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❍ 23 / 04 / 21 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अविनाशी ज्ञान धन का दान किया ?*
➢➢ *जो बापदादा से प्रतिज्ञा की है, उसे याद रखा ?*
➢➢ *अपने प्रति व सर्व आत्माओं के प्रति ला फुल बनकर रहे ?*
➢➢ *कर्म करते कर्म के अच्छे व बुरे प्रभाव में तो नहीं आये ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *योगबल अर्थात् साइलेन्स की शक्ति-कम मेहनत, कम खर्चे में बालानशीन कार्य करा सकती है। साइलेन्स की शक्ति-समय के खजाने में इकॉनामी करा देती हैं अर्थात् कम समय में ज्यादा सफलता पा सकते हो।* यथार्थ इकॉनामी है-एकनामी बनना। *एक का नाम सदा स्मृति में रहे। ऐसा एकनामी वाला इकॉनामी कर सकता है। जो एकनामी नहीं वह यथार्थ इकॉनामी नहीं कर सकता।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं स्वदर्शन चक्रधारी हूँ"*
〰✧ सदा अपने को स्वदर्शन चक्रधारी अनुभव करते हो? *स्वदर्शन चक्र अनेक प्रकार के माया के चक्करों को समाप्त करने वाला है। माया के अनेक चक्र हैं और बाप उन चक्रो से छुड़ाकर विजयी बना देता।* स्वदर्शन चक्र के आगे माया ठहर नहीं सकती - ऐसे अनुभवी हो?
〰✧ बापदादा रोज इसी टाइटिल से यादप्यार भी देते हैं। इसी स्मृति से सदा समर्थ रहो। *सदा स्व के दर्शन में रहो तो शक्तिशाली बन जायेंगे। कल्प-कल्प की श्रेष्ठ आत्मायें थे और हैं यह याद रहे तो मायाजीत बने पड़े हैं।*
〰✧ *सदा ज्ञान को स्मृति में रख, उसकी खुशी में रहो। खुशी अनेक प्रकार के दु:ख भुलाने वाली है। दुनिया दु:खधाम में है और आप सभी संगमयुगी बन गये। यह भी भाग्य है।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ सिर्फ राज्य करने के समय बाप गुप्त हो जाते हैं। तो साथ कैसे रहेंगे? समान बनने से। समानता कैसे लायेंगे? साकार बाप से समान बनने से। अभी बापदादा कहते हो ना। उनमें समानता कैसे आई? *समर्पणता से समानता सेकण्ड में आई। ऐसे समर्पण करने की शक्ती चाहिए।*
〰✧ *जब समर्पण कर दिया तो फिर अपना वा अन्य का अधिकार समाप्त हो जाता।* जैसे किसको कोई चीज दी जाती है तो फिर अपना अधिकार और अन्य का अधिकार समाप्त हो जाता है। अगर अन्य कोई अधिकार रखे भी तो उसको क्या कहेंगे? यह तो मैने समर्पण कर ली।
〰✧ ऐसे हर वस्तु सर्व समर्पण करने के बाद अपना वा दूसरों का अधिकार कैसे रह सकता है। *जब तक अपना वा अन्य का अधिकार रहता है तो इससे सिद्ध है कि सर्व समर्पण में कमी है।* इसलिए समानता नहीं आती। जो सोच - सोच कर समर्पण होते हैं उनकी रिजल्ट अब भी पुरुषार्थ में वही सोच अर्थात व्यर्थ संकल्प विघ्न रूप बनते हैं। अच्छा -
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *ब्रह्म-मुहूर्त का अर्थ क्या है? उस समय का वायुमण्डल ऐसा होता है जो आत्मा सहज ही ब्रह्म निवासी बनने का अनुभव कर सकती है।* दूसरे समय में पुरुषार्थ करके आवाज से, वायुमण्डल से अपने को डिटाच करते हो या मेहनत करते हो। लेकिन उस समय इस मेहनत की आवश्यकता नहीं होती। जैसे ब्रह्म घर शान्तिधाम है वैसे ही अमृतवेले के समय में भी आटोमेटिकली साइलेन्स रहती है। *साइलेन्स के कारण शान्त स्वरूप की स्टेज वा शान्तिधाम निवासी बनने की स्टेज को सहज ही धारण कर सकते हो।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप की वंडरफुल हट्टी के मालिक बनना"*
➳ _ ➳ *ये रूहानी पाठशाला जहाँ देवत्व जन्म ले रहा है*... रेखाओं के त्रिकोण नही, हस्त रेखाओं में जहाँ सतयुगी भाग्य का वर्सा लिखा जा रहा है... *सतयुगी दुनिया की नींव ये रूहानी पाठ- शाला... ज्ञानसागर लुटा रहा जहाँ, भर भर ज्ञानमधु का प्याला*... *ज्ञान सागर की लहरों मे डूबती उतरती मैं आत्मा पढाने वाले की मुरीद हुई*... *निहार रही हूँ एकटक उसे*... *जैसे चातक पक्षी एकटक निहारता है बादलों की ओर*... परमधाम से आकर सामने बैठा है मेरा सतगुरू और मैं रूहानी शागिर्द उसकी, और उनका एक एक महावाक्य अन्तर की गहराईयों में उतारता हुआ...
❉ *रूहानी नयनों से रूह को स्नेह परम शान्ति और रूहानी स्नेह का अमृत पिलाते मेरे सच्चे सच्चे रूहानी सदगुरू बोलें:-* "मीठी बच्ची... *मनुष्य से देवता बनाने वाले इस ज्ञानामृत की सच्ची सच्ची हकदार, कोटो में कोई, कोई में भी कोई, आप बच्ची संगम पर प्रत्यक्ष हुए इस गुप्त ज्ञान अमृत का महत्व समझती हो ना?* इस वंडर फुल पाठशाला में पढने का अपना परम लक्ष्य याद है आप बच्ची को?... *क्या आपको मालूम है मेरे परमधाम को छोडकर इस पतित दुनिया में आने का लक्ष्य?...*"
➳ _ ➳ *सच्चे सच्चे सदगुरू की नजरों से निहाल, नयनों में उनकी सम्पूर्ण छवि को उतारती हुई मैं आत्मा बोली:-* "मीठा मीठा कहकर मुझे मीठे बनाने वाले प्यारे सदगुरू... *आपने इसी रूहानी पाठशाला में, मुझे खुद की पहचान दिलाई है... मेरे भाग्य की लेखनी आपने मेरे ही हाथों में पकडा दी, आपके इस पतित दुनिया में आने का वो पावन सा मकसद मेरी ही खुशियों के इर्द गिर्द ही तो घूमता है... निज रूप को भूली आत्माए विषय वासनाओं के सागर में गोते लगाती हुई अपने स्वरूप को पहचानने के लिए तडप रही थी... और फिर... आप आए, साथ में बहिश्त भी हथेली पर ले आए*... आपने नर से नारायण बनने का दिव्य लक्ष्य दिया और उन दिव्य लक्षणों से आप हर रोज मुझ आत्मा को संवार रहे है..."
❉ *कदम कदम पर मेरे मददगार, मुझे स्वयं ही आगे बढा शाबाशियों से नवाज़ने वाले मेरे रूहानी सतगुरू बोले:-* "स्वांसो स्वांस मुझे और स्वर्ग को याद कर सेवा करने वाली मेरी मददगार बच्ची... आप इस वन्डर फुल पाठशाला की खूबियाँ सबको बताओं, *आप रूहानी मैसेन्जर बच्ची हर आत्मा को खुद के समान भाग्यशाली बनाओं...* इन गुणों का दिव्य आईना बनकर हर एक को ये गुण धारण कराओं... *अपने चेहरे और चलन से विश्व की आत्माओं को अपने सच्चे सच्चे सदगुरू का चेहरा दिखाओं...*"
➳ _ ➳ *ज्ञान सूर्य शिव सदगुरू के शीतल ज्ञान झरनों में सराबोर मैं आत्मा ज्ञान रत्नों की खानियाँ उँडेलने वाले सतगुरू से बोली:-* "स्वदर्शन चक्रधारी बनाने वाले मेरे रूहानी सतगुरू... *ये वंडर पाठशाला अब प्रत्यक्ष हो रही है... ज्ञान सागर से ज्ञान गंगाए निकलकर इस धरती के हर कोने में फैल रही है बाबा*... हर आत्मा बच्ची, ज्ञानगंगा और गऊमुख बनकर आपको प्रत्यक्ष कर रही है, *मैं आत्मा भी अंग अंग में ज्ञान रत्नों को सजाकर आपको प्रत्यक्ष करने निकली हूँ..."*
❉ *ज्ञानामृत पिला पतितों को पावन बनाने वाले बापदादा बोले:-* "प्यारी बच्ची... मुँझारें में भटकती आत्माओं को अब सोझंरे में लाओं, *तीर्थ, व्रत, उपवास करती आत्माओं को ज्ञान सागर में डुबकियाँ लगवा पावन बनाने इस पाठशाला तक लाओ... परमधाम से आता है निराकार पढाने अब ये संदेश मनसा सेवा से हर रूह तक पहुँचाओ..."*
➳ _ ➳ *विश्व का मालिक बनाने वाले सच्चे सच्चे सौदागर बाप से मैं 21 जन्मों के लिए अखुट खजानों की मालिक आत्मा बोली:-* "मीठे बाबा... मेरे इस जीवन को आपने पारसमणि बनाया है... अब वो देखो! वो सैकडों आत्माए जो मुझ पारसमणि आत्मा के सकंल्पों को छूते ही स्वयं अपना जीवन हीरे तुल्य बना रही है... *आपकी ये बच्ची चलती फिरती रूहानी पाठशाला बन रही है बाबा ! और दूसरों को भी आप समान बना रही है...* और बापदादा मेरे सर पर वरदानों की बारिश करते मुझे सारी सूक्ष्म शक्तियाँ विल कर रहे है..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- देवताओं जैसा मीठा बनना है*"
➳ _ ➳ स्वदर्शन चक्रधारी बन स्व का दर्शन करते हुए अपने आदि और पूज्य स्वरूप में खोई अपने उस अति सुन्दर मन को मोहने वाले स्वरूप का भरपूर आनन्द लेते हुए *मैं विचार करती हूँ कि मंदिर में स्थापित मेरे जड़ चित्रों की दिव्य मुस्कराहट और चेहरे की हर्षितमुखता आज भी मेरे भगतों को नवजीवन दे रही है*। मेरी जड़ प्रतिमा के सामने आज भी मेरे भगत खड़े होकर एक गहन सुकून पाकर तृप्त हो जाते हैं। तो अपने उस स्वरूप को यादगार बनाने का पुरुषार्थ मुझे इस समय संगम युग पर अवश्य करना है तभी मेरे एक - एक कर्म का यादगार भक्ति में पूजन और गायन योग्य बनेगा।
➳ _ ➳ यही विचार करते, अपने अंदर दैवी गुणों को धारण करने की मन ही मन स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर मैं आत्मिक स्मृति में स्थित हो कर बैठ जाती हूँ और *अपने मन, बुद्धि को मनुष्य से देवता बनाने वाले अपने परमपिता परमात्मा शिव बाबा पर पूरी तरह एकाग्र करते हुए, बड़े प्यार से उनका आह्वान करती हूँ*। उनसे मिलने की मेरी इच्छा संकल्प के रूप में उन तक पहुँच रही है। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं स्पष्ट देख रही हूँ कि मेरे एक बुलावे पर भगवान कैसे अपना धाम छोड़, मेरे प्यार में बंध कर, मेरे पास दौड़े चले आ रहें हैं।
➳ _ ➳ अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरे मन के सच्चे मीत, मेरे दिलाराम बाबा मेरे पास आ रहें हैं। उनके प्यार की शीतल फ़ुहारों का मीठा मधुर एहसास मुझे उनकी समीपता का स्पष्ट अनुभव करवा रहा है। *प्यार के सागर अपने प्यारे बाबा को अब मैं अपने सामने देख रही हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे एक विशाल सागर स्वयं चल कर मेरे पास आ गया है और अपनी शीतल लहरों की शीतलता को गहराई तक मुझ आत्मा में समाता चला जा रहा है*। सर्व गुणों, सर्वशक्तियों के सागर मेरे शिव पिता परमात्मा से निकल रहे शक्तिशाली वायब्रेशन मुझे टच कर रहें है और गहन शांति का अनुभव करवा रहें हैं।
➳ _ ➳ अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में भरकर अब मेरे शिव पिता मुझ आत्मा को देह के हर बन्धन से मुक्त कराकर, अपने साथ ले जा रहें हैं। देह से बाहर आकर मैं स्वयं को एकदम हल्का अनुभव कर रही हूँ। *बन्धन मुक्त हो कर, आजाद पंछी की भांति उन्मुक्त हो कर, उड़ने का आनन्द लेती हुई मैं आत्मा अपने दिलाराम बाबा की किरणों की बाहों के झूले में झूलती, मन ही मन अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करती उनके साथ उनके धाम जा रही हूँ*। देह और देह की झूठी दुनिया के झूठे रिश्तों के मोह की जंजीरो की कैद से मैं आजाद हो चुकी हूँ, यह एहसास मुझे एक गहन सुकून दे रहा है।
➳ _ ➳ अपने शिव पिता के साथ एक अति सुखद सुखमय रूहानी यात्रा करके अब मैं उनके साथ उनके धाम पहुँच चुकी हूँ। स्वयं को मैं आत्माओं की एक ऐसी निराकारी दुनिया में देख रही हूँ जहाँ चारों और शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन फैले हुए हैं। *शांति के सागर अपने शिव पिता के पास जाकर, उनके प्यार की किरणो की शीतल छाया के नीचे बैठ, उन्हें निहारती हुई अब मैं स्वयं को तृप्त कर रही हूँ*। मेरे शिव पिता के प्यार की शीतल फुहारे बारिश की रिम झिम बूंदों की तरह मुझ पर बरस रही हैं। मास्टर बीज रूप बन अपने बीज रूप शिव पिता परमात्मा के साथ मंगल मिलन मनाते हुए गहन अतीन्द्रिय सुख का मैं अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ गहन अतीन्द्रिय सुख और अपने शिव पिता परमात्मा के असीम प्रेम का अनुभव करके, अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट कर अपने शिव पिता के निष्काम और निस्वार्थ प्रेम के खूबसूरत सुखद एहसास को स्मृति में रख, अब मैं अपने शिव पिता की श्रेष्ठ शिक्षायों को स्वयं में धारण कर, अपने जीवन को देवताओ जैसा खुशमिजाज बनाने का पुरुषार्थ अति सहजता से कर रही हूँ। *मेरे मीठे प्यारे बाबा का प्यार और उनकी याद मुझे आसुरी अवगुणों का त्याग कर, दैवी गुणों को धारण करने का बल दे रही है। योग बल से अपने पुराने अभी आसुरी स्वभाव संस्कारो को भस्म कर, भविष्य देवताई संस्कारो को धारण कर अब मैं अपने जीवन को देवताओं जैसा खुशमिजाज बना रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं अपने प्रति वा सर्व आत्माओं के प्रति लॉ फुल बननें वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं लॉ मेकर सो न्यू वर्ल्ड मेकर आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा कर्म करते कर्म के अच्छे वा बुरे प्रभाव में आने से सदा मुक्त हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदैव कर्मातीत स्थिति का अनुभव करती हूँ ।*
✺ *मैं बन्धन मुक्त आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ दिव्य जन्म लेते ही बापदादा ने वरदान दिया - सर्वशक्तिवान भव! यह हर जन्म दिवस का वरदान है... इन शक्तियों को प्राप्त वरदान के रूप से कार्य में लगाओ... हर एक बच्चे को मिली हैं लेकिन कार्य में लगाने में नम्बरवार हो जाते हैं... हर शक्ति के वरदान को समय प्रमाण आर्डर कर सकते हो... *अगर वरदाता के वरदान के स्मृति स्वरूप बन समय अनुसार किसी भी शक्ति को आर्डर करेंगे तो हर शक्ति हाजिर होनी ही है...* वरदान की प्राप्ति के, मालिकपन के स्मृति स्वरूप में हो आप आर्डर करो और शक्ति समय पर कार्य में नहीं आये, हो नहीं सकता... लेकिन मालिक, मास्टर सर्वशक्तिवान के स्मृति की सीट पर सेट हो, बिना सीट पर सेट के कोई आर्डर नहीं माना जाता है...
➳ _ ➳ जब बच्चे कहते हैं कि बाबा हम आपको याद करते तो आप हाजिर हो जाते हो, हजूर हाजिर हो जाता है... *जब हजूर हाजिर हो सकता तो शक्ति क्यों नहीं हाजिर होगी*! सिर्फ विधि पूर्वक मालिकपन के अथारिटी से आर्डर करो... यह सर्व शक्तियाँ संगमयुग की विशेष परमात्म प्रापर्टी है... प्रापर्टी किसके लिए होती है? बच्चों के लिए प्रापर्टी होती है... तो अधिकार से स्मृति स्वरूप की सीट से आर्डर करो, मेहनत क्यों करो, आर्डर करो... *वर्ल्ड अथारिटी के डायरेक्ट बच्चे हो, यह स्मृति का नशा सदा इमर्ज रहे...*
✺ *ड्रिल :- "सर्व शक्तियों को समय प्रमाण आर्डर करने का अनुभव"*
➳ _ ➳ जीवन मे घटित होने वाली अनेक प्रकार की घटनाओ और परिस्थितियों के रूप में माया के तूफान हर ब्राह्मण बच्चे के जीवन मे आते ही है... *किन्तु सर्वशक्तिवान बाबा का हाथ और साथ माया के इन तूफानो को भी तोहफा बना देता है यह विचार करते - करते मैं अपने सर्वशक्तिवान बाबा की याद में जैसे ही बैठती हूँ एक दृश्य मेरी आँखों के सामने आने लगता है...*
➳ _ ➳ इस दृश्य में मैं स्वयं को एक बहुत सुंदर टापू पर बैठ, प्रकृति के सुंदर नज़ारो का आनन्द लेते हुए देख रही हूँ... देखते ही देखते जैसे प्रकृति विकराल रूप धारण कर लेती हैं। स्वयं को मैं एक बहुत भयंकर तूफान में फंसा हुआ पाती हूँ... *इस भयंकर तूफान से निकलने में जब मैं स्वयं को असमर्थ पाती हूँ तो शांन्त हो कर बैठ जाती हूँ... जैसे ही शांन्त होकर बैठती हूँ मन बुद्धि सहज ही बाबा की याद में जुट जाते है...* शक्तियों का संचार मुझ आत्मा में होने लगता है और मैं अनुभव करती हूँ कि शक्तिस्वरूप बन अब मैं इस तूफान का सामना कर सकती हूँ... मेरे सर्वशक्तिसम्पन्न स्वरुप में स्थित होते ही मैं देखती हूँ जैसे वो तूफान धीरे - धीरे थमने लगा है और थोड़ी ही देर में प्रकृति फिर से अपने सुन्दर स्वरूप में स्थित हो गई है...
➳ _ ➳ अब मैं विचार करती हूँ कि जीवन मे प्रतिदिन घटित होने वाली घटनाये और परिस्थितियां भी तो मन मे ऐसे ही तूफान पैदा करती हैं... और मन मे यह विचार आते ही अब मेरे सामने वो घटनाये और परिस्थितियां अनेक दृश्यों के रूप में बार - बार आंखों के सामने आने लगती है... किंतु अब वो घटनाये मेरे मन मे तूफान पैदा नही कर रही बल्कि जैसे ही वो घटना घटित हो रही है *मैं मास्टर सर्वशक्तिवान के स्वमान की सीट पर सेट हो कर सर्वशक्तियों का आह्वान कर रही हूँ और हर शक्ति को ऑर्डर प्रमाण चला कर उस परिस्थिति को सहज ही पार कर रही हूँ... माया का कोई भी तूफान अब मुझे हलचल में नही ला रहा...*
➳ _ ➳ अपनी इस एकरस, अचल अडोल स्थिति को मैं देख मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि मुझे अपनी इस शक्तिसम्पन्न स्थिति में सदा स्थित रहने के लिए सर्वशक्तियों का आह्वान कर, उन्हें ऑर्डर प्रमाण चलाने का अभ्यास निरन्तर करना है... ताकि कोई भी शक्ति समय पर धोखा ना दे सके... *स्वयं को सर्वशक्तियों से भरपूर करने के लिए अब मैं अपने निराकारी स्वरूप में स्थित हो कर, अपने सर्वशक्तिवान बाबा के पास उनके धाम की ओर चल पड़ती हूँ...* साकारी लोक और सूक्ष्म वतन को जल्दी ही पार कर मैं पहुंच जाती हूँ आत्माओं की निराकारी दुनिया में अपने शिव पिता परमात्मा के पास...
➳ _ ➳ निराकार, महाज्योति अपने शिव पिता के सामने अब मैं ज्योति बिंदु आत्मा स्वयं को देख रही हूँ... उनके सानिध्य में मैं आत्मा गहन आनन्द की अनुभूति कर रही हूँ... उनसे निकल रही शक्तियों की शीतल फुहारें मन को तृप्त कर रही हैं... *प्यारे मीठे बाबा को अपलक निहारते - निहारते मैं बाबा के बिल्कुल समीप पहुंच जाती हूँ और बाबा को टच करती हूँ... शक्तियों का झरना फुल फोर्स के साथ बाबा से निकल कर अब मुझ आत्मा में समाने लगा है...* एक- एक शक्ति को मैं अपने अंदर गहराई तक समाता हुआ अनुभव कर रही हूँ... स्वयं में मैं परमात्म शक्तियों की गहन अनुभूति कर रही हूँ...
➳ _ ➳ स्वयं को सर्वशक्तियों से सम्पन्न करके अब मैं परमधाम से नीचे आती हूँ और सूक्ष्म लोक में प्रवेश करती हूँ... अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर अब मैं फ़रिशता बापदादा के पास पहुँचता हूँ... *अपनी सर्वशक्तियाँ बाबा मुझे विल करके अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख मुझे मालिकपन के स्मृति स्वरूप में सदा स्थित रहने का वरदान दे रहें हैं...* बाबा से वरदान ले कर अब मैं फिर से अपने निराकारी स्वरूप के स्थित हो कर सूक्ष्म लोक से नीचे आ जाती हूँ और साकारी दुनिया मे आ कर अपने साकारी शरीर मे प्रवेश करती हूँ...
➳ _ ➳ *स्वयं को सर्वशक्ति सम्पन्न अनुभव करते हुए अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, इन शक्तियों को प्राप्त वरदान के रूप से कार्य में लगा रही हूँ... मालिकपन के स्मृति स्वरूप हो कर सर्व शक्तियों को समय प्रमाण आर्डर करने का अनुभव अब मैं निरन्तर कर रही हूँ जो मुझे सहज ही मायाजीत बना रहा है...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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