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❍ 04 / 07 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *भगवान हमारा बाप है, यह आस्तिक बच्चे ही बोल सकते हैं क्योंकि उन्हें ही बाप का परिचय है।* नास्तिक तो जानते ही नहीं। आस्तिक बच्चे ही कहेंगे - मेरा तो एक बाबा दूसरा न कोई।
➢➢ *बाप ने समझाया है कि आत्मा ही शरीर द्वारा हर कार्य करती है, इसको कहा जाता है देही-अभिमानी।*
➢➢ *आत्मा ही अच्छे वा बुरे सभी संस्कार धारण करती है।* तुम जानते हो हम आत्मा अभी तमोप्रधान हैं। *कहा भी जाता है पतित आत्मा वा पावन आत्मा। शरीर का नाम नहीं लिया जाता है। पुण्य आत्मा, महान आत्मा। आत्मा की ही महिमा की जाती है।* आत्मा परमपिता परमात्मा बाप से बैठ सुनती है।
➢➢ *बाप कहते हैं जैसे आत्मा स्टॉर मिसल है, वैसे मैं भी हूँ। परन्तु मेरे में ज्ञान है इसलिए मेरी महिमा सत-चित-आनंद स्वरूप, ज्ञान का सागर है। चैतन्यता है, तब तो ज्ञान सुनाते हैं।* वह है चैतन्य बीज रूप।
➢➢ *आत्मा परमपिता परमात्मा बाप से बैठ सुनती है। दुनिया में कोई को पता नहीं कि बाप ऐसे बैठ बच्चों को पढ़ाते हैं।* अभी तुम समझते हो कि हम बाप के बने हैं। बाप से हमको वर्सा लेना है। दूसरे से हमारा कोई काम नहीं।
➢➢ *बाप आये हैं सबको दु:ख से मुक्त करते हैं, जब यह (देवतायें) सुखधाम में जाते हैं तब और बाकी आत्मायें हिसाब-किताब चुक्तूकर वापिस चली जाती हैं।*
➢➢ *जो आस्तिक बने हैं, उन्हों को वर्सा मिल रहा है। नास्तिक को वर्सा मिल न सके।* नास्तिक होने के कारण त्रिकालदर्शी हो नहीं सकते। *तुम बच्चे अभी आस्तिक हो। बाप ने तुमको परिचय दिया है, इसलिए तुम बाबा कहने के हकदार हो।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *इस शरीर का भान भूलते जाओ, अशरीरी बनने की मेहनत करो, क्योंकि अब घर चलना है।*
➢➢ *अब तुम घोर अन्धियारे से निकल आये हो। अब बाप कहते हैं मुझे याद करो, घर को याद करो। तुम आत्मायें घर को भूल गई हो। गाते भी हैं मूलवतन, सूक्ष्मवतन।* मूलवतन में सभी आत्मायें रहती हैं।
➢➢ अभी तुम बच्चे जानते हो कि *बाबा हमको पढ़ा रहे हैं, मनुष्य से देवता बनाने। बाप कहते हैं सभी अपने को आत्मा समझो। देह के इन सब सम्बन्धों को भूल जाओ।* एकदम बेगर बन गये, सब कुछ दे दिया। शरीर भी दे दिया बाकी क्या रहा। कुछ भी नहीं।
➢➢ *बाप कहते हैं मीठे बच्चों, सारा कल्प तुम देह-अभिमानी रहे हो। लौकिक बाप को ही याद किया है, अब देही-अभिमानी बन मेरे को याद करो। मेरी याद से ही बल मिलेगा।*
➢➢ *हे बच्चे, हे आत्मायें मामेकम याद करो, दूसरा न कोई। भूले चूके भी और कोई को याद नहीं करना है। तुम यह प्रतिज्ञा करते हो। बाबा मेरे तो आप एक ही हो।*
➢➢ भल कोई ब्राह्मणी पढ़ाती है। परन्तु वह भी मुझ बाप से ही पढ़ी हुई है। *बाप कहते हैं तुम मुझे याद करो, न कि ब्राह्मणी को। अब तुम बच्चे मुझ बाप को जान गये हो, पहचान गये हो।* अब तुम आस्तिक बने हो। जो नहीं जानते वह हैं नास्तिक, निधनके।
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *देह और देह के सम्बन्धों को भूल पूरा बेगर बनना है,* मेरा कुछ नहीं। *देही-अभिमानी रहने की मेहनत करनी है। किसी के नाम रूप में नहीं अटकना है।*
➢➢ जितना जो पुरुषार्थ करेंगे उतना पद पायेंगे। कल्प-कल्प पुरुषार्थ किया होगा तो अब तुम पुरुषार्थ करने लग पड़ेंगे। ड्रामा में होगा तो पुरुषार्थ कर लेंगे, ऐसा सोचकर *पुरुषार्थ-हीन नहीं बनना है। साक्षी हो दूसरों के पुरुषार्थ को देखते तीव्र पुरुषार्थी बनना है।*
➢➢ *देह और देह के सम्बन्धों को भूल पूरा बेगर बनना है,* मेरा कुछ नहीं। *देही-अभिमानी रहने की मेहनत करनी है। किसी के नाम रूप में नहीं अटकना है।*
➢➢ *सदा याद रखो कि हम और बाप सदा साथ हैं।* जैसे बाप सम्पन्न है वैसे साथ रहने वाले भी समान और सम्पन्न हो जायेंगे। समान बनने वाले ही साथ चलेंगे।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *अब भगवान तो है निराकार।* कहते भी हैं निराकार आत्माओं को। वह *परमपिता परमात्मा ही सृष्टि के आदि मध्य अन्त को जानते हैं, त्रिकालदर्शी हैं। और कोई मनुष्य भल कितना बड़ा पण्डित हो, वेदशास्र पढ़ा हुआ हो परन्तु उनको इस सृष्टि के आदि मध्य अन्त का ज्ञान नहीं है।*
➢➢ *ब्रह्मा विष्णु शंकर को रचने वाले को त्रिमूर्ति ब्रह्मा कहना रांग है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का भी बाप वह शिव है। उसने ब्रह्मा को एडाप्ट किया है।*
➢➢ *परमपिता परमात्मा ही राजयोग सिखलाते हैं। कब? बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुग पर आता हूँ। जबकि आसुरी राज्य का विनाश, दैवी राज्य की स्थापना होती है।*
➢➢ *बाप का नाम, रूप, देश, काल क्या है?* कुछ भी नहीं जानते। कह देते उसका कोई नाम रूप नहीं है। अब तुम जानते हो जरूर *उनका नाम है शिव। वह अपना शरीर तो धारण करते नहीं, इसलिए उनका नाम कभी बदल नहीं सकता।* तुम जानते हो हमारे 84 जन्मों का नाम-रूप बदलता जाता है। *उनका नाम तो है ही शिव। जैसे आत्मा का रूप है वैसे परमात्मा का भी रूप है।*
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