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 26 / 09 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सुप्रीम टीचर की पढाई हमें नर से नारायण बनाती है" - यह निश्चय रहा ?*

 

➢➢ *मरजीवा स्थिति का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *सवा स्थिति की सीट पर सेट रह परिस्थितियों पर विजय प्राप्त की ?*

 

➢➢ *दृढ़ता द्वारा कड़े संस्कारों को भी मोम की तरह पिघलाया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *चारों ओर हलचल है, व्यक्तियों की, प्रकृति की हलचल बढ़नी ही है, ऐसे समय पर सेफ्टी का साधन है सेकण्ड में अपने को विदेही, अशरीरी वा आत्म-अभिमानी बना लेना। तो बीच-बीच में ट्रायल करो* एक सेकण्ड में मन-बुद्धि को जहाँ चाहे वहाँ स्थित कर सकते हैं! इसको ही साधना कहा जाता है।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं पदमापदम भाग्यवान हूँ"*

 

  अपने को पद्मापदम भाग्यवान अनुभव करते हो? क्योंकि देने वाला बाप इतना देता है जो एक जन्म तो भाग्यवान बनते ही हो लेकिन अनेक जन्म तक यह अविनाशी भाग्य चलता रहेगा। ऐसा अविनाशी भाग्य कभी स्वप्न में भी सोचा था! असम्भव लगता था ना? लेकिन आज सम्भव हो गया। तो ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें है - यह खुशी रहती है? *कभी किसी भी परिस्थिति में खुशी गायब तो नहीं होती! क्योंकि बाप द्वारा खुशी का खजाना रोज मिलता रहता है, तो जो चीज रोज मिलती है वह बढ़ेगी ना। कभी भी खुशी कम हो नहीं सकती।*

 

  क्योंकि खुशियों के सागर द्वारा मिलता ही रहता है। अखुट है। भी भी किसी बात के फिकर में रहने वाले नहीं। *प्रापर्टी का क्या होगा, परिवार का क्या होगा? यह भी फिकर नहीं। बेफिक्र! पुरानी दुनिया का क्या होगा! परिवर्तन ही होगा ना। पुरानी दुनिया में कितना भी श्रेष्ठ हो लेकिन सब पुराना ही है। इसलिए बेफिक्र बन गये। पता  नहीं आज है कल रहेंगे- नहीं रहेंगे - यह भी फिकर नहीं।*

 

  *जो होगा अच्छा होगा। ब्राह्मणों के लिए सब अच्छा है। बुरा कुछ नहीं। आप तो पहले ही बादशाह हो। अभी भी बादशाह, भविष्य में भी बादशाह। जब सदा के बादशाह बन गये तो बेफिक्र हो गये। ऐसी बादशाही जो कोई छीन नहीं सकता।* कोई बन्दूक से बादशाही उड़ा नहीं सकता। यही खुशी सदा रहे और औरों को भी देते जाओ। औरों को भी बेफिक्र बादशाह बनाओ।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  कोई भी किसी के वश हो जाता तो वश हुई आत्मा मजबूर हो जाती है और *मालिक बनने वाली आत्मा* कभी किसी से मजबूर नहीं होती, *अपने स्वमान' में मजबूत होते है।* कई बच्चे अभी भी कभी-कभी किसी-न-किसी कर्मन्द्रिय के वश हो जाते हैं, फिर  कहते हैं - आज आँख ने धोखा दे दिया, आज मुख ने धोखा दे दिया, दृष्टि ने धोखा दे दिया।

 

✧  परवश होना अर्थात धोखा खाना और *धोखे की निशानी है - दु:ख की अनुभूति होना।* और धोखा खाना चाहते नहीं हैं लेकिन न चाहते हुए भी कर लेते हैं, इसको ही कहा जाता है - वशीभूत होना। दुनिया वाले कहते हैं - चक्कर में आ गये. चाहते भी नहीं थे लेकिन पता नहीं कैसे चक्कर में आ गये।

 

✧  आप स्वदर्शन चक्रधारी आत्मा किसी धोखे के चक्कर में नहीं आ सकती क्योंकि *स्वदर्शन चक्र अनेक चक्कर से छुडाने वाला है।* न सिर्फ अपने को, लेकिन औरों को भी छुडाने के निमित बनते हैं। अनेक प्रकार के दु:ख के चक्करों से बचने के लिए सोचते हैं - इस सृष्टि-चक्र से निकल जायें। लेकिन *सृष्टि चक्र के अंदर पार्ट बजाते हुए अनेक दु:ख के चक्करों से मुक्त हो जीवनमुक्त स्थिति को प्राप्त कर सकते हैं* - यह कोई नहीं जानता है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *कर्मयोगी अर्थात् कर्म के समय भी योग का बैलेन्स।* लेकिन आप खुद ही कह रहे हो कि बैलेन्स कम हो जाता है। इसका कारण क्या? अच्छी तरह से जानते भी हो, नई बात नहीं है। बहुत पुरानी बात है। बापदादा ने देखा कि सेवा वा कर्म और स्व-पुरुषार्थ अर्थात् योगयुक्त। *तो दोनों का बैलेन्स रखने के लिए विशेष एक ही शब्द याद रखो-वह कौन सा? बाप 'करावनहार' है और मैं आत्मा, (मैं फलानी नहीं) आत्मा 'करनहार' हूँ। तो करन-'करावनहार', यह एक शब्द आपका बैलेन्स बहुत सहज बनायेगा।* स्व-पुरुषार्थ का बैलेन्स या गति कभी भी कम होती है, उसका कारण क्या? *'करनहार' के बजाए मैं ही कराने वाली या वाला हूँ, 'करनहार' के बजाए अपने को 'करावनहार' समझ लेते हो।* मैं कर रहा हूँ जो भी जिस प्रकार की भी माया आती है, उसका गेट कौन सा है? माया का सबसे अच्छा सहज गेट जानते तो हो ही - 'मैं'। तो यह गेट अभी पूरा बन्द नहीं किया है। ऐसा बन्द करते हो जो माया सहज ही खोल लेती है और आ जाती है। *अगर 'करनहार' हूँ तो कराने वाला अवश्य याद आयेगा।* कर रही हूँ कर रहा हूँ लेकिन कराने वाला बाप है। बिना 'करावनहार' के 'करनहार' बन नहीं सकते हैं। *डबल रूप से 'करावनहार' की स्मृति चाहिए। एक तो बाप 'करावनहार' है और दूसरा मैं आत्मा भी इन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराने वाली हूँ। इससे क्या होगा कि कर्म करते भी कर्म के अच्छे या बुरे प्रभाव में नहीं आयेंगे। इसको कहते हैं-कर्मातीत अवस्था।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप से हीरे जैसा बनना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा इस संगमयुग के रूहानी यूनिवर्सिटी में बैठी हूँ... ज्ञान सागर बाबा मुझ पर ज्ञान की बरसात कर रहे हैं... जिससे मुझ आत्मा की सारी अज्ञानता बाहर निकलती जा रही है... मैं आत्मा पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बन रही हूँ... स्वयं भगवान टीचर बनकर मुझे आदि-मध्य-अंत का ज्ञान दे रहे हैं...* मेरे जन्म-जन्म के अवगुणों को निकाल देवताई गुणों से श्रृंगार कर, स्वर्ग की राजाई के लायक बना रहे हैं... मैं आत्मा निश्चय बुद्धि बनकर, गॉडली स्टूडेंट के स्वमान में टिककर बैठ जाती हूँ, बाबा की शिक्षाओं को ग्रहण करने...

 

  *भविष्य की कमाई के लिए ज्ञान रत्नों से मुझे सजाते हुए मेरे सुप्रीम टीचर कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय पढ़ाई और योग से ही सतयुगी बादशाही है... *इसलिए सम्पूर्ण निश्चय बुद्धि होकर पढ़ाई से 21 जनमो का खुबसूरत भाग्य बनालो... संगम के वरदानी समय को याद और पढ़ाई से असीम कमाई की खान बना दो... ईश्वर पिता से पढ़कर अनन्त सुखो के मालिक बन जाओ...*

 

_ ➳  *21 जन्मों के वर्सा की अधिकारी बनने का पुरुषार्थ करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो में ज्ञान रत्नों को पाकर दौलत मन्द होती जा रही हूँ... *21 जनमो के लिए अथाह सुखो को जमा कर मीठा मुस्करा रही हूँ... प्यारे बाबा आपने अपनी गोद में बिठा,सच्चे सुखो से सजा मेरा सदा का भाग्य चमका दिया है...”*

 

  *अथाह ज्ञान रत्नों की खान मेरे नाम लिखते हुए प्रेम के सागर मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता स्वयं धरा पर उतर कर राजयोग सिखा रहे... *ज्ञान रत्नों से मालामाल कर स्वर्ग के मीठे सुखो का अधिकारी बना रहे... तो पूरे निश्चय और दिली लगन से पढ़ाई कर श्रेष्ठतम भाग्य को अपनी तकदीर बना लो...* इन सुनहरे पलों का पूरा फायदा उठाओ...

 

_ ➳  *ज्ञान योग से ईश्वरीय रंगत में रंगकर, सात रंगों से सजी इन्द्रधनुष बनकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपको पाकर कितनी धन्य धन्य हो गई हूँ... प्यारे बाबा... आपने मेरी देह की दासता छुड़वाकर... *मुझे दमकती मणि सा चमकाया है... और अपनी फूलो सी गोद में बिठा विश्व मालिक बनाया है... असीम खानो को मेरी तकदीर में सजा मुझे शहंशाह बनाया है...”*

 

  *अपने प्यार से मेरे मन में खुशियों के फूलों को खिलाकर मेरे बागबान बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *यह ईश्वरीय पढ़ाई ही सच्चे सुखो का आधार है और महा भाग्य बनाने वाली है... इसलिए इस पढ़ाई में हर साँस संकल्प से जुट जाओ... यह ज्ञान रत्न अथाह सुखो के भण्डार बनकर जीवन में खुशियो को छलकायेंगे...* ईश्वर पिता से सारी दौलत लेकर 21 जनमो की अमीरी के पर्याय बन मुस्कराओ...

 

_ ➳  *बाबा के स्नेह की रिमझिम से दिव्य मणि बन पुलकित होकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा संगम पर आपके हाथ और साथ को पाकर कितनी निखर गई हूँ...* मेरी कुरूपता खत्म हो गई है, और सच्चे सौंदर्य से रोम रोम छलक उठा है... *प्यारे बाबा आपने अपने जादुई स्पर्श से मुझे ज्ञानवान धनवान् बना विश्व में सजा दिया है...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- देही अभिमानी बनने का पुरुषार्थ करना है*

 

_ ➳  एकान्त में बैठी एक दृश्य मैं इमर्ज करती हूँ और इस दृश्य में एक बहुत बड़े दर्पण के सामने स्वयं को निहारते हुए अपने आप से मैं सवाल करती हूँ कि मैं कौन हूँ ! *क्या इन आँखों से जैसा मैं स्वयं को देख रही हूँ मेरा वास्तविक स्वरूप क्या सच मे वैसा ही है! अपने आप से यह सवाल पूछते - पूछते मैं उस दर्पण में फिर से जैसे ही स्वयं को देखती हूँ, दर्पण में एक और दृश्य मुझे दिखाई देता है इस दृश्य में मुझे मेरा मृत शरीर दिखाई दे रहा है जो जमीन पर पड़ा है*। थोड़ी ही देर में कुछ मनुष्य वहाँ आते हैं और उस मृत शरीर को उठा कर ले जाते है और उसका दाह संस्कार कर देते हैं।

 

_ ➳  इस दृश्य को देख मैं मन ही मन विचार करती हूँ कि शरीर के किसी भी अंग में छोटा सा कांटा भी कभी चुभ जाता था तो मुझे कष्ट होता था। लेकिन अभी तो इस शरीर को जलाया जा रहा है फिर भी इसे कोई कष्ट क्यो नही हो रहा! *इसका अर्थ है कि इस शरीर के अंदर कोई शक्ति है और जब तक वो चैतन्य शक्ति शरीर में है तब तक यह शरीर जीवित है और हर दुख - सुख का आभास करता है लेकिन वो चैतन्य शक्ति जैसे ही इस शरीर को छोड़ इससे बाहर निकल जाती है ये शरीर मृत हो जाता है*। फिर किसी भी तरह का कोई एहसास उसे नही होता। अपने हर सवाल का जवाब अब मुझे मिल चुका है।

 

_ ➳  "मैं कौन हूँ" की पहेली सुलझते ही अब मैं उस चैतन्य शक्ति अपने निज स्वरूप को मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से देख रही हूँ जो शरीर रूपी रथ पर विराजमान होकर रथी बन उसे चला रही है। *स्वराज्य अधिकारी बन मन रूपी घोड़े की लगाम को अपने हाथ मे थामते ही मैं अनुभव करती हूँ कि मैं आत्मा रथी अपनी मर्जी से जैसे चाहूँ वैसे इस शरीर रूपी रथ को चला सकती हूँ*। यह अनुभूति मुझे सेकण्ड में देही अभिमानी स्थिति में स्थित कर देती है और इस स्थिति में स्थित होकर मैं स्वयं को सहज ही देह से न्यारा अनुभव करते हुए बड़ी आसानी से देह रूपी रथ का आधार छोड़ इस रथ से बाहर आ जाती हूँ।

 

_ ➳  अपने शरीर रूपी रथ से बाहर आकर अब मैं इस देह और इससे जुड़ी हर चीज को बिल्कुल साक्षी होकर देख रही हूँ जैसे मेरा इनसे कोई सम्बन्ध ही नही। *किसी भी तरह का कोई भी आकर्षण या लगाव अब मुझे इस देह के प्रति अनुभव नही हो रहा, बल्कि एक बहुत ही न्यारी और प्यारी बन्धनमुक्त स्थिति में मैं स्थित हूँ जो पूरी तरह से लाइट है और उमंग उत्साह के पँख लगाकर ऊपर उड़ने के लिए तैयार है*। इस डबल लाइट देही अभिमानी स्थित में स्थित मैं आत्मा ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसे मेरे शिव पिता के  प्यार की मैग्नेटिक पावर मुझे ऊपर अपनी और खींच रही है। *अपने प्यारे पिता के प्रेम की लग्न मे मग्न मैं आत्मा अपने विदेही पिता के समान विदेही बन, देह की दुनिया को छोड़ अब ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ*।

 

_ ➳  परमधाम से अपने ऊपर पड़ रही उनके अविनाशी प्रेम की मीठी - मीठी फुहारों का आनन्द लेती हुई मैं साकार लोक और सूक्ष्म लोक को पार करके, अति शीघ्र पहुँच जाती हूँ अपने शिव परम पिता परमात्मा के पास उनके निराकारी लोक में। *आत्माओं की ऐसी दुनिया, जहां देह और देह की दुनिया का संकल्प मात्र भी नही, ऐसी चैतन्य मणियों की दुनिया मे मैं स्वयं को देख रही हूँ*। चारों और चमकते हुए चैतन्य सितारे और उनके बीच मे अत्यंत तेजोमय एक ज्योतिपुंज जो अपनी सर्वशक्तियों से पूरे परमधाम को प्रकाशित करता हुआ दिखाई दे रहा हैं।

 

_ ➳  उस महाज्योति अपने शिव परम पिता परमात्मा से निकलने वाली सर्वशक्तियों की अनन्त किरणों की मीठी फ़ुहारों का भरपूर आनन्द लेने और उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को शक्तिशाली बनाने के लिए मैं निराकार ज्योति धीरे - धीरे उनके समीप जाती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणो की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ। *अपने प्यारे पिता के सानिध्य में बैठ, उनके प्रेम से, उनके गुणों और उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर करके अब मैं आत्माओं की निराकारी दुनिया से नीचे वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ*।

 

_ ➳  कर्म करने के लिए फिर से अपने शरीर रूपी रथ पर आकर मैं विराजमान हो जाती हूँ किन्तु अब मै सदैव इस स्मृति में रह हर कर्म करती हूँ कि मैं आत्मा इस देह में रथी हूँ। *इस स्मृति को पक्का कर, कर्म करते हुए भी स्वयं को देह से बिल्कुल न्यारी आत्मा अनुभव करते हुए, देही अभिमानी बनने का अभ्यास मैं बार - बार करती रहती हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं स्व-स्थिति की सीट पर स्थित रहने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं मास्टर रचता आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा दृढ़ता से कड़े संस्कारों को भी मोम की तरह पिघला(खत्म कर) देती हूँ  ।*

   *मैं दृढ़ संकल्पधारी आत्मा हूँ  ।*

   *मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. *अब मनोबल को बढ़ाओ। बेहद की सेवा जो अभी आप वाणी या संबंध, सहयोग से करते होवह मनोबल से करो।* तो मनोबल की बेहद की सेवा अगर आपने बेहद की वृत्ति सेमनोबल द्वारा विश्व के गोले के ऊपर ऊंचा स्थित हो, *बाप के साथ परमधाम की स्थिति में स्थित हो थोड़ा समय भी यह सेवा की तो आपको उसकी प्रालब्ध कई गुणा ज्यादा मिलेगी।*

 

 _ ➳  2. आजकल के समय और सरकमस्टांश के प्रमाण अन्तिम सेवा यही मन्सा वा मनोबल की सेवा है। इसका अभ्यास अभी से करो। चाहे वाणी द्वारा वा संबंध सम्पर्क द्वारा सेवा करते हो लेकिन अब इस *मन्सा सेवा का अभ्यास अति आवश्यक हैसाथ-साथ अभ्यास करते चलो।*

 

 _ ➳  3. यह मन्सा सेवा वही रंगत दिखायेगी जो स्थापना के आदि में बाप की *मन्सा द्वारा रूहानी आकर्षण ने बच्चों को आकर्षित किया।* और मन्सा सेवा के फल स्वरूप अभी भी देख रहे हो कि वही आत्मायें अब भी फाउण्डेशन हैं। ड्रामा अनुसार यह बाप की मन्सा आकर्षण का सबूत है जो कितने पक्के हैं। तो *अन्त में भी अभी बाप के साथ आपकी भी मन्सा आकर्षणरूहानी आकर्षण से जो आत्मायें आयेंगी वह समय अनुसार समय कममेहनत कम और ब्राह्मण परिवार में वृद्धि करने के निमित्त बनेंगी।* वही पहले वाली रंगत अन्त में भी देखेंगे। जैसे आदि में ब्रह्मा बाप को साधारण न देख कृष्ण के रूप में अनुभव करते थे। साक्षात्कार अलग चीज है लेकिन साक्षात स्वरूप में कृष्ण ही देखतेखाते-पीते चलते थे।

 

 _ ➳  4. *तो स्थापना में एक बाप ने कियाअन्त में आप बच्चे भी आत्माओंके आगे साक्षात देवी-देवता दिखाई देंगे।* वह समझेंगे ही नहीं कि यह कोई साधारण हैं। वही पूज्यपन का प्रभाव अनुभव करेंगे, तब बाप सहित आप सभी के प्रत्यक्षता का पर्दा खुलेगा। अभी अकेले बाप को नहीं करना है। बच्चों के साथ प्रत्यक्ष होना है। जैसे स्थापना में ब्रह्मा के साथ विशेष ब्राह्मण भी स्थापना के निमित्त बनेंऐसे समाप्ति के समय भी *बाप के साथ-साथ अनन्य बच्चे भी देव रूप में साक्षात अनुभव होंगे।*

 

 _ ➳  5. *अभी सभी अपने अनादि स्वरूप में एक सेकण्ड में स्थित हो सकते होक्योंकि अन्त में एक सेकण्ड की ही सीटी बजने वाली है। तो अभी से अभ्यास करो।* बस टिक जाओ। (ड्रिल कराई) अच्छा।

 

✺   *ड्रिल :-  "मनोबल द्वारा बेहद की सेवा करने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *चेतना को भृकुटि के मध्य में केन्द्रित करते हुए, बाह्य जगत, व्यक्त देह सबसे उपराम मैं अति सूक्ष्म ऊर्जा बिन्दु आत्मा हूँ...* समस्त देह में मुझ आत्मा से प्रकाश की किरणें फैल रही हैं... तत्वों से बनी यह देह धीरे-धीरे तत्वों में विलीन हो रही है... अब बच गयीं केवल मैं आत्मा, एक गहन सन्नाटा बाह्य सज्ञां से उपराम, सम्पूर्ण साक्षी भाव धारण कर चलती हूँ... इस जगत से पार, तत्वों से पार, इस स्थूल संसार से पार अपने निजवतन की ओर... वह निराकारी दुनिया मुझे पुकार रही हैं... *अनुभव कर रही हूँ, मैं आत्मा स्वयं को इस निर्विकारी दुनिया में, चारों तरफ लाल सुनहरा प्रकाश... डेड साइंलेस, सामने महाज्योती है* ज्ञान सूर्य बाबा से अनंत किरणें निकल मुझ आत्मा  पर पड़ रही है...

 

 _ ➳  *महाज्योती सर्वशक्तिमान से सर्व शक्तियाँ मुझमें समा रही हैं... एक-एक शक्ति को अपने अन्दर समाते हुए अनुभव कर रही हूँ मैं आत्मा...* जैसे-जैसे एक-एक शक्ति मेरे अन्दर समा रही है, मुझ आत्मा का प्रकाश बढ रहा हैं...  पवित्रता के सागर से पवित्रता की लहरें मुझ आत्मा में समा रही हैं... *जैसे-जैसे एक-एक पवित्र लहर अन्दर समा रही है... अन्दर का व्यर्थ रूपी, विकल्प रूपी किचड़ा समाप्त हो रहा है...* मैं आत्मा समर्थ बनती जा रही हूँ... मुझ आत्मा का शुद्धिकरण हो रहा है... *मुझ आत्मा में पवित्रता का प्रकाश बढ रहा है... इससे मुझ आत्मा का मनोबल बढ रहा है... सभी आन्तरिक शक्तियाँ जागृत हो रही है...*

 

 ➳ _ ➳  *निर्संकल्प स्थिति का अनुभव कर रही हूँ मैं आत्मा.... सभी व्यर्थ संकल्प विकल्पों से मुक्त एक शक्तिशाली स्थिति, भरपूरता का अनुभव मैं आत्मा कर रही हूँ...* अब मैं आत्मा भरपूर होकर, सर्व शक्तियों से सम्पन्न होकर अपनी दिव्य आभा बिखरते हुये अपना चमकीला ड्रेस धारण कर विश्व गलोब के ऊपर जहाँ से मैं इस संसार की हर आत्मा को देख रही हूँ... जिनके खुशियों के सूरज को ग्रहण लग गया है... वे दुख अशांति का जीवन जीने को मजबूर है... सुख-शांति की तलाश में भटक रही है... सच्चे प्यार, सच्ची खुशी को उनकी निगाहें तलाश कर रही हैं... *एक पल की शांति के लिए भी सब तरस रहे हैं...*

 

 _ ➳  *मैं विश्व कल्याणकारी फरिश्ताशांति का फरिश्ता इस पूरे विश्व गलोब पर शांति की किरणों की वर्षा कर रहा हूँ...* हर आत्मा शांति की अनुभूति कर रही है... बाबा से मिला प्यार मैं फरिश्ता हर आत्मा भाई को दे रहा हूँ... *सभी आत्माएँ सच्चे ईशवरीय प्यार की अनुभूति कर रही है... उनके दिल में प्रभु प्यार उत्पन्न हो रहा है...* मैं पवित्रता का फरिश्ता इस पूरे विश्व गलोब के ऊपर पवित्रता के फूल वर्षा रहा हूँ... ये पवित्रता के फूल हर आत्मा को मिल रहे है... *सुख शांति से उनका जीवन महक रहा है...* सभी सच्चे  प्यार, सच्ची सुख-शांति की  अनुभूति कर रहे हैं... मैं फरिश्ता सर्व आत्माओं को बाबा का सन्देश दे रहा हूँ...  *सर्व आत्माओं को बाबा का सन्देश मिल रहा है... बाबा की सेवा में तीव्र गति से वृद्धि हो रही हैं...*

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा देख रही स्वयं को कर्मक्षेत्र पर ब्राह्मण चोला धारण किए हुए... *मुझ आत्मा की श्रेष्ठ वृत्ति, शक्तिशाली मन्सा अनेक आत्माओं का कल्याण कर रही है...* सहज ही आत्माओं को सुख, शांति की अनुभूति करा रही है... वायुमंडल को पावरफुल बना रही है... *मैं आत्मा कर्म करते सेकंड में कभी आकारी, कभी निराकारी, और कभी साकारी स्वरूप धारण कर रही हूँ... मैं आत्मा लाइट हाऊस माइट हाऊस बन गयीं हूँ... जो भी आत्मा मेरे सामने आ रही हैं वे अपने असली स्वरूप का अनुभव कर रही है... खुश और हल्का अनुभव कर रही है* और अपने असली घर का साक्षात्कार कर रही है... वे लाइट और माइट का अनुभव कर रही है... *ईश्वरीय आकर्षण उन्हें आकर्षित कर रहा है...* और सच्चे सुख और शांति की अनुभूति वे आत्माएं कर रही है... और *वे भी अपने सच्चे पिता का परिचय पा रही है...* इस प्रकार बाबा की ये सेवा तीव्र गति से बढ़ रही है... और एक साथ अनेक आत्माओं का कल्याण हो रहा है... *शुक्रिया मीठू बाबा शुक्रिया...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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