31-12-15 मुरली कविता
ईश्वरीय सेवा में जो संकल्प चलते
वो होते शुद्ध संकल्प व् निरसंकल्प ..उसे व्यर्थ नही कहेंगे
घर-परिवार में फर्ज़-अदाई करते भी रहो अनासक्त
अलौकिक दृष्टि रखो,नही जाये मोह की रग
विकारी सम्बन्ध से संकल्प.. बनाता विकर्म
देहि-अभिमानी रहने का करो पुरुषार्थ
स्टूडेंट्स शोज़ फादर..पढ़ो और पढ़ाओ
एवर हैप्पी बाप के बच्चे हो तो सदा ख़ुशी में रहो
अमृतवेले महादानी बन दान करो
महादानी अर्थात होना मालामाल
आत्माओं की सेवा का शुक्रिया बनता आशीर्वाद
आशीर्वाद आगे बढ़ने का है साधन
अभी का प्रत्यक्ष -फल आत्मा को उड़ती कला का देता बल
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!