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❍ 25 / 08 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *तुम बच्चे ही
बाप को जानते हो। तुम कौन? ब्राह्मण ब्राह्मणियां। शिव वंशी तो सारी दुनिया है।
अब नई रचना रच रहे हैं। तुम सम्मुख हो। तुम जानते हो बेहद के बाप से ब्रह्मा
द्वारा हम ब्राह्मण ब्राह्मणियां सारे विश्व की बादशाही ले रहे हैं।*
➢➢ हम कल्प-कल्प
बाबा से वर्सा लेते हैं। *जब हम राज्य करते हैं तो सारे विश्व पर हम भारतवासियों
का ही राज्य होता है और कोई भी नहीं होते। चन्द्रवंशी भी नहीं होते। सिर्फ
सूर्यवंशी लक्ष्मी-नारायण का ही राज्य है। बाकी तो सब बाद में आते हैं।*
➢➢ *भक्तिमार्ग में
कुछ भी पता नहीं, यह भी नहीं जानते कि हमने यह वर्सा किससे पाया? अगर किससे पाया
तो फिर कैसे पाया, यह प्रश्न उठता है। सिर्फ यही सृष्टि चक्र की नालेज है, फिर
यह गुम हो जायेगी।* अभी तुम जानते हो कि बेहद का बाप आया हुआ है, जिनको गीता का
भगवान कहा जाता है।* भक्ति मार्ग में ।
➢➢ पहले सर्व
शास्त्रमई शिरोमणी गीता ही सुनते हैं। गीता के साथ भागवत महाभारत भी है। *यह
भक्ति भी बहुत समय के बाद शुरू होती है। आहिस्ते-आहिस्ते मन्दिर बनेंगे,
शास्त्र बनेंगे। 3-4 सौ वर्ष लग जाते हैं। अभी तुम बाप से सम्मुख सुनते हो।*
➢➢ परमपिता परमात्मा
शिवबाबा ब्रह्मा तन में आये हैं। हम फिर से आकर उनके बच्चे ब्राह्मण बने हैं। *सतयुग
में यह नहीं जानते कि हम फिर चन्द्रवंशी बनेंगे। अभी बाप तुमको सारे सृष्टि का
चक्र समझा रहे हैं। बाप सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं। उनको कहा ही जाता
है- जानी-जाननहार, नालेजफुल।*
➢➢ *भारत अविनाशी
खण्ड है। यहाँ ही परमपिता परमात्मा आते हैं। तो भारत महान तीर्थ हुआ ना। तो सारे
भारत की वन्दना करनी चाहिए।* परन्तु यह ज्ञान कोई में है नहीं। *वन्दना की जाती
है पवित्र की। बाप कहते हैं वन्दे मातरम्। शिव शक्तियां तुम हो, जिन्होंने भारत
को स्वर्ग बनाया है।* हर एक को अपनी जन्म भूमि अच्छी लगती है ना। तो *सबसे ऊंची
भूमि यह भारत है, जहाँ बाप आकर सबको पावन बनाते हैं।*
➢➢ *श्रीमत भी जरूर
साकार द्वारा ही लेनी पड़े। प्रेरणा से तो मिल नहीं सकती। कइयों को तो घमण्ड आ
जाता है कि हम तो शिवबाबा की प्रेरणा से लेते हैं। अगर प्रेरणा की बात हो तो
भक्ति मार्ग में भी क्यों नही प्रेरणा देते थे कि मनमनाभव। यहाँ तो साकार में
आकर समझाना पड़ता है। साकार बिगर मत भी कैसे दे सकते।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ शिवबाबा ब्रह्मा
द्वारा हमको ब्राह्मण बनाते हैं। पहले बच्चे बनते हैं ना, फिर समझ मिलती है कि
हमको दादे का वर्सा मिल रहा है इन द्वारा। *दादा (शिवबाबा) ही ब्रह्मा द्वारा
हमको अपना बनाते हैं। शिक्षा देते हैं। बाबा से मुहब्बत रखने से हमारी सब आशायें
पूरी होती हैं।*
➢➢ *आशिक माशूक को
याद करते हैं - कोई दिल में आश रखकर। बच्चा बाप पर आशिक बनता है वर्से के लिए।
बाप और प्रापर्टी याद रहती है। अभी वह है हद की बात। यहाँ तो आत्मा को आशिक बनना
है - पारलौकिक माशूक का, जो सभी का माशूक है।*
➢➢ *मुहब्बत बड़ी
अच्छी चाहिए। तुम सब आत्मायें आशिक बनी हो बाप की। छोटेपन में भी बच्चे बाप के
आशिक बनते हैं। बाबा को याद करेंगे तो वर्सा मिलेगा।*
➢➢ *गाड सभी के दिलों
को जानने वाला है। अभी हम श्रीमत पर चलते हैं। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो,
जिसको तुम आधाकल्प से याद करते आये हो।*
➢➢ *पिया शिवबाबा
आते हैं श्रृंगार कराने क्योंकि श्रृंगार बिगड़ा हुआ है। पतित बनते तो श्रृंगार
बिगड़ जाता है।*
➢➢ *बाप को याद करने
और समझने से हम कोई भी पाप नहीं करेंगे।* बेहद के बाप से फिर से बेहद के स्वर्ग
की बादशाही ले रहे हैं। इस बादशाही को कोई हमसे छीन नहीं सकता। वहाँ दूसरा कोई
है ही नहीं।
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
अभी तुम्हारा पांव नर्क तरफ, मुँह स्वर्ग तरफ है। पियरघर से होकर ससुरघर आयेंगे।
अभी पतित पापी नींच बन पड़े हैं। *अब बाप द्वारा तुम मनुष्य से देवता बन रहे
हो। बेगुणी से गुणवान बन रहे हो।*
➢➢
*यहाँ है 5 विकारों का दान* क्योंकि देह- अभिमान सबसे बड़ा खराब है। घड़ी-घड़ी
देह में ममत्व पड़ जाता है। बाप कहते हैं - बच्चे इस *देह से ममत्व छोड़ो।* देह
का ममत्व नहीं छूटने से फिर और और देहधारियों से ममत्व लग जाता है। बाप कहते
हैं बच्चे *एक से प्रीत रखो, औरों के नाम रूप में मत फँसो।*
➢➢
*बेहद के बाप से फिर से बेहद के स्वर्ग की बादशाही ले रहे हैं।* इस बादशाही को
कोई हमसे छीन नहीं सकता। वहाँ दूसरा कोई है ही नहीं। छीनेंगे कैसे? *अभी तुम
बच्चों को श्रीमत पर चलना है।* न चलने से याद रखना कि ऊंच पद कभी पा नहीं सकेंगें।
श्रीमत भी जरूर साकार द्वारा ही लेनी पड़े।
➢➢
*स्वर्ग में भी ऊंच पद पाने के लिए मम्मा बाबा को फालो करना चाहिए। क्यों न हम
वारिस बनें।* भारत को ही मदर- फादर कन्ट्री कहा जाता है। उनको कहते हैं भारत
माता। तो जरूर पिता भी चाहिए ना। तो दोनों चाहिए।
➢➢
राजऋषि तुम हो। ऋषि हमेशा पवित्र रहते हैं। राजऋषि हो, घरबार भी सम्भालना है।
धीरे-धीरे पवित्र बनते जायेंगे। वह फट से बनते हैं क्योंकि वह घरबार छोड़कर जाते
हैं। *तुमको गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनना है।*
➢➢
हम इस पुरानी दुनिया में बैठ नई दुनिया का वर्सा ले रहे हैं। बाप कहते हैं
मीठे-मीठे बच्चों, यह पढ़ाई भविष्य के लिए है। *तुम नई दुनिया के लिए पुरूषार्थ
कर रहे हो। तो बाप को कितना न याद करना चाहिए।* बहुत हैं जो एक दो के नाम रूप
में फँसते हैं। तो उनको शिवबाबा कभी याद नहीं पड़ेगा। जिससे प्यार करेंगे वह
याद आता रहेगा।
➢➢
मनुष्य पढ़ते हैं सुख के लिए। तुम जानते हो हम भविष्य विश्व के मालिक बन रहे
हैं। पत्र में लिखते हैं बाबा हम आपसे पूरा वर्सा लेकर ही रहेंगे अर्थात्
सूर्यवंशी राजधानी में हम ऊंच पद पायेंगे। *पुरूषार्थ की सम्पूर्ण भावना रखनी
है।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *पतितों को पावन
बनाने वाला एक बाप ही है। बाकी धरनी आदि कुछ नहीं करती है। सबको पावन बनाने वाला
एक बाप ही है जो यहाँ आते हैं। भारत की महिमा बहुत भारी है। भारत अविनाशी खण्ड
है। यह कभी विनाश नहीं होता। ईश्वर भारत में ही आकर शरीर में प्रवेश करते हैं।*
➢➢ *बाप का परिचय
दे समझायेंगे तो गीता का भगवान कौन - शिव वा कृष्ण? वह है रचयिता, वह है रचना।
तो जरूर रचता को भगवान कहेंगे ना। तुम सिद्ध कर बतायेंगे यज्ञ जप तप शास्त्र आदि
पढ़ते नीचे उतरते आये। भगवानुवाच कहकर समझायेंगे तो किसको गुस्सा नहीं लगेगा।*
➢➢ *बिल्कुल
सिम्पुल रीति समझाने से बहुत खुशी होगी। बाबा हमको ऐसा बनाते हैं। अभी आत्मा
को पंख मिले हैं। आत्मा जो भारी है वह हल्की बन जाती है। देह का भान छूटने से
तुम हल्के हो जायेंगे।*
➢➢ *बाप की याद में
तुम कितना भी पैदल करते जायेंगे तो थकावट नहीं होगी। यह भी युक्तियां बतलाते
हैं। शरीर का भान छूट जाने से हवा मिसल उड़ते रहेंगे।*
➢➢ *आधाकल्प भक्ति
चलती है। भक्ति है रात। उतरती कला, चढ़ती कला। सबको सद्गति में आना है वाया गति।
यह समझाना पड़े। बिल्कुल सिम्पुल रीति समझाने से बहुत खुशी होगी।*
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