12-11-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - बाप की श्रीमत पर चलना ही बाप का रिगार्ड रखना है, मनमत पर चलने वाले डिसरिगार्ड करते हैं”   


प्रश्न:-   
गृहस्थ व्यवहार में रहने वालों को किस एक बात के लिए बाबा मना नहीं करते लेकिन एक डायरेक्शन देते हैं - वह कौन सा?


उत्तर:-

बाबा कहते - बच्चे, तुम भल सभी के कनेक्शन में आओ, कोई भी नौकरी आदि करो, सम्पर्क में आना पड़ता है, रंगीन कपड़े पहनने पड़ते हैं तो पहनो, बाबा की मना नहीं है । बाप तो सिर्फ डायरेक्शन देते हैं - बच्चे, देह सहित देह के सब सम्बन्धों से ममत्व निकाल मुझे याद करो ।

 

ओम् शान्ति |

शिवबाबा बैठ बच्चों को समझाते हैं अर्थात् आपसमान बनाने का पुरूषार्थ कराते हैं । जैसे मैं ज्ञान का सागर हूँ वैसे बच्चे भी बनें । यह तो मीठे बच्चे जानते हैं सब एक समान नहीं बनेंगे । पुरूषार्थ तो हरेक को अपना- अपना करना होता है । स्कूल में स्टूडेंट तो बहुत पढ़ते हैं परन्तु सब एक समान पास विद् ऑनर्स नहीं होते हैं । फिर भी टीचर पुरूषार्थ कराते हैं । तुम बच्चे भी पुरूषार्थ करते हो । बाप पूछते हैं तुम क्या बनेंगे? सब कहेंगे हम आये ही हैं नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनने । यह तो ठीक है परन्तु अपनी एक्टिविटीज भी देखो ना । बाप भी ऊंच ते ऊंच है । टीचर भी है, गुरू भी है । इस बाप को कोई जानते नहीं । तुम बच्चे जानते हो शिवबाबा हमारा बाबा भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है । परन्तु वह जैसा है वैसा उनको जानना भी मुश्किल है । बाप को जानेंगे तो टीचरपना भूल जायेगा, फिर गुरूपना भूल जायेगा । रिगार्ड भी बाप का बच्चों को रखना होता है । रिगार्ड किसको कहा जाता है? बाप जो पढ़ाते हैं वह अच्छी रीति पढ़ते हैं गोया रिगार्ड रखते हैं । बाप तो बहुत मीठा है । अन्दर में बहुत खुशी का पारा चढ़ा रहना चाहिए । कापारी खुशी रहनी चाहिए । हरेक अपने से पूछे-हमको ऐसी खुशी है? एक समान सब तो रह नहीं सकते । पढ़ाई में भी वास्ट डिफरेट है । उन स्कूलों में भी कितना फर्क रहता है । वह तो कॉमन टीचर पढ़ाते हैं, यह तो है अनकॉमन । ऐसा टीचर कोई होता ही नहीं । किसको यह पता ही नहीं है कि निराकार फादर टीचर भी बनते हैं । भल श्रीकृष्ण का नाम दिया है परन्तु उनको पता ही नहीं कि वह फादर कैसे हो सकता । कृष्ण तो देवता है ना । यूँ तो कृष्ण नाम भी बहुतों का है । परन्तु कृष्ण कहने से ही श्रीकृष्ण सामने आ जायेगा । वह तो देहधारी है ना । तुम जानते हो यह शरीर उनका नहीं है । खुद कहते हैं - मैंने लोन लिया है । पहले भी मनुष्य था । अब भी मनुष्य है । यह भगवान है नहीं । वह तो एक ही निराकार है । अब तुम बच्चों को कितने राज समझाते हैं । परन्तु फिर भी फाइनल ही बाप समझना, टीचर समझना यह अभी हो नहीं सकता, घड़ी-घड़ी भूल जायेंगे । देहधारी तरफ बुद्धि चली जाती है । फाइनल बाप, बाप, टीचर, सतगुरू है-यह निश्चय, बुद्धि में अभी नहीं है । अभी तो भूल जाते हैं । स्टूडेंट्स कभी टीचर को भूलेंगे क्या! होस्टिल में जो रहते हैं वह तो कभी नहीं भूलेंगे । जो स्टूडेंट होस्टिल में रहते हैं उन्हें तो पक्का होगा ना । यहाँ तो वह भी पक्का निश्चय नहीं हैं । नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार हॉस्टिल में बैठे हैं तो जरूर सूडेण्टस हैं परन्तु यह पक्का निश्चय नहीं है, जानते हैं सब अपने- अपने पुरूषार्थ अनुसार पद ले रहे हैं । उस पढ़ाई में तो फिर भी कोई बैरिस्टर बनते हैं, इन्जीनियर बनते हैं, डॉक्टर बनते हैं । यहाँ तो तुम विश्व के मालिक बन रहे हो । तो ऐसे स्टूडेंट की बुद्धि कैसी होनी चाहिए । चलन, वार्तालाप कैसा अच्छा होना चाहिए ।

बाप समझाते हैं-बच्चे, तुमको कभी रोना नहीं है । तुम विश्व के मालिक बनते हो, याहुसेन नहीं मचानी चाहिए । याहुसेन मचाना-यह है हाइएस्ट रोना । बाप तो कहते हैं जिन रोया तिन खोया.... विश्व की ऊंच ते ऊंच बादशाही गँवा बैठते हैं । कहते तो हैं हम नर से नारायण बनने आये हैं परन्तु चलन कहॉ! नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार सब पुरूषार्थ कर रहे हैं । कोई तो अच्छी रीति पास हो स्कॉलरशिप ले लेते हैं, कोई नापास हो जाते हैं । नम्बरवार तो हाते ही हैं तुम्हारे में भी कोई तो पढ़ते हैं, कोई पढ़ते भी नहीं हैं । जैसे गाँव वालों को पढ़ना अच्छा नहीं लगता है । घास काटने लिए बोलो तो खुशी से जायेंगे । उसमें स्वतन्त्र लाइफ समझते हैं । पढ़ना बन्धन समझते हैं, ऐसे भी बहुत होते हैं । साहूकारों में जमींदार लोग भी कम नहीं होते हैं । अपने को इन्डिपेन्डेट बड़ा खुशी में समझते हैं । नौकरी नाम तो नहीं है ना । आफीसरी आदि में तो मनुष्य नौकरी करते हैं ना । अभी तुम बच्चों को बाप पढ़ाते हैं विश्व का मालिक बनाने । नौकरी के लिए नहीं पढ़ाते । तुम तो इस पढ़ाई से विश्व का मालिक बनने वाले हो ना । बड़ी ऊंची पढ़ाई ठहरी । तुम तो विश्व के मालिक बिल्कुल इन्डिपेन्डेट बन जाते हो । बात कितनी सिम्पल है । एक ही पढ़ाई है जिससे तुम इतने ऊंच महाराजा-महारानी बनते हो सो भी पवित्र । तुम तो कहते हो कोई भी धर्म वाला हो, आकर पढ़े । समझेंगे यह पढ़ाई तो बहुत ऊंची है । विश्व के मालिक बनते हो, यह तो बाप पढ़ाते हैं । तुम्हारी अब बुद्धि कितनी विशाल बनी हैं । हद की बुद्धि से बेहद की बुद्धि में आये हो नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार । कितनी खुशी रहती है-हम सब औरों को विश्व का मालिक बनावे । वास्तव में नौकरी तो भल वहाँ भी होती है, दास-दासियां, नौकर आदि तो चाहिए ना । पढ़े के आगे अनपढ़े भरी ढोयेंगे । इसलिए बाप कहते हैं अच्छी रीति पढ़ो तो तुम यह बन सकते हो । कहते भी हैं हम यह बनेंगे । परन्तु पढ़ेंगे नहीं तो क्या बनेंगे । नहीं पढ़ते हैं तो फिर बाप को इतना रिगॉर्ड से याद नहीं करते हैं । बाप कहते हैं जितना तुम याद करेंगे तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे । बच्चे कहते हैं बाबा जैसे आप चलाओ, बाप भी मत इन द्वारा ही देंगे ना । परन्तु इनकी मत भी लेते नहीं, फिर भी पुरानी सड़ी हुई मनुष्य मत पर ही चलते हैं । देखते भी हैं शिवबाबा इस रथ द्वारा मत देते हैं फिर भी अपनी मत पर चलते हैं । जिसको पाई-पैसे की कौड़ी जैसी मत कहें, उस पर चलते हैं । रावण की मत पर चलते-चलते इस समय कौड़ी मिसल बन गये हैं । अब राम शिवबाबा मत देते हैं । निश्चय में ही विजय है, इसमें कभी नुकसान नहीं होगा । नुकसान को भी बाप फायदे में बदल देंगे । परन्तु निश्चयबुद्धि वालों को । संशय-बुद्धि वाले अन्दर घुटका खाते रहेंगे । निश्चयबुद्धि वालों को कभी घुटका, कभी घाटा पड़ नहीं सकता । बाबा खुद गैरन्टी करते हैं - श्रीमत पर चलने से कभी अकल्याण हो नहीं सकता । मनुष्य मत को देहधारी की मत कहा जाता है । यहाँ तो है ही मनुष्य मत । गाया भी जाता है - मनुष्य मत, ईश्वरीय मत और दैवी मत । अब तुम्हें ईश्वरीय मत मिली है, जिससे तुम मनुष्य से देवता बनते हो । फिर वहाँ तो स्वर्ग में तुम सुख ही पाते हो । कोई दु:ख की बात नहीं । वह भी स्थाई सुख हो जाता है । इस समय तुमको फीलिंग में लाना होता है, भविष्य की फीलिंग आती है ।

अभी यह है पुरूषोत्तम संगमयुग, जबकि श्रीमत मिलती है । बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुग पर आता हूँ, उसको तुम जानते हो । उनकी मत पर तुम चलते हो । बाप कहते हैं - बच्चे, गृहस्थ व्यवहार में भल रहो, कौन कहता है तुम कपड़े आदि बदली करो । भल कुछ भी पहनो । बहुतों से कनेक्शन में आना पड़ता है । रंगीन कपड़ों के लिए कोई मना नहीं करते हैं । कोई भी कपड़ा पहनो, इनसे कोई तैलुक नहीं । बाप कहते हैं देह सहित देह के सब सम्बन्ध छोड़ो । बाकी पहनो सब कुछ । सिर्फ अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो, यह पक्का निश्चय करो । यह भी जानते हो आत्मा ही पतित और पावन बनती है, महात्मा को भी महान् आत्मा कहेंगे, महान् परमात्मा नहीं कहेंगे । कहना भी शोभता नहीं । कितनी अच्छी प्याइंटस हैं समझने की । सतगुरू सर्व को सद्गति देने वाला तो एक ही बाप है । वहां कभी अकाले मृत्यु होती नहीं । अभी तुम बच्चे समझते हो बाबा हमको फिर से ऐसा देवता बनाते हैं । आगे यह बुद्धि में नहीं था । कल्प की आयु कितनी है, यह भी नहीं जानते थे । अभी तो सारी स्मृति आई है । यह भी बच्चे समझते हैं आत्मा को ही पाप आत्मा, पुण्य आत्मा कहा जाता है । पाप परमात्मा कभी नहीं कहा जाता । फिर कोई कहे परमात्मा सर्वव्यापी है तो भी कितनी बेसमझी है । यह बाप ही बैठ समझाते हैं । अभी तुम जानते हो 5 हजार वर्ष के बाद पाप आत्माओं को पुण्य आत्मा बाप ही आकर बनाते हैं । एक को नहीं, सब बच्चों को बनाते हैं । बाप कहते हैं तुम बच्चों को बनाने वाला मैं ही बेहद का बाप हूँ । जरूर बच्चों को बेहद का सुख दूँगा । सतयुग में होती ही है पवित्र आत्मायें । रावण पर जीत पाने से ही तुम पुण्य आत्मा बन जाते हो । तुम फील करते हो, माया कितने विघ्न डालती है । एकदम नाक में दम कर देती है । तुम समझते हो माया से युद्ध कैसे चलती है । उन्होंने फिर कौरवों और पाण्डवों की युद्ध, लश्कर आदि क्या-क्या बैठ दिखाये हैं । इस युद्ध का किसको भी पता नहीं । यह है गुप्त । इनको तुम ही जानते हो । माया से हम आत्माओं को युद्ध करनी है । बाप कहते हैं सबसे बड़ा तुम्हारा दुश्मन है ही काम । योगबल से तुम इस पर विजय पाते हो । योगबल का अर्थ भी कोई नहीं समझते हैं । जो सतोप्रधान थे वही तमोप्रधान बने हैं । बाप खुद कहते हैं बहुत जन्मों के अन्त में मैं इनमें प्रवेश करता हूँ । वही तमोप्रधान बना है, ततत्वम् । बाबा एक को थोड़ेही कहेगें । नम्बरवार सबको कहते हैं । नम्बरवार कौन-कौन हैं, यहाँ तुमको पता पड़ा हैं । आगे चल तुमको बहुत पता पड़ेगा । माला का तुमको साक्षात्कार करायेंगे । स्कूल में जब ट्रासफर होते हैं तो सब मालूम पड़ जाता है ना । रिजल्ट सारी निकल आती है ।

बाबा ने बच्ची से पूछा - तुम्हारे इम्तहान के पेपर कहाँ से आते हैं? बोली लन्दन से । अब तुम्हारे पेपर्स कहाँ से निकलेंगे? ऊपर से । तुम्हारा पेपर ऊपर से आयेगा । सब साक्षात्कार करेंगे । कैसी वन्डरफुल पढ़ाई है । कौन पढ़ाते हैं, किसको पता नहीं है । कृष्ण भगवानुवाच कह देते हैं । पढ़ाई में सब नम्बरवार हैं । तो खुशी भी नम्बरवार होगी । यह जो गायन है अतीन्द्रिय सुख गोप-गोपियों से पूछो-यह पिछाड़ी की बात है । बाप ने समझाया है, भल बाबा जानते हैं-यह बच्चे कभी गिरने वाले नहीं हैं परन्तु फिर भी पता नहीं क्या होता है । पढ़ाई ही नहीं पढ़ते हैं, तकदीर में नहीं है । थोड़ा ही उनको कहा जाए कि जाकर अपना घर बसाओ उस दुनिया में, तो झट चले जायेंगे । कहाँ से निकल कहाँ चले जाते हैं । उनकी चलन, बोलना, करना ही ऐसा होता है । समझते हैं हमको अगर इतना मिले तो हम जाकर अलग रहें । चलन से समझा जाता है । इसका मतलब निश्चय नहीं, लाचारी बैठे हैं । बहुत हैं जो ज्ञान का ' ' भी नहीं जानते । कभी बैठते भी नहीं । माया पढ़ने नहीं देती । ऐसे सब सेंटर्स पर हैं । कभी पढ़ने आते नहीं । वन्डर है ना । कितनी ऊंची नॉलेज है । भगवान पढ़ाते हैं । बाबा कहे यह काम न करो, मानेंगे नहीं । जरूर उल्टा काम करके दिखायेंगे । राजधानी स्थापन हो रही है, उसमें तो हर प्रकार के चाहिए ना । ऊपर से लेकर नीचे तक सब बनते हैं । मर्तबे में फर्क तो रहता है ना । यहाँ भी नम्बरवार मर्तबे हैं । सिर्फ फर्क क्या है? वहाँ आयु बड़ी और सुख रहता है । यहाँ आयु छोटी और दु:ख हैं । बच्चों की बुद्धि में यह वन्डरफुल बातें हैं । कैसा यह ड्रामा बना हुआ है । फिर कल्प-कल्प हम वही पार्ट बजाएंगे । कल्प-कल्प बजाते रहते हैं । इतनी छोटी-सी आत्मा में कितना पार्ट भरा हुआ है । वही फीचर्स, वही एक्टिविटी..... यह सृष्टि का चक्र फिरता ही रहता है । बनी बनाई बन रही...... यह चक्र फिर भी रिपीट होगा । सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो में आयेंगे । इसमें मूँझने की बात नहीं । अच्छा, अपने को आत्मा समझते हो? आत्मा का बाप शिवबाबा है यह तो समझते हो ना । जो सतोप्रधान बनते हैं वही फिर तमोप्रधान बनते हैं फिर बाप को याद करो तो सतोप्रधान बन जायेंगे । यह तो अच्छा है ना । बस यहाँ तक ही ठहरा देना चाहिए । बोलो, बेहद का बाप यह स्वर्ग का वर्सा देते हैं । वही पतित-पावन है । बाप नॉलेज देते हैं, इसमें शास्त्रों आदि की तो बात ही नहीं । शास्त्र शुरू में कहाँ से आयेंगे । यह तो जब बहुत हो जाते हैं तब बाद में बैठ शास्त्र बनाते हैं । सतयुग में शास्त्र होते नहीं । परम्परा तो कोई चीज होती नहीं । नाम रूप तो बदल जायेगा । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. कभी भी याहुसैन नहीं मचाना है । बुद्धि में रहे हम विश्व का मालिक बनने वाले हैं, हमारी चलन, वार्तालाप बहुत अच्छा होना चाहिए । कभी भी रोना नहीं है । 

2. निश्चयबुद्धि बन एक बाप की मत पर चलते रहना है, कभी मूँझना वा घुटका नहीं खाना है । निश्चय में ही विजय है, इसलिए अपनी पाई-पैसे की मत नहीं चलानी है ।

 

वरदान:-

अटल निश्चय द्वारा सहज विजय का अनुभव करने वाले सदा हर्षित, निश्चिंत भव !   

निश्चय की निशानी है सहज विजय । लेकिन निश्चय सब बातों में चाहिए । सिर्फ बाप में निश्चय नहीं, अपने आप में, ब्राह्मण परिवार में और ड्रामा के हर दृश्य में सम्पूर्ण निश्चय हो, थोड़ी सी बात में निश्चय टलने वाला न हो । सदा यह स्मृति रहे कि विजय की भावी टल नहीं सकती, ऐसे निश्चयबुद्धि बच्चे, क्या हुआ, क्यों हुआ इन सब प्रश्नों से भी पार सदा निश्चिंत, सदा हर्षित रहते हैं ।

 

स्लोगन:- 

समय को नष्ट करने के बजाए फौरन निर्णय कर फैंसला करो ।   

 

ओम् शान्ति |