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❍ 28 / 09 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *मैं ज्ञान का
सागर हूँ। मैं अति सूक्ष्म हूँ, इससे सूक्ष्म कोई चीज होती नहीं, अति सूक्ष्म
है। जैसे झाड़ का बीज सूक्ष्म होता है। देखने में कितना छोटा है। मनुष्य सृष्टि
का बीज तो सबसे सूक्ष्म है।*
➢➢ वो लोग (साइंसदान)
स्टॉर पर जाने की कोशिश करते हैं। देखा है तो समझते हैं हम क्यों नहीं जा सकते!
हम समुद्र का अन्त क्यों नहीं पा सकते! इसलिए पुरूषार्थ करते हैं। बाकी जो इन
आंखों से नहीं देखा जा सकता, उनका पुरूषार्थ कर नहीं सकते। *उनकी बुद्धि में तो
स्थूल चीजें आती हैं, उनके लिए पुरूषार्थ करते हैं। सूक्ष्म से सूक्ष्म परमात्मा
को तो जानते ही नहीं है। खुद ही आकर बच्चों को अपना परिचय देते हैं। तुमने
चित्र बड़ा ज्योर्तिलिंगम् बनाया है तो तुम्हारी बुद्धि में भी वह आता है। बाप
बच्चों को समझाते रहते हैं कि जैसे बाप की गत मत न्यारी है वैसे तुम्हारी सद्गति
की मत सारी दुनिया से न्यारी है।*
➢➢ *ऊंच ते ऊंच बाप
ही सुप्रीम सोल है। सुप्रीम सोल एक निराकार बाप को कहा जाता है। ऐसे नहीं कि वह
भी निराकार परमात्मा और हम आत्मायें भी निराकार, सब एक ही हैं, सब उनके ही रूप
हैं। नहीं। बाप अलग है बच्चे अलग हैं। तुमको बाप ने नॉलेज दी है।*
➢➢ *शास्त्रों में
तो यह बातें हैं नहीं कि ब्रह्मा-वंशी ब्राह्मणों को परमपिता परमात्मा बैठ
पढ़ाते हैं। परमात्मा ने आकर यह ब्रह्मा मुख वंशावली रची है। जब चक्र पूरा हो
संगम होता है तो बाप आकर पतित दुनिया की अन्त और पावन दुनिया की आदि करते हैं।
तो जरूर संगम पर ही आना पड़े। पावन बनने में टाइम लगता है।*
➢➢ *बाप भी कहते
हैं हम तुमको फिर से राजयोग सिखलाने आये हैं। बाप वर्सा देते हैं, रावण श्राप
देते हैं। यह बाप ही बैठ समझाते हैं। इस समय बाप आकर सब मनोकामनायें पूरी करते
हैं। अशुभ कामनायें तो माया पूरी करती है।*
➢➢ *वह यज्ञ रचते
हैं- लड़ाई बन्द करने के लिए और भगवान ने यज्ञ रचा है सारी दुनिया का परिवर्तन
करने के लिए (विनाश के लिए)*थोड़ा शान्ति होगी तो कहेंगे हमने यज्ञ रचा इसलिए
शान्ति हो गई। एक बार यज्ञ सफल हुआ तो चलता रहेगा। बरसात के लिए यज्ञ रचा,
बारिष हुई तो खुशी होगी। बारिष नहीं होगी तो कहेंगे ईश्वर की भावी।
➢➢ *बच्चे समझते
हैं कि हम इस दुनिया से बिल्कुल न्यारे हैं। यहाँ पढ़ाने वाला विचित्र है।
आत्माओं से बात करते हैं। आत्मा ही सुनती है, आत्मा ही इस मुख द्वारा सुना रही
है। आत्मा इन कानों द्वारा सुन रही है। हम आत्मा इस शरीर से यह करते हैं। आत्मा
को रसना मिलती है। आत्मा ही कहती है - यह मीठा है, यह खट्टा है। आत्मा में ही
संस्कार रहते हैं।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *तुम बच्चों के
और कोई भी परमपिता परमात्मा के साथ यथार्थ योग नहीं लगाते हैं* वह तो समझते हैं
कि परमात्मा तो ब्रह्म ज्योति स्वरूप है, नाम रूप से न्यारा है। अगर ब्रह्म कहते
तो भी नाम हो गया ना।
➢➢ *आधाकल्प से सिर
पर पापों का बोझा है। योग अग्नि से जो आत्मा में खाद पड़ी है वह निकलती है।
तुमको सतोप्रधान बनना है। हम जो पतित बने हैं, याद से ही हम पावन बनते जायेंगे।
कितना सहज है। हमको फिर से 84 जन्मों का चक्र लगाना है।*
➢➢ *मौत तो सामने
खड़ा है। अब सिर्फ बेहद के बाप और वर्से को याद करो, इनको मृत्युलोक कहा जाता
है। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो मैं तुमको साथ ले जाऊंगा। तब तो कहते हैं ना
- मैं कालों का काल महाकाल हूँ। अकाल तख्त है ना। तुम अकाल आत्मा हो।*
➢➢ *तुम्हारी भी
लड़ाई है। उस बाहुबल की लड़ाई से वास्तव में तुम्हारी लड़ाई बड़ी खौफनाक है
क्योंकि रावण तुम्हारा बहुत पुराना दुश्मन है, उस पर जीत पानी है। जितना एक के
साथ बुद्धियोग लगायेंगे तो बल मिलेगा सारा मदार है श्रीमत पर चलने का।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
*तुम नई दुनिया के लिए पुरूषार्थ कर रहे हो - बेहद के बाप से वर्सा लेने। जब तक
स्थापना हो तब तक भआसार ऐसे देखने में आते हैं। यह भी जानते हो कि *इस रूद्र
ज्ञान यज्ञ से विनाश ज्वाला निकली है। जरूर हमारे अथवा भारत के कल्याण के लिए
यह महाभारत लड़ाई लगनी है। अभी वास्तव में तुम किससे लड़ाई नहीं करते हो। तुम
तो डबल अहिंसक हो।*
➢➢
बाप कहते हैं दोनों को प्रतिज्ञा करनी है, ज्ञान चिता पर बैठने की। वह काम चिता
पर बिठाते हैं। बाप वह सौदा कैन्सिल कराते हैं। अब पवित्र दुनिया स्थापना होती
है तो वह सौदा कैन्सिल करना पड़े। *ज्ञान चिता पर बैठने से पवित्र बन पवित्र
दुनिया के मालिक बनेंगे।*
➢➢
*श्रीमत कहती है कि गृहस्थ व्यवहार में रहते सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण
बनना है। आत्मा को ही बनना है। आत्मा 16 कला सम्पूर्ण थी, अब वह 84 जन्म
लेते-लेते नीचे उतरती है।*
➢➢
*तुम जानते हो - हम कल्प पहले मुआिफक फिर से पुरूषार्थ कर रहे हैं। भारत अविनाशी
खण्ड है और कोई दूसरा धर्म नहीं था। यह तो बाद में इन्हों ने निकाले हैं। यह भी
ड्रामा की भावी कहेंगे ।*
➢➢
*अब घर वापिस जाना है। तुमने 84 जन्म लिए हैं, अब यह शरीर छोड़ना है, इनसे
ममत्व निकालना है। सर्प भी ममत्व नहीं रखता है। पुरानी खल छोड़ नई ले लेते हैं।
तुम्हारी भी यह पुरानी खल है, इसको ऐसे ही छोड़ देना है। भ्रमरी का भी मिसाल
तुम्हारे से लगता है।*
➢➢
*शिवबाबा तो दाता है। तुमको युक्ति बतलायेंगे कि ममत्व कैसे निकालो। गृहस्थ
व्यवहार में रहते श्रीमत पर चलो, इसमें पवित्रता है फर्स्ट। यह रूहानी यात्रा
है। सारा मदार यात्रा पर है। मनुष्य तो ढ़ेर के ढ़ेर जिस्मानी यात्रायें करते
रहते हैं।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *तुम्हें बाप की
श्रीमत है-बच्चे पावन बनो और पावन बनाओ, तुम्हें कभी पतित नहीं बनना है।
तुम्हारी यह डिपार्टमेंट ही अलग है। कल्प पहले जो आकर ब्राह्मण बने होंगे वही
पुरूषार्थ करेंगे। देवताओं का देखो कैसे सैपलिंग लग रहा है। ब्राह्मण बनते जाते
हैं। जो थोड़ा भी सुनकर जाते तो प्रजा में आ जायेंगे। राजधानी में आ जायेंगे
ना।*
➢➢ *तुमको अपनी
सर्विस में तत्पर रहना है। सिर्फ तीन पैर पृथ्वी ले यह रूहानी हॉस्पिटल खोलना
है। फिर धीरे-धीरे वृद्धि होती जायेगी। बूँद बूँद से तलाव ऐसे होगा ना। घर में
भी यह चित्र रखो। बेहद के बाप से 21 जन्मों का वर्सा कैसे पा सकते हो - आओ तो
समझायें।*
➢➢ *तुम्हारी एक ही
रूहानी यात्रा है, जो रूह बैठ रूहों को सिखलाते हैं। इसमें सारी बुद्धि की बात
है। तुम बच्चों के पास दु:ख आ नहीं सकता। तुम जानते हो इतना बड़ा विनाश हमारे
लिए हो रहा है। तो तुम्हें अन्दर में हृस (दु:ख) नहीं आ सकता। अगर आता है तो
कच्चे हैं, ज्ञान की पूरी अवस्था नहीं है।*
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