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❍ 09 / 08 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *"हम परमात्म प्रिय ब्राह्मण सो फ़रिश्ता आत्माएं हैं" - यह स्मृति रही ?*
➢➢ *"हम परम श्रेष्ठ दैवी आत्माएं हैं" - यह अनुभव किया ?*
➢➢ *"हम पूज्य आत्माएं हैं" - यह नशा रहा ?*
➢➢ *आत्माओं को ज्ञान सुनाने के साथ साथ रूहानी स्नेह की अनुभूति करवाई ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *फरिश्ता अर्थात् जिसका एक बाप के साथ सर्व रिश्ता हो अर्थात् सर्व सम्बन्ध हो।* एक बाप दूसरा न कोई जिसके सर्व सम्बन्ध एक बाप के साथ होंगे *उसको और सब सम्बन्ध निमित्त मात्र अनुभव होंगे। वह सदा खुशी में नाचने वाले होंगे।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं पद्मापद्म भाग्यवान आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा अपने को पद्मापद्म भाग्यवान अनुभव करते हो? क्योंकि बाप द्वारा वर्सा मिला है। तो वर्से में कितने अविनाशी खजाने मिले हैं? जब खजाने अविनाशी हैं तो भाग्य की स्मृति भी अविनाशी चाहिए। अविनाशी का अर्थ क्या है? सदा या कभी-कभी? *सदा अपने को पद्मापद्म भाग्यवान आत्मायें हैं-यह स्मृति में रखो और खजानों को सदा सामने इमर्ज रूप में रखो। कितने खजाने मिले हैं? अगर सदा खजानों को सामने रखेंगे तो नशा वा खुशी भी सदा रहेगी और कभी भी कम-ज्यादा नहीं रहेगी, बेहद की रहेगी।* तो खजाने को बढ़ाओ भी और इमर्ज रूप में भी रखो। बढ़ाने का साधन क्या है? जितना बांटेंगे उतना बढ़ेगा।
〰✧ सदा यह सोचो कि आज के दिन खजाने को बढ़ाया या जितना था उतना ही है? *खजाना जितना बढ़ेगा, तो बढ़ने की निशानी है-खुशी बढ़ेगी। तो बढ़ते जाते हैं ना। क्योंकि यह खजाने सदा खुशी को बढ़ाने वाले हैं। इसलिए कभी भी खुशी कम नहीं होनी चाहिए। कितना भी बड़ा विघ्न आ जाये लेकिन विघ्न खुशी को कम ना करे।* किसी भी प्रकार का विघ्न खुशी को कम तो नहीं करता है ? बापदादा ने पहले भी कहा है कि शरीर चला जाये लेकिन खुशी नहीं जाये। इतनी अपने आपसे दृढ़ प्रतिज्ञा की है? तो सदा यह दृढ़ संकल्प करो कि-खुशी नहीं जायेगी।
〰✧ *ब्राह्मण जीवन का आधार ही है 'खुशी'। अगर खुशी नहीं तो ब्राह्मण जीवन नहीं। ब्राह्मण जीवन अर्थात् खुश रहना और दूसरों को भी खुशी बांटना। वर्तमान समय में सभी को अविनाशी खुशी की आवश्यकता है, खुशी के भिखारी हैं। और आप दाता के बच्चे हो। दाता के बच्चों का काम है-देना। जो भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आये-खुशी बांटते जाओ, देते जाओ। कोई खाली नहीं जाये।* इतना भरपूर हो ना! हर समय देखो कि मास्टर दाता बनकर के कुछ दे रहा हूँ या सिर्फ अपने में ही खुश हैं। जिस समय जिसको कोई भी चीज की आवश्यकता होती है और आवश्यकता के समय अगर कोई वही चीज उसको देता है, तो उसके दिल से दुआयें निकलती हैं। वो दुआयें भी आपको सहज पुरुषार्थी बनने में सहयोगी बन जायेंगी। तो आपका कर्तव्य है - दुआयें देना और दुआयें लेना। इसी में बिजी रहते हो ना! सारे विश्व को इसकी आवश्यकता है।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ एकाग्रता की शक्ति से किसी भी आत्मा का मैसेज उस आत्मा तक पहुँचा सकते हो। किसी भी आत्मा का आह्वान कर सकते हो। किसी भी आत्मा की आवाज को कैच कर सकते हो। किसी भी आत्मा को दूर बैठे सहयोग दे सकते हो। वह एकाग्रता जानते हो ना। *सिवाए एक बाप के और कोई भी संकल्प न हो।*
〰✧ एक बाप में सारे संसार की सर्व प्राप्तियों की अनुभूति हो। एक ही एक हो। पुरुषार्थ द्वारा एकाग्र बनना वह अलग स्टेज है। लेकिन *एकाग्रता में स्थित हो जाना, वह स्थिति इतनी शक्तिशाली है। ऐसी श्रेष्ठ स्थिति का एक संकल्प भी बाप समान का बहुत अनुभव कराता है।* अभी इस रूहानी शक्ति का प्रयोग करके देखो।
〰✧ इसमें एकान्त का साधन आवश्यक है। *अभ्यास होने से लास्ट में चारों ओर हंगामा होते हुए भी आप सभी एक के अंत में खो गये तो हंगामे के बीच भी एकांत का अनुभव करेंगे।* लेकिन ऐसा अभ्यास बहुत समय से चाहिए। तब ही चारों ओर के अनेक प्रकार के हंगामे होते हुए भी अपने को एकान्तवासी अनुभव करेंगे। *वर्तमान समय ऐसे गुप्त शक्तियों द्वारा अनुभवी मूर्त बनना अति आवश्यक है।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *चारों ओर कितना भी वातावरण हो, हलचल हो लेकिन आवाज में रहते आवाज से परे स्थिति का अभ्यास अभी बहुत काल का चाहिए।* शान्त वातावरण में शान्ति की स्थिति बनाना यह कोई बड़ी बात नहीं है। अशान्ति के बीच आप शान्त रहो, यह अभ्यास चाहिए। ऐसा अभ्यास जानते हो? चाहे अपनी कमजोरियों की हलचल हो, संस्कारों के व्यर्थ संकल्पों की हलचल हो। ऐसी हलचल के समय स्वयं को अचल बना सकते हो वा टाइम लग जाता है? *क्योंकि टाइम लगना यह कभी भी धोखा दे सकता है। समाप्ति के समय में ज्यादा समय नहीं मिलना है। फाइनल रिजल्ट का पेपर कुछ सेकण्ड और मिनटों का ही होना है।* लेकिन चारों और की हलचल के वातावरण में अचल रहने पर ही नम्बर मिलना है। *अगर बहुतकाल हलचल की स्थिति से अचल बनने में समय लगने का अभ्यास होगा तो समाप्ति के समय कया रिजल्ट होगी?* इसलिए यह रूहानी एक्सरसाइज का अभ्यास करो। मन को जहाँ और जितना समय स्थित करना चाहो उतना समय वहाँ स्थित कर सको। *फाइनल पेपर है बहुत ही सहज। और पहले से ही बता देते हैं कि यह पेपर आना है। लेकिन नम्बर बहुत थोड़े समय में मिलना है। स्टेज भी पावरफुल हो।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सर्वश्रेष्ठ रचना का फाउंडेशन-स्नेह"*
➳ _ ➳ *मधुबन... श्रेष्ठ भूमि पर... मीठे बाबा के कमरे में रुहरिहान करने के लिये... जब मैं आत्मा... पांडव भवन के प्रांगण में पहुँचती हूँ... सुंदर सतयुग और मनमोहिनी सूरत... श्रीकृष्ण को सामने देख पुलकित हो उठती हूँ...* मीठे बाबा ने ज्ञान के तीसरे नेत्र को देकर... चित्रो में चैतन्यता को सहज ही दिखाया है... भक्ति में सबकुछ कल्पना मात्र लगता था... परन्तु आज बाबा की गोद में बैठकर... हर नज़ारा दिल के कितने करीब है... *बाबा ने सतयुगी दुनिया के ये प्यारे नज़ारे मेरे नाम लिख दिये हैं... मन के यह भाव... मीठे बाबा को सुनाने मैं आत्मा... कमरे की और बढ़ चलती हूँ...*
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने महान भाग्य की खुशी से भरते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *इस ऊँचे स्थान... मधुबन में, ऊँची स्थिति पर, ऊँची नॉलेज से, ऊँचे ते ऊँचे बाप की याद में, ऊँचे ते ऊँची सेवा स्मृति स्वरूप रहोंगे तो सदा समर्थ रहोगे..."* जहाँ समर्थ है वहाँ व्यर्थ सदा के लिये समाप्त हो जाता है... *इसलिये मधुबन श्रेष्ठ भूमि पर... बाप के साथ सदा सच्चे स्नेही बनकर रहना..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा प्यारे बाबा के ज्ञान रत्नों को अपनी झोली में समेटते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा... मैं आत्मा अपने मीठे भाग्य पर क्यों न इतराऊ... कि स्वयं भगवान ने मुझे अपनी *फूलो की बगिया में बिठा कर... मुझे भी सुंदर खिलता हुआ फूल बना दिया है... आपने मेरा जीवन सत्य की रोशनी से भर दिया है..."*
❉ *बाबा ने मुझ आत्मा को विश्वकल्याणकारी की भावना से ओतप्रोत बनाते हुए कहा :-* "मीठी लाडली बच्ची... ईश्वर पिता को पाकर, अब अपनी हर श्वांस को ईश्वरीय यादों में पिरो दो... *जब भी तुम ड्रामा के हर दृश्य को ड्रामा चक्र संगमयुगी टॉप पर स्थित हो कुछ भी देखोगी तो स्वतः ही अचल, अडोल रहोगी...* तुम तो कल्प पहले वाली... स्नेही, सहयोगी, अटल, अचल स्थिति में रहने वाली विजयी आत्मा हो..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ईश्वरीय यादों के खजानों से सम्पन्न होकर, मीठे बाबा से कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा...* आपने मुझ आत्मा के जीवन में आकर... विश्व कल्याण की सुंदर भावना से भर दिया है... मैं आत्मा *आपसे सच्चा स्नेह रख सबके जीवन से दुःखों की लहर निकाल... सुख की किरणें फैलाती हूँ... सबके जीवन में आनंद और खुशियों के फूल खिला रही हूँ..."*
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान रत्नों से भरपूर करते हुए कहा :-* "मीठी बच्ची... *जहाँ सच्चा, श्रेष्ठ स्नेह है... वहाँ दुःख की लहर आ नही सकती...* परिवार के स्नेह के धागे में तो सभी बंधे हुए हो, लेकिन अब सच्चे सच्चे शिवबाबा की लग्न में मगन... *सदा एक की याद में रह... कभी भी क्या, क्यों के संकल्प में फंस नहीं जाना... नहीं तो सब व्यर्थ के खाते में जमा हो जायेगा..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा के सच्चे प्यार में दिल से कुर्बान होकर कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे मेरे बाबा... मैं आत्मा आपसे सच्चा स्नेह... सच्चा सुख पाकर धन्य धन्य हो गयी हूँ... *मीठे बाबा... आपने तो मेरे जीवन को दुःखों से सुलझाया है...* और सच्चे प्यार और मीठे ज्ञान रत्नों से सजाया है... *मैं आत्मा अब आपका साथ कभी भी नहीं छोडूंगी...* मीठे बाबा से सदा साथ रहने का वायदा करके मैं आत्मा... अपने कर्मक्षेत्र पर वापिस लौट आई..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- स्वयं के पूज्य स्वरूप का अनुभव*
➳ _ ➳ अपनी एम ऑब्जेक्ट लक्ष्मी नारायण के चित्र के सामने बैठी, उनके अनुपम सौंदर्य को देख मैं मन ही मन हर्षित हो रही हूँ और मंत्रमुग्ध होकर उनके इस अनुपम सौंदर्य को निहारते हुए अपने आप से बातें कर रही हूँ कि कितनी कशिश है इन चित्रों में, जो देखने वाले को अपनी और आकर्षित कर लेते हैं और मन करता है कि बस इनके सामने बैठ इन्हें निहारते ही रहें। *मन को कितना सुकून देती है इनके चेहरे की दिव्य मुस्कराहट, रूहानियत से छलकते नयन और अपने भक्तों की हर इच्छा, हर मनोकामना को पूर्ण करते इनके वरदानी हस्त। दिव्य गुणों से सजे इन लक्ष्मी नारायण जैसा बनना ही मेरी ऐम ऑब्जेक्ट है और इस एम ऑब्जेक्ट को सदा स्मृति में रखते हुए अब मुझे अपने अंदर इनके समान गुणों और विशेषताओ को स्वयं में धारण करने का ही पुरुषार्थ करना है*।
➳ _ ➳ मन को दृढ़ता के साथ यह संकल्प देकर, अब मैं लक्ष्मी नारायण को ऐसा बनाने वाले अपने प्यारे पिता को याद करती हूँ और अपने मन बुद्धि को सभी बातों के चिंतन से हटाकर, अशरीरी स्थिति में स्थित होने का अभ्यास करते हुए पहुँच जाती हूँ अंतर्मुखता की गुफा में। *एकान्तवासी बन एक की याद को अपने मन मे बसाये मैं चल पड़ती हुई अंतर्मन की एक बहुत ही खूबसूरत रूहानी यात्रा पर जो बहुत ही आनन्द और सुख देने वाली है। मन बुद्धि की इस यात्रा पर मैं आत्मा ज्योति बन कर एक अति सूक्ष्म सितारे की भांति चमकती हुई, नश्वर देह का त्याग करके ऊपर खुले आसमान की ओर उड़ जाती हूँ*। प्रकृति के सुंदर नजारों का आनन्द लेती मैं आत्मा खुले आसमान की सैर करते अब उसे पार कर अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के अव्यक्त वतन में प्रवेश करती हूँ। सफेद प्रकाश से सजी फरिश्तो की इस दुनिया में पहुँच कर अपने फरिश्ता स्वरूप को मैं धारण करती हूँ।
➳ _ ➳ अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित होकर, अपनी इस आकारी दुनिया की सैर करते हुए, इस अव्यक्त वतन के सुन्दर नजारों का आनन्द लेते हुए अब मैं अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के सामने पहुँच जाती हूँ। *बाबा की भृकुटि में चमक रहे अपने ज्ञानसूर्य शिव बाबा को मैं देख रही हूँ। ब्रह्मा बाबा की भृकुटि से निकल रहा प्रकाश का तेज प्रवाह पूरे वतन में अपनी लाइट और माइट फैला रहा है। बापदादा से आ रही इस लाइट माइट को अब मैं बापदादा के सामने बैठ स्वयं में ग्रहण कर रही हूँ*। बापदादा से आ रही प्रकाश की किरणें मेरे मस्तक पर पड़ रही हैं और मुझ आत्मा को छू कर, मुझमे अपना असीम बल भर रही हैं। अपनी चमक को और अपनी शक्तियों को मैं कई गुणा बढ़ता हुआ महसूस कर रही हूँ। *बापदादा से अनन्त शक्तियाँ अपने अंदर भरते हुए मैं देख रही हूँ बापदादा के साथ उनके बिल्कुल समीप मम्मा, बाबा लक्ष्मी नारायण के स्वरूप में मेरे जैसे सामने आकर खड़े हो गए हैं*।
➳ _ ➳ मन को लुभाने वाला मम्मा बाबा का यह सम्पूर्ण देवताई स्वरूप देख कर मैं खुशी से फूली नही समा रही। दिव्य आभा से दमकते उनके मुखमण्डल पर फैली मुस्कराहट और नयनो में दिव्यता की झलक मन को जैसे गहन सुकून दे रही है। *अपने लक्ष्य को साक्षात अपने सामने देख कर, मेरे भविष्य देवताई स्वरूप का चित्र बार - बार मेरी आँखों के सामने आ रहा है। अपने अति सुंदर मनमोहक भविष्य देवताई स्वरूप को पाने के लिए स्वयं से मैं वैसा ही पुरुषार्थ करने की अपने मन में प्रतिज्ञा करती हूँ और अपने बिंदु स्वरूप में स्थित होकर अपने आसुरी अवगुणों को योग अग्नि में भस्म करने और दैवी गुण धारण करने का परमात्म बल स्वयं में भरने के लिए अपनी निराकारी दुनिया की ओर चल पड़ती हूँ*।
➳ _ ➳ सेकेण्ड में मैं वाणी से परे अपने निर्वाणधाम घर मे प्रवेश करती हूँ। देख रही हूँ अब मैं स्वयं को अपने निराकार बिंदु बाप के सामने जिनसे सर्वगुणों और सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे निकलकर पूरे परमधाम घर मे फैल रही हैं। इन किरणों में समाए सर्व गुणों और सर्वशक्तियों के शक्तिशाली वायब्रेशन धीरे - धीरे मुझ आत्मा को स्पर्श करके मुझे शक्तिशाली बना रहे हैं। *ज्ञानसूर्य शिव बाबा से निकल रही सर्वशक्तियों की इन शक्तिशाली किरणों से योग अग्नि प्रज्वलित हो रही है जो मेरे सभी पुराने स्वभाव, संस्कारो को जलाकर भस्म कर रही है। विकारों की कट उतरने से स्वयं को मैं बहुत हल्का अनुभव कर रही हूँ*। इसी हल्केपन के साथ, परमात्म बल से भरपूर होकर अब मैं अपने लक्ष्य को पाने का पुरुषार्थ करने के लिए वापिस साकारी दुनिया में लौट कर, अपने साकार तन में प्रवेश करती हूँ।
➳ _ ➳ अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हूँ और अपनी एम ऑब्जेक्ट को सामने रख, अपने उस लक्ष्य को पाने का तीव्र पुरुषार्थ कर रही हूँ। बाबा से मिली सर्वशक्तियों का बल मुझे मेरे पुराने स्वभाव संस्कारो को मिटाने और नए दैवी गुणों को धारण करने की विशेष शक्ति दे रहा है। *अपने पुराने आसुरी स्वभाव संस्कारों को अब मैं सहजता से छोड़ती जा रही हूँ। शूद्रपन के संस्कारों को परिवर्तन करने के लिए अपने अनादि और आदि दैवी संस्कारों को सदैव बुद्धि में इमर्ज रखते हुए, उन्हें जीवन मे धारण कर, अपनी मंजिल की ओर मैं निरन्तर आगे बढ़ती जा रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं निश्चय की अखण्ड रेखा द्वारा नम्बरवन भाग्य बनाने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं विजय के तिलकधारी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा बुद्धि रूपी कंप्यूटर में फुलस्टॉप की मात्रा लेकर आती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदा प्रसन्नचित्त रहती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदा अचल अडोल हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
➳ _ ➳ *व्यक्ति
भी क्या है? मिट्टी
है ना! मिट्टी-मिट्टी में मिल जाती है।* देखने में आपको बहुत सुन्दर आता है, चाहे सूरत
से, चाहे
कोई विशेषता से, चाहे
कोई गुण से, तो
कहते हैं कि और मुझे कोई लगाव नहीं है, स्नेह
नहीं है लेकिन इनका
ये गुण बहुत अच्छा है। तो गुण का प्रभाव थोड़ा पड़ जाता है या कहते हैं कि
इसमें सेवा की विशेषता बहुत है तो
सेवा की विशेषता के कारण थोड़ा सा स्नेह है, शब्द
नहीं कहेंगे लेकिन अगर विशेष किसी भी व्यक्ति के तरफ या वैभव
के तरफ बार-बार संकल्प भी जाता है-ये होता तो बहुत अच्छा.... ये भी आकर्षण है।
*व्यक्ति के सेवा की विशेषता
का दाता कौन? वो
व्यक्ति या बाप देता है?*
कौन
देता है? तो
व्यक्ति बहुत अच्छा है, अच्छा
है वो ठीक है लेकिन
जब *कोई भी विशेषता को देखते हैं, गुणों
को देखते हैं,
सेवा को देखते हैं तो दाता को नहीं भूलो। वह व्यक्ति भी
लेवता है,
दाता नहीं है।*
➳ _ ➳ *बिना
बाप का बने उस व्यक्ति में ये सेवा का गुण या विशेषता आ सकती है? या
वह विशेषता
अज्ञान से ही ले आता है?
ईश्वरीय सेवा की विशेषता अज्ञान में नहीं हो सकती।* अगर अज्ञान में भी कोई विशेषता
या गुण है भी लेकिन ज्ञान में आने के बाद उस गुण वा विशेषता में ज्ञान नहीं भरा
तो वो विशेषता वा गुण ज्ञान मार्ग
के बाद इतनी सेवा नहीं कर सकता। *नेचरल गुण में भी ज्ञान भरना ही पड़ेगा। तो
ज्ञान भरने वाला कौन? बाप।*
तो किसकी देन हुई, दाता
कौन? तो
आपको लेवता अच्छा लगता है या दाता अच्छा लगता है?
तो
लेवता के पीछे क्यों
भागते हो?
✺
*ड्रिल :- "किसी भी व्यक्ति की विशेषता, गुणों व् सेवा को देखते हुए सदैव दाता
को स्मृति में रखना"*
➳ _ ➳ *कृष्ण
के रंग में रंगी... कृष्ण के प्यार में समर्पित राधा...* कृष्णमयी राधा का
दिव्य... अलौकिक जन्म... *पवित्र प्रेम की साम्राज्ञी राधा... स्वार्थ से परे
निर्मल प्रेम की अविरत बहती धारा* राधा... सतयुगी प्रिन्स... प्रिन्सेस की
दिव्य छबि देख मन हर्षित हो जाता हैं... संपूर्ण पवित्र... संपूर्ण समर्पित...
राधा जो सिर्फ कृष्ण को ही देखती... कृष्ण को ही जानती... कृष्ण को ही महसूस
करती... कृष्ण की ही यादों में खोयी... कृष्ण की ही स्नेह से बंधी सिर्फ कृष्ण
की ही विशेषता को देखती... *क्या मैं राधा बन पाई हूँ...* क्या मेरे मन बुद्धि
में शिव बाबा के प्रति दिव्य और अलौकिक... निःस्वार्थ प्रेम के झरने बहते
हैं... क्या मेरा मन देह धारियो में और उनके प्रति आकर्षणों में तो बंधा नहीं
हैं... *क्या मेरा मन कोई विशेष व्यक्ति प्रति... उसकी सेवाओ प्रति तो स्नेहित
नहीं हो रहा हैं...*
➳ _ ➳
क्या मैं सेवा में विशेषता प्रदान कराने वाले दाता को न देख सेवाधारी को तो
देखती नहीं हूँ... अपने इस मनः स्थिति से उलझी मैं आत्मा... *राधा बनने की कतार
में कोसो दूर खड़ी... बापदादा को पुकार रही हूँ...* मेरा प्यार भरा आह्वान सुनकर
बापदादा अपने रूहानी स्वरुप में मुझ आत्मा के सामने उपस्थित हो जाते हैं...
*मुझ आत्मा को अपनी अनंत शक्तियों से आच्छादित करते जा रहे हैं...* प्यार भरी
दृष्टि से भिगोते जा रहे हैं... और मैं आत्मा बापदादा के साथ... सूक्ष्म वतन की
सैर पर चल पड़ती हूँ... *सूक्ष्म वतन का रूहानी नजारा... एडवांस पार्टियों का
रूहानी समारोह देख रही हूँ...* मेरा और बापदादा का आगमन इस रूहानी समारोह में
चार चांद लगा रहा हैं...
➳ _ ➳ *बापदादा
से आती हुई... चमकीली श्वेत किरणें सारे सूक्ष्म वतन में फ़ैल रही हैं...* फूलों
की रंग बिरंगी पंखुड़ियों से हमारा स्वागत हो रहा है... और बापदादा के समीप ही
मुझ आत्मा के फ़रिश्ते स्वरुप को बिठाया जाता हैं... अचरज भरी नैनों से मैं
आत्मा इस रूहानी सभागृह को देखती रहती हूँ... बापदादा सभी एडवांस पार्टियों की
आत्माओं की विशेषता को मुझ आत्मा को बता रहे हैं... और मैं आत्मा ऐसी महान
हस्तिओं को देख गर्व से फूली नहीं समाती हूँ... *उनकी सेवा के प्रति लगन...
बापदादा के प्रति सच्चा सच्चा रूहानी प्यार... सच्चा सच्चा समर्पण...
निःस्वार्थ स्नेह का झरना प्रत्यक्ष बहता देख रही हूँ...* न अपने सेवा के प्रति
अभिमान... न मेरेपन के जंज़ीरों में बंधे और न ही किसी भी देहधारी के प्रति...
उसकी सेवा के प्रति स्नेह पूर्ण लगाव...
➳ _ ➳
अपने अपने अलौकिक पार्ट को बापदादा की आशीर्वादों से परिपूर्ण कर बापदादा के
दिलतख्तनशींन बन गए हैं... *गुणों को देखा... सेवा को देखा... लेकिन दाता को
नहीं भूले...* दाता के बच्चे दाता को ही देखते हैं... दाता के बच्चे दाता को
छोड़ लेवता में अपनी शक्तियों को व्यर्थ नहीं करते हैं... *ईश्वरीय सेवा की
विशेषता अज्ञान में नहीं हो सकती... ऐसी महान एडवांस पार्टी की सभी आत्माओं का
श्रृंगार आज बापदादा अपने हाथों से कर रहे थे... बिना बाप का बने व्यक्ति में
सेवा का गुण या विशेषता आ ही नहीं सकती हैं...* सभी की विशेषताओ को रूहानी सभा
में बापदादा संबोधित कर रहे थे और बाबा के यह महावाक्य सभी योगी... तपस्वी
आत्माओं तक... विश्व के सभी सेंटर तक... पहुँच रहे थे...
➳ _ ➳ *ज्ञान
भरने वाला कौन? बाप...
सेवा की विशेषता में चार चांद लगाने वाला कौन ?
बाप... व्यक्ति के सेवा की विशेषता
का दाता कौन? बाप...*
जब सब कुछ एक बाप का ही दिया हुआ हैं तो बुद्धि सिर्फ एक बाप में ही तो लगानी
हैं... *सच्ची सच्ची राधाओं का रूहानी मेला* देखकर मैं आत्मा अपने आप को सच्ची
राधा बनाने के रास्ते पर चल पड़ी हूँ... *सेवा को देखती... सेवाधारियों को
नहीं... सेवा की विशेषता को देखती... व्यक्ति की विशेषता को नहीं...* और मैं
आत्मा राधा बनने की कतार में पहली खड़ी हूँ... संगमयुग में बापदादा से सतयुगी
स्वराज्य का राजतिलक लगा रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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