मुरली कविता दिनांक 23.04.2018


बच्चों अपनी वाणी बनाओ मीठी शहद समान

सुनकर हर कोई कहे ये तो लगते देवता समान

बाप की सेवा का रिटर्न बच्चों दिल से चुकाओ

अपने चाल चलन में तुम दैवी संस्कार जगाओ

सेवा करके ना थकना तुम रखना सेवा से प्यार

हर्षित होंगे बाबा अगर सुधारोगे अपने संस्कार

बच्चों के लिये बाप सारी दुनिया को घर बनाते

ऐसे प्यारे बाप का बच्चे शुक्रिया भी नहीं मनाते

बच्चों को पावन बनाने में बाप पूरा जोर लगाते

किन्तु छोटी सी बात पर बच्चे भागन्ती हो जाते

बाप की मेहनत को बच्चों तुम व्यर्थ ना गंवाओ

धोखा किसी को देकर भ्रष्टाचारी ना कहलाओ

बाप की मत पर चलकर खुद को श्रेष्ठ बनाओ

वर्ना सजायें खाने के लिये पूरे तैयार हो जाओ

खुद ही बाप की सेवा में बनते जाना मददगार

आसुरी कर्तव्य छोड़ धारण करो दैवी संस्कार

ज्ञान के सागर में जिस बच्चे ने खुद को समाया

सम्पूर्णता से सम्पन्नता का अनुभव उसने पाया

मिलन का अनुभव करना बनकर बाप समान

अल्पकाल की इच्छाओं से बनोगे तब अनजान

संग बाप के रहकर छू लो पवित्रता की ऊंचाई

पवित्रता की श्रेष्ठता में सारी खुशियां हैं समाई

ॐ शांति