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 15 / 04 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *रहमदिल बन अनेकों को रास्ता बताया ?*

 

➢➢ *बीमारी में भी एक बाप की याद रही ?*

 

➢➢ *एनी आत्माओं की सेवा के साथ साथ स्वयं की भी सेवा की ?*

 

➢➢ *बेहद की सेवा का लक्ष्य रखा ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *आगे चलकर अनेक प्रकार की परिस्थितियाँ आयेंगी उन्हें पार करने के लिए बहुत पावरफुल स्थिति चाहिए, अगर योगयुक्त होंगे तो जैसा समय वैसा तरीका टच होगा। अगर समय प्रमाण युक्ति नहीं आती हैं तो समझना चाहिए योगबल नहीं हैं।योगबल वाली आत्मा को आने वाली परिस्थिति का पहले से ही पता होगा* इसलिए वह योगयुक्त स्थिति में रह हर परिस्थिति को सहज पार कर लेंगे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं डबल लाइट आत्मा हूँ"*

 

✧  *सेवा में निमित्त बनना यह भी श्रेष्ठ भाग्य है - इस भाग्य को सदा आगे बढ़ाने के लिए विशेष स्वयं को डबल लाइट समझो। किसी भी प्रकार का बोझ खुशी की अनुभूति सदा नहीं करायेगा।*

 

  *जितना अपने को डबल लाइट अनुभव करेंगे उतना भाग्य पद्मगुणा बढ़ता जायेगा। बापदादा डबल लाइट रहने वाले बच्चों के हर कार्य में मददगार हैं।*

 

  जितना सेवा में निमित्त बनने का भाग्य मिलता है उतना डबल लाइट स्थिति से उड़ती कला में उड़ने के विशेष अनुभवी बन सकते हो। *डबल लाइट स्थिति में रहने से सदा खुशी में नाचते रहेंगे और खुशी के महादानी बन खुशी की खान बढ़ाते रहेंगे।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  सभी जिस स्थिती में अभी बैठे हैं, उसको कौन - सी स्थिती कहेंगे? व्यक्त में अव्यक्त स्थिती है? *बापदादा से मुलाकात करते समय बिन्दु रुप की स्थिती में रह सकते हो?* बिन्दु रुप की स्थिती विशेष किस समय बनती है? जब एकान्त में बैठते हो तब या चलते - फिरते भी हो सकती है?

 

✧  *अन्तिम पुरुषार्थ याद का ही है।* इसलिए याद का स्टेज वा अनुभव को भी बुद्धी में स्पष्ट समझना आवश्यक है।

बिन्दुरुप की स्थिती क्या है और अव्यक्त स्थिति क्या है, दोनों का अनुभव क्या क्या है? क्यों कि नाम दो कहते है तो दोनों के अनुभव में भी अन्तर होगा।

 

✧  चलते फिरते बिन्दुरुप कि स्थिती इस समय कम भी नहीं लेकिन ना के बारबर ही कहें। इसका भी अभ्यास करना चाहिए। जैसे जब कोई ऐसा दिन होता है तो सारे चलते -फिरते हुए ट्रैफिक को भी रोक कर तीन मिनिट साइलेन्स की प्रैक्टिस करते हैं। सारे चलते हुए कार्य को स्टाँप कर लेते हैं। *आप भी कोई कार्य करते हो वा बात करते हो तो बीच - बीच में यह संकल्पों की प्रैक्टिस करना चाहिए*।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  देह का भान है तो क्या बाप याद है? बाप के समीप सम्बन्ध का अनुभव होता है जब देहभान का त्याग करते हो तो। *देहभान का त्याग करने से ही देही-अभिमानी बनने से पहली प्राप्ति क्या होती है? यही ना की निरन्तर बाप की स्मृति में रहते हो अर्थात् हर सेकण्ड के त्याग से हर सेकण्ड के लिए बाप के सर्वसम्बन्ध का, सर्वशक्तियों का अपने साथ अनुभव करते हो। तो यह सबसे बड़ा भाग्य नहीं? यह भविष्य में नहीं मिलेगा।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप समान रहमदिल बन अनेकों को रास्ता बताना"*

 

_ ➳  मैं आत्मा बगीचे में झूले पर बैठी झूलते हुए फूलों पर बैठी तितली को देख रही हूं... फूलों के कानों में कुछ कहती तितली एक फूल से दूसरे फूल पर इधर से उधर उड़ रही है... कोयल अपनी मधुर आवाज़ में सुरीला सरगम सुना रही है... *मैं आत्मा भी अपने मीठे बाबा से मीठी मीठी बातें करने, अपने दिल के जज्बातों को बयान करने बगीचे में बाबा का आह्वान करती हूँ... बापदादा झूले पर आकर बैठ मेरे कानों में मधुर ज्ञान की सरगम सुनाते हैं...*

  

  *प्यारे बाबा शांति की किरणों से मुझे शांति का दूत बनाकर सारे विश्व को शांति का दान करने की शिक्षा देते हुए कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... इस दुनिया में रहते, कर्म करते दिल से सदा ईश्वर पिता को याद करो... यह यादे ही सर्व सुखो की प्राप्ति का सच्चा आधार है... *जितना जितना यादो में दिल से खोये रहोगे... सुख और शांति की किरणे स्वतः ही चहुँ ओर बिखरती रहेंगी... और ऐसा ही आप समान ईश्वरीय दीवाना सबको बनाओ..."*

 

_ ➳  *अम्बर के सारे तारे आँचल में समेटकर सारे विश्व के सितारों को जगमग करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो में खो कर सच्चे प्रेम के स्त्रोत में बह रही हूँ... सारे नाते आपसे जोड़कर हर रिश्ते का सच्चा सुख पा रही हूँ... *यादो की गहराई में डूबकर प्रेम सुख शांति से पूरे विश्व को भर कर आप समान बना रही हूँ..."*

 

  *मीठे बाबा अपनी यादों की तरगों में डुबोकर सच्ची खुशियों के गहनों से मेरा श्रृंगार करते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता की यादो में दिल की गहराइयो से डूब जाओ... और खुद गहरे आनन्द की अनुभूतियों को प्राप्त कर... पूरे विश्व को भी इन तरंगो से लबालब कर दो... *शांति की लहरो से विश्व धरा को शीतल कर दो... आप समान बनाकर, हर दिल को सच्चे सुखो का अनुभव कराओ..."*

 

_ ➳  *बाप समान रहमदिल बन दुखी, तडपती आत्माओं को जीयदान देते हुए सुख की अनुभूति कर मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मैं आत्मा हर पल आपकी यादो में खोकर, अपने भाग्य को आलिशान बना रही हूँ... *सच्चे प्रेम में भीगी पावन प्रेम तरंगे... विश्व पर बरसाने वाली प्रेम बदली बन गई हूँ... और सबको इस सच्चे प्रेम के अहसासो में भिगो कर आप समान बना रही हूँ..."*

 

  *प्यारे बाबा मीठी रूहानी सुगंध से मुझ रूहानी गुलाब को महकाकर अपने गुलिस्तां की फूल बनाते कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे...  इन प्यारी सी यादो में अथाह सुख छिपा है... सब कुछ इन यादो में ही समाया है... इसलिए हर कर्म करते, मन के भीतरी तार् ईश्वर पिता से जोड़कर... *सच्चे प्रेम को जी लो... और शांति से ओतप्रोत प्रेम लहरियों को पूरे विश्व पर फैला दो... आप समान मीठा,प्यारा और ईश्वरीय दिलवाला बनाने की सेवा करो..."*

 

_ ➳  *सबको सच्चे खजानों का पता देकर मीठी मुस्कान से हर दिल को सजाती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा सबको ईश्वरीय खजानो से भरपूर कर आप समान भाग्यशाली महा धनवान् बनाती जा रही हूँ...* मीठे बाबा आपकी यादो की खुमारी में रोम रोम से डूबी हुई हूँ... और सारे विश्व को शांति के प्रकम्पन्न से भर रही हूँ..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बीमारी में भी एक बाप की याद रहे तो विकर्म विनाश हो जायें*"

 

_ ➳  शरीर की किसी भी बीमारी रूपी कर्मभोग के समय केवल बाबा की याद ही उस कर्मभोग को चुकतू करने का सहज उपाय है क्योंकि बाबा की याद आत्मा में बल भर कर उसे बीमारी से लड़ने की शक्ति देती है जिससे बीमारी रूपी कर्मभोग पर विजय पाना बिल्कुल सहज हो जाता है। *इसलिए कर्मभोग के रूप आने वाली शरीर की किसी भी बीमारी में, बाप की याद से उस पर सफलतापूर्वक विजय प्राप्त कर, हर कर्मभोग को योगबल द्वारा बिल्कुल सहज भाव से चुकतू करके, अपनी सम्पूर्ण कर्मातीत अवस्था को पाने का पुरुषार्थ करते हुए मुझे निरन्तर आगे बढ़ते जाना है, मन ही मन दृढ़ता से यह संकल्प करके अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा को मैं याद करती हूँ* जिन्होंने योगबल द्वारा कर्मभोग पर विजय प्राप्त करने का प्रत्यक्षय उदाहरण हमारे सामने रखा।

 

_ ➳  योगबल और कर्मभोग के युद्ध का जो अनुभव अव्यक्त होने से पहले ब्रह्मा बाबा ने किया और बच्चों को जो कुछ सुनाया वो अनुभव दृश्य के रूप में मेरी आँखों के सामने उभर रहा है। *देख रही हूँ मैं मनबुद्धि से योगबल और कर्मभोग की उस युद्ध को जो बाबा अनुभव कर रहे थे। एक तरफ कर्मभोग फुल फोर्स से अपनी ओर खींच रहा था तो दूसरी तरफ योगबल भी फुल फोर्स में था। ऐसा लग रहा था जो भी शरीर के हिसाब किताब रहें हुए हैं वह फट से योग अग्नि में भस्म हो रहें हैं और बाबा साक्षी होकर इस युद्ध को देख रहें हैं*। कुछ समय बाद कर्मभोग तो बिल्कुल निर्बल हो गया। दर्द बिल्कुल गुम हो गया और योगबल ने कर्मभोग पर जीत पा ली। 

 

_ ➳  योगबल से कर्मभोग पर जीत पाने के इस दृश्य को देख कर, ऐसे ही *हर कर्म में फॉलो फादर कर, ब्रह्मा बाप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनने के लक्ष्य को पाने के लिये, बीमारी में भी बाबा की याद में रहने और दूसरों को भी याद दिलाने की स्वयं से मैं प्रतिज्ञा करती हूँ और हर कर्मभोग को योगबल द्वारा सहज भाव से चुकतू करने का बल अपने अंदर जमा करने के लिए अब अपने निराकार शिव पिता की याद में अपने मन और बुद्धि को स्थिर कर लेती हूँ*। अपने मन बुद्धि को अपने निराकार बिंदु स्वरूप पर एकाग्र करते ही देह का भान जैसे धीरे - धीरे समाप्त होने लगता है और मन अपने अति सुंदर सत्य स्वरूप का आनन्द लेने में मग्न हो जाता है।

 

_ ➳  सुख, शांति, आनन्द, प्रेम, पवित्रता, शक्ति और ज्ञान के गुणों से सम्पन्न अपने सतोगुणी स्वरूप को मन बुद्धि के दिव्य चक्षु से मैं निहारने लगती हूँ और अपने मस्तक से प्रकाश की रंगबिरंगी किरणों के रूप में अपने इन गुणों के वायब्रेशन्स को धीरे - धीरे अपने चारों ओर वायुमण्डल में फैलता हुआ महसूस करती हूँ। *ये वायब्रेशन्स वायुमण्डल में फैल कर मेरे आस - पास के वातावरण को शुद्ध और पवित्र बना रहे हैं। मेरे चारों तरफ रूहानियत की एक ऐसी खुशबू फैल गई है जो मेरे मन को आनन्दित कर रही है और मुझे देह की कारा से मुक्त कर ऊपर की ओर ले जा रही है*। स्वयं को मैं पूरी तरह अशरीरी अनुभव कर रही हूँ और विदेही बन अब ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ।

 

_ ➳  मन बुद्धि रूपी नेत्रों से अपने अति सुन्दर दिव्य ज्योतिर्मय स्वरूप को निहारते, अपने अंदर समाये सर्व गुणों का आनन्द लेते, अपने प्यारे पिता के प्रेम की लगन में मगन, मैं *निराकार ज्योति पाँच तत्वों की साकारी दुनिया को पार कर, सूक्ष्म लोक से होती हुई प्रकाश की एक ऐसी दुनिया में प्रवेश करती हूँ जहाँ चारों और चमकती हुई मणियां जगमग कर रही है*। निराकार ज्योति बिंदु आत्माओ की इस दुनिया में आकर अपने प्यारे बाबा के समीप जाकर अब मैं उनके साथ अटैच होकर उनसे आ रही लाइट, माइट से स्वयं को भरपूर कर रही हूँ और उनकी सर्वशक्तियों को अपने अंदर भर कर स्वयं को शक्तिशाली बना रही हूँ। 

 

_ ➳  एक अति गहन सुखमय स्थिति की अनुभूति अपने शिव पिता परमात्मा के सानिध्य में करके, सर्वशक्तियों से भरपूर हो कर, डबल लाइट बन कर अब मैं वापिस लौट रही हूँ। *साकारी दुनिया में अपनी साकारी देह में विराजमान हो कर अब मैं सृष्टि रंगमंच पर फिर से अपना पार्ट बजा रही हूँ और अपने डबल लाइट स्वरूप में स्थित होकर, देह और देह की दुनिया में रहते हर कर्मभोग को योगबल से बिल्कुल सहज रीति चुकतू कर रही हूँ*। बीमारी में घबराने या दिलशिकस्त होने के बजाय बाबा की याद में रहकर औरों को भी बाबा की याद दिलाते हुए, उमंग उत्साह में रहते बीमारी के समय भी मैं निरोगी जीवन का अनुभव कर रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं अन्य आत्माओं की सेवा के साथ साथ स्वयं की भी सेवा करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सफलतामूर्त  आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सदैव बेहद की सेवा का लक्ष्य रखती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदा हद के सब बंधनों को तोड़ देती हूँ  ।*

   *मैं बेहद की सेवाधारी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  *जब करना ही है, होना ही है तो इस बात पर विशेष अटेन्शन दो। जब आप ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर के बच्चे हैं, आपके ही सभी बिरादरी हैं, शाखायें हैं, परिवार है, आप ही भक्तों के इष्ट देव हो। यह नशा है कि हम ही इष्ट देव हैं?* तो भक्त चिल्ला रहे हैं, आप सुन रहे हो! वह पुकार रहे हैं - हे इष्ट देव, आप सिर्फ सुन रहे हो, उन्हों को रेसपाण्ड नहीं करते हो? *तो बापदादा कहते हैं हे भक्तों के इष्ट देव अभी पुकार सुनो, रेसपाण्ड दो, सिर्फ सुनो नहीं। क्या रेसपाण्ड देंगे? परिवर्तन का वायुमण्डल बनाओ।*

 

✺  *"ड्रिल :- स्वयं को इष्ट देव के स्वरुप में स्थित कर भक्तों की पुकार सुनना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा एक आँख में सुखधाम, दूसरी आँख में शांतिधाम की स्मृतियों को समाए हुए... सुख और शांति के सागर का आह्वान करती हूँ...* प्यारे बाबा मुझ आत्मा के सामने तुरंत हाजिर हो जाते हैं... मैं आत्मा सुख, शांति के सागर में समाकर... अतीन्द्रिय सुख और शांति का अनुभव कर रही हूँ... प्यारे बापदादा हाथ पकड मुस्कुराते हुए मुझ आत्मा को मंदिर में लेकर जाते हैं...

 

_ ➳  *मंदिर में मुझ आत्मा का ही पूज्य स्वरुप है... जिसके सामने सभी भक्त चिल्ला रहे हैं... पुकार रहे हैं...* मैं आत्मा देख रही हूँ कि दुखी, अशांत आत्माएं... सुख, शांति के लिए... एक बूंद प्यार के लिए तड़प रही हैं... कितनी भाग्यवान आत्मा हूँ मैं... जो मुझे सुख, शांति, प्यार का सागर ही मिल गया है... प्यारे बाबा मुझे स्मृति दिलाते हैं कि ये सब मुझ आत्मा के ही भाई हैं... सब एक ही बिरादरी एक ही परिवार हैं...

 

_ ➳  *बाबा द्वारा स्मृति पाकर मैं आत्मा इष्ट देव के स्वरुप में स्थित हो जाती हूँ...* ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर मुझ पर तेजस्वी किरणों की बौछारें कर रहे हैं... मैं आत्मा इन किरणों को ग्रहण कर रही हूँ... मुझसे होती हुई ये किरणें सभी भक्तों पर पड़ रही हैं... *मैं आत्मा रहमदिल भावना से तडपती आत्माओं की पुकार सुन... ज्ञान जल की अंचली देकर... उनकी प्यास बुझा रही हूँ...* मैं आत्मा बाबा के साथ भटकती आत्माओं को सत्य की राह दिखा रही हूँ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा पूर्वज हूँ... इष्ट देव हूँ... विश्व परिवर्तन के कार्य के निमित्त हूँ... मास्टर वरदाता हूँ... बाप समान मास्टर कल्याणकारी हूँ... बापदादा की राईट हैण्ड हूँ...* इस स्मृति से मैं आत्मा सदा विश्व कल्याण के स्टेज पर स्थित रहती हूँ... मैं आत्मा चारों ओर सुख, शांति के वायब्रेशंस फैला रही हूँ... शुभ भावना-शुभ कामना द्वारा सबका कल्याण कर रही हूँ... मैं आत्मा चारों ओर के हलचल के वायुमंडल को शांत कर रही हूँ... *मैं आत्मा बाबा से मिले खजानों को सबको बांटकर... चारों ओर खुशहाली का वायुमंडल बना रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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