काल चक्र
अविरल गति से घूमता है। भूतकाल की घटनाओं की केवल स्मृति ही रह जाती
है। उसी स्मृति को पुन: ताजा करने के लिए यादगारें बनाई जाती हैं, कथाएं
लिखी जाती हैं एवं जन्म दिवस मनाए जाते हैं, जिनमें श्रद्धा, प्रेम,
स्नेह, सद्भावना का पुट होता है परंतु एक वह दिन भी आ जाता है जबकि
श्रद्धा और स्नेह का अंत हो जाता है और रह जाती है केवल परंपरा। यह कहना
अतिश्योक्ति न होगी कि आज पर्व भी उसी परंपरा को निभाने मात्र मनाए जाते
हैं। भारतवर्ष अध्यात्म प्रधान देश है और जितने पर्व भारत में मनाए जाते
हैं शायद ही उतने पर्व अन्य किसी देश में मनाए जाते हों। समय-प्रति-समय
ये त्योहार उन्हीं छिपी हुई आध्यात्मिकता की रश्मियों को जागृत करते
हैं। शिवरात्रि भी उन विशिष्ट पर्वों में मुख्य रखता है।
महाशिवरात्रि का नाम जैसा महान है वैसे ही यह महानतम् पर्व समस्त संसार
की आत्माओं को परमपिता परमात्मा शिव की स्मृति दिलाता है। भारतवर्ष में
भगवान शिव के लाखों मंदिर पाए जाते हैं और शायद ही कोई ऐसा मंदिर हो जहां
शिवलिंग की प्रतिमा न हो। शायद ही कोई ऐसा धर्मग्रंथ हो जिसमें शिव का
गायन न हो परंतु विडंबना यह है कि फिर भी शिव के परिचय से सर्व
मनुष्यात्माएं अपरिचित हैं। भारत के कोने-कोने में निराकार ज्योतिबिंदु
शिव परमात्मा की आराधना भिन्न-भिन्न नामों से की जाती है। उदाहरणार्थ
अमरनाथ, विश्वनाथ, सोमनाथ, बबूलनाथ, पशुपतिनाथ इत्यादि भगवान शिव के ही
तो मंदिर है। वास्तव में श्रीकृष्ण एवं मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र जी
के इष्ट परमात्मा शिव ही हैं। गोपेश्वर एवं रामेश्वर जैसे विशाल शिव के
मंदिर आज दिन तक इसके साक्षी हैं। भारत से बाहर, विश्वपिता शिव का मक्का
में ‘संग-ए-असवद’, मिश्र में ‘ओसिरिस’ की अराधना, बेबोलान में ‘शिअन’
नाम से पूजा व सम्मान इसी बात का द्योतक है। स्पष्ट है कि परमपिता
परमात्मा शिव ने अवश्य ही कोई महान् कत्र्तव्य किया होगा।
शिवरात्रि क्यों मनाते हैं?
शिवरात्रि
निराकार परमपिता परमात्मा शिव के दिव्य अलौकिक जन्म का स्मरण दिवस है।
हम इस संसार में किसी का भी जन्मोत्सव मनाते हैं तो उसे जन्मदिवस कहते
हैं भले ही वह रात्रि में पैदा हुआ हो, मनाव जन्मोत्सव को जन्म-रात्रि
नहीं वरन् जन्म-दिवस के रूप में मनाते हैं परंतु शिव के जन्म-दिवस को
शिवरात्रि ही कहते हैं। वास्तव में यहां शिव के साथ जुड़ी हुई रात्रि
स्थूल अंधकार का वाचक नहीं है। यह आध्यात्मिक दृष्टिकोण से कल्प् के
अंत के समय व्याप्त घोर अज्ञानता और तमोप्रधानता का प्रतीक है। जब
सृष्टि पर अज्ञान अंधकार छाया होता है। काम, क्रोध आदि विकारों के
वशीभूत मानव दु:खी व अशांत हो जाता है, धर्म, अधर्म का रूप ले लेता है,
भ्रष्टाचार का चारों और बोलबाला होता है तब ज्ञान सूर्य परमात्मा शिव
अज्ञानता रूपी अंधकार का विनाश करने के लिए प्रकट होते हैं। विकारी,
अपवित्र दुनिया को निर्विकारी, पावन दुनिया बनाना तथा कलियुग, दु:खधाम
के बदले सतयुग, सुखधाम की स्थापना करना सर्वसमर्थ परमपिता परमात्मा
शिवर का ही कार्य।
परमात्मा अजन्मा है अर्थात अन्य आत्माओं के सदृश्य माता के गर्भ से
जन्म नहीं लेते हैं। वे परकाया प्रवेश करते हैं अर्थात् ‘स्वयंभू’
परमात्मा शिव प्रकृति को वश में करके साधारण वृद्ध तन का आधार लेते हैं
और उस तन का नाम रखते हैं ‘प्रजापिता ब्रह्मा’। वे ब्रह्मा के साकार
माध्यम से रूद्र-ज्ञान-यज्ञ रचते हैं जिसमें पूरी आसुरी दुनिया स्वाहा
हो जाती है।
शिवरात्रि का आध्यात्मिक रहस्य:
परमपिता परमात्मा शिव बिन्दु रूप है इसलिए भक्तजन शिवलिंग की अराधना
करते हैं, उस पर दूध मिश्रित लस्सी, बेल-पत्र और आक के फूल चढ़ाते हैं।
आक के फूल एवं धतूरा चढ़ाने का रहस्य यह है कि अपने विकारों को उन्हें
देकर निर्विकारी बन पवित्रता के व्रत का पालन करें। परमपिता परमात्मा
शिव संसार की समस्त आत्माओं को पवित्र बनाकर उनके पथ प्रदर्शक बनकर
परमधाम वापिस ले जाते हें, इसलिए उन्हें आशुतोष व भोलेनाथ भी कहते हैं।
ब्रह्मचर्य व्रत सच्चा उपवास है क्योंकि इसके पालन से मनुष्यात्मा को
परमात्मा का सामीप्य प्राप्त होता है। इसी प्रकार एक रात जागरण करने से
अविनाशी प्राप्ति नहीं होती परंतु अब तो कलियुग रूपी महाशिवरात्रि चल
रही है उसमें आत्मा को ज्ञान द्वारा जागृत करना ही सच्चा जागरण है। इस
आध्यात्मिक जागरण द्वारा ही मुक्ति जीवन मुक्ति मिलती है।
शिव सर्व आत्माओं के परमपिता हैं :
परमपिता परमात्मा शिव का यही परिचय यदि सर्व मनुष्यात्माओं को दिया जाए
तो सभी सम्प्रदायों को एक सूत्र में बांधा जा सकता है क्योंकि परमात्मा
शिव का स्मृतिचिन्ह शिवलिंग के रूप में सर्वत्र सर्व धर्मावलंबियों
द्वारा मान्य है। यद्यपि मुसलमान भाई मूर्तिपूजा नहीं करते हैं तथापि
वे मक्का में संग-ए-असवद नामक पत्थर को आदर से चूमते हें। क्योंकि उनका
यह दृढ़ विश्वास है कि यह भगवान का भेजा हुआ है। अत: यदि उन्हें यह
मालूम पड़ जाए कि खुदा अथवा भगवान शिव एक ही हैं तो दोनों धर्मों से
भावनात्मक एकता हो सकती है। इसी प्रकार ओल्ड टेस्टामेंट में मूसा ने
जेहोवा का वर्णन किया है। वह ज्योतिर्बिन्दु परमात्मा का ही यादगार है।
इस प्रकार विभिन्न धर्मों के बीच मैत्री भावना स्थापित हो सकती है।
रामेश्वरम् में राम के ईश्वर शिव, वृंदावन में श्रीकृष्ण के इष्ट
गोपेश्वर तथा एलीफेंटा में त्रिमूर्ति शिव के चित्रों से स्पष्ट है कि
सर्वात्माओं के आराध्य परमपिता शिव ही हैं। शिवरात्रि का त्यौहार सभी
धर्मों का त्यौहार है तथा सभी धर्म वालों के लिए भारतवर्ष तीर्थ है। यदि
इस प्रकार का परिचय दिया जाता है तो विश्व का इतिहास ही कुछ और होता
साम्प्रदायिक दंगे, धार्मिक मतभेद, रंगभेद, जातिभेद इत्यादि नहीं होते।
चहुं ओर भ्रातृभाव की भावना होती।
आज पुन: वही घड़ी है, वही दशा हे, वही रात्रि है जब मानव समाज पतन की
चरम सीमा पर तक पहुंच चुका है। ऐसे समय में कल्प की महानतम घटना तथा
दिव्य संदेश सुनाते हुए हमें अति हर्ष हो रहा है कि कलियुग के अंत और
सतयुग के आदि के इस संगमयुग पर ज्ञान-सागर, प्रेम व करुणा के सागर,
पतित-पावन, स्वयंभू परमात्मा शिव हम मनुष्यात्माओं की बुझी हुई ज्योति
जगाने हेतु अवतरित हो चुके हैं। वे साकार प्रजापिता ब्रह्मा के माध्यम
द्वारा सहज ज्ञान व सहज राजयोग की शिक्षा देकर विकारों के बंधन से
मुक्त कर निर्विकारी पावन देव पद की प्राप्ति कराकर दैवी स्वराज्य की
पुन: स्थापना करा रहे हैं। इसलिए प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय
विश्वविद्यालय समूचे विश्व के 140 देशों में अपने 10000 से अधिक
सेवाकेंद्रों के माध्यम से 79 वीं महाशिवरात्रि का पावन पर्व बहुत
धूमधाम से मना रहा है। आइए हम सभी इसमें शामिल हों, निर्विकारी बनने की
प्रतिज्ञा करें।
ओम शांति।