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❍ 07 / 05 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *"भगवान हमको पढाते हैं" - इस निश्चय से आपार ख़ुशी का अनुभव किया ?*
➢➢ *"हम कितना पुण्य आत्मा बने हैं ?" - अपने अन्दर से पूछा ?*
➢➢ *पुरुषार्थ और सेवा में विधिपूर्वक वृद्धि को प्राप्त किया ?*
➢➢ *स्वच्छता और सत्यता में संपन्न बन सच्ची पवित्रता धारण की ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *जो निरन्तर तपस्वी हैं उनके मस्तक अर्थात् बुद्धि की स्मृति वा दृष्टि से सिवाए आत्मिक स्वरूप के और कुछ भी दिखाई नहीं देगा।* किसी भी संस्कार वा स्वभाव वाली आत्मा, उनके पुरुषार्थ में परीक्षा के निमित्त बनी हुई हो लेकिन हर आत्मा के प्रति सेवा अर्थात् कल्याण का संकल्प वा भावना ही रहेगी। दूसरी भावनायें उत्पन्न नहीं हो सकती।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं याद और सेवा के बैलेन्स द्वारा बाप की ब्लैसिंग अनुभव करने वाली विशेष आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा याद और सेवा के बैलेन्स से बाप की ब्लैसिंग अनुभव करते हो? *जहाँ याद और सेवा का बैलेन्स है अर्थात् समानता है, वहाँ बाप की विशेष मदद अनुभव होती है। तो मदद ही आशीर्वाद है।*
〰✧ *क्योंकि बापदादा, और अन्य आत्माओंके माफिक आशीर्वाद नहीं देते हैं। बाप तो है ही अशरीरी, तो बापदादा की आशीर्वाद है - सहज, स्वत: मदद मिलना जिससे जो असम्भव बात हो वह सम्भव हो जाए। यही मदद अर्थात् आशीर्वाद है।* लौकिक गुरूओंके पास भी आशीर्वाद के लिए जाते हैं। तो जो असम्भव बात होती, वह अगर सम्भव हो जाती तो समझते हैं यह गुरू की आशीर्वाद है। तो बाप भी असम्भव से सम्भव कर दिखाते हैं।
〰✧ *दुनिया वाले जिन बातों को असम्भव समझते हैं, उन्हीं बातों को आप सहज समझते हो। तो यही आशीर्वाद है। एक कदम उठाते हो और पद्मों की कमाई जमा हो जाती है। तो यह आशीर्वाद हुई ना।* तो ऐसे बाप की व सतगुरू की आशीर्वाद के पात्र आत्मायें हो। दुनिया वाले पुकारते रहते हैं और आप प्राप्ति स्वरूप बन गये।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *जैसे योग में बैठने के समय कई आत्माओं को अनुभव होता जाता - यह ड्रिल कराने वाले न्यारी स्टेज पर हैं, ऐसे चलते - फिरते फरिश्ते - पन के साक्षात्कार होगे।* यहाँ बैठे हुए भी अनेक आत्माओं को, जो भी आपके सतयुगी फैमिली में समीप आने वाले होंगे उन्हों को आप लोगों के फरिश्ते रूप और भविष्य राज्य पद के दोनों इकट्ठे साक्षात्कार होंगे। जैसे शुरू में ब्रह्मा के सम्पूर्ण स्वरूप और श्रीकृष्ण का दोनों का साथ - साथ साक्षात्कार करते थे, ऐसे अब उन्हों को तुम्हारे डबल रूप का साक्षात्कार होगा। जैसे - जैसे नम्बरवार इस न्यारे स्टेज पर आते जायेंगे तो आप लोगों के भी यह डबल साक्षात्कार होंगे।
〰✧ अभी यह पूरी प्रैक्टिस हो जाए तो यहाँ - वहाँ से यही समाचार आना शुरू हो जायेंगे। जैसे शुरू में घर बैठे भी अनेक समीप आनेवाली आत्माओं को साक्षात्कार हुए ना। वैसे अब भी साक्षात्कार होंगे। *यहाँ बैठे भी बेहद में आप लोगों का सूक्ष्म स्वरूप सर्विस करेगा।* अब यही सर्विस रही हुई हैं।
〰✧ साकार में भी एक्जाम्पल तो देख लिया। सभी बातें नम्बरवार ड्रामा अनुसार होनी है। *जितना - जितना स्वयं आकारी फरिश्ते स्वरूप में होंगे उतना आपका फरिश्ता रूप सर्विस करेगा।* आत्मा को सारे विश्व का चक्र लगाने में कितना समय लगता है? तो अभी आप के सूक्ष्म स्वरूप भी सर्विस करेंगे। लेकिन जो इसी न्यारी स्थिति में होंगे। स्वयं फरिश्ते रूप में स्थित होंगे।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ ऐसे समय में जैसी स्थिति सुनाई उसके लिए विशेष कौनसी शक्ति की आवश्यकता होगी? *सेकण्ड के हार-जीत के खेल में कौन-सी शक्ति चाहिए? ऐसे समय में समेटने की शक्ति आवश्यक है।* जो अपने देह-अभिमान के संकल्प को, देह की दुनिया की परिस्थितियों के संकल्प को, क्या होगा?- इस हलचल के संकल्प को भी समेटना है। शरीर औार शरीर के सर्व सम्पर्क की वस्तुओं को भी व अपनी आवश्यकताओं के साधनों की प्राप्ति के संकल्प को भी समेटना है। *घर जाने के संकल्प के सिवाय अन्य किसी संकल्प का विस्तार न हो – बस यही संकल्प हो। कि अब घर गया कि गया।* शरीर का कोई भी सम्बन्ध व सम्पर्क नीचे न ला सके। जैसे इस समय साक्षात्कार में जाने वाले साक्षात्कार के आधार पर अनुभव करते हैं कि मैं आत्मा इस आकाश तत्व से भी पार उड़ती हुई जा रही हूँ, ऐसे ही ज्ञानी एवं योगी आत्मायें ऐसा अनुभव करेंगी। उस समय ट्रान्स की मदद नहीं मिलेगी। ज्ञान और योग का आधार चाहिए। *इसके लिए अब से अकाल-तख्त-नशीन होने का अभ्यास चाहिए। जब चाहे अशरीरीपन का अनुभव कर सकें, बुद्धियोग द्वारा जब चाहे तब शरीर के आधार में आयें। 'अशरीरी भव।' का वरदान अपने कार्य में अब से लगाओ।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- श्रीमत पर चलना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बगीचे में बागवानी करते हुए पौधों के आसपास के खरपतवार को निकाल रही हूँ... जो पौधों के पोषक तत्वों को शोषित कर उनके विकास की गति को धीमी कर रहे हैं...* खरपतवार को निकालने के बाद फूल-पौधे बहुत ही सुन्दर दिख रहे हैं... मुस्कुरा रहे हैं... *ऐसे ही परम बागबान ने मुझ आत्मा के अन्दर के विकारों रूपी खरपतवार को निकालकर मुझे रूहानी फूल बना दिया है... मेरे जीवन के आंगन को खुशियों से खिला दिया है...* मैं आत्मा उड़ चलती हूँ मेरे जीवन को श्रेष्ठ बनाने वाले प्यारे बागबान बाबा के पास...
❉ *पावन दुनिया की राजाई के लिए श्रेष्ठ श्रीमत देते हुए पतित पावन प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे बच्चे... *मीठे बाबा की श्रीमत पर चलकर पावन बनते हो इसलिए पावन दुनिया के सारे सुखो के अधिकारी बनते हो...* मनुष्य की मत सम्पूर्ण पावन न बन सकते हो न ही सतयुगी दुनिया के मालिक बन सकते हो... यह कार्य ईश्वर पिता के सिवाय कोई कर ही न सके...”
➳ _ ➳ *श्रीमत की बाँहों में झूलते हुए सतयुगी सुखों के आसमान को छूते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपनी मत और दूसरो की मत से अपनी गिरती अवस्था की बेहतर अनुभवी हूँ... *अब श्रीमत का हाथ थाम खुशियो के संसार में बसेरा हुआ है... प्यारा बाबा मुझे पावन बनाने आ गया है...”*
❉ *प्यार भरी नज़रों से मुझे निहाल कर लक्ष्मी नारायण समान श्रेष्ठ बनाते हुए मीठे-मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे फूल बच्चे... पतित पावन सिर्फ बाबा है जो स्वयं पावन है वही पावन बना भी सकता है... मनुष्य खुद इस चक्र में आता है वह दूसरो को पावनता से कैसे सजाएगा भला... *ईश्वर की मत ही सर्व प्राप्तियों का आधार है... श्रीमत ही मनुष्य को देवता श्रृंगार देकर सजाती है...”*
➳ _ ➳ *अपने जीवन की गाड़ी को श्रीमत रूपी पटरी पर चलाते हुए मंजिल के करीब पहुँचते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा इतनी भाग्यशाली हूँ कि श्रीमत मेरे भाग्य में है... श्रीमत की ऊँगली पकड़ मै आत्मा पावनता की सुंदरता से दमक रही हूँ...* और श्रीमत पर सम्पूर्ण पावन बन सतयुग की राजाई की अधिकारी बन रही हूँ...”
❉ *पवित्रता की खुशबू से महकाकर खुशियों के झूले में झुलाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता धरती पर उतरा है प्रेम की सुगन्ध को बाँहों में समाये हुए... तो फूल बच्चे इस खुशबु को अपने रोम रोम में सुवासित कर लो... *यादो को सांसो सा जीवन में भर लो... और यही प्रेम नाद सबको सुनाकर आह्लादित रहो... हर साँस पर नाम खुदाया हो... ऐसा जुनूनी बन जाओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ज्ञान कलश को सिर पर धारण कर हीरे समान चमकते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपनी मत पर चलकर और परमत का अनुसरण कर निराश मायूस हो गई थी... दुखो को ही अपनी नियति मान बैठी थी... *प्यारे बाबा आपकी श्रीमत ने दुखो से निकाल... मीठे सुखो से दामन सजा दिया है... प्यारी सी श्रीमत ने मुझे पावन बनाकर महका दिया है...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बेपरवाह बन पाप कर्म नही करने हैं*"
➳ _ ➳ दुनिया मे हो रहे पापाचार, भ्रष्टाचार का दृश्य मैं देख रही हूँ और विचार करती हूं कि यही दुनिया कभी स्वर्ग हुआ करती थी। *एक दूसरे के प्रति सभी के हृदय आपसी स्नेह और प्यार से लबालब थे किंतु आज वो स्नेह, वो प्यार कहाँ चला गया*! अकेले बैठे मैं स्वयं से ही ये सवाल जवाब कर रही हूं।
➳ _ ➳ तभी मैं एक दृश्य देखती हूँ जैसे कोई राजदरबार लगी है। सामने सिहांसन पर कोई राजा बैठा है और उसके सामने उसके मंत्री बैठे हैं जिनके साथ वह कुछ विचार विमर्श कर रहा है। *मंत्री गलत सलाह दे कर राजा को गलत कामों के लिए उकसा रहें है। राजा में इतनी समर्थता नही कि वो समझ सके क्या सही है और क्या गलत*। उनके बहकावे में आ कर वो गलत कर्म कर रहा है उसे गलत कर्म करते देख उसके राज्य के सभी लोग भी गलत कर्म कर रहें हैं। मैं सोचती हूँ कि जिस देश का राजा ही भ्रष्ट है तो उस देश में स्वत: ही भ्रष्टाचार का बोलबाला होगा।
➳ _ ➳ इस दृश्य को देखते देखते एकाएक स्मृति आती है कि *मैं आत्मा भी तो राजा हूँ किन्तु कर्मेन्द्रियों रूपी मंत्रियों के बहकावे में आ कर जाने अनजाने में मुझ से कितने विकर्म हुए जिनका बोझ मुझ आत्मा पर चढ़ता चला गया*। 63 जन्मो के विकर्मों का बोझ अब मुझ आत्मा को उतारना है और उसे उतारने के लिए मेरे पास केवल यही एक जन्म है। मन में यह ख़्याल आते ही मैं आत्मा 63 जन्मो के विकर्मों की कट को योग अग्नि में भस्म करने के लिए, इस साकारी देह को छोड़ चल पड़ती हूँ शिव बाबा के पास।
➳ _ ➳ साकारी और सूक्ष्म लोक से परे आत्माओं की निराकारी दुनिया परमधाम में अब मैं स्वयं को अपने शिव पिता परमात्मा के सम्मुख देख रही हूं। बुद्धि का योग उनसे लगा कर उनसे आ रही सर्वशक्तियों को मैं स्वयं में समा रही हूँ। धीरे धीरे ये शक्तियां जवालस्वरूप धारण करती जा रही है। ऐसा लग रहा है जैसे एक बहुत बड़ी ज्वाला प्रज्ज्वलित हो उठी हो। *अग्नि का एक बहुत बड़ा घेरा मेरे चारों ओर बनता जा रहा है और उस अग्नि की तपिश से मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकर्मों की कट और तमोगुणी संस्कार जल कर भस्म होने लगे हैं*। मैं आत्मा बोझमुक्त हो रही हूं। सच्चा सोना बनती जा रही हूं। स्वयं को अब मैं एकदम हल्का, पापमुक्त अनुभव कर रही हूं। हल्की हो कर अब मैं आत्मा वापिस लौट रही हूं।
➳ _ ➳ साकारी दुनिया मे अपने साकारी शरीर मे विराजमान हो कर अब मैं आत्मा मस्तक पर स्वराज्य तिलक लगाए, स्वराज्य अधिकारी बन, मालिकपन की स्मृति में रह हर कर्म कर रही हूं। *राजा बन रोज कर्मेन्द्रियों रूपी मंत्रियों की राजदरबार लगा, उन्हें उचित निर्देश देने से अब मेरे जीवन रूपी शासन की बागडोर सुचारु रूप से चल रही है। अब हर कर्मेन्द्रिय मेरे अधीन है और मेरी इच्छानुसार कार्य कर रही है*। कर्मेन्द्रियों पर सम्पूर्ण नियंत्रण होने और बुद्धि की लाइन क्लीयर होने से अब मैं आत्मा आध्यात्मिक ऊंचाइयों को छूने लगी हूँ।
➳ _ ➳ व्यर्थ चिंतन के प्रभाव से अब मैं मुक्त हो गई हूं इसलिये परमात्म पालना के झूले में झूलती रहती हूं। परमात्म शक्तियों से भरपूर होने के कारण शक्तिशाली बन अब मैं सदा उड़ती कला में उड़ती रहती हूं। *परम आनन्द से सदा भरपूर रहने के कारण मास्टर दाता बन सर्व आत्माओं को देने की ही भावना अब मेरे मन मे निरन्तर रहती है* इसलिए सर्व आत्माओं के प्रति शुभभावना रखने से उनके साथ बने कार्मिक एकाउंट चुकतू होने लगे हैं, विकर्मों के खाते बन्द हो रहे हैं और मैं सहज ही विकर्माजीत बनती जा रही हूं। *तीन स्मृतियों का तिलक अब मेरे मस्तक पर सदैव लगा रहता है जिससे मुझे निरन्तर यह स्मृति रहती है कि अब मुझे कर्मेन्द्रियों से ऐसा कोई पाप कर्म नही करना जिससे विकर्म बने*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं पुरुषार्थ और सेवा में विधिपूर्वक वृद्धि प्राप्त करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा स्वच्छता और सत्यता में संपन्न बनती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सच्ची पवित्रता धारण करती हूँ ।*
✺ *मैं परम पवित्र आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ दूसरी निशानी वा अनुभूति- जैसे भक्तों को वा आत्मज्ञानियों का व कोई-कोई परमात्म-ज्ञानियों को दिव्य दृष्टि द्वारा ज्योति बिन्दु आत्मा का साक्षात्कार होता है, तो साक्षात्कार अल्पकाल की चीज है, साक्षात्कार कोई अपने अभ्यास का फल नहीं है। यह तो ड्रामा में पार्ट वा वरदान है। *लेकिन एवररेडी अर्थात् साथ चलने के लिए समान बनी हुई आत्मा साक्षात्कार द्वारा आत्मा को नहीं देखेंगी लेकिन बुद्धियोग द्वारा सदा स्वयं को साक्षात् ‘ज्योति बिन्दु आत्मा' अनुभव करेगी। साक्षात् स्वरूप बनना सदाकाल है और साक्षात्कार अल्पकाल का है। साक्षात स्वरूप आत्मा कभी भी यह नहीं कह सकती कि मैंने आत्मा का साक्षात्कार नहीं किया है। मैंने देखा नहीं है। लेकिन वह अनुभव द्वारा साक्षात् रूप की स्थिति में स्थित रहेंगी।* जहाँ साक्षात स्वरूप होगा वहाँ साक्षात्कार की आवश्यकता नहीं। ऐसे साक्षात आत्मा स्वरूप की अनुभूति करने वाले अथार्टी से, निश्चय से कहेंगे कि मैंने आत्मा को देखा तो क्या लेकिन अनुभव किया है। क्योंकि देखने के बाद भी अनुभव नहीं किया तो फिर देखना कोई काम का नहीं। *तो ऐसे साक्षात् आत्म-अनुभवी चलते-फिरते अपने ज्योति स्वरूप का अनुभव करते रहेंगे।*
✺ *"ड्रिल :- बुद्धियोग द्वारा सदा स्वयं को साक्षात् 'ज्योति बिन्दु आत्मा' अनुभव करना*”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मधुबन की मधुर स्मृतियों को स्मृति में रख पहुँच जाती हूँ शांति स्तम्भ...* जहाँ प्यारे बापदादा बाहें पसारे खड़े मुस्कुरा रहे हैं... मैं आत्मा बाबा की बाँहों में सिमट जाती हूँ... और बाबा को कहती हूँ बाबा- अब घर ले चलो... इस आवाज़ की दुनिया से पार ले चलो... बापदादा बोले:- बच्चे- मैं अपने साथ ले जाने के लिए ही आया हूँ... साथ जाने के लिए एवररेडी बनो... बिंदु रूप में स्थित हो जाओ...
➳ _ ➳ बापदादा मेरे सामने कई जन्मों के हिसाब-किताब के विस्तार रूपी वृक्ष को इमर्ज करते हैं... *मुझ आत्मा के देह के स्मृति की शाखाएं, देह के संबंधो की शाखाएं, देह के पदार्थो की शाखाएं, भक्ति मार्ग की शाखाएं, विकर्मों के बंधनों की शाखाएं, कर्मभोगों की शाखाएं ऐसे भिन्न-भिन्न प्रकार के हिसाब-किताब का बहुत बड़ा वृक्ष मेरे सामने खड़ा है...* कई जन्मों से मुझ आत्मा ने इस वृक्ष को आत्म विस्मृति के कारण बड़ा कर दिया... *देहभान के पानी से, देह अभिमान के खाद से इस वृक्ष की कई शाखाएं निकल आईं हैं...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा को निहारते हुए बाबा की याद में खो जाती हूँ... बाबा के दोनों हाथों से, मस्तक से दिव्य तेजस्वी किरणें निकलकर मुझ पर पड़ रही हैं... *बाबा की याद की लगन की अग्नि प्रज्वलित हो रही है... इस अग्नि में सारा वृक्ष जलकर भस्म हो रहा है...* सारी शाखाएं टूटकर भस्म हो रही हैं... देह के, देह के संबंधो के, देह के पदार्थो के, सर्व प्रकार के विस्तार का वृक्ष भस्म हो रहा है... कई जन्मों के विकर्म दग्ध हो रहे हैं... मैं आत्मा सभी प्रकार के कर्मभोगों से मुक्त हो रही हूँ...
➳ _ ➳ *पूरा वृक्ष जलकर भस्म हो गया अब सिर्फ बची मैं बीजरूप आत्मा जो इस विस्तार रूपी वृक्ष के नीचे दबी पड़ी थी...* मैं बीज स्वरुप, बिंदु रूप आत्मा हीरे समान चमक रही हूँ... कितना ही हल्का महसूस कर रही हूँ... *मैं दिव्य सितारा, दिव्य ज्योति, दिव्य मणि, दिव्य प्रकाश का पुंज हूँ...* मुझ आत्मा का वास्तविक स्वरुप कितना ही सुन्दर है...
➳ _ ➳ *मैं बिंदु आत्मा बिंदु बाप के साथ उड़ चली अपने मूलवतन...* अपने असली घर में, अपने असली स्वरुप में, अपने असली पिता के सामने मैं आत्मा दिव्य, अलौकिक अनुभूतियाँ कर रही हूँ... मैं आत्मा अपने निज गुणों को धारण कर अपने निज स्वरुप की साक्षात अनुभूति कर रही हूँ... साक्षात् आत्मा स्वरूप की स्थिति में स्थित हो रही हूँ... *मैं आत्मा अपने स्वरुप का साक्षात्कार भी कर रही हूँ और साक्षात् आत्म-अनुभवी बन चलते-फिरते अपने ज्योति बिंदु स्वरूप का अनुभव भी कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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