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❍ 07 / 08 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *आत्मा तो सब हैं। बाकी शरीर मिलने से शरीर के नाम बदलते जाते हैं। आत्मा पर कोई नाम नहीं। शरीर पर ही नाम पड़ता है।*
➢➢ *बाप कहते हैं मैं भी आत्मा हूँ। परन्तु परम आत्मा यानी परमात्मा हूँ।* मेरा नाम तो है ना। मैं हूँ आत्मा। *मैं शरीर कभी धारण करता नहीं हूँ, इसलिए मेरा नाम रखा गया है शिव और सभी के शरीर के नाम पड़ते हैं, मेरा तो शरीर नहीं है।*
➢➢ *इस समय ब्रह्मा सरस्वती जो बड़े ते बड़े हैं उनको भी सद्गति मिल रही है।* सद्गति तो सभी आत्माओंको मिलनी है। *सभी आत्मायें परमधाम में रहती हैं, फिर भी परमात्मा को तो अलग रखेंगे ना।* सबको अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है।
➢➢ मदर भी एडाप्टेड है। *सरस्वती को भी परमपिता परमात्मा ने ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट किया और फिर इसमें प्रवेश किया है।* यह एडाप्टशन और प्रकार की है, थ्रू तो कोई चाहिए ना।
➢➢ आत्मायें सभी पतित हो गई हैं। तो जरूर परमपिता परमात्मा को आना पड़े। पतित दुनिया और पतित शरीर में। *बाप खुद कहते हैं मुझ दूरदेश के रहने वाले को बुलाते हैं, क्योंकि तुम पतित हो मैं एवर पावन हूँ।*
➢➢ तुम जानते हो *हम संगम पर पावन बन रहे हैं। पतित दुनिया का विनाश होना है। यह महाभारत लड़ाई है। नेचुरल कैलेमिटीज होती है, इन द्वारा पुरानी दुनिया खलास होनी है। नई दुनिया में है ही देवताओं का राज्य।* तो अभी हम परमपिता परमात्मा के फरमान पर चलते हैं।
➢➢ पतित-पावन बाप आकर आत्माओं से बात करते हैं। *ब्रह्मा तन में आकर समझाते हैं, इसलिए इनका नाम है प्रजापिता। प्रजापिता है ना, प्रजा को रचने वाला। ब्रह्मा द्वारा प्रजा रचते हैं, ऐसे नहीं कि सरस्वती द्वारा कोई एडाप्ट करते हैं, नहीं।* यह तो बड़ी समझ की बात है।
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ बाप तो कहते हैं मामेकम् याद करो। आत्मा समझती है अभी परमपिता परमात्मा हमको सम्मुख नालेज देते हैं। *उस बाप की ही अव्यभिचारी याद रहनी चाहिए और कोई नाम रूप की याद नहीं आनी चाहिए।*
➢➢ *सारी रूद्र माला का बीजरूप बाप है ना। सभी उनको याद करते हैं ओ गाड फादर। सभी जगह फादर को याद करते हैं, मदर को नहीं।*
➢➢ *आत्मा पुकारती है हमको दु:ख से छुड़ाओ, लिबरेट करो।* सबको लिबरेट करते हैं। माया ने सबको दु:खी किया है। सीताओं ने पुकारा है ना।
➢➢ यह कोई लौकिक देहधारी बाप नहीं है। यह तो निराकार है। इनमें प्रवेश किया है। कहते हैं तुम भी देही-अभिमानी बनो। *अपने को आत्मा समझ मुझ परमपिता परमात्मा को याद करो।*
➢➢ पतित-पावन परमपिता परमात्मा उसने आकर पवित्रता की प्रतिज्ञा कराई है। 5 हजार वर्ष पहले प्रतिज्ञा की थी। *अब फिर परमपिता परमात्मा से बुद्धियोग लगाओ तो तुम पावन बन जायेंगे।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *पहले तो अपने को आत्मा समझना है।* आत्मा ही कहती है मैं शरीर लेता हूँ, छोड़ता हूँ। एक-एक बात निश्चय में बिठानी होती है क्योंकि नई बात है ना।
➢➢ आत्मा जानती है - मेरे शरीर का नाम भी है और पद भी है मजिस्ट्रेट का। यह शरीर छोड़ने से मजिस्ट्रेट पद और शरीर का नाम रूप सब बदल जायेगा। पद भी दूसरा हो जायेगा। तो *पहले-पहले आत्म-अभिमानी बनना है।*
➢➢ श्रीमत पर तो जरूर चलना होगा। *आप पावन बनाने आये हो मैं भी जरूर पावन बनूँगा,* तब ही पावन दुनिया का मालिक बनूँगा। *यह प्रतिज्ञा करनी होती है।* यही राखी बंधन है।
➢➢ बाप समझाते हैं तुम आत्मा हो, तुम्हारा स्वधर्म शान्ति है। तुम शान्तिधाम के रहने वाले हो। *तुम कर्मयोगी हो।* साइलेन्स में तुम कितना समय रहेंगे। *अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो* तो विकर्म विनाश होंगे।
➢➢ सतयुग में पवित्र गृहस्थ था, अब अपवित्र बने हैं। यह है ही रावण राज्य। *अब स्वर्ग में चलना है तो पावन बनना है,* तब ही बेहद के बाप से वर्सा मिलेगा।
➢➢ हम शान्तिधाम के वासी हैं फिर सुखधाम में गये, अभी तो दु:खधाम है। फिर जाना है शान्तिधाम इसलिए *देही-अभिमानी बनना है।* बाप कहते हैं *घर में रहते एक तो पवित्र बनो, दूसरा मुझे याद करो* तो पाप नाश हो जायेंगे। याद नहीं करेंगे, पवित्र नहीं रहेंगे तो विकर्म कैसे विनाश होंगे। रावणराज्य से कैसे छूटेंगे।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *भारत में ही प्योरिटी थी तो कितनी पीस प्रासपर्टी थी और कोई धर्म वाला नहीं था। तुम कहेंगे बाबा हमको ऐसा समझाते हैं तुम भी समझो। बाप को याद करने से ही विकर्म विनाश होंगे। पावन बनाने वाला एक ही बाप है।*
➢➢ *जब कोई आते हैं तो पहले-पहले यह समझाओ कि आत्मा और शरीर दो चीजें हैं। आत्मा अविनाशी है। पहले अपने को आत्मा समझो।*
➢➢ मनुष्यों को तो आत्मा का ज्ञान भी नहीं है। *पहले आत्मा का ज्ञान देकर फिर समझाओ आत्मा का बाप तो परमात्मा है। आत्मा दु:खी होती है तो पुकारती है ओ गाड फादर। वही पतित-पावन है।*
➢➢ यह नालेज बड़ी समझने की है। *बोलो, ऐसे नहीं कि एक कान से सुन दूसरे कान से निकाल देना है। यहाँ तो पढ़ना है।* 7 दिन की भट्ठी भी मशहूर है। *7 रोज बैठकर समझो। बाप को और अपने जन्मों को जानो।*
➢➢ *तुम अथारिटी से समझाने वाले हो तो भी रिस्पेक्ट से बोलना है कि तुम भल कहते हो कि हम गाड फादर की सन्तान हैं, परन्तु फादर का ज्ञान कहाँ है! लौकिक बाप को तो जानते हो परन्तु पारलौकिक बाप जो इतना बेहद का सुख देते हैं, स्वर्ग का मालिक बनाते हैं उनको तुम नहीं जानते हो। भारत को जिसने स्वर्ग बनाया था, उनको तुम भूल गये हो इसलिए ही यह हालत हुई है।*
➢➢ *अभी तुम बच्चे भाषण में समझाते रहो कि तुम पतित हो ना तब तो पतित-पावन बाप को याद करते हो। सब सीतायें शोक वाटिका में हैं। दिन प्रतिदिन शोक बढ़ता ही जाता है। जिन्होंने राज्य लिया है वह भी समझते हैं बहुत दु:ख है। कितना माथा मारते रहते हैं।*
➢➢ *पहले पहले परिचय देना है बाप का।* बाप ही आकर लिबरेट करते हैं। राखी बंधन कब से शुरू हुआ? इनका भी बड़ा महत्व है। लिख देना चाहिए - आकर समझो। *कोई को भी समझाओ, कहाँ भी भाषण के लिए जगह दें।* कांग्रेस वाले दुकानों पर खड़े होकर भाषण करते हैं तो ढेर आ जाते हैं। *सर्विस के लिए पुरूषार्थ करना चाहिए।*
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