मुरली कविता दिनांक 17.01.2018
रखना खुद को तुम्हें बेहद का सन्यासी बनाकर
लोभ लालच की वृत्ति को रखना पूरा मिटाकर
अपना तन मन धन जब करोगे बाप को अर्पित
कर देगा बाप भी आप पर सारी दुनिया अर्पित
विकारों से छुड़ाने की सेवा करना बाप सिखाते
ज्ञान इंजेक्शन देकर हमें जागती ज्योत बनाते
अमृत वेले उठकर मन बुद्धि को बाप में लगाओ
देह सहित सब कुछ भूलने का अभ्यास बढ़ाओ
आदि अंत के दोनों स्वरूप मन बुद्धि में समाओ
इसी नशे और खुशी में स्मृति स्वरूप बन जाओ
आधा कल्प तक ब्रह्मा इसीलिए पूज्य कहलाये
क्योंकि संगम में श्रेष्ठ ब्राह्मण संस्कार अपनाये
ज्ञानधन से जिसने अपने आपको भरपूर किया
सम्पन्नता का मीठा अनुभव उसने सहज किया
ॐ शांति