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  06 / 08 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *आज बापदादा सभी की जीवन कहानी देख रहे थे । सदा चढ़ती कला वाले कितने होंगे और कौन होंगे?* अपने को तो जान सकते हो न कि मैं किस लिस्ट में हूँ ! उतरने की परिस्थितियां , परीक्षायें तो सबके सामने आती हैं । *बिना परीक्षा के तो कोई भी पास नहीं हो सकता लेकिन परीक्षा में साक्षी और साथीपन के स्मृति स्वरूप द्वारा फुल पास होना व पास होना व मजबूरी से पास होना इसमें अंतर हो जाता है । 

➢➢  *बड़ी परीक्षा को छोटा समझना वा छोटी-सी बात को बड़ा समझना इसमे अंतर हो जाता है । कोई छोटी-सी बात को ज्यादा सिमरन, वर्णन और वातावरण में फैलाए इससे भी छोटे को बड़ा कर देते हैं । और कोई फिर बड़ी को भी चेक किया तो साथ-साथ चेंज किया और सदा के लिए कमजोर बात को फुल स्टाप लगा देते हैं !*  

➢➢  *फुल स्टाप लगाना अर्थात फिर से भविष्य के लिए फुल स्टाक जमा करना । आगे के लिए फुल पास के अधिकारी बनना । तो ऐसे बहुतकाल की चढ़ती कला के तकदीरवान बन जाते हैं ।*

➢➢  *ब्रह्माकुमार-कुमारी तो सब है।  पर कोई प्रत्यक्ष फल खाने वाले हैं और कोई मेहनत का फल खाने वाले है। सिर्फ दृढ़ संकल्प और श्रीमत - इसी आधार पर हर संकल्प और कर्म करते चलो तो मेहनत की कोई बात ही नहीं ।* इन दोनों ही आधार पर न चलने के कारण जैसे गाड़ी पटरी से उतर जाती है फिर बहुत मुश्किल होता है । अगर गाड़ी पटरी पर चल रही है तो कोई मेहनत नहीं , इंजन चला रहा है , वह चल रही है ।

➢➢  *चाहे दृढ़ संकल्प , चाहे श्रीमत पर चलें , बहुत अटेंशन रखें। लेकिन दृढ़ संकल्प की कमजोरी हो तो इसकी रिजल्ट क्या होगी ? मेहनत का फल खायेंगे । ऐसे मेहनत का फल खाने वाले भी क्षत्रिय की लाइन में आ गये ।* जब भी उनसे कोई बात पूछो तो मेहनत या मुश्किल की बात ही सुनायेंगे ।* जैसे सुनाया था एक बात को निकलते तो दूसरी आ जाती , चूहे को निकालो तो बिल्ली आ जाती , बिल्ली को निकालते तो कुत्ता आता....ऐसे निकालने में ही लगे रहते हैं ।

➢➢  *तीन धर्म साथ-साथ स्थापन हो रहे हैं ना , ब्राह्मण , देवता और क्षत्रिय । तो तीनों ही प्रकार के दिखाई देंगे ना । कइयों का तो जन्म ही बहुत मेहनत से हुआ है और कइयों ने बचपन से ही मेहनत करना आरम्भ किया है । यह भी भिन्न-भिन्न प्रकार तकदीर की लकीरें हैं।* कोई से पूछेंगे तो कहेंगे हमने शुरू से कोई मेहनत नहीं की । श्रीमत पर चलना है , योगी बनना है यह स्वतः लक्ष्य स्वरूप हो गया ।

➢➢  *कई सिर्फ नेमीनाथ भी हैं । योग में , क्लास में आयेंगे सबसे पहले ।* लेकिन पाया क्या ? कहेंगे हाँ सुन लिया । *आगे बढ़ना-बढ़ाना वह लक्ष्य नहीं होगा ।* सुन लिया मजा आ गया , ठीक है । *आया, गया, चला , खाया - ऐसे को कहेंगे नेमीनाथ । फिर भी ऐसों की भी पूजा होती है । इतना तो करते हैं कि नियम प्रमाण चल रहे हैं । उसका भी फल पूज्य बन जाते हैं ।*
 

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *बाप के दिल तख्त से नीचे लाने वाला है ही माया का कोई-न-कोई विघ्न । जब माया ही नहीं आयेगी तो फिर सदा तख्तनशीन रहेंगे । उसके लिए सदा अपने को कम्बाइंड समझो ।*


➢➢  *बहुतकाल की चढ़ती कला का प्रभाव बहुतकाल की प्राप्ति कराता है । सहज योगी जीवन वाले , सदा बाप के समीप और साथ की अनुभूति करते हैं । सदा स्वयं को सर्व शक्तियों में मास्टर समझने से सहज स्मृति स्वरूप हो जाते हैं* । कोई भी परिस्थितयाँ व परीक्षायें आते हुए सदा अपने को विघ्न- विनाशक अनुभव करते हैं । 


➢➢  *सदा विजय का तिलक लगा हुआ हो । जब एक बाप दूसरा न कोई तो अविनाशी तिलक रहेगा । संसार ही बाप बन गया ।* 


➢➢  *संसार में व्यक्ति और वस्तु ही होती है । तो जब सर्व सम्बन्ध बाप से है तो इसमें व्यक्ति भी आ गये और वस्तु भी अर्थात सर्व प्राप्ति बाप से हो गई । सुख-शान्ति-ज्ञान-आनन्द-प्रेम..सर्व प्राप्तियाँ हो गईं । जब कुछ रहा ही नहीं तो बुद्धि और कहाँ जायेगी ।*


➢➢  *ब्रह्मा बाप का संकल्प भी उठा- मैं जा रहा हुँ , क्या हो रहा है ! बच्चे सामने है लेकिन देखते भी नहीं देखा । सिर्फ लाइट माइट, समानता की दृष्टि देते उड़ता पंछी उड़ गया । ऐसे ही अनुभव किया ना! कितनी सहज उड़ान हुई , जो देखने वाले देखते रहे और उड़ने वाला उड़ गया ।*


➢➢  यहाँ बाप के साथ भिन्न- भिन्न सम्बन्धों का अनुभव करने से सदा उमंग उत्साह बना रहेगा । *सिर्फ बाप है , मैं बच्चा हूँ - यह नहीं , भिन्न - भिन्न सम्बन्ध का अनुभव करो तो जैसे मधुबन में आने से ही अपने को मनोरंजन में अनुभव करते हो और साथ का अनुभव करते हो , ऐसे ही अनुभव करेंगे कि पता नहीं दिन से रात, रात से दिन कैसे हुआ।* यहां भी एक द्वारा भिन्न - भीन्न अनुभव करने का बहुत अच्छा चांस है !

 

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *हर कर्म में भिन्न-भिन्न सम्बन्ध के साथ का अनुभव करो ।* तो सदा साथ में रहेंगे, सदा शक्तिशाली भी रहेंगे और सदा अपने को रमणीक भी अनुभव करेंगे । किसी भी प्रकार का अकेलापन नहीं महसूस करेंगे क्योंकि भिन्न- भिन्न सम्बन्ध में साथ रहने वाले सदा रमणीक और खुशी का अनुभव करते हैं । 

➢➢  *अपनी जीवन कहानी को सदा उन्नति की ओर बढ़ने वाली सर्व विशेषताओं सम्पन्न , सदा प्राप्ति स्वरूप ऐसा श्रेष्ठ बनाओ ।* अभी - अभी ऊपर , अभी - अभी नीचे वा कुछ समय ऊपर कुछ समय नीचे ऐसे उतरने-चढ़ने के खेल में सदा का अधिकार छोड़ नहीं देना । 

➢➢  बापदादा वतन में बहुत चिट चैट करते हैं । दोनो स्वतंत्र आत्मायें हैं । सेवा तो सेकंड में किया , सर्व को अनुभव कराया फिर आपस में क्या करेंगे? रूहरिहान करते रहते हैं । *ब्रह्मा बाप की यही जन्म के पहले दिन की आशा थी । कौन-सी ? सदा यह फखुर और नशा रहा कि मैं बाप समान जरूर बनूँगा ।* 

➢➢  लास्ट में बच्चों ने क्या देखा ? ब्रह्मा बाप ने बाप समान व्यक्त के बन्धन को कैसे छोड़ा ! सांप के समान पुरानी खाल छोड़ दी ना! और कितने में खेल हुआ? घड़ियों का ही खेल हुआ न । इसको कहा जाता है *बाप समान व्यक्त भाव को भी सहज छोड़ नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप ।* 

➢➢  सदा अपने को महावीर समझते हो? महावीर की विशेषता - *एक राम के सिवाय और कोई याद नहीं! तो सदा एक बाप दूसरा न कोई , ऐसी स्मृति में रहने वाले सदा महावीर ।*

➢➢  *आदि के ब्रह्मा के बोल याद हैं ? आ रहा हूँ , समा रहा हूँ ,* यही सदा नशे के बोल जन्म के संकल्प और वाणी में रहे । तो यही आदि के बोल अब कार्य समाप्त कर जो लक्ष्य रखा है उसी लक्ष्य रूप में समा गये । पहले अर्थ मालूम नहीं था लेकिन बनी हुई भावी पहले से बोल रही थी ।  *इसको कहा जाता है आदि में यही बोल और अन्त में वह स्वरूप हो गया । ऐसे ही फालो फादर ।*

➢➢  सभी स्नेही और सहयोगी आत्मायें हो ना ! स्नेह के कारण बाप को पहचाना और सहयोगी आत्मा हो गये । तो स्नेही और सहयोगी हो , सेवा का उमंग - उत्साह सदा रहता है लेकिन बाकी क्या रह गया ? *स्नेही - सहयोगी के साथ सदा शक्ति स्वरूप ।* शक्तिशाली आत्मा सदा विघ्न-विनाशक होगी और जो विघ्न-विनाशक होंगे वह स्वतः ही बाप के  दिलतख्तनशीन होंगे ।

 

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *जैसे कोई की जीवन कहानी विशेष प्रेरणा दिलाती है , उत्साह बढ़ाती है , हिम्मत बढ़ाती है , जीवन के रास्ते को स्पष्ट अनुभव कराती है , ऐसे आप हर विशेष आत्मा की जीवन कहानी अर्थात जीवन का हर कर्म अनेक आत्माओं को ऐसे अनुभव करावे ।*

➢➢  *सबके मुख से , मन से यही आवाज निकले की जब निमित आत्मा यह कर सकती है तो हम भी करें । हम भी आगे बढ़ेंगे । हम भी सभी को आगे बढ़ायेंगे , ऐसी प्रेरणा योग्य विशेष जीवन कहानी सदा बनाओ ।* 

➢➢  *सभी बाप की निमित्त बनी हुई भुजायें अपना- अपना कार्य यथार्थ रूप में कर रहीं हैं ?* यह सभी भुजायें हैं ना? तो सभी राइट  हैण्ड हैं वे कोई लेफ्ट हैण्ड भी हैं ? जो स्वयं को ब्राह्मण कहलाते हैं , ऐसे ब्राह्मण कहलाने वाले सब राइट हैण्ड हैं या ब्राह्मणों में ही कोई लेफ्ट हैण्ड हैं , कोई राइट हैण्ड हैं ? (ब्राह्मण कभी राइट हैण्ड बन जाते कभी लेफ्ट हैण्ड )

 

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