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 07 / 08 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *"हमें शिवबाबा पढाते हैं" - सदा इसी ख़ुशी में रहे ?*

 

➢➢ *हबाच छोड़ बेहद बादशाही के सुखों को याद किया ?*

 

➢➢ *माया के समबंधो को डाइवोर्स दे बाप के सम्बन्ध से सौदा किया ?*

 

➢➢ *सत्यता की विशेषता से डायमंड की चमक को बदाया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *'मेरा तो एक बाबा', और मेरा सब-कुछ इस 'एक मेरे' में समा जाए। तो एकाग्रता की शक्ति अव्यक्त फरिश्ता स्थिति का सहज अनुभव करायेगी।* जहाँ चाहो, जैसे चाहो, जितना समय चाहो उतना और ऐसा मन एकाग्र हो जाए *इसको कहा जाता हैं मन वश में हैं। इस एकाग्रता की शक्ति से स्वत: ही एकरस फरिश्ता स्वरूप की अनुभूति होती है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं स्वराज्य अधिकारी बेफिक्र बादशाह हूँ"*

 

✧  सदा अपने को राजा समझते हो? *सेल्फ पर राज्य है अर्थात् स्वराज्य अधिकारी हो। और दूसरे कौनसे राजा हो? बेफिक्र बादशाह। बेफिक्र बादशाह इस समय बनते हो। क्योंकि सतयुग में फिक्र वा बेफिक्र का ज्ञान ही नहीं है।* कल क्या थे और आज क्या बने हो! बेफिक्र बादशाह बन गये ना! बेफिक्र बनने से भण्डारे भरपूर हो गये हैं।

 

✧  ब्राह्मण जीवन अर्थात् बेफिक्र बादशाह। स्वराज्य मिला-सब-कुछ मिला। स्वराज्य मिला है? कभी कोई कर्मेन्द्रियां तो धोखा नहीं देती? *कभी-कभी थोड़ा खेल करती हैं तो कन्ट्रोलिंग पावर या रूलिंग पावर कम है। तो सदैव चलते-फिरते यह स्मृति सदा रहे कि-मैं स्वराज्य अधिकारी बेफिक्र बादशाह हूँ। बाप आया ही है आप सबके फिक्र लेने के लिए। तो फिक्र दे दिया ना।* थोड़ा छिपाके तो नहीं रखा है?

 

✧  *पॉकेट चेक करके देखो। बुद्धि रूपी, मन रूपी पॉकेट दोनों ही देखो। जब हैं ही बाप के बच्चे, तो बच्चे बेफिक्र होते हैं। क्योंकि बाप दाता है, तो दाता के बच्चों को क्या फिक्र है!*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *संगमयुग के ब्राह्मण जीवन की विशेषता है ही - सार रूप में स्थित हो सदा सुख-शान्ति के, खुशी के, ज्ञान के, आनंद के झूले में झूलना।* सर्व प्राप्तियों के सम्पन स्वरूप के अविनाशी नशे में स्थित रहो। सदा चेहरे पर प्राप्ति ही प्राप्ति है - उस सम्पन स्थिति की झलक और फलक दिखाई दे। जब सिर्फ स्थूल धन से सम्पन विनाशी राजाई प्राप्त करने वाले राजाओं के चेहरे पर भी द्वापर के आदि में वह चमक थी। *यहाँ तो अविनाशी प्राप्ति है तो कितनी रूहानी झलक और फलक चेहरे से दिखाई देगी!*

 

✧  ऐसे अनुभव करते हो? वा सिर्फ अनुभव सुन करके खुश होते हो! पाण्डव सेना विशेष है ना! पाण्डव सेना को देख हर्षित जरूर होते हैं। लेकिन *पाण्डवों की विशेषता है उन्हें सदा बहादुर दिखाते हैं, कमजोर नहीं।* अपने यादगार चित्र देखे हैं ना। चित्रों में भी महावीर दिखाते हैं ना। तो बापदादा भी सभी पाण्डवों को विशेष रूप से, सदा विजयी, सदा बाप के साथी अर्थात पाण्डवपति के साथी, बाप समान मास्टर सर्वशक्तिवान स्थिति में सदा रहें, यही विशेष स्मृति का वरदान दे रहे हैं।

 

✧  *भले नये भी आये हो लेकिन हो तो कल्प पहले के अधिकारी आत्मायें।* इसलिए सदा अपने सम्पूर्ण अधिकार को पाना ही है - इस नशे और निश्चय में सदा रहना। समझा। अच्छा। सदा सेकण्ड में बुद्धि को एकाग्र कर, सर्व प्राप्तियों को अनुभव कर, सदा सर्व शक्तियों को समय प्रमाण प्रयोग में लाते, सदा एक बाप में सारा संसार अनुभव करने वाले, ऐसे सम्पन और समान श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *'सम्पूर्ण अर्थात् समाधान स्वरूप'। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा, समस्या ले जाने वाला भी समस्या भूल जाता था।* क्या लेकर आया और क्या ले करके गया। यह अनुभव किया ना। *समस्या की बातें बोलने की हिम्मत नहीं रही। क्यों कि सम्पूर्ण स्थिति के आगे बचपन का खेल अनुभव करते थे। इसलिए समाप्त हो जाती थी। इसको कहते हैं - 'समाधान स्वरूप'।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  सबको मुक्ति जीवनमुक्ति का रास्ता बताना"*

 

_ ➳  *आज मीठे बाबा पर बेहद प्यार उमड़ रहा है... रग रग मीठे बाबा के उपकारों में भीगी हुई है... भगवान को, उसके अमूल्य खजानो को, पाने की ख़ुशी मन से निरन्तर छलक रही है... कैसे मुझ आत्मा ने... भगवान को यूँ पा लिया... और उसके ज्ञान धन की वारिस बनकर, अपनी खोयी चमक से पुनः जगमगाने लगी हूँ...* यही जज्बात दिल में लिए... अपने मीठे बाबा का रोम रोम से शुक्रिया करने... मै आत्मा मीठे बाबा के कमरे में पहुंचती हूँ...

 

   *मीठे बाबा मुझ आत्मा को प्यार की तरंगो से भरते हुए कहते है :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वरीय यादो में लाइट हाऊस बनकर सबके जीवन को खुशियो से रौशन करो... मुक्ति जीवनमुक्ति का रास्ता बताकर, हर दिल को दुखो से मुक्ति दिलाने वाले मा सुखदाता बनो... *जो सुख, जो खजाने, आप बच्चों ने पाये है वह सुख पूरी दुनिया में भी बांटो.*.."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा के महावाक्य को अपने दामन में समेटकर कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा मेरे... *आपको पाकर तो मुझ आत्मा ने सारा जहान पा लिया है.*.. ज्ञान धन की दौलत ने जीवन को सच्ची खुशियो की खनक से भर दिया है... यही खुशियां मै आत्मा हर दिल पर उंडेल रही हूँ... सबको मीठे बाबा से मिलवा रही हूँ..."

 

   *प्यारे बाबा मुझ आत्मा को सुखो भरे स्वर्ग की जागीर देते हुए कहते है :-* "मीठे लाडले बच्चे... देह की दुनिया में फंसे दिलो को सच्चे सुखो की राहो पर ले आओ... आप समान सुखी बनाकर सुख की लहरे पूरे विश्व में फैलाओ... *भटके दिलो को अँधेरे से निकालकर, प्रकाश की उजली राहो पर चलाओ*... सबको जीवनमुक्ति की जागीर प्यारे बाबा से दिलाओ..."

 

_ ➳  *मै आत्मा अपने बाबा को विश्वकल्याण का वादा देते हुए कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा मेरे... आपकी यादो में खुशियो का फ़रिश्ता बनकर उड़ रही हूँ... *मेरी इस रूहानी चमक और पवित्र उजली छवि का हर दिल दीवाना हो रहा है..*. और मै आत्मा पूरे विश्व में ज्ञान की मशाल लिए... सबको सुखो भरा सच्चा रास्ता दिखा रही हूँ..."

 

   *मीठे बाबा मुझे विश्व कल्याण की भावना से ओतप्रोत देख कहते है :-* "ईश्वर पिता ने आपको चुनकर आपकी राहो में खुशियो भरे फूल खिलाये है... *यह सुख भरी बहार आप सबके मन आँगन में खिलाओ*... दारुण पुकारते दिलो को सच्ची आथत्त दे आओ... मुक्ति जीवनमुक्ति का रास्ता दिखाकर... सुख भरा सवेरे से, उन्हें भी आप समान महा भाग्यवान बनाओ..."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा के वरदानों से भरपूर होकर कहती हूँ :-* "मीठे दुलारे बाबा मेरे... आपकी मीठी प्यारी यादो मै आत्मा... खुशियो की परी बनकर मुक्त गगन में उड़ रही हूँ... *लाइट हाउस बनकर सबको ज्ञान और योग की मीठी राहो को दिखाकर, जनमो की भटकन से छुड़ा रही हूँ..*. सबके जीवन को खुशियो से भरकर पुण्यो की दौलत बढ़ा रही हूँ..."ऐसी मीठी रुहरिहानं अपने प्यारे बाबा से कर... मै आत्मा इस धरा पर उतर आयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सदा इसी खुशी में रहना है कि हमे शिव बाबा पढ़ाते हैं*

 

_ ➳  स्वयं भगवान ऊंचे ते ऊंचे धाम से मुझे पढ़ाने आते हैं यह स्मृति एक रूहानी नशे से मुझ आत्मा को भरपूर कर देती है और *अपने परमशिक्षक से भविष्य 21 जन्मों के लिए श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने वाले अविनाशी ज्ञान रत्नो को धारण करने के लिए अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित होकर, उनकी याद में मैं तेज - तेज कदमो से चलते हुए पहुँच जाती हूँ अपने ईश्वरीय विश्वविद्यालय में और जा कर क्लास रूम में बैठ जाती हूँ*। मन ही मन अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के बारे में मैं विचार करती हूँ कि कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो स्वयं भगवान मुझे पढ़ाने के लिए अपने ऊंचे ते ऊंचे धाम को छोड़ मेरे पास आते हैं। अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की स्मृति में खोई, अपने भाग्य का गुणगान करते - करते मैं महसूस करती हूँ जैसे मेरे परमशिक्षक शिव बाबा मेरे सामने आकर उपस्थित हो गए हैं।

 

_ ➳  देख रही हूँ मैं अपने सामने संदली पर बैठे सम्पूर्ण अव्यक्त फ़रिश्ता स्वरूप में अपने प्यारे बापदादा को जो शिक्षक के रूप में मेरे सामने बैठे मुझे निहार रहें हैं। *अपने नयनो में असीम स्नेह को समाये अपनी मीठी दृष्टि से मुझे निहारते हुए बापदादा मन्द - मन्द मुस्करा रहें हैं। अपने परमशिक्षक के इस मनभावन, सुन्दर सलौने स्वरूप को अपनी आंखों में बसाकर मैं एकटक उन्हें निहारती जा रही हूँ*। बाबा की मीठी दृष्टि एक रूहानी नशे से मुझ आत्मा को भरपूर कर रही है। बापदादा के मुख कमल से निकल रहे एक - एक महावाक्य को चात्रिक बन मैं आत्मा सुन रही हूँ और अपनी बुद्धि में उसे धारण करती जा रही हूँ। *बाबा का एक - एक महावाक्य गहराई तक मेरे अंदर समाता जा रहा है। अपने शिव भोलानाथ की सच्ची पार्वती बन उनके मुख कमल से उच्चारित अमरकथा को मैं बड़े प्यार से और बड़े ध्यान से सुन रही हूँ*।

 

_ ➳  अपनी बुद्धि रूपी झोली को अपने परमशिक्षक शिव बाबा के अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर करके, मन ही मन मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि हर रोज़ भगवान मुझे जो पढ़ाई पढ़ाने के लिए आते हैं उसे अच्छी रीति पढ़ कर, अपने जीवन मे धारण करके, भविष्य जन्म जन्मांतर के लिए अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने का पुरुषार्थ मैं अवश्य करूँगी । *अपने आप से यह प्रतिज्ञा करके अपने प्यारे बापदादा की और मैं जैसे ही नजर घुमाती हूँ, मैं महसूस करती हूँ जैसे बाबा का वरदानी हाथ मेरे सिर के ऊपर है और बाबा के वरदानी हस्तों से शक्तियों की अनन्त धारायें निकल कर मेरे अंदर समाकर, मेरी हर प्रतिज्ञा को पूरा करने का बल मेरे अंदर भरती जा रही हैं*। रंग बिरंगी शक्तियों की सहस्त्रो किरणों की बरसात मेरे ऊपर हो रही है जो मुझे बहुत ही शक्तिशाली बना रही हैं। *शक्तियों की ये अनन्त किरणे मुझे शक्तिशाली बनाने के साथ - साथ डबल लाइट स्थिति में स्थित करती जा रही है*।

 

_ ➳  स्थूल देह और सूक्ष्म देह इन दोनों के भान से मुक्त एक अति सुन्दर निराकारी स्थिति में मैं स्थित होकर अब अपने आपको देख रही हूँ एक अति सूक्ष्म बिंदु के रूप में जो एक प्रकाशपुंज के समान चमकता हुआ दिखाई दे रहा हैं। *कुछ क्षणों के लिए मैं अपने इस स्वरूप में खो जाती हूँ और अपने स्व स्वरूप में टिक कर, अपने अंदर समाये गुणों और शक्तियों के अनुभव का आनन्द लेने लगती हूँ*। यह आत्म स्मृति बहुत गहरी फीलिंग का मुझे अनुभव करवाकर तृप्त कर देती हैं। अपने इस निराकार स्वरूप में स्थित अब मैं देख रही हूँ अपने सामने अपने प्यारे शिव बाबा को भी उनके निराकार बिंदु स्वरूप में। *महाज्योति के रूप में अनन्त शक्तियों की किरणों को बिखेरते हुए मेरे प्यारे पिता मेरे सम्मुख है। उनकी किरणों रूपी बाहों में समाकर अब मैं आत्मा उनके साथ उनके वतन की ओर जा रही हूँ*।

 

_ ➳  अपनी किरणों रूपी बाहों में मुझ बिंदु आत्मा को समाये मेरे मीठे बाबा अब मुझे साकारी दुनिया से निकाल, आकारी दुनिया को पार करके अपनी निराकारी दुनिया मे ले आये हैं। अपने इस मूलवतन घर में अब मैं ज्ञान सागर अपने प्यारे पिता के सामने बैठी हूँ। *उनसे आ रही सर्वशक्तियों की सतरंगी किरणे मुझ पर बरस रही हैं। ज्ञान सागर मेरे प्यारे पिता के ज्ञान की रिमझिम फुहारों का शीतल स्पर्श मेरी बुद्धि को स्वच्छ बना रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे ज्ञान की शक्तिशाली किरणो के रूप में ज्ञान की बरसात मेरे ऊपर करके, बाबा मुझे समपूर्ण ज्ञानवान बना रहे हैं*। मास्टर नॉलेजफुल बन कर, ज्ञान की शक्ति से भरपूर होकर अब मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ।

 

_ ➳  अपने साकार तन में भृकुटि के अकालतख्त पर अब मैं फिर से विराजमान हूँ और अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरुप को सदा स्मृति में रखते हुए अब मैं हर पल इस खुशी में रहती हूँ कि ऊंचे ते ऊंचे धाम से भगवान मुझे पढ़ाने आते हैं। *यह स्मृति मुझे अपने परमशिक्षक शिव पिता की शिक्षाओं को जीवन मे धारण करने का बल प्रदान करने के साथ - साथ मेरे पुरुषार्थी जीवन को भी उमंग उत्साह से सदा भरपूर रखती है*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं माया के सम्बन्धो को डाइवोर्स दे बाप के सम्बंध से सौदा करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं मायाजीत आत्मा हूँ।*

   *मैं मोहजीत आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सत्यता की विशेषता सदा धारण करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा डायमंड की चमक को सदा बढ़ाती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सत्य स्वरूप हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  अभी तक पांच ही विकारों के व्यर्थ संकल्प मैजारिटी के चलते हैं। फिर चाहे कोई भी विकार हो। ये क्योंये क्याऐसा होना नहीं चाहिएऐसा होना चाहिए... या कामन बात बापदादा सुनाते हैं कि ज्ञानी आत्माओं में या तो अपने गुण काअपनी विशेषता का अभिमान आता है या तो *जितना आगे बढ़ते हैं उतना अपनी किसी भी बात में कमी को देख करकेकमी अपने पुरुषार्थ की नहीं लेकिन नाम मेंमान मेंशान मेंपूछने मेंआगे आने मेंसेन्टर इन्चार्ज बनाने मेंसेवा मेंविशेष पार्ट देने में - ये कमीये व्यर्थ संकल्प भी विशेष ज्ञानी आत्माओं के लिए बहुत नुकसान करता है। और आजकल ये दो ही विशेष व्यर्थ संकल्प का आधार है।*

➳ _ ➳  तो आप जब सेवा पर जाओ तो एक दिन की दिनचर्या नोट करना और चेक करना कि एक दिन में इन दोनों में से चाहे अभिमान या दूसरे शब्दों में कहो अपमान - मेरे को कम क्योंमेरा भी ये पद होना चाहिएमेरे को भी आगे करना चाहिएतो ये अपमान समझते हो ना। तो ये दो बातें *अभिमान और अपमान - यही दो आजकल व्यर्थ संकल्प का कारण है। इन दोनों को अगर न्योछावर कर दिया तो बाप समान बनना कोई मुश्किल नहीं है।*

✺   *ड्रिल :-  "अभिमान और अपमान के व्यर्थ संकल्प से मुक्त होने का अनुभव"*

➳ _ ➳  सावन का महीना और चारों तरफ हरियाली ही हरियाली खिलते हुए फूलों की महक के बीच मैं आज सावन का झूला झूल रही हूं... और मेरे आस-पास मेरी सहेलियां मुझे झूला झूला रहे हैं... आज हम सभी मिलकर मधुर गीत गुनगुना रही हैं... इस झूमते हुए मौसम में आज चारों तरफ खुशी के माहौल में मैं आत्मा झूला झूल रही हूं... *झूला झूलते झूलते मैं अपने आप को ऊंचाइयों तक पहुंचाने का प्रयत्न कर रही हूं... और धीरे-धीरे मेरा झूला गति को प्राप्त करता है... और मैं अपने आप को सबसे ऊंची स्थिति पर पाकर सौभाग्यशाली अनुभव कर रही हूं...* मुझे उस झूले से अन्य आत्माएं बहुत ही छोटी छोटी नजर आ रही हैं... मेरी ऊंचाई और आत्माओं से बहुत ऊंची हो गई है...

➳ _ ➳  और अब मैं कुछ देर अपनी इस ऊंची अवस्था में अपने आप को अनुभव करते-करते मैं हवाओं के साथ अपने मन बुद्धि से सूक्ष्म वतन पहुंच जाती हूँ... सूक्षम वतन का यह सफेद प्रकाश मेरे अंदर शीतलता उत्पन्न कर रहा है... सामने बापदादा मुझे अपनी बाहें फैलाए अपने पास बुला रहे हैं... मैं दौड़कर बापदादा के पास जाती हूँ... और अपने आप को उसी स्थिति का स्मरण कराते हुए बापदादा से कहती हूँ... बाबा आज मैं अपने आप को अन्य आत्माओं से ऊंची स्थिति में अनुभव कर रही हूं... मुझे इस स्थिति में बहुत ही आनंद आ रहा है... बाबा मुझे उसी समय रोकते हुए कहते हैं... कि नहीं मेरे बच्चे बेशक तुम अपने पुरुषार्थ से अन्य आत्माओं से ऊंची स्थिति में पहुंच जाओ... लेकिन याद रहे कि अपने को कभी भी अभिमानी स्थिति का आभास भी नहीं होने देना है... अपने चाल चलन से अन्य आत्माओं के प्रति हमेशा विनम्र और सहज सरल स्वभाव ही रखना... *अगर अपने पुरुषार्थ से तुम ऊंची स्थिति को पाकर किसी भी प्रकार का अभिमान करते हो तो तुम्हारी अन्य आत्माओं से यह ऊंची स्थिति नहीं कहलाएगी... सरल और सहज स्वभाव में रहते हुए विनम्रता का गुण अपने अंदर धारण करना होगा...*

➳ _ ➳  बापदादा के इतना कहने पर मैं बाबा को कहती हूं... बाबा मुझे आपकी इस बात का हमेशा स्मरण रहेगा... बाबा मेरी यह बात सुनकर मुस्कुरा कर मेरे सर पर हाथ रख देते हैं... और मैं मन ही मन बहुत प्रसन्न होती हूँ... कुछ देर रुकने के बाद बाबा से असीम प्यार करते हुए जैसे ही मैं वापस प्रस्थान करने लगती हूँ... तो बाबा मुझे रोकते हुए मेरा हाथ पकड़ते हुए मुझे कहते हैं... रुको बच्चे मैं तुम्हें एक बात और कहना चाहता हूँ... कि *मीठे बच्चे तुम अगर कितना भी सेवा में ऊंची स्थिति पर चले जाओ... और सेवा में कभी कोई आत्मा आपको कुछ कठोर शब्द कहें तो उन शब्दों को प्रभु अर्पण कर दिया करें... और उस आत्मा को हमेशा शुभ भावना ही देते रहें... सेवार्थी भाव की स्थिति में कभी भी अपमान शब्द का संकल्प या अनुभव नहीं होना चाहिए...* अगर हमें अपमान और मान का संदर्भ होगा तो हम कभी आगे नहीं बढ़ पाएंगे...

➳ _ ➳  मेरे मीठे बाबा के ये अनमोल शब्द सुनकर मैं आत्मा अपने आपको बहुत ही भाग्यशाली अनुभव कर रही हूं... और अब मैं अपनी मन बुद्धि से वापस अपने इस स्थूल देह में अवतरित हो जाती हूं... इसलिए यहाँ आकर मैं बाबा की कही हुई हर बात को अपने अंदर समा लेती हूं... और सदा उसी स्मृति स्वरूप में रहती हूं... इस सुहाने मौसम में झूला झूलते हुए मैं आत्मा अपनी सहेलियों से अपना झूला मन्दगति पर करवाती हूं... *और धीरे से उस झूले से उतरकर मैं अन्य आत्माओं को भी उस झूले पर बिठाकर उसके आनंद का अनुभव करा रही हूं... और बापदादा को बार-बार धन्यवाद कर रही हूं...*

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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