19-02-16
मुरली कविता
तुमकों यहाँ नही रखने कोई ठाठ
क्योंकि तुम हो यहाँ गुप्त
नयी राजधानी में जा रहे उसका हो नशा
एक मत ,एक धर्म ,एक राज्य करना स्थापन
बाप आया श्रीमत पर सिखाने श्रेष्ठ दैवी कर्म
इस समय सब है धर्मभ्रष्ट और दैवी कर्म भ्रष्ट
तो बाप को याद कर ,विकारों पर पानी जीत
अपने को अपने आप ही देना राज तिलक
हर खजानें की अनुभव के बनो अनुभवी मूर्त
अनुभवी आत्मा में होती अनुभव की विल-पॉवर
जो माया व् परिस्थितियों से सामना करने की देती हिम्मत
सामना करने की शक्ति से सर्व को कर सकते संतुष्ट
एक -दो को देखनें के बजाये,
स्वयं को देख.. करो परिवर्तन
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!