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❍ 27 / 08 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *अभी विश्व की
आत्मायें ढूँढ रही हैं। कोई शक्ति कार्य कर रही है, ऐसी महसूसता, ऐसी टचिंग अभी
आने लगी है। लेकिन कहाँ है, कौन है, यह ढूंढते हुए भी जान नहीं सकते।*
➢➢ भारत द्वारा ही
आध्यात्मिक लाइट मिलेगी, यह भी धीरे-धीरे स्पष्ट होता जा रहा है। *विश्व की चारों
तरफ से नजर हटकर भारत की तरफ हो गई है लेकिन भारत में किस तरफ और कौन
आध्यात्मिक लाइट देने के निमित्त हैं, अभी यह स्पष्ट होना है।*
➢➢ *सभी के अन्दर
अभी यह खोज है कि भारत में अनेक आध्यात्मिक आत्मायें कहलाने वाली हैं, आखिर भी
इनमें धर्मात्मा कौन और परमात्मा कौन है?* यह तो नहीं है, यह तो नहीं है - इसी
सोच में लगे हुए हैं। ''यही है'' इसी फैंसले पर अभी तक पहुँच नहीं पाये हैं।
➢➢ *बाबा शिक्षक के
रूप में बार-बार एक ही पाठ याद कराते रहते हैं। सतगुरू के रूप में गति-सद्गति
का सर्टीफिकेट फाइनल वरदान सेकेण्ड में मिलेगा। मास्टर सतगुरू का स्वरूप अर्थात्
सम्पूर्ण फालो करने वाले।* सतगुरू के वचन पर सदा सम्पूर्ण रीति चलने वाले - ऐसा
स्वरूप अब प्रैक्टिकल में बाप का और अपना अनुभव करेंगे। सतगुरू का स्वरूप
अर्थात् सम्पन्न, समान बनाकर साथ ले जाने वाले।
➢➢ *नम्बरवन की
निशानी है - हर बात में विन करने वाले अर्थात् वन नम्बर में आने वाले। किसी भी
बात में हार न हो। सदा विजयी।* कभी चलते-चलते रूकते तो नहीं हो? रूकने का कारण
क्या होता? जरूर कोई न कोई मर्यादा वा नियम थोड़ा भी नीचे ऊपर होता है तो गाड़ी
रूक जाती है।
➢➢ *पुरुषों में
उत्तम पुरुष प्रजापिता ब्रह्मा को कहा जाता है। तो ब्रह्मा के बच्चे आप सब
ब्रह्माकुमार कुमारियाँ भी पुरुषोत्तम हो गये ना। इस स्मृति में रहने से सदा
उड़ती कला में जाते रहेंगे, नीचे नहीं रुकेंगे।* चलने से भी ऊपर सदा उड़ते
रहेंगे क्योंकि संगमयुग उड़ती कला का युग है, और कोई ऐसा युग नहीं जिसमें उड़ती
कला हो।
➢➢ प्लेन में जाते
हैं तो हिमालय का पहाड़ भी रूकावट नहीं डालता, पहाड़ को भी मनोरंजन की रीति से
पार करते हैं। तो ऐसे ही *उड़ती कला वाले के लिए बड़े ते बड़ी समस्या भी सहज हो
जाती है।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ हरेक बच्चा
विश्व के आगे विशेष आत्मा है। *हर एक के मस्तक पर भाग्य का सितारा चमक रहा है।
ऐसा ही अभ्यास हो, सदा चमकते हुए सितारे को देखते रहें, इसी प्रैक्टिस को सदा
बढ़ाते चलो।*
➢➢ *जहाँ देखो, जब
भी किसको देखो, ऐसा नैचुरल अभ्यास हो जो शरीर को देखते हुए न देखो। सदा नजर
चमकते हुए सितारों की तरफ जाये। जब ऐसी रूहानी नजर सदा नैचुरल रूप में हो जायेगी
तब विश्व की नजर आप चमकते हुए धरती के सितारों पर जायेगी।*
➢➢ *सितारे तो सभी
हो लेकिन अभी सदा एकरस सम्पूर्ण चमकता हुआ सितारा हूँ, ऐसे स्वयं को प्रत्यक्ष
करो।* कभी बादलों के बीच छिप तो नहीं जाते हो... ऐसा सम्पूर्ण चमकता हुए सितारा
और अभी अभी फिर बादलों में छिप जाये तो विश्व की आत्मायें स्पष्ट अनुभव कर नहीं
सकती इसलिए एकरस रहने का, सदा सूर्य समान चमकते रहने का संकल्प करो।
➢➢ *सदा ही मायाजीत,
सदा ही मास्टर सर्वशक्तिमान की स्मृति की सीट पर स्थित हो डबल लाइट बन उड़ते और
उड़ाते चलो।*
➢➢ *बाप का चित्र
बनायेंगे तो चित्र चैतन्य को प्रत्यक्ष करे। चित्र के आगे जाते ही अनुभव करें
कि यह चित्र नहीं देख रहे हैं, चैतन्य को देख रहे हैं। वैसे भी चित्र की विशेषता
- चित्र जड़ होते चैतन्य अनुभव हो।* इसी पर प्राइज मिलती है लेकिन रूहानी चित्र
का लक्ष्य है - चित्र रूहानी रूह को प्रत्यक्ष कर दे। लौकिक चित्रकार तो लौकिक
बातों को - नयन, चैन को देखेंगे लेकिन यहाँ रूहानियत का अनुभव हो - ऐसा चित्र
बनाओ।
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
*सदा एक रस, सम्पूर्ण चमकता हुआ सितारा बनो।* इस समय मास्टर दाता का पार्ट बजा
रहे हो। मास्टर शिक्षक का पार्ट चल रहा है। लेकिन अभी सतगुरू के बच्चे बन गति
और सद्गति के वरदाता का पार्ट बजाना है।
➢➢
*यह संगमयुग है ही मर्यादा पुरुषोत्तम बनने का युग। पुरुष नहीं, नारी नहीं
लेकिन पुरुषोत्तम हैं, इसी स्मृति में सदा रहो।*
➢➢
*सदा स्मृति में रखो कि यह युग उड़ती कला का युग है, ब्राह्मणों का कर्तव्य भी
उड़ना और उड़ाना है। वास्तविक स्टेज भी उड़ती कला है।* उड़ती कला वाला सेकण्ड
में सर्व समस्यायें पार कर लेगा। ऐसा पार करेगा जैसे-कुछ हुआ ही नहीं। नीचे की
कोई भी चीज डिस्टर्ब नहीं करेगी। रूकावट नहीं डालेगी।
➢➢
*सदा निश्चयबुद्धि विजयी रत्न हैं- इसी नशे में रहो।* निश्चय का फाउन्डेशन सदा
पक्का है। अपने आप में निश्चय, बाप में निश्चय और ड्रामा में निश्चय के आधार पर
आगे बढ़ते चलो।
➢➢
*अभी जो भी विशेषतायें हैं, उनको सामने रखो, कमजोरियों को नहीं, तो अपने आप में
फेथ रहेगा।* कमजोरी की बात को ज्यादा नहीं सोचना तो फिर खुशी में आगे बढ़ते
जायेंगे।
➢➢
*बाप का हाथ लिया तो बाप का हाथ पकड़ने वाले सदा आगे बढ़ते हैं, यह निश्चय रखो।
जब बाप सर्वशक्तिवान है तो उसका हाथ पकड़ने वाले मंजिल पर पहुँचे कि पहुँचे।*
चाहे खुद भले कमजोर भी हो लेकिन साथी तो मजबूत है ना इसलिए पार हो ही जायेंगे।
सदा निश्चयबुद्धि विजयी रत्न इसी स्मृति में रहो। *बीती सो बीती, बिन्दी लगाकर
आगे बढ़ो।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *सदा के लिए ऐसी
स्थिति बनाओ जो सदा चमकते हुए सितारे देखें।दूर से ही आपकी चमकती हुई लाइट
दिखाई दें। अभी तक जो सम्मुख आते है, सम्पर्क में आते हैं उन्हों को अनुभव होता
है लेकिन दूर-दूर तक यह टचिंग हो, यह वायब्रेशन फैलें, उसमें अभी और भी अभ्यास
की आवश्यकता है।* अभी निमंत्रण देना पड़ता है कि आकर अनुभव करो।
➢➢ *प्यार और शान्ति
इन दो बातों द्वारा सबकी पालना करना। प्यार सबको चाहिए और शान्ति सबको चाहिए।
सिर्फ प्यार से दृष्टि दी और दो बोल बोले - वह स्वत: ही समीप आते जायेंगे।*
जैसे पालना ली है वैसे ही पालना का अनुभव दूसरो को कराना।
➢➢ टॉपिक पर भाषण
भल नहीं करना लेकिन *सबसे टॉप की चीज है - प्यार और शान्ति की अनुभूति। तो यह
टॉप की चीजें दे देना, जो हर आत्मा अनुभव करें कि ऐसा प्यार तो हमको कभी मिला
नहीं, कभी देखा ही नहीं।* प्यार ऐसी चीज है जो प्यार के अनुभव के पीछे स्वत: ही
खिंचते हैं।
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