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❍ 10 / 04 / 21 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *कल्प पहले की स्मृति से अपनी अवस्था को जमाया .?*
➢➢ *बाप और वरसे को याद किया ?*
➢➢ *निर्बल आत्माओं में शक्तियों का फ़ोर्स भरा ?*
➢➢ *साक्षी होकर हर खेल देखा ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे साइन्स की शक्ति का प्रयोग लाइट के आधार पर होता है। *अगर कम्प्युटर भी चलता है तो कम्प्युटर माइट है लेकिन आधार लाइट है। ऐसे आपके साइलेन्स की शक्ति का भी आधार लाइट है।* जब वह प्रकृति की लाइट अनेक प्रकार के प्रयोग प्रैक्टिकल में करके दिखाती है तो आपकी अविनाशी परमात्म लाइट, आत्मिक लाइट और साथ-साथ प्रैक्टिकल स्थिति लाइट, तो इससे क्या नहीं प्रयोग हो सकता!
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं विघ्न-विनाशक हूँ"*
〰✧ कभी किसी भी विघ्न के प्रभाव में तो नहीं आते हो? *जितनी ऊँची स्थिति होगी तो ऊँची स्थिति विघ्नों के प्रभाव से परे हो जाती है। जैसे स्पेस में जाते हैं तो ऊँचा जाते हैं, धरनी के प्रभाव से परे हो जाते। ऐसे किसी भी विघ्नों के प्रभाव से सदा सेफ रहते।*
〰✧ *किसी भी प्रकार की मेहनत का अनुभव उन्हें करना पड़ता - जो मुहब्बत में नहीं रहते। तो सर्व सम्बन्धों से स्नेह की अनुभूति में रहो।*
〰✧ *स्नेह है लेकिन उसे इमर्ज करो। सिर्फ अमृतेवेले याद किया फिर कार्य में बिजी हो गये तो मर्ज हो जाता। इमर्ज रूप में रखो तो सदा शक्तिशाली रहेंगे।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ अव्यक्त स्थिति का अनुभव होता है? *एक सेकण्ड भी अव्यक्त स्थिति का अनुभव होता है तो उसका असर काफी समय तक रहता है*। अव्यक्त स्थिती का अनुभव पाँवरफुल होता है। जितना हो सके उतना अपना समय व्यक्त भाव से हटाकर अव्यक्त स्थिती में रहना है।
〰✧ अव्यक्त स्थिती से सर्व स़कल्प सिद्ध हो जाता हैं। इसमें मेहनत कम और प्राप्ती अधिक होती है। और व्यक्त स्थिती में स्थित होकर पुरुषार्थ करने में मेहनत अधिक और प्राप्ती कम होती है। फिर चलते - फिरते उलझन और निराशा आती है। *इसलिए अव्यक्त स्थिती से सर्व प्राप्ती का अनुभव बढाओ*।
〰✧ *अव्यक्त मूर्त को समाने देख समान बनने का प्रयत्न करना है*। 'जैसा बाप वैसे बच्चे'। यह स्लोगन याद रखो। अन्तर न हो। अन्तर को अन्तरमुख होकर मिटाना है।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *शरीर और आत्मा - दोनों का न्यारापन चलते-फिरते भी अनुभव होना है। जैसे कोई प्रेक्टिस हो जाती है ना।* लेकिन यह प्रेक्टिस किनकी हो सकती है? जो शरीर के साथ व शरीर के सम्बन्ध में जो भी बातें हैं, शरीर की दुनिया, सम्बन्ध व अनेक जो भी वस्तुएं हैं उनसे बिल्कुल डिटैच होंगे, ज़रा भी लगाव नहीं होगा, तब न्यारा हो सकेंगे। *अगर सूक्ष्म संकल्प में भी हल्कापन नहीं है, डिटैच नहीं हो सकते तो न्यारेपन का अनुभव नहीं कर सकेंगे।* तो अब महारथियों को यह प्रैक्टिस करनी है। बिल्कुल ही न्यारेपन का अनुभव हो। इसी स्टेज पर रहने से अन्य आत्माओं को भी आप लोगों से न्यारेपन का अनुभव होगा, वह भी महसूस करेंगे। ऐसे चलते-फिरते फरिश्तेपन के साक्षात्कार होंगे। यहाँ बैठे हुए भी अनेक आत्माओं को, जो भी आपके सतयुगी फैमिली में समीप आने वाले होंगे उन्हों को आप लोगों के फरिश्ते रूप और भविष्य राज्य - पद के - दोनो इकठे साक्षात्कार होंगे।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पतित जगत से नाता तोड़ एक बाप से बुद्धियोग लगाना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा एक सुंदर वन में झील के किनारे बैठी प्रकृति के सुंदर नजारों का आनंद ले रही हूँ... चारों ओर मन को मोहने वाला प्रकृति से सजा हुआ सुंदर वातावरण है... मन ही मन विचार करती हूं कि सतयुगी दुनिया तो इससे भी सुंदर होगी और बुद्धि योग परम पिता परमात्मा शिव बाबा से जुड़ जाता है... मैं आत्मा बाबा की यादों में खोने लगती हूं और मन बुद्धि के पंखों से उड़कर पहुंच जाती हूं परमधाम निराकारी दुनिया में...* चारों और प्रकाश ही प्रकाश... उस प्रकाश में मैं आत्मा स्वयं को बहुत हल्का अनुभव कर रही हूं... बाबा से प्रकाश का झरना मेरी और बहता जा रहा है... मैं परमात्म शक्तियों को अपने में भरती हुई शक्तिशाली अनुभव कर रही हूं... *परमात्म शक्तियों से भरपूर होकर अब मैं आत्मा स्वयं को सूक्ष्म वतन में देख रही हूं... मेरे सामने बापदादा बाहें फैलाये खड़े हैं... मैं आत्मा नन्हा फ़रिश्ता बन बाबा की गोद में समाने लगती हूँ...*
❉ *बाबा मेरे गालों को प्यार से सहलाते हुए बोले:-* "मेरे प्यारे फूल बच्चे... बाप की गोद मिली है तो धूल में मिलने वाली इस दुनिया से बुद्धियोग निकाल एक बाप के बन जाओ... *ये दुनिया दुख का अथाह सागर है यहाँ तुम कभी खुशी पा ही नही सकते... बाप है प्यार और सुख का सागर जो तुम्हें बेहद की खुशियां देने आए हैं तो अब इस छी छी दुनिया से ममत्व निकाल बुद्धि को एक बाप संग जोड़ना है..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की बाहों में परमात्म प्यार के झूले में झूलने का आनंद लेती बाबा से बोली:-* "हां मेरे प्राणों से प्यारे बाबा... *मैं आत्मा आपकी गोद पाकर धन्य धन्य हो गई हूँ...* मेरी खुशी का ठिकाना नही की मेरा जीवन कितना सुखमय हो गया है... *मैं आत्मा परमात्म पालना में पल रही हूँ जब भी ये स्मृति आती है तो मेरा मन आनंद की चरम सीमा को पार कर जाता है, और अपना अलौकिक जीवन देखकर मेरा मन खुशी का अदभुत अनुभव करता है..."*
❉ *बाबा मुझे अपनी बाहों में भरते हुए बोले:-* "मेरे नन्हे फ़रिश्ते... *बाप तुम्हें स्वर्ग की बादशाहत का मालिक बनाने आये हैं... श्रीमत का पालन कर तुम्हें दैवी राज्य भाग्य लेना है... बाप की श्रीमत को धारण कर औरों को कराने की सेवा करनी है... बाप का सहयोगी बन पवित्रता का दान देना है इसी से तुम स्वर्ण युग के मालिक बन जाएंगे...* अपने स्वरूप को सदैव याद रखो तुम ईश्वरीय संतान हो, दैवी गुणों से युक्त, तुम्हारी चलन बड़ी रॉयल चाहिए... *बाप ज्ञान का सागर है तुम्हें भी मास्टर ज्ञान सागर बन ज्ञान को धारण करना और औरों को कराना है..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की मधुर वाणी को अपने में समाते हुए बाबा से बोली:-* "हाँ मेरे दिलाराम बाबा... *आपकी बनकर मैं आत्मा इस छी छी दुनिया से छूट गयी हूँ... कितने जन्मों से भटक रही थी आपने आकर मेरा जीवन कौड़ी से हीरे तुल्य बना दिया...* आपकी बनकर मैं आत्मा मालामाल हो गयी हूं... हर दिन ज्ञान रतनों से श्रृंगार कर मेरा स्वरूप आपने दिव्यता से भर दिया है... *मैं फ़रिश्ता अपने को अति सूक्ष्म और हल्का अनुभव कर रही हूं... वाह मेरा भाग्य कितनी सौभाग्यशाली हूँ मैं जो ईश्वरीय संतान बनी... बाबा आपका बच्चा बनकर मैं अलौकिक प्रकाशमय हो गयी हूँ..."*
❉ *बाबा मेरे नन्हे हाथों को अपने हाथों में लेकर मुझ आत्मा को निहारते हुए बोले:-* "मीठे मीठे सिकीलधे बच्चे... *बाप परमधाम से आये हैं तुम्हें स्वर्ग का मालिक बनाने ,अब तुम त्रिकालदर्शी बने हो और तुम ही वैकुण्ठ के मालिक बनते हो तो तुम्हारा बेहद के बाप से कितना लव होना चाहिए...* तुम्हे कितना नशा रहना चाहिए कि तुम कौन हो और किसके हो... एक बाप दूसरा न कोई इस पाठ को पक्का करो, अब घर चलना है... *ये दुनिया धूल में मिलने वाली है इससे बुद्धि योग तोड़ एक बाप से जोड़ देना है तब कहेंगे ईश्वरीय संतान..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की अनमोल वाणी को सुनकर मन ही मन आनंदित होती हूई बाबा से कहती हूं:-* "हां मेरे मीठे बाबा... *आपने मुझे इन विकारों से निकाल कर मुझे एक पावन जीवन दिया है... भगवान का बच्चा बनकर मैं आत्मा अपने पापों को योगअग्नि से भस्म करती जा रही हूं...* ज्ञान सागर में स्नान कर मेरा जन्म दिव्यता से सम्पन्न होता जा रहा है... मुझे वैकुण्ठ का अधिकारी बनाकर मेरा जन्म खुशिओं से भर दिया... *मुझे परमात्म श्रीमत मिली वाह मेरा भाग्य... दुनिया में कितने दुख थे परंतु आपने मुझे इन दुखों से ऊपर उठा दिया... कमल जैसा उपराम बना दिया, मेरा तो एक बाबा यही बात मुझे इस दुनिया से उपराम करती है...* मैं आत्मा कितना ही शुक्रिया करूं कम ही लगता है... *मुझे मेरे कखपन के बदले विश्व का मालिक बनाने वाले मेरे प्यारे बाबा को मैं आत्मा दिल की गहराइयों से शुक्रिया कर अपने साकारी तन में लौट आती हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अपना भला करने के लिए श्रीमत पर चलना है*
➳ _ ➳ मन बुद्धि का कनेक्शन अपने शिव पिता के साथ जुड़ते ही इस नश्वर भौतिक जगत से कनेक्शन टूटने लगता है और मन मगन हो जाता है प्रभु प्यार में। *मन को सुकून देने वाली मीठे बाबा की मीठी याद में मैं जैसे खो जाती हूँ और प्रभु यादों की डोली में बैठ उड़ कर पहुँच जाती हूँ उस खूबसूरत लाल प्रकाश की दुनिया में जहाँ मेरे मीठे बाबा रहते हैं*। देह, देह की दुनिया से बहुत दूर आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में निराकार अपने शिव पिता को अनन्त प्रकाश के एक ज्योतिपुंज के रूप में मैं देख रही हूँ। मन को तृप्ति प्रदान करने वाला उनका अति मनमोहक प्रकाशमय स्वरूप मुझे अपनी ओर खींच रहा है। उनके आकर्षण में बंधी मैं आत्मा एक चमकती हुई ज्योति अब धीरे धीरे उस महाज्योति के पास जा रही हूँ।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे मेरे मन और बुद्धि की तार उस महाज्योति के साथ जुड़ी हुई है और उस तार में बिजली के तार की भांति एक तेज करेन्ट निकल रहा है जो मेरे शिव पिता से सीधा मुझ बिंदु आत्मा के साथ कनेक्ट हो रहा है और अपनी सारी शक्तियों का प्रवाह मेरे अंदर प्रवाहित करता जा रहा है। *ये सर्व शक्तियाँ मुझ आत्मा में समाकर मेरे अंदर अनन्त शक्ति का संचार कर रही है और मुझे शक्तिशाली बनाने के साथ - साथ ये शक्तियाँ मुझे छू कर अनन्त फ़ुहारों के रूप में चारों और फैल रही हैं और मेरे ऊपर बरस कर मुझे गहन शीतलता का अनुभव करवा रही हैं*। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे शक्तियों का कोई सतरँगी फव्वारा मेरे ऊपर चल रहा है और अपनी मीठी - मीठी, हल्की - हल्की फ़ुहारों से मेरे अन्तर्मन की सारी मैल को धोकर साफ कर रहा है।
➳ _ ➳ एक बहुत ही प्यारी लाइट माइट स्थिति का मैं अनुभव कर रही हूँ। हर बोझ, हर बन्धन से मुक्त यह लाइट स्थिति मुझे परम आनन्द प्रदान कर रही है। अतीन्द्रीय सुख के सुखदाई झूले में मैं आत्मा झूल रही हूँ। *परम आनन्द की गहन अनुभूति करते - करते अब मैं बिंदु आत्मा सम्पूर्ण समर्पण भाव से अपने महाज्योति शिव पिता की किरणों रूपी बाहों में समाकर उनके और भी समीप पहुँच गई हूँ। समर्पणता के उस अंतिम छोर पर मैं स्वयं को देख रही हूँ जहाँ दोनों बिंदु एक दिखाई दे रहे हैं*। यह अवस्था मुझे बाबा के समान सम्पूर्ण स्थिति का अनुभव करवा रही है। अपनी इस सम्पूर्ण स्थिति में मैं स्वयं को सर्व गुणों और सर्वशक्तियों के मास्टर सागर के रूप में देख रही हूँ। अपने इस सम्पूर्ण स्वरूप के साथ मैं आत्मा परमधाम से नीचे आकर सूक्ष्म वतन में प्रवेश कर जाती हूँ।
➳ _ ➳ दिव्य प्रकाश की काया वाले फरिश्तो के इस अव्यक्त वतन में अपने सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप को धारण कर, अव्यक्त बापदादा के सामने मैं उपस्थित होती हूँ और अपने अव्यक्त स्वरूप में स्थित होकर, बाहें पसारे खड़े अव्यक्त बापदादा की बाहों में समाकर, उनके प्रेम से स्वयं को भरपूर करके उनके सम्मुख बैठ जाती हूँ। *अपनी मीठी दृष्टि और मधुर मुस्कान के साथ बाबा मुझे निहारते हुए अपनी लाइट और माइट मुझ फ़रिश्ते में प्रवाहित करते जा रहें हैं*। बाबा की शक्तिशाली दृष्टि मेरे अंदर एक अनोखी शक्ति का संचार कर रही है और मुझे बाबा की श्रीमत पर चलने और उनके हर फरमान का पालन करने की प्रेरणा दे रही है।
➳ _ ➳ बाबा से दृष्टि लेते हुए मैं मन ही मन सदा बाबा की श्रीमत पर चलने की स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ और अपने निराकारी बिंदु स्वरूप में स्थित होकर अब उस प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए वापिस अपनी कर्मभूमि पर लौट आती हूँ। *कर्म करने के लिए जो शरीर रूपी रथ मुझ आत्मा को मिला हुआ है उस शरीर रूपी रथ पर पुनः विराजमान होकर मैं आत्मा अब फिर से सृष्टि रंगमंच पर अपना पार्ट बजा रही हूँ*। शरीर का आधार लेकर हर कर्म करते हुए अब बुद्धि का कनेक्शन केवल अपने शिव पिता के साथ निरन्तर जोड़ कर, उनकी जो श्रीमत मिलती है उसे राइट समझ उस पर चलने का पूरा पुरुषार्थ अब मैं कर रही हूँ और अपने प्यारे पिता के साथ अपने सँगमयुगी ब्राह्मण जीवन का भरपूर आनन्द ले रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं निर्बल आत्माओं में शक्तियों का फ़ोर्स भरने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं ज्ञान-दाता सो वरदाता आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा सदैव साक्षी होकर खेल देखती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदा सेफ रहती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदा सेफ रहकर खेल का मजा लेती हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ दुनिया में अनेक प्रकार की विल होती है लेकिन ब्रह्मा बाप ने बाप से प्राप्त हुई सर्व शक्तियों की विल बच्चों को की। ऐसी अलौकिक विल और कोई भी कर नहीं सकते हैं। बाप ने ब्रह्मा बाप को साकार में निमित्त बनाया और ब्रह्मा बाप ने बच्चों को निमित्त भव' का वरदान दे विल किया। *यह विल बच्चों में सहज पावर्स की (शक्तियों की) अनुभूति कराती रहती है। एक है अपने पुरूषार्थ की पावर्स और यह है परमात्म-विल द्वारा पावर्स की प्राप्ति। यह प्रभु देन है, प्रभु वरदान है।* यह प्रभु वरदान चला रहा है। वरदान में पुरूषार्थ की मेहनत नहीं लेकिन सहज और स्वत: निमित्त बनाकर चलाते रहते हैं।
✺ *"ड्रिल :- परमात्म-विल द्वारा पावर्स की प्राप्ति का अनुभव"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा चमकता हुआ सितारा... हद के बन्धनों, हद की दुनिया से डिटैच होती हुई... पहुँच जाती हूँ सफेद चमकीले प्रकाश की दुनिया में...* प्यारे बापदादा के सामने बैठ जाती हूँ... *मैं सितारा ज्ञान चंद्रमा के मस्तक पर चमकते हुए ज्ञान सूर्य को निहार रही हूँ...* मैं आत्मा बाबा से निकलती इन किरणों को आत्मसात कर रही हूँ... मैं आत्मा सम्पूर्ण फरिश्ता स्वरूप धारण कर रही हूँ...
➳ _ ➳ *मैं फरिश्ता अपने सिर पर बापदादा का वरदानी हाथ अनुभव कर रही हूँ...* बापदादा के दिव्य हाथों से दिव्य वरदानों की वर्षा हो रही है... मैं आत्मा वरदानों से भरपूर हो रही हूँ... बापदादा मुझ फरिश्ते का हाथ पकड दृष्टि दे रहे हैं... *बाबा के दिव्य चमकते हुए मस्तक से... रूहानी दृष्टि से... दिव्य हाथों से… दिव्य शक्तियां मुझ फरिश्ते में ट्रान्सफर हो रही हैं... बाबा मुझ फरिश्ते को सर्व शक्तियों की विल कर रहे हैं...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सहज ही सर्व शक्तियों की अनुभूति कर रही हूँ...* मैं आत्मा सर्व गुणों, खजानों से भरपूर होने का अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा सहजयोगी बन रही हूँ... मैं आत्मा निश्चय बुद्धि बन रही हूँ... *एक बाप दूसरा न कोई इस स्थिति से मुझ आत्मा का विनाशी संबंधो का मोह ख़तम हो रहा है...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा `निमित्त भव' के वरदान में स्थित होकर निमित्त भाव से हर कर्म कर रही हूँ...* और सफलता प्राप्त कर रही हूँ... मैं आत्मा कितनी ही सौभाग्यशाली हूँ जो परमात्मा की पालना, शिक्षा, और वर्से की अधिकारी हूँ... *अब मैं आत्मा सदा इसी नशे में रहती हूँ कि... सर्व शक्तिमान परमात्मा मेरे साथ है...* मैं आत्मा हर परिस्थिति में विजय प्राप्त कर रही हूँ...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा इस अलौकिक परमात्म-विल द्वारा अलौकिक पावर्स की प्राप्ति का अनुभव कर रही हूँ...* और सहज प्राप्ति-स्वरूप बन रही हूँ... प्रभु वरदान से स्वतः चल रही हूँ... वही मुझे चला रहा है... *इस प्रभु देन से बिना मेहनत के सदाकाल के लिए सर्व प्राप्तियों की अधिकारी बन गई हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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