मुरली कविता दिनांक 11.06.2018
देह सहित सबसे तुम अपना ममत्व मिटाओ
खुद को ट्रस्टी बनाकर मरजीवा जन्म पाओ
संगमयुगी हम ब्राह्मण राजऋषि कहलाते हैं
स्वर्ग की बादशाही का इनाम बाप से पाते हैं
हम मुख वंशावली करते यज्ञ की पूरी संभाल
अपनी अवस्था का भी हम रखते पूरा ख्याल
खुद को आत्मा समझो देह के बंधन तोड़कर
रखना अपने मन बुद्धि को बाबा से जोड़कर
मीठे बाप के पास ढेर सारे बच्चे पढ़ने आते
बाप की मत अपनाकर खुद को देवता बनाते
हम बच्चे कर रहे हैं परलोक जाने की तैयारी
मिटने वाली है अब दुख से भरी दुनिया सारी
ज्ञान की भूं भूं करने वाली भ्रमरी बन जाओ
विषय सागर के कीड़ों को पावन तुम बनाओ
पुरुषार्थ करने का जब भी लेते हैं मन में ठान
लगा देती है माया तब कोई ना कोई तूफान
करो बाप को याद तुम छोड़कर तन का भान
माया को हार खिलाना तब ही होगा आसान
अपनी वानप्रस्थ अवस्था की स्मृति जगाओ
अशरीरीपन का अभ्यास रोज बढ़ाते जाओ
पवित्रता की प्रतिज्ञा कर अपना हक पाओ
बाप की मत पर चलकर जीते जी मर जाओ
व्यक्त भाव से खुद को ऊपर उड़ाते जाओ
देह की धरनी के हर बंधन से मुक्ति पाओ
व्यक्त भाव की दुनिया में कभी ना तुम आना
बनकर फरिश्ता खुद को सदा उड़ाते जाना
हर असम्भव बात को जो सम्भव बनाते हैं
वही बच्चे सफलता के सितारे कहलाते हैं
ॐ शांति