मुरली कविता दिनांक 30.04.2018
"मीठे बच्चे:-----
इस दुनिया का सुख समझो काग विष्ठा समान
मिटाओ इसके प्रति आसक्ति का नाम निशान
आज्ञाकारी वफादार निश्चयबुद्धि जो बन जाते
ऐसे बच्चे पुरानी दुनिया प्रति दिल नहीं लगाते
रहता उनकी बुद्धि में ये दुनिया कब मिट जाये
स्वीट होम और राजधानी में अपना मन लगायें
आने वाले विनाश को बच्चों अगर भुलाओगे
दिल यहां लगाकर तुम फिर यहीं फंस जाओगे
समझो खुद को यहां तुम दो घड़ी का मेहमान
पुरानी जुत्ती को छोड़कर जाना हमें परमधाम
रोगों से भरी दुनिया कभी स्वर्ग नहीं कहलाती
स्वर्ग वही होता जहाँ कोई बीमारी नहीं आती
पुरानी दुनिया और तन से हो जाओ उपराम
देहधारियों में ममत्व रखना नहीं हमारा काम
खुशी के खजाने से करना सबको मालामाल
नहीं छोड़ो जग में किसी को खुशी से कंगाल
खुशी का खजाना जितना सब पर लुटाओगे
यही खजाना यूज़ कर खुशनसीब कहलाओगे
औरों के व्यर्थ भाव का परिवर्तन करते जाओ
श्रेष्ठ भाव में बदलने की सच्ची सेवा अपनाओ
ॐ शांति