28-07-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
"मीठे
बच्चे - इस शरीर को न देख आत्मा को देखो,
अपने को आत्मा समझ आत्मा से बात करो,
इस
अवस्था को जमाना है,
यही
ऊंची मंजिल है" 
प्रश्न:-
तुम
बच्चे बाप के साथ ऊपर (घर में) कब जायेंगे?
उत्तर:-
जब
अपवित्रता की मात्रा रिंचक भी नहीं रहेगी । जैसे बाप प्योर है
ऐसे तुम बच्चे भी प्योर बनेंगे तब ऊपर जा सकेंगे । अभी तुम
बच्चे बाप के सम्मुख हो । ज्ञान सागर से ज्ञान सुन-सुन कर जब
फुल हो जायेंगे,
बाप
को नॉलेज से खाली कर देंगे फिर वह भी शान्त हो जायेंगे और तुम
बच्चे भी शान्तिधाम में चले जायेंगे । वहाँ ज्ञान टपकना बंद हो
जाता । सब कुछ दे दिया फिर उनका पार्ट है साइलेन्स का ।
ओम्
शान्ति
|
शिव
भगवानुवाच । जब शिव
भगवानुवाच कहा जाता है तो समझ जाना चाहिए-एक शिव
ही
भगवान् वा परमपिता है । उनको ही तुम बच्चे वा आत्मा याद करती
हो । परिचय तो मिला है रचता बाप से । यह तो जरूर है नम्बरवार
पुरूषार्थ अनुसार ही याद करते होंगे । सब एकरस याद नहीं करेंगे
। यह बहुत सूक्ष्म बात है । अपने को आत्मा समझ दूसरे को भी
आत्मा समझें,
यह
अवस्था जमाने में टाइम लगता है । वह मनुष्य लोग तो कुछ भी नहीं
जानते । न जानने कारण सर्वव्यापी कह देते । जिस प्रकार तुम
बच्चे अपने को आत्मा समझते हो,
बाप
को याद करते हो,
ऐसे
और कोई याद नहीं कर सकते होंगे । कोई भी आत्मा का योग बाप के
साथ है नहीं । यह बातें हैं बहुत गुह्य,
महीन
। अपन को आत्मा समझ बाप को याद करना है । कहते भी हैं हम भाई-
भाई हैं तो आत्मा को ही देखना चाहिए । शरीर को नहीं देखना
चाहिए । यह बहुत बड़ी मंजिल है । बहुत हैं जो बाप को कभी याद भी
नहीं करते होंगे । आत्मा पर मैंल चढ़ी हुई है । मुख्य आत्मा की
ही बात है । आत्मा ही अब तमोप्रधान बनी है,
जो
सतोप्रधान थी-यह आत्मा में ज्ञान है । ज्ञान का सागर परमात्मा
ही है । तुम अपने को ज्ञान सागर नहीं कहेंगे । तुम जानते हो
हमको बाबा से पूरा ही ज्ञान लेना है । वह अपने पास रखकर क्या
करेंगे । अविनाशी ज्ञान रत्नों का धन तो बच्चों को देना ही है
। बच्चे नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार उठाने वाले हैं । जो जास्ती
उठाते हैं वही अच्छी सर्विस कर सकते हैं । बाबा को ज्ञान सागर
कहा जाता है । वह भी आत्मा,
तुम
भी आत्मायें । तुम आत्मायें सारा ज्ञान ले लेती हो । जैसे वह
एवर प्योर है,
तुम
भी एवर प्योर बनेंगे । फिर जब अपवित्रता की रिंचक भी नहीं
रहेगी तब ऊपर चले जायेंगे । बाप याद के यात्रा की युक्ति
सिखलाते हैं । यह तो जानते हैं सारा दिन याद नहीं रहती है ।
यहाँ तुम बच्चों को बाप सम्मुख बैठ समझाते हैं,
और
बच्चे तो सम्मुख नहीं सुनते । मुरली पढ़ते हैं । यहाँ तुम
सम्मुख हो । अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो और ज्ञान भी
धारण करो । हमको बाप जैसा सम्पूर्ण ज्ञान सागर बनना है । फुल
नॉलेज समझ जायेंगे तो जैसेकि बाप को नॉलेज से खाली कर देंगे
फिर वह शान्त हो जायेंगे । ऐसे नहीं,
उनके
अन्दर ज्ञान टपकता होगा । सब कुछ दे दिया फिर उनका पार्ट रहा
साइलेन्स का । जैसे तुम साइलेन्स में रहेंगे तो ज्ञान थोड़ेही
टपकेगा । यह भी बाप ने समझाया है आत्मा संस्कार ले जाती है ।
कोई सन्यासी की आत्मा होगी तो छोटेपन में ही उनको शास्त्र कण्ठ
हो जायेंगे । फिर उनका नाम बहुत हो जाता है । अब तुम तो आये हो
नई दुनिया में जाने लिए । वहाँ तो ज्ञान के संस्कार नहीं ले आ
सकते । यह संस्कार मर्ज हो जाते हैं । बाकी आत्मा को अपनी सीट
लेनी है नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार । फिर तुम्हारे शरीरों पर
नाम पड़ते हैं । शिवबाबा तो है ही निराकार । कहते हैं मैं इन
आरगन्स का लोन लेता हूँ । वह तो सिर्फ सुनाने ही आते हैं । वह
कोई का ज्ञान सुनेंगे नहीं क्योंकि स्वयं ज्ञान का सागर है ना
। सिर्फ मुख द्वारा ही वह मुख्य काम करते हैं । आते ही हैं
सबको रास्ता बताने । बाकी सुनकर क्या करेंगे । वह सदैव सुनाते
ही रहते है कि ऐसे-ऐसे करो । सारे झाड़ का राज़ सुनाते हैं । तुम
बच्चों की बुद्धि में है कि नई दुनिया तो बहुत छोटी होगी । यह
पुरानी दुनिया तो कितनी बड़ी है । सारी दुनिया में कितनी लाइट
जलती है । लाइट द्वारा क्या-क्या होता है । वहाँ तो दुनिया भी
छोटी,
लाइट
भी थोड़ी होगी । जैसे एक छोटा-सा गाँव होगा । अभी तो कितने
बड़े-बड़े गाँव हैं । वहाँ इतने नहीं होंगे । थोड़े मुख्य-मुख्य
अच्छे रास्ते होंगे । 5 तत्व भी वहाँ सतोप्रधान बन जाते हैं ।
कभी चंचलता नहीं करते । सुखधाम कहा जाता है । उसका नाम ही है
हेवन । आगे चलकर तुम जितना नजदीक आते रहेंगे उतना वृद्धि को
पाते रहेंगे । बाप भी साक्षात्कार कराते रहेंगे । फिर उस समय
लड़ाई में भी लश्कर की अथवा एरौप्लेन आदि की दरकार नहीं रहेगी ।
वह तो कहते हम यहाँ बैठे सबको खत्म कर सकते हैं । फिर यह
एरोप्लेन आदि थोड़ेही काम में आयेंगे । फिर यह चन्द्रमा आदि में
प्लाट आदि देखने भी नहीं जायेंगे । यह सब फालतू साइंस का घमण्ड
है । कितना शो कर रहे हैं । ज्ञान में कितनी साइलेन्स है इसको
ईश्वरीय डात (देन) कहते हैं । साइंस में तो हंगामा ही हंगामा
है । वह शान्ति को जानते ही नहीं ।
तुम
समझते हो विश्व में शान्ति तो नई दुनिया में थी,
वह
है सुखधाम । अभी तो दुःख- अशान्ति है । यह भी समझाना है तुम
शान्ति चाहते हो,
कभी
अशान्ति हो ही नहीं,
वह
तो है शान्तिधाम और सुखधाम में । स्वर्ग तो सब चाहते हैं ।
भारतवासी ही वैकुण्ठ स्वर्ग को याद करते हैं । और धर्म वाले
वैकुण्ठ को याद नहीं करते । वह सिर्फ शान्ति को याद करेंगे ।
सुख को तो याद कर न सके । लॉ नहीं कहता । सुख को तो तुम ही याद
करते हो इसलिए पुकारते हो हमें दुःख से लिबरेट करो । आत्मायें
असुल शान्तिधाम में रहने वाली हैं । यह भी कोई जानते थोड़ेही
हैं । बाप समझाते हैं तुम बेसमझ थे । कब से बेसमझ बने?
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कला से
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कला बनते जाते,
माना
बेसमझ बनते जाते । अभी कोई कला नहीं रही है । कान्फ्रेन्स करते
रहते हैं । स्त्रियों को दु :ख क्यों है?
अरे,
दुःख
तो सारी दुनिया में है । अथाह दु :ख हैं । अब विश्व में शान्ति
कैसे हो?
अब
तो ढेर के ढेर धर्म हैं । सारे विश्व में शान्ति तो अब हो न
सके । सुख को तो जानते ही नहीं । तुम बच्चियाँ बैठ समझायेंगी
इस दुनिया में अनेक प्रकार के दुःख हैं,
अशान्ति है! जहाँ से हम आत्मायें आई हैं वह है शान्तिधाम और
जहाँ यह आदि सनातन देवी- देवता धर्म था,
वह
था सुखधाम । आदि सनातन हिन्दू धर्म नहीं कहेंगे । आदि माना
प्राचीन । वह तो सतयुग में था । उस समय सब पवित्र थे । वह है
ही निर्विकारी दुनिया,
विकार का नाम नहीं । फर्क है ना । पहले-पहले तो निर्विकारीपना
चाहिए ना इसलिए बाप कहते हैं मीठे-मीठे बच्चों,
काम
पर जीत पहनो । अपने को आत्मा समझो । अभी आत्मा अपवित्र है,
आत्मा में खाद पड़ी है तब जेवर भी ऐसे बने हैं । आत्मा पवित्र
तो जेवर भी पवित्र होगा,
उनको
ही वाइसलेस वर्ल्ड कहा जाता है । बड़ का मिसाल भी तुम दे सकते
हो । सारा झाड़ खड़ा है,
फाउन्डेशन है नहीं । यह आदि सनातन देवी-देवता धर्म है नहीं और
सब खड़े हैं । सब अपवित्र हैं,
इनको
कहा जाता है मनुष्य । वह है देवतायें । मैं मनुष्य को देवता
बनाने आया हूँ ।
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जन्म भी मनुष्य लेते हैं । सीढ़ी दिखानी है कि तमोप्रधान बनते
हैं तो हिन्दू कह देते हैं । देवता कह न सकें क्योंकि पतित हैं
। ड्रामा में यह राज़ है ना । नहीं तो हिन्दू धर्म कोई है नहीं
। आदि सनातन हम ही देवी-देवता थे । भारत ही पवित्र था,
अब
अपवित्र है । तो अपने को हिन्दू कहलाते हैं । हिन्दू धर्म तो
कोई ने स्थापन किया नहीं है । यह बच्चों को अच्छी रीति धारण कर
समझाना है । आजकल तो इतना टाइम भी नहीं देते हैं । कम से कम
आधा घण्टा दें तब प्याइंट सुनाई जाए । प्याइंट तो ढेर हैं ।
फिर उनसे मुख्य-मुख्य सुनाई जाती हैं । पढ़ाई में भी जैसे-जैसे
पढ़ते जाते हैं तो फिर हल्की पढ़ाई अल्फ-बे आदि थोड़ेही याद रहती
है । वह भूल जाती है । तुमको भी कहेंगे अभी तुम्हारा ज्ञान बदल
गया है । अरे,
पढ़ाई
में ऊपर चढ़ते जाते हैं तो पहली पढ़ाई भूलती जाती है ना । बाप भी
हमको नित्य नई-नई बातें सुनाते हैं । पहले हल्की पढ़ाई थी,
अब
बाप गुह्य-गुह्य बातें सुनाते रहते हैं । ज्ञान का सागर है ना
। सुनाते-सुनाते फिर पिछाड़ी में दो अक्षर कह देते अल्फ को समझा
तो भी काफी है । अल्फ को जानने से बे को जान ही लेंगे । इतना
सिर्फ समझाओ तो भी ठीक है । जो जास्ती ज्ञान नहीं धारण कर सकते
वह ऊंच पद भी पा नहीं सकते । पास विद् ऑनर हो न सके । कर्मातीत
अवस्था को पा न सके,
इसमें बड़ी मेहनत चाहिए । याद की भी मेहनत है । ज्ञान धारण करने
की भी मेहनत है । दोनों में सब होशियार हो जाएं सो भी तो हो न
सकें । राजधानी स्थापन हो रही है । सब नर से नारायण कैसे
बनेंगे । इस गीता पाठशाला की एम ऑबजेक्ट तो यह है । वही गीता
ज्ञान है । वह भी कौन देते हैं,
यह
तो सिवाए तुम्हारे कोई जानते ही नहीं । अभी है कब्रिस्तान फिर
परिस्तान होने का है ।
अभी
तुम्हें ज्ञान चिता पर बैठ पुजारी से पूज्य जरूर बनना है ।
साइंस वाले भी कितने होशियार होते जाते हैं । इन्वेंशन निकालते
रहते हैं । भारतवासी हर बात का अक्ल वहाँ से सीखकर आते हैं ।
वह भी पिछाड़ी में आयेंगे तो इतना ज्ञान उठायेंगे नहीं । फिर
वहाँ भी आकर यही इन्जीनियरिंग आदि का काम करेंगे । राजा-रानी
तो बन न सके,
राजा-रानी के आगे सर्विस में रहेंगे । ऐसी-ऐसी इन्वेंशन
निकालते रहेंगे । राजा रानी बनते ही हैं सुख के लिए । वहाँ तो
सब सुख मिल जाने हैं । तो बच्चों को पुरूषार्थ पूरा करना चाहिए
। फुल पास होकर कर्मातीत अवस्था को पाना है । जल्दी जाने का
ख्याल नहीं आना चाहिए । अभी तुम हो ईश्वरीय सन्तान । बाप पढ़ा
रहे हैं । यह मिशन है मनुष्यों को चेन्ज करने की । जैसे
बौद्धियों की,
क्रिश्चियन की
मिशन
होती है ना । कृष्ण और क्रिश्चियन की भी रास मिलती है । उन्हों
के लेन-देन का भी बहुत कनेक्शन है । जो इतनी मदद करते हैं,
उनकी
भाषा आदि छोड़ देना यह भी एक इन्सल्ट है । वह तो आते ही पीछे
हैं । न बहुत सुख,
न
बहुत दु :ख उठाते । सारी इन्वेंशन वे लोग निकालते हैं । यहाँ
भल कोशिश करते हैं परन्तु एक्यूरेट कभी बना नहीं सकेंगे ।
विलायत की चीज़ अच्छी होती है । ऑनेस्टी से बनाते हैं । यहाँ तो
डिस- ऑनेस्टी से बनाते हैं,
अथाह
दु :ख हैं । सबके दुःख दूर करने वाला एक बाप के सिवाए और कोई
मनुष्य हो न सके । भल कितनी भी कान्फ्रेन्स करते हैं,
विश्व में शान्ति हो,
धक्का खाते रहते हैं । सिर्फ माताओं के दु :ख की बात नहीं,
यहाँ
तो अनेक प्रकार के दुःख हैं । सारी दुनिया में झगड़े मारामारी
की ही बात है । पाई-पैसे की बात पर मारामारी कर देते हैं ।
वहाँ तो दुःख की बात नहीं होती । यह भी हिसाब निकालना चाहिए ।
लड़ाई कभी भी शुरू हो सकती है । भारत में रावण जब से आता है तो
पहले-पहले घर में लडाई शुरू होती है । जुदा-जुदा हो जाते हैं,
आपस
में लड़ मरते हैं फिर बाहर वाले आते हैं । पहले ब्रिटिश थोड़ेही
थे फिर वह आकर बीच में रिश्वत आदि देकर अपना राज्य कर लेते हैं
। कितना रात-दिन का फर्क है । नया कोई भी समझ न सके । नई नॉलेज
है ना,
जो
फिर प्राय: लोप हो जाती है । बाप नॉलेज देते हैं फिर वह गुम हो
जाती है । यह एक ही पढ़ाई,
एक
ही बार,
एक
ही बाप से मिलती है । आगे चल तुम सबको साक्षात्कार होते रहेंगे
कि तुम यह बनेंगे । परन्तु उस समय कर ही क्या सकेंगे । उन्नति
को पा नहीं सकेंगे । रिजल्ट निकल चुकी फिर ट्रांसफर होने की
बात हो जायेगी । फिर रोयेंगे,
पीटेंगे । हम बदली हो जायेंगे नई दुनिया के लिए । तुम मेहनत
करते हो,
जल्दी चारों तरफ आवाज निकल जाये । फिर आपेही सेंटर्स पर भागते
रहेंगे । परन्तु जितना देरी होती जायेगी,
टू
लेट होते रहेंगे । फिर कुछ जमा नहीं होगा । पैसे की दरकार नहीं
रहेगी । तुमको समझाने लिए यह बैज़ ही काफी है । यह ब्रह्मा सो
विष्णु,
विष्णु सो ब्रह्मा । यह बैज ऐसा है जो सब शास्त्रों का तन्त
(सार) इसमें है । बाबा बैज़ की बहुत महिमा करते हैं । वह समय
आयेगा जो यह तुम्हारे बैज सब नयनों पर रखते रहेंगे । मनमनाभव,
इसमें है-मुझे याद करो तो यह बनेंगे । फिर यही
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जन्म
लेते हैं । पुनर्जन्म न लेने वाला एक ही बाप है । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
याद की
मेहनत और ज्ञान की धारणा से कर्मातीत अवस्था को पाने का
पुरूषार्थ करना है । ज्ञान सागर की सम्पूर्ण नॉलेज स्वयं में
धारण करनी है ।
2.
आत्मा में जो खाद पड़ी है उसे निकाल सम्पूर्ण वाइसलेस बनना है ।
रिंचक मात्र भी अपवित्रता का अंश न रहे । हम आत्मा भाई- भाई
हैं....... यह अभ्यास करना है ।
वरदान:-
ब्राह्मण जीवन में सर्व खजानों को सफल कर सदा प्राप्ति सम्पन्न
बनने वाले सन्तुष्टमणि भव
!
ब्राह्मण जीवन का सबसे बड़े से बड़ा खजाना है सन्तुष्ट रहना ।
जहाँ सर्व प्राप्तियां हैं वहाँ सन्तुष्टता है और जहाँ
सन्तुष्टता है वहाँ सब कुछ है । जो सन्तुष्टता के रत्न हैं वह
सब प्राप्ति स्वरूप हैं,
उनका
गीत है पाना था वह पा लिया...... ऐसे सर्व प्राप्ति सम्पन्न
बनने की विधि है - मिले हुए सर्व खजानों को यूज़ करना क्योंकि
जितना सफल करेंगे उतना खजाने बढ़ते जायेंगे ।
स्लोगन:-
होलीहंस
उन्हें कहा जाता जो सदा अच्छाई रूपी मोती ही चुगते हैं,
अवगुण
रूपी कंकड़ नहीं ।
ओम्
शान्ति
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