मुरली कविता दिनांक 16.06.2018


बाप समान सबको तुम सदा सुख देते जाना

भूलकर भी किसी को तुम कांटा नहीं लगाना

बच्चों की खुश मौजी को बाप पूछते प्यार से

हार तो नहीं खाई तुमने किसी भी विकार से

स्नेह प्यार से स्वयं को सम्पन्न बनाते जाओ

सबको सुख देने वाली अवस्था बनाते जाओ

हम हैं गुप्त रूहानी सैना श्रीमत पर चलते हैं

खुद को बदलकर हम सारा संसार बदलते हैं

लेकर उस्ताद की सुमत मायाजीत बनना है

कांटे से फूल बनाने की सेवा सदा करना है

स्वभाव संस्कार की टक्कर कभी ना खाओ

ज्ञान स्वरूप बनकर खुद को सदा बचाओ

भाग्य विधाता की याद उड़ती कला में लाती

व्यर्थ से मुक्ति देकर हमें सम्पूर्णता दिलाती

ॐ शांति


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