17-06-15 बाबा कविता


बढ़ता जा मन पर बांधकर श्रीमत की लगाम
कभी ना बनना अपनी ही इन्द्रियों का गुलाम
दृश्य लुभाएंगे तुझे पवित्रता की इस राह पर
नहीं रुकना किसी देहधारी की मीठी वाह पर
खाया जिसने अपने सम्मान का मोहक फल
उसके पुरुषार्थ का सूरज कभी भी जाएगा ढल
अपनी सफलता को समझ ईश्वर का उपहार
तभी उसकी मदद पाएगा तूँ सेवा में हर बार
अपने अच्छे कर्मों का ना करना कभी अभिमान
वरना महसूस होगा कदम कदम पर अपमान
आएंगे तेरे पथ में आकर्षण बड़े ललचाने वाले
व्यर्थ संकल्प आएँगे मन में उधम मचाने वाले
घबराना नहीं इनसे ये तो सब हैं कागज के शेर
ज्ञान योग के बल से करना इन्हें पल भर में ढेर
बढ़ते ही जाना उस पर चुन ली है तूने जो डगर
सामने ही सतयुगी मंजिल तुझको आएगी नजर

ॐ शांति !!!