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 09 / 12 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बापदादा से कोई भी बात छिपाई तो नहीं ?*

 

➢➢ *जो पढा है, वह दूसरों को पढाया ?*

 

➢➢ *हर आत्मा को ऊंचा उठाने की भावना से रीगार्ड दिया ?*

 

➢➢ *पुराने स्वभाव संस्कार का त्याग किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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〰✧  ऐसा कोई भी ब्राह्मण नहीं होगा जो आत्म-अभिमानी बनने का पुरुषार्थी न हो। लेकिन निरन्तर आत्म-अभिमानी, जिससे कर्मेन्द्रियों के ऊपर विजय हो जाए, *हरेक कर्मेन्द्रिय सतोप्रधान स्वच्छ हो जाए, देह के पुराने संस्कार और सम्बन्ध से सम्पूर्ण मरजीवा हो जाए, इस पुरुषार्थ से ही नम्बर बनते हैं।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं दिलतख्तनशीन आत्मा हूँ "*

 

✧  अपने को सदा दिल तख्तनशीन समझते हो? यह दिलतख्त सारे कल्प में सिवाए इस संगम युग के कहाँ भी प्राप्त नहीं हो सकता। दिलतख्त पर कौन बैठ सकता है? *जिसकी दिल सदा एक दिलाराम बाप के साथ है। एक बाप दूसरा न कोई, ऐसी स्थिति में रहने वालों के लिए स्थान है - 'दिलतख्त'।* तो किस स्थान पर रहते हो? अगर तख्त छोड़ देते हो तो फाँसी के तख्ते पर चले जाते। जन्म जन्मान्तर के लिए माया की फाँसी में फंस जाते हो। या तो है बाप का दिलतख्त या है माया की फाँसी का तख्ता।

 

✧  तो कहाँ रहना है? एक बाप के सिवाए और कोई याद न आये, अपना शरीर भी नहीं। अगर देह याद आई तो देह के साथ देह के सम्बन्ध, पदार्थ, दुनिया सब एक के पीछे आ जायेंगे। *जरा संकल्प रूप में भी अगर सूक्ष्म धागा जुटा हुआ होगा तो वह अपनी तरफ खींच लेगा। इसलिए मंसा, वाचा कर्मणा में कोई सूक्ष्म में भी रस्सी न हो।*

  

✧  सदा मुक्त रहो तब औरों को भी मुक्त कर सकेंगे। आजकल सारी दुनिया माया के जाल में फँसकर तड़प रही है, उन्हें इस जाल से मुक्त करने के लिए पहले स्वयं को मुक्त होना पड़े। सूक्ष्म संक्लप में भी बंधन न हो। *जितना निर्बन्धन होंगे उतना अपनी ऊंची स्टेज पर स्थित हो सकोगे बंधन होगा तो ऊँचा चाहते भी नीचे आ जायेंगे।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *बापदादा वा ड्रामा दिखाता ही रहता है कि दिन-प्रतिदिन सेवा बढ़नी ही है, तो बैठ कैसे जायेंगे?* जो एक साल पहले आपकी सेवा थी और इस साल जो सेवा की वह बढ़ी है या कम हुई है? बढ़ गई है ना!

 

✧  *न चाहते भी सेवा के बंधन में बंधे हुए हो लेकिन बैलेन्स से सेवा का बन्धन, बन्धन नहीं संबंध होगा।* जैसे लौकिक संबंध में समझते हो कि एक है कर्म बन्धन और एक है सेवा का संबंध तो बन्धन का अनुभव नहीं होगा, सेवा का स्वीट संबंध है। तो क्या अटेन्शन देंगे?

 

✧  सेवा और स्व-पुरुषार्थ का बैलेन्स सेवा के अति में नहीं जाओ। बस, मेरे को ही करनी है, मैं ही कर सकती हूँ, नहीं। *कराने वाला करा रहा है, मैं निमित्त करनहार' हूँ तो जिम्मेवारी होते भी थकावट कम होगी।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  सारे दिन में कितना समय फ़रिश्ते हो रहते और कितना समय फ़रिश्तों के बजाय मृत्युलोक के मानव होते हो? दैवी परिवार के रिश्तों में भी फ़रिश्ते नहीं आते। वह तो सदैव न्यारे रहते हैं। *रिश्ते सब किससे हैं? अगर कोई को सखी बनाया तो बाप से वह सखीपन का रिश्ता कम हो जायेगा।* कोई भी सम्बन्ध चाहे बहन का या भाई का या अन्य कोई भी रिश्ता जोड़ा तो एक से ज़रूर वह रिश्ता हल्का होगा। *क्योंकि बँट जाता है ना? दिल का टुकड़ा टुकड़ा हो गया तो टूटा हुआ दिल हो गया। टूटे हुए दिल को बाप भी स्वीकार नहीं करते।* यह भी गुह्य रिश्तों की फिलॉसॉफी है। *सिवाय एक के और कोई से रिश्ता नहीं- न सखा, न सखी, न बहन, न भाई। तो उस सम्बन्ध में भी आत्मा ही याद आयेगी। फ़रिश्ता अर्थात् जिसका आत्माओं से कोई रिश्ता नहीं। प्रीत जुटाना सहज है, लेकिन निभाना मुश्किल है। निभाने में ही नम्बर होते हैं। जुटाने में नहीं होते।* निभाना किसी-किसी को आता है, सब को नहीं आता। निभाने की लाइन बदली हो जाती है। लक्ष्य एक होता है लक्षण दूसरे हो जाते हैं। इसलिए निभाते कोई-कोई हैं, जुटाते सब हैं। *भक्त भी जुटाते हैं लेकिन निभाते नहीं हैं। बच्चे निभाते हैं, लेकिन उसमें भी नम्बरवार।* कोई एक सम्बन्ध में भी अगर निभाने में कमी हो गई या सम्बन्ध में ज़रा-सी कमी हुई, मानों ७५३ सम्बन्ध बाप से है और २५३ सम्बन्ध कोई एक आत्मा से है, तो भी निभाने वाले की लिस्ट में नहीं रखेंगे। बाप का साथ ७५३ रखते हैं और कभी-कभी २५३ कोई का साथ लिया तो भी निभाने वाले की लिस्ट में नहीं आयेंगे। निभाना तो निभाना। यही भी गुह्य गति है। *संकल्प में भी कोई आत्मा न आये- इसको कहते हैं सम्पूर्ण निभाना। कैसी भी परिस्थिति हो, चाहे मन की, तन की या सम्पर्क की- कोई भी आत्मा संकल्प में न आये। संकल्प में भी कोई आत्मा की स्मृति आई तो उसी सेकेण्ड का भी हिसाब बनता है। तभी तो आठ पास होते हैं। विशेष आठ का ही गायन है।* ज़रूर इतनी गुह्य गति होगी। बड़ा कड़ा पेपर है। तो फ़रिश्ता उनको कहा जाता है जिसके संकल्प में भी कोई न रहे। कोई परिस्थिति में, मजबूरी में भी नहीं। सेकेण्ड के लिए संकल्प में भी न हो। मजबूरी में भी मजबूत रहे- तब है फ़रिश्ता।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  शुद्ध संकल्प करना*"

 

_ ➳  मीठे बाबा के कमरे में रुहरिहानं करने के लिए... जब मै आत्मा... पांडव भवन के प्रांगण में पहुंचती हूँ... *सुंदर सतयुग और मनमोहक श्री कृष्ण को सामने देख पुलकित हो उठती हूँ.*.. भक्ति में यह चित्र, आज ज्ञान में मन की आँखों से देखकर... मै आत्मा आनन्द की चरमसीमा पर हूँ... मीठे बाबा ने ज्ञान के तीसरे नेत्र को देकर... चित्रो में चैतन्यता को सहज ही दिखलाया है... भक्ति में सब कुछ कितना दूर था... और *आज बाबा की गोद में बैठकर... हर नजारा दिल के कितना करीब है... भगवान ने मेरी सोच बदल कर... सतयुगी दुनिया के ये प्यारे नजारे मेरे नाम लिख दिए है.*.. मन के यह भाव... मीठे बाबा को सुनाने मै आत्मा... कमरे की ओर बढ़ चलती हूँ...."

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने महान भाग्य की ख़ुशी से भरते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *भगवान को अपनी बाँहों में भरने वाले अति सोभाग्यशाली हो... इस मीठी ख़ुशी में सदा आनन्द के साथ झूमते रहो.*.. व्यर्थ चिंतन से परे होकर, समर्थ मनन से शक्तिशाली बनो... भगवान को पाकर अब किस बात की चिंता है... मन की ख़ुशी तन पर भी स्वतः झलकेगी... सदा यह सोच कर मुस्कराओ...यह मन और तन दोनों ही प्यारे है,जो भगवान से मिलने का आधार बने हे...

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा से ख़ुशी की खुराक लेकर शक्तिशाली बनकर कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा देह के प्रपंच में कितना उलझी थी कि चहुँ ओर दुःख ही दुःख बिखरा था... व्यर्थ सोचना ही मुझ आत्मा का संस्कार था... *आपने प्यारे बाबा, मुझे कितना प्यारा खुबसूरत जीवन दिया है... मै आत्मा अब सदा प्रफुल्लित हूँ.*.. सदा उमंगो और खुशियो में चहकती हुई, हर दिल को आप समान बना रही हूँ..."

 

   *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा में शुभ संकल्पों के संस्कारो को पक्का कराते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वरीय मिलन में सहयोगी, इस पुराने तन को... वाह वाह कर चलाओ.*.. दिल शिकस्ती के संकल्प नही चलाओ... माया के तूफान को भी... शक्तियो और गुणो को बढ़ाने में, सहयोगी समझो... हर पल, हर स्थिति में सदा शुभ संकल्प के ऊँचे शिखर पर विराजमान रहो... कभी ख़ुशी, कभी गम, इस नेचर को बदल, सदा सदा के लिए, ख़ुशी के सम्राट बन जाओ...."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा से, हर बात में कल्याण की भावना को, अपने दिल में भरकर कहती हूँ :-* "सच्चे साथी बाबा मेरे... आप जीवन में आये हो बाबा... तो खुशियो की बहार संग लाये हो...मेरे दुखो के आँसू सुखाकर, खुशियो की चमक आँखों में लाये हो... मै आत्मा आपके प्यार के साये में, कितनी खुबसूरत होती जा रही हूँ... *मेरी सुंदर सोच मुझे कितना सुख दे रही है... और सुखो भरी दुनिया, आने वाले कल में, मेरे लिए ही सज रही है.*.."

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को मेरी सुंदर सोच में छिपे खुबसूरत खजानो को उजागर करते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *सदा शुभभावना रख, हर दिल को अपना बनाओ... मुझे अपने को बदलना है यह स्वयं को पक्का कराओ... हर बात में बीच में बाबा को लाओ.*.. तो माया स्वतः ही काफूर हो जायेगी... सदा विशेषताओ के मोती चुगने वाले, होलिहंस बन,ख़ुशी से रेस कर, एक दूजे से आगे बढ़, सदा मुस्कराओ...

 

_ ➳  *मै आत्मा अपने मीठे प्यारे बाबा के प्यार पर दिल से न्यौछावर होकर कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा... *आपने शुभ संकल्पों, और शुभ भावना का जादु मुझे सिखाकर, मेरा जीवन कितना निराला और अनोखा कर दिया है.*.. मै आत्मा शुभभावना से भरकर, प्यारे और मीठे जीवन को सहज ही पा गयी हूँ... आपसे पाये असीम प्यार की तरंगे... पूरे विश्व पर बिखरने वाली विश्व कल्याणकारी बन गयी हूँ... मीठे बाबा के उपकारों का यूँ रोम रोम से शुक्रिया कर मै आत्मा... स्थूल जगत में लौट आयी...

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- हम एवर हैपी गॉड के बच्चे है, इस स्मृति से अपार खुशी में रहना है*"

 

_ ➳  अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य का ख्याल आते ही मन उन मीठी अनुभूतियों की मीठी यादों में खो जाता है जो मेरे शिव पिता परमात्मा मुझे हर पल करवाते रहतें हैं। *बाबा के साथ बनाये हर सम्बन्ध का सुखद अनुभव मन को गहन सुकून से भर देता है। जिस भगवान की एक झलक पाने के लिए दुनिया तरस रही है वो भगवान मेरा बाप, टीचर, सतगुरु, साथी, साजन बन सर्व सम्बन्धों का असीम सुख मुझे प्रदान कर रहा है*। जीते जी उसने मुझे अपना वारिस बना कर ना केवल इस एक जन्म में अपने सर्व खजानों का मालिक बनाया बल्कि भविष्य 21 जन्मों की बादशाही का भी वर्सा दिया।

 

_ ➳  अपने शिव पिता परमात्मा का वारिस बन उनसे मिलने वाले अथाह खजानों और भविष्य श्रेष्ठ प्रालब्ध की स्मृति मेरे अंदर एक अद्भुत रूहानी नशे का संचार करने लगती है और एक अति सुखमय नारायणी नशे में डूबी मैं आत्मा अपने शिव पिता से मिलने के लिए बेचैन हो उठती हूँ। *अपना वारिस बना कर बाबा ने अपना सब कुछ मुझ पर बलिहार कर दिया ऐसे भगवान बाप पर बलिहार जाने का संकल्प मुझे सेकण्ड में देह से अलग कर अपने शिव पिता से मिलने वाली रुहानी यात्रा पर ले कर चल पड़ता है*। भृकुटि सिहांसन को छोड़ मैं आत्मा देह से बाहर निकलती हूँ और एक ऊंची उड़ान भर कर सेकेंड में साकार और सूक्ष्म लोक को पार कर पहुँच जाती हूँ अपने शिव पिता के धाम में।

 

_ ➳  वाणी से परें इस निर्वाण धाम घर में फैली गहन शान्ति मन को गहराई तक शान्ति की अनुभूति करवा रही है। मन को सुकून और चित की चैन देने वाली शन्ति की सुखद अनुभूति करते - करते अब मैं आत्मा अपने शिव पिता के पास पहुँचती हूँ और उनके बिल्कुल समीप जाकर उनके साथ अटैच हो जाती हूँ। *ऐसा लग रहा है जैसे बाबा ने मुझे अपनी सर्वशक्तियों की किरणों में समा लिया है और मैं बाबा में समाकर बाबा का ही रूप बन गई हूँ*। बाबा के सर्वगुण, सर्वशक्तियाँ मुझ आत्मा में समाहित हो रहें हैं। इन्हें स्वयं में समाकर मैं बाप समान शक्तिशाली स्थिति का अनुभव कर रही हूँ।

 

_ ➳  बाबा की सर्वशक्तियों और सर्व गुणों से स्वयं को पूरी तरह भरपूर करके अब मैं परमधाम से नीचे आकर सूक्ष्म लोक में प्रवेश करती हूँ। *सामने अपने लाइट माइट स्वरूप में ब्रह्मा बाबा और उनकी भृकुटि में चमक रहे निराकार अपने शिव पिता परमात्मा को मैं देख रही हूँ*। अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित होकर अब मैं बापदादा के पास पहुँचती हूँ। बापदादा बड़े प्यार से मुझे गले से लगा लेते हैं और अपना असीम प्यार मुझ पर लुटाते हुए मुझे अपने पास बिठा लेते हैं। *अपना वारिस बना कर सर्व ख़ज़ानों की चाबी मेरे हाथ मे देकर बाबा मुझे सदा "सर्व खजानो से सम्पन्न रहने का वरदान देते हैं" और अपनी सर्वशक्तियों से मुझे भरपूर कर देते हैं*।

 

_ ➳  बापदादा से सर्व खजानों की चाबी लेकर, सर्वशक्तियों से सम्पन्न होकर अब मैं अपने निराकारी स्वरूप को धारण कर साकारी दुनिया में आकर, वापिस अपने साकारी तन में प्रवेश करती हूँ और अपने ब्राह्मण स्वरुप में स्थित हो जाती हूँ। अपने इस संगमयुगी ब्राह्मण जीवन की प्राप्तियों को अब मैं सदा स्मृति में रखती हूँ। *भगवान का वारिस बन, उनके सर्व ख़ज़ानों के अधिकारी और उनसे मिलने वाले भविष्य वर्से के रूप में स्वर्ग की बादशाही का नशा अब मुझे सदा उमंग उत्साह से भरपूर रखता है*। उड़ती कला का अनुभव हर समय करते हुए अब मैं अपने उमंग उत्साह से दूसरों को भी उमंग उत्साह दिलाते उन्हें भी उड़ती कला का अनुभव करवाती रहती हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं हर आत्मा को ऊँचा उठाने की भावना से रिगार्ड देने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं शुभचिंतक आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सदा पुराने स्वभाव संस्कार को समाप्त करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदैव त्याग का भाग्य प्राप्त करती हूँ  ।*

   *मैं भाग्यवान आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳   बापदादा बच्चों को कहते हैं - *सर्व शक्तियों का वर्सा इतना शक्तिशाली है जो कोई भी समस्या आपके आगे ठहर नहीं सकती है*। समस्या-मुक्त बन सकते हो। *सिर्फ सर्व शक्तियों को इमर्ज रूप में स्मृति में रखो और  समय पर कार्य में लगाओ*। इसके लिए अपने बुद्धि की लाइन क्लीयर रखो। *जितनी बुद्धि की लाइन क्लीयर और क्लीन होगी उतना निर्णय शक्ति तीव्र होने के कारण जिस समय जो शक्ति की आवश्यकता है वह कार्य में लगा सकेंगे*। क्योंकि समय के प्रमाण बापदादा हर एक बच्चे को विघ्न-मुक्त, समस्या-मुक्त, मेहनत के पुरुषार्थ-मुक्त देखने चाहते हैं। बनना तो सब को है ही  लेकिन बहुतकाल का यह अभ्यास आवश्यक है।

 

 _ ➳  फालो करना तो सहज है ना! जब फालो ही करना है तो क्यों, क्याकैसे...

यह समाप्त हो जाता है। और सबको अनुभव है कि व्यर्थ संकल्प के निमित्त यह क्यों, क्या, कैसे... ही आधार बनते हैं। फालो फादर में यह शब्द समाप्त हो जाता है। कैसे नही, ऐसे। बुद्धि फौरन जज करती है ऐसे चलोऐसे करो। तो बापदादा आज विशेष सभी बच्चों को चाहे पहले बारी आये हैंचाहे पुराने हैं, यही इशारा देते हैं कि *अपने मन को स्वच्छ रखो। बहुतों के मन में अभी भी व्यर्थ और निगेटिव के दाग छोटे बड़े हैं। इसके कारण पुरुषार्थ की श्रेष्ठ स्पीड, तीव्रगति में रूकावट आती है।* बाप दादा सदा श्रीमत देते हैं कि *मन में सदा हर आत्मा के प्रति शुभ-भावना और शुभ -कामना रखो - यह है स्वच्छ मन। अपकारी पर भी उपकार की वृत्ति रखना - यह है स्वच्छ मन।* स्वयं के प्रति वा अन्य के प्रति व्यर्थ संकल्प आना - यह स्वच्छ मन नहीं है। तो *स्वच्छ मन और क्लीन और क्लीयर बुद्धि।* जज करो, अपने आपको अटेन्शन से देखो, ऊपर-ऊपर से नहींठीक हैठीक है। नहींसोच के देखो - मन और बुद्धि स्पष्ट हैश्रेष्ठ हैतब डबल लाइट स्थिति बन सकती है। बाप समान स्थिति बनाने का यही सहज साधन है। और यह अभ्यास अन्त में नही, बहुत काल का आवश्यक है। 

 

✺   *ड्रिल :-  "समस्या मुक्त बनने के लिए बुद्धि की लाइन क्लीन और क्लीयर रखना"*

 

 _ ➳  *मन बुद्धि के पंख लगाये मैं आत्म पंछी आहिस्ता आहिस्ता इस देह से अलग होने का अभ्यास करता हुआ*... देह से दूर स्थिर होकर मैं अपनी ही देह को साक्षी भाव से देख रहा हूँ... कुछ ही पल में इससे विदाई लेता हुआ मैं उड चला अनन्त की ओर... *मैं फरिश्ता चार धाम की यात्रा पर... बैठ गया हूँ शान्ति स्तम्भ पर... शिव बिन्दु आज मेरे सम्मुख अपने विराट रूप में*... मुझमें शक्तियों को भरते हुए... प्रकाश का घेरा मेरे चारों ओर... गहरा लाला प्रकाश और दूधिया रंग की आभा से सजा मैं फरिश्ता... *मुझसे, मेरे जैसे ही आठ फरिश्ते प्रकट होकर मेरे चारों ओर मुझे घेर कर खडे हो गये है... उनके चारों ओर प्रकाश से झिलमिलाती आठ दिव्य शक्तियाँ... एक एक फरिश्ते के भीतर समाती हुई... और भी शक्तिशाली रूप धारण कर ये फरिश्ते एक एक कर मुझ फरिश्ते में समातें जा रहे है*... अष्ट शक्तियों के वर्से से भरपूर होकर मैं फरिश्ता... बेहद की शक्तियों का प्रस्फुटन महसूस कर रहा हूँ स्वयं के भीतर से...

 

 _ ➳  उडता हुआ मैं फरिश्ता जा बैठा हूँ एक ऊँचे शिखर पर... सभी कुछ बहुत छोटा महसूस हो रहा है मेरी स्थिति के आगे... *विस्तार लिए फैले गगन के समान विस्तृत होता मेरा मन... और इसमे समाँ गयी है विश्व की हर आत्मा गगन की गोद में पलते तारों के समान... और हर आत्मा के प्रति शुभकामना और शुभभावना की किरणें भेजता हुआ मैं... व्यर्थ और नैगेटिव संकल्प टूटते तारों के समान मेरे मन रूपी आकाश से विदाई ले रहे है*...  

 

 _ ➳  शिखर से बहता पावन झरना और झरने के निरन्तर बहाव से तलहटी में बनी झील... *मेरे मन रूपी झील की ही तरह पावनता से भरपूर है... झील की तलहटी व  किनारों पर जमी समस्या रूपी शैवाल... निरन्तर बहते झरने के बहाव से पानी की धारा के साथ दूर और दूर होती हुई जा रही है*... निरन्तर बहता शिव प्यार का झरना... पावनता का झरना... ये शक्तियों और गुणों का झरना... और इस झरने के नीचे मगन रूप में मै फरिश्ता... *बुद्धि की लगन बस एक शिव पिता से... मेरे मन रूपी स्वच्छ पावन झील में उभरता शिव का प्रतिबिम्ब*.... जैसे ठहरे शान्त और स्वच्छ जल में उभरता चाँद का पूरा प्रतिबिम्ब... हर समस्या बहते पानी के साथ, बहती शैवाल के समान दूर हो रही है... समस्या से मुक्त होकर मैं अब समाधान स्वरूप बनती जा रही हूँ... *बुद्धि रूपी प्यालें में शिव स्नेह की मधुशाला*... समस्या ले रही विदाई... पग पग पर बस जीत का उजाला...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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