20-10-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - हियर नो ईविल....
यहां
तुम सतसंग में बैठे हो,
तुम्हें मायावी कुसंग में नहीं जाना है,
कुसंग लगने से ही संशय के रूप में घुटके आते हैं” 
प्रश्न:-
इस
समय किसी भी मनुष्य को स्प्रीचुअल नहीं कह सकते हैं - क्यों?
उत्तर:-
क्योंकि सभी देह- अभिमानी हैं । देह- अभिमान वाले स्प्रीचुअल
कैसे कहला सकते हैं । स्प्रीचुअल फादर तो एक ही निराकार बाप है
जो तुम्हें भी देही- अभिमानी बनने की शिक्षा देते हैं ।
सुप्रीम का टाइटिल भी एक बाप को ही दे सकते हैं,
बाप
के सिवाए सुप्रीम कोई भी कहला नहीं सकते ।
ओम्
शान्ति |
बच्चे जब यहाँ बैठते हो तो जानते हो बाबा हमारा बाबा भी है,
टीचर
भी है और सतगुरू भी है । तीन की दरकार रहती है । पहले बाप फिर
पढ़ाने वाला टीचर और फिर पिछाड़ी में गुरू । यहाँ याद भी ऐसे
करना है क्योंकि नई बात है ना । बेहद का बाप भी है,
बेहद
का माना सबका । यहाँ जो भी आयेंगे कहेंगे यह स्मृति में लाओ ।
इसमें किसको संशय हो तो हाथ उठाओ । यह वन्डरफुल बात है ना ।
जन्म-जन्मान्तर कभी ऐसा कोई मिला होगा जिसको तुम बाप,
टीचर,
सतगुरू समझो । सो भी सुप्रीम । बेहद का बाप,
बेहद
का टीचर,
बेहद
का सतगुरू । ऐसा कभी कोई मिला?
सिवाए इस पुरूषोत्तम संगमयुग के कभी मिल न सके । इसमें कोई को
संशय हो तो हाथ उठावे । यहाँ सब निश्चय बुद्धि होकर बैठे हैं ।
मुख्य हैं ही यह तीन । बेहद का बाप नॉलेज भी बेहद की देते हैं
। बेहद की नॉलेज तो यह एक ही है । हद की नॉलेज तो तुम अनेक
पढ़ते आये हो । कोई वकील बनते हैं,
कोई
सर्जन बनते हैं क्योंकि यहाँ तो डॉक्टर,
जज,
वकील
आदि सब चाहिए ना । वहाँ तो दरकार नहीं । वहाँ दु :ख की कोई बात
ही नहीं । तो अब बाप बैठ बेहद की शिक्षा बच्चों को देते हैं ।
बेहद का बाप ही बेहद की शिक्षा देते हैं फिर आधाकल्प कोई
शिक्षा तुमको पढ़ने की नहीं है । एक ही बार शिक्षा मिलती है जो
21 जन्मों के लिए फलीभूत होती है अर्थात् उनका फल मिलता है ।
वहाँ तो डॉक्टर,
बैरिस्टर,
जज
आदि होते नहीं । यह तो निश्चय है ना । बराबर ऐसे हैं ना?
वहाँ
दु :ख होता नहीं । कर्मभोग होता नहीं । बाप कर्मों की गति बैठ
समझाते हैं । वह गीता सुनाने वाले क्या ऐसे सुनाते हैं?
बाप
कहते हैं मैं तुम बच्चों को राजयोग सिखाता हूँ । उसमें तो लिख
दिया है कृष्ण भगवानुवाच । परन्तु वह है दैवीगुणों वाला मनुष्य
। शिवबाबा तो कोई नाम धरते नहीं । उनका दूसरा कोई नाम नहीं ।
बाप कहते हैं मैं यह शरीर लोन लेता हूँ । यह शरीर रूपी मकान
हमारा नहीं है,
यह
भी इनका मकान है । खिड़कियाँ आदि सब हैं । तो बाप समझाते हैं
मैं तुम्हारा बेहद का बाप अर्थात् सभी आत्माओं का बाप हूँ,
पढ़ाता भी हूँ आत्माओं को । इनको कहा जाता है स्प्रीचुअल फादर
अर्थात् रूहानी बाप और कोई को भी रूहानी बाप नहीं कहेंगे ।
यहाँ तुम बच्चे जानते हो यह बेहद का बाप है । अब स्प्रीचुअल
कान्फ्रेन्स हो रही है । वास्तव में स्प्रीचुअल कान्फ्रेन्स तो
है ही नहीं । वह तो सच्चे स्प्रीचुअल हैं नहीं । देह- अभिमानी
हैं । बाप कहते हैं-बच्चे,
देही- अभिमानी भव । देह का अभिमान छोड़ो । ऐसे थोड़ेही किसको
कहेंगे । स्प्रीचुअल अक्षर अभी डालते हैं । आगे सिर्फ रिलीजस
कान्फ्रेन्स कहते थे । स्प्रीचुअल का कोई अर्थ नहीं समझते हैं
। स्प्रीचुअल फादर अर्थात् निराकारी फादर । तुम आत्मायें हो
स्प्रीचुअल बच्चे । स्प्रीचुअल फादर आकर तुमको पढ़ाते हैं । यह
समझ और कोई में हो न सके । बाप खुद बैठ बतलाते हैं कि मैं कौन
हूँ । गीता में यह नहीं है । मैं तुमको बेहद की शिक्षा देता
हूँ । इसमें वकील,
जज,
सर्जन आदि की दरकार नहीं क्योंकि वहाँ तो एकदम सुख ही सुख है ।
दु :ख का नाम-निशान नहीं होता । यहाँ फिर सुख का नाम-निशान
नहीं है,
इसको
कहा जाता हैं प्राय:लोप । सुख तो काग विष्टा समान है । जरा-सा
सुख है तो बेहद सुख की नॉलेज दे कैसे सकते । पहले जब
देवी-देवताओं का राज्य था तो सत्यता
100
प्रतिशत थी । अभी तो झूठ ही झूठ है ।
यह
है बेहद की नॉलेज । तुम जानते हो यह मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ है,
जिसका बीजरूप मैं हूँ । उनमें झाड़ की सारी नॉलेज है । मनुष्यों
को यह नॉलेज नहीं है । मैं चैतन्य बीजरूप हूँ । मुझे कहते ही
हैं ज्ञान का सागर । ज्ञान से सेकण्ड में गति-सद्गति होती हैं
। मैं हूँ सबका बाप । मुझे पहचानने से तुम बच्चों को वर्सा मिल
जाता है । परन्तु राजधानी है ना । स्वर्ग में भी मर्तबे तो
नम्बरवार बहुत हैं । बाप एक ही पढ़ाई पढ़ाते हैं । पढ़ने वाले तो
नम्बरवार ही होते हैं । इसमें फिर और कोई पढ़ाई की दरकार नहीं
रहती । वहाँ कोई बीमार होता नहीं । पाई पैसे की कमाई के लिए
पढ़ाई नहीं पढ़ते । तुम यहाँ से बेहद का वर्सा ले जाते हो । वहाँ
यह मालूम नहीं पड़ेगा कि यह पद हमको कोई ने दिलाया है । यह तुम
अभी समझते हो । हद की नॉलेज तो तुम पढ़ते आये हो । अब बेहद की
नॉलेज पढ़ाने वाले को देख लिया,
जान
लिया । जानते हो बाप,
बाप
भी है,
टीचर
भी है,
आकर
हमको पढ़ाते हैं । सुप्रीम टीचर है,
राजयोग सिखलाते हैं । सच्चा सतगुरू भी है । यह है बेहद का
राजयोग । वह बैरिस्टरी,
डॉक्टरी ही सिखलायेंगे क्योंकि यह दुनिया ही दु :ख की है । वह
सब हैं हद की पढ़ाई,
यह
है बेहद की पढ़ाई । बाप तुमको बेहद की पढ़ाई पढ़ाते हैं । यह भी
जानते हो यह बाप,
टीचर,
सतगुरू कल्प-कल्प आते हैं फिर यही पढ़ाई पढ़ाते हैं सतयुग-त्रेता
के लिए । फिर प्राय :लोप हो जाता है । सुख की प्रालब्ध पूरी हो
जाती है ड्रामा अनुसार । यह बेहद का बाप बैठ समझाते हैं,
उनको
ही पतित-पावन कहा जाता है । कृष्ण को त्वमेव माता च पिता वा
पतित-पावन कहेंगे क्या?
इनके
मर्तबे और उनके मर्तबे में रात-दिन का फर्क है । अब बाप कहते
हैं मुझे पहचानने से तुम सेकण्ड में जीवनमुक्ति पा सकते हो ।
अब कृष्ण भगवान् अगर होता तो कोई भी झट पहचान ले । कृष्ण का
जन्म कोई दिव्य अलौकिक नहीं गाया हुआ है । सिर्फ पवित्रता से
होता है । बाप तो कोई के गर्भ से नहीं निकलते हैं । समझाते हैं
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों,
रूह
ही पढ़ती है । सब संस्कार अच्छे वा बुरे रूह में रहते हैं ।
जैसे-जैसे कर्म करते हैं,
उस
अनुसार उन्हें शरीर मिलता है । कोई बहुत दु :ख भोगते हैं । कोई
काने,
कोई
बहरे होते हैं । कहेंगे पास्ट में ऐसे कर्म किये हैं जिसका यह
फल है । आत्मा के कर्मों अनुसार ही रोगी शरीर आदि मिलता है ।
अभी
तुम बच्चे जानते हो-हमको पढ़ाने वाला है गॉड फादर । गॉड टीचर,
गॉड
प्रीसेप्टर है । उसको कहते हैं गॉड परम आत्मा । उसको मिलाकर
परमात्मा कहते हैं,
सुप्रीम सोल । ब्रह्मा को तो सुप्रीम नहीं कहेंगे । सुप्रीम
अर्थात् ऊंच ते ऊंच,
पवित्र ते पवित्र । मर्तबे तो हरेक के अलग- अलग हैं । कृष्ण का
जो मर्तबा है वह दूसरे को मिल नहीं सकता । प्राइम मिनिस्टर का
मर्तबा दूसरे को थोड़ेही देंगे । बाप का भी मर्तबा अलग है ।
ब्रह्मा,
विष्णु,
शंकर
का भी अलग है । ब्रह्मा,
विष्णु,
शंकर
देवता है,
शिव
तो परमात्मा है । दोनों को मिलाकर शिव शंकर कैसे कहेंगे ।
दोनों अलग- अलग हैं ना । न समझने के कारण शिव शंकर को एक कह
देते हैं । नाम भी ऐसे रख देते हैं । यह सब बातें बाप ही आकर
समझाते हैं । तुम जानते हो यह बाबा भी है,
टीचर
भी है,
सतगुरू भी है । हरेक मनुष्य को बाप भी होता है,
टीचर
भी होता है और गुरू भी होता है । जब बुढ़े होते हैं तो गुरू
करते हैं । आजकल तो छोटेपन में ही गुरू करा देते हैं,
समझते हैं अगर गुरू नहीं किया तो अवज्ञा हो जायेगी । आगे 60
वर्ष के बाद गुरू करते थे । वह होती है वानप्रस्थ अवस्था ।
निर्वाण अर्थात् वाणी से परे स्वीट साइलेन्स होम,
जिसमें जाने के लिए आधाकल्प तुमने मेहनत की है । परन्तु पता ही
नहीं तो कोई जा नहीं सकते । किसको रास्ता बता कैसे सकते । एक
के सिवाए तो कोई रास्ता बता न सके । सबकी बुद्धि एक जैसी नहीं
होती हैं । कोई तो जैसे कथायें सुनते हैं,
फायदा कुछ नहीं । उन्नति कुछ नहीं । तुम अभी बगीचे के फूल बनते
हो । फूल से कांटे बने,
अब
फिर कांटे से फूल बाप बनाते हैं । तुम ही पूज्य फिर पुजारी बने
। 84 जन्म लेते-लेते सतोप्रधान से तमोप्रधान पतित बन गये । बाप
ने सीढ़ी सारी समझाई है । अब फिर पतित से पावन कैसे बनते हैं,
यह
किसको भी पता नहीं । गाते भी हैं ना हे पतित-पावन आओ,
आकर
हमको पावन बनाओ फिर पानी की नदियाँ सागर आदि को पतित-पावन समझ
क्यों जाकर स्नान करते हैं । गंगा को पतित-पावनी कह देते हैं ।
परन्तु नदियां भी कहाँ से निकली?
सागर
से ही निकलती हैं ना । यह सभी सागर की सन्तान हैं तो हरेक बात
अच्छी रीति समझने की होती है ।
यहाँ
तो तुम बच्चे सतसग में बैठे हो । बाहर कुसंग में जाते हो तो
तुमको बहुत उल्टी बातें सुनायेंगे । फिर यह इतनी सब बातें भूल
जायेगी । कुसंग में जाने से घुटका खाने लग पड़ते हैं,
संशय
का तब मालूम पड़ता है । परन्तु यह बातें तो भूलनी नहीं चाहिए ।
बाबा हमारा बेहद का बाबा भी है,
टीचर
भी है,
पार
भी ले जाते हैं,
इस
निश्चय से तुम आये हो । वह सभी हैं जिस्मानी लौकिक पढ़ाई,
लौकिक भाषायें । यह है अलौकिक । बाप कहते हैं मेरा जन्म भी
अलौकिक है । मैं लोन लेता हूँ । पुरानी जुत्ती लेता हूँ । सो
भी पुराने ते पुरानी,
सबसे
पुरानी है यह जुत्ती । बाप ने जो लिया है,
इसको
लांग बूट कहते हैं । यह कितनी सहज बात है । यह तो कोई भूलने की
नहीं है । परन्तु माया इतनी सहज बातें भी भुला देती है । बाप,
बाप
भी है,
बेहद
की शिक्षा देने वाला भी है,
जो
और कोई दे न सके । बाबा कहते हैं भल जाकर देखो कहाँ से मिलती
है । सब हैं मनुष्य । वह तो यह नॉलेज दे न सके । भगवान एक ही
रथ लेते हैं,
जिसको भाग्यशाली रथ कहा जाता है,
जिसमें बाप की प्रवेशता होती है,
पदमापदम भाग्यशाली बनाने । बिल्कुल नजदीक का दाना है । ब्रह्मा
सो विष्णु बनते हैं । शिवबाबा इनको भी बनाते हैं,
तुमको भी इन द्वारा विश्व का मालिक बनाते हैं । विष्णु की पुरी
स्थापन होती है । इसको कहा जाता है राजयोग,
राजाई स्थापन करने लिए । अभी यहाँ सुन तो सब रहे हैं,
परन्तु बाबा जानते हैं बहुतों के कानों से बह जाता है,
कोई
धारण कर और सुना सकते हैं । उनको कहा जाता है महारथी । सुनकर
फिर धारण करते हैं,
औरों
को भी रूचि से समझाते हैं । महारथी समझाने वाला होगा तो झट
समझेंगे,
घोड़ेसवार से कम,
प्यादे से और भी कम । यह तो बाप जानते हैं कौन महारथी हैं,
कौन
घोड़ेसवार हैं । अब इसमें मूँझने की तो बात ही नहीं । परन्तु
बाबा देखते रहते हैं बच्चे मूँझते हैं फिर झुटके खाते रहते हैं
। आखें बन्द कर बैठते हैं । कमाई में कभी झुटका आता है क्या?
झुटका खाते रहेंगे तो फिर धारणा कैसे होगी । उबासी से बाबा समझ
जाते हैं यह थका हुआ है । कमाई में कभी थकावट नहीं होती ।
उबासी है उदासी की निशानी । कोई न कोई बात के घुटके अन्दर खाते
रहने वालों को उबासी बहुत आती है । अभी तुम बाप के घर में बैठे
हो,
तो
परिवार भी है,
टीचर
भी बनते हैं,
गुरू
भी बनते हैं रास्ता बताने के लिए । मास्टर गुरू कहा जाता है ।
तो अब बाप का राइट हैंण्ड बनना चाहिए ना । जो बहुतों का कल्याण
कर सकते हैं । धन्धे सभी में हैं नुकसान,
बिगर
धन्धे नर से नारायण बनने के । सभी की कमाई खत्म हो जाती है ।
नर से नारायण बनने का धन्धा बाप ही सिखलाते हैं । तो फिर कौन
सी पढ़ाई पढ़नी चाहिए । जिनके पास धन बहुत है,
वह
समझते हैं स्वर्ग तो यहाँ ही है । बापू गांधी ने रामराज्य
स्थापन किया?
अरे,
दुनिया तो यह पुरानी तमोप्रधान है ना और ही दु :ख बढ़ता जाता है,
इनको
रामराज्य कैसे कहेंगे । मनुष्य कितने बेसमझ बन पड़े हैं । बेसमझ
को तमोप्रधान कहा जाता है । समझदार होते हैं सतोप्रधान । यह
चक्र फिरता रहता है,
इसमें कुछ भी बाप से पूछने का नहीं रहता । बाप का फर्ज है रचता
और रचना की नॉलेज देना । वह तो देते रहते हैं । मुरली में सब
समझाते रहते हैं । सभी बातों का रेसपॉन्ड मिल जाता है । बाकी
पूछेंगे क्या?
बाप
के सिवाए कोई समझा ही नहीं सकते तो पूछ भी कैसे सकते । यह भी
तुम बोर्ड पर लिख सकते हो एवरहेल्दी,
एवरवेल्दी 21 जन्म के लिए बनना है तो आकर समझो । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
बाप जो सुनाते हैं उसे सुनकर अच्छी तरह धारण
करना है । दूसरों को रूचि से सुनाना है । एक कान से सुन दूसरे
से निकालना नहीं है । कमाई के समय कभी उबासी नहीं लेनी है ।
2.
बाबा का राइट हैण्ड बन बहुतों का कल्याण करना
है । नर से नारायण बनने और बनाने का धन्धा करना है ।
वरदान:-
आत्मिक मुस्कराहट द्वारा चेहरे से प्रसन्नता की झलक दिखाने
वाले विशेष आत्मा भव
!
ब्राह्मण जीवन की विशेषता है प्रसन्नता । प्रसन्नता अर्थात्
आत्मिक मुस्कराहट । जोर-जोर से हँसना नहीं,
लेकिन मुस्कराना । चाहे कोई गाली भी दे रहे हो तो भी आपके
चेहरे पर दु :ख की लहर नहीं आये,
सदा
प्रसन्नचित । यह नहीं सोचो कि उसने एक घण्टा बोला मैंने तो
सिर्फ एक सेकण्ड बोला । सेकण्ड भी बोला या सोचा,
शक्ल
पर अप्रसन्नता आई तो फेल हो जायेंगे । एक घण्टा सहन किया फिर
गुब्बारे से गैस निकल गई । श्रेष्ठ जीवन के लक्ष्य वाली विशेष
आत्मा ऐसे गैस के गुब्बारे नहीं बनती ।
स्लोगन:-
शीतल
काया वाले योगी स्वयं शीतल बन दूसरों को शीतल दृष्टि से निहाल
करते हैं । 
ओम्
शान्ति |