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 24 / 12 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बाप ने जो ज्ञान रतन दिए हैं, सिर्फ वही चुगे ?*

 

➢➢ *आत्मा अभिमानी रहने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *सर्व समबन्ध और सर्व गुणों की अनुभूति की ?*

 

➢➢ *रोने की फाइल को ख़तम किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *शरीर में होते निराकारी आत्मिक रुप में स्थित रहो तो यह साकार रूप गायब हो जायेगा।* जैसे साकार बाप को देखा, व्यक्त गायब हो अव्यक्त दिखाई देता था। *तो ऐसी अवस्था बनाने के लिए मन्सा में निराकारी स्टेज, वाचा में निरहंकारी और कर्म में निर्विकारी स्टेज हो। संकल्प में भी कोई विकार का अंश न हो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं खुशी के खजाने से सम्पन्न आत्मा हूँ"*

 

✧  सदा खुशी के खजानों से खेलने वाले हो ना? *खुशी भी एक खजाना है जिस खजाने द्वारा अनेक आत्माओंको माला माल बना सकते हो। आजकल विशेष इसी खजाने की आवश्यकता है।* और सब हैं लेकिन खुशी नहीं। आप सबको तो खुशियों की खान मिल गयी है। अनगिनत खजाना मिल गया है।

 

✧  खुशी के खजाने में भी वैराइटी है ना। कभी किस बात की खुशी कभी किस बात की खुशी। कभी बालक पन की खुशी तो मालिकपन की खुशी। *कितने प्रकार के खुशी के खजाने  मिले हैं। वो वर्णन करते हुए औरों को भी मालामाल बना सकते हो। तो इन खजानों को सदा कायम रखो। और सदा खजानों के मालिक बनो।*

 

✧  सदा बाप द्वारा मिली हुई शक्तियों को कार्य में लगाते रहो। बाप ने तो शक्तियाँ दे दी हैं। अब सिर्फ उन्हें कार्य में लगाओ। *सिर्फ मिल गया है, इसमें खुश नहीं रहो लेकिन जो मिला है वो स्वयं के प्रति और सर्व के प्रति यूज करो तो सदा मालामाल अनुभव करेंगे।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  चाहे प्रकृति के पाँचों ही तत्व अच्छी तरह से हिलाने की कोशिश करेंगे परंतु *विदेही अवस्था की अभ्यासी आत्मा बिल्कुल ऐसा अचल-अडोल पास विद ऑनर होगा जो सब बातें पास हो जायेंगी लेकिन वह ब्रह्मा बाप के समान पास विद ऑनर का सबूत रहेगा।*

 

✧  बापदादा समय प्रति समय इशारे देते भी हैं और देते रहेंगे। *आप सोचते भी हो, प्लैन बनाते भी हो, बनाओ।* भले सोचो लेकिन क्या होगा! उस आश्चर्यवत होकर नहीं। विदेही, साक्षी बन सोची लेकिन सोचा, प्लैन बनाया और सेकण्ड में प्लेन स्थिति बनाते चलो।

 

✧  अभी आवश्यकता स्थिति की है। *यह विदेही स्थिति परिस्थिति को बहुत सहज पार कर लेगी।* जैसे बादल आये, चले गये। और विदेही, अचल-अडोल हो खेल देख रहे हैं। अभी लास्ट समय को सोचते हो लेकिन लास्ट स्थिति को सोची।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *फ़रिश्ते अर्थात् भक्तों को और वैज्ञानिकों को टचिंग कराने वाले* (दीदी से) वर्तमान समय महावीरों की वतन में विशेष महफिल लगती है। क्यों लगती है, वह जानती हो? आजकल बापदादा ने जैसे स्थापना में ब्रह्मा के सम्पूर्ण स्वरूप द्वारा साक्षात्कार कराने की सेवा ली, ऐसे *आजकल अष्ट रत्न सो इष्ट रत्न उनको भी शक्ति के रूप में साथ-साथ साक्षात्कार कराने की सेवा कराते हैं।* स्थूल शरीर द्वारा साकारी ईश्वरीय सेवा में बिजी रहते हो लेकिन आजकल अनन्य श्रेष्ठ आत्माओं की डबल सेवा चल रही है। जैसे ब्रह्मा द्वारा स्थापना की वृद्धि हुई वैसे अभी शिव-शक्ति के कम्बाइन्ड स्वरूप द्वारा साक्षात्कार और सन्देश मिलने का कार्य आपके सूक्ष्म शरीरों द्वारा भी हो रहा है। तो बापदादा अनन्य बच्चों को इस सेवा में भी सहयोगी बनाते हैं। इसलिए सूक्ष्म सेवा के प्रैक्टिकल प्लैन के कारण वहाँ महफिल लगती है। इसलिए *महावीर बच्चों को कर्म करते भी किसी भी कर्मबन्धन से मुक्त सदा डबल लाइट रूप में रहना है।* बाप ने सूक्ष्म वतन में इमर्ज किया, सेवा कराई- उसकी अनुभूति इस साकार सृष्टि से भी कर सकते हो। ऐसे अनुभव आगे चल कर बहुत करेंगे। डबल सेवा का पार्ट चल रहा है। *बापदादा अनन्य बच्चों के संगठन द्वारा भक्तों को और वैज्ञानिकों को, दोनों को टचिंग कराने की सेवा कराते रहते हैं।* उनमें अनन्य भक्ति के संस्कार भर रहे हैं जो आधा कल्प भक्ति मार्ग को चलाते रहेंगे। और वैज्ञानिकों को परिवर्तन करने और रिफ़ाइन साधन बनाने में। जो साधन जैसे ह सम्पन्न होंगे तो उसका सुख सम्पूर्ण आत्मायें लेंगी। ये (वैज्ञानिक) नहीं ले सकेंगे। तो दोनों ही कार्य सूक्ष्म सेव द्वारा हो रहे हैं। समझा?

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  अपने को आत्मा निश्चय करना"*

 

   *प्यारे बाबा :-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... इस देह की दुनिया से, इस मटमैले आवरण से, अब और दिल न लगाओ... *इस आवरण में चमकती हुई मणि आत्मा हो, इस मीठे नशे से भर जाओ.*.. आत्मा से ही प्रकाशित यह आवरण है यह याद एखने से देहाभिमान स्वतः छूटता चला जायेगा...."

 

_ ➳  *मैं आत्मा :-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा देह के मटमैले रूप से निकल कर अपने आत्मिक गौरव से भर गयी हूँ... प्यारे बाबा आपने जो मेरी आत्मिक खूबसूरती का आभास करवाया है... मै आत्मा *इस सत्य को पाकर असीम खुशियो में नाच उठी हूँ.*.."

 

   *मीठे बाबा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय ज्ञान रत्नों को पाकर नये सतयुगी सुखो से सज जाओ... शरीर तो रथ है, और *आप चलाने वाली रथी हो, इसे प्रतिपल याद करो तो सहज ही हर कर्म से न्यारे बन जायेंगे.*.. अपने सत्य स्वरूप को ईश्वरीय यादो में इस कदर गहरा करो... की देह की मिटटी आकर्षित न करे..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा :-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी प्यारी मीठी यादो में डूबी हुई... *अपने आत्मिक स्वरूप की गहराई में गहरे उतरती जा रही हूँ..*. आपकी यादो सतोगुणी होती जा रही हूँ... अपना सुन्दरतम रूप आत्मा जानकर अतीन्द्रिय सुख में डूबती जा रही हूँ..."

 

   *प्यारे बाबा :-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे...  ईश्वर पिता की मीठी यादो में,और अमूल्य ज्ञान रत्नों में डूबकर देह से अनासक्त हो जाओ... *आत्मा ही अनोखा जादू है इसे दिल में गहराई से समा लो..*. अपने दमकते तेज को ईश्वरीय यादो में और भी तेजस्वी बनाओ और देहभान के सहज ही मुक्त हो जाओ..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा :-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपको पाकर सत्य से चमक उठी हूँ... देह के अँधेरे में स्वयं के खुबसूरत वजूद को ही भूल बेठी थी... आपकी यादो में पुनः रौशन हो गई हूँ... *मै शरीर नही चलाने वाली प्यारी आत्मा हूँ* इस सत्य से सदा की मुस्करा उठी हूँ..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- आत्म अभिमानी रहने का पुरुषार्थ करना है*

 

_ ➳  एकान्त में बैठी एक दृश्य मैं इमर्ज करती हूँ और इस दृश्य में एक बहुत बड़े दर्पण के सामने स्वयं को निहारते हुए अपने आप से मैं सवाल करती हूँ कि मैं कौन हूँ ! *क्या इन आँखों से जैसा मैं स्वयं को देख रही हूँ मेरा वास्तविक स्वरूप क्या सच मे वैसा ही है! अपने आप से यह सवाल पूछते - पूछते मैं उस दर्पण में फिर से जैसे ही स्वयं को देखती हूँ, दर्पण में एक और दृश्य मुझे दिखाई देता है इस दृश्य में मुझे मेरा मृत शरीर दिखाई दे रहा है जो जमीन पर पड़ा है*। थोड़ी ही देर में कुछ मनुष्य वहाँ आते हैं और उस मृत शरीर को उठा कर ले जाते है और उसका दाह संस्कार कर देते हैं।

 

_ ➳  इस दृश्य को देख मैं मन ही मन विचार करती हूँ कि शरीर के किसी भी अंग में छोटा सा कांटा भी कभी चुभ जाता था तो मुझे कष्ट होता था। लेकिन अभी तो इस शरीर को जलाया जा रहा है फिर भी इसे कोई कष्ट क्यो नही हो रहा! *इसका अर्थ है कि इस शरीर के अंदर कोई शक्ति है और जब तक वो चैतन्य शक्ति शरीर में है तब तक यह शरीर जीवित है और हर दुख - सुख का आभास करता है लेकिन वो चैतन्य शक्ति जैसे ही इस शरीर को छोड़ इससे बाहर निकल जाती है ये शरीर मृत हो जाता है*। फिर किसी भी तरह का कोई एहसास उसे नही होता। अपने हर सवाल का जवाब अब मुझे मिल चुका है।

 

_ ➳  "मैं कौन हूँ" की पहेली सुलझते ही अब मैं उस चैतन्य शक्ति अपने निज स्वरूप को मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से देख रही हूँ जो शरीर रूपी रथ पर विराजमान होकर रथी बन उसे चला रही है। *स्वराज्य अधिकारी बन मन रूपी घोड़े की लगाम को अपने हाथ मे थामते ही मैं अनुभव करती हूँ कि मैं आत्मा रथी अपनी मर्जी से जैसे चाहूँ वैसे इस शरीर रूपी रथ को चला सकती हूँ*। यह अनुभूति मुझे सेकण्ड में देही अभिमानी स्थिति में स्थित कर देती है और इस स्थिति में स्थित होकर मैं स्वयं को सहज ही देह से न्यारा अनुभव करते हुए बड़ी आसानी से देह रूपी रथ का आधार छोड़ इस रथ से बाहर आ जाती हूँ।

 

_ ➳  अपने शरीर रूपी रथ से बाहर आकर अब मैं इस देह और इससे जुड़ी हर चीज को बिल्कुल साक्षी होकर देख रही हूँ जैसे मेरा इनसे कोई सम्बन्ध ही नही। *किसी भी तरह का कोई भी आकर्षण या लगाव अब मुझे इस देह के प्रति अनुभव नही हो रहा, बल्कि एक बहुत ही न्यारी और प्यारी बन्धनमुक्त स्थिति में मैं स्थित हूँ जो पूरी तरह से लाइट है और उमंग उत्साह के पँख लगाकर ऊपर उड़ने के लिए तैयार है*। इस डबल लाइट देही अभिमानी स्थित में स्थित मैं आत्मा ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसे मेरे शिव पिता के  प्यार की मैग्नेटिक पावर मुझे ऊपर अपनी और खींच रही है। *अपने प्यारे पिता के प्रेम की लग्न मे मग्न मैं आत्मा अपने विदेही पिता के समान विदेही बन, देह की दुनिया को छोड़ अब ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ*।

 

_ ➳  परमधाम से अपने ऊपर पड़ रही उनके अविनाशी प्रेम की मीठी - मीठी फुहारों का आनन्द लेती हुई मैं साकार लोक और सूक्ष्म लोक को पार करके, अति शीघ्र पहुँच जाती हूँ अपने शिव परम पिता परमात्मा के पास उनके निराकारी लोक में। *आत्माओं की ऐसी दुनिया, जहां देह और देह की दुनिया का संकल्प मात्र भी नही, ऐसी चैतन्य मणियों की दुनिया मे मैं स्वयं को देख रही हूँ*। चारों और चमकते हुए चैतन्य सितारे और उनके बीच मे अत्यंत तेजोमय एक ज्योतिपुंज जो अपनी सर्वशक्तियों से पूरे परमधाम को प्रकाशित करता हुआ दिखाई दे रहा हैं।

 

_ ➳  उस महाज्योति अपने शिव परम पिता परमात्मा से निकलने वाली सर्वशक्तियों की अनन्त किरणों की मीठी फ़ुहारों का भरपूर आनन्द लेने और उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को शक्तिशाली बनाने के लिए मैं निराकार ज्योति धीरे - धीरे उनके समीप जाती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणो की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ। *अपने प्यारे पिता के सानिध्य में बैठ, उनके प्रेम से, उनके गुणों और उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर करके अब मैं आत्माओं की निराकारी दुनिया से नीचे वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ*।

 

_ ➳  कर्म करने के लिए फिर से अपने शरीर रूपी रथ पर आकर मैं विराजमान हो जाती हूँ किन्तु अब मै सदैव इस स्मृति में रह हर कर्म करती हूँ कि मैं आत्मा इस देह में रथी हूँ। *इस स्मृति को पक्का कर, कर्म करते हुए भी स्वयं को देह से बिल्कुल न्यारी आत्मा अनुभव करते हुए, देही अभिमानी बनने का अभ्यास मैं बार - बार करती रहती हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं सर्व सम्बन्ध और सर्व गुणों की अनुभूति में सम्पन्न बननें वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सम्पूर्ण मूर्त आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *जोश में आना भी मन का रोना है- मैं आत्मा रोने से सदा मुक्त हूँ  ।*

   *मैं आत्मा रोने की फाइल खत्म करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा खुशी स्वरूप हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा ने देखा है कि एक संस्कार या नेचर कहोनेचर तो हर एक की अपनी-अपनी है लेकिन *सर्व का स्नेही और सर्व बातों मेंसम्बन्ध में सफलमन्सा में विजयी और वाणी में मधुरता तब आ सकती है जब इजी नेचर हो।* अलबेली नेचर नहीं। अलबेलापन अलग चीज है। इजी नेचर उसको कहा जाता है - *जैसा समयजैसा व्यक्ति, जैसा सरकमस्टांश उसको परखते हुए अपने को इजी कर देवे। इजी अर्थात् मिलनसार।* टाइट नेचर बहुत टू-मच आफीशियल नहीं, आफीशियल रहना अच्छा है लेकिन टू-मच नहीं और समय पर जब समय ऐसा हैउस समय अगर कोई आफीशियल बन जाता है तो वह गुण के बजाएउनकी विशेषता उस समय नहीं लगती। अपने को मोल्ड कर सकेमिलनसार हो सकेछोटा होबड़ा हो। बड़े से बड़ेपन में चल सकेछोटे से छोटेपन में चल सके। साथियों में साथी बनके चल सकेबड़ों से रिगार्ड से चल सके। इजी मोल्ड कर सकेशरीर भी इजी रखते हैं ना तो जहाँ भी चाहें मुड जाते हैं और टाइट होगा तो मुड नहीं सकेगा। अलबेला भी नहींइजी है तो जहाँ चाहे इजी हो जाए, अलबेला हो जाए। नहीं। *बापदादा ने कहा ना इजी हो जाओ तो इजी हो गयेऐसे नहीं करना। इजी नेचर अर्थात् जैसा समय वैसा अपना स्वरूप बना सके।*

 

✺   *ड्रिल :-  "इजी नेचर से जैसा समय, जैसा व्यक्ति, जैसा सरकमस्टांश वैसा अपना स्वरूप बनाना"*

 

 _ ➳  *कोटो में कोई और कोई में भी कोई मैं पदमापदम सौभाग्यशाली आत्मा... ब्रह्मामुख वंशावली ब्राह्मण आत्मा बन गई...* शुक्रिया अदा करती मैं संगमयुगी आत्मा... बैठी हूँ बाबा के कमरे में... बापदादा का भावपूर्ण आह्वान करती मैं आत्मा ज्योतिपुंज... अपने शरीर के अकालतख्त पर विराजमान हूँ... *देह अभिमान से मुक्त मुझ आत्मा का प्यार भरा आह्वान सुनकर बापदादा आ जाते हैं मेरे समीप...* बाबा का कमरा दिव्य अलौकिक खुशबू से भर जाता हैं... बापदादा का फ़रिश्ता स्वरुप गोल्डन तेजोमय किरणों से प्रकाशित हो रहा हैं...

 

 _ ➳  *बापदादा से आती हुई रंग बिरंगी चमकीली किरणों का फाउंटेन पूरे कमरे में फ़ैल गया हैं...* मैं आत्मा परिपूर्ण होती जा रही हूँ... मुझ आत्मा का स्थूल शरीर भी पवित्र होता जा रहा हैं... मैं आत्मा अपने स्थूल शरीर का त्याग कर फ़रिश्ता स्वरुप धारण करती हूँ... और मैं आत्मा अपने फ़रिश्ते स्वरुप में चल पड़ती हूँ बापदादा के साथ... एक ग्लोब की चोटी पर... *बापदादा के संग मैं आत्मा बैठी हूँ ग्लोब की चोटी पर...* बापदादा एक सीन दिखा रहे हैं... एक बड़ा हॉल हैं जहाँ एक फंक्शन चल रहा हैं... बच्चे... जवान... वृद्ध... सभी खुश खुशहाल नजर आ रहे हैं...

 

 _ ➳  खाना-पीना... ऐश-आराम की कोई कमी नहीं थी... भरपूरता ही भरपूरता थी... *बस कमी थी तो संस्कारों की... न बड़ो का लिहाज रखा जा रहा था और न बच्चों और छोटो से प्यार भरा आचरण था... युवा पीढ़ी अपने ही दैहिक आकर्षणों में उलझी हुई थी...* चारो तरफ वातावरण अस्त-व्यस्त दुराचार से भरा हुआ था... तभी वहाँ पर एक ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी के एक ग्रुप का आगमन होता हैं... *वाइट ड्रेस में... श्री लक्ष्मी श्री नारायण का बैच पहने... हाथों में बापदादा का झंडा लहराए...* द्वार पे खड़े थे... प्रोग्राम के आयोजक से परमिशन लेकर ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारियों ने शिव प्रदर्शनी का आयोजन किया...

 

 _ ➳  और पूरे हॉल में डीप साइलेंस छा जाता हैं... जब ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी का प्रवचन स्टार्ट होता हैं... *भगवान कौन... हम कौन... सारे सृष्टि चक्र का राज... संगमयुग में भगवान के अवतरण को जानकर* सभी उपस्थित अचम्भित हो जाते हैं... न कभी सुना ऐसा गुह्य ज्ञान... सुन कर भाव विभोर हो जाते हैं... *ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी का मिलनसार व्यक्तित्व... संयमपूर्वक वार्तालाप... नजरों में... वाणी में... एक एक बोल में... प्यार भरी मिठास* देख के... सुन के... सभी उपस्थित लोगों का दिल ख़ुशी के हिलोरे ले रहा हैं... और मैं फ़रिश्ता आत्मा यह नजारा देख मन ही मन बाबा को धन्यवाद कहती हूँ... बापदादा से प्रवाहित होता किरणों का झरना उन सभी उपस्थित और ब्रह्माकुमार - ब्रह्माकुमारियों पर प्रवाहित हो रहा हैं और सभी के व्यक्तित्व में निखार आ रहा हैं... *सभी को अपनी भूलों का अहसास होता है... और सभी का व्यवहार  मिलनसार... खुशनुमा बनता जा रहा हैं...*

 

 _ ➳  *बाबा के पवित्र... रूहानी किरणों से सभी आत्माओं की ज्योति जग जाती हैं... और सभी बाबा के बच्चे बन जाते हैं...* ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में राजयोग मेडिटेशन का कोर्स कर बापदादा की श्रीमत पर पूरा पूरा बलिहार जाते हैं... सभी उपस्थित आत्मायें... *सर्व का स्नेही और सर्व बातों मेंसम्बन्ध में सफलमन्सा में विजयी और वाणी में मधुरता लाने में सक्षम हो जाते हैं... इजी नेचर - जैसा समयजैसा व्यक्ति, जैसा सरकमस्टांश उसको परखते हुए अपने को इजी कर देना ही अब हम सभी ब्राह्मण आत्माओं का ईश्वरीय कर्तव्य बन गया हैं...* बाबा से आशीर्वाद लेती मैं आत्मा वापिस अपने स्थूल देह में प्रवेश करती हूँ और अपने लौकिक कार्य में इजी नेचर अर्थात् जैसा समय वैसा अपना स्वरूप अनुभव कर रही हूँ।

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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