मुरली कविता दिनांक 08.05.2018


ज्ञान बड़े मजे का तुम अपने लिए ही कमाना

और किसी का दिल में ख्याल कभी ना लाना

अपनी पुरानी देह को तुम पूरा ही भूल जाना

सबसे ध्यान हटाकर तुम कमाई में लग जाना

अविनाशी कमाई का तरीका यही अपनाओ

बाप की याद में बैठकर निंद्रा को दूर भगाओ

चलते फिरते याद में रह कमाई रोज बढ़ाओ

विनाशी कमाई के लालच में कभी ना आओ

निराकार हर आत्मा का मैं साजन कहलाऊँ

ब्रह्मा तन में आकर मैं हर आत्मा को जगाऊँ

मुख ब्रह्मा का लेकर मैं ब्राह्मण कुल बनाऊं

सृष्टि के आदि मध्य अन्त का मैं ज्ञान सुनाऊं

और किसी धंधे में चलते फिरते नहीं कमाते

प्रभु याद में चलते फिरते ही अमीर बन जाते

इस संगमयुग में तुम जैसी प्रालब्ध बनाओगे

हर कल्प वैसी ही प्रालब्ध सुख की पाओगे

विचार सागर मंथन कर स्थाई खुशी बढ़ाओ

सारे विश्व का मालिक बनने का नशा चढ़ाओ

सच्ची कमाई करते रहो प्रीत बाप से लगाकर

आत्मा समझो खुद को रोज अभ्यास बढ़ाकर

बाप के निर्देशन पर जिम्मेदारी सभी निभाओ

अथक सेवा के द्वारा हर बंधन से मुक्ति पाओ

खेल समझकर बच्चों हर कार्य करते जाओ

सहज रीति हर कार्य में सफलता पाते जाओ

भ्रकुटी की कुटिया में जो खुद को बिठायेगा

तपस्वीमूर्त वही बच्चा अन्तर्मुखी कहलायेगा

ॐ शांति