30-11-14    प्रातः मुरली   ओम् शान्ति “अव्यक्त  बापदादा”  रिवाइज 30-03-98    मधुबन
 


सर्व प्राप्तियों की स्मृति इमर्ज कर अचल स्थिति का अनुभव करो और जीवन मुक्त बनो

आज भाग्य विधाता बाप अपने विश्व में सर्व श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चों को देख रहे हैं । हर बच्चे के भाग्य की महिमा स्वयं भगवान गा रहे हैं । बाप की महिमा तो आत्मायें गाती हैं लेकिन आप बच्चों की महिमा स्वयं बाप करते हैं । ऐसे कभी स्वप्न में भी सोचा कि हमारा इतना श्रेष्ठ भाग्य बना हुआ है लेकिन बना हुआ था, बन गया । दुनिया के लोग कहते हैं भगवान ने हमको रचा लेकिन न भगवान का पता है, न रचना का पता है । आप हर एक भाग्यवान बच्चा अनुभव और फखुर से कहते हो कि हम शिव वंशी ब्रह्माकुमार ब्रह्माकुमारियां हैं । हमको मालूम है कि हमें बापदादा ने कैसे रचा । चाहे छोटा बच्चा है, चाहे बुजुर्ग पाण्डव है, शक्तियां हैं किसी से भी पूछेंगे आपका बाप कौन है, तो क्या कहेंगे? फलक से कहेंगे ना कि हमको शिव बाप ने ब्रह्मा बाप द्वारा रचा इसलिए हम भगवान के बच्चे हैं । भगवान से डायरेक्ट मिलते हैं, न सिर्फ परम आत्मा वा भगवान हमारा बाप है लेकिन वह बाप भी है, शिक्षक भी है और सतगुरू भी है । सबको यह नशा है? (ताली बजाई) एक हाथ की ताली बजाना - अभी यह भी एक्सरसाइज बुजुर्गों को सिखानी पड़ेगी । बच्चों को खुश देख बापदादा भी खुशी में झूलते हैं और सदा कहते - वाह मेरे हर एक श्रेष्ठ भाग्यवान विशेष आत्मायें । बाप के रूप में परमात्म पालना का अनुभव कर रहे हो । यह परमात्म पालना सारे कल्प में सिर्फ इस ब्राह्मण जन्म में आप बच्चों को प्राप्त होती है, जिस परमात्म पालना में आत्मा को सर्व प्राप्ति स्वरूप का अनुभव होता है । परमात्म प्यार सर्व सम्बन्धों का अनुभव कराता है । परमात्म प्यार अपने देह भान को भी भुला देता, साथ-साथ अनेक स्वार्थ के प्यार को भी भुला देता है । ऐसे परमात्म प्यार, परमात्म पालना के अन्दर पलने वाली भाग्यवान आत्मायें हो । कितना आप आत्माओं का भाग्य है जो स्वयं बाप अपने वतन को छोड़ आप गॉडली स्टूडेंट्स को पढ़ाने आते हैं । ऐसा कोई टीचर देखा जो रोज सवेरे-सवेरे दूरदेश से पढ़ाने के लिए आवे? ऐसा टीचर कभी देखा? लेकिन आप बच्चों के लिए रोज बाप शिक्षक बन आपके पास पढ़ाने आते हैं और कितना सहज पढ़ाते हैं । दो शब्दों की पढ़ाई है - आप और बाप, इन्हीं दो शब्दों में चक्कर कहो, ड्रामा कहो, कल्प वृक्ष कहो सारी नॉलेज समाई हुई है । और पढ़ाई में तो कितना दिमाग पर बोझ पड़ता है और बाप की पढ़ाई से दिमाग हल्का बन जाता है । हल्के की निशानी है ऊंचा उड़ना । हल्की चीज़ स्वत: ही ऊंची होती है । तो इस पढ़ाई से मन-बुद्धि उड़ती कला का अनुभव करती है । तो दिमाग हल्का हुआ ना! तीनों लोकों की नॉलेज मिल जाती है । तो ऐसी पढ़ाई सारे कल्प में कोई ने पढ़ी है । कोई पढ़ाने वाला ऐसा मिला । तो भाग्य है ना! फिर सतगुरू द्वारा श्रीमत ऐसी मिलती है जो सदा के लिए क्या करूं, कैसे चलूं, ऐसे करूं या नहीं करूँ, क्या होगा यह सब क्वेश्चनस समाप्त हो जाते हैं । क्या करूं, कैसे करूं, ऐसे करूं या वैसे करूं इन सब क्वेश्चनस का एक शब्द में जवाब है - फालो फादर । साकार कर्म में ब्रह्मा बाप को फालो करो, निराकारी स्थिति में अशरीरी बनने में शिव बाप को फालो करो । दोनों बाप और दादा को फालो करना अर्थात् क्वेश्चन मार्क समाप्त होना वा श्रीमत पर चलना । यह मुश्किल है? पूछने की आवश्यकता पड़ती है क्या? कापी करना है, अपना दिमाग नहीं चलाना है । बाप समान बनना अर्थात् फालो फादर करना । मुश्किल है या सहज है? सहज है ना? 30 साल वाले हाथ उठाओ, अच्छा 30 साल में मुश्किल लगा या सहज है? अभी देखो 30 साल वालों को भी सहज लगा तो आप जो पीछे-पीछे आये उन्हों के लिए मुश्किल है या सहज है? सहज है ना? (गर्मी के कारण सभी के हाथों में रंग-बिरंगी पंखे हैं जो हिला रहे हैं) अच्छा है, पंखों की रिमझिम भी अच्छी लग रही है । सीन अच्छी है । नवीनता होनी चाहिए ना | तो इस ग्रुप की यह भी नवीनता है, यह भी टी.वी. में आ गया । अच्छा है सभी भाग- भाग कर पहुँच गये हैं, बापदादा भी स्नेह की मुबारक देते हैं । देखो, और जो भी हद के गुरू होते हैं कितने वरदान देते हैं, एक या दस, ज्यादा नहीं देते हैं । लेकिन आपको सतगुरु द्वारा रोज वरदान मिलता है । ऐसा गुरू कब देखा? नहीं देखा ना! आप लोगों ने ही देखा लेकिन कल्प-कल्प देखा । तो सदा अपने भाग्य की प्राप्तियों को सामने रखो । सिर्फ बुद्धि में मर्ज नहीं रखो, इमर्ज करो । मर्ज रखने के संस्कार को बदलकर इमर्ज करो । अपनी प्राप्तियों की लिस्ट सदा बुद्धि में इमर्ज रखो । जब प्राप्तियों की लिस्ट इमर्ज होगी तो किसी भी प्रकार का विघ्न वार नहीं करेगा । वह मर्ज हो जायेगा और प्राप्तियां इमर्ज रूप में रहेगी ।

बापदादा जब सुनते हैं कि आज किसी भी कारण से कोई-कोई बच्चे मेहनत करते हैं, युद्ध करते हैं, योग लगाने चाहते लेकिन लगता नहीं है, सोल कान्सेस के बदले बॉडी कान्सेस में आ जाते हैं तो बापदादा को अच्छा नहीं लगता है । कारण क्या? अपने भाग्य की प्राप्तियां इमर्ज नहीं रहती, मर्ज रहती हैं । फिर जब कोई याद दिलाता है तो सोचने लगते हैं होना तो ऐसा चाहिए.....! इसलिए बहुत सहज पुरुषार्थ है - प्राप्तियों को इमर्ज रखो । जब से ब्राह्मण बने तब से अपने भाग्य को स्मृति में रखो । हलचल में नहीं आओ, अचल बनो क्योंकि यहाँ आबू में यादगार क्या है? अचलघर है या हलचल घर है? अचलघर है ना? यह किसका यादगार है? आपका यादगार है ना? तो जब भी कोई सूक्ष्म पुरुषार्थ का मार्ग मुश्किल लगे, बुद्धि ज्यादा हलचल में हो, तो अपने यादगार को स्मृति में लाओ । कई बार बच्चे ज्ञान की प्याइंट बोलते भी हैं कि मैं आत्मा हूँ, ड्रामा है, यह तो विघ्न है, यह तो साइडसीन है, बोलते भी रहते लेकिन हिलते भी रहते । हिलते-हिलते बोलते रहते । जब ऐसी बुद्धि बन जाए जो अचल नहीं हो सके तो मधुबन का अचलघर याद रखो । यह तो स्थूल चीज है ना! सूक्ष्म तो नहीं है । आँखों से देखने की चीज है, मेरा यादगार अचलघर है, हलचल घर नहीं है क्योंकि बापदादा इस वर्ष को सर्व बच्चों के प्रति मुक्ति वर्ष मनाना चाहते हैं । ऐसा नहीं हो हाथ उठवायें तो कोई का उठे, कोई का नहीं उठे, नहीं । सभी खुशी-खुशी से हाथ की ताली बजावे, (सभी बजाने लगे) चलो अभी बजा दी तो ठीक है, लेकिन ऐसे ही बापदादा इस वर्ष के समाप्ति में इतनी जोर से ताली बजाते देखे । अभी तो बजाई अच्छा है लेकिन तब भी बजाना । बजायेंगे? देखो हाथ की ताली बजाके तो खुश कर दिया लेकिन बापदादा नये वर्ष में जो अपना 18 जनवरी विशेष ब्रह्मा बाप के शरीर से मुक्त होने का दिन है, तो 18 जनवरी में बापदादा फिर हाथ उठवायेगा कि मुक्ति वर्ष मनाया या सिर्फ सोचा? मनाना है, मनाना है - सोचते तो नहीं रह गये, स्वरूप में लाया वा सोचते-सोचते लास्ट में भी सोचते रहेंगे! यह रिजल्ट बापदादा देखने चाहते हैं । दिखायेंगे? अच्छा । याद रहेगा ना! प्राप्तियों को सामने रखो । बाप की याद के साथ, बाप ने जो दिया वह भी इमर्ज करो - क्या बनाया और क्या मिला!

बापदादा इस वर्ष के बाद हर बच्चे को जीवन-मुक्त स्थिति में देखेंगे । भविष्य में जीवनमुक्त होंगे लेकिन संस्कार जीवनमुक्त के अभी से ही इमर्ज करने हैं । और निरन्तर कर्मयोगी, निरन्तर सहज योगी, निरन्तर मुक्त आत्मा के संस्कार अभी से अनुभव में लाओ, क्यों? बापदादा ने पहले भी इशारा दिया है कि समय का परिवर्तन आप विश्व परिवर्तक आत्माओं के लिए इन्तजार कर रहा है । प्रकृति आप प्रकृतिपति आत्माओं का विजय का हार लेके आवाहन कर रही है । समय विजय का घण्टा बजाने के लिए आप भविष्य राज्य अधिकारी आत्माओं को देख रहे हैं कि कब घण्टा बजायें, भक्त आत्मायें वह दिन सदा याद कर रही हैं कि कब हमारे पूज्य देव आत्मायें हमारे ऊपर प्रसन्न हो हमें मुक्ति का वरदान देंगी! दुःखी आत्मायें पुकार रही हैं कि कब दु :ख हर्ता सुख कर्ता आत्मायें प्रत्यक्ष होंगी! इसलिए यह सब आपके लिए इन्तजार वा आवाह्न कर रहे हैं । इसलिए हे रहमदिल, विश्व कल्याणकारी आत्मायें अभी इन्हों के इन्तजार को समाप्त करो । आपके लिए सब रुके हैं । आप सब मुक्त हो जाओ तो सर्व आत्मायें, प्रकृति, भगत मुक्त हो जाएं । तो मुक्त बनो, मुक्ति का दान देने वाले मास्टर दाता बनो । अभी विश्व परिवर्तन की जिम्मेवारी के ताजधारी आत्मायें बनो । जिम्मेवार हो ना! बाप के साथ मददगार हो । क्या आपको रहम नहीं आता, दिल में दु :ख के विलाप महसूस नहीं होते । हे विश्व परिवर्तक आत्मायें अभी अपने जिम्मेवारी की ताजपोशी मनाओ । अभी फंक्शन तो बहुत किये, लेकिन फंक्शन की रिजल्ट क्या? बस सिर्फ गोल्डन चुन्नी और ताज पहन लिया, मनाया... इसमें बापदादा भी खुश हैं लेकिन चुन्नी पहनना, माला पहनना, चिंदी लगाना, पाण्डवों ने पगड़ी भी ताज मुआफिक पहनी, तो यह मनाना अर्थात् जिम्मेवारी सम्भालना । बच्चे खुश हुए, बाप उससे भी ज्यादा खुश हुए लेकिन भविष्य क्या! दुपट्टा अलमारी में, चिंदी अलमारी में सम्भल गई, बस यही मनाना है । नहीं । यह दुपट्टा गोल्डन स्थिति की याद निशानी है । अलमारी में सिर्फ नहीं रख देना लेकिन मन में स्मृति में रखना । मनाना अर्थात् बाप के कार्य में जिम्मेवार बनना । पसन्द है ना! या चुन्नी पहन ली बहुत अच्छा हुआ? अच्छा हुआ भी । बापदादा भी समझते हैं बहुत अच्छा हुआ । लेकिन अविनाशी सहयोगी बनना ।

इस वर्ष के लिए जो बापदादा ने इशारा दिया इसके लास्ट में 18 जनवरी में, मुक्ति वर्ष का उत्सव मनायेंगे । ताली बजाने वाले समझते हैं हम बनेंगे? फिर यह नहीं कहना कि बाबा बनने तो चाहते थे लेकिन क्या करें, यह हो गया, वह हो गया । ऐसी बातों से भी मुक्ति । बनना ही है । क्या करें, नहीं । इस भाषा से भी मुक्ति । होना ही है, बनना ही है, कुछ भी हो जाए । बापदादा ने पहले भी कहा 100 हिमालय जितने बड़े ते बड़े विघ्न भी आ जायें तो भी हटेंगे नहीं, हार नहीं खायेंगे ताजपोशी मुक्ति वर्ष अवश्य मनायेंगे । बापदादा रोज चार्ट देखेगा । ऐसे नहीं यहाँ से जाओ तो ट्रेन में ही कहो पता नहीं क्या हो गया, घर में गये तो बगुले और हंस की लड़ाई लग गई, ऐसे नहीं कहना यह हो गया, यह हो गया । यह नहीं सुनेंगे । आपके पत्र वेस्ट पेपर बॉक्स में डालेंगे, सुनेंगे नहीं । दृढ़ संकल्प करो - होना ही है । जहाँ दृढ़ता है वहाँ सफलता नहीं हो, असम्भव है । तो सभी दृढ़ संकल्प वाले हैं ना । टीचर्स हाथ उठाओ, टीचर्स बहुत हैं । सारे सेन्टर्स खाली करके आये हैं क्या? अच्छा ।

अभी अगर आप सभी को अचानक डायरेक्शन मिले कि अभी- अभी अशरीरी बन जाओ तो बन सकते हो कि हलचल होगी? क्यों? लास्ट समय का यही अभ्यास पास विद आनर बनायेगा । तो अभी बापदादा भी कहते हैं एक सेकण्ड में सब बातों को किनारे कर अशरीरी भव । (ड्रिल) अच्छा ।

चारों ओर के अति श्रेष्ठ भाग्यवान, परमात्म पालना के अधिकारी आत्मायें, परमात्म पढ़ाई के अधिकारी, परमात्मा सतगुरू के वरदानों के अधिकारी, सदा दृढ़ता द्वारा सफलता के अधिकारी, सदा अखण्ड योगी, अचल योगी, सदा विश्व परिवर्तन की जिम्मेवारी के ताजधारी, सदा सर्व प्राप्तियों को इमर्ज रूप में अनुभव करने वाले ऐसे विशेष आत्माओं को बापदादा का यादव्यार और नमस्ते ।

 

वरदान:-

क्रोधी आत्मा को रहम के शीतल जल द्वारा गुण दान देने वाले वरदानी आत्मा भव !   

आपके सामने कोई क्रोध अग्नि में जलता हुआ आये, आपको गाली दे, निंदा करे. .तो ऐसी आत्मा को भी अपनी शुभ भावना, शुभ कामना द्वारा, वृत्ति द्वारा, स्थिति द्वारा गुण दान या सहनशीलता की शक्ति का वरदान दो । क्रोधी आत्मा परवश है, ऐसी परवश आत्मा को रहम के शीतल जल द्वारा शान्त कर दो, यह आप वरदानी आत्मा का कर्तव्य है । चैतन्य में जब आप में ऐसे संस्कार भरे हैं तब तो जड़ चित्रों द्वारा भक्तों को वरदान मिलते हैं ।

 

स्लोगन:- 

याद द्वारा सर्व शक्तियों का खजाना अनुभव करने वाले ही शक्ति सम्पन्न बनते हैं ।   

 

ओम् शान्ति |