09-05-84   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


सदा एक रस उड़ने और उड़ाने के गीत गाओ

ज्ञान के सागर शिवबाबा अपने ज्ञान स्वरूप, सहजयोगी बच्चों प्रति बोले:-

आज दिलाराम बाप दिलरूबा बच्चों के दिल का गीत सुन रहे थे। अमृतवेले से लेकर हर एक दिलरूबा के दिल के गीत बापदादा सुनते हैं। गीत सब गाते हैं और गीत का बोल भी सभी का एक ही है। वह है ‘‘बाबा’’! सभी बाबा-बाबा के गीत गाते हैं। सभी को यह गीत आता है! दिन-रात गाते रहते हो। लेकिन बोल एक होते हुए भी हरेक के बोलने का तर्ज़ और साज़ भिन्न-भिन्न है। किसी के खुशी की साज़ है। किसका उड़ने और उड़ाने का साज़ है। और किस किस बच्चे का अभ्यास का साज़ है। कभी बहुत अच्छा और कभी सम्पूर्ण अभ्यास न होने कारण नीचे ऊपर भी गाते हैं। एक साज़ में दूसरे साज़ मिक्स हो जाते हैं। जैसे यहाँ गीत के साथ जब साज़ सुनते हो तो कोई गीत वा साज़ नाचने वाला होता, कोई स्नेह में समाने वाला होता, कोई पुकार का होता, कोई प्राप्ति का होता। बापदादा के पास भी भिन्न-भिन्न प्रकार के राज और साज़ भरे गीत सुनाई देते हैं। कोई आज के विज्ञान की इन्वेन्शन प्रमाण आटोमेटिक निरन्तर गीत गाते। स्मृति का स्विच सदा खुला हुआ है इसलिए स्वत: ही और सदा बजता रहता है। कोई जब स्विच आन करते हैं - तब साज़ बजता है। गाते सभी दिल से हैं लेकिन कोई का सदा स्वत: और एकरस है। कोई का बजाने से बजता है। लेकिन भिन्न-भिन्न साज़ कब कैसा, कब कैसा। बापदादा बच्चों के गीत सुन हर्षित भी होते हैं कि सभी के दिल में एक ही बाप समाया हुआ है। लगन भी एक के साथ है। सब कुछ करते भी एक बाप के प्रति है। सर्व सम्बन्ध भी एक बाप से जुट गये हैं। स्मृति में, दृष्टि में, मुख पर एक ही बाप है। बाप को अपना संसार बना दिया। हर कदम में बाप की याद से पद्मों की कमाई जमा भी कर रहे हैं।

हरेक बच्चे के मस्तक पर श्रेष्ठ भाग्य का सितारा भी चमक रहा है। ऐसी श्रेष्ठ विशेष आत्मायें विश्व के आगे एक्जैम्पल भी बन गई हैं। ताज, तिलक, तख्तनशीन भी हो गये हैं। ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें जिनके गुणों के गीत स्वयं बाप गाते हैं। बाप हरेक बच्चे के नाम की माला सिमरण करते हैं। ऐसा श्रेष्ठ भाग्य सभी को प्राप्त है ना! फिर गीत गाते-गाते साज़ क्यों बदलते हैं? कब प्राप्ति के, कब मेहनत के, कब पुकार के, कब दिलशिकस्त के। यह साज़ क्यों बदलते हैं? सदा एकरस उड़ने और उड़ाने के गीत क्यों नहीं गाते? ऐसे गीत गाओ जो सुनने वालों को पंख लग जाएँ और उड़ने लग जाए। लंगड़े को टाँगे मिल जाएँ और नाचने लग जाए। दु:ख की शैय्या से उठ सुख के गीत गाने लगे। चिन्ता की चिता पर बैठे हुए प्राणी चिता से उठ खुशी में नाचने लगें। दिलशिकस्त आत्मायें उमंग उत्साह के गीत गाने लग जाएँ। भिखारी आत्मायें सर्व खज़ानों से सम्पन्न बन ‘‘मिल गया, पाल लिया’’ यह गीत गाने लग जायें। ये ही सिद्धि प्राप्त सेवा की विश्व की आवश्यकता है। अल्पकाल की सिद्धि वालों के पीछे कितने भटक रहे हैं। कितना अपना समय और धन लगा रहे हैं।

वर्तमान समय सर्व आत्मायें मेहनत से थक गई हैं, सिद्धि चाहती हैं। अल्पकाल की सिद्धि द्वारा सन्तुष्ट हो जाती है। लेकिन एक बात में सन्तुष्ट होती तो और अनेक बातें उत्पन्न होती। लंगड़ा चल पड़ता लेकिन और इच्छा उत्पन्न होती। यह भी हो जाए, यह भी हो जाए। तो वर्तमान समय के प्रमाण आप आत्माओं के सेवा की विधि ये सिद्धि स्वरूप की होनी है। अविनाशी, अलौकिक रूहानी सिद्धि वा रूहानी चमत्कार दिखाओ। यह चमत्कार कम है क्या? सारी दुनिया की 99 प्रतिशत आत्मायें चिन्ता की चिता पर मरी पड़ी हैं। ऐसे मरे हुए को जिन्दा करो। नया जीवन दो। एक प्राप्ति की टाँग है और अनेक प्राप्तियों से लंगड़े हैं। ऐसी आत्माओं को अविनाशी सर्व प्राप्तियों की टांग दो। अन्धों को त्रिनेत्री बनाओ। तीसरा नेत्र दो। अपने जीवन के श्रेष्ठ वर्तमान और भविष्य देखने की आँख दो। क्या यह सिद्धि नहीं कर सकते हो! यह रूहानी चमत्कार नहीं दिखा सकते हो। भिखारी को बादशाह नहीं बना सकते हो! ऐसी सिद्धि स्वरूप सेवा की शक्तियाँ बाप द्वारा प्राप्त नहीं हैं क्या! अब विधि स्वरूप से सिद्धि स्वरूप बनो। सिद्धि स्वरूप सेवा के निमित्त बनो। विधि अर्थात् पुरूषार्थ के समय पर पुरूषार्थ किया। अब पुरूषार्थ का फल सिद्धि स्वरूप बन सिद्धि स्वरूप सेवा में विश्व के आगे प्रत्यक्ष बनो। अब यह आवाज़ बुलन्द हो कि विश्व में अविनाशी सिद्धि देने वाले, सिर्फ दिखाने वाले नहीं, देने वाले सिद्धि स्वरूप बनाने वाले एक ही, यह ईश्वरीय विश्व विद्यालय ही है। एक ही स्थान है। स्वयं तो सिद्धि स्वरूप बने हो ना!

बाम्बे में पहले यह नाम बाला करो। बार-बार मेहनत से छूटो। आज इस बात पर पुरूषार्थ की मेहनत की, आज इस बात पर मेहनत की। यह है पुरूषार्थ की मेहनत। इस मेहनत से छूट प्राप्ति स्वरूप शक्तिशाली बनना, यह है सिद्धि स्वरूप। अब सिद्धि स्वरूप ज्ञानी तू आत्मयें, योगी तू आत्मायें बनो और बनाओ। क्या अन्त तक मेहनत ही करते रहेंगे। भविष्य में प्रालब्ध पायेंगे! पुरूषार्थ का प्रत्यक्ष फल अब खाना ही है। अभी प्रत्यक्ष फल खाओ। फिर भविष्यफल खाना। भविष्य की इन्तजार में प्रत्यक्ष फल गँवा न देना। अन्त में फल मिलेगा इस दिलासे पर भी नहीं रहना। एक करो, पदम पाओ। यह अब की बात है। कब की बात नहीं। समझा - बाम्बे वाले क्या बनेंगे? दिलासा वाले तो नहीं बनेंगे ना। सिद्ध-बाबा मशहूर होते हैं। कहते हैं ना यह सिद्ध-बाबा हैं, सिद्ध-योगी हैं। बाम्बे वाले भी सिद्ध सहज योगी अर्थात् सिद्धि को प्राप्त किये हुए हो ना! अच्छा-

सदा स्वत: एकरस उड़ाने के गीत गाने वाले, सदा सिद्धि स्वरूप बन अविनाशी रूहानी सिद्धि प्राप्त कराने वाले, रूहानी चमत्कार दिखाने वाले, चमत्कारी आत्मायें, सदा सर्व प्राप्तियों की सिद्धि का अनुभव कराने वाले सिद्धि स्वरूप सहजयोगी, ज्ञान स्वरूप बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

कुमारियों के अलग-अलग ग्रुप से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

1. सदा रूहानी याद में रहने वाली रूहानी कुमारियाँ हो ना! देह-अभिमान वाली कुमारियाँ तो बहुत हैं लेकिन आप रूहानी कुमारियाँ हो। सदा रूह अर्थात् आत्मा की स्मृति में रहने वाली। आत्मा बन आत्मा को देखने वाली इसको कहते हैं - रूहानी कुमारियाँ। तो कौन-सी कुमारियॉ हो? कभी देह-अभिमान में आने वाली नहीं। देह-अभिमान में आना अर्थात् माया की तरफ गिरना। और रूहानी स्मृति में रहना अर्थात् बाप के समीप आना। गिरने वाले नहीं, बाप के साथ रहने वाले। बाप के साथ कौन रहेंगे? रूहानी कुमारियाँ ही बाप के साथ रह सकती। जैसे बाप सुप्रीम है, कब देह-अभिमान में नहीं आता, ऐसे देह-अभिमान में आने वाले नहीं। जिनका बाप से प्यार है, वह रोज प्यार से याद करते हैं, प्यार से ज्ञान की पढ़ाई पढ़ते हैं। जो प्यार से कार्य किया जाता है उसमें सफलता होती है। कहने से करते तो थोड़ा समय सफलता होती। प्यार से, अपने मन से चलने वाले सदा चलते। जब एक बार अनुभव कर लिया कि बाप क्या और माया क्या! तो एक बार के अनुभवी कभी भी धोखे में नही आ सकते। माया भिन्न-भिन्न रूप में आती है। कपड़ों के रूप में आयेगी, माँ-बाप के मोह के रूप में आयेगी, सिनेमा के रूप में आयेगी। घूमने-फिरने के रूप में आयेगी। माया कहेगी यह कुमारियाँ हमारी बनें, बाप कहेंगे हमारी बनें, तो क्या करेगी?

माया को भगाने में होशियार हो? घबराने वाली कमज़ोर तो नहीं हो? ऐसे तो नहीं सहेलियों के संग में सिनेमा में चली जाओगी! संग के रंग में कभी नहीं आना। सदा बहादुर, सदा अमर, सदा अविनाशी रहना। सदा अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाना। गटर में नहीं गिरना। गटर शब्द ही कैसा है? बाप सागर है, सागर में सदा लहराते रहना। कुमारी जीवन में ज्ञान मिल गया, रास्ता मिल गया, मंजल मिल गई, यह देख खुशी हाती है! बहुत भाग्यवान हो। आज के संसार की हालत देखो। दु:ख-दर्द के बिना और कोई बात नहीं। गटर में गिरते हुए चोट के ऊपर चोट खाते रहते। आज का यह संसार है। सुनते हो ना - आज शादी की, कल जल मरी। आज शादी की कल घर आ गई। एक तो गटर में गिरी फिर और चोट पर चोट खाई। तो ऐसी चोट खानी है क्या? इसलिए सदा अपने को भाग्यवान आत्मा समझो। जो बाप ने बचा लिया। बच गये, बाप के बन गये, ऐसे खुशी होती है ना! बापदादा को भी खुशी होती है क्योंकि गिरने से, ठोकर खाने से बच गईं। तो सदा ऐसे अविनाशी रहना।

2. सभी श्रेष्ठ कुमारियाँ हो ना? साधारण कुमारी से श्रेष्ठ कुमारी हो गई। श्रेष्ठ कुमारी सदा श्रेष्ठ कर्त्तव्य करने के निमित्त। ऐसे सदा अपने को अनुभव करती हो कि हम श्रेष्ठ कार्य के निमित्त हैं! श्रेष्ठ कार्य क्या है? विश्व-कल्याण। तो विश्व-कल्याण करने, वाली विश्व-कल्याणकारी कुमारियाँ हो। घर में रहने वाली कुमारियाँ नहीं। टोकरी उठाने वाली कुमारियाँ नहीं लेकिन विश्व-कल्याणकारी कुमारियाँ। कुमारियाँ वह जो कहते हैं - कुल का कल्याण करें। सारा विश्व आपका कुल है। बेहद का कुल हो गया। साधारण कुमारियाँ अपने हद के कुल का कल्याण करती हैं। और श्रेष्ठ कुमारियाँ विश्व के कुल का कल्याण करेंगी। ऐसी हो ना! कमज़ोर तो नहीं! डरने वाली तो नहीं! सदा बाप साथ है। जब बाप साथ है तो कोई डर की बात नहीं। अच्छा है, कुमारी जीवन में बच गई यह बहुत बड़ा भाग्य है। रास्ते उल्टे पर जाकर फिर लौटना, यह भी समय वेस्ट हुआ ना! तो समय, शक्तियाँ सब बच गई। भटकने की मेहनत से छूट गई। कितना फायदा हुआ। बस वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य! यह देखकर सदा हर्षित रहो। किसी भी कमज़ोरी से अपनी श्रेष्ठ सेवा से वंचित नहीं होना।

3. कुमारी अर्थात् महान। पवित्र आत्मा को सदा महान आत्मा कहा जाता है। आजकल में महात्मायें भी महात्मा कैसे बनते हैं? पवित्र बनते हैं। पवित्रता के कारण ही महान आत्मा कहे जाते हैं। लेकिन आप महान आत्माओं के आगे वह कुछ भी नहीं हैं। आपकी महानता ज्ञान सहित अविनाशी महानता है। वह एक जन्म में महान बनेंगे फिर दूसरे जन्म में फिर से बनना पड़ेगा। आप जन्म-जन्म की महान आत्मायें हो। अभी की महानता से जन्म-जन्म के लिए महान हो जायेंगी। 21 जन्म महान रहेंगी। कुछ भी हो जाए लेकिन बाप के बने तो सदा बाप के ही रहेंगे। ऐसी पक्की हो ना? कच्ची बनेंगी तो माया खा जायेगी। कच्चे को माया खाती, पक्के को नहीं। देखना - यहाँ सभी का फोटो निकल रहा है। पक्की रहना। घबराने वाली नहीं। जितना पक्का उतना खुशी का अनुभव, सर्व प्राप्तियों का अनुभव करेंगे। पक्के नहीं तो सदा की खुशी नहीं। सदा अपने को महान आत्मा समझो। महान आत्मा से कोई ऐसा साधारण कार्य हो नहीं सकता। महान आत्मा कभी किसी के आगे झुक नहीं सकती। तो माया की तरफ कभी झुकने वाली नहीं। कुमारी माना हैण्डस। कुमारियों का शक्ति बनना अर्थात् सेवा में वृद्धि होना। बाप को खुशी है कि यह होवनहार विश्व-सेवाधारी विश्व का कल्याण करने वाली विशेष आत्मायें हैं।

4. कुमारियाँ चाहे छोटी हैं, चाहे बड़ी हैं लेकिन सभी सौ ब्राह्मणों से उत्तम कुमारियाँ हैं - ऐसे समझती हो? सौ ब्राह्मणों से उत्तम कन्या क्यों गाया जाता है? हर एक कन्या कम से कम सौ ब्राह्मण तो जरूर तैयार करेगी। इसलिए सौ ब्राह्मणों से उत्तम कन्या कहा जाता है। सौ तो कुछ भी नहीं है, आप तो विश्व की सेवा करेंगी। सभी सौ ब्राह्मणों से उत्तम कन्यायें हो। सर्व आत्माओं को श्रेष्ठ बनाने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो। ऐसा नशा रहता है? कालेज की, स्कूल की कुमारियाँ नहीं। ईश्वरीय विश्व विद्यालय की कुमारियाँ हो। कोई पूछे कौन-सी कुमारियाँ हो? तो बोलो हम ईश्वरीय विश्व विद्यालय की कुमारियाँ हैं! यह एक-एक कुमारियाँ सेवाधारी कुमारियाँ बनेंगी। कितने सेन्टर खुलेंगे। कुमारियों को देख बाप को यही खुशी रहती है कि यह सब इतने हैण्ड तैयार हो रहे हैं। राइट हैण्ड हो ना! लेफ्ट हैण्ड नहीं। लेफ्ट हैण्ड से जो काम करते हैं वह थोड़ा नीचे ऊपर हो सकता है। राइट हैण्ड से काम जल्दी और अच्छा होता है। तो इतनी सब कुमारियाँ तैयार हो जाएँ तो कितने सेन्टर खुल जायेंगे, जहाँ भेजें वहाँ जायेंगी ना! जहाँ बिठायेंगे वहाँ बैठेंगी ना! कुमारियाँ सब महान हो। सदा महान रहना। संग में नहीं आना। अगर कोई आपके ऊपर अपना रंग लगाने चाहे तो आप उस पर अपना रंग लगा देना। माँ-बाप भी बन्धन डालने चाहें तो भी बन्धन में बंधने वाली नहीं। सदा निर्बन्धन। सदा भाग्यवान। कुमारी जीवन पूज्य जीवन है। पूज्य कभी पुजारी बन नहीं सकती। सदा इसी नशे में रहने वाली।

5. सभी देवियाँ हो ना! कुमारी अर्थात् देवी। जो उल्टे रास्ते में जाती वह दासी बन जाती और जो महान आत्मा बनती वह देवियाँ हैं! दासी झुकती है। तो आप सब देवियाँ हो, दासी बनने वाली नहीं। देवियों का कितना पूजन होता है। तो यह पूजन आपका है ना! छोटी हो या बड़ी - सब देवियाँ हो। बस यही सदा याद रखो कि हम महान आत्मायें, पवित्र आत्मायें हैं, बाप का बनना यह कम बात नहीं है, कहने में सहज बात हो गई है। लेकिन किसके बने हो? कितने ऊँचे बने हो? कितनी विशेष आत्मायें बने हो? यह चलते-फिरते याद रहता है कि हम कितनी महान कितनी ऊँची आत्मायें हैं! भाग्यवान आत्माओं को सदा अपना भाग्य याद रहे। कौन हो? देवी! देवी सदा मुस्कराती रहती है। देवी कभी रोती नहीं। देवियों के चित्रों के आगे जाओ तो क्या दिखाई देता? सदा मुस्कराती रहती है! दृष्टि से, हाथों से सदा देने वाली देवी। देवता या देवी का अर्थ ही है - देने वाला। क्या देने वाली हो? सभी को सुख शान्ति आनन्द, प्रेम सर्व खज़ाने देने वाली देवियाँ हो। सभी राइट हैण्ड हो। राइट हैण्ड अर्थात् श्रेष्ठ कर्म करने वाली।

माताओं से:- सभी मातायें, जगत मातायें हो गई ना! जगत का उद्धार करने वाली जगत मातायें। हद के गृहस्थी की मातायें नहीं। सदा विश्व कल्याणकारी। जैसे बाप विश्व-कल्याणकारी है वैसे बच्चे भी विश्व-कल्याणकारी। तो घर में रहती हो या विश्व की सेवा के स्थान पर रहती? विश्व ही आपकी सेवा का स्थान है। बेहद में रहने वाली, हद में रहने वाली नहीं। ज्यादा समय किसमें जाता है, हद की प्रवृत्ति में या बेहद में? जितना बेहद का लक्ष्य रखेंगी तो हद के बन्धनों से सहज मुक्त होती जायेंगी। जो अभी संकल्प आता है कि समय नहीं मिलता, इच्छा है लेकिन शरीर नहीं चलता, शक्ति नहीं है... यह सब बन्धन है। जब दृढ़ संकल्प कर लेते कि बेहद की सेवा में आना ही है, लगना ही है तो यह बन्धन सेकण्ड में समाप्त हो जाते हैं। समय स्वत: मिल जायेगा। शरीर आपे ही चलने लग जायेगा। यह अनुभव है भी और भी कर सकती हो। श्रेष्ठ कार्य के लिए समय न मिले, शरीर काम न करे, यह हो नहीं सकता। पहिये लग जायेंगे। जब उमंग उत्साह के पहिये लग जाते हैं तो न चलने वाले भी चलने लग पड़ते हैं। बीमारी भी खत्म हो जाती है। जैसे लौकिक में कोई आवश्यक काम करना होता है तो क्या करते हो? उतना समय बीमारी भाग जाती है ना! बाद में भले ही सो जाओ लेकिन उस समय मजबूरी से भी करती हो ना! तो जैसे हद के कार्य में न चाहते भी चल पड़ते, ऐसे यहाँ भी खुशी-खुशी से चल पड़ेंगे। जब मजबूरी के पहिये भी चला सकते हैं तो यह खुशी के पहिये क्या नहीं कर सकते! तो उमंग उत्साह और खुशी के पहिये लगाकर यह हद के बन्धन काटो। पति का बन्धन, बच्चों का बन्धन तो खत्म हुआ, अभी इन सूक्ष्म बन्धनों से भी मुक्त बनो। उड़ो और उड़ाओ। यह ऐसा है, वह ऐसा है.. यह भी रस्सी है। इसको भी तोड़ो, यह भी नीचे ले आती है। तो बन्धनमुक्त उड़ते पंछी बनो।

2. माताओं को विशेष कौन सा खज़ाना मिला है? खुशी का खज़ाना मिला है ना! यह खज़ाना बाप ने विशेष माताओं के लिए लाया है। उसी खुशी के खज़ाने से खेलते रहो। बांटते रहो। यही काम है। घर का काम करते भी खुशी का धन बांटते रहो। तो घर का काम भी ऐसे होगा जैसे खेल रहे हैं। खेल में थकना नहीं होता। तो सदा ऐसे आगे बढ़ते रहो। साधारण मातायें नहीं हो, शिव शक्तियाँ हो। शक्तियाँ अर्थात् संघारनी, विजयी। विजय का झण्डा लहराने वाली। विश्व में बाप को प्रत्यक्ष करने वाली। प्रवृत्ति को सम्भालते हुए सदा बेहद का नशा रहे कि - हम असुर संघारनी शिव शक्तियाँ हैं।

माताओं के लिए तो स्वयं बाप सृष्टि पर आये हैं। ऐसी खुशी है ना - कि हमने बुलाया और बाप को आना पड़ा। क्यों? माताओं ने दु:ख के कारण दिल से पुकारा और ऐसी पुकारने वाली माताओं को बाप ने पूज्य बना दिया। पुकार करने से छुड़ा दिया। अभी पुकारने की जरूरत नहीं। सब आशायें पूर्ण हो गई। बाप मिला सब कुछ मिला - सदा इसी खुशी में रहते खुशी का दान देती रहो। अपने हमजिन्स पर रहम करो। आपके हमजिन्स कितने दु:खी हैं। हमजिन्स को जगाना यही माताओं का काम है। जगे हैं जगाने के लिए। अभी से रहमदिल बन जगाओ नहीं तो आपकी हमजिन्स आपको उल्हना देंगी कि हमें क्यों नहीं जगाया? अच्छा-