07-02-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
तुम अभी हंस बनने का पुरुषार्थ कर रहे हो, तुम्हें इन
लक्ष्मी-नारायण जैसा हंस अर्थात् सम्पूर्ण निर्विकारी बनना है
| 
प्रश्न:-
इस
ज्ञान मार्ग में तीव्र जाने की सहज विधि क्या है?
उत्तर:-
इस
ज्ञान में तीव्र (तीखा) जाना है तो और सब विचार छोड़ बाप की याद
में लग जाओ जिससे विकर्म विनाश हो जाएँ और पूरा कचरा निकल जाये
| याद की यात्रा ही ऊँच पद का आधार है, इसी से तुम कौड़ी से
हीरा बन सकते हो | बाप की ड्यूटी है तुम्हें कौड़ी से हीरा,
पतित से पावन बनाने की | इसके बिगर बाप भी रह नहीं सकते |
ओम्
शान्ति
|
बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं कि इस दुनिया में कोई हंस भी हैं
तो बगुले भी हैं | यह लक्ष्मी-नारायण हंस हैं, इन जैसा तुमको
बनना है | तुम कहेंगे हम दैवी सम्प्रदाय बन रहे हैं | बाप
कहेंगे तुम दैवी सम्प्रदाय बन रहे हो, मैं तुमको हंस बनाता
हूँ, अभी पूरे बने नहीं हो, बनना है | हंस मोती चुगते हैं,
बगुला गंद खाते हैं | अब हम हंस बन रहे हैं इसलिए देवताओं को
फूल कहा जाता है और उनको काँटा कहा जाता है | हंस थे फिर नीचे
उतरते बगुले बने हो | आधा कल्प हंस, आधा कल्प बगुले | हंस बनने
में भी माया के बहुत विघ्न पड़ते हैं | कुछ न कुछ गिरावट आ जाती
है | मुख्य गिरावट आती है देह-अभिमान की | इस संगम पर ही तुम
बच्चों को चेन्ज होना है | जब तुम हंस बन जाते हो तो फिर हंस
ही हंस हो | हंस अर्थात् देवी-देवता होते हैं नई दुनिया में |
पुरानी दुनिया में एक भी हंस हो न सके | भल सन्यासी हैं परन्तु
वह हद के सन्यासी हैं | तुम हो बेहद के सन्यासी | बाबा ने बेहद
का सन्यास सिखाया है | इन देवताओं जैसा सर्वगुण सम्पन्न और कोई
धर्म वाला बनता ही नहीं है | अब बाप भी आये हैं – आदि सनातन
देवी-देवता धर्म की स्थापना करने | तुम ही नई दुनिया में
पहले-पहले सुख में आते हो और कोई नई दुनिया में थोड़ेही आते हैं
| अब इन देवताओं का धर्म ही प्रायः लोप है | यह बातें भी तुम
अभी ही सुन रहे हो और समझते हो | और कोई समझ न सके | वह सब है
मनुष्य मत, विकार से तो सब पैदा हुए हैं ना | सतयुग में विकार
की कोई बात नहीं | देवतायें पवित्र थे | वहाँ योगबल से ही
सब-कुछ होता है | यहाँ पतित मनुष्यों को क्या पता वहाँ बच्चे
कैसे पैदा होते हैं? उसका नाम ही है वाइसलेस वर्ल्ड | विकार की
बात ही नहीं | कहेंगे जानवर आदि कैसे पैदा होते हैं? बोलो वहाँ
है ही योगबल, विकार की बात ही नहीं | 100 परसेन्ट वाइसलेस हैं
| हम तो शुभ बोलते हैं | तुम अशुभ क्यों बोलते हो? इसका नाम ही
है वेश्यालय और उसका नाम ही है शिवालय | उस शिवालय की स्थापना
शिवबाबा कर रहे हैं | शिवबाबा ऊँचे से ऊँचा टावर है ना |
शिवालय भी ऐसे लम्बे बनाते हैं | शिवबाबा तुमको सुख का टावर
बनाते हैं, सुख के टावर में ले जाते हैं इसलिए बाबा में बहुत
लव रहता है | भक्ति मार्ग में भी शिवबाबा के साथ लव रहता है |
शिव
बाबा
के मन्दिर में बहुत प्यार से जाते हैं परन्तु कुछ भी समझते
नहीं हैं | अब तुम बच्चे सर्वगुण सम्पन्न बन रहे हो | अभी
सम्पूर्ण बने नहीं हो | तुम्हारा इम्तिहान तब होगा जब तुम्हारी
राजधानी पूरी स्थापन हो जायेगी | फिर और सब ख़त्म हो जायेंगे
फिर नम्बरवार थोड़े-थोड़े आते जायेंगे | तुम्हारी तो पहले ही
राजाई शुरू होती है | और धर्मों में पहले राजाई नहीं शुरू होती
है | तुम्हारी तो है ही किंगडम | इन बातों को तुम बच्चे ही
जानते हो | बनारस में बच्चे सर्विस पर गये, उनको समझाने का नशा
है | परन्तु वो लोग इतना समझ न सकें | गायन भी है कोटों में
कोई | हंस कोई विरला बनते हैं | नहीं बनते तो फिर बहुत सजायें
खाते हैं | कोई तो 95 परसेन्ट सज़ा खाते सिर्फ़ 5 परसेन्ट चेन्ज
होते हैं | हाइएस्ट और लोएस्ट नम्बर तो होते हैं ना | अभी कोई
भी अपने को हंस कह न सकें | पुरुषार्थ कर रहे हैं | जब ज्ञान
पूरा हो जायेगा तब लड़ाई भी लगेगी | ज्ञान तो पूरा लेना है ना |
वह लड़ाई ही फाइनल होगी | अभी तो कोई 100 परसेन्ट बने नहीं हैं
| अभी तो घर-घर में पैगाम पहुँचाना है | बड़ा भारी रिवोल्युशन
हो जायेगा | जिन्हों के बड़े-बड़े अड्डे बने हुए हैं, सब हिलने
लगेंगे | भक्ति का तख़्त हिलने लगेगा | अभी भक्तों का राज्य है
ना | उस पर तुम विजय पाते हो | अभी है प्रजा का प्रजा पर
राज्य, फिर बदली होगा | इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य हो जायेगा
| तुम साक्षात्कार करते रहेंगे | शुरू में तुमको बहुत
साक्षात्कार कराये हुए हैं | कैसे राजधानी चलती है | परन्तु
साक्षात्कार करने वाले आज हैं नहीं | यह भी ड्रामा में जिनका
जो पार्ट है वह चलता ही रहता है | इसमें हम किसी की महिमा
थोड़ेही करेंगे | बाप भी कहते हैं तुम मेरी क्या महिमा करेंगे?
मेरी तो ड्यूटी है पतित से पावन बनाने की | टीचर की ड्यूटी है
पढ़ाने की | अपनी ड्यूटी बजाने वाले की महिमा क्या करेंगे? बाबा
कहते मैं भी ड्रामा के वश हूँ, इसमें ताकत फिर काहे की | यह तो
मेरी ड्यूटी है | कल्प-कल्प संगम पर आकर पतित से पावन बनाने का
रास्ता बताता हूँ | मैं पावन बनाने बिगर रह नहीं सकता हूँ |
मेरा पार्ट एक्यूरेट है | एक सेकेण्ड भी देरी से वा आगे नहीं आ
सकता | मैं परवश हूँ, इसमें महिमा की बात नहीं | मैं कल्प-कल्प
आता हूँ, मुझे बुलाते ही हैं पतित से पावन बनाने वाले आओ |
कितने पतित बन पड़े हैं | एक एक अवगुण छुड़ाने में कितनी मेहनत
लगती है | बहुत समय पवित्र रहकर भी फिर चलते-चलते माया का
थप्पड़ लगने से काला मुँह कर लेते हैं |
यह
है ही तमोप्रधान दुनिया | माया दुश्मन बहुत सामना करती है |
सन्यासी भी जन्म तो विकार से ही लेते हैं | कोई भी ज्योति
ज्योत में समाते नहीं, वापिस जा नहीं सकते | आत्मा तो अविनाशी
है और उसका पार्ट भी अविनाशी है फिर ज्योति ज्योत में समा कैसे
सकती | जितने ढेर मनुष्य हैं उतनी ढेर बातें हैं | वह सब है
मनुष्य मत | ईश्वरीय मत है ही एक | देवता मत तो यहाँ होती नहीं
| देवता होते हैं सतयुग में | तो यह बड़ी समझने की बातें हैं |
मनुष्य तो कुछ भी नहीं जानते तब तो ईश्वर को पुकारते हैं कि
रहम करो | बाप कहते हैं मैं तुमको ऐसा लायक बनाता हूँ जो तुम
पूजने लायक बनते हो | अभी थोड़ेही पूजने लायक हो, बन रहे हो |
तुम जानते हो हम यह बनेंगे फिर भक्ति मार्ग में हमारी ही महिमा
होगी, हमारे ही मंदिर बनेंगे | तुमको मालूम है कि चण्डिका देवी
का भी मेला लगता है | चण्डी, जो बाप की श्रीमत पर नहीं चलती |
फिर भी विश्व को पवित्र बनाने में कुछ न कुछ मदद तो करती है ना
| सेना है ना | सजायें आदि खाकर फिर भी विश्व का मालिक तो बनते
हैं ना | यहाँ कोई भील होगा वह भी कहेगा हम भारत के मालिक हैं
| आजकल देख एक तरफ़ तो गाते हैं भारत हमारा सबसे ऊँचा देश है और
दूसरे तरफ़ फिर गाते हैं कि भारत की क्या हालत हो गई है | रक्त,
खून की नदियाँ बहती रहती हैं | एक रिकॉर्ड में महिमा तो एक
रिकॉर्ड में निन्दा | कुछ समझते नहीं हैं | तुमको तो यथार्थ
रीति अब बाप समझाते हैं | मनुष्यों को थोड़ेही पता है कि इन्हों
को भगवान् पढ़ाते हैं | कहेंगे वाह, इन्होंने भगवान् को टीचर
बना रखा है! अरे, भगवानुवाच है ना कि मैं तुमको राजाओं का राजा
बनाता हूँ | सिर्फ़ गीता में मनुष्य का नाम डाल गीता को खण्डन
कर दिया है | कृष्ण भगवानुवाच यह तो मनुष्य मत हो गई ना |
कृष्ण कैसे यहाँ आयेगा? वह तो सतयुग का प्रिन्स था | उनको क्या
पड़ी है जो इस पतित दुनिया में आये |
बाप को तो तुम बच्चे ही जानते हो परन्तु तुम्हारे में भी विरला
कोई यथार्थ रीति जानते हैं | तुम बच्चों के मुख से सदैव रत्न
निकलना चाहिए, पत्थर नहीं | अपने से पूछना है कि हम ऐसे बने
हैं? भल चाहते भी हैं हम किचड़े से जल्दी बाहर निकलें परन्तु
जल्दी हो न सके | टाइम लगता है तुमको बहुत मेहनत करनी पड़ती है
| समझाने वालों में भी नम्बरवार हैं, युक्तियुक्त समझानी पीछे
की होगी, तब तुम्हारे बाण चलेंगे | तुम जानते हो हमारी पढ़ाई अब
चल रही है | पढ़ाने वाला तो एक ही है | सब उनसे पढ़ने वाले हैं |
आगे चल तुम लड़ाई ऐसी देखेंगे जो बात मत पूछो | लड़ाई में तो
बहुत मरेंगे फिर इतनी सब आत्मायें कहाँ जायेंगी | क्या इकट्ठी
ही जाकर जन्म लेंगी? झाड़ बड़ा होता है, बहुत टाल-टालियाँ, पत्ते
हो जाते हैं | रोज़ कितने जन्मते हैं, मरते भी कितने हैं |
वापिस तो कोई जा नहीं सकते | मनुष्यों की वृद्धि होती जाती है
| इन रेज़गारी बातों में जाने से पहले बाप को तो याद करें जिससे
विकर्म विनाश हों और किचड़ा निकल जाये | फिर है दूसरी बात | तुम
इसका कोई विचार न करो | पहले अपना पुरुषार्थ करो जो ऐसा बन सको
| मुख्य है याद की यात्रा और सबको पैगाम देना है | पैगम्बर एक
ही है | धर्म स्थापक को भी पैगम्बर वा प्रिसेप्टर्स नहीं कह
सकते | सद्गति दाता एक ही सतगुरु है | बाकी तो भक्ति मार्ग में
मनुष्य कुछ न कुछ सुधरते हैं | कोई न कोई दान भी करते हैं |
तीर्थों पर जाते हैं तो कुछ न कुछ दान दे आते हैं | तो यह तो
तुम जानते हो कि इस अन्तिम जन्म में बाप हमको हीरे जैसा बनाते
हैं | इसको ही अमूल्य जीवन कहा जाता है, परन्तु इतना पुरुषार्थ
करना पड़े | तुम कहेंगे हमारा कोई दोष नहीं है | अरे, मैं आया
हूँ गुल-गुल (फूल) बनाने तो तुम क्यों नहीं बनते हो? मेरी तो
ड्यूटी है पावन बनाने की | तो तुम क्यों नहीं पुरुषार्थ करते
हो? पुरुषार्थ कराने वाला बाप तो मिला है | इन लक्ष्मी-नारायण
को ऐसा किसने बनाया? दुनिया थोड़ेही जानती है | बाप आते ही हैं
संगम पर | अभी तुम्हारी बातों को कोई समझते नहीं हैं, आगे चलकर
जब तुम्हारे पास बहुत आयेंगे तो उन्हों की ग्राहकी टूट पड़ेगी |
बाप कहते हैं इन वेद-शास्त्रों का सार मैं सुनाता हूँ | ढेर के
ढेर गुरु हैं, सब भक्ति मार्ग के | सतयुग में सब पावन थे फिर
पतित बने | अब बाप फिर आकर तुम्हें बेहद का सन्यास कराते हैं
क्योंकि यह पुरानी दुनिया ख़त्म होने वाली है इसलिए बाप कहते
हैं – कब्रिस्तान से बुद्धि निकाल मुझ बाप को याद करो तो
विकर्म विनाश होंगे | अब कयामत का समय है | सबका हिसाब-किताब
चुक्तू होने वाला है | सारी दुनिया की जो आत्मायें हैं उनमें
सारा पार्ट भरा हुआ है | आत्मा शरीर धारण कर पार्ट बजाती है |
तो आत्मा भी अविनाशी है, पार्ट भी अविनाशी है | इसमें कोई फ़र्क
पड़ नहीं सकता | हुबहू रिपीट होता ही रहता है | यह बहुत बड़ा
बेहद का ड्रामा है | नम्बरवार तो होता ही है | कोई रूहानी
सर्विस करने वाले, कोई स्थूल सर्विस करने वाले | कोई कहते हैं
बाबा हम आपका ड्राइवर बनें, तो वहाँ भी विमान का मालिक बन
जायेंगे | आज के बड़े लोग समझते हैं अभी तो हमारे लिए स्वर्ग है
| बड़े-बड़े महल हैं, विमान हैं | बाप कहते हैं यह सब हैं
आर्टिफिशल, इनको माया का पाम्प कहा जाता है | क्या-क्या सीखते
रहते हैं | जहाज आदि बनाते हैं | अब यह जहाज आदि वहाँ काम में
थोड़ेही आयेंगे | बाम्ब्स बनाते हैं, यह थोड़ेही वहाँ काम में
आयेंगे | सुख वाली चीज़ें तो काम में आयेंगी | विनाश होने में
साइन्स मदद करती है | फिर वो ही साइन्स तुमको नई दुनिया बनाने
में भी मदद देगी | यह ड्रामा बड़ा वन्डरफुल बना हुआ है | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
इस कयामत के समय पुरानी दुनिया से बेहद का सन्यास करना है | इस
कब्रिस्तान से बुद्धि निकाल देनी है | याद में रहकर सब पुराने
हिसाब-किताब चुक्तू करने हैं |
2.
मुख से सदैव ज्ञान रत्न निकालने हैं, पत्थर नहीं | पूरा-पूरा
हंस बनना है | काँटों को फूल बनाने की सेवा करनी है |
वरदान:-
अपने पुरुषार्थ की विधि में स्वयं की प्रगति का अनुभव करने
वाले सफलता के सितारे भव
! 
जो
अपने पुरुषार्थ की विधि में स्वयं की प्रगति वा सफलता का अनुभव
करते हैं, वही सफलता के सितारे हैं, उनके संकल्प में स्वयं के
पुरुषार्थ प्रति भी कभी “पता नहीं होगा या नहीं होगा, कर
सकेंगे या नहीं कर सकेंगे” – यह असफलता का अंश-मात्र भी नहीं
होगा | स्वयं प्रति सफलता अधिकार के रूप में अनुभव करेंगे |
उन्हें सहज और स्वतः सफलता मिलती रहती है |
स्लोगन:-
सुख
स्वरूप बनकर सुख दो तो पुरुषार्थ में दुआयें एड हो जायेंगी
|
ओम्
शान्ति
|