━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 08 / 08 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *आत्माओं को ज्ञान चिता पर बिठाया ?*

 

➢➢ *सबको बाप की याद दिलाई ?*

 

➢➢ *निरंतर याद और सेवा के बैलेंस से बचपन के नाज़ नखरे समाप्त किये ?*

 

➢➢ *संतुष्ट रह सर्व आत्माओं को संतुष्टता का अनुभव करवाया ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  ब्रह्मा बाप से प्यार है तो ब्रह्मा बाप समान फरिश्ता बनो। *सदैव अपना लाइट का फरिश्ता स्वरूप सामने दिखाई दे कि ऐसा बनना है और भविष्य रूप भी दिखाई दे। अब यह छोड़ा और वह लिया। जब ऐसी अनुभूति हो तब समझो कि सम्पूर्णता के समीप है।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   *"मैं विश्व-कल्याणकारी आत्मा हूँ"*

 

  सभी अपने को सदा विश्व की सर्व आत्माओंके कल्याणकारी आत्मायें अनुभव करते हो? सारा दिन विश्व-कल्याण के कर्तव्य में बिजी रहते हो या दो-चार घण्टे? *कितना भी स्थूल कार्य हो लेकिन स्थूल कार्य करते हुए भी मन्सा द्वारा वायब्रेशन्स फैलाने की सेवा कर सकते हो। क्योंकि जिसका जो कार्य होता है ना, वो कहाँ भी होगा- अपना कार्य कभी भी नहीं भूलेगा।*

 

  जैसे-कोई बिजनेसमेन है तो स्वप्न में भी अपना बिजनेस देखेगा। तो आपका काम ही है-विश्व-कल्याण करना। *कोई भी पूछे-आपका आक्यूपेशन क्या है, तो क्या यह कहेंगे-टाइपिस्ट हैं या इन्जीनियर हैं या बिजनेसमेन हैं। यह तो हुआ निमित्तमात्र लेकिन सदा स्मृति विश्व-कल्याणकारी आक्यूपेशन की है।* इतना बड़ा कार्य मिला है जो फुर्सत ही नहीं है और बातों में जाने की। ऐसे बिजी रहते हो?

 

  मन-बुद्धि बिजी रहती है? कभी खाली रहती है? *अगर सदा मन-बुद्धि से बिजी हैं तो मायाजीत हो ही गये। क्योंकि माया को भी समय चाहिए ना। आपको समय ही नहीं तो माया क्या करेगी? बिजी देखकर के आने वाला स्वत: ही वापस चला जाता है। तो मायाजीत हो गये? मन-बुद्धि को प्रÀी रखना माना माया का आह्वान करना।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  आज सभी मिलन मनाने के एक ही शुद्ध संकल्प में स्थित हो ना। *एक ही समय, एक ही संकल्प - यह एकाग्रता की शक्ति अति श्रेष्ठ है।* यह संगठन की एक संकल्प की एकाग्रता की शक्ति जो चाहे वह कर सकती है। *जहाँ एकाग्रता की शक्ति है वहाँ सर्व शक्तियाँ साथ हैं।* इसलिए एकाग्रता ही सहज सफलता की चावी हैं।

 

✧  *एक श्रेष्ठ आत्मा के एकाग्रता की शक्ति भी कमाल कर दिखा सकती है तो जहाँ अनेक श्रेष्ठ आत्माओं के एकाग्रता की शक्ति संगठन रूप में है वह क्या नहीं कर सकते।* जहाँ एकाग्रता होगी वहाँ श्रेष्ठता और स्पष्टता स्वत: होगी। किसी भी नवीनता की इन्वेन्शन के लिए एकाग्रता की आवश्यकता है। चाहे लौकिक दुनिया की इन्वेन्शन हो, चाहे आध्यात्मिक इन्वेन्शन हो।

 

✧  *एकाग्रता अर्थात एक ही संकल्प में टिक जाना।* एक ही लगन में मगन हो जाना। *एकाग्रता अनेक तरफ का भटकाना सहज ही छुडा देती है।* जितना समय एकाग्रता की स्थिति में स्थित होंगे उतना समय देह और देह की दुनिया सहज भूली हुई होगी। क्योंकि उस समय के लिए संसार ही वह होता है, जिसमें ही मगन होते। *ऐसे एकाग्रता की शक्ति के अनुभवी हो?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧ *'उड़ती कला होना अर्थात् सर्व का भला होना।' उड़ती कला ही कर्मातीत स्थिति को प्राप्त करने की स्थिति है।* उड़ती कला ही श्रेष्ठ स्थिति हैं। देह में रहते, देह से न्यारी ओर सदा बाप और सेवा में प्यारे-पन की स्थिति है। *उड़ती कला ही विधाता और वरदाता स्टेज की स्थिति है।* उड़ती कला ही चलते-फिरते फरिश्ता व देवता दोनों रूप का साक्षात्कार कराने वाली स्थिति है।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  गाइड बन सबको रास्ता बताना"*

 

_ ➳  कर्मक्षेत्र पर मीठे बाबा की यादो में खोयी हुई थी... कि मीठे बाबा ने वतन से आवाज दी... और मै आत्मा प्रियतम की आवाज पर मद्होश हो... सूक्ष्म शरीर संग वतन में पहुंची... मीठे बाबा ने कहा :- "बच्चों को जी भर देखने को मुझ पिता का दिल सदा ही आतुर रहता है... मेरे सारे बच्चे सुखी हो जाएँ... सुखो में मुस्कराये... यही चिंतन पिता दिल निरन्तर करता है... मीठे बाबा को देख, मै आत्मा मन्द मन्द मुस्कराने लगी... और कहा मीठे बाबा, *मै हूँ ना... सबको सच्चा रास्ता बताउंगी और आपकी बाँहों में लाकर सजाऊँगी..*."

 

   *मीठे बाबा मुझ आत्मा की ओर एक मीठी आस भरी नजरो से देख रहे हे.. और कह रहे :-* "मीठे प्यारे बच्चे... अपने सभी भाई बहनो को यह सच्चा रास्ता बताओ... *सबके दामन में आप समान खुशियो के फूल खिलाओ..*. सच्चे प्रेम और सुख, शांति का अहसास, हर दिल को कराओ... दुखो में कुम्हलाये से मेरे बच्चों को, सच्ची ज्ञान रश्मियों में लाकर... सच्ची मुस्कान से पुनः महकाओ..."

 

_ ➳  *प्यारे बाबा की मीठी दिली आरजू सुनकर मै आत्मा कह उठी :-* " मीठे बाबा... आपके सारे अरमान मेरी पलको पर है... आपकी सेवाओ में यह दिल तो दीवाना सा है... आपके प्यार में, मै आत्मा *मा ज्ञान सागर बनकर... इन सत्य ज्ञान की किरणों को हर मनुष्य तक पहुंचा रही हूँ.*.. और मीठी मुस्कानों से उन्हें सजा रही हूँ..."

 

   *ईश्वरीय सेवाओ में मेरा दीवानापन देख... मीठे बाबा मनमोहिनी मुस्कान लिए वरदानी हाथो से मुझे श्रंगारने लगे... और बोले :-* " लाडले बच्चे मेरे... इस धरा पर दुःख का अब नामोनिशान भी न रहे... *सारा ब्रह्मांड खुशियो की चहचहाहट से गुंजायमान हो उठे.*.. विश्व की सारी आत्माये अज्ञान अन्धकार से निकल... ज्ञान किरणों में रौशन हो मुस्कराये... "

 

_ ➳  *विश्वकल्याणकारी पिता के मन को सुनकर... मै आत्मा विश्व कल्याण से ओतप्रोत हो उठी... और कहने लगी :-* " हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सबको सुखदायी बनाती जा रही हूँ... जन्म जन्मांतर के दुखो से सबको मुक्ति दिलाती जा रही हूँ... सारी आत्माये दुःख और पापो के बोझों से छूटती जा रही है... *हर आत्मा सच्चे सुख की अनुभूति में डूब रही है.*.."

 

   *मनमीत बाबा ईश्वरीय सेवाओ में मेरे जोश और जूनून पर फ़िदा हो गए... और कहने लगे :-* "जब संसार पर नजर भर घुमायी तो... आप बच्चों की चमक पर नजरे ही ठहर गयी... मेरे बच्चे ही विश्व का कल्याण कर खुशियो भरा सतयुग इस धरा को बनाएंगे... यह पिता दिल बच्चों का दीवाना हो गया... मेरे महकते नन्हे नन्हे फूल बच्चे... *सारे काँटों को सहज ही खुशनुमा पुष्प सा खिलायेंगे, यह बरबस कह उठा..*."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा का इतना प्यार, दुलार और विश्वास देखकर... स्नेह आँसुओ से भर गई... और कहा :-*. "प्यारे बाबा... *आपने सच्चे साथी बनकर मेरा जीवन अथाह खुशियो से सजाया है.*.. यह ख़ुशी की दौलत पाकर मै आत्मा आपकी रोम रोम से ऋणी हूँ... यह सच है की यह खुशियां हर दिल आँचल में भरकर... कण मात्र ऋण भी न उतार पाऊँगी..." ऐसी मीठी गुफ्तगू कर, स्नेह के मोती लिये, मै आत्मा स्थूल जगत में लौट आई...

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पतित से पावन बनने के लिए बाप की याद में रहना और सबको बाप की याद दिलाना*"

 

_ ➳  परमात्म प्यार और परमात्मा पालना का सुख लेते हुए, अपने प्यारे बाबा की मीठी याद में बैठी मैं अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के बारे में विचार कर हर्षित हो रही हूँ और अपने आप से सवाल कर रही हूँ कि क्या कभी मैंने स्वप्न में भी यह सोचा था कि मैं परमात्म प्यार और परमात्मा पालना के झूले में ऐसे पलूँगी! *जिस भगवान को सारी दुनिया याद करती है, उसे नमन करती है वो भगवान मुझे याद करेगा, मुझे नमन करेगा, अपने से भी ऊँचा बना कर मुझे याद प्यार देगा, मुझ पर बलिहार जाएगा, यह तो कभी संकल्प में भी नही था*!

 

_ ➳  यही सब चिंतन करते - करते मैं खो जाती हूँ उन खूबसूरत पलों में जब पहली बार भगवान के साकार प्यार का अनुभव किया था। *आंखों से खुशी के आंसू बह रहे थे और मेरा भगवान अपने साकार रथ में बैठा मन्द - मन्द मुस्कराते हुए मुझे निहार रहा था। उसकी दृष्टि में मैं देख रही थी उस अथाह प्यार के सागर को जो मेरे लिए उमड़ रहा था। वो प्यार पाकर मैं आत्मा ऐसे तृप्त हो गई थी मानो उनसे मिलने की जन्म - जन्म की जो प्यास थी वो जैसे बुझ गई थी*। मन को गहन सुकून मिला था अपने पिता परमात्मा को जान कर और उनसे इतना सुंदर मिलन मना कर।

 

_ ➳  परमात्म मिलन की मीठी मधुर स्मृतियों में खो कर उस मिलन के आनन्द के खूबसूरत एहसास को फिर से तरोताजा करके, *अपने ऐसे भगवान बाप को सदा याद करने तथा औरों को भी उनकी याद दिलाने का पुरुषार्थ करने का संकल्प लेकर, अपने प्यारे पिता के पास उनके धाम जाने के लिए, अब मैं अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित होने का अभ्यास करती हूँ*। अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर, अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने स्वरूप पर एकाग्र करते ही मैं अपने अंदर समाये गुणों और शक्तियों का अनुभव करने लगती हूँ और इनका अनुभव करते - करते एक बहुत ही न्यारी और प्यारी स्थिति में सहज ही स्थित हो जाती हूँ। 

 

_ ➳  यह न्यारी और प्यारी स्थिति मुझे देह भान से पूरी तरह मुक्त करके देह से ऐसे बाहर निकाल लेती है जैसे मक्खन से बाल बिल्कुल सहज रीति अलग हो जाता है। *ठीक इसी तरह मैं बड़ी आसानी से देह से बाहर निकल आती हूँ और अपने प्यारे पिता तक पहुंचाने वाली मन बुद्धि की एक अति ख़ूबसूरत रूहानी यात्रा पर चल पड़ती हूँ*। ज्ञान और योग के सुन्दर पंख लगाकर मैं आत्मा धीरे - धीरे उड़ान भर कर आकाश में पहुँच जाती हूँ। सूर्य, चाँद सितारों की इस दुनिया की सैर करते हुए मैं इसे भी पार कर लेती हूँ और फरिश्तों की सफेद प्रकाश की आकारी दुनिया मे प्रवेश कर जाती हूँ। 

 

_ ➳  अपने लाइट के आकारी शरीर को धारण कर कुछ क्षण अपने इस अव्यक्त वतन में अपने प्यारे बापदादा के साथ बिताकर, उनसे मीठी - मीठी रूह रिहान करके, अपने निराकारी बिंदु स्वरूप में पुनः स्थित होकर मैं सूक्ष्म वतन से बाहर आकर ऊपर अपने परमधाम घर की ओर रवाना हो जाती हूँ। *अपने निराकार शिव पिता के सम्मुख जाकर, मैं उनसे आ रही सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे कुछ पलों के लिए निरसंकल्प स्थिति में स्थित होकर बैठ जाती हूँ और अपने प्यारे पिता के अति सुन्दर प्रकाशमय स्वरूप को निहारते हुए, उनसे आ रही सर्वशक्तियों की किरणों की मीठी फ़ुहारों का आनन्द लेते हुए, स्वयं को उनकी शक्तियों से पूरी तरह भरपूर करके वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ*।

 

_ ➳  साकार सृष्टि पर अपने साकार शरीर रूपी रथ में विराजमान होकर मैं फिर से अपने अमूल्य ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ और अपने प्यारे प्रभु की देन इस ईश्वरीय ब्राह्मण जन्म को सफल करने के लिए बाबा को याद करने तथा औरों को भी बाबा की याद दिलाने के पुरुषार्थ में पूरी तरह लग जाती हूँ। *अपने प्यारे पिता की याद में रह, परमात्म बल से स्वयं को भरपूर रखते हुए, अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सभी आत्माओं को भी सदा परमात्म याद में रहने की प्रेरणा देते हुए उन्हें भी घड़ी - घड़ी बाबा की याद दिलाने का पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं निरन्तर याद और सेवा के बैलेन्स से बचपन के नाज नखरे समाप्त करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं वानप्रस्थी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सर्वप्राप्तियों से संपन्न हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदा संतुष्ट रहती हूँ और संतुष्ट करती हूँ  ।*

   *मैं संतुष्ट मणि हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  *गम्भीरता का गुण बहुत आगे बढ़ाता है।* कोई भी बात बोल दी नासमझो अच्छा किया और बोल दिया तो आधा खत्म हो जाता हैआधा फल खत्म हो गयाआधा जमा हो गया। और *जो गम्भीर होता है उसका फुल जमा होता है। कहते हैं ना-देखो जगदम्बा गम्भीर रही,* चाहे सेवा स्थूल में आप लोगों से कम कीआप लोग ज्यादा कर रहे हो लेकिन ये गम्भीरता के गुण ने फुल खाता जमा किया है। कट नहीं हुआ है। कई करते बहुत हैं लेकिन आधापौना कट हो जाता है। करते हैंकोई बात हुई तो पूरा कट हो जाता है या थोड़ी बात भी हुई तो पौना कट हो जाता है। ऐसे ही अपना वर्णन किया तो आधा कट हो जाता है। बाकी बचा क्यातो जब जगदम्बा की विशेषता - जमा का खाता ज्यादा है। गम्भीरता की देवी है।

➳ _ ➳  *ऐसे और सभी को गम्भीर होना चाहिएचाहे मधुबन में रहते हैंचाहे सेवाकेन्द्र में रहते हैं* लेकिन बापदादा सभी को कहते हैं कि गम्भीरता से अपनी मार्क्स इकट्ठी करोवर्णन करने से खत्म हो जाती हैं। चाहे अच्छा वर्णन करते होचाहे बुरा। *अच्छा अपना अभिमान और बुरा किसका अपमान कराता है।* तो हर एक गम्भीरता की देवी और गम्भीरता का देवता दिखाई दे। अभी गम्भीरता की बहुत-बहुत आवश्यकता है। अभी बोलने की आदत बहुत हो गई है क्योंकि भाषण करते हैं ना तो जो भी आयेगा वो बोल देंगे। *लेकिन प्रभाव जितना गम्भीरता का पड़ता है इतना वाणी का नहीं पड़ता।*

✺   *ड्रिल :-  "गंभीरता के गुण से सेवा में फुल मार्क्स जमा करना"*

➳ _ ➳  स्कूल की घंटी बजते ही बच्चों का तूफान के जैसे भागना... नाचते... कूदते बच्चों का स्कूल छूटते ही भागना... *मैं आत्मा निहार रही थी.... सभी बच्चों के तरंगों को... बच्चों की चंचल वृति को...* और सोच रही थी... यही तो वह बच्चे हैं जो बचपन की दीवार तोड़ कर यौवन की तगार पर खड़े हैं... और पूरे देश के भविष्य के नींव समान यह बच्चे... डूबे हुए हैं... *बाहरीय जगमगाहट में... स्थूल चीज़ों में अपनी बुद्धि को वेस्ट करते... मोबाइल इंटरनेट... होटल... घूमना फिरना...  इसे ही दुनिया समझते यह बच्चे...* अज्ञान वश... अपने ही उज्जवल भविष्य को अपनी ही चंचल वृत्ति के हाथों बर्बाद कर रहे हैं... *दैवीय संस्कारों की कमी को उजागर होता देख मैं आत्मा हतप्रभ हो जाती हूँ...*

➳ _ ➳  और मन ही मन इन बच्चों को सच्ची शिक्षा रूपी ज्ञान दान के अधिकारी बनाने में मैं आत्मा... एक नजर प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय पे डालती हूँ... यह वही संस्था हैं जहाँ बड़े बड़े वेल एजुकेटेड और कम पढ़े हुए... बच्चे बुढ्ढे... गरीब-अमीर... *सब एक ही साथ बैठ कर ईश्वरीय पढ़ाई पढ़ते हैं... यह वह संस्था हैं जहाँ मनुष्य से देवी-देवता बनना सिखाया जाता हैं... कैसी होगी वह शिक्षा जहाँ स्वयं भगवान आकर पढ़ाते हैं...* खुशनसीब मैं आत्मा... जो इसी विद्यालय की स्टूडेन्ट हूँ... काम क्रोध लोभ मोह माया के विकारों रूपी काले बादलों को योग अग्नि रूपी ज्ञान अमृत से नष्ट होता देख रही हूँ....

➳ _ ➳  *स्वयं शिव परमात्मा द्वारा स्थापित संस्था... प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय...* पूरे विश्व में एक ही विद्यालय हैं जहाँ विकारों से मुक्त किया जाता हैं... *दर दर भटकते भक्तों को भगवान मिल जाते हैं...* सच्चा सच्चा गीता ज्ञान... मिलता हैं... स्वयं भगवान की प्रत्यक्षता जहाँ होती हैं ऐसी संस्था की मैं भाग्यवान स्टूडेंट *आज अपने भगवान को याद करूं और भगवान न आये ऐसा हो ही नहीं सकता...* भगवान को प्रत्यक्ष हाजिरहजुर देखना... जानना... महसूस करना है तो प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में आओ... जहाँ स्वयं भगवान के हाथों विजय भव का स्वराज्य अधिकारी तिलक लगाया जाता है...

➳ _ ➳  ऐसी खुशनसीब मैं आत्मा बापदादा के साथ... उनका हाथ पकडे... चल पड़ती हूँ... सभी स्कूल... कॉलेज में... अपने फ़रिश्ते रूप में सज मैं आत्मा... *बापदादा से आती हुई ज्ञान रत्नों रूपी शिक्षाओं को अपने में धारण कर विश्व की सभी स्कूल... कॉलेज पर... सभी विद्यार्थियों पर फैलाती जा रही हूँ...* बापदादा का हाथ अपने हाथों में पकड़ें... मैं आत्मा... देख रही हूँ... बापदादा की पवित्रता... शांति से भरी किरणें सभी स्कूल... कॉलेज के बच्चों को मिल रही है... *उनकी चंचलता... बाहरीय चमक दमक की झूठी माया रूपी विकारों की अग्नि को बापदादा की शक्तियों रूपी किरणों से स्वाहा होता देख रही हूँ...*

➳ _ ➳  चंचलता को गंभीरता में परिवर्तित होता देखती मैं आत्मा... खुद भी गम्भीर होती जा रही हूँ... पुरुषार्थ में... योग में... हर संकल्प... हर स्वांस में सिर्फ एक की ही याद रहें... ऐसी गंभीर स्थिति में मग्न होती जा रही हूँ... गम्भीरता के गुण से फुल खाता जमा करती जा रही हूँ... सभी बच्चों को प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के स्टुडेन्ट बनता देख यह आँखे अश्रु से भर जाती हैं... *कोटि बार धन्यवाद उस परमपिता परमात्मा का जो हर घड़ी... हर पल... अपने भक्तों की लाज रखने चला आता है...  कोटि बार धन्यवाद प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय का जहाँ अनाथ को सनाथ बनाने स्वयं भगवान आते हैं...*

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━