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❍ 30 / 08 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *बाप कहते हैं -
तुम्हारी आत्मा अब पतित हो गयी है, खाद पड़ गई है। सच्चे सोने में खाद डालने से
अथवा अलाए पड़ने से सोने का मूल्य कम हो जाता है।* पहले गोल्डन एज में थे तो
सम्पूर्ण निर्विकारी थे। फिर सिल्वर की खाद पड़ी फिर कापर, आइरन में आते हैं। *आत्मा
पतित होती जाती है। अभी तो बिल्कुल ही आइरन एजड हो गई है। वही भारत सतोप्रधान
था, अब तमोप्रधान बन गया है।*
➢➢ *भारत में आज से
5 हजार वर्ष पहले देवी-देवता थे। वह सब थे मनुष्य, परन्तु सर्वगुण सम्पन्न 16
कला सम्पूर्ण थे।* यह है उन्हों (देवी - देवताओं) की महिमा। *वहाँ (सतयुग) हिंसा
होती नहीं। विकार में जाते नहीं। उन्हों को कहते हैं सम्पूर्ण निर्विकारी।
विकारी मनुष्य उन्हों (देवी - देवताओं) महिमा गाते हैं।* आप सर्वगुण सम्पन्न,
हम नीच पापी हैं। *परमात्मा को भी याद करते हैं परन्तु उनको कोई जानते नहीं हैं
इसलिए आरफन ठहरे।* गाते भी हैं - तुम मात-पिता... जिससे सुख घनेरे मिलते हैं।
➢➢ *जबसे रावण
राज्य शुरू होता है तो सब मनुष्य पतित होने लग पड़ते हैं। दर दर धक्के खाते रहते
हैं। समझते हैं सबमें परमात्मा है।* मूर्तियां ठिक्कर-भित्तर की बनी हुई है ना,
तो समझते हैं कि इसमें भी भगवान है। अरे *पत्थर में भगवान कहाँ से आया! वह तो
परमधाम में रहता है।* कितने ढेर चित्र बनाते हैं फिर जब पुराने हो जाते हैं तो
फेंक देते हैं। यह है गुडियों की पूजा।
➢➢ *सतयुग में जो
भी आत्मायें थी वह सुखी थी। बाकी सब आत्मायें शान्तिधाम में थी, जिसको फिर
साइलेन्स वर्ल्ड कहा जाता है।* साइलेन्स वर्ल्ड फिर सटल वर्ल्ड (सूक्ष्मवतन),
वहाँ शरीर ही नहीं है तो आत्मा आवाज कैसे करेगी।
➢➢ बेहद का बाप
बच्चों को कहते हैं तुम कितना बेसमझ बन पड़े हो। कहते भी हो हे परमपिता परमात्मा।
फिर उनकी बायोग्राफी को नहीं जानते हो। *बाप पतित-पावन, सद्गति दाता भी है। तुम
(ब्राह्मण) तो जानते हो, वह तो (सन्यासी) कह देते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है।
सर्वव्यापी कहने से फिर वर्सा कैसे मिलेगा।*
➢➢ *(भगत) कहते हैं
हे प्रभू, अन्धों की लाठी। परन्तु जानते तो कुछ भी नहीं। लक्ष्मी - नारायण के
आगे भी जाकर कहेंगे - तुम मात-पिता...अब वह तो हैं स्वर्ग के मालिक। वह थोड़ेही
सबके मात-पिता हो सकते हैं।*
➢➢ अभी सारे चक्र
की नालेज तुम्हारी बुद्धि में है। *तुम ही पूज्य थे फिर पुजारी बने फिर पूज्य
बनते हैं। पावन राजायें भी थे, पतित राजायें भी थे। अब नो राजा। प्रजा का प्रजा
पर राज्य है। फिर सृष्टि को चक्र (रिपीट) खाना है, सतयुग में आना है।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *बाप कहते हैं
पवित्र बनो और मामेकम् याद करो। कोई भी देहधारी को याद नहीं करो। अभी बाप को
याद करना है।* बाप ही बैठ बच्चों को सुख घनेरे देते हैं।
➢➢ *शिवबाबा इनके
मुख से कहते हैं - तुम हमारे बच्चे हो। तुम भी कहते हो बाबा हम आपके बच्चे
हैं।* यह है मुख वंशावली। तुम ईश्वर का परिवार हो।
➢➢ *भगवानुवाच एक
बाप को याद करो। हम आत्मायें अब स्वीट होम में जाती हैं, जहाँ बाबा रहते हैं।*
फिर बाबा स्वीट स्वर्ग में भेज देते हैं, वहाँ भी शान्ति और सुख है।
➢➢ तुम यहाँ आये हो
पवित्रता, सुख, शान्ति का वर्सा लेने। 21 जन्मों के लिए यह पढ़ाई है। तुम यहाँ
के लिए नहीं पढ़ते हो। यह है ही मृत्युलोक। *तुम अमरनाथ द्वारा अमरकथा सुन अमर
बनते हो।*
➢➢ अभी तुम काम चिता
से उतर ज्ञान चिता पर बैठते हो। तुम हो सच्चे ब्रह्मण। तुम पवित्रता की
प्रतिज्ञा कराते हो। बेहद का बाप कहते हैं पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया के
मालिक बनेंगे। *घर बैठे भी याद कर सकते हो।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
*पारलौकिक बाप आत्माओंको कहते हैं बच्चे, अब देही-अभिमानी बनो।* आत्मायें भी
कहती हैं हाँ बाबा हम आपका फरमान जरूर मानेंगे। पवित्र बनेंगे। यह श्रीमत है
ना। श्रीमत से ही श्रेष्ठ बनना है। रावण की मत से तुम भ्रष्ट बने हो।
➢➢
बाप कहते हैं मैं आया ही हूँ सर्व की सद्गति करने। पाप आत्मा से पुण्य आत्मा
बनाने के लिए। तो *पवित्र जरूर बनना है।* पहले जब पवित्र बन ब्रह्माकुमार कुमारी
बनें तब ही शिवबाबा से स्वर्ग के सुख का वर्सा पायें। तुम फिर से आये हो - बाप
से वर्सा लेने।
➢➢
भगवान कहते हैं बच्चे काम महाशत्रु है, इसने ही तुमको दु:खी किया है। तुम बच्चे
गिरते आये हो। अभी तो कोई कला नहीं रही है। फिर से *16 कला सम्पूर्ण बनाने बाप
आये हैं। इसमें सन्यासियों के मुआफिक घरबार तो छोड़ना नहीं है।*
➢➢
*पावन दुनिया में जाने के लिए यह अन्तिम जन्म तुमको पवित्र जरूर बनना है।* जो
बाप द्वारा पवित्र बनेंगे वही पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे।*
➢➢
बाबा कहते हैं तुम *गृहस्थ व्यवहार में भल रहो परन्तु कमल फूल समान पवित्र रहो।*
यह करके दिखाओ, घरबार छोड़ने की बात नहीं है। *अपनी रचना ( बच्चों ) की सम्भाल
भी करो, सिर्फ पवित्र रहो* तो इन देवताओं जैसा फिर बनेंगे।
➢➢
जो कल्प पहले ब्रह्माकुमार कुमारियां बने थे वही फिर ब्रह्मण से देवता फिर
क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र बनते आये हैं। जो बाप से आकर समझेंगे वही पवित्रता की
प्रतिज्ञा करेंगे। वही फिर आकर वर्सा लेंगे। *अब ( संगम युग ) फिर ब्रह्मण बनना
पड़े।* चोटी ब्रह्मणों की है ना।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *बाप पतित-पावन,
सद्गति दाता भी है। उसको ही सब भगत पुकारते हैं - हे पतित-पावन, शिवबाबा आकर
हमको पतित से पावन बनाओ।* जैसे स्वर्ग में पावन थे वैसे फिर हमको आकर पावन बनाओ।
हम बहुत दु:खी हैं।
➢➢ *(भगत) कहते हैं
हे बाबा हमको सद्गति दो। सर्व का सद्गति दाता एक ही पतित-पावन शिवबाबा है, उनको
सब मनुष्य भूल गये हैं। उनको सब याद करते हैं। सबका पतियों का पति अथवा बापों
का बाप वह है।*
➢➢ *(शिवबाबा)
मनुष्य को देवता बनाते हैं। सतयुग में स्त्री पुरूष दोनों पवित्र रहते हैं। उनको
राम राज्य कहा जाता है। अभी तो है रावण राज्य, एक दो पर काम कटारी चलाकर दु:खी
करते रहते हैं।*
➢➢ *बाप बच्चों को
सम्मुख बैठ समझाते हैं। यह मधुबन है हेड आफिस। कितने सेन्टर्स खुलते रहते हैं।
ब्रह्माकुमार कुमारियां तो ढेर के ढेर होते जायेंगे। दिन प्रतिदिन सेन्टर खुलते
जायेंगे। शूद्र से ब्राह्मण बनते जायेंगे।*
➢➢ *सृष्टि की आयु
भी अब पूरी होती है फिर नई बनेगी। नई दुनिया में है सुख, पुरानी दुनिया में है
दु:ख l आत्मा है अविनाशी, शरीर है विनाशी। आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है।
आत्मा सबसे जास्ती 84 जन्म लेती है। इनको कहा ही जाता है 84 जन्मों का चक्र।*
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