━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 10 / 08 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *बाप समझाते हैं जैसे तुम आत्मा गर्भ में आकर शरीर लेती हो ऐसे मैं नहीं लेता हूँ। मुझे तो पतितों को पावन बनाना है, इसलिए मुझे बड़ा शरीर चाहिए*। मुझे आना ही है पावन बनाने।
➢➢ *बाप बैठ समझाते हैं सतयुग में जो आते हैं उनको पुनर्जन्म लेना है। हम सूर्यवंशी फिर चन्द्रवंशी बनें, अब ब्राह्मण वंशी बनते हैं, फिर देवता वंशी बनेंगे।*
➢➢ साधू सन्त आदि सब कहते हैं हमको दु:खों से आकर छुड़ाओ। *भारी संकट आने हैं, जब विनाश शुरू हो जायेगा फिर समझेंगे जरूर कहीं भगवान गुप्त वेश में है*। कृष्ण अगर होता तो सारी दुनिया में ढिंढोरा पिट जाता। कृष्ण तो आ न सके। यह तो बाप को आना पड़ता है।
➢➢ यहाँ तुम बच्चों की बुद्धि में है कि यह बाप भी है, शिक्षक भी है और गुरू भी है। इनका कोई बाप, शिक्षक, गुरू नहीं है। *पतित-पावन है एक बाप, जिसको माँ बाप हैं वह पतित-पावन हो न सके।* उनको भगवान नहीं कह सकते। भगवान का कोई माँ बाप नहीं। *गॉड फादर का कोई फादर हो नहीं सकता। गाड फादर को ही पतित-पावन, लिबरेटर कहा जाता है। उन्हें लिबरेट करने वाला कोई नहीं है।*
➢➢ *ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को भी रचने वाला वह बाप रचयिता है।* ऊंच ते ऊंच भगवान गाया जाता है। वह हम सबका बाप है। कृष्ण को सभी का बाप थोड़ेही कहेंगे। *हम एक निराकार बाप के सब बच्चे हैं। वही नई दुनिया का रचयिता है। नई दुनिया को सुखधाम कहा जाता है।*
➢➢ *चोरी करना, ठगी करना वह तो छोटी-छोटी बातें हैं। मुख्य है विकार की बात, काम महाशत्रु है। विकार में जाने वाले को ही पतित कहा जाता है।* वह हठयोगी सन्यासी कोई इस विचार से पवित्र नहीं बनते हैं कि यह हमारा अन्तिम जन्म है। यहाँ तो मेहनत है।
➢➢ *बाप समझाते हैं तुम्हारा यह बहुत जन्मों के अन्त का अन्तिम जन्म है। रावण का भी अभी अन्त है फिर सतयुग में थोड़े ही बनायेंगे।* यह दुश्मन किस प्रकार का है जिसको जलाते ही रहते हैं। इनका जन्म कब हुआ? किसको पता नहीं। शिव जयन्ती मनाते हैं तो रावण जयन्ती भी मनावें ना! समझते कुछ भी नहीं।
────────────────────────
❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *भक्त भगवान को अर्थात् बाप को बुलाते हैं, क्यों बुलाते हैं? क्योंकि दु:खी हैं।* यह भी तुम समझते हो कि दु:ख के बाद सुख आना है जरूर। *सुख था, अभी नहीं है फिर बुलाते हैं कि आकर सहज राजयोग सिखाओ। सिखलाने वाला जरूर बाप चाहिए।*
➢➢ *तुम जानते हो इस पुरानी दुनिया में अब यह हमारा अन्तिम जन्म है।* न सिर्फ हमारा बल्कि सारी दुनिया का अन्तिम जन्म है। *तुम तो समझते हो कि अब हम पवित्र बन पवित्र दुनिया में जाते हैं। दूसरा जन्म हमारा पवित्र दुनिया में होगा।*
➢➢ *तुम्हारा दुश्मन ही रावण है जो पतित बनाते हैं। अब पावन बनने के लिए बाप को याद करो।* बाप का बनकर और फिर विकार में गिरे तो चोट बहुत लगेगी। इसलिए अब यह 5 विकार दान में दे दो तो ग्रहण छूट जाये।
➢➢ अपने को देखना है, मैं धारणा करता हूँ? क्या-क्या विघ्न आते हैं? युक्ति से उन विघ्नों को उड़ाना है। *बाप की याद से ही कर्मातीत अवस्था को पाना है।* कांटा जो आवे उनको हटाते आगे- आगे जाना है। *देह-अभिमान छोड़ देही-अभिमानी बन बाप को याद करना है। जितना याद करेंगे उतना रास्ता साफ होता जायेगा।*
➢➢ अभी हम प्रतिज्ञा करते हैं पवित्रता की। *बाप को याद करने से ही हम पावन बनते हैं।* बाप कृपा करेंगे? कृपा तो की है ना। परमधाम से पतित दुनिया में, पतित शरीर में आये हैं।
➢➢ *बाप कहते हैं अब मैं आया हूँ जो सिखलाता हूँ वह सीखो, मुझे याद करो तो तुम्हें ताकत मिलेगी।* विकर्म विनाश होंगे, इसमें आशीर्वाद की तो बात ही नहीं। *मैं इस देह में रहने वाली आत्माओंसे बात करता हूँ, उन्हों को ज्ञान देता हूँ।*
────────────────────────
❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *परमपिता परमात्मा का डायरेक्शन है कि एक तो मुझे याद करो और अच्छी रीति पढ़ो।* पढ़ेंगे अच्छी रीति तो सीखेंगे भी। पढ़ेंगे नहीं तो नापास हो जायेंगे।
➢➢ बाप के आने से ही हमारा पतितों को पावन बनाने का धन्धा ठहरा। बाप का पार्ट है, आकर बच्चों को पावन बनाना। तुम *बच्चो को भी पढ़ना और पढ़ाना है, जिससे ऊंच पद हो जाए।*
➢➢ तुम जानते हो हम सो देवता पावन थे फिर पावन बनना है। *दैवीगुण धारण करने हैं।* यह नालेज है ही भविष्य प्रिन्स प्रिन्सेज बनने की। तो जब दैवीगुण धारण करेंगे तब प्रिन्स प्रिन्सेज बनेंगे।
➢➢ *गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बनना है। विकार में कभी नहीं जाना है।* मूल बात है ही विकार की। साथ में रहते हुए भी कभी विकार में नहीं जाना है। *दोनों को व्रत लेना है।* विकार में जाना बंद करना है। भले कितने भी विघ्न आयें परन्तु पवित्र जरूर बनना है।
➢➢ इस जन्म में जो पाप कर्म किये हैं वह आत्मा जानती है। सब कुछ याद रहता है कि हमने क्या-क्या काम किये हैं। *बापदादा को बतलाओ कि हमने क्या-क्या किया।*
➢➢ माया रावण ने तुमको पतित बनाया है। पहले तो *देह-अभिमान छोड़ना है* फिर काम महाशत्रु है। पहला मुख्य है देह-अभिमान। अपने को अब देही-अभिमानी समझो।
────────────────────────
❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *पढ़ाई है बहुत सहज। समझाना है भारत जो हीरे जैसा था, लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, अभी इतना गिरा क्यों है। आओ हम आपको बेहद की हिस्ट्री-जाग्राफी बतावें।* फिर स्वर्ग कैसे होगा, मनुष्यों के तो ख्याल में भी नहीं है। यह किसको पता नहीं कि लक्ष्मी-नारायण जो पूज्य थे वही पुजारी बने हैं।
➢➢ *अन्त तक बाप को ज्ञान सुनाना है। आते ही गुप्त रूप में हैं।* कृष्ण तो हो न सके। निराकार बाप सभी का एक है। वह आये हैं पतितों को पावन बनाकर वर्सा देने। *तुम्हारा भी फर्ज है - सबको बतलाना। पूछना है परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है!* बाप को कितने ढेर बच्चे हैं।
➢➢ बेहद की हिस्ट्री-जाग्राफी तुमको समझाते रहते हैं। *चित्रों पर भी तुम समझा सकते हो। भारत सतयुग में सिरताज था। सूर्यवंशी देवी देवतायें राज्य करते थे फिर चन्द्रवंशी राज्य हुआ, कला गिरती गई।* यह भी तो देखना पड़े ना।
➢➢ *बाबा पूछेंगे तुमने कितनों को सच्ची गीता वा सत्य नारायण की कथा, अमरकथा सुनाई! पाप आत्मायें तो ढेर की ढेर हैं। तो यह भी पोतामेल बताओ तब समझें तुम ब्राह्मण बने हो। कितने को आपसमान बनाया है! यह है सहज राजयोग की बातें। बाप का परिचय देना है।*
➢➢ क्लास में ही नहीं आयेंगे तो क्या पढ़ेंगे। *पढ़ेंगे, पढ़ायेंगे नहीं तो क्या पद पायेंगे। बच्चा वही अच्छा जो पढ़कर पढ़ाये। सबूत दे।* बच्चे तो सब हैं। *समझना चाहिए हम बहुत सर्विस करेंगे, बहुतों को आप समान बनायेंगे तो बाबा का अच्छा प्यार रहेगा।*
➢➢ *अनेक पतितों को पावन बनाना है। तुम मातायें निमित्त बनी हो - पवित्र बनकर, पवित्र बनाने। तुमको तो और ही जास्ती पढ़ाई पर ध्यान देना है। अपनी हमजिन्स को उठाना है।*
➢➢ *बाप के पास बहुतों के सर्टीफिकेट भी आते हैं। लिखते हैं फलाने ने ऐसा समझाया, वही गुरू निमित्त बना स्वर्ग का मालिक बनाने। बी.के. सबूत देते हैं।* परन्तु जो बनते हैं, वह किसको समझाते हैं? किसको ले आते हैं? ले तो आना है ना! जिनको निश्चय होगा फट से कहेंगे, पहले बाप की गोद तो ले लेवें।
────────────────────────