मुरली कविता दिनांक 01.11.2017
श्रीमत पर चलकर स्वयं को स्वच्छ शुद्ध बनाओ
ईश्वरीय सेवा की तुम युक्तियुक्त विधि अपनाओ
मिटा डालो अपने जीवन से अहंकार के संस्कार
ईश्वरीय नशे में रहकर करो सबसे शुद्ध व्यवहार
भूल जो की है बच्चों ने उसे बाबा सुधारने आया
किसने दिया गीता ज्ञान बाबा हमें बताने आया
माध्यम बनता जो ज्ञान का वही कृष्ण पद पाता
लेकिन गीता ज्ञान दाता निराकार शिव कहलाता
मीठे बच्चों जिसके दर पे आये हो तुम सब मरने
गीता ज्ञान सुनाकर वो आया सबके दुःख हरने
सिद्ध करके बताना कौन है गीता ज्ञान का दाता
पतित दुनिया को पावन बनाने कौन यहाँ आता
सर्वशास्त्रमई शिरोमणि गीता कहलाती है माता
गीता ज्ञान जो अपनाता वो देव तुल्य बन जाता
ज्ञान की बातें समझना बुद्धि को स्वच्छ बनाकर
इस दुनिया में रखना माया से खुद को बचाकर
विश्व शांति का सम्मेलन दुनिया वाले करते जाते
लेकिन अपनी आत्मा का शांति धर्म ना अपनाते
दैवी धर्म हुआ है खण्डित जब से पतित बने हम
लुटाकर अपना राज्य भाग्य कौड़ी तुल्य बने हम
है भारत की माताओं तुम खोलो स्वर्ग का द्वार
शिव का सत्य ज्ञान सुनाकर बदलो सारा संसार
ईश्वरीय ज्ञान का शुद्ध नशा अपने अंदर चढ़ाओ
कौन है गीता ज्ञान दाता सिद्ध करके दिखलाओ
व्यर्थ को देखना छोड़कर मिटा दो हर मुश्किल
अपनी नजरों के सामने तुम रखो अपनी मंजिल
ब्रह्मा समान न्यारे होकर हर जिम्मेवारी संभालो
हल्के रहकर सदा तुम अपनी मंजिल को पा लो
व्यर्थ की बातों के जाले अपने मन में नहीं बुनो
मन को दुखी करने वाली बातें कभी नहीं सुनो
ॐ शांति