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 16 / 08 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *ज्ञान की भिन्न भिन्न बूदों का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *योग में बिंदु रूप का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *धारणाओं में दृढ़ता रही ?*

 

➢➢ *सेवा में आत्माओं को अज्ञान की नींद से जगाया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  डबल लाइट अर्थात् संस्कार स्वभाव का भी बोझ नहीं, व्यर्थ संकल्प का भी बोझ नहीं-इसको कहा जाता है हल्का। जितने हल्के होंगे उतना सहज उड़ती कला का अनुभव करेंगे। *अगर योग में जरा भी मेहनत करनी पड़ती है तो जरूर कोई बोझ है। तो बाबा-बाबा का आधार ले उड़ते रहो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं सहजयोगी हूँ"*

 

〰✧  सदा अपने को सहज योगी अनुभव करते हो? कितनी भी परिस्थितियां मुश्किल अनुभव कराने वाली हों लेकिन मुश्किल को भी सहज करने वाले सहजयोगी हैं-ऐसे हो या मुश्किल के समय मुश्किल का अनुभव होता है? सदा सहज है? *मुश्किल होने का कारण है बाप का साथ छोड़ देते हो। जब अकेले बन जाते हो तो कमजोर पड़ जाते हो और कमजोर को तो सहज बात भी मुश्किल लगती है। इसलिये बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि सदा कम्बाइन्ड रूप में रहो। कम्बाइन्ड को कोई अलग नहीं कर सकता।* जैसे इस समय आत्मा और शरीर कम्बाइन्ड है ऐसे बाप और आप कम्बाइन्ड रहो। मातायें क्या समझती हो? कम्बाइन्ड हो या कभी अलग, कभी कम्बाइन्ड? ऐसा साथ फिर कभी मिलना है? फिर क्यों साथ छोड़ देती हो? काम ही क्या दिया है?

 

✧  सिर्फ यह याद रखो कि 'मेरा बाबा'। इससे सहज काम क्या होगा? मुश्किल है? (63 जन्मों का संस्कार है) अभी तो नया जन्म हो गया ना। नया जन्म, नये संस्कार। अभी पुराने जन्म में हो या नये जन्म में? या आधा-आधा है? तो नये जन्म में स्मृति के संस्कार हैं या विस्मृति के? फिर नये को छोड़कर पुराने में क्यों जाते हो? नई चीज अच्छी लगती है या पुरानी चीज अच्छी लगती है? फिर पुराने में क्यों चले जाते हो? *रोज अमृतवेले स्वयं को ब्राह्मण जीवन के स्मृति का तिलक लगाओ। जैसे भक्त लोग तिलक जरूर लगाते हैं तो आप स्मृति का तिलक लगाओ। वैसे भी देखो मातायें जो तिलक लगाती है वो साथ का तिलक लगाती हैं।*

 

✧  *तो सदा स्मृति रखो कि हम कम्बाइन्ड हैं तो इस साथ का तिलक सदा लगाओ। अगर युगल होगा तो तिलक लगायेंगे, अगर युगल नहीं होगा तो तिलक नहीं लगायेंगे। यह साथ का तिलक है। तो रोज स्मृति का तिलक लगाती हो या भूल जाता है? कभी लगाना भूल जाता, कभी मिट जाता! जो सुहाग होता है, साथ होता है वह कभी भूलता नहीं। तो साथी को सदा साथ रखो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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आज विश्व रचयिता बाप अपने मास्टर रचयिता बच्चों को देख रहे हैं। मास्टर रचयिता अपने रचना-पन की स्मृति में कहाँ तक स्थित रहते हैं। *आप सभी रचयिता की विशेष पहली रचना यह देह है।* इस देह रूपी रचना के रचयिता कहाँ तक बने हैं? देह रूपी रचना कभी अपने तरफ रचयिता को आकर्षित कर रचना-पन विस्मृत तो नहीं करा देती है? मालिक बन इस रचना को सेवा में लगाते रहते? जब चाहें जो चाहें मालिक बन करा सकते हैं? पहले-पहले *इस देह के मालिक-पन का अभ्यास ही प्रकृति का मालिक वा विश्व का मालिक बना सकता है।* अगर देह के मालिक-पन में सम्पूर्ण सफलता नहीं तो विश्व के मालिक-पन में भी सम्पन्न नहीं बन सकते हैं। *वर्तमान समय की यह जीवन - भविष्य का दर्पण है। इसी दर्पण द्वारा स्वयं का भविष्य स्पष्ट देख सकते हो।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ कर्मातीत स्थिति वाला देह के मालिक होने के कारण कर्मभोग होते हुए भी न्यारा बनने का अभ्यासी है। बीच-बीच में अशरीरी-स्थिति का अनुभव बिमारी से परे कर देता है। *जैसे साइन्स के साधन द्वारा बेहोश कर देते हैं तो दर्द होते भी भूल जाते हैं, दर्द फील नहीं करते हैं क्योंकि दवाई का नशा होता है। तो कमतिीत अवस्था वाले अशरीरी बनने के अभ्यासी होने कारण बीच-बीच में यह रूहानी इन्जेक्शन लग जाता है। इस कारण सूली से कांटा अनुभव होता है।* और बात-फालो फादर होने के कारण विशेष आज्ञाकारी बनने का प्रत्यक्ष फल बाप से विशेष दिल की दुआयें प्राप्त होती हैं। *एक अपना अशरीरी बनने का अभ्यास दूसरा आज्ञाकारी बनने का प्रत्यक्षफल बाप की दुआयें, वह बीमारी अर्थात् कर्मभोग को सूली से कांटा बना देती है।* कर्मातीत श्रेष्ठ आत्मा कर्मभोग को, कर्मयोग की स्थिति में परिवर्तन कर देगी।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺  *"ड्रिल :- पढाई की चारों सब्जेक्ट का यथार्थ यादगार-महाशिवरात्रि मनाना"*

 

_ ➳  *अपने भाग्य के गीत गाती दिल से मुस्कुराती चमचमाती खुशियों से भरपूर मैं आत्मा मुधबन घर के आगन मे टहल रही हूँ... वाह कैसा अद्भुत अद्वितीय श्रेष्ठ शानदार भाग्य मैने पाया है... प्यारे बाबा ने मुझे अपना बनाया है... मेरे भाग्य को जगाया है... काटें से फूल बनाया है... हर रंग से उसने मेरे बेरंग जीवन को भर दिया है... कौड़ी से हीरे तुल्य इस जीवन को बनाया है...* वाह मेरे दिलाराम बाबा ने मुझे अपने दिल तख्त में बिठाया है... अपने नैनो का नूर बनाया है... कितना बाबा ने मुझ पर वेपनाह बेशुमार प्यार लुटाया है बरसाया है... कितना सुदंर ड्रामा में ये सीन आया है... ये मीठे दिल के जज्बात सुनाने मैं आत्मा फरिशता रूप धारण किए अपने प्यारे बाबा के पास वतन पहुचंती हूँ...

 

_ ➳  *मीठे बाबा रूहानी जोश-जुनून से मुझ आत्मा को भरते हुए कहतें है :-* "मीठे राजदुलारे भागयवान बच्चे मेरे... *इस बार शिवरात्रि का ये त्योहार कुछ इस कदर धूम-धाम से मनाओं... आ चुके है तुम्हारे कल्याणकारी पिता इस धरा पर, ऐसा चारों ओर आवाज फैलाओं...* खूब ढोल-खूब नगाड़े खुशियों के बजाओं... सबको अज्ञान की निद्रा से जगाओं... सबको ज्ञान का प्रकाश देकर उनके जीवन से अज्ञान अन्धेरा मिटाओं... मीठे बच्चे ऐसे धूम-धाम से तुम शिवरात्रि का त्योहार मनाओं...."

 

  *मैं आत्मा रूहानी नशे और रूहानी जुनून से भरपूर होकर कहती हूँ :-* "मीठे रंगीले बाबा मेरे... आपकी इस रूहानी जोशिली समझानी से दिल बाग-बाग हो उठा है... इस शिवरात्रि को जानदार, शानदार बनाने का मोर्चा सम्भालतें हुए चारों ओर खुशियों के बाजें बजा रही हूँ... कल्याणकारी पिता है धरा पर आ चुके, ये आवाज चारों ओर फैला रही हूँ... *सबको अज्ञान निद्रा से जगा... शिवरात्रि का सच्चा महत्व सबको बता रही हूँ... अज्ञान अन्धेरा हटा ज्ञान प्रकाश फैला रही हूँ... ऐसे धूम-धाम से शिवरात्रि मना रही हूँ..."*

 

_ ➳  *मीठे प्यारे बाबा मुझ आत्मा को उमंग-उत्साह के रंग-बिरंगे पंख दे कहते है :-* "मीठे-मीठे प्यारे राजदुलारे बच्चे मेरे... *शिवरात्रि के इस महान पर्व पर सबकी बिगड़ी को अब तुम बनाओं... ईश्वर पिता जो धरती पर अथाह खजानों को ले आया है... इस दौलत से हर दिल को रूबरू कराओं... सबको उनके सच्चे पिता से मिलाओं...* घर-घर में शिव पिता के आने का निमंत्रण पहुचाओं... मीठे बच्चे ऐसे शानदार जानदार तरीक़े से शिवरात्रि त्योहार मनाओं..."

 

  *मैं आत्मा उमंग-उत्साह के रंगीले पंख लगाकर कहती हूँ :-* "मीठे दुलारें बाबा मेरे... आओ-आओ इस शुभ दिन पर ईश्वर से सुख-शांति की बेशुमार दौलत पाओं... ऐसा कह सबको बेशुमार दौलत से रूबरू करा रही हूँ... सोई तकदीर को सबकी जगा रही हूँ... *सत्य बाप का सत्य परिचय घर-घर में सुना रही हूँ... आप समान सबकी बिगड़ी बना रही हूँ... उनके खोए अस्तित्व से उनको रूबरू करा रही हूँ... इस शानदार तरीके से शिवजयंती मना रही हूँ..."*

 

_ ➳  *मीठे लाडले बाबा मुझ आत्मा को विश्व कल्याणकारी भावनाओं से सजाते हुए कहतें है :-* "इस शिवरात्रि खुशियों की शहनाईयां बाजें बजाओं... सबको दिलखुश मिठाई खिलाओं... सबके जीवन को अब तुम आप समान खुशियों से सजाओं... *सबके सोए भाग्य को जगाओ... ऐसे तुम इस शिवरात्रि को चार चांद लगाओं... इस त्योहार को धूम-धाम से मनाओं..."*

 

  *मैं आत्मा विश्व कल्याणकारी भावनाओं से सज-धज कर कहती हूँ :-* "सच्चे सहारें बाबा मेरे... आपका जन्मदिन दिलों-जान से अथाह खुशियों के साथ मना रही हूँ... आपके आने की खबर सारे जहान को सुना रही हूँ... सबको आप समान खुशियों से सजा रही हूँ... *अल्फ बे का ज्ञान प्रकाश दे उनका भाग्य जगा दिलखुश मिठाई खिला रही हूँ... इस कदर इस शिवरात्रि में चार-चांद लगा रही हूँ... बड़े धूमधाम से इस शिवरात्रि उत्सव को मना रही हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- आत्माओं को अज्ञान की नींद से जगाना*"

 

 _ ➳  अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर को धारण किये, मैं फ़रिशता एक विशाल समुन्द्र के किनारे टहल रहा हूँ और टहलते - टहलते विचार कर रहा हूँ कि कितनी खुशनसीब हैं वो आत्मायें जिन्होंने भगवान को पहचान लिया है और जो परमात्म पालना में पल रही हैं। *किंतु कितनी बदनसीब हैं वो आत्मायें जो परमात्म सन्देश मिलने के बाद भी इस बात को स्वीकार नही करना चाहती कि परमात्मा इस धरा पर अपने बच्चों से मिलने के लिए आये हुए हैं*। 

 

 _ ➳  मन ही मन ऐसी आत्माओं के दुर्भाग्य के बारे में विचार करते हुए उन पर रहम आता है जो परमात्म परिचय मिलने के बाद भी कुम्भकर्ण की नींद में सोए हुए है। आलस्य, अलबेलेपन में संगम युग की अनमोल घड़ियों को व्यर्थ में गंवाते जा रहें हैं। *ऐसे कुम्भकर्ण की नींद में सोए लोगों को जगाना हर ब्राह्मण आत्मा का कर्तव्य भी है और यही परमात्म प्रेम का रिटर्न भी है*। मन मे यह विचार करके मैं फ़रिशता उस स्थान से उड़ कर अब सूक्ष्म लोक की और चल पड़ता हूँ। ऊपर आकाश में उड़ते - उड़ते नीचे धरती का नज़ारा मैं स्पष्ट देख रहा हूँ। *केवल खाने, पीने और सोने में ही समय को व्यर्थ गंवाने वाले, कुम्भकर्ण की नींद में सोये मनुष्यों को मैं देखता हुआ जा रहा हूँ*।

 

 _ ➳  मन मे साक्षी भाव और ऐसी आत्माओं के प्रति शुभभावना, शुभकामना लिए अब मैं आकाश को पार कर जाता हूँ और कुछ ही क्षणों में सफेद चांदनी के प्रकाश से प्रकाशित फरिश्तों की एक बहुत सुंदर दुनिया मे प्रवेश करता हूँ। *श्वेत रश्मियां फैलाते, प्रकाश की काया में फ़रिश्ते यहाँ - वहाँ उड़ रहें हैं*। पूरा वतन फरिश्तों की लाइट से जगमग कर रहा है। *सभी फरिश्तो के सिरताज अव्यक्त ब्रह्मा बाबा एक दिव्य प्रकाश की काया में सबसे अलग दिखाई दे रहें हैं*। उनके अंग - अंग से जैसे प्रकाश का झरना फूट रहा है। उनके मस्तक पर विराजमान शिव बाबा सूर्य के समान चमक रहें हैं।

 

 _ ➳  अपने सम्पूर्ण फ़रिशता स्वरुप में ब्रह्मा बाबा बॉहें पसारे, एक दिव्य मुस्कान के साथ, वतन में आने वाले अपने हर फ़रिशता बच्चे का स्वागत कर रहें हैं। बाबा बड़े प्यार से मुस्कराते हुए हर बच्चे को गले लगाते हैं और अपना वरदानी हाथ उसके सिर पर रख कर उसे वरदानों से भरपूर कर देते हैं। *इस खूबसूरत दृश्य को देखता हुआ, मैं फ़रिशता अब बापदादा के पास पहुंचता हूँ। बाबा मुस्कराते हुए मेरी ओर देख कर अपनी बाहें फैला लेते हैं और मैं फ़रिशता बाबा की बाहों में समाकर, बाबा के असीम स्नेह की गहराई में डूब जाता हूँ*। तृप्त हो कर मैं बाबा के सामने बैठ जाता हूँ। बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रखते हैं। वरदान दे कर अपनी सर्वशक्तियों से बापदादा मुझे भरपूर कर देते हैं।

 

 _ ➳  बापदादा से सर्वशक्तियाँ और वरदान ले कर अब मैं फ़रिशता कुम्भकर्ण की नींद में सोए लोगों का जगाने का संकल्प बापदादा के सामने रखता हूं और बापदादा को अपने साथ चलने का आग्रह करता हूँ। *बापदादा मेरा आग्रह स्वीकार कर, मेरा हाथ थामे अब मुझे विश्व ग्लोब पर ले आते हैं*। बापदादा के साथ कम्बाइंड हो कर अब मैं पूरे विश्व का चक्कर लगा रहा हूँ और कुम्भकर्ण की नींद में सोए मनुष्यों पर ज्ञान की किरणें बरसा कर उन्हें अज्ञान अंधकार रूपी नींद से जगा रहा हूँ। *परमात्म किरणे उन पर फैलाते हुए, परमात्म प्रेम का उन्हें अनुभव करवाकर, उन्हें परमात्मा के अवतरण का सन्देश दे रहा हूँ*। 

 

 _ ➳  मैं देख रहा हूँ कुम्भकर्ण की नींद में सोये सभी मनुष्य परमात्म प्रेम का अनुभव करके अब अज्ञान अंधकार रूपी निद्रा से निकल कर ज्ञान के सोझरे में आ रहें हैं और परमात्म पालना का अनुभव करने के लिए अपने आस - पास के सेवा स्थलों पर जा रहें हैं। *ब्रह्माकुमारी बहने ज्ञान कलश हाथ मे लिए उन सभी को ज्ञान अमृत पिला कर, उनके जीवन को परमात्म प्रेम से भरपूर कर रही हैं*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं हर शक्त्ति को आर्डर प्रमाण चलाने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं मास्टर रचयिता आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सदा सहारेदाता बाप को प्रत्यक्ष करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सबको किनारे लगाती हूँ  ।*

   *मैं विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  *सबसे सहज है कि पहले स्वयं को झमेले मुक्त करो। दूसरे के पीछे नहीं पड़ो।* ये स्टूडेन्ट ऐसा हैये साथी ऐसा हैये सरकमस्टांश ऐसे हैं- उसको नहीं देखो लेकिन अपने को झमेला मुक्त करो।

➳ _ ➳  जहाँ झमेला हो वहाँ अपने मन को, बुद्धि को किनारे कर लो। आप सोचते हो-ये झमेला पूरा होगा तो बहुत अच्छा हो जायेगा, हमारी सेवा भी अच्छीहमारी अवस्था भी अच्छी हो जायेगी। लेकिन झमेले पहाड़ के समान हैं। *क्या पहाड़ से माथा टकराना हैपहाड़ हटेगा क्यास्वयं किनारा कर लो या उड़ती कला से झमेले के पहाड़ के भी ऊपर चले जाओ।* तो पहाड़ भी आपको एकदम सहज अनुभव होगा।

➳ _ ➳  मुझे बनना है। अमृतवेले से ये स्वयं से संकल्प करो कि मुझे झमेला मुक्त बनना है। बाकी तो है ही झमेलों की दुनियाझमेले तो आयेंगे ही। आपकी दुनिया आपका सेवाकेन्द्र है तो आपकी दुनिया ही वो हैतो वहाँ ही आयेंगे ना। आप पेपर देने के लिए अमेरिका, लण्डन जायेंगी क्या? सेन्टर पर ही देंगी ना! *तो झमेला नहीं आवे- यह नहीं सोचो। झमेला मुक्त बनना है-ये सोचो।*

✺   *ड्रिल :-  "झमेला मुक्त बनना"*

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपनी शांत स्वरूप स्थिति में मीठे बाबा की यादों में खोई हुई हूं... तभी मुझे बाबा के यह महावाक्य स्मृति में आते हैं कि *"जैसे विश्व ड्रामा को मैं साक्षी होकर देखता हूं वैसे ही तुम भी देखो"...* यह स्मृति आते ही मेरे मानस पटल पर विश्व ड्रामा  के सीन उभरने लगते हैं... सहज रुप से एक के बाद एक सीन आता है और चला जाता है... *मैं आत्मा पूर्णत: डिटैच होकर हर सीन को देख रही हूं...*

➳ _ ➳  *इस साक्षी स्थिति में मैं क्या, क्यों के सभी प्रश्नों से मुक्त हूँ... प्रसन्नचित्त अवस्था में हूँ... मेरा मानस अब शांत होता जा रहा है...* इस सुखदाई, आनंदमई स्थिति में मैं अपने प्यारे शिव बाबा को अपने सामने देख रही हूं... बाबा से अनंत शक्तियां मुझ आत्मा में समाती जा रही हैं... मुझ आत्मा के आसुरी अवगुण नष्ट होते जा रहे हैं...

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा स्वयं को सभी विकारों और विकृतियों की मैल से मुक्त देख रही हूं... *मैं परदर्शन और परचिंतन की धूल से मुक्त होती जा रही हूं... सभी प्रकार के झमेलों से स्वयं को न्यारा करती जा रही हूं...* मुझ आत्मा में स्वचिंतन और परमात्म चिंतन की लगन बढ़ती जा रही है... स्वदर्शन चक्र फ़िराते हुए माया के बंधनों से मैं मुक्त होती जा रही हूं...

➳ _ ➳  मैं आत्मा अब उड़ती कला का अनुभव कर रही हूं... *परिस्थितियों रूपी पहाड़ों से टकराने में अपना समय गंवाने की बजाय स्वयं को मोल्ड, स्वयं को परिवर्तित करती जा रही हूं...* कोई बदले फिर मैं बदलू ऐसे झमेलों से मुक्त होकर एक बाबा की लगन में मगन होती जा रही हूं...

➳ _ ➳  सेवा केंद्र हो या कार्यक्षेत्र जो भी बातें आती हैं, विघ्न आते हैं... उन सभी विघ्नों को मैं एक बाबा की याद में रहकर पार करती जा रही हूं... हर पेपर को बाबा की याद में रह क्रॉस करती जा रही हूं... परिस्थितियां तो आनी ही है... *विघ्न ना आए इस व्यर्थ चिंतन में समय को नष्ट ना कर मैं आत्मा अपने को सर्व झमेलों से मुक्त करती जा रही हूं...* बाबा की शक्तियों और गुणों से मैं स्वयं को संपन्न अनुभव कर रही हूं...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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