22-08-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - अब वापिस घर जाना है इसलिए बाप को याद करने और अपने
चरित्र को सुधारने की मेहनत करो” 
प्रश्न:-
अज्ञान नींद में सुलाने वाली बात कौन-सी है?
उससे
नुकसान क्या हुआ है?
उत्तर:-
कल्प
की आयु लाखों वर्ष कहना,
यही
अज्ञान की नीद में सुलाने वाली बात है । इससे ज्ञान नेत्रहीन
हो गये हैं । घर को बहुत दूर समझते हैं । बुद्धि में है अभी तो
लाखों वर्ष यहाँ ही सुख-दुःख का पार्ट बजाना है इसलिए पावन
बनने की मेहनत नहीं करते हैं । तुम बच्चे जानते हो अभी घर बहुत
नजदीक है । अब हमें मेहनत करके कर्मातीत बनना है ।
ओम्
शान्ति |
मीठे-मीठे बच्चों को अब बाप ने घर याद दिलाया है । भल भक्ति
मार्ग में भी घर को याद करते हैं परन्तु वहाँ जाना कब है,
कैसे
जाना है,
वह
कुछ भी नहीं जानते । कल्प की आयु लाखों वर्ष कह देने कारण घर
भी भूल गया है । समझते हैं लाखों वर्ष यहाँ ही पार्ट बजाते हैं
तो घर भूल जाता है । अभी बाप याद दिलाते हैं-बच्चे,
घर
तो बहुत नजदीक है,
अब
चलो अपने घर! मैं तो तुम बच्चों के बुलावे पर आया हूँ । चलेंगे?
कितनी सहज बात है । भक्ति मार्ग में तो पता भी नहीं पड़ता कि कब
मुक्तिधाम में जायेंगे । मुक्ति को ही घर कहा जाता है । लाखों
वर्ष कह देने के कारण सब भूल जाते हैं । बाप को भी तो घर को भी
भूल जाते हैं । लाखों वर्ष कहने से बहुत फर्क पड़ जाता है ।
अज्ञान नीद में जैसे सो जाते हैं । किसको भी समझ में नहीं आता
। भक्ति मार्ग में घर कितना दूर बताते हैं । बाप कहते हैं वाह
मुक्तिधाम में तो अभी जाना है । ऐसे थोड़ेही है तुम कोई लाखों
वर्ष भक्ति करते हो । तुमको पता भी नहीं कि भक्ति कब से शुरू
हुई है । लाखों वर्ष का हिसाब तो करने की दरकार ही नहीं । बाप
को और घर को भूल जाते हैं । यह भी ड्रामा में नूंध है,
परन्तु नाहेक इतना दूर कर देते हैं । अब बाप कहते हैं-बच्चे,
घर
तो बिल्कुल नजदीक है,
अब
मैं आया हूँ तुमको ले चलने । घर चलना है परन्तु पवित्र तो जरूर
बनना है । गंगा स्नान आदि तो तुम करते आये हो,
परन्तु पवित्र बने नहीं हो । अगर पवित्र बनते तो घर चले जाते,
परन्तु घर का भी पता नहीं तो पवित्रता का भी पता नहीं ।
आधाकल्प से भक्ति की है तो भक्ति को छोड़ते ही नहीं । अब बाप
कहते हैं भक्ति पूरी होती है । भक्ति में तो अपरमपार दुःख रहता
है । ऐसे नहीं कि तुम बच्चों ने लाखों वर्ष दु:ख देखा है,
लाखों वर्ष की तो बात ही नहीं | सच्चा-सच्चा दु:ख तो तुमने
कलियुग में ही भोगा जबकि जास्ती विकारों में गन्दे बने हो ।
पहले जब रजो में थे तो कुछ समझ थी,
अभी
तो बिल्कुल बेसमझ हो गये हैं । अब बच्चों को कहते हैं सुखधाम
चलना है तो पावन बनो । जन्म-जन्मान्तर के जो पाप सिर पर हैं,
उन्हें याद से उतारो । याद से बड़ी खुशी रहेगी । जो बाप तुमको
आधाकल्प सुखधाम में ले जाते हैं,
उनको
याद करना है । बाप कहते हैं तुमको ऐसा (लक्ष्मी-नारायण जैसा)
बनना है तो एक तो पवित्र बनो और चरित्र सुधारो । विकारों को
कहा जाता है भूत,
लोभ
का भी भूत कम नहीं है । यह भूत बहुत अशुद्ध हैं । मनुष्य को
एकदम गन्दा बना देता है । लोभ भी बहुत पाप कराता है । 5 विकार
बहुत कड़े भूत हैं । इन सबको छोड़ना है । लोभ को छोड़ना भी ऐसा
मुश्किल है जैसे काम को छोड़ना मुश्किल है । मोह को छोड़ना भी
इतना मुश्किल हो जाता जितना काम को छोड़ना । छोड़ते ही नहीं ।
सारी आयु बाप समझाते आये हैं तो भी मोह की रग जुटी हुई रहती है
। क्रोध भी मुश्किल छूटता है । कहते हैं बच्चों पर क्रोध आता
है । नाम तो क्रोध का लेते हैं ना । कोई भी भूत न आये,
उन
पर विजय पानी है ।
बाप
कहते हैं जब तक मैं हूँ तब तक तुम पुरूषार्थ करते रहो । बाप
कितना वर्ष रहेंगे?
बाप
इतने वर्षों से बैठ समझाते हैं,
अच्छा ही टाइम देते हैं । सृष्टि चक्र को जानना तो बहुत सहज है
। 7 दिन में सारा ज्ञान बुद्धि में आ जाता है । बाकी
जन्म-जन्मान्तर के पाप कटने में देरी लगती है । यही मुश्किलात
है । उसके लिए बाबा टाइम देते हैं । माया का आपोजीशन बहुत होता
है,
एकदम
भुला देती है । यहाँ बैठते हैं तो सारा समय याद में थोड़ेही
बैठते हैं,
बहुत
तरफ बुद्धि चली जाती है,
इसलिए टाइम देना है,
मेहनत कर कर्मातीत अवस्था को पाना है । पढ़ाई तो बहुत सहज है ।
सेन्सीबुल बच्चा हो तो 7 रोज में सारा ज्ञान समझ ले कि यह 84
का चक्र कैसे फिरता है । बाकी पवित्र बनने में है मेहनत । इस
पर कितने हंगामे होते हैं । समझते हैं बात तो राइट है हम
ग्लानि करते थे कि ये ब्रहमाकुमारियां भाई-बहिन बनाती हैं,
परन्तु बात तो बराबर राइट है । जब तक हम प्रजापिता ब्रह्मा के
बच्चे नहीं बने हैं तब तक पवित्र कैसे रह सकेंगे,
क्रिमिनल आई से सिविल आई कैसे बन सकती है । यह युक्ति बड़ी
अच्छी है-हम ब्रह्याकुमार-कुमारियाँ है तो भाई-बहन हो गये ।
इसमे बड़ी मदद मिलती है,
सिविल आई बनाने में । ब्रह्मा का कर्तव्य भी है ना । ब्रह्मा
द्वारा देवी-देवता धर्म की स्थापना अथवा मनुष्य को देवता बनाना
।
बाप
आते ही हैं पुरूषोत्तम संगमयुग पर । तो समझाने की कितनी मेहनत
करनी पड़ती है । बाप का परिचय देने लिए ही सेंटर्स खोले जाते
हैं । बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेना है । भगवान तो है
निराकार । कृष्ण तो देहधारी है,
उनको
भगवान कह नहीं सकते । कहते भी हैं भगवान आकर भक्ति का फल देंगे
परन्तु भगवान का परिचय नहीं है । कितना तुम समझाते हो फिर भी
समझते नहीं । देहधारी तो पुनर्जन्म में आते हैं जरूर । अब उनसे
वर्सा मिल न सके । आत्माओं को एक परमपिता परमात्मा से वर्सा
मिलता है । मनुष्य,
मनुष्य को जीवनमुक्ति दे न सके । यह वर्सा पाने के लिए तुम
बच्चे पुरूषार्थ कर रहे हो । उस बाप को पाने लिए तुम कितना
भटकते थे । पहले तो सिर्फ एक शिव की पूजा करते थे,
और
कोई तरफ जाते नहीं थे । वह थी अव्यभिचारी भक्ति,
औरों
के मन्दिर आदि इतने नहीं थे । अभी तो ढेर चित्र हैं,
मन्दिर आदि बनाते हैं । भक्ति मार्ग में तुमको कितनी मेहनत
करनी पड़ती है । तुम जानते हो शास्त्रों में कोई गति-सद्गति का
रास्ता नहीं है,
वह
तो एक बाप ही बताते हैं । भक्ति मार्ग में कितने मन्दिर बनाते
रहते हैं । वास्तव में मन्दिर सिर्फ होते हैं देवी-देवताओं के,
जो
सतयुग में रहते हैं । और कोई मनुष्य का मन्दिर बनता नहीं
क्योंकि मनुष्य तो हैं पतित । पतित मनुष्य पावन देवताओं की
पूजा करते हैं । भल हैं वह भी मनुष्य,
परन्तु उनमें दैवीगुण हैं,
जिनमें दैवीगुण नहीं हैं वह उनकी पूजा करते हैं । तुम खुद ही
पूज्य थे,
फिर
पुजारी बने हो । मनुष्य की भक्ति करना यह 5 तत्वों की भक्ति
करना है । शरीर तो 5 तत्वों का बना हुआ है । अब बच्चों को
मुक्तिधाम में चलना है,
जिसके लिए इतनी भक्ति की है । अब अपने साथ ले चलता हूँ । तुम
सतयुग में चले जायेंगे । बाप आये ही हैं पतित दुनिया से पावन
दुनिया में ले चलने । पावन दुनिया हैं ही दो-मुक्ति और
जीवनमुक्ति । बाप कहते हैं-मीठे- मीठे बच्चों,
मैं
कल्प-कल्प संगमयुग पर आता हूँ । तुम भक्ति मार्ग में कितने
दुःख उठाते हो । गीत भी है ना-चारों तरफ लगाये फेरे... दूर रहे
किससे?
बाप
से । बाप को ढूंढने के लिए जन्म बाई जन्म फेरे लगाये परन्तु
फिर भी बाप से दूर रहे इसलिए बुलाते हैं हे पतित-पावन आओ,
आकर
पावन बनाओ । बाप के सिवाए और कोई बना न सके । तो यह खेल ही 5
हजार वर्ष का है । ड्रामा अनुसार हर एक पुरूषार्थ करते हैं,
जिस
प्रकार कल्प पहले किया है,
उस
अनुसार ही राजधानी की स्थापना हो रही है । सब एक जैसा तो नहीं
पढेंगे । यह पाठशाला है ना । राजयोग की पढाई है जो देवी-देवता
धर्म के होंगे वह निकल आयेंगे । मूलवतन में भी जो संख्या है,
वह
एक्यूरेट होगी । कम जास्ती नहीं । नाटक में एक्टर्स का अन्दाज
बिल्कुल पूरा है । परन्तु समझ नहीं सकते । जितने भी हैं,
उतने
एक्यूरेट हैं फिर भी वह आकर पार्ट बजायेंगे । फिर तुम आते हो
नई दुनिया में । बाकी सब वहाँ चले जायेंगे । अभी कोई गिनती करे
तो कर सकते हैं । अभी बाप तुमको बहुत गुह्य-गुह्य पॉइंट्स
बताते हैं । शुरू की और अभी की समझानी में कितना फर्क है ।
पढाई में टाइम लगता है । फट से कोई आई.सी.एस. नहीं बन जायेंगे
। नम्बरवार पढ़ाई होती है । बाप कितना सहज कर समझाते हैं जो
मनुष्यों की बुद्धि में सहज बैठ सके । दिन-प्रतिदिन नई-नई
पॉइंट्स समझाते रहते हैं । अब बाप कहते हैं मुझ पतित-पावन बाप
को बुलाया है,
मैं
आया हूँ तो तुम पावन बनो ना । अपने को आत्मा समझ मामेकम याद
करो तो तुम सतोप्रधान बन जायेंगे । फिर यहाँ आना पड़ेगा पार्ट
बजाने । बाप कहते हैं आत्मा पतित बनी है,
इसलिए पतित-पावन बाप को याद करते हैं पावन बनने के लिए । कितना
वन्डर है इतनी छोटी-सी आत्मा कितना पार्ट बजाती है,
इसको
कुदरत कहा जाता है । उनको देखा नहीं जाता है । कोई कहते हैं,
हम
परमात्मा का साक्षात्कार करें । बाप कहते हैं इतनी छोटी बिन्दी
का तुम साक्षात्कार क्या करेंगे । मै जानने लायक हूँ,
बाकी
देखना तो मुश्किल है । आत्मा को यह सब कर्मेन्द्रियाँ मिली हुई
है पार्ट बजाने के लिए । कितना पार्ट बजाती है,
यह
वन्डर है । कभी भी आत्मा घिसती नहीं । यह है अविनाशी ड्रामा ।
यह अविनाशी बना बनाया है । कब बना-यह पूछ नहीं सकते । इनको
अनादि कहा जाता है । मनुष्यों से पूछो रावण को कब से जलाते आये
हैं?
शास्त्र कब से पढ़ते आये हो?
तो
कह देते हैं अनादि हैं,
पता
नहीं है । मूझे हुए हैं ना । बाप बैठ समझाते हैं,
हूबहू जैसे बच्चों को पढ़ाते हैं । तुम जानते हो हम बिल्कुल
बेसमझ थे फिर बेहद की समझ आ गई है । वह होती है हद की पढाई,
यह
है बेहद की । आधाकल्प है दिन,
आधाकल्प है रात । 21 जन्म तुम रिंचक भी दु:ख नहीं पा सकते ।
कहते हैं ना - शल तुम्हारा बाल भी बांका न हो । कोई दु:ख दे न
सके । नाम ही है सुखधाम । यहाँ तो सुख है नहीं । मूल बात है
पवित्रता की । कैरेक्टर्स अच्छे चाहिए ना ।
बच्चों को हर बात क्लीयर समझाई जाती है । नुकसान और फायदा होता
है ना । अभी तो बाप कहते है फायदे की बात ही छूटी । अभी तो
नुकसान ही नुकसान होने का है । विनाश का समय आ रहा है उस समय
देखना क्या-क्या होता है । बरसात नहीं होती है तो अनाज की
कितनी मंहगाई हो जाती है । भल कितना भी कहते हैं 3 वर्ष के बाद
बहुत अनाज होगा फिर भी अनाज बाहर से मंगाते रहते हैं । ऐसा समय
आयेगा जो एक दाना भी मिल नहीं सकेगा । इतनी आपदायें आनी हैं,
इनको
ईश्वरीय आपदायें कहते हैं । बरसात नहीं पड़ी तो अकाल जरूर पड़ेगा
। सभी तत्व आदि बिगड़ने वाले हैं । बहुत जगह तो बरसात नुकसान कर
देती है ।
तुम
बच्चे जानते हो बाप आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना कर
रहे हैं । तुम्हारी एम ऑबजेक्ट है यह,
फिर
से तुमको नर से नारायण बनाते हैं । यह बेहद का पाठ बेहद का बाप
ही पढ़ाते हैं | जो जैसा पढ़ेगा,
ऐसा
पद पायेगा । बाप तो पुरूषार्थ कराते हैं । पुरूषार्थ कम करेंगे
तो पद भी कम पायेंगे । टीचर भी स्टूडेंट को समझायेंगे ना ।
दूसरे को जब आपसमान बनाते हैं,
तब
मालूम पड़ता है यह अच्छी रीति पढ़ते और पढ़ाते हैं । मूल है ही
याद की यात्रा,
सिर
पर पापों का बोझा बहुत है,
मुझे
याद करो तो पाप भस्म हों । यह है रूहानी यात्रा । छोटे बच्चे
को भी सिखलाओ कि शिवबाबा को याद करो । उनका भी हक है । यह नहीं
समझेंगे कि अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है । नहीं,
सिर्फ शिवबाबा को याद करेंगे । मेहनत करने से उनका भी कल्याण
हो सकता है । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
नर से नारायण पद प्राप्त करने के लिए बेहद के
बाप से बेहद का पाठ पढ़कर दूसरों को पढ़ाना है । आप समान बनाने
की सेवा करनी है ।
2.
लोभ,
मोह की
जो रगें हैं उनको निकालने की मेहनत करनी है । अपने चरित्र को
ऐसा सुधारना है जो कोई भूत अन्दर प्रवेश होने न पाये ।
वरदान:-
अपने
संकल्पों को शुद्ध,
ज्ञान स्वरूप और शक्ति स्वरूप बनाने वाले सम्पूर्ण पवित्र भव
!
बाप
समान बनने के लिए पवित्रता का फाउन्डेशन पक्का करो । फाउन्डेशन
में ब्रह्मचर्य व्रत धारण करना ये तो कॉमन बात है,
सिर्फ इसमें खुश नहीं हो जाओ । दृष्टि वृत्ति की पवित्रता को
और भी अन्डरलाइन करो,
साथ-साथ अपने संकल्पों को शुद्ध,
ज्ञान स्वरूप,
शक्ति स्वरूप बनाओ । संकल्प में अभी बहुत कमजोरी है । इस
कमजोरी को भी समाप्त करो तब कहेंगे सम्पूर्ण पवित्र आत्मा ।
स्लोगन:-
दृष्टि
में सबके प्रति रहम और शुभ भावना हो तो अभिमान वा अपमान का अंश
भी नहीं आ सकता । 
ओम्
शान्ति |