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 16 / 12 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बाप से वफादार बनकर रहे ?*

 

➢➢ *बुधी की लाइन क्लियर रखी ?*

 

➢➢ *ईश्वरीय नशे द्वारा पुरानी दुनिया को भूले ?*

 

➢➢ *एक दो को कॉपी करने की बजाये बाप को कॉपी किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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〰✧  आत्मिक स्वरूप में रहने से लौकिक में रहते भी अलौकिकता का अनुभव करेंगे। अपने को आत्मिक रूप में न्यारा समझना है। *कर्तव्य से न्यारा होना तो सहज है, उससे दुनिया को प्यारे नहीं लगेंगे, दुनिया को प्यारे तब लगेंगे जब शरीर से न्यारी आत्मा रूप में कार्य करेंगे। इससे ही मन के प्रिय, प्रभु प्रिय और लोक प्रिय बनेंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं बापसमान शक्तिशाली आत्मा हूँ"*

 

✧   सदा स्वयं को शक्तिशाली आत्मा अनुभव करते हो? शक्तिशाली आत्मा का हर संकल्प शक्तिशाली होगा। *हर संकल्प में सेवा समाई हुई हो। हर बोल में बाप की याद समाई हो। हर कर्म में बाप जैसा चरित्र समाया हुआ हो।* तो ऐसी शक्तिशाली आत्मा अपने को अनुभव करते हो?

 

✧  मुख में भी बाप, स्मृति में भी बाप और कर्म में भी बाप के चरित्र - इसको कहा जाता है बाप समान शक्तिशाली। ऐसे हैं? *एक शब्द 'बाबा' लेकिन यह एक ही शब्द जादू का शब्द है। जैसे जादू में स्वरूप परिवर्तन हो जाता वैसे एक बाप शब्द समर्थ स्वरूप बना देता है।*

 

  गुण बदल जाते, कर्म बदल जाते, कर्म बदल जाते, बोल बदल जाते। यह एक शब्द, जादू का शब्द है। तो सभी जादूगर बने हो ना। जादू लगाना आता है ना। *बाबा बोला और बाबा का बनाया, यह है जादू।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आज बहुत बातें सुनाई है। अभी एक सेकण्ड में एकदम मन और बुद्धि को बिल्कुल प्लेन कर एक बाप से सर्व संबंधों

का, बाप ही संसार है - चाहे व्यक्ति संबंध, चाहे प्राप्तियाँ, यही संसार है। तो *एक ही बाप संसार है, इस बाप की याद में, इस रूप में, इस रस में, इस अनुभव मे लवलीन हो जाओ।* (बापदादा ने 3 मिनट ड़िल कराई) अच्छा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *फरिश्ते अर्थात् अपने फ्युचर द्वारा अन्य आत्माओं के फ्युचर बनाने वाले सदा अपना फ्युचर सामने रहता है?* जितना निमित्त बनी हुई आत्मायें अपने फ्युचर को सदा सामने रखेंगी उतना अन्य आत्माओं को भी अपना फ्युचर बनाने की प्रेरणा दे सकेंगी। अपना फ्युचर स्पष्ट नहीं तो दूसरों को भी स्पष्ट बनाने का रास्ता नहीं बता सकेंगी। *अपना फ्युचर स्पष्ट है? महाराजा या महारानी- जो भी बने, लेकिन उससे पहले अपना भविष्य फ़रिश्तेपन का, कर्मातीत अवस्था का- वह सामने स्पष्ट आता है? ऐसा अनुभव होता है कि मैं हर कल्प में फ़रिश्ते स्वरूप में ये पार्ट बजा चुकी हूँ और अभी बजाना है? वो झलक सामने आती है? जैसे दर्पण में अपने स्वरूप की झलक देखते हो ऐसे नॉलेज के दर्पण में अपने पुरुषार्थ से फ़रिश्तेपन की झलक स्पष्ट दिखाई देती है? जब तक फ़रिश्तेपन की झलक स्पष्ट दिखाई नहीं देगे तब तक भविष्य भी स्पष्ट नहीं होगा।* यह संकल्प आता ही रहेगा कि शायद मैं ये बनूँ या वो बनूँ? लेकिन फ़रिश्तेपन की झलक स्पष्ट दिखाई देगी तो वह भी स्पष्ट दिखाई देगी। तो वह दिखाई देता है या अभी घूंघट में है? *जैसे चित्र का अनावरण कराते हो तो अपने फ़रिश्ते स्वरूप का अनावरण कब करेंगे? आपे ही करेंगे या चीफ़ गेस्ट को बुलायेंगे? यह पुरुषार्थ की कमज़ोरी का पर्दा हटाओ तो स्पष्ट फ़रिश्ता रूप हो जायेगा।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- वफादार, ऑनेस्ट बन अपनी कर्म कहानी बाप को लिखकर देना"*

 

_ ➳  मैं आत्मा 63 जन्मों से माया रावण के चंगुल में पडकर विकारों में धंसते चले गई और पाप करते गई... और जन्म-जन्मान्तर से अपने किए हुए पापों का बोझा ढोते-ढोते मैं आत्मा दुखी-अशांत हो गई थी... *प्यारे बाबा ने आकर अपने पवित्र किरणों से मेरे पापों का मैल धो दिया, जन्म-जन्म का बोझा उतारकर मुझे हल्का कर दिया... ज्ञान योग की किरणों से मुझे अलौकिक फ़रिश्ता बना दिया... मैं फ़रिश्ता अपना श्रृंगार कराने पहुँच जाता हूँ फरिश्तों की दुनिया में... बापदादा के पास...*

 

  *अपने प्रेम के फूल मुझ पर बरसाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... *ईश्वरीय राहों में सदा सच का राही बन चलना है...* जिन संस्कारो ने गहरे दुःख, अंतर्मन को देकर जख्मी किया है, उन्हें ईश्वर पिता को सौप मुक्त होना है... *फिर कभी कोई भूल हो जाये तो सच्चे मन से पिता को बताना है... सदा सच्चे सोने सा गुणवान बन चमकना है...”*

 

_ ➳  *सत्यता की चादर ओढ़ हीरे समान चमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मैं आत्मा विकारो में लिप्त होकर,असत्य से दामन भर ली थी... *आपने प्यारे बाबा मुझे सच्चाई भरा खुबसूरत उजला जीवन दिया है... मै आत्मा सारे विकारो का त्यागकर खुबसूरत मणि बन दमक उठी हूँ...”*

 

  *अवगुणों को निकाल सद्गुणों से मुझे सजाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह की मिटटी और विकारो के संग में मटमैले हो गए थे... अब जो प्यारा ईश्वरीय जीवन मिला है तो गुणवान और शक्तिवान बन मुस्कराओ... *देह अभिमान ने जो सुनहरी चमक को धुंधला किया है... देही अभिमानी बन अपने नूर को पा लो... और सत्य पिता की बाँहों में सत्यता से खिलखिलाओ...”*

 

_ ➳  *काँटों को छोड़ बाबा का हाथ पकड फूलों की राह पर चलते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी गोद में खिलकर गुणो की मिठास से भर रही हूँ... *जीवन प्यारा खुशनुमा और सच्चाई की खनक से गूंज उठा है... दिल के हर राज का राजदार. बाबा को बनाकर मै आत्मा ईश्वर दिल को जीत ली हूँ...”*

 

  *सुखों का मार्ग रोशन कर देवता समान मुझे सुशोभित करते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देवताओ सा खुबसूरत जीवन और स्वर्ग के अथाह सुखो का अधिकारी बनना है, तो अपनी कमियो को ईश्वर पिता को अर्पण कर हल्के हो जाओ... *गर कोई भूल हो जाये तो पिता के साथ बयान करो... साफ सुथरा, प्यारा सा सच्चा जीवन जीते हुए आनन्द के झूलो में झूलते रहो...”*

 

_ ➳  *अपने दिल की हर बात बाबा से शेयर कर खुशियों के गीत गुनगुनाती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा खुशियो की झलक को प्यासी सी, आज खुशियो की मचान पर मुस्करा रही हूँ... *ईश्वर पिता के प्यार में चरित्रवान गुणवान और शक्तिवान बनकर, देवताई सौभाग्य को बाँहों में लिये, मीठे गीत गा रही हूँ...”*

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- राजयोग की तपस्या करनी है*"

 

_ ➳  राजयोग के अभ्यास द्वारा अपनी सोई हुई शक्तियों को पुनः जागृत कर, स्वयं को सर्व गुणों, सर्वशक्तियों और सर्व खजानों से सम्पन्न करने के लिए मैं अशरीरी बन बैठ जाती हूँ सर्व गुणों, सर्व शक्तियों के सागर अपने शिव पिता परमात्मा की याद मे। *जैसे - जैसे मैं अपने शिव पिता परमात्मा की याद में गहराई तक डूबती जा रही हूँ वैसे - वैसे देह का भान समाप्त होता जा रहा है*।

 

_ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे देह रूपी वस्त्र धीरे - धीरे उतर रहा है और उसके भीतर छुपी जगमग करती चैतन्य शक्ति आत्मा अपने प्रकाश की रंग बिरंगी किरणे फैलाती उजागर हो रही है। *जैसे सूर्य की किरणें रात के अंधेरे को अपने प्रकाश से दिन के उजाले में परिवर्तित कर देती है ऐसे सूर्य की किरणों के समान प्रकाश मुझ आत्मा से निकल निकल कर मेरे चारों ओर फैल रहा है*। यह प्रकाश निरन्तर बढ़ता हुआ मुझ आत्मा के चारो और एक सुंदर औरे का निर्माण कर रहा है।

 

_ ➳  अपने चारों और निर्मित प्रकाश के इस औरे के साथ अब मैं आत्मा धीरे - धीरे देह रूपी वस्त्र का पूरी तरह त्याग कर ऊपर की बढ़ रही हूँ। *शक्तियों के सागर अपने शिव पिता के सानिध्य में बैठ उनकी सर्वशक्तियों को स्वयं में समा कर उनके समान बनने की इच्छा लिए अब मैं आकाश को पार कर, सूक्ष्मवतन से परें पहुँच गई अपने शिव पिता परमात्मा के पास निर्वाण धाम*। वाणी से परें मेरे शिव पिता परमात्मा का यह धाम शांति की शक्तिशाली किरणों से भरपूर हैं। यहाँ पहुंच कर मैं आत्मा गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ।

 

_ ➳  सुख के सागर, प्रेम के सागर, आनन्द  के सागर, पवित्रता, ज्ञान और शक्तियों के सागर मेरे शिव पिता मेरे बिल्कुल सामने हैं और अपने इन सभी गुणों की शक्तिशाली किरणों की वर्षा मुझ आत्मा पर करके मुझे इन सभी गुणों से सम्पन्न बना रहे हैं। *अपनी शक्तियों को मुझ में प्रवाहित कर मुझे आप समान शक्तिशाली बना रहे हैं*। बाबा के साथ टच हो कर मैं उनके सभी गुणों, सर्वशक्तियों और सर्व खजानों को स्वयं में समाती जा रही हूँ।

 

_ ➳  भरपूर हो कर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे प्रवेश करती हूँ और अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, तपस्वीमूर्त बन, राजयोग की तपस्या करने एक ऊंचे खुले स्थान पर जाकर बैठ जाती हूँ और अपने पिता परमात्मा का आह्वान करती हूँ। *सेकेंड में मैं स्वयं को सर्वशक्तियों के सागर अपने शिव पिता के साथ कम्बाइंड अनुभव करती हूँ*। सर्वशक्तिवान बाबा से सर्वशक्तियाँ ले कर मैं समस्त वायुमण्डल में चारों ओर प्रवाहित कर रही हूँ और विश्व की सर्व आत्माओं को सुख शांति की अनुभूति करवा कर अपने सेवा स्थल पर वापिस लौट रही हूँ।

 

_ ➳  *अपने तपस्वी स्वरूप को सदा इमर्ज रूप में रख, राजयोग की तपस्या करते, अब मैं अपने सम्बन्ध संपर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को राजयोग द्वारा राजाई पद प्राप्त कर उन्हें भी मुक्ति, जीवनमुक्ति का वर्सा पाने की अधिकारी आत्मा बना रही हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं ईश्वरीय नशे द्वारा पुरानी दुनिया को भूलने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सर्व प्राप्ति सम्पन आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा एक दो को कॉपी करने से सदा मुक्त हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदैव बाप को कॉपी करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदा फॉलो फादर करती हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. कौन-सी विशेष कमी है जिसके कारण आधी माला भी रूकी हुई हैतो चारों ओर के बच्चे हर एरियाएरिया के इमर्ज करते गयेजैसे आपके जोन हैं नाऐसे ही एक-एक जोन नहीं, ]जोन तो बहुत-बहुत बड़े हैं ना। तो एक-एक विशेष शहर को इमर्ज करते गये और सबके चेहरे देखते गयेदेखते-देखते *ब्रह्मा बाप ने कहा कि एकविशेषता अभी जल्दी-से-जल्दी सभी बच्चे धारण कर लेंगे तो माला तैयार हो जायेगी।* कौन सी विशेषतातो यही कहा कि जितनी सर्विस में उन्नति की हैसर्विस करते हुए आगे बढ़े हैं। अच्छे आगे बढ़े हैं *लेकिन एक बात का बैलेन्स कम है। वह यही बात कि निर्माण करने में तो अच्छे आगे बढ़ गये हैं लेकिन निर्माण के साथ निर्मान - वह है निर्माण और वह है निर्मान। मात्रा का अन्तर है।* लेकिन निर्माण और निर्मान दोनों के बैलेन्स में अन्तर है। सेवा की उन्नति में निर्मानता के बजाए कहाँ-कहाँकब-कब स्व-अभिमान भी मिक्स हो जाता है। *जितना सेवा में आगे बढ़ते हैंउतना ही वृत्ति मेंदृष्टि मेंबोल मेंचाल में निर्मानता दिखाई देइस बैलेन्स की अभी बहुत आवश्यकता है।*

 

 _ ➳  2. *ऐसे नहीं सोचो - यह तो है ही ऐसायह तो बदलना नहीं है। जब प्रकृति को बदल सकते होएडजेस्ट करेंगे ना प्रकृति कोतो क्या ब्राह्मण आत्मा को एडजेस्ट नहीं कर सकते हो?* अगेन्स्ट को एडजेस्ट करोयह है - निर्माण और निर्मान का बैलेन्स। सुना!

 

 _ ➳  अभी तक जो सभी सम्बन्ध-सम्पर्क वालों से ब्लैसिंग मिलनी चाहिए वह ब्लैसिंग नहीं मिलती है। और *पुरुषार्थ कोई कितना भी करता हैअच्छा है लेकिन पुरुषार्थ के साथ अगर दुआओं का खाता जमा नहीं है तो दाता-पन की स्टेजरहमदिल बनने की स्टेज की अनुभूति नहीं होगी।* आवश्यक है - स्व पुरुषार्थ और साथ-साथ बापदादा और परिवार के छोटे-बड़ों की दुआयें। यह दुआयें जो हैं - यह पुण्य का खाता जमा करना है। यह मार्क्स में एडीशन होती है। *कितनी भी सर्विस करोअपनी सर्विस की धुन में आगे बढ़ते चलो,लेकिन बापदादा सभी बच्चों में यह विशेषता देखने चाहते हैं कि सेवा के साथ निर्मानता, मिलनसार - यह पुण्य का खाता जमा होना बहुत-बहुत आवश्यक है।* फिर नहीं कहना कि मैंने तो बहुत सर्विस कीमैंने तो यह किया, मैने तो यह कियामैने तो यह किया, लेकिन नम्बर पीछे क्यों? इसलिए *बापदादा पहले से ही इशारा देते हैं कि वर्तमान समय यह पुण्य का खाता बहुत-बहुत जमा करो।*

 

✺   *ड्रिल :-  "निर्माणता और निर्मानता का बैलेन्स रखना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा अमृतवेले मेरे मीठे बापदादा से मिलन मना रही हूँ... *बाबा मुझ आत्मा में ऐसे शक्तियां भर रहें हैं जैसे खाली गुब्बारे में गैस भर रहें हों... मैं आत्मा इन शक्तिशाली किरणों से भरपूर हो स्वयं को बहुत ही पावरफुल और हल्का अनुभव कर रही हूँ...* मैं आत्मा अपना फरिश्ता रूप धारण कर ग्लोब पर बैठ जाती हूँ... योगयुक्त होकर... बाबा से प्राप्त इन शक्तिशाली किरणों को समस्त विश्व की आत्माओं पर... प्रकृति के पांचों तत्वों पर प्रवाहित कर रही हूँ... 

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा साकार वतन में... अपनी देह में प्रविष्ट होकर पार्ट बजा रही हूँ... इन आँखों से इस ड्रामा को देख रही हूँ... साक्षीपन के स्वमान में रह हरेक के पार्ट को देख रही हूँ... *याद आ रही है बापदादा की श्रीमत... बच्चे- बोल में निर्मान बनो... निर्माणता ही महानता है... मुख से ऐसे बोल बोलो जो सब कहे कि अभी और सुनाओ...* कभी भी अभिमान के बोल बोलकर... दूसरों को दुःख नहीं दो... कष्ट नहीं दो...  

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बापदादा की श्रीमत फॉलो कर... अपने स्वभाव को निर्मल... शांत बना रही हूँ... मुझे हर कार्य में सफलता प्राप्त हो रही है... शुद्ध... शीतल... निर्मल स्वभाव धारण कर... मैं आत्मा हरेक आत्मा की विशेषता को देख रही हूँ...* कभी भी मन में यह ख्याल नही लाती कि... यह आत्मा यह कार्य नहीं कर सकती... अपितु सकरात्मक सोच रखकर उस आत्मा को उमंग उत्साह दिलाती हूँ कि तुम यह कार्य बहुत अच्छे से कर सकते हो... सफलता तो तुम्हारा जन्मसिद्ध अधिकार है... 

 

 _ ➳  *निमित्तभाव... निर्माणभाव... और निर्मल वाणी रख सर्व आत्माओं को निर्मान और निर्माण स्थिति में रह मास्टर मुक्तिदाता बन सभी को मुक्ति... जीवनमुक्ति का रास्ता दिखा रही हूँ...* हरेक आत्मा के प्रति कल्याण की भावना... ऊँचा उठाने की भावना... मधुरता... निर्माणता का स्वभाव धारण कर... व्यवहार कर रही हूँ... सभी आत्माओं के प्रति शुभ भावना... शुभ कामना... रहम की भावना कूट कूट कर भर गई है... मेरी दृष्टि... वृति... कृति में निर्मानता की रूहानियत झलक रही है... 

 

 _ ➳  *जो भी आत्माऐं मेरे सम्बन्ध सम्पर्क में आ रही हैं उन्हें मुझ आत्मा से पॉजिटिव वाइब्रेशनस मिल रही हैं... बहुत शांति की अनुभूति हो रही है... उनके मुख से मुझ आत्मा के लिये आर्शीवचन निकल रहें हैं... बहुत ब्लेसिंग्स मिल रहीं हैं... जिससे दुआओं का... पुण्य का खाता जमा हो रहा है...* मैं आत्मा बाबा के खजानों के अधिकार के नशे में रह... उमंग उत्साह के पंख लगा अपनी निर्मान स्थिति द्वारा बाबा को प्रत्यक्ष कर रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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