14-03-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
तुम आये हो बाप से हेल्थ, वेल्थ, हैपीनेस का वर्सा लेने,
ईश्वरीय मत पर चलने से ही बाप का वर्सा मिलता है
| 
प्रश्न:-
बाप
ने सभी बच्चों को विकल्प जीत बनने की युक्ति कौन-सी बताई है?
उत्तर:-
विकल्प जीत बनने के लिए अपने को आत्मा समझ भाई-भाई की दृष्टि
से देखो | शरीर को देखने से विकल्प आते हैं, इसलिए भ्रकुटी में
आत्मा भाई को देखो | पावन बनना है तो यह दृष्टि पक्की रखो |
निरन्तर पतित-पावन बाप को याद करो | याद से ही कट निकलती
जायेगी, ख़ुशी का पारा चढ़ेगा और विकल्पों पर विजय प्राप्त कर
लेंगे |
ओम्
शान्ति
|
शिव
भगवानुवाच अपने सलिग्रामों प्रति | शिव भगवानुवाच है तो ज़रूर
शरीर होगा तब तो वाच होगा | बोलने के लिए मुख ज़रूर चाहिए | तो
सुनने वालों को भी कान ज़रूर चाहिए | आत्मा को कान, मुख चाहिए |
अभी तुम बच्चों को ईश्वरीय मत मिल रही है, जिसको राम मत कहा
जाता है | दूसरे फिर हैं रावण मत पर | ईश्वरीय मत और आसुरी मत
| ईश्वरीय मत आधाकल्प चलती है | बाप ईश्वरीय मत देकर तुमको
देवता बना देते हैं फिर सतयुग-त्रेता में वही मत चलती है |
वहाँ जन्म भी थोड़े हैं क्योंकि योगी लोग हैं | और
द्वापर-कलियुग में है रावण मत, यहाँ जन्म भी बहुत हैं, क्योंकि
भोगी लोग हैं, इसलिए आयु भी कम होती है | बहुत सम्प्रदाय हो
जाती है और बहुत दुःखी होते हैं | राम मत वाले फिर रावण मत से
मिल जाते हैं | तो सारी दुनिया की रावण मत हो जाती है | फिर
बाप आकर सबको राम मत देते हैं | सतयुग में है राम मत, ईश्वरीय
मत | उसको कहा जाता है स्वर्ग | ईश्वरीय मत मिलने से स्वर्ग की
स्थापना हो जाती है आधाकल्प के लिए | वह जब पूरी होती है तो
रावण राज्य होता है, उसको कहा जाता है आसुरी मत | अब अपने से
पूछो – हम आसुरी मत से क्या करते थे? ईश्वरीय मत से क्या कर
रहे हैं? आगे जैसेकि नर्कवासी थे फिर स्वर्गवासी बनते हैं –
शिवालय में | सतयुग-त्रेता को शिवालय कहा जाता है | जिस नाम से
स्थापना होती है तो ज़रूर उनका नाम भी रखेंगे | तो वह है
शिवालय, जहाँ देवता रहते हैं | रचयिता बाप ही तुमको यह बातें
समझा रहे हैं | क्या रचते हैं, वह भी तुम बच्चे समझते हो |
सारी रचना इस समय उनको बुलाती है – हे पतित-पावन वा हे
लिबरेटर, रावण के राज्य से वा दुःख से छुड़ाने वाले | अभी तुमको
सुख का मालूम पड़ा है तब इसको दुःख समझते हो | नहीं तो कई इसको
दुःख थोड़ेही समझते हैं | जैसे बाप नॉलेजफुल है, मनुष्य सृष्टि
का बीजरूप है, तुम भी नॉलेजफुल बनते हो | बीज में झाड़ की नॉलेज
होती है ना | परन्तु वह है जड़ | अगर चैतन्य होता तो बता देता |
तुम चैतन्य झाड़ के हो इसलिए झाड़ को भी जानते हो | बाप को कहा
जाता है मनुष्य सृष्टि का बीजरूप, सत् चित आनन्द स्वरूप | इस
झाड़ की उत्पत्ति और पालना कैसे होती है, यह कोई नहीं जानते |
ऐसे नहीं, नया झाड़ उत्पन्न होता है | यह भी बाप ने समझाया है
पुराने झाड़ वाले मनुष्य बुलाते हैं कि आकर रावण से लिबरेट करो
क्योंकि इस समय रावण राज्य है | मनुष्य तो न रचयिता को, न रचना
को जानते | खुद बाप बतला रहे हैं मैं एक ही बार हेविन बनाता
हूँ | हेविन के बाद फिर हेल बनता है | रावण के आने से फिर वाम
मार्ग में चले जाते हैं | सतयुग में हेल्थ, वेल्थ, हैपीनेस सब
है | तुम यहाँ आये हो बाप से वर्सा लेने – हेल्थ, वेल्थ,
हैपीनेस का क्योंकि स्वर्ग में कभी दुःख होता नहीं | तुम्हारी
दिल में है कि हम कल्प-कल्प पुरुषोत्तम संगमयुग में पुरुषार्थ
करते हैं | नाम ही कैसा अच्छा है | और कोई युग को पुरुषोत्तम
थोड़ेही कहते हैं | उनमें तो सीढ़ी नीचे उतरते जाते हैं | बाप को
बुलाते भी हैं, समर्पण भी करते हैं | लेकिन यह मालूम नहीं रहता
कि बाप कब आयेगा | पुकारते तो हैं ओ गॉड फादर लिबरेट करो, गाइड
बनो | लिबेरेटर बनेंगे तो ज़रूर आना पड़े | फिर गाइड बन ले जाना
पड़े | बाप बच्चों को बहुत दिनों के बाद देखते हैं तो बड़ा खुश
होते हैं | वह है हद का बाप | यह है बेहद का बाप | बाबा
क्रियेटर है | रच करके फिर उनकी पालना भी करते हैं | पुनर्जन्म
तो लेना पड़ता है | किसको 10, किसको 12 बच्चे होते हैं, परन्तु
वह सब हैं हद के सुख, जो काग विष्टा समान हैं | तमोप्रधान बन
जाते हैं | तमोप्रधान में सुख बहुत थोड़ा है | तुम सतोप्रधान
बनते हो तो बहुत सुख होता है | सतोप्रधान बनने की युक्ति बाप
आकर बताते हैं | बाप को ऑलमाइटी अथॉरिटी कहा जाता है | मनुष्य
समझते हैं गॉड ऑलमाइटी अथॉरिटी है तो जो चाहे सो कर सकते हैं |
मरे को ज़िन्दा कर सकते हैं | एक बार कोई ने लिखा – अगर आप
भगवान हैं तो मक्खी को ज़िन्दा कर दिखाओ | ऐसे ढेर प्रश्न पूछते
हैं |
तुमको बाप ताक़त देते हैं, जिससे तुम रावण पर जीत पाते हो |
बन्दर से मन्दिर लायक बनते हो | उन्हों ने फिर क्या-क्या बना
दिया है | वास्तव में तुम सब सीतायें भक्तियाँ हो | तुम सबको
रावण से छुड़ाया है | रावण द्वारा तुमको कभी भी सुख नहीं मिल
सकता | इस समय सब रावण की जेल में हैं | राम की जेल में नहीं
कहेंगे | राम आते हैं रावण की जेल से छुड़ाने | रावण 10 सिर
वाला बनाते हैं | उनको 20 भुजायें दिखाई हैं | बाप न समझाया है
कि 5 विकार पुरुष में, 5 विकार स्त्री में हैं | उनको कहते हैं
रावण राज्य वा 5 विकार रूपी माया का राज्य | ऐसे नहीं कहेंगे,
उनके पास बहुत माया है | माया का नशा चढ़ा हुआ है, नहीं | धन को
माया नहीं कहेंगे | धन को सम्पत्ति कहा जाता है | तुम बच्चोंको
सम्पत्ति आदि बहुत मिलती है | तुमको कुछ भी मांगने की दरकार
नहीं क्योंकि यह तो पढ़ाई है | पढ़ाई में माँगना होता है क्या |
टीचर जो पढ़ायेंगे वह स्टूडेन्ट पढ़ेंगे | जितना जो पढ़ेंगे, उतना
पायेंगे | मांगने की बात नहीं | इसमें पवित्रता भी चाहिए | एक
अक्षर की भी वैल्यु देखो कितनी है | पद्मापद्म | बाप को
पहचानो, याद करो | बाप ने पहचान दी है – जैसे आत्मा बिन्दी है,
वैसे मैं भी आत्मा बिन्दी हूँ | वह तो एवर पवित्र है | शान्ति,
ज्ञान, पवित्रता का सागर है | एक की ही महिमा है | सबका पोजीशन
अपना-अपना होता है | नाटक भी बनाया है – कण-कण में भगवान,
जिन्होंने नाटक देखा होगा वह जानते होंगे | जो महावीर बच्चे
हैं उनको तो बाबा कहते हैं तुम भल कहीं भी जाओ, सिर्फ़ साक्षी
हो देखना चाहिए |
अभी
तुम बच्चे राम राज्य स्थापन कर रावण राज्य को ख़लास कर देते हो
| यह है बेहद की बात | वह कहानियाँ हद की बना दी हैं | तुम हो
शिव शक्ति सेना | शिव ऑलमाइटी है ना | शिव की शक्ति लेने वाले
शिव की सेना तुम हो | उन्होंने भी फिर शिव सेना नाम रखा है |
अब तुम्हारा नाम क्या रखें | तुम्हारा तो नाम रखा है –
प्रजापिता ब्रह्माकुमार-कुमारियां | शिव की तो सभी सन्तान हैं
| सारी दुनिया की आत्मायें उनकी सन्तान हैं | शिव से तुमको
शक्ति मिलती है | शिवबाबा तुमको ज्ञान सिखाते हैं, जिससे तुमको
इतनी शक्ति मिलती है जो आधाकल्प तुम सारे विश्व पर राज्य करते
हो | तुम्हारी यह है योग बल की शक्ति | और उन्हों की है बाहुबल
की | भारत का प्राचीन राजयोग गाया हुआ है | चाहते भी हैं भारत
का प्राचीन योग सीखें, जिससे पैरडाइज़ स्थापन हुआ था | कहते हैं
– क्राइस्ट से इतने वर्ष पहले पैराडाइज़ था | वह कैसे बना? योग
से | तुम हो प्रवृत्ति मार्ग वाले सन्यासी | वह घरबार छोड़ जंगल
में चले जाते हैं | ड्रामा अनुसार हर एक को पार्ट मिला हुआ है
| इतनी छोटी-सी बिन्दी में कितना पार्ट है, इसको क़ुदरत ही
कहेंगे | बाप तो एवर शक्तिमान् गोल्डन एजड है, अभी तुम उनसे
शक्ति लेते हो | यह भी ड्रामा बना हुआ है | ऐसे नहीं कि हज़ार
सूर्यों से तेजोमय है | वह तो जो जिसका भाव बैठता है, तो उस
भावना से देखते हैं | आँखें लाल-लाल हो जाती हैं | बस करो, हम
नहीं सहन कर सकते | बाप कहते हैं वह सब भक्ति मार्ग के संस्कार
हैं | यह तो नॉलेज है, इसमें पढ़ना है | बाप टीचर भी है, पढ़ा
रहे हैं | हमको कहते हैं तुमको तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है
| बाबा ने समझाया है हियर नो ईविल.......मनुष्यों को पता नहीं
है कि यह किसने कहा है, पहले बन्दर का चित्र बनाते थे | अभी
मनुष्यों का बनाते रहते हैं | बाबा ने भी नलिनी बच्ची का बनाया
था | मनुष्यों को भक्ति का नशा कितना है | भक्ति का राज्य है
ना | अभी होता है ज्ञान का राज्य | फ़र्क हो जाता है | बच्चे
जानते हैं बरोबर गायन से बहुत सुख होता है | फिर भक्ति से सीढ़ी
नीचे उतरते हैं | हम पहले सतयुग में जाते हैं फिर जूँ मिसल
नीचे उतरते हैं | 1250 वर्ष में दो कला कम होती हैं | चन्द्रमा
का मिसाल है | चन्द्रमा को ग्रहण लगता है | कलायें कम होने
लगती हैं फिर धीरे-धीरे कलायें बढती हैं तो 16 कला होता है |
वह है अल्पकाल की बात | यह तो है बेहद की बात | इस समय सभी पर
राहू का ग्रहण है | ऊँच ते ऊँच है बृहस्पति की दशा | नीचे में
नीची है राहू की दशा | एकदम देवाला निकाल देते हैं | बृहस्पति
की दशा से हम चढ़ते हैं | वह बेहद के बाप को जानते नहीं हैं
|
अब
राहू की दशा तो सब पर बरोबर है | यह तुम जानते हो, और कोई नहीं
जानते | राहू की दशा ही इनसालवेन्ट बनाती है | बृहस्पति की दशा
से सालवेन्ट बनते हैं | भारत कितना सालवेन्ट था | एक ही भारत
था | सतयुग में राम राज्य, पवित्र राज्य होता है, जिसकी महिमा
होती है | अपवित्र राज्य वाले गाते हैं मैं निर्गुण हारे में
कोई गुण नाहीं......| ऐसी संस्थायें भी बननाई हैं – निर्गुण
संस्था | अरे, यह तो सारी दुनिया निर्गुण संस्था है | एक की
बात थोड़ेही है | बच्चे को हमेशा महात्मा कहा जाता है | तुम फिर
कहते हो कोई गुण नहीं | यह तो सारी दुनिया है, जिनमें कोई गुण
न होने कारण राहू की दशा बैठी है | अब बाप कहते हैं दे दान तो
छूटे ग्रहण | अब जाना तो सबको है ना | देह सहित देह के सभी
धर्मों को छोडो | अपने को आत्मा निश्चय करो | तुमको अब वापिस
जाना है | पवित्र न होने के कारण वापिस कोई जा न सके | अब बाप
पवित्र होने की युक्ति बताते हैं | बेहद के बाप को याद करो |
कई कहते हैं बाबा हम भूल जाते हैं | बाप कहते हैं – मीठे
बच्चों, पतित-पावन बाप को तुम भूल जायेंगे तो तुम पावन कैसे
बनेंगे? विचार करो कि यह क्या कहते हो? जानवर भी कभी ऐसे नहीं
कहेंगे कि हम बाप को भूल जाते हैं | तुम क्या कहते हो! मैं
तुम्हारा बेहद का बाप हूँ, तुम आये हो बेहद का वर्सा लेने |
निराकार बाप साकार में आये तब तो पढ़ाये | अभी बाप ने इसमें
प्रवेश किया है | यह है बापदादा | दोनों की आत्मा इस भ्रकुटी
के बीच में है | तुम कहते हो बाप-दादा, तो ज़रूर दोनों आत्मायें
होंगी | शिवबाबा और ब्रह्मा की आत्मा | तुम सब बने हो
प्रजापिता ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ | तुमको नॉलेज मिलती है तो
जानते हो हम भाई-भाई हैं | फिर प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा हम
भाई-बहिन बनते हैं | यह याद पक्की चाहिए | परन्तु बाबा देखते
हैं कि बहिन-भाई में भी नाम-रूप की कशिश होती है | बहुतों को
विकल्प आते हैं | अच्छा शरीर देख कर विकल्प आते हैं | अब बाप
कहते हैं अपने को आत्मा समझ भाई-भाई की दृष्टि से देखो |
आत्मायें सब ब्रदर्स हैं | ब्रदर्स हैं तो बाप ज़रूर चाहिए |
सबका एक बाप है | सभी बाप को याद करते हैं | अभी बाप कहते हैं
सतोप्रधान बनना है तो मामेकम् याद करो | जितना याद करेंगे तो
कट निकलती जायेगी, ख़ुशी का पारा चढ़ेगा और कशिश होती रहेगी |
नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
पढ़ाई पर
पूरा ध्यान देकर स्वयं को संपत्तिवान बनाना है | कुछ भी माँगना
नहीं है | एक बाप की याद और पवित्रता की धारणा से पदमापदमपति
बनना है |
2.
राहू के ग्रहण से मुक्त होने के लिए विकारों का दान देना है |
हियर नो ईविल......जिन बातों से सीढ़ी नीचे उतरे, निर्गुण बनें,
उन्हें बुद्धि से भूल जाना है |
वरदान:-
योग
द्वारा ऊँची स्थिति का अनुभव करने वाले डबल लाइट फ़रिश्ता भव
! 
आप
राजयोगी बच्चे योग में ऊँची स्थिति का अनुभव करते हो, हठयोगी
फिर शरीर को ऊँचा उठाते हैं | आप कहाँ भी रहते ऊँची स्थिति में
रहते हो इसलिए कहते योगी ऊँचा रहते हैं | आपके मन की स्थिति का
स्थान ऊँचा है क्योंकि डबल लाइट बन गये | वैसे भी कहा जाता कि
फ़रिश्तों के पाँव धरनी पर नहीं होते | फ़रिश्ता अर्थात् जिसका
बुद्धि रूपी पाँव धरती पर न हो, देहभान में न हो | पुरानी
दुनिया से कोई लगाव न हो |
स्लोगन:-
अभी
दुआओं के खाते को सम्पन्न बना लो तो आपके चित्रों द्वारा सबको
अनेक जन्म दुआयें मिलती रहेंगी | 
ओम् शान्ति
|