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❍ 28 / 04 / 21 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *कर्म करते बाप की याद में रहे ?*
➢➢ *पुण्य आत्मा बनने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *पास विद ऑनर बनने के लिए सर्व द्वारा संतुष्टता का पासपोर्ट प्राप्त किया ?*
➢➢ *रहमदिल बन सेवा द्वारा निराश और थकी हुई आत्माओं को सहारा दिया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *योगबल द्वारा मन्सा सेवा करने के लिए अपने मन-वचन-कर्म की पवित्रता से साइलेन्स की शक्ति को बढ़ाओ तब किसी भी आत्मा की वृत्ति, दृष्टि को परिवर्तन कर सकते हो।* स्थूल में कितनी भी दूर रहने वाली आत्मा हो, उनको सन्मुख का अनुभव करा सकते हो, इसको ही योगबल कहा जाता है।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं कर्मयोगी न्यारा और प्यारा हूँ"*
〰✧ सदा स्वयं को कर्मयोगी अनुभव करते हो? *कर्मयोगी जीवन अर्थात् हर कार्य करते याद की यात्रा में सदा रहे। यह श्रेष्ठ कार्य श्रेष्ठ बाप के बच्चे ही करते हैं और सदा सफल होते हैं। आप सभी कर्मयोगी आत्मायें हो ना! कर्म में रहते 'न्यारा और प्यारा' सदा इसी अभ्यास से स्वयं को आगे बढ़ाना है।*
〰✧ स्वयं के साथ-साथ विश्व की जिम्मेवारी सभी के ऊपर है। लेकिन यह सब स्थूल साधन हैं। *कर्मयोगी जीवन द्वारा आगे बढ़ते चलो और बढ़ाते चलो। यही जीवन अति प्रिय जीवन है। सेवा भी और खुशी भी हो। दोनों साथ-साथ, ठीक हैं ना!*
〰✧ *गोल्डन अर्थात् सतोप्रधान स्थिति में स्थित रहने वाले। तो सदा अपने को इस श्रेष्ठ स्थिति द्वारा आगे बढ़ाते चलो।* सभी ने सेवा अच्छी तरह से की ना! सेवा का चांस भी अभी ही मिलता है फिर यह चांस समाप्त हो जाता है। तो सदा सेवा में आगे बढ़ते चलो।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ व्यक्त में रहते अव्यक्त स्थिति में रहने का अभ्यास अभी सहज हो गया है। जब जहाँ अपनी बुद्धि को लगाना चाहे तो लगा सके। इसी अभ्यास को बढाने के लिए अपने घर में अथवा भट्ठी में आते हो। तो यहाँ के थोडे समय का अनुभव सदा काल बनाने का प्रयत्न करना है। *जैसे यहाँ भट्ठी वा मधुपन में चलते - फिरते अपने को अव्यक्त फरिश्ता समझते हो वैसे कर्मक्षेत्र वा सर्वीस भूमी पर भी यह अभ्यास अपने साथ ही रखना है।*
〰✧ *एक बार का किया हुआ अनुभव कहाँ भी याद कर सकते हैं।* तो यहाँ का अनुभव वहाँ भी याद रखने से वा यहाँ कि स्थिति में वहाँ भी स्थित रहने से बुद्धि को आदत पड जायेगी। जैसे लौकिक जीवन में न चाहते हुए भी आदत अफनी तरफ खींच लेती है, वैसे ही अव्यक्त स्थिति में स्थित होने की आदण बन जाने के बाद यह आदत स्वतः ही अपनी तरफ खींचेगी।
〰✧ इतना पुरुषार्थ करते हुए कई ऐसी आत्मायें है जो अब भी यही कहती है कि मेरी आदत है। कमज़ोरी क्यों है, क्रोध क्यों किया, कोमल क्यों बने, कहेंगे मेरी आदत है। ऐसे जवाब अभी देते हैं। *तो ऐसे ही यह स्थिति वा इस अभ्यास की भी आदत बन जाये तो फिर न चाहते हुए भी यह अव्यक्त स्थिति की आदत अपनी तरफ आकर्षित करेगी।* यह आदत आपको अदालत में जाने से बचायेगी। समझा। जब बुरी - बुरी आदतें अपना सकते हो तो क्या यह आदत नहीं डाल सकते हो।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ आप आत्माओं की सम्पन्न स्टेज की सम्पूर्णता को समीप लायेगी। *तो आप लोग अभी स्वयं को चेक करें कि जैसे पहले अपने पुरूषार्थ में समय जाता था अभी दिन-प्रतिदिन दूसरों के प्रति ज्यादा जाता है।* अपनी बॉडी-कॉनशेस देह-अभिमान नेचुरली ड्रामा अनुसार समाप्त होता जायेगा। *ऑटोमेटिकली सोल-कॉनशेस होंगे। कार्य में लगना अर्थात् सोल-कॉनशेस होना। बगैर सोल:कॉनशेस के कार्य सफल नही होगा।* तो निरन्तर आत्म-अभिमानी बनने की स्टेज स्वत: ही हो जायेगी।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- आत्मा की खाद निकालने योगबल बढ़ाना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सेंटर में बाबा कमरे में बैठ ड्रिल कर रही हूँ... चारों ओर की आवाजों, व्यक्ति, वस्तुओं और अपने इस देह से अपना सारा ध्यान हटाकर भृकुटी पर केंद्रित करती हूँ...* धीरे-धीरे इस भृकुटी से बाहर निकल... फरिश्ते स्वरूप में... नीले आसमान की ऊंचाइयों को छूते हुए और ऊपर सूक्ष्म वतन में पहुंच जाती हूँ... बापदादा की दृष्टि लेकर फिर बिंदु रूप धरकर उड़ते हुए परमधाम पहुंच जाती हूँ... *बाबा की किरणों से सराबोर होकर फिर से सूक्ष्म वतन में बापदादा के सम्मुख बैठ जाती हूँ...*
❉ *योग अग्नि की किरणों से मेरे विकर्मो का बोझा भस्म करते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... घर से निकले थे तो खुबसूरत फूल से महके थे... देहभान की मिटटी ने मटमैला कर विकर्मो से लद दिया है... *अब मीठे बाबा की यादो में स्वयं को पुनः उसी ओज से भर लो... और कर्मातीत अवस्था को पाकर कर्मभोगो से सदा के मुक्त हो जाओ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा की मीठी यादों में जीवन को सुनहरा सजाते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके बिना दारुण दुखो को जीते जीते किस कदर टूट गई थी... *आपके मीठे प्यार ने दुःख भरे घावो को सुखाया है और जीवन खुशनुमा बनाया है... योगाग्नि में मै आत्मा विकर्मो से मुक्त होती जा रही हूँ..."*
❉ *मीठा बाबा अपनी वरदानी छत्रछाया के आगोश में मेरे हर श्वांस को खुशनुमा बनाते हुए कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... हर पल हर साँस हर संकल्प में ईश्वरीय यादो को पिरोकर कर्मभोगो से मुक्त हो कर्मातीत बन जाओ... *मीठे बाबा की यादे ही वह छत्रछाया है, जो सारे विकर्मो के बोझों को छुड़वायेगी... सच्चे पिता की यादो में खो जाओ और सदा के निरोगी बन मुस्कराओ"...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने सिर पर से विकर्मों के बोझ से मुक्त होकर, सिर पर बाबा का वरदानी हाथ अनुभव करते हुए कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी छत्रछाया में सारे दुखो से निकल कर... सुखो के बगीचे की ओर रुख कर रही हूँ... *जीवन अब सुख शांति और खुशियो का पर्याय बन गया है... मै आत्मा निरोगी काया और सुनहरे स्वर्ग के सुखो की... अधिकारी बन मुस्करा रही हूँ..."*
❉ *विकर्मों की कालिमा को रूहानी यादों की पवित्रता से खुशबूदार बनाते हुए मेरा बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... धरती पर प्यारा सा खेल खेलने आये थे.... पर खुद को मात्र शरीर समझ दुखो के, विकारो के दलदल में फंस गए हो.... *अब ईश्वर पिता की महकती यादो में अपनी रूहानी अदा को पुनः पाओ... खुशनुमा रूहानी गुलाब सा बन सदा सुखो की बगिया में मुस्कराओ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा योग की ज्वाला में विकर्मों के खाद को भस्म कर सच्चा सोना बनते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा यादो की प्रचण्ड अग्नि में स्वयं को दमकता सोना बना रही हूँ... वही सुनहरी ओज वही तेज वही रंगत पाकर...* शरीर में मटमैले पन को धो रही हूँ... और कर्मातीत अवस्था को पा कर, मीठे सुखो में खुशियो के गीत गा रही हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- कर्म करते भी बाप की याद में रह विकर्माजीत बनना है*"
➳ _ ➳ 63 जन्मो के विकर्मो का बोझ जो आत्मा के ऊपर है उसे भस्म करने और स्वयं को विकर्माजीत बनाने के लिए मैं आत्मा बिंदु बन परमधाम में अपने बिंदु बाप के सानिध्य में जा कर बैठ जाती हूँ। *5 तत्वों से परे लाल सुनहरी प्रकाश से प्रकाशित यह दुनिया बहुत ही निराली और असीम शांति से भरपूर करने वाली है। यहाँ आकर मैं गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ*। संकल्पो की भी यहाँ कोई हलचल नही। अपनी ओरिजनल बीजरूप अवस्था में स्थित हो कर बीजरूप परमात्मा बाप के साथ का यह मंगल मिलन मुझे अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करवा रहा है। चित को चैन और मन को आराम दे रहा है।
➳ _ ➳ ज्ञानसूर्य शिव बाबा सर्वशक्तियों की ज्वलंत किरणों को निरन्तर मुझ बिंदु आत्मा पर प्रवाहित कर, मुझ आत्मा के ऊपर चढ़े हुए विकारों के किचड़े को जला कर भस्म कर रहे है। *बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे चक्र की भांति गोल - गोल घूमती हुई मेरे पास आ रही हैं। जैसे - जैसे इन किरणो का दायरा बढ़ता जा रहा है इनके आगोश में मैं गहराई तक समाती जा रही हूँ*। मेरे चारों और फैले सर्वशक्तियों के इस गोल चक्र ने जैसे ज्वाला स्वरूप धारण कर लिया है। ऐसा लग रहा है जैसे मेरे चारों तरफ योग अग्नि की बहुत ऊँची - ऊँची लपटे निकल रही हैं जिसकी तपिश से मेरे पुराने आसुरी स्वभाव, संस्कार जल कर भस्म हो रहें हैं और *मेरी खोई हुई सर्वशक्तियाँ पुनः जागृत हो रही हैं। मेरे सारे विकर्म भस्म हो रहें हैं*।
➳ _ ➳ आत्मा में पड़ी खाद जैसे - जैसे योग अग्नि में जल रही है, विकर्म विनाश हो रहें हैं वैसे - वैसे मैं आत्मा हल्की और चमकदार बनती जा रही हूँ। सोने के समान चमकता हुआ मेरा स्वरूप मुझे बहुत ही प्यारा और न्यारा लग रहा है। *कभी मैं अपने इस जगमग करते ज्योतिर्मय स्वरूप को देखती हूँ तो कभी अनन्त प्रकाशमय, सर्वशक्तियों के सागर अपने शिव पिता को*। इस अलौकिक मिलन की मस्ती में डूबी मैं एकटक अपने प्यारे बाबा को निहार रही हूँ और अपने प्यारे परमात्मा के सानिध्य में स्वयं को धन्य - धन्य अनुभव कर रही हूँ। *वाह मैं आत्मा, वाह मेरे बाबा, जो मुझे अपनी सर्वशक्तियों से भरपूर कर रहे है यही गीत गाती मैं इस अलौकिक मिलन का भरपूर आनन्द ले रही हूँ*।
➳ _ ➳ अपने स्वीट बाबा से स्वीट साइलेन्स होम में मधुर मंगल मिलन मनाकर, योग अग्नि में विकर्मो को भस्म करके, डबल लाइट बन कर अब मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। *साकारी दुनिया में अपने साकार ब्राह्मण तन में अब मैं आत्मा विराजमान हूँ। बाबा की याद से विकर्मो पर जीत प्राप्त कर, विकर्माजीत बनने के लिए अब मैं अपने हर कर्म पर पूरा अटेंशन रखती हूँ*। स्वयं को स्वराज्य अधिकारी की सीट पर स्थित कर अब मैं हर रोज कर्मेन्द्रिय रूपी मंत्रियों की राजदरबार लगाती हूँ और उन्हें उचित निर्देश देकर अपनी इच्छानुसार उनसे हर कार्य करवाती हूँ।
➳ _ ➳ कर्मेन्द्रीयजीत बन कर्म करने से पिछले अनेक जन्मों के आसुरी स्वभाव संस्कार जो विकर्मो का कारण बन रहे थे वे सभी आसुरी स्वभाव संस्कार अब परिवर्तन हो रहे हैं। *तीन बिंदियों की स्मृति का तिलक अब मैं अपने मस्तक पर सदा लगा कर रखती हूँ जिससे मुझे निरन्तर यह स्मृति रहती है कि मुझे कर्मेन्द्रियों से ऐसा कोई पाप कर्म नही करना जिससे विकर्म बने*। अमृतवेले से रात तक बाबा की जो भी श्रीमत मिली हुई है उस पर एक्यूरेट चलने से और बाबा की याद में रह हर कर्म करने तथा स्वयं को सदा योग भट्टी में अनुभव करने से अब विकर्मों के खाते बन्द हो रहे हैं और मैं सहज ही विकर्माजीत बनती जा रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं पास विद ऑनर बननें के लिए सर्व द्वारा सन्तुष्टता का पासपोर्ट प्राप्त करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सन्तुष्टमणि आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं रहमदिल आत्मा हूँ ।*
✺ *मै निष्काम सेवाधारी आत्मा हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा निराश और थकी हुई आत्माओं को सदा सहारा देती हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ इसी रीति - धर्म सत्ता अर्थात् हर धारणा की शक्ति स्वयं में अनुभव करने वाली आत्मा। जैसे पवित्रता के धारणा की शक्ति अनुभव करने वाली। *पवित्रता की शक्ति से सदा परमपूज्य बन जाते। पवित्रता की शक्ति से इस पतित दुनिया को परिवर्तन कर लेते हो। पवित्रता की शक्ति विकारों की अग्नि में जलती हुई आत्माओं को शीतल बना देती है। पवित्रता की शक्ति आत्मा को अनेक जन्मों के विकर्मों के बन्धन से छुड़ा देती है। पवित्रता की शक्ति नेत्रहीन को तीसरा नेत्र दे देती है।* पवित्रता की शक्ति से इस सारे सृष्टि रूपी मकान को गिरने से थमा सकते हैं। पवित्रता पिलर्स हैं - जिसके आधार पर द्वापर से यह सृष्टि कुछ न कुछ थमी हुई है। पवित्रता लाइट का क्राउन है। ऐसे पवित्रता की धारणा - ‘यह है धर्म सत्ता'। इसी प्रकार हर गुण की धारणा, हर गुण की विशेषता आत्मा में समाई हुई हो। इसको कहा जाता है ‘धर्म सत्ता'। *धर्म सत्ता अर्थात् धारणा की सत्ता। ऐसी धर्म सत्ता वाली आत्मायें बने हो?*
✺ *"ड्रिल :- पवित्रता की शक्ति का अनुभव करना*”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा भृकुटी सिंहासन पर विराजमान होकर परमात्मा को आकाश सिंहासन छोड़कर नीचे आने का आग्रह करती हूँ...* आकाश से एक चमकता हुआ ज्योतिपुंज नीचे उतर रहा है... सूक्ष्मलोक में ब्रह्मा के तन का आधार लेकर परमप्रिय परमपिता परमात्मा मेरे सामने आकर खड़े हो जाते हैं... बापदादा मेरा हाथ पकड एक मैदान में लेकर जाते हैं...
➳ _ ➳ परमपिता परमात्मा नई सृष्टि की स्थापना हेतु रूद्र ज्ञान यज्ञ रचते हैं... *प्यारे शिवबाबा रूहानी पंडा बन बेहद का यज्ञ कुंड रचते हैं...* बाबा मुझ आत्मा को मनमनाभव का मन्त्र देकर अपने सामने बिठाते हैं... *बाबा की दृष्टि से, मस्तक से ज्ञान-योग की ज्वाला प्रज्वलित हो रही है...* मैं आत्मा बाबा से निकलती ज्ञान-योग की पवित्र किरणों को ग्रहण कर रही हूँ...
➳ _ ➳ बेहद के यज्ञ कुंड की पवित्र अग्नि में मैं आत्मा अपना सबकुछ स्वाहा कर रही हूँ... *योग अग्नि से निकलती पवित्र ज्वाला रूपी किरणों में मुझ आत्मा की अनेक जन्मों की अपवित्रता भस्म हो रही है...* मुझ आत्मा के अनेक जन्मों के विकर्म स्वाहा हो रहे हैं... काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार जैसे विकार बीज सहित दग्ध हो रहे हैं...
➳ _ ➳ *अनेक जन्मों से विकारों की अग्नि में जलती हुई मैं आत्मा योग अग्नि में जलकर शीतल, शांत स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...* पवित्रता की शक्ति को धारण करते ही मैं आत्मा त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी बन गई हूँ... पवित्रता की शक्ति से मैं आत्मा पवित्रता का फरिश्ता बन रही हूँ... प्यारे बापदादा मुझ फरिश्ते को अपने साथ सूक्ष्म वतन में ले जाते हैं...
➳ _ ➳ *सूक्ष्म वतन में मम्मा, दीदी, दादियाँ, सभी एडवांस पार्टी की आत्माएं मेरा वेलकम कर रही हैं...* मेरे चारों ओर दिव्य फरिश्ते खड़े हैं... सभी अपनी पवित्रता की शक्ति से मुझे भर रहे हैं... *सभी मुझ फरिश्ते को बीच में बिठाकर पवित्रता का ताज पहनाते हैं... चमकीले हीरों की पुष्प वर्षा कर रहे हैं...* मुझ फरिश्ते का ड्रेस जगमगा रहा है... और भी ज्यादा चमक रहा है...
➳ _ ➳ *बापदादा और सभी आधारमूर्त आत्माओं से भर भरके वरदान, ब्लेस्सिंग्स लेकर मैं फरिश्ता नीचे साकार लोक में आती हूँ...* मैं आत्मा पवित्रता की शक्तियों को चारों ओर फैलाकर वायुमंडल को पवित्र बना रही हूँ... तमोप्रधान प्रकृति को शुद्ध, सतोप्रधान बना रही हूँ... *मैं आत्मा पवित्रता की शक्ति का स्वयं में अनुभव कर... सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों को अपने पवित्र स्वरुप का अनुभव करा रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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