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 04 / 08 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *ड्रामा की हर सीन को साक्षी होकर देखा ?*

 

➢➢ *पढाई में कभी गफलत तो नहीं की ?*

 

➢➢ *मनमनाभव के महामन्त्र द्वारा सर्व दुखों को पार किया ?*

 

➢➢ *हर संकल्प में दृढ़ता की विशेषता को प्रैक्टिकल में लाये ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *फरिश्ता स्थिति का अनुभव करने के लिए किसी भी प्रकार के व्यर्थ और निगेटिव संकल्प, बोल वा कर्म से मुक्त बनो। व्यर्थ वा निगेटिव-यही बोझ सदाकाल के लिए डबल लाइट फरिश्ता बनने नहीं देता।* तो ब्रह्मा बाप पूछते हैं-इस बोझ से सदा हल्के फरिश्ते बने हो?

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं राजयोगी आत्मा हूँ"*

 

  एक सेकेण्ड में अशरीरी स्थिति का अनुभव कर सकते हो? या टाइम लगेगा? *आप राजयोगी हो, राजयोगी का अर्थ क्या है? राजा हो ना। तो शरीर आपका क्या है? कर्मचारी है ना! तो सेकेण्ड में अशरीरी क्यों नहीं हो सकते? र्डर करो- अभी शरीर-भान में नहीं आना है; तो नहीं मानेगा शरीर?*

 

  राजयोगी अर्थात् मास्टर सर्वशक्तिवान। मास्टर सर्वशक्तिवान कर्मबन्धन को भी नहीं तोड़ सकते तो मास्टर सर्वशक्तिवान कैसे कहला सकते? *कहते तो यही हो ना कि हम मास्टर सर्वशक्तिवान हैं। तो इसी अभ्यास को बढ़ाते चलो। राजयोगी अर्थात् राजा बन इन कर्मेन्द्रियों को अपने र्डर में चलाने वाले। क्योंकि अगर ऐसा अभ्यास नहीं होगा तो लास्ट टाइम 'पास विद् नर' कैसे बनेंगे!*

 

  धक्के से पास होना है या 'पास विद् नर' बनना है? जैसे शरीर में आना सहज है, सेकेण्ड भी नहीं लगता है! क्योंकि बहुत समय का अभ्यास है। ऐसे शरीर से परे होने का भी अभ्यास चाहिए और बहुत समय का अभ्यास चाहिए। *लक्ष्य श्रेष्ठ है तो लक्ष्य के प्रमाण पुरुषार्थ भी श्रेष्ठ करना है। सारे दिन में यह बार-बार प्रैक्टिस करो-अभी-अभी शरीर में हैं, अभी-अभी शरीर से न्यारे अशरीरी हैं! लास्ट सो फास्ट और फर्स्ट आने के लिए फास्ट पुरुषार्थ करना पड़े।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *आवाज से परे अपनी श्रेष्ठ स्थित को अनुभव करते हो?* वह श्रेष्ठ स्थिति सर्व व्यक्त आकर्षण से परे शक्तिशाली न्यारी और प्यारी स्थिति है। *एक सेकण्ड भी इस श्रेष्ठ स्थिति में स्थित हो जाओ तो उसका प्रभाव सारा दिन कर्म करते हुए भी स्वयं में विशेष शान्ति की शक्ति अनुभव करेंगे।* 

 

✧  इसी स्थिति को - कर्मातीत स्थिति, बाप समान सम्पूर्ण स्थिति कहा जाता है। इसी स्थिति द्वारा हर कार्य में सफलता का अनुभव कर सकते हो। ऐसी शक्तिशाली स्थिति का अनुभव किया है? *ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है - कर्मातीत स्थिति को पाना।* तो लक्ष्य को प्राप्त करने के पहले अभी से इसी अभ्यास में रहेंगे तब ही लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे।

 

✧  *इसी लक्ष्य को पाने के लिए विशेष स्वयं में समेटने की शक्ति, समाने की शक्ति आवश्यक है।* क्योंकि विकारी जीवन वा भक्ति की जीवन दोनों में जन्म-जन्मांतर से बुद्धि का विस्तार में भटकने का संस्कार बहुत पक्का हो गया है। इसलिए *ऐसे विस्तार में भटकने वाली बुद्धि को सार रूप में स्थित करने के लिए इन दोनों शक्तियों की आवश्यकता है।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ बाप तो कहते हैं बेगर बनो। यह शरीर रूपी घर भी मेरा नहीं। यह लोन मिला हुआ है। सिर्फ ईश्वरीय सेवा के लिए बाबा ने लोन दे करके 'ट्रस्टी' बनाया है। यह ईश्वरीय अमानत है। *आपने तो सब कुछ तेरा कह करके बाप को दे दिया। यह वायदा किया ना वा भूल गये हो? वायदा किया है या आधा तेरा आधा मेरा। अगर तेरा कहा हुआ मेरा समझ कार्य में लगाते हो तो क्या होगा। उससे सुख मिलेगा? सफलता मिलेगी?* इसलिए अमानत समझ तेरा समझ चलते तो बालक सो मालिकपन के खुशी में नशे में स्वतः ही रहेंगे।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  अकालमूर्त बाप ब्रह्मा में आकर ब्राह्मणों को रहते हैं"*

 

_ ➳  मधुबन घर में डायमण्ड हाल में अपने शिव पिता को निहार कर मै आत्मा.. घनेरे सुखो में खो जाती हूँ... सम्मुख बेठे भगवान को देख, ख़ुशी में बावरी हो रही हूँ... *मन ही मन मीठे बाबा को प्यार कर रही हूँ... दुलार कर रही हूँ... ख़ुशी के अंसुवन से, दिल के भावो को, बयान कर रही हूँ.*.. मेरे लिए धरती पर उतर आया है भगवान... मुझे संवारने, निखारने और देवताई शानो शौकत से सजाने... यह सोच सोचकर निहाल हुई जा रही हूँ... *कितना दूर दूर ढूंढ रही थी.. इस मीठे भगवान् को... और मीठे बच्चे की आवाज सुनकर, जो मुड़कर निहारा... तो भगवान को अपने सम्मुख खड़ा पाया.*.. अपने इस मीठे भाग्य को देख देख पुलकित हूँ... जिसने यूँ चुटकियो में मुझे भगवान से मिला दिया... मुझे क्या से क्या बना दिया...

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा के महान भाग्य का नशा दिलाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... आपका भाग्य कितना प्यारा और महान है कि... परमधाम से स्वयं भगवान ने आकर आपको चुना है... *अपनी मखमली गोद में बिठाकर, फूलो जैसा खिलाया है... अथाह ज्ञान रत्नों से सजाकर, पूरे विश्व में अनोखा बनाया है.*.. अपने इस खुबसूरत भाग्य के नशे में रहकर... पुरुषार्थ के शिखर पर पहुंचकर मीठा सा मुस्कराओ..."

 

_ ➳  *मै आत्मा प्यारे बाबा को अपनी बाँहों में भरकर गले लगाती हुए कहती हूँ :-* "प्यारे प्यारे बाबा मेरे... आप जो जीवन में न थे बाबा तो यह जीवन दुखो की गठरी सा बोझिल था... मै अकेली किस कदर इसे उठाकर टूट गयी थी... *आपने मीठे बाबा मेरे जीवन में आकर, गुणो की खुशबु से महके...सुख भरे फूल खिलाये है.*.. मुझे अपना प्यारा बच्चा बनाकर मेरा सोया हुआ भाग्य जगा दिया है...

 

   *प्यारे बाबा ने मुझे ज्ञान रत्नों से सजाकर विश्व की बादशाही देते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सदा अपने मीठे भाग्य की यादो में रहकर मीठे बाबा को याद करो... *सोचो जरा, कितना शानदार भाग्य है कि शिव पिता और ब्रह्मा मां... जीवन को नये आयामो से सजाने के लिए मिली है.*.. देह की मिटटी से उठकर, ईश्वरीय दिल में बस गए हो..."

 

_ ➳  *मै आत्मा अपनी खुशनसीबी पर झूमते गाते हुए मीठे बाबा को गले लगाकर कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा *अपने इस अनोखे भाग्य पर कितना ना इठलाऊँ झूमूँ, नाचू और मुस्कराऊ.*.. कि भगवान को पाकर खुबसूरत देवता बन रही हूँ... गुणो और शक्तियो से सजधज कर विश्व की मालिक बन रही हूँ...

 

   *मीठे बाबा मुझे अपने दिल में बसाकर, अप्रतिम सौंदर्य से सजाकर कहते है :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता को पा लेने की सच्ची खुशियो में सदा, सदा मुस्कराओ... अपने प्यारे भाग्य के गीत गाकर, मीठे बाबा की प्यारी प्यारी यादो में खो जाओ... *शिव शिल्पकार पिता और ब्रह्मा सी माँ मिलकर देवताई सौंदर्य में ढाल रहे है... पावनता से भरकर विश्व का बादशाह बना रहे है.*.. सदा इस मीठी खुमारी में खोये रहो..."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा की श्रीमत पर चलकर जीवन को खुबसूरत बनाते हुए कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे साथी मेरे... मै आत्मा आपकी यादो के साये में गुणो और शक्तियो से भरपूर होकर... सतयुगी दुनिया की हकदार बन रही हूँ... *शिव पिता और ब्रह्मा माँ का हाथ थामकर खुशियो की बगिया में घूम रही हूँ... साधारण मनुष्य से ऊँचा उठकर, खुबसूरत देवता बन रही हूँ..*."प्यारे बाबा से असीम प्यार पाकर मै आत्मा... इस देह के भृकुटि सिहांसन पर लौट आयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺  *"ड्रिल :- इस ड्रामा की हर सीन को साक्षी होकर देखना है*"

 

 _ ➳  इस सृष्टि रूपी विशाल रंगमंच पर चलने वाली सीन सीनरियो को देखने की इच्छा से अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ मैं फ़रिशता अपने साकारी शरीर से बाहर निकलता हूँ और सृष्टि रूपी भू लोक की सैर करने चल पड़ता हूँ। *धरती के आकर्षण से परे काफी ऊंचाई से मैं फ़रिशता धरती के चारों ओर का नजारा अपनी आंखों से स्पष्ट देख रहा हूँ*। इतनी ऊंचाई से देखने पर भू लोक का नज़ारा ऐसे लग रहा है जैसे मैं कोई बहुत बड़ा मंच देख रहा हूँ, जिस पर कोई ड्रामा अथवा नाटक चल रहा है। इस वैरायटी ड्रामा में वैरायटी एक्टर्स को वैरायटी पार्ट प्ले करते हुए मैं देख रहा हूँ।

 

 _ ➳  कोई गरीब है, कोई अमीर है। कोई दुखी है, कोई सुखी है। कोई हंस रहा है, कोई रो रहा है। कोई अत्याचार कर रहा है, कोई उस अत्याचार को सहने के लिए विवश है। *ये सब दृश्य देख कर मन मे विचार आता है कि सभी एक समान क्यो नही है! क्यो कोई दुखी और कोई सुखी है*! मन मे उठ रही इस दुविधा का हल जानने के लिए मैं फ़रिशता पहुंच जाता हूँ सूक्ष्म वतन अपने बाबा के पास। सूक्ष्म वतन में पहुंचते ही एक विचित्र दृश्य मुझे दिखाई देता है। मैं देख रहा हूँ सामने एक विशाल पर्दा है जिस पर वो सब सीन चल रही है जो मैं देखते हुए आ रहा था। जिसे देख कर मन मे विचार उठ रहे थे कि ऐसा क्यों? *लेकिन मैं देख रहा हूँ कि बाबा भी यही सब दृश्य यहाँ बैठ कर स्पष्ट देख रहें है लेकिन बाबा के चेहरे पर कोई दुविधा नही। बल्कि मुस्कराते हुए बाबा हर दृश्य को देख रहें हैं*।

 

 _ ➳  तभी उस पर्दे पर और भी भयानक मंजर दिखाई देता है। कहीं बाढ़ के कारण तबाही का दृश्य, तो कहीं भूकम्प के कारण गिरती हुई बड़ी बड़ी बिल्डिंग, कही बॉम्ब फटने से तबाह होते शहर, कहीं गृह युद्ध। लाशों के ढेर लगे हैं, लोग चीख रहें हैं, चिल्ला रहे हैं लेकिन बाबा के चेहरे पर अभी भी वही गुह्य मुस्कराहट देख कर मैं हैरान हो रहा हूँ। *बाबा मेरे मन की दुविधा जान कर अब मेरे पास आते हैं और मुझ से कहते हैं, बच्चे:- "त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट हो कर ड्रामा की हर सीन को देखोगे तो कभी कोई संदेह या प्रश्न मन मे पैदा नही होगा"*। अब बाबा मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने पास बिठा लेते हैं और मास्टर त्रिकालदर्शी भव का वरदान दे कर, तीन बिंदियो की स्मृति का अविनाशी तिलक मेरे मस्तक पर लगा कर मुझे अपनी सर्वशक्तियों से भरपूर कर देते हैं।

 

 _ ➳  सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप धारण करके, मस्तक पर तीन बिंदियो की स्मृति का अविनाशी तिलक लगाये अब मैं फ़रिशता वापिस साकारी दुनिया मे लौट रहा हूँ और फिर से अपने साकारी तन में प्रवेश कर रहा हूँ। किन्तु *अब मेरे मन मे कोई संदेह, कोई प्रश्न नही। ड्रामा की हर सीन को अब मैं साक्षी हो कर देख रही हूं*। त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट हो कर ड्रामा की हर एक्ट को देखने से अब हर एक्ट एक खेल की भांति प्रतीत हो रही है और मनोरंजन का अनुभव हो रहा है।

 

 _ ➳  सृष्टि के आदि, मध्य, अंत के राज को जानने और स्वयं को केवल एक्टर समझ कर पार्ट बजाने से अब मैं हर फिक्र से मुक्त हो, बेफिक्र बादशाह बन जीवन का आनन्द ले रही हूं। *इस बात को अब मैं सदा स्मृति में रखती हूं कि इस विश्व नाटक में कोई किसी का मित्र/शत्रु नही है*। सभी पार्टधारी है और सभी अपना पार्ट एक्यूरेट बजा रहें हैं इसलिए क्या,क्यो और कैसे के सब सवालों से स्वयं को मुक्त कर, किसी भी बात में संशय ना उठाते हुए साक्षीदृष्टा बन इस सृष्टि ड्रामा में अपना पार्ट बजा रही हूं।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं मनमनाभव के महामन्त्र द्वारा सर्व दुःखो से पार रहने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सुख स्वरूप आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा हर संकल्प में दृढ़ता की विशेषता को प्रैक्टिकल में लाती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा दृढ़ संकल्पधारी हूँ  ।*

   *मैं आत्मा परमात्म प्रत्यक्षता में पार्ट बजाती हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  एक हैं - आत्माओं को बाप का परिचय दे बाप के वर्से के अधिकारी बनाने के निमित्त सेवाधारी और दूसरे हैं - यज्ञ सेवाधारी। तो इस समय आप सभी यज्ञ सेवा का पार्ट बजाने वाले हो। यज्ञ सेवा का महत्व कितना बड़ा है - उसको अच्छी तरह से जानते हो?  *यज्ञ के एक-एक कणे का कितना महत्व हैएक-एक कणा मुहरों के समान है। अगर कोई एक कणें जितना भी सेवा करते हैं तो मुहरों के समान कमाई जमा हो जाती है। तो सेवा नहीं की लेकिन कमाई जमा की।*

➳ _ ➳  सेवाधारियों को - वर्तमान समय एक तो मधुबन वरदान भूमि में रहने का चांस का भाग्य मिला और दूसरा सदा श्रेष्ठ वातावरण उसका भाग्य और तीसरा सदा कमाई जमा करने का भाग्य। तो कितने प्रकार के भाग्य सेवाधारियों को स्वत: प्राप्त हो जाते हैं। इतने भाग्यवान सेवाधारी आत्मायें समझकर सेवा करते हो? इतना रूहानी नशा स्मृति में रहता है या सेवा करते करते भूल जाते हो?  *सेवाधारी अपने श्रेष्ठ भाग्य द्वारा औरों को भी उमंग उल्लास दिलाने के निमित्त बन सकते हैं।*

✺   *"ड्रिल :- यज्ञ सेवा के महत्व को समझना।"*


➳ _ ➳  रंग बिरंगी किरणें मेरे मस्तिष्क से निकलते हुए मैं अपने आपको देख रही हूं... मेरे चारों तरफ सफेद प्रकाश का औरा चमक रहा है... *मैं फरिश्ता रूप में आते हुए अपनी मन बुद्धि में उमंगों के पंख लगा कर उड़ी जा रही हूं... अपने वतन में... मेरे बाबा वतन में मेरा इंतजार कर रहे है... चारों तरफ लाल सुनहरा प्रकाश हीरों सी चमकती हुई आत्मा को अपने पास बुला रही है... उनके बीच में मैं अपने आप को देखती हूँ...* और सामने मेरे पास ज्योतिस्वरूप के रुप में अपनी रंग बिरंगी अद्भुत किरणें बिखेरते हुए... मुझे अपनी शक्तिशाली किरणों से नहला रहे हैं... बाबा की इन शक्तियों को अपने अंदर भरते हुए चली आती हूं मैं... सूक्ष्मवतन में... यहां मैं ब्रह्मा बाबा के तन में शिव बाबा को विराजमान अनुभव करती हूं...

➳ _ ➳  अब मैं अनुभव करती हूं... बापदादा मेरे सामने खड़े होकर मुझे अपनी बाहों में झूला झुलाने को आतुर हो रहे हैं... मैं दौड़कर अपने बाबा के पास जाती हूं... और अपने आपको बापदादा की छत्रछाया में अनुभव करती हूं... बापदादा की बाहों के झूले झूलने पर... मैं अपने आपको इस दुनिया की सबसे शक्तिशाली और भाग्यशाली आत्मा अनुभव करती हूं... मैं फ़रिश्ता स्वरूप  में बापदादा से मिलन मना रही हूं... *बापदादा मुझे अपनी बाहों के झूले झुलाते हुए मुझे अपने शुद्ध कर्मों का और कर्तव्यों का ध्यान दिला रहे है... मेरे बाबा मुझसे कहते हैं... मेरे मीठे बच्चे- तुम्हें ज्ञान रत्नों से सजाकर धनवान बना रहा हूं... तुम्हारा कर्तव्य भी अन्य आत्माओं को ज्ञान रत्नों से सजाना है...* बाबा के इन वाक्यों को सुनकर मेरा मन गदगद हो रहा है...

➳ _ ➳  अब कुछ देर बाद बाबा मुझे अपने साथ एक ऐसे स्थान पर ले जाते हैं... जहां चारों तरफ सफेद वस्त्र धारण किये हुए आत्माएं फ़रिश्ते की भांति घूम रही है... *मैं उन्हें उनकी सेवा करते बड़े ध्यान से देख रही हूं... और यह अनुभव करती हूं... कि इनका यह महान सौभाग्य है... कि जिन्होंने अपने सेवा का स्थान मधुबन पाया... यहाँ पर ये हर कदमों में पदमों की कमाई जमा कर रहे हैं... हर एक आत्मा श्रीमत की लकीर के अंदर रहकर काम कर रही है... और मैं यह देखती हूं... कि यह आत्माएं ज्ञान रत्नों से सुसज्जित होकर अपने आस पास रहने वाले सभी आत्माओं को ध्यान रखने से सजाने की सेवा कर रही हैं...* उनका यह कर्म मुझे नया संदेश दे रहा है... मैं उसी समय अपने आप से और बाबा से अंदर ही अंदर अपनी मन बुद्धि के तारों से यह वादा करती हूं... कि मैं ब्राह्मण आत्मा अपने आप को अन्य ब्राह्मण आत्माओं के सामने एक सैंपल आत्मा बनकर दिखाऊंगी...

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा अपने आप को फूल की कली के अंदर अनुभव करती हूं... और परमात्मा रुपी सूर्य की किरणों से धीरे-धीरे उन फूल की कलियों से बाहर निकलते हुए अनुभव करती हूं... जैसे-जैसे मैं बाहर आती हूं... वैसे ही मुझे उस फूल के सेवा भाव के बारे में जानकारी प्राप्त होती है कि... यह छोटी सी कली परमात्मा रूपी सूर्य की किरणों से नहाकर अपने आपको खिले हुए फूल की भांति बनाकर इस पूरे संसार में पवित्र किरणों रूपी खुशबू फैला रही है... तभी मुझे अपने सामने कुछ फरिश्तों सी घूमती हुई आत्माएं नजर आती है... और मैं आत्मा उन फरिश्तों रूपी आत्माओं से अपनी मन बुद्धि के तारों को जोड़ते हुए कहती हूँ... *हे आत्माओं आप की सेवा इस फूल की भांति है... जो अपने परमपिता से योग लगाकर इस संसार में अन्य आत्माओं को भी इस रुद्र ज्ञान यज्ञ का ज्ञान दे रहे हैं...*

➳ _ ➳  अब मैं बनकर फरिश्ता चली जा रही हूं अन्य आत्माओं की रूहानी सेवा करने... मैं इस पृथ्वी के ऊपर अपने बाबा के साथ बैठी हूं... और इस संसार की सभी आत्माओं को बाबा से पवित्र और शांति की किरणें लेकर देती जा रही हूं... और मैं अनुभव कर रही हूं कि... इस सृष्टि की सभी आत्माएं शांति की अवस्था का आनंद ले रही है... उनको इस स्थिति में देख मुझे गहन शांति का अनुभव होता है... और *मुझे सभी ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारी की सेवा के बारे में और गहराई से ज्ञान प्राप्त होता है... और अपने भाग्य का भी स्मरण होता है... मुझे अहसास होता है कि मेरी एक एक कण की सेवा भी मेरी पदमों की कमाई है...* ऐसी भावना को आगे बढ़ाते हुए जुट जाती हूँ... अपनी बेहद की सेवा में...  और परमात्मा की छत्रछाया में...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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