27-06-14           प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे निरन्तर याद रहे कि हमारा बाबा, बाप भी है, टीचर भी है तो सतगुरू भी है, यह याद ही मनमनाभव है"   

 

प्रश्न:-   

माया की धूल जब आँखों में पड़ती है तो सबसे पहली गफलत कौन-सी होती है?


उत्तर:-

माया पहली गफलत कराती जो पढ़ाई को ही छोड़ देते भगवान् पढ़ाते हैं, यह भूल जाता है बाप के बच्चे ही बाप की पढ़ाई को छोड़ देते हैं, यह भी वन्डर है नहीं तो नॉलेज ऐसी है जो अन्दर ही अन्दर खुशी में नाचते रहे, परन्तु माया का प्रभाव कोई कम नहीं है वह पढ़ाई को ही छुड़ा देती है पढ़ाई छोड़ी माना अबसेट हुए

 

ओम् शान्ति |

रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं समझाना उन्हों को होता है जिसने कुछ कम समझा है कोई बहुत समझदार बनते हैं बच्चे जानते हैं यह बाबा तो बड़ा वन्डरफुल है भल तुम यहाँ बैठे हो परन्तु अन्दर में समझते हो, यह हमारा बेहद का बाबा भी है, बेहद का टीचर भी है बेहद की शिक्षा देते हैं सृष्टि के आदि-मध्य- अन्त का राज समझाते हैं। स्टूडेंट की बुद्धि में तो यह होना चाहिए ना फिर साथ में जरूर ले जायेंगे बाप जानते हैं, यह पुरानी छी-छी दुनिया है, इनसे बच्चों को ले जाना है कहाँ? घर जैसे कन्या की शादी होती है तो ससुरघर वाले आकर कन्या को अपने घर ले जाते हैं अभी तुम यहाँ बैठे हो बाबा समझाते हैं बच्चों को अन्दर में जरूर आता होगा कि यह हमारा बेहद का बाप भी है, बेहद की शिक्षा भी देते हैं जितना बड़ा बाबा उतनी शिक्षा भी बड़ी बेहद की देते हैं रचना के आदि-मध्य- अन्त का राज भी बच्चों की बुद्धि में है जानते हैं बाप इस छी-छी दुनिया से हमको वापस ले जायेंगे यह भी अन्दर में याद करने से मनमनाभव ही है चलते-फिरते उठते-बैठते बुद्धि में यही याद रहे वन्डरफुल चीज को याद करना होता है ना तुम जानते हो अच्छी रीति पढ़ने से, याद करने से हम विश्व के मालिक बनते हैं यह तो जरूर बुद्धि में चलना चाहिए पहले बाप को याद करना पड़े टीचर बाद में मिलता है बच्चे जानते हैं हमारा बेहद का रूहानी बाप है सहज याद दिलाने के लिए बाबा युक्तियां बताते हैं-मामेंकम याद करो जिस याद से ही आधाकल्प के विकर्म विनाश होंगे पावन बनने के लिए तुमने जन्म-जन्मान्तर भक्ति, जप, तप आदि बहुत किये हैं मन्दिरों में जाते हैं, भक्ति करते हैं, समझते हैं हम परम्परा से करते आये हैं शास्त्र कब से सुने हैं? कहेंगे परम्परा से मनुष्यों को कुछ भी पता नहीं है सतयुग में तो शास्त्र होते ही नहीं। तुम बच्चों को तो वन्डर खाना चाहिए बाप बिगर कोई भी यह बातें समझा नहीं सकते यह बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है यह तो हमारा बाबा है इनका कोई माँ-बाप है नहीं कोई कह नहीं सकते कि शिवबाबा किसी का बच्चा है यह बातें बुद्धि में घड़ी-घड़ी याद रहें-यही मनमनाभव है टीचर पढ़ाते हैं परन्तु खुद कहाँ से पढ़ा नहीं है इनको कोई ने पढ़ाया नहीं वह नॉलेजफुल है, मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है, ज्ञान का सागर है चैतन्य होने कारण सब कुछ सुनाते हैं कहते हैं-बच्चों, मैं जिसमें प्रवेश हुआ हूँ इन द्वारा मैं तुमको आदि से लेकर इस समय तक सब राज समझाता हूँ अन्त के लिए तो फिर पीछे कहेंगे उस समय तुम भी समझ जायेंगे- अभी अन्त आता है कर्मातीत अवस्था को भी नम्बरवार पहुँच जायेंगे तुम आसार भी देखेंगे पुरानी सृष्टि का विनाश तो होना ही है यह अनेक बार देखा है और देखते रहेंगे पढ़ते ऐसे हैं जैसे कल्प पहले पढ़े थे राज्य लिया फिर गँवाया फिर अब ले रहे हैं बाप फिर से पढ़ा रहे हैं कितना सहज है तुम बच्चे समझते हो हम सच-सच विश्व के मालिक थे फिर बाबा आकर हमको वह ज्ञान दे रहे हैं बाबा राय देते हैं ऐसे-ऐसे अन्दर में चलना चाहिए  

बाबा हमारा बाबा भी है, टीचर भी है टीचर को कब भूलेंगे क्या! टीचर द्वारा तो पढ़ाई पढ़ते रहते हैं कोई-कोई बच्चों से माया बहुत गफलत कराती है एकदम जैसे आँखों में धूल डाल देती है पढ़ाई ही छोड़ देते हैं भगवान् पढ़ाते हैं, ऐसी पढ़ाई को छोड देते हैं! पढ़ाई ही मुख्य है सो भी कौन छोड़ते हैं? बाप के बच्चे तो बच्चों को अन्दर में कितनी खुशी रहनी चाहिए बाप नॉलेज भी हर बात की देते हैं जो कल्प-कल्प देते हैं बाप कहते हैं कम से कम इस रीति मुझे याद करो कल्प-कल्प तुम ही समझते हो और धारण करते हो इनका बाबा तो कोई है नहीं, वही बेहद का बाप है वन्डरफुल बाप हुआ ना मेंरा कोई बाबा है बताओ? शिवबाबा किसका बच्चा है? यह पढ़ाई भी वन्डरफुल है जो इस समय के सिवाए कब पढ़ नहीं सकते और सिर्फ तुम ब्राह्मण ही पढ़ते हो तुम यह भी जानते हो कि बाप को याद करते-करते हम पावन बन जायेंगे। नहीं तो फिर सजायें खानी पड़ेगी गर्भ जेल में बहुत सजायें खानी पड़ती हैं वहाँ पर फिर ट्रिब्युनल बैठती है सब साक्षात्कार होते हैं बिगर साक्षात्कार किसको सजा दे नहीं सकते मूँझ पड़े कि यह सजा हमको क्यों मिलती है! बाप को मालूम रहता है कि इसने यह पाप किया है, यह भूल की है सब साक्षात्कार कराते हैं उस समय ऐसा फील होता है जैसेकि इतने सब जन्मों की सजा मिल रही है यह जैसे सब जन्मों की इज्जत गई तो बाप कहते हैं मीठे-मीठे बच्चों को पुरूषार्थ अच्छी रीति करना है 16 कला सम्पूर्ण बनने के लिए याद की मेंहनत करनी है देखना है कि हम किसको दु : तो नहीं देते हैं? सुखदाता बाप के हम बच्चे हैं ना? बहुत गुल-गुल बनना है यह पढ़ाई ही तुम्हारे साथ चलनी है पढ़ाई से ही मनुष्य बैरिस्टर आदि बनते हैं बाप की यह नॉलेज न्यारी और सत्य है और यह है पाण्डव गवर्मेंट, गुप्त तुम्हारे सिवाए दूसरा कोई समझ नहीं सकते यह पढ़ाई वन्डरफुल है आत्मा ही सुनती है बाप बार-बार समझाते हैं - पढ़ाई को कभी छोड़ना नहीं है माया छुड़ा देती है बाप कहते हैं ऐसे मत करो, पढ़ाई छोड़ो नहीं बाबा के पास रिपोर्ट तो आती है ना रजिस्टर से सब मालूम पड़ता है यह कितना दिन अबसेट रहा पढ़ाई छोड़ देते हैं तो बाप को भी भूल जाते हैं वास्तव में यह भूलने की चीज तो है नहीं यह तो वन्डरफुल बाप है समझाते भी हैं जैसे एक खेल है खेल की बात किसको भी सुनाने से झट याद रह जाती है ना वह कभी भूलती नहीं है यह अपना अनुभव भी सुनाते हैं छोटेपन में ही वैरागी ख्यालात रहते थे कहता था दुनिया में तो बहुत दु : है अब हमारे पास सिर्फ 10 हजार हो जायें तो फिर 50 रूपया ब्याज मिलेगा, इतना बस है स्वतन्त्र रहेंगे घरबार सम्भालना तो मुसीबत है अच्छा, फिर एक बाइसकोप देखा सौभाग्य सुन्दरी का.... बस वैराग्य की सब बातें टूट गई ख्याल किया शादी करेंगे, यह करेंगे एक ही थपड़ मारा माया ने, कला काया चट कर दी तो अब बाप कहते हैं-बच्चे, यह तो दुनिया ही दोज़क है और उसमें फिर यह जो नाटक  (सिनेमा) हैं, वह भी दोज़क है यह देखने से ही सबकी वृत्तियाँ खराब हो जाती हैं अखबारें पढ़ते हैं, उसमें अच्छी- अच्छी माइयों के चित्र देखते हैं तो वृत्ति उस तरफ चली जाती है यह बड़ी अच्छी खूबसूरत है, बुद्धि में आया ना वास्तव में यह ख्याल भी चलना नहीं चाहिए बाबा कहते हैं-यह तो दुनिया ही खत्म हो जानी है इसलिए तुम और सब भूल मामेंकम् याद करो, ऐसे-ऐसे चित्र आदि क्यों देखते हो? यह सब बातें वृत्ति को नीचे ले आती हैं यह जो कुछ देखते हो यह तो कब्रदाखिल होने हैं जो कुछ इन आखों से देखते हो उनको याद करो, इनसे ममत्व मिटा दो यह सब शरीर तो पुराने छी-छी हैं भल आत्मा शुद्ध बनती है परन्तु शरीर तो छी-छी है ना इस तरफ ध्यान क्या देना है एक बाप को ही देखना है  

बाप कहते है मीठे-मीठे बच्चों मंजिल बहुत ऊंची है विश्व का मालिक बनने के लिए दूसरा कोई तो ट्राय भी कर सके कोई की भी बुद्धि में सके माया का प्रभाव कोई कम नहीं है साइन्स वालों की कितनी बुद्धि चलती है तुम्हारी फिर है साइलेन्स, सब चाहते भी हैं-हम मुक्ति पावें तुम्हारी फिर एम है जीवनमुक्ति की यह भी बाप ने समझाया है गुरू आदि कोई ऐसी नॉलेज दे नहीं सकते तुम्हें गृहस्थ में रह पवित्र बनना है, राजाई लेना है भक्ति में बहुत टाइम वेस्ट किया है अभी समझते हो हमने कितनी भूलें की है भूल करते-करते बेसमझ, बिल्कुल ही पत्थर बुद्धि बन पड़े हैं अन्दर में आता है यह तो बड़ी वन्डरफुल नॉलेज है जिससे हम क्या से क्या बन जाते हैं, पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि तो खुशी का पारा भी चढ़ता है कि हमारा बाबा बेहद का बाबा है उनको कोई बाप नहीं वह टीचर है, उनका कोई टीचर नहीं कहेंगे कहाँ से सीखा! वन्डर खायेंगे ना बहुत लोग समझते हैं यह तो कोई गुरू से सीखा तो गुरू के और भी शिष्य होंगे ना सिर्फ एक शिष्य था क्या? गुरूओं के शिष्य तो ढेर होते हैं आगाखां के देखो कितने शिष्य हैं गुरूओं के लिए कितना अन्दर में रहता है, उनको हीरो में वजन करते हैं तुम ऐसे सतगुरू को किसमें वजन करायेंगे यह तो बेहद का सतगुरू है इनका वजन कितना है! एक हीरा भी नहीं डाल सको

ऐसी-ऐसी बातें तुम बच्चों को विचार करनी है यह तो महीन बात हुई भल यह तो सब कहते रहते हैं हे ईश्वर परन्तु यह थोड़ेही समझते हैं कि वह बाप, टीचर, गुरू भी है यह तो साधारण रीति से बैठे रहते हैं यह ऊपर संदली पर भी इसलिए बैठते हैं कि मुखड़ा देख सकें बच्चों पर प्यार तो रहता है ना इन मददगार बच्चों बिगर स्थापना थोड़ेही करेंगे जास्ती मदद करने वाले बच्चों को जरूर जास्ती प्यार करेंगे जास्ती कमाने वाला बच्चा अच्छा होगा तो जरूर ऊच ते ऊंच पद लेगा उस पर प्यार भी जाता है बच्चों को देख-देख हर्षित होते हैं आत्मा बहुत खुश होती है कल्प-कल्प बच्चों को देख खुश होता हूँ कल्प-कल्प बच्चे ही मददगार बनते हैं बहुत प्यारे लगते हैं कल्प-कल्पान्तर का प्यार जुट जाता है भल कहाँ भी बैठे रहो, बुद्धि में बाप की याद रहे यह बेहद का बाप है, इनका कोई बाप नहीं, इनका कोई टीचर नहीं स्वयं ही सब कुछ है जिसको ही सब याद करते हैं सतयुग में तो कोई याद नहीं करेंगे, 21 जन्मों के लिए बेड़ा पार हो गया तो तुमको कितनी खुशी होनी चाहिए बस, सारा दिन बाप की सर्विस करें ऐसे बाप का परिचय दें बाप से यह वर्सा मिलता है बाप हमको राजयोग सिखलाते हैं और फिर सबको साथ भी ले जाते हैं सारा चक्र बुद्धि में है ऐसा चक्र तो कोई बना सके अर्थ का तो किसको पता नहीं तुम अभी समझते हो-बाबा हमारा बेहद का बाबा भी है, बेहद का राज्य भी देते हैं फिर साथ भी ले जायेंगे ऐसे-ऐसे तुम समझायेंगे फिर कोई सर्वव्यापी कह नहीं सकेंगे वह बाप है, टीचर है तो सर्वव्यापी कैसे हो सकता  

बेहद का बाप ही नॉलेजफुल है सारे सृष्टि के आदि-मध्य- अन्त को जानते हैं बाप बच्चों को समझाते हैं-पढ़ाई को भूलो मत यह बहुत बड़ी पढ़ाई है बाबा परमपिता है, परम टीचर है, परम गुरू भी है इन सब गुरूओं को भी ले जायेंगे ऐसी- ऐसी वन्डरफुल बातें सुनानी चाहिए बोलो यह बेहद का खेल है हरेक एक्टर को अपना पार्ट मिला हुआ है बेहद के बाप से हम ही बेहद की बादशाही लेते हैं हम ही मालिक थे वैकुण्ठ होकर गया है, फिर जरूर होगा कृष्ण नई दुनिया का मालिक था अब पुरानी दुनिया है फिर जरूर नई दुनिया का मालिक बनेगा चित्र में भी क्लीयर है तुम जानते हो- अब हमारी लात नर्क की तरफ, मुँह स्वर्ग की तरफ है, वही याद रहता है ऐसे याद करते-करते अन्त मती सो गति हो जायेगी कितनी अच्छी- अच्छी बातें हैं जिनका सिमरण करना चाहिए अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1). इन आँखों से जो कुछ दिखाई देता है, उनसे ममत्व मिटाना है, एक बाप को ही देखना है । वृत्ति को शुद्ध बनाने के लिए इन छी-छी शरीरों की तरफ जरा भी ध्यान न जाये । 

2). बाप जो न्यारी और सत्य नॉलेज सुनाते हैं, वह अच्छी तरह पढ़नी और पढ़ानी है । पढ़ाई कभी मिस नहीं करनी है ।

 

वरदान:-

त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट हो हर कर्म करने वाले शक्तिशाली आत्मा भव !    

जो बच्चे त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट होकर हर समय, हर कर्म करते हैं, वो जानते हैं कि बातें तो अनेक आनी हैं, होनी हैं, चाहे स्वयं द्वारा, चाहे औरों द्वारा, चाहे माया वा प्रकृति द्वारा सब प्रकार से परिस्थितियाँ तो आयेंगी, आनी ही हैं लेकिन स्व-स्थिति शक्तिशाली है तो पर-स्थिति उसके आगे कुछ भी नहीं है सिर्फ हर कर्म करने के पहले उसके आदि-मध्य- अन्त तीनों काल चेक करके, समझ करके फिर कुछ भी करो तो शक्तिशाली बन परिस्थितियों को पार कर लेंगे।

 

स्लोगन:- 

सर्व शक्ति ज्ञान सम्पन्न बनना ही संगमयुग की प्रालब्ध है ।   


ओम् शान्ति
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