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  06 / 12 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  ज्ञान का सागर, वह बैठ ज्ञान देते हैं। *आधाकल्प यह भक्ति चलती है। पहले अव्यभिचारी भक्ति होती है। शिव की ही पूजा करते हैं। फिर देवताओं की, अभी तो भक्ति व्यभिचारी हो गई है। भक्ति करते, शास्त्र आदि पढ़ते रहते हैं तो सब भगत हो गये।* सजनियाँ मुझ एक साजन को याद करती हैं।

➢➢  *भक्तों की रक्षा करने वाला है भगवान। उनको (मनुष्यो )यह पता नहीं है कि भगवान कौन है। शिव वा शंकर के मन्दिर में जाते हैं। शिव-शंकर को इकट्ठा कर दिया है। हैं दोनों अलग-अलग, वह निराकार, वह सूक्ष्म शरीरधारी।* वह मूलवतन में रहने वाला, वह सूक्ष्मवतन में रहने वाला।

➢➢  *मन्दिर में बैल दिखाते हैं। समझते हैं शिव-शंकर की बैल पर सवारी थी। अब शिव के लिए कहते हैं वह सर्वव्यापी है। ऐसे नहीं कहेंगे कि शिव शंकर सर्वव्यापी हैं| बैल पर कोई सवारी थोड़ेही होती है।* बाप समझाते हैं - मैं तो साधारण मनुष्य तन में प्रवेश करके आता हूँ। इनके (ब्रह्मा) 84 जन्मों की कहानी बैठ तुमको सुनाता हूँ।

➢➢  *एक परमपिता परमात्मा निराकार को कहते हैं।* तो साधारण मनुष्य तन में प्रवेश करके आता हूँ। इनके 84 जन्मों की कहानी बैठ तुमको सुनाता हूँ। तुम भी ब्रह्मा मुख वंशावली आकर बने हो। इनका नाम है भागीरथ अर्थात् भाग्यशाली रथ क्योंकि पहले-पहले यह सुनते हैं और यही सौभाग्यशाली हैं। *सतयुग में बहुत थोड़े होते हैं। बाकी सब आत्मायें वापिस चली जाती हैं अपने घर, जहाँ से आई हैं।*

➢➢  *सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था फिर लक्ष्मी-नारायण दी फर्स्ट, सेकेण्ड.. राजाई चलती है। त्रेता में है चन्द्रवंशी राम की डिनायस्टी। सतयुग में 8 जन्म, त्रेता में 12 जन्म। यह 84 जन्मों की कहानी बाप ही समझाते हैं।*

➢➢  *लक्ष्मी-नारायण को 5 हजार वर्ष हुए हैं, यह किसको मालूम नहीं है। सतयुग की आयु लाखों वर्ष कह देते हैं। आधाकल्प है ज्ञान, आधाकल्प है भक्ति फिर जब पुरानी दुनिया हो जाती है तो आता है वैराग्य।* 

➢➢  *तुम यहाँ बैठे बहुत कमाई करते हो। बाप कहते हैं - तुम चक्रवर्ती राजा बनते हो। यह तुम्हारा अन्तिम 84 वाँ जन्म है, विनाश सामने खड़ा है। मृत्युलोक का विनाश अमरलोक की स्थापना हो रही है।* अमरनाथ बाबा से हम सत्य-नारायण बनने की सत्य कथा सुन रहे हैं।

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *बाप को और चक्र को याद करो, मुख से कुछ भी बोलने की दरकार नहीं, सिर्फ इस नर्क से दिल हटा दो तो तुम एवर निरोगी बन जायेंगे।*

➢➢  बाप कहते हैं - मैं तुम्हारा बाप-टीचर-सतगुरू हूँ। सद्गति कर साथ ले जाता हूँ। पावन होने का बहुत सहज उपाय है, जो तुमको बतलाता हूँ।  बाप का फरमान है कि निरन्तर मुझे याद करने का पुरुषार्थ करो तो इस योग अग्नि से तुम्हारे कर्म विनाश हो जायेंगे। फिर तुम पवित्र सतोप्रधान बन जायेंगे। अब तुम तमोप्रधान हो, *याद से ही खाद निकलेंगे।*

➢➢  याद से ही तुम निरोगी बनेंगे। पाप भस्म होने से तुम पावन बन जायेंगे। बड़ी भारी कमाई है। *घूमो, फिरो सिर्फ मुझे याद करो। पहले यह प्रैक्टिस करनी है।* याद करने से हम 21 जन्म के लिए निरोगी बन जायेंगे। कोई तकलीफ की बात नहीं, सिर्फ *मामेकम् याद करो*।

➢➢  बाप मुख से कहते हैं *मुझे याद करो और घर को याद करो।* अब यह नर्क खलास होना है। जाना है अपने घर। भोजन बनाते समय भी याद का पुरुषार्थ करो। भल *तुम कर्मयोगी हो तो भी कम से कम 8 घण्टे तक जरूर पहुँचो।*

➢➢  चक्र का नालेज समझाया है कि चोटी ब्राह्मण देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र यह चक्र याद करना है। *बीज और झाड़ को याद करो*। सतयुग में एक ही धर्म है। *बाप कहते हैं मुझ बीज को याद करो और झाड़ को याद करो।* स्थापना, विनाश और पालना... यह है बहुत सहज।

➢➢  बाप का फरमान है यह *अन्तिम जन्म पवित्र बन मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हों जाएंगे। इसका नाम ही है सहज राजयोग।*

➢➢  *वानप्रस्थ स्थिति का अनुभव करो और कराओ* तो बचपन के खेल समाप्त  हो जायेंगे।

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *रहो भल गृहस्थ में परन्तु पवित्र रहना है।* यह तो अच्छा है ना।

➢➢  *हर एक को श्री मत पर चलना हैं। श्रीमत पर चलने से तुम स्वर्ग के मालिक, पारसबुद्धि बन सकते हो*। हर एक के कर्म का हिसाब अपना-अपना है। भल तकलीफ हो तो सर्जन के पास आकर श्रीमत लो।

➢➢  इस अन्तिम जन्म में सम्पूर्ण पवित्र बन बाप की याद में ही रहना है। *इस पतित दुनिया से दिल हटा देना है।*

➢➢  *स्वदर्शन चक्रधारी बनना है। हास्पिटल कम कालेज खोल अनेकों का कल्याण करना है।*

➢➢  *बाप बच्चों को भिन्न-भिन्न टाइटल्स देते हैं, उन्हीं टाइटल्स को स्मृति में रखो तो श्रेष्ठ स्थिति में सहज ही स्थित हो जायेंगे। सिर्फ बुद्धि से वर्णन नहीं करो लेकिन सीट पर सेट हो जाओ, जैसा टाइटल वैसी स्थिति हो।*

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *यह कर्मक्षेत्र है। सृष्टि का चक्र फिरता रहता है। मूलवतन, सूक्ष्मवतन में यह सतयुग त्रेता नहीं होते हैं। यह ड्रामा का चक्र यहाँ फिरता है। आधाकल्प ज्ञान सतयुग-त्रेता, आधाकल्प भक्ति द्वापर-कलियुग।*

➢➢  *धर्मात्मा पावन को कहा जाता है। सतयुग में यह भारत पावन था। पावन गृहस्थ धर्म था, इस समय पतित गृहस्थ अधर्म है।  इस भारत में 5 हजार वर्ष पहले जब लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तो उनको पावन राज्य कहा जाता था। नर और नारी दोनों पावन थे।*

➢➢  *बाप बैठ समझाते हैं आधाकल्प से भक्ति मार्ग चला है। जप-तप आदि करना, वेद अध्ययन करना, यह सब भक्ति मार्ग है, इससे मुझे कोई प्राप्त नहीं कर सकता* मुझ बाप को जानते ही नहीं हैं। यह सब वेस्ट आफ टाइम, वेस्ट आफ इनर्जी करते हैं। *द्वापर से लेकर भक्ति मार्ग शुरू होता है।*

➢➢  बाप कहते हैं - *बच्चे एक हास्पिटल कम कालेज खोलो, इसमें बहुतों का कल्याण होगा। सबको रास्ता बताओ।*

➢➢  बाप कर्म-अकर्म-विकर्म की गति बैठ समझाते हैं। कोई भी तकलीफ हो तो सर्जन के पास आकर श्रीमत लो। *अहिल्याअों, कुब्जाअों... सबको यह रास्ता बताना है*।

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