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  16 / 10 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  कहते हैं गॉड ने क्रिश्चियन धर्म स्थापन करने के लिए भेजा। तो उनको अपने धर्म की पालना भी करनी है। *सतो, रजो, तमो में आना ही है। यह ज्ञान उनको नहीं है कि वापिस कोई नहीं जा सकते। अच्छा - बाबा समझाते थे कि उन्होंने गीता भल बनाई है, यादगार है। देवता धर्म का शास्त्र है। परन्तु उनको झूठा बना दिया है। सच तो आटे में नमक मिसल है क्योंकि पीछे बैठ बनाये हैं।*

➢➢  *भगवानुवाच - दो ही अक्षर गीता के बताते हैं, जो सुनते आते हैं। यूँ गीता शास्त्र कोई स्वर्ग में था नहीं। यह तो बैठकर बाद में मनुष्यों ने बनाये हैं।* तो भगवानुवाच - क्या कहते? बच्चे, मनमनाभव। *अक्षर वही संस्कृत बोलते हैं जो तुम सुनते आये हो। उनका कोई अर्थ नहीं समझते। आते ही कहते हैं मनमनाभव।*

➢➢  *सतयुग त्रेता में किसको ज्ञान है नहीं।* वह थोड़ेही समझते हैं सतयुग के इतने सोने हीरे के महल कहाँ चले गये? क्यों गये? *कहते हैं द्वारिका नीचे सागर में चली गई। परंतु सागर में नहीं जाती। अर्थक्वेक आदि में सब खलास हो जाते हैं। फिर स्वर्ग का नामनिशान नहीं रहता। प्रालब्ध भोगकर खलास कर दीं तो उनका नामनिशान नहीं रहता। ना हिस्ट्री रहती।*

➢➢  *यह गीता आदि है भक्ति की सामग्री क्योंकि यह ज्ञान तुमको यहाँ ही मिलता है। फिर उसका शास्त्र सतयुग त्रेता में होता नहीं। तो द्वापर में कहाँ से आये?*

➢➢  तुम भक्ति में जो करते आये हो वह सतयुग में होता नही। न कोई गरीब होता जिसको दान करें। न कोई शास्त्र होते, न मन्दिर होते। *यह सब भक्ति मार्ग की सामग्री है, जो सतयुग में होती नहीं। यह ज्ञान भी प्राय: लोप हो जाता है। वहाँ कोई पुरूषार्थ नहीं, जिसकी प्राल्बध मिले। सारी प्राल्बध इस समय के पुरुषार्थ की है।*

➢➢  *इस्लामी, बौद्धियों की नॉलेज तो परम्परा चलती है क्योंकि उनकी स्थापना पीछे विनाश नहीं है तो उनको सब पता रहता है। परन्तु तुम्हारे पीछे विनाश होता है तो इसमें सब खलास हो जाता है।* फिर द्वापर में वही वेद शास्त्र आदि निकलेंगे। यह सब गीता के बाल बच्चे हैं। उन *सबको धर्म शास्त्र नहीं कहेंगे, क्योंकि धर्मशास्त्र उसे कहा जाता है जिससे धर्म की स्थापना हो।*

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *बच्चे जानते हैं देवी-देवता धर्म की स्थापना सतयुग के लिए हो रही है इसलिए बाप कहते हैं मुझे याद करो तो मेरे पास आ जायेंगे।* यहाँ बैठे हो तो बैठकर टेप सुननी चाहिए या मुरली रिपीट करनी चाहिए या योग में बैठना चाहिए तो विकर्म विनाश हों। *सारा दिन तो काम में रहते हो। वहाँ योग में मुश्किल रहतें होंगे। इसमें माया विध्न बहुत डालती है। माया ज्ञान से नहीं हटाती, योग से हटाती है।*

➢➢  *संकल्प-विकल्प योग में रहने नहीं देते। पढ़ाई में इतने विघ्न नहीं पड़ते। अगर योग में नहीं होगा तो पढ़ाई की धारणा नहीं होगी। ज्ञान से योग सहज भी है। बूढ़ी मातायें जो कहती हैं हमारी बुद्धि में इतनी प्वाइंट्स नहीं बैठती हैं। तो बाबा कहते हैं अच्छा मेरी याद में रहो।* बॉप कहते हैं हे भक्तों, भगत तो सब हैं। परन्तु तुम सिकीलधे भगत हो, जिन्होंने पूरा आधाकल्प भक्ति की है।

➢➢  *यह सब ज्ञान है बुद्धि के लिए भोजन। परन्तु योग ठीक नहीं होगा तो सुनने समय खुश होगा परन्तु ठहरेगा नहीं, पवित्र नहीं होगा तो ठहरेगा नहीं।* इसमें किसका वश नहीं। यह शास्त्रों का ज्ञान नहीं है। वह तो सभी कण्ठे कर लेते हैं। *यह तो पढ़ाई है 21 जन्मों के लिए। वहाँ भल बाप के तख्त पर बैठेंगे परन्तु वह भी यहाँ की कमाई की प्राप्लब्ध है।*

➢➢  *देवतायें एक दो को वर्सा नहीं देते, इसलिए बाप कहते हैं मुझे याद करो। मौत सामने खड़ा है! तुमको मम्मा बाबा को फालो करना है।* वह सन्यासी के नाम मात्र फालोअर्स बनते हैं। वहाँ गॉड गॉडेज का राज्य है। *यथा राजा रानी भगवती भगवान तथा प्रजा, इसके लिए फादर पढ़ा रहे हैं। ऐसे नहीं आशीर्वाद करेंगे। उनका पढ़ाना ही ब्लैसिंग है।*

➢➢  *एक बाप के बच्चे हैं ना इसलिए कहते हैं जो देह के धर्म हैं मामा, काका छोड़ अपने को अकेला आत्मा निश्चय करो और मेरे को याद करो तो विकर्म विनाश हो जायेंगे और कोई रास्ता नहीं, इसको योग अग्नि कहते हैं।*

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  सब तो पूरी भक्ति नहीं करते। कल तक जो आते रहेंगे, वह इतना समय ही भक्ति करेंगे। परन्तु तुम पूज्य और पुजारी बनते हो। वह भी बच्चों से मालूम पड़ जाता है। जो बच्चे बनते हैं, श्रीमत पर चलते हैं। समझते हैं यह हमारे कुल के हैं, *जिनको पूरा निश्चय है कि हमको परमात्मा पढ़ाते हैं वह हैं सगे बच्चे। सगे बच्चे बलि चढ़ते, लगे बलि नहीं चढ़ते।*

➢➢  टीचर को कहेंगे क्या आशीर्वाद करो तो 100 मार्क्स मिल जायें। *बाबा तो पढ़ाते हैं, यह पढ़ाई सबके लिए है। क्रिश्चियन हो, बौद्धी हो - कहते हैं सर्व धर्मानि... यह सब देह के धर्म हैं ना। कहते हैं इन सबको भूल अपने को आत्मा निश्चय करो। आत्मा तो सभी इमार्टल हैं।*

➢➢  शरीर पर किसका भरोसा नहीं है। स्टीमर बह जाता है, ऐरोप्लेन गिर जाता है तो क्या गति होती है! इसलिए *आज का काम कल पर नहीं रखना। नहीं तो धर्मराजपुरी में साक्षात्कार होगा।* देखो, कल-कल करते काल खा गया। श्रीमत पर न चले तो राज्य पद गँवा लिया।

➢➢  थोड़ा भी सुनने वाला हो तों स्वर्ग में आ जायेगा। फिर *जो जितनी स्थापना में मदद करेंगे तो उतना पद पायेंगे।*

➢➢  बाबा के पत्रों में तो चिटचैट होती है जो मधुबन में रात को सुनाई जाती है। *मधुबन में बाबा हंसायेंगे भी, उमंग भी दिलायेंगे, कहेंगे तुम बड़ी अच्छी हो, ज्ञान गंगा बन सकती हो क्या टेलीफोन ऑफिस में नौकरी करती हो? तुम तो महारानी बनने वाली हो। गिरने वाले को भी उठायेंगे।*

➢➢  मुफ्त बादशाही देने आया हूँ तुम्हारे को क्या हुआ है राहू का ग्रहण लगा हुआ है। *योग में रहो, मुरली सुनो।*

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *यह सृष्टि वैरायटी धर्मों का झाड़ है। सब नम्बरवार आते हैं पहले है देवता धर्म। अब वह धर्म प्राय: लोप है, उसका ज्ञान भी लोप है। तो शास्त्रों में कहाँ से आया? जिस सहज़ राजयोग से वह देवता बने वह भी गुम है।*

➢➢  *अगर कहे श्रीकृष्ण भगवानुवाच तो कृष्ण कहेंगे क्या कि मुझ परमात्मा को याद करो? तो यह झूठ हो गया ना। यहाँ परमपिता परमात्मा शिव कहते हैं सालिग्रामों को कि मनमनाभव, मुझ परमात्मा को याद करो क्योंकि अब सबका मौत है।*

➢➢  *छोटे बड़े सबको वाणी से परे परमधाम, साइलेन्स वर्ल्ड में जाना है। उसको निराकारी दुनिया भी कहते हैं। वह है अहम् आत्मा की दुनिया। यहाँ जब आते हैं तो आत्मा साकारी बनती है। वहाँ चोला नहीं है। यहाँ चोला धारण कर पार्ट बजाती है। अब बाप कहते हैं तुम बच्चों को वापिस ले चलने आया हूँ।*

➢➢  *बाबा कहते हैं मैं जानता हूँ कि बहुतों का राहू का ग्रहण लगता है। समाचार आते हैं तो बाबा उनको उठाते हैं।* ऐसे पत्र लिखने पड़ते हैं। बहुत प्रकार के पत्र आते हैं कोई की कोई साथ दिल लग जाती है तो आपस में प्लैन बनाते हैं अच्छा हम आपस में गन्धर्वी विवाह करेंगे। मैं तुमको बचाता हूँ बंधन से छुड़ाता हूँ।

➢➢  *यहाँ कुछ छुड़ाया नहीं जाता है। यह तो उन्होंने तंग किया, विकारों के लिए, तब लाचारी में उनको छोड़ना पड़ा। नहीं तो क्या करें! तो बाप को शरण देनी पड़ी। ऐसे तो अब तक भी शरण लेते रहते हैं, इसमें भगाने की तो बात ही नहीं। यह तो ड्रामा है। ड्रामा अनुसार गऊशाला बननी थी। हैं तो बच्चे, परन्तु उन्होंने नाम गऊशाला डाला है।*

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