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❍ 29 / 05 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अपने उन्नति के लिए बाप की सर्विस में तत्पर रहे ?*
➢➢ *बाप का और पड़ायी का रीगार्ड रखा ?*
➢➢ *स्वयं को विश्व सेवा प्रति अर्पित कर माया को दासी बनाया ?*
➢➢ *अंतर्मुखता से मुख को बंद कर क्रोध को समाप्त किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *याद को शक्तिशाली बनाने के लिए विस्तार में जाते सार की स्थिति का अभ्यास कम न हो, विस्तार में सार भूल न जाये।*खाओ-पियो, सेवा करो लेकिन न्यारेपन को नहीं भूलो। साधना अर्थात् शक्तिशाली याद। निरन्तर बाप के साथ दिल का सम्बन्ध। *साधना इसको नहीं कहते कि सिर्फ योग में बैठ गये लेकिन जैसे शरीर से बैठते हो वैसे दिल, मन, बुद्धि एक बाप की तरफ बाप के साथ-साथ बैठ जाए। ऐसी एकाग्रता ही ज्वाला को प्रज्जवलित करेगी।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बापदादा के समीप आत्मा हूँ"*
〰✧ बापदादा के समीप आत्माएं हैं - ऐसा अनुभव करते हो? जो समीप आत्माएं होती हैं तो समीप की निशानी क्या होती है? समीपता की निशानी है - समान। तो सदा हर कर्म में अपने को बाप समान अनुभव करते हो? ब्रह्मा बाप का श्रेष्ठ संकल्प क्या था? जो बाप कहते हैं, वह करना। तो आपका भी संकल्प ऐसा है? हर संकल्प में दृढ़ता है? या किसमे है, किसमें नहीं है? *क्योंकि जैसे ब्रह्मा बाप ने दृढ़ संकल्प से हर कार्य में सफलता प्राप्त की, तो दृढ़ता सफलता का आधार बना। ऐसे फालो फादर करो।* उनके बोल की विशेषता क्या थी? तो अपने में चेक करो - वह विशेषताएं हमारे में हैं? ऐसे ही कर्म में विशेषता क्या रही? कर्म और योग साथ-साथ रहा? ऐसे कर्म में भी चेक करो? फिर देखो - संकल्प, बोल और कर्म में कितना समीप हैं? जितना समीप होंगे उतना ही समान होंगे।
〰✧ *जैसे ब्रह्मा बाप ने एक बाप, दूसरा न कोई - यह प्रैक्टिकल में कर्म करके दिखाया। ऐसे बाप समान बनने वालों को भी इसी कर्म को फालो करना है। तब कहेंगे बाप समान।* इतनी हिम्मत है? कभी दिलशिकस्त तो नहीं बनते? पास्ट इज पास्ट, फ्यूचर नहीं करना। फ्यूचर के लिए यही ब्रह्मा बाप के समान दृढ़ संकल्प करना कि कभी दिलशिकस्त नहीं बनना है, सदा दिलखुश रहना है। फ्यूचर के लिए इतनी हिम्मत है ना? माया हिलाये तो भी नहीं हिलना।
〰✧ अगर मायाजीत बनने का दृढ़ संकल्प होगा तो माया कुछ नहीं करेगी। सदैव यह स्मृति रखो कि कितने भी बड़े रूप से माया आये लेकिन नथिंग न्यु। कितने बार विजयी बने हो? तो फिर से बनना बड़ी बात नहीं होगी। अगर माया हिमालय जितने बड़े रूप से आये तो क्या करेंगे? उस समय रास्ता नहीं निकालना, उड़ जाना। *सेकेण्ड में उड़ती कला वाले के लिए पहाड़ भी रुई बन जायेगी। तो कितना भी बड़ा पहाड़ का रूप हो, लेकिन डरना नहीं, घबराना नहीं। यह कागज का शेर है, कागज का पहाड़ है। ऐसे पावरफुल आत्माएं ब्रह्मा बाप को फालो कर समीप और समान बन जायेंगी।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *नाम हो मास्टर सर्वशक्तिवान और स्वयं को मालिक समझ कर नहीं चल सके तो क्या मास्टर सर्वशक्तिवान हुए?* हम मास्टर सर्वशक्तिवान है - यह तो पक्का निश्चय है ना, कि यह निश्चय भी अभी हो रहा है?
〰✧ *निश्चय में कभी परसेन्टेज होती है क्या?* बाप के बच्चे तो है ही ना? ऐसे थोडे ही 90 परसेन्ट है और 10 परसेन्ट नहीं है। ऐसा बच्चा कभी देखा है? *निश्चय अर्थात 100 परसेन्ट निश्चय।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ बाप के समीप रहने वालों के ऊपर बाप के सत के संग का रंग चढ़ा हुआ होगा। *सत के संग का रंग है रूहानियत। तो समीप रतन सदा रूहानी स्थिति में स्थित होंगे।* शरीर में रहते हुए न्यारे, रूहानियत में स्थित रहेंगे। शरीर को देखते हुए भी न देखें और आत्मा जो न दिखाई देने वाली चीज़ है। वह प्रत्यक्ष दिखाई दे यही कमाल है। *रूहानी मस्ती में रहने वाले ही बाप को साथी बना सकते, क्योंकि बाप रूह है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप के सम्मुख बैठने का नशा रहना"*
➳ _ ➳ *मेरा बाबा कितना ही प्यारा है और बाबा का ज्ञान भी उतना ही प्यारा और न्यारा है... स्वयं भगवान इस धरा पर आकर सम्मुख बैठ सत्य ज्ञान देकर मेरे जीवन के अज्ञान अंधकार को मिटा दिया... मेरी बंद बुद्धि का ताला खोल दिया...* मैं आत्मा हूं… परमात्मा मेरा सत्य पिता है... ये कितना सुन्दर ड्रामा है… ड्रामा में मैं आत्मा अविनाशी पार्ट बजा रही हूँ… ज्ञान, गुण, शक्तियों की वर्षा कर मेरे पुराने स्वभाव संस्कारों को परिवर्तन कर रहे हैं... इन्हीं सब बातों का मंथन करते हुए मैं आत्मा अपने बाबा को शुक्रिया कर और भी प्यारी प्यारी बातें सुनने पहुँच जाती हूँ वतन में बापदादा के पास...
❉ *सारी दुनिया जिसे ढूंढ रही है वो प्यारा बाबा मेरे सम्मुख बैठ 21 जन्मों की वर्सा का वरदान देते हुए कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... *जिस ईश्वर के दीदार मात्र को कभी व्याकुल थे, आज वह सम्मुख बैठा पढ़ा रहा... अथाह खजानो को हथेली पर सजा, बच्चों पर दिल खोल कर लुटा रहा...* ऐसे मीठे बाबा से सब कुछ लेकर विश्व के मालिक बन मीठा मुस्कराओ...”
➳ _ ➳ *जीवन में हर खुशी से भरपूर होकर मोस्ट लकी अनुभव करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा देवताओ के दर्शन को तरसती थी, आज भगवान को सामने देख, अपने भाग्य की जादूगरी पर मोहित हो गई हूँ...* और अथाह ज्ञान रत्नों को पाकर मालामाल होती जा रही हूँ..."
❉ *पारलौकिक सुखों की दिव्य बरसात करते हुए मेरे पारलौकिक मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... दुनिया जिसे बहुत मुश्किल समझ जगह जगह ढूंढ रही... वह परमात्मा आप बच्चों के दिल के कितना करीब आ बेठा है... *दुनिया साक्षात्कार को चाहती है... आप भाग्यवान बच्चे गोद में बैठे पढ़ रहे... और देवताई शानो शौकत पाकर संपत्तिवान बन रहे..."*
➳ _ ➳ *ऊंचे भाग्य को पाकर अतीन्द्रिय सुखों की ऊंची उड़ान भरते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा मीठे भाग्य पर फ़िदा हूँ, जिसने भगवान से मिलवाकर मुझे असीम सुखो की खुबसूरत दुनिया का भाग्य दिलाया है...* मुझे ईश्वरीय धन से धनवान् बनाकर 21 जनमो का बेफिक्र सा सजाया है..."
❉ *गुप्त ख़ज़ानों की चाबी देकर सर्व ख़ज़ानों की मालिक बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... मीठे सौभाग्य ने भगवान से मिलवाया है, तो भगवान की सारी जागीरे बाँहों में भरकर, सतयुगी सुखो की बहारो में, आनन्द के गीत गाओ... *जितना चाहो उतना खजानो की दौलत को पाओ... रत्नों की खानो के मालिक बनकर विश्व धरा पर इठलाओ..."*
➳ _ ➳ *सर्व ख़ज़ानों को बटोरकर अपनी झोली भरते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मैं आत्मा आपकी वारिस होकर, सारे खजानो की मालिक बन गई हूँ... *संगम के मीठे पलों में ईश्वरीय दौलत को बाँहों में भरकर, सुनहरे सुखो को पाने वाली और खुशियो में खिलखिलाने खुशनसीब आत्मा बन गयी हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अपनी उन्नति करने के लिए बाप की सर्विस में तत्पर रहना है*"
➳ _ ➳ एकान्त में बैठ जैसे ही भगवान के रथ ब्रह्मा बाबा के बारे में मैं विचार करती हूँ मन सहज ही अपने प्यारे ब्रह्मा बाप के प्रति असीम प्रेम और स्नेह से सरोबार हो उठता है। *भगवान से मिलवाने के निमित बने ब्रह्मा बाप के लिए मन से कोटि - कोटि धन्यवाद स्वत: ही निकलने लगता है*। अपना तन - मन - धन सब कुछ ईश्वरीय यज्ञ में स्वाहा कर बाबा ने जिस निस्वार्थ भाव से सारे विश्व की सेवा की, उनके उस त्याग को याद कर, *दिल से उनका शुक्रिया अदा करते - करते मैं महसूस करती हूँ जैसे अव्यक्त ब्रह्मा बाप मेरे सामने खड़े मन्द - मन्द मुस्करा रहें हैं और अव्यक्त इशारे से मुझे कुछ कह रहे हैं*। बाबा के उन अव्यक्त ईशारो को समझने के लिए मैं सेकण्ड में देह भान का त्याग कर अपनी अव्यक्त स्थिति में स्थित होती हूँ।
➳ _ ➳ अपनी अव्यक्त स्थिति में स्थित होते ही मैं स्पष्ट अनुभव करती हूँ कि जैसे बापदादा मुझे बेहद की सर्विस के लिए डायरेक्शन दे रहें हैं। *विश्व की जो दुर्दशा बाबा देख रहें हैं अब वो सब दृश्य मुझे दिखाई दे रहें हैं*। विकारों की अग्नि में जल रही दुखी और अशांत आत्माये, भगवान की एक झलक पाने के लिए दर - दर भटक रही, अपने शरीर को कष्ट देने वाले भक्ति के कर्म कांडों में फंसी भक्त आत्मायें। *कहीं प्रकृति के प्रकोप का शिकार हुई रोती बिलखती आत्मायें तो कहीं शरीर की भयंकर बीमारियों के रूप में कर्मभोग की भोगना भोगती दुखी आत्मायें और कही अकाले मृत्यु के कारण शरीर ना मिलने की वजह से भटकती आत्मायें*।
➳ _ ➳ इन सभी दृश्यों को देखते - देखते, मन मे विरक्त भाव लिए मैं जैसे ही बाबा की ओर देखती हूँ। बाबा के नयनों में बाबा की इच्छा मुझे स्पष्ट समझ में आने लगती है। *बाबा के मन की आश को जान मैं मन ही मन स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि अपने इस ब्राह्मण जीवन को अब मुझे केवल बाबा की सर्विस में ही लगाकर सफल करना है*। अब मुझे केवल सर्विस का ही फुरना रखना है। स्वयं से प्रतिज्ञा करते - करते मैं जैसे ही बाबा के मुख मण्डल को निहारती हूँ, एक गुह्य मुस्कराहट के साथ बाबा के वरदानी हाथ को अपने सिर के ऊपर अनुभव करती हूँ। *बाबा के वरदानी हस्तों से निकल रही अदृश्य शक्ति को मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ जो मुझे बलशाली बना रही है*।
➳ _ ➳ विश्व की सर्व आत्माओं के कल्याणार्थ मुझे निमित बनाने के लिए बाबा अपनी लाइट माइट से मुझे भरपूर कर रहें हैं ताकि लाइट हाउस बन मैं सभी को अज्ञान अंधकार से निकाल ज्ञान सोझरे में लाकर सबके दुखी अशांत जीवन को सुखदाई बना सकूँ। भक्त आत्माओं को दर - दर के धक्कों से छुड़ा कर उन्हें उनके पिता परमेश्वर से मिलवा सकूँ। *इस बेहद की सर्विस के लिए बाबा अपने सर्व गुणों, सर्व शक्तियों और सर्व ख़ज़ानों से मुझे सम्पन्न बना रहे हैं*। बापदादा से लाइट माइट, वरदान और शक्तियों का असीम बल ले कर अपने लाइट के फ़रिश्ता स्वरूप में स्वयं को अत्यन्त शक्तिशाली बनाकर अब मैं फ़रिश्ता विश्व ग्लोब पर पहुँचता हूँ।
➳ _ ➳ विश्व ग्लोब पर बैठ, बापदादा का आह्वान कर, उनके साथ कम्बाइंड होकर, उनसे सुख, शांति और पवित्रता की शक्तियाँ लेकर अब मैं सारे विश्व मे प्रवाहित कर रहा हूँ। *मैं देख रहा हूँ इन सर्वशक्तियों के शक्तिशाली वायब्रेशन विश्व की सर्व आत्माओं तक पहुँच रहें हैं*। विकारों की अग्नि में जल रही आत्माओं पर ये वायब्रेशन शीतल फ़ुहारों का रूप लेकर बरस रहें हैं और उन्हें शीतलता का अनुभव करवा रहें हैं। *भक्त आत्माओं को ये वायब्रेशन परमात्म प्यार का अनुभव करवाकर उन्हें भटकने से छुड़ा रहें हैं। बीमारियों से पीड़ित आत्माओं पर ये वायब्रेशन मरहम का काम कर रहें हैं और उनकी पीड़ा को खत्म कर रहें हैं*। प्रकृति का प्रकोप सहन करती आत्माओं को ये वायब्रेशन धैर्य का बल दे रहें हैं।
➳ _ ➳ विश्व की सर्व आत्माओं की बेहद की सेवा करके अब मैं अपने फ़रिश्ता स्वरूप के साथ वापिस साकार लोक में लौटती हूँ और अपने ब्राह्मण स्वरूप को धारण कर लेती हूँ। *बाप की सेवा का फुरना रख, अपने ब्राह्मण स्वरूप द्वारा मैं अपने संकल्प, बोल और कर्म के माध्यम से अपने सम्बन्ध, सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं की स्थूल सेवा और अपने फ़रिश्ता स्वरूप द्वारा विश्व की सर्व आत्माओं की बेहद की सेवा अब सदैव कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं स्वयं को विश्व सेवा के प्रति अर्पित करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं माया को दासी बनाने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सहज सम्पन्न आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा सदा अंतर्मुखता से मुख को बंद कर देती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा क्रोध से सदा मुक्त हूँ ।*
✺ *मैं शांत स्वरूप आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ त्याग का अर्थ है किसी भी चीज को वा बात को छोड़ दिया, अपनेपन से किनारा
कर लिया, अपना अधिकार समाप्त हुआ। जिसके प्रति त्याग किया वह वस्तु उसकी हो गई।
जिस बात का त्याग किया उसका फिर संकल्प भी नहीं कर सकते - क्योंकि त्याग की हुई
बात, संकल्प द्वारा प्रतिज्ञा की हुई बात फिर से वापिस नहीं ले सकते हो। जैसे
हद के संन्यासी अपने घर का,सम्बन्ध का त्याग करके जाते हैं और अगर फिर वापिस आ
जाएँ तो उसको क्या कहा जायेगा! नियम प्रमाण वापिस नहीं आ सकते। ऐसे आप ब्राह्मण
बेहद के संन्यासी वा त्यागी हो। *आप त्याग मूर्तियों ने अपने इस पुराने घर
अर्थात् पुराने शरीर, पुराने देह का भान त्याग किया, संकल्प किया कि बुद्धि
द्वारा फिर से कब इस पुराने घर में आकर्षित नहीं होंगे। संकल्प द्वारा भी फिर
से वापिस नहीं आयेंगे। पहला-पहला यह त्याग किया। इसलिए तो कहते हो - देह सहित
देह के सम्बन्ध का त्याग। देह के भान का त्याग।* तो त्याग किए हुए पुराने घर
में फिर से वापिस तो नहीं आते जाते हो! वायदा क्या किया है? तन भी तेरा कहा वा
सिर्फ मन तेरा कहा?पहला शब्द ‘‘तन'' आता है। जैसे तन-मन-धन कहते हो,देह और देह
के सम्बन्ध कहते हो। तो पहला त्याग क्या हुआ? इस पुराने देह के भान से विस्मृति
अर्थात् किनारा। यह पहला कदम है त्याग का।
✺ *"ड्रिल :- देह सहित देह के सर्व संबंधो का त्याग करना*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सेंटर में शांत स्वरूप स्थिति में बैठकर परम कल्याणकारी, परम
सद्गुरु परमात्मा शिव के अनमोल महावाक्यों को सुन रही हूँ...* मैं आत्मा बाबा
के महावाक्यों को सुनते-सुनते देह से न्यारी होती जा रही हूँ... विदेही बन मैं
आत्मा आनंदानुभूति से सराबोर हो रही हूँ... मैं आत्मा स्थूल देह को छोड़ प्रकाश
के शरीर को धारण कर उड़ चलती हूँ सफेद प्रकाश की दुनिया में...
➳ _ ➳ अव्यक्त वतन में अव्यक्त बापदादा के सामने बैठ जाती हूँ... *बापदादा के
प्रकाशमय काया से दिव्य प्रकाश निकलकर मुझ आत्मा के प्रकाश के शरीर को और भी
चमकीला बना रहा है...* मैं आत्मा देहभान से मुक्त हो रही हूँ... पुराने देह के
भान से विस्मृत होकर एक सुन्दर फरिश्ते स्वरुप में चमक रही हूँ...
➳ _ ➳ ये देह नश्वर है... देह के सब सम्बन्ध नश्वर हैं... देह के पुराने
स्वभाव-संस्कार ओझल हो रहे हैं... *देह भान का त्याग करते ही मुझ आत्मा का देह
के संबंधों से ममत्व मिट रहा है... नए, पवित्र, स्वर्णिम युग के संस्कार
अंकुरित हो रहे हैं...* बाबा की रूहानी दृष्टि, स्नेह भरी दृष्टि से मैं फरिश्ता
देह की स्मृति से न्यारी और बाबा की दुलारी बन गई हूँ...
➳ _ ➳ *मैं बाबा को कहती हूँ बाबा ये तन-मन-धन सब कुछ तेरा... सबकुछ आपको
समर्पित करती हूँ... देह सहित देह के सर्व संबंधो का त्याग करती हूँ...* इन पर
अब मेरा अधिकार नहीं है... मैं प्रतिज्ञा करती हूँ बाबा- कि त्याग की हुई पुराने
तन-मन-धन को संकल्प द्वारा भी फिर से वापिस नहीं लुंगी... बुद्धि द्वारा फिर से
कभी भी इस पुराने घर में आकर्षित नहीं होउंगी... संकल्प द्वारा भी फिर से इस
पुराने शरीर में वापिस नहीं आउंगी... बाबा से पक्का वायदा करते हुए मैं आत्मा
बाबा के प्यार में मगन हो जाती हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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