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  12 / 09 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  कृष्ण को बेहद बाप नहीं कहेंगे। यह गीत तो यहाँ के नाटक वालों ने बनाये हुए हैं। महाराजाधिराज कृष्ण के लिए कहते हैं। बाप कहते हैं मैं तो नहीं बनता हूँ, तुम बच्चों को बनाता हूँ। तो इन गीतों से भी कुछ न कुछ अच्छा अर्थ निकलता है। *बेहद का बाप गरीब निवाज जरूर है, जिस भारत को साहूकार बनाते हैं वह भारत अब गरीब बन गया है। भारत में ही उनका जन्म होता है।*

➢➢  मनुष्य तो कुछ समझते नहीं। वह तो ईश्वर को सर्वव्यापी कह देते हैं। अभी जानते हो कि *भारत पतित-पावन परमपिता परमात्मा का बर्थ प्लेस है*। मनुष्य तो समझते हैं कि परमात्मा तो जन्म-मरण से न्यारा है। हाँ, मरण से बेशक न्यारा है क्योंकि उनका अपना शरीर तो है नहीं। बाकी जन्म तो होता है ना। *बाप कहते हैं मैं आया हूँ, मेरा दिव्य जन्म है*

➢➢  मनुष्य टीचर के पास, गुरू के पास जाते हैं तो गुरू कभी ऐसे कहते हैं क्या कि काम विकार में नहीं जाओ। वह तो पावन बनने की शिक्षा देते नहीं। कोई को वैराग्य आता है तो वह घरबार छोड़ भाग जाते हैं। *बाप जो शिवाचार्य है वह ज्ञान का कलष तुम माताओं के सिर पर रखते हैं। बाकी इस पतित दुनिया में लक्ष्मी कहाँ से आई। लक्ष्मी-नारायण तो सतयुग में होते हैं।*

➢➢  आत्मा का बाप कौन है, उनको जानते हो? कोई लिखते आत्मा का बाप हनुमान है, कोई क्या लिखते, कितना अज्ञान है। तो फिर समझाया जाता है- *आत्मा तो है निराकार। तुम्हारा गुरू तो साकार है। निराकार का बाप साकार कैसे होगा*। समझाने की प्रैक्टिस पर सारा मदार है और साथ में मैनर्स भी अच्छे चाहिए। 

➢➢  तुम बच्चे जानते हो कि *बाप गरीब निवाज, रहमदिल है।* हम बच्चों को खास और सबको आम समझाते रहते हैं। इनपर्टीक्युलर (खास) हम सुखधाम में जाते हैं। इनजनरल (आम) मुक्तिधाम में जाते हैं। *सतयुग में बरोबर इन लक्ष्मी-नारायण का ही राज्य था-फिर चन्द्रवंशी, उनके बाद इस्लामी, बौद्धी आदि आये हैं तो वह आदि सनातन धर्म गुम हो गया है।* 

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  तुम्हारी महफिल सूक्ष्मवतन में लगती है। *ऐसे नहीं कि ध्यान कोई अच्छा है। नहीं, योग को ध्यान नहीं कहा जाता और ध्यान को योग नहीं कहा जाता। बाप कहते हैं मेरे साथ बुद्धियोग लगाओ तो विकर्म विनाश होंगे।* 

➢➢  *कोई बाहर में दूर चले जाते हैं। मुरली भी नहीं मिल सकती है तो बाप कहते हैं कोई हर्जा नहीं है। तुम याद में रहो और स्वदर्शन चक्र फिराते रहो।*

➢➢  बेहद का बाप स्वर्ग का रचयिता है, वह कहते हैं *बच्चे तुम मेरी याद में रहो तो विकर्म विनाश होंगे। शिवबाबा की याद में रहकर खाओ तो कोई ऐसी चीज होगी वह पवित्र हो जायेगी।* 

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  जो भारत कल पूज्य था सो अब पुजारी बना है। फिर *पुजारी गरीब से पूज्य साहूकार बनना है।* अब तो कितना गरीब है। कहाँ हेविन के महल थे, मन्दिर के ऊपर भी कितने हीरे जवाहरात जड़े हुए थे। तो वे अपना महल तो और ही अच्छा बनाते होंगे ना। अभी तो कितना गरीब है। *गरीब से साहूकार अभी तुम फिर बनते हो। पुरूषार्थ तुम बच्चों को करना है।*

➢➢  *जितना टाइम फुर्सत मिले यह याद की कमाई करनी है।* ऐसे बहुत काम होते हैं जिनमें बुद्धि नहीं लगानी होती है। कोई- कोई में बुद्धि लगानी पड़ती है। तो जब फुर्सत मिलती है, घूमने फिरने जाते हो तो *बाप की याद में रहो। यह कमाई बहुत करनी है।* यह है सच्ची कमाई। बाकी तो वह है अल्पकाल के लिए झूठी कमाई। यह शिक्षा तुम बच्चों को अभी ही मिलती है।

➢➢  *जब तक ज्ञान की पराकाष्ठा हो-बुद्धि में यह ख्याल रहे कि हमको कम्पेनियन हो रहना है।* तुम बच्चों को कोई वह पढ़ना नहीं है। बाप तो कहते हैं कि कुछ भी नहीं पढ़े हो तो अच्छा है। *जो कुछ भी पढ़े हो वह भूल जाओ।* हमको बाप ऐसा पढ़ाते हैं जो हम सच्ची कमाई कर विश्व के मालिक बन जाते हैं।

➢➢  बाप कहते हैं *हियर नो ईविल, सी नो ईविल*... यह तुम्हारे लिए है। अभी तुम बच्चे मन्दिर लायक बन रहे हो। *तुमको ज्ञान सागर बाप मिला है तो उनका ही सुनना पड़े। दूसरे की तुमको क्या सुनने की दरकार है।*

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  शिवबाबा इन द्वारा बैठ समझाते हैं। शिवाचार्य वाच ब्रह्मा मुख से - *तुम बरोबर स्वर्ग के द्वार खोलते हो तो जरूर तुम ही मालिक बनेंगे।* स्वर्ग का द्वार खोलते हो गोया स्वर्गवासी बनने का पुरूषार्थ करते हो। *तुम्हारा पुरूषार्थ ही है नर्कवासी मनुष्य को स्वर्गवासी बनाना।* 

➢➢  *बाप भी यह सेवा करते हैं ना-पतित से पावन बनाना, तुम्हारा भी यही धन्धा है, जो बाप का धन्धा है। आत्माओ को स्वर्गवासी बनाओ।* स्वर्ग की चाहना तो सब रखते हैं ना। कोई मरता है तो कहते हैं फलाना स्वर्ग पधारा। उनसे पूछना चाहिए कि जब वह स्वर्ग में गया तो फिर नर्क में बुलाकर ब्राह्मण आदि क्यों खिलाते हो। फिर तो यह अज्ञान अन्धियारा हुआ। 

➢➢  *बाबा ने समझाया है तुम स्कूलों में भी जाकर समझा सकते हो। यह तुम हद की हिस्ट्री-जाग्राफी पढ़ते हो। बेहद की तो तुम पढ़ते नहीं हो। लक्ष्मी-नारायण का राज्य बताओ कहाँ गया?* सूर्यवंशी, चन्द्रंवशी डिनायस्टी जो चली वह फिर कहाँ गई? उन्हों का राज्य किसने छीना? किसने चढ़ाई की? तुम बच्चे ही जानते हो कि यह चक्र कैसे फिरता है। यह किसको भी समझाओ तो 7 रोज में बुद्धि में आ जायेगा।  

➢➢  यह *बाप की श्रीमत मिली हुई है। कहाँ भी हो, तुम लड़ाई के मैदान में हो। बाप मिलेट्री वालों को भी समझाते हैं कि तुमको वह सेवा तो करनी है, यह तो तुम्हारा धन्धा है।* शहर की सम्भाल करना है। तुम पघार खाते हो, एग्रीमेंट की हुई है तो सम्भाल भी करनी है। *बुद्धि में लक्ष्य तो बैठा हुआ है।*

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