मुरली कविता दिनांक 03.01.2018
जितना मन बुद्धि में बाबा की याद समाओगे
उतना सहज रीति अपने घर को तुम जाओगे
देना चाहते अगर बाप को सच्ची तुम कुर्बानी
केवल एक बाप की याद अपने अंदर समानी
लोन पर लेकर ब्रह्मा तन मैं तुम्हें पढ़ाने आता
हर कल्प तुम बच्चों को मैं राजयोग सिखाता
हुई सगाई बच्चों की मुझ निराकार के साथ
देहधारी की याद में कभी न छोड़ना मेरा हाथ
याद मुझे तुम करते जाओ पूरा सब्र रखकर
समय आते ही सबको मैं जाऊंगा साथ लेकर
बच्चों बिना थके सदा याद की यात्रा करना
काम क्रोध के वश कोई उल्टा काम न करना
मूल वतन वासी तुमने लिया धरा पर अवतार
देहभान की मिट्टी में गंदे न होना किसी प्रकार
तीव्र गति से जो अपना परिवर्तन करते जाते
वही बच्चे बाप की दुआओं की मुबारक पाते
ॐ शांति