12-08-16
मुरली कविता
इस बेहद की पुरानी दुनिया का
होना विनाश
नई दुनिया में चलने के लिए बनना पावन
जैसे आत्मा है ज्योति बिंदु
वैसे परमात्मा भी है अति सूक्ष्म ज्योति बिंदु
इसमें नही मूंझना ,छोटे व् बड़े किसी भी रूप में याद जरूर करना
देह-अभिमान मिटाना और आत्म-अभिमानी बनना
महावीर बन अपनी अवस्था बनानी अचल-अडोल
सदा प्रीत बुद्धि बन ज्ञान सूर्य के सम्मुख रह
अन्तर्मुखता व् स्वमान की अनुभूति में रहना
सदा उड़ती कला में उड़ना ही है झमेलों के पहाड़ को करना क्रॉस
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!