23-11-14
प्रातः मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त
बापदादा”
रिवाइज
06-01-79
मधुबन
“सूर्यवंशी
और चन्द्रवंशी, आत्माओं के प्रैक्टिकल
जीवन की धारणाओं के चिन्ह”
आज
बापदादा वतन में बच्चों की चढ़ती कला के पुरुषार्थ पर रूहरिहान
कर रहे थे जिसमें दो प्रकार के बच्चे देखे । एक फर्स्ट डिवीजन
के पुरूषार्थी सूर्यवंशी देवता रूप में,
दूसरे सेकेण्ड डिवीजन वाले चन्द्रवंशी क्षत्रिय रूप में ।
दोनों की स्टेज और स्पीड दोनों में अन्तर था । संकल्प दोनों का
सम्पूर्णता की मंजिल पर पहुंचने का ही था वा अभी भी है । लेकिन
पहले नम्बर अर्थात् सूर्यवंशियों के संकल्प और स्वरूप में
ज्यादा अन्तर नहीं है,
सेकेण्ड नम्बर चन्द्रवंशियों के संकल्प और स्वरूप में ज्यादा
फर्क है । संकल्प
100
प्रतिशत पावरफुल और स्वरूप कभी 75 प्रतिशत,
कभी
50
प्रतिशत इतना अन्तर है ।
सूर्यवंशी सदा मास्टर ज्ञान सूर्य अर्थात् पावरफुल स्टेज
बीजरूप में रहते अथवा सेकेण्ड स्टेज अव्यक्त फरिश्ते में
ज्यादा समय स्थित रहते । चन्द्रवंशी ज्ञान सूर्य समान बीजरूप
स्टेज में कम ठहर सकते लेकिन फरिश्ते स्वरूप में और अनेक
प्रकार के माया के विघ्नों से युद्ध कर विजयी बनने की स्टेज
में ज्यादा रहते हैं । कभी व्यर्थ संकल्प के रूप में,
कभी
समस्या के रूप में,
माया
से विजयी बनने की मेहनत में ज्यादा समय रहते एक घण्टे की मेहनत
से आधा घण्टा वा 15 मिनट सफलता का अनुभव करते इसलिए पुरुषार्थ
की मेहनत करते-करते कभी थक जाते,
कभी
चल पड़ते हैं । कभी दौड़ लगाते - कभी दौड़ लगाने वालों को देखकर
दौड़ना चाहते लेकिन दौड़ नहीं सकते । बाप के हर गुण के अनुभव
करने में अधूरी स्टेज पर पहुंचते अर्थात् 50
- 50 अवस्था रहती । जैसे वर्णन करेंगे
बाप सुख का सागर है,
मैं
सुख स्वरूप हूँ लेकिन सदा सुख की अनुभूति नहीं होगी - सम्पूर्ण
सुख का अनुभव कभी होगा,
कभी
नहीं होगा । जैसे चन्द्रमा की कलायें बढ़ती और घटती रहती हैं ।
वैसे चन्द्रवंशी कभी बहुत उमंग-उत्साह में सम्पूर्ण स्टेज का
अनुभव करेंगे और कब स्वयं को सम्पूर्णता से बहुत दूर अनुभव
करेंगे । और कब साथ लेने के लिए याद की स्टेज से फरियाद की
स्टेज में आ जायेंगे ।
सूर्यवंशी - सदा बाप के साथ और सर्व सम्बन्ध की अनुभूतियों में
लवलीन रहेंगे । 2 - सूर्यवंशी चढ़ती और उतरती कला में नहीं आते
। सदा चढ़ती कला अनुभव करते जैसे सूर्य सदा प्रकाश स्वरूप अनुभव
होता,
कलाओं के चक्कर में नहीं आता । कब 14 कला सम्पन्न स्टेज,
कभी
8 कला सम्पन्न स्टेज हो इतना अन्तर नहीं होता । 3 -
सूर्यवंशियों के आगे माया बादल की तरह सामने आती जरूर है लेकिन
बादल आता और जाता । 4 - सूर्यवंशी अपने स्वरूप को सदा समान
रखते,
बादल
को देख प्रकाश कम नहीं होता । सदा अपने बाप के गुण से गुणों
में साकार रूप में अनुभवी होते और औरों के आगे भी प्रत्यक्ष
होते । 5 - सूर्यवंशी सदा बेहद के सेवाधारी स्वयं को लाइट हाउस
माइट हाउस अनुभव करते । 6 - सूर्यवंशी का हर कदम साकार ब्रह्मा
बाप के कर्म रूपी कदम के पीछे कदम उठाने वाले होते अर्थात्
कर्म और पुरुषार्थ की गति में साकार ब्रह्मा बाप समान होंगे ।
7 - सूर्यवंशियों का पहला कदम फालो का होगा - मन-बुद्धि से
साकार में सदा बाप के आगे समर्पण होंगे । जैसे ब्रह्मा बाप की
विशेषता देखी - इसी महात्याग से महान भाग्य मिला,
नम्बरवन सम्पूर्ण फरिश्ता रूप और नम्बरवन विश्व महाराजन् । ऐसे
सूर्यवंशी भी महान त्यागी वा सर्वस्व त्यागी होंगे । सर्वस्व
त्यागी का अर्थ ही है संस्कार रूप में भी विकारों के वंश का
त्याग । ऐसे सर्वस्व त्यागी फालो फादर करने वाले वर्तमान
फरिश्ता स्वरूप और भविष्य में नम्बरवन विश्व महाराजन् बनते हैं
। 8 - सूर्यवंशी सदा निश्चय बुद्धि का प्रत्यक्ष स्वरूप सदा
निश्चिंत और सदा स्वयं को कल्प-कल्प के निश्चित विजयी अनुभव
करेंगे । 9 - सूर्यवंशी सदा विश्व कल्याण की जिम्मेदारी को
निभाते हुए जितनी बड़ी जिम्मेदारी उतना ही डबल लाइट रूप होंगे ।
10
- सूर्यवंशी अपने वृत्ति और वायब्रेशन की किरणों द्वारा अनेक
आत्माओं को स्वस्थ अर्थात् स्वस्मृति में स्थित करने का अनुभव
करायेंगे । 11 - सूर्यवंशी सदा अपने प्राप्त हुए सर्व खजाना को
स्वार्थ अर्थात् स्व अर्थ नहीं लेकिन सर्व प्रति महादानी और
वरदानी होते । 12 - सूर्यवंशी की विशेष दो निशनियाँ अनुभव होगी
- एक तो सदा निर्वाण स्थिति में स्थित हो वाणी में आना । दूसरा
सदा स्थिति में स्वमान,
बोल
और कर्म में निर्माण अर्थात् निर्वाण और निर्माण दो निशानियाँ
अनुभव होंगी ।
ऐसे
ही चन्द्रवंशी की सब बातें कब कैसी कब कैसी और 50
- 50 होगी । कब 100
के मणके समान चमकेगा कब अपनी कमजोरियों की माला बाप के आगे
बार-बार सुमिरण करेगा । कभी समर्थ,
कभी
व्यर्थ । कभी महान,
कभी
साधारण । कभी अपने को अथॉरिटी अर्थात् महावीर अनुभव करेंगे,
कभी
कहेंगे सहारा मिले,
सहयोग मिले तो आगे बढ़े । ऐसे लंगड़ाते हुए चलने वाले अनुभव
करेंगे अभी अपने से पूछो कि मैं कहाँ तक पहुँचा हूँ ।
सूर्यवंशी हूँ वा चन्द्रवंशी की स्टेज को पार कर सूर्यवंशी की
बाउंड्री तक पहुँचे हैं वा चन्द्रवंशी में ही हैं?
बाउंड्री तक पहुँचने वाले कभी सूर्यवंशी की स्टेज में जम्प
लगाते,
कभी
चन्द्रवंशी में रहते,
अब
आप कहाँ हो - वह चेक करो । बाउंड्री पार कर सूर्यवंशी बनो ।
समझा क्या करना है! अच्छा ।
ऐसे
स्वयं को सदा सूर्यवंशी के अधिकारी बनाने वाले बाप के हर कदम
पर कदम रखने वाले,
बाप
समान सदा फरिश्ते रूप में रहने वाले,
मास्टर ज्ञान सूर्य बन विश्व को अपनी प्राप्तियों की किरणों
द्वारा अन्धकार से रोशन बनाने वाले ऐसे मास्टर ज्ञान सूर्य
बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते ।
गुजरात को सहज योगी का वरदान मिला हुआ है । गुजरात की धरनी
सात्विक होने के कारण बनी बनाई धरनी है । बनी बनाई धरनी में
बीज पड़ने से फल सहज निकल आता है । सहज योगी का ड्रामा अनुसार
वरदान मिला हुआ है,
इसी
वरदान को स्मृति में रखते स्वयं भी सहजयोगी और सर्व को भी
सहजयोगी बनाओ । सदा विजय का झण्डा हाथ में हो । अब ऐसी विशेष
आत्माओं को सम्पर्क में लाओ जिन्हों से सेवा का आवाज दूर तक
फैले । ज्ञान के हिसाब से विशेष व्यक्ति नहीं लेकिन दुनिया के
हिसाब से जो विशेष व्यक्ति हैं उनकी सेवा करो,
इससे
स्वत: ही अखबार वाले,
रेडियो,
टी.
वी.वाले आवाज फैलाते हैं । ऐसी कोई विशेष आत्मा निकालो जिनके
आवाज से अनेक आत्माओं का कल्याण हो जाए । बापदादा सदैव यही
उम्मीद रखते हैं । अब उम्मीदों का प्रैक्टिकल रूप दिखाना । समय
बहुत कम है और सेवा बहुत रही हुई है,
अब
सेवा का तरीका ऐसा हो जो एक चक्र से अनेकों का कल्याण हो जाए ।
अभी ऐसी स्पीड चाहिए । राज्य अधिकारी तो अपना भाग्य लेते
रहेंगे - लेकिन सन्देश तो सभी को देते जाओ,
जो
उल्हना न रह जाए । अच्छा ।
पार्टियों के साथ मुलाकात
1-
बीजरूप स्थिति द्वारा सारे चित्र की सेवा:
बीजरूप स्टेज सबसे पावरफुल स्टेज है,
उसके
बाद सब नम्बरवार स्टेज हैं,
यह
स्टेज लाइट हाउस का कार्य करती है । सारे विश्व में लाइट
फैलाने के निमित्त बनते हैं । जैसे बीज द्वारा स्वत: ही सारे
वृक्ष को पानी मिल जाता है,
ऐसे
जब बीजरूप स्टेज पर स्थित रहते तो आटोमेटिकली विश्व को लाइट का
पानी मिलता रहता । जैसे लाइट हाउस एक स्थान पर होते हुए चारों
ओर अपनी लाइट फैलाते हैं,
ऐसे
लाइट हाउस बन,
विश्व कल्याणकारी बन विश्व तक अपनी लाइट फैलाने के लिए पावरफुल
स्टेज चाहिए । जैसे स्थूल लाइट का बल्ब तेज पावर वाला नहीं
होगा तो चारों ओर लाइट नहीं फैल सकती,
जीरो
पावर हद तक रहेगी ना । तो अब लाइट हाउस बनो न कि बल्ब । बेहद
के बाप के बच्चे बेहद सेवाधारी । वर्तमान समय बेहद सेवा की
आवश्यकता है,
क्योंकि बेहद विश्व का परिवर्तन है । विश्व परिवर्तन करने के
लिए पहले स्वयं का परिवर्तन करो । हर संकल्प में स्मृति रहे कि
विश्व का कल्याण हो ।
2-
सदा सम्पन्न आत्माओं की निशानियां:
जो सदा सर्व खजानों से सम्पन्न होगा वह सदा सन्तुष्ट होगा ।
असन्तुष्टता का कारण है अप्राप्ती । जो भरपूर आत्मायें हैं वह
अन्य आत्माओं को भी दे सकेंगी । अगर स्वयं में कमी होगी तो
औरों को भी दे नहीं सकते । सन्तुष्टता अर्थात् सम्पन्नता ।
जैसे बाप सम्पन्न हैं इसलिए बाप की महिमा में सागर शब्द कहते
हैं,
यह
सम्पन्नता को सिद्ध करता है । तो बाप समान मास्टर सागर बनो ।
नदी तो फिर भी सूख जाती है । सम्पन्न आत्मायें सदा खुशी में
नाचती रहेंगी । खुशी के सिवाए और कुछ अन्दर आ नहीं सकता ।
सन्तुष्ट आत्मायें सम्पन्न होने के कारण किसी से भी तंग नहीं
होगी । सम्बन्ध में भी कोई खिटखिट नहीं होगी । अगर होगी भी तो
उसका असर नहीं आयेगा । किसी भी प्रकार की उलझन या विघ्न एक खेल
अनुभव होगा । समस्या भी मनोरजन का साधन बन जायेगी क्योंकि
नॉलेजफुल होकर देखेंगे । वह सदा निश्चयबुद्धि होने के कारण
निश्चय के आधार पर विजयी होंगे । सदा हर्षित होंगे ।
3-
वर्ल्ड सर्वेंट समझने से एकरस स्थिति का अनुभव:
बापदादा को सदा सेवाधारी बच्चे याद रहते हैं,
क्योंकि बाप का भी काम है वर्ल्ड सर्वेंट का । जैसे बाप वर्ल्ड
सर्वेंट हैं वैसे बच्चे भी । सर्वेंट को सदा सेवा और मास्टर
याद रहता है । तो ऐसे सेवाधारी बच्चों को भी बाप और सेवा के
सिवाए कुछ याद नहीं इससे ही एकरस स्थिति में रहने का अनुभव
होता । उन्हें एक बाप के रस के सिवाए सब रस नीरस लगेंगे । एक
बाप के रस का अनुभव होने के कारण और कहाँ भी आकर्षण नहीं जा
सकती,
यही
पुरुषार्थ है और यही मंजिल है । बापदादा सभी को तीव्र
पुरूषार्थी की नजर से देखते हैं,
पुरूषार्थी रहेंगे तो भी मजिल पर नहीं पहुँचेंगे ।
4-
सर्व सम्बन्धों का रस एक बाप से लेने वाले ही नष्टोमोहा:
बाप को सर्व सम्बन्धों से अपना बना लिया है?
सिर्फ बाप के सम्बन्ध से नहीं लेकिन सर्व सम्बन्ध बाप के साथ
हो गये,
अपना
बनाना अर्थात् बाप का खुद बनना । तो सर्व सम्बन्ध से एक बाप
दूसरा न कोई,
जिसके सर्व सम्बन्ध बाप के साथ हो गये उसका विशेष गुण क्या
दिखाई देगा?
वह
सदा निर्मोही होगा । जब किसी तरफ लगाव अर्थात् झुकाव नहीं तो
माया से हार हो नहीं सकती । ऐसे नष्टोमोहा बनना अर्थात् सदा
स्मृति स्वरूप । सदैव अमृतवेले यह स्मृति में लाओ कि सर्व
सम्बन्धों का सुख हर रोज बाप दादा से लेकर औरों को भी दान
देंगे । हर सम्बन्ध का सुख लो । सर्व सुखों के अधिकारी बन औरों
को भी बनाओ । ऐसे अधिकारी समझने वाले सदा बाप को अपना साथी
बनाकर चलते हैं । जो भी काम हो तो साकार साथी न याद आवे पहले
बाप याद आवे । सच्चा मित्र भी तो बाप है ना,
ऐसे
सच्चे साथी का साथ लो तो सहज ही सर्व से न्यारा और प्यारा बन
जायेंगे । एक बाप से लगन है तो नष्टोमोहा हैं ।
टीचर्स से मुलाकात
जो
स्नेह में सदा रहने वाली स्नेही आत्मायें हे,
ऐसे
स्नेही आत्माओं को बाप दादा भी सदा स्नेह का रिटर्न देते हैं -
किस समय देते हैं?
अमृतवेले विशेष । अमृतवेले सहज वरदान मिलता है । वैसे तो सारा
दिन अधिकार है फिर भी वह खास समय है । जैसे विशेष टाइम होता है
ना कि इस टाइम पर यह चीज़ सस्ती मिलेगी,
सीजन
होती है ना । तो अमृतवेला विशेष सीजन है इसलिए सहज प्राप्ति
होती है,
सभी
टीचर्स निर्विघ्न हो ना! योग का किला मजबूत करो,
विशेष जब कोई विघ्न कहाँ आते हैं तो जैसे अन्तर्राष्ट्रीय योग
रखते हो । वैसे हर मांस संगठित रूप में चारों ओर विशेष टाइम पर
एक साथ योग का प्रोग्राम रखो । पूरा जोन का जोन योगदान दे,
जिससे किला मजबूत होगा । कोई कार्य शुरू किया जाता है तो
शुद्धि की विधियाँ की जाती हैं ना तो सर्व श्रेष्ठ आत्माओं का
एक ही शुद्ध संकल्प हो विजयी,
यह
हो गई शुद्धि द्वारा विधि । चारों ओर एक साथ किला मजबूत करो -
तो विजयी हो जायेंगे । अच्छा
!
वरदान:-
किसी
भी परिस्थिति में फुलस्टॉप लगाकर स्वयं को परिवर्तन करने वाले
सर्व की दुआओं के पात्र
भव ! 
किसी
भी परिस्थिति में फुलस्टाप तब लगा सकते हैं जब बिन्दु स्वरूप
बाप और बिन्दू स्वरूप आत्मा दोनों की स्मृति हो । कन्ट्रोलिंग
पावर हो । जो बच्चे किसी भी परिस्थिति में स्वयं को परिवर्तन
कर फुलस्टॉप लगाने में स्वयं को पहले आफर करते हैं,
वह
दुआओं के पात्र बन जाते हैं । उन्हे स्वयं को स्वयं भी दुआयें
अर्थात् खुशी मिलती है,
बाप
द्वारा और ब्राह्मण परिवार द्वारा भी दुआयें मिलती हैं ।
स्लोगन:-
जो
संकल्प करते हो उसे बीच-बीच में दृढ़ता का ठप्पा लगाओ तो विजयी
बन जायेंगे । 
ओम्
शान्ति |