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❍ 17 / 08 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *अभी आत्मा में खाद पड़ी है वह निकलेगी – योग भट्ठी से, योग अग्नि से। इस ज्ञान और योग की समझानी का विनाश नहीं होता है। थोड़ा सुनने से भी प्रजा में आ जायेंगे।*
➢➢ जीव आत्मायें जानती हैं कि हम सब आत्मायें इस समय पतित हैं। खास भारत आम सारी दुनिया। सब पुकारते हैं हे पतित-पावन। यह पतित दुनिया है। सभी आत्मायें पतित दु:खी, सांवरी हो गई हैं। *पतित-पावन है बेहद का बाप, जिसको ज्ञान का सागर, सर्व का सद्गति दाता कहा जाता है।*
➢➢ तुम बच्चों को अब समझ है कि हम जीव की आत्मायें बैठी हैं। *आत्मा शरीर के साथ है तो सुख अथवा दु:ख भोगना पड़ता है। आत्मा शरीर में नहीं है तो शरीर को कुछ पता नहीं पड़ता।* आत्मा एक शरीर से निकल जाए दूसरे शरीर से कनेक्शन जोड़ती है तो वह चैतन्य हो जाता है। *शरीर जड़ है। जड़ भी वृद्धि को पाता है। पहले 5 तत्वों का पुतला बनता है, उनमें आरगन्स आते हैं तब आत्मा उसमें प्रवेश करती है फिर चैतन्य बन जाता है।*
➢➢ अभी तुम आत्माओं को पहचान मिली है। हम आत्मायें निर्वाणधाम में थी फिर सतयुग में आते हो सुख का पार्ट बजाने। *तुम हो आलराउन्डर इसलिए पहले-पहले तुमको ज्ञान मिला है।* जानते हो शिवबाबा प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मणों की रचना रचते हैं। बाबा कहते हैं तुम जीव आत्माओं को शूद्र वर्ण से ब्राह्मण वर्ण में लाया है। *शूद्र से अब तुम ब्राह्मण ब्रह्मा मुख वंशावली बने हो। क्यों? वर्सा लेने। ब्रह्मा मुख वंशावली सिर्फ संगम पर ही बनते हैं।*
➢➢ हे मेरे मीठे लाडले बच्चे, यह आत्मा सुनती है इन आरगन्स से। *यह है ब्रह्मा मुख, गऊमुख कहते हैं ना। गऊ जानवर नहीं। यह गऊ (ब्रह्मा) माता ठहरी ना। इस गऊ मुख से सुनाते हैं।* मन्दिरों में फिर वह गऊ मुख दे दिया है। उनके मुख से पानी बहता है। उसको समझते हैं गऊमुख। गंगा का जल समझते हैं।
➢➢ *तुम सब मातायें गऊ हो। तुम्हारे मुख से यह ज्ञान वर्षा होती है। बाकी पानी की नदियां तो सब जगह होती हैं। वह गंगा पतित-पावनी हो नहीं सकती।* गंगा पर भी मन्दिर है, जहाँ देवता की मूर्ति है। *इन देवताओं में तो ज्ञान है नहीं। ज्ञान तुमको मिलता है, जिससे तुम देवता बनते हो।* देवताओं को ज्ञानी नहीं कहेंगे। *विष्णु को अलंकार देते हैं वास्तव में हैं तुम ब्राह्मणों के अलंकार।*
➢➢ *एक-एक रत्न लाखों की वैल्यु का है। तुम जितना पवित्र बनते हो - 21 जन्म के लिए मालामाल हो जाते हो। तुम जब पारसबुद्धि थे तो सुख शान्ति सम्पत्ति सब थी। अभी पत्थरबुद्धि होने से सब खत्म हो गया है।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ बाबा कहते हैं मैंने 5 हजार वर्ष पहले भी कहा था - *मामेकम् याद करो। गृहस्थ व्यवहार धन्धे आदि में रहते सिर्फ अपने को आत्मा समझो, अब हमको पावन बनना है। घर जाना है। पावन दुनिया का मालिक बनना है।*
➢➢ *बाबा तो सहज युक्ति बतलाते हैं कि मामेकम् याद करो तो तुम पावन बनेंगे। गीता में दो बारी यह महावाक्य हैं कि मनमनाभव। हे बच्चे देह-अभिमान छोड़ो। बाप को याद करो।*
➢➢ *तुम जितना मुझे याद करेंगे उतना तुम्हारी आत्मा पवित्र होती जायेगी, और कोई उपाय नहीं। पत्थरबुद्धि को पारसबुद्धि बनना है।*
➢➢ *बाप बैठ आप समान पवित्र बनाते हैं। बाप को याद करो और स्वदर्शन चक्र फिराओ, इसमें कृपा आदि की कोई बात नहीं।*
➢➢ तुम्हारे
लिए ही संगम है। तुम आत्मा कहती हो हम पहले पावन थे, अब पतित बने हैं फिर
सो पावन बनते हैं। *हे पतित-पावन बाबा हमको फिर से आकर पतित से पावन बनाओ।
ऐसे-ऐसे अपने से बातें करो। अभी आत्मा को खुराक मिली है।*
➢➢ *अब तुम बच्चों को पुरूषार्थ करना है। अमृतवेले उठ अपने साथ बातें करनी हैं - 'अब हमको बाप को याद कर पावन बनना है, माला का दाना बनना है।'*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ आत्मा के पतित होने से शरीर भी पतित हुआ है। अब फिर पावन बनना है। *हम आत्मायें मूलवतन में पावन थी। ऐसे ऐसे अपने से बातें करना है। विचार सागर मंथन करना है।*
➢➢ तुम बच्चों को यह *स्वदर्शन चक्र फिराना है,* इसमें हिंसा की कोई बात नहीं। यह सब ज्ञान की बातें हैं। *ज्ञान का शंख बजाना है और चक्र को याद करना है।*
➢➢ *कमल फूल समान पवित्र भी तुम्हें यहाँ बनना है।* गदा भी ज्ञान की है, जिससे माया पर जीत पानी है।
➢➢ *बाबा की याद से पवित्र बनेंगे, जितना पवित्र बनते और बनाते जायेंगे उतना खुशी का पारा चढ़ता जायेगा।*
➢➢ *अब बाप कहते हैं अपने को आत्मा निश्चय कर सवेरे उठने का अभ्यास डालो।* समय अच्छा है। अन्धियारी रात में मनुष्य घोर पाप करते हैं। अभी तुमको पावन बनना है। तुम 100 परसेन्ट निर्विकारी थे।
➢➢ *बाबा को याद करके खाओ।* पाप-आत्मा का अन्न अन्दर नहीं जायेगा। परहेज तो बताई जाती है ना, नहीं तो वह असर पड़ जाता है । भूलेंगे तो तुम्हारे पर उसका असर आ जायेगा। बाप को याद करने से नजदीक होते जायेंगे।
➢➢ *अब हमको फिर श्रीमत पर चलना पड़े,* तो फिर कोई पाप कर्म नहीं होंगे। अब बाप बच्चों को डायरेक्शन देते हैं - *बच्चे तुम्हें भी बाप जैसा पावन बनना है।* तुम आत्मायें अमर हो, तुम पहले शान्तिधाम में थी। तुम जानते हो हम आत्मायें शिवबाबा के पास आई हैं, जिसने यह साधारण शरीर धारण किया है।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *यह अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान औरों को देना है। साहूकार लोग दान पुण्य करते हैं ना। तुम हो अविनाशी ज्ञान रत्नों के दानी।*
➢➢ *यह तो समझ
गये हो - यह हास्पिटल है। हेल्थ, वेल्थ की युनिवर्सिटी भी है। इसमें सिर्फ
3 पैर पृथ्वी का चाहिए। बस। बेहद का बाप देखो कैसे पढ़ाते हैं। कितना
निरहंकारी बाप है। पतित शरीर, पतित दुनिया में बैठ तुम बच्चों से कितनी
मेहनत कर रहे हैं।*
➢➢ *कलकत्ते में सेन्टर है, कितनों का कल्याण हो रहा है, जो आपस में मिलकर सेन्टर चलाते हैं उनको भी पद मिल जाता है। क्लास जितना कमरा हो, जिसमें सब क्लास सुन सके ।*
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