मुरली कविता दिनांक 07.12.2017
इधर उधर की बातों में ना करो वक्त बर्बाद
बाप की याद में रहकर हो जाओगे आबाद
बाप समान सेवा करके बाला कर लो नाम
चारों तरफ फैलाते जाओ ईश्वरीय पैगाम
आत्माभिमानी होकर एक बाप से सुनना
श्रीमत पर चलकर बाप समान ही बनना
बाप में बुद्धि लगाकर बन जाओ गुणवान
अंतर्मुखी बनने वाले ही कहलाते हैं महान
हम सब ज्ञान गंगायें ज्ञान सागर से निकली
स्व परिवर्तन से हमने दुनिया सारी बदली
समय बचा है थोड़ा भर लो अपनी झोली
बाप समझाते सबको कहकर मीठी बोली
अन्तर्मुखता की गुफा में होना विराजमान
कभी न आयेंगे फिर माया के कोई तूफान
माया से नहीं डरते आत्म अभिमानी बच्चे
अंतर्मुखी ही बनते आत्म अभिमानी सच्चे
आंखों से दिखने वालों से ममत्व मिटाओ
सर्व संबंधों से बाप से पूरा प्यार निभाओ
बाप की याद का मन में ऐसा नशा चढ़ाओ
खोकर उसकी यादों में पूरे मस्त हो जाओ
मीठे बच्चों कभी ना होना योग में तुम फैल
वरना फिर से चढ़ जायेगी विकारों की मैल
योगयुक्त होकर ही पकाना हमेशा भोजन
अपने हर संकल्प में करते जाना संशोधन
लौकिकता को त्यागकर सेवा करते जाओ
मैं और मेरेपन की वृत्ति को मिटाते जाओ
अपनी कथनी करनी एक समान बनाओ
ईश्वरीय सेवा में अपना पहला नम्बर पाओ
सर्व खजानों से बना लो खुद को सम्पन्न
कोई परिस्थिति ना होगी जीवन में उत्पन्न
ॐ शांति