16-08-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


"मीठे बच्चे - तुम पवित्र बनने के बिगर वापिस जा नहीं सकते इसलिए बाप की याद से आत्मा की बैटरी को चार्ज करो और नैचुरल पवित्र बनो ।"   

                            
प्रश्न:-   
बाबा तुम बच्चों को घर चलने के पहले कौन-सी बात सिखलाते हैं?


उत्तर:-
बच्चे, घर चलने के पहले जीते जी मरना है इसलिए बाबा तुम्हें पहले से ही देह के भान से परे ले जाने का अभ्यास कराते हैं अर्थात् मरना सिखलाते हैं । ऊपर जाना माना मरना । जाने और आने का ज्ञान अभी तुम्हें मिला है । तुम जानते हो हम आत्मा ऊपर से आई हैं, इस शरीर द्वारा पार्ट बजाने । हम असुल वहाँ के रहने वाले हैं, अभी वहाँ ही वापिस जाना है ।

 

ओंम् शान्ति |

अपने को आत्मा समझ बाप को याद करने में कोई तकलीफ नहीं है, घुटका नहीं खाना है । इसको कहा जाता है सहज याद । पहले-पहले अपने को आत्मा ही समझना है । आत्मा ही शरीर धारण कर पार्ट बजाती है । संस्कार भी सब आत्मा में ही रहते हैं । आत्मा तो इन्डिपेन्डेट है । बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो । यह नॉलेज अभी ही तुमको मिलती है, फिर नहीं मिलेगी । तुम्हारा यह शान्त में बैठना दुनिया नहीं जानती, इसको कहा जाता है नैचुरल शान्ति । हम आत्मा ऊपर से आई हैं, इस शरीर द्वारा पार्ट बजाने । हम आत्मा असुल वहाँ के रहने वाले हैं । यह बुद्धि में ज्ञान है । बाकी इसमें हठयोग की कोई बात नहीं, बिल्कुल सहज है । अभी हम आत्माओं को घर जाना है परन्तु पवित्र बनने बिगर जा नहीं सकते । पवित्र होने के लिए परमात्मा बाप को याद करना है । याद करते-करते पाप मिट जायेंगे । तकलीफ की तो कोई बात ही नहीं । तुम पैदल करने जाते हो तो बाप की याद में रहो । अभी ही याद से पवित्र बन सकते हो । वहाँ वह तो है पवित्र दुनिया । वहाँ उस पावन दुनिया में इस ज्ञान की कोई दरकार नहीं रहती क्योंकि वहाँ कोई विकर्म होता नहीं । यहाँ याद से विकर्म विनाश करने हैं । वहाँ तो तुम नैचुरल चलते हो, जैसे यहाँ चलते हो । फिर थोड़ा- थोड़ा नीचे उतरते हो । ऐसे नहीं कि वहाँ भी तुमको यह प्रैक्टिस करना है । प्रैक्टिस अभी ही करना है । बैटरी अब चार्ज करना है फिर आहिस्ते- आहिस्ते बैटरी डिस-चार्ज होना ही है । बैटरी चार्ज होने का ज्ञान अभी एक ही बार तुमको मिलता है । सतोप्रधान से तमोप्रधान बनने में तुमको कितना समय लग जाता है! शुरू से लेकर कुछ न कुछ बैटरी कम होती जाती है । मूलवतन में तो हैं ही आत्मायें । शरीर तो है नहीं । तो नैचुरल उतरने अर्थात् बैटरी कम होने की बात ही नहीं । मोटर जब चलेगी तब तो बैटरी कम होती जायेगी । मोटर खड़ी होगी तो बैटरी थोड़ेही चालू होगी । मोटर जब चले तब बैटरी चालू होगी । भल मोटर में बैटरी चार्ज होती रहती है लेकिन तुम्हारी बैटरी एक ही बार इस समय चार्ज होती है । तुम फिर जब यहाँ शरीर से कर्म करते हो फिर थोड़ी बैटरी कम होती जाती है । पहले तो समझाना है कि वह है सुप्रीम फादर, जिसको सब आत्मायें याद करती हैं । हे भगवान कहते हैं, वह बाप है, हम बच्चे हैं । यहाँ तुम बच्चों को समझाया जाता है, बैटरी कैसे चार्ज करनी है । भल घूमो फिरो, बाप को याद करो तो सतोप्रधान बन जायेंगे । कोई भी बात न समझो तो पूछ सकते हो । है बिल्कुल सहज । 5 हजार वर्ष बाद हमारी बैटरी डिस्चार्ज हो जाती है । बाप आकर सबकी बैटरी चार्ज कर देते हैं । विनाश के समय सब ईश्वर को याद करते हैं । समझो बाढ़ हुई तो भी जो भक्त होंगे वह भगवान को ही याद करेंगे परन्तु उस समय भगवान की याद आ नहीं सकती । मित्र-सम्बन्धी, धन-दौलत ही याद आ जाता है । भल ' हे भगवान' कहते हैं परन्तु वह भी कहने मात्र । भगवान बाप है, हम उनके बच्चे हैं । यह तो जानते ही नहीं । उनको सर्वव्यापी का उल्टा ज्ञान मिलता है । बाप आकर सुल्टा ज्ञान देते हैं । भक्ति की डिपार्टमेंट ही अलग है । भक्ति में ठोकरें खानी होती हैं । ब्रह्मा की रात सो ब्राह्मणों की रात है । ब्रह्मा का दिन सो ब्राह्मणों का दिन है । ऐसा तो नहीं कहेंगे शूद्रों का दिन, शूद्रों की रात । यह राज बाप बैठ समझाते हैं । यह है बेहद की रात वा दिन । अभी तुम दिन में जाते हो, रात पूरी होती है । यह अक्षर शास्त्रों में हैं । ब्रह्मा का दिन, ब्रह्मा की रात कहते हैं परन्तु जानते नहीं हैं । तुम्हारी बुद्धि अब बेहद में चली गई है । यू तो देवताओं को भी कह सकते हैं-विष्णु का दिन, विष्णु की रात क्योंकि विष्णु और ब्रह्मा का सम्बन्ध भी समझाया जाता है । त्रिमूर्ति का आक्यूपेशन क्या है- और तो कोई समझ न सके । वह तो भगवान को ही कच्छ-मच्छ में वा जन्म-मरण के चक्र में ले गये हैं । राधे-कृष्ण आदि भी मनुष्य हैं, परन्तु दैवी गुणों वाले । अभी तुमको ऐसा बनना है । दूसरे जन्म में देवता बन जायेंगे । 84 जन्मों का जो हिसाब- किताब था वह अब पूरा हुआ । फिर रिपीट होगा । अब तुमको यह शिक्षा मिल रही है । बाप कहते हैं - मीठे-मीठे बच्चों, अपने को आत्मा निक्षय करो । कहते भी हैं हम पार्टधारी हैं । परन्तु हम आत्मायें ऊपर से कैसे आती हैं-यह नहीं समझते हैं । अपने को देहधारी ही समझ लेते हैं । हम आत्मा ऊपर से आती हैं फिर कब जायेंगी? ऊपर जाना माना मरना, शरीर छोड़ना । मरना कौन चाहते हैं? यहाँ तो बाप ने कहा है-तुम इस शरीर को भूलते जाओ । जीते जी मरना तुमको सिखालाते हैं, जो और कोई सिखला न सके । तुम आये ही हो अपने घर जाने के लिए । घर कैसे जाना है-यह ज्ञान अभी ही मिलता है । तुम्हारा इस मृत्युलोक का यह अन्तिम जन्म है । अमरलोक सतयुग को कहा जाता है । अभी तुम बच्चों की बुद्धि में है-हम जल्दी-जल्दी जावें । पहले-पहले तो घर मुक्तिधाम में जाना पड़ेगा । यह शरीर रूपी कपड़ा यहाँ ही छोड़ना है फिर आत्मा चली जायेगी घर । जैसे हद के नाटक के एक्टर्स होते हैं, नाटक पूरा हुआ तो कपड़े वहाँ ही छोड़कर घर के कपड़े पहन घर में जाते हैं । तुम्हें भी अब यह चोला छोड़ जाना है । सतयुग में तो थोड़े देवतायें होते हैं । यहाँ तो कितने मनुष्य हैं अनगिनत । वहाँ तो होगा ही एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म । अभी तो अपने को हिन्दू कह देते हैं । अपने श्रेष्ठ धर्म-कर्म को भूल गये हैं तब तो दुखी हुए हैं । सतयुग में तुम्हारा श्रेष्ठ कर्म, धर्म था । अभी कलियुग में धर्म भ्रष्ट हैं । बुद्धि में आता है कि हम कैसे गिरे हैं? अभी तुम बेहद के बाप का परिचय देते हो । बेहद का बाप ही आकर नई दुनिया स्वर्ग रचते हैं । कहते हैं मनमनाभव । यह गीता के ही अक्षर हैं । सहज राजयोग के ज्ञान का नाम रख दिया जाता है गीता । यह तुम्हारी पाठशाला है । बच्चे आकर पढ़ते हैं तो कहेंगे हमारे बाबा की पाठशाला है । जैसे कोई बच्चे का बाप प्रिन्सीपल होगा तो कहेंगे हम अपने बाबा के कॉलेज में पढ़ते हैं । उनकी माँ भी प्रिन्सीपल है तो कहेंगे हमारे माँ-बाप दोनों प्रिन्सीपल हैं । दोनों पढ़ाते हैं । हमारे मम्मा-बाबा का कॉलेज है । तुम कहेंगे हमारे मम्मा-बाबा की पाठशाला है । दोनों ही पढ़ाते हैं । दोनों ने यह रूहानी कॉलेज वा युनिवर्सिटी खोली है । दोनों इकट्ठे पढ़ाते हैं । ब्रह्मा ने एडाप्ट किया है ना । यह बहुत गुह्य ज्ञान की बातें हैं । बाप कोई नई बात नहीं समझाते हैं । यह तो कल्प पहले भी समझानी दी है । हाँ, इतनी नॉलेज है जो दिन-प्रतिदिन गुह्य होती जाती है । आत्मा की समझानी देखो अभी तुमको कैसे मिलती है । इतनी छोटी सी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है । वह कभी विनाश नहीं होता । आत्मा अविनाशी तो उनमें पार्ट भी अविनाशी है । आत्मा ने कानों द्वारा सुना । शरीर है तो पार्ट है । शरीर से आत्मा अलग हो जाती है तो जवाब नहीं मिलता । अभी बाप कहते हैं-बच्चे, तुमको वापिस घर चलना है । यह पुरूषोत्तम युग जब आता है तब ही वापिस जाना होता है, इसमें पवित्रता ही मुख्य चाहिए । शान्तिधाम में तो पवित्र आत्मायें ही रहती हैं । शान्तिधाम और सुखधाम दोनों ही पवित्र धाम हैं । वहाँ शरीर है नहीं । आत्मा पवित्र है, वहाँ बैटरी डिस्चार्ज नहीं होती । यहाँ शरीर धारण करने से मोटर चलती है । मोटर खड़ी होगी तो पेट्रोल कम थोड़ेही होगा । अभी तुम्हारी आत्मा की ज्योत बहुत कम हो गई है । एकदम बुझ नहीं जाती है । जब कोई मरता है तो दीवा जलाते हैं । फिर उसकी बहुत सम्भाल रखते हैं कि बुझ न जाए । आत्मा की ज्योत कभी बुझती नहीं है, वह तो अविनाशी है । यह सब बातें बाप बैठ समझाते हैं । बाबा जानते हैं कि यह बहुत स्वीट चिल्हेन हैं, यह सब काम चिता पर बैठ जलकर भस्म हो गये हैं । फिर इन्हों को जगाता हूँ । बिल्कुल ही तमोप्रधान मुर्दे बन पड़े हैं । बाप को जानते ही नहीं । मनुष्य कोई काम के नहीं रहे हैं । मनुष्य की मिट्टी कोई काम की नहीं रहती है । ऐसे नहीं कि बड़े आदमी की मिट्टी कोई काम की है, गरीबों की नहीं । मिट्टी तो मिट्टी में मिल जाती है फिर भल कोई भी हो । कोई जलाते हैं, कोई कब्र में बंद कर देते हैं । पारसी लोग कुएं पर रख देते हैं फिर पंछी मास खा लेते हैं’ । फिर हड्डियाँ जाकर नीचे पड़ती है । वह फिर भी काम आती है । दुनिया में तो ढेर मनुष्य मरते हैं । अभी तुमको तो आपेही शरीर छोड़ना है । तुम यहाँ आये ही हो शरीर छोड़कर वापिस घर जाने अर्थात् मरने । तुम खुशी से जाते हो कि हम जीवनमुक्ति में जायेंगे । 

जिन्होंने जो पार्ट बजाया है, अन्त तक वही बजायेंगे । बाप पुरूषार्थ कराते रहेंगे, साक्षी हो देखते रहेंगे। यह तो समझ की बात है, इसमें डरने की कोई बात नहीं है । हम स्वर्ग में जाने के लिए खुद ही पुरूषार्थ कर शरीर छोड़ देते हैं । बाप को ही याद करते रहना है तो अन्त मती सो गति हो जाए, इसमें मेहनत है । हर एक पढ़ाई में मेहनत है । भगवान को आकर पढ़ाना पडता है । जरूर पढ़ाई बड़ी होगी, इसमें दैवीगुण भी चाहिए । यह लक्ष्मी-नारायण बनना है ना । यह सतयुग में थे । अब फिर तुम सतयुगी देवता बनने आये हो । एम ऑबजेक्ट कितनी सहज है । त्रिमूर्ति में क्लीयर है । यह ब्रह्मा, विष्णु, शंकर आदि के चित्र न हों तो हम समझा कैसे सकते । ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा । ब्रह्मा की 8 भुजा, 100 भुजा दिखाते हैं क्योंकि ब्रह्मा  के कितने ढेर बच्चे होते हैं । तो उन्होंने फिर वह चित्र बना दिया है । बाकी मनुष्य कोई इतनी भुजाओं वाला होता थोड़ेही है । रावण 10 शीश का भी अर्थ है, ऐसा मनुष्य होता नहीं । यह बाप ही बैठ समझाते हैं, मनुष्य तो कुछ भी जानते नहीं । यह भी खेल है, यह कोई को पता नहीं है कि यह कब से शुरू हुआ है । परम्परा कह देते हैं । अरे, वह भी कब से? तो मीठे-मीठे बच्चों को बाप पढ़ाते हैं, वह टीचर भी है तो गुरू भी है । तो बच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए । 

यह म्युजियम आदि किसके डायरेक्शन से खोलते हैं? यहाँ है ही माँ, बाप और बच्चे । ढेर बच्चे हैं । डायरेक्शन पर खोलते रहते हैं । लोग कहते हैं तुम कहते हो भगवानुवाच तो रथ द्वारा हमको भगवान का साक्षात्कार कराओ । अरे, तुमने आत्मा का साक्षात्कार किया है? इतनी छोटी-सी बिन्दु का साक्षात्कार तुम क्या कर सकेंगे! जरूरत ही नहीं है । यह तो आत्मा को जानना होता है । आत्मा भ्रकुटी के बीच रहती है, जिसके आधार पर ही इतना बड़ा शरीर चलता है । अभी तुम्हारे पास न लाइट का, न रत्न जड़ित ताज है । दोनों ताज लेने लिए फिर से तुम पुरूषार्थ कर रहे हो । कल्प-कल्प तुम बाप से वर्सा लेते हो । बाबा पूछते हैं आगे कब मिले हो? तो कहते हैं - हाँ बाबा, कल्प-कल्प मिलते आये हैं क्यों? यह लक्ष्मी-नारायण बनने के लिए । यह सभी एक ही बात बोलेंगे । बाप कहते हैं- अच्छा, शुभ बोलते हो, अब पुरूषार्थ करो । सब तो नर से नारायण नहीं बनेंगे, प्रजा भी तो चाहिए । कथा भी होती है सत्य नारायण की । वो लोग कथा सुनाते हैं, परन्तु बुद्धि में कुछ भी नहीं आता । तुम बच्चे समझते हो वह है शान्तिधाम, निराकारी दुनिया । फिर वहाँ से जायेंगे सुखधाम । सुखधाम में ले जाने वाला एक ही बाप है । तुम कोई को समझाओ, बोलो अभी वापिस घर जायेंगे । आत्मा को अपने घर तो अशरीरी बाप ही ले जायेंगे । अभी बाप आये है, उनको जानते नहीं । बाप कहते हैं मैं जिस तन में आया हूँ, उनको भी नहीं जानते । रथ भी तो है ना । हर एक रथ में आत्मा प्रवेश करती है । सबकी आत्मा भ्रकुटी के बीच रहती है । बाप आकर भ्रकुटी के बीच में बैठेगा । समझाते तो बहुत सहज हैं । पतित-पावन तो एक ही बाप है, बाप के सब बच्चे एक समान हैं । उनमें हर एक का अपना- अपना पार्ट है, इसमें कोई इंटरफियर नहीं कर सकता । अच्छा! 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. इस शरीर रूपी कपड़े से ममत्व निकाल जीते जी मरना है अर्थात् अपने सब पुराने हिसाब-किताब चुक्तू करने हैं । 

2. डबल ताजधारी बनने के लिए पढ़ाई की मेहनत करनी है । दैवी गुण धारण करने हैं । जैसा लक्ष्य है, शुभ बोल है, ऐसा पुरूषार्थ करना है ।

 

वरदान:-

दृढ़ता की शक्ति द्वारा सफलता प्राप्त करने वाले त्रिकालदर्शी आसनधारी भव !    

दृढ़ता की शक्ति श्रेष्ठ शक्ति है जो अलबेलेपन की शक्ति को सहज परिवर्तन कर देती है । बापदादा का वरदान है - जहाँ दृढ़ता है वहाँ सफलता है ही । सिर्फ जैसा समय, वैसी विधि से सिद्धि स्वरूप बनो । कोई भी कर्म करने के पहले उसके आदि-मध्य- अन्त को सोच-समझकर कार्य करो और कराओ अर्थात् त्रिकालदर्शी आसनधारी बनो तो अलबेलापन समाप्त हो जायेगा । संकल्प रूपी बीज शक्तिशाली दृढ़ता सम्पन्न हो तो वाणी और कर्म में सहज सफलता है ही ।

 

स्लोगन:- 

सदा सन्तुष्ट रह सर्व को सन्तुष्ट करने वाले ही सन्तुष्टमणि हैं ।   

 

ओम् शान्ति |