Message for the day / आज का संदेश – July 2023


01. सहनशील होना अर्थात् शांतचित्त होकर रहना।

विस्तार:

जब किसी को बदनामी या अपमान का सामना करना पड़ता है, तब सहनशीलता का गुण शांत व अचल-अडोल रहने की शक्ति देता है। अतः नकारात्मक परिस्थिति आने पर भी मुस्कुराने की कला आती है। सहनशीलता का अर्थ है - स्वमान में स्थित होने के कारण अपमान से परे देख पाना।

अनुभव:

आलोचना का सामना करते समय, यदि मैं अपने स्वमान में स्थित रह पाता हूँ, तो मैं अपनी ओर आने वाली हर नकारात्मक टिप्पणी (remark) / निंदा से सीख सकता हूँ। मैं उस समय क्रोध या प्रतिरोध नहीं करूंगा, बल्कि स्पष्ट रूप से ये देख सकूंगा कि मैं उससे क्या नई शिक्षा ले सकता हूं।

उमंग और उत्साह

उमंग और उत्साह ऐसे पंख हैं, जिनसे उड़कर हम हर परिस्थिति को पार कर सकते हैं और पहाड़ को राई बना सकते हैं।


02. एकाग्रता तब विकसित होती है जब बुद्धि साफ व स्वच्छ हो।

अभिव्यक्ति:

जिसकी बुद्धि भटकती रहती है उसके लिए एकाग्रता प्राप्त करना कठिन या असंभव हो जाता है। दूसरी ओर, जो व्यक्ति एक ही चीज़ पर ध्यान को केंद्रित रखता है, उसके लिए उस समय अन्य कोई आकर्षण नहीं होता और उसे आसानी से एकाग्रता प्राप्त हो जाती है।

अनुभव:

जब मैं अपने ध्यान को केंद्रित करने में सफल होता हूं, तब मैं अनेक आकर्षणों से परेशान नहीं होता, जो मेरी एकाग्रता को कम करते हैं। इसके विपरीत मैं अपने परखने की शक्ति को बढ़ाकर सही निर्णय लेने में सफल होता हूं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मेरी बुद्धि व्यर्थ से मुक्त और स्वच्छ बन जाती है।

दुआएं

दूसरों को जज (आंकलन) करने के बजाय उन्हें दुआएं देने से हमारे भीतर देने का संस्कार दृढ़ होता है।


03. विजयी बनना अर्थात् विघ्नों को सहजता से पार करना।

अभिव्यक्ति:

जो लोग विजयी बनने का लक्ष्य रखते हैं वे कभी विघ्नों का सामना करने से नहीं घबराते। इसके बजाय वे हर विघ्न को अपनी आंतरिक शक्तियों का उपयोग करने वा उन्हें व्यक्त करने के अवसर के रूप में देखते हैं। इसलिए उनमें लगातार उन्नति देखने को मिलती है।

अनुभव:

जब मैं जीवन में आने वाली हर चुनौती के लिए तैयार रहूंगा, तब मुझे डर, तनाव या चिंता नहीं रहेगी, बल्कि मैं सदैव निश्चिंत व निर्भय रहूंगा। आने वाली उन परिस्थितियों में विजयी बनने के साथ-साथ, मुझे अपनी कमज़ोरियों पर भी विजय प्राप्त करने एवं अपने भीतर छिपी नई शक्तियों को पहचानने का अवसर मिलेगा।

सफलता

स्थायी व निरंतर सफलता के लिए आवश्यक है कि हमारे एकाग्र मन, दिव्य बुद्धि, दिव्य गुण और कुशलता का सकारात्मक मेल हो।


04. जो विशेषता देखते हैं वे विशेष बन जाते हैं।

अभिव्यक्ति:

विशेषताएं देखना और अवगुणों को नज़रअंदाज करना, उन विशेषताओं को धारण करके एक कदम आगे बढ़ना है। इससे केवल सद्गुणों को देखने, अपनाने और वर्णन करने की आदत बन जाती है। अतः व्यक्ति कोई भी हो, उसके गुण कुछ भी हों, किंतु हमारा उनसे सकारात्मक संबंध ही जुड़ता है।

अनुभव:

जब मैं इस तरह से, सभी के साथ केवल उनके विशेषताओं से ही जुड़ता हूं, तो मैं विशेष बन जाता हूं। मैं यह अनुभव करता हूं कि अन्य लोग भी मुझसे सकारात्मक रूप से व्यवहार कर रहे हैं और मेरे संपर्क में केवल अपनी विशेषताओं का उपयोग कर रहे हैं। मेरी शुभ वृत्ति के कारण मुझे दूसरों से ढेरों शुभकामनाएँ भी मिलती हैं।

मुक्ति

अपेक्षाओं से मुक्त होना यानी दुखों से मुक्त होना है।


05. अपराध बोध से मुक्त होना अर्थात तीव्र व सहज उन्नति निश्चित करना।

अभिव्यक्ति:

जो कुछ भी होता है, उसके लिए स्वयं को दोषी मानना और मन को गहरे अपराध बोध से भर देना मनुष्य को अयोग्य व कमतर महसूस कराता है। ऐसा मनुष्य अपनी ताकत खो देता है, और कठिन परिस्थितियों में समाधान ढूंढ पाने में असमर्थ होता है। इसलिए उसका मन कुछ नया नहीं सोच पाता, और स्थिति बेहतर नहीं हो पाती।

अनुभव:

जब मैं स्वयं को दोष देना जारी रखता हूं, तब मैं ये मान लेता हूं कि मुझे खुशी व प्रेम पाने का अधिकार नहीं है, बल्कि जो दुख मुझे महसूस हो रहा है, वही मेरे लिए उपयुक्त सज़ा है। इससे मैं परिस्थिति को सुधारने का सारा उमंग-उत्साह खो देता हूं, तथा मेरे पास जो खज़ाने मौजूद होते हैं, उनका मुझे ज्ञान नहीं रहता। अत: मुझे अपने जीवन में किसी प्रकार की कोई उन्नति देखने को नहीं मिलती।

मौन

मौन मन को धीमा कर देता है जिससे मन कम विचार पैदा करता है, जो कि शक्तिशाली, सकारात्मक व शांत होते हैं।


06. जो दिलशिक्स्त हैं, उनमें आशा की किरण भर देना सबसे बड़ी सेवा है।

अभिव्यक्ति:

 सबसे नकारात्मक व्यक्ति में भी अच्छे गुण देख उनमें निश्चय रखना, यानी उन्हें आशा से भर देना है। साथ ही, उनमें आशा भरना अर्थात सबसे नकारात्मक परिस्थिति में भी आगे बढ़ने के लिए उन्हें उत्साहित करना है। जब ऐसा किया जाता है, तो वे अपनी योग्यताओं का उपयोग अच्छे लक्ष्य के लिए कर पाते हैं और धीरे-धीरे बेहतर बदलाव लाते हैं।

अनुभव:

जब मैं हर परिस्थिति में अच्छाई देख पाने में सफल होता हूं, तब मैं हर परिस्थिति को श्रेष्ठ बनाने की हिम्मत व उत्साह रख पाता हूं। यह स्वत: ही मुझे आस-पास के लोगों के लिए भी एक प्रेरणा बना देता है, और जो लोग प्रयास करना चाहते हैं उनके लिए सहयोगी बनाता है।

सत्य

सत्य को नम्रता व मधुरता से बोलने पर किसी को क्रोध नहीं आता, बल्कि दूसरों के मन में सत्य बोलने वाले के प्रति सम्मान बढ़ता है।


07. आंतरिक शक्ति होना अर्थात जीवन की विविधता का आनंद लेना।

अभिव्यक्ति:

जब आंतरिक शक्ति होती है तब सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने का उत्साह होता है, साथ ही हर बाधा से सीखने और स्वयं को बेहतर बनाने का भी उत्साह होता है। आंतरिक शक्ति का उपयोग करना उस कुशल खिलाड़ी की तरह बनना है, जिसका ध्यान सिर्फ जीतने के बजाय, खेल का आनंद लेने पर भी है।

अनुभव:

जब मुझे अपनी ताकत पर ध्यान देने की कला आ जाती है, तब मैं जीवन में आने वाले अनेक दृश्यों का आनंद ले पाता हूं। साथ ही, मैं उन सभी दृश्यों को सहज व आसान तरीके से पार करने का भी आनंद लेता हूं, और सहज ही विजयी भी बनता हूं। इस तरह, मुझे दो रूपों में आनंद की प्राप्ति होती है।

शक्तिशाली स्थिति

जो हो रहा है वह अच्छा है और जो होगा वह भी अच्छा होगा - यह शक्तिशाली संकल्प कमज़ोर संकल्पों के जाल को समाप्त कर देता है।


08. केवल समस्याओं को देखना अर्थात दूसरों से केवल सेवा लेने वाला बनना।

अभिव्यक्ति:

जब हर परिस्थिति में केवल समस्या देखने की आदत हो जाती है, तब समाधान ढूंढ पाने व प्रभावी ढंग से कर्म करने में असमर्थता होती है। साथ ही, वे सभी साधन छिपे रहते हैं, जिनका उपयोग स्वयं व दूसरों के कल्याण के लिए किया जा सकता है। ऐसा व्यक्ति समाधान ढूंढने के लिए दूसरों पर निर्भर रहता है और दया का पात्र बन जाता है।

अनुभव:

जब मैं समस्याओं से घिर जाता हूं और कुछ और नहीं देख पाता, तब मेरी उन्नति नहीं हो पाती। अपनी बहुत सी चीज़ों को खोते हुए, मेरे कदम पीछे की ओर बढ़ने लगते हैं। मैं अपने आत्मविश्वास को बनाए नहीं रख पाता, तथा दूसरों पर निर्भर हो जाता हूं।

परवाह

शिकायत करने से हमारी शक्ति नष्ट होती है, क्योंकि तब हम उन चीज़ों के बारे में सोच रहे होते हैं जो हमारे हाथ में नहीं है।  शिकायत करना अर्थात चित्त को समस्या पर लगाना, परवाह करना अर्थात चित्त को समाधान पर लगाना।


09. बालक और मालिक का बैलेंस रखना अर्थात विजय निश्चित करना।

अभिव्यक्ति:

मलिकपन की स्मृति में रहना अर्थात जो भी कर्म करने हैं या जो विचार देने हैं, उनमें आत्मविश्वास रखना। किंतु इसके साथ ही यदि बालकपन की स्मृति में भी रहा जाए, तो सीखने और सुधार करने का अवसर होता है, क्योंकि तब विपरीत बातों को सही भावना से लिया जाता है।

अनुभव:

जब मैं बालक के रूप में निंदा अथवा आलोचना का स्वागत करता हूं, तब मैं उनसे कुछ सीख पाता हूं। अहंकार से ऊपर उठकर मैं और अधिक श्रेष्ठ बनने की ओर कदम बढ़ाता हूं। दूसरे लोग क्या सोचते हैं या महसूस करते हैं, इससे मेरी सीखने की प्रक्रिया नहीं रुकती। बजाय इसके, मैं निरंतर उन्नति व निश्चित विजय का अनुभव करने में सफल होता हूं।

दिव्य गुण

स्वयं में गुण भरने से, दूसरों में गुण देखने से, गुणों का दान करने से और गुणों की ही चर्चा करने से हम अच्छे इंसान बनते हैं।


10. कर्मों के आधार पर ही प्रशंसा मिलती है।

अभिव्यक्ति:

जो केवल बातें करते हैं, किंतु उन बातों को कर्म में नहीं ला पाते, वे प्रशंसा के पात्र नहीं बनते। वहीं दूसरी ओर जो अपने श्रेष्ठ संकल्पों और बोल को कर्म में लाने में सफल होते हैं, वे प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ऐसे मनुष्यों के कर्म दूसरों के लिए प्रेरणादायक बनते हैं और उन्हें अपने कदम पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।

अनुभव:

जब मैं अपने शुभ संकल्प और बोल के अनुसार कर्म करने में सफल होता हूं, तब मैं और अधिक शुभ कर्म करने के लिए प्रेरित होता हूं। साथ ही, जो भी अच्छे कर्म मैं करता हूं, उसके लिए मुझे दूसरों से सहयोग और शुभकामनाएं मिलती हैं, जो मुझे लगातार प्रोत्साहित करती हैं। मेरे अच्छे कर्मों का खाता सदा भरपूर रहता है, जो मुझे अच्छाई के चक्र में आगे ले जाकर अच्छे कर्मों को ही मेरी आदत बनाता है। इसलिए मुझे अनुभव होता है कि अच्छे कर्म करने के लिए फिर मुझे मेहनत नहीं करनी पड़ती।

ज़िम्मेदारी

जब हम हर परिस्थिति में अपने संकल्प, बोल और कर्म की ज़िम्मेदारी (responsibility) लेते हैं, तब उन परिस्थितियों में हमें सकारात्मक रूप से प्रतिक्रिया देने में मदद मिलती है। यही हमारी 'प्रतिक्रिया-क्षमता' (response-ability) है।


11. रोज़ चेकिंग करना अर्थात् परिवर्तन लाना।

अभिव्यक्ति:

 जब कोई बुरा कर्म किया जाता है, तो उसी घड़ी पश्चाताप की फिलिंग होती है और उस कर्म को दोबारा न करने की इच्छा होती है। किंतु चेकिंग उस स्तर पर होनी चाहिए, जहाँ उस कर्म की पुनरावृत्ति कभी न हो। स्वयं की कमज़ोरियों का चार्ट रखना अर्थात् रोज़ ही चेक करना। ऐसी चेकिंग से ही स्थाई परिवर्तन आता है।

अनुभव:

जब मैं चार्ट रखने में सफल होता हूं, जिससे कि मैं अपनी उन्नति पर नज़र रख सकूं, तब मैं अपने परिवर्तन के प्रति ढ़ृढ़ रह पाता हूं। विपरीत परिस्थितियां या लोग मुझे नहीं रोक पाते, बल्कि मैं मनचाहे परिवर्तन को लाने में सफल होता हूँ। मैं परिवर्तन की प्रक्रिया को तब भी जारी रखता हूं, जब मुझे जो परिवर्तन चाहिए वह मेरे वर्तमान जीवन को हानि नहीं पहुंचाती। इस रीति नियमित चेकिंग से लापरवाही को आने का अवसर नहीं मिलता।

सफलता

चीज़ों को धैर्यपूर्वक और ध्यानपूर्वक सुनने, समझने और स्पष्ट करने के बाद निर्णय लेने पर सफलता मिलती है।


12. जीवन में सकारात्मकता लाने का सबसे आसान तरीका है - प्रभु प्रेम का पात्र बनना।

विस्तार:

किसी कार्य को करना है या नहीं करना, ये इस बात से जांच की जा सकती है कि भगवान उस कार्य को करने की अनुमति देंगे या नहीं। जब इस रीति से चेक करके हर कर्म किया जाएगा, तब हर कर्म शुभ व कल्याणकारी होंगे। कोई भी कर्म व्यर्थ, साधारण या विकर्म नहीं होगा, लेकिन सकारात्मकता की शक्ति से भरपूर कर्म ही होंगे।

अनुभव:

जब मैं अपने जीवन में इस तरह की सकारात्मकता लाने में सफल होता हूं, तब मैं न केवल प्रभु प्रेम का पात्र बनता हूं, बल्कि आस-पास के सभी लोगों के प्यार, प्रशंसा और शुभकामनाओं का भी पात्र बनता हूं। इसके साथ ही जो लोग अपने जीवन में सकारात्मकता लाना चाहते हैं, मैं उन लोगों के लिए भी विश्वसनीय और सहयोगी बनता हूं।

सन्तुष्टता

एक ओर जहां प्रश्नचिह्न (?) जीवन में व्यर्थ को बढ़ा देता है, तो दुसरी ओर पूर्णविराम (.) सन्तुष्टता व खुशहाली लाता है।


13. जो स्वयं पर राज्य कर सकता है, वही दूसरे लोगों पर व परिस्थितियों पर राज्य कर सकता है।

विस्तार:

स्वयं पर नियंत्रण हासिल किए बिना यदि अन्य लोगों व परिस्थितियों पर नियंत्रण हासिल करने का प्रयास किया जाता है, तो यह असंभव हो जाता है। इससे चीज़ें और ही बिगड़ जाती हैं और क्रोध जैसी भावना का जन्म होता है। मालिक होने का अर्थ है हर परिस्थिति में स्वयं की भावनाओं व स्वभाव का मालिक होना; अर्थात बागडोर अपने हाथ में रखना।

अनुभव:

जब मैं अपने संकल्प, स्वभाव तथा भावनाओं का मालिक बनने में सफल होता हूं, तब मैं लोगों से सही व्यवहार करने और परिस्थितियों से प्रभावी ढंग से निपटने में सफल होता हूं। परिस्थिति या व्यक्ति चाहे कितने ही जटिल हों, मैं कभी अपना नियंत्रण नहीं खोता। इससे मैं अपने भीतर विद्यमान शक्तियों के प्रति जागरूक होता हूं, तथा उनका उपयोग स्वयं को श्रेष्ठ बनाने में कर पाता हूं।

शांति

शांति मन को आराम देती है। कभी-कभी आराम ही एकमात्र दवा है जिसकी आवश्यकता होती है।


14. भाग्य व्यक्ति के अपने हाथ में होता है।

विस्तार:

भाग्य अपने हाथ में होना अर्थात यह नहीं कि हाथों में बनी लकीरों में होना। इसका अर्थ यह है कि जो भी अवसर व साधन उपलब्ध हैं, उनका सर्वश्रेष्ठ उपयोग करने की क्षमता होना। जब उनका सर्वश्रेष्ठ उपयोग किया जाता है, तो वे स्वाभाविक रूप से बढ़ जाते हैं। सही कर्मों से भाग्य की रेखा जितनी लंबी चाहे खींची जा सकती हैं।

अनुभव:

जब मैं अपने कर्मों का महत्व समझता हूं और सही कर्म द्वारा एक श्रेष्ठ भाग्य का निर्माण करता हूं, तब मुझे अपने जीवन में निरंतर उन्नति देखने को मिलती है। इसके अलावा मैं सहज ही दूसरों के लिए भी एक प्रेरणा का स्रोत बन जाता हूं, ताकि वे भी अपनी आंतरिक शक्तियों को पहचान कर अपने लिए एक श्रेष्ठ भाग्य का निर्माण कर सकें।

मालिकपना

संकल्पों का मालिक होना अर्थात संकल्पों को जब चाहे नियंत्रित व एकाग्र करना।


15. सरलता खुशी लाती है।

विस्तार:

जो सरल होता है वह कठिन परिस्थितियों और लोगों को समझने में सक्षम होता है। उसमें आस-पास उपलब्ध सभी चीज़ों में से केवल वही चुनने की क्षमता होती है, जो योग्य और काम ही हैं। सरल व्यक्ति के बोल और कर्म आसपास के लोगों को खुशी देने वाले होते हैं।

अनुभव:

जब मैं अपनी दृष्टि और वृत्ति को सरल रखता हूं, तब मैं खुश रह पाता हूं, क्योंकि आसपास जो भी अच्छा-बुरा हो रहा है, मैं उनसे उपराम रहता हूं। मेरा मन अनावश्यक चीज़ों में नहीं फंसता और मैं सबसे कठिन परिस्थिति में भी सहजता से रह पाता हूँ। मेरी यह वृत्ति खुशी के वातावरण का निर्माण करती है, जो दूसरों को भी खुशी का अनुभव कराती है।

मौन

मौन रूपी गुण को जीवन में धारण करें, फिर आप आसानी से अपनी कमज़ोरियों को पहचान कर उसे दूर कर पाएंगे।


16. संपूर्णता प्राप्त करने की एक इच्छा अन्य सभी इच्छाओं को समाप्त कर देती है।

विस्तार:

संपूर्ण बनने की इच्छा सभी प्रकार की परिस्थितियों से सीखते रहने की क्षमता लाती है। सीखने के लिए कुछ नया होता है इसलिए अन्य कोई इच्छा नहीं रहती। चूंकि मन संपूर्ण बनने में ही व्यस्त होता है, अतः व्यर्थ व नेगेटिव के लिए समय नहीं बचता। साथ ही, नेगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन करने की भी क्षमता आती है।

अनुभव:

संपूर्णता के प्रति प्रेम मुझे निरंतर उन्नति का अनुभव कराता है। मुझे इस बारे में कोई विचार नहीं होता कि मुझे क्या पाना है, लेकिन मैं हर पल और हर परिस्थिति से कुछ न कुछ प्राप्त करता रहता हूं। और तब मैं सहज ही अन्य सभी इच्छाओं से मुक्त हो जाता हूँ।

साहस

किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए साहस की आवश्यकता होती है और साहस सत्य से आता है।


17. समझ खुशी लाती है।

विस्तार:

जो कुछ भी घटित हो रहा है, उसका राज़ समझने से खुशी आती है। जब कोई इस रीति से खुश रह पाता है, तब वह अपने आसपास के लोगों को भी खुशी का दान देता है और उन सबके जीवन को प्रेरित करता है।

अनुभव:

जब मैं हर परिस्थिति में खुश रह पाता हूँ, तब मैं दूसरों की नकारात्मकता से प्रभावित नहीं होता। इसके बजाय मैं अपने आस-पास के लोगों के लिए प्रेरणा का प्रमुख स्रोत बन पाता हूं।

सहयोग

सभी के सहयोग से विश्व एक खुशहाल स्थान बन जाता है।


18. खुशी से रचनात्मकता आती है।

विस्तार:

खुशी दिल को छूती है और भीतर से रचनात्मकता लाती है। जो खुश होता है वह रचनात्मक होने के लिए सही अवसर की प्रतीक्षा नहीं करता, बल्कि प्रत्येक क्षण को रचनात्मकता का उपयोग कर कुछ नयापन लाने के लिए एक अवसर बनाता है।

अनुभव:

जब मैं खुश होता हूं, तब मैं अपने जीवन के प्रत्येक क्षण का आनंद लेता हूं एवं उसका सर्वोत्तम उपयोग करता हूं। मुझे कुछ नया, अनोखा और अलग करने की चाह होती है। इसलिए मुझे अपना सर्वश्रेष्ठ कर्म कर पाने की संतुष्टता रहती है।

सच्ची दिल

सच्ची दिल से भगवान खुश होते हैं। जब हम हिम्मत का एक कदम बढ़ाते हैं तो हमें उनसे मदद के हज़ार कदम मिलते हैं।


19. हर कर्म पर अटेन्शन रखना अर्थात हीरो पार्टधारी बनना।

विस्तार:

हीरो एक्टर वो होता है जो अपने हर कर्म पर बहुत अटेन्शन रखता है। वह ध्यान देता है कि उसका कोई भी बोल अथवा कर्म व्यर्थ या साधारण न हो, बल्कि सर्वश्रेष्ठ हों। इससे सहज ही उसका सर्वश्रेष्ठ स्वरूप निखरकर बाहर आता है।

अनुभव:

जब मैं अपने हर कर्म पर निरंतर अटेन्शन रखता हूँ, तब मैं पाता हूँ कि मैं अपना सर्वश्रेष्ठ पार्ट प्ले करने में सफल होता हूँ। फिर जो भी होता है मैं उससे संतुष्ट रहता हूं, क्योंकि मुझे ज्ञात होता है कि मेरे कर्म करने से अधिक महत्वपूर्ण यह है, कि मैं उन्हें कितनी अच्छे रीति से करता हूं।

शुभ कामनाएं

शुभ कामनाएं वह जादू है जो बिगड़े काम को, बिगड़े मन को सही बना देती हैं।


20. समस्याओं को खेल समझना अर्थात सहजता से उन्हें पार कर आगे बढ़ना।

विस्तार:

जो भी हो रहा है, यदि मैं उसके महत्व को समझता हूं, तो सबसे कठिन समस्या आने पर भी मैं अपना सर्वश्रेष्ठ कर्म कर पाने में सफल होता हूं। ऐसा इसलिए क्योंकि मुझे कभी भी समस्या के अधीन होने का अनुभव नहीं होता, मैं सदा मालिक बनकर रहता हूँ।

अनुभव:

जब मैं यह समझ जाता हूं कि समस्याएं केवल खेल हैं, तब मैं बाह्य रूप से जो भी पार्ट निभाना है, उसे निभाता हूं। लेकिन आंतरिक रूप से मुझे हल्कापन महसूस होता है, क्योंकि मुझे ज्ञात होता है कि यह केवल पार्ट है जो मुझे निभाना है। अपने अभिनय अथवा पार्ट के महत्व को समझना सहज हो जाता है और खुश रहना आसान होता है।

सद्विवेक

आंतरिक और बाह्य जगत के युद्धों को समाप्त करने की सबसे प्रबल शक्ति है मानव सद्विवेक।


21. शुभ कामनाओं से भरे शब्द दूसरों में परिवर्तन लाते हैं।

विस्तार:

जब मेरे हर बोल के साथ शुभकामनाएं जुड़ी होती हैं, तब प्रेम का प्रवाह होता है। प्रेम से कही गईं बातें दूसरों पर प्रभाव डालती हैं। ऐसे बोल हर तरह की निगेटिविटी से मुक्त होते हैं, इसलिए वे स्वतः ही बहुत शक्तिशाली होते हैं। इस तरह के शक्तिशाली बोल ही दूसरों में परिवर्तन ला सकते हैं।

अनुभव:

जब मैं दूसरों के साथ प्रेम से तथा शुभकामना सहित बात करता हूँ, तब मैं स्वयं में बेहद हल्का महसूस करता हूं, क्योंकि मुझे ज्ञात होता है कि मैंने जो कुछ भी कहा है, उसमें मेरा कोई स्वार्थ नहीं है। इससे दुसरे लोग भी स्वयं को उसी क्षण सही कर लेते हैं, जिससे मुझे उन्हें उन्नति की ओर ले जाने के लिए उनकी शुभकामनाएं भी मिलती हैं।

सत्य

सत्य अविनाशी तत्व है। सत्य के मार्ग पर चलकर / सत्यता की शक्ति का अभ्यास कर हम असत्य व माया पर विजय प्राप्त करते हैं।


22. जमा करने का अटेंशन रखना अर्थात निरन्तर उन्नति का अनुभव करना।

विस्तार:-

जिसे हर घड़ी जमा करने का अटेंशन रहता है, वह अपने समय, संकल्प व अन्य खज़ानों को सही रीति से उपयोग करता है। इससे उसका कोई भी खज़ाना व्यर्थ नहीं होता, या साधारण रीति उपयोग नहीं होता; बल्कि हर खज़ाना सर्व के कल्याण में लगता है।

अनुभव:

जमा करने का अटेंशन मुझे अपने पास उपलब्ध सभी ख़जानों का महत्व समझाता है। इससे मैं छोटी-छोटी बातों पर भी ध्यान देता हूं, जिससे मैं पाता हूं कि मुझे हर क्षण से व हर घटना से लाभ प्राप्त होता है। इस प्रकार मैं निरंतर उन्नति का अनुभव करता हूँ।

उत्साह

सबके प्रति शुभ कामना रखने से हमारा उत्साह बढ़ता है।


23. हल्कापन तब आता है जब बोल यथार्थ हों।

विस्तार:

यथार्थ बोल का अर्थ है कि कुछ भी अनावश्यक ना बोला जाए। जो भी कहना हो, उसे सार शब्दों में कहें। ऐसे बोल कम शब्दों के कारण सुनने में भी प्रिय लगते हैं, और दूसरों को कभी ठेस नहीं पहुंचाते। वे वास्तविक रूप से वही परिणाम लाते हैं जो हमें चाहिए।

अनुभव:

जब मेरे बोल सार युक्त होते हैं, तब मैं भीतर से बहुत हल्कापन महसूस करता हूं, और साथ ही मेरी शारीरिक ऊर्जा की भी बचत होती है। मेरे सारयुक्त बोल से दूसरों का भी लाभ होता है और मुझे उनसे स्वत: ही दुआएं मिलती हैं, जिससे मैं सहजता से आगे बढ़ पाता हूं।

कल्याणकारी

जिस प्रकार हर पिता अपने बच्चों का भला ही चाहता है, उसी प्रकार भगवान भी सदा कल्याणकारी हैं। हमारे अपने कर्म ही जीवन में दु:ख का कारण हैं।


24. यथार्थ पुरुषार्थ से सफलता मिलती है।

विस्तार:

जो हर कार्य की सफलता के लिए यथार्थ रूप से पुरुषार्थ करता है, वह स्वत: ही सर्वश्रेष्ठ करने का प्रयास करता है। उसके स्वयं के योगदान के कारण, अन्य लोग भी उसकी मदद करते हैं, और जो वह करना चाहता है उसके लिए यथाशक्ति योगदान देते हैं। अतः हर कार्य में सफलता मिलती है।

अनुभव:

जब मैं सही कर्म करूंगा, तब मैं निरंतर स्व-उन्नति का अनुभव करुंगा। मुझे कभी भी असफल होने की थोड़ी भी अनुभूति नहीं होगी, बल्कि मैं सफलता को हमेशा अधिकार रूप में देखूंगा, भले ही परिणाम कुछ अलग हों। सही कर्म करने के कारण ही मैं अपने भीतर सकारात्मक भावनाएं अनुभव करता हूं।

ऊंचा उड़ें

समस्याओं के पहाड़ को पैदल पार करना कठिन है, लेकिन दुआओं के विमान में उड़कर इसे पार करना आसान है।


25. स्वमान की सीट पर विराजमान होना ही सही अर्थ में महान बनना है।

विस्तार:-

 जो सदा स्वमान में स्थित रहता है वह सदा अचल (स्थिर) रहता है। और इस स्थिरता के कारण उसके पास हमेशा सही अधिकार होता है। इससे निर्णय भी सही होते हैं और वह सभी परिस्थितियों का आसानी से सामना करते हुए आगे बढ़ता है।

अनुभव:

जब मैं अपनी विशेषताओं को पहचान कर उन्हें कर्म में लगाता हूं, तब दूसरों को भी मेरी विशेषताएं दिखाई देती हैं। मुझमें कभी अभिमान नहीं होता और मैं निर्मान रहता हूं। यह निर्मानता मुझे दूसरों से भी सम्मान दिलाती है।

शांत रहें

गुस्सा करना गर्म कोयले को पकड़कर किसी और पर फेंकने जैसा है। दूसरे से पहले हम स्वयं ही जलते हैं।


26. दूसरों के विचारों को सम्मान देना अर्थात कुछ नया सीख पाना।

विस्तार:

जो दूसरों के विचारों का खुले दिल से स्वागत करता है, वह हर चीज़ से सीख पाता है। वह निर्मान होता है और सभी को सम्मान देता है। उसका अपने कर्म पर नियंत्रण होता है, वह मालिक होता है, और साथ ही, वह कुछ नया सीखने के लिए भी तैयार रहता है।

अनुभव:

जब मेरे सबसे उत्तम विचार व योजनाओं को भी अस्वीकार कर दिया जाता है या उनकी आलोचना की जाती है, मैं तब भी शांतचित्त व हल्का रह पाने में सफल होता हूं, क्योंकि मैं उनके प्रति तथा उनके विचारों के प्रति सम्मान रखता हूं। इस कारण मैं लगातार सीखता रहता हूं और उन्नति का अनुभव करता हूं।

खुशी

हमारे संकल्प ही हमारी बाहरी सृष्टि का निर्माण करते हैं। सकारात्मक व एकाग्र संकल्प स्थायी खुशी की दुनिया लाते हैं।