मुरली कविता दिनांक 07.05.2018


विचार सागर मंथन का भोजन बुद्धि को कराओ

इसी विधि से सेवा के नए नए तुम प्लान बनाओ

पवित्रता की प्रतिज्ञा को तुम पक्की करते जाओ

ज्ञानामृत धारण करने कराने योग्य बनते जाओ

इतना सुनकर भी खुद को पवित्र नहीं बनाओगे

गला घुटा लोगे अपना तुम ज्ञान सुना ना पाओगे

बाप को हर बच्चे ने मात पिता के रूप में जाना

फिर भी बाप पूछते क्या मुझे अच्छी रीति जाना

सोमरस पिलाया तभी बाबा सोमनाथ कहलाया

किंतू कोई ना जाने उसने कब ज्ञानामृत पिलाया

सारे कल्प में एक बार ही बाबा धरती पर आते

हम बच्चों की सद्गति करके परमधाम चले जाते

बाप ही आकर हर बच्चे को ऊंचे से ऊंचा बनाते

इसीलिए बाप सबसे सर्वोत्तम पार्टधारी कहलाते

पांच विकारों ने ही हम सबको नर्कवासी बनाया

विषय सागर में डुबाकर पूरा वैश्यालय बनाया

मन बुद्धि से जब इस दुनिया को तुम भुलाओगे

तब ही तीव्र पुरुषार्थ कर सतयुग में जा पाओगे

लक्ष्मी नारायण ने इतना ऊंच पद कहाँ से पाया

किसने उन्हें सुकर्म सीखाकर ऊंच पद दिलाया

बाप टीचर सद्गुरु बाबा ऊंच पद दिलाने वाला

मुरली के माध्यम से श्रेष्ठ कर्म सिखलाने वाला

ध्यान रहे पवित्रता बिना ज्ञान समझ ना आयेगा

एक कान में जाकर दूसरे से ये निकल जायेगा

पवित्रता की प्रतिज्ञा से ही पाप का बोझ कटेगा

वरना सजाओं का घड़ा तुम्हारे ऊपर ही फटेगा

पुराना चोला उतारकर बाप के पास हम जायेंगे

नई दुनिया में आकर हम सतोप्रधान तन पायेंगे

योग तभी लगेगा जब पावन खुद को बनाओगे

गन्दगी मिटाये बिना तुम ज्ञान सुना ना पाओगे

कर्मयोगी बन बाप की याद से बनो सतोप्रधान

अपनी चलन से देना बाप के रूपों की पहचान

कर्मयोग से अपने सर्व कर्मों में सफलता पाओ

योगयुक्त रहकर अपनी सभी चिन्ताएं मिटाओ

गुण रूपी मोती चुगकर होली हंस बन जाओ

व्यर्थ के कंकड़ चुगने की आदत पूरी मिटाओ
ॐ शांति