18-03-14          प्रातः मुरली       ओम् शान्ति       “बापदादा”        मधुबन
 


मीठे बच्चे तुम्हारी अब वानप्रस्थ अवस्था है क्योंकि तुम्हें वाणी से परे घर जाना है इसलिए याद में रहकर पावन बनो” 

प्रश्न:-   
ऊँची मंज़िल पर पहुँचने के लिए किस बात की सम्भाल ज़रूर रखनी है?

उत्तर:-
आँखों की सम्भाल करो, यही बहुत धोखेबाज़ हैं | क्रिमिनल आँखें बहुत नुकसान करती हैं इसलिए जितना हो सके अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो | भाई-भाई की दृष्टि का अभ्यास करो | सवेरे-सवेरे उठ एकान्त में बैठ अपने आपसे बातें करो | भगवान् का हुक्म है – मीठे बच्चे, काम महाशत्रु से खबरदार रहो |

ओम् शान्ति |

मीठे-मीठे रूहानी बच्चे यह तो समझ गये हैं क्योंकि यहाँ समझने वाले ही आ सकते हैं | यहाँ कोई मनुष्य नहीं पढ़ाते हैं | यह तो भगवान् पढ़ाते हैं | भगवान् की भी पहचान चाहिए | नाम कितना बड़ा है भगवान् और फिर कहते हैं नाम रूप से न्यारा | अब है भी जैसे प्रैक्टिकल में न्यारा | इतनी छोटी बिन्दी है, कहते भी हैं आत्मा स्टार है | जैसे वह सितारे छोटे तो नहीं हैं | यह आत्मा स्टार तो सच-सच छोटी है | बाप भी बिन्दी है | बाप तो सदा पवित्र है | उनकी महिमा भी है ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर.... | इसमें मूँझने की कोई बात नहीं | मुख्य बात है पावन बनने की | विकार पर ही झगड़ा होता है | पावन बनने लिए पतित-पावन को बुलाते हैं | तो ज़रूर पावन बनना पड़े ना, इसमें मूँझना नहीं है | जो कुछ पास्ट हुआ, विघ्न आदि पड़े, नई बात नहीं है | अबलाओं पर अत्याचार होने हैं | और सतसंगों में यह बातें नहीं होती हैं | कहाँ भी हंगामा नहीं होता | यहाँ हंगामा खास इस बात पर ही होता है | बाप पावन बनाने आते हैं तो कितना हंगामा होता है | बाप बैठ पढ़ाते हैं | बाप कहते हैं मैं आता भी वानप्रस्थ अवस्था में हूँ | वानप्रस्थ अवस्था का कायदा भी यहाँ से ही शुरू होता है | तो वानप्रस्थ अवस्था वाले ज़रूर वानप्रस्थ में ही रहेंगे | वाणी से परे जाने के लिए बाप को पूरा याद कर पवित्र बनना है | पवित्र बनने का तरीका तो एक ही है | वापिस जाना है तो पवित्र ज़रूर बनना है | जाना तो सबको है | दो-चार को तो नहीं जाना है | सारी पतित दुनिया को बदली होना है | इस ड्रामा का किसको भी पता नहीं है | सतयुग से कलियुग तक यह ड्रामा का चक्र है | बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है और पावन भी ज़रूर बनना है | तब ही तुम शान्तिधाम और सुखधाम में जा सकेंगे | गायन भी है गति-सदगति दाता एक ही है | सतयुग में बहुत थोड़े होते हैं और पवित्र होते हैं | कलियुग में हैं अनेक धर्म और अपवित्र हो पड़ते हैं | यह तो सहज बात है और बाप पहले से ही बता देते हैं | बाप तो जानते है कि हंगामा होगा ज़रूर | न जाने तो युक्तियाँ क्यों रचें कि चिट्ठी ले आओ कि हमको ज्ञान अमृत पीने जाना है | जानते हैं यह झगड़ा होने की भी ड्रामा में नूँध है | आशचर्यवत अच्छी तरह पहचान कर गायन लेते, औरों को भी ज्ञान देते फिर भी अहो माया, उन्हों को तुम अपनी तरफ़ खींच लेती हो | यह सब ड्रामा में नूँध है | इस भावी को कोई टाल नहीं सकता है | मनुष्य सिर्फ़ अक्षर कह देते हैं परन्तु अर्थ नहीं समझते हैं | बच्चे, यह बहुत ऊँची पढ़ाई है | आँखें ऐसी धोखेबाज़ हैं, बात मत पूछो | तमोप्रधान दुनिया है, कॉलेजों में भी बहुत ख़राब हो पड़ते हैं | विलायत की तो बात नहीं पूछो | सतयुग में ऐसी बातें नहीं होती | वो लोग कह देते सतयुग को लाखों वर्ष हो गये हैं | बाप कहते हैं कल तुमको राज्य भाग्य देकर गये थे, सब कुछ गँवा दिया है | लौकिक में भी बाप कहते हैं इतनी तुमको मिलकियत दी, सब गँवा दी | ऐसे भी बच्चे निकल पड़ते हैं तो धक से मिलकियत को उड़ा देते हैं | बेहद का बाप भी कहते हैं मैं तुमको कितना धन देकर गया, कितना तुमको लायक विश्व का मालिक बनाया, अब ड्रामा अनुसार तुम्हारा क्या हाल हो गया है! तुम वही मेरे बच्चे हो ना | कितने तुम धनवान थे | यह है बेहद के बात जो तुम समझाते हो | एक कहानी है रोज़ कहता था शेर आया शेर आया | परन्तु शेर आता नहीं था | एक दिन सच-सच शेर आ गया | तुम भी कहते हो मौत आया कि आया तो कहते हैं यह रोज़ कहते हैं विनाश तो होता नहीं है | अब तुम जानते हो एक दिन विनाश होना ज़रूर है | उनकी फिर कहानी बना दी है | बेहद का बाप कहते हैं उन्हों का दोष नहीं है | कल्प पहले भी हुआ था | 5 हज़ार वर्ष की बात है | बाबा ने तो बहुत बार बोला है – यह भी तुम लिखते रहो कि 5 हज़ार वर्ष पहले भी हुबहू ऐसा म्युज़ियम खोला था, भारत में देवी-देवता धर्म की स्थापना करने | एकदम क्लीयर लिखो तो आकर समझें | बाबा आया हुआ है | बाप का वर्सा है ही स्वर्ग की बादशाही | भारत स्वर्ग था | पहले-पहले नई दुनिया में नया भारत हेविन था | हेविन सो हेल | यह बहुत बड़ा बेहद का ड्रामा है, इसमें सब पार्टधारी हैं | 84 जन्मों का पार्ट बजाए अब फिर हम वापिस जाते हैं | पहले हम मालिक थे फिर कंगाल बने | अब फिर बाबा की मत पर चलकर मालिक बनते हैं |  तुम जानते हो हम श्रीमत पर कल्प-कल्प भारत को स्वर्ग बनाते हैं | पावन भी जरुर बनना है | पावन बनने कारण अत्याचार होते हैं | बाबा बच्चों को समझाते तो बहुत हैं फिर बहार जाने से बेसमझ बन पड़ते हैं | आश्चर्यवत सुनन्ती, कथन्ती, ज्ञान देवन्ती, अहो मम माया, वैसे का वैसा बन जाते हैं और ही बदतर | काम विकार में फँसे और गिरे |

शिवबाबा इस भारत को शिवालय बनाते हैं, तो बच्चों को भी पुरुषार्थ करना चाहिए | यह बेहद का बाबा बहुत मीठा बाबा है | अगर सबको पता पड जाए तो ढेर की ढेर आ जाएं | पढ़ाई चल न सके | पढ़ाई में तो एकान्त चाहिए | सुबह को कितनी शान्ति रहती है | हम अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते हैं | याद के सिवाए विकर्म विनाश कैसे होंगे? यही फुरना लगा हुआ है | अब पतित कंगाल बन पड़े हैं फिर पावन सिरताज कैसे बनें | बाप तो बिल्कुल सहज बात समझाते हैं | हंगामा तो होगा | डरने की कोई बात नहीं | बाप तो बिल्कुल साधारण हैं | ड्रेस आदि सब वही है | कुछ भी फ़र्क नहीं | सन्यासी तो फिर भी घरबार छोड़ गेरू कफनी पहन लेते हैं, इनकी तो वही पहरवाइस है | सिर्फ़ बाप ने प्रवेश किया और कोई फ़र्क नहीं | जैसे बाप बच्चों को प्यार से सम्भालते, पालन-पोषण करते हैं | वैसे यह भी करते हैं | कोई अहंकार की बात नहीं है | बिल्कुल साधारण चलते हैं | बाकी रहने के लिए मकान तो बनाना पड़े | वह भी साधारण | तुम्हें तो बेहद का बाप पढ़ाते हैं | बाप तो चुम्बक है | कम है क्या! बच्चियाँ पवित्र बनती हैं तो बहुत सुख मिलता है, वह तो कह देते कोई शक्ति है परन्तु शक्ति किसको कहा जाता है, वह भी समझते नहीं हैं | सर्वशक्तिमान् बाप है, वह सबको ऐसा बनाते हैं | परन्तु सब एक जैसे तो बन न सकें | फिर तो फ़िचर्स भी एक जैसे हो जाएं | पद भी एक हो जाए | यह तो ड्रामा बना हुआ है | 84 जन्मों में तुमको वही 84 फ़िचर्स मिलते हैं जो कल्प पहले मिलते थे | वही फ़िचर्स मिलते रहेंगे | इसमें फ़र्क नहीं हो सकता | कितनी समझने और धारण करने की बातें हैं | विनाश तो ज़रूर होना है | विश्व में शान्ति अभी तो हो नहीं सकती | आपस में लड़ते रहते हैं | मौत तो सिर पर खड़ा है | ड्रामा अनुसार एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना, बाकी धर्मों का विनाश होना है | एटॉमिक बाम्ब्स भी बनाते रहते हैं | नैचुरल कैलेमिटीज़ भी होगी | बड़े-बड़े पत्थर गिरेंगे जो सब मकान आदि टूट पड़ेंगे | कितना भी मज़बूत मकान बनावें, फाउन्डेशन पक्का बनावें परन्तु रहना तो कुछ भी नहीं है | वह समझते हैं अर्थ क्वेक में भी गिर न सकें | परन्तु कहते हैं कितना भी करो, 100 मंज़िल बनाओ परन्तु विनाश होना है ज़रूर | यह कुछ भी रहेंगे नहीं |

तुम बच्चे यहाँ आये हो स्वर्ग का वर्सा पाने | विलायत में देखो क्या लगा पड़ा है | इसको रावण का पॉम्प कहा जाता है | माया कहती है – हम भी कम नहीं | वहाँ तो तुम्हारे हीरे-जवाहरों के महल होते हैं | सोने की सब चीज़ें होंगी | वहाँ तो दूसरा-तीसरा माड़ा (मंज़िल) बनाने की ज़रूरत  नहीं है | जमीन पर भी खर्चा नहीं लगता | सब कुछ मौजूद रहता है | तो बच्चों को बहुत पुरुषार्थ करना चाहिए | सबको पैगाम देना है | अच्छे-अच्छे पण्डे बन बच्चे आते हैं रिफ्रेश होने के लिए | यह भी ड्रामा में नूँध है | फिर भी आयेंगे | इतने सब आये हैं, पता नहीं इन सबको फिर देखूँगा वा नहीं? यह सब ठहर सकेंगे वा नहीं? आये तो ढेर के ढेर, फिर आश्चर्यवत भागन्ती हो गये | लिखते हैं बाबा हम गिर गये | अरे, की कमाई चट कर दी! फिर इतना ऊँच चढ़ नहीं सकते | यह है बड़े ते बड़े की अवज्ञा | वो लोग आर्डिनेन्स निकालते हैं – फ़लाने टाइम पर कोई भी बाहर न निकले, नहीं तो शूट कर देंगे | बाप भी कहते हैं विकार में जायेंगे तो शूट हो जायेंगे | भगवान्  का हुक्म है ना – ख़बरदार रहना | आजकल गैस आदि की ऐसी चीज़ें निकाली हैं जो मनुष्य बैठे-बैठे फट से ख़लास हो जायें | यह सब ड्रामा में नूँध है क्योंकि पिछाड़ी में हॉस्पिटल आदि रहेंगे नहीं | झट आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है | दुःख-क्लेष आदि सब छूट जाता है | वहाँ क्लेष आदि होता ही नहीं | आत्मा स्वतन्त्र है | जिस समय पर आयु पूरी होती है तो शरीर छोड़ देती है | वहाँ काल होता नहीं | रावण ही नहीं तो काल फिर कहाँ से आयेगा | यह रावण के दूत हैं, भगवान् के नहीं | भगवान् के बच्चे तो बहुत प्यारे हैं | बाप कभी बच्चों का दुःख सहन कर न सके | ड्रामा अनुसार कल्प का 3 हिस्सा तुम सुख पाते हो | बाप जो इतना सुख देते हैं तो उनकी श्रीमत पर चलना चाहिए | यह अन्तिम जन्म है, बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रह अन्तिम जन्म में पवित्र बनना है | बाप की याद से ही विकर्म विनाश होंगे | जन्म-जन्मान्तर के पाप सिर पर हैं | तमोप्रधान से सतोप्रधान ज़रूर बनना है | बाप है सर्वशक्तिमान् अथॉरिटी | जो भी शास्त्र आदि पढ़ते हैं, उनको अथॉरिटी कहते हैं | अब बाप कहते हैं सबकी अथॉरिटी मैं हूँ | मैं इन ब्रह्मा द्वारा सब शास्त्रों का सार आकर सुनाता हूँ | अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो तो पाप विनाश होंगे | बाकी पानी में स्नान करने से पावन कैसे होंगे! कहाँ चुल्लू पानी (थोड़ा-सा पानी) होगा तो उनको भी तीर्थ समझ झट स्नान करेंगे | इसको कहा जाता है तमोप्रधान निश्चय | यह तुम्हारा है सतोप्रधान निश्चय | बाप समझाते हैं इसमें डरने की बात ही नहीं | अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1.    भगवान् ने जो पवित्र बनने का हुक्म दिया है, उसकी कभी भी अवज्ञा नहीं करनी है | बहुत-बहुत ख़बरदार रहना है | बापदादा दोनों की पालना का रिटर्न पवित्र बनकर दिखाना है |

2.    ड्रामा की भावी अटल बनी हुई है, उसे जानकर सदा निश्चिन्त रहना है | विनाश के पहले सबको बाप का पैगाम पहुँचाना है |

वरदान:-  
शुद्ध और समर्थ संकल्पों की शक्ति से व्यर्थ वायब्रेशन को समाप्त करने वाले सच्चे सेवाधारी भव
 

कहा जाता है संकल्प भी सृष्टि बना देता है | जब कमज़ोर और व्यर्थ संकल्प करते हो तो व्यर्थ वायुमण्डल की सृष्टि बन जाती है | सच्चे सेवाधारी वह हैं जो अपने शुद्ध शक्तिशाली संकल्पों से पुराने वायब्रेशन को भी समाप्त कर दें | जैसे साइन्स वाले शस्त्र से शस्त्र को ख़त्म कर देते हैं, एक विमान से दूसरे विमान को गिरा देते हैं ऐसे आपके शुद्ध, समर्थ संकल्प का वायब्रेशन, व्यर्थ वायब्रेशन को समाप्त कर दे, अब ऐसी सेवा करो |
स्लोगन:-   

विघ्न रूपी सोने के महीन धागों से मुक्त बनो, मुक्ति वर्ष मनाओ |  

ओम् शान्ति |