मुरली कविता दिनांक 21.06.2018
ईश्वरीय बचपन को भूलाकर वर्सा नहीं गंवाना
पूरे पास होकर सूर्यवंशी घराने का राज्य पाना
संगमयुग में तुम बच्चे अपनी प्रलब्ध बनाते हो
उसी प्रालब्ध का फल सतयुग त्रेता में पाते हो
परमपिता वही जो हमें आत्मा कहकर पुकारे
देकर हमको ईश्वरीय ज्ञान सुधारे संस्कार हमारे
आता है वो परमधाम से हम बच्चों को पढ़ाने
पांच विकार मिटाकर हम सबको पावन बनाने
बाप से बादशाही लेते हुए हार कभी ना खाना
ईश्वरीय बचपन भुलाकर भाग नहीं तुम जाना
समय है पुरुषोत्तम बनने का आया बाप बनाने
श्रेष्ठ से श्रेष्ठ हमको लक्ष्मी नारायण जैसा बनाने
जीत पाते जो माया पर वो देव वर्ण में आते हैं
हार खाये जो माया से वो क्षत्रिय ही रह जाते हैं
21 जन्म सुख पाओ ऐसा खुद को तुम बनाना
बाप को छोड़ देने का संकल्प ना मन में लाना
8 घण्टा पाण्डव सरकार का करना है सहयोग
जग को पावन बनाना है लगाकर बाप से योग
उल्टा कर्म करके सतगुरु की निंदा नहीं करानी
बाप समान पुरुषार्थ कर सूर्यवंशी राजाई पानी
बाप को अपना बनाकर अधिकारी बन जाओ
सर्व प्रकार की अधीनता को जीवन से मिटाओ
दिव्य गुणों और संस्कारों से सबका साथ देना
विशेष आत्मा का टाइटल परमपिता से लेना
ॐ शांति