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 21 / 05 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *योगबल की ताकत से अपनी कर्मेन्द्रियों को शीतल बनाया ?*

 

➢➢ *स्वदर्शन चक्रधारी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *शक्तिशाली सेवा द्वारा निर्बल में बल भरा ?*

 

➢➢ *हर परिस्थिति को उडती कला का साधन समझकर सदा उड़ते रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *एक बाप दूसरा न कोई-यही आपकी अखण्ड-अटल साधना है। यह अखण्ड-अटल साधना वहाँ अखण्ड राज्य का अधिकारी बना देती है।* यहाँ का छोटा-सा संसार बापदादा, मात-पिता और बहन-भाई, वहाँ के छोटे संसार का आधार बनता है।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बापदादा के स्नेह की दुआओंसे पलने वाली आत्मा हूँ"*

 

  हर समय ऐसा अनुभव करते हो कि बापदादा के स्नेह की दुआये हम ब्राह्मण-आत्माओंकी पालना कर आगे बढ़ा रही है। जहां दुआये होती है, वहां बाप का सर्व सम्बंध की प्रगति बहुत सहज और तीव्र होती है। तो सहज लगता है या कभी-कभी मुश्किल हो जाता है? *जब मेहनत का अनुभव हो तो उस समय चेक करना चाहिए कि किस श्रीमत की लकीर से बाहर जा रहे हैं? चाहे संकल्प में, चाहे बोल में, चाहे कर्म वा सेवा की लकीर से बाहर निकलते हो तब माया की आकर्षण मेहनत कराती है।* ब्राह्मण-जीवन की मर्यादाएं पसंद है या मुश्किल लगती है? कौन-सी मर्यादा मुश्किल लगती है? जो भी मार्यादाएं हैं, उससे देखो- इसमें फायदा क्या है? अगर फायदा सामने आयेगा तो मुश्किल नहीं लगेंगी। जब कोई कमजोरी आती है तब मुश्किल लगता है। यह मर्यादाएं बनाने वाला कौन है, किसने बनाई है? बाप ने बनाई है!

 

  बाप का बच्चों से बेहद का प्यार है, जिससे प्यार होता है उसके लिए हमेशा कोई भी उसकी मुश्किल होगी तो सहज की जायेगी। कोई सैलवेशन चाहिए तो ले सकते हो लेकिन मुश्किल है नहीं। जो निमित्त बने हैं, उनसे स्पष्ट बोलो, अपने दिल का भाव सुनाओ फिर अगर राइट होगा तो उसी प्रमाण सैलवेशन मिलेगी। क्योकि जिसे आप समझते हो कि यह होना चाहिए और वह नहीं होता तो मुश्किल लगता है लेकिन जिसे आप समझते हो - होना चाहिए, उससे कितना फायदा, कितना नुकशान है - वह बाप और अनुभवी आत्माएं ज्यादा जानती हैं। *जहां प्यार होता है वहां कुछ मुश्किल नहीं होता है। और बापदादा ऐसी बात तो कहेंगे नहीं जिससे बच्चों का कोई नुकसान हो, इसलिए ये मर्यादाएं भी बाप का प्यार है, क्योंकि इसमें चलने से शक्ति आती है, सेफ रहते हो और खुशी होती है।* बापदाद जानते हैं - आस्ट्रेलिया के बच्चे मैजारिटी पुराने, अनुभवी और मजबूत हैं। इसलिए जो मजबूत हैं, उसे सदा ही सहज अनुभव होता है।

 

  अगर शक्तियां आगे बढ़ती है तो पांडवों को खुशी होती है ना? किसको आगे बढ़ाना इसमें स्वयं को आगे बढ़ाना समाया हुआ है। जो सब बातों में विन करता है वह वन है। फलक से कहो 'हम नहीं विजयी होंगे तो कौन होगा!' भले दूसरे आयें लेकिन आप तो हो ना? सदा विजयी बन आगे बढ़ने और औरों को आगे बढ़ाने के वरदानी हो। बापदादा देखते हैं कि अच्छा औरों के लिए एग्जाम्पुल बने हुए हैं। एक-दो के प्रत्यक्ष जीवन को देखकर दूसरों में भी हिम्मत आ जाती है। तो यह सेवा भी बहुत श्रेष्ठ है। *अपनी जीवन को सदा ही संतुष्ट और खुशनुमा बनाने वाले हर कदम में सेवा करते हैं। वाणी द्वारा तो सेवा करते रहेंगे, लेकिन वाणी के साथ-साथ अपने चेहरे और चलन से निरंतर सेवा करते रहना। जो भी संपर्क में आये, उसके दिल से स्वत: ही वाह-वाह के गीत निकलें।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧   *आँर्डर हो कि मास्टर रचयिता बन अपनी रचना को शुभ भावना से व शुभ चिन्तक बन, भिखारियों को उनकी माँग प्रमाण सन्तुष्ट करो तथा महादानी और वरदानी बनो तो क्या सर्व को सन्तुष्ट कर सकते हो?* या कोई सन्तुष्ट हैंगे और कोई वंचित रह जवेंगे?

 

✧  *सर्व शक्तियों के भण्डारे से क्या स्वयं को भरपूर अनुभव करते हो?* क्या सर्व शस्त्र आपके सदा साथ रहते हैं? सर्व शस्त्र अर्थात सर्व शक्तियाँ।

 

✧  *अगर एक भी शस्त्र या शक्ति कम है व कमजोर है, तो क्या वह एवररेडी कहला सकेंगे?* जैसे बाप एवरेडी अर्थात सर्व शक्तियों से सम्पन्न हैं, तो क्या वैसे फाँलो फादर हो?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *बाप बच्चों की माला सुमरते हैं। माला सुमरने में नम्बर वन कौन आयेंगे? जो न्यारे अथवा समान होंगे।* ऐसे नहीं - हम तो पीछे आये हैं हमको कोई जानते नहीं है। बाप तो सब बच्चों को जानते है। इसलिए प्यारा बनने का आधार न्यारा बनना है - यह पक्का करो। इसी पहले पाठ के पेपर में फुल माकर्स मिलने हैं। इसलिए चेक करो - चल रहा हूँ, बोल रहा हूँ जो भी कर रहा हूँ वह करते हुए, कराने वाला बन करके करा रहे हैं। *आत्मा कराने वाली है और कर्मेन्द्रियां करने वाली हैं। इसी पाठ को पक्का करने से सदा सर्व खजाने के मालिकपन का नशा रहेगा। कोई अप्राप्त वस्तु अनुभव नहीं होगी।* बाप मिला, सब मिला। सिर्फ कहने मात्र नहीं - उसे सर्व प्राप्ति का अनुभव होगा, सदा, खुशी, शान्ति, आनन्द में मग्न रहेगा। 'मिल गया, पा लिया' - यही नशा रहेगा।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा संगमयुग की ऊँची चोटी पर खडे होकर इस सृष्टि नाटक को देख रही हूँ... मुझ अनादि आत्मा ने अपने घर शांतिधाम से अवतरित होकर अपने आदि स्वरुप में स्वर्णिम सतयुग में बेहद सुख, समृद्धि से संपन्न रॉयल जीवन व्यतीत किया था...* मैं आत्मा अपना रॉयल पार्ट बजाते बजाते रावण की नगरी में आ पहुंची और मेरी रॉयलटी, गुण, शक्तियों को खोकर विकारों के वश होते चली गई... और अपने घर, अपने पिता को भूलकर दुखी हो गई थी... *अब मेरे प्राण प्रिय परमपिता परमात्मा इस संगम की ऊँची चोटी पर मेरे सम्मुख बैठकर स्वयं का परिचय देकर मुझे अपने साथ घर ले जाने आयें हैं... मुझे बेहद का वर्सा देने आएं हैं...*

 

   *मेरे प्यारे बेहद के बाबा मुझे बेहद के वर्से का अधिकारी बनाते हुए कहते हैं:-* मेरे मीठे बच्चे... यह खेल अब पूरा हो गया है... यह दुखधाम कुछ समय का है... *इन सांसो के रहते सच्चे पिता से अपना अधिकार ले लो... सिवाय पिता के यह अधिकार कोई न देगा... सब खत्म हो जायेगा पर पिता के साथ की यादे अमर होकर सुखो का वर्सा दे जाएँगी...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बेहद के बाप से बेहद के खजानों को झोली भर भरकर लूटते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा... मीठे प्यारे बाबा को यादो में समाकर अधिकारी बन रही हूँ... *ये यादे सच्चा हक दिलाकर मुझे धनवान् बना रही है... सांसो को मै आत्मा बाबा की यादो में पिरो रही हूँ...”*

 

   *प्यारे बाबा भरमार सुख, शांति की दौलत की बरसात में मुझे भिगोते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे मेरे सिकीलधे बच्चे... ये बाते ये नाते ये रिश्ते ये दुनिया सब छूट जाना है... ये भुरभुरे से खोखले रिश्ते ठग जायेंगे... *इसलिए समय रहते सच्ची यादो में डूबकर पिता से सारी सम्पत्ति ले लो... और मीठे सुखो को अपने पिता से अपने नाम लिखवा लो...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा यादों की मखमली चादर ओढ़कर प्यारे बाबा की गोद में सुख पाते हुए कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा विनाश होने से पहले प्यारे बाबा से सारी जागीर अपने नाम लिखवा रही हूँ... और मुस्कराते सुखो की मालकिन बन इतरा रही हूँ...* यादो में मैंने बाबा से सब कुछ ले लिया है...

 

   *मेरे बेहद के बाबा सारे अविनाशी खजानों की वसीयत मेरे नाम करते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे मेरे लाडले बच्चे... अब और देर न करो... वक्त से पहले वक्त को जीत लो... *ईश्वर पिता पर पूरा अधिकार जमा लो... उसे अपनी यादो से सदा का खरीद लो खाली कर दो और सदा के अमीर बन जाओ... सारे गुण और शक्तियो को लेकर विश्व के मालिक बन जाओं...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा अंतर्मन में सदा के लिए अमर ज्योति जगाकर ज्योतिर्बिंदु बाबा से कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा प्यारे बाबा से पूरा वर्सा ले रही हूँ... समय पर जाग गई हूँ... और दिल में ईश्वरीय प्रेम की लौ जगा रही हूँ...* ईश्वरीय धन को अपना धन बनाकर सदा के सुख अपने आँचल में भरवा रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  बाप से पूरा वर्सा लेने के लिए स्वदर्शन चक्रधारी बनना है*"

 

_ ➳  हम सो, सो हम इस शब्द के वास्तविक अर्थ का ज्ञान सिवाय परमात्मा के और कोई भी मनुष्य आज तक बता नही सका। *बड़े - बड़े वेद, ग्रंथ, और शास्त्र लिखने वालो ने तो हम सो, सो हम का अर्थ आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा बता कर, परमात्मा को ही सर्वव्यापी कह सारी दुनिया को ही अज्ञान अंधकार में डाल दिया*। मन ही मन यह चिंतन करती अपने प्यारे प्रभु का मैं शुक्रिया अदा करती हूँ जिन्होंने आकर इस सत्यता का बोध कराया और हम सो, सो हम का यथार्थ अर्थ बताकर हमे हमारे 84 जन्मो के सर्वश्रेष्ठ पार्ट की स्मृति दिलाई।

 

_ ➳  अपने प्यारे पिता का मन ही मन धन्यवाद करके मैं हम सो, सो हम की स्मृति में जैसे ही स्थित होती हूँ, बुद्धि में स्वदर्शन चक्र स्वत: ही फिरने लगता है और मेरे 84 जन्मो की कहानी भिन्न - भिन्न स्वरूपों में मेरी आँखों के आगे चित्रित होने लगती है। *हम सो, सो हम अर्थात ब्राह्मण सो देवता, सो क्षत्रिय, सो वैश्य, सो शूद्र, सो फिर से ब्राह्मण बनने के बीच का पूरा चक्र अब अलग - अलग स्वरूपों में बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं देख रही हूँ*।

 

_ ➳  स्वदर्शन चक्रधारी बन बुद्धि में अपने 84 जन्मो का चक्र फिराते हुए, सबसे पहले मैं देख रही हूँ अपना अनादि स्वरूप जो परमधाम में एक चमकते हुए चैतन्य सितारे के रूप में मुझे दिखाई दे रहा है। *सर्व गुणों, सर्वशक्तियों से सम्पन्न, सम्पूर्ण सतोप्रधान, सच्चे सोने के समान चमकता हुआ मेरा यह सत्य स्वरूप मन को लुभा रहा है*। अपने इस स्वरूप का गहराई से अनुभव करने के लिए मन बुद्धि के विमान पर बैठ मैं पहुँच गई हूँ अपनी निराकारी दुनिया परमधाम में और अपने प्यारे पिता के सम्मुख बैठ अपने इस सम्पूर्ण सतोप्रधान अनादि स्वरूप का भरपूर आनन्द ले रही हूँ।

 

_ ➳  अपने इस अनादि स्वरूप में अपने अंदर निहित सातों गुणों और अष्ट शक्तियों का अनुभव करके मैं आत्मा तृप्त हो कर अब अपने आदि स्वरूप का अनुभव करने के लिए मन बुद्धि से पहुँच गई हूँ उस स्वर्णिम दुनिया में जहाँ अपरमअपार सुख, शांति और सम्पन्नता है। *दुख का यहाँ कोई नाम निशान नही। ऐसी सुखों से भरी अति सुंदर, मन भावन दुनिया में अपने आपको अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई स्वरूप में मैं देख रही हूँ जो 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम है*।

 

_ ➳  सतोप्रधान प्रकृति के सुन्दर नज़ारो और स्वर्ग के सुखों का अनुभव करके अब मैं मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से देख रही हूँ अपने पूज्य स्वरूप को जो पवित्रता की शक्ति से सम्पन्न है। *अष्ट भुजाओं के रूप में अष्ट शक्तियों को धारण किये, अपने अष्ट भुजाधारी दुर्गा स्वरूप में मैं मंदिर में विराजमान हूँ*। असुरों का सँहार और अपने भक्तों की रक्षा करने वाली असुर सँहारनी माँ दुर्गा के रूप में अपने भक्तो की मनोकामनाओं को मैं अपने वरदानी हस्तों से पूर्ण कर रही हूँ।

 

_ ➳  अपने परमपवित्र पूज्य स्वरूप का अनुभव करके अब मैं अपने सर्वश्रेष्ठ पदमापदम सौभागशाली ब्राह्मण स्वरूप को देख रही हूँ। *परम पिता परमात्मा की देन अपने, डायमंड तुल्य ब्राह्मण जीवन की अखुट प्राप्तियों की स्मृति, परमात्म प्यार और परमात्म पालना का अनुभव, स्वयं भगवान द्वारा प्राप्त सर्व सम्बन्धो का सुख, अतीन्द्रीय सुख के झूले में झूलने का सुखदाई अनुभव, आत्मा परमात्मा के मिलन से प्राप्त होने वाले परमआनन्द की अनुभूति, इन सभी प्राप्तियों का अनुभव करके मैं गहन आनन्द से भरपूर होकर अब अपने फ़रिश्ता स्वरूप को देखते हुए, अपने लाइट माइट स्वरूप को धारण कर रही हूँ*।

 

_ ➳  लाइट की सूक्ष्म आकारी देह धारण कर, मैं फ़रिश्ता देह और देह की दुनिया से हर रिश्ता तोड़, इस नश्वर दुनिया को छोड़ कर अब फरिश्तो की आकारी दुनिया की ओर जा रहा हूँ। पाँच तत्वों की साकारी दुनिया को पार कर, उससे और ऊपर उड़ते हुए मैं फ़रिश्ता अपने अव्यक्त वतन में पहुँच गया हूँ। *सफेद प्रकाश की इस दुनिया में अपने प्यारे बापदादा के पास जाकर उनसे मीठी दृष्टि और वरदान ले रहा हूँ*। उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रहा हूँ। उनके साथ कम्बाइंड हो कर सारे विश्व को सकाश दे रहा हूँ। *ऐसे अपने फरिश्ता स्वरूप का अनुभव करके, अपने निराकार स्वरूप में स्थित होकर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे लौटती हूँ*।

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, इस सृष्टि रूपी कर्म भूमि पर कर्म करते, हम सो - सो हम की स्मृति से स्वदर्शन चक्र फिराते मन बुद्धि से अपने सभी स्वरूपों को देखते और उनका भरपूर आनन्द लेते हुए एक अलौकिक रूहानी नशे से अब मैं सदा भरपूर रहती हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं शक्तिशाली सेवाधारी आत्मा हूँ।*

   *मैं निर्बल में बल भरने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा हर परिस्थिति को उड़ती कला का साधन समझती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदा उड़ती कला में उड़ती रहती हूँ  ।*

   *मैं डबल लाइट फरिश्ता हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ ब्रह्माकुमार वा ब्रह्माकुमारी तो सब कहलाते हो लेकिन ब्रह्माकुमार-कुमारियों में से ही कोई माला का नम्बरवन दाना बना, कोई लास्ट दाना बना - लेकिन हैं दोनों ही ब्रह्माकुमार-कुमारी। शूद्र जीवन सबने त्याग दी फिर भी नम्बरवन और लास्ट का अन्तर क्यों? चाहे प्रवृत्ति में रह ट्रस्टी बन चल रहे हो, चाहे प्रवृत्ति से निवृत्त हो सेवाधारी बन सदा सेवाकेन्द्र पर रहे हुए हो लेकिन दोनों ही प्रकार की ब्राह्मण आत्मायें चाहे ट्रस्टी, चाहे सेवाधारी, दोनों ही नाम एक ही ब्रह्माकुमार-कुमारी कहलाते हो। सरनेम दोनों का एक ही है लेकिन दोनों का त्याग के आधार पर भाग्य बना हुआ है। *ऐसे नहीं कह सकते कि सेवाधारी बन सेवाकेन्द्र पर रहना यही श्रेष्ठ त्याग वा भाग्य है। ट्रस्टी आत्मायें भी त्याग वृत्ति द्वारा माला में अच्छा नम्बर ले सकती हैं। लेकिन सच्चे और साफ दिल वाला ट्रस्टी हो। भाग्य प्राप्त करने का दोनों को अधिकार है।*

✺ *"ड्रिल :- सच्चे और साफ़ दिल वाले ट्रस्टी बनकर रहना*”

➳ _ ➳ मैं आत्मा अपना अलौकिक जन्मदिन मनाने पहुँच जाती हूँ वतन में प्यारे बाबा के पास... प्यारे बाबा ने मुझे गोद लेकर अपना बच्चा बनाया... शूद्र से ब्राह्मण बनाकर मेरा सरनेम चेंज कर दिया... *अब मैं आत्मा शिववंशी प्रजापिता ब्रह्मा मुखवंशावली ब्राह्मण कुलभूषण हूँ... कितना ऊँचा नाम है...* कितनी ऊँची महिमा है ब्राह्मणों की... सबसे श्रेष्ठ जीवन ब्राहमण जीवन है...

➳ _ ➳ मैं आत्मा प्यारे बाबा के समीप बैठ जाती हूँ... *प्यारे बाबा मुझे अलौकिक जन्मदिन की मुबारकबाद देते हैं... और कई वरदानों रूपी सौगातों से भरपूर करते हैं...* ज्ञान, गुण, शक्तियों के खजानों से सम्पन्न करते हैं... मैं आत्मा अपने पुराने जन्म के संस्कारों, विकारों, विकर्मों से मुक्त हो रही हूँ... मैं आत्मा अपने निजी गुणों को धारण कर रही हूँ...

➳ _ ➳ *मैं आत्मा शूद्र जीवन के संस्कारों का सम्पूर्ण रूप से त्याग कर चुकी हूँ...* मुझ आत्मा के मन-बुद्धि की अशुद्ता खत्म हो गई है... मैं आत्मा ब्राह्मण जीवन की पवित्रता, सच्चाई और सफाई को धारण कर रही हूँ... मुझ आत्मा के दिल में सबके प्रति प्रेम की भावना भर रही है... अब मैं आत्मा सर्व के प्रति बेहद की शुभ-भावना, शुभ-कामना रखती हूँ...

➳ _ ➳ अब मैं आत्मा निमित्त भाव से हर कर्म कर रही हूँ... मैं आत्मा तन, मन, धन सम्पूर्ण रूप से बाबा को समर्पित हो चुकी हूँ... इस पुरानी दुनिया में मेरा कुछ भी नहीं है... मैं सिर्फ ट्रस्टी हूँ... *मैं आत्मा त्याग वृत्ति और निःस्वार्थ सेवा भावना द्वारा हर कर्म कर रही हूँ...* सब कुछ बाबा को सौंप ट्रस्टी समझने से मैं आत्मा सर्व प्रकार के बोझों से मुक्त हो गई हूँ... हलकी होकर सदा उड़ते रहती हूँ...

➳ _ ➳ *मैं आत्मा सच्ची और साफ़ दिल वाली ट्रस्टी बनकर माला का नम्बरवन दाना बनने का पुरुषार्थ कर रही हूँ...* मैं आत्मा अब जरा भी अशुद्धता को ग्रहण नहीं करती हूँ... अब सदा मैं आत्मा उंच ते उंच ब्राह्मण होने की स्मृति में रहकर हर कदम में सफलता प्राप्त कर रही हूँ... एक की याद में, एकरस स्थिति में रहकर मैं आत्मा एक नंबर में आने का भाग्य प्राप्त कर रही हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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