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 14 / 05 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *इस दुनिया का जो कुछ है, उसे भूला ?*

 

➢➢ *स्वयं को कुसंग से बचाया ?*

 

➢➢ *परमात्म याद की गोद में समाये रहे ?*

 

➢➢ *सपूत बन बाबा एके गीत गाये ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *विनाशी साधनों के आधार पर आपकी अविनाशी साधना नहीं हो सकती।* साधन निमित्त मात्र हैं और साधना निर्माण का आधार है *इसलिए अब साधना को महत्व दो। साधना ही सिद्धि को प्राप्त करायेगी।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं रूप-बसंत हूँ"*

 

〰✧  सदा अपने को रुप-बसंत अनुभव करते हो? *रुप अर्थात् ज्ञानी तू आत्मा भी हैं और योगी तू आत्मा भी हैं। जिस समय चाहें रुप बन जायें और जिस समय चाहें बसंत बन जाएं। इसलिए आप सबको सलोगन है- 'योगी बनो और पवित्र बनो माना ज्ञानी बनो'। औरों को यह सलोगन याद दिलाते हैं ना। तो दोनों स्थिति सेकेण्ड में बन सकते हैं।* ऐसे न हो कि बनने चाहे रुप और याद आती रहें ज्ञान की बातें। सेकण्ड से भी कम टाइम में फुलस्टाप लग जाये। ऐसे नहीं- फुलस्टाप लगाओ अभी और लगे पांच मिनट के बाद। इसे पावरफुल ब्रेक नहीं कहेंगे। पावरफुल ब्रेक का काम है जहाँ लगाओ वहां लगे। सेकण्ड भी देर से लगी तो एक्सीडेंट हो जायेगा।

 

  फुलस्टाप अर्थात् ब्रेक पावरफुल हो। जहां मन-बुद्धि को लगाना चाहे वहाँ लगा लें। यह मन, बुद्धि- संस्कार आप आत्माओं की शक्तियाँ है। इसलिए सदा यह प्रैक्टिस करते रहो कि जिस समय, जिस विधि से मन-बुद्धि को लगाना चाहते हैं वैसा लगता है या टाइम लग जाता है? *जिसमें कंट्रोलिंग पावर नहीं वह रुलिंग पावर के अधिकारी बन नहीं सकते। स्वराज्य के हिसाब से अभी भी रुलर (शासक) हो। स्वराज्य मिला है ना! ऐसे नहीं आंख को कहो यह देखो और वह देखे कुछ और, कान को कहो कि यह नहीं सुनो और सुनते ही रहें। इसको कंट्रोलिंग पावर नहीं कहते। कभी कोई कर्मेन्द्रिय धोखा न दे - इसको कहते हैं 'स्वराज्य'।* तो राज्य चलाने आता है ना? अगर राजा को प्रजा माने नहीं तो उसे नाम का राजा कहेंगे या काम का? आत्मा का अनादि स्वरुप ही राजा का है, मालिक का है। यह तो पीछे परतंत्र बन गई है लेकिन आदि और अनादि स्वरुप स्वतंत्र है। तो आदि और अनादि स्वरुप स्वतंत्र है। तो आदि और अनादि स्वरुप सहज याद आना चाहिए ना। 

 

  स्वतंत्र हो या थोड़ा-थोड़ा परतंत्र हो? मन का भी बंधन नहीं। अगर मन का बंधन होगा तो यह बंधन और बंधन को ले आयेगा। कितने जन्म बंधन में रहकर देख लिया! अभी भी बंधन अच्छा लगता है क्या? बंधन्मुक्त अर्थात् राजा, स्वराज्य अधिकारी। क्योंकि बंधन प्राप्तियो का अनुभव करने नहीं देता। इसलिए सदा ब्रेक पावरफुल रखो, तब अन्त में पास-विद-ओनर होंगे अर्थात् फर्स्ट डिवीजन में आयेंगे। फर्स्ट माना फास्ट, ढीले-ढीले नहीं। ब्रेक फास्ट लगे। कभी भी ऊंचाई के रास्ते पर जाते हैं तो पहले ब्रेक चेक करते हैं। आप कितना ऊंचे जाते हो! तो ब्रेक पावरफुल चाहिए ना! बार-बार चेक करो। ऐसा ना हो कि आप समझो ब्रेक बहुत अच्छी है लेकिन टाइम पर लगे नहीं, तो धोखा हो जायेगा। इसलिए अभ्यास करो- स्टाप कहा और स्टाप हो जाये।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *क्या आवाज़ से परे शान्त स्थिति इतनी ही प्रिय लगती है कि जितनी आवाज़ में आने की स्थिति प्रिय लगती है?* आवाज़ में आना और आवाज़ से परे हो जाना यह दोनों ही एक समय सहज लगते हैं या आवाज़ से परे जाना मुश्किल लगता है? वास्णव में स्वधर्म शान्त स्वरूप होने के कारण आवाज़ से परे जाना अति सहज होना चाहिए।

  

✧  अभी - अभी एक सेकण्ड में जैसे स्थूल शरीर से बुद्धि  द्वारा परे जाना और आना यह दोनों ही सहज अनुभव होंगे। अर्थात क्या एक सेकण्ड में ऐसा कर सकते हो? जब चाहें शरीर का आधार ले और जब चाहे शरीर का आधार छोड कर अपने अशरीरी स्वरूप में स्थित हो जायें, क्या ऐसे अनुभव चलते - फिरते करते रहते हो? *जैसे शरीर धारण किया वैसे ही फिर शरीर से न्यारा हो जाना इन दोनों का क्या एक ही अनुभव करते हो?* यही अनुभव अंतिम पेपर में फस्ट नम्बर लाने का आधार है। जो लास्ट पेपर देने के लिए अभी से तैयार हो गये हो या हो रहे हो?

 

✧  जैसे विनाश करने वाले एक इशारा मिलते ही अपना कार्य सम्पन्न कर देंगे, अर्थात *विनाशकारी आत्मायें इतनी एवर - रेडी हैं कि एक सेकण्ड के इशारे से अपना कार्य अभी भी प्रारम्भ कर सकती हैं।* तो क्या विश्व का नव - निर्माण करने वाली अर्थात स्थापना के निमित्त बनी हुई आत्माएँ ऐसे एवर - रेडी हैं? अपनी स्थापना का कार्य ऐसे कर लिया है कि जिससे विनाशकारियों को इशारा मिले?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *सर्व पवाइन्ट्स का सार एक शब्द में सुनाओ? प्वाइन्ट्स का सार – प्वाइन्ट रूप अर्थात् बिन्दु रूप हो जाना।* बिन्दु रूप अर्थात् पॉवरफुल स्टेज, जिसमें व्यर्थ संकल्प नही चलते हैं *और बिन्दु अर्थात् 'बीती सो बीती'। इससे कर्म भी श्रेष्ठ होते हैं और व्यर्थ संकल्प न होने के कारण पुरूषार्थ की गति भी तीव्र होगी।* इसलिए बीती सो बीती को सोच-समझ कर करना है। *व्यर्थ देखना, सुनना व बोलना सब बन्द। समर्थ आंखें खुली हों अर्थात् साक्षीपन की स्टेज पर रहो।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  बहुत अच्छा संग करना"*

 

_ ➳  मधुबन के तपस्या धाम में बेठी हुई मै आत्मा... मीठे बाबा को बड़े ही प्यार से निहारती हुई सोचती हूँ... कि मीठे बाबा ने अगर मेरा हाथ न पकड़ा होता... मै आत्मा स्वयं को और प्यारे बाबा को कभी भी न जान पाती... *मीठे बाबा ने मुझे देह की मिटटी से निकाल कर... यादो में उजला खुबसूरत बना दिया है..*. विकारी दुनिया में जंग लगी मुझ आत्मा को... अपने प्यार और गुणो रुपी पानी में सोने सा दमकाया है... पारस बाबा ने अपने साये में बिठाकर... *मुझे भी आप समान चमकीला बनाकर... मेरी दिव्यता और पवित्रता का सारे विश्व में डंका बजवाया है... आज पूरा विश्व मुझे और मेरी पवित्रता को सम्मानित कर रहा है.*.. ऐसे मीठे बाबा का मै आत्मा कितना न शुक्रिया करूँ...

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी अमूल्य शिक्षाओ से हीरे जैसा सजाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... जनमो तक दुखो के दलदल में फंसे रहे... और विकारो में लिप्त रहकर अपनी खुबसूरत को खो बेठे... *अब जो मीठे बाबा का साथ और हाथ मिला है... तो यह सच्चा साथ, प्यार और पालना कभी छोड़ना... अपने संग की सदा सम्भाल कर... ईश्वरीय प्यार और पालना में... सदा रूहानी गुलाब बन महकना..."*

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा की छत्रछाया में फूलो जैसा मुस्कराते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा आपकी पालना में कितनी गुणवान और शक्तिवान बनकर... देवताई श्रंगार से सज गयी हूँ... *आपने सच्चे ज्ञान और प्यार को देकर... मुझे देह की मिटटी से छुड़ाकर... सदा के लिए उजला खुबसूरत बना दिया है.*.. आपकी श्रीमत के हाथो में माया के काले साये से महफूज हूँ...

 

   *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा अपनी प्यार भरी गोद में लेकर माया से बचाते हुए कहा:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *मीठे बाबा ने जो ज्ञान का प्रकाश देकर मा नॉलेजफुल बनाया है... उस ज्ञान प्रकाश में, मायावी आकर्षण को दूर से ही परख कर सदा दूर रहो.*.. अब जो ईश्वरीय साथ को पाया है... तो माया के साथ से किनारा करो.. विकारी संग से सदा खबरदार रहो....

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा की श्रीमत को अपने दिल की गहराइयो में समाकर कहती हूँ:-* "प्यारे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपसे पायी ज्ञान धन की, असीम दौलत में मालामाल हो गयी हूँ... और तीसरे नेत्र को पाकर... *विवेक शक्ति से, बेहद की समझदार हो गयी हूँ... और आपकी यादो में देह के प्रभाव से मुक्त होकर...अपनी आत्मिक रूप में चमक रही हूँ.*.."

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सतयुगी दुनिया के सुख ऐश्वर्य से मेरी झोली सजाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे.... *सदा प्यारे बाबा संग यादो के झूले में झूलते रहो... और माया के हर झोंके से सुरक्षित रहकर... मीठे बाबा के प्यार भरे आँचल में छुपे रहो.*.. सदा ज्ञान और योग के पंख लिए... खुशियो के अनन्त आसमाँ में... इतना ऊँचा उड़ते रहो कि माया का संग छु भी न सके...

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा की गोद में बैठकर माया के चंगुल से सुरक्षित होकर कहती हूँ :-* "मीठे सच्चे साथी बाबा,.. आपने *मुझ आत्मा को अपने गले से लगाकर... अपनी अमूल्य शिक्षाओ से सजाकर... मेरा जीवन खुशियो की फुलवारी बना दिया है.*.. मेरा दिव्य गुणो और पवित्रता से श्रंगार कर... मेरा कायाकल्प कर दिया है... अब मै आत्मा माया के विकारी संग से सदा परे रह... इस सच्चे आनन्द में मगन रहूंगी..."मीठे बाबा को अपनी दिली दास्ताँ सुनाकर... मै आत्मा अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- इस दुनिया का जो कुछ है उसे भूलना है*"

 

_ ➳  देह और देह की यह झूठी दुनिया जिसमे बुद्धि को फंसा कर आज दिन तक सिवाय दुख और अशांति के कुछ प्राप्त नही हुआ ऐसी नश्वर दुनिया से वैराग्य रख उसे बुद्धि से भूल अपने मन बुद्धि को शन्ति, प्रेम, सुख, ज्ञान, शक्ति, आनन्द और पवित्रता के सागर अपने शिव पिता परमात्मा पर एकाग्र करना ही राजयोग है जो सच्चे सुख और शान्ति को पाने का एकमात्र उपाय है। *इसी चिंतन के साथ इस असार संसार की नश्वरता का विचार मन मे आते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे मेरा मन इस बेहद की दुनिया से वैरागी होने लगा है*। इस असार संसार मे होते हुए भी जैसे मैं इसमें नही हूँ।

 

_ ➳  स्वयं को मैं केवल अपने लाइट स्वरूप में, एक चमकते हुए चैतन्य सितारे के रूप में देख रही हूँ और अनुभव कर रही हूँ कि *मेरा घर यह नश्वर दुनिया नही बल्कि 5 तत्वों से बनी इस दुनिया से परे, तारामंडल से भी परें, फ़रिश्तों की दुनिया के पार अनन्त प्रकाश की अति सुंदर दुनिया परमधाम हैं*। उस प्रकाश की दुनिया में अपने शिव पिता परमात्मा के साथ मैं रहने वाली हूँ। इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर मैं केवल पार्ट बजाने के लिए ही तो आई हूँ। हर आत्मा यहां इस बेहद की दुनिया मे आ कर ड्रामा प्लैन अनुसार अपना पार्ट ही तो बजा रही है। 

 

_ ➳  ड्रामा के इस अति गुह्य राज को स्मृति में रख इन सभी के पार्ट को अब मैं साक्षी हो कर देख रही हूँ। साक्षीदृष्टा की यह अवस्था मुझे इस बेहद की दुनिया से वैराग्य दिला रही है। *बुद्धि से इस दुनिया को भूल, अपनी अति सुंदर निराकारी दुनिया को स्मृति में लाकर अब मैं मन बुद्धि के विमान पर बैठ इस बेहद की दुनिया से किनारा कर प्रकाश की उस अति उज्ज्वल दुनिया की ओर जा रही हूँ*। स्वीट साइलेन्स होम की स्मृति मात्र से ही मेरे अंदर जैसे शक्ति भरने लगी है जो मुझे लाइट और माइट स्वरुप में स्थित कर, ऊपर की ओर ले जा रही है। हर प्रकार के बन्धन से मुक्त हल्के हो कर उड़ते हुए असीम आनन्द का अनुभव करते - करते आकाश मण्डल को मैं पार कर जाती हूँ।

 

_ ➳  आकाश को पार कर, सफेद प्रकाश की दुनिया सूक्ष्म लोक को पार कर मैं पहुँच जाती  हूँ अति दिव्य, अलौकिक लाल प्रकाश से प्रकाशित अपने स्वीट साइलेन्स होम शान्तिधाम में। *शान्ति की इस दुनिया मे पहुंचते ही गहन शांति की अनुभूति में मैं खो जाती हूँ और हर संकल्प, विकल्प से परें एक अति न्यारी और प्यारी निरसंकल्प स्थिति में स्थित हो जाती हूँ*। संकल्पो से रहित इस अति प्यारी अवस्था में मेरा सम्पूर्ण ध्यान केवल अपने सामने विराजमान मेरे शिव पिता की ओर है। मुझे केवल मेरा चमकता हुआ ज्योति बिंदु स्वरूप और अपने शिव पिता परमात्मा का अनन्त प्रकाशमय महाज्योति स्वरूप दिखाई दे रहा है। 

 

_ ➳  इस अतिशय प्यारी निरसंकल्प स्थिति में स्थित मैं आत्मा महाज्योति अपने शिव बाबा से आ रही अनन्त शक्तियों की किरणें को स्वयं में समाहित कर शक्तिसम्पन्न स्वरूप बनती जा रही हूँ। *शिव बाबा से आ रही सातों गुणों की सतरंगी किरणे मुझ आत्मा में समाहित होकर मेरे अंदर निहित सातों गुणों को विकसित कर रही हैं*। देह अभिमान में आ कर, अपने सतोगुणी स्वरूप को भूल चुकी मैं आत्मा अपने एक - एक गुण को पुनः प्राप्त कर फिर से अपने सतोगुणी स्वरूप में स्थित होती जा रही हूँ। 

 

_ ➳  हर गुण, हर शक्ति से मैं स्वयं को सम्पन्न बना कर वापिस देह की दुनिया में कर्म करने के लिए लौट रही हूँ। अपनी देह में पुनः भृकुटि के अकालतख्त पर अब मैं विराजमान हूँ। *बाबा के साथ सदा कम्बाइन्ड रहकर अपने गुणों और सर्वशक्तियों को सदा इमर्ज रखते हुए अब मैं साक्षीदृष्टा बन इस बेहद की दुनिया में अपना पार्ट बजा रही हूँ*। इस दुनिया मे स्वयं को मेहमान समझ इसमें रहते हुए बुद्धि से अब मैं इसे भूलती जा रही हूँ। *इस बेहद की दुनिया से बेहद की वैराग्य वृति रख, अपने शिव पिता पर अपनी बुद्धि को सदा एकाग्र रखते हुए, उनकी याद में रहते केवल निमित बन अब मैं हर कर्तव्य कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं परमात्म याद की गोद में समाने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं संगमयुगी श्रेष्ठ आत्मा हूँ।*

   *मैं भाग्यवान आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं बाबा का सदा सपूत बच्चा हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदैव बाबा के गीत गाती रहती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा बाबा को अपने गीत गाते हुए अनुभव करती हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  और चतुराई सुनावें? ऐसे समय पर फिर ज्ञान की प्वाइन्ट यूज़ करते हैं कि अभी प्रत्यक्ष फल तो पा लो भविष्य में देखा जायेगा। लेकिन प्रत्यक्षफल अतीन्द्रिय सुख सदा का है, अल्पकाल का नहीं। कितना भी प्रत्यक्षफल खाने का चैलेन्ज करे लेकिन अल्पकाल के नाम से और खुशी के साथ-साथ बीच में असन्तुष्टता का कांटा फल के साथ जरूर खाते रहेंगे। मन की प्रसन्नता वा सन्तुष्टता अनुभव नहीं कर सकेंगे। इसलिए ऐसे गिरती कला की कलाबाजी नहीं करो। बापदादा को ऐसी आत्माओं पर तरस होता है - बनने क्या आये और बन क्या रहें हैं! *सदा यह लक्ष्य रखो कि जो कर्म कर रहा हूँ यह प्रभु पसन्द कर्म है? बाप ने आपको पसन्द किया तो बच्चों का काम है - हर कर्म बाप पसन्द, प्रभु पसन्द करना। जैसे बाप गुण मालायें गले में पहनते हैं वैसे गुण माला पहनों, कंकड़ो की माला नहीं पहनों। रत्नों की पहनो।*

 

✺  *"ड्रिल :- हर कर्म प्रभु पसंद करना*”

 

_ ➳  *मैं आत्मा एकांत में बैठकर अपने दिलाराम बाबा को याद करती हूँ और प्यारे बाबा को प्यार से ख़त लिखती हूँ...* फिर मैं आत्मा पंछी बन ख़त लेकर उड़ चलती हूँ और पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन प्यारे-प्यारे बाबा के पास... एक नन्हा फरिश्ता बन बाबा की गोद में बैठ जाती हूँ... बाबा से कहती हूँ... बाबा मैं आपके लिए ख़त लाई हूँ... *प्यारे बाबा मुस्कुराते हुए मेरे हाथों से ख़त लेकर पढ़ते हैं...*

 

_ ➳  ‘प्राण प्यारे बाबा’, ‘मेरे मीठे बाबा’- आप कितने ही प्यारे हो, मीठे हो... आपने मुझे नवजीवन दिया है... कौड़ी से हीरे तुल्य बना दिया है... *मीठे बाबाआपने अपने दिव्य कलम से कितना ही सुन्दर भाग्य लिखा है मेरा... अगर मैं सागर को स्याही बनाकर, जंगल को कलम बनाकर भी आपकी महिमा करूँ, आपको शुक्रिया करूँ तो भी कम है बाबा...* कैसे शुक्रिया करूँ मैं आपकी बाबा... मेरे बाबाआपका दिया जीवन आपको समर्पित... आपकी प्यारी लाडली...

 

_ ➳  प्यारे बाबा ख़त पढ़कर प्यार से मेरे सिर पर हाथ रखते हैं और अविनाशी वरदानों से भरपूर कर देते हैं... मैं आत्मा बाबा को देखते हुए बाबा के प्यार में खो जाती हूँ... बाबा के हाथों से, मस्तक से दिव्य तेजस्वी किरणें निकलकर मुझ पर पड़ रही हैं... *बाबा से निकलती दिव्य गुण, शक्तियों की किरणें मुझ फरिश्ते को दिव्य गुणधारी बना रही हैं...* बाबा अखूट ख़ज़ानों से मुझे भरपूर कर रहे हैं... *बाबा मुझे ज्ञान रत्नों की, दिव्य गुणों की माला पहना रहे हैं...*

 

_ ➳  मैं आत्मा भक्ति में बाबा को पाने के लिए कितना दर-दर भटकती थी... पर अब बाप ने मुझको पसन्द किया, अपना बनाया तो मैं सदा प्रभु पसंद बन बाबा के दिलतख्त पर रहती हूँ... सदा उडती कला में रहती हूँ... कोई भी काम गिरती कला वाली नहीं करती हूँ... *अल्पकाल के नाम, मान, शान का प्रत्यक्षफल नहीं खाती हूँ... अतीन्द्रिय सुख का अविनाशी प्रत्यक्षफल खाती हूँ...*

 

_ ➳  *अब मैं आत्मा सदा एक ही लक्ष्य रखकर हर कर्म कर रही हूँ... हर कर्म करने के पहले चेक करती हूँ कि ये प्रभु पसंद है या नहीं... मैं आत्मा सदा हर कर्म बाप पसन्द, प्रभु पसन्द कर बाबा को शुक्रिया अदा कर रही हूँ...* मैं आत्मा सदा बाबा द्वारा दिए दिव्य गुणों और रत्नों की माला पहने रहती हूँ... कभी भी अवगुणों की कंकड़ो की माला नहीं पहनती हूँ... *प्रभु पसंद कर्म करने से अब मैं आत्मा सदा प्रसन्नता वा सन्तुष्टता का अनुभव कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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