मुरली कविता दिनांक 23.12.2017
बिन बोले मुझको याद करो नहीं करो आवाज
दिल ही दिल में बजाना मिलन का सुंदर साज
ज्ञान रत्न मुख से निकाले रखे श्रीमत पर कदम
ईश्वरीय नशे में रहने वाले बोलते बहुत ही कम
अशांत हुआ जग सारा करता शांति की चाहत
भटक चुके सब जगह लेकिन नहीं मिली राहत
सच्ची शांति मिलेगी बच्चों शांतिधाम में जाकर
किंतू रखो पहले खुद को तुम अशरीरी बनाकर
आया मुसाफिर दूर देश से छीछीपन से छुड़ाने
बाप आया अपने बच्चों को स्वर्गलोक ले जाने
मधुर गीतों को सुनकर अपनी उदासी मिटाओ
कर करके अभ्यास आत्माभिमानी बन जाओ
अपने अंदर बच्चों तुम शांति की शक्ति जगाओ
इसी एक शक्ति से असम्भव को सम्भव बनाओ
सेवा करते हुए रहना सदा निमित्त और निर्माण
सच्चे सेवाधारी का होता बच्चों एक यही प्रमाण
ॐ शांति