16-07-15 मुरली कविता


इस बेहद के अनादि नाटक के, हो तुम.. वंडरफुल एक्टर
तुम्हारी बद्धि में मूल वतन से लेकर स्थूल वतन के ड्रामा का राज़ होता
इस नाटक में कुछ भी बदली नही हो सकता
दूरादेशी बच्चे ही इस ड्रामा के आदि- मद्य- अंत के गुह्य राज़ को समझते
सतयुग से लेकर कलियुग तक हर एक्टर चोला बदल कर पार्ट बजाते
कोई भी एक्टर वापिस घर जा नही सकता
हर पार्टधारी के पार्ट को साक्षी होकर देखना
संगम युग पर एक सेकंड का भी है बहुत मूल्य
एक सेकण्ड का व्यर्थ माना लाख गुणा व्यर्थ गंवाया
हर सेकंड ,हर संकल्प को समझना अमूल्य
बाप को याद कर करनी सच्ची कमाई,बनना अमूल्य रत्न
योगयुक्त ही सहयोग का अनुभव कर बनते विजयी रत्न


ॐ शांति!!!
मेरा बाबा!!!