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 02 / 05 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *देह अभिमान में आकर किसी के नाम रूप में तो नहीं फंसे ?*

 

➢➢ *याद के चार्ट की डायरी बनायी ?*

 

➢➢ *उदारचित की विशेषता द्वारा स्व और सर्व का उद्धार किया ?*

 

➢➢ *"आप और बाप" कंबाइंड रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *वह आत्म-ज्ञानी भी जिस्मानी, अल्पकाल की तपस्या से अल्पकाल की सिद्धि प्राप्त कर लेते हैं। आप रूहानी तपस्वी परमात्म ज्ञानी हो, तो आपका संकल्प आपको विजयी रत्न बना देगा।* अनेक प्रकार के विघ्न ऐसे समाप्त हो जायेंगे जैसे कुछ था ही नहीं। माया के विघ्नों का नाम-निशान भी नहीं रहेगा।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं राजऋषि हूँ"*

 

〰✧  अपने को राजऋषि, श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? *राजऋषि अर्थात् राज्य होते हुए भी ऋषि अर्थात् सदा बेहद के वैरागी। स्थूल देश का राज्य नहीं है लेकिन स्व का राज्य है। स्व-राज्य करते हुए बेहद के वैरागी भी हो, तपस्वी भी हो क्योंकि जानते हो पुरानी दुनिया में है ही क्या।*

 

  *वैराग अर्थात् लगाव न हो। अगर लगाव होता है तो बुद्धि का झुकाव होता है। जिस तरफ लगाव होगा, बुद्धि उसी तरफ जायेगी। इसलिए राजऋषि हो, राजे भी हो और साथ-साथ बेहद के वैरागी भी हो। ऋषि तपस्वी होते हैं। किसी भी आकर्षण में आकर्षित नहीं होने वाले।* स्वराज्य के आगे यह हद की आकर्षण क्या है? कुछ भी नहीं। तो अपनेको क्या समझते हो? राजऋषि। किसी भी प्रकार का लगाव ऋषि बनने नहीं देगा, तपस्वी बन नहीं सकेंगे। तपस्या में ‘लगाव’ ही विघ्न-रूप बन कर आता है। तपस्या भंग हो जाती है।

 

  लेकिन जो बाप की लग्न में रहते हैं, वह लगाव में नहीं रहते, उसको सब सहज प्राप्त होता है। ब्राह्मण जीवन में 10 रूपया भी 100 बन जाता है। इतना धन में वृद्धि हो जाती है! प्रगति पड़ने से 10,100 का काम करता है, वहाँ 100,10 का काम करेगा। *क्योंकि अभी एकानामी के अवतार हो गये ना। व्यर्थ बच गया और समर्थ पैसा, ताकत वाला पैसा है। काला पैसा नहीं है, सफेद है, इसलिए शक्ति है। तो राजऋषि आत्मायें हैं - इस वरदान को सदा याद रखना। कहा लगाव में नहीं फँस जाना। न फँसो, न निकलने की मेहनत करो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  लास्ट पढाई का कौन -सा पाठ है और फर्स्ट पाठ कौन - सा है? फर्स्ट पाठ और लास्ट पाठ यही अभ्यास है। जैसे बच्चे का लौकिक जन्म होता है तो पहले - पहले उनको एक शब्द दिलाया जाता है वा सिखलाया जाता है ना। यहाँ भी अलौकिक जन्म लेते पहला शब्द क्या सीखा? बाप को याद करो। *तो जन्म का पहला शब्द लौकिक का भी, अलौकिक का भी वही याद रखना है।* यह मुश्किल हो सकता है क्या?

 

✧  अपने आपको ड्रिल करने का अभ्यास नहीं डालते हो। यह है बुद्धि की ड्रिल। *ड्रिल के अभ्यासी जो होते हैं तो पहले - पहले दर्द भी बहुत महसूस होता है और मुश्किल लगता है लेकिन जो अभ्यासी बन जाते हैं वह फिर ड्रिल करने के सिवाए रह नहीं सकते।* तो यह भी बुद्धि की ड्रिल करने का अभ्यास कम होने कारण पहले मुश्किल लगता है। फिर माथा भारी रहने का वा कोई न कोई विघ्न सामने बन आने का अनुभव होता रहता है।

 

✧  तो ऐसे अभ्यासी बनना ही है। इसके सिवाए राज्य - भाग्य के प्राप्ति होना मुश्किल है। जिन्हों को यह अभ्यास मुश्किल लगता है तो प्राप्ति भी मुश्किल है। इसलिए इस मुख्य अभ्यास को सहज और निरंतर बनाओ। *ऐसे अभ्यासी अनेक आत्माओं को साक्षात्कार कराने वाले साक्षात बापदादा दिखाई दे।* जैसे वाणी में आना कितना सहज है। वैसे यह वाणी से परे जान भी इतना सहज होना है। अच्छा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ ऐसी महीनता और महानता की स्टेज अपनाई हैं? हलचल थी या अचल थे? *फाईनल पेपर में चारों ओर की हलचल होगी। एक तरफ वायुमण्डल व वातावरण की हलचल। दूसरी तरफ व्यक्तियों की हलचल। तीसरी तरफ सर्व सम्बन्धों में हलचल और चौथी तरफ आवश्यक साधनों की अप्राप्ति की हलचल ऐसे चारों तरफ की हलचल के बीच अचल रहना, यही फाईनल पेपर होना है।* किसी भी आधार द्वारा अधिकारीपन की स्टेज पर स्थित रहना - ऐसा पुरुषार्थ फाइनल पेपर के समय सफलता-मूर्त बनने नही देगा।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पुरानी दुनिया से नाता तोड़ देना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा की कुटिया में बैठ मीठे बाबा की यादों के झूले में झूल रही हूँ... बाबा अपने स्नेह भरे नैनों से मुझ पर स्नेह की वर्षा कर रहे हैं... प्यार भरे वरदानी हाथों से मुझ पर वरदानों की वर्षा कर रहे हैं... इस स्नेह, प्यार की बारिश में मुझ आत्मा का सारा मैल धुल रहा है...* मुझ आत्मा का देह लोप होता जा रहा है... और मैं आत्मा इस देह और देह की दुनिया से न्यारी होती जा रही हूँ... फिर बाबा मुझे फ़रिश्ता ड्रेस पहनाकर अपनी गोद में बिठाकर मीठी-मीठी शिक्षाएं देते हैं...

 

  *प्यार की मीठी-मीठी रिमझिम करते हुए मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... *देहभान का त्यागकर सच्चे त्यागी बनकर, सदा का भाग्य बना लो... कर्मेन्द्रियों के आकर्षण से मुक्त होकर न्यारे और प्यारे होकर फ़रिश्ता बन उड़ जाओ...* अपने हर कर्म से न्यारे हो... निराकारी स्वरूप में खो जाओ... इस धरा पर मेहमान होकर महानता से सज जाओ..."

 

_ ➳  *हद के वैभवों का त्याग कर बेहद बाबा के दिल की तिजोरी में बंद होकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... *मैं आत्मा इस मटमैली दुनिया और मिटटी के आकर्षण से स्वयं को मुक्त कराती जा रही हूँ और अपने तेजस्वी चमक को पाती जा रही हूँ... आपकी यादो में फ़रिश्ता रूप पाकर उड़ रही हूँ...* देहभान से मुक्त होकर... अपनी खुबसूरत आत्मा छवि पर फ़िदा हो गयी हूँ..."

 

  *यादों के विमान में बिठाकर ऊँचे आसमान की सैर कराते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वरीय यादो में गहरे डूब जाओ... और शक्तियो से सम्पन्न होकर सभी के सहयोगी हो जाओ... *सदा त्याग द्वारा श्रेष्ठ भाग्य का अनुभव करने वाले महान भाग्यशाली बन जाओ... हर कदम पर फॉलो फादर कर... इस दुनिया में स्वयं को मेहमान समझ सदा के महान बन जाओ... बेहद के सन्यासी बनकर सतयुगी सुखो के अधिकारी बनो..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा गुल-गुल फूल बनकर अपनी रूहानियत से इस विश्व को महकाते हुए कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मैं आत्मा आपके प्यार की छत्रछाया में स्वयं खिलकर सबकी सहयोगी बन गयी हूँ... *इस धरा पर मेहमान होकर... महानता से भर रही हूँ... ब्रह्मा बाबा के नक्शे कदम पर चलकर,फ़रिश्ता बन हदो से पार हो गयी हूँ..."*

 

  *अपने प्यार के ब्रश को गुण-शक्तियों के रंग में डुबोकर मुझे रंगते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... *ईश्वरीय प्यार में स्वयं को इतना भर दो... की खुबसूरत स्थिति से परिस्थिति के पहाड़ो पर से सहज ही उड़ जाओ... सदा समर्थ आत्मा बन मुस्कराओ...* निमित्त और निर्माणता से सजधज कर... सबको निर्विघ्न बनाने की सच्ची सेवा करते रहो..."

 

_ ➳  *खुशियों की परी बनकर विश्व धरा पर स्नेह के फूल बरसाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मैं आत्मा सबको मीठी खुशियो का पता देने वाली,ज्ञान बुलबुल बन, बाबा की दिल बगिया में मुस्करा रही हूँ... *मीठे बाबा आपकी यादो में हल्की खुशनुमा हो, सदा की विजयी बन रही हूँ... और समर्थ संकल्पों से खुबसूरत दुनिया की मालिक बन रही हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- देह अभिमान में आकर किसी के नाम रूप में नही फँसना है*"

 

 _ ➳  मनमनाभव के महामन्त्र को स्मृति में रखते हुए, देह और देह के सर्व सम्बन्धों से किनारा कर, एक परमात्मा की अव्यभिचारी याद में मैं आत्मा अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ। उस एक *अपने परम प्रिय प्रभु की अव्यभिचारी याद में बैठते ही इस देह रूपी पिंजड़े में कैद मैं आत्मा रूपी पँछी इस देह के पिंजड़े के हर बंधन को तोड़ उड़ चलती हूँ अपने उस परमप्रिय प्रभु, अपने स्वामी, शिव पिता परमात्मा के पास जिनके साथ मेरा जन्म - जन्म का अनादि सम्बन्ध है*। अपने सच्चे शिव प्रीतम की याद मुझे उनसे मिलने के लिए बेचैन कर रही है इसलिए ज्ञान और योग के पंख लगाए मैं आत्मा पँछी और भी तीव्र उड़ान भरते हुए पहुंच जाती हूँ अपने प्रभु के धाम, शांति धाम, निर्वाणधाम में।

 

 _ ➳  अपने शिव प्रभु को अपने सामने पा कर बिना कोई विलम्ब किये मैं पहुंच जाती हूँ उनके पास और उनकी किरणों रूपी बाहों में समा जाती हूँ। *जन्म जन्मान्तर से अपने शिव पिता परमेश्वर से बिछुड़ी मैं आत्मा अपने शिव प्रभु की किरणों रूपी बाहों में अतीन्द्रिय सुख की गहन अनुभूति में मैं इतना खो जाती हूँ कि देह और देह की दुनिया संकल्प मात्र भी याद नही रहती*। केवल मैं और मेरे प्रभु, दूसरा कोई नही। प्रेम के सागर अपने परम प्रिय मीठे बाबा के अति प्यारे, अति सुन्दर, चित को चैन देने वाले अनुपम स्वरूप को निहारते - निहारते मैं डूब जाती हूँ उनके प्रेम की गहराई में और उनके सच्चे निस्वार्थ रूहानी प्रेम से स्वयं को भरपूर करने लगती हूँ।

 

 _ ➳  मेरे शिव प्रीतम का प्यार उनकी सर्वशक्तियों की किरणों के रूप में निरन्तर मुझ पर बरस रहा है। *उनसे आ रही सर्वशक्तियों रूपी किरणों की मीठी फुहारें मन को रोमांचित कर रही हैं, तृप्त कर रही हैं और साथ ही साथ रावण की जेल में कैद होने के कारण निर्बल हो चुकी मुझ आत्मा को बलशाली बना रही हैं*। अपने शिव प्रभु की सर्व शक्तियों से स्वयं को भरपूर करके, उनके प्यार को अपनी छत्रछाया बना कर अब मैं वापिस देह और देह की दुनिया की में लौट रही हूं। किन्तु *अब मेरे शिव प्रभु का प्यार मेरे लिए ढाल बन चुका है* जो मुझे इस आसुरी दुनिया मे रहते हुए भी आसुरी सम्बन्धों के लगाव से मुक्त कर रहा है।

 

 _ ➳  देह और देह की दुनिया मे रहते हुए भी अब इस दुनिया से मेरा कोई ममत्व नही रहा। यह तन - मन - धन मेरा नही, मेरे बाबा का है, यह सम्बन्धी भी मेरे नही, बाबा ने मुझे इनकी सेवा अर्थ निमित बनाया हैं। *इस स्मृति में रहने से मैं और मेरे से अटैचमेन्ट समाप्त हो गई है। प्रवृति को ट्रस्टी बन कर सम्भालने से अब मैं स्वयं को हर बन्धन से मुक्त, न्यारा और प्यारा अनुभव कर रही हूं*। परमात्म प्रीत से मेरे सभी लौकिक सम्बन्ध भी अलौकिक बन गए हैं इसलिए देह और दैहिक सम्बन्धो में होने वाला लगाव, झुकाव और टकराव अब समाप्त हो गया है।

 

 _ ➳  साक्षी भाव से हर आत्मा के पार्ट को अब मैं साक्षी हो कर देख रही हूं और हर कर्म साक्षी पन की सीट पर सेट हो कर करने से सदा बाप के साथीपन का अनुभव कर रही हूं। *देह और देह के सम्बन्धो के प्रति साक्षीभाव मुझे इस पुरानी दुनिया से स्वत: ही उपराम बना रहा है*। दैहिक दृष्टि और वृति परिवर्तित हो कर रूहानी बन गई है। इसलिए अब सदैव यही अनुभव होता है कि मैं इस देह में मेहमान हूँ। *मैं रूह हूँ और मुझ रूह का करन करावनहार सुप्रीम रूह है। वह चला रहे हैं, मैं चल रही हूं। सदा मैं रूह और सुप्रीम रूह कम्बाइंड हैं*। निरन्तर इस स्मृति में रहने से किसी भी देहधारी के नाम रूप की अब मुझे याद नही आती। केवल अपने शिव प्रभु की अव्यभिचारी याद में रह, मैं उनके ही प्रेम का रसपान करते हुए सदा अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलती रहती हूं।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं उदारचित्त आत्मा हूँ।*

   *मैं स्व और सर्व का उद्धार करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं आधार और उद्धारमूर्त आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *"मैं आत्मा और बाप" दोनों सदा कम्बाइंड रहते हैं  ।* 

   *कम्बाइंड स्वरूप किसी भी तीसरे से सदैव मुक्त है  ।*

   *मैं और बाप अलग होने से सदा मुक्त हैं  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  वर्तमान समय के प्रमाण फरिश्ते-पन की सम्पन्न स्टेज के वा बाप समान स्टेज के समीप आ रहे हो, उसी प्रमाण पवित्रता की परिभाषा भी अति सूक्ष्म समझो। सिर्फ *ब्रह्मचारी बनना भविष्य पवित्रता नहीं लेकिन ब्रह्मचारी के साथ ब्रह्मा आचार्य' भी चाहिए। शिव आचार्य भी चाहिए। अर्थात् ब्रह्मा बाप के आचरण पर चलने वाला। शिव बाप के उच्चारण किये हुए बोल पर चलनेवाला।* फुट स्टैप अर्थात् ब्रह्मा बाप के हर कर्म रूपी कदम पर कदम रखने वाले। इसको कहा जाता है - ब्रह्मा आचार्य'। तो ऐसी सूक्ष्म रूप से चैंकिग करो कि सदा पवित्रता की प्राप्ति, सुख-शांति की अनुभूति हो रही है? सदा सुख की शैय्या पर आराम से अर्थात् शांति स्वरूप में विराजमान रहते हो? यह ब्रह्मा आचार्य का चित्र है।

 

✺  *"ड्रिल :- ब्रह्मचारी के साथ साथ ब्रह्मा आचारी और शिव आचारी बनकर रहना*"

 

_ ➳  *मैं आत्मा याद और सेवा की रस्सियों में झूलते हुए सूक्ष्म वतन पहुँच जाती हूँ...* वतन में बापदादा संग बैठ जाती हूँ... पारलौकिक बाप अलौकिक बाप के मस्तक पर विराजमान होकर मुझे भी अलौकिक बना रहे हैं... बापदादा मुझ आत्मा को अपनी शक्तियों से भरपूर कर रहे हैं... *मैं आत्मा अपनी साधारणता को छोड़ विशेष आत्मा होने का अनुभव कर रही हूँ...*

 

_ ➳  *शिव बाबा ब्रह्मा बाबा के तन में विराजमान होकर अनमोल वाक्यों का उच्चारण कर रहे हैं...* आदि, मध्य, अंत का सत्य ज्ञान सुना रहे हैं... प्यारे बाबा आत्मा, परमात्मा और ड्रामा का नालेज देकर मुझे नालेजफुल बना रहे हैं... मैं आत्मा अपने असली स्वरुप को जान अपने निज गुणों को धारण कर रही हूँ... मैं आत्मा पवित्र फरिश्ते का स्वरूप धारण कर रही हूँ...

 

_ ➳  *अब मैं आत्मा सदा प्यूरिटी की पर्सनालिटी धारण कर सुख, शांति का अनुभव कर रही हूँ...* मैं आत्मा कैसी भी परिस्थितियां आयें कभी दुःख, अशांति का अनुभव नहीं करती हूँ... सदा सुख की शैय्या पर आराम से विराजमान रहती हूँ... सदा अपने शांत स्वरुप के स्टेज में स्थित रहती हूँ... *मैं आत्मा पवित्रता की शक्ति से दुःख को सुख में परिवर्तित कर रही हूँ...*

 

_ ➳  *मैं आत्मा दृष्टि, वृत्ति, चलन, संकल्प, वाणी में ब्रह्मा बाप समान पवित्रता को धारण कर रही हूँ...* मैं आत्मा ब्रह्मचारी बनने के साथ-साथ ब्रह्मा आचार्य' भी बन रही हूँ... *ब्रह्मा बाप के हर कर्म रूपी कदम पर कदम रख फालो फादर कर रही हूँ...* ब्रह्मा बाप के आदर्शों पर चल बाप समान बन रही हूँ... *शिव बाप के उच्चारण किये हुए बोल पर चलकर शिव आचार्यबन रही हूँ...*

 

_ ➳  मैं आत्मा ब्राह्मण जीवन की सभी नियम, मर्यादाओं का पालन करती हूँ... अब मैं आत्मा हर कर्म को चेक करती हूँ कि ये ब्रह्मा बाप समान है या नहीं... शिव बाबा द्वारा उच्चारित अमृत वाणी को धारण कर हर प्वाइंट का स्वरुप बन रही हूँ... *अब मैं आत्मा ब्रह्मचारी के साथ-साथ ब्रह्मा आचारी और शिव आचारी होने का अनुभव कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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