मुरली कविता दिनांक 15.02.2018
बेहद की सेवा के लिए बाप परमधाम से उतरते
इस नर्क को स्वर्ग बनाने की सेवा बाप ही करते
बच्चों के कहने पर बाप सेवाधारी बनकर आते
अपने थके हुए बच्चों के बाप देखो पांव दबाते
सारी सृष्टि के किचड़े का बाप कर देते सफाया
ऐसा निरहंकारी सेवक हमने और ना कोई पाया
दुख हो जब चरम पर बाप तब ही यहाँ पर आते
दुख से छुड़ाकर बच्चों को वो परमधाम ले जाते
बिंदी मिसल आत्मा 84 जन्मों का पार्ट बजाती
भ्रकुटी सिंहासन पर बैठ कर्म व्यवहार में आती
बेहद का सन्यास बच्चों को परमपिता करवाते
ज्ञान की सारी बातें पहले वो ब्रह्मा को समझाते
बड़ों का रिगार्ड रखकर निरहंकारी बन जाओ
गृहस्थ में रहकर कमल फूल समान बन जाओ
तीनों काल का ज्ञानी ही गणेश समान कहलाता
विघ्न सभी मिटाकर विघ्न विनाशक बन जाता
विघ्न विनाशक वृत्ति वायुमण्डल को बदलती
व्यर्थ बातों का वो कभी वर्णन कहीं ना करती
सत्यता की सभ्यता का सबको अनुभव कराओ
हर आत्मा की नजरों में श्रेष्ठ आत्मा कहलाओ
ॐ शांति