23-05-16
मुरली कविता
इस पुरानी दुनिया कब्रिस्तान से
हटा दिल
परिस्तान को करना याद
गरीब बच्चे बनते बाप के डायरेक्ट
साहूकार को तो याद ठहरती बड़ी मुश्किल
अंत में तुम्हें सिवाए बाप के कुछ भी नही आयेगा याद तो तुम हो
खुशनसीब
स्वयं को रिफ्रेश कर फिर औरों को रिफ्रेश करना
स्वयं को देवता बनने लायक बनाना
श्रीमत पर हर कदम चलो तो रहे ख़ुशी और सन्तुष्टता नेचुरल
मन में है हलचल तो जरूर परमत ,मनमत से करी श्रीमत की अवज्ञा
इसलिए ख़ुशी हो जाती कम
बुद्धि रूपी विमान द्वारा वतन पहुंच कर
ज्ञान-सूर्य की किरणों का अनुभव
कराना ही है शक्तिशाली योग
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!