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 05 / 08 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अपना जीवन हीरे जैसा बनाया ?*

 

➢➢ *बाप जो सुनाते हैं, उस पर विचार सागर मंथन कर दूसरों को सुनाया ?*

 

➢➢ *व्यर्थ को भी शुभ भाव और श्रेष्ठ भावना में परिवर्तित किया ?*

 

➢➢ *संकल्पों की एकाग्रता से श्रेष्ठ परिवर्तन में फ़ास्ट गति का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *फरिश्ता स्थिति का अनुभव करने के लिए अभी-अभी आवाज में आते, डिस्कस करते, कैसे भी वातावरण में संकल्प करो और आवाज से परे, न्यारे फरिश्ता स्थिति में टिक जाओ।* अभी-अभी कर्मयोगी, अभी-अभी फरिश्ता अर्थात् आवाज से परे अव्यक्त स्थिति। *यही अभ्यास लास्ट पेपर में विजयी बनायेगा।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं समर्थ आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने को बाप के समर्थ बच्चे अनुभव करते हो? समर्थ आत्माओंकी निशानी क्या है? समर्थ आत्मायें कोई भी खजाने को व्यर्थ नहीं करेंगी। समर्थ अर्थात् व्यर्थ की समाप्ति*संगमयुग पर बाप ने कितने खजाने दिये हैं? सबसे बड़ा खजाना है श्रेष्ठ संकल्पों का खजाना। संगम का समय-यह भी बड़े ते बड़ा खजाना है। सर्व शक्तियां-यह भी खजाना है; सर्व गुण-यह भी खजाना है। तो सभी खजानों को सफल करना-यह है समर्थ आत्मा की निशानी।* सदा हर खजाने सफल होते हैं या व्यर्थ भी हो जाते हैं? कभी व्यर्थ भी होता है? जितना समर्थ बनते हैं तो व्यर्थ स्वत: ही खत्म हो जाता है।

 

  जैसे-रोशनी का आना और अंधकार का जाना। क्योंकि जानते हो कि-हर खजाने की वैल्यु कितनी बड़ी है, संगमयुग के पुरुषार्थ के आधार पर सारे कल्प की प्रालब्ध है! तो एक सेकेण्ड, एक श्वास, एक गुण की कितनी वैल्यु है! अगर एक भी संकल्प वा सेकेण्ड व्यर्थ जाता है तो सारा कल्प उसका नुकसान होता है। तो इतना याद रहता है? एक सेकेण्ड कितना बड़ा हुआ! तो कभी भी ऐसे नहीं समझना कि सिर्फ एक सेकेण्ड ही तो व्यर्थ हुआ! लेकिन एक सेकेण्ड अनेक जन्मों की कमाई या नुकसान का आधार है। गाया हुआ है ना-कदम में पद्मों की कमाई है। एक कदम उठने में कितना टाइम लगता है? सेकेण्ड ही लगता है ना। *सेकेण्ड गँवाना अर्थात् पद्मापद्म गँवाना। इस वैल्यु को सदा सामने रखते हुए सफल करते जाओ। चाहे स्वयं के प्रति, चाहे औरों के प्रति-सफल करते जाओ तो सफल करने से सफलतामूर्त अनुभव करेंगे। सफलता समर्थ आत्मा के लिए जन्मसिद्ध अधिकार है। बर्थ-राइट मिला है ना!*

 

  कोई भी कर्म करते हो-ज्ञान-स्वरूप होकर के कर्म करने से सफलता अवश्य प्राप्त होती है। तो सफलता का आधार है- व्यर्थ न गँवाकर सफल करना। ऐसे नहीं-व्यर्थ नहीं गँवाया। लेकिन सफल भी किया? जितना कार्य में लगायेंगे उतना बढ़ता जायेगा। खजानों को बढ़ाना आता है? सफल करना अर्थात् लगाना। तो सदा कार्य में लगाते हो या जब चांस मिलता है तब लगाते हो? *हर समय चेक करो-चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क से सफल जरूर करना है। सारे दिन में कितनों की सेवा करते हो? अगर सेवाधारी सेवा नहीं करे तो अच्छा नहीं लगेगा ना। तो विश्व-सेवाधारी हो! हर दिन सेवा करनी ही है!*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *शुरू से देखो - अपने देह के भान के कितने वैरायटी प्रकार के विस्तार है।* उसको तो जानते हो ना! मैं बच्चा हूँ, मैं जवान हूँ, मैं बुजुर्ग हूँ मैं फलने-फलाने आक्यूपेशन वाला हूँ। इसी प्रकार के देह की स्मृति के विस्तार कितने हैं! फिर सम्बन्ध में आओ कितना विस्तार है।

 

✧  किसका बच्चा है तो किसका बाप है, *कितने विस्तार के सम्बन्ध है। उसको वर्णन करने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि जानते हो।* इसी प्रकार देह के पदार्थों का भी कितना विस्तार है। भक्ति में अनेक देवताओं को सन्तुष्ट करने का कितना विस्तार है। लक्ष्य एक को पाने का है लेकिन भटकने के साधन अनेक है।

 

✧  *इतने सभी प्रकार के विस्तार को सार रूप लाने के लिए समाने की वा समेटने की शक्ति चाहिए।* सर्व विस्तार को एक शब्द से समा देते। वह क्या? - 'बिन्दू'। मैं भी बिन्दू बाप भी बिन्दू। *एक बाप बिन्दू में सारा संसार समाया हुआ है।* यह तो अच्छी तरह से अनुभवी हो ना।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ आप सभी मास्टर रचयिता अपने रचतापन की स्मृति में कहाँ तक स्थित रहते हैं। *आप सभी रचयिता की विशेष पहली रचना यह देह है।* इस देह रूपी रचना के रचयिता कहाँ तक बने हैं? *देह रूपी रचना कभी अपने तरफ रचयिता को आकर्षित कर रचनापन विस्मृत तो नहीं कर देती है?* मालिक बन इस रचना को सेवा में लगाते रहते? जब चाहें जो चाहें मालिक बन करा सकते हैं? *पहले-पहले इस देह के मालिकपन का अभ्यास ही प्रकृति का मालिक वा विश्व का मालिक बना सकता है। अगर देह के मालिकपन में सम्पूर्ण सफलता नहीं तो विश्व के मालिकपन में भी सम्पन्न नही बन सकते हैं।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- इस पढाई से श्रीकृष्ण पुरी का मालिक बनना"*

 

_ ➳  *मीठे बाबा की यादों में डूबी मैं आत्मा मधुबन पावन भूमि पर कदम रखती हूँ... चारों और पावनता की खुशबू से सराबोर यह भूमि मीठे बाबा की मधुर स्मृतियों को समेटे हुए है... मैं आत्मा बाबा के प्रेम में मन्त्रमुग्ध होकर बाबा के कमरे में पहुँच जाती हूँ...* और उनके सम्मुख बैठ जाती हूँ... मीठे बाबा मुस्कुराते हुए मीठी दृष्टि देते हैं... बाबा अपनी मीठी दृष्टि से मुझे इस पुरानी दुनिया से न्यारी बना रहे हैं... नई दुनिया में जाने के लिए पुरानी दुनिया के सभी बातों को भूलकर मैं आत्मा प्यारे बाबा के नये ज्ञान को बहुत ही ध्यान से सुनकर धारण करती हूँ...

 

  *सूर्यवंशी राजपद लेने के लिए नया ज्ञान देकर मुझे सम्पूर्ण और सम्पन्न बनाते हुए ज्ञान सूर्य बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे बच्चे... सारे बोझ सारी चिंताए मुझ पिता को देकर हल्के होकर उड़ते रहो... सब स्वाहा कर खुशियो से भर जाओ... *पिता बैठा है ना... सब उसको थमा दो... और निश्चिन्त हो आनन्द भरी उड़ान भरो... सदा सुखदायी दुनिया के मालिक बनो...”*

 

_ ➳  *बाबा के प्यार में दीवानी होकर अपने खूबसूरत भाग्य पर बलिहार जाती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपना सबकुछ प्यारे बाबा को सौप रही हूँ... *अपना सब स्वाहा कर बाबा से खूबसूरत सुखो को ले रही हूँ... सारे मीठे सतयुगी सुख अपने नाम लिखवा रही हूँ...”*

 

  *स्वर्ग सुखों को मेरे क़दमों तले सजाते हुए नई दुनिया के रचयिता मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे बच्चे... ऐसा पिता कहाँ मिलेगा भला जो पुराना लेकर सब नए में बदल लौटा दे... *सारे विश्व को बच्चों के कदमो तले ला दे... सतयुगी सुखो से जीवन खुशनुमा बना दे... सुकून भरी सच्ची खुशियां दामन में सजा दे...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा अन्धकार भरे पुराने जीवन से निकल नए स्वर्णिम प्रकाश भरी दुनिया की मालिक बनते हुए कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *आपके बिना यह जीवन कितना दुखमय था... आपने आकर मुझ आत्मा को सच्चा सुकून सदा का दे दिया है...* मुझ आत्मा ने अपना सब आपको समर्पित कर सारे सुखो का टिकट ले लिया है...

 

  *सत्य ज्ञान का धरोहर देकर सतयुगी सुखों से मेरे भाग्य को ऊँचा बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे बच्चे... *सच्चे पिता से सारे सतयुगी सुख ले लो... सूर्यवंशी राजपद अपने नाम लिखवा लो... इस मिटटी के रिश्तो...  दारुण दुखो से निकल खूबसूरत दुनिया में चलो...* सदा की सुखो की ठंडक भरी छाँव वाली दुनिया को बाँहो में भरो...

 

_ ➳  *अपने भाग्य की झोली को सर्व वरदानों और सर्व सुखों से भरकर मैं भाग्यशाली आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मेरा सारा कालापन ले लो... मुझे सुनहरा सा कर खूबसूरत बना दो... *मुझे जन्नत की ठण्डी छाँव में बिठा दो... मै आत्मा अपना सबकुछ आपको सौप रही हूँ और सूर्यवंशी हो रही हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺  *"ड्रिल :- अपना जीवन हीरे जैसा बनाना है*"

 

_ ➳  इस नश्वर दुनिया की नश्वर बातों में उलझा मेरा यह जीवन जो कौड़ी तुल्य बन गया था उसे मेरे सत्य सदा शिव परमात्मा बाप ने आ कर सत के संग द्वारा हीरे तुल्य बनाने का जो रास्ता दिखाया उस रास्ते पर चल *अपने कौड़ी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बनाने का तीव्र पुरुषार्थ करने का दृढ़ संकल्प करके, अपने दिलाराम बाबा की याद में मैं अशरीरी हो कर बैठ जाती हूँ* और अशरीरीपन की इस अवस्था मे देह से न्यारी हो कर मैं आत्मा परमात्म प्यार के पंख लगा कर उड़ चलती हूँ अपने दिलाराम परमात्मा बाप के पास।

 

_ ➳  परमात्म प्यार की पालकी में सवार मैं आत्मा इस दुनिया के नजारो को देखती जा रही हूं। मैं देख रही हूं कैसे दुनिया के लोग विनाशी चीजो को पाने की होड़ में अपने जीवन को व्यर्थ गंवा रहें हैं। *केवल खाना, पीना और सोना इसी को जीवन का सच समझ कर अनमोल श्वासों की पूंजी को कौड़ियो के भाव नष्ट कर रहें हैं*। इस बात से भी अनजान है कि सत्य परमात्मा बाप सत का संग करा कर हमारे जीवन को हीरे तुल्य बनाने आये हुए है। यह विचार करते करते मैं जा रही हूं और मन ही मन अपने शिव पिता को धन्यवाद देती जा रही हूं जिन्होंने मुझे श्वांसों के इस अनमोल खजाने को सफल करने का सत्य रास्ता दिखा दिया।

 

_ ➳  अब मुझे केवल इस सत्य की राह पर आगे बढ़ते जाना है। श्वांसों श्वांस अपने बाबा की याद में रह श्वांसों की इस अनमोल पूंजी को सफल करना है। *मेरा यह ब्राह्मण जीवन मेरे दिलाराम बाबा की अमानत है इसलिए मनमत या परमत पर चल मुझे इस अमानत में अब खयानत नही डालनी* बल्कि हर कदम श्रीमत पर चल ईश्वरीय याद में रह, ईश्वरीय सेवा में अपने संकल्प, समय और श्वांसों को लगा कर अपने कौड़ी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बना कर सफल करना है। *स्वयं से यह बातें करते करते मैं पांचो तत्वों को पार कर, पहुंच जाती हूँ फरिश्तों के उस आलौकिक दिव्य वतन में जहां मैं अपने दिलाराम बाबा के साथ बैठ कर मीठी मीठी रूहरिहान कर सकती हूं*।

 

_ ➳  जैसे ही मैं वतन में पहुंच कर अपना सूक्ष्म आकारी शरीर धारण करती हूं मेरे दिलाराम मीठे शिव बाबा भी परमधाम से नीचे वतन में आ जाते हैं और आ कर अपने आकारी रथ पर विराजमान हो जाते हैं। *मुझे देखते ही मेरे दिलाराम बाबा मुस्कराते हुए अपनी बाहें फैला लेते हैं और मैं फ़रिशता दौड़ कर उनकी बाहों में समा जाता हूँ*।

 

_ ➳  इस अलौकिक मिलन के असीम सुख की अनुभूति में आत्म विभोर हो कर मैं अपने दिल की भावनाओ को अपने दिलाराम बाबा के सामने अभिव्यक्त कर रही हूं:- *"हे मेरे प्राणेश्वर बाबा अब आप ही मेरा संसार हो, आप ही मेरे सर्वस्व हो। मेरे जीवन को सुखमय बनाने वाले आप ही मेरे दिल के सच्चे सच्चे मीत हो। अज्ञान अंधकार में भटक कर मैने तो अपने जीवन को कौड़ी तुल्य बना लिया था किंतु आपने आ कर मुझे हीरे जैसा बेदाग बना दिया। आपकी याद अब मेरी श्वांसों में बस गई है"।*

 

_ ➳  अपने मन के भावों को व्यक्त करते करते मैं अपने दिलाराम बाबा के प्यार की गहराई में खो जाती हूँ और उनसे आ रही प्रेम की किरणों से स्वयं को भरपूर करने लगती हूं। अपने *दिलाराम बाबा के प्यार की अनमोल यादों को दिल मे सँजोये अब मैं जागती ज्योत बन लौट रही हूं वापिस अपने साकारी तन में और सच्ची सच्ची मीरा बन हर श्वांस में अपने गिरधर गोपाल अपने दिलाराम बाबा की याद को समाये अपने जीवन को हीरे तुल्य बना रही हूं*। मन मे अब यही धुन निरन्तर बज रही है "मेरे तो शिवबाबा एक, दूसरा ना कोई"।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं व्यर्थ को भी शुभ भाव और श्रेष्ठ भावना द्वारा परिवर्तन करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं  सच्ची मरजीवा आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा संकल्पों की एकाग्रता से श्रेष्ठ परिवर्तन करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा श्रेष्ठ परिवर्तन में फास्ट गति लेकर आती हूँ  ।*

   *मैं एकाग्रचित्त आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  जैसे आप लोग एक ड्रामा दिखाते हो, ऐसे प्रकार के संकल्प - अभी यह करना है, फिर वापस जायेंगे - ऐसे ड्रामा के मुआफिक साथ चलने की सीट को पाने के अधिकार से वंचित तो नहीं रह जायेंगे - अभी तो खूब विस्तार में जा रहे हो, लेकिन विस्तार की निशानी क्या होती है? *वृक्ष भी जब अति विस्तार को पा लेता तो विस्तार के बाद बीज में समा जाता है। तो अभी भी सेवा का विस्तार बहुत तेजी से बढ़ रहा है और बढ़ना ही है* लेकिन जितना विस्तार वृद्धि को पा रहा है उतना विस्तार से न्यारे और साथ चलने वाले प्यारे, यह बात नहीं भूल जाना। *कोई भी किनारे में लगाव की रस्सी न रह जाए। किनारे की रस्सियाँ सदा छूटी हुई हों। अर्थात् सबसे छूट्टी लेकर रखो।* जैसे आजकल यहाँ पहले से ही अपना मरण मना लेते हैं ना- तो छुट्टी ले ली ना। *ऐसे सब प्रवृत्तियों के बन्धनों से पहले से ही विदाई ले लो। समाप्ति-समारोह मना लो। उड़ती कला का उड़ान आसन सदा तैयार हो।*

✺  *"ड्रिल :- सर्व प्रवृत्तियों के बन्धनों से विदाई ले समाप्ति समारोह मनाना।"*

➳ _ ➳  आत्मिक स्थिति में स्थित मैं आत्मा बैठी हूँ एक बाप की याद में... मन को बाप में लगाने की तम्मना के साथ... जन्म-जन्म के विकर्मों को दहन करने के एक ही मार्ग पर चल पड़ी हूँ... एक ही संकल्प मन के तार को बापदादा से दूर करता जा रहा है... *क्या विनाशी देह की भस्म को गंगा में बहाने से क्या सम्बन्ध पूरे होते हैं? और क्या उस सम्बन्ध से जुड़े पुराने तानेबाने ही ख़तम हो जाते हैं? क्या पुनर्जन्म में वह आत्मा अपने पुराने संस्कारो के वशीभूत जन्म लेगी ? मोह माया के रिश्तों में बंधे सभी आत्माओं का पुर्नजनम कैसा होगा ?* अपने इन विचारों में खोयी मैं आत्मा मन बुद्धि रूपी नयनों द्वारा देखती हूँ बापदादा को अपने समीप... अपने रूहानी वात्सल्य से भरे हाथों से मुझ आत्मा के मस्तक पर हाथ रखकर अपनी अनंत शक्तियों को मुझमें समाते जा रहे हैं... और मैं आत्मा आन्तरिक शांति को पाती जा रही हूँ... मन की चंचलता ख़त्म होती जा रही है... और बापदादा एक सीन दिखा रहे हैं...

➳ _ ➳  झरमर झरमर बहती गंगा... शांत और शीतल पवन के झोंके... धूप दीप नैवेद्य से भरी थाली... एक कलश... लाल कपडे से बंधा हुआ... जिसमें विनाशी देह की भस्म भरी हुई है... *विनाशी शरीर पंच महाभूतों में विलीन हो गया है...*  विनाशी देह के सगे सम्बन्धी उस विनाशी देह की भस्म को गंगा की लहरों में समर्पित करते जा रहे हैं... और उस आत्मा से देह का रिश्ता पूरा होता है... और एक दृश्य बाबा दिखा रहा है जहां एक आत्मा का जन्म होता हैं... हर्षोल्लास का वातावरण छाया हुआ है... सभी सगे सम्बन्धी खुशियों के झूले में खुद भी झूल रहे हैं और वह आत्मा के बालक स्वरुप को भी झुला रहे हैं... कहीं पर मरण के दुखदायी नज़ारे हैं तो कहीं पर जन्म की बधाइयां दी जा रही हैं... *रिश्तों के ताने बाने से बंधी आत्मा... जन्म मरण के चक्कर में... मोह माया के बंधन में बंधती ही जा रही हैं...*

➳ _ ➳  यह दृश्य देखती अपने आप से बातें करती मैं आत्मा बाबा के महावाक्यों का सिमरण करती हूँ... *"अंत मती सो गति“* और इस महावाक्य को समझने में उलझ जाती हूँ... बापदादा के संग उनके रूहानी रंगों में रंगी मैं आत्मा... अपने अंतर्मन को बापदादा की रूहानी शक्तियों से रंगती जा रही हूँ *जन्म मरण के नजारों को साक्षी भाव से देख...* सृष्टि चक्र को बापदादा की शक्तियों से फिरता देख... मैं आत्मा मन की चंचलता को समाप्त करती जा रही हूँ... और मन बुद्धि रूपी आँखों से बापदादा और एक सीन दिखा रहे हैं... हम ब्राह्मण आत्माओं का घर... वह ब्राह्मण आत्माएं जो *बाप की प्रत्यक्षता को जान चुके हैं... भगवान की खोज को बापदादा की खोज में पूरा होता हुआ देख रहे हैं...* वह ब्राह्मण आत्माएं जिन्होंने एक बाप से रूहानी रिश्ता जोड़ दुनियादारी के सम्बन्धों से मन से किनारा कर लिया है... देह भान से परे सभी ब्राह्मण आत्माओं का सम्बन्ध सिर्फ एक बाप से जुड़ा है...

➳ _ ➳  यही वह बी के ब्राह्मण आत्मायें हैं जिनके घर पर जन्म मरण के दृश्य भी देखने को मिलता है... यह वही ब्राह्मण आत्मायें हैं जो मन बुद्धि से लौकिक से किनारा कर अलौकिक पार्ट बजा रहे हैं... जन्म मरण में देही अभिमानी बन शरीर को न देख आत्मा को देखते हैं...  *पंचमहाभूतों में विलीन शरीर की मालिक आत्मा को शांति की शक्तियों से भरपूर कर दूसरे जन्म के लिए सजाते हैं... बापदादा की पवित्रता... सुख... शांति के किरणों को दान कर लौकिकता को अलौकिकता में बदल देते हैं...* संगमयुग की ब्राह्मण आत्मायें मृत्युशैया पर लेटी आत्मा को बापदादा की शक्तियों से उनके विकार भस्म करवा कर सुखरूप से पुराना चोला छोड़ नया धारण करने में मददरूप बनते हैं...

➳ _ ➳  मैं आत्मा बापदादा द्वारा दिखाये दिए जा रहे सभी ब्राह्मण बी के आत्माओं के घर को सतयुगी राजमहल के रूप में देख रही हूँ... बापदादा के संगमयुग में इस धरा पर अवतरण का सुहावना नज़ारा देख रही हूँ... बापदादा के सुनहरे महावाक्य *"कोई भी किनारे में लगाव की रस्सी न रह जाए... किनारे की रस्सियाँ सदा छूटी हुई हों... अर्थात् सबसे छूट्टी लेकर रखो सब प्रवृत्तियों के बन्धनों से पहले से ही विदाई ले लो... समाप्ति-समारोह मना लो... उड़ती कला का उड़ान आसन सदा तैयार हो"* को प्रत्यक्ष होता हुआ देख रही हूँ... और बापदादा  से विदाई लेकर लौकिक के सभी कार्यों से... संबंधियों से... मन बुद्धि से विदाई लेकर समाप्ति समारोह मना रही हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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