26-02-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
यह पढ़ाई है ‘दी बेस्ट’, इसे ही सोर्स ऑफ़ इनकम कहते हैं, पढ़ाई
में पास होना है तो टीचर की मत पर चलते चलो
| 
प्रश्न:-
बाप ड्रामा का राज़ जानते भी अपने बच्चों से कौन-सा पुरुषार्थ
कराते हैं?
उत्तर:-
बाबा जानते हैं नम्बरवार ही सब बच्चे सतोप्रधान बनेंगे लेकिन
बच्चों से सदा यही पुरुषार्थ कराते कि बच्चे ऐसा पुरुषार्थ करो
जो सजायें न खानी पड़े | सजाओं से छूटने के लिए जितना हो सके
प्यार से बाप को याद करो | चलते-फिरते, उठते-बैठते याद में रहो
तो बहुत ख़ुशी रहेगी | आत्मा तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेगी
|
ओम्
शान्ति
|
अब
बच्चे जानते हैं बाबा हमको ज्ञान और योग सिखलाते हैं | हमारा
योग कैसा है, यह तो बच्चे ही जानते हैं | हम जो पवित्र थे, वह
अब अपवित्र बने हैं क्योंकि 84 जन्मों का हिसाब तो चाहिए ना |
यह 84 जन्मों का चक्र है | यह जानेंगे भी वे ही जो 84 जन्म
लेते होंगे | तुम बच्चों को बाप द्वारा मालूम हुआ है | अब ऐसे
बाप का भी अगर नहीं मानेंगे तो बाकी किसका मानेंगे! बाप की मत
मिलती है | ऐसे बहुत हैं जो बिल्कुल नहीं मानते | कोटों में
कोई मानेंगे | बाप शिक्षा भी कितनी क्लीयर देते हैं | तुम
बच्चे ही मानेंगे नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार | सब एकरस तो नहीं
मानेंगे | टीचर की पढ़ाई को सब एकरस नहीं मानेंगे अथवा पढ़ेंगे |
नम्बरवार कोई 20 मार्क्स लेते हैं, कोई कितनी मार्क्स लेते हैं
| कोई तो नापास हो पड़ते हैं | नापास क्यों होते हैं? क्योंकि
टीचर की मत पर नहीं चलते हैं | वहाँ अनेक मतें मिलती हैं |
यहाँ एक ही मत मिलती है | यह है वन्डरफुल मत | बच्चे जानते हैं
बरोबर हमने 84 जन्म लिए हैं | बाप कहते हैं – मैं जिसमें
प्रवेश करता हूँ.......यह किसने कहा? शिवबाबा ने | मैं जिसमें
प्रवेश करता हूँ, जिसको भागीरथ कहते हैं, वह अपने जन्मों को
नहीं जानते थे | तुम बच्चे भी नहीं जानते थे | तुमको अभी
समझाता हूँ | तुम इतने जन्म सतोप्रधान थे फिर सतो-रजो-तमो में
आते नीचे उतरते आये | अब तुम यहाँ पढ़ने लिए आये हो | पढ़ाई है
कमाई, सोर्स ऑफ़ इनकम | यह पढ़ाई है ही दी बेस्ट | उस पढ़ाई में
कहेंगे आई.सी.एस. दी बेस्ट | तुम जो 16 कला सम्पूर्ण देवता थे,
अभी कोई गुण नहीं रहा है | गाते हैं निर्गुण हारे में कोई गुण
नाही | सब ऐसे कहते रहते हैं | समझते हैं सर्वत्र भगवान् है |
देवताओं में भी भगवान् है, इसलिए देवताओं के आगे बैठ कहते हैं
मैं निर्गुण हारे में....आपको ही तरस पड़ेगा | गाया भी जाता है
बाबा ब्लिसफुल है, मेहरबान है, हमारे ऊपर दया करते हैं | कहते
हैं – हे ईश्वर, रहम करो | बाप को बुलाते हैं, अब वो ही बाप
तुम्हारे सामने आया है | ऐसे बाप को जो जानते हैं उनको कितनी
ख़ुशी होनी चाहिए! बेहद का बाप जो हमको हर 5 हज़ार वर्ष के बाद
फिर से सारे विश्व की राजाई देते हैं, तो कितनी अथाह ख़ुशी होनी
चाहिए!
तुम जानते हो श्रीमत पर हम श्रेष्ठ से श्रेष्ठ बन रहे हैं |
अगर श्रीमत पर चलेंगे तो श्रेष्ठ बनेंगे | आधाकल्प रावण की मत
चलती है | बाबा कितना अच्छी रीति समझाते रहते हैं | तुमने 84
जन्म लिए हैं, तुम ही सतोप्रधान थे, अभी तुमको फिर सतोप्रधान
बनना है | यह है रावण राज्य | जब इस रावण पर जीत हो तब
रामराज्य स्थापन हो | बाप कहते हैं तुम मेरी ग्लानि करते हो |
बाप का नाम गायन करने के बदले ग्लानि करते हैं! बाप कहते हैं
तुमने मेरा कितना अपकार किया है | यह भी ड्रामा बना हुआ है |
अब यह सब समझनी दी जाती है कि इन सब बातों से निकलो | एक को
याद करो | गायन भी है सत का संग तारे 21 जन्मों के लिए | तब
डुबोये कौन? तुमको सागर में किसने डुबोया? बच्चों से ही प्रश्न
पूछेंगे ना | तुम जानते हो मेरा ही नाम बागवान, खिवैया है |
अर्थ न समझने कारण बेहद के बाप की बहुत ग्लानि की है | फिर
बेहद का बाप उन्हों को बेहद का सुख देते हैं | अपकार करने
वालों पर उपकार करते हैं | वह समझते नहीं हैं कि हम अपकार करते
हैं | बड़े ख़ुशी से कहते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है | अब ऐसे तो
हो न सके | हरेक को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है | यह भी तुम
जानते हो – जब देवी-देवताओं का राज्य था तो और कोई राज्य नहीं
था | भारत सतोप्रधान था | अब है तमोप्रधान | बाप आते ही हैं
दुनिया को सतोप्रधान करने | सो भी तुम बच्चों को अथाह ख़ुशी
होनी चाहिए | ख़ुशी जैसी ख़ुराक नहीं | सतयुग में तुम बहुत ख़ुश
रहते हो | देवताओं का खान-पान आदि बहुत सूक्ष्म होता है | बहुत
ख़ुशी रहती है | अभी तुमको ख़ुशी मिलती है | तुम जानते हो हम
सतोप्रधान थे | अब फिर बाबा हमको ऐसी फर्स्टक्लास युक्ति बताते
हैं | गीता में भी पहला-पहला अक्षर है मनमनाभव | यह गीता
एपिसोड है ना | गीता में कृष्ण का नाम डाल सारा मुँझारा कर
दिया है | वह है भक्ति मार्ग | बाप भी नॉलेज समझाते हैं, इनमें
कोई खिटपिट की बात नहीं | सिर्फ़ तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना
है | यह तमोप्रधान दुनिया है | कलियुग में देखो मनुष्यों का
क्या हाल हो गया है | ढेर मनुष्य हो गये हैं | सतयुग में एक
धर्म, एक भाषा और एक बच्चा होता है | एक ही राज्य चलता है | यह
ड्रामा बना हुआ है | तो एक है सृष्टि चक्र का गायन, दूसरा है
योग | ज्ञान का धुरिया और होली | मुख्य बात बाप समझाते हैं –
इस समय सबकी तमोप्रधान जड़जड़ीभूत अवस्था है, विनाश सामने खड़ा है
| अब बाप कहते हैं तुमने हमको बुलाया ही है कि हमको पावन बनाने
आओ | तुम पतित बन गये हो | पतित-पावन मुझे ही कहते हैं | अब
मेरे साथ योग लगाओ, मामेकम् याद करो | मैं तुमको सब-कुछ राइट
ही बताऊंगा | बाकी जन्म-जन्मान्तर तुम अनराइटियस बनते ही आये
हो | सतोप्रधान से तमोप्रधान बन पड़े हो |
बाप बच्चों से बात करते हैं – मीठे बच्चे, अभी तुम्हारी आत्मा
तमोप्रधान बनी है | किसने बनाई? 5 विकारों ने | मनुष्य तो इतने
प्रश्न पूछते हैं जो माथा ही खराब कर देते हैं | शास्त्रार्थ
करते हैं तो आपस में लड़ पड़ते हैं | एक-दो को लाठी भी लगाते हैं
| यहाँ तो बाप तुमको पतित से पावन बनाते हैं, इसमें शास्त्र
क्या करेंगे | पावन बनना है ना | कलियुग के बाद फिर सतयुग ज़रूर
आना है | सतोप्रधान भी ज़रूर बनना है | बाप कहते हैं अपने को
आत्मा समझो | तुम्हारी आत्मा तमोप्रधान बनी है तो शरीर भी
तमोप्रधान मिलता है | सोना जितना कैरेट होगा, जेवर भी ऐसा
बनेगा | खाद पड़ती है ना | अब तुमको 24 कैरेट सोना बनना है |
देही-अभिमानी भव | देह-अभिमान में आने से तुम छी-छी बन पड़े हो
| कोई ख़ुशी नहीं है | बीमारियाँ रोग आदि सब-कुछ है | अब
पतित-पावन मैं ही हूँ | मुझे तुमने बुलाया है | मैं कोई
साधू-सन्त आदि नहीं हूँ | कोई आते हैं, कहते हैं गुरू जी का
दर्शन करें | बोलो गुरु जी तो हैं नहीं और दर्शन से भी कोई
फ़ायदा नहीं | बाप तो हर बात सहज समझाते हैं | जितना याद करेंगे
उतना तमोप्रधान से सतोप्रधान बनेंगे | फिर देवता बन जायेंगे |
तुम यहाँ फिर से देवता सतोप्रधान बनने के लिए आये हो | बाप
कहते हैं मेरे को याद करने से तुम्हारी कट निकल जायेगी |
सतोप्रधान बनेंगे | पुरुषार्थ से ही बनेंगे ना | उठते बैठते
चलते बाप को याद करो | क्या स्नान करते बाप को याद नहीं कर
सकते हो? अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो कट निकलेगी और
ख़ुशी का पारा चढ़ेगा | तुमको कितना धन देता हूँ | तुम आये हो
विश्व का मालिक बनने | वहाँ तुम सोने के महल बनायेंगे | कितने
हीरे जवाहर होंगे | भक्ति में जो मन्दिर बनाते हैं उसमें कितने
हीरे जवाहरात होते हैं | बहुत राजायें मन्दिर बनाते हैं | इतना
हीरा सोना कहाँ से आता है? अब तो है नहीं | यह ड्रामा भी तुम
जानते हो कि कैसे चक्र फिरता है | यह बैठेगा भी उनकी बुद्धि
में जिन्होंने सबसे जास्ती भक्ति की है | नम्बरवार ही समझेंगे
| यह पता पड़ेगा कि कौन बहुत सर्विस करते हैं, बहुत ख़ुशी में
रहते हैं, योग में रहते हैं | वह अवस्था पिछाड़ी में होगी | योग
भी जरुरी है | सतोप्रधान बनना है | बाप आया हुआ है तो उनसे
वर्सा लेना है | यह भी कहते हैं बाबा तो हमारे साथ है | मैं
सुन रहा हूँ | तुमको सुनाते हैं तो भी मैं सुनता जाता हूँ |
किसको तो सुनायेगा ना | ज्ञान अमृत का कलष तुम माताओं को मिलता
है | मातायें सबको बांटती हैं | सर्विस करती हैं | तुम सब
सीतायें हो | राम एक है | तुम सब ब्राइड्स हो, मैं हूँ
ब्राइडग्रूम | तुमको श्रृंगार कर ससुराल घर भेज देते हैं |
गाते भी हैं वह बापों का बाप है, पतियों का पति है | एक तरफ़
महिमा करते हैं, दूसरी तरफ़ ग्लानि करते हैं | शिवबाबा की महिमा
अलग है, कृष्ण की महिमा अलग है | पोजीशन सबका अलग-अलग है |
यहाँ सबको मिलकर एक कर दिया है | अन्धेर नगरी.......तुम अब
बाबा का बने हो | शिवबाबा के पोत्रे-पोत्रियां हो | तुम सबका
हक़ लगता है, इस बाबा के पास तो प्रॉपर्टी है नहीं | प्रॉपर्टी
मिलती है हद की और बेहद की | तीसरी कोई है नहीं जिससे वर्सा
मिले | यह कहते हैं हम भी उनसे वर्सा लेते हैं | पारलौकिक
परमपिता परमात्मा को सब याद करते हैं | सतयुग में याद नहीं
करते | सतयुग में है एक बाप और रावण राज्य में हैं दो बाप |
संगम पर हैं तीन बाप – लौकिक, पारलौकिक और तीसरा है वन्डरफुल
अलौकिक बाप | इन द्वारा बाप वर्सा देते हैं | इनको भी उनसे
वर्सा मिलता है | ब्रह्मा को एडम भी कहते हैं | ग्रेट ग्रेट
ग्रैन्ड फादर | शिव को तो फादर ही कहेंगे | सिजरा मनुष्यों का
ब्रह्मा से शुरू होता है, इसलिए उनको ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर
कहा जाता है | नॉलेज तो बहुत सहज है | तुमने 84 जन्म लिए हैं |
समझाने लिए चित्र भी हैं | अब इसमें उल्टा सुल्टा प्रश्न करने
की दरकार नहीं है | ऋषि-मुनियों से भी पूछते थे तो वे भी
नेती-नेती कह देते थे | अब बाप आकर अपना परिचय देते हैं | तो
ऐसे बाप को कितना प्यार से याद करना चाहिए | अब धीरे-धीरे तुम
बच्चे ऊपर चढ़ते जाते हो ड्रामा अनुसार | कल्प-कल्प नम्बरवार
कोई सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो बनते हैं | ऐसा ही पद वहाँ मिलता
है इसलिए बाप कहते हैं – बच्चे, अच्छी रीति पुरुषार्थ करो जो
सज़ायें न खाओ | पुरुषार्थ ज़रूर कराते हैं | भल समझते हैं
बनेंगे वही जो कल्प पहले बने होंगे परन्तु पुरुषार्थ ज़रूर
करायेंगे | जो नज़दीक वाले होते हैं, पूजा भी अच्छी तरह वही
करते हैं | फिर देवताओं की पूजा करते हो | अब तुमको देवता बनना
है | तुम अपना राज्य योगबल से स्थापन कर रहे हो | योगबल से तुम
विश्व की बादशाही लेते हो | बाहुबल से कोई विश्व की बादशाही ले
न सके | वह लोग भाई-भाई को आपस में लडाते रहते हैं | कितना
बारूद बनाते हैं | उधार में एक-दो को देते रहते हैं | बारूद है
ही विनाश के लिए | परन्तु यह किसको बुद्धि में नहीं आता
क्योंकि वह समझते हैं कल्प लाखों वर्ष का है | घोर अन्धियारे
में हैं | विनाश हो जायेगा और सब कुम्भकरण की नींद में सोये
रहेंगे | जागेंगे नहीं | तुम अभी जागे हो | बाप है ही जगती
ज्योत, नॉलेजफुल | तुम बच्चों को आप समान बनाते हैं | वह है
भक्ति, यह है ज्ञान | ज्ञान से तुम सुखी बनते हो | तुमको आना
चाहिए कि हम फिर से सतोप्रधान बन रहे हैं | बाप को याद करना है
| इसको कहा जाता है बेहद का सन्यास | यह पुरानी दुनिया तो
विनाश होने वाली है | नैचुरल कैलेमिटीज़ भी मदद करती है | उस
समय तुमको खाना भी पूरा नहीं मिलेगा | हम अपने ख़ुशी की ख़ुराक
में रहेंगे | जानते हो यह सब ख़लास होना है | इसमें मूँझने की
बात नहीं है | मैं आता ही हूँ तुम बच्चों को फिर से सतोप्रधान
बनाने | यह तो कल्प-कल्प का मेरा ही काम है | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
स्वयं भगवान् हमारे पर मेहरबान हुआ है, वह हमें पढ़ा रहे हैं,
इस नशे में रहना है | पढ़ाई सोर्स ऑफ़ इनकम है इसलिए मिस नहीं
करना है |
2.
अथाह ख़ुशी का अनुभव करना और कराना है | चलते-फिरते
देही-अभिमानी बन बाप की याद में रह आत्मा को सतोप्रधान ज़रूर
बनाना है |
वरदान:-
ज्ञान के श्रेष्ठ ख़ज़ानों को महादानी बन दान करने वाले मास्टर
ज्ञान सागर भव
! 
जैसे बाप ज्ञान का सागर है, ऐसे मास्टर ज्ञान सागर बन सदा औरों
को ज्ञान दान देते रहो | ज्ञान का कितना श्रेष्ठ ख़ज़ाना आप
बच्चों के पास है | उसी ख़ज़ाने से भरपूर बन, याद के अनुभवों से
औरों की सेवा करो | जो भी ख़ज़ाने मिले हैं महादानी बन उनका दान
करते रहो क्योंकि यह ख़ज़ाने जितना दान करेंगे उतना और भी बढ़ते
जायेंगे | महादानी बनना अर्थात् देना नहीं बल्कि और भी भरना |
स्लोगन:-
देह से
न्यारा, विदेही बनना – यह है पुरुषार्थ की लास्ट स्टेज
|
ओम् शान्ति
|