14-09-16
मुरली कविता
योग के बल से अपने विकर्मों पर
जीत पाना है
इसी अभ्यास से खुद को विकार्मजीत बनाना है
रुकने का नाम न लो पुरुषार्थ की गति बढ़ाओ
आलस अलाबेलेपन में व्यर्थ समय ना गंवाओ
जब तक न मिले साकार तन कैसे तुम्हें पढ़ाऊं
ब्रह्मा तन में आकर ही बच्चों को पावन बनाऊं
जाने कहाँ गुम हो गया तुम्हारा दैवी साम्राज्य
अब तो फ़ैल गया है प्रजा का प्रजा पर राज्य
देह अभिमान का डंका बोले फ़ैला है भ्रष्टाचार
बाबा आता है जग में ब्रह्मा तन का ले आधार
प्यारे से प्यारे शिव बाबा को करते जाओ प्यार
नरक से मुक्ति मिलेगी स्वर्ग बनेगा यह संसार
सहजयोगी अवस्था का नेचुरल संस्कार बनाओ
योग के सभी विषयों में पूर्ण परिपक्वता पाओ
हर परिस्थिति व्यवहार को समझो सुहाना खेल
सहन करो आपस में बनाकर विचारों का मेल
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!