26-05-16
मुरली कविता
चलते-फिरते उठते-बैठते बनो
आत्म-अभिमानी
एक्यूरेट याद के लिए बाप को समझो अति-सूक्ष्म बिंदी
यह निश्चय हो बाप अखण्ड ज्योति नही
84 का चक्र बुद्धि में फिरा बनो स्वदर्शन-चक्रधारी
किसी भी चीज़ में नही रखनी लालच
रोटी टुकड़ा खाना और बाप को करना याद
दिल सच्ची और बुद्धि हो स्वच्छ
शुद्र बुद्धि को करना समर्पण
अर्थात दिव्य बुद्धि लेना
एक बाप दूसरा न कोई--इस विधि
द्वारा सदा वृद्धि को प्राप्त करना
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!