मुरली कविता दिनांक 04.04.2018
अशरीरीपन का अभ्यास तुम रोज करते जाना
पुराने जग से खुद को मरजीवा समझते जाना
जिस बच्चे ने स्वयं को देही अभिमानी बनाया
बाप की दॄष्टि में वही सम्पूर्ण समर्पित कहलाया
बाप कहते खत्म करो अपने अंदर का मेरापन
अर्पण कर दो मुझ पर तुम अपना तन मन धन
मेरे बनकर बच्चों सबसे अपना मोह निकालो
ट्रस्टी बनकर तुम परिवार और धन्धा संभालो
पंख तोड़े हैं माया ने बाप फिर से लगाने आते
कर्मों का हिसाब चुकाकर घर चलना सिखाते
बाप के बने हो तो वर्सा लेना तुम्हें हर हाल में
बाप को बिठा लो बच्चों तुम अपने भाल में
आये हो युद्ध के मैदान में माया लड़ेगी जरूर
लेकिन याद में रहे अगर तो भाग जायेगी दूर
बाप के हर हुक्म का तुम पालन करते जाओ
बाप पर अपना सब कुछ अर्पित करते जाओ
ज्ञान योग का बल अपने अन्दर भरते जाओ
ज्ञान बाण चलाकर बाप का सबको बनाओ
निरन्तर योगी बनकर खुद को पवित्र बनाओ
विकार मुक्त होकर पूज्य स्वरूप कहलाओ
अपनी बुद्धि को ज्ञानसूर्य के सम्मुख घुमाओ
भाग्य रूपी परछाई को सदा अपने संग पाओ
ॐ शांति