26-04-16 मुरली कविता


अब घर जाना वापिस तो सबसे मिटाओ ममत्व
देह-भान छोड़ ,अशरीरी बनना
योगयुक्त और ज्ञान-युक्त हो करनी अपनी उन्नति
बाप देते अक्ल उंच तकदीर बनाने की
चलन से अपनी करना बाप का नाम बाला
सर्विस कर अपना भाग्य आपेही बनाना
गृहस्थ में रह कमलपुष्प समान बन दिखानी बहादुरी
स्नेह की निशानी है क़ुरबानी
सर्व कमज़ोरियों की दिल से देनी क़ुरबानी, मज़बूरी से नही
क्योंकि सत्य बाप के पास होता सत्य ही स्वीकार
अव्यक्त स्थिति बनाओ तो बाप गाये आपके गीत
संकल्प व् स्वप्न में भी रहे याद दिलाराम
तब कहेंगे तुम हो सच्चे तपस्वी

ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!