मुरली कविता दिनांक 13.02.2018


खेल हुआ पूरा बच्चों पावन बनकर घर है जाना

सतयुग में आकर तुमको इतिहास फिर दोहराना

गृहस्थ में रहकर केवल बच्चे ही कमाल दिखाते

दुनिया में रहते हुए भी सबसे पूरा ममत्व मिटाते

बच्चों सतोप्रधान सन्यास केवल यही कहलाता

केवल बाप ही आकर ये सन्यास तुम्हें सिखाता

पवित्रता की प्रतिज्ञा ही तुम्हारी किस्मत बदलती

ऐसी पवित्र अवस्था इक्कीस जनम तक चलती

आये जब सतयुग में बाप ने बनाया था धनवान

माया रावण ने हम सबको बनाया कौड़ी समान

पांच विकारों का माया ने फैलाया ऐसा प्रदूषण

हर आत्मा बन गई है तमोप्रधान झूठा आभूषण

बंद करो तुम याद करना लेकर चित्रों का आधार

निराकारी बाप को याद करना बनकर निराकार

गंदे हुए हो तुम सब बच्चे विकारों में गोते खाकर

माया पर जीत दिलाते बाबा पावन तुम्हें बनाकर

एवररेडी बनकर सबसे अपने संस्कार मिलाओ

बाप समान सच्चे रूहानी सेवाधारी कहलाओ

पवित्र बनकर जो पवित्रता का अनुभव कराये

सर्व के समक्ष शिष्टाचारी वही आत्मा कहलाये
 

ॐ शांति