सारे ज्ञान का सार - स्मृति - BK. Dr. Sachin Bhai - 30-01-22


ओम शांति।

किसी राजा को यह प्रश्न था कि मेरा जो एकलौता पुत्र है वह उत्तराधिकारी होने के योग्य है या नहीं, यह मैं कैसे निश्चिंत करूं उसने अपने गुरु से पूछा, उन्होंने कहा उसे अपने राज्य से निकाल दो राजा ने पूछा इतनी कठोर बात उससे मैं कहूं क्या? गुरु ने कहा बस उससे कह दो तुम यहां से हमेशा के लिए चले जाओ राजकुमार अब तुम राजकुमार नहीं राजा पूछता है कोई दूसरा मार्ग? गुरु कहता है करना है तो करो या तो छोडो तो राजा अपने बेटे को राज्य से निकाल देते हैं दरबदर भटकता है वो राजकुमार उसके पास कोई भी कला नहीं है उसे कोई आर्ट आती नहीं है और कुछ समय में वो जैसे भिखारी बन जाता है यहां-वहां भटकता है, रहने के लिए घर नहीं है, पहनने के लिए कपड़े नहीं है भिक्षा पात्र लिए हुए वह किसी और राज्य में, किसी सुदूर प्रांत में भटक रहा है एक दुख, एक हर्ट एक फीलिंग वह भी धीरे-धीरे जाती रही और कुछ वर्षों बाद उसे पूर्ण विस्मरण हो गया कि मैं भी कभी राजकुमार था भिखारियों के समूह में वो रहता था और मौसम और वातावरण ऐसा था कि उसे याद ही नहीं आया कि मैं भी कभी राजकुमार था वह स्वयं को भिखारी ही समझता रहा और भीख मांगता रह कई कई वर्ष बीत गए और एक दिन किसी दुकान के सामने वह भिक्षा पात्र लिए हुए भीख मांग रहा था कि अचानक एक स्वर्ण रथ आ जाता है उसमें से एक व्यक्ति उतरता है जो उसके ही राज्य का मंत्री था और वह मंत्री नजदीक आता है वह लड़का खड़ा है... भिखारी.... फटे हुए वस्त्र हैं और वह मंत्री उसके पैरों में अपना सिर रखता है मन्नत करता है और अचानक से उस राजकुमार को याद आ जाता है अब तक सब कुछ भूल गया था भीख मांगते मांगते अभ्यास करते करते अभ्यस्त होते होते स्वरूप स्वभाविक हो गया था अचानक उसने कहा आप अब तक कहां थे? वहां के जो लोग थे वह जो दुकानदार था और इर्द गिर्द जो लोग थे उन सब ने देखा कि इसकी आवाज में अचानक से परिवर्तन आ गया है अब वह भिखारी वाली आवाज नहीं रही वह मंत्री कहता है तुम्हारी परीक्षा पूर्ण हुई राजा मृत्यु शैया पर है किसी भी वक्त जा सकते हैं तुम्हें यहां भेजने का प्रयोजन इसलिए था ताकि तुम जब कभी राजा बनो तो जान सको अस्तित्व की जो सबसे निचली कड़ी है, भिखारी की जहां कुछ भी तुम्हारे पास नहीं होता है वह भिखारी भी एक मनुष्य है तुम यह जान सको और राजा होने के बावजूद भी सबकी समान रूप से पालना कर सको इसलिए तुम्हें भेजा गया था वो राजकुमार कहता है मेरे वस्त्र कहां है? आवाज में चेंज है और कटोरा फेंक देता है राजसी वस्त्र पहनता है, हाथ इस तरह.... और चलने लगता है जैसे कभी भिखारी था ही नहीं रथ पर बैठता है और अपने राज्य में आता है ऐसे पूछता है मंत्री से हर बात को जैसे वही हमेशा का राजा रहा है तो ऐसा कैसे हो गया? कैसे हो गया? स्मृति आ गई? स्मृति क्या आ गई कि तुम भिखारी नही। अमृतश्य पुत्रा अमृत कि तू संतान है you are son of king not beggers. तुम भिखारी नहीं स्मृति आ गई और स्मृति आते ही सब कुछ बदल गया अब तक विस्मृति थी oblivion, forgetfullness की स्टेज जिसमें वह चल रहा था और मौसम ही ऐसा था स्मृति के लिए मौसम की आवश्यकता है स्मृति के लिए वायुमंडल की आवश्यकता है उस वायुमंडल में आते हैं उसकी स्मृति विस्मृति हो गई थी भिखारियों के साथ रहते रहते स्वयं भी भिखारी बन गया था और अचानक स्मृति जाग उठी

 तो मनुष्य जीवन की विशेषता क्या है स्मृति और स्मृति अर्थात स्मृति शब्द का क्या अर्थ है? स्मृति अर्थात क्या, याद अर्थात क्या, मेमोरी अर्थात क्या, याददाश्त अर्थात क्या, सिमरन अर्थात क्या, रिमेंबरिंग अर्थात क्या? अलग-अलग शब्द है जैसे दादी जानकी..... एक है प्रेम, एक है प्रीत, एक है स्नेह, एक है उल्फत, एक है लव, एक है प्यार, कितने एक ही शब्द के अलग-अलग अर्थ को बताते थे एक है याद, एक है याददाश्त एक होती है मेमोरी, याद करना भूल जाता है फिर याद करना वह है याददाश्त स्मृति का एक अर्थ है मेमोरी, बड़ा उथला उथला स्मृति का एक अर्थ है याद किसी को याद करना रिमेंबरेंस स्मृति का एक अर्थ है... शास्त्र जो, योगियों ने, गुरुओं ने, ऋषियों ने शास्त्र लिखें..... मनस्मृति, मनुस्मृति, धर्मशास्त्र स्मृति अर्थात छंद है, वह व्याकरण में स्मृति अर्थात भाषा में अलंकार, स्मृति अर्थात काव्यशास्त्र में वह संसारी भाव अलग-अलग अर्थ है स्मृति के अलग-अलग धर्मों में अलग-अलग अर्थ हैं इंग्लिश में शब्द रिमेंबरयंस ना प्रयोग करके याद के लिए रिमेंबरेंस प्रयोग किया जाता है, पर स्मृति के लिए अवेयरनेस तो यह कहा जा सकता है स्मृति अर्थात याद + अवेयरनेस यह दो चीजें जब एक हो जाएं तो स्मृति याद है रिमेंबरयंस परंतु साथ में अवेयरनेस है यह दोनों मिलकर स्मृति बनती है एक शब्द है सिमरन...बार-बार याद करना एक है स्मृति...याद करना तो मनुष्य जीवन की क्या विशेषता है? स्मृति स्मृति क्या है.... बीज

तो आज कौन किसको देख रहें है समर्थ बाप किस को देख रहा है समर्थ बच्चों को समर्थ कैसे बन गए? यह समर्थि कहां से आई? एक ही स्मृति से आई.... कौन सी वह स्मृति है......तुम यह नहीं, तुम वह हो... तत् त्वमसी, thou are that, तुम शरीर नहीं यह है कलेवर तुम नहीं परंतु तुम वह हो जो दिखाई नहीं देता, जो दिव्य है, जो शाश्वत है, जो ट्रू है, जो सनातन है, जो नित्य है, जो आनंद स्वरूप है, जो सत चित आनंद है, इतनी स्मृति इतनी स्मृति दिलाई और क्या क्या हो गया चार पांच बातें हो गई सबसे पहला तुम्हारा जीवन कैसा हो गया.... समर्थ जीवन अर्थात अर्थात

(1) श्रेष्ठ अर्थात
(2) सफलता संपन्न
अर्थात
(3) अलौकिक अर्थात चौथा जीवन कैसे हो गया तुम्हारा अलौकिक सफलता संपन्न श्रेष्ठ और चौथा चौथा क्या
(4) सुखमय - क्या ऐसा है ?

श्रेष्ठ ठीक है, अलौकिक वह भी ठीक है, सुखमय..... थोड़ा सुखमयें और कभी कभी दुखमय सफलता संपन्न कभी कभी और कभी कभी कम सफलता संपन्न तो स्मृति आते ही क्या हो गया सबसे पहला जीवन समर्थ हो गया स्मृति आते ही क्या हो गया जैसी स्मृति वैसी ही दृष्टि वृत्ति कृति स्थिति सब कुछ चेंज हो गया इसके लिए काम किस पर करना है स्मृति पर काम करना है कर्मों पर काम नहीं करना है, दृष्टि वृत्ति पर काम नहीं करना है काम बीज पर करना है, बीज को परिवर्तन कर दो तो बाकी सब अपने आप चेंज हो जाएगा तीसरा यह स्मृति आते ही तुम क्या बनते हो? मास्टर सर्वशक्तिमान और मास्टर सर्वशक्तिमान अर्थात परिस्थिति विघ्न समस्या मुश्किलें चैलेंज यह सब क्या लगे 1,2,3 ऐसा फार्मूला याद रखना है:-

सबसे पहले खेल जो कुछ हो रहा है वह सब क्या है यह नाटक ही खेल है यह खेल किसका है स्मृति का है विस्मृति का है जीत का है पराजय का है पुण्य का है पाप का है यह सृष्टि चक्र किसका नाटक है? उतरती कला और चढ़ती कला, rise और fall का है खेल चल रहा है, कार्टून शो, मिकी माउस का हो रहा है जो कुछ हो रहा है क्या हो रहा है खेल..... इस सृष्टि को इस नाटक को इस संसार को बार-बार साक्षी भाव से दृष्टा भाव से देखने का अभ्यास रात दिन पूरा हुआ, रात को सोते समय सोते-सोते साक्षी साक्षी साक्षी साक्षी की साधना करते करते सो जाओ ताकि उठोगे सुबह तो भी कौन सा शब्द याद आएगा? साक्षी मैं साक्षी हूं जो कुछ दिन भर हुआ उससे अप्रभावित सुख के संसार में आए हो दुख की क्या लकीर तुम्हें स्पर्श नहीं कर सकती untouched. तो सबसे पहले जो कुछ हो रहा है उसको क्या समझना..... खेल परिस्थिति, समस्या, मुश्किलें, प्रॉब्लम्स, चैलेंजएस जो कुछ हमारे साथ हो रहा है और हम से संबंधित जो लोग हैं उनके साथ जो हो रहा है वह सब क्या है.... खेल स्वप्न... स्वप्न में स्वप्न तो सबसे पहला...खेल
दूसरा- साइट सीन क्या है? सारी साइड सींस है किसी ट्रेन से हम जा रहे हैं और चारों और रेगिस्तान ही रेगिस्तान कुछ भी चेंज नहीं है तो कितना बोर हो जाएंगे इसके लिए क्या चाहिए? एक है फ्लाइट से जाना, एक है ट्रेन से जाना, एक है बाइक से जाना, एक है बैलगाड़ी से जाना और एक है पैदल ट्रैकिंग पे जाते हैं ना कैसे जाते हैं? एंजॉय करते करते, देखते हुए तो क्या समझना है? यह सब सीन सीनरी यह आनी ही है, आनी ही चाहिए कुछ ना कुछ होते ही रहे नहीं तो परीक्षा कैसे होगी हमने जो ज्ञान योग धारणा किया है वो कैसे पता चलेगा कि हम उसमें पास है या फेल इसलिए क्या समझना है? यह सब जो हो रहा है सब कुछ, सब साइड सींस हैं सब अनित्य हैं अभी है कल नहीं है थोड़ी देर रहेगा फिर खत्म हो जाएगा नश्वर है, मरण धर्मा है जो भी परिस्थिति आ रही है सदा काल के लिए नहीं आ रही है परिस्थितियां आ किस लिए रही है जाने के लिए आ किस लिए रही है वापस जाने के लिए और जाते-जाते क्या देके जा रही है? एक पाठ देकर जा रही है, सिखा कर जा रही है, अनुभव देकर जा रही है, मास्टर विघ्नविनाशक की डिग्री देकर जा रही है, अनुभवी इसलिए जो कुछ हो रहा है? एक सेंटेंस.... जो कुछ भी हो रहा है, जीवन में लोग विरोध कर रहे हैं, निंदा कर रहे हैं, ग्लानी कर रहे हैं, अपमान कर रहे हैं, बीमारियां आ रही हैं, स्वजनों की मृत्यु, स्वजनों की बीमारी, स्वयं की बीमारी, जो कुछ हो रहा है सब क्या है... साइड सींस साक्षी फिर से और तीसरा रास्ते के नजारे अर्थात साइड सींस
तीसरा नथिंग न्यू नया कुछ भी नहीं है, no surprise, कुछ भी होने दो नया कुछ भी नहीं है उसमें सब वही है यह घिसा पीटा पुराना बहुत बार हो चुका है बहुत बार देख चुके हैं, पहली बार नहीं हो रहा है यह तो यह तीन चीजें याद रखनी है आज की मुरली से समस्या, परिस्थिति, विघ्नों, माया, even विकार आया एक ही उससे दुखी हो जाना यह सोचना यह क्यों आया और दुखी होते रहना और गिल्ट कॉन्शियस में जाते रहना एक है वह आया और चला गया, जो सीखना था सीख लिया अब साक्षी हैं तो एक दूसरा साइड सींस और तीसरा कुछ भी नया नहीं है स्मृति बार-बार स्वयं को याद दिलाते रहना स्मृति को पुष्ट कैसे करें यह एक चिंतन का विषय है मुरली में..... इस मुरली में इसका उत्तर नहीं है स्मृति से क्या-क्या होता है इसका उत्तर है ज्ञान में कौन सी स्मृति रखनी चाहिए, योग में कौन सी स्मृति रखनी चाहिए, धारणा में कौन सी स्मृति, सेवा में कौन सी स्मृति, अंतिम पेपर क्या होगा, पर स्मृति को परिपक्व कैसे किया जाए, स्मृति स्वरूप कैसे बना जाए- एक चिंतन का विषय है, जिस पर हम चर्चा करेंगे तो डिस्कस कर रहे थे स्मृति बाबा ने जो दिलाई उससे क्या-क्या होता है सबसे पहले समर्थि जीवन बन गया दूसरा दूसरा क्या हो गया जैसे स्मृति वैसी स्थिति दृष्टि वृत्ति कृति सब कुछ बन गया तीसरा मास्टर सर्वशक्तिमान और मास्टर सर्वशक्तिमान अर्थात खेल साइड सींस और नथिंग न्यू कुछ भी हो जाए कुछ भी नथिंग न्यू चौथा जो स्वयं स्वर्ती स्वरूप है वही दूसरों को स्मृति स्वरूप बना सकते हैं जो स्वयं ही याद में नहीं रहते वह दूसरों को कैसे याद दिला सकते हैं जिन्होंने स्वयं ही किसी भी कार्य को नहीं जीता वह दूसरों को कैसे कह सकते हैं कि इस विकार को छोड़ दो जो स्वयं ही संपूर्ण ब्रम्हचर्य में स्थित नहीं है वह दूसरों को प्योरिटी की कि शिक्षा कैसे दे सकते हैं जो स्वयं निरविकारी नहीं वह दूसरों को निर्विकारिता की शिक्षा कैसे दे सकते हैं तो सारा पुरुषार्थ खुद पर सारा पुरुषार्थ स्वयं पर

अंधेरी रात में रोज रात्रि एक युवक दिखने में तपस्वी है, योगी है, अंधेरे में जाता है, वहां एक नदी है, नदी के किनारे बैठता है.... कई घंटों तक बैठा रहता है और वापस लौटता है नदी के पास जो बड़ा सा बंगला है वहां जो पहरेदार है, जो वॉचमैन है रोज देखता है इसको कि यह उसी समय जाता है रात को 8:10 बजे निकलता है और वहां से 2-3 बजे वापस लौटता है कभी-कभी सुबह लौटता है वह करता क्या है उस नदी के पास 1 दिन उस योगी को वह पकड़ लेता है मैं तुमको छोडूंगा नहीं, पहले तुम बताओ तुम करते क्या हो वह योगी कहता है करते क्या हो, यह तो तुम जानते हो, कहता है कैसे? वह योगी कहता है... मुझे पता है तुम रोज मेरा पीछा करते हो और मुझे यह भी पता है कि मैं वहां बैठता हूं तो तुम मुझे चुपके से देखते हो वह कहता है हां यह सही है पर तुम करते क्या हो वह योगी पूछता है तुम क्या करते हो? वह कहता है वहां जो बड़ा बंगला है मैं वॉचमैन हूं, पहरा देता हूं योगी कहता है यही तो मैं भी करता हूं वह कहते हैं कैसे वह कहता है तुम बाहर पहरा देते हो मैं भीतर पहरा देता हूं और भीतर पहरा देते देते उस ध्यान की अवस्था में घंटों बीत जाते हैं अपने आप को ही देखते रहता हूं मुझे ना झील देखनी है ना वो रात का सन्नाटा मुझे लुभाता है मुझे लुभाता है अपने भीतर का संसार बाहर सन्नाटा है बाहर मौन है परंतु उस मौन में मैं भीतर जाता हूं और खुद को देखता हूं मैं भी वॉचमैन ही हूं

तो क्या करना है खुद को देखना है उसके लिए ज्ञानी हमेशा स्वयं को दोषी ठहराता है और अज्ञानी दूसरों को दोषी ठहराता है और जबकि अज्ञानी दूसरों को दोषी ठहरा सा है वह दोष हमेशा उसके साथ रहता है परंतु ज्ञानी देख लेता है यहां पर किसी और का कुछ दोष है ही नहीं मेरे ही अपने कर्म मुझे यहां वहां ले जाते हैं जो कुछ मेरे साथ हो रहा है, जो कुछ वह सब कुछ मेरा ही किया धरा है मैं ही स्रोत हूं उसका मेरा ही किया हुआ वापस मुझ तक आ रहा है और धीरे-धीरे ज्ञानी अपने उस दोष से भी मुक्त हो जाता है ऐसी पैनी अंतर्दृष्टि वहां फिर प्रज्ञा जागती है, मन सूक्ष्म होते जाता है संसार में रहते रहते मन स्थूल हो जाता है विचार करने बैठे तो विचार नहीं कर पाते, चिंतन करने बैठो तो चिंतन नहीं कर पाते इसके लिए एकांत चाहिए, मौन चाहिए और इसके लिए चाहिए परमात्मा स्थान परमात्मा स्थान पर आने का फल मिलेगा, चाहे तुम जानो या ना जाना कभी ना कभी वह मिलेगा हम सब अब किधर आ गए हैं परमात्मा स्थान पर आ गए हैं न,ा तो आ गए तो अभी से मौन धारण कर लो एक दूसरे से बात करते हुए भट्टिया नहीं हो सकती मोबाइल स्विच ऑफ करने 3 दिनों के लिए साइलेंट में नहीं, वाइब्रेट नहीं, स्विच ऑफ एक दूसरे से बात करते हुए भी तपस्या नहीं हो सकती संपूर्ण मौन..... जिस दिन भट्टी पूरी होगी उसी दिन मौन को खोलना, तभी जिस स्थान पर आए हैं वहां से कुछ ले जा सकते हैं अन्यथा अध्यात्म के जो सूक्ष्म अनुभव होने चाहिए वह नहीं होंगे सभी स्थिर, आत्मिक स्वरूप में स्थित