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  02 / 07 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  एक लाइट का क्राउन अर्थात् फरिश्ते स्वरूप की निशानी साथ-साथ विश्व कल्याण के बेहद सेवा के ताजधारी। *ताज तो सभी के ऊपर है लेकिन नम्बरवार हैं। कोई के दोनों ताज समान हैं। कोई का एक छोटा तो दूसरा बड़ा है और कोई के दोनों ही छोटे हैं। हरेक राज्य अधिकारी के प्युरिटी की पर्सनैलिटी भी अपनी-अपनी है।*

 

➢➢  संगमयुगी श्रेष्ठ दरबार और भविष्य की राज्य दरबार, दोनों में कितना अन्तर है! *अब की दरबार जन्मजन्मानतर की दरबार का फाउन्डेशन है। अभी के दरबार की रूपरेखा भविष्य दरबार की रूपरेखा बनाने वाली है। तो अपने आपको देख सकते हो कि अभी के राज्य अधिकारी सहयोगी दरबार में हमारा स्थान कहाँ है!* 

 

➢➢  *बापदादा भाग्यशाली आत्माओ को देख हर्षित हो रहे है कि इतने विशाल विश्व में कैसी-कैसी आत्माओ ने मिलन का भाग्य ले लिया और जो विश्व के आगे नामीग्रामी उम्मीदवार आत्माये है वह सोचती और खोजती रह गयी।* बड़े बड़े वैज्ञानिक खोजना करते उसी मे खो गये। भोले भक्त कण- कण में ही ढूँढते रह गए। लेकिन पाया भोलेनाथ के भोले बच्चों ने। इसलिए कहावत है सच्ची दिल पर साहेब राज़ी।

 

➢➢  *बापदादा को कुमारियाँ बहुत प्रिय लगती हैं क्योंकि कुमारी सरेन्डर हुई और टीचर बन गई। कुमार सरेन्डर हुए तो टीचर नहीं कहलायेंगे, सेवाधारी कहलायेंगे।* कुमारी को टीचर की सीट मिल जाती है। आज कुमारी कल उसको सब बाप समान निमित शिक्षक की नज़र से देखते हैं। तो श्रेष्ठ हो गयी ना!

 

➢➢  *कुमारी जीवन में श्रेष्ठ बन जाएं तो उल्टी सीढ़ी चढ़ने से बच जाएं। आप लोगो को न चढ़ने और न उतरने की मेहनत है। प्रवृत्ति वालों को मेहनत करनी पड़ती है। तो सदा विश्व कल्याणकारी कुमारी।*

 

➢➢  *आप बच्चे देते हो- पुराना शरीर, जिसको सुईयों से सिलाई करते रहते,कमजोर मन जिसमे कोई शक्ति नहीं और काला धन तथा लेते हो 21 जन्मों की गैरन्टी का राज्य। ऐसा सौदा तो सारे कल्प में कभी भी नहीं किया।*

 

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *सच्ची दिल वाले ही दिलाराम बाप को अपना बना सकते है। दिलाराम बाप सच्ची दिल के सिवाए सेकण्ड भी याद के रूप में ठहर नहीं सकते।* सच्ची दिल वाले की सर्वश्रेष्ठ संकल्प रूपी आशायें सहज सम्पन्न होती हैं।

 

➢➢  *सच्ची दिल वाले सदा बाप के साथ का, साकार, आकार, निराकार तीनों रूपों में सदा साथ का अनुभव करते हैं।*

 

➢➢  *आप श्रेष्ठ आत्मायें अपने दिव्य बुद्धि के यन्त्र द्वारा तीनों काल की नॉलेज के आधार से अपना वर्तमान काल और भविष्य काल जान सकते हो।*

 

➢➢  *यन्त्र और दिव्य बुद्धि तो सबको प्राप्त है। इस दिव्य बुद्धि रूपी यन्त्र को कैसे यूज़ करना है, यह भी जानते हो। त्रिकालदर्शी-पन की स्थिति के स्थान पर स्थित हो, तीनो काल की नॉलेज के आधार पर यन्त्र को यूज़ करो।* इसी यन्त्र द्वारा अपने आप को देखो कि मेरा नंबर कौन सा है।

 

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  हंस सदा सागर के कण्ठे पर रहते हैं और सदा सागर की लहरों से खेलते रहते हैं। *अपने को ऐसे होलीहंस अनुभव करो। सदा ज्ञानरत्न चुगने वाले अर्थात् धारण करने वाले सदा बुद्धि में ज्ञान रत्न भरपूर।* बाकी जो भी व्यर्थ बातें, व्यर्थ दृश्य हैं, यह सब कंकड़ हो गये। हंस कभी कंकड़ नहीं लेते, सदा रत्नों को धारण करते है।

 

➢➢  *कभी भी किसी व्यर्थ बात का प्रभाव न हो।* अगर प्रभाव में भी आ गये तो वही मनन और वही वर्णन होगा। वर्णन, मनन से वायुमण्डल भी ऐसा बन जाता है। बात कुछ नहीं होती लेकिन वायुमण्डल ऐसा बन जाता है जैसे बड़े से बड़ा पहाड़ गिर गया हो क्योंकि वायुमण्डल में फैल जाती है। अगर उस *बात को समा दो, साक्षी होकर पार कर लो* तो वह बात राई हो जायेगी।

 

➢➢  *एक ही शब्द याद रहे - फॉलो फादर। जो भी कर्म करते हो - चेक करो कि यह बाप का कार्य है।* अगर बाप का है तो मेरा भी है, बाप का नहीं तो मेरा भी नहीं। *जो बाप का संकल्प वही मेरा संकल्प, जो बाप का बोल वही मेरा।* जैसे बाप सदा सफलता स्वरूप है वैसे स्वयं भी सदा सफलता स्वरूप हो जायेंगे। तो फॉलो फादर करने वाले मेहनत से छूट जायेंगे और सदा सहज प्राप्ति की अनुभूति होती रहेगी।

 

➢➢  *सदा बन्धनमुक्त, जीवनमुक्त स्थिति में स्थित रहना।* कुमारियों को  कभी भी यह संकल्प न आये कि गृहस्थी जीवन का भी अनुभव करके देखें। बहुत भाग्यवान हो जो कुमारी जीवन में बाबा की बनी हो। तो राईट हैण्ड बनना, लेफ्ट हैण्ड नहीं।

 

➢➢  बापदादा सभी को सफलता स्वरूप समझते हैं - *एक दो से आगे जाओ, रेस करना, रीस नहीं करना। हरेक की विशेषता को देखकर विशेष आत्मा बनना।*

 

➢➢  *सदा सफलता स्वरुप रहने के लिए बाप समान बनना है। सेवा करने के लिए पहले स्वयं में सर्वप्राप्ति का अनुभव करो* क्योंकि जितना खज़ाना आपके पास होगा उतना औरो को दे सकेंगे।

 

➢➢  *अलौकिक पढ़ाई पढ़ने के साथ-साथ सेवा का भी चांस लो। सदा अपने को गॉडली स्टूडेन्ट समझते हुए स्टडी की तरफ अटेन्शन रखो।* जितना स्वयं स्टडी के तरफ अटेन्शन रखोगे उतना औरों को भी अनुभवी बन स्टडी करा सकोगे।

 

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *जब याद और सेवा दोनों का बैलेन्स होगा तो वृद्धि स्वत: होती रहेगी। वृद्धि का सहज उपाय ही है- बैलेन्स।*

 

➢➢  *वर्तमान समय के हिसाब से सर्व अपने सेवाकेन्द्र के वातावरण को ऐसा बनाओ जैसे शान्ति कुण्ड हो।* एक कमरा विशेष इस वायुमण्डल और रूपरेखा का बनाओ, जैसे बाबा का कमरा बनाते हो ऐसे ढंग से बनाओ जो घमसान के बीच में शान्ति का कोना दिखाई दे। *ऐसा वायुमण्डल बनाने से, शान्ति की अनुभूति कराने से वृद्धि सहज हो जायेगी।*

 

➢➢  *सुनने और जानने वालों के लिए ठीक है लेकिन वो सुन-सुन करके थक गये हैं, उन्हों के लिए शान्ति का स्थान बनाओ।* मैजॉरटी अभी यही कहते हैं कि आपका सब कुछ सुन लिया लेकिन 'पा लिया है' ऐसा कोई नहीं कहता। तो *अनुभव कराने का साधन है - याद में बिठाओ, शान्ति का अनुभव कराओ। दो मिनट भी शान्ति का अनुभव कर लें तो छोड़ नहीं सकते। सिर्फ म्युज़ियम नहीं लेकिन शान्ति कुण्ड का स्थान भी।*

 

➢➢  *आबू के म्युज़ियम में अगर नई आत्माये चित्रों द्वारा नहीं भी समझते तो दो घड़ी याद में बिठाने से इम्प्रेशन बदल जाता है, इच्छा बदल जाती है। समझते हैं कि कुछ मिल सकता है। प्राप्ति हो सकती है। जहाँ पाने की इच्छा उत्पन्न होती वहाँ आने के लिए भी कदम उठना सहज हो जाता है। तो ऐसे वृद्धि के साधन अपनाओ।* 

 

➢➢  सेवाधारी जब स्व से और सर्व से सन्तुष्ट होते हैं तो सेवा का, सहयोग का उमंग-उत्साह स्वत: होता है। कहना, कराना नहीं पड़ता, सन्तुष्टता सहज ही उमंग-उल्लास में लाती है। *सेवाधारी का विशेष यही लक्ष्य हो कि सन्तुष्ट रहना है और करना है।*

 

➢➢  शक्ति स्वरूप समझने से सेवा में भी सदा शक्तिशाली आत्माओं की वृद्धि होती रहेगी। *जितनी अपनी स्वयं की शक्तिशाली स्टेज बनाते, वायुमण्डल को शक्ति स्वरूप बनाते, उतना आत्मायें भी ऐसी आती हैं। नहीं तो कमज़ोर आत्मायें आयेंगी और उनके पीछे बहुत मेहनत करनी पड़ेगी।* कुमारी नहीं, सेवाधारी नहीं - शिव शक्ति। *आपकी विशेषता है शिव शक्ति कंबाइंड। इसी विशेषता को याद रखो तो सेवा की वृद्धि में सहज और श्रेष्ठ अनुभव होता रहेगा।*

 

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