12-02-14       प्रातः मुरली       ओम् शान्ति   “बापदादा”     मधुबन


मीठे बच्चे विदेही बन बाप को याद करो, स्वधर्म में टिको तो ताक़त मिलेगी, ख़ुशी और तन्दुरुस्ती रहेगी, बैटरी फुल होती जायेगी |   


प्रश्न:-   
ड्रामा की किस नूँध को जानने के कारण तुम बच्चे सदा अचल रहते हो?


उत्तर:-
तुम जानते हो यह बाम्ब्स आदि जो बने हैं, यह छूटने हैं ज़रूर | विनाश होगा तब तो हमारी नई दुनिया आएगी | यह ड्रामा की अनादि नूँध है, मरना तो सबको है | तुम्हें ख़ुशी है कि हम यह पुराना शरीर छोड़ राजाई में जन्म लेंगे | तुम ड्रामा को साक्षी हो देखते हो | इसमें हिलने की बात नहीं, रोने की कोई दरकार नहीं |


ओम् शान्ति |

बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं यह जो आदि सनातन देवी-देवता धर्म था उसको हिन्दू धर्म में क्यों लाया? कारण निकालना चाहिए | पहले तो आदि सनातन देवी-देवता धर्म ही था | फिर जब विकारी हुए तो अपने को देवता कह न सके | तो अपने को आदि सनातन देवी-देवता के बदले आदि सनातन हिन्दू कह दिया है | आदि सनातन अक्षर भी रखा है | सिर्फ़ देवता बदली कर हिन्दू रख दिया है | उस समय इस्लामी आये तो उन बाहर वालों ने आकर हिन्दू धर्म नाम रख दिया | पहले हिंदुस्तान नाम भी नहीं था | तो आदि सनातन हिन्दू देवता धर्म वाले ही समझने चाहिए | वह अक्सर करके धर्मात्मा होते हैं | सभी सनातनी नहीं हैं, जो पीछे आये हैं उनको आदि सनातनी नहीं कहेंगे | हिन्दुओं में भी पीछे आने वाले होंगे | आदि सनातन हिन्दुओं को बताना चाहिए कि तुम्हारा आदि सनातन देवता धर्म था | तुम ही सतोप्रधान आदि सनातन थे फिर पुनर्जन्म लेते-लेते तमोप्रधान बने हो, अब फिर याद की यात्रा से सतोप्रधान बनो | उन्हों को यह दवाई अच्छी लगेगी | बाबा सर्जन है ना | जिन्हों को यह दवाई अच्छी लगती है उनको देनी चाहिए | जो आदि सनातन देवी-देवता धर्म के थे, उन्हों को स्मृति दिलानी चाहिए | जैसे तुम बच्चों को स्मृति आई है | बाबा ने समझाया है – कैसे तुम सतोप्रधान से तमोप्रधान बने हो? अब फिर तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है | तुम बच्चे सतोप्रधान बन रहे हो – याद की यात्रा से | जो आदि सनातन हिन्दू होंगे वही असुल देवी-देवता होंगे और वही देवताओं को पूजने वाले भी होंगे | उनमें भी जो शिव के या लक्ष्मी-नारायण, राधे-कृष्ण, सीता-राम आदि देवताओं के भक्त हैं, वह देवता घराने के हैं | अब स्मृति आई है – जो सूर्यवंशी हैं वही चन्द्रवंशी बनते हैं तो ऐसे-ऐसे भक्तों को ढूँढ़ना चाहिए | फॉर्म उनसे भराना है जो समझने लिए आते हैं | मुख्य सेन्टर्स पर फॉर्म भराने के लिए ज़रूर होने चाहिए | जो भी आये उनको लेसन तो शुरू से देंगे | पहली मुख्य बात है जो बाप को नहीं जानते तो उनको समझाना पड़ता है | तुम अपने बड़े बाप को नहीं जानते हो | तुम असूल में पारलौकिक बाप के हो | वहाँ यह अनेक धर्म होते नहीं | तो फॉर्म जो भरते उस पर ही सारा मदार होना चाहिए | कोई बच्चे भल समझाते बहुत अच्छा हैं परन्तु योग है नहीं | अशरीरी बन बाप को याद करें, वह है नहीं | याद में ठहर नहीं सकते | भल समझते हैं हम अच्छा समझाते हैं, म्यूज़ियम आदि भी खोलते हैं परन्तु याद कम है | अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते रहें, इसमें ही मेहनत है | बाप वार्निंग देते हैं | ऐसे मत समझो कि हम तो बहुत अच्छा कनविन्स कर सकते हैं | परन्तु इससे फ़ायदा क्या? चलो, स्वदर्शन चक्रधारी बन गये परन्तु इसमें तो विदेही बनना है | कर्म करते अपने को आत्मा समझना है | आत्मा इस शरीर द्वारा कर्तव्य करती है – यह याद करना भी नहीं आता, ख्याल में नहीं आता, उनको कहेंगे बुद्धू | बाप को याद नहीं कर सकते! सर्विस करने की ताक़त नहीं | याद बिगर आत्मा में ताक़त कहाँ से आयेगी? बैटरी कैसे भरे? चलते-चलते खड़ी हो जायेगी, ताक़त नहीं रहेगी |

 

कहा जाता है रिलीजन इज़ माइट | आत्मा स्वधर्म में टिके, तक ताक़त मिले | बहुत हैं जिनको बाप को याद करना आता नहीं | शक्ल से पता पड़ जाता है | और सब याद आयेगा, बाबा की याद ठहरेगी नहीं | योग से ही बल मिलेगा | याद से बड़ी ख़ुशी और तन्दुरुस्ती रहेगी | फिर दूसरे जन्म में भी शरीर ऐसा तेजस्वी मिलेगा | आत्मा प्योर तो शरीर भी प्योर मिलेगा | कहेंगे यह 24 कैरेट गोल्ड है, तो 24 कैरेट जेवर है | इस समय सब 9 कैरेट बन गये हैं | सतोप्रधान को 24 कैरेट कहेंगे, सतो को 22, यह बड़ी समझने की बातें हैं | बाप समझाते हैं पहले तो फॉर्म भराना है तो पता पड़े कहाँ तक रेस्पान्स करते हैं? कितनी धारणा की है? फिर यह भी आता है याद की यात्रा में रहते हैं? तमोप्रधान से सतोप्रधान याद की यात्रा से बनना है | वह हैं भक्ति की जिस्मानी यात्रायें, यह है रूहानी यात्रा | रूह यात्रा करती है | उसमें रूह और जिस्म दोनों ही यात्रा करते हैं | पतित-पावन बाप को याद करने से ही आत्मा में तेज आता है | कोई जिज्ञासु को जलवा आदि दिखाना है तो बाबा की प्रवेशता भी हो जाती है | माँ-बाप दोनों ही मदद करते हैं – कहीं नॉलेज की, कहीं योग की | बाप तो सदा विदेही है | शरीर का भान है ही नहीं | तो बाप दोनों ताक़त की मदद दे सकते हैं | योग नहीं होगा तो ताक़त मिलेगी कहाँ से? समझा जाता है यह योगी है या ज्ञानी है | योग के लिए दिन-प्रतिदिन नई-नई बातें भी समझाते हैं | आगे थोड़ेही यह समझाते थे | अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो | अब बाबा जोर से उठाते हैं, जिससे भाई-बहन का सम्बन्ध भी हट जाए, सिर्फ़ भाई-भाई की दृष्टि रह जाए | हम आत्मा भाई-भाई हैं | यह बहुत ऊँची दृष्टि है | अन्त तक यह पुरुषार्थ चलना है | जब सतोप्रधान बन जायेंगे तब यह शरीर छोड़ देंगे इसलिए जितना हो सके पुरुषार्थ को बढ़ाना है | बूढों के लिए और ही सहज है | अब हमको वापिस ज़रूर जाना है | जवानों को कभी ऐसे ख्यालात नहीं आयेंगे | बूढ़े वानप्रस्थी रहते हैं | समझा जाता है अब वापिस जाना है | तो यह सब ज्ञान की बातें समझनी हैं | झाड़ की वृद्धि भी होती रहती है | वृद्धि होते-होते सारा झाड़ तैयार हो जायेगा | काँटों को बदलकर नया छोटा फूलों का झाड़ बनना है | नया बन फिर पुराना होना है | पहले झाड़ छोटा होगा फिर बढ़ता जायेगा | वृद्धि होते-होते पिछाड़ी में काँटे बन जाते हैं | पहले होते हैं फूल | नाम ही है स्वर्ग | फिर बाद में वह खुशबू, वह ताक़त नहीं रहती है | काँटे में खुशबू नहीं होती | हल्के-हल्के फूलों में भी खुशबू नहीं होती | बाप बागवान भी है तो खिवैया भी है, सबकी नाव पार करते हैं | नाव पार कैसे करते हैं, कहाँ ले जाते हैं – यह भी जो सयाने बच्चे हैं, वह समझ सकते हैं | जो समझते नहीं, वह पुरुषार्थ भी नहीं करते | नम्बरवार तो होते हैं ना | कोई-कोई एरोप्लेन तो आवाज़ से भी तीखा जाता है | आत्मा कैसे भागती है – यह भी किसको पता नहीं है | आत्मा तो रॉकेट से भी तीखी जाती है | आत्मा जैसी तीखी और कोई चीज़ होती नहीं | उन रॉकेट आदि में ऐसी कोई चीज़ डालते हैं जो जल्दी उड़ा ले जाते हैं | विनाश के लिए कितनी बारूद आदि तैयार करते हैं | स्टीमर, एरोप्लेन में भी बाम्ब्स ले जाते हैं | आजकल पूरी तैयारी रखते हैं | अख़बारों में लिखते हैं, ऐसे नही कह सकते कि बाम्ब्स काम में नहीं लायेंगे | हो सकता है बाम्ब्स चला दें – ऐसे कहते रहते हैं | यह सब तैयारियां हो रही हैं | विनाश तो ज़रूर होना है | बाम्ब्स न छूटें, विनाश न हो – ऐसा हो नहीं सकता | तुम्हारे लिए नई दुनिया ज़रूर चाहिए | यह ड्रामा में नूँध है, इसलिए तुमको बहुत ख़ुशी होनी चाहिए | मिरुआ मौत मलूका शिकार........ड्रामा अनुसार सबको मरना ही है | तुम बच्चों को ड्रामा का ज्ञान होने के कारण तुम हिलते नहीं हो, साक्षी होकर देखते हो | रोने आदि की दरकार नहीं | समय पर शरीर तो छोड़ना ही होता है | तुम्हारी आत्मा जानती है हम दूसरा जन्म राजाई में लेंगे | मैं राजकुमार बनूँगा | आत्मा को पता है तब तो एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है | सर्प में भी आत्मा है ना | कहेंगे हम एक खाल छोड़ दूसरी लेते हैं | कभी तो वह भी शरीर छोड़ेंगे, फिर बच्चा बनेंगे | बच्चे तो पैदा होते हैं ना | पुर्नजन्म तो सबको लेना है | यह सब विचार सागर मंथन करना होता है |

 

सबसे मुख्य बात है बाप को बहुत प्यार से याद करना है | जैसे बच्चे माँ-बाप को एकदम चटक जाते हैं, वैसे बहुत प्यार से बुद्धियोग द्वारा बाप को एकदम चटक जाना चाहिए | अपने को देखना भी है कि हम कितनी धारणा कर रहे हैं | (नारद का मिसाल) भक्त जब तक ज्ञान न उठायें तब तक देवता बन न सकें | यह सिर्फ़ लक्ष्मी को वरने की बात नहीं है | यह तो समझने की बात है | तुम बच्चे समझते हो जब हम सतोप्रधान थे तो विश्व पर राज्य करते थे | अब फिर सतोप्रधान बनने के लिए बाप को याद करना है | यह मेहनत कल्प-कल्प तुम यथा योग यथा शक्ति करते ही आये हो | हर एक समझ सकते हैं हम कहाँ तक किसको समझा सकते हैं? देह-अभिमान से हम कहाँ तक निकलते जा रहे हैं? मैं आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हूँ | मैं आत्मा इनसे काम लेती हूँ, यह मेरे आरगन्स हैं | हम सब पार्टधारी हैं | इस ड्रामा में यह बेहद का बड़ा नाटक है | उसमें नम्बरवार सब एक्टर्स हैं | हम समझ सकते हैं – इसमें कौन-कौन मुख्य एक्टर्स हैं | फर्स्ट, सेकेण्ड, थर्ड ग्रेड कौन-कौन हैं? तुम बच्चे बाप द्वारा ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को जान गये हो | रचयिता द्वारा रचना की नॉलेज मिलती है | रचयिता ही आकर अपना और रचना का राज़ समझाते हैं | यह उनका रथ है, जिसमें प्रवेश कर आये हैं | कहेंगे तब तो दो आत्मायें हैं | यह भी कॉमन बात है | पित्र खिलाते हैं, तो आत्मा आती है ना | आगे बहुत आते थे, उनसे पूछते थे | अभी तो तमोप्रधान हो गये हैं | कोई-कोई अब भी बतलाते हैं – हम आगे जन्म में फ़लाना था | फ्युचर का कोई नहीं बताते | पिछाड़ी का सुनाते हैं | सब पर तो कोई विश्वास नहीं करते |

 

बाबा कहते हैं – मीठे बच्चे, अब तुमको शान्त में रहना है | तुम जितना-जितना ज्ञान-योग में मज़बूत होंगे तो फिर पक्के सॉलिड हो जायेंगे | अभी तो बहुत बच्चे भोले हैं | भारतवासी देवी-देवतायें कितने सॉलिड थे | धन से भी भरपूर थे | अभी तो खली हैं | वह सालवेन्ट, तुम इनसालवेन्ट | तुम खुद भी जानते हो भारत क्या था, अब क्या है | भूख मरना ही पड़ेगा | अनाज-पानी आदि कुछ नहीं मिलेगा | कहाँ बाढ़ होती रहेगी, तो कहाँ पानी की बूँद नहीं होगी | इस समय दुःख के बदल हैं, सतयुग में सुख के बादल हैं | इस खेल को तुम बच्चों ने ही समझा है और किसको भी पता नहीं है | बैज़ पर भी समझाना बहुत अच्छा है | वह लौकिक हद का बाप, यह पारलौकिक बेहद का बाप | यह बाप एक ही बार संगम पर बेहद का वर्सा देते हैं | नई दुनिया बन जाती है | यह है आइरन एज फिर गोल्डन एज ज़रूर बननी है | तुम अभी संगम पर हो | दिल साफ़ मुराद हासिल | रोज़ अपने से पूछो – ख़राब काम तो नहीं किया? किसके लिए अन्दर विकारी ख्यालात तो नहीं आये? अपनी मस्ती में रहे या झरमुई-झगमुई में टाइम गँवाया? बाप का फ़रमान है – मामेकम् याद करो | अगर याद नहीं करते तो नाफ़रमानबरदार हो जाते हैं | अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1.    ज्ञान-योग की मस्ती में रहना है, दिल साफ़ रखनी है |      झरमुई-झगमुई (व्यर्थ चिन्तन) में अपना समय नहीं गँवाना है |

 

2.    हम आत्मा भाई-भाई हैं, अब वापिस घर जाना है – यह अभ्यास पक्का करना है | विदेही बन स्वधर्म में स्थित हो बाप को याद करना है |

 

वरदान:-  

रहम की भावना द्वारा निमित्त भाव से सेवा करने वाले सर्व लगाव मुक्त भव !   

 

वर्तमान समय जब सभी आत्मायें थक कर निराश हो मर्सी मांगती हैं | तो आप दाता के बच्चे अपने भाई बहिनों पर रहमदिल बनो | कोई कितना भी बुरा हो, उसके प्रति भी रहम की भावना हो तो कभी घृणा, ईर्ष्या वा क्रोध की भावना नहीं आयेगी | रहम की भावना सहज निमित्त भाव इमर्ज कर देती है, लगाव से रहम नहीं लेकिन सच्चा रहम लगाव मुक्त बना देता है क्योंकि उसमें देह भान नहीं होता |


स्लोगन:- 
दूसरों को सहयोग देना ही स्वयं के खाते जमा करना है |     

 

ओम् शान्ति |