07-08-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - तुम्हारे निज़ी संस्कार पवित्रता के हैं,
तुम
रावण के संग में आकर पतित बनें,
अब फिर पावन बन पावन दुनिया का मालिक बनना है” 
प्रश्न:-
अशान्ति का कारण और उसका निवारण क्या है?
उत्तर:-
अशान्ति का कारण है अपवित्रता । अब भगवान् बाप से वायदा करो कि
हम पवित्र बन पवित्र दुनिया बनायेंगे,
अपनी
सिविल आई रखेंगे,
क्रिमिनल नहीं बनेंगे तो अशान्ति दूर हो सकती है । तुम शान्ति
स्थापन करने के निमित्त बने हुए बच्चे कभी अशान्ति नहीं फैला
सकते । तुम्हें शान्त रहना है,
माया
के गुलाम नहीं बनना है ।
ओम्
शान्ति |
बाप
बैठ बच्चों को समझाते हैं कि गीता के भगवान् ने गीता सुनाई ।
एक बार सुनाकर फिर तो चले जायेंगे । अभी तुम बच्चे गीता के
भगवान से वही गीता का ज्ञान सुन रहे हो और राजयोग भी सीख रहे
हो । वे लोग तो लिखी हुई गीता पढ़कर कण्ठ कर लेते हैं फिर
मनुष्यों को सुनाते रहते हैं । वह भी फिर शरीर छोड़ जाए दूसरा
जन्म बच्चे बने फिर तो सुना न सकें । अब बाप तुमको गीता सुनाते
रहते हैं,
जब
तक तुम राजाई प्राप्त करो । लौकिक टीचर भी पाठ पढ़ाते ही रहते
हैं । जब तक पाठ पूरा हो सिखाते रहते हैं । पाठ पूरा हो जाता
फिर हद की कमाई में लग जाते । टीचर से पढ़े,
कमाई
की,
बूढ़े
हुए,
शरीर
छोड़ा,
फिर
दूसरा शरीर जाकर लेते हैं । वो लोग गीता सुनाते हैं,
अब
इससे प्राप्ति क्या होती है?
यह
तो कोई को पता नहीं । गीता सुनाकर फिर दूसरे जन्म में बच्चा
बना तो सुना न सके । जब बड़े हों,
बुजुर्ग बनें,
गीतापाठी हों तब फिर सुनावें । यहाँ बाप तो एक ही बार
शान्तिधाम से आकर पढ़ाते हैं फिर चले जाते हैं । बाप कहते हैं
तुमको राजयोग सिखाकर हम अपने घर चले जाते हैं । जिनको पढ़ाता
हूँ वह फिर आकर अपनी प्रालब्ध भोगते हैं । अपनी कमाई करते हैं,
नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार धारणा कर फिर चले जाते हैं । कहाँ?
नई
दुनिया में । यह पढ़ाई है ही नई दुनिया के लिए । मनुष्य तो यह
नहीं जानते कि पुरानी दुनिया खत्म हो फिर नई स्थापन होनी है ।
तुम जानते हो हम राजयोग सीखते ही हैं नई दुनिया के लिए । फिर न
यह पुरानी दुनिया,
न
पुराना शरीर होगा । आत्मा तो अविनाशी है । आत्मायें पवित्र बन
फिर पवित्र दुनिया में आती हैं । नई दुनिया थी,
जिसमें देवी-देवताओं का राज्य था जिसको स्वर्ग कहा जाता है ।
वह नई दुनिया बनाने वाला भगवान् ही है । वह एक धर्म की स्थापना
कराते हैं । कोई देवता द्वारा नहीं कराते । देवता तो यहाँ है
नहीं । तो जरूर कोई मनुष्य द्वारा ही ज्ञान देंगे जो फिर देवता
बनेंगे । फिर वही देवतायें पुनर्जन्म लेते-लेते अभी ब्राह्मण
बने हैं । यह राज़ तुम बच्चे ही जानते हो - भगवान् तो है
निराकार जो नई दुनिया रचते हैं । अभी तो रावण राज्य है । तुम
पूछते हो कलियुगी पतित हो या सतयुगी पावन हो?
परन्तु समझते नहीं । अब बाप बच्चों को कहते हैं-हमने 5 हजार
वर्ष पहले भी तुमको समझाया था । हम आते ही हैं तुम बच्चों को
आधाकल्प सुखी बनाने । फिर रावण आकर तुमको दु :खी बनाता है । यह
सुख-दुःख का खेल है । कल्प की आयु 5 हजार वर्ष है,
तो
आधा- आधा करना पड़े ना । रावण राज्य में सब देह- अभिमानी विकारी
बन जाते हैं । यह बातें भी तुम अब समझते हो,
आगे
नहीं समझते थे । कल्प-कल्प जो समझते हैं वही समझ लेते हैं । जो
देवता बनने वाले नहीं,
वह
आयेंगे ही नहीं । तुम देवता धर्म की कलम लगाते हो । जब वह
आसुरी तमोप्रधान बन जाते हैं तो उनको दैवी झाड़ का नहीं कहेंगे
। झाड़ भी जब नया था तो सतोप्रधान था । हम उसके पत्ते
देवी-देवता थे फिर रजो,
तमो
में आये,
पुराने पतित शूद्र हो गये । पुरानी दुनिया में पुराने मनुष्य
ही रहेंगे । पुराने को फिर से नया बनाना पड़े । अब देवी-देवता
धर्म ही प्रायः लोप हो गया है । बाप भी कहते हैं जब-जब धर्म की
ग्लानि होती है,
तो
पूछा जायेगा किस धर्म की ग्लानि होती है?
जरूर
कहेंगे आदि सनातन देवी-देवता धर्म की,
जो
मैने स्थापन किया था । वह धर्म ही प्राय: लोप हो गया । उसके
बदले अधर्म हो गया है । तो जब धर्म से अधर्म की वृद्धि होती
जाती,
तब
बाप आते हैं । ऐसे नहीं कहेंगे धर्म की वृद्धि,
धर्म
तो प्राय: लोप हो गया । बाकी अधर्म की वृद्धि हुई । वृद्धि तो
सब धर्मों की होती है । एक क्राइस्ट से कितनी क्रिस्चियन धर्म
की वृद्धि होती है । बाकी देवी-देवता धर्म प्राय: लोप हो गया ।
पतित बनने कारण आपेही ग्लानि करते हैं । धर्म से अधर्म भी एक
ही होता है । और तो सब ठीक चल रहे हैं । सब अपने- अपने धर्म पर
कायम रहते हैं । जो आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाइसलेस था,
वह
विशश बन पड़े हैं । हमने पावन दुनिया स्थापन की फिर वही पतित,
शूद्र बन जाते हैं अर्थात् उस धर्म की ग्लानि हो जाती है ।
अपवित्र बनते तो अपनी ग्लानि कराते हैं । विकार में जाने से
पतित बन जाते हैं,
अपने
को देवता कहला नहीं सकते हैं । स्वर्ग से बदल नर्क हो गया है ।
तो कोई भी वाह-वाह (पावन) है नहीं । तुम कितने छी-छी पतित बन
गये हो । बाप कहते हैं तुमको वाह-वाह फूल बनाया फिर रावण ने
तुमको कांटा बना दिया । पावन से पतित बन गये हो । अपने धर्म की
ही हालत देखनी है । पुकारते भी हैं कि हमारी हालत आकर देखो,
हम
कितने पतित बने हैं । फिर हमको पावन बनाओ । पतित से पावन बनाने
बाप आते हैं तो फिर पावन बनना चाहिए । औरों को भी बनाना चाहिए
।
तुम
बच्चे अपने को देखते रहो कि हम सर्वगुण सम्पन्न बने हैं?
हमारी चलन देवताओं मिसल है?
देवताओं के राज्य में तो विश्व में शान्ति थी । अब फिर तुमको
सिखलाने आया हूँ-विश्व में शान्ति कैसे स्थापन हो । तो तुमको
भी शान्ति में रहना पड़े । शान्त होने की युक्ति बताता हूँ कि
मेरे को याद करो तो तुम शान्त हो,
शान्तिधाम में चले जायेंगे । कोई बच्चे तो शान्त रहकर औरों को
भी शान्ति में रहना सिखलाते हैं । कोई अशान्ति कर देते हैं ।
खुद अशान्त रहते हैं तो औरों को भी अशान्त बना देते हैं ।
शान्ति का अर्थ नहीं समझते । यहाँ आते हैं शान्ति सीखने फिर
यहाँ से जाते हैं तो अशान्त हो जाते हैं । अशान्ति होती ही है
अपवित्रता से । यहाँ आकर प्रतिज्ञा करते हैं-बाबा,
हम
आपका ही हूँ । आपसे विश्व की बादशाही लेनी है । हम पवित्र रहकर
फिर विश्व के मालिक जरूर बनेंगे । फिर घर में जाते हैं तो माया
तूफान में ले आती है । युद्ध होती है ना । फिर माया के गुलाम
बन पतित बनना चाहते हैं । अबलाओं पर अत्याचार वही करते हैं जो
प्रतिज्ञा भी करते हैं हम पवित्र रहेंगे फिर माया का वार होने
से प्रतिज्ञा भूल जाते हैं । भगवान् से प्रतिज्ञा की है कि हम
पवित्र बन पवित्र दुनिया का वर्सा लेंगे,
हम
सिविल आई रखेंगे अपनी कुदृष्टि नहीं रखेंगे,
विकार में नहीं जायेंगे,
क्रिमिनल दृष्टि छोड़ देंगे । फिर भी माया रावण से हार खा लेते
हैं । तो जो निर्विकारी बनना चाहते हैं,
उनको
तंग करते हैं इसलिए कहा जाता है अबलाओं पर अत्याचार होते हैं ।
पुरूष तो बलवान होते हैं,
स्त्री निर्बल होती है । लड़ाई आदि में भी पुरूष जाते हैं
क्योंकि बलवान हैं । स्त्री नाजुक होती है । उनका कर्तव्य ही
अलग है,
वह
घर सम्भालती हैं,
बच्चे पैदा कर उनकी पालना करती हैं । यह भी बाप समझाते हैं
वहाँ होता ही है एक बच्चा सो भी विकार का नाम नहीं । यहाँ तो
सन्यासी भी कभी-कभी कह देते हैं कि एक बच्चा तो जरूर होना
चाहिए-क्रिमिनल आई वाले ठग ऐसी शिक्षा देते हैं । अब बाप कहते
हैं इस समय के बच्चे क्या काम के होंगे,
जबकि
विनाश सामने खड़ा है,
सब
खत्म हो जायेंगे । मैं आया ही हूँ पुरानी दुनिया का विनाश करने
। वह हुई सन्यासियों की बात,
उन्हों को तो विनाश की बात का मालूम ही नहीं । तुमको बेहद का
बाप समझाते हैं अब विनाश होना है । तुम्हारे बच्चे वारिस बन
नहीं सकेंगे । तुम समझते हो हमारे कुल की निशानी रहे परन्तु
पतित दुनिया की कोई निशानी रहेगी नहीं । तुम समझते हो पावन
दुनिया के थे,
मनुष्य भी याद करते हैं क्योंकि पावन दुनिया होकर गई है,
जिसको स्वर्ग कहा जाता है । परन्तु अब तमोप्रधान होने कारण समझ
नहीं सकते हैं । उन्हों की दृष्टि ही क्रिमिनल है । इसको कहा
जाता है धर्म की ग्लानि । आदि सनातन धर्म में ऐसी बातें होती
नहीं । पुकारते हैं पतित-पावन आओ,
हम
पतित दु :खी हैं । बाप समझाते हैं हमने तुमको पावन बनाया फिर
माया रावण के कारण तुम पतित बने हो । अब फिर पावन बनो । पावन
बनते हो फिर माया की युद्ध चलती है । बाप से वर्सा लेने का
पुरूषार्थ कर रहा था परन्तु फिर काला मुंह कर दिया तो वर्सा
कैसे पायेंगे । बाप आते हैं गोरा बनाने । देवतायें जो गोरे थे,
वही
काले बने हैं । देवताओं के ही काले शरीर बनाते हैं,
क्राइस्ट,
बुद्ध आदि को कभी काला देखा?
देवी-देवताओं के चित्र काले बनाते हैं । जो सर्व का सद्गति
दाता परमपिता परमात्मा सर्व का बाप है,
जिसको कहते हैं परमपिता परमात्मा आकर लिबरेट करो,
वह
कोई काला थोड़ेही हो सकता है,
वह
तो सदैव गोरा एवर प्योर है । कृष्ण तो दूसरा शरीर लेते हैं तो
भी पवित्र तो हैं ना । महान आत्मा देवताओं को ही कहा जाता है ।
कृष्ण तो देवता हुआ । अब तो कलियुग है,
कलियुग में महान् आत्मा कहाँ से आये । श्रीकृष्ण तो सतयुग का
फर्स्ट प्रिन्स था । उनमें दैवी गुण थे । अभी तो देवता आदि कोई
है नहीं । साधू सन्त पवित्र बनते हैं फिर भी पुनर्जन्म विकार
से लेते हैं । फिर सन्यास धारण करना पड़ता है । देवतायें तो
सदैव पवित्र हैं । यहाँ रावण राज्य है । रावण को 10
शीश दिखाते हैं- 5 स्त्री के,
5
पुरूष के । यह भी समझते हैं 5 विकार हर एक में हैं,
देवताओं में तो नहीं कहेंगे ना । वह तो है ही सुखधाम । वहाँ भी
रावण होता तो फिर दु :खधाम हो जाता । मनुष्य समझते हैं
देवतायें भी तो बच्चे पैदा करते हैं,
वह
भी तो विकारी ठहरे । उन्हों को यह पता ही नहीं है-देवताओं को
गाया ही जाता है समूर्ण निर्विकारी । तब तो उन्हों को पूजा
जाता है । सन्यासियों की भी मिशन है । सिर्फ पुरूषों को सन्यास
कराए मिशन बढ़ाते हैं । बाप फिर प्रवृत्ति मार्ग की नई मिशन
बनाते हैं । जोड़ी को ही पवित्र बनाते हैं । फिर तुम जाकर देवता
बनेंगे । तुम यहाँ सन्यासी बनने के लिए नहीं आये हो । तुम तो
आये हो विश्व का मलिक बनने । वह तो फिर गृहस्थ में जन्म लेते
हैं । फिर निकल जाते हैं । तुम्हारे संस्कार हैं ही पवित्रता
के । अब अपवित्र बने हो फिर पवित्र बनना है । बाप पवित्र
गृहस्थ आश्रम बनाते हैं । पावन दुनिया को सतयुग,
पतित
दुनिया को कलियुग कहा जाता है । यहाँ कितनी पाप आत्मायें हैं ।
सतयुग में यह बातें होती नहीं । बाप कहते हैं जब-जब भारत में
धर्म की ग्लानि होती है अर्थात् देवी-देवता धर्म वाले पतित बन
जाते हैं तो अपनी ग्लानि कराते हैं । बाप कहते हैं हमने तुमको
पावन बनाया फिर तुम पतित बने,
कोई
काम के नहीं रहे । जब ऐसे पतित बन जाते हो तब फिर पावन बनाने
हमको आना पड़ता है । यह ड्रामा का चक्र है जो फिरता रहता है ।
हेविन में जाने के लिए फिर दैवी गुण भी चाहिए । क्रोध नहीं
होना चहिए । क्रोध है तो वह भी जैसे असुर कहलायेंगे । बड़ी
शान्तचित्त अवस्था चाहिए । क्रोध करते हैं तो कहेंगे इनमें
क्रोध का भूत है । जिनमें कोई भी भूत है वह देवता बन न सकें ।
नर से नारायण बन न सकें । देवता तो हैं ही निर्विकारी यथा
राजा-रानी तथा प्रजा निर्विकारी हैं । भगवान् बाप ही आकर
सम्पूर्ण निर्विकारी बनाते हैं । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1.
बाप से पवित्रता की प्रतिज्ञा की है तो अपने
को माया के वार से बचाते रहना है । कभी माया का गुलाम नहीं
बनना है । इस प्रतिज्ञा को भूलना नहीं है क्योंकि अब पावन
दुनिया में चलना है ।
2.
देवता बनने के लिए अवस्था को बहुत-बहुत
शान्तचित्त बनाना है । कोई भी भूत प्रवेश होने नहीं देना है ।
दैवीगुण धारण करने हैं ।
वरदान:-
माया
की छाया से निकल याद की छत्रछाया में रहने वाले बेफिक्र बादशाह
भव !
जो
सदा बाप के याद की छत्रछाया के नीचे रहते हैं वो स्वयं को सदा
सेफ अनुभव करते हैं । माया की छाया से बचने का साधन है बाप की
छत्रछाया । छत्रछाया में रहने वाले सदा बेफिक्र बादशाह होंगे ।
अगर कोई फिक्र है तो खुशी गुम हो जाती है । खुशी गुम हुई,
कमजोर हुए तो माया की छाया का प्रभाव पड़ जाता है क्योंकि
कमजोरी ही माया का आह्वान करती है । माया की छाया स्वप्न में
भी पड़ गई तो बहुत परेशान कर देगी इसलिए सदा छत्रछाया के नीचे
रहो ।
स्लोगन:-
समझ के स्क्रू ड्राइवर से अलबेलेपन के लूज़ स्क्रू को टाइट कर
सदा अलर्ट रहो । 
ओम्
शान्ति |