मुरली कविता दिनांक 14.06.2018
सेवा की नई युक्तियां हर बार निकालते जाओ
भारत को स्वर्ग बनाने में मददगार बन जाओ
मात पिता का तख्त जीतना माया को हराकर
बूढ़े बाप की दाढ़ी की लाज रखनी है बचाकर
पुरुषार्थी जीवन में कभी ना करना ऐसा काम
बदनाम ना हो जाये तुमसे कहीं बाप का नाम
योग के बल से भगाते रहना तुम सभी विकार
देहभान छोड़कर बनना बाप समान निराकार
ज्ञान का सागर देने आते सर्व कालों का ज्ञान
बाप शिक्षक सद्गति दाता केवल शिव भगवान
दुखी बनाते पांच विकार आते ड्रामा अनुसार
भरने वाला है खून की नदी से ये सारा संसार
भारत को स्वर्ग बनाने में बन जाओ मददगार
करते जाओ बाबा की सेवा का तुम विस्तार
सारे जग को राम राज्य में बदलना है आसान
पांच विकार छोड़ो तुम बनते जाओ गुणवान
खुद को तुम पवित्र दुनिया के लायक बनाना
पावन नहीं बने तो सजा पड़ेगी तुमको खाना
बाप संभाल करते फिर भी बच्चे होते बीमार
देकर दवाई बच्चों को बाप दूर करते विकार
बाप की याद का अभ्यास 8 घंटे तक बढ़ाना
बाप समान खुद को तुम रूप बसन्त बनाना
मिटा दो जीवन से तुम अल्पकाल के संस्कार
जगाओ खुद में वरदानी महादानी के संस्कार
नहीं बनना अल्पकाल के संस्कारों से मजबूर
अनादि संस्कार जगाकर भगाओ इनको दूर
हर परिस्थिति को उड़ती कला से करो पार
उड़ती कला से बनेंगे उड़ता योगी के संस्कार
ॐ शांति