मुरली कविता दिनांक 22.06.2018


मीठे बच्चे पुराने मांडवे से अपना दिल हटाओ

अपने हॄदय में बाप और घर की याद बसाओ

प्रभु याद में रह अपने हाथों से भोजन बनाओ

याद में भोजन खाकर अवस्था अच्छी बनाओ

खुद के बनाए भोजन की बाप भी खुशबू लेते

ऐसे मेहनती बच्चों को दिल से बाप दुआएं देते

गृहस्थ में रहकर भी तुम दिल ना यहां लगाओ

पुरानी दुनिया के प्रति मन में वैराग्य जगाओ

पूरा हुआ बेहद का नाटक हमको घर जाना है

इस पुरानी दुनिया को कब्रिस्तान हो जाना है

10 सेंटर्स संभाले इतना खुद को फुर्त बनाओ

ईश्वरीय सेवा के लिए इधर उधर भागते जाओ

खुद से और परमपिता से तुम बातें करते जाना

विचार सागर मंथन में बुद्धि बिजी रखते जाना

छोड़कर पुरानी दुनिया हमें अपने घर है जाना

शोक वाटिका बने जग से ममत्व हमें मिटाना

दुख चिंता समस्या की आग से सबको बचाओ

औरों को भी शीतल सागर के कंठे पर लाओ

केवल शिव बाबा से जो सच्ची प्रीत निभाएगा

उसके लिए अशरीरी बनना सहज हो जाएगा

ॐ शांति