10-11-13 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा”
रिवाइज: 21-05-77 मधुबन
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““संगमयुगी ब्राह्मण जीवन का विशेष गुण और कर्तव्य”
अपने वर्तमान संगमयुगी ब्राह्मण जीवन की विशेषता को जानते हो?
अपने विशेष गुण और कर्तव्य को जानते हो? जो गुण और कर्तव्य और
कोई भी युग में हो नहीं सकता, वह कौन सा विशेष गुण है?
नॉलेजफुल, मास्टर ज्ञान सागर और कर्तव्य है विश्व सेवाधारी
अर्थात् गॉडली सर्विसएबुल
|
दोनों विशेषताओं को निरन्तर स्मृति में रखते हो? आप लोग कहलाते
भी हो कि हम वर्ल्ड सर्वेन्ट हैं
|
वर्ल्ड सर्वेन्ट की परिभाषा क्या है? किसको वर्ल्ड सर्वेन्ट
कहा जाता है? उनके लक्षण क्या होते हैं? लक्ष्य क्या होता है
और प्राप्ति क्या होती है? विश्व सेवाधारी अर्थात् सर्विसएबुल
का लक्षण सदैव यही रहता है कि विश्व को अपनी सेवा द्वारा
सम्पन्न व सुखी बनावें
|
किससे? जो अप्राप्त वस्तु है, ईश्वरीय सुख, शान्ति और ज्ञान के
धन से, सर्व शक्तियों से, सर्व आत्माओं को भिखारी से अधिकारी
बनावें क्योंकि विश्व सेवाधारी सदा कल्याण और रहम की दृष्टि से
सबको देखते हैं इसीलिए सदा यही लक्ष्य रहता कि विश्व का
परिवर्तन करना ही है
|
यह लग्न रात-दिन रहती है
|
सेवाधारी के लक्षण क्या दिखाई देंगे? सेवाधारी अपना हर
सेकेण्ड, संकल्प, बोल और कर्म, सम्बन्ध, सम्पर्क, सेवा में ही
लगाते
|
सेवाधारी सेवा करने का विशेष समय नहीं निश्चित करते कि चार
घंटे वा छः घंटे के सेवाधारी हैं
|
हर कदम में अथक सेवा ही करते रहते
|
उनके देखने में, चलने में, खाने-पीने में, सबमें सेवा समाई हुई
होती है
|
मुख्य सेवा के स्थान – स्मृति, वृत्ति, दृष्टि और कृति इस
प्रकार से सेवा में तत्पर होगा
|
(अ) स्मृति द्वारा सर्व आत्माओं को समर्थी स्वरूप बनाएगा
|
(ब) वृत्ति द्वारा वायुमण्डल को पावन और शक्तिशाली बनायेगा (स)
दृष्टि द्वारा आत्माओं को स्वयं का और बाप का साक्षात्कार
करायेगा (द) कृति द्वारा श्रेष्ठ कर्म करने के अपने आप को
निमित्त बनाकर हिम्मत दिलाने की प्रेरणा दिलायेंगे
|
ऐसा सेवाधारी, स्वयं के रात-दिन के आराम को भी त्यागकर सेवा
में ही आराम महसूस करेंगे
|
ऐसे सेवाधारी हो? सेवाधारी के सम्पर्क में रहने वाली वा
सम्बन्ध में आने वाली आत्माएं उनकी समीपता वा साथ से ऐसा अनुभव
करेंगी जैसे शीतलता वा शक्ति, शान्ति के झरने के नीचे बैठे
हैं, वा कोई सहारे वा किनारे की प्राप्ति का अनुभव करेंगे ऐसे
सेवाधारी के संकल्प वा शुभ भावनाएं, शुभ कामनाएँ, सूर्य की
किरणों माफ़िक चारों ओर फैलेंगी
|
जैसे सेवाधारियों के जड़ चित्र अल्पकाल के लिए अल्पकाल की
कामनाएँ पूर्ण करते हैं, ऐसे चैतन्य चरित्रवान सेवाधारी सदाकल
के लिए सर्व कामनायें पूर्ण करते हैं इसलिए कामधेनु का गायन है
|
जैसे कोई खान सम्पन्न होती है तो जीवन चाहे, उतना सम्पन्न हो
सकता है
|
और ही हद की खान में विशेषता होगी
|
हद की खान से एक वस्तु मिलती
|
लेकिन यह विचित्र खान है जिसको जो चाहिए वह मिल सकता है
|
ऐसा सेवाधारी तड़फती हुई आत्माओं को सहज ही मंज़िल का अनुभव
कराते हैं
|
सदा हर्षित, सदा सन्तुष्ट इस प्राप्ति का वरदान, सेवाधारी को
स्वतः ही प्राप्त होता है क्योंकि वह जानते हैं कि हर आत्मा का
भिन्न पार्ट है
|
पार्टधारी के किसी भी प्रकार के पार्ट को देख, असन्तुष्ट न हो
|
ऐसे सेवाधारी के मन से सदैव हर्षित और सन्तुष्ट रहने के गीत
कौन से निकलते? वाह बाबा! वाह मेरा पार्ट! और वाह मीठा ड्रामा!
जब स्वयं सदा यह मन की गीत गाते तब ही सर्व आत्माएं भी अब भी
और सारे कल्प में भी उनकी वाह-वाह करती हैं
|
ऐसे सेवाधारी सदा विजय के मालाधारी होते हैं
|
सफलता स्वतः अधिकार है – इसी निश्चय और नशे में रहते हैं
|
सदा सम्पन्न और बाप के समीप अनुभव करते हैं
|
यह है सेवाधारियों की प्राप्ति
|
तो ऐसे लक्ष्य और लक्षण और प्राप्ति अनुभव करते हो? जब
ब्राह्मणों के जीवन का विशेष कर्तव्य ही यह है तो अपने कर्तव्य
को यथार्थ रीति से निभा रहे हो? एक है – बाप से प्रीत की रीति
निभाना, दूसरा है – कर्तव्य निभाना
|
तो दोनों निभाने वाले हो या सिर्फ़ कहने वाले हो? सिर्फ़ कहने
वाले तो नहीं हो ना? कहने वाले नहीं, करने वाले बनो! समझा!
सेवाधारियों का महत्व क्या है? अच्छा
|
ऐसे दिन रात सेवा में तत्पर रहने वाले, सम्पन्न बन सर्व को
सम्पन्न बनाने वाले, सर्व स्वरूप से आलराउन्ड सेवा करने वाले,
सदा सर्व प्रति कल्याण और रहम की भावना रखने वाले, ऐसे विशेष
सेवाधारियों को बापदादा का याद, प्यार और नमस्ते
|
“बाप
के डायरेक्ट बच्चे ही डबल पूजा के अधिकारी बनते हैं”
बापदादा हरेक बच्चे के भाग्य को देख हर्षित हो रहे हैं
|
सारे विश्व के अन्दर कोटों में कोई गाई हुई आत्माएं कितनी थोड़ी
सी हैं, जिन्होंने बाप को पाया है
|
न सिर्फ जाना, लेकिन जानने के साथ-साथ, जिसको पाना था, वो पा
लिया
|
ऐसे बाप के अति स्नेही, सहयोगी बच्चों के भाग्य को देख रहे थे
|
वैसे सर्व आत्माएं बच्चे हैं, लेकिन आप आत्माएं डायरेक्ट बच्चे
हो
|
शिव वंशी ब्रह्माकुमार और कुमारियां हो
|
सारे विश्व में जो भी अन्य आत्माएं धर्म के क्षेत्र में वा
राज्य के क्षेत्र में महान वा नामी-ग्रामी बने हैं,
धर्म-पिताएं बने हैं, जगत गुरु कहलाने वाले बने हैं; लेकिन
मात-पिता के सम्बन्ध से, अलौकिक जन्म और पालना किसी को भी
प्राप्त नहीं होती है
|
अलौकिक मात-पिता का अनुभव स्वप्न में भी नहीं करते
|
और आप श्रेष्ठ आत्माएं वा पदमापति आत्माएं हर रोज़ मात-पिता की
वा सर्व सम्बन्धों की याद प्यार लेने के पात्र हो
|
हर रोज़ यादप्यार मिलती है ना
|
न सिर्फ़ यादप्यार, लेकिन स्वयं सर्वशक्तिमान् बाप, आप बच्चों
का सेवक बन हर कदम में साथ निभाता है
|
अति स्नेह के सिर का ताज बनाकर नयनों का सितारा बनाकर, साथ ले
जाते हैं
|
ऐसा भाग्य जगत गुरु वा धर्म पिता का नहीं है, क्योंकि आप
श्रेष्ठ आत्माएं सम्मुख बाप के श्रीमत लेने वाली हो
|
प्रेरणा द्वारा व टचिंग द्वारा नहीं, सुख मिला है
|
जब कोई नाउम्मीदवार से उम्मीदवार बनता है वा असम्भव से सम्भव
बात होती है, तो कितना नशा और ख़ुशी होती है! ऐसा भाग्य अपना
सदैव स्मृति में रहता है?
सारे ड्रामा के अन्दर अन्य धर्म की आत्माओं को देखो और अपने को
देखो तो महान अन्तर है
|
पहली बात सुनाई कि डायरेक्ट बच्चे हो
|
मात-पिता वा सर्व सम्बन्धों का सुख का अनुभव करने वाले,
डायरेक्ट बच्चे होने के कारण, विश्व के राज्य का वर्सा सहज
प्राप्त हो जाता है
|
सृष्टि के आदिकाल सतयुग अर्थात् स्वर्ग की सतोप्रधान, सम्पूर्ण
प्राप्ति आप आत्माओं को ही प्राप्त होती है
|
और सर्व आत्माएं आती ही मध्यकाल में हैं
|
आप श्रेष्ठ आत्माओं का भोग हुआ सुख वा राज्य राजोप्रधान रूप
में प्राप्त करते है
|
जैसे आप आत्माओं को धर्म और राज्य दोनों प्राप्ति हैं, लेकिन
अन्य आत्माओं को धर्म है तो राज्य नहीं, राज्य है तो धर्म नहीं
क्योंकि द्वापर युग से धर्म और राज्य का दोनों पुर अलग-अलग हो
जाते हैं, जिसकी निशानी सारे ड्रामा के अन्दर डबल ताजधारी
सिर्फ़ आप हो
|
और कोई देखा है? और भी विशेषताएं हैं
|
सम्पूर्ण प्राप्ति अर्थात् तन, मन, धन, सम्बन्ध और प्रकृति के
सर्व सुख, जिसमें अप्राप्त कोई वस्तु नहीं, दुःख का नाम-निशान
नहीं – ऐसी श्रेष्ठ प्रप्ति अन्य कोई आत्मा को प्राप्त नहीं
होती है
|
डायरेक्ट बच्चे होने के कारण, ऊँच ते ऊँच बाप के सन्तान होने
के कारण, परम पूज्य पिता की सन्तान होने कारण आप आत्माएं भी
डबल रूप में पूजी जाती हो
|
एक सालिग्राम के रूप में, दूसरा देवी वा देवता के रूप में
|
ऐसे विधि पूर्वक पूज्य, धर्मपिता वा कोई भी नामी-ग्रामी आत्मा
नहीं बनती
|
कारण? क्योंकि तुम डायरेक्ट वंशावली हो
|
समझा कितने भाग्यशाली हो, जो स्वयं भगवान आपका भाग्य बाला करते
हैं ! तो सदा अपने ऐसे भाग्य को स्मृति में रखो
|
कमज़ोरी के गीत नहीं गाओ
|
भक्त कमज़ोरी के गीत गाते हैं और बच्चे भाग्य के गीत गाते हैं
|
तो अपने आप से पूछो कि भक्त हूँ वा बच्चा हूँ? समझा अपने
श्रेष्ठ भाग्य को
|
अच्छा
|
ऐसे पदमपदम भाग्यशाली, डायरेक्ट बाप की पहली रचना, सर्व
सम्बन्धों के सुख के अधिकारी, सर्व प्राप्ति के अधिकारी,
राज्यभाग्य के अधिकारी, डबल पूजा के अधिकारी, बाप के भी सिर के
ताजधारी, ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद, प्यार और
नमस्ते
|
वरदान:-
एक
बल एक भरोसे के आधार से सफलता प्राप्त करने वाले मास्टर
सर्वशक्तिमान भव
जो
सच्ची लगन वाले बच्चे एक बल एक भरोसे के आधार से चलते हैं
उन्हें सदा सफलता मिलती रही है और मिलती रहेगी क्योंकि सच्ची
लगन विघ्नों को सहज ही समाप्त कर देती है
|
जहाँ सर्वशक्तिमान बाप का साथ है, उस पर पूरा भरोसा है वहाँ
छोटी-छोटी बातें ऐसे समाप्त हो जाती हैं जैसे कुछ थी ही नहीं
|
असम्भव भी सम्भव हो जाता है
|
मक्खन से बल समान सब बातें सिद्ध हो जाती हैं
|
तो ऐसे अपने को मास्टर सर्वशक्तिमान समझ सफलता स्वरूप बनते चलो
|
स्लोगन:-
नयनों में पवित्रता की झलक हो और मुख पर पवित्रता की मुस्कराहट
हो –
यह श्रेष्ठ पर्सनैलिटी है
|
ओम्
शान्ति
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