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 25 / 12 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *स्वयं को परखा की क्या मैं ऊंचा इम्तेहान पास करने के लायक हूँ ?*

 

➢➢ *आत्मा भाई भिया को देखकर बात की ?*

 

➢➢ *तन की तंदुरस्ती, मन की ख़ुशी और धन की समृधि का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *याद और सेवा का डबल लॉक लगाकर रखा ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *पहला पाठ आत्मिक स्मृति का पक्का करो। आत्मा इन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कर रही है। तो अन्य आत्माओं का भी कर्म देखते हुए यह स्मृति रहेगी कि यह भी आत्मा कर्म कर रही है।* ऐसे अलौकिक दृष्टि, जिसको देखो आत्मा रूप में देखो। *इससे हर एक कर्मेन्द्रिय सतोप्रधान स्वच्छ हो जायेगी।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं वरदानी आत्मा हूँ"*

 

  सब वरदानी आत्मायें हो ना? इस समय विशेष भारत में किसकी याद चल रही है? वरदानियों की। *देवी अर्थात् वरदानी, देवियों को विशेष वरदानी के रूप में याद करते हैं, तो ऐसा महसूस होता है कि हमें याद कर रहें है? अनुभव होता है?* भक्तों की पुकार महसूस होती है कि सिर्फ नालेज के आधार से जानते हो?

 

✧  एक है जानना दूसरा है अनुभव होना। तो अनुभव होता है? वरदानी मूर्त बनने के लिए विशेषता कौन सी चाहिए? आप सब वरदानी हो ना। तो वरदानी की विशेषता क्या है? *वे सदा बाप के समान और समीप रहने वाले होगें। अगर कभी बाप समान और कभी बाप समान नहीं लेकिन स्वयं के पुरूषाथी तो वरदानी नहीं बन सकते।*

 

✧  क्योंकि बाप पुरूषार्थ नहीं करता लेकिन सदा सम्पन्न स्वरूप में है तो अगर बहुत पुरूषार्थ करते हैं तो पुरूषार्थी छोटे बच्चे हैं, बाप समान नहीं। *समान अर्थात् सम्पन्न। ऐसे सदा समान रहने वाले सदा वरदानी होगें।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  (ड्रिल बहुत अच्छी लग रही थी) यह रोज हर एक को करनी चाहिए। ऐसे नहीं हम बिजी है। बीच में समय प्रति समय एक सेकण्ड चाहे कोई बैठा भी हो, बात भी कर रहा हो, लेकिन एक सेकण्ड उनको भी ड़िल करा सकते हैं और स्वयं भी अभ्यास कर सकते हैं। कोई मुश्किल नहीं है। *दो-चार सेकण्ड भी निकालना चाहिए इससे बहुत मदद मिलगी।*

 

✧   नहीं तो क्या होता है, सारा दिन बुद्धि चलती रहती है ना, तो विदेही बनने में टाइम लग जाता है और बीच-बीच में अभ्यास होगा तो जब चाहे उसी समय हो जायेंगे क्योंकि अंत में सब अचानक होना है। तो *अचानक के पेपर में यह विदेही-पन का अभ्यास वहुत आवश्यक है।*

 

✧  ऐसे नहीं बात पूरी हो जाए और विदेही बनने का पुरुषार्थ की करते रहें। तो सूर्यवंशी तो नहीं हुए ना! इसलिए *जितना जो बिजी है, उतना ही उसको बीच-बीच में यह अभ्यास करना जरूरी है।* फिर सेवा में जो कभी-कभी थकावट होती है, कभी कुछ-न-कुछ आपस में हलचल हो जाती है, वह नहीं होगा। अभ्यासी होंगे ना।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  सारे दिन में सूक्ष्म वतनवासी कितना समय होकर रहती हो कि स्थूल सेवा ज़्यादा है? आप लोग कितना भी बिज़ रही, बाप तो अपना कार्य करा ही लेते हैं। अपने सम्पूर्ण आकार का अनुभव किया है? *जैसे साकार आकार हो गये, आप सबका भी सम्पूर्ण आकारी स्वरूप है।* जो नम्बरवार हरेक साकार-आकार बन जायेंगे। आकार बन करके सेवा करना अच्छा है या साकार शरीर परिवर्तन कर सेवा करना अच्छा है? *एडवान्स पार्टी तो साकार शरीर परिवर्तन कर सेवा कर रही है।* लेकिन कोई-कोई का पार्ट अन्त तक साकारी और आकारी रूप द्वारा भी चलता है। आपका क्या पार्ट है? किसका एडवान्स पार्टी का पार्ट है, किसका अन्त:वाहक शरीर द्वारा सेवा का पार्ट है। दोनों पार्ट का अपना-अपना महत्व है। फस्र्ट, सेकेण्ड की बात नहीं। वैराइटी पार्ट का महत्व है। एडवान्स पार्टी का भी कार्य कोई कम नहीं है। सुनाया ना वह ज़ोर-शोर से अपने प्लैन बना रहे हैं। वहाँ भी नामीग्रामी हैं।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप को याद करना"*

 

_ ➳  अमृतवेला का ये सुहानी पल रात के अँधेरे को ख़तम कर सुबह की रोशनी की ओर रुख कर रहा है... वैसे ही कलियुगी अंधियारे को चीरते हुए ये संगमयुग... सतयुग की ओर ले जा रहा है... *प्यारे बाबा जब से आयें हैं, संगम की हर घडी ही अमृतवेला बन गई है... जो सदा सुखों की ओर ले जाती है... हर पल ही कितना सुहावना हो गया है... इतनी पावन, सुन्दर वेला में मैं आत्मा प्यारे बाबा से प्यारी-प्यारी बातें करने पहुँच जाती हूँ पावन वतन में...*

 

  *मेरे मन मंदिर में अपनी मूरत बसाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... कितने मीठे खिले से महकते फूल से धरा पर उतरे थे पर खेलते खेलते काले पतित हो गए... *अब इस देह की दुनिया से निकल ईश्वर पिता की सोने सी यादो में स्वयं को उसी दिव्यता से दमकाओ क्योकि अब सुनहरी सुखो भरी दुनिया में चलना है...”*

 

_ ➳  *निराकारी बाबा की यादों में स्वर्णिम सुखों को अपने नाम करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अपने खोये रूप को सौंदर्य को आपकी यादो में पुनः पा रही हूँ... *कंचन काया और कंचन महल की अधिकारी बन रही हूँ और इस दुनिया से उपराम हो रही हूँ...”*

 

  *अपने रूहानी नैनों से पावनता की खुशबू फैलाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वर पिता के साथ का समय बहुत कीमती है... यादो में रहकर अपने सच्चे दमकते स्वरूप को पाकर सुखो की दुनिया में मुस्कराओ...* यादो में अपनी दिव्यता और शक्तियो को फिर से पाकर सुंदर तन और मन से सुन्दरतम दुनिया के रहवासी बनो...

 

_ ➳  *मैं आत्मा प्रभु की यादों की धारा में बहकर सुन्दर कमल बन खिलते हुए कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा आपकी मीठी यादो में अपनी खोयी सुंदरता को पाकर मुस्करा रही हूँ...* दिव्य गुणो को धारण कर पवित्रता के श्रृंगार से सजकर देवताई स्वरूप में देवताओ की दुनिया घूम रही हूँ...

 

  *रूहानी यादों में मेरे मन के चमन को खिलाकर मेरे रूहानी बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *सिर्फ बाबा की यादे ही एकमात्र उपाय है जो इस पतित तन और मन को खुबसूरत और पवित्र बना सकता है... तो इस समय को यादो में भर दो... अपने पुरुषार्थ को तीव्र कर स्वयं को निखारने में पूरी तन्मयता से जुट जाओ...* क्योकि अब पवित्र दुनिया में चलने और सुख लेने का समय हो गया है...

 

_ ➳  *एक की लगन में मगन होकर जीवन में मिठास भरकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा जनमो के कालेपन को आपकी मीठी यादो में धो रही हूँ...* वही सुंदर देवताई स्वरूप पा रही हूँ और सुख और शांति की दुनिया की अधिकारी होकर मीठे सुखो में खिलखिला रही हूँ... *यादो में पावन बनकर खिल उठी हूँ...*

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- आत्मा भाई - भाई को देखकर बात करनी है*"

 

 _ ➳  परम पिता परमात्मा की संतान हम सभी आत्मा भाई - भाई हैं जो इस सृष्टि रंगमंच पर अपना - अपना पार्ट बजाने के लिए अवतरित हुए है। इस सृष्टि रूपी नाटक में हर आत्मा शरीर रूपी वस्त्र धारण कर अपना पार्ट बजा रही है। एक का पार्ट ना मिले दूसरे से। *इस वन्डरफुल सृष्टि ड्रामा के गुह्य राज को जान, सृष्टि चक्र के हर सीन को साक्षी होकर देखने का पुरुषार्थ करती हुई मैं आत्मा अपने ब्राह्मण स्वरूप की स्मृति में बैठ अब अपने सँगमयुगी ब्राह्मण जीवन के कर्त्तव्यों के बारे में विचार करती हूँ कि मेरा यह ब्राह्मण जीवन जो मेरे पिता परमात्मा की देन है, को मुझे परमात्म श्रीमत अनुसार सफल कर, अपने पिता के स्नेह का रिटर्न देना है*।

 

 _ ➳  स्वयं से यह दृढ़ प्रतिज्ञा कर, अपने पिता के इस फरमान को कि *"अपने को आत्मा समझ आत्मा भाई - भाई को ज्ञान देना है" को स्मृति में लाकर, आत्मिक स्मृति के पाठ को पक्का करने और स्वयं को परमात्म बल से भरपूर करने के लिए मैं अशरीरी स्थिति में स्थित होती हूँ*। देह से न्यारे अपने निराकार ज्योति स्वरूप में स्थित हो कर अपने मन बुद्धि को अपने निराकार महाज्योति शिव पिता परमात्मा पर एकाग्र करते ही उनसे आ रहे परमात्म करेंट को मैं अपने अंदर प्रवाहित होते हुए स्पष्ट अनुभव करती हूँ।

 

 _ ➳  जैसे मोबाइल को चार्जर के साथ लगा कर बिजली का स्विच ऑन करते ही मोबाईल की बैटरी चार्ज होने लगती है ऐसे ही स्मृति के स्विच को ऑन करते ही परमात्म शक्तियों के शक्तिशाली करेन्ट से मैं भी स्वयं को चार्ज होता हुआ स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। *मुझे अनुभव हो रहा है कि परमात्म बल पा कर मुझ आत्मा की सोई हुआ शक्तियाँ पुनः जागृत हो रही हैं। मेरे शिव पिता परमात्मा से आ रहा सर्वशक्तियों का करेन्ट मैगनेट की भांति मुझे ऊपर अपनी ओर खींच रहा हैं*। परमात्म शक्तियों की मैजिकल पावर से मैं विदेही बन अब ऊपर की और उड़ रही हूँ। सेकेण्ड में आकाश और सूक्ष्म लोक को पार करके मैं पहुँच गई अपने शिव पिता परमात्मा की अनन्त शक्तियों की किरणों के बिल्कुल नीचे उनके पास उनके निजधाम में।

 

 _ ➳  अपने इस परमधाम घर मे अब मैं सर्वशक्तियों के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के बिल्कुल समीप हूँ और उनसे आ रही सर्वशक्तियों की शक्तिशाली किरणों को स्वयं में समा कर असीम ऊर्जावान बन रही हूँ। *अपने प्यारे, मीठे बाबा के सर्वगुणों, सर्वशक्तियों और सर्व खजानों को स्वयं में भर कर, अब मैं ईश्वरीय सेवा अर्थ वापिस साकार लोक की ओर आ रही हूँ*। साकार लोक में अपने साकार शरीर मे प्रवेश कर, अपने ब्राह्मण स्वरुप में स्थित हो कर, आत्मिक स्मृति में रह कर अब मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाले सभी आत्मा भाइयों को परमात्म ज्ञान देकर, उनका कल्याण कर रही हूँ।

 

 _ ➳  जिस आत्मिक दृष्टि से बाबा अपने हर बच्चे को देखते है उसी आत्मिक स्मृति में स्थित होकर, सबको आत्मा भाई - भाई की दृष्टि से देखने के मूल मंत्र को अपने जीवन मे धारण कर, अपनी दृष्टि वृति को आत्मिक बनाकर अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सभी आत्माओं को अब मैं रूहानी स्नेह दे कर उन्हें सुख और शांति की अनुभूति करवा रही हूँ। *अपने शिव पिता परमात्मा द्वारा मिली हर ईश्वरीय सेवा को आत्मिक स्मृति में और अपने शिव पिता परमात्मा की याद में रह कर करने से हर सेवा में मैं सहज ही सफलता प्राप्त कर रही हूँ*। स्वयं को आत्मा समझ अपने सभी आत्मा भाइयों को वाणी द्वारा परमात्म सन्देश देने और उन्हें परमात्म प्रेम का अनुभव करवा कर उन्हें सच्चा ईश्वरीय मार्ग दिखाने की रूहानी सेवा अब मैं निरन्तर कर रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं तन की तंदुरुस्ती, मन की खुशी और धन की समृद्धि द्वारा श्रेष्ठ आत्मा हूँ।*

   *मैं भाग्यवान आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा याद और सेवा दोनों का बैलेंस रखती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा याद और सेवा का डबल लॉक लगाती  हूँ  ।*

   *मैं सहज योगी, सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बस खुश रहनाकभी भी मूड आफ नहीं करना। सदा एकरस खुशनुम: चेहरा हो। जो भी देखे उसे रूहानी खुशी की अनुभूति हो। यह सेवा का साधन है।  *चेहरे पर रूहानी खुशी हो, साधारण खुशी नहींरूहानी खुशी। फेस चेंज नहीं हो। जैसे एकरस स्थितिवैसे ही एकरस चेहरा हो।* हो सकता हैएकरस मूड होहो सकता है या होना ही हैहोगा ना अभीकभी भी कोई भी अचानक आपका फोटो निकाले तो और कोई फोटो नहीं आवेरूहानी मुस्कराहट का फोटो हो। *चाहे कामकाज भी कर रहे होसर्विस का बहुत टेन्शन हो लेकिन चेहरे पर खुशी हो। फिर आपको ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी। एक घण्टा बोलने के बजाए अगर आपका रूहानी मुस्कान का चेहरा होगा तो वह एक घण्टे के बोलने की सेवा एक सेकण्ड में करेगा क्योंकि प्रत्यक्ष को प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं होती है।* जो भी मिलेजैसा भी मिले, गाली देने वाला मिले, इनसल्ट करने वाला मिले, इज्जत न रखने वाला मिले, मान-शान न देने वाला मिले, लेकिन आपका एकरस चेहरा, रूहानी मुस्कान। हो सकता है? कुमार हो सकता हैपाण्डव हो सकता है? और पुरुषार्थ से बच जायेंगे। मेहनत नहीं लगेगी। मुझे रूहानी मुस्कान ही मुस्कराना है। कुछ भी हो जाएमुझे अपनी मुस्कान छोड़नी नहीं हैहो सकता हैसोच रहे हैं? (करके दिखायेंगे) बहुत अच्छामुबारक हो!

 

✺   *ड्रिल :-  "सदा रूहानी मुस्कान ही मुस्कराना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा अपनी साकारी देह से उपराम हो, स्वयं को मस्तक के बीचोंबीच एक चमकता हुआ सितारा देख रही हूँ... टिमटिमाता मैं नन्हा सा सितारा इस देह में चैतन्य शक्ति हूँ जो इस स्थूल देह को चलाती हूँ... *मैं चैतन्य शक्ति आत्मा इस देह को छोड़, इस साकारी दुनिया को भी पीछे छोड़ ऊपर की ओर उड़ जाती हूँ... और सूक्ष्म वतन में अपने बाबा के पास आकर बैठ जाती हूँ...*

 

 _ ➳  आज मैं आत्मा बाबा के सम्मुख बैठ कर अपने ब्राह्मण जीवन की प्राप्तियों को याद कर रही हूँ... जब से बाबा ने मुझे अपना बच्चा बनाया तब से मैं आत्मा अपने हर दुख को भूल खुशियों के झूले में झूल रही हूँ... हर पल मीठे बाबा की छत्रछाया में रह मैं आत्मा साक्षी हो कर हर सीन को देख रही हूँ... *कैसी भी परिस्थिति हो मैं आत्मा बाबा के ये महावाक्य याद रखती हूँ कि बच्चे सदा खुश रहना, कभी भी मूड ऑफ मत करना...* मैं आत्मा बाबा की इस बात को बुद्धि में बिठाकर सदा खुश रहती हूँ... कभी किसी बात से मेरा मूड थोड़ा ठीक नहीं भी होता तो बाबा ये महावाक्य मुझमें नया उमंग उत्साह भर देते हैं...

 

 _ ➳  मेरा खुशनुमा चेहरा अन्य आत्माओ के चेहरे पर भी ख़ुशी ले आता है... *ये साधारण ख़ुशी नहीं रूहानी ख़ुशी है जो मेरे बाबा से इस ब्राह्मण जीवन मे मुझे सौगात मिली है...* अपने चेहरे पर रूहानी मुस्कान के साथ मैं आत्मा बिना एक भी शब्द कहे सहज रूप से सभी के चेहरों पर भी मुस्कान ले आती हूँ... 

 

 _ ➳  बाबा ने हम बच्चों से कहा है कि कैसी भी परिस्थिति हो पर स्वस्थिति हमेशा एक रस हो... परिस्थिति ऊपर नीचे होने से स्वस्थिति ऊपर नीचे ना हो... मैं आत्मा बाबा का फरमानबरदार बच्चा बाबा की इस बात को मन में बिठा जीवन की हर उलझन को हँसते हँसते सुलझा रही हूँ... *कार्य व्यवहार में आते या लौकिक संबंधों को निभाते हुए कोई पेपर भी आता है तो भी मेरे चेहरे से रूहानी खुशी गायब नहीं होती... मैं आत्मा अपने चेहरे की खुशी और मुस्कान से सेवा करती हूँ... मेरी रूहानी मुस्कान देख अन्य आत्माएं भी अपने दुखों को भूल जाती हैं...*

 

 _ ➳  कितना प्यार दिया मेरे बाबा ने मुझे जो अब किसी संबंध से प्यार मिले न मिले तो भी मैं आत्मा सदा खुश हूँ... *कोई मान दे या ना दे, कोई इंसल्ट करे या अपमान करे तो भी मुझ आत्मा के चेहरे से रूहानी मुस्कान कभी गायब नहीं होती...* बाबा के प्यार में खोयी मैं आत्मा मेहनत से छूटती जा रही  हूँ... अब मुझे पुरूषार्थ में  मेहनत नहीं करनी पड़ती... मैं सहज पुरुषार्थी बनती जा रही हूँ... अपने बाबा का दिल से शुक्रिया कर रही हूँ और वापिस अपने मस्तक के मध्य आकर बैठ जाती हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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