मुरली कविता दिनांक 05.06.2018


बच्चों खुद को तुम सतोप्रधान सन्यासी बनाओ

देह सहित पुरानी दुनिया को बुद्धि से भुलाओ

जवाबदारी है तुम पर जग को पावन बनाने की

मेहनत करो योग अग्नि में स्वयं को तपाने की

निरन्तर याद में रहकर विकर्म विनाश हो जाते

पावन बनने वाले ही दुनिया को पावन बनाते

बीत गए 5000 वर्ष अब भारत हुआ पुराना

बाप को याद करके इसे फिर से पावन बनाना

देहभान को भूलने का अभ्यास करते जाना

सम्पूर्ण पवित्र बनकर भारत को पावन बनाना

कलियुगी वायुमण्डल से रहना आकर्षणमुक्त

स्वराज्य अधिकारी बन रहो बाप से योगयुक्त

व्यक्ति वस्तु की तरफ मन बुद्धि कभी न जाये

एक शिवबाबा की याद ही हर पल हमें लुभाये

बुरे को अच्छे में परिवर्तन की शक्ति जगाओ

इसी शक्ति के बल पर ऊंच ब्राह्मण कहलाओ

ॐ शांति


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