मुरली कविता दिनांक 18.05.2018


जिस्म विनाशी ब्रह्मा का तुम याद इसे ना करना

इनको देखकर भी सुप्रीम टीचर को याद करना

तन और आत्मा पवित्र हो तब पहनो पुष्पाहार

पतित तन में रहकर कभी ना करो पुष्प स्वीकार

आया हूँ मैं परमधाम से तुम्हें राजयोग सिखाने

तुच्छ बुद्धि बन गए बच्चों को श्रूड बुद्धि बनाने

दुर्गति से सद्गति में जायेंगे पाकर गीता का ज्ञान

यही ज्ञान देने आए हैं परमपिता शिव भगवान

माया को जीतने का तुम पुरुषार्थ कर लो पूरा

नर से नारायण बनने का सपना ना रहे अधूरा

बाप की श्रीमत अपनाकर लायक बनते जाओ

मात पिता का दिल तख्त लायक बनकर पाओ

भगवान टीचर बन पढ़ा रहे यह स्मृति जगाओ

घर गृहस्थ में रहकर तुम पूरे ट्रस्टी बन जाओ

अभी नहीं करना तुम्हें कोई हार फूल स्वीकार

माया को जीतकर बनो विष्णु के गले का हार

इस लोक से मरने वाले ही अलौकिक कहलाते

दृष्टि स्मृति और वृत्ति सब तरह से बदल जाते

एक पिता की संतान समझ भाई भाई हो जाते

नव जीवन पाकर वे पुराने जीवन में नहीं जाते

मन में शुद्ध फीलिंग जब हर पल आती जायेगी

अशुद्ध फीलिंग खुद ही तुमसे दूर चली जायेगी

ॐ शांति