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❍ 03 / 09 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *शुभ भावना और
श्रेष्ठ कामना के आधार से 'पहले आप' करने वाला स्वयं ही पहले हो जाता है। पहले
आप कहना ही पहला नम्बर होना है। जैसे बाप ने जगदम्बा को पहले किया, बच्चों को
पहले किया लेकिन फिर भी नम्बरवन गया ना।* इसमें कोई स्वार्थ नहीं रखा,
नि:स्वार्थ ''पहले आप'' कहा, करके दिखाया।
➢➢ *यह एटम एनर्जी
आपके काम में आनी है। रिफाइन करने में लगे हुए हैं ना। यह आप लोगों को कोई दु:ख
नहीं देगी। सबसे ज्यादा सेवा कौन-सा तत्व करेगा? सूर्य। सूर्य की किरणें
भिन्न-भिन्न प्रकार की कमाल दिखायेंगी। यह सब आपके लिए तैयारियां हो रही हैं।*
गैस जलाने की, कोयले जलाने की, लकड़ी जलाने की आवश्यकता नहीं रहेगी। सबसे छूट
जायेंगे। *बहुत रंगत देखते जायेंगे। वह मेहनत करेंगे और आप फल खायेंगे।* फिर यह
वायर्स (तारें) वगैरा लगाने की भी मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। *बिना मेहनत के
नैचुरल नेचर द्वारा नैचुरल प्राप्ति हो जायेगी। लेकिन इसके लिए, नेचर के सुख
लेने के लिए भी अपनी ओरिजिनल नेचर को बनाओ, तब नेचर द्वारा सर्व सुखों को
प्राप्त कर सकेंगे ।*
➢➢ *नैचुरल नेचर
अर्थात् अनदि संस्कार। सुनते हुए भी अच्छा लगता है तो जब प्रालब्ध में होंगे तो
कितना अच्छा लगेगा! जैसे यहाँ पंछी उड़ते हैं, वैसे वहाँ विमान उड़ेंगे। कितने
होंगे? जैसे यहाँ पंछियों का संगटन लाइन में जाता है, वैसे विमानों के संगठन
जायेंगे। ऐसे नहीं एक जायेगा तो दूसरा नहीं जा सकेगा। ऐसे भिन्न-भिन्न डिजाइन
में जायेंगे। राज्य फैमिली अपनी डिजाइन में जायेगी, साहूकार अपनी डिजाइन में
जायेंगे। जहाँ चाहो वहाँ उतार लो।*
➢➢ *मधुबन में इतने
साधन, इतना सहयोग, इतना श्रेष्ठ संग प्राप्त है, अप्राप्त नहीं कोई वस्तु...
मधुबन के भण्डारे में, तो सर्व प्राप्तिवान क्या हो गये? सम्पूर्ण हो गये ना।
किस बात की कमी है? अगर कमी है तो स्व के धारणा की।*
➢➢ ब्रह्मा बाप ने
पहले जगत-अम्बा को(पहले आप) किया ना। कोई भी स्थान में पहले बच्चे, हर बात में
बच्चों को अपने से आगे रखा। जगत-अम्बा को अपने आगे रखा। *''पहले आप'' वाला ही
''हाँ जी'' कर सकता है इसलिए मुख्य बात है ''पहले आप'' लेकिन शुभ भावना से। कहने
मात्र नहीं, लेकिन शुभचिन्तक की भावना से।*
➢➢ *विदेश वाले जैसे
अभी निमन्त्रण देते हैं ना, आओ चक्कर लगाने आओ। दीदी आवे, दादी आवे, फलाने आवें,
तो जैसे अभी चक्कर लगाने जाते हो - थोड़े टाइम के लिए, ऐसे ही भविष्य (सतयुग
में) में भी चक्कर लगाने जायेंगे। सेकेण्ड में पहुँचेंगे। देरी नहीं लगेगी
क्योंकि एक्सीडेंट तो होगा नहीं इसलिए स्पीड की कोई लिमिट की आवश्यकता नहीं। एक
ही दिन में सारा चक्कर लगा सकते हो। सारा वर्ल्ड एक दिन में घूम सकते हो।*
➢➢ *(बच्चे) बाप की
बातें बाप को सुनाने का नाज रखते हैं। एक बोल तो अच्छी तरह से याद करते हैं -
''जैसी भी हूँ, कैसी भी हूँ लेकिन आपकी हूँ'' माशूक भी कहते - हो तो हमारी
लेकिन जोड़ी तो ठीक बनो ना! अगर समान जोड़ी नहीं होगी तो दृश्य देखने वाले क्या
कहेंगे? माशूक सजा-सजाया और आशिक बिना श्रृंगारी हुई, शोभेगी? तो आप स्वयं ही
सोचो - वह चमकीली ड्रेस वाले और आशिक काली ड्रेस वाली वा दागों वाली ड्रेस पहने
हुए, तो अच्छा लगेगा?*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *इस समय बाप
अनेक सम्बन्धों के अनेक रूपों से मिलते हैं। तो एक के अनेक रूप, सम्बन्ध के
आधार से वा कर्तव्य के आधार से प्रैक्टिकल में हैं ना।* तो भक्त भी राइट हैं
ना। आज किस रूप में बाप मिलने आये हैं और कहाँ मिल रहे हैं? आज की मुरली में (सवेरे)
वह सम्बन्ध सुना है। तो बाप कौन हुआ और आप कौन हुए? *आज रूहानी माशूक रूहानी
आशिकों से मिलन मनाने आये हैं।*
➢➢ *रूहानी माशूक
आप आशिकों को आदि के समय में कहाँ पर ले जाते थे, याद है ना? (सागर पर) तो आज
भी सर्व खजानों और गुणों से सम्पन्न, सागर के कंठे पर, साथ में ऊंची स्थिति की
पहाड़ी पर, शीतलता की चांदनी में रूहानी माशूक, रूहानी आशिकों से मिल रहे हैं।*
➢➢ *सागर है
सम्पन्नता का और पहाड़ी है ऊंची स्थिति की। सदा शीतल स्वरूप है चांदनी। तीनों
ही साथ में हैं। आज रूहानी आशिकों को देख रूहानी माशूक हर्षित हो रहे हैं* और
कौन-सा गीत गाते हैं? (हरेक अपना-अपना गीत सुना रहे हैं) वैसे तो एक ही गीत सुन
सकते हैं लेकिन बाप सभी का गीत सुन सकते हैं। *आशिक अपना गीत गा रहे हैं और
माशूक गीत का रेसपान्ड कर रहे हैं।*
➢➢ *जो भी गीत गाओ
सब ठीक है। हर एक के स्नेह के बोल बाप स्नेह से ही सुनते हैं। आशिकों को माशूक
को याद करना सहज है ना? सहज और निरन्तर याद का सम्बन्ध और स्वरूप यह रूहानी
आशिक और माशूक का है। याद करना नहीं पड़ता लेकिन याद भुलाते भी भूल नहीं सकती।*
➢➢ बापदादा कहे हे
आशिकों, सदा माशूक समान सम्पन्न और सदा चमकीले स्वरूप में अर्थात् सम्पूर्ण
स्वरूप में स्थित रहो। माशूक कहते हैं हल्के बन जाओ। तो क्या करते हैं? *हल्के
होने का साधन जो एक्सरसाइज है, वह करते नहीं। तो हल्के कैसे बनें? रूहानी
एक्सरसाइज तो जानते हो ना! अभी-अभी निराकारी, अभी-अभी अव्यक्त फरिश्ता, अभी-अभी
साकारी कर्मयोगी। अभी-अभी विश्व सेवाधारी। सेकेण्ड में स्वरूप बन जाना - यह है
रूहानी एक्सरसाइज।*
➢➢ *प्यार करना सबको
आता है लेकिन तोड़ निभाने में नम्बर हो जाते हैं। ''मेरा माशूक'' सब कहते हैं
लेकिन मेरा कहते भी क्या करते हैं? जानते हो क्या करते हैं?* आज तो रूहरिहान
करने आये हैं, मुरली चलाने नहीं आये हैं। तो बताओ क्या करते हैं? *मेरा भी कहते
लेकिन कभी-कभी कहाँ फेरा भी लगाकर आते हैं। फिर फेरा लगाने के बाद जब थक जाते
हैं तब फिर कहते हैं ''मेरा माशूक''।* और कई आशिक नाज भी बहुत करते हैं।
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
चांदनी में बैठे हो ना? शीतल स्वरूप में रहना अर्थात् चांदनी में बैठना। *सदा
ही चांदनी रात में रहो।* चांदनी रात में ड्रेस भी स्वत: चमकीली हो जायेगी। जहाँ
देखेंगे वहाँ चमकते हुए दिखाई देंगे। और *सदा सागर के कण्ठे पर रहो अर्थात् सदा
सागर समान सम्पन्न स्थिति में रहो।* समझा कहाँ रहना है? माशूक को यही किनारा
प्रिय है।
➢➢
अभी देखो ब्रह्मा बाप का फोटो किसी को भी दो तो प्यार से सम्भाल लेते हैं, सबसे
बढ़िया सौगात इसी को मानते हैं तो *आप सब भी ब्रह्मा बाप की फोटो हो जाओ। ब्रह्मा
बाप समान हो जाओ तो आप भी अमूल्य सौगात हो जायेंगे।*
➢➢
आशिक कौनसा बोझ अपने ऊपर रखते हैं? वेस्ट की वेट बहुत है इसलिए हल्के नहीं हो
सकते। कोई समय के वेस्ट के वेट में हैं, कोई संकल्पों के और कोई शक्तियों को
वेस्ट करते हैं। कोई सम्बन्ध और सम्पर्क वेस्ट अर्थात् व्यर्थ बना लेते हैं। ऐसे
भिन्नभिन्न प्रकार के वेट बढ़ने के कारण माशूक समान डबल लाइट बन नहीं सकते।
सच्चे आशिक की निशानी है - ''माशूक के समान'' अर्थात् माशूक जो है, जैसा है वैसे
समान बनना। तो *आज रूहानी माशूक, आशिकों को कहते हैं- ''समान बनो'' अर्थात्
समीप बनो।*
➢➢
*अभी प्रकृतिजीत बनो तो प्रकृति दासी बनेगी।* अभी प्रकृतिजीत कम तो प्रकृति दासी
भी कम होगी!
➢➢
आपके हर कर्म विधाता की कर्म रेखायें बतायें। कर्म द्वारा ही भाग्य की लकीर
खींचते हो तो आप सबका हर कर्म श्रेष्ठ भाग्य की कर्म की लकीर खींचने वाला हो। *जैसे
बापदादा का हर कर्म स्व के प्रति और अनेकों के प्रति भाग्य की लकीर खीचने वाला
रहा, ऐसे ही बाप समान।*
➢➢
*मधुबन वालों का सदा एक निजी संस्कार इमर्ज रूप में होना चाहिए।* वह कौन सा,
कर्म में सफलता पाने के लिए ब्रह्मा बाप का निजी संस्कार कौन सा था, जो आप सबका
भी वही संस्कार हो? *हाँ जी के साथ-साथ ''पहले आप'', ''पहले मैं'' नहीं, पहले
आप।*
➢➢
माशूक का बनना अर्थात् सबका परिवर्तन होना। तो *पुरानी काली, अनेक दागों वाली
ड्रेस की स्मृति क्यों लाते हो अर्थात् बार-बार धारण क्यों करते हो? चमकीली
ड्रेस वाले चमकते हुए श्रृंगारधारी बन माशूक के साथ चमकीली दुनिया में क्यों नहीं
रहते!* वहाँ कोई दाग लग ही नहीं सकता।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *इसने किया
अर्थात् मैंने किया। इसने क्यों किया, मैं ही करूँ, मैं क्यों नहीं करूँ, मैं
नहीं कर सकता हूँ क्या! यह भाव नहीं। उसने किया तो भी बाप की सेवा, मैंने किया
तो भी बाप की सेवा।*
➢➢ *यहाँ कोई को
अपना-अपना धन्धा तो नहीं है ना। एक ही बाप का धंधा है। ईश्वरीय सेवा पर हो।
लिखते भी हो गाडली सर्विस, मेरी सर्विस तो नहीं लिखते हो ना।*
➢➢ *बाप एक है, सेवा
भी एक है, ऐसे ही इसने किया, मैंने किया वह भी एक। जो जितना करता, उसे और आगे
बढ़ाओ। मैं आगे बढ़ूं, नहीं। दूसरों को आगे बढ़ाकर आगे बढ़ो।* सबको साथ लेकर
जाना है ना। बाप के साथ सब जायेंगे अर्थात् आपस में भी तो साथ-साथ होंगे ना। जब
यही भावना हरेक में आ जायेगी तो ब्रह्मा बाप की फोटो स्टेट कापी हो जायेंगे।
➢➢ *मधुबन निवासियों
को देखा अर्थात् ब्रह्मा को देखा क्योंकि कापी तो वही है ना।* फिर ऐसा कोई नहीं
कहेगा कि हमने तो ब्रह्मा बाप को देखा ही नहीं। *आपके कर्म, आपकी स्थिति ब्रह्मा
बाप को स्पष्ट दिखायें। यह है मधुबन निवासियों की विशेषता क्योंकि मधुबन
निवासियों को सब फालो करते हैं। तो मधुबन वाले एक-एक मास्टर ब्रह्मा हो।*
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