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  18 / 07 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *पुराने स्वभाव-संस्कार के वंश का भी त्याग करने वाले ही सर्वश त्यागी हैं।*

 

➢➢  *रावण द्वारा हम पतित बनते हैं। रावण से वर्सा मिलता ही है पतित बनने का। फिर पतित से पावन एक परमात्मा राम ही बनाते हैं।*

 

➢➢  *निराकार को ही सर्व का पतित-पावन, सर्वका सद्गति दाता कहा जाता है। यह टाइटिल कोई को दे नहीं सकते।*

 

➢➢  जरूर ऊंच ते ऊंच पद है ही देवी देवताओं का। अब तुम बच्चे जानते हो *अखण्ड, अटल, पवित्रता, सुख-शान्ति-सम्पत्ति ही हमारा ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार है,* जो फिर से ले रहे हैं। *ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार सुखधाम और आसुरी जन्म सिद्ध अधिकार यह दु:खधाम है।*

 

➢➢  *बाबा ने यह भी समझाया है पवित्र देवतायें कभी अपवित्र दुनिया में पैर नहीं रख सकते।* तुम लक्ष्मी से धन माँगते हो परन्तु लक्ष्मी कहाँ से लायेगी? यहाँ भी मम्मा, बाप से धन लेती है। वहाँ भी बाप साथी होगा। *यहाँ सरस्वती साथ ब्रह्मा है। वहाँ भी दोनों जरूर चाहिए।* 

 

➢➢  *बरोबर भारत विश्व का मालिक था। दुश्मन आदि कोई नहीं था।* अभी तुम सुखधाम के मालिक बन रहे हो। कितने बेसमझ बन पड़े थे। *जो तुम स्वर्ग के लायक थे, अब नर्क के लायक बन पड़े हो। फिर स्वर्ग के लायक बनाने बाप आये हैं।*

 

➢➢  *बाप ब्रह्मा द्वारा समझा रहे हैं। नहीं तो निराकार शिवबाबा बोल कैसे सके। वह चैतन्य है, सत है, ज्ञान का सागर है। जरूर ज्ञान ही सुनायेंगे। अपना परिचय देना यह भी ज्ञान हुआ। फिर रचना के आदि मध्य अन्त का ज्ञान अर्थात् समझानी देते हैं, इसको भी ज्ञान कहा जाता है।*  ईश्वर ही खुद अपना परिचय देते हैं। अंग्रेजी में कहते भी हैं फादर शोज़ सन। *बाप आकर अपना और सृष्टि के आदि मध्य अन्त का परिचय देते हैं।*

 

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *वर्सा लेने वाले बच्चों को बाप को याद करना पड़े ना।* यह तो बुद्धि में आना चाहिए- हम मात-पिता के सम्मुख बैठे हैं, वर्सा लेने के लिए।

 

➢➢  बाप कहते हैं मैं बेहद का बाप हूँ तो जरूर बेहद का सुख दूँगा। कल्प पहले दिया था। *अब तुम आत्मा अपने बाप को याद करती हो।*

 

➢➢  *अब हम आये हैं बेहद के बाप से अपना फिर से जन्म सिद्ध अधिकार 21 जन्मों का स्वराज्य लेने।* यहाँ बैठे ही हैं सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी स्वराज्यप्राप्त करने।

 

➢➢  *अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते रहो तो तुम्हारी आत्मा पर जो कट लगी हुई है वह साफ होगी।*

 

➢➢  *विनाश के समय मनुष्यों को वैराग्य आयेगा। फिर समझेगे कि बरोबर यह वही महाभारी महाभारत की लड़ाई है। जरूर निराकार भगवान भी होगा, कृष्ण तो हो नहीं सकता।*

 

➢➢  आत्मा समझती है बरोबर *मैंने 84 जन्म पूरे किये हैं। मैं आत्मा एक पुराना शरीर छोड़ दूसरा नया लेती हूँ।* पुरुषार्थ कर रहे हैं। ज्ञान सागर पतित-पावन सद्गति दाता बाप द्वारा। *वह इस ब्रह्मा द्वारा पढ़ाते हैं। पढ़ती आत्मा है।* 

 

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *तुम्हारी बुद्धि में यह रहना है, ऊंच ते ऊंच बाप है, वही वर्सा देते हैं।* फिर है ब्रह्माविष्णु शंकर। ब्रह्मा द्वारा स्थापना होती है फिर वही पालना करते हैं, विष्णुपुरी के मालिक बनकर। 

 

➢➢  *अमृतवेले उठ बाप को प्यार से याद कर आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत करनी है। याद के बल से विकारों की कट उतारनी है।*

 

➢➢  *घर गृहस्थ में रहते कमल फूल समान पवित्र रह फिर साथ में यह कोर्स उठाओ।*

 

➢➢  *तुम्हें अब आसुरी अवगुण निकाल ईश्वरीय गुण धारण करने हैं,* बाप से अपना 21 जन्मों का स्वराज्य लेना है।

 

➢➢  *सम्बन्ध-सम्पर्क में सदा सन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करना,* तब माला के मणके बनेंगे। परिवार का अर्थ ही है सदा सन्तुष्ट रहने और सन्तुष्ट करने वाले।

 

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *यह रूद्र ज्ञान यज्ञ है, जिसमें सब कुछ स्वाहा होना है। सृष्टि का अन्त है तो सभी यज्ञों का भी अन्त है। ज्ञान यज्ञ तो एक ही है। बाकी जो अनेक प्रकार के यज्ञ हैं - वह हैं मैटेरियल यज्ञ। जिसमें जौं-तिल आदि सामग्री पड़ती है। यह है बेहद का यज्ञ इसमें यह सब स्वाहा हो जायेगा। फिर से नई पैदाइस होती है। वहाँ (सतयुग) दु:ख देने वाली चीज़ कोई होती नहीं।* 

 

➢➢  *मनुष्य दु:खी हैं क्योंकि रावण राज्य है। रामराज्य में रावण होता ही नहीं। आधाकल्प है सुखधाम, आधाकल्प है दु:खधाम। राम निराकार परमपिता परमात्मा को कहते हैं। एक है रूद्रमाला निराकारी आत्माओं की और फिर विष्णु की माला बनती है साकारी। वह तो राजाई की है। फिर वहाँ नम्बरवार राज्य करते हैं। यह तुम बच्चों को अच्छी रीति समझना और समझाना है।*

 

➢➢  *हम आत्मायें घर से आती हैं। मनुष्य तन धारण कर पार्ट बजाती हैं। 84 जन्मों को और ड्रामा के चक्र को पूरा समझाना है।* और कोई जानते नहीं हैं, हम खुद ही नहीं जानते थे। तुमने ही कल्प पहले जाना था, अब फिर से जान रहे हो। रचयिता और रचना के आदि मध्य अन्त का राज़ अब समझा है।

 

➢➢  कहते हैं 7 रोज़ टाइम नहीं है, क्या करें। कोई कहते हैं दर्शन कराओ। *बोलो - पहले आकर समझो। किसके पास आये हो? परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? ब्रह्माकुमार कुमारी तो तुम भी ठहरे ना। शिवबाबा के पोत्रे सो ब्रह्मा के बच्चे हो गये। बाप स्वर्ग का रचयिता है। तो जरूर वर्सा देता होगा। राजयोग सिखलाता होगा। समझाकर फिर लिखा लेना चाहिए।* एक दिन में भी कोई अच्छा समझ सकता है। ऐसे तीखे निकलेंगे जो बहुत गैलप करेंगे। 

 

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