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⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *अनासक्त होकर
अपनी फर्ज अदाई निभाओ। परन्तु जो कोई यहाँ होते हुए, कर्म सम्बन्ध में होते हुए
उनसे मुक्त नहीं हो सकता तो भी उसे बाप का हाथ नहीं छोड़ना चाहिए। हाथ पकड़ा
होगा तो कुछ न कुछ पद प्राप्त कर लेंगे।*
➢➢ जब तक तुम यहाँ हो तब तक तुम्हारे संकल्प जरूर चलेंगे। *संकल्प धारण किए
बिना कोई मनुष्य एक क्षण भी रह नहीं सकता है।* अब यह संकल्प यहाँ भी चलेंगे,
सतयुग में भी चलेंगे और अज्ञानकाल में भी चलते हैं, परन्तु *ज्ञान में आने से
संकल्प संकल्प नहीं, क्योंकि तुम परमात्मा की सेवा अर्थ निमित्त बने हो, तो जो
यज्ञ अर्थ संकल्प चलता वह संकल्प संकल्प नहीं, वह निरसंकल्प ही है।*
➢➢ बच्चे बेहद के बाप के पास आते ही हैं रिफ्रेश होने लिए क्योंकि बच्चे जानते
हैं *बेहद के बाप से बेहद विश्व की बादशाही मिलती है। यह कभी भूलना नहीं चाहिए।
यह सदैव याद रहे तो भी बच्चों को अपार खुशी रहे।* नये-नये बच्चे पुरानों से भी
पुरुषार्थ में आगे जा सकते हैं। *हर एक की इन्डीविज्युअल (व्यक्तिगत) तकदीर है,
तो पुरुषार्थ भी हर एक को इन्डीविज्युअल करना है।*
➢➢ ऐसे भी नये-नये पुरुषार्थी बच्चे तुम देखेंगे, साक्षात्कार करते रहेंगे।
जैसे शुरू में हुआ वही फिर पिछाड़ी में देखेंगे। *जितना नजदीक होते जायेंगे उतना
खुशी में नाचते रहेंगे। उधर खूने नाहेक खेल भी चलता रहेगा। तुम बच्चों की
ईश्वरीय रेस चल रही है जितना आगे दौड़ते जायेंगे उतना नई दुनिया के नजारे भी
नजदीक आते जायेंगे। खुशी बढ़ती जायेगी।*
➢➢ *सारा दिन विचार सागर मंथन करते रहेंगे तो वो बहुत रमणीकता में रहेंगे।
विचार सागर मंथन नहीं करते तो गोया अनहेल्दी हैं। गऊ भोजन खाती है तो सारा दिन
उगारती रहती है, मुख चलता ही रहता है। मुख न चले तो समझा जाता है बीमार है, यह
भी ऐसे है।*
➢➢ *यहाँ आए हिसाब-किताब बनाते जाओ जो सजा खानी पड़े। यह गर्भजेल की सजा कोई
कम नहीं है। इस कारण बहुत ही पुरुषार्थ करना है। यह मंजिल बहुत भारी है इसलिये
सावधानी से चलना चाहिए। विकल्पों के ऊपर जीत पानी है जरूर।*
➢➢ *अब कितने तक तुमने विकल्पों पर जीत पाई है, कितने तक इस निरसंकल्प अर्थात्
दु:ख सुख से न्यारी अवस्था में रहते हो, यह तुम अपने को जान सकते हो। जो खुद को
न समझ सके वो बाबा से पूछ सकते हैं*क्योंकि तुम तो उनके वारिस हो तो वह बता सकते
हैं।
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *सवेरे-सवेरे
उठकर बाप को याद करो - नींद आ गई तो कमाई में घाटा पड़ जायेगा। अमृतवेले उठकर
बाबा से मीठी मीठी रुहरिहान करो। बाबा आपने हमको क्या से क्या बना दिया, बाबा
कमाल है आपकी। बाबा आप हमें अथाह खजाना देते हो, विश्व का मालिक बनाते हो! बाबा
हम आपको कभी भूल नहीं सकते। भोजन खाते, कामकाज करते बाबा आपको ही याद करेंगे।
ऐसे-ऐसे प्रतिज्ञा करते-करते फिर याद पक्की हो जायेगी।*
➢➢ *आज बाबा खास इस पर जोर दे रहे हैं, जो यह अभ्यास करेंगे वही कर्मातीत
अवस्था को पा सकेंगे और ऊंच पद पायेंगे। इसी अवस्था में बैठे-बैठे बाप को याद
करते घर चल जायें।*
➢➢ शिवबाबा कितना लायक बनाते हैं। वाह तकदीर वाह! ऐसे-ऐसे विचार करते एकदम
मस्ताना हो जाना चाहिए। वाह! हम स्वर्ग के मालिक बनते हैं! बाकी हम बहुत अच्छी
सर्वीस करते हैं, इसमें ही सिर्फ खुश नहीं होना है। *पहले गुप्त सर्विस अपनी यह
(याद की) करते रहो। अशरीरी बनने का अभ्यास करना है। इससे ही तुम्हारा कल्याण
होना है। अभ्यास पड़ जाने से फिर घड़ी-घड़ी तुम अशरीरी हो जायेंगे।*
➢➢ *शिवबाबा याद रहेगा तो स्वर्ग का वर्सा भी याद रहेगा। स्वर्ग का वर्सा याद
रहेगा तो शिवबाबा भी याद रहेगा। तुम बच्चे जानते हो अभी हम स्वर्ग तरफ जा रहे
हैं,* पाँव नर्क तरफ हैं, सिर स्वर्ग तरफ है। अभी तो छोटे-बड़े सबकी वानप्रस्थ
अवस्था है।
➢➢ *बेहद के बाप और दादा दोनों का मीठे-मीठे बच्चों से बहुत लव है, कितना लव
से पढ़ाते हैं। काले से गोरा बनाते हैं। तो बच्चों को भी खुशी का पारा चढ़ना
चाहिए। पारा चढ़ेगा याद की यात्रा से।*
➢➢ *जितना प्यार से याद करेंगे उतना श्रेष्ठ बनेंगे। यह भी चार्ट में लिखना
चाहिए हम श्रीमत पर चलते हैं वा अपनी मत पर चलते हैं। श्रीमत पर चलने से ही तुम
एक्यूरेट बनेंगे। जितनी बाप से प्रीति बुद्धि होगी उतनी गुप्त खुशी रहेगी और
ऊंच बनेंगे।*
➢➢ *अपनी दिल से पूछना है इतनी अपार खुशी हमको है! बाप को इतना प्यार करते
हैं! प्यार करना माना ही याद करना है। याद से ही एवरहेल्दी, एवरवेल्दी बनेंगे।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
*दिन-प्रतिदिन याद का चार्ट बढ़ाना चाहिए। देखना है तमोप्रधान से सतोप्रधान
कितने परसेन्ट बनें हैं? किसको दु:ख तो नहीं देते हैं? किसी देहधारी में बुद्धि
फंसी हुई तो नहीं है? बाप का सन्देश कितनों को देते हैं?* ऐसा चार्ट रखो तो
बहुत उन्नति होती रहेगी।
➢➢ *बाबा ने यह बैज जो बनवाये हैं, इसे चलते-फिरते घड़ी-घड़ी देखते रहो। ओहो!
भगवान की श्रीमत से हम यह बन रहे हैं। बस बैज को देख बाबा, बाबा करते रहो। तो
सदैव स्मृति रहेगी। हम बाप द्वारा यह (लक्ष्मी-नारायण) बनते हैं। तो बाप की
श्रीमत पर चलना चाहिए।*
➢➢ *पुरुषार्थ करना होता है और किसी की भी याद न आये। एक शिवबाबा की ही याद
हो, स्वदर्शन चक्र फिरता रहे* तब प्राण तन से निकले। *एक शिवबाबा दूसरा न कोई।*
यही अन्तिम मन्त्र है अथवा वशीकरण मन्त्र, रावण पर जीत पाने का मन्त्र है। बाप
समझाते हैं मीठे बच्चे इतना समय तुम देह-अभिमान में रहे हो *अब देही-अभिमानी
बनने की प्रैक्टिस करो।*
➢➢ दृष्टि का परिवर्तन होना ही निश्चयबुद्धि की निशानी है। *सब देह के सम्बन्धों
को भूल अपने को गोडली स्टूडेन्ट समझो, आत्मा भाई- भाई की दृष्टि हो जाए, तब ही
ब्रह्माकुमार ब्रह्माकुमारी भाई-बहन की दृष्टि पक्की हो जायेगी।*
➢➢ *कर्म, अकर्म और विकर्म की गति तो बाप ही समझाते हैं। विकर्मो से छुड़ाने
वाला तो एक बाप ही है जो इस संगम पर तुमको पढ़ा रहे हैं इसलिये बच्चे अपने ऊपर
बहुत ही सावधानी रखो। अपने हिसाब-किताब को भी देखते रहो। तुम यहाँ आये हो
हिसाब-किताब चुक्तू करने।*
➢➢ *अपनी पूरी चेकिंग करनी चाहिए।* ऐसी चेकिंग करने वाले एकदम रात दिन
पुरुषार्थ में लग जायेंगे। कहेंगे हम अपना टाइम वेस्ट क्यों करें, जितना हो सके
टाइम सेफ करें। अपने से पक्का प्रण कर देते हैं, हम बाप को कभी नहीं भूलेंगे।
स्कालरशिप लेकर ही छोड़ेंगे। ऐसे बच्चों को फिर मदद भी मिलती है। *अब यह तो
हरेक अपने को जानते हैं कि मेरे में कौन-सा विकार है! अगर किसी में एक भी विकार
है तो वह देह-अभिमानी जरूर है। जिसमें विकार नहीं वह है देही-अभिमानी।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ बच्चों की बड़ी
विशाल बुद्धि चाहिए। *सारा दिन सर्विस के ही ख्यालात चलते रहें। बाबा को तो वह
बच्चे चाहिए जो सर्विस बिगर रह न सकें। तुम बच्चों को सारे विश्व पर घेराव डालना
है अर्थात् पतित दुनिया को पावन बनाना है। सारे विश्व को दु:खधाम से सुखधाम
बनाना है।*
➢➢ *कोई-कोई बच्चे हैं जिनमें न काम है, न क्रोध है, न लोभ है, न मोह है वो
सर्विस बहुत अच्छी कर सकते हैं।* अब उन्हों की बहुत ज्ञान विज्ञानमय अवस्था है,
वह तो तुम सब भी वोट देंगे। अब यह तो जैसे मैं जानता हूँ वैसे तुम सब जानते हो
अच्छे को सब अच्छा वोट देंगे। *जिनमें कुछ विकार हैं वो सर्विस नहीं कर सकेंगे।
जो विकार प्रूफ हैं वो सर्विस कर औरों को आप समान बना सकेगें इसलिये अपने ऊपर
बहुत ही सम्भाल चाहिए। विकारों पर पूर्ण जीत चाहिए।*
➢➢ *बाबा यहाँ बैठा है तुम बच्चों को सम्भालने अर्थ। तो इस सर्विस करने अर्थ
माँ बाप का संकल्प जरूर चलता है* परन्तु यह संकल्प संकल्प नहीं, इससे विकर्म नहीं
बनता है, परन्तु यदि किसी का विकारी सम्बन्ध प्रति संकल्प चलता है तो उनका
विकर्म अवश्य ही बनता है। *बाबा तुमको कहता है कि मित्र-सम्बन्धियों की सर्विस
भले करो परन्तु अलौकिक ईश्वरीय दृष्टि से।*
➢➢ अच्छे स्टूडेन्टस को देख टीचर को भी पढ़ाने में मजा आता है। तुम तो अभी
स्टूडेन्ट के साथ-साथ बहुत ऊंच टीचर बने हो। *जितना अच्छा टीचर, उतना बहुतों को
आपसमान बनायेंगे। कभी थकेंगे नहीं। ईश्वरीय सर्विस में बहुत खुशी रहती है।*.
➢➢ कलियुगी संसार और कलियुगी मित्र सम्बन्धियों के प्रति चलते हैं वह विकल्प
कहे जाते हैं जिससे ही विकर्म बनते हैं और विकर्मो से दु:ख प्राप्त होता है।
बाकी जो *यज्ञ प्रति अथवा ईश्वरीय सेवा प्रति संकल्प चलता है वो गोया निरसंकल्प
हो गया। शुद्ध संकल्प सर्विस प्रति भले चले।*
➢➢ *बाप कल्प-कल्प बहुत प्यार से लवली सर्विस करते हैं। 5 तत्वों सहित सबको
पावन बनाते हैं। कितनी बड़ी बेहद की सेवा है।* बाप बहुत प्यार से बच्चों को
शिक्षा भी देते रहते क्योंकि बच्चों को सुधारना बाप वा टीचर का ही काम है। बाप
की है श्रीमत, जिससे ही श्रेष्ठ बनेंगे।
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