12-11-15 मुरली कविता
इस भूलभलैया के खेल में बाप को तुम घड़ी-घड़ी जाते भूल
निश्चयबुद्धि बच्चें इस खेल में फंसने से जाते बच
बाप नयनों पर बिठायें,गले का हार बना..ले जायेंगे अपने साथ
क़यामत पर बाकि हिसाब-किताब चुक्तू कर फिर जाएंगे बाप के साथ
याद की यात्रा में रहकर सच्ची-सच्ची दीपावली मनानी रोज़
21 जन्म के लिए नया खाता करना ज़मा
अन्तर्मुखी बन व शुद्ध संकल्पों की शक्ति का स्टॉक करना ज़मा
शुद्ध संकल्प की शक्ति सहज ही व्यर्थ संकल्पों को कर देगी
समाप्त
जितना शुद्ध संकल्पों का स्टॉक होगा ज़मा उतना मन्सा सेवा होगी
सहज
मन से ईर्ष्या -द्वेष को दो विदाई तब होगी विजय
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!