मुरली कविता दिनांक 15.01.2018


संगम पर ही आत्मायें परमात्मा से मिलन मनाते

इसी युग में बच्चों को बाप सत्य बोलना सिखाते

सब कुछ बाप का समझकर श्रीमत जो अपनाते

वही बच्चे अपनी स्थिति को फर्स्ट क्लास बनाते

सुखी बनाने की खातिर बाबा मुरली हमें सुनाते

इसी स्मृति वाले मुरली से सुख का अनुभव पाते

मीठे बच्चों सारे कल्प में बाप एक बार ही आता

आने जाने के बीच का वक्त संगमयुग कहलाता

राजयोग सिखाकर बाबा सबको पावन बनाता

पतित दुनिया के मिटते ही परमधाम चला जाता

वानप्रस्थ अवस्था हो जब ब्रह्मा के तन में आता

पराये जग में आकर मेहमान तुम्हारा कहलाता

संगमयुग की बच्चों समझो महिमा बड़ी महान

बाप यहाँ आकर मिटाते रावण का नाम निशान

समझकर जहर समान तुम त्यागो सभी विकार

पवित्रता धारण करो तुम बनाकर गले का हार

बच्चों को मैं देने आया सुख शांति का खजाना

अपनी अवस्था जमाकर तुम पाओ ये खजाना

गृहस्थ में रहकर पवित्र रहने वाले पायेंगे ईनाम

पलकों पे बिठाकर घर ले जाएंगे उन्हें भगवान

महामूर्ख ना बनना माया की गिरफ्त में आकर

रखना है अपने आपको सदा माया से बचाकर

बाप से मिला खजाना तुम सबको बांटते जाना

ज्ञान योग की मेहनत से अपनी अवस्था जमाना

करना है प्रीतम को याद अपने तन को भुलाकर

सर्व दैवी गुण रखना तुम अपने अन्दर जगाकर

याद रखो मेरा हर कर्म देख रही ये दुनिया सारी

श्रेष्ठ कर्म से बनाना तुम खुद को हीरो पार्टधारी

भरपूर रखो सदा सत्यता की शक्ति का खजाना

तब ही शुरू होगा जीवन में खुशियों का आना

ॐ शांति