30-01-16
मुरली कविता
बाप को याद करना है गुप्त
याद से मिलती याद
जो करते नही याद,
बाप फिर कैसे करे उन्हें याद
संगम पर शरीर से न्यारा होने का करना पुरुषार्थ
माया जीते जगतजीत बनना
जीते जी इस शरीर से मुर्दा बनना ..माना कर्मातीत होना
देह-भान छोड़ना
सर्विस का सबूत देना
निमित्त आत्मा बन कार्य करना..
स्वयं कराने वाला सर्व समर्थ है बाप
इस स्मृति से सहजयोग का होता अनुभव्
सहजयोग से राज्य भी सहज होता प्राप्त
इच्छा है परछाई समान
पीछे आयेगी.. जब कर दो पीठ
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!