10-02-14       प्रातः मुरली       ओम् शान्ति   “बापदादा”     मधुबन


मीठे बच्चे टीचर विदेही है इसलिए याद की मेहनत करनी है, याद करते-करते जब इम्तहान पूरा होगा तब घर चले जायेंगे |   


प्रश्न:-   
बच्चों को याद में रहने की मेहनत करनी है, किस धोखे में कभी भी नहीं आना है?


उत्तर:-
आत्मा का साक्षात्कार हुआ, झिलमिल देखी - इससे कोई फ़ायदा नहीं, ऐसे नहीं कि साक्षात्कार से या बाबा की दृष्टि पड़ने से कोई पाप कट जायेंगे या मुक्ति मिल जायेगी | नहीं | यह तो और ही धोखे में रह जायेंगे | याद की मेहनत करो, मेहनत से ही कर्मातीत अवस्था होगी | ऐसे नहीं बाबा दृष्टि देंगे तो तुम पावन बन जायेंगे | ऐसे नहीं बाबा दृष्टि देंगे तो तुम पावन बन जायेंगे | मेहनत करनी है |


ओम् शान्ति |

रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं, पढ़ाते हैं, योग सिखलाते हैं | योग कोई बड़ी बात नहीं है | जैसे बच्चे पढ़ते हैं तो योग ज़रूर टीचर से रहता है कि हमको फ़लाना टीचर पढ़ाते हैं – आप समान बनाने के लिए | एम आब्जेक्ट तो रहती है | समझते हैं कि फ़लाना दर्जा पढ़ रहे हैं | उसमें टीचर को कहना नहीं है कि मेरे से योग लगाओ | ऑटोमेटिकली पढ़ाने वाले के साथ योग रहता है | सारा दिन तो नहीं पढ़ाते | वह जन्म-जन्मान्तर तो पढ़ाते आये हैं | प्रैक्टिस हो जाती है | यहाँ तो तुम्हारी बिल्कुल नई प्रैक्टिस है | यह देहधारी टीचर नहीं है | यह है विदेही टीचर, जो हर 5 हज़ार वर्ष के बाद तुमको मिलता है | खुद कहते हैं मैं तुम्हारा देहधारी टीचर नहीं हूँ | इसलिए ये याद ठहरती नहीं है | अपने को आत्मा समझना पड़े कि हमको परमपिता परमात्मा टीचर पढ़ा रहे हैं | टीचर को याद ज़रूर करना है | जब तक इम्तिहान पास हो | याद करते-करते इम्तिहान पास हो जायेगा, फिर चले जायेंगे घर | इम्तिहान पूरा होते ही ड्रामा फिनिश हो जाता है | फिर तुम बच्चों को मालूम है कि हमारी आत्मा में पार्ट भरा हुआ है 84 जन्मों का, जो हमको बजाना है | यह भी अभी मालूम है | पीछे वहाँ याद नहीं रहेगा | यहाँ तुमको सारी नॉलेज मिलती है | टीचर ही बैठ सारी नॉलेज बच्चों को समझाते हैं, जो समझते रहना है और याद में भी ज़रूर रहना है | घड़ी-घड़ी बाप कहते हैं मन्मनाभव | मन्मनाभव का अर्थ भी है | बच्चे समझते हैं अक्षर राइट है | बाप खुद कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे, इसमें टाइम तो लगता है | अपनी जाँच करनी है | जैसे पढ़ाई में और सब्जेक्ट होती हैं हिस्ट्री, हिसाब-किताब, साइन्स आदि | स्टूडेण्ट समझते हैं हम कहाँ तक पास होंगे | तुम बच्चों की बुद्धि में है कि हम इतने-इतने मार्क्स से पास होंगे | अपने को देखना चाहिए कि हम बाबा को भूल तो नहीं जाते हैं | बहुत लिखते हैं बाबा माया घड़ी-घड़ी भुला देती है | बहुत माया के तूफ़ान आते हैं, विकल्प आते हैं | न समझने के कारण लिखते हैं बाबा इसमें पाप तो नहीं लगता? ऐसे-ऐसे संकल्प विकल्प आते हैं | देखने से ख्याल आता है यह करें | इसमें पाप तो नहीं लगता? बाप कहते हैं, नहीं | पाप तब होगा जब कर्मेन्द्रियों से विकर्म करेंगे |

 

बाबा बार-बार समझाते रहते हैं, बच्चों को ज्ञान तो है, यह भी जानते हैं कि विष्णु और कृष्ण को स्वदर्शन चक्र क्यों दिखाया है | दिखाते हैं अकासुर, बकासुर को मारा | अब मारने की तो बात ही नहीं | यह तो अपने पाप कटने की बात है | शिवबाबा को भी कहेंगे ना स्वदर्शन-चक्रधारी | उनको सारे चक्र की ज्ञान है | आत्मा को बाप से ज्ञान हुआ है, यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है | स्वदर्शन चक्र धारण कर अपने पापों को भस्म करना है | ज्ञान को धारण कर बाप को याद करो | बाप को याद करने से ही विकर्मों का विनाश होता है | हरेक को अपने लिए मेहनत करनी पड़ती है | ऐसे नहीं बाबा दृष्टि बैठ देंगे कि इनके पाप कट जायें | बाप बैठ यह धन्धा नहीं करते | यूँ तो सबको देखेंगे ही | देखने से वा ज्ञान देने से विकर्म विनाश नहीं होंगे | बाप तो रास्ता बताते हैं ऐसे ऐसे करो तो विकर्म विनाश होंगे | श्रीमत देते हैं | अच्छा समझो बाप आते हैं – आत्मा समझकर देखते हैं | ऐसे नहीं इससे हमारे पाप कट जायेंगे, नहीं | पाप कटते हैं अपनी मेहनत से | ऐसे बाप बैठ करे तो यह तो एक धन्धा हो जाए | बाप समझाते हैं ऐसे-ऐसे तुम अपने बाप को याद करो | बाप है ही श्रीमत देने वाला | मेहनत अपनी करनी है | बहुत समझते हैं फ़लाने साधू सन्यासी की दृष्टि ही बस है | कृपा आशीर्वाद लेते-लेते गिरते ही रहते हैं | वह कृपा क्या करेंगे | वह तो अपने ब्रह्म महतत्व को ही याद करेंगे | बाप तो साफ़ रास्ता बताते हैं ऐसे-ऐसे करो | गाते भी हैं नंगे आये, नंगे जाना है | यह गायन भी इस समय का है | बाप के वरशन्स फिर भक्ति में काम आते हैं | अब बाप कहते हैं – मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे | बाप तो श्रीमत देते हैं | यह भी ड्रामा में उनका पार्ट है | इसको ही मदद कहो, ड्रामा अनुसार श्रीमत गाई हुई है | बाप को मत देनी है | कहते हैं अपने को आत्मा समझो | ऐसे नहीं मदद दे कर्मातीत अवस्था में ले जायेंगे | नहीं | टाइम लगता है | बहुत मेहनत करनी पड़ती है | अपने को आत्मा समझने का बहुत अच्छा अभ्यास करना है | वास्तव में माताओं को टाइम बहुत मिलता है | पुरुषों को धन्धे का फुरना रहता है | तुम बच्चों को बाप को याद करते-करते लाटरी लेनी है | ताकि सारी जंक (कट) निकल जाये | फ़ील होता है फ़लाने अच्छे पुरुषार्थी हैं | चार्ट रखते हैं | जैसे भक्ति में दो तीन घण्टे भी बैठ जाते हैं | वानप्रस्थी गुरु आदि बहुत करते हैं | परन्तु उनको भी इतना याद नहीं करते, जितना देवताओं को याद करते हैं | वास्तव में देवताओं को याद करना नहीं होता है | न देवतायें कभी सिखलाते हैं |

 

तुम बच्चों के लिए कोई नई बात नहीं है | और न लाखों वर्ष की बात है | बाप तो आते ही तब हैं जब स्थापना और विनाश का कार्य होता है | बच्चे जानते हैं यह विनाश तो कल्प-कल्प होता है | कल्प पहले भी हुआ था | बाप अपने साथ मिलने का जो रास्ता बताते हैं यह कोई नई बात नहीं है | बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प आकर रास्ता बताता हूँ | तुम बच्चों को यह पता है कि हमारे राज्य की स्थापना हो रही है | जिन देवताओं की पूजा करते हैं उनका राज्य फिर स्थापन हो रहा है | पाँच हज़ार वर्ष का चक्र है, जो फिरता ही रहता है | मनुष्य वायरे हो जाते हैं | माया की मत पर सब चल रहे हैं | रावण को क्यों जलाते हैं – अर्थ कुछ नहीं जानते | तुम्हारा नाम ही है स्वदर्शन-चक्रधारी | एम आब्जेक्ट यह खड़ी है | जो बाबा में ज्ञान है वह आत्मा को दिया है | फिर वाम मार्ग में जाने से ही रात शुरू हो जाती है | फिर हम नीचे उतरते ही आते हैं | सुख कम होता जाता है | तुम्हारी बुद्धि में ज्यों का त्यों सारा चक्र है जैसे बाप की बुद्धि में है | बाकी तुमको पावन बनने के लिए मेहनत करनी पड़ती है | बुलाते भी इसलिए हैं कि बाबा हम पतितों को आकर पावन बनाओ, फिर नॉलेज भी चाहिए | मनुष्य से देवता बनना है | बाप आते हैं बच्चों को राजयोग सिखलाने | दूसरे कोई को सिखाने आयेगा भी नहीं | पतित-पावन बाप को बुलाते हैं – बाबा हमको आकर पावन बनाओ | अब तुम पुण्य आत्मा बन रहे हो | वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी फिर रिपीट हो रही है | कितनी गुह्य बातें हैं | मनुष्य न आत्मा को, न परमात्मा को जानते हैं | आत्मा जो है जैसी है, जैसा उनका पार्ट है | वह भी बाप ही बतलाते हैं | वन्डर है छोटी आत्मा में क्या-क्या पार्ट भरा हुआ है | सुनते ही रोमांच खड़े हो जाते हैं | कोई को आत्मा का साक्षात्कार होता है | आत्माओं की झिलमिल दिखाई देती है | परन्तु उनसे फ़ायदा ही क्या? यहाँ तो योग लगाना है | मनुष्य समझते हैं साक्षात्कार हुआ, मुक्ति पाई | पाप भस्म हो गया | यह तो और ही धोखे में रह जाते हैं | बाप तो हर बात समझाते रहते हैं | कहते हैं तुमको गुह्य बातें सुनाता हैं | तुम्हारी बुद्धि में सारे चक्र का ज्ञान है | बस बाबा को, चक्र को याद करना है | टीचर को भी याद करना है, नॉलेज को भी याद करना है | याद करते-करते ड्रामा अनुसार कर्मातीत अवस्था को पा लेंगे | जैसे नंगे आये वैसे ही जाना है | तुम दैवी संस्कार ले जाते हो | वहाँ कोई नॉलेज नहीं | इसको कहा जाता है सहज याद | योग अक्षर से मनुष्य मूँझ जाते हैं | वह हैं हठयोगी | सहज योग तो बाप सिखलाते हैं | आगे सुनते थे – गीता के भगवान ने सहज योग सिखाया था | परन्तु उनको जानते नहीं | 100 परसेन्ट मिसअण्डरस्टेण्ड कर दी, जिससे मनुष्य पतित बन पड़े हैं | अनेक मतें हैं | जो गृहस्थ व्यवहार में रहते हैं उन्हों के लिए ही यह गीता शास्त्र है | तुम हो प्रवृत्ति मार्ग वाले | पहले तुम्हारा पवित्र प्रवृत्ति मार्ग था, अब अपवित्र बन पड़ा है | अब फिर पवित्र बनना है | बाप तो एवरप्योर है | वह आते ही हैं श्रीमत देने |

 

बाप कहते हैं इस समय सब तमोप्रधान बन पड़े हैं | पहले सतोप्रधान थे | जैसे हम भी पहले सतोप्रधान थे फिर तमोप्रधान बने | जो भी आते हैं पोप पादरी आदि पहले सतोप्रधान होते हैं, फिर एडीशन होते-होते सारा झाड़ तमोप्रधान हो जाता है | अभी तो जड़जड़ीभूत अवस्था में हैं | तुम बच्चे समझते हो हम ही सतोप्रधान थे फिर नम्बरवार तमोप्रधान बनते हैं | फिर सतोप्रधान बनना है | नम्बरवार ही बनते जायेंगे | ड्रामा अनुसार | डिटेल तो बहुत है | जैसे बीज है उनको पता है कैसे झाड़ निकलता है | इस मनुष्य सृष्टि का झाड़ का राज़ बाप ही बताते हैं | बागवान भी वही है | जानते हैं हमारा बाग कैसा अच्छा था | बाप को तो नॉलेज है ना | कितना फर्स्टक्लास खुदाई बगीचा था | अभी तो शैतानी बगीचा है | शैतान कहा जाता है रावण राज्य को | जहाँ तहाँ मारामारी लगी हुई है | अभी बाकी जो एटामिक बाम्ब्स रहे हुए हैं, वह भी तैयार कर बैठे हैं | सब समझते हैं यह कोई रखने की चीज़ नहीं है, इससे विनाश होना है ज़रूर | अगर विनाश न हो तो सतयुग कैसे आयेगा | यह तो बिल्कुल साफ़ है, भल दिखाते हैं – महाभारी महाभारत लड़ाई लगी, 5 पाण्डव बचे | वह भी गल मरे | परन्तु रिज़ल्ट कुछ भी नहीं | यह भी ड्रामा बना हुआ है जो बाप बैठ समझाते हैं | भारत को ही लूटा, अब फिर रिटर्न दे रहे हैं | पिछाड़ी तक देते रहेंगे | यह भी तुम जानते हो विनाश में सब कुछ ख़त्म हो जायेगा | जब हमारा राज्य था तो दूसरा कोई का राज्य था नहीं | हिस्ट्री मस्ट रिपीट | भारत फिर हेविन बनेगा | लक्ष्मी-नारायण का राज्य आयेगा | हम फिर यह बनते हैं | बाप कहते हैं मैं आया हूँ राजयोग सिखलाने | कल्प-कल्प अनेक बार तुम मालिक बने हो | इन्हों की सारे विश्व में राजधानी थी | बड़े अकलमन्द थे | वहाँ उन्हों को वजीर आदि से राय लेने की ज़रूरत नहीं | यह ड्रामा बना हुआ है फिर रिपीट होगा | कृष्ण के मन्दिर को कहते हैं सुखधाम | शिवबाबा आकर सुखधाम स्थापन करते हैं | वह खुद कहते हैं क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले भारत स्वर्ग था | पहले एक धर्म था फिर दूसरे धर्म आये | बच्चों को वन्डर खाना चाहिए – बाबा हमको बादशाही कैसे देते हैं | बाप आकर भक्ति का फल देते हैं | कितना सहज है | परन्तु समझेंगे वो ही जिन्होंने कल्प पहले समझा होगा, नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार | अच्छा-

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1.    स्वदर्शन चक्र को धारण कर अपने पापों को भस्म करना है | सम्भाल करो – कर्मेन्द्रियों से कोई भी पाप कर्म न हो | कर्मातीत बनने की स्वयं मेहनत करो |

 

2.    साक्षात्कार की आश नहीं रखनी है, साक्षात्कार करने से मुक्ति नहीं मिलती, पाप नहीं कटते, साक्षात्कार से फ़ायदा नहीं है | जंक निकलेगी बाप और नॉलेज को याद करने से |

 

वरदान:-  
सदा रूहानी स्थिति में रह दूसरों की भी रूह को देखने वाले रूहानी रूहे गुलाब भव !   

 

रूहे गुलाब अर्थात् जिसमें सदा रूहानी खुशबू हो | रूहानी खुशबू वाले जहाँ भी देखेंगे, जिसको भी देखेंगे तो रूह को देखेंगे, शरीर को नहीं | तो स्वयं भी सदा रूहानी स्थिति में रहो और दूसरों की भी रूह को देखो | जैसे बाप ऊँचे से ऊँचा है, ऐसे उसका बगीचा भी ऊँचे से ऊँचा है, जिस बगीचे का विशेष श्रृंगार रहे गुलाब आप बच्चे हो | आपकी रूहानी खुशबू अनेक आत्माओं का कल्याण करने वाली है |


स्लोगन:- 
मर्यादा तोड़कर किसी को सुख दिया तो वह भी दुःख के खाते में जमा हो जायेगा |   

 

ओम् शान्ति |