मुरली कविता दिनांक 26.02.2018


रखना कोई आस नहीं तुम नष्टोमोहा बन जाना

पवित्रता और योग के बल से ऊंच पद को पाना

शांतिधाम सुखधाम का रस्ता बाबा ही बतलाते

पवित्र रहो और योग करो विधि यही सिखलाते

दुख बीमारी विपदा से ताल्लुक नहीं है बाप का

इन कर्म बंधन से छूटना बच्चों काम है आपका

देहधारी से मेलजोल में जो अपना समय लगाते

इसी कारण वो बच्चे सेवा लायक नहीं बन पाते

क्षणिक है सुख यहां ये गम की दुनिया कहलाती

सच्चे सुख की एक घड़ी यहां नजर नहीं आती

बच्चों केवल वही दुनिया कहलाती है सुखधाम

किसी गम का जहाँ पर नहीं होता नाम निशान

याद करो मुझे क्योंकि अब वापस घर है जाना

किसी लड़ाई झगड़े में कभी समय नहीं गँवाना

देहधारी की याद में कभी तुम रो रोकर ना मरना

सुबह उठकर प्यार से तुम बाप को याद करना

ईश्वरीय सेवा बढ़ाने के तुम करते रहना प्रयास

गाली भी मिल जाए खाने को मत होना निराश

कुछ भी हो जाये कभी लॉ हाथ में नहीं उठाना

ज्ञान योग के बल से हर हिसाब किताब चुकाना

खुद को निमित्त बनाकर परमार्थ करते जाओ

ड्रामा को खेल समझकर मेहनत से बच जाओ

अपना ली हो जिसने अपने व्यवहार में मधुरता

यही है उसके जीवन की सबसे बड़ी महानता

ॐ शांति