29-05-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली     साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन


हेलो, ये 29 मई का रात्रि क्लास है, बापदादा की मुरली सुनते हैं
दुनिया में देखते जरूर हो, परंतु जो कुछ भी पढ़ा है, शास्त्र पढे हैं, जप किए हैं, तप किए हैं, ये सभी भूल जाओ, क्योंकि जब मर चुके और बाप के बन चुके तो देह तो रही नहीं, बाकी बन गए देही । तो मर जाने से क्या होगा? जो कुछ भी पढ़ा हुआ है, वो सब भूल जाएगा क्योंकि जो कुछ भी पढ़े हुए हो, सब राँग पढ़े हुए हो । अगर कोई पढ़े हुए मे से प्रश्न पूंछते हैं तो गोया जैसे कि भूले नहीं है, फिर भी उनको वही याद आता है कि रामायण में यह लिखा हुआ है, वेदों में यह लिखा हुआ है । अरे, तुम तो मर गए ना । तुम अशरीरी बन गए, तुमको वापस जाना है, फिर पुरानी दुनिया को क्यों याद करते हो? भक्तिमार्ग की बातों को क्यों याद करते हो? इसको कहा जाता है (देहअमिमान) । बाबा घड़ी-घड़ी कहते है देही अभिमानी भव । तुमने जो कुछ भी पढ़ा है वो सभी भूलना है, क्योंकि वापस जाना है । तो भक्तिमार्ग में जो कुछ भी पढ़े हैं इस भक्ति को भूल जाओ, क्योकि अभी तुमको ज्ञान मिल रहा है कि बाप को याद करो । बाप को याद करो और डेस्टिनेशन यानी जहाँ जाना है, जहाँ के रहवासी हो, उस शांतिधाम को याद करो । बाकी जो कुछ भी पढ़े हो (उसे भूल जाओ), क्योंकि सतयुग में तो कुछ पढने का है नहीं । तो अभी जो कुछ भी पढ़ा हुआ है, भक्तिमार्ग पूरा हो जाता है । अगर कोई प्रश्न पूछते हैं कि गीता में यह लिखा है तो बाबा बोलते है- देखो, फिर जी पड़े । फिर वो देह अभिमान आ गया और वो पुरानी बाते याद करने लगे । वो पुरानी बातें छोड दो । बीती सो बीती देखो, फिर गाया जाता है कि दुनिया न जीती देखो । तो जो कुछ भी है दुनिया, भक्तिमार्ग की दुनिया है । ये बहुत ही कुछ करते रहते हैं । तुम बच्चों ने भी बहुत ही किया । इन सब बातों को भूल जाओ । सब पढ़े हो, कोई इस जन्म में नहीं पढ़े हो, ये शास्त्रों आदि की कथाएं जन्म-जन्मांतर पढ़ते आए हो । अभी इनको भूल जाओ, क्योंकि जबकि ज्ञान सागर सब कुछ समझा रहा है, तो फिर तुम्हारे पास प्रश्न क्यों उठते है, जबकि तुम्हारा बुद्धियोग है ही अपने घर वापस जाने का । याद तो है तुमको ज्ञान की बातें । तो जिस समय में नाटक पूरा होता है, बाकी कोई थोड़ा समय रहता है तो उनको घर याद पड़ता है । वो तो ठीक है कि उनकी बुद्धि में सारा नाटक रहता है । कोई भी नाटक हो, माया मछन्दर का नाटक है, जब पूरा होता है तो घर याद पड़ता है । फिर बोलते हैं पीछे वो रिपीट करेंगे । तो वो तो हैं हद की रिपीटेशन । अब तो बाप बोलते हैं कि तुमको फिर नई दुनिया में सतयुग की राजधानी की रिपीटेशन करनी है । इसलिए यह सब भक्तिमार्ग छोड़ दो, क्योंकि इनमें तुम्हारी दुर्गति हुई है । दुर्गति को फिर याद नहीं करो । शास्त्रों को याद किया यानी दुर्गति को याद किया । अच्छा, याद ही क्यों करे जबकि उनसे दुर्गति हुई है । तो दुर्गति की चीज को याद नहीं करना है । वेदों में, शास्त्रों में क्या है, यह दुर्गति की चीज है । ये तो पढ़ते आए है, पढ़ते आए है । दुर्गति मिली है । यह बाप आकर समझाते हैं, क्योंकि दुनिया को तो इन सब बातों का कुछ पता ही नहीं है । वो तो समझते हैं कि भक्ति तो अभी 40 हजार वर्ष तक चलेगी । पता नहीं कितने तमोप्रधान बनेंगे, फिर क्या-क्या करेंगे, परन्तु अभी मार्जिन ही नहीं है । भक्तिमार्ग में जितना हुआ हो गया, हम तो विनाश के सामने खड़े है । अब 40 हजार वर्ष भक्ति कैसे चलेगी या कलहयुग कैसे चलेगा । बाप कहते हैं ये सभी बातें जो भी बीती है वो भूल जाओ । अभी तो अपने शांतिधाम और सुखधाम को याद करो, क्योंकि कोई भी चीज याद करते हो तो बाबा बोलते है कि फिर दुर्गति को क्यों याद करते हो? क्योंकि उन चीज से दुर्गति है । तो ये ज्ञान कड़ा है ना । ये हुआ नया ज्ञान । मनुष्यों की बुद्धि मे बैठना जरा मुश्किल होता है । बैठेगा फिर भी उनकी बुद्धि में जो हमारे ब्राह्मण या दैवीय कुल के होंगे । दूसरे कोई की बुद्धि मे बिल्कुल बैठेगा ही नहीं । अगर बैठेगा भी तो कोई मे थोडा बैठेगा, क्योंकि उनको प्रजा में आना है । प्रजा भी कोई कम थोड़े ही बननी है । प्रजा बहुत बननी है । इसलिए बाबा कहते हैं । कौन-सा बाबा कहते हैं?.. जब बाबा कहते है तो.. शिवबाबा को याद करो, क्योंकि कहते, सिखलाते तो हैं ना । वही तो कहते हैं ना कि तुम देह सहित सभी छोड़ करके आत्मा समझो । अभी तुम्हारी. ..बुद्धि उस यात्रा पर है । तुम्हारा मोह ऊपर में जाने का है । पिछाड़ी की बातों को याद मत करो, इसलिए बाबा ने समझाया है कि मनुष्य जब मरते हैं तो पहले सिर इस तरफ में होता है, पीछे जब शमशान का दरवाजा आता है तो फिराय देते हैं । यह रश्म तुम लोगों में भी होगा । तुम अभी इस बेहद की दुनिया से ऊपर जाते हो । तुमको तो ऊपर ही जाना है, याद करना है । तुम्हारे पैर हैं पिछाडी में । वही भी ऐसे ही करते है, पैर पीछे शहर की तरफ में कर देते हैं और शमशान की तरफ में मुँह कर देते हैं । यह तो बहुत कॉमन बात है ना । इस समय तुम जानते हो कि हमारा सिर ऊपर में है । देखो, कृष्ण का ऊपर मे है ना, पिछाड़ी में उनको लात मारी हुई है । हूबहू देखो एक्यूरेट बात है ना । तो तुम भी हर वक्त याद रखो कि जैसे हम वहाँ जा रहे हैं और इस तरफ में हमारी लात है । यह बिल्कुल छी-छि और डर्टी दुनिया है । यह कौन कहता है कि डर्टी दुनिया? आत्मा कहती है । वो बोलते है कि हम अभी जा रहे हैं साजन के पास या बाबा के पास कहो । वो आया है लेने के लिए और यह युक्ति बताते हैं । यह युक्ति और कोई भी मनुष्य बता नहीं सकते हैं । कोई भी सन्यासी वगैरह इतना जन्म-जन्मांतर क्या-क्या सब समझाते हैं । ये सभी अपनी-अपनी बातें समझाते है । अहम् ब्रह्मास्मि यानी हम ब्रह्मा हैं, ईश्वर है इस रचना के । ऐसे नहीं कहेंगे माया के । माया के कहा तो मुआ भला । माया के थोड़े ही कोई मालिक होते है । पाँच विकार के मालिक थोडे ही कोई होते है । बाबा ने समझा दिया है कि कभी भी माया को धन नहीं समझना । माया को सम्पत्ति कहा जाता है, क्या? धन को सम्पत्ति कहा जाता है । माया को तो अक्षर ही दूसरे है । कहते हैं ना इसके पास माया बहुत है, माया नहीं कहना चाहिए, कहना चाहिए इसके पास सम्पत्ति बहुत है । अगर कोई कहे कि इसके पास माया है (तो समझा जाता है कि) इनके पास पाँच विकार शायद बहुत हैं । ये संपत्ति और माया का भी कोई को पता नहीं पड़ता है ।