ज्ञान रत्नों की जितनी चाहो कमाई कर लो
बाप आया बच्चों को अविनाशी कमाई कराने
अपने को शरीर नही ..दही समझने का पुरुषार्थ करो
देह -अभिमान में आने से आसुरी संस्कार बनते
देही-अभिमानी बनने से दैवी संस्कार बनते
पुरानी देह और पुरानी दुनिया से वैराग्य हो
माया के युद्ध में कभी हार नही खानी
बाप की अव्यभिचारी याद में रह कर्मातीत अवस्था पानी
श्रेष्ठ सेवाधारी का हर संकल्प पावरफुल हो
एक व्यर्थ संकल्प किया मानों अनेकों के निमित बने
क्योंकि सारी विश्व तुम्हें कॉपी करती,तो व्यर्थ से बचों
सेवा संग बेहद की वैराग्य वृति का वायुमण्डल बनाओ
ॐ
शांति !!!
मेरा बाबा !!!