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⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *परमपिता
परमात्मा शिव इस धरा पर अवतरित हो सर्व आत्माओ को अज्ञानता की नींद से जगा
राजभाग्य देने के लिए राजयोग सिखा रहे है।* परमात्मा शिव रूहानी टीचर बन रूहानी
पाठशाला में पढ़ा रहे है। यहाँ आत्मा पढ़ती है और परमात्मा पढ़ाने लिए जीवात्मा
बनते हैं,और इनमें (ब्रह्मा) प्रवेश कर इनको और ब्रहमा मुख वंशावली ब्राह्मणों
को पढ़ाते हैं।
➢➢ परमात्मा शिव ने सर्व प्रथम पूरे सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान ब्रह्मा
तन में प्रवेश कर ब्रह्मा को दिया, फिर इनके द्वारा सरस्वती को इसलिए यह सबसे
जास्ती पढ़ते फिर नम्बरवार सब बच्चे पढ़ते हैं।
➢➢ *सतयुग में सब देव आत्माये ज्ञान स्वरूप है, वहाँ कोई अज्ञानी होता ही नही
जो ज्ञान देने की जरूरत हो। अभी हर आत्मा को स्वतंत्र पुरुषार्थ कर संस्कार
परिवर्तन करने है, फिर भविष्य प्रालब्ध भोगनी है। अगर वहाँ(सतयुग) यह मालूम होता
की हम विकारो में फंस नीचे गिरते चले जायेंगे तो यह ख्याल आने से ही ख़ुशी गायब
हो जाती।*
➢➢ *सतयुग में कोई अपवित्र नहीं होते।* और वहाँ बच्चे का भी इन्तजार नहीं होता
है। यहाँ बच्चे का इन्तज़ार करते हैं। वहाँ समय अनुसार आपेही साक्षात्कार होता
है। मनुष्य तो कहते यह कैसे हो सकता है। भला यहाँ के सम्पूर्ण विकारी कैसे समझें
कि वहाँ निर्विकारी होते हैं।
➢➢ *परमात्मा शिव कर्मो की गुह्य गति को जानने वाले है, वह इस समय इस धरा पर
अवतरित हो हम आत्माओ को कर्म,अकर्म और विकर्म का ज्ञान दे रहे है। यह ज्ञान तो
संत महात्मायें के पास भी नही है* ओर न वह मुक्ति जीवनमुक्ति को प्राप्त करेंगे।
उन्हों को भी यह मालूम नहीं है कि सतधर्म क्या है और सतकर्म क्या है, सिर्फ मुख
से राम रॉम कहना इससे कोई मुक्ति नहीं होगी।
➢➢ ऐसे समझ बैठना कि मरने के बाद हमारी मुक्ति होगी, ऐसे को भी बेसमझ कहा
जायेगा। *मनुष्य अपने जीवन में चाहे बुरे कर्म करें, चाहे अच्छा कर्म करें वो
भी इस ही जीवन में भोगना है। अब यह सारी नॉलेज हमें परमात्मा(शिव बाबा) टीचर
दवारा मिल रही है कि कैंसे शुद्ध कर्म करके अपनी प्रैक्टिकल जीवन बनानी है।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ जब तक अपनी
प्रेक्टिकल जीवन में कर्म श्रेष्ठ नहीं बने हैं तब तक कितनी भी मेहनत करेंगे तो
भी मुक्ति जीवनमुक्ति प्राप्त नही करेंगे। भल जीवन में दान पूण्य किया लेकिन ऐसा
करने से कोई विकर्म तो भस्म नहीं हुए। *बाप को याद कर विकर्मो का खाता समाप्त
कर मुक्ति जीवनमुक्ति को प्राप्त करना है।*
➢➢ *योगबल द्वारा आत्मिक स्थिति में स्थित रहने का अभ्यास करना है।* गृहस्थ
व्यवहार में रहते स्त्री पुरुष का भान समाप्त हो जाए। *सदा यह स्मृति रहे कि हम
परमात्मा के बच्चे आत्मा रूप में भाई भाई है।*
➢➢ *सर्व का सदगति दाता परमात्मा शिव है। शिव बाबा को याद कर स्वर्ग का वर्सा
प्राप्त करना है।* योग द्वारा विकारो पर जीत पानी है। ब्रह्माकुमार-कुमारी बन
कोई भी क्रिमनल एक्ट नही कर पंवित्र बन पवित्र दुनिया में जाना है।
➢➢ *परमात्मा शिव सर्व आत्माओ का रूहानी आशिक माशूक। पक्का निश्चय करना है कि
हम आत्मा परमात्मा की आशिक हैं। आशिक बन माशूक को याद करना है।*
➢➢ *मनमनाभव का मन्त्र बुद्धि में रख सदा स्मृति में रहे कि अब नाटक पूरा होने
को है। अब घर वापिस जाना है।*
➢➢ बाप सभी सम्बन्धों की सैक्रीन है। *सर्व संबंधों से बाप को याद कर सदा
रूहानी नशे में रहना है।मेरा तो एक शिव बाबा दूसरा न कोई।*
➢➢ वास्तव में हम आस्तिक है- नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। जो परमात्मा को नहीं
जानते वह नास्तिक है। अभी हम धणके बने है फिर भी माया थप्पड़ लगा देती है तो
ऑरफन, निर्धनके बन पड़ते हैं। भले ही बूढ़े हैं परन्तु माया उनको भी जवान बना
देती है। *बाबा की याद में रह माया से बॉक्सिंग करनी है।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
बाबा बच्चो का रिगार्ड रखते हैं। बच्चो को फादर को फालो करना है। *हम बच्चो को
भी श्रीमत पर चल एक दो का रिगार्ड रखना है।*
➢➢ अभी 16 कला नहीं बनें हैं। नम्बरवार तो होते हैं। *कोई न कोई भूलें सबसे
होती रहती हैं इसलिए अपने को मिया मिट्छू नहीं समझना है।* जैसे कर्म बाप करते
हैं अथवा मैं करूंगा, मुझे देख सब करेंगे।
➢➢ *मुरली अच्छी रीति पढ़नी है।* हर एक बात की समझानी मुरली में मिलती रहती है।
बच्चे मुरली नोट नहीं करते फिर वही बातें बाबा से पूछते रहते हैं।
➢➢ बाप सर्वशक्तिमान है, माया भी सर्वशक्तिमान है। आधाकल्प माया का राज्य चलता
है। अब बाप कहते है 5 विकारों का दान दे दो तो ग्रहण छूटे। फिर भी एकदम छूटता
नहीं है। *बाप को 5 विकारो का दान दे वापिस नही लेना है।*
➢➢ ऐसे समझ बैठना कि मरने के बाद हमारी मुक्ति होगी, ऐसे को भी बेसमझ कहा जायेगा।
मनुष्य अपने जीवन में चाहे बुरे कर्म करें, चाहे अच्छा कर्म करें वो भी इस ही
जीवन में भोगना है। *परमात्मा(शिव बाबा) टीचर बन शुद्ध कर्म करने की प्रैक्टिकल
नॉलेज दे रहे है। आज्ञाकारी बच्चा बन इसे जीवन में धारण करना है।*
➢➢ माया के तूफान आते हैं। तुम्हें *एक दो का हाथ पकड़कर, सहयोगी बन इस नई
यात्रा पर, बाप की श्रीमत पर चलते रहना है।* सारा मदार है बुद्धि की यात्रा पर
अंगद की तरह *अचल-अडोल बनना है।*
➢➢ अभी तो सब नर्क में हैं, दुर्गति में हैं। हम बच्चे *सदगति में जाने के लिए
तीव्र पुरूंषार्थ करना है। बाबा का आज़ाकारी बच्चा बन मन और बुद्रधि को मनमत से
सदा खाली रखना हैं।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ अभी ब्रह्मा मुख
वंशावली ब्राह्मण अन-नोन वारियर्स है फिर वेरी वेल नोन(ब्राह्मण सो देवता) बनते
है। तुम्हारे मन्दिर बनते हैं। *अभी गुप्त रूप में परमात्मा का सच्चा सेवाधारी
बन रामराज्य स्थापन करने की सेवा करनी है।*
➢➢ *युक्ति से बाप का परिचय दे सर्व आत्माओ को यह समझाना है कि यह सृष्टि चक्र
पूरे 5 हजार वर्ष का है।* हम बच्चे 5 हजार वर्ष के बाद शिव बाबा से मिले है।
किसी का गुम हुआ बच्चा मिल जाए तो माँ बाप को कितनी खुशी होगी, बच्चा भी
बाबा-बाबा कहता रहेगा। हम आत्माये भी विनाश के समय गुम हो गई थी अर्थात् बाप से
बिछुड़ गई। फिर कंल्प के बाद प्यारे बाबा से इस संगम पर मिली है। आधाकल्प(सतयुग,
त्रेता) हम आत्माये सुख भोगती है तो आधाकल्प दुःख भोगती है।
➢➢ सन्यासी कहते हैं ना - सुख काग विष्टा समान है। वह भी विकार के लिए कहते
हैं। गुरुनानक ने भी कहा है - मूत कपड़ धोये, तो कौन धोयेगा? *यह सिद्ध कर
समझाना है कि वह एक परमात्मा शिव ही है, जिसको सिक्ख कहते हैं एकोअंकार।*
➢➢ *ज्ञान को अच्छी रीति समझ शुरुड़ (सयानी) बुद्धि बन सर्व आत्माओ को शिव
सन्देश पहुचाना है। माताओ और कन्याओ को बाबा का राइट हैंड बन बहुत हिम्मत और
निर्भयता से बाबा को प्रत्यक्ष करना है।*
➢➢ *सबको परमात्मा और देवी- देवताओं की हिस्ट्री जॉग्राफी समझाने की सेवा करनी
है।* कोई यह जानता ही नही कि लक्ष्मी नारायण को कैसे राज्य मिला? कब मिला और वह
अब कहाँ गये?
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