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❍ 13 / 04 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *देही अभिमानी होने का विशेष पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *सजाओं से बचने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *याद के बल से अपने वा दूसरों के श्रेष्ठ पुरुषार्थ की गति विधि को जाना ?*
➢➢ *सर्व के सहयोगी बन सर्व का स्नेह स्वतः ही प्राप्त किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *योग का प्रयोग करने के लिए दृष्टि-वृत्ति में भी पवित्रता को और अण्डरलाइन करो।* मूल फाउण्डेशन-अपने संकल्प को शुद्ध, ज्ञान स्वरूप, शक्ति स्वरूप बनाओ। *कोई कितना भी भटकता हुआ, परेशान, दु:ख की लहर में आये, खुशी में रहना असम्भव समझता हो लेकिन आपके सामने आते ही आपकी मूर्त, आपकी वृत्ति, आपकी दृष्टि आत्मा को परिवर्तन कर दे। यही है योग का प्रयोग।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं परमात्मा का सिकीलधा हूँ"*
〰✧ सदा अपने को सिकीलधे समझते हो ना। सदा बाप के सिक व प्रेम का विशेष अनुभव होता है ना! जिस सिक व प्रेम से बाप ने अपना बनाया ऐसे सिक व प्रेम से आपने भी बाप को अपना बनाया है ना! दोनों का स्नेह का अविनाशी पक्का सौदा हो गया। ऐसे सौदा करने वाले सौदागर वा व्यापारी हो ना! ऐसा सौदा सारी दुनिया में कोई कर नहीं सकता। कितना सहज सौदा है। *दो शब्दों का सौदा है लेकिन है अमर। दो शब्द कौन से हैं? आपने कहा 'तेरा' और बाप ने कहा 'मेरा'। बस सौदा हो गया। तेरा और मेरा इन दो शब्दों में अविनाशी सौदा हो गया। और कुछ देना नहीं पड़ता।*
〰✧ देना भी न पड़े और सौदा भी बढ़ीया हो जाएँ तो और क्या चाहिए! सब कुछ मिल गया है ना। ऐसे समझा था कि घर बैठे इतना सहज सौदा भगवान से करेंगे। सोचा था! तो जो संकल्प में भी नहीं था वह प्रैक्टिकल कर्म में हो गया। यह खुशी है ना? सबसे ज्यादा खुशी किसको है? विशेषता यही है जो हरेक कहता - हमें ज्यादा खुशी है। पहले मैं। ऐसे नहीं इन्हें है हमें नहीं। यह भी रेस है, ईर्ष्या नहीं। इसमें हरेक एक दो से आगे बढ़ो। *चांस है आगे बढ़ने का। जितना आगे बढ़ने चाहो उतना बढ़ सकते हो। तो सब पक्के सौदागर बनो। कच्चा सौदा करेंगे तो नुकसान अपने को ही करेंगे।*
〰✧ सदा स्वयं को समाया हुआ अनुभव करते हो? *बाप के नयनों में, दिल में समाया हुआ। जो समाये रहते हैं वह दुनिया से पार रहते हैं। उन्हें अनुभव होता कि बाप ही सारी दुनिया है। स्वप्न में भी पुरानी दुनिया की आकर्षण आकर्षित नहीं कर सकती है। ऐसे समाये हुए को किसी भी बात में मुश्किल का अनुभव नहीं हो सकता। वह दुनिया से खोया हुआ है। अविनाशी सर्व प्राप्ति प्राप्त किया हुआ है।* सदा दिल में एक ही दिलाराम रहता, ऐसी समाई हुई आत्मा सदा सफल है ही।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *अच्छा सारे दिन अव्यक्त स्थिती कितना समय रहती है?* बिन्दि रूप के लिए नहीं पूछते हैं। अव्यक्त स्थिति कितना समय रहती है? बापदादा सम्पूर्ण स्टेज को सामने रख पूछते हो और आप अपने पास्ट के पुरुषार्थ को सामने रख सोचते हो कितना फर्क हो गया। वर्तमान समय पढाई कि मुख्य सब्जेक्टस् कौन - सी चल रही है? *मुख्य सबजेक्ट यह पढ रहे हो कि ज्यादा से ज्सादा अव्यक्त स्थिति बनें*।
〰✧ तो मुख्य सबजेक्ट में रिजल्ट कम है। निरंतर याद में रहने कि सम्पूर्ण स्टेज के आगे एक - दो घण्टा क्या है। इनसे ज्यादा अपनी अव्यक्त स्थिति बनाने की विधी बुद्धी में हैं? अगर विधी है तो वृद्धि क्यों नहीं होती है, कारण? विधी का ज्ञान सारा स्पष्ट बुद्धी में आता है, लेकिन एक बात नहीं आती, जिस कारण विधि का मालूम होते भी वृद्धि नहीं होती है। वह कौन - सी बात है?
〰✧ अच्छा आज वृद्धि कैसे हो उस पर सुनाते है। *एक बात जो नहीं आती है वह है कि विस्तार करना और विस्तार में जाना आता है लेकिन विस्तार को जब चाहे समेटना और समा लेना यह प्रैक्टीस कम है*। ज्ञान के विस्तार में आना भी जानते हो लेकिन विस्तार को समाकर ज्ञान स्वरूप बन जाना, बीज रुप बन जाना इसकी प्रैक्टीस कम है। विस्तार से जाने से टाइम बहुत व्यर्थ जाता है और संकल्प भी व्यर्थ जाते है। इसलिए जो शक्ति जमा होनी चाहिए, वह नहीं होती।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ जैसे बाप को सर्व स्वरूपों से व सर्व सम्बन्धों से जानना आवश्यक है, ऐसे ही बाप द्वारा स्वयं को भी ऐसा जानना आवश्यक है। *जानना अर्थात् मानना। मैं जो हूँ, जैसा हो ऐसे मानकर चलेंगे तो क्या स्थिति होगी? देह में विदेही, व्यक्त में होते अव्यक्त, चलते-फिरते फरिश्ता वा कर्म करते हुए कर्मातीत।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- दैवी गुण धारण करना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा कस्तूरी मृग समान इस मायावी जंगल में भटक रही थी... सच्ची सुख, शांति के लिए कहाँ-कहाँ भाग रही थी... अपने निज स्वरुप को भूल, निज गुणों को भूल, आसुरी अवगुणों को धारण कर दुखी हो गई थी... रावण के विकारों की लंका में जल रही थी... परमधाम से प्रकाश का ज्योतिपुंज इस धरा पर आकर मुझ आत्मा की बुझी ज्योति को जगाया...* दैवीय गुणों की सुगंध से मेरे मन की मृगतृष्णा को शांत किया... मैं आत्मा इस देह से न्यारी होती हुई उस ज्योतिपुंज मेरे प्यारे बाबा के पास पहुँच जाती हूँ...
❉ *प्यारे बाबा ज्ञान के प्रकाश से मेरी आभा को प्रकाशित करते हुए कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय यादे ही विकारो से मुक्त कराएंगी... मीठे बाबा की मीठी यादे ही सच्चे सुख दामन में सजायेंगी... *यह यादे ही आनन्द का दरिया जीवन में बहायेंगी... और दैवी गुणो की धारणा सुखो भरे स्वर्ग को कदमो में उतार लाएंगी..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा पद्मापदम् भाग्यशाली अनुभव करती हुई कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में सच्चे सुख दैवी गुणो के श्रृंगार से सज कर निखरती जा रही हूँ... *साधारण मनुष्य से सुंदर देवता का भाग्य पा रही हूँ... और विकारो से मुक्त हो रही हूँ..."*
❉ *मीठा बाबा आसुरी अवगुणों के आवरण को हटाकर दैवीय गुणों से भरपूर करते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... देह के भान में आकर विकारो के दलदल में गहरे धँस गए थे... अब ईश्वरीय यादो से दुखो की कालिमा से सदा के लिए मुक्त हो जाओ... *दैवी गुणो को जाग्रत कर सुंदर देवताई स्वरूप से सज जाओ... और यादो से अथाह सुख और आनंद की दुनिया को गले लगाओ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा परमात्म आनंद के झूले में झूलती हुई कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय यादे ही सच्चे सुखो का आधार है... *यह रोम रोम में बसाकर देवताई गुणो से भरती जा रही हूँ... देह के भान से निकल कर ईश्वरीय यादो में महक रही हूँ...* और उज्ज्वल भविष्य को पाती जा रही हूँ..."
❉ *मेरे बाबा मेरा दिव्य श्रृंगार कर पावन बनाते हुए कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... विकारो रुपी रावण ने सच्चे सुखो को ही छीन लिया और दुखो के गर्त में पहुंचाकर शक्तिहीन किया है... *अब अपनी देवताई सुंदरता को पुनः ईश्वरीय यादो से पाकर... दैवी गुणो की खूबसूरती से दमक उठो... यह दैवी गुण ही स्वर्ग के सच्चे सुखो का आधार है..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा दैवीय गुणों से सज धज कर खूबसूरत परी बनकर कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा सच्चे ज्ञान को पाकर देवताई गुण स्वयं में भरने की शक्ति... मीठे बाबा की यादो से पाती जा रही हूँ...* और विकारो से मुक्त होकर अपने सुन्दरतम स्वरूप को पा रही हूँ... अपनी खोयी चमक को पुनः पा रही हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सजाओं से बचने का पुरुषार्थ करना है*"
➳ _ ➳ बाबा का राइट हैण्ड धर्मराज है ये बात स्मृति में लाते ही मन मे विचार चलते हैं कि जब अंत समय होगा, बाबा का धर्मराज का रूप होगा और सभी आत्माओं के कर्मो का हिसाब किताब चुकतू होगा उस समय का दृश्य कैसा होगा! *इन्ही विचारों के साथ एक - एक करके आंखों के सामने कुछ दृश्य उभरने लगते हैं। मैं देख रही हूँ सूक्ष्म वतन में ट्रिब्यूनल लगी है। धर्मराज के रूप में बाबा सामने बैठे हैं*। एक - एक करके बाबा के सामने सभी ब्राह्मण आत्मायें आ रही है और बाबा उनके द्वारा किये हुए सभी अच्छे और बुरे कर्मो का पूरा लेखा - जोखा उन्हें एक बहुत बड़ी स्क्रीन पर दिखा रहें हैं।
➳ _ ➳ मैं देख रही हूँ जो ब्राह्मण आत्मायें बाबा की श्रीमत को नजरअंदाज करके अपने कीमती समय को गफलत में बर्बाद करती रही थी वो अपराधी की तरह बाबा के सामने अपनी आंखें नीची किये खड़ी हैं। उनके अपराध के अनुसार धर्मराज के द्वारा उन्हें कड़ी सजाये सुनाई जा रही हैं। इतनी कड़ी सजायें सुनकर वो आत्मायें डर से कांप रही हैं और अपने किये हुए विकर्मों के लिए माफी मांग रही हैं। बहुत ही दयनीय स्थिति है उनकी। किंतु *बाप के रूप में बाबा का वो लाड, प्यार और दुलार अब धर्मराज की सजाओं का रूप ले चुका है। जिसके लिए कोई रियायत नही है*।
➳ _ ➳ इस भयानक दृश्य को देख मैं मन ही मन स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि *बाबा की याद में रह मुझे जल्दी ही मुझ आत्मा पर चढ़े विकर्मों के बोझ को भस्म करना है और साथ ही साथ अब ऐसा कोई भी विकर्म नही करना जिससे मुझ आत्मा पर विकर्मों का कोई और बोझ चढ़े और मुझे बाबा का धर्मराज का रूप देखना पड़े*। यह प्रतिज्ञा करके मैं जैसे ही शिव बाबा को याद करती हूँ मेरे दिलाराम बाबा के स्नेह की डोर मुझे सहज ही अपनी ओर खींचने लगती है। बाबा की लाइट माइट पड़ते ही मैं अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप में स्थित हो कर ऊपर की ओर चल पड़ती हूँ।
➳ _ ➳ बापदादा के स्नेह की डोर से बंधा मैं फ़रिशता सूक्ष्म लोक में प्रवेश करता हूँ। सूक्ष्म वतन के दिव्य अलौकिक नज़ारे को मैं फ़रिशता मन बुद्धि रूपी नेत्रों से स्पष्ट देख रहा हूँ। *बापदादा की दिव्य किरणे इस सूक्ष्म वतन में चारों ओर फैली हुई हैं। मैं बाबा के पास पहुंच कर बाबा के सामने खड़ा हो जाता हूँ*। बाबा मुझे दृष्टि दे रहें हैं। बाबा के नयनो से अथाह स्नेह की धाराएं बह रही हैं। बाबा के वरदानी हस्तों से गुण और शक्तियों की किरणें निकल - निकल कर मुझ फ़रिश्ते में समा रही हैं। *अपना वरदानी हाथ बाबा मेरे सिर पर रख कर मुझे विकर्माजीत भव का वरदान दे रहें हैं*।
➳ _ ➳ बापदादा से विकर्माजीत भव का वरदान और दृष्टि ले कर अब मैं अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होती हूँ और 63 जन्मो के विकर्मों को भस्म करने के लिए परमधाम की ओर चल पड़ती हूँ। *अपने बीज रुप परमपिता परमात्मा शिव बाबा के सामने मैं मास्टर बीज रुप आत्मा जा कर विराजमान हो जाती है। बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे अब निरन्तर मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं जो धीरे - धीरे ज्वलन्त स्वरूप धारण करती जा रही है*। मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ कि बाबा मुझ आत्मा के विकारों रूपी किचड़े को अपनी जवलंत शक्तियों से भस्म कर रहे हैं।
➳ _ ➳ आंतरिक रूप से मैं शुद्ध बनती जा रही हूँ। परमात्म लाइट मुझ आत्मा में समाकर मुझे पावन बना रही है। मैं स्वयं में परमात्म शक्तियों की गहन अनुभूति कर रही हूं। शक्ति स्वरुप बनकर अब मैं परम धाम से नीचे आकर अपने साकारी तन में प्रवेश कर रही हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर हर कर्म करते अब मुझे सदा यह स्मृति रहती है कि बाबा का राइट हैण्ड धर्मराज है। और धर्मराज की सजायें मुझे ना खानी पड़े इसके लिए बाबा की याद में रह, हर कर्म करने का तीव्र पुरुषार्थ अब मैं आत्मा निरन्तर कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं याद के बल से अपने वा दूसरें के श्रेष्ठ पुरुषार्थ की गति विधि जानने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं मास्टर त्रिकालदर्शी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा सदा सर्व की सहयोगी हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा स्नेह सदा स्वत: प्राप्त करती हूँ ।*
✺ *मैं स्नेही व सहयोगी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ब्रह्मा बाप के हर कार्य के उत्साह को तो देखा ही है। जैसे शुरू में उमंग था - चाबी चाहिए! अभी भी ब्रह्मा बाप यही शिव बाप से कहते - अभी घर के दरवाजे की चाबी दो। लेकिन साथ जाने वाले भी तो तैयार हों। अकेला क्या करेगा! *तो अभी साथ जाना है ना या पीछे-पीछे जाना है? साथ जाना है ना? तो ब्रह्मा बाप कहते हैं कि बच्चों से पूछो अगर बाप चाबी दे दे तो आप एवररेडी हो? एवररेडी हो या रेडी हो, सिर्फ रेडी नहीं - एवररेडी त्याग, तपस्या, सेवा तीनों ही पेपर तैयार हो गये हैं?* ब्रह्मा बाप मुस्कराते हैं कि प्यार के आँसू बहुत बहाते हैं और ब्रह्मा बाप वह आँसू मोती समान दिल में समाते भी हैं लेकिन एक संकल्प ज़रूर चलता कि सब एवररेडी कब बनेंगे! *डेट दे देवें। आप कहेंगे कि हम तो एवररेडी हैं, लेकिन आपके जो साथी हैं उन्हें भी तो बनाओ या उनको छोड़कर चल पड़ेंगे?*
✺ *"ड्रिल :- एवररेडी स्थिति का अनुभव"*
➳ _ ➳ *‘अब घर जाना है’ कि स्मृति से मैं आत्मा उड़ चली अपने घर परमधाम…* मैं आत्मा ज्ञान सूर्य की किरणों के नीचे बैठ जाती हूँ... ज्ञान सूर्य से निकलती किरणों को मैं आत्मा स्वयं में भर रही हूँ... सर्व गुणों और शक्तियों का फाउंटेन मुझ आत्मा पर पड़ रहा है... *रंग-बिरंगी किरणों के फाउंटेन से मुझ आत्मा में ज्ञान, प्रेम, सुख, आनंद, पवित्रता, शांति, और सर्व शक्तियां समा रही हैं...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा देहभान के विस्तार को सार में समेट रही हूँ...* मैं आत्मा मेरा फलाना नाम है, फलाना आक्यूपेशन है, मैं नर हूँ, नारी हूँ... इन सब विस्तारों को समाप्त कर रही हूँ... *मैं सिर्फ और सिर्फ एक ज्योतिबिंदु आत्मा हूँ... अविनाशी हूँ... इस देह की मालिक हूँ... मैं आत्मा बिंदु रूप में स्थित हो रही हूँ...*
➳ _ ➳ *अब मैं आत्मा देह के सभी संबंधो के विस्तार को सार में समेटती हूँ...* ये मेरी माँ है, ये बाप है, ये बेटा है या बेटी है... ये सब सिर्फ इस जन्म में पार्ट बजाने के साथी हैं... *मुझ आत्मा का सिर्फ एक शिव बाबा से ही सर्व सम्बन्ध हैं...* मैं आत्मा एक शिव बाबा में ही सर्व सम्बन्धों का सुख अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ *अब मैं आत्मा देह के पदार्थों, साधनों, वैभवों के विस्तार को सार में समेट रही हूँ...* ये सब साधन विनाशी हैं... मुझ आत्मा का स्थूल विनाशी साधनों के अल्पकाल के सुख का मोह मिट रहा है... *ये पुरानी दुनिया, पुराने सम्बन्ध, वस्तुएं सब नश्वर हैं...* मैं आत्मा मन-बुद्धि के सभी विस्तारों को समेटकर सार रूप में स्थित हो रही हूँ... *एक सेकंड में बुद्धि को व्यर्थ से समर्थ की ओर स्थित करती हूँ...*
➳ _ ➳ *अब मैं आत्मा सर्व संबंधो, सर्व सम्पतियों की प्राप्तियों का सुख एक बाबा में ही अनुभव कर रही हूँ...* अब मैं आत्मा सार रूप में स्थित होकर सदा सुख, शांति, ख़ुशी, ज्ञान के, आनंद के झूले में झूल रही हूँ... *सदा सर्व प्राप्तियों के सम्पन्न स्वरूप के अविनाशी नशे में स्थित रहती हूँ...*
➳ _ ➳ *अब मैं आत्मा अंत मति सो गति की स्मृति से मन-बुद्धि को एक बाबा में ही एकाग्र कर रही हूँ...* मैं आत्मा ब्रह्मा बाप समान त्यागी, तपस्वीमूर्त, विश्व सेवाधारी बन रही हूँ... मैं आत्मा सर्व शक्तियों को समय प्रमाण स्व के और सर्व के प्रयोग में लाती हूँ... *अब मैं आत्मा त्याग, तपस्या और सेवा तीनों ही पेपर्स में एवररेडी स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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