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 25 / 09 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *पुरुषार्थ कर अपना और सर्व का कल्याण किया ?*

 

➢➢ *कोई भी ऐसा विकर्म तो नहीं किया जिससे रजिस्टर खराब हो ?*

 

➢➢ *निमित पन की स्मृति से माया का गेट बंद किया ?*

 

➢➢ *त्रिकालदर्शी बन हर कर्म किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  विदेही माना देह से न्यारा। *स्वभाव, संस्कार, कमजोरियां सब देह के साथ है और देह से न्यारा हो गया तो सबसे न्यारा हो गया,* इसलिए यह ड्रिल बहुत सहयोग देगी, इसमें कन्ट्रोलिंग पावर चाहिए।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं भाग्यवान आत्मा हूँ"*

 

  सभी अपने को भाग्यवान समझते हो? *वरदान भूमि पर आना यह महान भाग्य है। एक भाग्य वरदान भूमि पर पहुँचने का मिल गया, इसी भाग्य को जितना चाहो श्रेष्ठ बना सकते हो। श्रेष्ठ मत ही भाग्य की रेखा खींचने की कलम है।*

 

  *इसमें जितना भी अपनी श्रेष्ठ रेखा बनाते जायेंगे उतना श्रेष्ठ बन जायेंगे। सारे कल्प के अन्दर यही श्रेष्ठ समय भाग्य की रेखा बनाने का है। ऐसे समय पर और ऐसे स्थान पर पहुँच गये। तो थोड़े में खुश होने वाले नहीं। जब देने वाला दाता दे रहा है तो लेने वाला थके क्यों! बाप की याद ही श्रेष्ठ बनाती है।*

 

  *बाप को याद करना अर्थात् पावन बनना। जन्म-जन्म का सम्बन्ध है तो याद क्या मुश्किल है! सिर्फ स्नेह से और सम्बन्ध से याद करो। जहाँ स्नेह होता है वहाँ याद न आवे, यह हो नहीं सकता। भूलने की कोशिश करो तो भी याद आता।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  अधिकार की निशानी है - अपना-पना अपने बाप के पास आये हैं, अपने परिवार में आये हैं। मेहमान बन कर के नहीं आते लेकिन *बच्चे आये हैं अपने घर में।* चाहे चार दिन के लिए आते हो लेकिन समझते हो - मधुबन अपने स्थान पर पहुँचे हैं। तो यह आना और जाना। आप ब्राह्मणों की जो पढाई है वा *मुरलीधर की जो मुरली है उसका सार यह दो शब्द ही हैं - आना और जाना'।*

 

✧  याद की यात्रा का अभ्यास क्या करते हो? कर्मयोगी का अर्थ ही है - मैं अशरीरी आत्मा शरीर के बंधन से न्यारी हूँ *कर्म करने के लिए कर्म में आती हूँ और कर्म समाप्त कर कर्म-सम्बन्ध से न्यारी हो जाती हूँ* सम्बन्ध में रहते हैं, बंधन में नहीं रहते।

 

✧  तो यह क्या हुआ? *कर्म के लिए आना' और फिर न्यारे हो जाना'।* कर्म के बन्धन वश कर्म में नहीं आते हो लेकिन कर्मेन्द्रियों को अधीन कर अधिकार से कर्म करने के लिए कर्मयोगी बनते हो। इन्द्रियों के कर्म के वशीभूत नहीं हो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *इस ड्रिल को दिन में जितना बार ज्यादा कर सको उतना करते रहना। चाहे एक मिनट करो। तीन मिनट, दो मिनट का टाइम न भी हो एक मिनट, आधा मिनट यह अभ्यास करने से लास्ट समय अशरीरी बनने में बहुत मदद मिलेगी।* बन सकते हैं? अभी सभी अशरीरी हुए या युद्ध में, मेहनत करते-करते टाइम पूरा हो गया? सेकण्ड में बन सकते हो! बहुत काम है फिर भी बन सकते हो? मुश्किल नहीं है? यू.एन. में बहुत भाग दौड़ कर रही हो और अशरीरी बनने की कोशिश करो, होगा? अगर यह अभ्यास समय प्रति समय करेंगे तो ऐसे ही नेचुरल हो जायेगा जैसे शरीर भान में आना, मेहनत करते हो क्या? मैं फलानी हूँ यह मेहनत करते हो ? नेचुरल है। तो यह भी नेचुरल हो जायेगा। जब चाहो अशरीरी बनो, जब चाहो शरीर में आओ। अच्छा काम है आओ इस शरीर का आधार लो लेकिन आधार लेने वाली मैं आत्मा हूँ वह नहीं भूले। *करने वाली नहीं हूँ कराने वाली हूँ। जैसे दूसरों से काम कराते हो ना। उस समय अपने को अलग समझते हो ना! वैसे शरीर से काम कराते हुए भी कराने वाली मैं अलग हूँ यह प्रैक्टिस करो तो कभी भी बॉडी कानसेस की बातों में नीचे ऊपर नहीं होंगे। समझा।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  पढ़ाई में गैलप करना*

 

_ ➳  मीठे बाबा की यादो में डूबी हुई में आत्मा... सोचती हूँ कि *परमधाम से कितनी सजी संवरी मै आत्मा... इस धरा पर उतरी.*.. सुखो को जीते जीते कैसे मै आत्मा... देह के भान में आकर, अपने निज स्वरूप को ही भूल बेठी... कैसे, मै देह समझ कर, इस खेल में उलझ गयी... और अथाह दुखो से घिर गयी... मीठे बाबा ने घर से जो मेरी दारुण दशा को निहारा... *मेरे प्यार में मेरे सुखो की चाहत में, मेरा बाबा धरती पर आ गया... सारी स्मर्तियो को हथेली पर संजोये हुए, मेरे दिल में भरने आ गया..*. अथाह रत्नों को अपनी बाँहों में भरकर... मुझे पुनः सुखो में अमीर और पावन बनाने आ गया... ऐसे मीठे प्यारे दिलेर पिता की आभारी मै आत्मा... मीठे बाबा की झोपडी में प्रवेश करती हूँ....

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान धन के खजानो से भरते हुए मालामाल करते हुए कहा:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे...  *मीठे भाग्य की बदौलत ईश्वर पिता टीचर बनकर, जीवन को ज्ञान निधि से सजा रहा है.*.. इस धन से भरपूर होकर स्वर्ग के मीठे सुखो के अधिकारी बनो... इसलिए जब तक जीना है, अंतिम साँस तक भी पढ़ाई को नही छोड़ना है... यह पढ़ाई ही दिव्य गुणो से सजाकर, पावन दुनिया का मालिक बनाएगी..."

 

_ ➳  *मै आत्मा प्यारे बाबा से सारी खाने और खजाने लेकर मुस्कराते हुए कहती हूँ:-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा *महान भाग्य ने दिलवाये ईश्वरीय प्यार को पाकर खुशियो के ऊँचे शिखर पर हूँ... साधारण जीवन ईश्वरीय प्यार और ज्ञान को पाकर... कितना सुखदायी और मालामाल हो गया है...* मै आत्मा ज्ञान परी बनकर मुस्करा रही हूँ..."

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ईश्वरीय ज्ञान रत्नों की जागीर सौंपते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *सदा ज्ञान रत्नों से खेलते रहो... यह ज्ञान रत्न ही सारे सुखो को आपके कदमो तले सजायेंगे... ईश्वरीय ज्ञान से सदा आबाद रहना है, यह ज्ञान और श्रीमत ही सच्चा सहारा है...* सांसो और यादो में पावन बनकर... पावन दुनिया में अथाह सुखो के साम्राज्य को जीना है...

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा के असीम प्यार को मन बुद्धि में डुबोते हुए कहती हूँ :- "सच्चे साथी मेरे बाबा... *आपने मुझ आत्मा को अपने मजबूत हाथो में थाम मेरा सदा का कल्याण किया है... दुःख भरी दुनिया से निकाल... सुखो के सवेरे को मेरे जीवन में बिखेरा है...* मै आत्मा ईश्वरीय दौलत को पाकर... सदा की अमीरी से भरपूर हो गयी हूँ...

 

   *प्यारे बाबा ने अपने अमूल्य ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा के जीवन को दमकाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *यह ईश्वरीय पढ़ाई अनमोल है... स्वयं भगवान धरा पर आकर, अपनी फूलो सी गोद में बिठाकर... पढ़ाई पढ़ा रहा...* अपने भूले हुए बच्चों को पुनः दिव्य गुणो और पावनता से सजा रहा है... ऐसी पढ़ाई का दिल से सम्मान करो और अंतिम साँस तक पढ़ते रहो... *यह पढ़ाई ही अथाह सतयुगी सुखो में बदल कर... जीवन को सच्ची खुशियो से महकाएगी*...

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा से अखूट खजाने लेकर महा धनवान् बनकर कहती हूँ :-* "मीठे दुलारे मेरे बाबा... मै आत्मा अपने मीठे भाग्य पर बलिहार हूँ... जिसने मुझे जादूगर बाबा से मिलवाया हे... *अपने पुण्यो की आभारी हूँ जिसने ईश्वरीय अमीरी से मुझे छलकाया है.*.. भगवान को पाने वाली, उनसे पढ़ने वाली मै महा भाग्यवान आत्मा हूँ... आपका हाथ और साथ मै आत्मा कभी न छोडूंगी..."मीठे बाबा से असीम प्यार को लिए दिल में समाये मै आत्मा... इस धरा पर उतर आयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  कोई भी ऐसा विकर्म नही करना जिससे रजिस्टर खराब हो*"

 

_ ➳  बाबा के कमरे में बैठी, बाबा के चित्र को बड़े प्यार से निहारते हुए, मैं उनकी देन अपने इस ईश्वरीय ब्राह्मण जीवन के लिए मन ही मन उन्हें शुक्रिया अदा करते हुए उन अखुट प्राप्तियों को याद कर रही हूँ जो बाबा ने मुझे दी है। *उन अखुट प्राप्तियों को स्मृति में लाकर अपने बेरंग जीवन में खुशियों के रंग भरने वाले अपने दिलाराम बाबा के चित्र को निहारते हुए मैं महसूस करती हूँ जैसे बाबा के मुख मण्डल पर फैली मीठी मधुर मुस्कान मुझे कोई इशारा दे रही हैं और बाबा आंखों ही आंखों में मुझ से कुछ कह रहे हैं*। बाबा के अव्यक्त इशारे को समझने का प्रयास करते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे बाबा की अव्यक्त आवाज धीरे - धीरे मेरे कानों में सुनाई पड़ रही है। 

 

_ ➳  बाबा कह रहे हैं, बच्चे-: "कभी कोई विकर्म करके अपने इस अमूल्य जीवन रूपी रजिस्टर पर दाग मत लगने देना। इसे कभी खराब नही होने देना। *जैसे एक विद्यार्थी अपनी स्टूडेंट लाइफ में पूरा ध्यान रखता है कि उससे ऐसा कोई भी गलत कर्म ना हो जिससे उसके चरित्र पर कोई आंच आये और उसका रजिस्टर खराब हो। ऐसे ही तुम्हारा ये ईश्वरीय जीवन पुरुषार्थी जीवन है जहाँ कदम - कदम पर सम्भल कर चलना पड़े एक छोटे से छोटी गलती भी रजिस्टर को दागी बना सकती है इसलिए अपनी बहुत सम्भल रखनी है*। बाबा के अव्यक्त इशारे को समझ कर, बाबा से ऐसा कोई भी कर्म ना करने का मैं प्रोमिस करती हूँ जो मेरे रजिस्टर को खराब करने के निमित बने।

 

_ ➳  अपने रजिस्टर को सदा साफ, स्वच्छ रखने का बाबा से वायदा करके, परमात्म बल से स्वयं को बलशाली बनाने के लिए अब मैं अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने मस्तक पर एकाग्र कर, अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होकर, अपने गुणों और शक्तियों की अनुभूति करते हुए, अपने पिता परमात्मा के पास  जाने वाली आंतरिक यात्रा पर चलने के लिए तैयार होती हूँ। *देह भान से न्यारी, मन बुद्धि की इस सुहावनी यात्रा पर चलने के लिए, मैं आत्मा भृकुटि के सिहांसन से उतर कर, देह रूपी मंदिर की गुफा से बाहर आती हूँ और एक दिव्य प्रकाश चारों ओर फैलाती हुई ऊपर नीले गगन की ओर चल पड़ती हूँ*। 

 

_ ➳  अपने चारों और एक दिव्य प्रकाश के कार्ब को धारण किये हुए, मैं जगती ज्योति सेकण्ड में आकाश को पार करके, उससे ऊपर सूक्ष्म वतन को भी पार करके, मणियों की उस खूबसूरत दुनिया, अपने पिता परमात्मा के शान्तिधाम घर मे प्रवेश करती हूँ जहाँ चारो और शांति के अथाह वायब्रेशन्स फैले हुए हैं। *इन वायब्रेशन्स को अपने अंदर समा कर गहन शान्ति की अनुभूति करती हुई मैं धीरे - धीरे शांति के सागर अपने पिता के पास पहुँचती हूँ और उनकी एक - एक किरण को बड़े प्यार से निहारते हुए, उनकी किरणो रूपी बाहों के आगोश में समा जाती हूँ*। अपनी किरणों रूपी बाहों में भरकर, अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटा कर बाबा मुझे तृप्त कर देते हैं और अपनी समस्त शक्तियों का बल मेरे अंदर भरकर मुझे शक्तिशाली बना देते हैं।

 

_ ➳  बाबा का असीम स्नेह पाकर, बाबा की शक्तियों को स्वयं में समाकर, सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप बनकर, बाबा से किये हुए वायदे को पूरा करने के लिए मैं वापिस अपनी साकारी दुनिया में फिर से अपना पार्ट बजाने के लिए लौट आती हूँ। *अपने साकार शरीर रूपी रथ में भृकुटि के भव्य भाल पर बैठ, कर्मेन्द्रियों से कर्म करते, इस बात का अब मैं विशेष ध्यान देती हूँ कि जाने - अनजाने में भी मुझ से ऐसा कोई विकर्म ना हो जिससे मेरा रजिस्टर खराब हो*। अपने रजिस्टर को साफ स्वच्छ रखने के बाबा से किये हए अपने वायदे को निभाने के लिए, हर कदम श्रीमत प्रमाण चलने पर मैं पूरा अटेंशन दे रही हूँ। *कदम - कदम पर मम्मा, बाबा को फॉलो कर, मनसा - वाचा - कर्मणा श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनने का अब मैं पूरा पुरुषार्थ कर, अपने रजिस्टर को कभी भी खराब ना होने देने की अपनी प्रतिज्ञा का पालन पूरी दृढ़ता और लग्न के साथ कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं निमित्त-पन की स्मृति से माया का गेट बंद करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं डबल लाइट आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा त्रिकालदर्शी बनकर हर कर्म करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सहज ही सफलता प्राप्त करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा त्रिकालदर्शी और सफलतामूर्त हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. *बापदादा यही चाहते हैं कि अब थोड़े समय के लिए पुरुषार्थ के प्रालब्ध स्वरूप बन जाओ।* बन सकते हो कि पुरुषार्थ की मेहनत अच्छी लगती है? प्रालब्ध वाले बनेंगे? अभी पुरुषार्थ कर रहा हूँपुरुषार्थ हो जायेगा, करके दिखायेंगे, यह शब्द समाप्त हों। करके दिखायें क्या, दिखाओ। और कब दिखायेंगेक्या विनाश के समय दिखायेंगेइसकी बहुत सहज विधि है कि अब मास्टर दाता बनो। *बाप से लिया है और लेते भी रहो लेकिन आत्माओं  से लेने की भावना नहीं रखो* - यह कर लें तो ऐसा हो। यह बदले तो मैं बदलूंयह लेने की भावना है। ऐसा हो तो ऐसा हो। यह लेने की भावनायें हैं। ऐसा हो नहींऐसा करके दिखाना है। हो जाए तो नहींलेकिन होना ही है और मुझे करना है। *मुझे बायब्रेशन देना है। मुझे रहमदिल बनना है। मुझे गुणों का सहयोग देना है,मुझे शक्तियों का सहयोग देना है। मास्टर दाता बनो। लेना है तो एक बाप से लो। अगर और आत्माओं से भी मिलता है तो बाप का दिया हुआ ही मिलेगा। तो दाता बन फ्राकदिल बनो।* देते रहोदेने आता हैया सिर्फ लेने आता हैअब जो जमा किया है वह दो। आपस में ब्राह्मण आत्मायें भी मास्टर दाता बनो। और दे तो मैं दूं,नहीं। मुझे देना है।

 

 _ ➳  2. जब खजानों से भरपूर हो तो देते जाओ। यह क्यों करतायह क्यों कहता? यह सोच नहीं करो। *रहमदिल बन अपने गुणों काअपनी शक्तियों का सहयोग दो - इसको कहा जाता है मास्टर दाता। महा सहयोगी। सहयोगी भी नहींमहा सहयोगी बनो। महा दाता बनो।*

  

✺   *ड्रिल :-  "महा सहयोगी, मास्टर दाता बनने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *नवल रूप बिखराती हुई हरी-भरी सुन्दर धरती, गगन से स्वर्णिम किरणें लहराता हुआ सूर्य, मीठी मधुर कलरव करते पंछी, शरद ऋतु के आगमन से ख़ुशी में झूम रहे हैं, मधुर संगीत गा रहे हैं... चारों ओर की हरियाली मन को लुभा रही है... इस सुहावने मौसम में मैं आत्मा इन सतरंगी समाओं का आनंद लेते हुए सेंटर जा रही हूँ...* प्यासी सूखी धरती की प्यास बुझ गई है... और एक तरफ प्यासी, तडपती आत्मायें मंदिरों में भटक रही हैं... शारदीय नवरात्र के उपलक्ष्य में मंदिरों में भक्तों की लाइनें लगी हुई हैं... लाउडस्पीकर में माता के गीत गूंज रहे हैं... मंत्रोच्चार, भजनकीर्तन हो रहे हैं... मंदिरों में पूजन, हवनयज्ञ हो रहे हैं... चारों ओर देवियों की विधि-विधान से पूजा हो रही है... भक्त व्रत, उपवासदानपुण्य कर रहे हैं... मैं आत्मा सेंटर जाते-जाते इन भक्तों को देख रही हूँ... *ये सभी अज्ञानी आत्माएं अभी भी इन आडम्बरों में फसें हुए हैं... कितनी भाग्यशाली आत्मा हूँ मैं जो स्वयं परमात्मा, सर्व खजानों का दाता, प्यार का सागर ही मुझे मिल गया...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा सेंटर पहुंचकर बाबा के कमरे में बैठ जाती हूँ और बाबा को एकटक निहारती रहती हूँ... अपने भाग्य पर नाज करती बाबा की याद में खो जाती हूँ... और अपने को फरिश्ते स्वरूप में सूक्ष्म वतन में पाती हूँ... *प्यारे बाबा प्यार से मुझ फरिश्ते को अपनी गोदी में बिठा लेते हैं... प्यारे बाबा की जादुई भरी मुस्कान मुझ पर जादू चला रही है... सर्व गुण-शक्तियों के सागर के नैनों से निकलती तेजस्वी किरणें मुझ फरिश्ते पर पडकर मेरी चमक और बढ़ा रही हैं...* बाबा मेरे सिर पर अपना वरदानी हाथ फेरते हैं... बाबा के वरदानी हाथों से वरदानों की बरसात हो रही है... मैं आत्मा अखूट खजानों से भरपूर हो रही हूँ... सर्व, गुण शक्तियों से सम्पन्न बन गई हूँ... मुझ फरिश्ते से अलौकिकता झलक रही है... मैं फरिश्ता बाप समान बन रही हूँ... दाता की संतान मास्टर दाता बन गई हूँ...

 

 _ ➳  बाबा अपने हाथों से एक सतरंगी हीरों से भरी एक सोने की थाली सजाते हैं... *बाबा के हाथों से निकलती प्रेम, सुख, शांति, आनंद की किरणें हीरों का रूप लेकर थाली में भरते जा रहे हैं... और बाबा मेरे हाथ में थाली देते हैं और प्यार से मुझे दृष्टि देते हैं... मुझ फरिश्ते से अनेक फरिश्ते निकलते जा रहे हैं... मेरे चारों ओर मेरे ही रूप में अनगिनत फरिश्ते हाथों में हीरों से सजी सोने की थाली लेकर खड़े हैं...* फिर बापदादा के साथ मुझ फरिश्ते के सभी रूप धरती पर उतरते हैं... चारों ओर की मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों, चर्चों के सभी दुखी, अज्ञानी आत्माओं के सामने खड़े हो जाते हैं... और हम फरिश्ते थाली से ज्ञान की नीले रंग के हीरे सब पर डालते हैं... सभी अज्ञानी आत्माओं की अज्ञानता दूर हो रही है... सबको सत्य बाप का परिचय मिल रहा है...

 

 _ ➳  *फिर प्रेम की हरे रंग के हीरे डालते हैं, सबके अन्दर की घृणा भावना खत्म होकर प्रेम और स्नेह भर रहा है... सुख की पीली रंग के हीरे डालते ही सबके दुख पीड़ा दूर हो रहे हैं... सबको अतीन्द्रिय सुख का अनुभव हो रहा है...* शांति की आसमानी रंग के हीरों से सबके अन्दर से अशांति बाहर निकलती जा रही है... फिर हम फरिश्ते आनंद की बैंगनी रंग के हीरे सब पर डालते हैं... सबको सुख, शांति, आनंद का अनुभव हो रहा है... एक दूसरे प्रति सहयोग की भावना बढ़ रही है... फिर हम फरिश्ते शक्तियों की लाल रंग के हीरे सब पर डालते हैं... सबके अन्दर की कमी, कमजोरियां खत्म हो रही हैं... सभी अपने अन्दर अलौकिक शक्तियों का अनुभव कर रहे हैं... *पवित्रता के सफेद हीरे सब पर डालते ही सबके अन्दर की अपवित्रता, विकारों रूपी कीचड़ बाहर निकल रहा है... रूहानियत की सुगंध से भरपूर हो रहे हैं... इन चमकते हीरों से सजकर सभी कौड़ी से हीरे तुल्य बन रहे हैं... चारों ओर खुशहाली छा गई है...*  

 

 _ ➳  अब मुझ फरिश्ते के सभी स्वरुप मुझमें एक हो गए हैं... और मैं देखती हूँ मेरे हाथों में रखी हीरों की थाली को जो और भी ज्यादा चमकते हुए हीरों से भर गई है... *जितना मैं मास्टर दाता बन देते जा रही हूँ, मेरी थाली के हीरे बढ़ते जा रहे हैं... मेरे अविनाशी खजाने बढ़ते जा रहे हैं...* मेरे खजानों के भंडार सदा भरपूर रहते हैं... बाबा ने मुझे वरदानी, महादानी बना दिया है... जो भी मुझे बाबा से मिलता है मैं आत्मा सबको देती जा रही हूँ... सदा रहमदिल बन अपने गुणों काअपनी शक्तियों का सहयोग निःस्वार्थ भावना से देती रहती हूँ... शुभ भावनाओं, शुभ कामनाओं के वायब्रेशन्स चारों ओर फैलाती रहती हूँ... मैं आत्मा सिर्फ एक बाबा से ही लेती हूँ, अन्य आत्माओं से कभी भी लेने की भावना नहीं रखती हूँ... *किसी से भी बिना अपेक्षा किए फ्राकदिल बन दे रही हूँ... सदा विश्व कल्याण के स्टेज पर सेट रहकर महा सहयोगी, महा दाता बन देती रहती हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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