मुरली कविता दिनांक 29.01.2018


क्रोध बड़ा है दुखदाई हर सूरत में इसको हराओ

हो जायेगी इसकी हार तुम श्रीमत को अपनाओ

छोड़ना नहीं अपने अंदर बच्चों एक भी विकार

माया बड़ी चतुर सुजान रहना उससे खबरदार

यदि कोई भी कमजोरी अपने अंदर रह जायेगी

दुश्मन बनकर एक वही तुम पर दाग लगायेगी

विकारों के वश होकर तुम घाटा कभी न खाना

पड़ जाये ना कहीं तुमको अंत समय पछताना

ईश्वरीय सन्तान बने हो तो सेवा को अपनाओ

अपने संग अंग औरों को भी पावन तुम बनाओ

विकारमुक्त बनकर सच्चे सेवाधारी कहलाओ

हर प्रकार की सेवा प्रति मन में उमंग जगाओ

भारत को विष्णुपुरी बनाते हम ईश्वरीय सन्तान

सच्चे वैष्णव होने का मन में रखना तुम गुमान

हिम्मत रूपी विशेषता को मन में तुम जगाओ

एक कदम के बदले हजार कदम सहयोग पाओ

हिम्मत की एक विशेषता अनेक विशेषता लाती

यही विशेषता बच्चों को विशेष आत्मा बनाती

सर्व बोझों से मुक्त होकर बच्चों हल्के हो जाना

बैठकर बाप की पलकों पर अपने घर को जाना

ॐ शांति