मुरली कविता दिनांक 06.11.2017
बेहद बाप की गोद पाकर बने हो उसकी सन्तान
चलकर उसकी श्रीमत पर मानो उसका फरमान
वानप्रस्थी ब्रह्मा के तन में परमपिता जब आते
सृष्टि के संग हम बच्चों को भी वानप्रस्थी बनाते
बाप के बनकर जो पुरानी दुनिया से मर जाते
पावन बनकर वही विजयमाला में पिरोये जाते
मुक्ति पाकर बनते हैं शिवबाबा के गले का हार
जीवनमुक्ति पाकर बनते विष्णु के गले का हार
बाप की हर श्रीमत को जो खुशी खुशी अपनाते
देव कुल में आकर वो बच्चे बेहद का सुख पाते
ब्रह्मा मुख वंशावली हम सब बच्चे ज्ञान कुमार
ज्ञान नेत्र खुला हमारा बदलेंगे हम सारा संसार
पूरे कल्प में संगमयुग ही सच्चा तीर्थ कहलाता
संगम में हर बच्चा अपने बाप से मिलन मनाता
पुरानी दुनिया को शिवबाबा नई दुनिया बनाते
बच्चों को भी बाबा नालायक से लायक बनाते
युग धर्माऊ संगम का बनाता सबको धर्मात्मा
तन का भान छोड़कर हम बच्चे बनते आत्मा
मुक्ति हो चाहे जीवन मुक्ति मीठे दोनों ही धाम
देह भान नहीं वहाँ ना ही दुख का नाम निशान
युग चल रहा संगम का सबको तुम समझाओ
शिव पिता आया खबर ये चारों और फैलाओ
याद की यात्रा में बच्चों तूफान बहुत ही आयेंगे
ना घबराने वाले ही अपनी मंजिल को पायेंगे
अज्ञान मिटाकर बाबा हमको बनाते बुद्धिमान
त्रिकालदर्शी बनते पाकर तीनों कालों का ज्ञान
अपना विद्यार्थी जीवन देखकर बच्चों हर्षाओ
भगवान बाप पढ़ाते हमें इसकी खुशी मनाओ
सबकी खातिर खुद को तुम रहमदिल बनाओ
श्रीमत पर चलकर दुआओं का खाता बढ़ाओ
दुआ वही दे सकता जो मन में रखे क्षमा भाव
शिक्षा देना सबको तुम अपनाकर यह स्वभाव
परमात्म दुआओं से जो बच्चा हो जाता भरपूर
माया भी उस बच्चे से सदा रहती है डरकर दूर
ॐ शांति