29-11-13          प्रातः मुरली       ओम् शान्ति       “बापदादा”        मधुबन


मीठे बच्चे सेकेण्ड में मुक्ति और जीवनमुक्ति प्राप्त करने के लिए मनमनाभव, मध्याजी भव | बाप को यथार्थ पहचान कर याद करो और सबको बाप का परिचय दो   
 

प्रश्न:- 

किस नशे के आधार पर ही तुम बाप का शो कर सकते हो? 
 

उत्तर:-

नशा हो कि हम अभी भगवान् के बच्चे बने हैं, वह हमें पढ़ा रहे हैं | हमें ही सब मनुष्य मात्र को सच्चा रास्ता बताना है | हम अभी संगमयुग पर हैं | हमें अपनी रॉयल चलन से बाप का नाम बाला करना है | बाप और श्रीकृष्ण की महिमा सबको सुनानी है |

गीत:-

आने वाले कल की तुम तक़दीर हो......
 

ओम् शान्ति | 
यह गीत तो गाये हुए हैं स्वतन्त्रता सेनानियों के, बाकी दुनिया की तक़दीर किसको कहा जाता है, यह भारतवासी नहीं जानते हैं | सारी दुनिया का प्रश्न है, सारी दुनिया की तकदीर बदल हेल से हेविन बनाने वाला कोई मनुष्य हो नहीं सकता | यह महिमा किसी मनुष्य की नहीं है | अगर कृष्ण के लिए कहें तो उनको गाली कोई दे न सके | मनुष्य यह भी नहीं समझते कि कृष्ण ने चौथ का चन्द्रमा कैसे देखा जो कलंक लगा | कलंक वास्तव में न कृष्ण को लगते हैं, न गीता के भगवान् को लगते हैं | कलंक लगते हैं ब्रह्मा को | कृष्ण को कलंक लगाये भी हैं भगाने के | शिवबाबा का तो किसको भी पता नहीं है | ईश्वर के पिछाड़ी भागे हैं ज़रूर, परन्तु ईश्वर तो गाली खा न सके | न ईश्वर को, न कृष्ण को गाली दे सकते | दोनों की महिमा जबरदस्त है | कृष्ण की भी महिमा नम्बरवन है | लक्ष्मी-नारायण की इतनी महिमा नहीं है क्योंकि वह शादी-शुदा हैं | कृष्ण तो कुमार है इसलिए उसकी महिमा ज़्यादा है, भल लक्ष्मी-नारायण की महिमा भी ऐसे ही गायेंगे – 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी........कृष्ण को तो द्वापर में कहते हैं | समझते हैं यह महिमा परम्परा से चली आई है | इन सब बातों को भी तुम बच्चे जानते हो | यह तो ईश्वरीय नॉलेज है, ईश्वर ने ही राम राज्य स्थापन किया है | राम राज्य को मनुष्य समझते नहीं हैं | बाप ही आकर इन सबकी समझ देते हैं | सारा मदार है गीता पर, गीता में ही रांग लिख दिया है | कौरव और पाण्डवों की लड़ाई तो लगी ही नहीं तो अर्जुन की बात ही नहीं | यह तो बाप बैठ पाठशाला में पढ़ाते हैं | पाठशाला युद्ध के मैदान में थोड़ेही होगी | हाँ, यह माया रावण से युद्ध है | उन पर जीत पानी है | माया जीते जगतजीत बनना है | परन्तु इन बातों को ज़रा भी समझ नहीं सकते | ड्रामा में नूंध ही ऐसी है | उन्हों को पिछाड़ी में आकर समझना है | और तुम बच्चे ही समझा सकते हो | भीष्म पितामह आदि को हिंसक बाण आदि मारने की बात ही नहीं है | शास्त्रों में तो बहुत ही बातें लिख दी हैं | माताओं को उनके पास जाकर टाइम लेना चाहिए | बोलो, हम आपसे इस सम्बन्ध में बात करना चाहते हैं | यह गीता तो भगवान् ने गाई है | भगवान् के महिमा है | श्रीकृष्ण तो अलग है | हमको तो इस बात में संशय आता है | रूद्र भगवानुवाच, उनका यह रूद्र ज्ञान यज्ञ है | यह निराकार परमपिता परमात्मा का ज्ञान यज्ञ है | मनुष्य फिर कहते कृष्ण भगवानुवाच | भगवान् तो वास्तव में एक को ही कहते हैं, उनकी फिर महिमा लिखनी चाहिए | कृष्ण की महिमा यह है, अब दोनों में गीता का भगवान् कौन है? गीता में लिखा हुआ है सहज राजयोग | बाप कहते हैं कि बेहद का सन्यास करो | देह सहित देह के सर्व सम्बन्ध छोड़ अपने को आत्मा समझो, मनमनाभव, मध्याजी भव | बाप समझाते तो बहुत अच्छी रीति से हैं | गीता में है श्रीमद् भगवानुवाच | श्री अर्थात् श्रेष्ठ तो परमपिता परमात्मा शिव को ही कहेंगे | कृष्ण तो दैवी गुण वाला मनुष्य है | गीता का भगवान् तो शिव है जिसने राजयोग सिखाया है | बरोबर पिछाड़ी में सब धर्म विनाश हो एक धर्म की स्थापना हुई है | सतयुग में एक ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म था | वह कृष्ण ने नहीं परन्तु भगवान् ने स्थापन किया | उनकी महिमा यह है | उनको त्वमेव माताश्च पिता कहा जाता है | कृष्ण को तो नहीं कहेंगे | तुम्हें सत्य बाप का परिचय देना है | तुम समझा सकते हो कि भगवान् ही लिबरेटर और गाइड है जो सबको ले जाते हैं, मच्छरों सदृश्य सबको ले जाना यह तो शिव का काम है | सुप्रीम अक्षर भी बड़ा अच्छा है | तो शिव परमपिता परमात्मा की महिमा अलग, कृष्ण की महिमा अलग, दोनों सिद्ध कर समझानी है | शिव तो जन्म-मरण में आने वाला नहीं है | वह पतित-पावन है | कृष्ण तो पूरे 84 जन्म लेते हैं | अब परमात्मा किसको कहा जाए? यह भी लिखना चाहिए | बेहद के बाप को न जानने के कारण ही आरफन, दुःखी हुए हैं | सतयुग में जब धणके बन जाते हैं तो ज़रूर सुखी होंगे | ऐसे स्पष्ट अक्षर होने चाहिए | बाप कहते हैं मुझे याद करो और वर्सा लो | सेकेण्ड में जीवनमुक्ति, अभी भी शिवबाबा ऐसे कहते हैं | महिमा पूरी लिखनी है | शिवाए नमः, उनसे स्वर्ग का वर्सा मिलता है | इस सृष्टि चक्र को समझने से तुम स्वर्गवासी बन जायेंगे | अब जज करो – राइट क्या है? तुम बच्चों को सन्यासियों के आश्रम में जाकर पर्सनल मिलना चाहिए | सभा में तो उन्हों को बहुत घमण्ड रहता है | तुम बच्चों की बुद्धि में यह रहना चाहिए कि मनुष्यों को सच्चा रास्ता कैसे बतायें? भगवानुवाच – मैं इन साधुओं आदि का भी उद्धार करता हूँ | लिबरेटर अक्षर भी है | बेहद का बाप ही कहते हैं मेरे बनो | फादर शोज़ सन फिर सन शोज़ फादर | श्रीकृष्ण को तो फादर नहीं कहेंगे | गॉड फादर के सब बच्चे हो सकते हैं | मनुष्य मात्र के तो सब बच्चे हो न सके | तो तुम बच्चों को समझाने का बड़ा नशा होना चाहिए | बेहद के बाप के हम बच्चे हैं, राजा के बच्चे राजकुमार की तुम चलन तो देखो कितनी रॉयल होती है | परन्तु उस बिचारे पर (श्रीकृष्ण पर) तो भारतवासियों ने कलंक लगा दिया है | कहेंगे भारतवासी तो तुम भी हो | बोलो हाँ, हम भी हैं परन्तु हम अभी संगम पर हैं | हम भगवान् के बच्चे बने हैं और उनसे पढ़ रहे हैं | भगवानुवाच – तुमको राजयोग सिखलाता हूँ | कृष्ण की बात हो नहीं सकती | आगे चलकर समझते जायेंगे | राजा जनक ने भी इशारे से समझा है ना | परमपिता परमात्मा को याद किया और ध्यान में चला गया | ध्यान में तो बहुत जाते रहते हैं | ध्यान में निराकारी दुनिया और वैकुण्ठ देखेंगे | यह तो जानते हो हम निराकारी दुनिया के रहने वाले हैं | परमधाम से यहाँ आकर पार्ट बजाते हैं | विनाश भी सामने खड़ा है | साइन्स वाले मून के ऊपर जाने लिए माथा मारते रहते हैं – यह है अति साइन्स के घमण्ड में जाना जिससे फिर अपना ही विनाश करते हैं | बाकी मून आदि में कुछ है नहीं | बातें तो बड़ी अच्छी हैं सिर्फ़ समझाने की युक्ति चाहिए | हमको शिक्षा देने वाला ऊँच ते ऊँच बाप है | वह तुम्हारा भी बाप है | उनकी महिमा अलग, कृष्ण की महिमा अलग है | रूद्र अविनाशी ज्ञान यज्ञ है, जिसमें सब आहुति पड़नी है | प्वाइन्ट्स बहुत अच्छी हैं परन्तु शायद अभी देरी है |

यह प्वाइन्ट भी अच्छी है – एक है रूहानी यात्रा, दूसरी है जिस्मानी यात्रा | बाप कहते हैं कि मुझे याद करो तो अन्त मती सो गति हो जायेगी | स्प्रीचुअल फादर के बिना और कोई सिखला न सके | ऐसी-ऐसी प्वाइन्ट लिखनी चाहिए | मनमनाभव-मध्याजीभव, यह है मुक्ति-जीवनमुक्ति की यात्रा | यात्रा तो बाप ही करायेंगे, कृष्ण तो करा न सके | याद करने की ही आदत डालनी है | जितना याद करेंगे उतना ख़ुशी होगी | परन्तु माया याद करने नहीं देती है | अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग | सर्विस तो सब करते हैं, परन्तु ऊँच और नीच सर्विस तो है ना | किसको बाप का परिचय देना है बहुत सहज | अच्छा – रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

रात्रि क्लास

जैसे पहाड़ों पर हवा खाने, रिफ्रेश होने जाते हैं | घर वा आफिस में रहने से बुद्धि में काम रहता है | बाहर जाने से आफिस के ख्याल से फ्री हो जाते हैं | यहाँ भी बच्चे रिफ्रेश होने के लिए आते हैं | आधाकल्प भक्ति करते-करते थक गये हैं, पुरुषोत्तम संगमयुग पर ज्ञान मिलता है | ज्ञान और योग से तुम रिफ्रेश हो जाते हो | तुम जानते हो अभी पुरानी दुनिया का विनाश होता है, नई दुनिया स्थापन होती है | प्रलय तो होती नहीं | वो लोग समझते हैं दुनिया एकदम ख़त्म हो जाती है, परन्तु नहीं | चेंज होती है | यह है ही नर्क, पुरानी दुनिया | नई दुनिया और पुरानी दुनिया क्या होती है, यह भी तुम जानते हो | तुमको डीटेल में समझाया गया है | तुम्हारी बुद्धि में विस्तार है सो भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार | समझाने में भी बहुत रिफाइननेस चाहिए | किसी को ऐसा समझाओ जो झट बुद्धि में बैठ जाये | कई बच्चे कच्चे हैं जो चलते-चलते टूट पड़ते हैं | भगवानुवाच भी है आश्चर्यवत सुनन्ती, कथन्ती.......| यहाँ है माया से युद्ध | माया से मरकर ईश्वर का बनते हैं, फिर ईश्वर से मरकर माया के बन जाते हैं | एडाप्ट हो फिर फ़ारकती दे देते हैं | माया बड़ी प्रबल है, बहुतों को तूफ़ान में लाती है | बच्चे भी समझते हैं – हार जीत होती है | यह खेल ही हार जीत का है | 5 विकारों से हारे हैं | अभी तुम जीतने का पुरुषार्थ करते हो | आखरीन जीत तुम्हारी है | जब बाप के बने हो तो पक्के बनना चाहिए | तुम देखते हो माया कितने टेम्पटेशन देती है! कई बार ध्यान दीदार में जाने से भी खेल ख़लास हो जाता है | तुम बच्चों की बुद्धि में है अब 84 जन्म का चक्र लगाकर पूरा किया है | देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र बने, अभी शुद्र से ब्राह्मण बने हैं | ब्राह्मण बन फिर देवता बन जाते हैं | यह भूलना नहीं है | अगर यह भी भूलते हो तो पाँव पीछे हट जाते हैं फिर दुनियावी बातों में बुद्धि लग जाती है | मुरली आदि भी याद नहीं रहती | याद की यात्रा भी डिफिकल्ट भासती है | यह भी वन्डर है |

कई बच्चों को बैज लगाने में भी लज्जा आती है, यह भी देह-अभिमान है ना | गाली तो खानी ही है | कृष्ण ने कितनी गाली खाई है! सबसे जास्ती गाली खाई है शिव ने | फिर कृष्ण | फिर सबसे जास्ती गाली खाई है राम ने | नम्बरवार हैं | डिफेम करने से भारत की कितनी ग्लानि हुई है! तुम बच्चों को इसमें डरना नहीं है | 

अच्छा – मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति यादप्यार और गुडनाइट | 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1.  बुद्धि से बेहद का सन्यास कर, रूहानी यात्रा पर तत्पर रहना है | याद में रहने की आदत डालनी है |

2.   फादर शोज़ सन, सन शोज़ फादर सभी को बाप का सत्य परिचय देना है | सेकेण्ड में जीवनमुक्ति का रास्ता बताना है |

 

वरदान:-

सदा यथार्थ श्रेष्ठ कर्म द्वारा सफलता का फल प्राप्त करने वाले ज्ञानी, योगी तू आत्मा भव  

जो ज्ञानी और योगी तू आत्मा हैं उनके हर कर्म स्वतः युक्तियुक्त होते हैं | युक्तियुक्त अर्थात् सदा यथार्थ श्रेष्ठ कर्म | कोई भी कर्म रूपी बीज फल के सिवाए नहीं होता | जो युक्तियुक्त होगा वह जिस समय जो संकल्प, वाणी या कर्म चाहे वह कर सकेगा | उनके संकल्प भी युक्तियुक्त होंगे | ऐसे नहीं यह करना नहीं चाहता था, हो गया | सोचना नहीं चाहिए था, सोच लिया | राज़युक्त, योगयुक्त की निशानी है ही युक्तियुक्त |

 स्लोगन:-

जिनकी दिल बड़ी है उनके भण्डारे सदा भरपूर रहते हैं |    

ओम् शान्ति |