मुरली कविता दिनांक 05.11.2017
दिलाराम बाप का दिलरुबा बच्चो से मिलन
मिलन मनाने की उमंग बच्चों के दिल में समाई
बाप को बच्चों के पास ये उमंग खिंचकर लाई
खुला है बच्चो के लिए बाप का आकारी दरबार
जब चाहो मिलन मनाओ टर्न की नहीं दरकार
तड़प मिलन की देखकर तरस बाप को आता
बच्चों से मिलन मनाने बाप परमधाम से आता
बच्चों की लगन ही मिलन का अनुभव कराती
आकारी दुनिया में भी साकार की भासना आती
सारे कल्प का प्यार बच्चों को बाबा देने आते
अल्प समय में बच्चों पर वो बेहद प्यार लुटाते
बन जाते जो बाप के बच्चे वो कहलाते विशेष
ना रहता बच्चों के अंदर कोई भी अवगुण शेष
वर्सा पाने का तुम अधिकारी खुद को बनाओ
दिल शिकस्त जो कर दे उन बातों में ना आओ
उड़ती कला में आना है तो रहना डबल लाइट
नहीं करेगी माया तुमसे फिर कोई भी फाइट
सर्व संबंध बाप से जोड़कर हीरो पार्ट बजाओ
कभी कभी का शब्द अपने जीवन से मिटाओ
असंभव को संभव कर दे प्रभु प्यार की शक्ति
सदा के लिए मिल जाती हर मुश्किल से मुक्ति
श्रेष्ठ चलन चलकर दुआओं का खाता बढ़ाओ
पहाड़ जैसी हर मुश्किल को रुई समान बनाओ
ॐ शांति