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❍ 30 / 08 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *हलचल में भी निर्भय अवस्था का अनुभव किया ?*
➢➢ *आत्माओं को यथार्थ, वास्तविक और अविनाशी सहारे का अनुभव करवाया ?*
➢➢ *परमात्म अथॉरिटी की अनुभूति की ?*
➢➢ *सेवा में उमंग उत्साह का अनुभव किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *जैसे लाइट हाउस एक स्थान पर होते हुए चारों ओर अपनी लाइट फैलाता है, ऐसे लाइट हाउस बन, विश्व कल्याणकारी बन विश्व तक अपनी लाइट फैलाने के लिए पावरफुल स्टेज चाहिए।* जैसे स्थूल लाइट का बल्ब तेज पावर वाला होगा तो चारों ओर लाइट फैलेगी। जीरो पावर हद तक रहेगी। *तो अब लाइट हाउस बनो न कि बल्व।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं उमंग-उत्साह में उड़ने वाली आत्मा हूँ"*
〰✧ सभी अपने को सदा उमंग-उत्साह से उड़ने वाली आत्मायें अनुभव करते हो? सदा उमंग-उत्साह बढ़ता रहता है या कभी कम होता है कभी बढ़ता है? क्योंकि जितना उमंग-उत्साह होगा उतना औरों को भी उमंग-उत्साह में उड़ायेंगे। सिर्फ स्वयं नहीं उड़ने वाले हो लेकिन औरों को भी उड़ाने वाले हो। *तो उमंग-उत्साह ये उड़ने के पंख हैं। अगर पंख मजबूत होते हैं तो तीव्र गति से उड़ सकते हैं। अगर पंख कमजोर होंगे और तीव्र गति से उड़ने की कोशिश भी करेंगे तो नहीं उड़ सकेंगे, बार-बार नीचे आयेंगे। तो उमंग-उत्साह के पंख सदा मजबूत हों। कभी कमजोर, कभी मजबूत नहीं, सदा मजबूत।*
〰✧ क्योंकि अनेक आत्माओंको उड़ाने की जिम्मेवार आत्मायें हो। विश्व कल्याण करने की जिम्मेवारी ली है ना? तो सदा इतनी बड़ी जिम्मेवारी स्मृति में रहे। *जब कोई भी जिम्मेवारी होती है तब जो भी काम करेंगे तो तीव्र गति से करेंगे और जिम्मेवारी नहीं होती है तो अलबेले होते हैं। तो हरेक के ऊपर कितनी बड़ी जिम्मेवारी है!* सभी ने यह जिम्मेवारी का संकल्प लिया है? या सोचते हो कि यह बड़ों का काम है, हम तो छोटे हैं-ऐसे तो नहीं। यह तो पुराने जाने हम तो नये हैं-ऐसे तो नहीं। चाहे बड़े हों, चाहे छोटे हों, चाहे पुराने हों, चाहे नये हों, लेकिन ब्राह्मण बनना अर्थात् जिम्मेवारी लेना। चाहे नये हैं, चाहे पुराने हैं लेकिन हैं तो बी.के.या और कुछ हैं? तो बी.के.अर्थात् ब्राह्मण बनना और ब्राह्मणों की जिम्मेवारी है ही। तो ये जिम्मेवारी की स्मृति कभी भी आपको अलबेला नहीं बनायेगी।
〰✧ लौकिक कार्य में भी जब कोई जिम्मेवारी बढ़ती है तो आलस्य और अलबेलापन आता है या चला जाता है? अगर कोई कहेगा भी ना कि चलो थोड़ा आराम कर लो, बैठ जाओ, क्या करना है, तो बैठ सकेगे? *तो जिम्मेवारी, आलस्य और अलबेलापन खत्म कर देती है। तो चेक करो कि कभी भी आलस्य या अलबेलापन तो नहीं आ जाता? चल तो रहे हैं, हो जायेगा-ये है अलबेलापन। आज नहीं तो कल हो जायेगा-ये आलस्य है।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ लेकिन यह चेक करो - यह तीनों *स्व के अधिकार से चलते हैं?* इन *तीनों पर स्व का राज्य है* वा *इन्हों के अधिकार से आप चलते हो?* *मन* आपको चलाता है या आप मन को चलाते हैं? जो चाहो, जब चाहो वैसा ही *संकल्प* कर सकते हो?
〰✧ जहाँ *बुद्धि* लगाने चाहो, वहाँ लगा सकते हो वा बुद्धि आप राजा को भटकाती है? *संस्कार* आपके वश है वा आप संस्कारों के वश हो?
〰✧ *राज्य अर्थात अधिकार।* राज्य अधिकारी जिस शक्ति को जिस समय जो ऑर्डर करे, वह उसी विधि पूर्वक कार्य करते वा आप कहो एक बात, वह करें दूसरी बात? क्योंकि निरंतर योगी अर्थात *स्वराज्य अधिकारी बनने का विशेष साधन ही मन और बुद्धि है।* मन्त्र ही ‘मन्मनाभव' का है।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *जैसे मधुबन अपने घर में आते हो तो कितनी खुशी रहती है। तो जब मधुबन घर की खुशी है तो आत्मा के घर जाने की भी खुशी है। लेकिन खुशी से कौन जायेगा? जिसका सदा यह 'आने' और 'जाने' का अभ्यास होगा। जब चाहो तब अशरीरी स्थिति में स्थित हो जाओ और जब चाहो तब कर्मयोगी बन जाओ - यह अभ्यास बहुत पक्का चाहिए।* ऐसे न हो कि आप अशरीरी बनने चाहो और शरीर का बंधन, कर्म का बंधन, व्यक्तियों का बंधन, वैभवों का बंधन, स्वभाव-संस्कारों का बन्धन अपनी तरफ आकर्षित करें, कोई भी बंधन अशरीर बनने नहीं देगा। जैसे कोई टाइट ड्रेस पहनते हैं तो समय पर सेकण्ड में उतारने चाहें तो उतार नहीं सकेंगे, खिंचावट होती है क्योंकि शरीर से पहले चिपटा हुआ है। ऐसे कोई भी बंधन का खिंचाव अपनी तरफ खींचेगा। बंधन आत्मा को टाइट कर देता है। इसलिए बापदादा सदैव यह पाठ पढ़ाते हैं - निर्लिप्त अर्थात् न्यारे और अति प्यारे। यह बहुतकाल का अभ्यास चाहिए।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अनुभव की अथॉरिटी से सहज परिवर्तन करना"*
➳ _ ➳ *मधुबन के प्रांगण में बाबा की कुटिया में बैठी हुई मैं आत्मा... बाबा से रुहरिहान कर रही हूँ... ब्राहमण जीवन की अनुभव स्मृति में आ रहे हैं... मैं आत्मा मन में चिन्तन करती हूँ... कि सारे कल्प में सबसे श्रेष्ठ जन्म यही ब्राह्मण जन्म है... स्वयं भगवान ने मुझे अपनी गोदी में बिठा लिया है... भगवान की गोद के बच्चे बन गए... उनकी पालना में पल रहे हैं... वाह रे मेरा भाग्य... स्वयं भगवान हर पल, हर कर्म में मेरा साथी है...* सोते, जागते, खेलते, खाते, हर कर्म करते बाबा मेरा साथी है... ऐसा रूहानी मौजों से, अतीन्द्रिय सुखों से भरा हुआ अति श्रेष्ठ मरजीवा जन्म है ये... बापदादा की भृकुटी से, मस्तक से, नैनों से दिव्य तेज बरस रहा है... मुझ फरिश्ते में समाता जा रहा है... मैं फरिश्ता इस रूहानी नूर को स्वयं में समाती जा रही हूँ...
❉ *मेरे जीवन रूपी बगिया को महकाने वाले बागवान शिवबाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... ब्राह्मण बनने के बाद दिन प्रतिदिन जो सुख सावन बरसता है... रिमझिम रिमझिम अतींद्रिय सुख की जो बारिश होती है... जिसमें तुम हर पल स्नान करते हो... *यह अनुभवों की रसना ही सहजयोगी बनने का साधन है... इस अनुभव की अथॉरिटी को बढ़ाते जाओ... फिर योग लगाना नहीं पड़ेगा स्वतः ही बाबा की याद हर पल बनी रहेगी..."*
➳ _ ➳ *बाबा के स्नेह की किरणों रूपी बाहों में बैठी हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे मीठे प्यारे बाबा... आपके स्नेह का जो झरना मुझ पर अनवरत बरसता रहता है... सच्चे आनंद की आप हर क्षण मुझ आत्मा को भासना दे रहे हैं... *इन अनुभवों को मैं आत्मा सदा बढ़ाती रहूँगी... अनुभव की अथॉरिटी, खुशी की झलक मेरे चेहरे पर स्पष्ट दिखाई दे रही है... मैं आत्मा एक आप की ही लगन में मगन होती जा रही हूँ..."*
❉ *ज्ञान के गुह्य राज समझाते हुए ज्ञान चंद्रमा बाबा कहते हैं:-* "मेरे प्यारे रूहानी गुलाब बच्चे... अनुभव की अथॉरिटी सबसे बड़ी अथॉरिटी है... जिस भंवर ने एक बार पुष्प के मधुर रस का पान कर लिया, वह फिर फिर के उस की ही तरफ जाएगा... *कोई कितना भी उसे दूर करना चाहे लेकिन दूर कर नहीं सकता... इसी प्रकार अनुभवी आत्मा कभी भी किसी प्रकार के माया के रॉयल रुप से धोखा नहीं खा सकती... इसलिए तुम सदा ईश्वरीय स्नेह के सागर में गोते लगाते रहो..."*
➳ _ ➳ *बाबा से मिले ज्ञान रत्नों को बुद्धि रूपी झोली में समेटते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे जीवन के आधार मीठे बाबा... जिस जिव्हा ने आपके स्नेह का अमृत पी लिया है... वह अब माया रुपी नीम की कड़वी पतियों को कैसे चख सकती है... *मीठे बाबा... मैं आत्मा आपके बताए हुए मार्ग पर ही चलूंगी... आपके स्नेह में समा कर मैं आत्मा हर गुण, हर शक्ति की, ज्ञान के हर पॉइंट की अनुभवी मूर्त बनती जा रही हूँ..."*
❉ *स्वाति नक्षत्र की प्रेम बूंदें बरसाकर मेरे जीवन को बहुमूल्य मोती समान बनाने वाले बाबा कहते हैं:-* "प्यारे रूहानी बच्चे... जैसे बीज भरपूर होता है... ऐसे ही तुम भी ज्ञान, गुण, शक्तियों सभी से भरपूर बनो... अथॉरिटी की महानता सबको झुकाती है... *अनुभवों की अथॉरिटी वाली आत्मा माया को झुकाएगी ना कि स्वयं झुकेगी... योगी आत्मा की झलक चेहरे से स्पष्ट दिखाई देती है... अपने ईश्वरीय नशे व खुमारी को सदा बढ़ाते रहो..."*
➳ _ ➳ *मीठे बाबा की स्नेह वर्षा में झूमती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे मीठे-मीठे बाबा... मैं आत्मा ज्ञान, गुण और शक्तियों को स्वयं में धारण कर इनकी अनुभवी मूर्त बनती जा रही हूँ... *अनुभव के सागर में समाई हुई मैं आत्मा अपने चेहरे से, मुखडे से एक आपका ही दीदार करा रही हूँ... क्योंकि चेहरा ही मन की शक्ति का दर्पण है... अनुभवों के आसन पर स्थित हो करके मैं... निरंतर योगी, स्वतः योगी, सहजयोगी बनती जा रही हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- हलचल में भी निर्भय अवस्था का अनुभव*"
➳ _ ➳ अपने दिलाराम बाबा को साथ लिए, उनकी सर्वशक्तियों की छत्रछाया के नीचे, मैं एक पार्क में टहल रही हूँ। *टहलते - टहलते मैं कोने में रखे एक बेंच पर बैठ जाती हूँ और अपनी आंखों को बंद करके अपने दिलाराम बाबा की सर्वशक्तियों की शीतल छाया का आनन्द लेने लगती हूँ*। उस मधुर आनन्द में खोई हुई मैं एक दृश्य देखती हूँ कि जैसे मैं एक छोटी सी बच्ची बन पार्क में एक झूले पर बैठी झूला झूल रही हूँ। झूला झूलने में मैं इतनी मगन हो जाती हूँ कि कब अंधेरा हो जाता है और सभी पार्क से चले जाते हैं, पता ही नही पड़ता।
➳ _ ➳ अंधेरे में स्वयं को अकेला पाकर मैं डर से कांप रही हूँ, रो रही हूँ और रोते - रोते बाबा - बाबा बोल रही हूँ। तभी दूर से मैं देखती हूँ एक बहुत तेज लाइट तेजी से मेरी ओर आ रही है। वो लाइट मेरे बिल्कुल समीप आ कर रुक जाती है। *देखते ही देखते वो लाइट एक बहुत सुंदर आकार धारण कर लेती है और उसके मुख से मधुर आवाज आती है:- "मेरे बच्चे डरो मत, मैं तुम्हारे साथ हूँ"* यह कहकर वो लाइट का फ़रिशता मुझे अपनी बाहों में उठा कर मुझे मेरे घर छोड़ देता है। इस दृश्य को देखते - देखते मैं विस्मय से अपनी आंखें खोलती हूँ और इस दृश्य को याद करते हुए मन ही मन स्वयं को स्मृति दिलाती हूँ कि मेरा बाबा सदा मेरे अंग - संग है।
➳ _ ➳ इस स्मृति में मैं जैसे ही स्थित होती हूँ मैं स्वयं को अपने निराकारी ज्योति बिंदु स्वरूप में अपने निराकार शिव बाबा के साथ कम्बाइंड अनुभव करती हूँ। *कम्बाइन्ड स्वरूप की इस स्थिति में मैं मन बुद्धि रूपी नेत्रों से पार्क के खूबसूरत दृश्य को देख रही हूँ*। मेरे दिलाराम बाबा की लाइट माइट पूरे पार्क में फैली हुई है। उनकी शक्तियों की रंग बिरंगी किरणे चारों और फैल कर परमधाम जैसे अति सुंदर दृश्य का निर्माण कर रही है।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे पार्क का वह दृश्य परमधाम का दृश्य बन गया है। वहां उपस्थित सभी देहधारी मनुष्यों के साकार शरीर लुप्त हो गए हैं और चारों और चमकती हुई निराकारी ज्योति बिंदु आत्मायें दिखाई दे रही हैं। *मैं आत्मा स्वयं को साक्षी स्थिति में अनुभव कर रही हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे कि मैं संकल्प मात्र भी देह से अटैच नही हूँ*। कितनी न्यारी और प्यारी अवस्था है यह। आलौकिक सुखमय स्थिति में मैं सहज ही स्थित होती जा रही हूँ। *निर्संकल्प हो कर, बिंदु बन अपने बिंदु बाप को मैं निहार रही हूँ। उन्हें देखने का यह सुख कितना आनन्द देने वाला है*। बहुत ही निराला और सुंदर अनुभव है यह।
➳ _ ➳ बिंदु बाप के सानिध्य में मैं बिंदु आत्मा उनकी सर्वशक्तियों को स्वयं में समा रही हूँ। उनकी सर्वशक्तियों रूपी किरणों की मीठी - मीठी फुहारे मुझे असीम बल प्रदान कर रही हैं। उनकी शीतल किरणों की छत्रछाया में गहन शीतलता की अनुभूति कर रही हूँ। *आत्मा और परमात्मा का यह मंगल मिलन चित को चैन और मन को आराम दे रहा है*। बाबा से आती सर्वशक्तियों को स्वयं में समाकर मैं शक्तियों का पुंज बन गई हूँ और बहुत ही शक्तिशाली स्थिति का अनुभव कर रही हूँ। यह सुखद अनुभूति करके, अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, अपने बाबा को अपने संग ले कर वापिस अपने कर्म क्षेत्र पर लौट रही हूँ।
➳ _ ➳ बाबा के संग में रह अब मैं निर्भय हो कर जीवन मे आने वाली हर परिस्थिति को सहज रीति पार करते हुए निरन्तर आगे बढ़ रही हूँ। *"स्वयं भगवान मेरे संग है" यह स्मृति मुझमे असीम बल भर देती है और मैं अचल अडोल बन माया के हर तूफान का सामना कर, माया पर सहज ही विजय प्राप्त कर लेती हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं सदा निजधाम और निज स्वरूप की स्मृति से उपराम रहने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं न्यारी प्यारी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं ब्राह्मण आत्मा हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा शुद्धि और विधिपूर्वक सारा कार्य करती हूँ ।*
✺ *मैं ब्राह्मण आत्मा श्रीमत प्रमाण हर कर्म करती हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बापदादा के पास कोई न कोई, चाहे छोटा सा नेकलेस बना के लाओ, चाहे कंगन बना के लाओ, चाहे बड़ा हार बना के लाओ, लेकिन लाना जरूर है। हाथ खाली नहीं आना है। हिम्मत है ना? बनायेंगे ना? बापदादा तो कहेंगे चलो कंगन ही लाओ। क्योंकि बहुत आत्मायें अन्दर टेन्शन से बहुत दुखी हैं। सिर्फ बिचारों में आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं है। *तो आप मास्टर सर्वशक्तिमान उन्हों को हिम्मत दो, तो आ जायेंगे।* जैसे किसको टांग नहीं होती है ना तो लकड़ी की टांग बनाकर देते हैं तो चलता तो है ना! तो आप हिम्मत की टांग दे दो। लकड़ी की नहीं देना, हिम्मत की दो। बहुत दुखी हैं, रहम दिल बनो। बापदादा तो अज्ञानी बच्चों को भी देखता रहता है ना कि अन्दर क्या हालत है! बाहर का शो तो बहुत अच्छा टिपटाप है लेकिन अन्दर बहुत-बहुत दुखी हैं। *आप बहुत अच्छे समय पर बच्चा बने अर्थात् बच गये।*
✺ *ड्रिल :- "अज्ञानी आत्माओं को हिम्मत की टाँग देना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा बापदादा की ऊँगली पकड़ ऊपर आसमान में उड़ रही हूँ... तभी बाबा मेरा ध्यान नीचे धरती की ओर खिंचवाते हैं... और मुझे धरती के भिन्न-भिन्न सीन दिखाते हैं... एक बड़े से हॉस्पिटल के अंदर का दृश्य की ओर बाबा इशारा करते हैं... देखती हूँ की हर आत्मा दुखी, नीरस दिखाई दे रही है... कोई मौत की भीख मांग रही है... तो कोई दर्द से बुरी तरह कराह रही हैं... *ऐसे असहनीय दर्द से पीड़ित आत्माओं को देख मन कांप उठा...*
➳ _ ➳ दूसरा सीन बाबा ने एक कम्पनी का दिखाया जहाँ पर बड़े-बड़े ऑफिसर से लेकर हर पद पर काम करने वाली आत्मा टेंशन से ग्रसित हैं... ऊपर से तो बड़े टिप-टॉप दिखाई दे रहे... झूठी हंसी भी हंस रहे पर अंदर से कितने दुखी है... और *ये दुःख, ये टेंशन एक दूसरे के व्यवहार में न चाहते भी दिखाई दे रहा है...*
➳ _ ➳ मैंने बाबा से पूछा बाबा इनके दुःखो से छुटकारा कैसे हो... बाबा बोले मीठे बच्चे पूरी दुनिया ही विकारों में जल रही हैं... *दुनिया की सभी आत्मायें अभी परेशान हैं... और तुमको ही रहमदिल बन सभी आत्माओं को इन दुःखों से छुड़ाना हैं...* इनको चलने की हिम्मत नहीं बची... बाप आया है फिर भी बाप के पास आने की उसे पहचानने की हिम्मत अब इनमें बाकी नहीं रही हैं... तो आपको ही इन्हें हिम्मत की टांग दे हिम्मत देना होगा...
➳ _ ➳ ये सुनते ही मैं आत्मा एक होनहार बच्चे समान सभी आत्माओं को शक्तियों का दान करने लगी... मैं फ़रिश्ता शिवबाबा की शक्तियों के झरने के नीचे हूँ... और सम्पूर्ण विश्व मुझ से निकलती शक्तियों के नीचे हैं... मुझ से निकलती हुई शक्तियों का अविरल प्रवाह... हर आत्मा को शक्तियों से भर रहा हैं... *परमात्म शक्ति से उनके चेहरे पर चमक आ रही हैं... सभी आत्माओं को हिम्मत की टांग मिलने से झूम रही है... उन्होंने भी अपने पिता को पहचान लिया हैं...*
➳ _ ➳ *सभी आत्मायें बाबा से मिल कर बहुत खुश हैं... प्रेम के अश्रु अविरल बह रहे हैं...* कब के बिछड़े, अब मिले हैं... मैं आत्मा भी इस चिर मिलन को देख गदगद् हो रही हूँ... और बाबा को देखती हूँ... तो बाबा हल्के से मुझे देख मुस्कराते हैं... मानो मुझे सराह रहे हो... और कह रहे हो वाह मेरे बच्चे वाह... तुम तो बाबा के गले का हार लेकर आई हो... मैं आत्मा कहती हूँ बाबा शुक्रिया आपका... करनकरावनहार तो आप ही हैं, हम बस ऊँगली ही लगाते हैं...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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