मुरली कविता दिनांक 02.12.2017
धूमधाम से मनाओ शिव जयन्ती का त्योंहार
शिव का अवतरण हुआ ये जान जाए संसार
ज्ञान योग में बच्चों को सुस्ती कभी ना आये
प्यार बाप से करने वाले गफलत में ना जाये
चलते चलते डगमगाकर बच्चे क्यूँ गिर जाते
काम क्रोध के इतने भी वशीभूत क्यूँ हो जाते
देह अहंकार में आकर वो बाप को भूल जाते
अपनी चलन बिगाड़कर देवतायी पद गंवाते
ज्ञान रत्नों की धारणा का खूब नशा चढ़ाओ
देहभान त्यागकर बाबा की यादों में समाओ
अपनी चलन सुधारकर जो सेवा करते जाते
विजयमाला में केवल वही बच्चे पिरोये आते
देह अहंकार को त्यागकर सेवा करते जाना
अपनी बुद्धि पर ज्ञान योग का नशा चढ़ाना
ईर्ष्या त्यागकर खुद को बाप समान बनाना
सेवा लेने का विचार कभी ना मन में लाना
शीतल जल रहम का हर आत्मा पर डालो
वरदानी मूरत का टाइटल बाबा से तुम पा लो
स्मृति में समाना तुम परमात्म मिलन के मेले
समाप्त हो जाएंगे फिर माया के सभी झमेले
ॐ शांति