मुरली कविता दिनांक 26.06.2018


अशरीरी बनने की मेहनत करते रहो दिन रात

अकेली आत्मा करती रहे केवल बाप से बात

देही अभिमानी बनकर सौ प्रतिशत बल भरो

अपना दिल दर्पण देख पुराने खाते भस्म करो

हम हैं परमात्मा की संतान सबको ये बताओ

देह नहीं हम आत्मा हैं सबको स्मृति दिलाओ

निराकार है आत्मा तन लेकर पार्ट बजाती है

अपने ही कर्मों के अनुसार पुनर्जन्म पाती है

विश्व नाटक के चलते दुनिया पुरानी हो जाती

बाप की श्रीमत ही इस दुनिया को नया बनाती

ज्ञान योग के बल से खुद को पहलवान बनाना

भीष्म जैसे लोगों पर तुम ज्ञान के बाण चलाना

देह के धर्म भूलकर आत्मा भाई भाई बन जाना

देही अभिमानी बन बाप का परिचय देते जाना

उमंग उत्साह द्वारा सर्व विध्नों को तुम मिटाओ

उड़ती कला द्वारा बाप के समीप रत्न कहलाओ

एकरस अवस्था के आसन पर होना विराजमान

तभी कहलाओगे राजयोगी और तपस्वी महान

ॐ शांति