मुरली कविता दिनांक 24.12.2017
संगमयुग में बाबा से पाया है जीवन हीरे समान
मिली बाप से बच्चों को अपनी असली पहचान
हीरे समान बच्चों को देख बाबा बहुत मुस्काते
अपनी चमक बढ़ाने बच्चे बाप से मिलने आते
बाप ने देखा है बच्चों का अलग अलग रंग रूप
परचिंतन से काले हुए या लगी परदर्शन की धूप
भूल जाते स्वचिंतन करना परचिंतन अपनाकर
खुद को दाग लगाते ही रहते संगदोष में आकर
परचिंतन की व्यर्थ बातों में बच्चे इतने खो जाते
घिरकर इन बातों में जैसे रामायण कथा बनाते
परचिंतन की इन बातों का जंगल बड़ा विशाल
इसमें घिर जाने पर खुद को न पाओगे निकाल
अपने चारों तरफ स्वचिंतन का ऐसा घेरा बनाना
इस स्वचिंतन के परकोटे से बाहर कभी न जाना
स्वचिंतन द्वारा अपने में ज्ञान समाओ गीता का
फरियादी बनकर तुम ना पार्ट बजाओ सीता का
परचिंतन और परदर्शन को मन से पूरा मिटाओ
बेदाग चमकता सच्चा हीरा खुद को तुम बनाओ
कारण जानो तुम परचिंतन क्यों करते हो इतना
ग्रंथ बन जायेगा इसका सुनाते जाओगे जितना
अपनी कमजोरी छुपाकर औरों पर दोष लगाते
परचिंतन परदर्शन का महारोग हर रोज बढ़ाते
सुन्दर मिलन के मेले में इसको दे दो पूरी विदाई
बाप समान बनाकर खुद को सबको देना बधाई
बाप की यही चाहत बच्चे खुद को सम्पन्न बनाये
समय से पहले हर एक नम्बर वन हीरा बन जाये
अवसर मिला है मीठे बच्चों जो चाहो बन जाओ
उड़ती कला में आकर नंबर वन हीरा कहलाओ
ॐ शांति