03-06-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज गुरूवार जून की तीन तारीख है। प्रातः क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड:-
ओम नमः शिवाय...............

ओम शांति ।
यह महिमा किसकी सुनी? परलौकिक, परमप्रिय, परमपिता, परम आत्मा अर्थात् परमात्मा । फिर उसको याद करते हैं । जो भी भगत हों- बन्दगी करने वाले हों, साधना करने वाले हों, भक्ति करने वाले हों, वो सभी याद उनको करते हैं । उसका नाम फिर पतित-पावन भी है । बच्चे ये जानते हैं कि भारत पावन था और प्रवृत्तिमार्ग था । देखो, श्री लक्ष्मी-नारायण प्रवृत्तिमार्ग है ना । वो प्रवृत्तिमार्ग का धर्म था, जिसको आदि सनातन देवी-देवता धर्म कहा जाता था और भारत में पवित्रता, शांति, सुख-संपत्ति सब कुछ था क्योंकि समझाया जाता है कि प्योरिटी या पवित्रता है तो शांति भी है तो सुख भी है तो सम्पत्ति भी है । अगर पवित्रता नहीं है तो नो प्यूरिटी नो पीस यानी शांति भी नहीं, तो सुख भी नहीं । देखो, शांति के लिए भटकते रहते है । शांति के लिए जंगल में फिरते है- शांति चाहिए, शांति चाहिए और कोई एक को भी शांति नहीं है, क्योंकि न बाप को जानते है, न अपने को जानते हैं । न अपने को ऐसे जानते हैं कि मैं आत्मा हूँ और ये मेरा शरीर ऑरगन्स है, इन द्वारा कर्म करना होता है और मेरा स्वधर्म शांत है, क्योंकि आत्मा का स्वधर्म शांत है । तो जबकि आत्मा का स्वधर्म शांत है, अहं आत्मा, तो अहम आत्मा का स्वधर्म है ही शांत । ये हैं उनके ऑरगन्स शरीर और आत्मा को ये भी मालूम है कि अहम् आत्मा निर्वाणधाम के वासी हैं अथवा परमधाम के वासी हैं । यहाँ कर्मक्षेत्र पर ये शरीर का आधार ले हम पार्ट बजाते हैं । आत्मा को तो मालूम है कि हमारा स्वधर्म शांत है यानी गले में हार है और मनुष्य शांति के लिए जंगलों में धक्का खाते हैं । यहॉ-वहाँ पूंछते हैं मन को शांति कैसे मिले? अभी उनको ये पता ही नहीं है कि आत्मा मन-बुद्धि सहित है । मैं आत्मा का स्वधर्म शांत है और आत्मा परमपिता परमात्मा की संतान है । वो भी शांति का सागर है । तो हम आत्माएं शांति के सागर की संतान हैं । जैसे शांति तो उनका धर्म है । कोई शांति ढूंढनी थोड़े ही पड़ती है । तो जबकि सब कोई अशाति है, देखो, सारी दुनिया को अशांति है, तो सारी दुनिया का क्वेश्चन हुआ ना! देखो, सब कोई कहते हैं पीस कैसे स्थापन हो? अभी पीसलेसनेस है तो सारी दुनिया में अशांति है । तो क्वेश्चन ही होता है सारी दुनिया का । भई, सारी दुनिया पतित है । सब जानते हैं कि हम पतित हैं । तो सारी दुनिया का ही सवाल हुआ । अभी सारी दुनिया का मालिक तो ये है, जिसका तुमने गीत सुना शिवाय नम:, ऊँचे ते ऊँचा भगवत । अभी शिव कौन है यह तो कोई मनुष्य जानते ही नहीं हैं । पूजा करते है । कई कई अपन को ही शिवो5हम् कह देते हैं । शिव परमपिता परमात्मा है । अपन को शिव कह देना..... । अभी शिव तो एक ही बाप है । अपन को शिव कहना यह तो बड़ा पाप हो गया, क्योंकि शिव ही एक है जिसको ही पतित-पावन कहा जाता है । कोई मनुष्य को तो पतित-पावन कहा ही नहीं जा सकता । ब्रह्मा को पतित-पावन नहीं कह सकते है, विष्णु को पतित-पावन कहा नहीं जा सकता है, शंकर को पतित-पावन नहीं कहा जाता है, ना मनुष्य को, लक्ष्मी-नारायण या ये जो देवी-देवताएँ है उनको ही कोई पतित-पावन कहा जाता है । पतित-पावन तो सिवाय एक के कोई है नहीं । सर्व का सद्‌गति दाता तो वो एक ही है । तो कोई भी मनुष्य, मनुष्य को पावन बनाय नहीं सकता है । कोई भी मनुष्य, मनुष्य की सद्‌गति कर नहीं सकता है, क्योंकि ये तो है सारी दुनिया का क्वेश्चन । इसलिए गाया जाता है, देखो, महिमा है ना- सबका सद्‌गति दाता, सब पतितों को पावन करने वाला । तो बाप बैठ करके समझाते हैं कि देखो! भारत पावन था, जब सतयुग था । जब पावन था, अभी पतित है । तो ये सारी सृष्टि को पावन बनाने वाला कौन? तो वो कहते हैं कि उनको ही तो याद करना चाहिए ना । और तो कोई गुरु-गोसाई कोई पतित को पावन तो नहीं बनाय सके ना । यह तो समझा दिया है कि जो भी गुरु-गोसाई यहाँ के हैं, वो खुद ही पतित हैं । पावन हो नहीं सकते है, क्योंकि यह है ही पतित दुनिया, क्योंकि उसमें भी बाप ने सिद्ध कर दिया है कि देखो, यह जो कहते है कि यह महान आत्मा है या.. .पावन आत्मा है, पुण्य आत्मा है- नहीं, ये सब लोग पापात्मा हैं । क्यों? फिर बाप बैठ करके समझाते हैं- देखो, मुझ अपने बाप को तो जानते ही नहीं हैं । 'शिवाय नम:' । ठीक है ना । अच्छा, भारत में शिव जयंती गाई जाती है, जरूर आया होगा, तो ऊँचे-ते-ऊँचा ठहरा ना । जरूर वो ही पतितों को पावन करने आया होगा । कब आते हैं? वो कहते हैं कि बरोबर कलहयुग के अंत और सतयुग के आदि के संगमयुग । इसको कॉनफलुअन्स कहा जाता है, फिर कुम्भ कहा जाता है । ये कुम्भ को कॉनफ़लुअन्स कहा जाता है । वो पानी और सागर का या पानी और पानी की नदियों का कुम्भ नहीं । वो तो हुआ जिस्मानी, आर्टीफिशियल । नाम कुम्भ कर दिया है । नहीं तो कुम्भ इसको कहा जाता है, जबकि ज्ञान का सागर, पतित-पावन आय सभी आत्माओं को पावन बनाते है ।.... बरोबर ये भी जानते हो कि भारत में जब देवी-देवता धर्म था, एक ही धर्म था ना! देखो, यह चित्रों में बताया जाता है, यह गोले में भी कि बरोबर जब सतयुग है तो त्रेता नहीं है, त्रेता है तो फिर द्वापर नहीं है । सतयुग पास्ट हो गया । द्वापर पीछे कलहयुग आता है यानी वो पास्ट हिस्ट्री हो गई । यह हो गया ना! सतयुग था, जिसको कहा जाता है- सूर्यवंशी राज्य था । अच्छा, त्रेता में भी राम-राज्य था, जिसकी बड़ी भारी महिमा है- राम राजा, राम प्रजा, राम साहुकार है, बसे नगरी जिये दाता धर्म का उपकार है ।' देखो, कितनी महिमा है! जब त्रेता की इतनी महिमा है तो सतयुग की और ही महिमा है । इसलिए उनको ही स्वर्ग भी कहते हैं, वैकुण्ठ भी कहते है और भारत ही वैकुण्ठ था, स्वर्ग था । बरोबर भारत में थोड़ी जीवात्माएं थीं, जो पवित्र थीं । अच्छा, और सभी धर्मो कीं सभी आत्माएँ निर्वाणधाम में थीं । उसको कहा ही जाता है इनकॉरपोरियल वर्ल्ड । तो अभी आत्माएँ क्या हैं, परमपिता परमात्मा क्या है- कोई भी मनुष्य मात्र बिल्कुल जानते ही नहीं हैं कि आत्माएँ तो बिन्दी हैं । बाबा ने कल भी समझाया ना भृकुटी के बीच में रहती है छोटी-सी । देखो, उनमें 84 जन्म का कितना पार्ट है! बाबा ने कल भी समझाया कि यह जो आत्मा है, यह 84 जन्म लेती है । मनुष्य तो कहते हैं 84 लाख जन्म । ऐसे तो हो नहीं सकता है कि मनुष्य 84 लाख जन्म में फिर कल्प-कल्पान्तर फिरते रहते हैं । 84 लाख जन्म तो कभी होते ही नहीं हैं । मनुष्य का 84 का चक्कर, सो भी सभी मनुष्यों का तो नहीं होगा ना! भारत में सिर्फ जो पहले आते हैं, वो ही पीछे में होते हैं । जो पहले थे, सो पीछे में पड़ गए हैं । अभी जो पीछे में हैं, सो पहले जाएँगे । जब पहले जाएँगे, तो पीछे आने वाली सभी आत्माएं निर्वाणधाम में रहती हैं । ये नॉलेज तो बाप ही बैठकर समझाते है, क्योंकि ज्ञान का सागर वो एक ही है । उसको ही कहा जाता है- वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी । ये अथॉरिटी क्यों कहा जाता है? वो कहते हैं- मैं आ करके ब्रह्मा द्वारा ये वेदों शास्त्रों ग्रंथों गीता वगैरह का सार समझाता हूँ । तो समझाते हैं कि ये सभी भक्तिमार्ग के कर्मकाण्ड के सामग्री हैं, शास्त्र हैं । ये बनाए हुए हैं, क्योंकि मैने जब आय पतित-पावन बनाया, कैसे बनाया वो तो कोई शास्त्रों में लिखा नहीं हुआ है । मैंने कैसे आ करके ये यज्ञ रचा! इसका नाम ही है- राजस्व अश्वमेध रुद्र ज्ञान यज्ञ' । कोई कृष्ण यज्ञ नहीं कहा जाता है । इसको कहा जाता है- रुद्र ज्ञान यज्ञ । रुद्र कहा जाता है शिव को । जिसमें क्या करना होता है? स्वाहा होना होता है यानी बाप को देह सहित सरेण्डर होना होता है । बाप कहते हैं- बच्चे, देह सहित ये जो भी तुम्हारे मित्र-संबंधी, गुरु-गोसाई, काका, बाबा, चाचा है इन सबको अभी भूल जाओ । अभी सिर्फ अपने एक बाप को याद करो । उसको कहा जाता है सर्व धर्मान परित्यज्य यानी जो भी तुम्हारे धर्म हैं- मैं सन्यासी हूँ उदासी हूँ क्रिश्चियन हूँ फलाना हूँ । ये सभी देह के धर्म है । इन सबको अभी छोड़ दो । मामेकम- देखो, कौन कहते हैं? मुझ अपने बाप को याद करो । आएँगे तो जरूर कोई शरीर तो लेंगे ना । तो आते हैं और कहते हैं- मैं आ करके एक साधारण शरीर लेता हूँ जो अपने जन्मों को नहीं जानते हैं कि हमने कितने जन्म लिए हैं । तो बताते हैं कि हे बच्चों हम तुमको बताते हैं । तो किसके तन में बैठ करके बात करें? बोलते हैं कि मुझे. प्रकृति का आधार लेना पड़ता है । तो मैं आ करके इस तन द्वारा तुम बच्चों को इस सारे सृष्टि के आदि मध्य अंत का नॉलेज बताता हूँ । देखो, भारत का प्राचीन योग बडा मशहूर है, नामी-ग्रामी है । विलायत में भी बहुत है । भारत का प्राचीन यानी पुराने-ते-पुराना । पुराने-ते-पुराना तो बरोबर भारत है ना । भारत ही नया था, भारत ही अभी पुराना बना है । तो जरूर भारत को नया बनाया था । उसको कहा जाता है प्राचीन । कैसे बना था? योग और ज्ञान से । योग माना मेरे को याद करना । इसको कहा जाता है- मनमनाभव यानी हे आत्माएं! तुम एक मुझे ही याद करो । कोई भी देहधारी को याद मत करो । तुम बच्चे यहाँ बैठते हो, बरोबर इन आखों से देखते हो कि भई, बाबा बैठा हुआ है, परन्तु तुम्हारी बुद्धि यह कहती है । बुद्धि लगी हुई है उस बाप से, शिवबाबा से, अपने निराकार बाबा से, जो सर्व का बाप है । सर्व का बाप है, न कि सर्वव्यापी है । कहते है- मैं तुम्हारा बाप हूँ ना! 'शिवाय नम: ' तो सभी कहते हैं । बरोबर ऊँचे-ते-ऊँचा है भी भगवत् । उनकी सारी महिमा है । नम्बरवन है उनकी महिमा, ऊँचे-ते-ऊँचा भगवत् । देखो, मनुष्य सृष्टि का बीज रूप भी गाया जाता है । सत चित आनन्द भी कहते हैं । सत् है यानी वो जन्म-मरण में नहीं आते है और आ करके सच बोलते हैं । बाकी जो भी मेरे लिए समझाते हैं वो सभी झूठ बोलते हैं, क्योंकि मुझे जानते ही नहीं हैं । तो मनुष्य हो करके अगर अपने पारलौकिक बाप को न जाने तो जनावर मिसल हो गए, क्योंकि जनावर तो जानने की कोशिश नहीं करते, जनावर तो भगवान से मिलने के लिए भक्ति नहीं करते हैं, मनुष्य करते हैं । तो जो मनुष्य कहते हैं ओ गॉड फादर! अब उनसे पूछो फादर का ऑक्युपेशन बताओ । अगर नहीं बता सकते तो फिर जनावर ही हो गया । सभी गाते तो हैं ना- 'हे परमपिता परमात्मा । सभी भगत याद करते हैं यहाँ । तो बाप बैठ करके समझाते हैं कि अगर कोई बेहद के बाप को ही नहीं जानते है, लौकिक बाप को तो सब जानते है, जनावर भी जानते है । पारलौकिक बाप को अगर मनुष्य न जानते हैं तो फिर वो भी तो जनावरों के मिसल हुआ । तो देखो, वो समझाते है इस समय में ये जनावर हैं- शेर है, नाग है, सर्प है, एक, दो को दुख ही देते रहते हैं । परमपिता परमात्मा से बेमुख भी करते हैं । तो देखो, इस समय के लिए गाया हुआ है- विनाशकाले विपरीत बुद्धि । जब विनाश हुआ था, अब फिर हो रहा है, तो फिर भी बाप आ करके कहते हैं- विनाशकाले विपरीत बुद्धि । किसकी? क्योंकि तीन सेनाएँ खडी हैं । एक यूरोपवासी यादवों की, जिन्होंने विनाश के लिए मूसल और ये इन्वेन्ट किया है । अच्छा, दूसरे है भारत के वो कौरव और पाण्डव । देखो, कौरव और पाण्डव अब भाई । तो देखो, तुम आपस में भाई हो ना । तुम पाण्डव हो तो वो कौरव हैं, काँग्रेस है । तो आपस में दो भाई हो ना । अभी तुम्हारी भी बाप से प्रीत बुद्धि है, क्योंकि बाप ने आ करके तुमको अपना परिचय दिया है । तो गाया जाता है ना । वो तो कहते हैं- सर्वव्यापी है, तो प्रीत हो नहीं सकती है । जब सर्वव्यापी है तो किसको याद करें? तो याद नहीं है, योग नहीं है, तो कहा जाता है- विनाशकाले विपरीत बुद्धि । वो विनाश को पाते है । अच्छा, विनाशकाले और विपरीत बुद्धि फिर कौरवों की, वो भी विनाश को पाते है । फिर विनाशकाले प्रीत बुद्धि, वो विजय पाते हैं । तो पाण्डव विजय पाते हैं । देखो, है ना! तो फिर वहां समय है ना । इसको ही कहा जाता है- गीता का एपिसोड यानी फिर से गीता का भगवान, अभी गीता का भगवान कौन? मनुष्य कह देते हैं- मनुष्य कृष्ण । नहीं, बाप कहते हैं कि मैं हूँ । ज्ञान का सागर मैं हूँ ना । कृष्ण तो नहीं है ना । ज्ञान का सागर मैं हूँ पतित-पावन मैं हूँ कोई कृष्ण थोडे ही है । कृष्ण भगवानुवाच तो हो नहीं सकता है ना । वहाँ लिखा है-भगवानुवाच । भगवान तो कोई कृष्ण को नहीं कह सकेंगे । किसको कहेंगे? भगवान तो एक ही होता है, जिसको पतित-पावन कहा जाता है । भगवान को कृष्ण कोई नहीं मानेंगे । मुसलमान मानेंगे? नहीं । परमपिता परमात्मा को, जिसको अल्लाह मियाँ कहते हैं, गॉड फादर कहते हैं, तो और कोई को कहेंगे? न ब्रह्मा को, न विष्णु को, न शंकर को, क्योंकि इनसे भी ऊंचा वो है । बाप है, जिसको कहा जाता है- 'शिवाय नम: ', 'तुम मात-पिता । देखो, तुम मात-पिता तो जरूर आ करके सबकी सद्‌गति वो करते हैं । तो सबको इस दुख से लिबरेट कर सुख तो वो करते हैं ना! तो बरोबर होना है ना, क्योंकि लड़ाई सामने खड़ी है । तुम बच्चों को नॉलेज फिर से मिल रही है और बार-बार कहते रहते हैं- देखो, तुम यहाँ बैठे रहते हो, तो भी भले यहाँ देखते हो, परन्तु तुम्हारी बुद्धि चली जाती है बाप के पास- शिवबाबा हमको पढ़ाते हैं । अभी ऐसे तो नहीं है कि तुमको कोई साधु पढ़ाते हैं या विद्वान पढाते हैं या कोई वेद पढ़ाते हैं या शास्त्र पढाते हैं । वो तो कह देते हैं कि बच्चे! जो भी भक्तिमार्ग के शास्त्र हैं इन सबको भूल जाओ, मर जाओ यानी देह सहित देह के अभिमान को छोड़ दो । देही अभिमानी बनो और अपने बाप से अभी सुनो । क्या सुनो? सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान और योग । तो यह वहां फिर कल्प पहले वाला, जिसको प्राचीन योग कहा जाता है, वो फिर भी आ करके बाप सिखलाते है । कोई कृष्ण ने थोड़े ही बैठ करके योग और ज्ञान सुनाया । कृष्ण तो एक ही बार सतयुग में दिखेगा, फिर जब पुनर्जन्म लेगा तो नाम-रूप फिर जाएगा । नाम रूप देश काल फिर जाते हैं । तो गीता कोई कृष्ण ने तो बताई नहीं है, सुनाई भी नहीं है । सुनाई है परमपिता परमात्मा ने । अब वहाँ बैठ करके कहते हैं कि व्यास ने बैठ करके लिखा है, यह बनाई है, व्यास को भगवान कहते हैं । तो व्यास ने ये सब बातें कैसे बैठ करके बनाई? पहले-पहले ही नम्बरवन में भूल कर दी कि भगवानुवाच । अभी भगवान कोई भी मनुष्य को तो नहीं कहेंगे ना । मनुष्य तो दैवी गुणों वाले ये भारतवासी थे, जिनको कहा जाता है- आदि सनातन देवी-देवता धर्म । वो दैवी गुणों वाले, अभी हैं आसुरी गुणों वाले, क्योंकि वो था राम-राज्य, ये है रावण-राज्य । तो रावण-राज्य में तो सभी पतित ठहरे ना । क्यों पतित ठहरे? खास करके बाप कहते हैं- अरे, अपने बाप को, जिसको ओ गॉड फादर' कहते है, फिर कहते हैं कि 'सर्वव्यापी है, कुत्ते में है, बिल्ले में है, कण-कण में है, फलाने- फलाने में है । देखो, कितना पाप हुआ! तो खुद भी पापात्मा बनते हैं, जिसको सुनाते हैं उनको भी पापात्मा बनाते हैं । ऐसे बनते-बनाते सारी दुनिया पतित बन गई है । तो बाप आ करके समझाते हैं- ये है ड्रामा, बनी-बनाई है । तो तुम बच्चों को पतित से पावन बनना है । फिर पावन से पतित बनना है । सृष्टि तो ऐसी होती है ना! सतयुग त्रेता द्वापर कलहयुग फिर संगमयुग, फिर सतयुग तो आना ही है ना! तो सतयुग में फिर भी देवी-देवताओं का राज्य होगा । वहां राजयोग और ज्ञान फिर से तुम सुन रहे हो । किस द्वारा? बेहद के बाप द्वारा ये भी सुन रहे हैं । .ये शास्त्र पढ़ा हुआ तो बहुत है ना! फिर वो तो भक्ति हो गई ना । इसको कहा जाता है भक्ति काण्ड- यह ताली बजाना, यह करना, वो करना, बहुत धक्का खाना । धक्का खाना इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह है ब्रह्मा की रात । यह भक्तिमार्ग है ब्रह्मा की रात । धक्का खाते ही रहते हैं, खाते ही रहते हैं तीथों पर जन्म-जन्मांतर । अभी कितना दफा जन्म-जन्मांतर ये गंगा में स्नान किया होगा, तो क्या पतित-पावनी गंगा ठहरी 7 नहीं । नदियाँ तो सब जगह में हैं । वो तो सागर से निकलती हैं । सब जगह में पानी की नदियाँ हैं । तो यहाँ भारत में कोई पतित-पावनी गंगा..... देखो, ये मनुष्य गंगा पर जाएँगे तो वहाँ भी देवताओं का चित्र है, उसका भी नाम गंगा रख देते हैं । अभी गंगा सच-सच यह या यह? अभी वो जो देवताओं का चित्र रखते हैं, वो कोई गंगाऐ नहीं कहे जाएँगे, क्योंकि वो ज्ञान सुनकर देवता बने हैं । नॉलेज सुन करके मनुष्य से देवता बने हैं । गाया जाता है ना- मानुष ते देवता किये... । किसने? अभी यह किसको पता नहीं है । गाते तो हैं- 'मानुष को देवता किये करत न लागी वार ।.. .कोई ग्रंथ आदि में अक्षर हैं । तो बाप बैठ करके समझाते हैं कि बच्चे, मनुष्य कोई भी धर्म को तो जानते ही नहीं हैं. .शास्त्र तो ढेर-के-ढेर हैं । धर्म शास्त्र किसको कहा जाता है? धर्मशास्त्र उसको कहा जाता है, जिस द्वारा जो धर्म स्थापन किया, जैसे-क्राइस्ट का धर्म शास्त्र 'बाईबल' है । अभी वो बाईबल को किसको पढ़ने का हक है? उस बाईबल को पढने का हक ही है- क्रिश्चियन को । सब कोई अपने शास्त्र को जानते हैं, क्योंकि कोई भी जाएगा, मुसलमान जाकर बाईबल पढ़ेगा, समझेगा कुछ भी नहीं । तो हर एक धर्म वाले को अपना शास्त्र चाहिए । तो बाप बैठ करके समझाते है कि धर्म के शास्त्र किसको कहा जाता है । अभी पहले-पहले सर्व शास्त्रमई शिरोमणी भगवत गीता । देखो, गाया जाता है ना- 'माता । फिर उनको 'गीता माता भी कहा जाता है । अच्छा, उसका पिता, उसको रचने वाला कौन? तो रचने वाला फिर भी भगवान हुआ ना! श्रीमत, श्रेष्ठ मत देने वाला भगवान । तो श्रीमत भगवद् गीता यानी भगवान ने यह गीता को जैसे जन्म दिया । जैसे बाईबल को क्राइस्ट ने जन्म दिया । मुसलमानों के कुरान को मुसलमान के इब्राहिम ने जन्म दिया । यह हुसैन ने दिया, जो मुसलमानों का होता है, जिनका पटका लगा करके जलूस निकालते हैं । तो हर एक धर्म का एक शास्त्र है । सबसे पहले धर्म शास्त्र है 'गीता । सर्व शास्त्रमयी शिरोमणि गीता किसने गाई? भगवान ने गाई । अभी भगवान तो निराकार को ही कहेंगे । वो भगवान कैसे गावे? निराकार भगवान का नाम भी है, शिव भी कहते हैं, रुद्र भी कहते हैं । बरोबर शिवरात्रि गाते हैं और भारत में ही उनका गाते हैं, क्योंकि शिव का पहला-पहला मंदिर, सोमनाथ का.... । सोमनाथ भी शिव को कहा जाता है, क्योंकि शिव ने सोमरस पिलाया, ज्ञान दिया, इसलिए उसका नाम रख दिया है- सोमनाथ । तो देखो, पहले मंदिर यहाँ भारत में है ना! किसका मंदिर है? जरूर कहेंगे, परमपिता परमात्मा का मंदिर है । ऊँचे-ते-ऊँचे का मंदिर है । देखो, कितना आलीशान मंदिर बना हुआ था! कितने धन थे यहाँ! अभी क्या है? क्योंकि पतित है । तो जब बाप को जानते हैं और उन द्वारा पावन बनते हैं, तो देखो ऐसे विश्व का मालिक बन जाते हैं । बाप को जानने से विश्व का मालिक आधा कल्प के लिए, बाप को भूल जाने से यह बिल्कुल कंगाल बन जाते हैं । बस, एक ही बात होती है । बाप को याद कर मिलना माना ही बाप से वर्सा लेना । कितने का वर्सा लेना? 21 जन्म का । पवित्रता, सुख, शाति और सम्पत्ति का वर्सा । देखो, इसको बेहद का वर्सा कहा जाता है ना । अभी तुम यहाँ आते हो तो किसलिए आते हो? जो भी मनुष्य हैं यहाँ क्यों आते हैं? परमपिता परमात्मा से बेहद का वर्सा लेने, क्योंकि बेहद का बाप है । हद के बाप से हद का वर्सा, हर एक चीज, हद का सुख.... । भले गुरु हो, गोसाई हो, टीचर हो, कोई भी हो, तो हद का वर्सा मिलेगा, क्योंकि पुनर्जन्म तो लेना ही पड़ता है । फिर दूसरा बाप, दूसरी माँ, दूसरा टीचर, दूसरा गुरु करना पड़ता है ना! पुनर्जन्म लिया, नया बाप, नई माँ, सब नया ही नया मिलेगा । तो हद का बाबा हुआ ना । अभी इस समय में तुमको बेहद का बाप मिलता है, जिसको सभी याद करते हैं । देखो, उनकी कितनी महिमा है! शिवाय नम: । उनकी महिमा बिल्कुल ही अलग है- मनुष्य सृष्टि का बीज है, सत् है, सत्-चित्-आनन्द है, फिर कहा जाता है ज्ञान का सागर है । किसमें? उस परमपिता परमात्मा में, जिसको परम आत्मा कहा जाता है । परम आत्मा का लफ़्ज मिल करके होता है- परमात्मा । उनकी महिमा कितनी भारी है! ज्ञान का सागर है, शांति का सागर है, सुख का सागर है, आनन्द का सागर है । तो बाप ठहरा ना! किसलिए है? जरूर बच्चों को इनहेरिटेन्स देने के लिए । देखो, अभी तुमको इनहेरिटेन्स दे रहे हैं । बरोबर तुम सो फिर देवता बनते हो । फिर देखो, देवताओं की महिमा कौन-सी है? सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम, अहिंसा परमो दैवी धर्म, क्योंकि वहां हिंसा नहीं होती थी । क्यों? अरे, वहाँ रावण-राज्य नहीं है ना । वहां यह पाँच विकारों रूपी रावण-राज्य है ही नहीं । अभी यह किसको मालूम ही नहीं है । शास्त्रों में बकवाद लिख दी कि श्रीकृष्ण को 108 रानियाँ थीं । अभी श्रीकृष्ण सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण सो भी बालक । उनको कुछ पता नहीं कि यह श्रीकृष्ण ही फिर नारायण बनते हैं, राधे से इनका स्वयंवर होता है और इनको अलग कर दिया है । श्री लक्ष्मी-नारायण के बचपन की कोई जीवन की कहानी है नहीं । नहीं तो श्री लक्ष्मी और नारायण के बचपन हैं राधे और कृष्ण और इनको बहुत प्यार करते हैं । एक तरफ में बहुत प्यार करते हैं और कहते हैं गीता का भगवान, दूसरी तरफ में कह देते हैं- 108 रानियों थीं, यह फलानी थी, यह थी, सर्प ने डसा फलाना । तो देखो, शास्त्रों में यह सब लिखा हुआ है ना! तो झूठ लिखा है ना! तब तो गाया जाता है ना- झूठी माया, झूठी काया, झूठा सब संसार । बड़े-ते-बड़ी झूठ कौन-सी है, जो मनुष्य को दुर्गति की तरफ.... । भगवान को, बाप को कह दिया है- सर्वव्यापी, कुत्ते में, बिल्ले में, फलाने में, पत्थर-पत्थर में, कण-कण में और फिर नाटक बनाते हैं । कण-कण में भगवान का नाटक सिद्ध करके बताते हैं । जब कण-कण में हो तो फिर बुद्धि का योग किसके साथ लगे? ज्ञान और योग जो प्राचीन गाया जाता है, वो किसने सिखलाया? कृष्ण बच्चे ने तो नहीं ना? कृष्ण तो इस समय में अंतिम 84 जन्म के अंत में है । पुनर्जन्म लेते-लेते अंत में है । तो कौन बताएगा? यह तो बाप का काम है ना! जिसके लिए सब भूल गए । सब जो भी मनुष्य है उनको कहाँ से मालूम पड़ा? विलायत वाले भी कहते हैं- भई, सर्वव्यापी है । ओमनीप्रेजेन्ट ओमनीसेन्ट । तीसरा क्या कहते हैं 7 यानी वो हाजिर और नाजिर है । कसम भी उठाते हैं । अभी देखो, कसम भी झूठा उठाते हैं । गवर्मेन्ट से कितनी लिखा-पढी हुई है । अरे भई, तुम लोग सब झूठे कसम उठाते हो । इस कसम को फिराओ । गीता लेते हो हाथ में और फिर कह देते हैं... । देखो, गाँधी जी के भी हाथ में गीता थी और कह देते थे- 'पतित-पावन सीता-राम, रघुपति राघव राजा राम ।' अभी फिर चले गए द्वापर के सीता-राम को और गीता है हाथ में । चाहते हैं राम-राज्य । राम-राज्य के आगे तो सूर्यवंशी राज्य था, वो भूल गए हैं । राम-राज्य को आगे करके कृष्ण को फिर द्वापर में ले आए हैं । देखो, कितनी भूलें की हैं मनुष्यों ने । तो बेहद का बाप बैठ करके बच्चों को समझाते हैं । तो जरूर वो समझाए कैसे? अच्छा, शिव जयंती गाते तो हैं ना! शिवाय नम: । फिर आ करके शरीर बिगर ओरगंस बोले कैसे? ज्ञान कैसे देवे? तो खुद कहते हैं कि मैं किसको देता हूँ- जो पहला था श्री लक्ष्मी-नारायण, वो 84 जन्म भोग करके अंत में, जो अंत में हैं मैं उनके शरीर में प्रवेश कर, फिर वो आदि का, फिर वहां जा करके बनते है । उसको कहा जाता है सूर्यवंशी डिनायस्टी और चन्द्रवंशी डिनायस्टी । तो समझाया जाता है ना! बाप आ करके खुद कहते हैं- मैं ब्राह्मण धर्म ब्रह्मा द्वारा.... । देखो, ये समझने की बात है ना । मैं आता हूँ तो पहले ब्रह्मा मुख द्वारा शूद्र को ब्राह्मण बनाता हैं । इसलिए मैं ब्रह्मा में ही प्रवेश करता हूँ मैं ब्रह्मा को एडॉप्ट करता हूँ । उसका नाम पहले कोई ब्रह्मा नहीं है, क्योंकि जब सन्यास होता है तो नाम बदलते हैं । सन्यासी, सब जो भी गृहस्थी नाम है वो फिरा देते हैं । हम लोग भी तो गृहस्थी हैं ना! परन्तु सन्यास करते हैं । यह है बेहद का सन्यास, वो है हद का सन्यास । घर-बार छोड़ करके जाकर जंगल में बैठते हैं । तुम्हारा है सारी इस पुरानी दुनिया का सन्यास । देह सहित ये सब कुछ विनाश होने वाला है और हमको वापस जाना है । इसलिए यह जो भी पुरानी दुनिया है, इसको तुम घर-गहस्थ व्यवहार में रहते हुए बुद्धि से त्याग करते हो । तो मेहनत हो गई ना! गृहस्थ व्यवहार में रह करके कमल फूल के समान पवित्र बनना, इसमें मेहनत है । वो सन्यासी नहीं रह सकते हैं, इसलिए चले जाते हैं । कह देते है- ये माताएँ नागिन हैं, ये नर्क का द्वार हैं । नर्क का द्वार अगर ये हैं तो मनुष्य भी नर्क का द्वार हुआ ना । तो बरोबर हैं ही नर्कवासी तो नर्क में ही तो रहते हैं ना । अभी जंगल में जा करके रहने से कोई स्वर्गवासी हो गया क्या? नहीं । फिर भी सारी दुनिया नर्क तो है ना । कोई जंगल तो स्वर्ग नहीं बनते हैं ना ।... .फिर यह जो भी जंगल है, इसको कहा जाता है काँटों का जंगल, फॉरेस्ट ऑफ थॉर्न्स । एक दो को काटते रहते हैं । सबसे बहुत कौन काटते हैं? दुःख कौन देते हैं? ये विद्वान और सन्यासी, जो कहते हैं कि ईश्वर सर्वव्यापी है यानी बुद्धियोग किसका भी नहीं हो । किसका भी बुद्धियोग है नहीं । कोई की भी बाप से प्रीत नहीं है । गाया हुआ है ना-विनाशकाले । विनाश तो सामने खड़ा है । विनाशकाले विपरीत बुद्धि विनश्यन्ति, प्रीत बुद्धि विजयन्ति- देखो, अक्षर है ना! यानी परमपिता परमात्मा में प्रीत न, संशय हो, तो बाप में सशयबुद्धि विनश्यन्ति यानी विनाश हो जाते हैं । फिर जिनकी प्रीत बुद्धि है, तुम तो उनको ही याद करते हो । तुम मुनष्य को तो कोई याद करते ही नहीं हो । इनको भी नहीं याद करते हो । कोई भी गुरु को, गोसाई को, बाप को, माँ को देखते हुए, रहते हुए तुमको कमल फूल के समान.. । तो मेहनत है ना! उसमें मेहनत है हद के सन्यास में, क्योंकि पवित्र बनते हैं । पवित्र बनते हैं, वो भी तो अच्छा है । अगर यह सन्यास धर्म न होता तो भारत एकदम जल मरता । तो इसलिए यह सन्यास का धर्म पवित्र है ना । तो वो जैसे कि इस भारत को थमाते हैं । जैसे आधा समय होता है तो मरम्मत होती है । ओवर ऑल सृष्टि । यह बेहद की बात है ना । तो ओवर ऑल के लिए यह सन्यास धर्म भारत में ही है । इतने सन्यासी और कोई जगह में नहीं होते हैं । जब यह कुम्भ का मेला होता है ना, नदियों का सागर का, ये नागा सन्यासी वगैरह बहुत आते है । लाखों की अंदाज में, बल्कि इस समय तो ये करोड़ों की अंदाज में है । तो ये पवित्र रहते हैं ना! ये भारत को थमाते हैं । जैसे पुराने मकान को पोची वगैरह दे करके थमाया जाता है ना । तो इनकी पवित्रता के कारण भारत थमता है । यह ड्रामा में इनकी नूँध है, क्योंकि भारत जैसा पवित्र और कोई बनता ही नहीं है । तो इसलिए भारत जब वाममार्ग में जाता है, रावण-राज्य शुरू हो जाता है तो फिर भारत को थमाने के लिए यह सन्यास धर्म शुरू हो जाता है । समझा ना । वो भी पहले सतोप्रधान अभी सभी तमोप्रधान जो कह देते हैं- ईश्वर सर्वव्यापी है । तो सभी फादर्स हो गए, फादरहुड हो गया । ब्रदरहुड ही एकदम चला गया । जब ब्रदरहुड चला गया तो प्यार भी न रहा । तो देखो, आपस में कितना लड़ते हैं एकदम । तो इसको कहा जाता है-निधणके, ऑरफन्स । तो इस समय में सारी दुनिया ऑरफन्स है । देखो, कितनी लडाई आपस में, सब धर्म की एक दो में लड़ाई है! यहाँ कितनी लड़ाई है सब, एक ना मिले दूसरे को, क्योंकि पंचायती राज्य है । राज्य में कितना झगड़ा । आपस में बैठे काउन्सिल करके... .भी उठा करके एक दो को लगाई, गालियाँ भी देने । सतयुग में, फिर उसको कहा जाता है सॉवरन्टी यानी राजा-रानी, महाराजा-महारानी । सतयुग में महाराजा-महारानी, त्रेता में राजा-रानी, क्योंकि दो कला कम है । पीछे पतित राजा-रानी, जो पावन राजा-रानी या महाराजा-महारानी को स्वने वाले । श्री लक्ष्मी-नारायण को पूजते हैं और सीता-राम को भी पूजते है । सब जो भी राजाएँ हैं उनके पास मन्दिर हैं । तो पतित, पावन को पूजते हैं, जो हो गए हैं । अच्छा, पीछे अभी तो कोई राजा भी नहीं रहा । अभी तो प्रजा का प्रजा पर राज्य । तो फिर वर्ल्ड की हिस्ट्री और जॉग्राफी फिर रिपीट होती है । फिर से वो राज्य स्थापन हो रहा है । फिर वो सृष्टि का चक्र बनेगा । इतने आदमियों का देखो खाना भी नहीं है । तो इसको कहा जाता है- अंत और आदि । तो इसको कहा जाता है-कुम्भ तब बाप आते हैं । सबका सद्‌गति दाता, सबको दुःख से लिबरेट करने । बोलता है ना-मैं साधु नाम जिनका है, उनका भी उद्धार, परित्राण करने मुझे आना पड़ता है, क्योंकि वो भी बेमुख हैं मेरे से । मेरे साथ कोई की प्रीत नहीं है । पिता के साथ कोई की प्रीत नहीं । एकदम जाने ही नहीं हैं । तो उनका भी उद्धार करने आता हूँ । आगे चलकर उनका भी उद्धार हो जाएगा । अच्छा, टाइम हो गया है । अभी भोग भी है । सामने खडे हैं और मनुष्य कुम्भकरण वाली आसुरी नींद में सोए पड़े हैं, क्योंकि समझते हैं कलियुग अभी पूरा थोडे ही हुआ है, कलियुग तो अभी छोटा है, अभी 40 हजार बरस चलेगा । तो देखो हुआ ना विनाशकाले विपरीत बुद्धि और फिर कुम्भकरण के घोर अंधियारे में सोए हुए हैं । जब आग लगती है तब जागते हैं, पर टू लेट हो जाते हैं । तो इस भंभोर को आग तो लगनी है ना । खतम तो होने का है ना । तो देखो, इसको कहा जाता है- 'रुद्र ज्ञान यज्ञ । इसमें सभी को देह सहित जो भी है स्वाहा करना पड़ता है । अपन को आत्मा निश्चय करना पड़ता है । तो आत्मा को निश्चय करते-करते करते देह का भान मिट जाना है । जो पिछाड़ी में अपने बाप को याद करे तो अंत मते गत यानी परमधाम में पहुँच जाए यानी स्वीट साइलेन्स होम और सतयुग है स्वीट राजधानी यानी सुखधाम । यह है दुखधाम । यह क्यों.. दुःखधाम में तो सब जनावरों के मिसल ऑरफन्स बन गए हैं । है ना बरोबर! कुत्ते-बिल्ले मिसल लड़ते रहते हैं । बन्दर से भी बदतर कहा जाता है । बन्दर में सबसे जास्ती विकार होते है । सिकल भी बन्दर की और मनुष्य की एक जैसी मिलती-जुलती होती है ना और उनको जनावर कहा जाता है । तुम्हारे पास एक कथा भी है कि जब लक्ष्मी का स्वयंवर होता था तो झांझ बजाने वाला नारद भगत बैठा था । कहने लगा- मेरे को लक्ष्मी वरेगी? तो उसने कहा- अपने दिल रूपी दर्पण में अपना रूप तो देखो । यह अखानी बनाई है । तो जब देखा, तो अपन को बन्दर का रूप देखा । बोला बन्दर का रूप, जिसमें पाँच विकार हैं, वो कोई लक्ष्मी को थोडे ही वरेंगे । तो भगतों में ये विकार तो हैं ना । विकारी को पतित कहा जाता है । विकार है तब तो भगवान को याद करते है कि हमको पावन बनाओ । कैसे बनाओ? इन जैसे बनाओ । या तो मुक्ति । तो सर्व का सद्‌गति और गति दाता एक है । पतित, पतित को कैसे पावन बना सकेंगे? हो नहीं सकता है, इम्पॉसिबुल है, क्योंकि सर्व का सद्‌गति दाता एक, जिसको फिर सिवाय तुम बच्चों के कोई भी नहीं जानते हैं, क्योंकि वो तो सर्वव्यापी कह देते हैं । कुत्ते में, वो तो गाली देते है । तो विपरीत बुद्धि हुई ना । कोई मनुष्य किसको गाली देते हैं, क्योंकि उनसे विपरीत है, उनसे प्यार नहीं है और तुम्हारा तो है ही एक से प्यार । दूसरा ना कोई । देहधारी से तुम्हारा प्यार नहीं है । भल गृहस्थ में रहते हो, परन्तु तुम्हारी बुद्धि वहां लगी हुई है और पवित्र रहते हो । तो गृहस्थ में रह करके पवित्र रहना, यह कोई कम बात है! स्वयंवर भी करके, गंधर्व विवाह करके भी ज्ञान-योग की तलवार बीच में, और कोई रह सकते हैं? यहाँ तो देखो बहुत स्त्री, पुरुष हैं । क्यों? वो सब कहते हैं कि हम हैं ब्रह्माकुमार-कुमारी अर्थात् सभी निराकार शिव के बच्चे जरूर है । फिर हैं हम ब्रह्माकुमार-कुमारी क्योंकि ब्रह्मा है जगतपिता और सरस्वती है जगदम्बा । तो इस समय में तुम बरोबर शिव के बच्चे, फिर ब्रह्माकुमार और कुमारी यानी जगदम्बा की अम्बा वो हो गई, तो तुम तो भाई-बहन हो गए । तुम विकार में जा नहीं सकते हो । तुम्हारे ऊपर यह बहुत कड़ा ऑर्डीनेन्स है । किसका? भगवान का । खबरदार! कोई भी पतित नहीं बन सकते हैं । जो मेरी इस श्रीमत पर चलेंगे सो श्री बनेंगे, श्रेष्ठ बनेंगे । आजकल तो सबको श्री-श्री कह देते है । अपन को पतित कह देते है कि हे पतित-पावन, आओ । अपन को भ्रष्टाचारी भी कहते है । फिर कहते हैं श्री फलाना । अरे, श्री तो फलाना भ्रष्टाचारी है, उनको श्री क्यों कहते हो? श्री अक्षर तो देवताओं को लगते हैं । श्री-श्री अक्षर सिर्फ एक रुद्र के साथ, परमपिता परमात्मा के साथ । रुद्र माला । भई, रुद्र को कहते हैं-श्री-श्री, जिसकी 108 की माला है । वो माला है श्री की यानी देवताओं को श्री कहा जाता है । उनको श्री-श्री रुद्रमाला । श्री-श्री से श्रेष्ठ बनने वाले । यहाँ तो जो पतित है, जो बेमुख करने वाले है, वो अपन को श्री-श्री 108 जगद्‌गुरु...... । अब जगत तो कहा जाता है सृष्टि को । अब सृष्टि के पतित-पावन सभी गुरु हैं क्या या एक है? तो देखो, कितने गपोड़े कितनी एडलट्रेशन और कितना मिस गाइडियन्स । गुरु बन करके कितने मिस गाइडियन्स करते हैं । तो एडलट्रेशन और करप्शन अगर है तो सभी बडे-ते-बडे जिसके लिए बाप कहते हैं- बच्चे, अब इन गुरुओं को छोड़ दो । यह तुमको सर्वव्यापी के ज्ञान से और ही बेमुख करते है । पहले मुख्य बात- गीता का भगवान और ज्ञान का सागर, मनुष्य सृष्टि का बीज रूप, जिसकी इतनी महिमा है- ज्ञान का सागर, आनन्द का सागर, सुख का सागर, वो आ करके भारत को वर्सा देते हैं और उसके बदले में लिख दिया- श्रीकृष्ण भगवानुवाच । देखो, गीता खण्डन हो गई ना । अब यह कोई समझे, जब गीता खण्डन हुई तो फिर उनके जो भी क्रियेशन बाल-बच्चे हैं सभी खण्डन.... । जब मॉ-बाप को ही खण्डन कर दिया तो बाकी जो इनकी क्रियेशन शास्त्र हैं, जो पीछे निकलते हैं...... । सर्वशास्त्रमयी है.... .गीता । पीछे है इस्लामियों का धर्म, पीछे है बौद्धियों का धर्म, पीछे है क्रिश्चियन का धर्म । तो वो धर्मशास्त्र हुए ना । धर्म स्थापन करने वाले । अभी यहाँ तो कहते हैं- हमारा धर्म हिन्दु । अरे भई, हिन्दु धर्म का स्थापन करने वाला कौन? शास्त्र कौन-सा? कुछ भी पता नहीं, किसको भी पता नहीं । तो नाम बदलाय दिया । बाप के बदले में बच्चे का नाम ठोंक दिया । बाप की बायोग्राफी में बच्चे की बायोग्राफी ठोंक दी । तो वो शास्त्र खण्डन हो गया ना । भले कितना भी उसी श्रीमद्‌भगवत गीता शास्त्र को पढ़ते आते हैं, दुर्गति को पाते आते हैं, क्योंकि झूठा पढ़ते हैं । अभी समझाते हैं तो किसको समझ में नहीं बैठता है, क्योंकि बुद्धि का ताला माया रावण ने एकदम बन्द कर दिया । इसको कहा जाता है-पत्थर बुद्धि । पत्थर बुद्धि को आ करके फिर पारस बुद्धि बनाने वाला, क्योंकि बाप को गाली देंगे तो पत्थर बुद्धि न बनेंगे तो क्या बनेंगे? देखो, सबकी बुद्धि का ताला एकदम बन्द है । बाप कहा जाता है-बुद्धिवानों का बुद्धिवान । आ करके ताला खोला । बरोबर तुम बच्चों का भी तो ताला बन्द था ना । तुम भी यहाँ कहते थे ना-ईश्वर सर्वव्यापी है, गीता का भगवान कृष्ण है । अभी क्या कहते हो? अभी बाप ने आ करके ताला खोल दिया है । तुम सारे विश्व को अच्छी तरह से समझते हो । आदि-मध्य-अंत तुम सब जान जाते हो अर्थात् तुम त्रिकालदर्शी बन जाते हो, सो भी ब्राह्मण । देवताएँ त्रिकालदर्शी नहीं हैं, लक्ष्मी-नारायण त्रिकालदर्शी नहीं हैं, उनमें वो ज्ञान नहीं है । बाप तुम बच्चों को ज्ञान देते हैं, कोई देवताओं को नहीं आ करके देंगे, क्योंकि पतित को पावन बनाने के लिए ज्ञान दिया जाता है । तो तुम त्रिकालदर्शी हो, बस । पीछे देवताएँ त्रिकालदर्शी नहीं हैं । जब पहले-पहले श्री लक्ष्मी-नारायण देवताऐ है, तो पीछे जो उनकी बिरादरी है, उनको ज्ञान कहाँ से आया? तो यह गीता ज्ञान, जो बाप देते है, प्राय:लोप हो जाता है । इसलिए मनुष्य मूंझतें हैं कि यह तो कोई शास्त्र में ज्ञान नहीं है । अरे पर, तुमने शास्त्र को ही झूठा बना दिया, उसमें ज्ञान कहाँ से आएगा? शास्त्रों में ऐसी बातें ही नहीं हैं और फिर बाप कहते हैं ना कि शास्त्रों में कोई सार नहीं है, इसलिए मैं तुमको आ करके समझाता हूँ कि ये सभी शास्त्र दुर्गति में ले जाने वाले हैं, क्योंकि भक्तिमार्ग के हैं । गीता तो पढ़ते आते हो ना । बाबा पूछते आते हैं ना- तुम भारतवासी गीता पढ़ते आते हो, फिर क्या हुआ? तुम दुर्गति को पा लिया है । गंगा में स्नान करते हो, दुर्गति को पा लिया है । अभी तमोप्रधान बन गए हो । अभी तमोप्रधान दुनिया को सतोप्रधान कौन बनावे? यह तो बाप का काम है ना । तो बाप बैठ करके सुनाएँगे ना, और कौन सुनाएँगे? कोई मनुष्य थोडे ही बैठ करके समझाएंगे । न ब्रह्मा, न देवता, न विष्णु । ये सभी कोई भगवान नहीं हैं । हर एक को अपना-अपना ये पार्ट मिला है, वो समझने की बहुत बड़ी बातें हैं । अच्छा, अभी टाइम हो गया । .आसुरी सम्प्रदाय और जो संशय बुद्धि यानी विपरीत बुद्धि, उसको कहा जाता है-आसुरी सम्प्रदाय । तो गाया जाता है कि जब ज्ञान की बाँट होती थी, तो वहां भी आ करके कोई विपरीत बुद्धि असुर बैठ जाते हैं । बिल्कुल ही कुछ भी नहीं समझते थे । तो फिर वो बाहर में जा करके उल्टा-सुल्टा बताते थे । देखो लिखा हुआ है ना । फिर दुःख देते हैं, क्योंकि यहाँ तो अबलाओं के ऊपर बडा अत्याचार हो रहा है, क्योंकि वो पवित्र बनने नहीं देते हैं । देखो, गाया जाता है- 'हे भगवन!' तो द्रोपदियाँ पुकारती हैं- हे भगवन, हे बाबा । अभी बाबा को पुकारती है, कोई कृष्ण को थोडे ही पुकारती हैं, जो कृष्ण बैठ करके साड़ी देते हैं । हमको सब द्रोपदियॉ पुकारती हैं कि बाबा, ये दुर्योधन-दुःशासन लोग हमको नंगन करते हैं । हमको नंगन होने से बचाओ । तो देखो, बरोबर आया हुआ है ना । नंगन होने से बचाते हैं । सतयुग में कोई भी नंगन नहीं होते हैं, बेशरम नहीं होते हैं, अमर्यादा नहीं होती है, मर्यादा पुरुषोत्तम होते हैं । वहां सम्पूर्ण निर्विकारी होते हैं । तो बस, यह समझ लेना चाहिए ना- सम्पूर्ण निर्विकारी, क्योंकि रावण-राज्य ही नहीं है । इसलिए बाप आकर कर्म, अकर्म और विकर्म की गति समझाते हैं । इस समय में रावण-राज्य होने के कारण जो तुम कर्म करते हो वो सारा विकर्म बन जाता है । पहले नम्बर में विकर्म बन जाता है- ईश्वर को सर्वव्यापी मानना । विकर्म बना ना । देखो, भारत की ये हालत है, क्योंकि विकर्मी बन जाते हैं । विकर्म करते हैं, तो कर्म विकर्म बन जाते हैं । फिर सतयुग में कर्म अकर्म बन जाते हैं । फिर वहां कोई सजा नहीं, कोई गर्भजेल भी नहीं । यहाँ तो सजाएँ भी हैं, गर्भजेल भी है । तो यहाँ का गर्भजेल और जब सतयुग में रहते हो तो गर्भमहल में बैठे रहते हो, क्योंकि पाप होता ही नहीं है । गर्भ में बच्चे पाप भोगते हैं ना । बहुत सजाएँ खाते हैं, त्राहि-त्राहि करते हैं, धर्मराज से माफी माँगते हैं- हम फिर पाप नहीं करेंगे, मुझे निकालो गर्भ से । फिर कहा जाता है- बाहर निकला, फिर आया माया के राज्य में, वहाँ की वहां रही । अंजाम वहां का वहां रहा, फिर भी पाप करते हैं । सबसे बड़ा पाप यहाँ है विकार में जाना, जिनको सन्यासी भी छोड़ते हैं कि निर्विकारी बनते हैं । तो बाप अभी तुमको, स्त्री-पुरुष दोनों को निर्विकारी समान बनाते हैं । तुम्हारा जो काम चिता का हथियाला है, वो छोड़ करके ज्ञान चिता का हथियाला बँधाते है । वो ब्राह्मण हैं ।... .अरे, आजकल साधु संत महात्मा सभी काम चिता के हथियाले शादियाँ भी कराते हैं और मंदिरों में शादी कराते हैं, चर्चों में शादी कराते है और भगवानुवाच- काम महाशत्रु है और उनकी सेरीमनी मनाते है । शादमाना करते हैं और फिर उसी शादी को आजकल तो बरस-बरस मनाते रहते हैं । काम चिता पर बैठते हैं काला होने के लिए और फिर उनकी भी बरस-बरस शादमाना मनाते हैं । इसको कहा जाता है-आसुरी सम्प्रदाय, क्योंकि रावण सम्प्रदाय है और तुम अभी बनते हो- दैवी सम्प्रदाय, मनुष्य से देवता बनाते हो ।.. .वास्तव में श्री लक्ष्मी-नारायण को गॉड एण्ड गॉडेज भगवती-भगवान भी कहते हैं । तो बाप आ करके समझाते हैं कि नहीं, यह देवी-देवता धर्म है, इनको तुम ऐसे नहीं कहेंगे कि भगवती-भगवान का धर्म है । यह देवी-देवता धर्म है । भगवान-भगवती का धर्म होता नहीं है । हाँ, भगवान का धर्म तो निराकार है सो तो तुम सभी उनके बच्चे हो । समझा ना । जब भी तुम अपनी निराकार दुनिया में जाते हो तो शांत रहते हो । निर्वाण, वाणी से परे । वहाँ तुम शांत में रहते हो । शांति का धाम वो है । तो सर्व को शांति भी देने वाला वो एक है । ये मनुष्य थोडे ही दे सकता है, जो अशांत है, पतित है और भ्रष्टाचारी है ।... .जो नहीं मानने वाले होते है उसको यहाँ अलाउ ही नहीं है । सर्वव्यापी मानते हैं ना । वो आसुरी सम्प्रदाय को तो यहाँ बैठने अलाउ ही नहीं है, क्योंकि वो विघ्न डालेंगे, क्योंकि वो याद में तो होंगे ही नहीं । तो भटकते रहते होंगे या तो तत्व को याद करेंगे । अभी तत्व से तो कोई ताकत मिल नहीं सकती है । या आकाश को याद करना कोई होता है क्या? जहाँ रहते हो । आकाश को कोई याद करेंगे? तो तत्व है महतत्व जिसमें हम आत्माएँ रहती हैं, उसका नाम ही है ब्रह्माण्ड । यानी हम जो अण्डे रूपी छोटे हैं, अण्डे से तो छोटे हैं ना, यह पूजा के लिए बडा बना दिया है, नहीं तो हैं तो स्टार । देखो, बीच में स्टार है ना । इतना छोटा है आत्मा वा परमात्मा, परन्तु पूजा कैसे होवे? इसलिए ये बडा बनाय दिया है । इतना बड़ा भी बनाय देते हैं, नहीं तो है बिल्कुल छोटा । एकदम बिन्दी । यहाँ आ करके समझते हैं, फिर बाहर में जा करके बोलते है गपोड़े हैं । तो देखो, फिर भी तो भगवान से बेमुख ही करते हैं, उसको फिर भी तो आसुरी ही कहा जाता है, आसुरी सम्प्रदाय । जब तलक बाप को बाप न माने तो बिल्कुल जनावर ही ठहरा । जनावर से भी बदतर ठहरा ।.... .ये बच्चे लौकिक फादर को कहें- अरे, तुम्हारा बाप कहें है? सर्वव्यापी है । बच्चे कहेंगे- सर्वव्यापी, अरे! तुमको जन्म दिया, तुम्हारा बाप है, तुम्हारा क्रियेटर है, उसको तुम कह देते हो-सर्वव्यापी? तो यहाँ भी बाप सब बच्चों का क्रियेटर है । फादर भी कहते हैं, फिर कह देते हैं-सर्वव्यापी । तो देखो, बाप आ करके समझाते है । सर्वव्यापी बाप को कहना, यह तो आसुरी सम्पद्राय हुई ना! फिर याद किसको कहते हैं? तो जो भूल हुई है बस, एकज भूल । भारत बाप को जान जाते हैं, वर्सा लेते हैं । न जानने से गिर करके तमोप्रधान हो जाते हैं, असुर बन जाते हैं । भारत की एकज भूल । भारत स्वर्ग, फिर नर्क कैसे बनता है? बाप को भूल जाते हैं और रावण की मत पर चलते हैं । यानी आसुरी सम्प्रदाय बन जाते हैं । तो यह खेल हुआ ना ।... फिर पतित, फिर पावन बनना, फिर पतित- यह तो चला ही आता है । सतयुग में पावन, कलियुग में हैं पतित, फिर सतयुग में पावन । सतयुग और कलियुग, उस संगम को ही कुम्भ का मेला कहा जाता है, जो बाप आ करके सब पतित को पावन बनाते हैं ।
रिकॉर्ड :- ओम नम: शिवाय......

समझा ना । पार लगाने वाला । इस दुःख रूपी कलहयुगी आसुरी दुनिया से पार लगाने वाला तो एक ही है ना । कहाँ पार? ये खारी । इसको खारी कहा जाता है । यह विषय वैतरणी नदी है, क्योंकि विख से जन्म लेते है ना । इसके लिए इसको भ्रष्टाचारी दुनिया भी कहते हैं, क्योंकि जन्म सबका विख से होता है, जहर से होता है, जिसको बरोबर विख समझते हैं । सन्यासी भी विख समझते हैं, छोड़ते हैं बरोबर, परन्तु... बहुत ही है विख में । थोड़े से क्या होगा? कुछ हो सकता है या नहीं? जबकि सबको पावन बनावें, सो तो बाप बनाते हैं । या तो पवित्र बनो, नहीं तो विनाश सामने खडा है । तभी तो इनको कहा जाता है- कालों का काल भी है, क्योंकि सबको वापस ले जाते हैं । देखो, दुनिया तो कहती है लड़ाई न लगे । अरे, लडाई न लगेगी तो हो भी नहीं सकते हैं । ये जो चीजें बोम्ब्स वगैरह बनी हैं, ठहरने के लिए थोड़े ही है । इनके पिछाड़ी कोई तो है ना । इनकी बुद्धि का भी तो ऐसे ताला बनाने वाला कोई है ना । तो ड्रामा में नूंध है । तो वो लोग बोम्बस से मरेंगे और यहाँ ये जो यवन हैं मुसलमान और हिन्दू इनकी लड़ाई लगेगी । कोई दैत्य और देवताओं की लड़ाई थोड़े ही लगती है । नहीं, यह सब झूठ है । कौरव और पाण्डवों की लड़ाई थोड़े ही लगी है । पाण्डवों का पति परमपिता परमात्मा, वो कैसे बच्चों को कहेंगे कि हथियारों से लडो7 तुम्हारा योगबल । योगबल से विश्व का मालिक बन सकते हो । बाहुबल से कोई विश्व का मालिक बन नहीं सकता है । नहीं तो बाबा ने समझाया क्रिश्चियन धर्म वाले इतने बलवान हैं जो आपस में दो भी मिल जाएँ तो सबको एकदम खड़ा कर देवें । अपने अण्डर कर देवें परन्तु लो नहीं कहता है कि विश्व का मालिक कोई पतित बन सके, क्योंकि सभी पतित तो हैं ना । लो नहीं कहता है, इसलिए फिर इनका सबका विनाश । एक धर्म की स्थापना, बाकी सबका विनाश । तो गाया जाता है ना- ब्रह्मा द्वारा स्थापना, शंकर द्वारा विनाश । फिर तुम जो स्थापना करते हो, देवी-देवता विष्णु बनते हैं, फिर उनकी पालना । तो गोया फिर से सतयुग में श्री लक्ष्मी-नारायण की राजधानी स्थापन हो रही है । इसलिए इसको कहते है राजयोग, राजाई के लिए । सो भी कौन-सा? राजाओं का राजा, ना कि पतित राजा । नहीं, पावन महाराजा और राजा । अच्छा,.. .की हालत क्या है, उसके ऊपर भी इन लोगों ने आपे ही गीत बनाया है । यह गीत तो सब इन लोगों का बनाया है, कोई तुम लोगों का तो नहीं बनाया है । अर्थ नहीं समझते हैं, तो अर्थ समझाते हैं ।... .की दुनिया, सतयुग पुण्य की दुनिया । पुण्य आत्मा बनाते हैं बाप, पापात्मा बनाते है रावण । तो इस समय में है । यहाँ किसको भी कोई आराम तो नहीं है ना, किसको भी कोई भी सुख नहीं है । तो पापात्माओं को पुण्य आत्मा बनाने वाला वो, शांति और सुख में ले जाने वाला वो, क्योंकि शांतिधाम, फिर सुखधाम, ये दुखधाम- ये चक्कर । शांतिधाम रहने का स्थान, सुखधाम फिर नई दुनिया, दुःखधाम यह पुरानी दुनिया- यह चक्कर फिरता ही रहता है। उसकी डिटेल समझानी दी जाती है । मीठे-मीठे, सिकीलधे ज्ञान सितारों प्रति मात-पिता, बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निग