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❍ 22 / 10 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *सबकी दिल का एक ही उमंग-उत्साह है कि मैं बाप समान समीप रत्न बन सदा सपूत बच्चे का सबूत दूँ। यह उमंग-उत्साह सर्व के उड़ती कला का आधार है। यह उमंग कई प्रकार के आने वाले विघ्नों को समाप्त कर सम्पन्न बनने में बहुत सहयोग देता है।*
➢➢ जो भी बापदादा ने भिन्न-भिन्न टाइटिल दिये हैं, उसी स्मृति स्वरूप में रहने से उत्साह अर्थात् खुशी स्वत: ही और सदा ही रहती है। *सबसे बड़े ते बड़े उत्साह की बात है कि अनेक जन्म आपने बाप को ढूंढा लेकिन इस समय बापदादा ने आप लोगों को ढूंढा।* धर्म, कर्म, देश, रीति-रसम, कितने पर्दों के अन्दर आ गये।
➢➢ पहले मैसेज तो बाप ने भेजा ना! चाहे पहचानने में कोई ने कितना समय, कोई ने कितना समय लगाया। *सदा उमंग और उत्साह में रहने वाली आत्माओं को एक बल, एक भरोसे में रहने वाले बच्चों को, हिम्मते बच्चे मददे बाप का सदा ही अनुभव होता रहता है। इसी हिम्मत से मदद के पात्र स्वत: ही बन जाते हैं और इसी हिम्मत के संकल्प के आगे माया हिम्मतहीन बन जाती है।*
➢➢ *पता नहीं, होगा या नहीं होगा, मैं कर सकूंगा या नहीं, यह संकल्प करना, माया का आह्वान करना है।* जब आह्वान किया तो माया क्यों नहीं आयेगी। यह संकल्प आना अर्थात् माया को रास्ता देना।
➢➢ बेफिकर बादशाह के बच्चे बादशाह हो ना। ड्रामा की भावी ने समीप रत्न तो बना ही दिया है। *साथ भी बहुत अच्छा मिला है। साकार का साथ भी शक्तिशाली है। आत्मा का साथ तो है ही बाप। डबल लिफ्ट है इसलिए बेफिकर बादशाह।*
➢➢ *समय पर पुण्यात्मा बन पुण्य का कार्य किया है। इसलिए बापदादा के सहयोग के सदा पात्र हो। कितने पुण्य के अधिकारी बने।* पुण्य-स्थान के निमित्त बने। किसी भी रीति से बच्चे का भाग्य बना ही दिया ना। पुण्य की पूँजी इकट्ठी है। मुरलीधर का मुरली, मास्टर मुरली है। बाप का हाथ सदा हाथ में है।
➢➢ रानी का महल देखते अपने महल याद आते हैं। *आपके महल कितने सुन्दर होंगे, जानते हो ना। ऐसा आपका राज्य है जो अब तक कोई ऐसा राज्य न हुआ है, न होगा।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *सदा बाप को याद
करते और शक्ति लेते रहो। बाप का खजाना सो आपका, अधिकारी समझकर चलो।* बापदादा तो
घर का बालक सो घर का मालिक समझते हैं। परमार्थ और व्यवहार दोनों साथ-साथ हों।
व्यवहार में भी साथ रहे।
➢➢ *अपना घर, अपना राज्य, अपना बाप, अपना कर्तव्य सब याद रहे।*
➢➢ सदा आगे बढ़ने का साधन है- नॉलेज और सेवा। जो बच्चे नॉलेज को अच्छी रीति
धारण करते हैं और सेवा की सदा रूचि बनी रहती है वह आगे बढ़ते रहते हैं। *हजार
भुजा वाला बाप आपके साथ है, इसलिए साथी को सदा साथ रखते आगे बढ़ते रहो।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ जो भी निमित्त बन करके आत्मायें मधुबन तक आई, तो उन्हें बापदादा और परिवार की शुभ स्नेह के पुष्प की वर्षा होती रहती है। बापदादा भी निमित्त बने हुए बच्चों को देख हर्षित होते हैं। *सेवा में उड़ती कला वाले फरिश्ते स्वरूप हो और ऐसे ही अनुभव करते रहना।*
➢➢ *उमंग का शुद्ध और दृढ़ संकल्प विजयी बनाने में विशेष शक्तिशाली शस्त्र बन जाता है इसलिए सदा कभी उमंग-उत्साह को कम नहीं करना।*
➢➢ *मुझे बाप समान सर्व शक्तियों, सर्व गुणों, सर्व ज्ञान के खजानों से सम्पन्न होना ही है* क्योंकि कल्प पहले भी मैं श्रेष्ठ आत्मा बना था। एक कल्प की तकदीर नहीं लेकिन अनेक बार के तकदीर की लकीर भाग्य विधाता द्वारा खींची हुई है। इसी उमंग के आधार पर उत्साह स्वत: होता है।
➢➢ आधाकल्प की प्रीत रखने वाली माया रास्ता मिलते कैसे नहीं आयेगी इसलिए *सदा उमंग-उत्साह में रहने वाली हिम्मतवान आत्मा बनो।* विधाता और वरदाता बाप के सम्बन्ध से बालक सो मालिक बन गए। सर्व खजानों के मालिक, जिस खजाने में अप्राप्त कोई वस्तु नहीं।
➢➢ *यह स्लोगन सदा मस्तक में स्मृति रूप में रहे - 'हम ही थे, हम ही हैं और हम ही रहेंगे।'* याद है ना। इसी स्मृति ने यहाँ तक लाया है। सदा इसी स्मृति भव।
➢➢ *सिर्फ एक बल और एक भरोसे से एकाग्र हो करके सोचो।* निश्चय में एक बल और एक भरोसा, तो जो कुछ होगा वह अच्छा ही होगा। बापदादा सदा साथ हैं और सदा रहेंगे।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *प्रवृत्ति में जो सदा समाप्त होकर रहते हैं उन आत्माओं के श्रेष्ठ सहयोग से सेवा का वृक्ष फलीभूत हो जाता है।*
➢➢ डबल विदेशी बच्चों ने अपने दृढ़ संकल्प को साकार में लाया। *भारतवासी बच्चों ने भी अनेक नाम फैलाने वाले, सन्देश पहुँचाने वाले विशेष आत्माओं को समीप लाया। कलमधारियों को भी स्नेह ओर सम्पर्क में समीप लाया। कलम की शक्ति और मुख की शक्ति दोनों ही मिलकर सन्देश की ज्योति जगाते रहेंगे।*
➢➢ *बाप तो सदा बच्चों के सेवाधारी हैं। पहले बच्चे। बाप तो बैकबोन है। सामने मैदान पर तो बच्चे ही आते हैं। मेहनत बच्चों की, मुहब्बत बाप की।* बापदादा के स्नेह की डोर ने खींच लाया ना। सदा दिल से बाबा ही निकलता है ना। मन की खुशी, याद के अनुभव द्वारा अनुभव की।
➢➢ सबका सहयोग ही
वृक्ष का पानी बन जाता है। जैसे वृक्ष को पानी मिले तो वृक्ष से फल कितना अच्छा
निकलता है, ऐसे श्रेष्ठ सहयोगी आत्माओं के सहयोग से वृक्ष फलीभूत हो जाता है।
तो ऐसे *बापदादा के दिलतख्तनशीन सेवा की धुन में सदा रहने वाले, प्रवृत्ति में
भी समाप्त रहने वाले बच्चे बनो।*
➢➢ *सभी के सहयोग से सफलता मधुबन तक दिखाई दे रही है। नाम किसका भी नहीं ले रहे
हैं। लेकिन सब समझना कि हमें बाबा कह रहे हैं। कोई भी कम नहीं है। समझो पहले हम
सेवा में आगे हैं। छोटे बड़े सभी ने तन-मन- धन-समय संकल्प सब कुछ सेवा में लगाया
है और लगाते जाना हैं।*
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