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 12 / 05 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *एक मिनट भी अपना टाइम वेस्ट तो नहीं किया ?*

 

➢➢ *इस पुरानी दुनिया से बुधी का लंगर उठाया ?*

 

➢➢ *चलते फिरते फ़रिश्ते स्वरुप का साक्षातकार करवाया ?*

 

➢➢ *सदा रूहानी मौज का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *देह-अभिमान को छोड़ना-यह बड़े ते बड़ा त्याग है। इसके लिए हर सेकेण्ड अपने आपको चेक करना पड़ता है।* इस त्याग से ही तपस्वी बनेंगे और एक बाप से ही सर्व सम्बन्धों का अनुभव करेंगे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं दृष्टि द्वारा शक्तियों की प्राप्ति करने वाली अनुभवी आत्मा हूँ"*

 

  दृष्टि द्वारा शक्तियों की प्राप्ति की अनुभूति करने के अनुभवी हो ना! *जैसे वाणी द्वारा शक्ति की अनुभूति करते हो। मुरली सुनते हो तो समझते हो ना शक्ति मिली। ऐसे दृष्टि द्वारा शक्तियों की प्राप्ति के अनुभूति के अभ्यासी बने हो या वाणी द्वारा अनुभव होता है, दृष्टि द्वारा कम।* दृष्टि द्वारा शक्ति कैच कर सकते हो? क्योंकि कैच करने के अनुभवी होंगे तो दूसरों को भी अपने दिव्य दृष्टि द्वारा अनुभव करा सकते हैं। और आगे चल कर वाणी द्वारा सबको परिचय देने का समय भी नहीं होगा और सरकमस्टांस भी नहीं होंगे, तो क्या करेंगे?

 

  वरदानी दृष्टि द्वारा, महादानी दृष्टि द्वारा महादान देंगे, वरदान देंगे। तो पहले जब स्वयं में अनुभव होगा तब दूसरों को करा सकेंगे। दृष्टि द्वारा शान्ति की शक्ति, प्रेम की शक्ति, सुख वा आनन्द की शक्ति सब प्राप्त होती है। जड़ मूर्तियों के आगे भी जाते हैं तो जड़ मूर्ति बोलती तो नहीं है ना! फिर भी भक्त आत्माओंको कुछ-न-कुछ प्राप्ति होती है, तब तो जाते हैं। कैसे प्राप्ति होती है? उनकी दिव्यता के वायब्रेशन से और दिव्य नयनों की दृष्टि को देख कर वायब्रेशन लेते हैं। *कोई भी देवता या देवी की मूर्ति में विशेष अटेन्शन नयनों के तरफ देखेंगे। हरेक का अटेन्शन सूरत की तर]फ जाता है। क्योंकि मस्तक के द्वारा वायब्रेशन मिलते हैं, नयनों के द्वारा दिव्यता की अनुभूति होती है। वह आप चैतन्य मूर्तियों की जड़ मूर्तियाँ हैं। आप सबने चैतन्य में यह सेवा की है तब जड़ मूर्तियाँ बनी हैं। तो दृष्टि द्वारा शक्ति लेना और दृष्टि द्वारा शक्ति देना - यह प्रैक्टिस करो। शान्ति के शक्ति की अनुभूति बहुत श्रेष्ठ है।*

 

  जैसे वर्तमान समय साइंस की शक्ति का प्रभाव है, हर एक अनुभव करते हैं। लेकिन साइंस की शक्ति साइलेन्स की शक्ति से ही निकली है ना! जब साइंस की शक्ति अल्पकाल के लिए प्रप्ति करा रही है तो साइलेन्स की शक्ति कितनी प्राप्ति करायेगी। पद्मगुणा तो इतनी शक्ति जमा करो। बाप की दिव्य दृष्टि द्वारा स्वयं में शक्ति जमा करो। तब समय पर दे सकेंगे। अपने लिए ही जमा किया और कार्य में लगा दिया अर्थात् कमाया और खाया। जो कमाते हैं और खा के खत्म कर देते हैं उनका कभी जमा का खाता नहीं रहता और जिसके पास जमा का खाता नहीं होता है उसको समय पर धोखा मिलता है। धोखा मिलेगा तो दुःख की प्राप्ति होगी। *अगर साइलेन्स की शक्ति जमा नहीं होगी, दृष्टि के महत्त्व का अनुभव नहीं होगा तो लास्ट समय श्रेष्ठ पद प्राप्त करने में धोखा खा लेंगे फिर दुःख होगा। पश्चाताप् होगा ना। इसलिए अभी से बाप की दृष्टि द्वारा प्राप्त हुई शक्तियों को अनुभव करते जमा करते रहो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  जैसे जिस्मानी मिलिट्री को आँर्डर करते हैं - एक सेकण्ड में जहाँ हो, वहाँ ही खडे हो जाओ। *अगर वह इस आँर्डर को सोचने में व समझने में ही टाइम लगा दे तो उसका रिजल्ट क्या होगा?* विजय का प्लान प्रैक्टिकल में नहीं आ सकता।

 

✧  *इसी प्रकार सदा विजयी बनने वाले की विशेषता यही होगी एक सेकण्ड में अपने संकल्प को स्टाँप कर लेना।* कोई भी स्थूल कार्य व ज्ञान के मनन करने में बहुत बिजी है लेकिन ऐसे समय में भी अपने आप को एक सेकण्ड में स्टाँप कर लेना।

     

✧  *जैसे वे लोग यदि बहुत तेजी से दौड रहे हैं वा कश्म - कश के युद्ध में उपस्थित हैं, वे ऐसे समय में भी स्टाँप कहने से स्टाँप हो जायेंगे।* इसी प्रकार यदि किसी समय यह संकल्प नहीं चलता है अथवा इस घडी मनन करने के बजाय बीजरूप अवस्था में स्थित हो जाना है। तो सेकण्ड में स्टाँप हो सकते हैं?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ अशरीरी बनने का अभ्यास इतना ही सरल अनुभव होता है, जैसे शरीर में आना अति सहज और स्वत: लगता है। *रूहानी मिलिट्री हो ना? मिल्ट्री अर्थात् हर समय सेकण्ड में ऑर्डर को प्रेक्टिकल में लाने वाले।* अभी-अभी ऑडर हो अशरीरी भव, तो एवररेडी हो या रेडी होना पडेगा? *अगर मिल्ट्री रेडी होने में समय लगाये तो विजय होगी? ऐसा सदा एवररेडी रहने का अभ्यास करो।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- खिवैया मिला है इस पार से उस पार ले जाने"*

 

_ ➳  मैं आत्मा बगीचे में बैठ झुला झूलते हुए प्रकृति का आनंद ले रही हूँ... *मेरी नज़र पेड़ पर बैठी बया चिड़िया पर पड़ती है... वो छोटी सी प्यारी सी चिड़िया एक एक तिनके को जोड़कर घोंसला बना रही है... उस घोंसले को देख मुझे भी अपने नए घर की याद आती है जिसे मेरा प्यारा बाबा बना रहा है...* इस दुःख की दुनिया से निकाल सुख, शांति की नगरी बना रहा है... मैं आत्मा उस स्वर्ग के सपने को यादों में लिए उड़ चलती हूँ मीठे वतन, मीठे बाबा के पास...

 

  *प्यारे बाबा मुझे दिव्य देवताई गुणों से सजाकर हथेली पर स्वर्ग की सौगात देकर कहते हैं:-* मेरे लाडले बच्चे... *आप फूल से बच्चों के लिए पिता खूबसूरत परिस्तान बना रहा... सारे सुखो की जन्नत बच्चों के लिए बसा रहा... यह पुरानी दुनिया का अंत करीब है...* सुखो में मुस्कराने का मीठा समय नजदीक है... इसलिए हर साँस हर संकल्प हर कर्म में पवित्रता को अपनाओ...

 

_ ➳  *नए घर स्वर्ग में जाने स्वयं को निज गुण, शक्तियों के श्रृंगार से सुन्दर बनाती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा नई सी दुनिया में चलने को आतुर हूँ... सम्पूर्ण पवित्रता को अपनाकर सज रही हूँ... *नए सुख बाँहो में भरने को नई दुनिया में जाने के महा पुरुषार्थ में जुट गयी हूँ...”*

 

  *पवित्र किरणों से मुझे परी समान सजाकर खुशियों के गगन में उड़ाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे फूल बच्चे... *आप सुंदर देवता बन सुंदर दुनिया में चलोगे असीम खुशियां और आनन्द से खिलोगे... इस दुनिया का बदलाव समीप है...* पर नई दुनिया की पवित्रता पहली शर्त है... इसलिए पवित्रता को अपनाकर अनोखी दिव्यता से नई दुनिया के हकदार बनो...

 

_ ➳  *मैं आत्मा स्वर्ग की यादों में झूमती, नाचती, पवित्र किरणों में खिलखिलाती हुई कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा पवित्र बन कितनी खूबसूरत होती जा रही हूँ... *मीठा बाबा मेरे लिए प्यारी सी दुनिया बनाने धरा पर उतर आया है... मै इस विनाशी दुनिया के विकारी जीवन को छोड़ चमकीली पवित्र होती जा रही हूँ...”*

 

  *खुशियों के बगीचे की रूहानी फूल बनाकर पवित्रता की खुशबू से महकाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *इस विनाशी दुनिया से ममत्व निकाल नई दुनिया सुखो के संसार को याद करो...* पवित्र बन कर अनन्त खुशियो में मुस्कराओ... और शानदार सुखो की दुनिया के मालिक बन सदा के आनन्दित हो जाओ...

 

_ ➳  *इस पुरानी दुनिया से प्रीत निकाल सुखधाम को यादों में बसाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा इस विनाशी देह और दुनिया से मुक्त होती जा रही हूँ... *पवित्रता को दामन में सजाये स्वर्ग के लिए दिव्य प्रकाश से भरती जा रही हूँ... प्यारा बाबा मुझे सुखधाम में ले जाने आ गया है...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- किसी भी परिस्थिति में बाप और वर्से को याद करना है*"

 

 _ ➳  *स्वर्ग की स्थापना करने वाले अपने भगवान बाप और उनसे मिलने वाले स्वर्ग के वर्से को एकांत में बैठ याद करते हुए मैं अनुभव करती हूँ जैसे मेरे मीठे बाबा अपने रथ पर सवार होकर मेरे सामने आ गए हैं और अपनी दोनों बाहों को फैलाये बड़े प्यार से मेरी और निहार रहें हैं*। बापदादा की लाइट माइट जैसे - जैसे मुझे छू रही है ऐसा लग रहा है जैसे मेरा साकार शरीर बिल्कुल जड़ होता जा रहा है और एक लाइट का अति सूक्ष्म शरीर मेरे उस जड़ साकार शरीर से बाहर निकल रहा है।

 

 _ ➳  मैं आत्मा भी अपने साकार शरीर को छोड़ इस अति सूक्ष्म आकारी शरीर में विरजमान हो गई हूँ। अपने इस अति सूक्ष्म लाइट के आकारी शरीर मे मैं स्वयं को बहुत ही हल्का अनुभव कर रही हूँ। *यह हल्कापन मुझे एक अद्भुत सुखद अनुभूति करवा रहा है। धरती का आकर्षण जैसे समाप्त हो गया है और मैं डबल लाइट बन धीरे - धीरे बापदादा की ओर जा रही हूँ*। बापदादा के पास पहुंच कर मैं देख रही हूँ बाबा बाहें फैलाये खड़े है। बाबा के एक हाथ में स्वर्ग का मॉडल है। उसे देखते ही बाबा के महावाक्य स्मृति में आने लगते है कि "बच्चे मैं तुम्हारे लिए हथेली पर बहिश्त ले कर आया हूँ"

 

 _ ➳  अचंभित होकर मैं बाबा की हथेली को देख रही हूँ। बाबा मुस्कराते हुए मुझे इशारा कर अपने पास बुलाते हैं। *जैसे - जैसे मैं बाबा के और नजदीक जा रही हूँ मेरा सूक्ष्म शरीर और भी सूक्ष्म होता जा रहा है*। इतना सूक्ष्म कि बाबा मुझे अपनी हथेली पर उठा लेते हैं। देखते ही देखते उस स्वर्ग के मॉडल के अंदर मैं प्रवेश कर जाती हूँ। *इस मॉडल के अंदर प्रवेश करते ही मैं स्वयं को प्रकृतिक सौंदर्य से भरपूर एक बहुत ही सुंदर स्वर्गिक दुनिया में पाती हूँ*।

 

 _ ➳  देवी देवताओं की इस अति सुन्दर दुनिया देवलोक में अब मैं स्वयं को अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई स्वरूप में देख रही हूँ। जहां चारों ओर प्रकृति का अद्भुत सौंदर्य है। *हरे भरे पेड़ पौधे और उन पेड़ पौधों की टालियों पर चहचहाते रंग-बिरंगे खूबसूरत पक्षी, वातावरण में गूंजती कोयल की मधुर आवाज, फूलों पर इठलाती रंग बिरंगी तितलियां, बागों में नाचते सुंदर मोर, कल-कल करते सुगंधित मीठे जल के झरने, रस भरे फलों से लदे वृक्ष और चारों ओर अपनी सतरंगी छटा बिखेरती सूर्य की किरणे*। ऐसा प्रकृति का सौंदर्य मैं अपनी आंखो से देख आनन्द विभोर हो रही हूँ।

 

 _ ➳  इस देवपुरी में राजा हो या प्रजा सभी असीम सुख, शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर हैं। चारों ओर ख़ुशी की शहनाइयाँ बज रही हैं। रमणीकता से भरपूर देवलोक के इन खूबसूरत नजारों का भरपूर आनन्द लेने के बाद मैं स्वयं को फिर से अपने उसी अति सूक्ष्म लाइट के शरीर में देखती हूँ और उस मॉडल से बाहर निकल आती हूँ। *अपने प्यारे बापदादा के मुख पर मैं फिर से वही गुह्य मुस्कराहट देख रही हूँ और उस मुस्कराहट में छुपे राज को जानने का प्रयास कर रही हूँ*। बाबा की यह अति गुह्य मुस्कराहट बाबा के हर संकल्प को मेरे सामने स्पष्ट कर रही हैं। अपने संकल्प द्वारा बाबा मुझे 21 पीढ़ी के लिए स्वर्ग का वर्सा लेने का पुरुषार्थ करने का इशारा दे रहें हैं।

 

 _ ➳  बापदादा के हर इशारे को समझ, बाबा से 21 पीढ़ी का वर्सा लेने के लिए बाप और वर्से को याद करने का पुरुषार्थ करने की स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा और बाबा से प्रोमिस करके अब मैं वापिस अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट आती हूँ और *इस प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए, विश्व महाराजन बनने के अपने लक्ष्य को सदा स्मृति में रख, अपने इस लक्ष्य को पाने के लिए निरन्तर बाप और वर्से को याद करने का पुरुषार्थ अब मैं हर पल कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं चलते - फिरते फरिश्ते स्वरूप का साक्षत्कार कराने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं साक्षत्कारमूर्त आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सदा रूहानी मौज का अनुभव करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा मूंझने से सदैव मुक्त हूँ  ।*

   *मैं सदा रूहानियत में रहने वाली आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  तो ऐसे एवररेडी हो अर्थात् अनुभवी स्वरूप हो? साथ जाने के लिए तैयार हो ना या कहेंगे अभी अजुन यह रह गया है! ऐसी अनुभूति होती है वा सेवा में इतने बिजी हो गये हो जो घर ही भूल जाता है। सेवा भी इसीलिए करते हो कि आत्माओं को मुक्ति वा जीवनमुक्ति का वर्सा दिलावें। सेवा में भी यह स्मृति रहे कि बाप के साथ जाना है तो सेवा में सदा अचल स्थिति रह सकती है? *सेवा के विस्तार में सार रूपी बीज की अनुभूति को भूलो मत। विस्तार में खो नहीं जाओ। विस्तार में आते स्वयं भी सार स्वरूप में स्थित रह और औरों को भी सार स्वरूप की अनुभूति कराओ। समझा -अच्छा।*

 

✺  *"ड्रिल :- सेवा के विस्तार में सार रूपी बीज की अनुभूति करना”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा मन रूपी घोड़े में बैठकर रंग-बिरंगी दुनिया के आकर्षणों के विस्तार में दौड़ लगा रही थी...* अपनी मंजिल को ढूंढते हुए न जाने कहाँ-कहाँ भटक रही थी... *अब परमपिता शिव बाबा ने आकर मंजिल तक पहुँचने का रास्ता बताकर भटकती हुई मेरे मन रूपी घोड़े की दिशा बदल दी...* अब मैं आत्मा मन रूपी घोड़े की लगाम को अपने हाथों में पकड़कर पहुँच जाती हूँ परमधाम...

 

_ ➳  *मैं आत्मा परमधाम में चमकते हुए ज्योतिबिंदु से निकलती हुई रंग-बिरंगी किरणों में खो जाती हूँ...* दुनियावी रंगों के मुकाबले बाबा से निकलती हुई किरणों का रंग कितना ही आकर्षणीय है... प्यारे बाबा से ज्ञान, गुण, शक्तियों की अलग-अलग रंगों की किरणें निकलकर मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं... मैं आत्मा इन किरणों से भरपूर होकर सम्पन्न बन रही हूँ... सर्व खजानों की मालिक होने का अनुभव कर रही हूँ...

 

_ ➳  अब मैं आत्मा विश्व सेवाधारी की स्टेज पर स्थित हो जाती हूँ... *मैं आत्मा महादानी बन बाबा से प्राप्त अविनाशी ज्ञान को सबमें बाँट रही हूँ...* गुण, शक्तियों के खजानों को स्वयं के लिए और सम्बन्ध सम्पर्क में आने वालों के लिए समय प्रमाण यूज कर रही हूँ... *मैं आत्मा ज्ञान, योग, धारणा, सेवा चारों सब्जेक्ट्स में पास विद आनर होने का पुरुषार्थ कर एवररेडी बन रही हूँ...*

 

_ ➳  मैं आत्मा भटकती हुई आत्माओं को बाबा का सन्देश देकर उनका भटकन समाप्त कर रही हूँ... *सबको राजयोग का गुह्य ज्ञान देकर सच्चा-सच्चा राजमार्ग बता रही हूँ...* जिस राजमार्ग पर चलकर राजाओं का भी राजा बनते हैं... मुक्ति वा जीवनमुक्ति का वर्सा पाते हैं... मैं आत्मा विश्व कल्याणकारी बन सेवा निःस्वार्थ सेवा कर रही हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा इसी स्मृति में रहकर सेवा करती हूँ कि बाबा के साथ वापस घर जाना है... *स्मृति स्वरुप बन औरों को भी सदा घर की स्मृति दिलाकर एवररेडी बनाने की सेवा कर रही हूँ...* अब मैं आत्मा सदा अचल स्थिति में रहकर सेवा करती हूँ... सदा बाबा की और घर की याद में रहकर सेवा कर रही हूँ... मैं आत्मा सदा बीजरूप धारण कर बीजरूप बाबा की याद में ही रहती हूँ... *अब मैं आत्मा सेवा के विस्तार में आकर स्वयं भी सार स्वरूप में स्थित रहती हूँ और औरों को भी सार स्वरूप की अनुभूति कराती हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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