26-11-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - शिबबाबा आया है तुम्हारे सब भण्डारे भरपूर करने, कहा भी जाता है भण्डारा भरपूर काल कंटक दूर”   


प्रश्न:-   
ज्ञानवान बच्चों की बुद्धि में किस एक बात का निश्चय पक्का होगा?


उत्तर:-

उन्हें दृढ़ निश्चय होगा कि हमारा जो पार्ट है वह कभी घिसता-मिटता नहीं । मुझ आत्मा में 84 जन्मों का अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है, यही बुद्धि में ज्ञान है तो ज्ञानवान है । नहीं तो सारा ज्ञान बुद्धि से उड़ जाता है ।

 

ओम् शान्ति |

बाप आकर रूहानी बच्चों प्रति क्या कहते हैं? क्या सेवा करते हैं? इस समय बाप यह रूहानी पढ़ाई पढ़ाने की सेवा करते हैं । यह भी तुम जानते हो । बाप का भी पार्ट है, टीचर का भी पार्ट है और गुरू का भी पार्ट है । तीनों पार्ट अच्छे बजा रहे हैं । तुम जानते हो वह बाप भी है, सद्गति देने वाला गुरू भी है और सबके लिए है । छोटे, बड़े, बूढ़े, जवान सबके लिए एक ही है । सुप्रीम बाप, सुप्रीम टीचर हैं । बेहद की शिक्षा देते हैं । तुम कान्फ्रेन्स में भी समझा सकते हो कि हम सबकी बायोग्राफी को जानते हैं । परमपिता परमात्मा शिवबाबा की जीवन-कहानी को भी जानते हैं । नम्बरवार सब बुद्धि में याद होना चाहिए । सारा विराट रूप जरूर बुद्धि में रहता होगा । हम अभी ब्राह्मण बने हैं, फिर हम देवता बनेंगे फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनेंगे । यह तो बच्चों को याद है ना । सिवाए तुम बच्चों के और किसको यह बातें याद नहीं होंगी । उत्थान और पतन का सारा राज़ बुद्धि में रहे । हम उत्थान में थे फिर पतन में आये, अब बीच में हैं | शूद्र भी नहीं हैं, पूरे ब्राह्मण भी नहीं बने हैं । अगर अभी पक्के ब्राह्मण हो तो फिर शद्रपने की एक्ट न हो । ब्राह्मणों में भी फिर शुद्रपना आ जाता है । यह भी तुम जानते हो-कब से पाप शुरू किये हैं? जब से काम चिता पर चढ़े हो, तो तुम्हारी बुद्धि में सारा चक्र है । ऊपर में है परमपिता परमात्मा बाप, फिर तुम हो आत्मायें । यह बातें तुम बच्चों की बुद्धि में जरूर याद रहनी चाहिए । अभी हम ब्राह्मण हैं, देवता बन रहे हैं फिर वैश्य, शूद्र डिनायस्टी में आयेंगे । बाप आकरके हमको शूद्र से ब्राह्मण बनाते हैं फिर हम ब्राह्मण से देवता बनेंगे । ब्राह्मण बन कर्मातीत अवस्था को प्राप्त कर फिर वापिस जायेंगे । तुम बाप को भी जानते हो । बाजोली वा 84 के चक्र को भी तुम जानते हो । बाजोली से तुमको बहुत इजी कर समझाते हैं । तुमको बहुत हल्का बनाते हैं ताकि अपने को बिन्दी समझ और झट भागेंगे । स्टूडेंट क्लास में बैठे रहते हैं तो बुद्धि में स्टडी ही याद रहती है । तुमको भी यह पढ़ाई याद रहनी चाहिए । अभी हम संगमयुग पर हैं फिर ऐसे चक्र लगाको । यह चक्र सदैव बुद्धि में फिरता रहना चाहिए । यह चक्र आदि का नॉलेज तुम ब्राह्मणों के पास ही है, न कि शूद्रों के पास । देवताओं के पास भी यह ज्ञान नहीं है । अभी तुम समझते हो भक्ति मार्ग में जो चित्र बने हैं सब डिफेक्टेड हैं । तुम्हारे पास हैं एक्यूरेट क्योंकि तुम एक्यूरेट बनते हो । अभी तुमको ज्ञान मिला है तब समझते हो भक्ति किसको कहा जाता है, ज्ञान किसको कहा जाता है? ज्ञान देने वाला बाप ज्ञान का सागर अभी मिला है । स्कूल में पढ़ते हैं एम ऑबजेक्ट का मालूम तो पड़ता है ना । भक्ति मार्ग में तो एम ऑबजेक्ट होती नहीं । यह थोड़ेही तुमको मालूम था कि हम ऊंच देवी-देवता थे फिर नीचे गिरे हैं । अब जब ब्राह्मण बने हो तब पता पड़ा है । ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ जरूर आगे भी बने थे । प्रजापिता ब्रह्मा का नाम तो बाला है । प्रजापिता तो मनुष्य है ना । उनके इतने ढेर बच्चे हैं जरूर एडाप्टेड होने चाहिए । कितने एडाप्टेड हैं । आत्मा के रूप में तो सब भाई- भाई हो । अभी तुम्हारी बुद्धि कितनी दूर जाती है । तुम जानते हो जैसे ऊपर में स्टॉर्स खड़े हैं । दूर से कितने छोटे दिखाई पड़ते हैं । तुम भी बहुत छोटी- सी आत्मा हो । आत्मा कभी छोटी-बड़ी नहीं होती है । हाँ, तुम्हारा मर्तबा बहुत ऊंच है । उनको भी सूर्य देवता, चन्द्रमा देवता कहते हैं । सूर्य बाप, चन्द्रमा माँ कहेंगे । बाकी आत्मायें सब हैं नक्षत्र सितारे । तो आत्मायें सब एक जैसी छोटी हैं । यहाँ आकर पार्टधारी बनती हैं । देवतायें तो तुम ही बनते हो ।

हम बहुत पावरफुल बन रहे हैं । बाप को याद करने से हम सतोप्रधान देवता बन जायेंगे । नम्बरवार थोड़ा- थोड़ा फर्क तो रहता है । कोई आत्मा पवित्र बन सतोप्रधान देवता बन जाती है, कोई आत्मा पूरा पवित्र नहीं बनती है । ज्ञान को जरा भी नहीं जानती है । बाप ने समझाया है बाप का परिचय तो जरूर सबको मिलना चाहिए । पिछाड़ी में बाप को तो जानेंगे ना । विनाश के समय सभी को पता पड़ता है बाप आया हुआ है । अभी भी कोई-कोई कहते हैं भगवान जरूर कहाँ आया हुआ है परन्तु पता नहीं पड़ता । समझते कोई भी रूप में आ जायेगा । मनुष्य मत तो बहुत है ना, तुम्हारी है एक ही ईश्वरीय मत । तुम ईश्वरीय मत से क्या बनते हो? एक है मनुष्य मत, दूसरी है ईश्वरीय मत और तीसरी है देवता मत । देवताओं को भी मत किसने दी? बाप ने । बाप की श्रीमत है ही श्रेष्ठ बनाने वाली । श्री श्री बाप को ही कहेंगे, न कि मनुष्य को । श्री श्री ही आकर श्री बनाते हैं । देवताओं को श्रेष्ठ बनाने वाला बाप ही है, उनको श्री श्री कहेंगे । बाप कहते हैं मैं तुमको ऐसा लायक बनाता हूँ । उन लोगों ने फिर अपने पर श्री श्री का टाइटिल रख दिया है । कान्फ्रेन्स में भी तुम समझा सकते हो । तुम ही समझाने लिए निमित्त बने हुए हो । श्री श्री तो है ही एक शिवबाबा जो ऐसा श्री देवता बनाते हैं । वो लोग शास्त्रों आदि की पढ़ाई पढ़कर टाइटिल ले आते हैं । तुमको तो श्री श्री बाप ही श्री अर्थात् श्रेष्ठ बना रहे हैं । यह है ही तमोप्रधान भ्रष्टाचारी दुनिया । भ्रष्टाचार से जन्म लेते हैं । कहाँ बाप का टाइटिल, कहाँ यह पतित मनुष्य अपने पर रखाते हैं । सच्ची-सच्ची श्रेष्ठ महान आत्मायें तो देवी-देवता हैं ना । सतोप्रधान दुनिया में कोई भी तमोप्रधान मनुष्य हो न सके । रजो में रजो मनुष्य ही रहेंगे, न कि तमोगुणी । वर्ण भी गाये जाते हैं ना । अभी तुम समझते हो, आगे तो हम कुछ नहीं समझते थे । अब बाप कितना समझदार बनाते हैं । तुम कितना धनवान बनते हो । शिवबाबा का भण्डारा भरपूर है । शिवबाबा का भण्डारा कौन-सा है? (अविनाशी ज्ञान रत्नों का) शिवबाबा का भण्डारा भरपूर काल कंटक दूर । बाप तुम बच्चों को ज्ञान रत्न देते हैं । खुद है सागर । ज्ञान रत्नों का सागर है । बच्चों की बुद्धि बेहद में जानी चाहिए । इतनी करोड़ आत्मायें सब अपने- अपने शरीर रूपी तख्त पर विराजमान है । यह बेहद का नाटक है । आत्मा इस तख्त पर विराजमान होती है । तख्त एक न मिले दूसरे से । सबके फीचर्स अलग- अलग हैं, इनको कहा जाता है कुदरत । हर एक का कैसा अविनाशी पार्ट है । इतनी छोटी-सी आत्मा में 84 का रिकॉर्ड भरा हुआ रहता है । अति सूक्ष्म है । इससे सूक्ष्म वन्डर कोई हो नहीं सकता । इतनी छोटी आत्मा में सारा पार्ट भरा हुआ है, जो यहाँ ही पार्ट बजाती हैं । सूक्ष्मवतन में तो कोई पार्ट बजाती नहीं हैं । बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं । बाप द्वारा तुम सब-कुछ जान जाते हो । यही नॉलेज है । ऐसे नहीं कि सबके अन्दर को जानने वाला है । यह नॉलेज जानते हैं, जो नॉलेज तुम्हारे में भी इमर्ज हो रही है । जिस नॉलेज से ही तुम इतना ऊँच पद पाते हो । यह भी समझ रहती है ना । बाप है बीजरूप । उनमें झाड़ के आदि, मध्य, अन्त की नॉलेज है । मनुष्यों ने तो लाखों वर्ष आयु दे दी है, तो ज्ञान आ न सके । अभी तुमको संगम पर यह सारा ज्ञान मिल रहा है । बाप द्वारा तुम सारे चक्र को जान जाते हो । इनके पहले तुम कुछ नहीं जानते थे । अभी तुम संगम पर हो । यह है तुम्हारा अन्त का जन्म । पुरूषार्थ करते-करते फिर तुम पूरा ब्राह्मण बन जायेंगे । अभी नहीं हो । अभी तो अच्छे- अच्छे बच्चे भी ब्राह्मण से फिर शूद्र बन जाते हैं | इसको कहा जाता है माया से हार खाना । बाबा की गोद से हारकर रावण की गोद में चले जाते हैं । कहाँ बाप की श्रेष्ठ बनने की गोद, कहाँ भ्रष्ट बनने की गोद । सेकण्ड में जीवनमुक्ति । सेकण्ड में पूरी दुर्दशा हो जाती है । ब्राह्मण बच्चे अच्छी रीति जानते हैं-कैसे दुर्दशा हो जाती है । आज बाप के बनते, कल फिर माया के पंजे में आकर रावण के बन जाते हैं । फिर तुम बचाने की कोशिश करते हो तो कोई-कोई बच भी जाते हैं । तुम देखते हो डूबते हैं तो बचाने की कोशिश करते रहो । कितनी खिटखिट होती है ।

बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं । यहाँ स्कूल में तुम पढ़ते हो ना । तुमको मालूम है कैसे हम यह चक्र लगाते हैं । तुम बच्चों को श्रीमत मिलती है ऐसे-ऐसे करो । भगवानुवाच तो जरूर है । उनकी श्रीमत हुई ना । मैं तुम बच्चों को अब शूद्र से देवता बनाने आया हूँ । अभी कलियुग में हैं शूद्र सम्प्रदाय । तुम जानते हो कलियुग पूरा हो रहा है । तुम संगम पर बैठे हो । यह बाप द्वारा तुमको नॉलेज मिली है । शास्त्र जो भी बनाये हैं उन सबमें हैं मनुष्य मत । ईश्वर तो शास्त्र बनाते नहीं । एक गीता के ऊपर ही कितने नाम रख दिये हैं । गांधी गीता, टैगोर गीता आदि- आदि । ढेर नाम हैं । गीता को मनुष्य इतना क्यों पढते हैं? समझते तो कुछ भी नहीं । अध्याय वही उठाकर अर्थ अपना- अपना करते रहते हैं । वह तो सब मनुष्यों के बनाये हुए हो गये ना । तुम कह सकते हो मनुष्य मत की बनाई हुई गीता पढ़ने से आज यह हाल हुआ है । गीता ही पहला नम्बर का शास्त्र है ना । वह है देवी-देवता धर्म का शास्त्र । यह तुम्हारा ब्राह्मण कुल है । यह भी ब्राह्मण धर्म है ना । कितने धर्म हैं, जिस-जिस ने जो धर्म रचा है उनका वह नाम चलता है । जैनी लोग महावीर कहते हैं । तुम बच्चे सब महावीर-महावीरनियां हो । तुम्हारा मन्दिर में यादगार है । राजयोग है ना । नीचे योग तपस्या में बैठे हैं, ऊपर में राजाई का चित्र है । राजयोग का एक्यूरेट मन्दिर है । फिर कोई ने क्या नाम रख दिया है, कोई ने क्या । यादगार है बिल्कुल एक्यूरेट, बुद्धि से काम ले ठीक बनाया है फिर जिसने जो नाम कहा वह रख दिया है । यह मॉडल रूप में बनाया है । स्वर्ग और राजयोग संगमयुग का बनाया हुआ है । तुम आदि, मध्य, अन्त को जानते हो । आदि को भी तुमने देखा है । आदि संगमयुग को कहो या सतयुग को कहो । संगमयुग की सीन नीचे दिखाते हैं फिर राजाई ऊपर में दिखाई है । तो सतयुग है आदि फिर मध्य में हैं द्वापर । अन्त को तुम देखते ही हो । यह सब खत्म हो जाना है । पूरा यादगार बना हुआ है । देवी-देवता ही फिर वाम मार्ग में जाते हैं । द्वापर से वाम मार्ग शुरू होता है । यादगार पूरा एक्यूरेट है । यादगार में बहुत मन्दिर बनाये हैं । यहाँ ही सब निशानियाँ हैं । मन्दिर भी यहाँ ही बनते हैं । देवी-देवता भारतवासी ही राज्य करके गये हैं ना । फिर बाद में कितने मन्दिर बनाते हैं । सिक्ख लोग बहुत होंगे तो वह अपना मन्दिर बना देंगे । मिलेट्री वाले भी अपना मन्दिर बना देते हैं । भारतवासी अपने कृष्ण का वा लक्ष्मी-नारायण का मन्दिर बनायेंगे । हनूमान, गणेश का बनायेंगे । यह सारा सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है, कैसे स्थापना, विनाश, पालना होती है-यह तुम ही जानते हो । इसको कहा जाता है अन्धियारी रात । ब्रह्मा का दिन और रात ही गाई जाती है क्योंकि ब्रह्मा ही चक्र में आते हैं । अभी तुम ब्राह्मण हो फिर देवता बनेंगे । मुख्य तो ब्रह्मा हुआ ना । ब्रह्मा का रखें या विष्णु का रखें । ब्रह्मा है रात का और विष्णु है दिन का । वही रात से फिर दिन में आते हैं । दिन से फिर 84 जन्मों के बाद रात में आते हैं । कितना सहज समझानी है । यह भी पूरा याद नहीं कर सकते । पूरी रीति नहीं पढ़ते हैं तो नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार पद पाते हैं । जितना याद करेंगे सतोप्रधान बनेंगे । सतोप्रधान सो भारत तमोप्रधान । बच्चों में कितना ज्ञान है । यह नॉलेज सिमरण करनी है । यह ज्ञान है ही नई दुनिया के लिए, जो बेहद का बाप आकर देते हैं । सब मनुष्य बेहद के बाप को याद करते हैं । अंग्रेज लोग भी कहते हैं ओ गॉड फादर लिब्रेटर, गाइड अर्थ तो तुम बच्चों की बुद्धि में है । बाप आकरके दुःख की दुनिया आइरन एज से निकाल गोल्डन एज में ले जाते हैं । गोल्डन एज जरूर पास होकर गया है तब तो याद करते हैं ना । तुम बच्चों को अन्दर में बहुत खुशी रहनी चाहिए और दैवी कर्म भी करने चाहिए । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. बाप से जो अविनाशी ज्ञान रत्नों का अखुट खजाना मिल रहा है-उसे स्मृति में रख बुद्धि को बेहद में ले जाना है । इस बेहद नाटक में कैसे आत्मायें अपने- अपने तख्त पर विराजमान हैं-इस कुदरत को साक्षी हो देखना है । 

2. सदा बुद्धि में याद रहे कि हम संगमयुगी ब्राह्मण हैं, हमें बाप की श्रेष्ठ गोद मिली है । हम रावण की गोद में जा नहीं सकते । हमारा कर्तव्य है-डूबने वालों को भी बचाना ।

 

वरदान:-

अपने टाइटल की स्मृति के साथ समर्थ स्थिति बनाने वाले स्वमानधारी भव !   

संगमयुग पर स्वयं बाप अपने बच्चों को श्रेष्ठ टाइटल देते हैं, तो उसी रूहानी नशे में रहो । जैसा टाइटल याद आये वैसी समर्थ स्थिति बनती जाये । जैसे आपका टाइटल है स्वदर्शन चक्रधारी तो यह स्मृति आते ही परदर्शन समाप्त हो जाए, स्वदर्शन के आगे माया का गला कट जाए । महावीर हूँ, यह टाइटल याद आये तो स्थिति अचल- अडोल बन जाए । तो टाइटल की स्मृति के साथ समर्थ स्थिति बनाओ तब कहेंगे श्रेष्ठ स्वमानधारी ।

 

स्लोगन:- 

भटकती हुई आत्माओं की चाहना पूर्ण करने के लिए परखने की शक्ति को बढ़ाओ ।   

 

ओम् शान्ति |