मुरली कविता दिनांक 21.04.2018
अपने ऊपर हमने ही विकर्मों का बोझ चढ़ाया
योगबल से चुक्तु करो बाप ने आकर समझाया
कुछ भी घटना हो लेकिन अफसोस ना करना
हर आत्मा को अपना कर्मभोग है चुक्तु करना
पुरानी दुनिया प्रति मिटाओ ममत्व के संस्कार
चलना है अपने घर हमें बनकर पूरा निराकार
बुद्धि के मुसाफिर बन करो हर बात से किनारा
शादी मुरादी तीर्थ वगैरह अब काम नहीं हमारा
किया हुआ हर उल्टा कर्म बनता बोझ पाप का
आकर पापों से छुड़ाना काम ये केवल बाप का
स्वर्ग की जायदाद बच्चों को बाप बांटने आया
चला जो बाप की मत पर उसने ही वर्सा पाया
बोझ उतारो विकर्मों का बाप की याद में रहकर
बेहद के सन्यासी बनो बाप की मत पर चलकर
देकर सबको सुख तुम्हें सबका आशीर्वाद पाना
वक्त कयामत का है किसी में बुद्धि नहीं लगाना
सर्व संबंधों के रस का फल सदा बाप से खाओ
माया के हर रोग से सदा काल की मुक्ति पाओ
सेवा भाव का प्रत्यक्ष फल संगम पर ही मिलता
इसी फल का सेवन लोहे को भी हीरे में बदलता
अपकारी पर उपकार करे निंदक को मित्र बनाये
सिर्फ ऐसा महान बच्चा ही बाप समान बन पाये
ॐ शांति