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  26 / 11 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *अनुभव की अथॉरिटी वाला कभी भी किसी प्रकार की माया के भिन्न-भिन्न रॉयल रूपों में धोखा नहीं खायेंगे। अनुभवी अथॉरिटी वाली आत्मा सदा अपने को भरपूर आत्मा अनुभव करेगी।* निर्णय शक्ति, सहन शक्ति वा किसी भी शक्ति से खाली नहीं होंगे। जैसे बीज भरपूर होता है वैसे ज्ञान, गुण, शक्तियाँ सबसे भरपूर। इसको कहा जाता है मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी।

➢➢  बेहद ड्रामा के रचयिता परमपिता परमात्मा शिव बेहद ड्रामा के वन्डरफुल संगमयुग के दिव्य दृश्य के अंदर मधुबन में कुमारियों के विशेष दृश्य को देख रहे है। *कुमारी अर्थात डबल पावन आत्मायें, श्रेष्ठ आत्मायें। लौकिक जीवन से भी पवित्र और आत्मा भी पवित्र। तो डबल पावन विशेष आत्माओं का हीरो पार्ट मधुबन स्टेज पर चलता हुआ देख बापदादा भी अति हर्षित होते हैं।*

➢➢  *परमात्मा शिव ने ज्ञान का कलष कुमारियों और माताओ के सिर पर रखा है।*
कुमारियों को देखकर पता चलता है इतने हैन्डस निकले है। *ऐसे नहीं सेवा भी करो और सेवा के साथ-साथ मेहनत भी लेते रहो, यह नहीं करना। निर्विध्न हैन्ड बन सेवा करनी है।*

➢➢  *परमपिता ने सृष्टि परिवतर्न के कार्य में कुमारियों को सदैव आगे रखा है क्योंकि  कुमारियाँ विशेष आत्मायें है।* विशेष आत्मायें अर्थात् विशेष कार्य के निमित्त। एक-एक विशेष कार्य के निमित्त बनी हुई हो। *एक-एक कुमारी 21 कुल तारने वाली हैं।*

➢➢  *स्वपरिवर्तन से विश्व परिवर्तन होगा।* अपने को मिलाकर चलने का लक्ष्य हो। मुझे बदलना है। *स्वयं को बदलने की भावना वाला सभी बातों में विजयी हो जाता है। दूसरा बदले यह देखने वाला धोखा खा लेते हैं* इसलिए *सदैव मुझे बदलना है, मुझे करना है, पहले हर बात में स्वयं को आगे करना है, अभिमान में नहीं - करने में आगे करो तो सफलता ही सफलता है।*

➢➢  *संगमयुग श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ युग है। जो बच्चे एक-एक सेकेण्ड में पद्यों से भी ज्यादा कमाई(अविनाशी कमाई) जमा करते है बाप को उन पर बहुत नाज रहता है।* जैसे एक के आगे एक बिन्दी लगाओ तो 10 हो जाता, फिर एक बिन्दी लगाओ तो 100 हो जाता, ऐसे एक सेकण्ड बाप को याद किया, सेकण्ड बीता और बिन्दी लग गई, इतनी बड़ी कमाई अभी ही जमा करते हो फिर अनेक जन्म तक खाते रहेंगे।

➢➢  *एकाग्रता की शक्ति सहज ही निर्विघ्न बना देती है। एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाने के लिए मन और बुद्धि को किसी भी अनुभव की सीट पर सेट करना है।* एकाग्रता की शक्ति स्वत: ही एक बाप दूसरा न कोई-यह अनुभूति कराती है। इससे सहज ही एकरस स्थिति बन जाती है।उसे कभी भी कोई कमजोर संस्कार, कोई आत्मा वा प्रकृति, किसी भी प्रकार की रॉयल माया अपसेट नहीं कर सकती।

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *आत्मिक स्थिति में स्थित हो सेकण्ड में विस्तार को सार में समाने की शक्ति का अभ्यास करना है।* यह अभ्यास ही अन्तिम सटीफिकेट दिलायेगा।

➢➢  *पुरानी दुनिया को भूल,अमृतवेले बाप(परमात्मा) को और वर्से को याद करना है।* कोई(बच्चे) निशाना लगाते-लगाते थक जाते हैं। कोई डबल झूलों में झूलते हैं। कोई हठयोगी बन करके बैठते हैं। कोई तो सिर्फ नेमीनाथ हो बैठते हैं। कोई-कोई लगन में मगन भी होते हैं।

➢➢  आत्मिक स्थिति में स्थित हो परमात्मा शिव की याद में रहने का अभ्यास करना है। *याद से ही विकर्म विनाश होंगे। याद शब्द के अर्थ स्वरूप बनने में अभी विशेष अटेन्शन देना है।*

➢➢  *योगी आत्मा की झलक चेहरे से अनुभव हो। मन की शक्ति का दर्पण चेहरा अर्थात् मुखड़ा है। पा लिया' इसी खुशी की चमक चेहरे से दिखाई दे। खुश्क चेहरा नहीं दिखाई दे, खुशी का चेहरा दिखाई दे।*

➢➢  *न्यारे और प्यारे बन, बालक सो मालिक की स्थिति में स्थित हो परमात्मा की याद में रह संस्कार परिवर्तन कर मनुष्य से देवता बनना है।* मालिकपन का नशा बेहद का है। बेहद का नशा बेहद चलेगा और हद का नशा हद तक चलेगा।

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *सर्वशक्तिमान बाप से योग लगा दृढ़ संकल्प की शक्ति को बढ़ा, भिन्न-भिन्न युक्तियों द्वारा  जन जन तक परमात्म सन्देश पहुचाना है।* संकल्प से सब सहज हो जाता है। जो संकल्प किया है उसे पानी देते रहना। *हर मास अपनी रिज़ल्ट लिखना। कभी भी कमज़ोर संकल्प नहीं करना।*
 
➢➢  *ज्ञान को अच्छी रीति धारण कर अनुभवी मूर्त बनना है।* सबसे ज्यादा चेहरे पर उमंग-उल्लास की रौनक वा चमक आने का साधन है - हर गुण, हर शक्ति, हर ज्ञान की प्वाइंट के अनुभवों से सम्पन्नता। अनुभव बड़े ते बड़ी अथॉरिटी है। अथॉरिटी की झलक चेहरे पर और चलन पर स्वत: ही आती है।

➢➢  *शुद्ध संकल्प की शक्ति को बढ़ाना है।* शुद्ध संकल्प की चमक चेहरों पर चमकती हुई दिखाई दे, शुभ संकल्प है लेकिन संकल्प में शक्ति कुछ मात्रा में है। संकल्प रूपी बीज तो है लेकिन शक्तिशाली बीज जो प्रत्यक्ष फल अर्थात् प्रत्यक्ष रूप में रौनक दिखाई दे, वह अभी और चाहिए।

➢➢  *सदा उमंग-उत्साह में रह हीरो पार्टधारी का पार्ट बजाना है। स्वयं भी खुशी में नाचना हैं और सारे वायुमण्डल को भी नचा देना हैं।* हर एक्ट में रौनक दिखाई दे। इसलिए कहते हैं कि रास करते-करते मचा लिया अर्थात् सभी को नचा लिया।

➢➢  *इस संगमयुग में सयाना अर्थात बाप समान संपन्न बन,विशेष पार्टधारी बन विशेष पार्ट बजाना है।* जो सभी कहें कि यह आत्मा बाप समान सम्पन्न स्वरूप है ।

➢➢  *श्रीमत पर चल बाबा से डायरेक्शन ले सेवा करनी है। श्रीमत पर चल सेवा करने से जिम्मेवार खुद नहीं रहते। अपने मन के लगाव से, कमजोरी से करते तो श्रेष्ठ नहीं बन सकते।* ट्रायल में स्वयं भी सन्तुष्ट रहें और दूसरों को भी करें तो सर्टिफिकेट मिल जाता है।

➢➢  प्रवृत्ति सम्भालते सेवा की जिम्मेवारी सम्भालना , यह भी डबल लाभ हो गया। यह तो रास्ते चलते खुदा दोस्त द्वारा बादशाही मिल गई। डबल प्राप्ति, डबल जिम्मेवारी, लेकिन डबल जिम्मेवारी होते भी डबल लाइट समझने से कभी लौकिक जिम्मेवारी थकायेगी नहीं क्योंकि ट्रस्टी हो ना। *ट्रस्टी बनकर जिम्मेवारी संभालनी है।*

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *महावीरनी बन सर्व आत्माओ तक परमात्म सन्देश पहुचाना है। महावीरनी अर्थात् संकल्प किया और स्वरूप बन गये।*ऐसे नहीं वहाँ जाकर देखेंगे, करेंगे.यह गेंगें वाली नहीं। जो संकल्प लिया है उसमें दृढ़ रहना तो विजय का झण्डा लहरा जायेगा। इतने दृढ़ संकल्प वाली अपने अपने स्थान पर जायेंगी तो जय-जयकार हो जायेगी।

➢➢  *मधुबन सर्व आत्माओ के पिता परमपिता परमात्मा का घर है, वहाँ से रिफ्रेश हो पुराने संस्कारो का त्यागकर ज्ञान गंगा बन सर्व आत्माओ को ज्ञान स्नान करवाने की सेवा करनी है।*

➢➢  *निर्विघ्न सेवाधारी बन जिस समय जो भी सेवा मिले,जी हाजिर बन सेवा करना अर्थात् प्रत्यक्ष फल खाना।* जब प्रत्यक्षफल मिल जाता है, तो फल खाने से शक्ति आती है। प्रत्यक्षफल खाने से आत्मा शक्तिशाली बन जाती है। *लौकिक में तो एक मास नौकरी करेंगे फिर पीछे तनख्वाह मिलेगी। यहाँ तो प्रत्यक्षफल मिलता है। भविष्य तो जमा  होता ही है लेकिन वर्तमान में भी मिलता है।*

➢➢  *सेवा में स्वयं को बिजी रखना है क्योंकि जितना बिजी रहेंगे उतना ही बाप की याद में रह मायाजीत हो जायेंगे।* सेवा बिजी रहने का साधन है। दूसरों की सेवा करने से स्वयं को भी मदद मिल जाती है।

➢➢  *जो बापदादा के समान सेवाधारी हैं वह बच्चे बापदादा के नयनो के नूर है।* नयन सारे शरीर में सूक्ष्म है और नयनों में भी जो नूर है वह कितना सूक्ष्म है, बिन्दी है ना। तो बाप के नयनों में समाने वाले अर्थात् अति सूक्ष्म। *सच्चे सेवाधारी बन अति न्यारे और बाप के प्यारे बन 21 जन्मो की बादशाही का वर्सा प्राप्त करने के लिए ईश्वरीय कार्य में सहयोगी बनना है।*

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