━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 21
/ 10 / 17 ❍
⇛
MURLI SUMMARY ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ ज्ञान
के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *यह अन्त के
लिए गायन है कि अतीन्द्रिय सुख पूछना हो तो गोप-गोपियों से पूछो। यह संस्था
इसलिए वृद्धि को नहीं पाती क्योंकि यहाँ के कायदे कड़े हैं। जब तक बाप को
नहीं जाना है तब तक क्लास में बैठ नहीं सकते क्योंकि यहाँ अव्यभिचारी याद
चाहिए।* कोई सचखण्ड का मालिक नहीं बना सकता है।
➢➢ *बाप ज्ञान
में आता है तो रचना को भी पावन बनाना पड़े। अगर बच्चे पवित्र नहीं बनें तो
कपूत ठहरे। घर में अगर एक पवित्र बने, दूसरा न बनें तो झगड़ा हो पड़ता है
इसलिए मनुष्यों का हृदय विदीरण होता है। यहाँ सुनते तो अच्छा-अच्छा कहते
हैं परन्तु फिर बाहर गया तो फिर वैसे ही बन पड़ते।*
➢➢ बाप आत्माओं
से पूछते हैं - पाप आत्मा हो वा पुण्य आत्मा हो? सभी अपने को पतित तो मानते
हैं ना। *इस समय सब पाप आत्मा हैं। कहते भी हैं मुझ निर्गुण हारे में कोई
गुण नाही। यह सब गाते हैं। गोया सब पतित हैं। ब्रह्मा विष्णु शंकर को भी
गाली देते हैं। सतयुग के समय के भारत को पावन कहा जाता था। वहाँ दैवी गुण
वाले मनुष्य थे।* कहते हैं सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण... तो पुण्य
आत्मा ठहरे ना।
➢➢ *रात्रि में
मनुष्य अंधकार वश धक्का खाते हैं फिर भक्ति मार्ग में भी कहते हैं गंगा
स्नान करो। चार धाम की यात्रा करो, यह करो। परन्तु हैं पाप आत्मा, तो जब
बाप आता है तो बाप को पहचानना चाहिए।*
➢➢ *कहते हैं
अहिंसा परमोधर्म:। तो वह (देवतायें) अहिंसक भी थे। हिंसा के दो अर्थ हैं -
हिंसा माना किसी का घात करना, मारना। घात भी दो प्रकार का होता है। एक काम
कटारी से मारना, दूसरा किसको क्रोध से मारना। यह भी हिंसा है।*
➢➢ कहते हैं -
*परमपिता, तो उनको कोई पिता नहीं, वह सबका पिता है, वह सबका टीचर है।
परमपिता जो परमधाम में रहते हैं, उनको कोई बाप नहीं है।* बाकी सबका बाप होता
है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का भी बाप है। कहते हैं शिवाए नम: तो बाप हुआ
ना। *बाप पुनर्जन्म में नहीं आते हैं।*
➢➢ *कहते हैं
कि गज को ग्राह (मगरमच्छ) ने पकड़ा। कोई ऐसी बात नहीं कि गज अर्थात् हाथी
कोई पानी में गया, ग्राह ने पकड़ लिया। नहीं, यह यहाँ की बात है।
अच्छे-अच्छे महारथी हैं, बहुतों को समझाते भी हैं, सेन्टर्स भी सम्भालते
हैं, ऐसे महारथियों को भी माया निगल जाती है।*
────────────────────────
❍ योग
के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ यह रोगी
दुनिया है, भोगी दुनिया है। सतयुग निरोगी, योगी दुनिया है। *यहाँ तो बाप को
याद करना है। याद नहीं करते तो डिससर्विस करते हो क्योंकि वायुमण्डल खराब
करेंगे।*
➢➢ *बाप कहते
हैं कि देह सहित देह के सब संबंध भूल मामेकम् याद करो। बाप इस शरीर से
बुद्धियोग तुड़वाते हैं और आत्मा की परमात्मा से सगाई करवाते हैं।*
➢➢ *सतयुग
त्रेता है दिन। सतयुग में है सुख। वहाँ परमात्मा को याद करने की दरकार नहीं।
कहते हैं दु:ख में सिमरण सब करें, तो भक्त बाप का सिमरण करते हैं, साधना
करते हैं।*
➢➢ उन्हों की
जैसी दृष्टि है, वैसी सृष्टि दिखाई पड़ती है। *अगर यहाँ कोई बैठ कर भी औरों
को याद करता रहे तो वह व्यभिचारी याद हो गई ना। भल याद पूरी रीति ठहरती नहीं
है, क्योंकि माया बुद्धियोग तोड़ देती है। फिर भी बाप तुम्हें बुद्धियोग
लगाना सिखलाते हैं। अन्त में तुम्हारी याद ठहर जायेगी।*
────────────────────────
❍ धारणा
के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *सतयुग में कोई रोता नहीं। तो तुमको यहाँ भी रोने का हुक्म नहीं।* रोते
हो गोया अवस्था की कमी है। जब बाप 21 जन्मों की बादशाही देते हैं। फिर रोने
की क्या दरकार है, परन्तु यह भूल जाते हो।
➢➢ *मोहजीत की एक कहानी है ना, तो तुमको भी मोहजीत बनना है।* यह है युद्ध
का मैदान, इस युद्ध में जरा भी गफलत की तो माया हप कर लेती है।
➢➢ बेहद का बाप कहते हैं जो मेरी श्रीमत पर चलता है वही मेरा सपूत बच्चा
है। जैसे गवर्मेन्ट आर्डीनेन्स निकालती है, ऐसे यह पाण्डव गवर्मेन्ट भी
आर्डीनेन्स निकालती है कि *पवित्र बनेंगे तो पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे।*
➢➢ *अगर जरा गफलत की तो माया हप कर लेती है।* ऐसा हप करती है जो बाप के
संग से ही भगा ले जाती है। पुरानी दुनिया में चले जाते हैं इसलिए *बड़ी
सम्भाल रखनी पड़ती है क्योंकि माया से बाक्सिंग है।*
➢➢ सिर्फ सत-सत करने की बात नहीं है। सत-सत तो भक्ति मार्ग में करते हैं
कि फलाना नाक से पैदा हुआ, यह भी सत, हनूमान पवन से पैदा हुआ, हाँ जी सत्य।
वह तो सब हैं भक्ति मार्ग की बातें हैं। *यहाँ तो ज्ञान की बातें हैं जो
धारण करना है। माया से युद्ध करनी है।* अगर बाप का बनकर कोई पाप कर्म किया
तो और ही सौ गुणा दण्ड मिलेगा।
➢➢ *जब तक बाप को नहीं जाना है तब तक क्लास में नहीं बैठ सकते क्योंकि जब
तक याद नहीं तब तक लायक नहीं।* तुम एक सत्य बाप को मानते हो। और सतसंग में
जाओ तो कोई मना नहीं करेंगे। यहाँ तो बिल्कुल मना की जाती है।
➢➢ परन्तु पारलौकिक बाप कहते हैं दे दान तो छूटे ग्रहण। *5 विकारों का दान
दो तो ग्रहण उतरे।* चन्द्रमा मुआफिक 16 कला सम्पूर्ण बन जायेंगे। श्रीकृष्ण
16 कला सम्पूर्ण है ना। अभी नो कला। अभी तो सब पतित हैं। कहते हैं ना - हम
पतित हैं फिर कहो कि तुम नर्कवासी हो, तो बिगड़ते हैं। इस समय यथा राजा तथा
प्रजा सब पतित हैं। सतयुग है श्रेष्ठाचारी।
────────────────────────
❍ सेवा
के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *यह है बेहद
का बाप। बाप आकर जंजीरों से छुड़ाते हैं। भक्ति की भी जंजीरें हैं।* यह
समझते थोड़ेही है कि हम पतित हैं। *पतितों को पावन बनाने वाला एक बाप है।*
➢➢ *यह किसने
कहा प्राणी अथवा आत्मा। कहते हैं ना इनके प्राण निकल गये। तो आत्मा निकल गई
ना। तो प्राण आत्मा को कहेंगे, न कि शरीर को।*
➢➢ पाप आत्मा
तो सभी हैं ना। परन्तु नम्बरवार तो होते ही हैं। तो नम्बरवार पुण्य आत्मा
कौन हैं? नम्बरवन पाप आत्मा कौन है? *भारत पावन था, अब पतित है। नम्बरवन
पाप आत्मा कौन है? आज सभी मनुष्य मात्र माया के गुलाम बन गये हैं। आधाकल्प
माया के गुलाम बनते हैं, फिर माया को गुलाम बनाते हैं, तब उन्हों को पुण्य
आत्मा कहा जाता है।*
➢➢ *लक्ष्मी-नारायण
को भगवान-भगवती कहा जाता है। वह अब कहाँ गये? सतयुग में सिर्फ
लक्ष्मी-नारायण तो नहीं थे, परन्तु उनकी पूरी डिनायस्टी थी। उस समय के भारत
को पावन कहा जाता था। वहाँ दैवी गुण वाले मनुष्य थे। कहते हैं सर्वगुण
सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण... तो पुण्य आत्मा ठहरे ना।*
────────────────────────