मुरली कविता दिनांक 14.03.2018


सुख शांति पवित्रता से जग को सम्पन्न बनाओ

अपने तन मन धन को ईश्वरीय सेवा में लगाओ

मन बुद्धि में हर पल तुम स्वदर्शन चक्र चलाओ

माया का गला काटकर मायाजीत बन जाओ

शांतिधाम वासी हमने सुखधाम में जन्म पाया

बार बार जन्म लेकर हमने आत्मभान गंवाया

द्वापर युग आया तो हम हो गए पूज्य से पुजारी

भक्त बनकर प्रभु के आगे बन गए हम भिखारी

आये संगमयुग में जब हम हुआ बाप से मिलना

राजयोग द्वारा शुरू हुआ संस्कारों का बदलना

मीठे बाबा से हम बच्चों ने स्वदर्शन चक्र पाया

इसी चक्र को चलाकर हमने माया को हराया

याद रहे बी. के. का टाइटल केवल वो ही पाता

तन मन धन से जो खुद को पूरा पावन बनाता

तुम थे धनी देवता आज हो गये गुणों से गरीब

बाप आये देवता बनाने जगाओ अपना नसीब

बाप से पूरा वर्सा लेना तुम आज्ञाकारी बनकर

स्वर्ग के लायक बनना तुम पूरा पावन बनकर

मैं बाप का बाप मेरा जिसने ये संकल्प जगाया

बाप से सहयोग मिलने का अनुभव उसने पाया

एक बाप से अटूट होगा जिसका रूहानी प्यार

बाप का प्यार करा देगा उसे सर्व विघ्नों से पार

बाप की लाइट माईट को जिसने पूरा अपनाया

उसके मार्ग में कभी भी ना ठहर पायेगी माया

ॐ शांति