26-07-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


"मीठे बच्चे - ड्रामा की यथार्थ नॉलेज से ही तुम अचल, अडोल और एकरस रह सकते हो, माया के तूफान तुम्हें हिला नहीं सकते"   

                                                        
प्रश्न:-   
देवताओं का मुख्य एक कौन-सा गुण तुम बच्चों में सदा दिखाई देना चाहिए?


उत्तर:-
हर्षित रहना । देवताओं को सदा मुस्कराते हुए हर्षित दिखाते हैं । ऐसे तुम बच्चों को भी सदा हर्षित रहना है, कोई भी बात हो, मुस्कराते रहो । कभी भी उदासी या गुस्सा नहीं आना चाहिए । जैसे बाप तुम्हें राइट और रांग की समझानी देते हैं, कभी गुस्सा नहीं करते, उदास नहीं होते, ऐसे तुम बच्चों को भी उदास नहीं होना है ।

 

ओम् शान्ति |

बेहद के बच्चों को बेहद का बाप समझाते हैं । लौकिक बाप तो ऐसे नहीं कहेंगे । उनके तो करके 5 - 7 बच्चे होंगे । यह तो जो सभी आत्मायें हैं, आपस में ब्रदर्स हैं । उन सबका जरूर बाप होगा । कहते भी हैं हम सब भाई- भाई हैं । सबके लिए कहते हैं । जो भी आयेंगे, उनके लिए कहेंगे हम भाई- भाई हैं । ड्रामा में तो सभी बांधें हुए हैं, जिसको कोई नहीं जानते । यह न जानना भी ड्रामा में नूँध है । जो बाप ही आकर सुनाते हैं, कथायें आदि जब बैठ सुनाते हैं तो कहते हैं-परमपिता परमात्माए नम : । अब वह कौन है-यह जानते नहीं । कहते हैं ब्रह्मा देवता, विष्णु देवता, शंकर देवता परन्तु समझ से नहीं कहते हैं । ब्रह्मा को वास्तव में देवता नहीं कहेंगे । देवता विष्णु को कहा जाता है । ब्रह्मा का किसको भी पता नहीं है । विष्णु देवता ठीक है, शंकर का तो कुछ भी पार्ट है नहीं । उनकी बॉयोग्राफी नहीं है, शिवबाबा की तो बायोग्राफी है । वह आते ही हैं पतितों को पावन बनाने, नई दुनिया स्थापन करने । अभी एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना और सब धर्मों का विनाश होता है । सभी कहाँ जाते हैं? शान्तिधाम । शरीर तो सबके विनाश होने हैं । नई दुनिया में होंगे ही सिर्फ तुम । जो भी मुख्य धर्म हैं, उनको तुम जानते हो । सबके तो नाम ले नहीं सकेंगे । छोटी-छोटी टाल-टालियां तो बहुत हैं । पहले-पहले है डिटीज्म फिर इस्लामी । यह बातें सिवाए तुम बच्चों के और कोई की बुद्धि में नहीं हैं । अभी वह आदि सनातन देवी-देवता धर्म प्राय:लोप है इसलिए बनेन ट्री का मिसाल देते हैं । सारा झाड़ खडा है । फाउन्डेशन है नहीं । सबसे बड़ी आयु इस बनन ट्री की होती है । तो इसमें सबसे बड़ी आयु है आदि सनातन देवी-देवता धर्म की । वह जब प्राय: लोप हो तब तो बाप आकर कहे कि अभी एक धर्म की स्थापना और अनेक धर्मों का विनाश होना है, इसलिए त्रिमूर्ति भी बनाया है । परन्तु अर्थ नहीं समझते हैं । तुम बच्चे जानते हो ऊंच ते ऊंच भगवान् है फिर ब्रह्मा-विष्णु-शंकर, फिर सृष्टि पर आते हैं तो देवी-देवताओं के सिवाए और कोई धर्म है नहीं । भक्ति मार्ग की भी ड्रामा में नूंध है । पहले शिव की भक्ति करते फिर देवताओं की । भारत की ही तो बात है । बाकी तो समझते हैं हमारा धर्म, मठ, पंथ कब स्थापन होता है । जैसे आर्य लोग कहते हैं हम बहुत पुराने हैं । वास्तव में सबसे पुराना तो है ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म । तुम जब झाड़ पर समझाते हो तो खुद भी समझ लेंगे कि हमारा धर्म फलाने समय पर आयेगा । सबको जो अनादि अविनाशी पार्ट मिला हुआ है सो बजाना है, इसमें कोई का दोष वा भूल नहीं कह सकते हैं । यह तो सिर्फ समझाया जाता है पाप आत्मा क्यों बने हैं । मनुष्य कहेंगे हम बेहद के बाप के सब बच्चे हैं, फिर सब ब्रदर्स सतयुग में क्यों नहीं हैं? परन्तु ड्रामा में पार्ट ही नहीं है । यह अनादि ड्रामा बना हुआ है, इसमें निश्चय रखो, और कोई बात बोलो नहीं । चक्र भी दिखाया है-कैसे यह फिरता है । कल्प वृक्ष का भी चित्र है । परन्तु यह कोई जानते नहीं कि इनकी आयु कितनी है । बाप कोई की निंदा नहीं करते हैं । यह तो समझाया जाता है, तुमको भी समझाते हैं तुम कितने पावन थे, अभी पतित बने हो तो पुकारते हो-हे पतित- पावन आओ । पहले तो तुम सबको पावन बनना है । फिर नम्बरवार पार्ट बजाने आना है । आत्मायें सब ऊपर में रहती हैं । बाप भी ऊपर में रहते हैं, फिर उनको बुलाते हैं कि आओ । ऐसे वह बुलाने से आते नहीं हैं । बाप कहते हैं मेरा भी ड्रामा में पार्ट नूँधा हुआ है । जैसे हद के ड्रामा में भी बड़े-बड़े मुख्य एक्टर्स का पार्ट होता है, यह फिर है बेहद का ड्रामा । सब ड्रामा के बधन में बांधे हुए हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि धागे में बांधे हुए हो । नहीं । यह बाप समझाते हैं । वह है जड़ झाड़ । अगर बीज चैतन्य होता तो उसको मालूम होता ना कि यह कैसे झाड़ बड़ा हो फिर फल देंगे । यह तो है चैतन्य बीज इस मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ का, इसको उल्टा झाड़ कहा जाता है । बाप तो है नॉलेजफुल, उनको सारे झाड़ की नॉलज है । यह है वही गीता की नॉलेज । कोई नई बात नहीं है । यहाँ बाबा कोई श्लोक आदि नहीं उच्चारते हैं । वो लोग ग्रंथ पढ़कर फिर अर्थ बैठ समझाते हैं । बाप समझाते हैं यह है पढ़ाई, इसमें श्लोक आदि की दरकार नहीं । उन शास्त्रों की पढ़ाई में कोई एम- ऑबजेक्ट है नहीं । कहते भी हैं ज्ञान, भक्ति, वैराग्य । यह पुरानी दुनिया विनाश होती है । सन्यासियों का है हद का वैराग्य, तुम्हारा है बेहद का वैराग्य । शंकराचार्य आते हैं तब वह बैठ सिखलाते हैं घर बार से वैराग्य । वह भी शुरू में शास्त्र आदि नहीं सिखाते । जब बहुत वृद्धि होती जाती है तब शास्त्र बनाने शुरू करते हैं । पहले-पहले तो धर्म स्थापन करने वाला एक ही होता है फिर आहिस्ते- आहिस्ते वृद्धि को पाते हैं । यह भी समझना है । सृष्टि में पहले-पहले कौन-सा धर्म था । अभी तो अनेक धर्म हैं । आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, जिसको स्वर्ग हेविन कहते हैं । तुम बच्चे रचयिता और रचना को जानने से आस्तिक बन जाते हो । नास्तिकपने का कितना दुःख होता है, निधनके बन पड़ते हैं, आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैं । कहते हैं ना तुम आपस में लड़ते रहते हो, तुम्हारा कोई धनी धोणी नहीं है क्या? इस समय सब निधनके बन पड़ते हैं । नई दुनिया में पवित्रता, सुख, शान्ति सब था, अपार सुख थे । यहाँ अपरमअपार दु :ख हैं । वह है सतयुग के, यह है कलियुग के, अभी तुम्हारा है पुरूषोत्तम संगमयुग । यह पुरूषोत्तम संगमयुग एक ही होता है । सतयुग-त्रेता के संगम को पुरूषोत्तम नहीं कहेंगे । यहाँ हैं असुर, वहाँ हैं देवतायें । तुम जानते हो यह रावण राज्य है । रावण के ऊपर गधे का शीश दिखाते हैं । गधे को कितना भी साफ कर उस पर कपड़े रखो, गधा फिर भी मिट्टी में लेटकर कपड़े खराब कर देगा । बाप तुम्हारे कपड़े साफ गुल-गुल बनाते हैं, फिर रावण राज्य में  कर, लिथड़ अपवित्र बन जाते हो । आत्मा और शरीर दोनों अपवित्र बन जाते हैं । बाप कहते हैं तुमने सारा श्रृंगार गँवा दिया । बाप को पतित-पावन कहते हैं, तुम भरी सभा में कह सकते हो कि हम गोल्डन एज में कितने श्रृंगारे हुए थे, कितना फर्स्टक्लास राज्य- भाग्य था । फिर माया रूपी धूल में लिथड़ कर मैंले हो गये । 

बाप कहते हैं यह अन्धेरी नगरी है । भगवान् को सर्वव्यापी कह दिया है, जो कुछ हुआ वह हूबहू रिपीट होगा, इसमें मूँझने की दरकार नहीं है । 5 हजार वर्ष में कितने मिनट, घण्टे, सेकण्ड हैं, एक बच्चे ने सब धर्म वालों का हिसाब निकालकर भेजा था, इसमें भी बुद्धि व्यर्थ की होगी । बाबा तो ऐसे ही समझाते हैं कि दुनिया कैसे चलती है । प्रजापिता ब्रह्मा है ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर । उनका आक्यूपेशन कोई नहीं जानते । विराट रूप बनाया है तो प्रजापिता ब्रह्मा को भी उड़ा दिया है । बाप और ब्राह्मणों को यथार्थ रीति जानते नहीं हैं । उनको कहते भी हैं आदि देव । बाप समझाते हैं मैं इस झाड़ का चैतन्य बीजरूप हूँ । यह उल्टा झाड़ है । बाप जो सत्य है, चैतन्य है, ज्ञान का सागर है, उनकी ही महिमा की जाती है । आत्मा न हो तो चल फिर भी न सकें । गर्भ में भी 5 - 6 मास के बाद आत्मा प्रवेश करती है । यह भी ड्रामा बना हुआ है । फिर आत्मा निकल जाती है तो खलास । आत्मा अविनाशी है, वह पार्ट बजाती है, यह बाप आकर रियलाइज़ कराते हैं । आत्मा इतनी छोटी बिन्दी है, उसमें अविनाशी पार्ट भरा हुआ है । परमपिता भी आत्मा है, उनको ज्ञान का सागर कहा जाता है । वही आत्मा का रियलाइजेशन कराते हैं । वह तो सिर्फ कह देते परमात्मा सर्व शक्तिमान्, हजारों सूर्य से तेजोमय है । परन्तु समझते कुछ नहीं । बाप कहते हैं यह सब भक्ति मार्ग में वर्णन किया हुआ है और शास्त्रों में लिख दिया है । अर्जुन को साक्षात्कार हुआ तो कहा मैं इतना तेज सहन नहीं कर सकता हूँ, तो वह बात मनुष्यों की बुद्धि में बैठी हुई है । इतना तेजोमय किसके अन्दर प्रवेश करे तो फट जाए । ज्ञान तो नहीं है ना । तो समझते हैं परमात्मा तो हजार सूर्य से तेजोमय है, हमको उनका साक्षात्कार चाहिए । भक्ति की भावना बैठी हुई है तो उनको वह साक्षात्कार भी होता है । शुरू-शुरू में तुम्हारे पास भी ऐसे बहुत साक्षात्कार करते थे, आँखें लाल हो जाती थी । साक्षात्कार किया फिर आज वह कहाँ हैं । वह सभी हैं भक्ति मार्ग की बातें । तो यह सब बाप समझाते हैं, इसमें ग्लानि की कोई बात नहीं है । बच्चों को सदैव हर्षित रहना है । यह तो ड्रामा बना हुआ है । मुझे इतनी गालियां देते हैं, फिर मैं क्या करता हूँ? गुस्सा आता है क्या! समझता हूँ ड्रामा अनुसार यह सब भक्ति मार्ग में फँसे हुए हैं । नाराज होने की बात ही नहीं है । ड्रामा ऐसा बना हुआ है । प्यार से समझानी देनी होती है । बिचारे अज्ञान अन्धेरे में पड़े हैं, नहीं समझते हैं तो तरस भी पड़ता है । सदैव मुस्कराते रहना चाहिए । यह बिचारे स्वर्ग के द्वारे आ नहीं सकेंगे, यह सब शान्तिधाम में जाने वाले हैं । सब चाहते भी शान्ति ही हैं । तो बाप ही रीयल समझाते हैं । अभी तुम जानते हो कि यह खेल बना हुआ है । ड्रामा में हर एक को पार्ट मिला हुआ है, इसमें बडी अचल, स्थेरियम बुद्धि चाहिए । जब तक अचल, अडोल, एकरस अवस्था नहीं तब तक पुरूषार्थ कैसे करेंगे । कुछ भी हो, भल तूफान आये परन्तु स्थेरियम रहना है । माया के तूफान तो ढेर आयेंगे और पिछाड़ी तक आयेंगे । अवस्था मजबूत चाहिए । यह है गुप्त मेहनत । कई बच्चे पुरूषार्थ कर तूफान को उड़ाते रहते हैं । जितना जो पास होगा उतना ऊंच पद पायेगा । राजधानी में पद तो बहुत हैं ना | सबसे अच्छे चित्र हैं त्रिमूर्ति गोला और झाड़ । यह शुरू के बने हुए हैं । विलायत में सर्विस के लिए भी यह दो चित्र ले जाने हैं । इन पर ही वह अच्छी रीति समझ सकेंगे। आहिस्ते- आहिस्ते बाबा जो चाहते हैं कि यह चित्र कपड़े पर हों, वह भी बनते जायेंगे । तुम समझायेंगे कि यह कैसे स्थापना हो रही है । तुम भी इसको समझेंगे तो अपने धर्म में ऊच पद पायेंगे । क्रिश्चियन धर्म में तुम ऊँच पद पाना चाहते हो तो यह अच्छी रीति समझो । अच्छा! 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-
 

1. इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर पवित्र बन स्वयं का श्रृंगार करना है । कभी भी माया की धूल में लिथड़ कर श्रृंगार बिगाड़ना नहीं है । 

2. इस ड्रामा को यथार्थ रीति समझकर अपनी अवस्था अचल, अडोल, स्थेरियम बनानी है । कभी भी मूँझना नहीं है, सदैव हर्षित रहना है ।

 

वरदान:-

भगवान और भाग्य की स्मृति से औरों का भी भाग्य बनाने वाले खुशनुम: खुशनसीब भव !   

अमृतवेले से लेकर रात तक अपने भिन्न-भिन्न भाग्य को स्मृति में लाओ और यही गीत गाते रहो वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य । जो भगवान और भाग्य की स्मृति में रहते हैं वही औरों को भाग्यवान बना सकते हैं । ब्राह्मण माना ही सदा भाग्यवान, सदा खुशनसीब । किसी की हिम्मत नहीं जो ब्राह्मण आत्मा की खुशी कम कर सके । हर एक खुशनुम:, खुशनसीब हो । ब्राह्मण जीवन में खुशी का जाना असम्भव है, भल शरीर चला जाए लेकिन खुशी जा नहीं सकती ।

 

स्लोगन:- 

माया के झूले को छोड़ अतीन्द्रिय सुख के झूले में सदा झूलते रहो ।     

 

ओम् शान्ति |