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 19 / 11 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *आत्म अभिमानी बनने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *बेहद के बाप का पूरा पूरा रीगार्ड रखा ?*

 

➢➢ *सेन्स और एसेंस के बैलेंस द्वारा अपनेपन को स्वाहा किया ?*

 

➢➢ *प्राप्तियों को याद कर दुःख व परेशानी की बातें भूले ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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〰✧  जैसे अभी सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को ईश्वरीय स्नेह, श्रेष्ठ ज्ञान और श्रेष्ठ चरित्रों का साक्षात्कार होता है, ऐसे अव्यक्त स्थिति का भी स्पष्ट साक्षात्कार हो। *जैसे साकार में ब्रह्मा बाप अन्य सब जिम्मेवारियाँ होते हुए भी आकारी और निराकारी स्थिति का अनुभव कराते रहे, ऐसे आप बच्चे भी साकार रूप में रहते फरिश्तेपन का अनुभव कराओ।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं याद की शक्ति से आगे बढ़ने वाली आत्मा हूँ"*

 

  *याद की शक्ति सदा हर कार्य में आगे बढ़ाने वाली है। याद की शक्ति सदा के लिए शक्तिशाली बनाती है।*

 

  *याद के शक्ति की अनुभूति सर्व श्रेष्ठ अनुभूति है। यही शक्ति हर कार्य में सफलता का अनुभव कराती है।*

 

  *इसी शक्ति के अनुभव से आगे बढ़ने वाली आत्मा हूँ - यह स्मृति में रख जितना आगे बढ़ना चाहो बढ़ सकते हो। इसी शक्ति से विशेष सहयोग प्राप्त होता रहेगा।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  दुनिया वाले तो अभी भी यही सोचते रहते हैं कि परमात्मा को पाना बहुत मुश्किल है। और आप क्या कहेंगे? पा लिया। *वह कहेंगे कि परम आत्मा तो बहुत ऊँचा हजारों सूर्यों से भी तेजोमय है और आप कहेंगे वह तो बाप है। स्नेह का सागर है।* जलाने वाला नहीं है। हजारों सूर्य से तेजोमय तो जलायेगा ना और आप तो स्नेह के सागर के अनुभव में रहते हो, तो कितना फर्क हो गया।

 

✧  जो दुनिया ना कहती वह आप हाँ करते। फर्क हो गया ना। कल आप भी नास्तिक थे और आज आस्तिक बन गये। *कल माया से हार खाने वाले और आज मायाजीत बन गये।* फर्क है ना। मातायें जो कल पिंजड़े की मैना थी और आज उडती कला वाले पंछी है। तो *उडती कला वाले हो या कभीकभी वापिस पिंजडे में जाते हो?*

 

✧  कभी-कभी दिल होती है पिंजड़े में जाने की? *बंधन है पिंजडा और निर्बन्धन है उडना।* मन का बंधन नहीं होना चाहिए। अगर किसी को तन का बंधन है तो भी मन उडता पंछी है। तो मन का केाई बंधन है या थोडा-थोडा आ जाता है? *जो मनमनाभव हो गये वह मन के बंधन से सदा के लिए छूट गये।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *कभी अधीन नहीं बनना- चाहे संकल्पों के, चाहे माया के। और भी कोई रूपों के अधीन नहीं बनना। इस शरीर के भी अधिकारी बनकर चलना और माया से भी अधिकारी बन उसको अपने अधीन करना है। सम्बन्ध की अधीनता में भी नहीं आना है। चाहे लौकिक, चाहे ईश्वरीय सम्बन्ध की भी अधीनता में न आना।* सदा अधिकारी बनना है। यह स्लोगन सदैव याद रखना। ऐसा बन कर के ही निकलना।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल :- बाबा आयें हैं सारी दुनिया को निरोगी बनाने"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाह्य जगत में चक्कर लगा रहे अपने मन-बुद्धि को अंतर्जगत में लेकर जाती हूँ... अंतर्जगत का चक्कर लगाते भृकुटी सिंहासन पर बैठ जाती हूँ... मैं आत्मा स्मृतियों की सीट पर बैठकर स्वदर्शन चक्र फिराते हुए पहुँच जाती हूँ हिस्ट्री हाल में...* प्यारे बाबा संदली पर विराजमान होकर सुप्रीम शिक्षक के रूप में मुझे एवर निरोगी बनने का पाठ पढ़ाते हैं...

 

  *प्यारे बाबा तन के क्लेश मिटाकर एवर निरोगी बनने का राज बताते हुए कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... *जिसे पाने की चाहत में दर दर भटक रहे थे, वह जब सम्मुख है तो उस पिता की याद में गहरे डूब जाओ... यह यादे ही सच्चे सुखो से दामन छलकायेगी...* जीवन को निरोगी बनाकर, अनन्त खुशियो की बहारे खिलाएंगी... इन मीठी यादो में सदा के खो जाओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा सिमर सिमर सुख पाती हुई बाबा की यादों में डूबकर कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा भगवान को जगह जगह खोज रही थी... आज भाग्य की बलिहारी से पिता शिक्षक और सतगुरु के रूप में पाकर धन्य धन्य हो गयी हूँ...* मीठे बाबा... मेरा भटकना अब छूट गया है और मै आत्मा सदा की सुखी हो गयी हूँ...

 

  *मीठे बाबा पारलौकिक सुखों की लहरों से जीवन को सुखमय बनाते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय यादो में देवताई सुख समाये है... *इन यादो से ही जनमो के विकर्मो से मुक्ति है... इसलिए ईश्वर पिता की याद को हर साँस में पिरो दो...* दिल की धड़कन की तरहा याद को दिल में समालो और सच्चे सुख निरोगी काया को पाकर सदा का मुस्कराओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा मीठे बाबा के मीठे प्यार के समंदर में डूबकर कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा आपको जड़ चेतन व्यक्तियो में खोज कर, कितनी बेहाल हो गयी थी... आपने आकर मुझे आवाज दी, और अपने से मिलवाया...* मीठे बाबा... मै आत्मा रोम रोम से आपकी शुक्रगुजार हूँ... प्यारे बाबा... अब तो हर पल आपकी यादो के नशे में मदमस्त हूँ...

 

  *मेरे बाबा काँटों रूपी दुखों को निकाल मुझ पर रंग बिरंगी फूलों की बरसात करते हुए कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *एक पिता की यादो में खोकर अपने भाग्य को देवताओ सा खुबसूरत और दिव्य बनाओ... यह मीठी यादे ही तन मन को सदा का स्वस्थ बनाएगी...* जीवन के सब दुःख दूर हो जायेंगे और आप बच्चे खुशनुमा फूल से सुखो में खिल जायेंगे...

 

_ ➳  *मैं आत्मा अपने तन मन को बाबा की यादों के दिव्य सुगंध से महकाते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा दुखो के दलदल में फंसकर तन मन से रुग्ण हो गयी थी... *आपने प्यारे बाबा मुझे सदा का सुखी बनाया है... मेरे थके कदमो तले अपने प्यार का मखमल बिछाया है... सच्चे प्यार में मिले सुकून और शीतलता ने जीवन की तपिश को हर लिया है...”*

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप के फरमान पर चलना है*"

 

_ ➳  भक्ति में भक्त लोग अटल श्रद्धा भाव के साथ माला के जिन मणकों का सिमरण करते हैं वह माला के मणके हम ब्राह्मण बच्चों का ही यादगार है इस बात को स्मृति में ला कर मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि मुझे माला का मणका अवश्य बनना है। *इस प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए, अपने प्यारे मीठे बाबा से विजय का तिलक लेने के लिए मैं अपनी साकारी देह से अलग हो कर अपना लाइट का फ़रिशता स्वरूप धारण कर चल पड़ता हूँ फरिश्तों की दुनिया सूक्ष्म लोक की ओर*। साकारी दुनिया में विचरण करता हुआ इस लोक की हर वस्तु को देखता हुआ मैं उड़ता जा रहा हूँ।

 

_ ➳  उड़ते - उड़ते मैं फ़रिशता गंगा के तट पर पहुंच जाता हूँ और देखता हूँ गंगा के किनारे बैठे अनेक ब्राह्मणों को अपने हाथ मे माला ले कर फिराते हुए। *माला के मणके के रूप में अपने ही स्वरूप का भक्ति में इतना मान देख मैं मन ही मन खुशी से गदगद हो रहा हूँ*। गंगा के तट को छोड़, अति तीव्र गति से उड़ते हुए अब मैं फ़रिशता सेंकड में आकाश को पार कर फरिश्तो की दुनिया मे प्रवेश कर रहा हूँ। *सफेद प्रकाश से प्रकाशित इस दुनिया मे प्रकृति के पांच तत्वों से निर्मित कोई भी वस्तु नही*। चारों और लाइट की सूक्ष्म देह धारण किये फ़रिश्ते ही फ़रिश्ते दिखाई दे रहें हैं।

 

_ ➳  फरिश्तों की इस दिव्य अलौकिक दुनिया मे मैं फ़रिशता सैर कर रहा हूँ और सूक्ष्म लोक के दिव्य नज़ारे देख आनन्दित हो रहा हूँ। *सूक्ष्म लोक के अति मनोहारी सुंदर नज़ारो का आनन्द लेता हुआ अब मैं फ़रिशता बापदादा के पास पहुंच जाता हूँ*। मैं देख रहा हूँ बापदादा के हाथ मे एक बहुत सुंदर विजय माला है जिसका एक - एक मणका अति सुंदर दिव्य आभा से दमक रहा है। हर मणका हीरे के समान चमक रहा है। *माला के हर मणके को बाबा बड़ी प्यार भरी दृष्टि से देख रहें हैं। बाबा की दृष्टि पड़ते ही माला के वो मणके चमकते हुए चैतन्य सितारों के रूप में दिखाई देने लगे हैं*। हर चैतन्य सितारे को बाबा अपनी शक्तियों से भरपूर कर रहें हैं। बाबा की शक्तियों से हर चैतन्य सितारे की चमक करोड़ो गुणा बढ़ने लगी है।

 

_ ➳  इस सुंदर दृश्य को देख मैं मन ही मन आनन्दित हो रहा हूँ । माला के उन मणकों में अब मैं स्वयं को माला के एक खूबसूरत मणके के रूप में देख रहा हूँ। बाबा बड़े प्यार से मुझे दृष्टि दे रहें हैं। *अपने हाथों से मुझे छू कर जैसे अपनी सारी शक्तियां मुझ में प्रवाहित कर रहें हैं*। मेरा स्वरूप निखरता जा रहा है। अति उज्ज्वल, चैतन्य सितारा बन, परमात्म शक्तियों से स्वयं को और अधिक भरपूर करने के लिए अब मैं परमधाम की ओर जा रहा हूँ। *बीज रूप स्थिति में अब मैं परमधाम में अपने बीज रूप शिव पिता परमात्मा के सम्मुख हूँ और बाबा की अनन्त शक्तियों को स्वयं में समाकर बाप समान बन रही हूँ*। परमात्म शक्तियों का तेज करेन्ट मुझ आत्मा के ऊपर चढ़े किचड़े को भस्म कर मुझे डायमण्ड के समान बेदाग बना रहा है।

 

_ ➳  परमात्म शक्तियों से सम्पन्न हो कर अब मैं बेदाग हीरा, मैं आत्मा, मैं चैतन्य शक्ति वापिस साकारी दुनिया की ओर प्रस्थान करती हूँ और अपने साकारी शरीर रूपी चोले को धारण कर, अब अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। *माला का मणका बनने के लिए अब मैं वफादार, फरमानबरदार बन  बाबा के हर फरमान का पालन कर रही हूँ*। बाबा की शिक्षाओं को जीवन मे धारण कर, धारणामूर्त बन, ईश्वरीय सेवाओं में बाबा की मददगार बन रही हूँ। *अपने शिव पिता परमात्मा की श्रेष्ठ मत पर चल चारों सब्जेक्ट ज्ञान, योग, धारणा और सेवा पर पूरा अटेंशन देते हुए, माला का मणका बनने का तीव्र पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सेन्स और इसेन्स के बैलेन्स द्वारा अपनेपन को स्वाहा करने वाली आत्मा हूँ।*

✺   *मैं विश्व परिवर्तक आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं आत्मा प्राप्तियों को सदा याद रखती हूँ  ।*

✺   *मैं आत्मा दुख व परेशानी की बातें भूल जाती हूँ  ।*

✺   *मैं आत्मा खुशी स्वरूप हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *'विघ्न-विनाशककिसका नाम हैआप लोगों का है ना! विघ्नों की हिम्मत नहीं हो जो कोई कुमार का सामना करेतब कहेंगे 'विघ्न-विनाशक'।* विघ्न की हार भले होलेकिन वार नहीं करे। विघ्न-विनाशक बनने की हिम्मत हैया वहाँ जाकर पत्र लिखेंगे दादी बहुत अच्छा था लेकिन पता नहीं क्या हो गया! ऐसे तो नहीं लिखेंगे? *यही खुशखबरी लिखो - ओ. के.वेरी गुडविघ्न-विनाशक हूँ। बस एक अक्षर लिखो। ज्यादा लम्बा पत्र नहीं। ओ. के.।* लम्बा पत्र हो तो लिखने में भी आपको शर्म आयेगा। शर्म आयेगा ना कि कैसे लिखें,क्या लिखें! कई बच्चे कहते हैं पोतामेल लिखने चाहते हैं लेकिन जब सोचते हैं कि पोतामेल लिखें तो उस दिन कोई न कोई ऐसी बात हो जाती है जो लिखने की हिम्मत ही नहीं होती है। *बात हुई क्यो? विघ्न-विनाशक टाइटल नहीं है क्याबाप कहते हैं लिखने सेबताने से आधा कट जाता है। फायदा है।*

 

 _ ➳  लेकिन लम्बा पत्र नहीं लिखोओ. के. बस। *अगर कभी कोई गलती हो जाती है तो दूसरे दिन विशेष अटेन्शन रख विघ्न-विनाशक बन फिर ओ. के. का लिखो।* लम्बी कथा नहीं लिखना। यह हुआयह हुआ... इसने यह कहाउसने यह कहा.... यह रामायण और उनकी कथायें हैं। *ज्ञान मार्ग का एक ही अक्षर हैकौन सा अक्षर है?ओ. के.। जैसे शिवबाबा गोल-गोल होता है ना वैसे ओ भी लिखते हैं। और के अपनी किंगडम।* तो ओ.के. माना बाप भी याद रहा और किंगडम भी याद रही। इसलिए ओ. के.... और ओ.के. लिखकर ऐसे नहीं रोज पोस्ट लिखो और पोस्ट का खर्चा बढ़ जाए। ओ.के. लिखकर अपने टीचर के पास जमा करो और टीचर फिर 15 दिन वा मास में एक साथ सबका समाचार लिखे। पोस्ट में इतना खर्चा नहीं करनाबचाना है ना। और यहाँ पोस्ट इतनी हो जायेगी जो यहाँ समय ही नहीं होगा। आप रोज लिखो और टीचर जमा करे और टीचर एक ही कागज में लिखे - ओ.के. या नो। *इंगलिश नहीं आती लेकिन ओ.के. लिखना तो आयेगानो लिखना भी आयेगा। अगर नहीं आये तो बस यही लिखो कि ठीक रहा या नहीं ठीक रहा।* 

 

✺   *ड्रिल :-   "विघ्न विनाशक बन सदैव ओ. के. स्थिति का अनुभव करना*

 

 _ ➳  *वाह मैं खुशनसीब आत्मा... बाबा ने स्वयं आकर... मुझे अपनी शक्तियों से परिचय करवाया...* कि बच्चे तुम... अपार शक्तियों और गुणों के मालिक हो... *तुम सर्व शक्तिमान की संतान... मास्टर सर्व शक्तिमान हो... तुम ही शिव शक्ति हो... तुम ही लक्ष्मी... तुम ही सरस्वती... तुम ही दुर्गा हो... और तुम ही विघ्न विनाशक गणेश हो... विघ्न हर्ता हो... सुख कर्ता हो...*

 

 _ ➳  'विघ्न-विनाशकमुझ आत्मा का ही नाम है... *विघ्नों की हिम्मत नहीं है... जो मुझ विघ्न विनाशक गणेश कुमार का सामना करे...* विघ्नों पर विजय प्राप्त कर... मुझ आत्मा ने 'विघ्न-विनाशक' के इस टाइटल को सार्थक कर दिया है... मैं आत्मा हर विघ्न को पार कर... विघ्न को हराने वाली आत्मा हूँ... *विघ्नों के वार का मुझ आत्मा पर तनिक मात्र भी प्रभाव नहीं पड़ता है... बाबा से मेरा दृढ़ निश्चय है... और पक्का वादा है... विघ्नों पर... विघ्न-विनाशक बन वार करने की... मुझ आत्मा में अनंत हिम्मत है...*

 

 _ ➳  अब जब भी मैं आत्मा बाबा या दादी को पत्र लिखती हूँ... बस एक शब्द ओ.के. ही लिखती हूँ... अब मुझ आत्मा की कभी शिकायत नहीं होती है कि... सब कुछ अच्छा था... लेकिन कैसे ये सब हो गया... *मैं विघ्न विनाशक आत्मा... ऐसे कमजोर शब्दों का यूज कभी नहीं करती हूं... यही खुशखबरी लिखती हूँ... ओ. के... वेरी गुड... विघ्न-विनाशक हूँ...* बस एक अक्षर लिखती हूँ... ज्यादा लम्बा पत्र नहीं लिखती हूँ... ओ. के... अगर कभी लम्बा पत्र हो जाता है... विघ्न विनाशक का स्वमान... याद करती हूँ... तो पत्र छोटा हो जाता है... *और बाबा ने भी कहा है... बच्चे एक शब्द में अपनी बात कहो... कम खर्च बाला नशीन बनो... बाबा के इस महावाक्य को याद करते ही... लम्बा पत्र लिखने में शर्म महसूस होने लगती है...* अब मैं आत्मा निर्विघ्न रूप से... हर दिन का पोतामेल लिखती हूँ... अब मुझ आत्मा को कभी भी पोतामेल लिखने में... कोई विघ्न का सामना नहीं करना पड़ता है... विघ्न-विनाशक का टाइटल हमेशा स्मृति में रहता है... बाबा ने कहा भी है... *बच्ची पोतामेल देने से आधा कट जाता है... और फायदा यह होता है कि मेहनत कम लगती है... और बोझ आधा हो जाता है...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा खुद पर विशेष अटेन्शन देती हूँ... मुझ आत्मा से अगर कभी कोई गलती हो जाती है... तो दूसरे दिन विशेष अटेन्शन रख... विघ्न-विनाशक बन... बस ओ. के. लिखती हूँ अपनी लम्बी कथा नहीं लिखती हूँ... यह हुआ... वह हुआ... इसने यह कहा... उसने यह कहा... यह राम कथा भक्त लोगों की कथायें हैं... *मुझ विघ्न विनाशक गणेश की नहीं... ज्ञान मार्ग का एक ही अक्षर है... ओ. के...* जैसे शिवबाबा गोल-गोल है... वैसे ओ भी गोल - गोल है... और के. मेरी किंगडम... *ओ.के. माना बाप... और किंगडम माना याद... तो बाप भी याद रहा और किंगडम भी याद रही... इसलिए अब सिर्फ एक शब्द ओ.के...*

 

 _ ➳  *अब मैं आत्मा रोज ओ.के. लिखकर... अपने टीचर के पास जमा करती हूँ... और टीचर फिर 15 दिन या एक मास में एक साथ... सबका समाचार लिख कर... पोस्ट करते हैं... पोस्ट में इतना खर्चा नहीं करती... कम खर्च बाला नशीन करती हूँ...* टीचर एक ही कागज में - ओ.के. या नो लिखती हैं... इंग्लिश में लिखना नहीं भी आता है... तो बाबा ने आसान मार्ग सुझाया है... बस यही लिखो कि ठीक रहा या नहीं ठीक रहा...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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