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 29 / 01 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सच्चे बाप के साथ सदा सच्चे रहे ?*

 

➢➢ *ज्ञान को धारण कर बुधीवान बनकर रहे ?*

 

➢➢ *ज्ञान की गुह्य बातों को सुनकर उन्हें स्वरुप में लाये ?*

 

➢➢ *नॉलेज और अनुभव की डबल अथॉरिटी बनकर रहे ?*

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*अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जैसे मोटेपन को मिटाने का साधन है खान-पान की परहेज और एक्सरसाइज। वैसे यहाँ भी *बुद्धि द्वारा बार-बार अशरीरीपन की एक्सरसाइज करो और बुद्धि का भोजन संकल्प है उनकी परहेज रखो, तो मन लाइट एकरस और शक्तिशाली बन जायेगा।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बंधनमुक्त सहजयोगी आत्मा हूँ"*

 

  सदा स्वयं को बन्धनमुक्त आत्मा अनुभव करते हो? स्वतन्त्र बन गये या अभी कोई बन्धन रह गया है? *बन्धनमुक्त की निशानी है - 'सदा योगयुक्त'। योगयुक्त नहीं तो जरूर बन्धन है।* जब बाप के बन गये तो बाप के सिवाए और क्या याद आयेगा?

 

  सदा प्रिय वस्तु या बढीया वस्तु याद आती है ना। तो बाप से श्रेष्ठ वस्तु या व्यक्ति कोई है? *जब बुद्धि में यह स्पष्ट हो जाता है कि बाप के सिवाए और कोई भी श्रेष्ठ नहीं तो 'सहजयोगी' बन जाते हैं।*

 

  *बन्धनमुक्त भी सहज बन जाते हैं, मेहनत नहीं करनी पड़ती। सब सम्बन्ध बाप के साथ जुड़ गये। मेरा-मेरा सब समाप्त, इसको कहा जाता है - सर्व सम्बन्ध एक के साथ।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  तो औरों के सेवा की बहुतबहुत-बहुत आवश्यकता है। तो यह तो कुछ भी नहीं है। बहुत नाजुक समय आना ही है। *ऐसे समय पर आप उडती कला द्वारा फरिश्ता बन चारों ओर चक्कर लगाते, जिसको शान्ति चाहिए, जिसको खुशी चाहिए, जिसको सन्तुष्टता चाहिए, फरिश्ते रूप में सकाश देने का चक्कर लगायेंगे और वह अनुभव करेंगे।*

 

✧  जैसे अभी अनुभव करते हैं ना, पानी मिल गया बहुत प्यास मिटी खाना मिल गया, टेन्ट मिल गया, सहारा मिल गया। ऐसे अनुभव करेंगे फरिश्तों द्वारा शान्ति मिल गई, शक्ति मिल गई, खुशी मिल गई। *ऐसे अन्त: वाहक अर्थात अन्तिम स्थिति, पॉवरफुल स्थिति आपका अन्तिम वाहन बनेगा।*

 

✧  और चारों ओर चक्कर लगाते सबको शक्तियाँ देंगे, साधन देंगे। अपना रूप सामने आता है? इमर्ज करो। कितने फरिश्ते चक्कर लगा रहे हैं। सकाश दे रहे हैं, तब कहेंगे जो आप एक गीत बाजते हो ना - शक्तियाँ आ गई... *शक्तियों द्वारा ही सर्वशक्तिवान स्वतः सिद्ध हो जायेगा।* सुना।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  अपने को आत्मा समझ उस स्वरूप में स्थित होना है। *जब स्व-स्थिति में स्थित होंगे, तो भी अपने जो गुण हैं वह तो अनुभव होंगे ही। जिस स्थान पर पहुँचा जाता है उसके गुण न चाहते हुए भी अनुभव होते हैं। आप किसी शीतल स्थान पर जायेंगे, तो न चाहते हुए भी शीतलता का अनुभव होगा।* आत्माभिमानी अर्थात् बाप की याद। *आत्मिक-स्वरूप में बाबा की याद नहीं रहे - यह तो हो नहीं सकता है। जैसे बाप-दादा - दोनों अलग-अलग नहीं है, वैसे आत्मिक निश्चय बुद्धि से बाप की याद भी अलग नहीं हो सकती है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- प्रजापिता ब्रह्मा के आक्युपेशन को जानना"*

 

_ ➳  जीवन में जब भाग्य ने भगवान को प्रकट नही किया था... यह जीवन कितना बोझिल और अंधकार से भरा लक्ष्य हीन था.... अपने दुःख भरे अतीत की तुलना में, सुंदर सजीले वर्तमान को देख.... मै आत्मा *मेरे जीवन को यूँ सुंदरता के रंगो से सजाने वाले... जादूगर बाबा की यादो में खो जाती हूँ..*. प्यारे बाबा ने पवित्रता के रंग में रंगकर, मुझ आत्मा को शिखर पर सजा दिया है... *शिव पिता और ब्रह्मा मां के आँगन में खिलने वाला खुबसूरत गुलाब मै आत्मा.*.. ज्ञान और योग के पानी से निरन्तर गुणो... और शक्तियो की पंखुड़ियों से खिली मै आत्मा... पूरे विश्व को अपनी रूहानियत की खशबू सराबोर कर रही हूँ...

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को मेरे महान भाग्य के नशे में डुबोते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे.... *परमधाम से भगवान ने आकर, आप महान बच्चों को अपनी आँखों का तारा बनाया है.*.. दुखो के कंटीले जंगल से बाहर निकाल, सुख भरी गोद में बिठाया है... निराकार और साकारी पिता की अनूठी पालना में पलने वाले सोभाग्यशाली हो... सदा इसी रायल्टी में रहो... क्योकि ऐसा प्यारा भाग्य तो देवताओ का भी नही है..."

 

_ ➳  *मै आत्मा ईश्वरीय पालना में सजे संवरे अपने महान भाग्य को देख पुलकित होते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मीठे प्यारे बाबा... *मुझ आत्मा ने स्वयं भगवान को पा लिया है इससे प्यारी बात भला और क्या होगी.*.. आपने मेरे कौड़ी जेसे जीवन को, हीरे जैसा बेशकीमती बना दिया है... मै आत्मा असीम सुखो की अनुभूतियों से भर गयी हूँ... अलौकिक और पारलौकिक पिता को पाने वाली... देवताओ से भी ज्यादा भाग्यशाली हूँ..."

 

   *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को सत्य ज्ञान से भरपूर करते हुए, और अपने सच्चे प्रेम की तरंगो से भरते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय प्यार को पाकर, जो विकारो के काँटों से, दिव्य गुणो के फूल में परिवर्तित हुए हो... इन मीठी स्मर्तियो में सदा झूमते रहो... *अपनी रूहानियत भरी चाल से निराकार और साकार पिता की झलक... सारे विश्व को दिखाकर, सबको ईश्वरीय प्यार का दीवाना बनाओ*...

 

_ ➳  *मै आत्मा प्यारे बाबा की अमूल्य ज्ञान निधि से मन बुद्धि को शक्तिशाली बनते देख कहती हूँ :-* "मीठे दुलारे बाबा मेरे... आपके बिना तो मै आत्मा इस विकारी दुनिया में अनाथो जैसा भटक रही थी... खुशियो के लिए सदा तरसती ही रही... आपने प्यारे बाबा मुझे पिता का प्यार देकर फिर से सनाथ बना दिया है... *ब्रह्मा अलौकिक पिता संग निराकारी पालना ने मुझे हीरों  सा सजा दिया है*...

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने स्नेहिल आगोश में लेते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... आप देवताओ से भी ज्यादा खुशनसीब हो जो... भगवान के साये में सम्मुख बेठ, तीनो लोको और कालो को जान गए हो... *निराकार और साकार दोनों का प्यार पाने वाले, देवताओ से भी ऊँचे भाग्य के धनी हो.*.. सदा इस मीठी खुमारी में खोये रहो...

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा के स्नेह में डूबी, अपने भाग्य पर मुस्कराते हुए कहती हूँ :-* "मीठे दुलारे मेरे बाबा... आपने आकर जीवन को मीठी बहारो सा सजाया है... मुझे देवताओ से भी ऊँच बनाकर, अपने गले लगाया है... वरदानों भरा हाथ मेरे सिर पर रखकर... मुझे सबसे खुशनसीब बनाया है... *ब्रह्मा मा के आँचल में और शिव पिता की छत्रछाया में पलने वाली मै आत्मा महानता से सज गयी हूँ..*. प्यारे बाबा से मीठी रुहरिहानं करके मै आत्मा... अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ...

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सच्चे बाप के साथ सदा सच्चा रहना है*"

 

_ ➳  देख रही हूं मैं स्वयं को एक सुंदर से फूलो के बगीचे में एक छोटे से, नन्हे से इनोसेंट बालक के रूप में जो इस बात से बिल्कुल अनजान है कि माया क्या है! माया की गृहचारी क्या होती है। *यही जानने की उत्सुकता से मैं नन्हा सा बालक अपने शिव पिता को बुलाता हूँ और मेरी पुकार सुनते ही मेरे पिता मेरे पालनहार शिव बाबा अपने लाइट माइट स्वरूप में मेरे सामने उपस्थित हो जाते है*। उन्हें अपने सामने देखते ही मेरा उदास चेहरा एक दम फूल के समान खिल उठता है और मैं दौड़ कर उनके पास पहुंच जाता हूँ। *बाबा मुझे अपनी गोद मे ले लेते हैं और मुझे बड़े प्यार से दुलारते हुए कहते हैं, आओ मेरे मीेठे लाडले बच्चे:- "मैं तुमको बताता हूँ कि माया की ग्रहचारी क्या होती है"*।

 

_ ➳  अपने शिव पिता की गोद में मैं नन्हा बालक स्वयं को एकदम सुरक्षित अनुभव करते हुए बिना किसी भय के ऊंचे ऊंचे पहाड़ों, नदियों, समुन्द्र के ऊपर से उड़ता हुआ जा रहा हूँ। प्रकृति के खूबसूरत नजरों को देखता हुआ, उनका आनन्द लेता हुआ अब मैं बाबा के साथ एक ऐसे स्थान पर पहुंचता हूँ जो देखने में बहुत ही आकर्षक है। ऐशो आराम की हर भौतिक सुख सुविधाएं यहां उपस्थित है। *हर वस्तु देखने मे इतनी लुभायमान है कि कोई भी उनके आकर्षण में आकर्षित हुए बिना नही रह सकता*। इन सभी लुभावनी चीजों को देखते हुए मैं जैसे ही बाबा की ओर प्रश्नचित निगाहों से देखता हूँ। बाबा मुस्कराते हुए मेरी ओर देख कर मुझे जवाब देते हैं, मेरे बच्चे:- "यही तो माया की नगरी है"।

 

_ ➳  बाबा अब मेरा हाथ थामे मुझे उस माया नगरी के अंदर ले आते हैं। मन को चकाचौंध कर देने वाले लुभावने दृश्य मैं देख रहा हूँ। लेकिन तभी मेरी निगाह एक बहुत ही खूबसूरत दिखाई देने वाले राजसिहांसन पर जाती है जिस पर एक विशाल दैत्य बैठा हुआ है। उसे देख, डर कर मैं बाबा की गोद मे छिप जाता हूँ। *बाबा कहते, बच्चे:- "यह माया रावण है, किन्तु यह आपका कुछ नही बिगाड़ सकता क्योंकि मैं आपके साथ हूँ"। मैं देख रहा हूँ उसका रूप घड़ी घड़ी बदलता हुआ दिखाई दे रहा है*। कभी बहुत ही आकर्षक और कभी भयानक। भयंकर अट्ठहास  करता हुआ वो विशालकाय दैत्य अपने सैनिकों को आदेश दे रहा है कि भू लोक के हर मनुष्य को अपने मोह जाल में फंसा कर मेरे पास ले कर आओ। उसका आदेश सुन कर सैनिक जाते है और एक एक करके भू लोक के वासियों को वहां ला रहें हैं। अपने राज्य को बढ़ता देख वो दैत्य और भी भयानक अट्ठहास करता है।

 

_ ➳  इन सभी दृश्यों के बीच एक और बहुत ही खूबसूरत दृश्य अब मैं देख रहा हूँ। *श्वेत वस्त्र धारण किये अनेक ब्राह्मण बच्चो को जो भगवान की सच्ची अराधना कर रहें हैं*। सच्चे मन से बाबा को याद करते हुए बाबा की छत्रछाया के नीचे गहन तपस्या में मग्न है। माया रावण के सैनिक उनके पास जा कर अनेक प्रकार के प्रलोभन उन्हें दे कर अपनी नगरी में लाने के लिए उन्हें उकसा रहें हैं। लेकिन *बाबा के प्रेम का अतीन्द्रिय सुख उन्हें माया के हर प्रलोभन से मुक्त कर रहा है*। उन्हें आकर्षित करने के माया रावण के सभी उपाय फेल हो रहें हैं। ब्राह्मण बच्चो की विजय हो रही है और माया रावण की नगरी विध्वंस हो रही है। माया भी दासी बन उन बच्चों के आगे सरेन्डर हो चुकी है।

 

_ ➳  बाबा अब मुस्कुराते हुए मेरी ओर देख रहे हैं जैसे आंखों ही आंखों में मुझसे पूछ रहे हैं, समझे बच्चे:- "माया और माया की गृहचारी क्या होती है"! अपना सिर हिलाते हुए मैं मीठी सी मुस्कुराहट के साथ बाबा को जवाब देता हूं, हां बाबा। मैं सब कुछ समझ गया। *माया की गृहचारी से बचने के लिए अब मुझे सदा आपके साथ रहना है, एक पल के लिए भी आपसे दूर नही होना*।

 

_ ➳  बाबा को अपने साथ लिए अब मैं निराकारी आत्मा बन अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट रही हूँ। चलते, फिरते हर कर्म करते कम्बाइंड स्वरूप की स्मृति में रह अब मैं माया के हर वार का सामना सहज रीति कर रही हूं। *सच्चे बाप का सच्चा बच्चा बन बाबा के साथ अंदर बाहर सदा सच्चे हो कर रहने से अब मैं बाबा को कदम कदम पर अपने साथ अनुभव कर रही हूं*। बाबा की छत्रछाया सेफ्टी का किला बन माया के हर वार से मुझे बचा रही है।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं ज्ञान की गुह्य बातों को सुनकर उन्हें स्वरूप में लाने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं ज्ञानी तू आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं नॉलेज एवं अनुभव की डबल अथॉरिटी वाली आत्मा हूँ  ।*

   *मैं मस्त फकीर रमता जोगी हूँ  ।*

   *मैं नॉलेजफुल आत्मा अनुभवीमूर्त हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *जो ब्रह्मा बाप ने आज के दिन तीन शब्दों में शिक्षा दी, (निराकारी, निर्विकारी और निरअहंकारी) इन तीन शब्दों के शिक्षा स्वरूप बनो। मनसा में निराकारी, वाचा में निरअहंकारी, कर्मणा में निर्विकारी। सेकण्ड में साकार स्वरूप में आओ, सेकण्ड में निराकारी स्वरूप में स्थित हो जाओ। यह अभ्यास सारे दिन में बार-बार करो।*  ऐसे नहीं सिर्फ याद में बैठने के टाइम निराकारी स्टेज में स्थित रहो लेकिन बीच-बीच में समय निकाल इस देहभान से न्यारे निराकारी आत्मा स्वरूप में स्थित होने का अभ्यास करो। *कोई भी कार्य करो, कार्य करते भी यह अभ्यास करो कि मैं निराकार आत्मा इस साकार कर्मेन्द्रियों के आधार से कर्म करा रही हूँ। निराकारी स्थिति करावनहार स्थिति है। कर्मेन्द्रियाँ करनहार हैं, आत्मा करावनहार हैं। तो निराकारी आत्म स्थिति से निराकारी बाप स्वतः ही याद आता है।* जैसे बाप करावनहार हैं ऐसे मैं आत्मा भी करावनहार हूँ। इसलिए कर्म के बन्धन में बंधेंगे नहीं, न्यारे रहेंगे क्योंकि कर्म के बन्धन में फँसने से ही समस्यायें आती हैं। सारे दिन में चेक करो -करावनहार आत्मा बन कर्म करा रही हूँ? अच्छा! अभी मुक्ति दिलाने की मशीनरी तीव्र करो।

 

✺   *ड्रिल :-  "निराकारी, निर्विकारी और निरअहंकारी बनने का अनुभव"*

 

 ➳_ ➳  *मैं आत्मा भृकुटी सिंहासन में विराजमान मन-बुद्धि द्वारा आत्मा रूपी रंग-बिरंगी मोरनी एक बगीचे में पहुँचती हूँ...* मेरे पँखो पर विकार रूपी मैल चढ़ी हुई हैं... अहंकार रूपी कीचड़ में गलकर टूट चुकें हैं... अहंकार के वश रहकर मैं अपने आप को ही भूल चुकी हूँ कि मैं कौन हूँ... आस-पास का वातावरण भी मेरी मैल से दूषित हो चुका है... मैं खुशी रूपी बारिश में न ही नृत्य कर पाती हूँ, न ही उसका लुफ्त उठा पाती हूँ...

 

_ ➳  अचानक परमधाम से शिव बाबा आ रहे है... *बाबा मुझ आत्मा रूपी मोरनी पर अपनी सुनहरी किरणें न्यौछावर कर रहे हैं... मेरे पँखो से मैल धीरे-धीरे साफ हो रही हैं... वह सोने के पँख बन चुके हैं... अब मैं मनसा में निराकारी, वाचा में निरअहंकारी, कर्मणा में निर्विकारी स्थिति में स्थित रहती हूँ...* देही-अभिमानी स्थिति में स्थित रहती हूँ... अंश मात्र भी अहंकार नहीं करती हूँ... अब कोई भी विकारों के वश कर्म नहीं करती हूँ...

 

_ ➳  मैं एक सेकंड में साकार स्वरूप में, सेकण्ड में निराकारी स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ... यह अभ्यास सारे दिन में बार-बार करती हूँ... सिर्फ याद पर बैठने के समय ही नहीं बल्कि हर समय देहभान से न्यारे निराकारी आत्मा स्वरूप में स्थित होने का अभ्यास करती हूँ... *जब कोई भी कार्य करती हूँ तो यह अभ्यास करती हूँ कि मैं निराकार आत्मा इस साकार कर्मेन्द्रियों के आधार से कर्म करा रही हूँ...*

 

_ ➳  *कर्मेन्द्रियाँ करनहार हैं, आत्मा करावनहार हैं... अब मैं आत्मा कर्म के बन्धन में नहीं बंधती  हूँ... हमेशा न्यारी रहती हूँ...* सारे दिन में चेक करती हूँ कि मैं करावनहार आत्मा बन कर्म करा रही हूँ या नहीं... मैं आत्मा सभी को दुःखों से मुक्ति दिला रही हूँ... मैं आत्मा बाबा से मिली हुई शक्तियों को यूज़ करके मुक्ति दिलाने की मशीनरी तीव्र कर रही हूँ... मैं आत्मा उमंग-उत्साह में रहकर चढ़ती कला का अनुभव कर रही हूँ...

 

_ ➳  अब मैं हर कर्म करते वक्त बाबा को ही याद करती हूँ... *मैं जो भी कर्म करती हूँ उसमें सफलता मिलती जा रही हैं... बाबा ने हर कार्य आसान कर दिया हैं... अब मैं बाप समान होने की अनुभूति कर रही हूँ...* एक बाप की याद में रहकर मैं ऊँच स्थान प्राप्त करने के लिए बाबा की श्रीमत को अच्छे से फॉलो कर रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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