24-12-13       प्रातः मुरली       ओम् शान्ति   “बापदादा”     मधुबन


मीठे बच्चे तुम्हारा रूहानी योग है एवर प्योर बनने के लिए क्योंकि तुम पवित्रता के सागर से योग लगाते हो, पवित्र दुनिया स्थापन करते हो |    

प्रश्न:-   
निश्चयबुद्धि बच्चों को पहले-पहले कौन-सा निश्चय पक्का होना चाहिए? उस निश्चय की निशानी क्या होगी?

उत्तर:-

हम एक बाप के बच्चे हैं, बाप से हमको दैवी स्वराज्य मिलता है यह पहले-पहले पक्का निश्चय चाहिए | निश्चय हुआ तो फ़ौरन बुद्धि में आयेगा कि हमने जो भक्ति की है वह अब पूरी हुई, अब स्वयं भगवान् हमें मिला है | निश्चयबुद्धि बच्चे ही वारिस बनते हैं |

गीत:-
 
ओ दूर के मुसाफ़िर....    

ओम् शान्ति |
बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं दूर के मुसाफ़िर तो सब हैं | सब आत्मायें दूर से दूर परमधाम की रहने वाली हैं | यह भी शास्त्रों में है | आत्मा दूर रहती है, जहाँ सूर्य चाँद की रोशनी नहीं रहती | मूलवतन और सूक्ष्मवतन में कोई ड्रामा नहीं है | ड्रामा इस स्थूलवतन का है, जिसको ही मनुष्य सृष्टि कहा जाता है | मूलवतन और सूक्ष्मवतन में कोई 84 जन्मों का चक्र नहीं है | चक्र मनुष्य सृष्टि में दिखाया जाता है | मनुष्य सृष्टि क्या चीज़ है, मनुष्य किसका बना हुआ है? मनुष्य में एक तो आत्मा है, दूसरा शरीर है | 5 तत्वों का पुतला बनता है | उसमें आत्मा प्रवेश कर पार्ट बजाती है | तो दूर के वासी तो सब हैं | परन्तु तुम निश्चय करते हो | मनुष्यों में निश्चय नहीं है | बाप ने समझाया है मुझे दूर देश का रहने वाला कहते हो परन्तु तुम सब आत्माओं का निवास स्थान एक है | उस नाटक में जो पार्ट बजाते हैं उसमें तो हर एक का अपना-अपना घर होता है ना | वहाँ से आकर पार्ट बजाते हैं | यहाँ तुम बच्चे समझते हो हम सब एक ही बाप के बच्चे हैं, एक ही घर परमधाम में रहने वाले हैं | वह है ब्रह्म महतत्व, यह है आकाश तत्व | यहाँ पार्ट बजाते हैं, रात-दिन होता है इसलिए सूर्य-चाँद भी हैं | मूलवतन में तो दिन-रात नहीं होता है | यह सूर्य-चाँद कोई देवता नहीं है | यह तो मान्डवे को रोशन करने वाली बत्तियां हैं | दिन में सूर्य रोशनी देता है, रात में चाँद की रोशनी होती है | अभी सब मनुष्य चाहते हैं मुक्तिधाम में जायें | जानते हैं भगवान् ऊपर में रहता है | भगवान् को भी याद करेंगे – हे परमपिता परमात्मा, तो बुद्धि ऊपर चली जायेगी | आत्मा समझती है परन्तु अज्ञान छाया हुआ है | यह भी जानते हैं हम यहाँ के रहने वाले नहीं हैं | हमारा बाप वह है | मुख से ओ गॉड फादर कहते भी हैं | फिर कह देते हैं सब फादर हैं, गॉड सर्वव्यापी है | बच्चों को समझाया है वह तो फादर हैं नहीं | सब आत्मायें आपस में ब्रदर्स हैं | यह न जानने कारण लड़ते-झगड़ते रहते हैं | तुम आत्मायें ब्रदर्स हो, एक बाप की सन्तान बने हो | निश्चयबुद्धि भी नम्बरवार हैं | लौकिक सम्बन्ध में निश्चय रहता ही है कि बाप से वर्सा पाना है | यहाँ बाप से माया घड़ी-घड़ी मुँह फेर देती है | सर्वशक्तिमान बाप के बनते हो तो माया भी सर्वशक्तिमान होकर लड़ती है | पांच विकारों पर जीत पाने की युद्ध है | युद्ध तो मशहूर है | बाकी शास्त्रों में जो कौरव-पाण्डव दिखाए हैं वह बात है नहीं | यह रावण के साथ युद्ध बड़ी भारी है | हम चाहते हैं कि बाप की याद में रहकर हम सम्पूर्ण बनें, आत्मा प्योर बनें | और तो कोई भी रास्ता है नहीं सिवाए योग के | और जो भी योग सीखते हैं वह कोई प्योरिटी के लिए नहीं है | वह तो सब स्थूल योग हैं, अल्पकाल के लिए और यह रूहानी योग है एवर प्योर होने के लिए | पवित्रता के सागर के साथ हम योग लगाने से पवित्र बनते हैं | बाप कहते हैं इस योग अग्नि से तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप भस्म होते हैं | बुद्धि भी कहती है यह पतित दुनिया है | कोई से भी पूछो – यह सतयुग है या कलियुग? तो इसको सतयुग कोई भी नहीं कहेंगे | सतयुग तो नई दुनिया थी | उसको गोल्डन एज, इसको आयरन एज कहा जाता है | पुरानी दुनिया को कलियुग और नई दुनिया को सतयुग कहा जाता है | ऐसे कह नहीं सकते कि अभी सतयुग भी है तो कलियुग भी है | नहीं, नर्कवासी माना ही नर्कवासी | पुरानी दुनिया को पतित, नई दुनिया को पावन दुनिया कहेंगे | मनुष्यों के लिए ही समझाया जाता है, जानवर थोड़ेही कहेंगे पतित-पावन आओ | कोई से भी पूछो तो कहेंगे यह नर्क है | भारत ही नई दुनिया स्वर्ग था, भारत ही पुरानी दुनिया नर्क है | भारत पर ही जोर देते रहो | दूसरे सब तो बीच में आते हैं | उससे हमारा तैलुक नहीं | हमारा धर्म ही अलग है, जो अब प्रायः लोप हो गया है |

अभी तुम निश्चयबुद्धि बने हो | जानते हो हम एक बाप के बच्चे हैं | बाप से हमको स्वराज्य मिलता है | पहले तो यह पक्का निश्चय चाहिए | ज्ञान सुनते हैं, वह तो ठीक है | प्रजा बन जाती है | बाकी हम बेहद बाप के बच्चे हैं – यह निश्चय हो जाए, समझें हमने भक्ति की है भगवान् से मिलने के लिये | अभी भक्ति पूरी होती है | अब भगवान् स्वयं आकर मिला है | उनसे सूर्यवंशी स्वराज्य पद मिलता है | हम इतना ऊँच पद पाते हैं | जैसे साहूकार लोग बच्चे को गोद में लेते हैं ना | वह तो एक बच्चा लेते हैं | यहाँ तो बेहद के बाप को अनेक बच्चे चाहिए | कहते हैं मेरा बच्चा बनेगा उनको स्वर्ग का वर्सा मिलेगा | जो मेरा नहीं बनते तो वर्सा ले न सकें | श्रीमत पर ही नहीं चलते | जिनको निश्चय हो जाता है वह तो कहते बाबा आप फिर से आये हो, बस, हम तो आपका हाथ नहीं छोड़ेंगे | बाप बच्चों को समझाते हैं, बच्चे फिर दूसरों को समझाते हैं कि हम पारलौकिक बाप के बच्चे बने हैं | उनकी श्रीमत पर हम चलते हैं, हमको परमपिता परमात्मा पढ़ाते हैं | इतने सब बी.के. बने हैं तो ज़रूर निश्चय है, तो हम भी क्यों न बनें | लिख करके भेज दें कि हम आपके बने हैं | बाप कहेंगे हम कोई दूर थोड़ेही हैं | हम तो यहाँ बैठे हैं, हाज़िर हैं | यहाँ प्रैक्टिकल में बैठे हैं | जैसे प्रेज़ीडेन्ट के लिए कहेंगे कि इस सृष्टि पर हाज़िर है तो इसका मतलब यह नहीं है कि प्रेज़ीडेन्ट सर्वव्यापी है | ऐसा परमपिता परमात्मा, जिसको सुख कर्ता दुःख हर्ता कहा जाता है वह सर्वव्यापी नहीं हो सकता | उनकी हाज़िरी में मनुष्य इतने दुःखी कैसे हो सकते? जबकि बाप की गैरहाज़िरी (स्वर्ग) में भी कोई दुःखी नहीं रहता |

बाप ने बच्चों के लिए घोंसला बनाया है | जैसे चिड़िया बच्चों के लिए घोंसला बनाती है, तो बाप भी तुम्हारे लिए तुम्हारे द्वारा ही आखेरा (घोंसला) बनवाते हैं | तुम्हारे ही रहने के लिए स्वर्ग का आखेरा बन रहा है | बाप कहते हैं तुम मेरी मत पर चलेंगे तो स्वर्ग में राज्य करेंगे | अगर पूरा निश्चय हो तो एकदम पकड़ लेवें | ऐसे भी नहीं कि यहाँ बैठ जाना है | घरबार तो छोड़ना नहीं है | वह तो घरबार छोड़ते हैं | गुरु को भगवान् समझते हैं | वह कोई जीते जी मरते नहीं हैं | तुमको तो जीते जी मरकर फिर सतयुग में जीना है | तुम बाप से बेहद का वर्सा लेते हो | जब निश्चय हुआ कि बेहद का बाप पढ़ाते हैं, 21 जन्मों का वर्सा देते हैं तो उनकी श्रीमत पर चलना पड़े | बच्चा बना तो बाप डायरेक्शन देंगे | पहले तो एक हफ्ता भट्ठी में बैठो | तुमको रोज़ नॉलेज मिलती रहेगी | सब तो एक जैसे नहीं समझते हैं, हर एक अपने पुरुषार्थ और तक़दीर अनुसार पाते हैं | पुरुषार्थ और तक़दीर के ऊपर ही होता है | पता लग जाता है कि तक़दीर में क्या है? क्या पद पायेंगे? बाप का बनकर फिर गृहस्थ व्यवहार में भी रहना है | अच्छा, गृहस्थ व्यवहार नहीं है तो जाकर अन्धों की लाठी बनो | सत्य नारायण की कथा सुनाने ज़रूर जाना है |

अब देखो, प्रेम बच्ची सेवा पर गई है | जिन्होंने निमन्त्रण दिया उन्होंने आजयान की, बहुतों से मुलाकात कराई, प्रभावित हुए | परन्तु बाबा कहे – निश्चयबुद्धि एक भी नहीं हैं कि इन्हों को बेहद का बाप पढाता है, जिससे 21 जन्मों का वर्सा मिलता है | प्रभावित होते हैं परन्तु ऐसे थोड़ेही निश्चय हुआ कि बरोबर ज्ञान का सागर बाप पढ़ा रहे हैं | हाँ, सिर्फ़ कहेंगे बहुत अच्छा है | जैसे ही बाहर गये फिर ख़लास | कोई बिरला ही पुरुषार्थ करेंगे | भल आपस में सतसंग करेंगे परन्तु जो करेंगे वह भी निश्चयबुद्धि नहीं | हाफ कास्ट कहा जाता है | निश्चय और संशय | अभी कहेंगे बाप पढ़ाते हैं, अभी कहेंगे कि यह कैसे हो सकता है? हाँ, पवित्र बनना अच्छा है परन्तु पवित्रता में रहना बड़ा मुश्किल है | पहले तो निश्चय चाहिए | गदगद होकर लिखे | जैसे बांधेली गोपिकायें पत्र लिखती हैं वैसे छुटेले कभी लिखते थोड़ेही हैं | बाबा लिख देते हैं कि एक को भी निश्चयबुद्धि नहीं बनाया है | हाँ, साधारण प्रजा बनाई, वारिस नहीं बनाया | एक भी निश्चयबुद्धि नहीं बना है | निश्चयबुद्धि ही वारिस बनते हैं | कोई भल निश्चयबुद्धि हैं परन्तु गायन नहीं उठाते हैं तो उसी घराने के अन्दर जाकर दास-दासी बनते हैं | आगे जाकर एक्यूरेट साक्षात्कार होगा | पता भी पड़ेगा कि हम दास-दासी कौन-से नम्बर में बनेंगे? फिर बहुत पछतायेंगे | हम तो श्रीमत पर चले नहीं तब यह हाल हुआ | फिर भी हर हालत में कहेंगे ड्रामा | उनका ड्रामा में ऐसे ही कल्प-कल्पान्तर का पार्ट है | साक्षात्कार होना ही है | पिछाड़ी में रिज़ल्ट निकलनी है | फिर कहेंगे भावी | हमारी तक़दीर में यह था, तुम्हारी पढ़ाई की रिज़ल्ट आयेगी | यह तो बड़ा भारी स्कूल है | पढ़ाने वाला एक ही है, एक ही पढ़ाई है, एक ही इम्तहान है | टीचर जानते हैं यह स्टूडेन्ट कैसा है, सब गैलप करते रहते हैं | आगे चलकर बहुत कुछ पता लग जायेगा | घड़ी-घड़ी तुम ध्यान में चले जायेंगे | जैसे शुरू में जाते थे | आप भी समझते रहते हो, बाप भी समझाते रहते हैं | तुम गफ़लत करते हो, श्रीमत पर नहीं चलते हो | ऐसे चलते-चलते आदत पड़ जाती है | भल तुम पूछो – शिवबाबा हम आपकी श्रीमत पर चलते हैं? बाबा बता देंगे तुम नहीं चलते हो तब तुम्हारी तक़दीर ऐसे दिखाई पड़ती है | समझा जाता है अभी दशा खराब है, आगे चलकर खुल भी जाए | कोई काम के हल्के नशे में गिरते हैं | भारत पावन था, श्रेष्ठाचारी था जो अब भ्रष्टाचारी है | उन श्रेष्ठ देवताओं की महिमा तो है ना | बाप कहते हैं यह है ही आसुरी सम्प्रदाय, मैं आया हूँ दैवी सम्प्रदाय स्थापन करने | यह देवी-देवता धर्म है ऊँच ते ऊँच | बाप ही पतित-पावन है | परन्तु मनुष्य कुछ भी समझते नहीं हैं | जो भी धर्म स्थापन करने आते हैं – पवित्र ज़रूर बनते हैं | हर एक बात में अच्छे और बुरे होते हैं | कम तक़दीर और अच्छी तक़दीर वाले हैं | अब यह रावण राज्य ख़त्म होना है | इस रावण की नगरी को आग लगनी है | तुम राम की सेना बैठे हो | जो इस धर्म के होंगे वह समझते जायेंगे | नम्बरवार समझते हैं | कोई को एक ही तीर जनक मुआफ़िक लगने से सरेन्डर हो जाते हैं | वह कोई भी बहाना नहीं करेंगे | बहाना इसमें चल न सके | परन्तु माया के तूफ़ान भी बहुत आते हैं | अपने घराने को भी भुला देते हैं कि हम ईश्वरीय सन्तान हैं | तो बच्चों को बहुत मीठा बनना है | काम का ज़रा भी नशा नहीं चाहिए | काम बड़ा ही महाशत्रु है | यही सबसे बड़ी भारी परीक्षा है | बाबा कहते – बच्चे, इकट्ठे रह पवित्र बनकर दिखाओ | बाप बच्चों की अवस्था को जानते हैं | निश्चयबुद्धि वाले बाप को अपना समाचार देंगे कि बाबा मैं आपको याद करता हूँ, यह आपकी सेवा करता हूँ | सर्विस का समाचार लिखें तब विश्वास रखूँ | सर्विस का सबूत दिखाये तब बाबा समझे उसमें उम्मीद अच्छी दिखाई पड़ती है और फिर यह भी समझना चाहिए कि बाबा अकेला है, हम बच्चे बहुत हैं | ऐसे नहीं, बाबा को रोज़-रोज़ रेसपान्स देना पड़ेगा | नहीं, बाप है ही गरीब निवाज़ | दान गरीब को दिया जाता है | यह भारत खण्ड गरीब है | भारत ही साहूकार से गरीब हुआ है | यह किसको भी पता नहीं पड़ता है | यह भारत ही अविनाशी खण्ड है, जहाँ भगवान् अवतार लेते हैं | भारत सोने की चिड़िया था अर्थात् सर्व सुखों का भण्डार था | जिस सुखधाम में जाने के लिए हम सब पुरुषार्थ कर रहे हैं | अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1.  कोई भी बहाना न कर बाप की श्रीमत पर चलते रहना है | सर्विस का सबूत देना है |


2. 
हम ईश्वरीय सन्तान हैं, हमारा ऊँच ते ऊँच घराना है, यह भूलना नहीं है | निश्चयबुद्धि बनना और बनाना है |


वरदान:-
 
उड़ती कला के वरदान द्वारा सदा आगे बढ़ने वाले सर्व बन्धन मुक्त भव !    

बाप का बनना अर्थात् उड़ती कला के वरदानी बनना | इस वरदान को जीवन में लाने से कभी किसी कदम में भी पीछे नहीं होंगे | आगे ही आगे बढ़ते रहेंगे | सर्वशक्तिमान बाप का साथ है तो हर कदम में आगे हैं | स्वयं भी सदा सम्पन्न और दूसरों को भी सम्पन्न बनाने की सेवा करते हैं | वे किसी भी प्रकार की रुकावट में अपने क़दमों को रोकते नहीं | ऐसे वरदानी बच्चे किसी के बन्धन में आ नहीं सकते, सर्व बन्धनों से मुक्त हो जाते हैं |


स्लोगन:-
 
जिनके पास सर्व शक्तियों का स्टॉक है, प्रकृति उनकी दासी बन जाती है |       


ओम् शान्ति
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