━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 07 / 07 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *आत्मायें निर्वाणधाम से आकर यहां पार्ट बजाती हैं। बाप भी आकर पार्ट बजाते हैं। वह है शांतिधाम।*
➢➢ *जैसा झाड़ होगा वैसा ही फल लगेगा,उसमें फर्क नहीं पड़ सकता। अभी झाड़ बिखरा हुआ है। कोई - कोई किस-किस धर्म में कनवर्ट हो गये हैं।*
➢➢ *बेहद का वर्सा है - बेहद स्वर्ग की बादशाही। हद का वर्सा है नर्क। नर्क दुःख है इसलिए इसको बादशाही नहीं कहेंगे गदाई कहेंगे।*
➢➢ *हम अभी ईश्वरीय सन्तान वा सम्प्रदाय है, उसके पहले हम आसुरी सम्प्रदाय थे।* अभी हमको ईश्वरीय मत मिलती है। *ईश्वरीय मत क्या सिखाती है ? पतितों को पावन बनाना।*
➢➢ *तुम जानते हो जैसे पहले मूलवतन में थे, वैसे ही नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार हिसाब किताब चुक्त कर वहॉं जाए सभी को रहना है।* ऊपर में निराकार आत्माओं का झाड़ है।
➢➢ *तत्व को ज्ञान का सागर थोड़े ही कहेंगे। बाबा तो बच्चों को भी आप समान ज्ञान सागर बनाते है।*
────────────────────────
❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *तुम बाप को जानते हो।* दुनिया सिर्फ गाती है, जानती नहीं है कि कैसे पतित-पावन बाप आकर पावन बनाते हैं। *तुम जानते हो पतित-पावन बाप हमको पावन बनाए, पावन स्वर्ग का मालिक बना रहे हैं।*
➢➢ *जो पण्डा बन आते हैं तो धनका बनाकर धनी के पास ले जाते हैं ना। उनको भी कशिश होती है कि बरोबर धनी बेहद के बाप से हमको बेहद का वर्सा मिलता है।* बेहद का वर्सा है - बेहद स्वर्ग की बादशाही।
➢➢ *बाप को बुलाते हैं कि आकर पतित से पावन बनाओ।* ऐसे नहीं कि हम वहाँ जाकर आकाश तत्व का अन्त लेवें। *हम आत्मायें ऊपर में रहती हैं।* तो भी स्पेस थोड़ी लेते हैं। आकाश तत्व तो बड़ा है।
➢➢ *बच्चों को पता है समय बहुत थोड़ा है। लड़ाई लग जायेगी फिर उन्हों का आवाज आदि सब बन्द हो जायेगा।* ऊपर में आना जाना बन्द हो जायेगा।
────────────────────────
❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *तुम्हारा धन्धा है सबको बहुत मीठा बनाना।* कोई ऐसे फिर लूनपानी बनने वाले मिल जाते है तो कहते है भावी। देखो सूर्य में कितनी ताकत है, जो खारे सागर पानी खींचकर मीठा बना देते हैं। तो बच्चों में भी इतनी ताकत होनी चाहिए। ऐसे नही की और ही खारे बना दें।
➢➢ बाप आया है - हमको पावन बनाने तो *अपने को देखना है कि हम बाप का कर्तव्य कर रहे है या नहीं ?* बाप ने क्या किया ? यह हॉस्पिटल यूनिवर्सिटी खोली । बच्चों का भी यही काम है।
➢➢ जो बाप का बने ही नही, वह यह धन्धा कर न सके। बच्चे समझते है *हमारी एम ऑब्जेक्ट ही है पावन बनना और बनाना।* बाप कहते है- *कोई पतित कार्य नहीं करना। कभी विकार मे नहीं जाना।*
➢➢ *पुराने मित्र सम्बंधियों, पुरानी दुनिया से मोह निकल जाना चाहिए।* जब वह निकले तब गुण धारण हों।
➢➢ बाप के दिल पर वह चढ़ेंगे जो पावन बनाने का धन्धा करेंगे। *मनुष्यों को कौड़ी से हीरे जैसा देवता बनाने का पुरुषार्थ करना है।*
➢➢ *बाप से तो एकरस लव होना चाहिए ना और सबसे नष्टोमोहा होकर दिखाना।*
➢➢ *बाप कहते है तुम्हें वनवाह में रहना है चतियों वाला कपड़ा पहनना है।* ऐसा समय भी आना है। ऐसे तकलीफ होगी तो टूटा फूटा कपड़ा भी मुश्किल मिलेगा पहनने के लिए। इसलिए इन सबसे ममत्व मिटा दो।
────────────────────────
❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *पहले-पहले जब भक्ति मार्ग शुरू हुआ तब संन्यासी नहीं थे। वह तो बाद में आये है, उस समय संन्यासी कोई ज्ञान नहीं देते थे। यह तो पीछे सर्व व्यापी का ज्ञान निकला है।*
➢➢ *पहले तो कहते थे- हम ईश्वर और ईश्वर की रचना को नही जानते है। ना ही समझते थे कि वह बाप है। बाप फिर सर्व व्यापी कैसे हो सकता है।* अब बाप तुम बच्चों को समझाते है।
➢➢ *सर्व व्यापी के ज्ञान ने ही भारत को कंगाल , बेमुख, नास्तिक, निधन का बना दिया है। अब तुम धनी के बने हो, फिर और निधन को धनका बनाने का पुरुषार्थ करो।*
➢➢ *सारा दिन यही धन्धा करना चाहिए पतितों को पावन कैसे बनायें।* पहले तो प्रश्न है कि हम खुद पावन बने है ? हमारे में कोई विकार तो नहीं है ? हमारा परमपिता परमात्मा के साथ इतना लव है, अगर लव है तो लव का सबूत कहाँ ?
➢➢ *अपनी चढ़ती कला है, उसका भी सबूत चाहिए ना। जो पण्डे बन आते हैं, वह सबूत देते हैं। सर्विस लायक बनना है।*
────────────────────────