15-07-16 मुरली कविता


याद की यात्रा में कभी नही है थकना
देहि-अभिमानी बनो तो दूर हो जाये थक
बाप की पढ़ाई से कभी भी नही रूठना
नही 21 जन्मों की तकदीर जायेगी बिगड़
निरहंकारी बनो बाप समान..
छोड़ो देह-अभिमान ...
बाप की याद हो सिर्फ और न हो कोई चिंतन
इस पुरानी दुनिया को बुद्धि से जाओ भूल
मनमनाभव की स्थिति में रहो सदा स्थित
तो औरों के मन के भावों को जाओगे जान
उनकी चाहना व् प्राप्ति को कर सकेंगे तब पूर्ण
सोते समय हो जाओ खाली
तो व्यर्थ व् विकारी स्वप्न से हो जाओगे छूट

ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!