18-09-15 मुरली कविता


बाप सुनाते कर्म-अकर्म-विकर्म की गुह्य गति का ज्ञान
आत्मा और शरीर जब हो पवित्र तब होते.. अकर्म
पतित होने से आत्मा करती.. विकर्म
पतित आत्मा पर चढ़ती फिर कट,जिसकी निशानी ....  
....याद में नही रह सकते
...पुरानी  दुनिया में होती कशिश
....बुद्धि होती क्रिमिनल
योग अग्नि से विकारों की कट उतारना
अपने कर्म स्वधर्म में स्थित हो,बाप की याद में करना
संशयबुद्धि नही बनना ,निश्चय रखना 
विस्तार को समेट उपराम रहने का करना अभ्यास
फ़रिश्ते समान ऊँची स्टेज पर रह,परिस्थिति करना पार
ख़ुशी रखनी कायम तो...आत्मा में ज्ञान का घृत डालना रोज़

ॐ शांति!!!
मेरा बाबा!!!