मुरली कविता दिनांक 30.10.2017
बाबा का ज्ञान कस्तूरी जैसा इसका जानो मोल
कुर्बान होकर बाबा पर बन जाओ तुम अनमोल
अपने रूहानी मात पिता के अनुसरण में चलना
पावन बनने की खातिर अपने संस्कार बदलना
अच्छी रीति जो पढ़ते वो बन जाते ताक़दीवान
पढ़कर और पढ़ाकर बनेंगे ज्ञान धन से धनवान
माया ने ही हम बच्चों को कितना भोला बनाया
ईश्वरीय ज्ञान सुनाकर बाबा ने समझदार बनाया
बाप से क्या मिलता है ये बाप ही आकर बताते
आत्माभिमानी बनने की मेहनत बाबा करवाते
शिवबाबा के हम बच्चे बने ये बुद्धि में बिठाओ
रहमदिली अपनाकर अंधों की लाठी बन जाओ
नर से नारायण बनने की मन में लगन लगाओ
श्रीमत को अपनाकर सर्व दैवी संस्कार जगाओ
ज्ञान की पराकाष्ठा पर बुद्धि तुम्हारी पहुँच जाये
जिसको भी ज्ञान सुनाओ वो बाबा का बन जाये
अत्मभान जगाकर सबसे करो तुम मधुर संवाद
स्वदर्शन चक्रधारी होकर करो ज्ञान का शंखनाद
बनकर पुरे पावन अब हम बाबा संग घर जायेंगे
जैसा पार्ट बजाया स्वर्ग में वैसा ही पार्ट बजायेंगे
सच्चे बाप से सच्चे रहना मन में ना रखना खोट
कभी ना खाना मेरे बच्चों तुम देहभान की चोट
आग में जलकर मिटने वाला है यह सारा भंभोर
कर्म करते बुद्धि को रखना हमेशा बाप की ओर
बनो बाप समान भरकर जीवन में ज्ञान उजाला
फॉलो फादर करके पहनलो अष्ट रत्न की माला
सहयोग किसी से पाने की उम्मीद कभी न पालो
अपने पुरुषार्थ से स्वयं को आत्मनिर्भर बना लो
एक बाप दूजा ना कोई का मंत्र जो भी अपनाये
वही सहज रीति से स्वयं को बाप समान बनाये
गोपी वल्लभ की जो सच्ची गोपिका बन जाते हैं
अतीन्द्रिय सुख का अनुभव वो बच्चे ही पाते हैं
ॐ शांति