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 24 / 01 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *मन वचन और कर्म से पवित्र रहे ?*

 

➢➢ *स्वपन में भी ब्रह्मचर्य खंडित तो नहीं हुआ ?*

 

➢➢ *आत्माओं को अपने फीचरस से पवित्रता का अनुभव करवाया ?*

 

➢➢ *ब्राह्मण जीवन की बनी हुई दिनचर्या का यथार्थ व निरंतर पालन किया ?*

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*अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *मन्सा सेवा करने के लिए सदा एकाग्रता का अभ्यास चाहिए। इसके लिए व्यर्थ समात हो, सर्व शक्तियों का अनुभव जीवन का अंग बन जाये।* जैसे बाप परफेक्ट है ऐसे बच्चे भी बाप समान हों, कोई डिफेक्ट न हो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं अतीन्द्रिय सुख में रहने वाला सर्व प्राप्ति स्वरूप हूँ"*

 

  सदा अपने को सर्व प्राप्ति स्वरूप अनुभव करते हो? *प्राप्ति स्वरूप अर्थात् अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलने वाले। सदा एक बाप दूसरा न कोई....ऐसे साथ का अनुभव करेंगे।* जब बाप सर्व सम्बन्धों से अपना बन गया तो सदा बाप का साथ चाहिए ना! कितनी भी बड़ी परिस्थिति हो, पहाड़ हो लेकिन बाप के साथ-साथ ऊपर उड़ते रहो तो कभी भी रुकेंगे नहीं।

 

  जैसे प्लेन को पहाड़ नहीं रोक सकते, पहाड़ पर चढ़ने वालों को बहुत मेहनत करनी पड़ती लेकिन उड़ने वाले उसे सहज ही पार कर लेते। *तो कैसी भी बड़ी परिस्थिति हो, बाप के साथ उड़ते रहो तो सेकण्ड में पार हो जायेगी। कभी भी झूले से नीचे नहीं आओ, नहीं तो मैले हो जायेंगे। मैले फिर बाप से कैसे मिल सकते!* बहुत काल अलग रहे अभी मेला हुआ तो मनाने वाले मैले कैसे होंगे।

 

  बापदादा हरेक बच्चे को कुल का दीपक, नम्बरवन बच्चा देखना चाहते हैं। अगर बार-बार मैले होंगे तो स्वच्छ होने में कितना टाइम वेस्ट होगा? इसलिए सदा मेले में रहो। मिट्टी में पांव क्यों रखते हो! इतने श्रेष्ठ बाप के बच्चे और मैले, तो कौन मानेगा कि यह उस ऊँचे बाप के बच्चे हैं! इसलिए बीती सो बीती। *जो दूसरे सेकण्ड बीता वह समाप्त। कोई भी प्रकार की उलझन में नहीं आओ। स्वचिन्तन करो, परचिन्तन न सुनो, न करो, यही मैला करता है। अभी से क्वेश्चन-मार्क समाप्त कर बिन्दी लगा दो। बिन्दी बन बिन्दी बाप के साथ उड़ जाओ।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  चेक करो जैसे स्थूल साधनों के लिए बताते हैं कि भूकम्प आवे तो यह करना, तूफान आवे तो यह करना, आग लगे तो यह करना, वैसे *आप श्रेष्ठ आत्माओं के पास जो साधन हैं - सर्वशक्तियाँ योग का बल, स्नेह का चुम्बक, यह सब साधन समय के लिए तैयार है? सर्व शक्तियाँ हैं?*

 

✧  किसको शान्ति की शक्ति चाहिए लेकिन आप और कोई शक्ति दे दो तो वह सन्तुष्ट होगी? जैसे किसको पानी चाहिए और आप उसको 36 प्रकार के भोजन दे दो तो क्या वह सन्तुष्ट होगा? तो *एवररेडी बनना सिर्फ अपने अशरीरी बनने के लिए नहीं।* वह तो बनना ही है।

 

✧  *लेकिन जो साधन स्वराज्य आधिकार से प्राप्त हुए हैं, परमात्म वर्से में मिले हैं वह सब अधिकार एवररेडी हैं?* ऐसे तो नहीं जैसे समाचारों में सुनते हो कि मशीनरी इस समय चाहिए वह फारेन से आने के बाद कार्य में लगाया गया। तो साधन एवररेडी नहीं रहे ना! सर्व साधन समय पर कार्य में नहीं लगा सके। कितना नुकसान हो गया!

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *वैसे ही निर्णय शक्ति को बढ़ाने लिए मुख्य खुराक यही है, जो पहले भी सुनाया  अशरीरी, निराकारी और कर्म में न्यारे। निराकारी व अशरीरी अवस्था तो हुई बुद्धि तक, लेकिन कर्म से न्यारा भी रहे और निराला भी रहे, जो हर कर्म को देखकर के लोग भी समझे कि यह तो निराला हैं।* यह लौकिक नहीं, अलौकिक है। तो निर्णय शक्ति को बढ़ाने के लिए बहुत अवश्यक है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ब्राह्मण जीवन का श्रृंगार-पवित्रता"*

 

_ ➳  *मैं ब्राह्मण आत्मा इस शरीर रूपी मंदिर की देवता, इस मंदिर के गर्भगृह भृकुटी में निवास करती हूँ... मैं आत्मा अपने भृकुटी सिहांसन पर बैठ स्वयं का निरीक्षण करती हूँ... मैं चमकती हुई शुद्ध मणि हूँ... मैं एक श्रेष्ठ और दिव्य आत्मा हूँ...* पूज्य आत्मा हूँ... सर्वगुण सम्पन्न, 16 कलाओं से सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी पवित्र आत्मा हूँ... मैं ब्राह्मण आत्मा मुझे अपने निज स्वरुप और निज गुणों की स्मृति दिलाने वाले ज्ञान के सागर, पवित्रता के सागर के पास उड़ चलती हूँ...

 

  *इस वरदानी संगमयुग में अपनी शुभ शिक्षाओं से बेमिसाल करते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... *संगमयुग पर विश्वपिता के हाथो पवित्रता की चुनरी ओढ़ श्रेष्ठ भाग्य को बाँहों में लिए सच्ची सुहागिन आत्माये हो...* सहजयोगी और पवित्रता के वरदानों से सजेधजे हीरे हो... *सदा पवित्रता की झलक और फलक लिए मुहोब्बत के झूले में झूलते ही रहो...”*

 

_ ➳  *सद्गुणों का श्रृंगार कर पवित्रता की खुशबू से महकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा कितने मीठे से भाग्य की मल्लिका हूँ... कभी अपवित्रता की बदबू में धँसी सी... *आज पवित्रता के कमल सी खिली हुई ईश्वर पिता की बाँहों में दिल तख्त पर सजी हुई हूँ... अपने ही पवित्र रूप पर मोहित हो रही हूँ...”*

 

  *दिव्यगुणों के गुलदस्ते से मेरे जीवन को महकाकर प्यारे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे फूल बच्चे... *ब्राह्मण जीवन की विशेषता नवीनता ही पवित्रता है..*. सदा अपने इस खुबसूरत स्वरूप के नशे में झूमते ही रहो... *स्वरूप पवित्र स्वधर्म पवित्र स्वदेश पवित्र को सदा स्मृति में सजाये रखो...* सदा मा सर्वशक्तिवान के नशे में रह वृत्ति से वायुमण्डल को गुलाब सा रूहानी बनाओ...

 

_ ➳  *स्मृति, वृत्ति और दृष्टि की पवित्रता से अपने जीवन का श्रृंगार कर मैं ब्राह्मण आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा मीठे बाबा संग पवित्रता के श्रृंगार से कितनी प्यारी खुबसूरत हो गयी हूँ...* बाबा से मिली पवित्रता ने मुझे सफलता के शिखर पर सजा दिया है... मै आत्मा प्यारे बाबा की यादो में देवतुल्य बनकर मुस्करा रही हूँ...

 

  *खुशियों की सौगात देकर ब्राह्मण से देवता बनाते हुए पवित्रता के सागर मेरे बाबा कहते हैं:-* मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... सदा गुण और शक्तियो के अनुभवी हो विजयी बन मुस्कराओ... *अथाह खजानो के मालिक मा सागर हो इस नशे को यादो में ले आओ*... हर पल कमाई में बिजी रहने वाले सहज मायाजीत बन जाओ... प्यारे ते प्यारे बाबा को यादो में बसा कर मनन शक्ति से मायाप्रूफ विघ्नप्रूफ हो ख़ुशी के खजाने को संग ले उड़ो...

 

_ ➳  *मीठे बाबा से सारे खजानों को लूटकर अपनी झोली रत्नों से भरकर अतीन्द्रिय सुखों में झूमती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा आपको पाकर किस कदर गुणो और शक्तियो की जादूगर सी बन गयी हूँ...* जीवन कितना मीठा प्यारा सरल और खुशनुमा इस प्यार की जादूगरी से हो गया है... मै आत्मा मायाजीत होकर खुशियो से भर उठी हूँ...

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ब्राह्मण जीवन की दिनचर्या का यथार्थ व निरन्तर पालन*"

 

_ ➳  अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य को स्मृति में लाते ही एक अद्भुत रूहानी नशे और फखुर से मैं आत्मा भर जाती हूँ और मन ही मन अपने दिलाराम बाबा का दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ जिनके डायरेक्शन पर चल कर अपने भाग्य को सर्वश्रेष्ठ बनाने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। *स्वयं भाग्यविधाता भगवान बाप ने भाग्य लिखने की कलम ही मेरे हाथ मे दे दी जिससे मैं जैसा चाहे वैसा अपना भाग्य लिख सकती हूँ*। स्वयं भाग्यविधाता बाप मेरा हो गया इस स्मृति से मेरा रोम - रोम प्रफुलित हो रहा है। खुशी में रोमांच खड़े हो रहें हैं और मैं आत्मा अलौकिक नशे से भरपूर हो कर स्वयं को एकदम लाइट अनुभव कर रही हूँ। मेरी यह लाइट स्थिति मुझे इस देह से न्यारा कर रही है।

 

_ ➳  ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे मैं आत्मा इस देह से संकल्प मात्र भी अटैच नही हूँ। इस देह और देह की दुनिया से मेरा कोई नाता ही नही। *मेरे सभी सम्बन्ध केवल मेरे दिलाराम बाबा के साथ हैं जो हर पल मेरे साथ हैं*। उनकी डायरेक्शन पर चल, शरीर निर्वाह अर्थ हर कर्म करते भी मैं शरीर के भान से जैसे बिल्कुल मुक्त हूँ। *कितनी न्यारी और प्यारी है यह स्थिति जो मुझे हर बन्धन से मुक्त एक दम हल्के पन की अनुभूति करवा रही है। हल्की हो कर मैं आत्मा उड़ रही हूँ*। 

 

_ ➳  देह से न्यारे हो कर उड़ने का यह सुख कितना निराला है यह अनुभव करते, मन ही मन खुशी के गीत गाती अपने दिलाराम बाबा से मिलने की लगन में मग्न मैं उनकी ओर तीव्र गति से बढ़ती जा रही हूँ। *आजाद पँछी की भांति खुले आकाश में विचरण करती मैं आकाश से परें, फरिश्तो की दुनिया को भी पार कर लाल प्रकाश से प्रकाशित अपने शिव पिता के धाम, चमकती हूई मणियों की अति सुंदर दुनिया मे प्रवेश करती हूँ*। चमकती हुई मणियों के प्रकाश से प्रकाशित इस सुंदर दुनिया में मैं स्वयं को बेदाग हीरे के समान चमकता हुआ देख रही हूँ। मुझ चैतन्य हीरे से रंग बिरंगी किरणे निकल रही हैं।

 

_ ➳  मेरे बिल्कुल सामने महाज्योति मेरे शिव पिता परमात्मा अपनी अनन्त शक्तियों की किरणों को चारों और फैलाते हुए अति शोभायमान लग रहे हैं। *उनसे आ रही सर्वशक्तियों की किरणें मुझ चैतन्य हीरे के ऊपर पड़ कर मेरी चमक को करोड़ों गुणा बढ़ा रही है*। बाबा की सर्वशक्तियों को स्वयं में समाकर, लाइट माइट स्वरूप में स्थित हो कर मैं मास्टर बीजरूप स्थिति का अनुभव कर रही हूँ। अपने प्यारे शिव पिता परमात्मा के सानिध्य में मैं स्वयं को धन्य - धन्य अनुभव कर रही हूँ। *वाह मैं आत्मा, वाह मेरे बाबा, जो मुझे अपनी सर्वशक्तियों से भरपूर कर रहे हैं*। 

 

_ ➳  बीजरूप स्थिति में स्थित हो कर, बाबा के सानिध्य में गहन अतीन्द्रीय सुख की अनुभूति करने के बाद मैं लौट आती हूँ वापिस साकारी दुनिया में। *अपने शिव पिता के असीम प्यार और उनके प्यार में समा कर की हुई अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति को अपने साथ लिए मैं अपने साकारी तन में प्रवेश कर जाती हूँ*। बाबा का प्यार और अतीन्द्रिय सुख का कभी ना भूलने वाला अनुभव देह और देह की दुनिया मे रहते हुए भी अब मुझे उस दुनिया से न्यारा और बाप का प्यारा बना रहा है।

 

_ ➳  *बाबा की हर डायरेक्शन को अमल में ला कर अपने कर्मो को श्रेष्ठ बनाकर, बाबा की याद से सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बन कर अब मैं अपने श्रेष्ठ कर्मो द्वारा अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को भी श्रेष्ठता का अनुभव करवा रही हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं कर्म द्वारा गुणों का दान करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं डबल लाइट फरिश्ता आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सदैव सेवा में सफलता का सितारा बन जाती हूँ  ।*

   *मैं शक्तिशाली आत्मा हूँ  ।*

   *मैं शिवशक्ति सेवाधारी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *आप ब्राह्मणों के एक श्रेष्ठ संकल्प में, शुभ संकल्प में इतनी शक्ति है जो आत्माओं को बहुत सहयोग दे सकते हो। संकल्प शक्ति का महत्व अभी और जितना चाहो उतना बढ़ा सकते हो।* जब साइंस का साधन रॉकेट, दूर बैठे जहाँ चाहे, जब चाहे, जिस स्थान पर पहुँचाने चाहे, एक सेकण्ड में पहुँचा सकते हैं। आपके शुभ श्रेष्ठ संकल्प के आगे यह रॉकेट क्या है! रिफाइन विधि से कार्य में लगाके देखो, आपकी विधि से सिद्धि बहुत श्रेष्ठ है। लेकिन *अभी अन्तर्मुखता की भट्टी में बैठो। तो इस नये वर्ष में अपने आप सर्व खजानों की बचत की स्कीम बनाओ। जमा का खाता बढ़ाओ। सारे दिन में स्वयं ही अपने प्रति अन्तर्मुखता की भट्टी के लिए समय फिक्स करो। आपे ही आप कर सकते हो, दूसरा नहीं कर सकता है।*

 

✺   *ड्रिल :-  "ब्राह्मण आत्माओं के श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति का अनुभव"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा भृकुटी सिंहासन में विराजमान एकांत बैठी हूँ... मैं मन-बुद्धि द्वारा एक समु्द्र के किनारे पहुँचती हूँ...* वहाँ मन को लुभाने वाली ठंडी-ठंडी हवायें चल रही हैं... समु्द्र की लहरे तेज़ी से बढ़ रही है... वहाँ एक द्वीप पर छोटी-छोटी रंग-बिरंगी सीपियाँ पड़ी हुई हैं... उसी के पास एक सुनहरे रंग का चिराग रखा हुआ हैं जिसमें मैं आत्मा रूपी जादुई जिन बैठी हुई हूँ...

 

_ ➳  बाबा ऊपर बैठे यह सब नज़ारे देख रहे हैं... *बाबा चिराग के अंदर शांति, पवित्रता, प्रेम, सुख, शक्ति, आनंद और ज्ञान की किरणें डाल रहे हैं... मैं चिराग में बैठी हुई आत्मा रूपी जिन पॉवरफुल होती जा रही हूँ...* मुझमें बाबा ने रूहानी पॉवर भरदी हैं... मैं तेज़ी से उस चिराग से बाहर निकलती हूँ... मेरे सामने बहुत-सी दुःखी आत्मायें खड़ी हैं... वह मुझसे तीन ख्वाहिशें माँग रही है... पहली-शुभभावना, दूसरी- सकारात्मक सोच और तीसरी- दुःखों से दूर करना... मैं यह तीनों ख्वाहिशें पूर्ण कर रही हूँ...

 

_ ➳  मैं संकल्प शक्ति द्वारा सर्व आत्माओं के दुःखों को जान पा रही हूँ और जिन सम्बन्धों में कड़वाहट हैं वो संकल्प शक्ति द्वारा सही होते जा रहे है... *मैं परमात्म पालन में सर्व प्राप्तियों का अनुभव कर रही हूँ... मुझे सर्व खजानों की मालिकपन की अनुभूति हो रही हैं... मैं अपने श्रेष्ठ संकल्पों और श्रेष्ठ समय को यूज़ करके स्व और सर्व का कल्याण कर रही हूँ...*

 

_ ➳  अब मैं क्यों, कैसे, क्या जैसे प्रश्नों में नहीं आती हूँ... अब मैं अपने को बिंदू स्थिति में स्थित करके सारी परिस्थितियों को बिंदी लगाती जाती हूँ... *मैं याद की शक्ति द्वारा अपनी संकल्प शक्ति को बढ़ाती जा रही हूँ... बाबा ने सर्व अधिकार देकर सर्व खजानों से भरपूर कर दिया... अब मैं बिल्कुल भी व्यर्थ संकल्प नहीं करती हूँ जिससे कि मेरे संकल्पों की बचत हो...* अब हर समय मैं यही चेकिंग करती हूं कि कही मेरे संकल्प व्यर्थ तो नहीं जा रहे हैं...

 

_ ➳  अपनी दिनचर्या में मैं नये-नये तरीके ढूंढती हूँ कि कैसे मैं जमा का खाता बढ़ा सकती हूँ... *अमृतवेले और नुमाशाम योग के समय में मैं अन्तर्मुख होकर परमधाम, सूक्ष्मवतन, साकारलोक की सैर करती हूँ... वहाँ की वाइब्रेशन्स से मेरा मन हर्षित हो उठता हैं... सभी के प्रति शुभ संकल्पों का संचार होने लगता हैं...* अब मैं सदा अटेंशन रखती हूँ कि किसी अन्य आत्मा की कमी-कमजोरी मेरे संकल्पों में धारण न हो...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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