26-06-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे
–
पहले
हर
एक
को
यह
मन्त्र
कूट-कूट
कर
पक्का
कराओ
कि
तुम
आत्मा
हो,
तुम्हें
बाप
को
याद
करना
है,
याद
से
ही
पाप
कटेंगे"
प्रश्न:-
सच्ची
सेवा
क्या
है,
जो
तुम
अभी
कर
रहे
हो?
उत्तर:-
भारत
जो
पतित
बन
गया
है,
उसे
पावन
बनाना-यही
सच्ची
सेवा
है
।
लोग
पूछते
हैं
तुम
भारत
की
क्या
सेवा
करते
हो?
तुम
उन्हें
बताओ
कि
हम
श्रीमत
पर
भारत
की
वह
रूहानी
सेवा
करते
हैं
जिससे
भारत
डबल
सिरताज
बनें
।
भारत
में
जो
पीस
प्रासपर्टी
थी,
उसकी
हम
स्थापना
कर
रहे
हैं
।
ओम्
शान्ति
|
पहला-पहला
शब्क
(पाठ)
है-
बच्चे,
अपने
को
आत्मा
समझो
अथवा
मनमनाभव,
यह
है
संस्कृत
अक्षर
।
अब
बच्चे
जब
सर्विस
करते
हैं
तो
पहले-पहले
ही
उनको
अल्फ
पढ़ाना
है
।
जब
भी
कोई
आये
तो
शिवबाबा
के
चित्र
के
आगे
ले
जाना
है,
और
कोई
चित्र
के
आगे
नहीं
।
पहले-पहले
बाप
के
चित्र
के
पास
उनको
कहना
है-बाबा
कहते
हैं
अपने
को
आत्मा
समझ
मुझ
बाप
को
याद
करो
।
मैं
तुम्हारा
सुप्रीम
बाप
भी
हूँ,
सुप्रीम
टीचर
भी
हूँ,
सुप्रीम
गुरू
भी
हूँ
।
सबको
यह
पाठ
सिखलाना
है
।
शुरू
ही
वहाँ
से
करना
है
।
अपने
को
आत्मा
समझ
और
मुझ
बाप
को
याद
करो
क्योंकि
तुम
जो
पतित
बने
हो
फिर
पावन
सतोप्रधान
बनना
है
।
इस
शब्क
में
सब
बातें
आ
जाती
हैं
।
सभी
कोई
ऐसे
करते
नहीं
।
बाबा
कहते
हैं
पहले-
पहले
शिवबाबा
के
चित्र
पर
ही
ले
जाना
है
।
यह
बेहद
का
बाबा
है
।
बाबा
कहते
हैं
मामेकम
याद
करो
।
अपने
को
आत्मा
समझो
तो
बेड़ा
पार
है
।
याद
करते-करते
पवित्र
दुनिया
में
पहुँच
ही
जाना
है
।
यह
शब्क
कम
से
कम
3
मिनट
तो
घड़ी-घड़ी
पक्का
करना
है
।
बाप
को
याद
किया?
बाबा,
बाबा
भी
है,
रचना
का
रचयिता
भी
है
।
रचना
के
आदि-मध्य-
अन्त
को
जानते
हैं
क्योकि
मनुष्य
सृष्टि
का
बीजरूप
है
।
पहले-पहले
तो
यह
निश्चय
कराना
है
।
बाप
को
याद
करते
हो?
यह
नॉलेज
बाप
ही
देते
हैं
।
हमने
भी
बाप
से
नॉलेज
ली
है,
जो
आपको
देते
हैं
।
पहले-पहले
यह
मन्त्र
पक्का
कराना
है-
अपने
को
आत्मा
समझ
बाप
को
याद
करो
तो
धनके
बन
जायेंगे
।
इसके
ऊपर
ही
समझाना
है
।
जब
तक
यह
नहीं
समझे
तब
तक
पैर
आगे
बढ़ाना
ही
नहीं
।
ऐसे
बाप
के
परिचय
पर
दो-चार
चित्र
होने
चाहिए
।
तो
इस
पर
अच्छी
रीति
समझाने
से
उनकी
बुद्धि
में
आ
जायेगा-
हमको
बाप
को
याद
करना
है,
वही
सर्वशक्तिमान्
है,
उनको
याद
करने
से
पाप
कट
जायेंगे
।
बाप
की
महिमा
तो
क्लीयर
है
।
पहले-पहले
यह
जरूर
समझाना
चाहिए-
अपने
को
आत्मा
समझ
मामेकम याद
करो
।
देह
के
सब
सम्बन्ध
भूल
जाओ
।
मैं
सिक्ख
हूँ,
फलाना
हूँ.... यह
छोड़
एक
बाप
को
याद
करना
है
।
पहले-पहले
तो
बुद्धि
में
यह
मुख्य
बात
बिठाओ
।
वह
बाप
ही
पवित्रता,
सुख,
शान्ति
का
वर्सा
देने
वाला
है
।
बाप
ही
कैरेक्टर्स
सुधारते
हैं
।
तो
बाबा
को
ख्याल
आया-पहला
पाठ
इस
रीति
पक्का
कराते
नहीं
हैं,
जो
है
बिल्कुल
जरूरी
।
जितना
यह
अच्छी
रीति
कूटेंगे
उतना
बुद्धि
में
याद
रहेगा
।
बाप
के
परिचय
में
भल
5
मिनट
लग
जाएँ,
हटना
नहीं
है
।
बहुत
रूचि
से
बाप
की
महिमा
सुनेंगे
।
यह
बाप
का
चित्र
है
मुख्य
।
क्यू
सारी
इस
चित्र
के
आगे
होनी
चाहिए
।
बाप
का
पैगाम
सबको
देना
है
।
फिर
है
रचना
की
नॉलेज
कि
यह
चक्र
कैसे
फिरता
है
।
जैसे
मसाला
कूट-कूट
कर
एकदम
महीन
बनाया
जाता
है
ना
।
तुम
ईश्वरीय
मिशन
हो,
तो
अच्छी
रीति
एक-एक
बात
बुद्धि
मे
बिठानी
है
क्योंकि
बाप
को
न
जानने
कारण
सब
निधनके
बन
पड़े
है
।
परिचय
देना
है-बाबा
सुप्रीम
बाप
है,
सुप्रीम
टीचर,
सुप्रीम
गुरू
है
।
तीनों
ही
कहने
से
फिर
सर्वव्यापी
की
बात
बुद्धि
से
निकल
जायेगी
।
यह
तो
पहले-पहले
बुद्धि
में
बिठाओ
।
बाप
को
याद
करना
है
तब
ही
तुम
पतित
से
पावन
बन
सकेंगे
।
दैवी
गुण
भी
धारण
करने
हैं
।
सतोप्रधान
बनना
है
।
तुम
उनको
बाप
की
याद
दिलायेंगे
।
उसमें
तुम
बच्चों
का
भी
कल्याण
है
।
तुम
भी
मनमनाभव
रहेंगे
।
तुम
पैगम्बर
हो
तो
बाप
का
परिचय
देना
है
।
एक
भी
मनुष्य
नहीं,
जिसको
यह
पता
हो
कि
बाबा
हमारा
बाप
भी
है,
टीचर
और
गुरू
भी
है
।
बाप
का
परिचय
सुनने
से
वह
बहुत
खुश
हो
जाएँगे
।
भगवानुवाच-मामेकम्
याद
करो
तो
तुम्हारे
पाप
कट
जायेंगे
।
यह
भी
तुम
जानते
हो
।
गीता
के
साथ
फिर
महाभारत
लड़ाई
भी
दिखाई
है
।
अब
और
तो
कोई
लड़ाई
की
बात
ही
नहीं
।
तुम्हारी
लड़ाई
है
ही
बाप
को
याद
करने
में
।
पढ़ाई
तो
अलग
है,
बाकी
लड़ाई
है
याद
में
क्योंकि
सब
हैं
देह-
अभिमानी
।
तुम
अब
बनते
हो
देही-
अभिमानी
।
बाप
को
याद
करने
वाले
।
पहले-पहले
यह
पक्का
कराओ,
वह
बाप,
टीचर,
गुरू
है
।
अभी
हम
उनकी
सुनें
या
तुम्हारी
सुनें
?
बाप
कहते
हैं
-
बच्चे,
अब
तुम्हें
पूरा-पूरा
श्रीमत
पर
चलना
है
श्रेष्ठ
बनने
के
लिए
।
हम
यही
सेवा
करते
हैं
।
ईश्वरीय
मत
पर
चलो
तो
तुम्हारे
विकर्म
विनाश
होंगे
।
बाप
की
श्रीमत
यह
है
कि
मामेकम्
याद
करो
।
सृष्टि
का
चक्र
जो
समझाते
हैं,
यह
भी
उनकी
मत
है
।
तुम
भी
पवित्र
बनेंगे
और
बाप
को
याद
करेंगे तो
बाप
कहते
हैं
मैं
साथ
ले
जाऊंगा
।
बाबा
बेहद
का
रूहानी
पण्डा
भी
है
।
उनको
बुलाते
हैं
हे
पतित-पावन,
हमको
पावन
बनाकर
इस
पतित
दुनिया
से
ले
चलो
।
वह
हैं
जिस्मानी
पण्डे,
यह
है
रूहानी
पण्डा
।
शिवबाबा
हमको
पढाते
हैं
।
बाप
तुम
बच्चों
को
भी
कहते
हैं
चलते,
फिरते,
उठते
बाप
को
याद
करते
रहो
।
इसमें
अपने
को
थकाने
की
भी
दरकार
नहीं
।
बाबा
देखते
हैं-
कभी-कभी
बच्चे
सवेरे-सवेरे
आकर
बैठते
हैं
तो
जरूर
थक
जाते
होंगे
।
यह
तो
सहज
मार्ग
है
।
हठ
से
नहीं
बैठना
है
।
भल
चक्र
लगाओ,
घूमो
फिरो,
बहुत
रुचि
से
बाप
को
याद
करो
।
अन्दर
से
बाबा-बाबा
की
बहुत
उछल
आनी
चाहिए
।
उछल
उनको
आयेगी
जो
हरदम
बाप
को
याद
करते
रहेंगे
।
कुछ
न
कुछ
और
बातें
जो
बुद्धि
में
याद
हैं,
उनको
निकालना
चाहिए
।
बाप
के
साथ
अति
प्यार
रहे,
वह
अतीन्द्रिय
सुख
भासता
रहे
।
जब
तुम
बाप
की
याद
में
लग
जायेंगे
तब
ही
तमोप्रधान
से
सतोप्रधान
बन
जायेंगे
।
फिर
तुम्हारी
खुशी
का
पारावार
नहीं
रहेगा
।
इन
सब
बातों
का
वर्णन
यहाँ
होता
है
इसलिए
गायन
भी
है-
अतीन्द्रिय
सुख
गोप-गोपियों
से
पूछो,
जिनको
भगवान्
बाप
पढाते
हैं
।
भगवानुवाच
मुझे
याद
करो
।
बाप
की
ही
महिमा
बतानी
है
।
सद्गति
का
वर्सा
तो
एक
बाप
से
ही
मिलता
है
।
सबको
सद्गति
मिलती
है
जरूर
।
पहले
सब
जायेंगे शान्तिधाम
।
यह
बुद्धि
में
होना
चाहिए
कि
बाप
हमको
सद्गति
दे
रहे
हैं
।
शान्तिधाम,
सुखधाम
किसको
कहा
जाता
है-यह
तो
समझाया
है
।
शान्तिधाम
में
सब
आत्मायें
रहती
हैं
।
वह
है
स्वीट
होम,
साइलेन्स
होम
।
टॉवर
आफ
साइलेन्स
।
उसको
इन
आखों
से
कोई
देख
न
सके
।
उन
साइंस
वालों
की
बुद्धि
तो
यहाँ
इन
आखों
से
जो
चीज़
देखते
है
उस
पर
ही
चलती
है
।
आत्माओं
को
तो
इन
आँखों
से
कोई
देख
न
सके
।
समझ
सकते
हैं
।
जब
आत्मा
को
ही
नहीं
देख
सकते
तो
बाप
को
फिर
कैसे
देख
सकते
हैं
।
यह
समझ
की
बात
है
ना
।
इन
आखों
से
देखा
नहीं
जाता
।
भगवानुवाच-मुझे
याद
करो
तो
पाप
भस्म
होंगे
।
यह
किसने
कहा?
पूरा
समझ
नहीं
सकते
तो
कृष्ण
के
लिए
कह
देते
हैं
।
कृष्ण
को
तो
बहुत
याद
करते
हैं
।
दिन-प्रतिदिन
व्यभिचारी
होते
जाते
हैं
।
भक्ति
में
भी
पहले
एक
शिव
की
भक्ति
करते
हैं
।
वह
है
अव्यभिचारी
भक्ति
फिर
लक्ष्मी-नारायण
की
भक्ति....
ऊंच
ते
ऊंच
तो
है
भगवान्
।
वही
वर्सा
देते
हैं
यह
विष्णु
बनने
का
।
तुम
शिव
वंशी
बन
फिर
विष्णुपुरी
के
मालिक
बनते
हो
।
माला
बनती
ही
तब
है
जब
पहला
पाठ
अच्छी
तरह
पढते
हैं
।
बाप
को
याद
करना
कोई
मासी
का
घर
नहीं
।
मन-बुद्धि
को
सब
तरफ
से
हटाकर
एक
तरफ
लगाना
है
।
जो
कुछ
इन
आखों
से
देखते
हो
उनसे
बुद्धियोग
हटा
दो
।
बाप
कहते
है
मामेकम
याद
करो,
इसमें
मूंझना
नहीं
है
।
बाप
इस
रथ
में
बैठे
हैं,
उनकी
महिमा
करते
हैं
-वह
है
निराकार
।
इन
द्वारा
तुमको
घड़ी-घड़ी
यह
याद
दिलाते
हैं
-
तुम
मनमनाभव
हो
रहो
।
गोया
तुम
सब
पर
उपकार
करते
हो
।
तुम
खाना
पकाने
वालों
को
भी
कहते
हो
-
शिवबाबा
को
याद
कर
भोजन
बनाओ
तो
खाने
वालो
की
बुद्धि
शुद्ध
हो
जायेगी
।
एक-दो
को
याद
दिलाना
है
।
हर
एक
कुछ
न
कुछ
समय
याद
करते
हैं
।
कोई
आधा
घण्टा
बैठते
हैं,
कोई
10
मिनट
बैठते
हैं
।
अच्छा,
5
मिनट
भी
प्यार
से
बाप
को
याद
किया
तो
राजधानी
में
आ
जायेंगे
।
राजा-रानी
हमेशा
सबको
प्यार
करते
हैं
।
तुम
भी
प्यार
के
सागर
बनते
हो,
इसलिए
सब
पर
प्यार
रहता
है
।
प्यार
ही
प्यार
।
बाप
प्यार
का
सागर
है
तो
बच्चों
का
भी
जरूर
ऐसा
प्यार
होगा,
तब
वहाँ
भी
ऐसा
प्यार
रहेगा
।
राजा-रानी
का
भी
बहुत
प्यार
होता
है
।
बच्चों
का
भी
बहुत
प्यार
होता
है
।
प्यार
भी
बेहद
का
।
यहाँ
तो
प्यार
का
नाम
नहीं,
मार
है
।
वहाँ
यह
काम
कटारी
की
हिंसा
भी
नहीं
होती,
इसलिए
भारत
की
महिमा
अपरमअपार
गाई
हुई
है
।
भारत
जैसा
पवित्र
देश
कोई
है
नहीं
।
यह
सबसे
बड़ा
तीर्थ
है
।
बाप
यहाँ
(भारत
में)
आकर
सबकी
सेवा
करते
हैं,
सबको
पढ़ाते
हैं
।
मुख्य
है
पढ़ाई
।
तुमसे
कोई-कोई
पूछते
हैं
भारत
की
क्या
सेवा
करते
हो?
बोलो,
तुम
चाहते
हो
भारत
पावन
हो,
अब
पतित
है
ना,
तो
हम
श्रीमत
पर
भारत
को
पावन
बनाते
हैं
।
सबको
कहते
हैं
बाप
को
याद
करो
तो
पतित
से
पावन
बन
जायेंगे
।
यह
हम
रूहानी
सेवा
कर
रहे
हैं
।
भारत
जो
सिरताज
था,
पीस
प्रासपर्टी
थी
वह
फिर
से
बना
रहे
हैं,
श्रीमत
पर
कल्प
पहले
मुआफिक,
ड्रामा
प्लैन
अनुसार
।
यह
अक्षर
पूरे
याद
करो
।
मनुष्य
चाहते
भी
हैं
वर्ल्ड
पीस
हो
।
सो
हम
कर
रहे
हैं
।
भगवानुवाच-बाप
हम
बच्चों
को
समझाते
रहते
हैं
मुझ
बाप
को
याद
करो
।
यह
भी
बाबा
जानते
हैं
तुम
कोई
इतना
याद
थोड़ेही
करते
हो
बाबा
को
।
इसमे
ही
मेहनत
है
।
याद
से
ही
तुम्हारी
कर्मातीत
अवस्था
आयेगी
।
तुमको
स्वदर्शन
चक्रधारी
बनना
है
।
इनका
अर्थ
भी
किसको
बुद्धि
में
नहीं
है
।
शास्त्रों
में
तो
कितनी
बातें
लिख
दी
हैं
।
अब
बाप
कहते
हैं
जो
कुछ
पढ़े
हो
वह
सब
भूल
जाना
है,
अपने
को
आत्मा
समझना
है
।
वही
साथ
चलना
है,
और
कुछ
भी
साथ
नहीं
चलेगा
।
यह
बाप
की
पढ़ाई
है,
जो
साथ
चलनी
है
।
उसके
लिए
कोशिश
कर
रहे
हैं
।
छोटे
-छोटे
बच्चों
को
भी
कम
मत
समझो
।
जितने
छोटे
उतना
बहुत
नाम
निकाल
सकते
हैं
।
छोटी-छोटी
बच्चियाँ
बैठ
बड़े-
बड़े
बुजुर्गो
को
समझायेंगी
तो
कमाल
कर
दिखाएंगी
।
उन्हों को
भी
आप
समान
बनाना
है
।
कोई
प्रश्न
पूछे
तो
रेसपॉन्स
दे
सकें,
ऐसी
तैयार
करो
।
फिर
जहॉ-जहाँ
सेंटर्स
हो
वा
म्युजियम
हो
तो
उन्हों
को
भेज
दें
।
ऐसे
ग्रुप
तैयार
करो
।
टाइम
तो
यही
है
।
ऐसी-ऐसी
सर्विस
करो
।
बड़े
बुजुर्गों को
भी
छोटी
कुमारियाँ
बैठ
समझाये
तो
कमाल
है
।
कोई
पूछे
तुम
किसके
बच्चे
हो?
बोलो-हम
शिवबाबा
के
बच्चे
हैं
।
वह
निराकार
है
।
ब्रह्मा
तन
में
आकर
हमको
पढ़ाते
हैं
।
इस
पढाई
से
ही
हमको
यह
लक्ष्मी-नारायण
बनना
है
।
सतयुग
आदि
में
इन
लक्ष्मी-नारायण
का
राज्य
था
ना
।
इन्हों
को
ऐसा
किसने
बनाया?
जरूर
ऐसे
कर्म
किये
होंगे
ना
।
बाप
बैठ
कर्म,
अकर्म,
विकर्म
की
गति
सुनाते
हैं
।
शिवबाबा
हमको
पढ़ाते
हैं|
वही
बाप,
टीचर,
गुरू
है
।
तो
बाप
समझाते
हैं
मूल
एक
बात
पर
ही
खड़ाकर
समझाना
है
।
पहले-पहले
अल्फ,
अल्फ
को
समझ
जायेंगे
फिर
इतने
प्रश्न
आदि
कोई
पूछेंगे
नहीं
।
अल्फ
समझने
बिगर
तुम
बाकी
और
चित्रों
पर
समझायेंगे
तो
माथा
खराब
कर
देंगे
।
पहली
बात
है
अल्फ
की
।
हम
श्रीमत
पर
चलते
हैं
।
ऐसे
भी
निकलेंगे
जो
कहेंगे
अल्फ
समझ
लिया
बाकी
यह
चित्र
आदि
क्या
देखने
के
हैं
।
हमने
अल्फ
को
जानने
से
सब-कुछ
समझ
लिया
है
।
भिक्षा
मिली,
यह
गया
।
तुम
फर्स्टक्लास
भिक्षा
देते
हो
।
बाप
का
परिचय
देने
से
ही
बाप
को
जितना
याद
करेंगे
तो
तमोप्रधान
से
सतोप्रधान
बनेंगे
।
अच्छा!
मीठे-मीठे
सिकीलधे
बच्चो
प्रति
मात-पिता
बापदादा
का
याद-प्यार
और
गुडमॉर्निग
।
रूहानी
बाप
की
रूहानी
बच्चों
को
नमस्ते
।
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1). अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करने के लिए अन्दर बाबा-बाबा की
उछल आती रहे । हठ से नहीं, रुच से बाप को चलते-फिरते याद करो ।
बुद्धि सब तरफ से हटाकर एक में लगाओ ।
2). जैसे
बाप प्यार का सागर है, ऐसे बाप समान प्यार का सागर बनना है ।
सब पर उपकार करना है । बाप की याद में रहना और सबको बाप की याद
दिलाना है|
वरदान:-
साइलेन्स
के
साधनों
द्वारा
माया
को
दूर
से
पहचान
कर
भगाने
वाले
मायाजीत
भव
! 
माया
तो
लास्ट
घड़ी
तक
आयेगी
लेकिन
माया
का
काम
है
आना
और
आपका
काम
है
दूर
से
भगाना
।
माया
आवे
और
आपको
हिलाये
फिर
आप
भगाओ,
यह
भी
टाइम
वेस्ट
हुआ
।
इसलिए
साइलेन्स
के
साधनों
से
आप
दूर
से
ही
पहचान
लो
कि
ये
माया
है
।
उसे
पास
में आने
न
दो
।
अगर
सोचते
हो
क्या
करूँ,
कैसे
करूँ,
अभी
तो
पुरुषार्थी
हूँ.....
तो
यह
भी
माया
की
खातिरी
करते
हो,
फिर
तंग
होते
हो
इसलिए
दूर
से
ही
परखकर
भगा
दो
तो
मायाजीत
बन
जायेंगे
।
स्लोगन:-
श्रेष्ठ
भाग्य
की
रेखाओं
को
इमर्ज
करो
तो
पुराने
सस्कारों
की
रेखायें
मर्ज
हो
जायेंगी
। 
ओम्
शान्ति
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