मुरली कविता दिनांक 05.04.2018
अविनाशी ज्ञान रत्नों की लेनदेन करते जाओ
ज्ञान रत्नों का दान देकर धनवान बनते जाओ
विचार सागर मंथन कर मन में खुशी जगाओ
रोगी तन है पुरानी जुत्ती खुद को ये समझाओ
समाप्त हो रहा कर्म भोग नया तन हम पायेंगे
खुशी मना लो अब हम नई दुनिया में जायेंगे
शिव बाबा माताओं की पालना करते विशेष
माताओं माध्यम से दुनिया को दिलाते संदेश
शरीर निर्वाह अर्थ ही कर्मेन्द्रियाँ कर्म में लाओ
फिर कछुए के समान शांत होकर बैठ जाओ
बाप मेहनत करके बच्चों को लायक बनाते
फिर भी बच्चे सुखदाता बाप को भूल जाते
कब्रिस्तान इस दुनिया को याद नहीं करना
बाप को याद करके विकर्म विनाश करना
पावन बनने का तुम कर लो पक्का इरादा
पलकों पर ले जाऊंगा करते बाप ये वादा
कर्मेन्द्रियाँ समेटकर बाप और वर्सा याद करो
कर्मयोगी बनो और खुद से ही तुम बात करो
ज्ञान रत्नों की लेनदेन का करते रहो व्यापार
आपस में बढ़ाओ तुम सबसे रूहानी प्यार
दृढ़ संकल्प द्वारा दूर करो व्यर्थ की बीमारी
यही बीमारी आत्मा की छीनती शक्ति सारी
सदा जागृत रखो तुम दृढ़ता रूपी चौकीदार
व्यर्थ संकल्प ना आने दो मन बुद्धि के द्वार
हर अच्छाई को पहले अपने कर्म में लाओ
कर्म करके फिर तुम औरों को सिखलाओ
ॐ शांति