मुरली कविता दिनांक 23.11.2017
ग्रहस्थ व्यवहार में रहकर सबसे तोड़ निभाओ
बेहद के सन्यास से अविनाशी प्रालब्ध बनाओ
याद रखो तुम हो एक्टर और आये पार्ट बजाने
परमधाम से आया हूँ मैं तुमको वापस ले जाने
सर्व गुणों से जो खुद को सम्पूर्ण सम्पन्न बनाते
शिव बाबा से सद्गति का वर्सा वो बच्चे ही पाते
नाटक पूरा होने को है पुरुषार्थ अनुसार जानो
दुखधाम भूलकर सुख की दुनिया को पहचानो
गृहस्थ व्यवहार छोड़कर तुम जंगल में ना जाना
बाप से रिश्ता जोड़कर तुम सबसे तोड़ निभाना
सबको ये खबर कर दो कि परमपिता है आया
पावन बनो मेरे लाडलों उसने आकर समझाया
छोड़ो पांच विकारों को तुम पवित्रता अपनाओ
बिना किसी भी खर्चे के स्वर्ग की राजाई पाओ
बुद्धि को स्वच्छ रखकर तुम ग्रहचारी से बचना
ड्रामा के पट्टे से मेरे बच्चों कभी नहीं तुम हटना
पुरानी दुनिया के प्रति बेहद का वैराग्य जगाओ
लगाव मुक्त बनकर सच्चे राजऋषि कहलाओ
मन बुद्धि और संस्कार पर रख लो पूरा संयम
स्वराज्य अधिकारी बनने का एक यही है नियम
देह के रिश्तों की निर्भरता बना देगी निराधार
बाप को तुम बना लो अपने जीवन का आधार
ॐ शांति