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 22 / 09 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *"सर्व शक्तिमान बाप हमारे साथ है" - इस स्मृति से शक्ति की प्रवेश्ता का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *"मैं सरेंडर हूँ" - इस बात का अहंकार तो नहीं किया ?*

 

➢➢ *अपनी शुभ भावना द्वारा निर्बल आत्माओं में बल भरा ?*

 

➢➢ *देह अहंकार को त्याग अलंकारी बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *सारे दिन में बीच-बीच में एक सेकण्ड भी मिले, तो बार-बार यह विदेही बनने का अभ्यास करते रहो। दो चार सेकण्ड भी निकालो इससे बहुत मदद मिलेगी। नहीं तो सारा दिन बुद्धि चलती रहती है,* तो विदेही बनने में टाइम लग जाता है और अभ्यास होगा तो जब चाहे उसी समय विदेही हो जायेंगे *क्योंकि अन्त में सब अचानक होना है। तो अचानक के पेपर में यह विदेही पन का अभ्यास बहुत आवश्यक है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं कल्प-कल्प की विजयी आत्मा हूँ"*

 

  जो अनेक बार विजयी आत्मायें हैं, उन्हों की निशानी क्या होगी? उन्हें हर बात बहुत सहज और हल्की अनुभव होगी। *जो कल्प-कल्प की विजयी आत्मायें नहीं उन्हें छोटा-सा कार्य भी मुश्किल अनुभव होगा। सहज नहीं लगेगा।*

 

  *हर कार्य करने के पहले स्वयं को ऐसे अनुभव करेंगे जैसे यह कार्य हुआ ही पड़ा है। होगा या नहीं होगा यह क्वेश्चन नहीं उठेगा। हुआ ही पड़ा है यह महसूसता सदा रहेगी। पता है सदा सफलता है ही, विजय है ही - ऐसे निश्चयबुद्धि होंगे।*

 

  *कोई भी बात नई नहीं लगेगी, बहुत पुरानी बात है। इसी स्मृति से स्वयं को आगें बढ़ाते रहेंगे।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  कोई भी संकल्प न आये, *फुलस्टॉप कहा और स्थित हो गये।* क्योंकि लास्ट पेपर अचानक आना है। अचानक के कारण ही तो नम्बर बनेंगे ना। लेकिन होना एक सेकण्ड में हैं। तो कितना अभ्यास चाहिए?

 

✧  अगर अभी से नष्टोमोहा हैं, मेरा-मेरा समाप्त है तो फिर मुश्किल नहीं है, सहज है। तो सभी पास होने वाले हो ना। *जो निश्चय बुद्धि हैं उनकी बुद्धि में यह निश्चत रहता है कि मैं विजयी बना था, बनेंगे और सदा ही बनेंगे।* बनेंगे या नहीं बनेंगे, यह क्वेचन नहीं होता है।

 

✧  तो ऐसे बुद्धि में निश्चत है कि हम ही विजयी है? लेकिन वहुतकाल का अभ्यास जरूर चाहिए। अगर उस समय कोशिश करेंगे, बहुतकाल का अभ्यास नहीं होगा तो मुश्किल हो जायेगा। *बहुत काल का अभ्यास अंत में मदद देगा।* अच्छा

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *पुरुषार्थ भी रमणीक करो।* कई याद में बैठते हैं सोचते हैं 'मैं ज्योति बिन्दु, मैं ज्योति बिन्दु' और ज्योति टिकती नहीं, शरीर भूलता नहीं। ज्योति बिन्दु तो हैं ही लेकिन कौन-सी ज्योति बिन्दु हैं। *हर रोज़ अपना नया नया टाइटल याद रखो कि ज्योति बिन्दु भी कौन सी है? रोज़ सर्वप्राप्तियो में से कोई-न-कोई प्राप्ति को याद करो।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺  *"ड्रिल :- एक बाप को प्यार करना"*

 

_ ➳  मैं आत्मा परवाना बन उड़ चलती हूँ शमा पर फिदा होने... माशूक बन आशिक की दीवानगी में खोने... मीठी बच्ची बन मीठे बाबा के प्यार में डूब जाने... *वतन में बापदादा को सामने देख दौड़कर उनके गले लग जाती हूँ और प्यार के सागर में डूब जाती हूँ... प्यारे बाबा अपनी प्यारी प्यारी बातों से मुझ आत्मा का श्रृंगार करते हैं...*

 

   *प्यारे बाबा मुझे अपनी सन्तान बनाकर पुराना जीवन बदलकर नया जीवन देते हुए कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... *ईश्वर पिता ने दुखो के दलदल से निकाल कर, नया खुशनुमा जीवन दिया है... यह ईश्वरीय साथ का आनन्द भरा जीवन अनोखा और अदभुत है...* सब श्रीमत की ऊँगली पकड़कर उमंगो में झूम रहे है... और एक पिता माशूक में खोये से सब आशिक हो गए है..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा एक बाबा से प्रीत रख प्रीत की रीत निभाते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार भरी गोद में नया सा जीवन, नया सा जनम पाकर फूलो सी खिल गयी हूँ... *मेरी नजर ईश्वरीय हो गई है... पूरा विश्व परिवार बन गया है, और सब मीठे बाबा की दीवानगी में झूम रहे है..."*

 

   *मीठा बाबा मीठी बगिया में मीठा फूल बनाकर सजाते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... भगवान बागबाँ ने विकारो की गिरफ्त में काँटे हो गए बच्चों को... *पलको से चुनकर ईश्वरीय सन्तान सा खिलाया है... ईश्वरीय प्यार और महक से सराबोर शानदार जीवन दिया है...* एक सूत्र में बंधे स्नेह की माला बने, ईश्वर पिता के गले में सजे फूल से मुस्करा रहे हो..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा फूलों की बरसात से विश्व को महकाते, रूहानियत भरते हुए कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा इतना मीठा प्यारा खुबसूरत जीवन पाकर निहाल हो गई हूँ... *ईश्वरीय सन्तान होने के अपने भाग्य पर इठला रही हूँ... मीठे बाबा आपसे प्यार पाकर, स्नेह की वर्षा पूरे विश्व वसुंधरा पर कर रही हूँ..."*

 

   *मेरे बाबा अपने अविनाशी प्यार के बन्धन में मुझे बांधते हुए कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... कितना मीठा प्यारा सा भाग्य है... *ईश्वरीय गोद में खुशियो से छलकता हुआ नया जीवन मिला है... सच्चे प्रेम को जीने वाले खुशनसीब हो... देह और देहधारियों के विकृत प्रेम से निकल, ईश्वरीय प्रीत पाने वाले रूहानी गुलाब से महक उठे हो..."*

 

_ ➳  *प्रेम रस का पान कर मदहोश होते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा जनमो की प्यासी, प्रेम विरह में व्याकुल सी... *आज आपसे अविनाशी प्यार पाकर सदा की तृप्त हो रही हूँ... ईश्वरीय प्रेम सुधा ने मुझ आत्मा के रोम रोम को सिक्त कर अतीन्द्रिय सुख से भर दिया है..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सदा इसी स्मृति में रहना है कि सर्वशक्तिमान बाप हमारे साथ है*"

 

 _ ➳  "मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, सर्वशक्तिवान की संतान हूँ" इस श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट होते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे परमधाम से सर्वशक्तिवान शिव बाबा अपनी सर्वशक्तियाँ बिखेरते हुए, मेरे सिर के बिल्कुल ऊपर आ कर स्थित हो गए हैं और उनकी सर्वशक्तियों से मेरे चारों और एक बहुत ही सुंदर औरा निर्मित हो गया है। *इस औरे का विस्तार जैसे - जैसे बढ़ रहा है वैेसे - वैसे मेरे चारों और का वायुमण्डल बहुत ही शक्तिशाली बनता जा रहा है*। एक - एक करके मेरी सभी शक्तियां इमर्ज रूप में मेरे सामने उपस्थित हो गई है और मैं स्वयं को बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। *अपनी इस शक्तिशाली स्थिति में स्थित हो कर अब मैं अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर लेती हूँ*।

 

 _ ➳  सर्वशक्तियों से सम्पन्न अपने फ़रिशता स्वरूप में स्थित हो कर, अपने सर्वशक्तिवान परम पिता परमात्मा की छत्रछाया के नीचे स्वयं को अनुभव करते, अब मैं फ़रिशता सारी दुनिया का चक्कर लगा रहा हूँ। *सर्वशक्तिवान मेरे शिव पिता परमात्मा से निरन्तर सर्वशक्तियाँ निकल कर मुझ फ़रिश्ते में और मुझ फ़रिश्ते से सारे विश्व में फैलती जा रही हूँ*। मैं देख रहा हूँ उन सभी तड़पती हुई, अशांत आत्माओं को जो पल भर की शांति की तलाश में भटक - भटक कर बिल्कुल निर्बल, शक्तिहीन हो चुकी हैं और मुझ फ़रिश्ते से निकल रही सर्वशक्तियों को पा कर स्वयं को शक्तिशाली अनुभव करने लगी है। *मुझ फ़रिश्ते से निकल रही सर्वशक्तियाँ उनमें शक्ति का संचार कर रही हैं*।

 

 _ ➳  सर्वशक्तिवान बाबा की सर्वशक्तियों की छत्रछाया के नीचे, विश्व की सर्व आत्माओं को शक्तियां प्रदान करता मैं फ़रिशता अब अपने सर्वशक्तिवान बाबा के साथ सूक्ष्म लोक की ओर जा रहा हूँ। *सूक्ष्म लोक में पहुंच कर बाबा अपने निर्धारित रथ, ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान हो जाते हैं और मुझे अपने पास बिठा कर, शक्तिशाली दृष्टि दे कर अपनी सर्वशक्तियों से मुझे भरपूर करने लगते हैं*। अपने हाथ मेरे हाथों पर रख कर बाबा अपनी सर्वशक्तियाँ मुझे विल करने के बाद अपने निराकार स्वरूप में परमधाम की ओर प्रस्थान करते हैं। मैं भी अपनी फ़रिशता ड्रेस को वही उतार कर, अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप में स्थित हो कर उनके पीछे परमधाम की ओर चल पड़ती हूँ।

 

 _ ➳  परमधाम में पहुंच कर, सर्वशक्तिवान बीज रूप अपने शिव पिता परमात्मा के सानिध्य में मैं मास्टर बीज रूप आत्मा जा कर बैठ जाती हूँ। बाबा से आती सर्वशक्तियों रूपी किरणों की मीठी - मीठी फुहारे मुझे असीम बल प्रदान कर रही हैं। सर्वशक्तियों से मैं सम्पन्न होती जा रही हूँ।  *ऐसा लग रहा है जैसे अपनी समस्त ऊर्जा का भंडार बाबा मेरे अंदर समाहित कर रहे हैं ताकि संपूर्ण ऊर्जावान बन मैं विश्व की समस्त आत्माओं का कल्याण करने के निमित बन बाबा के कार्य में मददगार बन सकूँ*। परमात्म शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर, शक्तियों का पुंज बन अब मैं परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और साकारी दुनिया मे आ कर अपने पांच तत्वों के बने शरीर में मैं प्रवेश करती हूँ, इस स्मृति के साथ कि अब मुझे मास्टर सर्व शक्तिवान आत्मा बन निर्बल आत्माओं को शक्ति स्वरुप स्थिति का अनुभव करवाना है।

 

 _ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं स्वयं को सदा इस श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट रखती हूँ कि "मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, सर्वशक्तिवान की संतान हूँ"। *इस श्रेष्ठ स्वमान की स्मृति में रहने से मैं स्वयं को सदैव अपने सर्वशक्तिवान शिव बाबा के साथ कम्बाइन्ड अनुभव करती हूँ*। जिससे मुझ आत्मा की शक्तियाँ सदैव इमर्ज रहती है और मेरा शक्तिसम्पन्न स्वरूप मेरे सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली निर्बल और कमजोर आत्माओं को भी, उनके शक्तियों से सम्पन्न ओरिजनल स्वरूप का रीयलाईजेशन करवा कर उन्हें भी शक्ति स्वरूप स्थिति का अनुभव करवाता रहता है।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं अपनी शुभ भावना द्वारा निर्बल आत्माओं में बल भरने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सदा शक्ति स्वरूप आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा अलंकार को अपने ब्राह्मण जीवन का श्रृंगार बनाती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा अलंकारी हूँ  ।*

   *मैं आत्मा देह अहंकार से सदा मुक्त हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳   *देखा गया है कि क्रोध की सबजेक्ट में बहुत कम पास हैं। ऐसे समझते हैं कि शायद क्रोध कोई विकार नहीं हैयह शस्त्र है, विकार नहीं है*। लेकिन क्रोध ज्ञानी तू आत्मा के लिए महाशत्रु है। क्योंकि क्रोध अनेक आत्माओं के सम्बन्ध, सम्पर्क में आने से प्रसिद्ध हो जाता है और *क्रोध को देख करके बाप के नाम की बहुत ग्लानी होती है*। कहने वाले यही कहते हैंदेख लिया ज्ञानी तू आत्मा बच्चों को। *क्रोध के बहुत रूप हैं। एक तो महान रूप आप अच्छी तरह से जानते होदिखाई देता है - यह क्रोध कर रहा है।*

 

 _ ➳  *दूसरा - क्रोध का सूक्ष्म स्वरूप अन्दर में ईर्ष्याद्वेषघृणा होती है। इस स्वरूप में जोर से बोलना या बाहर से कोई रूप नहीं दिखाई देता है,* लेकिन जैसे बाहर क्रोध होता है तो क्रोध  अग्नि रूप है नावह अन्दर खुद भी जलता रहता है और दूसरे को भी जलाता है। ऐसे *ईर्ष्या, द्वेष, घृणा - यह जिसमे हैवह इस अग्नि में अन्दर ही अन्दर जलता रहता है*। बाहर से लाल, पीला नहीं होतालाल पीला फिर भी ठीक है लेकिन वह काला होता है।

 

 _ ➳  *तीसरा क्रोध की चतुराई का रूप भी है*। वह क्या है?  *कहने में समझने में ऐसे समझते हैं वा कहते हैं कि कहाँ-कहाँ सीरियस होना ही पड़ता है। कहाँ-कहाँ ला उठाना ही पड़ता है - कल्याण के लिए।* अभी कल्याण है या नहीं वह अपने से पूछो। *बापदादा ने किसी को भी अपने हाथ में ला उठाने की छुट्टी नहीं दी है*। क्या कोई मुरली में कहा है कि भले लाॅ  उठाओ, क्रोध नहीं करोलाॅ उठाने वाले के अन्दर का रूप वही क्रोध का अंश होता है। जो निमित्त आत्मायें हैं वह भी ला उठाते नहीं हैंलेकिन उन्हों को लाॅ रिवाइज कराना पड़ता है। लाॅ कोई भी नहीं उठा सकता लेकिन निमित्त हैं तो बाप द्वारा बनाये हुए ला को रिवाइज करना पड़ता है। निमित्त बनने वालों को इतनी छुट्टी हैसबको नहीं।    

 

✺   *ड्रिल :-  "क्रोध के बहुरूपों को पहचान क्रोध की सब्जेक्ट में पास होने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *मन रूपी आकाश में बिखरे संकल्प रूपी बादल... कुछ श्वेत कुछ श्याम, और कुछ सबसे अलग अँगारों के समान, गहरे लाल रंग के... जैसे किसी ज्वाला मुखी से बिखरा लावा...* एक एक संकल्प को साक्षी भाव से देखते हुए... मैं आत्मा बैठ गयी हूँ बापदादा की कुटिया में, और अब एक एक कर शान्त होते मेरे ये संकल्प... मन बिल्कुल स्वच्छ, शान्त, होता जा रहा है... बापदादा के चित्र से आती प्रकाश की किरणें... मेरी भृकुटी पर स्थित होकर... आहिस्ता आहिस्ता मेरे मस्तिष्क में प्रवेश कर रही है... और इस प्रकाश की धारा से जगमगाता मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व...

 

 _ ➳  मैं आत्मा फरिश्ता रूप में बापदादा के साथ हिस्ट्री हाॅल में... बापदादा आज बच्चों को उनके अलौकिक जन्मदिन की बधाई दे रहे है... एक एक करके... बारी-बारी से सबको... मेरा नम्बर सबसे आगे... मगर बापदादा मुझे इशारे से पीछे होने का संकेत करते हुए... एक एक आत्मा को वरदान और पावर फुल दृष्टि, साथ बेशकीमती सौगातें... और मैं एक एक कर अपने सामने से उमंगों से भरपूर होकर जाती एक एक आत्मा को देख रहा हूँ... लम्बे इन्तजार के बाद मेरा नम्बर आता है... और बापदादा मेरी उपेक्षा कर चले जाते है हिस्ट्री हाॅल से... मैं बैठकर सोच रहा हूँ इस उपेक्षा का कारण... और *एक एक आत्मा के प्रति ईर्ष्या से भरता जा रहा हूँ मैं... अन्दर ही अन्दर एक बेचैनी और घुटन... एक बेबसी की भावना... क्योंकि मुझे बाहर से शान्त भी दिखना है...* एक अन्तहीन सा संघर्ष... जिसकी पीडा मैं ही जानता हूँ... तभी कन्धे पर किसी का प्यार भरा स्पर्श... और जैसे किसी ने कोई पीडानाशक घोल पिला दिया हो... और सारी कटुता सारी ईर्ष्या बह गयी है आँखो से आसुँओं की धारा बनकर...

 

 _ ➳  मैं अब बापदादा के साथ एक अनोखी यात्रा पर... मैं और बाबा एक ऊँची पहाडी पर... दूर कहीं फटता ज्वालामुखी और बहकर आता हुआ उसका गहरा लाल लावा... बेहद डरावना और जलाने वाला... मैं देख रहा हूँ बाबा के मनोभावों को और समझने की कोशिश कर रहा हूँ... हिस्ट्री हाॅल का उनका व्यवहार और अब ये ज्वाला मुखी... और सहसा समझ में आ रहा है मुझे सब कुछ... *क्रोध का भीषण रूप ठीक इस ज्वालामुखी की तरह से जलाने वाला... और सूक्ष्म रूप ईर्ष्या...* सोचकर खुद से ही नजरें चुरा रहा हूँ मैं और बाबा रहस्यपूर्ण नजरों से देखे जा रहें है मुझे... मगर मैं नजरें उठाने की हिम्मत नही जुटा पा रहा अब... और तभी बापदादा मेरा हाथ पकड कर एक झील के पास ले जाते हुए... मुझे झील के पानी में पैर उतारने का आह्वान करते हुए... और मैं देख रहा हूँ पानी से उठता धुआँ... गरम खौलता झील का पानी... कुछ ही पल में समझ रहा हूँ क्रोध के तीसरे रूप को... शीतलता का प्रतीक झील का पानी, मगर आज ये गरम और खौलता हुआ... *ठीक वैसे ही जैसे निमित्त बनी आत्मा लाॅ को हाथ में उठाये और कल्याण के नाम पर क्रोध को करें*...

 

 _ ➳  क्रोध के विभिन्न रूपों की पहचान कर मैं क्रोध मुक्त बनने के लिए बैठ गया हूँ... शान्त पहाडी झरने के नीचे... झरने के ऊपर बापदादा... मुझ आत्मा से क्रोध के अंश मात्र को धोते हुए... और निर्मल और शान्त होती हुई मैं आत्मा... *बिन्दु बन परमधाम की ओर जाती हुई मैं आत्मा... और अन्य आत्माओं को मुझसे आगे निकलने का आह्वान करते बापदादा... मगर मैं शान्त और यथा स्थिति में... न कोई संकल्प और न ही हलचल*... क्रोध के पेपर में पास मैं शान्त स्वरूप आत्मा... और अब बापदादा के एकदम करीब... बिल्कुल करीब... मैं बापदादा के सबसे करीब की आत्मा... भरे जा रही हूँ स्वयं को उनके स्नेह से... स्नेह सागर में समाती हुई... ॐ शान्ति...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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