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❍ 26 / 08 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *मनुष्य कहते
हैं मेरे मन को शान्ति कैसे हो? इसमें पहली भूल मन शान्त कैसे हो सकता - जब तक
वह शरीर से अलग न हो और दूसरी भूल जबकि कहते हैं ईश्वर के सब रूप हैं, परमात्मा
सर्वव्यापी है फिर शान्ति किसको चाहिए और कौन दे?* अभी तुम समझ गये हो कि असुल
में हम शान्तिधाम के रहवासी थे फिर सुखधाम में गये फिर रावण राज्य में आये
हैं।* तुम आलराउन्ड पार्ट बजाने वाले हो। पहले तुम सतयुग में थे। भारत सुखधाम
था। अभी तो दु:खधाम है।
➢➢ तुम आत्मायें
शान्तिधाम में रहती हो, बाप भी वहाँ ही रहते हैं। इस दु:खधाम को भूल जाओ। *इनको
तो बहुत कड़ा नाम दिया गया है - कुम्भी पाक नर्क, जिसमें विषय वैतरणी नदी बहती
है। बाप समझाते हैं यह सारी दुनिया ही विषय वैतरणी नदी है। सब इस समय दु:ख पा
रहे हैं, इसलिए इनसे नफरत होती है।* बहुत गन्दी दुनिया है, इससे तो वैराग्य आना
चाहिए।
➢➢ इससे सिद्ध है
यहाँ ज्ञान नहीं है। *जब ज्ञान सागर आये, उससे ज्ञान नदियाँ निकलें तब ज्ञान
स्नान करें। ज्ञान सागर तो एक ही परमपिता परमात्मा को कहा जाता है। वह जब आये,
बच्चे पैदा करे तब उनको ज्ञान मिले और सद्गति हो।*जब से रावण राज्य शुरू होता
है तब से भक्ति शुरू हुई अर्थात् पुजारी बनें।
➢➢ अब फिर तुम
पूज्य बन रहे हो। *पवित्र को पूज्य और पतित को पुजारी कहा जाता है। सन्यासियों
को फूल चढ़ाते हैं, माथा टेकते हैं। समझते हैं वह पावन है हम पतित हैं, बाप कहते
हैं इस दुनिया में पावन कोई हो नहीं सकता।* यह तो विषय वैतरणी नदी है। क्षीर
सागर विष्णुपुरी को कहा जाता है, जहाँ तुम राज्य करते हो।
➢➢ बाप कहते हैं
बच्चे अपने को आत्मा समझो और स्वीट होम को याद करो। *पवित्र बनो, नहीं तो सजायें
बहुत खायेंगे और पद भी भ्रष्ट हो जायेगा। माला पास विद आनर की बनी हुई है। अभी
सबके कयामत का समय है, सबके पापों का हिसाब-किताब चुक्तू होना है।* बाबा ने
समझाया है याद से ही विकर्म भस्म होंगे, इसमें ही मेहनत है। ज्ञान तो बड़ा सहज
है। सारा ड्रामा और झाड़ बुद्धि में आ जाता है।
➢➢ *अभी तुम सम्मुख
सुनते हो और बच्चे टेप से सुनेंगे। एक दिन टेलीवीजन पर भी यह ज्ञान सुनेंगे वा
देखेंगे जरूर। सब कुछ होगा। पिछाड़ी वालों के लिए तो और ही सहज हो जायेगा।*
➢➢ *भगवान होता ही
है एक। भगत हैं अनेक। भक्त तो भक्त हैं, उनको भगवान कैसे कहेंगे। भक्त तो साधना
प्रार्थना करते हैं- हे भगवान। परन्तु भगवान को भी जानते नहीं हैं, इसलिए दु:खी
बन पड़े हैं।* अभी तुम समझ गये हो कि असुल में हम शान्तिधाम के रहवासी थे फिर
सुखधाम में गये फिर रावण राज्य में आये हैं।
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *आत्मा अपने
स्वधर्म और निवास स्थान को भूल गई है। बाप कहते हैं तुम आत्मा शान्त स्वरूप हो।
शान्ति देश की रहने वाली हो। तुम अपने स्वीट होम और स्वीट फादर को भूल गये हो।*
➢➢ *बाप सारी दुनिया
से वैराग्य दिलाते हैं क्योंकि इस दुनिया में शान्ति है नहीं। सब मनुष्य मात्र
शान्ति के लिए कितना माथा मारते रहते हैं। सन्यासी आदि कोई भी आयेंगे - कहेंगे
मन को शान्ति चाहिए अर्थात् मुक्तिधाम में जाना चाहते हैं।* प्रश्न ही कैसा
पूछते हैं - मन तो शान्त हो नहीं सकता। जब तक आत्मा शरीर से अलग न हो। एक तो
कहते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है, हम सब ईश्वर के रूप हैं फिर यह प्रश्न क्यों?
ईश्वर को शान्ति क्यों चाहिए! बाप समझाते हैं - शान्ति तो तुम्हारे गले का हार
है।
➢➢ *बेहद का बाप
कहते हैं - बच्चे अब अपने शान्तिधाम को याद करो फिर साथ में सुखधाम को भी याद
करो।* क्षीर सागर विष्णुपुरी को कहा जाता है, जहाँ तुम राज्य करते हो। *बाप कहते
हैं बच्चे अपने को आत्मा समझो और स्वीट होम को याद करो।* कर्म तो करना पड़ता
है। पुरूषों को धन्धाधोरी, माताओं को घर सम्भालना पड़ता है।
➢➢ तुमको बहिश्त की
बादशाही मिलती है। बहिश्त को फूलों का बगीचा कहा जाता है। वह तो ऐसे ही गाते
हैं। तुम तो प्रैक्टिकल में बाप को याद करने से देवता बन रहे हो। *यह सवेरे उठने
का अभ्यास अच्छा है। सवेरे का वायुमण्डल बहुत अच्छा होता है।* 12 बजे के बाद
सवेरा शुरू होता है। *प्रभात का टाइम 2-3 बजे को कहा जाता है। सवेरे उठ
शान्तिधाम और सुखधाम को याद करना चाहिए।*
➢➢ *एक बाप को ही
याद करना है। मुसलमान लोग भी सवेरे-सवेरे फेरी पहनते हैं और सबको जगाते हैं।
उठकर अल्लाह को याद करो। यह समय सोने का नहीं है। वास्तव में यह अभी की बात
है।*
➢➢ *बाबा ने समझाया
है याद से ही विकर्म भस्म होंगे, इसमें ही मेहनत है।* ज्ञान तो बड़ा सहज है।
सारा ड्रामा और झाड़ बुद्धि में आ जाता है।
➢➢ *स्वीट बाप,
स्वीट राजधानी और स्वीट होम को याद करना है। अभी नाटक पूरा होता है, घर जाना
है। पुराना शरीर छोड़ सबको वापिस जाना है। यह पक्का रखना है। ऐसे याद करते-करते
शरीर छूट जायेगा और तुम आत्मायें चली जायेंगी।* बहुत सहज है।
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
*जितना पुरूषार्थ करेंगे उतना गोरा बनेंगे।* पतित से पावन बनने का पुरूषार्थ
कितना सहज बाप सिखलाते हैं। *बाप को और स्वीट होम को याद करते रहेंगे तो तुम
स्वर्ग के मालिक बन जायेंगे।* यह टेव (आदत) डालनी है, सवेरे उठ याद करने की।
फिर जब पक्के हो जायेंगे तो चलते फिरते याद रहेगी।
➢➢
बाप तुम्हारी इतनी झोली भर देते हैं जो फिर कमाई के लिए फिकर नहीं रहता है। यहाँ
मनुष्यों को कमाई की कितनी फिकरात रहती है। बाबा 21 जन्मों के लिए फिकरात से
छुड़ा देते हैं। *तो सवेरे-सवेरे उठकर ऐसे-ऐसे अपने से बातें करो। हम आत्मायें
परमधाम की निवासी हैं, बाप के बच्चे हैं। पहले-पहले हम स्वर्ग में आते हैं। बाप
से वर्सा लेते हैं।*
➢➢
*देवताओं का भोजन भी कितना पवित्र होता है। तो हमको भी बहुत परहेज में रहना
चाहिए।* इसमें पूछने की बात भी नहीं रहती। बुद्धि समझती है - *एक तो विकार सबसे
खराब है। दूसरा-शराब, कबाब नहीं पीना है।* बाकी लहसुन प्याज़ आदि की और पतित के
भोजन की दिक्कत पड़ती है। बाप समझाते हैं पवित्र भोजन तो कहीं मिलेगा नहीं,
सिवाए ब्राह्मणों के।
➢➢
*बाप कहते हैं पवित्र बनो,* नहीं तो सजायें बहुत खायेंगे और पद भी भ्रष्ट हो
जायेगा। पहले तुम सतयुग में थे। भारत सुखधाम था। अभी तो दु:खधाम है। तुम आत्मायें
शान्तिधाम में रहती हो, बाप भी वहाँ ही रहते हैं।
➢➢
बाप समझाते हैं यह सारी दुनिया ही विषय वैतरणी नदी है। सब इस समय दु:ख पा रहे
हैं, इसलिए इनसे नफरत होती है। *बहुत गन्दी दुनिया है, इससे तो वैराग्य आना
चाहिए।* जैसे सन्यासियों को वैराग्य आता है, घरबार से। समझते हैं स्त्री नागिन
है, घर में रहना गोया नर्क में रहना, गोता खाना है। ऐसा कह छोड़ जाते हैं। यूँ
तो दोनों ही नर्क के द्वार हैं। उनको घर में अच्छा नहीं लगता है इसलिए जंगल में
चले जाते हैं।
➢➢
ब्रह्मा विष्णु शंकर को भी तुम जान गये हो। विष्णु सो ब्रह्मा, ब्रह्मा सो
विष्णु - 84 जन्म लगते हैं। अभी फिर तुम पुरूषार्थ करते हो, *फालो मम्मा बाबा
को करना चाहिए।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *जैसे शरीर और
आत्मा कम्बाइन्ड है, भविष्य विष्णु स्वरूप कम्बाइन्ड है, ऐसे बाप और हम आत्मा
कम्बाइन्ड हैं, इस स्वरूप की स्मृति में रहकर स्व सेवा और सर्व आत्माओंकी सेवा
साथ-साथ करो तो सफलता मूर्त बन जायेंगे।*
➢➢ *ऐसे कभी नहीं
कहो कि सेवा में बहुत बिजी थे इसलिए स्व की स्थिति का चार्ट ढीला हो गया। ऐसे
नहीं जाओ सेवा करने और लौटो तो कहो माया आ गई, मूड आफ हो गया, डिस्टर्ब हो गये।
सेवा में वृद्धि का साधन ही है स्व और सर्व की सेवा कम्बाइन्ड हो।*
➢➢ *गृहस्थ व्यवहार
में भी रहना है, इसलिए लौकिक से भी रिश्ता रखना है। उन्हों का भी कल्याण करना
है। उन्हों को भी यह बातें सुनानी हैं। यह ड्रामा बना हुआ है।* मनुष्य बिचारे
कुछ समझ नहीं सकते हैं। बहुत मूँझते हैं - पता नहीं, यह किस प्रकार का ज्ञान
है। शास्त्रों में तो यह है नहीं। यह भूल गये हैं - शिव शक्ति भारत माताओं की
सेना ने क्या किया था। जगत अम्बा को शिव शक्ति कहते हैं ना! उनके मन्दिर भी बने
हुए हैं।
➢➢ बाप कहते हैं 5
हजार वर्ष पहले तुम कितने मालामाल थे, भारत स्वर्ग था। अब तो नर्क दु:खधाम है।
*एक ही बाप सर्व का सद्गति दाता बनता है। एक दो को यह याद दिलानी चाहिए।*
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