मुरली कविता दिनांक 10.05.2018


जो दिखता है आंखों से तुम उसे भुलाते जाना

देह को भूल बाप की याद का अभ्यास बढ़ाना

कहकर बाप को सर्वव्यापी कुछ भी नहीं पाया

किंतू मेरा बाबा कहते ही सब कुछ हमने पाया

किसी देह के साथ मन में मोह नहीं तुम पालो

सभी शरीरों को अपनी बुद्धि से तुम निकालो

ईश्वरीय मत पर चलकर सुखदाता बन जाओ

देह से मोह निकालकर नष्टोमोहा बन जाओ

याद करो सदा बाप को सपूत बच्चा बनकर

बापदादा के दिल पर दिखाना है तुम्हें चढ़कर

संगमयुगी राजा बनो बाप को सबकुछ देकर

बेफिक्र बादशाह बनो चिंताएं बाप को देकर

अपना हरेक बोल महावाक्य समान बनाओ

व्यर्थमुक्त बनकर मास्टर सद्गुरु कहलाओ

ॐ शांति