मुरली कविता दिनांक 22.05.2018
ईश्वरीय ज्ञानामृत की बाप से मिली तुम्हें सौगात
तुम हो ज्ञान की शीतल देवी करो ज्ञान बरसात
ज्ञानजल में स्नान कर खुद को शीतल बनाओ
कामचिता छुड़ा सबको ज्ञानचिता पर बिठाओ
पवित्र बनकर देवता बनते सबको ये समझाओ
सबको पवित्र बनाने की तुम सेवा करते जाओ
पुरानी दुनिया की तरफ बुद्धि को नहीं घुमाओ
अपना बुद्धियोग केवल शिव बाबा में लगाओ
बाप के सर्व गुणों को अपने आचरण में लाओ
ज्ञान छींटे डाल हर आत्मा को शीतल बनाओ
बाप में मन को लगाकर मन को सुमन बनाओ
श्रेष्ठ संकल्पों द्वारा मन को भटकने से बचाओ
खुशी की खुराक हर पल खाते खिलाते जाओ
खुद को सदा तन्दुरुस्त खुशनुमा बनाते जाओ
ॐ शांति