16-11-13        प्रातःमुरली      ओम् शान्ति      “बापदादा”     मधुबन 


मीठे बच्चे देह-अभिमान में आने से ही माया की चमाट लगती है, देही-अभिमानी रहो तो बाप की हर श्रीमत का पालन कर सकेंगे
 

प्रशन:-  बाप के पास दो प्रकार के पुरुषार्थी बच्चे हैं, वह कौन से?

 

उत्तर:- एक बच्चे हैं जो बाप से वर्सा लेने का पूरा-पूरा पुरुषार्थ करते हैं, हर क़दम पर बाप की राय लेते हैं | दूसरे फिर ऐसे भी बच्चे हैं जो बाप को फ़ारकती देने का पुरुषार्थ करते हैं | कोई हैं जो दुःख से छूटने के लिए बाप को बहुत-बहुत याद करते हैं, कोई फिर दुःख में फँसना चाहते हैं, यह भी वन्डर है ना |

 

 गीत:-   महफ़िल में जल उठी शमा...  

ओम् शान्ति | 

बच्चों ने गीत तो बहुत बार सुना है | नये बच्चे फिर नयेसिर सुनते होंगे जबकि बाप आते हैं तो आकर अपना परिचय देते हैं | बच्चों को परिचय मिला हुआ है | जानते हैं अभी हम बेहद के मात-पिता की सन्तान बने हैं | ज़रूर मनुष्य सृष्टि का रचयिता मात-पिता होगा | परन्तु माया ने मनुष्यों की बुद्धि बिल्कुल डेड कर दी है | इतनी साधारण बात बुद्धि में नहीं बैठती | कहते तो सभी हैं कि हमको भगवान् ने पैदा किया है | तो ज़रूर मात-पिता होंगे! भक्ति मार्ग में याद भी करते हैं | हर धर्म वाले गॉड फादर को ज़रूर याद करते हैं | भक्त खुद तो भगवान् हो नहीं सकते | भक्त भगवान् की बन्दगी (साधना) करते है | गॉड फादर तो ज़रूर सबका एक ही होगा अर्थात् सभी आत्माओं का फादर एक है | सभी जिस्मों का फादर एक हो नहीं सकता | वह तो अनेक फादर हैं | वह जिस्मानी फादर होते हुए भी ‘हे ईश्वर’ कहकर याद करते हैं | बाप बैठ समझाते हैं – मनुष्य बेसमझ हैं जो बाप का परिचय भी भूल जाते है | तुम जानते हो स्वर्ग का रचयिता ज़रूर एक ही बाप है | अभी कलियुग है | ज़रूर कलियुग का विनाश होगा | ‘प्रायः लोप’ अक्षर तो हर बात में आता है | बच्चे जानते हैं – सतयुग अभी प्रायः लोप है | अच्छा, फिर प्रश्न उठता है सतयुग में उन्हों को यह पता होगा कि यह सतयुग प्रायः लोप हो जायेगा फिर त्रेता होगा? नहीं, वहाँ तो इस नॉलेज की दरकार ही नहीं | यह बातें किसकी भी बुद्धि में नहीं हैं – सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है, हमारा पारलौकिक बाप कौन है? यह तुम बच्चे ही जानते हो | मनुष्य गाते हैं तुम मात-पिता हम बालक तेरे ......परन्तु जानते नहीं | तो कहना भी न कहने के बराबर हो जाता है | बाप को भूल गये हैं इसलिए आरफन बन पड़े हैं | बाप हर बात समझाते हैं | श्रीमत पर क़दम-क़दम चलो | नहीं तो कोई समय माया बड़ा धोखा देगी | माया है ही धोखेबाज़ | माया से लिबरेट करना – यह बाप का ही काम है | रावण तो है ही दुःख देने वाला | बाप है सुख देने वाला | मनुष्य इन बातों को समझ नहीं सकते | वह तो समझते हैं दुःख सुख भगवान् ही देते हैं | बाप समझाते हैं – मनुष्य दुःखी बनने के लिए शादियों में कितना खर्चा करते हैं ! जो पवित्र पौधे हैं उनको अपवित्र बनाने का पुरुषार्थ किया जाता है | यह भी तुम समझ सकते हो, दुनिया नहीं समझती | यह विषय सागर में डूबने लिए कितनी सेरीमनी करते हैं | उन्हों को यह पता नहीं है कि सतयुग में यह विष (विकार) होता नहीं | वह है ही क्षीरसागर | इसको विषय सागर कहा जाता है | वह है सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया | भल त्रेता में दो कला कम हो जाती हैं, तो भी उनको निर्विकारी दुनिया कहा जाता है | वहाँ विकार हो नहीं सकते क्योंकि रावण का राज्य द्वापर से ही शुरू होता है | आधा-आधा है ना | ज्ञान सागर और अज्ञान सागर | अज्ञान का भी सागर है ना | मनुष्य कितने अज्ञानी हैं | बाप को भी नहीं जानते | सिर्फ़ कहते रहते हैं यह करने से भगवान मिलेगा | मिलता कुछ भी नहीं | माथा मारते-मारते दुःखी, निधनके बन जाते हैं तब ही फिर मैं धनी आता हूँ | धनी बिगर माया अजगर ने सबको खा लिया है | बाप समझाते हैं माया बड़ी दुश्तर है | बहुतों को धोखा मिलता है | कोई को काम की चमाट, कोई को मोह की चमाट लग जाती है | देह-अभिमान में आने से ही चमाट लगती है | मेहनत है ही देही-अभिमानी बनने में इसलिए बाप घड़ी-घड़ी कहते हैं सावधान, मनमनाभव | बाप को याद नहीं करेंगे तो माया थप्पड़ लगा देगी इसलिए निरन्तर याद करने का अभ्यास करो | नहीं तो माया उल्टा कर्तव्य करा देगी | रांग-राइट की बुद्धि तो मिली ही है | कहाँ भी मूंझो तो बाप से पूछो | तार में, चिट्ठी में अथवा फोन पर पूछ सकते हो | फोन सवेरे-सवेरे झट मिल सकता है क्योंकि उस समय सिवाए तुम्हारे बाकी सब सोये रहते हैं | तो फोन पर तुम पूछ सकते हो | दिन-प्रतिदिन फोन आदि की आवाज़ भी सुधारते रहते हैं | परन्तु गवर्मेन्ट है गरीब, तो खर्चा भी ऐसे ही करती है | इस समय तो सब जड़जड़ीभूत अवस्था वाले तमोप्रधान हैं फिर भी खास भारतवासियों को रजो-तमोगुणी क्यों कहा जाता है? क्योंकि यही सबसे ज्यादा सतोप्रधान थे | दूसरे धर्म वालों ने न तो इतना सुख देखा है, न दुःख देखना है | वह अभी सुखी हैं तब तो इतना अनाज आदि भेजते रहते हैं | उन्हों की बुद्धि रजोप्रधान है | विनाश के लिए कितनी इनवेन्शन करते हैं | परन्तु उन्हों को यह पता नहीं पड़ता है इसलिए उन्हों को बहुत चित्र आदि भेजने पड़े, तो उन्हों को भी पता पड़ेगा, आखरीन समझेंगे यह चीज़ तो बड़ी अच्छी है | इन पर लिखा हुआ है गॉड फादरली गिफ्ट | जब आफत का समय होगा तो आवाज़ निकलेगा फिर समझेंगे बरोबर यह हमको मिला था | इन चित्रों से बहुत कम निकलेगा | बाप को बिचारे जानते ही नहीं | सुखदाता तो वह एक ही बाप है | सब उनको याद करते हैं | चित्रों से अच्छी रीति समझ सकते हैं | अभी देखो 3 पैर पृथ्वी के नहीं मिलते हैं और फिर तुम सारे विश्व के मालिक बन जाते हो! यह चित्र विलायत में भी बहुत सर्विस करेंगे | बच्चों को इन चित्रों का इतना कदर नहीं है | खर्चा तो होना ही है | राजधानी स्थापन करने में उस गवर्मेन्ट का करोड़ों रुपया खर्च हुआ होगा और लाखों मरे | यहाँ तो मरने की बात ही नहीं | श्रीमत पर पूरा पुरुषार्थ करना है, तब ही श्रेष्ठ पद पा सकेंगे | नहीं तो पीछे सज़ा खाने समय बहुत पछतायेंगे | यह बाप भी है तो धर्मराज भी है | पतित दुनिया में आकर बच्चों को 21 जन्मों के लिए स्वराज्य देता हूँ | अगर फिर कोई विनाशकारी कर्तव्य किया तो पूरी सज़ा खायेंगे | ऐसे नहीं, जो होगा वह देखा जायेगा, दूसरे जन्म का कौन बैठ विचार करे | मनुष्य दान पुण्य भी दूसरे जन्म के लिए करते हैं | तुम अभी जो करते हो वह 21 जन्मों के लिए | वह जो कुछ करते हैं, अल्पकाल के लिए | एवज़ा फिर भी नर्क में भी मिलेगा | तुमको तो स्वर्ग में एवज़ा मिलना है | रात-दिन का फ़र्क है | तुम स्वर्ग में 21 जन्मों के लिए प्रालब्ध पाते हो | हर बात में श्रीमत पर चलने से बड़ा पार है | बाप कहते हैं तुम बच्चों को नयनों पर बिठाकर बड़े आराम से ले जाता हूँ | तुमने बहुत दुःख उठाये हैं | अब कहता हूँ तुम मुझे याद करो | तुम नंगे आये थे, यह पार्ट बजाया, अब फिर वापिस जाना है | यह तुम्हारा अविनाशी पार्ट है | इन बातों को कोई भी साइन्स घमण्डी समझ नहीं सकते | आत्मा इतना छोटा स्टार है, उसमें अविनाशी पार्ट सदैव के लिए भरा हुआ है, यह कभी समाप्त नहीं होता | बाप भी कहते हैं मैं भी तो क्रियेटर और एक्टर हूँ | मैं कल्प-कल्प आता हूँ पार्ट बजाने | कहते हैं परमात्मा मन-बुद्धि सहित चैतन्य, नॉलेजफुल है, लेकिन क्या चीज़ है, यह कोई नहीं जानते | जैसे तुम आत्मा स्टार मिसल हो, मैं भी स्टार हूँ | भक्ति मार्ग में भी मुझे याद करते है क्योंकि दुःखी हैं, मैं आकर तुम बच्चों को अपने साथ ले जाता हूँ | मैं भी पण्डा हूँ | मैं परमात्मा तुम आत्माओं को ले जाता उन | आत्मा मच्छर से भी छोटी है | यह समझ भी तुम बच्चों को अभी मिलती है | कितनी अच्छी रीति समझाते हैं | बाप कहते हैं मैं तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ, बाकी दिव्य दृष्टि की चाबी मैं अपने पास ही रखता हूँ | यह किसको नहीं देता हूँ | यह भक्ति मार्ग में मेरे ही काम में आती है | बाप कहते हैं मैं तुमको पावन, पूज्य बनाता हूँ, माया पतित, पुजारी बनती है | समझाते तो बहुत हैं परन्तु कोई बुद्धिवान समझे |

यह टेप मशीन बहुत अच्छी चीज़ है | बच्चों को मुरली तो ज़रूर सुननी है | बहुत सिकिलधे बच्चे हैं | बाबा को बांधेली गोपिकाओं पर बहुत तरस पड़ता है | बाबा की मुरली सुनकर बहुत खुश होंगे | बच्चों की ख़ुशी के लिए क्या नहीं करना चाहिए | बाबा को तो रात-दिन गांव की गोपिकाओं का ख्याल रहता है | नींद भी फिट जाती है, क्या युक्ति रचें, कैसे बच्चे दुःख से छूटें | कोई तो फिर दुःख में फँसने के लिए भी तैयारी करते हैं, कोई तो पुरुषार्थ करते हैं वर्सा लेने का, तो कोई फिर फ़ारकती देने का भी पुरुषार्थ करते हैं | दुनिया तो आजकल बहुत ख़राब है | कोई बच्चे तो बाप को मारने में भी देरी नहीं करते हैं | बेहद का बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं | मैं बच्चों को इतना धन दूंगा जो यह कभी दुःखी नहीं होंगे | तो बच्चों को भी इतना रहमदिल बनना चाहिए कि सबको सुख का रास्ता बतायें | आजकल तो सभी दुःख देते हैं, बाकी टीचर कभी दुःख का रास्ता नहीं बतायेंगे | वह पढ़ाते हैं | पढ़ाई सोर्स ऑफ़ इनकम है | पढ़ाई से शरीर निर्वाह करने लायक बनते हैं, माँ-बाप से भल वर्सा मिलता है परन्तु वह क्या काम का? जितना जास्ती धन, उतना पाप बहुत करते हैं | नहीं तो तीर्थ यात्रा करने बड़ी नम्रता से जाते हैं | परन्तु कोई-कोई तो तीर्थ यात्रा पर भी शराब ले जाते हैं, फिर छिपाकर पीते हैं | बाबा का देखा हुआ है – शराब बिगर रह नहीं सकते | बात मत पूछो | लड़ाई में जाने वाले भी शराब खूब पीते हैं | लड़ाई वालों को अपनी जान का ख्याल नहीं रहता है | समझते हैं आत्मा एक शरीर छोड़ जाकर दूसरा शरीर लेगी | तुम बच्चों को भी अभी ज्ञान मिलता है | यह छी-छी शरीर छोड़ना है | उन्हों को तो कोई ज्ञान नहीं | परन्तु आदत पड़ी हुई है – मरना और मारना | यहाँ तो हम आपेही बैठे-बैठे बाबा के पास जाना चाहते हैं | यह पुरानी खाल है | जैसे सर्प भी पुरानी खाल छोड़ देते हैं | ठण्डी में सूख जाती है तो उतार देते हैं | तुम्हारी यह तो बहुत छी-छी पुरानी खाल है, पार्ट बजाते अब इनको छोड़ना है, बाबा के पास जाना है | बाबा ने युक्ति तो बताई है – मनमनाभव | मुझे याद करो बस, ऐसे बैठे-बैठे शरीर छोड़ देंगे | सन्यासियों का भी ऐसे होता है – बैठे-बैठे शरीर छोड़ देते हैं क्योंकि वह समझते हैं आत्मा को ब्रह्म में लीन होना है, तो योग लगाकर बैठते हैं | परन्तु जा नहीं सकते | जैसे काशी कलवट खाते हैं, वह जीवघात हो जाता है | यह सन्यासी भी बैठे-बैठे ऐसे जाते हैं, बाबा का देखा हुआ है, वह हुआ हठयोग सन्यास |

बाप समझाते हैं तुमको 84 जन्म कैसे मिलते हैं? तुमको कितनी नॉलेज देते हैं, कोई बिरला ही श्रीमत पर चलता है | देह-अभिमान आने से फिर बाप को भी अपनी मत देने लग पड़ते हैं | बाप समझाते हैं देही-अभिमानी बनो | मैं आत्मा हूँ, बाबा आप ज्ञान के सागर हो | बस, बाबा आपकी राय पर ही चलूँगा | क़दम-क़दम पर बड़ी सावधानी चाहिए | भूलें तो होती रहती हैं फिर पुरुषार्थ करना पड़ता है | कहाँ भी जाओ बाप को याद करते रहो | विकर्मों का बोझ सिर पर बहुत है | कर्मभोग चुक्तू करना होता है ना | पिछाड़ी तक यह कर्मभोग छोड़ेगा नहीं | श्रीमत पर चलने से ही पारसबुद्धि बनना है | साथ में धर्मराज भी है | तो रेस्पान्सिबुल वह हो गया | बाप बैठा है, तुम क्यों अपने पर बोझा रखते हो | पतित-पावन बाप को पतितों की महफ़िल में आना ही है | यह तो नई बात नहीं, अनेक बार पार्ट बजाया है, फिर बजाते रहेंगे | इसको ही वन्डर कहा जाता है | अच्छा!

पारलौकिक बापदादा का सिकिलधे बच्चों प्रति याद-प्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1.    बाप समान सबको दुःखों से लिबरेट करने का रहम करना है | सुख का रास्ता बताना है |

2.    कोई भी विनाशकारी (उल्टा) कर्तव्य नहीं करना है | श्रीमत पर 21 जन्मों के लिए अपनी प्रालब्ध बनानी
       है |  क़दम-क़दम पर सावधानी से चलना है |

वरदान:-   हर गुण वा शक्ति को अपना स्वरूप बनाने वाले बाप समान सम्पन्न भव

जो बच्चे बाप समान सम्पन्न बनने वाले हैं वह सदा याद स्वरूप, सर्वगुण और सर्व शक्तियों स्वरूप रहते हैं | स्वरूप का अर्थ है अपना रूप ही वह बन जाए | गुण वा शक्ति अलग नहीं हो, लेकिन रूप में समाये हुए हों | जैसे कमज़ोर संस्कार या कोई अवगुण बहुतकाल से स्वरूप बन गये हैं, उसको धारण करने की मेहनत नहीं करते | ऐसे हर गुण हर शक्ति निजी स्वरूप बन जाए, याद करने की भी मेहनत नहीं करनी पड़े लेकिन याद में समाये रहें तब कहेंगे बाप समान |

स्लोगन:-  "बाबा” शब्द ही सर्व ख़ज़ानों की चाबी है, इसे सदा सम्भालकर रखो
                 

ओम् शान्ति |