━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 10 / 08 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *"हम विश्व के मालिक बनेंगे" - सदा यह नशा रहा ?*

 

➢➢ *याद के चार्ट को यथार्थ समझकर लिखा ?*

 

➢➢ *श्रेष्ठ वेला के आधार पर सर्व प्राप्तियों के अधिकार का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *निर्मल और निर्मान बनकर रहे ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  जैसे साकार रूप में एक ड्रेस चेन्ज कर दूसरी ड्रेस धारण करते हो, ऐसे साकार स्वरूप की स्मृति को छोड़ आकारी फरिश्ता स्वरूप बन जाओ। *फरिश्तेपन की ड्रेस सेकेण्ड में धारण कर लो। यह अभ्यास बहुत समय से चाहिए तब अन्त समय में पास हो सकेंगे।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   *"मैं बाप के दिलतख्तनशीन आत्मा हूँ"*

 

✧  सदा अपने को बाप के दिलतख्त-नशीन आत्मायें अनुभव करते हो? *ऐसा तख्त सारे कल्प में अब एक बार ही मिलता है, और कोई समय नहीं मिलता। जो श्रेष्ठ बात हो और मिले भी एक ही बार-तो उस तख्त को कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए।* जो बाप के दिल तख्त-नशीन होंगे, सदा होंगे-तो तख्त-नशीन की निशानी क्या है? तख्त पर बैठने से क्या होता है? तख्त पर बैठने से अपने को बेफिक्र बादशाह अनुभव करेंगे। तो सदा बेफिक्र रहते हो या कभी थोड़ा-थोड़ा फिक्र आ जाता है-चाहे अपना, चाहे सेवा का, चाहे दूसरों का?

 

✧  *तो सदा दिलतख्त पर बैठने वाली आत्मा नशे में भी रहती और नशा रहने के कारण स्वत: ही बेफिक्र रहती। क्योंकि इस तख्त में यह विशेषता है कि जब तक जो तख्त-नशीन होगा वह सब बातों में बेफिक्र होगा। जैसे आजकल भी कोई-कोई स्थान को विशेष कोई न कोई नवीनता, विशेषता मिली हुई है। तो दिलतख्त की यह विशेषता है-फिक्र आ नहीं सकता।* तो नीचे क्यों आते जो फिक्र हो? काम करने के लिए नीचे आना पड़ता है! दिलतख्त को यह भी वरदान मिला हुआ है कि कोई भी कार्य करते भी दिलतख्त-नशीन बन सकते। फिर सदा क्यों नहीं रहते?

 

✧  तख्त-नशीन बनने के लिए तिलकधारी भी बनना पड़े। तिलक कौनसा है? स्मृति का। तिलक है तो तख्तनशीन भी हैं, तिलक नहीं तो तख्त नहीं। अविनाशी तिलक लगा हुआ है या कभी मिटता है, कभी लगता है? अविनाशी तिलक है ना! स्मृति का तिलक लगा और तख्त-नशीन हो सदा स्वयं भी नशे में रहेंगे और दूसरों को भी नशे की स्मृति दिलायेंगे। बच्चों को कभी भी बाप का वर्सा भूलता है क्या! तो यह दिलतख्त भी बाप का वर्सा है, तो वर्सा तो सदा साथ रहेगा ना! क्या याद रखेंगे? कौन हो? बेफिक्र बादशाह। *बार-बार स्मृति को इमर्ज करते रहना। सदा यह नशा रहे कि हम साधारण आत्मा नहीं हैं लेकिन विशेष आत्मायें हैं। आप जैसी विशेष आत्मायें सारे विश्व में बहुत थोड़ी हैं। थोड़ों में आप हो-इसी खुशी में सदा रहो।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  आप सभी अभी भी अपने को बहुत बिजी समझते हो लेकिन अभी फिर भी बहुत फ्री हो। *आगे चल और बिजी होते जायेंगे।* इसलिए ऐसे भिन-भिन्न प्रकार के स्व-अभ्यास, स्वसाधना अभी कर सकते हो। *चलते-फिरते स्व प्रति जितना भी समय मिले अभ्यास में सफल करते जाओ।* दिन-प्रतिदिन वातावरण प्रमाण

 

✧  एमर्जेन्सी केसेज ज्यादा आयेंगे। अभी तो आराम से दवाई कर रहे हो। *फिर तो एमर्जन्सी केसेज में समय और शक्तियाँ थोडे समय में ज्यादा केसेज करने पडेगे।* जब चैलेन्ज करते है कि अविनाशी निरोगी बनने की एक ही विश्व की हास्पिटल है तो चारों ओर के रोगी कहाँ जायेंगे? एमर्जेन्सी केसेज की लाइन होगी। उस समय क्या करेंगे?

 

✧  *अमरभव का वरदान तो देंगे ना।* स्व अभ्यास के आक्सीजन द्वारा साहस का शवांस देना पडेगा *होपलेस केस अर्थात चारों ओर के दिल शिकस्त के केसेज ज्यादा आयेंगे।* ऐसी होपलेस आत्माओं को साहस दिलाना यही श्वांस भरना है। *तो फटाफट आक्सीजन देना पडेगा।* उस स्व-अभ्यास के आधार पर ऐसी आत्माओं को शक्तिशाली बना सकेंगे! इसलिए *फुर्सत नहीं है, यह नहीं कहो।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧ *देह, देह के सम्बन्ध, देह-संस्कार, व्यक्ति या वैभव, वायब्रेशन, वायुमण्डल सब हाते हुए भी आकर्षित न करे। इसी को ही कहते हैं - 'नष्टोमोहा समर्थ स्वरूप।'* तो ऐसी प्रेक्टिस है? लोग चिल्लाते रहें और आप अचल रहो। प्रकृति भी, माया भी सब लास्ट दांव लगाने लिए अपने तरफ कितना भी खींचे लेकिन आप न्यारे और बाप के प्यारे बनने की स्थिति में लवलीन रहो। *इसको कहा जाता है - देखते हुए न देखो। सुनते हुए न सुनो। ऐसा अभ्यास हो। इसी को ही 'स्वीट साइलेन्स' स्वरूप की स्थिति कहा जाता है।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  अपने घर और राज्य को याद करना"*

 

_ ➳  मधुबन घर के आँगन में मीठे बाबा के कमरे से निकलकर... मै आत्मा तपस्या धाम की ओर बढ़ती हूँ... और वहाँ पहुंचकर मीठे बाबा की यादो में खुद को भूल जाती हूँ... नजरे उठाकर जो देखती हूँ तो बाबा भी कमरे में मौजूद मुस्करा रहे है... और *मुझे प्रेम सुख शांति की गहन अनुभूतियों में ले चलने के लिए अपना हाथ थमा रहे है.*.. मीठे बाबा अपने मखमली हाथो में मेरी ऊँगली पकड़ कर कह रहे...तू जहाँ जहाँ चलेगा, मेरा साया साथ होगा....

 

   *प्यारे बाबा मुझ आत्मा के सुखो की खातिर यूँ धरती पर उतरकर कहने लगे :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... आत्मा के सच्चे तीर्थ हे शांति धाम और सुखधाम... ईश्वर पिता की यादो में अपने सच्चे तीर्थो को पाओ... जनमो की ठोकरे के बाद जो विश्व पिता मिला है... *उसके प्यार की गहराइयो में डूब कर राजाई और घर को याद करो.*.."

 

_ ➳  *मै आत्मा ईश्वर पिता के प्यार को पाकर खुशियो की चरमसीमा पर हूँ और कह रही हूँ :-* "प्राणप्रिय बाबा मेरे... देह की मिटटी में लथपथ मै आत्मा पत्थरो में आपको खोज रही थी... आज भाग्य ने आप भगवान से मिलाकर मुझे हर भटकन से छुड़ा दिया है... मेरा *जीवन सच्ची खुशियो से सजाकर सदा का खुशनसीब बना दिया है.*..

 

   *प्यारे बाबा मेरे प्रेम भावो को देख देख मुस्करा रहे है... और ज्ञान रत्नों को मेरी झोली में डालते हुए कह रहे है :-* "प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय यादो में सच्चे सुख समाये है... सच्ची यात्रा कराने वाला रूहानी पण्डा विश्व पिता सम्मुख है... उसकी यादो में रहकर, अपने घर और राजाई को याद करो... *जहाँ सुखो भरा संसार आपका इंतजार कर रहा.*.."

 

_ ➳  *मै आत्मा ईश्वर पिता को अपने प्यार में रूहानी पण्डा बना देखकर... अपनी खुशनसीबी पर बलिहार हूँ और कह रही हूँ :-* "ओ मीठे मीठे बाबा मेरे... मेरे जनमो की भटकन देख, मेरे जख्मी पेरो की तपिश मिटाने आप धरती पर आ गए हो... मुझे विस्तार से सार में ले जाकर सदा का सुखी बना रहे हो... *मेरे कदमो में सुखो के फूल बिछा रहे हो.*.."

 

   *मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपनी शक्तियो से वरदानों से सजाते हुए कह रहे :-* " सिकीलधे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता के बिना... चहुँ ओर बिखरी अपनी बुद्धि को अब समेटकर, यादो के तारो में पिरो दो... *ईश्वर संग सच्चे तीर्थ करने वाले महान भाग्यशाली बनो..*. अपने मीठे घर और सुखमय संसार को याद करो..."

 

_ ➳  *मै आत्मा पल भर में अपने मीठे घर और सुखधाम में पहुंचने के मीठे भाग्य को देख बाबा से कह रही हूँ :-* "प्यारे मीठे बाबा... आपने सच्ची श्रीमत देकर मुझे कितना सुखी, कितना हल्का, प्यारा और निश्चिन्त बना दिया है... मै आत्मा आपकी यादो के साये में बैठकर... *अपने मीठे घर, और खुशियो भरे स्वर्ग की सैर कर आती हूँ..*..अपने दिल के जज्बात मीठे बाबा को सुनाकर, मै आत्मा अपने कर्म संसार में आ गयी..."

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सदा इसी नशे में रहना है कि हम मनुष्य से देवता सो विश्व के मालिक बनेंगे*"

 

_ ➳  अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के नशे में बैठी, अपने मीठे बाबा के प्रेम की लगन में मगन मैं उनकी मीठी यादों में रमण करती हुई *अनुभव करती हूँ कि जैसे मेरे शिव पिता अपने साकार रथ पर विराजमान हो कर, अपनी बाहें पसारे मुझे बुला रहें हैं और कह रहे हैं:- "आओ मेरे डबल सिरताज बच्चे, मेरे पास आओ"*। अव्यक्त बापदादा के ये अव्यक्त महावाक्य जैसे ही मेरे कानों में सुनाई पढ़ते हैं मैं अपनी अव्यक्त स्थिति में स्थित हो जाती हूँ और सूक्ष्म आकारी देह धारण कर, अपने साकारी तन से बाहर निकल कर, बापदादा के पास उनके अव्यक्त वतन की ओर चल पड़ती हूँ।

 

_ ➳  अपनी लाइट की सूक्ष्म आकारी देह को धारण किये मैं फ़रिशता साकार लोक में भ्रमण करता हुआ, आकाश को पार करके पहुँच जाता हूँ सूक्ष्म आकारी फरिश्तों की उस अति सुंदर मनोहारी दुनिया में जहां बापदादा बाहें पसारे मेरा इंतजार कर रहें हैं। बापदादा के सामने पहुँच कर, मैं बिना कोई विलम्ब किये उनकी बाहों में समा जाता हूँ। *अपने बाबा की ममतामयी बाहों के झूले में झूलते हुए मैं असीम आनन्द से विभोर हो रहा हूँ*। बाबा का प्रेम और वात्सलय बाबा के हाथों के स्पर्श से मैं स्पष्ट अनुभव कर रहा हूँ।ऐसे निस्वार्थ प्रेम को पा कर मेरी आँखों से खुशी के आँसू छलक रहें हैं। बाबा मेरे आंसू पोंछते हुए बड़ी मीठी दृष्टि से मुझे देख रहें हैं।

 

_ ➳  बाबा की मीठी दृष्टि से, बाबा की सर्वशक्तियाँ मुझ फ़रिश्ते में समा रही हैं। मैं स्वयं को परमात्म बल से भरपूर होता हुआ अनुभव कर रहा हूँ। *बापदादा के प्यार की शीतल छाया में मैं फरिश्ता असीम सुख और आनन्द का अनुभव कर रहा हूँ*। बापदादा अपना वरदानीमूर्त हाथ मेरे सिर पर रख कर मुझे वरदानों से भरपूर कर रहे हैं। हर प्रकार की सिद्धि से बाबा मुझे सम्पन्न बना रहे हैं। सर्व सिद्धियों, शक्तियों और वरदानों से मुझे भरपूर करके अब बाबा मुझे भविष्य नई दुनिया का साक्षात्कार करवा रहें हैं।

 

_ ➳  ज्ञान के दिव्य चक्षु से मैं देख रहा हूँ, बाबा मेरा हाथ पकड़ कर मुझे आने वाली नई सतयुगी दुनिया मे ले जा रहें हैं और बड़े स्नेह से मुझे कह रहे हैं देखो, बच्चे:- इस नई दुनिया के आप मालिक हो" *अब मैं स्वयं को विश्व महाराजन के रूप में देख रहा हूँ। सारे विश्व पर मैं राज्य कर रहा हूँ। मेरे राज्य में डबल ताज पहने देवी देवता विचरण कर रहें हैं। राजा हो या प्रजा सभी असीम सुख, शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर हैं*। चारों ओर ख़ुशी की शहनाइयाँ बज रही हैं। प्राकृतिक सौंदर्य भी अवर्णनीय है। रमणीकता से भरपूर सतयुगी नई दुनिया के इन नजारों को देख मैं मंत्रमुग्घ हो रहा हूँ।

 

_ ➳  इस खूबसूरत दृश्य का आनन्द लेने के बाद मैं जैसे ही अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होती हूँ। *स्वयं को एक दिव्य अलौकिक नशे से भरपूर अनुभव करती हूँ और अब मैं सदा इसी रूहानी नशे में रहते हुए कि मैं ब्रह्माण्ड और विश्व की मालिक बन रही हूँ, निरन्तर अपने पुरुषार्थ को आगे बढ़ा रही हूँ*।

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं श्रेष्ठ वेला के आधार पर सर्व प्राप्तियों के अधिकार का अनुभव करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं पदमापदम भाग्यशाली आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा निर्मल और निर्मान हूँ  ।*

   *मैं आत्मा अपनी प्रसन्नता की छाया से शीतलता का अनुभव कराती हूँ  ।*

   *मैं प्रसन्नचित्त आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  क्रोध का कारण - *आपके जो संकल्प हैं वो चाहे उल्टे हों,चाहे सुल्टे हों लेकिन पूर्ण नहीं होंगे - तो क्रोध आयेगा*। मानो आप चाहते हो कि कान्फ्रेन्स होती हैफंक्शन होते हैं तो उसमें हमारा भी पार्ट होना चाहिए। आखिर भी हम लोगों को कब चांस मिलेगा? आपकी इच्छा है और आप इशारा भी करते हैं लेकिन आपको चांस नहीं मिलता है तो उस समय चिड़चिड़ापन आता है कि नहीं आता है?

➳ _ ➳  चलोमहाक्रोध नहीं भी करोलेकिन जिसने ना की उनके प्रति व्यर्थ संकल्प भी चलेंगे नातो वह पवित्रता तो नहीं हुई। *आफर करना, विचार देना इसके लिए छुट्टी है लेकिन विचार के पीछे उस विचार को इच्छा के रूप में बदली नहीं करो। जब संकल्प इच्छा के रूप में बदलता है तब चिड़चिड़ापन भी आता है*मुख से भी क्रोध होता है वा हाथ पांव भी चलता है। हाथ पांव चलाना-वह हुआ महाक्रोध। लेकिन  *निस्वार्थ होकर विचार दोस्वार्थ रखकर नहीं कि मैंने कहा तो होना ही चाहिए-ये नहीं सोचो।*

➳ _ ➳  आफर भले करोये रांग नहीं है। लेकिन क्यों-क्या में नहीं जाओ। नहीं तो ईर्ष्या, घृणा - ये एक-एक साथी आता है। इसलिए *अगर पवित्रता का नियम पक्का कियालगाव मुक्त हो गये तो यह भी लगाव नहीं रखेंगे कि होना ही चाहिए। होना ही चाहिएनहीं*। आफर किया ठीक, आपकी निस्वार्थ आफर जल्दी पहुँचेगी। स्वार्थ या ईर्ष्या के वश आफर और क्रोध पैदा करेगी।

✺   *ड्रिल :-  "सेवा में क्रोध मुक्त स्थिति का अनुभव"*

➳ _ ➳  *मन रूपी झील में उठते सकंल्पों को मैं आत्मा साक्षी होकर देख रही हूँ*... मैं देखे जा रही हूँ अपने हर संकल्प रूपी बीज को, *और गहराई से निरीक्षण कर रही हूँ  इसके उत्पन्न होने के कारण का*... आहिस्ता-आहिस्ता संकल्प रूपी लहरें शान्त होती जा रही है... बिल्कुल शान्त... शान्त झील में तैरते किसी हिमशैल के समान, मैं आत्मा अपने आस-पास शीतलता और पावनता का सृजन कर रही हूँ... झिलमिलाते हीरे के समान मैं आत्मा अपनी आभा बिखेर रही हूँ... मेरे मस्तक पर अपनी किरणों का जाल बिखेरते शिव सूर्य, एकदम अद्भुत नजारा है... *सुनहरी किरणों को स्वयं में समाती हुई... स्वयं भी केवल एक सुनहरी किरण बन निकल पडी हूँ अपनी रूहानी चैतन्य यात्रा पर सब कुछ पीछे छोडती हुई...*

➳ _ ➳  मैं आत्मा फरिश्ता रूप धारण कर सूक्ष्म वतन में... सूक्ष्म वतन आज बिल्कुल मधुबन की तरह प्रतीत हो रहा है... वैसा ही बापदादा का कमरा, कुटिया और वही शान्ति स्तम्भ... सुनहरे बादलों के अस्तित्व से बना है ये सुन्दर मधुबन रूपी सूक्ष्म वतन... चारों तरफ घूमते फरिश्ते अपनी-अपनी सेवाओं में मगन... *हिस्ट्री हाॅल में सन्दली पर फरिश्ता रूप में बैठे बापदादा... सेवा के सब्जैक्ट के बारे में इशारा दे रहे हैं, बाबा कहते- महाक्रोध, चिडचिडापन और व्यर्थ संकल्पों का कारण है सेवा में कोई न कोई हद की इच्छा रखना*... बापदादा समझाते जा रहे हैं और उनकी हर बात को गहराई से धारण करता हुआ मैं लौट चला हूँ अपने स्थूल वतन की ओर... मगर मैं महसूस कर रहा हूँ कि अभी भी इस सफर में बापदादा मेरे साथ है...

➳ _ ➳  हम दोनों उतर जाते हैं एक सुन्दर बगीचे में... *गुलाब के फूलों पर मंडराती मधुमक्खियाँ*... *सेवा रूपी शहद का निर्माण करती मधुमक्खियाँ*... मैं गहराई से चिन्तन कर रहा हूँ इन्हें देखकर... और याद आ रहा है उनका शहद पान करने का तरीका... *शहद का पान करती हुई कैसे स्वयं के पंखों और नन्हें पंजों को बचा लेती है उसमें चिपकने से*... ताकि शहद का पान तो करे मगर पंख सलामत रहें...  *मुझे भी अपने मन बुद्धि रूपी पंखों को सेवा रूपी शहद की मिठास में चिपकने से बचाना है... सेवा के विचार और सेवा कार्य सब करते हुए लगाव मुक्त रहना है... लगाव नही होगा तो व्यर्थ सकंल्प, चिडचिडाहट और महाक्रोध से मुक्त रह सकूँगा* तभी एक मधुमक्खी का उडकर मेरे कन्धे पर बैठ जाना और *बापदादा का मुझे देखकर गहराई से मुस्कुराना... मानों वरदान दे रहे हो सदा मन बुद्धि रूपी पंखों को सेवा रूपी शहद में न चिपकने का*...

➳ _ ➳  किस तरह सेवाओं में क्रोध और उसके हर अंश से दूर रह सकता हूँ, इसकी गहरी समझ लिए मैं आत्मा लौट आई हूँ अपनी उसी देह में... देख रही हूँ शान्त और स्थिर मन की उस झील को... जिसमें बहुत कम संकल्प रूपी लहरें हैं, ये संकल्प पहले से मजबूत है *सेवा में लगाव मुक्त और क्रोध मुक्त रहने के*... *संकल्पो में भी बस ट्रस्टी भाव ही बाकी है अब*... 'मेरा मुझमें क्या बाकी, किया हर संकल्प का तुमने तो सृजन... मनबुद्धि और प्राण तुम्हारे, तुमने ही तो दिया ये नवजीवन...'

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━