मीठे
बच्चे
–
देही-अभिमानी बाप तुम्हें देही-अभिमानी भव का पाठ पढ़ाते हैं,
तुम्हारा पुरुषार्थ है – देह-अभिमान को छोड़ना
| 
प्रश्न:-
देह-अभिमानी बनने से कौन-सी पहली बीमारी उत्पन्न होती है?
उत्तर:-
नाम-रूप की | यह बीमारी ही विकारी बना देती है इसलिए बाप कहते
हैं आत्म-अभिमानी रहने की प्रैक्टिस करो | इस शरीर से तुम्हारा
लगाव नहीं होना चाहिए | देह के लगाव को छोड़ एक बाप को याद करो
तो पावन बन जायेंगे | बाप तुम्हें जीवनबन्ध से जीवनमुक्त बनने
की युक्ति बताते हैं | यही पढ़ाई है |
ओम्
शान्ति
|
रूहानी बाप कह रहे हैं कि आत्म-अभिमानी अथवा देही-अभिमानी होकर
बैठना है | किसको याद करना है? बाप को | सिवाए बाप के और कोई
को याद नहीं करना है | जब बाप से बेहद का वर्सा मिलता है तो
उनको याद करना है | बेहद का बाप आकर समझाते हैं देही-अभिमानी
भव, आत्म-अभिमानी भव | देह-अभिमान को छोड़ते जाओ | आधाकल्प तुम
देह-अभिमानी होकर रहे हो, फिर आधाकल्प देही-अभिमानी होकर रहना
है | सतयुग-त्रेता में तुम आत्म-अभिमानी थे | वहाँ मालूम रहता
है कि हम आत्मा हैं, अब यह शरीर बूढ़ा हुआ, इसको अब छोड़ते हैं |
यह चेन्ज करना है (सर्प का मिसाल) | तुम भी पुराना शरीर छोड़कर
दूसरे शरीर में प्रवेश करते हो इसलिए तुमको अभी आत्म-अभिमानी
बनना है | कौन बनाते हैं? बाप | जो सदैव आत्म-अभिमानी है | वह
कभी देह-अभिमानी बनते नहीं | भल एक बार आते हैं तो भी
देह-अभिमानी नहीं बनते क्योंकि यह शरीर तो पराया लोन पर लिया
हुआ है | इस शरीर से उनका लगाव नहीं रहता | लोन लेने वाले का
लगाव नहीं रहता | जानते हैं यह तो शरीर छोड़ना है | बाप समझाते
हैं मैं ही आकर तुम बच्चों को पावन बनाता हूँ | तुम सतोप्रधान
थे सो फिर तमोप्रधान बने हो | अब फिर पावन बनने के लिए तुमको
अपने साथ योग सिखलाता हूँ | योग अक्षर न कह याद अक्षर कहना ठीक
है | याद सिखलाता हूँ | बच्चे बाप को याद करते हैं | अभी तुमको
भी बाप को याद करना है | आत्मा ही याद करती है | जब रावण राज्य
शुरू होता है तो तुम बच्चे देह-अभिमानी बन पड़ते हो | फिर बाप
आकर आत्म-अभिमानी बनाते हैं | देह-अभिमानी बनने से नाम-रूप में
फँस पड़ते हो | विकारी बन जाते हो | नहीं तो तुम सब निर्विकारी
थे | फिर पुनर्जन्म लेते-लेते विकारी बन जाते हो | ज्ञान
किसको, भक्ति किसको कहा जाता है – यह तो बाप ने ही समझाया है |
भक्ति शुरू होती है द्वापर से | जबकि पांच विकार रूपी रावण की
स्थापना होती है | भारत में ही राम राज्य और रावण राज्य कहा
जाता है | परन्तु यह नहीं जानते कि कितना समय राम राज्य और
कितना समय रावण राज्य चलता है | इस समय सभी तमोप्रधान,
पत्थरबुद्धि हैं | पैदा ही भ्रष्टाचार से होते हैं इसलिए इसको
विशष वर्ल्ड कहा जाता है | नई दुनिया और पुरानी दुनिया में
रात-दिन का फ़र्क है | नई दुनिया में सिर्फ़ भारत ही था | भारत
जैसा पवित्र खण्ड कोई बन न सके | फिर भारत जैसा अपवित्र भी कोई
नहीं बनता | जो पवित्र, वही फिर अपवित्र बनता है फिर पवित्र
बनता है | तुम जानते हो देवी-देवतायें पवित्र थे | फिर
पुनर्जन्म लेते-लेते अपवित्र बन गये हैं | सबसे जास्ती जन्म भी
यही लेते हैं | बाप समझाते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त के
जन्म के भी अन्त में आता हूँ | यह पहला नम्बर ही 84 जन्म पूरे
कर वानप्रस्थ में आता है तब मैं प्रवेश करता हूँ | त्रिमूर्ति
ब्रह्मा-विष्णु-शंकर भी हैं, परन्तु किसको मालूम नहीं है
क्योंकि तमोप्रधान हैं ना | किसकी बायोग्राफी का किसी मनुष्य
मात्र को पता नहीं है | पूजा करते हैं परन्तु सब है
अन्धश्रद्धा | भक्ति को कहा जाता है ब्राह्मणों की रात और
सतयुग-त्रेता है ब्राह्मणों का दिन | अब ब्रह्मा प्रजापिता है
तो ज़रूर बच्चे भी होंगे ना | यह भी समझाया है ब्राह्मणों का
कुल होता है, डिनायस्टी नहीं | ब्राह्मण हैं चोटी | चोटी भी
देखने में आती है | फिर ऊँच ते ऊँच पढ़ाने वाला है परमपिता
परमात्मा शिव | उनका नाम एक ही है परन्तु भक्तिमार्ग में अथाह
नाम लगा दिये हैं | भक्ति मार्ग में चहचटा (भभका) बहुत हो जाता
है | कितने चित्र, कितने मन्दिर, यज्ञ, तप, दान पुण्य आदि करते
हैं | कहते हैं भक्ति से फिर भगवान् मिलता है | किसको मिलता
है? जो पहले-पहले आते हैं, वही पहले-पहले भक्ति शुरू करते हैं
| जो ब्राह्मण सो देवता बनते हैं वही यथा राजा-रानी तथा
प्रजा....सर्वगुण सम्पन्न 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण
निर्विकारी, अहिंसा परमो देवी-देवता धर्म था | भारत में एक आदि
सनातन देवी-देवता धर्म था तब अथाह धन था | बाप याद दिलाते हैं
– पहले-पहले तुम देवी-देवता धर्म वाले ही 84 जन्म लेते हो | सब
नहीं लेते | हैं सिर्फ़ 84 जन्म, वह फिर कह देते 84 लाख जन्म |
कल्प की आयु भी लाखों वर्ष कह दी है | बाप कहते हैं यह है 5
हज़ार वर्ष का ड्रामा | तो यह हुआ ज्ञान | ज्ञान सागर एक ही
शिवबाबा गाया जाता है | वह हैं हद के बाप, यह है बेहद का बाबा
| हद के बाबाओं के होते हुए भी बेहद के बाप को याद करते हैं,
जबकि दुःखी होते हैं | पुनर्जन्म लेते-लेते दुनिया पुरानी
तमोप्रधान बन जाती है तब फिर बाप आते हैं | सेकण्ड में
जीवनमुक्ति मिलती है | किससे? बेहद के बाप से | तो ज़रूर
जीवनबन्ध में हैं | पतित हैं फिर पावन बनना है | यह तो सेकण्ड
की बात है | ज्ञान एक सेकण्ड का है क्योंकि पढ़ाई तो तुम बहुत
पढ़ते हो | वह सब मनुष्य, मनुष्य को पढ़ाते हैं | पढ़ती तो आत्मा
ही है | परन्तु देह-अभिमान के कारण अपने को आत्मा भूलकर कह
देते हैं हम फ़लाना मिनिस्टर हैं, यह हैं | वास्तव में हैं
आत्मा | आत्मा मिस्टर-मिसेज़ के तन से पार्ट बजाती है, यह भूल
जाते हैं | नहीं तो आत्मा ही शरीर से पार्ट बजाती है | कोई
क्या बनते, कोई क्या बनते हैं |
बाप
समझाते हैं अभी यह पुरानी दुनिया बदल नई बनती है | वर्ल्ड की
हिस्ट्री-जॉग्राफी ज़रूर रिपीट होती है | नई दुनिया है
सतोप्रधान | घर भी पहले नया होता है तो कहेंगे सतोप्रधान फिर
पुराना जड़जड़ीभूत तमोप्रधान होता है | इस बेहद के नाटक वा
सृष्टि चक्र की नॉलेज को समझना है क्योंकि यह पढ़ाई है | भक्ति
नहीं है | भक्ति को पढ़ाई नहीं कहा जाता है क्योंकि भक्ति में
एम ऑब्जेक्ट कुछ भी होती नहीं | जन्म-जन्मान्तर वेद-शास्त्र
आदि पढ़ते रहो | यहाँ तो दुनिया को बदलना है, सतयुग-त्रेता में
भक्ति नहीं | भक्ति शुरू होती है द्वापर से | तो यह बाप रूहानी
बच्चों को बैठ समझाते हैं | इसको कहा जाता है रूहानी नॉलेज
अथवा रूहानी ज्ञान | रूहानी नॉलेज कौन सिखलायेगा? सुप्रीम रूह
यानी परमपिता ही सिखलायेगा | वह तो सभी का है ना | लौकिक बाप
को कभी परमपिता नहीं कहेंगे | पारलौकिक को परमपिता कहा जाता है
| वह हैं परमधाम में रहने वाले | बाप को याद भी ऐसे करते हैं –
हे गॉड, हे ईश्वर | वास्तव में उनका नाम है एक | परन्तु भक्ति
में अनेक नाम दे दिये हैं | भक्ति का फैलाव बहुत है | वह सब है
मनुष्य मत | अब मनुष्यों को चाहिए ईश्वरीय मत | ईश्वरीय मत,
श्रीमत | श्री श्री 108 की तो माला बनती है ना | यह प्रवृत्ति
मार्ग की माला बनती है | फिर पुनर्जन्म लेते-लेते सीढ़ी उतरते
इनसालवेन्ट बन जाते हो | बुद्धि इनसालवेन्ट बन जाती है तो
मनुष्य देवाला मारते हैं | जो 100 परसेन्ट सालवेन्ट थे सो इस
समय इनसालवेन्ट हैं | बुद्धि को ताला लगा हुआ है | वह लॉक
किसने लगाया? गॉडरेज का ताला लग जाता है | भारत जितना नम्बरवन
में था उतना और कोई खण्ड नहीं | भारत की बहुत महिमा है | भारत
सब धर्म वालों का बहुत बड़े ते बड़ा तीर्थ है | परन्तु ड्रामा
अनुसार गीता को खण्डन कर दिया है | भारत और सारी दुनिया की भूल
है | भारत में ही गीता को खण्डन किया है, जिस गीता के ज्ञान से
बाप नई दुनिया बनाते हैं और सर्व की सद्गति करते हैं |
भारत
सबसे ऊँच और बहुत धनवान खण्ड था जो अभी फिर से बन रहा है | यह
उल्टा झाड़ है, इनका बीज ऊपर में है | उसको वृक्षपति कहा जाता
है | बृहस्पति की दशा बैठती है ना | बाप समझाते हैं मैं
वृक्षपति आता हूँ तो भारत पर बृहस्पति की दशा बैठती है | ऊँच
बन जाते हैं | फिर रावण आया है तो राहू की दशा बैठ जाती है |
भारत का क्या हाल हो जाता है | वहाँ तो तुम्हारी आयु भी बड़ी
रहती है क्योंकि पवित्र हो | आधाकल्प तुम 21 जन्म लेते हो |
बाकी आधाकल्प में भोगी बनने से आयु भी छोटी हो जाती है तो फिर
तुम 63 जन्म लेते हो | अभी बाप समझाते हैं सतोप्रधान बनना है
इसलिए मामेकम् याद करो | सब धर्म वाले इस समय तमोप्रधान हैं |
तुम सभी को यह ज्ञान दे सकते हो | आत्माओं का बाप तो एक ही है
| सब ब्रदर्स हैं क्योंकि हम आत्मायें एक बाप के बच्चे हैं |
भल कहते भी हैं हिन्दू-मुसलमान भाई-भाई हैं परन्तु अर्थ नहीं
जानते हैं | आत्मा कहती राईट है | सब ब्रदर्स का बाप एक है |
वर्सा देना ही है बड़े बाबा को | वह आते भी भारत में हैं | शिव
जयन्ती मनाते हैं परन्तु वह कब आया था – यह किसको भी पता नहीं
है | तुम्हारी युद्ध है 5 विकारों से | काम तो तुम्हारा
नम्बरवन दुश्मन है | रावण को जलाते हैं | परन्तु वह है कौन?
क्यों जलाते हैं? कुछ नहीं जानते | द्वापर से लेकर तुम नीचे
उतरते इस समय पतित बन गये हो | एक तरफ़ शिव बाबा को याद कर
पूजते हैं, दूसरी तरफ़ फिर कहते हैं कि वह सर्वव्यापी है |
जिसने तुमको विश्व का मालिक बनाया उनको तुम माया के चक्र में
आकर गाली देते हो | बाप कहते हैं – मीठे बच्चों, तुम मुझे
अनगिनत जन्मों में ले गये हो | मुझे कण-कण में कह दिया है | यह
भी ड्रामा बना हुआ है | बेहद के बाप की ग्लानि करते कितनी पाप
आत्मायें बन गये हैं | रावण राज्य है ना |
यह
भी तुम जानते हो – इस समय सब भक्तियाँ हैं | सबकी सद्गति करने
वाला कौन है? सचखण्ड स्थापन करने वाला सबका बाबा है | रावण को
बाबा नहीं कहा जाता है | 5 विकार हरेक में हैं | विकार से पैदा
होते हैं इसलिए भ्रष्टाचारी कहा जाता है | देवताओं को कहा जाता
है सम्पूर्ण निर्विकारी | अभी हैं सम्पूर्ण विकारी | देवतायें
जो पूज्य हैं, वही फिर पुजारी बनते हैं | वह कह देते हैं आत्मा
सो परमात्मा | बाप कहते हैं यह भूल है | पहले-पहले तो अपने को
आत्मा निश्चय करना है | हम आत्मा इस समय ब्राह्मण कुल के हैं,
फिर देवता कुल में जाते हैं | यह ब्राह्मण कुल है सर्वोत्तम
कुल | ब्राह्मणों की डिनायस्टी नहीं है | चोटी है ब्राह्मणों
की | तुम ब्राह्मण हो ना | सबसे ऊपर में है शिवबाबा | भारत में
विराट रूप बनाते हैं | परन्तु उसमें न ब्राह्मणों की चोटी है,
न चोटियों (ब्राह्मणों) का बाप है | अर्थ कुछ भी नहीं समझते |
त्रिमूर्ति का अर्थ भी नहीं समझते | नहीं तो भारत का कोट ऑफ़
आर्मस त्रिमूर्ति शिव का होना चाहिए | अभी तो यह काँटों का
जंगल है | तो जंगली जानवरों का कोट ऑफ़ आर्मस बना दिया है |
उसमें फिर लिखा है सत्य मेव जयते | सतयुग में तो दिखाते हैं
शेर-बकरी इकट्ठे जल पीते हैं | सत्य मेव जयते माना विजय | सब
खीरखण्ड हो रहते हैं | लून-पानी नहीं होते हैं | रावण राज्य
में लून-पानी, राम राज्य में क्षीरखण्ड हो जाते हैं | इनको कहा
ही जाता है काँटों का जंगल | एक-दो को पहला नम्बर काँटा विकार
का लगाते हैं | बाप कहते हैं काम महाशत्रु है | यह आदि, मध्य,
अन्त दुःख देने वाला है | नाम ही है रावण राज्य | बाप कहते हैं
इन 5 विकारों पर जीत पाकर जगतजीत बनो | यह अन्तिम जन्म
निर्विकारी बनो | तुम तमोप्रधान पतित बने हो, फिर सतोप्रधान
पावन बनो | गंगा कोई पतित-पावनी नहीं है | शरीर का मैल तो घर
में भी पानी से उतार सकते हो | आत्मा सो साफ़ नहीं हो सकती |
भक्ति मार्ग में कितने ढेर के ढेर गुरु लोग हैं | सतगुरु तो एक
ही है सद्गति करने वाला | सुप्रीम बाप भी है, सुप्रीम टीचर भी
है, सुप्रीम सतगुरु भी है | वही तुमको सृष्टि के आदि, मध्य,
अन्त का नॉलेज सुनाते हैं |
अच्छा!
मीठे-मीठे
सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और
गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1. सतोप्रधान बनने के लिए सिवाए बाप के और किसी को भी याद नहीं
करना है | देही-अभिमानी बनने की प्रैक्टिस करनी है |
2. सबसे
क्षीरखण्ड होकर रहना है | इस अन्तिम जन्म में विकारों पर विजय
प्राप्त कर जगतजीत बनना है |
वरदान:-
महसूसता
की शक्ति द्वारा स्व परिवर्तन करने वाले तीव्र पुरुषार्थी भव
! 
कोई
भी परिवर्तन का सहज आधार महसूसता की शक्ति है | जब तक महसूसता
की शक्ति नहीं आती तब तक अनुभूति नहीं होती और जब तब अनुभूति
नहीं तब तक ब्राह्मण जीवन की विशेषता का फाउण्डेशन मज़बूत नहीं
| उमंग-उत्साह की चाल नहीं | जब महसूसता की शक्ति हर बात का
अनुभवी बनाती है तब तीव्र पुरुषार्थी बन जाते हो | महसूसता की
शक्ति सदाकाल के लिए सहज परिवर्तन करा देती है |
स्लोगन:-
स्नेह
के स्वरूप को साकार में इमर्ज कर ब्रह्मा बाप समान बनो |
ओम् शान्ति
|