24-11-13     प्रातः मुरली        ओम् शान्ति       “अव्यक्त-बापदादा”      रिवाइज: 27-05-77  मधुबन
 


"अमृतवेले तन की दिनचर्या और मन के पॉवरफुल स्थिति की सेटिंग करो”

आज बापदादा के सामने कौन सी सभा बैठी हुई है? जानते हो? आज डबल प्रकार की सभा है | एक, जो सभी सामने बैठी है – भारतवासी बच्चों की सभा | दूसरे, विदेशी बच्चों की सभा | विदेशी बच्चे बहुत उमंग, उत्साह और लग्न से बाप को प्रत्यक्ष करने के प्लैन्स बनाते हुए, बार-बार बाप के गुण गाते, ख़ुशी में नाच रहे हैं | उन्हों की ख़ुशी का, मन का गीत बापदादा के सामने सुनाई दे रहा है | सब तरफ़, विशेष रूप से बाप के स्नेह और सेवा का वातावरण आकर्षण करने वाला है | बापदादा को भी बच्चों को देख, बच्चों के उमंग पर ख़ुशी होती है | साथ-साथ आप सभी बच्चों का मिलन का उमंग देख हर्षित होते हैं | आज अमृतवेले बापदादा चारों ओर के बच्चों के पास चक्कर लगाने निकले | क्या देखा? मधुबन वरदान भूमि में, ख़ुशी-ख़ुशी से आए हुए बच्चे, इस ही मिलन की ख़ुशी में और सब बातें भूले हुए हैं | हरेक नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार वरदान प्राप्त करने के उमंग, उत्साह में थे | और सब तरफ़ चक्कर लगाते हुए क्या देखा? मैजॉरटी का शरीर भल अपने-अपने स्थान पर है, लेकिन मन की लग्न मधुबन तरफ़ है | अव्यक्त रूप से योगयुक्त बच्चे मधुबन में ही अपने को अनुभव करते हैं | चारों ओर सभी का स्वरूप चात्रक समान दिखाई दे रहा था | याद की यात्रा के चार्ट में क्या देखा? पोजीशन और अपोजीशन दोनों का खेल देखा | यथा शक्ति हरेक अपने पोजीशन पर स्थित रहने का प्रयत्न बहुत करते, लेकिन माया की अपोजिशन एकरस स्थिति में स्थित होने में विघ्न-स्वरूप बन रही थी | इसका कारण क्या?

(1)               एक तो सारे दिन की दिनचर्या पर बार-बार अटेन्शन की कमी है |

(2)               दूसरा, शुद्ध संकल्प का ख़ज़ाना जमा न होने कारण व्यर्थ संकल्पों में ज़्यादा समय व्यतीत करते हैं | मनन शक्ति बहुत कम है |

(3)               तीसरा, किसी भी प्रकार की छोटी-छोटी परिस्थितियां जो हैं कुछ भी नहीं, उन छोटी सी बातों की कमज़ोरी के कारण बहुत बड़ा समझ, उनको मिटाने में टाइम बहुत वेस्ट करते हैं | कारण क्या? समय प्रति समय जो अनेक प्रकार की परिस्थितियों को पार करने की युक्तियाँ सुनते हैं, वह उस समय घबराने के कारण स्मृति में नहीं आती हैं |

(4)               चौथे अपने ही स्वभाव-संस्कार, जो समझते भी हैं कि नहीं होने चाहिए, बार-बार उन स्वभाव-संस्कार के वशीभूत होने से धोखा भी खा चुके हैं, लेकिन फिर भी रचता कहलाते हुए भी, वशीभूत हो जाते हैं | अपने अनादि, आदि संस्कार बार-बार स्मृति में नहीं लाते हैं | इस कारण संस्कार स्वभाव मिटाने की समर्थी में नहीं आ सकते हैं | ऐसे चारों ही प्रकार के योद्धा देखे | योद्धा शब्द सुनकर हँसी आती है और जिस समय प्रैक्टिकल एक्ट में आते हो, उस समय हँसी आती है? बापदादा को ऐसा खेल देखते हुए, बच्चों पर रहम और कल्याण का संकल्प आता है | अब तक मैजॉरटी व्यर्थ संकल्पों की कम्पलेन बहुत करते हैं | व्यर्थ संकल्प के कारण तन और मन दोनों कमज़ोर हो जाते हैं | व्यर्थ संकल्प का कारण क्या? सुनाया था, अपनी दिनचर्या को सेट करना नहीं आता |

 

अमृत वेले रोज़ की दिनचर्या, तन की और मन की सेट करो | जैसे तन की दिनचर्या बनाते हो कि सारे दिन में यह-यह कर्म करना है, वैसे अपने स्थूल कार्य के हिसाब से, मन की स्थिति को भी सेट करो | जैसे अमृतवेले याद की यात्रा का समय सेट है, तो ऐसे सुहावने समय पर, जबकि समय का भी सहयोग है, बुद्धि सतोप्रधान स्टेज का सहयोग है, ऐसे समय पर मन की स्थिति भी सबसे पॉवरफुल स्टेज की चाहिए | पॉवरफुल स्टेज अर्थात् बाप समान बीजरूप स्थिति | तो यह अमृतवेले का जैसा श्रेष्ठ समय है, वैसी श्रेष्ठ स्थिति होनी चाहिए | साधारण स्थिति में तो कर्म करते भी रह सकते हो, लेकिन यह विशेष वरदान का समय है | इस समय को यथार्थ रीति यूज़ न करने का कारण, सारे दिन के याद की स्थिति पर प्रभाव पड़ता है | तो पहला अटेन्शन अमृतवेले की पॉवरफुल स्थिति की सेटिंग करो |

दूसरी बात, जब ज्ञान की गुह्य बातें सुनते हो अर्थात् रेग्युलर स्टडी करते हो, उस समय जो प्वाइन्ट्स निकलती हैं, उस हर प्वाइन्ट को सुनते हुए अनुभवी मूर्त होकर नहीं सुनते | ज्ञानी तू आत्मा हर बात के स्वरूप का अनुभव करती है | सुनना अर्थात् उस स्वरूप के अनुभवी बनकर सुनना | लेकिन अनुभवी मूर्त बनना बहुत कम आता है | सुनना अच्छा लगता है, गुह्य भी लगता है, ख़ुश भी होते हैं, बहुत अच्छा ख़ज़ाना मिल रहा है, लेकिन समाना अर्थात् स्वरूप बनना – अभ्यास होना चाहिए | मैं आत्मा निराकार हूँ – यह बार-बार सुनते हो, लेकिन निराकार स्थिति के अनुभवी बनकर सुनो | जैसी पाइंट, वैसा अनुभव | परमधाम की बातें सुनो तो परमधाम निवासी होकर परमधाम की बातें सुनो | स्वर्गवासी देवताई स्थिति के अनुभवी बन, स्वर्ग की बातें सुनो | इसको कहा जाता है सुनना अर्थात् समाना | समाना अर्थात् स्वरूप बनना | अगर इसी रीति से मुरली सुनो तो शुद्ध संकल्प का ख़ज़ाना जमा हो जायेगा और इसी ख़ज़ाने के अनुभव को बार-बार सुमिरण करो तो सारा समय बुद्धि इसी में ही बिज़ी रहेगी | व्यर्थ संकल्पों से सहज किनारा हो जायेगा | अगर अनुभवी होकर नहीं सुनते, तो बाप के ख़ज़ाने को अपना ख़ज़ाना नहीं बनाते, इसीलिए खाली रहते हो अर्थात् व्यर्थ संकल्पों को स्वयं ही जगह देते | और आगे बढ़कर सारी दिनचर्या में क्या-क्या कमी करते हो, वह फिर दूसरे दिन सुनायेंगे | पहले इन दो बातों को ठीक करो | ज़्यादा डोज़ नहीं देते हैं | अच्छा |

सदा समर्थ, सदा ज्ञान के ख़ज़ाने से सम्पन्न, याद की यात्रा द्वारा सर्व शक्तियों के अनुभवी मूर्त, सदा हर परिस्थिति को स्वस्थिति द्वारा, सेकेण्ड में और सहज पार करने वाले, ऐसे बाप समान गुण मूर्त और शक्ति मूर्त ज्ञानी तू आत्माओं को बापदादा का याद, प्यार और नमस्ते |

दीदी जी के साथ:-

आज विशेष विदेश वालों का बाप को अपनी तरफ़ खींचने का चल रहा है | यह सभा देखते हुए भी बापदादा को बार-बार सामने विदेशी नज़र आते हैं | विशेष याद की आकर्षण से बहुत फुलफ़ोर्स से मीठी-मीठी बातें करते हैं | हरेक अपने मन के उमंग का संकल्प बाप के आगे ऐसे रख रहे हैं, जैसे सन्मुख बातें की जाती हैं, विदेश में रहने वालों को इतनी ख़ुशी क्यों है? इसका कारण क्या है? क्योंकि नई-नई फुलवाड़ी समझती हैं कि हम पीछे आने वाले जब तक कोई विशेष कार्य नहीं करेंगे तो हाई जम्प देकर आगे कैसे बढ़ेंगे | उन्हों को यह लग्न है हम कुछ विशेष करके दिखावें | जो न हुआ है, वह करके दिखावें | इस कारण इस नशे में रात-दिन, तन-धन कुछ दिखाई नहीं देता है | लक्ष्य अच्छा रखा है | हरेक स्थान यही सोच रहा है कि हमारे देश के चारों ओर नाम निकले | इस रेस के कारण एक दो से आगे बढ़ रहे हैं | विदेश से नाम निकलना है – यह तो ठीक है, लेकिन किस कोने से निकलता? कौन सा स्थान निमित्त बनता? किस स्थान का व्यक्ति निमित्त बनता है? इसलिए हरेक अपने धुन में लगे हुए हैं और बापदादा को भी बच्चों के मेहनत और उत्साह अच्छा लगता है | (दादी को) आप यहाँ बैठी हो या विदेश में? विदेश सर्विस के प्लैन चलते हैं कि जब प्लेन में चढ़ेंगी तब प्लैन चलेंगे? महारथियों से एक प्रश्न पूछते हैं | बाप से तो बहुत पूछते हैं | महारथियों के लिए विशेष है – रूहरिहान, महारथियों से अच्छी लगती है | विजय माला के जो मणके बनाते हैं पहला नम्बर वा 108 वाँ नम्बर, दोनों में अन्तर क्या है? कहलाते तो सब विजयी रत्न हैं | नाम ही है विजयमाला | लेकिन पहला नम्बर विजयी रत्न और जो लास्ट का विजयी रत्न है उनमे कोई विशेष सब्जेक्ट पर विजय का आधार है वा टोटल नम्बर पर आधार है | एक होता है विशेष सब्जेक्ट में, दूसरा होता है सब सब्जेक्ट के टोटल मार्क्स का अन्तर | तो इसकी गुह्यता क्या है अर्थात् विजय की गुह्य गति क्या है? इसमें बहुत कुछ रहस्य भरा हुआ है | युगल दाने की विशेष सब्जेक्ट कौन सी है और अष्ट रत्नों की कौन सी है? 100 रत्नों की कौन सी है? उसमें भी आगे और पीछे वालों में क्या अन्तर है? इस गुह्य गति पर आपस में मनन करना फिर बतायेंगे | आज चक्कर लगाया ना | यह तो हुई मोटी बात | लेकिन विशेष महारथियों के पुरुषार्थ में क्या महीन अन्तर रह जाता है जिससे दो नम्बर के बाद तीसरा आता, फिर चौथा आता? हैं महारथी नामी-ग्रामी लेकिन दूसरा तीसरा नम्बर भी किस आधार से बनते है? तो आज महारथियों के इस गुह्य गति के पुरुषार्थ को देख रहे थे | अष्ट में भी पहला नम्बर और आठवाँ नम्बर में क्या अन्तर है? पूजते तो आती ही हैं लेकिन पूजा में भी अन्तर, विजय में अन्तर है | हरेक की विशेषता भी विशेष है, और फिर जो कमी रह जाती है वह भी विशेष है जिसके आधार पर फिर नम्बर बनते हैं | आज दोनों ही देख रहे थे तो यह आपस में विचार करना | अच्छा |

दिल्ली पार्टी से:-

दिल्ली को दरबार बनाया है? दिल्ली दरबार कहते हैं तो दिल्ली को अपनी दरबार बनाई है? राजाई तैयार हो गई है? दरबार में कौन बैठेंगे? दरबार में पहले तो महाराजा, महारानियां चाहिए | कितने महाराजा, महारानियां तैयार हुई हैं? दिल्ली वालों को राज्य का फाउन्डेशन लगाना है | राज्य का फाउन्डेशन कैसे लगेगा, उसका आधार क्या? राज्य अर्थात् अधिकार प्राप्त कर लेना | पहले स्वयं का राज्य, फिर विश्व का राज्य | तो दिल्ली निवासी स्वयं पर अधिकारी बने हैं? विदेश से तो नाम निकलेगा, लेकिन नाम पहुँचेगा कहाँ? (दिल्ली में) तो दिल्ली वालों को नवीनता करनी चाहिए क्योकि सेवा का आदि स्थान है | सेवा की बीज स्वरूप दिल्ली है | तो जैसे दिल्ली आदि स्थान है, सेवा के हिसाब से और राज्य का स्थान, राज्य स्थान भी है, तो दोनों ही हिसाब से दिल्ली वालों को विशेषता करनी चाहिए तो क्या करेंगे? मेला करेंगे? कान्फ्रेन्स करेंगे? यह तो पुरानी बातें हो गयी | लेकिन नवीनता क्या करेंगे? पहली बात तो दिल्ली वालों का एक दृढ़ संकल्प संगठित रूप से होना चाहिए कि हम सब दिल्ली का किला मज़बूत करेंगे, सफलता तो होनी ही है, इस संकल्प का व्रत एक हो | जैसे कोई भी कार्य में सफलता के लिए व्रत रखते हैं ना | वह तो स्थूल व्रत रखते हैं, लेकिन यह मन्सा का व्रत है जिस व्रत से निमित्त कोई भी कार्य करेंगे |

भल कार्य साधारण भी हो, रिज़ल्ट नवीनता की हो | मानो कान्फ्रेन्स करते, बाहर का रूप साधारण का होता लेकिन सफलता नवीनता की हो | जब एक ही समय और सर्व का एक ही संकल्प दृढ़ होगा कि होना ही है, तो देखो दिल्ली क्या कमाल करती है! कमज़ोरी के संकल्प नहीं हो | होना तो है ....नहीं. होना ही है | होगा, नहीं होगा, अभी तक तो हुआ नहीं...... यह कमज़ोरी के संकल्प हैं | एक दृढ़ संकल्प की भट्ठी हो फिर सब दिल्ली को कापी करेंगे | अभी ऐसी कोई नवीनता दिखाओ | भाषण किया, जनता आई, सुना और गए | भाषण करने वालों ने भाषण किया और चले – यह तो होता रहता है | अब डबल स्टेज स्वयं की और दूसरी स्थान की तैयार करो | जब डबल स्टेज हो तब सफलता हो | स्थूल स्टेज पर झन्डा लगाना, स्लोगन लगाना, चित्र लगाना बहुत सहज है, लेकिन हर एक चैतन्य चित्र हो | हरेक की बुद्धि में विजय का झन्डा लगा हो | स्लोगन सबका एक हो – सफलता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है | फिर देखो दिल्ली वाले कमाल करेंगे | दिल्ली वालों को विशेष एक लिफ्ट की गिफ्ट भी है, वह कौन सी है? दिल्ली वालों का, उसमें भी विशेष शक्ति सेना का विशेष गुण कौनसा है? यज्ञ की स्थापना के कार्य में दिल्ली की शक्ति सेना का सुदामा मिसल जो चावल चपटी काम में आई है, वह बहुत महत्व के समय काम में आई है | तो महत्व के समय पर अगर कार्य में चावल चपटी भी लगाते तो वह बहुत वृद्धि हो जाती है | वैसे इतना फलीभूत नहीं होता, समय पर सहयोग देने से दिल्ली वालों को विशेष गिफ्ट की लिफ्ट मिली है | बाप की ओर से ड्रामा प्रमाण दिल्ली वालों को सदा सम्पन्न रहने का वरदान प्राप्त है | दिल्ली की धरनी का फाउन्डेशन अच्छा है | एक्जाम्पुल बनने वालों को विशेष सहयोग मिलता है | दिल्ली के सेवा अन्य सेवा स्थानों के निमित्त एक्जाम्पुल बने | जैसे आदि में विशेषता दिखाई, वैसे अभी दिखाओ | तो उसका सहयोग मिल जायेगा | दिल्ली वाले फारेन वालों से भी अच्छे प्लैन बना सकते हैं; क्योंकि यहाँ बहुत सेवा के साधन हैं | यहाँ मेहनत की जरुरत नहीं सिर्फ़ किला मज़बूत की बात है | अच्छा | जब सबके संकल्प की अंगुली इकट्ठी होगी तो हर कार्य सफल होगा | सबकी नज़र दिल्ली पर है | जब एक दो के समीप हो हाथ में हाथ मिलायेंगे तब घेराव डाल सकेंगे | हाथ में हाथ मिलाना अर्थात् संकल्प मिलाना | सबमें एक जैसा उमंग-उत्साह हो, दिलाना ना पड़े | अच्छा |

पुरुषार्थ की गुह्य गति क्या है? अथवा श्रेष्ठ पुरुषार्थ कौन सा है? हर संकल्प, श्वांस में स्वतः बाप की याद हो | इसको कहा जाता है स्मृति स्वरूप | जैसे भक्ति में भी कहते हैं – अनहद शब्द सुनाई दे, अजपाजाप चलता रहे, ऐसा पुरुषार्थ निरन्तर हो – इसको कहा जाता है श्रेष्ठ पुरुषार्थ | याद करना नहीं पड़े, याद आता ही रहे | महारथियों का पुरुषार्थ यह है | महारथी अर्थात् स्वतः याद | महारथी का हर संकल्प महान होगा | जितना-जितना आगे बढ़ते जायेंगे, साधारणता ख़त्म होती जायेगी, महानता आती जायेगी | यह है बढ़ने की निशानी | अच्छा | 

वरदान:-    तीनों कालों, तीनों लोकों की नॉलेज को धारण कर बुद्धिवान बनने वाले विघ्न-विनाशक भव

जो तीनों कालों और तीनों लोकों के नॉलेजफुल हैं उन्हें ही बुद्धिवान अर्थात् गणेश कहा जाता है | गणेश अर्थात् विघ्न-विनाशक | वह किसी भी परिस्थिति में विघ्न रूप नहीं बन सकते | यदि कोई विघ्न रूप बनें भी तो आप विघ्न-विनाशक बन जाओ, इससे विघ्न ख़त्म हो जायेंगे | विघ्न-विनाशक आत्मायें वातावरण, वायुमण्डल को भी परिवर्तन कर देती हैं, उसका वर्णन नहीं करती |

स्लोगन:-  अपने चलन और चेहरे से सत्यता की सभ्यता का अनुभव कराना ही श्रेष्ठता है |       

ओम् शान्ति |