03-10-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - आत्मा से विकारों का किचड़ा निकाल शुद्ध फूल बनो । बाप की याद से ही सारा किचड़ा निकलेगा”   

                            
प्रश्न:-   
पवित्र बनने वाले बच्चों को किस एक बात में बाप को फालो करना है?


उत्तर:-
जैसे बाप परम-पवित्र है वह कभी अपवित्र कीचड़े वालों के साथ मिक्सअप नहीं होता, बहुत-बहुत सेक्रेड (परम पवित्र) है । ऐसे आप पवित्र बनने वाले बच्चे बाप को फालो करो, सी नो ईविल ।

 

ओम् शान्ति |

बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं । हैं तो यह दोनों बाप । एक को रूहानी, दूसरे को जिस्मानी बाप कहेंगे । शरीर तो दोनों का एक ही है तो जैसेकि दोनों बाप समझाते हैं । भल एक समझाते हैं, दूसरा समझते हैं फिर भी कहेंगे दोनों समझाते हैं । यह जो इतनी छोटी-सी आत्मा है उन पर कितना मैल चढ़ा हुआ है । मैल चढ़ने से कितना घाटा पड़ जाता है । यह फायदा और घाटा तब देखने में आता हैं जबकि शरीर के साथ है । तुम जानते हो हम आत्मा जब पवित्र बनेंगी तब इन लक्ष्मी- नारायण जैसा पवित्र शरीर मिलेगा । अभी आत्मा में कितना मैल चढ़ा हुआ है । जब मधु (शहद) निकालते हैं तो उनको छानते हैं । तो कितनी मैल निकलती है फिर मधु शुद्ध अलग हो जाती है । आत्मा भी बहुत मैली हो जाती है । आत्मा ही कंचन थी, बिल्कुल पवित्र थी । शरीर कैसा सुन्दर था । इन लक्ष्मी-नारायण का शरीर देखो कितना सुन्दर है । मनुष्य तो शरीर को ही पूजते हैं ना । आत्मा की तरफ नहीं देखते । आत्मा की तो पहचान भी नहीं है । पहले आत्मा सुन्दर थी, चोला भी सुन्दर मिलता है । तुम भी अभी यह बनना चाहते हो । तो आत्मा कितनी शुद्ध होनी चाहिए । आत्मा को ही तमोप्रधान कहा जाता है क्योंकि उनमें फुल किचड़ा है । एक तो देह- अभिमान का किचड़ा और फिर काम-क्रोध का किचड़ा । किचड़ा निकालने के लिए छाना जाता है ना । छानने से रंग ही बदल जाता है । तुम अच्छी रीति बैठ विचार करेंगे तो फील होगा बहुत किचड़ा भरा हुआ है । आत्मा में रावण की प्रवेशता है । अभी बाप की याद में रहने से ही किचड़ा निकलता है । इसमें भी टाइम लगता है । बाप समझाते हैं देह- अभिमान होने के कारण विकारों का कितना किचड़ा है । क्रोध का किचड़ा भी कोई कम नहीं । क्रोधी अन्दर में जैसे जलता रहता है । कोई न कोई बात पर दिल जलती रहती है । शक्ल भी ताम्बे जैसी रहती है । अभी तुम समझते हो हमारी आत्मा जली हुई है । आत्मा में कितनी मैल है- अभी पता पड़ा है । यह बातें समझने वाले बहुत थोड़े हैं, इसमें तो फर्स्टक्लास फूल चाहिए ना । अभी तो बहुत खामियाँ हैं । तुमको तो सब खामियां निकाल बिल्कुल पवित्र बनना है ना । यह लक्ष्मी-नारायण कितने पवित्र हैं । वास्तव में उन्हों को हाथ लगाने का भी हुक्म नहीं है । पतित जाकर इतने ऊंच पवित्र देवताओं को हाथ लगा न सकें । हाथ लगाने लायक ही नहीं । शिव को तो हाथ लगा नहीं सकते । वह हैं ही निराकार, उनको हाथ लग ही नहीं सकता । वह तो मोस्ट पवित्र हैं । भल उनकी प्रतिमा बड़ी रख दी है क्योंकि इतनी छोटी बिन्दी उनको तो कोई हाथ लगा न सके । आत्मा शरीर में प्रवेश करती है तो शरीर बड़ा होता है । आत्मा तो बड़ी-छोटी नहीं होती है । यह तो है ही कीचड़े की दुनिया । आत्मा में कितना किचड़ा है । शिवबाबा बहुत सेक्रेड है ( बहुत पवित्र है) । यहाँ तो सबको एक समान बना देते हैं । एक-दो को कह भी देते हैं तुम तो जानवर हो । सतयुग में ऐसी भाषा होती नहीं । अभी तुम फील करते हो हमारी आत्मा में बड़ी मैल चढ़ी हुई है । आत्मा लायक ही नहीं है जो बाप को याद करे । ना-लायक समझ माया भी एकदम उनको हटा देती है ।

बाप कितना सेक्रेड है । हम आत्मायें क्या से क्या बन जाती हैं! अब बाप समझाते हैं तुमने मुझे बुलाया ही है आत्मा को शुद्ध बनाने के लिए । बहुत किचड़ा भरा हुआ है । बगीचे में कोई सब फर्स्टक्लास फूल नहीं होते हैं । नम्बरवार हैं । बाप बागवान है । आत्मा कितनी पवित्र बनती है फिर कितनी मैली एकदम कांटा बन जाती है । आत्मा में ही देह- अभिमान का, काम, क्रोध का किचड़ा भरता है । क्रोध भी मनुष्य में कितना है । तुम पवित्र बन जायेंगे तो फिर कोई की शक्ल देखने की भी दिल नहीं होगी । सी नो ईविल । अपवित्र को देखना ही नहीं है । आत्मा पवित्र बन, पवित्र नया चोला लेती है तो फिर किचड़ा देखती ही नहीं । कीचड़े की दुनिया ही खत्म हो जाती है । बाप समझाते हैं तुम देह- अभिमान में आकर कितना किचड़ा बन पड़े हो । पतित बन पड़े हो । बच्चे बुलाते भी हैं-बाबा हमारे में क्रोध का भूत है । बाबा हम आपके पास आये हैं, पवित्र बनने । जानते हैं बाप तो हैं ही एवरप्योर । ऐसे हाइएस्ट अथॉरिटी को सर्वव्यापी कहकर कितना डिफेम करते हैं । अपने पर भी बड़ी नफ़रत आती है-हम क्या थे फिर क्या से क्या बन जाते हैं । यह बातें तुम बच्चे ही समझते हो, और कोई भी सतसंग वा युनिवर्सिटी आदि में कहाँ भी ऐसी एम ऑबजेक्ट कोई समझा न सके । अभी तुम बच्चे जानते हो हमारी आत्मा में कैसे किचड़ा भरता गया है । 2 कला कम हुई फिर 4 कला कम हुई, किचड़ा भरता गया इसलिए कहा ही जाता है तमोप्रधान । कोई लोभ में, कोई मोह में जल मरते हैं, इस अवस्था में ही जल-जलकर मर जाना है । अभी तुम बच्चों को तो शिवबाबा की याद में ही शरीर छोड़ना है जो शिवबाबा ऐसा बनाते हैं । इन लक्ष्मी-नारायण को ऐसा बाप ने बनाया ना । तो अपने को कितनी खबरदारी रखनी चाहिए । तूफान तो बहुत आयेंगे । तूफान माया के ही आते हैं, और कोई तूफान नहीं है । जैसे शास्त्रों में कहानी लिख दी है हनुमान आदि की । कहते हैं भगवान ने शास्त्र बनाये हैं । भगवान तो सब वेद-शास्रों का सार सुनाते हैं । भगवान ने तो सद्गति कर दी, उनको शास्त्र बनाने की क्या दरकार । अब बाप कहते हैं हियर नो ईविल । इन शास्त्रों आदि से तुम ऊंच नहीं बन सकते हो । मैं तो इन सबसे अलग हूँ । कोई भी पहचानते नहीं । बाप क्या है, किसको पता नहीं । बाप जानते हैं कौन-कौन मेरी सर्विस करते हैं अर्थात् कल्याणकारी बन औरों का भी कल्याण करते हैं, वही दिल पर चढ़ते हैं । कोई तो ऐसे भी हैं जिनको सर्विस का पता ही नहीं । तुम बच्चों को ज्ञान तो मिला है कि अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो । भल आत्मा शुद्ध बनती है, शरीर तो फिर भी यह पतित है ना । जिनकी आत्मा शुद्ध होती जाती है उनकी एक्टिविटी में रात-दिन का फर्क रहता है । चलन से भी मालूम पड़ता है । नाम कोई का नहीं लिया जाता है, अगर नाम लें तो कहीं और ही बदतर न हो जाएं ।

अभी तुम फर्क देख सकते हो - तुम क्या थे, क्या बनना है! तो श्रीमत पर चलना चाहिए ना । अन्दर गन्द जो भरा हुआ है उसको निकालना है । लौकिक सम्बन्ध में भी कोई-कोई बहुत गन्दे बच्चे होते हैं तो उनसे बाप भी तंग हो जाते हैं । कहते हैं ऐसा बच्चा तो न होता तो अच्छा था । फूलों के बगीचे की खुशबू होती है । परन्तु ड्रामा अनुसार किचड़ा भी है । अक को तो बिल्कुल देखने भी दिल नहीं होती । परन्तु बगीचे में जाने से नज़र तो सब पर पड़ेगी ना । आत्मा कहेगी यह फलाना फूल है । खुशबू भी अच्छे फूल की लेंगे ना । बाप भी देखते हैं इनकी आत्मा कितना याद की यात्रा में रहती है, कितना पवित्र बनी हैं और फिर औरों को भी आप समान बनाते हैं । ज्ञान सुनाते हैं! मूल बात ही है मनमनाभव । बाप कहते हैं मुझे याद करो तो पवित्र फूल बनो । यह लक्ष्मी-नारायण कितने पवित्र फूल थे । इनसे भी शिवबाबा बहुत सेक्रेड हैं । मनुष्यों को थोड़ेही पता है कि इन लक्ष्मी-नारायण को भी ऐसा शिवबावा ने बनाया है । तुम जानते हो इस पुरूषार्थ से यह बने हैं । राम ने कम पुरूषार्थ किया तो चन्द्रवंशी बनें । बाप समझाते तो बहुत हैं । एक तो याद की यात्रा में रहना है, जिससे गंद निकले, आत्मा पवित्र बनें । तुम्हारे पास म्यूजियम आदि में बहुत आते हैं । बच्चों को सर्विस का बहुत शौक रखना है । सर्विस को छोड़ कभी नींद नहीं करनी होती है । सर्विस पर बड़ा एक्यूरेट रहना चाहिए । म्यूजियम में भी तुम लोग रेस्ट का टाइम छोड़ते हो । गला थक जाता है, भोजन आदि भी खाना है परन्तु अन्दर में दिन-रात उछल आनी चाहिए । कोई आये तो उनको रास्ता बतायें । भोजन के टाइम कोई आ जाते हैं तो पहले उनको अटेन्ड कर फिर भोजन खाना चाहिए । ऐसी सर्विस वाला हो । कोई-कोई को बड़ा देह- अभिमान आ जाता है, आराम-पसन्द, नवाब बन जाते हैं । बाप को समझानी तो देनी पड़े ना । यह नवाबी छोड़ो । फिर बाप साक्षात्कार भी करायेंगे-अपना पद देखो । देह- अभिमान का कुल्हाड़ा आपे ही अपने पांव पर लगाया है । बहुत बच्चे बाबा से भी रीस करते हैं । अरे, यह तो शिवबाबा का रथ है, इनकी सम्भाल करनी पड़ती हैं । यहाँ तो ऐसे हैं जो ढेर दवाइयाँ लेते रहते, डॉक्टरों की दवाई करते रहते । भल बाबा कहते हैं शरीर को तन्दुरुस्त रखना है परन्तु अपनी अवस्था को भी देखना है ना । तुम बाबा की याद में रहकर खाओ तो कभी कोई चीज़ नुकसान नहीं करेगी । याद से ताकत भर जायेगी । भोजन बड़ा शुद्ध हो जायेगा । परन्तु वह अवस्था है नहीं । बाबा तो कहते हैं ब्राह्मणों का बनाया हुआ भोजन उत्तम ते उत्तम है परन्तु वह तब जबकि याद में रहकर बनावें । याद में रह बनाने से उनको भी फायदा, खाने वाले को भी फायदा होगा ।

अक भी तो बहुत हैं ना । यह बिचारे क्या पद पायेंगे । बाप को तो रहम पड़ता है । परन्तु दास-दासियां बनने की भी नूंध हैं, इसमें खुश नहीं होना चाहिए । विचार भी नहीं करते हैं - हमको ऐसा बनना है । दास-दासियां बनने से फिर साहूकार बनें तो अच्छा है, दास-दासियां रख सकेंगे । बाप तो कहते हैं निरन्तर मुझ एक को याद करो, सिमर-सिमर सुख पाओ । भक्तों ने फिर सिमरणी माला बैठ बनाई है । वह भक्तों का काम है । बाप तो सिर्फ कहते हैं अपने को आत्मा समझो, बाप को याद करो । बस । बाकी कोई जाप न करो । न माला फेरो । बाप को जानना है, उनको याद करना है । मुख से बाबा-बाबा भी कहना थोड़े ही है । तुम जानते हो वह हम आत्माओं का बेहद का बाप है, उनको याद करने से हम सतोप्रधान बन जायेंगे अर्थात् आत्मा कंचन बन जायेगी । कितना सहज है । परन्तु युद्ध का मैदान है ना । तुम्हारी है ही माया से लड़ाई । वह घड़ी-घड़ी तुम्हारा बुद्धि का योग तोड़ती है । जितने-जितने विनाश काले प्रीत बुद्धि हैं उतना पद होता ह । सिवाए एक के और कोई भी याद न पड़े । कल्प पहले भी ऐसे निकले हैं जो विजय माला के दाने बने हैं । तुम जो ब्राह्मण कुल के हो, ब्राह्मणों की रुण्ड माला बनती है, जिन्होंने बहुत गुप्त मेहनत की है । ज्ञान भी गुप्त है ना । बाप तो हर एक को अच्छी रीति जानते हैं । अच्छे- अच्छे नम्बरवन जिनको महारथी समझते थे, वह आज हैं नहीं । देह- अभिमान बहुत है । बाप की याद रह नहीं सकती । माया बड़ा जोर से थप्पड़ मारती है । बहुत थोड़े हैं जिनकी माला बन सकेगी । तो बाप फिर भी बच्चों को समझाते हैं - अपने को देखते रहो हम कितने पवित्र देवता थे फिर हम क्या से क्या, किचड़ा बन गये हैं । अब शिवबाबा मिला है तो उनकी मत पर चलना चाहिए ना । कोई भी देहधारी को याद नहीं करना है । कोई की भी याद न आये । चित्र भी कोई का नहीं रखना है । एक शिवबाबा की ही याद रहे । शिवबाबा को शरीर तो है नहीं । यह भी टेम्पररी लोन लेता हूँ । तुमको ऐसा देवी-देवता लक्ष्मी- नारायण बनाने के लिए कितनी मेहनत करते हैं । बाप कहते हैं तुम हमको पतित दुनिया में बुलाते हो । तुमको पावन बनाता हूँ फिर तुम पावन दुनिया में मुझे बुलाते ही नहीं हो । वहाँ आकर क्या करेंगे! उनकी सर्विस ही पावन बनाने की है । बाप जानते हैं कि एकदम जलकर काले कोयले बन गये हैं । बाप आये हैं तुम्हें गोरा बनाने । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. सर्विस में बड़ा एक्यूरेट रहना है । दिन-रात सर्विस की उछल आती रहे । सर्विस को छोड़ कभी भी आराम नहीं करना है । बाप समान कल्याणकारी बनना है ।  

2. एक की याद से प्रीत बुद्धि बन अन्दर का किचड़ा निकाल देना हैं । खुशबूदार फूल बनना है । इस कीचड़े की दुनिया से दिल नहीं लगानी है ।

 

वरदान:-

साइलेन्स की शक्ति द्वारा आत्म शक्ति के उड़ान की तीव्रगति करने वाले विश्व परिवर्तक भव !    

साइंस के साधनों की रफ्तार को साइंस द्वारा कट भी कर सकते हैं, पकड़ भी सकते हैं लेकिन आत्मा की गति को अभी तक न कोई पकड़ सका है, न पकड़ सकता है, इसमें साइंस अपने को फेल समझती है । जहाँ साइंस फेल है वहाँ साइलेन्स की शक्ति से जो चाहो वो कर सकते हो । तो आत्म शक्ति की उड़ान तीव्रगति से करो, इस शक्ति से स्व परिवर्तन, चाहे किसी की वृत्ति का परिवर्तन, वायुमण्डल का परिवर्तन कर विश्व परिवर्तक बन सकते हो । तीव्रता की निशानी है सोचा और हुआ ।

 

स्लोगन:- 

शिक्षा दाता के साथ रहमदिल बन सहयोगी बनो ।   

 

ओम् शान्ति |