06-09-1965     मधुबन आबू     रात्रि मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो गुड इवनिंग ये छह सितम्बर का रात्रि क्लास है

क्योंकि उन्हों के हाथ में पावर है किसकी लड़ाई बंद करने की । भले कितनी भी ताकत वाले हों । आपस में सुना है ना- रशिया है, अमेरिका है वा ये जो आपस में हैं, ये तो आपस में लडेंगे भी नहीं । इनमें रशिया का इनके साथ गिट गिट है, क्योंकि फ्रांस, इग्लैण्ड और अमेरिका ये फिर भी आपस में मिल जाएँगे । रशिया अलग है । अभी तो उनको भावी कहते जा रहे हैं । अभी देरी है । बच्चे भी अभी इतना उठे नहीं हैं, वृद्धि को नहीं पाए हैं । अब तो बहुत चाहिए । अभी छोटा झाड़ है । हर एक अपनी अवस्थाएँ भी देखें तो समझ सकते हैं कि हम उस अवस्था को, कर्मातीत सतोप्रधान अवस्था में अभी नहीं आए हैं, कोई भी नहीं, क्योंकि जब कोई का भी ऐसे हो जाएगा तो पहले तो इनका ही होगा, क्योंकि बच्चे जानते हैं कि माला में पहले ही पिरोना है । तो ये खुद ही कहते हैं अभी तो बहुत टाइम चाहिए । साथ में होते हुए भी भूल जाते हैं । इससे समझते हैं कि अभी शायद कुछ देरी है । अपनी अवस्था अनुसार ही समझते हैं । बाप है पुरुषार्थ कराने वाला, श्रीमत देने वाला । हर एक को यही फुरना रहता है । ये भी फुरना हुआ ना- ऊँच पद प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ करने का फुरना । जो पुरुषार्थी होते हैं उनको फुरना रहता है कि हम बाप को जल्दी जल्दी याद करें और बहुतों की सर्विस करें, रूहानी सेवा करें, क्योंकि इसको कहा ही जाता है रूहानी सेवा । रूहानी सेवा से जिस्मानी सेवा हो जाती है । जिस्मानी सेवा से रूहानी सेवा नहीं होती है । तो ये रूहानी सेवा की श्रीमत बाप ही देते हैं । वो सब जिस्मानी सेवा, क्योंकि रूहानी आत्मा पतित बनी है, उनको पावन करना है । तो ये रूहानी सेवा तो पतित-पावन ही सिखलावे । और कोई रूहानी सेवा सिखलाय भी न सके । जबकि अपनी रूह को ही कोई नहीं जानते हैं । जैसे तुम्हारी बुद्धि में रहता है कि हमारी आत्मा में 84 जन्म का ये पार्ट अविनाशी नूँधा हुआ है । कोई भी दुनिया में नहीं है जिसको ये बुद्धि में प्रैक्टिकल में है । तुम्हारे में भी कभी-कभी ये सब बातों को बहुत भूलते हैं । देखा जाता है कि कोई मनुष्य इस ज्ञान की एक भी बात को नहीं जान सकते हैं । इसलिए गाया जाता है कि घोर अंधियारा । तो ये भी जरूर है कि घोर अंधियारे से फिर घोर सोझरा । फिर जब सोझरा पूरा होने लगता है तो घोर अंधियारा नहीं होता है, फिर आस्ते आस्ते अंधियारा शुरू होता है । इस समय में आ करके घोर अंधियारा होता है । चक्कर भी ऐसे ही समझा सकते हैं कि बरोबर कलहयुग में शुरूआत में इतना अंधियारा नहीं हो सकता है जितना पिछाड़ी में होता है । संगम का युग कितना छोटा है जिसमें ये चेंज होती है! और युग तो बडे-बड़े हैं । हर एक 1250 वर्ष का और ये देखो, संगमयुग कितना छोटा है, जिस संगमयुग में स्थापना होती है और ये समझना भी बहुत सहज है कि संगमयुग में ही पतित और पावन । इसमें तो बहुत क्लीयर लिखा हुआ है- संगमयुग में पतित सो पावन । संगमयुग में तो सभी पतित हैं ही । पावन युग में हैं ही लक्ष्मी-नारायण । इससे सिद्ध होता है कि पतित-पावन आ करके फिर ये जो पतित हैं उनको ज्ञान दे करके फिर से लक्ष्मी और नारायण या सूर्यवंशी राजधानी के मालिक बनाते हैं । बाबा समझते हैं जिनका मुख बहुत धीरे-धीरे खुलता है उनको इन चित्र के ऊपर अच्छी तरह से समझाने से फिर बुद्धि में बैठेगा और अच्छा ही बैठेगा, क्योंकि स्थापना भी, शिवबाबा कैसे स्थापन करे? किस द्वारा करे? ब्रह्मा जरूर चाहिए । तो ब्रह्मा उनको ही बनाते हैं जो पिछाड़ी में जा करके, जिसकी 84. .जन्म के अंत की भी वानप्रस्थ अवस्था होती है । तब आ करके बताते हैं कि देखो अब पूरा वानप्रस्थ अवस्था । अभी बाकी जो समय है, वो पुरुषार्थ का । तो इसको कहा जाता है अंतिम वानप्रस्थ अवस्था । सतयुग में कोई वानप्रस्थ अवस्था लेता नहीं है, यहाँ लेते है । तो लेते- लेते जब बाप का टर्न आता है यह सर्विस करके और फिर वानप्रस्थ में जाना तब अंत होता है । नहीं तो वानप्रस्थ तो मनुष्य बहुत् लेते आते हैं ना, फिर सतसंग में जाते है । सभी नहीं जाते है, पर भारत में बहुत । यहाँ भी है एक । फिर वहाँ वानप्रस्थ, नहीं तो बाहर निकल जाते हैं हरिद्वार तरफ.... । ऐसे निकल जाते हैं । तो ये है जैसे कि तुम्हारी अंतिम वानप्रस्थ अवस्था में घरबार छोड़ करके सतसंग में जाना । बस, फिर ये भी बंद होते हैं । पुरुषार्थ नहीं करते हैं, क्योंकि वहाँ सुख है ना । यहाँ पुरुषार्थ करते हैं कि वाणी से परे जाने के लिए हम गुरू करें । वहाँ ये दरकार नहीं रहती है । तो ये भी अंतिम वानप्रस्थ अवस्था और फिर सबकी इस समय में वानप्रस्थ अवस्था । सबको वाणी से परे मुक्तिधाम में जाना ही है जरूर । मच्छरों के माफिक जाते हैं ना । बुद्धि में ये भी समझ में आ जाता है- सतयुग में क्या है, त्रेता में क्या है, द्वापर में और कलहयुग में क्या है और संगम में कैसे ये सभी वापस जाने हैं जरूर । देखो, बच्चों की बुद्धि में ये भी तो रोशनी है ना । और कोई की बुद्धि में ये रोशनी नहीं होती है कि यहाँ जीवें इतना बहुत अच्छा है । अज्ञान काल में अगर कोई की टांग टूट जावे या बेकामा बन जावे तो उन बिचारे को कुछ न कुछ देकर छुड़ा देना चाहिए । तुम भी वैल्युएबल बनते हो । वैल्युएबल समझते हो? अमूल्य यानी जिसका मूल्य कोई कथन न कर सके । अमूल्य का अर्थ ऐसे भी नहीं कि जिसका मूल्य कोई नहीं हो और अमूल्य का अर्थ ये भी है कि इनका मूल्य कोई कथन न कर सके । इस समय में सिर्फ तुम्हारा मूल्य कोई कथन कर न सके । तुम इतने वैल्युएबल हो, अगर अपन को ऐसे समझो तो । मोस्ट वैल्युएबल हो, क्योंकि सर्विस करते हो । तो जो सर्विस करते हैं वो वैल्युएबल हुआ ना । रूहानी सर्विस करते हो, इसलिए मोस्ट वैल्युएबल हो । तो तुमको कितनी आमदनी भी मिलती है, मेहनत करते हो तो । तुम्हारी हयाती जितनी बड़ी हो इतनी अच्छी । देखो, बॉम्बे में सुना ना, अंधे भी आते है, रग, भी आते है । वो भी तो फिर उठाय लेते है । बाकी जो मनुष्य मात्र है उनकी कोई भी वैल्यू अभी नहीं है, देखो । सब मच्छरों के माफिक खतम हो जाएंगे । तुम सर्विस भी करते हो और मोस्ट वैल्युएबल पद भी पाते हो, इसलिए तुमको कहा है ना- हीरे जैसा जन्म, जो कौड़ी जैसा था । तो देखो, कितने वैल्युएबल हो गए । कौड़ी कहाँ! हीरा कहाँ! ये तुम्हारा मोस्ट वैल्युएबल जन्म है, जो समझने वाले हैं । बाकी का नहीं है । तुम जो मनुष्यों को समझाते हो, अपने बाप का परिचय देते हो और बाप से वर्सा लेने के लिए उनको मार्ग बताते हो । बस, इन जैसा अच्छी सर्विस और कोई भी नहीं है । थोड़ी बात है ना । बाप की पहचान देते हो और ये समझाते हो कि बाप से वर्सा मिला था, अभी रावण ने छीन लिया है, फिर अभी बाप से वर्सा लिया जाता है । कैसे? वो तो बात मशहूर है मामेकम यानी मुझे याद करो और वर्से को याद करो । मोस्ट कॉमन बात है । कहीं बहुत मेहनत नहीं है । अच्छा, बाजा बजाओ । दुःख से तो छूटेंगे ना । बाप आते हैं, सबको दुःख से तो छुड़ाते हैं ना । शांतिधाम में ले जाते हैं, सुखधाम में ले जाते हैं । सभी दुःख से तो छूट जाते हैं ना । ये भी बरोबर है कि सतयुग में सब सुखी हैं, बाकी आत्माएँ मुक्तिधाम में हैं । अभी ये भी तो याद कर सकते हो ना । बिल्कुल कॉमन पाइंट है कि जब सतयुग होता है तब देवताओं का राज्य है । और सभी आत्माएँ कहाँ हैं? मुक्तिधाम में हैं यानी शांतिधाम में हैं । जब देवताएँ सुखधाम में हैं तो वो शांतिधाम में हैं । बस, सब कोई माँगते भी यही थे ना- शांति-सुख । तो ये भी किसकी बुद्धि में तुम बिठाओ कि अब तुम जानते नहीं हो कि क्राइस्ट के 3000 वर्ष पहले भारत स्वर्ग था और भारत में यहाँ थोड़े सूर्यवंशी थे । तो देखो, सुखधाम में थे और बाकी शांतिधाम में थे । अभी देखो बहुत ही दुःखधाम में सब हैं । अभी वैसे होता है । बाप आए हुए हैं और आ करके सुखधाम की स्थापना करते हैं । बाकी शांतिधाम में हैं । अभी ये किसके दिल में नहीं टिक सके तो उनकी क्या बुद्धि कहें! बिल्कुल सहज पाइंट । ये तो लिख करके पूरी कंठ कर देना चाहिए जो सिम्पल रीति से कोई को भी समझाया जाए । सिर्फ थोड़ा विचार करो जो वो भारत था 5000 वर्ष पहले... । ये अक्षर याद कर दो । अखबार में बहुत लिखते हैं कि क्राइस्ट से 3000 वर्ष पहले... । होता भी ऐसे ही है । क्राइस्ट की भी 2000 आ करके पूरी होती है । तो ये ख्याल सिर्फ उनको समझाओ, दूसरी कोई बात न समझाओ कि भारत जब था, देवी-देवताएं राज्य करते थे, कोई नहीं थे । तो भला ये इतनी आत्माएँ कहाँ थीं जो इस समय में हैं? अरे भई, वो मुक्तिधाम में, क्योंकि उनको पार्ट फिर रिपीट करना है । तो देखो, बाप आते हैं, उनको मुक्ति देते हैं, उनको जीवनमुक्ति देते हैं । वो भी फिर मुक्ति से जीवनमुक्ति में ही आते हैं अपनी-अपनी ताकत और ड्रामा के प्लैन अनुसार । अब ये कितनी सहज बात है । दीदी समझा! ये बहुत नोट करा दो । इनको पक्की करा दो यानी ये संदली पर बैठ करके बोलने में तो कोई तकलीफ नहीं है कि भारतवासी! जब आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, और कोई भी धर्म नहीं था । जरा विचार करो कि बाकी इतनी आत्माएँ जो 500 करोड़, वो जरूर मुक्तिधाम में होंगी । मुक्तिधाम भी क्यों कहें, शांतिधाम में, क्योंकि शांति-शांति बहुत माँगते हैं । तो बरोबर शांतिधाम में थे । तो बच्चों को बुद्धि में आता है ना । जरूर अभी बहुत हैं । अभी फिर भी हिस्ट्री रिपीट करेंगे । पतित-पावन बाप आए हैं पावन दुनिया स्थापन करने । बाकी सब ही मुक्तिधाम में चले जाएँगे । अभी ये सिम्पल बात भी बुद्धि में नहीं बैठती है, जो संदली पर बैठ करके समझाएँ किसको! यह बात समझाएँ तो भी बहुत समझावे । विस्तार करें, कर सकते हैं, न करें तो भी ठीक कि भई, याद ही करना है अभी शांतिधाम को और सुखधाम को । ये दुःखधाम को भूल जाना है । वो शांतिधाम और सुखधाम का वर्सा मिलता है बाप से । और कोई से मिल नहीं सकता है, क्योंकि सर्व का सद्‌गति दाता एक । अच्छा, बाजा बजाओ । अगर कोई इंगलिश बोलते हैं तो समझ जाते हैं ये अंग्रेजी पढ़े हुए हैं । तो इनको भी दो - चार पाइंट अच्छी समझाते हैं ना, तो समझेंगे कि ये बिल्कुल राइट बात बोलती है । इतना तो सिखाकर भेजो ।. . .बैठती है ना, ठीक बात है ना । कोई को भी भारतवासी... कोई को भी समझाओ । अंग्रेजों को समझाओ । मुसलमानों को समझाओ । जिसको चाहिए उसको समझाओ कि भई देखो, अभी कलहयुग है, अनेक धर्म हैं । देखो, साढ़े पाँच सौ करोड़ मनुष्य हैं । अच्छा, अभी ये तो थोड़ा विचार करो कि जब पहले पहले सतयुग में देवी-देवताओं का आदि सनातन था, कितने मनुष्य होंगे! बाकी आत्माएँ कहाँ थीं? ये सभी वहाँ थीं । बस । फिर ये दूसरे जो धर्म वाले पीछे आते हैं, वो कैसे स्वर्ग में आ सकते हैं? वो स्वर्ग कभी देख नहीं सकते हैं । ये जैनी हैं, कोई स्वर्ग देख सकेंगे क्या? नहीं । ये जो भी छोटे-छोटे हैं, क्रिश्चियन हैं.. .मुख्य, बौद्धी हैं- क्या कभी हो सकता है कि वो लोग उस वैकुण्ठ में आ सकें? जब वही नहीं आ सकेंगे... तो उनके पीछे वाले कैसे आ सकेंगे! ऐसी बातें थोड़ा बुद्धि में बिठावे तो भी खुशी का पारा चढ़ जावे । इतनी रोशनी आ जाती है । अच्छा! (म्युजिक बजा) मीठे-मीठे, सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता, बापदादा का यादप्यार और गुडनाइट ।