25-12-15 मुरली कविता


तुम हो सिकीलधे,बहुत समय बाद बाप से हो मिले
अपनी स्थिति एकरस बनानी ,तो पास्ट का चिंतन नही करो
कडुवे बोल नही बोलो,आपस में क्षीण खण्ड हो रहो
एक बाप की ही महिमा करनी
रूहानी खिदमतगार बनना
अनुभवों की गुह्यता में जाना
कर्म करते योग की पावरफुल स्टेज पर रहो
रूहानियत में रहने का अभ्यास बढाओ
सन्तुष्टता की सीट पर बैठ परिस्थितियों के खेल को देखने वाले संतुष्टमणि बनो


ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!