मुरली कविता दिनांक 30.06.2018


शिव बाबा को मन ही मन सिमरण करते जाओ

मन में खुशी बढ़ाकर सारे कलह क्लेश मिटाओ

हर कदम पर जब बाबा की श्रीमत अपनाओगे

मन का मूँझना खत्म होगा खुशी मनाते जाओगे

तन नहीं कोई मेरा मैं निराकार शिव परमात्मा

भूलो अपने तन को बन जाओ तुम भी आत्मा

छोड़कर अपना तन बच्चों मेरे पास तुम आना

इस मृत्युलोक में बच्चों तुम्हें जन्म नहीं है पाना

याद करो बच्चों मुझको पावन तुम्हें बनाऊंगा

दुखमय जग से छुड़ाकर स्वर्ग तुम्हें ले जाऊंगा

बाप को याद नहीं करोगे तो माया करेगी वार

पांच विकारों से तुमको खानी पड़ जाएगी हार

किये हुए वादे अनुरूप बलिहार बाप पर जाओ

रात को जागकर बाप की याद में वक्त बिताओ

नष्टोमोहा बनकर केवल बाप से बुद्धि लगाओ

पुरानी दुनिया पुराने घर से पूरा ममत्व मिटाओ

भारत को स्वर्ग बनाने में मददगार बन जाओ

रहो सदा हर्षितमुख तुम कभी नहीं मुरझाओ

कोटों में से तुम कोई हो जिसने बाप को पाया

इसी खुशी वाले ने स्वयं को सेवा केन्द्र बनाया

हर्षित चेहरा बाप का परिचय सबको दिलाता

यही तरीका बच्चों को सहज योगी भी बनाता

एकरस अचल अडोल जो रहते अंगद समान

उनके आगे माया का नहीं रहता नाम निशान

ॐ शांति