मुरली कविता दिनांक 22.01.2018
कल्प के अंत में आकर बने हम ईश्वरीय सन्तान
सारे कल्प में ईश्वरीय कुल ही होता सबसे महान
अनमोल बन गया ये जीवन गोद बाप की पाकर
अपनी बुद्धि में रखना तुम नशा ये सदा चढ़ाकर
तन का भान मिट जाये इसकी विधि अपनाओ
निमित्त मात्र हैं इस तन में खुद को ये समझाओ
बाप समान बच्चों तुम भारत को स्वर्ग बनाओ
बाप से मीठी बातें करके तुम देहभान मिटाओ
परमधाम से आकर बाबा हम बच्चों को पढ़ाते
असुर से देवता बनाने का अपना फर्ज निभाते
रहते जब तक पवित्र डबल ताजधारी कहलाते
पवित्रता के मिटते ही एक ताजधारी बन जाते
अपनी अवस्था जमाने की युक्ति जरा निकालो
बाप की याद में रहकर खुद को पावन बना लो
मुक्ति जीवनमुक्ति की बाप लेकर आया सौगात
कलियुगी दुनिया भूलकर करो उससे तुम बात
दुख नहीं देना अब सबको सच्चा मार्ग बताना
स्व उन्नति का चार्ट तुम प्रतिदिन बढ़ाते जाना
देकर सम्पूर्ण बोझ बाप को ट्रस्टी जो बन जाते
ऐसे बोझमुक्त बच्चे ही फ़रिश्ता बन उड़ पाते
हिम्मत रखने वाले बच्चे ही मदद बाप की पाते
बच्चों के श्रेष्ठ संकल्प पर बाप हाजिर हो जाते
उमंग उत्साह के जो बच्चा पंख लगाकर रहता
ऐसा बच्चा हमेशा उड़ती कला में उड़ता रहता
ॐ शांति