14-06-14           प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे तुम सब आपस में रूहानी भाई-भाई हो, तुम्हारा रूहानी प्यार होना चाहिए, आत्मा के प्यार आत्मा से हो, जिस्म से नहीं”   

           
प्रश्न:-   
बाप ने अपने घर की वन्डरफुल बात कौन-सी सुनाई है?


उत्तर:-
जो भी आत्मायें मेरे घर में आती हैं, वह अपने-अपने सेक्शन में अपने नम्बर पर फिक्स होती हैं | वह कभी भी हिलती डुलती नहीं | वहाँ पर सभी धर्म की आत्मायें मेरे नजदीक रहती हैं | वहाँ से नम्बरवार अपने-अपने समय पर पार्ट बजाने आती हैं यह वन्डरफुल नॉलेज इसी समय कल्प में एक बार ही तुम्हें मिलती है | दूसरा कोई यह नॉलेज नहीं दे सकता |

 

ओम् शान्ति |

बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं | बच्चे जानते हैं हम आत्माओं को बाप समझाते हैं और बाप अपने को आत्माओं का बाप समझते हैं | ऐसे कोई समझते नहीं और न कोई कभी समझाते हैं कि अपने को आत्मा समझो | यह बाप ही आत्माओं को बैठ समझाते हैं | इस ज्ञान की प्रालब्ध तुम नई दुनिया में लेने वाले हो नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार | यह भी कोई सभी को याद नहीं रहता कि यह दुनिया बदलने वाली है, बदलाने वाला बाप है | यहाँ तो सम्मुख बैठे हैं, जब घर में जाते हैं तो सारा दिन अपने धन्धे आदि में ही लग जाते हैं | बाप की श्रीमत है – बच्चे, कहाँ भी रहते तुम मुझे याद करो | जैसे कन्या होती है तो वह जानती नहीं कि हमको कौन पति मिलेगा, चित्र देखती है तो उनकी याद ठहर जाती है | कहाँ भी रहते एक-दो को दोनों को याद करते हैं, इसको कहा जाता है जिस्मानी प्यार | यह है रूहानी प्यार | रूहानी प्यार किसके साथ? बच्चों का रूहानी बाप के साथ और बच्चों का बच्चों के साथ | तुम बच्चों का आपस में बहुत प्यार होना चाहिए यानी आत्माओं का आत्माओं के साथ भी प्यार चाहिए | यह शिक्षा भी अभी तुम बच्चों को मिलती है | दुनिया के मनुष्यों को कुछ भी पता नहीं | तुम सब भाई-भाई हो तो आपस में ज़रूर प्यार होना चाहिए क्योंकि एक बाप के बच्चे हो ना | इसको कहा जाता है रूहानी प्यार | ड्रामा प्लैन अनुसार सिर्फ़ पुरुषोत्तम संगमयुग पर ही रूहानी बाप आकर रूहानी बच्चों को सम्मुख समझाते हैं | और बच्चे जानते हैं कि बाप यहाँ आये हुए हैं | हम बच्चों को गुल-गुल, पवित्र पतित से पावन बनाकर साथ ले जायेंगे | ऐसे नहीं कि कोई हाथ से पकड़कर ले जाते हैं | सभी आत्मायें ऐसे उड़ेंगी जैसे टिड्डियों का झुण्ड जाता है | उन्हों का भी कोई गाइड होता है | गाइड के साथ और भी गाइड्स होते हैं जो फ्रन्ट में रहते हैं | सारा झुण्ड जब इकठ्ठा जाता है तो बहुत आवाज़ होती है | सूर्य की रोशनी को ही ढँक देते हैं, इतना बड़ा झुण्ड होता है | तुम आत्माओं का तो कितना बड़ा अनगिनत झुण्ड है | कभी गिनती नहीं कर सकते | यहाँ मनुष्यों की गिनती नहीं कर सकते | भल आदमशुमारी निकालते हैं | वह भी एक्यूरेट नहीं निकालते हैं | आत्मायें कितनी हैं, वह हिसाब कभी निकाल नहीं सकते | अन्दाज़ लगाया जाता है कि सतयुग में कितने मनुष्य होंगे सिर्फ़ भारत ही रह जाता है | तुम्हारी बुद्धि में है कि हम विश्व के मालिक बन रहे हैं | आत्मा जब शरीर में है तो जीवात्मा है, तो दोनों इकट्ठे सुख अथवा दुःख भोगते हैं | ऐसे बहुत लोग समझते हैं कि आत्मा ही परमात्मा है, वह कभी दुःख नहीं भोगती, निर्लेप है | बहुत बच्चे इस बात में भी मूँझते हैं कि हम अपने को आत्मा निश्चय तो करें | लेकिन बाप को कहाँ याद करें? यह तो जानते हो बाप परमधाम निवासी है | बाप ने अपना परिचय दिया हुआ है | कहाँ भी चलते-फिरते बाप को याद करो | बाप रहते हैं परमधाम में | तुम्हारी आत्मा भी वहाँ रहने वाली है फिर यहाँ पार्ट बजाने आती है | यह भी ज्ञान अभी मिला है |

जब तुम देवता हो वहाँ तुमको यह याद नहीं रहता है कि फलाने-फलाने धर्म की आत्मायें ऊपर में हैं | ऊपर से आकर यहाँ शरीर धारण कर पार्ट बजाती हैं, यह चिन्तन वहाँ नहीं चलता | आगे यह पता नहीं था कि बाप भी परमधाम में रहते हैं, वहाँ से यहाँ आकर शरीर में प्रवेश करते हैं | अब वह किस शरीर में प्रवेश करते हैं, वह अपनी एड्रेस तो बताते हैं | तुम अगर लिखो की शिवबाबा केयरऑफ़ परमधाम, तो परमधाम में तो चिट्ठी जा नहीं सकती इसलिए लिखते ही हो शिवबाबा केयरऑफ़ ब्रह्मा, फिर यहाँ की एड्रेस डालते हो क्योंकि तुम जानते हो बाप यहाँ ही आते हैं, इस रथ में प्रवेश करते हैं | यूँ तो आत्मायें भी ऊपर रहने वाली हैं | तुम भाई-भाई हो | सदैव यही समझो यह आत्मा है, इनका फलाना नाम है | आत्मा को यहाँ देखते हैं परन्तु मनुष्य देह-अभिमान में आ जाते हैं | बाप देही-अभिमानी बनाते हैं | बाप कहते हैं तुम अपने को आत्मा समझो और फिर मुझे याद करो | इस समय बाप समझाते हैं जब मैं यहाँ आया हूँ, आकर बच्चों को ज्ञान भी देता हूँ | पुराने आरगन्स लिए हैं, जिसमें मुख्य यह मुख है | आँखें भी हैं, ज्ञान अमृत मुख से मिलता है | गऊमुख कहते हैं ना अर्थात् माता का यह मुख है | बड़ी माता द्वारा तुमको एडाप्ट करते हैं | कौन? शिवबाबा | वह यहाँ है ना | यह ज्ञान सारा बुद्धि में रहना चाहिए | मैं तुमको प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट करता हूँ | तो यह माता भी हो गई | गाया भी जाता है तुम मात-पिता हम बालक तेरे.....तो वह सब आत्माओं का बाप है | उनको माता नहीं कहेंगे | वह तो बाप ही है | बाप से वर्सा मिलता है फिर माता चाहिए | वह यहाँ आते हैं | अभी तुमको मालूम पड़ा है बाप ऊपर में रहते हैं | हम आत्मायें भी ऊपर रहती हैं | फिर यहाँ आती हैं पार्ट बजाने | दुनिया को इन बातों का कुछ भी पता नहीं | वह तो ठिक्कर भित्तर में परमात्मा को कह देते हैं, फिर तो अनगिनत हो जायें | इसको कहा जाता है घोर अन्धियारा | गायन भी है ज्ञान सूर्य प्रगटा, अज्ञान अंधेर विनाश | इस समय तुमको ज्ञान है – यह है रावण राज्य, जिस कारण अन्धियारा है | वहाँ तो रावण राज्य होता नहीं इसलिए कोई विकार नहीं | देह-अभिमान भी नहीं | वहाँ आत्म-अभिमानी रहते हैं | आत्मा को ज्ञान है – अब छोटा बच्चा हैं, अब हम जवान बने हैं, अब वृद्ध शरीर हुआ है इसलिए अब यह शरीर छोड़ दूसरा लेना है | वहाँ ऐसे नहीं कहते फलाना मर गया | वह तो है ही अमरलोक | ख़ुशी से एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं | अभी आयु पूरी हुई है, यह छोड़ नया लेना है इसलिए सन्यासी लोग सर्प का मिसाल देते हैं | मिसाल वास्तव में बाप का दिया हुआ है | वह फिर सन्यासी लोग उठाते हैं | तब बाप कहते हैं यह जो ज्ञान मैं तुमको देता हूँ, यह प्रायः लोप हो जाता है | बाप के अक्षर भी हैं, तो चित्र भी हैं परन्तु जैसे आटे में नमक | तो बाप बैठ अर्थ समझाते हैं – जैसे सर्प पुरानी खाल छोड़ देता है और नई खाल आ जाती है | उनके लिए ऐसे नहीं कहेंगे एक शरीर छोड़ दूसरे में प्रवेश करते हैं | नहीं | खाल बदलने का एक सर्प का ही मिसाल है | वह खाल उनकी देखने में भी आती है | जैसे कपड़ा उतारा जाता है वैसे सर्प भी खाल छोड़ देता है, दूसरी मिल जाती है | सर्प तो जिन्दा ही रहता है, ऐसे भी नहीं सदैव अमर रहता है | 2-3 खाल बदली कर फिर मर जायेंगे | वहाँ भी तुम समय पर एक खाल छोड़ दूसरी ले लेते हो | जानते हो अभी हमको गर्भ में जाना है | वहाँ तो है ही योगबल की बात | योगबल से तुम जन्मते हो, इसलिए अमर कहा जाता है | आत्मा कहती है अब हम बूढ़ा हो गया हूँ, शरीर पुराना हुआ है | साक्षात्कार हो जाता है | अब हम जाकर छोटा बच्चा बनूंगा | आपेही शरीर छोड़ आत्मा भागकर जाए छोटे बच्चे में प्रवेश करती है | उस गर्भ को जेल नहीं, महल कहा जाता है | पाप तो कोई होते नहीं हैं जो भोगना पड़े | गर्भ महल में आराम से रहते हैं, दुःख की कोई बात नहीं | न कोई ऐसी गन्दी चीज़ खिलाते हैं जिससे बीमार हो जायें |

अब बाप कहते हैं – बच्चे, तुमको निर्वाणधाम में जाना है, यह दुनिया बदलनी है | पुरानी से फिर नई होगी | हर एक चीज़ बदलती है | झाड़ से बीज निकलते हैं, फिर से बीज लगाओ तो कितना फल मिलता है | एक बीज से कितने दाने निकलते हैं | सतयुग में एक ही बच्चा पैदा होता है – योगबल से  | यहाँ विकार से 4-5 बच्चे पैदा करते हैं | सतयुग और कलियुग में बहुत फ़र्क है जो बाप बतलाते हैं | नयी दुनिया फिर पुरानी कैसे होती है, उसमें आत्मा कैसे 84 जन्म लेती है – यह भी समझाया है | हर एक आत्मा अपना-अपना पार्ट बजाकर फिर जब जायेगी तो अपनी-अपनी जगह पर जाकर खड़ी रहेगी | जगह बदलती नहीं है | अपन-अपने धर्म में अपनी जगह पर नम्बरवार खड़े होंगे, फिर नम्बरवार ही नीचे आना है इसलिए छोटे-छोटे मॉडल्स बनाकर रखते हैं मूलवतन के | सब धर्मों का अपना-अपना सेक्शन है | देवी-देवता है पहला धर्म, फिर नम्बरवार आते हैं | नम्बरवार ही जाकर रहेंगे | तुम भी नम्बरवार पास होते हो, उन मार्क्स के हिसाब से जगह लेते हो | यह बाप की पढ़ाई कल्प में एक ही बार होती है | तुम आत्माओं का कितना छोटा सीजरा होगा | जैसे तुम्हारा इतना बड़ा झाड़ है | तुम बच्चों ने दिव्य दृष्टि से देखकर फिर यहाँ बैठकर चित्र आदि बनाये हैं | आत्मा कितनी छोटी है, शरीर कितना बड़ा है | सब आत्मायें वहाँ जाकर बैठेंगी | बहुत थोड़ी जगह में नज़दीक में जाकर रहती हैं | मनुष्यों का झाड़ कितना बड़ा है | मनुष्यों को तो जगह चाहिए ना – चलने, फिरने, खेलने, पढ़ने, नौकरी करने की | सब कुछ करने की जगह चाहिए | निराकारी दुनिया में आत्माओं की छोटी जगह होगी इसलिए इन चित्रों में भी दिखाया है | बना-बनाया नाटक है, शरीर छोड़कर आत्माओं को वहाँ जाना है | तुम बच्चों की बुद्धि में है कि हम वहाँ कैसे रहते हैं और दूसरे धर्म वाले कैसे रहते हैं | फिर कैसे अलग-अलग होते हैं नम्बरवार | यह सब बातें तुमको कल्प-कल्प एक ही बाप आकर सुनाते हैं | बाकी तो सभी हैं जिस्मानी पढ़ाई | उनको रूहानी पढ़ाई नहीं कह सकते हैं |

अभी तुम जानते हो हम आत्मा हैं | आई माना आत्मा, माई माना मेरा यह शरीर है | मनुष्य यह नहीं जानते | उन्हों का तो सदैव दैहिक सम्बन्ध रहता है | सतयुग में भी दैहिक सम्बन्ध होगा | परन्तु वहाँ तुम आत्म-अभिमानी रहते हो | यह पता पड़ता है कि हम आत्मा हैं, यह हमारा शरीर अब वृद्ध हुआ है, इसलिए हम आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं | इसमें मूँझने की भी कोई बात नहीं है | तुम बच्चों को तो बाप से राजाई लेनी है | ज़रूर बेहद का बाप है ना | मनुष्य जब तक ज्ञान को पूरा नहीं समझते हैं तब तक अनेक प्रश्न पूछते हैं | ज्ञान है तुम ब्राह्मणों को | तुम ब्राह्मणों का वास्तव में मन्दिर भी अजमेर में है | एक होते हैं पुष्करणी ब्राह्मण, दूसरे सारसिद्ध | अजमेर में ब्रह्मा का मन्दिर देखने जाते हैं | ब्रह्मा बैठा है, दाढ़ी आदि दी हुई है | उनको मनुष्य के रूप में दिखाया है | तुम ब्राह्मण भी मनुष्य के रूप में हो | ब्राह्मणों को देवता नहीं कहा जाता है | सच्चे-सच्चे ब्राह्मण तुम हो ब्रह्मा की औलाद | वह कोई ब्रह्मा की औलाद नहीं हैं, पीछे आने वालों को यह मालूम नहीं पड़ता है | तुम्हारा यह विराट रूप है | यह बुद्धि में याद रहना चाहिए | यह सारी नॉलेज है जो तुम कोई को अच्छी रीति समझा सकते हो | हम आत्मा हैं, बाप के बच्चे हैं, यह यथार्थ रीति समझकर, यह निश्चय पक्का-पक्का होना चाहिए | यह तो यथार्थ बात है, सभी आत्माओं का बाप एक परमात्मा है | सभी उनको याद करते हैं | ‘हे भगवान्’ मनुष्यों के मुख से ज़रूर निकलता है | परमात्मा कौन है – यह कोई भी नहीं जानते हैं, जब तक कि बाप आकर समझाये | बाप ने समझाया है यह लक्ष्मी-नारायण जो विश्व के मालिक थे, यही नहीं जानते थे तो ऋषि-मुनि फिर कैसे जान सकते! अभी तुमने बाप द्वारा जाना है | तुम हो आस्तिक, क्योंकि तुम रचयिता और रचना के आदि, मध्य, अन्त को जानते हो | कोई अच्छी रीति जानते हैं, कोई कम | बाप सम्मुख आकर पढ़ाते हैं फिर कोई अच्छी रीति धारण करते हैं, कोई कम धारण करते हैं | पढ़ाई बिल्कुल सिम्पुल भी है, बड़ी भी है | बाप में इतना ज्ञान है जो सागर को स्याही बनाओ तो भी अन्त नहीं पाया जा सकता | बाप सहज करके समझाते हैं | बाप को जानना है, स्वदर्शन चक्रधारी बनना है | बस! अच्छा! 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-  

1. सदा याद सहज बनी रहे उसके लिए चलते फिरते यह चिन्तन करना कि हम आत्मा हैं, परमधाम निवासी आत्मा यहाँ पार्ट बजाने आई हैं | बाप भी परमधाम में रहते हैं | वह ब्रह्मा तन में आये हैं | 

2. जैसे रूहानी बाप से आत्मा का प्यार है, ऐसे आपस में भी रूहानी प्यार से रहना है | आत्मा का आत्मा से प्यार हो, शरीर से नहीं | आत्म-अभिमानी बनने का पूरा-पूरा अभ्यास करना है |

 

वरदान:- 

एक मिनट की एकाग्र स्थिति द्वारा शक्तिशाली अनुभव करने कराने वाले एकान्तवासी भव !   

एकान्तवासी बनना अर्थात् कोई भी एक शक्तिशाली स्थिति में स्थित होना | चाहे बीजरूप स्थिति में स्थित हो जाओ, चाहे लाईट माईट हाउस की स्थिति में स्थित हो विश्व को लाईट माईट दो, चाहे फ़रिश्ते पन की स्थिति द्वारा औरों को अव्यक्त स्थिति का अनुभव कराओ | एक सेकण्ड वा एक मिनट भी अगर इस स्थिति में एकाग्र हो स्थित हो जाओ तो स्वयं को और अन्य आत्माओं को बहुत लाभ दे सकते हो | सिर्फ़ इसकी प्रैक्टिस चाहिए |

 

स्लोगन:- 

ब्रह्माचारी वह है जिसके हर संकल्प, हर बोल में पवित्रता का वायब्रेशन समाया हुआ है |     

ओम् शान्ति |