02-06-15 मुरली कविता


मैं आत्मा हूँ..शरीर नही, यह है पहला -पहला पाठ
आत्मभिमानी रह कर करो हरदम बाप को याद
सवेरे-सवेरे उठ घूमों फिरो इस पाठ को याद करो
तो ख़ुशी का खज़ाना ज़मा होता जायेगा
योग बल से कर्मेन्द्रियों को करना वश
सच्चा-सच्चा बनना वैष्णव
रूहानी बाप हमें पढ़ाते,दुखो से छुड़ाते
ऐसे बुद्धि में ज्ञान सिमरण करते रहो
न्यारे और प्यारे रहने का राज़ समझों
तो प्रवृति में भी सब राज़ी और बाप भी सच्चे दिल पर राज़ी रहेंगे
राज़ी बच्चे राजयुक्त होते तो अपने आप अपने फैंसले करते
उन्हें काजी, वकील की जरुरत नही होती
सेवा में दुआयें ही होती तंदुरस्ती का आधार


ॐ शांति !!!
मेरा बाबा !!!