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❍ 03 / 05 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अविनाशी वर्से व विशेष वरदानो के अधिकारी बनकर रहे ?*
➢➢ *स्व अधिकारी बनकर रहे ?*
➢➢ *बाप समान बनकर रहे ?*
➢➢ *शक्तिशाली बनने की स्पीड और परसेंटेज को चेक किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ तपस्वी की तपस्या सिर्फ बैठने के समय नहीं, तपस्या अर्थात् लगन, चलते-फिरते भोजन करते भी लगन लगी रहे। *एक की याद में, एक के साथ में भोजन स्वीकार करना-यह भी तपस्या हुई।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं खुशियों की खान का मालिक हूँ"*
〰✧ *बाप की याद से खुशियों के झूलों में झूलने वाले हो ना। क्योंकि इस संगमयुग में जो खुशियों की खान मिलती है, वह और किसी युग में प्राप्त नहीं हो सकती। इस समय बाप और बच्चों का मिलन है, वर्सा है, वरदान है। बाप के रूप में वर्सा देते, सतगुरू के रूप में वरदान देते हैं।* तो दोनों अनुभव हैं ना? दोनो ही प्राप्तियॉं सहज अनुभव कराने वाली हैं। वर्सा या वरदान - दोनों में मेहनत नहीं। इसलिए टाईटल ही है -'सहजयोगी'। क्योंकि आलमाइटी ओथोरिटी बाप बन जाए, सतगुरू बन जाए... तो सहज नहीं होगा? यही अन्तर परम-आत्मा और आत्माओंका है।
〰✧ कोई महान् आत्मा भी हो लेकिन प्राप्ति कराने के लिए कुछ न कुछ मेहनत जरूर देगी। 63 जन्म के अनुभवी हो ना। इसलिए बापदादा बच्चों की मेहनत देख नहीं सकते। *जब बाप से थोड़ा भी, संकल्प में भी किनारा करते हो तब मेहनत करते हो। उसी सेकेण्ड बाप को साथी बना दो तो सेकेण्ड में मुश्किल सहज अनुभव हो जायेगा।*
〰✧ *क्योंकि बापदादा आये ही हैं बच्चों की थकावट उतारने। 63 जन्म ढूँढ़ा, भटके। अब बापदादा मन की भी थकावट, तन की भी थकावट और धन के उलझन के कारण भी जो थकावट थी, वह उतार रहे हैं।* सभी थक गये थे ना! बच्चे जो अति प्यारे होते हैं, उन्हों के लिए कहावत है - नयनों पर बिठाकर ले जाते हैं। तो इतने हल्के बने हो जो नयनों पर बिठाकर बाप ले जाये? लाइट (हल्के) हो ना? जब बाप बोझ उठाने के लिए तैयार है तो आप बोझ क्यों उठाते हो?
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *एक सेकण्ड में वाणी से परे स्थिति में स्थित हो सकती हो?* जैसे और कर्म इन्द्रियों को जब चाहो जैसे चाहो वैसे हिला सकते हो। ऐसे ही बुद्धि की लगन को जहाँ चाहो, जब चाहे वैसे और वहाँ स्थित कर सकते हो? एसे पावरफुल बने हो?
〰✧ यह विधि वृद्धि को पाती जा रही है। *अगर विधि यथार्थ है तो विधि से सिद्धि अर्थात सफलता और श्रेष्ठता अवश्य ही दिन - प्रतिदिन वृद्धि को पाते हुए अनुभव करेंगे।* इस परिणाम से अपने पुरुषार्थ की यथार्थ स्थिति को परख सकते हो।
〰✧ यह सिद्धि विधि को परखने की मुख्य निशानी है। कोई भी बात को परखने के लिए निशानियाँ होती है। *तो इस निशानी से अपने सम्पूर्ण बुद्धि की निशानी को परख सकते हो।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ वातावरण हो तब याद की यात्रा हो, परिस्थिति न हो तब स्थिति हो, *अर्थात् परिस्थिति के आधार पर स्थिति व किसी भी प्रकार का साधन हो तब सफलता हो, ऐसा पुरुषार्थ फाइनल पेपर में फेल कर देगा। इसलिए स्वयं को बाप समान बनाने की तीव्रगति करो।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- संगमयुग- जमा करने का युग"*
➳ _ ➳ आँगन में कौड़ी खेलते बच्चों को देख मै आत्मा... मुस्कराती हूँ... और मुझे भी कौड़ी से हीरे जैसा बनाने वाले... मीठे बाबा की यादो में डूब जाती हूँ... अपने प्यारे बाबा से मीठी मीठी बाते करने... मीठे वतन में पहुंचती हूँ... प्यारे बाबा रत्नागर को देख ख़ुशी से खिल जाती हूँ... और मीठे बाबा के प्यार में डूबकर... अपनी ओज भरी चमक, मीठे बाबा को दिखा दिखाकर लुभाती हूँ... *देखो मीठे बाबा... मै आत्मा आपके साये में कितनी प्यारी, चमकदार और हीरे जेसी अमूल्य हो गयी हूँ.*.."
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने महान भाग्य का नशा दिलाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *ईश्वर पिता धरती पर अपने फूल बच्चों के लिए अमूल्य खजानो और शक्तियो को हथेली पर सजा कर आये है.*.. इस वरदानी समय पर कौड़ी से हीरो जैसा सज जाते हो... और यादो की अमीरी से, देवताई सुखो की बहारो भरा जीवन सहज ही पाते हो...
➳ _ ➳ *मै आत्मा मीठे बाबा के ज्ञान खजाने से स्वयं को लबालब करते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... आपको पाकर तो मुझ आत्मा ने जहान पा लिया है... देह और दुखो की दुनिया में कितनी निस्तेज और मायूस थी... *आपने आत्मा सितारा बताकर मुझे नूरानी बना दिया है... फर्श उठाकर अर्श पर सजा दिया है*.."
❉ *प्यारे बाबा मुझ आत्मा को अपने नेह की धारा में भिगोते हुए कहते है :-* "मीठे लाडले प्यारे बच्चे... अपने प्यारे से भाग्य को सदा स्मर्तियो में रख खुशियो में मुस्कराओ... ईश्वर पिता का साथ मिल गया... भगवान स्वयं गोद में बिठाकर पढ़ा रहा... सतगुरु बनकर सदगति दे रहा... *एक पिता को पाकर सब कुछ पा किया है... निकृष्ट जीवन से श्रेष्ठतम देवताई भाग्य पा रहे हो*..."
➳ _ ➳ *मै आत्मा प्यारे बाबा की अमीरी को अपनी बाँहों में भरकर मुस्कराते हुए कहती हूँ :-* "मेरे सच्चे साथी बाबा... आपने आकर मेरा सच्चा साथ निभाया है... दुखो के दलदल से मुझे हाथ देकर सुखो के फूलो पर बिठाया है... *सच्चे स्नेह की धारा में मेरे कालेपन को धोकर... मुझे निर्मल, धवल बनाया है.*.. मुझे गुणवान बनाकर हीरे जैसा चमकाया है..."
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को काँटों से फूल बनाते हुए कहा :-* " मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... भगवान के धरती पर उतर आने का पूरा फायदा उठाओ... ईश्वरीय सम्पत्ति को अपना अधिकार बनाकर, सदा की अमीरी से भर जाओ... *ईश्वर पिता के साये में गुणवान, शक्तिवान बनकर, हीरे जैसा भाग्य सजा लो..*. और सतयुगी दुनिया में अथाह सुख लुटने कीे सुंदर तकदीर को पाओ...
➳ _ ➳ *मै आत्मा अपने दुलारे बाबा को दिल से शुक्रिया करते हुए कहती हूँ :-* "मनमीत बाबा मेरे... विकारो के संग में, मै आत्मा जो कौड़ी तुल्य हो गयी थी... *आपने उस कौड़ी को अपने गले से लगाकर, हीरे में बदल दिया है.*.. मै आत्मा आपके प्यार की रौशनी में, कितनी प्यारी चमकदार बन गयी हूँ... अपनी खोयी चमक को पुनः पाकर निखर गयी हूँ..."मुझे हीरे सा सजाने वाले खुबसूरत बनाने वाले रत्नागर बाबा... को दिल से धन्यवाद देकर मै आत्मा.. स्थूल वतन में आ गयी...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- स्व अधिकारी बन कर रहना*"
➳ _ ➳ इस देह रूपी रथ पर विराजमान मैं आत्मा राजा, मन बुद्धि रूपी घोड़े की लगाम अपने हाथ मे ले कर, कर्मेन्द्रियों को अपने वश में कर जैसे ही स्वराज्य अधिकारी की सीट पर सेट होती हूँ स्वयं को विश्व राज्य अधिकारी के रूप में अनुभव करती हूं। *विश्व महाराजन के रूप में मैं स्वयं को देख रही हूं। सोने की बहुत बड़ी नगरी जिसमे बहुत बड़ा हीरे जवाहरातों से सजा राजमहल। उस राजमहल के विशाल राजदरबार में राजाओ, महाराजाओ की एक विशाल सभा और उस सभा मे एक रत्न जड़ित सिहांसन पर मैं विराजमान हूँ*। राजमुकुट पहना कर, मस्तक पर तिलक लगा कर मेरा राज्यभिषेक किया जा रहा है। तालियों की गड़गड़ाहट और खुशबूदार पुष्पों की वर्षा हो रही है।
➳ _ ➳ विश्व महाराजन बनने का यह खूबसूरत दृश्य मेरे मन को रोमांचित कर रहा है। इस दृश्य का भरपूर आनन्द ले कर अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं आत्मा विचार करती हूं कि विश्व महाराजन बनने के लिए पहले मुझे विकर्माजीत बन स्वयं को स्वयं ही स्वराज्य तिलक देना होगा तभी भविष्य राज्य तिलक पाने की मैं अधिकारी बन सकती हूं। इसलिये *अब मुझे योग में रह विकर्माजीत बनने का तीव्र पुरुषार्थ अवश्य करना है*। विकर्माजीत बनने की मन ही मन स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर मैं आत्मा अपने ऊपर चढ़ी 63 जन्मो के विकर्मों की कट को योग अग्नि में भस्म करने के लिए, इस साकारी देह को छोड़ चल पड़ती हूँ अपने योगेश्वर शिव बाबा के पास परमधाम।
➳ _ ➳ साकारी और सूक्ष्म लोक से परे आत्माओं की निराकारी दुनिया परमधाम में अब मैं स्वयं को अपने योगेश्वर शिव पिता परमात्मा के सम्मुख देख रही हूं। *बुद्धि का योग अपने योगेश्वर बाबा के साथ लगा कर उनसे आ रही सर्वशक्तियों को मैं स्वयं में समा रही हूँ। धीरे धीरे ये शक्तियां जवालस्वरूप धारण करती जा रही है*। ऐसा लग रहा है जैसे एक बहुत बड़ी ज्वाला प्रज्ज्वलित हो उठी हो। अग्नि का एक बहुत बड़ा घेरा मेरे चारों ओर बनता जा रहा है और उस अग्नि की तपिश से मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकर्मों की कट और तमोगुणी संस्कार जल कर भस्म होने लगे हैं। *मैं आत्मा बोझमुक्त हो रही हूं। सच्चा सोना बनती जा रही हूं*। स्वयं को अब मैं एकदम हल्का पापमुक्त अनुभव कर रही हूं। हल्की हो कर अब मैं आत्मा वापिस लौट रही हूं।
➳ _ ➳ साकारी दुनिया मे अपने साकारी शरीर मे विराजमान हो कर अब मैं आत्मा मस्तक पर स्वराज्य तिलक लगाए, स्वराज्य अधिकारी बन, मालिकपन की स्मृति में रह हर कर्म कर रही हूं। *राजा बन रोज कर्मेन्द्रियों रूपी मंत्रियों की राजदरबार लगा, उन्हें उचित निर्देश देने से अब मेरे जीवन रूपी शासन की बागडोर सुचारु रूप से चल रही है*। अब हर कर्मेन्द्रिय मेरे अधीन है और मेरी इच्छानुसार कार्य कर रही है।
➳ _ ➳ पिछले अनेक जन्मों के आसुरी स्वभाव संस्कार जो विकर्म बनाने के निमित बन रहे थे। *वे सभी आसुरी स्वभाव संस्कार कर्मेन्द्रियजीत बनने से परिवर्तन होने लगे हैं*। सहनशीलता का गुण मेरे अंदर विकसित होने लगा है। सहनशील बन हर आत्मा के पार्ट को साक्षी हो कर देखने और उन आत्माओं के प्रति शुभभावना रखने से उनके साथ बने कार्मिक एकाउंट चुकतू होने लगे हैं, *विकर्मों के खाते बन्द हो रहे हैं और मैं सहज ही विकर्माजीत बनती जा रही हूं*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं शुभचिंतन और शुभचिंतक स्थिति की अनुभवी आत्मा हूँ।*
✺ *मैं ब्रह्मा बाप समान आत्मा हूँ।*
✺ *मैं मास्टर दाता आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा मन-बुद्धि और संस्कारों पर सम्पूर्ण राज्य करती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा स्वराज्य अधिकारी हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा मन-बुद्धि और संस्कारों को पूरा कंट्रोल में रखती हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ दूसरी बात - अगर आपकी मंसा द्वारा अन्य आत्माओं को सुख और शांति की अनुभूति नहीं होती अर्थात् पवित्र संकल्प का प्रभाव अन्य आत्मा तक नहीं पहुँचता तो उसका भी कारण चेक करो। किसी भी आत्मा की जरा भी कमज़ोरी अर्थात् अशुद्धि अपने संकल्प में धारण हुई तो वह अशुद्धि अन्य आत्मा को सुख-शान्ति की अनुभूति करा नहीं सकेगी। या तो उस आत्मा के प्रति व्यर्थ वा अशुद्ध भाव है वा अपनी मंसा पवित्रता की शक्ति में परसेन्टेज की कमी है। जिस कारण औरों तक वह पवित्रता की प्राप्ति का प्रभाव नहीं पड़ सकता। स्वयं तक है, लेकिन दूसरों तक नहीं हो सकता। लाइट है, लेकिन सर्चलाइट नहीं है। तो *पवित्रता के सम्पूर्णता की परिभाषा है - सदा स्वयं में भी सुख-शान्ति स्वरूप और दूसरों को भी सुख-शांति की प्राप्ति का अनुभव कराने वाले। ऐसी पवित्र आत्मा अपनी प्राप्ति के आधार पर औरों को भी सदा सुख और शान्ति, शीतलता की किरणें फैलाने वाली होगी।* तो समझा सम्पूर्ण पवित्रता क्या है?
✺ *"ड्रिल :- मंसा द्वारा अन्य आत्माओं को सुख और शांति की अनुभूति करवाना*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सुन्दर सरोवर के समीप बैठकर सरोवर के शांत जल को देख रही हूँ...* नीचे से एक कंकड़ उठाकर सरोवर के शांत जल में फेंकती हूँ... सरोवर के शांत जल में जल तरंगे उठने लगती हैं... ऐसे ही मुझ आत्मा के मन में एक व्यर्थ विचार का कंकड़ एक के बाद एक अन्य व्यर्थ विचारों को जन्म देता है... *मैं आत्मा अपने मन में उठने वाले व्यर्थ विचारों के तरंगो को शांत करती हुई मन-बुद्धि को भृकुटी के मध्य एकाग्र करती हूँ...* आत्मिक स्वरुप में टिकते ही मुझ आत्मा का मन शांत सरोवर की तरह शांत हो रहा है...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा इस स्थूल शरीर को छोड़ अशरीरी बन उड़ चलती हूँ शांतिधाम...* मैं आत्मा शांतिधाम की गहन शांति को गहराई से अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा बीजरूप अवस्था धारण कर बीजरूप बाबा के समीप बैठ जाती हूँ... बीजरूप बाबा से एक हो जाती हूँ... *बीजरूप बाबा से निकलती किरणों से मैं आत्मा अपनी अपवित्रता और अशुद्धि के संकल्पों को बीज सहित उखाड़कर खत्म कर रही हूँ...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सभी व्यर्थ संकल्पों से मुक्त होकर एकाग्रता का अनुभव कर रही हूँ...* निर्संकल्प स्थिति में स्थित हो रही हूँ... मैं आत्मा सभी संकल्प-विकल्पों से मुक्त हो रही हूँ... *अब मैं आत्मा व्यर्थ पर अटेंशन देकर समर्थ बन रही हूँ...* व्यर्थ को समर्थ में चेंज कर रही हूँ... अब मैं आत्मा पवित्र और सकारात्मक संकल्पों का निर्माण कर रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सदा चेक करती हूँ कि अपनी मंसा पवित्रता की शक्ति में परसेन्टेज की कमी तो नहीं है... *सदा अटेंशन रखती हूँ कि किसी भी अन्य आत्मा की जरा भी कमज़ोरी वा अशुद्धि मेरे संकल्पों में धारण न हो...* अब मैं आत्मा किसी भी आत्मा के प्रति व्यर्थ वा अशुद्ध भाव नहीं रखती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सदैव सम्बन्ध-सम्पर्क में आने वाले सर्व आत्माओं के प्रति शुद्ध और शुभ भावना रखती हूँ... शुभ कामना और निमित्त भाव के साथ सेवा करती हूँ... *अब मैं आत्मा लाइट होकर सर्चलाइट बन रही हूँ...* मैं आत्मा अपने पवित्र संकल्पों का प्रभाव अन्य आत्माओं तक पहुँचा रही हूँ... शुद्ध संकल्पों से सर्व आत्माओं का कल्याण कर रही हूँ... *मैं आत्मा मंसा द्वारा अन्य आत्माओं को सुख और शांति की अनुभूति करवा रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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