05-02-14       प्रातः मुरली       ओम् शान्ति   “बापदादा”     मधुबन


मीठे बच्चे इस शरीर से जीते जी मरने के लिए अभ्यास करो – ‘मैं भी आत्मा, तुम भी आत्मा’ – इस अभ्यास से ममत्व निकल जायेगा”   


प्रश्न:-   
सबसे ऊँची मंज़िल कौन-सी है? उस मंज़िल को प्राप्त करने वालों की निशानी क्या होगी?


उत्तर:-
सभी देहधारियों से ममत्व टूट जाए, सदा भाई-भाई की स्मृति रहे – यही है ऊँची मंज़िल | इस मंज़िल पर वही पहुँच सकते हैं जो निरन्तर देही-अभिमानी बनने का अभ्यास करते हैं | अगर देही-अभिमानी नहीं तो कहीं न कहीं फँसते रहेंगे या अपने शरीर में या किसी न किसी मित्र सम्बन्धी के शरीर में | उन्हें कोई की बात अच्छी लगेगी या कोई का शरीर अच्छा लगेगा | ऊँची मंज़िल पर पहुँचने वाले जिस्म (देह) से प्यार कर नहीं सकते | उनका शरीर का भान टूटा हुआ होगा |

 

ओम् शान्ति |

रूहानी बाप रूहानी बच्चों को कहते हैं – देखो, मैं तुम सभी बच्चों को आपसमान बनाने आया हूँ | अब बाप आप समान बनाने कैसे आयेंगे? वह है निराकार, कहते हैं मैं निराकार हूँ तुम बच्चों को आपसमान अर्थात् निराकारी बनाने, जीते जी मरना सिखलाने आया हूँ | बाप अपने को भी आत्मा समझते हैं ना | इस शरीर का भान नहीं है | शरीर में रहते हुए भी शरीर का भान नहीं है | यह शरीर उनका तो नहीं है ना | तुम बच्चे भी इस शरीर का भान निकाल दो | तुम आत्माओं को ही मेरे साथ चलना है | यह शरीर जैसे मैंने लोन लिया है, वैसे आत्मायें भी लोन लेती हैं पार्ट बजाने लिए | तुम जन्म-जन्मान्तर शरीर लेते आये हो | अब जैसे मैं जीते जी इस शरीर में हूँ परन्तु हूँ न्यारा अर्थात् मरा हुआ | मरना शरीर छोड़ने को कहा जाता है | तुमको भी जीते जी इस शरीर से मरना है | मैं भी आत्मा, तुम भी आत्मा | तुमको भी मेरे साथ चलना है या यहाँ ही बैठना है? तुम्हारा इस शरीर में जन्म-जन्मान्तर का मोह है | जैसे मैं अशरीरी हूँ, तुम भी जीते जी अपने को अशरीरी समझो | हमको अब बाबा के साथ जाना है | जैसे बाबा का यह पुराना शरीर है, तुम आत्माओं का भी यह पुराना शरीर है | पुरानी जुत्ती को छोड़ना है | जैसे मेरा इसमें ममत्व नहीं है, तुम भी इस पुरानी जुत्ती से ममत्व निकालो | तुमको ममत्व रखने की आदत पड़ी हुई है | हमको आदत नहीं है | मैं जीते जी मरा हुआ हूँ | तुमको भी जीते जी मरना है | मेरे साथ चलना है तो अब यह प्रैक्टिस करो | शरीर का कितना भान रहता है, बात मत पूछो! शरीर रोगी हो जाता है तो भी आत्मा उसको छोड़ती नहीं है, इससे ममत्व निकालना पड़े | हमको तो बाबा के साथ जाना ज़रूर है | अपने को शरीर से न्यारा समझना है | इसको ही जीते जी मरना कहा जाता है | अपना घर ही याद रहता है | तुम जन्म-जन्मान्तर से इस शरीर में रहते आये हो इसलिए तुमको मेहनत करनी पड़ती है | जीते जी मरना पड़ता है | मैं तो इसमें आता ही टैम्प्रेरी हूँ | तो मरकर चलने से अर्थात् अपने को आत्मा समझकर चलने से कोई भी देहधारी ममत्व नहीं रहेगा | अक्सर करके किसी न किसी का किसी में मोह हो जाता है | बस, उनको देखने बिगर रह नहीं सकते | यह देहधारी की याद एकदम उड़ा देनी चाहिए क्योंकि बहुत बड़ी मंज़िल है | खाते-पीते जैसेकि इस शरीर में हूँ ही नहीं | यह अवस्था पक्की करनी है तब 8 रत्नों की माला में आ सकते हैं | मेहनत बिगर थोड़े ही ऊँच पद मिल सकता है | जीते जी देखते हुए समझें कि मैं तो वहाँ का रहने वाला हूँ | जैसे बाबा इसमें टैम्प्रेरी बैठा है, ऐसे अब हमको भी घर जाना है | जैसे बाबा का ममत्व नहीं है, वैसे हमको भी इसमें ममत्व नहीं रखना है | बाप को तो इस शरीर में बैठना पड़ता है, तुम बच्चों को समझाने के लिए |

तुमको अब वापिस चलना है, इसलिए कोई देहधारी में ममत्व न रहे | यह फलानी बहुत अच्छी है, मीठी है – आत्मा की बुद्धि जाती है ना | बाप कहते हैं शरीर को नहीं, आत्मा को देखना है | शरीर को देखने से तुम फँस मरेंगे | बड़ी मंज़िल है | तुम्हारा भी जन्म-जन्मान्तर का पुराना ममत्व है | बाबा का ममत्व नहीं है तब तो तुम बच्चों को सिखलाने आया हूँ | बाप खुद कहते हैं मैं तो इस शरीर में नहीं फँसता हूँ, तुम फँसे हो | मैं तुमको छुड़ाने आया हूँ | तुम्हारे 84 जन्म पूरे हुए, अब शरीर से भान निकालो | देही-अभिमानी होकर न रहने से तुम कहीं न कहीं फँसते रहेंगे | कोई की बात अच्छी लगेगी, कोई का शरीर अच्छा लगेगा, तो घर में भी उनकी याद आती रहेगी | जिस्म पर प्यार होगा तो हार खा लेंगे | ऐसे बहुत ख़राब हो जाते हैं | बाप कहते हैं स्त्री-पुरुष का सम्बन्ध छोड़ अपने को आत्मा समझो | यह भी आत्मा, हम भी आत्मा | आत्मा समझते-समझते शरीर का भान निकलता जायेगा | बाप की याद से ही विकर्म भी विनाश होंगे | इस बात पर तुम अच्छी तरह से विचार सागर मंथन कर सकते हो | विचार सागर मंथन करने बिगर तुम उछल नहीं सकेंगे | यह पक्का होना चाहिए कि हमको बाप के पास जाना है ज़रूर | मूल बात है याद की | 84 का चक्र पूरा हुआ फिर शुरू होना है | इस पुरानी देह से ममत्व नहीं हटाया तो फँस पड़ेंगे या अपने शरीर में या कोई मित्र-सम्बन्धी के शरीर में | तुमको तो किससे भी दिल नहीं लगनी है | अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है | हम आत्मा भी निराकार, बाप भी निराकार, आधाकल्प तुम भक्ति मार्ग में बाप को याद करते आये हो ना | ‘हे प्रभू’ कहने से शिवलिंग ही सामने आयेगा | कोई देहधारी को ‘हे प्रभू’ कह न सके | सभी शिव के मन्दिर में जाते हैं, उनको ही परमात्मा समझ पूजते हैं | ऊँचे से ऊँचा भगवान् एक ही है | ऊँचे से ऊँचा अर्थात् परमधाम में रहने वाला | भक्ति भी पहले अव्यभिचारी होती है एक की | फिर व्यभिचारी बन जाती है | तो बाप बार-बार बच्चों को समझाते हैं कि तुमको ऊँच पद पाना है तो यह प्रैक्टिस करो | देह का भान छोड़ो | सन्यासी भी विकारों को छोड़ते हैं ना | आगे तो सतोप्रधान थे अभी तो वह भी तमोप्रधान बन पड़े हैं | सतोप्रधान आत्मा कशिश करती है, अपवित्र आत्माओं को खींचती हैं क्योंकि आत्मा पवित्र है | भल पुर्नजन्म में आते हैं तो भी पवित्र होने के कारण खींचते हैं | कितने उन्हों के फ़ालोअर्स बनते हैं | जितनी पवित्रता की जास्ती ताकत, उतने ज़्यादा फ़ालोअर्स | यह बाप तो है ही एवरप्योर और है भी गुप्त | डबल है ना, ताकत सारी उनकी है | इनकी (ब्रह्मा की) नहीं | शुरू में भी तुमको उसने कशिश की | इस ब्रह्मा ने नहीं क्योंकि वह तो एवरप्योर है | तुम कोई इनके पिछाड़ी नहीं भागे | यह कहते हैं मैं तो सबसे जास्ती पूरे 84 जन्म प्रवृत्ति मार्ग में रहा | यह तो तुमको खींच न सके | बाप कहते हैं मैंने तुमको खींचा | भल सन्यासी पवित्र रहते हैं | परन्तु मेरे जैसा पवित्र तो कोई भी होगा नहीं | वह तो सब भक्ति मार्ग के शास्त्र आदि सुनाते हैं | मैं आकर तुमको सब वेदों शास्त्रों का सार सुनाता हूँ | चित्र में भी दिखाया है विष्णु की नाभि से ब्रह्मा निकला फिर ब्रह्मा के हाथ में शास्त्र दिखाये हैं | अब विष्णु तो ब्रह्मा द्वारा शास्त्रों का राज़ सुनाते नहीं हैं | वो तो विष्णु को भी भगवान् समझ लेते हैं | बाप समझाते हैं मैं इन ब्रह्मा द्वारा सुनाता हूँ | मैं विष्णु द्वारा थोड़े ही समझाता हूँ | कहाँ ब्रह्मा, कहाँ विष्णु | ब्रह्मा सो विष्णु बनते हैं फिर 84 जन्म के बाद यह संगम होगा | यह तो नई बातें हैं ना | कितनी वन्डरफुल बातें हैं समझाने की |

अब तो बाप कहते हैं – बच्चे, जीते जी मरना है | तुम शरीर में जीते हो ना | समझते हो हम आत्मा हैं, हम बाबा के साथ चले जायेंगे | यह शरीर आदि कुछ भी ले नहीं जाना है | अब बाबा आया है, कुछ तो नई दुनिया में ट्रान्सफर कर दें | मनुष्य दान-पुण्य आदि करते हैं दूसरे जन्म में पाने के लिए | तुमको भी नई दुनिया में मिलना है | यह भी करेंगे वही जिन्होंने कल्प पहले किया होगा | कम जास्ती कुछ भी होगा नहीं | तुम साक्षी होकर देखते रहेंगे | कुछ कहने की भी दरकार नहीं रहती | फिर भी बाप समझाते हैं जो कुछ करते हैं तो उसका भी अहंकार नहीं आना चाहिए | हम आत्मा यह शरीर छोड़कर जायेंगे | वहाँ नई दुनिया में जाकर नया शरीर लेंगे | गाया भी जाता है राम गयो रावण गयो......रावण का परिवार कितना बड़ा है | तुम तो मुट्ठी भर हो | यह सारा रावण सम्प्रदाय है | तुम्हारा राम सम्प्रदाय कितना थोड़ा होगा – 9 लाख | तुम धरनी के सितारे हो ना | माँ-बाप और तुम बच्चे | तो बाप बार-बार बच्चों को समझाते हैं कि मरजीवा बनने की कोशिश करो | अगर किसको देखकर बुद्धि में आता है – यह बहुत अच्छी है, बहुत मीठा समझती है, यह भी माया का वार होता है, माया ललचा देती है | उनकी तक़दीर में नहीं है तो माया सामने आ जाती है | कितना भी समझाओ तो गुस्सा लगेगा | यह नहीं समझते हैं कि यह देह-अभिमान ही काम करा रहा है | अगर ज़्यादा समझाते हैं तो टूट पड़ते हैं इसलिए प्यार से चलना पड़ता है | किससे दिल लग जाता है तो बात मत पूछो, पागल हो जाते हैं | माया एकदम बेसमझ बना देती है इसलिए बाप कहते हैं कभी कोई के नाम-रूप में नहीं फँसना | मैं आत्मा हूँ और एक बाप जो विदेही है, उनसे ही प्यार रखना है | यही मेहनत है | कोई भी देह में ममत्व न हो | ऐसे नहीं, घर में बैठे भी वह ज्ञान देने वाली याद आती रहे – बड़ी मीठी है, बहुत अच्छा समझाती है | अरे, मीठा तो ज्ञान है | मीठी आत्मा है | शरीर थोड़े ही मीठा है | बात करने वाली भी आत्मा है | कभी भी शरीर पर आशिक नहीं होना है |

आजकल तो भक्ति मार्ग बहुत हैं | आनन्दमई को भी माँ-माँ करते याद करते रहते हैं | अच्छा, बाप कहाँ है? वर्सा बाप से मिलना है या माँ से? माँ को भी पैसा कहाँ से मिलेगा? सिर्फ़ माँ-माँ कहने से जरा भी पाप नहीं कटेंगे | बाप कहते हैं मामेकम् याद करो | नाम रूप में नहीं फँसना है, और ही पाप हो जायेगा क्योंकि बाप का नाफ़रमानबरदार बनते हो | बहुत बच्चे भूले हुए हैं | बाप समझाते हैं मैं तुम बच्चों को लेने आया हूँ सो ज़रूर ले जाऊंगा, इसलिए मेरे को याद करो | एक मुझे याद करने से ही तुम्हारे पाप कटेंगे | भक्ति मार्ग में बहुतों को याद करते आये हो | परन्तु बाप बिगर कोई काम कैसे होगा | बाप थोड़े ही कहते हैं माँ को याद करो | बाप तो कहते हैं मुझे याद करो | पतित-पावन मैं हूँ | बाप के डायरेक्शन पर चलो | तुम भी बाप के डायरेक्शन पर औरों को समझाते रहो | तुम थोड़े ही पतित-पावन ठहरे | याद एक को ही करना है | हमारा तो एक बाप, दूसरा न कोई | बाबा हम आप पर ही वारी जायेंगे | वारी जाना तो शिवबाबा पर ही है और सबकी याद छूट जानी चाहिए | भक्ति मार्ग में तो बहुतों को याद करते रहते हैं | यहाँ तो एक शिवबाबा, दूसरा न कोई | फिर भी कोई अपनी चलते हैं तो क्या गति-सद्गति होगी! मूँझ पड़ते हैं – बिन्दी को कैसे याद करें? अरे, तुमको अपनी आत्मा याद है ना कि मैं आत्मा हूँ | वह भी बिन्दी रूप ही है | तो तुम्हारा बाप भी बिन्दी है | बाप से वर्सा मिलता है | माँ तो फिर भी देहधारी हो जाती है | तुमको विदेही से ही वर्सा मिलना है इसलिए और सब बातें छोड़ एक से बुद्धियोग लगाना है | अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1.    शरीर का भान ख़त्म करने के लिए चलते-फिरते अभ्यास करना है – जैसे कि इस शरीर से मरे हुए हैं, न्यारे | शरीर में हैं ही नहीं | बिगर शरीर आत्मा को देखो |

 

2.    कभी भी किसी के शरीर पर तुम्हें आशिक नहीं होना है | एक विदेही बाप से ही प्यार रखना है | एक से ही बुद्धियोग लगाना है |

 

वरदान:-  
शक्तिशाली याद द्वारा सेकेण्ड में पदमों की कमाई जमा करने वाले पदमापदम भाग्यशाली भव !   

आपकी याद इतनी शक्तिशाली हो जो एक सेकेण्ड की याद से पदमों की कमाई जमा हो जाए | जिनके हर कदम में पदम हों तो कितने पदम जमा हो जायेंगे इसीलिए कहा जाता है पदमापदम भाग्यशाली | जब किसी की अच्छी कमाई होती है तो उसके चेहरे की फ़लक ही और हो जाती है | तो आपकी शक्ल में सभी पदमों की कमाई का नशा दिखाई दे | ऐसा रूहानी नशा, रूहानी ख़ुशी हो जो अनुभव करें कि यह न्यारे लोग हैं |

 


स्लोगन:- 
ड्रामा में सब अच्छा ही होना है इस स्मृति से बेफ़िक्र बादशाह बनो |     

 

ओम् शान्ति |