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 27 / 08 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *पढाई का शोंक रखा ?*

 

➢➢ *वाणी से परे की अवस्था में रहने का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *ब्रह्मा बाप समान महा त्यागा से महान भाग्य बनाया ?*

 

➢➢ *सिर्फ एक बाप को अपना आधार बनाया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *सेवा में स्वयं को निमित्त समझकर डबल लाइट रहना यह भी भाग्य है क्योंकि किसी भी प्रकार का बोझ खुशी की अनुभूति सदा नहीं करायेगा।* जितना अपने को डबल लाइट अनुभव करेंगे उतना भाग्य पदमगुणा बढ़ता जायेगा।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं विश्व कल्याण के कार्य अर्थ निमित्त आत्मा हूँ"*

 

✧  मैं विश्व कल्याण के कार्य अर्थ निमित्त आत्मा हूँ, ऐसे निमित्त समझ हर कार्य करते हो? *जो विश्व कल्याण के निमित्त आत्मा हैं वो स्वयं-स्वयं के प्रति अकल्याणकारी संकल्प भी नहीं कर सकते। क्योंकि विश्व की जिम्मेवार आप निमित्त आत्माओंकी वृत्ति से वायुमण्डल परिवर्तन होना है। तो जैसा संकल्प होगा वैसी वृत्ति जरूर होती है।* कभी भी किसी के प्रति वा अपने प्रति कोई भी व्यर्थ संकल्प है तो वृत्ति में क्या होगा? वही भाव वृत्ति में होगा और वही कर्म स्वत: ही होगा।

 

✧  तो एक सेकेण्ड भी वृत्ति व्यर्थ नहीं बना सकते। एक सेकेण्ड भी व्यर्थ संकल्प नहीं कर सकते क्योंकि आपके पीछे विश्व की जिम्मेवारी है। ऐसे समझते हो? कि ये बाप की जिम्मेवारी है आपकी नहीं? *ऐसा समझते हो या सोचते हो कि हम तो छोटे हैं तो छोटी जिम्मेवारी है। नहीं, बड़ी जिम्मेवारी उठाई है। तो विश्व कल्याणकारी। जैसे बाप, वैसे बच्चे। कैसी भी परिस्थिति हो, कोई भी व्यक्ति हो लेकिन स्व की भावना, स्व की वृत्ति कौन सी है? विश्व कल्याणकारी।* इतना याद रहता है या अलबेले भी हो जाते हो? तो अलबेले नहीं होना।

 

✧  *विश्व कल्याणकारी विश्व के राज्य अधिकारी बन सकते हो। अगर विश्व कल्याण की भावना नहीं तो विश्व राज्य का भी अधिकार नहीं। सम्बन्ध है ना। तो सदा सर्व प्रति शुभ भावना, शुभ कामना हो। हो सकती है? आपकी कोई ग्लानि करे तो भी शुभ कामना रख सकते हो? कोई गाली दे तो भी शुभ भावना रखेंगे?* कि थोड़ा-सा मन में आयेगा? थोड़ा-सा तो आयेगा ना कि ये क्या करता है, ये क्या करती है? कोई आपका कल्याण करे और कोई आपका अकल्याण करे तो दोनों समान लगेगा? थोड़ा तो फर्क होगा ना? कोई रोज आपकी ग्लानि करे, एक साल तक करे और एक साल तक भी नहीं बदले तो आप कल्याण करेंगे? वो अकल्याण करे, आप कल्याण करेंगे? ऐसे करते हैं या थोड़ा-सा मुंह ऐसे (किनारा) हो जाता है? चलो, घृणा भाव नहीं हो लेकिन मन से किनारा करेंगे कि यह ठीक नहीं है या उसको ठीक करेंगे? क्या करेंगे? ठीक करेंगे? करेंगे - यह कहना तो सहज है लेकिन करते हो? अपकारी पर भी उपकार। यही ज्ञानी तू आत्मा का कर्तव्य है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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अभी समय दिया है विशेष फाइनल इम्तहान के पहले तैयारी करने के लिए फाइनल पेपर के पहले टाइम देते हैं। छूट्टी देते हैं ना! तो बापदादा अनेक राजों से यह विशेष समय दे रहे हैं। कुछ राज गुप्त हैं, कुछ राज प्रत्यक्ष हैं। लेनिक *विशेष हर एक इतना अटेन्शन रखना कि सदा 'बिन्दु लगाना है अर्थात बीती को बीती करने का बिन्दु लगाना है। और बिन्दु' स्थिति में स्थित हो राज्य अधिकारी बन कार्य करना है।* सर्व खजानों के 'बिन्दु सर्व प्रति विधाता बन, सिन्धु बन सभी को भरपूर बनाना है। तो *बिन्दु' और 'सिन्धु यह दो बातें विशेष स्मृति में रख श्रेष्ठ सर्टीफिकेट लेना है।* सदा ही श्रेष्ठ संकल्प की सफलता से आगे बढते रहना। तो *बिन्दु बनना, सिन्धु बननायही सर्व बच्चों प्रति वरदाता का वरदान है।* वरदान लेने के लिए भागे हो ना! यही वरदाता का वरदान स्मृति में रखना। अच्छा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *सारथीपन की स्थिति स्वत: ही स्व-उन्नति के शुद्ध संस्कार इमर्ज करती हैं और नेचुरल समय प्रमाण सहज चेकिंग होती रहेगी। सारथी स्वत: ही साक्षी हो कुछ भी करेंगे, देखेंगे, सुनेंगे। साक्षी बन देखने, सोचने, करने सब में सब-कुछ करते भी निर्लेप रहेंगे अर्थात् माया के लेप से न्यारे रहेंगे। तो पाठ पक्का किया ना।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  ईश्वरीय सन्देश देकर सबका कल्याण करना"*

 

_ ➳  अमृतवेले के मनमोहक मिलन का आनन्द लेकर मै आत्मा... मीठे बाबा के प्यार भरे गीत गुनगुनाती हुई... टहलते हुए, सूर्य की, धरती को, आलिंगन करती, नई नवेली किरणों को निहार रही हूँ... और सोच रही हूँ कि *ज्ञान सूर्य बाबा ने मुझ आत्मा को,गले लगाकर, मुझे गुणो और शक्तियो के श्रंगार से पुनः नई नवेली बना दिया है*... और श्रंगारित करके, सीधे अपने दिल में सजा दिया है... *भगवान के दिल की रानी बनकर, मै आत्मा, अपने मीठे भाग्य पर बलिहार हूँ... आज मै आत्मा, भगवान के दिल में रहती हूँ, मीठी बाते करती हूँ, दिल की हर बात बताती हूँ.*.. इन मीठे अहसासो ने जनमो के दुःख ही विस्मर्त कर दिए है... अब सुख ही सुख मेरे चारो ओर बिखरा है... यही जज्बात मीठे बाबा को सुनाने वतन में उड़ चलती हूँ...

 

  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को विश्व कल्याण कारी की भावना से ओतप्रोत बनाते हुए कहा :-*"मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता को पाकर, जिन सच्ची खुशियो को, मीठे सुखो को, आप बच्चों ने पाया है... इन मीठी खुशियो से हर दिल आँगन को भर आओ... *सबके जीवन में सुखो की बहारो को खिलाने वाले... सदा के सुखदाई बन, मीठे बाबा के दिल में मुस्कराओ*..."

 

_ ➳  *मै आत्मा प्यारे बाबा की अमूल्य शिक्षाओ को अपने दिल में गहरे समाकर कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा मेरे... *मै आत्मा आपके मीठे प्यार में, असीम सुखो की अनुभूतियों से भरकर... यह अनुभव की दौलत, हर दिल पर, दिल खोलकर, लुटा रही हूँ...* अपने प्यारे बाबा का परिचय... हर दिल को देकर... सबको आप समान खुशियो की अधिकारी बना रही हूँ...

 

   *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा की देही अभिमानी स्थिति को पक्का कराते हुए कहा:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सतगुरु पिता से जो अपने आत्मिक सत्य को जाना है... उस सत्य को हर पल स्मर्तियो में बनाये रखो... तो हर साँस, हर संकल्प ईश्वरीय याद से खिल उठेगा... *आत्मिक भाव में और सुखदायी पिता की याद में हर पल, समय सहज ही सफल हो जायेगा... और विकर्मो से सहज ही बचे रहेंगे...*

 

_ ➳  *मै आत्मा प्यारे बाबा के सच्चे प्यार में सुख स्वरूप आत्मा बनकर कहती हूँ :-* "मीठे दुलारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपकी मीठी पालना में पलकर... असीम सुखो की मालिक बनकर... *अपने प्यारे बाबा से, हर बिछड़े दिल को मिलाकर, असीम दुआओ की हकदार बन रही हूँ... देही अभिमानी बनकर, सबको सच्चे आनन्द की तरंगो लबालब कर रही हूँ...* विकारो से मुक्त होकर, तेजस्वी बन रही हूँ..."

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने सच्चे वजूद के नशे से भरते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *ईश्वर पिता को पाकर, अब हर साँस को ईश्वरीय यादो से पिरो दो... यह यादे ही, सच्चे सुखो का आधार है... जितना आत्मिक स्थिति को पक्का करेंगे... उतना विकर्मो से परे होते जायेंगे...* देह के दलदल से सहज ही निकलकर, आत्मिक चमक से दमकेंगे... और ईश्वरीय यादो भरे, इन सच्चे अहसासो को,... ख़ुशी से हर दिल पर उंडेलेंगे...

 

_ ➳  *मै आत्मा ईश्वरीय यादो के खजानो से सम्पन्न होकर, मीठे बाबा से कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा... मुझ आत्मा के जीवन में आकर, आपने मुझ आत्मा को विश्व कल्याण की सुंदर भावना से भर दिया है... *मै आत्मा हर पल सबको सुख देने की भावना दिल में लिए हुए हूँ... सबको मीठे बाबा से मिलवाकर, सबके जीवन में आनन्द और खुशियो के फूल खिला रही हूँ...* सच्चे पिता का परिचय देकर... सबके जीवन को सुख भरी मुस्कान से सजा रही हूँ..." मीठे बाबा को अपनी मीठी भावनाये सुनाकर मै आत्मा... अपने कर्म क्षेत्र पर आ गयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- वानप्रस्थ अवस्था मे रहने का अभ्यास करना है*

 

_ ➳  वाणी से परे अपने स्वीट साइलेन्स होम में जाकर, वानप्रस्थ स्थिति का अनुभव करने के लिए, अंतर्मुखता की गुफा में बैठ, मन और मुख का मौन धारण कर, एकांतवासी बनते ही मैं अनुभव करती हूँ कि जैसे सम्पूर्ण मौन की शक्ति धीरे - धीरे मेरे अन्दर एक अद्भुत आंतरिक बल का संचार कर रही है। *यह आंतरिक बल मेरे शरीर के भिन्न - भिन्न अंगों में बिखरी हुई मेरी सारी चेतना को समेटने लगा है। शरीर का एक - एक अंग जैसे शिथिल होने लगा है और श्वांसों की गति बिल्कुल धीमी हो गई है*। अपने शरीर मे आये इस परिवर्तन को महसूस करते हुए मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे धीरे - धीरे मैं सवेंदना शून्य होती जा रही हूँ और देह के भान से परे एक अति आनन्दमयी स्थिति में स्थित हो गई हूँ।

 

_ ➳  इस अति खूबसूरत स्थिति में मैं स्वयं को एक प्वाइंट ऑफ लाइट के रूप में देख रही हूँ जिसमे से निकल रही लाइट और माइट मन को तृप्त कर रही है। ये प्वाइंट ऑफ लाइट एक अति सूक्ष्म शाइनिंग स्टार के रूप में मेरे मस्तक पर चमकती हुई मुझे अनुभव हो रही है। *मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से अपने इस अति सुंदर स्वरूप को निहारते हुए मैं गहन आनन्द के सुखद अनुभव में डूबती जा रही हूँ*। देह के हर आकर्षण से मुक्त करता मेरा ये मन को लुभाने वाला स्वरूप जिससे मैं आज दिन तक अनजान थी उस स्वरूप का अनुभव करवाने वाले अपने प्यारे पिता का दिल से मैं बार - बार शुक्राना करती हूँ और अपने इस स्वरूप का भरपूर आनन्द लेते - लेते उनकी मीठी याद में खो जाती हूँ जो मुझे सेकण्ड में वाणी से परे मेरे निर्वाण धाम घर मे ले जाती है।

 

_ ➳  अपने प्यारे पिता के इस निर्वाण धाम घर मे आकर मैं वाणी से परे वानप्रस्थ स्थिति का अनुभव कर रही हूँ। *एक गहन शांति, एक गहन निस्तब्धता इस शांतिधाम घर मे छाई  हुई है जो शांति की दिव्य अनुभूति करवाकर मेरी जन्म - जन्म से शांति की तलाश में भटकने की सारी वेदना को मिटाकर मुझे असीम सुकून दे रही है*। ऐसा लग रहा है जैसे शांति की शीतल लहरें दूर - दूर से आकर बार - बार मुझ आत्मा को स्पर्श करके अपनी सारी शीतलता मेरे अंदर समाकर चली जाती हैं। इन शीतल लहरों की शीतलता को स्वयं में समाते - समाते अब मैं शान्ति के सागर अपने प्यारे पिता के समीप जा रही हूँ।

 

_ ➳  वो शांति का सागर मेरा प्यारा पिता जो अपनी अनन्त शक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरा आह्वान कर रहा है। अपने उस शांति सागर प्यारे पिता के पास पहुँच उनकी किरणों रूपी बाहों में जा कर मैं समा जाती हूँ। *उनकी शक्तिशाली किरणों के रूप में उनके अविरल प्रेम की अनन्त धाराएं मेरे ऊपर बरसने लगती हैं और अपने अथाह प्रेम से मुझे तृप्त करने लगती हैं*। बीज रूप स्थिति में स्थित होकर बीज रूप अपने प्यारे बाबा से यह मंगल मिलन मनाना मन को एक गहन परमआनन्द की अनुभूति करवा रहा है। बाबा से आती सर्वशक्तियों की किरणों की मीठी - मीठी फुहारे मेरे अंदर असीम बल भर रही हैं

 

_ ➳  अपने प्यारे पिता के निष्काम प्रेम और उनकी शक्तियों का बल स्वयं में भरकर, अपने स्वीट साइलेन्स होम में अपने प्यारे *बाबा के साथ बिताए अनमोल पलों को मीठी यादो के रूप में अपने मन और बुद्धि में सँजो कर, अब मैं वापिस पार्ट बजाने के लिए आवाज की दुनिया में वापिस लौट आती हूँ और आकर अपनी देह में भृकुटि के अकाल तख्त पर विराजमान हो जाती हूँ*। देह का आधार लेकर, साकार सृष्टि पर अपना पार्ट बजाते हुए इस बात को अब मैं सदा स्मृति में रखती हूँ कि यह मेरी वानप्रस्थ अवस्था है और मुझे वाणी से परे स्वीट होम जाना है। यह स्मृति देह में रहते भी मुझे देह से न्यारा और प्यारा अनुभव करवाती है।

 

_ ➳  *देह और देही दोनों को अलग - अलग देखते हुए अशरीरी बनने का अभ्यास बार - बार करने से अब मैं देह और देह की दुनिया से सहज ही उपराम होती जा रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं ब्रह्मा बाप समान आत्मा हूँ।*

   *मैं महा त्याग से महान भाग्य बनाने वाली नम्बरवन आत्मा हूँ।*

   *मैं फरिश्ता सो विश्व महाराजन आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा एक बाप को अपना आधार बनाती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सब आधार के टूटने के बंधन से सदैव मुक्त हूँ  ।*

   *मैं आत्मा अचल अडोल हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  १. *एक गलती बहुत करते हो उसके कारण भी संस्कार के ऊपर विजय नहीं प्राप्त कर सकते*बहुत टाइम लगता है *समझते हैं कल से नहीं करेंगे लेकिन जब कल होता है तो आज से कल की बात बड़ी हो जाती है*। तो कहते हैं कल छोटी बात थी ना आज तो बहुत बड़ी बात थी। *तो बड़ी बात होने के कारण थोड़ा हो गयाफिर ठीक कर लेंगे-ये बड़ों को वा अपने दिल को दिलासा देते हो और ये दिलासा देते हुए चलते हो लेकिन ये दिलासा नहीं हैये धोखा है*। उस समय थोड़े समय के लिए अपने को या दूसरों को दिलासा देना-बस अभी ठीक हो जायेंगे, लेकिन ये *स्वयं को धोखा देने की आदत पक्की करते जाते हो। जो उस समय पता नहीं पड़ता* लेकिन जब प्रैक्टिकल में धोखा मिलता है तभी समझते हैं कि हाँ ये धोखा ही है।

 

 _ ➳  तो भूल क्या करते हो?  *जब बड़े या छोटे एक-दो को शिक्षा देते हैं तो क्या कहते होये मेरा स्वभाव हैमेरा संस्कार हैकोई का फीलिंग काकोई का किनारा करने काकोई का बार-बार परचिन्तन करने काकोई का परचिन्तन सुनने काभिन्न-भिन्न हैं*उसको तो आप बाप से भी ज्यादा जानते हो। लेकिन *बापदादा कहते हैं कि जिसको आपने मेरा संस्कार कहा वो मेरा हैकिसका है?* (रावण का) तो मेरा क्यों कहाये तो कभी नहीं कहते हो कि ये रावण के संस्कार हैं। कहते हो मेरे संस्कार हैं। तो *ये 'मेराशब्द - यही पुरुषार्थ में ढीला करता है*। ये रावण की चीज अन्दर छिपाकर क्यों रखी है? लोग तो रावण को मारने के बाद जलाते हैंजलाने के बाद जो भी कुछ बचता है वो भी पानी में डाल देते हैंऔर आपने मेरा बनाकर रख दिया है!

 

 _ ➳  तो जहाँ रावण की चीज होगी वहाँ अशुद्ध के साथ शुद्ध संस्कार इकट्ठे रहेंगे क्याऔर राज्य किसका हैअशुद्ध का। शुद्ध का तो नहीं है ना! तो राज्य है अशुद्ध का और अशुद्ध चीज अपने पास सम्भाल कर रख दी है। जैसे सोना या हीरा सम्भाल के रखा हो। इसलिए अशुद्ध और शुद्ध दोनों की युद्ध चलती रहती है तो बार-बार ब्रह्मण से क्षत्रिय बन जाते हैं। मेरा संस्कार क्या है?  *जो बाप का संस्कार हैविशेष है ही विश्व कल्याणकारीशुभ चिन्तनधारी। सबके शुभ भावनाशुभ कामनाधारी। ये हैं ओरिजिनल मेरे संस्कार। बाकी मेरे नहीं हैं*। और यही *अशुद्धि जो अन्दर छिपी हुई है नावो सम्पूर्ण शुद्ध बनने में विघ्न डालती है*। तो जो बनना चाहते होलक्ष्य रखते हो लेकिन प्रैक्टिकल में फर्क पड़ जाता है।

 

 _ ➳  २. *ये रावण की चीज जो छिपाकर रखी है ना वो मन का मालिक बनने नहीं देती*। मेरी आदत हैमेरा स्वभाव हैमेरा संस्कार हैमेरी नेचर है-ये सब रावण की जायदाद साथ मेंदिल में रख दी है,तो दिलाराम कहाँ बैठेगा! रावण के वर्से के ऊपर बैठे क्या! तो अभी इसको मिटाओ।

 

✺   *ड्रिल :-  "रावण के संस्कारों को मिटाकर बाप के संस्कारों को धारण करना"*

 

 _ ➳  *बाप के संस्कारों को धारण करना... मतलब  बाप समान बनना...* और बाबा कहते बाप समान बनना हो तो बैठ जाइए बापदादा के कमरे में... तो मैं आत्मा मन बुद्धि से पहुँच गयी हूँ बापदादा के कमरे में... पावन दूधिया आभा से भरपूर ये कमरा गवाह है बापदादा की तपस्या और लगन का... *संस्कार परिवर्तन की एक ऐसी इबारत जो यहाँ के चप्पे चप्पे के मौन संगीत में गूँजती है...* उसी मौन संगीत की धुन पर नृत्य करती मैं आत्मा डूबती जा रही हूँ बापदादा की आँखों से छलकते स्नेह में... दोनों आँखो से बरसता स्नेह का ये झरना मुझे गुणों और शक्तियों से भरपूर करता जा रहा है...

 

 _ ➳  *छलछलाते प्याले की भांति स्नेह और शक्तियों से छलकता मेरा रोम रोम...* मैं आत्मा देह से अलग फरिश्ता रूप में...  बापदादा के चित्र की जगह अब आकारी बापदादा... *उनकी रूहानी आभा से पूरी तरह जगमगा गया है ये कक्ष... और बापदादा मेरा हाथ थामें चल दिये हैं, एक विशेष यात्रा पर...* ये यात्रा है संस्कार परिवर्तन की यात्रा...

 

 _ ➳  कल्याणकारी बाप के साथ *मैं शुभ भावना और शुभ चिन्तन की ध्वजा सम्भाले ऊँची पहाडी पर...* संसार की सब दुखी आत्माओं को सुख शान्ति और पवित्रता की सकाश देते हुए... ध्वजा से निकलता प्रकाश का समुद्र दूर दूर तक फैलता हुआ... *सामने दूसरी पहाडी पर अंधेरा देखकर मैं फरिश्ता बढ चला हूँ उस तरफ...* उस पर भी प्रकाश का पसारा करने...

 

 _ ➳  मगर तभी कुछ कंटीली झाडियों में मेरे पंखों का उलझ जाना... *परचिन्तन की, मेरे पन की, फीलिंग की, किनारा करने की ये नागफनी... मेरी उडान में बाधक बन गयी है... खुद को मुक्त करने के प्रयास में घायल होते मेरे पंख... और समय की बर्बादी...* मुझे कोशिश करते बाबा दूर से ही साक्षी होकर देख रहे है... मानो कह रहे हों,- *बच्चे अशुद्ध चीजे अपने पास छुपाकर रखी है...* रावण के संस्कारो से मेरा पन! ... स्वयं से ही धोखा...

 

 _ ➳ और स्वयं की चैकिंग का जैसे ही ख्याल आता है... तुरन्त परिवर्तन की तीव्र ज्वाला का भडकना और देखते ही देखते भस्म हो जाना उन कटीली झाडियों का... *मैं देख रहा हूँ रावण के एक एक संस्कार को उसमें भस्म होते हुए, परचिन्तन का संस्कार... किनारा करने का संस्कार, मेरे पन का संस्कार, सब एक एक कर भस्म हो रहे है...* मेरे चेहरे पर विजयी मुस्कान... अब बापदादा चलकर आ रहे हैं मेरे पास... और हौले से मुझे कन्धे पर बिठा लेते है... *मैं मन का मालिक दिलाराम को दिल को दिल में बिठाने का आग्रह करता हुआ...* और हँसते हुए मैं और बाबा उड चले परमधाम की ओर... परमधाम से शक्तियाँ भरकर मैं लौट आया हूँ बापदादा के कमरे में... पहले से ज्यादा आत्मविश्वास से भरा हुआ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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