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❍ 13 / 09 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *इस समय मनुष्य
जो भी संकल्प करते हैं, वह विकल्प ही बनता है - क्योंकि बुद्धि में राइट और
रांग की समझ नहीं है। माया ने बुद्धि को ताला लगा दिया है। बाप जब तक न आये,
सत्य पहचान न दे तब तक हर संकल्प, विकल्प ही होता है I*
➢➢ *बाबा आत्मा और
परमात्मा का भेद समझाते हैं। मनुष्य न तो आत्मा को और न परमात्मा को ही जानते
हैं।* तुम बच्चों ने जान लिया है-आत्मा और परमात्मा का रूप क्या है I मन्दिरों
में पूजा होती है-बनारस में बड़ा लिंग रखा हुआ है। उनकी सब पूजा करते हैं। कहते
भी हैं कि *आत्मा स्टार भृकुटी के बीच रहती है।*
➢➢ *भक्तिमार्ग में
मनुष्य जो करते हैं वह रांग करते हैं। कृष्ण की भक्ति करते हैं, पहचान कुछ भी
नहीं। जो कुछ करते हैं अनराइटियस।* अब बाप द्वारा बुद्धि को अक्ल मिली है। रांग
काम करने लिए मना है। कर्मेन्द्रियों से विकर्म करना मना है।
➢➢ *आत्मा में ही
मन-बुद्धि है, पहले मन में अच्छा वा बुरा संकल्प आता है फिर बुद्धि सोचती है-करूँ
वा नहीं करूँ। जब तक बाप नहीं आते हैं तब तक आत्मा जो संकल्प करती है वह विकल्प
ही बनता है। भल भगवान को याद करते हैं परन्तु राइट है वा रांग है, यह भी समझते
नहीं हैं।*
➢➢ बुद्धि कहती है
ईश्वर सर्वव्यापी नहीं है। अब बुद्धि को राइट पथ मिला है। तुमको हर बात की सही
समझ मिली है। *ट्रुथ एक बाप को ही कहा जाता है। वह जो सुनाते हैं, सब सत। सच
बोलते हैं सचखण्ड स्थापन करते हैं।* यह डीटेल की बड़ी महीन बातें हैं। कोई भी
यह समझ न सके। बहुत महीनता में जाना पड़ता है।
➢➢ *ओम् नमो शिवाए...
यह गीत का अर्थ यथार्थ बुद्धि में आया। वह जो गाते हैं उनका अर्थ नहीं जानते।
तुम प्रैक्टिकल अर्थ भी जानते हो और पुरूषार्थ भी कर रहे हो बाप द्वारा क्योंकि
अब सम्मुख सहायक है।* सहायक बनते तब हैं जब भारी भीड़ आती है। तुम बच्चे जानते
हो बाप गुप्त रीति सहायक है - सब मनुष्य मात्र का|
➢➢ *ब्रह्म तो
भगवान है नहीं।* मनुष्य को संकल्प उठता है कि भगवान को याद करें। बुद्धि कहती
है यह राइट है, परन्तु बुद्धि का ताला बन्द है क्योंकि माया का राज्य है। *भक्ति
जो करते हैं वह रांग करते हैं। कृष्ण की भक्ति करते हैं, पहचान कुछ भी नहीं। जो
कुछ करते हैं अनराइटियस।*
❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *बाप कहते हैं,
धारणा नहीं होती है तो बाप और वर्से को याद करो। दु:खधाम को भूल जाओ।* मनुष्य
नया मकान बनाते हैं तो बुद्धियोग पुराने मकान से निकल नये में लग जाता है। समझते
हैं कि पुराना तो खत्म हो ही जायेगा। यह फिर है बेहद की बात। *बाप कहते हैं -
मैं जो हूँ, जैसा हूँ मुझे याद करो।*
➢➢ *जब शिवबाबा को
याद करते हो तो बुद्धि में यह आना चाहिए कि बाबा स्टार है, उनमें सारा ज्ञान
है। वह सत है, चैतन्य है| उनमें ही बुद्धि भी है।*
➢➢ *देह सहित जो
कुछ है-सब छोड़ना है। यह देह भी तो वापिस नहीं जानी है। आत्मा को ही बाप के पास
वापिस जाना है।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
बाप द्वारा तुम्हें राइट पथ (सच्चा रास्ता) मिला है, इसलिए *कोई भी उल्टे कर्म
वा विकर्म नहीं करने हैं I* जैसे साइन्स के साधन से खराब माल को भी परिवर्तन कर
अच्छी चीज बना देते हैं। ऐसे *आप साइलेन्स की शक्ति से बुरी बात वा बुरे संबंध
को बुराई से अच्छाई में परिवर्तन कर दो।*
➢➢
बाप ने बुद्धि का ताला खोला है इसलिए *कर्मेन्द्रियों से कोई भी रांग कर्म नहीं
करना है।* अब वापिस घर चलना है इसलिए इस *देह को भी भूलना है। दु:खधाम से
बुद्धियोग निकाल बाप और वर्से को याद करना है।*
➢➢
मन अलग चीज है, बुद्धि अलग चीज है। मन को तूफान आते हैं। सतयुग में कोई तूफान
आदि आते नहीं हैं। यहाँ संकल्प-विकल्प चलते हैं। इस समय जो भी मनुष्य संकल्प
उठाते हैं वह विकल्प बनता है। इन बातों को अच्छी रीति समझना है। *ध्यान रखना है
कोई भी संकल्प, विकल्प का रूप न ले ले।*
➢➢
शुभ भावना सम्पन्न आपके श्रेष्ठ संकल्प से अन्य आत्मायें भी बुराई को बदल
अच्छाई धारण कर लें। *नालेजफुल के हिसाब से राइट रांग को जानना अलग बात है
लेकिन स्वयं में बुराई को बुराई के रूप में धारण करना गलत है, इसलिए बुराई को
देखते, जानते भी उसे अच्छाई में बदल दो।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
*ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात दोनों इक्वल होने चाहिए ना। यह बेहद की बात
है। बाप आकर सब बातें समझाते हैं। बाप को ही ज्ञान रत्नों का सागर कहा जाता
है।* एक-एक रत्न की वैल्यु लाखों रूपया है।
➢➢ बाप बच्चों को
समझाते हैं-कल की बात है। तुमको समझाकर राज्य-भाग्य देकर गया था। तुमने राज्य
किया अब गँवा दिया है। कल तुमको राजाई थी, आज है नहीं, फिर लो। *आज और कल की
बात है। भारत कल स्वर्ग था। भारत में ही शिव जयन्ती मनाते हैं, जरूर शिवबाबा आया
होगा। अब फिर से आया है। तुमको राज्य भाग्य दे रहे हैं।* अब तुम कौड़ी से हीरे
जैसा बने हो। तुम एक्टर्स ने बेहद के ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को जाना है
अर्थात् त्रिकालदर्शी बने हो।
➢➢ पुरूषार्थ कराने
वाला एक बाप है। *यह पाठशाला है, इसमें दर्शन करने की बात नहीं रहता।
प्रिन्सीपाल का दर्शन करना होता है क्या ? यह तो समझने की बात है। यह राजयोग की
पाठशाला है, आकर समझो। विष्णु शंकर को रचने वाला शिव।*
➢➢ तुम्हारा यह
अन्तिम जन्म है। तुम जानते हो कि हम पवित्र दुनिया में जाने वाले हैं। *बाप बैठ
समझाते हैं-बच्चे तुम पवित्र प्रवृत्ति मार्ग में थे तो देवता थे, फिर इतने
पुनर्जन्म लेते आये हो। तुम अपने पुनर्जन्म को नहीं जानते हो।* यह कोई एक को
थोड़ेही पढ़ाया जाता है। अनेक पढ़ते हैं। बाप ब्राह्मण बच्चों से ही बात करते
हैं। *शूद्र इन बातों को समझेंगे नहीं। पहले सात रोज समझाकर ब्राह्मण बनाओ, जो
समझें हम शिववंशी ब्रह्माकुमार-कुमारी हैं। इस पढ़ाई से तुम नई दुनिया के मालिक
बनते हो। यह है ब्रह्मा मुख वंशावली। प्रजापिता ब्रह्मा के सब बच्चे हैं I*
➢➢ *त्रिमूर्ति शिव
कहा जाता है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को रचने वाला शिव। प्रजापिता जरूर ब्रह्मा
को ही कहेंगे। विष्णु वा शंकर को नहीं कहेंगे। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा
विष्णुपुरी की स्थापना होती है। जगत पिता और यह जगत अम्बा फिर लक्ष्मी-नारायण
जाकर बनते हैं।* उनके बच्चे वारिस बनते हैं। *बाकी त्रिमूर्ति ब्रह्मा का तो
अर्थ ही नहीं निकलता। इनमें बाप ने प्रवेश किया है, इनकी आत्मा को बाप पवित्र
बनाते हैं।*
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