20-12-13       प्रातः मुरली       ओम् शान्ति   “बापदादा”     मधुबन


मीठे बच्चे एक बाप के साथ सच्ची मुहब्बत हो तो बाप तुम्हें अपने साथ घर ले जायेंगे, सब पापों से मुक्त कर देंगे, स्वर्ग का मालिक बना देंगे |     

प्रश्न:-
अपने आपको ख़ुशी में रखने के लिए कौन सी मुख्य धारणा चाहिए?

उत्तर:-
ख़ुशी में तभी रह सकते जब अपने आपसे रूह-रिहान करना आता हो | किसी भी चीज़ में आसक्ति न हो | दो रोटी पेट को मिले, बस-ऐसी अनासक्त वृत्ति की धारणा हो तब हर्षित रहेंगे | ज्ञान का मनन कर स्वयं को हर्षित रखो | तुम कर्मयोगी हो, कर्म करते, घर का काम करते, खाना आदि खाते भी बाप को याद करो | स्वदर्शन चक्र बुद्धि में घूमता रहे, तो बहुत ख़ुशी रहेगी |

गीत:-
न वह हमसे जुदा होंगे....
 

ओम् शान्ति |
मीठे-मीठे बच्चों ने गीत सुना | यह है बच्चों की वा आत्माओं की अपने परमपिता परमात्मा के साथ रूहानी मुहब्बत | यह रूहानी मुहब्बत सिर्फ़ तुम ब्राह्मण बच्चों की ही होती है | तुम अपने को आत्मा निश्चय करते हो | परन्तु जब कहते हैं कि आत्मा सो परमात्मा, तो आत्मा किसके साथ मुहब्बत रखे | मुहब्बत होती है बच्चों की बाप के साथ | बाप, बाप की मुहब्बत नहीं होती है | अभी तुम समझते हो हम आत्मायें अपने परमपिता परमात्मा के साथ मुहब्बत जोड़ रही हैं | यह मुहब्बत ही तुमको साथ ले जाती है | तुम रूहानी मुहब्बत बाप के साथ रखते हो तो तकलीफ़ भी सहन करनी पड़ती है | सारी दुनिया, घर के भाती आदि सब दुश्मन बन जाते हैं |

बच्चों को समझाया है कि पतित-पावनी गंगा नहीं है | मनुष्य पावन होने के ख्याल से गंगा वा जमुना के तट पर हरिद्वार, काशी में जाकर बैठते हैं | मुख्य स्थान यह दो हैं | कहते हैं – हे पतित-पावनी गंगा | अब वह गंगा तो सुनती ही नहीं | सुनने वाला एक पतित-पावन बाप ही है | अभी तुम उस बाप के सम्मुख बैठे हो | बाप बतला रहे हैं तुम पावन कैसे बनोगे? पानी की गंगा थोड़ेही कहती है – मामेकम् याद करने से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे | बाप कहते हैं – मैं प्रतिज्ञा करता हूँ अगर तुम मुझ बाप को याद करेंगे तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे | गैरन्टी देते हैं, गंगा तो गैरन्टी दे न सके | जैसे मनुष्य रावण को वर्ष-वर्ष जलाते आये हैं परन्तु रावण मरता ही नहीं है, वैसे गंगा में स्नान भी जन्म-जन्मान्तर करते आये हैं परन्तु पतित से पावन कोई बनते ही नहीं | फिर-फिर स्नान करने जाते रहते हैं | एक बार पावन बनें तो फिर क्यों जाते हैं स्नान करने? कितने मेले लगते हैं | उनको कोई आत्मा-परमात्मा का संगम नहीं कहेंगे | भक्ति मार्ग में भीड़ लगती है मेले पर | अभी तुम बाप के साथ बुद्धियोग लगाते हो | तुम जानते हो हम आत्मायें आशिक बनी है | आत्मा ही भगवान् को याद करती है शरीर द्वारा | बाप कहते हैं मैं भी इस शरीर द्वारा तुमको पढ़ा रहा हूँ इसलिए हमेशा बाबा को याद करते रहो | बाबा कहने से स्वर्ग ज़रूर याद आयेगा और अपना मुक्तिधाम घर भी याद आयेगा | मुक्ति को निर्वाणधाम भी कहते हैं |

यह है साकारी दुनिया | जब तक आत्मायें यहाँ न आयें तो साकारी दुनिया कैसे बढे? आत्मायें निराकारी दुनिया से आती हैं | मनुष्य सृष्टि बढती जाती है | कोई समझते हैं नैचुरल बढ़ती रहती है | तुम जानते हो आत्मायें यहाँ आती हैं, वृद्धि को पाती रहती हैं | बच्चों को मालूम हुआ है कि स्वीट शान्तिधाम है | शान्ति को बहुत लोग पसन्द करते हैं | तुम जानते हो शान्तिधाम तो हमारा स्वीट गॉड फादरली होम है | भारतवासी विलायत से लौटते हैं तो कहते हैं हम अपने स्वीट होम भारत में जाते हैं | जहाँ जन्म लेते हैं वह देश प्यारा लगता है | कहते हैं हमको स्वीट होम (भारत में) ले चलो | अच्छा, समझो मर जाते हैं, आत्मा तो चली गई | फिर शरीर को यहाँ ले आकर ख़त्म करते हैं | समझते हैं भारत की मिट्टी भारत में ही जाये | नेहरु मरा तो उनकी राख देखो कहाँ-कहाँ ले गये! खेतों में गिराई | समझते हैं खेती अच्छी होगी | परन्तु हर चीज़ को वह कितना भी मान दें, पुरानी तो ज़रूर होनी है | कितनी तकलीफ़ सहन कर रहे हैं! बाप का पता नहीं है | तुम बाप को जानकर बाप से वर्सा ले रहे हो | तो दिल होती है मित्र सम्बन्धियों आदि को भी स्वर्गवासी बनायें | किसको तुम कहो स्वर्गवासी बनो तो कहेंगे तुम मारने चाहते हो क्या! तुम बच्चे जानते हो – श्रीमत पर हम श्रेष्ठ स्वर्गवासी बन रहे हैं | देही-अभिमानी बनने में बड़ी मेहनत लगती है | घड़ी-घड़ी देह-अभिमान में आकर बाप को भूल जाते हो | अभी तुम सम्मुख बैठे हो, जानते हो हम अपने परमपिता परमात्मा पास आये हैं | बाबा कहते हैं – आगे कभी मिले थे? तो झट कहते हैं – हाँ, बाबा 5 हज़ार वर्ष पहले | यह तुम्हारा गुप्त अक्षर है | और कोई कॉपी कर न सके | भल कृष्ण का वेष धारण कर लेते हैं, कहते हैं हम आये हैं स्वर्ग की स्थापना करने | परन्तु यह बात कि 5 हज़ार वर्ष पहले भी स्वर्ग स्थापन किया था – यह कह न सकें | तुम ही कहते हो – बाबा, 5 हज़ार वर्ष पहले हम आपसे वर्सा लेने आये थे | आपने राजयोग सिखाया था | यह आत्मा कहती है इस शरीर द्वारा | अपने को आत्मा निश्चय कर और बाप को याद करना है | इसमें सर्वव्यापी की तो बात ही नहीं | यह भी नहीं समझते हैं कि ब्रह्मा ज़रूर साकार में होना चाहिए, जिस द्वारा परमपिता परमात्मा सृष्टि रचते हैं |

पतित-पावन बाप आकर सो देवी-देवता पावन बनाते हैं | बाप ही स्वर्ग का रचयिता है | तो ज़रूर स्वर्ग में मनुष्य चाहिए | बाबा आकर तुम्हें स्वर्ग का द्वार बताते हैं | तुम कोशिश करते हो हम नर्कवासी को स्वर्गवासी बनायें | कोई बड़े आदमी को सीधा कहो तुम पतित नर्कवासी हो तो कितना बिगड़ पड़ेंगे | अभी तुम जानते हो हम नर्क से निकल स्वर्ग में जा रहे हैं | अभी हम संगमवासी हैं | हम आत्मायें अब जा रही हैं – इस शरीर को छोड़ बाबा के साथ, बाबा के घर | यह है तुम्हारी रूहानी यात्रा | बाबा की याद में रहना है | समझते हो यह शरीर जहाँ तक रहेगा वहाँ तक यात्रा चालू है | कर्म भी तो करना है | भल खाओ, पियो, खाना पकाओ | जितना समय मिले बाप को ज़रूर याद करना है | दफ़्तर में बैठते हो, देखो फ़ुर्सत है तो बाबा की याद में बैठ जाओ | बहुत कमाई है | ट्रेन में सफ़र करते हो, उस समय तो कोई काम नहीं रहता है | बैठे हुए बाबा को याद करते रहो | अभी हम बाबा के पास जाते हैं | बाबा परमधाम से हमको लेने लिए आया है | अच्छा, शाम को घर का खाना आदि पकाते हो तो भी एक-दो को याद दिलाओ – आओ, हम अपने बाप की याद में बैठें | प्वाइंट भी एक-दो को सुनाओ | हम स्वदर्शन चक्रधारी हैं | बाबा कहते हैं – तुम लाइट हाउस भी हो, रास्ता बतलाते हो | उठते, बैठते, चलते तुम लाइट हाउस हो | एक आँख में मुक्ति, एक आँख में जीवनमुक्ति | स्वर्ग यहाँ था | अभी नहीं है | अब तो नर्क है | बाबा फिर से स्वर्ग स्थापन कर रहे हैं | बाप कहते हैं हम तुमको बहुत गुल-गुल बनाते हैं | फिर तुम जाकर महारानी, पटरानी बनेंगे | खद्दर की रानी नहीं बनना | तुम्हें 16 कला सम्पन्न बनना है, न कि 14 कला | श्रीकृष्ण 16 कला था | तुम बच्चियाँ कितने व्रत-नेम आदि रखती थी! 7 रोज़ निर्जल रहती थी, कितनी मेहनत करती थी! परन्तु कृष्णपुरी में जा न सकें | अभी तुम कृष्णपुरी स्वर्ग में प्रैक्टिकल में जाने लिए पुरुषार्थ कर रहे हो | कृष्ण को द्वापर में ले जाने से स्वर्ग का किसको पता नहीं पड़ता है | वास्तव में 7 रोज़ का अर्थ क्या है, सो तुम अभी जानते हो | सिवाए बाप के और कोई को याद नहीं करना है | बाकी निर्जल आदि की कोई बात नहीं | बाबा को याद करने से तुम बाबा के पास चले जायेंगे | बाप फिर स्वर्ग में भेज देंगे | व्रत-नेम रख तुम कितने दिन भूखे मरते हो! जन्म बाई जन्म कितनी मेहनत करते हो! प्राप्ति कुछ भी नहीं हुई है | अभी तुमको उनसे छुड़ाए सद्गति मार्ग में ले जाते हैं | तुम कहते हो – बाबा, कल्प पहले भी आपसे मिले थे स्वर्ग का वर्सा लेने | बाप कहते हैं कदम-कदम पर राय लेते रहो | सब हिसाब-किताब पूछो | बाबा राय देते रहेंगे | भल तुम अपना धन्धाधोरी आदि करते रहो | फिर भी बाबा राय देते रहेंगे | देखेंगे – यह बहुत धन्धे में घुस पड़े हैं तो राय देंगे | क्यों इतना माथा मारते हो? कितना समय तुम जियेंगे | पेट तो एक-दो रोटी मांगता है | उनसे गरीब भी चलते तो साहूकार भी चलते हैं | साहूकार लोग अच्छी रीति खाते हैं फिर रोगी भी बनते हैं | भील लोग देखो कितने मज़बूत रहते हैं! और खाते क्या हैं! कितना काम करते हैं! अपनी कुटिया में वह खुश रहते हैं | तो इस समय तुम्हें और सब आशायें छोड़ देनी चाहिए | दो रोटी मिली, पेट भरा, बस, बाप को याद करना है | तुम हो रूहानी बच्चे, परमपिता परमात्मा माशूक के आशिक बने हो | जितना बाबा को याद करेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे और जिसको याद करते हो उनसे जा मिलेंगे | कई चाहते हैं साक्षात्कार हो, यह हो | बाबा कहते हैं घर बैठे भी तुमको हो सकता है | शिवबाबा को याद करने से तुमको वैकुण्ठ का साक्षात्कार होगा, कृष्णपुरी देखेंगे | यहाँ तो बाबा तुमको वैकुण्ठ का मालिक बना देते हैं | सिर्फ़ साक्षात्कार की बात नहीं | मेरे को याद करो क्योंकि मैं आया हूँ तुमको ले जाने | शिवबाबा को याद करना है | वही कृष्णपुरी का मालिक बनाने वाला है | कृष्ण तो नहीं बनायेंगे | शिवबाबा को याद करने से तुमको वैकुण्ठ की बादशाही मिलती है | अब वह परमधाम से आया हुआ है | ज़रूर आये हैं तब तो मन्दिर यादगार बना है ना | शिव का मन्दिर है | शिवजयन्ती भी मनाते हैं ना | परन्तु वह भारत में कैसे आते हैं – यह किसको पता नहीं है | कृष्ण के तन में तो नहीं आते | कृष्ण होता ही है सतयुग में | शिव का बड़ा भारी मन्दिर है | कृष्ण का इतना बड़ा नहीं है | सोमनाथ का मन्दिर कितना बड़ा है! कृष्ण के मन्दिर में राधे-कृष्ण को बहुत गहने दिखाते हैं | शिव के मन्दिर में कभी गहने नहीं देखेंगे | अब वह शिवबाबा तो बड़े महलों में रहता नहीं | रहता है श्रीकृष्ण | बाबा कहते हैं मैं महलों में रहता ही नहीं हूँ | परन्तु भक्ति मार्ग में कितना बड़ा आलीशान हीरे-जवाहरों का मन्दिर बनाया है | जिनको शिवबाबा द्वारा स्वर्ग का वर्सा मिला है उन्होंने उनका मन्दिर इतना ऊँच बनाया है | यादगार के लिए कितना बड़ा मन्दिर बनाया है! तो वह खुद कितने न साहूकार होंगे! मन्दिर बहुत अच्छा बनाते हैं | बाम्बे में बाबुरीनाथ में शिव का मन्दिर है | लक्ष्मी-नारायण का माधव बाग़ में है | बाप कहते हैं हम तुमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं | तो भक्ति मार्ग में तुम कितना भारी मन्दिर बनाते हो और अभी देखो कैसे झोपड़ी में बैठा हूँ! तुम्हारा भी नाम बाला होना है | तुम जानते हो हमारा फिर मन्दिर बनेगा | हमारे बाप शिव के भी बहुत मन्दिर हैं, कमाल है | जिन्होंने सोमनाथ का मन्दिर बनाया था, वो कितने धनवान होंगे! अभी तो कितना गुप्त हूँ! कोई को पता नहीं | तुम जान गये हो फिर कैसे शिवबाबा का मन्दिर बनाना पड़ेगा | भक्ति मार्ग में आयेंगे | मम्मा-बाबा जो पहले नम्बर में पूज्य बनते हैं, वैकुण्ठ के मालिक बनते हैं, फिर पहले-पहले पुजारी बन मन्दिर भी उनको ही बनाना है | तो दिल में कहेंगे ना – हम ही पुजारी बन मन्दिर बनायेंगे | ऐसी-ऐसी बातों में रमण करने से फिर यह पुरानी दुनिया भूल जायेगी | आपस में भी ऐसी-ऐसी बातें करनी चाहिए तो तुमको ख़ुशी बहुत रहेगी | अपने से रूहरिहान करो |

सुप्रीम रूह बैठ तुम्हारी रूह को रिझाते हैं | इस ज्ञान से हर्षित बनाते हैं | तुम कहते हो हम कल्प बाद फिर से आये हैं | अनेक बार बाप से मिले हैं | वर्सा पाया है | ऐसे-ऐसे आपस में बातें करनी चाहिए | फिर तुम कर्मयोगी भी हो | भल घर में खाना आदि पकाओ, ख़ुशी रहेगी | तुम 84 जन्मों की हिस्ट्री-जॉग्राफी को जानते हो | हम अभी ब्राह्मण बने हैं फिर देवता बन राज्य करेंगे | पुजारी से पूज्य बनेंगे | फिर महल आदि बनायेंगे | अपनी ही हिस्ट्री-जॉग्राफी सुनाते रहो | हमारी हिस्ट्री-जॉग्राफी चक्र कैसे लगाती है – इसको ही स्वदर्शन चक्रधारी कहा जाता है | तुम तीनों लोकों को जानने वाले हो | ज्ञान का नेत्र तुम्हारा खुला है | यह चक्र याद करने से तुमको बड़ी ख़ुशी रहनी चाहिए | बाप को भी ख़ुशी रहती है | अभी तुम सेवा में उपस्थित हो | तुम सेवाधारियों के मन्दिर फिर बाद में भक्ति मार्ग में बनेंगे | अभी मैं तुम बच्चों की सर्विस में आया हूँ | तुमको स्वर्ग का पूरा वर्सा देने आया हूँ | जितना जो पुरुषार्थ करेंगे, उस अनुसार स्वर्ग के मालिक बनेंगे |

अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1.   
चलते-फिरते लाइट हाउस बन सभी को रास्ता बताना है | सब आशायें छोड़ एक बाप की याद में रहना है | बाप से राय लेते रहना है |
2.   
ज्ञान की बातों में ही रमण करना है | अपने आपसे बातें करनी हैं | स्वदर्शन चक्र फ़िराते सदा हर्षित रहना है |

वरदान:-  
मैं-पन के दरवाज़े को बन्द कर माया को विदाई देने वाले निमित्त और निर्माण भव  
 
सेवाधारी अगर सेवा करते कभी यह संकल्प भी उठाते हैं कि मैंने किया, तो यह मैं-पन आना माना सारे किये हुए पर पानी डाल देना | सेवाधारी अर्थात् करावनहार बाप कभी नहीं भूले, वह करा रहे हैं, हम निमित्त बन कर रहे हैं | जहाँ निमित्त भाव है वहाँ निर्माण भाव स्वतः होगा | निमित्त हूँ, निर्माण हूँ तो माया आ नहीं सकती | मैं-पन के दरवाज़े को बन्द कर दो तो माया विदाई ले लेगी |

स्लोगन:- 
जो होलीहंस हैं उनकी विशेषता स्वच्छता है, स्वच्छ बन सबको स्वच्छ बनाना ही उनकी सेवा है |  

ओम् शान्ति |