मुरली कविता दिनांक 25.10.2017


ईश्वरीय अपनी रूहानी कमाई पर बच्चों रखो पूरी नजर

व्यर्थ बातों में कहीं तुम्हारा समय ना जाये गुजर

सबके ऊपर पापों का चढ़ा बहुत ही ज्यादा भार

शिवबाबा की याद में रहकर अब देना इसे उतार

केवल वही बच्चा कर सकता है रूहानी कमाई

संगमयुग की घड़ियाँ जिसने व्यर्थ में नहीं गंवाई

सुबह सवेरे प्यार से करते हैं जो बाबा को याद

फ़रिश्ता बनकर उड़ने का वो ले सकते हैं स्वाद

हर आत्मा के खातिर तुम सदा रहमदिल रहना

अपने परमपिता का परिचय सबको देते रहना

हद और बेहद के बाप का अंतर सबको बताओ

जीवनमुक्ति देगा परमपिता सबको ये समझाओ

ईश्वरीय सम्प्रदाय का होने की मस्ती हमें चढ़ानी

रूहानी सेवा में देना हमें अपनी पूरी ही कुर्बानी

भ्रकुटी रूपी सिंघासन पर विराजमान हो जाओ

मायाजीत बनकर तुम बाप का दिलतख्त पाओ

कर्मेन्द्रियों रूपी प्रजा पर अपना राज्य चलाओ

हर विघ्न और समस्या को तुम दूर से ही भगाओ

भरते रहो हर पल अपनी आत्मशक्ति की उड़ान

संकल्पों को सिद्ध कर कहलाओ आत्मा महान

ॐ शांति