15-12-15
बाबा पोएम
आकर्षण मूर्त वो है जो रहता सदा
निराकारी
उसको कभी नहीं लुभाती यह दुनिया विकारी
रखता सदा जो खुद को अपने श्रेष्ठ स्वमान में
अचल अडोल सदा रहता निंदा या अपमान में
अपनी कर्मेन्द्रियों को श्रीमत पर वो चलाता है
अपना तन मन धन ईश्वरीय सेवा में लगाता है
श्रेष्ठ कर्म की कलम से अपना भाग्य बनाता है
अपनी मन बगिया में वो गुण पुष्प ही उगाता है
ब्रह्मा बाप समान जो अपने संस्कार बदलता है
उसकी चाल चलन से ईश्वरीय नूर झलकता है
प्यार करता सबसे लेकिन रहता सबसे न्यारा
जिसके लिए सब कहते ये तो रब जैसा प्यारा
आओ हम अपने मन में आत्म स्मृति जगाएं
हम भी बाप समान निराकारी आत्मा बन जाएं
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!