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❍ 28 / 01 / 21 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *बाप की अवज्ञा तो नही की ?*
➢➢ *दिन रात बुधी में ज्ञान घूमता रहा ?*
➢➢ *सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य के नशे और ख़ुशी में रहे ?*
➢➢ *तन और मन को सदा खुश रखा ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *मन को एकरस बनाने के लिए हर घण्टे 5 सेकण्ड वा 5 मिनट अपने पांचों ही रूप सामने लाओ और उस रूप का अनुभव करो। इस एक्सरसाइज से व्यर्थ वा अयथार्थ संकल्पों में मन नहीं जायेगा। मन में अलबेलापन भी नहीं आयेगा।* मनमनाभव का मन्त्र मन के अनुभव से मायाजीत बनने में यन्त्र बन जायेगा।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं हर कदम में पुण्य करने वाली पुण्य आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा स्वयं को स्वमान की सीट पर बैठा हुआ अनुभव करते हो? *पुण्य आत्मा हैं, ऊँचे ते ऊँची ब्राह्मण आत्मा हैं, श्रेष्ठ आत्मा हैं, महान आत्मा हैं, ऐसे अपने को श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर अनुभव करते हो? कहाँ भी बैठना होता है तो सीट चाहिए ना! तो संगम पर बाप ने श्रेष्ठ स्वमान की सीट दी है, उसी पर स्थित रहो। स्मृति में रहना ही सीट वा आसन है।*
〰✧ *तो सदा स्मृति रहे कि मैं हर कदम में पुण्य करने वाली पुण्य आत्मा हूँ। महान संकल्प, महान बोल, महान कर्म करने वाली महान आत्मा हूँ। कभी भी अपने को साधारण नहीं समझो।* किसके बन गये और क्या बन गये? इसी स्मृति के आसन पर सदा स्थित रहो।
〰✧ *इस आसन पर विराजमान होंगे तो कभी भी माया नहीं आ सकती। हिम्मत नहीं रख सकती। आत्मा का आसन स्वमान का आसन है, उस पर बैठने वाले सहज ही मायाजीत हो जाते हैं।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ आत्मा मालिक होके कर्मेन्द्रियों को चलाये। स्मृति स्वरूप रहे कि मैं मालिक इन साथियों से, सहयोगियों से कार्य करा रहा हूँ। *स्वरूप में नशा रहे तो स्वतः ही यह सब कर्मेन्द्रियाँ आपके आगे जी हाजिर, जी हजूर स्वतः ही करेंगी। मेहतन नहीं करनी पडेगी।*
〰✧ *आज व्यर्थ संकल्प को मिटाओ, आज संस्कार को मिटाओ, आज निर्णय शक्ति को प्रगट करो।* एक धक से सब कर्मेन्द्रियाँ और मन-बुद्धि-संस्कार जो आप चाहते हैं, वह करेंगी। अभी कहते हैं ना - बाबा चाहते तो यह हैं लेकिन अभी इतना नहीं हुआ है. फिर कहेंगे जो चाहते हैं वह हो गया, सहज।
〰✧ तो समझा क्या करना है? *अपने अधिकार की सिद्धियों को कार्य में लगाओ। ऑर्डर करो संस्कार को।* संस्कार आपको क्यों ऑर्डर करता? संस्कार नहीं मिटता, क्यों? बंधा हुआ है संस्कार आपके ऑर्डर में। *मालिक-पन लाओ।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ आप ध्यान रखो तो जैसी-जैसी परिस्थिति उसी प्रमाण अपनी प्रैक्टिस बढ़ा सकते हो। इस अभ्यास में तो सभी बच्चे हैं। *वास्तव में बिन्दु-रूप में स्थित होना कोई मुश्किल बात नहीं है।* बिन्दु रूप तो है ही न्यारा। निराकार भी है तो न्यारा भी है। *आप भी निराकारी और न्यारी स्थिति में स्थित होंगे तो बिन्दु रूप का अनुभव करेंगे। चलते-फिरते अव्यक्त स्थिति का अनुभव कर सकते हो।* प्रैक्टिस ऐसी सहज हो जायेगी कि जब भी चाहो तभी अव्यक्ति स्थिति में ठहर जाओगे। *एक सेकण्ड के अनुभव से कितनी शक्ति अपने में भर सकते हो वह भी अनुभव करेंगे और ब्रेक देने, मोड़ने की शक्ति भी अनुभव में आ जायेगी।* तो बिन्दु रूप का अनुभव कोई मुश्किल नहीं है। *संकल्प ही नीचे लाता है, संकल्प को ब्रेक देने की पावर होगी तो ज्यादा समय अव्यक्त स्थिति में स्थित रह सकेंगे।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- कभी भी मिथ्या अहंकार में नहीं आना"*
➳ _ ➳ *परमात्म मिलन की खुशी में मेरा तन मन आनंद मगन हो रहा है... डायमंड हॉल में मैं आत्मा अपने शिव साजन से मिलन मनाने के लिए बैठी हुई हूँ...* सामने स्टेज पर दादी के तन में शिव बाबा बैठे हैं... पुरे हॉल में बस मैं और मेरे बाबा हैं... बड़े प्यार से बाबा मुझे स्टेज पर बुलाते हैं... मैं फ़रिश्ता बापदादा के बिल्कुल सम्मुख बैठा हूँ... उनकी स्नेह भरी मुस्कान पाकर मैं आत्मा निहाल हो रही हूँ... *अपना प्यार भरा हाथ मेरे सिर पर फिराकर बाबा मुझे सर्व खजानों से, सर्व सुखों से भरपूर कर रहे हैं...*
❉ *मुझ नन्हे फरिश्ते को अपनी स्नेहमयी गोदी में बिठाकर शिव बाबा मां के रूप में कहते हैं:-* "मीठे प्यारे बच्चे... यह श्रेष्ठ और ऊंचे से ऊंचा ज्ञान स्वयं भगवान तुम्हें सुना रहे हैं... *इस ज्ञान में गंभीरता का गुण धारण करना बहुत जरूरी है... कभी भी अपना अभिमान नहीं आना चाहिए... माताओं का रिगार्ड रखना है...*
➳ _ ➳ *अपनी मीठी मां की गोद में बैठ अपार सुख पाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "प्राणाधार मीठे बाबा... मैं आत्मा सदैव आपकी श्रीमत को अपने जीवन में धारण कर रही हूँ... इस *ज्ञान की एक-एक पॉइंट पर गहराई से चिंतन करते हुए, विचार सागर मंथन करके इसे आत्मसात कर रही हूँ...* ज्ञान में *रमणीकता और गंभीरता का गुण धारण कर रही हूँ...* आपने ज्ञान कलश माताओं के सिर पर रखा है... इसलिए मैं आत्मा माताओं का ही रिगार्ड रख रही हूँ... अहंकार अभिमान से मुक्त होती जा रही हूँ...
❉ *ज्ञान की शीतल फुहारों से मुझ आत्मा की प्यास बुझाते हुए सतगुरु बाबा कहते हैं:-* "मीठे सिकीलधे बच्चे... तुम्हें सतयुगी सुखों की दुनिया में ले जाने के लिए बाबा आए हैं... तुम बच्चे *इस ज्ञान को अच्छी रीति धारण करो... कभी भी ब्राह्मणी से रूठना नहीं है... रूठ करके तुम्हें कभी भी पढ़ाई नहीं छोड़नी है... पढ़ाई अगर छोड़ेंगे तो रसातल में चले जाओगे...* बाबा आए हैं ज्ञान सुनाने तो यह ज्ञान सुनना चाहिए... जैसे भक्ति में गीता आदि कितने नियम से सुनते हैं, वैसे ही तुम्हें भी *नियम से ज्ञान मुरली सुननी है... और बाबा की याद में रहना है... याद से ही बुद्धि का ताला खुलेगा..."*
➳ _ ➳ *बाबा से मिले एक एक ज्ञान रत्न को बुद्धि रूपी पात्र में धारण करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "प्यारे बाबा... आपने मुझे अपना बनाकर मेरे जीवन में जैसे कि खुशियों की बहार ला दी है... *मैं कितनी भाग्यवान आत्मा हूँ... जो स्वयं ईश्वर पिता ने मुझे अपनी गोदी में बिठा लिया है...* मैं आत्मा आपके द्वारा दिए गए ज्ञान को ही धारण कर रही हूँ... नियम से ज्ञान मुरली सुन रही हूँ... *मुरली के एक एक महावाक्य पर मनन करके उसे जीवन में समा रही हूँ...* आपकी याद से मेरे सभी विकर्म भस्म होते जा रहे हैं..."
❉ *मुझ आत्मा को दिव्य गुणों और शक्तियों के गहनों से सजाते हुए शिव मां कहती है:-* "नैनों की नूर प्यारे बच्चे... *यदि बाबा की याद नहीं रहेगी तो माया रूपी ग्राह हप कर लेगा... इस ज्ञान में बहुत गंभीरता चाहिए... और अभिमान नहीं आना चाहिए कि मैं ही जानता हूँ...* जितना हो सके हर बात में माताओं को आगे रखना है... माताओं का रिगार्ड रखना है... आपस में एकमत होकर रहना है... *क्रोध बहुत नुकसान करता है... इसलिए कभी भी क्रोध नहीं करना है... बहुत बहुत मीठा बनना है..."*
➳ _ ➳ *प्रभु पिता की पालना में पलकर खुशी में झूमती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मीठे बाबा... मैं आत्मा हर समय आपकी ही मीठी यादों में समाई हुई हूँ... *आपकी याद रूपी कवच में मैं माया के हर वार से पूरी तरह सुरक्षित हूँ...* अहंकार और अभिमान से पूरी तरह मुक्त होती जा रही हूँ... माताओं को हर बात में स्नेह और रिगार्ड दे रही हूँ... *आपस में बहुत स्नेह से एकमत होकर चल रही हूँ... क्रोध आदि विकारों से मुक्त होकर जीवन में मधुरता का गुण धारण कर रही हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- दिन - रात बुद्धि में ज्ञान घूमता रहे*"
➳ _ ➳ अपने आश्रम के क्लास रूम में, अपने परम शिक्षक शिव पिता परमात्मा के मधुर महावाक्य सुनने के बाद, ज्ञान के सागर, अपने प्यारे बाबा से मिलने वाले *अविनाशी ज्ञान रत्नों के बारे में विचार सागर मन्थन करते हुए, एकाएक शास्त्रों में लिखी एक बात स्वत: ही स्मृति में आने लगती है जिसमे कहा गया है "कि समुंद्र मन्थन में, समुंद्र को मथने से जो अमृत निकला था उसे पीकर देवता सदा के लिए अमर बन गए थे"*। भक्ति में कही हुई यह बात स्मृति आते ही मैं विचार करती हूँ कि वास्तव में वो अमृत तो यह ज्ञान अमृत है जो इस समय भगवान द्वारा दिये जा रहे ज्ञान का मंथन करके हम ब्राह्मण बच्चे प्राप्त कर रहें है और इस अमृत को पीकर भविष्य 21 जन्मो के लिए "सदा अमर भव" के वरदान के अधिकारी बन रहें हैं।
➳ _ ➳ तो कितने पदमापदम सौभाग्यशाली है हम ब्राह्मण बच्चे जो इस ज्ञान अमृत को पीकर अमर बन रहें हैं। *मन ही मन अपने भाग्य की सराहना करती, ज्ञान अमृत पिला कर, सदा के लिए अमर बनाने वाले, ज्ञान के सागर अपने प्यारे पिता का दिल से शुक्रिया अदा करके, मैं उनकी याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करती हूँ* और ज्ञान सागर में डुबकी लगाने के लिए, एक चमकता हुआ चैतन्य सितारा बन अपने अकाल तख्त को छोड़, देह की कुटिया से बाहर आकर, सीधा ऊपर आकाश की ओर चल पड़ती हूँ।
➳ _ ➳ आकाश को पार करके, मैं सूक्ष्म लोक में प्रवेश करती हूँ और इस लोक को भी पार करके ज्ञान सागर अपने शिव पिता के पास उनके धाम में पहुँच जाती हूँ। *इस शान्ति धाम घर में आकर मुझे ऐसा लग रहा हूँ जैसे शांति की शीतल लहरें बार - बार आकर मुझ आत्मा को छू रही हैं और मुझे गहन शीतलता और असीम सुकून दे रही हैं*। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे एक छोटा बच्चा सागर के किनारे खड़ा, सागर की लहरों के साथ खेल रहा है और उस खेल का भरपूर आनन्द ले रहा हैं, *ऐसे ही मैं आत्मा शान्ति के सागर अपने शिव पिता की शान्ति की लहरों से खेलते हुए असीम आनन्द ले रही हूँ*
➳ _ ➳ शान्ति की गहन अनुभूति करते - करते, मैं आत्मा ज्ञान, गुणों और शक्तियों के सागर अपने शिव पिता से ज्ञान के अखुट ख़ज़ाने अपनी बुद्धि रूपी झोली में भरने के लिए और स्वयं को गुणों और शक्तियों से भरपूर करने के लिए अब बिल्कुल उनके समीप पहुँच जाती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ। *अनन्त रंग बिरंगी किरणों के रूप में ज्ञान सागर शिव बाबा से ज्ञान की नीले रंग की फुहारे, और सर्वगुणों, सर्वशक्तियों की इंद्रधनुषी रंगों की शीतल फुहारे मुझ पर बरस रही है*। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा ज्ञान, गुण और शक्तियों की शक्तिशाली किरणे मुझ आत्मा में प्रवाहित कर मुझे आप समान मास्टर ज्ञान का सागर बना रहे हैं।
➳ _ ➳ सर्वगुण, सर्वशक्तिसम्पन्न बनकर, अपनी बुद्धि रूपी झोली को ज्ञान के अखुट ख़ज़ानों से भरकर मैं वापिस अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ और आकर अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। *"मैं गॉडली स्टूडेंट हूँ" सदा इस स्मृति में रहते हुए मैं आत्मा अब अपने ब्राह्मण जीवन मे ज्ञान के सागर शिवबाबा से प्रतिदिन मुरली के माध्यम से प्राप्त ज्ञानधन को जीवन मे धारण कर ज्ञानस्वरूप आत्मा बनती जा रही हूँ*। ज्ञान ख़ज़ानों से सम्पन्न होकर, परमात्म ज्ञान को मैं आत्मा अपने कर्मक्षेत्र व कार्य व्यवहार में प्रयोग करके अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को सहज ही व्यर्थ से मुक्त कर, उन्हें समर्थ बना कर समर्थ आत्मा बनती जा रही हूँ।
➳ _ ➳ *बुद्धि में सदा ज्ञान का ही चिंतन करते, ज्ञान के सागर अपने शिव पिता के ज्ञान की लहरों में शीतलता, खुशी व आनन्द का अनुभव करते, ज्ञान की हर प्वाइंट को अपने जीवन मे धारण कर मैं आत्मा ज्ञान सम्पन्न बनती जा रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य के नशे और खुशी में रहने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं पद्मापदम भाग्यशाली आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा सदैव खुशी के ही समर्थ संकल्प करती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा तन और मन को सदा खुश रखती हूँ ।*
✺ *मैं खुशनुमा, खुशनसीब आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *अब बापदादा सभी बच्चों से यही चाहते हैं कि बाप के प्यार का सबूत समान बनने का दिखाओ। सदा संकल्प में समर्थ हो, अब व्यर्थ के समाप्ति समारोह मनाओ क्योंकि व्यर्थ समर्थ बनने नहीं देंगे और जब तक आप निमित्त बने हुए बच्चे सदा समर्थ नहीं बने हैं तो विश्व की आत्माओं को समर्थी कैसे दिलायेंगे!* सर्व आत्मायें शक्तियों से बिल्कुल खाली हो, शक्तियों की भिखारी बन चुकी हैं। ऐसे भिखारी आत्माओं को हे समर्थ आत्मायें, इस भिखारीपन से मुक्त करो। *आत्मयें आप समर्थ आत्माओं को पुकार रही हैं - हे मुक्तिदाता के बच्चे मास्टर मुक्तिदाता, हमें मुक्ति दो। क्या यह आवाज आपके कानों में नहीं पड़ता?* सुनने नहीं आता? अब तक अपने को ही मुक्त करने में बिजी हैं क्या? विश्व की आत्माओं को बेहद स्वरूप से मास्टर मुक्तिदाता बनने से स्वयं की छोटी-छोटी बातों से स्वतः ही मुक्त हो जायेंगे। *अब समय है कि आत्माओं की पुकार सुनो। पुकार सुनने आती है या नहीं आती है? परेशान आत्माओं को सुख- शान्ति की अंचली दो। यही है ब्रह्मा बाप को फालो करना।*
✺ *ड्रिल :- "भिखारी आत्माओं को भिखारीपन से मुक्त करने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *मैं फरिश्ता मास्टर मुक्तिदाता की स्मृति में विश्व के ग्लोब पर हूँ... ऊपर हैं ज्ञान सूर्य शिवबाबा... उनसे निरन्तर सुख शांति की किरणें मुझ आत्मा पर आ रही हैं... मैं आत्मा इन समर्थ शक्तिशाली किरणों से भरपूर हो रही हूँ...* मुझ आत्मा से शांति और शक्ति के वायब्रेशन्स चारों ओर फैल रहें हैं... मैं आत्मा फरिश्ता स्वरूप द्वारा ग्लोब पर बैठ कर परमधाम की स्थिति में स्थित होकर सारे विश्व की आत्माओं को सकाश दे रही हूँ...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा विश्व का नव निर्माण करने वाली आधारमूर्त आत्मा हूँ... मैं आत्मा स्व का परिवर्तन कर रही हूँ... मैं आत्मा विश्व की दुःखी, अशांत, परेशान आत्माओं को सुख शांति की अंचली दे रही हूँ...* मैं आत्मा इस बेहद ड्रामा में हीरो एक्टर हूँ... मैं आत्मा हीरों तुल्य जीवन जीने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ... यह नशा मेरी हर एक्ट को समर्थ बना देता है... मैं आत्मा अपनी समर्थ स्थिति द्वारा व्यर्थ से पूरी तरह मुक्त हो गई हूँ...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा को बापदादा के महावाक्य याद आते हैं... बाबा कहते हैं- *बच्ची, तुम मास्टर मुक्तिदाता हो... तुम्हें स्वयं को परिवर्तन कर... सर्व आत्माओं को मुक्ति दिलाने के निमित्त बनना है...* मैं आत्मा विश्व की समस्त दुःखी, हताश, परेशान, अशांत... भिखारी आत्माओं को दुःखों से, अशांति से... मुक्ति दिला रही हूँ... मैं अपने फरिश्ते स्वरूप द्वारा पवित्र वायब्रेशन्स विश्व की सर्व आत्माओं को दे रही हूँ... उनके दुःख दूर कर रही हूँ...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ब्रह्मा बाबा को फॉलो कर रही हूँ...* उनकी तरह सदा एकरस... अचल... अडोल... निश्चिन्त रहती हूँ... जैसे ब्रह्मा बाबा चाहे जैसी भी आत्मा हो... हरेक के प्रति उनकी सहयोग की भावना रहती थी... वैसे ही *मैं आत्मा सर्व की सहयोगी बन रही हूँ... मन से... सर्व के प्रति श्रेष्ठ व शुभ भावना रख रही हूँ...* किसी भी आत्मा के प्रति इर्ष्या, द्वेष या घृणा की भावना नहीं रखती...
➳ _ ➳ मैं आत्मा विश्व कल्याणकारी बन हर आत्मा के प्रति रहम की भावना... शुभ भावना... शुभ कामना रख रही हूँ... मुझ आत्मा के हर बोल से... हर कर्म से निरुत्साहित आत्मा के जीवन में भी उमंग उत्साह भर रहा है... *बाबा मेरे साथ कंबाइंड हैं... मेरे साथ हैं... उनके साथ की अनुभूति में रहती हूँ... सदा इस स्मृति में... स्वमान में रह चारों और सुख शांति के वायब्रेशन्स फैलाकर... दुःखी, अशांत आत्माओं को दुःखों से मुक्त कर रही हूँ... मुझ आत्मा से निकलती शक्तियों की अद्भुत किरणें हर आत्मा तक पहुँच कर उन्हें तृप्त कर रही हैं...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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