01-10-15 मुरली कविता


बाप हमें तैरना सिखा ..इस दुनिया से ले जाते पार
तुम्हारे लिये तो दुनिया ही जैसे जाती बदल
हम बाप के मददगार बन ..करते स्वर्ग की स्थापना
वो हमें ऐसा बनाते... जो आधा -कल्प कोई की राय लेने की नही होती दरकार
बाप से प्रीत रख,पुरुषार्थ से देह को भूलना
बाप ओबीडीएन्ट टीचर बन... घर ले जाने लायक बनाते
बाप का लायक ,सपूत बच्चा बन,शान्तिधाम सुखधाम जाने की ख़ुशी में रहना
निष्काम,निस्वार्थ,त्याग ,तपस्या स्वरूप से सेवा ...होती इश्वरीय व् रूहानी सेवा
मुख के साथ मन द्वारा सेवा करना... अर्थात 'मनमनाभव' स्थिति में स्थित होना
आकृति न देख, निराकार को देख...बनना आकर्षण मूर्त
 

ॐ शांति!!!
मेरा बाबा!!!