10-12-15 मुरली कविता
इस पुरानी दुनिया को छोड़ना यह
है पतित गाँव
अब जाना नयी दुनिया ,यह नही तुम्हारे लायक
अपनी उन्नति के लिए बापदादा दोनों की श्रीमत पर चलना
दोनों है इकट्ठे ..ब्रह्मा की मत का भी रेसपोंसिब्लि है बाप
बाप से रखनी ज़िगरी प्रीत
पैगाम दे सबका करना कल्याण
याद का सच्चा-सच्चा रखना है चार्ट
संगम पर हम चैतन्य ठाकुरों की सेवा स्वयं भगवान करते
अमृतवेले उठाते,भोग लगाते,रात को सुलाते
इसी भाग्य की स्मृति रख ख़ुशी में रहो झूमते
अपने हर्षितमुख चेहरे से सर्व प्राप्तियों
की अनुभूति कराना है सच्ची -सेवा
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!