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❍ 05 / 09 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *परमपिता
परमात्मा शिव जो सृष्टि का का रचयिता है। वह इस संगम पर पुरानी दुनिया का विनाश
कर नई दुनिया(स्वर्ग) की स्थापना के लिए आये है।*
➢➢ *दुनिया में
कितने ढेर के ढेर गुरु है। बाप ने समझाया कोई भी धर्म स्थापक को गुरु नही कहेंगे।
वह तो सिर्फ धर्म स्थापन के लिए आते है।* गुरु अर्थात जो वापिस शान्तिधाम ले
जाये परंतु एक भी गुरु वापिस ले जाने वाला है नही।
➢➢ *ऊँच ते ऊँच को
टॉवर कहा जाता है। परमपिता परमात्मा शिव जो शान्ति के टॉवर में रहने वाला है,
वह शिक्षा देते है मुझे याद करो तो शान्ति के टॉवर में आ जायेंगे।* शान्ति के
टॉवर को घर भी कहा जाता है, शान्तिधाम भी कहा जाता है तो परमधाम, निर्वाणधाम भी
कहा जाता है।
➢➢ *परमात्मा को
पतित-पावन कहकर पुकारते है। वह पतित दुनिया का विनाश कर पावन दुनिया की स्थापना
के लिए आये है।* तो पावन दुनिया जरूर नई ही होगी। पावन दुनिया में बहुत थोड़े
मनुष्य रहते है। सुख-शांति रहती है।
➢➢ *सर्व शास्त्रो
में सर्वश्रेष्ठ शास्त्र श्रीमद भागवत गीता है जो भगवान(शिव) ने गायी हुई है।
यह गीता एपीसोड चल रहा है, जिसमे देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है।*
➢➢ *आदि सनातन है
देवी-देवता धर्म। सिवाए देवी-देवताओं के कोई भी स्थाई पवित्र होते नही। 21 जन्म
सिर्फ एक ही धर्म पवित्र रहता है। फिर धीरे-धीरे अवस्था कम होती जाती है।*
त्रेता में दो कला कम तो सुख भी कम हो जाता है।सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का
राज्य होता है। उनको भगवान-भगवती नही कहा जाता, वह है सतयुग के महाराजा-महारानी।
➢➢ परमात्मा शिव
ज्ञान के सागर है। इस संगम पर बाबा ने पूरी सृष्टि का ज्ञान दे इस मनुष्य सृष्टि
रुपी झाड़ के आदि-मध्य-अंत का ज्ञान दे त्रिकालदर्शी बना समझाया है कि इस समय
सारे झाड़ की जड़जड़ीभूत अवस्था है। *सारा झाड़ सूखकर तमोप्रधान हो गया है। सारा
झाड़ सूखा हुआ है। परमात्मा शिव इस समय इस झाड़ की नई कलम लगाने आये है।*
➢➢ इस समय मनुष्यो
के पास पैसे बहुत है। कितने महल बनाते रहते है। कितनी ऊँची-ऊँची माड़ियां बनाते
रहते समझते है सतयुग से भी भारत अभी ऊँच है। *सतयुग त्रेता में तो यह माड़ियां
होती नही। द्वापर में भी नही होती। यह तो कलियुग में जब आकर बहुत मनुष्य हो जाते
है तो रहने के लिए ऊँची-ऊँची मंजिल वाले बड़े-बड़े मकान बनाते रहते है। जंगल में
मंगल हो जाता है।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *शान्तिधाम
अर्थात परमधाम हम आत्माओ के रहने का स्थान है। जहाँ से हम आत्माये इस सृष्टि पर
पार्ट बजाने आती है। अब इस दुखधाम को भूल घड़ी-घड़ी शान्तिधाम, सुखधाम की याद करो।*
➢➢ परमात्मा शिव
ज्ञान का सागर है बाकी पानी के सागर तो कितने होते है। सागर तो एक ही है,
बीच-बीच में टुकड़े कर अलग-अलग बना दिया है। धरनी भी सारी एक ही है। टुकड़ा-टुकड़ा
हुई पड़ी है। *सतयुग में धरनी भी एक होती है तो राज्य भी एक होता है। अब इस पतित
दुनिया को भूल नयी दुनिया (सुखधाम) को याद करना है।*
➢➢ *परमात्मा को
कालो का काल कहा जाता है। सिवाए बाप के मौत तो कोई दे ना सके। कितने ढेर के ढेर
को मौत देते है। मुक्ति में तो सब जायेंगे, बाकी जीवनमुक्ति में जाना कोई मासी
का घर थोड़े ही है।* मुक्ति में जाना तो कॉमन है, सब वापिस लौटेंगे। जहाँ से आये
है वहाँ फिर जायेंगे जरूर। बाकी नई दुनिया(सतयुग) में सब थोड़े ही आएंगे।
➢➢ बाप समझाते है
सब खण्ड ख़त्म हो जायेंगे। चारो ओर ही जलमई हो जाती है। भारत ही सिर्फ रहता है।
*स्वर्ग की बादशाही प्राप्त करने के लिए तीव्र पुरुषार्थी बन जल्दी-जल्दी तैयार
होना है। अभी नही तो कभी नही।*
➢➢ *जैसे शमशान में
जब आग लगकर ख़त्म होती है तब लौटते है उसी प्रकार बाप भी विनाश के लिए आये है,
तो आधे पर थोड़े ही जायेंगे। आग लगकर जब पूरी होगी तब सबको साथ ले जायेंगे।*
➢➢ *पतित दुनिया
में अनेक दुःख है, पावन दुनिया में अनेक सुख है। बाप पावन दुनिया की सौगात लाये
है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद कर पावन दुनिया में चलना है।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
*निश्चयबुद्धि बन पुरुषार्थ करते रहना है। श्रीमत पर चल संस्कार परिवर्तन करने
है।* जिनको निश्चय नही होगा वह कभी सुधरेंगे नही।
➢➢
*पढ़ाई अच्छी रीति पढ़नी और पढ़ानी है।* जो अच्छी रीति नही पढ़ेंगे तो त्रेता में
भी पिछाड़ी का थोड़ा समय रहेंगे। 16 कला तो कभी बन न सके। 14 कला के भी पिछाड़ी
में आयेंगे। उनको सामने दुःख की दुनिया देखने आएँगी। सारा मदार पढ़ाई पर है जो
अभी बुद्धि में धारण करनी है।
➢➢
बाप की याद में रह दिल से भोला बनना है, बातों में और कर्म में भोला नही। *त्रिकालदर्शी
बन हर कर्म के परिणाम को जान हर कर्म करना है।*
➢➢
*एक दो को कॉपी करने की बजाए बाप को कॉपी पर नई दुनिया में ऊँच पद पाना है।*
➢➢
वाणी से परे अर्थात घर, *परमात्मा की याद में रह वाणी से परे वानप्रस्थ अवस्था
बनानी है।* एक बाप के सिवाय वानप्रस्थ का अर्थ न गुरु लोग जानते, न फॉलोअर्स ही
जानते है।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *अखबारों द्वारा
परमात्मा शिव के अवतरण का पैगाम पहुँचाने की सेवा करनी है।* अखबारों द्वारा ही
एक्यूरेट सुनेंगे। पीछाड़ी में अखबारों द्वारा सब धर्म वालो को मालूम पड़ जायेगा।
➢➢ *गीता पर सबको
समझाने की सेवा करनी है। गीता में भगवानुवाच्य है-मुझे याद करो तो तुम्हारे
विकर्म विनाश होंगे। यह सिद्ध कर समझाना है गीता के भगवान कृष्ण नही परमात्मा
शिव है जो इस धरा पर अवतरित हो चुके है।*
➢➢ *युक्ति से सबको
समझाना है कि इस समय गुप्त वेष में पवित्रता, सुख शांति का धर्म स्थापन हो रहा
है।* कहते भी हो हे पतित पावन आओ हमको पावन बनाकर इस दुखधाम की दुनिया से
शान्तिधाम में ले चलो। मांगते हो ना आकर विश्व में शांति स्थापन करो, शांति तो
सतयुग में ही होती है, सो गुप्त वेष में विश्व में शांति स्थापन हो रही है।
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