17-06-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे
–
तुम
साहेबजादे सो शहजादे बनने वाले हो, तुम्हें किसी भी चीज़ की
इच्छा नहीं रखनी है, किसी से कुछ भी मांगना नहीं है” 
प्रश्न:-
तबियत को ठीक रखने के लिए कौन-सा आधार नहीं चाहिए?
उत्तर:-
कई
बच्चे समझते हैं वैभवों के आधार पर तबियत ठीक रहेगी | परन्तु
बाबा कहते हैं बच्चे यहाँ तुम्हें वैभवों की इच्छा नहीं रखनी
चाहिए | वैभवों से तबियत ठीक नहीं होगी | तबियत ठीक रखने के
लिए तो याद की यात्रा चाहिए | कहा जाता है ख़ुशी जैसी ख़ुराक
नहीं | तुम खुश रहो, नशे में रहो | यज्ञ में दधीचि ऋषि के मिसल
हड्डियाँ दो तो तबियत ठीक हो जायेगी |
ओम्
शान्ति
|
बाप
को कहा जाता है करनकरावनहार | तुम साहेबजादे हो | तुम्हारा इस
सृष्टि में ऊँचे ते ऊँचा पोजीशन है | तुम बच्चों को नशा रहना
चाहिए कि हम साहेबजादे, साहेब की मत पर अब फिर से अपना
राज्य-भाग्य स्थापन कर रहे हैं | यह भी किसकी बुद्धि में याद
नहीं रहता है | बाबा सभी सेन्टर्स के बच्चों के लिए कहते हैं |
अनेक सेन्टर्स हैं, अनेक बच्चे आते हैं | हर एक की बुद्धि में
सदैव याद रहे कि हम बाबा की श्रीमत पर फिर से विश्व में
शान्ति-सुख का राज्य स्थापन कर रहे हैं | सुख और शान्ति यह दो
अक्षर ही याद करने हैं | तुम बच्चों को कितना ज्ञान मिलता है,
तुम्हारी बुद्धि कितनी विशाल होनी चाहिए, इसमें जामड़ी बुद्धि
नहीं चल सकती | अपने को साहेबजादे समझो तो पाप ख़त्म हो जाएँ |
बहुत हैं जिनको सारा दिन बाप की याद नहीं रहती है | बाबा कहते
तुम्हारी बुद्धि डल क्यों हो जाती है? सेन्टर्स पर ऐसे-ऐसे
बच्चे आते हैं, जिनकी बुद्धि में है ही नहीं कि हम श्रीमत पर
विश्व में अपना दैवी राज्य स्थापन कर रहे हैं | अन्दर में वह
नशा, फलक होनी चाहिए | मुरली सुनने से रोमांच खड़े हो जाने
चाहिए | यहाँ तो बाबा देखते हैं बच्चों के और ही रोमांच डेड
रहते हैं, ढेर बच्चे हैं जिनकी बुद्धि में यह याद नहीं रहता है
कि हम श्रीमत पर बाबा की याद से विकर्म विनाश कर अपनी राजधानी
स्थापन कर रहे हैं | रोज़ बाबा समझाते हैं – बच्चे, तुम
वारियर्स हो, रावण पर जीत पाने वाले हो | बाप तुम्हें मन्दिर
लायक बनाते हैं परन्तु इतना नशा वा ख़ुशी बच्चों को रहती थोड़ेही
है, कोई चीज़ नहीं मिली तो बस रूठ पड़ेंगे | बाबा को तो वन्डर
लगता है बच्चों की अवस्था पर | माया की जंज़ीरों में फँस पड़ते
हैं | तुम्हारा मान, तुम्हारी कारोबार, तुम्हारी ख़ुशी तो
वन्डरफुल होनी चाहिए | जो मित्र सम्बन्धियों को नहीं भूलते हैं
वह कभी बाप को याद कर नहीं सकेंगे | फिर क्या पद जायेंगे!
वन्डर लगता है | तुम बच्चों में तो बड़ा नशा चाहिए | अपने को
साहेबजादे समझो तो कुछ भी मांगने की परवाह न रहे | बाबा तो
हमको इतना अथाह खज़ाना देते हैं जो 21 जन्म तक कुछ भी मांगने का
ही नहीं है, इतना नशा रहना चाहिए | परन्तु बिल्कुल ही डल,
जामड़ी बुद्धि है | तुम बच्चों की बुद्धि तो 7 फुट लम्बी होनी
चाहिए | मनुष्य की लम्बाई अधिक से अधिक 6-7 फुट होती है | बाबा
बच्चों को कितना हुल्लास में लाते हैं – तुम साहेबजादे हो,
दुनिया के लोग तो कुछ भी समझते नहीं | उनको तुम समझाते हो कि
सिर्फ़ तुम यह समझो हम बाप के सामने बैठे हैं, बाप को याद करते
रहेंगे तो विकर्म विनाश होंगे | बाप समझाते हैं बच्चे, माया
तुम्हारा बहुत कड़ा दुश्मन है, दूसरों का इतना दुश्मन नहीं है,
जितना तुम्हारा | मनुष्य तो जानते ही नहीं, तुच्छ बुद्धि हैं |
बाबा रोज़-रोज़ तुम बच्चों को कहते हैं तुम साहेबजादे हो, बाप को
याद करो और दूसरों को आप-सामान बनाते रहो | तुम सबको यह भी
समझा सकते हो कि भगवान् तो सच्चा साहेब है ना | तो हम उनके
बच्चे साहेबजादे ठहरे, तुम बच्चों को चलते-फिरते बुद्धि में
यही याद रखना है | सर्विस में दधीचि ऋषि मिसल हड्डियाँ भी दे
देनी चाहिए | यहाँ हड्डी देना तो क्या और ही अथाह सुख वैभव
चाहिए | तबियत कोई इन चीज़ों से थोड़ेही अच्छी होती है | तबियत
के लिए चाहिए याद की यात्रा | वह ख़ुशी रहनी चाहिए | अरे, हम तो
कल्प-कल्प माया से हारते आये, अभी माया पर जीत पाते हैं | बाप
आकर जीत पहनाते हैं | अभी भारत में कितना दुःख है, अथाह दुःख
देने वाला है रावण | वो लोग समझते हैं एरोप्लेन हैं, मोटरें
महल हैं, बस, यही स्वर्ग है | यह नहीं समझते कि यह तो दुनिया
ही ख़लास होनी है | लाखों, करोड़ों खर्चा करते, डैम आदि बनाते,
लड़ाई का सामान भी कितना ले रहे हैं | यह एक-दो का खात्मा करने
वाले हैं, निधनके हैं ना | कितना लड़ाई झगड़ा करते हैं, बात मत
पूछो | कितना किचड़ा लगा पड़ा है | इसको कहा जाता है नर्क |
स्वर्ग की तो बड़ी महिमा है | बड़ौदा की महारानी से पूछो महाराजा
कहाँ गया? तो कहेंगे स्वर्गवासी हुआ | स्वर्ग किसको कहा जाता
है – यह कोई जानते नहीं, कितना घोर अन्धियारा हैं | तुम भी घोर
अन्धियारे में थे | अब बाप कहते हैं तुमको ईश्वरीय बुद्धि देता
हूँ | अपने को ईश्वरीय सन्तान साहेबजादे समझो | साहेब पढ़ाते
हैं शहज़ादा बनाने के लिए | बाबा कहावत सुनाते हैं ना रीढ़ छा
जाने.... (भेड़ क्या समझे) अभी तुम समझते हो – मनुष्य भी सब भेड़
बकरियों की तरह हैं, कुछ भी नहीं जानते हैं | क्या-क्या बैठ
उपमा करते हैं | तुम्हारी बुद्धि में आदि-मध्य-अन्त का राज़ है
| अच्छी रीति याद करो कि हम विश्व में सुख-शान्ति स्थापन कर
रहे हैं | जो मददगार बनेंगे वही ऊँच पद पायेंगे | वह भी तुम
देखते हो कि कौन-कौन मददगार बनते हैं | अपनी दिल से हर एक पूछे
कि हम क्या कर रहे हैं? हम भेड़-बकरी तो नहीं हैं? मनुष्यों में
अहंकार देखो कितना है, गुर्र-गुर्र करने लग पड़ते हैं | तुमको
तो बाप की याद रहनी चाहिए | सर्विस में हड्डियाँ देनी है, किसी
को नाराज़ नहीं करना है, न होना है | अहंकार भी नहीं आना चाहिए
| हम यह करते, हम इतने होशियार हैं, यह ख्याल आना भी
देह-अभिमान है | उसकी चलन ही ऐसी हो जाती, जो शर्म आ जायेगी |
नहीं
तो तुम्हारे जैसा सुख और कोई को हो न सके | यह बुद्धि में याद
रहे तो तुम चमकते रहो | सेन्टर में कोई तो अच्छे महारथी हैं,
कोई घोड़ेसवार, प्यादे भी हैं | इसमें बड़ी विशाल बुद्धि होनी
चाहिए | सर्विस बिगर क्या पद पायेंगे | माँ-बाप को तो बच्चों
के लिए रिगार्ड रहता है | परन्तु वह अपना ख़ुद रिगार्ड नहीं
रखते तो बाबा क्या कहेंगे |
तुम
बच्चों को थोड़े में ही सबको बाप का सन्देश देना है | बोलो, बाप
कहते हैं मनमनाभव | गीता में कुछ अक्षर है आटे में लून (नमक) |
यह ह्यूज़ दुनिया कितनी बड़ी है, बुद्धि में आना चाहिए | कितनी
बड़ी दुनिया है, कितने मनुष्य हैं, यह फिर कुछ भी नहीं रहेंगे |
कोई खण्ड का नाम निशान नहीं होगा | हम स्वर्ग के मालिक बनते
हैं, यह दिन-रात ख़ुशी रहनी चाहिए |
नॉलेज तो बहुत सहज है, समझाने वाले बड़े रमज़बाज़ चाहिए | अनेक
प्रकार की युक्तियाँ हैं | बाप कहते हैं मैं तुमको बहुत
डिप्लोमैट बनाता हूँ | वह डिप्लोमैट एम्बेसेडर को कहते हैं |
तो बच्चों की बुद्धि में याद रहना चाहिए | ओहो! बेहद का बाप
हमको डायरेक्शन देते हैं, तुम धारण कर औरों को भी बाप का परिचय
देते हो | सिवाए तुम्हारे बाकी सारी दुनिया नास्तिक है |
तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं | कोई तो नास्तिक भी हैं ना |
बाप को याद ही नहीं करते | ख़ुद कहते हैं बाबा हमको याद भूल
जाती है, तो नास्तिक ठहरे ना | ऐसा बाप जो साहेबज़ादा
बनाते, वह याद नहीं आता है! यह समझने में भी बड़ी विशालबुद्धि
चाहिए | बाप कहते हैं मैं हर 5 हज़ार वर्ष बाद आता हूँ |
तुम्हारे द्वारा ही कार्य कराता हूँ | तुम वारियर्स कितने
अच्छे हो | ‘वन्दे मातरम्’ तुम गाये जाते हो | तुम ही पूज्य थे
फिर पुजारी बने हो | अब श्रीमत पर फिर से पूज्य बन रहे हो | तो
तुम बच्चों को बड़ा शान्ति से सर्विस करनी है! तुम्हें अशान्ति
नहीं होनी चाहिए | जिनकी रग-रग में भूत भरे हुए हैं, वह क्या
पद पायेंगे | लोभ भी बड़ा भूत है | बाबा सब देखते रहते हैं हर
एक की चलन कैसी है | बाबा कितना नशा चढ़ाते हैं, कोई सर्विस
नहीं करते, सिर्फ़ खाते-पीते रहते तो फिर 21 जन्म सर्विस करनी
पड़ेगी | दास-दासियाँ भी तो बनेंगे ना | पिछाड़ी में सबको
साक्षात्कार होना है | दिल पर तो सर्विसएबुल ही चढ़ेंगे |
तुम्हारी सर्विस ही यह है – किसको अमरलोक का वासी बनाना | बाबा
हिम्मत तो बहुत दिलाते हैं, धारणा करो, देह-अभिमानियों को
धारणा हो नहीं सकती | तुम जानते हो बाप को याद कर हम वेश्यालय
से शिवालय में जाते हैं, तो ऐसा बनकर भी दिखाना है |
बाबा
तो चिट्ठियों में लिखते हैं – लाडले रूहानी साहेबज़ादों, अब
श्रीमत पर चेलेंगे, महारथी बनेंगे तो शाहज़ादे ज़रूर बनेंगे | एम
ऑब्जेक्ट ही यह है | एक ही सच्चा बाबा तुमको सब बातें अच्छी
रीति समझा रहे हैं | सर्विस कर औरों का कल्याण भी करते रहो |
योगबल नहीं तो फिर इच्छायें होती हैं, यह चाहिए, वह चाहिए | वह
ख़ुशी नहीं रहती कहा जाता ख़ुशी जैसी ख़ुराक नहीं | साहेबजादों को
तो बहुत ख़ुशी रहनी चाहिए | वह नहीं है तो फिर अनेक प्रकार की
बातें आती हैं | अरे, बाप विश्व की बादशाही दे रहे हैं, बाकी
और क्या चाहिए! हरेक अपनी दिल से पूछे कि हम इतने मीठे बाबा की
क्या सर्विस करते हैं? बाप कहते हैं सबको मैसेज देते जाओ –
साहेब आया हुआ है | वास्तव में तो तुम सब ब्रदर्स हो | भल कहते
हैं हम सब भाई-भाई को मदद करनी चाहिए | इस ख्याल से भाई कह
देते हैं | यहाँ तो बाप कहते हैं – तुम एक बाप के बच्चे
भाई-भाई हो | बाप है ही स्वर्ग की स्थापना करने वाला | हेविन
बनाते हैं बच्चों द्वारा | सर्विस की युक्तियाँ तो बहुत समझाते
हैं | मित्र-सम्बन्धियों को भी समझाना है | देखो, बच्चे विलायत
में हैं वह भी सर्विस कर रहे हैं |दिन प्रतिदिन देखकर
समझेंगे-मरने से पहले वर्सा तो ले लें | बच्चे अपने मित्र
सम्बन्धियों को भी उठा रहे हैं| पवित्र भी रहते हैं | बाकी
निरन्तर भाई-भाई की अवस्था रहे, वह मुश्किल है | बाप ने तो
बच्चों को साहेबज़ादे का टाइटिल कितना अच्छा दिया है | अपने को
देखना चाहिए | सर्विस नहीं करेंगे तो हम क्या बनेंगे? अगर कोई
ने जमा किया तो वह खाते-खाते चुक्तू हो गया और ही उनके खाते
में चढ़ता है | सर्विस करने वाले को कभी यह ख्याल भी न आये कि
हमने इतना दिया, उनसे सबकी परवरिश होती है इसलिए मदद करने
वालों की खातिरी भी की जाती है, समझाना चाहिए वह खिलाने वाले
हैं | रूहानी बच्चे तुमको खिलाते हैं | तुम उनकी सेवा करते हो,
यह बड़ा हिसाब है | मन्सा, वाचा, कर्मणा उन्हों की सर्विस ही
नहीं करेंगे तो वह ख़ुशी कैसे होगी | शिवबाबा को याद कर भोजन
बनाते हैं तो उनकी ताक़त मिलेगी | दिल से पूछना है हम सबको राज़ी
करते हैं? महारथी बच्चे कितनी सर्विस कर रहे हैं | बाबा रैगजीन
पर चित्र बनवाते हैं, यह चित्र कभी टूटेंगे-फूटेंगे नहीं |
बाबा के बच्चे बैठे हैं, आपेही भेज देंगे | बाप फिर पैसे कहाँ
से लायेंगे | यह सब सेन्टर्स कैसे चलते हैं? बच्चे ही चलाते
हैं ना | शिवबाबा कहते हैं मेरे पास तो एक कौड़ी भी नहीं है |
आगे चलकर तुमको आपेही आकर कहेंगे हमारे मकान तुम काम में लगाओ
| तुम कहेंगे अब टू लेट | बाप है ही गरीब निवाज़ | गरीबों के
पास कहाँ से आये | कोई तो करोड़पति, पदमपति भी हैं | उन्हों के
लिए यहाँ ही स्वर्ग है | यह है माया का पाम्प | उनका फाल हो
रहा है | बाप कहते हैं तुम पहले साहेबज़ादे बने हो फिर शहज़ादे
जाकर बनेंगे | परन्तु इतनी सर्विस भी करके दिखाओ ना | बहुत
ख़ुशी में रहना चाहिए | हम साहेबज़ादे हैं फिर शहज़ादे बनने वाले
हैं | शहज़ादे तब बनेंगे जब बहुतों की सर्विस करेंगे | कितनी
ख़ुशी का पारा चढ़ना चाहिए | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
किसी को
कभी न तो नाराज़ करना है, न नाराज़ होना है | अपनी होशियारी का
या सेवा करने का अहंकार नहीं दिखाना है | जैसे बाप बच्चों का
रिगार्ड रखते हैं ऐसे स्वयं का रिगार्ड स्वयं ही रखना है |
2.
योगबल
से अपनी सब इच्छायें समाप्त करनी है | सदा इसी ख़ुशी वा नशे में
रहना है कि हम साहेबज़ादे सो शहज़ादे बनने वाले हैं | सदा शान्ति
में रह सर्विस करनी है | रग-रग में जो भूत भरे हुए हैं, उन्हें
निकाल देना है |
वरदान:-
ब्राह्मण जीवन में सदा चियरफुल और केयरफुल मूड में रहने वाले
कम्बाइन्ड रूपधारी भव
! 
यदि
किसी भी परिस्थिति में प्रसन्नता की मूड परिवर्तित होती है तो
उसे सदाकाल की प्रसन्नता नहीं कहेंगे | ब्राह्मण जीवन में सदा
चियरफुल और केयरफुल मूड हो | मूड बदलनी नहीं चाहिए | जब मूड
बदलती है तो कहते हैं मुझे तो एकान्त चाहिए | आज मेरा मूड ऐसा
है | मूड बदलती तब है जब अकेले होते हो, सदा कम्बाइन्ड रूप में
रहो तो मूड नहीं बदलेगी |
स्लोगन:-
कोई भी
उत्सव मनाना अर्थात् याद और सेवा के उत्साह में रहना |
ओम्
शान्ति
|