24-03-14          प्रातः मुरली       ओम् शान्ति       “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे डेड साइलेन्स में जाने का अभ्यास करो, बुद्धि बाप की तरफ़ रहे तो बाप भी तुम्हें अशरीरी बनने के लिए सकाश देंगे |   


प्रश्न:-   
तुम बच्चों को जब ज्ञान का तीसरा नेत्र मिलता है तो कौन-सा साक्षात्कार हो जाता है?


उत्तर:-
सतयुग आदि से लेकर कलियुग अन्त तक हम कैसे-कैसे पार्ट बजाते हैं – यह सारा साक्षात्कार हो जाता है | तुम सारे विश्व को आदि से अन्त तक जान जाते हो | जानने को ही साक्षात्कार कहा जाता है | अभी तुम समझते हो कि हम दैवीगुणों वाले देवता थे | आसुरी गुण वाले बने | अब फिर दैवी गुणों वाले देवता बन रहे हैं | अभी हम नई दुनिया, नये घर में जायेंगे |


ओम् शान्ति |

बच्चे बैठे हैं याद की यात्रा में | बेहद का बाप तो यात्रा में नहीं बैठे हैं, वह तो बच्चों को सकाश की मदद दे रहे हैं अर्थात् इस शरीर को भुला रहे हैं | बाप की मदद मिलती है कि बच्चों को शरीर भूल जाए | सकाश देते हैं आत्माओं को क्योंकि बाप देखते ही आत्माओं की तरफ़ है | तुम हर एक की बुद्धि बाप की तरफ़ जाती है | बाप की बुद्धि वा दृष्टि फिर बच्चों तरफ़ जाती है | फ़र्क है ना | (डेड साइलेन्स) यह अभ्यास करते हो डेड साइलेन्स का | शरीर को छोड़ अलग होना चाहते हो | आत्मा समझती है कि जितना याद करते रहेंगे उतना इस शरीर से निकल जायेंगे | जैसे सर्प का मिसाल देते हैं, जो मिसाल देते हैं उसमें ज़रूर कुछ खूबी होती है | तुम जानते हो हम शरीर छोड़ कर वापिस चले जायेंगे और फिर आयेंगे | यह बातें और कोई नहीं जानते | यह ड्रामा को कोई भी जानते नहीं हैं | कोई भी ऐसी गैरन्टी नहीं देते कि इस याद से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे | ऐसी बात कोई भी सुनाते नहीं हैं | तुम बच्चे जानते हो हमारी अब वापसी जरनी है | आत्मा का बुद्धियोग उस तरफ़ है | अब नाटक पूरा हुआ, अब घर जाना है | बाप को ही याद करना है | वही पतित-पावन है | गंगा के पानी को तो लिबरेटर और गाइड नहीं कहेंगे | एक बाप ही लिबरेटर और गाइड हो सकता है | यह भी बड़ी समझने और समझाने की बातें हैं | वह तो है ही भक्ति | उनसे कोई कल्याण नहीं हो सकता | बच्चे जानते हैं पानी तो स्नान के लिए है | पानी कभी पावन नहीं बना सकता | ऐसे भी नहीं भावना का भाड़ा मिल सकता है | भक्ति मार्ग में उनका महत्व रख दिया है | इन सब बातों को कहा जाता है अन्धश्रद्धा | ऐसी श्रद्धा रखते-रखते मनुष्यों को टाइटिल मिल जाते हैं – अन्धे की औलाद अन्धे | भगवानुवाच है ना | अन्धे और सज्जे कौन हैं – यह भी तुम जानते हो | अभी सारे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को बाप द्वारा जाना है | तुम बाप को जान गये हो इसलिए सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त और ड्यूरेशन को भी जान गये हो | एक-एक बात पर विचार सागर मंथन कर अपना आपेही फैसला करना होता है | भक्ति और ज्ञान का कान्ट्रास्ट है | ज्ञान बिल्कुल ही न्यारी चीज़ है | यह नॉलेज नामीग्रामी है | राजयोग की पढ़ाई है ना | बच्चों को यह भी मालूम पड़ा है – देवतायें सम्पूर्ण निर्विकारी थे | रचता बाप ही बैठ अपना परिचय भी देते हैं | वह है परम आत्मा | परम आत्मा को ही परमात्मा कहते हैं | अंग्रेज़ी में सुप्रीम सोल कहा जाता है | सोल अर्थात् आत्मा | बाप की आत्मा कोई बड़ी नहीं होती है | बाप की आत्मा भी ऐसे ही है जैसे तुम बच्चों की है | ऐसे नहीं, बच्चे छोटे, बाप बड़ा है | नहीं | वह सुप्रीम नॉलेजफुल बाप बहुत प्यार से बच्चों को समझाते रहते हैं | पार्ट बजाने वाली आत्मा है | ज़रूर शरीर धारण कर पार्ट बजायेगी | आत्मा के रहने का स्थान शान्तिधाम है | बच्चे जानते हैं आत्मायें ब्रह्म महतत्व में रहती हैं | जैसे हिंदुस्तान में रहने वाले अपने को हिन्दू कह देते हैं, वैसे ही ब्रह्माण्ड में रहने वाले फिर ब्रह्म को ईश्वर समझ बैठे हैं | ड्रामा में गिरने का उपाय भी नूँधा हुआ है | वापिस तो जा ही नहीं सकते, भल कोई कितनी भी मेहनत करे | नाटक जब पूरा होता है तो सभी एक्टर्स आकर इकट्ठे होते हैं | क्रियेटर, मुख्य एक्टर भी खड़े हो जाते हैं | बच्चे जानते हैं अब यह नाटक पूरा होता है | यह बातें कोई भी साधू-सन्त आदि जान नहीं सकते | आत्मा की यह नॉलेज कोई को नहीं है | परमात्मा बाप यहाँ एक बार आते हैं | और सबको तो यहाँ पार्ट बजाना ही है | वृद्धि होती रहती है ना | आत्मायें सब कहाँ से आई? अगर कोई वापिस जाता तो फिर तो वह रसम पड़ जाए | एक आये, दूसरा जाये | फिर उसमें पुनर्जन्म कहा नहीं जाये | पुनर्जन्म तो शुरू से ही चला आता है | पहले नम्बर में हैं यह लक्ष्मी-नारायण | बाप ने समझाया है पुनर्जन्म लेते-लेते पिछाड़ी में जब आ जाते हैं तो फिर पहले नम्बर में जाना पड़ता है | इसमें संशय की बात तो हो नहीं सकती | आत्माओं का बाप खुद आकर समझाते हैं | क्या समझाते हैं? अपना भी परिचय देते हैं | आगे पता था क्या कि परम आत्मा क्या चीज़ है | सिर्फ़ शिव के मन्दिर में जाते थे | यहाँ तो ढेर के ढेर मन्दिर हैं | सतयुग में मन्दिर, पूजा आदि होती ही नहीं | वहाँ तुम पूज्य देवी-देवता बनते हो | फिर आधाकल्प के बाद पुजारी बनते हो तो उनको फिर देवी-देवता नहीं कहेंगे | फिर बाप आकर पूज्य बनाते हैं | और कोई देश में यह गायन नहीं है | राम राज्य, रावण राज्य – अभी तुम समझ गये हो | राम राज्य का ड्यूरेशन कितना है – सिद्ध करना चाहिए | यह नाटक है, इनको समझना है | ऊँच ते ऊँच बाप है, वह भी नॉलेजफुल है | हम उनके द्वारा ऊँच ते ऊँच बनते हैं | ऊँच ते ऊँच पद मिलता है | बाप हमको पढ़ाते हैं, दैवीगुण भी धारण करने हैं |

 

बच्चे वर्णन करते हैं आप ऐसे हैं, हम ऐसे हैं | इस समय तुम जानते हो – हमको इन जैसा सम्पूर्ण निर्विकारी बनना है | बाप को याद करने के सिवाए और कोई उपाय नहीं है | अगर कोई जानता हो तो बताये | ऐसे थोड़ेही कहेंगे कि ब्रह्म वा तत्व निर्विकारी है | नहीं, आत्मा ही निर्विकारी बनती है | ब्रह्म वा तत्व को आत्मा नहीं कहा जाता है | वह तो रहने का स्थान है | बच्चों को समझाया जाता है आत्मा में ही बुद्धि है | वह जब तमोप्रधान बन जाती है तो बेसमझ बन जाती है | समझदार और बेसमझ हैं ना | तुम्हारी बुद्धि कितनी स्वच्छ बनती और फिर मलेच्छ हो जाती है | तुम्हें प्योरिटी और इमप्योरिटी के कान्ट्रास्ट का मालूम पड़ा है | इमप्योर आत्मा वापिस जा नहीं सकती | अब अपवित्र से पवित्र कैसे बनें – उसके लिए रड़ी मारते रहते हैं | यह भी ड्रामा में नूँध है | अभी तुम जानते हो – यह है संगमयुग | बाप एक ही बार आते हैं ले जाने | सब तो नई दुनिया में नहीं जाते हैं | जिनका पार्ट नहीं वह शान्तिधाम में रहते हैं इसलिए चित्रों में भी दिखाया है | बाकी और जो भी चित्र आदि हैं वह हैं भक्ति मार्ग के | यह है ज्ञान मार्ग के, जिससे समझाया जाता है – सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है | हम कैसे नीचे उतरते हैं | 14 कला से 12 कला होती हैं | अभी फिर कोई कला नहीं रही है | नम्बरवार तो हैं ना | एक्टर भी नम्बरवर होते हैं | कोई का पगार 1 हजार, 1500, कोई का 100 कितना फ़र्क हो गया | पढ़ाई में भी कितना रात-दिन का फ़र्क है | उस स्कूल में तो कोई नापास होता है तो फिर से पढ़ना पड़ता है | यहाँ तो फिर पढने की बात ही नहीं | पद कम हो पड़ता है | फिर कभी पढ़ाई होगी ही नहीं | एक बार ही पढ़ाई होती है | बाप भी एक बार आते हैं | बच्चे भी जानते हैं पहले-पहले एक ही राजधानी थी | यह तुम किसको भी समझायेंगे तो मानेंगे | क्रिश्चियन लोग साइन्स में भी बहुत तीखे हैं और सब उन्हों से ही सीखे हैं | उन्हों की न तो इतनी पारसबुद्धि, न पत्थरबुद्धि होती है | इस समय उन्हों की बुद्धि कमाल कर रही है | साइन्स का प्रचार सारा इन क्रिश्चियन से निकला है | वो भी सुख के लिए ही है | तुम जानते हो इस पुरानी दुनिया का विनाश तो होना ही है | फिर तुम शान्तिधाम-सुखधाम में चले जायेंगे | नहीं तो इतनी सब मनुष्य आत्मायें वापिस घर कैसे जायें? साइन्स से विनाश हो जायेगा | सब आत्मायें शरीर छोड़कर घर चली जायेंगी | इस विनाश में मुक्ति अन्दर मर्ज है | आधाकल्प मुक्ति के लिए ही मेहनत करते आये हैं ना | तो साइन्स और कैलेमिटीज़, जिसको कुदरती आपदायें कहते हैं, यह भी होनी चाहिए | समझना चाहिए यह लड़ाई निमित्त बनती है मुक्तिधाम में ले जाने के लिए | इतने सबको मुक्तिधाम में जाना है | तुमने भल कितनी भी मेहनत की, गुरु किये, हठयोग सीखे | कोई भी मुक्तिधाम जा न सके | इतने साइन्स के गोले आदि तैयार हुए हैं, समझना चाहिए विनाश ज़रूर होगा | नई दुनिया में तो ज़रूर बहुत थोड़े होंगे | बाकी सब मुक्तिधाम में चले जायेंगे | जीवनमुक्ति में तो पढ़ाई की ताकत से आते हैं | तुम अडोल, अटल, अखण्ड राज्य करते हो | यहाँ तो देखो सब खण्डों के टुकड़े-टुकड़े हैं | बाबा तुमको अटल, अखण्ड सारे विश्व की राजधानी का मालिक बनाते हैं | बेहद के बाप का वर्सा है बेहद की बादशाही | यह वर्सा कब और किसने दिया? यह किसकी भी बुद्धि में नहीं आता है | सिर्फ़ तुम ही जानते हो | ज्ञान का तीसरा नेत्र आत्मा को मिला है | आत्मा ज्ञान स्वरूप बनती है | सो भी ज्ञान सागर बाप से ही बनना पड़े | बाप ही आकर रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त का नॉलेज दे रहे हैं | है भी एक सेकेण्ड की बात | सेकण्ड में जीवनमुक्ति | बाकी सबको मुक्ति मिलती है | यह भी ड्रामा बना हुआ है | रावण के बंधन से सब मुक्त हो जाते हैं | वो लोग विश्व में शान्ति के लिए कितनी मेहनत करते हैं | यह सिर्फ़ तुम बच्चे ही जानते हो कि विश्व में और ब्रह्माण्ड में शान्ति कब होती है | ब्रह्माण्ड में शान्ति कहा जाता है फिर विश्व में शान्ति और सुख दोनों रहते हैं | विश्व अलग है और ब्रह्माण्ड अलग है | चाँद-सितारों से परे है ब्रहमाण्ड | वहाँ यह कुछ नहीं होता | उनको कहा ही जाता है साइलेन्स वर्ल्ड | शरीर छोड़कर साइलेन्स में चले जायेंगे | तुम बच्चों को वह भी याद है | तुम इस समय वहाँ जाने की तैयारी कर रहे हो | और कोई भी जानते नहीं | तुमको तैयारी कराई जाती है | बाकी यह लड़ाई तो कल्याणकारी है, सबका हिसाब-किताब चुक्तू होना है | सब पवित्र बन जायेंगे | योग अग्नि है ना | अग्नि से हर चीज़ पवित्र होती है | जैसे बाप ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं, वैसे तुम एक्टर्स को भी ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को जानना है | जानने को ही साक्षात्कार कहा जाता है |

 

अभी तुम्हारा ज्ञान का तीसरा नेत्र खुला है | बरोबर हम सारे विश्व को सतयुग आदि से कलियुग अन्त तक पूरा जान चुके हैं | दूसरा कोई भी मनुष्य मात्र नहीं जानते | तुम समझते हो हम जो दैवी गुणों वाले थे वही फिर आसुरी गुणों वाले बनते हैं | फिर बाप आकर दैवीगुणों वाला बनाते हैं | बाप आते ही हैं पतितों को पावन बनाने | दुनिया में और कोई को यह पता नहीं है कि यह देवी-देवता घराने वाले ही पूरे 84 जन्म लेते हैं | पावन भी तो पतित भी बनते हैं | यह किसकी बुद्धि में नहीं है | अभी तुम समझते हो यह तो जड़ चित्र हैं | एक्यूरेट फ़ोटो तो उन्हों का निकल न सके | वह तो नेचुरल गोरे हैं | प्योर प्रकृति से शरीर भी प्योर बनते हैं | यहाँ तो इम्प्योर हैं | यह रंग-बिरंगी दुनिया सतयुग में नहीं होगी | कृष्ण को कहा जाता है श्याम सुन्दर | सतयुग में हैं सुन्दर, कलियुग में हैं श्याम | सतयुग से कलियुग में कैसे आते हैं – तुमको नम्बरवन से लेकर मालूम पड़ा है | कृष्ण तो गर्भ से निकला और नाम मिला | नाम तो ज़रूर चाहिए ना | तो तुम कहेंगे कृष्ण की आत्मा सुन्दर थी फिर श्याम बनी इसलिए श्याम और सुन्दर कहा जाता है | उनकी जन्म-पत्री मिल गई तो सारे चक्र की मिल गई | कितना रहस्य भरा हुआ है, जिसको तुम ही समझते हो और कोई नहीं जानते | तुमको अब नई दुनिया, नये घर में जाना है | जो अच्छी रीति पढ़ाई पढ़ते हैं वही नई दुनिया में जायेंगे | बाबा है बेहद की सारी दुनिया का मालिक, सभी आत्माओं का बाप | बाप को मालिक कहा जाता है, यह पढ़ाई है | इसमें कोई संशय वा प्रश्न नहीं उठ सकता | इसमें शास्त्रवाद करने की दरकार नहीं | एक टीचर सबसे ऊँचा, वह बैठ पढ़ाते हैं | वही सत्य है | सत्य नारायण की सच्ची कथा शिक्षा के रूप में सुनाते हैं | अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1.    अपने सब हिसाब-किताब चुक्तू कर साइलेन्स वर्ल्ड में जाने की तैयारी करनी है | याद के बल से आत्मा को सम्पूर्ण पावन बनाना है |

 

2.    ज्ञान सागर के ज्ञान को स्वरूप में लाना है | विचार सागर मंथन कर अपना फैसला आपेही करना है | जीवनमुक्ति में श्रेष्ठ पद प्राप्त करने के लिए दैवीगुण धारण करने हैं |

 

वरदान:-

 

सर्व सम्बन्धों की अनुभूति के साथ प्राप्तियों की ख़ुशी का अनुभव करने वाले तृप्त आत्मा भव !   

 

जो सच्चे आशिक हैं वह हर परिस्थिति में, हर कर्म में सदा प्राप्ति की ख़ुशी में रहते हैं | कई बच्चे अनुभूति करते हैं कि हाँ वह मेरा बाप है, साजन है, बच्चा है......लेकिन प्राप्ति जितनी चाहते हैं उतनी नहीं होती | तो अनुभूति के साथ सर्व सम्बन्धों द्वारा प्राप्ति की महसूसता हो | ऐसे प्राप्ति और अनुभूति करने वाले सदा तृप्त रहते हैं | उन्हें कोई भी चीज़ की अप्राप्ति नहीं लगती | जहाँ प्राप्ति है वहाँ तृप्ति ज़रूर है |


स्लोगन:- 

निमित्त बनो तो सेवा की सफलता का शेयर मिल जायेगा |    

 

ओम् शान्ति |