19-01-1965    मधुबन आबू    प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम शांति    मधुबन


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज मंगलवार जनवरी की 19 तारिख है। प्रातः क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड:
किसके लिए रुका है, किसके लिए रुकेगा.........

बाकि बहुत थोड़ी समय रही है, बहुत गई थोड़ी रही है, अभी थोड़े की भी थोड़ी रही है। अभी किसके लिए तुम यहां इस पुरानी दुनिया में बैठे हो, किसके लिए तुम ये दुःख रुपी दुनिया में……, यहां तो दुःख ही दुःख है, सुख का तो कोई नाम निशान नहीं है। सुख तो है ही सुखधाम में, क्योंकि सतयुग को सुखधाम कहते है और कलयुग को दुःखधाम कहते हैं। तो बाप कहते है जबकि, आया हूँ तेरे लिए, सुखधाम ले चलने के लिए, तो फिर क्यों रुक पड़े हो यहां? क्यों दुःखधाम से तुम्हारी दिल लग गई है? यहां इस दुःखधाम से व इन सब भारतियों से व तुम्हारे इस शरीर से, तुम्हारी क्यों दिल लग गई है? क्यों नहीं तुम्हारी दिल सुखधाम से लगती है? क्योंकि ये तो तुम बच्चे ही समझ सकते हैं इस गीत के अर्थ को, क्योंकि बाप तो आए ही हैं लेने के लिए, ले सुख में ले चलने के लिए। ये तो है ही, जैसे सन्यासी कहते हैं की यहाँ तो काग विष्टा समान सुख है इसलिए इस काग विष्टा समान सुख में न रहे, उनसे सन्यास करते हैं। तो बाप भी ऐसे ही कहते हैं की बच्चे, अभी सुखधाम का तो साक्षात्कार बच्चो को हुआ ही है। ये पढाई है ही सुखधाम के लिए कोई दुःखधाम के लिए नहीं है, नहीं ! सुखधाम ले चलने के लिए, अभी क्यों ठहरे हो? कोई पढाई में तकलीफ तो नहीं देते हैं। सिर्फ कहते हैं बाप को याद करो। इस योग से तुम सदैव हेल्दी रहेंगे, यानि निरोगी रहेंगे। तुम्हारी काया कल्प वृक्ष समान बड़ी रहेगी। समझा न, क्योंकि ये मनुष्य सृष्टि का जो झाड़ है उसकी तो आयु बड़ी हैं न, 5000 वर्ष है इस झाड़ की आयु, इतनी झाड़ की कोई आयु इतनी नहीं होती है। ये मनुष्य सृष्टि के झाड़ की आयु इतनी है। उसमे आधा कल्प है दुःख, आधा कल्प है सुख, अभी तुमने दुःख देखा, अभी बाप कहे चलो सुखधाम में। क्या यहां मजा आता है दुःखधाम में? इस विषय वैतरणी नदी में गोता खाने में तुमको मजा आता है? एक दो को जहर पिलाए कर करके आदि, मध्य, अंत दुखी करना तुमको अच्छा लगता है? नहीं ,श्रीमत कहती है की नहीं, अब इस विष की लेनदेन को छोड़ और इस ज्ञान अमृत, क्योंकि ये ज्ञान है। योग और ज्ञान। ज्ञान जितना लेंगे, अविनाशी ज्ञान रत्न जितना धारण करेंगे उतना बहुत साहूकार बनेंगे। जितना याद में रहेंगे उतना बहुत निरोगी रहेंगे। क्योंकि बाप ने समझाया है की ये हॉस्पिटल भी है और यूनिवर्सिटी भी है सो भी किस की हॉस्पिटल, कौन स्थापन करते है? परलोक के परमपिता परमात्मा। परमपिता आकर के ये हॉस्पिटल, रूहानी हॉस्पिटल इसको कहा जाता हैं। होस्पिटलें तो बहुत होती हैं न बच्चे। कभी भी कोई हॉस्पिटल और यूनिवर्सिटी इकट्ठी नहीं होती है तो ये वंडरफुल है न बच्ची। ये हॉस्पिटल और यूनिवर्सिटी इकट्ठी। इन से हेल्थ भी मिलती है तो वेल्थ भी मिलती है। फिर क्यूँ नहीं तुम इस खजानों को लेने के लिए खड़े हो जाते हो। क्यों आज कल आज कल करते समय बीत करके अचानक विनाश आ ही जाएंगे। इसलिए श्रीमत, श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बाप मत देते हैं और तो कोई भी मत जो तो भाई अभी तुम हॉस्पिटल क्यों खोलते हो, गॉवमेंट को भी मत दो की इस समय में बाप आकर के हॉस्पिटल और यूनिवर्सिटी इकठी खोलते हैं, जिससे हेल्थ और वेल्थ मिलती है फिर ऐसे हॉस्पटलें क्यों नहीं खुलवाती हो। पीछे हस्पतालें, यूनिवर्सिटियां या कोलेजे मनुष्य भी खोलते हैं, साहूकार लोग और गॉवर्मेँट भी खोलती है दोनों खोलते हैं। तो तुमको समझाया गया है दोनों को कहो, मनुष्यो को भी कहो जो हॉस्पिटल खोलते हैं उन को कहो ये हॉस्पिटल खोलने से क्या होगा, ये तो हॉस्पिटल हैं न, मरीज आते ही रहते हैं इनका कोई अंत नहीं। ये तो आधाकल्प से ये बीमारों की ये होस्पिटलें और ये कोलेजे, ये होती आई हैं। वो है जिस्मानी शब्द, ये है रूहानी। तो किसको पकड़ना चाहिए भाई एजुकेशन इंस्पेक्टर, जो एजुकेशन मिनिस्टर हैं उनको पकड़ना चाहिए। फिर जो हेल्थ के ऊपर हैं एक मेम है माय है उन को पकड़ना चाहिए। क्या करते हो... अभी तो बाप ने आकर कर के कम्बाइंड यूनिवर्सिटी और हॉस्पिटल दोनो खोली है और वो राय देते है की ऐसे खोलो, तो हमें इसके लिए, ये तो जनम जन्मांतर के लिए ये भोगते रहते हैं, ढेर पड़े ही रहते हैं होस्पिटलें में। जब से देखो, जब से ये माया प्रवेश किया है और रोगी बने हैं मनुष्य, होस्पिटलें चली ही आती हैं। फिर आजकल यूरोपियन दवाइयां हैं आगे देशी दवाइयां, आगे वेदों की दवाई थी। अभी एलोपैथिक, होम्योपैथिक दवाई फलानी दवाइयां हो गई हैं। ये तो है सबसे अच्छी रूहानी दवाई और ये कौन देते हैं अविनाशी सर्जन। देखो बाप को अविनाशी सर्जन भी कहते हैं। तो गाया जाता है ज्ञान इंजेक्शन। ज्ञान इंजेक्शन कहा से मिलते हैं रूहानी बाप से। रूहानी बाप किस को इंजेक्शन लगाते हैं आत्मा को इंजेक्शन लगाते हैं। आत्मा को इंजेक्शन लगाने वाला इस दुनिया भर में और कोई हो ही नहीं सकता, न साधु न संत न महात्मा क्योंकि वो तो कहते ही हैं की आत्मा निर्लेप है, तो फ़िर उनको क्या मालूम आत्मा के लिए इंजेक्शन, जब कोई बीमार ही नहीं है तो पीछे उन को इंजेक्शन कहाँ से लगाएंगे। तो बाप आकर के समझाते हैं बच्चो को, की बच्चे ये राय दो जो जो भी कोई धर्मशाला खोलने वाला हो या कोई हॉस्पिटल खोलने वाला हो या कोई कोलेज खोलने वाला हो तो उनको समझाओ। ऐसे बहुत हैं सब प्रकार के सिंधी, पंजाबी, मुसलमान सब हॉस्पिटल और कॉलेज, ये खोलते हैं बहुत, क्योंकि गवर्मेंट के पास तो पैसे हैं नही। और वो तो लाखो रुपया खा जाती है और ये जो है यूनिवर्सिटी कम.. ये देखो एक टुकड़ा तीन पैर जमीन का, बस उस मे खोल सकते हो। कोई भी आवे उनको ये बताना चाहिए अरे बाप को याद करो तो सदैव हेल्दी रहेंगे। और ये जो चक्कर है सृष्टि का सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग ये सब इसका चक्कर उनको समझाओ तो चक्रवर्ती राजा बन जाएंगे। अरे ये तो तुम एक छोटी सी तीन पैर पृथ्वी का उनमे तुम हॉस्पिटल खोल सकती हो। यूनिवर्सिटी खोल सकते हो देखो अभी तो ये तो बातें तो तुम समझती तो हो बच्चे। परन्तु नहीं अभी ये बाते अच्छी तरह से अपने जो थोड़े भी हैं धनवान या गरीब है कोई भी खोल सकते हैं। धनवान बड़ी खोलेंगे और गरीब छोटी खोलेंगे और ऐसे कायदा भी है। गवमेंट बड़ी बड़ी खोलती है और मनुष्य छोटी छोटी अस्पतालें खोलते हैं, कितनी अस्पतालें हैं। स्कूल भी ऐसे ही हैं, गवर्नमेंट बड़ी बड़ी कॉलजे, यूनिवर्सिटी खोलती हैं और जो फिर दूसरे हैं वो स्कूल खोल कर बैठ जाते हैं। अरे आज कल तो टेंट्स में भी स्कूल बनाकर बैठते हैं। पैसे नहीं है गवर्नमेंट के पास तो टेंट्स लगाए भी पढाई कराते हैं और शिफ्ट्स भी रखी हैं, भाई अच्छा फलाना 8 बजे से 10 बजे, फिर फलाना स्कूल 10 से 12 भाई 4 से 6, क्योंकि जगह है नहीं। पैसे हैं नहीं कुछ भी। इसमें कोई प्रकार का कोई खर्चा वगैरह कुछ है नहीं। खास कोई बनानी है नहीं। कोई भी जगह, कोई भी मिले तो वहां बेठकर करके, कोई औजार वगैरह दवाइयाँ कुछ भी दरकार नहीं हैं बिलकुल भी। बड़ी सिंपल है अभी जो करेंगे सो पाएंगे। अभी बहुत ही बच्चियां है वो भी खोलती हैं तो बच्चे भी खोलते हैं समझा बच्चे कोई भी, बाप तो कहते है तुम ही खोलो तुम्ही सम्भालो। हमको तो कोई इस से कोई कनेक्शन नहीं है। बच्चे कोई भी जो करेंगे सो पाएंगे, बहुतो का कल्याण करेंगे। अभी देखो है तो कितना सहज अब कौन कहते है...बाप। बेहद का बाप बैठकर के समझाते है। बाप बैठकर के मत देते है, किसलिए श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनने के लिए। तो देखो सुनते बहुत है; और करते कुछ भी नहीं है क्यों, क्योंकि तकदीर में नहीं है। वो हेल्थ एंड वेल्थ यानि निरोगी काया और धनवान। बिलकुल कुबेर हीरे जवाहरों के महल लेते हो तुम बाबा से। देखो कितना बाबा तुमको देने आए है बैकुंठ की बादशाही ,हीरे जवाहरो के महल मिलेंगे ये जानते हो बरोबर की भारत ऐसा था, तो वो था न। श्री लक्ष्मी नारायण का राज्य था, कब था? सतयुग में था, तो जरूर उन को ये वर्सा बाप ने दिया होंगे। अब तो नहीं है न सतयुग। न सतयुग है न वो वर्सा है देवताओं का। अभी तो कलयुग है दुःख ही दुःख है। तो बाप बोलते है अच्छा, फिर सतयुग से कलयुग तो होना है न, तभी तो मुझे आकर के फिर सतयुग की स्थापना करनी पड़ेगी न। मनुष्य तो उद्घाटन करते हैं भाई ब्रिज का, भाई फलाने महल का, ये फलाने अस्पताल का उद्घाटन करते हैं न, तो देखो बाप कहते हैं मैं स्वर्ग का उद्घाटन करता हूँ, चलो भाई, अभी स्वर्ग के रहने के लायक बनो, मेरी मत पर, श्रीमत पर लायक बनो। तो कल्प कल्प तुम लायक बनते हो ऐसे नहीं की कोई नई बात है, नहीं बच्चे। कल्प कल्प पार करता हूँ अब भी देखो पार कराता हूँ। देखा जाता है गावड़े में, ये बहुत ही गरीब बेचारे है इसके लिए लेते हैं, क्योंकि खर्चा तो कुछ है नहीं, वहां तो खर्चा है, कुछ है। गरीब बहुत लेते हैं तो बाप भी कहते हैं मैं गरीब निवाज भी हूँ। साहूकारों के पास तो पैसे हैं, इसलिए वो स्वर्ग में हैं जैसे। बाकि गरीब हैं, भारत भी गरीब तो भारत में जो गरीब हैं उनको ही उठाते हैं। साहूकार तो देखो कुम्भकरण की नींद में सोये पड़े हैं, ऐसे कहते हैं न। अज्ञान अँधेरे में सोए पड़े हैं तो अज्ञान बरोबर कितना अज्ञान, ज्ञान अज्ञान में कितना फरक रहता है आगे कुछ नहीं जानते थे जैसे कुछ नहीं ब्लाइंड थे एकदम। अभी देखो बाप ने तीसरा नेत्र दिया है ज्ञान का तो कितनी समझ पड़ी है, सारी दुनिया का चक्कर कैसे फिरता है, हम कहाँ से आते हैं, बाप के पास रहते हैं, बाबा स्थापना कैसे करते हैं, पतित दुनिया को पावन कैसे बनाते हैं व ऐसे कहें की नई दुनिया, नई राजधानी को स्थापन, पुराना घर कैसे विनाश करा देते है। देखो सब नॉलेज आ करके बुद्धि में, और कोई भी, सभी घोर अंधियारे में हैं। है बहुत मनुष्य, हैं एक्टर्स परन्तु इस ड्रामा के आदि मध्य अंत का कुछ भी पता नहीं है, इस ड्रामा के आदि मध्य अंत का कुछ भी पता नहीं है देखो। आकर के यहां बड़े बड़े आदमियों के एक दो के समाधियों के और कपड़ों के ऊपर फूल चढ़ाते रहते हैं और जो पतित पावन हैं उनको तो कोई पूछते भी नहीं है, नाम भी किसको याद नहीं है। समझा न उनको तो बता दिया है शिव, शिव परमपिता परमात्मा वो तो ठिक्कर में है भित्त्तर में है कुत्ते में है, बिल्ली में है, वो तो गालियां देते रहते हैं। ग्लानि....गालियां को ग्लानि कहा जाता है, डिफेम, डिफेमेशन के सभी चलता हैं तो देखो जो भी ये हैं साधु संत, महात्माएँ जनसंख्या इनके ऊपर केस चलेंगे, धर्मराज द्वारा। डंडा खाकर के हिसाब किताब चुक्तु करके फिर वापस जाएँगे क्योंकि ये तो है ही क़यामत का समय। बाप आकर के बताते हैं बच्चो को की भाई ये क़यामत का समय है। सब हिसाब किताब चुक्तु करके, सजाएं खाकर के, आग में जल मर करके, फिर सभी को वापस ले जाऊंगा, ऐसे कहते हैं न सब को वापस साथ में ले जाऊंगा। आया हूँ रूहानी पंडा बन कर करके, तुम पांडव सेना हो न बच्ची यानि तुम रूहानी पण्डे इसको कहा जाता है। तुम्हे बताते हैं वो जिस्मानी पण्डे ब्राह्मण ये रूहानी पण्डे ब्राह्मण। देखो वो तो जन्म जन्मान्तर से पण्डे पाए जिस्मानी तीर्थ ये हैं एक ही तीर्थ रूहानी, इसको कहते रूहानी तीर्थ। सो भी कैसे घर बैठे। कोई चलना करना नहीं होते है, धक्का खाना नही होते है, परन्तु बस, जितना हो सके उतना याद करते रहो। है न, वो दिन में पैदल जाके करते हैं ये बाप कहते हैं रात में याद करो। रात में दौड़ी करो रूहानी, बुद्धि का योग रात में जाग के करो। यानी ये ट्रेवल रात को करो। हे नींद को जीतने वाले, रात को मुझे याद करो तो मेरे को याद करते जैसे की तुम नजदीक आ रहे, मेरे पास। देखो कैसे ये है रूहानी यात्रा और वो है जिस्मानी यात्रा। वो भी ब्राह्मण ये भी ब्राह्मण, ये है ब्रह्मा मुखवंशावली ब्राह्मण वो कुखवंशावली ब्राह्मण। रूहानी बुद्धिका योग रात में याद करो, यानी देखो कितना फर्क सब अच्छी तरह से बताते हैं। भाई ब्राह्मण हो अभी। अभी रूहानी यात्रा में तत्पर हो और फिर पवित्र भी बनो वो तो अपवित्र हैं। वो तो खुद अपवित्र हैं न बच्ची और तुम तो पवित्र तुम को रहना है क्योंकि ये रूद्र ज्ञान यज्ञ में ये पवित्र ही रहते हैं। वो तो ब्राह्मण कोई पवित्र होते नहीं हैं भले बैठे हुए हैं मंदिर में, श्री लक्ष्मी नारायण की पूजा के ऊपर तो भी नाम है न ब्राह्मण, वो ही उनको स्नान, पानी कराए सकते हैं। हैं पतित नाम है ब्राह्मण। और बाकि जो हैं, जाते हैं मंदिर में, दर्शन करने वाले, अभी वो ब्राह्मण नहीं हैं। पतित, जैसे वो ब्राह्मण हैं, तैसे वो हैं सिर्फ नाम है ब्राह्मण। तो देखो उनको पूजते हैं, वो मंदिर अंदर जाते हैं और जो दुसरे हैं पतित उनको हाँथ नहीं लगाने देते। तो देखो ब्राह्मणों का कोई मान तो था न। तो ये तो मनुष्य समझते नहीं हैं की क्यों दूसरे को क्यों नहीं श्री लक्ष्मी नारायण को हाथ लगाने देते तो वो कहते हैं ये गृहस्ती हैं, विकारी हैं। ये तो निर्विकारी हैं देवी देवताएं उनको ये विकारी कैसे हाँथ लगाएंगे। जब ब्राह्मण लगाते हैं वो भी तो विकारी हैं वो कोई ब्रम्हचारी थोड़ी हैं, हैं कोई कोई जो ब्रम्हचारी होंगे नहीं तो बहुत ही विकारी बैठे हैं, घरबार वाले सभी उनकी पूजा करते हैं। तो हैं सभी ये अंधश्रद्धा। अँधेरी नगरी चौपट राजा। कोई पता ही नहीं है किसको। तो बाप आकर करके समझाते हैं अच्छी तरह से। तो ब्राह्मण का नाम कितना बड़ा है। ब्राह्मणी वो या ब्राह्मण वो जो अपने इक्कीस कुल का उद्धार करे। तो देखो जरुर अगर कहेंगे कन्या होंगी तो जरुर माँ बाप तो उनके होंगे न। तो देखो कन्याओं का माँ बाप ये बैठे हैं कोई तो उनको सिखलाते हैं की इक्कीस पीढ़ी तुम स्वर्ग के मालिक कैसे बन सकते हो। तो बाप बेठ करके बार बार समझाते हैं। है तो गुप्त वेश में, अभी ये तो बच्चे समझते हैं कि शिव बाबा बैठ करके ब्रह्मा द्वारा ये सभी राज हमको समझाते हैं। अब देखो कोई कहे भाई देखो, ये जो ब्रह्मा था, ये तो दादा था, फलाना था। वो तो धंधा करता था। वो थोड़ी कोई ज्ञान देता था किसको, वो तो धंधा करता था। अभी आकर करके उसने प्रवेश किया है इसमें बहुत जनम के अंत के जनम के भी अंत में, इनमे प्रवेश किया। ज्ञान सुनाते रहते हैं तो ये है रथ, शिव बाबा हुआ रथी। इस रथ में बैठने वाला तो जरूर निराकार ही बैठेंगे इसमें। तो देखो इन द्वारा बैठ करके बच्चो को समझाते हैं, की बच्चे ये भी हमारा रथ बहुत जनम के अंत के जनम का भी पतित तो पहले जरूर इन को ही पावन बनाना पड़े न। तो देखो पहले पहले ये पावन बन जाते हैं सबसे क्योंकि नजदीक में हैं बिलकुल ही, तो ये ऐसे कुछ नहीं कहते की मैं कोई भगवान हूँ, फलाना हूँ। वो खुद कहते हैं मैं बहुत जनम के अंत के भी मेरा अंत है और वो भी वानप्रस्थ अवस्था में। वो विकारी भी बन चुके हैं पतित हैं, ऐसे नहीं कहते हैं हम कोई बाल ब्रह्मचारी हैं नहीं। फिर बाप ने आकर के इसमें प्रवेश किया है और हम थोड़ी कुछ जानते थे। बाप कहते तुम अपने जन्मो को थोड़ी जानते थे। अब हम तुम को बैठकर के सब राज बताता हूँ की ये जो है जिसमे प्रवेश करता हूँ, ये अपने जन्मों को नहीं जानते हैं वैसे तुम भी अपने जन्मो को नहीं जानते थे। तो कितना सीधा बैठकर के समझाते हैं सन्मुख। अभी ये भी बुद्धि में आते हैं बरोबर परमपिता परमात्मा, परमपिता पतित पावन। पतित पावन माना गुरु हो गया क्योंकि वापस ले जाएगा, पंडा गुरु हो ही गया, तो बाप भी है तो देखो टीचर भी है। देखो ये सारे ड्रामा के आदि मध्य अंत का राज समझाते हैं। अभी तुम बच्चे समझते हो की बाबा भी है हमारा शिक्षक भी है, हमारा पंडा सतगुरु भी है, हमको साथ में ले जाएंगे, ऐसे राय लेने से बाप की टीचर की, गुरु की फिर हम तो कितना ऊँचे ते ऊँचा पद पाएंगे। अभी कितना सन्मुख बैठकर के समझाते हैं कोई तो धारण करते हैं और श्रीमत पर चलते हैं कोई देखो न चलने से फिर कैसा बाप का बच्चा न बनने से, उनकी मत पर न चलने से इतना ऊँच मर्तबा कैसे पाएंगे। ये बेहद के बाप का मुक्ति जीवन मुक्ति पहले जाएंगे, मुक्ति में फिर जीवन मुक्ति मेँ तो बाप भी कहते है न बच्चे अपने शान्तिधाम को याद करो, सुखधाम को याद करो, ये दुःखधाम को भूलते जाओ देह सहित क्योंकि अपने को नंगा समझो और कहो की अब ये देह से हमने बहुत ही नाटक का पार्ट बजाया, चौरासी जनम अभी हम वापस जाता हूँ। बाबा लेने आया हुआ है सबको जाना है वापस। ऐसा नहीं की एक को लेके आता हूँ नहीं, सबको वापस जाना है, फिर सबको फिर से रिपीट करना है अपना अपना पार्ट। हर एक की आत्मा में ये देखो पार्ट भरा हुआ है और अविनाशी पार्ट कभी बंद होने वाला नहीं है समझा न । ये जो दुनिया है ये प्रलय तो कभी होती नहीं है, न बच्ची। तो देखो कैसे कैसे मैं सुखधाम, शान्तिधाम शांतिधाम, सुखधाम, दुःखधाम, फिर जाएंगे शान्तिधाम, मुक्तिधाम जीवन मुक्तिधाम जीवन बंधधाम। अभी जीवन बंधधाम तो नहीं कहेंगे न परन्तु रहने के स्थान को धाम कहा जाता है। सिर्फ यही चक्कर फिराते रहे अच्छी तरह से, बाप की याद में रहते रहें और पवित्र रहे तो बेडा पार है एकदम भाई। हॉस्पिटल में क्या है देखो कितना संजीवनी बूटी मिलती है, जीयदान मिलता है, काल के ऊपर भी विजय पहनते हो। वहा अकाले मृत्यु आती ही नहीं है। जब बुड्ढे होते हो तो जेसे सरद बुड्ढा होते है अपनी खल बदलते रहते है, ऐसे तुम बुड्ढा होंगे खल छोड़ करके नई खाल फिर ले लेंगे कोई तकलीफ नही, न रोना, न पीटना, न कुछ भी नहीं। तो अभी इस अवस्था में, ऐसी अवस्था यहाँ बनानी है अभी तो हम इस पुराने शरीर को छोड़ देने के हैं। हम तो वापस जाएँगे, अपने स्वीट होम। फिर आना है स्वीट राजधानी में, वहां काल हमको खा ही नहीं सकते हैं, नहीं। हम जब बुड्ढे होंगे, तब साक्षात्कार होंगा, हम आपे ही बोलेंगे इस शरीर को छोडो। देखो ये दृष्टान्त देते है न शर्प के खल का भी, तो सन्यासी नहीं दे सकते हैं नही। ये तो स्वर्ग में एक खाल छोड़ करके फिर नई लेनी होती है तो ये तो विष्णु के लिए, प्रवृत्ति मार्ग वालों के लिए दृष्टांत हैं। सन्यासियों के लिए दृष्टान्त ही नहीं है, परन्तु उन्होंने ये सभी संन्यास, ये जो दृष्टांत है भ्रमरी वगैरह का ये सभी कॉपी किये हैं जैसे। वहां वो कॉपी करते हैं की हम सेकण्ड में जीवनमुक्ति दे सकते हैं। अब जीवनमुक्ति, उसमे तो मेल भी चाहिए, फीमेल भी चाहिए, जीवनमुक्ति का अर्थ हैं जीवन बंध में मेल और फिमेल है तो जीवनमुक्ति में मेल फीमेल चाहिए। ये तो निवृत्ति मार्ग वाले सिर्फ मेल, ये कैसे किसको जीवनमुक्ति दे सकते हैं। तो देखो ठगी है न यहाँ। इसको ही कहा जाता है, ये सब भ्रष्टाचारी बहुत हैं। यहाँ ठगी बहुत करते हैं करप्शन कहते हैं। पीछे देखो अभी लौट करके पैसा मिला है तो आकर के फ्लैट बनाएंगे, बड़े बड़े मकान बना रहें हैं, मंडलेश्वर श्री श्री, है न। तो अभी ठगी है न बच्चे। अभी ये है ड्रामा, बाप बेठ करके समझाते हैं। अब ये शरीर ख़त्म होने का है, इसलिए चलो अपने बाप के पास। बाबा को याद करो तो तुम्हारा विकर्म विनाश होंगा नहीं तो सजाएं खाएंगे बहुत। और पद भी भ्रष्ट होंगा इसलिए कोशिश करो निरंतर मुझे याद करने की अंत मति मुझे याद करो ऐसा न हो की बाल बच्चा वगैरह कोई याद आ जाएंगा, फिर पुनर्जनम लेना पड़ेंगा, सजाए खाएंगे उसी समय में, जैसे बाबा ने समझाया न काशी, कलवट विनाश में खाते हैं न तो उसी समय में बहुत जन्मो की सजा भोगते, भोगते, भोगते तब वो बिचारे सजाओं से मुक्त हो फिर नए सिरे शुरू हो जाती है, क्योंकि कोई वापस तो जाते ही नहीं हैं तो बाप कितना बैठकर के अच्छी तरह से समझाते हैं ये सब बातें। किसको भी कह सकते हो न, अरे भाई देखो हेल्थ एंड वेल्थ, योग से हेल्थ और नॉलेज, थोड़ी सी नॉलेज से वेल्थ। जब ऐसी सहज मिल सके, एक सेकेण्ड में, जीवनमुक्ति इसको फिर कहा जाता है। जीवन मुक्ति कहा जाता है स्वर्ग को। तो फिर इतना सब पैसा बर्बाद करने, कोलेज खोलने, इतना मारने की दरकार ही क्या है तो क्यों न हेल्थ मिनिस्टर, एजुकेशन मिनिस्टर को पकडें या जो भी हैं पैसे वाले लोग, उनको बोलो कोई को बाप कहते हैं तुम्ही अस्पताल खोलो, तुम्ही को फायदा रहेंगे, समझा न बच्ची। तुम ही अस्पताल खोलो जो करेंगा सो पाएँगे। तुम्ही छोटी सी हस्पताल खोल दो कहाँ न कहाँ। तो बहुतो का कल्याण हो जाएँगे। समझा न, तो जरुर गरीब गरीब अनुसार खोलेंगे। गरीबों के पास अक्सर गरीब ही जाएँगे, साहूकार खोलेंगे तो उनके पास कोई साहूकार जाएँगे, समझा न बच्चे। तो साहूकार अपने साहुकारो का उद्धार करे, गरीब अपने गरीबों का उद्द्धार करें। अगर साहूकार न करेंगे तो गरीब वर्सा ले जाते हैं, बाप भी कहते हैं गरीब मेरे से आकर के ले जाते हैं साहूकार तो अपनी नींद में सोये पड़े हैं। हैं उनके पास भी हैं, बड़े बड़े करोड़ पति. अरे एक्टर्स जिनसे ये वो खेलपाल कराते हैं, उनकों भी छोड़ते नही है देखो, पकड़ लेते हैं, पैसा उनसे पकड़ लेते हैं। तो गाया भी जाता है न “किनकी दबी रहेंगी धुल में किनकी राजा खाए, किनकी चोर हजम करके...... जैसे भक्ति मार्ग में खर्च करते हो ये विनाश के पहले क्यों नहीं करते हो। सो भी मत देते हैं बाबा की विनाश के पहले कुछ कर लो तो वहां कुछ पद मिल जाएंगा। मरना तो है ही, सब छोड़ना तो है ही समझा न, क्योंकि अंत है ड्रामा का। तो कितना अच्छी तरह से बाप बेठ करके समझाते हैं सन्मुख बच्चो को, क्योंकि यहाँ तो अभी ठंडी है कोई आ नहीं सकते तो बाबा मम्मा जाते तो हैं न बाहर में देखो, कहाँ कहाँ जाते हैं चक्कर लगाने। तो ये नदियाँ चक्कर लगाती रहती हैं। और बाकि जो है बड़ी नदी ब्रह्मपुत्री और सागर ये तो इकट्ठे ही रहेंगे इकट्ठे। सागर का बाबा ने बोला न मेला लगता है कलकत्ते में। ब्रह्मपुत्री... ब्रह्मपुत्री तो ये ठहरी, मम्मा तो सरस्वती हैं। और तो बच्चियों कोई का ज्ञान गंगा नाम है, जमुना फलाना बहुत ही नाम है। तो ज्ञान गंगाएं है न वो तो पानी की नदी हैं, उनमे कैसे मनुष्य कोई पतित से पावन बनेंगे, वो तो स्नान करते आते हैं। देखो अभी भी मेला मलाखडा लगते हैं कुम्भ के मेले में, बाबा ने कितना समझाया। ये कोई मेला थोड़ी है, ये तो है आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल, सुंदर मेला कर दिया, ये मेला अभी देखो तुम्हारा मेला किसके साथ है आत्माओं जीवात्माओं का परमात्मा के साथ। परमात्मा अभी जीव में पधारा हुआ है, लोन लिया है जीव का या इस शरीर का। लोन लेने बगैर नहीं तो कैसे पढ़ाएंगा भला। उनको अपना शरीर तो है नहीं। देखो यहाँ भी शिव भगवानुवाच तो शिव तो उनका नाम ही है। अभी इनमे भी आएं तो भी शिव, नाम तो उनका तो नहीं बदल सकते हैं न। कृष्ण तो मनुष्य था न बच्ची, ये तो भगवान्, तो भगवान् तो एक ही होते हैं और निराकार होते हैं। उनको ही कहा जाता है ज्ञान सागर। ब्रह्मा विष्णु शंकर को ज्ञान सागर नहीं कहा जाता है, न बच्ची ये तो पीछे देखो ब्रह्मा को आकर के ज्ञान देवे, कैसे देवे ? वो तो निराकार है न देखो प्रवेश कर कर के ज्ञान देते हैं। तो देखो बाबा को देते है, मम्मा को देते हैं। मम्मा को भी अंग्रेजी में कहा जाता है गॉडेज ऑफ़ नॉलेज। तो जरूर मम्मा को कहेंगे सरस्वती को, तो ब्रह्मा को भी तो नॉलेज होगी न। ब्रह्मा की तो बेटी है न, ब्रह्मा को नॉलेज फिर कौन देते हैं ज्ञान का सागर कितना सहज समझाते हैं। की बरोबर तो जैसे बाप है नॉलेज, गॉड ऑफ़ नॉलेज या गॉडेज ऑफ़ नॉलेज। तुम चिल्ड्रेन भी हैं ऐसे कहेंगे गॉड ऑफ़ नॉलेज, गॉडेज ऑफ़ नॉलेज बच्चे भी हैं क्योंकि तुम भी सरस्वती हो, ब्रह्मा के बच्चे हो। हाँ नॉलेज नम्बरवार है पुरुषार्थ अनुसार नॉलेज जो अच्छी तरह से धारण करेंगे और श्रीमत पर चलेंगे, पवित्र रहेंगे, अभी पवित्रता के ऊपर है सारा मदार, समझा न। इसलिए कहा है न की अबलाओं के ऊपर अत्याचार होतें हैं किनका? कंस, जरासंधी, अस्रोरका, दुस्सासन का, तो है न द्रोपदी पुकारती है दुस्सासन..., तो सभी दुस्सासन हैं, सभी द्रोपदियां हैं, कोई एक थोड़ी है सब जो भी है प्रवृति मार्ग में वो दुस्सासन है, वो तो देखो पुकारती है अभी देखो सच सच पुकारती रहती है बाबा ये दुस्सासन हमको नंगन करते है और अगर नहीं होती हूँ तो मारते हैं अभी हमारी रक्षा करो भाई रक्षा तो करेंगे वो तो रक्षा हुई है जरुर। तुमने सहन किया है तो सहन तो करना पड़ेंगा न। सहन करते करते फिर आखरीन में फिर तुम हमेशा के लिए नंगन होने से छूट जाएंगी भविष्य में। अत्याचार तो सहन करना पड़ेंगा। बच्चियाँ लिखती हैं बाबा हमको इन अत्याचारियों से कब छुड़ाएंगा? अरे भाई आगे भी छुडाया था अत्याचार तो तुम्हारे पर ड्रामा अनुसार थे, सबके ऊपर भी, बहुतों के ऊपर। इसलिए तो उनको कहा जाता है जरासंधी शिशुपाल कंस सब का टाइटल अलग है उनका भी मुझे साधुओं का उद्धार करना है, साधु जिनका नाम है। तो अभी गीता बैठकर के पढेंगे वो अक्षर की साधुओं का उद्धार क्योंकि ये भी तो एडलट्रेशन और ये रिश्वत विश्वत को समझ गये हैं न बच्ची। तो सारी दुनिया ही ऐसी है फिर सारी दुनिया का ही खल्लास करना होते हैं। और जो जिनको वर्सा लेना होंगा वो आकर के बाबा मम्मा बाबा मम्मा बाबा मम्मा करते करते वर्सा ले लेंगे बाबा मम्मा जैसा फोलो करते करते... कोई बड़ी बात तो है नहीं है। है तो बहुत सहज गरीबों के लिए सहज है हाँ गरीब घर में होती तो बड़ा अच्छा होता अभी साहूकारों के घरों से, वो तो निकलने भी नहीं देते हैं बहुत कहते कन्या होती तो बहुत अच्छा तो कन्याओं को बंधन तो नहीं हैं न माताओं को बंधन है, सीढ़ी उतरनी पड़ती है अब सीढ़ी चढ़ती तो नहीं हैं(कन्याएं) न क्योंकि सीढ़ी उतरी हुए वाले वो भूलें तो बड़ा मुश्किल। तो बाप बैठ कर समझाते हैं की सिर्फ वाचा तो नहीं करनी है वर्सा लेना है ले लो, मौत तो ऐसे भी बैठे बैठे आ जाती है देखो कितने एक्सीडेंट्स हो जाते हैं आज रेलवे में बड़ा तूफ़ान लगा आज बस गिरी आज ये फलाना एक्सीडेंट हुआ आज अर्थक्वेक हुई मरने में देरी थोड़ी है अभी। अभी तो ये आफतें है नजदीक होती जाती है रिहर्सल्स होती जाती है। फाइनल हो जावे उससे पहले अपना वर्सा लेलो बाप से, नहीं तो फिर ज़ार ज़ार रोएंगे। कल्प कल्पान्तर वर्सा नहीं ऊँचा पाए सकेंगे। इसलिए है बहुत सहज बाप को याद करो अभी चोरासी का पूरा होते पार्ट अभी जाते है वापस फिर आकर के अपने स्वर्ग में अपनी बादशाही करेंगे, और क्या और तो कुछ कहते ही नहीं हैं जास्ती वो भी नहीं करते हैं इसमें मोह उसमे मोह उसमे मोह। बाबा कहते हैं नहीं, ये देह सहित सबसे अपने को आत्मा निश्चय करके मुझे याद करों, परमात्मा को याद करो, बस अपने को आत्मा निश्चय करके बस यही ख़याल करो चौरासी का जनम हमारा पूरा हुआ, हम जाते हैं। क्योंकि तुम्ही बच्चों से बात करते हैं जिनका चौरासी जनम पूरा दुसरे कोई से तो बात करते ही नहीं हैं तो बच्चों को बोलते हैं अभी चौरासी जन्म पूरा हुआ अभी चलो वापस चलना है नहीं चलना है स्वर्ग में या यहीं अभी नरक में गोता खाना अच्छा लगता है तुमको? पूछते हैं देखो कौन पूछते हैं? बाप पूछते हैं, बड़ा बाप। अच्छा बच्चों को इशारा दिया है नॉलेज है इशारे की, समझा न सेकण्ड में जीवन मुक्ति तो इशारा हुआ न तो देखो इशारा का मतलब डिटेल में कितना ज्ञान दिया हुआ है बच्चों को। रोज नई नई बातें समझाते रहते हैं, अभी बोलते हैं की जहां भी रहो बोलो देखो ये तुम क्या करो की ये अस्पताल कम युनिवर्सिटी, होता ही नहीं है, बाप खोलते हैं देखो बात सुनो योग, योग से बाप कहते हैं एवर हैल्दी बनेंगे ठीक है। तुम्हारे विकर्म सब भस्म हो जाएँगे ये तो भगवानुवाच है खाली कृष्ण का उसमें नाम दे दिया है, है भगवानुवाच मनुष्य का नाम दे दिया है। वो कहते हैं न मेरी याद में रहने से इस रूहानी यात्रा में रहने से तुम्हारा विकर्म विनाश हो जाएंगा। अंत मति सो गति मेरे पास आ जाएँगे ठीक, अच्छा बाकि ये सृष्टी का ये चक्र सतयुग त्रेता द्वापर का ये चक्र को शांतिधाम सुखधाम दुखधाम। दुखधाम को भूलो शांतिधाम में चलो, हम तुमको ये सुखधाम में भेज देंगे और बाबा कोई तकलीफ हैं? ये याद करते रहो, इसको ही कहा जाता है मनमनाभाव मद्याजी भव। अभी कुछ तकलीफ देते हैं भला कोई? बाप जानते हैं कितना तकलीफ दूँगा माताओं को सारा दिन किचन में पड़ी हैं ये कर रहीं हैं, ये कर रहीं है, तकलीफ तो नही देने का है, बहुत तकलीफ.... तो देखी है, इतने शास्त्र, वेद, ग्रन्थ, जप, तप. दान. पुण्य फिर कर्म थोड़े किये है। हम सिर्फ अभी दो अक्षर कह देता हूँ अल्फ को याद करो और बे को याद करो, बाप को याद करो मम्मा को याद करो, अपने क्रिएशन को याद करो स्वर्ग को याद करो अरे बाप को याद करो वर्से को याद करो। ये तो रावण का वर्सा है न, रावण के वर्से को भूलो, ये रावण का दुःख का वर्सा रावण का है, तो ये वर्सा थोड़ी कहेंगे इसको श्राप कहेंगे। तो बाप कहते हैं मैं तुमको वर्सा देता हूँ फिर रावण तुमको श्राप देते हैं अभी समझा, इसलिए अभी श्रापित होने से हम छुड़ाने आया हूँ वर्सा देने आया हूँ, क्या वर्सा नहीं चाहिए तुमको? बच्चे बनेंगे तो वर्सा लेंगे नहीं तो कैसे लेंगे? अच्छा चलो टोली देओ बच्ची। बहुत... कितना समझावे, याद भी तो करना पड़े न, भूल जातें हैं, कितने कितने किस्म से समझाते हैं फिर भूल जाते है, अब क्या करे बाप? बहुत पड़े हैं जमीने फालतू किराया खाते हैं ऐसे बिचारे ये कर देवे तो ,..... बाप कितना किराया दे? कोई किराए पर बाप को दे देवे तो भी उनको बहुत कुछ मिले बाप से, क्योंकि ईश्वर अर्थ लग जाते हैं न। भले किराया भी कोई लेवे कोई तो भी तीन पैर किराए पर भी पृथ्वी के नहीं मिलते, बॉम्बे में तो बड़ी तकलीफ होती है। हम जानते भी हैं बहुतों को जिनके पास बहुत पैसे हैं, मकान भी पड़े हुए हैं बहुत किराए पर वो चाहते हैं की हम हॉस्पिटल बनावें यूनिवर्सिटी बनावें समझा न। वो लिखा पढ़ी कर रहे हैं, गवर्मेंट के साथ हम ये जो प्रॉपर्टी है, कोलेज बनातें हैं अरे कोलेज ये बड़ी सहज है अच्छी उनको खोल देना चाहिए ये कोलेज कम यूनिवर्सिटी। अरे एकदम बेडा पार है उसका सदैव के लिए बीमारी से छूट जाएंगा। ये पढ़ते हैं धन के लिए न, ये पढाई ऐसी है जो धनवान बन जाएंगे फर्स्ट क्लास, पढाई कोई बहुत थोड़ी है इस सृष्टि चक्र जानना है, झाड़ को आदि मध्य अंत को जानना है और कुछ नहीं, कोई तकलीफ नहीं है। तकलीफ है बच्ची हाँ? न, कुछ भी तकलीफ नहीं है, फिर तुम यहाँ से भूल जाती हो। तुम्हारी वो जो देवरानी थी न इनकी सिल्लू, ये सिल्लू और उसका नाम क्या था राधारानी, तो उनको हम बोलते थे तुमको हम राधा रानी जैसे राधे को मैं महारानी बनाता हूँ तुम बनो, फिर वो सुनती हैं यहाँ फिर वहां जाती की वहां की वहां ही रह गई, कभी चिट्ठी नहीं कभी याद नहीं कभी कुछ भी नहीं। देखो माया कैसी है, माया नाक से पकड़ के पकड़ लेती है एकदम, अभी पता नहीं तुम क्या करेंगी। जो पवित्रता की है बात उसमे सहन करना पड़ता है, अबलाओं को मार पीट बहुत होती है परन्तु क्या करे भाई थोड़ी मार पीट तो सहन करनी पड़े न हा? कुछ तो सहन करना पड़े इतना ऊँचा बनना है बस आए...... मार मिलती है तो बस हाए... शिव बाबा... हाए... शिव बाबा.. करते रहो, बेडा पार हो जावे। भले मार मार करके ख़तम कर देवे तो पहुँच ही जावे बच्ची, बड़ा ऊँचा पद पाए सकती है। बना हुआ है न अबलाओ के उपर अत्याचार तो लिखा हुआ है इस रूद्र ज्ञान यज्ञ में अबलाओं पर सितम हर प्रकार का रहता है बहुत। जब घड़ा भर जाते हैं पाप का तब विनाश होता है सो तो लिखा ही हुआ है घड़ा भरना चाहिए न। जब तलक होंगा, जब पिछड़ी होंगी घड़ा पूरा होंगा। अभी है ड्रामा में इसमें बाबा क्या कर सकते हैं हाँ ? सहन करना पड़े। और ऐसी ऐसी नाजुक बच्चियाँ सहन नहीं कर सकें फिर क्या करे, पति को कैसे हम नाराज करेंगी। बाबा जब बोम्बे में जाते हैं न समझाया था न तो बहुत अच्छी अच्छी फेशनेबल आती हैं, बच्चों सम्बन्धी तो बहुत हैं धनवान बहुत। आते हैं बोलते हैं फिर क्या विचार है चलेंगी ये स्वर्ग में? याद तो करते रहते हो, भाई एक बारी स्वर्ग में गया। स्वर्ग में भी गया, कहाँ गया? क्या जाके बना प्रजा बनी, ढेर बना, चमार बना या स्वर्ग में गया ये तो बहुत सहज कह देते हैं स्वर्ग में, इनको कोई मालूम तो है नहीं स्वर्ग में कोई राजाएँ है, रानियाँ है, साहूकार है, गरीब हैं बस खाली बैकुण्ठ में गया। तो बाप इनको कहते है चलो हम तुमको एकदम बैकुंठ की महारानी बनावें। देखो लक्ष्मी नारायणा था, जरुर उसको वर्सा किसने दिया होंगा शिव बाबा ने। तो शिव बाबा तुमको भी कहते है चलो हम तुमको बनावें बाकि पवित्र जरुर रहना पड़ेगा। फिर अगर हमारा पति न रहे तो? न रहे तो तुमको कोई भी हालत से पवित्र रहना पड़ेंगा, मैं थोड़ी पति को..., विष तो जरुर देंगी अगर मांगेंगा तो, तो फिर तुम बैकुंठ में भी नहीं चल सकेंगी, यही मरो मूत में समझा न। मैं खुल्ला बोलता हूँ एकदम अच्छी तरह से। जोड़ी जोड़ी आती है देखो पवित्रता की राखी बांधो तो पवित्र दुनिया का मलिक बनेंगा मैं गारेंटी करता हूँ। देखो काम शत्रु है बाप कहते है भगवानुवाच है न काम महाशत्रु है काम शत्रु है इन पर जीत पहनने से तुम स्वर्ग का मालिक बन सकते हो, क्या विचार है? फिर बड़ी युद्ध चलती है वहां, वो बोलते हैं हम रहेंगे, वो बोलते भाई हम नहीं रह सकते है नहीं तो तकलीफ होंगी बहुत, बाबा कहते बिलकुल क्लियर हैं अच्छी तरह से, पीछे कोई तो भाग लेती हैं गुस्से में आकर के, हिम्मत करके देखा जाएंगा अच्छा समझा न पीछे झगडा चलता है समझा। शुरू से देखो कहानी ऐसे हुई है, इनका एक गीत है की शुरू में एक था शुरू में एक रहता था वो विलायत में रहता था, वो जब आया तब उनको आकर के काम की लगी, फिर वो कहती है हम तो नहीं देंगी, वो कहे नहीं हम देंगा फिर मार पीट चलता फिर पुलिस में केस गया, फिर कोर्ट में केस गया। ऐसे ही बात से शुरुआत में ऐसे हुआ था इस बात से हुआ था। वो कहे भाई मैं भूखा हूँ, आकर् के मुझे कुछ ये तो खिलाओ। उन्हें कहा भूखा हुआ है, जहर का भूखा हुआ है, पाइजन का भूखा हुआ है हाँ ? वो बोले हम पोइजन नही देंगी। तो संसार समाचार ऐसे अखबार भाई नहीं समय देखो झगडा लगा इसके उपर, केस गया कोर्ट में तब बड़ा मजा करते थे वहा उस समय में, कैसे कैसे लगा है सारा, जो हंगामा हुआ है ये इनसे चला। ये जो लिखा हुआ है लाखा भवन को आग लगाईं कौरवों ने, हैं नहीं कौरवों के, तो बरोबर पांडवों का, ये जो बाबा का लाखा भवन था, जिसमे तुम बच्चियाँ रहती थी, उनको भी आग लगाने आए थे वो घासलेट लेके। है न बच्ची तो अभी प्रेक्टिकल में तुम सब सुनते हो की पांच हजार वर्ष पहले क्या हुआ था, सो प्रेक्टिकल हो रहा है तो इसमें तो किट पिट लिख दिया है शास्त्रों में। अच्छा अभी छुट्टी लेते है, मीठे मीठे सिकिलधे बच्चों प्रित मात पिता बापदादा का नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार यादप्यार। अभी तुम समझ जाओ, गुड मोर्निंग।