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  24 / 12 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  बापदादा अपने हीरे समान बच्चों को देख हर्षित भी होते हैं और चेक भी करते - अभी तक किन बच्चों को धूल का असर हो जाता है वा संग के रंग में आने से कोई-कोई को छोटा वा बड़ा दाग भी लग जाता है। कौन सा संग दाग लगाता है! उसके मूल दो कारण हैं वा मुख्य दो बातें हैं:- *एक- परचिंतन, दूसरा-परदर्शन। यही दो बातें संग के रंग में स्वच्छ हीरे को दागी बना देती हैं। इसी परदर्शन, परचिन्तन की बातों पर कल्प पहले का यादगार रामायण की कथा बनी हुई है। गीता ज्ञान भूल जाता है।*

➢➢  *सदा बेदाग सच्चा हीरा, चमकता हुआ हीरा, अमूल्य हीरा बनो। इन दो बातों से (परचिन्तन, पर्दर्शन) सदा दूर रहो तो धूल और दाग लग नहीं सकता।* चाहते नहीं हो लेकिन कर लेते हो, बातें बड़ी नईनई रमणीक बताते हो। अगर वह बातें सुनावें तो बहुत लम्बा चौड़ा शास्त्र बन जायेगा। लेकिन कारण क्या है? अपनी कमजोरी। लेकिन अपनी कमजोरी को सफेदी लगा देते हो और छिपाने के लिए दूसरों के कारणों की कहानियाँ लम्बी बना देते हो।इसी से परदर्शन, परचिन्तन शुरू हो जाता है इसलिए इस विशेषमूल आधार को, मूल बीजको समाप्त करो। ऐसा विदाईका बधाई समारोह मनाओ। 

➢➢  *बापदादा का यही विशेष स्नेह है कि हर बच्चा बाप समान सम्पन्न बन जाए। समय के पहले नम्बरवन हीरा बन जाए। अभी रिजल्ट आउट नहीं हुआ है। जो बनने चाहो, जितने नम्बर में आने चाहो, अभी आने की मार्जिन है इसलिए उड़ती कला का पुरूषार्थ करो।* 

➢➢  *आधाकल्प भटकते-भटकते क्या हाल हो गया है, देख लिया ना! सब कुछ गवा दिया। तन भी गया, मन का सुख-शान्ति भी गया, धन भी गया। सतयुग में कितना धन था, सोने के महलों में रहते थे, अभी ईटों के मकान में, पत्थर के मकान में रहते हो, तो सारा गवा दिया ना! तो अभी भटकना खत्म।* 

➢➢  *आजकल भी सेफ रहने के लिए गुप्त लॉक रखते हैं। यहाँ भी डबल लॉक है। याद और सेवा - यह है डबल लॉक।* इसी से सेफ रहेंगे।ड़बल लॉक अर्थात् डबल बिज़ी। बिज़ी रहना अर्थात सेफ रहना।

➢➢  *सभी अपने को पूज्य आत्मायें अनुभव करते हो?* पुजारी से पूज्य बन गये ना! पूज्य को सदा ऊंचे स्थान पर रखते हैं। कोई भी पूजा की मूर्ति होगी तो नीचे धरती पर नहीं रखेंगे। तो आप पूज्य आत्मायें कहाँ रहती हो! ऊपर रहती हो! *भक्ति में भी पूज्य आत्माओं का कितना रिगार्ड रखते हैं। जब जड़ मूर्ति का इतना रिगार्ड है तो आपका कितना होगा।* अपना रिगार्ड स्वयं जानते हो? क्योंकि जितना जो अपना रिगार्ड जानता है उतना दूसरे भी उनको रिगार्ड देते हैं। *अपना रिगार्ड रखना अर्थात् अपने को सदा महान श्रेष्ठ आत्मा अनुभव करना।*

➢➢  *पूज्य तो सदा पूज्य होगा ना! आज पूज्य कल पूज्य नहीं-ऐसे तो नहीं हो ना। सदा पूज्य अर्थात् सदा महान । सदा विशेष।* कई बच्चे सोचते हैं कि हम तो आगे बढ़ रहे हैं लेकिन दूसरे हमको आगे बढ़ने का रिगार्ड नहीं देते हैं। इसका कारण क्या होता? सदा स्वयं अपने रिगार्ड में नहीं रहते हो। *जो अपने रिगार्ड में रहते वह रिगार्ड माँगते नहीं स्वत: मिलता है।*

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *सर्व सम्बन्धों से बाप को अपना बना लिया है? किसी भी सम्बन्ध में अभी लगाव तो नहीं है क्योंकि कोई एक सम्बन्ध भी अगर बाप से नहीं जुटाया तो नष्टोमोहा, स्मृति स्वरूप नहीं बन सकेंगे। बुद्धि भटकती रहेगी।*

➢➢  *एक बाप दूसरा न कोई, यही मन से गीत गाओ। कभी भी ऐसे नहीं कहना कि यह तो बदलता नहीं है, यह तो चलता नहीं है, कैसे चलें, क्या करूं. इस बोझ से भी हल्के रहो।* भल भावना तो अच्छी है कि यह चल जाए, इसकी बीमारी खत्म हो जाए लेकिन इस कहने से तो नहीं होगा ना! *इस कहने के बजाए स्वयं हल्के हो  उड़ती कला के अनुभव में रहो तो उसको भी शक्ति मिलेगी।* बाकी यह सोचना वा कहना व्यर्थ है। 

➢➢  *बार-बार स्मृति में रहना (मैं कौन , मेरा कौन - मैं आत्मा हूँ और शिव पिता की संतान हूँ) - यही है लॉक को लगाना। ऐसे नहीं समझो मैं तो हूँ ही बाबा का लेकिन बार-बार स्मृति स्वरूप बनो। अगर हैं ही बाबा के तो स्मृति स्वरूप होना चाहिए, वह खुशी होनी चाहिए।* 

➢➢  *(स्मृति स्वरुप) हैं तो वर्सा प्राप्त होना चाहिए। सिर्फ हैं ही(बाबा के) के अलबेलेपन में नहीं लेकिन हर सेकण्ड स्वयं को भरपूर समर्थ अनुभव करो। इसको कहा जाता है स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप।* माया वार करने न आये लेकिन नमस्कार करने आये।

➢➢  *तपस्या है ही एक बाप दूसरा न कोई। यह है निरन्तर की तपस्या।*

➢➢  *मैं साधारण आत्मा नहीं हूँ, मैं शिव शक्ति हूँ बाप मेरा और मैं बाप की। इसी स्मृति में रहो तो कभी भी अकेलापन अनुभव नहीं होगा।* कभी दिलशिकस्त नहीं होंगे। सदा उमंग उत्साह रहेगा।

➢➢  *'शिव-शक्ति' का अर्थ ही है शिव और शक्ति कम्बाइन्ड। जहाँ सर्वशक्तिवान, हज़ार भुजाओं वाला बाप है वहाँ सदा ही उमंग-उत्साह साथ है।* 

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *गीता ज्ञान अर्थात् स्वचिन्तन। स्वदर्शन चक्रधारी बनना, नशेमोहा स्मृति स्वरूप बनना।*

➢➢  *बेदाग नम्बरवन चमकता हुआ हीरा बन जाओ। समझा क्या करना है? सिर्फ यह नहीं जाकर सुनाना मधुबन से होके आये, बहुत मना के आये। लेकिन बन करके आये हैं! जब संख्या में वृद्धि हो रही है तो पुरूषार्थ की विधि में भी वृद्धि करो।* 

➢➢  *(अगर बुद्धि भटकती रहेगी) बैठेगे बाप को याद करने और याद आयेगा धोत्रा पोत्रा। जिसमें भी मोह होगा वही याद आयेगा।* किसका पैसे में होता है, किसका जेवर में होता है, किसका किसी सम्बन्ध में होता - जहाँ भी होगा वहाँ बुद्धि जायेगी। *अगर बार-बार बुद्धि वहाँ जाती है (जहाँ मोह है ) तो एकरस नहीं रह सकते।*  

➢➢  मातायें कहेंगी मेरा पति ठीक हो जाए, बच्चा चल जाए, धन्धा ठीक हो जाए यही बातें सोचते या बोलते हैं। लेकिन यह *चाहना पूर्ण तब होगी जब स्वयं हल्के हो बाप से शक्ति लेंगे। इसके लिए बुद्धि रूपी बर्तन खाली चाहिए। क्या होगा, कब होगा, अभी तो हुआ ही नहीं, इससे खाली हो जाओ।*

➢➢  *सभी का कल्याण चाहते हो तो स्वयं शक्तिरूप बन सर्वशक्तिवान के साथी बन शुभ भावना रख चलते चलो। चिन्तन वा चिन्ता मत करो, बन्धन में नहीं फैसो।* अगर बन्धन है तो उसको काटने का तरीका है याद। कहने से नहीं छूटेंगे, स्वयं को छुड़ा दो तो छूट जायेंगे।

➢➢  *खज़ाना मिला है, इसका अनुभव भी अभी होता है। अप्राप्ति से प्राप्ति हुई तो उसका नशा रहेगा।* तो भरपूर आत्मायें बनीं। ऐसे तो नहीं कहते कि सर्वशक्तियाँ हैं लेकिन सहन शक्ति नहीं है, शान्ति की शक्ति नहीं है। थोड़ा क्रोध या थोड़ा आवेश आ जाता है। *भरपूर चीज़ में कोई दूसरी चीज़ आ नहीं सकती।*

➢➢  *माया की हलचल होती अर्थात् खाली है(संगम्युग के सर्व खजाने प्राप्त नहीं है), जितना भरपूर उतना हलचल नहीं।* तो क्रोध, मोह. सभी को विदाई दे दी या दुश्मन् को भी मेहमान बना दैते हो। *यह दुश्मन जबरदस्ती भी अन्दर तब आता है जब अलबेलापन है। अगर लॉक(याद और सेवा का लॉक ) मजबूत है तो दुश्मन आ नहीं सकता।* 

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *जब किसी स्थान पर हंगामा हो, तो उस झगड़े के समय शान्ति के शक्ति की कमाल दिखाओ। सबकी बुद्धि में आवे कि यहाँ तो शान्ति का कुण्ड है। शान्तिकुण्ड बन शान्ति की शक्ति फैलाओ।* जैसे चारों ओर अगर आग जल रही हो और एक कोना भी शीतल कुण्ड हो तो सब उसी तरफ दौड़कर जाते हैं, ऐसे *शान्ति स्वरूप होकर शान्ति कुण्ड का अनुभव कराओ। उस समय वाचा की सेवा नहीं कर सकते लेकिन मंसा से अपने शान्ति की प्रत्यक्षता कर सकते हो।* 

➢➢  *जहाँ भी शान्तिसागर के बच्चे रहते हैं वह स्थान शान्ति-कुण्ड हो।* जब विनाशी यज्ञ कुण्ड अपनी तरफ आकर्षित करता है तो यह शान्ति कुण्ड अपने तरफ न खींचे यह हो नहीं सकता। *सबको वायब्रेशन आने चाहिए कि बस यहाँ से ही शान्ति मिलेगी। ऐसा वायुमण्डल बनाओ। सब मांगने आयें कि बहन जी शान्ति दो। ऐसी सेवा करो।*

➢➢  *टीचर्स अर्थात् सेवाधारी। सेवाधारी अर्थात् त्यागमूर्त और तपस्या मूर्त।* जहाँ त्याग, तपस्या नहीं वहाँ सफलता नहीं। *त्याग और तपस्या दोनों के सहयोग से सेवा में सदा सफलता मिलती है।* 

➢➢  जो भी आये (सेवा स्थान पर) वह कुमारी नहीं देखे लेकिन तपस्वी कुमारी देखे। *जिस स्थान पर रहते हो वह तपस्या-कुण्ड अनुभव हो।* अच्छा स्थान है, पवित्र स्थान है यह भी ठीक लेकिन तपस्या कुण्ड अनुभव हो। *तपस्या कुण्ड में जो भी आयेगा वह स्वयं भी तपस्वी हो जायेगा। तो तपस्या के प्रैक्टिकल स्वरूप में जाओ तब जयजयकार होगी। तपस्या के आगे झुकेंगे।* बी.के. के आगे महिमा करते हैं तपस्वी कुमार/कुमारी के आगे झुकेंगे। तपस्या कुण्ड बनाओ फिर देखो कितने परवाने अपेहि  आ जाते हैं। 

➢➢  सेवाधारी बनने का भाग्य बन चुका, अब तपस्वी कुमारी का नम्बर लो। *सदा शान्ति का दान देने वाली महादानी आत्मायें बनो। बापदादा वर्तमान समय मंसा सेवा के ऊपर विशेष अटेन्शन दिलाते हैं। वाचा की सेवा से इतनी शक्तिशाली आत्मायें प्रत्यक्ष होंगी। वाणी तो चलती रहती है लेकिन अभी एडीशन चाहिए शुद्ध संकल्प के सेवा की।*

➢➢  *स्वरूप बन करके स्वरूप बनाने की सेवा करो, अभी इसी की आवश्यकता है। अभी सबका अटेन्शन इस प्वाइंट पर हो, इसी से नाम बाला होगा। अनुभवी मूर्त अनुभव करा सकेंगे , इसी पर विशेष अटेंशन देते रहो|* इसी से मेहनत कम सफलता ज्यादा होगी । *मन्सा धरनी को परिवर्तन कर देती है। सदा इसी प्रकार से वृद्धि करते रहो। अभी यही विधि है वृद्धि करने की।*

➢➢  *वृक्षपति बाप ने सभी बच्चों की श्रेष्ठ तकदीर, अविनाशी बना दी। इसी अविनाशी तकदीर द्वारा सदा स्वयं भी सम्पन्न रहेंगे और औरों को भी सम्पन्न बनाते रहेंगे।* 

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