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07-11-13        प्रातःमुरली      ओम् शान्ति      “बापदादा”     मधुबन    Podcast      Pdf 


मीठे बच्चे तुम ब्रह्मा की सन्तान आपस में भाई-बहन हो, तुम्हारी वृत्ति बहुत शुद्ध पवित्र होनी चाहिए

 

प्रशन:-  किन बच्चों के समझाने का प्रभाव बहुत अच्छा पद सकता है?

 

उत्तर:-  जो गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र रहते हैं | ऐसे अनुभवी बच्चे किसी को भी समझायें तो उनके समझाने का बहुत अच्छा प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि शादी करके भी अपवित्र वृत्ति न जाये – यह बहुत बड़ी मंज़िल है | इसमें बच्चों को बहुत-बहुत ख़बरदार भी रहना है |

 

 

 गीत:-  हमारे तीर्थ न्यारे हैं.....  

ओम् शान्ति | 

बाप बैठ बच्चों को समझाने हैं क्योंकि बच्चे ही बाप को जानते हैं | बच्चे तो सब बच्चे ही हैं, सब बच्चे ब्रह्मकुमार-कुमारियां हैं, वह जानते हैं ब्रह्मकुमार-कुमारियां हे बहन-भाई | सब एक बाप के बच्चे हैं तो रियल्टी में समझाना है कि हम आत्मायें भाई-बहन हैं | सब ब्रदर्स हैं | यहाँ तो तुम जानते हो हम एक ही ग्रैन्ड फादर और फादर के बच्चे है | शिवबाबा के पोत्रे, ब्रह्मा के बच्चे हैं | समझो इनकी लौकिक स्त्री है, उसने भी कहा हम ब्रह्माकुमारी हैं तो उसका भी नाता वह हो जाता | जैसे लौकिक बहन-भाई हों, उसमें कोई गन्दी दृष्टि नहीं जाती है, आजकल तो सब गन्दे बन पड़ते हैं क्योंकि दुनिया ही डर्टी है | तुम बच्चे अभी समझते हो हम ब्रह्मकुमार-कुमारियां हैं | ब्रह्मा के एडाप्टेड चिल्ड्रेन बने हैं तो बहन-भाई हैं | समझाना पड़े, सन्यास भी दो प्रकार के हैं | सन्यास अर्थात् पवित्र रहना, 5 विकारों को छोड़ना | वह है हठयोग सन्यासी, उनकी डिपार्टमेंट ही अलग है | प्रवृत्ति मार्ग वालों का कनेक्शन ही छोड़ जाते हैं, उनका नाम ही है हठयोग कर्म सन्यासी | तुम बच्चों को समझाया जाता है गृहस्थ व्यवहार में रहते देह सहित देह के सब सम्बन्ध त्याग बाप को याद करतना है | वो तो घरबार छोड़ देते हैं | मामा, चाचा, काका कोई नहीं रहता | समझते हैं बाकी है एक, उनको ही याद करना है, वा ज्योति ज्योत समाना है | निर्वाणधाम जाना है | उनकी डिपार्टमेंट ही अलग है, परवाइस अलग है | वह तो कह देते स्त्री नर्क का द्वार है, आग कपूस इकट्ठे रह नहीं सकते | अलग होने से ही हम बच सकते हैं | ड्रामा अनुसार उनका धर्म ही अलग है | वह स्थापना शंकराचार्य की है, वह सिखलाते हैं हठयोग, कर्म सन्यास, न कि राजयोग | तुम जानते हो ड्रामा बना हुआ है सो भी नम्बरवार | 100 परसेन्ट सेन्सीबुल सबको तो नहीं कहेंगे | तो भी कहेंगे कोई 100 परसेन्ट सेन्सीबुल हैं, कोई 100 परसेन्ट नानसेन्सीबुल हैं | यह तो होगा | तुम जानते हो हम कहते हैं मम्मा-बाबा तो आपस में बहन-भाई हो गये | गन्दी वृत्ति होनी नहीं चाहिए, लॉ ऐसा कहते है | बहन-भाई की आपस में कभी शादी हो न सके | बहन-भाई का अगर घर में कुछ भी होता है, बाप देखते हैं इनकी चलन गन्दी है तो बड़ा फ़िक्र रहता है | यह कहाँ से पैदा हुए, कितना नुकसान करते हैं, बहुत उसको डांटते हैं | आगे इन बातों की परहेज रहती थी | अभी तो 100 परसेन्ट तमोप्रधान हैं, माया का प्रभाव बरोबर जोर है | परमपिता परमात्मा के बच्चों से तो माया की एकदम लड़ाई होती है | बाप कहते हैं – यह हमारे बच्चे हैं, हम इन्हों को स्वर्ग में ले जाता हूँ | माया कहती है – नहीं, यह हमारे बच्चे हैं, हम इनको नर्क में ले जाती हूँ | यहाँ तो धर्मराज बाप के हाथ में हैं | तो जो गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए पवित्र रहते हैं उन्हें औरों को बहुत अच्छी रीति समझाना है कि हम केएस इकट्ठे रहते हुए पवित्र रहते हैं | जो काम हठयोगी सन्यासी भी न कर सके सो बाप करा रहे हैं | सन्यासी कभी राजयोग सिखला न सकें | विवेकानन्द की किताब पर बाहर से नाम लिखा है राजयोग | परन्तु सन्यासी जो निवृत्ति मार्ग वाले हैं वह राजयोग सिखला न सकें तुम गृहस्थ व्यवहार में रहते और पवित्र रहते हो, वह समझायेंगे तो उसका तीर अच्छा लगेगा | बाबा ने अख़बार में देखा था, देहली में झाड़ों के बारे में कुछ कान्फ्रेन्स होती है | उसके ऊपर भी कैसे समझायें कि तुम इन जंगली झाड़ों आदि का तो ख्याल करते हो परन्तु इस जिनालॉजिकल ट्री का कभी ख्याल किया है कि इस मनुष्य सृष्टि की कैसे उत्पत्ति, पालना होती है |

बच्चों की इतनी विशालबुद्धि बनी नहीं है | इतना अटेन्शन नहीं है | कोई न कोई बीमारी लगी हुई है | लौकिक घर में भी बहन-भाई के कभी गन्दे ख्यालात नहीं होते | यहाँ तो तुम सब एक बाप के बच्चे हो बहन-भाई, ब्रह्माकुमार-कुमारियां | अगर गन्दे ख्यालात आयें तो उनको क्या कहेंगे? वह, जो नर्क में रहते हैं, उनसे भी हज़ार गुणा गन्दे गिने जायेंगे | बच्चों पर बहुत रेस्पान्सिबिलिटी है | जो गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए पवित्र रहते हैं, बड़ी मेहनत उनके लिए है | दुनिया इन बातों को नहीं जानती | बाप आते हैं पावन बनाने तो ज़रूर बच्चे प्रतिज्ञा करेंगे, राखी बांधी हुई है | इसमें बड़ी मेहनत है | शादी कर और पवित्र रहे, बड़ी भारी मंज़िल है | ज़रा भी बुद्धि नहीं जानी चाहिए | शादी हो जाती है तो विकारी हो जाते हैं | बाप आकर नंगन होने से बचाते हैं | द्रोपदी की भी शास्त्रों में बात है | इन बातों में कुछ रहस्य तो है ना | यह शास्त्र आदि सब ड्रामा में नूंध हैं – जो पास्ट होता आया है, वह ड्रामा में नूंध है, उसको रिपीट ज़रूर करना है | ज्ञान मार्ग और भक्ति मार्ग की भी नूंध है | तुम्हारी बुद्धि अब बहुत विशाल हो गई है | जैसे बेहद बाप की बुद्धि वैसे मुरब्बी बच्चों की, जो श्रीमत पर चलते हैं | ढेर बच्चे हैं | पता नहीं, अजुन कितने बच्चे होंगे | जब तक ब्राह्मण-ब्राह्मणी न बनें तब तक वर्सा प् नहीं सकते | अब तुम ब्रह्मावंशी ही फिर जाकर सूर्यवंशी अथवा विष्णुवंशी बनेंगे | अभी हो शिव वंशी | शिव है दादा (ग्रैन्ड फादर), ब्रह्मा है बाबा | प्रजापिता तो एक हुआ ना, सारी प्रजा का | जानते भी हैं जो मनुष्य सृष्टि का झाड है, उसका भी बीज होगा | इसमें पहला मनुष्य भी होगा, जिसको न्यु मैन कहते हैं | न्यु मैन कौन होगा? ब्रह्मा ही होगा | ब्रह्मा और सरस्वती – वह न्यु गिने जायेंगे | इसमें बड़ी बुद्धि चाहिए | सोल ही कहती है ओ गॉड फादर, ओ सुप्रीम गॉड फादर | आत्मा कहती हिया ना, तो वह सबका रचयिता है | ऊँच ते ऊँच वह हुआ | फिर आओ मनुष्य सृष्टि पर | उनमें ऊँच किसको रखें? प्रजापिता | यह तो कोई भी समझ सकते हैं कि मनुष्य सृष्टि का जो झाड है, उसमें ब्रह्मा हो गया मुख्य | शिव तो है आत्माओं का बाप, ब्रह्मा को रचता कहत सकते हैं मनुष्यों का | परन्तु किसकी मत पर करते हैं? बाप कहते हैं मैं ही ब्रह्मा को एडाप्ट करता हूँ | नया ब्रह्मा फिर कहाँ आयेगा? बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में मैं इसमें प्रवेश करता हूँ | इनका नाम प्रजापिता ब्रह्मा रखता हूँ | अभी तुम जानते हो हम बरोबर ब्रह्मा के बच्चे हैं | शिवबाबा से नॉलेज ले रहे हैं | हम बाप से पवित्रता, सुख, शान्ति, हेल्थ, वेल्थ लेने आये हैं | भारत में हम ही सदा सुखी थे | अभी नहीं हैं | फिर बाप वह वर्सा दे रहे हैं | बच्चे जानते हैं फर्स्ट है पवित्रता | राखी किसको बांधी जाती है? जो अपवित्र बनते हैं वह प्रतिज्ञा करते हैं हम पवित्र रहेंगे | बाप समझाते हैं यह मंज़िल बड़ी भारी है | पहले से ही जो युगल हैं उनको समझाना पड़े – हम कैसे भाई-बहन हो रहते हैं | हाँ, अवस्था जमाने में टाइम लगता है | बच्चे लिखते भी हैं माया के तूफ़ान बहुत आते हैं | तो गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र रहने वाले बच्चे भाषण करें तो अच्छा है क्योंकि यह है नई बात | यह है ही स्व-राजयोग | इसमें भी सन्यास है | गृहस्थ व्यवहार में रहते हम जीवन्मुक्ति अर्थात् सद्गति पायें | यह तो जीवनबन्ध है | तुम्हारा है स्वराज्य पद | स्व को राज्य चाहिए | अब उनको राज्य नहीं है | आत्मा कहती है हम राजा थे, हम रानी थे, अब हम विकारी कंगाल बने हैं, हमारे में कोई गुण नहीं है | यह आत्मा कहती हैं ना | तो अपने को आत्मा, परमपिता परमात्मा की सन्तान समझना है | हम आत्मा भाई-भाई हैं, आपस में बहुत लव होना चाहिए | हम सारी दुनिया को लवली बनाते हैं | रामराज्य में तो शेर बकरी भी इकट्ठे जल पीते थे, कभी लड़ाई नहीं करते थे तो तुम बच्चों में कितना लव होना चाहिए | यह अवस्था धीरे-धीरे आयेगी | लड़ते तो बहुत हैं ना | पार्लियामेंट में भी लड़ते हैं तो एक-दो को कुर्सी उठाकर मारने लग पड़ते हैं | वह तो है आसुरी सभा | तुम्हारी यह है ईश्वरीय सभा तो कितना नशा होना चाहिए | परन्तु यह स्कूल है | पढ़ाई में तो कोई तो ऊँच चले जाते हैं, कोई ढीले पड़ जाते हैं | यह स्कूल भी वन्डरफुल है, वहाँ तो स्कूल टीचर अलग-अलग होते हैं, यहाँ स्कूल टीचर एक, स्कूल एक है | आत्मा शरीर धारण कर टीच करती है | आत्म को सिखलाते हैं | हम आत्मा, शरीर द्वारा पढ़ते हैं | इतना आत्म-अभिमानी बनना है | हम आत्मायें हैं, वह परमात्मा है | यह बुद्धि में सारा दिन दौड़ाना है | देह-अभिमान से ही भूलें हो जाती हैं | बाप बार-बार कहते हैं देहि-अभिमानी भव | देह-अभिमान में आने से माया का वार होगा | चढ़ाई बहुत बड़ी है | कितना विचार सागर मंथन करना होता है | रात को ही विचार सागर मंथन हो सकता है | ऐसे विचार सागर मंथन करते-करते बाप जैसा बनते जायेंगे |

तुम बच्चों को सारा ज्ञान बुद्धि में रखना है | गृहस्थ व्यवहार में रहकर राजयोग सीखना है | सारा बुद्धि का काम है | बुद्धि में धारणा होती है | गृहस्थियों को तो बहुत मेहनत है | आजकल तो तमोप्रधान होने कारण बहुत गन्दे होते हैं | माया ने सबको ख़त्म कर दिया है | चबाकर एकदम खा ही जाती है | बाप आते हैं माया अजगर के पेट से निकालने | निकालना बड़ा मुश्किल होता है | जो गृहस्थ व्यवहार में रहते हैं उनको जलवा दिखाना है | समझाना है हमारा राजयोग है | हम ब्रह्माकुमार-कुमारियां क्यों कहते हैं? इस पहेली को समझना, समझाना है | वास्तव में बी.के. तो तुम भी हो | प्रजापिता ब्रह्मा तो नई सृष्टि रचते हैं | न्यु मैन द्वारा नई सृष्टि बनाते हैं | वास्तव में तो सतयुग का पहला बच्चा जो होता है उनको ही न्यु मैन कहेंगे | कितनी ख़ुशी की बात है | वहाँ तो ख़ुशी के बाजे गाजे बजेंगे | वहाँ तो आत्मा और शरीर दोनों पवित्र रहते हैं | यहाँ तो इसमें अभी बाबा ने प्रवेश किया है | यह न्यु मैन कोई पवित्र नहीं है, पुराने में बैठ इनको न्यु बनाते हैं | पुरानी चीज़ को नया बनाते हैं | अब न्यु मैन किसको कहें? क्या ब्रह्मा को कहें? बुद्धि का काम चलता है | वह थोड़ेही समझते हैं – एडम ईव कौन हैं? न्यु मैन है श्रीकृष्ण, वही फिर पुराना मैन ब्रह्मा | फिर पुराना मैन ब्रह्मा को न्यु मैन बनाता हूँ | न्यु वर्ल्ड का न्यु मैन चाहिए | वह कहाँ से आये? न्यु मैन तो सतयुग का प्रिन्स है | उनको ही गोरा कहते हैं | यह है सांवरा, यह न्यु मैन नहीं | वही श्रीकृष्ण 84 जन्म लेते-लेते अब पिछाड़ी के जन्म में है, जिसको फिर बाबा एडाप्ट करते हैं | पुराने को नया बनाते हैं, कितनी गूढ़ बातें हैं समझने की | न्यु सो ओल्ड, ओल्ड सो न्यु | श्याम सो सुन्दर, सुन्दर सो श्याम | जो पुराने को नया बनाते हैं, नए ते नया बन रहा है | तुम जानते हो हमको बाबा रिज्युवनेट कर नए ते नया बनाते हैं | यह बड़ी समझने की बातें हैं | और अपनी अवस्था भी बनानी है | कुमार-कुमारी तो हैं ही पवित्र | बाकी हम गृहस्थ में रहते कमल फूल समान बनते हैं, स्वदर्शन चक्रधारी बनते हैं | विष्णुवंशी को त्रिकालदर्शीपने का नॉलेज नहीं है | पुराने मैन त्रिकालदर्शी हैं | कितनी अटपटी बातें हैं | ओल्ड मैन ही नॉलेज लेकर न्यु मैन बनते हैं | बाप बैठ समझाते हैं वह हठयोग है, यह राजयोग है | राजयोग माना ही स्वर्ग की बादशाही | सन्यासी तो कहते सुख काग विष्टा समान है | नफरत करते हैं | बाप कहते हैं नारी ही स्वर्ग का द्वार है | माताओं पर कलष रखता हूँ | तो पहले-पहले समझाओ शिवाए नमः, भगवानुवाच | आवाज़ बुलन्द निकलना चाहिए | अच्छा!

मीठे-मीठे सिकिलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1.     हम आत्मा भाई-भाई हैं, इस निश्चय से पवित्रता के व्रत को पालन करते हुए आपस में बहुत प्यार से
    रहना है | सबको लवली बनाना है |

2.     विशाल बुद्धि बन ज्ञान के गुह्य रहस्यों को समझना है, विचार सागर मंथन करना है | माया के वार से
    बचने के लिए देहि-अभिमनी रहने का अभ्यास करना है |

 

वरदान:-         हर आत्मा से आत्मिक अटूट प्यार रख स्नेह सम्पन्न व्यवहार करने वाले सफलतामूर्त भव  

 

जैसे बाप के प्रति अटूट, अखण्ड, अटल प्यार है, श्रेष्ठ भावना है, निश्चय है ऐसे ब्राह्मण आत्माओं से आत्मिक प्यार अटूट और अखण्ड हो | किसी के कैसे भी संस्कार हो, चलन हो लेकिन ब्राह्मण आत्माओं का सारे कल्प में अटूट सम्बन्ध है, ईश्वरीय परिवार है, बाप ने हर आत्मा को चुनकर ईश्वरीय परिवार में लाया है, यह स्मृति रहे तो आत्मिक प्यार अटूट होने से स्नेह सम्पन्न व्यवहार होगा और सहज सफलतामूर्त बन जायेंगे |

 

स्लोगन:-     अन्तर्मुखी वह है जो जिस समय चाहे आवाज़ में आये और जिस समय चाहे आवाज़ से परे हो
            जाए |        

ओम् शान्ति |