16-06-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे
–
अब
तुम्हें सम्पूर्ण बनना है क्योंकि वापिस घर जाना है और फिर
पावन दुनिया में आना है” 
प्रश्न:-
सम्पूर्ण पावन बनने की युक्ति कौन सी है?
उत्तर:-
सम्पूर्ण पावन बनना है तो पूरा बेगर बनो, देह सहित सब
सम्बन्धों को भूलो और मुझे याद करो तब पावन बनेंगे | अब तुम इन
आँखों से जो कुछ देखते हो यह सब विनाश होना है इसलिए धन,
सम्पत्ति, वैभव आदि सब भूल बेगर बनो | ऐसे बेगर ही प्रिन्स
बनते हैं |
ओम्
शान्ति
|
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप समझा रहे हैं |
बच्चे यह तो अच्छी रीति समझते हैं कि शुरू में आत्मायें सब
पवित्र रहती हैं | हम ही पावन थे, पतित और पावन यह आत्मा के
लिए ही कहा जाता है | आत्मा पावन है तो सुख है | बुद्धि में
आता है कि हम पावन बनेंगे तो पावन दुनिया के मालिक बनेंगे |
इसके लिए ही पुरुषार्थ करते हैं | 5 हज़ार वर्ष पहले पावन
दुनिया थी | उसमें आधाकल्प तुम पावन थे, बाकी रहा आधाकल्प | यह
बातें और कोई समझ नहीं सकते | तुम जानते हो पतित और पावन, सुख
और दुःख, दिन और रात आधा-आधा है | जो अच्छे समझदार हैं,
जिन्होंने बहुत भक्ति की है, वही अच्छी रीति समझेंगे | बाप
कहते हैं – मीठे बच्चों, तुम पावन थे | नई दुनिया में सिर्फ़
तुम ही थे | बाकी जो इतने सब हैं वह शान्तिधाम में थे |
पहले-पहले हम पावन थे और बहुत थोड़े थे फिर नम्बरवार मनुष्य
सृष्टि वृद्धि को पाती है | अब तुम मीठे बच्चों को कौन समझा
रहे हैं? बाप | आत्माओं को परमात्मा बाप समझाते हैं, इसको कहा
जाता है संगम | इसको ही कुम्भ कहा जाता है | मनुष्य इस संगमयुग
को भूल गये हैं | बाबा ने समझाया है 4 युग होते हैं, पाँचवा यह
छोटा-सा लीप संगमयुग है | इसकी आयु छोटी है | बाप कहते हैं मैं
इनकी वानप्रस्थ अवस्था में प्रवेश करता हूँ, बहुत जन्मों के
अन्त के भी अन्त में | बच्चों को यह खातिरी है ना | बाप ने
इनमें प्रवेश किया है, इनकी भी बायोग्राफी सुनाई है | बाप कहते
हैं मैं आत्माओं से ही बात करता हूँ | आत्मा और शरीर दोनों का
इकठ्ठा पार्ट होता है | इनको कहा जाता है जीव आत्मा | पवित्र
जीव आत्मा, अपवित्र जीव आत्मा | तुम बच्चों की बुद्धि में है
कि सतयुग में बहुत थोड़े देवी-देवता होते हैं | फिर अपने लिए भी
कहेंगे हम जीवात्मा जो सतयुग में पावन थी वह फिर 84 जन्मों के
बाद पतित बनी हैं | पतित से पावन, पावन से पतित – यह चक्र
फिरता ही रहता है | याद भी उस पतित-पावन को करते हैं | तो हर 5
हज़ार वर्ष बाद बाबा एक ही बार आते हैं, आकर स्वर्ग की स्थापना
करते हैं | भगवान् एक है, ज़रूर वही पुरानी दुनिया को नया
बनायेंगे | फिर नये को पुराना कौन बनाता है? रावण क्योंकि रावण
ही देह-अभिमानी बनाते हैं | दुश्मन को जलाया जाता है, मित्र को
नहीं जलाया जाता है | सर्व का मित्र एक ही बाप है जो सर्व की
सद्गति करते हैं | उनको सब याद करते हैं क्योंकि वह है ही सबको
सुख देने वाला | तो ज़रूर दुःख देने वाला भी कोई होगा | वह है 5
विकारों रूपी रावण | आधाकल्प रामराज्य, आधाकल्प रावण राज्य |
स्वास्तिका निकालते हैं ना | इसका भी अर्थ बाप समझाते हैं |
इसमें पूरा चौथा होता है | ज़रा भी कम जास्ती नहीं | यह ड्रामा
बड़ा एक्यूरेट है | कोई समझते हैं हम इस ड्रामा से निकल जायें,
बहुत दुःखी हैं इससे तो जाकर ज्योति ज्योत समायें वा ब्रह्म
में लीन हो जायें | लेकिन कोई भी जा नहीं सकता | क्या-क्या
ख्यालात करते हैं | भक्ति मार्ग में प्रयत्न भी भिन्न-भिन्न
करते हैं | सन्यासी शरीर छोड़ेंगे तो ऐसे कभी नहीं कहेंगे कि
स्वर्ग या वैकुण्ठ पधारा | प्रवृत्ति मार्ग वाले कहेंगे फलाना
स्वर्ग पधारा | आत्माओं को स्वर्ग याद है ना | तुमको तो सबसे
ज़्यादा याद है | तुमको दोनों की हिस्ट्री-जॉग्राफी का पता है,
और कोई को पता नहीं | तुमको भी पता नहीं था | बाप बैठ बच्चों
को सब राज़ समझाते हैं |
यह
मनुष्य सृष्टि रूपी वृक्ष है | वृक्ष का ज़रूर बीज भी होना
चाहिए | बाप ही समझाते हैं, पावन दुनिया कैसे पतित बनती है फिर
मैं पावन बनाता हूँ | पावन दुनिया को कहा जाता है स्वर्ग |
स्वर्ग पास्ट हो गया फिर ज़रूर रिपीट होना है इसलिए कहा जाता है
वर्ल्ड की हिस्ट्री रिपीट होती है अर्थात् वर्ल्ड ही पुरानी से
नई, नई से पुरानी होती है | रिपीट माना ही ड्रामा है |
‘ड्रामा’ अक्षर बहुत अच्छा है, शोभता है | चक्र हुबहू फिरता ही
रहता है, नाटक को हुबहू नहीं कहा जाता | कोई बीमार हो पड़ते हैं
तो छुट्टी ले लेते हैं | तो तुम बच्चों की बुद्धि में है – हम
पूज्य देवता थे फिर पुजारी बनें | बाप आकर पतित से पावन बनने
की युक्ति बताते हैं कि 5 हज़ार वर्ष पहले बताई थी | सिर्फ़ कहते
हैं बच्चों मुझे याद करो | बाप पहले-पहले तुमको आत्म-अभिमानी
बनाते हैं | पहले-पहले यह शब्क (पाठ) देते हैं – बच्चे, अपने
को आत्मा समझो, बाप को याद करो | इतना तुमको याद कराता हूँ,
तुम फिर भी भूल जाते हो! भूलते ही रहेंगे जब तक ड्रामा का अन्त
आये | अन्त में जब विनाश का समय होगा तब पढ़ाई पूरी होगी फिर
तुम शरीर छोड़ देंगे | जैसे सर्प भी एक पुरानी खाल छोड़ देते हैं
ना | तो बाप भी समझाते हैं तुम जब बैठते हो अथवा चलते फिरते
हो, देही-अभिमानी होकर रहो | आगे तुमको देह-अभिमान था | अब बाप
कहते हैं आत्म-अभिमानी बनो | देह-अभिमान में आने से तुमको 5
विकार पकड़ लेते हैं | आत्म-अभिमानी बनने से कोई विकार पकड़ेगा
नहीं | देही-अभिमानी बन बाप को बहुत प्यार से याद करना है |
आत्माओं को परमात्मा बाप का प्यार मिलता है, इस संगमयुग पर |
इसको कल्याणकारी संगम कहा जाता है, जबकि बाप और बच्चे आकर
मिलते हैं | तुम आत्मायें भी शरीर में हो | बाप भी शरीर में
आकर तुमको आत्मा निश्चय कराते हैं | बाप एक ही बार आते हैं,
जबकि सबको वापिस ले जाना है | समझाते भी हैं – हम तुमको कैसे
वापिस ले जायेंगे | तुम कहते भी हो हम सभी पतित हैं, आप पावन
हो | आप आकर हमको पावन बनाओ | तुम बच्चों को पता नहीं है कि
बाबा कैसे पावन बनायेंगे | जब तक बनावे नहीं तब तक क्या जानें
| यह भी तुम समझते हो आत्मा छोटा सितारा है | बाप भी छोटा
सितारा है | परन्तु वह ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर है |
तुमको भी आप समान बनाते हैं | यह ज्ञान तुम बच्चों को है जो
तुम फिर सबको समझाते हो | फिर सतयुग में जब तुम होंगे तो यह
ज्ञान सुनायेंगे क्या? नहीं | ज्ञान सागर बाप तो एक ही है जो
तुमको अभी ही पढ़ाते हैं | जीवन कहानी तो सबकी चाहिए ना | वह
बाप सुनाते ही रहते हैं | परन्तु तुम घड़ी-घड़ी भूल जाते हो,
तुम्हारी माया के साथ युद्ध है | तुम फील करते हो बाबा को हम
याद करते हैं, फिर भूल जाते हैं | बाप कहते हैं माया ही
तुम्हारी दुश्मन है, जो तुमको भुला देती है अर्थात् बाप से
बेमुख कर देती है | तुम बच्चे एक ही बार बाप के सम्मुख होते हो
| बाप एक ही बार वर्सा देते हैं | फिर बाप को सम्मुख आने की
दरकार ही नहीं | पाप आत्मा से पुण्य आत्मा, स्वर्ग का मालिक
बनाया | बस | फिर क्या आकर करेंगे | तुमने बुलाया और मैं
बिल्कुल पूरे टाइम पर आया | हर 5 हज़ार वर्ष बाद मैं अपने समय
पर आता हूँ | यह किसको भी पता नहीं है | शिवरात्रि क्यों मनाते
हैं, उसने क्या किया? किसको भी पता नहीं है इसलिए शिवरात्रि की
हॉली डे आदि कुछ नहीं करते हैं | और सबकी हॉली डे करते हैं
लेकिन शिवबाबा आते हैं, इतना पार्ट बजाते हैं, उनका कोई को पता
नहीं पड़ता | अर्थ ही नहीं जानते | भारत में कितना अज्ञान है |
तुम
बच्चे जानते हो कि शिवबाबा ही ऊँच ते ऊँच है तो ज़रूर मनुष्यों
को ऊँच ते ऊँच बनायेंगे | बाप कहते हैं मैंने इनको ज्ञान दिया,
योग सिखाया फिर वह नर से नारायण बना | उन्होंने यह नॉलेज सुनी
है | यह ज्ञान तुम्हारे लिए ही है, और किसके लिए शोभता नहीं |
तुमको फिर से बनना है, और कोई नहीं बनते | यह है नर से नारायण
बनने की कथा | जिन्होंने और धर्म स्थापन किये, सब पुनर्जन्म
लेते-लेते तमोप्रधान बने हैं फिर उन सबको सतोप्रधान बनना है |
उस पद के अनुसार फिर रिपीट करना है | ऊँच पार्टधारी बनने के
लिए तुम कितना पुरुषार्थ कर रहे हो | कौन पुरुषार्थ करा रहे
हैं? बाबा | तुम ऊँच बन जाते हो फिर कभी याद भी नहीं करते हो |
स्वर्ग में थोड़ेही याद करेंगे | ऊँच ते ऊँच बाप है, फिर बनाते
भी ऊँच हैं | नारायण से पहले तो श्रीकृष्ण है | फिर तुम ऐसे
क्यों कहते हो कि नर से नारायण बनें? क्यों नही कहते हो नर से
कृष्ण बनें? पहले नारायण थोड़ेही बनेंगे? पहले तो प्रिन्स
श्रीकृष्ण बनेंगे ना | बच्चा तो फूल होता है वह तो फिर भी युगल
बन जाते हैं | महिमा ब्रह्मचारी की होती है | छोटे बच्चे को
सतोप्रधान कहा जाता है, तुम बच्चों को ख्याल में आना चाहिए –
हम पहले-पहले ज़रूर प्रिन्स बनेंगे | गाया भी जाता है – बेगर तू
प्रिन्स | बेगर किसको कहा जाता है? आत्मा को ही शरीर के साथ
बेगर वा साहूकार कहते हैं | इस समय तुम जानते हो सभी बेगर्स बन
जाते हैं | सब ख़त्म हो जाते हैं | तुमको इस समय ही बेगर बनना
है, शरीर सहित | पाई पैसे जो कुछ हैं ख़त्म हो जायेंगे | आत्मा
को बेगर बनना है, सब कुछ छोड़ना है | यह पुरानी चीज़ कोई काम की
नहीं है | आत्मा पवित्र हो जायेगी फिर यहाँ आयेगी पार्ट बजाने
| कल्प पहले मिसल | जितना-जितना तुम धारणा करेंगे उतना ऊँच पद
मिलेगा | भल इस समय किसी के पास 5 करोड़ हैं, सब ख़त्म हो
जायेंगे | हम फिर से अपनी नई दुनिया में जाते हैं | यहाँ तुम
आये हो नई दुनिया में जाने के लिए | और कोई सतसंग नहीं जिसमें
कोई समझे कि हम नई दुनिया के लिए पढ़ रहे हैं | तुम बच्चों की
बुद्धि में है बाबा हमको पहले बेगर बनाकर फिर प्रिन्स बनाते
हैं | देह के सब सम्बन्ध छोड़े तो बेगर ठहरा ना | कुछ भी है
नहीं | अभी भारत में कुछ भी नहीं है | भारत अभी बेगर,
इनसालवेन्ट है | फिर सालवेन्ट होगा | कौन बनते हैं? आत्मा शरीर
द्वारा बनती है | अभी राजा-रानी भी हैं नहीं | वह भी
इनसालवेन्ट हैं, राजा-रानी का ताज भी नहीं है | न वह ताज है, न
रत्न जड़ित ताज है | अन्धेरी नगरी है, सर्वव्यापी कह देते हैं |
गोया सबमें भगवान् है | सब एक समान है, कुत्ते-बिल्ली सबमें है
इसको कहा जाता है अन्धेर नगरी........तुम ब्राह्मणों की रात थी
| अब समझते हो ज्ञान दिन आ रहा है | सतयुग में सभी जागती ज्योत
हैं | अभी दीवा बिल्कुल डल हो गया है | भारत में ही दीवा जगाने
की रस्म है | और कोई थोड़ेही दीवा जगाते हैं | तुम्हारी ज्योत
उझाई हुई है | सतोप्रधान विश्व के मालिक थे, वह ताक़त कम
होते-होते अभी कुछ ताक़त ही नहीं रही है | फिर बाप आये हैं
तुमको ताक़त देने | बैटरी भरती है | आत्मा को परमात्मा बाप की
याद रहने से बैटरी भरती है | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
अब नाटक
पूरा हो रहा है, हमें वापिस जाना है इसलिए आत्मा को बाप की याद
से सतोप्रधान, पावन ज़रूर बनाना है | बाप समान ज्ञान का सागर,
शान्ति का सागर अभी ही बनना है |
2.
इस देह
से भी पूरा बेगर बनने के लिए बुद्धि में रहे कि इन आँखों से जो
कुछ भी देखते हैं, यह सब ख़त्म हो जाना है | हमें बेगर से
प्रिन्स बनना है | हमारी पढ़ाई है ही नई दुनिया के लिए |
वरदान:-
सेवा
में मान-शान के कच्चे फल को त्याग सदा प्रसन्नचित रहने वाले
अभिमान मुक्त भव
! 
रॉयल
रूप की इच्छा का स्वरूप नाम, मान और शान है | जो नाम के पीछे
सेवा करते हैं, उनका नाम अल्पकाल के लिए हो जाता है लेकिन ऊँच
पद में नाम पीछे हो जाता है क्योंकि कच्चा फल खा लिया | कई
बच्चे सोचते हैं कि सेवा की रिज़ल्ट में मेरे को मान मिलना
चाहिए | लेकिन यह मान नहीं अभिमान हैं | जहाँ अभिमान है वहाँ
प्रसन्नता नहीं रह सकती, इसलिए अभिमान मुक्त बन सदा प्रसन्नता
का अनुभव करो |
स्लोगन:-
परमात्म
प्यार के सुखदाई झूले में झूलो तो दुःख की लहर आ नहीं सकती |
ओम्
शान्ति
|