मुरली कविता दिनांक 12.06.2018


भरपूर होने को बच्चे ज्ञान सागर के पास आते

तीर्थ पर आकर हम पहाड़ी की हवा नहीं खाते

गृहस्थ व्यवहार में रहते सदा बाप के संग रहो

स्वस्थ रहोगे तुम मुख से बाबा बाबा कहते रहो

बाप को अर्पण करके उसके हुकुम से खाओ

ममत्वमुक्त बनकर तुम एवर हेल्दी बन जाओ

सृष्टि रचयिता को दूर देश से बच्चों ने बुलाया

पावन सृष्टि बनाने हेतु बाबा देश पराये आया

ईश्वरीय पढ़ाई से करो लक्ष्य अपना निर्धारित

आधे कल्प का सुख है पुरुषार्थ पर आधारित

सब कुछ भूल बाप में लगाओ अपने मन को

देखते रहो बाप को और भूलो अपने तन को

मंजिल पर जाने को हमने इंजन तीन है पाये

यही स्मृति हम बच्चों को लक्ष्य तक पहुंचाये

बाप को सब सौंपकर उसकी परवरिश पाओ

पतितपने का कडुवापन तुम पूरा ही मिटाओ

संगमयुग की नवीनता दिल से अपनाते जाओ

पुरुषार्थ कर हर रोज खुद को निखारते जाओ

तन के रिश्तों का नहीं रहे अब कोई भी भान

तीव्र पुरुषार्थी बनो संग आपके शिव भगवान

परमात्म प्यार से आनन्द का अनुभव पाओ

इसी अनुभव में रहकर सहजयोगी बन जाओ

ॐ शांति