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 18 / 01 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *ज्ञान तलवार में याद का जोहर भरा ?*

 

➢➢ *योगबल से कर्मभोग चुक्तु किया ?*

 

➢➢ *"ड्रामा में जो होता है... वह ठीक है..." - ऐसा अनुभव किया ?*

 

➢➢ *आत्माओं की युक्ति युक्त सेवा की ?*

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*अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *अभी एकाग्रता का दृढ़ संकल्प करने वाला ग्रुप तैयार होना चाहिए,* जो सागर के तले में जाकर अनुभव के हीरे, मोती लेकर आये। *लहरों में लहराने का अनुभव तो किया अब अन्दर तले में जाना है। अमूल्य खजाने तले में मिलते हैं, इससे आटोमेटिक सब बातों से किनारा हो जायेगा।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बापदादा के साथ रहने वाली सदा विजयी आत्मा हूँ"*

 

✧   सदा अपने को बापदादा के साथी समझते हो? *जब सदा बाप का साथ अनुभव होगा तो उसकी निशानी है - 'सदा विजयी'। अगर ज्यादा समय युद्ध में जाता है, मेहनत का अनुभव होता है तो इससे सिद्ध है - बाप का साथ नहीं। जो सदा साथ के अनुभवी हैं वे मुहब्बत में लवलीन रहते हैं।*

 

  प्रेम के सागर में लीन आत्मा किसी भी प्रभाव में आ नहीं सकती। माया का आना यह कोई बड़ी बात नहीं लेकिन वह अपना रूप न दिखाये। *अगर माया की मेहमान-निवाजी करते हो तो चलते-चलते 'उदासी' का अनुभव होगा। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे न आगे बढ़ रहे हैं न पीछे हट रहे हैं। पीछे भी नहीं हट सकते, आगे भी नहीं बढ़ सकते - यह माया का प्रभाव है।*

 

  माया की आकर्षण उड़ने नहीं देती। पीछे हटने का तो सवाल ही नहीं लेकिन अगर आगे नहीं बढ़ते तो बीज को परखो और उसे भस्म करो। *ऐसे नहीं - चल रहे हैं, आ रहे हैं, सुन रहे हैं, यथाशक्ति सेवा कर रहे हैं। लेकिन चेक करो कि अपनी स्पीड और स्टेज की उन्नति कहाँ तक है।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  5 सेकण्ड कभी भी निकाल सकते हो या नहीं? *ऐसा कोई बिजी है, जो 5 सेकण्ड भी नहीं निकाल सके!* है कोई तो हाथ उठाओ। फिर तो नहीं कहेंगे - क्या करें टाइम नहीं मिलता? यह तो नहीं कहेंगे ना! टाइम नहीं मिलता है? *तो यह एक्सरसाइज बीच-बीच में करो।*

 

✧  *किसी भी कार्य में हो 5 सेकण्ड की यह मन की एक्सरसाइज करो। तो मन सदा ही दुरुस्त रहेगा, ठीक रहेगा।* वापदादा तो कहते हैं - हर घण्टे में यह 5 सेकण्ड की एक्सरसाइज करो। हो सकती है? देखो, सभी कह रहे हैं - हो सकती है। याद रखना। ओम शान्ति भवन याद रखना, भूलना नहीं तो जो मन की भिन-भिन्न कम्पलेन है ना!

 

✧  क्या करें मन नहीं टिकता! मन को मण बना देते हो। वजन करते हैं ना! पहले जामने में पाव, सेर और मण होता था, आजकल बदल गया है। तो *मन को मण बना देते हैं बोझ वाला और यह एक्सरसाइज करते रहेंगे तो बिल्कुल लाइट हो जायेंगे।* अभ्यास हो जायेगा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *बीजरूप स्तिथि में स्तिथ रहेंगे तो अनेक आत्माओं में समय की पहचान और बाप की पहचान का बीज पड़ेगा।* अगर बीजरूप स्थिति में स्थित न रहे, सिर्फ विस्तार में चले गए  तो क्या होगा? *ज्यादा विस्तार से भी वैल्यु नहीं रहेगी, व्यर्थ हो जायेगा। इसलिए बीजरूप स्थिति में स्थित हो बीजरूप की याद में स्थित हो, फिर बीज डालो। फिर देखना, यह बीज का फल कितना अच्छा और सहज निकलता है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- एक बाप की याद से सुप्रीम बनना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बगीचे में झूले में बैठ रिमझिम बरसात की फुहारों का मजा ले रही हूँ... और अपने रूहानी माशूक की यादों की ठंडी-ठंडी फुहारों में भीग रही हूँ... मुझ पर सुख-शांति की बरसात कर मेरे जीवन की कालिमा को मिटाने वाले मेरे माशूक बाबा के पास पहुँच जाती हूँ मधुबन बाबा के कमरे में...* मेरे ही इन्तजार में बैठे हुए बाबा मुझे अपने साथ झूले में बिठाकर मीठी शिक्षाओं के झूले में झुलाते हैं...

 

  *अपने प्यार की लहरों में मुझे लहराते हुए प्यार के सागर मेरे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... देहधारियों की याद तो अपवित्रता से भर देगी... मीठे बाबा की यादो में ही पावनता को पाएंगे... *जितना इन यादो में स्वयं को भिगोएंगे उतना पवित्र बन देवताई सुंदरता से छलकेंगे... इसलिए सच्चे आशिक बन एक माशूक की मीठी यादो में खो जाओ...”*

 

_ ➳  *सच्ची-सच्ची रूहानी आशिक बन मीठे यादों के सागर में खोकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा सच्चे प्यार की बाँहों में सच्चे प्रेम की अनुभूतियों में खोयी हुई हूँ... *ईश्वर मनमीत को पाकर मीठे भाग्य के नशे में डूबी हूँ... देहधारियों की यादो में अपवित्र हो गई थी... अब पावनता से निखर रही हूँ...”*

 

  *अनेकों में फंसे हुए मेरे मन-बुद्धि को निकाल अपने दिल में कैद करते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देहधारियों से जो इतनी प्रीत निभायी तो क्या पाया... अपना दामन विकारो की कालिमा से मैला कर दिया... *अब ईश्वर पिता के सच्चे प्रेम के आनन्द में डूब जाओ... और जनमो की थकी अतृप्त आत्मा को प्रेम रस से सदा का सिक्त करो...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा के रूहानी चितवन में मीठी मुस्कान भरकर मीठे बाबा से कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा सच्चे को देह के मटमैले नातो में खोज रही थी और कलुषित हो गई... *आपने प्यारे बाबा मुझे अपने कलेजे से लगाया है और रोम रोम को सच्ची खुशियो से भर दिया है... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में खोयी हूँ...”*

 

  *सच्चे सुखों की अविनाशी सौगात देकर मुझे मालामाल करते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *मीठे बाबा को हर पल याद करो... यह यादे ही सच्चे सुखो का आधार है... इन यादो में ही मीठे प्यार की खुशबु है जो आत्मा को गुणो और शक्तियो से पोषण करेगी... और 21 जनमो तक आत्मा प्रेम से भरपूर हो मुस्करायेगी...* देहधारियों की यादे तो ठगकर कंगाल बना जायेगी...

 

_ ➳  *मधुबन के आंगन की खुशबू से हर आत्मा के मन मंदिर को सुवासित करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्रेम में किस कदर खिल उठी हूँ... *मेरा रूहानी रंग रूप देख देख दुनिया चकित सी है... मीठे मनमीत का पता देकर मै आत्मा सबको ईश्वरीय दिलरुबा बना रही हूँ... प्यार के सागर से हर प्यासे दिल को सच्चा प्रेम दिलवा रही हूँ...”*

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- आत्माओं की युक्ति युक्त सेवा करना*"

 

_ ➳  अपने संगमयुगी ब्राह्मण जीवन की अमूल्य प्राप्तियों को स्मृति में ला कर मैं विचार करती हूँ कि कितनी सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा। जिस भगवान को आज दिन तक दुनिया ढूंढ रही है। पहाड़ो पर, कन्दराओं में, गुफाओं में ना जाने कहाँ - कहाँ उसे पाने की कोशिश में भटक रही है वो भगवान मुझे घर बैठे मिल गया। *मेरे तो दिन की शुरुवात ही भगवान के उठाने से होती है, दिन में भी हर कर्म करते वो निरन्तर मेरे साथ रहते हैं और रात को अपनी सुखमय मीठी गोद मे सुला कर, मेरी दिन भर की सारी थकान हर लेते हैं*। एकांत में बैठी अपने इस सर्वश्रेष्ठ सौभाग्य को याद करके मैं आनन्दित हो रही हूँ ।

 

_ ➳  किन्तु तभी एक - एक करके अनेक मुरझाए हुए, निराश, दुख से पीड़ित आत्माओं के चेहरे मेरी आँखों के सामने आने लगते हैं जो मेरे ही सम्बन्ध, सम्पर्क में आने वाली अनेक आत्माओं के चेहरे हैं। उनके मायूस चेहरों को देख कर मन मे संकल्प आता है कि इन्हें भी अगर भगवान मिल जाये तो इनके मुरझाए चेहरे भी खिल उठेंगे। जो जीवन इनके लिए बोझ बन चुका है अपने उस जीवन को ये भी आनन्द से जी सकेंगे और *बाबा का फरमान भी है कि मेरे बिछुड़े हुए बच्चों को मुझ से मिलवाना तुम ब्राह्मणों का कर्तव्य है। इस कर्तव्य को पूरा करने के लिए मैं अपना लाइट का फ़रिशता स्वरूप धारण करती हूं और ईश्वरीय वरदानों से स्वयं को सम्पन्न बनाने के लिए अव्यक्त बापदादा के अव्यक्त वतन की ओर चल पड़ती हूँ*।

 

_ ➳  अब मैं फ़रिशता सूक्ष्म वतन में अव्यक्त बापदादा के सम्मुख हूँ और उनके वरदानी हस्तों से वरदान ले कर स्वयं को भरपूर कर रहा हूँ। अपनी सर्वशक्तियों से, अपनी लाइट माइट से वो मुझे भरपूर कर रहें हैं। उनकी पावन दृष्टि मुझ में असीम बल और शक्ति का संचार कर रही है। *स्वयं को सर्वशक्तियों से भरपूर करके, सर्वशक्ति सपन्न स्वरूप बन कर अब मैं अपने प्यारे मीठे बाबा को अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को भी परमात्म पालना का अनुभव कराने का आग्रह करता हूँ*। बाबा मुस्कराते हुए अब उन सभी आत्माओं को वतन में इमर्ज कर देते हैं।

 

_ ➳  मैं देख रहा हूँ अपने सामने उन सभी हताश, निराश आत्माओं को और उन्हें धैर्य दे रहा हूँ कि अब वो भी परमात्म पालना में पलने का सुख प्राप्त करके अपने हर दुख और पीड़ा से मुक्त हो जायेंगी। *अब मैं फ़रिशता उन आत्माओं के बीच मे बैठ जाता हूँ और अपने सिर के ऊपर प्यारे बापदादा की छत्रछाया को स्पष्ट अनुभव कर रहा हूँ*। बाबा के साथ कनेक्शन जोड़ते ही सर्वशक्तियों का झरना जैसे फुल फोर्स से मुझ फ़रिश्ते के ऊपर बरसने लगा है। मैं देख रहा हूँ *बाबा से आ रही ये सर्वशक्तियों की किरणें मुझ फ़रिश्ते पर पड़ कर, छोटे छोटे चमकीले सितारों के रूप में फिर मुझ से निकल कर उन सभी आत्माओं के ऊपर बरस रही हैं*।

 

_ ➳  मेरे श्वेत प्रकाश की काया से निकलते यह छोटे छोटे चमकीले सितारे ऐसे लग रहे हैं जैसे बाबा मुझ फरिश्ते को निमित्त बनाकर मेरे द्वारा इन सर्वशक्तियों को अपने सभी बच्चों तक पहुंचा कर उन्हें संपूर्ण पावन और सर्वगुणसंपन्न बना रहे हैं। *मुझ से निकल रही पवित्रता, सुख शांति, शक्ति सम्पन्न किरणे मेरे सामने बैठी इन सभी आत्माओं के चित को छू कर उन्हें पवित्र बना रही हैं*। सुख, शांति का अनुभव करवा रही हैं। मैं देख रहा हूँ सबके मुरझाये हुए चेहरों पर अब एक रौनक आ गई है। परमात्म पालना का अनुभव करके वो सब जैसे तृप्त हो गई है।

 

_ ➳  उन सभी आत्माओं को परमात्म प्यार के सुख की अनुभूति करवा कर अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट रही हूँ । अपने संपर्क में आने वाली सभी आत्माओं को अब *मैं परमात्म परिचय दे कर और उन्हें ईश्वरीय अलौकिक स्नेह, शक्ति, गुण और सहयोग की लिफ्ट की गिफ्ट द्वारा उन्हें उनके लंबे काल से बिछुड़े परमात्मा बाप से मिलवाकर उन्हें भी सुख, शांति के वर्से की अधिकारी आत्मा बना रही हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं स्नेह के पीछे सर्व कमजोरियों को कुर्बान करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं समर्थी स्वरूप आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सदैव संकल्प वा स्वप्न में भी एक दिलाराम की याद में रहती हूँ  ।*

   *मैं सच्ची तपस्वी आत्मा हूँ  ।*

   *मैं सहज योगी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. बापदादा को चारों ओर के बच्चों से अभी तक एक आश रही हुई है। बतायें वह कौन-सी आश हैजान तो गये हो! टीचर्स जान गई हो ना! सभी बच्चे यथा शक्ति पुरुषार्थ तो कर रहो हो। *बापदादा पुरुषार्थ को देख करके मुस्कराते हैं। लेकिन एक आश यह है कि पुरुषार्थ में अभी तीव्र गति चाहिए। पुरुषार्थ है लेकिन अभी तीव्रगति चाहिए। इसकी विधि है - 'कारणशब्द समाप्त हो जाए और निवारण स्वरूप सदा बन जायें।* कारण तो समय अनुसार बनते ही हैं और बनते रहेंगे। लेकिन आप सब निवारण स्वरूप बनो क्योंकि आप सभी बच्चों को विश्व के निवारण कर सभी कोमैजारिटी आत्माओं को निर्वाणधाम भेजना है। तो जब स्वयं को निवारण स्वरूप बनाओ तब विश्व की आत्माओं को निवारण स्वरूप द्वारा सब समस्याओं का निवारण कर निर्वाणधाम में भेज सकेंगे। अभी विश्व की आत्मायें मुक्ति चाहती हैं तो बाप द्वारा मुक्ति का वर्सा दिलाने वाले निमित्त आप हो। तो निमित्त आत्मायें पहले स्वयं को भिन्न-भिन्न समस्याओं के कारण को निवारण कर मुक्त बनायेंगे तब विश्व को मुक्ति का वर्सा दिला सकेंगे। तो मुक्त हैंकिसी भी प्रकार की समस्या का कारण आगे नहीं आयेयह कारण हैयह कारण हैयह कारण है... जब कोई कारण सामने बनता है तो कारण का सेकण्ड में निवारण सोचोयह सोचो कि जब विश्व का निवारण करने वाली हूँ तो क्या स्वयं की छोटी-छोटी समस्याओं का स्वयं निवारण नहीं कर सकती! नहीं कर सकता! अभी तो आत्माओं की क्यू आपके सामने आयेगी 'हे मुक्तिदाता मुक्ति दोक्योंकि मुक्ति दाता के डायरेक्ट बच्चे हो, अधिकारी बच्चे हो। मास्टर मुक्तिदाता तो हो ना। लेकिन क्यू के आगे आप मास्टर मुक्तिदाताओं के तरफ से एक रुकावट का दरवाजा बन्द है। क्यू तैयार है लेकिन कौन-सा दरवाजा बन्द हैपुरुषार्थ में कमजोर पुरुषार्थ काएक शब्द का दरवाजा हैवह है 'क्यों'। क्वेश्चन मार्क (?)क्यों, यह 'क्योंशब्द अभी क्यू को सामने नहीं लाता। *तो बापदादा अभी देश-विदेश के सभी बच्चों को यह स्मृति दिला रहे हैं कि आप समस्याओं का दरवाजा 'क्यों', इसको समाप्त करो।*

 

 _ ➳  2. *हर एक समझें मुझे करना है। टीचर्स समझें मुझे करना हैस्टूडेन्ट समझें मुझे करना हैप्रवृत्ति वाले समझें मुझे करना है, मधुबन वाले समझें हमें करना हैं।* कर सकते हैं नासमस्या शब्द ही समाप्त हो जायेकारण खत्म होके निवारण आ जाए।

 

 _ ➳  3. *कुछ भी होसहन करना पड़ेमाया का सामना करना पड़ेएक-दो के सम्बन्ध-सम्पर्क में सहन भी करना पड़ेमुझे समस्या नहीं बनना है।*   

 

✺   *ड्रिल :-  "पुरुषार्थ की गति में तीव्रता का अनुभव"*

 

 _ ➳  *अमृतवेले मै आत्मा बाबा को गुड मॉर्निंग कह, एक एकांत स्थान पर बैठ, अंतर्मन की गहराइयों से प्यारे बाबा को याद करती हूँ...*  मै आत्मा मस्तक में चमकता हुआ सितारा इस देह से न्यारी हो, उड़ती चली जा रही हूँ... उड़ते-उड़ते मै आत्मा सामने से चमकते हुए वस्त्र में बाबा को आता हुआ अनुभव कर रही हूँ... *सामने से आते हुए बाबा मुस्कुराते हुए मुझ आत्मा का आह्वान कर रहे है...* 

 

 _ ➳  मै आत्मा झट से बाबा की गोद में जाकर बैठ जाती हूँ... *बाबा का स्पर्श पाते ही उन से निकलती हुई दिव्य शक्तियाँ मुझ आत्मा में प्रवाहित होने लगती है... इन शक्तियॉ को समाती हुई मै आत्मा एक दम फरिश्ता स्वरुप हल्की होती जा रही हूँ...* बाबा मुझ आत्मा को सूक्ष्मवतन की सैर करवाते है... चारो तरफ प्रकाश ही प्रकाश दिखाई दे रहा है... फ़रिश्ते ही फ़रिश्ते दिखाई दे रहे है... बाबा मुझ आत्मा को एक ऐसे स्थान पर ले जाते है जहाँ फ़रिश्ते गोला बना कर बैठे है, और बीच में बाबा बैठ जाते है... आ जाओ बच्ची अपना स्थान ग्रहण करो, इस फरिश्तों की दुनिया में तुम्हारा स्वागत है... मै फरिश्ता स्वरुप आत्मा उस गोले में बैठ जाती हूँ...  

 

 _ ➳  बाबा के नैनो से वा मस्तक से निकलती हुई तेजोमय किरणों से फरिश्तो के चारो ओर एक गोला बनता जा रहा है... इस गोले में बैठी हुई मै फरिश्ता स्वरुप आत्मा बाबा से निकलती हुई दिव्य गुणों वा शक्तियों को अपने में समाती जा रही हूँ... *इन शक्तियों में समाई हुई मै आत्मा अपने सामने सृष्टि के चक्र को फिरता हुआ देख रही हूँ...* इस चक्र के द्वारा मुझ आत्मा में 5000 वर्ष पहले वाली स्मृतियाँ जागृत हो रही है... मै आत्मा दिव्य दृष्टि द्वारा अपने 5000 वर्ष पहले वाले देव स्वरूप को स्पष्ट देख रही हुँ... *जैसे-जैसे चक्र आगे फिरता जा रहा है, मै त्रिकालदर्शी आत्मा अपने पूरे 84 जन्मो को जान गई हूँ...* 

 

 _ ➳  *मै साधारण नही, देव आत्मा हूँ... मै भाग्यशाली आत्मा हूँ, स्वयं भाग्य विधाता मुझ आत्मा को कर्मो की गुह्य गति को समझा श्रेष्ठ भाग्य बनाने की विधि बता रहे है...* मै विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ... इन स्मृतियो के साथ मैं आत्मा पुनः अपने पुराने शरीर में प्रवेश करती हूँ... मै ब्राह्मण आत्मा हूँ... मुझ आत्मा को स्व परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन के कार्य में बाबा का सहयोगी बनना है... *अपने आदि स्वरुप को स्मृति में रख मै आत्मा काम चिता से उतर ज्ञान चिता पर बैठ जाती हूँ...*    

 

 _ ➳  इस योग अग्नि में मुझ आत्मा से विकारो रुपी खाद निकलती जा रही है... *इस योग अग्नि में तप मै आत्मा सच्चा सोना बनती जा रही हूँ...* अब इस योग अग्नि द्वारा मुझ आत्मा की कृति, दृष्टि, वृत्ति वा संकल्प शुद्ध बन गए है... अब मैं आत्मा कारण को समाप्त कर निवारण स्वरुप बन गयी हूँ... मै आत्मा संतुष्टमणि बन हर परिस्थिति में समाधान स्वरुप बन तीव्र पुरुषार्थ द्वारा निरतंर आगे बढ़ती जा रही हूँ... *मै आत्मा अपने देव स्वरुप को बुद्धि द्वारा अनुभव करती रॉकेट की भांति हर आकर्षण को चीरती हुई पुरानी दुनिया से अलग होती जा रही हूँ...* 

 

 _ ➳  मै मास्टर मुक्तिदाता आत्मा सर्व प्रकार के क्यों, क्या रुकावट रुपी दरवाजो को समाप्त कर, इस पुरानी दुनिया में स्वयं को मेहमान समझ क्यू में खड़ी सभी दुखी आत्माओ को निमित्त भाव से मुक्ति का रास्ता बताती जा रही हूँ... *मैने भगवान को नही ढूंढा, भगवान ने स्वयं मुझे ढूँढा है... मैं आत्मा श्रीमत पर चलते हुए परमात्मा के कार्य में सहयोगी बन रही हूँ... सभी विकारो का त्याग कर तीव्र पुरुषार्थी बन, पवित्रता को धारण कर पवित्र दुनिया में चलने के लिए तैयार हो रही हूँ... मेरा तो एक शिव बाबा और... दूसरा ना कोई...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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