30-05-15 बाबा कविता


ये तन है तेरा विनाशी तूँ है आत्मा अविनाशी
बंधन सारे तोड़के बन जा परमधाम का वासी
सुख का सागर आया सतयुग का वर्षा लाया
खुशियों में तूँ झूमले भैया छोड़ दे ये उदासी
यादों में खोए रहना बाबा का बनकर रहना
याद ना जाए दिल से चाहे आए कितनी खांसी
दिल ना कहीं लगाना खुद को माया से बचाना
आए विकारों की बदबू ये दुनिया हो गई बासी
छोड़ अज्ञान की निंदिया बनजा तूँ आत्म बिंदिया
बाबा देता अखूट खजाने मत लेना तूँ उबासी
धर्म की हो गई ग्लानि सब बन गए देह अभिमानी
जाना हो तो जाकर देख ले हरिद्वार या काशी
असली भूल सुधारो खुद को आत्मा बना लो
सबको ये समझाओ कि हम हैं आत्मा अविनाशी

ॐ शांति !!!