मुरली कविता दिनांक 09.12.2017


गीत खुशी के गाओ अब हम चलेंगे शांतिधाम

एक पल का विश्राम कर जाएंगे हम सुखधाम

रस्ता बड़ा ही नाजुक है बच्चों रहना खबरदार

व्यर्थ की बातें बुद्धि में कभी न करना स्वीकार

हमें नहीं था मालूम कि स्वर्ग किसको कहते हैं

दुख नहीं होता वहां पर सुखी सदा हम रहते हैं

पतित दृष्टि के कारण दुनिया पतित बन जाती

पतितपने की प्रथा केवल द्वापर से चली आती

माया से खुद को बचाकर फरिश्ता बन पाओगे

थप्पड़ खा लिया माया से तो भ्रष्ट बन जाओगे

सुनकर बच्चों की पुकार बाबा धरती पर आते

मूत पलीती हम बच्चों को बाबा कंचन बनाते

सिर्फ एक दीप नहीं सारी दुनिया बन गई लंका

बज रहा है चारों तरफ पांच विकारों का डंका

बाबा कहते बच्चों केवल याद मुझे तुम करना

किसी देहधारी से कभी प्यार नहीं तुम करना

अशरीरी आये थे और अशरीरी हमको जाना

किसी देहधारी में तुम अपना दिल ना लगाना

सुख चैन नहीं इस दुनिया में क्यूँ हम रहें यहाँ

ले जाने बाबा खुद आये सुख चैन मिले जहाँ

कौन इतना समझाता है उसको जरा पहचानो

ज्ञान समझने से पहले खुद को आत्मा जानो

बाप से मिले ज्ञान रत्न सब पर तुम लुटाओ

फालतू बातें करने वालों से खुद को बचाओ

असुर बनकर हमने किया बाप का अपकार

किंतू अपने बच्चों को बाप करते सदा प्यार

वृत्ति शुद्ध बनाकर शत्रु को भी मित्र बनाओ

व्यर्थ बातें कभी ना सुनो ना ही तुम सुनाओ

अपने संकल्पों को बार बार तुम ब्रेक लगाओ

नेगेटिव से पॉजिटिव में परिवर्तन होते जाओ

स्व परिवर्तक से विश्व परिवर्तक बनते जाओ

सुख शांति का वरदान सब पर लुटाते जाओ

जो हुआ था कल्प पहले वही दुबारा होता है

स्मृति में जो इसे रखता कभी नहीं वो रोता है
 

ॐ शांति