मुरली कविता दिनांक 16.03.2018


निर्भयता धारण कर साक्षी बनो बाप समान

प्रभु याद से हर्षित रहकर पाओ सद्गति धाम

सदा खुश रहने की तुम यही विधि अपनाओ

दिन में दो बार स्वयं को ज्ञान स्नान कराओ

भाग्य बनेगा संशय मिटेगा बनेंगे खुशनसीब

ज्ञान स्नान है माया मुक्त बनने की तरकीब

आत्म सजनी को शिव साजन आया जगाने

नवयुग अब आया की आया हमको ये बताने

मेरी याद में रहने का अभ्यास करो निरन्तर

खो जाओ मुझ में इतने रहे ना कोई अन्तर

ज्ञान धन कमाओ तुम करके दो बार स्नान

सम्पूर्ण सच्चे ब्राह्मण बनो मिटाकर देहभान

ब्राह्मण जन्म पाकर खुशी का खजाना पाया

हर्षित मुस्काता चेहरा पसन्द बाप को आया

शिव पिता से हम बच्चों ने सब कुछ है पाया

ये गीत खुशी का हम बच्चों ने मिलकर गाया

निराकारी बनकर जो विश्व में प्रकाश फैलाते

वही निरहंकारी बच्चे चैतन्य दीपक कहलाते

ॐ शांति