20-11-13 प्रातःमुरली
ओम् शान्ति “बापदादा”
मधुबन
“मीठे
बच्चे
–
तुम्हारी सच्ची बात का तीर कब लगेगा जब दिल में सच्चाई सफाई
होगी, तुम्हें सत्य बाप का संग मिला है इसलिए सच्चे बनो”
प्रश्न:-
तुम सब स्टूडेन्ट हो, तुम्हें किस बात का ख्याल रखना ज़रूरी है?
उत्तर:-
कभी भी कोई ग़लती हो तो सच बोलना है, सच बोलने से ही उन्नति
होगी | तुम्हें अपनी सेवा दूसरों से नहीं लेनी है | अगर यहाँ
सेवा लेंगे तो वहाँ करनी पड़ेगी | तुम स्टूडेन्ट अच्छी तरह से
पढ़कर दूसरों को पढ़ाओ तो बाप भी खुश होगा | बाप प्यार का सागर
है, उनका प्यार ही यह है जो तुम बच्चों को पढ़ाकर ऊँच मर्तबा
दिलाते हैं |
गीत:-
किसने यह सब खेल रचाया.....

ओम्
शान्ति
|
आजकल
समाचार आते हैं कि हम गीता जयन्ती मना रहे हैं | अब गीता को
जन्म किसने दिया है, यह है टॉपिक | जयन्ती कहते हैं तो ज़रूर
जन्म भी हुआ ना | उनको जब कहते हैं श्रीमद भगवत गीता जयन्ती तो
ज़रूर उनको जन्म देने वाला भी चाहिए ना | सब कहते हैं श्रीकृष्ण
भगवानुवाच | तो फिर श्रीकृष्ण पहले आता, गीता पीछे हो जाती |
अब गीता का रचयिता ज़रूर चाहिए | अगर श्रीकृष्ण को कहते तो पहले
श्रीकृष्ण, पीछे गीता आनी चाहिए | परन्तु श्रीकृष्ण छोटा बच्चा
था वह गीता सुना न सके | यह सिद्ध करना होगा कि गीता को जन्म
देने वाला कौन? यह है गुह्य बात | कृष्ण तो माता के गर्भ से
जन्म लेता है, वह तो सतयुग का प्रिन्स है | उसने स्वयं प्रिन्स
का पद पाया है गीता द्वारा राजयोग सीखकर | अब गीता को जन्म देने
वाला कौन? परमपिता परमात्मा शिव या श्रीकृष्ण? श्रीकृष्ण को
वास्तव में त्रिलोकीनाथ, त्रिकालदर्शी भी नहीं कह सकते हैं |
त्रिलोकीनाथ, त्रिकालदर्शी एक को ही कहेंगे | त्रिलोकीनाथ माना
तीनों लोकों पर राज्य करते हैं | मूल, सूक्ष्म, स्थूल इन तीनों
को कहा जाता है त्रिलोकी, इनको जानने वाला त्रिलोकीनाथ,
त्रिकालदर्शी परमपिता परमात्मा शिव है, यह महिमा उनकी है, न कि
श्रीकृष्ण की | कृष्ण की महिमा है – 16 कला सम्पूर्ण, सर्वगुण
सम्पन्न...... | उनकी भेंट करते हैं चन्द्रमा से | परमात्मा की
भेंट चन्द्रमा से नहीं करेंगे | उनका कर्तव्य ही अलग है | वह
है गीता को जन्म देने वाला रचयिता | गीता के ज्ञान वा राजयोग
से ही देवतायें क्रियेट होते हैं | मनुष्य को देवता बनाने के
लिए बाप को आकर नॉलेज देनी पड़ती है | अब यह समझनी देने वाले बड़े
ही होशियार ब्रह्माकुमार-कुमारियां चाहिए | सभी एक जैसा समझा
नहीं सकते | बच्चियाँ भी तो सब नम्बरवार हैं | टॉपिक भी ऐसी रखी
जाए कि श्रीमत भगवत गीता को जन्म किसने दिया? इसके लिए
कान्ट्रास्ट समझाना है | भगवान् तो एक ही है – परमपिता परमात्मा
शिव | उस ज्ञान सागर द्वारा ज्ञान सुनकर कृष्ण ने यह पद पाया
था | सहज राजयोग से यह पद कैसे पाया, यह समझानी देनी पड़े |
ब्रह्मा द्वारा ही पहले बाप ब्राह्मण रचते हैं | सभी
वेदों-शास्त्रों का सार सुनाते हैं | ब्रह्मा के साथ ब्रह्मा
मुख वंशावली भी चाहिए | ब्रह्मा को ही त्रिकालदर्शीपने का
ज्ञान मिलता है | त्रिलोकी अर्थात् तीनों लोकों का भी ज्ञान
मिलता है | तीनों काल आदि, मध्य, अन्त को मिलाकर कहा जाता है
और तीनों लोक अर्थात् मूल, सूक्ष्म, स्थूलवतन | यह अक्षर याद
करने हैं | बहुत बच्चे भूल जाते हैं | भुलाया है देह अहंकार
रूपी माया ने | तो गीता का रचयिता परमपिता परमात्मा शिव है, न
कि श्रीकृष्ण | परमपिता परमात्मा ही त्रिकालदर्शी तथा
त्रिलोकीनाथ हैं | कृष्ण में वा लक्ष्मी-नारायण में यह नॉलेज
है ही नहीं | हाँ, जिन्होंने यह नॉलेज बाप से पाई वह विश्व के
मालिक बन गये | जब सद्गति मिल गई फिर यह नॉलेज बुद्धि से गुम
हो जाती है | सबका सद्गति दाता वह एक ही है | वह पुर्नजन्म
लेने वाला नहीं है | पुनर्जन्म शुरू हुआ सतयुग आदि से | कलियुग
अन्त तक 84 जन्म लेते हैं | यह समझानी देनी पड़ती है | सब तो
84 जन्म नहीं लेते | जिसने यह गीता लिखी उसको त्रिकालदर्शी
नहीं कहेंगे | पहले ही लिखा कि श्रीकृष्ण भगवानुवाच | यह एकदम
रांग है | रांग भी होना ही है ज़रूर | जब सब शास्त्र रांग हों
तब ही बाप आकर राइट सुनाये | बरोबर ब्रह्मा द्वारा
वेदों-शास्त्रों का सच्चा सार सुनाते हैं इसलिए उन्हें सत कहा
जाता है | अब तुम्हारा है सत के साथ संग, जो तुमको सत बनाते
हैं |
प्रजापिता
ब्रह्मा और उनकी मुख वंशावली यह जगदम्बा सरस्वती | प्रजापिता
के सभी बच्चे आपस में भाई-बहन ठहरे | कहाँ भी मन्दिरों में
जाकर भाषण करना चाहिए | घूमने-फिरने भी वहाँ बहुत आते हैं | एक
को समझाया तो सतसंग लग जायेगा | शमशान में भी जाना चाहिए |
वहाँ मनुष्यों को वैराग्य होता है | परन्तु बाबा कहते मेरे
भक्तों को समझाने से वह फट से समझेंगे | तो शिवबाबा के मन्दिर,
लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जाना पड़े | लक्ष्मी-नारायण को
बाबा मम्मा नहीं कहते | शिव को बाबा कहते हैं ज़रूर मम्मा भी
होगी, वह है गुप्त | शिवबाबा जो रचयिता है, उनको मात-पिता कैसे
कहते हैं, यह गुप्त बात कोई भी जान न सके | लक्ष्मी-नारायण को
एक ही अपना बच्चा होगा | बाकी इनका नाम है प्रजापिता ब्रह्मा |
विष्णु और शंकर को ऊँच नहीं रखते | ऊँच त्रिमूर्ति ब्रह्मा को
रखते हैं | जैसे रचता शिव परमात्मा को कहते हैं, ऐसे ही
ब्रह्मा को भी रचता कहा जाता है | वह तो अविनाशी है ही | रचता
अक्षर कहेंगे तो पूछेंगे – कैसे रचा? वह तो रचता है ही | बाकी
रचना होती है ब्रह्मा द्वारा | अब ब्रह्मा द्वारा परमात्मा सब
आत्माओं को सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का नॉलेज देते हैं |
वेद-शास्त्र आदि सब हैं भक्ति मार्ग की सामग्री | भक्ति मार्ग
आधाकल्प चलता है, यह है ज्ञान काण्ड | जब भक्ति मार्ग पूरा
होता है तब सब पतित तमोप्रधान बन जाते हैं, तब मैं बाप आता हूँ
| पहले सतोप्रधान से सतो, रजो, तमो में आते हैं | ऊपर से जो
पवित्र आत्मायें आती हैं उन्होंने कोई ऐसा कर्म नहीं किया है
जो उनको दुःख भोगना पड़े | क्राइस्ट के लिए कहते हैं उनको क्रॉस
पर चढ़ाया परन्तु यह तो हो न सके | नई आत्मा जो धर्म स्थापन
करने अर्थ आती है उनको दुःख मिल नहीं सकता क्योंकि वह तो
कर्मातीत अवस्था वाला मैसेन्जर धर्म स्थापन करने आया | लड़ाई
में भी जब कोई मैसेन्जर भेजते हैं तो वह सफ़ेद झण्डी ले आते हैं
जिससे वे लोग समझ जाते कि यह कोई मैसेज ले आया है, उनको कोई
तकलीफ़ नहीं देते हैं | तो मैसेन्जर जो आते हैं, उनको कोई क्रॉस
पर चढ़ा न सके | दुःख आत्मा ही भोगती है | आत्मा निर्लेप नहीं
है, यह लिखना चाहिए | आत्मा को निर्लेप कहना रांग है | यह
किसने कहा? शिव भगवानुवाच | यह प्वाइन्ट तुमको नोट करनी चाहिए,
लिखने के लिए बड़ी ही विशाल बुद्धि चाहिए | समझो प्रदर्शनी में
क्रिश्चियन लोग आते हैं तो उनको भी बता सकते हैं कि क्राइस्ट
की सोल को क्रॉस पर नहीं चढ़ाया गया | बाकी जिसमें उसने प्रवेश
किया, उस आत्मा को दुःख हुआ | तो ऐसी बातें सुनकर वन्डर
खायेंगे | उस पवित्र आत्मा ने आकर धर्म स्थापन किया | गॉड फादर
के डायरेक्शन अनुसार | यह भी ड्रामा | ड्रामा को भी कई लोग
समझते हैं परन्तु उसके आदि, मध्य, अन्त को नहीं जानते |
ऐसी-ऐसी बातें सुन वह लोग कुछ समझने की कोशिश करते हैं | कृष्ण
को भी कोई गाली दे न सके | बरोबर गालियां अभी ही मिल रही हैं
किसको? शिवबाबा को नहीं, इस साकार को | टीचर तो बाबा है प्योर
सोल और यह है इम्प्योर, जो प्योर बन रहा है | जो समझ गये हैं
वह बित-बित नहीं करेंगे | नहीं तो समझेंगे कि यह तो सिखाया हुआ
है | फिर वह बात कोई को जंचती नहीं | तीर नहीं लगता |
सच्चाई-सफाई बहुत चाहिए | जो खुद विकारी होगा वह औरों को कहे
काम महाशत्रु है तो तीर नहीं लगता | जैसे पण्डित का मिसाल –
राम-राम कहने से नदी वा सागर पार कर जायेंगे | यह अभी की बात
है | शिवबाबा कहते हैं मुझे याद करने से तुम इस विषय सागर से
पार हो जायेंगे | कौन-सा सागर? यह पण्डित नहीं जानते |
वेश्यालय से शिवालय में चले जायेंगे | बड़ी अच्छी रीति से
श्रीमत पर चलना है | कहते हैं ना कि बाबा चाहे प्यार करो, चाहे
ठुकराओ......| यहाँ तो सिर्फ़ समझानी दी जाती है, तो भी कई
मुर्दे बन जाते हैं | बच्चों को तो लिखना-पढ़ना पड़ता है | बाप
प्यार का सागर है अर्थात् पढ़ाकर ऊँच मर्तबा दिलाते हैं | यही
प्यार है | बाप जब पढाता है तो पढकर औरों को भी पढ़ाना है | बाप
को खुश करना है | बाप की सर्विस में तत्पर रहना है | बाप की
यही सर्विस है कि अपने तन-मन-धन से भारत की सच्ची सेवा करो |
तुम्हें तो बुलन्द आवाज़ से समझाना चाहिए | सभी नम्बरवार हैं,
राजधानी में भी नम्बरवार होंगे | टीचर समझ जाते हैं कि यह दैवी
राजधानी में क्या नम्बर लेंगे | सर्विस से समझ सकते हैं,
कौन-कौन मुख्य बनेंगे | खुद भी समझते हैं कि हम बाबा-मम्मा
जितनी सर्विस नहीं करते तो दास-दासियाँ बनना पड़ेगा | आगे चलकर
तुम सबको सारा ही मालूम पड़ेगा | हम श्रीमत पर न चले, सब क्लीयर
हो जायेगा | तुम बच्चे इस समय स्टूडेन्ट हो, इस समय तुम अपनी
दासियाँ बनायेंगे तो खुद भी दासी बनना पड़ेगा | यहाँ महारानी
बनना देह-अभिमान है | सच कहना चाहिए कि बाबा यह भूल हुई | अभी
सम्पूर्ण तो सभी बने नहीं है | इम्तहान में जब नापास होते हैं
तो शर्माते भी हैं |
बाबा का
रात्रि में ख्याल चला कि मनुष्य 21 जन्म कहते, गायन भी करते,
अभी यह ईश्वरीय जन्म एक अलग है | 8 जन्म सतयुग में, 12 जन्म
त्रेता में, 21 जन्म द्वापर में, 42 जन्म कलियुग में | यह
तुम्हारा ईश्वरीय जन्म सबसे ऊँच जन्म है जो एडाप्टेड है | तुम
ब्राह्मणों का ही यह सौभाग्यशाली जन्म है | अच्छा!
मीठे-मीठे
सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और
गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा के लिए
मुख्य सार:-
1. प्यार
के सागर बाप के प्यार का रिटर्न करना है, अच्छी तरह पढ़कर फिर
पढ़ाना है |
श्रीमत पर चलना है |
2. सच्चाई
और सफाई से पहले स्वयं में धारणा कर फिर दूसरों को धारणा करानी
है |
एक बाप के संग में रहना है |
वरदान:-
मन्सा-वाचा
और कर्मणा तीनों सेवाओं में खाते जमा करने वाले यज्ञ स्नेही भव
