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❍ 29 / 08 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *अभी हम जितना
पुरूषार्थ करेंगे, बाबा को याद करेंगे और ज्ञान की धारणा में रहेंगे। औरों को
भी ज्ञान की धारणा करायेंगे, उतना ऊंच पद पायेंगे।*
➢➢ *वर्से की आश इस
समय तुम बच्चे लगाकर बैठे हो। बरोबर बाप परमधाम से आया हुआ है। हमको फिर से सदा
सुख का स्वराज्य देने।* यह बच्चों की बुद्धि में जरूर रहेगा ना।
➢➢ बेहद का बाप जो
नई दुनिया रचने वाला है, वह बैठ नई दुनिया के लिए हमारा जीवन हीरे जैसा बनाते
हैं। *जब से माया का प्रवेश हुआ है, हम कौड़ी जैसा बनते आये हैं। कलायें कम होती
गई हैं। माया ऐसे खाती आई है जो हमको कुछ भी पता नहीं पड़ा। अभी बाप ने आकर
बच्चों को जगाया है - अज्ञान नींद से।*
➢➢ *हम आत्मायें
निराकारी दुनिया से आई हैं पार्ट बजाने।* इस समय तुम बच्चों को नालेज मिली है।
कैसे नम्बरवार *हर एक धर्म वाले अपने पार्ट अनुसार आते हैं, इसको अविनाशी ड्रामा
कहा जाता है।* यह किसकी बुद्धि में नहीं है। *हम बेहद ड्रामा के एक्टर हैं।* न
बेहद की हिस्ट्री-जाग्राफी को, न अपने जन्मों को ही जानते हैं।
➢➢ *सतयुग में तुम आत्म-अभिमानी
बनते हो परन्तु परमात्मा को नहीं जानते हो। परमात्मा को सिर्फ एक ही बार जानना होता
है। यहाँ तुम देह-अभिमानी आधाकल्प बन जाते हो।*
➢➢ *स्नेही वा भावना
स्वरूप हैं उनके मन और मुख में सदा बाबा-बाबा है इसलिए समय प्रति समय सहयोग
प्राप्त होता है।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ यह मृत्युलोक
फिर अमरलोक बन जायेगा। *अब तुमको स्मृति आई है कि हमने सतयुग त्रेता में 21
जन्म राज्य किया, फिर द्वापर कलियुग में आये। अब यह है हमारा अन्तिम जन्म। फिर
हम वापिस जायेंगे, वाया मुक्तिधाम होकर फिर सुखधाम में आयेंगे।*
➢➢ बाबा पतित-पावन
तो है ही फिर टीचर के रूप में बैठ हमको पढ़ाते हैं। *इस दुनिया में कोई भी इस ख्यालात
में नहीं बैठे होंगे सिवाए तुम बच्चों के। तुम बेहद बाप की याद में बैठे हो।
अन्दर में समझ है हम आत्मायें 84 जन्मों का पार्ट पूरा कर वापिस जाती हैं।*
➢➢ *स्वर्ग में जाने
के लिए बाप हमको राजयोग की शिक्षा दे रहे हैं। हमारी आत्मा को भी अमरकथा सुनाए
अमर बना रहे हैं।* अमरपुरी में ले जाते हैं, फिर सुखधाम में भेज देते हैं।
➢➢ *अभी तुम्हारी
बुद्धि में रहता है हम आत्मायें शरीर छोड़कर जायेंगी बाप के पास।* फिर जिसने
जितना पुरूषार्थ किया होगा उस अनुसार पद पायेंगे।
➢➢ *याद कोई फट से
ठहरेगी नहीं। आधाकल्प नाम रूप में फँसते आये हो। अब अपने को आत्मा समझ बाप को
याद करो।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
*तुम प्रतिज्ञा भी करते हो कि हम एक से ही सुनेंगे। एक का ही फरमान मानेंगे।*
तुम सबका बाप टीचर सतगुरू वो एक ही है।
➢➢
*इस रूहानी पढ़ाई को कभी मिस नहीं करना,* इस पढ़ाई से ही तुम्हें विश्व की
बादशाही मिलेगी।
➢➢
*एक बाप के ही फरमान पर चलना है, बाप से ही सुनना है।* मनुष्यों की उल्टी बातें
सुन उनके प्रभाव में नहीं आना है। *उल्टा संग नहीं करना है।*
➢➢
*ज्ञानयुक्त भावना और स्नेह सम्पन्न योग-इन दोनों का बैलेन्स उड़ती कला का
अनुभव कराते हुए बाप समान बना देता है।*
➢➢
*सदा स्नेही वा सहयोगी बनना है तो सरलता और सहनशीलता का गुण धारण करो।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *बाप के सन्मुख जाने से ज्ञान के अच्छे बाण लगेंगे
क्योंकि वह सर्वशक्तिवान है।* बच्चे भी ज्ञान बाण मारने सीखते हैं, परन्तु
नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार।
➢➢ समझते हैं बाबा समझा रहे हैं और कोई सतसंग वा कालेज में ऐसे नहीं समझेंगे।
*हम बेहद के बाप से बेहद का वर्सा ले रहे हैं। हम इस सृष्टि चक्र को जान गये
हैं। उन सतसंगों में तो जन्म-जन्मान्तर जाते ही रहते हैं। यहाँ है एक बार की
बात।*
➢➢ यह तो हर एक की बुद्धि में है ना। *बाप इस प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा समझा
रहे हैं, इनको दादा ही कहेंगे। शिवबाबा इनमें प्रवेश होकर हमको पढ़ा रहे हैं।
यह शरीर तो शिवबाबा का है नहीं। वह तो अशरीरी, अमर है।*
➢➢ *भक्ति मार्ग में जो कुछ करते वह अब पूरा होता है। उनमें कोई सार नहीं है।*
तो भी अल्पकाल के लिए मनुष्य कितना माथा मारते हैं। तुम बच्चों की बुद्धि में रहता
है हमको बाबा पढ़ा रहे हैं। बाबा ही बुद्धि में याद आयेगा और अपनी गवाई हुई
राजधानी याद आ जायेगी।
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