05-11-16
मुरली कविता
बच्चों सेवा करना मन में उमंग उत्साह जगाकर
उन्नति सदा करते जाना याद का समय बढ़ाकर
सेवा में दिल ना लगने देगी देहभान की बीमारी
छूटेगी बड़ी मुश्किल से लगकर इसकी ग्रहचारी
चलती रहे निरन्तर ये रूहानी यात्रा सबसे न्यारी
इसी यात्रा में चलकर हम बन जाते हैं निर्विकारी
याद की यात्रा करने के लिए पूरी शक्ति लगाओ
अपना पुरुषार्थ भी तुम बाप समान तीव्र बनाओ
अपने जीवन का एक दिन रोजाना कम हो जाता
पुरुषार्थ का दिन कम होता नजर नहीं क्यूँ आता
देहभान मिटेगा बाप की याद में खुद को डुबोकर
करते जाना रूहानी सेवा हर पल तुम खुश होकर
सेवा में बनना मददगार मानकर बाप का कहना
ज्ञान धन पाकर तुम हर पल गुप्त ख़ुशी में रहना
श्रेष्ठ तकदीर की स्मृति द्वारा समर्थ करो संस्कार
मायामुक्त होकर पाओ सूर्यवंशी राज्य अधिकार
बाप समान जो हर आत्मा पर करते रहते रहम
अहम खत्म होता उनका समाप्त हो जाता वहम
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!