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❍ 29 / 09 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ आत्मा एक छोटी
सी बिन्दी है। दुनिया में एक भी मनुष्य नहीं जिसकी बुद्धि में हो कि आत्मा एक
बिन्दी मिसल स्टार है। *तुम जानते हो कि हमारी इतनी छोटी सी आत्मा में 84 जन्मों
का, 5 हजार वर्ष का पार्ट है।*
➢➢ पतित-पावन ही
आकर शिक्षा देंगे। नहीं तो हम पावन कैसे बने। *गाया भी जाता है - जब तक जीना है
तब तक सीखना है, पढ़ना है।*
➢➢ सुखधाम तो है ही
अलग। वहाँ सदैव सुख ही सुख है। *इस दुनिया में जो भी सुख है वह है ही अल्पकाल
काग विष्टा के समान। तुम बच्चों को अभी बहुत अच्छी बुद्धि मिली है।* मैं आत्मा
क्या हूँ, मेरा बाप परमात्मा क्या है।
➢➢ *जो रूद्र की
माला बनती है वही फिर विष्णु की माला बन जाती है। यह ज्ञान तुम बच्चों को मिला
है।*
ब्रह्मा को प्रजापिता
कहते हैं। विष्णु को प्रजापिता नहीं कहेंगे।
➢➢ *ब्रह्मा द्वारा
तो एडाप्ट किया जाता है। विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण के तो बच्चे पैदा होते
हैं, जो तख्त पर बैठते हैं।* शंकर को भी प्रजापिता नहीं कहेंगे।
➢➢ *अल्फ माना बाबा, बे माना बादशाही। यह तो बिल्कुल
राइट बात है ना।* स्वर्ग की बादशाही थी, भारत सारे विश्व का मालिक था, और कोई
का राज्य नहीं था।
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *आत्मा को योग
से ही पवित्र बनाना है। जितना योग में रहेंगे तो तुम्हारी आत्मा गोल्डन एज में
जायेगी* फिर आइरन एज में न आत्मा को, न शरीर को रहना है। हम पढ़ते ही हैं पावन
दुनिया में आने के लिए।
➢➢ यहाँ तो मेहनत
कर स्वयं वह लक्ष्मी-नारायण, सीता-राम बन रहे हो। *यहाँ तुम आये हो सूर्यवंशी,
चन्द्रवंशी डिनायस्टी के रजवाड़े बनने।*
➢➢ *सूक्ष्मवतन में
तो है ही देवता।* *सूक्ष्मवतन में जाते हो - बगीचा, फल आदि देखते हो। क्या वहाँ
बगीचा है ? बाबा साक्षात्कार कराते हैं।* बाकी है नहीं। बुद्धि कहती है वहाँ
सूक्ष्मवतन में झाड़ आदि हो न सके। यह जरूर साक्षात्कार होता है। साक्षात्कार
भी यहाँ का करायेंगे।
➢➢ आत्मा में
अविनाशी पार्ट है जो कभी बदल नहीं सकता। कैसे वन्डरफुल खेल बना हुआ है। आत्मा
को अनादि पार्ट मिला हुआ है। बाबा कितना सहज कर समझाते हैं। *सिर्फ त्रिमूर्ति
चित्र के सामने जाकर बैठो तो बुद्धि में सारा चक्र आ जायेगा। यह शिवबाबा है, यह
ब्रह्मा है, जिससे ब्राह्मण रचते हैं। अभी कलियुग है फिर सतयुग आना है। चित्र
सामने खड़ा होने से जैसे कि सारे विश्व का खेल बुद्धि में आ जाता है।*
➢➢ *पहले-पहले
ब्राह्मण वर्ण फिर देवता.... वर्णों में आते हैं। वर्ण तो यहाँ ही हैं।*
सूक्ष्मवतन में तो वर्णों की बात ही नहीं है। ब्रह्मा को प्रजापिता कहते हैं।
विष्णु को प्रजापिता नहीं कहेंगे। ब्रह्मा द्वारा तो एडाप्ट किया जाता है।
विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण के तो बच्चे पैदा होते हैं, जो तख्त पर बैठते
हैं।
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
कितनी छोटी सी बिन्दी आत्मा है, जिसमें सब जन्मों का अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ
है, *वह कभी मिटता नहीं है, मिटने वाला भी नहीं है। कितना भारी वन्डर है।*
➢➢
साक्षात्कार में प्रिन्स को देखते हैं तो समझते हैं हमको यह बनना है। खुशी हो
जाती है। बहुत करके प्रिन्स का ही साक्षात्कार होता है। *अगर विचार किया जाए तो
मुकुटधारी तो सब बनते हैं।*
➢➢
जैसे सन्यासी शिक्षा देते हैं सन्यास करवाने लिए। *यहाँ भी 5 विकारों का सन्यास
करना है।* पतित-पावन ही आकर शिक्षा देंगे।
➢➢
उनको निराकार - निरहंकारी कहा जाता है। उनका अर्थ भी कोई समझ न सके। *यह गुण
बच्चों को ही सिखलाते हैं। बच्चों को भी ऐसा निरहंकारी बनना है।*
➢➢
*तुम ईश्वरीय बच्चे हो।*ऐसे नहीं कि सब ईश्वर के रूप हैं। यह बाप बैठ समझाते
हैं। बाकी *साक्षात्कार आदि की तो चिटचैट है, इनकी आश नहीं रहनी चाहिए।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *आज से 5 हजार
वर्ष पहले क्या हुआ था। 5 हजार वर्ष पहले जो हुआ था वही अब हुआ। ऐसे-ऐसे लिखने
से मनुष्यों को ड्रामा का पता तो पड़ जाये।* मैगजीन में भी लिख सकते हैं। तुम
बच्चों की बुद्धि में तो सारा राज है।
➢➢ *एक अखबार में
रोज डालते हैं - 100 वर्ष पहले क्या हुआ, 100 वर्ष की बात तो सहज है। अखबारों
से झट निकाल बतायेंगे। वह है टाइम्स आफ इन्डिया अखबार। तुम्हारी अखबार है
टाइम्स आफ वर्ल्ड। यह अक्षर बड़ा अच्छा है।*
➢➢ *पहली मुख्य बात
है कोई नया आता है उसको बाप का परिचय दो। ब्रह्म तत्व, महतत्व है। शिवबाबा
निराकार को कोई ब्रह्म तत्व नहीं कहेंगे।* एक-एक अक्षर का अर्थ है। तुम ईश्वरीय
बच्चे हो। ऐसे नहीं कि सब ईश्वर के रूप हैं। यह बाप बैठ समझाते हैं। बाकी
साक्षात्कार आदि की तो चिटचैट है, इनकी आश नहीं रहनी चाहिए।
➢➢ *लक्ष्मी-नारायण,
राधे-कृष्ण के लिए भी लिखो। ब्रह्मा द्वारा सतयुग का वर्सा मिलता है।
लक्ष्मी-नारायण को यह प्रालब्ध कैसे मिली ? जरूर संगमयुग ही होगा, जब ऐसे कर्म
किये हैं।* अन्तिम जन्म में पुरूषार्थ से उन्होंने यह प्रालब्ध पाई है। ऐसे-ऐसे
ख्याल बुद्धि में आना चाहिए। फिर चित्रों की भी दरकार नहीं रहेगी। बुद्धि में
सारा राज आ जायेगा। इन चित्रों से फिर दिल रूपी कागज पर उतारना है। *बाबा
सेन्टर्स के बच्चों का मुख खोलने की युक्ति बता रहे हैं। चित्रों को देखते रहो।
अन्दर में बोलते रहो।*
➢➢ *शमशान में भी
जाकर किसको समझा सकते हो। जब तक मुर्दा जल जाये तब तक बैठ सतसंग करते हैं। तुमको
कोई रोकेगा नहीं। बोलो आओ तुमको हम समझाये।* सुनकर बहुत खुश होंगे। बात करने
वाले बहुत समझदार, सयाने चाहिए कहाँ भी जाकर तुम समझा सकते हो।
➢➢ तुम्हारे बगल
में सारे विश्व की हिस्ट्री-जॉग्राफी है। श्रीकृष्ण के चित्र पर भी तुम अच्छी
तरह समझा सकते हो। *इनको श्याम-सुन्दर क्यों कहते हैं, आओ तो हम आपको कहानी
सुनायें। सुनकर बड़े खुश हो जायेंगे। भारत गोल्डन एज था। अब पत्थर एज है। सांवरा
हो गया है।* काम चिता पर बैठने से काला मुँह हो जाता है। तो ऐसे-ऐसे समझाने से
तुम बहुत कमाल कर दिखा सकते हो। तीनों चित्र भल साथ में हो। एक चित्र पर समझाकर
फिर दूसरे चित्र पर समझाना चाहिए।
➢➢ *सवेरे मन्दिरों
में चले जाओ। आओ तो हम तुमको लक्ष्मी-नारायण की जीवन कहानी सुनायें।* भक्ति
मार्ग में यज्ञ, तप, तीर्थ आदि करते-करते तुम एकदम कौड़ी मिसल बन पड़े हो, फिर
शास्त्रों ने क्या सहायता की ? हम आपको सच बतलाते हैं, सच ही सहायता करते हैं।
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