लेकिन सेवा और स्व दोनों कम्बाइण्ड हों... *जैसे बापदादा कम्बाइण्ड है ना... आत्मा और शरीर कम्बाइण्ड है ना! ऐसे स्व स्थिति और सेवा दोनों कम्बाइण्ड... परसेन्टेज में कोई कमी नहीं हो...* कभी सेवा की परसेन्टेज ज्यादा, कभी स्व की परसेन्टेज ज्यादा, नहीं, सदा बैलेन्स... तो आपके बैलेन्स द्वारा विश्व की आत्माओं को ब्लैसिंग मिलती रहेगी... *तो अभी विश्व की आत्माओं को ब्लैसिंग चाहिए। मेहनत नहीं चाहिए, ब्लैसिंग चाहिए... तो आपका बैलेन्स स्वतः ही ब्लैसिंग दिलायेगी...* अच्छा।

 

✺   *ड्रिल :-  "सदा स्व-स्थिति और सेवा का बैलेन्स रखना"*

 

 _ ➳  मेरा यह ब्राह्मण जीवन मेरे शिव पिता परमात्मा की देन है जिसका रिटर्न मुझे बाबा का मददगार बन कर अवश्य देना है... *मन ही मन स्वयं से यह दृढ़ प्रतिज्ञा कर, अपने मन बुद्धि की लाइन को क्लीयर कर, मैं जैसे ही बाबा के साथ जोड़ती हूँ वैसे ही मेरी मन बुद्धि बाबा के संकल्पो को कैच करने लगती है...* मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ कि बाबा मुझे स्व स्थिति और सेवा का बैलेन्स रख कर चलने की सलाह दे रहें हैं... बाबा मुझ से कह रहे हैं, मेरे विश्व परिवर्तक बच्चे:- "सदा याद रखो कि स्व स्थिति और सेवा का बैलेन्स ही स्व परिवर्तन सो विश्व परिवर्तन का आधार है"...

 

 _ ➳  बाबा के संकल्पो को कैच कर, स्व स्थिति और सेवा का बैलेंस सदा बना कर रखने की प्रतिज्ञा बाबा से करती हुई अब मैं बाबा की याद में अशरीरी हो कर बैठ जाती हूँ... *अशरीरी स्थिति में स्थित होते ही मुझे ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे बाबा मुझे अपने पास बुला रहे हैं...* ऐसा लग रहा है जैसे कोई शक्ति तीव्र गति से मुझे ऊपर की ओर खींच रही है... बहुत तेज प्रकाश की एक लाइट परमधाम से सीधी मुझ आत्मा पर पड़ रही है जो मुझे परमधाम तक पहुंचने का रास्ता दिखा रही है...

 

 _ ➳  सूर्य के प्रकाश से भी अधिक शक्तिशाली यह लाइट मुझे मेरे वास्तविक स्वभाव, संस्कार की अनुभूति कराने के लिए उस ज्योति के देश में खींच रही है... *फरिश्तों की दुनिया को पार करते हुए मैं जा रही हूँ उस ज्योति के देश मे जहां मेरे शिव पिता परमात्मा अपनी किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरे स्वागत के लिए खड़े हैं...* उनकी किरणों रूपी बाहों में समाकर अब मैं उनके बिल्कुल समीप पहुंच गई हूँ... बस मैं और मेरा बाबा...

 

 _ ➳  बाबा से आ रही सर्वशक्तियों के प्रकाश की एक - एक किरण मुझ आत्मा के अनेक जन्मों के नकारात्मक स्वभाव संस्कार को धोकर मुझे शुद्ध बना रही है... शक्तियों का औरा मुझ आत्मा के चारो और बढ़ रहा है... मेरी सारी कमी कमजोरियाँ जल कर भस्म हो रही हैं... *मेरे अंदर शक्तियों का संचार हो रहा है जो मुझमे असीम बल भरकर मुझे शक्तिशाली बना रहा है... मैं बेदाग हीरा बन रही हूँ...* स्वयं में सर्वशक्तियों को भरकर, शक्तिसम्पन्न स्वरूप बन कर अब मैं वापिस लौट रही हूँ और अपने साकारी तन में आकर विराजमान हो जाती हूँ...

 

 _ ➳  "बैलेन्स ही ब्लैसिंग का आधार है" इस बात को स्मृति में रख, अपने मन बुद्धि की तार को हर समय अपने पिता परमात्मा के साथ जोड़, कर्मयोगी बन अब मैं हर कर्म कर रही हूँ... *बाबा ने मुझे निमित बना कर इस धरा पर सेवा अर्थ भेजा है, यह स्मृति मुझे सदैव इस बात का अहसास दिलाती है कि मैं तो केवल निमित हूँ, करनकरावनहार बाबा मुझसे यह सेवा करवाकर मेरा सर्वश्रेष्ठ भाग्य बना रहे हैं और इस निमितपन की स्मृति में रह, करनकरावनहार बाबा की याद में रह हर कर्म करने से स्वत: ही मुझसे शक्तिशाली वायब्रेशन फैलते रहते हैं...* जिससे स्व स्थिति और सेवा का बैलेंस सहज ही बना रहता है...

 

 _ ➳  बाबा की याद से अब मैं अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को ऐसा श्रेष्ठ बना रही हूँ जो मेरा हर संकल्प, बोल और कर्म सहज ही औरों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन रहा है... *परमात्म याद में रहने से मनसा, वाचा, कर्मणा तीनो रूपो से शक्तिशाली बन सेवा के क्षेत्र में मैं सहज ही सफलता प्राप्त कर रही हूँ...* सेवा और स्व स्थिति का बैलेंस मुझे स्वयं के साथ - साथ सर्व का कल्याणकारी बनाकर सर्व की, और परमात्म दुआओं की अधिकारी आत्मा बना रहा है...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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