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❍ 29 / 09 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *पुरुषार्थ में दिल शिकस्त तो नहीं हुए ?*
➢➢ *इस वर्ल्ड की हिस्ट्री जियोग्राफी का सिमरण कर स्वदर्शन चक्रधारी बनकर रहे ?*
➢➢ *श्रीमत से मनमत और जनमत की मिलावट को समाप्त किया ?*
➢➢ *कहीं भी आकर्षित तो नहीं हुए ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ कर्मातीत का अर्थ यह नहीं है कि कर्म से अतीत हो जाओ। *कर्म से न्यारे नहीं, कर्म के बन्धन में फँसने से न्यारे-इसको कहते हैं कर्मातीत।* कर्मयोग की स्थिति कर्मातीत स्थिति का अनुभव कराती है। *यह कर्मयोगी स्थिति अति प्यारी और न्यारी स्थिति है, इससे कोई कितना भी बड़ा कार्य, मेहनत का हो लेकिन ऐसे लगेगा जैसे काम नहीं कर रहे हैं लेकिन खेल कर रहे हैं|*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं पदमों की कमाई जमा करने वाली अखुट खजानों का मालिक हूँ"*
〰✧ *हर कदम में पद्मों की कमाई जमा करने वाले, अखुट खजाने के मालिक बन गये। ऐसे खुशी का अनुभव करते हो! क्योंकि आजकल की दुनिया है ही - 'धोखेबाज'। धोखेबाज दुनिया से किनारा कर लिया।*
〰✧ *धोखे वाली दुनिया से लगाव तो नहीं! सेवा अर्थ कनेक्शन दुसरी बात है लेकिन मन का लगाव नहीं होना चाहिए। तो सदा अपने को तुच्छ नहीं, साधारण नहीं लेकिन श्रेष्ठ आत्मा हैं, सदा बाप के प्यारे हैं, इस नशे में रहो।*
〰✧ *जैसा बाप वैसे बच्चा - कदम पर कदम रखते अर्थात् फालो करते चलो तो बाप समान बन जायेंगे। समान बनना अर्थात् सम्पन्न बनना। ब्राह्मण जीवन का यही तो कार्य है।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *ब्राह्मण बने, बाप के वर्से के अधिकारी बने, गॉडली स्टूडेन्ट बने, ज्ञानी तू आत्मा बने, विश्व सेवाधारी बने* - यह भाग्य तो पा लिया लेकिन अब पास विद ऑनर होने के लिए कर्मातीत स्थिति के समीप जाने के लिए ब्रह्मा बाप समान न्यारे अशरीरी बनने के अभ्यास पर विशेष अटेन्शन।
〰✧ जैसे ब्रह्मा बाप ने साकार जीवन में कर्मातीत होने के पहले ‘न्यारे और प्यारे’ रहने के अभ्यास का प्रत्यक्ष अनुभव कराया। जो सभी बच्चे अनुभव सुनाते हो - सुनते हुए न्यारे, कार्य करते हुए न्यारे, बोलते हुए न्यारे रहते थे। सेवा को वा कोई कर्म को छोडा नहीं लेकिन न्यारे हो लास्ट दिन भी बच्चों की सेवा समाप्त की। *न्यारा-पन हर कर्म मे सफलता सहज अनुभव कराता है।* करके देखो।
〰✧ एक घण्टा किसको समझाने की भी मेहनत करके देखो और उसके अन्तर में *15 मिनट में सुनाते हुए, बोलते हुए न्यारे-पन की स्थिति में स्थित होके दूसरी आत्मा को भी न्यारे-पन की स्थिति का वायवेशन देकर देखो।* जो 15 मिनट में सफलता होगी वह एक घण्टे में नहीं होगी। यही प्रैक्टिस ब्रह्मा बाप ने करके दिखाई। तो समझा क्या करना है।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *जो बापदादा कहते हैं, चाहते हैं सेकण्ड में अशरीरी हो जायें - उसका फाउण्डेशन यह बेहद की वैराग्य वृत्ति है, नहीं तो कितनी भी कोशिश करेंगे लेकिन सेकण्ड में नहीं हो सकेंगे। युद्ध में ही चले जायेंगे और जहाँ वैराग्य है तो ये वैराग्य है योग्य धरनी, उसमें जो भी डालो उसका फल फौरन निकलता।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- योग से विकर्म विनाश करना"*
➳ _ ➳ सारी एक की ही महिमा है, एक का ही गायन है... *गाते भी हैं पतित पावन, जरूर पतित हैं तभी तो बुलाते हैं...* सतयुग में तो सुखी होते हैं, वहां कोई दुख नहीं, दुख का नाम नहीं निशान नहीं... तो बाप की भी कोई दरकार नहीं पड़ती... *अभी है घोर कलयुग, घोर अंधेरा... फिर हम ब्राह्मणों की अब रात पूरी हुई दिन शुरू हुआ है...* गाते भी है ब्रह्मा की रात, ब्रह्मा का दिन... तो अब बाप मिला है, मनमनाभव का मंत्र मिला है... *तो अब मैं आत्मा और सबसे बुद्धि का योग तोड़ एक शिव बाबा से जुडी हूं... 'एक बाप दूसरा न कोई' इसी तपस्या में मैं आत्मा तप रही हूं और गोरा पावन बन रही हूं...*
❉ *पतित पावन बाबा ब्रह्मा तन का आधार लिए ब्रह्मा मुख कमल से मुझ आत्मा से कहते हैं:-* "मीठी बच्ची... *21 जन्म सुख भोग 63 जन्म फिर तुमने अनेक विकर्म किये... जिससे फिर अब तुम्हारे सर पर पापों का बोझ चढ़ गया हैं...* बोझ चढ़ते-चढ़ते अब तुम आत्मा तमोप्रधान काली हो चुकी हो, अब तुम्हारे बुलाने पर क्योंकि मैं आया हूं... *तो अब, मनमनाभव के मंत्र को धारण कर गोरा बनो..."*
➳ _ ➳ *मीठे बाबा की मीठी समझानी को सर माथे पर रखते हुए मैं आत्मा प्यारे बाबा से बोली:-* "हां मेरे मीठे बाबा... *आधाकल्प हुआ, माया ने बहुत कुतर कुतर की है...* आधाकल्प पतित होती होती मैं आत्मा, काली और दुखी बन पड़ी थी बाबा... जिंदगी को अब कही रोशनी की किरणे मिली है... मैं आत्मा दुखों की दुनिया से निकल अब सुखों की दुनिया में पहुँची हूं... *भिन्न-भिन्न युक्तियां रच मैं आत्मा अब चलते फिरते उठते बैठते आपकी याद द्वारा अपने विकर्मो को नष्ट करती जा रही हूं बाबा..."*
❉ *ज्ञान सागर बाबा ज्ञान किरणों की बरसात मुझ आत्मा पर करते हुए बोले:-* "देखो बच्चे... *दुनिया वाले दिखाते भी है श्याम काला, फिर काली का चित्र भी बैठ बनाया है, परंतु इसका अर्थ नहीं जानते... अभी फिर तुम्हें सारा ज्ञान है... अभी तुम आत्मा नॉलेजफुल बाप के, नॉलेजफुल बच्चे बने हो...* सारा मदार है याद पर... जितना जितना फिर तुम मुझ बाप को याद करते जाओगे, बुद्धि भी स्वच्छ बनती जाएगी और तुम मेरे पास... फिर स्वर्ग कृष्णपुरी में चली जाओगी..."
➳ _ ➳ *मीठे बाबा की समझानी को स्वयं में धारण करते मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "मीठे बाबा... *रोज मुरलियों में आप द्वारा मिली युक्तियों से मैं आत्मा स्वयं के पुरुषार्थ में तत्पर हूं... कभी कोठरी में बैठ आप के चित्र को निहारती, तो कभी पॉकेट में पड़े स्वयं के संपूर्ण चित्र को देख... अपने लक्षणों पर विजय पा रही हूं...* स्वयं को सदा उमंग-उत्साह से भर... मैं आत्मा संगमयुगी सम्पूर्ण फरिश्ते स्वरूप के बहुत नजदीक, खुद को देख रही हूं..."
❉ *करनकरावनहार बाबा मुझ निमित बाप के कार्य में सहयोगी आत्मा बच्ची से बोले:-* "मीठी बच्ची... *अब ज्वालामुखी याद द्वारा, पूरे उमंग उत्साह द्वारा औरों को भी उत्साह में रख, अभी सभी समस्याओं को संपूर्ण रुप से खत्म करो...* देखो ब्रह्मा बाप भी गेट पर खड़े आप सब का आहवान कर रहे हैं... बस अब आप बच्चो की ही सम्पूर्णता का इंतज़ार हैं,..."
➳ _ ➳ *मीठे बाबा की मीठी समझानी पर गौर फरमाते मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "मीठे बाबा... *ज्वालामुखी याद द्वारा अब मैं आत्मा स्वयं को उमंगो से भरी हुई देख रही हूं... याद रूपी अग्नि में तपते हुए, मैं आत्मा स्वयं को देख रही हूं... मैं आत्मा देख रही हूं, कैसे मुझ आत्मा का सारा किचड़ा भस्म होता जा रहा है... मैं आत्मा बेदाग स्वच्छ बन गई हूं...* मैं आत्मा श्याम से सुंदर बन अपने सम्पूर्ण स्वरूप को देख रही हूं..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- स्वदर्शन चक्रधारी बनना है*"
➳ _ ➳ स्वदर्शन चक्रधारी बन अपने 84 जन्मो के भिन्न - भिन्न स्वरूपों का गहराई से अनुभव करने के लिए मैं स्वयं को अशरीरी स्थिति में स्थित करती हूँ। *इस स्थिति में स्थित होते ही मैं स्वयं को विदेही, निराकार और मास्टर बीज रुप स्थिति में अपने शिव पिता परमात्मा के सामने परम धाम में देख रही हूँ*। कोई संकल्प कोई विचार मेरे मन में नही है। निर्संकल्प अवस्था। बस बाबा और मैं। *बीज रुप बाप के सामने मैं मास्टर बीज रुप आत्मा डेड साइलेंस की स्थिति का स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। कितना निराला अनुभव है। कितना अतीन्द्रिय सुख समाया है इस अवस्था में*।
➳ _ ➳ यही मेरा संपूर्ण अनादि स्वरुप है। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं देख रही हूँ अपने अनादि सतोप्रधान स्वरूप को जो बहुत सुंदर, बहुत आकर्षक और बहुत ही प्यारा है। *बीजरूप निराकार परम पिता परमात्मा शिव बाबा की अजर, अमर, अविनाशी सन्तान मै आत्मा अपने अनादि स्वरूप में सम्पूर्ण पावन, सतोप्रधान अवस्था मे हूँ*। एक दिव्य प्रकाशमयी दुनिया जहां हजारों चंद्रमा से भी अधिक उज्ज्वल प्रकाश है उस निराकारी पवित्र प्रकाश की दुनिया की मैं रहने वाली हूँ। सर्व गुणों और सर्वशक्तियों से भरपूर हूँ।
➳ _ ➳ अपने इसी अनादि सतोप्रधान स्वरुप में मैं आत्मा परमधाम से अब नीचे आ जाती हूं। संपूर्ण सतोप्रधान देह धारण कर नई सतोप्रधान दुनिया में मैं प्रवेश करती हूं। संपूर्ण सतोप्रधान चोले में अवतरित देवकुल की सर्वश्रेष्ठ आत्मा के रुप में इस सृष्टि चक्र पर मेरा पार्ट आरंभ होता है। *अब मैं मन बुद्धि से देख रही हूँ अपने आदि स्वरूप में देव कुल की सर्वश्रेष्ठ आत्मा के रूप में स्वयं को सतयुगी दुनिया में*। 16 कला सम्पूर्ण, डबल सिरताज, पालनहार विष्णु के रूप में मैं स्वयं को स्पष्ट देख रही हूँ। लक्ष्मी नारायण की इस पुरी में डबल ताज पहने देवी देवता विचरण कर रहें हैं। *राजा हो या प्रजा सभी असीम सुख, शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर हैं। चारों ओर ख़ुशी की शहनाइयाँ बज रही हैं। प्राकृतिक सौंदर्य भी अवर्णनीय है*।
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा अपने पूज्य स्वरूप का अनुभव कर रही हूं। मैं देख रही हूं मंदिरों में, शिवालयों में भक्त गण मेरी भव्य प्रतिमा स्थापन कर रहे हैं। *मेरी जड़ प्रतिमा से भी शांति, शक्ति और प्रेम की किरणे निकल रहीं हैं जो मेरे भक्तों को तृप्त कर रही हैं*। अपने पूज्य स्वरूप में मैं आत्मा स्वयं को कमल आसन पर विराजमान, शक्तियों से संपन्न अष्ट भुजाधारी दुर्गा के रूप में देख रही हूं। *असंख्य भक्त मेरे सामने भक्ति कर रहे हैं, मेरा गुणगान कर रहे हैं, तपस्या कर रहे हैं, मुझे पुकार रहे हैं, मेरा आवाहन कर रहे हैं। मैं उनकी सभी शुद्ध मनोकामनाएं पूर्ण कर रही हूँ*।
➳ _ ➳ अब मैं देख रही हूँ स्वयं को अपने ब्राह्मण स्वरूप में। ब्राह्मण स्वरुप में स्थित होते ही अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की स्मृति में मैं खो जाती हूँ। संगम युग की सबसे बड़ी प्रालब्ध स्वयं भाग्यविधाता भगवान मेरा हो गया। विश्व की सर्व आत्माएँ जिसे पाने का प्रयत्न कर रही है उसने स्वयं आ कर मुझे अपना बना लिया। *कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जिसे घर बैठे भगवान मिल गए। मेरा यह दिव्य आलौकिक जन्म स्वयं परमपिता परमात्मा शिव बाबा के कमल मुख द्वारा हुआ है। स्वयं परमात्मा ने मुझे कोटों में से चुन कर अपना बनाया है*। अपने ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धियों को देखते - देखते मुझे अपने ब्राह्मण जीवन के कर्तव्यों का भी ध्यान आने लगता है। उन कर्तव्यों को पूरा करने के लिए अब मैं स्वयं को अपने फ़रिशता स्वरूप में स्थित करती हूँ।
➳ _ ➳ अब मैं डबल लाइट फरिश्ता बन गया हूँ। मेरे अंग - अंग से श्वेत रश्मियाँ निकल रही हैं। मेरे चारों ओर प्रकाश का एक शक्तिशाली औरा बनता जा रहा है। मेरे सिर के चारों ओर सफेद प्रकाश का एक बहुत सुंदर चमकदार क्राउन दिखाई दे रहा है। *ज्ञान और योग के चमकदार पंख मुझ फरिश्ते की सुंदरता को औऱ अधिक निखार रहे हैं। सम्पूर्ण फरिश्ता स्वरूप धारण किये, परमपिता का संदेशवाहक बन विश्व की सर्व आत्माओं को परमात्मा के इस धरा पर अवतरित होने का संदेश देने के लिए अब मैं सारे विश्व का भ्रमण कर रहा हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं श्रीमत से मनमत और जनमत की मिलावट को समाप्त करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सच्ची स्व कल्याणी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा हर आकर्षण से मुक्त हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदा हर्षित रहती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा हर्षितमुखता का गुण धारण करती हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. स्नेह ऐसी शक्ति है जो सब कुछ भुला देती है। न देह याद आती, न देह की दुनिया याद आती। स्नेह मेहनत से छुड़ा देता है। *जहाँ मोहब्बत होती है वहाँ मेहनत नहीं होती है। स्नेह सदा सहज बापदादा का हाथ अपने ऊपर अनुभव कराता है*। स्नेह छत्रछाया बन मायाजीत बना देता है। कितनी भी बड़ी समस्या रूपी पहाड़ हो, स्नेह पहाड़ को भी पानी जैसा हल्का बना देता है।
➳ _ ➳ 2. *बाबा, बाबा और बाबा.... एक ही याद में लवलीन रहे*। तो बापदादा कहते हैं और कोई पुरुषार्थ नहीं करो, स्नेह के सागर में समा जाओ।
➳ _ ➳ 3. *समाये रहो, तो स्नेह की शक्ति सबसे सहज मुक्त कर देगी*।
➳ _ ➳ 4. स्नेह सहज ही समान बना देगा क्योंकि *जिसके साथ स्नेह है उस जैसा बनना, यह मुश्किल नहीं होता है*।
✺ *ड्रिल :- "स्नेह के सागर में समा, स्नेह की शक्ति का अनुभव"*
➳ _ ➳ आराम की मुद्रा में, एकांत में बैठ, अपनी पलके मूंदे, मैं अपने जीवन में घटित होने वाली घटनाओं और रोज़मर्रा की परिस्थितियों के बारे में विचार कर रही हूँ। *तभी मुझे अनुभव होता है कि जैसे मैं एक रास्ते पर बड़े आराम से चलते हुए कहीं जा रही हूँ और अचानक चलते चलते मेरे सामने एक पहाड़ आ जाता है और आगे जाने का रास्ता बंद हो जाता है*। इसलिए जैसे ही मैं वापिस पीछे मुड़ती हूँ तो देख कर हैरान रह जाती हूँ कि पीछे भी एक बहुत ऊंचा पहाड़ है। मेरे दाएं ओर बायें तरफ के भी दोनों रास्ते बंद है। चारों तरफ से बाहर निकलने का अब कोई रास्ता मुझे दिखाई नही दे रहा। *घबरा कर बाहर निकलने के लिए मैं ज़ोर - ज़ोर से चिल्ला रही हूं किन्तु वहां मेरी आवाज़ सुनने वाला कोई भी नही*।
➳ _ ➳ जब कहीं से कोई मदद मिलने की आश नही रह जाती तो मुख से स्वत: ही निकलने लगता है, हे भगवान मुझे बचाओ। भगवान को पुकारते - पुकारते अपने घुटनों में सिर रख कर मैं रो रही हूं। *तभी जैसे कानों में एक मधुर आवाज सुनाई देती है,बच्चे:- "मैं हूँ ना"। इस आवाज के साथ - साथ बहुत तेज प्रकाश मेरे चारों तरफ फैल जाता है*। और वो प्रकाश अपनी किरणों रूपी बाहों में मुझे उठा कर उस पहाड़ को पार करवा देता है।
➳ _ ➳ तेज प्रकाश की चकाचौंध से मेरी बन्द आंखे अपने आप खुल जाती हैं। सामने लाइट माइट स्वरुप में बापदादा को देख कर मैं अचंभित हो कर बाबा की और देखती हूँ और मेरे मुख से निकलता है, "बाबा वो पहाड़"। *बाबा मुस्कराते हुए कहते हैं, बच्ची:- "वो पहाड़ नही थे"। वो तो जीवन में आने वाली छोटी - छोटी परिस्थितियां है, जिन्हें तुम सोच - सोच कर पहाड़ जैसा बना देते हो*।
➳ _ ➳ *आओ, मेरे बच्चे:- "अपनी लाइट माइट से मैं तुम्हे इतना शक्तिशाली बना देता हूँ कि जीवन में आने वाली ये परिस्थितियां पहाड़ से राई बन जाएंगी"। फिर तुम इन्हें जम्प देकर सेकेंड में पार कर जाओगे*। यह कहकर बाबा अपनी शक्तिशाली किरणों को जैसे ही मुझ पर प्रवाहित करते है। मेरा साकारी शरीर जैसे लुप्त हो जाता है। और बाबा मुझ आत्मा को अपने साथ ऊपर की ओर लेकर चल पड़ते हैं।
➳ _ ➳ लाइट की एक ऐसी दुनिया जहाँ चारों और चमकती हुई मणियां जगमग कर रही है। इस परमधाम घर में बाबा मुझे ले आते हैं। अब मैं बाबा के सम्मुख हूँ। बाबा के साथ अटैच हूँ और उनसे आ रही लाइट, माइट से स्वयं को भरपूर कर रही हूं। उनसे आ रही सर्वशक्तियाँ मुझमें असीम बल भर कर मुझे शक्तिशाली बना रही है। *मैं डबल लाइट बनती जा रही हूँ। कोई बोझ, कोई बंधन नही। बिल्कुल उन्मुक्त और निर्बन्धन स्थिति में मैं स्थित हूँ*। गहन सुखमय स्थिति की अनुभूति अपने शिव पिता परमात्मा के सानिध्य में मैं कर रही हूं। बाबा की लाइट माइट से भरपूर हो कर डबल लाइट बन कर अब मैं वापिस लौट रही हूं।
➳ _ ➳ अपनी साकारी देह में विराजमान होकर भी अब मैं निरन्तर आत्मिक स्मृति में रहते हुए अपने पिता परमात्मा के स्नेह में सदा समाई रहती हूं। अब मैं एक के स्नेह के रस का रसपान करने वाली एकरस आत्मा बन गई हूँ। *देह और देह की दुनिया को अब मैं भूल चुकी हूं। अपने शिव पिता की मोहब्बत के झूले में झूलते हुए हर प्रकार की मेहनत से अब मैं मुक्त हो गई हूं*। अपनी हजारों भुजाओं के साथ बाबा चलते, फिरते, उठते, बैठते हर कर्म करते मुझे अपने साथ प्रतीत होते हैं।
➳ _ ➳ अब कोई भी परिस्थिति मेरी स्व स्तिथि के आगे टिकती नही। क्योंकि बाबा की छत्रछाया हर परिस्थिति रूपी पहाड़ को पानी जैसा हल्का बना कर मुझे सहज ही उस परिस्थिति से बाहर निकाल लेती है। बाबा के प्रेम का रंग मुझ पर इतना गहरा चढ़ चुका है कि *सुबह आंख खोलते बाबा, दिन की शुरुआत करते बाबा, कर्मयोगी बन हर कर्म करते एक साथी बाबा, दिन समाप्त करते भी एक बाबा के लव में लीन रहने वाली लवलीन आत्मा बन गई हूं*। स्नेह के सागर में सदा समाये रहने के अनुभव ने मुझे याद की मेहनत से मुक्त कर सहजयोगी, स्वत:योगी और निरन्तर योगी बना दिया है।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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