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⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *वास्तव में
महिमा सारी शिव की है। फिर शिव शक्तियों की फिर देवताओं की क्योंकि तुम इस समय
सेवा करते हो।* जो सेवा करते हैं उनको ही पद मिलता है। *इस पढ़ाई की प्रालब्ध
है भविष्य नई दुनिया के लिए। और जो भी पुरुषार्थ करते हैं वह इस दुनिया के लिए
है। सन्यासी जो पुरुषार्थ करते हैं वह भी इस दुनिया के लिए है।*
➢➢ *तुमको बाप कहते हैं स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषण। यह कोई नया सुने
तो कहे यह कैसे स्वदर्शन चक्रधारी बन सकते हैं?* स्वदर्शन चक्रधारी तो विष्णु
है तो कितना फ़र्क हो गया। *तुम्हारी बुद्धि में तो सारा चक्र है। इस समय तुम
हो ईश्वरीय सन्तान फिर बनते हो दैवी सन्तान फिर वैश्य, शूद्र सन्तान बनते हो।
इस समय सबसे ऊंचा है ईश्वरीय कुल।*
➢➢ *इस समय तुम (ब्राह्मण) साकार में बाबा के बने हो। यूं तो जब निराकारी
दुनिया में हो तो सर्वोत्तम शिव वंशी हो। परन्तु जब बाबा साकार में आते हैं तो
तुम ब्रह्मा मुख वंशावली बनते हो।* एक सेकेण्ड में बाबा क्या से क्या बनाते
हैं। बाबा कहा और बच्चे बन गये।
➢➢ जैसे आत्मा मुख से बोलती है परन्तु देखने में नहीं आती। वैसे मैं (शिवबाबा)
भी इस समय साकार में आया हूँ, बोल रहा हूँ। जैसे तुमको जब तक शरीर न मिले तब तक
पार्ट कैसे बजा सको। *तुम तो बाल, युवा और वृद्ध अवस्था में आते हो। मैं इन
अवस्थाओं में नहीं आता हूँ, तब तो कहा जाता है मेरा जन्म दिव्य और अलौकिक
है।*
➢➢ *बाप नॉलेजफुल है, बाप में जो नॉलेज है वह हमको दे रहे हैं। कौन सी नॉलेज?
परमात्मा को बीजरूप कहा जाता है, तो सारे झाड़ की नॉलेज दे देते हैं। ज्ञान
सागर है तब ही पतित-पावन है। जब लिखते हो तो समझ से लिखो।* पहले पतित-पावन कहें
या ज्ञान सागर कहें? *जरूर ज्ञान है तब तो पतितों को पावन बनायेंगे। तो पहले
ज्ञान सागर फिर पतित-पावन लिखना चाहिए।*
➢➢ *मनुष्य तो कुछ भी जानते नहीं। कह देते हैं परमात्मा तो सर्वव्यापी है।
बुद्ध को भी सर्वव्यापी कह देते हैं। इसको कहा जाता है पत्थर बुद्धि।* हम भी
पहले पत्थर बुद्धि थे। तो बाप आकर समझाते हैं कि गॉड फादर को कभी भी साकारी वा
आकारी नहीं कहेंगे, वह तो निराकार है। उन्हें सुप्रीम सोल कहा जाता है।
➢➢ *बाप तो सम्मुख आया हुआ है। बाप को अशरीरी कहा जाता है। ब्रह्मा विष्णु
शंकर सबको अपना-अपना शरीर है। मुझे तो अपना शरीर है नहीं।* तुम्हारे तो मामे,
काके सब हैं। मेरा मामा, चाचा तो कोई है नहीं। *तुम तो गर्भ में प्रवेश करते
हो। मैं खुद कहता हूँ कि मैं ब्रह्मा तन में, इनके बहुत जन्मों के अन्त के समय
वानप्रस्थ अवस्था में प्रवेश करता हूँ और तुमको बैठ पढ़ाता हूँ।* तुमको कोई
मनुष्य नहीं पढ़ाते क्योंकि किसी भी मनुष्य में ज्ञान नहीं है।
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *बच्चे जानते
हैं तो बाप भी जानते हैं कि आत्मा पतित बन गई है, अब पावन बनना है।* अब बच्चों
को निश्चय हो गया है कि हम शिव वंशी ब्रह्मा मुखवंशावली हैं। तुम्हारा नाम भी
है ब्रह्माकुमार कुमारी। सारी दुनिया शिव वंशी है। ब्राह्मण कुल भूषण भी बनें
तब जब पहले शिवबाबा को पहचानें।
➢➢ बाप ही सब राज़ आकर समझाते हैं कि अब संगमयुग है और हमारे सुख के दिन आ रहे
हैं। 84 जन्म पूरे हुए। अभी संगम का सुहावना समय है। *यही एक युग है ऊपर चढ़ने
का। जैसेकि ऊपर जाने की लिफ्ट मिलती है। परन्तु जब तक पवित्र न बनें, स्वदर्शन
चक्रधारी न बनें तब तक लिफ्ट पर बैठ न सकें। इस समय जैसे पंख मिल रहे हैं
क्योंकि माया ने पंख काट दिये हैं।*
➢➢ *तुमको अब बाप द्वारा नॉलेज मिली है। स्मृति आई है - इसको कहा जाता है
स्मृतिर्लब्धा।* अब बाप ही आकर स्मृति दिलाते हैं कि तुम ही देवता, क्षत्रिय बने
हो। अब 84 जन्मों के बाद आकर मिले हो। यह है संगमयुगी कुम्भ मेला, आत्मा और
परमात्मा का।
➢➢ बाप कितनी अच्छी-अच्छी बातें समझाते हैं। *जो इतनी सहज बातें नहीं समझ सकते
तो बाबा उनको कहते अच्छा बाप को याद करो। चक्र को भी याद करना पड़े। बाप के साथ
वर्से को भी याद करना पड़े। बाप को याद करो तो विकर्म भस्म हो।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
*तुम हो रूहानी सोशल वर्कर,* जिस्मानी सोशल वर्कर बहुत हैं। तुमको अब रूहानी नशा
है कि हम अशरीरी आये थे, आकर अपना स्वराज्य लिया था।
➢➢ *इस समय तुम ब्रह्मा मुख वंशावली रूद्र यज्ञ के रक्षक हो।* राजयोग की शिक्षा
देने वाले, राजयोग सिखलाने वाले तुम टीचर हो गये ना।
➢➢ मीठे-मीठे संगमयुगी ब्राह्मण जिनको स्वदर्शन चक्रधारी कहा जाता है वह अभी
गुप्त वेष में पढ़ रहे हैं। तुमको कोई समझ न सके कि यह संगमयुगी ब्रह्मा मुख
वंशावली हैं। *तुम बच्चे जानते हो हम शिव वंशी ब्रह्मा मुख वंशावली हैं। तो कुल
का भी नशा चढ़ता है क्योंकि तुम ही ईश्वरीय कुल के हो।* ईश्वर ने ही बैठ तुमको
अपना बनाया है, अपने साथ ले जाने के लिए l
➢➢ *दे दान तो छूटे ग्रहण।* अभी सबको 5 विकारों का ग्रहण लगा हुआ है इसलिए
पतित बन गये हैं। रावणराज्य है ना। अब *बाप कहते हैं बच्चे तुम मेरा बनो, दूसरा
न कोई।*
➢➢ *श्री-श्री 108 की श्रीमत पर चलने से तुम 108 विजयी माला का दाना बन जायेंगे।*
मैं माला का दाना नहीं बनता हूँ। मैं तो न्यारा हूँ जिसकी निशानी फूल है। युगल
दाना ब्रह्मा-सरस्वती बनते हैं। प्रवृत्ति मार्ग है ना। निवृत्ति मार्ग वाले
माला के दाने में आ नहीं सकते। हाँ, पवित्रता को धारण करते हैं तो फिर भी अच्छे
हैं।
➢➢ कहते हैं ना - कुम्भकरण को नींद से जगाया तो जागे नहीं। *तो बाप ने अब
डायरेक्शन निकाला है कि पवित्र बनो और भगवान से डायरेक्ट गीता सुनो। 7 रोज़
क्वारनटाइन (योगभट्टी) में बिठाओ।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *बाप ( भगवान )कहते
हैं यह विनाश की निशानी है - बाम्ब्स। शास्त्रों में लिखा हुआ है कि पेट से
मूसल निकाल अपने कुल का विनाश किया। बाबा आया है पावन दुनिया बनाने। तो पुरानी
दुनिया का विनाश जरूर चाहिए।* नहीं तो हम राजाई कहाँ करेंगे।
➢➢ *यह (साकारी) गुरू सद्गति दे न सकें। सद्गति दाता एक ही सतगुरू है। सतगुरू
अकाल कहते हैं, सद्गुरू तो एक परमात्मा को कहा जाता है। साकार गुरू लोग
अकालमूर्त थोड़ेही बन सकते हैं। लौकिक बाप, टीचर, गुरू को तो काल खा जाता है।
बाप को तो काल खा न सके।*
➢➢ *परमात्मा आकर पढ़ा रहे हैं अर्थात् सर्व शास्त्र मई शिरोमणी गीता ज्ञान दे
रहे हैं।* उन्होंने गीता में कृष्ण का नाम डाल दिया है। *कृष्ण सतयुग का फर्स्ट
प्रिन्स है। कृष्ण की आत्मा अब सुन रही है और जो भी कृष्णपुरी की आत्मायें हैं
वह भी सुन रही हैं।* अब तुमको स्मृति आई है कि हम ही कृष्णपुरी अथवा
लक्ष्मी-नारायणपुरी के हैं।
➢➢ *कहते हैं ना कन्याओं ने भीष्मपितामह (साधु - महात्मा) को बाण मारे। यह भी
दिखाते हैं - बाण मारने से गंगा निकल आई। तो सिद्ध है पिछाड़ी में ज्ञान अमृत
सबको पिलाया है।*
➢➢ *आधाकल्प तुमने भक्ति की। कहते हैं ना - भक्ति करते-करते भगवान मिलेगा तो
जरूर है कि भक्ति करते-करते दुर्गति को पाया है फिर बाप आता है सद्गति करने।
कहते भी हैं ना - सर्व का सद्गति दाता।* तो मनुष्य थोड़ेही समझते हैं कि
परमात्मा कब और किस रूप में आया, कह देते हैं द्वापर युग में कृष्ण रूप में
आयेगा, इसको कहा जाता है घोर अन्धियारा।
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