मुरली कविता दिनांक 31.05.2018


बच्चों से गफलत करवाने को माया बैठी तैयार

देही अभिमानी बनकर रहना माया से खबरदार

सुख शांति का बाप के पास है भण्डारा भरपूर

पवित्र बनकर पाओ सब ना जाना कहीं तुम दूर

मुझ आत्मा को परमात्मा परिचय देकर पढ़ाते

केवल बाप ही हमारे संस्कारों में परिवर्तन लाते

रहते हैं जो सदा पवित्र होता उनका ही सम्मान

वतन में उड़ने के लिये उनको पंख देते भगवान

अपने कल्याण के लिए देह अभिमान मिटाओ

बाप की याद से अपना आत्माभिमान जगाओ

बुद्धियोग के द्वारा केवल याद की रेस बढ़ाओ

हर सितम सहन करते हुए पावन बनते जाओ

अमृत वेला के समय दिलखुश मिठाई खाओ

सारा दिन खुश रहकर सब में खुशी जगाओ

दिलखुश की खुराक सारे विघ्नों को मिटाती

पहाड़ जैसी परिस्थिति भी राई समान बनाती

बनो दिलखुश मिठाई खाने और खिलाने वाले

हर परिस्थिति में सदा खुशमिजाज रहने वाले

प्रसन्नता भरा चेहरा हमें सेवा योग्य बनायेगा

अपनी सूरत से ज्ञान की सीरत को दिखायेगा

अपने संकल्पों से सबके मन में प्रेरणा जगाओ

श्रेष्ठ बनने की प्रेरणा देकर पुण्यात्मा कहलाओ

ॐ शांति


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