12-12-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - बाप आये हैं तुम्हें सर्व खजानों से मालामाल बनाने,
तुम सिर्फ ईश्वरीय मत पर चलो,
अच्छी रीति पुरूषार्थ कर वर्सा लो,
माया से हार नहीं खाओ
|” 
प्रश्न:-
ईश्वरीय मत,
दैवी
मत और मनुष्य मत में कौन- सा मुख्य अन्तर है?
उत्तर:-
ईश्वरीय मत से तुम बच्चे वापिस अपने घर जाते हो फिर नई दुनिया
में ऊँच पद पाते हो । दैवी मत से तुम सदा सुखी रहते हो क्योंकि
वह भी बाप द्वारा इस समय की मिली हुई मत है । लेकिन फिर भी
उतरते तो नीचे ही हो । मनुष्य मत दु :खी बनाती है । ईश्वरीय मत
पर चलने के लिए पहले-पहले पढ़ाने वाले बाप पर पूरा निश्चय चाहिए
।
ओम्
शान्ति |
बाप
ने अर्थ तो समझाया है,
मैं
आत्मा शान्त स्वरूप हूँ । जब ओम शान्ति कहा जाता है तो आत्मा
को अपना घर याद आता है । मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ । फिर जब
आरगन्स मिलते हैं तब टॉकी बनती है । पहले छोटे आरगन्स होते हैं
फिर बड़े होते हैं । अब परमपिता परमात्मा तो है निराकार । उनको
भी रथ चाहिए टॉकी बनने के लिए । जैसे तुम आत्मायें परमधाम की
रहने वाली हो,
यहाँ
आकर टाँकी बनती हो । बाप भी कहते हैं मैं तुमको नॉलेज देने के
लिए टाँकी बना हूँ । बाप अपना और रचना के आदि,
मध्य,
अन्त
का परिचय देते हैं । यह है रूहानी पढ़ाई,
वह
होती है जिस्मानी पढ़ाई । वह अपने को शरीर समझते हैं । ऐसे कोई
नहीं कहेंगे कि हम आत्मा इन कानों द्वारा सुनती हैं । अभी तुम
बच्चे समझते हो बाप हैं पतित-पावन,
वही
आकर समझाते हैं-मैं कैसे आता हूँ । तुम्हारे मिसल मैं गर्भ में
नहीं आता हूँ । मैं इनमें प्रवेश करता हूँ । फिर कोई प्रश्न ही
नहीं उठता । यह रथ है । इनको माता भी कहा जाता है । सबसे बड़ी
नदी ब्रह्म पुत्रा है । तो यह हैं सबसे बड़ी नदी । पानी की तो
बात नहीं । यह है महानदी अर्थात् सबसे बड़ी ज्ञान नदी है । तो
बाप आत्माओं को समझाते हैं मैं तुम्हारा बाप हूँ । जैसे तुम
बात करते हो,
मैं
भी बात करता हूँ । मेरा पार्ट तो सबसे पिछाड़ी का है । जब तुम
बिल्कुल पतित बन जाते हो तब तुमको पावन बनाने के लिए आना होता
है । इन लक्ष्मी-नारायण को ऐसा बनाने वाला कौन?
सिवाए ईश्वर के और कोई के लिए कह नहीं सकेंगे । बेहद का बाप ही
स्वर्ग का मालिक बनाते होंगे ना । बाप ही ज्ञान का सागर है ।
वही कहते हैं मैं इस मनुष्य सृष्टि का चैतन्य बीज हूँ । मैं
आदि,
मध्य,
अन्त
को जानता हूँ । मैं सत हूँ,
मैं
चैतन्य बीजरूप हूँ,
इस
सृष्टि रूपी झाड़ की मेरे में नॉलेज है । इसको सृष्टि चक्र अथवा
ड्रामा कहा जाता है । यह फिरता ही रहता है । वह हद का ड्रामा
दो घण्टे चलता है । इसकी रील 5 हजार वर्ष की है । जो-जो टाइम
पास होता जाता है,
5
हजार वर्ष से कम होता जाता है । तुम जानते हो पहले हम
देवी-देवता थे फिर आहिस्ते- आहिस्ते हम क्षत्रिय कुल में आ गये
। यह सारा राज़ बुद्धि में है ना । तो यह सिमरण करते रहना चाहिए
। हम शुरू-शुरू में पार्ट बजाने आये तो हम सो देवी-देवता थे ।
1250
वर्ष राज्य किया । टाइम तो गुजरता जाता है ना । लाखों वर्ष की
तो बात ही नहीं । लाखों वर्ष का तो कोई चिन्तन कर भी न सके ।
तुम
बच्चे समझते हो हम यह देवी-देवता थे फिर पार्ट बजाते,
वर्ष
पिछाड़ी वर्ष पास करते-करते अभी कितने वर्ष पास कर चुके हैं ।
धीरे- धीरे सुख कम होता जाता है । हर एक चीज सतोप्रधान,
सतो
रजो,
तमो
होती है । पुरानी जरूर होती है । यह फिर है बेहद की बात । यह
सब बातें अच्छी रीति बुद्धि में धारण कर फिर औरों को समझाना है
। सब तो एक जैसे नहीं होते । जरूर भिन्न-भिन्न रीति समझाते
होंगे । चक्र समझाना सबसे सहज है । ड्रामा और झाड़ दोनों मुख्य
चित्र हैं । कल्प वृक्ष नाम है ना । कल्प की आयु कितने वर्ष की
है । यह कोई भी नहीं जानते । मनुष्यों की अनेक मत हैं । कोई
क्या कहेंगे,
कोई
क्या कहेंगे । अभी तुमने अनेक मनुष्य मत को भी समझा है और एक
ईश्वरीय मत को भी समझा है । कितना फर्क है । ईश्वरीय मत से
तुमको फिर से नई दुनिया में जाना पड़े और कोई की भी मत से,
दैवी
मत वा मनुष्य मत से वापिस नहीं जा सकते । दैवी मत से तुम उतरते
ही हो क्योंकि कला कम होती जाती है । आसुरी मत से भी उतरते हो
। परन्तु दैवी मत में सुख है,
आसुरी मत में दु :ख है । दैवी मत भी इस समय बाप की दी हुई है
इसलिए तुम सुखी रहते हो । बेहद का बाप कितना दूर-दूर से आते
हैं । मनुष्य कमाने के लिए बाहर जाते हैं । जब बहुत धन इकट्ठा
होता है तो फिर आते हैं । बाप भी कहते हैं मैं तुम बच्चों के
लिए बहुत खजाना ले आता हूँ क्योंकि जानता हूँ तुमको बहुत माल
दिये थे । वह सब तुमने गँवा दिया है । तुमसे ही बात करता हूँ,
जिन्होंने प्रैक्टिकल में गँवाया है । 5 हजार वर्ष की बात
तुमको याद है ना । कहते हैं हाँ बाबा,
5
हजार वर्ष पहले आपसे मिले थे,
आपने
वर्सा दिया था । अब तुमको स्मृति आई है बरोबर बेहद के बाप से
बेहद का वर्सा लिया था । बाबा,
आपसे
नई दुनिया की राजाई का वर्सा लिया था । अच्छा,
फिर
पुरूषार्थ करो । ऐसे नहीं कहो बाबा माया के भूत ने हमको हरा
दिया । देह- अभिमान के बाद ही तुम माया से हारते हो । लोभ किया,
रिश्वत खाई । लाचारी की बात और है । बाबा जानते हैं लोभ के
सिवाए पेट पूजा नहीं होगी,
हर्जा नहीं । भल खाओ परन्तु कहाँ फँस नहीं मरना,
फिर
तुमको ही दु :ख होगा । पैसा मिलेगा खुश हो खायेंगे,
कहाँ
पुलिस ने पकड़ लिया तो जेल में जाना पड़ेगा । ऐसा काम नहीं करो,
उसका
फिर रेसपॉन्सिबुल मैं नहीं हूँ । पाप करते हैं तो जेल में जाते
हैं । वहाँ तो जेल आदि होता नहीं । तो ड्रामा के प्लैन अनुसार
जो कल्प पहले तुमको वर्सा मिला है,
21
जन्म लिए वैसे ही फिर लेंगे । सारी राजधानी बनती है । गरीब
प्रजा,
साहूकार प्रजा । परन्तु वहाँ दु :ख होता नहीं । यह बाप गैरंटी
करते हैं । सब एक समान तो बन न सकें । सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी
राजाई में सब चाहिए ना । बच्चे जानते हैं कैसे बाप हमको विश्व
की बादशाही देते हैं । फिर हम उतरते हैं । स्मृति में आया ना ।
स्कूल में पढ़ाई स्मृति में रहती है ना । यहाँ भी बाप स्मृति
दिलाते हैं । यह रूहानी पढ़ाई दुनिया भर में और कोई पढ़ा न सके ।
गीता में भी लिखा हुआ है मन्मनाभव । इसको महामन्त्र वंशीकरण
मंत्र कहते हैं अर्थात् माया पर जीत पाने का मंत्र । माया जीते
जगतजीत । माया 5 विकार को कहा जाता है । रावण का चित्र बिल्कुल
क्लीयर है- 5 विकार स्त्री में,
5
विकार पुरूष में । इनसे गधा अर्थात् टट्टू बन जाते हैं इसलिए
ऊपर में गधे का शीश देते हैं । अभी तुम समझते हो ज्ञान बिगर हम
भी ऐसे थे । बाप कितना रमणीक राति बैठ पढ़ाते हैं । वह है
सुप्रीम टीचर । उनसे जो हम पढ़ते हैं वह फिर औरों को सुनाते हैं
। पहले तो पढ़ाने वाले में निश्चय कराना चाहिए । बोलो,
बाप
ने हमको यह समझाया है,
अब
मानो न मानो । यह बेहद का बाप तो है ना । श्रीमत ही श्रेष्ठ
बनाती है । तो श्रेष्ठ नई दुनिया भी जरूर चाहिए ना ।
अभी
तुम समझते हो हम किचड़े की दुनिया में बैठे हैं । दूसरा कोई समझ
न सके । वहाँ हम बहिश्त स्वर्ग में सदा सुखी रहते हैं । यहाँ
नर्क में कितने दु :खी हैं । इसको नर्क कहो वा विषय वैतरणी नदी
कहो,
पुरानी दुनिया छी-छी है । अभी तुम फील करते हो-कहाँ सतयुग
स्वर्ग,
कहाँ
कलियुग नर्क! स्वर्ग को कहा जाता है वन्डर ऑफ वर्ल्ड । त्रेता
को भी नहीं कहेंगे । यहाँ इस गन्दी दुनिया में रहने में
मनुष्यों को कितनी खुशी होती है । विष्टा के कीड़े को भ्रमरी
भूँ भूँ कर आपसमान बनाती हैं । तुम भी किचड़े में पड़े हुए थे ।
मैंने आकर भूँ- भूँ कर तुमको कीड़े से अर्थात् शूद्र से
ब्राह्मण बनाया है । अभी तुम डबल सिरताज बनते हो तो कितनी खुशी
रहनी चाहिए । पुरूषार्थ भी पूरा करना चाहिए । बेहद का बाप
समझानी तो बहुत सहज देते हैं । दिल से लगता भी है बाबा सच-सच
कहते हैं । इस समय सभी माया की दुबन में फंसे हुए हैं । बाहर
का शो कितना है?
बाबा
समझाते हैं हम तुमको दुबन से आकर बचाते हैं,
स्वर्ग में ले जाते हैं । स्वर्ग का नाम सुना हुआ है । अभी
स्वर्ग तो है नहीं । सिर्फ यह चित्र है । यह स्वर्ग के मालिक
कितने धनवान थे । भक्ति मार्ग में भल रोज मन्दिरों में जाते थे,
परन्तु यह ज्ञान कुछ नहीं था । अभी तुम समझते हो भारत में यह
आदि सनातन देवी-देवता धर्म था । इन्हों का राज्य कब था,
यह
किसको पता नहीं है । देवी-देवता धर्म के बदले अब फिर
हिन्दू-हिन्दू कहते रहते हैं । शुरू में हिन्दू महासभा का
प्रेजीडेंट आया था । बोला,
हम
विकारी असुर हैं अपने को देवता कैसे कहलायें?
हमने
कहा अच्छा आओ तो तुमको समझायें देवी-देवता धर्म की स्थापना फिर
से हो रही है । हम तुमको स्वर्ग का मालिक बना देंगे । बैठकर
सीखो । बोला,
दादा
जी फुर्सत कहाँ?
फुर्सत नहीं तो फिर देवता कैसे बनेंगे! यह पढ़ाई हैं ना ।
बिचारे की तकदीर में नहीं था । मर गया । ऐसे भी नहीं कहेंगे कि
वह कोई प्रजा में आयेगा । नहीं,
ऐसे
ही चला आया था,
सुना
था यहाँ पवित्रता का ज्ञान मिलता है । परन्तु सतयुग में तो आ न
सके । फिर भी हिन्दू धर्म में ही आयेंगे ।
तुम
बच्चे समझते हो माया बड़ी प्रबल है । कोई न कोई भूल कराती रहती
है । कभी कोई उल्टा-सुल्टा पाप हो तो बाप को सच्ची दिल से
सुनाना है । रावण की दुनिया में पाप तो होते ही रहते हैं ।
कहते हैं हम जन्म-जन्मान्तर के पापी हैं । यह किसने कहा?
आत्मा कहती है-बाप के आगे या देवताओं के आगे । अभी तो तुम फील
करते हो बराबर हम जन्म- जन्मान्तर के पापी थे । रावण राज्य में
पाप जरूर किये हैं । अनेक जन्मों के पाप तो वर्णन नहीं कर सकते
हो । इस जन्म का वर्णन कर सकते हैं । वह सुनाने से भी हल्का हो
जायेगा । सर्जन के आगे बीमारी सुनानी है-फलाने को मारा,
चोरी
की.,
इस
सुनाने में लज्जा नहीं आती है,
विकार की बात सुनाने में लज्जा आती है । सर्जन से लज्जा करेंगे
तो बीमारी छूटेगी कैसे?
फिर
अन्दर दिल को खाती रहेगी,
बाप
को याद कर नहीं सकेंगे । सच सुनायेंगे तो याद कर सकेंगे । बाप
कहते हैं मैं सर्जन तुम्हारी कितनी दवाई करता हूँ । तुम्हारी
काया सदैव कंचन रहेगी । सर्जन को बताने से हल्का हो जाता है ।
कोई-कोई आपेही लिख देते हैं-बाबा हमने जन्म-जन्मान्तर पाप किये
हैं । पाप आत्माओं की दुनिया में पापात्मा ही बने हैं । अब बाप
कहते हैं बच्चे,
तुम्हें पाप आत्माओं से लेन-देन नहीं करनी है । सच्चा सतगुरू,
अकालमूर्त है बाप,
वह
कभी पुनर्जन्म में नहीं आते हैं । उन्होंने अकाल तख्त नाम रखा
है परन्तु अर्थ नहीं समझते हैं । बाप ने समझाया है आत्मा का यह
तख्त है । शोभता भी यहाँ हैं,
तिलक
भी यहाँ (भ्रकुटी में) देते हैं ना । असुल में तिलक एकदम
बिन्दी मिसल देते थे । अभी तुमको अपने को आपेही तिलक देना है ।
बाप को याद करते रहो । जो बहुत सर्विस करेंगे तो बड़ा महाराजा
बनेंगे । नई दुनिया में,
पुरानी दुनिया की पढ़ाई थोड़ेही पढ़ना है । तो इतनी ऊँच पढ़ाई पर
फिर अटेंशन देना चाहिए । यहाँ बैठते हैं तो भी कोई का
बुद्धियोग अच्छा रहता है,
कोई
का कहाँ-कहाँ चला जाता है । कोई 10
मिनट लिखते हैं,
कोई
15 मिनट लिखते हैं । जिसका चार्ट अच्छा होगा उनको नशा
चढ़ेगा-बाबा इतना समय हम आपकी याद में रहे । 15 मिनट से जास्ती
तो कोई लिख नहीं सकते । बुद्धि इधर-उधर भागती हैं । अगर सब
एकरस हो जाए तो फिर कर्मातीत अवस्था हो जाए । बाप कितनी
मीठी-मीठी लवली बातें सुनाते हैं । ऐसे तो कोई गुरू ने नहीं
सिखाया । गुरू से सिर्फ एक थोड़ेही सीखेगा । गुरू से तो हजारों
सीखें ना । सतगुरू से तुम कितने सीखते हो । यह है माया को वश
करने का मन । माया 5 विकारों को कहा जाता है । धन को सम्पत्ति
कहा जाता है । लक्ष्मी-नारायण के लिए कहेंगे इन्हों के पास
बहुत सम्पत्ति है । लक्ष्मी-नारायण को कभी मात- पिता नहीं
कहेंगे । आदि देव,
आदि
देवी को जगत पिता,
जगत
अम्बा कहते हैं,
इनको
नहीं । यह स्वर्ग के मालिक हैं । अविनाशी ज्ञान धन लेकर हम
इतने धनवान बने हैं । अम्बा के पास अनेक आशायें लेकर जाते हैं
। लक्ष्मी के पास सिर्फ धन के लिए जाते हैं और कुछ नहीं । तो
बड़ी कौन हुई?
यह
किसको पता नहीं,
अम्बा से क्या मिलता है?
लक्ष्मी से क्या मिलता है?
लक्ष्मी से सिर्फ धन मांगते हैं । अम्बा से तुमको सब कुछ मिलता
है । अम्बा का नाम जास्ती है क्योंकि माताओं को दु :ख भी बहुत
सहन करना पड़ा है । तो माताओं का नाम जास्ती होता है । अच्छा,
फिर
भी बाप कहते हैं बाप को याद करो तो पावन बन जायेंगे । चक्र को
याद करो,
दैवीगुण धारण करो । बहुतों को आप समान बनाओ । गॉड फादर के तुम
स्टूडेंट हो । कल्प पहले भी बने थे फिर अब भी वही एम आब्जेक्ट
है । यह है सत्य नर से नारायण बनने की कथा । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
अपनी
बीमारी सर्जन से कभी भी छिपानी नहीं है । माया के भूतों से
स्वयं को बचाना है । अपने को राजतिलक देने के लिए सर्विस जरूर
करनी है ।
2.
स्वयं
को अविनाशी ज्ञान धन से धनवान बनाना है । अब पाप आत्माओं से
लेन-देन नहीं करनी है । पढ़ाई पर पूरा-पूरा अटेंशन देना है ।
वरदान:-
ब्राह्मण जीवन में सदा खुशी की खुराक खाने और खुशी बांटने वाले
खुशनसीब
भव ! 
इस
दुनिया में आप ब्राह्मणों जैसा खुशनसीब कोई हो नहीं सकता
क्योंकि इस जीवन में ही आप सबको बापदादा का दिलतख्त मिलता है ।
सदा खुशी की खुराक खाते हो और खुशी बांटते हो । इस समय बेफिक्र
बादशाह हो । ऐसी बेफिक्र जीवन सारे कल्प में और किसी भी युग
में नहीं है । सतयुग में बेफिक्र होंगे लेकिन वहाँ ज्ञान नहीं
होगा,
अभी
आपको ज्ञान है इसलिए दिल से निकलता है मेरे जैसा खुशनसीब कोई
नहीं ।
स्लोगन:-
संगमयुग
के स्वराज्य अधिकारी ही भविष्य के विश्व राज्य अधिकारी बनते
हैं । 
ओम्
शान्ति |