मुरली कविता दिनांक 21.05.2018


बाप की मत पर चलना आत्माभिमानी बनकर

ऊंच कुल वालों रहो स्वदर्शन चक्रधारी बनकर

श्रीमत को अपनाकर भारत का बेड़ा पार करो

सर्व धर्मों को छोड़कर केवल मुझको याद करो

अपने तन मन धन से भारत को स्वर्ग बनाओ

खुद को पावन बनाकर सबको पावन बनाओ

बात पुरानी बीत गये जिसको वर्ष पांच हजार

डबल सिरताज भारत संग स्वर्ग था ये संसार

सबको सुख देकर बनना दैवी सम्प्रदाय वाला

कर्तव्य कभी ना करना आसुरी सम्प्रदाय वाला

हर दिन शुद्ध करते जाना अपने सभी संस्कार

शिवालय की स्थापना में बनना तुम मददगार

आत्म अभिमानी होकर बाप को याद करना

योग अग्नि में तपकर विकर्मों को दग्ध करना

रूहानी गुलाब बनकर खुशबू अपनी फैलाओ

गुणों रूपी खुशबू से आकर्षणमूर्त कहलाओ

स्व परिवर्तन द्वारा जब बदलेंगे अपने संस्कार

विश्व परिवर्तन का तब ही कर सकेंगे उपकार

ॐ शांति