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 26 / 01 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *दैवीगुण धारण कर अपनी चलन सुधारी ?*

 

➢➢ *बाप का प्यार पाने के लिए सेवा की ?*

 

➢➢ *मेहनत और महानता के साथ रूहानियत का अनुभव करवाया ?*

 

➢➢ *बाप और सर्व की दुआओं के विमान में उड़ते रहे ?*

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*अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  आजकल की दुनिया में राजनीति की हलचल, वस्तुओ के मूल्य की हलचल, करैन्सी की हलचल, कर्मभोग की हलचल, धर्म की हलचल ऐसे *सर्व प्रकार की हलचल से हर एक तंग आ गये हैं। इससे बचने के लिए एकाग्रता को अपनाओ, एकान्तवासी बनो। एकान्तवासी से एकाग्र सहज ही हो जायेंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं समर्थ बाप के संग में रहने वाली समर्थ आत्मा हूँ"*

 

   अपने को सदा समर्थ आत्मायें समझते हो! *समर्थ आत्मा अर्थात् सदा माया को चेलेन्ज कर विजय प्राप्त करने वाले। सदा समर्थ बाप के संग में रहने वाले। जैसे बाप सर्वशक्तिवान है वैसे हम भी मास्टर सर्वशक्तिवान हैं।* सर्व शक्तियाँ शस्त्र हैं, अलंकार हैं, ऐसे अलंकारधारी आत्मा समझते हो?

 

  *जो सदा समर्थ हैं वे कभी परिस्थितियों में डगमग नहीं होंगे। परिस्थिति से स्वस्थिति श्रेष्ठ है। स्वस्थिति द्वारा कैसी भी परिस्थिति को पार कर सकते हो।*

 

  जैसे विमान द्वारा उड़ते हुए कितने पहाड़, कितने समुद्र पार कर लेते हैं, क्योंकि ऊँचाई पर उड़ते हैं। *तो ऊँची स्थिति से सेकण्ड में पार कर लेंगे। ऐसे लगेगा जैसे पहाड़ को वा समुद्र को भी जम्प दे दिया। मेहनत का अनुभव नहीं होगा।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  शक्ति स्वरूप आत्माओं का क्या स्वरूप दिखाया है? शक्तियों को (शक्ति स्वरूप में पाण्डव भी आ गये तो शक्तियाँ भी आ गई) *सदा शक्तियों को कोई को 4 भूजा, कोई को 6 भूजा, कोई को 8 भूजा, कोई को 16 भूजा, साधारण नहीं दिखाते हैं।*

 

✧  यह भूजायें सर्व शक्तियों का सूचक हैं। इसलिए *सर्वशक्तिवान द्वारा प्राप्त अपनी शक्तियों को इमर्ज करो। इसके लिए यह नहीं सोचो कि समय आने पर इमर्ज हो जायेंगी लेकिन सारे दिन में स्वयं प्रति भिन्न-भिन्न शक्तियाँ यूज करके देखो।*

 

✧  सबसे पहला अभ्यास स्वराज्य अधिकार सारे दिन में कहाँ तक कार्य में लगता है? मैं तो हूँ ही आत्मा मालिक, यह नहीं। *मालिक होके ऑर्डर करो और चेक करो कि हर कर्मेन्द्रियाँ मुझ राजा के लव ऑर लॉ में चलते हैं? ऑर्डर करें - मनमनाभव' और मन जाये निगेटिव और वेस्ट थाट्स में, क्या यह लव और लॉ रहा?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  अव्यक्त स्थिति की पालिश ही बाकी रही है। *आपस में बातचीत करते समय आत्मा रूप में देखो। शरीर में होते हुए भी आत्मा को देखो। यह पहला पाठ है।* इसकी ही आवश्यकता है। *जो भी सभी धारणायें सुनी हैं, उन सभी को जीवन में लाने लिये यही पहला पाठ पक्का करना पड़ेगा।* यह आत्मिक-दृष्टि की अवस्था प्रैक्टिकल में कम रहती है। *सर्विस की सफलता ज्यादा निकले, उसका भी मुख्य साधन यह है कि आत्म-स्थिति में रह सर्विस करनी है। पहला पाठ ही पालिश है।* इसकी ही आवश्यकता है। कब नोट किया है - सारे दिन में यह आत्मिक-दृष्टि, स्मृति कितनी रहती है? *इस स्थिति की परख अपनी सर्विस की रिजल्ट से भी देख सकते हो। यह अवस्था शमा है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- शिवबाबा ब्रह्मा बाबा का रथ है इसमें संशय नहीं आना"*

 

_ ➳  मैं आत्मा... शांतिवन में... बाबा के कमरे में... बाबा से मीठी मीठी बातें कर रही हूँ... कभी दुःख की तो कभी सुख की... कभी धूप की तो कभी छांव की... कभी रो रही हूँ तो कभी खुशी के मौजों में आखों से आँसू निकल आ रहे हैं... *बाबा मेरे बाबा कहती बाबा को अपना धाम छोड़ कर मेरे पास बुला रही हूँ... और पहुँच जाती हूँ परमधाम... बिंदु बन कर... और ले आती हूँ बापदादा को शांतिवन में... बाबा के कमरे में...* और बाबा के साथ बैठ जाती हूँ... सूक्ष्म स्वरूप में... मैं और बाबा सभी ब्राह्मण आत्माओ को देख रहे है... अज्ञानी... ज्ञानी... पुरुषार्थी... तीव्रपुरुषार्थी... सभी आत्माओं को बाबा एक ही दृष्टि से देख रहे हैं...

 

  *बाबा मुझ आत्मा को अपने साथ बिठा कर बहुत प्यार से बोले:-* "मीठे फूल बच्चे... इस संगम युग में... पतित से पावन बनती दुनिया मे... नरक से स्वर्ग बनती दुनिया मे... सिर्फ और सिर्फ एक मैं ही हूँ  *जो परम पवित्र हूँ... अजन्मा... निराकार... सदगति दाता तुम्हारा बाप हूँ... अविनाशी... ज्ञान रुद्र यज्ञ का रचयिता हूँ... इस धरा पर अवतरित हुआ हूँ... कांटों को फूल बनाने... पतित दुनिया को पावन दुनिया बनाने...* जो बच्चें मेरे कार्य मे...  मेरे संग संग चलते है... वो मेरी आँखो के तारे हैं... वो दिलतख्तनशीन बच्चें... स्वर्ग के राज्य अधिकारी बनते है..."

 

_ ➳  *बाबा की बातों को मैं आत्मा एकाग्रचित हो कर सुनती हूँ और बाबा  से कहती हूँ:-* "मेरे प्यारे बाबा... *जन्मों के भी अंतिम जन्म में आप मुझे मिले हो... कोटो में कोई में वो आत्मा हूँ... जिस का हाथ तूने थामा हैं...* तूने मेरे जन्मों की भक्ति की लाज रख ली है... और अपना बनाया है... तेरे यह  रुद्र ज्ञान यज्ञ में हड्डी हड्डी... स्वाहा कर रही हूँ... *तेरे हर बोल को... अंतिम बोल समझ पूरे मन से इस संगमयुग में स्वीकार कर रही हूँ..."*

 

  *बाबा मुझ आत्मा को प्यार से देख कर कहते हैं:-* "लाडले बच्चे... *बाप आया ही है बच्चों के लिए...* बच्चों को अपने स्वरूप की... मेरे स्वरूप की पहचान कराने... मैं कौन हूँ... कहाँ रहता हूँ... मेरा कार्य क्या है... इसका परिचय देने... मेरा कार्य सिर्फ मेरा ही नहीं तुम बच्चों का भी है... *जितना में जिम्मेवार हूँ उतना तुम भी जिम्मेवार हो... मेरे इस कार्य को जाने अनजाने कभी भी अवज्ञा नहीं करना... संकल्प में भी संशय नहीं करना..."*

 

_ ➳  *बाबा का हाथ अपने हाथ मे लेकर मैं कहती हूँ:-* "मेरे प्यारे बाबा... आप की हर श्रीमत सर आँखो पर रख रही हूँ... *तेरी पालना का अहसान... मैं आत्मा ... इस अंतिम जन्म में तेरा बन कर... चुका रही हूँ...  तुझे जैसा चाहिए ऐसा मैं बन रही हूँ... तेरे हर प्यार... हर दुलार... हर ममता का जवाब रूप में... मैं आत्मा... आप समान बन रही हूँ..."*

 

  *मेरी मीठी मीठी बातों को सुनकर... मंद मंद मुस्कुराते हुए बाबा बोले :-* " मेरी कल्प की बिछुड़ी हुई ... मेरी सिकीलधि बच्ची... *तू मेरी ही हैं और मेरी ही रहेगी....* मेरे हर कार्य मे तू... सहभागी है... मेरी राइट हैंड हो तुम... *मेरे रुद्र ज्ञान यज्ञ की तुम यज्ञ रक्षक हो... मेरे कार्य को डिस्टर्ब करने वाले मायारूपी रावण पर जीत पाने वाली... तुम... विजयी रत्न... मायाजीत आत्मा हो... कल्प कल्प की स्वराज्य अधिकारी आत्मा हो..."*

 

_ ➳  *बाबा के आशीर्वाद रूपी अनमोल वचनों से भाव विभोर हो कर मैं आत्मा कहती हूँ:-*  "मेरे बाबा... आप के प्यार में हमे कितना सुख है... आप से तो हम हैं... वरना हम तो पत्थर हैं... इस पत्थर को टिप टिप कर पूजनीय बनाने वाले मेरे बाबा तेरा शुक्रिया... *इस कलियुग में... धरती पर आकर हर एक ज्योति जगाने वाले मेरे बाबा तेरा शुक्रिया...* तेरे इस महान यज्ञ में... मैं आत्मा... शिव शक्त्ति और पांडव सेना... बलिहार जा रहे हैं... आप के परिवर्तन के इस कार्य में... मनसा... वाचा... कर्मणा... स्वाहा हो रहे हैं..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- कर्मातीत अवस्था मे जाने का पूरा पुरुषार्थ करना है*"

 

_ ➳  जैसे ब्रह्मा बाबा ने सम्पूर्ण समर्पण भाव और अपनी लाइट माइट स्थिति द्वारा कर्मातीत बन, सम्पूर्ण अवस्था को प्राप्त किया। ऐसे ही फॉलो फादर कर, कर्म से अतीत हो कर, सम्पूर्णता को पाना हर ब्राह्मण आत्मा का लक्ष्य है। *इस लक्ष्य को पाने की मन ही मन स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा करते हुए, अपने मन बुद्धि को एकाग्रचित करके मैं अपने सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ अपनी स्थूल देह से बाहर निकलती हूँ* और सेकण्ड में मन बुद्धि की लिफ्ट पर सवार होकर, अव्यक्त वतन में पहुंच जाती हूँ और अव्यक्त ब्रह्मा बाबा के सामने जा कर बैठ जाती हूँ।

 

_ ➳  बाबा के इस अव्यक्त स्वरूप में भी बाबा के साकार स्वरूप की झलक स्पष्ट दिखाई पड़ रही है जो बाबा की साकार पालना का अनुभव करवा रही है। *इस अनुभव को करते - करते मैं खो जाती हूँ साकार मिलन की खूबसूरत यादों में और मन बुद्धि से पहुँच जाती हूँ साकार ब्रह्मा बाबा की कर्मभूमि मधुबन में जहाँ की पावन धरनी पर बाबा के हर कर्म का यादगार है*। कर्म करते हुए भी कर्म के हर प्रकार के प्रभाव से निर्लिप्त न्यारी और प्यारी अवस्था मे ब्रह्मा बाबा सदैव स्थित रहे, इस बात का स्पष्ट अनुभव हिस्ट्री हाल में लगे साकार ब्रह्मा बाबा के हर चित्र को देख कर स्वत: और सहज ही होता है।

 

_ ➳  अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी तन में मैं हिस्ट्री हाल में हूँ और वहाँ दीवार पर लगे एक - एक चित्र को बड़े ध्यान से देख रही हूँ। *हर चित्र ब्रह्मा बाबा के कर्म की गाथा सुना रहा है और साथ ही साथ कर्मातीत अवस्था को पाने के बाबा के पुरुषार्थ को भी परिलक्षित कर रहा है*। ब्रह्मा बाप समान कर्मातीत बनने का ही पुरुषार्थ अब मुझे करना है, यह दॄढ संकल्प करते ही मैं स्पष्ट अनुभव करती हूँ कि जैसे अव्यक्त बापदादा मेरे सम्मुख आ गए हैं और आ कर अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख दिया है। *अपने वरदानी हस्तों से बाबा मुझे "कर्म करते भी कर्म के प्रभाव से सदा मुक्त रहने" का वरदान दे रहें हैं*। मस्तक पर विजय का तिलक लगा रहें हैं।

 

_ ➳  बाबा के वरदानी हस्तों से निकल रही सर्वशक्तियों को मैं स्वयं में समाता हुआ स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। *अपनी लाइट और माइट से बाबा मुझे भरपूर कर रहें हैं, मुझे बलशाली बना रहे हैं ताकि आत्म बल से सदा भरपूर रहते हुए मैं अति शीघ्र कर्मातीत बनने का तीव्र पुरुषार्थ सहज रीति कर सकूँ*। बापदादा से लाइट माइट और वरदान ले कर अब मैं अपने निराकार स्वरूप में स्थित हो कर, स्वयं को और अधिक परमात्म बल से भरपूर करने के लिए अव्यक्त वतन को छोड़ आत्माओं की निराकारी दुनिया परमधाम घर की ओर चल पड़ती हूँ।

 

_ ➳  अब मैं स्वयं को निराकार महाज्योति अपने प्यारे परम पिता परमात्मा शिव बाबा के सम्मुख देख रही हूँ। उनसे निकल रही अनन्त शक्तियों को स्वयं में समा कर मैं स्वयं को शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। उनकी किरणों की शीतल छाया मुझे गहन शांति का अनुभव करवा रही हैं। उनके सामने बैठ कर उनसे आ रही सातों गुणों की सतरंगी किरणों और सर्वशक्तियों से मैं स्वयं को भरपूर कर रही हूँ। कुछ देर बीज रूप अवस्था में स्थित हो कर अपने बीज रूप परमात्मा के साथ कम्बाइंड हो कर अतिन्द्रिय सुख लेने के बाद और सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर करने के बाद मैं आ जाती हूँ परमधाम से नीचे वापिस साकारी दुनिया में।

 

_ ➳  पाँच तत्वों की साकारी दुनिया मे, अपने साकार तन में विराजमान हो कर अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित रहते हुए, हर कर्म में ब्रह्मा बाप को फॉलो कर रही हूँ।  *बाबा की लाइट माइट से स्वयं को सदा भरपूर करते हुए योग बल से अपने पुराने कर्म बन्धनों को काटने और कर्मातीत बनने का तीव्र पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं मेहनत और महानता के साथ रूहानियत का अनुभव कराने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं शक्तिशाली सेवाधारी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सदैव बाप और सर्व की दुआएं प्राप्त करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदा दुआओं के विमान में उड़ती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदा उड़ता योगी हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा सदा टीचर्स को इसी नजर से देखते हैं *हर टीचर के फीचर्स में बापदादा के फीचर्स दिखाई दें। फेस में ब्रह्मा बाप के फीचर्स और भ्रकुटी में ज्योतिबिन्दु के फीचर,* किसी भी टीचर को देखो तो सबके मुख से यही निकले कि *यह तो बाप समान हैं। यह तो ब्रह्मा बाबा जैसे लगते हैं, यह तो शिव बाप जैसे लगते हैं।* हैं भी और होने ही हैं। तो टीचर्स आधारमूर्त हैं। जैसे बाप के लिए कहते हैं - *ब्रह्मा बाप का सदा यही स्लोगन रहा 'जो कर्म मैं करूँगा वह सब करेंगे'। ऐसे हर एक टीचर को यही स्लोगन सदा याद रहता है कि 'जो कर्म, जो बोल, जो वृत्ति, जो विधि हम करेंगे, हमें देख सर्व करेंगे'।*

 

 _ ➳  *बापदादा ने ब्रह्मा बाप की गद्दी आप टीचर्स को बैठने के लिए दी है। मुरली सुनाने के लिए निमित्त टीचर्स हैं, बाप की गद्दी मिली हुई है।* ड्रामा ने आप टीचर्स को बहुत-बहुत ऊँचा मर्तबा दिया है। *बापदादा भी सदा टीचर्स को इसी विशेष महत्व से देखते हैं। महान हो, महत्व वाले हो।* है ना ऐसे? कभी स्टूडेन्ट से सर्टीफिकेट लेवें? बापदादा तो देखते रहते हैं। (बाबा टीचर्स को पकड़ो) यह तो प्रेम में पकड़ी हुई हैं तब तो टीचर्स बनी हैं। अभी कान दादी पकडेंगी, बाप तो प्यार में पकड़ेंगे। फिर भी हिम्मत रखकर निमित्त तो बनी हैं ना! (दादी कह रही हैं टीचर्स बहुत अच्छी हैं) बहुत अच्छी हो, मुबारक हो। अच्छे तो हैं ही। अगर टीचर्स नहीं होती तो इतने सेन्टर्स कैसे खुलते। मुबारक हो आप सबको। बापदादा तो बहुत-बहुत श्रेष्ठ नजर से देखते हैं। टीचर्स भी बहुत आई हैं। अच्छी हैं - हिम्मत और मेहनत में मुबारक हो।

 

✺   *ड्रिल :-  "बाप समान टीचर बनने का अनुभव"*

 

 _ ➳  कोटो में कोई... कोई में भी कोई मैं सौभाग्यशाली आत्मा... बैठी हूँ... *एक बाप की याद में... बिन्दुरूपी बाप की याद में... मन... वचन... कर्म... से एक बाप को समर्पित...* ब्रह्मामुख वंशावली ब्राह्मण आत्मा मैं... ड्रामा के राज को जान... अपने संगमयुग को यथार्थ रीति सफल कर रही हूँ... *स्वयं भगवान ने जिसे सराहा वह मैं आत्मा... पावन... पवित्र... बन रही हूँ... प्रजापिता ईश्वरीय विश्वविद्यालय की मैं रूहानी स्टूडेंट... रूह बन कर... रूहानी बाप को याद कर रही हूँ...*

 

 _ ➳  *अकाल तख्त पर विराजमान मैं आत्मा...* रूह बन कर... उड़ चली हूँ... रूहानी वतन में... मेरे रूहानी पिता से मिलने... सुनहरा लाल प्रकाश छाया हैं जहाँ... नीरव शांति फैली हैं जहाँ... न देह हैं न देह के संबंध हैं... *अपने बिंदु रूपी पिता के सन्मुख... प्यार के सागर के सम्मुख... प्यार से परिपूर्ण होती जा रही हूँ...* बाबा से आती हुई सर्व शक्तियों रूपी रंग बिरंगी किरणों को मैं आत्मा धारण कर रही हूँ... अपने आप को संपूर्ण करती जा रही हूँ... *63 जन्मों के विकारों को उसकी किरणों में स्वाहा होता देख रही हूँ...*

 

 _ ➳  बाबा के संग चलती मैं आत्मा... पहुँचती हूँ सूक्ष्म वतन में... जहाँ ब्रह्मा बाबा... और सभी एडवांस पार्टी की आत्मायें हमारा ही इंतजार कर रही थी… *ब्रह्मा बाप के तन में शिवबाबा का अलौकिक अवतरण* को मैं आत्मा देख रही हूँ... और *मैं आत्मा भी अपने लाइट के फ़रिश्ते स्वरुप में परवर्तित हो गई हूँ...* मुझ फ़रिश्ता स्वरुप आत्मा का भव्य... सत्कार हो रहा हैं... सुगन्धित फूलों की वर्षा हो रही हूँ... मुझ आत्मा को डबल ताज से नवाजा जा रहा हैं... सफ़ेद मोतियों की माला से श्रृंगार हो रहा हैं...

 

 _ ➳  और मैं आत्मा अचरज भरी निगाहों से देख रही हूँ... मेरा हाथ पकडे सभी मुझे एक दिव्य सिहांसन पर बिठाते हैं... और तब *बापदादा का दिव्य... अलौकिक... भव्य स्वरुप* देख कर मैं आत्मा भाव विभोर हो जाती हूँ... बापदादा एक बड़े से लाल गोले में एक सीन दिखा रहे हैं... ब्रह्माकुमारी का सेंटर हैं... बहुत ब्राह्मण आत्मायें सफ़ेद वस्त्रों में सज्ज... बापदादा का झंडा लिए खड़े हैं... और सब से आगे मैं आत्मा खड़ी हूँ... *सफ़ेद साडी में सज्ज... लक्ष्मी नारायण का बैच पहने... हाथ में बापदादा का झंडा लहराती... मुझ आत्मा का दिव्य स्वरुप नजर आ रहा हैं...*

 

 _ ➳  *मै आत्मा अपने आप को समर्पित टीचर के रूप में देखती हूँ...* तेजोमय किरणों के आभा मंडल से सज्ज मेरा रूप... बापदादा का साक्षात्कार करवा रहा हैं... नैनो में रूहानियत छलक रही हैं... बोल में मधुरता ही मधुरता हैं... मुझ आत्मा से बापदादा की प्रत्यक्षता हो रही हैं... *फेस में ब्रह्मा बाप के फीचर्स और भ्रकुटी में ज्योतिबिन्दु के फीचर... दिखाई दे रहे हैं...* बापदादा को प्रत्यक्ष करने में मैं आत्मा... मंसा... वाचा... कर्मणा... समर्पित हो गई हूँ... *मुरली सुनाने के लिए निमित्त समर्पित टीचर मैं आत्मा... बाप की गद्दी की वारिसदार बन गई हूँ...*

 

 _ ➳  फ़रिश्ता स्वरुप मै आत्मा... अपना ही समर्पित टीचर के रूप को देख के आनंदित हो जाती हूँ... *एडवांस पार्टी की सभी आत्माओं द्वारा आशीर्वचनों को प्राप्त करती मैं आत्मा...* सब की लाडली बन गई हूँ... बापदादा से आती हुई सौभाग्यशाली किरणों को अपने में धारण कर मैं आत्मा.. बापदादा को धन्यवाद करती थकती नहीं हूँ... मुझ आत्मा को अपना बनाया... *रंक से राजा बनाने वाले तेरा कोटि बार शुक्रिया...* शुक्रिया मेरे बाबा शुक्रिया बोलती मै आत्मा अपने हर लौकिक कार्य को... बापदादा की सेवा को निम्मित समझ कर पूरा कर रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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