11-12-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - तुम अभी पढ़ाई पढ़ रहे हो,
यह पढ़ाई है पतित से पावन बनने की,
तुम्हें यह पढ़ना और पढ़ाना है
|” 
प्रश्न:-
दुनिया में कौन-सा ज्ञान होते हुए भी अज्ञान अन्धियारा है?
उत्तर:-
माया
का ज्ञान,
जिससे
विनाश होता है । मून तक जाते हैं,
यह
ज्ञान बहुत है लेकिन नई दुनिया और पुरानी दुनिया का ज्ञान किसी
के पास नहीं है । सब अज्ञान अन्धियारे में हैं,
सभी
ज्ञान नेत्र से अंधे हैं । तुम्हें अभी ज्ञान का तीसरा नेत्र
मिलता है । तुम नॉलेजफुल बच्चे जानते हो उन्हों की ब्रेन में
विनाश के ख्यालात हैं,
तुम्हारी बुद्धि में स्थापना के ख्यालात हैं ।
ओम्
शान्ति |
बाप
इस शरीर द्वारा समझाते हैं,
इनको
जीव कहा जाता है । इनमें आत्मा भी है और मैं भी इसमें आकर
बैठता हूँ,
यह
तो पहले-पहले पक्का होना चाहिए । इनको दादा कहा जाता है । यह
निश्चय बच्चों को बहुत पक्का होना चाहिए । इस निश्चय में ही
रमण करना है । बरोबर बाबा ने जिसमें पधरामणी की है,
वह
बाप खुद कहते हैं-मैं इनके बहुत जन्मों के अन्त में आता हूँ ।
बच्चों को समझाया गया है,
यह
हैं सर्व शास्त्र शिरोमणी गीता का ज्ञान । श्रीमत अर्थात्
श्रेष्ठ मत । श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत है एक भगवान की । जिसकी ही
श्रेष्ठ मत से तुम देवता बनते हो । बाप खुद कहते हैं मैं आता
ही तब हूँ जब तुम भ्रष्ट मत पर पतित बन जाते हो । मनुष्य से
देवता बनने का अर्थ भी समझना है । विकारी मनुष्य से निर्विकारी
देवता बनाने बाप आते हैं । सतयुग में मनुष्य ही रहते हैं
परन्तु दैवी गुण वाले । अभी कलियुग में हैं सभी आसुरी गुण वाले
। है सारी मनुष्य सृष्टि । परन्तु यह है ईश्वरीय बुद्धि और वह
है आसुरी बुद्धि । यहाँ है ज्ञान,
वहाँ
है भक्ति । ज्ञान और भक्ति अलग- अलग है । भक्ति के पुस्तक
कितने ढेर के ढेर हैं । ज्ञान का पुस्तक एक है । एक ज्ञान सागर
की पुस्तक एक ही होना चाहिए । जो भी धर्म स्थापन करते हैं,
उनका
पुस्तक भी एक ही होता है,
जिसको रिलीजस बुक कहा जाता है ।
पहली-पहली रिलीजस बुक है गीता । पहला-पहला आदि सनातन
देवी-देवता धर्म है,
न कि
हिन्दू धर्म । मनुष्य समझते हैं गीता से हिन्दू धर्म स्थापन
हुआ । गीता का ज्ञान कृष्ण ने दिया । कब दिया?
परम्परा से । कोई शास्त्र में शिव भगवानुवाच तो है नहीं । तुम
अभी समझते हो इस गीता ज्ञान द्वारा ही मनुष्य से देवता बने हैं,
जो
बाप अभी हमें दे रहे हैं । इसको ही भारत का प्राचीन राजयोग कहा
जाता है । जिस गीता में ही काम महाशत्रु लिखा हुआ है । इस
शत्रु ने ही तुम्हें हार खिलाई है । बाप इस पर ही जीत पहनाकर
जगतजीत विश्व का मालिक बनाते हैं । बेहद का बाप बैठ इन द्वारा
तुमको पढ़ाते हैं । वह है सभी आत्माओं का बाप । यह फिर है सभी
मनुष्य आत्माओं का बेहद का बाप । नाम ही है प्रजापिता ब्रह्मा
। तुम किससे पूछ सकते हो कि ब्रह्मा के बाप का नाम क्या है,
तो
मूँझ पड़ेंगे । ब्रह्मा,
विष्णु,
शंकर
इन तीनों का बाप कोई होगा ना । ब्रह्मा,
विष्णु,
शंकर
सूक्ष्मवतन में देवतायें हैं । उनके ऊपर है शिव । बच्चे जानते
हैं शिवबाबा के जो बच्चे आत्मायें हैं उन्हों ने शरीर धारण
किया है,
वह
तो सदैव निराकार परमपिता परमात्मा है । आत्मा ही शरीर द्वारा
कहती है परमपिता । कितनी सहज बात है! इनको कहा जाता है अल्फ और
बे की पढ़ाई । कौन पढ़ाते हैं?
गीता
का ज्ञान किसने सुनाया?
कृष्ण को तो भगवान कहा नहीं जाता । वह तो देहधारी है । ताजधारी
है । शिव तो है निराकार । उन पर तो कोई ताज आदि है नहीं । वही
ज्ञान का सागर है । बाप ही बीजरूप चैतन्य है । तुम भी चैतन्य
हो । सभी झाड़ के आदि,
मध्य,
अन्त
को तुम जानते हो । भल तुम माली नहीं हो परन्तु समझ सकते हो कि
बीज कैसे डालते हैं,
उनसे
झाड़ कैसे निकलता है । वह है जड़,
यह
है चैतन्य । आत्मा को चैतन्य कहा जाता है । तुम्हारी आत्मा में
ही ज्ञान है,
और
किसी आत्मा में ज्ञान हो नहीं सकता । तो बाप चैतन्य मनुष्य
सृष्टि का बीजरूप है । यह चैतन्य क्रियेशन है ।
वह
सभी हैं जड़ बीज । ऐसे नहीं कि जड़ बीज में कोई ज्ञान है । यह तो
है चैतन्य बीजरूप,
उनमें सारे सृष्टि की नॉलेज है । झाड़ की उत्पत्ति,
पालना,
विनाश का सारा ज्ञान उनमें है । फिर नया झाड़ कैसे खड़ा होता है,
वह
हैं गुप्त । तुमको ज्ञान भी गुप्त मिलता है । बाप भी गुप्त
आयें हैं । तुम जानते हो यह कलम लग रहा है । अभी तो सभी पतित
बन गये हैं । अच्छा,
बीज
से पहला-पहला पत्ता निकला,
वह
कौन था?
सतयुग का पहला पत्ता तो कृष्ण को ही कहेंगे । लक्ष्मी-नारायण
को नहीं कहेंगे । नया पत्ता छोटा होता है । पीछे बड़ा होता है ।
तो इस बीज की कितनी महिमा है । यह तो चैतन्य है ना । भल दूसरे
भी निकलते हैं,
धीरे- धीरे उन्हों की महिमा कम होती जाती है । अभी तुम देवता
बनते हो । तो मूल बात है हमको दैवी गुण धारण करने हैं । इन
जैसा बनना है । चित्र भी हैं । यह चित्र न होते तो बुद्धि में
ज्ञान कैसे आता । यह चित्र बहुत काम में आते हैं । भक्ति मार्ग
में इन चित्रों की पूजा होती है और ज्ञान मार्ग में तुमको
इन्हों से ज्ञान मिलता है कि इन जैसा बनना है । भक्ति मार्ग
में ऐसा नहीं समझेंगे कि हमको ऐसा बनना है । भक्ति मार्ग में
मन्दिर आदि कितने बनवाते हैं,
सबसे
जास्ती मन्दिर किसके होंगे?
जरूर
शिवबाबा के ही होंगे । फिर उनके बाद क्रियेशन के होंगे । पहली
क्रियेशन यह लक्ष्मी-नारायण हैं,
तो
शिव के बाद इनकी पूजा जास्ती होगी । मातायें जो ज्ञान देती हैं
उनकी पूजा नहीं । वह तो पढ़ती हैं । तुम्हारी पूजा अभी नहीं
होती हैं क्योंकि तुम अभी पढ़ रहे हो । जब तुम पढ़कर,
अनपढ़
बनेंगे फिर पूजा होगी । अभी तुम देवी-देवता बनते हो । सतयुग
में बाप थोड़ेही पढ़ाने जायेगा । वहाँ ऐसी पढ़ाई थोड़ेही होगी । यह
पढ़ाई पतितों को पावन बनाने की है । तुम जानते हो हमको जो ऐसा
बनाते हैं उनकी पूजा होगी फिर हमारी भी पूजा नम्बरवार होगी ।
फिर गिरते-गिरते 5 तत्वों की भी पूजा करने लग पड़ते हैं । 5
तत्वों की पूजा माना पतित शरीर की पूजा । यह बुद्धि में ज्ञान
है कि इन लक्ष्मी-नारायण का सारे सृष्टि पर राज्य था । इन
देवी-देवताओं ने राज्य कैसे और कब पाया?
यह
किसको पता नहीं है । लाखों वर्ष कह देते हैं । लाखों वर्ष की
बात तो किसकी बुद्धि में बैठ न सके इसलिए कह देते यह परम्परा
से चला आता है । अभी तुम जानते हो देवी-देवता धर्म वाले और
धर्मों में कनवर्ट हो गये हैं,
जो
भारत में हैं वह अपने को हिन्दू कह देते हैं क्योंकि पतित होने
कारण देवी- देवता कहना शोभता नहीं । परन्तु मनुष्यों में ज्ञान
कहाँ । देवी-देवताओं से भी ऊँचा टाइटल अपने पर रखवाते हैं ।
पावन देवी-देवताओं की पूजा करते माथा झुकाते हैं,
परन्तु अपने को पतित समझते थोड़ेही हैं ।
भारत
में खास कन्याओं को कितना नमन करते हैं । कुमारों को इतना नहीं
करते । मेल से ज्यादा फीमेल को नमन करते हैं क्योंकि इस समय
ज्ञान अमृत पहले इन माताओं को मिलता है । बाप इनमें प्रवेश
करते हैं । यह भी समझते हो यह (ब्रह्मा बाबा) ज्ञान की बड़ी नदी
है । ज्ञान नदी भी है फिर पुरुष भी है । ब्रह्म पुत्रा नदी
सबसे बड़ी है,
जो
कलकत्ता तरफ सागर में जाकर मिलती है । मेला भी वहाँ ही लगता है
परन्तु उन्हें यह पता नहीं कि यह आत्माओं और परमात्मा का मेला
है । वह तो पानी की नदी है,
जिसका नाम ब्रह्म पुत्रा रखा है । वह तो ब्रह्म को ईश्वर कह
देते हैं इसलिए ब्रह्म पुत्रा को पावन समझते हैं । पतित-पावन
वास्तव में गंगा को नहीं कहा जाता है । यहाँ सागर और ब्रह्मा
नदी का मेल है । बाप कहते हैं यह फीमेल तो नहीं है,
जिस
द्वारा एडाप्शन होती है,
यह
बहुत गुह्य समझने की बातें हैं जो फिर प्राय :लोप हो जानी है ।
फिर बाद में मनुष्य इस आधार पर शास्त्र आदि बनाते हैं । पहले
हाथ के लिखे हुए शास्त्र थे,
बाद
में बड़ी-बड़ी मोटी किताबें छपवाई है । संस्कृत में श्लोक आदि थे
नहीं । यह तो बिल्कुल सहज बात है । मैं इन द्वारा राजयोग
सिखलाता हूँ फिर यह दुनिया ही खलास हो जायेगी । शास्त्र आदि
कुछ भी नहीं रहेंगे । फिर भक्ति मार्ग में यह शास्त्र आदि
बनेंगे । मनुष्य समझते हैं यह शास्त्र आदि परम्परा से चले आये
हैं,
इसको
कहा जाता है अज्ञान अन्धियारा । अभी तुम बच्चों को बाप पढ़ाते
हैं जिससे तुम सोझरे में आये हो । सतयुग में है पवित्र
प्रवृत्ति मार्ग । कलियुग में सभी अपवित्र प्रवृत्ति वाले हैं
। यह भी ड्रामा है । बाद में है निवृत्ति मार्ग,
जिसको सन्यास धर्म कहते हैं,
जंगल
में जाकर रहते हैं । वह है हद का सन्यास । रहते तो इस पुरानी
दुनिया में हैं । अभी तुम जाते हो नई दुनिया में । तुम्हें तो
बाप से ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है तो तुम कितने नॉलेजफुल
बनते हो । इससे जास्ती नॉलेज होती ही नहीं । वह तो है माया की
नॉलेज,
जिससे विनाश होता है । वो लोग मून (चांद) पर जाकर खोज करते हैं
। तुम्हारे लिए कोई नई बात नहीं । यह सभी माया का पाम्प है ।
बहुत शो करते हैं । अति डीपनेस में जाते हैं कि कुछ कमाल करके
दिखायें । बहुत कमाल करने से फिर नुकसान हो जाता है । उन्हों
के ब्रेन में विनाश के ही ख्यालात आते हैं । क्या-क्या बनाते
रहते हैं । बनाने वाले जानते हैं,
इससे
ही विनाश होगा । ट्रायल भी करते रहते हैं । कहते भी हैं दो
बिल्ले लड़े माखन तीसरा खा गया । कहानी तो छोटी है परन्तु खेल
कितना बड़ा है । नाम इन्हों का ही बाला है । इन द्वारा ही विनाश
की गूँध है । कोई तो निमित्त बनता है ना । क्रिश्चियन लोग
समझते हैं पैराडाइज था,
पर
हम नहीं थे । इस्लामी,
बौद्धी भी नहीं थे फिर भी क्रिश्चियन लोगों की समझ अच्छी है ।
भारतवासी कहते हैं देवी-देवता धर्म लाखों वर्ष पहले था तो
बुद्धू ठहरे ना । बाप भारत में ही आते हैं,
जो
महान बेसमझ हैं उन्हें ही महान ते महान समझदार बनाते हैं ।
परन्तु फिर भी याद रहे तब । बाबा तुम बच्चों को कितना सहज करके
समझाते हैं,
मुझे
याद करो तो तुम सोने का बर्तन बन जायेंगे तो धारणा भी अच्छी
होगी । याद की यात्रा से ही पाप कटेंगे । मुरली नहीं सुनते तो
ज्ञान रफूचक्कर हो जाता है । बाप तो रहमदिल होने के नाते उठने
की ही युक्ति बतलाते हैं । अन्त तक भी सिखलाते ही रहेंगे ।
अच्छा,
आज
भोग है,
भोग
लगाकर जल्दी वापस आ जाना है । बाकी वैकुण्ठ में जाकर
देवी-देवताओं आदि का साक्षात्कार करना यह सब फालतू है । इसमें
बहुत महीन बुद्धि चाहिए । बाप इस रथ द्वारा कहते हैं मुझे याद
करो,
मैं
ही पतित-पावन तुम्हारा बाप हूँ । तुम्हीं से खाऊं..... तुम्हीं
से बैठूँ.... यह यहाँ के लिए है । ऊपर में कैसे होगा । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
बाप इस
दादा में प्रवेश हो हमें मनुष्य से देवता अर्थात् विकारी से
निर्विकारी बनाने के लिए गीता का ज्ञान सुना रहे हैं,
इसी निश्चय से रमण करना है । श्रीमत पर चलकर श्रेष्ठ गुणवान
बनना है ।
2.
याद की
यात्रा से बुद्धि को सोने का बर्तन बनाना है । ज्ञान बुद्धि
में सदा बना रहे उसके लिए मुरली जरूर पढ़नी वा सुननी है ।
वरदान:-
अपने
मस्तक पर सदा बाप की दुआओं का हाथ अनुभव करने वाले मास्टर
विघ्न-विनाशक
भव ! 
गणेश
को विघ्न-विनाशक कहते हैं । विघ्न-विनाशक वही बनते जिनमें सर्व
शक्तियां हैं । सर्वशक्तियों को समय प्रमाण कार्य में लगाओ तो
विघ्न ठहर नहीं सकते । कितने भी रूप से माया आये लेकिन आप
नॉलेजफुल बनो । नॉलेजफुल आत्मा कभी माया से हार खा नहीं सकती ।
जब मस्तक पर बापदादा की दुआओं का हाथ है तो विजय का तिलक लगा
हुआ है । परमात्म हाथ और साथ विघ्न-विनाशक बना देता है ।
स्लोगन:-
स्वयं
में गुणों को धारण कर दूसरों को गुणदान करने वाले ही गुणमूर्त
हैं । 
ओम्
शान्ति |