27-02-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
अब तक
जो कुछ पढ़ा है वह सब भूल जाओ, एकदम बचपन में चले जाओ तब इस
रूहानी पढ़ाई में पास हो सकेंगे
| 
प्रश्न:-
जिन बच्चों को दिव्य बुद्धि मिली है, उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:-
वे
बच्चे इस पुरानी दुनिया को इन आँखों से देखते हुए भी नहीं
देखेंगे | उनकी बुद्धि में सदा रहता है कि यह पुरानी दुनिया
ख़त्म हुई कि हुई | यह शरीर भी पुराना तमोप्रधान है तो आत्मा भी
तमोप्रधान है, इनसे क्या प्रीत करें | ऐसे दिव्य बुद्धि वाले
बच्चों से ही बाप की भी दिल लगती है | ऐसे बच्चे ही बाप की याद
में निरन्तर रह सकते हैं | सेवा में भी आगे जा सकते हैं |
ओम्
शान्ति
|
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों को रूहानी बाप समझाते हैं | जैसे हद
के सन्यासी हैं, वह घरबार छोड़ देते हैं क्योंकि वह समझते हैं
हम ब्रह्म में लीन हो जायेंगे, इसलिए दुनिया से आसक्ति छोड़नी
चाहिए | अभ्यास भी ऐसे करते होंगे | जाकर एकान्त में रहते हैं
| वह हैं हठयोगी, तत्व ज्ञानी | समझते हैं ब्रह्म में लीन हो
जायेंगे इसलिए ममत्व मिटाने के लिए घरबार को छोड़ देते हैं |
वैराग्य आ जाता है | परन्तु फट से ममत्व नहीं मिटता | स्त्री,
बच्चे आदि याद आते रहते हैं | यहाँ तो तुमको ज्ञान की बुद्धि
से सब-कुछ भुलाना होता है | कोई भी चीज़ जल्दी नहीं भूलती | अभी
तुम यह बेहद का सन्यास करते हो | याद तो सब सन्यासियों को भी
रहती है | परन्तु बुद्धि से समझते हैं हमको ब्रह्म में लीन
होना है, इसलिए हमको देह भान नहीं रखना है | वह है हठयोग मार्ग
| समझते हैं हम शरीर छोड़ ब्रह्म में लीन हो जायेंगे | उनको यह
पता ही नहीं कि हम शान्तिधाम में कैसे जा सकते | तुम अब जानते
हो हमको अपने घर जाना है | जैसे विलायत से आते हैं तो समझते
हैं हमको बाम्बे जाना है वाया..... | अभी तुम बच्चों को भी
पक्का निश्चय है | बहुत कहते हैं इनकी पवित्रता अच्छी है,
ज्ञान अच्छा है, संस्था अच्छी है | मातायें मेहनत अच्छी करती
हैं क्योंकि अथक हो समझाती हैं | अपना तन-मन-धन लगाती हैं
इसलिए अच्छी लगती हैं | परन्तु हम भी ऐसा अभ्यास करें, यह
ख्याल भी नहीं आयेगा | कोई विरला निकलता है | वह तो बाप भी
कहते हैं कोटों में कोई अर्थात् जो तुम्हारे पास आते हैं,
उनमें से कोई निकलता है | बाकी यह पुरानी दुनिया ख़त्म होने
वाली है | तुम जानते हो अब बाप आया हुआ है | साक्षात्कार हो न
हो, विवेक कहता है बेहद का बाप आये हैं | यह भी तुम जानते हो
बाप एक है, वही पारलौकिक बाप ज्ञान का सागर है | लौकिक को कभी
ज्ञान का सागर नहीं कहेंगे | यह भी बाप ही आकर तुम बच्चों को
अपना परिचय देते हैं | तुम जानते हो अब पुरानी दुनिया ख़त्म
होने वाली है | हमने 84 जन्मों का चक्र पूरा किया | अभी हम
पुरुषार्थ करते हैं वापिस सुखधाम जाने का वाया शान्तिधाम |
शान्तिधाम तो ज़रूर जाना है | वहाँ से फिर यहाँ वापिस आना है |
मनुष्य तो इन बातों में मूँझे हुए हैं | कोई मरता है तो समझते
हैं वैकुण्ठ गया | परन्तु वैकुण्ठ है कहाँ? यह वैकुण्ठ का नाम
तो भारतवासी ही जानते हैं और धर्म वाले जानते ही नहीं | सिर्फ़
नाम सुना है, चित्र देखे हैं | देवताओं के मन्दिर आदि बहुत
देखे हैं | जैसे यह देलवाड़ा मन्दिर है | लाखों-करोड़ों रुपया
खर्चा करके बनाया है, बनाते ही रहते हैं | देवी-देवताओं को
वैष्णव कहेंगे | वे विष्णु की वंशावली हैं | वो तो हैं ही
पवित्र | सतयुग को कहा जाता है पावन दुनिया | यह है पतित
दुनिया | सतयुग के वैभव आदि यहाँ होते नहीं | यहाँ तो अनाज आदि
सब तमोप्रधान बन जाते हैं | स्वाद भी तमोप्रधान | बच्चियाँ
ध्यान में जाती हैं, कहती हैं हम शूबीरस पीकर आई | बहुत स्वाद
था बहुत स्वाद था | यहाँ भी तुम्हारे हाथ का खाते हैं तो कहते
हैं बहुत स्वाद है क्योंकि तुम अच्छी रीति बनाती हो | दिल भरकर
के खाते हैं | ऐसे नहीं, तुम योग में रहकर बनाते हो तब
स्वादिष्ट होता है! नहीं, यह भी प्रैक्टिस होती है | कोई बहुत
अच्छा भोजन बनाते हैं | वहाँ तो हर चीज़ सतोप्रधान होती है,
इसलिए बहुत ताक़त रहती है | तमोप्रधान होने से ताक़त कम हो जाती
है, फिर उनसे बीमारियाँ दुःख आदि भी होता रहता है | नाम ही है
दुःखधाम | सुखधाम में दुःख की बात ही नहीं | हम इतने सुख में
जाते हैं, अभी तो तुम पवित्र बनो | पहले तो विचार करो – कहते
कौन हैं! बेहद के बाप का परिचय देना पड़े | बेहद के बाप से सुख
का वर्सा मिलता है | लौकिक बाप भी पारलौकिक बाप को याद करते
हैं | बुद्धि ऊपर चली जाती है | तुम बच्चे जो निश्चयबुद्धि
पक्के हो, उन्हों के अन्दर रहेगा कि इस दुनिया में हम बाकी
थोड़े दिन हैं | यह तो कौड़ी मिसल शरीर है | आत्मा भी कौड़ी मिसल
बन पड़ी है, इसको वैराग्य कहा जाता है | अभी तुम बच्चे ड्रामा
को जान चुके हो | भक्ति मार्ग का पार्ट चलना ही है | सब भक्ति
में हैं, नफ़रत की दरकार नहीं | सन्यासी खुद नफ़रत दिलाते हैं |
घर में सब दुःखी हो जाते हैं, वह खुद अपने को जाकर थोड़ा सुखी
करते हैं | वापिस मुक्ति में कोई जा नहीं सकते | जो भी कोई आये
हैं, वापिस कोई भी गया नहीं है | सब यहाँ ही हैं | एक भी
निर्वाणधाम वा ब्रह्म में नहीं गया है | वह समझते हैं फ़लाना
ब्रहम में लीन हो गया | यह सब भक्ति मार्ग के शास्त्रों में है
| बाप कहते हैं इन शास्त्रों आदि में जो कुछ है, सब भक्तिमार्ग
है | तुम बच्चों को अभी ज्ञान मिल रहा है इसलिए तुम्हें कुछ भी
पढ़ने की दरकार नहीं है | परन्तु कोई-कोई ऐसे हैं जिनमें फिर
नॉवेल्स आदि पढ़ने की आदत है | ज्ञान तो पूरा है नहीं | उन्हें
कहा जाता है कुक्कड़ ज्ञानी | रात को नॉवेल पढ़कर नींद करते हैं
तो उनकी गति क्या होगी? यहाँ तो बाप कहते हैं जो कुछ पढ़े हो सब
भूल जाओ | इस रूहानी पढ़ाई में लग जाओ | यह तो भगवान् पढ़ाते
हैं, जिससे तुम देवता बन जायेंगे, 21 जन्मों के लिए | बाकी जो
कुछ पढ़े हो वह सब भुलाना पड़े | एकदम बचपन में चले जाओ | अपने
को आत्मा समझो | भल इन आँखों से देखते हो परन्तु देखते भी नहीं
देखो | तुम्हें दिव्य दृष्टि, दिव्य बुद्धि मिली है तो समझते
हो यह सारी पुरानी दुनिया है | यह ख़त्म हो जानी है | यह सब
कब्रिस्तान हैं, उनसे क्या दिल लगायेंगे | अभी परिस्तानी बनना
है | तुम अब कब्रिस्तान और परिस्तान के बीच में बैठे हो |
परिस्तान अभी बन रहा है | अभी बैठे हैं पुरानी दुनिया में |
परन्तु बीच में बुद्धि का योग वहाँ चला गया है | तुम पुरुषार्थ
ही नई दुनिया के लिए कर रहे हो | अभी बीच में बैठे हो,
पुरुषोत्तम बनने के लिए | इस पुरुषोत्तम संगमयुग का भी किसको
पता नहीं है | पुरुषोत्तम मास, पुरुषोत्तम वर्ष का भी अर्थ
नहीं समझते | पुरुषोत्तम संगमयुग को टाइम बहुत थोड़ा मिला हुआ
है | देरी से यूनिवर्सिटी में आयेंगे तो बहुत मेहनत करनी पड़ेगी
| याद बहुत मुश्किल ठहरती है, माया विघ्न डालती रहती है | तो
बाप समझाते हैं यह पुरानी दुनिया ख़त्म होने वाली है | बाप भल
यहाँ बैठे हैं, देखते हैं परन्तु बुद्धि में है यह सब ख़त्म
होने वाला है | कुछ भी रहेगा नहीं | यह तो पुरानी दुनिया है,
इनसे वैराग्य हो जाता है | शरीरधारी भी सब पुराने हैं | शरीर
पुराना तमोप्रधान है तो आत्मा भी तमोप्रधान है | ऐसी चीज़ को हम
देखकर क्या करें | यह तो कुछ भी रहना नहीं है, उनसे प्रीत नहीं
| बच्चों में भी बाप की दिल उनसे लगती है जो बाप को अच्छी रीति
याद करते हैं और सर्विस करते हैं | बाकी बच्चे तो सब हैं |
कितने ढेर बच्चे हैं | सब तो कभी देखेंगे भी नहीं | प्रजापिता
ब्रह्मा को तो जानते ही नहीं हैं | प्रजापिता ब्रह्मा का नाम
तो सुना है परन्तु उनसे क्या मिलता है – यह कुछ भी पता नहीं है
| ब्रह्मा का मन्दिर है, दाढ़ी वाला दिखाया है | परन्तु उनको
कोई याद नहीं करता है क्योंकि उनसे वर्सा मिलना नहीं है |
आत्माओं को वर्सा मिलता है एक लौकिक बाप से, दूसरा पारलौकिक
बाप से | प्रजापिता ब्रह्मा को तो कोई जानते ही नहीं | यह है
वन्डरफुल | बाप होकर वर्सा न दे तो अलौकिक ठहरा ना | वर्सा
होता ही है हद का और बेहद का | बीच में वर्सा होता नहीं | भल
प्रजापिता कहते हैं परन्तु वर्सा कुछ भी नहीं | इस अलौकिक बाप
को भी वर्सा पारलौकिक से मिलता है तो यह फिर देंगे कैसे!
पारलौकिक बाप इनके थ्रू देता है | यह है रथ | इनको क्या याद
करना है | इनको खुद भी उस बाप को याद करना पड़ता है | वह लोग
समझते हैं यह ब्रह्मा को ही परमात्मा समझते हैं | परन्तु हमको
वर्सा इनसे नहीं मिलता है, वर्सा तो शिवबाबा से मिलता है | यह
तो बीच में दलाल रूप है | यह भी हमारे जैसा स्टूडेण्ट है |
डरने की कोई बात नहीं |
बाप कहते हैं इस समय सारी दुनिया तमोप्रधान है | तुमको योगबल
से सतोप्रधान बनना है | लौकिक बाप से हद का वर्सा मिलता है |
तुमको अब बुद्धि लगानी है बेहद में | बाप कहते हैं सिवाए बाप
से और किससे भी कुछ मिलना नहीं है, फिर भल देवतायें क्यों न हो
| इस समय तो सब तमोप्रधान हैं | लौकिक बाप से वर्सा तो मिलता
ही है | बाकी इन लक्ष्मी-नारायण से तुम क्या चाहते हो? वह लोग
तो समझते हैं यह अमर हैं, कभी मरते नहीं हैं | तमोप्रधान बनते
नहीं हैं | लेकिन तुम जानते हो जो सतोप्रधान थे वही तमोप्रधान
में आते हैं | श्रीकृष्ण को लक्ष्मी-नारायण से भी ऊँच समझते
हैं क्योंकि वे फिर भी शादी किये हुए हैं | कृष्ण तो जन्म से
ही पवित्र है इसलिए कृष्ण की बहुत महिमा है | झूला भी कृष्ण को
झुलाते हैं | जयन्ती भी कृष्ण की मनाते हैं | लक्ष्मी-नारायण
की क्यों नहीं मनाते हैं? ज्ञान न होने के कारण कृष्ण को
द्वापर में ले गये हैं | कहते हैं गीता ज्ञान द्वापर युग में
दिया है | कितना कठिन है किसको समझाना! कह देते हैं ज्ञान तो
परम्परा से चला आ रहा है | परन्तु परम्परा भी कब से? यह कोई
नहीं जानते | पूजा कब से शुरू हुई यह भी नहीं जानते हैं इसलिए
कह देते रचता और सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को नहीं जानते हैं |
कल्प की आयु लाखों वर्ष कहने से परम्परा कह देते हैं |
तिथि-तारीख कुछ भी नहीं जानते | लक्ष्मी-नारायण का भी जन्म दिन
नहीं मनाते | इसको कहा जाता है अज्ञान अन्धियारा | तुम्हारे
में भी कोई यथार्थ रीति इन बातों को जानते नहीं | तब तो कहा
जाता है – महारथी, घोड़ेसवार और प्यादे | गज को ग्राह ने खाया |
ग्राह बड़े होते हैं, एकदम हप कर लेते हैं | जैसे सर्प मेढ़क को
हप करते हैं |
भगवान् को बागवान, माली, खिवैया क्यों कहते हैं? यह भी तुम अभी
समझते हो | बाप आकर विषय सागर से पार ले जाते हैं, तब तो कहते
हैं नैया मेरी पार लगा दो | तुमको भी अभी पता पड़ा है कि हम
कैसे पार जा रहे हैं | बाबा हमको क्षीर सागर में ले जाते हैं |
वहाँ दुःख-दर्द की बात नहीं | तुम सुनकर औरों को भी कहते हो कि
नैया को पार करने वाला खिवैया कहते हैं – हे बच्चे, तुम सब
अपने को आत्मा समझो | तुम पहले क्षीरसागर में थे, अब विषय सागर
में आ पहुँचे हो | पहले तुम देवता थे | स्वर्ग है वन्डर ऑफ़
वर्ल्ड | सारी दुनिया में रूहानी वन्डर है स्वर्ग | नाम सुनकर
ही ख़ुशी होती है | हेविन में तुम रहते हो | यहाँ 7 वन्डर्स
दिखाते हैं | ताजमहल को भी वन्डर कहते हैं परन्तु उसमें रहने
का थोड़ेही है | तुम तो वन्डर ऑफ़ वर्ल्ड का मालिक बनते हो |
तुम्हारे रहने के लिए बाप ने कितना वन्डरफुल वैकुण्ठ बनाया है,
21 जन्मों के लिए पदमापदमपति बनते हो | तो तुम बच्चों को कितनी
ख़ुशी होनी चाहिए | हम उस पार जा रहे हैं | अनेक बार तुम बच्चे
स्वर्ग में गये होंगे | यह चक्र तुम लगाते ही रहते हो |
पुरुषार्थ ऐसा करना चाहिए जो नई दुनिया में हम पहले-पहले आयें
| पुराने मकान में जाने की दिल थोड़ेही होती है | बाबा जोर देते
हैं पुरुषार्थ कर नई दुनिया में जाओ | बाबा हमें वन्डर ऑफ़
वर्ल्ड का मालिक बनाते हैं | तो ऐसे बाप को हम क्यों नहीं याद
करेंगे | बहुत मेहनत करनी है | इसको देखते भी नहीं देखो | बाप
कहते हैं भल मैं देखता हूँ, परन्तु मेरे में ज्ञान है – मैं
थोड़े रोज़ का मुसाफ़िर हूँ | वैसे तुम भी यहाँ पार्ट बजाने आये
हो इसलिए इससे ममत्व निकाल दो | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
रूहानी पढ़ाई में सदा बिज़ी रहना है | कभी भी नॉवेल्स आदि पढ़ने
की गन्दी आदत नहीं डालनी है, अब तक जो कुछ पढ़ा है उसे भूल बाप
को याद करना है |
2.
इस पुरानी दुनिया में स्वयं को मेहमान समझकर रहना है |
वरदान:-
शुभ भावना, शुभ कामना के सहयोग से आत्माओं को परिवर्तन करने
वाले सफ़लता सम्पन्न भव
!
जब
किसी भी कार्य में सर्व ब्राह्मण बच्चे संगठित रूप में अपने मन
की शुभ भावनाओं और शुभ कामनाओं का सहयोग देते हैं – तो इस
सहयोग से वायुमण्डल का किला बन जाता है जो आत्माओं को परिवर्तन
कर लेता है | जैसे पाँच अँगुलियों के सहयोग से कितना भी बड़ा
कार्य सहज हो जाता है, ऐसे हर एक ब्राह्मण बच्चे का सहयोग
सेवाओं में सफ़लता सम्पन्न बना देता है | सहयोग की रिज़ल्ट सफ़लता
है |
स्लोगन:-
कदम-कदम में पदमों की कमाई जमा करने वाला ही सबसे बड़ा धनवान है
|
ओम्
शान्ति
|