मुरली कविता दिनांक 21.03.2018
विश्व नाटक का आदि मध्य अंत बड़ा निराला
आज है संगमयुग कल है सतयुग आने वाला
विचार सागर का मंथन निरन्तर करते जाओ
बाप समान खुद को तुम मीठा बनाते जाओ
करो अभ्यास अपने शांति स्वधर्म में रहने का
संकल्प ना आये नाराज किसी को करने का
श्रीमत को तुम जीवन में धारण करते जाओ
अशरीरीपन जगाकर परिपक्व बनते जाओ
ड्रामा बड़ा ही सुंदर जो टिक टिक चलता है
देख रहे हैं जो हम आज वो दृश्य बदलता है
जब तक रहते पावन हम रहते सदा अमीर
पांच विकारों में फंसते ही बन जाते फकीर
श्रीमत समझाकर सबका बेड़ा पार कराओ
श्रेष्ठ कर्म करके दुखियों को सुखी बनाओ
बाप की याद में रहकर रुद्र माला में आना
ज्ञान सागर के मंथन में अपना वक्त बिताना
ईश्वरीय परिवार से तुम करना नहीं किनारा
अवस्था श्रेष्ठ बनाओ बनकर सबका सहारा
कर्मभोग का बच्चों तुम वर्णन करना छोड़ो
कर्मयोग की तरफ तुम अपने मन को मोड़ो
ॐ शांति