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⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ ऊंच ते ऊंच शिव,
उनको ही शिव परमात्माए नम: कहा जाता है। ब्रह्मा देवताए नम:, विष्णु देवताए नम:
कहा जाता है और शिव परमात्माए नम: ..... फर्क हुआ ना। *परमात्मा एक है, वह ऊंच
ते ऊंच है। उनकी महिमा भी ऊंच है। इस समय ऊंचे ते ऊंचा कर्तव्य करते हैं। उनका
धाम भी ऊंचे ते ऊंचा है। नाम भी ऊंच है और किसको परमात्मा नहीं कहते हैं ।*
➢➢ हे पतित-पावन, आते भी हैं पतित दुनिया और पतित शरीर में। *पतित शरीर का नाम
है प्रजापिता ब्रह्मा। इसमें प्रवेश कर कहते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त वाले
साधारण मनुष्य तन में प्रवेश करता हूँ। सूक्ष्मवतन वासी सम्पूर्ण ब्रह्मा में
नहीं आते हैं। खुद कहते हैं इनके बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में आता हूँ।
बहुत जन्म लेते ही हैं राधे-कृष्ण। उनके बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है।*
➢➢ भगवानुवाच मैं साधारण तन में आता हूँ। *अब भगवान जरूर आकर के इस साधारण तन
द्वारा आत्माओं को बैठ समझाते हैं कि मैं परमपिता परमात्मा हूँ। मैं कृष्ण की
आत्मा नहीं हूँ, न ब्रह्मा, विष्णु, शंकर की आत्मा हूँ। मैं परमपिता परमात्मा
हूँ, जिसको शिव परमात्माए नम: कहा जाता है।* मैं इसमें आया हूँ। मैं सूक्ष्मवतन
वासी ब्रह्मा में प्रवेश नहीं करता हूँ।
➢➢ *शिवबाबा कहते हैं मैं अन्धियारी रात में आता हूँ, रात को दिन बनाने। यह
ज्ञान एक ही ज्ञान सागर शिवबाबा के पास है।* ऋषि- मुनि आदि सब कहते आये हैं कि
परमात्मा बेअन्त है। बाप को नहीं जानते तो गोया नास्तिक रहे। आधाकल्प है
नास्तिक, आधाकल्प है आस्तिक।
➢➢ *उस पार का मतलब है जन्म मरण के चक्र में न आना अर्थात् मुक्त हो जाना।* अब
यह तो हुआ मनुष्यों का कहना परन्तु वो कहता है बच्चों, सचमुच जहाँ सुख शान्ति
है, दु:ख अशान्ति से दूर है उसको कोई दुनिया नहीं कहते। जब मनुष्य सुख चाहते
हैं तो वो भी इस जीवन में होना चाहिए, अब वो तो सतयुगी वैकुण्ठ देवताओं की
दुनिया थी जहाँ सर्वदा सुखी जीवन थी, उसी देवताओं को अमर कहते थे।
➢➢ देवी देवताओं के जन्म सतयुग त्रेता में बहुत हुए हैं, 21 जन्म तो उन्होंने
अच्छा राज्य चलाया है और फिर 63 मे द्वापर से कलियुग के अन्त तक टोटल उन्हों के
जन्म चढ़ती कला वाले 21 हुए और उतरती कला वाले 63 हुए, टोटल मनुष्य 84 जन्म लेते
हैं। बाकी यह जो मनुष्य समझते हैं कि मनुष्य 84 लाख योनियां भोगते हैं, यह कहना
भूल है। *अगर मनुष्य अपनी योनी में सुख दु:ख दोनों पार्ट भोग सकते हैं तो फिर
जानवर योनी में भोगने की जरूरत ही क्या है।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *अब भगवान तुमको
सहज राजयोग और ज्ञान सिखला रहे हैं। ज्ञान सागर एक बाप है, जो तुम्हें ज्ञान
देकर सद्गति में ले जाते हैं। उन्हें ही सुखदेव भी कहा जाता है। तो यहाँ की सब
बातें न्यारी हैं। जो ब्रह्मण बनने वाले होंगे उन्हों की ही बुद्धि में यह
ज्ञान बैठेगा।*
➢➢ *भगवान ही भक्तों का रक्षक है। वही सबको सद्गति देंगे। पतित-पावन हैं तो
जरूर आकर पतितों को पावन बनायेंगे।*पहले-पहले पावन हैं लक्ष्मी-नारायण। वे जरूर
पुनर्जन्म लेते होंगे। 84 जन्म पूरे होने से फिर साधारण मनुष्य बन जाते हैं।
उनमें फिर बाप प्रवेश करते हैं। तो यह व्यक्त ब्रह्मा, वह अव्यक्त ब्रह्मा ।
➢➢ *अब बाप कहते हैं इस पुरानी दुनिया का सन्यास करना है। याद करना है
शान्तिधाम और सुखधाम को।* जितना याद करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे।
*सिर्फ पवित्र बनना है और बाप को याद करना है।* बाप कहते हैं मैं सोनार भी हूँ।
तुम्हारी आत्मा और शरीर दोनों ही पतित हैं इसलिए तुम्हारी आत्मा जब पावन बनें
तब फिर शरीर भी पावन मिले। सच्चे सोने का जेवर भी ऐसा बनेगा ना।
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
*मुझे तो यहाँ पतितों को पावन बनाना है। मेरे द्वारा ही वह सूक्ष्मवतन वासी
ब्रह्मा पावन बना है, इसलिए उनको सूक्ष्म में दिखाया है। कितना अच्छी रीति
समझाते हैं। परन्तु मनुष्य सुनी अनसुनी कर उल्टी बातों पर चलते रहते हैं।*
➢➢. धन्धे बिगर गृहस्थ कैसे चलेगा। *गृहस्थ व्यवहार में भल रहो सिर्फ पवित्र बनो।*
➢➢ अभी आसुरी अवगुणों को छोड़ना है। नहीं तो ऊंच पद नहीं पा सकेंगे। हर एक को
पुरुषार्थ करना है - जो करेगा, सो पायेगा।
➢➢. *बाप समझाते हैं - बच्चे दैवीगुण धारण करो। खान-पान, चलन में फजीलत चाहिए।*
पतित मनुष्यों को बदफजीलत कहेंगे। देवतायें फजीलत (मैनर्स) वाले हैं, तब तो
उन्हों का गायन है।
➢➢ पुरुषार्थ पूरा करना चाहिए। जो दु:ख देते हैं वह दु:खी होकर मरते हैं। *बाप
तो सबको सुख देने वाला है। तुम्हारा भी काम है सबको सुख देना।* कर्मणा में भी
किसको दु:ख दिया तो दु:खी होकर मरेंगे। पद भी भष्ट हो जायेगा।
➢➢ *बेहद के बाप के साथ पूरा फरमानबरदार, वफादार होकर रहना है ।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *आसुरी बुद्धि
से सुनते हैं। ईश्वरीय बुद्धि से सुनें तो संशय सब मिट जायें। त्रिमूर्ति का
चित्र दिखाने बिगर समझाना मुश्किल है।* उन्होंने त्रिमूर्ति ब्रह्मा नाम रख दिया
है क्योंकि शिवबाबा प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा नई दुनिया की रचना रचते हैं। तुम
बच्चे अभी सम्मुख बैठे हो। सब पतित से पावन बन रहे हैं।
➢➢ *जितना जो बनेगा वह सर्विस से दिखाई पड़ेगा। यह अच्छा पुरुषार्थी है, इनमें
अजुन अवगुण हैं। देवताओं में दैवीगुण थे। हर एक अपने आसुरी गुण और उन्हों के
दैवीगुण वर्णन करते हैं।*
➢➢ *बहुत करके पूछते हैं - दादा को ब्रह्मा क्यों बनाया है? बोलो, इन बातों को
बैठकर समझो। हम तुमको इनके 84 जन्मों की कहानी सुनायें। सब ब्रह्माकुमार
ब्रह्माकुमारियाँ पावन बन देवता बन जायेंगे। पावन बनने बिगर वर्सा मिल नहीं सकता
।*
➢➢ *भगवान ऊंच ते ऊंच निराकार शिवबाबा है। वर्सा देने के लिए जरूर ब्रह्मा तन
में आयेगा। यह प्रजापिता ब्रह्मा है, सूक्ष्मवतन वासी ब्रह्मा को प्रजापिता नहीं
कहेंगे। वहाँ थोड़े ही प्रजा रचेंगे। हम ब्रह्माकुमार कुमारियाँ साकार में हैं
तो प्रजापिता ब्रह्मा भी साकार में है। यह राज आकर समझो।*
➢➢ *सूक्ष्मवतन में सृष्टि नहीं रची जाती है। अक्सर करके लोग इस बात पर मूँझते
हैं तो तुमको समझाना है, बाप कहते हैं मैं बहुत जन्मों अर्थात् 84 जन्मों के
अन्त के जन्म में प्रवेश करता हूँ।*
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