30-06-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे –
याद
और पढ़ाई से ही डबल ताज मिलेगा,
इसलिए अपनी एम ऑबजेक्ट को सामने रख दैवीगुण धारण करो" 
प्रश्न:-
विश्व रचयिता बाप तुम बच्चों की कौन-सी
खिदमत (सेवा)
करते हैं?
उत्तर:-
1.
बच्चों को बेहद का वर्सा दे सुखी बनाना,
यह खिदमत है । बाप जैसी निष्काम सेवा कोई
कर नहीं सकता । 2. बेहद का बाप
किराये पर तख्त लेकर तुम्हें विश्व का तख्त नशीन बना देते हैं
। खुद ताउसी तख्त पर
नहीं
बैठते लेकिन
बच्चों
को
ताउसी तख्त पर बिठाते हैं । बाप के तो जड़ मन्दिर बनाते,
उसमें उन्हें क्या टेस्ट आयेगा । मजा तो
बच्चों
को
है जो स्वर्ग का राज्य-
भाग्य लेते हैं ।
ओम् शान्ति
|
मीठे-मीठे
रुहानी बच्चों को बाप कहते हैं कि अपने को आत्मा समझ बाप को
याद करो । ओम् शान्ति का अर्थ तो
बच्चों
को समझाया है । बाप भी बोलते हैं,
तो बच्चे भी बोलते हैं ओम् शान्ति
क्योंकि
आत्मा का स्वधर्म है शान्त । तुम अब जान गये हो कि हम
शान्तिधाम से यहाँ आते हैं पहले-पहले
सुखधाम
में,
फिर 84
पुनर्जन्म लेते-लेते
दु:खधाम में आते
हैं । यह तो याद है ना । बच्चे 84
जन्म लेते, जीव आत्मा बनते हैं ।
बाप जीव आत्मा नहीं बनते हैं । कहते हैं
मैं
टेम्पेरी इनका आधार लेता हूँ ।
नहीं
तो पढ़ायेंगे कैसे?
बच्चों
को घड़ी-घड़ी
कैसे कहेंगे कि मनमनाभव, अपनी
राजाई
को याद करो?
इसको कहा जाता है सेकण्ड
में
विश्व की
राजाई
।
बेहद का बाप है ना तो जरूर बेहद की खुशी,
बेहद का वर्सा ही देंगे । बाप बहुत सहज
रास्ता बताते हैं । कहते हैं अब इस दु:खधाम
को बुद्धि से निकाल दो । जो नई दुनिया स्वर्ग स्थापन कर रहे
हैं, उनका मालिक बनने लिए मुझे याद
करो तो तुम्हारे पाप कट जायें । तुम फिर से सतोप्रधान बन
जायेंगे, इसको कहा जाता है सहज याद
। जैसे बच्चे लौकिक बाप को कितना सहज याद करते हैं,
वैसे तुम
बच्चों
को बेहद के बाप को याद करना है । बाप ही दु:ख
से निकाल सुखधाम में ले जाते हैं । वहाँ दु:ख
का नाम-निशान नहीं । बहुत सहज बात
कहते हैं- अपने शान्तिधाम को याद
करो, जो बाप का घर वह तुम्हारा घर
है और नई दुनिया को याद करो, वह
तुम्हारी राजधानी है । बाप तुम
बच्चों
की कितनी निष्काम सेवा करते हैं । तुम
बच्चों
को सुखी कर फिर वानप्रस्थ,
परमधाम में बैठ जाते हैं । तुम भी परमधाम
के वासी हो । उसको निर्वाणधाम,
वानप्रस्थ भी कहा जाता है । बाप आते हैं
बच्चों
की खिदमत करने अर्थात् वर्सा देने । यह खुद भी बाप से वर्सा
लेते हैं । शिवबाबा तो है ऊँच ते ऊंच भगवान्,
शिव के मन्दिर भी हैं । उनका कोई बाप वा
टीचर नहीं है । सारे सृष्टि के आदि,
मध्य, अन्त का ज्ञान उनके पास है ।
कहाँ से आया? क्या कोई वेद-शास्त्र
आदि पढ़े?
नहीं
।
बाप तो है ज्ञान का सागर,
सुख शान्ति का सागर । बाप की महिमा और
दैवीगुणों वाले मनुष्यों की महिमा में फर्क है । तुम दैवीगुण
धारण कर यह देवता बनते हो । पहले आसुरी गुण थे । असुर से देवता
बनाना, यह तो बाप का ही काम है । एम-
ऑबजेक्ट भी तुम्हारे सामने है । जरूर ऐसे
श्रेष्ठ कर्म किये होंगे । कर्म-
अकर्म-विकर्म की गति अथवा हर बात
समझाने में एक सेकण्ड लगता है ।
बाप कहते हैं मीठे-मीठे
बच्चों को पार्ट बजाना ही है । यह पार्ट तुमको अनादि,
अविनाशी मिला हुआ है । तुम कितना वारी सुख-दु:ख
के खेल में आये हो । कितना बार तुम विश्व के मालिक बने हो ।
बाप कितना ऊंच बनाते हैं । परमात्मा जो सुप्रीम सोल है,
वह भी इतना छोटा है । वह बाप ज्ञान का सागर
है । तो आत्माओं को भी आपसमान बनाते हैं । तुम प्रेम के सागर,
सुख के सागर बनते हो । देवताओं का आपस
में
कितना प्रेम है । कभी झगड़ा
नहीं
होता । तो बाप आकर
तुम्हें
आपसमान बनाते हैं । और कोई ऐसा बना न सके । खेल स्थूलवतन में
होता है । पहले आदि सनातन देवी-देवता
धर्म फिर इस्लामी, बौद्धी आदि
नम्बरवार इस माण्डवे में वा नाटकशाला में आते हैं । 84
जन्म तुम लेते हो । गायन भी है आत्मायें
परमात्मा अलग रहे....... । बाप कहते
हैं मीठे-मीठे
बच्चों,
पहले-पहले विश्व
में पार्ट बजाने तुम आये हो ।
मैं
तो थोड़े समय के लिए इनमें
प्रवेश करता हूँ । यह तो पुरानी जुत्ती है । पुरुष की एक
स्त्री मर जाती है तो कहते हैं पुरानी जुत्ती गई,
अब फिर नई लेते हैं । यह भी पुराना तन है
ना । 84 जन्मों का चक्र लगाया है ।
ततत्वम, तो
मैं
आकर इस रथ का आधार लेता हूँ । पावन दुनिया में तो कभी मैं आता
ही नहीं हूँ । तुम पतित हो,
मुझे बुलाते हो कि आकर पावन बनाओ । आखरीन
तुम्हारी याद फलीभूत होगी ना । जब पुरानी दुनिया खत्म होने का
समय होता है, तब मैं आता हूँ ।
ब्रह्मा द्वारा स्थापना । ब्रह्मा द्वारा अर्थात् ब्राह्मणों
द्वारा । पहले चोटी ब्राह्मण, फिर
क्षत्रिय तो ........बाजोली खेलते हो । अब देह-
अभिमान छोड देही-
अभिमानी बनना है । तुम 84
जन्म लेते हो । मैं तो एक ही बार सिर्फ इस
तन का लोन लेता हूँ । किराये पर लेता हूँ । हम इस मकान के
मालिक
नहीं
हैं । इनको तो फिर भी हम छोड़ देंगे । किराया तो देना पड़ता है
ना । बाप भी कहते हैं,
मैं
मकान का किराया देता हूँ । बेहद का बाप है,
कुछ तो किराया देते होंगे ना । यह तख्त
लेते हैं, तुमको समझाने लिए । ऐसा
समझाते हैं जो तुम भी विश्व के तख्तनशीन बन जाते हो । खुद कहते
हैं,
मैं
नहीं
बनता हूँ । तख्तनशीन अर्थात् ताउसीतख्त पर बिठाते हैं ।
शिवबाबा की याद
में
ही सोमनाथ का मन्दिर बनाया है । बाप कहते हैं इससे मुझे क्या
टेस्ट आयेगी । जड़ पुतला रख देते हैं । मजा तो तुम
बच्चों
को स्वर्ग
में
है ।
मैं
तो स्वर्ग
में
आता ही
नहीं
हूँ । फिर भक्ति मार्ग जब शुरू होता है तो यह मन्दिर आदि बनाने
में
कितना खर्चा किया । फिर भी चोर लूट ले गये । रावण के राज्य
में
तुम्हारा धन-दौलत
आदि सब खलास हो जाता है । अभी वह ताउसी तख्त है?
बाप कहते हैं जो हमारा मन्दिर बनाया हुआ था,
वह मुहम्मद गजनवी आकर लूट ले गये । भारत
जैसा सालवेन्ट और कोई देश
नहीं
।
इन जैसा तीर्थ और कोई बन
नहीं
सकता । परन्तु आज तो हिन्दू धर्म के अनेक तीर्थ हो पड़े है ।
वास्तव
में
बाप जो सर्व की सद्गति करते हैं
,
तीर्थ तो उनका होना चाहिए । यह भी ड्रामा
बना हुआ है । समझने
में
बहुत सहज है । परन्तु नम्बरवार ही समझते हैं
क्योंकि
राजधानी स्थापन हो रही है । स्वर्ग के मालिक यह लक्ष्मी-
नारायण है । यह है उत्तम से उत्तम पुरुष
जिनको फिर देवता कहा जाता है । दैवी गुण वाले को देवता कहा
जाता है । यह ऊँच देवता धर्म वाले प्रवृत्ति मार्ग के थे । उस
समय तुम्हारा ही प्रवृत्ति मार्ग रहता है । बाप ने तुमको डबल
ताजधारी बनाया । रावण ने फिर
दोनों
ही ताज उतार दिये । अब तो नो ताज,
न पवित्रता का ताज,
न धन का ताज,
दोनों
रावण ने उतार दिये हैं । फिर बाप आकर तुमको
दोनों
ताज देते हैं-
इस याद और पढ़ाई से इसलिए गाते हैं -
ओ गॉड फादर हमारा गाइड बनो, लिबरेट
भी करो । तब तुम्हारा नाम भी पण्डा रखा हुआ है । पाण्डव,
कौरव, यादव क्या
करत भये । कहते हैं बाबा हमको दुःख के राज्य से छुड़ाकर साथ ले
जाओ । बाप ही सचखण्ड की स्थापना करते हैं,
जिसको स्वर्ग कहा जाता है । फिर रावण झूठ
खण्ड बनाते हैं । वह कहते कृष्ण भगवानुवाच । बाप कहते हैं शिव
भगवानुवाच । भारतवासियों ने नाम बदल लिया तो सारी दुनिया ने
बदल लिया । कृष्ण तो देहधारी है,
विदेही तो एक शिवबाबा है । अभी बाप द्वारा तुम
बच्चों
को माइट मिलती है । सारे विश्व के तुम मालिक बनते हो । सारा
आसमान,
धरती तुमको मिल जाती है । कोई की ताकत
नहीं
जो तुमसे छीन सके,
पौना कल्प । उन्हों की तो जब वृद्धि होकर
करोड़ो की अन्दाज
में
हो तब लश्कर ले आकर तुमको जीते । बाप
बच्चों
को कितना सुख देते हैं । उनका गायन ही है दुःख-हर्ता,
सुखकर्ता । इस समय बाप तुमको कर्म-
अकर्म- विकर्म
की गति बैठ समझाते हैं । रावण राज्य
में
कर्म विकर्म बन जाते हैं । सतयुग
में
कर्म अकर्म हो जाते हैं । अभी तुमको एक सतगुरू मिला है,
जिसको पतियों का पति कहते हैं
क्योंकि
वह पति लोग भी सब उसको याद करते हैं । तो बाप समझाते हैं यह
कितना वन्डरफुल ड्रामा है । इतनी छोटी-सी
आत्मा
में
अविनाशी पार्ट भरा हुआ है,
जो कभी मिटने वाला
नहीं
है । इनको अनादि-
अविनाशी ड्रामा कहा जाता है । गॉड इज वन ।
रचना अथवा सीढ़ी और चक्र सब एक ही है । न कोई रचता को,
न रचना को जानते । ऋषि-मुनि
भी कह देते हम
नहीं
जानते । अभी तुम संगम पर बैठे हो,
तुम्हारी माया के साथ युद्ध है । वह छोडती
नहीं
है । बच्चे कहते हैं-बाबा,
माया का थप्पड़ लग गया । बाबा कहते हैं-बच्चे,
की कमाई चट कर दी!
तुम्हें
भगवान पढ़ाते हैं तो अच्छी रीति पढ़ना चाहिए । ऐसी पढ़ाई तो फिर
5 हजार वर्ष बाद मिलेगी । अच्छा!
मीठे-मीठे
सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता
बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग
। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों
को नमस्ते ।
धारणा
के लिए मुख्य सार:-
1)
इस दुःखधाम से बुद्धियोग निकाल नई दुनिया
स्थापन करने वाले बाप को याद करना है,
सतोप्रधान बनना है ।
2)
बाप समान प्रेम का सागर,
शान्ति और सुख का सागर बनना है । कर्म,
अकर्म और विकर्म की गति को जान सदा श्रेष्ठ
कर्म करने हैं ।
मातेश्वरी जी के मधुर महावाक्य
“जीवन
की आश पूर्ण होने का सुहावना समय”
हम सभी आत्माओं की बहुत समय से यह आश थी कि जीवन
में
सदा सुख शान्ति मिले,
अब बहुत जन्म की आशा कब तो पूर्ण होगी । अब
यह है हमारा अन्तिम जन्म, उस अन्त
के जन्म की भी अन्त है । ऐसा कोई
नहीं
समझे
मैं
तो अभी छोटा हूँ,
छोटे बड़े को सुख तो चाहिए ना,
परन्तु दु:ख
किस चीज से मिलता है उसका भी पहले ज्ञान चाहिए । अब तुमको
नॉलेज मिली है कि इन पाँच विकारों
में
फंसने कारण यह जो कर्मबन्धन बना हुआ है,
उनको परमात्मा की याद अग्नि से भस्म करना
है, यह है कर्मबन्धन से छूटने का
सहज उपाय । इस सर्वशक्तिवान बाबा को चलते फिरते श्वासों श्वास
याद करो । अब यह उपाय बताने की सहायता खुद परमात्मा आकर करता
है, परन्तु इसमें
पुरुषार्थ तो हर एक आत्मा को करना है । परमात्मा तो बाप,
टीचर, गुरु रूप
में
आए हमें
वर्सा देते है । तो पहले उस बाप का हो जाना है,
फिर टीचर से पढ़ना है जिस पढ़ाई से भविष्य
जन्म-जन्मान्तर सुख की प्रालब्ध
बनेगी अर्थात् जीवनमुक्ति पद
में
पुरुषार्थ अनुसार मर्तबा मिलता है । और गुरु रूप
में
पवित्र बनाए मुक्ति देता है,
तो इस राज को समझ ऐसा पुरुषार्थ करना है ।
यही टाइम है पुराना खाता खत्म कर नई जीवन बनाने का,
इसी समय जितना पुरुषार्थ कर अपनी आत्मा को
पवित्र बनायेंगे उतना ही शुद्ध रिकार्ड भरेंगे फिर सारा कल्प
चलेगा, तो सारे कल्प का मदार इस समय
की कमाई पर है । देखो, इस समय ही
तुम्हें
आदि-मध्य-
अन्त का ज्ञान मिलता है,
हमको सो देवता बनना है और अपनी चढ़ती कला है
फिर वहाँ जाके प्रालब्ध भोगेंगे । वहाँ देवताओं को बाद का पता
नहीं
पड़ता कि हम गिरेंगे,
अगर यह पता होता कि सुख भोगना फिर गिरना है
तो गिरने की चिंता
में
सुख भी भोग
नहीं
सकेंगे । तो यह ईश्वरीय कायदा रचा हुआ है कि मनुष्य सदा चढ़ने
का पुरुषार्थ करता है अर्थात् सुख के लिये कमाई करता है ।
परन्तु ड्रामा
में
आधा-
आधा पार्ट बना पड़ा है जिस राज को हम जानते
हैं, परन्तु जिस समय सुख की बारी है
तो पुरुषार्थ कर सुख लेना है, यह है
पुरुषार्थ की खूबी । एक्टर का काम है एक्ट करने समय सम्पूर्ण
खूबी से पार्ट बजाना, जो देखने वाले
हेयर हेयर (वाह वाह)
करें, इसलिए
हीरो हीरोइन का पार्ट देवताओं को मिला है जिन्हों का यादगार
चित्र गाया और पूजा जाता है । निर्विकारी प्रवृत्ति
में
रह कमल फूल अवस्था बनाना,
यही देवताओं की खूबी है । इस खूबी को भूलने
से ही भारत की ऐसी दुर्दशा हुई है,
अब फिर से ऐसी जीवन बनाने वाला खुद परमात्मा आया हुआ है,
अब उनका हाथ पकड़ने से जीवन नईया पार होगी ।
वरदान:-
दिल और दिमाग दोनों के बैलेंस से सेवा करने वाले सदा
सफलतामूर्त भव
!
कई बार बच्चे सेवा
में
सिर्फ दिमाग यूज करते हैं लेकिन दिल और दिमाग
दोनों
को मिलाकर सेवा करो तो सेवा
में
सफलतामूर्त बन जायेंगे । जो सिर्फ दिमाग से करते हैं उन्हें
दिमाग
में
थोड़ा टाइम बाप की याद रहती है कि हाँ बाबा ही कराने वाला है
लेकिन कुछ समय के बाद फिर वो ही
मैं-पन
आ जायेगा । और जो दिल से करते हैं उनके दिल
में
बाबा की याद सदा रहती है । फल मिलता ही है दिल से सेवा करने का
। और यदि
दोनों
का बैलेन्स है तो सदा सफलता है ।
स्लोगन:-
बेहद
में
रहो तो हद की बातें स्वतः समाप्त हो जायेगी । 
ओम्
शान्ति