28-02-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
अपने हार और जीत की हिस्ट्री को याद करो, यह सुख और दुःख का
खेल है, इसमें
¾
सुख है,
¼
दुःख है, इक्वल नहीं
| 
प्रश्न:-
यह
बेहद का ड्रामा बहुत ही वन्डरफुल है – कैसे?
उत्तर:-
यह
बेहद का ड्रामा इतना तो वन्डरफुल है जो हर सेकेण्ड सारी सृष्टि
में हो रहा है, वह फिर से हुबहू रिपीट होगा | यह ड्रामा जूँ
मिसल चलता ही रहता है – टिक-टिक होती रहती है | एक टिक न मिले
दूसरी टिक से, इसलिए यह बड़ा वन्डरफुल ड्रामा है | जो भी मनुष्य
का पार्ट अच्छा वा बुरा चलता है सब नूँध है | इस बात को भी तुम
बच्चे ही समझते हो |
ओम्
शान्ति
|
ओम् शान्ति का अर्थ बच्चों को समझाया है क्योंकि अब
आत्म-अभिमानी बने हो | आत्मा अपना परिचय देती है हम आत्मा हैं
| आत्मा का स्वधर्म है शान्त | अब सभी आत्माओं के घर जाने का
प्रोग्राम है | यह घर जाने का प्रोग्राम कौन बताते हैं? ज़रूर
बाप ही बतायेगा | हे आत्मायें, अब पुरानी दुनिया ख़त्म होनी है
| सभी एक्टर्स आ गये हैं | बाकी थोड़ी आत्मायें रही हैं, अब
सबको वापिस जाना है | फिर पार्ट रिपीट करना है | तुम बच्चे
असुल में आदि सनातन देवी-देवता धर्म के थे, पहले-पहले सतयुग
में आये थे फिर पुनर्जन्म लेते-लेते अब पराये राज्य में आकर
पड़े हो | यह सिर्फ़ तुम्हारी आत्मा जानती है और कोई नहीं जानते
| तुम एक बाप के बच्चे हो | मीठे-मीठे बच्चों को बाप कहते हैं
– बच्चे, तुम अब पराये रावण राज्य में आकर पड़े हो | अपना
राज्य-भाग्य गँवा बैठे हो | सतयुग में देवी-देवता धर्म के थे,
जिसको 5 हज़ार वर्ष हुए | आधाकल्प तुमने राज्य किया क्योंकि
सीढ़ी नीचे भी ज़रूर उतरना है | सतयुग से त्रेता फिर
द्वापर-कलियुग में आना है – यह भूलो नहीं | अपनी हार और जीत की
जो हिस्ट्री है उनको याद करो | बच्चे जानते हैं हम सतयुग में
सतोप्रधान, सुखधाम के वासी थे | फिर पुनर्जन्म लेते-लेते
दुःखधाम में जड़जड़ीभूत अवस्था में आ पहुँचे हैं | अब फिर तुम
आत्माओं को बाप से श्रीमत मिलती है क्योंकि आत्मा-परमात्मा अलग
रहे.....तुम बच्चे बहुतकाल अलग रहे हो | पहले-पहले तुम बिछुड़े
फिर सुख का पार्ट बजाते आये | फिर तुम्हारा राज्य-भाग्य छीना
गया | दुःख के पार्ट में आ गये | अब तुम बच्चों को फिर से
राज्य भाग्य लेना है सुख-शान्ति का | आत्मायें कहती हैं विश्व
में शान्ति हो | इस समय तमोप्रधान होने कारण विश्व में अशान्ति
है | यह भी शान्ति और अशान्ति, दुःख और सुख का खेल है | तुम
जानते हो 5 हज़ार वर्ष पहले विश्व में शान्ति थी | मूलवतन तो है
ही शान्तिधाम | जहाँ आत्मायें रहती हैं वहाँ तो अशान्ति का
प्रश्न ही नहीं | सतयुग में विश्व में शान्ति थी फिर
गिरते-गिरते अशान्ति हो गई | अब सारे विश्व में शान्ति सब
चाहते हैं | ब्रह्म महतत्व को विश्व नहीं कहेंगे | उनको
ब्रह्माण्ड कहा जाता है, जहाँ तुम आत्मायें निवास करती हो |
आत्मा का स्वधर्म है शान्त | शरीर से आत्मा अलग होने से शान्त
हो जाती है फिर दूसरा शरीर ले तब चुरपुर करे | अब तुम बच्चे
यहाँ किसलिए आये हो? कहते हैं – बाबा, अपने शान्तिधाम, सुखधाम
ले चलो | शान्ति अथवा मुक्तिधाम में सुख-दुःख का पार्ट नहीं है
| सतयुग है सुखधाम, कलियुग है दुःखधाम | उतरते कैसे हैं? वह तो
सीढ़ी में दिखाया है | तुम सीढ़ी उतरते हो फिर एक ही बार चढ़ते हो
| पावन बन चढ़ते हो और पतित बन उतरते हो | पावन बनने बिगर चढ़
नहीं सकते हो, इसलिए पुकारते हैं – बाबा, आकर हमको पावन बनाओ |
तुम पहले पावन शान्तिधाम में जाकर फिर सुखधाम में आयेंगे |
पहले है सुख, पीछे है दुःख | सुख की मार्जिन ज़्यादा है | इक्वल
हो फिर तो कोई फ़ायदा ही नहीं | जैसे फालतू हो जाये | बाप
समझाते हैं यह जो ड्रामा बना हुआ है उसमें
¾
सुख है, बाकी
¼
कुछ न कुछ दुःख है, इसलिए इसको सुख-दुःख का खेल कहा जाता है |
बाप जानते हैं मुझ बाप को सिवाए तुम बच्चों के
कोई जान नहीं सकते | मैंने ही तुमको अपना परिचय दिया है और
सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का परिचय दिया है | तुमको नास्तिक से
आस्तिक बना दिया है | तीनों लोकों को भी तुम जानते हो |
भारतवासी तो कल्प की आयु भी नहीं जानते | अब तुम ही जानते हो
बाबा हमको फिर से पढ़ाते हैं | बाप गुप्त वेष में पराये देश में
आये हैं | बाबा भी गुप्त है | मनुष्य अपनी देह को जानते हैं,
आत्मा को जानते नहीं | आत्मा अविनाशी, देह विनाशी है | आत्मा
और आत्मा के बाप को तुम्हें कभी भूलना नहीं चाहिए | हम बेहद के
बाप से वर्सा ले रहे हैं | वर्सा तब मिलेगा जब पवित्र बनेंगे |
इस रावण राज्य में तुम पतित हो इसलिए बाप को पुकारते हो | दो
बाप हैं | परमपिता परमात्मा सभी आत्माओं का एक बाप है | ऐसे
नहीं, ब्रदर्स ही सब बाप हैं | जब-जब भारत पर अति धर्म ग्लानि
होती है, जब सभी धर्म का जो पारलौकिक बाप है, उनको भूल जाते
हैं, तब ही बाप आते हैं | यह भी खेल है | जो कुछ होता है खेल
रिपीट होता रहता है | तुम आत्मायें कितना वारी पार्ट बजाने आती
और जाती हो, यह नाटक अनादि जूँ मिसल चलता रहता है | कभी बन्द
नहीं होता | टिक-टिक होती रहती है परन्तु एक टिक न मिले दूसरे
से | कैसा वन्डरफुल नाटक है | सेकेण्ड-सेकेण्ड जो कुछ सारी
सृष्टि में होता रहता है वह फिर रिपीट होगा | जो हर धर्म के
मुख्य पार्टधारी हैं उनका बताते हैं | वह सब अपना-अपना धर्म
स्थापन करते हैं | राजधानी नहीं स्थापन करते हैं | एक परमपिता
परमात्मा धर्म भी स्थापन करते और राजधानी अथवा डिनायस्टी भी
स्थापन करते हैं | वह तो धर्म स्थापन करते हैं, उनके पिछाड़ी
सबको आना है | सबको ले कौन जाता है? बाप | कोई तो बहुत थोड़ा
पार्ट बजाया और ख़लास | जैसे जीव जन्तु, निकले और मरे | उनकी तो
जैसे ड्रामा में बात ही नहीं | अटेन्शन किस तरफ़ जाता है? एक तो
क्रियेटर तरफ़ जायेगा, जिसे सब कहते हैं ओ गॉड फादर, हे परमपिता
परमात्मा | वो सभी आत्माओं का पिता है | पहले आदि सनातन
देवी-देवता धर्म था | यह कितना बड़ा बेहद का झाड़ है | कितने मत
मतान्तर, कितनी वेरायटी चीज़ें निकली हुई हैं | गिनती करना
मुश्किल हो जाता है | फाउन्डेशन है नहीं | बाकी सब खड़े हैं |
बाप कहते हैं – मीठे-मीठे बच्चों, मैं आता ही तब हूँ जबकि अनेक
धर्म हैं, एक धर्म नहीं है | फाउन्डेशन प्रायः लोप है | सिर्फ़
चित्र खड़े हैं | आदि सनातन था ही एक धर्म | बाकी सब बाद में
आते हैं | त्रेता में बहुत हैं जो स्वर्ग में नहीं आते |
तुम अब पुरुषार्थ करते हो स्वर्ग नई दुनिया में जायें | बाप
कहते हैं स्वर्ग में तुम तब आयेंगे जब मेरे को याद कर पावन
बनेंगे और दैवीगुण धारण करेंगे | बाकी झाड़ की टाल-टालियाँ तो
अनेक हैं | बच्चों को झाड़ का भी पता पड़ा है कि हम सब आदि सनातन
देवी-देवतायें स्वर्ग में थे | अब स्वर्ग है नहीं | अभी नर्क
है | तब बाप ने प्रश्नावली बनाई थी कि अपने दिल से पूछो – हम
सतयुगी स्वर्गवासी हैं या कलियुगी नर्कवासी हैं? सतयुग से नीचे
कलियुग में उतरते हो? फिर ऊपर कैसे जायेंगे? बाप शिक्षा देते
हैं | तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान कैसे बनेंगे? अपने को आत्मा
समझ मुझे याद करो तो योग अग्नि से तुम्हारे पाप कट जायेंगे |
कल्प पहले भी तुमको ज्ञान सिखलाकर देवता बनाया था, अभी तुम
तमोप्रधान बन पड़े हो | फिर ज़रूर कोई तो सतोप्रधान बनाने वाला
होगा | पतित-पावन कोई मनुष्य तो हो न सके | हे पतित-पावन, हे
भगवान् जब कहते हो तो बुद्धि ऊपर चली जाती है | वह है निराकार
| बाकी सब हैं पार्टधारी | सब पुनर्जन्म लेते रहते हैं | मैं
पुनर्जन्म रहित हूँ | यह ड्रामा बना हुआ है, इसको कोई नहीं
जानते | तुम भी नहीं जानते थे | अब तुमको स्वदर्शन चक्रधारी
कहा जाता है | तुम अपने स्व आत्मा के धर्म में ठहरो | अपने को
आत्मा निश्चय करो | बाप समझाते हैं यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता
है, इसलिए तुम्हारा नाम है स्वदर्शन चक्रधारी और कोई को यह
ज्ञान नहीं है | तो तुमको बहुत ख़ुशी होनी चाहिए | बाप हमारा
टीचर भी है | बहुत मीठा बाबा है | बाबा जैसा मीठा और कोई नहीं
| तुम पारलौकिक बाप के बच्चे परलोक में रहने वाली आत्मायें हो
| बाप भी परमधाम में रहते हैं | जैसे लौकिक बाप बच्चों को जन्म
दे पालना कर पिछाड़ी में सब-कुछ दे जाते हैं क्योंकि बच्चे
वारिस हैं, यह कायदा है | तुम जो बेहद बाप के बच्चे बनते हो,
बाप कहते हैं अब सबको वापिस वाणी से परे घर जाना है | वहाँ है
साइलेन्स फिर मूवी, फिर टॉकी | बच्चियाँ सूक्ष्मवतन में जाती
हैं, साक्षात्कार होता है | आत्मा निकल नहीं जाती | ड्रामा में
जो नूँध है वह सेकेण्ड-सेकेण्ड रिपीट होता है | एक सेकेण्ड न
मिले दूसरे से | जो भी मनुष्य का पार्ट चलता है, अच्छा वा
बुरा, सब नूँध है | सतयुग में अच्छा, कलियुग में बुरा पार्ट
बजाते हैं | कलियुग में मनुष्य दुःखी होते हैं | राम राज्य में
छी-छी बातें नहीं होती | राम राज्य और रावण राज्य इकठ्ठा नहीं
होता | ड्रामा को न जानने कारण कहते हैं दुःख-सुख परमात्मा
देते हैं | जैसे शिवबाबा का किसको पता नहीं, वैसे रावण का भी
किसको पता नहीं | शिव जयन्ती हर वर्ष मनाते हैं, तो रावण
मरन्ती भी हर वर्ष मनाते हैं | अब बेहद का बाप अपना परिचय दे
रहे हैं कि अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो | बाप तो
बहुत मीठा है | बाबा अपनी महिमा बैठ थोड़ेही करेंगे, जिनको सुख
मिलता है वह महिमा करते हैं |
तुम बच्चों को बाप से वर्सा मिलता है | बाप प्यार का सागर है |
फिर सतयुग में तुम प्यारे मीठे बनते हो | कोई बोले वहाँ भी तो
विकार आदि हैं, बोलो वहाँ रावण राज्य ही नहीं | रावण राज्य
द्वापर से शुरू होता है | कितना अच्छी रीति समझाते हैं |
वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी को और कोई जानते ही नहीं | इस समय
ही तुमको समझाते हैं | फिर तुम देवता बन जाते हो | देवताओं से
ऊँच कोई है नहीं, इसलिए वहाँ गुरु करने की दरकार नहीं | यहाँ
तो ढेर गुरु हैं | सतगुरु है एक | सिक्ख लोग भी कहते हैं
सतगुरु अकाल | अकाल मूर्त है ही सतगुरु | वह कालों का काल
महाकाल है | वह काल तो एक को ले जाते हैं | बाप कहते हैं मैं
तो सबको ले जाता हूँ | पवित्र बनाकर पहले सबको शान्तिधाम और
सुखधाम में ले जाता हूँ | अगर मेरा बनकर फिर माया के बन जाते
हैं, तो कहा जाता है गुरु का निन्दक ठौर न पाये | वह स्वर्ग का
सम्पूर्ण सुख नहीं पा सकेंगे, प्रजा में चले जायेंगे | बाप
कहते हैं – बच्चे, मेरी निन्दा नहीं कराओ | मैं तुमको स्वर्ग
का मालिक बनाता हूँ तो दैवीगुण भी धारण करने हैं | किसको दुःख
नहीं देना | बाप कहते हैं मैं आया ही हूँ तुमको सुखधाम का
मालिक बनाने | बाप है प्यार का सागर, मनुष्य हैं दुःख देने के
सागर | काम कटारी चलाकर एक-दो को दुःख देते हैं | वहाँ तो यह
बातें हैं नहीं | वहाँ है ही राम राज्य | योगबल से बच्चे पैदा
होते हैं | इस योगबल से तुम सारे विश्व को पवित्र बनाते हो |
तुम वारियर्स हो परन्तु अननोन | तुम बहुत नामीग्रामी बनते हो
फिर भक्ति मार्ग में तुम देवियों के कितने मन्दिर बनते हैं |
कहते हैं अमृत का कलष माताओं के सिर पर रखा | गऊ माता कहते
हैं, यह है ज्ञान | पानी की बात नहीं | तुम हो शिव शक्ति सेना
| वह लोग फिर कॉपी कर कितने गुरु बनकर बैठे हैं | अब तो तुम सच
के नईया में बैठे हो | गाते हैं नईया मेरी पार लगाओ | अब
खिवैया मिला है पार ले जाने | वेश्यालय से शिवालय में ले जाते
हैं | उनको बागवान भी कहते हैं, काँटों के जंगल को फूलों का
बगीचा बनाते हैं | वहाँ सुख ही सुख है | यहाँ है दुःख | बाबा
ने जो पर्चे छपाने के लिए कहा है उसमें लिखा है – अपने दिल से
पूछो स्वर्गवासी हो या नर्कवासी? बहुत प्रश्न पूछ सकते हो | सब
कहते हैं भ्रष्टाचार है तो ज़रूर कोई समय श्रेष्ठाचारी भी
होंगे! वह देवतायें थे, अब नहीं हैं | जब देवी-देवता धर्म
प्रायः लोप हो जाता है तो भगवान को आना पड़ता है, एक धर्म की
स्थापना करने | गोया तुम अपने लिए स्वर्ग की स्थापना कर रहे हो
श्रीमत से | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
बाप समान प्यार का सागर बनना है | दुःख का सागर नहीं | बाप की
निन्दा कराने वाला कोई भी कर्म नहीं करना है | बहुत मीठा
प्यारा बनना है |
2.
योगबल से पवित्र बनकर फिर दूसरों को भी बनाना है | कांटों के
जंगल को फूलों का बगीचा बनाने की सेवा करनी है | सदा ख़ुशी में
रहना है कि हमारा मीठा बाबा बाप भी है तो टीचर भी है | उन जैसा
मीठा कोई नहीं |
वरदान:-
सर्व प्राप्तियों के ख़ज़ानों को स्मृति स्वरूप बन कार्य में
लगाने वाले सदा सन्तुष्ट आत्मा भव
! 
संगमयुग का विशेष वरदान सन्तुष्टता है और सन्तुष्टता का बीज
सर्व प्राप्तियाँ हैं | असन्तुष्टता का बीज स्थूल वा सूक्ष्म
अप्राप्ति है | ब्राह्मणों का गायन है अप्राप्त नहीं कोई वस्तु
ब्राह्मणों के ख़ज़ाने में | सभी बच्चों को एक द्वारा एक जैसा
अखुट ख़ज़ाना मिलता है | सिर्फ़ उन प्राप्त हुए ख़ज़ानों को हर समय
कार्य में लगाओ अर्थात् स्मृति स्वरूप बनो | बेहद की
प्राप्तियों को हद में परिवर्तन नहीं करो तो सदा सन्तुष्ट
रहेंगे |
स्लोगन:-
जहाँ
निश्चय है वहाँ विजय के तक़दीर की लकीर मस्तक पर है ही
|
ओम्
शान्ति
|