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❍ 02 / 04 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अंतर्मुखी होकर अपनी अवस्था का जमाया ?*
➢➢ *आत्माओं को आप समान बनाने की मेहनत की ?*
➢➢ *खुदाई खिदमतगार की स्मृति द्वारा सहज याद का अनुभव किया ?*
➢➢ *सदा गोडली स्टूडेंट लाइफ की स्मृति में रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *योग की शक्ति जमा करने के लिए कर्म और योग का बैलेंस और बढ़ाओ।* कर्म करते योग की पॉवरफुल स्टेज रहे-इसका अभ्यास बढ़ाओ। *जैसे सेवा के लिए इन्वेंशन करते वैसे इन विशेष अनुभवों के अभ्यास के लिए समय निकालो और नवीनता लाकर के सबके आगे एक्जाम्पुल बनो।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं डबल लाइट फरिश्ता हूँ"*
〰✧ सदा स्वयं को डबल लाइट फरिश्ता अनुभव करते हो। *फरिश्ता अर्थात् जिसकी दुनिया ही 'एक बाप' हो। ऐसे फरिश्ते सदा बाप के प्यारे हैं। फरिश्ता अर्थात् देह और देह के सम्बन्धों से आकर्षण का रिश्ता नहीं। निमित्त मात्र देह में हैं और देह के सम्बन्धियों से कार्य में आते हैं लेकिन लगाव नहीं। क्योंकि फरिश्तों के और कोई से रिश्ते नहीं होते। फरिश्ते के रिश्ते एक बाप के साथ हैं।* ऐसे फरिश्ते हो ना।
〰✧ *अभी-अभी देह में कर्म करने के लिए आते और अभी-अभी देह से न्यारे! फरिश्ते सेकण्ड में यहाँ, सेकण्ड में वहाँ। क्योंकि उड़ाने वाले हैं। कर्म करने के लिए देह का आधार लिया और फिर ऊपर।* ऐसे अनुभव करते हो? अगर कहाँ भी लगाव है, बन्धन है तो बन्धन वाला ऊपर नहीं उड़ सकता। वह नीचे आ जायेगा।
〰✧ *फरिश्ते अर्थात् सदा उड़ती कला वाले। नीचे ऊपर होने वाले नहीं। सदा ऊपर की स्थिति में रहने वाले। फरिश्तों के संसार में रहने वाले। तो फरिश्ता स्मृति स्वरूप बने तो सब रिश्ते खत्म। ऐसे अभ्यासी हो ना। कर्म किया और फिर न्यारे।* लिफ्ट में क्या करते हैं? अभी-अभी नीचे अभी-अभी ऊपर। नीचे आये कर्म किया और फिर स्विच दबाया और ऊपर। ऐसे अभ्यासी।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ जैसे बापदादा व्यक्त में आते भी है तो भी अव्यक्त रुप में अव्यक्त देश की अव्यक्त प्रभाव में रहते हैं। वही बच्चों को अनुभव कराने लिए आते हैं। ऐसे आप सभी भी अपने अव्यक्त स्थिती का अनुभव औरों को कराओ। *जब अव्यक्त स्थिती की स्टेज सम्पूर्ण होंगी तब ही अपने राज्य में साथ चलना होंगा*।
〰✧ *एक आँख में अव्यक्त सम्पूर्ण स्थिती दूसरी आँख में राज्य पद*। ऐसे ही स्पष्ठ देखने में आयेंगे जैसे साकार रूप में दिखाई पडता है। बचपन रूप भी और सम्पूर्ण रूप भी। बस यह बनकर फिर यह बनेंगे। यह स्मृती रहती है।
〰✧ भविष्य की रूपरेखा भी जैसे सम्पूर्ण देखने में आती है। *जितना - जितना फरिश्ते लाइफ के नजदीक होंगे उतना - उतना राजपद को भी सामने देखेंगे*। दोनों ही सामने। आजकल कई ऐसे होते है जिनको अपने पास्ट की पूरी स्मृती रहती है। तो यह भविष्य भी ऐसे ही स्मृती में रहे यह बनना हैं। वह भविष्य के संस्कार इमर्ज होते रहेंगे।मर्ज नहीं। इमर्ज होंगे।अच्छा
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ आकार में निराकार देखने की बात पहला पाठ पूछ रहे हैं। अभी आकार को देखते निराकार को देखते हो? बातचीत किस से करते हो? (निराकार से) *आकार में निराकार देखने आये - इसमें अन्त तक भी अगर अभ्यासी रहेंगे तो देही-अभिमानी का अथवा अपने असली स्वरूप का जो आनन्द व सुख है वह संगमयुग पर नहीं करेंगे।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप के पास 21 जन्मों के लिए अपनी लाइफ इन्श्योर करना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा कितनी ही तकदीरवान हूँ जो की स्वयं परमपिता परमात्मा, भाग्यविधाता बन मेरी सोई हुई तकदीर को जगाने परमधाम से आये हैं... *अविनाशी बेहद बाबा अविनाशी ज्ञान देकर इस एक जन्म में मुझे पढ़ाकर, 21 जन्मों के लिए मेरी ऊँची तकदीर बना रहे हैं...* यह पढ़ाई ही सोर्स ऑफ़ इनकम है... *मैं रूहानी आत्मा, रूहानी बाबा से, रूहानी पढ़ाई पढने चल पड़ती हूँ रूहानी कालेज सेंटर में...*
❉ *पुरुषोत्तम संगम युग की पढाई से उत्तम ते उत्तम पुरुष बनने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... *ईश्वर पिता की बाँहो में झूलने वाला खुबसूरत समय जो हाथ आया है तो इस वरदानी युग में पिता से अथाह खजाने लूट लो... 21 जनमो के मीठे सुखो से अपना दामन सजा लो...* ईश्वरीय पढ़ाई से उत्तम पुरुष बन विश्व धरा के मालिक हो मुस्करा उठो...”
➳ _ ➳ *बाबा की मीठी मुरली की मधुर तान पर फिदा होते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अपने महान भाग्य को देख देख निहाल हो गई हूँ... *मेरा मीठा भाग्य मुझे ईश्वर पिता की फूलो सी गोद लिए वरदानी संगम पर ले आया है... ईश्वरीय पढ़ाई से मै आत्मा मालामाल होती जा रही हूँ...”*
❉ *ज्ञान रत्नों के सरगम से मेरे मन मधुबन को सुरीला बनाकर मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... इस महान मीठे समय का भरपूर फायदा उठाओ... *ईश्वरीय ज्ञान रत्नों से जीवन में खुशियो की फुलवारी सी लगाओ... जिस ईश्वर को दर दर खोजते थे कभी... आज सम्मुख पाकर ज्ञान खजाने से भरपूर हो जाओ... और 21 जनमो के सुखो की तकदीर बनाओ...”*
➳ _ ➳ *दिव्यता से सजधज कर सतयुगी सुखों की अधिकारी बन मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा संग ज्ञान और योग के पंख लिए असीम आनन्द में खो गयी हूँ... *ईश्वर पिता के सारे खजाने को बुद्धि तिजोरी में भरकर और दिव्य गुणो की धारणा से उत्तम पुरुष आत्मा सी सज रही हूँ...”*
❉ *इस संगमयुग में मेरे संग-संग चलते हुए सत्य ज्ञान की राह दिखाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *मीठे बाबा के साथ का संगम कितना मीठा प्यारा और सुहावना है...* सत्य के बिना असत्य गलियो में किस कदर भटके हुए थे... आज पिता की गोद में बैठे फूल से खिल रहे हो... *ईश्वरीय मिलन के इन मीठे पलों की सुनहरी यादो को रोम रोम में प्रवाहित कर देवता से सज जाओ...”*
➳ _ ➳ *ईश्वरीय राहों पर चलकर ओजस्वी बन दमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा मीठे बाबा की गोद में ईश्वरीय पढ़ाई पढ़कर श्रेष्ठ भाग्य को पा रही हूँ... इस वरदानी संगम युग में ईश्वर को शिक्षक रूप में पाकर अपने मीठे से भाग्य पर बलिहार हूँ...* और प्यारा सा देवताई भाग्य सजा रही हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- आप समान बनाने की मेहनत करनी है*"
➳ _ ➳ लाइट की सूक्ष्म आकारी देह को धारण कर मैं फ़रिशता अपनी साकारी देह से बाहर निकलता हूँ और दुनिया के नज़ारो को देखने चल पड़ता हूँ। सड़क पर लोगों की भीड़ के बीच मैं चल रहा हूँ। कोई मुझे नही देख पा रहा लेकिन मैं सबको देख रहा हूँ। *हर व्यक्ति का चेहरा मैं देख भी रहा हूँ और उनके चेहरे के हाव - भाव भी पड़ रहा हूँ। हर व्यक्ति एक अजीब सी कशमकश में उलझा हुआ दिखाई दे रहा है*। दुनिया की अन्धी दौड़ में सब भाग रहें है लेकिन जाना कहाँ है, मंजिल कहाँ हैं, किसी को नही पता। चेहरे पर उदासी और दुख की रेखाये लिए सब अपना जीवन जी रहें हैं।
➳ _ ➳ किसी के चेहरे पर खुशी की कोई झलक दिखाई नही दे रही। कोई हंसता हुआ अगर दिखाई भी दे रहा है तो ऐसा लग रहा है जैसे झूठी हंसी हंस रहा है। *लोगों के ऐसे उदास चेहरे देख मन मे विचार आता है कि ये सब मेरे आत्मा भाई ही तो है*। जैसे मेरे मीठे बाबा ने आ कर मेरे जीवन को खुशियों से भरपूर कर दिया है ऐसे ही मेरा भी ये फर्ज बनता है कि अपने इन आत्मा भाईयों को आप समान बना कर मैं इन्हें भी सच्ची खुशी पाने का सहज मार्ग दिखा कर इनके जीवन मे भी खुशियां ले आऊँ। *इसी दृढ़ संकल्प के साथ अब मैं तीव्र उड़ान भरते हुए आकाश को पार कर पहुँच जाता हूँ अपने अति परम प्रिय, खुशियों के वरदाता बापदादा के पास उनके अव्यक्त वतन में*।
➳ _ ➳ बापदादा मेरे आने का आश्रय समझ प्रसन्नचित मुद्रा में, अपनी बाहें फैला कर मेरा स्वागत करते हुए मुझे अपनी बाहों में भर लेते हैं। *अपना असीम स्नेह और प्यार मुझ पर लुटा कर, बाबा खुशी के अथाह खजाने से मेरी झोली भरते हुए मुझे "सदा खुशी में रह, सबको आप समान बनाने" का वरदान देते हुए, अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख देते हैं*। खुशी के खजाने और वरदान ले कर अब मैं फ़रिशता वापिस साकारी दुनिया मे लौट आता हूँ। बापदादा का आह्वान कर, कम्बाइन्ड स्वरूप में अब मैं फ़रिशता सारे विश्व का चक्कर लगा रहा हूँ। *बाबा की सर्वशक्तियाँ मुझ फ़रिश्ते में समा रही हैं और श्वेत रश्मियो के रूप में मुझ फ़रिश्ते से निकल कर सारे विश्व में चारों और फैल रही हैं*।
➳ _ ➳ मेरे चारों ओर प्रकाश का एक शक्तिशाली औरा बनता जा रहा है। इस औरे से निकल रहे शक्तिशाली वायब्रेशन सबको सुख, शांति की अनुभूति करवा रहें हैं। *डबल लाइट फरिश्ता स्वरूप धारण किये, परमपिता परमात्मा का संदेशवाहक बन, सूक्ष्म रीति मैं सारे विश्व की आत्माओं को परमात्मा के इस धरा पर अवतरित होने का संदेश दे रहा हूँ*। परमात्म सन्देश पा कर सभी आत्माओं के चेहरे एक दिव्य अलौकिक मुस्कान से खिल उठे हैं। सबके चेहरे पर खुशी की झलक मैं स्पष्ट देख रहा हूँ। विश्व की सर्व आत्माओं को सच्ची खुशी की अनुभूति करवा कर अब मैं फ़रिशता अपने साकारी तन में प्रवेश करता हूँ।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को आप समान बना कर, असीम खुशी का अनुभव करते हुए, उन्हें भी सच्ची खुशी का अनुभव करवा रही हूँ। मेरे मुख से निकले वरदानी बोल उनके दुखी जीवन को सुखमय बना रहे हैं। *खुशी के खजाने से मुझे सम्पन्न करके, खुशियों के सागर मेरे शिव पिता परमात्मा ने सबकी झोली खुशियों से भरने के मुझे निमित बना कर मुझे सर्व की दुआयों की पात्र आत्मा बना दिया है*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं खुदाई खिदमतगार की स्मृति स्वरूप आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सहज याद का अनुभव करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सहजयोगी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा सदा गॉडली स्टूडेंट लाइफ की स्मृति में रहती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा माया के समीप आने से सदैव मुक्त हूँ ।*
✺ *मैं गॉडली स्टूडेंट हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ जमा के खाते को चेक करने की निशानी क्या है? *मन्सा, वाचा, कर्म द्वारा सेवा तो की लेकिन जमा की निशानी है - सेवा करते हुए पहले स्वयं की संतुष्टता।* साथ-साथ जिन्हों की सेवा करते, उन आत्माओं में खुशी की संतुष्टता आई? *अगर दोनों तरफ सन्तुष्टता नहीं तो समझो सेवा के खाते में आपकी सेवा का फल जमा नहीं हुआ।*
➳ _ ➳ *सहज जमा का खाता भरपूर करने की गोल्डन चाबी है - कोई भी मन्सा-वाचा-कर्म, किसी में भी सेवा करने के समय एक तो अपने अन्दर निमित्त भाव की स्मृति।* निमित्त भाव, निर्माण भाव, शुभ भाव, आत्मिक स्नेह का भाव, अगर इस भाव की स्थिति में स्थित होकर सेवा करते हो तो सहज आपके इस भाव से आत्माओं की भावना पूर्ण हो जाती है। आज के लोग हर एक का भाव क्या है, वह नोट करते हैं। क्या निमित्त भाव से कर रहे हैं, वा अभिमान के भाव से! *जहाँ निमित्त भाव है वहाँ निर्मान भाव आटोमेटिकली आ जाता है।* तो चेक करो - क्या जमा हुआ? कितना जमा हुआ? क्योंकि *इस समय संगमयुग ही जमा करने का युग है। फिर तो सारा कल्प जमा की प्रलब्ध है।*
✺ *ड्रिल :- "निमित्त भाव की स्मृति से सहज जमा का खाता बढ़ाने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने प्यारे बापदादा से मीठी मीठी रूह रिहान करते हुए सुबह सैर कर रही हूँ... *प्रकृति के मोहक दृश्यों का आनंद ले रही हूँ... प्रकृति हमारी कितनी बड़ी टीचर है...* फलों से लदी हुई वृक्षों की झुकती डालियाँ विनम्र, सहनशील बनने का पाठ पढ़ा रही हैं... जगमगाता हुआ सूरज अपनी आभा से सारे विश्व को प्रकाशित करने की प्रेरणा दे रहा है... झरनों की शीतल जल धारा प्यासी, तड़पती आत्माओं की सुख शांति की प्यास बुझाने की सीख दे रहा है...
➳ _ ➳ यह सब देख कर मैं आत्मा चिंतन करती हूँ... कि प्रकृति में सब परिवर्तन नियमित रूप से होते हैं... प्रकृति कभी भी हमसे बदले की कामना नहीं करती... उसका स्वधर्म है देना... किस तरह से वह निर्माण बन देती जाती है... *मैं आत्मा अपनी सूक्ष्म चेकिंग कर रही हूँ... कि बाबा ने मुझे सेवाओं के निमित्त तो बनाया है... लेकिन क्या इतना निमित्त और निर्माण भाव मेरी सेवा में है..* मीठे बाबा ने अपनी सहस्त्र भुजाएं मेरे सिर पर छत्रछाया के रूप में फैला दी हैं... अपने बाबा से अनवरत आती हुई किरणों से मैं स्वयं को संपन्न बना रही हूँ...
➳ _ ➳ ईश्वरीय सेवाओं में स्वयं भगवान ने मुझे अपना सहयोगी बनाया है... कितना श्रेष्ठ भाग्य है मुझ आत्मा का... *मैं सर्व प्रकार से संतुष्टमणि आत्मा हूँ... सेवा करते हुए स्वयं संतुष्ट स्थिति में स्थित हूँ... साथ ही जिन आत्माओं की सेवा करती हूँ... उनमें भी खुशी और संतुष्टि देख रही हूँ... क्योंकि दोनों तरफ जब संतुष्टि होगी तभी तो मुझ आत्मा के सेवा के खाते में सेवा का फल जमा होगा...* मैं स्वयं संतुष्ट हूँ... साथ ही सर्व को संतुष्ट रखने वाली बाबा की संतुष्टमणि आत्मा हूँ...
➳ _ ➳ बाबा ने मुझे जमा का खाता बढ़ाने की बहुत ही सुंदर, सहज युक्ति बताई है... *मैं निमित्त भाव से सेवा कर रही हूँ... मनसा वाचा कर्मणा कैसी भी सेवा हो हर सेवा में बाबा शब्द की स्मृति से सेवा कर रही हूँ...* मैं निमित्त हूँ, लेकिन मुझे निमित्त बनाने वाला कौन... सेवा किसकी है, इस सेवा के लिए शक्तियां, सहयोग देने वाला कौन है... *उस करावनहार बाबा को हर क्षण आगे रखती हूँ... मैं आत्मा हर प्रकार के मान शान की कामना से मुक्त हूँ... सर्व के प्रति आत्मिक स्नेह और शुभ भावना से युक्त हूँ...*
➳ _ ➳ इस श्रेष्ठ भाव में स्थित होकर सेवा करने से आत्माओं की कामना पूर्ण करने के निमित्त बन रही हूँ... मैं आत्मा *मैंने किया, मैं ही कर सकती हूँ... इस अभिमान से ही पूरी तरह मुक्त हो रही हूँ... हर विशेषता बाबा की देन है, उस दाता पिता की स्मृति से मैं सेवा कर रही हूँ...* इस निमित्त भाव से निर्माण स्थिति स्वतः ही बन रही है... अब मुझ आत्मा का जमा का खाता बढ़ रहा है... यह संगम युग सारे कल्प की प्रालब्ध जमा करने का अमूल्य समय है... *इस श्रेष्ठ संगम के समय में मैं निमित्त और निर्माण भाव से अपनी कल्प कल्प की प्रारब्ध बना रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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