मुरली कविता दिनांक 13.06.2018


दुखों से छुड़ाने आया हम सबका प्राण आधार

सर्वव्यापी नहीं वो केवल स्वर्ग बनाता ये संसार

महाराजा महारानी बनना है तो हिम्मत जुटाओ

योग तपस्या की अग्नि में खुद को पूरा तपाओ

प्रजा ही रह जाओगे जो पुरुषार्थ किया अधूरा

नहीं मिलेगा फिर स्वर्ग की बादशाही का हजुरा

आत्मा सजनी कहती दुखधाम से मुझे छुड़ाओ

प्रीतम छोड़ो परमधाम तुम धरती पर आ जाओ

हम आत्माएं निराकार सिर्फ पार्ट बजाने आते

निराकार शिव हम सबको राजयोग सिखलाते

हुए जन्म चौरासी पूरे अब वापस घर जाना है

नई राजधानी में फिर से आकर पार्ट बजाना है

देहभान के कारण बच्चे थक गए धक्के खाकर

आराम दिया शिवबाबा ने ब्राह्मण हमें बनाकर

ध्यान रखना बच्चों माया तूफान बहुत लाएगी

अच्छे अच्छे बच्चों को निश्चय से नीचे गिराएगी

मुंह काला करके कुल कलंकित कहलाओगे

अपनी बुद्धि को तुम स्वयं ही ताला लगाओगे

पद ऊंचा पाने के लिए तुम खूब करो पुरुषार्थ

कल्प कल्प कर सकोगे फिर ऐसा ही पुरुषार्थ

एक बाप की याद का अभ्यास बढ़ाते जाओ

माया के तूफानों में तुम कभी ना डगमगाओ

समझो सदा खुद को तुम खुदाई खिदमतगार

हर सेवा में सफलता का फिर होगा चमत्कार

कमल आसन धारकर न्यारे प्यारे बन जाओ

ईश्वरीय स्मृति में कर्म कर कर्मयोगी कहलाओ

ॐ शांति