━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 30 / 05 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अशरीरी बनने का अभ्यास किया ?*
➢➢ *अपनी चलन का चार्ट रखा ?*
➢➢ *अपनी महानता और महिमा को जाना ?*
➢➢ *स्थिति सदा खजानों से संपन्न और संतुष्ट रही ?*
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ बापदादा बच्चों को विशेष ईशारा दे रहे हैं-बच्चे अब तीव्र पुरुषार्थ की लगन को अग्नि रूप में लाओ, ज्वालामुखी बनो। *जो भी मन के, सम्बन्ध-सम्पर्क के हिसाब-किताब रहे हुए हैं-उन्हें ज्वाला स्वरूप की याद से भस्म करो।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✺ *"मैं श्रेष्ठ संगमयुग की श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ इस ड्रामा के श्रेष्ठ युग संगम की श्रेष्ठ आत्माएं हैं - ऐसे अनुभव करते हो? संगमयुग की महिमा अच्छी तरह से स्मृति में रहती है? क्योंकि संगमयुग को वरदान मिला हुआ है - संगमयुग में ही वरदाता वरदानों से झोली भरते हैं। आप सबकी बुद्धि रूपी झोली वरदानों से भरी हुई है? खाली तो नहीं है? थोड़ी खाली है या इतना भरा हुआ है जो औरों को भी दे सकते हो? *क्योंकि वरदानों का खजाना ऐसा है, जो जितना औरों को देंगे, उतना आपमें भरता जायेगा। तो देते जाओ और बढ़ता जाता है। जितना बढ़ाने चाहते हो उतना देते जाओ।* देने की विधि आती है ना? क्योंकि जानते हो - यह सब अपना ही परिवार है। आपके ब्रदर्स है ना? अपने परिवार को खाली देख रह नहीं सकते हैं। ऐसा रहम आता है? क्योंकि जैसा बाप, वैसे बच्चे।
〰✧ तो सदैव यह चेक करो कि मैंने मर्सीफुल बाप का बच्चा बन कितनी आत्माओंपर रहम किया है? सिर्फ वाणी से नहीं, मन्सा अपनी वृत्ति से वायुमण्डल द्वारा भी आत्माओंको बाप द्वारा मिली हुई शक्तियां दे सके। तो मन्सा सेवा करने आती है? *जब थोड़े समय में सारे विश्व की सेवा सम्पन्न करनी है तो तीव्र गति से सेवा करो। जितना स्वयं को सेवा में बिजी रखेंगे उतना स्वयं सहज मायाजीत बन जायेंगे। क्योंकि औरों को मायाजीत बनाने से उन आत्माओंकी दुवाएं आपको और सहज आगे बढ़ाती रहेगी।*
〰✧ मायाजीत बनना सहज लगता है या कठिन? आप जब कमजोर बन जाते हैं तब माया शक्तिशाली बनती है। आप कमजोर नहीं बनो। बाबा तो सदैव चाहते हैं कि हर एक बच्चा मायाजीत बनें। तो जिससे प्यार होता है, वो जो चाहता है, वही किया जाता है। बाप से तो प्यार है ना? तो करो। जब यह याद रहेगा कि बाप मेरे से यही चाहता है तो स्वत: ही शक्तिशाली हो जायेंगे और मायाजीत बन जायेगे। माया आती तब है, जब कमजोर बनते हो। इसलिए सदा मास्टर सर्वशक्तिवान बनो। *मास्टर सर्वशक्तिवान बनने की विधि है - चलते-फिरते याद की शक्ति और सेवा की शक्ति देने में बिजी रहो। बिजी रहना अर्थात् मायाजीत रहना। रोज अपने मन का टाइमटेबुल बनाओ। मन बिजी होगा तो मनजीत मायाजीत हो ही जायेंगे।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ स्वयं को अशरीरी आत्मा अनुभव करते हो? *इस शरीर द्वारा जो चाहे वही कर्म कराने वाली तुम शक्तिशाली आत्मा हो - ऐसा अनुभव करते हो?* इस शरिर के मालिक कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराने वाले, इन कर्मेन्द्रियों से जब चाहो तब न्यारे स्वरूप की स्थिति में स्थित हो सकते हो?
〰✧ अर्थात राजयोग की सिद्धि - कर्मेन्द्रियों के राजा बनने की शक्ति प्राप्त की है? *राजा वा मालिक कभी भी कोई कर्मेन्द्रियों के वशीभूत नहीं हो सकता।* वशीभूत होने वाले को मालिक नहीं कहा जाता।
〰✧ विश्व के मालिक की सन्तान होने के नाते, *जब बाप विश्व का मालिक हो और बच्चे अपनी कर्मेन्द्रियों के मालिक न हो, तो क्या कहेंगे? मालिक के बालक कहेंगे?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ एक सेकेण्ड का खेल है अभी-अभी शरीर में आना और अभी-अभी शरीर से अव्यक्त स्थिति में स्थित हो जाना। इस सेकण्ड के खेल का अभ्यास है, जब चाहो जैसे चाहो उसी स्थिति में स्थित रह सको। अन्तिम पेपर सेकण्ड का ही होगा जो इस सेकण्ड के पेपर में पास हुआ वही पास-विद्-ऑनर होगा। अगर एक सेकण्ड की हलचल में आया तो फेल, अचल रहा तो पास। ऐसी कन्ट्रोलिंग पावर है। अभी ऐसा अभ्यास तीव्र रूप का होना चाहए। *जितना हंगामा हो उतना स्वयं की स्थिति अति शान्त। जैसे सागर बाहर आवाज़ सम्पन्न होता अन्दर बिल्कुल शान्त, ऐसा अभ्यास चाहिए। कण्ट्रोलिंग पावर वाले ही विश्व को कन्ट्रोल कर सकते हैं। जो स्वयं को नहीं कर सकते वह विश्व का राज्य कैसे करेंगे।* समेटने की शक्ति चाहिए। एक सेकण्ड में विस्तार से सार में चले जायें। और एक सेकण्ड में सार से विस्तार में आ जायें यही है वण्डरफुल खेल।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ज्ञान की प्वाइंट्स को स्मृति में रखना"*
➳ _ ➳ एक खुबसूरत पहाड़ी पर बैठकर... पहाड़ो के सौंदर्य को निहारते हुए मै आत्मा... पहाड़ो की ऊंचाई देख... *अपनी ज्ञान की ऊँची अवस्था... और ऊँचा उठाने वाले मीठे बाबा को याद करती हूँ..*. और सोचके आनन्दित हो रही हूँ... कि कितना प्यारा भाग्य मुझ आत्मा ने पाया है... भगवान जीवन में शिक्षक बनकर... कितनी ऊँची तालीम से मुझे सजा रहा है... *देह की हदो से निकाल मुझे बेहद में बसा रहा है.*.. इन सुंदर पहाड़ो की तरहा मै आत्मा... विश्व जगत में अनोखी बनकर शान से मुस्करा रही हूँ... और मीठे बाबा को यादो में दिल से शुक्रिया कहती हूँ...
❉ *मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपने मीठे सुखो की याद दिलाते हुए कहते है;-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *अपने सच्चे सहारे मीठे बाबा को शिक्षक रूप में पाकर बेहद को जानने वाले मा त्रिकालदर्शी बन मुस्करा रहे हो.*.. विश्व के आदि मध्य अंत को जानने वाले ज्ञान की रौशनी से प्रकाशित हो... ऐसे मीठे भाग्य मे सदा आनन्दित रहो...
➳ _ ➳ *मै आत्मा मीठे बाबा के ज्ञान धन को दिल में समाते हुए कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे मेरे बाबा... मै आत्मा अज्ञान के अंधेरो में और दुखो के जंगल में भटक रही थी... *आपने मुझे ढूंढ कर अपना बच्चा बनाया है... और देवताई राज्यभाग्य से मेरा दामन सजाया है..*. मै आत्मा इन मीठी खुशियो में झूम रही हूँ..."
❉ *प्यारे बाबा मुझ आत्मा को सच्ची खुशियो से सजाकर अपने भाग्य का नशा दिलाते हुए कहते है ;-* "मीठे लाडले बच्चे... *कितना प्यारा और खुबसूरत सा भाग्य है... कि तीनो कालो तीनो लोको को जानने वाले, मा नॉलेजफुल बन मुस्करा रहे हो.*.. दुनिया किन अंधेरो में जी रही... और आप ज्ञान की चमक से सुखो भरे उजालो में आ गए हो...
➳ _ ➳ *मै आत्मा प्यारे बाबा को टीचर रूप में पाकर अपने भाग्य पर पुलकित होते हुए मीठे बाबा से कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा देह के अँधेरे में खुद को भी खो गयी थी... *आपने मेरा सच्चा वजूद याद दिलाकर, मुझे सारे भ्रमो से मुक्त कर दिया है.*.. मुझे अपनी खोयी चमक से पुनः सजा दिया है..."
❉ *मीठे बाबा मुझ आत्मा को ज्ञान रत्नों की माला से सजाकर कहते है :-* "मीठे सिकीलधे बच्चे... *देह की हदो से निकलकर, विश्व जगत को जानने वाले मा ज्ञान सागर बनकर मुस्करा रहे हो..*. ज्ञान रत्नों को सदा बुद्धि में गिनकर ख़ुशी में नाचते रहो... ईश्वरीय खजानो को पाने वाले मालामाल हो..."
➳ _ ➳ *मै आत्मा प्यारे बाबा की खानों की मालिक बनकर ख़ुशी में झूमते हुए कहती हूँ :-* "मीठे दुलारे बाबा मेरे... *आपने जीवन में आकर जीवन को खुशियो का मधुमास बनाया है..*.मै आत्मा आज देह के, दुखो के, सारे कष्टो को भूल अलौकिक आनन्द में मगन हूँ... और सच्चे ज्ञान को पाकर सदा के लिए हर्षित हूँ..."प्यारे बाबा को अपने खुशनुमा जीवन की कहानी सुनाकर मै आत्मा... अपने धरातल पर आ गयी...
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- शरीर का भान बिल्कुल भूल जाये, यह मेहनत करनी है*"
➳ _ ➳ "मैं अजर, अमर, अविनाशी आत्मा हूँ, देह नही" इस सत्य को स्वीकार करते ही यह देह और इस देह से जुड़ी हर चीज से ममत्व निकलने लगता है और मैं आत्मा अपने सत्य स्वरूप में स्वत: ही स्थित हो जाती हूँ। *देख रही हूँ अब मैं केवल अपने अनादि सत्य स्वरूप को जो बहुत ही न्यारा और प्यारा है*। एक चैतन्य सितारा जिसमे से रंग बिरंगी शक्तियो की किरणें निकल रही है, इस देह रूपी गुफा में, मस्तक रूपी दरवाजे पर चमकता हुआ, अपने प्रकाश से इस देह रूपी गुफा में प्रकाश करता हुआ मुझे स्पष्ट दिखाई दे रहा है। *एक ऐसा प्रकाश जिसमे ऐसी हीलिंग पॉवर है जो पूरे शरीर को हील कर रही है*।
➳ _ ➳ मैं आत्मा इस देह रूपी गुफा में बैठी, अँखियों की खिड़कियों से अपने आस - पास फैले उस रूहानी वायुमण्डल को देख आनन्द विभोर हो रही हूँ जो मुझ आत्मा से निकलने वाले प्रकाश की हीलिंग पॉवर से बहुत ही शक्तिशाली बन रहा है। *इस रूहानी वायुमण्डल के प्रभाव से हर चीज मुझे रूहानियत से भरपूर दिखाई दे रही हैं*। मुझ आत्मा में निहित सातों गुणों की सतरंगी किरणों के प्रकाश से बनने वाला औरा एक खूबसूरत इंद्रधनुष के रूप में मुझे अपने चारों और दिखाई दे रहा है जिसमे से सातों गुणों की सतरंगी किरणे फ़ुहारों के रूप में मेरे रोम - रोम को प्रफुलित कर रही हैं।
➳ _ ➳ ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे किसी सतरंगी झरने के नीचे मैं खड़ी हूँ और उससे आने वाली शीतल फ़ुहारों का आनन्द ले रही हूँ जो मेरे अंतर्मन को पूरी तरह से शांन्त और शीतल बना रही हैं। *इस अति शांन्त और शीतल स्थिति में स्थित, अब मैं विचार करती हूँ कि अपने अनादि स्वरूप में मैं आत्मा कितनी शांन्त और शीतल हूँ किन्तु देह का भान आते ही मेरे अंदर की शांति को जैसे ग्रहण लग जाता है और मैं कितनी दुखी और अशांत हो जाती हूँ*। अगर मैं सदैव अपने इस अनादि स्वरूप की स्मृति में रहूँ तो कोई भी बात मुझे देह भान में ला कर दुखी और अशान्त नही कर सकती।
➳ _ ➳ केवल मेरा अनादि ज्योति बिंदु स्वरूप ही सत्य है, और सदा के लिए है। बाकी इन आँखों से जो कुछ भी दिखाई दे रहा है वो सब विनाश होने वाला है। यहां तक कि यह देह भी मेरी नही, यह भी विनाशी है। *यह बात स्मृति में आते ही मैं आत्मा मोहजीत बन अब इस देह से ममत्व निकाल, इस नश्वर देह का त्याग कर एक अति सुन्दर रूहानी यात्रा पर चल पड़ती हूँ*। कितनी सुंदर और आनन्द देने वाली है यह यात्रा। हर प्रकार के बंधन से मुक्त, एक आजाद पँछी की भांति मैं उन्मुक्त हो कर उड़ रही हूँ। *उड़ते - उड़ते मैं विशाल नीलगगन को पार कर, सूक्ष्म लोक से परें, जगमग करते, चमकते सितारों की खूबसूरत दुनिया में प्रवेश करती हूँ*।
➳ _ ➳ लाल प्रकाश से प्रकाशित यह सितारों की दुनिया गहन शांति की अनुभूति करवा कर मन को तृप्त कर रही है। अपने बिल्कुल सामने मैं अपने पिता शिव परमात्मा को एक ज्योतिपुंज के रूप में देख रही हूँ। *अनन्त शक्तियों की किरणें बिखेरता उनका सलोना स्वरूप मुझे स्वत: ही अपनी और खींच रहा है और उनके आकर्षण में आकर्षित हो कर मैं उनके अति समीप पहुंच कर उनके साथ अटैच हो गई हूँ*। मेरे शिव पिता की सारी शक्ति मुझ आत्मा में भरती जा रही है। स्वयं को मैं सर्वशक्तियों का एक शक्तिशाली पुंज अनुभव कर रही हूँ। अपने शिव पिता की अथाह शक्ति से भरपूर हो कर अब मैं आत्मा वापिस अपने शरीर रूपी गुफा में लौट रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण तन में, जो मेरे शिव पिता परमात्मा की देन है, उस तन में भृकुटि पर विराजमान हो कर अब मैं इस सृष्टि रंगमंच पर अपना एक्यूरेट पार्ट बजा रही हूँ। *देह से ममत्व निकाल, मोहजीत बन अपने अनादि स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं हर कर्म कर रही हूँ*। आत्मिक स्मृति में रह कर हर कर्म करने से मैं कर्म के हर प्रकार के प्रभाव से मुक्त होकर, कर्मातीत अवस्था को सहज ही प्राप्त करती जा रही हूँ।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं अपनी महानता और महिमा को जानने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सर्व आत्माओं में विश्व द्वारा पूजनीय आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा स्थिति सदा खज़ानों से संपन्न और संतुष्ट रखती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा स्वस्थिति से परिस्थितियों को बदल देती हूँ ।*
✺ *मैं संपन्न और संतुष्ट आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ जैसे घर में घर की सामग्री (सामान) होती है,ऐसे इस देह रूपी घर में
भिन्न-भिन्न कर्मेन्द्रियाँ ही सामग्री हैं। तो घर का त्याग अर्थात् सर्व का
त्याग। घर को छोड़ा लेकिन कोई एक चीज में ममता रह गई तो उसको त्याग कहेंगे? *ऐसे
कोई भी कर्मेन्द्रिय अगर अपने तरफ आकर्षित करती है तो क्या उसको सम्पूर्ण त्याग
कहेंगे?इसी प्रकार अपनी चेकिंग करो। ऐसे अलबेले नहीं बनना कि और तो सब छोड़ दिया
बाकी कोई एक कर्मेन्द्रिय विचलित होती है वह भी समय पर ठीक हो जायेगी। लेकिन
कोई एक कर्मेन्द्रिय की आकर्षण भी एक बाप का बनने नहीं देगी।* एकरस स्थिति में
स्थित होने नहीं देगी। नम्बरवन में जाने नहीं देगी। अगर कोई
हीरेजवाहर,महल-माड़िया छोड़ दे और सिर्फ कोई मिट्टी के फूटे हुए बर्तन में भी मोह
रह जाए तो क्या होगा? जैसे हीरा अपनी तरफ आकर्षित करता वैसे हीरे से भी ज्यादा
वह फूटा हुआ बर्तन उसको अपनी तरफ बार-बार आकर्षित करेगा। न चाहते भी बुद्धि
बार-बार वहाँ भटकती रहेगी। ऐसे अगर कोई भी कर्मेन्द्रिय की आकर्षण रही हुई है
तो श्रेष्ठ पद पाने से बार-बार नीचे ले आयेगी। तो पुराने घर और पुरानी सामग्री
सबका त्याग चाहिए। ऐसे नहीं समझो यह तो बहुत थोड़ा है, लेकिन यह थोड़ा भी बहुत
कुछ गंवाने वाला है, सम्पूर्ण त्याग चाहिए।
✺ *"ड्रिल :- अपनी चेकिंग करना कि कोई भी एक कर्मेन्द्रिय अपनी तरफ आकर्षित तो
नहीं कर पायी*”
➳ _ ➳ मैं आत्मा सेन्टर जाने के लिए घर की सीढियां उतरती हूँ... आखिरी सीढ़ी पर
कदम रखते ही मेरी आँखों के सामने सृष्टि चक्र की सीढ़ी का चित्र याद आ जाता
है... *मैं आत्मा अपने पिता से बिछुड़कर पार्ट बजाने इस सृष्टि में आई और सीढ़ी
उतरते-उतरते इस कलियुगी सृष्टि के आखिरी पायदान पर पहुँच गई... मैं आत्मा पीछे
मुड़कर देखती हूँ तो मुझे ऐसा लगता है जैसे पहली सीढ़ी पर बाबा खड़े मुस्कुरा रहे
हैं...* फिर बाबा मेरे पास नीचे आते हैं... मैं आत्मा बाबा का हाथ पकड सेन्टर
पहुँच जाती हूँ...
➳ _ ➳ *बाबा मुझे मुरली सुनाकर कहते हैं बच्चे- आधे कल्प से तुम इस देह रूपी घर
को ही अपना समझ बैठे थे... देह रूपी घर में भिन्न-भिन्न कर्मेन्द्रियाँ ही
सामग्री हैं...* अपनी चेकिंग कर सभी कर्मेन्द्रियों की कचहरी लगाओ कि कोई भी
कर्मेन्द्रिय अपनी तरफ आकर्षित तो नहीं करती है? अगर एक भी कर्मेन्द्रिय
आकर्षित करती है तो उसको सम्पूर्ण त्याग नहीं कहेंगे... इसमें अलबेले नहीं बनो...
➳ _ ➳ *कोई एक कर्मेन्द्रिय का भी आकर्षण होगा तो बुद्धि बार-बार वहाँ भटकती
रहेगी... एक बाप का बनने नहीं देगी... एकरस स्थिति में स्थित होने नहीं देगी...*
नम्बरवन में जाने नहीं देगी... श्रेष्ठ पद पाने से वंचित रह जाओगे...
कर्मेन्द्रिय का आकर्षण नीचे की ओर खींचेगा ऊपर उड़ने नहीं देगा... पुराने देह
रूपी घर और पुराने कर्मेन्द्रियों रूपी सामग्री सबका त्याग कर सम्पूर्ण त्यागी
बनो...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपनी चेकिंग करती हूँ, एक-एक कर्मेन्द्रिय की कचहरी लगाती
हूँ... क्या मेरे मन-बुद्धि में किसी भी तरह के व्यर्थ संकल्प तो नहीं चलते
हैं...* क्या मैं आत्मा पुराने स्वभाव-संस्कार वश आलस्य, अलबेलेपन में तो नहीं
आती हूँ... क्या मैं अमृतवेले न उठकर मायावी नींद में अपना अमूल्य समय तो नही
गंवाती हूँ... क्या मेरी आँखें इस पुरानी विनाशी दुनिया के आकर्षण में तो नहीं...
➳ _ ➳ क्या मेरे कान इधर-उधर की व्यर्थ नकारात्मक बातों को सुनने में तो मजा नहीं
ले रहे... क्या मेरी जिव्हा अशुद्ध भोजन का रस तो नहीं ले रही... क्या मेरे हाथ
कोई ऐसे कार्य तो नहीं कर रहे जिससे विकर्म बने... क्या मेरे कदम सदा फालो फादर
करते हैं... *क्या मैं आत्मा अपने कर्मेन्द्रियों के आकर्षण में आकर बाबा की
श्रीमत का उल्लंघन तो नहीं करती हूँ...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा की याद में बैठकर दिव्य शक्तिशाली किरणों को अपने में
ग्रहण करती हूँ... तेजस्वी किरणों में नहाकर मैं आत्मा अपने सभी कमी-कमजोरियों
को समाप्त कर रही हूँ... एक-एक कमजोरी को अंश सहित बाबा की ज्वालामुखी किरणों
में भस्म कर रही हूँ... *अब मैं आत्मा सर्व कर्मेन्द्रियों के आकर्षण से मुक्त
होकर कर्मेन्द्रियजीत बन रही हूँ... अब मैं आत्मा सम्पूर्ण त्याग कर श्रेष्ठ पद
पाने की अधिकारी बन गई हूँ...*
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━