05-02-16 मुरली कविता


तुम इस कब्रिस्तान को बना रहे परिस्तान
तो इस पुरानी दुनिया(कब्रिस्तान)से हो वैराग्य
बाप है वंडरफुल सर्वेंट जो आत्मा रूपी वस्त्र धोते
बाप की डायरेक्शन पर बनो कौड़ी से हीरे
इंद्रियों के आकर्षण से बनो मुक्त
तो हो अती इंद्रिय सुख का अनुभव
बुद्धि एक ठिकाने पर टिकी रहे तो हो हलचल समाप्त
बुद्धि की लाइन क्लियर रखो तब एक दो के भावों को जाओ जान

ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!