03-04-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
यह
वन्डरफुल पढ़ाई बेहद का बाप पढ़ाते हैं, बाप और उनकी पढ़ाई में
कोई भी संशय नहीं आना चाहिए, पहला निश्चय चाहिए कि हमें पढ़ाने
वाला कौन
| 
प्रश्न:-
तुम
बच्चों को निरन्तर याद की यात्रा में रहने की श्रीमत क्यों
मिली है?
उत्तर:-
क्योंकि माया दुश्मन अभी भी तुम्हारे पीछे है, जिसने तुमको
गिराया है | अभी वह तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ेगा इसलिए गफ़लत नहीं
करना | भल तुम संगमयुग पर हो परन्तु आधाकल्प उसके रहे हो इसलिए
जल्दी नहीं छोड़ेगा | याद भूली और माया ने विकर्म कराया इसलिए
ख़बरदार रहना है | आसुरी मत पर नहीं चलना है |
ओम्
शान्ति
|
अभी
बच्चे भी हैं, बाबा भी है | बाबा अनेक बच्चों को कहेंगे ‘ओ
बेटे’, सभी बच्चे फिर कहेंगे ‘ओ बाबा’ | बच्चे हैं बहुत | तुम
समझते हो यह ज्ञान हम आत्माओं के लिए ही है | एक बाप के कितने
ढेर बच्चे हैं | बच्चे जानते हैं बाप पढ़ाने आये हैं | वह
पहले-पहले बाबा है, फिर टीचर है, फिर गुरु है | अब बाप तो बाप
ही है | फिर पावन बनाने के लिए याद की यात्रा सिखलाते हैं | और
यह भी बच्चे समझते हैं कि याद पढ़ाई वन्डरफुल है | ड्रामा के
आदि-मध्य-अन्त का राज़ बाप के सिवाए कोई बता न सके, इसलिए उनको
बेहद का बाप कहा जाता है | यह निश्चय तो बच्चों को ज़रूर बैठता
है, इसमें संशय की बात उठ न सके | इतनी बेहद की पढ़ाई, बेहद के
बाप के सिवाए तो कोई पढ़ा न सके | बुलाते भी हैं कि बाबा आओ,
हमको पावन दुनिया में ले चलो क्योंकि यह है पतित दुनिया | पावन
दुनिया में ले जाते हैं बाप | वहाँ थोड़ेही कहेंगे बाबा आओ,
पावन दुनिया में ले चलो | बच्चे जानते हैं हम आत्माओं का वह
बाप है | तो देह का भान टूट जाता है | आत्मा कहती है वह हमारा
बाप है | अब यह तो निश्चय रहना चाहिए बरोबर बाप के बिगर कोई
इतनी नॉलेज दे नहीं सकता | पहले तो यह निश्चय बुद्धि चाहिए |
निश्चय भी आत्मा को बुद्धि में होता है | आत्मा को यह ज्ञान
मिलता है, हमारा यह बाबा है | यह बहुत पक्का निश्चय बच्चों को
होना चाहिए | मुख से कहना कुछ भी नहीं है | हम आत्मा एक शरीर
छोड़ दूसरा लेती हैं | आत्मा में ही सब संस्कार हैं |
अब
तुम जानते हो बाबा आया हुआ है, हमको ऐसा पढ़ाते हैं, कर्म
सिखलाते हैं जो हम इस दुनिया में अभी आयेंगे नहीं | वह मनुष्य
तो समझते हैं इस दुनिया में आना है | तुम ऐसे नहीं समझते हो |
तुम यह अमरकथा सुन अमरपुरी में जाते हो | अमरपुरी अर्थात् जहाँ
सदा अमर रहें | सतयुग-त्रेता है अमरपुरी | बच्चों को कितनी
ख़ुशी होनी चाहिए | यह पढ़ाई सिवाए बाप के और कोई पढ़ा न सके |
बाप हमको पढ़ाते हैं और जो टीचर्स हैं वह आर्डिनरी मनुष्य हैं |
यहाँ तुम जिसको पतित-पावन, दुःख हर्ता सुख करता कहते हो, वह
बाप अब सम्मुख पढ़ा रहे हैं | सम्मुख होने बिगर राजयोग की पढ़ाई
कैसे पढ़ायें? बाप कहते हैं तुम स्वीट बच्चों को यहाँ पढ़ाने आता
हूँ | पढ़ाने लिए इनमें प्रवेश करता हूँ | बरोबर भगवानुवाच भी
है, तो ज़रूर उनको शरीर चाहिए | खुद कहते हैं – मीठे-मीठे
रूहानी बच्चों मैं कल्प-कल्प पुरुषोत्तम संगमयुगे साधारण तन
में आता हूँ | बहुत गरीब भी नहीं, तो बहुत साहूकार भी नहीं,
साधारण है | यह तो तुम बच्चों को निश्चय होना चाहिए – वह हमारा
बाबा है, हम आत्मा हैं | हम आत्माओं का बाबा है | सारी दुनिया
के जो भी मनुष्यमात्र की आत्मायें हैं, उन सबका बाबा है इसलिए
उनको बेहद का बाबा कहा जाता है | शिव जयन्ती मनाते हैं, उसका
भी किसको पता नहीं है | कोई से भी पूछो शिव जयन्ती कब से मनाई
जा रही है? तो कहेंगे परम्परा से | वह भी कब से? कोई डेट तो
चाहिए ना | ड्रामा तो अनादि है | परन्तु एक्टिविटी जो ड्रामा
में होती है, उनकी तिथि-तारीख तो चाहिए ना | यह तो कोई भी
जानते नहीं | हमारा शिवबाबा आते हैं, उस लव से जयन्ती नहीं
मनाते | नेहरु की जयन्ती उस लव से मनायेंगे | आँसू भी आ
जायेंगे | शिव जयन्ती का किसको भी पता नहीं है | अभी तुम बच्चे
अनुभवी हो | अनेक मनुष्य हैं, जिनको कुछ भी पता नहीं है |
कितने मेले लगते हैं | वहाँ जो जाते हैं वह बता सकते हैं कि
सच-सच क्या है | जैसे बाबा ने अमरनाथ का भी मिसाल बताया था,
वहाँ जाकर देखा – सच-सच क्या होता है | दूसरे तो जो औरों
द्वारा सुनते हैं, वह बतलाते हैं | कोई ने कहा बर्फ का
लिंग
होता है, कहेंगे सत | अभी तुम बच्चों को अनुभव मिला है – राइट
क्या है, रांग क्या है | अब तक जो कुछ सुनते-पढ़ते आये हैं, वह
सब था अनराइटियस | गायन भी है ना झूठी कथा.....यह है झूठ खण्ड,
वह है सच खण्ड |
सतयुग, त्रेता, द्वापर पास्ट हो गया, अब कलियुग चल रहा है | यह
भी बहुत थोड़े जानते हैं | तुम्हारी बुद्धि में सब ख्यालात रहते
हैं | बाप के पास सारी नॉलेज है, उनको कहते हैं ज्ञान का सागर
| उनके पास जो नॉलेज है वह इस तन दवारा दे हमको आपसमान बना रहे
हैं | जैसे टीचर भी आप समान बनाते हैं | तो बेहद का बाप भी
कोशिश कर आपसमान बनाते हैं | लौकिक बाप आपसमान नहीं बनाते |
तुम अब आये हो बेहद के बाप के पास | वह जानते हैं मुझे बच्चों
को आपसमान बनाना है | जैसे टीचर आपसमान बनायेंगे, नम्बरवार
होंगे | यह बाप भी ऐसे कहते हैं, नम्बरवार बनेंगे | मैं जो
पढ़ाता हूँ यह है अविनाशी पढ़ाई | जो जितना पढ़ेंगे वह व्यर्थ
नहीं जायेगा | आगे चल खुद कहेंगे हमने 4 वर्ष पहले, 8 वर्ष
पहले कोई से ज्ञान सुना था, अब फिर आया हूँ | फिर कोई चटक पड़ते
हैं | शमा तो है फिर उस पर कोई तो परवाने एकदम फ़िदा हो जाते
हैं कोई फेरी पहन चले जाते हैं | शुरू में शमा पर बहुत परवाने
आशिक हो पड़े | ड्रामा प्लैन अनुसार भट्ठी बननी थी | कल्प-कल्प
ऐसा होता आया है | जो कुछ पास्ट हुआ, कल्प पहले भी ऐसे हुआ था
| आगे फिर भी वही होगा | बाकी यह पक्का निश्चय रखो कि हम आत्मा
हैं | बाप हमको पढ़ाते हैं | इस निश्चय में पक्के रहो, भूल न
जाओ | ऐसा कोई मनुष्य नहीं होगा जो बाप को बाप न समझे | भल
फ़ारकती दे देगा तो भी समझेगा हमने बाप को फ़ारकती दी | यह तो
बेहद का बाप है, उनको तो हम कभी भी नहीं छोड़ेंगे | अन्त तक साथ
रहेंगे | यह बाप तो सबकी सद्गति करने वाला है | 5 हज़ार वर्ष के
बाद आते हैं | यह भी समझते हो, सतयुग में बहुत थोड़े मनुष्य
होते हैं | बाकी सब शान्तिधाम में रहते हैं | वह चैतन्य बीजरूप
है | क्या नॉलेज देंगे? सृष्टि रूपी झाड़ की | रहता ज़रूर रचना
की नॉलेज देंगे | तुमको पता था क्या कि सतयुग कब था फिर कहाँ
गया! अभी तुम सामने बैठे हो, बाबा बात कर रहे हैं | पक्का
निश्चय करते हो – यह हम सभी आत्माओं का बाप है, हमको पढ़ा रहे
हैं! शिव-शंकर इकठ्ठा कह देते हैं | उनका आक्यूपेशन क्या है,
उनका क्या? कितना फ़र्क है | शिव तो है ऊँच ते ऊँच भगवान्, शंकर
देवता | फिर शिव-शंकर इकट्ठा कैसे कह देते! पार्ट ही दोनों का
अलग-अलग है | यहाँ न भी बहुतों के ऐसे-ऐसे नाम हैं –
राधेकृष्ण, लक्ष्मीनारायण, शिवशंकर....दोनों नाम स्वयं पर रख
दिये हैं | तो बच्चे समझते हैं इस समय तक जो बाप ने समझाया है
वह फिर रिपीट होगा | बाकी थोड़े रोज़ हैं | बाप बैठ थोड़ेही
जायेंगे | बच्चे नम्बरवार पढकर पूरे कर्मातीत बन जायेंगे |
ड्रामा अनुसार माला भी बन जायेगी | कौनसी माला? सब आत्माओं की
माला बन जायेगी, तब फिर वापिस जायेंगे | माला नम्बरवन तो
तुम्हारी है | शिवबाबा की माला तो सबसे लम्बी है | वहाँ से
नम्बरवार आयेंगे पार्ट बजाने | तुम सब बाबा-बाबा कहते हो | सब
एक माला के दाने हो | सबको विष्णु की माला का दाना नहीं कहेंगे
| यह बाप बैठ पढ़ाते हैं | सूर्यवंशी बनना ही है |
सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी जो पास्ट हो गये वह फिर बनेंगे | वह
मर्तबा मिलता ही है पढ़ाई से | बाप की पढ़ाई बिगर यह मर्तबा मिल
न सके | चित्र भी हैं, लेकिन कोई भी ऐसी एक्टिविटी नहीं करते
हैं कि हम यह बन सकते हैं | कथा भी सत्यनारायण की सुनते हैं |
गरुड़ पुराण में सब ऐसी बातें हैं जो मनुष्यों को सुनाते हैं |
बाप कहते हैं यह विषय वैतरणी नदी रौरव नर्क है | ख़ास भारत को
कहेंगे | बृहस्पति की दशा भी भारत पर बैठी है | वृक्षपति भी
भारतवासियों को ही पढ़ाते हैं | बेहद का बाप बेहद की बातें
समझाते हैं | दशा बैठती है | राहू की भी दशा है इसलिए कहते हैं
दे दान तो छूटे ग्रहण | बाप भी कहते हैं इस कलियुग अन्त में
राहू की दशा सब पर बैठी है | अब मैं वृक्षपति आया हूँ भारत पर
बृहस्पति की दशा बिठाने | सतयुग में बृहस्पति की दशा भारत पर
थी | अब है राहू की दशा | यह बेहद की बात है | यह कोई
शास्त्रों आदि में नहीं है | यह मैगज़ीन आदि भी उन्हें समझ में
आएगी जो पहले कुछ न कुछ समझे हुए होंगे | मैगज़ीन पढने से वह
फिर जास्ती समझने के लिए भागेंगे | बाकी तो कुछ नहीं समझेंगे |
जो थोड़ा पढकर फिर छोड़ देते हैं तो थोड़ा भी उनमें ज्ञान घृत
डालने से फिर सुजाग हो पड़ते हैं | ज्ञान को घृत भी कहा जाता है
| उझाये हुए दीपक में बाप आकर ज्ञान घृत डाल रहे हैं | कहते
हैं – बच्चे, माया के तूफ़ान आयेंगे, दीवे को बुझा देंगे | शमा
पर परवाने कोई तो जल मरते हैं, कोई फेरी पहन चले जाते हैं |
वही बात अभी प्रैक्टिकल में चल रही है | नम्बरवार सब परवाने
हैं | पहले-पहले एकदम घरबार छोड़ आये, परवाने बनें | जैसे एकदम
लॉटरी मिल गई | जो कुछ पास्ट हुआ तुम फिर ऐसे ही करेंगे | भले
चले गये, ऐसे मत समझना स्वर्ग में नहीं आयेंगे, परवाने बने,
आशिक हुए फिर माया ने हरा दिया, तो पद भी कम पायेंगे |
नम्बरवार तो होते ही हैं | और सतसंगों में कोई की भी बुद्धि
में नहीं होगा | तुम्हारी बुद्धि में है | बाप से नई दुनिया के
लिए नम्बरवार हम सब अपने पुरुषार्थ अनुसार पढ़ रहे हैं | हम
बेहद के बाप के सम्मुख बैठे हैं | यह भी जानते हो वह आत्मा
देखने में नहीं आती | वह तो अव्यक्त चीज़ है | उनको दिव्य
दृष्टि द्वारा ही देखा जाता है | हम आत्मा भी छोटी बिन्दी हैं
| परन्तु देह-अभिमान छोड़ अपने को आत्मा समझना – यह है ऊँची
पढ़ाई | उस पढ़ाई में जो भी सब्जेक्ट डिफिकल्ट होती है, उसमें
फेल होते हैं | यह सब्जेक्ट तो बहुत सहज है, परन्तु कइयों को
डिफिकल्ट फ़ील होती है |
अब
तुम समझते हो शिवबाबा सामने बैठे हैं | तुम भी निराकार
आत्मायें हो परन्तु शरीर के साथ हो | यह सब बातें बेहद का बाप
ही सुनाते हैं, और कोई सुना न सके | फिर क्या करेंगे? उनको
थैंक्स देंगे | नहीं | बाबा कहते हैं यह अनादि ड्रामा बना हुआ
है | मैं कोई नई बात नहीं करता हूँ | ड्रामा अनुसार तुमको
पढाता हूँ | थैंक्स तो भक्ति मार्ग में देते हैं | टीचर कहेंगे
स्टूडेन्ट अच्छी रीति पढ़ते हैं तो हमारा नाम बाला होगा |
स्टूडेन्ट को थैंक्स दी जाती है | जो अच्छी रीति पढ़ते हैं,
पढ़ाते हैं, उनको थैंक्स दी जाती है | स्टूडेन्ट फिर टीचर को
थैंक्स देंगे | बाप कहते हैं – मीठे बच्चे, जीते रहो | ऐसी-ऐसी
सर्विस करते रहो | कल्प पहले भी की थी | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
सदा नशा
और निश्चय रहे कि हमें पढ़ाने वाला कोई जिस्मानी टीचर नहीं |
स्वयं ज्ञान सागर निराकार बाप टीचर बन हमें पढ़ा रहे हैं | इस
पढ़ाई से ही हमें सतोप्रधान बनना है |
2.
आत्मा रूपी दीपक में रोज़ ज्ञान का घृत डालना है | ज्ञान घृत से
सदा ऐसा प्रज्जवलित रहना है जो माया का कोई भी तूफ़ान हिला न
सके | पूरा परवाना बन शमा पर फ़िदा होना है |
वरदान:-
रूहानी अथॉरिटी के साथ निरहंकारी बन सत्य ज्ञान का प्रत्यक्ष
स्वरूप दिखने वाले सच्चे सेवाधारी भव
! 
जैसे
वृक्ष में जब सम्पूर्ण फल की अथॉरिटी आ जाती है तो वृक्ष झुक
जाता है अर्थात् निर्माण बनने की सेवा करता है | ऐसे रूहानी
अथॉरटी वाले बच्चे जितनी बड़ी अथॉरिटी उतने निर्माण और सर्व के
स्नेही होंगे | अल्पकाल की अथॉरटी वाले अहंकारी होते हैं लेकिन
सत्यता की अथॉरिटी वाले अथॉरटी के साथ निरहंकारी होते हैं –
यही सत्य ज्ञान का प्रत्यक्ष स्वरूप है | सच्चे सेवाधारी की
वृत्ति में जितनी अथॉरिटी होगी उसकी वाणी में उतना ही स्नेह और
नम्रता होगी |
स्लोगन:-
बिना
त्याग के भाग्य नहीं मिलता |
ओम् शान्ति
|