मुरली कविता दिनांक 17.02.2018
किसी देहधारी की ओर नजर ना जाये आपकी
सुनो ये शिक्षा निराकार ज्ञान के सागर बाप की
ग्रहस्थ व्यवहार में रहकर ज्ञान कटारी चलाओ
बाप की याद के मीठे सुख में खुद को समाओ
राजयोग का बल बच्चों को विकर्मों से बचाता
आधे कल्प में किए सभी पापों के दाग मिटाता
किसी देहधारी ने दिया नहीं हमें यहां पर ज्ञान
निराकार शिव भगवान ने सुनाया है गीता ज्ञान
देह के रिश्ते वाले तुम्हें दुखदाई मत सिखलाते
सिर्फ बाप ही बच्चों को सुखदाई मत बतलाते
जंगल में जाकर भी दुनिया से छूट ना पाओगे
अपने कर्मों के अनुसार जन्म अवश्य पाओगे
थोड़ा थोड़ा करके माया ने पूरा पतित बनाया
पतितपने ने हमको दुख के दलदल में धंसाया
संगमयुग में नहीं करना तुम बच्चों को आराम
गृहस्थ में रहकर बन जाओ कमल फूल समान
तन से न्यारे होकर तुम करो शांति का अनुभव
पढ़ाई से अविनाशी प्रालब्ध पाना होगा सम्भव
हद की किसी दीवार से कभी ना तुम टकराओ
उपराम बनकर तुम लक्ष्य की ओर उड़ते जाओ
कर्म के किसी बन्धन में खुद को नहीं उलझाना
बेहद के समर्थी बनकर तुम हमेशा उड़ते जाना
ज्ञान योग के अनुभव को हर रोज बढ़ाते जाओ
माया के बहरूपों से तुम धोखा कभी ना खाओ
ॐ शांति