मुरली कविता दिनांक 26.05.2018
आधाकल्प से तुम्हें श्रापित करती आई माया
श्राप मिटाकर बाप तुम्हें अब वर्सा देने आया
उसकी मत अपनाकर वर्से योग्य बन जाओगे
आधा कल्प के लिए माया से मुक्ति पाओगे
पुराने तन को भूलकर बाप के जो बन जाते
मरजीवा बनकर वो देही अभिमानी कहलाते
घोर अंधियारे में भटक रहे भक्ति करने वाले
बाप के सम्मुख जो बैठे वे ऊंची किस्मत वाले
गिरने लगते दुख के पहाड़ बाप तब ही आते
दुखों से छुड़ाने के लिये हमें पुण्यात्मा बनाते
दुख का कारण बाप ने आकर हमें समझाया
पाप करने के कारण ही जीवन में दुख आया
सतयुग आने वाला है ना समझो उसे तुम दूर
अपने तन को भूलने का पुरुषार्थ करो भरपूर
सहन करते हुए बाप उपस्थित रहते सेवा पर
चाहे बच्चे ना चले बाप की बताई श्रीमत पर
याद में रह पावन बन खोलो बुद्धि का ताला
समझाने आया बुद्धि को पारस बनाने वाला
बच्चों पावन बन जाओ मेरी मत पर चलकर
घर चलना तुम बैठकर मेरे रूहानी नयनों पर
बच्चों पावन बनकर ही स्वर्ग में तुम जाओगे
बाप को पूरा जानकर ही बाप से वर्सा पाओगे
ईश्वरीय याद से माया के श्राप से मुक्ति पाओ
अशरीरी बन पुरानी दुनिया से ममत्व मिटाओ
अपनी स्व स्थिति की शक्ति को रोज बढ़ाओ
हर परिस्थिति पर सहज रूप से विजय पाओ
भाग्य के गुण गाते हुए बन जाओ भाग्यवान
जीवन से मिटाओ कमजोरी का नाम निशान
ॐ शांति