31-05-15 बाबा कविता


सागर हूँ मैं प्यार का मुझको तूँ दिल में बसा ले
देह से न्यारा होकर तूँ मुझको संसार बना ले
अमृत वेला नींद खुले तो मुझको सामने पा ले
बनकर बिंदू परमधाम में मुझसे मिलन मना ले
ज्ञान मुरली को सुनकर तूँ ज्ञानामृत से नहा ले
विकार मिटाकर सारे गुणों से खुद को सजा ले
कर्मक्षेत्र पर आने से पहले साथी मुझे बना ले
श्रीमत की राहों पर तूँ अपने ये कदम बढ़ा ले
पाप भस्म करने के लिए योग अग्नि जला ले
माया कोई विघ्न डाले तो मुझको पास बुला ले
करके मुझको याद तूँ खुद में देवत्व जगा ले
नारायण पद पाकर तूँ चैन बाँसुरिया बजा ले

ॐ शांति !!!