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❍ 31 / 12 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *एक बाप की ही अव्यभिचारी याद में रहे ?*
➢➢ *ऐसा कोई भी कर्म तो नहीं किया, जो बाप की ग्लानी हो ?*
➢➢ *अपनी विशाल बुधी रुपी तिजोरी द्वारा ज्ञान रत्नों का दान किया ?*
➢➢ *संकल्पों की गतिको धैर्यवत बनाया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ एक सेकेण्ड में चोले से अलग तभी हो सकोगें जब किसी भी संस्कारों की टाइटनेस नहीं होगी। *जैसे कोई भी चीज अगर चिपकी हुई होती है तो उनको खोलना मुश्किल होता है। हल्के होने से सहज ही अलग हो जाते हैं। वैसे ही अगर अपने संस्कारों में जरा भी इजीपन नहीं होगा तो फिर अशरीरीपन का अनुभव कर नहीं सकोगें इसलिए इजी और एलर्ट रहो।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं श्रेष्ठ-ते-श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ सभी अपने को बाप के स्नेही और सहयोगी श्रेष्ठ आत्मायें समझते हो ना? सदा यह नशा रहता है कि हम श्रेष्ठ-ते-श्रेष्ठ आत्मायें हैं क्योंकि बाप के साथ पार्ट बजाने वाली हैं। सारे चक्र के अन्दर इस समय बाप के साथ पार्ट बजाने के निमित बने हो। ऊंच-ते ऊंच पार्ट बजाने के निमित बने हो। ऊंचे-ते-ऊंचे भगवान के साथ पार्ट बजाने वाले कितनी ऊंची आत्मायें हो गई। लौकिक में भी कोई पद वाले के साथ काम करते हैं, उनको भी कितना नशा रहता है! प्राइम मिनिस्टर के प्राइवेट सेक्रेटरी को भी कितना नशा रहता। तो आप किसके साथ हो! *ऊंचे-ते-ऊंचे बाप के साथ और फिर उसमें भी विशेषता यह है कि एक कल्प के लिए नहीं, अनेक कल्प यह पार्ट बजाया है और सदा बजाते ही रहेंगे। बदली नहीं हो सकता। ऐसे नशे में रहो तो सदा निर्विग्न रहेंगे।*
〰✧ कोई विघ्न तो नहीं आता है ना? वायुमण्डल का, वायब्रेयशन का, संग का, कोई विघ्न तो नहीं है? कमलपुष्प के समान हो? कमलपुष्प समान न्यारे और प्यारा। बाप का कितना प्यारा बना हूँ, उसका हिसाब न्यारेपन से लगा सकते हो। अगर थोड़ा-सा न्यारा है, बाकी फंस जाते हैं तो प्यारे भी इतने होंगे। *जो सदा बाप के प्यारे हैं उनकी निशानी है - 'स्वत: याद'। प्यारी चीज स्वत: सदा याद आती है ना। तो यह कल्प-कल्प की प्रिय चीज है। एक बार बाप के नहीं बने हो, कल्प-कल्प बने हो। तो ऐसी प्रिय वस्तु को कैसे भूल सकते।* भूलते तब हो जब बाप से भी अधिक कोई व्यक्ति या वस्तु को प्रिय समझने लगते हो। अगर सदा बाप को प्रिय समझते तो भूल नहीं सकते।
〰✧ यह नहीं सोचना पड़ेगा कि याद कैसे करें, लेकिन भूले कैसे-यह आश्चर्य लगेगा। तो नाम अधर कुमार है लेकिन हो तो ब्र.कु.। ब्रहमाकुमार सदा नशे और खुशी मे रहेंगे। तो सभी निश्चय बुद्धि विजयी हो ना? अधरकुमार तो अनुभवी कुमार हैं। सब अनुभव कर चुके। *अनुभवी कभी भी धोखा नहीं खाते। पास्ट के भी अनुभवी और वर्तमान के भी अनुभवी।* एक-एक अधरकुमार अपने अनुभवों द्वारा अनेंकों का कल्याण कर सकते हैं। यह है विश्व कल्याणकारी ग्रुप।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ आज बापदादा ने देखा कि वर्तमान समय के अनुसार *अपने ऊपर, हर कर्मेन्द्रियों के ऊपर अर्थात स्वयं के प्रति जो कन्ट्रोलिंग पॉवर होनी चाहिए वह कम है, वह और ज्यादा चाहिए।* बापदादा बच्चों की रूहरिहान सुन मुस्करा रहे थे, बच्चे कहते हैं कि पॉवरफुल याद के चार घण्टे होते नहीं है।
〰✧ बापदादा ने आठ घण्टे से 4 घण्टा किया और बच्चे कहते हैं दो घण्टा ठीक है। तो बताओ कन्ट्रोलिंग पॉवर हुई? और *अभी से अगर यह अभ्यास नहीं होगा तो समय पर पास विद ऑनर, राज्य अधिकारी कैसे बन सकेंगे!* बनना तो है ना? बच्चे हँसते हैं।
〰✧ आज बापदादा ने बच्चों की बातें बहुत सुनी हैं। बापदादा को हँसाते भी है, कहते हैं ट्रैफिक कन्ट्रोल 3 मिनट नहीं होता, शरीर का कन्ट्रोल हो जाता है। खडे हो जाते है, नाम है मन के कन्ट्रोल का लेकिन मन का कन्ट्रोल कभी होता, कभी नहीं भी होता। कारण क्या है? *कन्ट्रोलिंग पॉवर की कमी। इसे अभी और बढ़ाना है।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *सदैव सवेरे उठते ही अपने फ़रिश्ते स्वरूप की स्मृति में रहो और खुशी में नाचते रहो तो कोई भी बात सामने आयेगी उसे खुशी-खुशी से क्रास कर लेंगे।* जैसे दिखाते हैं देवियों ने असुरों पर डॉस विया। तो फ़रिश्ते स्वरूप की स्थिति में रहने से आसुरी बातों पर खुशी की डाँस करते रहेंगे। फ़रिश्ते बन फ़रिश्तों की दुनिया में चले जायेंगे। फ़रिश्तों की दुनिया सदा स्मृति में रहेगी। दिखाई पड़ने वाले सब अच्छी सेवा कर रहे हो लेकिन अभी और भी सेवा में, मनसा सेवा पॉवरफुल कैसे हो, इसका विशेष प्लैन बनाओ। *वाचा के साथ-साथ मनसा सेवा भी बहुत दूर तक कार्य कर सकती है।* ऐसे अनुभव होगा जैसे आजकल फ़्लाईग सॉसर देखते हैं वैसे आप सबका फ़रिश्ता स्वरूप चारों ओर देखने में आयेगा और अवाज़ निकलेगा कि यह कौन हैं जो चक्र लगाते हैं। इस पर भी रिसर्च करेंगे। लेकिन *आप सबका साक्षात्कार ऊपर से नीचे आते ही हो जायेगा और समझेंगे यह वही ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ हैं जो फ़रिश्ते रूप में साक्षात्कार करा रही हैं।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सबको ईश्वर का बनाकर बेहद का वर्सा दिलाना"*
➳ _ ➳ *शिवबाबा परमधाम से आकर, मेरे दामन में सुखों के... खुशियों के फूल बिखेरेंगे... मुझे अपना बनाकर... इस कदर मेरा ख्याल रखेंगे... अपनी श्रीमत देकर, पुरानी दुनिया के दुःख भरे जंजाल से निकाल... सुखों की बाड़ सजाकर... मुझे खिलता हुआ रूहानी गुलाब सा महकाएँगे...* ऐसा तो मैने कभी सोचा भी न था... मैं तो इस सांसारिक दुनिया के चक्कर में फंसकर उन्हें भूल गयी थी... लेकिन उन्होंने सदा मेरा ध्यान रखा... बस इस मीठे चिंतन ने आँखों को भिगो दिया... और भीगी पलकें लिए प्यार के सागर बाबा को निहारने मैं आत्मा... वतन में उड़ चली...
❉ *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को उज्ज्वल भविष्य का आधार श्रीमत को समझाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सदा यह याद रखो कि *तुम बच्चे ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा से स्वर्ग की बादशाही पाने के लिये राजयोग सीख रहे हो... शिवबाबा तुमको जो समझाते हैं... वह फिर तुम्हें औरों को समझाना है...* जैसे तुम निरन्तर एक बाप की याद में रह... हर कर्म करते हो... वैसे ही सभी आत्माओं को बाप का परिचय दे... इस संगमयुग के महत्व को समझाओ... उन्हे भी सतयुगी वर्से का अधिकारी बनाओ..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा प्यारे बाबा के सच्चे प्यार में सुख स्वरूप आत्मा बनकर कहती हूँ :-* "मेरे मीठे मीठे अविनाशी बाबा... *मुझे इस जीवन में आप... अविनाशी साजन के रूप में... प्रेम करने का श्रेष्ठ अवसर मिला... खुद भगवान ने आकर मुझे अपनी प्रियतमा बनाया... वाह!! यह तो मेरा परम् सौभाग्य है... जो मुझे अविनाशी साजन मिला है...* मैं आप द्वारा सिखाये राजयोग का अभ्यास... आदि-मध्य-अंत का ज्ञान... सभी आत्माओं को बता रही हूँ..."
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को विश्व कल्याणकारी की भावना से ओतप्रोत बनाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता को पाकर, जिन सच्ची खुशियों को, मीठे सुखों को, आप बच्चों ने पाया है... इन मीठी खुशियों से हर दिल आंगन को भर आओ... सबके कौड़ी जैसे जीवन को हीरे तुल्य बनाने की कला सिखा दो... *सबके जीवन में सुखों की बहारों को खिलाने वाले... सदा के सुखदाई बन, मीठे बाबा के दिल में मुस्कराओ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा प्यारे बाबा की अमूल्य शिक्षाओं को अपने दिल में गहरे समाकर कहती हूँ :-* "मीठे बाबा... मैं आत्मा आपके मीठे प्यार में, असीम सुखों की अनुभूतियों से भरकर... *आपसे प्राप्त वर्से के अनुभव की दौलत को हर दिल पर... दिल खोलकर... लुटा रही हूँ...* अपने प्यारे बाबा का परिचय... हर दिल को देकर... सबको आप समान खुशियों की अधिकारी बना रही हूँ..."
❉ *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा में श्रेष्ठ संस्कारो को पक्का कराते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे राजदुलारे बच्चे... *शिवपिता से जो आपने... अपने आत्मिक सत्य को जाना है... उस परम सत्य को सदा स्मृति में रखना... अर्थात स्मृति स्वरूप बन सदा ईश्वरीय नशे में रह हर आत्मा को इस परम् सत्य से रूबरू करवाना...* तो तुम्हारा यह जीवन सहज ही सफल हो जायेगा..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ईश्वरीय यादों के खजानों से सम्पन्न होकर, मीठे बाबा से कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा... आपने मुझ आत्मा के जीवन में आकर, मुझ आत्मा को विश्व कल्याण की सुंदर भावना से भर दिया है... *मैं आत्मा हर पल सबको सुख देने की भावना दिल में लिये हुए हूँ... सबको मीठे बाबा से मिलवाकर, सबके जीवन में आनंद और खुशियों के फूल खिला रही हूँ...* बेहद के पिता का परिचय देकर... सबके जीवन को सुख भरी मुस्कान से सजा रही हूँ... *मीठे बाबा को अपनी मीठी भावनायें सुनाकर मैं आत्मा... अपने कर्म क्षेत्र पर आ गयी..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- एक की ही अव्यभिचारी याद में रहना है*"
➳ _ ➳ अपनी सम्पूर्ण सतोप्रधान स्टेज को स्मृति में लाते ही मैं आत्मा स्वयं को अपने अनादि स्वरूप में परमधाम में देख रही हूँ। यहां मैं अपनी सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था में अपने शिव पिता के सम्मुख हूँ। *सातों गुणों और सर्वशक्तियों से मैं आत्मा सम्पन्न हूँ। हर प्रकार के कर्म के बंधन से मुक्त हूँ*। अपनी इसी अशरीरी स्थिति में अपने स्वीट साइलेन्स होम परमधाम को छोड़, साकारी लोक में आ कर, शरीर धारण कर इस सृष्टि रूपी कर्म क्षेत्र पर कर्म करने के लिए मैं अवतरित होती हूँ।
➳ _ ➳ एक - एक करके मुझे अपनी सारी अवस्थाओं की स्मृति आ रही है। मैं देख रही हूँ स्वयं को पहले - पहले नई सतोप्रधान दुनिया सतयुग में। यहां मैं आत्मा सम्पूर्ण सतोप्रधान हूँ। *मेरा निर्विकारी सम्पूर्ण देवताई स्वरूप बहुत ही आकर्षणमय है। धीरे - धीरे त्रेता युग मे मैं आत्मा सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था से सतो में आ गई इसलिए मुझ आत्मा की आकर्षण शक्ति में थोड़ी सी गिरावट आ गई*। मुझ आत्मा की चमक थोड़ी फीकी पड़ गई। द्वापर युग में आ कर, विकारों की प्रवेशता ने मुझ आत्मा को रजो अवस्था मे पहुंचा दिया। यहां आ कर मुझ आत्मा की चमक बिल्कुल ही फीकी पड़ गई। कलयुग तक आते - आते मैं आत्मा तमो और कलयुग अंत तक आते - आते बिल्कुल ही तमोप्रधान हो गई।
➳ _ ➳ सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था मे सोने के समान चमकने वाली मैं आत्मा तमोप्रधान हो जाने से लोहे के समान काली हो गई। किन्तु अब संगमयुग पर मेरे शिव पिता परमात्मा ने आ कर ज्ञान और योग सिखलाकर मुझे तमोप्रधान से दोबारा सतोप्रधान बनने का सहज उपाय बता दिया। *अब मैं जान गई हूँ कि मेरे शिव पिता परमात्मा की अव्यभिचारी याद ही मुझे तमोप्रधान से सतोप्रधान बना सकती है। इसलिए आत्मा के ऊपर चड़ी विकारों की कट को उतारने और स्वयं को सतोप्रधान बनाने के लिए मैं अपने शिव पिता परमात्मा की अव्यभिचारी याद में अपने मन बुद्धि को एकाग्र कर, अशरीरी हो कर बैठ जाती हूँ* और अगले ही पल इस नश्वर देह का त्याग कर निराकारी ज्योति बिंदु आत्मा बन उड़ चलती हूँ अपने शिव पिता परमात्मा के पास।
➳ _ ➳ अब मैं देख रही हूं स्वयं को परमधाम में अपने निराकार शिव पिता परमात्मा के बिल्कुल पास। यहां मैं अपने प्यारे, मीठे शिव बाबा से आ रही सातों गुणों की सतरंगी किरणों और सर्वशक्तियों को स्वयं में भरपूर कर रही हूँ। *साथ ही साथ योग अग्नि में अपने विकर्मों को भी दग्ध कर रही हूं। बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की ज्वाला स्वरूप किरणें जैसे - जैसे मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं वैसे - वैसे मुझ आत्मा पर चढ़ी विकारों की कट जल कर भस्म हो रही है और मेरा स्वरूप फिर से सच्चे सोने के समान चमकदार हो रहा है*। विकारों की खाद निकल रही है और मैं आत्मा तमोप्रधान से दोबारा अपनी सतोप्रधान अवस्था को प्राप्त कर रही हूँ।
➳ _ ➳ स्वयं को योग अग्नि में तपाकर, रीयल गोल्ड समान चमकदार बन कर अब मै आत्मा वापिस साकारी लोक में लौट रही हूँ और अपने साकारी तन में आ कर अब मैं *ब्राह्मण स्वरुप में स्थित हो कर एक बाप की अव्यभिचारी याद में रह, स्वयं को सतोप्रधान बनाने का पुरुषार्थ कर रही हूँ*। पिछले अनेक जन्मों के आसुरी स्वभाव संस्कार जो आत्मा को तमोप्रधान बना रहे थे वे सभी आसुरी स्वभाव संस्कार बाबा की अव्यभिचारी याद में रहने से परिवर्तन हो रहें हैं। क्योकि *बाबा की याद मेरे अंदर बल रही है जिससे पुराने स्वभाव संस्कारों को बदलना सहज हो रहा है*।
➳ _ ➳ इस बात को अब मैं सदैव स्मृति में रखती हूँ कि मैं आत्मा जिस सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था मे आई थी अब उसी सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था मे मुझे वापिस अपने धाम लौटना है। *इसलिए अब केवल एक बाप की अव्यभिचारी याद में ही मुझे रहना है क्योंकि मेरे शिव पिता परमात्मा की अव्यभिचारी याद ही मुझे उसी सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था तक ले जाएगी*। इसी स्मृति में निरन्तर रह कर अब मैं आत्मा किसी भी देहधारी के नाम रूप में ना फंस कर, केवल पतित पावन अपने परम पिता परमात्मा की अव्यभिचारी याद में रह स्वयं को सतोप्रधान बना रही हूं।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं अपनी विशाल बुद्धि रूपी तिजोरी द्वारा ज्ञान रत्नों का दान करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं महादानी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा शक्ति स्वरूप स्थिति का अनुभव करती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा संकल्पों की गति को धैर्यवत बनाती हूँ ।*
✺ *मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *अभी तक कई बच्चों को खिलौनों से खेलना बहुत अच्छा लगता है। छोटी-छोटी बातों के खिलौने से खेलना, छोटी बात को अपनाना, यह समय गँवाते हैं। यह साइडसीन्स हैं। भिन्न-भिन्न संस्कार की बातें वा चलन यह सम्पूर्ण मंजिल के बीच में साइडसीन्स हैं।* इसमें रुकना अर्थात् सोचना, प्रभाव में आना, समय गँवाना, रुचि से सुनना, सुनाना, वायुमण्डल बनाना... यह है रुकना, इससे सम्पूर्णता की मंजिल से दूर हो जाते हैं। मेहनत बहुत, चाहना बहुत, 'बाप समान बनना ही है', शुभ संकल्प, शुभ इच्छा है लेकिन मेहनत करते भी रूकावट आ जाती है। दो कान हैं, दो आँखें हैं, मुख है तो देखने में भी आता, सुनने में भी आता, बोलने में भी आता, लेकिन बाप का बहुत पुराना स्लोगन सदा याद रखो - ' *देखते हुए नहीं देखो, सुनते हुए नहीं सुनो, सुनते हुए नहीं सोचो, सुनते हुए अन्दर नहीं समाओ, फैलाओ नहीं'।*
➳ _ ➳ यह पुराना स्लोगन याद रखना जरूरी है क्योंकि दिन-प्रितदिन जो भी सभी के जैसे पुराने शरीर के हिसाब चुक्तू हो रहे हैं, *ऐसे ही पुराने संस्कार भी, पुरानी बीमारियाँ भी सबकी निकलके खत्म होनी है, इसीलिए घबराओ नहीं कि अभी तो पता नहीं और ही बातें बढ़ रही हैं, पहले तो थी नहीं। जो नहीं थी, वह भी अभी निकल रही हैं, निकलनी हैं।*
➳ _ ➳ *आपके समाने की शक्ति, सहन करने की शक्ति, समेटने की शक्ति, निर्णय करने की शक्ति का पेपर है।* क्या 10 साल पहले वाले पेपर आयेंगे क्या? बी.ए. के क्लास का पेपर, एम.ए. के क्लास में आयेगा क्या? इसलिए घबराओ नहीं, क्या हो रहा है। यह हो रहा है, यह हो रहा है... खेल देखो। पेपर तो पास हो जाओ, पास-विद-आनर हो जाओ। *बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि पास होने का सबसे सहज साधन है, बापदादा के पास रहो, जो आपका काम का नजारा नहीं है, उसको पास होने दो, पास रहो, पास करो, पास हो जाओ।*
✺ *ड्रिल :- "बापदादा के पास रहकर साइड़-सीन्स को पास होते देख पास-विद-आनर होने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *सवेरे-सवेरे मै आत्मा एकांत में एक बगीचे में बैठ जाती हूँ... ठंडी-ठंडी शुद्ध हवा चल रही है... चिड़ियाँ चहचहा रही है... फूलो की सौंधी-सौंधी खुशबू वातावरण को सुगन्धित कर रही है...* ऐसे वातावरण में मै आत्मा सामने पेड़ पर एक चिड़िया के घोंसले को देखती हूँ... चिड़िया के बच्चे उड़ने की कोशिश करते है लेकिन उड़ नही पा रहे है... वे फिर प्रयास करते थोड़ा उड़ते और फिर गिर जाते... कुछ देर के बाद वे पंख फैलाये खुले आसमान में चहचहाते उड़ने लगते है...
➳ _ ➳ उन्हें उड़ता देख मै आत्मा स्वयं के अंतर्मन से पूछती हूँ- क्या मुझ आत्मा की स्थिति इस चिड़िया के बच्चो की तरह तो नही है???... अंतर्मन की गहराई से *मै आत्मा पंछी, स्वयं को दुनिया रुपी घोसले में कैद पाती हूँ... जहाँ व्यर्थ बाते, व्यर्थ चिंतन, व्यर्थ संकल्पो तथा माया रुपी पाँच विकारो ने मुझ आत्मा के पंख काट दिए थे... जिसके कारण मैं आत्मा स्वयं को बंधन में बंधा हुआ अनुभव करती थी...*
➳ _ ➳ अपनी इस स्थिति का अनुभव करते ही मै आत्मा प्यारे बाबा का आह्वान करती हूँ... *मीठे प्यारे बाबा मुझ आत्मा की पुकार सुनकर परमधाम से धरती पर अवतरित हो जाते है... ज्योति बिंदु स्वरुप बाबा से निकलती हुई तेजोमय किरणे मुझ आत्मा पर फाउन्टेन की तरह पड़ रही है...* इन किरणों में समाती मै आत्मा स्वयं को शरीर से अलग भृकुटि के बीच चमकता हुआ सितारा अनुभव करती हूँ... मुझ आत्मा से व्यर्थ बाते, व्यर्थ चिन्तन, व्यर्थ संकल्प काले धुँए की तरह निकलते जा रहा है...
➳ _ ➳ सर्वशक्तिवान बाप से निकलती किरणों से मुझ आत्मा में समाने की शक्ति, सहन करने की शक्ति, समेटने की शक्ति, निर्णय लेने की शक्ति जागृत हो रही है... *इन परिवर्तन शक्तियों द्वारा मुझ आत्मा में स्वरुप परिवर्तन, संस्कार परिवर्तन और संकल्प परिवर्तन होता जा रहा है...* अब हर दिन हर समय मै आत्मा बाबा के साथ का अनुभव करती हूँ... मैं आत्मा व्यर्थ बाते, व्यर्थ नजारा जो काम का नही है उसमें समय नही गवाती... अब मैं आत्मा बाबा के महावाक्य को स्मृति में रख- *देखते हुए नहीं देखो, सुनते हुए नहीं सुनो, सुनते हुए नहीं सोचो, सुनते हुए अन्दर नहीं समाओ, फैलाओ नहीं'...* इस रूहानी यात्रा पर चलती जा रही हूँ... अब हर परिस्थिति को पेपर समझ मै आत्मा ज्ञान वा योग द्वारा एकाग्रचित हो अपने मंजिल की ओर निरंतर आगे बढ़ती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ *अब मैं आत्मा सदा बुद्धि में यह याद रखती हूँ कि मै आत्मा रूहानी यात्रा पर हूँ... हर आत्मा रूहानी यात्रा पर है... कुछ भी नया नही हो रहा है, नथिंग इस न्यू... अब घर(परमधाम) वापिस जाना है... मै साधारण नही विशेष आत्मा हूँ...* सर्वशक्तिवान बाप मुझ आत्मा के साथ है... वह ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा का श्रृंगार कर रहा है... इन ज्ञान रत्नों को बुद्धि में धारण कर मुझ आत्मा को इस रूहानी यात्रा में रुकना नही है... *बाबा के पास का अनुभव करते, पवित्रता को धारण कर हर परिस्थिति को पास करते हुए पास-विद-आनर बन पवित्र दुनिया में चल ऊँच पद पाना है... अभी नही तो कभी नही...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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