मुरली कविता दिनांक 12.02.2018


बाप और वर्सा याद दिलाने का फर्ज निभाओ

कल्याण समाया है इसमें ये सेवा करते जाओ

हम सब निराकारी आत्मा अति सूक्ष्म सितारे

84 जन्मों के संस्कार अपने अंदर भरे हैं सारे

लेकर तन का आधार हर आत्मा पार्ट बजाती

साइंसदानों को ये बातें कभी समझ ना आती

तेजोमय नहीं परमात्मा हजारों सूर्यों के समान

देना सबको तुम आत्मा परमात्मा की पहचान

स्वदर्शन चक्रधारी बनकर आदत ये अपनानी

बाप को याद करने की सबको देना सावधानी

आत्मा और परमात्मा का भेद सबको बताओ

परमात्मा सदा है पावन सबको तुम समझाओ

जन्म मरण के चक्कर में केवल आत्मा आती

आत्मा ही सुनती और आत्मा ही पीती खाती

रूप में आत्मा और परमात्मा होते एक समान

संतान आत्मा उसकी वो है परमपिता भगवान

बीजरूप चैतन्य रहमदिल शिव सदा निराकार

सुख का वर्सा देता है वो स्वर्ग का रचनाकार

तन हो भले तमोप्रधान आत्मा पवित्र बनाओ

एक दो को सावधान करके उन्नति को पाओ

ज्ञान के सागर शिव बाबा में डुबकी लगाओ

रत्न अनोखे ज्ञान के तुम मीठे बाबा से पाओ

विचार सागर मंथन करके स्थिति श्रेष्ठ बनानी

अधिक नींद की आदत इसी विधि से मिटानी

सबको जो सहयोग करे बनकर मास्टर दाता

हर सेवा में वो ही अविनाशी सफलता पाता

ठीक कर दे जो बिगड़ी बातें सहयोगी बनकर

मास्टर दाता का मुकुट जचता उसके सर पर

साक्षी होकर देखता हो जो ड्रामा की हर सीन

हर्षित वो रहता सदा नहीं रहता वो गमगीन
 

ॐ शांति