मुरली कविता दिनांक 28.10.2017


मीठे बाबा को याद करो समय भोर का चुनकर

भोजन सबको खिलाओ बाप की याद में रहकर

मुख से किसी को दुखदायक बोल नहीं सुनाओ

देवता बनने के लिए तुम प्रेम का गुण अपनाओ

अवगुण भूत समान इन्हें मिटाओ जीवन से पूरा

अवगुण मिटाए बिन विश्व परिवर्तन रहेगा अधुरा

शिवबाबा की याद में रहकर करने हैं काम सभी

संसार को स्वर्ग बनाने का सपना पूरा होगा तभी

संगम में बाबा ने हमें सृष्टि चक्र का राज बताया

सतयुग से कलियुग तक कैसे हमने चक्र लगाया

छोड़ो सारी बातें धारण करो बाबा की समझानी

देहभान छोड़ना जैसे सर्प छोड़ता खाल पुरानी

बागबान बाबा जो दैवी दुनिया की कलम लगाते

बनकर वही खिवैया अपने संग हमको ले जाते

5 विकारों से मुक्ति पाओ तुम देकर इनका दान

तभी मिलेगा सतयुग में तुम बच्चों को पद महान

इतने बच्चे होकर भी बाबा क्रोध कभी ना करते

बाप के बनकर भी बच्चे क्रोध इतना क्यों करते

क्रोध के वश रहने वाला कभी देवपद नहीं पाता

अपने दैवी परिवार के बीच खुद का मान गंवाता

याद करो शिवबाबा को तब होंगे विकर्म विनाश

पूरी होगी तभी हमारी सच्चा सुख पाने की आस

इक दूजे को शिवबाबा की तुम याद दिलाते रहना

आये कोई भी परीक्षा तुम बाप की याद में रहना

देकर अवगुण का दान फिर से ना तुम अपनाना

भीतर बैठे क्रोध के भूत को जड़ से पूरा मिटाना

रूहानी सेवा के द्वारा सबको संतुष्ट करते जाना

दुआओं के विमान में उड़ संतुष्टमणी कहलाना

जिसके सच्चे दिल से वरदाता भी राजी हो जाए

वही आत्मा सदा सदा रूहानी मौज में झूमे गाये

ॐ शांति