15-05-14   प्रातः मुरली   ओम् शान्ति   “बापदादा”   मधुबन


मीठे बच्चे बाप से करेन्ट लेनी है तो सर्विस में लगे रहो, जो बच्चे सब कुछ त्याग बाप की सर्विस में रहते हैं वही प्यारे लगते हैं, दिल पर चढ़ते हैं |   
प्रश्न:-   
बच्चों को स्थाई ख़ुशी क्यों नहीं रहती, मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:-
याद के समय बुद्धि भटकती है, स्थिर बुद्धि न होने कारण ख़ुशी नहीं रह सकती | माया के तूफ़ान दीपकों को हैरान कर देते हैं | जब तक कर्म, अकर्म नहीं बनते हैं तब तक ख़ुशी स्थाई नहीं रह सकती है इसलिए बच्चों को यही मेहनत करनी है |
ओम् शान्ति |

जब ओम् शान्ति कहते हैं तो बड़े हुल्लास से कहते हैं हम आत्मा शान्त स्वरूप हैं | अर्थ कितना सहज है | बाप भी कहेंगे ओम् शान्ति | दादा भी कहेंगे ओम् शान्ति | वह कहते हैं मैं परमात्मा हूँ, यह कहते मैं आत्मा हूँ | तुम सब सितारे हो | सब सितारों का बाप भी चाहिए ना | गाया जाता है सूर्य, चाँद और लकी सितारे | तुम बच्चे हो मोस्ट लकी सितारे | उनमें भी नम्बरवार हैं | जैसे रात को चन्द्रमा निकलता है फिर सितारों में कोई डिम होते हैं, कोई बड़े तीखे होते हैं | कोई चन्द्रमा के आगे होते हैं | सितारे हैं ना | तुम भी ज्ञान सितारे हो | चमकता है भ्रकुटी के बीच में वन्डरफुल सितारा | बाप कहते हैं यह सितारे (आत्मायें) बड़े वन्डरफुल हैं | एक तो इतनी छोटी बिन्दी है, जिसका कोई को पता नहीं है | आत्मा ही शरीर से पार्ट बजाती है | यह बड़ा वन्डर है | तो तुम बच्चों में भी नम्बरवार हैं | कोई कैसे, कोई कैसे | बाप उनको बैठ याद करते हैं जो सितारे अच्छे चमकते हैं, जो बहुत सर्विस करते हैं, उनको करेन्ट मिलती जाती है | तुम्हारी बैटरी भरती जाती है | तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने के लिए सर्च लाईट मिलती है नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार | बाप कहते हैं जो मेरे अर्थ सब कुछ त्याग सर्विस में लगे रहते हैं, वह बहुत प्यारे लगते है | दिल पर भी चढ़ते हैं | बाप दिल लेने वाला है ना | दिलवाला मन्दिर भी है ना | अब दिलवाला या दिल लेने वाला मन्दिर | किसका दिल लेने वाला? तुमने देखा है ना | प्रजापिता ब्रह्मा बैठा है ना | ज़रूर उनमें शिवबाबा की प्रवेशता है और फिर तुम देखते हो – ऊपर में स्वर्ग की स्थापना भी है, नीचे बच्चे तपस्या में बैठे हैं | यह तो छोटा मॉडल रूप में बनाया हुआ है | तो जो बहुत अच्छी सर्विस करते हैं, बहुत मददगार हैं | महारथी, घोड़ेसवार, प्यारे हैं ना | यह मन्दिर यादगार बहुत अच्छा एक्यूरेट बना हुआ है | तुम कहेंगे यह हमारा ही यादगार है | अभी तुमको रोशनी मिली है और कोई को भी ज्ञान का तीसरा नेत्र नहीं है | भक्ति मार्ग में तो जो मनुष्यों को सुनाते हैं, सत सत करते जाते हैं | वास्तव में है झूठ, उसको सत समझते हैं | अब बाप जो ट्रुथ है, वह बैठकर तुमको ट्रुथ सुनाते हैं, जिससे तुम विश्व के मालिक बनते हो | बाप तो कुछ भी मेहनत नहीं कराते हैं | सारे झाड़ का राज़ तुम्हारी बुद्धि में बैठ गया है | तुमको समझाते तो बहुत सहज हैं, परन्तु टाइम क्यों लगता है? नॉलेज वा वर्सा लेने में टाइम नहीं लगता | टाइम लगता है पवित्र बनने में | मुख्य है याद की यात्रा | यहाँ तुम आते हो तो यहाँ अटेन्शन जास्ती होता है याद की यात्रा में | घर में जाने से इतना नहीं रहता | यहाँ सब नम्बरवार हैं | कोई तो यहाँ बैठे होंगे, बुद्धि में यही नशा होगा – हम बच्चे, वह बाप है | बेहद का बाप और हम बच्चे बैठे हैं | तुम बच्चे जानते हो बाप इस शरीर में आया हुआ है | दिव्य दृष्टि दे रहे हैं, सर्विस कर रहे हैं | तो उस एक को ही याद करना चाहिए | और कोई तरफ़ बुद्धि जानी नहीं चाहिए | सन्देशी पूरी रिपोर्ट दे सकती है – किसकी बुद्धि बाहर भटकती है, कौन क्या करते हैं, किसको झुटका आता है, सब बता सकती है | 

जो सितारे अच्छे सर्विसएबुल हैं, उन्हों को ही देखता रहता हूँ | बाप का लव है ना | स्थापना में मदद करते हैं | हुबहू कल्प पहले मिसल यह राजधानी स्थापन हो रही है, अनेक बार हुई है | यह तो ड्रामा का चक्र चलता रहता है | इसमें फ़िक्र की भी कोई बात नहीं रहती | बाबा के साथ हैं ना | तो संग का रंग लगता है | फ़िक्र कम होती जाती है | यह तो ड्रामा बना हुआ है | बाप बच्चों के लिए स्वर्ग की राजधानी ले आये हैं | सिर्फ़ कहते हैं मीठे-मीठे बच्चों, पतित से पावन बनने के लिए बाप को याद करो | अब जाना है स्वीट होम, जिसके लिए ही तुम भक्ति मार्ग में माथा मारते हो | परन्तु एक भी जा नहीं सकते | अब बाप को याद करते रहो और स्वदर्शन चक्र फिराते रहो | अल्फ़ और बे | बाप को याद करो और 84 का चक्र फिराओ | आत्मा को 84 के चक्र का गायन हुआ है | रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को कोई भी नहीं जानते हैं | तुम जानते हो सो भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार | सुबह को उठकर तुम बुद्धि में यही रखो – अब हमने 84 का चक्र पूरा किया है, अब वापिस जाना है इसलिए अब बाप को याद करना है तो तुम चक्रवर्ती बनेंगे | यह तो सहज है ना | परन्तु माया तुमको भुला देती है | माया के तूफ़ान हैं ना, वह दीपकों को हैरान कर देते हैं | माया बड़ी दुस्तर है, इतनी शक्ति है जो बच्चों को भुला देती है | वह ख़ुशी स्थाई नहीं रहती है | तुम बाप को याद करने बैठते हो, बैठे-बैठे बुद्धि और तरफ़ चली जाती है | यह सब हैं गुप्त बातें | कितनी भी कोशिश करेंगे परन्तु याद कर नहीं सकेंगे | फिर कोई की बुद्धि भटक-भटक कर स्थिर हो जाती है, कोई फट से स्थिर हो जाते हैं, कोई से तो कितना भी माथा मारो तो भी बुद्धि में ठहरता नहीं | इसको माया की युद्ध कहा जाता है | कर्म, अकर्म बनाने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है | वहाँ तो रावण राज्य ही नहीं तो कर्म-विकर्म भी नहीं होते | माया होती ही नहीं जो उल्टा कर्म कराये | रावण और राम का खेल है | आधाकल्प है राम राज्य, आधाकल्प है रावण राज्य | दिन और रात | संगमयुग पर सिर्फ़ ब्राह्मण होते हैं | अब तुम ब्राह्मण समझते हो रात पूरी हो दिन शुरू होना है | वह शूद्र वर्ण वाले थोड़ेही समझते हैं |

मनुष्य तो बहुत आवाज़ से भक्ति आदि के गीत गाते हैं | तुमको तो जाना है आवाज़ से परे | तुम तो अपने बाप की ही याद में मस्त रहते हो | आत्मा को ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है | आत्मा समझती है अब बाप को याद करना है | भक्ति मार्ग में शिवबाबा-शिवबाबा तो करते आये हैं | शिव के मन्दिर में शिव को बाबा ज़रूर कहते हैं | ज्ञान कुछ भी नहीं | अब तुमको ज्ञान मिला है | वह शिवबाबा है, उनका यह चित्र है, वह तो लिंग ही समझते हैं | अब तुमको तो ज्ञान मिला है | वह लिंग के ऊपर जाकर लोटी चढ़ाते हैं | अब बाप तो है निराकार | निराकार के ऊपर लोटी चढ़ायेंगे, वह क्या करेंगे! साकार हो तो स्वीकार भी करे | निराकार पर दूध आदि चढ़ायेंगे, वह क्या करेंगे! बाप कहते हैं दूध आदि जो चढ़ाते हो वह तुम ही पीते हो, भोग आदि भी तुम ही खाते हो | यहाँ तो मैं सम्मुख हूँ ना | आगे इनडायरेक्ट करते थे, अभी तो डायरेक्ट है, नीचे आकर पार्ट बजा रहे हैं | सर्चलाईट दे रहे हैं | बच्चे समझते हैं मधुबन में बाबा के पास ज़रूर आना चाहिए | वहाँ हमारी बैटरी अच्छी चार्ज होती है | घर में तो गोरख़धन्धे आदि में अशान्ति ही अशान्ति लगी हुई है | इस समय सारे विश्व में अशान्ति है | तुम जानते हो अभी हम शान्ति स्थापन कर रहे हैं योगबल से | बाकी राजाई मिलती है पढ़ाई से | कल्प पहले भी तुमने यह सुना था, अब भी सुनते हो | जो कुछ एक्ट होती है फिर भी होगी | बाप कहते हैं कितने बच्चे आश्चर्यवत् भागन्ती हो गये | मुझ माशूक को इतना याद करते थे | अब मैं आया हूँ तो फिर छोड़कर चले जाते हैं | माया कैसा थप्पड़ लगा देती है | बाबा अनुभवी तो है ना! बाबा को अपनी सारी हिस्ट्री याद है | सर पर टोपी, नंगे पाँव दौड़ता था.......मुसलमान लोग भी बहुत प्यार करते थे | बहुत खातिरी करते थे | मास्टर का बच्चा आया जैसे गुरु का बच्चा आया | बाजरी का ढोढा खिलाते थे | यहाँ भी बाबा ने 15 दिन प्रोग्राम दिया था ढोढा और छांछ खाने का | और कुछ भी नहीं बनता था | बीमार आदि सबके लिए यही बनता था | किसको कुछ भी हुआ नहीं | और ही बीमार बच्चे तन्दुरुस्त हो गये | देखते थे आसक्ति टूटी हुई है! यह नहीं होना चाहिए या यह चाहिए | चाहना को चुहरा (जमादार) कहा जाता है | यहाँ तो बाप कहते हैं मांगने से मरना भला | बाप ही जानते हैं – बच्चों को क्या देना है | जो कुछ देना होगा वह खुद ही देंगे | यह सब ड्रामा बना हुआ है

बाबा ने तो पूछा था ना बाप को जो बाप भी समझते हैं और बचच्चा भी समझते हैं, वह हाथ उठायेँ  तो सबने हाथ उठाया | हाथ तो झट उठा देते हैं | जैसे बाबा पूछते हैं लक्ष्मी-नारायण कौन बनेंगे? तो झट हाथ उठायेंगे | यह पारलौकिक बच्चा भी ज़रूर एड करते हैं, यह तो माँ-बाप की बहुत सेवा करते हैं | 21 जन्म का वर्सा देते हैं | बाप जब वानप्रस्थ में जाते हैं तो फिर बच्चों का फ़र्ज़ है बाप की सम्भाल करना | वह जैसे सन्यासी बन जाते हैं | जैसे इनका लौकिक बाप था, वानप्रस्थ अवस्था हुई तो बोला हम जाकर बनारस में सतसंग करेंगे, हमको वहाँ ले चलो | (हिस्ट्री सुनाना) तुम हो ब्राह्मण प्रजापिता ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ | प्रजापिता ब्रह्मा है ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर | सबसे पहला पत्ता है मनुष्य सृष्टि का | इनको ज्ञान सागर नहीं कहा जाता | न ब्रह्मा-विष्णु-शंकर ही ज्ञान के सागर हैं | शिवबाबा वह है बेहद का बाप, तो उनसे वर्सा मिलना चाहिए ना | वह निराकार परमपिता परमात्मा कब, कैसे आया, उनकी जयन्ती मनाते हैं | यह कोई को पता नहीं | यह तो गर्भ में नहीं आते हैं | समझाते हैं मैं इनमें प्रवेश करता हूँ, बहुत जन्मों के अन्त में वानप्रस्थ अवस्था में | मनुष्य जब सन्यास करते हैं तो उनकी वानप्रस्थ अवस्था कही जाती है | तो अब बाप तुमको कहते हैं – बच्चे, तुमने पूरे 84 जन्म लिए, यह है बहुत जन्मों के अन्त का जन्म | हिसाब तो जानते हो ना तो मैं इनमें प्रवेश करता हूँ | कहाँ आकर बैठता हूँ, इनकी आत्मा जहाँ बैठी है, उनके बाजू में आकर बैठता हूँ | जैसे गुरु लोग अपने शिष्य को बाजू में गद्दी पर बिठाते हैं | इनका भी स्थान यहाँ है, मेरा भी यहाँ है | कहता हूँ हे आत्माओं, मामेकम् याद करो तो पाप विनाश हो जायेंगे | मनुष्य से देवता बनना है ना | यह है राजयोग | नई दुनिया के लिए ज़रूर राजयोग चाहिए | बाप कहते हैं मैं आया हूँ आदि सनातन देवी-देवता धर्म का फाउन्डेशन लगाने | गुरु लोग अनेक हैं, सतुगुरु एक है, वही सत्य है | बाकी तो सब झूठ हैं | 

तुम जानते हो एक है रूद्र माला, दूसरी है वैजयन्ती माला विष्णु की | उसके लिए तुम पुरुषार्थ करते हो, बाप को याद करो तो माला का दाना बनेंगे | जिस माला का तुम भक्ति मार्ग में सिमरण करते हो परन्तु जानते नहीं हो कि यह माला किसकी है, ऊपर में फूल कौन है, फिर मेरु क्या है, दाने कौन हैं? जिसकी माला फेरते हैं, समझते कुछ नहीं | ऐसे ही राम-राम कहते माला फेरते रहते हैं | राम-राम कहने से समझते हैं सब राम ही राम हैं | सर्वव्यापी की बात का अन्धियारा इससे निकला है | माला का अर्थ ही नहीं जानते | कोई कहते 100 माला फेरो....इतनी माला फेरो | बाप तो अनुभवी है ना | 12 गुरु किये, 12 का अनुभव लिए | ऐसे भी बहुत होते हैं, अपना गुरु होते भी फिर औरों के पास जाते हैं कि कुछ अनुभव मिल जाए | माला आदि फेरते हैं | है बिल्कुल अन्धश्रद्धा | माला पूरी कर फूल को नमस्कार करते हैं | शिवबाबा फूल है ना | माला के दाने तुम अनन्य बच्चे बनते हो | तुम्हारा फिर सिमरण चलता है | उनको कुछ भी पता नहीं | वह तो कोई राम कहते, कोई कृष्ण को याद करते, अर्थ कुछ भी नहीं | श्रीकृष्ण शरणम् कह देते  | अब वह तो सतयुग का प्रिन्स था | उनकी शरण कैसे लेंगे | शरण तो बाप की ली जाती है | तुम ही पूज्य फिर पुजारी बनते हो | 84 जन्म ले पतित बने हो तो शिवबाबा को कहते हैं हे फूल, हमको भी आपसमान बनाओ |  अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते | 

धारणा के लिए मुख्य सार:-  

1. किसी भी प्रकार की चाहना नहीं रखनी है | आसक्ति ख़त्म कर देनी है | बाबा जो खिलाये.... तुम्हें डायरेक्शन है, मांगने से मरना भला | 

2. बाप की सर्चलाईट लेने के लिए एक बाप से सच्चा लव रखना है | बुद्धि में नशा रहे कि हम बच्चे हैं, वह बाप है | उनकी सर्चलाईट से हमें तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है |

 

वरदान:-  
टेन्शन से परेशान दुःखी आत्माओं को हिम्मत देकर आगे बढ़ाने वाले मास्टर रहमदिल भव !    

वर्तमान समय बहुत सी आत्मायें अन्दर टेन्शन से दुःखी परेशान हैं, बिचारों में आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं है | आप उन्हें हिम्मत दो | जैसे किसको टांग नहीं होती है तो लकड़ी की टांग बनाकर देते हैं तो चलने लगता है | ऐसे आप उन्हें हिम्मत की टांग दो, क्योंकि बापदादा देखते हैं अज्ञानी बच्चों का अन्दर क्या हाल है, बाहर का शो तो बहुत अच्छा टिपटाप है लेकिन अन्दर बहुत दुःखी हैं तो मास्टर रहमदिल बनो |


स्लोगन:-
निर्माण बनो, कोमल नहीं, निर्माणता ही महानता है |    

 

ओम् शान्ति |