25-07-15 मुरली कविता


कल थे जो पत्थर बुद्धि बने आज पारस
भगवान् हमें पढ़ाते रहे ख़ुशी...यही मनमनाभव
निश्चयबुद्धि की बनती तकदीर..बनते सतोप्रधान
संशय बुद्धि वाले लंगड़ाते..पीछे जाते रह
मुसाफ़िरी हुई पूरी ..जाना अब शान्तिधाम घर
देह-अभिमान छोड़ना..राजधानी में जो है आना
आत्म स्वरुप...है सदा पवित्र
अनादि स्वरुप भी है पवित्र आत्मा
आदि स्वरुप..में है देवता
शक्ति स्वरुप बनो...सहजयोग से मत बनो अलबेला


ॐ शांति!!!
मेरा बाबा!!!