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 11 / 08 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *विचार सागर मंथन कर स्वयं में ज्ञान रतन धारण किये ?*

 

➢➢ *याद की यात्रा में रहकर वाणी का जोहरदार बने ?*

 

➢➢ *पुरानी देह और देह की दुनिया को भूले ?*

 

➢➢ *हद के नाम, मान, शान के पीछे दौड़ तो नहीं लगाई ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *फरिश्ता बनने के लिए चेक करो कि चारों ओर के बन्धन से मुक्त होते जाते हैं! अगर नहीं होते तो सिद्ध है फरिश्ता जीवन समीप नहीं है।* एक के साथ सर्व रिश्ते निभाना यह है ठिकाना। सदा अपना *अन्तिम फरिश्ता स्वरूप स्मृति में रखो तो जैसी स्मृति होगी वैसी स्थिति बन जायेगी*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं सहजयोगी आत्मा हूँ"*

 

✧  अपने को सहजयोगी अनुभव करते हो? जो सहज बात होती है वो सदा सहज होती है। या कभी-कभी मुश्किल होती है? योग मुश्किल है या आप मुश्किल कर देते हो? तो मुश्किल क्यों करते हो? अच्छा लगता है मुश्किल? जब अपने में कोई न कोई कमजोरी लाते हो, तो मुश्किल हो जाता है। कमजोरी मुश्किल बनायेगी। तो कमजोरी आने क्यों देते हो? बच्चे किसके हो? आप अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान कहलाते हो या मास्टर कमजोर? मास्टर सर्वशक्तिवान! फिर कमजोर क्यों? अगर कमजोरी आ जाती है, चाहते नहीं हो लेकिन आ जाती है-तो आने-जाने का कारण क्या है? चेकिंग ठीक नहीं है। *चलते-चलते कहाँ न कहाँ किसी बात में अलबेलापन आ जाता है, तब कमजोरी आ जाती है। तो सदा अटेन्शन रखो कि कहाँ भी, कभी भी अलबेलापन नहीं हो। अलबेलापन अनेक प्रकार से आता है। सबसे रा@यल रूप अलबेलेपन का है पुरुषार्थ कर रहे हैं, हो जायेगा, समय पर जरूर करके ही दिखायेंगे।*

 

✧  पुरुषार्थ करते हैं लेकिन समय पर आधार रखते हैं, 'स्वयं' पर आधार नहीं रखते तो-अलबेले हो जाते हैं। तो आप कौन हो? अलबेले हो या तीव्र पुरुषार्थी? *'अनेकों' को याद करना मुश्किल होता है, 'एक' को याद करना तो सहज है। जब एक बाप के तरफ बुद्धि लग गई तो बाकी क्या करना है! यही तो पुरुषार्थ है। क्या मुश्किल है! जब है ही बाप याद, तो बाप की याद में माया तो कुछ नहीं कर सकती।* आ सकती है क्या माया? एवररेडी होकर के सेवा करेंगे तो सेवा में भी और सहयोग मिलेगा, सहज होती जायेगी, सफलता मिलेगी।

 

✧  तो सदा ये स्मृति में रखो कि-है ही एक बाप, दूसरा कुछ है ही नहीं। अगर वन बाप है तो विन जरूर है। सहज योगी हो ना। मास्टर सर्वशक्तिवान के आगे माया की हिम्मत नहीं जो वार कर सके। और ही माया सरेन्डर होगी, वार नहीं करेगी। *जब सर्वशक्तिवान बाप साथ है तो सदा ही जहाँ बाप है वहाँ विजय है ही है। कल्प-कल्प के विजयी हैं, अभी भी हैं और सदा रहेंगे। ये स्मृति है ना। कितनी बार विजयी बने हो? तो अनेक बार किया हुआ कार्य फिर से करना, उसमें क्या मुश्किल है!* नई बात तो नहीं है ना। तो नशे से कहो कि हम सहज योगी नहीं होंगे तो कौन होगा! ऐसा नशा है?

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  फुर्सत है तो अभी है फिर आगे नहीं होगी। जैसे लोगों को कहते ही फुर्सत मिलेगी नहीं, लेकिन फुर्सत करनी पडेगी। *समय मिलेगा नहीं लेकिन समय निकालना है।* ऐसे कहते ही ना! तो स्व-अभ्यास के लिए भी समय मिले तो करेंगे, नहीं। समय निकालना पडेगा।

 

✧  स्थापना के आदिकाल से एक विशेष विधि चलती आ रही है। कौन-सी? फुरी-फुरी तालाव (ढूंद-बूंद से तालाव) तो समय के लिए भी यही विधि है। जो समय मिले अभ्यास करते-करते सर्व अभ्यास स्वरूप सागर बन जायेंगे। *सेकण्ड मिले वह भी अभ्यास के लिए जमा करते जाओ, सेकण्ड सेकण्ड करते कितना हो जायेगा!*

 

✧  इकट्ठा करो तो आधा घण्टा भी बन जायेगा। चलते-फिरते के अभ्यासी बनो। जैसे चात्रक एक-एक बूंद के प्यासे होते हैं। *ऐसे स्व-अभ्यासी चात्रक एकएक सेकण्ड अभ्यास में लगावें तो अभ्यास स्वरूप बन ही जायेंगे।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ जैसे आप लोग कहते हो ना सेकण्ड में मुक्ति वा जीवनमुक्ति का वर्सा लेना सभी का अधिकार है। तो समाप्ति के समय भी नम्बर मिलना थोड़े समय की बात है लेकिन जरा भी हलचल न हो। बस बिन्दी कहा और बिन्दी में टिक जायें। बिन्दी हिले नहीं ऐसे नहीं कि उस समय अभ्यास करना शुरू करो - मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ। यह नहीं चलेगा। *क्योंकि सुनाया - वार भी चारों ओर का होगा। लास्ट ट्रायल सब करेंगे। प्रकृति में भी जितनी शक्ति होगी, माया में भी जितनी शक्ति होगी, ट्रायल करेगी। उनकी भी तरफ की बहुत पावरफुल सीन होगी। वह भी फुलफोर्स, यह भी फुलफोर्स। लेकिन सेकण्ड की विजय, विजय के नगाड़े बजायेगी।* समझा लास्ट पेपर क्या है। सब शुभ संकल्प तो यही रखते भी हैं और रखना भी है कि नम्बरवन आना ही है। *तो सबमें चारों ओर की बातों में विन होंगे तभी वन आयेंगे अगर एक बात में जरा भी व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ समय लग गया तो नम्बर पीछे हो जायेगा। इसलिए सब चेक करो। चारों ही तरफ चेक करो।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  सदा ख़ुशी में हर्षित रहना"*

 

_ ➳  मीठे बाबा के कमरे में बेठी हुई मै आत्मा... आत्म चिंतन में खोयी अपने गुणो और खुशियो से सजे जीवन के बारे में सोचती हुई... मुझे ऐसा सुंदर सजाने वाले मीठे बाबा की ओर निहारती हूँ... *प्यारे बाबा ने अपनी सर्व शक्तियो और बेपनाह मुहोब्बत से सींचकर मुझ पर अपना सब कुछ लुटा दिया है*... और रूहानियत से भरकर, मुझे कितना सुगन्धित कर दिया है... ऐसे प्यारे पिता को पाकर मै आत्मा... बलिहार हो गयी हूँ... और अपने मीठे भाग्य का गुणगान कर रही हूँ... दिल से ईश्वर पिता का धन्यवाद कर रही हूँ...

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान की अमूल्य मणियो से सजाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता ने जो अमूल्य शिक्षाओ से संवारा है... ज्ञान रत्नों की अमीरी से भरपूर किया है...उस अमीरी की मुस्कान को पूरे जग में बिखेरो.. *श्रीमत की धारणा कर, गुणवान फूल बनकर मुस्कराओ.. मूल्यों की दौलत से सज संवर कर,ईश्वरीय प्यार में ख़ुशी से खिल जाओ.*.."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा की शिक्षाओ को पाकर खुशनुमा फूल बनकर कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार के साये तले पलकर, कितनी प्यारी और दिव्य हो गयी हूँ... *गुणो और शक्तियो से भरपूर होकर, अपने खोये वजूद को पुनः पा ली हूँ.*.. ईश्वरीय शिक्षाओ को पाकर गुणो से महकता रूहानी गुलाब हो गयी हूँ..."

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान मोतियो से सजाकर होलिहंस बनाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे...मीठे बाबा ने आकर जो ईश्वरीय मत दी है उस मत पर चलकर, अथाह सुखो के मालिक बनकर, विश्व धरा पर मुस्कराओ... *ज्ञान को जीवन में धारण कर, जीवन सच्ची खुशियो का पर्याय बनाओ.*.. जनमो के दुखो को भूल, ईश्वरीय प्यार में सदा खिलखिलाते हसंते मुस्कराते रहो..."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा के प्यार में खुशियो संग खिलते हुए कहती हूँ :-* "मेरे सच्चे साथी बाबा... *आपने मेरा जीवन ज्ञान रत्नों से सजाकर, कितना दिव्य और पावन कर दिया है.*.. आपकी श्रीमत के हाथो में मै आत्मा... अपने खोये मूल्यों को पाकर पुनः मालामाल हो रही हूँ... सदा हर्षित रहकर देवताई मुस्कान से सज रही हूँ..."

 

   *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी प्यार भरी बाँहों में भरकर देवत्व से सजाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... देह के भान में आकर अपने सत्य स्वरूप को ही भूल गए हो... अब अनमोल ज्ञान रत्नों में गहरे खोकर, खोयी चमक को फिर से पाकर, सदा के लिए नूरानी बन जाओ... *सदा की मुस्कराहट से निखर कर, अपने सुंदर देवताई स्वरूप में खो जाओ*..."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा के असीम प्यार में गहरे खोकर कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा *आपके प्यार भरी छत्रछाया में सुख शांति प्रेम से भरा दिव्य जीवन पा रही हूँ..*. सदा खुशियो की बहारो में झूम रही हूँ... और वरदानी संगम पर देवताई पावनता से भरती जा रही हूँ...सदा की खुशियो की अधिकारी हो गयी हूँ..."मीठे बाबा को अपने दिल की बात सुनाकर मै आत्मा... इस धरा पर लौट आयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺  *ड्रिल :- मुख से सदैव रत्न निकालने हैं*"

 

_ ➳  अविनाशी ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा का श्रृंगार करने वाले ज्ञान सागर *अपने प्यारे शिव प्रीतम से मिलने की जैसे ही मन में इच्छा जागृत होती है। वैसे ही मैं आत्मा सजनी ज्ञान रत्नों का सोलह श्रृंगार कर चल पड़ती हूँ ज्ञान के अखुट खजानो के सौदागर अपने शिव प्रीतम के पास*। उनके साथ अपने प्यार की रीत निभाने के लिए देह और देह के साथ जुड़े सर्व संबंधों को तोड़, निर्बंधन बन, ज्ञान की पालकी में बैठ मैं आत्मा मन बुद्धि की यात्रा करते हुए अब जा रही हूं उनके पास।

 

_ ➳  उनका प्यार मुझे अपनी ओर खींच रहा है और उनके प्रेम की डोर में बंधी मैं बरबस उनकी ओर खिंचती चली जा रही हूँ। *उनके प्यार में अपनी सुध-बुध खो चुकी मैं आत्मा सजनी सेकंड में इस साकार वतन और सूक्ष्म वतन को पार कर पहुंच जाती हूं परमधाम अपने शिव साजन के पास*। ऐसा लग रहा है जैसे वह अपनी किरणों रूपी बाहें फैलाए मेरा ही इंतजार कर रहे हैं। उनके प्यार की किरणों रूपी बाहों में मैं समा जाती हूं। उनके निस्वार्थ और निश्छल प्यार से स्वयं को भरपूर कर, तृप्त होकर मैं आ जाती हूँ सूक्ष्म लोक।

 

_ ➳  लाइट का फरिश्ता स्वरूप धारण कर मैं फ़रिशता पहुंच जाता हूं अव्यक्त बापदादा के सामने। अव्यक्त बापदादा की आवाज मेरे कानों में स्पष्ट सुनाई दे रही है। *बाबा कह रहे हैं, हे आत्मा सजनी आओ:- "ज्ञान रत्नों का श्रृंगार करने के लिए मेरे पास आओ"।* बाप दादा की आवाज सुनकर मैं फ़रिशता उनके पास पहुंचता हूं। बाबा अपने पास बिठाकर बड़ी प्यार भरी नजरों से मुझे निहारने लगते हैं और अपनी सर्व शक्तियों रूपी रंग बिरंगी किरणों से मुझे भरपूर करने लगते हैं।

 

_ ➳  सर्वशक्तियों से मुझे भरपूर करके बाबा अब मुझे एक बहुत बड़े हॉल के पास ले आते हैं। जिसमें अमूल्य हीरे जवाहरात, मोती, रत्न आदि बिखरे पड़े हैं। किंतु उस पर कोई भी ताला चाबी नहीं है। उनकी चमक और सुंदरता को देखकर मैं आकर्षित होकर उस हॉल के बिल्कुल नजदीक पहुंच जाता हूं। *बाबा मुझे उस हॉल के अंदर ले जाते हैं और मुझसे कहते हैं:- "ये अविनाशी ज्ञान रत्न है। इन अविनाशी रत्नों का ही आपको श्रृंगार करना है"।* कितना लंबा समय अपने अविनाशी साथी से अलग रहे तो श्रृंगार करना ही भूल गए, अविनाशी खजानों से भी वंचित हो गए। किंतु अब बहुत काल के बाद जो सुंदर मेला हुआ है तो इस मेले से सेकेंड भी वंचित नहीं रहना।

 

_ ➳  यह कहकर बाबा उन ज्ञान रत्नों से मुझे श्रृंगारने लगते हैं। *मेरे गले मे दिव्य गुणों का हार और हाथों में मर्यादाओं के कंगन पहना कर बाबा मुझे सर्व ख़ज़ानों से भरपूर करने लगते है*। सुख, शांति, पवित्रता, शक्ति और गुणों से अब मैं फ़रिशता स्वयं को भरपूर अनुभव कर रहा हूँ। बाबा ने मुझे ज्ञान रत्नों के खजानों से मालामाल करके सम्पत्तिवान बना दिया है। सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के श्रृंगार से सजा मेरा यह रूप देख कर बाबा खुशी से फूले नही समा रहे। बाबा जो मुझ से चाहते हैं, बाबा की उस आश को मैं आत्मा सजनी बाबा के नयनो में स्पष्ट देख रही हूं।

 

_ ➳  मन ही मन अपने शिव प्रीतम से मैं वादा करती हूँ कि ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से अब मैं आत्मा सदा सजी हुई रहूँगी और मुख से सदैव ज्ञान रत्न ही निकालूंगी। *अपने शिव साथी से यह वादा करके अपनी फ़रिशता ड्रेस को उतार अब धीरे-धीरे मैं आत्मा वापिस इस देह में अवतरित हो गयी हूँ*। अब मैं बाबा से मिले सर्व ख़ज़ानों से स्वयं को सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ। जैसे मेरे अविनाशी साजन ने मुझ आत्मा को गुणों  और शक्तियों के गहनों से सजाया है वैसे ही मैं आत्मा भी वरदानीमूर्त बन अब अपने सम्बन्ध-सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को अपने मुख से ज्ञान रत्नों का दान दे कर उन्हें भी परमात्म स्नेह और शक्तियों का अनुभव करवा रही हूं।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं पुरानी देह और दुनिया को भूलने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं बापदादा के दिलतख्तनशींन आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा हद के नाम, मान, शान के पीछे दौड़ने से सदा मुक्त हूँ  ।*

   *मैं आत्मा परछाई के पीछे पड़ने से सदा मुक्त हूँ  ।*

   *मैं बंधनमुक्त आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  *बापदादा तो सबकी दिल की बातें सुनते भी हैंदेखते भी हैं। कोई कितना भी छिपाने की कोशिश करे* सिर्फ बापदादा कहाँ-कहाँ लोक संग्रह के अर्थ खुला इशारा नहीं देतेबाकी जानते सब हैं, देखते सब हैं। कोई कितना भी कहे कि नहींमैं तो कभी नहीं करता, बापदादा के पास रजिस्टर हैकितने बार कियाक्या-क्या किया,किस समय कियाकितनों से किया - यह सब रजिस्टर है। सिर्फ कहाँ-कहाँ चुप रहना पड़ता है। तो दूसरी बात सुनाई-परचिन्तन।

➳ _ ➳  तीसरी बात है परदर्शन। दूसरे को देखने में मैजारिटी बहुत होशियार हैं। परदर्शन जो देखेंगे तो देखने के बाद वह बात कहाँ जायेगीबुद्धि में ही तो जायेगी। और *जो दूसरे को देखने में समय लगायेगा उसको अपने को देखने का समय कहाँ मिलेगा?* बातें तो बहुत होती हैं नाऔर जो बातें होती हैं वो देखने में भी आती हैंसुनने में भी आती हैंजितना बड़ा संगठन उतनी बड़ी बातें होती हैं।

➳ _ ➳  और *ये बातें ही तो पेपर हैं। जितनी बड़ी पढ़ाई उतने बड़े पेपर भी होते हैं।* यह वायुमण्डल बनना - *यह सबके लिए पेपर भी है कि परमत या परदर्शन या परचिन्तन में कहाँ तक अपने को सेफ रखते हैं?* दो बातें अलग हैं। एक है जिम्मेवारी, जिसके कारण सुनना भी पड़ता हैदेखना भी पड़ता है। तो उसमें कल्याण की भावना से सुनना और देखना। जिम्मेवारी हैकल्याण की भावना हैवो ठीक है। लेकिन *अपनी अवस्था को हलचल में लाकर देखनासुनना या सोचना - यह रांग है। अगर आप अपने को जिम्मेवार समझते हो तो जिम्मेवारी के पहले अपनी ब्रेक को पावरफुल बनाओ।* जैसे पहाड़ी पर चढ़ते हैं तो पहले से ही सूचना देते हैं कि अपनी ब्रेक को ठीक चेक करो। तो जिम्मेवारी भी एक ऊंची स्थिति हैजिम्मेवारी भले उठाओ लेकिन पहले यह चेक करो कि सेकण्ड में बिन्दी लगती है? कि लगाते हो बिन्दी और लग जाता है क्वेश्चनमार्क? वो रांग है। उसमें समय और इनर्जी वेस्ट जायेगी। इसलिए पहले अपना ब्रेक पावरफुल करो। चलो - देखासुनाजहाँ तक हो सका कल्याण किया और फुलस्टाप। अगर ऐसी स्थिति है तो जिम्मेवारी लोनहीं तो देखते नहीं देखोसुनते नहीं सुनो, स्वचिन्तन में रहो। फायदा इसमें है।

➳ _ ➳  *परमतपरचिन्तन और परदर्शन इन तीन बातों से मुक्त बनो और एक बात धारण करोवो एक बात है पर-उपकारी बनो।* तीन प्रकार की पर को खत्म करो और एक पर - पर-उपकारी बनो।

✺   *ड्रिल :-  "परमत, परचिन्तन और परदर्शन से मुक्त रह पर-उपकारी बनना"*

➳ _ ➳  देह रूपी कश्ती की खेवनहार, मैं आत्मा, मन बुद्वि रूपी पतवार से संसार सागर की लहरों पर रूहानी मस्ती में तैरती जा रही हूँ... दृश्य चित्र बनाकर देखे स्वयं को रूहानी मल्लाह के रूप में) बेहद खूबसूरत है मेरी इस यात्रा का हर पडाव... पुरानी दुनिया के किनारों पर बंधे लंगर पूरी तरह खोल दिये है मैंने... मेरी कश्ती चल पडी है किनारों की ओर... साथ- साथ है मेरे शिव बाबा ज्योति रूप में मेरा मार्ग दर्शन करते हुए... *लहरों के बीच में बनी श्रीमत की सुनहरी-सी पगडंडियाँ, जिन पर मुझ आत्मा की कश्ती हौले- हौले अपने मुकाम की ओर बढती ही जा रही है निरन्तर एक लय में...* श्रीमत की सुनहरी पगडंडियों को रोशनी से नहलाते शिव सूर्य ऊपर आकाश में मुस्कुरा रहे हैं... आहिस्ता-आहिस्ता झिलमिलाते प्रकाश में मैं आत्मा हल्की होकर ऊपर की ओर उडती जा रही हूँ... शिव बाबा संग उडती हुई मैं आत्मा बिन्दु रूप में परम धाम में, शिवसागर के प्रकाश में नहाती हुई... और कुछ ही पलों में शिवसागर में समाँ गयी हूँ लवलीन अवस्था में...

➳ _ ➳  फरिश्ता रूप में मैं अब सूक्ष्म लोक में, स्वयं को देख रही हूँ बापदादा के ठीक सामने... *घुटनों के बल बैठी मैं आत्मा बापदादा से स्वराज्यधिकारी का तिलक ले रही हूँ,* मेरे सिर पर हाथ रखते हुए *बाबा मुझे परमत, परचिन्तन और परदर्शन से मुक्त रह उपकारी बनने का वरदान दे रहे है...* गहराई से महसूस कर रही हूँ मैं उस वरदान की शक्ति को... अब बापदादा मेरा हाथ पकड मेरे संग चल दिए है, कुछ गहरी अनुभूतियों के लिए... सागर में एक कश्ती पर सवार मैं और बापदादा... बापदादा मुझे पार जाने के लिए मार्गदर्शन कर रहें है, नीले साफ निर्मल आकाश में जगमगाते चाँद की बरसती चाँदनी में नहाते हुए हम दोनों इस सुहाने सफर पर मगन अवस्था में बढे जा रहे हैं... आसपास दूसरी कश्तियाँ मगर मेरा ध्यान पूरी तरह से बापदादा की ओर... कुछ कश्तियाँ मुझसे आगे और कुछ पीछे दायें और बायें चल रही है...

➳ _ ➳  सहसा आकाश में बादलों के एक समूह ने चाँद को पूरी तरह से ढक लिया है... अंधेरा होते देख मैंने कुछ घबराकर कश्ती की रफ्तार बढा दी...  *अब मैं आगे वाली कश्ती के पीछे चल पडा हूँ... मेरा ध्यान कुछ पल के लिए उस कश्ती के खेवनहार की तरफ जो बडी कुशलता से आगे बढता जा रहा है...* मैं सोच रहा हूँ उसकी कुशलता के बारे मैं... मैं देख रहा हूँ उसके नाव चलाने के तरीके को... पल भर के लिए मैं भूल ही गया कि बापदादा भी मेरी कश्ती में सवार है... *अचानक सागर में तूफानी लहरें और मेरे हाथ से पतवार गिर गयी है... मेरी निगाह बापदादा को ढूँढ रही है मगर वो भी अब वहाँ नजर नही आ रहे...  तूफानी लहरों के बीच मैं अकेला, जूझ रहा हूँ उन लहरों के बीच में...* चिल्ला चिल्लाकर पुकार रहा हूँ बापदादा को और *अपनी गलतियों का पश्चाताप कर रहा हूँ... बापदादा को भूलकर परमत, परचिन्तन और परदर्शन का परिणाम आज मेरी आँखों के सामने है...*

➳ _ ➳  अचानक आकाश में छाये बादल हट रहे है, *चाँद फिर से अपनी चाँदनी का तोहफा लिए खडा मुस्कुरा रहा है, शान्त होती समुन्द्र की लहरें और हाथ में पतवार लिए मेरे सामने खडे मुस्कुरा रहे हैं बापदादा*... और अब पल भर में मैं समझ गया हूँ सारा दृश्य... *परमत परदर्शन और परचिन्तन का पेपर था मेरे लिए...* मैं कितने अंको से पास हुआ ये तो नही जानता मगर *गहराई से अनुभव कर लिया है परमत परचिन्तन और परदर्शन का परिणाम*... बापदादा की ओर कृतज्ञता पूर्ण आँखों से देखते हुए मैं अनुभव कर रहा हूँ... *सीख भी दी और समझ भी, अनुभव कराये और दिये वरदान भी, वाह मेरे सतगुरू!  कश्ती तेरे हाथों में है और है, अब पतवार भी...* अब मैं आत्मा पूरी तरह से अपनी कश्ती और पतवार बापदादा के हाथों में सौपकर निश्चिन्त होकर बस मन्मनाभव होकर बढता जा रहा हूँ किनारों की ओर... *आगे पीछे दायें बायें की सभी कश्तियाँ सब मेरे पीछे है... इन सबके प्रति भी उपकार की गहरी भावना मन में लिए मैं बढता जा रहा हूँ मेरे सतगुरू की महिमा करता और कराता हुआ*... इस भव सागर का किनारा कुछ ही दूर है... और दूसरी तरफ है मेरी वो सतयुगी राजधानी...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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