मुरली कविता दिनांक 06.02.2018
घर
बैठे भगवान मिला है इसकी खुशी मनाओ
विकारों के वश होकर यह खुशी नहीं दबाओ
आप समान बनाने की तुम सेवा करते जाओ
सबको सुख देकर तुम भाग्यशाली कहलाओ
खाना सोना दुख देना अभाग्यशाली का काम
पुरुषार्थ नहीं करके वो डुबोते अपना ही नाम
नेत्र तीसरा पूरा जिस आत्मा का खुल जाता
माया के तूफानों में वो ठोकर कभी ना खाता
रूप मेरा कोई और नहीं मैं हूँ सिर्फ निराकार
कच्छ मच्छ योनि में कभी लेता नहीं अवतार
नई सृष्टि रचने के लिए मैं ब्रह्मा तन में आता
शुद्र बन गई आत्माओं को ब्राह्मण मैं बनाता
नर्क को छोड़कर हम आत्मायें स्वर्ग में जाती
लेकिन हम आत्मायें परमधाम से यहां आती
अंतिम जन्म में आये हैं 84 का चक्र लगाकर
खुशी मनाओ बच्चों बेहद के बाप को पाकर
बाप के मिलने की खुशी का ना हो पारावार
बच्चों की खुशी दबाते हैं मिलकर सभी विकार
21 जन्म तक सुख देने वाला बाबा है उस्ताद
आधा कल्प दुख देने वाला रावण है गुस्ताख़
चक्र स्वदर्शन बच्चों तुमको रोज होगा चलाना
इसी चक्र से बच्चों तुम रावण को मार भगाना
बीती बातें भूलकर पुरुषार्थ की गति बढ़ाओ
आप समान बनाने की सेवा रोज करते जाओ
स्व के संग संग सबकी सेवा सफलता दिलाती
यही विधि बच्चों तुम्हें विजयी आत्मा बनाती
अटेंशन और अभ्यास बन जाए निज संस्कार
हर ईश्वरीय सेवा का स्वप्न होगा तभी साकार
ज्ञानयुक्त बनकर तुम चिंतन और विचार करो
वैराग्य वृत्ति से तुम हर कमजोरी को दूर करो
ॐ शांति