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MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान
के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ अब बाबा आया
है। कहते हैं मेरा पार्ट है आसुरी सम्प्रदाय को दैवी सम्प्रदाय बनाना। *मैं
भी ड्रामा अनुसार अपने टाइम पर आता हूँ - कल्प के संगमयुगे।* कलियुग है
पतित पुरानी तमोप्रधान दुनिया, तब मैं आता हूँ सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी कुल
का राज्य स्थापन करने। न हो तब तो स्थापन करूं। फिर *जब सूर्यवंशी चन्द्रवशी
होंगे तो वैश्य, शूद्र वंशी नहीं होंगे। अब तुम ईश्वरीय सन्तान बने हो, दैवी
सन्तान बनने के लिए।*
➢➢ *मैं
पतित-पावन हूँ तो जरूर पतित दुनिया में आना पड़े ना। अगर पतित-पावन न कहें
तो समझेंगे नई दुनिया बनाते हैं। प्रलय हो जाती है फिर नई सृष्टि क्रियेट
करते हैं। परन्तु उनको पतित-पावन कहा जाता है, तो इससे सिद्ध होता है कि यह
सृष्टि तो अनादि है, इसकी प्रलय नहीं होती है।* सिर्फ पतित होती है, उनको
पावन बनाता हूँ इसलिए मैं नंदीगण पर वा भाग्यशाली रथ पर आता हूँ - तुम्हें
नर से नारायण बनाने।
➢➢ ब्रह्मा को
परम आत्मा नहीं कहेंगे। यह सब हैं जीव आत्मायें। इनमें कोई पाप आत्मा, कोई
पुण्य आत्मा है। *बाप कहते हैं मुझे पाप वा पुण्य आत्मा नहीं कहा जाता है।
मुझे परमात्मा ही कहा जाता है। मेरा भी पार्ट है। एक बार आकर पतित दुनिया
को पावन बनाता हूँ।* याद भी करते हैं कि पतित-पावन आओ। परन्तु कोई समझते
थोड़ेही हैं कि हम पतित, रावण सम्प्रदाय हैं।
➢➢ कहते हैं
रामराज्य चाहिए। *रावण को जलाते भी हैं परन्तु यह नहीं जानते कि हम ही रावण
सम्प्रदाय हैं।* जरूर पतित हैं तब तो बुलाते हैं। कृष्ण को तो नहीं बुलाते।
उनको तो परम आत्मा नहीं कहते। *हम सबका बाप जो परमधाम से आया है, उसको ही
परम आत्मा कहा जाता है।*
➢➢ *बाप इस जीव
आत्मा द्वारा समझाते हैं। तुमको कहते हैं बच्चे अशरीरी भव*। तुम मेरे बच्चे
थे, जब तुमको भेजा था। *स्वर्ग में शरीर धारण कर आये, चक्र लगाते-लगाते अब
तुमने 84 का चक्र पूरा किया।* इस समय सब रावण की सन्तान हैं। रावण ने ही
पतित बनाया है। *अब तुम बने हो ईश्वरीय सन्तान।*
➢➢ इस समय
मनुष्यों को थोड़ा भी धन मिलता है तो समझते हैं हम तो स्वर्ग में हैं।
परन्तु इस दुनिया में कोई कितना भी साहूकार हो, देवाला निकला, एरोप्लेन आदि
गिरा तो सब खलास, फिर रोने पीटने लग पड़ते हैं। वहाँ तो एक्सीडेंट की बात
नहीं। कोई रोता पीटता नहीं। *बाबा कहते हैं अच्छा तुम स्वर्ग में हो तो खुश
रहो। मैं आया हूँ गरीबों के लिए, जो नर्क में हैं। दान भी गरीबों को दिया
जाता है। साहूकार, साहूकार को दान करते हैं क्या? मैं तो सबसे साहूकार हूँ,
मैं गरीबों को दान देता हूँ।*
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❍ योग
के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *सबको मरना
तो है ही फिर कौन किसके लिए रोयेगा। हिरोशिमा में सब मर गये, कोई रोने वाला
बचा ही नहीं इसलिए अब रोने वाली दुनिया से वापिस जाना है। इस गन्दी दुनिया
में तो हर एक के अंग-अंग में कीड़े पड़े हैं, उसको याद क्यों करें।* स्वर्ग
में थोड़ेही ऐसे शरीर होंगे। वहाँ तो अंग-अंग में खुशबू होती है। बाबा कैसे
गन्दे बांसी को गुल-गुल (फूल) बनाते हैं, तो उनको आना भी ऐसे पुराने लांग
बूट में पड़ता है।
➢➢ *सन्यासी नहीं
कह सकते कि अशरीरी भव, मामेकम् याद करो। परमात्मा सभी को कहते हैं क्योंकि
सभी मेरी सन्तान हैं, सबको वापिस ले जाने लिए आया हूँ।* परन्तु सम्मुख तो
बच्चे सुनते हैं, सारी दुनिया नहीं सुनती।
➢➢ *तुम बच्चों
की दिल में हमेशा उनकी याद रहती है। है वह भी आत्मा, कोई फ़र्क नहीं है।
जैसे आत्मा स्टार है, उस स्टार का साक्षात्कार होता है। वैसे बाप का भी
स्टॉर रूप में साक्षात्कार होगा।*
➢➢ *बाप के साथ
योग चाहिए जिससे विकर्म विनाश हों। एवरहेल्दी, एवरवेल्दी बनने के लिए
स्वदर्शन चक्र फिराना पड़े। बाबा को याद करना है*, इसमें ही मेहनत है। यह
चार्ट रखो कि कितना समय बाबा को याद करते हैं? *जितना याद में रहेंगे तो
अतीन्द्रिय सुख की भासना आयेगी।*
➢➢ *अब तुम
ईश्वर के कुल के बने हो तो कितना प्यार से उनको याद करना चाहिए। बाबा आप
कितने मीठे हो। हमको स्वर्ग में ले चलते हो, हेविनली गॉड फादर को जितना याद
करेंगे तो नशा चढ़ेगा।*
➢➢ *धरती पर
रहने वालों को आकाश में रहने वाला बाप पुकारते हैं। अब मेरे पास आना है
इसलिए नष्टोमोहा बनो। मैं तुम्हें स्वर्ग के अथाह सुख दूँगा। बाप है सभी
सुखों का सैक्रीन।*
➢➢ *बाबा कहते
हैं तुम किसकी सन्तान हो, वह याद आता है? अब तुम बच्चे बैठे हो, सामने कौन
है?* आत्मायें कहेंगी बाबा बैठा है। कितनी सिम्पुल बात है। बच्चे जानते
हैं।
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❍ धारणा
के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ अब बाप कहते हैं तुमको रावण ने काला कर दिया है। *अब तुमको गोरा बनना
है।* कृष्ण और नारायण दोनों को काला कर दिया है। लक्ष्मी को गोरा बनाते
हैं, क्यों? काम चिता पर तो दोनों बैठे होंगे। कृष्ण के लिए कहते उनको
तक्षक सर्प ने डसा, नारायण को फिर किसने डसा? कुछ भी समझते नहीं हैं। चित्र
आदि भी सब रावण की मत पर बनाये हैं।
➢➢ बाप कहते हैं हे लाडले बच्चे मैं तेरा परमपिता, तुम आत्माओं से बात कर
रहा हूँ। अब मेरी श्रीमत पर क्यों नहीं चलते। परन्तु काम रूपी भूत गिरा देता
है। बाप कहते हैं कमजोर क्यों बनते हो? *श्रीमत मिल रही है फिर आसुरी मत पर
क्यों चलते हो? यह युद्ध तो करनी है।*
➢➢ नॉलेजफुल बाप यह तुमको सारा राज़ आदि मध्य अन्त का समझा रहे हैं, जिससे
तुमको स्वदर्शन चक्र फिराना सहज हो। स्वदर्शन चक्र फिराने से तुम्हारे
विकर्म विनाश होंगे, नहीं तो सजायें खायेंगे। विजय माला में भी नहीं आयेंगे।
कछुए मिसल *जब फ्री हो तो चुप बैठकर चक्र को फिराओ। अब तुमको घर वापिस जाना
है। यह अन्तिम जन्म पवित्र रहो।*
➢➢ *पतित बनने की मर्यादायें तोड़ो और कोई को याद नहीं करो।* आप मुये मर
गई दुनिया। *अशरीरी बन मेरा बनो तो विकर्म विनाश हो जायेंगे।*
➢➢ *बाबा कहते हैं कि भल घर में रहो परन्तु श्रीमत पर चलो। विकार में मत
जाओ। तुम्हारे सामने शिवबाबा बैठा है, उनको भूलो मत।*
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❍ सेवा
के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *हम
आत्माओं का परमपिता परम आत्मा पिता है। मनुष्य तो
छोटे, बड़े सबको बाबा कह देते हैं और यह फिर आत्मा अपने बाबा को बाबा कहती
है। ओ गॉड फादर कहते हैं। अब शरीर के फादर को तो गॉड फादर नहीं कहेंगे।*
➢➢ *शिवबाबा
समझाते हैं - मैं कौन हूँ! मैं परम आत्मा हूँ। मैं तुम सभी आत्माओं का
परमधाम में रहने वाला पिता हूँ, इसलिए मुझे परम आत्मा कहते हैं। इकट्ठा करने
से हो जाता है परमात्मा। कितना सहज है।*
➢➢ *जैसे आत्मा
स्टार है, उस स्टार का साक्षात्कार होता है। वैसे बाप का भी स्टॉर रूप में
साक्षात्कार होगा। बाकी यह जो कहते हैं कि बहुत तेज है, सहन नहीं कर सकते।
यह मन की भावना है।*
➢➢ *बाप बैठ
समझाते हैं कि तुम आत्माओं में 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है। सो भी हर एक
में अपना-अपना पार्ट है।* मनुष्य कहते भी हैं आत्मा परमात्मा अलग रहे
बहुकाल....
➢➢ अब परम आत्मा
अक्षर क्लीयर है। *ब्रह्मा को परम आत्मा नहीं कहेंगे। यह सब हैं जीव आत्मायें।
इनमें कोई पाप आत्मा, कोई पुण्य आत्मा है। बाप कहते हैं मुझे पाप वा पुण्य
आत्मा नहीं कहा जाता है। मुझे परमात्मा ही कहा जाता है। मेरा भी पार्ट है।
एक बार आकर पतित दुनिया को पावन बनाता हूँ।*
➢➢ *मनुष्यात्माये
याद भी करते हैं कि पतित-पावन आओ। जरूर पतित हैं तब तो बुलाते हैं। कृष्ण
को तो नहीं बुलाते। उनको तो परम आत्मा नहीं कहते। हम सबका बाप जो परमधाम से
आया है, उसको ही परम आत्मा कहा जाता है।*
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