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  08 / 11 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  ऊपर में है मात-पिता। *शिवलिंग की विद्वान आदि पूजा नहीं करने देते हैं क्योंकि वह उल्टी बात समझते हैं।* वास्तव में शिवलिंग की पूजा जब करते हैं तो उनको मात-पिता नहीं समझते हैं। *लक्ष्मी-नारायण की पूजा करेंगे तो उनको मात-पिता कहेंगे क्योंकि दोनों हैं।* पत्थरबुद्धि मनुष्य कुछ भी समझते नहीं कि हम किसकी पूजा करते हैं।

➢➢  त्वमेव माताश्च पिता कौन है? जहाँ दो देखते हैं तो उनके आगे महिमा गाते हैं। परन्तु *लक्ष्मी-नारायण तो न मात-पिता हैं, न खिवैया हैं। न ज्ञान सागर, पतित-पावन हैं।* तुम बच्चे अच्छी तरह जानते हो - *पतित-पावन निराकार परमपिता परमात्मा को ही कहा जाता है।* त्वमेव माताश्च पिता... यह महिमा साकार की हो नहीं सकती। न लौकिक मात-पिता के लिए यह गाते हैं।

➢➢  विष्णुपुरी कैसे और किसने स्थापन की, यह कोई जानते नहीं। कोई ने तो स्थापन की होगी? बाप का परिचय मिलता है तो बाप से बर्थ राईट ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार जरूर चाहिए। *बाप का जन्म सिद्ध अधिकार है विष्णुपुरी, नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी पद प्राप्त कराते हैं।* राजयोग सिखलाते हैं।

➢➢  नीचे लिखा हुआ है यह तुम्हारा ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार है। *यह जगत पिता, जगत अम्बा है। यही जगत अम्बा फिर लक्ष्मी बनती है।* अभी परमात्मा आकर 21 जन्मों का राज्य-भाग्य देते हैं।

➢➢  चित्र बहुत फाईन बने हुए हैं। *त्रिमूर्ति तो कामन है, सिर्फ अर्थ नहीं समझते।* यह भी समझते हैं ब्रह्मा द्वारा स्थापना, विष्णु द्वारा पालना, शंकर द्वारा विनाश। परन्तु *कब आकर यह कार्य करते हैं, यह नहीं जानते। ब्रह्मा के बच्चे जरूर ब्रह्माकुमार कुमारियां होंगे।*

➢➢  *सबके अन्दर को जानने वाला शिवबाबा है। खुद कहते हैं जो जिस भावना से भक्ति करते हैं, उनको उसका फल मिलता है।* यह ड्रामा में नूँध है। तो जब *बाप को पाया है तो वर्सा भी पूरा पाना चाहिये। वर्सा सर्विस से मिलता है।* बाप तो फिर भी पुरुषार्थ करायेगा। ठण्डा थोड़ेही छोड़ेगा।

➢➢  स्वर्ग में इन देवताओं का राज्य था। *आर्य और अनआर्य। आर्य अर्थात् पारसबुद्धि, अनआर्य अर्थात् पत्थरबुद्धि।*

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *दो रोटी खाना, प्रभु के गुण गाना अर्थात् बाप और वर्से को याद करना। बाप को बहुत प्यार से याद करना है।*

➢➢  *बाप से बेहद का वर्सा संगम पर ही मिलता है। नाम ही है अति सहज राजयोग, अति सहज ज्ञान।* ड्रामा आनुसार झाड को जानना है।

➢➢  *सिर्फ बाप और वर्से को याद करना है। मनमना भव, बस।* हमको कुछ भी नहीं चाहिए। हम पैसे के भूखे नहीं हैं। पैसे तो अपने पास रखो। 

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *युक्तियुक्त बोलना चाहिए।* सच बताने वाले तुम हो, *बहुत रहमदिल बनना है।* कहाँ भी जाकर तुम सर्विस कर दिखाओ। कोई न कोई निकल पड़ेंगे जो अपना जीवन बनायेंगे।

➢➢  *तुम्हारा धन्धा है सबका भला करना* परन्तु जिसने अपना भला नहीं किया तो दूसरों का कैसे करेंगे। *कोई का भी कल्याण करना है। यही धन्धा तुमको करना है। सबको रास्ता बताने का,* बस दो रोटी मिले वह भी बहुत हैं।

➢➢  *कर्मणा सर्विस भी बहुतों को सुख देती है। सबकी आशीर्वाद मिलती है।* जो न वाचा, न कर्मणा सर्विस करते उनका क्या पद होगा, वेस्ट ऑफ टाइम और वेस्ट ऑफ एनर्जी करते हैं। जैसे भक्तिमार्ग में तुम्हारा वेस्ट ऑफ टाइम और वेस्ट ऑफ एनर्जी हुआ ना। *ईश्वरीय सर्विस आधा घण्टा भी नहीं करते, ऐसे भी बहुत हैं। पद पाना नहीं है तो चाल ही ऐसी चलते रहते हैं।*

➢➢  *बहुत चलते-चलते फिर गिर भी पड़ते हैं।* लिखते हैं बाबा हम गटर में गिर पड़े, चोट लग गई। *उनको शर्म आना चाहिए।* कोई मल्लयुद्ध में हार जाते हैं तो उनका मुँह काला हो जाता है। *पिछाड़ी में जब ट्रांसफर होने का समय आयेगा तो तुम सबको साक्षात्कार होगा कि हमारा क्या पद है। फिर पछताने से क्या होगा।* समझेंगे कल्प-कल्प यही गति होगी। कहते हैं शल तुमको ईश्वर मत दे, परन्तु *यहाँ तो ईश्वर की मत पर भी नहीं चलते जैसेकि प्रण किया है कि हम कभी श्रीमत पर नहीं चलेंगे।*

➢➢  *अगर सेन्सीबुल है तो थोड़े रूपये में भी काम चल सकता है।* यहाँ तो कई ऐसे हैं जो थोड़ा ही ठीक न मिले तो भाग जायें। राजाई को भी ठोकर मार दें। बीच में बेगरी पार्ट चला, यह भी परीक्षा हुई थी। *बहुत चले गये। यह सब शिवबाबा का क्या राज था वह भी गुड़ जाने, गुड़ की गोथरी जाने।* कितने डरकर भाग गये।

➢➢  यहाँ कई बच्चे हैं जो सेन्टर पर आते रहते हैं, बाहर से *कहते हैं हम पवित्र रहते हैं, परन्तु अन्दर गंद करते रहते हैं।*  बाबा कहते हैं *समय आयेगा सबको अपनी चलन का साक्षात्कार कराऊंगा कि कितने पाप, झूठ किये हैं। महसूस करेंगे बरोबर हमने छिपाया था, इतना झूठ बोला था इसलिए यह सजा मिल रही है।*

➢➢  कई हैं जो बाहर से बड़े अच्छे हैं, बड़े मीठे हैं। परन्तु अन्दर किचड़ा भरा हुआ है। यहाँ *अन्दर बाहर बड़ा साफ चाहिए।*

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *किसको भी समझाना बहुत सहज है। त्रिमूर्ति चित्र ले जाओ, ऊपर में है शिव।* यह है त्वमेव माताश्च पिता... जो ब्रह्मा द्वारा हमको विष्णुपुरी का राज्य देते हैं। *ब्रह्मा द्वारा हमको सहज राजयोग सिखला रहे हैं, जिससे हम राजाओं का राजा बनते हैं।*

➢➢  *समझाने का तरीका बहुत अच्छा चाहिए, जो किसकी बुद्धि में बैठे।* लक्ष्मी-नारायण के चित्र पर तुम बहुत अच्छा ज्ञान दे सकते हो। लक्ष्मी-नारायण को जरूर 84 जन्म लेने पड़ते हैं। यह नई दुनिया के नम्बरवन मनुष्य हैं। *गायन भी है परमपिता परमात्मा से 21 पीढ़ी राज्य-भाग्य मिलता है। वह भी क्लीयर कर दिखाया हुआ है।*

➢➢  बाप समझाते बहुत सहज हैं। एक त्रिमूर्ति का राज और नई दुनिया, पुरानी दुनिया के चक्र का राज लिखा हुआ है। सर्विस करने वालों की बुद्धि में यह सब राज रहते हैं। *कहाँ शादी आदि पर जाओ तो कोशिश करो तीर लगाने की।*

➢➢  बाबा कहते हैं तुम बच्चे *कहाँ भी जाओ जाकर समझाओ - हम यह पढ़े हैं। हमारा फर्ज है, घर-घर में पैगाम देना। यह त्रिमूर्ति क्या है, आओ तो हम आपको समझायें।* तुम सर्विस बहुत कर सकते हो। *यह झाड़ का फर्स्टक्लास चित्र है। बोलो, सिर्फ नॉलेज सुनो। हम आपको यह भी नहीं कहते हैं निर्विकारी बनो। सिर्फ यहाँ आओ तो हम आपको अच्छी बातें सुनायेंगे। तुम शादी की खुशी में हो, हम आपको उनसे भी जास्ती खुशी का पारा चढ़ा सकते हैं, हमेशा के लिए।*

➢➢  बाबा ने इनको बैठ 84 जन्मों का राज समझाया हुआ है। जैसे ब्रह्मा का दिन और रात वैसे विष्णु का भी दिन और रात। बहुत सहज है समझाना।  मनुष्य का पेट जास्ती नहीं खाता। *तुमको जहाँ तहाँ यह सर्विस ही जाकर करनी है। त्रिमूति का चित्र लेकर इस पर ही समझाओ।*  

➢➢  *दिल में आना चाहिए हम अपने मित्र सम्बन्धियों का उद्धार करते हैं।* एक दिन आयेगा जो *तुम चित्र लेकर जाए सबको समझायेंगे कि शिवबाबा इस ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी का राज्य दे रहे हैं। शंकर द्वारा पुरानी दुनिया का विनाश हो रहा है।* बाकी देवताअों, असुरों की लड़ाई नहीं लगी। यह तो यवन और कौरवों की है। उनका बाम छूटेगा और इनकी लड़ाई शुरू होगी। *विनाश के बाद फिर स्वर्ग की स्थापना, कितना सहज है।*

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