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❍ 26 / 05 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अशरीरी बनने का अभ्यास किया ?*
➢➢ *"अब यह पुरानी दुनिया बदलने वाली है" - सदा यह याद रहा ?*
➢➢ *लक्ष्य के प्रमाण लक्षण के बैलेंस की कला द्वारा चढ़ती कला का अनुभव किया ?*
➢➢ *सेवा का भाग्य प्राप्त किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *वर्तमान समय के प्रमाण अभी अपनी सेवा वा सेवा-स्थानों की दिनचर्या बेहद के वैराग्य वृत्ति की बनाओ। अभी आराम की दिनचर्या मिक्स हो गई है।* अलबेलापन शरीर की छोटी-छोटी बीमारियों के भी बहाने बनाता है। *अगर किसी पदार्थ की, साधनों की आकर्षण हैं तो साधना खण्डित हो जाती है।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं निश्चयबुद्धि विजयी आत्मा हूँ"*
〰✧ निश्चय बुद्धि विजयी आत्माएं हैं - ऐसा अनुभव करते हो? सदा निश्चय अटल रहता है? वा कभी डगमग भी होते हो? *निश्चयबुद्धि की निशानी है - वो हर कार्य में, चाहे व्यावहारिक हो, चाहे परमार्थी हो, लेकिन हर कार्य में विजय का अनुभव करेगा। कैसा भी साधारण कर्म हो, लेकिन विजय का अधिकार उसको अवश्य प्राप्त होगा, क्योंकि ब्राह्मण जीवन का विशेष जन्म सिद्ध अधिकार विजय है।*
〰✧ कोई भी कार्य में स्वयं से दिल शिकस्त नहीं होगा, क्योंकि उसे निश्चय है कि विजय जन्म सिद्ध अधिकार है। तो इतना अधिकार का नशा रहता है। *जिसका भगवान मददगार है उसकी विजय नहीं होगी तो किसकी होगी! कल्प पहले का यादगार भी दिखाते हैं कि जहाँ भगवान है वहाँ विजय है। चाहे पांच पाण्डव दिखाते हैं, लेकिन विजय क्यों हुई? भगवान साथ है, तो जब कल्प पहले यादगार में विजयी बने हो तो अभी भी विजयी होंगे ना?*
〰✧ *कभी भी कोई कार्य में संकल्प नहीं उठना चाहिए कि ये होगा, नहीं होगा, विजय होगी या नहीं, होगी.. - यह क्वेश्चन उठ नहीं सकता। कभी भी बाप के साथ वाले की हार हो नहीं सकती। यह कल्प-कल्प की नूंध निश्चित है।* इस भावी को कोई टाल नहीं सकता। इतना दृढ़ निश्चय सदा आगे उड़ाता रहेगा। तो सदा विजय की खुशी में नाचते गाते रहो।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *अभी तो फिर भी रात और दिन में आराम करने का टाइम मिलता है, लेकिन फिर तो यह रेस्ट लेना, यह भी समाप्त है जायेगा।* लेकिन जितना अव्यक्त लाइट रूप में स्थित होंगे, उतना ही शरीर से परे का अभ्यास होने के कारण यदि दो - चार मिनिट अशरीरी बन जावेंगे, जैसे कि नींद से शरीर को खुराक मिल जाती है, वैसे ही यह भी खुराक मिल जायेगी।
〰✧ शरीर तो पुराने ही रहेंगे। हिसाब - किताब पुराना तो होगा ही। सिर्फ उसमें यह एडीशन होगी। *लाइट स्वरूप के स्मृति को मजबूत करने के हिसाब - किताब चुक्त करने में भी लाइट रूप हो जावेंगे।*
〰✧ *जैसे इन्जेक्शन लगाने से पाँच मिनिट में ही फर्क पड जाता है, वैसे ही नींद की गोली लेने से भी परेशानी समाप्त हो जाती है।* आप भी ऐसे ही समझो कि यह हम नींद की खुराक लेते हैं। ऐसी स्टेज लाने के लिये ही यह अभ्यास है।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ क्या अपने को एक सेकण्ड में वाणी से परे वानप्रस्थ अवस्था में स्थित कर सकते हो? जैसे वाणी में सहज ही आ जाते हो, क्या वैसे ही वाणी से परे, इतना ही सहज हो सकते हो? कैसी भी परिस्थिति हो, वातावरण हो, वायुमण्डल हो या प्रकृति का तूफान हो लेकिन इन सबके होते हुए, देखते हुए, सुनते हुए, महसूस करते हुए, *जितना ही बाहर का तूफान हो, उतना स्वयं अचल, अटल, शान्त स्थिति में स्थित हो सकते हो? शान्ति में शान्त रहना बड़ी बात नहीं है, लेकिन अशान्ति के वातावरण में भी शान्त रहना इसको ही ज्ञान-स्वरूप, शक्ति-स्वरूप, याद-स्वरूप और सर्वगुण-स्वरूप कहा जाता है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- संगमयुगी ब्राह्मण होने के नशे में रहना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा स्वयं को मधुबन में डाइमंड हाल में बैठा हुआ अनुभव कर रही हूं, और बाबा मिलन की मीठी मीठी यादों में खोई मन बुद्धि से पहुँच जाती हूँ शिव बाबा के पास परमधाम, यहाँ चारों तरफ फैला हुआ अलौकिक प्रकाश मुझे दिव्यता और परमानंद की अनुभूति करा रहा है... निराकारी दुनिया में मैं आत्मा स्वयं को बिंदु रूप में चमकता हुआ देख रही हूं... बाबा से शक्तिओं का झरना मुझ आत्मा में निरंतर बहता जा रहा और इस ज्ञान स्नान से मुझ आत्मा में पड़ी हुई खाद भस्म होती जा रही है... मैं आत्मा स्वयं को अत्यंत पवित्र और हल्का अनुभव कर रही हूँ...* शक्तिओं से भरपूर हो अब मैं आत्मा नीचे उतर रही हूं और पहुंच जाती हूँ निज वतन... सफेद प्रकाश से ढका हुआ सूक्ष्म वतन यहाँ चारों तरफ शांति ही शांति और बापदादा मेरे सामने फ़रिश्ता स्वरूप में बाहें फैलाये खड़े हैं... *नन्हा फ़रिश्ता बन मैं आत्मा दौड़ कर बाबा की गोद में सिमट जाती हूँ...*
❉ *बाबा मुझे गोद में लेकर मेरे गालों को प्यार से सहलाते हुए मुझ आत्मा से बोले:-* "मेरे नन्हे फूल बच्चे... *संगमयुग मौजों का युग है, बाप आये हैं अपने ब्राह्मण बच्चों का कल्याण करने* इसलिए तो मुझे तुम बच्चे शिव बाबा कहते हो... *शिव का अर्थ ही है कल्याणकारी,* इसलिए सदा फखुर में रहो की विश्व के रचियता बाप ने तुम बच्चों को अपनी गोद दी है... *सारी दुनिया जिस भगवान को ढूंढ रही है तुम बच्चे उस भगवान की पालना में पल रहे हो...*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा आत्मविभोर होकर बाबा की मधुर वाणी को सुनते हुए बाबा से बोली:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... आपने मुझ आत्मा के जीवन में आकर मुझे अपना बनाया है, वाह मेरा भाग्य... *आपकी गोद मिली मानों त्रिलोकी का राज्य मिल गया हो... मेरा जीवन इतना सुंदर पहले कभी न था* आपने आकर इसे दिव्य और अलौकिक बना दिया है... *ज्ञान सागर में स्नान कर अलौकिकता और दिव्यता का प्रकाश मुझ आत्मा से निकल निरंतर विश्व में प्रवाहित हो रहा है...* ज्ञान और वरदानों से श्रृंगार कर मेरे स्वरूप को और निखार दिया है..."
❉ *अपनी बाहों के झूले में झुलाते हुए बाबा मुस्कुरा कर मुझ आत्मा से बोले:-* "सिकीलधे बच्चे... जो भी इन आँखों से दिखाई देता है वो सब खाक होना है , *इस पुरानी दुनिया से ममत्व मिटाकर बस एक बाप की याद में रहो* की अब वापस घर जाना है... बाप आए हैं तुम्हें विश्व की राजाई देने... माया ने तुम्हें कंगाल बना दिया है बाप फिर से तुम्हें सतयुगी वैभव देकर मालामाल करने आये हैं... *बाप एक ही बार आते हैं, संगम पर इस कल्याणकारी युग का लाभ उठाओ और पुरुषार्थ कर बाप से पूरा वर्सा लो...*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की श्रीमत को धारण करते हुए बाबा से कहती हूँ:-* "हाँ मेरे जादूगर बाबा... *आपकी मीठी मीठी बातों ने ऐसा जादू किया है* जो मैं आत्मा जिधर भी देखती हूं बस बाबा ही बाबा दिखाई देते हैं... *जीवन सुखों से भरपूर हो गया है...* इस ब्राह्मण जीवन को धारण कर मैं आत्मा आनंदित हो गई हूं... *जिस परमात्मा को संसार का हर प्राणी पाने के लिए दर दर भटक रहा है वो परम पिता परमात्मा मुझ आत्मा को मिला है,* ये स्मृति आते ही मुझ आत्मा की खुशी का ठिकाना नही रहता... बाबा आपने मुझे कौड़ी से हीरा बना दिया है... वाह मेरा भाग्य..."
❉ *मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर बाबा मुझे समझानी देते हुए बोले:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... बाप को बहुत तरस पड़ता है जब बच्चे माया से हार खाते हैं... *बाप की श्रीमत पर हर कार्य करो तो माया कभी हरा नही सकती...* तुम्हें एक बाप की याद में रहकर स्वमान की सीट पर सेट रहना है... *बाप परम कल्याणकारी हैं और तुम बच्चे मास्टर कल्याणकारी बन बाप के सहयोगी बनते हो...* बाप को खुशी होती है कि बच्चे बाप में सहयोगी बने हैं... बाप और बच्चे मिलकर विश्व को स्वर्ग बना रहे हैं... ये संगमयुग ब्राह्मणों के लिए कमाई करने का युग है जिसकी प्रालब्ध तुम बच्चे सतयुग में भोगेंगे... संगमयुग ब्राह्मणों के लिए कल्याणकारी है इसलिए सदा फखुर में रहो और निरंतर बाप को याद करो... बाप की श्रीमत को धारण कर औरों को भी कराने की सेवा करो... *ब्राह्मणों को चोटी कहा जाता है दूसरों का कल्याण करना ब्राह्मणों का परम कर्तव्य है , तुम बच्चे भी बाप समान कल्याणकारी बनों...*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा के महावाक्यों को स्वयं में धारण करते हुए बाबा से बोली:-* "हाँ मेरे प्राणों से प्यारे बाबा... आपकी श्रीमत मेरे ब्राह्मण जीवन का आधार है, *आपकी श्रीमत मिली अहो भाग्य...* मैं आत्मा कितने जन्मों से भटक रही थी आपने मुझे अपना बनाकर मेरा जीवन पवित्रता और परमात्म प्रेम से भर दिया है... *आपको पाकर मैं आत्मा धन्य धन्य हो गयी हूँ...* मैं आपका कितना भी शुक्रिया करूँ कम ही लगता है... मेरे जीवन को सवार कर कौड़ी से हीरे तुल्य बनाने वाले *बाबा का दिल की गहराई से शुक्रिया कर मैं आत्मा लौट आती हूँ अपने साकारी तन में...*"
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- श्रीमत पर सदा चलते रहना है*"
➳ _ ➳ अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप की स्मृति में बैठ *अपने परम शिक्षक शिव बाबा के मधुर महावाक्य रिवाइज करके मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि जीवन को श्रेष्ठ बनाने वाली श्रीमत जो मेरे परम शिक्षक शिव पिता परमात्मा हर रोज परमधाम से आकर मुरली के माध्यम से मुझे देते हैं। उस श्रीमत को अपने जीवन मे धारण कर मुझे नारी से लक्ष्मी बनने का पुरुषार्थ अवश्य करना है*। कभी भी श्रीमत पर चलने में गफलत वा बहाना नही करना है। मेरे शिव पिता परमात्मा की श्रेष्ठ मत ही मेरे इस ब्राह्मण जीवन की सेफ्टी का आधार है। माया के हर वार का सामना करने का अचूक मन्त्र मेरे शिव पिता की श्रीमत है।
➳ _ ➳ अपने श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बाप, टीचर, सतगुरु की श्रेष्ठ मत पर सदा चलने की स्वयं से प्रतिज्ञा करते - करते मैं उन प्राप्तियों की सुखद अनुभूति में खो जाती हूँ जो ब्राह्मण बनने के बाद मेरे प्यारे बाबा से मुझे प्राप्त हुई है। *उन प्राप्तियों की मीठी मधुर स्मृति में खोई मैं अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करती हूँ कि कितनी पदमापदम सौभाग्य शाली हूँ मैं आत्मा। कोटो में कोई, कोई में भी कोई हूँ मै, जिसे स्वयं भगवान ने चुना है*। बड़े बड़े महा मण्डलेशवर, साधू सन्यासी जिस भगवान की महिमा के गीत गाते हैं वो भगवान रोज मेरे सम्मुख आकर मेरी महिमा के गीत गाता है। रोज मुझे स्मृति दिलाता है कि मैं महान आत्मा हूँ। मैं विशेष आत्मा हूँ। मैं इस दुनिया की पूर्वज आत्मा हूँ।
➳ _ ➳ अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य को याद करते - करते अपने परम शिक्षक, परम सतगुरु, अपने प्यारे बाबा की मीठी - मीठी यादों में मैं खो जाती हूँ। मन जैसे बिल्कुल शांत और स्थिर हो जाता है और बुद्धि पूरी तरह से परमधाम में बाबा के सुंदर स्वरूप पर एकाग्र हो जाती है। *मन बुद्धि की तार परमधाम निवासी मेरे प्यारे मीठे बाबा के साथ जुड़ते ही ऐसा अनुभव होता है जैसे कोई चीज मुझे ऊपर की ओर अपनी तरफ खींच रही है*। मैं आत्मा सेकेण्ड में निराधार बन, देह से न्यारी हो कर ऊपर की ओर चल पड़ती हूँ। *परमात्म शक्ति रूपी मैग्नेटिक पॉवर मुझे सहज ही अपनी ओर खींचती चली जा रही है*।
➳ _ ➳ इस अति आनन्दमयी रूहानी यात्रा पर चलते हुए मैं सूर्य, चाँद, तारागणों को पार कर, फरिश्तों की दुनिया से भी पार, पहुँच जाती हूँ परमधाम, उस परम ज्योति पुंज के सामने जिनकी अनन्त शक्तियों की मैग्नेटिक पावर मुझे अपनी ओर खींच रही थी। *वो परम ज्योति पुंज मेरे प्यारे परम पिता परमात्मा मेरे सम्मुख हैं। उनसे निकल रही अनन्त शक्तियां मुझे दिव्य अलौकिक आनन्द से भरपूर कर रही हैं*। उनकी किरणों की शीतल छाया मुझे गहन शांति का अनुभव करवा रही हैं।
➳ _ ➳ सर्वशक्तिवान अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों रूपी किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ, स्वयं को उनकी सर्वशक्तियों से भरपूर कर, शक्तिशाली बन मैं परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और फरिश्तों की जगमग करती हुई दुनिया में प्रवेश कर जाती हूँ। *यहां आकर अपनी सफेद चमकीली फरिश्ता ड्रेस को मैं धारण करती हूँ और अव्यक्त बापदादा के पास पहुँचती हूँ। बड़े प्यार से बापदादा अपनी बाहों को फैला कर मुझे अपनी बाहों में भर लेते हैं और असीम स्नेह लुटाने के बाद अपनी शक्तिशाली दृष्टि से मुझे निहारते हुए अपना समस्त बल मेरे अंदर भरकर मुझे शक्तिशाली बना देते हैं और वरदानो से मुझे भरपूर कर देते हैं*।
➳ _ ➳ परमात्म शक्तियों से भरपूर होकर, वरदानो से अपनी झोली भरकर प्यारे बापदादा की श्रेष्ठ मत पर चल, अपने ब्राह्मण जीवन को सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए, मैं अपने निराकारी स्वरूप में वापिस लौटती हूँ और साकार सृष्टि पर आकर अपने ब्राह्मण तन में प्रवेश कर जाती हूँ। *परमात्म शक्तियों का बल मुझे मेरे इस ब्राह्मण जीवन में हर कदम श्रीमत पर चलने की प्रेरणा दे रहा है। श्रीमत पर चलने में कभी भी गफलत वा बहाना ना करने की प्रतिज्ञा कर, अपने प्यारे बाबा की याद में रह, उनकी मदद से अब मैं इस प्रतिज्ञा को दृढ़ता के साथ पूरा करते हुए अपने जीवन को श्रेष्ठ बना रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं लक्ष्य के प्रमाण लक्षण के बेलेन्स रखने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं चढ़ती कला की अनुभवी आत्मा हूँ।*
✺ *मैं बाप समान सम्पन्न आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा सदैव सेवा का भाग्य प्राप्त करती हूँ ।*
✺ *मैं पद्मा-पद्म भाग्यवान आत्मा हूँ ।*
✺ *मैं सच्ची सेवाथारी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ सेवाधारी भी सब हो, धारणा मूर्त भी सब हो, परन्तु धारणा स्वरूप में
नम्बरवार हो। कोई सर्वगुण सम्पन्न बने हैं, कोई गुण सम्पन्न बने हैं। कोई सदा
धारणा स्वरूप हैं, कोई कभी धारणा स्वरूप, कभी डगमग स्वरूप। *एक गुण को धारण
करेंगे तो दूसरा समय पर कर्त्तव्य में ला नहीं सकेंगे।* जैसे एक ही समय पर
सहनशक्ति भी चाहिए और साथ-साथ समाने की शक्ति भी चाहिए। अगर एक शक्ति वा एक
सहनशीलता के गुण को धारण कर लेंगे और समाने की शक्ति वा गुण को साथ-साथ यूज़
नहीं कर सकेंगे और कहेंगे कि इतना सहन तो किया ना? यह कोई कम किया क्या! यह भी
मुझे मालूम है, मैंने कितना सहन किया,लेकिन सहन करने के बाद अगर समाया नहीं,
समाने की शक्ति को यूज़ नहीं किया तो क्या होगा? यहाँ-वहाँ वर्णन होगा इसने यह
किया, मैंने यह किया, तो सहन किया, यह कमाल जरूर की लेकिन कमाल का वर्णन कर
कमाल को धमाल में चेन्ज कर लिया। क्योंकि *वर्णन करने से एक तो देह अभिमान और
दूसरा परचिन्तन दोनों ही स्वरूप कर्म में आ जाते हैं।*
✺ *"ड्रिल :- सहनशक्ति और समाने की शक्ति दोनों का समान रूप से अनुभव करना"*
➳ _ ➳ चारों तरफ हरियाली ही हरियाली है... सभी पेड़-पौधे फूल-पत्तियों से सजकर
खुश हो रहे है... ऊँचे-ऊँचे पहाड़ मानों इस जगह को घेरे हुए हैं... इस स्थान की
ताजगी मेरे मन को मोह रही है... इस खुशनुमा वातावरण को मैं देखकर अति हर्षित हो
रही हूँ... *तभी मेरी नज़र एक वृक्ष पर पड़ती है, जो फलों से लदा हुआ है...* उसे
देखकर मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है... मानों ये मुझे अपने पास बुला रहा हो... मैं
बिना कुछ देर किये उसके पास चली जाती हूँ... और महसूस करती हूँ की ये पेड़ मुझे
कुछ कहने की कोशिश कर रहा है...
➳ _ ➳ कुछ समय रुकने के बाद मैं अपनी मन बुद्धि को एकाग्र कर, उस पेड़ की आवाज़
सुनने की कोशिश करती हूँ... मैं आत्मा महसूस करती हूँ... कि ये पेड़ मुझसे कह
रहा है... अगर इस संसार का हर व्यक्ति अपने अंदर मेरे समान गुण धारण करें तो,
सब सुखी होंगे... जैसे मैं सभी मनुष्यों को फल, छाँव, फूल, आदि सब देता हूँ...
फिर भी इस सृष्टि के लोग अपने स्वार्थ के लिए मुझे कष्ट पहुंचाते हैं... *फल
प्राप्त करने के लिए मुझे पत्थर मारते हैं... मैं उस समय सहनशक्ति को प्रयोग
में लाकर उन्हें उनके लिये फल देता हूँ... और साथ ही अपने कर्तव्य का पालन भी
करता हूँ...*
➳ _ ➳ और सहन शक्ति के प्रयोग के साथ ही मैं समानें की शक्ति का भी प्रयोग करता
हूँ... *जब लोग मुझे अपने स्वार्थ के लिए कष्ट पहुंचाते हैं तब भी मैं उनके इस
कार्य को भूलकर सब कुछ अपने अंदर समा लेता हूँ... और उनके प्रति कोई दुर्भावना
नहीं रखते हुए उन्हें सदा फल-फूल देता ही रहता हूँ... और ना कभी इन्हें अपने
कष्टों के बारे में बताता हूँ...* बस सहनशक्ति और समाने की शक्ति को प्रयोग
करते हुए अपना कर्तव्य निभाता रहता हूँ... इतने में मेरा अंतर्मन अपने सामने
बाबा को देखता है... और मैं स्थिर होकर बाबा की बातें सुनती हूँ...
➳ _ ➳ बाबा मुझसे कहते हैं मेरे मीठे-मीठे बच्चे तुम भी इस वृक्ष की तरह अपने
जीवन को गुणों से सुसज्जित कर अपना कर्तव्य निभाते चलो... सभी गुणों का समय पर
प्रयोग कर सदा उड़ती कला का अनुभव करो... एक समय पर कई शक्तियों का यूज़ करके सदा
ऊंचाइयों की तरफ बढ़ते रहो... और अपने द्वारा किये हुए कार्य का कभी वर्णन नहीं
करना... *क्योंकि अगर सेवा का वर्णन करेंगे तो तुम्हारे अंदर देहभान आएगा... और
अगर देहभान आया तो तुम सेवा नहीं कर पाओगे... सेवा करके तुम हमेशा कमाल करते
रहो... परन्तु सेवा का वर्णन करके धमाल नहीं करना...* सेवा का कमाल करते हुए
सदा उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होते रहो...
➳ _ ➳ बाबा के ये वचन सुनकर मैं बाबा से कहती हूँ... बाबा- *अब सेवा करते समय
हमेशा समाने की शक्ति और सहनशीलता के गुण का यूज़ करूँगी... और शक्तियों औऱ
गुणों का एक साथ प्रयोग कर सच्ची सेवा करूँगी...* बिना किसी देहभान में आकर...
अगर किसी परिस्थिति के कारण मुझे सहन करना भी पड़ा तो उसे वर्णन में नहीं
लाऊंगी... और कभी भी परचिन्तन को अपने जीवन में शामिल नहीं करुँगी... क्योंकि
अगर परचिन्तन आयेगा तो किसी भी गुण और शक्तियों को मैं सही तरह यूज़ नहीं कर
पाऊंगी... इसलिए सदा एकसाथ सहनशीलता का गुण और समानें की शक्ति को प्रयोग में
लाकर ही सेवा करूँगी... और आगे बढ़ती जाउंगी...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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