15-08-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - बाप आया है तुम्हें सच्ची स्वतन्त्रता देने, जमघटों की सजाओं से मुक्त करने, रावण की परतन्त्रता से छुड़ाने |”   

                            
प्रश्न:-   
बाप और तुम बच्चों की समझानी में मुख्य अन्तर कौन-सा है?


उत्तर:-
बाप जब समझाते हैं तो ' मीठे बच्चे' कहकर समझाते हैं, जिससे बाप की बात का तीर लगता है । तुम बच्चे आपस में भाइयों को समझाते हो, ' मीठे बच्चे' नहीं कह सकते । बाप बड़ा है इसलिए उनकी बात का असर होता है । वह बच्चों को रियलाइज कराते हैं-बच्चों, तुम्हें लज्जा नहीं आती, तुम पतित बन गये, अब पावन बनो ।

 

ओम् शान्ति |

बेहद का रूहानी बाप बेहद के रूहानी बच्चों को बैठ समझाते हैं, अब यह बेहद का बाप और बेहद के बच्चे ही जानते हैं । और कोई न बेहद के बाप को जानते हैं, न बेहद के बच्चे अपने को मानते हैं । ब्रह्मा मुख वंशावली ही जानते और मानते हैं । और कोई तो मान भी नहीं सकेंगे । ब्रह्मा भी जरूर चाहिए, जिसको आदि देव कहते हैं, जिसमें बाप की प्रवेशता होती है । बाप आकर क्या करते हैं? कहते हैं पावन बनना है । बाप की श्रीमत है अपने को आत्मा निश्चय करो । बच्चों को आत्मा का परिचय भी दिया है । आत्मा भ्रकुटी के बीच में निवास करती है । बाबा ने समझाया है आत्मा अविनाशी है, इनका तख्त यह विनाशी शरीर है । यह बातें तुम जानते हो कि हम सब आत्मायें आपस में भाई- भाई एक बाप के बच्चे हैं । ईश्वर सर्वव्यापी कहना यह भूल है । तुम अच्छी रीति समझाते हो, हर एक में 5 विकारों की प्रवेशता है तो कई समझते हैं यह ठीक बोलते हैं । हम भाई- भाई हैं तो जरूर बाप से वर्सा मिलना चाहिए । परन्तु यहाँ से बाहर निकलते हैं तो माया के तूफानों में चले जाते हैं । कोई विरले ठहरते हैं । सब जगह यह हाल होता है । कोई थोड़ा अच्छा समझते हैं तो जास्ती समझने की कोशिश करते हैं । अभी तुम सबको समझा सकते हो । अगर कोई जास्ती अटेंशन नहीं देते हैं तो कहेंगे यह पुराने भक्त नहीं हैं । इन बातों को तो समझने वाले ही समझें । कोई नहीं समझते हैं तो फिर समझा भी नहीं सकते हैं । तुम्हारे पास भी नम्बरवार है, कोई अच्छा आदमी होता है तो उनको समझाने के लिए ऐसे अच्छे को भेजा जाता है । शायद कुछ समझ जाय । यह तो जानते हैं, बड़े आदमी इतना जल्दी नहीं समझेगे । हाँ, ओपीनियन देते हैं-इनकी समझानी बहुत अच्छी है । बाप का परिचय पूरा देते हैं परन्तु खुद को फुर्सत ही कहाँ है । तुम कहते हो बेहद के बाप को याद करो तो विकर्म विनाश हो । 

अभी तुम समझते हो बाप डायरेक्ट हम आत्माओं से बात करते हैं । डायरेक्ट सुनने से तीर अच्छा लगता है । वह बी. के. द्वारा सुनते हैं । यहाँ परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा डायरेक्ट समझाते हैं-हे बच्चों, तुम बाप का कहना नहीं मानते हो । तुम सब तो कोई को ऐसे नहीं कह सकेंगे ना । वहाँ तो बाप नहीं है । यहाँ बाप बैठे हैं, बाप बात करते हैं । बच्चे, तुम बाप की भी नहीं मानेंगे! अज्ञान काल में भी बाप की समझानी और भाई की समझानी में फर्क पड़ता है । भाई का इतना असर नहीं पड़ेगा जितना बाप का असर पड़ेगा । बाप फिर भी बड़ा हुआ ना, तो डर रहेगा । तुमको भी बाप समझाते हैं-मुझ अपने बाप को याद करो । तुमको शर्म नहीं आती तुम घड़ी-घड़ी मुझे भूल जाते हो । बाप डायरेक्ट कहते हैं तो वह असर जल्दी पड़ता है । अरे, बाप का कहना नहीं मानते हो । बेहद का बाप कहते हैं यह जन्म निर्विकारी बनो तो 21 जन्म निर्विकारी बन पवित्र दुनिया का मालिक बनेंगे । यह नहीं मानते हो । बाप के कहने का तीर कड़ा लगता है । फर्क तो रहता है । ऐसे भी नहीं है कि सदैव नये-नये से बाबा मिलते रहेंगे । उल्टे-सुल्टे प्रश्न करते हैं । बुद्धि में नहीं बैठता क्योंकि यह है बिल्कुल नई बात । गीता में कृष्ण का नाम लिख दिया है । वह तो हो नहीं सकता । अभी ड्रामा अनुसार तुम्हारी बुद्धि में बैठा है । तुम बच्चे भागते हो हम बाबा के पास जायें, डायरेक्ट मुरली सुनें । वहाँ तो भाइयों द्वारा सुनते थे, अब बाबा से सुनें । बाप का असर होता है । बच्चे-बच्चे कह बात करते हैं । बच्चे, तुम्हें लज्जा नहीं आती! बाप को याद नहीं करते हो! बाप के साथ तुम्हारा प्यार नहीं है! कितना याद करते हो? बाबा एक घण्टा । अरे, निरन्तर याद करेंगे तो तुम्हारे पाप कट जायेंगे । जन्म-जन्मान्तर के पापों का बोझा सिर पर है । बाप सम्मुख समझाते हैं-तुमने बाप की कितनी ग्लानि की है । तुम्हारे ऊपर तो केस चलना चाहिए । अखबार में कोई के लिए ग्लानि लिखते हैं तो उस पर केस करते हैं ना । अब बाप स्मृति दिलाते हैं-तुम क्या-क्या करते थे । बाप समझाते हैं ड्रामा अनुसार रावण के संग में यह हुआ है । अब भक्ति मार्ग सब पूरा हुआ, पास्ट हो गया, बीच में कोई रोकने वाला तो होता नहीं । दिन-प्रतिदिन उतरते-उतरते तमोप्रधान बुद्धि बुद्धु हो जाते हैं । जिसकी पूजा करते हैं, उनको ठिक्कर-भित्तर में कह देते हैं । इसको कहा जाता है बेहद की बेसमझी । बेहद के बच्चों की बेहद की बेसमझी । एक तरफ शिवबाबा की पूजा करते हैं, दूसरे तरफ उस बाप को ही सर्वव्यापी कहते हैं । अभी तुमको स्मृति आई है इतनी बेसमझी की जो बाप की ग्लानि कर दी है । अब तुम बच्चों ने समझा है तो अब पुरूषार्थ कर रहे हो बेगर टू प्रिन्स बनने का । श्रीकृष्ण सतयुग का प्रिन्स, उनके लिए फिर कहते 16108 रानियाँ थी, बच्चे थे! अभी तुमको तो लज्जा आयेगी । कोई पाप करते हैं तो भगवान के आगे कान पकड़कर कहते हैं-हे भगवान, बड़ी भूल हुई, रहम करो, क्षमा करो । तुमने कितनी बड़ी भूल की है । बाप समझाते हैं-ड्रामा में ऐसा है । जब ऐसे बनो तब तो मैं आऊं । 

अब बाप कहते हैं-तुमको सब धर्म वालों का कल्याण करना है । बाप जो सबकी सद्गति करते हैं, उनके लिए सब धर्म वाले कह देते हैं सर्वव्यापी है । यह कहाँ से सीखे । भगवानुवाच मैं सर्वव्यापी नहीं हूँ । तुम्हारे कारण औरों का भी ऐसा हाल हो गया है । पुकारते हैं हे- पतित-पावन...... परन्तु समझते नहीं हैं । हम जब पहले-पहले घर से आये तो पतित थे क्या? देह- अभिमानी बनने के कारण पतित बने । कोई भी धर्म वाला आये, उनसे पूछना है परमपिता परमात्मा का तुमको परिचय है, वह कौन है? कहाँ निवास करते हैं? तो कहेंगे ऊपर में या कहेंगे सर्वव्यापी है । बाप कहते हैं तुम्हारे खातिर सारी दुनिया चट खाते में आ गई है । निमित्त तुम बने हो । सबको समझाना पड़ता है । भल ड्रामा अनुसार होता है परन्तु तुम पतित तो बन गये ना । सभी पाप आत्मायें हैं । अब पुण्य आत्मा बनने के लिए पुकारते हैं । सब धर्म वालों को मुक्तिधाम घर में जाना है । वहाँ पवित्र हैं । यह भी ड्रामा बना हुआ है, जो बाप आकर समझाते हैं । यह ज्ञान सब धर्मों के लिए है । बाबा के पास समाचार आया था, किसी आचार्य ने कहा आप सबको आत्मा में परमात्मा समझ नमस्कार करता हूँ । अब इतने सब परमात्मा हैं क्या? कुछ भी समझ नहीं । जिन्होंने भक्ति जास्ती नहीं की है, वह ठहरते नहीं हैं । सेंटर्स में भी कोई कितना समय, कोई कितना समय ठहरते हैं । इससे समझना चाहिए कि भक्ति कम की है इसलिए ठहरते नहीं हैं । फिर भी जायेंगे कहाँ । दूसरी कोई हट्टी तो है नहीं । ऐसी क्या युक्ति रचें जो मनुष्य जल्दी समझ लें । अभी तो सबको पैगाम देना है । यह कहना है कि बाप को याद करो । तुम ही पूरा याद नहीं कर सकते हो तो तुम्हारा तीर कैसे लगेगा इसलिए बाबा कहते हैं चार्ट रखो । मुख्य बात है ही पावन बनने की । जितना पावन बनेंगे उतना नॉलेज धारण होगी । खुशी भी होगी । बच्चों को तो बहुत खुशी होनी चाहिए-हम सबका उद्धार करें । बाप ही आकर सद्गति करते हैं । बाप को तो गम और खुशी की बात ही नहीं । यह ड्रामा बना हुआ है । तुमको तो कोई गम नहीं होना चाहिए । बाप मिला है और क्या, सिर्फ बाप की मत पर चलना है । यह समझानी भी अब मिलती है, सतयुग में नहीं मिलेगी । वहाँ तो ज्ञान की बात ही नहीं । यहाँ तुमको बेहद का बाप मिला है तो तुमको स्वर्ग से भी जास्ती खुशी होनी चाहिए । 

बाप कहते हैं विलायत में भी जाकर तुमको यह समझाना है । सभी धर्म वालों पर तुमको तरस पड़ता है । सभी कहते हैं-हे भगवान रहम करो, ब्लिस करो, दुःख से लिबरेट करो । परन्तु समझते कुछ नहीं । बाप अनेक प्रकार की युक्तियॉ बतलाते हैं । सबको यह बतलाना है कि तुम रावण की जेल में पड़े हो । कहते हैं स्वतन्त्रता मिले, परन्तु वास्तव में स्वतन्त्रता कहा किसको जाता है, यह कोई जानता नहीं है । रावण की जेल में तो सब फँसे हुए हैं । अभी सच्ची स्वतन्त्रता देने के लिए बाप आये हैं । फिर भी रावण की जेल में परतन्त्र होकर पाप करते रहते हैं । सच्ची स्वतन्त्रता कौन-सी है? यह मनुष्यों को बतलाना है । तुम अखबार में भी डाल सकते हो-यहाँ रावण के राज्य में स्वतन्त्रता थोड़ेही है । बहुत शार्ट में लिखना चाहिए । जास्ती तीक-तीक कोई समझ न सके । बोलो, तुमको स्वतन्त्रता है कहाँ, तुम तो रावण की जेल में पड़े हो । तुम्हारा विलायत में आवाज होगा तो फिर यहाँ झट समझ जायेंगे । एक-दो पर घेराव करते रहते हैं । तो यह स्वतन्त्रता हुई क्या? स्वतन्त्रता तो तुमको बाप दे रहे हैं । रावण की जेल से स्वतन्त्र कर रहे हैं । तुम जानते हो वहाँ हम बड़े स्वतन्त्र, बड़े धनवान होते हैं । किसकी नज़र भी नहीं पड़ती । पीछे जब कमजोर बनें तब सबकी नज़र पड़ी तुम्हारे धन पर । मुहम्मद गजनवी ने आकर मन्दिर को लूटा तो तुम्हारी स्वतन्त्रता पूरी हो गई । रावण के राज्य में परतन्त्र बन गये । अभी तुम पुरूषोत्तम संगमयुग पर हो । अभी सच्ची स्वतन्त्रता को पा रहे हो । वह तो स्वतन्त्रता को समझते ही नहीं । तो यह बात भी युक्ति से समझानी है । जिन्होंने कल्प पहले स्वतन्त्रता पाई है, वही मानेंगे । तुम समझाते हो तो कितना आरग्यु करते हैं, जैसे बुद्धु । टाइम वेस्ट करते हैं तो दिल नहीं होती है बात करें । 

बाप आकर स्वतन्त्रता देते हैं । रावण की परतन्त्रता में दुःख बहुत है । अपरमअपार दुःख हैं । बाप के राज्य में हम कितना स्वतन्त्र होते हैं । स्वतन्त्रता उसको कहा जाता है - जब हम पवित्र देवता बनते हैं तो रावण राज्य से छूट जाते हैं । सच्ची स्वतन्त्रता बाप ही आकर देते हैं । अभी तो पराये राज्य में सब दु :खी हैं । स्वतन्त्रता मिलने का यह पुरूषोत्तम संगमयुग है । वह तो कहते फॉरेन गवर्नमेंट गई तो हम स्वतन्त्र बने । अब तुम जानते हो जब तक पावन नहीं बने है तब तक स्वतन्त्र नहीं कहेगे । फिर जमघटो की सजाये खानी पडेगी । पद भी भ्रष्ट हो जायेगा । बाप आते है घर ले जाने । वहाँ सब स्वतन्त्र होते हैं । तुम सब धर्म वालों को समझा सकते हो-तुम आत्मा हो, मुक्तिधाम से आये हो पार्ट बजाने । सुखधाम से फिर दुखधाम में तमोप्रधान दुनिया में आ गये हो । बाप कहते हैं तुम मेरी सन्तान हो, रावण की थोड़ेही हो । मैं तुमको राज्य- भाग्य देकर गया था । तुम अपने राज्य में कितने स्वतन्त्र थे । अब फिर वहाँ जाने के लिए पावन बनना है । तुम कितने धनवान बनते हो । वहाँ तो पैसे की चिंता नहीं होती है । भल गरीब हो फिर भी पैसे की चिंता नहीं । सुखी रहते हैं । चिंता यहाँ होती है । बाकी राजधानी में नम्बरवार पद होते हैं । सूर्यवंशी राजाओं जैसे सब थोड़ेही बनेंगे । जितनी मेहनत उतना पद । तुम सब धर्म वालों की सर्विस करने वाले हो । विलायत वालों को भी समझाना है-तुम सब भाई- भाई हो ना । सब शान्तिधाम में रहते हैं । अब रावण राज्य में हो । अब घर जाने का रास्ता आपको बताते हैं, अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो । कहते भी हैं भगवान सबको लिबरेट करते हैं । परन्तु यह नहीं समझते कि कैसे लिबरेट करते हैं । बच्चे कहाँ मूंझ पड़ते हैं तो कहेंगे बाबा हमको लिबरेट कर अपने घर ले चलो । जैसे तुम लोग फागी में जगल में मूंझ गये थे । रास्ते का मालूम नहीं पड़ता था । फिर लिबरेटर मिला, रास्ता बताया । बेहद के बाप को भी कहते हैं-बाबा, हमको लिबरेट करो । आप चलो, हम भी आपके पीछे चलेंगे । सिवाए बाप के और कोई रास्ता नहीं बताते हैं । कितने शास्त्र पढ़ते थे, तीर्थों पर धक्के खाते थे परन्तु भगवान को नहीं जानते तो ढूंढेगे फिर कहाँ से । सर्वव्यापी है फिर मिलेंगे कैसे । कितना अज्ञान अन्धियारे में हैं । सर्व का सद्गति दाता एक बाप है, वही आकर तुम बच्चों को अज्ञान अन्धेरे से निकालते हैं । अच्छा! 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. एक बाप मिला है इसलिए किसी भी बात का गम (चिंता) नहीं करना है । उनकी मत पर चलकर, बेहद का समझदार बन खुशी-खुशी सबका उद्धार करने के निमित्त बनना है । 

2. जमघटों की सजाओं से बचने वा सच्ची स्वतन्त्रता पाने के लिए पावन जरूर बनना है । नॉलेज सोर्स आफ इनकम है, इसे धारण कर धनवान बनना है ।

 

वरदान:-

लाइट के आधार पर ज्ञान-योग की शक्तियों का प्रयोग करने वाले प्रयोगशाली आत्मा भव !    

जैसे प्रकृति की लाइट साइन्स के अनेक प्रकार के प्रयोग प्रैक्टिकल में करके दिखाती है, ऐसे आप अविनाशी परमात्म लाइट, आत्मिक लाइट और साथ-साथ प्रैक्टिकल स्थिति की लाइट द्वारा ज्ञान योग की शक्तियों का प्रयोग करो । यदि स्थिति और स्वरूप डबल लाइट है तो प्रयोग की सफलता बहुत सहज होती है । जब हर एक स्वयं के प्रति प्रयोग में लग जायेंगे तो प्रयोगशाली आत्माओं का पावरफुल संगठन बन जायेगा ।

 

स्लोगन:- 

विघ्नों के अंश और वंश को समाप्त करने वाले ही विघ्न-विनाशक हैं ।   

 

ओम् शान्ति |