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❍ 31 / 01 / 21 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *देह भान से न्यारे बनकर रहे ?*
➢➢ *देह के सम्बन्ध से न्यारे बनकर रहे ?*
➢➢ *देह के विनाशी पदार्थो से भी न्यारे बनकर रहे ?*
➢➢ *पुराने स्वाभाव संस्कार से न्यारे बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *भल शरीर बीमार हो लेकिन शरीर की बीमारी से मन डिस्टर्ब न हो, सदैव खुशी में नाचते रहो तो शरीर भी ठीक हो जायेगा।* मन की खुशी से शरीर को भी चलाओ तो दोनों एक्सरसाइज हो जायेंगी। खुशी है दुआ और एक्सरसाइज है दवाई। तो दुआ और दवा दोनों होने से सहज हो जायेगा।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं याद और सेवा द्वारा पद्मों की कमाई जमा करने वाला पद्मापद्म भाग्यवान हूँ"*
〰✧ सभी अपने को हर कदम में याद और सेवा द्वारा पद्मों की कमाई जमा करने वाले पद्मापद्म भाग्यवान समझते हो? *कमाई का कितना सहज तरीका मिला है! आराम से बैठे-बैठे बाप को याद करो और कमाई जमा करते जाओ।*
〰✧ *मंसा द्वारा बहुत कमाई कर सकते हो, लेकिन बीच-बीच में जो सेवा के साधनों में भाग-दौड़ करनी पड़ती है - यह तो एक मनोरंजन है।*
〰✧ वैसे भी जीवन में चेन्ज चाहते हैं तो यह चेन्ज हो जाती है। *वैसे कमाई का साधन बहुत सहज है, सेकण्ड में पद्म जमा हो जाते हैं, याद किया और बिन्दी बढ़ गई। तो सहज अविनाशी कमाई में बिजी रहो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ जो ब्रह्माबाप ने आज के दिन तीन शब्दों में शिक्षा दी, (निराकारी, निर्विकारी और निरहंकारी) इन तीनों शब्दों के शिक्षा स्वरूप बनो। *मन्सा में निराकारी, वाचा में निरहंकारी, कर्मणा में निर्विकारी। सेकण्ड में साकार स्वरूप में आओ, सेकण्ड में निराकारी स्वरूप में स्थित हो जाओ। यह अभ्यास सारे दिन में बार-बार करो।*
〰✧ ऐसे नहीं सिर्फ याद में बैठने के टाइम निराकारी स्टेज में स्थित रही लेकिन बीच-बीच में समय निकाल इस देहभान से न्यारे निराकारी आत्म स्वरूप में स्थित होने का अभ्यास करो। *कोई भी कार्य करो, कार्य करते भी यह अभ्यास करो कि मैं निराकार आत्मा इस साकार कर्मेन्द्रियों के आधार से कर्म करा रही हूँ। निराकारी स्थिति करावनहार स्थिति है।*
〰✧ कर्मेन्द्रियाँ करनहार हैं, आत्मा करावनहार हैं। तो *निराकारी आत्म स्थिति से निराकारी बाप स्वतः ही याद आता है। जैसे बाप करावनहार है ऐसे मैं आत्मा भी करावनहार हूँ। इसलिए कर्म के बन्धन में बंधेगे नहीं, न्यारे रहेंगे क्योंकि कर्म के बंधन में फंसने से ही समस्यायें आती हैं। सारे दिन में चेक करो - करावनहार आत्मा बन कर्म करा रही हूँ?* अच्छा! अभी मुक्ति दिलाने की मशीनरी तीव्र करो।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ मैं आत्मा हूँ - इसमें तो भूलने की ही आवश्यकता नहीं रहती है। जैसे मुझ बाप को भूलने की ज़रूरत पड़ती है? *यह पहली-पहली बात है जो कि तुम सभी को बताते हो कि - मैं आत्मा हूँ, न कि शरीर।* जब आत्मा होकर बिठाते हो तभी उनको फिर शरीर भी भूलता है। अगर आत्मा होकर नहीं बिठाते, तो क्या फिर देह सहित देह के सभी सम्बन्ध भूल जाते! *जब उनको भुलाते हो, तो क्या अपने शरीर से न्यारा होकर, जो न्यारा बाप है उनकी याद में नहीं बैठ सकते हो ?*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- न्यारे बनना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा देख रही हूँ... स्वयं को वरदानी तपस्या भूमि मधुबन पांडव भवन में... बाबा की कुटिया में बैठे हुए... *मैं आत्मा बाबा के चित्र को निहारते हुए विचित्र बाबा की यादों की हवाओं में बहने लगती हूँ... और अनुभव कर रही हूँ जैसे मीठे बाबा सर्व शक्तियों और वरदानों की रिमझिम वर्षा कर रहे है...* और मैं आत्मा इस अतिइन्द्रिय सुख की वर्षा में भीग रही हूँ... तभी बापदादा मेरे समक्ष आ जाते है... और मुझ डबल लाइट फरिश्ते का हाथ पकड़ झूले पर बिठा... मुझ से मीठी-मीठी रूहरिहान करने लगते है...
❉ *मीठे बाबा मुझ आत्मा को बेहद की स्थिति में स्थित करते हुए कहते है :-* "मीठे-मीठे राजदुलारे बच्चे मेरे... सदा उड़ती कला, एकरस स्थिति के लिए साक्षी दृष्टा बन जाओ... सबकुछ तेरा, मेरा कुछ नहीं यह फीलिंग सम्पूर्ण रूप से अपने अन्दर बढ़ाओ... *हद की भाव और भावनाओं से ऊपर उठ बाप समान साक्षी दृष्टा बन जाओ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बेहद की स्थिति में स्थित होते हुए कहती हूँ :-* "प्यारे-प्यारे दिल के सच्चे सहारे बाबा मेरे... सुनकर आपकी ये गहरी समझानी फूली ना समा रही हूँ... *ये साक्षी शब्द में ही जैसे सार समाया है... इस साक्षीपन ने मुझे न्यारा और प्यारा बनाया है...* सबकुछ तेरा, मेरा कुछ नहीं इस स्थिति में सहज स्थित हो उड़ता पंछी बनती जा रही हूँ... बेहद की मुक्त श्रेष्ठ भावनाओं से भरती जा रही हूँ..."
❉ *लाडले बाबा मुझ आत्मा को साक्षी स्थिति में स्थित करते हुए कहते है :-* "लाडले प्यारे ओ मीठे बच्चे मेरे... तेरेपन का भाव आपको सहज हर परिस्थिति से पार लगा देगा... *अब गहरे से जरा अटेंशन देकर साक्षी दृष्टा की स्थिति बनाओ... ये साक्षीभाव ही संकल्पो की बचत करा आपके पुरूषार्थ को कई गुना बढ़ा देगा...* आपको सहज मंजिल पर पहुंचा देगा..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा साक्षीपन की स्थिति में स्थित होकर कहती हूँ :-* "मीठे-मीठे प्यारे रंगीले बाबा मेरे... तेरा-तेरा करते हर बात से ऊपर उठ निश्चित और अचल बनती जा रही हूँ... हर विघ्न को खेल की तरह पार कर तीव्र गति से आगे बढ़ती जा रही हूँ... इस प्रकार *मैं और मेरे के भावों से ऊपर उठ साक्षी दृष्टा की तपस्या करती जा रही हूँ..."*
❉ *प्यारे मीठे बाबा मुझ आत्मा को सम्पूर्ण साक्षी भव का वरदान देते हुए कहते है :-* "प्यारे प्यारे सिकीलधे बच्चे मेरे... हद की जंजीरो से निकल बेहद के आसमा में पंख फैलाओं... *बाप समान साक्षी दृष्टा बन इस खेल का आंनद उठाओं... संकल्पों सहित होकर बाप पर अर्पित हर तरह से न्यारे हो जाओ...* इस साक्षीपन की तपस्या को कर निरन्तर उड़ता पंछी बन जाओ..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा साक्षी भव के वरदान का स्वरूप बनकर कहती हूँ :-* "मीठे प्राण प्यारे बाबा मेरे... प्रथम और अन्तिम साक्षीपन के पुरूषार्थ का सहज स्वरूप बनती जा रही हूँ... *साक्षीपन की स्थिति से डबल हीरों पार्टधारी बन बेहद आसमा में पंख फैला रही हूँ...* सर्व संकल्पो सहित होकर बाप पर अर्पित इस देह और देह की दुनिया से सहज न्यारा बन इस खेल का आंनद उठा रही हूँ... साक्षीपन की इस गहरे पुरूषार्थ से अब मंजिल को बेहद नजदीक पा रही हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- देह, देह के पदार्थ और देह के सम्बन्धो से न्यारे होकर रहना*
➳ _ ➳ अपनी मृत्यु के बारे में चिंतन करते ही मेरी मृत्यु का सीन एक दम मेरी आँखों के सामने स्पष्ट दिखाई दे रहा है। *जमीन पर पड़े हुए अपने मृत शरीर को मैं देख रही हूँ। मेरे आस - पास सब कुछ पहले की तरह हो रहा है। किन्तु सब कुछ होते हुए भी अब जैसे मेरे लिए कुछ भी नही है*। मेरे लिए तो जैसे सारी दुनिया ही मर गई है क्योंकि मेरे इस मृत शरीर पर संसार में होने वाली किसी भी एक्टिविटी का कोई प्रभाव नही पड़ रहा।
➳ _ ➳ अपनी मृत देह को देख मैं विचार करती हूँ कि जब तक मैं आत्मा इस देह में थी, इस देह और देह के सम्बन्धो में मैं कैसे फंसी हुई थी! *किन्तु आज इस देह के छूटते ही जैसे मैं आत्मा हर बन्धन से मुक्त हो गई हूँ। अब ना तो यह नश्वर देह मुझे अपनी और खींच रही है और ना इस देह से जुड़े सम्बन्ध मुझे आकर्षित कर रहें हैं। इस संसार से अब जैसे मेरा कोई सम्बन्ध है ही नही और यह निर्लिप्त अवस्था कितनी न्यारी और प्यारी, कितनी सुख देने वाली है*। हर बोझ से मुक्त कितना हल्कापन मैं आज अनुभव कर रही हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे रुई की तरह मैं एकदम हल्की हूँ और यह हल्कापन मुझे उड़ा कर ऊपर ले जा रहा है।
➳ _ ➳ महसूस कर रही हूँ अब मैं आत्मा स्वयं को उड़ते हुए। देख रही हूँ मेरी नश्वर देह और देह से जुड़ा हर सम्बन्ध, देह की दुनिया सब धीरे - धीरे पीछे छूटते जा रहें हैं। साक्षी होकर हर चीज को मैं देखती जा रही हूँ और एक आजाद पंछी की भांति उड़ने का आनन्द ले रही हूँ। *ऐसा लग रहा है जैसे आज दिन तक देह की कारा में बन्द रहने के कारण मैं उड़ना ही भूल गई थी और आज उस कारा से निकलते ही अपने पँखो को फड़फड़ाकर अब दूर बहुत दूर उड़ती जा रही हूँ*। पाँच तत्वों की बनी साकारी दुनिया बहुत पीछे छूट गई है और मैं उड़ते - उड़ते पहुँच गई हूँ खुले आसमान में। नीले - नीले बादलों के ऊपर मैं उड़ रही हूँ और पूरे नीलगगन में विचरण करते हुए, आनन्द लेते हुए अब मैं इस आकाश तत्व से भी ऊपर दूसरे लोक की और जा रही हूँ।
➳ _ ➳ श्वेत प्रकाश से जगमगाते फरिश्तो के इस आकारी सूक्ष्म वतन में मैं पहुँच गई हूँ और देख रही हूँ इस अव्यक्त वतन के अति सुन्दर नजारों को। *इस मूवी वर्ल्ड में जहां स्थूल देह का कोई बंधन नही, कोई दिन नही, कोई रात नही। बस इशारों की, संकल्पो की भाषा। देख रही हूँ मैं अपने सामने अपने प्राणप्यारे अव्यक्त बापदादा को*। अपनी अनन्त शक्तियों के प्रकाश से सारे वतन को प्रकाशित करते बापदादा के पास अपने अव्यक्त फ़रिश्ता स्वरूप को धारण कर मैं पहुँचती हूँ और जा कर उनके समीप बैठ जाती हूँ। अपने प्यारे पिता के साथ अव्यक्त मिलन मनाती, नयनो ही नयनो में उनसे मीठी - मीठी रूह रिहान करती, मैं स्वयं को उनकी शक्तियों से भरपूर कर रही हूँ। *अपनी नजरो से वो मुझे निहाल कर रहें हैं और अपनी दृष्टि से अपनी शक्तियों का बल मेरे अंदर भरकर मुझे शक्तिशाली बना रहे हैं*।
➳ _ ➳ इस अलौकिक मिलन का भरपूर आनन्द लेकर अब मैं अपने निराकारी स्वरूप में फिर से स्थित होकर अपने निराकारी वतन की ओर चल पड़ती हूँ। एक ही उड़ान में मैं अपने इस ऊँचे ते ऊँचे ब्रह्मलोक घर मे पहुँच जाती हूँ। *इस साइलेन्स वर्ल्ड में मैं देख रही हूँ, अपनी सर्वशक्तियों की अनन्त किरणों रूपी बाहों को फैलाये, महाज्योति मेरे शिव पिता मेरे सामने खड़े हैं। बिना कोई विलम्ब किये उनकी किरणों रूपी बाहों के आगोश में मैं आत्मा जा कर समा जाती हूँ*। अपने प्यार की किरणों रूपी बाहों में मुझे भरकर, अपने स्नेह की शीतल किरणे मुझ पर फैलाते हुए मेरे बाबा अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटाकर मुझे तृप्त कर देते हैं। अपने गुणों, अपनी शक्तियों से भरपूर कर, मुझे सर्वगुणों, सर्वशक्तियों से सम्पन्न बना देते हैं। *बाबा के स्नेह की शीतल छाया में बैठ उनसे अथाह सुख लेकर, सर्वगुण, सर्वशक्तिसम्पन्न स्वरूप बनकर मैं वापिस लौट आती हूँ*।
➳ _ ➳ साकार टॉकी वर्ल्ड में अपनी स्थूल देह में मैं आत्मा भृकुटि के अकालतख्त पर आकर विराजमान हो जाती हूँ। आप मुये मर गई दुनिया इस बात को सदा स्मृति में रख, अपनी मृत्यु के सीन को सदा इमर्ज रखते हुए, बार - बार इस देह से न्यारा होने की प्रैक्टिस मैं हर समय करती रहती हूँ। *कर्म करने के लिए देह का आधार लेना और फिर देह से न्यारी ज्योति बिंदु आत्मा बन, देह से डिटैच हो कर अपने पिता के पास उनके धाम जाकर उनकी छत्रछाया में बैठ जाना, यह अभ्यास बार - बार करते हुए देह और देह की दुनिया मे रहते भी इससे उपराम होने का पुरुषार्थ मैं निरन्तर कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं समझदार बन तीन प्रकार की सेवा साथ साथ करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सफलतामूर्त आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा सदैव अपने बोल, कर्म और दृष्टि से शांति, शक्ति व खुशी का अनुभव कराती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा महानता को धारण करती हूँ ।*
✺ *मैं महान आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ आत्मिक खुशी सेवा द्वारा सभी को अनुभव है, *जब भी मनसा सेवा या वाणी द्वारा वा कर्म द्वारा भी सेवा करते हो तो उसकी प्रप्ति आत्मिक खुशी मिलती है*। तो चेक करो सेवा द्वारा खुशी की अनुभूति कहाँ तक की है? *अगर सेवा की और खुशी नहीं हुई, तो वह सेवा यथार्थ सेवा नहीं है*। सेवा में कोई न कोई कमी है, इसलिए खुशी नहीं मिलती। *सेवा का अर्थ है आत्मा अपने को खुशनुमः, खिला हुआ रूहानी गुलाब, खुशी के झूले में झूलने वाला अनुभव करेगी*। तो चेक करो - *सारा दिन सेवा की लेकिन सारे दिन की सेवा की तुलना में इतनी खुशी हुई या सोच-विचार ही चलते रहे*, यह नहीं ये, यह नहीं ये...? और *आपकी खुशी का प्रभाव एक तो सेवा स्थान पर, दूसरा सेवा साथियों पर, तीसरा जिन आत्माओं की सेवा की उन आत्माओं पर पड़े, वायुमण्डल भी खुश हो जाए। यह है सेवा का खजाना खुशी*।
✺ *ड्रिल :- "यथार्थ, सच्ची सेवा की प्राप्ति का अनुभव करना"*
➳ _ ➳ संगम पर खुशियों का अखुट खजाना... *दूर दूर तक बिखरी हुई उमंग उत्साह की स्वर्ण अशर्फियाँ*... इसी खजाने को मन बुद्धि के आँचल में समेटती हुई... स्वयं को खुशियों के खजानों से भरपूर करती हुई मैं आत्मा... *चार विशेष पारस मणियों को देख रही हूँ स्वयं के श्रृंगार के लिए ... ज्ञान, योग, धारणा और सेवा की विशेष मणियाँ*... संगम के खजाने से मैं आत्मा सेवा मणि को चुनकर धारण कर रही हूँ, पद्मों की कमाई के लिए...
➳ _ ➳ *सेवा का उमंग और उत्साह रग-रग में समाता जा रहा है मुझ आत्मा के*... मनोरंजन और पदमों की कमाई का ये अनूठा सा साधन... *सेवा की चमचमाती इस मणि का त्रिकोणीय स्वरूप... मनसा, वाचा और कर्मणा... हर एक कोने से फैलता अलग रंग का प्रकाश हर पल मुझे खुशियों से भरपूर कर रहा है*... सेवा के निमित्त परमधाम से अवतरित *देह और देह की दुनिया में विराजमान मैं आत्मा सेवा के निमित्त हर अंग को उमंग व उत्साह से भरपूर कर रही हूँ*...
➳ _ ➳ *आत्मिक स्वरूप में टिक कर, किया जा रहा, मेरा हर कर्म सेवा बनता जा रहा है*... मेरा देखना, मेरा बोलना, मेरा चलना, सभी कुछ... भृकुटी के मध्य में तिलक के समान स्थित मै आत्मा साक्षी भाव से देख रही हूँ स्वयं को... मुझसे फैल रहा आत्मिक गुणों का प्रकाश... सम्पूर्ण देह में फैलकर चारों ओर के वातावरण को प्रकाशित कर रहा है... *प्रकृति और सभी आत्माओं को शुभकामना और शुभ भावना का दान देती मुझ आत्मा से सुख स्वरूप की किरणें सम्पूर्ण वातावरण को खुशनुमः बना रही है*...
➳ _ ➳ *इस वातावरण में प्रवेश करने वाली हर आत्मा स्वयं को इन खुश नुमः किरणों से भरपूर कर रही है*... कम्बाइन्ड स्वरूप की स्मृति से मैं देख रही हूँ स्वयं को शिव बाबा के साथ... ठीक मेरे सिर के ऊपर स्थित शिव ज्योति... अपना वरदानी हाथ मेरे ऊपर हमेशा के लिए रख दिया है बाबा ने... मुझमें हर पल शक्तियों का संचार करते, मेरा मार्ग दर्शन करते, निमित्त भाव से भरपूर करते... हर पल मेरे भाग्य की रेखा को गहरी करते जा रहे है...
➳ _ ➳ *यथार्थ स्वरूप में की जा रही यथार्थ सेवा मुझे हर पल यथार्थ खुशी से भरपूर कर रही है*... देह में रहने का अभिप्राय मैं आत्मा समझ गयी हूँ... स्वयं को शक्तियों से भरपूर करती हुई अपनी भृकुटी में ही शिव पिता के साथ परमधाम की बीज रूप स्थिति का गहराई से अनुभव कर रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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