16-01-14       प्रातः मुरली       ओम् शान्ति   “बापदादा”     मधुबन


मीठे बच्चे तुम राजऋषि हो, तुम्हें राजाई प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ करना है, साथ-साथ दैवी गुण भी ज़रूर धारण करने हैं |    


प्रश्न:-   
उत्तम पुरुष बनने का पुरुषार्थ क्या है? किस बात पर बहुत अटेन्शन चाहिए?


उत्तर:-
उत्तम पुरुष बनना है तो पढ़ाई से कभी रूठना नहीं | पढ़ाई से लड़ने झगड़ने का तैलुक नहीं | पढ़ेंगे लिखेंगे होंगे नवाब.......इसलिए सदा अपनी उन्नति का ख्याल रहे | चलन पर बहुत अटेन्शन चाहिए | देवताओं जैसा बनना है तो चलन बड़ी रॉयल चाहिए | बहुत-बहुत मीठा बनना है | मुख से ऐसे बोल निकलें जो सबको मीठे लगें | किसी को दुःख न हो |


ओम् शान्ति |

मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति बाप बैठ समझाते हैं और पूछते हैं कि आपकी बुद्धि का ठिकाना कहाँ है? मनुष्यों की बुद्धि तो भटकती है, कभी कहाँ, कभी कहाँ | बाप समझाते हैं तुम्हारी बुद्धि का भटकना बन्द | बुद्धि को एक ठिकाने लगाओ | बेहद के बाप को ही याद करो | यह तो रूहानी बच्चे जानते हैं अब सारी दुनिया तमोप्रधान है | आत्मायें ही सतोप्रधान थीं नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार | अब तमोप्रधान बनी हैं फिर बाप कहते हैं सतोप्रधान बनना है इसलिए अपनी बुद्धि को बाप के साथ लगाओ | अब वापिस जाना है और कोई को भी पता नहीं कि हमको वापिस घर जाना है | और कोई भी नहीं होगा जिसको डायरेक्शन मिलते हों कि बच्चे मुझ बाप को याद करो | कितनी सहज बात समझाते हैं | सिर्फ़ बाप को याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे और कोई ऐसे समझा न सके, बाप ही समझाते हैं | जिसमें प्रवेश किया वह भी सुनते हैं | पतित से पावन बनने की और उस पर चलने की सबसे अच्छी मत बाप देते हैं | बाबा कहते हैं बच्चे तुम ही सतोप्रधान थे अब फिर बनना है | तुम ही आदि सनातन देवी देवता धर्म के थे फिर 84 जन्म भोग कौड़ी मिसल बन पड़े हो | तुम हीरे मिसल थे अब फिर बनना है | बाबा बहुत सिम्पुल बात सुनाते हैं कि अपने को आत्मा समझो | आत्माओं को ही वापिस जाना है, शरीर तो नहीं जायेगा | बाप के पास ख़ुशी से जाना है | बाप जो श्रीमत देते हैं, उससे ही तुम श्रेष्ठ बनेंगे | पवित्र आत्मायें मूलवतन में जाकर फिर आयेंगी तो नया शरीर लेंगी | यह तो निश्चय है ना, तो फिर वही तांत लगी रहे | दैवी गुण भी धारण करने हैं तो बहुत फ़ायदा होगा | स्टूडेन्ट जो अच्छी पढ़ाई पढ़ते हैं वही ऊँच पद पाते हैं | यह भी पढ़ाई है | तुम कल्प-कल्प ऐसे ही पढ़ते हो | बाप भी कल्प-कल्प ऐसे ही पढ़ाते हैं | जो टाइम पास हुआ वह ड्रामा | ड्रामा अनुसार भी बाप की और बच्चों की एक्ट चली | बाबा राय तो ठीक देते हैं ना | बच्चे कहते हैं बाबा हम आपको घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं | यही तो माया के तूफ़ान हैं | माया दीवा बुझा देती है | बाप को शमा भी कहते हैं, सर्वशक्तिमान् अथॉरिटी भी कहते हैं | जो भी वेद शास्त्र हैं सबका सार बतलाते हैं | वह नॉलेजफुल है सृष्टि के आदि मध्य अन्त का राज़ समझाते हैं | यह ब्रह्मा बाबा भी कहेंगे हम बच्चों को समझाते है | बाप कहेंगे तुम बच्चों को समझाता हूँ | उसमें यह ब्रह्मा भी आ जाता है | इसमें मूँझने की बात नहीं | यह है बहुत सहज राजयोग | तुम राजऋषि हो, ऋषि पवित्र आत्मा को कहा जाता है | तुम्हारे जैसा ऋषि तो कोई हो न सके | आत्मा को ही ऋषि कहा जाता है | शरीर को नहीं कहेंगे | आत्मा है ऋषि | राजऋषि | राज्य कहाँ से लेते हैं? बाप से | तो तुम बच्चों को कितनी ख़ुशी रहनी चाहिए | हम शिवबाबा से राज्य भाग्य ले रहे हैं | बाप ने स्मृति दिलाई है तुम विश्व के मालिक थे, फिर पुनर्जन्म लेते-लेते नीचे उतरते आये हो | देवताओं के चित्र भी हैं | मनुष्य समझते हैं यह ज्योति ज्योत समा गये | अब बाप ने समझाया है एक भी मनुष्य ज्योति ज्योत नहीं समाता | कोई भी मुक्ति जीवनमुक्ति पा नहीं सकते | तो सारा दिन अन्दर में बच्चों के विचार चलने चाहिए | जितना याद में रहेंगे उतना ख़ुशी होगी | पढ़ाई पढ़ाने वाला देखो कौन है | कृष्ण को लार्ड कृष्णा भी कहते हैं | भगवान को कभी लार्ड नहीं कहेंगे | उनको गॉड फादर ही कहते हैं | वह है हेविनली गॉड फादर | तुमको अब दिल से लगता है कि वही हेविनली गॉड फादर हेविन अर्थात् दैवी राजधानी स्थापन कर रहे हैं | सतयुग में दूसरा कोई धर्म था नहीं | चित्र भी इन देवताओं के हैं, उनको ही आदि सनातन देवी देवता कहा जाता है | यह विश्व के मालिक थे | उन्हों को कहेंगे सतयुगी, तुम हो संगमयुगी | तुम जानते हो बाबा हमको राइटियस बनाते हैं | तुम राइटियस बनते जाते हो | विकारी को अनराइटियस कहा जाता है | यह देवतायें पवित्र हैं | लाइट भी पवित्रता की दिखाई है | अनराइटियस माना एक भी कदम राइट नहीं | शिवालय से उतर वेश्यालय में आ जाते हैं | यह बातें नया कोई समझ न सके | जब तक तुम उनको बाप का परिचय अच्छी तरह न दो कि वह है हेविनली गॉड फादर | हेविन और हेल दोनों अक्षर हैं | सुख और दुःख, स्वर्ग और नर्क | तुम जानते हो भारत में सुख था, अभी दुःख है, फिर बाप आकर सुख देते हैं | अब दुःख का समय ख़त्म होना है | बाबा बच्चों के लिए सुख की सौगात ले आते हैं | सबको सुख देते हैं तब तो सब उनकी बन्दगी करते हैं | सन्यासी, उदासी भी तपस्या करते हैं, उनको भी कोई न कोई आश ज़रूर रहती है | सतयुग में ऐसी कोई बात नहीं | वहाँ और कोई धर्म वाले होते ही नहीं | तुम तो अब पुरुषार्थ कर रहे हो नई दुनिया में जाने के लिए | जानते हो वह है सुखधाम, वह है शान्तिधाम, यह है दुःखधाम | तुम अभी संगम पर हो, उत्तम पुरुष बनने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो | पुरुषार्थ बहुत अच्छी रीति करना है | पढ़ाई से कभी रूठना नहीं है | कोई से अनबनी होती है तो पढ़ाई नहीं छोड़नी चाहिए | पढ़ाई से लड़ने झगड़ने का तैलुक नहीं है | पढ़ेंगे लिखेंगे होंगे नवाब....लड़ेंगे झगड़ेंगे तो नवाब कैसे बनेंगे, फिर तमोप्रधान चलन हो जाती है |  हर एक को अपनी उन्नति का ख्याल करना चाहिए | बाप कहते हैं हे आत्मायें बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और दैवीगुण भी धारण होंगे | अगर लक्ष्मी-नारायण जैसा बनना है तो बाप ने ही उन्हों को भी ऐसा बनाया | बाप कहते हैं तुम ही यह राज्य करते थे | अब फिर तुमको ही बनना है | राजयोग बाप संगम पर ही सिखाते हैं | तुम कल्प-कल्प यह बनते हो | ऐसे नहीं सदैव कलियुग ही चलता रहेगा | कलियुग के बाद सतयुग....यह चक्र फिरता है ज़रूर | सतयुग में मनुष्य कम थे, अब फिर ज़रूर कम होने चाहिए | यह तो सहज समझने की बातें हैं | बीती हुई कहानी सुनाते हैं | छोटी सी कहानी है | वास्तव में है बड़ी परन्तु समझने में छोटी है | 84 जन्मों का राज़ है | तुमको भी आगे मालूम नहीं था, अब तुम समझते हो हम पढ़ रहे हैं | यह है संगमयुग की पढ़ाई | अब ड्रामा का चक्र फिरकर आया है, फिर सतयुग से लेकर शुरू होगा | इस पुरानी सृष्टि को बदलना है | कलियुगी जंगल का विनाश होगा फिर सतयुगी फूलों का बगीचा होगा | फूल दैवी गुण वाले को कहा जाता है | काँटा आसुरी गुण वाले को कहा जाता है | अपने को देखना है मेरे में कोई अवगुण तो नहीं है | अभी हम देवता बनने लायक बन रहे हैं तो दैवी गुण ज़रूर धारण करना पड़े | बाप टीचर सतगुरु बनकर आते हैं तो कैरेक्टर ज़रूर सुधारना पड़े | मनुष्य कहते हैं सबके कैरेक्टर खराब हैं | लेकिन अच्छा कैरेक्टर किसको कहा जाता – यह भी नहीं जानते | तुम समझा सकते हो इन देवताओं के कैरेक्टर अच्छे थे ना | यह कभी किसको दुःख नहीं देते थे | कोई की चलन अच्छी होती है तो कहते हैं यह तो जैसे देवी है, इनके बोल कितने मीठे हैं | बाप कहते हैं तुमको देवता बनाता हूँ तो तुमको बहुत मीठा बनना पड़े | दैवी गुण धारण करने हैं | जो जैसा है वैसा ही बनायेंगे | तुम सबको टीचर बनना है | टीचर के बच्चे टीचर | तुम पाण्डव सेना हो | पण्डों का काम है सबको रास्ता बताना | दैवी गुण धारण करने हैं | गृहस्थ व्यवहार में भी रहना है | घर में भी सर्विस कर सकते हो | जो आयेंगे टीच करते रहेंगे (पढ़ाते रहेंगे), ऐसे बहुत हैं जो अपने पास गीता पाठशाला खोल बहुतों की सर्विस करते रहते हैं | ऐसे नहीं कि यहाँ आकर बैठना है | कन्याओं के लिए तो बहुत सहज है | मास दो चक्र लगाया फिर गये घर | घर का सन्यास तो नहीं करना है | तुमको घर से बुलावा आता है तो जाते हो, तुमको मना नहीं है | इसमें कोई घाटे की (कमी की) बात नहीं है और भी उमंग आयेगा | हम भी अभी होशियार हुए हैं | घर वालों को भी आप समान बनाकर साथ ले जायेंगे | ऐसे बहुत हैं जो घर में रहकर भी सर्विस करते हैं तो होशियार हो जाते हैं |

 

बाप मुख्य बात समझाते हैं कि अपने को आत्मा समझो और मुझ बाप को याद करो | अपनी उन्नति करनी है | घर में रहने वालों की यहाँ रहने वालों से भी अच्छी उन्नति हो सकती है | तुम को कभी मना नहीं की जाती है कि घर में नहीं जाओ | उन्हों का भी कल्याण करना है | जिनको कल्याण करने की आदत पड़ जाती है वह रह नहीं सकते | ज्ञान और योग है तो कोई भी बेइज्जती नहीं कर सकते | योग नहीं है तो माया भी थप्पड़ लगाती है | तो घर गृहस्थ में रह कमल फूल समान पवित्र ज़रूर बनना है | बाबा तो फ्रीडम देते हैं भल घर में भी रहो | सब यहाँ आकर कैसे रहेंगे | जितने आते हैं उन्हों के लिए उतने मकान आदि बनाने पड़ते हैं | कल्प पहले जो कुछ हुआ है वह रिपीट होता रहेगा | बच्चे भी वृद्धि को पाते रहेंगे | ड्रामा बिगर कुछ होने का नहीं है | यह जो लड़ाइयाँ आदि लगती हैं – इतने मनुष्य आदि मरते हैं, यह सब ड्रामा में नूँध है | जो पास्ट हुआ वह फिर रिपीट होगा | जो कल्प-कल्प समझाया है वही अब भी समझाऊंगा | मनुष्य भल क्या भी विचार करें, मैं तो वही पार्ट बजाऊंगा, जो मेरा नूँधा हुआ है | ड्रामा में कम जास्ती हो नहीं सकता | जो कल्प पहले पढ़े थे, वही पढ़ेंगे | हरेक की चलन से साक्षात्कार भी होता रहता है | यह क्या पढ़ते हैं, क्या पद पाएंगे | अच्छी सर्विस करते हैं, समझो अचानक एक्सीडेंट हो जाता ही तो जाकर अच्छे कुल में जन्म लेंगे | बहुत सुखी रहेंगे | जितना सुख बहुतों को दिया है उतना उनको भी मिलेगा | यह कमाई  कभी जाती नहीं है | सतयुग में तो जहाँ जीत वहाँ जन्म होगा | बहुतों को सुख दिया होगा तो गोल्डन स्पून इन दी माउथ मिलेगा | उससे कम तो सिलवर, उससे कम तो पीतल का मिलेगा | समझ में तो आता है ना | कितना हमारा योग है, राजा, रानी प्रजा सब बनने वाले हैं | अच्छी रीति नहीं पढ़ेंगे, दैवीगुण धारण नहीं करेंगे तो पद कम हो जायेगा | अच्छे वा बुरे कर्म ज़रूर सामने आते हैं | आत्मा को मालूम है हम कहाँ तक सर्विस कर रहे हैं | अगर अब शरीर छूट जाए तो क्या पद पायेंगे! अभी तुम पढ़कर सुधर रहे हो | कोई तो बिगड़ते भी हैं तो कहेंगे इनकी तक़दीर में नहीं है | बाबा तो कितना ऊँच बनाते हैं | सांई के घर से कोई ख़ाली न जाए | अभी सांई तुम्हारे सम्मुख है | कोई को तुम दो अक्षर भी सुनाओ, वह भी प्रजा में आयेंगे ज़रूर | देवी देवता धर्म वाले अब तक आते रहते हैं | परन्तु अब पतित होने कारण अपने को हिन्दू कहलाते हैं | तुम्हारी बुद्धि में यह ज्ञान ऐसे है जैसे बाबा के पास है | बाप ज्ञान का सागर है | बतलाते हैं यह हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे रिपीट होती है | टीचर भी स्टूडेन्ट की पढ़ाई से जान जाते हैं कि यह कितने मार्क्स में पास होंगे | हर एक खुद भी जानते हैं | कोई दैवी गुणों में कच्चे हैं, कोई योग में कच्चे हैं. कोई ज्ञान में कच्चे हैं | कच्चे होने से नापास हो जायेंगे | ऐसे भी नहीं आज कच्चे हैं, कल पक्के नहीं हो सकते | गैलप करते रहेंगे | खुद भी फ़ील करते हैं हम जहाँ तहाँ से फेल हो आते हैं | फ़लाने हमसे होशियार हैं | सीखकर होशियार भी हो सकते हैं | अगर देह-अभिमान होगा तो फिर क्या सीख सकेंगे | मैं आत्मा हूँ यह तो एकदम पक्का कर दो | बाप ने स्मृति दिलाई है | बाप कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे, फिर दैवीगुण धारण होंगे | अपनी नब्ज़ देखनी है कि मैं कहाँ तक लायक बना हूँ?

 

तुम अभी सृष्टि के आदि मध्य अन्त का ज्ञान ले रहे हो | यह राजयोग की नॉलेज सिवाए बाप के कोई सिखला न सके | बच्चे सीखते जाते हैं | बच्चे पूछते हैं हमारे कुल के ब्राह्मण कितने हैं? यह पूरा पता कैसे पड़े | आते जाते रहते हैं | अभी नये-नये भी निकलते रहते हैं | अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1.    अपना दैवी कैरेक्टर बनाना है, दैवी गुण धारण कर अपना और सर्व का कल्याण करना है | सबको सुख देना है |

               

2.    सतोप्रधान बनने के लिए बुद्धि एक बाप से लगानी है | बुद्धि को भटकाना नहीं है | बाप समान टीचर बन सबको सही रास्ता बताना है |

 

वरदान:-  


पवित्रता की गुह्यता को जान सुख-शान्ति सम्पन्न बनने वाली महान आत्मा भव!    

 

पवित्रता के शक्ति की महानता को जान पवित्र अर्थात् पूज्य देव आत्मायें अभी से बनो | ऐसे नहीं कि अन्त में बन जायेंगे | यह बहुत समय की जमा की हुई शक्ति अन्त में काम आयेगी | पवित्र बनना कोई साधारण बात नहीं है | ब्रह्मचारी रहते हैं, पवित्र बन गये हैं.....लेकिन पवित्रता जननी है, चाहे संकल्प से, चाहे वृत्ति से, वायुमण्डल से, वाणी से, सम्पर्क से सुख-शान्ति की जननी बनना – इसको कहते हैं महान आत्मा |


स्लोगन:- 
ऊँची स्थिति में स्थित हो सर्व आत्माओं को रहम की दृष्टि दो, वायब्रेशन फैलाओ |     

 

ओम् शान्ति |