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 13 / 08 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *"स्वयं भगवान सुप्रीम टीचर बनकर पडा रहे हैं" - यह नशा रहा ?*

 

➢➢ *साइलेंस का बल जमा किया ?*

 

➢➢ *एकमत और एकरस अवस्था द्वारा धरनी को फलदायक बनाया ?*

 

➢➢ *निर्माणचित होकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  डबल लाइट अर्थात् आत्मिक स्वरुप में स्थित होने से हल्कापन स्वत: हो जाता है। ऐसे डबल लाइट को ही फरिश्ता कहा जाता है। *डबल लाइट अर्थात् सदा उड़ती कला का अनुभव करने वाले।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बाबा के साथ सदा कम्बाइण्ड रहने वाली आत्मा हूँ"*

 

〰✧  सभी अपने को सदा बाप और आप कम्बाइण्ड हैं-ऐसा अनुभव करते हो? जो कम्बाइण्ड होता है उसे कभी भी, कोई भी अलग नहीं कर सकता। आप अनेक बार कम्बाइण्ड रहे हो, अभी भी हो और आगे भी सदा रहेंगे। ये पक्का है? तो इतना पक्का कम्बाइण्ड रहना। *तो सदैव स्मृति रखो कि- 'कम्बाइण्ड थे, कम्बाइण्ड हैं और कम्बाइण्ड रहेंगे। कोई की ताकत नहीं जो अनेक बार के कम्बाइण्ड स्वरूप को अलग कर सके।'* तो प्यार की निशानी क्या होती है? (कम्बाइण्ड रहना) क्योंकि शरीर से तो मजबूरी में भी कहाँ-कहाँ अलग रहना पड़ता है। प्यार भी हो लेकिन मजबूरी से कहाँ अलग रहना भी पड़ता है। लेकिन यहाँ तो शरीर की बात ही नहीं। एक सेकेण्ड में कहाँ से कहाँ पहुंच सकते हो!

 

✧  आत्मा और परमात्मा का साथ है। परमात्मा तो कहाँ भी साथ निभाता है और हर एक से कम्बाइण्ड रूप से प्रीत की रीति निभाने वाले हैं। हरेक क्या कहेंगे-मेरा बाबा है। या कहेंगे-तेरा बाबा है? हरेक कहेगा-मेरा बाबा है! तो मेरा क्यों कहते हो? अधिकार है तब ही तो कहते हो। *प्यार भी है और अधिकार भी है। जहाँ प्यार होता है वहाँ अधिकार भी होता है। अधिकार का नशा है ना। कितना बड़ा अधिकार मिला है! इतना बड़ा अधिकार सतयुग में भी नहीं मिलेगा! किसी जन्म में परमात्म-अधिकार नहीं मिलता। प्राप्ति यहाँ है। प्रालब्ध सतयुग में है लेकिन प्राप्ति का समय अभी है।* तो जिस समय प्राप्ति होती है उस समय कितनी खुशी होती है! प्राप्त हो गया-फिर तो कॉमन बात हो जाती है।

 

✧  लेकिन जब प्राप्त हो रहा है, उस समय का नशा और खुशी अलौकिक होती है! तो कितनी खुशी और नशा है! क्योंकि देने वाला भी बेहद का है। तो दाता भी बेहद का है और मिलता भी बेहद का है। तो मालिक किसके हो-हद के या बेहद के? *तीनों लोक अपने बना दिये हैं। मूलवतन, सूक्ष्मवतन हमारा घर है और स्थूल वतन में तो हमारा राज्य आने वाला ही है। तीनों लोकों के अधिकारी बन गये! तो क्या कहेंगे- अधिकारी आत्मायें।* कोई अप्राप्ति है? तो क्या गीत गाते हो? (पाना था वह पा लिया) पाना था वह पा लिया, अभी कुछ पाने को नहीं रहा।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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छोडना भी नहीं चाहते और उडना भी नहीं चाहते। तो क्या करना पडेगा? चलना पडेगा। चलने में तो जरूर मेहनत लगेगी ना। इसलिए *अब कमजोर रचना बन्द करो तो मन की मेहनत से छूट जायेंगे।* फिर हँसी की बात क्या कहते हैं? बाप कहते यह रचना क्यों करते, तो जैसे आजकल के लोग कहते हैं ना - क्या करें ईश्वर दे देता है। दोष सारा ईश्वर पर लगाते हैं, ऐसे यह व्यर्थ रचना पर क्या कहते? हम चाहते नहीं है लेकिन माया आ जाती है। हमारी चाहना नहीं है लेकिन हो जाता है। इसलिए *सर्वशक्तिवान बाप के बच्चे मालिक बनो। राजा बनो।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *रूहे गुलाब अर्थात् जिसमें सदा रूहानी खुशबू हो। रूहानी खुशबू वाले जहाँ भी देखेंगे, जिसको भी देखेंगे तो रूह को देखेंगे, शरीर को नहीं देखेंगे। स्वयं भी सदा रूहानी स्थिति में रहेंगे और दूसरों की भी रूह को देखेंगे। इसको कहते हैं रूहानी गुलाब।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- कभी भी पढाई नहीं छोड़ना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा के कमरे में बैठ नर से नारायण और नारी से लक्ष्मी बनने की पढाई पढने के लिए सज धज कर तैयार होती हूँ... मैं आत्मा इस देहभान से निकल अपने आत्मिक स्वरुप में टिक जाती हूँ...* अपने जगमगाते, चमचमाते अत्यंत सुन्दर सजीले स्वरुप में सजकर मैं आत्मा इस स्थूल दुनिया को छोड़ सुन्दर प्रकाश के विमान में बैठकर पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन मेरे प्यारे बाबा के पास...

 

   *प्यारा बाबा मेरे जीवन की बगिया को अपने ज्ञान रत्नों और प्यार से महकाते हुए कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... इस धरा पर खेल को जो उतरे तो सब कुछ भूल गए कौन हो किसके हो कहां के हो... *सब कुछ भूल गए हो... अब सत्य पिता ज्ञान रत्नों से फिर से सजा रहा और देवताओ सा सुखद जीवन दामन में खिला रहा है... यह ईश्वरीय पढ़ाई ही सतयुगी सुखो का आधार है...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा वरदाता का साथ और श्रीमत का हाथ पकडकर कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मुझ आत्मा ने कितना प्यारा भाग्य पाया है कि स्वयं ईश्वर पिता मुझे पढ़ा रहा... मेरा खोया हुआ सौंदर्य लौटाकर मुझे देवताओ सा खुबसूरत सजा रहा...* मै आत्मा मीठे बाबा से पढ़कर प्रतिपल निखर रही हूँ...

 

   *मीठे बाबा मेरी तकदीर जगाकर ज्ञान रत्नों से सराबोर करते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वरीय पढ़ाई को मन बुद्धि के रोम रोम में भर लो... यही ज्ञान रत्न सुखो के रत्नों में बदल जीवन को शांति और आनन्द से भरपूर कर जाएँगे...* ईश्वर पिता ने गोद में बिठाकर सारे ज्ञान खजाने नाम कर दिए है उन कीमती अमूल्य रत्नों को सहेज लो...

 

 ➳ _ ➳  *मैं आत्मा कई जन्मों के पुण्यफल से भगवान् को सम्मुख पाकर अपने भाग्य पर इठलाती हुई कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा ईश्वरीय रत्नों को पाने वाली महान भाग्यशाली आत्मा हूँ... भक्ति में कितनी खाली हो गई थी मै आत्मा ईश्वरीय सानिध्य में ज्ञान रत्नों से मालामाल हो गयी हूँ...* और सुंदर देवता बनने का राज जानकर मुस्करा उठी हूँ...

 

   *मेरे बाबा मुझ आत्मा को इस ऊँची पढाई से दैवीय गुणों से भरपूर कर पावन श्रेष्ठाचारी बनाते हुए कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... सारा मदार इस ईश्वरीय पढ़ाई पर ही है... *यह पढ़ाई ही विश्व का मालिक बनाकर विश्वधरा पर सजायेंगी... इसलिए इस पढ़ाई को रग रग में धारण करलो...* जिन अल्पकाल के क्षणिक सुख के पीछे खप रहे थे कभी... यह पढ़ाई देवताई सुखो के अम्बार लगाकर जीवन खुशनुमा बना देगी...

 

_ ➳  *मैं आत्मा स्वर्णिम विश्व के रंगमंच पर देवता बन फिर से पार्ट बजाने का पुरुषार्थ करते हुए कहती हूँ:-*  हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा सारे सुखो के गहरे राज आप पिता से जान चुकी हूँ... और जीवन को साधारण मनुष्य से असाधारण देवता बनाने के प्रयासों में जीजान से जुटी हूँ...* मीठे बाबा से सारे सुख अपने नाम लिखवा रही हूँ और शान से मुस्करा रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺  *"ड्रिल :- साइलेन्स बल से विश्व पर जीत पानी है*"

 

 _ ➳  आत्म चिंतन में मग्न हो कर मैं विचार करती हूं कि भगवान द्वारा दिये जा रहे इस ईश्वरीय ज्ञान का सार यही है कि "मुझे बिंदु बन बिंदु बाप के साथ वापिस जाना है तो क्या मेरा सेकण्ड में बिंदु बनने का अभ्यास पक्का हो गया*? क्या मैंने विस्तार को सार में समा लिया? मन ही मन स्वयं से मैं बातें कर रही हूं।

 

 _ ➳  एकाएक मैं अनुभव करती हूं जैसे मैं बहुत सारी जंजीरो में बंधी हुई है। उन जंजीरों से छूटने के लिए छटपटा रही हूं। मेरा दम घुट रहा है लेकिन मैं उन जंजीरों को तोड़ पाने में स्वयं को असमर्थ अनुभव कर रही हूँ। बहुत प्रयास कर रही हूं उन्हें तोड़ने का। *तभी कानो में मीठी मधुर आवाज आती है, मीठे बच्चे:- "घबराओ मत, ये जंजीरे साइंस के साधनों की जंजीरे हैं जिन्हें सारी दुनिया सुख के साधन समझने की भूल किये बैठी है" अंत समय मे ये सब साधन धोखा देने वाले हैं*। इनसे छूटने का एक ही उपाय है। बस अशरीरी बन जाओ। ये सब जंजीरे स्वत: टूट जायेंगी।

 

 _ ➳  तभी मुझे अनुभव होता है जैसे महाज्योति शिव बाबा मेरे सिर के बिल्कुल ऊपर आ कर स्थित हो गए हैं और अपनी सर्वशक्तियों की शक्तिशाली किरणे पूरे वेग के साथ मुझ पर प्रवाहित कर रहें हैं। *इन शक्तिशाली किरणों की शक्ति से एक एक करके सभी जंजीरे टूट रही हैं। देह का भान ही समाप्त हो गया है। केवल एक चमकता हुआ सितारा दिखाई दे रहा है*। अब मैं अशरीरी स्थिति में स्थित हो कर अपने सत्य स्वरूप का स्पष्ट अनुभव कर रही हूं। मेरे सत्य स्वरुप का अनुभव मुझ आत्मा में निहित गुणों और शक्तियों को स्वत: ही इमर्ज कर रहा है। *अब मैं अपने शांत स्वधर्म में स्थित हो चुकी हूं। दुनियावी साधनों के हर आकर्षण से अब मैं परे हूँ*।

 

 _ ➳  अपनी इसी शांत चित्त स्थिति में स्थित मैं अशरीरी आत्मा अब हल्की हो कर ऊपर की औऱ उड़ रही हूँ। इस भौतिक जगत को पार करके, सूक्ष्म लोक से भी परे अब मैं पहुंच गई शान्तिधाम में, शांति के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के पास। *इस शान्तिधाम में फैले हुए शांति के शक्तिशाली प्रकम्पन मुझ आत्मा को गहन शांति की अनुभूति करवा रहें हैं*। मेरे शिव पिता परमात्मा से आ रहा शान्ति की शक्तियों का फव्वारा मुझ पर बरस रहा है और इस फव्वारे की मीठी फुहारें मुझे अंदर तक रोमांचित कर रही हैं। *शांति का बल मुझ आत्मा में पूरी तरह भर गया है*।

 

 _ ➳  शांति की शक्ति से भरपूर हो कर मैं फिर से भौतिक जगत में लौट आई हूँ और पांच तत्वों की बनी देह में आ कर फिर से विराजमान हो गई हूं। *मेरे अंदर जमा किया हुआ साइलेन्स का बल अब मुझे साइंस पर विजय दिला रहा है। जैसे साइन्स के साधन सेकण्ड में अंधकार से रोशनी कर देते हैं ऐसे ही साइलेन्स की शक्ति द्वारा सेकेंड में स्मृति का स्विच ऑन कर, मास्टर ज्ञानसूर्य बन अपनी सर्वशक्तियों की किरणों द्वारा मैं अज्ञान अंधकार में भटक रही आत्माओं को ज्ञान की रोशनी दे कर उन्हें भटकने से छुड़ा रही हूं*। चलते फिरते हर कर्म करते अशरीरी पन के अभ्यास द्वारा, बाबा की याद में रह शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन वायुमण्डल में फैला कर मैं सबको शांति की अनुभूति करवा रही हूं।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं एकमत और एकरस अवस्था द्वारा धरनी को फलदायक बनाने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं हिम्मतवान आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा अभिमान को शान समझने से मुक्त हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदा निर्मानचित्त हूँ  ।*

   *मैं आत्मा रूहानी शान में रहती हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  *एक होती है कल्याण के भावना की सेवा और दूसरी होती है स्वार्थ से।* *मेरा नाम आ जायेगामेरा अखबार में फोटो आ जायेगा, मेरा टी.वी. में आ जायेगामेरा ब्राह्मणों में नाम हो जायेगाब्राह्मणी बहुत आगे रखेगीपूछेगी..... यह सब भाव स्वार्थी-सेवा के हैं।* क्योंकि आजकल के हिसाब सेप्रत्यक्षता के हिसाब सेअभी सेवा आपके पास आयेगीशुरू में स्थापना की बात दूसरी थी लेकिन अभी आप सेवा के पिछाड़ी नहीं जायेंगे। *आपके पास सेवा खुद चलकर आयेगी। तो जो सच्चा सेवाधारी है उस सेवाधारी को चलो और कोई सेवा नहीं मिली लेकिन बापदादा कहते हैं अपने चेहरे सेअपने चलन से सेवा करो।* आपका चेहरा बाप का साक्षात्कार कराये। आपका चेहरा, आपकी चलन बाप की याद दिलावे। ये सेवा नम्बरवन है। ऐसे सेवाधारी जिनमें स्वार्थ भाव नहीं हो। ऐसे नहीं मुझे ही चांस मिलेमेरे को ही मिलना चाहिए। क्यों नहीं मिलता, मिलना चाहिए - *ऐसे संकल्प को भी स्वार्थ कहा जाता है।*

➳ _ ➳  चाहे ब्राह्मण परिवार में आपका नाम नामीग्रामी नहीं है,सेवाधारी अच्छे हो फिर भी आपका नाम नहीं हैलेकिन बाप के पास तो नाम है ना, *जब बाप के दिल पर नाम है तो और क्या चाहिए!* *और सिर्फ बाप के दिल पर नहीं लेकिन जब फाइनल में नम्बर मिलेंगे तो आपका नम्बर आगे होगा। क्योंकि बापदादा हिसाब रखते हैं।* आपको चांस नहीं मिलाआप राइट हो लेकिन चांस नहीं मिला तो वो भी नोट होता है। और मांग कर चांस लियावो किया तो सही लेकिन वो भी मार्क्स कट होते हैं।

➳ _ ➳  *ये धर्मराज का खाता कोई कम नहीं है। बहुत सूक्ष्म हिसाब-किताब है। इसलिए नि:स्वार्थ सेवाधारी बनोअपना स्वार्थ नहीं हो। कल्याण का स्वार्थ हो।* यदि आपको चांस है और दूसरा समझता है कि हमको भी मिले तो बहुत अच्छा और योग्य भी है तो अगर मानो आप अपना चांस उसको देते हो तो भी आपका शेयर उसमें जमा हो जाता है। चाहे आपने नहीं कियालेकिन किसको चांस दिया तो उसमें भी आपका शेयर जमा होता है। क्योंकि *सच्चा डायमण्ड बनना है ना। तो हिसाब-किताब भी समझ लोऐसे अलबेले नहीं चलोठीक हैहो गया...... बहुत सूक्ष्म में हिसाब-किताब का चौपड़ा है। बाप को कुछ करना नहीं पड़ता हैआटोमेटिक है।*

✺   *ड्रिल :-  "नि:स्वार्थ सेवाधारी बन सच्चा डायमण्ड बनना"*

➳ _ ➳  *मैं आत्मा अपने ही धुन में तितली की भांति उड़ती चली जा रही हूँ... कभी इस फूल पे तो कभी किसी बादल की टुकड़ी पर...* जो भी मुझे देख रहे खुश हो रहे, तारीफ कर रहे... मैं आत्मा देख रही हूँ हर बादल की टुकड़ी को... वो कभी टी.वी, तो कभी अखबार है... अपनी ऊंचाइयों को छूती जा रही हूँ... कितना सुकून है जहां सिर्फ मैं ही मैं हूँ... कितना ना आराम से बैठी हूँ बादल की टुकड़ी पर... और देखती हूँ कि दिव्य किरणें नीचे की ओर आ रही है... *ये किरणें चारों ओर फैल रही है... देखती हूँ बाबा धीरे-धीरे किरणों से उतरते जा रहे हैं...*

➳ _ ➳  बाबा मेरे हाथ थामे माउंट आबू की पहाड़ी पर ले जाते हैं... और बाबा के साथ बैठ जाती हूँ... *बाबा कहते हैं बच्चे तुम अपने दिव्य बुद्धि से देखो, त्रिकालदर्शी बन अपनी हर एक पार्ट को देखो जो अंतिम जन्म तक भी श्रेष्ठ है...* अपनी असली स्वरूप की स्मृति होते ही अल्पकाल की मान, प्रशंसा, नाम की जो भी संकल्प रहते थे उससे डिटैच होने लगी हूँ...

➳ _ ➳  *मैं आत्मा बाबा के सानिध्य में बैठी बाबा से पवित्रता की सफेद किरणें ग्रहण करती जा रही हूँ... जो मेरे देहभान को खत्म करता जा रहा है...* ज्ञान सूर्य शिव बाबा से ज्ञान की नीली किरणें ग्रहण करती जा रही हूँ... मास्टर ज्ञान सूर्य बन मास्टर दाता बनती जा रही हूँ... स्नेह, सुख, शांति, शक्ति, आनंद की रंगबिरंगी किरणें मुझमें समाती जा रही है... सातों गुणों से भरपूर होकर मैं आत्मा इच्छा मात्रम अविद्या सी हो गयी हूँ... देहअभिमान से छूटती देहिअभिमानी होती जा रही हूँ... मैं आत्मा डायमंड जैसी बनती जा रही हूँ... *बाबा ने कहा कि बच्चे सेवा तुम्हारे पास चल कर आएगी... तुम्हें सेवा मांगना नहीं है... निस्वार्थ सेवाधारी बनना है...*

➳ _ ➳  *कल्प-कल्प मैं आत्मा ही निस्वार्थ सेवाधारी बनी हूँ... हर ब्राह्मण आत्मा को शुभभावना, शुभकामना की टचिंग हो रही है...* हर ब्राह्मण आत्मा को सेवा का चांस मिलता जा रहा है... कोई न कोई सेवा का चांस बाबा मुझ आत्मा द्वारा औरों को भी दे रहे हैं... *ये ब्राह्मण जीवन सफल होता जा रहा है... कल्प-कल्प के लिए श्रेष्ठ भाग्य का खाता नूँध हो गया है... वाह रे मैं आत्मा... वाह रे मेरा भाग्य...*

➳ _ ➳  *दिलाराम बापदादा की दिलतख़्तनशीन बन गई हूँ... सच्चा-सच्चा  डायमंड बनती जा रही हूँ... निस्वार्थ सेवाधारी बनना है... बाबा ने मुझ आत्मा को बेदाग, सच्चा डायमंड बना दिया है...* एक चमकता हुआ डायमंड जो रोशनी से भरपूर होकर... औरों को भी अपने चेहरे और चलन से बाबा की प्रत्यक्षता करती जा रही है... शुक्रिया बाबा... बहुत बहुत शुक्रिया... जो धर्मराज के खाते में पुण्य जमा होता जा रहा है... सूक्ष्म हिसाब-किताब का चौपड़ा भी चमक रहा... *शुक्रिया बाबा जो सच्चा डायमंड बन गई हूँ... ओम् शान्ति।*

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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