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❍ 20 / 11 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *दुनिया में ऐसा
कोई मनुष्य नहीं जो कहे कि हम भविष्य जन्म-जन्मान्तर के लिए पुरुषार्थ करते है।
यह सिर्फ तुम ब्राह्मण ही कर सकते हो।* यह निश्चय है कि हमारी दैवी राजधानी
ड्रामा अनुसार जरूर स्थापन होनी ही है। हम न चाहें तो भी जरूर होगी। इम्पासिबुल
है जो स्थापना न हो। ड्रामा जरूर स्थापन करायेगा।
➢➢ *स्वर्ग जब होता है तब और खण्ड नहीं रहता।* इस्लामी, बौद्धी आदि तो बाद में
आते हैं। उनके पहले चन्द्रवंशी रामराज्य था। उनके पहले सूर्यवंशी
लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। क्राइस्ट नहीं था तो बौद्धी थे, बौद्धी नहीं थे तो
इस्लामी थे। इस्लामी नहीं थे तो रामराज्य था। उनके पहले सूर्यवंशी थे। *अब
सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी दोनों घराने नहीं हैं।*
➢➢ *भक्ति में जो पुरुषार्थ करते हैं वह है अयथार्थ। यथार्थ पुरुषार्थ परमपिता
ही कराते हैं।* सर्वव्यापी के ज्ञान से परमात्मा से सम्बन्ध नहीं हो सकता और ही
टूट पड़ता है। अब तुमने एक बाप के साथ बुद्धियोग जोड़ा है और स्वर्ग वैकुण्ठ की
राजाई के लिए तुम पुरुषार्थ कर रहे हो।
➢➢ *एक ही बाप है जो बंधन से छुड़ाकर सम्बन्ध में ले जाते हैं।* बंधन है मायावी
राज्य में, सम्बन्ध है रामराज्य में वा ईश्वरीय राज्य में, उनको ईश्वरीय राज्य
और इनको आसुरी राज्य कहा जाता है क्योंकि *सतयुग ईश्वर स्थापन करते हैं। उसमें
ऊंच पद पाने के लिए तुम बच्चों को पुरुषार्थ कराते रहते हैं।*
➢➢ सतयुग, त्रेता में सम्बन्ध की बात ही नहीं। द्वापर, कलियुग में भी सम्बन्ध
की बात नहीं। *संगम पर ही सम्बन्ध और बंधन का ध्यान रहता है।* अब तुम जानते हो
आसुरी बंधन से ईश्वरीय सम्बन्ध में जा रहे हैं। *संगम है ही पुरुषार्थ का युग।*
➢➢ ड्रामा प्लेन अनुसार बाप आया है। वह कहते हैं यह संगमयुग पुरुषार्थ करने का
है। पतित से पावन बनना है। संगम की बहुत महिमा है। *वह है नदियों और सागर का
संगम, यह संगम तो तुम्हारा अभी होता है।* बाप कहते हैं मैं इस संगम युगे युगे
आता हूँ। सारी दुनिया पतित जरूर बनने की है। फिर पतित से पावन दुनिया जरूर बननी
है।
➢➢ दिन प्रतिदिन मनुष्य और ही भ्रष्ट होते जाते हैं। *उन सबकी उतरती कला है,
तुम्हारी अब चढ़ती कला है।* तुम ब्राह्मण से देवता बनते हो फिर उतरती कला शुरू
होती है। देवता से क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनेंगे। तुम ब्रह्मा मुख वंशावली
सच्चे ब्राह्मण देवता बनने लिए पुरुषार्थ कर रहे हो। *शूद्र पुरुषार्थ नहीं करते,
ब्राह्मणों को ही ब्रह्मा द्वारा श्रीमत मिलती है, जिससे तुम श्रेष्ठ देवता बनते
हो।* बाकी थोड़ा समय है - विनाश आया कि आया। हालतें बिगड़ती रहती है। बिगड़ने
में टाइम नहीं लगता।
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ तुमको ही बंधन
और सम्बन्ध का पता है। आसुरी बंधन में रावण ने लाया। ईश्वर फिर ईश्वरीय सम्बन्ध
में ले जाते हैं। *बाप तुम्हारा बुद्धियोग अपने साथ जोड़ते हैं, जिससे तुम
स्वर्ग के मालिक बनते हो।*
➢➢ बाप कहते हैं तुमको भटकने की दरकार नहीं है। आधाकल्प तुम्हारा मन बुद्धि
भटकते-भटकते हैरान हो गया। *अब श्रीमत पर मन बुद्धि को भटकाना बन्द करो। एक तरफ
बुद्धि का योग लगाओ,* देह-अभिमान में आकर बहुत भटके हो।
➢➢ अनेक प्रकार के मित्र सम्बन्धियों आदि का बंधन रहता है। *बाप कहते हैं - उन
सबको छोड़ो, एक के साथ सम्बन्ध जोड़ो।* कहते हैं हमारा मन बहुत भटकता है। एक के
सम्बन्ध में जुट नहीं सकता। हम चाहते भी है *ऐसे मीठे-मीठे बेहद का सुख देने
वाले बाप के साथ योग पक्का रखें, कहाँ भी बुद्धि भटके नहीं।*
➢➢ तुम 5 हजार वर्ष बाद बाप से वर्सा लेने आये हो। जो आकर थोड़ा बहुत सुनते
हैं वह भी स्वर्ग में आयेंगे, परन्तु ऊंच पद नहीं पा सकेंगे। *जितना योग में
रहेंगे उतना पवित्र होते जायेंगे और ऊंच पद पायेंगे।*
➢➢ *तुम ब्राह्मणों को वर्सा दादे से मिलता है।* स्वर्ग की स्थापना करने वाला,
राजयोग सिखलाने वाला शिवबाबा है। यह ईश्वरीय वर्सा आधाकल्प चलता है, फिर मिलता
है आसुरी वर्सा।
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
अब बाप कहते हैं कि यह सब तो अब खत्म हो जाना है। यह तो कुछ नहीं है, इससे
ममत्व तोड़ दो। भगवान तुमसे लेकर क्या करेंगे? *सिर्फ तुम ममत्व निकाल दो। यह
तो बहुत थोड़ा है। हम तो रिटर्न में तुमको स्वर्ग का वर्सा देते हैं।*
➢➢ बंधन अक्षर पुरानी दुनिया से, सम्बन्ध अक्षर नई दुनिया से लगता है। *अब तुम
नई दुनिया के मालिक बनने वाले हो तो नई दुनिया के साथ सम्बन्ध जोड़ो। इस बंधन
में रहते हुए सम्बन्ध के लिए पुरुषार्थ करना है।*
➢➢ ड्रामा हमको जरूर पुरुषार्थ करायेगा, कल्प पहले मुआफ़िक। परन्तु *चलना है
श्रीमत पर। ड्रामा कहकर अपनी मत नहीं चलानी है।* जानते हैं ड्रामा अनुसार भारत
को स्वर्ग जरूर बनना है, फिर भी ऊंच मर्तबे के लिए श्रीमत पर पुरुषार्थ कराते
हैं। टाइम भी बतलाते हैं।
➢➢ *श्रीमत पर चलते चलो तो तुम्हारे सब दुःख दूर हो जायेंगे।* 21 जन्मों के
लिए तुम फिर विश्व के मालिक बन जायेंगे। एक ही पारलौकिक बाप स्वर्ग का वर्सा
देते हैं। वहाँ दु:ख की कोई बात नहीं।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *सारी दुनिया
पतित जरूर बनने की है। फिर पतित से पावन दुनिया जरूर बननी है। जो भी मनुष्य
मात्र हैं सबको हिसाब-किताब चुक्तूकर जरूर पावन बनना है। यह कयामत का समय है,
बिगर पावन बने कोई भी सज़नी परमपिता परमात्मा साज़न के पिछाड़ी जा नहीं सकती।*
➢➢ *ऐसा तो कोई है नहीं जो कहे मनमनाभव, मध्याजी भव और कहे कि बेहद के बाप से
और बेहद सुख के वर्से से सम्बन्ध रखो। बाप ही यह सम्बन्ध जुड़ाते हैं। जब तुम
बंधन में हो तो तुमको पुरुषार्थ कराने वाला कोई मनुष्य नहीं है।*
➢➢ *बाप कहते हैं आधाकल्प से आसुरी मत पर भटकते भटकते तुम हैरान हो गये हो। अब
यह भटकना छोड़ दो। मैं आत्मा हूँ - यह भूलने से समझते हैं मैं देह हूँ। तो देहों
के साथ सम्बन्ध हो जाता है।* बाबा ऐसे नहीं कहते हैं कि तोड़ दो लेकिन तुम *इस
मृत्युलोक के बंधन में रहते हुए ईश्वरीय सम्बन्ध को याद करो।*
➢➢ शिवबाबा की याद में रहना है और सृष्टि चक्र को फिराना है, दूसरों को भी
समझाना है इससे बहुत ऊंच पद मिलेगा।* बाप कहते हैं अजामिल जैसे पापियों का भी
उद्धार हो जाता है।
➢➢ *एक ही पारलौकिक बाप स्वर्ग का वर्सा देते हैं। वहाँ दु:ख की कोई बात नहीं।*
तुम 5 हजार वर्ष बाद बाप से वर्सा लेने आये हो। जो आकर थोड़ा बहुत सुनते हैं वह
भी स्वर्ग में आयेंगे, परन्तु ऊंच पद नहीं पा सकेंगे।
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