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❍ 06 / 08 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *उत्तम से उत्तम कल्याण का ही कार्य किया ?*
➢➢ *कोडियों के पीछे हैरान तो नहीं हुए ?*
➢➢ *चैलेंज और प्रैक्टिकल की समानता द्वारा स्वयं को पापों से सेफ रखा ?*
➢➢ *पवित्रता की शमा चारों और जलाई ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ पहले अपनी देह के लगाव को खत्म करो तो संबंध और पदार्थ से लगाव आपे ही खत्म हो जायेगा। *फरिश्ता बनने के लिए पहले यह अभ्यास करो कि यह देह सेवा अर्थ है, अमानत है, मैं ट्रस्टी हूँ। फिर देखो, फरिश्ता बनना कितना सहज लगता है!*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बाबा की आँखों का तारा हूँ"*
〰✧ सदा अपने को कौनसे सितारे समझते हो? (सफलता के सितारे, लक्की सितारे, चमकते हुए सितारे, उम्मीदों के सितारे) बाप की आंखों के तारे। तो नयनों में कौन समा सकता है? जो बिन्दु है। *आंखों में देखने की विशेषता है ही बिन्दु में। जितना यह स्मृति रखेंगे कि हम बाप के नयनों के सितारे हैं, तो स्वत: ही बिन्दु रूप होंगे।* कोई बड़ी चीज आंखों में नहीं समायेगी। स्वयं आंख ही सूक्ष्म है, तो सूक्ष्म आंख में समाने का स्वरूप ही सूक्ष्म है। बिन्दु-रूप में रहते हो? यह बड़ा लम्बा- चौड़ा शरीर याद आ जाता है?
〰✧ बापदादा ने पहले भी सुनाया था कि हर कर्म में सफलता वा प्रत्यक्षफल प्राप्त करने का साधन है-रोज अमृतवेले तीन बिन्दु का तिलक लगाओ। तो तीन बिन्दु याद हैं ना। लगाना भी याद रहता है? *क्योंकि अगर तीनों ही बिन्दी का तिलक सदा लगा हुआ है तो सदैव उड़ती कला का अनुभव होता रहेगा। कौनसी कला में चल रहे हो? उड़ती कला है? या कभी उड़ती, कभी चलती, कभी चढ़ती? सदा उड़ती कला। उड़ने में मजा है ना। या चढ़ने में मजा है?* चारों ओर के वायुमण्डल में देखो कि समय उड़ता रहता है। समय चलता नहीं है, उड़ रहा है। और आप कभी चढ़ती कला, कभी चलती कला में होंगे तो क्या रिजल्ट होगी? समय पर पहुँचेंगे? तो पहुँचने वाले हो या पहुँचने वालों को देखने वाले हो? सभी पहुँचने वाले हो, देखने वाले नहीं। तो सदा उड़ती कला चाहिए ना।
〰✧ उड़ती कला का क्या साधन है? बिन्दु रूप में रहना। डबल लाइट। बिन्दु तो है लेकिन कर्म में भी लाइट। डबल लाइट हो तो जरूर उड़ेंगे। आधा कल्प बोझ उठाने की आदत होने कारण बाप को बोझ देते हुए भी कभी-कभी उठा लेते हैं। तंग भी होते हो लेकिन आदत से मजबूर हो जाते हो। कहते हो 'तेरा' लेकिन बना देते हो 'मेरा'। *स्वउन्नति के लिए वा विश्व-सेवा के लिए कितना भी कार्य हो वह बोझ नहीं लगेगा। लेकिन मेरा मानना अर्थात् बोझ होना। तो सदैव क्या याद रखेंगे? मेरा नहीं, तेरा। मन से, मुख से नहीं। मुख से तेरा-तेरा भी कहते रहते हैं और मन से मेरा भी मानते रहते हैं। ऐसी गलती नहीं करना।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *संसार में एक सम्बन्ध, दूसरी है सम्पति। दोनों विशेषतायें बिन्दू बाप में समाई हुई हैं।* सर्व सम्बन्ध एक द्वारा अनुभव किया है? सर्व सम्पत्ति की प्राप्ति सुख-शान्ति, खुशी यह भी अनुभव किया है या अभी करना है? तो क्या हुआ? विस्तार सार में समा गया ना!
〰✧ *अपने आप से पूछो अनेक तरफ विस्तार में भटकने वाली बुद्धि समेटने के शक्ति के आधार पर एक में एकाग्र हो गई है?* वा अभी भी कहाँ विस्तार में भटकती है! समेटने की शक्ति और समाने की शक्ति का प्रयोग किया है? या सिर्फ नॉलेज है। अगर इन दोनों शक्तियों को प्रयोग करना आता है तो उसकी निशानी सेकण्ड में जहाँ चाहो जब चाहो बुद्धि उसी स्थिति में स्थित हो जायेगी।
〰✧ जैसे स्थूल सवारी में पॉवरफुल ब्रेक होती है तो उसी सेकण्ड में जहाँ चाहें वहाँ रोक सकते हैं। जहाँ चाहें वहाँ गाडी को या सवारी को उसी दिशा में ले जा सकते हैं। ऐसे स्वयं यह शक्ति अनुभव करते हो वा एकाग्र होने में समय लगता है? वा व्यर्थ से समर्थ की ओर बुद्धि को स्थित करने में मेहनत लगती है? *अगर समय और मेहनत लगती है तो समझो इन दोनों शक्तियों की कमी है।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ विदेही बापदादा को देह का आधार लेना पड़ता है। किसलिए? बच्चों को भी विदेही बनाने के लिए। जैसे बाप विदेही, देह में आते हुए भी विदेही स्वरूप में, विदेहीपन का अनुभव कराते है। ऐसे आप सभी जीवन में रहते, *देह में रहते विदेही आत्म-स्थिति में स्थित हो इस देह द्वारा करावनहार बन करके कर्म कराओ। यह देह करनहार है। आप देही करावनहार हो। इसी स्थिति को 'विदेही स्थिति' कहते हैं। इसी को ही फालो फादर कहा जाता है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- शरीर को चलाने वाली आत्मा हूँ यह निश्चय करना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा घर में बाबा के कमरे में बैठ आत्मचिंतन करती हूँ... मैं एक चैतन्य ज्योतिपुंज हूँ... जो इस शरीर में विराजमान होकर पार्ट बजा रही हूँ...* ना ये तन मेरा है, ना ये धन मेरा है, ना कोई वस्तु-वैभव मेरे हैं... ना ये संसार मेरा है... मेरे तो एक शिवबाबा हैं... और मेरा घर परमधाम है... *मैं तो एक अशरीरी आत्मा हूँ... चिंतन करते-करते मैं आत्मा इस देह और इस देह की दुनिया से निकलकर पहुँच जाती हूँ आकारी वतन में बापदादा के पास...*
❉ *प्यारे मीठे बाबा सत्य स्वरुप के ज्ञान की सच्चाई से मेरे जीवन को रोशन करते हुए कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... *स्वयं को देह समझ और देहधारियों से दिल लगाकर दुखो के घने जंगल में भटक गए... अब ईश्वर पिता से सत्य को जान अपने ज्योति स्वरूप के भान में खो जाओ...* अपनी निराकारी सत्यता को हर साँस संकल्प में जीकर... सुनहरे सुखो के अधिकारी बन सदा का मुस्कराओ...”
➳ _ ➳ *शरीर के भान से मुक्त होकर खुशियों के आसमान में जगमगाती मैं आत्मा सितारा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा शरीर नही खुबसूरत मणि हूँ...* मीठे बाबा आप जैसी ही निराकार खुबसूरत हूँ इस सत्य को बाँहों में भर कर खुशियो के गगन में उड़ रही हूँ... और स्वयं के सत्य भान में टिक कर पुनः तेजस्वी बनती जा रही हूँ...”
❉ *इस देह और देह की दुनिया से न्यारी बनाकर सत्यता के ओज से चमकाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... अब इस देह की मिटटी में मन बुद्धि रुपी हाथो को और नही सानो... अपने ओजस्वी तेजस्वी स्वरूप को यादो में बसाओ... *ईश्वर पिता समान अशरीरी के भान में खो जाओ... देह के सब रिश्तो नातो से उपराम होकर... अशरीरी पन के नशे में गहरे उतर जाओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा प्यारे बाबा के यादों के दर्पण में अपने सत्य स्वरूप को निखारते हुए कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा देह भान के दलदल से निकल कर... ईश्वरीय प्यार की खुशबू से रंगती जा रही हूँ... मै अविनाशी आत्मा हूँ इस सत्य को हर पल अपनाती जा रही हूँ... *अपने असली अशरीरी सौंदर्य को यादो में बसाकर मीठे बाबा की ऊँगली पकड़ घर चलने की तैयारी कर रही हूँ...”*
❉ *मीठे जादूगर मेरे बाबा अपने प्यार के झरने में मुझे कमल फूल समान खिलाते हुए कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जब घर से निकले थे कितने महकते फूल थे... *धरा की मिटटी में खेलते खेलते अपने दमकते स्वरूप को भूल कर मात्र शरीरधारी हो गए... अब उसी महक उसी रंगत उसी नूर को यादो में ताजा करो...* अपने अविनाशी पन को हर साँस में पिरोकर पिता संग घर की ओर लौटने की तैयारी में जुट जाओ...”
➳ _ ➳ *माया के मायाजाल से मुक्त होकर सत्यपिता के सत्य ज्ञान से सत्य स्वरुप में स्थित होकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा आपकी मीठी यादो में अपनी सच्ची अशरीरी सुंदरता को पाती जा रही हूँ... इस देह के मायाजाल से निकल कर अविनाशी गौरव को यादो में बसा रही हूँ...* मै आत्मा मीठे बाबा के साथ घर चलने को सज संवर रही हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- जैसे बाप मीठा है, ऐसे मीठा बन सबको सुख देना है*"
➳ _ ➳ अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर को धारण किये मैं फ़रिशता सूक्ष्म वतन में अव्यक्त बापदादा के सामने बैठा उनकी मीठी दृष्टि से स्वयं को निहाल कर रहा हूँ। बापदादा की मीठी दृष्टि मेरे रोम - रोम में मिठास घोल रही है और मुझे आप समान मीठा बना रही है। *बाबा की दृष्टि में मेरे लिए समाया असीम स्नेह, प्रेम के मीठे झरने के रूप में मुझ पर निरन्तर प्रवाहित हो रहा है*। बड़े स्नेह से निहारते हुए बाबा मेरी बुद्धि रूपी झोली को वरदानों से भरपूर कर रहें हैं। मुझे आप समान बहुत बहुत मीठा बना कर, सबको मीठी दृष्टि से निहाल कर, सबका कल्याण करने का वरदान दे रहें हैं।
➳ _ ➳ मेरे नैन अपने अति मीठे बापदादा को एकटक निहार रहें हैं। एक पल के लिए भी मेरी आँखें उनके ऊपर से नही हटना चाहती। ऐसा लगता है कि उनसे मिलने की जो प्यास थी उस जन्म - जन्म की प्यास को मेरी ये आंखे आज ही बुझा लेना चाहती हैं। *बाबा के नयनो में अथाह स्नेह का सागर लहराता हुआ मैं स्पष्ट देख रही हूँ और उस स्नेह की गहराई में मैं डूबती जा रही हूँ*। बाबा के नयनो में समा कर, बाबा को निहारते हुए, बाबा के वरदानी हस्तों को मैं अपने सिर के ऊपर अनुभव कर रही हूँ। बाबा के वरदानी हस्तों से बाबा की सर्वशक्तियाँ, गुण और खजाने मुझ फ़रिश्ते में समा रहें हैं और मुझे सर्व गुणों, सर्व शक्तियों और सर्व खजानों से सम्पन्न बना रहे हैं।
➳ _ ➳ अब मैं सामने से अपनी अति मीठी मम्मा को आते हुए देख रही हूँ जो बाबा के पास आ कर बैठ गई है और बहुत मीठी दृष्टि से मुझे निहारती जा रही हैं। *मम्मा के मस्तक से निकल रही लाइट सीधी मेरे मस्तक पर पड़ रही है और मुझमे असीम शक्ति का संचार कर रही है*। मम्मा का मुस्कराता हुआ चेहरा और मीठी मुस्कान मुझे दिल की गहराई तक स्पर्श कर रही है। ऐसा लग रहा है जैसे अपनी मीठी मुस्कान और मीठी दृष्टि से मम्मा अपनी सारी मिठास मेरे अंदर प्रवाहित कर मुझे आप समान अति मीठा बना रही है। *अपने हाथ से इशारा करते हुए मम्मा मुझे अपने पास बुला रही है। अपनी गोद में बिठा कर अपने हाथों से मुझे मीठी टोली खिला रही हैं*।
➳ _ ➳ मम्मा के हाथों की मीठी टोली, और बापदादा की अति मीठी दृष्टि से मेरे अंदर देह अभिमान के कारण जो कड़वाहट आ गई थी वो अब बिल्कुल समाप्त हो गई है और मैं स्वयं को विशेष रूहानी स्नेह और प्यार की मिठास से भरपूर अनुभव कर रहा हूँ। बाप समान बहुत - बहुत मीठा बन कर अब मैं साकारी दुनिया में वापिस लौट रहा हूँ। *बापदादा के साथ कम्बाइंड हो कर मैं सारे विश्व में चक्कर लगा रहा हूँ और अपने रूहानी स्नेह के वायब्रेशन सारे विश्व मे चारों और फैला रहा हूँ*। मैं देख रहा हूँ रूहानी स्नेह के वायब्रेशन से लोंगो के हृदय परिवर्तन हो रहें हैं। जिस हृदय में एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या - द्वेष और नफरत के भाव थे, वो भाव आपसी स्नेह में परिवर्तित हो रहें हैं। *सभी एक दो को मीठी दृष्टि से देख रहें हैं। ऐसा लग रहा है जैसे नफरत की दुनिया स्नेह की एक सुंदर दुनिया बन गई है*।
➳ _ ➳ सभी आत्माओं के एक दूसरे के प्रति अति मीठे व्यवहार को देखता हुआ, प्रसन्नचित मुद्रा में मैं फ़रिशता अब साकारी दुनिया मे अपने साकारी तन में आ कर विराजमान हो जाता हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में अब मैं स्थित हूँ और अपने मीठे बाबा के प्यार की मिठास से स्वयं को भरपूर करके, उस मिठास से भरपूर वायब्रेशन, अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को देते हुए, उनके जीवन को भी मैं मिठास से भर रही हूँ*। मेरी मीठी दृष्टि पा कर सभी आत्माओं की दृष्टि, वृति भी परिवर्तित हो गई है। सभी एक दो को सच्चा रूहानी स्नेह और प्यार दे कर, एक दो के जीवन में खुशियां भर रहें हैं
➳ _ ➳ *सबको आत्मा भाई - भाई की मीठी दृष्टि से देखते हुए, अपने मधुर व्यवहार और मीठे बोल से सबको संतुष्ट करने वाली सन्तुष्ट मणि आत्मा बन मैं अपने मीठे बाबा और सर्व आत्माओं की दुआयों की पात्र आत्मा बन गई हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं चैलेन्ज और प्रैक्टिकल की समानता द्वारा स्वयं को पापों से सेफ रखने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं विश्व सेवाधारी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा पवित्रता की शमा चारों ओर जलाती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा बाप को सहज देख सकती हूँ ।*
✺ *मैं राज योगी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
➳ _ ➳
हर
एक बच्चा निश्चय और फलक से कहते हैं कि *मेरा बाबा मेरे साथ है।*
➳ _ ➳
कोई
भी पूछे परमात्मा कहाँ है? तो
क्या कहेंगे? मेरे
साथ है। *फलक से कहेंगे कि अब तो बाप भी मेरे बिना
रह नहीं सकता। तो इतने समीप, साथी
बन गये हो।* आप भी एक सेकण्ड भी बाप के बिना नहीं रह सकते हो।
➳ _ ➳
बापदादा बच्चों का यह खेल भी देखते रहते हैं कि *बच्चे एक तरफ कह रहे हैं मेरा
बाबा, मेरा
बाबा और दूसरे
तरफ किनारा भी कर लेते हैं।*
➳ _ ➳
बाप
को देखने की दृष्टि बन्द हो जाती है और माया को देखने की दृष्टि खुल जाती है।
तो *आंख मिचौनी खेल
कभी-कभी खेलते हो? बाप
फिर भी बच्चों के ऊपर रहमदिल बन माया से किसी भी ढंग से किनारा करा लेता है।
वो बेहोश करती और बाप होश में लाता है कि तुम मेरे हो। बन्द आंख याद के जादू से
खोल देते हैं।*
✺
*ड्रिल :- "बाबा की मदद से माया से किनारे का अनुभव"*
➳ _ ➳ *नीले
आसमान सी चुनरिया और सिंदूरी श्याम सी बिंदिया,
पेड़ पत्तों की खनखनाहट है हाथों में और मुख पर सुर्ख हवाओं का पर्दा गिरा कर
देखो यह प्रकृति कितनी मुस्कुरा रही है... दूर एक छोटे से टापू पर बैठ कर मैं
आत्मा यह नजारा देख रही हूं... और मुझे यह प्रकृति इस श्रृंगार में अति मनमोहक
लग रही है...* यह दृश्य मुझे अति आनंदित अनुभव करा रहा है... और इसी आनंद की
स्थिति में मैं और गहराई में चली जाती हूं... और पहुंच जाती हूं आबू पर्वत...
जहां पर बाबा के बच्चे फरिश्ते की तरह निमित्त भाव से सेवा करते नजर आ रहे
हैं... मैं उनको और उनके सेवाभाव को तथा उनकी बाबा से लगन को जानने के लिए उनके
पास जाकर गहराई से उनके मनोभाव को जानने का प्रयास करती हूं...
➳ _ ➳
और
जैसे ही मैं आत्मा उन फरिश्तों रूपी बाबा के बच्चों के पास जाती हूँ... तो मुझे
यह ज्ञात होता है कि... उन सभी ब्राहमण आत्माओं के पास एक चाबी है... जिसका नाम
है *मेरा बाबा और जिसके कारण वह आत्माएं हर बंद ताले को खोल सकती है... और अपने
हर कार्य में सफल हो जाती है...* मैं उन आत्माओं से पूछती हूं... कि क्या यह
चाबी आपके पुरुषार्थ में तुम्हारी मदद करती है... तो वह आत्माएं हमें कहती
है... हमारे सामने चाहे कोई भी परिस्थिति आए... चाहे कितनी भी खुशी रहे इस मेरे
बाबा रूपी चाबी को कभी नहीं भूलती... जिसके कारण हम आत्माएं फरिश्ते रूप में
अपने आप को सहज ही अनुभव कर निमित्त सेवाधारी का पार्ट बजा पा रही हैं...
➳ _ ➳
फिर
मैं उन फरिश्तों रूपी आत्माओं को इस स्थिति में देखकर मैं आत्मा पहुंच जाती हूं
मन बुद्धि से उसी स्थान पर... जहां से मुझे यह प्रकृति अति मनमोहक लग रही है...
और उसी टापू पर बैठकर मैं सोचने लगती हूँ... की बाबा मुझे रोज सच्चा ज्ञान दे
रहे हैं,
मुझे माया से जीतना सिखा रहे हैं... अपना घर शांति धाम छोड़ कर... *यहां
कलियुगी दुनिया में आकर मुझे इस कलियुग की दुनिया से निकालकर सुखधाम ले जाने के
लिए आए हैं... तो मेरा भी यह पूरा-पूरा कर्तव्य होना चाहिए... कि मेरे दिल में
सिर्फ और सिर्फ मेरा प्यारा बाबा ही हो ना कि कोई और... अगर मैं हमेशा इन
फरिश्तों की भांति अपने आप को देखना चाहती हूं... और सभी दुख दर्द से छुटकारा
पाना चाहती हूं... तो मुझे भी इस मेरे बाबा रूपी चाबी का शत प्रतिशत उपयोग करना
होगा...* मैं अपने आप से यह दृढ़ संकल्प करती हूं कि... आज से मेरे दिल में
मेरे हर संकल्प में सिर्फ और सिर्फ मेरा प्यारा बाबा ही होगा...
➳ _ ➳
और
जैसे ही मैं अपने आपसे यह वादा करती हूं... तो मैं अनुभव करती हूं... कि मैं इस
सृष्टि की सबसे सौभाग्यशाली आत्मा हूं... क्योंकि मुझे स्वयं परमपिता सच्चा
ज्ञान दे रहे हैं... और अपनी गोद में बिठाकर मायावी दुनिया से मुझे बचा रहे
हैं... और जैसे ही मुझे इस स्थिति का अपने अंदर पूर्ण आभास होता है... तो मैं
देखती हूं की मेरे सामने स्वयं बापदादा खड़े होकर मुस्कुरा रहे हैं... बाबा का
मुस्कुराता हुआ चेहरा देख मैं अपनी मुस्कान कभी रोक नहीं पाती और मैं बाबा से
कहती हूं... मेरे मीठे बाबा मैं बार-बार आपका हाथ छोड़ कर माया के पास चली जाती
हूं... और माया मुझे बेहोश कर देती है... परंतु मेरे मीठे बाबा इस मायावी
बेहोशी से हर बार मेरे खिवैया बनकर... आप मुझे इस विषय सागर से निकाल ही लेते
हो... और मैं कहती हूं... *बाबा आप हार नहीं मानते तो मैं भी आपकी बच्ची हूं...
मैं भी हार नही मानूंगी... और हमेशा आपका नाम लेकर आपके नाम के सहारे से मैं इस
विषय सागर से निकलकर किनारे पर आ जाऊंगी...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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