12-11-16 मुरली कविता


राजयोगी बन जाओ तन के रिश्तों से तोड़ निभाकर

प्यार करो इक बाबा को खुद को नष्टोमोहा बनाकर

देहभान गलाओ अपना ज्ञान योग की ऊंचाई चढ़कर

जैसे पाण्डव मर गए जाकर ऊंचे पहाड़ों पर गलकर

संगमयुग तुम कभी ना भूलो इसमें ही बाबा आते है

नर्कमय दुनिया को मिटाकर वो स्वर्ग धरा पर लाते हैं

बांधकर दुःख के हजारों बंधन बच्चे उसमें फंस जाते

मुक्ति पाने की खातिर फिर वो जोर जोर से चिल्लाते

विकारी संबंधों से बाबा बच्चों का ममत्व मिटाते हैं

आत्म ज्योत जगाकर मार्ग शिवालय का दिखाते हैं

विकारों में पड़कर बच्चों ने दुनिया पतित बना ली

अज्ञानी बने हैं इतने कि देने लगे खुद को ही गाली

बाबा समझाते बच्चों तुम अपना आत्मभान जगाओ

राजा बनकर खुद के तुम विश्व महाराजा बन जाओ

ख़ुशी में रहकर सदा ज्ञान की बातें सबको समझाना

अज्ञान अँधेरे में फंसे हुओं की लाठी तुम बन जाना

कम्बाइंड स्वरूप होकर हर मुश्किल सरल बनाओ

बाप को देकर अपना हर बोझ खुद लाइट हो जाओ

करेंगे जो अपनी और सबकी समस्या का समाधान

संतुष्ट रहेंगे अपने जीवन से पाएंगे सबका सम्मान

ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!