25-06-14           प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे बाप उस रथ में आते हैं, जिसने पहले-पहले भक्ति शुरू की, जो नम्बरवन पूज्य था फिर पुजारी बना है, यह राज़ सबको स्पष्ट करके सुनाओ”   

                                                        
प्रश्न:-   
बाप अपने वारिस बच्चों को कौन-सा वर्सा देने आये हैं?


उत्तर:-
बाप सुख, शान्ति, प्रेम का सागर है | यही सारा ख़ज़ाना वह तुम्हें विल करते हैं | ऐसा विल कर देते जो 21 जन्म तक तुम खाते रहो, खुट नहीं सकता | तुम्हें कौड़ी से हीरे जैसा बना देते हैं | तुम बाप का सारा ख़ज़ाना योगबल से लेते हो | योग के बिना ख़ज़ाना नहीं मिल सकता है |

 

ओम् शान्ति |

शिव भगवानुवाच | अब शिव भगवान् निराकार को तो सभी मानते हैं | एक ही निराकार शिव है, जिसकी सब पूजा करते हैं | बाकी जो भी देहधारी हैं उनका साकार रूप है | पहले-पहले निराकार आत्मा थी फिर साकार बनी है | साकार बनती है, शरीर में प्रवेश करती है तब उनका पार्ट चलता है | मूलवतन में तो कोई पार्ट है नहीं | जैसे एक्टर्स घर में हैं तो नाटक का पार्ट नहीं | स्टेज पर आने से पार्ट बजाते हैं | आत्मायें भी यहाँ आकर शरीर द्वारा पार्ट बजाती हैं | पार्ट पर ही सारा मदार है | आत्मा में तो कोई फ़र्क नहीं है | जैसे तुम बच्चों की आत्मा है, वैसे इनकी आत्मा है | बाप परम आत्मा क्या करते हैं? उनका आक्यूपेशन क्या है, वो जानना है | कोई प्रेजीडेन्ट है, राजा है, यह आत्मा का आक्यूपेशन है ना | यह पवित्र देवतायें हैं, इसलिए इनको पूजा जाता है | अभी तुम समझते हो यह पढ़ाई पढ़कर लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक बने हैं | किसने बनाया? परम आत्मा ने | तुम आत्मायें भी पढ़ाती हो | बड़ाई यह है जो बाप आकर तुम बच्चों को पढ़ाते हैं और राजयोग भी सिखलाते हैं | कितना सहज है | इसको कहा जाता है राजयोग | बाप को याद करने से हम सतोप्रधान बन जाते हैं | बाप तो है ही सतोप्रधान | उनकी कितनी महिमा गाते हैं | भक्ति मार्ग में कितना फल, दूध आदि चढ़ाते हैं | समझ कुछ नहीं | देवताओं को पूजते हैं, शिव पर दूध, फल आदि चढ़ाते हैं, कुछ पता नहीं | देवताओं ने राज्य किया | अच्छा, शिव पर क्यों चढ़ाते? उसने क्या कर्तव्य किया है जो इतना पूजते हो? देवताओं का तो फिर भी मालूम है, वह हैं स्वर्ग के मालिक | उन्हों को किसने बनाया, यह भी पता नहीं | पूजा भी करते हैं शिव की परन्तु ख्याल में नहीं कि यह भगवान् है | भगवान् ने इन्हों को ऐसा बनाया है | कितनी भक्ति करते हैं | हैं सब अनजान | तुमने भी शिव की पूजा की होगी, अभी तुम समझते हो, आगे कुछ भी नहीं जानते थे | उनका आक्यूपेशन क्या है, क्या सुख देते हैं, कुछ भी पता नहीं था | क्या यह देवतायें सुख देते हैं? भल राजा-रानी, प्रजा को सुख देते हैं परन्तु उन्हों को तो शिवबाबा ने ऐसा बनाया ना | बलिहारी उनकी है | यह तो सिर्फ़ राजाई करते हैं, प्रजा भी बन जाती है | बाकी यह कोई का कल्याण नहीं करते हैं | अगर करते भी हैं तो अल्पकाल के लिए | अभी तुम बच्चों को बाप बाप बैठ पढ़ाते हैं | उनको कहा जाता है कल्याणकारी | बाप अपना परिचय देते हैं, मेरे लिंग की तुम पूजा करते थे, उनको परम आत्मा कहते थे | परम आत्मा से परमात्मा हो जाता | परन्तु यह नहीं जानते कि यह क्या करते हैं | बस, सिर्फ़ कह देंगे कि वह सर्वव्यापी है | नाम-रूप से न्यारा है | फिर उस पर दूध आदि चढ़ाना, शोभता नहीं है | आकर है तब तो उस पर चढ़ाते हैं ना | उनको निराकार तो कह नहीं सकते | तुमसे मनुष्य आरग्यु बहुत करते हैं, बाबा के आगे भी आकर आरग्यु ही करेंगे | फ़ालतू माथा खपायेंगे | फ़ायदा कुछ भी नहीं | यह समझाना तो तुम बच्चों का काम है | तुम बच्चे जानते हो बाबा ने हमको कितना ऊँच बनाया है | यह पढ़ाई है | बाप टीचर बन पढ़ाते हैं | तुम मनुष्य से देवता बनने के लिए पढ़ रहे हो | देवी-देवता हैं सतयुग में | कलियुग में होते नहीं | राम राज्य ही नहीं जो पवित्र रह न सकें | देवी-देवता थे फिर वाम मार्ग में चले जाते हैं | बाकी जैसे चित्र दिखाये हैं, ऐसे नहीं | जगन्नाथ के मन्दिर में तुम देखेंगे काले चित्र हैं | बाप कहते हैं माया जीते जगतजीत बनो | तो उन्होंने फिर जगत-नाथ नाम रख दिया है | ऊपर में सब गन्दे चित्र दिखाये हैं, देवतायें वाम मार्ग में गये तो काले बन पड़े | उनकी भी पूजा करते रहते हैं | मनुष्यों को तो कुछ पता नहीं – कब हम पूज्य थे? 84 जन्मों का हिसाब किसकी भी बुद्धि में नहीं है | पहले पूज्य सतोप्रधान फिर 84 जन्म लेते-लेते तमोप्रधान पुजारी बन पड़ते हैं | रघुनाथ मन्दिर में काला चित्र दिखाते हैं, अर्थ तो उनका कुछ भी समझते नहीं | अभी तुम बच्चों को बाप बैठ समझाते हैं | ज्ञान चिता पर बैठ गोरे बनते हो, काम  चिता पर बैठ काले बन पड़ते हो | देवतायें वाम मार्ग में जाकर विकारी बन पड़े फिर उनका नाम देवता तो रख नहीं सकते | वाम मार्ग में जाने से काले बन पड़े हो, यह निशानी दिखाई है | कृष्ण काला, राम भी काला, शिव को भी काला बना देते | तुम जानते हो कि शिवबाबा तो काला बनता ही नहीं | वह तो हीरा है, जो तुमको भी हीरे जैसा बनाते हैं | वह तो कभी काला बनते नहीं उनको फिर काला क्यों बना दिया है! कोई काला होगा, उसने बैठ काला बनाया होगा | शिवबाबा कहते हैं हमने क्या दोष किया जो मुझे काला बना दिया है | मैं तो आता ही हूँ सबको गोरा बनाने, मैं तो सदैव गोरा हूँ | मनुष्यों की ऐसी बुद्धि बन पड़ी है जो कुछ भी समझते नहीं | शिवबाबा तो है ही सबको हीरा बनाने वाला | मैं तो एवर गोरा मुसाफिर हूँ | मैंने क्या किया जो मुझे काला बनाया है | अब तुमको भी गोरा बनना है ऊँच पद पाने लिए | ऊँच पद कैसे पाना है? वह तो बाप ने समझाया है फ़ालो फादर | जैसे इसने (बाबा ने) सब-कुछ बाप के हवाले कर दिया | फादर को देखो कैसे सब कुछ दे दिया | भल साधारण थे, न बहुत गरीब, न बहुत साहूकार थे | बाबा अभी भी कहते हैं तुम्हारा खान पान बीच का साधारण होना चाहिए | न बहुत ऊँच, न बहुत कम | बाप ही सब शिक्षा देते हैं | यह भी देखने में तो साधारण ही आते हैं | तुमको कहते हैं कहाँ है भगवान्, दिखाओ | अरे, आत्मा बिन्दी है, उनको देखेंगे क्या! यह तो जानते हो आत्मा का साक्षात्कार इन आँखों से होता नहीं | तुम कहते हो भगवान् पढ़ाते हैं तो ज़रूर कोई शरीरधारी होगा | निराकार कैसे पढ़ायेंगे | मनुष्यों को तो कुछ भी पता नहीं है | जैसे तुम आत्मा हो, शरीर द्वारा पार्ट बजाते हो | आत्मा ही पार्ट बजाती है | आत्मा ही बोलती है, शरीर द्वारा | तो आत्मा वाच | परन्तु आत्मा वाच शोभता नहीं | आत्मा तो वानप्रस्थ, वाणी से परे है, वाच तो शरीर से ही करेगी | वाणी से परे सिर्फ़ आत्मा ही रह जाती है | वाणी में आना है तो शरीर ज़रूर चाहिए | बाप भी ज्ञान का सागर है तो ज़रूर किसके शरीर का आधार लेगा ना | उसको रथ कहा जाता है | नहीं तो वह सुनाये कैसे? बाप पतित से पावन बनने लिए शिक्षा देते हैं | प्रेरणा की बात नहीं | यह तो ज्ञान की बात है | वह आये कैसे? किसके शरीर में आये? आयेगा तो ज़रूर मनुष्य में ही | किस मनुष्य में आये? कोई को पता नहीं है, सिवाए तुम्हारे | रचयिता ख़ुद ही बैठ अपना परिचय देते हैं | मैं कैसे और किस रथ में आता हूँ | बच्चे तो जानते हैं कि बाप का रथ कौन-सा है | बहुत मनुष्य मूँझे हुए हैं | किस-किस का रथ बना देते हैं | जानवर आदि में तो आ न सकें | बाप कहते हैं मैं किस मनुष्य में आऊँ | यह तो समझ नहीं सकते | आना भी भारत में ही होता है | भारतवासियों में भी किसके तन में आऊँ, क्या प्रेजीडेंट वा साधू महात्मा के रथ में आयेगा? ऐसे भी नहीं है कि पवित्र रथ में आना है | यह तो है ही रावण राज्य | गायन भी है दूर देश का रहने वाला |

यह भी बच्चों को पता है कि भारत अविनाशी खण्ड है | उसका कभी विनाश नहीं होता | अविनाशी बाप अविनाशी भारत खण्ड में ही आते हैं | किस तन में आते हैं, वह ख़ुद ही बताते हैं | और तो कोई जान न सके | तुम जानते हो कोई साधू महात्मा में भी आ न सके | वह हैं हठयोगी, निवृत्ति मार्ग वाले | बाकी रहे भारतवासी भक्त | अब भक्तों में भी किस भक्त में आये? भक्त पुराना चाहिए, जिसने बहुत भक्ति की हो | भक्ति का फल भगवान् को देने आना पड़ता है | भारत में भक्त तो ढेर हैं | कहेंगे यह बड़ा भक्त है, इसमें आना चाहिए | ऐसे तो बहुत भक्त बन पड़ते हैं | कल भी कोई को वैराग्य आये, भक्त बन जाये | वह तो इस जन्म का भक्त हो गया ना | उसमें आयेंगे नहीं | मैं उसमें आता हूँ, जिसने पहले-पहले भक्ति शुरू की | द्वापर से लेकर भक्ति शुरु हुई | यह हिसाब-किताब कोई समझ न सकें | कितनी गुप्त बातें हैं | मैं आता हूँ उसमें जो पहले-पहले भक्ति शुरु करते हैं | नम्बरवन जो पूज्य था वही फिर नम्बरवन पुजारी भी बनेगा | ख़ुद ही कहते हैं यह रथ ही पहले नम्बर में जाते हैं | फिर 84 जन्म भी यही लेते हैं | मैं इनके ही बहुत जन्मों के अन्त के भी अन्त में प्रवेश करता हूँ | इनको ही फिर नम्बरवन राजा बनना है | यही बहुत भक्ति करते थे | भक्ति का फल भी इनको मिलना चाहिए | बाप दिखलाते हैं बच्चों को कि देखो यह मेरे पर वारी कैसे गया | सब कुछ दे दिया | इतने ढेर बच्चों को सिखलाने लिए धन भी चाहिए | ईश्वर का यज्ञ रचा हुआ है | खुदा इसमें बैठ रूद्र ज्ञान यज्ञ रचते हैं, उसको पढ़ाई भी कहा जाता है | रूद्र शिवबाबा जो ज्ञान का सागर है, उसने यज्ञ रचा है ज्ञान देने के लिए | अक्षर बिल्कुल ठीक है | राजस्व, स्वराज्य पाने के लिए यज्ञ | इसको यज्ञ क्यों कहते हैं? यज्ञ में तो वह लोग आहुति आदि बहुत डालते हैं | तुम तो पढ़ते हो, आहुति क्या डालते हो? तुम जानते हो हम पढ़कर होशियार हो जायेंगे | फिर यह सारी दुनिया इसमें स्वाहा हो जायेगी | यज्ञ में पिछाड़ी के टाइम पर जो भी सामग्री है, सब डाल देते हैं |

तुम बच्चे अब जानते हो हमको बाप पढ़ा रहे हैं | बाप है तो बहुत साधारण | मनुष्य क्या जानें | उन बड़े-बड़े आदमियों की तो बहुत बड़ी महिमा होती है | बाप तो बहुत साधारण सिम्पुल बैठा है | मनुष्यों को कैसे पता पड़े | यह दादा तो जौहरी था | शक्ति तो कोई देखने में नहीं आती | सिर्फ़ इतना कह देते इसमें कुछ शक्ति है | बस | यह नहीं समझते कि इसमें सर्वशक्तिमान् बाप है | इसमें शक्ति है, वह शक्ति भी आई कहाँ से? बाप ने प्रवेश किया ना | जो उनका ख़ज़ाना वह ऐसे थोड़ेही दे देते हैं | तुम योगबल से लेते हो | वह तो सर्वशक्तिमान् है ही | उनकी शक्ति कहाँ चली नहीं जाती | परमात्मा को सर्वशक्तिमान् क्यों गाया जाता है, यह कोई जानते नहीं | बाप आकर सब बातें समझाते हैं | बाप कहते हैं मैं जिसमें प्रवेश करता हूँ, इसमें तो पुरी जंक चढ़ी हुई थी – पुराना देश, पुराना शरीर, उसके बहुत जन्मों के अन्त में आता हूँ, कट जो चढ़ी है वह कोई उतार न सके | कट उतारने वाला एक ही सतगुरु है, वह एवर प्योर है | यह तुम समझते हो | यह सब बुद्धि में बिठाने लिए भी टाइम चाहिए | तुम बच्चों को बाप सब विल कर देते हैं | बाप ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर है, सारा विल कर देते हैं बच्चों को | आते भी पुरानी दुनिया में हैं | प्रवेश भी उसमें करते हैं, जो हीरे जैसा था फिर कौड़ी जैसा बना | वो भल इस समय करोड़पति हैं, परन्तु अल्पकाल के लिए | सबका ख़लास हो जायेगा | वर्थ पाउण्ड तो तुम बनते हो | अभी तुम स्टूडेन्ट हो | यह भी स्टूडेन्ट है, यह भी बहुत जन्मों के अन्त में है | कट चढ़ी हुई है | जो बहुत अच्छा पढ़ते, उसमें ही कट चढ़ी हुई है | वही सबसे पतित बनते हैं, उनको ही फिर पावन बनना है | यह ड्रामा बना हुआ है | बाप तो रियल बात बताते हैं | बाप है ट्रुथ | वह कभी उल्टा नहीं बतलाते | यह सब बातें मनुष्य कोई समझ न सकें | न बच्चों बिगर मनुष्यों को कैसे पता पड़े | अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-  

1. ऊँच पद पाने के लिए पूरा फ़ालो फादर करना है | सब कुछ बाप के हवाले कर ट्रस्टी हो सम्भालना है, पूरा वारी जाना है | खान-पान, रहन-सहन बीच का साधारण रखना है | न बहुत ऊँच, न बहुत नींच | 

2. बाप ने जो सुख-शान्ति, ज्ञान का ख़ज़ाना विल किया है, उसे दूसरों को भी देना है, कल्याणकारी बनना है |

 

वरदान:- 

देह-भान को देही-अभिमानी स्थिति में परिवर्तन करने वाले बेहद के वैरागी भव !   

चलते-चलते यदि वैराग्य खण्डित होता है तो उसका मुख्य कारण है – देह भान | जब तक देह-भान का वैराग्य नहीं है तब तक कोई भी बात का वैराग्य सदाकाल नहीं रह सकता | सम्बन्ध से वैराग्य-यह कोई बड़ी बात नहीं है, वह तो दुनिया में भी कइयों को वैराग्य आ जाता है लेकिन यहाँ देह-भान के जो भिन्न-भिन्न रूप हैं, उन्हें जानकर, देह-भान को देही-अभिमानी स्थिति में परिवर्तन कर देना – यह विधि है बेहद के वैरागी बनने की |

 

स्लोगन:- 

संकल्प रूपी पाँव मज़बूत हों तो काले बादलों जैसी बातें भी परिवर्तन हो जायेंगी |     

 

ओम् शान्ति |