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 28 / 09 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सर्विस में धोखा तो नहीं दिया ?*

 

➢➢ *कभी कोई से झगडा आदि हुआ तो उसका चिंतन तो नहीं किया ?*

 

➢➢ *बीती हुई बातों को रहमदिल बन समाया ?*

 

➢➢ *संतुष्ट मणि बन स्वतः ही प्रभु प्रिय, लोक प्रिय और स्वयं प्रिय बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जैसे जोर-शोर की सेवा द्वारा सम्पूर्ण समाप्ति के समय को समीप ला रहे हो, ऐसे अब स्वयं को सम्पन्न बनाने का भी प्लैन बनाओ।* अब धुन लगाओ कि कुछ भी हो जाए कर्मातीत बनना ही है। इसकी डेट अब फिक्स करो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं राजयोगी श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

✧  सदा अपने को राजयोगी श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? *राजयोगी अर्थात् सर्व-कर्म-इन्द्रियों के राजा। राजा बन कर्म-इन्द्रियों को चलाने वाले, न कि कर्म-इन्द्रियों के वश चलने वाले। जो कर्म-इन्द्रियों के वश चलने वाले हैं उनको प्रजायोगी कहेंगे, राजयोगी नहीं। जब ज्ञान मिल गया कि यह कर्म-इन्द्रियाँ मेरे कर्मचारी हैं, मैं मालिक हूँ, तो मालिक कभी सेवाधारियों के वश नहीं हो सकता।*

 

✧  कितना भी कोई प्रयत्न करे लेकिन राजयोगी आत्मायें सदा श्रेष्ठ रहेंगी। *सदा राज्य करने के संस्कार अभी राजयोगी जीवन में भरने हैं। कुछ भी हो जाए - यह टाइटिल अपना सदा याद रखना कि - 'मैं राजयोगी हूँ'। सर्वशक्तिवान का बल है, भरोसा है तो सफलता अधिकार रूप में मिल जाता है।*

 

✧  अधिकार सहज प्राप्त होता है, मुश्किल नहीं होता। सर्व शक्तियों के आधार से हर कार्य सफल हुआ ही पड़ा है। *सदा फखुर रहे कि मैं दिलतख्तनशीन आत्मा हूँ। यह फखुर अनेक फिकरों से पार कर देता है। फखुर नहीं तो फिकर ही फिकर है। तो सदा फखुर में रह वरदानी बन वरदान बाँटते चलो। स्वयं सम्पन्न बन औरों को सम्पन्न बनाना है।* औरों को बनाना अर्थात् स्वर्ग के सीट का सर्टीफिकेट देते हो। कागज का सर्टीफिकेट नहीं, अधिकार का!

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  जब चाहो तब *अशरीरी स्थिति* में स्थित हो जाओ। और जब चाहे तब *कर्मयोगी बन जाओ - यह अभ्यास बहुत पक्का चाहिए।* ऐसे न हो कि आप अशरीरी बनने चाहो और शरीर का बंधन, कर्म का बंधन, व्यक्तियों का बंधन, वैभवों का बंधन, स्वभाव-संस्कारों का बंधन अपनी तरफ आकर्षित करे।

 

✧  *कोई भी बंधन अशरीरी बनने नहीं देगा।* जैसे कोई टाइट ड्रेस पहनते हैं तो समय पर सेकण्ड में उतारने चाहें तो उतार नहीं सकेंगे, खिंचावट होती है क्योंकि शरीर से चिपटा हुआ है। ऐसे कोई भी बंधन का खिंचाव अपनी तरफ खींचेगा। बंधन आत्मा को टाइट कर देता है।

 

इसलिए *बापदादा सदैव यह पाठ पढाते हैं - निर्लिप्त अर्थात न्यारे और अति प्यारे।* यह बहुतकाल का अभ्यास चाहिए। ज्ञान सुनना सुनाना यह अलग चीज है लेकिन यह अभ्यास अति आवश्यक है। , *पास विद ऑनर बनना है तो इस अभ्यास में पास होना अति आवश्यक है।* और इसी अभ्यास पर अटेन्शन देने में डबल अण्डरलाइन करो, तब ही डबल लाइट बन कर्मातीत स्थिति को प्राप्त कर डबल ताजधारी बनेंगे।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ लेकिन यहाँ देह-भान के जो भिन्न-भिन्न रूप हैं, उन भिन्न-भिन्न रूपों को तो जानते हो ना? कितने देह-भान के रूप हैं, उसका विस्तार तो जानते हो लेकिन इस अनेक देह-भान के रूपों को जानकर, बेहद के वैराग्य में रहना। देह-भान, देही अभिमान में बदल जाए। जैसे देह-भान एक नेचुरल हो गया, ऐसे देही-अभिमान नेचुरल हो जाए क्योंकि हर बात में पहला शब्द देह ही आता है। चाहे सम्बन्ध तो भी देह का ही सम्बन्ध है, पदार्थ हैं तो देह के पदार्थ हैं। तो मूल आधार देहभान है। *जब तक किसी भी रूप में देह-भान है तो वैराग्य वृत्ति नहीं हो सकती। और बापदादा ने देखा कि वर्तमान समय जो देह-भान का विघ्न है उसका कारण है कि देह के जो पुराने संस्कार हैं, उससे वैराग्य नहीं है। पहले देह के पुराने संस्कारों से वैराग्य चाहिए। संस्कार स्थिति से नीचे ले आते हैं।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सारी दुनिया के सच्चे-सच्चे मित्र बनना"*

 

_ ➳  *अपने दुःख भरे अतीत की तुलना में, सुंदर सजीले वर्तमान को देख... जब स्वयं निराकार भगवान ने कोटो में कोई और कोई में भी कोई... मुझ आत्मा को... अपना बना...* मेरे जीवन को सुन्दर... रंग-बिरंगे रंगों से श्रृंगारित कर दिया... प्यारे बाबा ने पवित्रता के रंग में रंगकर, मुझ आत्मा को शिखर पर सजा दिया... *ज्ञान और योग के पानी से निरन्तर गुणों... और शक्तियों की पंखुड़ियों से खिली मैं आत्मा... समस्त विश्व को अपनी रूहानियत की खुशबू से सराबोर कर रही हूँ...*

 

  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को मेरे महान भाग्य के नशे में डुबाते हुए कहा :-* "मेरे प्यारे फूल बच्चे... स्वयं भगवान ने परमधाम से आकर, आप महान बच्चों को अपनी आँखों का तारा बनाया है... दुःख भरी जिंदगी से बाहर निकाल, सुख भरी गोद में बिठाया है... *आप बच्चे निराकार और साकार पिता की अनूठी पालना में पलने वाले पद्मापद्म सौभाग्यशाली बच्चे हो... सदा इसी नशे में रहना... क्योंकि ऐसा प्यारा भाग्य तो देवताओं का भी नहीं है..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा ईश्वरीय पालना में सजे संवरे अपने महान भाग्य को देख पुलकित होते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मीठे प्यारे बाबा... मुझ आत्मा ने... आप... स्वंय भाग्यविधाता बाप को पा लिया, इससे अच्छी बात और क्या होगी... *आपने मेरे कौड़ी जैसे जीवन को, हीरे जैसा... बेशकीमती बना दिया है... मैं आत्मा असीम सुखों की अनुभूतियों से भर गई हूँ... अलौकिक और पारलौकिक पिता को पाने वाली... मैं आत्मा देवताओं से भी ज्यादा भाग्यशाली हूँ..."*

 

*प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को विश्व कल्याण की भावनाओं से सजाते हुए कहा :-* "मीठे लाडले बच्चे... *आप बच्चे बाप के मददगार हो... तुम पहले अपने पर रहम करो... फिर सभी आत्माओं के... विकारों रूपी गन्दगी को निकालने की सेवा करो... प्यारे पिता को पाकर, जो सच्चे अहसासों को आपने जिया है... उनकी अनुभूति हर दिल को कराओ... सबके जीवन में आप समान खुशियों की बहारों को सजाओ..."* 

 

_ ➳  *मैं आत्मा मीठे बाबा से अमूल्य ज्ञान रत्नों को पाकर समस्त विश्व में इस ज्ञान धन की दौलत लुटाकर कहती हूँ :-* "मेरे प्यारे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपसे पायी इस अथाह ज्ञान सम्पदा की अपनी बाँहो में भरकर, हर दिल को आपकी ओर आकर्षित कर रही हूँ... *मैं आत्मा... आपकी श्रीमत पर चल... आप सच्चे साथी को साथ रख... हर आत्मा के प्रति शुभ भावना, शुभ कामना... रहम की भावना रख, उनके प्रति सुख, शांति, प्रेम की किरणें फैला रही हूँ...*

 

*प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा में शुभ संकल्पों के संस्कारों को पक्का कराते हुए कहा :-*"मेरे मीठे मीठे अथक सेवाधारी बच्चे... *हर आत्मा के प्रति सदा शुभ भावना रख... मास्टर रहम का सागर बन... अपना बनाओ... किसी भी आत्मा के प्रति नफरत की भावना नहीं रखो... बल्कि उनके भी सोये भाग्य को जगाकर, खुशियों के दामन से सजाओ..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा अपने मीठे प्यारे बाबा के प्यार पर दिल से न्योछावर होकर कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा... आपने शुभ संकल्पों और शुभ भावना का जादू मुझे सिखाकर, मेरा जीवन कितना निराला और अनोखा कर दिया है... *मैं आत्मा शुभ भावना से भरकर, प्यारे और मीठे जीवन को सहज ही पा गयी हूँ... आपसे पाये असीम प्यार की तरंगे... पूरे विश्व पर बिखेरने वाली विश्व कल्याणकारी बन गयी हूँ... मीठे बाबा को दिल की गहराइयों से शुक्रिया कर मैं आत्मा... साकार वतन में लौट आयी..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप का पूरा - पूरा मददगार बनना है*"

 

_ ➳  भृकुटि सिंहासन पर विराजमान मैं तेजस्विनी मणि, बाबा की श्रीमत कर चल, बाबा के कार्य में पूरी पूरी मददगार बन, सर्विस में लग जाने वाली सच्ची सेवाधारी आत्मा हूं। मैं वह कोटो में कोई, कोई में भी कोई महान आत्मा हूँ जिसे स्वयं भगवान ने अपना मददगार चुना है। *सृष्टि परिवर्तन के महान कार्य में मुझे सहयोगी बनाकर, मेरे प्यारे परमपिता परमात्मा शिव बाबा ने मुझे मेरा सर्वश्रेष्ठ भाग्य बनाने का डायमण्ड चांस दिया है*।

 

_ ➳  संगमयुग पर भगवान बाप द्वारा मिली सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों और अपने सर्वश्रष्ठ भाग्य के बारे में मैं जैसे जैसे विचार कर रही हूं उतना ही बाबा से मिलने की तड़प भी तीव्र होती जा रही है। इसलिए *अपने प्यारे भाग्य विधाता बाबा की मीठी-मीठी यादों में खोई मैं उनसे मिलन मनाने, उनकी अनमोल शिक्षाये लेने और उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर करने के लिए इस साकारी देह से बाहर निकल कर ऊपर की ओर चल पड़ती हूँ*। आकाश के पार, सूक्ष्म वतन के भी पार अब मैं स्वयं को परमधाम में अपने मीठे प्यारे शिव बाबा के सानिध्य में स्पष्ट देख रही हूं।

 

_ ➳  बाबा अपनी सर्वशक्तियों से मुझे भरपूर कर रहे है। ऐसा लग रहा है जैसे अपनी समस्त ऊर्जा का भंडार बाबा मेरे अंदर समाहित कर रहे हैं ताकि संपूर्ण ऊर्जावान बन मैं विश्व की समस्त आत्माओं का कल्याण करने के निमित बन बाबा के कार्य में मददगार बन सकूँ। *परमात्म शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर, शक्तियों का पुंज बन अब मैं परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और पहुंच जाती हूँ सूक्ष्म लोक में*। जहां मेरे मीठे प्यारे निराकार शिव भगवान अपने निर्धारित रथ ब्रह्मा बाबा के मुख कमल से मुझे अपनी मीठी मधुर समझानी देने के लिए विराजमान हैं।

 

_ ➳  अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर अब मैं बापदादा के सामने पहुंच जाता हूँ। *बाबा मुझे देखते ही आओ मेरे मददगार सेवाधारी बच्चे कह कर मुझे गले से लगा लेते हैं*और अपने पास बिठा कर बाबा आज की कलयुगी दुनिया का सीन मेरे सामने इमर्ज करते हैं और मुझ से कहते हैं देखो बच्चे कैसे विकारों के वशीभूत हो कर आज सभी एक दूसरे को दुःख दे रहें हैं। रोती, बिलखती, दुःख से पीड़ित आत्माओं को मैं देख रही हूँ।

 

_ ➳  बाबा मेरा ध्यान अपनी और खिंचवाते है और मुझ से कहते हैं मेरे मीठे बच्चे- "इस दुःख से भरी दुनिया को मैं फिर से सुख की दुनिया बनाने आया हूँ और इस कार्य मे आपको मेरा मददगार बनना है"। *सदा इस बात को स्मृति में रखना है कि इस संगम युग पर आपका जन्म बाप की मदद करने के लिए हुआ है*। इसलिए विचार सागर मंथन कर सेवा की नई नई युक्तियां निकालनी है। जो बच्चे आज तक मुझ से बिछुड़े हुए हैं उन तक मेरा सन्देश पहुंचा कर उन्हें मुझ से मिलवाना है ।

 

_ ➳  अपने प्रति बाबा की आशाओं को मैं फ़रिशता स्पष्ट अनुभव कर रहा हूँ जिन्हें पूरा करने के लिए मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट आता हूँ और अपने ब्राह्मण स्वरूप में विराजमान हो कर *अब मैं बाबा से प्रोमिस करती हूं कि श्रीमत पर चल, याद से अपने अंदर बल भरकर अपने योगयुक्त और युक्तियुक्त बोल से, अपनी शक्तिशाली मनसा वृति से और अपने श्रेष्ठ कर्मो से मैं अनेकों आत्माओं को आप समान बनाऊँगी* और सृष्टि परिवर्तन के इस महान कार्य में बाबा की मददगार अवश्य बनूँगी।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं बीती हुई बातों को रहमदिल बन समाने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं शुभ चिंतक आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं संतुष्ट आत्मा हूँ  ।*

   *मैं आत्मा प्रभु प्रिय, लोकप्रिय और स्वयं प्रिय हूँ  ।*

   *मैं संतुष्टता की देवी हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *बेहद की सेवा में समय लगाने से समस्या सहज ही भाग जायेगी क्योंकि चाहे अज्ञानी आत्मायें हैंचाहे ब्राह्मण आत्मायें हैं लेकिन अगर समस्या में समय लगाते हैं वा दूसरों का समय लेते हैं तो सिद्ध है कि वह कमजोर आत्मायें हैंअपनी शक्ति नहीं है।* जिसको शक्ति नहीं होपांव लंगड़ा हो और उसको आप कहो दौड़ लगाओतो लगायेगा या गिरेगातो समस्या के वश आत्मायें चाहे ब्राह्मण भी हैं लेकिन कमजोर हैंशक्ति नहीं हैतो वह कहाँ से शक्ति लायेंबाप से डायरेक्ट शक्ति ले नहीं सकता क्योंकि कमजोर आत्मा है। तो क्या करेंगेकमजोर आत्मा को दूसरे कोई का ब्लड देकर ताकत में लाते हैंकोई शक्तिशाली इन्जेक्शन देकर ताकत में लाते हैं *तो आप सबमें शक्तियां हैं। तो शक्ति का सहयोग दोगुण का सहयोग दो। उन्हों में है ही नहींअपना दो।*

 

 _ ➳  पहले भी कहा ना - दाता बनो। वह असमर्थ हैंउन्हों को समर्थी दो। *गुण और शक्ति का सहयोग देने से आपको दुआयें मिलेंगी और दुआयें लिफ्ट से भी तेज राकेट हैं।* आपको पुरुषार्थ में समय भी देना नहीं पड़ेगादुआओं के राकेट से उड़ते जायेंगे। पुरुषार्थ की मेहनत के बजाए संगम के प्रालब्ध का अनुभव करेंगे। *दुआयें लेना - वह सीखो और सिखाओ। अपना नेचरल अटेन्शन और दुआयें, अटेन्शन भी टेन्शन मिक्स नहीं होना चाहिएनेचरल हो।* नालेज का दर्पण सदा सामने है ही। उसमें स्वत: सहज अपना चित्र दिखाई देता ही रहेगा। इसीलिए कहा कि पर्सनैलिटी की निशानी है प्रसन्नचित। यह क्योंक्याकैसे। यह के के की भाषा समाप्त। दुआयें लेना और देना सीखो। *प्रसन्न रहना और प्रसन्न करना - यह है दुआयें देना और दुआयें लेना।* कैसा भी हो आपकी दिल से हर आत्मा के प्रति हर समय दुआयें निकलती रहें - इसका भी कल्याण हो। इसकी भी बुद्धि शान्त हो। यह ऐसायह वैसा - ऐसा नहीं। सब अच्छा।

 

✺   *ड्रिल :-  "बेहद की सेवा से दुआयें लेने और देने का अनुभव"*

 

 _ ➳  अमृतवेले, मैं आत्मा एकांत में एक शांत स्थान पर बैठ जाती हूँ... *सुबह की ठंडी- ठंडी हवाओं में, मैं आत्मा... एक के ही अंत में समा इस देह से बिल्कुल... न्यारी हो चाँद तारो को पार करती हुई... फरिश्ता स्वरुप में स्थित हो फरिश्तो की दुनिया में चली जाती हूँ...* जहाँ, चारो... ओर चाँदनी सा प्रकाश बिखरा हुआ है... मैं आत्मा, प्रकाश को चीरती हुई आगे बढ़ती हूँ... और अपने प्यारे बाबा को अपने सामने आता हुआ देखती हूँ... बाबा मुस्कुराते हुए मेरे सामने आ गए है...

 

 _ ➳  *बाबा बाहे फैलाये... मुझ आत्मा का आह्वान करते है... आओ मेरे प्यारे, मीठे बच्चे आओ...* मैं आत्मा झट से प्यारे बाबा की बाहों में समा जाती हूँ... बाबा के मस्तक वा नयनो से निकलती हुई दिव्य किरणे... मुझ आत्मा में समाती जा रही है... मुझ आत्मा से कब, क्या, क्यों, कैसे????... सभी प्रश्न, सभी व्यर्थ संकल्प, आसुरी संस्कार निकलते जा रहे है... *मैं आत्मा सर्व शक्तियों वा गुणों से भरपूर हो एकदम हल्की हो जाती हूँ...*

 

 _ ➳  सर्व शक्तियों वा गुणों से भरपूर हो मैं आत्मा, ज्ञान के दर्पण में अपना आदि अनादि स्वरुप देखती हूँ... *मैं शक्ति स्वरुप आत्मा हूँ...* मुझे कोई सहयोग दे तो मैं कार्य करू, नही... मुझे सहयोग देना है... शक्तिहीन में ज्ञान का फ़ोर्स भर, गिरते को उठाना है... आत्मिक शक्ति को बढ़ाना है...

 

 _ ➳  *दाता स्वरुप बन मैं आत्मा, कमजोर आत्माओ में शक्ति का बल भरती हूँ...*संपर्क में आने वाली सभी आत्माओ को, चाहे अज्ञानी है, चाहे ब्राह्मण है... सभी को आत्मिक दृष्टि से देखती हूँ... गुणवान बन सर्व के गुणों वा विशेषताओं को देखती हूँ वा उनकी महिमा का बखान करती हूँ... *उमंग-उत्साह के पंख लगा मैं आत्मा, बेहद की सेवा में समय सफल कर हर समस्या, हर परिस्थिति को पार करती जाती हूँ...*

 

 _ ➳  *महानता ही निर्माणता है...* मैं आत्मा निर्माण भाव से सर्व का कल्याण करती हूँ... भल आत्मा कैसी भी हो, सभी को शुभ भावना, शुभ कामना देती हूँ... प्रसन्नचित रह सबको प्रसन्न करती हूँ... साक्षीद्रष्टा हो, बना बनाया खेल देखती हूँ... जो बीत गया वह भी अच्छा, जो हो रहा है वह और अच्छा और... जो होने वाला है वह और भी अच्छा... यह ऐसा, यह वैसा नही, सब कुछ अच्छा ही अच्छा... सर्व आत्माओं की दुआयें लिफ्ट का काम करती है... *दुआयें देना ही लेना है... दुआयें प्राप्त कर मैं आत्मा पुरुषार्थी जीवन में निरन्तर आगे बढ़ती जा रही हूँ... इस संगम पर पुरुषार्थ करना नही पड़ रहा, स्वतः होता जा रहा है... मैं आत्मा संगम पर प्रालब्ध का अनुभव करती हुई संगमयुग की मौजो में झूमती रहती हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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