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❍ 26 / 12 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *देवता ही
तुम्हारा धर्म है। पहले तुम देवता थे फिर तुम क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बने। अब
फिर तुम ब्राह्मण बन देवता बनो।*
➢➢ *तकदीर सदैव दो प्रकार की होती है। एक अच्छी दूसरी बुरी। एक सुख की दूसरी
दु:ख की।* भारत के सुख की तकदीर भी है, तो दु:ख की तकदीर भी है। *भारत ही
सुखधाम था, भारत ही दु:खधाम है।*
➢➢ *अभी तुमको बाप ने पारसबुद्धि बनाया है। बुद्धि का ताला खोला है। तुम जानते
हो सृष्टि का चक्र फिरता रहता है। सृष्टि पुरानी होती है तो उसमें दु:ख है।*
➢➢ *जब तुम्हारी भक्ति पूरी होती है तब मैं आकर सद्गति देता हूँ। योग का भी
ज्ञान चाहिए। पावन बनने के लिए भी ज्ञान चाहिए।* शास्त्र पढ़ने से तो पावन बनने
की कोई बात नहीं।
➢➢ शिवरात्रि भी मनाते हैं। रात्रि का भी अर्थ तुम समझते हो। *बाप आयेगा तब जब
भक्ति अर्थात् रात पूरी हो दिन होगा। अब बाप कहते हैं बच्चे पावन बनो। अब वापिस
जाने का है। सतयुग था अब फिर चक्र रिपीट होगा।* तुम बच्चों को मनुष्य से देवता
बना रहा हूँ।
➢➢ *ज्ञानी तू आत्मा वह है जिसका कर्म साधारण होते भी स्थिति पुरूषोत्तम हो।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *बाप बैठ आत्माओं
(बच्चों) से बात करते हैं कि मुझे याद करो। यह अन्तिम जन्म पतित नहीं बनो तो
मैं तुमको विश्व का मालिक बनाऊंगा।*
➢➢ भारत गोल्डन एजेड था, अभी आइरन एजेड है। *आत्मा में खाद पड़ गई है - वह
निकलेगी योग अग्नि से।*
➢➢ सतयुग में सब पारसबुद्धि हैं, नाम ही है पारसनाथ, पारसपुरी। *तुम बच्चे भी
इस समय पारसनाथ बनते हो। आत्मा गोल्डन एज बनती है।* अभी आइरन एज बुद्धि है।
➢➢ *अभी तुम तमोप्रधान से सतीप्रधान बन रहे हो, योगबल से।* तुम अभी आस्तिक बने
हो। त्रिकालदर्शी भी बने हो।
➢➢ *यह है राजयोग - नर से नारायण बनने का अर्थात् राजाई पाने का योग।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
*जितना ज्ञान रत्नों का दान करेंगे उतना खजाना भरता जायेगा, विचार सागर मंथन
करना है।*
➢➢ अभी वही भारत पतित है क्योंकि विकारी हैं। विकारी और निर्विकारी दोनों होते हैं।
*हम अगर इस समय निर्विकारी बनेंगे तो देवता बनेंगे।*
➢➢ *बेहद के बाप से वर्सा लेने के लिए माँ-बाप मिसल पुरुषार्थ करना चाहिए।*
➢➢ *बाप से पूरा वसा लेने के लिए अति मीठा, सर्वगुण सम्पन्न बनना है। रावण के
वर्से को हाथ नहीं लगाना है।*
➢➢ नॉलेज को धारण कर रूहानी नशे में रह सर्विस करनी है। *बेहद का सुख पाने के
लिए बाप की हर राय को मानकर उस पर चलना है।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *तुम बच्चों का फ़र्ज
है सर्विस करना। हजारों को सुनाते रहो। प्रजा तो बनती है। नॉलेज को धारण कर आप
समान बनाते रहो।*
➢➢ *सुख के लिए परमपिता परमात्मा को याद करते हैं। हे दुःख हर्ता सुखकर्ता। तो
इससे सिद्ध है कि बाप कभी दु:ख नहीं देते।* वो लोग समझते हैं भगवान ही दु:ख सुख
दोनों देते हैं।
➢➢ *बाबा का धन्धा ही है पतितों को पावन बनाना। बाप रचयिता है तो जरूर नई रचना
ही रचेंगे। रावण है पतित बनाने वाला। बाप है पावन बनाने वाला। उसका यथार्थ नाम
शिव है।*
➢➢ *जब पतित दुनिया का समय पूरा होगा तब ही पतित-पावन बाप आकर स्वर्ग की
स्थापना करेंगे। पावन दुनिया है सतयुग, पतित दुनिया है कलियुग। पतित-पावन एक ही
परमात्मा है।*
➢➢ मुक्ति जीवनमुक्ति का अर्थ भी तुम बच्चे ही समझते हो। दुनिया तो कुछ भी नहीं
जानती। गाते भी हैं ज्ञान का सागर, मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है। सत है, चैतन्य
है, पतित-पावन है तो जरूर पतित दुनिया में आयेंगे। *तुम समझाते हो जब ज्ञान है
तो भक्ति हो न सके। ज्ञान है दिन सतयुग त्रेता। भक्ति है रात।*
➢➢ *ज्ञान का सागर परमपिता परमात्मा है न कि पानी - यह सबको समझाना है।* सारे भारत
को कैसे पैगाम देना है उनके लिए बाबा अच्छी-अच्छी युक्तियाँ समझाते रहते हैं।
मेला तो वास्तव में आत्मा और परमात्मा का ही गाया हुआ है। *परमात्मा तो एक ठहरा।
परमात्मा सर्वव्यापी है - यह कोई हिसाब नहीं बनता है। बाप ही आकर सबको दु:ख से
छुड़ाते हैं।*
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