━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 01 / 12 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *ज्ञान मार्ग
में तुमको देखो कितना मिलता है। एकदम तुम विश्व के मालिक बन जाते हो। यह कोई की
बुद्धि में अगर नालेज आ जाये तो अहो भाग्य। ज्ञान से सद्गति होती है। इसको
नालेज कहा जाता है।*
➢➢ *सद्गति दाता तो एक बाप है। बाप ने आकर ज्ञान घृत डाला है। सतयुग में सबकी
ज्योति जगी रहती है। परन्तु वहाँ पर ज्ञान नहीं रहता है कि हम तमोप्रधान से
सतोप्रधान बने हैं।*
➢➢ आत्मा कहती है मेरे से तीखा और कुछ है नहीं। मेरे से छोटा और कोई है नहीं।
*छोटी सी आत्मा में सारी नालेज है।* उनको कहा जाता है गॉड इज नालेजफुल। *आगे
कहते थे भगवान सब कुछ जानते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि एक-एक के दिल को बैठ
जानते हैं। यह तो ड्रामा में सब कुछ नूँध है।*
➢➢ *भक्ति और ज्ञान दोनों एकसाथ नहीं चलते हैं। जो भी मनुष्य पूजा आदि करते
हैं, शास्त्र पढ़ते हैं, वह कोई ज्ञान नहीं है। वह भक्ति है।* बाप भी कहते हैं
मीठे बच्चे वेद-शास्त्र आदि अध्ययन करना, जप-तप आदि करना, यह जो कुछ भक्ति
आधाकल्प से करते आये हो उसको ज्ञान नहीं कहेंगे। ज्ञान का सागर एक ही बाप है।
➢➢ दिन और रात अलग-अलग हैं। यह है बेहद का दिन और रात। *ब्रह्मा का दिन सो
बी.के. का दिन।* बच्चे जानते हैं हम देवता बन रहे हैं। *सतयुग को कहा जाता है
जीवनमुक्तिधाम। यह है जीवनबंध धाम।*
➢➢ *तुमको अब पता पड़ा है - शोक वाटिका किसको और अशोक वाटिका किसको कहा जाता
है।* भक्ति है उतरती कला का मार्ग। बाप कहते हैं - अब वापिस मुक्तिधाम चलना है।
*ऐसे कोई कह नहीं सकते कि मेरे बच्चे अब सबको मुक्तिधाम चलना है अर्थात्
जीवनबंध से लिबरेट होना है।*
➢➢ बाप बच्चों से ही बात कर सकते हैं। *जैसे आत्मा को इन आखों से देख नहीं सकते
हैं, वैसे परमात्मा को भी देख नहीं सकते। हाँ दिव्य दृष्टि से साक्षात्कार हो
सकता है।*
────────────────────────
❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *बुद्धियोग ऊपर
में लटका हुआ होना चाहिए। ऐसे नहीं कि बाबा यहाँ है तो बुद्धि भी यहाँ रहे। भल
बाबा यहाँ है तो भी तुमको बुद्धियोग वहाँ शान्तिधाम में लगाना है।* ज्ञान है ही
एक सेकण्ड का। भक्ति तो आधाकल्प चली है और आधाकल्प तुमको वर्सा मिलना है।
➢➢ *तुम्हारा यह है लीप जन्म, कल्याणकारी जन्म। यह संगम का सुहावना युग है
ना।* तुम जानते हो लौकिक बाप के भी हम हैं फिर जीते जी पारलौकिक बाप के बने
हैं। लौकिक बाप भी है और पारलौकिक बाप भी हाजिराहजूर है। *तुम्हारी आत्मा कहती
है बाबा आप परमधाम से आये हो हमको वापिस ले जाने।* बाप बच्चों से ही बात कर सकते
हैं।
➢➢ *यह है बेहद का माँ बाप, जिससे 21 जन्मों का सुख मिलता है। आजकल देखो दुनिया
में दु:ख बढ़ता जा रहा है। अभी दु:खधाम की अन्त है।*
────────────────────────
❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢
*अब राजाई पद का पुरुषार्थ करना चाहिए,* लौकिक बाप भी बच्चों को देख बहुत खुश
होते हैं।
➢➢ वह तुमको बिल्कुल सही रास्ता बताते हैं कि बच्चे अब मुझे याद करो तो विकर्म
विनाश हो जायेंगे। *कोई भी देहधारी को याद नहीं करना है।*
➢➢ *तुम तो इस सृष्टि चक्र के राज को जानने से चक्रवर्ती राजा बनते हो। महावीर
बनते हो।* तुमको तो प्रालब्ध में माल मिलते हैं।
➢➢ *तुम जानते हो बाबा से हम विश्व के मालिकपने का वर्सा लेते हैं तो खुशी से
झोली भरनी चाहिए।* देखो, ज्ञान कितना ऊंचा है।
────────────────────────
❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ यह भी तुम बच्चों
की बुद्धि में है कि *आत्मा और परमात्मा जो बिन्दी रूप है, उनमें सारा पार्ट
नूँधा हुआ है। आत्मा में 84 जन्मों का अपना-अपना पार्ट नूँधा हुआ है। कितनी
विचित्र बात है। बाप बिगर कोई समझा न सके। यह बातें तुम विलायत वालों को समझाओ
तो वन्डर खायें और तुम्हारे ऊपर कुर्बान जायें।*
➢➢ *परमात्मा का भी यथार्थ रूप बिन्दी है। परन्तु गाया हुआ है वह हजारों सूर्या
से भी तेजोमय है। तो परमात्मा अगर वह साक्षात्कार न कराये तो कोई का विश्वास न
बैठे। बिन्दी रूप के साक्षात्कार से कोई समझ न सके क्योंकि उनको कोई जानते ही
नहीं।* यह नई बात बाबा ही बतलाते हैं।
➢➢ अभी सहायता के लिए बहुत यज्ञ रचेंगे। *यह है रूद्र ज्ञान यज्ञ। कृष्ण ज्ञान
यज्ञ हो न सके। कृष्ण तो देवता था।* द्वापर में आ न सके। देवता फिर क्षत्रिय,
वैश्य, शूद्र बनते हैं। *कृष्ण देवता द्वापर में कैसे आ सकता ? रावणराज्य में
देवतायें पैर नहीं रखते।*
➢➢ *आत्मा अविनाशी है। आत्मा में ही संस्कार रहते हैं। शरीर तो खत्म हो जाता
है। आत्मा में ही अच्छे वा बुरे संस्कार रहते हैं।* अब तुम समझते हो *जो भी
मनुष्य मात्र हैं वह ड्रामा प्लेन अनुसार चल रहे हैं।* आगे यह नहीं समझते थे कि
सृष्टि किस आधार पर चलती है।
➢➢ *प्राचीन भारत का ज्ञान और योग तुम ही समझा सकते हो। पहले-पहले यह समझाना
है कि आत्मा परमात्मा क्या वस्तु है।* आत्मा के लिए कहते हैं स्टार है। परमात्मा
के लिए नहीं कहेंगे कि वह स्टार है। आत्मा कोई छोटी बड़ी नहीं होती है। वह है
ही एक बिन्दी, जो एक शरीर छोड़ दूसरे में प्रवेश करती है।
────────────────────────