मुरली कविता दिनांक 18.11.2017
अपनी बुद्धि किसी भी देहधारी में ना लटकाओ
याद करके बाबा को औरों को भी याद दिलाओ
योगयुक्त होकर सदा भोजन बनाना और खाना
फालतू बातें करने वालों से खुद को तुम बचाना
कर ना बैठो विकर्म कोई सावधान तुमको रहना
अविनाशी सर्जन से हर पल राय सदा लेते रहना
बाबा की याद दिलाकर सबको देना है जियदान
तभी बनेगा जीवन अपना हीरे तुल्य और महान
पतित से पावन बनाऊं लेकर ब्रह्मा तन आधार
देह नहीं है मेरी कोई मैं हूँ विदेही और निराकार
विनाश खड़ा है सामने कोई गफलत ना करना
पड़ ना जाये कहीं तुम्हें पछता पछताकर मरना
विकर्म हुआ अगर कोई तो बाप से ना छिपाओ
राय मिलेगी बाबा से तुम सच्चे दिल से बताओ
परमधाम जाना है वापस तन की ड्रेस उतारकर
ऊंच पद पाने के लिए रखना खुद को सुधारकर
ज्ञान के साथ गुणों का तुम जितना करोगे दान
उतना ही बनते जाओगे सभी गुणों से धनवान
हर परिवर्तन के लिए अपनाओ मौन की शक्ति
मिल जायेगी सदा के लिये व्यर्थ से तुम्हें मुक्ति
ॐ शांति