मुरली कविता दिनांक 27.01.2018
भक्तों पर जब विपदा पड़े तभी धरा पर आता हूँ
ज्ञान योग सिखाकर सबको सद्गति में ले जाता हूँ
कर्मों की गति जानकर श्रेष्ठ कर्म किये हैं जिसने
अपने आपको विकर्माजीत केवल बनाया उसने
आत्मा और शरीर दोनों को पावन बाप बनाते हैं
महान कर्तव्य कर घर भी अपने साथ ले जाते हैं
उजियारे की चाहत में भक्तों ने बाप को पुकारा
मुख वंशावली बनाकर उसने जीवन बदला सारा
बंद हुआ भटकना मिला है आधे कल्प का ठौर
राज यह जानोगे उतना तुम बनोगे जितने प्योर
ड्रामा से पहले बच्चों पुरुषार्थ की जानो कीमत
श्रेष्ठ बजाओ पार्ट अपना लेकर बाप की श्रीमत
हर जिस्मानी रिश्ता बच्चों को बहुत तड़पायेगा
बिछड़ने की पीड़ा में आंखों को बहुत रुलायेगा
भूलकर खुद के तन को आत्मिक रिश्ते बनाओ
याद करो न किसी को याद किसी को न आओ
धरती और आसमान पर होगा अपना अधिकार
खुशी मनाओ इसकी होगा अपना सारा संसार
संकल्पों की उड़ान भरकर पास मेरे आ जाओ
सर्व संबंध बाप से रखकर सर्व शक्तियां पाओ
कर लो सैर तीनों लोकों की सहजयोगी बनकर
पिकनिक मनाओ खेलो कूदो मेरे साथ रहकर
श्रेष्ठ कर्मों का जिसने भी जीवन में ज्ञान बढ़ाया
अपने भाग्य की लकीर को उसने लम्बा बनाया
ॐ शांति