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  24 / 09 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *समर्थ की निशानी है-- सदा बाप समान संकल्प, बोल, कर्म, स्वभाव, संस्कार हो। बाप के अलग, मेरे अलग यह हो नहीं सकता*। उनके संकल्प में , बोल में, हर बात में बाबा, बाबा शब्द नैचुरल होगा। और कर्म करते करावनहार करा रहा है-- यह अनुभव होगा। *जब सबमें बाबा आ गया तो बाप के आगे माया आ नहीं सकती, या बाप होगा या माया ?*

➢➢  *माया का मुख्य स्वरूप क्या है, उसको तो अच्छी तरह से जानते हो। लेकिन मायाजीत बनने के बाद वही माया के स्वरूप कैसे बदल जाते हैं, वह ड्रामा दिखाओ*। 

➢➢  *कुमारी लौकिक जीवन में भी ऊंची गायी जाती है और ज्ञान में तो कुमारी है ही महान। लौकिक में भी श्रेष्ठ आत्मायें और पारलौकिक में भी श्रेष्ठ आत्मायें।* ऐसे अपने को महान समझते हो? आप तो 'हाँ' ऐसे कहे जो दुनिया सुने। कुमारियों को तो बापदादा अपने दिल की तिजोरी में रखता है कि किसी की भी नज़र न लगे। ऐसे अमूल्य रत्न हो।

➢➢  स्वदर्शन चक्रधारी ही भविष्य में चक्रवर्ती राज्य भाग्य के अधिकारी बनते हैं। *स्वदर्शन चक्रधारी अर्थात सारे चक्र के अन्दर अपने सर्व भिन्न-भिन्न पार्ट को जानने वाले।* सभी ने यह विशेष बात जान ली कि हम सब इस चक्र के अन्दर हीरो पार्ट बजाने वाली विशेष आत्मायें हैं। *इस अंतिम जन्मों में हीरे-तुल्य जीवन बनाने से सारे कल्प के अंदर हीरो पार्ट बजाने वाले बन जाते हैं।* 

➢➢  सभी जहाँ से भी आए लेकिन इस समय मधुबन निवासी हैं। तो मधुबन निवासी सहज स्मृति स्वरूप बन गये हो ना। *मधुबन निवासी बनना भी भग्यवान की निशानी है क्योंकि मधुबन गेट में आना और वरदान को सदा के लिए पाना। स्थान का भी महत्व है।*

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *जब एक दिलाराम को दिल दे दी तो उसके सिबाए और कोई नहीं आ सकता। दिलाराम को दिल देना अर्थात दिल मे बसाना। इसी को सहज योग कहा जाता है।* जहाँ दिल होगी वहाँ ही दिमाग भी चलेगा। तो दिल में भी दिलाराम और दिमाग मे भी अर्थात स्मृति में भी दिलाराम। 

➢➢  कोई भी संकल्प वा किसी प्रकार की भी आकर्षण आने का कोई दरवाजा वा खिड़की रह गई है क्या? आने का रास्ता है ही मन,बुद्धि,वाणी और कर्म-- चारों तरफ चेक करो कि जरा भी किसको आने की मार्जिन तो नहीं हैं? *जब बाप को एक बार कहा कि यह सब कुछ तेरा फिर बाकी क्या रहा? इसी को ही निरन्तर याद कहा जाता है।* 

➢➢  आदि से अन्त तक क्या-क्या जन्म लिए हैं, सब स्मृति में है? यह तो नशा रहता है कि हम ही विशेष आत्मायें सृष्टि के आदि से अन्त तक का पार्ट बजाने वाली है। ब्रह्मा बाप के साथ-साथ सृष्टि के आदि पिता और आदि माता के साथ सारे कल्प से भिन्न-भीन्न पार्ट बजाते आये हो ना। *आप सबने कितनी बार सृष्टि के आदि का सुनहरी दृश्य देखा है! वह समय, वह राज्य, वह अपना स्वरूप, वह सर्व सम्पन्न जीवन,अच्छी तरह से याद रहे वा याद दिलाने की जरूरत है?*

➢➢  जैसे आदि देव ब्रह्मा और आदि आत्मा श्रीकृष्ण, दोनों का अन्तर दिखाते हो और दोनों को साथ-साथ दिखाते हो -- *ऐसे ही आप सब भी अपना ब्राह्मण स्वरूप और देवता स्वरूप दोनों को सामने रखते हुए देखो की आदि से अन्त तक हम कितनी श्रेष्ठ आत्मायें रही हैं।* तो बहुत नशा और खुशी रहेगी।

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  सभी को सदा यही स्मृति में रहे कि हम हैं ही फरिश्ते। फरिश्ते का स्वरूप क्या, बोल क्या, कर्म क्या होता, वह स्वतः ही फरिश्ते रूप से चलते चलेंगे। *"फरिश्ता हूँ, फरिश्ता हूँ " इसी स्मृति को सदा रखो।* 

➢➢  जबकि बाप के बन गये और सब कुछ मेरा सो तेरा कर दिया तो क्या बन गये। हल्के फरिश्ते हो गए ना! तो इस लक्ष्य को सदा सम्पन्न करने के लिए एक ही शब्द कि सब बाप का है, मेरा कुछ नहीं--यह स्मृति रहे। *जहाँ भी मेरा आवे तो वहाँ तेरा कर दो।* फिर कोई बोझ नहीं फील होगा। 

➢➢  *महादानी और वरदानी बनो, यही आपका स्वरूप है*। इस स्मृति से हर संकल्प, बोल और कर्म हीरो पार्ट के समान हो क्योंकि विश्व की आत्मायें देख रही हैं। *सदा स्टेज पर ही रहना, नीचे नहीं आना*।

➢➢  चाहे नम्बरवार हो, लेकिन देव आत्मा तो सभी बनेंगे ना। देवताओं को पूज्य, श्रेष्ठ महान सभी मानते हैं। चाहे लास्ट नम्बर की देव आत्मा हो फिर भी पूज्य आत्मा की लिस्ट में है। *आधाकल्प राज्य भाग्य प्राप्त किया और आधाकल्प माननीय और पूज्यनीय श्रेष्ठ आत्मा बने। तो सदा इस स्मृति स्वरूप में स्थित रहो।* 

➢➢  सभी मधुबन निवासी वरदानी स्वरूप में स्थित हो ना। सम्पन्न-पन की स्टेज अनुभव कर रहे हो ना! सम्पन्न स्वरूप तो सदा खुशी में नाचते और बाप के गुण गाते। *ऐसे खुशी में नाचते रहो जो आपको देखकर औरों का भी स्वतः खुशी में मन नाचने लगे।* जैसे स्थूल डाँस को देख दूसरे के अन्दर बभी नाचने का उमंग उत्पन्न हो जाता है ना। तो सदा ऐसे नाचो और गाते रहो।

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *जैसे शारीरक दृष्टि जिसको काम कहते, तो उसके बजाए आत्मिक स्नेह रुप में बदल जाता-- ऐसे सब विकार परिवर्तक रूप में हो जाते। तो क्या परिवर्तन हुआ, यह प्रैक्टिकल में अनुभव भी करो और दिखाओ भी।*

➢➢  *विश्व के शोकेस में विशेष शोपीस हो ना।* सबकी नजर निमित बने हुए सेवाधारी कहो, शिक्षक कहो, उन्हीं पर ही रहती है। सदा स्टेज पर हो। सभी आप निमित्त आत्माओं से प्राप्ति की भावना रखते हैं। सदा यह स्मृति में रहता है? *सदा बेहद की अनेक आत्माओं के बीच बड़े ते बड़े स्टेज पर हो इसलिए दाता के बच्चे देते रहो और सर्व की भावनायें सर्व की आशायें पूर्ण करते रहो।*

➢➢  *इस समय ही अपने सभी जन्मों को जान सकते हो, तो 5 हजार वर्ष की जन्म-पत्री को जान लिया।* कोई भी जन्मपत्री बताने वाले अगर किसको सुनाएंगे भी तो चार छ जन्म का ही बतायेंगे। लेकिन आप सबको बापदादा ने सभी जन्मों की जन्मपत्री बता देते है। *सारा हिसाब चित्रों में भी दिखा दिया है। उस चित्र को देख करके ऐसा अनुभव करते हो कि यह हमारी जन्मपत्री का चित्र है वा समझाने का चित्र है।

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