04-06-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषणो को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज शुक्रवार जून की 4 तारिख है। प्रातः क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड:-
छोड़ भी दे आकाश सिंहासन.........

ओम शाति ।

बाप बैठ करके बच्चों को समझाते हैं । इसको कहा जाता है बेहद रूहानी बाप । बेहद रूहानी बाप सो तो सभी आत्माओं के हैं । सभी आत्माएँ रूप जरूर बदलती है । कर्मक्षेत्र पर पार्ट बजाने निराकार से साकार में आती हैं । बच्चे कहते हैं कि आप भी हमारे मुआफिक रूप बदल दो । साकार रूप धारण करके ही तो ज्ञान देंगे ना । तो किसको पुकारते है? परमपिता को कि अभी आप भी रूप बदलो । तो कोई बैल का रूप तो नहीं बदलेंगे, जनावरों का रूप तो नहीं बदलेंगे । मनुष्यों को ही सुनाना है तो मनुष्य का रूप बदलेंगे, जैसे बच्चे बदलते है । बच्चे भी जानते हैं कि हम निराकार हैं और फिर साकार बनते है । है भी बरोबर, वो निराकारी दुनिया, यह है साकारी दुनिया । तो जरूर रूप भी ऐसे ही बदलेंगे, मनुष्य बनेंगे । मनुष्य के तन में आएँगे । खुद भी कहते है कि जैसे तुम आत्माएँ गर्भ में आते हो और पहले छोटा साकार तन धारण करते हो । मैं ऐसे नहीं.. .मैं कोई के गर्भ में नहीं जाता हूँ । मैं एक साधारण तन में आता हूँ और आ करके उनकी जीवन कहानी बताता हूँ । जिसके शरीर में आएंगे उसकी जीवन कहानी बताएँगे और कहेंगे कि तुम अपने 84 जन्म की जीवन कहानी को नहीं जानते हो, कोई एक जीवन की नहीं । तो जो नहीं जानते है मैं उनमें ही बैठ करके अभी समझा रहा हूँ । नहीं तो परमपिता परमात्मा भी तो निराकार रूप है, वो आ करके सुनावें कैसे? जरूर शरीर धारण करना ही पडे और शरीर भी बुजुर्ग का धारण करना पड़े । .बुजुर्ग के शरीर से ही अच्छी तरह से समझा सकेंगे । कोई बच्चे के शरीर से तो नहीं समझाएँगे । इससे सिद्ध होता है कि कृष्ण तो है सतयुग का शहजादा, वो तो पावन है । इनको पतित दुनिया में, पतित शरीर में आना है । जो कृष्ण गोरा था सो सांवरा हो गया, जिसको कहा जाता है काला हो गया । काला कैसे हुआ?, मनुष्य तो जानते नहीं है । वो तो कह देते है कि सर्प ने डसा । अभी सन्यासी बरोबर माताओं को कहते है कि ये सर्पिणियाँ है । समझा ना । डसा होगा तो जरूर विकार में गया होगा, वाममार्ग में गया होगा तो सांवरा बन गया होगा, ऐसे कहेंगे । अभी मैं तो कोई सांवरा या गोरा बनने वाला नहीं हूँ । सांवरा और गोरा इनको कहा जाता है, श्याम-सुन्दर इनको कहा जाता है । अभी ये तो समझने की अच्छी बात है ना । मेरा तो शरीर ही नहीं है जो सांवरा और गोरा बने और न मैं पतित बनता हूँ न फिर पावन बनता हूँ । मैं एवर पावन हूँ । अभी वो खुद आ करके बच्चों को अपना परिचय देते है और फिर समझाते है कि मैं कल्प-कल्प कल्प के संगम पर आता हूँ तब जबकि कलहयुग का अंत और सतयुग की आदि होती है, क्योंकि मुझे आ करके फिर सुखधाम स्थापन करना है अर्थात् स्वर्ग स्थापन करना है । स्वर्ग का दूसरा नाम है ही सुखधाम । क्यों? फिर कलहयुग है दुःखधाम । अभी मनुष्य का तो यह कार्य है नहीं, क्योंकि इस समय में सभी मनुष्य मात्र पतित हैं और सब अपन को पतित और भ्रष्टाचारी तो कहते ही है । देखो, कहते हैं ना गवर्मेन्ट में भ्रष्टाचार है तो बरोबर गवर्मेन्ट भ्रष्टाचारी हो गई ना । ऐसे तो नहीं कहेंगे कि सतयुग के श्री लक्ष्मी-नारायण महाराजा-महारानी की गवर्मेन्ट में कोई भ्रष्टाचार या पतित है । कभी कोई कहेंगे? कभी नहीं कोई कहेंगे । इस समय में सभी कहते है । अगर उनको समझाया जाए कि बरोबर यहाँ तो सब पतित है । अच्छा, अभी बताओ कि भारत जब स्वर्ग था, देवी-देवताओं का राज्य था और एक ही राज्य था, एक ही धर्म था तब क्या था? पावन भी थे, कहा ही जाता है- सम्पूर्ण पावन और बहुत श्रेष्ठ, जिनकी फिर पूजा होती है । पूजा कौन करते है? भ्रष्ट ही श्रेष्ठ की पूजा करते है । देखो, सन्यासी पवित्र बनते हैं तो अपवित्र उनको मत्था टेकते है । फॉलो तो नहीं करते हैं ना । सन्यासियों को कोई भी गृहस्थी टददू फॉलो नहीं करते है । वो अपने गृहस्थ में ही रहते है, सिर्फ कह देते है कि मैं फलाने सन्यासी का फॉलोअर हूँ । अब यह भी तो झूठ हुआ ना । फॉलोअर माना ही जबकि तुम उनके चलन को फॉलो करो । वो तो सन्यासी बन जाते है । ही, जब तुम भी सन्यासी बन जाओ तब सन्यासियों का जो सन्यासी है वो कहेंगे कि ही, ये सन्यास के फॉलोअर्स है यानी वो विकारी है । विकारों का सन्यास किया है । अभी जो गृहस्थी टदटू फॉलोअर्स बनते है, वो पवित्र तो बनते ही नहीं है । फिर न उनको वो कहते है, न ये समझते हैं कि हम तो फॉलो करते ही नहीं हैं । गुरू भी समझते है कि ये तो सन्यास करते ही नहीं हैं, फिर हमारे फॉलोअर कैसे हुए? तो हमारे तभी क्या है? फॉलो तो नहीं हुए ना । यहाँ तो वो बात नहीं है । यहाँ तो मात-पिता को पूरा फॉलो करना है । गाया जाता है- फॉलो मदर एण्ड फादर । यह जानते हो कि मदर एण्ड फादर बाप को याद करते है.. बाप का फरमान मानते है कि अभी और संग यानी सभी देहधारियों का(से) बुद्धि का योग तोड़, मुझ अपने बाप के साथ जोडो तो फिर बाप के पास अर्थात् मुक्तिधाम में पहुंच भी जाएँगे, फिर तुम जो पहले से ही ऑलराउण्डर हो, सतयुग में आने वाले, सो फिर सतयुग में चले जाएँगे । देखो, ये ऑलराउण्डर 84 जन्म कोई तो लेते होंगे ना- शुरू से एण्ड, फिर एण्ड से ही शुरू । अब यह तुम बच्चे समझते हो कि हम ऑलराउण्ड हमारा पार्ट शुरू से अंत तक चलता है । दूसरे धर्म वालों का पार्ट शुरू से अंत तक तो चलता ही नहीं है । सिर्फ आदि सनातन देवी-देवता धर्म का, सो भी शुरू से कहें तो बरोबर सूर्यवंशी ही कहेंगे । तुम जान तो गए कि अभी हम 84 जन्म का ऑलराउण्ड चक्कर लगाते है । यह समझते हो कि बरोबर जो धर्म वाले पीछे आते हैं वो तो इतना अच्छा ऑलराउण्डर नहीं हैं । यह भी तो समझ की बात है ना । यह सिवाय बाप के और तो कोई नहीं समझावे । ऑलराउण्डर्स है ही नहीं । या कोई भी दूसरे धर्म वाले, इस्लामी कहो, बौद्धी कहो, वो 84 जन्म लेते होंगे? शुरू में आते हैं? नहीं आते हैं, वो पीछे आते है । गाया भी जाता है कि पहले- पहले आदि सनातन डीटीज्म सो भी आधाकल्प । देखो, एक धर्म को आधाकल्प मिला हुआ है- सूर्यवंशी और चंद्रवंशी । यह जो ब्राह्यण धर्म है, यह छोटा है, थोडा टाइम चलता है, क्योंकि कोम्फ़्लुएन्स युग है । कोम्फ़्लुएन्स युग हमेशा थोडा छोटा होता है । उस छोटे कोम्फ़्लुएन्स. .अभी इसको ही संगम भी कहा जाता है और कुम्भ भी कहा जाता है । अभी यह हुआ सच्चा- सच्चा कुम्म जिसका सिर्फ तुम बच्चों को मालूम है कि संगम है और दूसरा कोई नहीं जानते है । यह तो निश्चय की बात हुई ना । अच्छा, ये कौन बताते हैं? यह तो बाप बताएँगे, और तो कोई नहीं बताएँगे । मनुष्य, मनुष्य को तो नहीं बताते है । यह तो बाप बताएँगे, क्योंकि नॉलेजफुल बाप है । इनहेरिटेन्स बाप से मिलता है । याद बाप को करते है । हे बाबा! अभी इस दुनिया में दुःख है, आओ, आय पतित को पावन बनाओ । दुःख है ना । यह दुःखधाम है । सब दुःखी हैं । देखो, भटकते रहते हैं । बाप से मिलने के लिए कहाँ धक्का खाते हैं, कहीं जप तप तीर्थ अनेक गुरू करते है, कितने तीर्थ घूमते है । फायदा तो कुछ भी होता ही नहीं है । अभी तो तुम जानते हो कि यह भटकना छूटने का है । सतयुग में तो कोई तीर्थ यात्रा नहीं होती है । वो भक्तिकाण्ड, वो ज्ञानकाण्ड । वो भक्तिमार्ग आधाकल्प वो ज्ञानमार्ग,. । तो इस समय में तुम बच्चों को इस पुरानी दुनिया से वैराग्य दिलाते है, क्योंकि गाया जाता है- ज्ञान ठीक दिन, भक्ति फिर रात । फिर बाप क्या कहते हैं? यह जो सारी पतित दुनिया है, उनसे वैराग्य दिलाते हैं । यह हुआ बेहद का वैराग्य और फिर वो सन्यासियों का है हद का वैराग्य । हर्थ एण्ड होम यानी अपने घर से छूट करके फिर भी इसी दुनिया में जंगलों में रहते है । तुम्हारा तो ऐसा सन्यास नहीं है ना । तुम्हारा तो इस सारी पुरानी दुनिया से वैराग्य है, क्योंकि यह छूट जाने वाली है । यह सारी दुनिया विनाश को.. .यह कब्रिस्तान होने वाली है । अभी इस समय में कब्रिस्तान है, उसके ऊपर परिस्तान बनेगा । परिस्तान था, फिर वो कब्रिस्तान बना । फिर ये खेल हुआ ना- कब्रिस्तान फिर परिस्तान । तो परिस्तान कौन स्थापन करते हैं? बाप करते है, जिसको याद करते रहते है । रावण को तो कोई याद नहीं करते है ना । बाप को याद करते है । जब रावण राज्य होता है तो राम को याद करते हैं । जब है ही राम राज्य तो रावण को याद थोड़े ही करेंगे । नहीं, पीछे ऑटोमैटिकली ही रावण राज्य आ जाता है । ड्रामा अनुसार बनी-बनाई । तो यह सभी बुद्धि से समझने की बात है । इसमें पहले- पहले ये समझना है । जब ये समझ जाएंगे तो सब संशय मिट जाएँगे । जब तलक बाप को न पहचाना है तब तलक संशय बुद्धि ही रहेंगे । कहा जाता है निश्चय बुद्धि विजयन्ति यानी निश्चय होने से कि ही, बरोबर हम सबका बाप वो है और वही हमको बेहद का वर्सा दे सकते हैं, निश्चय से विजय माला में पिरोते है । अभी एक-एक अक्षर से एक सेकेण्ड में निश्चय कर देना चाहिए । ' 'बाबा' '.. .तो निश्चय हुआ ना । ऐसे तो 'बाबा' सबको कहते रहते है । बहुत मनुष्यों को बाबा- बाबा कहते हैं- साई बाबा, फलाना बाबा, परन्तु नहीं, वो कोई सबके बाप... और बाप तो निराकार को कहेंगे, साकार को थोड़े ही कहेंगे । अभी निराकार का क्वेश्चन है । साकार में तो.. .गाँधी जी को सब भारत का बापू जी कहते थे । अच्छा, भारत का बापू जी, पर यहाँ तो वर्ल्ड का बापूजी चाहिए ना । अभी वर्ल्ड का बापू जी तो है ही गॉड फादर । वर्ल्ड गॉड फादर का अर्थ क्या हुआ? दुनिया का बापू जी, बाप । तो वर्ल्ड का गॉड फादर, यह तो बहुत बड़ा हुआ ना । तो जरूर उस वर्ल्ड के गॉड फादर से वर्ल्ड की बादशाही मिलती है, क्योंकि स्थापना वही करते हैं । कहते है ना- बाबा ब्रह्मा द्वारा स्थापना करते हैं । कहां की? राजधानी की, स्वराज्य की । कौन-सा स्वराज्य? विश्व का स्वराज्य । अभी तुम जान गए कि बरोबर हम विश्व के मालिक थे । हम सो देवी-देवता थे । पीछे चंद्रवंशी बने, वैश्यवशी बने, शूद्रवशी बने, अभी फिर ब्राह्मण वंशी... । देखो, तुम बच्चों को ऑलराउण्ड मिलता है ना । अभी दूसरा तो कोई भी इन बातों को नहीं समझते हैं । फिर बाप कह भी देते है कि मेरे इस ज्ञान यज्ञ में विप्न बहुत पडेंगे । इसको कहा ही जाता है- रुद्र ज्ञान यज्ञ । यह भी फिर बता देते हैं कि कोई यज्ञ रचते हैं तो ऐसे तो नहीं कहेंगे कि विनाश होगा । वो तो बोलेंगे शांति होगी, उसके लिए हम यज्ञ रचते हैं । ये फिर कहते हैं- इस रुद्र ज्ञान यज्ञ से यह विनाश ज्वाला प्रज्वलित हुई है, होनी है । हुई थी, अब होनी है । बरोबर यह तो जरूर कहेंगे ना । सन्यासी भी कहते हैं कि ब्रह्माकुमारियों का ज्ञान विनाश लाएगा । वो कहते है हम शांति का पुरुषार्थ करते है, ये कहते है कि इस रुद्र ज्ञान यज्ञ से... । कहेंगे ना- ब्रह्माकुमारिया कहती हैं यह जो रुद्र ज्ञान यज्ञ रचा गया है, इनसे ये विनाश ज्वाला निकलेगी और सभी भस्म हो जाएँगे । बस, खतम हो जाएँगे और फिर देवी-देवताओं की स्थापना हो जाएगी, हम सो देवी-देवता बनेंगे । अब यह तो ये कहती है ना! तो वो कहते तो सच है कि इन्हो के कारण यह दुनिया विनाश होगी, क्योंकि वो समझते है कि ये सब झूठ कहती हैं और तुम फिर कहते हो, नहीं, वो झूठ कहते है । बरोबर आसुरी सम्प्रदाय तो झूठ ही झूठ और ईश्वरीय सम्प्रदाय तो सच ही सच, क्योंकि तुमको समझाने वाला तो बाप है, जिसको ट्रूध ही कहा जाता है । वो सच बोलते हैं । नर से नारायण की सच्ची कथा, सत्य कथा बताते हैं । अभी वहाँ तो कोई नर से नारायण नहीं बनेगा । जन्म-जन्म सत्यनारायण की इतनी कथाएँ सुनते आए है । कहते हैं यह प्राचीन कथा है, परम्परा से चली आई हुई है । सत्यनारायण की कथा तो यह है, यह परम्परा से तो नहीं चलती है । यहाँ नर से नारायण बने और उनको फिर 84 जन्म ले करके तमोप्रधान बनना ही है यानी असुर बनना ही है, भ्रष्टाचारी बनना ही है । अभी बच्चे तो समझ गए कि हम बरोबर 84 जन्म... । बाप आया हुआ है, समझाते है कि तुमने अभी 84 जन्म पूरा किया है । अब फिर से नई दुनिया में तुम्हारा राज्य होगा । इसके लिए यह राजयोग का ज्ञान है । जैसे बैरिस्टर योग । किसके साथ योग? उन्होंने लिख दिया है कृष्ण के साथ कि कृष्ण भगवानुवाच । अभी रॉग हो गया । बैरिस्टर योग, तो बैरिस्टर से ही योग लगेगा, जिनमें बैरिस्टरी की ही नॉलेज होगी । सहज राजयोग की नॉलेज तो सिर्फ परमपिता परमात्मा में है, जिसको ही भारत का प्राचीन राजयोग कहा जाता है ।.. .आगे बरोबर कलहयुग था, उनको सतयुग बनाया था और बरोबर विनाश भी हुआ था । अब फिर विनाश... । विनाश की तो बातें देखते हो कि बरोबर है । मूसलों की ही बात है । मूसल फिर तो कभी नहीं निकलते हैं ना । सतयुग-त्रेता में तो कोई लडाई होती नहीं है, पीछे शुरू होती है । पहले तो मुक्कों से होगी, फिर बाणों से होगी, फिर तलवारों से होगी, फिर बंदूकों से होगी, फिर तोपों से होगी, अभी तो मूसलों से लास्ट । लड़ाई का भी तो ऐसे होता है ना । आगे तो आपस में लड़ते भी थे और फिर तलवारों से भी लड़ते थे । फिर बंदूक बाजी चली, पीछे तोपबाजी चली, अभी तो बॉख्स बाजी । ये अंत हो गया । बस, फिर कोई लडाई नहीं लगेगी । नहीं तो सारी दुनिया का विनाश कैसे हो? उनके साथ फिर नैचुरल कैलेमिटीज मूसलाधार बरसात, फैमिन- इसको कहा जाता है नैचुरल कैलेमिटीज । अभी समझो, अर्थक्वेक होती है । भले इन्श्योरेन्स तो बहुतों का होता है । पर इसको कहा जाता है गॉड फादरली नैचुरल कैलेमिटीज । उसमें हम लोग क्या कर सकते है? अच्छा, वो तो भले हद की होवे तो थोड़ा-थोडा नुकसान भर देने । अभी जो नैचुरल केलेमिटीज होंगी उसमें कितने का इन्शयोरेन्स होगा? कौन देंगे? कोई देंगे? बहुत इन्श्योरेन्स करते ही है । अभी जब विनाश होगा, इतना नुकसान, इतना सब कौन ... । सभी मर ही जाएँगे, किसको इन्श्योरेन्स मिलेगा ही नहीं, क्योंकि अभी बाप के पास इन्श्योर करना है, जिससे मिल सकता है । अभी इन्दयोरेन्स करके तुम इन्रयोर करते हो । यह तो जानते हो कि पाई-पैसा... । बाप ने समझाया है कि इन्शयोरेन्स तो भक्तिमार्ग में भी करते है, पर वो है अल्पकाल क्षणभंगुर रिटर्न और यह है डायरेक्ट । इन्श्योर करना ही है । अगर कोई सब इन्श्योर कर देगा तो उनको बादशाही मिल जाती है! बाबा खुद कहते है जो भी मेरे पास था, मैंने सब... और कोई को भी नहीं दिया । मैंने अपन को बाबा के पास फुल इन्रयोर कर दिया । तो देखो, फुल इन्शयोर किया तो फुल बादशाही... । तो इसमें.. इन्श्योर करके फिर मूंझना नहीं होता है । इन्श्योरेन्स करके फिर भाग तो नहीं जाना है ना, उनका ही रहना होता है ।.. .यह भी इन्श्योरेन्स है । भक्तिमार्ग में भी सब कोई इन्श्योरेन्स करते हैं । वो भी इन्श्योर करते हैं, फिर ईश्वर अर्थ दान-पुण्य करते है तो फिर दूसरे जन्म में अच्छा जन्म... । जो बहुत-बहुत दान करते है तो राजाई जन्म... क्योंकि जैसे-जैसे जो कर्म करता है उनका.... । अभी यह है इन्शयोरेन्स मैगनेट । बस, इनकी इन्श्योरेन्स- कौड़ी दो, दो मुट्ठी चावल दो और भविष्य में 21 जन्म के लिए महल लो । इसको कहा जाता है इन्शयोरेन्स मैगनेट । फिर समझाते भी हैं, यूँ तो तुम्हारा सब कुछ खतम ही होना है, फिर तुमको कौन इन्श्योरेन्स भर कर देगा! कोई होगा ही नहीं तो तुमको इन्श्योरेन्स कहाँ से मिलेगा! कोई मिलेगा? क्योंकि यह दुनिया ही खतम हो जाती है । नई दुनिया को अमरलोक कहा जाता है और यह है मृत्युलोक । इसमें सभी खतम हो जाने वाले है । किनकी दबी रहेगी धूल में, किनकी राजा खाय, किनकी चोर... ऐसे गाते हैं । देखो, लूट भी कितनी होती है! जब कोई भी आफत आती है तो चोर लूट बहुत मचाते है । कही भी कुछ आफत होगी तो चोर लोगों को बहुत लगता है, डाका बहुत लगाते हैं । आग भी लगेगी तो.. .वो चोरी करने लग पड़ेंगे । चोरों की बुद्धि में ही चोरी । उनका धंधा ही यह है । चोर जो होगा, उनकी बुद्धि में इन्वेंशन चलती रहेगी कि कैसे मैं कहीं डाका लगाऊँ, कैसे मैं कहीं किसको लूट-! वो बहुत युक्तियाँ रचते हैं । ऐसी बड़ी बड़ी युक्तियाँ रचते है । तुमने सुना था, आगाखाँ की स्त्री विलायत में गई थी, तो चोरों ने वहाँ जाकर पकड़ा । किसको छोडते थोडे ही है । आजकल तो देखो कैसे चोरी होती है! डाका कैसे लगाते है! बड़े-बड़े लन्दन जैसे शहर में, मोटर में यह गया, सामान निकाला, ज्वेलरी निकाली, डाला और यह भागे । डाका लगाते रहते है ना । अभी तो पिछाड़ी है । किनकी दबी रहेगी, किनकी राजा खाय, किनकी चोर. .किनकी आग लगेगी, किनकी दब जाएगी । बरोबर यह समय है ना! यही समय गाया जाता है । अब क्या करना चाहिए? अभी बाप को याद करो और उनको मदद करो । मदद कोई गाँधी के मुआफिक नहीं । गाँधी को मदद करते थे ना । अरे, रेल में बैठे रहते थे, खाली बाहर में ऐसे करते थे.. उनमें कितना डाल देते थे । इनके यह राज्य लेने में वा इस स्थापना करने में... । कांग्रेस राज्य यानी कौरव राज्य, क्योंकि राजाई राज्य चला गया, फिर प्रजा का प्रजा पर यानी ये पंचायती राज्य स्थापन करने में कितने मरे, कितना खर्चा हुआ, करोडों खर्चा हुआ, लाखों-करोडों मरे, जेल में गए, कितना दुःख देखा । अच्छा, फिर क्या हुआ? राम राज्य स्थापन हुआ? अरे, बात मत पूछो । यह तो और ही रावण राज्य, राक्षस राज्य हो गया । देखो, इनका एमपी. एक कृपलानी है ना, वो तो लिखता था- यह कोई राम राज्य थोडे ही है जो बापू जी ने स्थापन किया है, यह तो राक्षस राज्य स्थापन किया है । अभी उनको कोई कह सकते है? यह राइट बोलते हैं ना । ये बरोबर और ही जास्ती दुःखी हो गए है, क्योंकि रामराज्य तो बाप स्थापन करेंगे ना । मनुष्य थोडे ही रामराज्य या स्वर्ग स्थापन कर सकते है । नर्कवासी कोई स्वर्ग थोडे ही स्थापन कर सकते हैं । इस समय में सभी नर्कवासी है ना, पतित हैं । पतित मनुष्य कोई पावन ... थोड़े ही स्थापन करेंगे । यह तो बाप का काम है ना । देखो, बोलते हैं कि बाबा, वो महतत्व जहाँ आत्माएँ रहती है, आप भी वहाँ से आओ । आकाश नहीं कहते है । जैसे हम गर्म में आए हुए है, आप आओ और आ करके जैसे अपना रूप धरते हो, आकर धरो । तो बोलते हैं कि मैंने अभी यह रूप धरा है । मैं अभी जो निराकार हूँ सो साकार में आया हुआ हूँ परन्तु ऐसे नहीं कि मैं इसमें हमेशा रह सकता हूँ । सवारी होती है, तो सवारी कोई सारा दिन और रात थोड़े ही करते हैं । यह इनकी सवारी दिखलाते हैं, बैल की सवारी । नदीगण भी कहते है तो भागीरथ भी कहते हैं । भाग्यशाली रथ तो मनुष्य दिखलाते है । अभी यह राइट या वो राइट? बैल पर कैसे आएँगे? बैल का अक्षर क्यों आया? यह गऊशाला है, वो तो बैल दिखला देते है । बरोबर कहीं-कहीं फिर गऊ को भी दिखला देते हैं कि गऊ से अमृत... । गजमुख सुना है ना । अभी बैल पर सवारी और गजमुख से माताओं को यह नॉलेज देते है और उनके मुख से यह अमृत यानी ज्ञान निकलता है । अर्थ तो है ना । वो बैल भी दिखलाते है, गऊ भी दिखलाते हैं । गऊमुख यहाँ भी है । गजमुख एक मंदिर है जहाँ बहुत जाते है, पर बडी सीढ़ी है, जो ऐसे-ऐसे नहीं जा सकेंगे और चढ़ सकेंगे । मैं समझता हूँ कि कोई 400 या 700 स्टेप्स है । 700 स्टेप्स । हम लोग गए है, देख करके आए हैं । अभी कौन बिचारा जाएगा! तो भी नाम जो सुनते है कि वही गऊमुख है, मंदिर है । वही गऊ के मुख से अमृत टपकता है । सो जा करके पीना है । देखो, महिमा कैसी करते हैं! ...जब बिचारे उतरने लग पडते है तो वो बिचारे बोलते है कि कहाँ आ गए हैं । उनको ऐसे तो नहीं बोलते हैं कि 700 स्टेप्स हैं । वो एक गऊमुख का मंदिर है, चलो जाओ भाई । पीछे ऐसे कर-करके जाते है, बिचारों को ... टागो में दर्द पड जाता है । 700 स्टेप्स चढ़ना कोई मासी का घर है क्या? अभी वहाँ क्या ... जाते हैं? बस, वहाँ गऊ के मुख से गंगा ... । वो गंगा यहाँ कहाँ से आई? यह पहाड़ से तो पानी... । कुएँ में पानी कहाँ से आता है? पहाड़ से आता है । बडा-- तो गऊमुख यह है ... क्योंकि पहाड़ के चश्मे है । वो भी ऐसे गऊ का मुख बना देते है । देखे हुए हैं । जैसे पत्थर का होता है और उनमें से वो पानी... । बस, प्रेम से... । वो समझते है कि गऊमुख से अमृत निकलता है । अब इतनी मेहनत करके गए, दक्षिणा दी, उनको यह किया और मेहनत की । है कुछ भी नहीं । दुःखी होने के कितने गपोड़े हैं । कितना दूर दूर तीर्थों पर जाते हैं । अभी अमरनाथ जाते है । देखो, मेहनत करके जाते हैं और तकलीफ है जाने में । कहाँ-कहां ऐसी पहाडियाँ आती है जो बर्फ है और उसके ऊपर से चलना पड़ता है । थोड़ा ब्रॉड है जरूर । पैर सरक जाए तो नीचे चले जाएं । वहाँ सभी ठगी है । वहाँ शंकर ने पार्वती को कथा सुनाई । शंकर को दिखलाते भी हैं सूक्ष्मवतन में । अभी यह स्थूलवतन में थोडे से माइल ऊपर में पहाड़. । अच्छा, अगर दिखलाना है तो एवरेस्ट की चोटी पर तो दिखलाओ । यही बाजू में.... अरे भाई, यहाँ पार्वती को कथा सुनाई । पार्वती की क्यों दुर्गति हो गई थी जो उनको ज्ञान की कथा सुनाते है? कुछ भी समझ नहीं । बाप आकर समझाते हैं कि देखो, कितने बेसमझ बन गए हैं । यह रावण कितना बेसमझ बनाते हैं और बड़े--0 बेसमझ । प्रेसिडेन्ट राधाकृष्णन फलाना भी वहाँ तीर्थ यात्रा करने चले जाते हैं, समझ कुछ नहीं है । अमरनाथ और पार्वती यहाँ हो कैसे सकते हैं जो कथा सुनाई और उनको कथा क्यों सुनाई? कथा तो तुम सुनते हो सद्‌गति के लिए । मुट्‌ठी पार्वती की क्या दुर्गति हुई? सो भी वही पार्वती दिखलाते हैं और है कुछ भी नहीं । जाओ वहाँ, गपोडे मारते ही रहते हैं कि लिंग निकलता है ।...... वहाँ लिंग निकलता है, उनकी फिर शिव और पार्वती पूजा करते हैं । कहते हैं शिव-शंकर, फिर वहाँ ही कहते हैं कि शंकर ने पार्वती को कथा सुनाई । फिर वो लिंग को शिव-शंकर भी कह देते हैं । वहाँ लिंग है भी नहीं ।.... .यह जो बोलते हैं, समझते हैं कि पूर्णमासी होती है फिर आपे ही बर्फ का एक लिंग बन जाता है । तो यह वनडर देखने के लिए ही बाबा गया कि देखें, यह कैसे हो सकता है! बर्फ से आपे ही लिंग बन जाए और कब तलक रहेगा! वो तो गल जाएगा । फिर क्या होगा! क्योंकि गल तो जाएगा ना । अगर निकलेगा भी या बनेगा भी.. .तो जाकर देखें कि क्या है! बाबा ने कथा सुनाई थी कि उनसे पूछा, क्योंकि गए थे जैसे कोई ऑफिसर जाते हैं, क्योंकि बाबा समझते थे कि अभी ऐसे न जाएँगे तो ये सन्यासी और फलाना हमको गिड- गिड करने लग पड़ेंगे । फिर बाबा तो एकदम समझाया था कि घोड़े के ऊपर ही चढ़ता रहा । सन्यासियों ने बहुत मारा । बस, उनको बोला.. .बकबक नहीं करो । वो चुप एकदम बैठ गए, वो समझे यह कोई बड़ा कमिश्नर है या कोई गवर्नर है और मैं घोड़े पर ही चढ़ गया । जब वहाँ था, वहाँ भी तो बर्फ थी । बच्चे-- थे, अभी उनको बर्फ में कैसे उतारें । तो बोला साहब-साहबङ । चुप रहो, उल्लू! तुम पहचानते नहीं हो कि ये कौन हैं! बस वो बिचारा पुजारी भी इस बच्चे जितना छोकरा था । यह बच्चा है ना, इतना वहाँ छोकरा था, क्योंकि बाबा को ज्ञान का थोड़ा नशा चढ़ा हुआ था । अरे, कहाँ है वो शिव का लिंग? बात ही ऐसे कहते थे जो कोई.... । साहब-साहब, शिव का लिंग यह हम बर्फ का बना रहे हैं... । तो वो क्या करते थे, वही खोद करके ऐसा लिंग बनाते थे । बर्फ भी नीचे, लिंग कोई ऐसे नहीं था । देखो, यह शिव हो गया । अच्छा, फिर शंकर कहाँ है? बोला, साहब, यही तो शिवशंकर है ना । अच्छा, पार्वती कहाँ है? देखो, बर्फ में बैठ करके यह पार्वती बनाया है । वही हार-वार सब लगाकर बैठ गया । बोला, यह है शिव-पार्वती । अच्छा, वो जो पैरेट थे.. .? पैरेट नहीं है, कबूतर है । अरे, कबूतर तो पीजन हुआ । पढ़ाया जाता है पैरेट को । देखा कि बरोबर दो तोते थे, वो उस समय में भी उड़े, बोले, ये हैं । वनडर खाया कि कहाँ शंकर, कहाँ पार्वती, कहाँ सुनने वाले फिर तोते भी, कही शिव और इतने सब प्रेसिडेन्ट, सन्यासी, बड़े-बड़े. आदमी आते हैं, वो उस छोकरे पुजारी को आ करके नमन करते हैं! क्योंकि अमरनाथ का मेला लगता है, पीछे बहुत ढेर जाते हैं । बाबा उनके दो रोज आगे चला गया । समझते थे कि फिर भीड़ होगी, गंद हो जाएगा । बाबा जब लौटा तो रास्ते में यह मिली । पहले से हो करके आए । कचड़ा बहुत हो जाता है । तो देखे बहुत बड़े-बड़े आदमी... । सुना तो जरूर था । साहुकार देख करके आए । अरे, यह कितनी झूठ । झूठ ही झूठ, पूजा करे और कितना पैसा इकट्‌ठा आवे । अरे, कितने पैसे आते हैं? साहब, आजकल इतना पैसा होता है । कौन-कौन बाँटते हैं? बस, वो बिचारा साहब-साहब ही करने लगा । मैं था तो देशी । हाँ टोपला-वोपला ब्लिचिस पड़ी हुई थी । तो साहब ही कहेंगे और क्या कहेंगे! साहब! चार हिस्सा होता है, एक हिस्सा गवर्मेन्ट लेती है, एक हिस्सा पण्डे लेते हैं, एक हिस्सा ये मुसलमान लेते हैं, एक हिस्सा पुजारियों को बाँटते हैं । ऐसे चार हिस्सा मिल करके बाँटते हैं । अरे, तुम लोग कहाँ से आए हो? साहब! हम नीचे फलानी जगह में नौकरी करते हैं । अरे तनखा कितनी मिलती है? 30 रुपया । 30 रुपया वाला वो ब्राह्मण ऊपर में मगाए करके और उनको ये सब नमन करते थे । अभी पता नहीं, वहां है या नहीं । इसको कोई 20-22 वर्ष हुआ । तीर्थ यात्राओं में क्या है! यह तुम बच्चे जानते हो । अब जन्म-जन्मांतर यह तीर्थ यात्रा होते आए हैं, क्योंकि कहते हैं यह प्राचीन है । पीछे एक टूटता है तो दूसरा बनाते हैं, एक मंदिर टूट जाता है तो दूसरा बनाते रहते हैं । तो कितना खर्चा लगता है मंदिरों के ऊपर । तो देखो, बेहद का बाप आकर समझाते हैं कि सब पैसा उडा करके इतने मंदिर बनाए, वो भी उड़ गया, गजनवी लूट गया । अर्थक्वेक्स हुए, उनमें भी बहुत सभी चले गए । तुम पैसा गुमाया फिर शास्त्र, फिर पत्थर की पूजा, फलाने की पूजा करते-करते, खर्चा करते करते तुमने सब का सब गुमाए दिया? बाबा ऐसे पूछेंगे ना । हाँ बच्चों! मैं तुमको इतना बनाया! उसको कुबेर जैसी मिल्कियत कहा जाता है । तुम्हारे पास इतना धन था, अभी कुछ भी नहीं रहा । देखो, तुम कितने सॉलवेन्ट थे, कितने इनसॉलवेन्ट बन गए । तो सॉलवेन्ट टू इनसॉलवेन्ट फिर इनसॉलवेन्ट टू सॉलवेन्ट कैसे बनते हैं- यह सब कहानी बाबा बताते हैं । मैं आ करके सॉलवेन्ट बनाता हूँ । तुम । 00 परसेन्ट सॉलवेन्ट बन रहे हो ना । प्यूरिटी पीस एण्ड प्रॉसपेरिटी । जानते हो इसलिए यहाँ आए हुए हो । जानते हो कि ये बाप से इनहेरिटेन्स लेने आए हुए हैं । अभी कोई मनुष्य से तो नहीं मिलेगा, कोई पतित से तो नहीं मिलेगा, जो कहते हैं- पतित-पावन, आओ । कोई पतित थोड़े ही देंगे । जिसको कहते हैं वो तुम बच्चों को दे रहे हैं और बरोबर भारत में मानते हैं कि भारत है बर्थ प्लेस । किसकी? परमपिता परमात्मा की । तो सबसे ऊंचा तीर्थ हुआ ना । और फिर क्या आकर करते हैं? सर्व पतित को पावन बनाते हैं । तो सबका तीर्थ हो गया ना । अगर गीता में कृष्ण का नाम न होता, अभी तो ड्रामा अनुसार है, वो होता तो सब आ करके यहाँ फूल चढ़ाते, क्योंकि सर्व को सद्‌गति देने वाला यानी जो भी इनके पैगम्बर वगैरह हैं, वो सभी अभी कब्रदाखिल हैं । बाप न आए तो उनको सद्‌गति कौन देवे? सर्व का सद्‌गति दाता तो यहाँ आना चाहिए ना । वास्तव में बड़े ते बड़ा तीर्थ भारत खण्ड है, परन्तु मालूम न होने के कारण कोई किसने तीर्थ बनाया, कोई क्या तीर्थ बनाया, अपना-अपना तीर्थ बनाया, नहीं तो यह सबका तीर्थ है । जैसे कहा जाता है कि बाप की महिमा अपरम्पार है, वैसे जहाँ आते हैं उस भारत की महिमा भी अपरमपार है, क्योंकि भारत ही हैविन बनता है, भारत ही फिर हेल बनता है । तो महिमा कितनी बड़ी है हैविन की । अपरमपार महिमा हैविन की कहेंगे और फिर अपरम्पार निंदा यह भारत की कहेंगे । अरे, एकदम आसुरी सम्प्रदाय । यह समझने की बात है ना । बाबा कितना भारत को और सबको सद्‌गति देते हैं । यह भारत खण्ड बहुत बहुत नामी है । इस भारत खण्ड की महिमा भी बड़ी भारी है । सिर्फ एक नुकसान कि बाप के बदली में बच्चे का नाम दे दिया । सब खण्डन हो गया । इसलिए बस शुरू ही हो गया- झूठी माया, झूठी काया, झूठा सब संसार । अभी सतयुग को झूठ थोड़े ही कहेंगे । सत् माना सत् और यह है आयरन एज कलहयुग माना झूठ । तो सचखण्ड बाबा स्थापन करते हैं और रावण आ करके इसको झूठ खण्ड बनाते हैं । फिर बाबा आ करके सचखण्ड.. । देखो, तुम अभी सच्चे बन रहे हो ना । सचखण्ड के मालिक बन रहे हो । यहाँ आते ही हो, क्यों आते हो? बाबा से बेहद का वर्सा लेने । बाबा क्या कहते हैं? बाबा कहते हैं- मन्मनाभव मद्याजीभव । अभी और सर्व का बुद्धियोग हटाय मामेकम याद करो, क्योंकि आना ही है । चाहे याद करो या न करो, वापस सबको आना है । याद करेंगे तो पवित्र बनेंगे और बाप से नॉलेज सुनेंगे तो वर्सा लेंगे । जीवनमुक्ति का वर्सा सबको मिलना है, परन्तु सबको स्वर्ग का वर्सा तो नहीं मिल सकता है ना । स्वर्ग का वर्सा तो राजयोग सिखलाने वाले पाते हैं.. । बाकी सर्व की सद्‌गति तो होनी है ना । सभी को वापस तो ले जाएँगे ना । इसलिए कहते हैं मैं कालों का भी काल हूँ । देखो, काल तुमको बोलते है- खा जाता हूँ । मैं कालों का काल हूँ जो सबको खा जाता हूँ तुम सबको वापस ले जाता हूँ । तो खुशी होती है । महाकाल का भी मंदिर होता है । इसको काल नहीं कहेंगे, इसको फिर महाकाल... । तो महाकाल का भी मंदिर है । बहुत जगह में हैं । पहाड़ों पर भी मंदिर हैं । तो ये सभी बातें बाप समझाते हैं ना । कौन समझाते हैं? जैसे तुम अपना स्वीट होम छोड़ करके यहाँ पार्ट बजाने के लिए आए हो वैसे मैं भी अपना स्वीट होम छोड़ करके... । निर्वाणधाम है स्वीट साइलेन्स होम । सभी याद भी निर्वाणधाम को करते हैं । कोई से पूछो बुद्ध कहा गया? पार निर्वाणा गया । याद तो सब उनको करते हैं ना, क्योंकि जीवनमुक्ति याद कराने वाला.... स्वर्ग याद कराने वाला तो कोई है नहीं । बाकी है मुक्ति का धाम । ये सन्यासी तो सब वहाँ ही जाएँगे ना । आजकल है भी मुक्ति का ही धाम धूम पर बच्चों को जीवनमुक्ति चाहिए ना । तो फिर बाप आते हैं । उनको भी जीवनमुक्ति चाहिए । अभी बंध हैं, तमोगुणी हैं, इस नॉलेज को समझते कुछ नहीं हैं । तो उनका अभी टाइम नहीं है । बाप ने समझाया है कि यादव सम्प्रदाय और कौरव सम्प्रदाय सेना कहते हैं । सेना में कौन कौन थे? ये सभी थे ना । धृतराष्ट्र के बच्चे यानी अंधे की औलाद, उनकी सेना में कौन-कौन थे? देखो आते हैं ना- भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा । ये किसकी सेना में थे? धृतराष्ट्र की । अंधे की औलाद अंधे । देखो, है बरोबर । जिनको फिर तुमने जब बाण मारे हैं तो कन्याओं द्वारा । लिखा भी हुआ है कि कन्याओं द्वारा बाण मारे हैं । अभी बाण वो तो नहीं हैं, ज्ञान के बाण हैं। तब उन लोगों को पिछाड़ी में यह मालूम है कि बरोबर इनको ज्ञान का बाण मारना सिखलाने वाला बेहद का बाप ही है । बस, मारना है । विनाश तो इस समय में होना ही है । सो तो हो ही गए । कोई ज्ञान बैठ करके नहीं लिया है । वो तो कहते हैं वो मर गए और फिर अर्जुन ने बाण मारे हैं तो गंगा का जल निकल आया । अभी गंगा का जल बाण मारने से कहाँ से निकलेगा? गंगा का जल तो उनको मिल रहा है, ज्ञान तो मिल रहा है । फिर बाण मारा और गंगा निकली ये सब गपोड़े हैं । तो कितना सहज समझने की है । समझते हो, फिर भी देखो ज्ञान ऐसा है कि बाहर में जाने से वो नशा उड़ जाता है । यहाँ बैठे हो, प्रैक्टिकल में समझते हो कि बरोबर हमको बाबा बैठ करके यथार्थ रीति से सारी सृष्टि का चक्कर सुनाते हैं । बस, यहाँ से कोई को तो धारण होती है और यहाँ से बाहर निकलने से कोई की 1 परसेन्ट, 2 परसेन्ट, 5 परसेन्ट, 10 परसेन्ट, 50 परसेन्ट, 90 परसेन्ट धारणा उड़ जाती है । यह नॉलेज ही ऐसी है । वो मरक्यूरी चेम होती है । ऐसे खड़ा नहीं रहता है । (किसी ने कहा- पारा) वैसे यह योग खड़ा नहीं रह सकता है, घड़ी घडी टूट जाता है । कोशिश करते हैं कि हम आपको याद रखें, परन्तु नहीं, ऐसा है जो वहीं याद करो, वहीं फिर तिरक जाता है । यह योग ऐसा है । अच्छा, टोली खिलाओ । प्राचीन योग तो बाप ही आकर समझाएंगे ना । प्राचीन योग ये लोग कैसे समझाएँगे? सो भी भगवानुवाच! सन्यासी भगवान थोड़े ही हैं ।.... फट से कह देगी कि शिवबाबा को याद करो तो जाग जाएगा । यह याद रहने में मुश्किलात है बहुत । कहते हैं ना- राम कहो-राम कहो । जब मरने लग पड़ते हैं तो भी मित्र-संबंधी या गुरुा-गोसाई राम कहो-राम कहो। मौत तो सबका आना ही है । ये छोटे बच्चे कहते हैं शिवुबाबा को याद करो- शिवुबाबा को याद करो । तो देखो, इनका थोड़ा इशारा और जो भूले हुए बैठे होंगे, थोड़ा भी याद किया फायदा तो बहुत हो गया । अच्छा! इधर आओ । मीठे-मीठे सिकीलधे ज्ञान सितारों प्रति, मात-पिता, बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निग ।