26-03-14           प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे तुम्हें पढ़ाई कभी मिस नहीं करनी है, पढ़ाई से ही स्कॉलरशिप मिलती है इसलिए बाप द्वारा जो नॉलेज मिलती है उसे ग्रहण करो |   


प्रश्न:-   
लायक ब्राह्मण किसे कहेंगे? उसकी निशानी सुनाओ?


उत्तर:-
1. लायक ब्राह्मण वह जिसके मुख पर बाबा का गीता ज्ञान कण्ठ हो, 2. जो बहुतों को आप समान बनाता रहे, 3. बहुतों को ज्ञान धन का दान-पुण्य करे, 4. कभी आपस में एक-दो के मतभेद में न आये, 5. किसी भी देहधारी में बुद्धि लटकी हुई न हो, 6. ब्राह्मण अर्थात् जिसमें कोई भूत न हो, जो देह अहंकार को छोड़ देही-अभिमानी रहने का पुरुषार्थ करे |


ओम् शान्ति |

बाप ने अपना और सृष्टिचक्र का परिचय तो दिया है | यह तो बच्चों की बुद्धि में बैठ गया है कि सृष्टि चक्र हुबहू रिपीट होता है | जैसे नाटक बनाते हैं, मॉडल्स बनाते हैं | फिर वह रिपीट होते हैं | तुम बच्चों की बुद्धि में यह चक्र चलना चाहिए | तुम्हारा नाम भी है स्वदर्शन चक्रधारी | तो बुद्धि में फिरना चाहिए | बाप द्वारा जो नॉलेज मिलती है वो ग्रहण करनी चाहिए | ऐसी ग्रहण हो जाए जो पिछाड़ी में बाप और रचना के आदि-मध्य-अन्त की याद रहे | बच्चों को बहुत अच्छी रीति पुरुषार्थ करना है | यह है एज्युकेशन | बच्चे जानते हैं यह एज्युकेशन सिवाए तुम ब्राह्मणों के कोई भी नहीं जानते | वर्णों का फ़र्क तो है ना | मनुष्य समझते हैं हम सब मिलकर एक हो जाएं | अब इतनी सारी दुनिया एक तो हो नहीं सकती | यहाँ सारे विश्व में एक राज्य, एक धर्म, एक भाषा चाहिए | वो तो सतयुग में था | विश्व की बादशाही थी, जिसके मालिक यह लक्ष्मी-नारायण थे | तुमको यह बताना है कि विश्व में शान्ति का राज्य यह है | सिर्फ़ भारत की ही बात है, जब इन्हों का राज्य होता है तो सारे विश्व में शान्ति हो जाती है | यह सिवाए तुम्हारे और कोई जानते नहीं | सब हैं भक्त | फ़र्क भी तुम देखते हो | भक्ति अलग है, ज्ञान अलग है | ऐसे नहीं, भक्ति न करने से कोई भूत-प्रेत खा जायेंगे | नहीं | तुम तो बाप के बने हो | तुम्हारे में जो भूत हैं वह सब निकल जाने हैं | पहले नम्बर में भूत है देह अहंकार | उनको निकालने लिए ही बाप देही-अभिमानी बनाते रहते हैं | बाप को याद करने से कोई भी भूत सामने आयेगा नहीं | 21 जन्मों के लिए कोई भूत आता नहीं | यह 5 भूत हैं रावण सम्प्रदाय के | रावण राज्य कहते हैं | राम राज्य अलग है, रावण राज्य अलग है | रावण राज्य में भ्रष्टाचारी और राम राज्य में श्रेष्ठाचारी होते हैं | इसका फ़र्क भी तुम्हारे सिवाए कोई को पता नहीं है | तुम्हारे में भी जो समझू होशियार हैं, वो अच्छी रीति समझ सकते हैं क्योंकि माया बिल्ली कम नहीं है | कभी-कभी पढ़ाई छोड़ देते हैं, सेन्टर पर नहीं जाते हैं, दैवीगुण धारण नहीं करते | आँखें भी धोखा देती हैं | कोई चीज़ अच्छी देखी तो खा लेते हैं | तो अब बाप समझाते हैं कि तुम बच्चों की यह (लक्ष्मी-नारायण) एम ऑब्जेक्ट है | तुमको ऐसा बनना है | ऐसे दैवीगुण धारण करने हैं, यथा राजा रानी तथा प्रजा सबमें दैवीगुण होते हैं | वहाँ आसुरी गुण होते नहीं | असुर होते नहीं | तुम ब्रह्माकुमार-कुमारियों के सिवाए और कोई नहीं जो इन बातों को समझे | तुमको शुद्ध अहंकार है | तुम आस्तिक बने हो क्योंकि मीठे-मीठे रूहानी बाप के बने हो | यह भी जानते हो कोई भी देहधारी कभी राजयोग का ज्ञान वा याद की यात्रा सिखला नहीं सकते | एक बाप ही सिखलाते हैं | तुम सीखकर फिर औरों को सिखलाते हो | तुमसे पूछेंगे तुमको यह किसने सिखाया? तुम्हारा गुरु कौन है? क्योंकि टीचर तो आध्यात्मिक बातें नहीं सिखलाते, यह तो गुरु ही सिखलाते हैं | यह बच्चे जानते हैं – हमारा गुरु नहीं, हमारा है सतगुरु, उनको सुप्रीम भी कहा जाता है | ड्रामा अनुसार सतगुरु खुद आकर परिचय देते हैं और जो कुछ सुनाते हैं वह सब सत्य ही समझाते हैं और सचखण्ड में ले जाते हैं | सत एक ही है | बाकी कोई देहधारी को याद करना है झूठ | यहाँ तो तुम्हें एक बाप को ही याद करना है | जैसे सब आत्मायें ज्योति बिन्दु हैं तो बाप भी ज्योति बिन्दु है | बाकी हर आत्मा के संस्कार कर्म अपने-अपने हैं | एक जैसे संस्कार हो नहीं सकते | अगर एक जैसे संस्कार हों फिर तो फ़ीचर्स भी एक जैसे हों | कभी भी एक जैसे फ़ीचर्स नहीं हो सकते | थोड़ा फ़र्क ज़रूर होता है |

 

यह नाटक तो एक ही है | सृष्टि भी एक ही है, अनेक नहीं | यह गपोड़े लगाते कि ऊपर-नीचे दुनिया है | ऊपर तारों में दुनिया है | बाबा कहते हैं यह किसने बताया है? तो नाम लेते हैं शास्त्रों का | शास्त्र तो ज़रूर कोई मनुष्य ने लिखे होंगे | तुम जानते हो यह तो बना-बनाया खेल है | सेकण्ड बाई सेकण्ड जो सारी दुनिया का पार्ट बजता है, यह भी ड्रामा का बना-बनाया खेल है | तुम बच्चों की बुद्धि में आ गया – यह चक्र कैसे फिरता है, सभी मनुष्य मात्र जो हैं वह कैसे पार्ट बजाते हैं? बाबा ने बताया है सतयुग में सिर्फ़ तुम्हारा ही पार्ट होता है | नम्बरवार आते हो पार्ट बजाने | बाबा कितना अच्छी रीति समझाते हैं | तुम बच्चों को फिर औरों को समझाना पड़ता है | बड़े-बड़े सेन्टर्स खुलते रहेंगे, तो बड़े-बड़े आदमी वहाँ आयेंगे | गरीब भी आयेंगे | अक्सर करके गरीबों की बुद्धि में झट बैठता है | बड़े-बड़े आदमी भल आते हैं परन्तु काम पड़ गया तो कहेंगे फ़ुर्सत नहीं है | प्रतिज्ञा करते हैं हम अच्छी रीति पढ़ेंगे फिर अगर नहीं पढ़ते तो धक्का लग जाता है | माया और ही अपने तरफ़ खींच लेती है | बहुत बच्चे हैं जो पढ़ना बन्द कर देते हैं | पढ़ाई में मिस रहे तो ज़रूर फेल हो पड़ेंगे | स्कूल में जो अच्छे-अच्छे बच्चे होते हैं वह कभी शादियों, इधर-उधर जाने की छुट्टी नहीं लेते हैं | बुद्धि में रहता है हम अच्छी रीति पढकर स्कॉलरशिप लेंगे इसलिए पढते हैं | मिस करने का ख्याल नहीं करते | उन्हों को पढ़ाई के सिवाए कुछ भी मीठा नहीं लगता | समझते हैं मुफ़्त समय वेस्ट होगा | यहाँ एक ही टीचर पढ़ाने वाला है तो कभी पढ़ाई मिस नहीं करनी चाहिए | इसमें भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार हैं | देखते हैं पढने वाले अच्छे हैं तो पढ़ाने वाले की भी दिल लगती है | टीचर का नाम बाला होता है | ग्रेड बढ़ती है | ऊँच पद मिलता है | यहाँ भी बच्चे जो जितना पढ़ते हैं उतना ऊँच पद पाते हैं | एक ही क्लास में कोई पढ़कर ऊँच पद पाते हैं, कोई कम | सबकी कमाई एक जैसी नहीं होती | बुद्धि पर मदार है | वो तो मनुष्य, मनुष्य को पढ़ाते हैं | तुम जानते हो बेहद का बाप हमको पढ़ाते हैं तो अच्छी तरह पढ़ना चाहिए | गफ़लत नहीं करनी चाहिए | पढ़ाई को छोड़ना नहीं चाहिए | एक-दो के ट्रेटर भी बन पड़ते हैं – उल्टी-सुल्टी बातें सुनाकर | परमत पर नहीं चलना चाहिए | श्रीमत के लिए कोई कुछ भी कहे, तुमको तो निश्चय है - बाप हमको पढ़ाते हैं फिर वह पढ़ाई छोड़नी नहीं चाहिए | बच्चे नम्बरवार हैं, बाप तो अव्वल नम्बर है | इस पढ़ाई को छोड़ और कहाँ जायेंगे! और कहाँ से यह पढ़ाई मिल न सके | शिवबाबा से पढ़ना है | सौदा भी शिवबाबा से करना है | कोई उल्टी-सुल्टी बातें सुनाकर औरों का मुख मोड़ देते हैं | यह बैंक शिवबाबा की है | समझो कोई बाहर में सतसंग शुरू करते, कहते हैं हमें शिवबाबा की बैंक में जमा करना है, कैसे करेंगे? बच्चे जो आते हैं शिवबाबा की भण्डारी में डालते हैं | एक पैसा भी देते हैं तो सौगुणा होकर मिलता है | शिवबाबा कहते हैं तुमको इनके बदले महल मिल  जायेंगे | यह सारी पुरानी दुनिया ख़त्म होने वाली है | धनवान अच्छे-अच्छे कुटुम्ब से बहुत आते हैं | ऐसे कोई नहीं कहते हैं कि हमारी शिवबाबा के भण्डारे से परवरिश नहीं होती है | सबकी पालना हो रही है | कोई गरीब है, कोई साहूकार है | साहूकार से गरीब पलते हैं, इसमें डरने की बात नहीं | बहुत चाहते हैं हम बाबा के बन जायें | परन्तु लायक भी हों | तन्दुरुस्त भी चाहिए | ज्ञान भी दे सकें | गवर्मेन्ट भी बहुत जाँच कर लेती है | यहाँ भी सब कुछ देखा जाता है | सर्विस कर सकते हैं | नम्बरवार तो हैं | सब अपना-अपना पुरुषार्थ कर रहे हैं | कोई अच्छा पुरुषार्थ करते-करते फिर अबसेन्ट हो जाते हैं | कारणे-अकारणे आना छोड़ देते हैं फिर तन्दुरुस्ती भी ऐसी हो जाती है | एवर तन्दुरुस्त बनाने के लिए यह सब सिखाया जाता है | जिनको शौक है, समझते हैं याद से ही हमारे पाप कटते हैं, वो अच्छी रीति पुरुषार्थ करते हैं | कोई तो लाचार टाइम पास कर रहे हैं | अपनी-अपनी जाँच करनी है | बाप समझाते हैं गफ़लत करेंगे तो वह पता पड़ जायेगा – यह किसको पढ़ा नहीं सकते |

 

बाबा कहते हैं 7 रोज़ में तुमको लायक ब्राह्मण-ब्राह्मणी बन जाना है | सिर्फ़ नाम का ब्राह्मण-ब्राह्मणी नहीं चाहिए | ब्राह्मण-ब्राह्मणी वह जिनके मुख में बाबा का गीता ज्ञान कण्ठ हो | ब्राह्मणों में भी नम्बरवार तो होते ही हैं | यहाँ भी ऐसे ही हैं | पढ़ाई पर अटेन्शन नहीं तो क्या जाकर बनेंगे | हर एक को अपना पुरुषार्थ करना है | सर्विस का सबूत देना चाहिए, तब समझ में आयेगा कि यह ऐसा पद पायेगा | फिर वह कल्प-कल्पान्तर के लिए हो जायेगा | पढ़ते-पढ़ाते नहीं हैं तो अन्दर में समझना चाहिए कि मैं पूरा पढ़ा नहीं हूँ, तब पढ़ा नहीं सकता | बाबा कहते हैं पढ़ाने लायक क्यों नही बनते हो! कहाँ तक ब्राह्मणी को भेजेंगे! आप समान नहीं बनाया है! जहाँ अच्छी रीति पढ़ते हैं, उनको मदद देनी चाहिए | बहुतों को आपस में मतभेद रहता है | कोई फिर एक-दो में लटक कर पढ़ाई छोड़ देते हैं | जो करेगा सो पायेगा | एक-दो की बातों में आकर तुम पढ़ाई क्यों छोड़ देते हो? यह भी ड्रामा | तक़दीर में नहीं है | दिन-प्रतिदिन पढ़ाई जोर होती जाती है | सेन्टर खुलते रहते हैं | यह शिवबाबा का खर्चा नहीं है | सारा ही बच्चों का खर्चा है | यह दान सबसे अच्छा है | उस दान से अल्पकाल का सुख मिलता है, इनसे 21 जन्मों की प्रालब्ध मिलती है | तुम जानते हो हम यहाँ आते हैं नर से नारायण बनने के लिए | तो जो अच्छी रीति पढ़ते हैं उनको फ़ालो करो | कितना रेग्युलर पढ़ना चाहिए | अक्सर करके देह-अभिमान में आकर बहुत लड़ते हैं | अपनी तक़दीर से रूठ पड़ते हैं इसलिए मैजारिटी माताओं की है | नाम भी माताओं का बाला होता है | ड्रामा में माताओं के उन्नति की भी नूँध है |

 

तो बाप मीठे-मीठे बच्चों को कहते हैं अपने को आत्मा समझ मामेकम् याद करो | आत्म-अभिमानी होकर रहो | शरीर ही नहीं तो दूसरे का सुनेंगे कैसे | यह पक्का अभ्यास करो – हम आत्मा हैं, अब हमको वापिस जाना है | बाप कहते हैं यह सब त्याग करो, बाप को याद करो | इस पर ही सारा मदार है | बाप कहते हैं धन्धा आदि भल करते रहो | 8 घण्टा धन्धा, 8 घण्टा आराम, बाकी 8 घण्टा इस गवर्मेन्ट की सर्विस करो | यह भी तुम मेरी नहीं, सारे विश्व की सेवा करते हो, इसके लिए टाइम निकालो | मुख्य है याद की यात्रा | टाइम वेस्ट नहीं करना चाहिए | उस गवर्मेन्ट की 8 घण्टा सर्विस करते हो, उससे क्या मिलता है! हज़ार दो, पाँच हजार.....इस गवर्मेन्ट की सर्विस करने से तुम पदमापदमपति बनते हो | तो कितना दिल से सेवा करनी चाहिए | 8 रत्न बने हैं तो ज़रूर 8 घण्टा बाबा को याद करते होंगे | भक्ति मार्ग में बहुत याद करते हैं, टाइम गँवाते हैं, मिलता कुछ भी नहीं है | गंगा स्नान, जप तप आदि करने से बाप नहीं मिलता है जो वर्सा मिले | यहाँ तो तुमको बाप से वर्सा मिलता है | अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1.    श्रीमत छोड़ कभी परमत पर नहीं चलना है | उल्टी-सुल्टी बातों में आकर पढ़ाई से मुख नहीं मोड़ना है | मतभेद में नहीं आना है |

 

2.    अपनी जाँच करनी है कि हम कहाँ गफ़लत तो नहीं करते हैं? पढ़ाई पर पूरा अटेन्शन है? समय व्यर्थ तो नहीं गँवाते हैं? आत्म-अभिमानी बने हैं? रूहानी सेवा दिल से करते हैं?

 

वरदान:-  


हद के नाज़ नखरों से निकल रूहानी नाज़ में रहने वाले प्रीत बुद्धि भव !   

 

कई बच्चे हद के स्वभाव, संस्कार के नाज़-नखरे बहुत करते हैं | जहाँ मेरा स्वभाव, मेरे संस्कार यह शब्द आता है वहां ऐसे नाज़ नखरे शुरू हो जाते हैं | यह मेरा शब्द ही फेरे में लाता है | लेकिन जो बाप से भिन्न है वह मेरा है ही नहीं | मेरा स्वभाव बाप के स्वभाव से भिन्न हो नहीं सकता, इसलिए हद के नाज़ नखरे से निकल रूहानी नाज़ में रहो | प्रीत बुद्धि बन मोहब्बत की प्रीत के नखरे भल करो |


स्लोगन:- 


बाप से, सेवा से और परिवार से मुहब्बत है तो मेहनत से छूट जायेंगे |     

 

ओम् शान्ति |