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❍ 18 / 08 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *आसुरी मत से अपनी संभाल की ?*
➢➢ *याद की मेहनत से आत्मा को सतोप्रधान बनाया ?*
➢➢ *परीक्षाओं और समस्याओं से मुरझाने की बजाये मनोरंजन का अनुभव किया ?*
➢➢ *मर्यादा पुरुषोत्तम बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *जैसे शुरु-शुरू में अभ्यास करते थे-चल रहे हैं लेकिन स्थिति ऐसी जो दूसरे समझते कि यह कोई लाइट जा रही है। उनको शरीर दिखाई नहीं देता था, इसी अभ्यास से हर प्रकार के पेपर में पास हुए। तो अभी जबकि समय बहुत खराब आ रहा है तो डबल लाइट रहने का अभ्यास बढ़ाओ।* दूसरों को सदैव आपका लाइट रुप दिखाई दे-यही सेफ्टी है। अन्दर आवें और लाइट का किला देखें।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ"*
〰✧ अपने को सदा मास्टर सर्वशक्तिमान् अनुभव करते हो? मास्टर का अर्थ है कि हर शक्ति को जिस समय आह्वान करो तो वो शक्ति प्रैक्टिकल स्वरूप में अनुभव हो। जिस समय, जिस शक्ति की आवश्यकता हो, उस समय वो शक्ति सहयोगी बने-ऐसे है? जिस समय सहनशक्ति चाहिये उस समय स्वरूप में आती है कि थोड़े समय के बाद आती है? अगर मानो शस्त्र एक मिनट पीछे काम में आया तो विजयी होंगे? विजय नहीं हो सकेगी ना। *तो मास्टर सर्वशक्तिमान अर्थात् शक्ति को ऑर्डर किया और हाजिर। ऐसे नहीं कि आर्डर करो सहन शक्ति को और आये सामना करने की शक्ति। तो उसको मास्टर सर्वशक्तिमान कहेंगे? जैसे कई परिस्थिति में सोचते हो कि किनारा नहीं करना है, सहन करना है लेकिन फिर सहन करते-करते सामना करने की शक्ति में आ जाते हो।*
〰✧ ऐसे ही निर्णय शक्ति की आवश्यकता है। लेकिन निर्णय शक्ति यथार्थ समय पर यथार्थ निर्णय नहीं ले तो उसको क्या कहेंगे? मास्टर सर्वशक्तिमान् या कमजोर? तो ऐसे ट्रायल करो कि जिस समय जो शक्ति आवश्यक है उस समय वो शक्ति कार्य में आती है? एक सेकेण्ड का भी फर्क पड़ा तो जीत के बजाय हार हो जाती है। सेकेण्ड की बात है ना। निर्णय करना हाँ या ना। और हाँ के बजाय अगर ना कर लिया तो सेकेण्ड का नुकसान सदा के लिये हार खिलाने के निमित्त बन जाता है। *इसलिये मास्टर सर्वशक्तिमान् का अर्थ ही है जो हर शक्ति ऑर्डर में हो। जैसे ये शरीर की कर्मेन्द्रियां ऑर्डर में हैं ना। हाथ पांव जब चलाओ, जैसे चलाओ वैसे चलाते हो ना ऐसे सर्वशक्तियां इतना ऑर्डर में चलें। जितना यूज करते जायेंगे उतना अनुभव करते जायेंगे।*
〰✧ सदा अपना ये स्वमान स्मृति में रखो कि हम मास्टर सर्वशक्तिमान हैं। इस स्वमान की सीट पर सदा स्थित रहो। जैसी सीट होती है वैसे लक्षण आते हैं। कोई भी ऐसी परिस्थिति सामने आये तो सेकेण्ड में अपने इस सीट पर सेट हो जाओ। सीट पर सेट नहीं होते तो शक्तियां भी ऑर्डर नहीं मानती। सीट वाले का ऑर्डर माना जाता है। तो सेट होना आता है ना। सीट पर बैठने वाले कभी अपसेट नहीं होते। या तो है सीट या तो है अपसेट। लक्ष्य अच्छा है, लक्षण भी अच्छे हैं। सभी महावीर हैं। कभी-कभी सिर्फ थोड़ा माया से खेल करते हो। *अब के विजयी ही सदा के विजयी बनेंगे। अब विजयी नहीं तो फिर कभी भी विजयी नहीं बनेंगे। इसलिये संगमयुग है ही सदा विजयी बनने का युग। द्वापर-कलियुग हार खाने का युग है और संगम विजय प्राप्त करने का युग है। इस युग को वरदान है। तो वरदानी बन विजयी बनो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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आज सर्व स्नेही बच्चों के स्नेह का रेस्पाण्ड करने के लिए बापदादा मिलन मनाने के लिए आये हैं। विदेही बापदाद को देह का आधार लेना पडता है। किसलिए? बच्चों को विदेही बनाने के लिए। जैसे बाप विदेही, देह में आते हुए भी विदेही स्वरूप में, विदेही-पन का अनुभव कराते हैं। ऐसे *आप सभी जीवन में रहते, देह में रहते विदेही आत्म-स्थिति में स्थित हो इस देह द्वारा करावनहार बन करके कर्म कराओ।* यह देह करनहार है। आप देही करावनहार हो। इसी स्थिति को विदेही स्थिति कहते है। इसी को ही फॉलो फादर कहा जाता है।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *कई सोचते हैं - बीजरूप स्थिति या शक्तिशाली याद की स्थिति कम रहती है या बहुत अटेन्शन देने के बाद अनुभव होती है। इसका कारण अगले बार भी सुनाया कि लीकेज है, बुद्धि की शक्ति व्यर्थ तरफ बंट जाती है।* कभी व्यर्थ संकल्प चलेंगे, कभी साधारण संकल्प चलेंगे। *मनन करने वाले अभ्यास होने के कारण जिस समय जो स्थिति बनाने चाहें वह बना सकेंगे। लिंक रहने से लीकेज खत्म हो जायेगी और जिस समय जो अनुभूति – चाहे बीजरूप स्थिति की, चाहे फरिश्ते रूप की, जो करना चाहो वह सहज कर सकेंगे।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप की याद में रहने का पुरुषार्थ करना"*
➳ _ ➳ *जीवन अपनी गति से चलते ही जा रहा था... कि अचानक जनमो के पुण्यो का फल सामने आ गया... मन्दिरो में प्रतिमा में खुदा छुपा था... वह मेरा मीठा बाबा बनकर सामने आ गया...* और जीवन सच्चे प्यार का पर्याय बन गया... ईश्वरीय प्रेम को पाकर मै आत्मा... दुखो की तपिश की भूल निर्मल हो गयी... मीठे बाबा के प्यार की मीठी अनुभूतियों में डूबी हुई मै आत्मा... बाबा की यादो में खोई सी, ठिठक जाती हूँ... और देखती हूँ... सम्मुख मेरा बाबा बाहें फैलाये मुस्करा रहा है...
❉ *मीठे बाबा मुझ आत्मा को बेहद के सुखो का अधिकारी बनाते हुए कहते है:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *अपने समय साँस और संकल्पों को निरन्तर मीठे बाबा की मीठी यादो में पिरो दो..*. यह यादे ही असीम सुखो का खजाना दिलायेगी... मीठे बाबा की यादो में सतोप्रधान बन बाबा संग घर चलने की तैयारी करो... सिर्फ और सिर्फ मीठे बाबा को हर पल याद करो..."
➳ _ ➳ *मै आत्मा मीठे बाबा को अपनी बाँहों में भरकर कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... *अब जो मीठे भाग्य ने आपका हाथ और साथ मुझ आत्मा को दिलाया है.*.. मै आत्मा हर घड़ी हर पल आपकी ही यादो में खोयी हुई हूँ... देह और देहधारियों के ख्यालो से निकल कर अपने मीठे बाबा की मधुर यादो में मगन हूँ..."
❉ *प्यारे बाबा मुझ आत्मा को अनन्त शक्तियो से भरते हुए कहते है :-* "मीठे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता की यादो में निरन्तर खो जाओ... इन यादो में गहरे डूबकर, स्वयं को असीम सुखो से भरी खुबसूरत दुनिया का मालिक बनाओ... और *यादो में सतोप्रधान बनकर, विश्व धरा पर देवताई ताजोतख्त को पाओ.*.."
➳ _ ➳ *मै आत्मा अपने प्यारे बाबा से अमूल्य ज्ञान खजाने को पाकर, खुशियो से भरपूर होकर कहती हूँ :-* " मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा आपको पाकर कितनी खुशनसीब हो गयी हूँ.. श्रीमत को पाकर ज्ञानधन से भरपूर हो, मालामाल हो गयी हूँ... *आपके खुबसूरत साथ को पाकर सत्य से निखर गयी हूँ.*.."
❉ *मीठे बाबा मुझ आत्मा को बेहद के सतोप्रधान पुरुषार्थ के लिए उमंगो से सजाते हुए कहते है :-* "मीठे सिकीलधे बच्चे... यह *अंतिम जन्म में देह के भान और परमत से निकल कर, आत्मिक सुख की अनुभूतियों में खो जाओ..*. हर साँस ईश्वरीय यादो में लगाओ... यह यादे ही समर्थ बना साथ निभाएगी... देह धारियों के याद खाली कर ठग जायेंगी... इसलिए हर पल यादो को गहरा करो..."
➳ _ ➳ *मै आत्मा अपने शानदार भाग्य पर मुस्कराते हुए मीठे बाबा से कहती हूँ :-* "प्यारे प्यारे बाबा मेरे... मेरे हाथो में अपना हाथ देकर, *आपने मुझे कितना असाधारण बना दिया है... ईश्वरीय खूबसूरती से सजाकर, मुझे पूरे विश्व में अनोखा बना दिया है.*.. मै आत्मा रग रग से आपकी यादो में डूबी हुई दिल से शुक्रिया कर रही हूँ..."मीठे बाबा को अपने प्यार की कहानी सुनाकर, मै आत्मा... साकारी तन में लौट आयी...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- याद की मेहनत से आत्मा को सतोप्रधान बनाना है*"
➳ _ ➳ परमधाम में मैं आत्मा, मैं चैतन्य ज्योति, अपने महाज्योति शिव पिता के सानिध्य में बैठ उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूँ। *अपने शिव पिता के साथ मिलन मनाने का असीम सुख लेते हुए मैं एकटक उन्हें निहार रही हूँ*। पूरे पाँच हजार वर्ष उनसे अलग रहने के कारण उनसे मिलने की जो प्यास थी उस जन्म जन्मांतर की प्यास को मैं आज पूरी तरह बुझा लेना चाहती हूँ। *इसलिए मन बुद्धि रूपी नेत्रों को पूरी तरह अपने शिव पिता पर केंद्रित कर, उनके अति सुंदर मनमोहक स्वरूप को, उनकी एक - एक किरण को निहारते हुए मैं मन ही मन मगन हो रही हूँ*। उनका यह सुन्दर सलौना स्वरूप मुझे उन्हें और समीप से देखने के लिए अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे मेरे शिव पिता अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैला कर मुझे अपने आगोश में लेकर, अपना सम्पूर्ण स्नेह मुझ पर बरसा कर आज मुझे तृप्त करना चाहते हैं। *अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में समाकर अब मैं चैतन्य ज्योति स्वयं को अपने महाज्योति शिव पिता के अति समीप देख रही हूँ*। इतना समीप कि ऐसा लग रहा है जैसे मैं ज्योति, महाज्योति में समा कर उनका ही स्वरूप बन गई हूँ। बाबा से आ रही सर्वशक्तियाँ ऐसे लग रही हैं जैसे बहुत तेज अग्नि की अनन्त धाराएं निकल रही हों।
➳ _ ➳ पूरे वेग से ये धाराएं मुझ आत्मा के ऊपर निरन्तर प्रवाहित हो रही हैं। और इन धाराओं के प्रभाव से मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की खाद जल कर भस्म हो रही हैं। *63 जन्मो के विकारों की कट जो असंख्य परतों के रुप में मुझ आत्मा पर चढ़ी हुई थी वो एक - एक परत योग की अग्नि में जल कर समाप्त हो रही है और मैं आत्मा हल्केपन का अनुभव कर रही हूँ*। अपनी सर्वशक्तियों की ज्वालास्वरूप किरणों की अग्नि से बाबा मुझ आत्मा द्वारा किये हुए एक - एक विकर्म को दग्ध कर मुझे सम्पूर्ण पावन बना रहें हैं। *मेरे सभी पुराने स्वभाव, संस्कार इस योग की अग्नि में जल कर भस्म हो रहें हैं*।
➳ _ ➳ जैसे - जैसे इस योग अग्नि में मेरे पुराने स्वभाव संस्कारों का दाह संस्कार हो रहा है वैसे - वैसे मैं आत्मा फिर से अपने अनादि सतोप्रधान स्वरूप को पुनः प्राप्त कर रही हूँ। *रीयल गोल्ड के समान चमकते हुए अपने वास्तविक स्वरूप का मैं अनुभव कर रही हूँ*। मेरा अनादि स्वरूप बहुत ही प्यारा और बहुत ही आकर्षक है। कभी मैं अपने इस मनमोहक अनादि स्वरूप को और कभी अपने सामने विराजमान अपने महाज्योति शिव पिता परमात्मा के मन को लुभाने वाले अति सुंदर स्वरूप को निहारते हुए आनन्दविभोर हो रही हूँ।
➳ _ ➳ रीयल गोल्ड बन कर, शक्तियों से भरपूर हो कर अब मैं आत्मा वापिस साकारी लोक में आ रही हूँ। *अपने जिस अनादि सतोप्रधान स्वरूप में मैं आत्मा पहली बार सृष्टि रूपी रंगमंच पर शरीर धारण कर पार्ट बजाने के लिए आई थी, उस सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था को पाना ही मेरे इस ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है*। इस लक्ष्य को सदैव स्मृति में रख, आत्मा को सतोप्रधान बना कर एकरस कर्मातीत अवस्था तक पहुंचने के लिये, निरन्तर बाबा की याद में रह, अब मैं योग का बल स्वयं में जमा कर रही हूँ।
➳ _ ➳ *जैसे ब्रह्मा बाबा ने योगबल द्वारा एकरस कर्मातीत अवस्था बनाकर सम्पूर्ण अवस्था को प्राप्त किया। कर्म करते हुए भी कर्म के हर प्रकार के प्रभाव से निर्लिप्त न्यारी और प्यारी अवस्था मे ब्रह्मा बाबा सदैव स्थित रहे ऐसे ही फॉलो फादर कर, योगबल से आत्मा को सतोप्रधान बना कर, एकरस कर्मातीत अवस्था तक पहुँचने और सम्पूर्णता को पाने का पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं परीक्षाओं और समस्याओं में मुरझाने के बजाए मनोरंजन का अनुभव करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सदा विजयी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा मर्यादा के अंदर चलती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा मर्यादा पुरुषोत्तम हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा श्रीमत प्रमाण हर कर्म करती हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
➳ _ ➳ *सहन
करने में घबराओ मत। क्यों घबराते हो?* क्योंकि
समझते हो कि झूठी बात में हम सहन क्यों करें? लेकिन
सहन करने की आज्ञा किसने दी है? झूठ
बोलने वाले ने दी है? *कई
बच्चे सहन करते भी हैं लेकिन मजबूरी से सहन करना और मोहब्बत में सहन करना,
इसमें अन्तर है।*
➳ _ ➳ *बात
के कारण सहन नहीं करते हो लेकिन बाप की आज्ञा है सहनशील बनो।* तो बाप की आज्ञा
मानते हो तो परमात्मा की आज्ञा मानना ये खुशी की बात है ना कि मजबूरी है? तो
कई बार सहन करते भी हो लेकिन थोड़ा मिक्स होता है, मोहब्बत
भी होती है,
मजबूरी भी होती है। *सहन कर ही रहे
हो तो क्यों नहीं खुशी से ही करो। मजबूरी से क्यों करो! वो व्यक्ति सामने आता
है ना तो मजबूरी लगती है और बाप
सामने आवे, कि
बाप की आज्ञा पालन कर रहे हैं तो मोहब्ब्त लगेगी, मजबूरी
नहीं।* तो ये शब्द नहीं सोचो।
➳ _ ➳
आजकल ये थोड़ा कामन हो गया है - मरना पड़ेगा, मरना
पड़ेगा, कब
तक मरना पड़ेगा, अन्त
तक या दो साल,
एक
साल,
६
मास, फिर
तो अच्छा मर जायें... लेकिन कब तक मरना है। *लेकिन
यह मरना नहीं है अधिकार पाना है। तो क्या
करेंगे?
मरेंगे? यह
मरना शब्द खत्म कर दो।*
✺
*ड्रिल :- "बाप की आज्ञा प्रमाण खुशी से सहन करना"*
➳ _ ➳ *बाबा
और मैं एक बहुत सुंदर बगीचे में बैठे हुए हैं... चारों ओर हरियाली ही हरियाली
है...* किस्म किस्म के रंग-बिरंगे फूलों की क्यारियाँ लगी हुई हैं... जिनसे
बहुत मनमोहक... भीनी-भीनी महक आ रही है... यह ताज़गी मेरे मन को मोह रही है...
➳ _ ➳
इस
खुशनुमा वातावरण को देखकर... मेरा मन खुशी से झूमने लगा... तभी मेरी नज़र एक
फलों से लदे हुए वृक्ष पर पड़ती है... बाबा मुझे उस वृक्ष को दिखाते हुए कहते
हैं... देखो *बच्ची... यह वृक्ष फलों से कितना भरा हुआ है... कितनी छाया दे रहा
है... फिर भी इसे बहुत सहन करना पड़ता है... बाबा मुझे यह दिखा कर सहनशीलता का
पाठ पक्का करा रहे थे...*
➳ _ ➳ *बाबा
मुझसे कहते हैं... बच्ची... कभी कोई छोटी... बड़ी बात या झूठी बात भी सामने आ
जाये तो सहन करो... सहन करने में घबराओ मत... खुशी से सहन करो... मजबूरी से
नहीं... बाबा की याद में रहकर... आज्ञा समझ कर... कोई भी कर्म करोगे तो बोझ
या... सहन करना नहीं लगेगा...* फिर बाबा कहने लगे... बच्ची... सृष्टि चक्र का
नियम है... *जो हो गया वह फिर से रिपीट होगा... इसलिये नथिंग न्यू का पाठ भी
पक्का करो...* सहनशील बनो...
➳ _ ➳
मैं
बाबा से कहती हूँ... बाबा... *आपसे प्राप्त गुणों और शक्तियों को धारण कर अपने
प्रैक्टिकल जीवन में... हर कर्म में... लाऊंगी... किसी भी परिस्थिति में मुझे
सहन करना भी पड़े तो मैं खुशी खुशी सहन करुँगी...* उसका वर्णन फिर कभी नहीं
करुँगी... मन-वाणी और कर्म में सहनशील बनूंगी...
➳ _ ➳ *मुझे
ही मरना पड़ता है... मुझे ही सहन करना पड़ता है... बाबा... इन शब्दों को मैं
आत्मा अब कभी नहीं कहूँगी... इस बेहद की स्क्रीन पर हर सीन को मैं आत्मा साक्षी
भाव से देखूँगी...* कोई भी परिस्थिति मुझे डगमग नहीं कर सकेगी... मैं आत्मा
सर्व के प्रति शुभ भावना शुभ कामना रख अपना रोल प्ले करुँगी... *दिल व जान से
आपकी बच्ची होने का सबूत हर आत्मा को कराऊँगी...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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