मुरली कविता दिनांक 16.11.2017


बनना है नर से नारायण तो दिव्य गुण अपनाओ

चुन चुनकर अपने अंदर से हर अवगुण मिटाओ

सेवा की लगन ही करवाती दिव्यता की पहचान

करते जितनी ईश्वरीय सेवा बनते उतने ही महान

ना ब्रह्मा ना विष्णु ना शंकर ना कृष्ण की आत्मा

पतितों को पावन बनाता है एक पिता परमात्मा

दुर्गति वालों की सद्गति करने रात अंधेरी में आये

शुद्र बने मानव को वही तो पवित्र ब्राह्मण बनाये

सावधान बच्चों कहीं माया से हार न खाते जाना

काम का घूंसा खाकर खुद को ना पतित बनाना

सबको सुखी बनाकर बाप से वफादारी निभाना

पवित्र बनकर काम की चोट से खुद को बचाना

तुम आधारमूर्त आत्माओं को देखे दुनिया सारी

विश्व परिवर्तन की तुम बच्चों पर ही जिम्मेदारी

दृष्टि वृत्ति शुद्ध बनाकर बदलो तुम दुनिया सारी

अपने श्रेष्ठ कर्मों से बनाओ ये दुनिया श्रेष्ठाचारी

हर कर्म के प्रति केवल निमित्त भाव अपनाओ

कर्म प्रभाव से मुक्त होकर बंधनमुक्त कहलाओ

कर्म करो तन से न्यारे स्व के अधिकारी बनकर

तभी रह सकोगे बच्चों हर बंधन से तुम बचकर

ॐ शांति