मुरली कविता दिनांक 22.11.2017


चक्र फिराओ स्वदर्शन का बुद्धि मुझसे लगाओ

मेरी याद में रहकर अपने पापों के दाग मिटाओ

खड़े हो संगम पर सामने सतयुग का दरवाजा

बनकर सच्चे ब्राह्मण बनो स्वर्ग का गोरा राजा

पहुंच जाता जब सारी दुनिया में पाप चरम पर

रावण का ग्रहण लग जाता आत्मा के धरम पर

इसी समय पर मैं सबको पावन बनाने आता हूँ

अपने बिछड़े बच्चों से आकर मिलन मनाता हूँ

घर हो जब पुराना तो दुखदायक बन जाता है

दुनिया रूपी घर को बाबा नया बनाने आता है

नई दुनिया की सुंदरता का पवित्रता है आधार

खुद को श्रेष्ठ बनाओ लाकर संस्कारों में सुधार

संगमयुग में मान लो बाबा का एक ही फरमान

पावन बने रहना चाहे करता हो कोई अपमान

मिटने वाली दुनिया से तुम पूरा ममत्व मिटाओ

स्वदर्शन चक्र चलाकर नष्टोमोहा बनते जाओ

घर चलने के लिये रहना तुम बच्चों सदा तैयार

अंत समय ना कर पाओगे इक क्षण भी विचार

निर्मोही निर्विकल्प नष्टोमोहा अवस्था बनाओ

स्वेच्छा से तन त्यागकर परमधाम को जाओ

खुद को रखो ढ़ालकर हर परिस्थिति अनुसार

विजयी बनो तुम मिटाकर मुश्किल को हर बार

ॐ शांति