07-03-14        प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे तुम्हें योगबल से इस खारी चैनल को पार कर घर जाना है इसलिए जहाँ जाना है उसे याद करो, इसी ख़ुशी में रहो कि हम अभी फ़क़ीर से अमीर बनते हैं |   

प्रश्न:-   
दैवीगुणों की सब्जेक्ट पर जिन बच्चों का ध्यान है, उनकी निशानी क्या होगी?

उत्तर:-
उनकी बुद्धि में रहता – जैसा कर्म हम करेंगे हमको देख दूसरे करेंगे | कभी किसी को तंग नहीं करेंगे | उनके मुख से कभी उल्टा-सुल्टा शब्द नहीं निकलेगा | मन्सा-वाचा-कर्मणा किसी को दुःख नहीं देंगे | बाप समान सुख देने का लक्ष्य है तब कहेंगे दैवीगुणों की सब्जेक्ट पर ध्यान है |

ओम् शान्ति |

मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप समझा रहे हैं | याद की यात्रा भी सिखला रहे हैं | याद की यात्रा का अर्थ भी बच्चे समझते होंगे | भक्ति मार्ग में भी सब देवताओं को, शिवबाबा को याद करते हैं | परन्तु यह पता नहीं था कि याद से ही विकर्म विनाश होंगे | बच्चे जानते हैं बाप पतित-पावन है, वही पावन बनाने की युक्ति बताते हैं | आत्मा को ही पावन बनना है, आत्मा ही पतित बनती है | बच्चे जानते हैं भारत में ही बाप आकर याद की यात्रा सिखलाते हैं और कहाँ भी सिखला न सकें | जिस्मानी यात्रायें तो बच्चों ने बहुत की हैं, यह यात्रा सिर्फ़ एक बाप ही सिखला सकते हैं | अब तुम बच्चों को बाप ने समझाया है माया के कारण सबकी बुद्धि को बेसमझी का ताला लगा हुआ है | अभी बाप द्वारा तुमको मालूम पड़ा है कि हम कितने समझदार, धनवान और पवित्र थे | हम सारे विश्व के मालिक थे | अब हम फिर बन रहे हैं | बाप कितनी बड़ी बेहद की बादशाही देते हैं | लौकिक बाप करके लाख करोड़ देंगे | यहाँ तो मीठा बेहद का बाप बेहद की बादशाही देने आये हैं, इसलिए तुम यहाँ पढ़ने आये हो | किसके पास? बेहद बाबा के पास | बाबा अक्षर मम्मा से भी मीठा है | भल मम्मा पालना करती है परन्तु बाप फिर भी बाप है, जिससे बेहद का वर्सा मिलता है | तुम सदा सुखी और सदा सुहागिन बन रहे हो | बाबा हमको फिर से क्या बनाते हैं! यह कोई नई बात नहीं है | गायन भी है सुबह को अमीर था, रात को फ़क़ीर था | तुम भी सुबह में अमीर और फिर बेहद रात में फ़क़ीर बन जाते हो | बाबा रोज़-रोज़ स्मृति दिलाते हैं – बच्चे, कल तो तुम विश्व के मालिक अमीर थे, आज तुम फ़क़ीर बन पड़े हो | अब फिर सुबह आती है तो तुम अमीर बन जाते हो | कितनी सहज बात है | तुम बच्चों को बहुत ख़ुशी होनी चाहिए – अमीर बनने की | ब्राह्मणों का दिन और ब्राह्मणों की रात | अब दिन में तुम अमीर बन रहे हो और बनेंगे भी ज़रूर | परन्तु नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार | बाप कहते हैं यह वह खारी चैनल है, जिसे तुम ही पार करते हो – योगबल से | जहाँ जाना है उनकी याद रहनी चाहिए | हमको अब घर जाना है | बाबा खुद आया है हमको लेने | बहुत प्यार से समझाते हैं – मीठे बच्चे, तुम ही पावन थे, 84 जन्म लेते-लेते पतित बने हो फिर पावन बनना है | पावन बनने का और कोई उपाय नहीं | तुम जानते हो पतित-पावन आते हैं और तुम उनकी मत पर चल पावन बनते हो | तुम बच्चों को बहुत ख़ुशी होती है कि हम यह पद पायेंगे | बाप कहते हैं तुम 21 जन्मों के लिए सदा सुखी बनेंगे | बाप सुखधाम का, रावण दुःखधाम का वर्सा देते हैं | तुम बच्चे अभी जानते हो रावण तुम्हारा पुराना दुश्मन है, जिसने तुमको 5 विकारों रूपी पिंजड़े में डाला है | बाप आकर निकालते हैं | जितना जो बाप को याद करते हैं, उतना औरों को भी परिचय देते हैं | याद न करने वाले देह-अभिमान में होंगे | वह न बाप को याद कर सकते, न बाप का परिचय दे सकते हैं | हम आत्मा भाई-भाई हैं, घर से यहाँ आये हैं – भिन्न-भिन्न पार्ट बजाने | सारा पार्ट कैसे बजता है, यह भी तुम्हारी बुद्धि में है | जिनको पक्का निश्चय है, वह आकर यहाँ रिफ्रेश होते हैं | यह कोई ऐसी पढ़ाई नहीं है जो तुमको टीचर के साथ ही रहना है | नहीं, अपने घर में रहते भी पढ़ाई कर सकते हो | सिर्फ़ एक हफ्ता अच्छी तरह समझो फिर ब्राह्मणियाँ कोई को एक मास में, कोई को 6 मास में, कोई को 12 मास के बाद ले आती हैं | बाबा कहते हैं निश्चय हुआ और भागा | 

राखी भी बाँधनी है कि हम विकार में नहीं जायेंगे | हम शिवबाबा से प्रतिज्ञा करते हैं | शिवबाबा ही कहते हैं – बच्चों, तुमको निर्विकारी ज़रूर बनना है | अगर विकार में गये तो की कमाई चट, सौ गुणा दण्ड पड़ जायेगा | 63 जन्म तुमने गोते खाये | अब कहते हैं पवित्र बनो | मेरे को याद करो तो तुम्हारे पाप भस्म हो जायेंगे | आत्मा भाई-भाई है | किसके नाम-रूप में फँसना नहीं है | अगर कोई रेग्युलर नहीं पढ़ता है तो जल्दी में नहीं ले आना चाहिए | भल बाबा कहते हैं एक दिन में भी तीर लग सकता है परन्तु समझ से भी काम लेना है | तुम ब्राह्मण हो सबसे उत्तम | यह तुम्हारा बहुत ऊँचा कुल है | वहाँ कोई सतसंग आदि होते नहीं | सतसंग भक्ति मार्ग में होता है | तुम जानते हो सत का संग तारे, सत का संग मिलता ही तब है जब सतयुग की स्थापना होनी होगी | यह किसकी बुद्धि में नहीं आता क्योंकि बुद्धि को ताला लगा हुआ है | अब सतयुग में जाना है | सत का संग मिलता ही है पुरुषोत्तम संगमयुग पर | वह गुरु लोग तो संगमयुगी हैं नहीं | बाबा जब आते हैं तो बेटा-बेटा कह बुलाते हैं | उन गुरु लोगों को तुम बाबा थोड़ेही कहेंगे | एकदम बुद्धि को गॉडरेज का ताला लगा हुआ है | बाबा आकर ताला खोलते हैं | बाबा देखो कितनी युक्ति रचते हैं कि मनुष्य आकर हीरे जैसा जीवन बनायें | मैगज़ीन किताब आदि छपाते रहते हैं | बहुतों का कल्याण हो तो बहुतों की आशीर्वाद भी मिलेगी | प्रजा बनाने का पुरुषार्थ करना चाहिए | अपने को बन्धन से छुड़ाना चाहिए | शरीर निर्वाह अर्थ सर्विस तो ज़रूर करनी है | ईश्वरीय सर्विस होती है सिर्फ़ सुबह और शाम को | उस समय सबको फ़ुर्सत है, जिसके साथ तुम लौकिक सर्विस करते हो, उनको भी परिचय देते रहो कि तुमको दो बाप हैं | लौकिक बाप सबका अलग है | पारलौकिक बाप सबका एक है | वह सुप्रीम है | बाबा कहते हैं मेरा भी पार्ट है | अब तुम बच्चे मेरा परिचय जान गये हो | आत्मा को भी तुम जान गये हो | आत्मा के लिए कहते हैं भ्रकुटी के बीच चमकता है अजब सितारा..... | वह अकाल-तख़्त भी है | आत्मा को कभी काल नहीं खाता | वह सिर्फ़ मैली और साफ़ होती है, आत्मा का तख़्त शोभता भी भ्रकुटी के बीच है | तिलक की निशानी भी यहाँ देते हैं | बाप कहते हैं तुम अपने को आपेही राज-तिलक देने के लायक बनाओ | ऐसे नहीं कि मैं सबको राज़ तिलक दूँगा | तुम अपने को दिलाओ | बाबा जानते हैं – कौन बहुत सर्विस करते हैं | मैगज़ीन में भी लिखत बहुत अच्छी आती है | साथ-साथ योग की मेहनत भी करनी है, जिससे विकर्म विनाश हों | दिन-प्रतिदिन तुम अच्छे राजयोगी बन जायेंगे | समझेंगे जैसेकि अब शरीर छूटता है, हम चले जाते हैं | सूक्ष्मवतन तक तो बच्चे जाते हैं, मूलवतन को भी अच्छी तरह जानते हैं कि हम आत्माओं का घर है | मनुष्य शान्तिधाम के लिए ही भक्ति करते हैं | सुखधाम का तो उनको मालूम ही नहीं है | स्वर्ग में जाने की शिक्षा तो कोई दे नहीं सकते, बाप के सिवाए | यह है प्रवृत्ति मार्ग | दोनों को मुक्तिधाम में जाना है | वो लोग उल्टा रास्ता बताते हैं, जाता कोई भी नहीं है | सभी को पिछाड़ी में बाप ले जायेंगे | यह उनकी ड्यूटी है | कोई अच्छी रीति पढकर राज्य-भाग्य ले लेते हैं | बाकी सब कैसे पढ़ेंगे | वह जैसे नम्बरवार आते हैं, वैसे नम्बरवार जायेंगे | इन बातों में जास्ती समय वेस्ट मत करो |  

कहते हो बाबा को याद करने की भी फ़ुर्सत नहीं मिलती है फिर इसमें समय क्यों वेस्ट करते हो | यह तो निश्चय है कि बेहद का बाप, टीचर गुरु भी है | फिर दूसरे कोई को याद करने की ज़रूरत नहीं है | तुम जानते हो कल्प पहले भी श्रीमत पर चलकर पावन बने थे | घड़ी-घड़ी चक्र भी फिराते रहो | तुम्हारा नाम है स्वदर्शन चक्रधारी | (नार, रहेट का मिसाल) ज्ञान सागर से तुम्हें भरने में देरी नहीं लगती, खाली होने में देरी लगती है | तुम हो मीठे सिकीलधे बच्चे क्योंकि कल्प के बाद आकर मिले हो | यह पक्का निश्चय चाहिए | हम 84 जन्मों के बाद फिर से आकर बाप से मिले हैं | बाप कहते हैं जिसने पहले भक्ति की है वही पहले ज्ञान लेने के लायक भी बने हैं क्योंकि भक्ति का फल चाहिए | तो सदैव अपने फल अथवा वर्से को याद करते रहो | फल अक्षर भक्ति मार्ग का है | वर्सा ठीक है | बेहद बाप को याद करने से वर्सा मिलता है और कोई उपाय नहीं | भारत का प्राचीन योग मशहूर है | वह समझते हैं हम भारत का प्राचीन योग सीखते हैं | बाबा समझाते हैं वह ड्रामा अनुसार हठयोगी बन जाते हैं | राजयोग अब तुम सीखते हो क्योंकि अब संगमयुग है | उन्हों का धर्म अलग है | वास्तव में उनको गुरु करना नहीं चाहिए | परन्तु यह भी ड्रामा अनुसार फिर भी करेंगे ज़रूर | तुम बच्चों को अब राइटियस बनना है | रिलीजन में ही ताक़त है | तुमको जो मैं देवी-देवता बनाता हूँ, यह धर्म बहुत सुख देने वाला है | मेरी ताक़त भी उनको मिलती है जो मेरे से योग लगाते हैं | तो बाप जो खुद धर्म स्थापन करते हैं, उनमें बहुत ताक़त है | तुम सारे विश्व के मालिक बन जाते हो | बाप इस धर्म की महिमा करते हैं कि इसमें बहुत माईट है | ऑलमाइटी बाबा से माईट बहुतों को मिलती है | वास्तव में माईट सबको मिलती है परन्तु नम्बरवार | तुमको जितनी माईट चाहिए उतनी बाबा से लो फिर दैवीगुणों की सब्जेक्ट भी चाहिए | किसको तंग नहीं करना, दुःख नहीं देना | यह कभी किसको उल्टा-सुल्टा शब्द नहीं कहते | जानते हैं जैसा कर्म मैं करूँगा, मुझे देख और भी करेंगे | आसुरी गुणों से दैवीगुणों में आना है | देखना है हम किसको दुःख तो नहीं देते हैं? ऐसा कोई नहीं है जो किसको दुःख नहीं देता हो | कुछ न कुछ भूलें होती ज़रूर हैं | वह अवस्था तो अन्त में ही आयेगी, जो मन्सा-वाचा-कर्मणा किसको दुःख न देवे | इस समय हम पुरुषार्थी अवस्था में हैं | हर बात नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार होती है | सभी पुरुषार्थ सुख के लिए ही करते हैं | परन्तु बाप बिगर कोई सुख दे न सके | देखा जाता है सोमनाथ के मन्दिर में कितने हीरे जवाहर थे | वह सब कहाँ से आये, कैसे साहूकार बने | सारा दिन इस पढ़ाई के चिन्तन में रहना चाहिए | गृहस्थ व्यवहार में रह कमल पुष्प समान पवित्र बनना है | तुमने यह पुरुषार्थ किया है तब तो माला बनी है | कल्प-कल्प बनती रहती है | माला किसका यादगार है – यह भी तुम जानते हो | वह तो माला का सिमरण कर बहुत मस्त हो जाते हैं | भक्ति में क्या होता है और ज्ञान में क्या होता है – यह भी तुम ही जानते हो | तुम किसको भी समझा सकते हो | पुरुषार्थ करते-करते आखरीन पिछाड़ी की रिज़ल्ट कल्प पहले मुआफ़िक निकल आयेगी | हर एक अपनी जाँच करते रहें | तुम समझते हो हमको यह बनना है | पुरुषार्थ की मार्ज़िन मिली है | नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार बाप भी तुम्हारा स्वागत करते हैं | तुम बच्चे जो स्वागत करते हो, उनसे जास्ती बाप तुम्हारा स्वागत करते हैं | बाप का धन्धा ही है – तुम्हारा स्वागत करना | स्वागत माना सद्गति | यह सबसे ऊँचा स्वागत है | तुम सबका स्वागत करने बाप आते हैं | अच्छा! 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 धारणा के लिए मुख्य सार:-  

1.    बहुतों की आशीर्वाद लेने के लिए कल्याणकारी बनना है | शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते भी अपने को बन्धन से मुक्त कर सुबह-शाम ईश्वरीय सर्विस ज़रूर करनी है | 

2.    दूसरी बातों में अपना समय वेस्ट न कर बाप को याद कर माईट लेनी है | सत के संग में ही रहना है | मन्सा-वाचा-कर्मणा सबको सुख देने का ही पुरुषार्थ करना है |

वरदान:-  

स्नेह की शक्ति द्वारा हर परिस्थिति को सहज पास करने वाले पास विद आनर भव !    

बापदादा का स्नेह सभी बच्चों में समाया हुआ है, स्नेह ही ब्राह्मण जीवन का मूल आधार है | स्नेह का अर्थ ही है पास रहना और हर परिस्थिति को सहज पास कर लेना | जैसे स्नेही के पास रहना सहज है, ऐसे जब पास करना सहज हो जायेगा तो पास विद आनर बन जायेंगे | यह स्नेह का विमान ही सेकेण्ड की गति से बाप के समीप ले आता है |

स्लोगन:- 

बापदादा साथ हो तो माया का प्रभाव पड़ नहीं सकता |   

ओम् शान्ति |