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  23 / 11 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *भगवान ऊंचे ते ऊंचे को ही कहा जाता है। श्रीकृष्ण भगवान हो न सके। बेहद का बाप है ही निराकार। बेहद की बादशाही वही दे सकते हैं।*

➢➢  बच्चे नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार जानते हैं कि अब पुराना नाटक पूरा होता है। दु:ख के दिन बाकी कुछ घड़िया हैं और फिर सदा सुख ही सुख होगा। *जब सुख का पता पड़ता है तब समझा जाता है यह दु:खधाम है, दोनों में बहुत अन्तर है।*

➢➢  अभी बाबा के पास जाना है। बाबा लेने आया है। *गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र रहना है। तोड़ जरूर निभाना है। अगर तोड़ न निभाया तो जैसे सन्यासियों मिसल हो गये।* जो तोड़ नहीं निभाते हैं उनको निवृत्ति मार्ग अथवा हठयोग कहा जाता है।

➢➢  उन्हों (सन्यासियों) का है हठयोग, घरबार छोड़ जंगल में चले जाना। उन्हों को जन्म बाई जन्म सन्यास करना पड़ता है। *तुम गृहस्थ व्यवहार में रहते एक बार सन्यास करते हो फिर 21 जन्म उनकी प्राप्लब्ध पाते हो। उन्हों का है हद का सन्यास, तुम्हारा है बेहद का सन्यास।*

➢➢  यहाँ गृहस्थ व्यवहार से नफ़रत नहीं की जाती है। बाप कहते है यह अन्तिम जन्म गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनो। *पतित-पावन कोई सन्यासी को कह नहीं सकते। वह भी पावन दुनिया चाहते हैं। वह दुनिया है एक, जिसके लिए पतित-पावन बाप को बुलाते हैं।*

➢➢  जबकि वह गृहस्थ व्यवहार में ही नहीं हैं तो देवताओं को भी नहीं मानेंगे। वह कभी राजयोग सिखला न सके। न बाप कभी हठयोग सिखला सके। यह समझने की बातें है। *यह भी तुम जानते हो, भारतवासियों को ड्रामा-अनुसार अपना धर्म भूलना ही है, तब तो बाप आकर फिर स्थापन करे। नहीं तो बाप आये कैसे?* कहते हैं जब-जब देवी-देवता धर्मप्राय: लोप हो जाता है, तब मैं आता हूँ। प्राय: लोप भी जरूर होना है।

➢➢  कहते हैं बैल की एक टांग टूट गई है, बाकी 3 टांगों पर दुनिया खड़ी है। *मुख्य हैं ही 4 धर्म। अभी देवता धर्म की टांग टूटी हुई है अर्थात् वह धर्म गुम हो गया है इसलिए बड़ के झाड़ का मिसाल देते हैं कि फाउन्डेशन सड़ गया बाकी टाल टालियाँ खड़ी हैं।* तो इनमें भी फाउन्डेशन देवता धर्म का है नहीं। बाकी मठ पंथ आदि बहुत खड़े हैं। तुम्हारी बुद्धि में अब सारी रोशनी है।

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *बुद्धि में रखना है कि अब नाटक पूरा हुआ है, हम जा रहे हैं। चलते-फिरते यह याद रहे कि अब हमको वापिस जाना है। मनमनाभव, मध्याजी भव का भी यही अर्थ है।*

➢➢  जो तोड़ नहीं निभाते हैं उनको निवृत्ति मार्ग अथवा हठयोग कहा जाता है। *अभी भगवान राजयोग सिखलाते हैं जो हम सीखते हैं।* तुम्हारे राजयोग का तो बहुत गायन है। भगवान ने राजयोग सिखाया था।

➢➢  वह कभी राजयोग सिखला न सके। न बाप कभी हठयोग सिखला सके। यह समझने की बातें है। अब हम है ऊंचे ते ऊंच ब्राह्मण कुल के। वह हैं शूद्र कुल के। *हम है आस्तिक। वह है नास्तिक। वह है ईश्वर को न जानने वाले। हम हैं ईश्वर से योग रखने वाले। तो मतभेद है ना।*

➢➢  *परमपिता परमात्मा फिर से कहते हैं हे बच्चे, देह सहित देह के सब धर्म त्याग अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो पाप दग्ध होंगे।* मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ। गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बन मुझे याद करो। पवित्र रहो, नॉलेज को भी धारण करो।

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  अभी बाबा के पास जाना है। बाबा लेने आया है। *गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र रहना है। तोड़ जरूर निभाना है।* अगर तोड़ न निभाया तो जैसे सन्यासियों मिसल हो गये। जो तोड़ नहीं निभाते हैं उनको निवृत्ति मार्ग अथवा हठयोग कहा जाता है।

➢➢  यहाँ गृहस्थ व्यवहार से नफ़रत नहीं की जाती है। *बाप कहते है यह अन्तिम जन्म गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनो।* पतित-पावन कोई सन्यासी को कह नहीं सकते। वह भी पावन दुनिया चाहते हैं। वह दुनिया है एक, जिसके लिए पतित-पावन बाप को बुलाते हैं।

➢➢  अब देखो, आते तो कितने ढेर हैं। परन्तु निकलते कोटों में कोई हैं क्योंकि मंजिल ऊंची है। *प्रजा तो ढेर बनती रहेगी। परन्तु कोटों में कोई माला का दाना बनते हैं। नारद का मिसाल. तुम अपनी शक्ल देखो लक्ष्मी को वरने लायक बने हो? राजा तो थोड़े बनेंगे।* एक राजा की ढेर प्रजा बनती है। पुरुषार्थ करना चाहिए - ऊंच बनने का।

➢➢  *बाप समझाते हैं चलते फिरते अपने को एक्टर समझो।* अब हमको वापिस जाना है, यह सदैव याद रहे - इसको ही मनमनाभव, मध्याजी भव कहा जाता है। बाप घड़ी-घड़ी याद दिलाते हैं, बच्चे तुमको वापिस ले जाने आया हूँ। यह है रूहानी यात्रा। यह बाप के सिवाए और कोई करा नहीं सकता। *ड्रामा के पट्टे पर खड़ा रहना है। हिलना नहीं चाहिए। अब नाटक पूरा होता है। चलते हैं सुखधाम में। पढ़ाई ऐसी पढ़ें जो ऊच पद पा लेवें।*

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  अब देहली में वल्र्ड कानफ्रेन्स होनी है। वहाँ यह समझाना है, लिखत में देना है। लिखत में होगा तो सब समझ जायेंगे। *पहले-पहले तो बुद्धि में बिठाना है कि गीता का भगवान परमपिता परमात्मा है। उसने ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन किया था। भारत का देवी-देवता धर्म ही मुख्य है।*

➢➢  *कोई भी बड़ी सभा में भाषण आदि करना है, तो यही समझाना है कि परमपिता परमात्मा फिर से कहते हैं हे बच्चे, देह सहित देह के सब धर्म त्याग अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो पाप दग्ध होंगे।* मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ। गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बन मुझे याद करो। पवित्र रहो, नॉलेज को भी धारण करो।

➢➢  *भारत की महिमा भी करनी है। यह भारत होलीएस्ट लैण्ड है। सर्व के दुःख हर्ता सुख कर्ता, सबके सद्गति दाता बाप का बर्थ प्लेस है।* वही बाप सबका लिबरेटर भी है। यह बड़े ते बड़ा तीर्थ स्थान है।

➢➢  *बड़ी-बड़ी सभाओं में तुमको समझाना है। विवेक कहता है कि धीरे-धीरे वाह-वाह निकलेगी। लास्ट मूवमेन्ट में डंका बजना है। अभी तो बच्चों पर गृहचारी बैठती रहती है। लाइन क्लीयर नहीं है।* विध्न पड़ते रहते हैं। जितना पुरुषार्थ करेंगे उतनी ऊंच प्राप्लब्ध मिलेगी।

➢➢  *पाण्डवों को 3 पैर पृथ्वी के नहीं मिलते थे - अभी का यह गायन है। परन्तु यह किसको पता नहीं है कि वही फिर विश्व के मालिक बनेंगे।*

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