जिस शिव की होती पूजा वो आया अब हमारे सम्मुख
बाप रूप में शिव मिला तो इसका रहे नशा
मनुष्य समझते उनके पापों की सजा धर्मराज से भगवान् दिलायेंगे
लेकिन कर्मों की सज़ा तो कर्मभोग से भोगनी पड़ती
साक्षात्कार होता सजा के साथ ,जो ईश्वरीय डायरेक्शन पर नही चले
सिर्फ खाना ,पीना, सोना नही,सर्विस करनी
देहि -अभिमानी बनने का पुरुषार्थ करना
सपूत बनना ,बाप और पढ़ाई का रिगार्ड रखना
स्व स्थिति विजय का साधन,स्वधर्म सदा सुख का अनुभव कराता
परधर्म या देह की स्मृति से दुःख का अनुभव होता
परिवर्तन शक्ति द्वारा व्यर्थ संकल्पों के फ़ोर्स को समाप्त करना
ॐ
शांति !!!
मेरा बाबा !!!