06-09-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - याद की मेहनत तुम सबको करनी है,
तुम
अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो तो मैं तुम्हें सब पापों
से मुक्त कर दूँगा” 
प्रश्न:-
सर्व
की सद्गति का स्थान कौन-सा है,
जिसके महत्व का सारी दुनिया को पता चलेगा?
उत्तर:-
आबू
भूमि है सबकी सद्गति का स्थान । तुम ब्रह्माकुमारीज़ के सामने
ब्रैकेट में लिख सकते हो यह सर्वोत्तम तीर्थ स्थान है । सारे
दुनिया की सद्गति यहाँ से होनी है । सर्व का सद्गति दाता बाप
और आदम (ब्रह्मा) यहाँ पर बैठकर सबकी सद्गति करते हैं । आदम
अर्थात् आदमी,
वह
देवता नहीं है । उसे भगवान् भी नहीं कह सकते ।
ओम्
शान्ति |
डबल
ओम् शान्ति क्योंकि एक है बाप की,
दूसरी है दादा की । दोनों की आत्मा है ना । वह है परम आत्मा,
यह
है आत्मा । वह भी लक्ष्य बतलाते हैं कि हम परमधाम के रहवासी
हैं,
दोनों ऐसे कहते हैं । बाप भी कहते हैं ओम् शान्ति,
यह
भी कहते हैं ओम् शान्ति । बच्चे भी कहते हैं ओम् शान्ति
अर्थात् हम आत्मा शान्तिधाम की निवासी हैं । यहाँ अलग- अलग
होकर बैठना है । अंग से अंग नहीं मिलना चाहिए क्योंकि हर एक की
अवस्था में,
योग
में रात-दिन का फर्क है । कोई बहुत अच्छा याद करते हैं,
कोई
बिल्कुल याद नहीं करते । तो जो बिल्कुल याद नहीं करते - वह हैं
पाप आत्मा,
तमोप्रधान और जो याद करते हैं वह हो गये पुण्य आत्मा,
सतोप्रधान । बहुत फर्क हो गया ना । घर में भल इकट्ठे रहते हैं
परन्तु फर्क तो पड़ता है ना इसलिए ही तो भागवत में आसुरी नाम
गाये हुए हैं । इस समय की ही बात है । बाप बैठ बच्चों को
समझाते हैं-यह हैं ईश्वरीय चरित्र,
जो
भक्ति मार्ग में गाते हैं । सतयुग में तो कुछ भी याद नहीं
रहेगा,
सब
भूल जायेंगे । बाप अभी ही शिक्षा देते हैं । सतयुग में तो यह
बिल्कुल भूल जाते हैं,
फिर
द्वापर में शास्त्र आदि बनाते हैं और कोशिश करते हैं राजयोग
सिखलाने की । परन्तु राजयोग तो सिखा न सकें । वह तो बाप जब
सम्मुख आते हैं तब ही आकर सिखलाते हैं । तुम जानते हो कैसे बाप
राजयोग सिखलाते हैं । फिर 5 हजार वर्ष बाद आकर ऐसे ही
कहेंगे-मीठे-मीठे रूहानी बच्चों,
ऐसे
कभी भी कोई मनुष्य,
मनुष्य को कह न सकें । न देवतायें,
देवताओं को कह सकते हैं । एक रूहानी बाप ही रूहानी बच्चों को
कहते हैं - एक बार पार्ट बजाया फिर 5 हजार वर्ष के बाद पार्ट
बजायेंगे क्योंकि फिर तुम सीढ़ी उतरते हो ना । तुम्हारी बुद्धि
में अब आदि-मध्य- अन्त का राज है । जानते हो वह है शान्तिधाम
अथवा परमधाम । हम आत्मायें भिन्न-भिन्न धर्म की सब नम्बरवार
वहाँ रहती हैं,
निराकारी दुनिया में । जैसे स्टार्स देखते हो ना-कैसे खड़े हैं,
कुछ
देखने में नहीं आता । ऊपर में कोई चीज़ नहीं है । ब्रह्म तत्व
है । यहाँ तुम धरती पर खड़े हो,
यह
है कर्म क्षेत्र । यहाँ आकर शरीर लेकर कर्म करते हैं । बाप ने
समझाया है तुम जब मेरे से वर्सा पाते हो तो 21 जन्म तुम्हारे
कर्म अकर्म हो जाते हैं क्योंकि वहां रावण राज्य ही नहीं होता
है । वह है ईश्वरीय राज्य जो अब ईश्वर स्थापन कर रहे हैं ।
बच्चों को समझाते रहते हैं - शिवबाबा को याद करो तो स्वर्ग के
मालिक बनो । स्वर्ग शिवबाबा ने स्थापन किया ना । तो शिवबाबा को
और सुखधाम को याद करो । पहले-पहले शान्तिधाम को याद करो तो
चक्र भी याद आयेगा । बच्चे भूल जाते हैं,
इसलिए घड़ी- घड़ी याद कराना पड़ता है । हे मीठे-मीठे बच्चों,
अपने
को आत्मा समझो और बाप को याद करो तो तुम्हारे पाप भस्म हों ।
प्रतिज्ञा करते हैं तुम याद करेंगे तो पापों से मुक्त करूँगा ।
बाप ही पतित-पावन सर्वशक्तिमान् अथॉरिटी हैं,
उनको
वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी कहा जाता है । वह सारे सृष्टि के
आदि-मध्य- अन्त को जानते हैं । वेदों-शास्रों आदि सबको जानते
हैं तब तो कहते हैं इनमें कोई सार नहीं है । गीता में भी कोई
सार नहीं है । भल वह सर्व शास्त्रमई शिरोमणी है माई बाप,
बाकी
सब हैं बच्चे । जैसे पहले-पहले प्रजापिता ब्रह्मा है,
बाकी
सब बच्चे हैं । प्रजापिता ब्रह्मा को आदम कहते हैं । आदम माना
आदमी । मनुष्य है ना,
तो
इनको देवता नहीं कहेंगे । एडम को आदम कहते हैं । भक्त लोग
ब्रह्मा एडम को देवता कह देते । बाप बैठ समझाते हैं एडम
अर्थात् आदमी । न देवता है,
न
भगवान् है । लक्ष्मी-नारायण हैं देवता । डिटीज्म है पैराडाइज़
में । नई दुनिया है ना । वह है वन्डर ऑफ दी वर्ल्ड । बाकी तो
वह सब हैं माया के वन्डर । द्वापर के बाद माया के वन्डर्स होते
हैं । ईश्वरीय वन्डर है-हेविन,
स्वर्ग,
जो
बाप ही स्थापन करते हैं । अभी स्थापन हो रहा है । यह जो
देलवाड़ा मन्दिर है,
इसकी
वैल्यूज का किसको भी पता नहीं है । मनुष्य यात्रा करने जाते
हैं,
तो
सबसे अच्छा तीर्थ स्थान यह है । तुम लिखते हो ना ब्रह्माकुमारी
ईश्वरीय विश्व-विद्यालय,
आबू
पर्वत । तो ब्रैकेट में यह भी लिखना चाहिए - (सर्वोत्तम तीर्थ
स्थान) क्योंकि तुम जानते हो सर्व की सद्गति यहाँ से होती है ।
यह कोई जानते नहीं । जैसे सर्व शास्त्रमई शिरोमणी गीता है वैसे
सर्व तीर्थों में श्रेष्ठ तीर्थ आबू है । तो मनुष्य पढ़ेंगे,
अटेंशन जायेगा । सारे वर्ल्ड के तीर्थों में यह है सबसे बड़ा
तीर्थ,
जहाँ
बाप बैठ सबकी सद्गति करते हैं । तीर्थ तो बहुत हो गये हैं ।
गांधी की समाधि को भी तीर्थ समझते हैं । सब जाकर वहाँ फूल आदि
चढ़ाते हैं,
उनको
कुछ पता नहीं है । तुम बच्चे जानते हो ना - तो तुमको यहाँ बैठे
दिल अन्दर बड़ी खुशी होनी चाहिए । हम हेविन की स्थापना कर रहे
हैं । अब बाप कहते हैं- अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो । पढ़ाई
भी बहुत सहज है । कुछ भी खर्चा नहीं लगता है । तुम्हारी मम्मा
को एक पाई खर्चा लगा?
बिगर
कौड़ी खर्चा पढ़कर कितनी होशियार नम्बरवन बन गई । राजयोगिन बन गई
ना । मम्मा जैसी कोई भी नहीं निकली है ।
देखो,
आत्माओं को ही बाप बैठ पढ़ाते हैं । आत्माओं को ही राज्य मिलता
है,
आत्मा ने ही राज्य गँवाया है । इतनी छोटी- सी आत्मा कितना काम
करती है । बुरे ते बुरा काम है विकार में जाना । आत्मा 84
जन्मों का पार्ट बजाती है । छोटी-सी आत्मा में कितनी ताकत है!
सारे विश्व पर राज्य करती है । इन देवताओं की आत्मा में कितनी
ताकत है । हर एक धर्म में अपनी- अपनी ताकत होती है ना ।
क्रिस्चियन धर्म में कितनी ताकत है । आत्मा में ताकत है जो
शरीर द्वारा कर्म करती है । आत्मा ही यहाँ आकर इस कर्मक्षेत्र
पर कर्म करती है । वहाँ बुरा कर्तव्य होता नहीं । आत्मा विकारी
मार्ग में जाती ही तब है जब रावणराज्य होता है । मनुष्य तो कह
देते विकार सदैव हैं ही । तुम समझा सकते हो वहाँ रावणराज्य ही
नहीं तो विकार हो कैसे सकते । वहाँ है ही योगबल । भारत का
राजयोग मशहूर है । बहुत सीखना चाहते हैं परन्तु जब तुम सिखलाओ
। और तो कोई सिखला न सके । जैसे महर्षि था,
कितनी मेहनत करता था योग सिखलाने के लिए । परन्तु दुनिया
थोड़ेही जानती कि यह हठयोगी राजयोग कैसे सिखलायेंगे ।
चिन्मियानंद के पास कितने जाते हैं,
एक
बार वह कह दें कि सचमुच भारत का प्राचीन राजयोग सिवाए बी .के.
के कोई समझा नहीं सकते हैं तो बस । परन्तु ऐसा कायदा नहीं है,
जो
अभी यह आवाज हो । सब थोड़ेही समझेंगे । बड़ी मेहनत है,
महिमा भी होगी पिछाड़ी में,
कहते
हैं ना - अहो प्रभू,
अहो
शिवबाबा आपकी लीला । अभी तुम समझते हो तुम्हारे सिवाए बाप को
सुप्रीम बाप,
सुप्रीम टीचर,
सुप्रीम सतगुरू और कोई समझते नहीं । यहाँ भी बहुत हैं,
जिनको चलते-चलते माया हैरान कर देती है तो बिल्कुल बेसमझ बन
पडते हैं । बड़ी मंजिल है । युद्ध का मैदान है,
इसमें माया विघ्न बहुत डालती है । वो लोग विनाश के लिए तैयारी
कर रहे हैं । तुम यहाँ 5 विकारों को जीतने के लिए पुरूषार्थ कर
रहे हो । तुम विजय के लिए,
वह
विनाश के लिए पुरूषार्थ कर रहे हैं । दोनों काम इकट्ठा होगा ना
। अभी टाइम पड़ा है । हमारा राज्य थोड़ेही स्थापन हुआ है ।
राजाएं,
प्रजा अभी सब बनने हैं । तुम आधाकल्प के लिए बाप से वर्सा लेते
हो । बाकी मोक्ष तो कोई को मिलता नहीं । वह लोग भल कहते हैं
फलाने ने मोक्ष को पाया,
मरने
के बाद उनको थोड़ेही मालूम है कि कहाँ गया । ऐसे ही गपोड़े मारते
रहते हैं ।
तुम
जानते हो जो शरीर छोड़ते हैं वह फिर दूसरा शरीर जरूर लेंगे ।
मोक्ष पा नहीं सकते । ऐसे नहीं कि बुदबुदा पानी में लीन हो
जाता है । बाप कहते हैं - यह शास्त्र आदि सब भक्ति मार्ग की
सामग्री है । तुम बच्चे सम्मुख सुनते हो । गर्म-गर्म हलुआ खाते
हो । सबसे जास्ती गर्म हलुआ कौन खाते हैं?
(ब्रह्मा)
यह तो बिल्कुल उनके बाजू में बैठे हैं । झट सुनते हैं और धारण
करते हैं फिर यही ऊंच पद पाते हैं । सूक्ष्मवतन में,
वैकुण्ठ में इनका ही साक्षात्कार करते हैं । यहाँ भी उनको ही
देखते हैं इन आखों से । बाप पढ़ाते तो सबको हैं । बाकी है याद
की मेहनत । याद में रहना जैसे तुमको डिफीकल्ट लगता है,
वैसे
इनको भी । इसमें कोई कृपा की बात नहीं । बाप कहते हैं हमने लोन
लिया है,
उनका
हिसाब-किताब दे देंगे । बाकी याद का पुरूषार्थ तो इनको भी करना
है । समझता भी हूँ - बाजू में बैठा है । बाप को हम याद करते
फिर भी भूल जाता हूँ । सबसे जास्ती मेहनत इनको करनी पड़ती है ।
युद्ध के मैदान में जो महारथी पहलवान होते हैं,
जैसे
हनूमान का मिसाल है,
तो
उनकी ही माया ने परीक्षा ली क्योंकि वह महावीर था । जितना
जास्ती पहलवान उतना जास्ती माया परीक्षा लेती है । तूफान
जास्ती आते हैं । बच्चे लिखते हैं - बाबा हमको यह-यह होता है ।
बाबा कहते हैं यह तो सब कुछ होगा । बाबा रोज़ समझाते हैं -
खबरदार रहना । लिखते हैं - बाबा,
माया
बहुत तूफान लाती है । कोई-कोई देह- अभिमानी होते हैं तो बाबा
को बतलाते नहीं है । तुम अभी बहुत अक्लमंद बनते हो । आत्मा
पवित्र होने से फिर शरीर भी पवित्र मिलता है । आत्मा कितना
चमत्कारी हो जाती है । पहले तो गरीब ही उठाते हैं । बाप भी
गरीब निवाज गाया हुआ है । बाकी तो वो लोग देरी से आयेंगे । तुम
समझते हो जब तक भाई-बहन नहीं बने हैं तो भाई- भाई कैसे बनेंगे
। प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान तो भाई-बहन ठहरे ना । फिर बाप
समझाते हैं भाई- भाई समझो । यह है पिछाड़ी का सम्बन्ध फिर ऊपर
भी भाइयों से जाकर मिलेंगे । फिर सतयुग में नया सम्बन्ध शुरू
होगा । वहाँ पर साला,
चाचा,
मामा
आदि बहुत सम्बन्ध नहीं होते । सम्बन्ध बहुत हल्का होता है ।
फिर बढ़ता जाता है । अब तो बाप कहते हैं भाई-बहन भी नहीं,
भाई-
भाई समझना है । नाम-रूप से भी निकल जाना है । बाप भाइयों
(आत्माओं) को ही पढ़ाते हैं । प्रजापिता ब्रह्मा है,
तब
भाई-बहन है ना । कृष्ण तो खुद ही बच्चा है । वह कैसे भाई- भाई
बनायेंगे । गीता में भी यह बातें नहीं हैं । यह है बिल्कुल
न्यारा ज्ञान । ड्रामा में सब नूँध है । एक सेकण्ड का पार्ट न
मिले दूसरे सेकण्ड से । कितने मास,
कितने घण्टे,
कितने दिन पास होने हैं,
फिर
5 हजार वर्ष के बाद ऐसे ही पास होंगे । कम बुद्धि वाले तो इतनी
धारणा कर न सकें । इसलिए बाप कहते हैं यह तो बहुत सहज है -
अपने को आत्मा समझो,
बेहद
के बाप को याद करो । पुरानी दुनिया का विनाश भी होना है । बाप
कहते हैं मैं आता ही तब हूँ जबकि संगम है । तुम ही देवी- देवता
थे । यह जानते हो जब इनका राज्य था तब और कोई धर्म नहीं था ।
अभी तो इन्हों का राज्य है नहीं । अच्छा ।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
अब पिछाड़ी का समय है,
वापस घर
चलना है इसलिए अपनी बुद्धि नाम-रूप से निकाल देनी है । हम
आत्मा भाई- भाई हैं - यह अभ्यास करना है । देह- अभिमान में
नहीं आना है ।
2.
हर एक की अवस्था और योग में रात-दिन का फर्क
है इसलिए अलग- अलग होकर बैठना है । अंग,
अंग से
न लगे । पुण्य आत्मा बनने के लिए याद की मेहनत करनी है ।
वरदान:-
बाप
के फरमान पर बुद्धि को खाली रखने वाले व्यर्थ वा विकारी
स्वप्नों से भी मुक्त भव
!
बाप
का फरमान है कि सोते समय सदा अपने बुद्धि को क्लीयर करो,
चाहे
अच्छा,
चाहे
बुरा सब बाप के हवाले कर अपनी बुद्धि को खाली करो । बाप को
देकर बाप के साथ सो जाओ । अकेले नहीं । अकेले सोते हो या
व्यर्थ बातों का वर्णन करते-करते सोते हो तब व्यर्थ वा विकारी
स्वप्न आते हैं । यह भी अलबेलापन है । इस अलबेलेपन को छोड़
फरमान पर चलो तो व्यर्थ वा विकारी स्वप्नों से मुक्त हो
जायेंगे ।
स्लोगन:-
तकदीरवान
आत्मायें ही सच्ची सेवा द्वारा सर्व की आशीर्वाद प्राप्त करती
हैं । 
ओम्
शान्ति |