02-07-16
मुरली कविता
राहु के ग्रहण उतारना तो देना
विकारों का दान
'दे दान तो छूटे ग्रहण'
वृक्षपति बाप आया तुम्हेँ गोरा बनाने
काम चिता पर बैठ तुम हो गए हो काले
पारस बनाने वाले बाप को करो याद
शुद्र से ब्राह्मण सो देवता बनने का करो पुरुषार्थ
पुरुषार्थ अर्थात स्वयं को आत्मा समझकर चलना
यथार्थ पुरुषार्थी कभी नही हार खाते
मन्ज़िल को सदैव रखते सामने
मास्टर सर्वशक्तिमान की स्मृति में रहो
यह स्मृति मालिकपन की दिलाती स्मृति
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!