08-06-14    प्रात:मुरली    ओम शान्ति     “अव्यक्त-बापदादा''    रिवाइज:18-01-78    मधुबन
 


बापदादा की सेवा का रिटर्न

आज स्मृति दिवस अर्थात् समर्थी दिवस पर सब बच्चों ने अपनी-अपनी लगन अनुसार भिन्न-भिन्न रूप से याद किया । बापदादा के पास चारों ओर के स्नेही, सहयोगी, शक्ति स्वरूप सम्पर्क वाली आत्माओं के सब रूप की याद वतन तक पहुँची । बापदादा द्वारा हरेक बच्चे की जैसी याद वैसा रिटर्न उसी समय मिल जाता है । जिस रूप से जो याद करता है उसी रूप से बापदादा बच्चों के आगे प्रत्यक्ष हो ही जाता है जो योगी तू आत्मा हैं उसे योग की विधि मिल जाती है । कई बच्चे योगी तू आत्मा की बजाय वियोगी आत्मा बन जाते हैं, जिस कारण मिलन के बजाए जुदाई का अनुभव करते हैं । योगी तू आत्मायें सदा बापदादा के दिल तख्तनशीन होती, कभी दूर नहीं होती । वियोगी आत्मा वियोग के द्वारा बापदादा को सामने लाने का प्रयत्न करती हैं । वर्तमान को भूल बीती को याद करती हैं । इस कारण बापदादा कभी प्रत्यक्ष दिखाई देते, कभी पर्दे के अन्दर छिपा हुआ दिखाई देते । लेकिन बापदादा सदा बच्चों के आगे प्रत्यक्ष हैं, बच्चों से छिप नहीं सकते । जब कि बाप हैं ही बच्चों के प्रति, जब तक बच्चों का स्थापना के कर्तव्य का पार्ट है तब तक बापदादा बच्चों के हर सकल्प और सेकण्ड में साथ-साथ हैं । बाप का वायदा है साथ चलेंगे । कब चलेंगे? जब कार्य समाप्त होगा । तो पहले ही बाप को क्यों भेज देते हो? बाबा चला गया यह कह अविनाशी सम्बन्ध को विनाशी क्यों बनाते हो? सिर्फ पार्ट परिवर्तन हुआ है । जैसे आप लोग भी सेवा स्थान चेन्ज करते हो ना, तो ब्रह्मा बाप ने भी सेवा-स्थान चेन्ज किया है । रूप वही, सेवा वही है । हजार भुजा वाले ब्रह्मा के रूप का वर्तमान समय पार्ट चल रहा है तब तो साकार सृष्टि में इस रूप का गायन और यादगार है । भुजाए बाप के बिना कर्तव्य नहीं कर सकती । भुजाए बाप को प्रत्यक्ष करा रही हैं । कराने वाला है तब तो कर रहे हैं । जैसे आत्मा के बिना भुजा कुछ नहीं कर सकती वैसे बापदादा कम्बाइन्ड रूप की सोल के बिना भुजाए रूपी बच्चे क्या कर सकते । हर कर्तव्य में अन्त तक पहले कार्य का हिस्सा ब्रह्मा का ही तो है । ब्रह्मा अर्थात् आदि देव । आदि देव अर्थात् हर शुभ कार्य की आदि करने वाला । बापदादा के आदि करने के बिना अर्थात् आरम्भ करने के बिना कोई भी कार्य सफल कैसे हो सकता । हर कार्य में पहले बाप का सहयोग है । अनुभव भी करते हो, वर्णन भी करते हो फिर भी कभी-कभी भूल जाते हो । प्रेम के सागर में, प्रेम की लहरो में क्या बन जाते हो? लहरो से खेलना है, न कि लहरों के वशीभूत हो जाना है । गुणगान करो लेकिन घायल नहीं बनो । बाप देख रहे हैं कि बच्चे मेरे साथी हैं लेकिन बच्चे जुदाई का पर्दा डाल देखते रहते हैं । फिर ढूढने में समय गँवाते हैं । हाजिर-हजूर को भी छिपा देते । अगर आंख मिचौनी का खेल अच्छा लगता है तो खेल समझकर भले खेलो लेकिन स्वरूप नहीं बनो । बहलाने की बातें नहीं सुना रहे हैं । और ही सेवा की स्पीड को अति तीव्रगति देने के लिए सिर्फ स्थान परिवर्तन किया है इसलिए बच्चों को भी बाप समान सेवा की गति को अति तीव्र बनाने में बिजी रहना चाहिए । यह है स्नेह का रिटर्न । बाप जानते हैं बच्चों को बाप से अति स्नेह है लेकिन बाप का बच्चों के साथ-साथ सेवा से भी स्नेह है । बाप से स्नेह का प्रत्यक्ष स्वरूप सेवा से स्नेह है । जैसे पल-पल बाबा-बाबा कहते हो वैसे हर पल बाप और सेवा हो तब ही सेवा का कार्य समाप्त होगा और साथ चलेंगे । अब बापदादा हरेक बच्चे को लाइट-माइट हाउस के रूप में देखते हैं । माइक पावरफुल हो गए हैं । लेकिन लाइट, माइट और माइक तीनों ही पावरफुल साथ-साथ चाहिए । आवाज में आना सहज लगता है ना । अब ऐसी पावरफुल स्टेज बनओं जिस स्टेज से हर आत्मा को शान्ति, सुख और पवित्रता की तीनों ही लाइट्स अपनी माइट से दे सको । जैसे साकारी सृष्टि में जिस रंग की लाइट जलाते हो तो चारों ओर वही वातावरण हो जाता है । अगर हरी लाइट होती है तो चारों ओर वही प्रकाश छा जाता है । एक स्थान पर होते हुए भी एक लाइट वातावरण को बदल देती है , जैसे आप लोग भी जब लाल लाइट करते हो तो ऑटोमेटिकली याद का वायुमण्डल बन जाता है । ऐसे जब स्थूल लाइट वायुमण्डल को परिवर्तन कर लेती है तो आप लाइट हाउस, पवित्रता की लाइट से व सुख की लाइट से वायुमण्डल नहीं बना सकते हो । स्थूल लाइट आखों से देखते, रूहानी लाइट अनुभव से जानेंगे । वर्तमान समय इस रूहानी लाइटस द्वारा वायुमण्डल परिवर्तन करने की सेवा है । सुना, अब सेवा का क्या रूप होना है । दोनो सेवा अब साथ-साथ हो । माइक और माइट तब सहज सफलतामूर्त बन जाएँगे ।

पार्टियों के साथ बातचीत :-
1) बेहद बाप को भी हद के नम्बर लगाने पड़ते हैं । नहीं तो बाप और बच्चों का मिलना दिन-रात क्या है? आपकी दुनिया में यह सब बाते हैं । वहाँ तो सब बाप के समीप हैं । बिन्दु क्या जगह लेगी? यहाँ तो शरीर को जगह चाहिए, वहाँ समीप हो ही जायेंगे । यहाँ हरेक आत्मा समझती है हम समीप आये । जितना जो बाप के गुणों में, स्थिति में समीप उतना वहाँ स्थान में भी समीप, चाहे घर में, चाहे राज्य में । स्थिति स्थान के समीप लाती है । यही कमाल है जो हरेक समझता है मैं समीप और समीप का अनुभव भी करता है क्योकि बेहद का बाप है अखुट है , अखण्ड है इसलिए सभी समीप हो सकते हैं । सन्तुष्ट रहना और करना । यही वर्तमान समय का स्लोगन है । असन्तुष्ट अर्थात् अप्राप्ति । सन्तुष्ट अर्थात् प्राप्ति । सर्व प्राप्ति वाले कभी भी असन्तुष्ट नहीं हो सकते । 

2) सदा अपने को गॉडली स्टूडेंट समझते हो? गॉडली स्टूडेंट लाइफ सबसे बेस्ट गाई जाती है । ऐसे सदा बेस्ट अर्थात् श्रेष्ठ जीवन का अनुभव करते हो । जैसे स्टूडेंट सदा हंसते, खेलते और पढ़ते रहते और कोई बात बुद्धि में विघ्न रूप नहीं बनती, ऐसे ही पढ़ना, पढ़ाना, निर्विघ्न रहना, बाप के साथ उठना, बैठना, खाना पीना यह है गॉडली स्टूडेंट लाइफ । लौकिक में रहते भी बाप का साथ है ना । चाहे कहाँ भी शरीर रहे लेकिन मन बाप और सेवा में लगा रहे । खाना, पीना, चलना सब बाप के साथ इसकी ही महिमा है । जो प्रिय वस्तु होती उसका साथ छोड़ना मुश्किल होता है । साथ रहना, योग लगाना मुश्किल नहीं, योग टूटना मुश्किल हो - ऐसे अनुभवी को कहा जाता है गॉडली स्टूडेंट लाइफ । जिसको छोड़ना मुश्किल है, तोड़ना मुश्किल है लेकिन साथ रहना मुश्किल नहीं, यही बेस्ट लाइफ है । सदा हंसते रहो और गाते रहो और बाप के साथ चलते रहो । ऐसा साथ सारे कल्प में नहीं मिल सकता । संगम पर भी अगर और किसी को ढूँढ़ों तो मिलेगा? नहीं ना । बाप ने आपको ढूँढा या आपने? ढूँढते तो आप भी थे, रास्ता रॉंग लिया । ढूँढना तो था बाप को, ढूँढा भाईयों को, इसलिए ढूँढ नहीं सके । 

3) स्वयं के पुरुषार्थ में और सेवा में सदा वृद्धि होती रहे उसका सहज साधन कौन सा है? वृद्धि का सहज साधन है अमृतवेले से लेकर विधिपूर्वक चलना तो जीवन वृद्धि को पायेगी । कोई भी कार्य सफल तब होता है जब विधि से करते । ब्राह्मण अर्थात् विधिपूर्वक जीवन । अगर किसी भी बात में स्वयं के पुरुषार्थ व सेवा में वृद्धि नहीं होती तो जरूर कोई विधि की कमी है । चेक करो कि अमृतवेले से लेकर रात तक मन्सा-वाचा-कर्मणा व सम्पर्क विधि-पूर्वक रहा अर्थात् वृद्धि हुई? अगर नहीं तो कारण को सोचकर निवारण करो । फिर दिलशिकस्त नहीं होंगे । अगर विधिपूर्वक जीवन होगी तो वृद्धि अवश्य होगी । अच्छा ।

मधुवन-निवासी भाई-बहनों से :-
मधुबन निवासी सभी सदा बाप की याद में लवलीन रहने वाले हो ना । बाप के समान सदा अथक और सदा डबल लाइट स्थिति में स्थित हो ना । जो जितना हल्का होता उतना अथक होता । किसी भी प्रकार का बोझ थकाता है । जैसे शरीर के बोझ वाला भी थक जाता
, हल्का थकता नहीं । ऐसे किसी भी प्रकार का बोझ चाहे मन्सा का हो, चाहे संपर्क,सम्बन्ध का हो, लेकिन बोझ थकावट में लायेगा । मधुबन निवासियों को अथक भव का वरदान मिला हुआ है । तो अथक हो ना? और भी मेला चले? जितना आगे चलेंगे उतना यह मेला बड़ा ही होगा, कम नहीं जितना बढ़ाते जाएँगे उतना ही बढ़ता जायेगा । कितना भी प्लैन बनाओं, जितना बनाएँगे उतना बढ़ता ही जायेगा क्योकि संगम पर ही ईश्वरीय परिवार की वृद्धि होती है । जितना समय कम उतनी वृद्धि ज्यादा । यह तो नहीं समझते और बहुत आ जायेंगे तो हम रह जायेंगे । जो खुद त्यागीमूर्त बनते उनके लिए स्वत: ही ख्याल रहता है । तो आप लोग तो निष्कामी थे ना । जितना हर कामना से न्यारे रहेंगे उतना हर कामना सहज पूरी होती जायेगी । खुशी में, प्राप्ति में थकावट नहीं होती । मधुबन निवासियों को पुरुषार्थ की नई युक्तियाँ निकालनी चाहिए । जो सब फॉलो करे । नया वर्ष शुरू हुआ तो नई बात निकालनी चाहिए । सहज पुरुषार्थ की नई इन्वेंशन निकालो और प्रैक्टिकल अनुभव करके दूसरों को सुनाओ । सर्व आत्माएं आपको ऊँची नजर से देखती हैं । जैसे आकाश के ऊपर चमकते हुए सितारों को ऊँची नजर से देखते वैसे आप सबको सर्वश्रेष्ठ महान, लकीएस्ट, समीप आत्माओं की नज़र से  मधुबन देखते हैं । तो जिस नजर से देखते उसी में स्थित रहो । आपका उठना, बैठना, चलना सभी चरित्र के रूप में देखते हैं । जैसे बाप के हर कर्तव्य को आपने चरित्र रूप में देखा ना । तो हर कर्म करते चरित्रवान होकर चलना पड़े, साधारण नहीं । मधुबन विश्व के आगे स्टेज है । स्टेज पर जो एक्टर होता उसका हर एक्ट पर कितना अटेंशन रहता है । हाथ उठायेगा तो भी अटेंशन से क्यूंकि उसे मालूम है कि हमें सब देखने वाले हैं । आपके हर कार्य का महत्व है । बापदादा भी जितना मधुबन की आत्माओं का महत्व है, उसी महत्व से देखते हैं । अच्छा । 

नया प्लैन बनाओ कि स्वतः और सहजयोगी कैसे बने क्योंकि सभी इस वर्ष में यही लक्ष्य रख करके चल रहे हैं कि अब लास्ट में सहजयोग और स्वत: योग का अनुभव जरूर होना चाहिए । तो सहजयोग किस आधार पर होता या स्वत: योगी किस युक्ति से बन सकते? यह प्लान निकालो और अनुभव करो फिर सभी को सुनाओ तो आपके गुण-गान करेंगे । मेहनत कम और सफलता ज्यादा, ऐसे नये पुरुषार्थ के तरीके बनाओ । प्लान ऐसा तैयार करो, जिसको देख सब मधुबन निवासियों को थैंक्स दे । अच्छा । 

राजस्थान पार्टी :-
मधुबन में हर कदम में सहज कमाई का अनुभव होता है । मधुबन को वरदान भूमि कहा है । तो वरदान सहज प्राप्ति को हो कहा जाता है । तो मधुबन में आने से ही मेहनत करना समाप्त हो जाता और सहज प्राप्ति होना शुरू हो जाती । तो इस थोड़े से समय में कितनी कमाई की
? मधुबन में आना अर्थात् कमाई की खान इकट्ठी करना । तो ऐसा महत्व जानते हुए थोड़े से समय में खजाना जमा किया क्यूंकि मधुबन है ही डायरेक्ट बापदादा की कर्मभूमि, चरित्रभूमि, सेवाभूमि तपस्या भूमि । यहाँ तपस्या का वायब्रेशन, वायुमण्डल है । यह सब बातें इस भूमि में आने से सहज अनुभव कर सकते हैं । जैसे कोई विशेष कमाई की सीजन होती, तो कमाई के बगैर रह नहीं सकते । नींद का भी समय त्याग देते । तो मधुबन में एक्स्ट्रा लाटरी है कमाई की । तपस्वी कुमार हो ना । तपस्वी की तपस्या सिर्फ बैठने के समय नहीं, तपस्या अर्थात् लगन, चलते-फिरते भोजन करते भी लगन है ना । एक की याद में, एक के साथ में भोजन स्वीकार करना यह तपस्या हुई ना । जो भी चान्स मिलता है उसको अच्छी तरह लेकर सम्पन्न बनो और दूसरों को भी बनाओ । 

2. ज्ञान सागर के बच्चे सदा ज्ञान रत्नों से ही खेलते रहते हो? सबसे बड़े से बड़े, अविनाशी रत्न ज्ञान रत्न हैं । ज्ञान सागर के बच्चे ज्ञान रत्नों से खेलेंगे । आधाकल्प पत्थर बुद्धि रहे और पत्थरों से खेला, इसलिए दुःख- अशान्ति रही । आप किससे खेलते? ज्ञान रत्नों से । जैसे राजा के बच्चे, सोने-चांदी के खिलौने से खेलते हैं तो ज्ञान सागर के बच्चे सदा ज्ञान रत्नों से खेलते हैं । ज्ञान रत्नो में खेलने से दुःख- अशान्ति की लहर नहीं आयेगी । ज्ञान रत्न भी हैं, तो नॉलेज भी । नॉलेज के आधार पर दुःख अशान्ति की लहर आ नहीं सकती । अभी नया जीवन है, दुःख- अशान्ति की जीवन ऐसे लगेगी - मेरी नहीं, दूसरे की जीवन थी । बीते हुए जीवन पर हँसी आयेगी ।

 

वरदान :-
बाप की मदद से सूली को कांटा वनाने वाले सदा निश्चिंत और ट्रस्टी भव !   

पिछला हिसाब सूली है लेकिन बाप की मदद से वह कांटा बन जाता है । परिस्थितियां आनी जरूर हैं क्यूंकि सब कुछ यहाँ ही चुक्तू करना है लेकिन बाप की मदद उन्हें कांटा बना देती है
, बड़ी बात को छोटा बना देती है क्योकि बड़ा बाप साथ हैं । इसी निश्चय के आधार से सदा निश्चिंत रहो और ट्रस्टी बन मेरे को तेरे में बदली कर हल्के हो जाओ तो सब बोझ एक सेकण्ड में समाप्त हो जाएंगे ।

 

स्लोगन:-
शुभ भावना के स्टॉक द्वारा निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन करो ।   
 
 

ओम शान्ति