मुरली कविता दिनांक 24.05.2018


बाप को सब अर्पित कर ट्रस्टी होकर सम्भालो

इसी विधि को अपनाकर ममत्व भाव निकालो

निरहंकारी ब्रह्मा की मत भी शिव बाबा समान

आदेश मानकर ब्रह्मा का करो उसका सम्मान

बाप का बनकर जिसने बनाया खुद को पावन

उसके जीवन में सदा बरसता ज्ञान का सावन

ब्रह्मलोक से बाबा आकर पाण्डव हमें बनाते

देहभान छुड़ाकर रूहानी यात्रा करना सिखाते

बे कायदे चलकर बाप का नाम नहीं डुबाना

देही अभिमानी बनकर विजयमाला में आना

बच्चों यदि तुम काम विकार को नहीं हराओगे

कभी पवित्र दुनिया के मालिक ना बन पाओगे

तंग करने वाले पंचभूत इन सबको तुम हराओ

बाप की याद में डूबे रहकर पावन बनते जाओ

देही अभिमानी बनकर माया दुश्मन को हराओ

रात को जागकर बाप की याद में वक्त बिताओ

बाप समान खुद को निरहंकारी बनाते जाओ

सहयोग दिया बाप को ये संकल्प में ना लाओ

एक दूजे की गुण विशेषता को लेते देते जाओ

इसी विधि से खुद को विशेषता सम्पन्न बनाओ

हर विशेषता का उपयोग सेवा में करते जाओ

ईश्वरीय सेवाओं के पथ पर प्रगति करते जाओ

ॐ शांति