━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 25 / 11 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *टाइम वेस्ट तो नहीं किया ?*
➢➢ *कहीं भी बुधी भटकी तो नहीं ?*
➢➢ *बेहद की स्थिति में स्थित रह सेवा के लगाव से न्यारे रहे ?*
➢➢ *व्यर्थ संकल्पों को एक सेकंड में स्टॉप किया ?*
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ *यदि किसी भी प्रकार का भारीपन अथवा बोझ है तो आत्मिक एक्सरसाइज करो।* अभी - अभी कर्मयोगी अर्थात् साकारी स्वरूपधारी बन साकार सृष्टि का पार्ट बजाओ, अभी-अभी आकारी फरिश्ता बन आकारी वतनवासी अव्यक्त रूप का अनुभव करो, अभी-अभी निराकारी बन मूलवतनवासी का अनुभव करो, इस एक्सरसाइज से *हल्के हो जायेंगे, भारीपन खत्म हो जायेगा।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✺ *"मैं ड्रामा के अन्दर विशेष पार्ट बजाने वाली विशेष आत्मा हूँ"*
〰✧ इस ड्रामा के अन्दर विशेष पार्ट बजाने वाली विशेष आत्मायें हैं - ऐसे अनुभव करते हो? *जब अपने को विशेष आत्मा समझते हैं तो बनाने वाला बाप स्वत: याद रहता है, याद सहज लगती है। क्योंकि 'सम्बन्ध' याद का आधार है। जहाँ सम्बन्ध होता है वहाँ याद स्वत: सहज हो जाती है। जब सर्व सम्बन्ध एक बाप से हो गये तो और कोई रहा ही नहीं। एक बाप सर्व सम्बन्धी है - इस स्मृति से सहजयोगी बन गये।*
〰✧ कभी मुश्किल तो नहीं लगता? जब माया का वार होता है तब मुश्किल लगता है? *माया को सदा के लिए विदाई देने वाले बनो। जब माया को विदाई देंगे तब बाप की बधाइयाँ बहुत आगे बढ़ायेंगी। भक्ति मार्ग में कितनी बार मांगा कि दुआयें दो, ब्लैसिंग दो। लेकिन अभी बाप से ब्लैसिंग लेने का सहज साधन बता दिया है - जितना माया को विदाई देंगे उतनी ब्लैसिंग स्वत: मिलेंगी।*
〰✧ परमात्म-दुआयें एक जन्म नहीं लेकिन अनेक जन्म श्रेष्ठ बनाती हैं। सदा यह स्मृति में रखना कि हम हर कदम में बाप की, ब्राह्मण परिवार की दुआयें लेते सहज उड़ते चलें। ड्रामा में विशेष आत्मायें हो, विशेष कर्म कर अनेक जन्मों के लिए विशेष पार्ट बजाने वाले हो। साधारण कर्म नहीं विशेष कर्म, विशेष संकल्प और विशेष बोल हों। *विशेष सेवा यही करो कि अपने श्रेष्ठ कर्म द्वारा, अपने श्रेष्ठ परिवर्तन द्वारा अनेक आत्माओंको परिवर्तन करो। अपने को आइना बनाओ और आपके आइने में बाप दिखाई दे। ऐसी विशेष सेवा करो। तो यही याद रखना कि मैं दिव्य आइना हूँ मुझ आइने द्वारा बाप ही दिखाई दे।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ यहाँ *बहुतकाल का अभ्यास बहुतकाल का राज्य-भाग्य प्राप्त करायेगा।* अगर अल्पकाल का अभ्यास है तो प्राप्ति भी अल्पकाल की होगी। तो ये अभ्यास सारे दिन में जब भी चांस मिले करते रहो। एक सेकण्ड में कुछ बिगडता नहीं है। फिर काम करना शुरू कर दो।
〰✧ लेकिन हलचल में फुलस्टॉप लगता है या नहीं - ये चेक करो। कर्म के सम्बन्ध में आना और कर्म के बन्धन में आना इसमें भी फर्क है। अगर कर्म के बन्धन में आते हैं तो कर्म आपको खींचेगा, फुलस्टॉप नहीं लगाने देगा। और *न्यारे-प्यारे होकर किसी कर्म के सम्बन्ध में हो तो सेकण्ड में फुलस्टॉप लगेगा।* क्योंकि बन्धन नहीं है।
〰✧ बन्धन भी खींचता है और सम्बन्ध भी खींचता है लेकिन *न्यारे होकर सम्बन्ध में आना* - यह अण्डरलाइन करना। *इसी अभ्यास वाले ही पास विद ऑनर होंगे।* ये लास्ट कार्मतीत अवस्था है। बिल्कुल न्यारे होकर, अधिकारी होकर कर्म में आयें, बन्धन वश नहीं। तो चेक करो कर्म करते-करते कर्म के बन्धन में तो नहीं आ जाते?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ *याद को भी सहज करो। जब यह याद का कोर्स सहज हो जायेगा। तब कोई को कोर्स देने में याद का फोर्स भी भर सकेंगे। सिर्फ कोर्स देने से प्रजा बनती है लेकिन फोर्स के साथ कोर्स से समीप सम्बन्ध में आते हैं।* बिल्कुल ऐसे अनुभव करेंगे जैसे न्यारे और प्यारे। तो सभी सहज पुरुषार्थ में भी अगर मुश्किलातों में ही रहेंगे तो सहज और स्वत: का अनुभव कब करेंगे? *इसको कहते भी सहज योग हो ना? कठिन योग तो नहीं है। यह सहज योग वहाँ सहज राज्य करायेगा। वहाँ भी कोई मुश्किलात नहीं होगी। यहाँ के संस्कार ही वहाँ ले जायेंगे। अगर अन्त तक भी मुश्किल के संस्कार होंगे तो वहाँ सहज राज्य कैसे करेंगे?* देवताओं के चित्र भी जो बनाते हैं तो उनकी सूरत में सरलता ज़रूर दिखाते हैं। यह विशेष गुण दिखाते हैं। *फीचर्स में सरलता जिसको आप भोलापन कहते हो। जितना जो सहज पुरुषार्थी होगा वह मनसा में भी सरल, वाचा में सरल, कर्म में भी सरल होगा। इनको ही फ़रिश्ता कहते हैं। अच्छा।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- याद की यात्रा में मस्त रहना"*
➳ _ ➳ मैं वन्डरफुल आत्मा अपनी हर एक साँस को वन्डरफुल बाबा की यादों में पिरोकर सूक्ष्म शरीर धारण कर सूक्ष्मवतन में बापदादा के सम्मुख बैठ जाती हूँ... बापदादा मुझे अपनी बाँहों में समेट लेते हैं... *बाबा की मखमली बाँहों में सिमटते ही मैं आत्मा देह और देह की दुनिया के सभी बातों को भूल अतीन्द्रिय सुख की अनुभूतियों में खो जाती हूँ...* फिर मीठे बापदादा रूहानी याद की यात्रा कराते हुए मीठी रूह-रिहान करते हैं...
❉ *घर बैठे-बैठे बिना किसी मेहनत के रूहानी यात्रा करने का सहज मार्ग बताते हुए प्यारे रूहानी बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता अपने दुखो में झुलसाये कुम्हलाये फूल बच्चों को 21जनमो का अथाह सुख लुटाने धरा पर उतर आया है... *अब शरीर के आवरण से अलग हो, अपने दमकते मणि स्वरूप के नशे में भर जाओ... और सच्चे पिता की मीठी महकती यादो में गहरे डूब जाओ..."*
➳ _ ➳ *प्यारे बाबा के यादों के गहरे समंदर में डूबकर दिव्य गुणों का श्रृंगार करते हुए मैं प्यारी आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी खोज में किस कदर दर दर भटक रही थी... आपने सहज ही जीवन में आकर मुझे कितना भाग्यवान बना दिया है... खुशियो से मेरा दामन सजा दिया है... *मै आत्मा हर पल यादो में खोयी गहरे सुख को पा रही हूँ..."*
❉ *यादों के विमान में बिठाकर संगमयुगी आसमान में उड़ाकर सतयुगी दुनिया में पहुंचाते हुए मीठे बाबा कहते हैं :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... हर साँस संकल्प और समय को यादो के तारो में पिरोकर... ईश्वरीय खजानो से सम्पन्न होकर सुखो की धरा पर इठलाओ... *सदा यादो में खोये रहो और ईश्वरीय दिल पर झूमते ही रहो... ऐसे सच्चे प्यार में अपने रोम रोम को भिगो कर अतीन्द्रिय सुखो की अनुभूतियों में डूब जाओ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने खूबसूरत भाग्य पर नाज करती हुई दिल से प्यारे बाबा का शुक्रिया अदा करते हुए कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मैं आत्मा आपको पाकर कितने खुबसूरत भाग्य की मालकिन हो गयी हूँ... *प्यारे बाबा आपने दिल में समाकर मुझे हर दुःख से मुक्त किया है...* फूलो की छाँव और दिव्य गुणो की महक से जीवन कितना खुबसूरत प्यारा बना दिया है..."
❉ *सारे खजाने मुझ पर लुटाकर सच्चे सुख, शांति के फव्वारों से मुझे सराबोर करते हुए मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... *देह की यात्राओ में मन तो सदा रिक्त ही रहा... अब रूहानी यात्री बनकर... मन को सदा की मौज और आनन्द के अहसासो में भिगो दो... हर पल रूहानी यादो में खोये रहो...* ईश्वरीय यादो की खुमारी में सच्चे सुखो को पाकर... सतयुगी सुखो के अधिकारी बन मुस्कराओ..."
➳ _ ➳ *यादों के महल में बैठकर मीठे बाबा के दिल की रानी बनकर राज करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता को पाने वाली सौभाग्यशाली हूँ... मीठे बाबा आपने दुखो के दलदल से बाहर निकाल... *मुझे सुखो से भरे फूलो के बगीचे में बिठा दिया है... ईश्वरीय गोद पाकर मै आत्मा हर दुःख से आजाद होकर, यादो में मुस्करा उठी हूँ..."*
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- निराकार बाप हमे पढा रहे हैं, इस नशे में रहना है*
➳ _ ➳ स्वयं भगवान ऊंचे ते ऊंचे धाम से मुझे पढ़ाने आते हैं यह स्मृति एक रूहानी नशे से मुझ आत्मा को भरपूर कर देती है और *अपने परमशिक्षक से भविष्य 21 जन्मों के लिए श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने वाले अविनाशी ज्ञान रत्नो को धारण करने के लिए अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित होकर, उनकी याद में मैं तेज - तेज कदमो से चलते हुए पहुँच जाती हूँ अपने ईश्वरीय विश्वविद्यालय में और जा कर क्लास रूम में बैठ जाती हूँ*। मन ही मन अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के बारे में मैं विचार करती हूँ कि कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो स्वयं भगवान मुझे पढ़ाने के लिए अपने ऊंचे ते ऊंचे धाम को छोड़ मेरे पास आते हैं। अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की स्मृति में खोई, अपने भाग्य का गुणगान करते - करते मैं महसूस करती हूँ जैसे मेरे परमशिक्षक शिव बाबा मेरे सामने आकर उपस्थित हो गए हैं।
➳ _ ➳ देख रही हूँ मैं अपने सामने संदली पर बैठे सम्पूर्ण अव्यक्त फ़रिश्ता स्वरूप में अपने प्यारे बापदादा को जो शिक्षक के रूप में मेरे सामने बैठे मुझे निहार रहें हैं। *अपने नयनो में असीम स्नेह को समाये अपनी मीठी दृष्टि से मुझे निहारते हुए बापदादा मन्द - मन्द मुस्करा रहें हैं। अपने परमशिक्षक के इस मनभावन, सुन्दर सलौने स्वरूप को अपनी आंखों में बसाकर मैं एकटक उन्हें निहारती जा रही हूँ*। बाबा की मीठी दृष्टि एक रूहानी नशे से मुझ आत्मा को भरपूर कर रही है। बापदादा के मुख कमल से निकल रहे एक - एक महावाक्य को चात्रिक बन मैं आत्मा सुन रही हूँ और अपनी बुद्धि में उसे धारण करती जा रही हूँ। *बाबा का एक - एक महावाक्य गहराई तक मेरे अंदर समाता जा रहा है। अपने शिव भोलानाथ की सच्ची पार्वती बन उनके मुख कमल से उच्चारित अमरकथा को मैं बड़े प्यार से और बड़े ध्यान से सुन रही हूँ*।
➳ _ ➳ अपनी बुद्धि रूपी झोली को अपने परमशिक्षक शिव बाबा के अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर करके, मन ही मन मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि हर रोज़ भगवान मुझे जो पढ़ाई पढ़ाने के लिए आते हैं उसे अच्छी रीति पढ़ कर, अपने जीवन मे धारण करके, भविष्य जन्म जन्मांतर के लिए अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने का पुरुषार्थ मैं अवश्य करूँगी । *अपने आप से यह प्रतिज्ञा करके अपने प्यारे बापदादा की और मैं जैसे ही नजर घुमाती हूँ, मैं महसूस करती हूँ जैसे बाबा का वरदानी हाथ मेरे सिर के ऊपर है और बाबा के वरदानी हस्तों से शक्तियों की अनन्त धारायें निकल कर मेरे अंदर समाकर, मेरी हर प्रतिज्ञा को पूरा करने का बल मेरे अंदर भरती जा रही हैं*। रंग बिरंगी शक्तियों की सहस्त्रो किरणों की बरसात मेरे ऊपर हो रही है जो मुझे बहुत ही शक्तिशाली बना रही हैं। *शक्तियों की ये अनन्त किरणे मुझे शक्तिशाली बनाने के साथ - साथ डबल लाइट स्थिति में स्थित करती जा रही है*।
➳ _ ➳ स्थूल देह और सूक्ष्म देह इन दोनों के भान से मुक्त एक अति सुन्दर निराकारी स्थिति में मैं स्थित होकर अब अपने आपको देख रही हूँ एक अति सूक्ष्म बिंदु के रूप में जो एक प्रकाशपुंज के समान चमकता हुआ दिखाई दे रहा हैं। *कुछ क्षणों के लिए मैं अपने इस स्वरूप में खो जाती हूँ और अपने स्व स्वरूप में टिक कर, अपने अंदर समाये गुणों और शक्तियों के अनुभव का आनन्द लेने लगती हूँ*। यह आत्म स्मृति बहुत गहरी फीलिंग का मुझे अनुभव करवाकर तृप्त कर देती हैं। अपने इस निराकार स्वरूप में स्थित अब मैं देख रही हूँ अपने सामने अपने प्यारे शिव बाबा को भी उनके निराकार बिंदु स्वरूप में। *महाज्योति के रूप में अनन्त शक्तियों की किरणों को बिखेरते हुए मेरे प्यारे पिता मेरे सम्मुख है। उनकी किरणों रूपी बाहों में समाकर अब मैं आत्मा उनके साथ उनके वतन की ओर जा रही हूँ*।
➳ _ ➳ अपनी किरणों रूपी बाहों में मुझ बिंदु आत्मा को समाये मेरे मीठे बाबा अब मुझे साकारी दुनिया से निकाल, आकारी दुनिया को पार करके अपनी निराकारी दुनिया मे ले आये हैं। अपने इस मूलवतन घर में अब मैं ज्ञान सागर अपने प्यारे पिता के सामने बैठी हूँ। *उनसे आ रही सर्वशक्तियों की सतरंगी किरणे मुझ पर बरस रही हैं। ज्ञान सागर मेरे प्यारे पिता के ज्ञान की रिमझिम फुहारों का शीतल स्पर्श मेरी बुद्धि को स्वच्छ बना रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे ज्ञान की शक्तिशाली किरणो के रूप में ज्ञान की बरसात मेरे ऊपर करके, बाबा मुझे समपूर्ण ज्ञानवान बना रहे हैं*। मास्टर नॉलेजफुल बन कर, ज्ञान की शक्ति से भरपूर होकर अब मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने साकार तन में भृकुटि के अकालतख्त पर अब मैं फिर से विराजमान हूँ और अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरुप को सदा स्मृति में रखते हुए अब मैं हर पल इस खुशी में रहती हूँ कि ऊंचे ते ऊंचे धाम से भगवान मुझे पढ़ाने आते हैं। *यह स्मृति मुझे अपने परमशिक्षक शिव पिता की शिक्षाओं को जीवन मे धारण करने का बल प्रदान करने के साथ - साथ मेरे पुरुषार्थी जीवन को भी उमंग उत्साह से सदा भरपूर रखती है*।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं बेहद की स्थिति में स्थित रहने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सेवा के लगाव से न्यारे और प्यारे रहने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं विश्व सेवाधारी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा व्यर्थ संकल्पों को एक सेकंड में स्टॉप करने की रिहर्सल करती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदैव शक्तिशाली हूँ ।*
✺ *मैं सदा समर्थ आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ सहज को स्वयं ही मुश्किल बनाते हो। मुश्किल है नहीं, मुश्किल बनाते हो। *जब बाप कहते हैं जो भी बोझ लगता है वह बोझ बाप को दे दो।* वह देना नहीं आता। बोझ उठाते भी हो फिर थक भी जाते हो फिर बाप को उल्हना भी देते हो - क्या करें, कैसे करें...! अपने ऊपर बोझ उठाते क्यों हो? बाप आफर कर रहा है *अपना सब बोझ बाप के हवाले करो।* 63 जन्म बोझ उठाने की आदत पड़ी हुई है ना! तो आदत से मजबूर हो जाते हैं, इसलिए मेहनत करनी पड़ती है। कभी सहज, कभी मुश्किल। या तो कोई भी कार्य सहज होता है या मुश्किल होता है। कभी सहज कभी मुश्किल क्यों? कोई कारण होगा ना! कारण है - आदत से मजबूर हो जाते हैं और *बापदादा को बच्चों की मेहनत करना, यही सबसे बड़ी बात लगती है। अच्छी नहीं लगती है।*
➳ _ ➳ मास्टर सर्वशक्तिमान और मुश्किल? टाइटल अपने को क्या देते हो? मुश्किल योगी या सहज योगी? नहीं तो अपना टाइटल चेंज *करो कि हम सहज योगी नहीं हैं।* कभी सहजयोगी हैं, कभी मुश्किल योगी? और योग है ही क्या? बस, याद करना है ना। और *पावरफुल योग के सामने मुश्किल हो ही नहीं सकती। योग लगन की अग्नि है। अग्नि कितना भी मुश्किल चीज को परिवर्तन कर देती है। लोहा भी मोल्ड हो जाता है। यह लगन की अग्नि क्या मुश्किल को सहज नहीं कर सकती है?* कई बच्चे बहुत अच्छी-अच्छी बातें सुनाते हैं, बाबा क्या करें वायुमण्डल ऐसा है, साथी ऐसा है। हंस, बगुले हैं, क्या करें पुराने हिसाब-किताब हैं। बातें बहुत अच्छी-अच्छी कहते हैं। बाप पूछते हैं आप ब्राहमणों ने कौन सा ठेका उठाया है? ठेका तो उठाया है -विश्वपरिवर्त न करेंगे। *तो जो विश्व-परिवर्तन करता है वह अपनी मुश्किल को नहीं मिटा सकता?*
✺ *ड्रिल :- "सब बोझ बाप को देकर सहज योगी बनने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा की याद में खोती जा रहीं हूँ... *बाबा ने मुझ आत्मा को सहज योगी का वरदान दिया हैं...* मैं आत्मा कोई भी मुश्क़िल को सहज ही पार कर लेती हूँ... *कैसी भी परिस्थिति में मैं आत्मा मुश्क़िल में नही आती हूँ...* और ना ही किसी और आत्मा के लिए मुश्क़िल पैदा करती हूँ... प्राण प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को ऑफर किया हैं कि *जिस बोझ से मैं आत्मा भारी हो गई थी... उसे मुझे दे दो... मैं आत्मा अपने सारे बोझ बाप को देकर एकदम हल्की हो चुकी हूँ...*
➳ _ ➳ मुझ आत्मा को किसी भी प्रकार का बोझ महसूस नही हो रहा हैं... *मैं आत्मा अपने सारे बोझ बाप को सौंपकर परमात्म प्यार, सुख और ईश्वरीय जीवन का सुख ले रही हूँ...* मैं आत्मा किसी भी प्रकार का बोझ ना उठाते हुए उड़ रही हूँ... मुझ आत्मा को किसी भी प्रकार की थकावट नही हैं... ना मन की और ना ही तन की... *मुझ आत्मा को कोई उल्हना ना बाप से हैं और ना ही किसी और आत्मा से हैं... मैं सर्व स्नेही आत्मा हूँ...* मैं आत्मा ड्रामा के नॉलेज से एकदम हल्की हो गई हूं...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा क्या, क्यों, कैसे या और कोई भी क्वेश्चन में मूँझती नही हूँ...* क्योंकि परमात्मा मेरे साथ हैं, वो मुझ आत्मा को अपने पलकों में बिठाए हुए हैं... *मेरा सारा बोझ परमात्मा बाप ने ले लिया है...* वो पिता की तरह मेरी पालना कर रहे हैं... *मुझ आत्मा के 63 जन्मों के जो संस्कार हैं वो धीरे धीरे ख़त्म हो चुके हैं...* मैं आत्मा किसी भी प्रकार की मेहनत से मुक्त हूँ... मै आत्मा शिव साजन की मोहब्बत से आगे बढती जा रही हूँ... *मै आत्मा कभी भी किसी भी मुश्किल में नहीं आती हूँ...* मै आत्मा निरंतर योगी हूँ... मुझ आत्मा को किसी भी प्रकार के संस्कार मजबूर नहीं करते हैं... *मै स्वराज्य अधिकारी बन सहज योगी आत्मा बन गई हूँ... बापदादा के साथ मै आत्मा मेहनत मुक्त बन गई हूँ...* मुझ आत्मा के पुराने संस्कार समाप्त हो चुके हैं... *व्यर्थ संकल्प और संस्कारो के पीछे मैं आत्मा समय का अमूल्य ख़जाना व्यर्थ नहीं करती हूँ...*
➳ _ ➳ *मै आत्मा मास्टर सर्व शक्तिमान के स्वमान से निरंतर अपने आपको शक्तिशाली बना रही हूँ... मुझ मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा को कोई भी बात मुश्किल नहीं लगती हैं... बापदादा ने मुझ आत्मा को मास्टर सर्वशक्तिमान का टाइटल दिया हैं...* मुझ आत्मा के पास परमात्मा की दी हुई सर्व शक्तियाँ हैं... और उन्हें मै आत्मा समयानुसार यूज़ करती हूँ... *मै आत्मा निरंतर सहज योगी हूँ...* मेरा योग निरंतर एक बाप के साथ हैं... मै आत्मा कभी नही, अल्पकाल या कभी कभी की योगी नहीं हूँ... *बाबा के साथ पावरफुल योग द्वारा मैं आत्मा हर मुश्किल को आसान बना लेती हूँ... योग की अग्नि से मै आत्मा सारे विकारो, पुराने संस्कारों को भस्म कर रही हूँ...* जिस प्रकार अग्नि में कुछ भी चीज़ परिवर्तित हो जाती हैं... उसी प्रकार योग अग्नि से मेरे कड़े और पुरानें संस्कार भी परिवर्तित हो चुके हैं... *योग अग्नि और योग के प्रयोग से मुझ आत्मा के चारों ओर एक दिव्य आभामंडल बना हुआ हैं... जिससे हर बात सहज होती जा रही हैं... और ऐसा वायुमंडल बन गया है कि किसी भी अन्य आत्माओं और संस्कारों का असर मुझ आत्मा में नहीं पड़ता हैं...* बाबा ने मुझ आत्मा को विश्व परिवर्तन का कार्य सौपा हैं... *मैं आत्मा स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन के कार्य में बाप की साथी हूँ...*
➳ _ ➳ मै आत्मा बाप के साथ और याद द्वारा अपनी सारी मुश्किलों को मिटाती जा रही हूँ... *मै आत्मा अपने सारे बोझ और सारी मुश्किलें एक बाप को देकर एकदम मुक्त हो चुकी हूँ...* जहाँ बाप ने मुझ आत्मा को इतना बड़ा कार्य सौपा हैं, वहां मैं आत्मा किसी भी बात में हार नहीं खा रही हूँ... *सदैव एक बाप का हाथ पकड़ कर आगे और आगे बढती जा रही हूँ... सफ़लता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार हैं...* और दृढ़ संकल्प द्वारा हर कमी कमज़ोरी को समाप्त कर सफ़लता मूर्त बन गई हूँ... *बाबा ने मेरे सारे बोझ ले करके मुझे सहज योगी बना दिया हैं... धन्यवाद बाबा, आपका बहुत बहुत शुक्रिया...*
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━