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 27 / 09 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बाप के सदा के स्नेही बनकर रहे ?*

 

➢➢ *किसी भी परिस्थिति ने अपनी तरफ तो नहीं खींचा ?*

 

➢➢ *ब्राह्मण जीवन की प्रतिज्ञा को दृढ़ता से निभाया ?*

 

➢➢ *याद की शक्ति से स्वयं को परिवर्तित किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  विदेही बनने की विधि है-बिन्दी बनना। *अशरीरी बनते हो, कर्मातीत बनते हो, सबकी विधि बिन्दी है इसलिए बापदादा कहते हैं अमृतवेले बापदादा से मिलन मनाते, रूहरिहान करते जब कार्य में आते हो तो पहले तीन बिन्दियों का तिलक मस्तक पर लगाओ और चेक करो-किसी भी कारण से यह स्मृति का तिलक मिटे नहीं।* अविनाशी, अमिट तिलक रहे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बाप की छत्रछाया में रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने को बाप की याद की छत्रछाया में रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? *यह याद की छत्रछाया सर्व विघ्नों से सेफ कर देती है। किसी भी प्रकार का विघ्न छत्रछाया में रहने वाले के पास आ नहीं सकता। छत्रछाया में रहने वाले निश्चित विजयी है ही। तो ऐसे बने हो? छत्रछाया से अगर संकल्प रूपी पाँव भी निकाला तो माया वार कर लेगी।*

 

  *किसी भी प्रकार की परिस्थिति आवे छत्रछाया में रहने वाले के लिए मुश्किल से मुश्किल बात भी सहज हो जायेगी। पहाड़ समान बातें रूई के समान अनुभव होंगी। ऐसी छत्रछाया की कमाल है।* जब ऐसी छत्रछाया मिले तो क्या करना चाहिए? चाहे अल्पकाल की कोई भी आकर्षण हो लेकिन बाहर निकला तो गया। इसलिए अल्पकाल की आकर्षण को भी जान गये हो। इस आकर्षण से सदा दूर रहना। हद की प्राप्ति तो इस एक जन्म में समाप्त हो जायेगी। बेहद की प्राप्ति सदा साथ रहेगी। तो बेहद की प्राप्ति करने वाले अर्थात् छत्रछाया में रहने वाले विशेष आत्मायें है, साधारण नहीं। यह स्मृति सदा के लिए शक्तिशाली बना देगी।

 

  जो सिक्कीलधे लाडले होते हैं वह सदा छत्रछाया के अन्दर रहते हैं। याद ही छत्रछाया है। इस छत्रछाया से संकल्प रूपी पाँव भी बाहर निकाला तो माया आ जायेगी। यह छत्रछाया माया को सामने नहीं आने देती। *माया की ताकत नहीं है - छत्रछाया में आने की। वह सदा माया पर विजयी बन जाते हैं। बच्चा बनना अर्थात् छत्रछाया में रहना। यह भी बाप का प्यार है जो सदा बच्चों को छत्रछाया में रखते हैं। तो यही विशेष वरदान याद रखना - कि लाडले बन गये, छत्रछाया मिल गई। यह वरदान सदा आगे बढ़ाता रहेगा।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आप चैलेन्ज करते हो कि हम आपको जीवन में मुक्ति डबल दिला सकते हैं - जीवन भी हो और मुक्ति भी हो, ऐसी चैलेन्ज की है ना? नशे से कहते हो कि जीवनमुक्ति आपका और हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है, तो *स्वदर्शन चक्रधारी अर्थात दु:ख के चक्करों से मुक्त रहने वाले और मुक्त करने वाले।* वशीभूत होने वाले नहीं लेकिन अधिकारी बन, मालिक बन सर्व कर्मेन्द्रियों से कर्म कराने वाले।

 

✧  धोखा खाने वाले नहीं लेकिन औरों को भी धोखे से छुडाने वाले। यही अभ्यास करते हो ना - *कर्म में आना और फिर न्यारे हो जाना,* तो याद का अभ्यास क्या रहा? - आना और जाना और पढाई अर्थात ज्ञान का सार क्या है? कर्मातीत बन घर जाना है और फिर राज्य करने का पार्ट बजाने अपने राज्य में आना है। यही ज्ञान का सार है ना। तो *जानाऔर आना' - यही ज्ञान और योग है,* इसी अभ्यास में दिन-रात लगे हुए हो।

 

✧  बुद्धि में घर जाने की और फिर राज्य में आने की खुशी है। जैसे मधुबन अपने घर में आते हो तो कितनी खुशी रहती है। जब से टिकेट बुक कराते हो तब से जाना है, जाना है - यह बुद्धि में याद रहता है ना! तो जब मधुबन घर की खुशी है तो आत्मा के घर जाने की भी खुशी है। लेकिन *खुशी से कौन जायेगा? जितना सदा यह 'आने' और जाने' का अभ्यास होगा।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ पाण्डव एक सेकण्ड में एकदम अलग हो सकते हो? आत्मा अलग मालिक और कर्मेन्द्रियां कर्मचारी अलग, यह अभ्यास जब चाहो तब होना चाहिए। *अच्छा, अभी-अभी एक सेकण्ड में न्यारे और बाप के प्यारे बन जाओ। पावरफुल अभ्यास करो बस मैं हूँ ही न्यारी। यह कर्मेन्द्रियाँ हमारी साथी हैं, कर्म की साथी हैं लेकिन मैं न्यारा और प्यारा हूँ। अभी एक सेकण्ड में अभ्यास दोहराओ।* (ड्रिल) सहज लगता है कि मुश्किल है? सहज है तो *सारे दिन में कर्म के समय यह स्मृति इमर्ज करो, तो कर्मातीत स्थिति का अनुभव सहज करेंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सदा के स्नेही बनना"*

 

_ ➳  *मधुबन... श्रेष्ठ भूमि पर... मीठे बाबा के कमरे में रुहरिहान करने के लिये... जब मैं आत्मा... पांडव भवन के प्रांगण में पहुँचती हूँ... सुंदर सतयुग और मनमोहिनी सूरत... श्रीकृष्ण को सामने देख पुलकित हो उठती हूँ...* मीठे बाबा ने ज्ञान के तीसरे नेत्र को देकर... चित्रो में चैतन्यता को सहज ही दिखाया है... भक्ति में सबकुछ कल्पना मात्र लगता था... परन्तु आज बाबा की गोद में बैठकर... हर नज़ारा दिल के कितने करीब है... *बाबा ने सतयुगी दुनिया के ये प्यारे नज़ारे मेरे नाम लिख दिये हैं... मन के यह भाव... मीठे बाबा को सुनाने मैं आत्मा... कमरे की और बढ़ चलती हूँ...*

 

  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने महान भाग्य की खुशी से भरते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *इस ऊँचे स्थान... मधुबन में, ऊँची स्थिति पर, ऊँची नॉलेज से, ऊँचे ते ऊँचे बाप की याद में, ऊँचे ते ऊँची सेवा स्मृति स्वरूप रहोंगे तो सदा समर्थ रहोगे..."* जहाँ समर्थ है वहाँ व्यर्थ सदा के लिये समाप्त हो जाता है... *इसलिये मधुबन श्रेष्ठ भूमि पर... बाप के साथ सदा सच्चे स्नेही बनकर रहना..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा प्यारे बाबा के ज्ञान रत्नों को अपनी झोली में समेटते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा... मैं आत्मा अपने मीठे भाग्य पर क्यों न इतराऊ... कि स्वयं भगवान ने मुझे अपनी *फूलो की बगिया में बिठा कर... मुझे भी सुंदर खिलता हुआ फूल बना दिया है... आपने मेरा जीवन सत्य की रोशनी से भर दिया है..."*

 

 ❉ *बाबा ने मुझ आत्मा को विश्वकल्याणकारी की भावना से ओतप्रोत बनाते हुए कहा :-* "मीठी लाडली बच्ची... ईश्वर पिता को पाकर, अब अपनी हर श्वांस को ईश्वरीय यादों में पिरो दो... *जब भी तुम ड्रामा के हर दृश्य को ड्रामा चक्र संगमयुगी टॉप पर स्थित हो कुछ भी देखोगी तो स्वतः ही अचल, अडोल रहोगी...* तुम तो कल्प पहले वाली... स्नेही, सहयोगी, अटल, अचल स्थिति में रहने वाली विजयी आत्मा हो..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा ईश्वरीय यादों के खजानों से सम्पन्न होकर, मीठे बाबा से कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा...* आपने मुझ आत्मा के जीवन में आकर... विश्व कल्याण की सुंदर भावना से भर दिया है... मैं आत्मा *आपसे सच्चा स्नेह रख सबके जीवन से दुःखों की लहर निकाल... सुख की किरणें फैलाती हूँ... सबके जीवन में आनंद और खुशियों के फूल खिला रही हूँ..."*

 

  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान रत्नों से भरपूर करते हुए कहा :-* "मीठी बच्ची... *जहाँ सच्चा, श्रेष्ठ स्नेह है... वहाँ दुःख की लहर आ नही सकती...* परिवार के स्नेह के धागे में तो सभी बंधे हुए हो, लेकिन अब सच्चे सच्चे शिवबाबा की लग्न में मगन... *सदा एक की याद में रह... कभी भी क्या, क्यों के संकल्प में फंस नहीं जाना... नहीं तो सब व्यर्थ के खाते में जमा हो जायेगा..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा मीठे बाबा के सच्चे प्यार में दिल से कुर्बान होकर कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे मेरे बाबा... मैं आत्मा आपसे सच्चा स्नेह... सच्चा सुख पाकर धन्य धन्य हो गयी हूँ... *मीठे बाबा... आपने तो मेरे जीवन को दुःखों से सुलझाया है...* और सच्चे प्यार और मीठे ज्ञान रत्नों से सजाया है... *मैं आत्मा अब आपका साथ कभी भी नहीं छोडूंगी...* मीठे बाबा से सदा साथ रहने का वायदा करके मैं आत्मा... अपने कर्मक्षेत्र पर वापिस लौट आई..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- याद की शक्ति से स्वयं का परिवर्तन करना*"

 

_ ➳  "मैं देवकुल की महान आत्मा हूँ" स्वयं को यह स्मृति दिलाते हुए, अपने अंदर दैवी संस्कार भरने के लिए मैं अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरुप को स्मृति में लाती हूँ। अपने सम्पूर्ण स्वरूप को स्मृति में लाते ही मेरा सम्पूर्ण सतोप्रधान अनादि और आदि स्वरूप मेरे सामने स्पष्ट होने लगता है। *अब अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान अनादि स्वरूप का अनुभव करने के लिए मैं अशरीरी आत्मा बन अपनी साकारी देह से बाहर निकल कर, चल पड़ती हूँ परमधाम*। सूर्य, चांद, तारागणों को पार करते हुए, सूक्ष्म लोक को भी पार करके मैं पहुंच गई अपने घर परमधाम।

 

_ ➳  लाल प्रकाश से प्रकाशित इस परमधाम घर मे मैं स्वयं को देख रही हूँ। यहां पहुंचते ही मुझे डेड साइलेन्स का अनुभव हो रहा है। *मेरे बिल्कुल सामने है सर्वगुणों, सर्वशक्तियों के सागर मेरे शिव पिता परमात्मा। उनसे आ रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे पूरे परमधाम को प्रकाशित कर रही हैं*। इस परमधाम घर मे चारों और फैले सर्वशक्तियों के शक्तिशाली वायब्रेशन मुझ आत्मा को गहराई तक छू रहें हैं और मुझे शक्तिशाली बना रहे हैं। इन सर्वशक्तियों का स्वरुप तेजी से परिवर्तित हो रहा है। ऐसा लग रहा है इन सर्वशक्तियों ने जैसे जवालस्वरूप धारण कर लिया है। *मेरे इर्द - गिर्द जैसे आग की बहुत तेज लपटे उठ रही हैं जिनकी तपन में मेरे पुराने स्वभाव संस्कार जल कर भस्म हो रहें हैं*।

 

_ ➳  जैसे - जैसे इस योग अग्नि में मेरे पुराने संस्कारों का दाह संस्कार हो रहा है वैसे - वैसे मेरा अनादि सतोप्रधान स्वरूप इमर्ज हो रहा है। अपने उसी सतोप्रधान स्वरुप को अब मैं देख रही हूँ। *डायमण्ड के समान चमकते हुए अपने रीयल स्वरूप को अब मैं अनुभव कर रही हूँ। मेरा अनादि स्वरूप कितना प्यारा, कितना आकर्षक है*। मुझ हीरे की चमक चहुँ और फैल रही है। कभी मैं अपने इस अति सुंदर मनोहर स्वरूप को और कभी अपने सामने विराजमान अपने महाज्योति शिव पिता परमात्मा को निहार रही हूँ। *जिनकी अनन्त किरणे मुझ आत्मा हीरे पर पड़ कर मुझे और भी चमकदार बना रही हैं*।

 

_ ➳  हीरे के समान चमकदार बन कर, शक्तियों से भरपूर हो कर अब मैं आत्मा वापिस साकारी लोक में आ रही हूँ। *साकारी दुनिया, साकारी शरीर मे रहते हुए अब मैं अपने अनादि और आदि सतोप्रधान स्वरूप को हर समय स्मृति में रख, निरन्तर योग की भट्ठी में रह, अपने पुराने संस्कारों का पविर्तन कर रही हूँ*। मुझ आत्मा के ऊपर चड़ी 63 जन्मो के विकारों की कट योग भट्ठी में जल कर भस्म हो रही है। *जैसे - जैसे विकारों की कट मुझ आत्मा के ऊपर से उतर रही है वैसे - वैसे नए दैवी संस्कारों को मैं आत्मा धारण करती जा रही हूँ*। अपने अनादि और आदि संस्कारों की स्मृति अब मुझे सहज ही संपूर्णता की ओर ले जा रही हैं।

 

_ ➳  निरन्तर याद की भट्ठी में रहने से पुराने संस्कार तो भस्म हो ही रहें है किंतु साथ ही साथ आगे होने वाले विकर्मों से भी मैं आत्मा स्वयं को बचाकर विकर्माजीत बन रही हूँ। विकर्मों का बोझ उतरने से मैं स्वयं को एकदम हल्का अनुभव कर रही हूँ। यह हल्कापन मुझे हर समय उड़ती कला का अनुभव करवा रहा है। *ज्ञान और योग के पंख लगाए अब मैं एक लोक से दूसरे लोक और दूसरे लोक से तीसरे लोक हर समय भ्रमण करते हुए स्वयं को सदा शक्तियों से सम्पन्न करती रहती हूँ*।

 

_ ➳  *योग की भट्ठी में रहने से मेरे चारों और एक ऐसा शक्तिशाली औरा निर्मित हो गया है कि मेरे सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली आत्माओं के संस्कार भी अब उस शक्तिशाली औरे के प्रभाव से परिवर्तन हो रहें हैं*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं हर आत्मा को हिम्मत उल्लास दिलाने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं रहमदिल आत्मा हूँ।*

   *मैं विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सदा बाप की दुआएं प्राप्त करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदा भरपूरता का अनुभव करती हूँ  ।*

   *मैं संतुष्टमणि हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *प्रसन्नचित आत्माकोई कैसी भी आत्मा परेशान हो, अशान्त हो उसको अपने प्रसन्नता की नजर से प्रसन्न कर देगी। जो बाप का गायन है 'नजर से निहाल करने वाले', वह सिर्फ बाप का नहीं है आपका भी यही गायन है* और अभी समय प्रमाण जितना समय समीप आ रहा है तो *नजर से निहाल करने की सेवा करने का समय आयेगा। सात दिन का कोर्स नहीं होगाएक नजर से प्रसन्नचित हो जायेंगे। दिल की आश आप द्वारा पूर्ण हो जायेगी*।

 

✺   *ड्रिल :-  "नजर से निहाल करने की सेवा का अनुभव करना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा मन बुद्धि को एकाग्र कर भृकुटी... के मध्य में स्वयं को अनुभव करती हूं... *आत्म पंछी उड़ान भरता है सूक्ष्म वतन की ओर जहां... ब्रह्मा बाबा और उनके मस्तक के बीचों बीच परम ज्योति बापदादा* को देख मैं आत्मा अपनी सुधबुध भूल जाती हूँ...

 

 _ ➳  बाबा बड़े प्यार से मुझे देख रहे हैं... हाथ से पास आने का इशारा करते हैं... मैं तुरंत उनके पास पहुंच जाती हूं... पाती हूं अपने आपको बाबा की गोद में... *बाबा बड़े प्यार से मेरे सर पर हाथ फिराते हैं... और आशीर्वाद देते हैं... प्रसन्नचित आत्मा भव* और दृष्टि दे रहे हैं... बाबा की नजर पड़ते ही मैं आत्मा... भूल जाती हूं सब कुछ... असीम शान्ति... आनन्द ही आनन्द... कैसा जादू है... *बाबा की नजर से ही मैं आत्मा निहाल हो चली हूं खो चली हूं... इस परम आनंद... परम सुख में...*

 

 _ ➳  *मेरे अंदर से दुख... अशांति... सब भाप बन कर उड़ता जा रहा है...* अपने अंदर प्रसन्नता का अनुभव होते ही... मेरी सबको देखने की नजर बदलती जा रही है... *मेरी दृष्टि सबके लिए प्यार भरी... रहम भरी... कल्याणकारी होती जा रही है...*

 

 _ ➳  *सुख और आनंद...* के झूले में झूलते हुए मैं एहसास करती हूं कि मुझे बाबा ने जो अनुभव कराया है... वैसा ही अनुभव मुझ आत्मा से विश्व की सर्व आत्माओं को हो रहा हैै... *बाप समान बन किसी के प्रति भी घृणा भाव न रख उन्हें सुख और आनंद दे रही हूं... अपनी शुभ भावना की दृष्टि द्वारा उनका कल्याण कर रही हूं... शान्ति को खोजती आत्माओं के दिल की आस पूर्ण कर रही हूं...*

 

 _ ➳  *इन संकल्पों के उदय होने के साथ ही मैं अपने अंदर एक नई ऊर्जा... और प्रसन्नता... को पाती हूं* और अपने इस सुंदर पावन स्वरूप के लिये... इस सेवा के लिए... बाबा को दिल से... धन्यवाद देती हूं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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