मुरली कविता दिनांक 12.03.2018
देही अभिमानी बनने की असली मंजिल पाओ
बाप की दृष्टि में ईश्वरीय सम्प्रदाय के कहलाओ
परमधाम और बाप के सिवा सूझे ना कोई ओर
दृष्टि को जमाकर रखो अपनी मंजिल की ओर
इक्कीस जन्म के लिये करते केवल वही कमाई
उपकार किया सब पर जिसने बुद्धि शुद्ध बनाई
जीवात्माओं से मिलने जब बाप धरा पर आया
जीवात्माओं ने पल में अपना जीवपना भुलाया
दिखती नहीं पुरानी दुनिया दिखता है परमधाम
बाप की याद में मिटाते देहभान का नाम निशान
देहभान में रहने वाले बन्दर सम्प्रदाय कहलाते
ऐसे बच्चे बाप से अपना बुद्धियोग नहीं लगाते
बच्चों की चिंता में बाप कभी सो भी नहीं पाते
फिर भी बाप की श्रीमत को बच्चे ना अपनाते
स्वर्ग की स्थापना में सहयोगी खुद को बनाना
बाप संग करना इस पुरानी दुनिया को रवाना
देह अभिमान वश नहीं करो बाप का अपकार
मीठा स्वभाव रखकर सब पर करना उपकार
शुभ भावना युक्त संकल्पों से उत्साह जगाओ
सबको तुम बाप से प्राप्ति का अनुभव कराओ
शुभ भावना से करो वातावरण में शक्ति संचार
उत्साह में रहोगे तो परिस्थिति भी मानेगी हार
जिसके दिल में होता बापदादा से अटूट प्यार
ईश्वरीय मर्यादाओं को वे करते सहज स्वीकार
ॐ शांति