कविता


🌹देहभान से मुक्ति🌹

देहभान की लगी बीमारी दुखी हो गई दुनिया सारी

मंजिल का रस्ता भूल गए विकारों का झूला झूल गए

एक दूजे के बन गए दुश्मन दूषित हुआ सबका तन मन

गुण ढूंढो तो एक न मिलता मीठा बनकर हर कोई छलता

कैसा है यह रावण का राज नोच रहा है जैसे कोई बाज

कैसे पाएं माया से छुटकारा लूटा इसने सुख चैन हमारा

हार गए विकारों में पड़कर थके हैं इक दूजे से लड़कर

कौन आकर माया से बचाए सुख शांति का रस्ता सुझाए

कर ली बहुत पाठ और पूजा एक छोड़ अपनाते हम दूजा

कर्म कांड हमने बहुत किए लेकिन शुभ कर्म नहीं किए

माया से हम बच नहीं पाए इसके वार हमें बड़ा रुलाए

नजर आई अब आस किरण मिल गई हमें बाबा की शरण

आत्म भान का हुआ स्मरण देहभान का मिट गया ग्रहण

देही अभिमानी बनकर रहते ॐ शांति हम सबको कहते

सुखमय हो गया मन संसार पाते जा रहे अलौकिक प्यार

अब तो मंजिल आती नजर दुःख के दिन अब गए गुजर

बाबा को पाकर धन्य हो गए शुद्र से पवित्र ब्राह्मण बन गए

बहुत जल्द हम फ़रिश्ता बनेंगे बाबा संग अपने घर को चलेंगे

सतयुगी दुनिया में जन्म पाएंगे कृष्ण संग खेलेंगे और खाएंगे

ॐ शांति