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❍ 15 / 08 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
तुम्हारी समझ में आता है हम पारलौकिक मात-पिता के बने हैं। *यह ज्ञान की बातें
अभी यहाँ चलती हैं, सतयुग में नहीं चलती। वहाँ तो न ज्ञान है, न अज्ञान है।
ज्ञान देने वाला वहाँ कोई है नहीं।* ज्ञान से तो प्रालब्ध पा ली। *तुम अभी
ज्ञान से प्रालब्ध पा रहे हो, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार।*
➢➢ *श्रीमत पर न
चलने वाले को बाप कभी अपना बच्चा कह नहीं सकते।* बाहर से भल बच्चे-बच्चे कहते
हैं - परन्तु अन्दर में समझते हैं कि यह नाफरमानबरदार हैं, यह क्या पद पायेंगे।
देह-अभिमान के कारण श्रीमत पर चलते नहीं हैं। देही-अभिमानी बड़े मीठे होंगे। *यह
आसुरी दुनिया कितनी कड़ुवी है। मात-पिता, भाई-बहन सब कड़ुवे। यहाँ भी जो
देह-अभिमानी हैं, वह कड़ुवे हैं।*
➢➢ *हमारी तो माया
के साथ गुप्त युद्ध है, जिसको कोई भी जानते नहीं। हम अगर बाप को याद नहीं करेंगे
तो माया का थप्पड़ लग जायेगा, तूफान आयेगा।* बाप कहते हैं अभी तुम्हारा मुख है
उस तरफ और पैर हैं इस तरफ। हमेशा याद करते रहना चाहिए नई दुनिया को। गृहस्थ
व्यवहार में तो रहना है। *बाप कहते हैं निर्बन्धन हो रहने वालों से गृहस्थ
व्यवहार में रहने वालों की अवस्था अच्छी है।*
➢➢ *यहाँ रहने वालों
को तो फिर ब्रह्मणों का संग है। बाहर तो दुनिया बहुत खराब है। ज्ञान में संग ऐसा
होना चाहिए फर्स्टक्लास जो उससे पूरा रंग लगे। देह-अभिमानी का संग मिलने से
एकदम मिट्टी पलीत हो जाती है। फिर फरमान पर भी नहीं चलते हैं।*
➢➢ बाबा कहते हैं
अगर हमसे आकर पूछो तो झट बतायेंगे तुम फरमानबरदार हो वा नहीं। नम्बरवार
पुरूषार्थ अनुसार बहुत अच्छे-अच्छे हैं जो दिल को खुश करते रहते हैं। *दुनिया
में तो बड़ा दु:ख मारामारी है। खून-खराबी बहुत है, इनको कांटों का जंगल कहते
हैं। तुमने इनसे किनारा कर लिया है।*
➢➢ *हम शिवबाबा से
वर्सा लेते हैं, यह भूलने से खाना बरबाद हो जायेगा। खाना आबाद होगा शिवबाबा के
भण्डारे से। इनको भूला तो झोली खाली हो जायेगी। प्रजा में भी साधारण पद पायेंगे।*
सजा तो बहुत खायेंगे। खुद छोड़ने से फिर औरों को भी संशयबुद्धि बनाते हैं।
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *अभी तुम संगम
पर हो। बुद्धि में है हम गृहस्थ व्यवहार में रहते संगम पर खड़े हैं। अभी हम
कांटों से फूल बनते जा रहे हैं।*
➢➢ *विशालबुद्धि तब
बनेंगे जब बाप को याद करेंगे। तुम बच्चों की अब विशालबुद्धि बनी है।*
➢➢ *सतयुग में सब
देही-अभिमानी होते हैं। जानते हैं एक पुराना शरीर छोड़ नया शरीर लेना है।*
➢➢ तुम बच्चों के
लिए यह दुनिया जैसे है ही नहीं। *अशरीरी आये थे, अशरीरी बन जाना है।* बेहद का
बाप बच्चों को पढ़ाते हैं, उनका कितना रिगार्ड रखना चाहिए।
➢➢ यहाँ तो बच्चों
को श्रीमत पर चलना पड़े। नहीं तो माया बड़ा धोखा देने वाली है। झट देह-अभिमान आ
जाता है। *देह-अभिमान को मिटाए देही- अभिमानी बनने में ही मेहनत है।*
➢➢ *तुम मूलवतन,
सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन और यह सारा चक्र कैसे फिरता है - इसे जानते हो, इसको
विशालबुद्धि वा बेहद की बुद्धि कहा जाता है।* मनुष्यों की है हद की। तुम्हारी
बनती है बेहद की बुद्धि।
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
*तुम्हें अपनी दैवी मीठी चलन से बाप का शो करना है, सबको बाप का परिचय दे, वर्से
का अधिकारी बनाना है।*
➢➢
*बच्चों को बहुत मीठा बनना पड़े।* जितना मीठा बनेंगे, सम्पूर्ण बनेंगे उतना वह
भविष्य में अविनाशी बन जायेगा।
➢➢
*देखना चाहिए कि हमारे में देह-अभिमान तो नहीं है?* देही-अभिमानी बनना बड़ी
मेहनत की बात है। शिवबाबा की सर्विस में जो तत्पर रहेंगे वही देही-अभिमानी बन
सकते हैं।
➢➢
*यज्ञ की बहुत प्यार से, सच्चे दिल से सम्भाल करनी है।* बहुत लवली मीठा बनना
है। *सपूत बनकर दिखाना है। कोई भी अवज्ञा नहीं करनी है।*
➢➢
*फर्स्ट क्लास ज्ञानी तू आत्माओं का संग करना है।* देही-अभिमानी बनना है। *देह-अभिमानियों
के संग से दूर रहना है।*
➢➢
*अपनी सर्व जिम्मेवारियों का बोझ बाप हवाले कर डबल लाइट बनो।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
*यह तो कॉमन रीति से सब कह देते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है।* परन्तु सर्वव्यापी
का तो कोई अर्थ ही नहीं। दु:ख हर्ता सुख कर्ता कहते हैं ना। *दु:ख मिटाने वाला,
सुख देने वाला तो एक चाहिए ना। तुम थोड़ा भी टच करेंगे (समझायेंगे) तो समझेंगे
बरोबर सतयुग में सुख ही सुख था। अभी तो दु:ख ही दु:ख है। तो जरूर सबके दु:खों
को बाप ने मिटाया होगा। यह तो अति सहज बात है।*
➢➢ *ऐसे बहुत आयेंगे
जिनको बाबा कहेंगे तुम ऐसे पैसे क्या करेंगे? तुमको बहुत अच्छी राय देते हैं कि
3 पैर पृथ्वी की ले लो। 10-15 हास्पिटल, कालेज खोलो।* अपने गांव में मकान किराये
पर ले लो। यह तो सब खत्म हो ही जायेगा। *इससे तो इस खर्चे में 10-15 सेन्टर खोलो
तो बहुतों का कल्याण हो जायेगा।* तुम बहुत धनवान हो जायेंगे। *तुम छोटी सी जगह
में यह कालेज खोल सकते हो।*
➢➢ *तुमको सिर्फ
रास्ता बताना है, अन्धों की लाठी बनना है। जगाना पड़ता है। बाप और वर्से को याद
करो तो बस तुम्हारा बेड़ा पार है।* और कोई खर्चे आदि की बात ही नहीं। बेहद के
बाप से बेहद का वर्सा लेंगे। समझाना बड़ा सहज है।
➢➢ *तुम बहुत समझा
सकते हो। सिर्फ 3 पैर पृथ्वी चाहिए। बस। एक दो को उठाया तो भी अहो सौभाग्य।*
तुम एक ही मन्त्र देते हो - मन्मनाभव। सिर्फ कहते हो बाप को याद करो तो अन्त मती
सो गति हो जायेगी। बाप स्वर्ग का खजाना देते हैं। सुना, बस बुद्धि में बैठा।
स्वर्ग में आने लायक बन गया। जगह देने वाले को हक मिल जाता है। बाबा इतना सहज
करके बताते हैं। *कोई को सुखधाम का रास्ता बताओ। प्रजा बनी वह भी अच्छा।
नम्बरवार बनते जायेंगे।* 3 पैर पृथ्वी का मशहूर है, इससे तुम विश्व के मालिक
बनते हो।
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