20-04-14     प्रातः मुरली   ओम् शान्ति    “अव्यक्त-बापदादा    रिवाइज: 22-06-77 मधुबन
 


 “सितारों की दुनिया का रहस्य”

आज बापदादा सर्व सितारों को चमकते हुए रूप में देख रहे हैं | चमकते सब सितारे हैं लेकिन चमकने में भी नम्बर हैं | सितारों की दुनिया अर्थात् अपनी दुनिया देखी है? सितारों की दुनिया का गीत गाते हैं लेकिन वह कौन से सितारों की दुनिया है जिसका गायन है, इस रहस्य को आप सब जानते हो | हर सितारे अपना-अपना प्रभाव दिखाते हैं | सितारों के आधार पर जन्मपत्री और भविष्य बताते हैं | चैतन्य रूप में आप ज्ञान सितारे सारे कल्प के हर आत्मा की जन्मपत्री के आधार मूर्त हो | ज्ञान सितारों के श्रेष्ठ जन्म और वर्तमान जन्म के आधार पर प्रालब्ध के जन्म अर्थात् पूज्य पद के जन्म और पूज्य के आधार पर पुजारी के जन्म ऐसे 84 जन्मों की कहानी के आधार पर अन्य धर्म आत्माओं की जन्मपत्री का आधार है | आपकी जन्मपत्री में उन्हों की जन्मपत्री नूँधी हुई है | आप हीरो और हीरोइन पार्टधारी के आधार पर सारा ड्रामा नूँधा हुआ है | 

आप आत्माओं का पुजारीपन आरम्भ होना और अन्य आत्माओं के धर्म की स्थापना होना, आप पूर्वज आत्माओं के आधार पर ही यह छोटी-छोटी बिरादरियाँ निकलती हैं | यादगार रूप में हद के सितारों के आधार पर भविष्यदर्शी बनते हैं, क्योंकि इस समय आप चैतन्य सितारे त्रिकालदर्शी हो | हर आत्मा का भविष्य बनाने के निमित्त बने हुए हो | चाहे मुक्ति हो, चाहे जीवनमुक्ति हो | लेकिन जीवनमुक्ति के गेट खोलने के निमित्त ज्ञान-सूर्य बाप के साथ ज्ञान-सितारे निमित्त बनते हैं इसलिए आपके जड़ यादगार सितारे भी भविष्यदर्शी बने हुए हैं अर्थात् भविष्य दिखाने के निमित्त बने हुए हैं | तो जड़ यादगार हद के सितारों को देखते, अपना सितारा स्वरूप स्मृति में आता है? सितारों में भी अलग-अलग स्पीड दिखाते हैं | चक्र लगाने की स्पीड कोई की तेज गति दिखाते और कोई की धीमी गति दिखाते | कोई सितारे संगठित रूप में हैं, कोई सितारे एक दो से कुछ दूरी पर दिखाते हैं | कोई बार-बार जगह बदली करते हैं और कोई पुच्छल तारे होते हैं | यह सब प्रकार – चैतन्य सितारों की स्थिति, पुरुषार्थ की स्पीड, अचल और हलचल का रूप संगठित रूप में, सेवाधारी वा सर्व स्नेही वा सहयोगी का स्वरूप, श्रेष्ठ गुणों और कर्तव्य का स्वरूप यादगार रूप में दिखाया है | 

सितारों का चन्द्रमा के साथ सम्बन्ध दिखाया है | कोई चन्द्रमा के समीप हैं और कोई दूर हैं | ज्ञान सूर्य की सन्तान होते हुए भी चन्द्रमा के साथ का चित्र क्यों बना हुआ है? इसका भी रहस्य है | चन्द्रमा अर्थात् बड़ी माँ ब्रह्मा को कहा जाता है | ज्ञान सूर्य से सर्व शक्तियों के नॉलेज की लाइट ज़रूर लेते हैं, लेकिन ड्रामा के अन्दर पार्ट बजाने में साकार रूप में साथ आदि पिता ब्रह्मा और ब्राह्मणों का है | ज्ञान सूर्य इस चक्र से न्यारा रहता है इसलिए अनेक जन्मों का भिन्न नाम, रूप में साथ चन्द्रमा और ज्ञान सितारों का रहता है | इसी कारण यादगार चित्र में भी चन्द्रमा और सितारों का सम्बन्ध है | अपने आपसे पूछो कि मैं कौनसा सितारा हूँ? संगठित रूप में सर्व के स्नेही और सदा सहयोगी बनने की स्थिति रहती है? वा संगठन में स्वभाव, संस्कार, स्थिति बदल लेते हैं अर्थात् स्थान बदल लेते हैं? सदा चमकते हुए विश्व को रोशन करने वाले सितारे हो? वा स्वयं को स्वयं भी नॉलेज की लाइट और याद की माईट नहीं दे सकते हो? अन्य आत्माओं की लाइट और माईट के आधार पर ठहरे हुए हैं? सदा स्वयं को त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित रखते हो? ऐसे अपने आपको चेक करो | सुनाया था ना कि तीन प्रकार के सितारे हैं – एक हैं सदा लकी सितारे, दूसरे हैं सदा सफलता के सितारे, तीसरे हैं उम्मीदवार सितारे | अपने से पूछो तीनों में से मैं कौन? अपने आपको जानते हो ना – मैं कौन हूँ? पहेली हल कर ली है ना? स्वयं ही स्वयं को जज करो, समझा! अच्छा, आज मुरली चलाने नहीं आए हैं | मिलने के लिए आये हैं, यह मिलन ही कल्प-कल्प की नूँध है | इस मिलन की यादगार जगह-जगह पर अनेक रूपों से मेला लगाते हैं | अच्छा | 

सदा बाप से मिलन मनाने वाले, संकल्प, बोल और कर्म में सफलता के सितारे, सदा बाप को साथी बनाने वाले समीप सितारे हर संकल्प से विश्व को लाइट-माईट देने वाले, सदा चमकते हुए सितारों को बापदादा का याद, प्यार और नमस्ते | 

पार्टियों से :-

1. सदा स्वयं को हर कर्म करते हुए तन के भी, धन के भी, प्रवृत्ति के भी ट्रस्टी समझ कर चलते हो? ट्रस्टी की विशेषता क्या होती है? एक शब्द में कहें – ट्रस्टी अर्थात् नष्टोमोहा | ट्रस्टी का किसी में मोह नहीं होता; क्यों? क्योंकि मेरापन नहीं है | मेरे में मोह जाता है | जो भी प्रवृत्ति के अर्थ साधन मिले हुए हैं वा सेवा के अर्थ सम्बन्ध होता है, उसमें मेरापन नहीं लेकिन बापदादा की दी हुई अमानत समझकर सेवा करेंगे वा साधनों को कार्य में लगायेंगे तो सहज ही ट्रस्टी बन जायेंगे | ट्रस्टी अर्थात् मैं पन समाप्त और बाबा-बाबा ही मुख से निकले, ऐसी स्थिति है? या जिन साधनों को कार्य में लगाते हो उसमें मेरे-पन का भान है? मेरापन है तो देहभान आता है | अगर तन के भी ट्रस्टी हैं तो देह का भान हो नहीं सकता | जब से जन्म हुआ तो पहला वायदा क्या किया? जो मेरा सो बाप का | मरजीवा हो गए ना? फिर मेरापन कहाँ से आया? दी हुई चीज़ कभी वापिस नहीं ली जाती | तो सदा देही अभिमानी बनने का अर्थात् नष्टोमोहा बनने का सहज साधन क्या हुआ? मैं ट्रस्टी हूँ | कल्प पहले के यादगार में भी अर्जुन का जो यादगार दिखाया है – उसमें अर्जुन को मुश्किल कब लगा? जब मेरापन आया | मेरा ख़त्म तो नष्टोमोहा अर्थात् स्मृति स्वरूप हो गये | मेरा पति, मेरी पत्नी, मेरा घर, मेरे बच्चे, मेरी दुकान, मेरा दफ़्तर – यह मेरा-मेरा सहज को मुश्किल कर देता है | सहज मार्ग का साधन है – नष्टोमोहा अर्थात् ट्रस्टी | इस स्मृति से स्वयं और सर्व को सहजयोगी बनाओ | समझा? 

वैराइटी स्थानों से आते हुए इस समय सब मधुबन निवासी हो? इस समय अपने को गुजराती, पंजाबी, यू.पी. निवासी तो नहीं समझते? सदैव अपने को परमधाम निवासी वा पार्ट बजाने लिए मधुबन निवासी समझो | मधुबन निवासी समझने से नशा वा ख़ुशी रहती है | मधुबन में कितनी भी तकलीफ़ में हो, फिर भी यहाँ रहना पसन्द करते | घर में भल डनलप के गद्दे हों फिर भी यहाँ अच्छा लगता क्योंकि मधुबन निवासी बनने से ऑटोमेटिकली सहज और निरन्तर योगी बन जाते | मधुबन की महिमा भी है | मधुबन और मधुबन की मुरली मशहूर है इसलिए मधुबन में आना सब पसन्द करते हैं तो सदैव अपने को मधुबन निवासी समझकर चलना | तो सहज योगी की स्थिति रहेगी | मधुबन याद आने से स्थिति सदा खुश हो जायेगी | मधुबन याद आया तो व्यर्थ संकल्प समाप्त हो समर्थ संकल्प का अनुभव याद आने से समर्थ हो जायेंगे | घर नहीं जाते हो सेवास्थान पर जाते हो | घर में जाकर भी अगर पढ़ाई और बाप तथा सेवा याद रहे तो ख़ुशी और नशा रहेगा | सदा बाप को साथी बनाने वाला सदा नशे और ख़ुशी में अटल रहेगा | सदा बाप और सेवा इसी स्मृति में रहो तो समर्थ रहेंगे | स्थिति सदा अटल रहेगी | अच्छा |

 

जब किसी भी प्रकार का पेपर आता है तो घबराओ नहीं | क्वेश्चन मार्क में नहीं आओ कि यह क्यों आया? इस सोचने में टाइम वेस्ट मत करो | क्वेश्चन मार्क ख़त्म और फुल स्टॉप | तब क्लास चेन्ज होगा अर्थात् पेपर में पास हो जायेंगे | फुलस्टॉप देने वाला फुल पास होगा क्योंकि फुलस्टॉप है बिन्दी की स्टेज | देखते हुए न देखो, सुनते हुए न सुनो | बाप का सुनाया हुआ सुनो, बाप ने जो दिया है वह देखो, इसी प्रैक्टिस से फुल पास होंगे | पेपर में पास होने की निशानी है – आगे बढ़ना अर्थात् चढ़ती कला का अनुभव करेंगे | अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते रहेंगे | सर्व प्राप्ति का अनुभव ऑटोमेटिकली होता रहेगा | अच्छा |

 

2. सभी सन्तुष्ट-मणियाँ हो ना | मणि सदैव मस्तक के बीच में चमकती है | ताज़ के अन्दर सुन्दर मणियाँ होती हैं | तो जो सन्तुष्ट मणि हैं वह सदैव बाप के मस्तक में रहती हैं अर्थात् बाप की याद में रहती हैं | बाप भी उनको याद करते हैं | जब बच्चे बाप को याद करते तो बाप भी रिटर्न देते हैं | सदा बाप की याद में रहने वाले हर परिस्थिति में भी सन्तुष्ट रहेंगे | चाहे परिस्थिति असंतोष की हो, दुःख की घटना हो लेकिन सदा सुखी | दुःख की परिस्थिति में सुख की स्थिति एकरस हो | नॉलेज की शक्ति के आधार पर परिस्थिति जो पहाड़ के मुआफ़िक है वह भी राई अनुभव होगी अर्थात् कुछ नहीं क्योंकि नथिंग न्यू है | ऐसी स्थिति है? कुछ भी हो जाये, नथिंग न्यू – इसको कहा जाता है महावीर |

 

3. अपने को पदमापदम भाग्यशाली समझते हो? हर कदमों में पदमों की कमाई जमा हो रही है | ऐसे अनगिनत पदमों का मालिक अनुभव करते हो | सारी सृष्टि के अन्दर ऐसा अपना श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले कोटों में कोई हैं ना | जो गायन है कोटों में कोई, कोई में कोई यह हम आत्माओं का गायन है क्योंकि साधारण रूप में आये हुए बाप को और बाप के कर्तव्य को जानना, यह कोटों में कोई का पार्ट है | जान लिया, मान लिया और पा लिया | जब विश्व का मालिक अपना हो गया तो विश्व अपनी हो गई ना | जैसे बीज अपने हाथ में है तो वृक्ष तो है ही ना | जिसको ढूंढते थे उसको पा लिया | घर बैठे भगवान मिला, तो कितनी ख़ुशी होनी चाहिए | भगवान ने मुझे अपना बनाया, इसी ख़ुशी में रहो तो कहीं भी आँख नहीं डूबेगी | सामने देखते भी नज़र नहीं जायेगी | बाप मिला सब कुछ मिला, यही सबसे बड़ी ख़ुशी है, इसी ख़ुशी में मन से नाचते रहो | इससे बड़ी ख़ुशी की बात है ही क्या? इसलिए गायन है अतीन्द्रिय सुख पूछना हो तो गोप-गोपियों से पूछो |

 

4. सदा अपने को ख़ुशनसीब समझते हो? सारे विश्व के अन्दर सबसे श्रेष्ठ नसीब अर्थात् तक़दीर हमारी है, ऐसा निश्चय रहता है? हमारे जैसा ख़ुशनसीब और कोई हो नहीं सकता | बाप ने स्वयं आकर अपना बनाया – इस भाग्य का वर्णन करते सदा ख़ुशी में नाचते रहो | उन्हों का नसीब क्या होगा! अभी-अभी सुख होगा, अभी-अभी दुःख होगा, लेकिन आपका नसीब अविनाशी है | सदा ऐसे आनन्द स्वरूप नसीब वाले हो | जो स्वप्न में भी नहीं था वह प्राप्ति हो गई, बाप मिला सबकुछ मिला | इसी ख़ुशी में रहो तो सदा समर्थी स्वरूप रहेंगे |

 

5. सबसे श्रेष्ठ ब्राह्मण जीवन गाया हुआ है, ब्राह्मणों का नाम भी ऊँच और काम भी ऊँचा और स्थिति भी ऊँची | जैसे ब्राह्मणों की महिमा ऊँची है वैसे अपने को सच्चे ब्राह्मण अर्थात् ऊँची स्थिति वाले अनुभव करते हो? ऊँचे ते ऊँचा बाप और ऊँचे ते ऊँचे आप | बाप और आप दोनों ऊँचे इस स्मृति में रहो तो कर्म और संकल्प ऑटोमेटिक ऊँचे रहेंगे |

 

योग अग्नि से पुराने खाते भस्म करो | ऐसी अग्नि तेज हो जो व्यर्थ का नाम-निशान ही ख़त्म हो जाए | संगम पर पुराना ख़ाता ख़त्म कर नया चालू करना है | अगर पुराना खाता भी चलता रहे तो जो प्राप्ति होनी चाहिए ख़ुशी की वह नहीं होगी | अभी-अभी कमज़ोर, अभी समर्थ होंगे | बाप सदा समर्थ है तो बच्चों को भी सदा समर्थ बनना है | अच्छा !

 

6. इस समय दो कार्य साथ-साथ हो रहे हैं | एक तरफ़ पिछला हिसाब-किताब चुक्तू कर रहे हो और दूसरे तरफ़ भविष्य और वर्तमान जमा भी कर रहे हो | एक का लाख गुणा जमा होने का समय अभी है इसलिए सदैव इस बात पर अटेन्शन चाहिए कि हर समय जमा होता है | चुक्तू करते समय भी जमा कर सकते हो क्योंकि चुक्तू करने का साधन है याद | याद से जमा भी होता और चुक्तू भी होता | ऐसा न हो चुक्तू करने में ही टाइम चला जाये | अगर ट्रस्टी बन चुक्तू करते हो तो भी जमा होता है | विधिपूर्वक कार्य करने से चुक्तू के साथ-साथ जमा भी होगा | अच्छा |

 

वरदान:-   

निमित्त और निर्माण भाव से सेवा करने वाले श्रेष्ठ सफलतामूर्त भव !    

सेवाधारी अर्थात् सदा बाप समान निमित्त बनने और निर्माण रहने वाले | निर्माणता ही श्रेष्ठ सफलता का साधन है | किसी भी सेवा में सफलता प्राप्त करने के लिए नम्रता भाव और निमित्त भाव धारण करो, इससे सेवा में सदा मौज का अनुभव करेंगे | सेवा में कभी थकावट नहीं होगी | कोई भी सेवा मिले लेकिन इन दो विशेषताओं से सफलता को पाते सफलता स्वरूप बन जायेंगे |

 

स्लोगन:- 
सेकण्ड में विदेही बनने का अभ्यास हो तो सूर्यवंशी में आ जायेंगे |     

 

ओम् शान्ति |