मुरली कविता दिनांक 05.03.2018
ज्ञानामृत की महफ़िल बाप ही आकर सजाते
घर ले जाने से पहले हम सबको पावन बनाते
सत बाप से रखना अपना बुद्धियोग लगाकर
खुद को आत्मा समझना तन अपना भुलाकर
5 हजार वर्ष पहले यहां शिवबाबा आया था
हमारे लिए रूहानी महफ़िल को सजाया था
राजाई लेने वाले ही करते रहेंगे बाप को याद
माया के सब तूफानों से वे रहेंगे सदा आजाद
एक बाप का संग भवसागर से पार ले जाएगा
देहधारियों का संग तुम्हें विकारों में डुबायेगा
छुपकर भी बच्चों तुम्हें विकारों में नहीं जाना
मुश्किल हो जायेगा चढ़ा हुआ दण्ड मिटाना
तीव्र पुरुषार्थ करके पढ़ाई पर ध्यान लगाना
पतित पावन की संगत में पावन बनते जाना
चेहरे और चलन से फरिश्ता रूप दिखलाना
सुख शांति और खुशी को चेहरे से झलकाना
भाग्य विधाता को जब सर्व संबंधी बनाओगे
सर्व प्राप्ति सम्पन्नता के अनुभवी बन जाओगे
ॐ शांति