देह-अभिमान छोड़ बनो देहि-अभिमानी
ईश्वरीय संप्रदाय में होते ही देहि -अभिमानी
यह सत्संग दूसरे सत्संगों से अलग
इस सत्संग में होती पढ़ाई,होता एम ऑब्जेक्ट
आत्मा परमात्मा का हम इसमे सुनते ज्ञान
बाप की सुमत पर मनुष्य बन जाते देवता
संगम है पुरषोत्तम ,बनते हम इसमें पारसबुद्धि
नर से नारायण बनने का भी करते पुरुषार्थ
तन का रोग, योग परिवर्तन कर देता, कर्मभोग सूली से हो जाता
काँटा
मनमनाभव से खुशियों की खान से होते संपन्न
ज्ञान धन,सर्वश्रेष्ठ धन, हम करते प्राप्त
सर्व सम्बन्ध एक बाप से रख,बनते भाग्यवान
याद और सेवा का बैलेंस ही होता डबल लॉक
ॐ शांति!!!
मेरा बाबा!!!