29-09-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - बाप कल्प-कल्प आकर तुम बच्चों को अपना परिचय देते हैं, तुम्हें भी सबको बाप का यथार्थ परिचय देना है”   

                            
प्रश्न:-   
बच्चों के किस प्रश्न को सुनकर बाप भी वंडर खाते हैं?


उत्तर:-
बच्चे कहते हैं - बाबा आपका परिचय देना बहुत मुश्किल है । हम आपका परिचय कैसे दें? यह प्रश्न सुनकर बाप को भी वन्डर लगता है । जब तुम्हें बाप ने अपना परिचय दिया है तो तुम भी दूसरों को दे सकते हो, इसमें मुश्किलात की बात ही नहीं । यह तो बहुत सहज है । हम सब आत्मायें निराकार हैं तो जरूर उनका बाप भी निराकार होगा ।

 

ओम् शान्ति |

मीठे-मीठे रूहानी बच्चे समझते हैं बेहद के बाप पास बैठे हैं । यह भी जानते हैं बेहद का बाप इस रथ पर ही आते हैं । जब बापदादा कहते हैं, यह तो जानते हैं कि शिवबाबा है और वह इस रथ पर बैठा है । अपना परिचय दे रहे हैं । बच्चे जानते हैं वह बाबा हैं, बाबा मत देते हैं कि रूहानी बाप को याद करो तो पाप भस्म हो जाएं, जिसको योग अग्नि कहते हैं । अभी तुम बाप को तो पहचानते हो । तो ऐसे कभी थोड़े ही कहेंगे कि बाप का परिचय दूसरे को कैसे दूँ । तुमको भी बेहद के बाप का परिचय है तो जरूर दे भी सकते हो । परिचय कैसे दें, यह तो प्रश्न ही नहीं उठ सकता है । जैसे तुमने बाप को जाना है, वैसे तुम कह सकते हो कि हम आत्माओं का बाप तो एक ही है, इसमें मूँझने की दरकार ही नहीं रहती । कोई-कोई कहते हैं बाबा आपका परिचय देना बड़ा मुश्किल होता है । अरे, बाप का परिचय देना-इसमें तो मुश्किलात की कोई बात ही नहीं । जानवर भी इशारे से समझ जाते हैं कि मैं फलाने का बच्चा हूँ । तुम भी जानते हो कि हम आत्माओं का वह बाप है । हम आत्मा अभी इस शरीर में प्रवेश हैं । जैसे बाबा ने समझाया है कि आत्मा अकालमूर्त्त है । ऐसे नहीं उसका कोई रूप नहीं है । बच्चों ने पहचाना हैं-बिल्कुल सिम्पुल बात है । आत्माओं का एक ही निराकार बाप है । हम सब आत्मायें भाई- भाई हैं । बाप की सन्तान हैं । बाप से हमको वर्सा मिलता है । यह भी जानते हैं ऐसा कोई बच्चा इस दुनिया में नहीं होगा जो बाप को और उनकी रचना को न जानता हो । बाप के पास क्या प्रापर्टी है, वह सब जानते हैं । यह है ही आत्माओं और परमात्मा का मेला । यह कल्याणकारी मेला है । बाप हैं ही कल्याणकारी । बहुत कल्याण करते हैं । बाप को पहचानने से समझते हो-बेहद के बाप से हमको बेहद का वर्सा मिलता है । वह जो सन्यासी गुरू होते हैं, उनके शिष्यों को गुरू के वर्से का मालूम नहीं रहता है । गुरू के पास क्या मिलकियत है, यह कोई शिष्य मुश्किल जानते होंगे । तुम्हारी बुद्धि में तो है-वह शिवबाबा हैं, मिलकियत भी बाबा के पास होती है । बच्चे जानते हैं बेहद के बाप के पास मिलकियत है-विश्व की बादशाही स्वर्ग । यह बातें सिवाए तुम बच्चों के और कोई की बुद्धि में नहीं है । लौकिक बाप के पास क्या मिलकियत है, वह उनके बच्चे ही जानते हैं । अभी तुम कहेंगे हम जीते जी पारलौकिक बाप के बने हैं । उनसे क्या मिलता है, वह भी जानते हैं । हम पहले शूद्र कुल में थे, अभी ब्राह्मण कुल में आ गये हैं । यह नॉलेज है कि बाबा इस ब्रह्मा तन में आते हैं, इनको प्रजापिता ब्रह्मा कहा जाता है । वह (शिव) तो हैं सब आत्माओं का फादर । इनको (प्रजापिता ब्रह्मा) को ग्रेट-ग्रेट ग्रैंड फादर कहते हैं । अब हम इनके बच्चे बने हैं । शिवबाबा के लिए तो कहते हैं वह हाज़िराहजूर हैं । जानी-जाननहार हैं । यह भी अब तुम समझते हो कि वह कैसे रचना के आदि-मध्य- अन्त की नॉलेज देते हैं । वह सब आत्माओं का बाप हैं, उनको नाम-रूप से न्यारा कहना तो झूठ हैं । उनका नाम-रूप भी याद है । रात्रि भी मनाते हैं, जयन्ती तो मनुष्यों की होती है । शिवबाबा की रात्रि कहेंगे । बच्चे समझते हैं रात्रि किसको कहा जाता हैं । रात में घोर अन्धियारा हो जाता है । अज्ञान अन्धियारा है ना । ज्ञान सूर्य प्रगटा अज्ञान अन्धेर विनाश- अभी भी गाते हैं परन्तु अर्थ कुछ नहीं समझते । सूर्य कौन है, कब प्रगटा, कुछ नहीं समझते । बाप समझाते हैं ज्ञान सूर्य को ज्ञान सागर भी कहा जाता है । बेहद का बाप ज्ञान का सागर है । सन्यासी, गुरू, गोसाई आदि अपने को शास्त्रों की अथॉरिटी समझते हैं, वह सब है भक्ति । बहुत वेद-शास्त्र पढ़कर विद्वान होते हैं । तो बाप रूहानी बच्चों को बैठ समझाते हैं, इनको कहा जाता है आत्मा और परमात्मा का मेला । तुम समझते हो बाप इस रथ में आये हुए हैं । इस मिलन को ही मेला कहते हैं । जब हम घर जाते हैं तो वह भी मेला है । यहाँ बाप खुद बैठ पढ़ाते हैं । वह फादर भी है, टीचर भी है । यह एक ही प्वाइंत अच्छी रीति धारण करो, भूलो मत । अब बाप तो है निराकार, उनको अपना शरीर नहीं हैं तो जरूर लेना पड़े । तो खुद कहते हैं मैं प्रकृति का आधार लेता हूँ । नहीं तो बोलूँ कैसे? शरीर बिगर तो बोलना होता नहीं । तो बाप इस तन में आते हैं, इनका नाम रखा है ब्रह्मा । हम भी शूद्र से ब्राह्मण बनें तो नाम बदलना ही चाहिए । नाम तो तुम्हारे रखे थे । परन्तु उसमें भी अभी देखो तो कई हैं ही नहीं इसलिए ब्राह्मणों की माला नहीं होती । भक्त माला और रूद्र माला गाई हुई है । बाह्मणों की माला नहीं होती । विष्णु की माला तो चली आई है । पहले नम्बर में माला का दाना कौन है? कहेंगे युगल इसलिए सूक्ष्मवतन में भी युगल दिखाया हैं । विष्णु भी 4 भुजा वाला दिखाया है । दो भुजा लक्ष्मी की, दो भुजा नारायण की ।

बाप समझाते हैं मैं धोबी हूँ । मैं योगबल से तुम आत्माओं को शुद्ध बनाता हूँ फिर भी तुम विकार में जाकर अपना श्रृंगार ही गँवा देते हो । बाप आते हैं सबको शुद्ध बनाने । आत्माओं को आकर सिखलाते हैं तो सिखलाने वाला जरूर यहाँ चाहिए ना । पुकारते भी हैं आकर पावन बनाओ । कपड़ा भी मैला होता हैं तो उनको धोकर शुद्ध बनाया जाता है । तुम भी पुकारते हो - हे पतित पावन बाबा, आकर पावन बनाओ । आत्मा पावन बनें तो शरीर भी पावन मिले । तो पहली-पहली मूल बात होती है बाप का परिचय देना । बाप का परिचय कैसे दें, यह तो प्रश्न ही नहीं पूछ सकते । तुमको भी बाप ने परिचय दिया है तब तो तुम आये होना । बाप पास आते हो, बाप कहाँ है? इस रथमें । यह है अकालतख्त । तुम आत्मा भी अकालमूर्त्त हो । यह सब तुम्हारे तख्त हैं, जिस पर तुम आत्मायें विराजमान हो । वह तो अकाल तख्त जड़ हो गया ना । तुम जानते हो मैं अकाल मूर्त्त अर्थात् निराकार, जिसका साकार रूप नहीं है । मैं आत्मा अविनाशी हूँ, कब विनाश हो न सके । एक शरीर छोड़ दूसरा लेता हूँ । मुझ आत्मा का पार्ट अविनाशी नूँधा हुआ है । आज से 5 हज़ार वर्ष पहले भी हमारा ऐसे ही पार्ट शुरू हुआ था । वन-वन संवत से हम यहाँ पार्ट बजाने घर से आते हैं । यह है ही 5 हज़ार वर्ष का चक्र । वह तो लाखों वर्ष कह देते हैं इसलिए थोड़े वर्षों का विचार में नहीं आता । तो बच्चे ऐसा कभी कह नहीं सकते कि हम बाप का परिचय किसको कैसे दें । ऐसे-ऐसे प्रश्न पूछते हैं तो वंडर लगता है । अरे, तुम बाप के बने हो, फिर बाप का परिचय क्यों नहीं दे सकते हो। हम सब आत्मायें हैं, वह हमारा बाबा है । सर्व की सद्गति करते हैं । सद्गति कब करेंगे यह भी तुमको अभी पता पड़ा है । कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुग पर आकर सर्व की सद्गति करेंगे । वह तो समझते हैं -अभी 40 हज़ार वर्ष पड़े हैं और पहले से ही कह देते नाम-रूप से न्यारा है । अब नाम-रूप से न्यारी कोई चीज़ थोड़े ही होती है । पत्थर भित्तर का भी नाम है ना । तो बाप कहते हैं-मीठे-मीठे बच्चों, तुम आये हो बेहद के बाप के पास । बाप भी जानते हैं, कितने ढेर बच्चे हैं । बच्चों को अभी हद और बेहद से भी पार जाना है । सब बच्चों को देखते हैं, जानते हैं इन सबको मैं लेने लिए आया हूँ । सतयुग में तो बहुत थोड़े होंगे । कितना क्लीयर है इसलिए चित्रों पर समझाया जाता हैं । नॉलेज तो बिल्कुल इजी है । बाकी याद की यात्रा में टाइम लगता है । ऐसे बाप को तो कभी भूलना नहीं चाहिए । बाप कहते हैं मामेकम याद करो तो पावन बन जायेंगे । मैं आता ही हूँ पतित से पावन बनाने । तुम अकालमूर्त्त आत्मायें सब अपने-अपने तख्त पर विराजमान हो । बाबा ने भी इस तख्त का लोन लिया हैं । इस भाग्यशाली रथ में बाप प्रवेश होते हैं । कोई कहते हैं परमात्मा का नाम-रूप नहीं है । यह तो हो ही नहीं सकता । उनको पुकारते हैं, महिमा गाते हैं, तो ज़रूर कोई चीज़ है ना । तमोप्रधान होने कारण कुछ भी समझते नहीं । आप समझते हैं-मीठे-मीठे बच्चों, इतनी 84 लाख योनियां तो कोई होती नहीं । हैं ही 84 जन्म । पुनर्जन्म भी सबका होगा । ऐसे थोड़े ही ब्रह्म में जाकर लीन होंगे वा मोक्ष को पायेंगे । यह तो बना-बनाया ड्रामा हैं । एक भी कम-जास्ती नहीं हो सकता । इस अनादि अविनाशी ड्रामा से ही फिर छोटे-छोटे ड्रामा वा नाटक बनाते हैं । वह हैं विनाशी । अभी तुम बच्चे बेहद में खड़े हो । तुम बच्चों को यह नॉलेज मिली हुई है-हमने कैसे 84 जन्म लिए हैं । अभी बाप ने बताया है, आगे किसको पता नहीं था । ऋषि-मुनि भी कहते थे-हम नहीं जानते हैं । बाप आते ही हैं संगमयुग पर, इस पुरानी दुनिया को चेंज करने । ब्रह्मा द्वारा नई दुनिया की स्थापना फिर से करते हैं । वह तो लाखों वर्ष कह देते हैं । कोई बात याद भी न आ सके । महाप्रलय भी कोई होती नहीं । बाप राजयोग सिखलाते हैं फिर राजाई तुम पाते हो । इसमें तो संशय की कोई बात ही नहीं । तुम बच्चे जानते हो पहले नम्बर में सबसे प्यारा है बाप फिर नेक्स्ट प्यारा है श्रीकृष्ण । तुम जानते हो श्रीकृष्ण है स्वर्ग का पहला प्रिन्स, नम्बरवन । वही फिर 84 जन्म लेते हैं । उसके ही अन्तिम जन्म में मैं प्रवेश करता हूँ । अब तुमको पतित से पावन बनना है । पतित-पावन बाप ही है, पानी की नदियां थोड़े ही पावन कर सकती हैं । यह नदियां तो सतयुग में भी होती हैं । वहाँ तो पानी बहुत शुद्ध रहता है । किचड़ा आदि कुछ नहीं रहता । यहाँ तो कितना किचड़ा पड़ता रहता है । बाबा का देखा हुआ है, उस समय तो ज्ञान नहीं था । अभी वंडर लगता है पानी कैसे पावन बना सकता है ।

तो बाप समझाते हैं - मीठे बच्चे, कभी भी मूँझो नहीं कि बाप को याद कैसे करें । अरे, तुम बाप को याद नहीं कर सकते हो । वह हैं कुख की सन्तान, तुम हो एडाप्टेड बच्चे । एडाप्टेड बच्चों को जिस बाप से मिलकियत मिलती है, उनको भूल सकते हैं क्या? बेहद के बाप से बेहद की मिलकियत मिलती है तो उनको भूलना थोड़े ही चाहिए । लौकिक बच्चे बाप को भूलते हैं क्या । परन्तु यहाँ माया का आपोजीशन होता है । माया की युद्ध चलती है, सारी दुनिया कर्मक्षेत्र है । आत्मा इस शरीर में प्रवेश कर यहाँ कर्म करती है । बाप कर्म- अकर्म-विकर्म का राज समझाते हैं । यहाँ रावण राज्य में कर्म विकर्म बन जाते हैं । वहाँ रावण राज्य ही नहीं तो कर्म अकर्म हो जाते हैं, विकर्म कोई होता ही नहीं । यह तो बहुत सहज बात है । यहाँ रावण राज्य में कर्म विकर्म होते हैं इसलिए विकर्मों का दण्ड भोगना पड़ता है । ऐसे थोड़े ही कहेंगे रावण अनादि है । नहीं, आधाकल्प है रावण राज्य, आधाकल्प है राम राज्य । तुम जब देवता थे तो तुम्हारे कर्म अकर्म होते थे । अब यह है नॉलेज । बच्चे बने हो तो फिर पढ़ाई भी पढ़नी है । बस, फिर और कोई धन्धे आदि का ख्याल भी नहीं आना चाहिए । परन्तु गृहस्थ व्यवहार में रहते धन्धा आदि भी करने वाले हैं तो बाप कहते हैं कमल फूल समान रहो । ऐसे देवता तुम बनने वाले हो । वह निशानी विष्णु को दे दी है क्योंकि तुमको शोभेगा नहीं । उनको शोभता है । वही विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण बनने वाले हैं । वह है ही अहिंसा परमो देवी-देवता धर्म । न कोई विकार की काम कटारी होती, न कोई लड़ाई-झगड़ा आदि होता है । तुम डबल अहिंसक बनते हो । सतयुग के मालिक थे । नाम ही है गोल्डन एज । कंचन दुनिया । आत्मा और काया दोनों कंचन बन जाती है । कंचन काया कौन बनाते हैं? बाप । अभी तो आइरन एज है ना । अब तुम कहते हो सतयुग पास हो गया है । कल सतयुग था ना । तुम राज्य करते थे । तुम नॉलेजफुल बनते जाते हो । सब तो एक जैसे नहीं बनेंगे । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. मैं आत्मा अकाल तख्त नशीन हूँ इस स्मृति में रहना है, हद और बेहद से पार जाना है इसलिए हदों में बुद्धि नहीं फँसानी है ।  

2. बेहद बाप से बेहद की मिलकियत मिलती है, इस नशे में रहना है । कर्म-अकर्म-विकर्म की गति को जान विकर्मों से बचना है । पढ़ाई के समय धन्धे आदि से बुद्धि निकाल लेनी है ।

 

वरदान:-

वरदाता द्वारा सर्वश्रेष्ठ सम्पत्ति का वरदान प्राप्त करने वाले सम्पत्तिवान भव !    

किसी के पास अगर सिर्फ स्थूल सम्पत्ति है तो भी सदा सन्तुष्ट नहीं रह सकते । स्थूल सम्पत्ति के साथ अगर सर्व गुणों की सम्पत्ति, सर्व शक्तियों की सम्पत्ति और ज्ञान की श्रेष्ठ सम्पत्ति नहीं है तो सन्तुष्टता सदा नहीं रह सकती । आप सबके पास तो यह सब श्रेष्ठ सम्पत्तियाँ हैं । दुनिया वाले सिर्फ स्थूल सम्पत्ति वाले को सम्पत्तिवान समझते हैं लेकिन वरदाता बाप द्वारा आप बच्चों को सर्व श्रेष्ठ सम्पत्तिवान भव का वरदान मिला हुआ है ।

 

स्लोगन:- 

सच्ची साधना द्वारा हाय-हाय को वाह-वाह में परिवर्तन करो ।   

 

ओम् शान्ति |