मुरली कविता दिनांक 24.01.2018


बेहद के बाप हम बच्चों को राजऋषि बनाते

दुनिया का सन्यास सिखाकर राजाई दिलाते

पांच विकार बुद्धि में बैठकर मनमर्जी चलाते

इसीलिए सभी कर्म यहाँ विकर्म ही बन जाते

पवित्र रहकर जो अन्धों की लाठी बन जाते

वही बच्चे शिवबाबा से इनाम स्वर्ग का पाते

बाप का बनकर जो बच्चे अपवित्र हो जाते

श्रेष्ठ पद पाने का वो सुनहरा अवसर गंवाते

पुराना जर्जर मकान हो गई ये दुनिया सारी

क्योंकि हर मानव बन गया पूरा ही विकारी

ऐसी दुनिया से लेना है बच्चों तुम्हें सन्यास

मत करना तुम किसी जंगल में जाकर वास

चक्र जानकर ड्रामा का बन जाओ अशोक

नहीं होगा जीवन में दो युग तक कोई शोक

कुछ न मिलेगा कब्रिस्तान से दिल लगाकर

समय संवारो बाप और वर्से में दिल लगाकर

बाप की याद में बैठकर पवित्र बनते जाना

माया रावण से कभी भी घूंसा तुम न खाना

पवित्र रहने की प्रतिज्ञा बाप से तुम निभाना

छी छी पतित दुनिया से दिल नहीं लगाना

आत्मरूप को देखकर स्थिति श्रेष्ठ बनाओ

भटकती आत्माओं को अपनी और लाओ

आत्मदर्शन की आदत पक्की करते जाओ

हर आत्मा को यथार्थ ठिकाने पर ले आओ

सेवा के महत्व को जिसने भी लिया है जान

आल राउण्ड सेवा करके बनता वही महान

ॐ शांति