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❍ 08 / 10 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *जैसे बापदादा
ऊँचे ते ऊँचे स्थान पर स्थित हो बेहद की सेवा अर्थ निमित्त हैं, ऐसे ही आप सभी
भी ऊँचे ते ऊँचे साकार स्थान पर स्थित हो बेहद की सेवा प्रति निमित्त हो।*
➢➢ *बाप के यथार्थ स्थान को न जानते हुए भी फिर भी सबकी नजर ऊँच तरफ जाती है,
ऐसे ही साकार में सर्व आत्माओं की नजर इस महान स्थान (मधुबन) पर ही जा रही है
और जायेगी।* समझते हैं कि कोई श्रेष्ठ ठिकाना मिले। लेकिन यही वह स्थान है, इसकी
पहचान के लिए चारों ओर परिचय देने की सेवा सभी कर रहे हैं।
➢➢ विश्व के इसी श्रेष्ठ कोने से ही सदाकाल का जीयदान मिलना है। इस बेहद के
कार्य द्वारा यह एडवरटाइज विशाल रूप में होनी हैं। *यह आध्यात्मिक खजानों की
प्राप्ति का स्थान जो अभी गुप्त है, इसको अनुभव के नेत्र द्वारा देख ऐसे ही
समझेंगे जैसे गँवाया हुआ, खोया हुआ गुप्त खजाने का स्थान फिर से मिल गया है।*
➢➢ *धीरे-धीरे सबके मन से, मुख से यही बोल निकलेंगे कि ऐसे कोने में इतना
श्रेष्ठ प्राप्ति का स्थान। इसको तो खूब प्रसिद्ध करो।* तो विचित्र बाप,
विचित्र लीला और विचित्र स्थान, यही देख-देख हर्षित होंगे। वन्डरफुल बात है,
वन्डरफुल कार्य है यही सबके मुख से सुनते रहेंगे।
➢➢ *वरदान भूमि पर रहने वालों को सदा सन्तुष्ट रहने का वरदान मिला हुआ है। जो
जितना अपने को सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न अनुभव करेंगे, वह सदा सन्तुष्ट होंगे।
अगर जरा भी कमी की महसूसता हुई तो जहाँ कमी है वहाँ असन्तुष्टता है।* थोड़ी
मेहनत करनी पड़ती है क्योंकि अपना राज्य तो है नहीं।
➢➢ *वरदान भूमि पर प्रॉब्लम तो खेल हो गई है फिर भी समय पर बहुत सहयोग मिलता
रहा है क्योंकि हिम्मत रखी है। जहाँ हिम्मत है वहाँ सहयोग प्राप्त हो ही जाता
है।*
➢➢ *साकार रूप में फॉलो करने के हिसाब से सबको मधुबन ही दिखाई देता है क्योंकि
ऊँचा स्थान है। मधुबन वाले तो सदा झूले में झूलते रहते। यहाँ तो सब झूले हैं।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ जितना ऊँचा
स्थान होता है उतनी लाइट चारों ओर ज्यादा फैलती है। *यह तो सबसे ऊँचा स्थान है
तो यहाँ से निकली हुई आवाज चारों ओर तक पहुँचे उसके लिए लाइट माइट हाउस बनना
है।*
➢➢ *स्थूल प्राप्ति भी बहुत है तो सूक्ष्म प्राप्ति भी बहुत है, सदा झूले में
होंगे तो कब भूलें नहीं होंगी। प्राप्ति के झूले से उतरते हैं तो भूलें अपनी भी
दूसरे की भी दिखाई देंगी।*
➢➢ *झूले में बैठने से धरनी को छोड़ना पड़ता है।* तो मधुबन वाले तो सर्व
प्राप्ति के झूले में सदा झूलते रहते। सिर्फ प्राप्ति के आधार पर जीवन न हो।
प्राप्ति आपके आगे भल आवे लेकिन आप प्राप्ति को स्वीकार नहीं कर लो।
➢➢ *अगर इच्छा रखी तो सर्व प्राप्ति होते भी कमी महसूस होगी। सदा अपने को खाली
समझेंगे। तो ऐसा भाग्य है जो बिना मेहनत के प्राप्ति स्वयं आती है। तो इस भाग्य
को सदा स्मृति में रखो। जितना स्वयं निष्काम बनेंगे उतना प्राप्ति आपके आगे
स्वत: ही आयेगी।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
जैसे स्थूल सहयोग के आधार पर सर्व की अंगुली लगने से हॉल तैयार हो गया है। वैसे
हाल के साथ वन्डरफुल चाल दिखाने के लिए ऐसा विशेष स्वरूप प्रत्यक्ष रूप में
दिखाओ। *सिर्फ बुद्धि में संकल्प किया, यह नहीं। लेकिन जैसे इन्जीनियर के बुद्धि
की मदद और मजदूरों के कर्म की मदद से कार्य सम्पन्न हुआ। इसी रीति मन के
श्रेष्ठ संकल्प साथ-साथ हर कर्म द्वारा भी विचित्र चाल का अनुभव हो।*
➢➢ *प्रत्यक्ष स्वरूप हर कर्म द्वारा ही दिखाई देता है। तो ऐसे चलने और करने को
संकल्प, वाणी हाथ वा पाँव द्वारा संगठित रूप में विचित्र स्वरूप से दिखाने का
दृढ़ संकल्प करो।*
➢➢ चाल का नक्शा तैयार करो। सिर्फ 3 हजार की सभा नहीं लेकिन 3 हजार में सदा
त्रिमूर्ति दिखाई दे। यह *सब ब्रह्मा के समान कर्मयोगी, विष्णु के समान प्रेम
और शक्ति से पालना करने वाले, शंकर के समान तपस्वी वायुमण्डल बनाने वाले हैं,
ऐसा अनुभव हर एक द्वारा हो।*
➢➢ अच्छे ते अच्छा क्या हो सकता है, वह भी सिर्फ सोचना नहीं है लेकिन करना है।
इसको ही विचित्र चाल का प्रत्यक्ष स्वरूप कहा जायेगा। *सदा अच्छे ते अच्छा हो
रहा है और सदा अच्छे ते अच्छा करते रहना है - इसी समर्थ संकल्प को साथ रखना।
सिर्फ वर्णन नहीं करना लेकिन निवारण करते नव निर्माण के कर्तव्य की सफलता को
प्रत्यक्ष रूप में देखते और दिखाते रहना है।*
➢➢ *अपने मन मे कोई हलचल नहीं होनी चाहिए। मन सदैव हल्का रहने से सर्व के पास
भी आपके लिए हल्कापन रहेगा।* थोडा बहुत हिसाब-किताब तो होता ही है लेकिन उस
हिसाब-किताब को भी ऐसे ही पार करो जैसे कोई बड़ी बात नहीं। *छोटी बात को बड़ा
नहीं करो।* छोटा करना वा बड़ा करना यह अपनी बुद्धि के ऊपर है।
➢➢ *एक दो के स्वभाव संस्कार को जान गये हो, तो नॉलेजफुल कभी किसी भी
स्वभाव-संस्कार से टक्कर नहीं खा सकते।* जैसे किसको पता है कि यहाँ खड्डा है वा
पहाड़ है तो जानने वाला कब टकरायेगा नहीं। किनारा कर लेगा। तो *स्वयं को और
वायुमण्डल को सदा सेफ रखो।* जब एक टक्कर नहीं खायेगा तो दूसरा स्वयं ही बच
जायेगा। *काम से किनारा नहीं करना है। अपनी सेफ्टी की शक्ति से दूसरे को भी सेफ
करना, यह है किनारा करना।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *सबसे बड़े ते
बड़ी देन है - दाता के बच्चे बन सर्व को सहयोग देना। बिगड़े हुए कार्य को, बिगड़े
हुए संस्कारों को, बिगड़े हुए मूड को शुभ भावना से ठीक करने में सदा सर्व के
सहयोगी बनना - यह है बड़े ते बड़ी विशेष देन।*
➢➢ *इसने यह कहा, यह किया, यह देखते, सुनते, समझते हुए भी अपने सहयोग के स्टॉक
द्वारा परिवर्तन कर देना। अगर किसी भी द्वारा कोई शक्ति की कमी अनुभव भी हो तो
अपने सहयोग से जगह भर दो, जिससे दूसरे की कमी का भी अन्य कोई काे अनुभव न हो।*
इसको कहा जाता है - दाता के बच्चे बन समय प्रमाण उसे सहयोग की देन देना।
➢➢ *यह नहीं सोचना है, इसने यह किया, ऐसा किया, लेकिन क्या होना चाहिए वह करते
रहो। कोई की कमी न देखना, लेकिन आगे बढ़ते रहना। अभी बेहद की सेवा का समय है तो
बुद्धि भी बेहद की रखो।* वातावरण शक्तिशाली बनाना है, यह हरेक आत्मा स्वयं को
जिम्मेवार समझे।
➢➢ *सेवाधारी का अर्थ ही है प्रत्यक्षफल खाने वाले। सेवा की और खुशी की अनुभूति
की तो यह प्रत्यक्षफल खाया ना। सेवाधारी बनना - यह तो बड़े ते बड़े भाग्य की
निशानी है।* जन्म-जन्म के लिए अपने को राज्य अधिकारी बनने का सहज साधन है इसलिए
सेवा करना अर्थात् भाग्य का सितारा चमकना।
➢➢ नाम सेवा है लेकिन यह सेवा करना नहीं है, मिलना है। *कितना भी हार्ड वर्क
हो लेकिन सैलवेशन भी साथ-साथ मिलती है तो वह हार्ड वर्क नहीं लगता, खेल लगता है
इसलिए सेवाधारी बनना अर्थात् प्राप्तियों के मालिक बनना।* एक एक दिन की, एक
घण्टे की प्राप्ति का अगर हिसाब लगाओ तो कितना अनगिनत है, इसलिए सेवाधारी बनना
भाग्य की निशानी है।
➢➢ सेवा का चान्स मिला अर्थात् प्राप्तियों के भण्डार भरपूर हो गये। स्थूल
प्राप्ति भी है और सूक्ष्म भी। *सेवा करते सदैव यह चेक करो कि डबल सेवा कर रहा
हूँ। मंसा द्वारा वायुमण्डल श्रेष्ठ बनाने की और कर्म द्वारा स्थूल सेवा। तो एक
सेवा नहीं करनी है।* लेकिन एक ही समय पर डबल सेवाधारी बन करके अपना डबल कमाई का
चांस लेना है।
➢➢ अगर संकल्प में भी आया - कि मैंने किया, तो जो भी किया वह सारा खत्म हो गया।
*मेरा-पन आना माना सारे किये हुए कार्य पर पानी डाल देना। सेवाधारी अर्थात्
करावनहार बाप निमित्त बनाए करा रहे हैं। करावनहार को नही भूलें। निमित्त हूँ,
निमार्ण हूँ तो माया आ नहीं सकती।* संकल्प या स्वप्प्न में भी माया आती है तो
सिद्ध होता है कि कहाँ मैं-पन का दरवाजा खुला है।
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