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❍ 16 / 01 / 21 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अपने ऊपर कण्ट्रोल रखा ?*
➢➢ *"जो कर्म मैं करूंगा, मुझे देख सब करेंगे" - यह बुधी में रहा ?*
➢➢ *स्वमान की सीट पर स्थित रह माया को सरेंडर करवाया ?*
➢➢ *साक्षीपन की सीट पर स्थित रह दिलाराम के साथ का अनुभव किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ अभी तक वाचा और कर्मणा की सेवा में जो तेरी-मेरी का, नाम, मान, शान का, स्वभाव, संस्कार का टकराव होता है, समय व सम्पत्ति का अभाव होता है, यह *सर्व विघ्न एकाग्रता के अभ्यास द्वारा मन्सा सेवा करने से सहज समाप्त हो जायेंगे।* रुहानी सेवा का एक संस्कार बन जायेगा।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं वृत्ति से वायुमण्डल बनाने वाली मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा हूँ"*
〰✧ सभी अपने को सदा मास्टर सर्वशक्तिवान समझते हुए हर कार्य करते हो? *सदा सेवा के क्षेत्र में अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान समझकर सेवा करेंगे तो सेवा में सफलता हुई पड़ी है क्योंकि वर्तमान समय की सेवा में सफलता का विशेष साधन है - 'वृति से वायुमण्डल बनाना'।*
〰✧ *आजकल की आत्माओंको अपनी मेहनत से आगे बढ़ना मुश्किल है इसलिए अपने वाइब्रेशन द्वारा वायुमण्डल ऐसा पावरफुल बनाओ जो आत्मायें स्वत: आकर्षित होते आ जाएँ।*
〰✧ तो सेवा की वृद्धि का फाउण्डेशन यह है - बाकी साथ-साथ जो सेवा के साधन हैं वह चारों ओर करने चाहिए। *सिर्फ एक ही एरिया में ज्यादा मेहनत और समय नहीं लगाओ और चारों तरफ सेवा के साधनों द्वारा सेवा को फैलाओ तो सब तरफ निकले हुए चैतन्य फूलों का गुलदस्ता तैयार हो जायेगा।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ आज दूरदेशी बापदादा अपने साकार दुनिया के भिन्न-भिन्न देश वासी बच्चों से मिलने आये हैं। बापदादा भिन्न-भिन्न देश वासियों को एक देशवासी देख रहे हैं। चाहे कोई कहाँ से भी आये हो लेकिन सबसे पहले सभी एक देश से आये हो। तो *अपना अनादि देश याद है ना प्यारा लगता है ना! बाप के साथ-साथ अपना अनादि देश भी बहुत प्यारा लगता है ना!*
〰✧ बापदादा आज सभी बच्चों के पाँच स्वरूप देख रहे हैं, जानते हो पाँच स्वरूप कौन-से हैं? जानते हो ना! 5 मुखी ब्रह्मा का भी पूजन होता है। तो बापदादा सभी बच्चों के 5 स्वरूप देख रहे हैं। *पहला- अनादि ज्योतिबिन्दु स्वरूप। याद है ना अपना स्वरूप?* भूल तो नहीं जाते?
〰✧ *दूसरा है - आदि देवता स्वरूप पहुँच गये देवता स्वरूप में? तीसरा - मध्य में पूज्य स्वरूप, वह भी याद है?* आप सबकी पूजा होती है या भारतवसियों की होती है? आपकी पूजा होती है? कुमार सुनाओ आपकी पूजा होती है? *तो तीसरा है पूज्य स्वरूप। चौथा है - संगमयुगी ब्राह्मण स्वरूप और लास्ट में है फरिश्ता स्वरूप।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ जैसे अज्ञान काल में भी कोई -कोई बच्चों में जैसे कि बाप ही नज़र आता है, उनके बोल-चाल से अनुभव होता है- जैसे कि बाप है। इसी रीति *से जो अनन्य बच्चे हैं उन एक - एक बच्चे द्वारा बाप के गुण प्रत्यक्ष होने चाहिए और होंगे। कैसे होंगे? उसका मुख्य प्रयत्न क्या है?* मुख्य बात यही है जो साकार रूप से भी सुनाई है कि - याद की यात्रा, *अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर हर कर्म करना है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- कदम-कदम श्रीमत पर चलना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा एकांत में बैठ अपने मुस्कुराते हुए भाग्य को देख रही हूँ...* कितना सुन्दर भाग्य है मुझ आत्मा का... जो इस संगमयुग में हर पल भगवान के संग-संग रहती हूँ... सदा भगवान् की छत्रछाया, भगवान् का साथ, भगवान् की मदद का अनुभव करती हूँ... *स्वयं भगवान अपना परमधाम छोडकर, मुझे परम ज्ञान देकर, परम योगी बनाकर, परम पद देने के लिए ब्रह्मा तन में अवतरित हुए हैं... मैं आत्मा अपना सब समाचार देने, बाबा से श्रीमत लेने पहुँच जाती हूँ अव्यक्त वतन में अव्यक्त बापदादा के पास...*
❉ *कदम कदम पर श्रीमत पर चलने की शिक्षा देते हुए ब्रह्मा बाबा के मस्तक पर चमकते हुए प्यारे शिव बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... इस पराये देश परायी सी दुनिया के भूल भुलैया के खेल में... स्वयं के सच्चे स्वरूप और असली घर को ही भूलकर... दुखो का पर्याय बन गए हो... *अब सच्चे पिता की सच्ची श्रीमत पर चलकर... वही तेजस्वी स्वरूप को पुनः पा लो... और मीठे सुखो के मधुमास में खुशनुमा जीवन के अधिकारी बन मुस्कराओ...”*
➳ _ ➳ *बापदादा की शिक्षाओ को धारण कर खुशनुमा फूलों से सजते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा देह को ही अपना वास्तविक स्वरूप समझकर दुखो के दलदल में धँस गई थी... *आपने प्यारे बाबा मुझे अपनी श्रीमत का हाथ देकर सदा का सुखी बनाया है... श्रीमत को बाँहों में लेकर मै आत्मा ख़ुशी के आसमान में उड़ रही हूँ...”*
❉ *मुझे अपने मखमली गोद में बिठाकर वरदानों से नवाजते हुए मीठे प्यारे बापदादा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *हर कदम को मीठे बाबा की यादो और श्रीमत को रखकर... बेफिक्र बादशाह बनकर मुस्कराओ... बाबा की श्रीमत भरा हाथ हाथो में थामकर निश्चिन्त हो इठलाओ... अपनी हर साँस संकल्प को श्रीमत प्रमाण चलाओ...* और सुंदर देवताई संस्कारो को दामन में सजाओ...”
➳ _ ➳ *सच्चे प्यार के साये में बाबा के हर कदम में कदम रख चलते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा आपका साथ और साया पाकर कितनी भाग्यशाली बन गई हूँ...* प्यारे बाबा आपके बिना मै आत्मा... कितनी निराश थकी और टूटी सी हो उठी थी... *आपके प्यार और श्रीमत ने पुनः मुझे रूहानी फूल सा खिला दिया है...”*
❉ *निराकार बाबा, साकार बाबा के द्वारा अलौकिक दिव्य ज्ञान देते हुए मुझसे कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... मनुष्य मतो पर चलकर जीवन के खोखलेपन और शक्तिहीनता के गहरे अनुभवी हो गए हो... अब श्रीमत पर चलकर खुद ही खुद पर दया करो... *ईश्वर पिता जो सुख और खजाने हाथो में ले आया है उनके अधिकारी बन सुन्दरतम जीवन को पाओ... हर कदम श्रीमत प्रमाण ही उठाओ...”*
➳ _ ➳ *बापदादा के प्यार में अतीन्द्रिय सुखों के झूलों में झूलते हुए मैं तकदीरवान आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय ज्ञान को पाकर कितनी मीठी ख़ुशी से भर उठी हूँ... *प्यारे बाबा, जीवन कितना सरल प्यारा और श्रेष्ठ हो गया है... और ईश्वरीय हाथो में सदा का सुरक्षित हो गया है... आपकी श्रीमत ने मुझे दुखो की गुलामी से मुक्त करा दिया है...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- इस पतित पुरानी दुनिया से बेहद का वैराग्य रखना है*"
➳ _ ➳ देह और देह की यह झूठी दुनिया जिसमे बुद्धि को फंसा कर आज दिन तक सिवाय दुख और अशांति के कुछ प्राप्त नही हुआ ऐसी नश्वर दुनिया से वैराग्य रख उसे बुद्धि से भूल अपने मन बुद्धि को शन्ति, प्रेम, सुख, ज्ञान, शक्ति, आनन्द और पवित्रता के सागर अपने शिव पिता परमात्मा पर एकाग्र करना ही राजयोग है जो सच्चे सुख और शान्ति को पाने का एकमात्र उपाय है। *इसी चिंतन के साथ इस असार संसार की नश्वरता का विचार मन मे आते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे मेरा मन इस बेहद की दुनिया से वैरागी होने लगा है*। इस असार संसार मे होते हुए भी जैसे मैं इसमें नही हूँ।
➳ _ ➳ स्वयं को मैं केवल अपने लाइट स्वरूप में, एक चमकते हुए चैतन्य सितारे के रूप में देख रही हूँ और अनुभव कर रही हूँ कि *मेरा घर यह नश्वर दुनिया नही बल्कि 5 तत्वों से बनी इस दुनिया से परे, तारामंडल से भी परें, फ़रिश्तों की दुनिया के पार अनन्त प्रकाश की अति सुंदर दुनिया परमधाम हैं*। उस प्रकाश की दुनिया में अपने शिव पिता परमात्मा के साथ मैं रहने वाली हूँ। इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर मैं केवल पार्ट बजाने के लिए ही तो आई हूँ। हर आत्मा यहां इस बेहद की दुनिया मे आ कर ड्रामा प्लैन अनुसार अपना पार्ट ही तो बजा रही है।
➳ _ ➳ ड्रामा के इस अति गुह्य राज को स्मृति में रख इन सभी के पार्ट को अब मैं साक्षी हो कर देख रही हूँ। साक्षीदृष्टा की यह अवस्था मुझे इस बेहद की दुनिया से वैराग्य दिला रही है। *बुद्धि से इस दुनिया को भूल, अपनी अति सुंदर निराकारी दुनिया को स्मृति में लाकर अब मैं मन बुद्धि के विमान पर बैठ इस बेहद की दुनिया से किनारा कर प्रकाश की उस अति उज्ज्वल दुनिया की ओर जा रही हूँ*। स्वीट साइलेन्स होम की स्मृति मात्र से ही मेरे अंदर जैसे शक्ति भरने लगी है जो मुझे लाइट और माइट स्वरुप में स्थित कर, ऊपर की ओर ले जा रही है। हर प्रकार के बन्धन से मुक्त हल्के हो कर उड़ते हुए असीम आनन्द का अनुभव करते - करते आकाश मण्डल को मैं पार कर जाती हूँ।
➳ _ ➳ आकाश को पार कर, सफेद प्रकाश की दुनिया सूक्ष्म लोक को पार कर मैं पहुँच जाती हूँ अति दिव्य, अलौकिक लाल प्रकाश से प्रकाशित अपने स्वीट साइलेन्स होम शान्तिधाम में। *शान्ति की इस दुनिया मे पहुंचते ही गहन शांति की अनुभूति में मैं खो जाती हूँ और हर संकल्प, विकल्प से परें एक अति न्यारी और प्यारी निरसंकल्प स्थिति में स्थित हो जाती हूँ*। संकल्पो से रहित इस अति प्यारी अवस्था में मेरा सम्पूर्ण ध्यान केवल अपने सामने विराजमान मेरे शिव पिता की ओर है। मुझे केवल मेरा चमकता हुआ ज्योति बिंदु स्वरूप और अपने शिव पिता परमात्मा का अनन्त प्रकाशमय महाज्योति स्वरूप दिखाई दे रहा है।
➳ _ ➳ इस अतिशय प्यारी निरसंकल्प स्थिति में स्थित मैं आत्मा महाज्योति अपने शिव बाबा से आ रही अनन्त शक्तियों की किरणें को स्वयं में समाहित कर शक्तिसम्पन्न स्वरूप बनती जा रही हूँ। *शिव बाबा से आ रही सातों गुणों की सतरंगी किरणे मुझ आत्मा में समाहित होकर मेरे अंदर निहित सातों गुणों को विकसित कर रही हैं*। देह अभिमान में आ कर, अपने सतोगुणी स्वरूप को भूल चुकी मैं आत्मा अपने एक - एक गुण को पुनः प्राप्त कर फिर से अपने सतोगुणी स्वरूप में स्थित होती जा रही हूँ।
➳ _ ➳ हर गुण, हर शक्ति से मैं स्वयं को सम्पन्न बना कर वापिस देह की दुनिया में कर्म करने के लिए लौट रही हूँ। अपनी देह में पुनः भृकुटि के अकालतख्त पर अब मैं विराजमान हूँ। *बाबा के साथ सदा कम्बाइन्ड रहकर अपने गुणों और सर्वशक्तियों को सदा इमर्ज रखते हुए अब मैं साक्षीदृष्टा बन इस बेहद की दुनिया में अपना पार्ट बजा रही हूँ*। इस दुनिया मे स्वयं को मेहमान समझ इसमें रहते हुए बुद्धि से अब मैं इसे भूलती जा रही हूँ। *इस बेहद की दुनिया से बेहद की वैराग्य वृति रख, अपने शिव पिता पर अपनी बुद्धि को सदा एकाग्र रखते हुए, उनकी याद में रहते केवल निमित बन अब मैं हर कर्तव्य कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं स्वमान की सीट पर स्थित रहने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं माया को सरेंडर करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं श्रेष्ठ स्वमानधारी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा सदा साक्षीपन की स्थिति में स्थित रहती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदा दिलाराम के साथ का अनुभव करती हूँ ।*
✺ *मैं लवलीन आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *बापदादा इस वर्ष में जो इस समय तक किया, उसमें संतुष्ट हैं, आफरीन भी देते हैं। लेकिन अभी सेवा में अनुभूति कराना, शमा के ऊपर परवाने बनाना, चाहे सहयोगी बनाओ, चाहे साथी बनाओ, कुछ बनें। अनुभूति की खान खोलो*। अच्छा है - यहाँ तक ठीक है। लेकिन सिर्फ चक्कर लगाने वाले परवाने नहीं बनें। पक्के परवाने बनेंगे -अनुभूति का कोर्स कराने से। इतने तक अनुभूति होती है - बहुत अच्छा है, स्वर्ग है। यही यथार्थ ज्ञान है, नालेज है, इतना सेवा का रिजल्ट अच्छा है। *अभी अनुभूति स्वरूप बन अनुभव कराओ। अनुभव करने वाले अर्थात् बाप से डायरेक्ट सम्बन्ध रखने वाले।* ऐसे अनुभवी परवाने तैयार करो। सहयोगी बनाये हैं, उसकी मुबारक है और बनाओ। यह स्थान है, यहाँ से ही प्राप्ति हो सकती है, इतने तक भी मानते हैं लेकिन बाप के साथ जरा-सा कनेक्शन तो जोड़ो, जो शमा के पीछे ही भागते रहें। तो *इस वर्ष विशेष बापदादा सेवा में अनुभूति कराने का कोर्स कराना चाहते हैं। इससे ही साक्षात्कार भी होंगे और साक्षात बाप प्रत्यक्ष होंगे।* सुना, क्या करना है?
✺ *ड्रिल :- "सेवा में अनुभूति कराने का कोर्स कराना"*
➳ _ ➳ *मैं स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूं... शान्त तन और मन लिए बापदादा के चित्र को देखते देखते उनसे बातें करते हुए बाबा के पास पहुँचती हूँ... अपने घर उस रूहानी लोक में, जहां है... असीम शान्ति, मेरा स्वीट होम* कितना प्यारा कितना न्यारा है... सब कुछ यहां... अपने रोम-रोम में मैं शान्ति का अनुभव कर रही हूं... *अपने बिंदु स्वरूप बाबा से मुझ बिंदु पर निरंतर किरणें आ रही हैं... इन प्रकाश की किरणों में ना जाने कौन सा जादू है... कि मैं आत्मा आनंद की लहरों में लहराने लगती हूँ...*
➳ _ ➳ *इस अनोखे अलौकिक आनंद में झूमती मैं उस ज्योतिर्बिन्दु के इर्द गिर्द घूमने लगती हूं जैसे परवाना शमा के इर्दगिर्द घूमता है* और चाहती हूं कि ये घड़ियां बस अब यहीं रुक जाए... *ये परमात्म आनंद ये अलौकिक सुख..."पाना था जो पा लिया अब और ना कुछ बाकी रहा"...* इसी अनुभूति में लहराती मैं अपनी पाँच तत्वों की काया में प्रवेश करती हूं... *इतने प्यारे इतने रूहानी अनुभव के लिए बाबा को मेरा रोम-रोम धन्यवाद देता है... तभी एक बात जेहन में आती है... जैसे बाबा कह रहे हों बच्चे ऐसी ही अनुभति तुम्हें औरों को भी करानी होगी सच्चे परवाने तैयार करने हैं... जी बाबा!* कह मैं इस सेवा कोर्स को अन्य आत्माओं को कराने की तैयारी में लग जाती हूं...
➳ _ ➳ *बापदादा का हाथ और साथ अपने साथ लिए मैं अपने सेवास्थल पर पहुँचती हूं...* जहाँ मेरे भाई बहन बाबा की याद में बैठे हैं... मुझे इन आत्माओं को वही अलौकिक अनुभव कराना है... *जिस रूहानी यात्रा में मैंने इतना असीम सुख पाया वो इन्हें भी दिलाना है...* मैं अपनी पूरी शुभ भावना और शुभ कामना उनको देती हूं...
➳ _ ➳ बाबा ने जो रूहानी दृष्टि मुझे दी वो मैं अब इन आत्माओं को दे रही हूं... इस दृष्टि को लेते ही सब आत्माएँ रूहानियत के पंख लगा कर बाबा के पास परमधाम में परवाने के जैसे पहुंच रही हैं... *आनंद उत्साह में डूबे ये परवाने उस अलौकिक शमा के चारों ओर चक्कर लगा रहे हैं... झूम रहे हैं... मर मिटने को तैयार हैं...* बाबा की किरणें इन आत्माओं को परम शांति... परम सुख... की अनुभूति करा रही हैं... *बाबा को प्रत्यक्ष अनुभव कर इनके मन सुख, चैन से भर गए हैं सभी इस आनंद रस में भीग रहे हैं...*
➳ _ ➳ वापिस अपनी साकारी दुनिया में आती सभी आत्माएं अपने को *प्रेमधन* से भरपूर कर गुनगुना रही हैं... *"क्या क्या ना पाया बाबा हमने तेरे प्यार में"* इनको प्रभुप्रेम से भरा देख मैं भी हर्षित होती हूं... और अपने प्यारे मीठे बाबा को इस सेवा इस अनुभव के लिए दिल से शुक्रिया अदा करती हूं... *वाह वाह मेरे बाबा वाह वाह* ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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