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 17 / 04 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *श्रीमत पर चल अच्छे मैनर्स धारण किये ?*

 

➢➢ *जितना हो सके, याद का अभ्यास बढ़ाते रहे ?*

 

➢➢ *स्थूल देश और शरीर की स्मृति से परे सूक्षम देश के वेशधारी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *सम्मान दे सम्मान प्राप्त किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *अब कोई भी आधार पर जीवन का आधार नहीं होना चाहिए अथवा पुरुषार्थ भी कोई आधार पर नहीं होना चाहिए,* इससे योगबल की शक्ति के प्रयोग में कमी हो जाती है। *जितना जो योगबल की शक्ति का प्रयोग करते हैं उतना उनमें वह शक्ति बढ़ती है। योगबल अभ्यास से बढ़ता है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं लगन में मगन रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

   एक लगन में मगन रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो? साधारण तो नहीं। *सदा श्रेष्ठ आत्मायें जो भी कर्म करेंगी वह श्रेष्ठ होगा। जब जन्म ही श्रेष्ठ है तो कर्म साधारण कैसे होगा! जब जन्म बदलता है तो कर्म भी बदलता है। नाम रूप, देश, कर्म सब बदल जाता है। तो सदा नया जन्म, नये जन्म की नवीनता के उमंग-उत्साह में रहते हो!* जो कभी-कभी रहने वाले हैं उन्हें राज्य भी कभी-कभी मिलेगा।

 

  जो निमित्त बनी हुई आत्मायें हैं उन्हें निमित्त बनने का फल मिलता रहता है। और फल खाने वाली आत्मायें शक्तिशाली होती हैं। *यह प्रत्यक्षफल है, श्रेष्ठ युग का फल है। इसका फल खाने वाले सदा शक्तिशाली होंगे। ऐसे शक्तिशाली आत्मायें परिस्थितियों के ऊपर सहज ही विजय पा लेती हैं। परिस्थिति नीचे और वह ऊपर।*

 

  जैसे श्रीकृष्ण के लिए दिखाते हैं कि उसने साँप को भी जीता। उसके सिर पर पाँव रखकर नाचा। तो यह आपका चित्र है। कितने भी जहरीले साँप हों लेकिन आप उन पर भी विजय प्राप्त कर नाच करने वाले हो। यही श्रेष्ठ शक्तिशाली स्मृति सबको समर्थ बना देगी। *और जहाँ समर्थता है वहाँ व्यर्थ समाप्त हो जाता है। समर्थ बाप के साथ हैं, इसी स्मृति के वरदान से सदा आगे बढ़ते चलो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧   *फरिश्ता रुप की स्थिति अर्थीत अव्यक्त स्थिति जिसकी सदा काल रहती है वह बिन्दु रुपों में भी सहज स्थित हो सकेगा।* अगर अव्यक्त स्थिति नहीं है तो बिन्दु रुप में स्थित होना भी मुश्किल लगता है। इसलिए अभी इसका भी अभ्यास करो। शुरू शुरू में अव्यक्त स्थिति का अभ्यास करने के लिए कितना एकान्त में बैठ अपना व्यक्तिगत पुरुषार्थ करते थे।

 

✧  *वैसे ही इस फाइनल स्टेज का भी पुरुषार्थ बीच - बीच में समय निकाल करना चाहिए*। यह है फाइनल सिद्धि की स्थिति। इस स्थिति को पहूँचने के लिए एक बात का विशेष ध्यान रखना पडेगा। आजकल वह गवर्नमेन्ट कौन - सी स्कीम बनाती है? उन्हों के प्लैन्स भी सफल तब होते हैं जब पहले - पहले यह लक्ष्य रखते हैं कि सभी बातों में जितना हो सके इतनी बचत हो। बचत की योजना भी करते है ना।

 

✧   समय बचे, पैसे बचे, इनर्जी की भी बचत करना चाहते हैं। *इनर्जी कम लगे और कार्य ज्यादा हो*। सभी प्रकार की बचत की योजना करते हैं। अब पाण्डव गवर्नमेन्ट को कौन - सी स्कीम करनी पडे? *यह जो सुनाया कि बिन्दु रुप की सम्पूर्ण सिद्धि की अवस्था को प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ करना पडे।* अभी जिस रीति चल रहे हैं उस हिसाब से तो सभी यही कहते हैं कि बहुत बिजी रहते हैं, एकान्त का समय कम मिलता हैं, अपने मनन का समय भी कम मिलता है। लेकिन समय कहाँ से आयेगा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *पुरुषार्थ शब्द का अर्थ क्या करते हो? इस रथ में रहते अपने को पुरुष अर्थात् आत्मा समझकर चलो, इसको कहते है पुरुषार्थी।* तो ऐसे पुरुषार्थ करने वाला अर्थात् आत्मिक स्थिति में रहने वाला इस रथ का पुरुष अर्थात् मालिक कौन है? आत्माना। *तो पुरुषार्थी माना अपने को रथी समझने वाला। ऐसा पुरुषार्थी कब हार नहीं खा सकता।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पतित से पावन बनना"*

 

_ ➳  अमृतवेला का ये सुहानी पल रात के अँधेरे को ख़तम कर सुबह की रोशनी की ओर रुख कर रहा है... वैसे ही कलियुगी अंधियारे को चीरते हुए ये संगमयुग... सतयुग की ओर ले जा रहा है... *प्यारे बाबा जब से आयें हैं, संगम की हर घडी ही अमृतवेला बन गई है... जो सदा सुखों की ओर ले जाती है... हर पल ही कितना सुहावना हो गया है... इतनी पावन, सुन्दर वेला में मैं आत्मा प्यारे बाबा से प्यारी-प्यारी बातें करने पहुँच जाती हूँ पावन वतन में...*

 

  *मेरे मन मंदिर में अपनी मूरत बसाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... कितने मीठे खिले से महकते फूल से धरा पर उतरे थे पर खेलते खेलते काले पतित हो गए... *अब इस देह की दुनिया से निकल ईश्वर पिता की सोने सी यादो में स्वयं को उसी दिव्यता से दमकाओ क्योकि अब सुनहरी सुखो भरी दुनिया में चलना है...”*

 

_ ➳  *निराकारी बाबा की यादों में स्वर्णिम सुखों को अपने नाम करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अपने खोये रूप को सौंदर्य को आपकी यादो में पुनः पा रही हूँ... *कंचन काया और कंचन महल की अधिकारी बन रही हूँ और इस दुनिया से उपराम हो रही हूँ...”*

 

  *अपने रूहानी नैनों से पावनता की खुशबू फैलाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वर पिता के साथ का समय बहुत कीमती है... यादो में रहकर अपने सच्चे दमकते स्वरूप को पाकर सुखो की दुनिया में मुस्कराओ...* यादो में अपनी दिव्यता और शक्तियो को फिर से पाकर सुंदर तन और मन से सुन्दरतम दुनिया के रहवासी बनो...

 

_ ➳  *मैं आत्मा प्रभु की यादों की धारा में बहकर सुन्दर कमल बन खिलते हुए कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा आपकी मीठी यादो में अपनी खोयी सुंदरता को पाकर मुस्करा रही हूँ...* दिव्य गुणो को धारण कर पवित्रता के श्रृंगार से सजकर देवताई स्वरूप में देवताओ की दुनिया घूम रही हूँ...

 

  *रूहानी यादों में मेरे मन के चमन को खिलाकर मेरे रूहानी बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *सिर्फ बाबा की यादे ही एकमात्र उपाय है जो इस पतित तन और मन को खुबसूरत और पवित्र बना सकता है... तो इस समय को यादो में भर दो... अपने पुरुषार्थ को तीव्र कर स्वयं को निखारने में पूरी तन्मयता से जुट जाओ...* क्योकि अब पवित्र दुनिया में चलने और सुख लेने का समय हो गया है...

 

_ ➳  *एक की लगन में मगन होकर जीवन में मिठास भरकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा जनमो के कालेपन को आपकी मीठी यादो में धो रही हूँ...* वही सुंदर देवताई स्वरूप पा रही हूँ और सुख और शांति की दुनिया की अधिकारी होकर मीठे सुखो में खिलखिला रही हूँ... *यादो में पावन बनकर खिल उठी हूँ...*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- जितना हो सके याद का अभ्यास बढ़ाते जाना है*"

 

_ ➳  देह और देह से जुड़े पदार्थो और सम्बन्धो की याद केवल दुख देने वाली है जबकि सुखदाई बाप की याद जीवन को सुख और शांति से भरपूर करने वाली है, मन को सुकून और चित को चैन देने वाली है। *यही विचार करते करते अपने मीठे प्यारे शिवबाबा की मीठी मधुर यादों में मैं खो जाती हूँ और उस सुखद पल को याद करती हूं जब पहली बार झूठे स्वार्थी दैहिक प्यार से परे निस्वार्थ सच्चे रूहानी प्यार का एहसास किया था*। जब मेरे दिलाराम भगवान ने सच्चा प्रीतम बन दैहिक सम्बन्धों के दुखदाई कड़वे वचनों से घायल हुए मेरे मन को अपने मीठे सुखदाई बोल से यह कह कर मरहम लगाया था कि *"मैं तुम्हारा हूँ, तुम्हारे लिए ही आया हूँ"। उनका यह कहकर अपने प्यार की शीतल छाया में मुझे समा लेना आज भी मन को उसी खूबसूरत एहसास से सरोबार कर देता है*।

 

_ ➳  उस खूबसूरत एहसास को स्मृति में ला कर अगले ही पल इस नश्वर देह का त्याग कर अशरीरी आत्मा बन मैं उड़ चलती हूँ अपने दिलबर, दिलाराम शिव पिया के पास अपने स्वीट साइलेन्स होम में। यहां पहुँचते ही एक असीम गहन शांति का मैं अनुभव कर रही हूं। *ऐसा लग रहा है जन्म जन्म से मुझे जिस चीज की तलाश थी, जिसके लिए मैं आत्मा भटक रही थी वो तलाश अब पूरी हो गई*। मेरे सामने विराजमान है महाज्योति स्वरूप में मेरे दिलाराम शिव बाबा। उनसे निकल रही शक्तियों और गुणों की अनन्त किरणे मुझ पर पड़ रही हैं और असीम आनन्द से मैं आत्मा भरपूर हो रही हूं। अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते हुए मैं आत्मा सजनी प्रेम के सागर अपने शिव पिया के प्यार की गहराई में समाती जा रही हूं।

 

_ ➳  ईश्वरीय प्रेम का सच्चा सुख प्राप्त कर, स्वयं को पूरी तरह तृप्त और शक्तियों से भरपूर करके अब मैं आत्मा साकारी दुनिया मे वापिस लौट रही हूं। *परमात्म प्रेम का सुखदाई अनुभव, साकारी देह में रहते हुए भी अब मुझे देह और देह से जुड़े बन्धनों से मुक्त कर रहा है*। किसी भी देहधारी के झूठे प्यार का आकर्षण अब मुझे आकर्षित नही कर रहा। सर्व सम्बन्धों का सच्चा रूहानी प्यार मेरे मीठे शिव बाबा से मुझे निरन्तर प्राप्त हो रहा है। "मुझ से श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा इस संसार मे और कोई नही"। *स्वयं भाग्यविधाता भगवान मेरा सर्व सम्बन्धी बन गया। इसी श्रेष्ठ भाग्य की स्मृति और नशे में रहते हुए अब मैं पुरानी दुनिया और इसके आकर्षणों से मुक्त हो रही हूं*।

 

_ ➳  मेरे दिलाराम, दिलबर भगवान की याद मुझे इस पुरानी देह और देह के सम्बन्धो से सहज ही नष्टोमोहा बना रही है। मैं आत्मअभिमानी बनती जा रही हूं। *हर कर्म करते अपने दिलाराम शिव बाबा का हाथ और साथ अपने ऊपर मैं निरन्तर अनुभव करते हुए देह में रहते हुए भी देह से उपराम स्थिति का अनुभव कर रही हूं*। मैं अच्छी रीति जान गई हूं कि केवल परमात्मा की याद ही आत्मा को पुराने दैहिक कर्मबन्धनों से मुक्त कर सकती है। केवल परमात्म प्यार ही आत्मा को तृप्त कर सकता है। इसलिए परमात्म याद में निरन्तर रहने का अभ्यास बढ़ाना ही अब मेरे इस ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है।

 

_ ➳  इस लक्ष्य को पाने के लिए अब मैं ब्राह्मण आत्मा इस देह और देह की दुनिया मे रहते हुए स्वयं को केवल ट्रस्टी समझ हर कर्तव्य कर रही हूं। यह सृष्टि एक विशाल नाटक हैं जहां मैं शरीर धारण कर पार्ट बजा रही हूँ। *मुझ बिन्दु आत्मा को बिंदु बाप की याद से पावन बन कर वापिस अपने धाम जाना है इस बात को सदा स्मृति में रख बिंदु रूप में स्थित हो, बिंदु बाप की याद में रह, ड्रामा की हर सीन को साक्षी हो कर देख हर बात पर बिंदु लगाने का अभ्यास करते, अब मैं याद के चार्ट को बढ़ाने का पुरुषार्थ कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं स्थूल देश और शरीर की स्मृति से परे रहने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सूक्ष्म देश की वेशधारी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सदा सबका आदर करती हूँ  ।*

    *मैं आत्मा सबका आदर्श हूँ  ।*

    *मैं आत्मा सदैव सम्मान देकर सम्मान प्राप्त करती हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  ‘‘आज सर्वशक्तिवान बाप अपने शक्ति सेना को देख हर्षित हो रहे हैं। हरेक मास्टर सर्वशक्तिवान आत्माओं ने सर्वशक्तियों को कहाँ तक अपने में धारण किया है? *विशेष शक्तियों को अच्छी तरह से जानते हो और जानने के आधार पर चित्र बनाते हो। यह चित्र, चैतन्य स्वरूप की निशानी है - ‘‘श्रेष्ठता अथवा महानता।'' हर कर्म श्रेष्ठ, महान है इससे सिद्ध है कि शक्तियों को चरित्र अर्थात् कर्म में लाया है।* निर्बल आत्मा है वा शक्तिशाली आत्मा है, सर्वशक्ति सम्पन्न है वा शक्ति स्वरूप सम्पन्न है - यह सब पहचान कर्म से ही होती है *क्योंकि कर्म द्वारा ही व्यक्ति और परिस्थिति के सम्बन्ध वा सम्पर्क में आते हैं। इसलिए नाम ही है - ‘‘कर्म-क्षेत्र, कर्म-सम्बन्ध, कर्म-इन्द्रियां, कर्म भोग, कर्म योग।"*

 

✺  *"ड्रिल :- श्रेष्ठ कर्म द्वारा श्रेष्ठता अथवा महानता का अनुभव"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा अपने मन के संकल्पों, विकल्पों के बोझ से न्यारी होती हुई... परमधाम में सर्व शक्तियों के सागर के समीप बैठ जाती हूँ...* सर्व शक्तियों के सागर से असीम शीतल किरणें निकल रही हैं... मैं आत्मा इन किरणों की ठंडी छांव में बैठ जाती हूँ... मैं आत्मा इन किरणों को स्वयं में आत्मसात कर रही हूँ... *मैं आत्मा सर्व शक्तियों को ग्रहण कर शक्ति स्वरुप बन रही हूँ...*

 

_ ➳  *सर्व शक्तिमान की किरणों से मुझ आत्मा की सभी कमी-कमजोरियां खत्म हो रही है... निर्बलता, संशय, अलबेलेपन के संस्कार मिट रहे हैं...* मुझ आत्मा के कमजोर संकल्प दृढ़ संकल्पों में परिवर्तित हो रहे हैं... कमजोर कर्म खत्म हो रहे हैं... *मुझ आत्मा के सभी कर्म श्रेष्ठ बन रहे हैं...* अब मैं आत्मा अपने शक्ति स्वरूप की स्थिति में स्थित रह श्रेष्ठ कर्म कर रही हूँ... जिससे मुझ आत्मा के विकर्मो का खाता समाप्त हो रहा है...

 

_ ➳  *मैं आत्मा ज्ञान के पॉइंट्स की धारणा कर नालेजफुल बन रही हूँ...* नालेज को शक्ति रूप में यूज कर रही हूँ... और पावरफुल होने का अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा सर्व शक्तियों को अपने चरित्र में उतार रही हूँ... मैं आत्मा अपने चैतन्य स्वरूप का चित्र बना रही हूँ... *मैं आत्मा सदा कर्म रूपी दर्पण में अपने शक्ति स्वरूप का चित्र देखती हूँ*... जिस शक्ति की कमजोरी हो उसे पहचान कर उस शक्ति को स्वयं में भरती हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों और परिस्थितियों में... शक्तियों का प्रयोग कर रही हूँ... *श्रेष्ठ कर्मों की प्रत्यक्षता द्वारा विश्व की आत्माओं के आगे उदाहरणस्वरूप बन रही हूँ...* अपने कर्मों द्वारा अपने शक्ति स्वरूप का दर्शन करा रही हूँ... *वृत्ति द्वारा वृत्तियों को, वायुमंडल को परिवर्तित* कर रही हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा समय पर शक्तियों को कर्म में लगाकर सफलता प्राप्त कर रही हूँ... *मैं आत्मा शुभ भावना, शुभ कामनाओं के श्रेष्ठ संकल्पों द्वारा... चारों ओर के वातावरण को शक्तिशाली बना रही हूँ...* मैं आत्मा श्रेष्ठ कर्मों से श्रेष्ठ प्रालब्ध बना रही हूँ... *अब मैं आत्मा श्रेष्ठ कर्मों द्वारा श्रेष्ठता अथवा महानता का अनुभव कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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