मुरली कविता दिनांक 29.05.2018


20 नाखूनों का जोर लगा बाप से वर्सा पाओ

ज्ञान की धारणा करके औरों को भी कराओ

ॐ शांति के बैज प्रति मन में सम्मान जगाओ

इसी बैज द्वारा सबको ईश्वरीय ज्ञान सुनाओ

चारों और सुगन्ध फैलाना फूलों का संस्कार

गुणों की सुगन्ध फैलाओ तुम भी इसी प्रकार

पछतावे भरा जीवन अगर नहीं तुम्हें स्वीकार

मन बुद्धि से हो जाओ बाप पर तुम बलिहार

करन करावनहार की स्मृति हॄदय में जगाओ

निश्चय निश्चिंत होकर बेफिक्र बादशाही पाओ

पाना था सो पा लिया मन में बजे यही संगीत

सदा बेफिक्र रहो चाहे परिस्थिति हो विपरीत

खुद को जिस दिन बेहद के वैरागी बनाओगे

सर्व कमजोरियों से तुम स्वतः मुक्ति पाओगे

ॐ शांति


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