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  13 / 12 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *अब बाप समझाते हैं ज्ञान से ही सद्गति होती है।* मनुष्य कुम्भ के मेले पर धक्के खाने जाते हैं। *कुम्भ अर्थात् संगम। असुल है आत्मा और परमात्मा का मेला। परन्तु भक्ति में फिर वह सागर और पानी का मेला बना दिया है।* देश-देशान्तर मेला लगता है। वह है पानी में स्नान करने का मेला। कई इन बातों को मानते हैं। कई नहीं भी मानते हैं। *कई तो न भक्ति को, न ज्ञान को मानते हैं। बस मनुष्य पैदा होता है फिर मरता है। नेचर ही है। अनेक मतें हैं।*

➢➢  *बाप कहते हैं - मुझ आत्मा का नाम सदैव एक ही शिव है। नाम तो जरूर चाहिए ना। न जानने के कारण कह देते हैं नाम-रूप से न्यारा है। परन्तु नाम-रूप से न्यारी कोई चीज़ हो न सके। जैसे आकाश है, कोई चीज़ तो नहीं है ना। पोलार ही पोलार है। उनका भी नाम तो हैं ना आकाश।* बहुत सूक्ष्म तत्व है। अच्छा *उनसे भी ऊपर देवता रहते हैं। वह भी पोलार है।* आकाश में बैठे हैं। *फिर उनसे भी ऊपर और आकाश, उसमें भी आत्माओं के बैठने की जगह है। वह भी आकाश है, जिसको ब्रह्म तत्व कहते हैं। यह तीन तत्व हैं - स्थूल, सूक्ष्म, मूल। आत्मायें तो जरूर पोलार में रहेंगी ना। तो तीन आकाश हो गये।*

➢➢  *बाप कहते हैं मैं भी आत्मा हूँ, तुम भी आत्मा हो। मैं परमधाम में रहने वाला परम आत्मा हूँ, इसलिए सुप्रीम आत्मा कहते हैं। सुप्रीम ऊंचे ते ऊंच को कहा जाता है। ऊंच आत्मायें भी हैं तो नीच आत्मायें भी हैं। कोई पुण्य आत्मा, कोई पाप आत्मा।*

➢➢  *मनुष्य खुद कह देते हैं परमात्मा नाम-रूप से न्यारा है। फिर कहते हैं पत्थर भित्तर सबमें हैं। 24 अवतार हैं। कच्छ मच्छ अवतार है। वास्तव में है सब झूठ ही झूठ।* ईश्वर को सर्वव्यापी कह कितना रोला कर दिया है। *भक्ति मार्ग है ही धक्का खाने का मार्ग। अमरनाथ पर तीर्थ यात्रा करने जाते हैं, वहाँ भी शिवलिंग की मूर्ति है। वह घर में भी रख सकते हैं। फिर वहाँ जाने की दरकार नहीं, यह भी धक्का खाना ड्रामा में नूँध है।*

➢➢  तुम जानते हो अभी हम पढ़ रहे हैं। फिर हम सो देवी-देवता बनेंगे। सूर्यवंशी में 8 जन्म लेंगे। एक शरीर छोड़ दूसरा लेंगे। वहाँ (सतयुग) गर्भ जेल नहीं, गर्भ महल होगा। यहाँ (कलयुग) गर्भ जेल में बहुत सज़ा भोगते हैं। *दु:ख होता है तब कहते बस अभी बाहर निकालो। हम फिर पाप नहीं करेंगे। परन्तु बाहर माया का राज्य होने कारण फिर से पाप करने लग पड़ते हैं। वहाँ गर्भ महल (सतयुग) में आराम से रहते हैं।*

➢➢  *आदि सनातन देवी-देवता धर्म जो पहले था, वह अब नहीं है। जरूर जब ना हो तब तो मैं आऊं। मैं आकर फिर से देवी-देवता धर्म की स्थापना करता हूँ।* तो चक्र फिरता है। *हिस्ट्री-जॉग्राफी फिर रिपीट होती है। सतयुग में सूर्यवंशी राज्य था। त्रेता में चन्द्रवंशी*। अब फिर तुमको 84 जन्मों का पता पड़ा है ना। कैसे हम चढ़ती कला में आते हैं।

➢➢  *अभी तुम बच्चे समझते हो कि जब से रावण राज्य (द्वापर युग) शुरू होता है तो पतित बन पड़ते हैं। आधाकल्प के बाद पुरानी दुनिया हो जाती है।* फिर तुमको सुख तो नई दुनिया में मिलना चाहिए। वह मैं ही आकर देता हूँ। हम तुमको पावन बनाते हैं, वह तुमको पतित बनाते हैं। *मैं वर्सा देता हूँ, रावण श्राप देते हैं। यह है खेल।*

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *बाप परमधाम से आये हैं, इस पतित पुरानी दुनिया को नई दुनिया बनाने। यह बुद्धि में है, आंखे तो खुली हुई हैं। बाबा बात करते हैं, तुम सुनते भी हो और याद में भी हो।*

➢➢  *आत्मायें कहती हैं हे पतितों को पावन बनाने वाले बाबा रहम करो। जो पावन (देवी - देवता) थे वही 84 जन्म ले पतित बने हैं इसलिए फिर पावन बनने के लिए बाप को बुलाते हैं।*

➢➢  *मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई। पति, बाल बच्चे याद पड़ते रहेंगे तो वर्सा पा नहीं सकेंगी। गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए बाप को याद करो।*

➢➢  बाप सभी बच्चों को पतित से पावन बनाने का रास्ता बताते हैं। *ऐसे नहीं कहते कि आंखे बन्द कर मुझे याद करो। उठते-बैठते, चलते-फिरते बच्चों को बाप की याद रहती है।*

➢➢  *तुम्हारी है रूहानी यात्रा जो बाप कराते हैं। बाप कहते हैं - तुमको अमरलोक में चलना है तो मुझे याद करो। आत्मा पवित्र होने से ही तुम उड़ सकेंगे।*

➢➢  तुम बच्चों की आत्मा जानती है कि बाबा हमको पढ़ा रहे हैं। कृष्ण तो मनुष्य था उनको भगवान कैसे कहेंगे। *बाप कहते हैं - अब मुझे याद करो तो तुम पावन बनेंगे।* जितना समय यात्रा में रहते हैं तो मनुष्य पवित्र रहते हैं। लौटकर आते हैं तो घर में फिर पतित बन जाते हैं।

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  क्या शिवबाबा को आंखे बन्द कर याद करना है? नहीं। दूसरे लोग आंखे क्यों बन्द करते हैं? क्योंकि आंखे धोखा देती हैं। *आंखे बन्द करने की दरकार नहीं। खाते-पीते चलते मुझे याद करना है।* आंखे बन्द कर खाना खायेंगे क्या? मक्खी अन्दर चली जाए।

➢➢  तुम सब द्रोपदियां पुकारती हो - बाबा हमारी रक्षा करो। अरे तुम बोलो *हमको पतित बनना ही नहीं है। हिम्मत चाहिए, नष्टोमोहा बनना है।* मैं शरण तब दूंगा जब तुम नष्टोमोहा बनेंगी।

➢➢  *अन्त मती से गती होगी। बाप की श्रीमत से ही सद्गति मिलती है। श्रीमत कहती है हे आत्मायें मामेकम् याद करो तो खाद निकल जाए और तुम मुक्तिधाम में चले जायेंगे, फिर जीवनमुक्ति में आयेंगे। इस चक्र को समझने से तुम चक्रवर्ती राजा बनेंगे।*

➢➢  *अभी तुमको श्रीमत मिल रही है। गाया भी हुआ है - श्रीमत भगवानुवाच। उनकी मत से ही मनुष्य से देवता बन जाते हैं।* देवता धर्म अभी है नहीं। निशानियाँ चित्र हैं जिससे सिद्ध है कि आदि सनातन देवी-देवता धर्म था वह राज्य करके गये हैं। पुराने से पुरानी चीज़ है देवी-देवताओं की।

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *आत्मा बिल्कुल छोटी बिन्दी मिसल है। टीका भी यहाँ लगाते हैं और कहते हैं भ्रकुटी के बीच चमकता है अजब सितारा... तो इतनी छोटी सी बिन्दी आत्मा में 84 जन्मों का अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है। वह कभी मिट नहीं सकता। यह सारा नाटक इमार्टल है। चक्र फिरता रहता है। ऐसे नहीं सृष्टि एक जगह खड़ी है।*

➢➢  *बाप समझाते हैं - यह भक्ति के धक्के खाने से कोई पावन बनते नहीं हैं। यह नदियाँ तो अनादि हैं ही। पानी है पीने और खेती करने के लिए। वह कैसे पावन करेगा? पानी तो पतित-पावन हो नहीं सकता। गाते भी हैं पतित-पावन सीताराम, हे पतित-पावन आओ। अभी यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है। मैं आता हूँ तुमको पावन बनाने। सतयुग पावन दुनिया थी। यह है पतित दुनिया।*

➢➢  *यह शिवबाबा बैठ समझाते हैं। इस आकाश (सूक्ष्मवतन) में खेल होता है तो जरूर रोशनी चाहिए। मूलवतन में खेल नहीं होता, उसको ब्रह्म तत्व कहते हैं। वहाँ आत्मायें निवास करती हैं। वह है ऊंच ते ऊंच तीन लोक अर्थात् तीन मंजिल हैं दुनिया की। ऐसे नहीं सागर के नीचे कोई लोक है। पानी के नीचे फिर भी धरती है, जिस पर पानी ठहरता है। तो यह हैं तीन लोक। साइलेन्स, मूवी और टॉकी।*

➢➢  *श्रीकृष्ण वैकुण्ठ का मालिक था, सतयुग का प्रिन्स था फिर वही कृष्ण द्वापर में कैसे गया? उसी नाम-रूप से तो आ न सके। वो जो चैतन्य था उनके जड़ चित्र यहाँ हैं। परन्तु वह आत्मा कहाँ गई?* यह कोई नहीं जानते।

➢➢  *बाप बतलाते हैं - आत्मा 84 जन्म लेते अभी यहाँ पार्ट बजा रही है। भिन्न नाम-रूप, देश, काल का पार्ट बजाती आई है। आत्मा ही कहती है हम एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं। नाम-रूप, देश, काल, मित्र सम्बन्धी सब अलग-अलग हैं। दूसरे जन्म में बदल जायेंगे।*

➢➢  *रावण तुम्हारा बड़ा दुश्मन है। उनका बुत बनाकर जलाते हैं। कभी देखा शिव का चित्र उठाकर जलायें? नहीं। शिव तो है निराकार। राम (शिवबाबा) सुख देने वाला उनको कैसे जलायेंगे। दु:ख देने वाला है रावण। कहते हैं यह अनादि जलाते आते हैं। तो क्या शुरू से ही रावण राज्य था? रामराज्य हुआ ही नहीं? यह सब समझाना पड़े।* रावण राज्य कब से शुरू हुआ, यह किसको पता नहीं। आधाकल्प से शुरू होता है।

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