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⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *द्वापर से जो
भी मेले विशेष रूप में होते हैं, कोई न कोई नदी के किनारे पर होते हैं वा कोई
देवी वा देवता की मूर्ति के उपलक्ष में होते हैं। एक ही शिवरात्रि बाप की
यादगार में मनाते हैं। लेकिन परिचय नहीं।* द्वापर के मेले भक्तों और देवियों वा
देवताओंके होते हैं।
➢➢ *बापदादा बाप और बच्चों का मेला देख हर्षित हो रहे हैं। यह मेला महानदी और
सागर के कण्ठे पर बाप और बच्चों का होता है। ऐसा मेला सारे कल्प में हो नहीं
सकता।* मधुबन में डबल मेला देखते हो। एक बाप और दादा महानदी और सागर का मेला
देखते। साथ-साथ बापदादा और बच्चों का मेला देखते। तो मेला तो मना लिया ना! यह
मेला वृद्धि को पाता ही रहेगा। एक तरफ सेवा करते हो कि वृद्धि को पाते रहें। तो
वृद्धि को प्राप्त होना ही है और मेला भी मनाना ही है।
➢➢ *शिव बाप मुस्कराते हुए बोले कि तीन सम्बन्धों से तीन रीति की विधि वृद्धि
प्रमाण परिवर्तन हो ही जायेगा। बाप रूप से विशेष अधिकार है मिलन की विशेष टोली
और शिक्षक के रूप में मुरली। सतगुरू के रूप में नज़र से निहाल अर्थात् अव्यक्त
मिलन की रूहानी स्नेह की दृष्टि।* इसी विधि के प्रमाण वृद्धि को प्राप्त होने
वाले बच्चों का स्वागत और मिलन मेला चलता रहेगा।
➢➢ *सभी को संकल्प होता है कि हमें कोई वरदान मिले। बापदादा बोले जब हैं ही
वरदाता के बच्चे तो सर्व वरदान तो आपका जन्म-सिद्ध अधिकार है। अभी तो क्या
लेकिन जन्मते ही वरदाता ने वरदान दे दिये।* विधाता ने भाग्य की अविनाशी लकीर
जन्मपत्री में नूँध दी। भाग्य विधाता बाप ने वरदाता बाप ने ब्रह्मा माँ ने
जन्मते ही ब्रह्माकुमार वा कुमारी के नाम संस्कार के पहले सर्व वरदानों और
अविनाशी भाग्य की लकीर स्वयं खींच ली। जन्मपत्री बना दी। *तो सदा के वरदानी तो
हो ही।*
➢➢ *जिसका साथी सर्वशक्तिवान बाप है उसको सदा ही सर्व प्राप्तियां हैं। उनके
सामने कभी भी किसी प्रकार की माया नहीं आ सकती।* माया को विदाई दे दी है? कभी
माया की मेहमान निवाजी तो नहीं करते? *जो माया को विदाई देने वाले हैं उन्हों
को बापदादा द्वारा हर कदम में बधाई मिलती है।* अगर अभी तक विदाई नहीं दी तो
बार-बार चिल्लाना पड़ेगा - क्या करें, कैसे करें इसलिए *(हम बच्चे)सदा विदाई
देने वाले और बधाई पाने वाले।*
➢➢ *बाप को हरेक बच्चा अति प्यारा है। सब श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ हो।* चाहे गरीब
हो, चाहे साहूकार, चाहे पढ़े लिखे हो चाहे अनपढ़, सब एक दो से अधिक प्यारे हैं।
*बाप के लिए सभी विशेष आत्माये हैं। कौन सी विशेषता है सभी में? बाप को जानने
की विशेषता है। जो बड़े बड़े ऋषि मुनि नहीं जान सके वह आपने जान लिया, पा लिया।*
वह बिचारे तो नेती नेती करके चले गये।
➢➢ *ब्रह्मण बच्चे अपनी बीमारी की दवाई स्वयं ही कर सकते हैं। खुशी की खुराक
सेकण्ड में असर करने वाली दवाई है।* जैसे वह लोग पावरफुल इन्जेक्शन लगा देते
हैं तो चेन्ज हो जाते। *ऐसे ब्रह्मण स्वयं ही स्वयं को खुशी की गोली दे देते
हैं वा खुशी का इन्जेक्शन लगा देते हैं। यह तो स्टाक हरेक के पास है ना! नालेज
के आधार पर शरीर को चलाना है। नालेज की लाइट और माइट बहुत मदद देती है।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *हरेक यही समझे
कि बापदादा हरेक शक्ति वा पाण्डव से यह पर्सनल बात कर रहे हैं।* सभी सोचते हो
ना कि मेरे लिए पर्सनल क्या है। सभा में होते भी बापदादा सभी प्रवृत्ति वालों
से विशेष पर्सनल बोल रहे हैं। पब्लिक में भी प्राइवेट बोल रहे हैं।
➢➢ (बापदादा) एक एक बच्चे को एक दो से ज्यादा प्यार दे रहे हैं इसलिए ही आते
हो ना! प्यार मिले, सौगात मिले। इससे ही रिफ्रेश होते हो ना। *प्यार के सागर
हरेक स्नेही आत्मा को स्नेह की खान दे रहे हैं, जो कभी खत्म ही नहीं हो और कुछ
रह गया क्या! मिलना, बोलना और लेना। यही चाहते हो ना।*
➢➢ *खुशनसीब आत्मा हो। हर कदम बाप साथ है तो बधाई भी साथ है। सदा इसी स्मृति
में रहो कि स्वयं भगवान हम आत्माओंको बधाई देते हैं। जो सोचा नहीं था वह पा लिया!
बाप को पाया सब कुछ पाया। सर्व प्राप्ति स्वरूप हो गये। सदा इसी भाग्य को याद
करो।*
➢➢ *सभी एक बाप के स्नहे में समाये हुए रहते हो? जैसे सागर में समा जाते हैं
ऐसे बाप के स्नेह में सदा समाये हुए। जो सदा स्नेह में समाये रहते हैं उनको
दुनिया की किसी भी बात की सुधबुध नहीं रहती। स्नेह में समाये होने के कारण सब
बातों से सहज ही परे हो जाते हैं। मेहनत नहीं करनी पड़ती।*
➢➢ *बच्चे तो सदा प्रेम में डूबे हुए रहते हैं। उन्हें दुनिया की स्मृति नहीं।*
घर मेरा, बच्चा मेरा, यह चीज़ मेरी, ये मेरा-मेरा खत्म। *बस एक बाप मेरा और सब
मेरा खत्म। और मेरा मैला बना देता है, एक बाप मेरा तो मैलापन समाप्त हो जाता
है।*
➢➢ *आपने सब कुछ जान लिया। तो बापदादा ऐसी विशेष आत्माओं को रोज़ याद-प्यार देते
हैं। रोज मिलन मनाते हैं। अमृतवेले का समय खास बच्चों के लिए हैं।* भक्तों की
लाइन पीछे, बच्चों की पहले। *जो विशेष आत्मायें होती हैं उनसे मिलने का समय भी
जरूर विशेष होगा ना! तो सदा ऐसी विशेष आत्मा समझो और सदा खुशी में उड़ते चलो।*
➢➢ *कोई भी बीमारी आती है तो यह भी बुद्धि को रेस्ट देने का साधन है।
सूक्ष्मवतन में अव्यक्त बापदादा के साथ दो दिन के निमंत्रण पर अष्ट लीला खेलने
के लिए पहुँच जाओ फिर कोई डॉक्टर की भी जरूरत नहीं रहेगी।* जैसे शुरू में
सन्देशियाँ जाती थीं एक या दो दिन भी वतन में ही रहती थी, ऐसे ही कुछ भी हो तो
वतन में आ जाओ। *बापदादा वतन से सैर कराते रहेंगे, भक्तों के पास ले जायेंगे,
लण्डन, अमेरिका घुमा देंगे। विश्व का चक्र लगवा देंगे। तो कोई भी बीमारी कभी आये
तो समझो वतन का निमंत्रण आया है, बीमारी नहीं आई है।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
*बहुत मेहनत की है वा यह तो (अन्य आत्मा) कभी बदलना ही नहीं है - ऐसे दिलशिकस्त
भी नहीं बनो। *निश्चयबुद्धि हो, मेरेपन के सम्बन्ध से न्यारे हो चलते चलो।*
➢➢ कोई-कोई आत्माओंका ईश्वरीय वर्सा लेने के लिए भक्ति का *हिसाब चुक्तु होने
में थोड़ा समय लगता है इसलिए धीरज धर, साक्षीपन की स्थिति में स्थित रहो, निराश
न हो।*
➢➢ *शान्ति और शक्ति का सहयोग आत्माओंको देते रहो।* ऐसी स्थिति में स्थित रहकर
लौकिक में अलौकिक भावना रखने वाले, डबल सेवाधारी ट्रस्टी बच्चों का महत्व बहुत
बड़ा है। अपने महत्व को जानो।
➢➢ *नष्टोमोहा, बेहद सम्बन्ध के स्मृति स्वरूप और दूसरा 'बाप की हूँ', बाप सदा
साथी है। बाप के साथ सर्व सम्बन्ध निभाने हैं। यह तो याद पड़ सकेगा ना! बस यही
दो बातें विशेष याद रखना।*
➢➢ योगी जीवन अर्थात् सदा सुखमय जीवन। तो जो सहजयोगी हैं वह सदा सुख के झूले
में झूलने वाले होते हैं। जब सुखदाता बाप ही अपना हो गया तो सुख ही सुख हो गया
ना। तो *सुख के झूले में झूलते रहो।*
➢➢ *सुखदाता बाप मिल गया, सुख की जीवन बन गई, सुख का संसार मिल गया, यही है
योगी जीवन की विशेषता जिसमें दु:ख का नाम निशान नहीं।*
➢➢ स्मृति-स्वरूप बच्चों को तो सदा सर्व वरदान प्राप्त ही हैं। प्राप्ति
स्वरूप बच्चे हो। अप्राप्त है क्या जो प्राप्ति करनी पड़े। *याद और सेवा में ही
सदा तत्पर रहो, यही है बाप समान कर्तव्य।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *अभी तो आबू तक
लाइन लगानी है ना। इतनी वृद्धि तो करनी है ना! वा समझते हो हम थोड़े ही अच्छे
हैं। सेवाधारी सदा स्वयं का त्याग कर दूसरे की सेवा में हर्षित होते हैं।*
➢➢ *मातायें तो सेवा की अनुभवी हैं ना!* अपनी नींद भी त्याग करेंगी और बच्चे
को गोदी के झूले में झुलायेंगी। *आप लोगों द्वारा जो वृद्धि को प्राप्त होंगे
उन्हों को भी (माताओं को) तो हिस्सा दिलावेंगे ना।*
➢➢ *बापदादा स्नेही माताओं को विशेष सुना रहे हैं। जो सदा बाप के शिक्षा की
सौगात साथ रखना। एक सदा लौकिक में अलौकिक स्मृति, सदा सेवाधारी की स्मृति। सदा
ट्रस्टीपन की स्मृति। सर्व प्रति आत्मिक भाव से शुभ कल्याण की भावना, श्रेष्ठ
बनाने की शुभ भावना। जैसे अन्य आत्माओंको सेवा की भावना से देखते हो, बोलते
हो, वैसे निमित्त बने हुए लौकिक परिवार की आत्माओंको भी उसी प्रमाण चलाते रहो।*
➢➢ *(बापदादा माताओं को सुना रहे हैं) हद में नहीं आओ। मेरा बच्चा, मेरा पति
इसका कल्याण हो, सर्व का कल्याण हो। अगर मेरापन है तो आत्मिक दृष्टि, कल्याण की
दृष्टि दे नहीं सकेंगे।*
➢➢ *मैजारटी बापदादा के आगे यही अपनी आश रखते हैं बच्चा बदल जाए, पति साथ दे,
घर वाले साथी बनें। लेकिन सिर्फ उन आत्माओंको अपना समझ यह आश क्यों रखते हो! इस
हद की दीवार के कारण आपकी शुभ भावना वा कल्याण की शुभ इच्छा उन आत्माओं तक
पहुँचती नहीं|*
➢➢ संकल्प भल अच्छा है लेकिन साधन यथार्थ नहीं तो रिजल्ट कैसे निकले| *सदा
बेहद की आत्मिक दृष्टि, भाई भाई के सम्बन्ध की वृत्ति से किसी भी आत्मा के प्रति
शुभ भावना रखने का फल जरूर प्राप्त होता है इसलिए पुरूषार्थ से थको नहीं।*
➢➢ *बुजुर्ग और अनपढ़ बच्चों को सेवा करनी है अपने अनुभव के आधार पर। अनुभव की
कहानी सबको सुनाओ। जैसे घर में दादी वा नानी बच्चों को कहानी सुनाती है ऐसे आप
भी अनुभव की कहानी सुनाओ, क्या मिला है, क्या पाया है... यही सुनाना है। यह सबसे
बड़ी सेवा है, जो हरेक कर सकता है।*
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