02-08-75   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


विदेश में ईश्वरीय सेवा का महत्व

डबल विदेशी बच्चों के लिये विदेशी बनने वाले ज्योर्तिमय ब्रह्म महातत्व के वासी शिव बाबा बोलेः-

बाप-दादा के सम्मुख कौनसे बच्चे सदा रहते हैं? सदा सम्मुख रहने वाले बच्चों की विशेषता क्या है? ऐसे विशेष आत्माओं के प्रति बापदादा को विशेष रूप से मिलन मनाना होता है। ऐसे बच्चों को नयनों के सितारे व जहान के नूर कहा जाता है। जैसे स्थूल शरीर के अन्दर सबसे विशेष और सदा आवश्यक अंग नयन हैं। नयन नहीं तो जहान नहीं। इसी प्रकार ऐसे बच्चे इतने विशेष गाये हुए हैं। ऐसे बच्चे सर्विसएबल होने के कारण विश्व के लिये व जहान के लिए नूर अर्थात् प्रकाश व ज्योति के समान हैं। जैसे जान (शरीर) के लिए नयन आवश्यक हैं वैसे ही जहान के लिए नूर आवश्यक हैं। अगर ऐसी आत्मायें निमित्त नहीं बनें तो जहान जंगल बन जाता है अर्थात् जहान, जहान नहीं रहता। ऐसे सदा स्वयं को भी सितारा ही समझकर कर्म करते हैं? सितारा भी चमकता हुआ सितारा। ऐसे बच्चे ही बापदादा के नयनों में समाये हुए अर्थात् बाप की लगन में सदा मग्न रहने वाले हैं। साथ-साथ उनके नयनों में भी सदा बापदादा समाया हुआ रहता है। ऐसे नयनों के नूर सिवाय बाप के और कोई भी व्यक्ति व वस्तु को देखते हुए भी नहीं देखते। ऐसी स्थिति बनी है अथवा अब तक भी और कुछ दिखाई देता है? किसी में भी अंश-मात्र कोई रस दिखाई देता है? असार संसार अनुभव होता है? यह सब मरे ही पड़े है - ऐसा बुद्धि द्वारा अनुभव होता है? मुर्दों से कोई प्राप्ति की इच्छा हो सकती है, क्या कोई सम्बन्ध की अनुभूति होती है? ऐसे इच्छा मात्रम् अविद्या, सदा एक के रस में रहने वाले, एक रस स्थिति वाले बन चुके हो अथवा अब तक भी मुर्दों से किसी प्रकार की प्राप्ति की कामना है या कोई विनाशी रस अपनी तरफ आकर्षित करते हैं? जब तक कोई प्राप्ति की इच्छा व कामना है या कोई रस का आकर्षण है तो बापदादा  के नयनों के सितारे नहीं बन सकते व सदा नयनों में बापदादा समा नहीं सकते। एक हैं ऐसी विशेष आत्मायें जिन्हों को नूरे-रत्न व नयनों के सितारे व जहान के नूर कहते हैं। तो फर्स्ट नम्बर में तो नयनों के नूर हैं।

सेकेण्ड नम्बर क्या है? जैसे नूरे रत्न प्रसिद्ध हैं। नूरे जहान व जहान के नूर, इसी प्रकार सेकेण्ड नम्बर वाले किस रूप में प्रसिद्ध हैं? भुजाओं के रूप में! ब्रह्मा की भुजायें अनेक दिखाते है। सेकेण्ड नम्बर वाली भुजायें ज़रूर हैं अर्थात् सहयोगी आत्मायें हैं।

तो स्वयं को फर्स्ट नम्बर में समझते हो या सेकेण्ड नम्बर के? लण्डन का ग्रुप कौन से नम्बर में है? जबकि डबल विदेशी ग्रुप ने बापदादा का विशेष आह्वान किया है। विदेशी तो सब हैं लेकिन यह डबल विदेशी हैं। तो डबल विदेशियों को विशेष रूप से बापदादा का शो करना पड़े। वह तब कर सकेंगे जब नयनों के नूर बनेंगे। भुजायें नहीं। विदेशियों को सर्विस का नया प्लैन बनाना चाहिए। जैसे भारत में निवास करने वाली सर्विसएबल आत्मायें नई-नई इन्वेन्शन निकालती है। ऐसे डबल विदेशियों ने क्या इन्वेन्शन निकाली है? जैसे भारत में निकली हुई विदेश में भी करते हो वैसे विदेश की इन्वेन्शन फिर भारत में हो। जैसे प्रदर्शनी, फेयर, प्रोजेक्टर-शो व गीता पाठशालायें, यह भारत में निवास करने वालों की इन्वेन्शन हैं। ऐसे विदेशियों ने क्या इन्वेन्शन की है? (मौरीशस में प्राइममिनिस्टर को बुलाया था) किसी को बुलाना - यह भी यहाँ से शुरू हुआ है लेकिन उसको प्रैक्टिकल में वहाँ लाया है। भारत ने प्रैक्टिकल नहीं किया। यह तो ठीक है, जो कुछ किया है उसके लिए बापदादा धन्यवाद कहते हैं। लेकिन वहाँ से कोई नयी इन्वेन्शन निकली है? विदेशियों को ऐसी कोई विहंग-मार्ग की सर्विस इन्वेन्शन विदेश के वातावरण-प्रमाण निकालनी है, जो थोड़े समय के अन्दर विदेश में सन्देश पहुँच जाए। टी.वी. व रेडियो में आप लोगों का आता है वह तो वहाँ के लिए कॉमन बात है। जैसे आपका आता है वैसे औरों का भी आता है। इण्डिया में यह बड़ी बात है। लेकिन यही बात कई स्थानों में कॉमन है। तो जितना पुरूषार्थ किया है, थोड़े समय में हिम्मत, उमंग, उत्साह दिखलाते हुए सर्विस को आगे बढ़ाया है उसके लिये बापदादा लास्ट इज फास्ट का टाइटल तो देते ही हैं। लेकिन अब आपस में सब विदेशी मिल कर ऐसी नई इन्वेन्शन निकालो जो विदेश में इतना फोर्स का आवाज हो जो वह भारतवासियों तक पहुँचे। विदेश की सर्विस का मूल फाउण्डेशन ही यह है कि विदेश की आवाज द्वारा भारत के कुम्भकरण जागेंगे। विदेश-सर्विस की एम ऑब्जेक्ट यह है। विदेश का विदेश में दिखाया यह कोई बड़ी बात नहीं है। उस लक्ष्य से विदेश की सेवा ड्रामा में नूंधी हुई है और अब तक भी कोई भी इन्वेन्शन का आवाज विदेश से ही होता आया है। इन्वेन्शन भारत की ही होती है, लेकिन भारत-वासी भारत की इन्वेन्शन को विदेशियों द्वारा ही मानते आये हैं। ऐसे ही यह ईश्वरीय प्रत्यक्षता की आवाज विदेश सर्विस ही भारत में नाम-बाला करेगी। तो विदेशी इस कार्यार्थ निमित्त बने हुए हैं। इसलिये अब ऐसी इन्वेन्शन निकालो। कोई ऐसी आत्मा को निमित्त बनाओ जिनके अनुभव का आवाज हो, मुख का आवाज नहीं। अनुभव का आवाज विदेश से भारत तक पहुँचे। अन्तिम समय में विदेश सेवा को इतना महत्व क्यों दिया है, जबकि जाने वालों का भी संकल्प होता है कि ऐसे नाज़ुक व नजदीक समय पर विदेश में क्यों भेजा जाता है? जबकि अन्त में विदेश से भारत में ही आना है। फिर भी विदेश सेवा आगे बढ़ रही है। अच्छे- अच्छे हैण्डस विदेश-सेवार्थ भेजे जा रहे हैं, जबकि भारत में आवश्यकता है। निमन्त्रण हैं - फिर भी क्यों भेजा जा रहा है? और यह भी जानते हैं कि अन्य मत मतान्तरों का स्वर्ग में आने का पार्ट नहीं है, लेकिन जो ट्रॉन्सफर हो गये हैं, व कन्वर्ट हो गये हैं उन आत्माओं को अपने आदि धर्म में लाने के लिये भेजा जाता है जो बहुत थोड़े होंगे। इसका मूल आधार व विदेश सर्विस की एम-आब्जेक्ट यह है कि विदेश द्वारा भारत तक आवाज पहुँचने का राज ड्रामा में नूंधा हुआ है। इसलिए विदेश की सर्विस को फर्स्ट चान्स दिया हुआ है। बाकी गीता पाठशालायें खोलीं व टी.वी. में बोला वह कोई एम-आब्जेक्ट नहीं। वह सब साधन हैं एम-आब्जेक्ट तक पहुँचने का। समझा? तो अब आपस में ऐसी राय करो कि जल्दी से जल्दी भारत तक आवाज़ कैसे फैलावें? विदेश द्वारा भारत में आवाज कैसे हो?

आज खास विदेशियों के लिये बापदादा को भी विदेशी बनना पड़ा है। बापदादा विदेशी न बनते तो मिल भी न सके। विदेशी विशेष आत्मायें, जोकि विशेष कार्य के निमित्त बनी हुई हैं, ऐसे होवनहार ग्रुप को देखने के लिए व साकार रूप में मिलने के लिये निराकार और आकार को भी साकार रूप का आधार लेना पड़ा। ऐसी विशेष आत्मायें सदा अपने को विशेष आत्मा समझते हुए मनसा, वाचा, कर्मणा विशेष संकल्प, वाणी और कर्म करते रहो। दोनों ही तरफ के ग्रुप्स अच्छे हैं। आप लोगों के निमित्त अन्य आत्माओं को भी चान्स मिल गया और सब आत्मायें, उसमें भी विशेष मधुबन निवासी अपने को सदा लकीएस्ट समझो। क्योंकि सिवाय मधुबन के बापदादा कहाँ भी मिलन नहीं मना सकते। (लुसाका में क्यों नहीं आते) आकारी रूप में यहाँ-वहाँ जा सकते हैं। जब जिसका समय आता है तो सरकमस्टेन्सेज (परिस्थितियाँ) व समय सहज और स्वत: ही वहाँ ले जाता है। अच्छा।

स्वयं को और समय को जानने वाले, सदा सर्व रसों से न्यारे एक रस में रहने वाले, बापदादा को सदा नयनों में समाने वाले, बापदादा के नयनों के सितारे, सदा स्वयं को ज्योति स्वरूप सितारा समझकर चलने वाले, न्यारी और प्यारी आत्माओं और सर्वश्रेष्ठ आत्माओं के साथ-साथ विशेष डबल विदेशी आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

इस मुरली के विशेष तथ्य

1. पहले नम्बर के बच्चों को नयनों के नूर कहा जाता है। ऐसे नयनों के नूर सिवाय बाप के और कोई भी वस्तु व व्यक्ति को देखते हुए भी नहीं देखते। यह सब मरे ही पड़े हैं ऐसा बुद्धि द्वारा अनुभव करते हैं? कोई भी विनाशी रस अपनी तरफ आकर्षित नहीं करता। सदा एक के रस में रहने वाले, एक-रस स्थिति वाले होते हैं। ऐसे बच्चे सर्विसेबल होने के कारण विश्व के लिए व जहान के लिए नूर अर्थात् प्रकाश व अमर ज्योति के समान हैं।

2. विदेश की सर्विस का मूल फाउण्डेशन यह है कि विदेश की आवाज द्वारा भारत के कुम्भकरण जागेंगे। विदेश द्वारा भारत तक आवाज पहुँचने का राज़ ड्रामा में नूंधा हुआ है।

3.सदा अपने को विशेष आत्मा समझते हुए मनसा, वाचा, कर्मणा विशेष संकल्प, वाणी और कर्म करते