मुरली कविता दिनांक 07.04.2018


सदा खुशी में रहकर बच्चों खुशमौजी मनाओ

ख़ातिरी में सबको खुशी की खुराक खिलाओ

हिम्मत रखकर खुद को तुम नष्टोमोहा बनाओ

बाप को याद करने का समय हर रोज बढ़ाओ

तन की संभाल करो और निद्रजीत बन जाओ

स्वभाव के वश होकर किसी को नहीं सताओ

अवगुण निकालकर प्योर डायमण्ड बन जाओ

सुख सुगन्ध देने वाले पुष्प समान बन जाओ

ज्ञान नेत्र पाकर समझा दुनिया बदलने वाली

ज्ञान की एक बूंद मन में मिठास घोलने वाली

समझो खुद को आत्मा अपना तन भुलाओ

भाई भाई की दृष्टि रखकर कर्मक्षेत्र पर जाओ

5 हजार वर्षों में शिवबाबा एक बार ही आते

बच्चों को शिक्षा देने का पार्ट बजाकर जाते

चुप रहकर छोड़ो तुम मुख की ताली बजाना

सहन कर सबको कल्याण की राह दिखाना

बिंदू बाप की तरह बिंदू स्वयं को भी बनाओ

सभी प्रकार के विस्तार को बिंदू में समाओ

बिंदू रूप में स्थित होना एकाग्रता कहलाती

एकाग्रता से बुद्धि जहां चाहो स्थिर हो जाती

जिसने रूहानियत को निज संस्कार बनाया

बाप की दृष्टि में वो रूहानी गुलाब कहलाया

ॐ शांति