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  21 / 11 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *पाप आत्मा पर लगे हुए हैं। पापात्मा, पुण्यात्मा कहते हैं ना। तो तुम आत्माओं को पावन बनने का इन्जेक्शन चाहिए। वह इन्जेक्शन पतित-पावन बाप के ही पास है और कोई के पास यह इन्जेक्शन है नहीं* इसलिए सब पुकारते हैं। हे पतित-पावन आओ - आकर के हम पतितों को ज्ञान इन्जेक्शन दो तो हम पावन बनें।

➢➢  *सिर्फ निराकार को ही परमपिता परम आत्मा कहा जाता है, उनको इन आंखों से देख नहीं सकते। भक्ति मार्ग में दिव्य दृष्टि से देखा जाता है।* यहाँ भी तुमने आत्मा का साक्षात्कार नहीं किया है, फिर भी अपने को आत्मा निश्चय करते हो। जानते हो आत्मा अविनाशी है।

➢➢  आत्मा निकलने से शरीर कोई काम का नहीं रहता। यह तो सब जानते हैं आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। परन्तु आत्मा क्या चीज़ है, यह कोई को पता नहीं। *आत्मा बिन्दी मिसल अति सूक्ष्म ते सूक्ष्म है, जो भ्रकुटी के बीच निवास करती है। बिल्कुल छोटी सी आत्मा है, वही सब कुछ करती है।*

➢➢  *तुम बच्चे जानते हो हम 84 जन्म लेते हैं। सतयुग में हम देवी देवता थे।* पहले तुम कुछ नहीं जानते थे। ब्रह्मा ने भी बहुत गुरू किये थे परन्तु इनको भी कुछ पता नहीं था। समझते थे 84 लाख जन्म होते हैं। अभी तुम ऐसे नहीं कहेंगे।

➢➢  तुम बच्चों को निश्चय है कि यह हमारा बापदादा है। हम ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हैं। ब्रह्मा भी शिव का बच्चा है। हम धर्म के बच्चे हैं। बाप के बच्चे तो सब कहलाते हैं। *परन्तु जो हम बी.के. कहलाते है तो गोया हम शिववंशी ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हो गये।*

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  तुम आत्मायें निराकार हो - मैं भी निराकार हूँ। तुम पुनर्जन्म लेते हो, मैं पुनर्जन्म नहीं लेता हूँ। मैं आकर तुमको स्वर्ग का, 21 जन्मों का वर्सा देता हूँ। सन्यासी आदि तो घरबार छोड़कर जाते हैं। तुमको तो कुछ छोड़ना नहीं है। *सिर्फ यह अन्तिम जन्म पवित्र बन बाप को याद करो बस, याद से ही तुम्हारी आत्मा कंचन हो जायेगी। आत्मा को लोहे से सोना पारसनाथ बना देते हैं।*

➢➢  *तुम बच्चे जानते हो हमारी यह गुप्त पढ़ाई है। बेहद का बाप आकर आत्माओं को पढ़ाते हैं। आत्मायें ही पढ़ती हैं।* अगर कृष्ण भगवान होता तो तुम्हारा बुद्धियोग उनके चित्र की तरफ जाता, उनकी तरफ कशिश होती। उनके चित्र बिगर तुम रह नहीं सकते। परन्तु कृष्ण तो भगवान है नहीं। तो उल्टा समझने के कारण मनुष्यों को कृष्ण की ही याद रहती है।

➢➢  *जिस्मानी याद तो बड़ी सहज है। रूहानी याद में मेहनत है। पूछते हैं बाबा कैसे याद करें? किसको याद करें?* कृष्ण का चित्र तो स्वीट है, परमपिता परमात्मा तो निराकार है। वह खुद कहते हैं, मैं इस बुजुर्ग शरीर में बैठ तुम बच्चों को फिर से सहज राजयोग और ज्ञान सिखलाता हूँ। *है बहुत सहज सिर्फ बाबा को याद करना है। शिवबाबा को याद तो करते हैं ना।*

➢➢  तुम जानते हो हम ब्रह्मा मुख वंशावली ढेर हैं। ढेर होते जायेंगे, पढ़ाने वाला शिवबाबा है। *ब्रह्मा की आत्मा भी मुझको याद करती है, तुम्हें भी याद करना है। सृष्टि चक्र को याद करेंगे तो चक्रवर्ती राजा बनेंगे।*

➢➢  यह है संगम। अमरलोक की स्थापना हो रही है। अभी हम बाप का बनकर अर्थात् ब्राह्मण बनकर फिर देवता बनेंगे। फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनेंगे। यह मन्त्र कितना अच्छा है फिर भी तुम भूल जायेंगे। *योग में नहीं रहेंगे तो जो 63 जन्मों के पापों का बोझा सिर पर है वह कैसे भस्म होगा। गंगा के पानी से थोड़ेही पाप धुलेंगे।*

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢. *हमेशा देही-अभिमानी रहना है।* समझो किसको बच्चा है, तो समझना चाहिए यह कर्मों के हिसाब-किताब से बच्चा बना, मर गया तो बस एक शरीर छोड़ जाकर दूसरा लिया, हिसाब-किताब इतना ही था, पूरा किया, इसमें अफ़सोस करने वा रोने की बात ही नहीं। *साक्षी हो खेल देखना है।*

➢➢  *तुम स्वर्ग की स्थापना कर रहे हो श्रीमत पर। जो अच्छी तरह पढ़ते पढ़ाते हैं वह ऊंच पद पाते हैं।* लक्ष्मी-नारायण ने क्या पुरुषार्थ किया होगा। तुम भी पुरुषार्थ कर रहे हो फिर से देवता बनें तो जरूर देवताओं ने पिछले जन्म में पुरुषार्थ किया होगा?

➢➢  तुम ही सच्ची-सच्ची कमाई करते हो। वह झूठी कमाई भी भल करते रहो, साथ-साथ यह भी करो। *कोई भी पाप नहीं करना है। सर्जन तो एक है।* हर एक के कर्मों के हिसाब की बीमारी अपनी है। बाप से कोई पूछे तो झट बतायेंगे कि ऐसे-ऐसे करो। *एक बाप ही कर्मातीत अवस्था में ले जाने वाला है। यह है अविनाशी सर्जन की मत।*

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *तुम बच्चे जानते हो हमको ज्ञान सागर ने सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान दिया है। अब हमको फिर सबको जाकर ज्ञान अमृत देना है।* फिर कोई अंचली लेते, कोई लोटा भरते। वैष्णव जो होते हैं उनकी गंगाजल से प्रीत रहती है। वह हमेशा गंगाजल काम में लाते हैं। तुम्हारी फिर इस ज्ञान से प्रीत है क्योंकि इस ज्ञान से तुम सद्गति को पाते हो।

➢➢  *पहले पहले इनका ही जन्म लक्ष्मी-नारायण था ना फिर इनको ही आदि देव, आदि देवी बनायेंगे। इस देलवाड़ा मन्दिर में शिव का भी चित्र है। आदि देव, आदि देवी भी हैं, बच्चे भी हैं। सब तपस्या में बैठे हैं। ऊपर में स्वर्ग भी है, पूरा यादगार खड़ा है।* तुम यहाँ बैठे-बैठे दैवी झाड की स्थापना कर रहे हो। वह है जड़ चित्र। यहाँ तुम चैतन्य में बैठे हो।

➢➢  *भारत अमरलोक था, फिर मृत्युलोक हुआ है। अभी है संगम, इनको कुम्भ का मेला कहा जाता है। कुम्भ का सच्चा-सच्चा मेला यह है। आत्मा परमात्मा मिलते हैं। अनेक बार मिले होंगे, अनेक बार मिलने वाले है।*

➢➢  बच्चियाँ तो पति को भू-भू कर साथ में ले आती हैं। *उनको समझाती हैं - पवित्र बनने बिगर तो स्वर्ग में जा नहीं सकेंगे।* मरना तो सभी को है ही। यह भी समझ की बात है।

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