23-02-13 "अव्यक्त बापदादा"
रिवाइज: 28-11-97
“बेहद की सेवा का साधन – रूहानी पर्सनैलिटी द्वारा नज़र से
निहाल करना”
आज
बापदादा अपने अनेक कल्प के मिलन मनाने वाले लाडले, सिकीलधे
बच्चों से फिर मिलन मनाने आये हैं | अव्यक्त मिलन तो सदा मनाते
ही हो लेकिन अव्यक्त से व्यक्त रूप में मिलन मनाने के लिए सभी
बच्चे भारत वा विदेश से फिर से अपने घर पहुँच गये हैं |
बापदादा देख रहे हैं कि चारों ओर बच्चे अपने-अपने स्थान पर भी
मिलन मना रहे हैं | यह मिलन रूहानी अलौकिक मिलन है | इस मिलन
में बापदादा और बच्चों के स्नेह का साकार स्वरूप है |
आज
बापदादा अपने बच्चों की रूहानी पर्सनैलिटी को देख रहे हैं | हर
एक बच्चे की रूहानी पर्सनैलिटी कितनी श्रेष्ठ है | ऐसी रूहानी
पर्सनैलिटी सारे कल्प में और किसी की भी नहीं है क्योंकि आप
सबकी पर्सनैलिटी बनाने वाला ऊँचे ते ऊँचा बाप है | आप भी अपनी
रूहानी पर्सनैलिटी को जानते हैं ना? सबसे बड़े ते बड़ी
पर्सनैलिटी है – स्वप्न वा संकल्प में भी सम्पूर्ण प्यूरिटी
की पर्सनैलिटी | नम्बरवार है लेकिन फिर भी विश्व की सर्व
आत्माओं से श्रेष्ठ है | तो बापदादा हर एक के मस्तक से
पर्सनैलिटी की झलक देख रहे हैं | प्यूरिटी के साथ-साथ सबके
चेहरे और चलन में रूहानियत की भी पर्सनैलिटी है | और
पर्सनैलिटी क्या होती है? जो ख़ज़ानों से सम्पन्न होते हैं, उसकी
भी पर्सनैलिटी होती है लेकिन कितने भी बड़े-बड़े सम्पन्न
आत्मायें हों, आपके आगे वह सम्पन्न आत्मायें भी कुछ नहीं हैं
क्योंकि वह भी अविनाशी सुख-शान्ति के ख़ज़ाने से खाली हैं | आपके
पास जो सम्पत्ति है उसके आगे अरब-ख़रब पति भी बाप से सुख-शान्ति
मांगने वाले हैं और आप सदा अविनाशी ख़ज़ानों से भरपूर हो | वह
ख़ज़ाने आज हैं कल नहीं लेकिन आपका ख़ज़ाना न कोई लूट सकता है, न
कोई आत्मा ख़ज़ाने को हिला सकती है | अखुट है, अखण्ड है | ऐसी
पर्सनैलिटी वाले आप बच्चे हो | सबसे ऊँचे ते ऊँची पर्सनैलिटी
वाले फिर भी आत्माओं द्वारा, विनाशी धन द्वारा, विनाशी
आक्यूपेशन द्वारा पर्सनैलिटीज़ बनती हैं वा कहलाई जाती हैं |
लेकिन आपको ऊँचे ते ऊँचे परम आत्मा ने श्रेष्ठ पर्सनैलिटी वाले
बना दिया | तो अपने ऊँची पर्सनैलिटी का रूहानी नशा रहता है?
रहता है तो हाथ हिलाओ |
बापदादा को इतने श्रेष्ठ पर्सनैलिटी वाले बच्चे देख कितनी ख़ुशी
होती है | आपको भी होती है? बापदादा बच्चों की ऐसी श्रेष्ठता
देख क्या गीत गाते हैं, जानते हो? आप भी गाते हैं, बाप भी गाते
हैं | बाप का गीत सुनाई देता है | या टेप का गीत सुनाई देता
है? बापदादा की टेप न्यारी होगी ना, आटोमेटिक है | चलाने की
मेहनत नहीं करनी पड़ती | और दिल का गीत दिल वाले ही सुन सकते
हैं | सिर्फ़ कान वाले नहीं, दिल वाले | तो सभी दिल वाले हो ना?
दिलवाला मन्दिर में आपका चित्र है ना? सभी ने अपना चित्र देखा
है? बापदादा तो सदा बच्चों के चित्र और चरित्र देखते रहते हैं
| तो आज पर्सनैलिटी को देख रहे थे | सदा यह पर्सनैलिटी स्मृति
में इमर्ज रहे | है ही, नहीं | है, दिखाई देवे | अनुभव में आये
| सदा ऐसी पर्सनैलिटी में रहने वाले की निशानी क्या होगी? जिस
निशानी से समझ जाएं कि यह अपने पर्सनैलिटी में है? अगर यह
रूहानी पर्सनैलिटी इमर्ज रूप में रहती है तो उनके नयन, उनका
चेहरा, चलन, संकल्प और
सम्बन्ध सब प्रसन्नता वाले होंगे |
सदा प्रसन्नचित, प्रश्न चित नहीं, प्रसन्नचित | अगर प्रश्न चित
है तो चलन भी पर्सनैलिटी वाली नहीं | चेहरे पर भी प्रसन्नता की
झलक नहीं | कुछ भी हो जाए, पर्सनैलिटी वाले की प्रसन्नता
छिप नहीं सकती | मर्ज नहीं हो सकती | प्रसन्नचित आत्मा;
कोई कैसी भी आत्मा परेशान हो, अशान्त हो उसको अपने प्रसन्नता
की नज़र से प्रसन्न कर देगी | जो बाप का गायन है “नज़र से निहाल
करने वाले”, वह सिर्फ़ बाप का नहीं है आपका भी यही गायन है | और
अभी समय प्रमाण जितना समय समीप आ रहा है तो नज़र से निहाल करने
की सेवा करने का समय आयेगा | सात दिन का कोर्स नहीं होगा, एक
नज़र से प्रसन्नचित हो जायेंगे | दिल की आश आप द्वारा पूर्ण हो
जायेगी | तो सभी क्या समझते हो? आदि सेवा के रत्न क्या समझते
हैं? ऐसी सेवा कर सकते हो ना?
अभी
देखो आप लोगों ने 40 वर्ष सेवा की या ज़्यादा भी की, कोई का एक
दो साल कम भी होगा, किसका ज़्यादा भी होगा | अभी आप लोगों ने
अपने साथियों को यह सेवा सिखा दी और निमित्त भी बना दिया | अभी
आप क्या करेंगे? वो सेवा तो वह भी कर रहे हैं | आप आदि रत्न हो
तो न्यारी और प्यारी सेवा करेंगे ना? अभी फिर उत्सव मनायेंगे
कि नज़र से निहाल कितने किये | 9 लाख में से कितने बनाये? आगे
तो 33 करोड़ भी हैं, 9 लाख तो उसके आगे कुछ नहीं हैं | बीज तो
यहाँ ही डालना है ना? तो देखेंगे कि आदि सेवा के रत्न अब और
क्या कमाल दिखाते हैं | यह कमाल तो दिखाई, सेवाकेन्द्र बनाये,
अच्छे-अच्छे प्रोग्राम किये, उसकी तो पदमगुणा मुबारक है | दो
प्रकार के बच्चे हैं जो पहले वाले हैं वह हैं स्थापना के
निमित्त बच्चे और आप लोग हो विशेष सेवा के आदि के बच्चे | यह
(दादियाँ) हैं जड़ स्थापना वाले और आप सब (सेवा के आदि रत्न)
हैं पहला-पहला तना | तो तना तो मज़बूत होता है ना | तना पर ही
सब आधार होता है | तना से ही सब शाखायें निकलती हैं | जड़ वाले
तो सूक्ष्म में शक्ति देते हैं लेकिन जो प्रैक्टिकल में होता
है, दिखाई देता है, वह तना दिखाई देता है | तो दादियाँ अभी
गुप्त हो गई हैं, सकाश देने वाली और प्रैक्टिकल में स्टेज पर
आने वाले आप निमित्त बनें, (सम्मान समारोह में आई हुई सभी बड़ी
बहिनों से बापदादा ने हाथ उठवाया) इसीलिए बापदादा काम दे रहे
हैं | समारोह तो बहुत अच्छा मनाया ना | बापदादा ने सब देखा |
सजी हुई मूर्तियों को देखा | उस समय तो आप लोगों को भी यही
रूहानी अनुभव हो रहा था कि हम चैतन्य मूर्तियाँ हैं | ऐसे ही
लग रहा था जैसे सजी हुई मूर्तियाँ मन्दिरों से शान्तिवन में
पहुँच गई हैं | तो बापदादा अभी बच्चों से चाहते हैं कि अभी
फ़ास्ट सेवा शुरू करो | जो हुआ वह बहुत अच्छा | अब समय प्रमाण
औरों को ज़्यादा वाणी की चान्स दो | अभी औरों को माइक बनाओ, आप
माईट बनके सकाश दो | तो आपकी सकाश और उन्हों की वाणी, यह डबल
काम करेगी | तब ही 9 लाख सहज बन जायेंगे | अभी आप सभी चाहे
फंक्शन में बैठे या और भी महारथी हैं तो महारथियों की अभी
सेवा है – सर्व को सकाश देना | बेहद की सेवा के मैदान में
आना | जब बाप अव्यक्त वतन, एक स्थान पर बैठे चारों ओर के विश्व
के बच्चों की पालना कर सकते हैं, कर रहे हैं तो क्या आप एक
स्थान पर बैठे बाप समान बेहद की सेवा नहीं कर सकते हो? आदि
रत्न अर्थात् फ़ालो फादर | बेहद में सकाश दो | कई बच्चे अपने से
भी पूछते हैं और आपस में भी पूछते हैं कि बेहद का वैराग्य कैसे
आयेगा? दिखाई तो देता नहीं है, लेकिन बेहद की सेवा में अपने
को बिज़ी रखो तो बेहद का वैराग्य स्वतः ही आयेगा क्योंकि यह
सकाश देने की सेवा निरन्तर कर सकते हो, इसमें तबियत की बात,
समय की बात – यह सहज हो जाती है | दिन रात इस बेहद की सेवा में
लग सकते हो | जैसे ब्रह्मा बाप को देखा रात को भी कैसे आँख
खुली और बेहद की सकाश देने की सेवा होती रही | यह करें, यह
करें – यह प्लैन तो बनाते हो, लेकिन बिज़ी बेहद की सेवा में
रहना – यह सबसे सहज साधन है क्योंकि जब बेहद को सकाश देंगे तो
नज़दीक वाले तो ऑटोमेटिक सकाश लेते रहेंगे | इस बेहद की सकाश
देने से वायुमण्डल ऑटोमेटिक बनेगा | अभी यह नहीं सोचो कि इतने
सेन्टर के ज़िम्मेवार हैं वा ज़ोन के ज़िम्मेवार हैं! आप सभी को
स्टेट के राजा बनना है या विश्व का? क्या बनना है? विश्व का
ना? आदि रत्न हो तो विश्व को सकाश देने वाले बनो | अगर 20
सेन्टर, 30 सेन्टर या दो अढ़ाई सौ सेन्टर या ज़ोन, यह बुद्धि में
रहेगा तो यह भी तना का काम नहीं है | यह तो टाल टालियां भी कर
सकती हैं | आप तो तना हो | तना से सबको सकाश पहुँचती है | आप
सभी भी यह सोचते हो कि बेहद का वैराग्य आना चाहिए, यह तो बहुत
अच्छा | अभी विनाश हो जाए | लेकिन 9 लाख भी तैयार नहीं किये,
तो सतयुग के आदि में आने वाली संख्या ही तैयार नहीं है और
विनाश हो गया तो कौन आयेगा? क्या 2-3 हज़ार पर राज्य करेंगे?
4-5 लाख पर राज्य करेंगे? इसलिए अब बेहद की सेवा का पार्ट
आरम्भ करो | पाण्डव क्या समझते हैं? बेहद की सेवा करेंगे ना?
पाण्डव तैयार हैं? अभी यह हद की बातें बेहद में जाने से आपेही
छूट जायेंगी | छुड़ाने से नहीं छूटेंगी | बेहद की सकाश से
परिवर्तन होना फ़ास्ट सेवा का रिज़ल्ट है |
बापदादा जानते हैं कि नाज़ुक परिस्थितियों में निमित्त बनी
आत्माओं ने सेवा का प्रत्यक्ष प्रमाण दिया है | लेकिन आप सभी
का फाउण्डेशन वा सेकेण्ड का परिवर्तन का मूल अनुभव यही है कि
ब्रह्मा बाप को देखा और ब्राह्मण बन गये | सेवा का वरदान मिला
और सेवा में लग गये | बापदादा ने सभी के अनुभव भी सुने | अच्छे
अनुभव सुनाये | तो जैसे आप लोगों का अनुभव है, ब्रह्मा बाप को
देखा और सोचना भी नहीं पड़ा | सहन करने का भी अनुभव नहीं हुआ कि
सहन कर रहे हैं | बड़ी बात नहीं लगी | ऐसे अभी हर श्रेष्ठ
ब्राह्मण आत्मा को देखें और आत्मा में (ब्राह्मण में) ब्रह्मा
बाप देखें | यह है सेवा का फ़ास्ट साधन, क्या ब्रह्मा बाप ने
आपको कोर्स कराया? कोर्स तो पीछे किया | लेकिन देखा और हो गये
| तो जैसे ब्रह्मा बाप में बाप समाया हुआ था इसीलिए मेहनत नहीं
लगी | ऐसे आप सभी भी बापदादा को अपने में समाते हुए नज़र से
निहाल करो | जो आप सबका अनुभव है, अनुभवी हो | देखा और फ़िदा हो
गये | जैसे अभी सोचते हैं, ट्रेनिंग लेते हैं फिर ट्रायल पर
आते हैं, फिर कोई चला जाता है कोई रहता है | इतनी मेहनत आपने
ली? ट्रेनिंग की क्या? ट्रायल पर रहे क्या? बस आये और खो गये |
ऐसी सेवा जब एक ब्रह्मा बाप ने की तो आप इतने ब्राह्मण
आत्मायें नहीं कर सकती हो क्या? आपकी पर्सनैलिटी अपना बना दे |
ब्रह्मा बाप की भी पर्सनैलिटी थी ना | चाहे सूरत की, चाहे सीरत
की लेकिन पर्सनैलिटी थी तब आकर्षित हुए | तो फ़ालो फादर | जब
बाप ने आपको आदि में निमित्त बनाया तो जो आदि के हैं, सेवा के
निमित्त वा स्थापना के फाउण्डेशन उनको अन्त तक सेवा में रहना
ही है | तबियत के कारण शरीर से चक्कर नहीं लगा सकते लेकिन मन
से तो लगा सकते हो? उसमें तो खर्चा भी नहीं, बीजा लेने की भी
जरूरत नहीं | भाग दौड़ की भी ज़रूरत नहीं | लेटे-लेटे भी कर सकते
हो | क्या समझते हो? अब ऐसा कोई प्लैन बनाओ | नया पाठ शुरू करो
| अभी एक फ़ंक्शन तो मना लिया ना | जो सेवा की उसका प्रत्यक्ष
फल मिल गया | अभी नई सेवा करो | अच्छा |
सभी
दूर-दूर से प्यार से आये हैं | बापदादा विदेश को भी देख रहा है
| भिन्न टाइम होते भी बहुत प्यार से समय देकर सुन रहे हैं |
(विदेश में 200 स्थानों पर सैटेलाईट द्वारा मुरली सुन रहे हैं)
देखो यह भी फ़ास्ट गति है ना | यहाँ का आवाज़ विदेश में 200
स्थान पर पहुँच रहा है, यह भी आवाज़ की गति फ़ास्ट है ना | यह भी
इनवेन्शन है ना | तो आप साइलेन्स के पॉवर की गति फ़ास्ट नहीं कर
सकते हो? साइन्स ने भारत का आवाज़ विदेश तक पहुँचाया और आप अपने
दिल की शुभ भावनायें आत्माओं को नहीं पहुँचा सकते हो! पहुँचा
सकते हैं ना? नहीं तो साइन्स आगे चली जायेगी, साइलेन्स की पॉवर
थोड़ा कम दिखाई देगी | इसलिए साइलेन्स की शक्ति को प्रत्यक्ष
करो | सभी में है | एक ब्राह्मण भी नहीं है जो कहे कि मेरे में
साइलेन्स की शक्ति नहीं है | सभी में है, कितने ब्राह्मण हैं?
इतने ब्राह्मणों की सकाश क्या नहीं कर सकती? सभी में साइलेन्स
की शक्ति है? तो अभी एक मिनट में सभी अपने साइलेन्स की शक्ति
इमर्ज करो | एकदम साइलेन्स मन से, तन से इमर्ज करो | (बापदादा
ने डेड साइलेन्स की ड्रिल करवाई)
अच्छा | चारों ओर के सर्व विशेष आत्माओं को सदा रूहानी
पर्सनैलिटी के नशे में रहने वाली आत्माओं को, सदा बेहद की सेवा
में स्वयं को बिज़ी रखने वाली निमित्त विश्व कल्याणकारी आत्माओं
को, सदा ब्रह्मा बाप और जगदम्बा का स्लोगन साकार में लाने
वाली, ऊँच ते ऊँच नज़र से निहाल करने की सेवा में सदा रहने वाली
बाप समान आत्माओं को बापदादा और जगदम्बा माँ का यादप्यार और
नमस्ते |
वरदान:-
सदा
सन्तुष्ट रह अपनी दृष्टि, वृत्ति, कृति द्वारा सन्तुष्टता की
अनुभूति कराने वाले सन्तुष्टमणि भव
! 
ब्राह्मण कुल में विशेष आत्मायें वो हैं जो सदा सन्तुष्टता की
विशेषता द्वारा स्वयं भी सन्तुष्ट रहती हैं और अपनी दृष्टि,
वृत्ति और कृति द्वारा औरों को भी सन्तुष्टता की अनुभूति कराती
हैं, वही सन्तुष्टमणियाँ हैं जो सदा संकल्प, बोल, संगठन के
सम्बन्ध-सम्पर्क वा कर्म में बापदादा द्वारा अपने ऊपर
सन्तुष्टता के गोल्डन पुष्पों की वर्षा अनुभव करती हैं | ऐसी
सन्तुष्ट मणियाँ ही बापदादा के गले का हार बनती हैं, राज्य
अधिकारी बनती हैं और भक्तों के सिमरण की माला बनती हैं |
स्लोगन:-
निगेटिव
और वेस्ट को समाप्त कर मेहनत मुक्त बनो
|
ओम्
शान्ति
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