08-12-13     प्रातः मुरली   ओम् शान्ति    “अव्यक्त-बापदादा     रिवाइज: 28-05-77      मधुबन


“बापदादा के सदा दिल दिल तख़्तनशीन, समान बच्चों के लक्षण”

बापदादा समीप और समान सितारों को देख रहे हैं | बाप को सदा स्मृति रहती है | जैसे बच्चे स्मृति स्वरूप हैं, वैसे ही बाप भी अपने समीप बच्चों के स्मृति स्वरूप हैं | जैसे स्मृति स्वरूप होने से समर्थी स्वरूप का अनुभव करते हैं | बापदादा भी स्वयं समर्थी स्वरूप होते भी, समान बच्चों के सहयोग वा स्मृति से स्वयं स्वरूप में और एडीशन हो जाती है इसलिए साकार बाप ब्रह्मा के सहयोगी स्वरूप की निशानी हज़ार भुजाएं दिखाई हैं | भुजाएं हैं सहयोग की निशानी | तो बाप के साथ-साथ जो सदा सहयोगी हैं उन्हों की निशानी भुजाओं के रूप में है | ऐसे समान बच्चों का स्थान कौन सा होता है? किस स्थान पर वह निवास करते हैं? वह सदा दिल तख़्त पर या विश्व के राज्य तख़्त नशीन स्वयं को समझते अर्थात् स्थिति में स्थित होते हैं | जैसे बड़ी से बड़ी महान आत्माएं कभी भी धरनी पर पांव नहीं रखती | जैसे यहाँ भी देखा, जब बड़े आदमी आते हैं तो पूरे रास्ते पर, सीढ़ियों पर गलीचा बिछा देते हैं | ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं का पाँव धरती पर नहीं लेकिन गलीचे पर होते हैं | यह निशानी किसकी है? शुरू कहाँ से हुई? यहाँ तो उन्हों के पाँव सिर्फ़ गलीचे तक हैं | लेकिन जो बाप समान बच्चे हैं, उनकी बुद्धि रूपी पाँव सिवाए तख़्त के नीचे नहीं आते हैं | उन्हों को तख़्त नशीन कहा जाता है अर्थात् सदा तख़्त पर ही रहते हैं | नीचे नहीं आते हैं ऐसे जो सदा दिल तख़्तनशीन वा राज्य नशीन ही रहते हैं, उन्हों को सर्व आत्माओं से रिटर्न में क्या मिलता है? स्नेह तो मिलता ही है, लेकिन दिल तख़्तनशीन वाले जो भी कर्म करते, जो भी बोल बोलते, सभी के दिल पर ऐसे लगता है, जैसे बाप द्वारा जो भी निकलता वह सदा का यादगार बन जाता है, सबके दिलों में समा जाता है | यादगार रह जाता है | फिर आधाकल्प के बाद यादगार गीता के रूप में होता | तो बाप के महावाक्य यादगार रूप में ऊपर हो जाते हैं | इसी प्रकार जो दिल तख़्तनशीन बच्चे हैं वह जिस आत्मा के प्रति संकल्प करते तो उनके दिल को लगता है | मानो, आप किसी आत्मा के प्रति शुभ भावना, शुभ कामना रखते हैं – तो उनके दिल को लगेगा कि सचमुच यह मेरे प्रति शुभ-भावना, शुभ कामना रखते हैं | एक होता है ऊपर-ऊपर से, दूसरा होता है निमित्त बने हुए स्थान के कारण रिस्पेक्ट देना | तीसरा होता है दिल से स्वीकार करना |

जो समान बच्चे हैं उन्हों का संकल्प भी दिल से लगेगा, जैसे कि तीर लगता है | जैसे पहले जमाने में तीर लगाते थे, तो जिसको तीर लगता था वो तीर सहित ही नीचे आ गिरते थे | इस प्रकार से जो दिल तख़्त नशीन हैं – (1) वह दिल के संकल्प जिस आत्मा के प्रति करेंगे वह व्यक्ति अर्थात् आत्मा स्वयं अपने दिल का भाव प्रकट करने के लिए सामने आ जायेगी | (2) दूसरी बात जो उस स्थति में स्थित हो बोल बोलेंगे उनके दो शब्द दिल को राहत देने वाले होंगे | महसूस करेंगे कि भल दो शब्द बोले लेकिन दिल को राहत मिल गई, ख़ुराक मिल गई (3) तीसरी बात – सदैव ऐसी आत्माओं को दूर होते हुए भी दिल से याद करेंगे | दिल से याद करने की निशानी क्या होगी? ऐसे अनुभव जैसे कि साथ समीप हैं, दूर नहीं हैं | ऐसे नहीं अनुभव करेंगे कि यह आबू में हैं, हम दूसरे देश में हैं | ऐसे समझेंगे कि सदा सन्मुख और साथ हैं | जैसे बाप को दिल से याद करते हैं तो क्या अनुभव होता है? दूर लगता है क्या? साथ का अनुभव होता है ना? इस प्रकार जो दिलतख़्त नशीन बच्चे होंगे, उन्हों का भी प्रैक्टिकल में रिटर्न दिखाई देगा | इसको कहा जाता है – प्रत्यक्ष फल | (4) चौथी बात – वह दिल तख़्त नशीन होंगे | दिल तख़्त नशीन कौन होते हैं? राजा होगा ना? जैसे कोई बड़ा होता है तो उसको सब अपना समझते हैं | छोटे जो होंगे, वह बड़ों को अपना समझेंगे मेरा है | तो दिल तख़्त नशीन बच्चे की यही निशानी होती है जो हरेक उनको अपना बड़ा समझेंगे | अपनापन महसूस करेंगे | हमारे पूर्वज बड़े हैं, पूज्य हैं | यह शब्द कहने में भक्ति मार्ग के हैं, लेकिन जैसे पूर्वज का नशा होता है ना – यह हमारे पूर्वज, पूज्य हैं, इसी रीति से हर आत्मा जो भी सम्पर्क में है, वह ऐसे महसूस करेंगे कि यह ही हमारे पूर्वज हैं, पूज्य हैं | अपनापन महसूस करेंगे | ऐसे दिल तख़्त नशीन कितने बनेंगे? थोड़े ही होते हैं | यही अष्ट रत्नों की विशेषता है, जो फिर 100 में नहीं होती | उनमें भी माँ-बाप हैं, फिर भी उनमें तो हैं ना | तो जब पहले युग में भी नम्बर हैं, तो जो और पीछे हैं उनमें भी नम्बर होंगे |

दादी जाती है (विदेश सेवा पर) इसकी सबको ख़ुशी है, क्यों? वैसे तो जाने में दूसरी लहर होनी चाहिए, लेकिन ख़ुशी क्यों है? और विशेष ख़ुशी की लहर है, क्यों? विशेष सबको ख़ुशी इस बात की है, जो सभी बहुत समय से इन्तज़ार कर रहे हैं कि कुछ होना है, कुछ परिवर्तन आना है | तो इस पार्ट को देखते हुए सबके बुद्धि में कुछ नवीनता, परिवर्तन की भावना आ रही है | सभी को ऐसा लगता है, जैसेकि यह जा नहीं रहे हैं, लेकिन कुछ समीप ला रहे हैं | कुछ परिवर्तन, नवीनता का नक्शा सामने आने से जाने का संकल्प उसमें समा गया है | सबकी बुद्धि में यही है कि अब कुछ परिवर्तन की भूमिका बन रही है | बहुत समय से सबको यही संकल्प में रहता है कि कोई नई बात अब होनी चाहिए | बहुत समय वही सीन चलती रही है, कुछ नवीनता होनी चाहिए | यह निमित्त फारेन में जाने का जो पार्ट बना है उसमें सबके दिलों में जैसे ऑटोमेटिकली सबमें लहर है | किसको कहा नहीं गया है, लेकिन एक नया उमंग-उत्साह है | वहाँ तो उमंग में हैं लेकिन भारत में भी समझते हैं नवीनता होगी इसलिए सबको जैसे नई लहर ख़ुशी की है | समझते हैं – समीपता को पहुँचने का दिखाई दे रहा है, समीप नज़ारा आ रहा है – यह भासना आती है इसलिए जो विशेष आत्माएं हैं उन्हों का ही समय के साथ बहुत सम्बन्ध है | जैसे ब्रह्मा की आत्मा का समय के साथ गहरा कनेक्शन है, ब्रह्मा का जन्म और संगम का होना | अगर ब्रह्मा का पार्ट नहीं होता तो संगम भी नहीं होता | ब्रह्मा के साकार पार्ट की समाप्ति और अन्य पार्ट का आरम्भ होना, यह भी समय को समीप लाने का एक आधार है | ब्रह्मा के पार्ट की समाप्ति अर्थात् संगमयुग की समाप्ति | तो जैसे ब्रह्मा की आत्मा का समय के साथ गहरा सम्बन्ध है, वैसे ही जो फ़ालो करने वाली समीप आत्माएं हैं, उन्हों के हर कार्य का भी समय के साथ उतना ही समीप का सम्बन्ध है | वह जैसे समय की घड़ी बन जाते हैं | जैसे देखो, आप लोग जो निमित्त बने हुए हो, उन्हों के संकल्पों को रीड करते हैं | सब समय की तुलना करते हैं कि इन लोगों की स्टेज यहाँ तक पहुँच गई है | तो समय क्या दिखता है ! चेक तो करते हो ना? जैसे आप लोगों के सामने समय की घड़ी साकार बाप था | उनकी स्टेज को देखते आप लोग भी समझते थे जैसे कि कुछ होने वाला है | समीपता लग रही थी | जैसा फ़रिश्ता रूप, साकार नहीं है – ऐसा फ़ील होता था | तो समय की घड़ी हो गए ना | ऐसे आप लोग भी जो निमित्त हैं, वह भी समय की घड़ी हो | उस नज़र से ही आप लोगों को देखते हैं कि घड़ी क्या दिखा रही है | यह जो विदेश जाने का पार्ट है, यह भी जैसे विशेष घंटी बजी है – ऐसा अनुभव होगा |

परदादी से :-
ड्रामा आपको भी समीप पार्ट बजाने के निमित्त बनाता है | जैसे कल्प पहले बनाया था, वैसे अभी भी बनाते हैं | प्लान सोचने से नहीं होता है, लेकिन न चाहते भी ड्रामा का पार्ट निमित्त बना देता है | इसमें भी बड़ा रहस्य है | वरदान है आपको | लौकिक अलौकिक बाप के कुल का नाम बाला करने वाली निमित्त आत्मा हो | यह भी विशेष वरदान है इसलिए आपको देख करके दोनों याद आ जाते हैं | लौकिक भी फ़ीचर्स याद आयेंगे और फ़ीचर्स द्वारा जो फ्यूचर बनता है, वह भी याद आयेगा | आपके हर कदम में जो वरदान है – दोनों कुल का नाम बाला करना, वह समाया हुआ है इसलिए ड्रामा स्वयं ही सीट की तरफ़ खींचते जा रहे हैं | समय प्रति समय जो भी महावाक्य आत्माओं के प्रति बापदादा के उच्चारण किए हुए हैं, वह प्रैक्टिकल में आ रहे हैं | विशेष वरदान है और सर्विस का चान्स भी आपको विशेष है | डबल सर्विस करने का चान्स है आपको | सूरत द्वारा भी और सीरत द्वारा भी | इन लोगों की सूरत से अव्यक्त स्थिति होने से अनुभव करेंगे लेकिन आपकी सूरत चलते-फिरते ब्रह्मा बाप की सूरत और सीरत को प्रत्यक्ष करेगी | यह एक्स्ट्रा सर्विस की फील्ड हुई ना | जहाँ भी जायेंगेतो क्या कहेंगे? सबको बाप की भासना आती है ना? तो यह सूरत भी सर्विस के निमित्त बनी है | डबल सर्विस हुई ना?


दादी से :-

वर्तमान समय आप आत्मा के डबल रूप से आह्वान की लीला चल रही है | एक तरफ़ भक्त आत्माएं अनजान रूप में आह्वान कर रही हैं – अष्ट देव के रूप में | दूसरी तरफ़ ज्ञान स्वरूप होकर के ज्ञानी तू आत्मा बच्चे आह्वान कर रहे हैं | ऐसे ही आह्वान कर रहे हैं जैसे आपके जड़ चित्र अष्ट देव के रूप में करते हैं | लेकिन वह अनजान हैं, इसलिए उन्हों को वह रस नहीं आता | लेकिन उन्हों को आह्वान से भी वरदान की अनुभूति की प्राप्ति का अनुभव होगा, डबल आह्वान हो गया ना |

दो मूर्तियाँ जा रही हैं, तीन मूर्तियाँ जा रही हैं वा अष्ट ही जा रही हैं? यह भी एक विशेष लहर है ना | जो सब समझते हैं हम लोग भी जैसे साथ जा रहे हैं | इसका भी कारण? यह स्नेह के समीपता की निशानी है | जो इतना समय ड्रामानुसार निमित्त बन पार्ट बजाया है, उसका प्रत्यक्ष रूप रिटर्न स्वरूप देख रहे हैं | निमित्त बन पार्ट बजाने की रिज़ल्ट सामने आ रही है |

इस समय आप तीनों के पार्ट में – जैसे ब्रह्मा का पार्ट रचना का, विष्णु कर पार्ट पालना का, शंकर का पार्ट विनाश का दिखाते हैं | है तो ड्रामानुसार, लेकिन हर एक के साथ विशेषता दिखाई है | तो अभी-अभी बाप देख रहे हैं | तीनों का विशेष गुण कौन सा है? आप कौन सी मूर्त हो? वर्तमान पार्ट के प्रमाण तीनों का विशेष पार्ट प्रैक्टिकल है यह (दादी) तो निमित्त सर्व के उमंग, उत्साह और सेवा की फील्ड में नया मोड़ लाने के निमित्त आधारमूर्त बन जा रही है | तो यह आधारमूर्त हो जा रही है, और आपका (दीदी) सभी विशेष यह देख रहे हैं कि कितनी उद्धारमूर्त हैं, जो एक में दो को महसूस करते हैं | किसको निमित्त बनाना, यह उद्धारमूर्त हैं | और यह (परदादी) है उदाहरण मूर्त | उदाहरण दिखाया कि प्रैक्टिकल हम सब एक हैं | तो आधारमूर्त, उद्धारमूर्त और उदाहरणमूर्त | तीनों की विशेषता हुई ना | सर्विस के निमित्त बनी हुई हैं | यह दोनों भी वर्तमान समय बहुत अच्छी स्टेज पर हैं | समझती हैं एक साथ अंगुली देकर सेवा को बढ़ाना ही है | इस समय अच्छी रफ़्तार से सर्विस में मस्त आत्माएं दिखाई देती हैं | यह भी एक चारों ओर के वातावरण का प्रत्यक्ष रूप है | सबकी नज़र वहाँ हैं | अभी सबका शुभ संकल्प उस तरफ़ है | कुछ होने वाला है, वायुमण्डल का प्रभाव है |

संकल्प की सिद्धि का प्रत्यक्ष प्रमाण कैसे होता है? संकल्प किया और सिद्ध हुआ | वृत्ति और स्मृति द्वारा सेवा कैसे हो उसके ऊपर कुछ रूह-रिहान की? समय प्रमाण वाणी के साथ-साथ संकल्प अर्थात् स्मृति और वृत्ति अर्थात् शुभ भावना हो – इससे सर्विस बहुत अच्छी हो सकती है क्योंकि सुना हुआ तो रिपीटेशन समझते हैं | जो ज़्यादा सम्पर्क में आत्माएं हैं, वह प्वाईन्ट को कामन समझती हैं | लेकिन नये रूप की सेवा का उन्हों को भी तरीका सिखाओ | जब तक स्वयं अनुभवी नहीं तब तक कोई नई रुपरेखा चाहिए | नया अनुभव कराओ | संगठन में भी ऐसा सेवा का प्रोग्राम बनाकर कर सकते हो | विशेष लक्ष्य देकर बिठाओ | फिर उन्हों से अनुभव पूछो | बहुत अच्छा सुनायेंगे | जैसे वाणी द्वारा सेवा का बहुत अनुभव किया है – जो आप लोग की रचना है | अभी सर्विस में जो एडीशन चाहिए वह है संकल्प और वृत्ति द्वारा | इसके लिए प्लैन्स बनाओ | जब मज़ा आयेगा तब महसूस करेंगे, हमारी नवीनता की चढ़ती कला है | जैसे साइन्स वाले कोई न कोई इनवेन्शन करने में बिज़ी रहते हैं, इसी प्रकार से जो पाइंट चल चुकी हैं, उनकी गुह्यता में नए रूप की इनवेन्शन करने के लिए अमृतवेले लक्ष्य ले बैठेंगे तो टच होगा | नई-नई इनवेन्शन निकलेंगी जिससे औरों को भी नवीनता का अनुभव होगा | अच्छा!

वरदान:-  
आगे पीछे सोच समझकर हर कार्य करने वाले ज्ञानी तू आत्मा त्रिकालदर्शी भव
   

जो बच्चे त्रिकालदर्शी अर्थात् तीनों कालों का ज्ञान बुद्धि में रख, आगे पीछे सोच समझकर कर्म करते हैं उन्हें हर कर्म में सफलता मिलती है | ऐसे नहीं बहुत बिज़ी था इसलिए जो काम सामने आया वह करना शुरू कर दिया, नहीं | कोई भी कर्म करने के पहले यह आदत पड़ जाए कि पहले तीनों काल सोचना है | त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित होकर कर्म करो तो कोई भी कार्य व्यर्थ वा साधारण नहीं होगा |

स्लोगन:- 
अपने सन्तुष्ट और खुशनुमः जीवन से सेवा करो तब कहेंगे सच्चे सेवाधारी |  

ओम् शान्ति |