मुरली कविता दिनांक 21.11.2017
खेल अनादि बना हुआ सब अपना पार्ट बजाते
पार्ट किसी के भी आपस में कभी मेल ना खाते
ज्ञान योग का इंजेक्शन जो रोज बाबा से खाते
पावन बनकर और बनाकर वो सद्गति को पाते
तन जिसका लेकर शिवबाबा धरती पर आता
ज्ञान गंगा बहाने वाला तन भागीरथ कहलाता
कृष्ण नहीं भगवान वो तो देहधारी सतयुग का
ब्रह्मा बनकर वो परिवर्तन करता कलियुग का
कल्प भर के मेले में तुम संग रहना और खोना
छोड़ जाये अगर तन कोई कभी नहीं तुम रोना
किये पाप तुमने जैसे पाया रोग भी तुमने वैसा
बन जाओगे फिर से निरोगी करो कहूँ मैं जैसा
ज्ञान योग की मीठी दवाई रोज बाबा से खाओ
याद की यात्रा में रहकर पावन खुद को बनाओ
मर्ज कर दो हर हलचल बनकर सर्वशक्तिमान
अचल अडोल होकर मिटा दो माया के तूफान
परिस्थितियों से कोई न कोई शिक्षा लेते जाओ
घबराना छोड़कर तुम परिपक्व बनते जाओ
ॐ शांति