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08-11-13        प्रातःमुरली      ओम् शान्ति      “बापदादा”     मधुबन    Podcast      Pdf 


“मीठे बच्चे –ज्ञान योग की शक्ति से वायुमण्डल को शुद्ध बनाना है,
स्वदर्शन चक्र से माया पर जीत पानी है”
 

प्रशन:- किस एक बात से सिद्ध हो जाता है कि आत्मा कभी भी ज्योति में लीन नहीं होती ?

 

उत्तर:-  कहते हैं बनी बनाई बन रही......तो ज़रूर आत्मा अपना पार्ट रिपीट करती है | अगर ज्योति ज्योत में लीन हो जाए तो पार्ट समाप्त हो गया फिर अनादि ड्रामा कहना भी ग़लत हो जाता है | आत्मा एक पुराना चोला छोड़ दूसरा नया लेती है लीन नहीं होती |

 

 गीत:-  ओ दूर के मुसफ़िर.....  

ओम् शान्ति | 

अब जो योगी और ज्ञानी बच्चे हैं, जो औरों को समझा सकते हैं, वह इस गीत का अर्थ यथार्थ रीति समझ सकते हैं | जो भी मनुष्य मात्र हैं सब कब्रदाखिल हैं | कब्रदाखिल उनको कहा जाता है जिनकी ज्योति उझाई हुई होती है, जो तमोप्रधान हैं | जिन्होंने स्थापना की है और जन्म बाई जन्म पालना अर्थ निमित्त बने हुए हैं, उन सबने अपने जन्म पूरे कर लिए हैं | आदि से लेकर अन्त तक किस-किस धर्म की स्थापना हुई है – हिसाब निकल सकते हैं | हद का जो नाटक होता है उसमें भी मुख्य ड्रामा के क्रियेटर, डायरेक्टर, एक्टर जो होते हैं, उनका ही मान होता है | कितनी प्राइज़ मिलती है | जलवा दिखलाते हैं ना | तुम्हारा फिर है ज्ञान-योग का जलवा | अब मनुष्यों को यह तो पता नही कि मौत सामने है, हम इस ड्रामा के कितने जन्म लेते हैं, कहाँ से आते हैं? डिटेल सभी जन्मों को तो हम-तुम नहीं जान सकते हैं | बाकी इस समय हमारा भविष्य के लिए पुरुषार्थ चल रहा है | देवता तो बनेंगे परन्तु किस पद को पायेंगे, उसके लिए पुरुषार्थ करना है | तुम जानते हो इन लक्ष्मी-नारायण ने 84 जन्म लिए हैं | अब यह ज़रूर राजा-रानी बनेंगे | फ़ीचर्स भी जानते हैं | प्रैक्टिकल में साक्षात्कार कराते हैं | भक्ति मार्ग में भी साक्षात्कार होते हैं | वह तो जिसका ध्यान करते हैं उनका साक्षात्कार होता है | चित्र कृष्ण का सांवरा देखा, उसका ध्यान करेंगे तो ऐसा साक्षात्कार हो जायेया | बाकी कृष्ण ऐसा सांवरा है नहीं | मनुष्यों को इन बातों का ज्ञान तो कुछ भी रहता नहीं है | अभी तुम प्रैक्टिकल में हो | सूक्ष्म वतन में भी देखते हो, बैकुंठ में भी देखते हो | आत्मा और परमात्मा का ज्ञान है | आत्मा का ही साक्षात्कार होता है | यहाँ तुम जो साक्षात्कार करते हो उसकी तुम्हारे पास नॉलेज है | बाहर वालों को भल आत्मा का साक्षात्कार होता है परन्तु नॉलेज नहीं है | वह तो आत्मा सो परमात्मा कह देते हैं | आत्मा स्टार तो बरोबर है ही | यह तो बहुत दिखाई पड़ते हैं | जितने मनुष्य हैं उतनी ही आत्मायें हैं | मनुष्यों के शरीर इन आँखों से देखने में आते है | आत्मा को दिव्य दृष्टि द्वारा देखा जा सकता है | मनुष्यों के रंग-रूप भिन्न-भिन्न होते हैं वैसे आत्मा छोटी-बड़ी नहीं होती है | आत्मा की साइज़ एक ही है | अगर आत्मा ज्योति में लीन हो जाए तो पार्ट रिपीट कैसे करेगी? गाया भी जाता है बनी बनाई बन रही......यह अनादि वर्ल्ड ड्रामा चक्र लगता रहता है | यह तुम बच्चे जानते हो | मच्छरों सदृश्य आत्मायें वापस जाती हैं | मच्छरों को तो इन आँखों से देखा जाता है | आत्मा को दिव्य दृष्टि बिना देख नहीं सकते | सतयुग में तो आत्मा के साक्षात्कार की दरकार नहीं रहती | समझते हैं कि हम आत्मा को एक पुराना शरीर छोड़ दूसरा नया लेना है | परमात्मा को तो जानते ही नहीं | अगर परमात्मा को जानते तो सृष्टि चक्र को भी जानना चाहिए |

तो गीत में कहते हैं – हमको भी साथ ले लो | पिछाड़ी में बहुत पछताते हैं | सबको निमन्त्रण मिलता है | कितनी युक्तियाँ बन रही हैं निमन्त्रण देने की |

पीस-पीस तो सब करते हैं लेकिन पीस का अर्थ कोई भी समझते नहीं हैं | पीस कैसे होती है, वह तुम जानते हो | जैसे घानी में सरसों पीस जाते हैं वैसे सबके शरीर विनाश में ख़त्म हो जाते हैं | आत्मायें नहीं पिसेंगी | वह तो चली जायेंगी | ऐसे लिखा हुआ भी है कि आत्मायें मच्छरों सदृश्य भागती हैं | ऐसे तो नहीं सब परमात्मायें भागेंगे | मनुष्य कुछ भी समझते नहीं | आत्मा और परमात्मा में क्या भेद है, यह भी नहीं जानते | कहते हैं हम सब भाई-भाई हैं तो भाई-भाई होकर रहना चाहिए | उनको यह पता नहीं है कि सतयुग में भाई-भाई अथवा भाई-बहन सब आपस में क्षीरखण्ड होकर चलते हैं | वहाँ लूनपानी की बात ही नहीं है | यहाँ देखो अभी-अभी क्षीरखण्ड हैं, अभी-अभी लूनपानी हो जाते हैं | एक तरफ़ कहते हैं चीनी-हिन्दू भाई-भाई फिर उनका बुत बनाकर आग लगते रहते हैं | जिस्मानी भाई-भाई की यह हालत देखो | रूहानी सम्बन्ध को तो जानते नहीं | तुमको बाप समझाते हैं अपने को आत्मा समझना है | देह-अभिमान में फंसना नहीं है | कोई-कोई देह-अभिमान में फंस पड़ते हैं | बाप कहते हैं देह सहित देह के जो भी सम्बन्ध हैं, सबको छोड़ना है | यह मकान आदि सब भूलो | वास्तव में तुम परमधाम निवासी हो | अभी-अभी फिर वहाँ चलना है, जहाँ से पार्ट बजाने आये हैं, फिर हम तुमको सुख में भेज देंगे | तो बाप कहते हैं लायक बनना है | गॉड किंगडम स्थापन कर रहे हैं | क्राइस्ट की कोई किंगडम नहीं थी | वह तो बाद में जब लाखों क्रिश्चियन बने होंगे तब अपनी किंगडम बनाई होगी | यहाँ तो फट से सतयुगी राजाई बन जाती है | कितनी सहज बात है | बरोबर भगवान् ने आकर स्थापना की है | कृष्ण का नाम डालने से सारा घोटाला कर दिया है | गीता में है प्राचीन राजयोगी और ज्ञान | वह तो प्रायः लोप हो जाता है | अंग्रेजी अक्षर अच्छे हैं | तुम कहेंगे बाबा अंग्रेजी नहीं जानते | बाबा कहते हैं मैं कहाँ तक सब भाषायें बोलूंगा | मुख्य है ही हिन्दी | तो मैं हिन्दी में ही मुरली चलाता हूँ | जिसका शरीर धारण किया है वह भी हिन्दी ही जानता है | तो जो इनकी भाषा है वही मैं भी बोलता हूँ | और कोई भाषा में थोड़ेही पढ़ाऊंगा | मैं फ्रेन्च बोलूँ तो यह कैसे समझेगा? मुख्य तो इनकी (ब्रह्मा की) बात है | इनको तो पहले समझना है ना | दूसरे कोई का शरीर थोड़ेही लेंगे

गीत में भी कहते हैं मुझे ले चलो क्योंकि बाप और बाप के घर का तो किसको भी पता नहीं है | गपोड़ा मारते रहते हैं | अनेक मनुष्यों की अनेक मतें हैं इसलिए सूत मूंझा हुआ है | बाप देखो कैसे बैठे हुए हैं | यह चरण किसके हैं? (शिवबाबा के) वह तो हमारे हैं ना | मैंने लोन दिया है | शिवबाबा तो टैम्प्रेरी यूज़ करते हैं | वैसे यह चरण तो मेरे हैं ना | शिव के मन्दिर में चरण नहीं रखते हैं | चरण कृष्ण के रखते हैं | शिव तो हैं ऊँच ते ऊँच, तो उनके चरण कहाँ से आये | हाँ, शिवबाबा ने उधार लिया है | चरण तो ब्रह्मा के ही हैं | मन्दिरों में बैल दिखाया है | बैल पर सवारी कैसे होगी? बैल पर शिवबाबा कैसे चढ़ेंगे? सालिग्राम आत्मा सवारी करती है मनुष्य के तन पर | बाप कहते हैं मैं जो तुमको ज्ञान सुनाता हूँ वह प्रायः लोप हो गया है | आटे में नमक मिसल रह गया है | उसको कोई भी समझ नहीं सकते | मैं ही आकर उसका सार समझाता हूँ | मैंने ही श्रीमत देकर सृष्टि चक्र का राज़ समझाया था, उन्होंने फिर देवताओं को स्वदर्शन चक्र दिखा दिया है | उनके पास तो ज्ञान है नहीं | यह है सारी ज्ञान की बात | आत्मा को सृष्टि चक्र की नॉलेज मिलती है जिससे माया का सिर काटा जाता है | उन्होंने फिर स्वदर्शन चक्र असुरों के पिछाड़ी फेंकते हुए दिखाया है | इस स्वदर्शन चक्र से तुम माया पर जीत पाते हो | कहाँ की बात कहाँ ले गये हैं | तुम्हारे में भी कोई बिरले यह बातें धारण कर और समझा सकते हैं | नॉलेज है ऊँची | उसमें समय लगता है | पिछाड़ी में तुम्हारे में ज्ञान और योग की शक्ति रहती है | यह ड्रामा में नूंध है | उन्हों की बुद्धि भी नर्म होती जाती है | तुम वायुमण्डल को शुद्ध करते हो | कितना यह गुप्त ज्ञान है | लिखा हुआ है अजामिल जैसे पापियों का उद्धार किया परन्तु उसका अर्थ भी समझते नहीं | वह समझते हैं कि ज्योति ज्योत में समा गया | सागर में लीन हो गया | पांच पाण्डव हिमालय में गल गये | प्रलय हो गई | एक तरफ़ दिखाते हैं वह राजयोग सीखे फिर प्रलय दिखा दी है और फिर दिखाते हैं कि कृष्ण अंगूठा चूसता हुआ पीपल के पत्ते पर आया | उसका भी अर्थ नहीं समझते | वह तो गर्भ महल में था | अंगूठा तो बच्चे चूसते हैं | कहना की बात कहाँ लगा दी है | मनुष्य तो जो सुनते वह सत-सत कहते रहते हैं |

सतयुग को कोई जानते नहीं | झूठ उनको कहा जाता है जो चीज़ होती ही नहीं | जैसे कहते हैं परमात्मा का नाम-रूप है ही नहीं | परन्तु उनकी तो पूजा करते रहते हैं | तो परमात्मा है अति सूक्ष्म | उन जैसी सूक्ष्म चीज़ कोई है नहीं | 5 तत्व हैं | 5 तत्वों के शरीर में आकर प्रवेश करते हैं | वह कितनी सूक्ष्म चीज़ है | एकदम बिन्दी है | स्टार कितना छोटा है | यहाँ परमात्मा स्टार बाजू मी आकर बैठे तब तो बोल सके | कितनी सूक्ष्म बातें हैं | मोटी बुद्धि वाले तो ज़रा भी समझ न सकें | बाप कितनी अच्छी-अच्छी बातें समझाते हैं | ड्रामा अनुसार जो कल्प पहले पार्ट बजाया है, वही बजाते हैं | बच्चे समझते है बाबा रोज़ आकर नई-नई बातें सुनाते हैं, तो नया ज्ञान होगा ना | तो रोज़ पढ़ना पड़े | रोज़ कोई नहीं आते हैं तो फ्रैन्ड के पास जाकर पूछते हैं कि आज क्लास में क्या हुआ? यहाँ तो कोई पढ़ना ही छोड़ देते हैं | बस, कह देते हैं अविनाशी ज्ञान रत्नों का वर्सा नहीं चाहिए | अरे, पढ़ना छोड़ा तो तुम्हारा क्या हाल होगा? बाप से वर्सा क्या लेंगे? बस, तक़दीर में नहीं है | यहाँ स्थूल मिलकियत की तो कोई बात नहीं है, ज्ञान का ख़ज़ाना बाप से मिलता है | वह मिलकियत आदि तो सब कुछ विनाश होना है, उसका नशा कोई रख न सके | बाप से ही वर्सा मिलना है | तुम्हारे पास भल करोड़ों की मिलकियत है, वह भी मिट्टी में मिल जानी है | इस समय की ही सारी बात है | यह भी लिखा हुआ है किसकी दबी रहेगी धूल में, किसकी जलाये आग.......इस समय की बातें पिछाड़ी में चली आती हैं | विनाश तो अभी होना है | विनाश के बाद फिर है स्थापना | अभी वह स्थापना कर रहे हैं | वह है अपनी राजधानी | तुम दूसरों के लिए नहीं करते हो, जो कुछ करेंगे वह अपने लिए | जो श्रीमत पर चलेगा वह मालिक बनेगा | तुम तो नए विश्व में नए भारत के मालिक बनते हो | नई विश्व अर्थात् सतयुग में तुम मालिक थे | अभी यह पुराना युग है फिर तुमको पुरुषार्थ कराया जाता है नई दुनिया के लिए | कितनी अच्छी-अच्छी बातें समझने की हैं | आत्मा और परमात्मा का ज्ञान, सेल्फ रियलाइजेशन | सेल्फ का फादर कौन है? बाप कहते हैं मैं आता हूँ तुम आत्माओं को सिखलाने | अब फादर को रियलाइज़ किया है किया है फादर द्वारा | बाप समझाते हैं तुम हमारे सिकिलधे बच्चे हो | कल्प के बाद फिर से आकर मिले हो वर्सा लेने के लिए | तो पुरुषार्थ करना चाहिए ना | नहीं तो बहुत पछताना होगा, बहुत सज़ा खानी पड़ेगी | जो बच्चे बनकर और फिर कुकर्म करते हैं, उनकी तो बात मत पूछो | ड्रामा में देखो बाबा का कितना पार्ट है | सब कुछ दे दिया | बाबा फिर कहते हैं भविष्य 21 जन्मों के लिए रिटर्न दूंगा | आगे तुम इनडायरेक्ट देते थे तो भविष्य में एक जन्म के लिए देता था | अभी डायरेक्ट देते हो तो भविष्य 21 जन्मों के लिए इन्श्योर कर देता हूँ | डायरेक्ट, इनडायरेक्ट में कितना फ़र्क है | वह द्वापर-कलियुग के लिए इन्श्योर करते हैं ईश्वर को | तुम स्ग्युग-त्रेता के लिए इन्श्योर करते हो | डायरेक्ट होने के कारण 21 जन्मों के लिए मिलता है | अच्छा!

मीठे-मीठे सिकिलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार याद-प्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1.     अविनाशी बाप से अविनाशी ज्ञान रत्नों का ख़ज़ाना ले तक़दीरवान बनना है | नया ज्ञान, नई पढ़ाई रोज़ 
        पढ़नी है | वायुमण्डल को शुद्ध बनाने की सेवा करनी है |

2.     भविष्य 21 जन्मों के लिए अपना सब कुछ इन्श्योर कर देना है |
        बाप का बनने के बाद कोई भी कुकर्म नहीं करना है |

 

वरदान:-         महावीर बन हर संकल्प को स्वरूप में लाने वाले सदा विजयी सफलतामूर्त भव    

 

जो भी विशेष संकल्प लेते हो उसमें दृढ़ रहो, संकल्प करते ही उसका स्वरूप बन जाओ तो विजय का झण्डा लहरा जायेगा | ऐसे नहीं सोचो देखेंगे, करेंगे.....गे गे करना अर्थात् कमज़ोर बनना | ऐसे कमज़ोर संकल्प करना अर्थात् माया से हार खाना | सदा यही अमर अविनाशी संकल्प करो कि हम सदा के विजयी, महावीर हैं, सदा आगे बढ़ेंगे, विजयी बनेंगे | तो इस संकल्प से सफलतामूर्त बन जायेंगे |

स्लोगन:-     चेहरे पर ख़ुशी की झलक हो तो चेयरफुल चेहरा बोर्ड का काम करेगा |      

ओम् शान्ति |