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 31 / 05 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सच्ची दिल से सेवा की ?*

 

➢➢ *मनसा शक्ति और निर्भयता की शक्ति को जमा किया ?*

 

➢➢ *सहनशक्ति और समाने की शक्ति से सफलता का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *निश्चय और नशे के आधार से सफलता का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *पावरफुल योग अर्थात् लगन की अग्नि,* ज्वाला रूप की याद ही भ्रष्टाचार, अत्याचार की अग्नि को समाप्त करेगी और सर्व आत्माओं को सहयोग देगी। *इससे ही बेहद की वैराग्य वृत्ति प्रज्वलित होगी। याद की अग्नि एक तरफ उस अग्नि को समाप्त करेगी दूसरी तरफ आत्माओं को परमात्म सन्देश की, शीतल स्वरूप की अनुभूति करोयगी। इससे ही आत्मायें पापों की आग से मुक्त हो सकेगी।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं डबल तख्तनशीन आत्मा हूँ"*

 

  अपने को इस समय भी तख्तनशीन आत्माएं अनुभव करते हो? डबल तख्त है या सिंगल? *आत्मा का अकालतख्त भी याद है और दिलतख्त भी याद है। अगर अकाल तख्त को भूलते हो तो बोडी कांशेस में आते हो। फिर परवश हो जाते हो।*

 

  *सदैव यही स्मृति रखो कि मैं इस समय इस शरीर का मालिक हूँ। तो मालिक अपनी रचना के वश कैसे हो सकता है? अगर मालिक अपनी रचना के वश हो गया तो मोहताज हो गया ना!* तो अभ्यास करो और कर्म करते हुए बीच-बीच में चेक करो कि मैं मालिकपन की सीट पर सेट हूँ? या नीचे तो नहीं आ जाता? सिर्फ रात को चेक नहीं करो। कर्म करते बीच-बीच में चेक करो।

 

  *वैसे भी कहते हैं कि कर्म करने से पहले सोचो, फिर करो। ऐसे नहीं कि पहले करो, फिर सोचो। फिर निरन्तर मालिकपन की स्मृति और नशे में रहेंगे। संगमयुग पर बाप आकर मालिकपन की सीट पर सेट करता है। स्वयं भगवान आपको स्थिति की सीट पर बिठाता है। तो बैठना चाहिए ना!*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  सभी स्वयं को कर्मातीत अवस्था के नजदीक अनुभव करते जा रहे हो? कर्मातीत अवस्था के समीप पहूँचने की निशानी जानते हो? *समीपता की निशानी समानता है।* किस बात में?

 

✧  आवाज़ में आना व आवाज़ से परे हो जाना, *साकार स्वरूप में कर्मयोगी बनना और साकार स्मृति से परे न्यारे निराकारी स्थिति में स्थित होना,* सुनाना और स्वरूप होना, मनन करना और मग्न रहना,रूह - रूहान में आना और रूहानियत में स्थित हो जाना, *सोचना और करना।*

 

✧   *कर्मेन्द्रियों का आधार लेना और कर्मेन्द्रियों से परे होना,* प्रकृति द्वारा प्राप्त हुए साधनों को स्वयं प्रति कार्य में लगाना और प्रकृती के साधनों से समय प्रमाण निराधार होना, देखना, सम्पर्क में आना और  देखते हुए न देखना, *सम्पर्क में आते कमल पुष्प के समान रहना*, इन सभी बातों में समानता। उसको कहा जाता है - कर्मातीत अवस्था की समीपता।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ अभी-अभी अनादि, अभी-अभी आदि स्मृति की समर्थी द्वारा दोनों स्थिति में समानता अनुभव हो - ऐसे अनुभव करते हो? *जैसे साकार स्वरूप अपना अनुभव होता है, स्थित होना नैचुरल अनुभव करते हो - ऐसे अपने अनादि निराकारी स्वरूप में, जो सदा एक अविनाशी है उस सदा एक अविनाशी स्वरूप में स्थित होना भी नैचुरल हो।* संकल्प किया और स्थित हुआ - इसी को कहा जाता है बाप समान सम्पूर्ण अवस्था, कर्मातीत अन्तिम स्टेज।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मनसा शक्ति तथा निर्भयता की शक्ति को धारण करना"

 

_ ➳  श्रीमत की ये सुनहरी सी पंगडंडियाँ... जब से इन पर कदम पडे, मैं रूहानी मुसाफिर धन्य हो उठी, साथ ही अनुभवों की टकसाल से मैं मालामाल हो गयी हूँ... हर कदम पर आभार प्रकट करती हुई बढी जा रही हूँ, मेरे जन्मजन्मान्तर को जगमग कर देने वाले इस प्रकाश की दिशा में... अंधकार का वो काँटो भरा जंगल दूर कही पीछे छूट चुका है... पगडंडी के उस छोर पर बाहें फैलाए इन्तज़ार करते मेरे बापदादा...

 

  सर्व सम्बन्धों का प्यार एक में समेटे, स्नेह प्यार का रूहानी दर्पण बनी रूहानी पलकों पर मुझे बिठाकर बापदादा बोले:- "मेरे इस ईश्वरीय कुल की सिरताज मीठी बच्ची... ज्ञान योग के खजानों से भरपूर आपने सबको बाप का परिचय तो दिया, सदा हर सेकेन्ड ड्रामा की पटरी पर चलते मन की स्थिति एकाग्र रही... मगर क्या मन की एकाग्रता द्वारा सदा एक मत एक ही रास्ते से एक रस स्थिति का अनुभव भी कराया?"

 

_ ➳  रोम रोम में बापदादा के स्नेह व आभार को समाये मैं विश्वकल्याणी आत्मा बापदादा के वरदानों की छत्रछाया को महसूस कर कहती हूँ:-* "मेरे मीठे बाबा... अपने इन्तजार में गीत गाते नगाडे बजाते और जोर जोर से चिल्लाते भक्तों की पुकार भला मैं कैसे भूल सकती हूँ... हर पल हर दम उनकी पुकार कानों में गूँजती है, अलग अलग मतें अलग अलग रास्ते और करूण पुकार करते ये भक्त... अब इन भटकनों से मुक्ति का समय मैं बहुत करीब देख रही हूँ..."

 

  समर्थ संकल्पों और दिव्यगुणों की माला मेरे गले में पहनाते हुए मेरे सर्वशक्तिमान बापदादा समर्थ दृष्टि से भरपूर करते हुए बोले:- "मेरी शिवशक्ति दिव्य गुण धारी बाप समान बनने का लक्ष्य धारण करने वाली मीठी बच्ची... ज्ञान योग और धारणा एक सेकेन्ड के है, खुशियों की शक्ति से भरपूर हो अपने सम्पूर्ण स्वरूप की मूर्ति मन मन्दिर मे सजाकर अपने दिव्य स्वरूपों का भी संकल्पो से साक्षात्कार कराओं, एकाग्रता के गहन अनुभूतियों में लीन हो सबको एकाग्रता की शक्ति का अनुभव कराओं... संकल्पों की फाउन्डेशन पक्की कर अव्यक्ति कशिश बढाओं..."

   

_ ➳  मनसा महादानी मैं आत्मा, दृढता का कंगन पहने, नयनों से ही मन के भाव जान लेने वाले बापदादा से बोली:- "बाबा शब्द की डायमण्ड "की’’ (चाबी) जो आपसे पायी है मैने, ये सर्व खजानों की चाबी है, निरन्तर अपने स्वमानो की सीट पर सैट मैं आत्मा सदा एक रस स्थिति का अनुभव कर रही हूँ और करा रही हूँ सब कुछ स्वतः ही होता जा रहा है बाबा"!... हर बीती को स्वतः ही बिन्दी लग गयी है पूर्णतया एकाग्र होते संकल्प सामने वाली आत्मा के सकंल्पों को कैच कर रहे है..."

 

  मेरे हर संकल्प को गहराई से देखते परखते बापदादा वरदानी हाथ मेरे सर पर रखते हुए बोलें:- "आप मन्मनाभव मोहजीत आत्मा... सर्व समर्पित आत्मा हो, आप बच्ची ने सच्चे साहिब को आपने राजी किया है संकल्पों के विस्तार का बिस्तर बन्द कर अब औरों के संकल्पों को भी सार में लाओं... मुरझाये चेहरे लिए कोई मनमत के चौराहों पर न भटके सबको श्रीमत की सुनहरी पगडंडियों की सैर कराओं..."

 

_ ➳  मास्टर सर्व शक्तिमान की सीट पर सैट मैं आत्मा, अपनी शक्तियों का आह्वान कर बापदादा के सम्मुख संसार की सभी आत्माओं को इमर्ज कर बोली:- "देखिए बापदादा... वो आ रही है सभी आत्माए आपके सम्मुख... आपके वरदानों और शक्तियों की वारिस आत्माए... श्रीमत पर चलने का जज्बा दिल में समाये... मैं साक्षी होकर देख रही हूँ... श्रीमत की एक रस रोशन राहों से गुजरती ये आत्माऐ एक एक कर बापसमान बन बापदादा की बाहों में समाती जा रही है... और  *बापदादा निरन्तर मुझे देखकर... वो मुस्कुराये जा रहे है... शिद्दत से महसूस कर रही हूँ वो दुआए... जो बिना माँगे ही व दिए जा रहे है..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सच्ची दिल से सेवा करना*"

 

_ ➳  स्वयं का त्याग कर जो दूसरों की सेवा में हर्षित रहते हैं वही सर्व की दुआयों के और परमात्म दुआओ के अधिकारी बनते हैं। इस बात को स्मृति में लाकर मैं मन ही मन स्वयं से यह प्रतिज्ञा करती हूँ कि अपने इस अनमोल संगमयुगी ब्राह्मण जीवन, जो मेरे शिव पिता की देन है, को अब मुझे परमात्म श्रीमत पर चलकर, ईश्वरीय सेवा में सफल करना है। *बाप समान निरहंकारी बन सर्व आत्माओं की सेवा ही मेरे इस ब्राह्मण जीवन का उद्देश्य है। इसलिये अपना सम्पूर्ण ब्राह्मण जीवन अब मुझे इसी लक्ष्य पर चल कर, परमात्मा बाप के दिल रूपी तख्त पर सदा विराजमान रहते, संगमयुग की मौजों का भरपूर आनन्द लेते हुए बिताना है*।

 

_ ➳  यही श्रेष्ठ संकल्प करते मन में मीठे प्यारे बाबा की मीठी सी याद सहज ही आने लगती है और साथ ही उनके सर्वश्रेष्ठ कर्तव्य स्वत: ही स्मृति में आने लगते हैं, कि कैसे बाबा आ कर निरहंकारी बन हम बच्चों की सेवा करते हैं। *सब कुछ करते स्वयं गुप्त रह कर बच्चों को आगे करते हैं। कल्प कल्प के लिए बच्चों का भाग्य श्रेष्ठ बना देते हैं। बच्चो के लिए नई दुनिया स्थापन करते हैं लेकिन स्वयं उस दुनिया मे नही आते। अपने प्यारे बाबा के इन अनगिनत उपकारों की स्मृति मन में उनसे मिलने की तड़प पैदा कर देती है*। मन में अपने प्यारे बाबा से मिलने की लग्न लिए अब मैं हर प्रकार के चिन्तन से मन बुद्धि को हटाकर, अपने पिता से मिलने की रूहानी यात्रा पर चलने के लिए केवल अपने स्वरूप पर मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ।

 

_ ➳  मनबुद्धि की एकाग्रता अब मुझ आत्मा को उस दिव्य अलौकिक रूहानी यात्रा पर ले कर चल पड़ती है जो यात्रा मुझे मेरे शिव पिता से मिलाने वाली है। *मन बुद्धि की इस रूहानी यात्रा पर चलते हुए मैं आत्मा अब देह का आधार छोड़ कर इससे बाहर आ जाती हूँ और उमंग उत्साह के पंख लगा कर ऊपर की और उड़ चलती हूँ*। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से इस साकार दुनिया के वन्डरफुल नजारों को देखते हुए अपने पिता परमात्मा से मिलने की लगन में मगन मैं आत्मा वाणी से परे की इस आंतरिक यात्रा पर निरंतर बढ़ती जा रही हूँ।

 

_ ➳  साकार लोक को पार कर, सूक्षम लोक से भी परें अब मैं पहुंच गई निर्वाणधाम अपने शिव पिता परमात्मा के पास। *देह और देह की दुनिया के संकल्प मात्र से भी मुक्त इस निर्वाणधाम घर में मैं चारों और फैले दिव्य लाल प्रकाश और चमकती हुई जगमग करती अति सुंदर मणियों को देख रही हूँ*। शन्ति का शक्तिशाली वायुमण्डल मुझे अपने चारों ओर अनुभव हो रहा है। शांति की गहन अनुभूति करते हुए इस विशाल परमधाम घर में विचरण करते - करते अब मैं शांति के सागर अपने शिव पिता के पास जा रही हूँ। *बाबा से आ रहे शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन मुझे अपनी ओर खींच रहें हैं*। इनके आकर्षण में आकर्षित हो कर मैं आत्मा अब अपने शिव पिता के पास जा कर उनके साथ कम्बाइंड हो जाती हूँ।

 

_ ➳  इस कम्बाइंड बीज स्वरूप में मुझे ऐसा लग रहा है जैसे सर्व शक्तियों के फवारे के नीचे मैं आत्मा बैठी हूँ और बाबा से आ रही अनन्त सर्वशक्तियों रूपी सतरंगी किरणों का झरना मुझ आत्मा पर बरस रहा हैं। *असीम परम आनन्द की मैं आत्मा अनुभूति कर रही हूँ। एक अलौकिक दिव्यता से मैं आत्मा भरपूर होती जा रही हूँ। प्यार के  सागर मेरे शिव पिता अपना असीम प्यार मुझ पर लुटा रहे हैं*। अपने प्रेम की शीतल किरणों को मुझ पर बरसाते हुए बाबा मुझे आप समान मास्टर प्यार का सागर बना रहें हैं। ताकि बाप समान मास्टर दाता बन विश्व की सर्व आत्माओं को सच्चा रूहानी स्नेह दे कर मैं उनके जीवन को सुखमय बना सकूँ।

 

_ ➳  मास्टर बीजरूप स्थिति में स्थित हो, गहन अतीन्द्रीय सुख की अनुभूति करके स्वयं को अथाह परमात्म स्नेह से भरपूर करके मैं ईश्वरीय सेवा अर्थ वापिस लौट आती हूँ साकारी लोक में और अपनी साकारी देह में आ कर फिर से भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हो कर सच्ची रूहानी सेवा में लग जाती हूँ। *त्याग और तपस्या भगवान के दिल रूपी तख्त पर विराजमान रहने का मुख्य साधन है इस बात को स्मृति में रखते हुए बाप समान निरहंकारी बन स्वयं का त्याग कर दूसरों की सेवा में अब मैं सदा हर्षित रहती हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं अनुभवों की गुह्यता की प्रयोगशाला में रह नई रिसर्च करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं अन्तर्मुखी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सदैव संतुष्टता की सीट पर सेट हो जाती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदा परिस्थितियों का खेल देखती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा संतुष्टमणि हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ परिस्थिति रूपी पहाड़ को स्वस्थिति से जम्प देकर पार करोः- अपने को सदा समर्थ आत्मायें समझते हो! *समर्थ आत्मा अर्थात् सदा माया को चेलेन्ज कर विजय प्राप्त करने वाले। सदा समर्थ बाप के संग में रहने वाले।* जैसे बाप सर्वशक्तिवान है वैसे हम भी मास्टर सर्वशक्तिवान हैं। सर्व शक्तियाँ शस्त्र हैं, अलंकार हैं, ऐसे अलंकारधारी आत्मा समझते हो? जो सदा समर्थ हैं वे कभी परिस्थितियों में डगमग नहीं होंगे। *परिस्थिति से स्वस्थिति श्रेष्ठ है। स्वस्थिति द्वारा कैसी भी परिस्थिति को पार कर सकते हो।* जैसे विमान द्वारा उड़ते हुए कितने पहाड़, कितने समुद्र पार कर लेते हैं, क्योंकि ऊँचाई पर उड़ते हैं। तो ऊँची स्थिति से सेकण्ड में पार कर लेंगे। ऐसे लगेगा जैसे पहाड़ को वा समुद्र को भी जम्प दे दिया। मेहनत का अनुभव नहीं होगा।

✺ *"ड्रिल :- परिस्थिति रूपी पहाड़ को स्वस्थिति से जम्प देकर पार करने का अनुभव करना"*

➳ _ ➳ मैं आत्मा स्नान करने के बाद शीशे के सामने बैठ जाती हूँ... और अपने आपको निहारती हूँ... और कुछ समय बाद अपने आपको श्रंगार रूपी अलंकारों से सुसज्जित करना शुरू करती हूँ... *जैसे -जैसे मैं श्रृंगार करती हूँ... वैसे-वैसे मैं अपने आपको अलंकारों से सजे हुए अनुभव करती हूँ...* जैसे, माथे पर जब बिंदिया लगाती हूँ तो मैं अपने को आत्मिक स्थिति का तिलक लगाती हूँ... और जब मैं हाथों में कंगना पहनती हूँ तो अपने द्वारा सत्कर्मों का अनुभव करती हूँ... और जैसे मैं अपने पैरों में पायल पहनती हूँ तो मैं महसूस करती हूँ की मुझे हर पल श्रीमत के मार्ग पर ही चलना है...

➳ _ ➳ और मैं आत्मा अपने आप को इन अद्भुत अलंकारों से सजा हुआ अनुभव करते हुए घर से बाहर निकलता हुआ अनुभव करती हूँ... और तभी मुझे अचानक आसमान में हवाई जहाज जाता हुआ दिखाई देता है... उसे देखकर मुझ आत्मा को ये विचार आता है... *ये विमान कितनी तेजी से कठिनाइयों रूपी पहाड़, समुद्र, नदियां, जंगल को पार कर रहा है... इसने अपनी स्थिति कितनी ऊँची बना ली है... अपनी ऊँची स्थिति के कारण ये किसी भी कठिनाई को छू भी नहीं सकता...* ये अपनी मंजिल की तरफ कितनी आसानी और तेजी से चला जा रहा है... ये सोचते -सोचते मैं मन बुद्धि से सूक्षम वतन मेरे बाबा के पास पहुँच जाती हूँ... औऱ बाबा को भी एक उमंगों रूपी विमान में बैठा हुआ देखती हूँ...

➳ _ ➳ सूक्षम वतन के इस दृश्य को देखकर मैं आश्चर्यचकित हो जाती हूँ और मैं बाबा से पूछती हूँ... बाबा... आप इस विमान में बैठकर मुझे क्या शिक्षा देना चाहते हो? तभी बाबा मुझे मुस्कुराते हुए कहते हैं... बच्चे मैं तुम्हें यह बताना चाहता हूँ कि तुम्हें अपनें आपको शक्तियों रूपी अलंकारों से सुसज्जित करना है... जैसे देवताओं को देखो वो किस तरह शक्तिशाली शस्त्रों रूपी अलंकारों से सजे हुए होते हैं... इतना सुनकर मैं अपने आप को देवी दुर्गा के रूप में देखती हूँ... जो अलंकारों से सजी हुई हैं... और फिर बाबा कहते हैं... *साथ ही अपने आपको विमान रूपी ऊँची स्थिति में बिठाकर रखो... क्योंकि अगर पुरुषार्थ के रास्ते में कोई परिस्थिति आती है तो हमारी ऊँची स्थिति के कारण वो तुम्हें छू भी नहीं पायेगी... और ना ही तुम्हारे पुरुषार्थ की गति कम होगी...*

➳ _ ➳ बाबा के इन वचनों को सुनकर मेरा मन उत्साह से भर जाता है... और मैं बाबा से कहती हूँ बाबा... आपने जो आज मुझे समझाया है वो मैं कभी नहीं भूलूंगी... और हमेशा अपने आपको शक्तियों रूपी अलंकारों से सजाकर रखूंगी... अब मैं जब भी श्रृंगार करूँगी इन अलंकारों से ही करूँगी... बाबा मैं अपनी स्थिति इस विमान की तरह ऊँची बनाउंगी... जिसे कोई परिस्थिति रूपी अड़चन छू भी नहीं पाये... मैं हमेशा अपने आपको एक विमान में बैठा हुआ ही अनुभव करूँगी... मैं किसी भी परिस्थिति में डगमग नहीं होउंगी... बाबा से ये वादा करते हुए... *मैं आत्मा पूरी उमंग उत्साह से अनेक अलंकारों से सजकर औऱ ऊँची स्थिति रूपी विमान में बैठकर अपने कर्मक्षेत्र में वापिस आ जाती हूँ...*

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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