30-01-1963    दिल्ली    प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, गुड मोर्निंग हम से बोल रही हैं । आज बुधवार है, सन 1963 जनवरी की तीस तारीख है । प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं ।

रिकार्ड:-
आखिर वो दिन आया आज............

तो इशारा देवें फिर वहीँ से ही शुरू करें, तो इनका अर्थ बच्चों को अच्छी तरह से समझावें । यहाँ बहुत ही अच्छी सेन्सीबुल चाहिए । अभी क्या सुना बच्चों ने? सुना कि जिस दिन के हम मोहताज थे, वो दिन आज आ गया । किसके मोहताज थे? सुख और शान्ति के मोहताज हैं भगत । सारी दुनिया शान्ति और सुख व सुख और शान्ति की मोहताज है जरूर; क्योंकि सतयुग-त्रेता में कोई भी मोहताज होते ही नहीं हैं कोई बात के लिए भी । अब यह गीत भी है तो सही ना । गाया हुआ है न उनकी याद में कि मोहताज से सिरताज कौन बनावे? अशांत से शांत कौन बनावे? दुःखी से सुखी कौन बनावे? तो उसकी याद में यह गाते हैं अभी कि आखिर वो दिन आया है आज, जो आ करके हमको मोहताज से सिरताज बनाते हैं, दुःखी से सुखी बनाते हैं, अशांत से शांत बनाते हैं, इनसॉलवेंट से सॉलवेंट बनाते हैं, डेविल से डीटी बनाते हैं । ऐसे कहेंगे न बच्चे । उस दिन के मोहताज हैं । क्यों? मोहताज हैं बरोबर । जब कोई मरते हैं तो भी कह देते हैं- लेफ्ट फोर हेविनली अबोड । कहाँ गया तुम्हारा? स्वर्गवासी हुआ । स्वर्ग को याद करते रहते हैं ना अर्थात् फिर भी भगवान को याद करते रहते हैं; परन्तु भगवान कौन? कब आएँगे? क्या है? बिचारों को कुछ भी पता नहीं है । ये जो गीता, वेद, उपनिषद, शास्त्र, ग्रंथ-ये सभी ने बैठ करके सूत मुँझाय दिया है । मूंझ गए हैं । कोई क्या कहते हैं, कोई क्या कहते हैं, कोई कल्प की आयु क्या रख देते हैं । बहुत मूंझे हुए हैं बिचारे । तो जरूर समझाने वाला चाहिए ना । मूंझते है बेसमझ । बहुत बेसमझ हो गए । जितने ही शास्त्र पढ़े, जितने उपनिषद पढ़े हैं, जितनी ये नई- नई गीताऐ बनाय करके पढ़ी हैं, जितना बैठ करके गीता का अनेक प्रकार का अर्थ बनाया है उतने ही मूंझ गए हैं । कितनी गीताएँ होंगी? ऐसे और कोई शास्त्र नहीं है, जिनको इतना बैठकर समझने के लिए कोशिश की है, परंतु जितना समझाया है, गीता बनाई है, इतने ही मूंझते गए हैं । कोई कह देते हैं कल्प की आयु बहुत बड़ी-बड़ी है । मुख्य इसमें समझते हैं ना । कोई कहते हैं गीता द्वापर में सुनाई । कोई कह देते हैं कि कृष्ण भगवान ने सुनाई । उनको भगवान भी कह देते हैं । कभी कह देते हैं-नहीं, ईश्वर तो सर्वव्यापी है । फिर सुनाएगा कौन? अगर सर्वव्यापी है तो किसमें से निकलेगा? वो समझते हैं कि कृष्ण में से निकल आया भगवान । कृष्ण में से भी भगवान नहीं निकला, भगवान ने कृष्ण का भी रथ नहीं पकड़ा । यह भी तो झूठ है । बहुत मूंझे हुए हैं, बिल्कुल ही । एक तो शास्त्रों से बहुत मूंझे हुए हैं । तंग किया है शास्त्रों ने बैठ करके सबको । बड़ा तंग किया है । दूसरी, माया ने तंग किया है । बहुत तंग किया है, बहुत दुःखी बनाया है । बाप बैठ करके समझाते हैं कि सबसे जास्ती जो पाइंट है तंगी की, वो कौन-सी है? भगवान किसको कहा जाए? पहली बात । भगवान है कौन? अगर सर्वव्यापी कह देते हैं । अच्छा, वो तो सर्वव्यापी कहते आए, कहते आए, परन्तु कोई को पता तो नहीं है कुछ भी । यह तो करते आए हो, उससे कुछ फायदा तो मिलता नहीं है । भारत रसातल में जा रहा है । भल अगर बैठ कर करके यह फॉरेनर्स से राज्य लिया है, और ही तंग हो गए हैं, नहीं तो कोई की ताकत थी जो भारत के ऊपर चढ़ाई करे, जबकि ब्रिटिश गवर्मेंट का राज्य था? बिल्कुल नहीं । न चीन, न पाकिस्तान, कोई की भी ताकत नहीं थी । सेफ थे । अच्छा, अभी तो सेफ्टी भी चली गई । दिन-प्रतिदिन जिसको स्वराज कहा जाता है, नाम रख दिया है नया भारत, नव युग । नाम देखो, कैसे रखते हैं । नव भारत अखबारें भी निकलती हैं । नव युग अखबारें निकलती हैं । न्यू दिल्ली । पुरानी दिल्ली, अभी न्यू दिल्ली । वो दिल्ली बदल करके और थोड़ा नया मकान बना दिया, बस दिल्ली सारी न्यू हो गई? पुरानी तो पड़ी है । न्यू तब कहें जब पुरानी विनाश हो जावे । अभी वो तो विनाश ही नहीं हुई है । न्यू न्यू करते रहते हैं । अभी बाप बैठ करके बच्चों को समझाते हैं-लाडले बच्चे, जब नई सृष्टि थी, जिसको सतयुग कहेंगे, और तो कुछ नहीं कहेंगे न । नई सृष्टि को ही सतयुग कहेंगे । नई सृष्टि में नया भारत था, जिसको प्राचीन भारत कहा जाता है । वो हो गई नई सृष्टि, नया युग और फिर उसमें नई दिल्ली थी, उसको परिस्तान कहा जाता था । नई सृष्टि में भारत ही नया होता है और कोई जो खण्ड होते हैं, कभी भी नई सृष्टि में ऐसे नहीं कहेंगे कि कोई क्रिश्चियन खण्ड था या अमेरिकन खण्ड था या बौद्धी खण्ड था । नई सृष्टि में नया भारत था । अभी कोई भी नहीं कहेंगे कि नई सृष्टि में कोई और खण्ड होगा । बिल्कुल यह तो समझ की बात है न । नई सृष्टि में नया भारत खण्ड था । और कोई खण्ड था नहीं, न बोद्धी खण्ड, न क्रिश्चियन खण्ड, न इस्लामी खण्ड । मुख्य लो, बाकी तो हैं मल्टीप्लीकेशन, उनको क्या वर्णन करेंगे । अच्छा, ये भारतवासी बच्चे जानते हैं कि नई सृष्टि में, नए भारत में बरोबर श्री लक्ष्मी और नारायण का राज्य था । उनको देवी-देवता कहा जाता है, पर उनको हिन्दू तो नहीं कहा जाएगा? ऐसे कभी नहीं कोई कहेंगे, ये हिन्दू हैं । इन्हें कहेंगे देवी और देवताऐ । भारत में देवी और देवताऐ तो उनका संवत होना चाहिए न । देखो, क्रिश्चियन का संवत है । बौद्धियों का भी ऐनिवर्सरी या वर्सी मनाते हैं, समय देते हैं । बरोबर कल्प की आयु का किसको समझाने का बाबा राज बताते हैं अच्छी तरह से । बहुत मूंझे हुए हैं बिचारे । अभी यह राज़ दुनिया तो नहीं जानती है । तो जरूर दुनिया का मालिक बताएगा, और कोई थोड़े ही बताएगा । पहले यह भी नहीं जानते थे न । अभी बैठ करके समझाते हैं बच्चों को; क्योंकि यह है डिटेल में समझानी, नहीं तो जिन बिचारों की बुद्धि कमजोर है, उनके लिए तो सिर्फ कहा जाता है-बच्चियाँ बेहद के बाप को याद करो, क्योंकि वो स्वर्ग को रचने वाला है, हेविन को रचने वाला है, वैकुण्ठ को रचने वाला है । अपने वैकुण्ठ को याद करो । विष्णुपुरी को याद करो । मनमनाभव मद्याजीभव । अपने बाप को याद करो, शिवबाबा को याद करो, विष्णुपुरी को याद करो । ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी की स्थापना होती है ना । बोलते हैं-बच्ची, तुम तकलीफ जास्ती अगर न कर सकती हो तो यह याद करो । बाकी डिटेल में कोई समझाने वाला हो, तो फिर उनके लिए समझाया जाता है कि बरोबर संवत इनका भी है । संवत बौद्धियो का भी है, इस्लामियों का भी है । अरे इसकी तो बात छोड़ दो, छोटे छोटों को । अच्छा, अभी भारत में श्री लक्ष्मी और नारायण का, अगर हिन्दु भी कहा जाता है, आदि सनातन हिन्दु कह देते हैं, संवत बताओ? कोई संवत तो होना चाहिए या असंवत होना चाहिए? संवत समझते हो? अंग्रेजी में क्या कहा जाता है? सन । अच्छा श्री लक्ष्मी और नारायण ने या आदि सनातन हिन्दू महासभा या हिन्दू धर्म । अच्छा, हिन्दु धर्म की संवत तो बताओ? किसको मालूम है? क्यों यह मालूम नहीं होना चाहिए? हिन्दु धर्म का भी तो संवत होना चाहिए ना । कोई भी नहीं है । जो इनका सिजरा होता है, टिप्पणा कहते हैं । क्या कहते हैं? (किसी ने कहा द्वापर वाला विक्रिमी संवत).. तो क्या उसको हिन्दु कहें? यानी हिन्दु तब से ही शुरू हुए? तो फिर क्यों कहते हैं-सतयुग की आयु अरबों बरस? जरूर संवत होना चाहिए ना । बरोबर नई दुनिया में भारत खण्ड नया, उसमें भारत नया, उसमें देवी-देवताओं का राज्य, अभी उनको आयु देनी चाहिए न! सतयुग और त्रेता को आयु देनी चाहिए । स्वर्ग रचा जाता है गीता से और गाया भी जाता है बरोबर कि गीता में लिखा हुआ है- जो युद्ध के मैदान में मरेंगे, वो स्वर्ग को जाएंगे । गीता से स्वर्ग की स्थापना होती है जरूर । देवी-देवता धर्म की । फिर अगर उनको हिन्दु कहना चाहें हिन्दू कह देवे । बाकी हिन्दु धर्म तो है नहीं । हिन्दु तो है हिन्दुस्तान का नाम । अगर कहते हैं हिन्दु धर्म, तो हिन्दु धर्म की भी तो सेन्सस आयु चाहिए ना । कोई भी नहीं बताय सकते हैं । अभी बाप बैठ करके बताते हैं; क्योंकि यह भी बोलता है-हम भी नहीं जानते थे । अब बाप बैठकर समझाते हैं, तो उनको तो गिनेंगे ना बरोबर, गीता को 5000 वर्ष हुआ; क्योंकि अगर गीता को हम द्वापर में ले आवे, तो द्वापर में तो स्वर्ग नहीं स्थापन हुआ, देवी-देवताएँ तो नहीं थे ना । द्वापर में तो वो लोग आए हैं । तुम लोगों को कल्प की आयु 5000 वर्ष ये बात पहले बतानी चाहिए, तो कोई भी समझे कि बरोबर सिवाय परमपिता परमात्मा के यह समझानी कोई दे नहीं सकते हैं; क्योंकि वो कहते हैं कि मैं इस पुराने तन में आता हूँ । यह भला क्या जानते होंगे! यह और ही सबसे पुराना तन । तो बाप बैठकर समझाते हैं- संवत तो चाहिए ना । बाप बैठकर समझाते हैं, अभी समझते हो श्री लक्ष्मी और नारायण को कितना वर्ष हुआ, क्योंकि गीता से ये धर्म की स्थापना हुई है । गीता को 5000 वर्ष हुआ । भले इन्हें देवी-देवता धर्म कहो या आदि सनातन हिन्दु धर्म । हिन्दु धर्म से आगे कौन सा धर्म है? कोई है? कोई धर्म ही नहीं है । है ही बस देवी-देवताओं का धर्म, वो गीता से निकला । उनका शास्त्र ही है गीता । वो तो 5000 वर्ष हुआ । फिर कल्प की आयु को बढ़ाने की क्या दरकार है? और फिर दूसरी बात, कि बरोबर अगर आदि सनातन हिन्दू धर्म है और उनको कोई बहुत ले जाते हैं और वो संस्था कहाँ सेन्सस कहाँ हिन्दुओं की? हिन्दुओं की  तो सेन्सस थोड़ी कमती हो गई है । फिर कौन-से दूसरे मनुष्य हैं, जिनकी ये बतावें? क्या आकाश में कोई है? पाताल में कोई है? क्या एक-एक स्टार कोई दुनिया है? नहीं, कोई का वर्णन ही नहीं है । जिस चीज का वर्णन नहीं है, वो है नहीं । जैसे, भक्त परमपिता के लिए कहते हैं कि उनका नाम .रूप, देश काल है ही नहीं, तो फिर वो चीज है ही नहीं । वैसे ही कोई भी और संस्था है ही नहीं । देवी-देवताओं के बिगर, डीटीज्म बिगर, और कोई संस्था है ही नहीं । तो जरूर समझना चाहिए कि 5000 वर्ष गीता को हुआ । 5000 वर्ष स्वर्ग को स्थापन करने वाले शिवबाबा को हुआ । अभी शिवजयंती की भी तो संवत चाहिए ना! शिव की जयंती कब? जरूर बताएँगे 5000 वर्ष पहले । संगमयुग पर । ऐसे कहेंगे ना । अभी संगमयुग का तो कोई आयु निकलना नहीं है; क्योंकि यह है बीच का संगम, क्योंकि स्वर्ग से शुरू होता है संवत और राजाओं से होता है । लक्ष्मी नारायण से संवत शुरू हुआ सतयुग आदि का, जिसको फिर कहा जाता है- न्यू वर्ल्ड, न्यू युग । न्यू भारत और न्यू बादशाही भी उसको कहेंगे । वो बादशाही कहाँ? परिस्तान कहाँ? दिल्ली । दिल्ली को बहुत बदलाया है । दिल्ली बहुतों की गद्‌दी बनी है; क्योंकि देवी-देवताओं की भी गद्‌दी थी ना, तो उनके बापदादा, जो बड़े ते बड़े कुल वाले, अच्छे कुल वाले, पवित्र कुल वाले थे, उनकी भी गद्‌दी यहीं थी । तो ऑटोमैटिकली गद्‌दी को लेकर इनके ऊपर बडी चटामेटी लगी रहती है । फिर इनके ऊपर बडी लड़ाइयां वगैरह सब हुई हैं । अभी समझा ना, भारत के आदि सनातन देवी-देवता धर्म की आयु । अभी 5000 से कुछ बाकी, जो 27-26 वर्ष कम होते हैं, बस वो ही आयु है । यानी सृष्टि की आयु फिर यही बताया जाता है कि 5000 वर्ष । इसमें इन्हीं धर्मो को, इन्हीं युगों को फिरना है और कोई युग का नामनिशान नहीं है । है कोई शास्त्र या कोई भी बात जिसमें सतयुग त्रेतायुग, द्वापर, कलहयुग और संगमयुग को भी भूल गए हैं वास्तव में । कहीं भी लिखा हुआ है नहीं । तो कहाँ है वो ब्रह्मा, जिस ब्रह्मा से पहले-पहले ब्राहमण धर्म, जो फिर देवता धर्म । इसको कहते हैं ब्राहमण धर्म, ऑस्पिशस धर्म, ऑस्पिशस युग, फिर ऑस्पिशस लड़ाई । वो जो हथियारों की लड़ाई है, उनको कभी ऑस्पिशस थोड़े ही कहा जाता है । इनको थोड़े ही ऑस्पिशस लड़ाई कहेंगे कि यादव और कौरव आपस में लड़े । नहीं, वो भी नहीं लड़े । कैसे लड़े? भला किस चीज से लड़े? कोई चीज है क्या ? वो तो दिखलाते हैं कि उनको तीर मारते थे, बाण मारते थे । माओ ने उनका हाथ घुमाय दिया था तो वो बोला उनको तीर । अभी तीर की तो बात ही नहीं । अभी तो लिखते भी हैं कि वहाँ मूसल निकले थे । मूसल माना बोंब्स । अभी तीर की तो बातें हैं नहीं । सभी ज्ञान के बाण हैं । शास्त्रों में देखो क्या लिखा हुआ है! मुँझाया हुआ है ना । तो बाबा कहते हैं कि ये सभी जो तुम्हारे वेद, ग्रंथ, शास्त्र वगैरह- वगैरह हैं, इन्होंने और इन्हो के सुनाने वालों ने ही तुम्हारा सूत बिल्कुल मुँझाय दिया है । कुछ नहीं समझते हो, कोई बात को नहीं समझते हो । अनेक मत । अनेक मत-मतांतर ये मानव मत । एक नई मानव मत, कल बाबा ने सुना कि मनुष्यों ने बैठ करके एक मानव मत बनाई । यह है मानवमत कोई जनावर मत थोड़े ही है । मानव एक दो मानव को मत देते रहते हैं । (किसी ने कहा- मानव धर्म) अच्छा, मानव धर्म सो तो मनुष्यों का धर्म है ही है । सारी सृष्टि पर मनुष्यों का धर्म है, कोई शैतानों का धर्म थोड़े ही है, जनावर का धर्म थोड़े ही है । मानव का तो धर्म है ना । फिर यह मानव धर्म । तो बस उठाया ना । बस, उनके पिछाड़ी फालो किया । इनकी बड़ी संस्था बन जाएगी । समझे या न समझे? बस, क्या मत देते होंगे, इस मानव मत को बैठ करके एक गीता तांबे पर लगाई है, छपाई है । अभी पता नहीं है-गीता कब, किसने बनाई, कौन सा धर्म स्थापन हुआ, पाई का किसको पता नहीं है । देखो, ये बिचारे जरूर लड़ाई वाले हैं । इस समय में बाबा कहते हैं मुझे तो इन लड़ाई वालों के ऊपर रहम बहुत आता है कि इनको जन्म बाई जन्म जब से लड़ाइयाँ शुरू हुई हैं, उनको कहा जाता है कि गीता में लिखा हुआ है कि जो लड़ाई के मैदान में, युद्ध के मैदान में मरेंगे सो स्वर्ग में जाएँगे । वो बात देखो कहाँ की कहाँ, वो बिचारे मरते हैं अपने राजा के लिए या अपनी जनता के लिए या प्रजा के लिए, अपने आप मरते हैं दुश्मनों से बचाने के लिए । क्योंकि सतयुग-त्रेता में तो कोई दुश्मन होता ही नहीं है, बल्कि सतयुग, त्रेता, द्वापर में भारत का कोई दुश्मन होता ही नहीं है । ये कलहयुग में थोड़े दुश्मन आए हुए हैं । बाप बैठ करके समझाते हैं-बच्चे, उन सिपाहियों के ऊपर रहम आती है कि ये बिचारे जन्म बाई जन्म इस आशा से कि हम स्वर्ग जाएँगे, लड़ते हैं । अभी इस समय में बाप जानते है कि ये वही समय आया हुआ है, इनका भी तो कल्याण होना चाहिए । ये युद्ध तो यही है; परन्तु वो बिचारे स्वर्ग में कैसे जाएँ? देखो, बाप को कितना रहता है । बोलता है-उन सबको एक भाषण देना चाहिए । बाबा कहते हैं तैयार होना चाहिए बच्चों को, नहीं तो बाप कहते हैं, तरस तो पड़ता है न बच्चों को कि ये भारत की रक्षा करते आए हुए हैं । आजकल इनको बाहर में भी भेजा जाता है । इनका तो पहले कल्याण होना चाहिए; क्योंकि ये भारत को उन दुश्मनों से बचाते हैं । उन माया के दुश्मनों से तो नहीं बचा सकते हैं । माया के दुश्मनों से तो बाप बचाय सकते हैं । वो रास्ता देते हैं, जो तुम स्वर्ग को जाओ, परन्तु वो कैसे जावे? बाबा कहते हैं कि बच्चे, और कुछ न समझ सकते हो, भला ये तो याद करो । तुमको कहते आए हैं कि तुम युद्ध के मैदान में मरेंगे तो स्वर्ग में जाएँगे बरोबर । उनका अर्थ कह देते हैं-मनमनाभव मद्याजीभव । कैसे पहुँचेंगे? याद करो अपने बेहद के बाप को और बाप से तो जरूर स्वर्ग का वर्सा मिलेगा । बाप से और कौन-सा वर्सा मिलेगा? बाप से जरूर वर्सा मिलना होता है ना । तो बाप कहते हैं-बच्चे मुझे याद करो अर्थात मनमनाभव अर्थात बुद्धि का योग मेरे से लगाओ । ये सबके लिए है । जो भी पलटनें हैं, सबके लिए है; परन्तु वो पलटन तो नहीं आएँगी ना । यह तो खास भारत के लिए है ना । वास्तव में है सबके लिए; क्योंकि वो आया तो है माया के बंधन से बचाने के लिए । कहते हो-अच्छा इनका भी तो कल्याण होना चाहिए, ये बिचारे थोड़े ही यहाँ आएँगे सुनने के लिए । सुनना तो सबको चाहिए ना । अच्छा, इनको भी कहें कि बच्चे, लड़ाई तो लड़नी है जरूर । ये गीता वहाँ भेज देते हैं । ये ताँबा आदि का अभी निकली है । लड़ाई लगी है ना, तभी आजकल गीता को उठाते हैं । तो वहाँ भेज देते हैं कि लड़ाई वालों के पास यह गीता कोई सुनावे । अब ये लड़ाई वाले गीता तो सुनते आए हैं । लड़ाई वाले भी सुनते आए हैं, मनुष्य भी सुनते आए हैं । लड़ाई तो क्या, मनुष्य गीता का पाठ सुनाते हैं । बड़े धरन्दर गीता का पाठ बैठ करके करते हैं । अभी स्वर्ग में तो कोई भी नहीं जाते है । कितनी गीता सुनी होंगी बच्चों ने? जन्म-जन्मांतर गीता सुनी हैं । पीछे नर्कवासी क्यों बनते जाते हैं? गीता के ऊपर विश्वास तो है नहीं; क्योंकि समझते हैं पतित-पावनी है गंगा । गंगा पतित-पावनी है या ज्ञान गीता पतित-पावनी है? क्योंकि गीता में ज्ञान है ना । वो हुआ ज्ञान गीता अथवा उसे ज्ञान गंगा कहें और वो है पानी की गंगा । सूत मूँझा हुआ है ना । कोई एक तरफ जाते हैं, साधु-सन्त-महात्मा भी वहाँ जाते हैं । जबकि गीता में ज्ञान है स्वर्ग जाने का, फिर सो ज्ञान को ही पकड़ना चाहिए, फिर वहाँ क्यों जाते हैं? परन्तु नहीं, वो तो ज्ञान का सागर बाप आते हैं । वो सन्मुख आकर सुनाते है तब स्वर्ग की स्थापना होती है । वो कार्य कोई मनुष्य थोड़े ही करेंगे गीता से, और फिर वो गीता तो कोई काम की ही नहीं है । उन्होंने तो लिखा हुआ है श्री कृष्ण भगवानुवाच । यहाँ तो बाप आते है, वो कहते हैं-मेरे को याद करो, तो फिर मैं तुमको स्वर्ग में भेज दूँगा । तो वापस जरूर जाना पड़े । गाइड आया है, वो बोलते हैं कि बच्चे, जब स्वर्ग की स्थापना होती है तो नर्क से तो सबको वापस जाना पड़े ना । जानते हो ना कि बरोबर लिखा हुआ है-मच्छरों के माफिक मनुष्य तो नहीं उड़े मच्छरों के माफिक आत्मा वापस भागी । कहाँ? एक ने सबको मुक्ति दे दी, जिसके लिए भक्त लोगों ने आधा कल्प भक्ति की है । किसके लिए? भगवान से मिलने के लिए यानी इस दुःख से वापस जाने के लिए । कहते हैं ना- भगवान ने हमको यहाँ दुःख में क्यों भेजा है? जिसको परमपिता परमात्मा कहते हैं, उसको क्या पड़ी थी जो दुःख में भेजा? अभी पता तो उनको पड़ता नहीं है कि दुःख क्यों है, बाप ने क्यों दुःख दिया है । बाप दुःख तो दे नहीं सकते हैं, परन्तु बिचारों को कुछ पता नहीं है । अनेक गुरु, अनेक फलाना । अब बाप आकर कहते हैं- बच्चे, ये जो गुरु लोग है, इनको भी छोड़ दो । ये वेद, ग्रंथ, शास्त्र वगैरह ने तुम्हारा सूत बिल्कुल ही मुँझाय दिया है । बात मत पूछो । एकदम घोर अंधियारे में डाल दिया है । अभी बाप आ गया है, लड़ाई सामने खड़ी है । कभी भी कोई से पूछेंगे तो बोलेंगे कल्प की आयु बहुत बड़ी है अभी तो रेड़ी गीसरी पहनते हैं । अभी तो 40 हजार वर्ष बोलकर इन बेचारों को घोर अंधियारे में डाल दिया । ये पुरुषार्थ कैसे करें ? अभी वो बोलते हैं की हम इनको कैसे समझावें । ये तो मनुष्य हैं न । उनको बुद्धि में बैठता नहीं है वह बोलता है यह भी पता नहीं। यह तो इसने एकदम नई गीता बना दी । कल्प की आयु यह कृष्ण, ये तो सब बैठ करके गीता का खाना खराब करना चाहते हैं । भागवत का खाना खराब करते जाते हैं । बाबा कहते हैं-हाँ बच्चे, इन्होंने शास्त्रों ने, वेदों ने तुम्हारा खाना खराब किया है । मैं आ करके तुम्हारा खाना आबाद करता हूँ । देखो, भारत का खाना खाली है ना । खाना कहा जाता है तिजोरी को जिसमें पैसा रखा जाता है । देखो, भारत की राजधानी की तिजोरी खाली हो गई है ना । उसमें चूहे दौड़ते हैं । नहीं तो भारत की तिजोरी कितनी भरी हुई थी । उफ! हीरे-जवाहरात! ऐसे मत समझो छोटी तिजोरी; क्योंकि वैकुण्ठ कोई छोटा तो नहीं है ना । कोई अजमेर में गए होंगे, वहाँ वैकुण्ठ की मॉडल देखी होगी, जिसको सोने की द्वारका कहा जाता है । इनमें से बहुत गई होंगी द्वारका में । मॉडल तो इतनी बड़ी होती है ना । देखो, रेल कितनी बड़ी है, रेल की मॉडल बनाएंगे तो इतनी छोटी बनाएंगे ना! कोई इतनी बडी रेल तो नहीं बनाएँगे! तो मॉडल टाउन भी अच्छा है वैकुण्ठ का मॉडल देखने के लिए कि वहाँ सोने के ही महल बनते थे, उनमें नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार हीरे-मोती-रत्न जड़े होते थे । जैसे यहाँ एक साहुकार आया, तो देखो कितना बड़ा-बड़ा बनाते हैं । राधास्वामी लोग कितना खर्चा करके क्या-क्या बनाते हैं । अभी तुम समझते होंगे वो बनाई- बनाई रह जाएगी । जो भी पैसा उनके ऊपर लगा है सब मट्टी में मिल जाएगा । कुछ भी नहीं रहेगा । अभी तुम जान गए ना, सोझरे में आ गए ना । अब तो दुनिया का विनाश सामने हो रहा है । तो बाप बैठ करके समझाते हैं ना, अभी तुम बच्चे तो जान गए, जाग गए और वो तो बिचारे सोए पड़े है । अभी तलक क्या से क्या बनाते रहते है, प्लैन्स बनाते रहते है और तीस- तीस बरस के लिए लोन, बीस- बीस बरस के लिए लोन लेते रहते हैं और तुम बच्चे जानते हो कि लोन-फोन काहे का, वो तो सब मटटी में मिल जाएगा । तो बाबा ने अभी समझाया न कल्प की आयु बाबा ने अच्छे से बताई । कल्प की आयु सिवाय उसके तो कोई दूसरा समझाय नहीं सके । तो अभी वो समझाते हैं बच्चों को कि बच्चे, नया युग भारत में ही होता है और नया भारत होता है । नई दुनिया में नया भारत होता है । नई दुनिया में नया न बोद्धी खण्ड, न इस्लामी खण्ड, न क्रिश्चियन खण्ड । अभी तो जो उसमें नया था और अब वो भारत पुराना हुआ है । प्राचीन माना नया था, अब पुराना हुआ है । अब भारत ही फिर नया बनेगा । गॉधी जी तो यही चाहते थे ना-नई दुनिया हो, नया भारत हो और उसमे रामराज्य हो । यह किसकी आशा थी? कौरवपति की आशा और अपनी प्रजा से । कौरव और पांडव । पांडव की तो कोई राजधानी थी ही नहीं । बिल्कुल ही नहीं । कौरव-पांडव आपस में भाई ठहरे यानी भारतवासी । अभी पांडवों की तो कौरवों से कोई लड़ाई झगड़ा है नहीं, बात ही नहीं है । ये पांडव तो है ही, जिसके तरफ साक्षात स्वयं परमपिता परमात्मा है । पांडव कितने? 5 पांडव कहते हैं । फिर कह देते है अंधे-सज्जे की औलाद । 5 पांडव भाई थे । यानी एक माँ-बाप के बच्चे थे । अभी वो तो कोई बात है नहीं । देखो, पांडव तुम कितने हो! किसके बच्चे हो? बरोबर तुम पांडव माँ-बाप के बच्चे ठहरे । पांडव कहा ही जाता है रूहानी पण्डे को ।. अभी देखो, तुम्हारी बुद्धि क्या कहती है और गीता क्या कहती है? बुद्धि को तो लड़ाओ । कहाँ की बात कहाँ! गीता सुनाई कब, ठोंक दिया द्वापर में । अभी वो जगह कहाँ से आवे? फिर क्या द्वापर में ही आएँगे गीता सुनाने के लिए? फिर क्या होगा? कोई बुद्धि चाहिए ना! अभी तो तुम देखते हो कि गीता बाबा सुना रहे है, जबकि भारत पुराना है, महान दुःखी है, बिल्कुल ही कंगाल बन गया है । बाप आ करके सारी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का समाचार सुनाते हैं, एकदम ब्रह्माण्ड से । ब्रह्माण्ड किसको कहा जाता है ये कोई भी विद्वान-आचार्य नहीं जानते । बाप बैठकर समझाते हैं- ब्रहम महतत्व जैसे यह आकाश तत्व है ना । तो इनको ब्रह्मा कहेंगे; क्योकि एक तो ऊँचे ते ऊँचा है । वो है ही सदैव पवित्र । इसको तो कलहयुग कहा जाता है । इसको कहते है पतित भूमि । सबको पतित ही कहा, पतित आकाश, सब तत्व भी पतित हैं । वो ब्रहमतत्च जिसमें हम अण्डे रहते हैं, वो तो कभी पतित नहीं होता है ना । उस ब्रहम में हम अण्डे रहते हैं । कहते हैं ना अण्डे मिसल है, इसमें अण्डों का बाप रहते हैं । उसको कहा जाता है ब्रह्माण्ड । इसमे बाप और अण्डे रहते है । उस ब्रह्माण्ड को, रहने के स्थान को कह देना-यह ईश्वर है, यह तो बडी भूल है । ऐसे ही भूल जैसे हिन्दुस्तान को कह देते हैं हिन्दू धर्म । ये भी भूल है ना । समझने वाले हैं भी गरीब निवाज । वो गीत गाया ना- आखिर वो दिन आया आज, वो तुम बच्चे जानते हो ना । इनको पढ़ाते होंगे, अभी पढ़ाते कैसे है वो जाने । एक गाड़ी दिखलाते है ना । अब न वो गाड़ी और घोड़ा है, न उस घोडे का कोचमैन कृष्ण है न पिछाड़ी में बैठा हुआ सेठ साहब अर्थात अर्जुन है । आगे ड्राइवर बैठा है और पिछाड़ी में सेठ बैठा है । सेठ को ड्राइवर ले आया युद्ध के मैदान में । अभी वहां बात मत पूछो अनगिनत सेना बैठी है । उनमें बैठ करके कभी किसको राजयोग और सहजयोग की नॉलेज दे सकेंगे?, जिससे नर से नारायण बनेंगे, नारी से लक्ष्मी बनेंगे वा देवी-देवता धर्म की स्थापनाएँ होगी, किंगडम स्थापन होगी । क्या ऐसे होती है किंगडम स्थापन युद्ध के मैदान में? सेठ और गुमाश्ता । बिचारे कृष्ण को गुमाश्ता भी बना दिया, सो भी द्वापर में । अभी द्वापर में ये बात ही कहाँ है । द्वापर के बाद फिर स्वर्ग सतयुग कैसे आ सकता है? जैसे कि बिल्कुल ही नानसेन्स बात हो गई ना । कितने नानसेन्स बन गए थे यह । यह खुद देखो कितने सेन्सीबुल थे और 84वें जन्म में कितने नानसेन्सीबुल मनुष्य बन जाते हैं । इसको कहा जाता है स्वर्ग से कितना नर्क बन जाते हैं । कितना हम जो देवता थे, सो कितने असुर बन जाते हैं । माया ने असुर बनाया । अंग्रेजी में कहा जाता है ना- गॉड इज ओमनीप्रेजेन्ट यानि सर्वव्यापी । ऐसे नहीं कहते हैं कि राम ओमनीप्रेजेन्ट है । हाँ, बरोबर रावण है ही है । उनको हम बरस-बरस जलाते हैं गोया रावण है ही है । अभी राम है नहीं, अगर राम की दुनिया होती तो रावण कहाँ से जलाएँगे? रावण है । ये भारतवासी, ये बड़े-बड़े राष्ट्रपति भी उनको देखने के लिए जाते है कि इनको रावण को जलाते है । ये तो गुड़ियों का खेल हुआ ना । इतनी भी समझ नहीं है कि अरे भई, यह रावण क्या चीज है? रावण किसको कहा जाता है? फिर बता देते हैं कि रावण लंका का राजा था । सीता चुराई गई । रावण भला लंका में था ना, भारत में तो नहीं था । इसमें तुम्हारा क्या जाता है? उनको क्यों जलाते हो? क्या बात है? इतना पैसा खर्च करते हैं, बात मत पूछो । सारे भारत में करोड़ों रुपया खर्च होता है, करोड़ों की भी बात नहीं है, अरबों रुपया खर्च करते हैं इन सब नानसेन्स बातों में । बाप बैठ करके समझाते हैं कि कैसी नानसेन्स बातों के पिछाड़ी कितने अच्छे-अच्छे प्रेजिडेन्ट, महाराजाऐ आदि की बुद्धि जाती है । कोई की बुद्धि में नहीं आता है कि भारत की हम निंदा कराते है , कुछ भी नहीं, बस बात मत पूछो, विद्वान, आचार्य, पंडित पैसा लूटते ही रहते हैं, मारते ही रहते हैं, खाते ही रहते हैं । बाप आ करके बच्चों को समझाते है कि बच्चे, आखिर वो दिन आया आज, जिस दिन का रास्ता तकते थे सो दिन, भई गीत सुनाओ थोड़ा । (रिकार्ड बजा:-वो दिन आया आज आखिर) तुम बच्चे पढ़ते हो स्कूल में और क्या एम-ऑब्जेक्ट है सो तुम पढ़ते हो । भला स्कूल में न आने वाले, बाहर वाले क्या जानेंगे इसको । यहाँ कोई भी नया आएगा तो बिल्कुल ही मूंझ जाएगा । बड़े-बड़े विद्वान जितने यहाँ आएंगे बिल्कुल ही मूंझ जाएँगे । बोलेंगे यहाँ तो नानसेन्स बातें सुनाई जाती हैं और बाप फिर कहेगे-यह देखो नानसेन्स सुनने के लिए आया है । इसलिए गाया जाता है कि पहले-पहले जो इनको बीमारी है पाँच विकारों की वो और जो बीमारी है शास्त्रों की वो, ये सब उनसे निकलवाने के लिए सात रोज चाहिए भट्‌ठी में, तो इनको रंग चढ़े । जो कचड़पटटी है, भूसा है, वो निकले । इसको भूसा कहा जाता है । किसको कहा जाता है भूसा? बोलते हैं-वाह! उपनिषद, वेद, वेद भगवान ने रचा । तुम कहते हो भगवान ने भूसा रचा! ऐसे-ऐसे कह देते है; परन्तु क्या करेंगे? इन्टरफियर तो कोई कर नहीं सकते हैं । हमारा यह रिलीजन है । रिलीजन में गवर्मेन्ट इन्टरफियर नहीं कर सकती है । बाकी कहेगे तो जरूर कि बरोबर इनकी बुद्धि में वेदो-ग्रंथों-शास्त्रों का भूसा भी जन्म-जन्मांतर का भरा हुआ है और दिन-प्रतिदिन भरता जाता है । अभी वो भूसा भी बिल्कुल ही सड़ गया है । आकर जलने लगा है । बरोबर वो भूसे ये जो शास्त्र है ना, सब जलकर खाक हो जाएंगे । सतयुग में थोड़े ही कोई भक्तिमार्ग है, जो इतनी सामग्री हो । वहाँ भक्तिमार्ग की कोई एक भी सामग्री नहीं होगी । एक चित्र भी नहीं । शिवबाबा के भी चित्र नहीं । यह तो सोमनाथ से ले करके पीछे बनाने शुरू कर देते हैं । बाप बैठ करके अच्छी तरह से समझाते है ना । कल्प की आयु समझाई? बताओ ना! अच्छा, आदि सनातन हिन्दू सभा के पास जाओ, हिन्दू धर्म जो कहते हो, यह कब किसने स्थापन किया, थोड़ा वो तो बताओ दृष्टांत दे करके । अच्छा, इस्लामी का भी और बौद्धी का भी तो संवत है न । कृष्ण-राधे स्वयंवर किया, उनको कहाँ लगाएँगे? सतयुग में अगर श्री लक्ष्मी नारायण और फिर त्रेता में रामचंद्र को ले जाएंगे तो बिचारे श्री कृष्ण की राजधानी को द्वापर में कैसे ले आते है? कोई हिसाब, कोई किताब, कुछ भी नहीं । अभी देखो बच्चों को आ करके दिन आया है कि बाप बैठ करके बच्चों को समझाते हैं । वो गरीबों को सिरताज, मोहताजों को सिरताज । इस समय में भारत है सबसे मोहताज, सबसे दुःखी बिल्कुल ही । घर-घर में बहुत झगड़ा है । बात मत पूछो और बहुत शास्त्र, भक्ति, गंगा, ये, कितने मंदिर है, बहुत ढेर के ढेर मंदिर बनाए जाते हैं । ये सब भक्तिमार्ग की सामग्री यहाँ है, वहाँ एक सामग्री नहीं हो सकती है । वहाँ तो बड़ा मौज का राज्य है । बहुत सुखी मनुष्य हैं । कहते रहते हैं - हेविनली अबोड स्वर्ग, वैकुण्ठ । बाप आ करके बताते है कि अभी तुम्हारा मुख मीठा करने आया हुआ हूँ । तुमको फिर से स्वर्ग का मालिक बनाने आया हूँ, तुम्हारी जो खाने खाली हो गई हैं उनको बडी युक्ति से आबाद कराने आया हूँ । न कोई लड़ाई, कुछ भी नहीं । यहाँ तो देखो सब दुःख ही दु:ख है । जब कलहयुग के अन्त में कुछ नहीं देखने में आता हैं तो सतयुग के आदि में इतने खजाने और ये महाराजा-राजा कहाँ से आए? इन्होंने भला कहाँ से इनहेरीटेन्स लिया? श्री लक्ष्मी नारायण ने कहाँ से इनहेरीटेन्स लिया? ऐसा कौन था इनके पहले दूसरा राज्य जिनसे लिया? सतयुग के आदि में तो ये धूर-छाई लगी हुई है । तो वण्डर भी खाना चाहिए ना । यह तो कोई वण्डर है । यह वण्डर कौन समझावे? बाप बैठ करके समझाते हैं-हम तुमको फिर से राजाओं का राजा, वो ही श्री लक्ष्मी नारायण बनाता हूँ । तुम वहाँ नई दुनिया में होंगे और अपना महल बनाना शुरू कर देंगे हूबहू जैसे कल्प पहले तुमने बनाए थे, जिनकी मॉडल भी दिखलाते हैं और गाते भी हैं कि वैकुण्ठ था, द्वारका थी, समुद्र के नीचे चली गई । उनका भी अर्थ हुआ ना । ये चक्र फिरता है । बरोबर पाँव नीचे चला जाता है पाताल में, ऐसे चक्कर पड़ता है । बरोबर रावणराज्य ऊपर में आ जाता है तो रामराज्य नीचे चला जाता है । रामराज्य ऊपर जाता है तो रावणराज्य पाताल में चला जाता है, यह हुआ चक्कर । वो बैठ करके समझना है कि चक्कर कैसे फिरता है । कोई नीचे नहीं जाता है पाताल में निकल करके? चक्कर तो ऐसे ही फिरता है ना । बाप बैठ करके ये स्वदर्शनचक्र का खेल समझाते हैं । देखो, ये चक्कर भी तुम्हारा गोल है ना और इसमें बिल्कुल सहज है- सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलहयुग संगमयुग. । उनमें कौन-कौन हैं? माताओं के लिए तो बिल्कुल ही सहज है बुद्धि से याद करने की । चक्र और झाड़ । बीज और झाड़ । बस । कोई जास्ती तकलीफ थोड़े ही है और झाड़ भी बच्चों के लिए बनाया हुआ है अच्छी तरह से समझने के लिए । हाँ, बच्ची । टाइम होता होगा बच्चों को । (रिकार्ड बजा-आखिर वो दिन आया आज...) जब बाबा है निरअहंकारी, निराकारी तो बच्चे कितने निरअहंकारी होते हैं! इसलिए बाबा कहते हैं, नहीं तो सब लश्कर ले आवे अपना 40 हजार-20 हजार, मैं उनको बैठ करके कहता हूँ-लड़ो भले, तुमको इनकी सम्भाल करनी है । एक काम करो तो स्वर्ग में पहुँचेंगी; क्योंकि अभी स्वर्ग की स्थापना हो रही है । आगे नहीं होती थी, अब हो रही है । किसको कहा तो नहीं जाता है ना लड़ाई वालों को कि क्या करो? जो लड़ाई में मरेंगे सो स्वर्ग में जाएँगे । पर कैसे? बाप उनको बताते हैं- बच्चे, लड़ो भले, परन्तु जब तुम गोली चलाओ और बैठो-उठो, शिवबाबा को याद करते रहो । आज से ले करके शिवबाबा को याद करते रहो, फिर भले पर्त में जाओ, शिवबाबा को याद करो, तो वो बाबा है ना, वो है रचता स्वर्ग का, वो तुमको स्वर्ग में जरूर भेज देंगे । अभी यह मंत्र मिला ना । बस, इनसे ही जीवनमुक्ति । सेकेण्ड का काम तो भी क्या रहा, जो जनक को जीवनमुक्ति मिली । बस, मनमनाभव अर्थात जब भी चलो, उठो-बैठो, अब से ले करके शिवबाबा के याद में रहो । याद करने का पुरुषार्थ करेंगे, तो लड़ाई के समय में भी जब मरते हो, तो मरने के समय सब कोई है. तो हे राम को याद करते हैं । तुम और कोई को याद न करो, अपने बाप को याद करो, तो जरूर तुम स्वर्ग में जाएंगे, तो कल्याण हो जावे उन बच्चों का । हो जाएगा ना! है तो लाखों आदमी, तो उनका भी कल्याण होना चाहिए । जब एक का बहुत कल्याण हो गया ना, नामाचार निकलेगा, सब आएंगे फिर समझने के लिए । इसको कहा जाता है विहंगमार्ग । जैसे वो बॉमस लगाते हैं ना, तो सारा खलास । तो तुम भी ये बैठ करके 40 हजार का लेकर करके समझाओ । यह बहुत समझेंगे अच्छी तरह से, सबसे जारत्ती यह समझेंगे । यह बाबा भी तो निरअहंकारी है ना । देखो, कितना निरअहंकारी है । बैठते है, कोई अहंकार है बच्चे? नहीं तो आसामी तो बड़ी है ना । हाईएस्ट आसामी है शिवबाबा और ब्रह्मा दादा । जगतपिता, अम्बा आदम और फिर शिवबाबा सब आत्माओं को कहता है कितनी आसामी है । अच्छा बोलते हैं सिपाही को ले आओ, उसको सिखलाना अच्छा, बसर्ते बड़े-बड़े साहुकारों को, वो मूंझे समझेंगे ही नहीं, उसको नशा है बहुत धन का । वो मरने के लिए तो तैयार ही हैं एकदम । वो समझते हैं शरीर छोड़ा तो क्या हुआ, फिर दूसरा शरीर ले लेंगे । देखो, कितना उनमें ज्ञान है! सबसे फर्स्ट क्लास ज्ञान लड़ाई वालों को है । विद्वान-आचार्यो में भी इतना ज्ञान नहीं है, जितना उनमें हैं । बिचारे कहने से ही मान लेते हैं - हाँ, बरोबर हम शरीर छोड्‌कर जाते है, फिर स्वर्ग मे चले जाएँगे । तो क्यों नहीं उनको ज्ञान रियल मिलना चाहिए । तो फिर निरअहंकार बनना चाहिए ना । साधु-सन्त थोड़े ही यह काम करेंगे । नहीं । हम क्यों नहीं करेंगे अपने बच्चों के लिए । बच्चे हो गए ना, बापदादा के बच्चे हो गए, क्यों नहीं करेंगे! उनको समझाना बिल्कुल सहज है; क्योंकि वो तो मरने के लिए तैयार हैं । जैसे तुम मरने के लिए तैयार हो कि अभी-अभी शरीर छूटे तो हम वैकुण्ठ मे जावें । अभी विनाश हो तो स्वर्ग में जाएंगे । वो तो कहेंगे अभी हम विनाश करते हैं, गोली लगी, विनाश में हम स्वर्ग में चले जाएँगे । बहुत खुशी से बिचारे लड़े भी । उन बिचारों की हिम्मत बढ़ जावे और ताकत भी आ जावे; क्योंकि ये तो अभी गवर्मेन्ट नहीं जानती है तो किससे लड़ाई होने की है, क्या है । यह तो समझते हैं कि चीन फलाना ठिकरा कोई बात नहीं है । यह जरूर है कि लड़ाई है । वो बिचारे जानते नहीं हैं । उनके लिए युक्तियाँ भी अगर बाप से पूछें तो वो बता भी देवें । बहुत युक्तियाँ बाप बताय देवे क्योंकि फिर तो श्रीमत है न बच्चों को; परन्तु ड्रामा में देखने मे नहीं आता हैं । पता नहीं आगे चलकर. देखने में तो आता है, यादवों और कौरवों की अभी इन कौरवों और पाण्डवों की दुश्मनी थी । दुश्मनी तो हमारी कोई से है नहीं । हम तो भारत को स्वर्ग बना रहे हैं, हमारी दुश्मनी थोड़े ही है किसके साथ । पाण्डवों की दुश्मनी कौरवों से है क्या? अरे! बिल्कुल नहीं । ये प्रजा को, प्रजा राज्य को, कौरव राज्य कहा जाता है । हम तो कहते है सब स्वर्ग में जाएँ, परन्तु सब नहीं जा सकेंगे । स्वर्ग में तो वो ही जाएँगे जो पवित्र बनेंगे । ऐसे थोड़े ही चले जाएंगे । पवित्र बनना है वा तो सुनना है, जैसे बाबा ने कहा ना-मनमनाभव, मद्याजीभव ये तो भला सुनावे उन लोगों को, मंत्र तो दे देवे उनको । इसको ही कहा जाता है माया को वशीकरण मंत्र वा इस मंत्र से वो स्वर्ग का मालिक बनेंगे । कोई तो निमित्त बना है ना, नहीं तो मेजर मिलिट्री या हम नानवाइलेंस, वो वाइलेंस डिपार्टमेन्ट, वो कैसे निमंत्रण दे सकते है? जरूर कोई का कल्याण होने का है । एक तो ये इमपर्टिक्युलर और वो इनजनरल । अभी समझा! मेजर जी समझा? बाबा खुद बैठ करके लेक्चर देंगे । बापदादा, शिवबाबा भी कहते हैं. हमको बच्चो को तो पवित्र बनाना है ना, क्योंकि भारत की सेवा करते आए है । ये संस्कार चले आ रहे हैं बच्चे, जन्म-जन्मांतर संस्कार अनुसार युद्ध के मैदान में आते रहते हैं । (गीत बजा-जिनके मन मे नेक इरादे उनकी मुश्किल दूर हटा दे, तेरे घर में क्या मुश्किल है, तू महाराजाधिराज....) महाराजाधिराज का जो अक्षर लिखा है वो गीता में कृष्ण को समझ करके लिखा है । ये नहीं कहते तू महाराजाओं का भी महाराजा बनाने वाला है, इसमें वो लाइन नहीं है, क्योंकि बाबा तो राजाओं का राजा बनाते हैं । कृष्ण का जो नाम छोड़ दिया, तो उनका डाल दिया 'तू महाराजाधिराज'; क्योंकि कृष्ण है । अभी महाराजा तो नहीं कहे जाएँगे । जो मूर्ख होते हैं वो उनको महाराजा कहेंगे । राधे और कृष्ण को तो प्रिन्स एण्ड प्रिन्सेज कहा जाता है । उनको तो महाराजा-महारानी कहा ही नहीं जाता है; क्योंकि स्वयंवर के बाद वो लक्ष्मी नारायण कहे जाते हैं, महाराजा-महारानी पीछे बनते हैं । ये भी देखो किसको पता नहीं है । बुद्धू लोग ठहरे ना । कितने बड़े-बड़े । बात मत पूछो । जब आकर शास्त्रवाद करते हैं जैसे सब जानते हैं, बहुत कुछ जानते है । नहीं तो बच्ची, तुम्हारे आगे ये सब बिल्कुल 100 परसेन्ट बुद्ध एकदम । बस हो गया? नहीं, बीच में से लाइन कट गई है । एक-एक सेंटर के हेडस आए थे जिन्होंने कहा था कि हम शिव के ऊपर एक मेमोरेंडम लिख करके आएँगे और देंगे सो हाथ उठाओ? इन्हों में जिन्होंने दिया है वो हाथ उठाओ । (खाली एक जगदीश ने) । जगदीश और बाबा, दूसरा कोई नहीं । अच्छा, अभी छुट्‌टी लें।