06-09-16
मुरली कविता
अपना विनाशी तन भुलाकर जोड़ लो
बाबा से प्रीत
आत्म अभिमानी बनकर ही पाओगे माया पर जीत
ज्ञान रत्नों का श्रंगार कर जो असली सुन्दरता पाते
रूहे गुलाब उनके मुखड़े सदा खिलते और मुस्काते
बाबा आकर हम बच्चों को जीते जी मरना सिखाते
देह अभिमान में जकड़े मानव इसी बात से डर जाते
मरना नहीं है बाप का बनना बल्कि असली जीना है
आत्मभान जगाने के लिए बस ज्ञानामृत ही पीना है
जीते जी मरना सिखाकर बाबा सुख संसार बनाते हैं
पावन बनाने के लिए ही बाबा परमधाम से आते हैं
भूलकर अपना तन समझो खुद को आत्मा निराकार
एक बाप की याद से बनोगे कल्प कल्प के साहूकार
बाबा के बन जाओ अपना सब कुछ बाबा को देकर
अपनी पलकों पर बिठाकर वो घर जाएगा हमें लेकर
खबरदार मेरे बच्चों कभी विकार में तुम मत जाना
एक बार गिर पड़े तो कठिन होगा फिर संभल पाना
अपनी सारी छी छी आदतों का जड़ से कर दो नाश
एक बाप की याद से हो जाएँगे सभी विकर्म विनाश
देहभान है दुःख दायक बच्चों कर दो इसको अर्पण
बन्धनों से मुक्ति पाकर हो जाओ सम्पूर्ण समर्पण
सर्वशक्तिमान बाप को जो बना लेता अपना साथी
वही आत्मा अपने चरणों में हर सफलता को पाती
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!