25-07-16 मुरली कविता


अभी अपनी नयी दुनिया में चलना
तो पुरानी बीती बातों को जाना भूल
निरन्तर देह-अभिमान से देहि-अभिमानी
बनने का करना अभ्यास,
कर्मयोगी बनना
ज्ञान और योग पर देना पूरा अटेंशन
अपनी दृष्टि,वृति और स्मृति से अशांत को बनाना शान्त
व्यक्त भाव से अव्यक्त स्थिति का करे वो अनुभव
सच्चे-रहमदिल वाले को देह व देह-अभिमान
की आकर्षण कभी हो न सके

ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!