16-09-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन


मीठे बच्चे - योगबल से बुरे संस्कारों को परिवर्तन कर स्वयं में अच्छे संस्कार डालो । ज्ञान और पवित्रता के संस्कार अच्छे संस्कार हैं”

                            
प्रश्न:-   
तुम बच्चों का बर्थ राइट कौन-सा है? तुम्हें अभी कौन-सी फीलिंग आती है?


उत्तर:-
तुम्हारा बर्थ राइट है मुक्ति और जीवनमुक्ति । तुम्हें अब फीलिंग आती है कि हमें बाप के साथ वापिस घर जाना है । तुम जानते हो-बाप आये हैं भक्ति का फल मुक्ति और जीवन मुक्ति देने । अभी सबको शान्तिधाम जाना है । सबको अपने घर का दीदार करना है ।

 

ओम् शान्ति |

मनुष्य बाप को सच्चा पातशाह भी कहते हैं । अंग्रेजी में पातशाह नहीं कहते, उसमें सिर्फ सच्चा फादर कहते हैं । गॉड फादर इज ट्रुथ कहते हैं । भारत में ही कहते हैं सच्चा पातशाह । अब फर्क तो बहुत है, वह सिर्फ सच कहते हैं, सच सिखलाते हैं, सच्चा बनाते हैं । यहाँ कहते हैं सच्चा पातशाह । सच्चा भी बनाते हैं और सचखण्ड का बादशाह भी बनाते हैं । यह तो बराबर है-मुक्ति भी देते, जीवनमुक्ति भी देते हैं, जिसको भक्ति का फल कहते हैं । लिब्रेशन और फ्रुसन । भक्ति का फल देते हैं और लिबरेट करते हैं । बच्चे जानते हैं हमको दोनों देते हैं । लिबरेट तो सबको करते हैं, फल तुमको देते हैं । लिब्रेशन और फ्रुसन-यह भी भाषा बनाई हुई है ना । भाषायें तो बहुत हैं । शिवबाबा के भी नाम बहुत रख देते हैं । कोई को कहो उनका नाम शिवबाबा है तो कह देते हम तो उनको मालिक ही कहते हैं । मालिक तो ठीक है परन्तु उसका भी नाम चाहिए ना । नाम-रूप से न्यारी कोई चीज होती नहीं । मालिक भी कोई चीज का बनता है ना । नाम-रूप तो जरूर है । अभी तुम बच्चे जानते हो-बाप बरोबर लिबरेट भी करते हैं फिर शान्तिधाम में सबको जरूर जाना है । अपने घर का दीदार सबको करना है । घर से आये हैं तो पहले उनका दीदार करेंगे, उसको कहते हैं गति-सद्गति । अक्षर कहते हैं परन्तु अर्थरहित । तुम बच्चों को तो फीलिंग रहती है, हम अपने घर भी जाएंगे और फल भी मिलेगा । नम्बरवार तुमको मिलता है तो और धर्म वालों को भी फिर समय अनुसार मिलता है । बाप ने समझाया था यह पर्चा है बहुत अच्छा-तुम स्वर्गवासी हो या नर्कवासी हो? तुम बच्चे ही जानते हो यह मुक्ति जीवनमुक्ति दोनों गॉड फादरली बर्थ राइट हैं । तुम लिख भी सकते हो । बाप से तुम बच्चों को यह बर्थ राइट मिलता है । बाप का बनने से दोनों चीज़ें प्राप्त होती हैं । वह है रावण का बर्थ राइट, यह है परमपिता परमात्मा का बर्थ राइट । यह है भगवान का बर्थ राइट, वह है शैतान का बर्थ राइट । ऐसे लिखना चाहिए जो कुछ समझ सकें । अब तुम बच्चों को हेविन स्थापन करना है । कितना काम करना है! अभी तो जैसे बेबीज़ हैं, जैसे मनुष्य कलियुग के लिए कहते हैं कि अभी बेबी (बच्चा) है । बाप कहते हैं सतयुग की स्थापना में बेबी हैं । अभी तुम बच्चों को वर्सा मिल रहा है । रावण का कोई वर्सा नहीं कहेंगे । गॉड फादर से तो वर्सा मिलता है । वह कोई फादर थोड़ेही है । उनको तो शैतान कहा जाता है । शैतान का वर्सा क्या मिलता है? 5 विकार मिलते हैं, शो भी ऐसा करते हैं, तमोप्रधान बन जाते हैं । अब दशहरा कितना मनाते हैं, सेरीमनी मनाते हैं । बहुत खर्चा करते हैं । विलायत से भी निमन्त्रण दे बुलाते हैं । सबसे नामीग्रामी दशहरा मनाते हैं मैसूर का । पैसे वाले भी बहुत हैं । रावण राज्य में पैसा मिलता है तो अक्ल ही चट हो जाता है । बाप डिटेल में समझाते हैं । इनका नाम ही है रावण राज्य । उसको फिर कहा जाता है ईश्वरीय राज्य । राम राज्य कहना भी रांग हो जाता है । गाँधी जी राम राज्य चाहते थे । मनुष्य समझते हैं गांधी जी भी अवतार थे । उनको कितने पैसे देते थे । उनको भारत का बापू जी कहते थे । अब यह तो सारे विश्व का बापू है । अभी तुम यहाँ बैठे हो, जानते हो कितनी जीव आत्मायें होंगी । जीव (शरीर) तो विनाशी है, बाकी आत्मा है अविनाशी । आत्मायें तो ढेर हैं । जैसे ऊपर में सितारे रहते हैं ना । सितारे जास्ती हैं या आत्मायें जास्ती हैं? क्योंकि तुम हो धरती के सितारे और वह आसमान के सितारे । तुमको देवता कहा जाता है वह फिर उनको भी देवता कह देते हैं । तुमको लकी सितारा कहा जाता है ना ।

अच्छा, इस पर फिर आपस में डिसकस करना । बाबा अभी इस बात को नहीं छेड़ते हैं । यह तो समझाया है कि सभी आत्माओं का एक बाप है, इनकी बुद्धि में तो सब है, जो भी मनुष्य मात्र हैं, सबका वह बाप है । यह तो सब जानते हैं कि सारी सृष्टि समुद्र पर खड़ी है । यह भी कोई सबको नहीं मालूम है । बाप ने समझाया था यह रावण राज्य सारे सृष्टि पर है । ऐसे नहीं, रावण राज्य कोई सागर के पार है । सागर तो आलराउन्ड है ही । कहते हैं ना-नीचे बैल है, उसके सींगो पर सृष्टि खड़ी है । फिर जब थक जाता है तो सींग बदली करता है । अभी पुरानी दुनिया खलास हो नई दुनिया की स्थापना होती है । शास्त्रों में तो अनेक प्रकार की बातें दंत कथाओं में लिख दी हैं । यह तो बच्चे समझते हैं-यहाँ सब आत्मायें शरीर के साथ हैं, इनको कहते हैं जीव आत्मायें । वह जो आत्माओं का घर है वहाँ तो शरीर नहीं है । उनको कहा जाता है निराकारी । जीव आकारी है इसलिए साकार कहा जाता है । निराकार को शरीर नहीं होता है । यह है साकारी सृष्टि । वह है निराकारी आत्माओं की दुनिया । इसको सृष्टि कहेंगे, उसको कहा जाता है इनकारपोरियल वर्ल्ड । आत्मा जब शरीर में आती है तब यह चुरपुर चलती है । नहीं तो शरीर कोई काम का नहीं रहता है । तो उनको कहा ही जाता है निराकारी दुनिया । जितनी भी आत्मायें हैं वह सब पिछाड़ी में आनी चाहिए इसलिए इसको पुरुषोत्तम संगमयुग कहा जाता है । सब आत्मायें जब यहाँ आ जाती हैं तो वहाँ फिर एक भी नहीं रहती है । वहाँ जब एकदम खाली हो जाता है तब फिर सब वापस जाते हैं । तुम यह संस्कार ले जाते हो नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार । कोई नॉलेज के संस्कार ले जाते हैं, कोई प्योरिटी के संस्कार ले जाते हैं । आना तो फिर भी यहॉ ही है । परन्तु पहले तो घर में जाना है । वहाँ है अच्छे संस्कार । यहाँ हैं बुरे संस्कार । अच्छे संस्कार बदल कर बुरे संस्कार हो जाते हैं । फिर बुरे संस्कार योगबल से अच्छे होते हैं । अच्छे संस्कार वहाँ ले जाएंगे । बाप में भी पढ़ाने के संस्कार है ना । जो आकर समझाते हैं । रचयिता और रचना के आदि-मध्य- अन्त का राज समझाते हैं । बीज की भी समझानी देते हैं, तो सारे झाड़ की भी समझानी देते हैं । बीज की समझानी है ज्ञान और झाड़ की समझानी हो जाती है भक्ति । भक्ति में बहुत डिटेल होती है ना । बीज को याद करना तो सहज है । वहाँ ही चले जाना है । तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने में थोड़ा ही समय लगता है । फिर सतोप्रधान से तमोप्रधान बनने में 5 हजार वर्ष लगते है एक्यूरेट । यह चक्र बड़ा एक्यूरेट बना हुआ है जो रिपीट होता रहता है । और कोई यह बातें बता न सके । तुम बता सकते हो । आधा- आधा किया जाता है । आधा स्वर्ग, आधा नर्क फिर उनका डिटेल भी बताते हैं । स्वर्ग में जन्म कम, आयु बड़ी होती है । नर्क में जन्म जास्ती, आयु छोटी होती है । वहाँ हैं योगी, यहाँ हैं भोगी इसलिए यहाँ बहुत जन्म होते हैं । इन बातों को दूसरा कोई नहीं जानता । मनुष्यों को कुछ भी मालूम नहीं है । कब देवतायें थे, वह कैसे बनें, कितने समझदार बने हैं-यह भी तुम जानते हो । बाप इस समय बच्चों को पढ़ाकर 21 जन्मों के लिए वर्सा देते हैं । फिर यह तुम्हारे संस्कार रहते नहीं । फिर हो जाते हैं दु :ख के संस्कार । जैसे राजाई के संस्कार होते हैं तो ज्ञान की पढ़ाई के संस्कार पूरे हो जाते हैं । यह संस्कार पूरे हुए तो नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार रूद्र माला में पिरो जाएंगे फिर नम्बरवार आएंगे पार्ट बजाने । जिसने पूरे 84 जन्म लिये हैं, वह पहले आते हैं । उनका नाम भी बतलाते हैं । कृष्ण तो है फर्स्ट प्रिन्स ऑफ हेविन । तुम जानते हो सिर्फ एक थोड़ेही होगा, सारी राजधानी होगी ना । राजा के साथ तो फिर प्रजा भी चाहिए । हो सकता है-एक से दूसरे पैदा होते जायें । अगर कहें 8 इकट्ठे आते हैं, परन्तु श्रीकृष्ण तो नम्बरवन में आयेगा ना । 8 इकट्ठे आते हैं तो फिर कृष्ण का इतना गायन क्यों? यह सब बातें आगे चलकर समझाएंगे । कहते हैं ना आज तुमको बहुत गुह्य ते गुह्य बातें सुनाता हूँ । कुछ तो रहा हुआ है ना । यह युक्ति अच्छी है-जिस बात में देखो नहीं समझते हैं तो बोलो हमारी बड़ी बहन उत्तर दे सकती है या तो कहना चाहिए अभी बाप ने बताया नहीं है । दिन-प्रतिदिन गुह्य ते गुह्य सुनाते हैं । इस कहने में लज्जा की बात नहीं । गुह्य ते गुह्य प्याइंटस जब सुनाते हैं तो तुमको सुनकर बहुत खुशी होती है । पिछाड़ी में फिर कह देते हैं मनमनाभव, मध्याजीभव । अक्षर भी शास्त्र बनाने वाली ने लिखा है । मूँझने की तो जरूरत नहीं है । बच्चा बाप का बना और बेहद का सुख मिला । इसमें मन्सा, वाचा, कर्मणा पवित्रता की जरूरत है । लक्ष्मी-नारायण को बाप का वर्सा मिला है ना । यह पहले नम्बर में है, जिनकी ही पूजा होती है | अपने को भी देखो-हमारे में ऐसे गुण है । अभी तो बेगुण हैं ना । अपने अवगुणों का भी किसको पता नहीं है ।

अभी तुम बाप के बने हो तो जरूर चेन्ज होना पड़े । बाप ने बुद्धि का ताला खोला है । ब्रह्मा और विष्णु का भी राज समझाया है । यह है पतित, वह है पावन । एडाप्शन इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर ही होती है । प्रजापिता ब्रह्मा जब है तब ही एडाप्शन होती है । सतयुग में तो होती नहीं । यहाँ भी किसको बच्चा नहीं होता है तो फिर एडाप्ट करते हैं । प्रजापिता को भी जरूर ब्राह्मण बच्चे चाहिए । यह है मुख वंशावली । वह होते हैं कुख वंशावली । ब्रह्मा तो नामीग्रामी है । इनका सरनेम ही बेहद का है । सब समझते हैं प्रजापिता ब्रह्मा आदि देव है, उसको अंग्रेजी में कहेंगे ग्रेट ग्रेट ग्रैंड फादर । यह है बेहद का सरनेम । वह सब होते हैं हद के सरनेम इसलिए बाप समझाते हैं-यह जरूर सबको मालूम होना चाहिए कि भारत बड़े ते बड़ा तीर्थ है, जहाँ बेहद का बाप आते हैं । ऐसे नहीं, सारे भारत में विराजमान हुआ । शास्त्रों में मगध देश लिखा है, परन्तु नॉलेज कहाँ सिखाई? आबू में कैसे आये? देलवाडा मन्दिर भी यहाँ पूरा यादगार है । जिन्होंने भी बनाया, उन्हों की बुद्धि में आया और बैठकर बनवाया । एक्यूरेट मॉडल तो बना न सकें । बाप यहाँ ही आकर सर्व की सद्गति करते हैं, मगध देश में नहीं । वह तो पाकिस्तान हो गया । यह है पाक स्थान । वास्तव में पाक स्थान तो स्वर्ग को कहा जाता है । पाक और नापाक का ये सारा ड्रामा बना हुआ है ।

तो मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे-तुम यह समझते हो आत्मायें परमात्मा अलग रहे बहुकाल...... कितने काल के बाद मिले हैं? फिर कब मिलेंगे? सुन्दर मेला कर दिया जब सतगुरू मिला दलाल के रूप में । गुरू तो बहुत हैं ना इसलिए सतगुरू कहा जाता है । स्त्री को जब हथियाला बांधते हैं तो भी कहते हैं यह पति तुम्हारा गुरू ईश्वर है । पति तो पहले-पहले नापाक बनाते हैं । आजकल तो दुनिया में बहुत गन्द लगा पड़ा है । अब तुम बच्चों को तो गुल-गुल बनना है । तुम बन्न्चो को पक्का-पक्का हथियाला बाप बांधते हैं ।

यूँ तो शिव जयन्ती के साथ ही रक्षाबंधन हो जाता है । गीता जयन्ती भी हो जानी चाहिए । कृष्ण की जयन्ती थोड़ा देरी से नई दुनिया में हुई है । बाकी त्योहार सब इस समय के हैं । राम नवमी कब हुई-यह भी कोई को पता है क्या? तुम कहेंगे नई दुनिया में 1250 वर्ष के बाद में राम नवमी होती है । शिव जयन्ती, कृष्ण जयन्ती, राम जयन्ती कब हुई....? यह कोई भी बता नहीं सकते । तुम बने भी अभी बाप द्वारा जान गये हो । एक्यूरेट बता सकते हो । गोया सारे दुनिया की जीवन कहानी तुम बता सकते हो । लाखों वर्ष की बात थोड़ेही बता सकते । बाप कितनी अच्छी बेहद की पढ़ाई पढ़ाते हैं । एक ही बार तुम 21 जन्मों के लिए नंगन होने से बचते हो । अभी तुम 5 विकारों रूपी रावण के पराये राज्य में हो । अभी सारे 84 का चक्र तुम्हारी स्मृति में आया है । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. बेहद सुख का वर्सा प्राप्त करने के लिए मन्सा-वाचा-कर्मणा पवित्र जरूर बनना है । अच्छे संस्कार योगबल से धारण करने हैं । अपने को गुणवान बनाना है ।

2. सदा खुशी में रहने के लिए बाप जो रोज़ गुह्य-गुह्य बातें सुनाते हैं, उन्हें सुनना और दूसरी को सुनाना है । किसी भी बात में मूँझना नहीं है । युक्ति से उत्तर देना है । लज्जा नहीं करनी है ।

 

वरदान:-

किसी के व्यर्थ समाचार को सुनकर इंट्ररेस्ट बढ़ाने के बजाए फुलस्टाप लगाने वाले परमत से मुक्त भव !  

कई बच्चे चलते-चलते श्रीमत के साथ आत्माओं की परमत मिक्स कर देते हैं । जब कोई ब्राह्मण संसार का समाचार सुनाता है तो उसे बहुत इंट्ररेस्ट से सुनते हैं । कर कुछ नहीं सकते और सुन लेते हैं तो वह समाचार बुद्धि में चला जाता, फिर टाइम वेस्ट होता । इसलिए बाप की आज्ञा है सुनते हुए भी नहीं सुनो । अगर कोई सुना भी दे तो आप फुलस्टाप लगाओ, जिस व्यक्ति का सुना उसके प्रति दृष्टि वा संकल्प में भी घृणा भाव नहीं हो तब कहेंगे परमत से मुक्त ।

 

स्लोगन:- 

जिनकी दिल विशाल है उनके स्वप्न में भी हद के संस्कार इमर्ज नहीं हो सकते ।

 

ओम् शान्ति |