मुरली कविता दिनांक 24.10.2017
पतित से पावन बनाने की सेवा निरन्तर करना
दिल शिकस्त होकर कभी विघ्नों से नहीं डरना
हम सब ईश्वरीय विद्यार्थी यह सदा रखना याद
गफलत में रहकर कभी वक्त नहीं करना बर्बाद
कौन है परमपिता परमात्मा देना उसका ज्ञान
देकर सत्य परिचय करवाना ज्ञानामृत का पान
ना भूलो ईश्वरीय बचपन इसका नहीं कोई मोल
संगमयुग में प्यार बाप का मिलता है अनमोल
पछताना होगा उसे जो छोड़ेगा ईश्वरीय पढ़ाई
मुर्ख और महान आत्मा दोनों यहाँ नजर आई
माया के बनकर अगर बाप से हाथ छुड़ाओगे
ना मालूम पश्चाताप के आंसू कितने बहाओगे
निश्चय रखना दिल में माया पर जीत पाने का
लक्ष्य हो संसार को नापाक से पाक बनाने का
दिल शिकस्त ना होना जरूर मिलेगी सफलता
दुनिया की बातों से तुम नहीं रखना कोई रिश्ता
बाप के होकर भी किसी को दिल में बसाओगे
श्रेष्ठाचारी से बदलकर व्याभिचारी बन जाओगे
नहीं रहता हो जिसका पुरानी दुनिया से रिश्ता
बंधनमुक्त होकर बनेगा वो जीवनमुक्त फ़रिश्ता
कर्मेन्द्रियों को लेगा सिर्फ कर्म के लिए उपयोग
उसके अन्तर्मन में रहता है कर्मेन्द्रियों से वियोग
कीमत नहीं धन की जो भौतिक साधन दिलाये
रूहानी स्नेह हमारे जीवन में काम हमेशा आये
ॐ शांति