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❍ 29 / 11 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *"क्या, क्यों" से मुक्त रहे ?*
➢➢ *सफलता को अधिकार के रूप में अनुभव किया ?*
➢➢ *नम्रचित, निर्माण और निर्मल बनकर रहे ?*
➢➢ *मुश्किल को भी सहज बनाया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *फरिश्ता वा अव्यक्त जीवन की विशेषता है - इच्छा मात्रम् अविद्या।* देवताई जीवन में तो इच्छा की बात ही नहीं। *जब ब्राह्मण कर्मातीत स्थिति को प्राप्त हो जाते हैं तब किसी भी शुद्ध कर्म, व्यर्थ कर्म, विकर्म वा पिछला कर्म, किसी भी कर्म के बन्धन में नहीं बंध सकते।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को स्वराज्य अधिकारी समझते हो? स्व का राज्य मिला है या मिलने वाला है? *स्वराज्य अर्थात् जब चाहो, जैसे चाहो वैसे कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म करा सको। कर्मेन्द्रिय-जीत अर्थात् स्वराज्य अधिकारी।* ऐसे अधिकारी बने हो या कभी-कभी कर्मेन्द्रियां आपको चलाती हैं? कभी मन आपको चलाता है या आप मन को चलाते हो? कभी मन व्यर्थ संकल्प करता है या नहीं करता है? अगर कभी-कभी करता है तो उस समय स्वराज्य अधिकारी कहेंगे? राज्य बहुत बड़ी सत्ता है। राज्य सत्ता चाहे जो कर सकती है, जैसे चलाने चाहे वैसे चला सकती है।
〰✧ यह मन-बुद्धि-संस्कार आत्मा की शक्तियाँ हैं। आत्मा इन तीनों की मालिक है। यदि कभी संस्कार अपने तरफ खींच लें तो मालिक कहेंगे? तो स्वराज्य-सत्ता अर्थात् कर्मेन्द्रिय-जीत। जो कर्मेन्द्रिय-जीत है वही विश्व की राज्य-सत्ता प्राप्त कर सकता है। *स्वराज्य अधिकारी विश्व-राज्य अधिकारी बनता है। तो आप ब्राह्मण आत्माओंका ही स्लोगन है कि 'स्वराज्य ब्रह्मण जीवन का जन्म-सिद्ध अधिकार है।' स्वराज्य अधिकारी की स्थिति सदा मास्टर सर्वशक्तिवान है, कोई भी शक्ति की कमी नहीं।* स्वराज्य अधिकारी सदा धर्म अर्थात् धारणामूर्त भी होगा और राज्य अर्थात् शक्तिशाली भी होगा। अभी राज्य में हलचल क्यों है? क्योंकि धर्म-सत्ता अलग हो गई है और राज्य-सत्ता अलग हो गई है। तो लंगड़ा हो गया ना! एक सत्ता हुई ना। इसलिए हलचल है। ऐसे आप में भी अगर धर्म और राज्य - दोनों सत्ता नहीं हैं तो विघ्न आयेंगे, हलचल में लायेंगे, युद्ध करनी पड़ेगी। और दोनों ही सत्ता हैं तो सदा ही बेपरवाह बादशाह रहेंगे, कोई विघ्न आ नहीं सकता। तो ऐसे बेपरवाह बादशाह बने हो? या थोड़ी-थोड़ी शरीर की, सम्बन्ध की .... परवाह रहती है?
〰✧ पांडवों को कमाने की परवाह रहती है। परिवार को चलाने की परवाह रहती है या बेपरवाह रहते हैं? *चलाने वाला चला रहा है, कराने वाला करा रहा है - ऐसे निमित्त बन कर करने वाले बेपरवाह बादशाह होते हैं। 'मैं कर रहा हूँ' - यह भान आया तो बेपरवाह नहीं रह सकते। लेकिन 'बाप द्वारा निमित्त बना हुआ हूँ' - यह स्मृति रहे तो बेफिकर वा निश्चिंत जीवन अनुभव करेंगे। कोई चिंता नहीं। कल क्या होगा - उसकी भी चिंता नहीं।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *सेकण्ड में एवररेडी बन सकते हो?* सेकण्ड में अशरीरी बन सकते हो? कि युद्ध करनी पडेगी कि नहीं, मैं शरीर नहीं हूँ, मैं शरीर नहीं हूँ ऐसे तो नहीं ना! *सोचा और हुआ।* सोचना और स्थित होना (बापदादा ने कुछ मिनटों तक ड्रिल कराई) अच्छा लगता है ना! तो सारे दिन में वीच-बीच में ये अभ्यास करो। कितने भी विजी हो लेकिन बीच-बीच में एक सेकण्ड भी अशरीरी होने का अभ्यास करो। इसके लिए कोई नहीं कह सकता - मैं बिजी हूँ।
〰✧ *एक सेकण्ड निकालना ही है, अभ्यास करना ही है।* अगर किसी से वातें भी कर रहे हो, किसके साथ कार्य कर रहे हो, तो उन्हों को भी एक सेकण्ड ये ड्रिल कराओ, क्योंकि समय प्रमाण ये अशरीरी-पन का अनुभव, यह अभ्यास जिसको ज्यादा होगा वो नम्वर आगे ले लेगा। क्योंकि सुनाया कि समय समाप्त अचानक होना है। *अशरीरी होने का अभ्यास होगा तो फौरन ही समय की समाप्ति का वायब्रेशन आयेगा।*
〰✧ इसलिए *अभी से अभ्यास वढाओ। ऐसे नहीं, अगले साल में डायमण्ड जुवली है तो अब नहीं करना है, पीछे करना है।* जितना बहुतकाल एड करेंगे उतना राज्य-भाग्य के प्राप्ति में भी नम्बर आगे लेंगे। *अगर बीच-बीच में यह अभ्यास करेंगे तो स्वत: ही शक्तिशाली स्थिति सहज अनुभव करेंगे।* ये छोटी-छोटी बातों में जो पुरुषार्थ करना पडता है वो सब सहज समाप्त हो जायेगा।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *जैसे बाप के लिए कहा हुआ है कि वह जो है वैसा ही उनको जानने वाला सर्व प्राप्तियाँ कर सकता हैं वैसे ही स्वयं को जानने के लिए भी जो हूँ, जैसा हूँ, ऐसा ही जान कर और मान कर सारा दिन चलते-फिरते हो?* क्योंकि जैसे बाप को सर्व स्वरूपों से वा सर्व सम्बन्धों से जानना आवश्यक है ऐसे ही बाप द्वारा स्वयं को भी ऐसा जानना आवश्यक है। *जानना अर्थात् मानना। मैं जो हूँ, जैसा हूँ- ऐसे मान कर चलेंगे तो क्या स्थिति होगी ? देह में विदेही, व्यक्त में होते अव्यक्त, चलते-फिरते फ़रिश्ता वा कर्म करते हुए कर्मातीत।* क्योंकि जब स्वयं को अच्छी तरह से जान और मान लेते हैं तो जो स्वयं को जानता है उस द्वारा कोई भी संयम अर्थात् नियम नीचे ऊपर नहीं हो सकता। संयम को जानना अर्थात् संयम में चलना। *स्वयं को मान कर के चलने वाले से स्वत: ही संयम साथ-साथ रहता है। उनको सोचना नहीं पड़ता कि यह संयम है वा नहीं, लेकिन स्वयं की स्थिति में स्थित होने वाला जो कर्म करता है, जो बोलता है, जो संकल्प करता है वही संयम बन जाता है।* जैसे साकार में स्वयं की स्मृति में रहने से जो कर्म किया वही ब्राह्मण परिवार का संयम हो गया ना? यह संयम कैसे बने? *ब्रह्मा द्वारा जो कुछ चला वही ब्राह्मण परिवार के लिए संयम बना। तो स्वयं की स्मृति में रहने से हर कर्म संयम बन ही जाता है और साथ-साथ समय की पहचान भी उनके समाने सदैव स्पष्ट रहती है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सफलता का सितारा बनना"*
➳ _ ➳ निराला निराकारी शिव पिता, और ब्रह्मा सी प्यारी अलौकिक मां.... के साये में सनाथ बनी मै आत्मा... इतने अनोखे निराले प्यारे माँ पिता को पाकर.. जनमो के अनाथपन को कब का भूल गयी हूँ... संगम के वरदानी समय पर भाग्य के यूँ उदय होने पर... खुशियो और आनन्द में रोमांचित हूँ... *वो भटकन वह दुःख भी, अब तो प्यारे है... जिन्होंने मुझे यूँ भगवान की गोद में लाकर छोड़ दिया... वह हर बात प्यारी है, जिसने मुझे भगवान के निच्छल प्रेम का प्याला पिला दिया है.*.. इसी मीठे चिंतन में मगन मै आत्मा... सूक्ष्म वतन में अपने सच्चे मातपिता से मिलने उड़ चलती हूँ...
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को चमकता सितारा बनाते हुए कहा :-* " मीठे प्यारे फूल बच्चे... मीठे बाबा ने जो भाग्य का सितारा चमकाया है... सदा उसे ही देझते रहो... दूर से ही आपकी चमक की लाइट दिखती रहे... ऐसा अभ्यास बढ़ाते चलो... *मा दाता, मा शिक्षक के साथ मा सतगुरु का भी पार्ट बजाकर... वरदाता बन मुक्ति जीवनमुक्ति दिलाओ.*.."
➳ _ ➳ *मै आत्मा मीठे बाबा से मा सतगुरु की उपलब्धि पाकर आनन्द में डूबकर कहती हूँ :-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... सुख की एक झलक को प्यासी मै आत्मा गुरुओ के पीछे घूम रही थी... *कि आप सतगुरु ने मुझे गले लगाकर, मा सतगुरु की सीट पर सजा दिया है... इस मीठे भाग्य का किस तरहा शुक्रिया करूँ.*.. प्यारे बाबा आपने और मेरे भाग्य ने मुझे किन ऊंचाइयों पर सजा दिया है..."
❉ *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा में मेरी सोयी शक्तियो को जगाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *सदा एकरस सम्पूर्ण चमकता सितारा हो... ऐसा स्वयं को प्रत्यक्ष कर, सदा सूर्य समान चमकते रहने का संकल्प करो.*.. भटकती थकी प्यासी आत्माओ को सच्चा रास्ता दिखाने वाले... लाइट हाउस बन कर, बाप दादा के दिल तख्त पर मुस्कराओ..."
➳ _ ➳ *मै आत्मा मीठे बाबा की प्यारी गोद में इठलाते हुए कहती हूँ :-* "मेरे प्यारे मनमीत बाबा... कभी स्वयं अज्ञान के अंधेरो में खो गयी थी... आज भाग्य ने ज्ञान सितारा बनाकर विश्व में मुझे चमका दिया है... आपकी मीठी यादो संग में आत्मा *विश्व को रौशन करने वाला, एकरस सम्पूर्ण सितारा बनकर, विश्व गगन पर बड़े ही शान से चमक रही हूँ..*.
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को हर बात में विन, नम्बर वन बनाते हुए कहते है :-* "सदा पुरुषोत्तम समझकर, चढ़ती कला में जाने वाले बनो... सदा उड़ो और उड़ाओ...सदा निश्चयबुद्धि विजयी रत्न है इस नशे में डूबे रहो... *ईश्वरीय खानों के मालिक मा सागर के खुमारी में रह... बीती को बिंदी लगाकर... खुशियो में झूमते आगे बढ़ो.*.."
➳ _ ➳ *मै आत्मा मीठे बाबा से पायी खुशियो की दौलत को गले लगाते हुए कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे दुलारे बाबा... *अपनी यादो के पंख देकर, मुझ आत्मा को खुशियो के आसमाँ में उड़ाने वाला खुबसूरत आत्मा परिंदा बना दिया है.*.. बीती को बिंदी में समाकर कितना हल्का प्यारा कर दिया है... ईश्वर ही मेरा साथी बनकर साथ है... भला अब किस बात की मुझे चिंता..."ईश्वर पिता से शक्तियो वरदानों को लेकर मै आत्मा... स्थूल जगत में लौट आयी...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- क्यों, क्या से मुक्त रहना*"
➳ _ ➳ सभी प्रश्नों से पार, प्रसन्नचित अवस्था का अनुभव करने के लिए, मैं अपने मन और बुद्धि को हर संकल्प विकल्प से मुक्त कर, केवल एक ही संकल्प पर स्थित करती हूँ "मैं बाबा की बाबा मेरा"। *इस एक संकल्प में टिकते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे मैं बाबा के सर्व खजानों की अधिकारी आत्मा बन गई हूँ क्योंकि बिना मांगे ही अविनाशी और अथाह खजाने देने वाला दाता भगवान स्वयं मेरा हो गया है। जिस भगवान को दुनिया आज भी कन्दराओं, गुफाओं, मंदिरों, गुरुद्वारों में तलाश कर रही है वो भगवान मेरा बनकर मुझ पर अखुट खजाने लुटा रहा है*। मन मे यह विचार आते ही एक खुमारी मुझ आत्मा पर चढ़ने लगती है। अपार खुशी और नशे से मैं भरपूर हो जाती हूँ। अपने पिता से प्राप्त होने वाले अखुट खजानों और सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों की स्मृति मुझे स्वदर्शन चक्रधारी अर्थात स्व का दर्शन कर सदा प्रसन्नचित रहने वाला बना देती है।
➳ _ ➳ स्वदर्शन चक्रधारी बनते ही सभी व्यर्थ के चक्रों से बुद्धि निकल कर अब स्वयं का दर्शन करने में बिजी हो जाती है और मैं आनन्द विभोर होकर अखुट प्राप्तियों से सम्पन्न अपने भिन्न - भिन्न स्वरूपो को देखने मे मगन हो जाती हूँ। *मेरा एक - एक स्वरूप मेरी आँखों के सामने मुझे स्पष्ट दिखाई दे रहा है। देख रही हूँ मैं सबसे पहले अपने अनादि स्वरूप में स्वयं को अपने स्वीट साइलेन्स होम परमधाम में। लाल प्रकाश से प्रकाशित आत्माओं की इस निराकारी दुनिया मे हीरे के समान चमकते, अपनी स्वर्णिम आभा चारों और बिखेरते अपने अनादि सतोप्रधान स्वरूप का मैं भरपूर आनन्द ले कर अब अपने आदि स्वरूप को स्मृति में लाती हूँ*।
➳ _ ➳ अपने आदि स्वरूप में मैं देख रही हूँ स्वयं को अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई स्वरुप में नई सतोप्रधान सतयुगी दुनिया में। *देव कुल की सर्वश्रेष्ठ आत्मा के रूप में इस सतयुगी सृष्टि पर मैं स्वयं को विश्व महारानी के रूप में देख रही हूँ। असीम सुख, शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर, प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण इस अति खूबसूरत सृष्टि पर अपना खूबसूरत पार्ट बजाने के बाद अब मैं अपने पूज्य स्वरूप को देख रही हूँ जो कमल आसन पर विराजमान, शक्तियों से संपन्न अष्ट भुजाधारी दुर्गा के रूप में मेरी आँखों के सामने स्पष्ट दिखाई दे रहा है*। अपने इस पूज्य स्वरूप में मैं अपने सामने आराधना करते भक्तों को देख रही हूँ। अपने दिव्य नयनो से मैं अपने भक्तों को निहारते हुए उन्हें सुख, शांति की अनुभूति करवा रही हूँ। अपने वरदानी हस्तों से वरदान देकर उनकी हर मनोकामना को पूर्ण कर रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने इस पूज्य स्वरूप के बाद अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप को देख रही हूँ। स्वयं भगवान के मुख कमल से रचा मेरा ब्राह्मण स्वरुप जो अविनाशी प्राप्तियों और उपलब्धियों से सम्पन्न है अपने उस उच्चतम स्वरूप को देखते हुए अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की मैं सराहना कर रही हूँ। *अपने ब्राह्मण जीवन की अखुट प्राप्तियों की स्मृति में खोकर असीम आनन्द और अपरम अपार खुशी का अनुभव करके अब मैं अपने फ़रिश्ता स्वरूप का आनन्द ले रही हूँ। अपने अंग - अंग से श्वेत रश्मियों की किरणे फैलाता मेरा फ़रिश्ता स्वरूप प्रकाश के एक बहुत सुंदर कार्ब में मुझे दिखाई दे रहा है*। अपने फ़रिश्ता स्वरूप में मैं अपने प्यारे परमपिता परमात्मा का संदेशवाहक बन विश्व की सर्व आत्माओं को परमात्मा के इस धरा पर अवतरित होने का संदेश दे रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने हर स्वरूप का भरपूर आनन्द ले कर अब मैं फिर से अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्तिथ हो जाती हूँ। *इस सृष्टि रंगमंच पर अपना पार्ट बजाते, कर्म करते बीच - बीच मे कभी अपने अनादि स्वरूप में स्थित हो कर परमधाम में अपनी सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था का अनुभव करना और फिर उसी सतोप्रधान स्वरूप में सतोप्रधान दुनिया मे आ कर अपने आदि स्वरूप में स्थित हो कर स्वर्ग के अपरमअपार सुखों का अनुभव करना*। कभी अपने पूज्य स्वरूप में स्थित होकर अपने भक्तों की मनोकामनाओं को पूरा करना और कभी अपने ब्राह्मण जीवन के सर्वश्रेष्ठ सौभाग्य को स्मृति में ला कर, संगमयुग की प्राप्तियों में खो जाना और परमात्म पालना के सुखद अहसास में डूब जाना और कभी अपने फ़रिश्ता स्वरूप को धारण कर, सारे विश्व की आत्माओं की सेवा करना। *बार - बार इस स्वदर्शन चक्र को बुद्धि में फिराकर, प्रश्नो से परे जाकर, अब मैं अधीनता के सभी पुराने स्वभाव संस्कारो को छोड़ सदा प्रसन्नचित रहती हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं प्रत्यक्षता के समय को समीप लाने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं शुभ चिंतक आत्मा हूँ।*
✺ *मैं स्व चिंतक आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा अपने संकल्पों को भी सदा अर्पण कर देती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सर्व कमजोरियां स्वत: दूर कर देती हूँ ।*
✺ *मैं शक्तिशाली आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ दुनिया वाले कहते हैं हाइएस्ट इन दी वर्ल्ड और वह भी एक जन्म के लिए लेकिन *आप बच्चे हाइएस्ट श्रेष्ठ इन दी कल्प हैं। सारे कल्प में आप श्रेष्ठ रहे हैं।* जानते हो ना? अपना अनादि काल देखो अनादि काल में भी आप सभी आत्मायें बाप के नजदीक रहने वाले हो। देख रहे हो, *अनादि रूप में बाप के साथ-साथ समीप रहने वाले श्रेष्ठ आत्मायें हो।* रहते सभी हैं लेकिन आपका स्थान बहुत समीप है। तो अनादि रूप में भी ऊंचे-ते-ऊंचे हो।
➳ _ ➳ फिर आओ *आदिकाल में सभी बच्चे देव-पदधारी देवता रूप में हो।* याद है अपना दैवी स्वरूप? आदिकाल में *सर्व प्राप्ति स्वरूप हो।* तन-मन-धन और जन चार ही स्वरूप में श्रेष्ठ हैं। सदा सम्पन्न हो, सर्व प्राप्ति स्वरूप हो। ऐसा देव-पद और किसी भी आत्माओं को प्राप्ति नहीं होता। चाहे धर्म आत्मायें हैं, महात्मायें हैं लेकिन ऐसा *सर्व प्राप्तियों में श्रेष्ठ, अप्राप्ति का नाम-निशान नहीं, कोई भी अनुभव नहीं कर सकता।*
➳ _ ➳ फिर आओ मध्यकाल में, तो *मध्यकाल में भी आप आत्मायें पूज्य बनते हो। आपके जड़ चित्र पूजे जाते हैं।* कोई भी आत्माओं की ऐसे विधि-पूर्वक पूजा नहीं होती। जैसे पूज्य आत्माओं की विधि-पूर्वक पूजा होती है तो सोचो ऐसे विधि-पूर्वक और किसकी पूजा होती है! *हर कर्म की पूजा होती है क्योंकि कर्मयोगी बनते हो।* तो पूजा भी हर कर्म की होती है। चाहे धर्म आत्मायें या महान आत्माओं को साथ में मन्दिर में भी रखते हैं लेकिन विधि-पूर्वक पूजा नहीं होती। तो मध्यकाल में भी हाइएस्ट अर्थात् श्रेष्ठ हो।
➳ _ ➳ फिर आओ वर्तमान अन्तकाल में, तो *अन्तकाल में भी अब संगम पर श्रेष्ठ आत्मायें हो।* क्या श्रेष्ठता है? स्वयं बापदादा- परमात्म-आत्मा और आदि -आत्मा अर्थात् *बापदादा, दोनों द्वारा पालना भी लेते हो, पढ़ाई भी पढ़ते हो, साथ में सतगुरू द्वारा श्रीमत लेने के अधिकारी बने हो।*
➳ _ ➳ तो अनादिकाल, आदिकाल, मध्यमकाल और अब अन्तकाल में भी हाइएस्ट हो, श्रेष्ठ हो। इतना नशा रहता है? *बापदादा कहते हैं इस स्मृति को इमर्ज करो।* मन में, बुद्धि में इस प्राप्ति को दोहराओ। *जितना स्मृति को इमर्ज रखेंगे उतना स्मृति से रूहानी नशा होगा। खुशी होगी, शक्तिशाली बनेंगे।* इतना हाइएस्ट आत्मा बने हैं।
✺ *ड्रिल :- "तीनों कालों में हाइएस्ट श्रेष्ठ इन दी कल्प होने का अनुभव"*
➳ _ ➳ बापदादा की मधुर... अनमोल वाणियाँ पढ़ते हुए... मन व बुद्धि नशे में झूमने लग जाता है... मैं आत्मा बार-बार बलिहारी जाती हूँ... *इन वाणियों के माध्यम से... ईश्वर स्वयं मुझसे बात करते हैं... मुझे पढ़ाते हैं... इस पुरानी दुनिया में... जीवन का जीना आसान कर देते हैं...* मैं तेजस्वी मणि ज्योतिस्वरूप... बिंदुस्वरूप भृकुटी के मध्य में विराजमान हूँ... *त्रिकालदर्शीपन की स्थिति में स्थित होकर... दिव्य बुद्धि के यंत्र द्वारा... अपने तीनों कालों को देख रही हूँ...* हाईएस्ट... श्रेष्ठ इन द कल्प होने का अनुभव कर रही हूँ... एक सेकंड में ही अपने मूलवतन... परमधाम पहुंच जाती हूँ... अपने अनादिस्वरुप में... अनादिकाल को देख रही हूँ... सभी आत्माएं चमकती मणियाँ सी प्रतीत हो रहीं हैं... *मुझ आत्मा का स्थान बाबा के बहुत ही समीप है... मुक्त अवस्था... पूर्ण निर्संकल्पता... दिव्यता ही दिव्यता... मैं बीजरूप... बस बाबा को निहारती हुई... गहरी शांति में डूबी हुई...* स्वयं को बाबा के बहुत समीप अनुभव कर रही हूँ... कुछ देर इसी अवस्था में स्थित हो जाती हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा स्वयं को आदिकाल में... देवता स्वरुप में अनुभव कर रही हूँ... *संपूर्ण सुख शांति संपन्न... दिव्य व पवित्र देह की मालिक... मैं आत्मा सर्व प्राप्तियों में श्रेष्ठ... डबल ताजधारी... सोने के सिंहासन पर विराजमान हूँ...* मुझ आत्मा का दैवी स्वरूप सर्वगुण संपन्न... सोलह कला संपूर्ण है... तन मन धन से सदा संपन्न हूँ... यहाँ सभी जन भी निर्विकारी हैं... *चारों ओर संपूर्ण खुशहाली... समृद्धि...* अप्राप्ति का तो नाम निशान ही नहीं है... सोने के महल... पुष्पक विमान... *चहुं ओर देवी-देवता भ्रमण कर रहे हैं... सतोप्रधान प्रकृति का सौंदर्य...* सुगंधित पानी के झरने... ऐसे अद्भुत आनंद में... पशु पक्षी भी चहचहा रहे हैं... यह दृश्य देखते हुए... मैं आत्मा आनन्दविभोर हो रही हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा स्वयं के मध्यकाल को देख रही हूँ... अपने जड़ चित्र को मंदिरों में देख रही हूँ... *मैं अष्ट भुजा धारी दुर्गा हूँ... पापनाशिनी हूँ... असुर संहारिनी हूँ... जग उद्धारक हूँ...* भक्त लोग विधिपूर्वक... बहुत ही प्रेम से... मुझ आत्मा की जड़ चित्रों की पूजा कर रहे हैं... श्रेष्ठ कर्म की पूजा हो रही है... धर्मात्मा व महान आत्माओं के चित्र भी मंदिरों में साथ ही रखे हुए हैं... मुझ आत्मा की जड़ चित्रों से... *मेरे मस्तक से... शक्तिशाली किरणें निकलकर सभी पर पड़ रही हैं...* सभी का कल्याण कर रही हैं... सभी की मनोकामनाएं पूर्ण हो रही हैं...
➳ _ ➳ अब अंतकाल में इस वरदानी संगमयुग पर... स्वयं को श्रेष्ठ आत्मा अनुभव कर रही हूँ... *बापदादा मुझ ब्राह्मण आत्मा पर... ज्ञान रत्नों के... खुशियों के... शक्तियों के व सर्वगुणों के खजाने लुटा रहे हैं...* इन अखुट खज़ानों से खेलती... मुझ आत्मा के मुख से... *सदा रतन ही निकल रहे हैं... मन में सदैव ज्ञान का मनन चल रहा है...* इस महान समय में... मुझ संगमयुगी ब्राह्मण आत्मा को... बापदादा की पालना का... श्रीमत लेने का... श्रेष्ठ भाग्य प्राप्त हुआ है...
➳ _ ➳ त्रिकालदर्शी की स्थिति में स्थित रहकर... मैं आत्मा अपने अनादिकाल... आदिकाल... मध्यमकाल तथा अंतकाल को देख रही हूँ... *हाईएस्ट... श्रेष्ठ इन द कल्प की अनुभूति करके... बहुत हर्षित हो रही हूँ...* अति आनन्दित हो रही हूँ... सर्व प्राप्ति संपन्न... सदा स्मृति स्वरूप हूँ... बापदादा के नयनों का नूर हूँ... *श्रेष्ठ भाग्य की स्मृति के रूहानी नशे में मस्त... मैं श्रेष्ठ आत्मा सदैव हर्षित... सर्वशक्तिसंपन्न अनुभव कर रही हूँ...* मास्टर सर्वशक्तिमान की स्मृति द्वारा... अंधकार को मिटाकर... विश्व को उज्जवल कर रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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