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❍ 24 / 08 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ कलकत्ता में
सागर और नदी का बड़ा भारी मेला लगता है। वहाँ गंगा, ब्रह्मपुत्रा और सागर मिलते
हैं। ब्रह्मपुत्रा में और भी नदियां मिलती हैं। *मुख्य है ब्रह्म पुत्रा और
सागर का संगम। उनको ही कहते हैं डायमन्ड हारबर। बाप अर्थ समझाते हैं- तुम आये
हो इस समय ब्रह्म पुत्रा और ज्ञान सागर के पास सम्मुख। वहाँ भी सागर के सम्मुख
जाते हो हीरा बनने के लिए। परन्तु हीरों के बदले पत्थर बन जाते हो क्योंकि वह
है भक्ति मार्ग।*
➢➢ *यह है
ब्रह्मपुत्रा और एडाप्टेड ज्ञान गंगायें।* यह नदियां तो अनगिनत हैं। उन नदियों
का तो सबको मालूम है कि भारत में इतनी नदियां हैं। यह तो अनगिनत हैं। *इन ज्ञान
नदियों का तो अन्त नहीं पाया जा सकता है। सागर से नदियां इस समय ही निकलती हैं।
पहले तो ब्रह्मपुत्रा निकलती है फिर उनसे छोटी-छोटी नदियां निकलती हैं।* तुम
जानते हो नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार।
➢➢ *सतयुग में यह
त्योहार आदि कुछ भी होते नहीं। सब गायब हो जाते हैं। फिर भक्तिमार्ग में शुरू
होंगे। मनुष्य समझते हैं - स्वर्ग था फिर स्वर्ग आयेगा परन्तु इस समय तो नर्क
है। इनकी आयु का किसको पता नहीं है, घोर अन्धियारा है।* कल्प की आयु का भी किसको
पता नहीं है। कहते भी हैं यह जो ड्रामा है यह फिरता रहता है। परन्तु आयु का पता
न होने के कारण कुछ भी समझते नहीं हैं।
➢➢ समझना चाहिए बाकी
और क्या समय होगा और यह भी जानते हो कि *जब हमारी राजधानी स्थापन होती है तो यह
सारी सफाई भी होनी है। तुम पावन बनते रहते हो। वह हैं पतित। सब पतित खलास हो
जाएं, हिसाब-किताब चुक्तू कर सब वापिस चले जायें।*
➢➢ कोई बड़े हैं
कोई छोटे हैं, बाप सब मनुष्यों को हीरे जैसा बनाते हैं। *ऐसे भी नहीं कहेंगे कि
सूर्यवंशी ही महाराजा महारानी बनते हैं। नहीं। यथा राजा रानी तथा प्रजा। तुम
सबका जीवन हीरे जैसा बनता है, जो स्वर्ग के लिए थोड़ा भी पुरूषार्थ करते हैं वह
हीरे जैसा बनते हैं।*
➢➢ *भल शिव नाम कहते
भी हैं सिर्फ लिंग का नाम रख दिया है। बाबा का नाम अविनाशी है ना। शिवबाबा
रचयिता एक है, उनकी रचना भी एक है और अनादि है।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ भगवान का तो
चित्र नहीं निकाल सकते हैं। बिन्दी का फोटो क्या होगा! वह तो समझाने के लिए कहा
जाता है कि स्टार है। भ्रकुटी के बीच चमकता है... *कई बच्चियां भ्रकुटी में टीका
लगाती है। यह सुना हुआ है ना कि आत्मा का निवास भ्रकुटी में है तो स्टार लगाती
हैं, सच्चा तिलक अगर कहें तो वह है।*
➢➢ हम आत्मा स्टार
हैं। परमपिता परमात्मा भी स्टार इतना ही छोटा है, परन्तु उनमें सारी नालेज है,
यह बातें बड़ी गुह्य हैं। तुमको ज्ञान अर्थात् सोझरा मिला है। *परमपिता परमात्मा
के रूप को भी देखा, समझा है। जैसे आत्मा का साक्षात्कार होता है वैसे परमात्मा
का भी होता है। कहेंगे जैसे तुम हो वैसे मैं हूँ।*
➢➢ *सच्ची यात्रा
तो अभी तुम्हारी हो रही है।* मनुष्य समझते हैं भगवान के पिछाड़ी बहुत धक्का खाया
है, भगवान से मिलने, परन्तु भगवान मिलता ही नहीं।
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
यह संगम है आत्माओं और परमात्मा का। दोनों इकट्ठे हैं, वह जड़ यह चैतन्य। यह तो
कहाँ भी जा सकते हैं। तो बच्चों को हमेशा यह समझना चाहिए कि ब्रह्मपुत्रा और
सागर दोनों इकट्ठे हैं चैतन्य में। यह जैसेकि हीरे बनने का संगम हो गया। *तुम
हीरे जैसा बनो।*
➢➢
*जहाँ तक जीना है वहाँ तक पुरूषार्थ करना है।* शिक्षा तो मिलती रहती है।
इम्तहान की रिजल्ट तो विनाश के समय ही निकलती है। एक तरफ रिजल्ट निकलेगी दूसरे
तरफ विनाश शुरू होगा, फिर तो हाहाकार हो जाता है। इसलिए *विनाश होने के पहले,
लड़ाई होने के पहले तैयार होना है।*
➢➢
तुम बच्चे जब आते हो तो अन्दर में जानते हो कि हम जाते हैं - बापदादा के पास।
बाप ज्ञान का सागर है फिर प्रवेश करते हैं इस ब्रह्मपुत्रा अर्थात् ब्रह्मा
में। इन द्वारा हमको हीरे जैसा बनाते हैं। अब जो *जितना पुरूषार्थ कर श्रीमत पर
चले।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *भगवान ही आकर
सहज राजयोग का ज्ञान सिखलाते हैं।* उनको ही ज्ञान का सागर कहेंगे। तो यह नदियों
का मेला लगता है। यह भी समझते हो कि सागर से ही नदियां निकलती हैं।* कई बच्चों
को यह भी मालूम नहीं रहता है। वैसे ही तुम्हारी बातों को भी कोई नहीं जानते।
ज्ञान सागर कैसे आता होगा, उनसे ज्ञान गंगायें कैसे ज्ञान पाती होंगी।
➢➢ *जब विनाश होगा
तब सारी दुनिया पावन होगी, उसको नई दुनिया कहेंगे। नई दुनिया का संवत कोई पूछे
तो समझाना चाहिए जब महाराजा महारानी तख्त पर बैठते हैं तब नया संवत शुरू होता
है। जब तक नया संवत शुरू हो तब तक पुराना जरूर कायम रहेगा*।
➢➢ *आत्मा स्टार है
उसमें कितना बड़ा पार्ट है। परमपिता परमात्मा सर्वशक्तिमान, वर्ल्ड आलमाइटी
अथारिटी है। ज्ञान का सागर कहा जाता है।*
➢➢ *कुम्भ का मेला
तो वर्ष-वर्ष लगता है। यह कुम्भ का मेला, सागर और ज्ञान नदियों का मेला तो
संगमयुग पर ही होता है।* तुम बच्चे कहेंगे हम जाते हैं *मात-पिता वा ज्ञान सागर
और बड़ी नदी के पास। बाबा हमको इस बड़ी नदी और इन नदियों द्वारा वर्सा दे रहे
हैं अर्थात् हीरे जैसा बनाते हैं।
➢➢ *कलियुग के बाद
सतयुग आना है। हम कहते ही हैं फर्स्ट प्रिन्स प्रिन्सेज राधे कृष्ण, फिर भी हम
उस समय सतयुग नहीं कहेंगे। जब तक लक्ष्मी-नारायण तख्त पर नहीं बैठे हैं तब तक
कुछ न कुछ खिटपिट होती रहेगी, भल राधे कृष्ण आ जाते हैं। सतयुग जब शुरू होगा तब
संवत शुरू होगा।*
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