19-09-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - तुम सर्व आत्माओं को कर्मबन्धन से सैलवेज़ करने वाले
सैलवेशन आर्मी हो,
तुम्हें
कर्मबन्धन में नहीं फंसना है” 
प्रश्न:-
कौन-सी प्रैक्टिस करते रहो तो आत्मा बहुत-बहुत शक्तिशाली बन
जायेगी?
उत्तर:-
जब भी
समय मिले तो शरीर से डिटैच होने की प्रैक्टिस करो । डिटैच होने
से आत्मा में शक्ति वापिस आयेगी,
उसमें
बल भरेगा । तुम अण्डर-ग्राउण्ड मिलेट्री हो,
तुम्हें डायरेक्शन मिलता है - अटेंशन प्लीज अर्थात् एक बाप की
याद में रहो,
अशरीरी हो जाओ ।
ओम्
शान्ति |
ओम्
शान्ति का अर्थ तो बाप ने अच्छी रीति समझाया है । जहाँ
मिलेट्री खड़ी होती है वह फिर कहते हैं अटेंशन,
उन
लोगों का अटेंशन माना साइलेन्स । यहाँ भी तुमको बाप कहते हैं
अटेंशन अर्थात् एक बाप की याद में रहो । मुख से बोलना होता है,
नहीं
तो वास्तव में बोलने से भी दूर होना चाहिए । अटेंशन,
बाप
की याद में हो?
बाप
का डायरेक्शन अथवा श्रीमत मिलती है,
तुमने आत्मा को भी पहचाना है,
बाप
को भी पहचाना है तो बाप को याद करने बिगर तुम विकर्माजीत अथवा
सतोप्रधान पवित्र नहीं बन सकते । मूल बात ही यह है,
बाप
कहते हैं मीठे-मीठे लाडले बच्चों! अपने को आत्मा समझ बाप को
याद करो । यह हैं सब इस समय की बातें,
जो
फिर वह उस तरफ ले गये हैं । वह भी मिलेट्री है,
तुम
भी मिलेट्री हो । अन्डरग्राउण्ड मिलेट्री भी होती है ना । गुम
हो जाते हैं । तुम भी अन्डरग्राउण्ड हो । तुम भी गुम हो जाते
अर्थात् बाप की याद में लीन हो जाते हो । इसको कहा जाता है
अन्डरग्राउण्ड । कोई पहचान न सके क्योंकि तुम गुप्त हो ना ।
तुम्हारी याद की यात्रा गुप्त है,
सिर्फ बाप कहते हैं मुझे याद करो क्योंकि बाप जानते हैं याद से
इन बिचारों का कल्याण होगा । अब तुमको बिचारा कहेंगे ना ।
स्वर्ग में बिचारे होते नहीं । बिचारे उनको कहा जाता है जो
कहाँ बन्धन में फंसे रहते हैं । यह भी तुम समझते हो,
बाप
ने समझाया है - तुमको लाइट हाउस भी कहा जाता है । बाप को भी
लाइट हाउस कहा जाता है । बाप घड़ी-घड़ी समझाते हैं एक आँख में
शान्तिधाम,
दूसरी आँख में सुखधाम रखो । तुम जैसे लाइट हाउस हो । उठते,
बैठते,
चलते
तुम लाइट होकर रहो । सबको सुखधाम-शान्तिधाम का रास्ता बताते
रहो । इस दु :खधाम में सबकी नईया अटक पड़ी है तब तो कहते हैं
नईया मेरी पार लगाओ । हे मांझी । सबकी नईया फंसी पड़ी है,
उनको
सैलवेज कौन करे?
वह
कोई सैलवेशन आर्मी तो है नहीं । ऐसे ही नाम रख दिया है ।
वास्तव में सैलवेशन आर्मी तो तुम हो जो हर एक को सैलवेज़ करते
हो । सब 5 विकारों की जंजीरों में अटक पड़े हैं इसलिए कहते हैं
हमको लिबरेट करो,
सैलवेज करो । तो बाप कहते हैं कि इस याद की यात्रा से तुम पार
हो जायेंगे । अभी तो सब फंसे हुए हैं । बाप को बागवान भी कहते
हैं । इस समय की ही सभी बातें हैं । तुमको फूल बनना है,
अभी
तो सब कांटे हैं क्योंकि हिंसक हैं । अभी अहिंसक बनना है ।
पावन बनना है । जो धर्म स्थापन करने आते हैं,
वह
तो पवित्र आत्मायें ही आती हैं । वह तो अपवित्र हो न सके ।
पहले-पहले जब आते हैं तो पवित्र होने कारण उनकी आत्मा वा शरीर
को दु :ख मिल न सके क्योंकि उन पर कोई पाप है नहीं । हम जब
पवित्र हैं तो कोई पाप नहीं होता है तो दूसरों का भी नहीं होता
है । हर एक बात पर विचार करना होता है । वहाँ से आत्मायें आती
हैं धर्म स्थापन करने । जिनकी फिर डिनायस्टी भी चलती है ।
सिक्ख धर्म की भी डिनायस्टी है । सन्यासियों की डिनायस्टी
थोड़ेही चलती है,
राजायें थोड़ेही बने हैं । सिक्ख धर्म में महाराजा आदि हैं तो
वह जब आते हैं स्थापना करने तो वह नई आत्मा आती है । क्राइस्ट
ने आकर क्रिस्चियन धर्म स्थापन किया,
बुद्ध ने बौद्धी,
इब्राहिम ने इस्लाम - सबके नाम से राशि मिलती है । देवी- देवता
धर्म का नाम नहीं मिलता है । निराकार बाप ही आकर देवी-देवता
धर्म की स्थापना करते हैं । वह देहधारी नहीं हैं । और जो धर्म
स्थापक हैं उनकी देह के नाम हैं,
यह
तो देहधारी नहीं । डिनायस्टी नई दुनिया में चलती है । तो बाप
कहते हैं-बच्चे,
अपने
को रूहानी मिलेट्री जरूर समझो । उन मिलेट्री आदि के कमान्डर
आदि आते हैं,
कहते
हैं अटेंशन,
तो
झट खड़े हो जाते हैं । अब वह तो हर एक अपने- अपने गुरू को याद
करेंगे या शान्त में रहेंगे। परन्तु वह झूठी शान्ति हो जाती है
। तुम जानते हो हम आत्मा हैं,
हमारा धर्म ही शान्त है । फिर याद किसको करना है । अभी तुमको
ज्ञान मिलता है । ज्ञान सहित याद में रहने से पाप कटते हैं ।
यह ज्ञान और कोई को नहीं है । मनुष्य यह थोड़ेही समझते हैं - हम
आत्मा शान्त स्वरूप हैं । हमको शरीर से डिटैच हो बैठना है ।
यहाँ तुमको वह बल मिलता है जिससे तुम अपने को आत्मा समझ बाप की
याद में बैठ सकते हो । बाप समझाते हैं-कैसे अपने को आत्मा समझ
डिटैच होकर बैठो ।
तुम
जानते हो हम आत्माओं को अब वापिस जाना है । हम वहाँ के रहने
वाले हैं । इतने दिन घर भूल गये थे,
और
कोई थोड़ेही समझते हैं-हमको घर जाना है । पतित आत्मा तो वापिस
जा न सके । न कोई ऐसा समझाने वाला है कि किसको याद करो । बाप
समझाते हैं-याद एक को ही करना है । और कोई को याद करने से क्या
फायदा! समझो,
भक्ति मार्ग में शिव- शिव कहते रहते हैं,
मालूम तो किसको है नहीं कि इससे क्या होगा । शिव को याद करने
से पाप कटेंगे-यह किसको भी पता नहीं है । आवाज सुनाई देगा । सो
तो जरूर आवाज होगा ही । इन सब बातों से कोई फायदा नहीं । बाबा
तो इन सब गुरूओं से अनुभवी है ना ।
बाप
ने कहा है ना-हे अर्जुन,
इन
सबको छोड़ो...... सतगुरू मिला तो इन सबकी दरकार नहीं । सतगुरू
तारता है । बाप कहते हैं - मैं तुम्हें आसुरी संसार से पार ले
जाता हूँ । विषय सागर से पार जाना है । यह सब बातें समझाने की
हैं । मांझी तो वैसे नांव चलाने वाला होता है परन्तु समझाने
लिए यह नाम पड़ गये हैं । उनको कहा जाता है-प्राणेश्वर बाबा
अर्थात् प्राणों का दान देने वाले बाबा,
वह
अमर बना देते हैं । प्राण आत्मा को कहा जाता है । आत्मा निकल
जाती है तो कहते हैं प्राण निकल गये । फिर शरीर को रखने भी
नहीं देते हैं । आत्मा है तो शरीर भी तन्दुरूस्त है । आत्मा
बिगर तो शरीर में ही बांस हो जाती है । फिर उनको रख करके क्या
करेंगे । जानवर भी ऐसा नहीं करेंगे । सिर्फ एक बन्दर है,
उनका
बच्चा मर जाता है,
बांस
होती है तो भी उस मुर्दे को छोड़ेंगे नहीं,
लटकाये रहेंगे । वह तो जानवर है,
तुम
तो मनुष्य हो ना । शरीर छोड़ा तो कहेंगे जल्दी उनको बाहर निकालो
। मनुष्य कहेंगे स्वर्ग पधारा । जब मुर्दे को उठाते हैं तो
पहले पैर शमशान तरफ करते हैं । फिर जब वहाँ अन्दर घुसते हैं,
पूजा
आदि कर समझते हैं अभी यह स्वर्ग जा रहा है तो उसे फिराकर मुंह
शमशान तरफ कर देते हैं । तुमने कृष्ण को भी एक्यूरेट दिखाया है,
नर्क
को लात मार रहा है । कृष्ण का यह शरीर तो नहीं है,
उनका
नाम रूप तो बदलता है । कितनी बातें बाप समझाकर फिर कहते हैं -
मनमनाभव ।
यहाँ
आकर जब बैठते हो तो अटेंशन । बुद्धि बाप में लगी रहे ।
तुम्हारा यह अटेंशन फार एवर (सदा के लिऐ है । जब तक जीना है,
बाप
को याद करना है । याद से ही जन्म-जन्मान्तर के पाप कटते हैं ।
याद ही नहीं करेंगे तो पाप भी नहीं कटेंगे । बाप को याद करना
है,
याद
में आंखें कभी बन्द नहीं करनी है । सन्यासी लोग आंखें बन्दकर
बैठते हैं । कोई-कोई तो स्त्री का मुंह नहीं देखते हैं । पट्टी
बांधकर बैठते हैं । तुम जब यहाँ बैठते हो तो रचता और रचना के
आदि-मध्य- अन्त का स्वदर्शन चक्र फिराना चाहिए । तुम लाइट हाउस
हो ना । यह है दु :खधाम,
एक
आँख में दु :खधाम,
दूसरी आँख में सुखधाम । उठते-बैठते अपने को लाइट हाउस समझो ।
बाबा भिन्न-भिन्न नमूने से बताते हैं । तुम अपनी भी सम्भाल
करते हो । लाइट हाउस बनने से अपना कल्याण करते हो । बाप को याद
जरूर करना है,
जब
कोई रास्ते में मिले तो उनको बताना है । पहचान वाले भी बहुत
मिलते हैं,
वह
तो एक-दो को राम-राम करते हैं,
उनको
बोलो आपको पता है यह दु :खधाम है,
वह
है शान्तिधाम और सुखधाम । आप शान्तिधाम-सुखधाम में चलना चाहते
हो?
यह 3
चित्र किसको समझाना तो बहुत सहज है । आपको इशारा देते हैं ।
लाइट-हाउस भी इशारा देता है । यह नईया है जो रावण की जेल में
लटक पड़ी है । मनुष्य,
मनुष्य को सैलवेज कर नहीं सकते । वह तो सब हैं आर्टीफिशयल हद
की बातें । यह है बेहद की बात । सोशल सोसायटी की सेवा भी वह
नहीं है । वास्तव में सच्ची सेवा यह है-सभी का बेड़ा पार करना
है । तुम्हारी बुद्धि में है मनुष्यों की क्या सर्विस करें ।
पहले
तो कहना है तुम गुरू करते हो - मुक्तिधाम में जाने लिए,
बाप
से मिलने लिए । परन्तु कोई मिलता नहीं । मिलने का रास्ता बाप
ही बतलाते हैं । वह समझते हैं - यह शास्त्र आदि पढ़ने से भगवान
मिलता है,
दिलासे पर रहने से फिर आखरीन कोई न कोई रूप में मिलेगा । कब
मिलेगा-यह बाप ने तुमको सब कुछ समझाया है तुमने चित्र में
दिखाया है एक को याद करना है । जो भी धर्म स्थापक हैं वह भी
ऐसे इशारा देते हैं क्योंकि तुमने शिक्षा दी है तो वह भी ऐसे
इशारे देते हैं । साहेब को जपो,
वह
बाप है सतगुरू । बाकी तो अनेक प्रकार की शिक्षायें देने वाले
हैं । उनको कहा जाता है गुरू । अशरीरी बनने की शिक्षा कोई
जानते नहीं । तुम कहेंगे शिवबाबा को याद करो । वो लोग शिव के
मन्दिर में जाते हैं तो हमेशा शिव को बाबा कहने की आदत पड़ी हुई
है और किसको बाबा नहीं कहते हैं,
परन्तु वह निराकार तो नहीं है । शरीरधारी है । शिव तो है
निराकार,
सच्चा बाबा,
वह
तो सबका बाबा हुआ । सब आत्मायें अशरीरी हैं ।
तुम
बच्चे यहाँ जब बैठते हो तो इस धुन में बैठो । तुम जानते हो कि
हम कैसे फंसे हुए थे । अब बाबा ने आकर रास्ता बताया है,
बाकी
सब फंसे हुए हैं,
छूटते नहीं । सजायें खाकर फिर सब छूट जायेंगे । तुम बच्चों को
समझाते रहते हैं,
मोचरा खाकर थोड़ेही मानी (रोटी) लेनी है । मोचरा बहुत खाते हैं
तो पद भ्रष्ट हो जाता है,
मानी
(रोटी) कम मिलती है! थोड़ा मोचरा (सजा) तो मानी अच्छी मिलेगी ।
यह है कांटों का जंगल । सब एक-दो को कांटा लगाते रहते हैं ।
स्वर्ग को कहा जाता है-गॉर्डन ऑफ अल्लाह । क्रिस्चियन लोग भी
कहते हैं - पैराडाइज था । कोई समय साक्षात्कार भी कर सकते हैं,
हो
सकता है यहाँ के धर्म वाला हो जो फिर अपने धर्म में आ सकते हैं
। बाकी सिर्फ देखा तो इसमें क्या हुआ! देखने से कोई जा नहीं
सकते । जबकि बाप को पहचाने और नॉलेज ले । सब तो आ न सकें ।
देवतायें तो वहाँ बहुत थोड़े होते हैं । अभी इतने हिन्दू हैं,
असुल
में देवतायें थे ना । परन्तु वह थे पावन,
यह
हैं पतित । पतित को देवता कहना शोभेगा नहीं । यह एक ही धर्म है,
जिसे
धर्म भ्रष्ट,
कर्म
भ्रष्ट कहा जाता है । आदि सनातन हिन्दू धर्म कह देते हैं ।
देवता धर्म का कॉलम ही नहीं रखते ।
हम
बच्चों का मोस्ट बिलवेड बाप है,
जो
तुमको क्या से क्या बना देते हैं । तुम समझा सकते हो कि बाप
कैसे आते हैं,
जबकि
देवताओं के पैर भी पुरानी तमोप्रधान सृष्टि पर नहीं आते तो फिर
बाप कैसे आयेंगे?
बाप
तो है निराकार,
उनको
तो अपना पांव है नहीं इसलिए इनमें प्रवेश करते हैं ।
अब
तुम बच्चे ईश्वरीय दुनिया में बैठे हो,
वह
सब हैं आसुरी दुनिया में । यह बहुत छोटा संगमयुग है । तुम
समझते हो हम न दैवी संसार में हैं,
न
आसुरी संसार में हैं । हम ईश्वरीय संसार में हैं । बाप आये हैं
हमको घर ले जाने के लिए । बाप कहते हैं वह मेरा घर है ।
तुम्हारे खातिर मैं अपना घर छोड़कर आता हूँ । भारत सुखधाम बन
जाता है तो फिर मैं थोड़ेही आता हूँ । मैं विश्व का मालिक नहीं
बनता हूँ,
तुम
बनते हो । हम ब्रह्माण्ड के मालिक हैं । ब्रह्माण्ड में सब आते
हैं । अभी भी वहॉ मालिक बन बैठे हैं,
जिनको बाकी आना है,
परन्तु वह आकर विश्व का मालिक नहीं बनते । समझाते तो बहुत हैं
। कोई स्टूडेंट बहुत अच्छे होते हैं तो स्कॉलरशिप ले लेते हैं
। वंडर हैं यहाँ कहते भी हैं हम पवित्र बनेंगे फिर जाकर पतित
बन जाते हैं । ऐसे-ऐसे कच्चों को नहीं ले आओ । ब्राह्मणी का
काम है जाँच कर लाना । तुम जानते हो कि आत्मा ही शरीर धारण कर
पार्ट बजाती है,
उनको
अविनाशी पार्ट मिला हुआ है । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
लाइट हाउस बन सबको शान्तिधाम,
सुखधाम
का रास्ता बताना है । सबकी नईया को दुःखधाम से निकालने की सेवा
करनी है । अपना भी कल्याण करना है ।
2.
अपने शान्त स्वरूप स्थिति में स्थित हो शरीर
से डिटैच होने का अभ्यास करना है,
याद में
आंखें खोलकर बैठना है,
बुद्धि से रचता और रचना का सिमरण करना है ।
वरदान:-
कोई
भी बात कल्याण की भावना से देखने और सुनने वाले परदर्शन मुक्त
भव !
जितना संगठन बड़ा होता जाता है,
बातें भी उतनी बड़ी होंगी । लेकिन अपनी सेपटी तब है जब देखते
हुए न देखें,
सुनते हुए न सुनें | अपने स्वचिंतन में रहें । स्वचिंतन करने
वाली आत्मा परदर्शन से मुक्त हो जाती है । अगर किसी कारण से
सुनना पड़ता है,
अपने
आपको जिम्मेवार समझते हो तो पहले अपनी ब्रेक को पावरफुल बनाओ ।
देखा-सुना,
जहाँ
तक हो सका कल्याण किया और फुल स्टॉप ।
स्लोगन:-
अपने
सन्तुष्ट,
खुशनुम: जीवन से हर कदम में सेवा करने वाले ही सच्चे सेवाधारी
हैं । 
ओम्
शान्ति |