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  01 / 08 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *आत्मा पहले सच्चा सोना थी। गोल्डन एज कहा जाता था। फिर त्रेता आया तो सिल्वर की खाद पड़ी, फिर द्वापर में गये तो तांबा पड़ा। इस समय आत्मा झूठी तो शरीर भी झूठा। इसको कहा ही जाता है झूठ खण्ड़।*

 

➢➢  *तुम हो एडाप्टेड बच्चे, ईश्वर के बच्चे। तुम्हारी माँ भी है, बाप भी है, प्रजापिता भी है। बाबा को जाना, पहचाना और वर्से का मालिक बनें।* आत्मा को बाप का परिचय मिला, सेकेण्ड में बाप का वर्सा मिला। बच्चा पैदा होने से ही समझेंगे बाप की जायदाद का वर्सा पायेंगे। *तुम बच्चे जानते हो हम बाप से कल्प-कल्प राजधानी लेते हैं। जैसे तुम सेकेण्ड में विश्व के मालिक बन जाते हो।*

 

➢➢  *यह है कलियुग मृत्युलोक। सतयुग को अमरलोक कहते हैं। यहाँ तो मनुष्य अकाले मर पड़ते हैं। सतयुग है दैवी दुनिया। आदि सनातन देवी देवता धर्म रहता है। लक्ष्मी-नारायण, राधे कृष्ण आदि को कहते ही हैं सम्पूर्ण निर्विकारी। यहाँ तो सब पतित हैं, जिनमें कोई गुण नहीं है। खुद कहते हैं हम पतित नींच हैं।*

 

➢➢  *अब बाप समझाते हैं तुम गोरे थे, तुम्हारे में खाद पड़ी है। अभी बिल्कुल आइरन एजेड बन पड़े हो। अब मैं सोनार हूँ, बच्चों को भट्टी में डाल देता हूँ। भंभोर को आग लगेगी तो सबके शरीर खत्म हो जायेंगे। आत्मा तो अविनाशी है।*

 

➢➢  *जब स्वर्ग में आयेंगे तब तुमको देवता कहेंगे। वहाँ आत्मा शरीर दोनों ही पवित्र हैं। अभी तो पतित हैं। भारत गोल्डन एजेड है फिर सिल्वर कॉपर, आइरन एजेड बने हैं फिर गोल्डन एज में बाप ले जा रहे हैं।* तुम्हारी आत्मा और शरीर दोनों ही पवित्र हो जाते हैं।

 

➢➢  *हम सर्व श्रेष्ठ आत्मायें हैं, ऊंचे ते ऊंचे भगवान के बच्चे हैं- यह शान सर्वश्रेष्ठ शान है, जो इस श्रेष्ठ शान की सीट पर रहते हैं वह कभी भी परेशान नहीं हो सकते। देवताई शान से भी ऊंचा ये ब्रह्मणों का शान है।*

 

➢➢  *बाप कहते हैं तुम तो जैसे ऊंटपक्षी हो। पूछा जाता है तुम देवता क्यों नहीं कहलाते तो कहते हैं हम पतित हैं। अच्छा पतित से पावन बनो तो कहते फुर्सत नहीं।* ऊंटपक्षी को कहो उड़ो तो कहेगा पंख नहीं, ऊंट हूँ। बोलो, अच्छा सामान उठाओ तो कहेगा हम तो पक्षी हूँ। तो बाप कहते हैं *माया तुम्हारे पवित्रता के पंख काट देती है।*

 

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *यह है बेहद का बाप। बाप कहते हैं- इनके (ब्रह्मा) मुख से कहता हूँ - तुम मेरे बच्चे हो। आत्मा ने जाना बाप आया हुआ है। तुम कहते हो बाबा हम आपके हैं, आपसे वर्सा लेने आये हैं।*

 

➢➢  *सर्व प्राप्तियों की लिस्ट सामने रखो तो अपना श्रेष्ठ शान सदा स्मृति में रहेगा और यही गीत गाते रहेंगे कि पाना था वो पा लिया... सर्व प्राप्तियों की स्मृति से मास्टर सर्वशक्तिमान् की स्थिति सहज बन जायेगी।*

 

➢➢  *बाप कहते हैं- मैं धोबी भी हूँ। तुम्हारी आत्मा को धोने आता हूँ। सिर्फ बाप को ही याद करना है।*

 

➢➢  *अभी बाप के साथ योग रखने से अलाए निकल जायेगी, इसको योग अग्नि कहा जाता है। यह ईश्वर की भट्टी है - सबको पावन बनाने लिए।* जेवर से किचड़ा निकालने के लिए आग में डाला जाता है। *बाप की याद भी योग अग्नि है, जिसमें खाद भस्म हो और हम सच्चा सोना बन बाप के साथ चले जायेंगे।*

 

➢➢  *आत्म-अभिमानी बन बाप को याद करना है जितना याद में रहेंगे उतना बाप रक्षा करता रहेगा।* एक तो योग अग्नि से पवित्र बन जायेंगे, बाकी सब सजायें खाकर हिसाब-किताब चुक्तू कर फिर जायेंगे। 

 

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

 

➢➢  तुम हो ईश्वर के एडाप्टेड बच्चे, तुम्हें पावन बन पावन दुनिया का वर्सा लेना है, *यह अन्त का समय है इसलिए पवित्र जरूर बनना है।*

 

➢➢  तुम्हारी पढ़ाई कितनी भारी है। *मनुष्य से देवता बनने का पुरूषार्थ करो।* विश्व का मालिक बनना है।

 

➢➢  बाप समझाते हैं सब विनाश हो जायेगा फिर तुम मालिक बन जायेंगे। उसके पहले *बाप की श्रीमत पर जरूर चलना पड़े।* श्रीमत से श्रेष्ठ, आसुरी मत से भ्रष्ट बनते हो।

 

➢➢  *बाप की श्रीमत पर चलकर सम्पूर्ण निर्विकारी बनना है। पढ़ाई से विश्व की राजाई लेनी है।* बाप कहते हैं मेरी मत पर चलकर तुम सम्पूर्ण निर्विकारी बनो तो तुम इन लक्ष्मी-नारायण जैसा मालिक बनेंगे।

 

➢➢  योगी और पवित्र जीवन ही सर्व प्राप्तियों का आधार है। *आत्मा में जो खाद पड़ी है उसे योग अग्नि से निकालना है।*

 

➢➢  बाप बच्चों को समझाते हैं - *बच्चे खबरदार रहना, कभी किसको दु:ख नहीं देना।* बाप तो दु:ख हर्ता, सुख कर्ता है ना। तुम भी 5 विकारों का दान देते हो। दे दान तो छूटे ग्रहण।

 

➢➢  बाप कहते हैं मेरे लाडले बच्चे, *विकारों का दान दो* तो सर्वगुण सम्पन्न बन देवता बन जायेंगे। दु:ख का ग्रहण छूट जायेगा। तुम सुखधाम के मालिक बन जायेंगे, इसलिए 5 विकारों का दान लिया जाता है।

 

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *ब्रह्मा, विष्णु, शंकर और लक्ष्मी-नारायण की बायोग्राफी को भी हम जानते हैं। लक्ष्मी-नारायण के 84 जन्मों को भी हम जानते हैं। पहले नम्बर में है कृष्ण फिर 84 जन्मों के बाद उनका नाम ब्रह्मा एडाप्ट होता है। बाप आकर बच्चों को एडाप्ट करते हैं।*

 

➢➢  *ओम् माना अहम्, मैं आत्मा यह मेरा शरीर। मैं आत्मा किसका बच्चा हूँ? परमात्मा का। बाप भी कहते हैं मैं ओम् परम आत्मा हूँ। मुझे अपना शरीर नहीं है।* कितनी सहज बात है। वह समझते हैं ओम् माना भगवान। तो सब भगवान हो गये। *भगवान तो है ही एक। वह कहते हैं मैं तुम्हारा बाप हूँ। परम आत्मा माना परमात्मा जिसको सारी दुनिया पुकारती है हे पतित-पावन आओ।*

 

➢➢  *कहते हैं पतित-पावन आओ तो जरूर पतित दुनिया का अन्त हो तब तो आऊं ना। इसको कहा जाता है कल्प की आदि और अन्त का संगम।* अन्त में सब पतित हैं, आदि में हैं सब पावन। अन्त में पतित दुनिया का विनाश होता है, पावन दुनिया की स्थापना होती है। फिर वृद्धि को पाते जाते हैं। *गाया भी जाता है ब्रह्मा द्वारा स्थापना। यह है त्रिमूर्ति।*

 

➢➢  *समझाया जाता है गीता के द्वारा तो आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हुई। तुम तो देवता धर्म के हो।* तो कहते हैं देवतायें तो बहुत पवित्र थे, हम तो पतित हैं। हम अपने को देवी-देवता कैसे कहलायें। *तो समझाया जाता है अच्छा पवित्र बनो। फिर से देवी-देवता धर्म में आ जाओ।*

 

➢➢  *तुम्हारे लिए सावन मास है ज्ञान बरसात का।* तुम पवित्र बन पवित्र दुनिया का मालिक बनते हो। *मनुष्य व्रत रखते हैं भोजन न खाने का। बाप कहते हैं विष नहीं खाओ। इस पर भी समझाना पड़ेगा।* शिव को बहुत पूजते हैं, अब *शिवबाबा कहते हैं पवित्रता का व्रत रखो। मैं आया हूँ पवित्र देवी-देवता धर्म स्थापन करने।*

 

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