मुरली कविता दिनांक 19.06.2018


सतयुग की स्थापना में खुद को निमित्त बनाओ

ईश्वरीय यज्ञ में अपना शरीर रूपी अश्व लगाओ

एक बाप की याद में तुम जितना निरन्तर रहोगे

उतने ही अपनी अवस्था में अचल अडोल रहोगे

ममत्व रखा यदि किसी में तो योग टूटता जाएगा

बुद्धि अगर पवित्र नहीं तो योग नहीं लग पायेगा

तुम हो सच्चे ब्राह्मण नहीं जा सकते विकारों में

पवित्रता को जगाया है तुमने अपने संस्कारों में

हसीन हमें बनाने मुसाफिर परमधाम से आता

पुरानी काली सजनी में बैठकर गोरा हमें बनाता

निरन्तर याद में रहकर खुद को अचलघर बनायें

ऐसी हो अपनी अवस्था जो माया हिला ना पाये

बाप की याद में रहकर भस्म करो सभी विकार

सजायें खानी पड़ेगी यदि शुद्ध ना किये संस्कार

योग अग्नि से अपने विकर्मों की खाद जलाना

विकर्म नहीं हो खुद को ऐसा अचलघर बनाना

निर्बन्धन बाप पर बच्चों ने कैसा जादू चलाया

स्नेह के मीठे बंधन में बाप को बच्चों ने फंसाया

संग सदा रखकर उसको काम सभी करवाते हो

सारे बोझ बाप को देकर खुद हल्के हो जाते हो

अपनी स्वस्थिति की शक्ति को जिसने बढ़ाया

परिस्थिति आने पर परेशान नहीं उसको पाया

ॐ शांति


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