मुरली कविता दिनांक 24.04.2018


श्रेष्ठ बनो चलकर उस पर जो श्रीमत देते बाप

मनमत परमत अपनाई तो मिल जायेगा श्राप

बाप से पूरा वर्सा पाने की कर लो तुम प्रतिज्ञा

तक़दीर पर वर्सा छोड़ना कहलाती है अवज्ञा

इसी अवज्ञा के कारण माया विघ्न बन जाती

वर्सा पाने की दौड़ में ऐसे बच्चों को गिराती

विकारों का नशा ही माया का शिकार बनाता

माया के वश होने वाला दुख बहुत ही पाता

चक्र घुमा पांच हजार का अंत समय है आया

समझा जिसने चक्र को उसने ही वर्सा पाया

वक्त नहीं अब देहधारी पर जाओ तुम बलिहार

भूलकर सबको तुम केवल मुझसे करना प्यार

अमृत वेले अशरीरी बन बाप से मन को जोड़ो

बाप पर बलि चढ़कर मनमत परमत को छोड़ो

शुभचिन्तक बन औरों को आगे बढ़ाते जाओ

अपने कर्म स्थिति में ब्रह्मा बाप को झलकाओ

एकाग्रता के दृढ़ संकल्प द्वारा बाप में समाओ

अनुभव के हीरे मोती ज्ञान के सागर से पाओ

ॐ शांति