━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 22 / 08 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ परमपिता परम
आत्मा परमधाम में रहने वाला है। *परमधाम परे से परे है, जहाँ कोई पतित आत्माये
नही रहती। आत्माओ को परमात्मा नही कहेंगे। वह सुप्रीम आत्मा है।*
➢➢ *परमात्मा शिव
अभी इस संगम पर सर्व आत्माओ को अविनाशी ज्ञान-रत्नों से साहूकार बना रहे है।
जिन्होंने कल्प पहले पढ़ा होगा, श्रीमत पर चले होंगें वही चलेंगे। अभी बुद्धि
में ज्ञान है, फिर जब स्वर्ग में आएंगे तो ज्ञान पूरा हो जायेगा। फिर प्रालब्ध
शुरू हो जायेगी। फिर नॉलेज का पार्ट पूरा हो जायेगा।*
➢➢ *सतयुग में इतने
मनुष्य, इतने धर्म नही होते। एक ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म ही होता है।* जब
भारत स्वर्ग था तो सोने की चिड़िया था अब भारत ड्रामानुसात लोहे की चिड़िया बन गया
है।
➢➢ *सतयुग में कोई
पतित नही होता है। सारी दुनिया ही पवित्र है इसलिए विष्णु को क्षीरसागर में
दिखाते है।* मनुष्य इसका अर्थ भी नही जानते। तुम बच्चे ज्ञान के आधार पर जानते
हो कि विष्णु के दो रूप यह लक्ष्मी-नारायण ही है। मनुष्य तो विष्णु भगवान कह
देते है। विष्णु देवताय नमः, ब्रह्मा देवताय नमः कहते है। *विष्णु को भगवान नमः
नही कहेंगे। शिव परमात्माये नमः शोभता है।*
➢➢ *ऊँच ते ऊँच है
श्री श्री 108 रूद्र माला। ऊपर में है फूल फिर मेरु दाना युगल लक्ष्मी-नारायण
को कहा जाता है। ब्रह्मा सरस्वती को युगल नही कहा जाता, यह रूद्र माला शुद्ध
है।*
➢➢ *भक्तिमार्ग में
अंधश्रद्धा से गुड़ियों की पूजा करते रहते है। बहुत देवियो की मूर्तियां बनाते
है।* लाखो करोड़ो रूपया ख़र्चा करते, धूमधाम से देवियो की झांकी निकालते है। *देवियो
को क्रियेट कर, पालना कर फिर उनका श्रृंगार कर डुबो देते है।*
➢➢ *लोग शिव और
शंकर का अर्थ नही जानते। शंकर के आगे जाकर कहते है झोली भर दे, परंतु शंकर तो
झोली भरते नही। इस संगम पर परमात्मा शिव सबकी झोली ज्ञान रत्नों से भरने आये
है।*
────────────────────────
❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ परमात्मा शिव
ब्रह्मा द्वारा बच्चो को अडॉप्ट करते है। तो यह ब्रह्मा माँ हो गयी। *याद शिव
बाबा को करना है। वर्सा शिव बाबा से मिलना है। यह ब्रह्मा भी उन्हीं की याद में
रहते है।*
➢➢ *योग में रह,
ज्ञान धारण कर रूप बसंत बन घर(परमधाम) वापिस जाना है।*
➢➢ *बाबा कहते आगे
जो कुछ सुना वह भूल जाओ।* यज्ञ, तप करने से कोई परमात्मा को मिल नही सकता। *अपने
को आत्मा निश्चय कर परमात्मा को याद करो।*
➢➢ *आत्मा
तमोप्रधान बनने से उनके पंख टूट जाते है। अभी इस सारी दुनिया को आग लगनी है। अब
इस पुरानी दुनिया से ममत्व मिटा मुझे याद करो।*
➢➢ *कहाँ भी रहो
परंतु शिवबाबा को याद करते रहो।* शिव बाबा हमारा बाप भी है, टीचर भी है तो
सद्गुरु भी है परंतु उनको अपना कोई ना बाप है और न टीचर है।
────────────────────────
❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢
*अविनाशी ज्ञान-रत्न अच्छी रीति धारण करने है और सर्व आत्माओ को धारण करवाने
है, ज्ञान-रत्नों का दान करना है।*
➢➢
*पवित्रता को धारण कर रूहानी पढ़ाई अच्छी रीति पढ़नी है, पवित्र दुनिया में चल
ऊँच(राजाई) पद पाना है।*
➢➢
*सदा खुश रहना है।* हमे स्वयं परमात्मा विश्व का मालिक बंनाने के लिए राजयोग
सीखा रहे है।
➢➢
*बाबा कहते तुम बादल सागर के पास आते हो भरने के लिए। भरकर फिर जाकर बरसना है।*
जितना भरेंगे उतना ऊँच पद पाएंगे, नही तो प्रजा में चले जायेंगे।
➢➢
*बाप की याद में रह विकर्माजीत बनना है।*
➢➢
*हर कारण का निवारण कर सदा संतुष्टमणि बन रहना है।*
➢➢
*बोल से भाव और भावना दोनों अनुभव होती है इसलिए शुभ और श्रेष्ठ बोल बोलने है।*
➢➢
द्वापर से पांव पड़ने की रसम चली आती है। यहाँ तुम्हे किसी के भी पांव नही पड़ने
है। परमात्मा तो अभोक्ता, अकर्ता, असोचता है। बच्चे बाप की जायदाद का मालिक बनते
है। तो मालिको को परमात्मा नमस्कार करते है, इसलिए *तुम्हे पांव पड़ने की जरूरत
नही है। हाँ छोटे बड़ो का रेगार्ड तो रखना पड़ता है ।*
────────────────────────
❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *शिव के पुजारी
वा देवी-देवताओं के पुजारियों को सच्चे सेवाधारी बन परमात्मा शिव का परिचय देने
की सेवा करनी है।*
➢➢ *रूप-बसंत बन
आसामी देख ज्ञान-रत्नों का दान करना है।* जिनकी सुनने की दिल न हो उनके पीछे
टाइम वेस्ट नही करना है।
➢➢ *युक्ति से सर्व
आत्माओ से प्रश्न पूछो-परमपिता परमात्मा कहाँ है? यह सिद्ध कर समझाने की सेवा
करनी है कि परमात्मा सर्वव्यापी नही है।*
➢➢ *बुढ़ियों को बाप
का यथार्थ परिचय देने की सेवा करनी है। उन्हें समझाना है किसी देहधारी को याद
नही करना है, एक(शिव) को ही याद कर बाबा के पास चल फिर कृष्णपुरी चलना है।*
────────────────────────