23-12-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - तुम्हें जो भी ज्ञान मिलता है,
उस पर विचार सागर मंथन करो,
ज्ञान मंथन से ही अमृत निकलेगा” 
प्रश्न:-
21
जन्मों के लिए मालामाल बनने का साधन क्या है?
उत्तर:-
ज्ञान
रत्न । जितना तुम इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर ज्ञान रत्न धारण
करते हो उतना मालामाल बनते हो । अभी के ज्ञान रत्न वहाँ हीरे
जवाहरात बन जाते हैं । जब आत्मा ज्ञान रत्न धारण करे,
मुख
से ज्ञान रत्न निकाले,
रत्न
ही सुने और सुनाये तब उनके हर्षित चेहरे से बाप का नाम बाला हो
। आसुरी गुण निकले तब मालामाल बने ।
ओम्
शान्ति |
बाप
बच्चों को ज्ञान और भक्ति पर समझाते हैं । यह तो बच्चे समझते
हैं कि सतयुग में भक्ति नहीं होती । ज्ञान भी सतयुग में नहीं
मिलता । कृष्ण न भक्ति करते हैं,
न
ज्ञान की मुरली बजाते हैं । मुरली माना ज्ञान देना । गायन है
ना मुरली में जादू । तो जरूर कोई जादू होगा ना । सिर्फ मुरली
बजाना यह कॉमन बात है । फकीर लोग भी मुरली बजाते हैं । इसमें
तो ज्ञान का जादू है । अज्ञान को जादू नहीं कहेंगे । मनुष्य
समझते हैं कृष्ण मुरली बजाता था,
उनकी
बहुत महिमा करते हैं । बाप कहते हैं कृष्ण तो देवता था ।
मनुष्य से देवता,
देवता से मनुष्य,
यह
होता ही रहता है । दैवी सृष्टि भी होती है तो मनुष्य सृष्टि भी
होती है । इस ज्ञान से मनुष्य से देवता बनते हैं । जब सतयुग है
तो यह ज्ञान का वर्सा है । सतयुग में भक्ति होती नहीं । देवता
जब मनुष्य बनते हैं तब भक्ति शुरू होती है । मनुष्य को विकारी,
देवताओं को निर्विकारी कहा जाता है । देवताओं की सृष्टि को
पवित्र दुनिया कहा जाता है । अभी तुम मनुष्य से देवता बन रहे
हो । देवताओं में फिर यह ज्ञान होगा नहीं । देवतायें सद्गति
में हैं,
ज्ञान चाहिए दुर्गति वालों को इस ज्ञान से ही दैवी गुण आते हैं
। ज्ञान की धारणा वालों की चलन देवताई होती है । कम धारणा
वालों की चलन मिक्स होती है । आसुरी चलन तो नहीं कहेंगे ।
धारणा नहीं तो हमारे बच्चे कैसे कहलायेंगे । बच्चे बाप को नहीं
जानते तो बाप भी बच्चों को कैसे जानेंगे । कितनी कच्ची-कच्ची
गालियाँ बाप को देते हैं । भगवान को गाली देना कितना खराब है ।
फिर जब वह ब्राह्मण बनते तो गाली देना बन्द हो जाता है । तो इस
ज्ञान का विचार सागर मंथन करना चाहिए । स्टूडेंट विचार सागर
मंथन कर ज्ञान को उन्नति में लाते हैं । तुमको यह ज्ञान मिलता
है,
उस
पर अपना विचार सागर मंथन करने से अमृत निकलेगा । विचार सागर
मंथन नहीं होगा तो क्या मंथन होगा?
आसुरी विचार मंथन,
जिससे किचड़ा ही निकलता है । अभी तुम ईश्वरीय स्टूडेंट हो ।
जानते हो मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई बाप पढ़ा रहे हैं ।
देवता तो नहीं पढ़ायेंगे । देवताओं को कभी ज्ञान का सागर नहीं
कहा जाता है । बाप ही ज्ञान का सागर है । तो अपने से पूछना
चाहिए हमारे में सभी दैवी गुण हैं?
अगर
आसुरी गुण हैं तो उसे निकाल देना चाहिए तब ही देवता बनेंगे ।
अभी
तुम हो पुरूषोत्तम संगमयुग पर । पुरूषोत्तम बन रहे हो तो
वातावरण भी बहुत अच्छा होना चाहिए । छी-छी बातें मुख से नहीं
निकलनी चाहिए । नहीं तो कहा जायेगा कम दर्जें का है । वातावरण
से झट पता पड़ जाता है । मुख से वचन ही दु :ख देने वाले निकलते
हैं । तुम बच्चों को बाप का नाम बाला करना है । सदैव मुखड़ा
हर्षित रहना चाहिए । मुख से सदैव रत्न ही निकलें । यह
लक्ष्मी-नारायण कितने हर्षितमुख हैं । इनकी आत्मा ने ज्ञान
रत्न धारण किये थे । मुख से यह रत्न निकाले थे । रत्न ही सुनते
सुनाते थे । कितनी खुशी रहनी चाहिए । अभी तुम जो ज्ञान रत्न
लेते हो वह फिर सच्चे हीरे-जवाहरात बन जाते हैं । यह रत्नों की
माला कोई हीरे-जवाहरात की नहीं,
इन
चैतन्य रत्नों की माला है । मनुष्य लोग फिर वह रत्न समझ
अंगूठियां आदि पहनते हैं । ज्ञान रत्नों की माला इस पुरूषोत्तम
संगमयुग पर ही बनती है । यह रत्न ही 21 जन्मों के लिए मालामाल
बना देते हैं,
जिसको कोई लूट न सके । यहाँ पहनो तो झट कोई लूट लेवे । तो अपने
को बहुत-बहुत समझदार बनाना है । आसुरी गुणों को निकालना है ।
आसुरी गुण वाले की शक्ल ही ऐसी हो जाती हैं । क्रोध में तो लाल
तांबा मिसल हो जाते हैं । काम विकार वाले तो एकदम काले मुँह
वाले बन जाते हैं । कृष्ण को भी काला दिखाते हैं ना । विकारों
के कारण ही गोरे से साँवरा बन गया । तुम बच्चों को हर एक बात
का विचार सागर मंथन करना चाहिए । यह पढ़ाई है बहुत धन पाने की ।
तुम बच्चों का सुना हुआ है,
क्वीन विक्टोरिया का वजीर पहले बहुत गरीब था । दीवा जलाकर पढ़ता
था । परन्तु वह पढ़ाई कोई रत्न थोड़ेही है । नॉलेज पढ़कर पूरा
पोजीशन पा लेते हैं । तो पढ़ाई काम आई,
न कि
पैसा । पढ़ाई ही धन हैं । वह हैं हद का,
यह
है बेहद का धन । अभी तुम समझते हो बाप हमको पढ़ाकर विश्व का
मालिक बना देते हैं । वहाँ तो धन कमाने के लिए पढ़ाई नहीं
पढ़ेंगे । वहाँ तो अभी के पुरूषार्थ से अकीचार (अथाह) धन मिलता
है । धन अविनाशी बन जाता है । देवताओं के पास बहुत धन था फिर
जब वाम मार्ग,
रावण
राज्य में आते हैं तो भी कितना धन था । कितने मन्दिर बनवाये ।
फिर बाद में मुसलमानों ने लूटा । कितने धनवान थे । आजकल की
पढ़ाई से इतना धनवान नहीं बन सकते हैं । तो इस पढ़ाई से देखो
मनुष्य क्या बन जाते हैं! गरीब से साहूकार । अभी भारत देखो
कितना गरीब है! नाम के साहूकार भी जो हैं,
उनको
तो फुर्सत ही नहीं । अपने धन,
पोजीशन का कितना अहंकार रहता है । इसमें अहंकार आदि मिट जाना
चाहिए । हम आत्मा हैं,
आत्मा के पास धन-दौलत,
हीरे-जवाहरात आदि कुछ भी नहीं है ।
बाप
कहते हैं मीठे बच्चे,
देह
सहित देह के सभी सम्बन्ध छोड़ो | आत्मा शरीर छोड़ती है तो फिर
साहूकारी आदि सब खत्म हो जाती है । फिर जब नयेसिर से पढ़े,
धन
कमाये तब धनवान बनें या तो दान-पुण्य अच्छा किया होगा तो
साहूकार के घर में जन्म लेंगे । कहते हैं यह पास्ट कर्मों का
फल है । नॉलेज का दान दिया है वा कॉलेज धर्मशाला आदि बनाई है,
तो
उसका फल मिलता है परन्तु अल्पकाल के लिए । यह दान-पुण्य आदि भी
यहाँ किया जाता है । सतयुग में नहीं किया जाता है । सतयुग में
अच्छे ही कर्म होते हैं,
क्योंकि अभी का वर्सा मिला हुआ है । वहाँ कोई भी कर्म विकर्म
नहीं बनेगा क्योंकि रावण ही नहीं । विकार में जाने से विकारी
कर्म बन जाते हैं । विकार से विकर्म बनते हैं । स्वर्ग में
विकर्म कोई होता नहीं । सारा मदार कर्मों पर है । यह माया रावण
अवगुणी बनाता है । बाप आकर सर्वगुण सम्पन्न बनाते हैं । राम
वंशी और रावण वंशी की युद्ध चलती है । तुम राम के बच्चे हो,
कितने अच्छे- अच्छे बच्चे माया से हार खा लेते हैं । बाबा नाम
नहीं बतलाते हैं,
फिर
भी उम्मीद रखते हैं । अधम ते अधम का उद्धार करना होता हैं ।
बाप को सारे विथ का उद्धार करना हैं । रावण के राज्य में सभी
अधम गति को पाये हुए हैं । बाप तो बचने और बचाने की युक्तियां
रोज-राज समझाते रहते हैं फिर भी गिरते हैं तो अधम ते अधम बन
जाते हैं । वह फिर इतना चढ़ नहीं सकते हैं । वह अधमपना अन्दर
खाता रहेगा । जैसे कहते हो अन्तकाल जो .......उनकी बुद्धि में
वह अधमपना ही याद आता रहेगा ।
तो
बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं - कल्प-कल्प तुम ही सुनते हो,
सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है,
जानवर तो नहीं जानेंगे ना । तुम ही सुनते हो और समझते हो ।
मनुष्य तो मनुष्य ही हैं,
इन
लक्ष्मी-नारायण को भी नाक-कान आदि सभी हैं फिर भी मनुष्य हैं
ना । परन्तु दैवीगुण हैं इसलिए उन्हें देवता कहा जाता है । यह
ऐसा देवता कैसे बनते हैं फिर कैसे गिरते हैं,
इस
चक्र का तुम्हें ही पता है । जो विचार सागर मंथन करते रहो,
उनको
ही धारणा होगी । जो विचार सागर मंथन नहीं करते उन्हें बुद्धू
कहेंगे । मुरली चलाने वाले का विचार सागर मंथन चलता रहेगा-इस
टॉपिक पर यह-यह समझाना है । उम्मीद रखी जाती है,
अभी
नहीं समझेंगे परन्तु आगे चलकर जरूर समझेंगे । उम्मीद रखना माना
सर्विस का शौक है,
थकना
नहीं है । भल कोई चढ़कर फिर अधम बना है,
अगर
आता है तो स्नेह से बिठायेंगे ना वा कहेंगे चले जाओ! हालचाल
पूछना पड़े-इतने दिन कहाँ रहे,
क्यों नहीं आये?
कहेंगे ना माया से हार खा लिया । समझते भी हैं ज्ञान बड़ा अच्छा
है । स्मृति तो रहती है ना । भक्ति में तो हार जीत पाने की बात
ही नहीं । यह नॉलेज है,
इसे
धारण करना है । तुम जब तक ब्राह्मण न बने तब तक देवता बन न सको
। क्रिश्चियन,
बौद्धी,
पारसी आदि में ब्राह्मण थोड़ेही होते हैं । ब्राह्मण के बच्चे
ब्राह्मण होते हैं । यह बातें अभी तुम समझते हो । तुम जानते हो
अल्फ को याद करना है । अल्फ को याद करने से बे बादशाही मिलती
है । जब कोई मिले तो बोलो अल्फ अल्लाह को याद करो । अल्फ को ही
ऊँच कहा जाता हैं । अंगुली से अल्फ तरफ इशारा करते हैं । सीधा
ही सीधा अल्फ है । अल्फ को एक भी कहा जाता है । एक ही भगवान है,
बाकी
सभी हैं बच्चे । बाप को अल्फ कहा जाता है । बाप ज्ञान भी देते
हैं,
अपना
बच्चा भी बनाते हैं । तो तुम बच्चों को कितनी खुशी में रहना
चाहिए । बाबा हमारी कितनी सेवा करते हैं,
विश्व का मालिक बनाते हैं । फिर खुद उस पवित्र दुनिया में आते
भी नहीं । पावन दुनिया में कोई उनको बुलाते ही नहीं । पतित
दुनिया में ही बुलाते हैं । पावन दुनिया में आकर क्या करेंगे ।
उनका नाम ही है पतित-पावन । तो पुरानी दुनिया को पावन दुनिया
बनाना उनकी ड्यूटी है । बाप का नाम ही है शिव | बच्चों को
सालिग्राम कहा जाता है । दोनों की पूजा होती है । परन्तु पूजा
करने वालों को कुछ भी पता नहीं है,
बस
एक रस्म-रिवाज बना दी है पूजा की । देवियों के भी फर्स्टक्लास
हीरे-मोतियों के महल आदि बनाते हैं,
पूजा
करते हैं । वह तो मिट्टी का लिंग बनाया और तोड़ा । बनाने में
मेहनत नहीं लगती है । देवियों को बनाने में मेहनत लगती है,
उनकी
पूजा में मेहनत नहीं लगती । मुफ्त में मिलता है । पत्थर पानी
में घिस-घिस कर गोल बन जाता है । पूरा अण्डाकार बना देते हैं ।
कहते भी हैं अण्डे मिसल आत्मा है,
जो
ब्रह्म तत्व में रहती है,
इसलिए उनको ब्रह्माण्ड कहते हैं । तुम ब्रह्माण्ड के और विश्व
के भी मालिक बनते हो ।
तो
पहले-पहले समझानी देनी है एक बाप की । शिव को बाबा कह सभी याद
करते हैं । दूसरा ब्रह्मा को भी बाबा कहते हैं । प्रजापिता है
तो सारी प्रजा का पिता हुआ ना । ग्रेट-ग्रेट ग्रैंड फादर । यह
सारा ज्ञान अभी तुम बच्चों में है । प्रजापिता ब्रह्मा तो कहते
बहुत हैं परन्तु यथार्थ रीति जानते कोई नहीं । ब्रह्मा किसका
बच्चा है?
तुम
कहेंगे परमपिता परमात्मा का । शिवबाबा ने इनको एडाप्ट किया है
तो यह शरीरधारी हुआ ना । ईश्वर की सभी औलाद हैं । फिर जब शरीर
मिलता है तो प्रजापिता ब्रह्मा की एडाप्टशन कहते हैं । वह
एडाप्टशन नहीं । क्या आत्माओं को परमपिता परमात्मा ने एडाप्ट
किया है?
नहीं,
तुमको एडाप्ट किया है । अभी तुम हो ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ ।
शिवबाबा एडाप्ट नहीं करते हैं । सभी आत्मायें अनादि अविनाशी
हैं । सभी आत्माओं को अपना- अपना शरीर,
अपना- अपना पार्ट मिला हुआ है,
जो
बजाना ही है । यह पार्ट ही अनादि अविनाशी परम्परा से चला आता
है । उनका आदि अन्त नहीं कहा जाता है । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
अपनी
साहूकारी,
पोजीशन आदि का अहंकार मिटा देना है । अविनाशी ज्ञान धन से
स्वयं को मालामाल बनाना है । सर्विस में कभी भी थकना नहीं है ।
2.
वातावरण
को अच्छा रखने के लिए मुख से सदैव रत्न निकालने हैं । दुःख
देने वाले बोल न निकले यह ध्यान रखना है । हर्षितमुख रहना है ।
वरदान:-
याद
और सेवा के शक्तिशाली आधार द्वारा तीव्रगति से आगे बढ़ने वाले
मायाजीत
भव ! 
ब्राह्मण जीवन का आधार याद और सेवा है,
यह
दोनों आधार सदा शक्तिशाली हों तो तीव्रगति से आगे बढ़ते रहेंगे
। अगर सेवा बहुत है,
याद
कमजोर है वा याद बहुत अच्छी है,
सेवा
कमजोर हैं तो भी तीव्रगति नहीं हो सकती । याद और सेवा दोनों
में तीव्रगति चाहिए । याद और नि :स्वार्थ सेवा साथ-साथ हो तो
मायाजीत बनना सहज है । हर कर्म में,
कर्म
की समाप्ति के पहले सदा विजय दिखाई देगी ।
स्लोगन:-
इस संसार
को अलौकिक खेल और परिस्थतियोयों को अलौकिक खिलौने के समान
समझकर चलो । 
ओम्
शान्ति |