मुरली कविता दिनांक 04.12.2017


जन्म चौरासिवां ये अपना अब वापस घर जाना

अपनी सतयुगी दुनिया में नव जीवन हमें पाना

लेकर एक पैसा बाप बच्चों को साहूकार बनाते

इसीलिए तो शिवबाबा पक्के सौदागर कहलाते

ईश्वरीय ज्ञान सुनने में कभी ना रहना तुम सुस्त

इसी ज्ञान को सुनकर आत्मा हो जाती तंदुरुस्त

शिवबाबा हम बच्चों को करता है कितना प्यार

घर ले जाने से पहले करता हर बच्चे का श्रृंगार

बीच समंदर बसी दुनिया में रावण राज है फैला

जिसको देखो होकर बैठा पांच विकारों से मैला

रावण की जेल से सीता को राम छुड़ाने आता

सम्पूर्ण विश्व का मालिक हम बच्चों को बनाता

अन्त समय सृष्टि चक्र का अब वापस जाना है

घर जाने से पहले हमें खुद को पावन बनाना है

बच्चों समान जन्म नहीं लेता मैं तो हूँ निराकार

ब्रह्मा तन को धारण करके मैं मिलता हूँ साकार

समझदार बच्चे सदा बाप की श्रीमत अपनाते

श्रीमत पर जो चलते हैं वे धोखा कभी ना खाते

बाप के सिखाये हुए सब मैनर्स हमें अपनाने हैं

मधुर वाणी अपनाकर सबको मैनर्स सिखाने हैं

मर्यादा में रहने वाले ही पाते बाप की छत्रछाया

मर्यादा की रेखा के भीतर आ ना सकेगी माया

संकल्प से भी जो कोई मर्यादा से बाहर जायेंगे

चोटें पांच विकारों की वो इसी वजह से खायेंगे

जैसे जैसे हम खुद को अशरीरी बनाते जाएंगे

वैसे वैसे समाप्ति का समय समीप हम लाएंगे

ॐ शांति