15-11-13        प्रातःमुरली      ओम् शान्ति      “बापदादा”     मधुबन 


मीठे बच्चे तुम्हें बाप समान मुरलीधर ज़रूर बनना है, मुरलीधर बच्चे ही बाप के मददगार हैं, बाप उन पर ही राज़ी होता है

 

प्रशन:-  किन बच्चों की बुद्धि बहुत-बहुत निर्माण हो जाती है?

 

उत्तर:- जो अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान कर सच्चे फ्लैन्थ्रोफिस्ट बनते हैं, होशियार सेल्समैन बन जाते हैं उनकी बुद्धि बहुत-बहुत निर्माण हो जाती है | सर्विस करते-करते बुद्धि रिफाइन हो जाती है | दान करने में कभी भी अभिमान नहीं आना चाहिए | हमेशा बुद्धि में रहे कि शिवबाबा का दिया हुआ दे रहे हैं | शिवबाबा की याद रहने से कल्याण हो जायेगा |

 

 गीत:-   तुम्हीं हो माता....  

ओम् शान्ति | 

सिर्फ़ मात-पिता वाला गीत सुनाने से नाम सिद्ध नहीं होता है | पहले शिवाए नमः का गीत सुनाकर फिर मात-पिता वाला सुनाने से नॉलेज का पता पड़ता है | मनुष्य तो मन्दिरों में जाते हैं, लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जायेंगे, कृष्ण के मन्दिर में जायेंगे, सबके आगे तुम मात-पिता........कह देते हैं, बिगर अर्थ | पहले शिवाए नमः वाला गीत सुनाए फिर मात-पिता वाला सुनाने से महिमा का पता पड़ता है | नया कोई भी आये तो यह गीत अच्छे हैं | समझाने में सहज होता है | बाप का नाम ही है शिव, ऐसे तो नहीं कहेंगे शिव सर्वव्यापी है | फिर तो सबकी महिमा एक हो जाए | उनका नाम ही है शिव | दूसरा कोई अपने पर शिवाए नमः नाम रखा न सके | उनकी मत और गत सब मनुष्य मात्र से न्यारी है | देवताओं से भी न्यारी है | यह नॉलेज सिखलाने वाला मात-पिता ही है | सन्यासियों में तो माता है नहीं इसलिए वह राजयोग सिखला न सकें | शिवाए नमः तो कोई को भी कह नहीं सकते | देहधारी को शिवाए नमः थोड़ेही कहेंगे | यह समझाने का है | परन्तु तुम बच्चों में भी नम्बरवार हैं | कहाँ अच्छे-अच्छे बच्चे भी प्वाइन्ट्स मिस कर देते हैं | मियां मिट्ठू तो अपने को बहुत समझते हैं | इसमें दिल की सफाई चाहिए | हर बात में सच बोलना, सच होकर रहना है – टाइम लगता है | देह-अभिमान में आने से फिर फैमिलियरटी आदि सब बातें आ जाती हैं | अभी ऐसे कोई कह नहीं सकता कि हम देही-अभिमानी हैं, फिर तो कर्मातीत अवस्था हो जाए | नम्बरवार हैं | कोई तो बहुत कपूत बच्चे हैं | मालूम पड़ जाता हैं, कौन बाबा की सर्विस करते हैं | जब शिवबाबा की दिल पर चढ़ें तब रूद्र माला के नज़दीक हों और तख़्त के लायक बनें | लौकिक बाप की दिल पर भी सपूत बच्चे ही चढ़ते हैं, जो बाप के साथ मददगार बन जाते हैं | यह भी बेहद के बाप का अविनाशी ज्ञान रत्नों का धन्धा है | तो धन्धे में मदद देने वाले पर बाप भी राज़ी रहेगा | अविनाशी ज्ञान रत्न धारण करने और धारण कराने हैं | कोई समझते हैं हमने इन्श्योर किया है | उसका तो तुमको मिल जायेगा | यहाँ तो बहुतों को दान करना है, बाप मुआफ़िक अविनाशी ज्ञान रत्नों का फ्लैन्थ्रोफिस्ट बनना है | बाप आते ही हैं ज्ञान रत्नों से झोली भरने, धन की बात नहीं | बाप को सपूत बच्चे ही पसन्द होते हैं | व्यापार करना नहीं जानते तो वह मुरलीधर, सौदागर का बच्चे कहला कैसे सकते? लज्जा आनी चाहिए, मैं धन्धा तो करता नहीं हूँ | सेल्समैन जब होशियार देखा जाता है तो फिर उनको भागीदार बनाया जाता है | ऐसे ही थोड़ेही भागीदारी मिल जाती है | इस धन्धे में लग जाने से फिर बहुत निर्माण बुद्धि हो जाती है | सर्विस करते-करते बुद्धि रिफाइन होती है | बाबा-मम्मा अपना अनुभव सुनाते हैं | बाबा है सिखलाने वाला, यह तो जानते हो यह बाबा अच्छी धारणा कर अच्छी मुरली सुनाते हैं | अच्छा, समझो इसमें शिवबाबा है, वह तो है ही मुरलीधर परन्तु यह बाबा भी तो जानता है ना | नहीं तो इतना पद कैसे पाते? बाबा ने समझाया है कि हमेशा समझो शिवबाबा सुनाते हैं | शिवबाबा की याद रहने से तुम्हारा भी कल्याण हो जायेगा | इनमें तो शिवबाबा आते हैं | वह मम्मा अलग बोलती है, मम्मा की हैसियत में | उनका नाम बाला करना है क्योंकि फ़ीमेल को लिफ्ट दी जाती है | कहते हैं ना जैसी है, वैसी है, मेरी है, सम्भालना ही है | पुरुष लोग ही ऐसे कहते हैं | स्त्री ऐसे नहीं कहती, जैसे हैं, वैसे हैं....... | बाप भी कहते बच्चे जैसे हो, वैसे हो, सम्भालना ही है | नाम भी बाला बाप का ही होता है | यहाँ बाप का नाम तो बाला है ही | फिर शक्तियों का नाम बाला होता है | उन्हों को सर्विस का अच्छा चांस मिलता है | दिन-प्रतिदिन सर्विस बहुत सहज हो जानी है | ज्ञान और भक्ति, दिन और रात, सतयुग-त्रेता दिन, वहाँ है सुख, द्वापर-कलियुग है रात, दुःख | सतयुग में भक्ति होती नहीं | कितना सहज है | परन्तु तक़दीर में नहीं है तो धारणा नहीं कर सकते | प्वाइन्ट्स तो बहुत सहज मिलती हैं | मित्र-सम्बन्धियों के पास जाकरके समझाओ, अपने घर को उठाओ | तुम तो गृहस्थ व्यवहार में रहने वाले हो, तो बहुत सहज रीति से कोई को भी समझा सकते हो | सद्गति दाता तो एक ही पारलौकिक बाप है | वही शिक्षक भी है, सद्गुरू भी है | बाकी सब बरोबर दुर्गति करते आये हैं, द्वापर से लेकर | भ्रष्टाचारी, पाप आत्मायें कलियुग में हैं | सतयुग में पाप आत्मा का नाम नहीं, यहाँ ही अजामिल, गणिकायें, अहिल्यायें, पाप आत्मायें हैं | आधाकल्प स्वर्ग कहा जाता है | फिर भक्ति शुरू होती है तो गिरना शुरू हो जाता है | गिरना भी है ज़रूर | सूर्यवंशी गिरकर चन्द्रवंशी बनते हैं | फिर गिरते ही आयेंगे | द्वापर से सब गिराने वाले ही मिलते आये हैं | यह भी तुम अभी जानते हो | दिन-प्रतिदिन तुम्हारे में ताकत आती जायेगी साधुओं आदि को समझाने के लिए भी युक्तियाँ निकालते रहते हैं | आखरीन समझेंगे ज़रूर कि बरोबर परमपिता परमात्मा सर्वव्यापी कैसे हो सकता है? समझाने लिए प्वाइन्ट्स बहुत हैं | भक्ति पहले अव्यभिचारी फिर व्यभिचारी बनती है | कलायें कम होती हैं | अभी कोई कला नहीं रही है | झाड़ व गोले में भी दिखाया है कि कलायें भी कम होती हैं? मोस्ट इज़ी है समझाना, परन्तु तक़दीर में नहीं है तो समझा नहीं सकते | देही-अभिमानी बनते नहीं हैं | पुरानी देह में अटके रहते हैं | बाप कहते हैं – इस पुरानी देह से ममत्व तोड़ अपने को आत्मा समझो | देही-अभिमानी नहीं बनेंगे तो पद भी ऊँच पा नहीं सकेंगे | स्टूडेन्ट ऐसे थोड़ेही चाहेंगे कि लास्ट में बैठे रहें | मित्र-सम्बन्धी, टीचर, स्टूडेन्ट आदि सब समझ जायेंगे, इनका पढ़ाई में ध्यान नहीं है | यहाँ भी समझते हैं श्रीमत पर नहीं चलते हैं तो फिर यही हाल होगा | कौन प्रजा बनेंगे, कौन दास दासी, सब समझ जाते हैं | बाप समझाते हैं अपने मित्र-सम्बन्धियों का कल्याण करो | यह कायदा होता है | घर में बड़ा भाई होता है तो छोटे भाई को मदद देना उनका फ़र्ज़ है – इसको कहा जाता है चैरिटी बिगन्स एट होम | बाप कहते हैं धन दिए धन ना खुटे.......धन देंगे नहीं तो मिलेगा भी नहीं, पद पा नहीं सकेंगे | चांस बहुत अच्छा मिलता है | रहमदिल बनना है | तुम सन्यासियों, साधुओं पर भी रहमदिल बनते हो | कहते हो आकर समझो | तुम अपने पारलौकिक बाप को नहीं जानते हो, जो बाप भारत को हर कल्प सदा सुख का वर्सा देते हैं | कोई भी जानते नहीं | कहते हैं ऑफिसर्स भी भ्रष्टाचारी हैं, तो फिर श्रेष्ठाचारी कौन बनायेंगे?

आजकल तो साधू समाज का बड़ा मान है | तुम लिखते हो – बाप इन सब पर भी रहम करते हैं, तो वह वन्डर खायेंगे | आगे चल तुम्हारा नाम बाला होगा | तुम्हारे पास बहुत आते रहेंगे | प्रदर्शनी भी होती रहेगी | आखरीन कोई जागेंगे ज़रूर | सन्यासी लोग भी जागेंगे | जायेंगे कहाँ, एक ही हट्टी है | बड़ी इम्प्रूवमेंट होती रहेगी | अच्छे-अच्छे चित्र निकलेंगे समझाने के लिए, जो कोई भी आकर पढ़े | जब भंभोर को आग लगेगी तब मनुष्य जागेंगे, परन्तु टू लेट | बच्चों के लिए भी ऐसा है | पिछाड़ी में कितना दौड़ सकेंगे | रेस में भी कोई पहले आहिस्ते-आहिस्ते दौड़ते हैं | विन की प्राइज़ थोड़ों को ही मिलती है | यह तुम्हारी भी घुड़दौड़ है | रूहानी यात्रा की दौड़ी पहनाने के लिए भी ज्ञानी तू आत्मा चाहिए | बाप को याद करो, यह भी ज्ञान है ना | यह ज्ञान और किसको नहीं है | ज्ञान से मनुष्य हीरे जैसे बनते हैं | अज्ञान से कौड़ी जैसे बनते हैं | बाप आकर सतोप्रधान प्रालब्ध बनाते हैं | फिर वह थोड़ी-थोड़ी होकर कमती होती जाती है | यह सब प्वाइन्ट्स धारण कर एक्ट में आना है | तुम बच्चों को महादानी बनना है | भारत को महादानी कहते हैं क्योंकि यहाँ ही तुम बाप के आगे तन-मन-धन सब अर्पण करते हो | तो बाप भी फिर सब कुछ अर्पण कर देते हैं | भारत में बहुत ही महादानी है | बाकी मनुष्य सब अन्धश्रद्धा में फँसे हुए रहते हैं | यहाँ तो तुम ईश्वर के शरणागति में आये हो | रावण से दुःखी हो आकर राम की एशलम ली है | तुम सब शोक वाटिका में थे | अब फिर अशोक वाटिका में अर्थात् स्वर्ग में चलना है | स्वर्ग स्थापन करने वाले बाप की शरणागति ली है | कोई तो छोटेपन में ही जबरदस्ती आ गये हैं | तो उन्हों को यहाँ शरणागति में सुख नहीं आता | तक़दीर में नहीं है, उन्हों को माया रावण की शरण चाहिए | ईश्वर की शरणागति से निकल कर माया की शरण में जाना चाहते हैं | आश्चर्य की बात है ना |

यह शिवाए नमः वाला गीत अच्छा है | तुम बजा सकते हो | मनुष्य तो इसका अर्थ समझ न सकें | तुम कहेंगे हम श्रीमत पर यथार्थ अर्थ समझा सकते हैं | वह तो गुड़ियों का खेल करते हैं | ड्रामा अनुसार इन गीतों की भी मदद मिलती है | बाप का बनकर और सर्विसएबुल न बना तो दिल पर कैसे चढ़ सकते हैं | कई बच्चे कपूत बन पड़ते हैं तो कितना न दुःख देते हैं | यहाँ तो अम्मा मरे तो हलुआ खाओ, बीबी मरे तो भी हलुआ खाओ, रोयेंगे पीटेंगे नहीं | ड्रामा पर मज़बूत रहना चाहिए | मम्मा-बाबा भी जायेंगे, अनन्य बच्चे भी एडवान्स में जायेंगे | पार्ट तो बजाना ही है | इसमें फ़िक्र की क्या बात है? साक्षी होकर हम खेल देखते हैं | अवस्था सदैव हर्षित रहनी चाहिए | बाबा को भी ख्यालात आते हैं, लॉ कहता है आयेंगे ज़रूर | ऐसे नहीं कि मम्मा-बाबा कोई परिपूर्ण हो गये हैं | परिपूर्ण अवस्था अन्त में होगी | इस समय कोई भी अपने को परिपूर्ण कह न सके | यह नुकसान हुआ, कोई खिटपिट हुई, अख़बार में बी.के. के लिए हाहाकार हुआ, यह सब भी कल्प पहले हुआ था | फ़िक्र की क्या बात, 100 परसेन्ट अवस्था अन्त में होनी है | बाप की दिल पर तब चढ़ेंगे जब रहमदिल बनेंगे, आपसमान बनायेंगे | इन्श्योर किया वह बात अलग है | वह तो अपने लिए ही करते हैं | यह तो ज्ञान रत्नों का दान औरों को देना है | बाप को पूरा याद नहीं करेंगे तो विकर्मों का बोझा जो सिर पर है, वह खुल पड़ेगा | प्रदर्शनी में भी समझाने वाले लायक चाहिए | होशियार बनना चाहिए | मज़ा आता है रात को याद करने में | इस रूहानी साजन को फिर प्रभात में याद करना है | बाबा आप कितने मीठे हो, क्या से क्या बना रहे हो | अच्छा !

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1.    दिल से सदा सच्चा रहना है | सच बोलना है, सच होकर चलना है | देह-अभिमान के वश स्वयं को मियां
       मिट्ठू नहीं समझना है | अहंकार में नहीं आना है |

2.    साक्षी होकर खेल देखना है | ड्रामा पर मज़बूत रहना है | किसी भी बात का फ़िक्र नहीं करना है |
       अवस्था सदा हर्षित रखनी है

वरदान:-   तपस्या और सेवा द्वारा भविष्य राज्य-भाग्य का सिंहासन लेने वाले सिंहासनधारी भव

जो बच्चे यहाँ सेवा की सीट पर नज़दीक हैं वह भविष्य में राज्य सिंहासन के भी नज़दीक हैं | जितना यहाँ सेवा के सहयोगी उतना वहाँ राज्य के सदा साथी | यहाँ तपस्या और सेवा का आसन और वहाँ राज्य भाग्य का सिंहासन | जैसे यहाँ हर कर्म में बापदादा की याद में साथी हैं वैसे वहाँ बचपन से लेकर राज्य करने के हर कर्म में साथी हैं | जो सदा समीप, सदा साथी, सदा सहयोगी, सदा तपस्या और सेवा के आसन पर रहते हैं वही भविष्य में सिंहासनधारी बनते हैं |

स्लोगन:-  रुहे गुलाब वह है जो अपनी रूहानी वृत्ति से वायुमण्डल में रूहानियत की खुशबू फैलाता रहे | 
                 

ओम् शान्ति |