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❍ 14 / 07 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *अब भी कई ऐसे हैं जो कभी उन्नति को नहीं पाते हैं। फिर समझा जाता है - उनकी तकदीर में शायद कुछ नहीं है। सर्विस करते-करते पिछाड़ी में कुछ पद पा लेंगे। सो भी रहेंगे तो। निकल गये तो प्रजा में भी कम से कम पद पायेंगे। बहुत हैं जो जामड़े (बौने) हैं। वृद्धि को पाते ही नहीं हैं। कुछ समझते ही नहीं हैं।* कर्म विकर्म की गति बाप ही समझाते हैं।
➢➢ *यहाँ रह अच्छे कर्म नहीं करते तो विकर्म वृद्धि को पाते जाते हैं।* तुम भी कहेंगे यह तो ड्रामा का पार्ट हुआ ना। यह भी चाहिए जरूर। *जो राजाई के अन्दर रहते नौकरी आदि करते रहेंगे। नौकर फिर उन्नति को पाते पिछाड़ी में राजाई पायेंगे।*
➢➢ *यह अविनाशी ड्रामा है। प्रलय तो कभी होती नहीं। सतयुग से कलियुग तक मनुष्यों की वृद्धि होती जाती है। वहाँ दूसरा कोई धर्म नहीं होगा।* यहाँ तुमको नॉलेज का मालूम है। वहाँ सतयुग में नॉलेज नहीं रहती। *इस समय तो बाप आप समान त्रिकालदर्शी बनाते हैं।*
➢➢ *तुम बच्चे जानते हो कि अभी वही पूज्य देवी देवता जो पुजारी बने थे, वही ब्राह्मण बने हैं फिर सो देवता बनेंगे।* बाप ही बैठ कर्म-अकर्म-विकर्म की गुह्य गति समझाते हैं। *भविष्य नई दुनिया में तुम्हारे कर्म अकर्म होंगे। यथा राजा रानी तथा प्रजा।*
➢➢ *आसुरी कर्म भी देखते हो। कितने गरीब फिर पापी अजामिल जैसे बन जाते हैं। यहाँ भी ऐसे बनते हैं। कर्मो की गति बाप बैठ समझाते हैं। कोई तो बादशाह बनते फिर कोई दास दासी बन पिछाड़ी में कुछ पद पा लेते हैं।* ऐसे भी हैं- बाप अच्छी तरह जानते हैं। यहाँ रहते भी अच्छा कर्म नहीं करते हैं तो नशा भी नहीं रहता है।
➢➢ *भारत सुखधाम था। सम्पूर्ण निर्विकारी थे, जिन्हों का देवी-देवता नाम मशहूर है।* दूसरा कोई नाम नहीं लेते हैं। *लक्ष्मी-नारायण सूर्यवंशी फिर राम सीता चन्द्रवंशी थे। फिर उन्हों की डिनायस्टी कहा जाता है। इतनी और किसकी डिनायस्टी नहीं चलती है।* क्रिश्चियन की भी थोड़ा समय चलती है, पहले बादशाही नहीं होती है। आधा समय एडवर्ड, जार्ज आदि फिरते रहते हैं। थोड़े-थोड़े टाइम में फिर बदलते जाते हैं। *यह (सूर्यवंशी) एक ही डिनायस्टी है जो 1250 वर्ष चलती है।*
➢➢ *एक मन्त्र है शिव काशी विश्वनाथ गंगा। अर्थ कुछ भी नहीं समझते हैं - समझते हैं गंगा इनसे निकली है इसलिए गंगा के कण्ठे पर जाकर बैठते हैं। समझते हैं हम वहाँ मुक्त हो जायेंगे।* शिव काशी, शिव काशी उच्चारते हैं। फिर दिखाते हैं भागीरथ ने गंगा लाई। *क्या गंगा द्वारा पतित से पावन हो जायेंगे। पतित-पावन को तो पुकारते हैं ना। वह कौन है कैसे सहज राजयोग सिखाते हैं- यह कोई जानते नहीं।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *शिवबाबा को कैसे याद किया जाता है - यह भी तुम जानते हो। तुम्हारी है याद की यात्रा। तुम्हारी जिस्मानी यात्रा बन्द है। वह होती है जिस्मानी यात्रा, यह है रूहानी यात्रा।*
➢➢ *बाप कहते रहते हैं बच्चे घर को याद करो। यह छी-छी दुनिया, छी-छी पुराना शरीर है। मैं तुम्हारा बाप हूँ। तुमको वापिस ले जाऊंगा।*
➢➢ *इस महाभारत की लड़ाई में कितने खत्म होने वाले हैं। इतने करोड़ों मनुष्य हैं उनकी आत्मायें कहाँ जायेंगी। अपने-अपने धर्म के सेक्शन में स्टॉर मिसल जाकर रहेंगी। उसे कहा ही जाता है निराकारी दुनिया।*
➢➢ *बाप ने साक्षात्कार करा दिया कि तुम विश्व के मालिक बनते हो। विनाश की तैयारियां भी देख रहे हैं। परन्तु यह कोई नहीं समझते कि विनाश कराने वाला कौन है।*
➢➢ भारत पावन था, अभी पतित है। तुम पावन दुनिया के मालिक थे, अभी पतित दुनिया में हो। *जानते हो हमको बाबा फिर से पावन दुनिया का मालिक बनाते हैं। जो मालिक बनाने वाले थे वही आये हुए हैं। यह है तुम्हारी चैतन्य यात्रा, जिसके यादगार फिर भक्ति मार्ग में वह यात्रा चली आती है।*
➢➢ *वर्ल्ड उसको कहा जाता, जहाँ बहुत रहते हैं। अगर कहें ब्रह्म में लीन हो जाते हैं तो वर्ल्ड तो हुई नहीं। गाया जाता है निराकारी दुनिया, जिसमें आत्मायें रहती हैं।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ जब सबसे ममत्व टूट जाए और पूरा निश्चय हो, हम सब कुछ उनको ( बाप) अर्पण करते हैं। जीते जी हम उनकी मिलकियत के ट्रस्टी हैं। ऐसे कोई जीते जी बनते नहीं हैं। जब मरने का समय होता है तब ट्रस्टी बनाकर जाते हैं। यहाँ सरेन्डर करते हैं। *बाबा कहते हैं बच्चे ट्रस्टी होकर रहो।* भगवान ने सब कुछ दिया है। अभी बाप कहते हैं बच्चे यहाँ तुम सम्मुख बैठे हो। अब *देह सहित जो भी तुम्हारा है - उनसे ममत्व निकालना है।*
➢➢ इस समय तुम बच्चों को बाप बैठ अच्छा कर्म करना सिखलाते हैं। तुम बच्चे *कभी किसको दुख नहीं दो। यहाँ तुम सब पढ़ने के लिए बैठे हो।* अपने-अपने घर में भी बहुत रहते हैं। घर में रहते हुए भी वारिस बन सकते हैं। यहाँ जब तक माँ बाप परवरिश करते हैं। उन्हों की भी कर्मों की गति न्यारी है। बाकी जो बाहर रहते हैं, सब कुछ बाबा का समझ ट्रस्टी बनकर रहते हैं, वह भी जैसे वारिस हो गये।
➢➢ यहाँ तो इनको (ब्रह्मा) जायदाद आदि बनानी नहीं है। यह कोई लेने वाला नहीं है, देने वाला है। कहते हैं *ट्रस्टी बन पूछते रहना है* क्योंकि भूल-चूक कभी भी हो सकती है। बाबा जानते हैं- टाइम लगेगा। ट्रस्टी होने से ही वारिस बनते हैं। यहाँ रहने वाले भी ट्रस्टी बनते हैं। बाबा कहते हैं मैं रिटर्न में बैकुण्ठ की बादशाही देता हूँ। तुम्हें दूसरा जन्म अमरलोक में लेना है। *ट्रस्टी होकर फिर खबरदार भी रहना है।*
➢➢ *सर्विस कुछ करते नहीं, खाते रहते हैं, पढ़ते भी नहीं,* यह कर्मों की गुह्य गति देखो कैसी है। ईश्वर के पास रहते हुए ऐसे कर्म करते हैं तो फिर सजायें भी बहुत खाते हैं। पद भी नीच मिलता है *इसलिए समझाया जाता है ऐसे-ऐसे विकर्म नहीं करो। नहीं तो वृद्धि को पाते रहेंगे।* बाप ऐसे कर्म सिखलाते हैं जो स्वर्ग की राजाई पा सकें। श्रीमत पर ऐसा कर्म करना है।
➢➢ यह है ही विशश वर्ल्ड। *निर्विकारी कभी किसी के आगे हाथ नहीं जोड़ेंगे।* यह किसको पता नहीं है जो निर्विकारी हैं वही फिर विकारों में गिरते हैं। भगत लोग तो समझते कि कृष्ण हाजिरा हजूर है। भगवान कभी मरता नहीं है, पुनर्जन्म नहीं लेता। तुमको तो अभी ज्ञान है। जानते हो लक्ष्मी-नारायण सबसे ऊंच स्वर्ग के मालिक थे। सीता राम को स्वर्ग का मालिक नहीं कहेंगे। यह भी अभी रोशनी मिली है।
➢➢ बाप समझाते हैं *जबकि अब सद्गति होती है तो दुर्गति का कोई भी कर्तव्य नहीं करना है।* सबसे पहले तो *देह-अभिमान छोड़ना है।* सबसे अच्छा कर्म है *एक बाप को याद करना, देही-अभिमानी हो रहना।* अपनी *जांच करते रहना है कि कोई विकार तो नहीं आया। लोभ भी नहीं करना है।* जबकि सब कुछ ईश्वर का है तो हम लोभ क्यों रखें।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *परमपिता परमात्मा जो पतित-पावन हैं, उनकी महिमा बहुत है। परन्तु उनकी महिमा को कोई यथार्थ रीति से जानते नहीं।* फिर *गायन भी करते हैं पतित-पावन, तो जरूर एक होगा ना। जो सबको आकर पावन बनाते हैं। इसलिए उनको सर्वव्यापी कह नहीं सकते।*
➢➢ *बाप कहते हैं मैं हूँ ही गरीब-निवाज़, मुझे गरीबों के पाई-पाई से स्थापना करनी है,* मैं साहूकार निवाज़ तो नहीं हूँ। अक्सर करके मातायें गरीब होती हैं। उनके हाथ में कुछ भी नहीं रहता है। वह कोई हाफ पार्टनर नहीं हैं। नहीं तो विल करते तो आधा हिस्सा उन्हों का निकालते।
➢➢ बाप तो हर एक बच्चे की रग अच्छी तरह देखते हैं ना। पोतामेल भी देखते हैं। कोई बहुत गरीब होते हैं तो कुछ न कुछ 15-20 रुपया बचाकर भी देते हैं। अपना भविष्य बनाते हैं। *बाप राय भी देते हैं। थोड़ा बहुत फिर अपने बैंक में रखो 5 दो, 10 बैंक में रखो। तो श्रीमत मिली ना।*
➢➢ *बच्चे पेट को पट्टी बांधकर भी शिवबाबा को देते हैं। शिवबाबा इन द्वारा ही तुम्हारे रहने करने के प्रबन्ध में लगाते हैं। यह ब्रह्मा बाबा भी शिवबाबा का अकेला बच्चा है। यह इकट्ठा क्यों करेगा। जबकि इसने ही अपना सब कुछ माताओं की सेवा में लगाया है। सब कुछ दे दिया।*
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