10-07-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली     साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज शनीचरवार जुलाई की दस तारिख है। प्रातः क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड –
हमारे तीरथ न्यारे है……….
मीठे-मीठे बच्चों ने ये गीत सुना । इसका अर्थ भी नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार बच्चों ने जाना-समझा । फिर भी बाबा अच्छी तरह से विस्तार से समझाते है । दुनिया भर में और तो कोई नहीं जानते हैं कि हम आत्माओं को पढ़ाने वाला जो पतित-पावन बाप है उनकी महिमा तो बहुत है । सो तो तुम बच्चे ही जानते हो । दुनिया में कोई भी महिमा नहीं जानते हैं, क्योंकि सर्वव्यापी कहने से कोई महिमा का पता नहीं है । बस, ये कहते है ना । फिर गायन करते हैं कि पतित-पावन है । सो तो जरूर एक होगा जो आ करके सभी पतितों को पावन करते है, इसलिए उनको हम सर्वव्यापी कह ही नहीं सकते हैं । जबकि एक तरफ में बुलाते है- हे पतित-पावन, आओ । ये इनको बुद्धि में नहीं बैठता है कि भारत पावन था, अभी पतित बना हुआ है । ये जो देवी-देवता धर्म वाले थे, वो अगर यहाँ होते तो जान लेते । तो देखो, तुम थे, तुम अभी जान लेते हो कि हम पावन दुनिया के मालिक थे, अभी पतित दुनिया में हैं और फिर अभी बाप पावन दुनिया का मालिक बना रहे हैं । तो तुम्हीं जानते हो ना आय करके! जो मालिक बनने वाले हैं वही फिर आए हुए हैं । बरोबर वो यात्रा तो चैतन्य है और उनकी ही फिर यह यात्रा भक्तिमार्ग में है ।.. पूज्य देवता सो पुजारी, फिर भिन्न- भिन्न धर्मो में, भिन्न- भिन्न वर्णों में आ जाते हैं । अभी बच्चों को ये पक्का मालूम हुआ कि हम ब्राह्मण सो देवता बनते हैं और सीख रहे हैं और बाप सिखला रहे हैं और गाया भी जाता है इस समय में, जबकि बाप कर्म अकर्म विकर्म की गति समझाते हैं । बरोबर देवी-देवताओं का, जिनका नाम भी बिल्कुल मशहूर है । और कोई भी दूसरा नाम नहीं लेते हैं, बस नाम ही यही लेते हैं- श्री लक्ष्मी-श्री नारायण सूर्यवंशी, श्री सीता-श्री राम चंद्रवंशी और फिर उनको कहा जाता है डिनायस्टी । तो इनकी बड़ी डिनायस्टी । इतना बरस किसकी डिनायस्टी नहीं चलती है, बदल जाती है । जैसे देखो, अंग्रेज लोग की अभी थोड़े ही समय, तो भी थोड़ा समय, क्योंकि पहले कोई बादशाही नहीं होती है । वो तो पहले थोडे-थोड़े आते रहते हैं । अरे, जब आधा समय पूरा होगा तब इनकी रैयत बड़ी होगी तब वो छाँटेंगे और कोई राजा को बैठाएँगे फिर उनकी डिनायस्टी चलेगी । पीछे एडवर्ड, हैनरी, क्या कहते है दूसरा? जॉर्ज । तो देखो, फिरती जाती है ना भई यह इनकी डिनायस्टी- यह जॉर्ज द फर्स्ट, हैनरी द फर्स्ट, एडवर्ड द फर्स्ट । देखो, थोडा टाइम में यह बाबा बच्चों को थोड़ा विस्तार से समझाते हैं । थोडा टाइम चलती है । ये एक ही हिस्सा जो बारह सौ बरस एक ही सूर्यवंशी डिनायस्टी । बस, नाम भी वही चला आता है । फिर फिरती नहीं, कोई गिनती नहीं होती है दूसरों की । वैसे ही चंद्रवंश की । बस, और कोई है किसका नाम? कोई चित्र कोई दिखलावे । कुछ भी नहीं क्योंकि डिनायस्टी वालों का ही नाम रहता है- भई ये सूर्यवंशी डिनायष्टी । ये समझा जाता है कि बरोबर जन्म लेते होंगे, राजगद्‌दी के मालिक भिन्न नाम रूप देश होते होंगे जरूर । लम्बी-चौड़ी चलती है, चेंज नहीं होती है । अभी ये तो तुम्हें इस समय में बाप बैठ करके कर्म करना सिखलाते है । कौन-सा कर्म करना सिखलाते हैं? अच्छा कर्म करना । तुम बच्चे किसको भी दुःख नहीं देना, तुम बच्चे सिर्फ एक को याद करो- अभी ये कर्म सिखलाते हैं । कहते हैं ना- कर्म की गति । अभी ये सभी यही पढ़ते हैं अच्छी तरह से, बहुत पढ़ते हैं, बहुत हैं जो घर में भी रहते हैं । ठीक है ना । घर में आय करके रहते भी हैं और घर में रहते हुए भी वारिस बन सकते हैं । ऐसे नहीं कि यहीं आ करके वारिस बनना होता है । यहाँ आकर जो रहते हैं वो तो बरोबर जब तलक गोद में हैं, जब तलक यहीं के हैं, तब तलक उनकी परवरिश यहाँ मम्मा-बाबा से और बच्चों से होती है । अभी उनकी भी कर्म की गति न्यारी है और फिर जो बाकी बाहर में हैं, जो फिर आते भी जाएँगे, बाहर में भी रह करके अपना सब कुछ बाप का समझ ट्रस्टी बन जाते हैं और डायरैक्शन पर चलते हैं वो भी जैसे वारिस हो गए । उनको थोड़ी डिफीकल्टी जरूर पड़ती है, जब तलक कि मोह-माया का ममत्व उनसे टूट पड़े और निश्चय हो जाए कि बरोबर जिसका जिसने दिया था, कहते थे- हम सब कुछ उनको अर्पणमय कर दिया । अभी हम जैसे कि जीते जी अपनी ही मिल्कियत के ट्रस्टी हैं । जीते जी अपनी मिल्कियत का कोई ट्रस्टी नहीं बनता है । वो तो मालिक है । जब मरने का होता है तब ट्रस्टी बनाकर जाते है । यहाँ ऐसे नहीं । यहाँ हर एक जो सरेण्डर करते हैं, बाबा कहते हैं फिर तुम अपने कुटुम्ब का ट्रस्टी रहो क्योंकि तुमको भगवान ने दिया था, ऐसे भक्तिमार्ग में कहते आते हो । पूछने से ही फट कह देते हैं कि ईश्वर ने ही सब कुछ दिया । तो अभी बाप फिर क्या कहते हैं कि अच्छा, ईश्वर ने दिया ना! अभी वो तो ईश्वर को जानते नहीं हैं । अभी तुम सम्मुख जानते हो । अभी बाबा भी कहते हैं देह सहित जो भी तुम्हारा है, जो तुम कहते आते थे कि ईश्वर ने दिया हुआ है और जब आएगा तब हम उनके हवाले करेंगे, वारी जाएँगे । देखो, है ना बरोबर! समझा कि अभी है निराकार ईश्वर । ईश्वर कोई साकार नहीं.. .जो उनको यहाँ बिल्डिंग्स बनानी हैं या कोई जायदाद बनानी है । ये जायदाद सिर्फ देने वाला है, लेने वाला कुछ भी नहीं है । लेने वाले मनुष्य, मनुष्य से लेते हैं । ये लेने वाला नहीं है, ये देने वाला है । तो देखो, ये बोलते है कि अच्छा, ट्रस्टी बनो । फिर ट्रस्टी में पूछते रहना । भले कभी थोड़ी भूल-चूक भी हो जा सकती है, क्योंकि उस ट्रस्टी में पक्का रहना ये जरा मुश्किल होता है, टाइम लगता है । वो बाप जानते हैं कि उसको टाइम लगेगा पूछने के लिए । वो ट्रस्टीपने का होने से वो भी वारिस बनते हैं । यहाँ रहने वाले भी वारिस बनते हैं । जो फिर सब कुछ न अर्पण कर.. । अर्पण कर कोई तुम्हारा वहाँ ले नहीं जाते है । ऐसे भी कहेंगे, बाबा कहते हैं- हाँ, जो तुम अर्पण करते हो मैं ले जाता हूँ और तुमको वैकुण्ठ में दूँगा । जो शुरुआत में आए हैं वो जा करके गद्‌दी का मालिक पिछाडी में बनेंगे । चंद्रवंशी में भी पिछाडी में । तब तलक क्या करेंगे? जो बड़े बनते हैं उनके आगे सर्विस करेंगे । उसमें भी ऐसे हैं, पूछो तो मैं बता भी सकता हूँ ऐसे हैं अभी भी जो कभी भी उन्नति को नहीं पाते हैं । ऐसे भी कर्म करते हैं जो जरा भी उन्नति को नहीं पाते हैं । बस, ऐसे ही ऐसे जामड़े रहते हैं जो वो ऊँच पद... । तो समझा जाता है कि शायद इन बिचारे की तकदीर में वही पिछाडी में कुछ सर्विस करते-करते फिर आ करके उनको राजाई.. । ऐसे भी हैं सो भी अगर रहेंगे तो । अगर निकल गए तो फिर उनका प्रजा में एकदम कम से कम पद । यहाँ फिर भी कुछ हैं । ये अच्छी नौकरी, फिर थोड़ी उन्नति को नौकरी पाती रहेगी.. पिछाडी में आ करके गद्‌दी पर बैठ जाते हैं और फिर जो कुछ भी उनके कर्म हैं वो डबल होते जाते हैं । देखो, कर्म की गति कितनी गहन है! यहाँ रहते हुए फिर जो कुछ भी विकर्म करते हैं वो विकर्म 100 परसेन्ट जास्ती होते जाते हैं । उसका नतीजा क्या निकलता है कि ईश्वर के दर के भी होते हुए फिर वो बिचारे बहुत कम... सजा भी बहुत खाते है । वो अज्ञानियों से भी जास्ती सजा खाते हैं । सजा भी बहुत खाते है और फिर पद भी बहुत नीच मिलता है, क्योंकि वहाँ नीच पद वाले भी तो चाहिए ना । राजा-रानी के पास क्या न होगा! राजाओं के पास क्या न होगा! अंदर सब कुछ तो जरूर होगा ना ।........... समझाया भी जाता है कि कोई भी विकर्म न करो, नहीं तो वो मल्टीप्लीकेशन होगा, जास्ती होता जाएगा ।.. .गति देखो कैसी है मनुष्य की! जो बाप आकर ऐसी कर्म की गति बनाते हैं, ठक एकदम पहले से स्वर्ग की बादशाही । ठक जो सत श्रीमत पर न चलकर कर्म करते हैं, क्योंकि अभी तो श्रीमत पर कर्म करना है ना । वो आसुरी मत पर, तुम श्रीमत पर । आसुरी मत का भी तुम देखते हो... । बाप उनको अच्छी तरह से जानते हैं कि ये जो कर्म करते हैं, वो कोई भी यहाँ रहते हुए भी कोई अच्छा किसको कह देवे- अच्छा, शिवबाबा को याद करो, वर्सा मिलेगा, वो भी ताकत नहीं है । समझा ना । ये तो सुन-सुन कर लाचारी हालत में किसको कह दिया, पर अंदर की वो निश्चय बुद्धि और वो नशा तो नहीं रहता है । तो बाप बैठ करके कर्म की गति... । फिर दुनिया में भी देखो, साहूकार का हृदय विदीर्ण होता है । ये अक्षर लिखे हुए हैं । उनका तो हृदय विदीर्ण होता है और बिचारे कर भी नहीं सकते हैं । इतनी कमाई लाखों-करोडों, देखो कितने हैं! न फिर भगवान को दरकार है, क्योंकि वो कहते हैं- मैं हूँ ही गरीब निवाज । साहूकरों को तो एकदम बहुत मिल्कियत होती है । मुझे तो गरीबों को ही.., .जो भी स्थापना करनी है वो गरीबों की पाई-पाई से करनी है, क्योंकि उनको वर्सा मिलना है, क्योंकि बोलते हैं गरीब निवाज हूँ । मैं साहूकार निवाज नहीं हूँ । यह भी..तो किया जाता है गरीबों को । मदद दी जाती है गरीबों को । ये तो आए हुए हैं जैसे कि गरीबों को वर्सा देने । गरीब तो अक्सर करके माताएँ तो हैं ही है । आजकल तो... भी है- माताओं के हाथ में बिल्कुल कुछ नहीं रहता है । कोई होंगी जो मर गया होगा और दूसरा कोई न होगा, तो भी उनको लूटपाट करके खतम-हजम कर लेंगे, वो बिचारी कहाँ जावे, बाहर कहाँ मत्था मारे! माताओं का यह बुरा हाल है! बहुत हैं जो माताओं को घर का खर्च भी नहीं देंगे, आपे ही संभालेंगी । बहुत रिवाज है बहुत देशों में । अभी माताएँ तो गरीब ही ठहरीं, क्योंकि हॉफ पार्टनर तो हैं ही नहीं । हॉफ पार्टनर अगर होते तो विल करते तो पहले हाफ सब इनका निकालते, परन्तु नहीं, वो एकदम कुछ भी नहीं निकालते हैं । ऐसे भी मर जावे तो देखो बकवाद बन जाता है कि ये वारिस है ही नहीं । भले आजकल गवर्मेन्ट ने कई कायदे निकाले हैं, परन्तु तो भी माताएँ इन बातों से नहीं जानती है कि हम किस-किस से लड़े, ये लड़े, फलाने ।..... वो तो झट लड़ पड़ते हैं । भाई- भाई आपस में कम-जास्ती मिले तो एक- दो को मार भी डालें । तो बाप कहते हैं- देखो, मैं हूँ ही गरीब निवाज । एक तो तुम जानते हो कि ये भारत बिल्कुल ही गरीब है, सभी खण्डों से गरीब, फिर इस गरीब भारत में कोई कितने साहूकार हैं, कोई कितने गरीब हैं । उसमें भी माताऐ सबसे गरीब । माताओं से भी कन्याएं सबसे गरीब । उनको तो कुछ पहनना नहीं है । वो पहनें तब जब ससुर घर जाएं । पियर घर में तो उनको करना ही नहीं होता है । भले कोई बहुत साहूकार है, पहनने के लिए कुछ देते हैं, परन्तु लो तो ऐसा है ना कि इनको जा करके अपने ससुर घर जबकि विकार का सौदा होवे तब इनको देने । आजकल देखते हो कि अगर विकार के सौदे में विकार न देवे तो फिर वो सब छीनकर रवाना कर देते हैं । तुम आई हो, तुमको जेवर मैंने दिया ही इसलिए है, क्योंकि तुम विकार देती हो । अब विकार नहीं देती हो तो जेवर-वेवर सब यहीं रखो । जब्त कर देते हैं । समझा । तो जैसे कोई- कोई कन्याओं का बिकना होता है । पैसा भी देना और कन्या भी देना यानी फिर जैसे कि हम उनको कसाई के हाथ में बेंच देते हैं । गइया होती है ना, तो कसाई के हाथ में बिकी जाती है, परन्तु वो भी बिकी जाती है तो जो दूध नहीं देती है । दूध वाली नहीं बिकती है ।.. .अभी दूध की तो बात नहीं है । ये तो आजकल बच्चों को समझाया है कि इस समय में कन्याओं को कंस के हाथ में नहीं देते हैं । इसका भी एक नाटक बना हुआ है- कंस बैठ करके पत्थर से पटकाते हैं । वो तो दिखलाया है कि वो बैठकर पत्थर से पटकाते हैं । फिर बच्चे को भी पत्थर से पटकाते हैं । ये तो है ना बरोबर । बाप है, बच्चे को भी शादी करा दी, जैसे उनको पत्थर से पटका, बच्ची की भी शादी करा दी, जैसे पटका । ये एक नाटक बैठ के बनाया है परन्तु बाप तो बैठ करके अच्छी तरह से समझाते हैं- यह अभी जानते हो कि बरोबर विकार के लिए जाते हैं, क्योंकि ये है ही विषियस वर्ल्ड । ये विकारी वर्ल्ड है । इनको ये भूल गया है कि निर्विकारी दुनिया, जिसको वाइसलेस वर्ल्ड कहा जाता है, वो भी यह भारत था । जिनके चित्र हैं । इनको कभी कोई विषियस नहीं कहेंगे । सम्पूर्ण निर्विकारी । जब कोई बैठते हैं सम्पूर्ण निर्विकारी... वो जानते हैं कि मैं विकारी हूँ । ये फिर विकारी किसके आगे बैठेंगे? ऐसे हाथ जोड़कर बैठेंगे? नहीं । तो देखो, भारत में ही हैं ना बरोबर, परन्तु फिर यह किसको मालूम नहीं है कि यही खुद जो निर्विकारी हैं वही खुद फिर विकार में आते रहते हैं । समझा । मनुष्य, भक्त लोग ये समझते हैं ये तो हाजरा हजूर है । ये भगवान है, भगवती है । भगवान कोई मरता थोडे ही है । भगवान कोई पुनर्जन्म थोड़े ही लेते हैं, परन्तु तुम बच्चों को अभी ज्ञान की रोशनी मिली कि ये हैं भारत के सबसे ऊँचे, जिनको स्वर्ग के मालिक कहा जाता है । ऐसे मत समझो कि राधे, राम और सीता को कोई स्वर्ग का मालिक कहेंगे । नहीं । ये भी तुमको अब ज्ञान की रोशनी मिलती है कि बरोबर स्वर्ग का नाम है ही श्री लक्ष्मी और नारायण, विष्णु पीछे, क्योंकि वो फिर तो स्वर्ग से दो कला गिरते है । तो उनको थोडे ही स्वर्ग के मालिक कहेंगे । सतयुग के मालिक थोड़े ही कहेंगे । फिर वो गिरते हैं । कौन गिरते हैं? वही सूर्यवंशी फिर चंद्रवंशी में आते हैं, क्योंकि वर्णों में जरूर आना होता है । देखो, समझानी डिटेल में बहुत अच्छी समझाते हैं । कर्मो की गति भी देखो कि बाप आ करके बहुत अच्छे कर्म करने की श्रीमत देते हैं, श्रेष्ठ मत देते हैं । न चलने के कारण देखो फर्क कितना पड़ जाता है! स्टूडेण्ट मेरे स्टूडेक्ट्रस गॉड फादर के, बच्चे मेरे ही बच्चे । हाँ, सद्‌गति दाता सद्‌गुरू भी सबका एक ही है, परन्तु सद्‌गति में फर्क देखो दर्जे का कितना पड़ता है, क्योंकि बहुत ढेर के ढेर स्टूडेंट्स हैं ना ।....... .वो तो झट देखने से ही मालूम पड़ जाता है । इतने तो कोई, यहाँ कोई कहाँ, कोई कहाँ-कहाँ रहते हैं, परन्तु सबको यही समझाया जाता है कि कहीं भी रहो, जबकि सद्‌गति होती है तब दुर्गति होने का कोई भी कर्तव्य नहीं करने का है । दुर्गति कौन-सी होती है? एक तो पहले में पहला नंबर देह-अभिमान छोड़ना है, क्योंकि वो है नंबर वन । उसके बाद, देह-अभिमान में आते ही, फिर ये जो काम-क्रोध.... ये सभी सताते हैं । अभी तुम बच्चों को समझाते भी बहुत अच्छी तरह से हैं कि बच्चे, अभी तुम आत्माएँ हो ना! यह जानते हो ना कि तुम्हारा शरीर बहुत पुराना होता है । बच्चों को समझाते हैं, दूसरों को समझाएँगे ही नहीं, क्योंकि बच्चे का ही सैपलिग लगेगा, आएगा और समझेगा । दूसरा सेप्लिंग लगना नहीं, आएँगे नहीं, क्योंकि ढेर हैं, कितने करोड है, बात ही मत पूछो । तो जो यहाँ... सेप्लिंग लगने वाले हैं.. . । आजकल सेप्लिंग बहुत लगाते हैं । यह जो बड़ का झाड़ है ना- बनियन ट्री, देखो उनका भी अखबार में लगाते हैं, बनियन ट्री का सेप्लिंग लगा । अरे! यहाँ बाप क्या लगाते हैं और वो क्या लगाते है! बनियन ट्री का उनको पता नहीं है, वो सिर्फ समझते है कि ये बहुत बड़े बड़े झाड़ हैं । नहीं तो इनका दृष्टान्त दिया जाता है कि सबसे बडा-बड़ा झाड़ उनकी यही हालत होती है कि फाउण्डेशन खतम हो जाता है तो भी बड़ा सब्ज रहता है । वो कभी भी सूखता नहीं है । उनको पानी मिलता ही रहता है । उनका सेप्लिंग लगाते रहते हैं, क्योंकि वो तो आकर बरोबर पुराने हुए हैं तो ये नए सेप्लिंग लगाते हैं । अभी ये भी बाप बैठ करके नया सैपलिग. । तो देखो ये द्दयुमन का सेप्लिंग कैसा लगता है, कैसे कहाँ से आते हैं! वो तो झाड़ का झाड़ है, वो तो बहुत सहज है एकदम । उसका तो बीज है । यहाँ देखो, ये सब धर्मो में से..... एक-एक एक एक हो करके निकलते आते हैं और उनको बैठ करके ये अच्छा कर्म सिखलाते हैं कि ऐसे ये कर्म... । उसमें भी सबसे अच्छा कर्म कौन-सा? एक तो बाप को याद करो, देही-अभिमानी बनो, दूसरा- कभी भी विकार में नहीं जाना है । देख-जाँच करते रहो- मैंने कोई इनको क्रोध तो नहीं किया, मेरा कोई इस चीज में लोभ तो नहीं जाकर पड़ा हुआ है, जो मुझे सताता है । ये सब अपनी जाँच करनी होती है, क्योंकि लोभ किसमें रखें? सभी ईश्वर का है, हम क्यों उसमें लोभ रखें! हमें तो बाबा जो कहते है सो हम करते हैं । अभी रोज-रोज तो नहीं कहते हैं ना! सिर्फ बोलते हैं- अच्छा.. पोतामेल दे दो । देखो कोई बेकायदे काम तो नहीं करते हो । अच्छा, कभी पोतामेल देखते हैं । ये देखते हैं कि ये तो बहुत गरीब है, ये बेचारा दे भी नहीं सकता है । तो भी कुछ न कुछ कर-करके यह 15-20 हजार रुपये दे देते हैं और उनको तंगी बहुत रहती है । देखो बच्चे । बच्चे तो हो ना! ऐसे हो ना! अच्छा, बाबा डायरेक्शन देते हैं कि 15 नहीं दो, 5 दो, 10 बैंक में जमा करो, तो वो तुमको.. .काम में आएँगे । तो देखो, श्रीमत दी ना! नहीं तो फिर उनको तंगी हो जाती है । बिचारे उनको बहुत शौक होता है कि हम सब देवें, ये भी देवें, ये भी देवें । कोई को लव बहुत जोर से होता है- पेट को पट्‌टी बाँध करके भी मैं अपना वहाँ के लिए जमा करूँ । वो जानते हैं अच्छी तरह से कि शिवबाबा अभी उनकी बात हुई ना । शिवबाबा फिर हमको... शिवबाबा क्या करते हैं जो शिवबाबा को देते है । शिवबाबा इन द्वारा तुम्हारे रहने आदि का प्रबंध कराते है । और तो कुछ भी नहीं है, क्योंकि यह जो बाबा का एक अकेला बच्चा है ना, उनके लिए बोलते हैं कि यह भी क्यों इकट्‌ठा करेगा, जबकि इसने सब कुछ जो इनके पास था.. । यह अपना फिर भविष्य का वर्सा लेवे बच्चे भी लेवें, क्योंकि दोनों प्रवृत्तिमार्ग है ।.. अभी तुम जानते हो कि हमारा देवी-देवताओं का गृहस्थ धर्म पवित्र था । अभी जो हमारा गृहस्थ धर्म है, इसके पहले जो था, हम पतित बन गए थे, अभी तो आकर सुधरे हो । अब फिर बाबा आकर उसी पावन गृहस्थ धर्म को फिर पावन बनाते हैं, क्योंकि... 84 जन्म जो चक्कर लगाएँगे, चक्कर लगाकर पूरा हुआ फिर उनको एवजा जरूर मिलना है ड्रामा अनुसार । तो बाबा आकर फिर समझाते हैं कि ये भी तो जैसे ट्रस्टी हो गया ना । इसलिए तुम माताओं को ही ट्रस्टी बनाय दिया कि अच्छा भई, तुम ही संभालो । मैं ट्रस्टी हो करके और ये सर्विस में लगाता हूँ । तो ममत्व मिट गया, क्योंकि बाप ने साक्षात्कार कराय दिया कि तुम तो विश्व के मालिक बनने वाले हो । लड़ाई भी दिखला दी । बाप कहते हैं अभी तुम भी तो बच्चे हो ना । अभी तुम अच्छी तरह से जानते हो कि बरोबर लड़ाई का तूफान बिल्कुल ही नजदीक आता जाता रहता है । यह समझते हो कि नाम ही यह मूसल है.... । क्या कहते है अंग्रेजी में? (किसी ने कहा- मिसाइल्स) मिसाइल्स और मूसल इनमें फर्क क्या रहा! तो बरोबर तुम जानते हो कि ये निकले । अब तुम जानते हो और बहुत आ करके जानेंगे । बहुत ये जानते हैं कि विनाश है, पर ये क्या है, कौन है इसके पिछाडी में, अब यह बिचारों की बुद्धि में नहीं बैठता है । यह भी समझते हैं कि महाभारत है । जरूर कोई प्रेरक है । कौन है, वो उनको पता नहीं है । नाम रख दिया कृष्ण का । तो बिचारे समझ भी.. । अभी कृष्ण. .जबकि आवे और यहाँ भगवान बैठा हुआ है । अब यह भी समझते हैं कि विनाश है, भगवान जरूर होगा । अरे पर होगा किस रूप में? नाम सुना है कृष्ण का । अभी कृष्ण कहाँ से आवे? यहाँ जब तक कोई बैठ करके कृष्ण को कपडा पहना करके, मोर मुकुट दे करके कोई बनावे सो तो बन नहीं सकते हैं । वो तो आर्टीफिशल हो जाता है । ऐसे बहुत ही कृष्ण हैं, कृष्ण थोडे नहीं हैं । ढेर के ढेर कृष्ण हैं, जो अपना रूप धारण कर-करके ठगते हैं ।.. .अच्छा, वो कृष्ण का भी तो अभ्यास होता है ना । वो क्या करते हैं, कपड़ा पहन करके, बडा अच्छी तरह से अपन को निश्चय करते है । तो फिर जो कृष्ण में भाव वाले होते हैं ना, बस कृष्ण को देखेंगे, तो जड़ में भी उनको झट साक्षात्कार करा देते हैं । तो जड़ में भी भाव.. । वो चैतन्य जिसने स्वांग बनाया, वो भी तो स्वांग है ना । वो पत्थर के स्वांग वो कृष्ण का स्वांग । तो उनमें भी जिसका थोडा भाव बैठ जाता है तो उनको साक्षात्कार होता है । जाकर एकदम चटकती है कि ये कृष्ण है । हम अभी कृष्ण की बनी हूँ । ऐसे बहुत ढेर हैं जो कृष्ण के पिछाड़ी बहुत हैरान होती हैं, क्योंकि कृष्ण है मोस्ट लवली चाइल्ड । बाप कहेंगे ना, कृष्ण है स्वर्ग का मोस्ट लवली चाइल्ड । उसमें कशिश बहुत है, क्योंकि उसने बैठकर बाप से इतना वर्सा लिया है । ये तो कोई नहीं जानते हैं कि कृष्ण.... उसको भेज दिया द्वापर में । कुछ भी पता नहीं पड़ता है । डबे में ठीकरी एकदम । तो यहाँ बाप बैठकर समझाते है । एक तो कर्म के ऊपर समझाते हैं । बाबा से कोई अभी भी पूंछे तब भी कह सकते हैं कि हमारे पास फलाना है, पर नाम नहीं लेते हैं जो सुनने से वो और ही फंक. । ये कभी भी कुछ भी चढ़ नहीं सकते । कुछ समझते ही नहीं है । कर्म ही ऐसा करते रहते हैं जिससे कि कर्म, विकर्म ही होता जाता है । देह-अभिमान होता है ना । देही-अभिमानी रहे तो और क्या चाहिए! परन्तु देह-अभिमान रह.. भले शिवबाबा- शिवबाबा शिवबाबा शिवबाबा.. । अभी शिवबाबा- शिवबाबा तो सभी पुकारते हैं । शिवबाबा के तो बहुत भगत है । तुम जाओ काशी में, वहाँ साधु लोग बैठे हैं । शिव काशी विश्वनाथ गंगा- ये उनका मंत्र है । बस, अर्थ कुछ भी नहीं है । बस, ''शिवकाशी- शिवकाशी शिवकाशी शिवकाशी' ' सारा दिन वही पुकारते रहते । उनको विश्वनाथ भी कहते हैं । फिर गंगा उनमें से निकली है । शिव के भगीरथ के जटाओं से । वो समझते हैं ये शिवबाबा की.. गंगा है । बस फिर वो शिवबाबा को याद करते हैं ।... विश्वनाथ और गंगा को याद करते है । फिर गंगा में स्नान... । कंठे पर जाकर बैठते हैं, क्योंकि बाबा तो वहाँ बहुत जाया करते थे । ये वहाँ बैठ करके पुकारते हैं । लौकिक बाप भी वहाँ काशी वास किया । बोला, वहाँ काशी वास करेंगे तो शिव के पास... तो हम मुक्त हो जाएँगे । तो वहाँ क्यों न हम शरीर छोडे? चलो, परन्तु वहाँ देखा कि सभी यही उच्चारते.. शिव काशी । अर्थ-वर्थ कुछ भी नहीं । ये तो बाप बैठ करके अर्थ समझाते हैं कि उनका अर्थ क्या है । शिवकाशी, विश्वनाथ भी तो है बरोबर, फिर गंगा । गगा उन भागीरथ से निकली है । तो बस वहीं बैठे, उसमें स्नान करने से पतित-पावन हो जाते हैं । बस । अभी क्या पतित-पावन हो गए होंगे? हाँ, क्यों नहीं? पतित-पावन को तो पुकारते हैं ना जबकि वो आवे । अभी वहीं भक्तिमार्ग में कोई पतित-पावन तो बैठा ही नहीं है । ये तुम जानते हो कि बरोबर पतित-पावन कौन है और कैसे बैठ करके हमको ये जो प्राचीन, जो 5000 वर्ष पहले तुमको समझाया था, वो फिर बैठ करके समझाता हूँ कि भई, याद ऐसे किया जाता है । यह यात्रा है । इसको कहा ही जाता है याद की यात्रा । सब रूहों को वापस जाना है । वो जो जिस्मानी यात्रा है वो तुम्हारे लिए बंद हो गई । बाकी सब करते रहते हैं । वो जिस्मानी यात्रा, यह रूहानी यात्रा । यह तुम जानते हो कि बाबा कहते रहते हैं.. .अविनाशी ड्रामा । एक ही है अविनाशी दुनिया, जो विनाश कभी होती नहीं है, प्रलय कभी होती नहीं है । हाँ, ये जरूर है कि सतयुग से फिर कलहयुग तक मनुष्यों की वृद्धि होती जाती है । तुम्हारी बुद्धि में अभी बिल्कुल अच्छी तरह से है कि बरोबर जब हम दूसरा जन्म लेंगे तो और कोई भी धर्म नहीं होंगे । वहाँ तुमको इस नॉलेज का बिल्कुल पता भी नहीं होगा । यहाँ तुमको सब पता है एकदम । वहाँ तो पता ही नहीं ना । सतयुग में आदि मध्य अंत क्या देखेंगे! सिर्फ.. वहाँ ही देखेंगे, बस । उनको ये नहीं मालूम है.. सतयुग में आयु पूरी होगी फिर त्रेता में जाएँगे । उनको बिल्कुल कुछ भी मालूम नहीं है और जो बाहर में मनुष्य हैं उनको भी मालूम नहीं है । तुम बच्चों को ये सारे चक्कर का मालूम है कि कैसे हम 84 के चक्कर में आते हैं और उस चक्कर के अंदर.. । देखो, चक्कर के अदर सतयुग त्रेता द्वापर कलहयुग बैठ बनाया है और बाकी जो नए हैं जैसे- इस्लामी बौद्धी क्रिश्चियन, उसको बाहर निकालकर चक्कर में ले आए हैं, क्योंकि उनके लिए सतयुग त्रेता द्वापर कलहयुग है नहीं । इसलिए उनको आधाकल्प के बाहर में निकाल दिया । वो हम लिख भी देते है कि इनकी जो आत्माएँ हैं वो यहाँ ऊपर में रहती हैं । ये सृष्टि पर नहीं रहतीं । तो अब ये नॉलेज बच्चों की बुद्धि में बैठी । ड्रामा को जाना, उनको जाना । ये कर्म की गति कि बाप कैसे बैठ करके कर्म सिखलाते है । और कोई कर्म थोड़े ही सिखलाते हैं । कर्म सिखलाने का कोई को अक्ल थोड़े ही है । ये तुमको इस समय में कर्म सिखलाते हैं जो वहाँ तुम्हारा कर्म, विकर्म होता ही नहीं है, क्योंकि कोई को भी मालूम नहीं है कोई रावण का राज्य आधाकल्प और राम का राज्य आधाकल्प । राम के राज्य में रावण की बात नहीं, रावण के राज्य में राम की बात नहीं । राम को सब भूल जाते हैं । वहाँ फिर रावण को भूल जाते हैं.. । तो याद है ही नहीं तो याद कहाँ से होगा! तो यहाँ भी ऐसे ही । अभी तुम समझ गए बरोबर कि ये हाफ एण्ड हाफ है । कहते भी हैं राम राज्य और रावण राज्य । कहते हैं तोते की मुआफिक, जैसे तोते को सिखलाया जाता है ना- राम कहो- राम कहो ।.......... वो बोल देंगे । समझते कुछ भी नहीं । हूबहू ऐसे ये हयूमन पैरेटस है । बहुत पढ़ते है । बाप समझाते हैं ना, तुम देखते हो ना कि कितना पढ़ते है! कितना वेद जप तप यज्ञ गायत्री फलाना कितना अथाह, अनेकानेक शास्त्र हैं यहाँ । पढ़ते आए हुए है बरोबर, परन्तु है ही उतरती कला तो पीछे क्या! पढ़ने से क्या फायदा! इसका नाम ही रखा हुआ है भक्तिमार्ग माना ही... दुर्गति माना ही उतरती कला । अभी विवेक भी कहता है.. .देखो, ये चढ़ती कला, पीछे 50 बरस के बाद ये पुरानी हो जाएगी । तो इनकी कला यानी इनमें जो छूटी है, अभी जो गुण है अच्छी है, फर्स्टक्लास है, वो पीछे क्या कहेंगे इनको? पुरानी है, गिरते रहते हैं ।. ऐसे है ना! ये तुम जानते हो कि ये पुरानी दुनिया है । दुनिया बदलनी है जरूर । अभी पुरानी दुनिया में भी बैठे हो और नई दुनिया के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो । अभी वो तो जरूर बाप बिगर कोई दूसरा कराएगा ही नहीं । बाप ही बैठकर समझाते हैं- बच्चे देखो, अब ये नई दुनिया तो जरूर आनी है ना । ये फिर देखो... इशारा परन्तु मनुष्य समझते ही नहीं है... । कह देते हैं कि वही महाभारत की 5000 वर्ष पहले.. .पर क्या हुआ था, महाभारत के वक्त में? वो तो बैठकर... पल्टन, पाण्डव, कौरव और फलाना- इतना सब बताते- बताते, जुआ का खेल, लड़ाई वगैरह, पिछाड़ी में कह देते हैं पंच पाण्डव जा करके बर्फ में हिमालय में गले, फिर रहा ही कुछ नहीं । ये देखो, क्या- क्या है शास्त्रों में! कुछ भी नहीं है, बिल्कुल ही नहीं है । अभी जब कह देते हैं कि शास्त्र पढ़ते तो आए हो ना, परम्परा से रावण को जलाते आए हो, फलाना करते आए हो, परन्तु ये कलहयुग क्यों हो जाता है? दिन-प्रतिदिन ये पतित तो होना ही है । क्यों होता जाता है? उन बिचारों को कुछ भी मालूम नहीं । कहते हो कि पतित-पावन आओ, फिर भी अपन को पतित नहीं समझते । कर्म करते हुए गंगा में स्नान करते हैं कि हम पतित हैं, फिर भी उनसे पूंछो तो महात्मा श्री-श्री 108, उन्होंने बैठ करके सबको श्री-श्री का टाइटल भी दे दिया है । यह श्री का टाइटल कोई ने तो दिया होगा ना । अभी सब कहते नहीं हैं । कभी कहेंगे श्री गुलजारी... कभी कहेंगे मिस्टर गुलजारी... । श्री भी घड़ी घड़ी भूल जाते हैं । कभी मिस्टर कहते रहेंगे, कभी श्री कहते रहेंगे । तुम अगर अखबार में पढ़ते रहो तो मालूम पड़ेगा एक समय में श्री भी कहेंगे, कभी मिस्टर भी कहेंगे, क्योंकि अभी यह समय ही है मिस्टर से श्री बनने का । यह भारत श्री बनता है, श्रेष्ठ बनता है । समय ही ऐसा है ।.. भले उन्होंने भी श्री लिया है, क्योंकि समय उनको... .परन्तु अर्थ कुछ भी नहीं समझते कि श्री का अर्थ क्या । श्री का अर्थ ही श्रेष्ठ । नहीं तो क्यों इन्होंने श्री-श्री 108 रखा है? श्री का अर्थ क्या है? श्रेष्ठ- श्रेष्ठ । फिर अपना वही टाइटिल, जो श्रेष्ठ का है.. । उनको श्री- श्री तो नहीं कहना है, परन्तु श्रेष्ठ है ।.... ये कहाँ श्रेष्ठ है! अभी ये भी श्रेष्ठ, वो भी श्रेष्ठ, फिर चेला-चाटी का फर्क ही क्यों?.. .जैसे बाबा ने कहा ना कि तुम्हारा पद क्या होता है । बरोबर बस यज्ञ में भी रहते रहते है, कोई ऐसा कर्म नहीं करते हैं जिससे उनका कुछ अच्छा कर्म बने । नतीजा क्या होता है अच्छा कर्म न बनने से जो भी विकर्म हैं उनकी सजाएँ.. । सजाएँ भी खाएँगे बहुत अथाह-अनेक और पद भी बिल्कुल ही कम एकदम । समझाया जाता है, परन्तु कहते हैं- क्या फिर ऐसा..ऐसा करो तो सहज हो जाता है । न है तकदीर में. । हम समझती हैं कि हाँ, हम इन जैसा काम नहीं कर सकती हैं । कुछ भी नहीं कर सकती हैं तो हमारी तकदीर । फिर भी तो ऐसे ही कह देना पड़े ना.. .क्योंकि समझते हैं बरोबर कि ये सर्विस करते हैं, बहुत अच्छी- अच्छी भी आती हैं, मैं इन जैसी सर्विस नहीं कर... । तो बाबा कहेंगे फिर तकदीर । पुरुषार्थ नहीं करेगी तो फिर प्रालब्ध कैसे बनेगी यानी तकदीर कैसे बनेगी! तदबीर तो बाबा सिखलाते हैं, वो तो तुम करो, एक - दो को देख करके कुछ करो । अच्छा, उसमें भी बहुत बहुत कहते है कि भला ऐसे तो कहो कि हम भगवान के बच्चे हैं । सर्वव्यापी का तो डालो खडडे में । वो तो खडडे में डाल ही दिया है इन सन्यासियों-उदासियों ने । तो बाप आ करके खडडे से निकालते हैं ना । कहते हैं ना ये साधुओं का भी छोड़ो इनका भी हमको उद्धार करना है । तो इसलिए यह उनको कहते भी हैं । जब पूरा समझे तभी तो उन गुरुओं का संग छोड़ें ना । नहीं तो गुरु का सग किया ही जाता है.., अच्छे बनने के लिए अच्छे मनुष्य का संग किया जाता है । गुरू का सग किया जाता है सद्‌गति के लिए पिछाडी में, अभी पीछे में 60 बरस में, परन्तु आजकल गुरुओं ने कितना फैशन निकाल दिया । अभी बच्चा छोटा ही होता है तो जाकर गुरू कराते हैं । फिर गुरू को तो जरूर देते रहे । बर्थ भी मनावे तो पहले गुरू । तो देखो, कितनी उनकी कमाई हो गई है! करोडपति बन गए हैं । अभी हम जब त्याग करते हैं तो फिर हम यहाँ मृत्युलोक में कुछ इकट्‌ठा करते हैं क्या? वो लोग त्याग करके... । कहते हैं कि हम त्यागी हैं । हमने सब कुछ हर्थ एण्ड होम, उसमें धन-दौलत सब आ जाती है ना । फिर ये इतने करोडपति क्यों आ करके बने हैं? छोड़ते तो तुम भी हो ना । फिर तुम क्या छोड़ते हो? तुम क्या करते हो? तुम तो बाप से एक्सचेंज करते हो । जो जितना- जितना एक्सचेंज करेंगे, जितना- जितना मेहनत करेंगे उतना फिर वहाँ तुमको वर्सा मिलने का है । उनको तो कुछ भी नहीं मिलने का है । हाँ, यह उनकी बड़ाई है कि बहुत फॉलोअर्स बने हैं, बहुत बैठ करके धन इकट्‌ठा किया है । बडे-बडे मंदिर, देखो राधास्वामी का मंदिर...! नाम तो राधास्वामी, अभी उनका अर्थ थोडे ही कुछ समझते हैं । नाम तो बहुत भारी है । राधास्वामी सो हुआ राधेकृष्ण । अब इसका अर्थ क्या? भई ये हैं राधेस्वामी पंथ के । अच्छा, राधास्वामी पंथ के क्या, उसमें क्या मिलने का है? कोई एम-ऑब्जेक्ट है? क्या कोई राधास्वामी बनते हैं? नहीं । यहाँ से तुम पूछेंगे- तुम यहाँ क्या बनने आए हो? मठ का नाम नहीं है ।.यहाँ बनने की बात, वहाँ सिर्फ नाम की बात । वो कोई ज्ञान है नहीं । बनाने वाला कौन? निराकार । ये तुम जानते हो ना, राधा और कृष्ण, कृष्ण होता है, फिर राधा का स्वामी बनता है । स्वामी है नहीं । राधे-कृष्ण को ऐसे नहीं कहेंगे यह कृष्ण, राधे का स्वामी है । राधे जब शादी करे, लक्ष्मी बने और वो नारायण बने तभी कहेंगे स्वामी ।.. कृष्ण राधे का स्वामी थोड़े ही है । तो देखो, कितनी- कितनी छोटी- छोटी बात, जिनमें कितनी समझ चाहिए!