22-04-14         प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे बाप को प्यार से याद करो तो तुम निहाल हो जायेंगे, नज़र से निहाल होना माना विश्व का मालिक बनना |   

प्रश्न:-   
नज़र से निहाल कींदा स्वामी सतगुरु......इसका वास्तविक अर्थ क्या है?

उत्तर:-
आत्मा को बाप द्वारा जब तीसरी आँख मिलती है और उस आँख से बाप को पहचान लेती है तो निहाल हो जाती अर्थात् सद्गति मिल जाती है | बाबा कहते – बच्चे, देही-अभिमानी बन तुम मेरे से नज़र लगाओ अर्थात् मुझे याद करो, और संग तोड़ एक मेरे संग जोड़ो तो बेहाल अर्थात् कंगाल से निहाल अर्थात् साहूकार बन जायेंगे |

ओम् शान्ति |

मीठे-मीठे रूहानी बच्चे किसके पास आते हैं? रूहानी बाप के पास | समझते हो हम शिवबाबा के पास जाते हैं | यह भी जानते हैं शिवबाबा सब आत्माओं का बाप है | यह भी बच्चों को निश्चय चाहिए कि वह सुप्रीम टीचर भी है तो सुप्रीम गुरु भी है | सुप्रीम को परम कहा जाता है | उस एक को ही याद करना है | नज़र से नज़र मिलाते हैं | गायन है नज़र से निहाल कींदा स्वामी सतगुरु | उनका अर्थ चाहिए | नज़र से निहाल किसको? ज़रूर सारी दुनिया के लिए कहेंगे क्योंकि सर्व का सद्गति दाता है | सर्व को इस पतित दुनिया से ले जाने वाला है | अब नज़र किसकी? क्या यह आँखें? नहीं, तीसरी आँख मिलती है ज्ञान की | जिससे आत्मा जानती है यह हम सभी आत्माओं का बाप है | बाप आत्माओं को राय देते हैं कि मुझे याद करो | बाप आत्माओं को समझाते हैं | आत्मायें ही पतित तमोप्रधान बनी हैं | अब यह तुम्हारा 84वां जन्म है, यह नाटक पूरा होता है | पूरा होना भी चाहिए ज़रूर | हर कल्प पुरानी दुनिया से नई बनती है | नई सो फिर पुरानी होती है | नाम भी अलग है | नई दुनिया का नाम है सतयुग | बाप ने समझाया है पहले तुम सतयुग में थे, फिर पुनर्जन्म लेते 84 जन्म बिताये | अब तुम्हारी आत्मा तमोप्रधान बन गई है | बाप को याद करेंगे तो निहाल हो जायेंगे | बाप सम्मुख कहते हैं मुझे याद करो, मैं कौन? परमपिता परमात्मा | बाप कहते हैं – बच्चे, देही-अभिमानी बनो, देह-अभिमानी नहीं बनो | आत्म-अभिमानी बन तुम मेरे में नज़र लगाओ तो तुम निहाल हो जायेंगे | बाप को याद करते रहो, इसमें कोई तकलीफ़ नहीं | आत्मा ही पढ़ती है, पार्ट बजाती है | कितनी छोटी है | जब यहाँ आते हैं तो 84 जन्मों का पार्ट बजाते हैं | फिर वही पार्ट रिपीट करना है | 84 जन्मों का पार्ट बजाते आत्मा पतित बन पड़ी है | अब आत्मा में कुछ भी दम नहीं रहा है | अब आत्मा निहाल नहीं, बेहाल अर्थात् कंगाल है | फिर निहाल कैसे बने? यह अक्षर भक्ति मार्ग के हैं, जिस पर बाप समझाते हैं | वेद, शास्त्र, चित्रों आदि पर भी समझाते हैं | तुमने यह चित्र श्रीमत पर बनाये हैं | आसुरी मत पर तो अनेक ढेर के ढेर चित्र हैं | वह हैं मिट्टी पत्थर के | उनका कोई आक्यूपेशन नहीं | यहाँ तो बाप आकर बच्चों को पढ़ाते हैं | भगवानुवाच है तो उनकी नॉलेज हो गई | स्टूडेन्ट जानते हैं यह फ़लाना टीचर है | यहाँ तुम बच्चे जानते हो कि बेहद का बाप एक ही बार आकर ऐसी वन्डरफुल पढ़ाई पढ़ाते हैं | इस पढ़ाई और उस पढ़ाई में रात-दिन का फ़र्क है | वह पढ़ाई पढ़ते-पढ़ते रात पड़ जाती है, इस पढ़ाई से दिन में चले जाते हैं | वह पढ़ाईयाँ तो जन्म-जन्मान्तर पढ़ते आये | इसमें तो बाप साफ़ बतलाते हैं कि आत्मा जब पवित्र होगी तब धारणा होगी | कहते हैं शेरणी का दूध सोने के बर्तन में ही ठहरता है | तुम बच्चे समझते हो, हम अब सोने का बर्तन बन रहे हैं | होंगे तो मनुष्य ही परन्तु आत्मा को सम्पूर्ण पवित्र बनना है | 24 कैरेट था, अभी 9 कैरेट हो गया है | आत्मा की ज्योति जो जगी हुई थी वह अब बुझ गई है | ज्योति जगी हुई और बुझी हुई वालों में भी फ़र्क है | ज्योति कैसे जगी और पद कैसे पाया – यह बाप ही समझाते हैं | बाप कहते हैं मुझे याद करो | जो मुझे अच्छी तरह याद करेंगे मैं भी उनको अच्छी तरह याद करूँगा | यह भी बच्चे जानते हैं नज़र से निहाल करने वाला एक बाप ही स्वामी है | इनकी आत्मा भी निहाल होती है | तुम सब परवाने हो, उनको शमा कहते हैं | कोई परवाने सिर्फ़ फेरी पहनने आते हैं | कोई अच्छी तरह पहचान लेते हैं तो जीते जी मर जाते हैं | कोई फेरी पहन चले जाते हैं, फिर कभी-कभी आते हैं, फिर चले जाते हैं | इस संगम का ही सारा गायन है | इस समय जो कुछ चलता है उनके ही शास्त्र बनते हैं | बाप एक ही बार आकर वर्सा देकर चले जाते हैं | बेहद का बाप ज़रूर बेहद का वर्सा देंगे | गायन भी है 21 पीढ़ी | सतयुग में वर्सा कौन देते हैं? भगवान् रचयिता ही आधाकल्प के लिए वर्सा देते हैं रचना को | याद भी सब उनको करते हैं | वह बाप भी है तो टीचर भी है, स्वामी, सतगुरु भी है | भल तुम और किसको भी स्वामी सतगुरु कहते होंगे | परन्तु सत एक ही बाप है | ट्रुथ हमेशा ही बाप को कहा जाता है | वह ट्रुथ क्या आकर करते हैं? वही पुरानी दुनिया को सचखण्ड बना देते हैं | सचखण्ड के लिए हम पुरुषार्थ कर रहे हैं | जब सचखण्ड था तो और सब खण्ड नहीं थे | यह सब पीछे आते हैं | सचखण्ड का किसको भी पता ही नहीं | बाकी जो अब खण्ड हैं उनका तो सबको मालूम है | अपने-अपने धर्म स्थापक को जानते हैं | बाकी सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी और इस संगमयुगी ब्राह्मण कुल को कोई जानते नहीं हैं | प्रजापिता ब्रह्मा को मानते हैं, कहते हैं हम ब्राह्मण ब्रह्मा की औलाद हैं, परन्तु वह हैं कुख वंशावली, तुम हो मुख वंशावली | वह हैं अपवित्र, तुम मुख वंशावली हो पवित्र | तुम मुख-वंशावली बन फिर छी-छी दुनिया रावण राज्य से चले जाते हो | वहाँ रावण राज्य होता नहीं | अब तुम चलते हो नई दुनिया में | उनको कहते हैं वाइसलेस वर्ल्ड | वर्ल्ड ही नई और पुरानी होती है | कैसे होती है यह भी तुम जान गये हो | दूसरा तो कोई की बुद्धि में नहीं है | लाखों वर्ष की बात को कोई जान भी न सके | यह तो थोड़े समय की बात है | यह बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं | 

बाप कहते हैं मैं आता ही तब हूँ जब ख़ास भारत में धर्म ग्लानि होती है | दूसरी जगह तो किसको पता ही नहीं कि निराकार परमात्मा क्या चीज़ है | बड़ा-बड़ा लिंग बनाकर रख दिया है | बच्चों को समझाया है – आत्मा का साइज़ कभी छोटा-बड़ा नहीं होता है | जैसे आत्मा अविनाशी है, वैसे बाप भी अविनाशी है | वह है सुप्रीम आत्मा | सुप्रीम माना वह सदैव पवित्र और निर्विकारी है | तुम आत्मायें भी निर्विकारी थी, दुनिया भी निर्विकारी थी | उनको कहा ही जाता है सम्पूर्ण निर्विकारी, नई दुनिया फिर ज़रूर पुरानी होती है | कला कम होती जाती है | दो कला कम चन्द्रवंशी राज्य था फिर दुनिया पुरानी बनती जाती है | पीछे और-और खण्ड आते जाते हैं | उनको कहा जाता है बाइप्लाट, परन्तु मिक्सअप हो जाते हैं | ड्रामा प्लैन अनुसार जो कुछ होता है वह फिर रिपीट होगा | जैसे बौद्धियों का कोई बड़ा आया, कितनों को बौद्ध धर्म में ले गया | धर्म को बदला दिया | हिन्दुओं ने अपना धर्म आपेही बदला है क्योंकि कर्म भ्रष्ट होने से धर्म भ्रष्ट भी हो पड़े हैं | वाम मार्ग में चले गये हैं | जगन्नाथ के मन्दिर में भी भल गये होंगे, परन्तु कोई का कुछ ख्याल नहीं चलता | खुद विकारी हैं तो उन्हों को भी विकारी दिखा दिया है | यह नहीं समझते कि देवतायें जब वाम-मार्ग में गये हैं, तब ऐसे बने हैं | उस समय के ही यह चित्र हैं | देवता नाम तो बड़ा अच्छा है | हिन्दू तो हिन्दुस्तान का नाम है | फिर अपने को हिन्दू कह दिया है | कितनी भूल है इसलिए बाप कहते हैं यदा यदाहि धर्मस्य.......बाबा भारत में आते हैं | ऐसे तो नहीं कहते – मैं हिन्दुस्तान में आता हूँ | यह है भारत, हिन्दुस्तान वा हिन्दू धर्म है नहीं | मुसलमानों ने हिन्दुस्तान नाम रखा है | यह भी ड्रामा में नूँध है | अच्छी रीति समझना चाहिए | यह भी नॉलेज है | पुनर्जन्म लेते-लेते वाम मार्ग में आते-आते भ्रष्टाचारी बन पड़ते हैं, फिर उन्हों के आगे जाकर कहते हैं, आप सम्पूर्ण निर्विकारी हो | हम विकारी पापी हैं और कोई खण्ड वाले ऐसे नहीं कहेंगे | हम नीच हैं अथवा हमारे में कोई गुण नहीं हैं | ऐसे कहते कभी सुना नहीं होगा | सिक्ख लोग भी ग्रन्थ के आगे बैठते हैं परन्तु ऐसे कभी नहीं कहते कि नानक, तुम निर्विकारी, हम विकारी | नानक पंथी कंगन लगाते हैं, वह है निर्विकारीपने की निशानी | परन्तु विकार बिगर रह नहीं सकते | झूठी निशानियाँ रख दी हैं | जैसे हिन्दू लोग जनेऊ पहनते हैं, पवित्रता की निशानी है | आजकल तो धर्म को भी नहीं मानते | इस समय भक्ति मार्ग चल रहा है | इनको कहा जाता है भक्ति कल्ट | ज्ञान कल्ट सतयुग में है | सतयुग में देवतायें हैं सम्पूर्ण निर्विकारी | कलियुग में सम्पूर्ण निर्विकारी कोई हो न सके | प्रवृत्ति मार्ग वालों की स्थापना तो बाप ही करते हैं | बाकी सब गुरु हैं निवृत्ति मार्ग वाले, उनसे उन्हों का ज़ोर जास्ती हो गया है | बाप कहते हैं यह जो कुछ तुमने पढ़ा है, उनसे मैं नहीं मिलता हूँ |  मैं जब आता हूँ तो सबको नज़र से निहाल कर देता हूँ | गायन भी है नज़र से निहाल कींदा स्वामी सतगुरु.....यहाँ तुम क्यों आये हो? निहाल बनने | विश्व का मालिक बनने | बाप को याद करो तो निहाल बन जायेंगे | ऐसे कभी कोई कहेंगें नहीं की ऐसा करने से तुम यह बन जायेंगे | बाप ही कहते हैं तुमको यह बनना है | यह लक्ष्मी-नारायण कैसे बने? कोई को मालूम नहीं है | तुम बच्चों को बाप सब कुछ बताते हैं, यही 84 जन्म ले पतित बने फिर तुमको यह बनाने आया हूँ | 

बाप अपना परिचय भी देते हैं तो नज़र से निहाल भी करते हैं | यह किसके लिए कहते हैं? एक सतगुरु के लिए | वह गुरु लोग तो ढेर हैं और मातायें अबलायें हैं भोली | तुम सब भी भोलानाथ के बच्चे हो | शंकर के लिए कहा है आँख खोली विनाश हो गया | यह भी पाप हो जाये | बाप कभी ऐसे काम के लिए डायरेक्शन नहीं देते हैं | विनाश तो कोई और चीज़ों से होगा ना | बाप ऐसे डायरेक्शन नहीं देते | यह तो सब साइन्स निकालते रहते हैं, समझते हैं हम अपने कुल का आपेही विनाश करते हैं | वह भी बांधे हुए हैं | छोड़ नहीं सकते | नाम कितना होता है | मून में जाते हैं परन्तु फायदा कुछ भी नहीं |  

मीठे-मीठे बच्चे, तुम भी बाप से नज़र लगाओ अथवा हे आत्मा, अपने बाप को याद करो तो निहाल हो जायेंगे | बाबा कहते हैं – जो मुझे याद करते हैं, मैं भी उनको याद करता हूँ | जो मेरे लिए सर्विस करते हैं, मैं भी उनको याद करता हूँ, तो उनको बल मिलता है | तुम यहाँ सब बैठे हो जो निहाल हो जायेंगे, वही राजा बनेंगे | गायन भी है और संग तोड़ एक संग जोडूँ | एक है निराकार | आत्मा भी निराकार है | बाप कहते हैं मुझे याद करो | तुम ख़ुद कहते हो हे पतित-पावन.... यह किसको कहा? ब्रह्मा को, विष्णु को, शंकर को? नहीं | पतित-पावन तो एक है, वह सदैव पावन ही है | उनको कहा जाता है सर्वशक्तिमान् | बाप ही सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज सुनाते हैं और सब शास्त्रों को जानते हैं | वह सन्यासी शास्त्र आदि पढ़कर टाइटिल लेते हैं | बाप को तो पहले ही टाइटिल मिला हुआ है | उनको पढ़कर थोड़ेही लेना है | अच्छा! 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

धारणा के लिए मुख्य सार:-  

1. शमा पर जीते जी मरने वाला परवाना बनना है, सिर्फ़ फेरी लगाने वाला नहीं | ईश्वरीय पढ़ाई को धारण करने के लिए बुद्धि को सम्पूर्ण पावन बनाना है | 

2. और सब संग तोड़ एक बाप के संग में रहना है | एक की याद से स्वयं को निहाल करना है |

वरदान:-  

देह-भान से न्यारे बन परमात्म प्यार का अनुभव करने वाले कमल आसनधारी भव !    

कमल आसन ब्राह्मण आत्माओं के श्रेष्ठ स्थिति की निशानी है | ऐसी कमल आसनधारी आत्मायें इस देहभान से स्वतः न्यारी रहती हैं | उन्हें शरीर का भान अपनी तरफ आकर्षित नहीं करता | जैसे ब्रह्मा बाप को चलते फिरते फ़रिश्ता रूप वा देवता रूप सदा स्मृति में रहा | ऐसे नेचुरल देही-अभिमानी स्थिति सदा रहे इसको कहते हैं देह-भान से न्यारे | ऐसे देह-भान से न्यारे रहने वाले ही परमात्म प्यारे बन जाते हैं |

स्लोगन:-   

आपकी विशेषतायें वा गुण प्रभु प्रसाद हैं, उन्हें मेरा मानना ही देह-अभिमान है |     

 

ओम् शान्ति |