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  27 / 12 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *तुम कहते भी हो हम एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं। शरीर का नाम रूप बदल जाता है। आत्मा तो एक ही है। बाप का नाम भी एक ही शिव है। उनको शरीर तो है नहीं।*

➢➢  *निराकार भगवानुवाच, सिर्फ भगवानुवाच कहने से कृष्ण का नाम याद आ जाता है क्योंकि आजकल भगवान सब हो पड़े हैं इसलिए निराकार शिवभगवानुवाच कहते हैं।* गॉड फादर कहा जाता है।

➢➢  *भगवान के यथार्थ नाम, रूप, देश, काल को कोई जानते ही नहीं। अगर बाप को जान जायें तो रचना को भी जान जायें। परन्तु न जानना ही उन्हों का ड्रामा में नूंधा हुआ है, तब तो फिर बाप आकर अपनी पहचान दे।*

➢➢  तुम बच्चों को बाप से वर्सा मिल रहा है। तुम जानते हो बेहद का बाप आया हुआ है, नई दुनिया का वर्सा अथवा सुख देने। तो जरूर दु:ख खत्म हो जायेगा। वह है सुखधाम, यह है दु:खधाम। अब इस दु:खधाम का विनाश होना है। *नई दुनिया ही अब पुरानी हुई है, फिर नई बन जायेगी*। नई दुनिया को सतयुग, पुरानी दुनिया को कलियुग कहा जाता है।

➢➢  रावण को माया कहा जाता है। धन को माया नहीं कहा जाता है। भारत का सबसे पुराना दुश्मन रावण है। रूह को पतित बनाने वाला है। रावण 5 विकारों को कहा जाता है। आत्मा में ही 5 विकार हैं, तुम जानते हो अभी है दु:ख फिर विकारी मनुष्य जानते हैं कि देवतायें निर्विकारी हैं। देवताओं को है निर्विकारीपने का नशा। वहाँ अपवित्र कोई होते नहीं हैं। *संगम पर ही तुम बच्चों को पवित्रता का राज़ समझाया जाता है*।

➢➢  सतयुग में है एक बाप। बेहद के बाप को याद करते ही नहीं क्योंकि सुखधाम है। द्वापरयुग में हैं दो बाप। लौकिक बाप होते भी पारलौकिक बाप को याद करते हैं। *आत्मा ही अपने बाप को याद करती है क्योंकि आत्मा ही दु:ख सहन करती है। पुण्य आत्मा, पाप आत्मा। आत्मा ही सुनती है। संस्कार आत्मा में हैं।*

➢➢ *इस समय हम ब्राह्मण हैं। बी.के. हैं। इस समय हमको 3 बाप हो जाते हैं। लौकिक बाप, निराकार पारलौकिक बाप, तीसरा फिर प्रजापिता ब्रह्मा*। जिस द्वारा हम ब्राह्मणों को पढ़ाते हैं। प्रजापिता नाम तो सुना है ना। ब्रह्मा द्वारा रचते हैं। तुम भी ब्राह्मण हो।

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  बाप पतित-पावन है, उन द्वारा हम पावन बन रहे हैं। बाप कहते हैं- बच्चे यह अन्तिम जन्म पावन बनेंगे तो विश्व के मालिक बनेंगे। कितनी बड़ी कमाई है। *बाप कहते हैं- धन्धा आदि भल करो सिर्फ मुझे याद करो, पावन बनो* तो योगबल से तुम्हारी खाद निकल जायेगी। तुम सतोप्रधान बन जायेंगे, एकरस कर्मातीत अवस्था बन जायेगी।

➢➢  *बाप कहते हैं जब मेरा पार्ट होता है पतितों को पावन बनाने का, तब ही आकर मैं अपनी पहचान देता हूँ। पुरानी दुनिया को नया बनाता हूँ*। पुरानी दुनिया में रहने वाले मनुष्य नई दुनिया में रहने वाले मनुष्यों को पूजते हैं। तुम बच्चों को समझाना है। जबकि ऋषि-मुनि आदि सब कहते हैं हम रचता और रचना को नहीं जानते फिर तुमने कहाँ से जाना। अगर तुम बाप को, रचना को जानते हो तो हमको नॉलेज दो।

➢➢  *बाप ब्रह्मा द्वारा रचते हैं। तुम भी ब्राह्मण हो। तुम भी बाप को याद करो। बाप कहते हैं मैं आया हूँ - तुमको वापिस ले जाने। निराकार बाप आत्माओं से बात करते हैं।*

➢➢  तुम कहते हो शिवबाबा मैं आपका हूँ। तुम्हारा बुद्धियोग ऊपर चला जाता है क्योंकि *बाबा खुद कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। इस यात्रा पर रहो।*

➢➢  *समझो, यह बाबा कहाँ जाता है तो याद शिवबाबा को करना है। आत्मा, परमात्मा बाप को याद करे। तुम आत्मायें भी बाप के साथ रहने वाली हो। ऐसे नहीं बाबा का स्थान अलग, तुम्हारा अलग है, नहीं*।

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *योगबल से आत्मा को सतोप्रधान बनाकर एकरस कर्मातीत अवस्था तक पहुँचना है।*

➢➢  *याद की गुप्त मेहनत करनी है, एकान्त में पढ़ाई करनी है*।

➢➢  हिम्मत का एक कदम रखो तो हजार गुणा मदद मिल जायेगी। *बाप से मुक्ति-जीवनमुक्ति का वर्सा लेने के लिए इस अन्तिम जन्म में पवित्र जरूर बनना है। बुद्धि में ज्ञान का सिमरण करते रहो।*

➢➢  सर्व विकारों के अंश का भी त्याग कर सम्पूर्ण पवित्र बनने वाले लेकिन यदि एक भी विकार का अंश है तो दूसरे साथी भी उसके साथ जरूर होंगे। जैसे पवित्रता के साथ सुख-शान्ति है, ऐसे अपवित्रता के साथ पांचों विकारों का गहरा संबंध है, इसलिए *एक भी विकार का अंश न रहे।*

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *संगम पर ही तुम बच्चों को पवित्रता का राज़ समझाया जाता है। तुमको फिर औरों को समझाना है। बाप तो सारी दुनिया को बैठ समझायेगा नहीं। बच्चों को ही समझाना है।*

➢➢  *सबको बताओ, भारत जो स्वर्ग नई दुनिया थी, वह अब पुरानी हो गई है। रचयिता तो बाप ही है। वह खुद कहते हैं मैं ब्रह्मा द्वारा नई दुनिया की स्थापना करता हूँ। बच्चों को एडाप्ट करता हूँ। ब्रह्मा का नाम ही प्रजापिता है*।

➢➢  *तुम बच्चों को समझाना चाहिए कि भारत स्वर्ग था। यह लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग के मालिक थे, जरूर डिनायस्टी चली होगी।* नई दुनिया में नया राज्य था, अब वह नहीं है। और अनेक धर्म हैं, देवता धर्म है नहीं।  महाभारी लड़ाई का भी गायन है। महाभारत लड़ाई का समय है। यादवों की लड़ाई भी दिखाते हैं कि मूसलों द्वारा अपना विनाश किया। कभी लिखते हैं पाण्डवों और कौरवों की युद्ध, कभी लिखते हैं असुर और देवताओं की।

➢➢  *दो बाप का राज़ भी कहानी मिसल समझाना चाहिए। सतयुग में है एक बाप। द्वापरयुग में हैं दो बाप।* लौकिक बाप होते भी पारलौकिक बाप को याद करते हैं। *तुम ही पूज्य सो देवता थे, फिर तुम ही पुजारी बने हो। 84 जन्म लिए हैं। आधाकल्प पूज्य आधाकल्प पुजारी। हिसाब समझाना पड़े।*

➢➢  *तुम बच्चों ने अब अच्छी तरह समझा है तो पारलौकिक बाप के लिए भी समझाना है। पवित्रता का राज़ समझाया जाता है। तुमको फिर औरों को समझाना है।*

➢➢  *बाप कहते हैं - समझाना बहुत सहज है। अल्फ बे। मूल बात है याद की यात्रा। मेहनत भी है। कल्प के बाद यह याद का धन्धा मिलता है, परन्तु है गुप्त। यह मुश्किल सबजेक्ट है। अल्फ को याद करना, अल्फ को ही भूले हो। भगवान को कोई जानते नहीं। गाया भी जाता है सतगुरू बिगर घोर अन्धियारा। सोझरे में एक ही सतगुरू ले जाते हैं।*

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