मुरली कविता दिनांक 02.03.2018


अलौकिक मुसाफिर बाबा हमको सुन्दर बनाता

करे याद जो बाप को वो फर्स्टक्लास बन जाता

पावन बनकर राजाई पाने की मत देते भगवान

मिटा दो इस जीवन से विकारों का नाम निशान

बांधो पवित्रता की राखी पावन खुद को बनाओ

एक जन्म पुरुषार्थ करके 21 जन्म सुख पाओ

दूर के मुसाफिर अपने बाप को बच्चों ने पुकारा

परमधाम छोड़कर आओ दुख दूर करो हमारा

अलौकिक मुसाफिर बनकर बाबा जग में आते

पावन बनाकर हम बच्चों को घर अपने ले जाते

समय आया विनाश का बुद्धि सबकी विपरीत

सर्वव्यापी कहने से टूट गई मीठे बाबा से प्रीत

एक जन्म बच्चों तुम निर्विकारी बनकर रहना

परिस्तान की परी बनोगे मानो बाप का कहना

बाप का काम है पुरानी दुनिया को नई बनाना

इसके लिए जरूरी है बाप की श्रीमत अपनाना

काम धंधे में रहते अगर पवित्रता अपनाओगे

धर्मराज की सजाओं से सहज मुक्ति पाओगे

मात पिता की मत को तुम धारण करते जाना

देहभानवश अपनी मत कभी ना तुम अपनाना

संगमयुग की एक घड़ी भी व्यर्थ नहीं गंवाओ

समर्थ बनकर बच्चों तुम पदम गुणा कमाओ

व्यर्थ छोड़कर तुम औरों को भी समर्थ बनाओ

समय का महत्व जानकर महात्मा कहलाओ

एक बाप की आज्ञा पर खुद को जो चलायेगा

उस आत्मा पर सारा संसार कुर्बान हो जाएगा

ॐ शांति