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AVYAKT MURLI

23 / 01 / 85

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       23-01-85    ओम शान्ति   अव्यक्त बापदादा   मधुबन

दिव्य जन्म की गिफ्ट - ‘‘दिव्य नेत्र’’

दिव्य बुद्धि दिव्य दृष्टि विधाता त्रिकालदर्शी बापदादा बोले

आज त्रिकालदर्शी बाप अपने त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री बच्चों को देख रहे हैं। बापदादा, दिव्य बुद्धि और दिव्य नेत्र जिसको तीसरा नेत्र भी कहते हैं, वह नेत्र कहाँ तक स्पष्ट और शक्तिशाली है, हर एक बच्चे के दिव्य नेत्र के शक्ति की परसेन्टेज देख रहे हैं। बापदादा ने सभी को 100 प्रतिशत शक्तिशाली दिव्य नेत्र जन्म की गिफ्ट दी है। बापदादा ने नम्बरवार शक्तिशाली नेत्र नहीं दिया लेकिन इस दिव्य नेत्र को हर एक बच्चे ने अपने-अपने कायदे प्रमाण, परहेज प्रमाण, अटेन्शन देने प्रमाण प्रैक्टिकल कार्य में लगाया है। इसलिए दिव्य नेत्र की शक्ति किसी की सम्पूर्ण शक्तिशाली है, किसी की शक्ति परसेन्टेज में रह गई है। बापदादा द्वारा यह तीसरा नेत्र दिव्य नेत्र मिला है, जैसे आजकल साइन्स का साधन दूरबीन है जो दूर की वस्तु को समीप और स्पष्ट अनुभव कराती है, ऐसे यह दिव्य नेत्र भी दिव्य दूरबीन का काम करते हैं। सेकण्ड में परमधाम, कितना दूर है। जिसके माइल गिनती नहीं कर सकते, साइंस का साधन इस साकार सृष्टि के सूर्य चांद सितारो तक देख सकते हैं। लेकिन यह दिव्य नेत्र तीनों लोकों को, तीनों कालों को देख सकते हैं। इस दिव्य नेत्र को अनुभव का नेत्र भी कहते हैं। अनुभव की आँख, जिस आँख द्वारा 5000 वर्ष की बात इतनी स्पष्ट देखते जैसे कि कल की बात है। हाँ, 5 हजार वर्ष और कहाँ कल! तो दूर की बात समीप और स्पष्ट देखते हो ना। अनुभव करते हो - कल मैं पूज्य देव आत्मा थी और कल फिर बनेंगी। आज ब्राह्मण कल देवता। तो आज और कल की बात सहज हो गई ना। शक्तिशाली नेत्र वाले बच्चे अपने डबल ताजधारी सहज सजाये स्वरूप को सदा सामने स्पष्ट देखते रहते हैं। जैसे स्थूल चोला सजा सजाया सामने दिखाई देता और समझते हो अभी का अभी धारण किया कि किया। ऐसे यह देवताई शरीर रूपी चोला सामने देख रहे हो ना। बस कल धारण करना ही है। दिखाई देता है ना। अभी तैयार हो रहा है वा सामने तैयार हुआ दिखाई दे रहा है? जैसे ब्रह्मा बाप को देखा, अपना भविष्य चोला श्रीकृष्ण स्वरूप सदा सामने स्पष्ट रहा। ऐसे आप सभी को भी शक्तिशाली नेत्र से स्पष्ट और सामने दिखाई देता है? अभी-अभी फरिश्ता सो देवता। नशा भी है और साक्षात् देवता बनने का दिव्य नेत्र द्वारा साक्षात्कार भी है। तो ऐसा शक्तिशाली नेत्र है? वा कुछ देखने की शक्ति कम हो गई है? जैसे स्थूल नेत्र की शक्ति कम हो जाती है तो स्पष्ट चीज़ भी जैसे पर्दे के अन्दर वा बादलों के बीच दिखाई देती है। ऐसे आपको भी देवता बनना तो है, बना तो था लेकिन क्या था, कैसा था इस था के पर्दे के अन्दर तो नहीं दिखाई देता? स्पष्ट है? निश्चय का पर्दा और स्मृति का मणका दोनों शक्तिशाली हैं ना। वा मणका ठीक है और पर्दा कमज़ोर है! एक भी कमज़ोर रहा तो स्पष्ट नहीं होगा। तो चेक करो वा चेक कराओ कि कहाँ नेत्र की शक्ति कम तो नहीं हुई है? अगर जन्म से श्रीमत रूपी परहेज करते आये हो तो नेत्र सदा शक्तिशाली है। श्रीमत की परहेज में कमी है तब शक्ति भी कम है। फिर से श्रीमत की दुआ कहो, दवा कहो, परहेज कहो, वह करो तो फिर शक्तिशाली हो जायेंगे। तो यह नेत्र है दिव्य दूरबीन।

यह नेत्र शक्तिशाली यंत्र भी है। जिस द्वारा जो जैसा है, आत्मिक रूप को आत्मा की विशेषता को सहज और स्पष्ट देख सकते हो। शरीर के अन्दर विराजमान गुप्त आत्मा को ऐसे देख सकते जैसे स्थूल नेत्रों द्वारा स्थूल शरीर को देखते हो। ऐसे स्पष्ट आत्मा दिखाई देती है ना वा शरीर दिखाई देता है? दिव्य नेत्र द्वारा दिव्य सूक्ष्म आत्मा ही दिखाई देगी। जैसे नेत्र दिव्य है तो विशेषता अर्थात् गुण भी दिव्य है। अवगुण कमज़ोरी है। कमज़ोर नेत्र कमज़ोरी को देखते हैं। जैसे स्थूल नेत्र कमज़ोर होता है तो काले-काले दाग दिखाई देते हैं। ऐसे कमज़ोर नेत्र अवगुण के कालेपन को देखते हैं। बापदादा ने कमज़ोर नेत्र नहीं दिया है। स्वयं ने ही कमज़ोर बनाया है। वास्तव में यह शक्तिशाली यंत्र रूपी नेत्र चलते-फिरते नैचुरल रूप में सदा आत्मिक रूप को ही देखते। मेहनत नहीं करनी पड़ती कि यह शरीर है या आत्मा है। यह है या वह है। यह कमज़ोर नेत्र की निशानी है जैसे साइन्स वाले शक्तिशाली ग्लासेज द्वारा सभी जर्मस को स्पष्ट देख सकते हैं। ऐसे यह शक्तिशाली दिव्य नेत्र माया की बीमारी को पहले से ही जान समाप्त कर सदा निरोगी रहते हैं।

ऐसा शक्तिशाली दिव्य नेत्र है। यह दिव्य नेत्र दिव्य टी.वी. भी है। आजकल टी.वी. सभी को अच्छी लगती है ना। इसको टी.वी. कहो वा दूरदर्शन कहो इसमें अपने स्वर्ग के सर्व जन्मों को अर्थात् अपने 21 जन्मों के दिव्य फिल्म को देख सकते हो। अपने राज्य के सुन्दर नजारे देख सकते हो। हर जन्म की आत्म-कहानी को देख सकते हो। अपने ताज तख्त राज्य-भाग्य को देख सकते हो। दिव्य दर्शन कहो वा दूरदर्शन कहो। दिव्य दर्शन का नेत्र शक्तिशाली है ना। जब फ्री हो तो यह फिल्म देखो, आजकल की डांस नहीं देखना वह डेन्जर डांस है। फरिश्तों की डांस, देवताओं की डांस देखो। स्मृति का स्विच तो ठीक है ना। अगर स्विच ठीक नहीं होगा तो चलाने से भी कुछ दिखाई नहीं देगा। समझा - यह नेत्र कितना श्रेष्ठ है। आजकल मैजारिटी कोई भी चीज़ की इन्वेंशन करते हैं तो लक्ष्य रखते हैं कि एक वस्तु भिन्न-भिन्न कार्य में आवे। ऐसे यह दिव्य नेत्र अनेक कार्य सिद्ध करने वाला है। बापदादा बच्चों के कमज़ोरी की कभी-कभी कम्पलेन सुन यही कहते, दिव्य बुद्धि मिली, दिव्य नेत्र मिला, इसको विधिपूर्वक सदा यूज़ करते रहो तो न सोचने की फुर्सत, न देखने की फुर्सत रहेगी। न और सोचेंगे न देखेंगे। तो कोई भी कम्पलेन रह नहीं सकती। सोचना और देखना यह दोनों विशेष आधार हैं कम्पलीट होने के वा कम्पलेन करने के। देखते हुए, सुनते हुए सदा सोचो जैसा सोचना वैसा करना हाेता है। इसलिए इन दोनों दिव्य प्राप्तियों को सदा साथ रखो। सहज है ना। हो समर्थ लेकिन बन क्या जाते हो? जब स्थापना हुई तो छोटे-छोटे बच्चे डायलाग करते थे, भोला भाई का। तो हैं समर्थ लेकिन भोला भाई बन जाते हैं। तो भोला भाई नहीं बनो। सदा समर्थ बनो। और औरों को भी समर्थ बनाओ। समझा - अच्छा।

सदा दिव्य बुद्धि और दिव्य नेत्र को कार्य में लगाने वाले, सदा दिव्य बुद्धि द्वारा श्रेष्ठ मनन, दिव्य नेत्र द्वारा दिव्य दृश्य देखने में मगन रहने वाले, सदा अपने भविष्य देव स्वरूप को स्पष्ट अनुभव करने वाले, सदा आज और कल इतना समीप अनुभव करने वाले, ऐसे शक्तिशाली दिव्य नेत्र वाले त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते!

पर्सनल मुलाकात - 1- सहजयोगी बनने की विधि - सभी सहजयोगी आत्मायें हो ना। सदा बाप के सर्व सम्बन्धों के स्नेह में समाये हुए। सर्व सम्बन्धों का स्नेह ही सहज कर देता है। जहाँ स्नेह का सम्बन्ध है वहाँ सहज है। और जो सहज है वह निरंतर है। तो ऐसे सहजयोगी आत्मा बाप के सर्व स्नेही सम्बन्ध की अनुभूति करते हो? ऊधव के समान हो या गोपियों के समान? ऊधव सिर्फ ज्ञान का वर्णन करता रहा। गोपगोपि याँ प्रभु प्यार का अनुभव करने वाली। तो सर्व सम्बन्धों का अनुभव यह है विशेषता। इस संगमयुग में यह विशेष अनुभव करना ही वरदान प्राप्त करना है। ज्ञान सुनना सुनाना अलग बात है। सम्बन्ध निभाना, सम्बन्ध की शक्ति से निरंतर लगन में मगन रहना वह अलग बात है। तो सदा सर्व सम्बन्धों के आधार पर सहयोगी भव। इसी अनुभव को बढ़ाते चलो। यह मगन अवस्था गोप-गोपियों की विशेष हैं। लगन लगाना और चीज़ है लेकिन लगन में मगन रहना यही श्रेष्ठ अनुभव हैं।

2. ऊँची स्थिति विघ्नों के प्रभाव से परे है - कभी किसी भी विघ्न के प्रभाव में तो नहीं आते हो? जितनी ऊँची स्थिति होगी तो ऊँची स्थिति विघ्नों के प्रभाव से परे हो जाती है। जैसे स्पेस में जाते हैं तो ऊँचा जाते हैं, धरनी के प्रभाव से परे हो जाते। ऐसे किसी भी विघ्नों के प्रभाव से सदा सेफ रहते। किसी भी प्रकार की मेहनत का अनुभव उन्हें करना पड़ता - जो मुहब्बत में नहीं रहते। तो सर्व सम्बन्धों से स्नेह की अनुभूति में रहो। स्नेह है लेकिन उसे इमर्ज करो। सिर्फ अमृतेवेले याद किया फिर कार्य में बिजी हो गये तो मर्ज हो जाता। इमर्ज रूप में रखो तो सदा शक्तिशाली रहेंगे।

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- बापदादा ने दिव्य नेत्र के बारे में क्या सुनाया ?

 प्रश्न 2 :- शक्तिशाली नेत्र वाले बच्चों को क्या दिखाई देता है ?

 प्रश्न 3 :- दिव्य नेत्र और कमजोर नेत्र में अंतर क्या है ?

 प्रश्न 4 :- विघ्नों के प्रभाव से कैसे परे जा सकते है ?

 प्रश्न 5 :- सहजयोगी बनने की विधि बापदादा ने क्या बताई है ?

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

(देवता, साक्षात्कार, डेन्जर, दिखाई, इन्वेंशन, पूज्य, शक्तिशाली, फरिश्तों, स्मृति, वस्तु, ब्राह्मण, नशा, देवताओं, चलाने, मैजारिटी)

 1  कल मैं _____ देव आत्मा थी और कल फिर बनेंगी। आज _____ कल _____

 2  _____ भी है और साक्षात् देवता बनने का दिव्य नेत्र द्वारा _____ भी है। तो ऐसा _____ नेत्र है?

 3  आजकल की डांस नहीं देखना वह _____ डांस है। _____ की डांस, _____ की डांस देखो। 

 4  _____ का स्विच तो ठीक है ना। अगर स्विच ठीक नहीं होगा तो _____ से भी कुछ _____ नहीं देगा।

 5  आजकल _____ कोई भी चीज़ की _____ करते हैं तो लक्ष्य रखते हैं कि एक _____ भिन्न-भिन्न कार्य में आवे।

 

सही-गलत वाक्यों को चिह्नित करें:-【✔】【✖】

 1  :- यह दिव्य नेत्र दिव्य ज्योति भी है।

 2  :- यह दिव्य नेत्र अनेक कार्य सफल करने वाला है।

 3  :- सोचना और देखना यह दोनों विशेष आधार हैं कम्पलीट होने के वा कम्पलेन करने के।

 4  :- श्रीमत की परहेज में कमी है तब शक्ति भी कम है।

 5 :- भोला भाई नहीं बनो। सदा समर्थ बनो। और औरों को भी समर्थ बनाओ।

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- बापदादा ने दिव्य नेत्र के बारे में क्या सुनाया ?

   उत्तर 1 :- बापदादा ने दिव्य नेत्र के बारे में यह सुनाया :-

          ❶ बापदादा ने सभी को 100 प्रतिशत शक्तिशाली दिव्य नेत्र जन्म की गिफ्ट दी है। बापदादा ने नम्बरवार शक्तिशाली नेत्र नहीं दिया लेकिन इस दिव्य नेत्र को हर एक बच्चे ने अपने-अपने कायदे प्रमाण, परहेज प्रमाण, अटेन्शन देने प्रमाण प्रैक्टिकल कार्य में लगाया है। इसलिए दिव्य नेत्र की शक्ति किसी की सम्पूर्ण शक्तिशाली है, किसी की शक्ति परसेन्टेज में रह गई है।

          ❷ बापदादा द्वारा यह तीसरा नेत्र दिव्य नेत्र मिला है, जैसे आजकल साइन्स का साधन दूरबीन है जो दूर की वस्तु को समीप और स्पष्ट अनुभव कराती है, ऐसे यह दिव्य नेत्र भी दिव्य दूरबीन का काम करते हैं।

          ❸ सेकण्ड में परमधाम, कितना दूर है। जिसके माइल गिनती नहीं कर सकते, साइंस का साधन इस साकार सृष्टि के सूर्य चांद सितारो तक देख सकते हैं। लेकिन यह दिव्य नेत्र तीनों लोकों को, तीनों कालों को देख सकते हैं। इस दिव्य नेत्र को अनुभव का नेत्र भी कहते हैं। अनुभव की आँख, जिस आँख द्वारा 5000 वर्ष की बात इतनी स्पष्ट देखते जैसे कि कल की बात है।

 

 प्रश्न 2 :- शक्तिशाली नेत्र वाले बच्चों को क्या दिखाई देता है ?

   उत्तर 2 :- शक्तिशाली नेत्र वाले बच्चों को यह दिखाई देता है :-

          ❶ शक्तिशाली नेत्र वाले बच्चे अपने डबल ताजधारी सहज सजाये स्वरूप को सदा सामने स्पष्ट देखते रहते हैं। जैसे स्थूल चोला सजा सजाया सामने दिखाई देता और समझते हो अभी का अभी धारण किया कि किया। ऐसे यह देवताई शरीर रूपी चोला सामने देख रहे हो ना। बस कल धारण करना ही है। दिखाई देता है ना। अभी तैयार हो रहा है वा सामने तैयार हुआ दिखाई दे रहा है?

          ❷ जैसे ब्रह्मा बाप को देखा, अपना भविष्य चोला श्रीकृष्ण स्वरूप सदा सामने स्पष्ट रहा। ऐसे आप सभी को भी शक्तिशाली नेत्र से स्पष्ट और सामने दिखाई देता है? अभी-अभी फरिश्ता सो देवता।

 

 प्रश्न 3 :- दिव्य नेत्र और कमजोर नेत्र में अंतर क्या है ?

   उत्तर 3 :- दिव्य नेत्र और कमजोर नेत्र में अंतर :-

          ❶ शरीर के अन्दर विराजमान गुप्त आत्मा को ऐसे देख सकते जैसे स्थूल नेत्रों द्वारा स्थूल शरीर को देखते हो। ऐसे स्पष्ट आत्मा दिखाई देती है ना वा शरीर दिखाई देता है? दिव्य नेत्र द्वारा दिव्य सूक्ष्म आत्मा ही दिखाई देगी। जैसे नेत्र दिव्य है तो विशेषता अर्थात् गुण भी दिव्य है।

          ❷ अवगुण कमज़ोरी है। कमज़ोर नेत्र कमज़ोरी को देखते हैं। जैसे स्थूल नेत्र कमज़ोर होता है तो काले-काले दाग दिखाई देते हैं। ऐसे कमज़ोर नेत्र अवगुण के कालेपन को देखते हैं। बापदादा ने कमज़ोर नेत्र नहीं दिया है। स्वयं ने ही कमज़ोर बनाया है।

          ❸ वास्तव में यह शक्तिशाली यंत्र रूपी नेत्र चलते-फिरते नैचुरल रूप में सदा आत्मिक रूप को ही देखते। मेहनत नहीं करनी पड़ती कि यह शरीर है या आत्मा है। यह है या वह है। यह कमज़ोर नेत्र की निशानी है जैसे साइन्स वाले शक्तिशाली ग्लासेज द्वारा सभी जर्मस को स्पष्ट देख सकते हैं। ऐसे यह शक्तिशाली दिव्य नेत्र माया की बीमारी को पहले से ही जान समाप्त कर सदा निरोगी रहते हैं।

 

 प्रश्न 4 :- विघ्नों के प्रभाव से कैसे परे जा सकते है ?

   उत्तर 4 :- विघ्नों से परे इस प्रकार जा सकते है :-

          ❶ जितनी ऊँची स्थिति होगी तो ऊँची स्थिति विघ्नों के प्रभाव से परे हो जाती है। जैसे स्पेस में जाते हैं तो ऊँचा जाते हैं, धरनी के प्रभाव से परे हो जाते। ऐसे किसी भी विघ्नों के प्रभाव से सदा सेफ रहते।

          ❷ किसी भी प्रकार की मेहनत का अनुभव उन्हें करना पड़ता - जो मुहब्बत में नहीं रहते। तो सर्व सम्बन्धों से स्नेह की अनुभूति में रहो। स्नेह है लेकिन उसे इमर्ज करो। सिर्फ अमृतेवेले याद किया फिर कार्य में बिजी हो गये तो मर्ज हो जाता। इमर्ज रूप में रखो तो सदा शक्तिशाली रहेंगे।

 

 प्रश्न 5 :- सहजयोगी बनने की विधि बापदादा ने क्या बताई है ?

   उत्तर 5 :- सहजयोगी बनने की विधि :-

          ❶ सदा बाप के सर्व सम्बन्धों के स्नेह में समाये हुए। सर्व सम्बन्धों का स्नेह ही सहज कर देता है। जहाँ स्नेह का सम्बन्ध है वहाँ सहज है। और जो सहज है वह निरंतर है। तो ऐसे सहजयोगी आत्मा बाप के सर्व स्नेही सम्बन्ध की अनुभूति करते हो? ऊधव के समान हो या गोपियों के समान? ऊधव सिर्फ ज्ञान का वर्णन करता रहा।

          ❷ गोपगोपि याँ प्रभु प्यार का अनुभव करने वाली। तो सर्व सम्बन्धों का अनुभव यह है विशेषता। इस संगमयुग में यह विशेष अनुभव करना ही वरदान प्राप्त करना है। ज्ञान सुनना सुनाना अलग बात है। सम्बन्ध निभाना, सम्बन्ध की शक्ति से निरंतर लगन में मगन रहना वह अलग बात है। तो सदा सर्व सम्बन्धों के आधार पर सहयोगी भव। इसी अनुभव को बढ़ाते चलो। यह मगन अवस्था गोप-गोपियों की विशेष हैं। लगन लगाना और चीज़ है लेकिन लगन में मगन रहना यही श्रेष्ठ अनुभव हैं।

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

(देवता, साक्षात्कार, डेन्जर, दिखाई, इन्वेंशन, पूज्य, शक्तिशाली, फरिश्तों, स्मृति, वस्तु, ब्राह्मण, नशा, देवताओं, चलाने, मैजारिटी)

 

 1   कल मैं _____ देव आत्मा थी और कल फिर बनेंगी। आज _____ कल _____

    पूज्य / ब्राह्मण / देवता

 

 2  _____ भी है और साक्षात् देवता बनने का दिव्य नेत्र द्वारा _____ भी है। तो ऐसा _____ नेत्र है ?

      नशा / साक्षात्कार / शक्तिशाली

 

 3  आजकल की डांस नहीं देखना वह _____ डांस है। _____ की डांस, _____ की डांस देखो।

      डेन्जर / फरिश्तों / देवताओं

 

 4  _____ का स्विच तो ठीक है ना। अगर स्विच ठीक नहीं होगा तो _____ से भी कुछ _____ नहीं देगा।

      स्मृति / चलाने / दिखाई

 

 

 5  आजकल _____ कोई भी चीज़ की _____ करते हैं तो लक्ष्य रखते हैं कि एक _____ भिन्न-भिन्न कार्य में आवे।    

मैजारिटी / इन्वेंशन / वस्तु

 

सही-गलत वाक्यों को चिह्नित करें:-【✔】【✖】

 1  :- यह दिव्य नेत्र दिव्य ज्योति भी है।

 यह दिव्य नेत्र दिव्य टी.वी. भी है।

 

 2  :- यह दिव्य नेत्र अनेक कार्य सफल करने वाला है।

 यह दिव्य नेत्र अनेक कार्य सिद्ध करने वाला है।

 

 3  :- सोचना और देखना यह दोनों विशेष आधार हैं कम्पलीट होने के वा कम्पलेन करने के।

 

 4  :- श्रीमत की परहेज में कमी है तब शक्ति भी कम है।

 

 5  :- भोला भाई नहीं बनो। सदा समर्थ बनो। और औरों को भी समर्थ बनाओ।