━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 30 / 10 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ यह चित्र बड़े
अच्छे हैं। *त्रिमूर्ती का चित्र बड़ा जरूरी है, इसमें बाप और वर्सा दोनों ही आ
जाते हैं।* बाप के बिगर दादे का वर्सा कैसे मिलेगा। कृष्ण का चित्र सबको अच्छा
लगता है। बाकी 84 जन्मों की लिखत अच्छी नहीं लगती।
➢➢ तुम कहते हो इस समय सभी नास्तिक हैं क्योंकि बाप को नहीं जानते हैं। *अब
तुम जानते हो कि सब कब्रिस्तान में पड़े हैं। तुम बच्चे गुप्त हो।* अंग्रेजी
में अन्डरग्राउण्ड कहते हैं। वहाँ कोई अन्डरग्राउण्ड नहीं, अन्डरग्राउण्ड तुम
हो। परन्तु तुमको कोई जानते नहीं।
➢➢ तुमको ज्ञान का शंख बजाना है। *शंख कहो, मुरली कहो, एक ही बात है। उन्होंने
कृष्ण को मुरली दिखाई है। *कृष्ण तो रत्न जड़ित मुरली बजाते हैं - खेलपाल करने
के लिए। वहाँ ज्ञान की मुरली नहीं है।*
➢➢ *सतयुग में लक्ष्मी-नारायण, त्रेता में राम-सीता का राज्य था, तो सब
स्वर्गवासी थे।* इस चक्र में 84 का चक्र सिद्ध होता है। झाड़ में फिर कैसे
पूज्यनीय से गिरते हैं और पुजारी बनते हैं, यह सिद्ध होता है।
➢➢ *जानते हैं यह पुरानी दुनिया खत्म हो जानी है। इस दुनिया को छोड़ हमको अपने
घर जाना है।* यह ख्याल और कोई की बुद्धि में नहीं होगा। और कोई भी यह समझते नहीं।
वह तो समझते हैं यह दुनिया अभी बहुत चलनी है।
➢➢ *सतयुग में है विश्व की बादशाही।* एक ही राज्य होता है। यह लक्ष्मी-नारायण
विश्व के महाराजन हैं ना। दुनिया को इन बातों का पता नहीं है। वन-वन से इन्हों
की राजाई शुरू होती है। तुम जानते हो हम यह बन रहे हैं।
➢➢ तुम बच्चे जानते हो हम *अभी अपनी नई दुनिया में जा रहे हैं। राजयोग सीख रहे
हैं। थोड़े ही समय में हम सतयुगी नई दुनिया में अथवा अमरपुरी में जायेंगे।* अभी
तुम बदल रहे हो। आसुरी मनुष्य से बदल दैवी मनुष्य बन रहे हो।
➢➢ *भारत इस समय सभी से गरीब है।* भारत की ही सभी से जास्ती आदमसुमारी है
क्योंकि शुरू में आये हैं ना। *जो गोल्डेन एज में थे वही आयरन एज में आये हैं।*
एकदम गरीब बन पड़े हैं। खर्चा करते करते सभी खत्म कर दिया है। बाप समझाते हैं
अभी तुम फिर से देवता बन रहे हो।
────────────────────────
❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ बाप समझाते हैं
- *अगर अपने को देह समझेंगे तो बाप को याद नहीं कर सके। अपने को देही-अभिमानी
समझो।* बच्चे-बच्चे बाप शरीर को नहीं, आत्मा को कहते हैं।
➢➢ बाबा खुद बैठ सिखाते हैं कि हे आत्मा *देही-अभिमानी बनो। अपने को पारलौकिक
बाप के बच्चे निश्चय करो।* लौकिक बाप को तो जानते हो बाकी तुम इतने भोले हो जो
पारलौकिक बाप को नहीं जानते।
➢➢ अब तुम जानते हो कि हमारा बेहद का बाप इनमें आया है। तो *बाप को याद करना
पड़े। 84 के चक्र को भी याद करना पड़े।* यह बेहद का 5 हजार वर्ष का नाटक है।
तुम एक्टर हो।
➢➢ उन्हों को चित्र अच्छा लगता है, तुमको विचित्र अच्छा लगता है क्योंकि तुमको
बाप ने कहा है ''आत्म-अभिमानी भव।'' *तुम अपने को विचित्र समझते हो तो याद भी
विचित्र परमात्मा को करते हो।*
➢➢ लक्ष्मीनारायण का चित्र भी बनाया है और लिखा हुआ है सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला
सम्पूर्ण... लक्ष्मी-नारायण महाराजा महारानी तो नशा रहता है कि हम बाप को याद
कर यह बन रहे हैं। तो *सदैव बाबा-बाबा कहते रहो और भविष्य पद को भी याद करो तो
सतयुग में चले जायेंगे।* जैसे एक मिसाल देते हैं - मैं भैंस हूँ, मैं भैंस
हूँ... कहने से भैंस समझने लगा।
➢➢ *अभी हम दैवीगुण धारण कर रहे हैं। अपने जन्म-जन्मान्तर के पाप भी योगबल से
भस्म कर रहे हैं।* करते हैं या नहीं वह तो हरेक अपनी गति को जानते। हरेक को अपने
को दुर्गति से सद्गति में लाना है अर्थात् सतयुग में जाने लिये पुरुषार्थ करना
है।
➢➢ सारी दुनिया की एक्ट हूबहू एक्यूरेट कल्प कल्प रिपीट होती रहती है। सेकण्ड
व सेकण्ड चलती रहती है। *बाप यह सभी बातें समझाते फिर भी कहते हैं मन्मनाभव।
बाप को याद करो।* कोई पानी वा आग से पार हो जाते हैं उससे फायदा क्या। इससे कोई
आयु थोड़ेही बड़ी हो जाती है।
➢➢ तकदीर में नहीं है, तब कहा जाता है बख्तावर देखना हो तो यहाँ देखो, .. बाबा
तो कहते हैं कल्प के बाद बाबा मिला है। *बाबा-बाबा कहते रहो, सवेरे उठकर याद करो,*
जो प्यारी वस्तु होती है उन पर कुर्बान जाते हैं। *हम भी बाबा पर कुर्बान जाते
हैं।*
────────────────────────
❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢
इस समय सब बेअक्ल बन पड़े हैं उनको फिर बेअक्ली का भी घमण्ड है। बच्चे, तुम बाप
को जानते हो और उनसे सुन रहे हो। बाकी *आत्मा को देही-अभिमानी बनने की मेहनत
करनी है।*
➢➢ अब तुमको ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त का मालूम पड़ा है। तो *सारा चक्र बुद्धि
में फिरना चाहिए।* तुम्हारा नाम कितना बाला है। स्वदर्शन चक्रधारी फिर भविष्य
में तुम चक्रवर्ती राजा बन जाते हो।
➢➢ *तुम अब बाप के बने हो, यह स्मृति में रखना है। जितना अन्धों की लाठी बनेंगे
उतना बाप समझेंगे यह रहमदिल हैं।* कहते हैं रहम करो, मेहर करो। तुम जानते हो
बाप कौन सी मेहर करते हैं। *बाप मिला है तो कितनी खुशी होनी चाहिए।*
➢➢ अब तुमको पैरों पर खड़ा रहना है। जैसे कहते हैं सेन्टर अपने पाँव पर खड़ा
हो तो तुमको भी अपने पांव पर खड़ा रहना है। *ऊंचे ते ऊंचा पुरुषार्थ करना है,
फालो फादर मदर।* लौकिक में बच्चे बाप को फालो कर पतित बन जाते हैं। यह तो
पारलौकिक बाप के लिए कहा जाता है - उनकी *श्रीमत पर चलना है।*
➢➢ *तुम बच्चों को बुद्धि में रखना है कि जैसे कल्प पहले सतयुग में पार्ट बजाया
था वैसे अब बजायेंगे।* बाकी बाबा से तो वर्सा ले लेवें। परन्तु बच्चे घर में
जाते हैं तो भूल जाते हैं।
➢➢ *बाप कहते हैं यहाँ से पक्के हो जाओ। धन्धा भल करो परन्तु याद करते रहो।*
एक सेकेण्ड का कोर्स उठाओ। जैसे बहुत शादी करके भी पढ़ते हैं। तुम भी *धन्धे
में रहते पढ़ो।* कुमार कुमारी के लिए तो बहुत सहज है। सिर्फ यह बुद्धि में रहे
मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई।
➢➢ हम हैं भारत का बेड़ा पार करने वाले। सत्य नारायण, अमरनाथ की कथा, तीजरी की
कथा सुनाने वाले, सच्चे बाप के सच्चे ब्रह्मण बच्चे, तो *अन्दर कोई खोट नहीं
होनी चाहिए। खोट होगी तो ऊंच पद पा नहीं सकेंगे।*
────────────────────────
❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *तुम्हारी बुद्धि
में ज्ञान की पराकाष्ठा चाहिए। तुम किसके आगे भी चित्र रखकर समझाओ कि भारत
स्वर्ग था। अब पुरानी दुनिया नर्क है,* तो यह पक्का होना चाहिए कि हम स्वर्गवासी
थे, अब नर्कवासी हैं फिर स्वर्गवासी बन रहे हैं।
➢➢ *बाबा मम्मा को देखो धन्धा क्या है? पतितों को पावन बनाने का।* और धर्म
पितायें जब आते हैं तो उनके धर्म की आत्मायें ऊपर से आती हैं। वहाँ कनवर्ट करने
की बात नहीं। *यहाँ कनवर्ट करना है, शूद्र को ब्रह्मण बनाना है।* इसके लिए तुमको
मेहनत करनी पड़ती है।
➢➢ *तुम कितना लिटरेचर देते हो।* वह देखकर फाड़ देते हैं। तुम बच्चे हो
रूप-बसन्त। जैसे बाप वैसे तुम बच्चे। *तुमको ज्ञान की वर्षा करनी है।*
➢➢ सभी कुछ स्वाहा करने वाले थे जो पहले आये। फट से सभी का पैसा काम में लग गया।
गरीबों का तो लग ही जाता है। *साहूकारों को कहा जाता है अभी सर्विस करो।
ईश्वरीय सर्विस करनी है तो सेन्टर खोलो।*
➢➢ निराकार गाड तो एक ही है। बलिहारी एक की है *दूसरों को समझाने में तुम कितनी
मेहनत करते हो। कितने चित्र बनाते हो। आगे चलकर अच्छी रीति समझते जायेंगे।*
➢➢ *बेहद का बाप परमधाम से आकर इनमें प्रवेश कर पढ़ाते हैं। चक्र का राज समझाते
हैं।* बाकी सवारी सारा दिन नहीं होती है। *बाप कहते हैं मैं सर्वीस करता हूँ,*
बच्चों का नाम निकालने के लिए मैं प्रवेश करता हूँ।
────────────────────────