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  07 / 10 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *जैसे बाप ने कहा है कि मैं साधारण बूढ़े तन में आता हूँ अर्थात् जिसकी वानप्रस्थ में रहने की अवस्था होती है।* वानप्रस्थ अर्थात् वाणी से परे, वह तो हुआ निर्वाणधाम।

➢➢  *शान्तिधाम कहने से फिर सिद्ध होता है वहाँ आत्मायें रहती हैं। वहाँ मनुष्य रह नहीं सकते। ऐसे नहीं कि मनुष्य सतयुग में शान्ति में रहते हैं तो कोई गुफा में रहते हैं वा मन को अमन कर देते हैं, नहीं।* वहाँ तो है ही एक अद्वेत धर्म, द्वेत की बात नहीं।

➢➢  *इस समय सभी आत्मायें यहाँ कर्मक्षेत्र पर आ जानी चाहिए क्योंकि नम्बरवार आना है। आत्मायें भी नम्बरवार हैं ना। कोई सतोप्रधान हैं, कोई सतो, रजो, तमो हैं।* जो पिछाड़ी में थोड़ा पार्ट बजाते हैं वह तो जैसे कमजोर आत्मायें हैं। बिल्कुल थोड़ा पार्ट है। उनका इतना प्रभाव नहीं हो सकता, इतना गाये नहीं जाते हैं।

➢➢  तुम्हारी बुद्धि में यह जरूर बैठना चाहिए। *मुख्य क्रियेटर, डायरेक्टर, प्रिन्सीपल एक्टर कौन है? शिवबाबा। वही नॉलेजफुल, ब्लिसफुल है*। हम शिवबाबा को एक्टर कह सकते हैं।

➢➢  *बच्चे जानते हैं यह वर्ल्ड ड्रामा हूबहू रिपीट होता रहता है।* बाप कहते हैं तुमको मैं कितना बारी ज्ञान सुनाता हूँ! *हम तुम और सारी दुनिया अब है, कल्प पहले भी थी। कल्प-कल्प फिर मिलते रहेंगे। दूसरी और दुनिया होती नहीं।*

➢➢  कलियुग पूरा हो फिर सतयुग होता है। सतयुग में दु:ख की बात होती नहीं। *बाप अब दु:ख से लिबरेट करते हैं। बाकी सब शान्तिधाम में चले जायेंगे। कलियुग के अन्त में ही लिबरेटर आते हैं। आकर नर्क को स्वर्ग बनाते हैं।*

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  तुम्हारी युद्ध की युद्ध, रेस की रेस है। *तुम्हारी माया पर जीत पाने की युद्ध है और बाप को याद करने लिए ही कहा जाता है। कोई यह नहीं कहा जाता है कि गुरूनानक को याद करो या कोई और को याद करो।*

➢➢  अब तुम बच्चों को पता है कि *हम आत्माओं को रहना निर्वाणधाम में होता है, उनको फिर मुक्तिधाम कहा जाता है। वहाँ शान्ति में तो सिर्फ आत्मायें रहती हैं।*

➢➢  सर्व का सद्गति दाता एक है। वास्तव में सर्व पर दया करने वाला भी एक है। सर्व का सद्गति दाता, पतित-पावन भी एक है। *सर्व को सुख देने वाला एक है। सुखधाम में भी बाप ही ले जाते हैं। तो बाप से ही सुखधाम का वर्सा लेना चाहिए।*

➢➢  इसका नाम रखा है राजस्व अश्वमेध, अश्व कहा जाता है घोड़े को, तुम हो रूहानी घोड़े। *तुम्हारी दौड़ी है घर की तरफ कि पहले हम बाप के पास पहुंचे।*

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *अभी पवित्र बनेंगे तो 21 जन्मों की राजाई मिलेगी।* कम बात है क्या? एक जन्म पवित्र बनो, कोई बड़ी बात है। बाबा युक्तियां तो बहुत बताते हैं। *आहिस्ते-आहिस्ते युक्ति से चलो, जिससे खिटपिट न हो, दोस्ती भी रहे और अपने आपको छुड़ाते भी रहो।*

➢➢  वह ब्राह्मण तो विकार का हथियाला बंधवाते हैं। *यहाँ ब्रह्मा और ब्राह्मण हथियाला बांधते हैं पवित्रता का।* वह कैन्सिल करते हैं। *बच्चे कहते भी हैं बाबा आप हमको स्वर्ग में ले जाते हो। आपकी हम क्यों नहीं मानेंगे! खुशी से पवित्रता का कंगन बांधते हैं।*

➢➢  *समझने के लिए कोई यहाँ बैठना नहीं है। भल विलायत में रहो। परन्तु 7 रोज बाबा के संग में जरूर रहना पड़े क्योंकि संग तारे कुसंग बोरे।* अगर तीर लग गया तो कहेगा और 7 रोज रहना है। तो बाबा परीक्षा भी लेते हैं कि पूरा निश्चय है, दिल लगती है, तीर लगता है - बाप पढ़ाते हैं। अरे *बाप के पास तो रहना चाहिए ना। जब पक्का रंग लग जाए तो विलायत में भी जा सकते हैं।*

➢➢  *बाप समझाते हैं मेरी मत सबसे न्यारी है। तुमको शूद्र से ब्रह्मण बनाकर फिर श्रेष्ठ देवता बनाता हूँ।* जीवनमुक्ति दाता हूँ। मैं सर्व का लिबरेटर हूँ।

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  बाबा रांझू-रमजबाज है, तो रमज (युक्ति) बताते हैं - ऐसे-ऐसे करो। *बहुत बच्चियाँ भूँ-भूँ करके पति को ले आती हैं।* फिर पति स्त्री के चरणों पर गिरते हैं कि इसने मुझे बचाया।

➢➢  *प्रजापिता ब्रह्मा तो जरूर यहाँ ही चाहिए। ऊंच ते ऊंच शिवबाबा फिर सेकेण्ड नम्बर में है ब्रह्मा। शिवबाबा इन ब्रह्मा द्वारा बैठ सर्विस करते हैं। ब्राह्मणों को देवता बनाते हैं।*

➢➢  *वह यज्ञ रचते हैं उपद्रव मिटाने के लिए। उपद्रव शुरू होते हैं द्वापर से।* बाप कहते हैं इस यज्ञ के बाद फिर आधाकल्प कोई यज्ञ होता नहीं। *समझाया जाता है अब जज करो - राइट कौन है? यह छोटे-छोटे यज्ञ सब हद के हैं। यह है बेहद का यज्ञ। इस यज्ञ में सारी आहुति पड़ेगी। फिर आधाकल्प कोई यज्ञ नहीं।*

➢➢  *ऊंचे ते ऊंचा है ही एक शिवबाबा। फिर कहते हैं त्रिमूर्ती ब्रह्मा।* त्रिमूर्ति में ब्रह्मा को जास्ती रखते हैं। *त्रिमूर्तिशंकर नहीं कहेंगे।* गाया भी जाता है देव-देव महादेव। पहले ब्रह्मा आता है। *इन तीन देवताओं में नम्बरवन है ब्रह्मा। ब्रह्मा को ही गुरू कहते हैं। शंकर को वा विष्णु को कभी गुरू नहीं कहेंगे। त्रिमूर्ति में मुख्य ब्रह्मा है।*

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