मुरली कविता दिनांक 08.12.2017


परमधाम से धरा पर आया परमात्मा निराकार

पढ़ाता हमें एक वही कर लो मन से ये स्वीकार

कभी न पूछो बाप से तुम कब तक रहोगे आते

घर आये मेहमान से ऐसे सवाल नहीं पूछे जाते

जब तक हूँ संग तुम्हारे मिलन की मौज मनाओ

मेरे अंग संग रहकर तुम मेरे समान बनते जाओ

निराकार मैं परमपिता शिव तन ब्रह्मा का लेता

स्वर्ग का वर्सा लेने वाला ज्ञान तुम सबको देता

मैं हूँ परम शिक्षक अपने बच्चों को पढ़ाने आता

अपना फर्ज निभाकर बच्चों को लायक बनाता

नाम कृष्ण का रखकर तुमने गीता कर दी झूठी

आधा कल्प से बच्चों की किस्मत उनसे है रूठी

दिन बच गये थोड़े अब तो आग है लगने वाली

रहते हो जिस दुनिया में वो ही पूरी मिटने वाली

पतित जो बन जाते वो पतित पावन को बुलाते

इसी पतित दुनिया को बाबा पावन बनाने आते

स्वर्ग बनाओ भारत को तुम करके सेवा रूहानी

संशय से प्रभावित हमें अपनी बुद्धि नहीं बनानी

व्यक्त से अव्यक्त होने की शक्ति मन में जगाओ

हर परिस्थिति में बुद्धि को चाहे जिधर टिकाओ

खुशी की खुराक तुम मिलकर रोज खाते जाओ

अपने संग संग औरों को तंदुरुस्त बनाते जाओ

ॐ शांति