23-09-16 मुरली कविता


महारोग से ग्रसित दुनिया का अब मुश्किल है बचना
ममत्व मिटाओ इससे करके शुद्ध संकल्पों की रचना
आत्मभाव नहीं जागा जब तक सेवा कर ना पाओगे
देहिक बन्धन में बंधकर उलटे कर्मों में फंस जाओगे
होकर चौकन्ना छोटे से छोटे पापों से खुद को बचाना
विनाशी सुख के लालच में मन को कभी नहीं फंसाना
कर्कट रोग है अहंकार जो कर देता सबका सत्यानाश
रहकर बाप की याद में इसका कर दो सम्पूर्ण विनाश
खुद को विजयी रत्न समझकर हर सेवा करते जाओ
पवित्र वाइब्रेशन देकर सेवा स्थान में बल भरते जाओ
ईश्वरीय याद के बल से आत्माएं नजदीक आ आएगी
दृढ़ निश्चय के बल से सेवा में सफलता मिलती जाएगी
मन की अवस्था बिगड़े जिससे वो सेवा बोझ बन जाती
लून पानी बनाकर हमें व्यर्थ विचारों का प्रदुषण फैलाती
सेवा करने से पहले मन की अवस्था पर देना है ध्यान
आत्म स्मृति जगाकर करना हर समस्या का समाधान

ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!