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 29 / 04 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *रूहानी धंधे के संस्कार डाले ?*

 

➢➢ *बाप समान निरहंकारी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *संगठित रूप में एकरस स्थिति के अभ्यास द्वारा विजय का नागदा बजाया ?*

 

➢➢ *श्रेष्ठ पुरुषार्थ में थकावट का अनुभव तो नहीं किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *तपस्या अर्थात् एक बाप की लगन में रहना। किसी भी कार्य में सफलता-मूर्त बनने के लिये त्याग और तपस्या चाहिए।* त्याग में महिमा का भी त्याग, मान का भी त्याग और प्रकृति दासी का भी त्याग-जब ऐसा त्याग हो तब तपस्या द्वारा सफलता स्वरूप बनेंगे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं श्रेष्ठ स्मृति स्वरूप आत्मा हूँ"*

 

   सदा बाप और वर्से की स्मृति में रहते हो! श्रेष्ठ स्मृति द्वारा श्रेष्ठ स्थिति का अनुभव होता है। *स्थिति का आधार है - 'स्मृति'। स्मृति कमजोर है तो स्थिति भी कमजोर हो जाती है। स्मृति सदा शक्तिशाली रहे। वह शक्तिशाली स्मृति है - 'मैं बाप का और बाप मेरा'।* इसी स्मृति से स्थिति शक्तिशाली रहेगी और दूसरों को भी शक्तिशाली बनायेंगे। तो सदा स्मृति के ऊपर विशेष अटेन्शन रहे।

 

  *समर्थ स्मृति, समर्थ स्थिति, समर्थ सेवा स्वत: होती रहे। स्मृति, स्थिति और सेवा तीनों ही समर्थ हों। जैसे स्विच आन करो तो रोशनी हो जाती, आफ करो तो अंधियारा हो जाता, ऐसे ही यह स्मृति भी एक 'स्विच' है।*

 

  *स्मृति का स्विच अगर कमजोर है तो स्थिति भी कमजोर है। सदा 'स्मृति रूपी स्विच का अटेन्शन'। इसी से ही स्वयं का और सर्व का कल्याण है। नया जन्म हुआ तो नई स्मृति हो। पुरानी स्मृतियाँ सब समाप्त। तो इसी विधि से सदा सिद्धि को प्राप्त करते चलो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *दो - चार बारी भी कोई बात प्रेक्टिकल में लाई जाती है तो प्रैक्टिकल में लाने से प्रैक्टीस हो जाती है।* यहाँ इस भट्ठी में अथवा मधुपन में इस अभ्यास को प्रैक्टिकल में लाते हो ना। जब यहाँ प्रैक्टिकल में लाते हो और प्रैक्टीस हो जाती है तो वह प्रैक्टीस की हुई चीज़ क्या बन जानी चाहिए? नेचरुल और नेचर बन जानी चाहिए। समझा।

 

✧  जैसे कहते हैं ना यह मेरी नेचर है। तो यह अभ्यास प्रैक्टीस में नेचुरल और नेचर बन जान चाहिए। यह स्थिति जब नेचर बन जायेगी फिर क्या होगा। नेचुरल केलेमिटीज हो जायेगी। *आपकी नेचर न बनने के कारण यह नेचुरल केलेमिटीज रुकी हुई है।* क्योंकि अगर सामना करने वाले अपने स्व - स्थिति से उन परिस्थितियों को पार नहीं कर सकेंगे तो फिर वह परिस्थितियाँ आयेंगी कैसे।

 

✧   *सामना करने वाले अभी तैेयार नहीं हैं। इसलिए यह पर्दा खुलने में देरी पड रही है।* अभी तक इन पुरानी आदतों से, पुरानी संस्कारों से , पुरानी बातों से, पुरानी दुनिया से, पुरानी देह के सम्बन्धियों से वैराग्य नहीं हुआ है। कहाँ भी जाना होता है तो जिन चीजों को छोडना होता है उनसे पीठ करनी होती है। तो अभी पीठ करना नहीं आता है। एक तो पीठ नहीं करते हो, दूसरा जो साधन मिलता है उसकी पीठ नहीं करते हो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  जैसे अभी सभी का एक संकल्प चल रहा था, वैसे ही सभी एक ही लगन अर्थात् एक ही बाप से मिलन की, एक ही 'अशरीरी-भव' बनने के शुद्ध-संकल्प में स्थित हो जाओ। तो सभी के संगठन रूप का शुद्ध-संकल्प क्या कर सकता है। किसी के भी ओर दूसरे संकल्प न हों। *सभी एक-रस स्थिति में स्थित हों तो बताओ वह एक सेकण्ड के शुद्ध-संकल्प की शक्ति क्या कमाल कर देती है तो ऐसे संगठित रूप में एक ही शुद्ध संकल्प अर्थात् एक-रस स्थिति बनाने का अभ्यास करना है। तब ही विश्व के अंदर शक्ति सेना का नाम बाला होगा।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- नालेजफुल ब्राहमण बन ज्ञान, विज्ञान और अज्ञान को जानना"*

 

_ ➳  *भोली -सी पथिक, और डगर अनजान... जब से मिले, वो, मै बनी, चतुर सुजान*... *संगम पर मेरे श्रेष्ठ भाग्य की अनोखी सी सौगात लेकर हाजिर हुए वो सच्चें- सच्चे रूहानी रत्नाकर*... मुझ आत्मा को सौदागरी सिखा रहे है... पदमापदम भाग्यशाली हूँ मैं आत्मा, मेरे भाग्य का दर्पण दिखा रहे है, और इस भाग्य के दर्पण में कोहिनूर की भाँति जगजगाती मैं आत्मा बैठी हूँ बापदादा के सम्मुख, *और दिलोजान से ग्रहण कर रही हूँ उनकी हर मीठी समझानी को*...

 

  *रत्नों के खजानों से मालामाल करने वाले चतुर सुजान बाप मुझ आत्मा से बोले:-* "दुनिया के हिसाब से भोली, मगर बाप को पहचानने की दिव्य नेत्रधारी मेरी बच्ची... आपने मेरा बाबा कहकर पदमों की कमाई का अधिकार पा लिया,.. *दिन रात ज्ञान रत्नों से खेलते आप बच्ची स्वयं का महत्व समझी हो, बापदादा आप बच्ची को जिस नजर से देखते है अब उन नजरों को साकार करों..."*

 

_ ➳  *मुझ आत्मा को सच्चा सौदा सिखा सौदागर बनाने वाले बाप से मैं दिव्य नेत्र धारी आत्मा बोली:-* "मीठे बाबा... *मुरीद हूँ मैं इन आँखों की, जिसने आपको पहचाना है, हर शुक्रिया आपको ही जाता है, क्योंकि ये आँखें भी तो आपका ही नजराना है*... मीठे बाबा, ये बुद्धि अब दिव्य हो गई है, जीवन ही दिव्यता में ढल रहा है, इस रूह के ताने बाने में आपके गुण और शक्तियों के रंग और भी गहरे हो गये है... देखो, मेरा हर संस्कार बदल रहा है... *आपकी आँखों मे मैं अपना सम्पूर्ण स्वरूप देखती हूँ बाबा और हर पल उसी का स्वरूप बन रही हूँ..."*

 

  *हर पल उमंगो की बरसात कर मेरे रोम- रोम को उमंगों से भरपूर करने वाले बापदादा बोले:-* "इनोसैन्ट से सैन्ट बनी मेरी रायल बच्ची... देखो, अनेक बातों को समझने वाले समझदार अरबों- खरबो की गिनती कर रहे है... समय स्वाँस और संकल्प का खजाना कौडियों के भाव लुटा घाटे का सौदा कर रहे है... *ये वैरी वैरी इनोसैन्ट परसन है जो खुद को बहुत समझू सयाने समझ रहे है... अब इन सबको भी आप समान सौदागर बनाओं... जो अपनी आँखों से पहचाना है उसकी पहचान इनको भी कराओं..."*

   

_ ➳  *अमृत वेले से अमृत का पान कर दिन भर ज्ञान रत्नों से खेलने वाली मैं आत्मा रत्नागर बाप से बोलीं:-* "मीठे बाबा... *उंमगों के उडनखटोले में आपने संग बैठाकर उडना सिखाया है... आपकी अनोखी पालना ने हर पल मुझे मेरे श्रेष्ठ भाग्य का अनुभव कराया है*... आपकी हर चाहत अब मेरी धडकन बन रही है... *बैक बोन बने आप निमित्त बन चला रहे हो, वैरी वैरी इनोसैन्ट इन आत्माओं को ज्ञान रत्नों का अनोखा खेल भाने लगा है*... सांइलेंस की जादूगरी से बाबा इनको खेल पदमों का समझ आने लगा है..."

 

  *हर प्रकार की माया से सेफ रख मायाजीत बनाने वाले रूहानी जादूगर मुझ आत्मा से बोले:-* "अपनी निर्विघ्न स्थिति द्वारा वायुमंडल को पावर फुल बनाने वाली मेरी श्रेष्ठ ब्राह्मण बच्ची... *एकता और दृढता के बल से सर्व के प्रति शुभसंकल्पों की लहर फैलाओं, सब के प्रति शुभ संकल्पो से हर आत्मा को बदलकर अब बाप की प्रत्यक्षता का झंडा फहराओं...* संकल्पों के इस खजाने से अब हर आत्मा का परिचय कराओं... संगठन की एकता में अब बस शुभभावो की लहर फैलाओं..."

 

_ ➳ *बाप को कदम हर कदम फाॅलो करने वाली मैं मास्टरज्ञान सागर आत्मा, ज्ञान सागर बापदादा से बोली:-* "मीठे बाबा... संकल्पों की दृढतासंगठन की एकता और साइलेंस के बल से आत्माओं को आपका निरन्तर संदेश जा रहा है...* संगम युगी मुझ श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा का भाग्य देखकर हर आत्मा परम सुख पा, इस ओर आ रही है... बस *एक बाबा* कहकर *पदमो की कमाई का सुख पाकर अपने भाग्य की सराहना करने वाली ये भोली आत्माए बाप समान चतुर सुजान बनती जा रही है...* और बापदादा मुझे गले से लगाकर सफलता का वरदान दे रहे है..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- जितना टाइम मिले उतना टाइम यह रूहानी धंधा करना है*"

 

_ ➳  इस पुरानी दुनिया के डूबे हुए बेड़े को पार लगाने के लिए स्वयं परम पिता परमात्मा *शिव बाबा ने आ कर जो रूहानी मिशनरी चलाई है उस ईश्वरीय मिशनरी में रूहानी सेवाधारी बन रूहों को सेल्वेज करने के कार्य मे स्वयं भगवान ने मुझे अपना मददगार बना कर जो श्रेष्ठ भाग्य बनाने का गोल्डन चाँस मुझे दिया है उसके लिए अपने शिव पिता परमात्मा का मैं दिल से कोटि कोटि धन्यवाद करती हूँ* और रूहानी सेवा करने के उनके फ़रमान को पूरा करने और सेवा मे सफ़लता प्राप्त करने के लिए स्वयं को मनसा,वाचा, कर्मणा तीनो रूपो से शक्तिशाली बनाने के लिए अब मैं अपने शिव पिता की याद में अशरीरी हो कर बैठ जाती हूँ।

 

_ ➳  अशरीरी स्थिति में स्थित होते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे शरीर के सभी अंगों से चेतना सिमट कर भृकुटि पर एकाग्र हो गई है। *एकाग्रता की इस अवस्था मे अपने सत्य स्वरूप का मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। स्वयं को मैं एक चैतन्य सितारे के रूप में भृकुटि के बीचोंबीच चमकता हुआ देख रही हूँ*। ऊर्जा का एक ऐसा स्त्रोत जिसके बिना इस शरीर का कोई अस्तित्व नही। अपने इसी वास्तविक स्वरूप में स्थित हो कर मैं जागती ज्योति आत्मा अब भृकुटि सिहांसन को छोड़ ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। विशाल तारामण्डल और अंतरिक्ष को पार करके अब मैं सूक्ष्म वतन में प्रवेश करती हूँ।

 

_ ➳  सूक्ष्म वतन में प्रवेश करते ही मैं देख रही हूँ सामने सृष्टि के रचयिता सर्वशक्तिवान मेरे शिव पिता परमात्मा अपने लाइट माइट स्वरूप में अव्यक्त ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान हैं। *अपनी बाहों को फैलाये स्वागत की मुद्रा में खड़े बाबा मेरा आह्वान कर रहें हैं। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा मेरा ही इंतजार कर रहे थे*। अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित हो कर, चमकीली फ़रिशता ड्रेस पहन कर अब मैं बापदादा के पास जा रही हूँ। अपनी बाहों में समाकर असीम स्नेह लुटाने के बाद अब बाबा अपनी शक्तिशाली दृष्टि से अपनी सम्पूर्ण लाइट और माइट मुझ फ़रिश्ते में प्रवाहित करके मुझे आप समान बलशाली बना रहे हैं। *सेवा में सदा सफ़लता प्राप्त करने के लिए बाबा अपने वरदानी हस्तों से मुझे सफ़लतामूर्त भव का वरदान दे रहें हैं और मेरे मस्तक पर विजय का तिलक लगा रहें हैं*।

 

_ ➳  बाबा से वरदान और विजय का तिलक ले कर सूक्ष्म रूहानी सेवा करने के लिए अब मैं फ़रिशता बापदादा के साथ कम्बाइंड हो कर विश्व ग्लोब के ऊपर पहुँच जाता हूँ और उन आत्माओं को जो अपने पिता परमात्मा से बिछुड़ कर उन्हें पाने के लिए दर - दर भटक रही है और दुखी हो रही हैं। *उन भटकती आत्माओं को मनसा साकाश द्वारा परमात्म पहचान और परमात्म पालना का अनुभव करवाकर अब मै स्थूल सेवा करने के लिए अपनी बुद्धि रूपी झोली को ज्ञान के अखुट खजानों से भरपूर करने के लिए ज्ञान सागर अपने शिव पिता परमात्मा के पास जाने के लिए अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होती हूँ* और परमधाम की ओर चल पड़ती हूँ।

 

_ ➳  यहाँ पहुँच कर मैं आत्मा अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों और सर्वगुणों की किरणों की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ। ज्ञान की शक्तिशाली किरणो का फव्वारा मेरे ज्ञान सागर शिव पिता से सीधा मुझ आत्मा पर प्रवाहित होने लगता है। *अपनी बुद्धि रूपी झोली को ज्ञान के अखुट अविनाशी खजानों से भरपूर करके स्थूल सेवा करने के लिए मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ*।

 

_ ➳  अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हूँ और रूहानी सेवाधारी बन अपने सम्बन्ध - सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को अपने मुख से ज्ञान रत्नों का दान दे कर उनकी बुद्धि रूपी झोली में भी अविनाशी ज्ञान रत्न डाल कर उन्हें भी उनके परमपिता परमात्मा बाप से मिलवाने की रूहानी सेवा कर रही हूँ। *अपने शिव पिता द्वारा मिले ज्ञान रत्नों को स्वयं धारण कर ज्ञान स्वरुप बन मैं अनेको आत्माओं का कल्याण कर रही हूँ*। मेरे मुख से निकले वरदानी बोल अनेकों आत्माओं को मुक्ति, जीवन मुक्ति का रास्ता दिखा रहें हैं।

 

_ ➳  *बाप समान निरहंकारी बन, सर्व आत्माओं को ज्ञान रत्न दे कर, उनका कल्याण करने की रूहानी सेवा ही मेरे ब्राह्मण जीवन का उद्देश्य है इस बात को सदा स्मृति में रख सच्ची रूहानी सेवाधारी बन अब मैं रूहों की सेवा के कार्य पर सदैव तत्पर रहती हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं संगठित रूप में एकरस स्थिति की अभ्यासी आत्मा हूँ।*

   *मैं विजय का नगाड़ा बजाने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं एवररेडी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा श्रेष्ठ पुरुषार्थ में थकावट के आने से सदैव मुक्त हूँ  ।*

   *मैं आत्मा आलस्य से सदा मुक्त हूँ  ।*

   *मैं आत्मा श्रेष्ठ पुरुषार्थी हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  *समय के प्रमाण स्वयं को परिवर्तन करो:- अभी समय के प्रमाण परिवर्तन की गति तीव्र चाहिए।* जब समय तीव्रगति में जा रहा है और परिवर्तन करने वाले तीव्रगति में नहीं होंगे तो समय परिवर्तन हो जायेगा और स्वयं कमी वाले ही रह जायेंगे। कमी वाली आत्माओं की निशानी क्या दिखाई है? कमान। तो कमानधारी बनना है वा छत्रधारी बनना है? *सूर्यवंशी बनना है ना? तो सूर्य सदा तेज होता है और तीव्रगति में कार्य करता है। सूर्य के अन्तर में चन्द्रमा शीतल गाया जाता है। तो पुरूषार्थ में शीतल नहीं होना है। पुरूषार्थ में शीतल हुए तो चन्द्रवंशी हो जायेंगे। सूर्यवंशी की निशानी है - तीव्र पुरूषार्थ।* सोचा और किया। ऐसे नहीं, सोचा एक वर्ष पहले और किया दूसरे वर्ष में। तीव्र पुरूषार्थ अर्थात् उड़ती कला वाले। अभी चढ़ती कला का समय भी चला गया।

 

✺  *"ड्रिल :- तीव्र पुरुषार्थ द्वारा सूर्यवंशी घराने की अवस्था का अनुभव करना*”

 

_ ➳  *मैं आत्मा मन-बुद्धि रूपी टाइम मशीन में बैठकर रूहानी सैर पर निकलती हूँ...* मैं आत्मा टाइम मशीन को सतयुगी दुनिया के समय में सेट करती हूँ... *बादलों के ऊपर से उड़ते हुए टाइम मशीन को लैंड करती हूँ स्वर्णिम युग में...* मैं आत्मा अति सुंदर, अवर्णनीय स्वर्णिम युग के नज़ारों को देखते हुए चल रही हूँ...

 

_ ➳  *चारों ओर की सतोप्रधान प्रकृति, सुन्दर-सुन्दर पहाड़ियां, सुंदर-सुंदर बाग-बगीचे , सोने-हीरे-जवाहरातों के बड़े-बड़े महल बहुत ही मनोहारी लग रहे हैं...* दूध की नदियाँ बह रही हैं... पंछियों की आवाज़ कानों में मधुर रस घोल रही है... *चारों ओर सुख, शांति, प्रेम, आनंद से भरी बहुत ही अद्वितीय स्वर्णिम दुनिया है...*

 

_ ➳  *मैं आत्मा मनमोहक नजारों को देखते-देखते एक बहुत बड़े सुन्दर से महल में प्रवेश करती हूँ...* मैं आत्मा स्वयं को रत्न-जडित सिंहासन पर विश्व के बादशाह के रूप में देख रही हूँ... *मैं आत्मा 16 कला सम्पूर्ण, संपूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम सम्पूर्ण देवताई स्वरुप में स्वयं को देख रही हूँ...* ऊँचे कद काठी, कंचन वर्ण, कानों में कुंडल, मस्तक पर चमकता हुआ मणि, हीरे, सोने के आभूषणों, सुंदर दिव्य वस्त्रों से सुसज्जित मेरी ये छबि देखते ही बनती है...

 

_ ➳  *सूर्यवंशी घराने की मैं हीरो पार्टधारी आत्मा हूँ...* मुझ आत्मा ने श्रीकृष्ण के साथ पूरे 84 जन्मों का पार्ट निभाया है... सुख-समृद्धि से संम्पन्न जीवन व्यतीत किया है... *पुरुषार्थ में शीतल होकर चन्द्रवंशी बनना मतलब 1250 वर्षों की सुख, शांति, सम्पन्नता के जीवन से वंचित रहना...* मुझ आत्मा को फिर से सूर्यवंशी बनना है तो तीव्र पुरुषार्थ करना ही होगा...

 

_ ➳  *मैं आत्मा सूर्यवंशी बनने के लक्ष्य को सामने रख टाइम मशीन में बैठकर पहुँच जाती हूँ परमधाम...* ज्ञान सूर्य के सामने बैठ जाती हूँ... मैं आत्मा ज्ञान सूर्य के तेज को स्वयं में अनुभव कर रही हूँ... मुझ आत्मा के आलस्य, अलबेलेपन के संस्कार मिट रहे हैं... *मैं आत्मा स्वयं में फुर्ती, उमंग-उत्साह का अनुभव कर रही हूँ...* अपनी सभी कमी-कमजोरियों को शक्ति रूप में परिवर्तित कर रही हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा दृढ़ता की शक्ति को धारण कर रही हूँ... अब मैं आत्मा समय की तीव्रगति के प्रमाण स्वयं की परिवर्तन की गति को तीव्र कर रही हूँ... *मैं आत्मा सूर्यवंशी बनने के लक्षण धारण कर रही हूँ...* और समय को समीप लाकर विजय प्राप्त कर रही हूँ... अब मैं आत्मा संकल्प करते ही निश्चित समय पर हर कार्य को करते हुए सफलता प्राप्त कर रही हूँ... *अब मैं आत्मा पुरूषार्थ में शीतल नहीं होती हूँ... तीव्र पुरुषार्थ करते हुए सदा उडती कला में रह सूर्यवंशी घराने की अवस्था का अनुभव कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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