28-05-15 मुरली कविता


बाप आया तुम्हें काँटों से फूल बनाने
देह-अहंकार में आकर कांटे तो नही बने
बाप से अटूट प्यार जब हो सके
जब स्वयं को आत्मा समझे
निराकार बाप इस रथ पर विराजमान होते
बाप इनके द्वारा हमें पढ़ा रहे..निश्चय हो
बाप की याद के सिवाए अब कुछ भी याद न आये
अपनी दृष्टि पवित्र बनानी,अशरीरी बनने का करना अभ्यास
अमृतवेले बाप से मीठी-मीठी करनी बातें
कर्मबंधनॉ को समाप्त कर बनना कर्मयोगी
ब्राह्मण जीवन है,कर्म करो ,स्वतंत्र रहो चलाने वाला चला रहा
पुरानें शरीरों में बाप शक्ति भर रहा,यह जिम्मेवारी उनकी
समय की समीपता लानी तो बेहद की
वैराग्य वृति रखनी


ॐ शांति !!!
मेरा बाबा !!!