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  15 / 11 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *ऊंचे ते ऊंचा है ब्राह्मण कुल, देवताओं से भी ऊंचा है। तुम ब्राह्मण भारत को पतित से पावन बनाते हो।*

➢➢  कृष्ण की आत्मा  84 जन्म जरूर लेने हैं। 21जन्म सुन्दर, 63 जन्म श्याम। अब उनकी लात पुरानी दुनिया तरफ है, मुँह नई दुनिया तरफ है। जो नम्बरवन पूज्य था वही पुजारी बन अब लास्ट नम्बर में है। खुद ही पुजारी बन नारायण की पूजा करते थे। अब खुद ही पूज्य नारायण बनते हैं, इनको ही फर्स्ट नम्बर में जाना है। *ब्रह्मा का दिन स्वर्ग, ब्रह्मा की रात नर्क*। शिवबाबा आते हैं रात को दिन बनाने।

➢➢  *शिवरात्रि कहते हैं परन्तु शिव के बदले कृष्ण का नाम कह दिया है कि कृष्ण का जन्म रात को हुआ। है शिवबाबा की बात।* शिवबाबा की तिथि तारीख वेला का कुछ भी पता नहीं कि किस समय आया। कृष्ण की वेला है। वह पुनर्जन्म में आने वाला है। शिवबाबा तो झट आकर परिचय देने लग पड़ते हैं। कुछ समय तो पता ही नहीं पड़ा कि यह कौन आया है? कौन बोल रहे हैं? बाद में मालूम पड़ा कि यह तो *शिवबाबा ज्ञान का सागर है। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी की स्थापना करते हैं।*

➢➢  द्वापर से माया का राज्य शुरू होता है फिर हमारी धीरे-धीरे उतरती कला होती है। यह बुद्धि में रहना चाहिए। जब उतरते हैं तो जल्दी-जल्दी जन्म लेते जाते हैं। आधाकल्प में 21 जन्म लेते हैं बाकी आधाकल्प में 63 जन्म पतित होने से जल्दी-जल्दी उतरते जाते हैं। जब बाप आये तो हम एकदम उतर गये थे। *अभी तुम संगमयुगी ब्राह्मण बने हो। भल तुम्हारा कलियुग के साथ कनेक्शन है। परन्तु अपने को संगमयुगी समझते हो। जानते हो बाबा हमको परमधाम का मालिक बना रहे हैं।*

➢➢  ऊंचे ते ऊंचा है ब्राह्मण कुल, देवताओं से भी ऊंचा है। *तुम ब्राह्मण भारत को पतित से पावन बनाते हो*। तुमने सतयुग त्रेता में 21 जन्म राज्य भाग्य किया तब सुन्दर थे फिर 63 जन्म काम चिता पर बैठे काले हो गये, तब श्याम बनते। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी की स्थापना करते हैं। ब्रह्मा यहाँ है। कृष्णपुरी भी यहाँ है। लक्ष्मी-नारायण के तख्त पिछाड़ी विष्णु का चित्र होता है।

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *सर्वशक्तिमान् बाप को अपना साथी बना लो तो शक्तियां सदा साथ रहेंगी*। और जहाँ सर्व शक्तियां हैं वहाँ सफलता न हो-यह असम्भव है। लेकिन यदि बाप से कम्बाइन्ड रहने में कमी है, माया कम्बाइन्ड रूप को अलग कर देती है तो सफलता भी कम हो जाती है, मेहनत करने के बाद सफलता होती है। मास्टर सर्वशक्तिमान् के आगे सफलता तो आगे पीछे घूमती है।

➢➢  गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए तुम समझते हो वह कलियुग में रहने वाले हैं, हम संगमयुग में रहने वाले हैं। *वह विकारी बगुले हैं, हम निर्विकारी हंस हैं*। सिर्फ बाहर से नहीं दिखाना है। अन्तर्यामी बाबा अन्दर से जानते हैं।

➢➢  तुम हो पतित दुनिया को पावन बनाने वाली शक्तियाँ। *याद से पाप भस्म हो जाते हैं*। मेहनत है बहुत इसलिए कोटों में कोई निकलता है।

➢➢  *यह है कल्याणकारी संगम अथवा कुम्भ। आत्मा परमात्मा का मिलन होता है। अभी तुम जानते हो हम परमपिता परमात्मा से 21 जन्म का वर्सा ले रहे हैं।*

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *खान-पान की पूरी परहेज रखनी है। याद में रहकर भोजन खाने का अभ्यास करना है। मात-पिता की तरह सेवा करनी है। अपने बड़ों का रिगार्ड जरूर रखना है।*

➢➢  *तुमको रूहानी सोशल वर्कर बन सबको बाप का परिचय देना हैं।* कम पढ़ने वालों को जो अच्छी रीति पढ़ते हैं उनका रिगार्ड रखना चाहिए। *मम्मा बाबा मिसल सर्विस करना हैं।*

➢➢  *तुमको श्रीमत पर चलना चाहिए।* जो नहीं चलते गोया निधनके हैं, उनको कहा जाता है बगुला। तो हंसों को बगुलों के साथ भी रहना पड़ता है। गृहस्थ व्यवहार में तो रहना ही है। जो श्रीमत पर चलते वही धारणा कर सकते हैं।

➢➢  *सबकी दुआयें लेनी हैं तो हाँ जी करते हुए सहयोग का हाथ बढ़ाते चलना हैं*।

➢➢  पढ़ाई अच्छी रीति पढ़कर उसका सबूत दो, *सर्विस कर औरों को भी लायक बनाओ तब ऊंच पद के अधिकारी बन सकते हो।*

➢➢  तुम अभी सुखधाम के लिए पढ़ते हो फिर उसमें भी नम्बरवार मर्तबे हैं। मनुष्य मर्तबे के लिए कितना  माथा मारते हैं। वह है अल्पकाल का सुख, काग विष्टा समान सुख। यह तो अथाह सुख है। *जो बच्चे श्रीमत पर चलेंगे, वही अथाह सुख पा सकेंगे और वह ब्राह्मण कुल में भी अपना नाम निकालेंगे*।

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *सर्विस कर औरों को भी ऊंचे ते ऊंचा पद दिलाओ तो तुम्हारा भी पद ऊंचा हो जायेगा। अच्छी रीति पढ़कर फिर बाप को सबूत देना है*। बाबा हमने इतनों को बाबा का परिचय दिया। *प्रदर्शनी में भी पहले-पहले बाप का परिचय देते हो। परिचय देकर फिर लिखवा लो।* समझाना बहुत सहज है।

➢➢  *अच्छी सर्विस करने वालों को जहाँ तहाँ बुलाते हैं। तो समझना चाहिए क्यों न हम पुरुषार्थ कर ऐसा बनें। औरों को आप समान बनावें। बेहद के बाप का परिचय देना है।*

➢➢  *बेहद के बाप का परिचय देना है कि उनसे कैसे बेहद का वर्सा मिलता है। वह बेहद का बाप जन्म-मरण रहित सदा सुख देने वाला है।* बाप दो हैं एक आत्माओं का बाप, दूसरा अलौकिक, तब तुम बापदादा कहते हो। लौकिक सम्बन्ध में भी बापदादा होता है। यह फिर पारलौकिक बापदादा। लौकिक से अल्पकाल का सुख मिलता, *पारलौकिक बाप से तुम भविष्य 21 पीढ़ी की प्रालब्ध पाते हो।* लौकिक बाप से अल्पकाल सुख का वर्सा जन्म बाई जन्म मिलता है।

➢➢  *बाप दो होते हैं लौकिक और पारलौकिक।* लौकिक से हद का वर्सा मिलता है, जिसको काग विष्टा समान सुख कहा जाता है। *बेहद का बाप बेहद का सुख देते, स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। तो बच्चों को सर्विस कर आप समान बनाना है। बाप को सिर्फ याद नहीं करना है, लेकिन उन जैसी सर्विस भी करना है।* कृष्ण अथवा किसको भी याद करना, उनके गुण न धारण करना, वह क्या काम के। उनसे फल कुछ नहीं मिलता।

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