मुरली कविता दिनांक 05.02.2018


सुख सम्पत्ति छीनते हैं रावण के पांच विकार

रावण शत्रु को हराकर तुम जीतो सारा संसार

बाप से वर्सा लेने वाले सही समय पर आयेंगे

भक्तों की भीड़ होगी तब सेवा ना कर पायेंगे

ख्याल करो बाप के सब बच्चे वर्सा लेने आये

कभी ना सोचो कि हमको धन देकर वो जाये

बाप अपने ही बच्चों का सेवक बनकर आया

कायदा सेवा करने का बाप ने आकर चलाया

बाप खुद अपने बच्चों की महिमा कराने आते

पावन बनने वाले ही अपनी महिमा को बढ़ाते

सीताओं को रावण ने जंजीरों में किया है कैद

विकारों के रोगों से छुड़ाने आया रूहानी वैद

गृहस्थी होकर रखो बीच में ज्ञान की तलवार

कभी जला ना पाये तुम्हें बच्चों काम विकार

ध्यान रखो माया कभी मन को ना ललचाये

विकारों का तूफान कभी जीवन में ना आये

अपनी हर कर्मेन्द्रिय को विकर्ममुक्त बनाओ

ज्ञान योग के बल से जीत तूफानों पर पाओ

रूहानी सेवा कर मात पिता का मान बढ़ाओ

दुखों से मुक्ति दिलाकर सबकी दुआयें पाओ

दिव्य बुद्धि के बल से सर्व शक्तियों को पाओ

परमात्म प्राप्ति की अनुभूति सबको कराओ

परमात्म टचिंग ही सफलता हमको दिलाती

माया के हर वार को दिव्य बुद्धि हार खिलाती

ज्ञान की लाइट माइट जिसने हर और फैलाई

केवल वही आत्मा सच्ची सेवाधारी कहलाई

ॐ शांति