27-09-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - तुम्हें बाप समान खुदाई खिदमतगार बनना है,
संगम पर बाप आते हैं तुम बच्चों की खिदमत (सेवा) करने” 
प्रश्न:-
यह
पुरूषोत्तम संगमयुग ही सबसे सुहावना और कल्याणकारी है - कैसे?
उत्तर:-
इसी
समय तुम बच्चे स्त्री और पुरूष दोनों ही उत्तम बनते हो । यह
संगमयुग है ही कलियुग अन्त और सतयुग आदि के बीच का समय । इस
समय ही बाप तुम बच्चों के लिए ईश्वरीय युनिवर्सिटी खोलते हैं,
जहाँ
तुम मनुष्य से देवता बनते हो । ऐसी युनिवर्सिटी सारे कल्प में
कभी नहीं होती । इसी समय सबकी सद्गति होती है ।
ओम्
शान्ति |
रूहानी बाप रूहानी बच्चों को बैठ समझाते हैं । यहाँ बैठे-बैठे
एक तो तुम बाप को याद करते हो क्योंकि वह पतित-पावन है,
उनको
याद करने से ही पावन सतोप्रधान बनने की तुम्हारी एम है | ऐसे
नहीं,
सतो
तक एम है । सतोप्रधान बनना है इसलिए बाप को भी जरूर याद करना
है फिर स्वीट होम को भी याद करना है क्योंकि वहॉ जाना है फिर
माल-मिलकियत भी चाहिए इसलिए अपने स्वर्ग धाम को भी याद करना है
क्योंकि यह प्राप्ति होती है । बच्चे जानते हैं हम बाप के
बच्चे बने हैं,
बराबर बाप से शिक्षा लेकर हम स्वर्ग में जाएंगे-नम्बरवार
पुरूषार्थ अनुसार । बाकी जो भी जीव की आत्मायें हैं वह
शान्तिधाम में चली जायेगी । घर तो जरूर जाना हैं । बच्चों को
यह भी मालूम हुआ,
अभी
हैं रावण राज्य । इसकी भेंट में सतयुग को फिर नाम दिया जाता है
राम राज्य । दो कला कम हो जाती हैं । उनको सूर्यवंशी,
उनको
चन्द्रवंशी कहा जाता हैं । जैसे क्रिस्चियन की डिनायस्टी एक ही
चलती है,
वैसे
यह भी है एक ही डिनायस्टी । परन्तु उसमें सूर्यवंशी और
चन्द्रवंशी हैं । यह बातें कोई भी शास्त्रों में नहीं हैं ।
बाप बैठ समझाते हैं,
जिसको ही ज्ञान अथवा नॉलेज कहा जाता है । स्वर्ग स्थापन हो गया
फिर नॉलेज की दरकार नहीं । यह नॉलेज बच्चों को पुरूषोत्तम
संगमयुग पर ही सिखलाई जाती है । तुम्हारे सेंटर्स पर वा
म्युजियम में बहुत बड़े-बड़े अक्षरों में जरूर लिखा हुआ हो कि
बहनों और भाइयों यह पुरूषोत्तम संगमयुग है,
जो
एक ही बार आता है । पुरूषोत्तम संगमयुग का अर्थ भी नहीं समझते
हैं तो यह भी लिखना है-कलियुग अन्त और सतयुग आदि का संगम । तो
संगमयुग सबसे सुहावना,
कल्याणकारी हो जाता है । बाप भी कहते हैं मैं पुरूषोत्तम
संगमयुग पर ही आता हूँ । तो संगमयुग का अर्थ भी समझाया हैं ।
वेश्यालय का अन्त,
शिवालय का आदि-इसको कहा जाता है पुरूषोत्तम संगमयुग । यहाँ सब
हैं विकारी,
वहाँ
सब हैं निर्विकारी । तो जरूर उत्तम तो निर्विकारी को कहेंगे ना
। पुरूष और स्त्री दोनों उत्तम बनते हैं इसलिए नाम ही है
पुरूषोत्तम । इन बातों का बाप और तुम बच्चों के सिवाए किसको
पता नहीं कि यह संगमयुग है । किसके ख्याल में नहीं आता कि
पुरूषोत्तम संगमयुग कब होता है । अभी बाप आये हुए हैं,
वह
है मनुष्य सृष्टि का बीजरूप । उनकी ही इतनी महिमा है,
वह
ज्ञान का सागर,
आनद
का सागर है,
पतित-पावन है । ज्ञान से सद्गति करते हैं । ऐसे तुम कभी नहीं
कहेंगे कि भक्ति से सद्गति । ज्ञान से सद्गति होती है और
सद्गति है ही सतयुग में । तो जरूर कलियुग का अन्त और सतयुग आदि
के संगम पर आएंगे । कितना क्लीयर कर बाप समझाते हैं । नये भी
आते हैं,
हूबहू जैसे कल्प-कल्प आये हैं,
आते
रहते हैं । राजधानी ऐसे ही स्थापन होनी है । तुम बच्चों को
मालूम है-हम खुदाई खिदमतगार सच्चे-सच्चे ठहरे । एक को थोड़ेही
पढ़ाएंगे । एक पढ़ते हैं फिर इन द्वारा तुम पढ़कर औरों को पढ़ाते
हो इसलिए यहाँ यह बड़ी युनिवर्सिटी खोलनी पड़ती है । सारी दुनिया
में और कोई युनिवर्सिटी है ही नहीं । न कोई दुनिया में जानता
है कि ईश्वरीय युनिवर्सिटी भी होती है । अभी तुम बच्चे जानते
हो-गीता का भगवान शिव आकर यह युनिवर्सिटी खोलते हैं । नई
दुनिया का मालिक देवी-देवता बनाते हैं । इस समय आत्मा जो
तमोप्रधान बन गई है,
फिर
उसको ही सतोप्रधान बनना है । इस समय सब तमोप्रधान है ना । भल
कई कुमार भी पवित्र रहते हैं,
कुमारियाँ भी पवित्र रहती हैं,
सन्यासी भी पवित्र रहते हैं परन्तु आजकल वह पवित्रता नहीं है ।
पहले-पहले जब आत्मायें आती हैं,
वह
पवित्र रहती हैं । फिर अपवित्र बन जाती हैं क्योंकि तुम जानते
हो सतोप्रधान,
सतो,
रजो,
तमो
से सबको पास होना होता है । अन्त में सब तमोप्रधान बन जाते हैं
। अभी बाप सम्मुख बैठ समझाते हैं-यह झाड़ तमोप्रधान जड़जड़ीभूत
अवस्था को पाया हुआ है,
पुराना हो गया है तो जरूर इनका विनाश होना चाहिए । यह है
वैराइटी धर्मों का झाड़,
इसलिए कहते हैं विराट लीला । कितना बड़ा बेहद का झाड़ है । वह तो
जड़ झाड़ होते हैं,
जो
बीज डालों वह झाड़ निकलता है । यह फिर हैं वैराइटी धर्मों का
वैराइटी चित्र । हैं सब मनुष्य,
परन्तु उनमें वैराइटी बहुत है,
इसलिए विराट लीला कहा जाता है । सब धर्म कैसे नम्बरवार आते हैं,
यह
भी तुम जानते हो । सबको जाना है फिर आना है । यह ड्रामा बना
हुआ है । है भी कुदरती ड्रामा । कुदरत यह है जो इतनी छोटी सी
आत्मा अथवा परम आत्मा में कितना पार्ट भरा हुआ है । परम -
आत्मा को मिलाकर परमात्मा कहा जाता है । तुम उनको बाबा कहते हो
क्योंकि सभी आत्माओं का वह सुप्रीम बाप है ना । बच्चे जानते
हैं आत्मा ही सारा पार्ट बजाती है । मनुष्य यह नहीं जानते । वह
तो कह देते आत्मा निर्लेप है । वास्तव में यह अक्षर रांग है ।
यह भी बड़े-बड़े अक्षरों में लिख देना चाहिए- आत्मा निर्लेप नहीं
है । आत्मा ही जैसे-जैसे अच्छे वा बुरे कर्म करती है तो ऐसा वह
फल पाती है । बुरे संस्कारों से पतित बन पड़ती है,
तब
तो देवताओं के आगे जाकर उनकी महिमा गाते हैं । अभी तुमको 84
जन्मों का पता पड़ गया हैं,
और
कोई भी मनुष्य नहीं जानता । तुम उनको 84 जन्म सिद्ध कर बतलाते
हो तो कहते हैं-क्या शास्त्र सब झूठे हैं?
क्योंकि सुना है मनुष्य 84 लाख योनियां लेते हैं । अभी बाप बैठ
समझाते हैं वास्तव में सर्व शास्त्रमई शिरोमणी है ही गीता ।
बाप अभी हमको राजयोग सिखला रहे हैं जो 5 हजार वर्ष पहले
सिखलाया था ।
तुम
जानते हो हम पवित्र थे,
पवित्र गृहस्थ धर्म था । अभी इनको धर्म नहीं कहेंगे । अधर्मी
बन पड़े हैं अर्थात् विकारी बन गये हैं । इस खेल को तुम बच्चे
समझ गये हो । यह बेहद का ड्रामा है जो हर 5 हजार वर्ष बाद
रिपीट होता रहता है । लाखों वर्ष की बात तो कोई समझ भी न सके ।
यह तो जैसे कल की बात हैं । तुम शिवालय में थे,
आज
वेश्यालय में हो फिर कल शिवालय में होंगे । सतयुग को कहा जाता
है शिवालय,
त्रेता को सेमी कहा जाता हैं । इतने वर्ष वहाँ रहेंगे ।
पुनर्जन्म में तो आना ही है । इनको कहा जाता है रावण राज्य ।
तुम आधाकल्प पतित बने,
अब
बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र बनो
। कुमार और कुमारियां तो हैं ही पवित्र । उन्हों को फिर समझाया
जाता है-ऐसे गृहस्थ में फिर जाना नहीं है जो फिर पवित्र होने
का पुरूषार्थ करना पड़े । भगवानुवाच है कि पावन बनो,
तो
बेहद के बाप का मानना पड़े ना । तुम गृहस्थ व्यवहार में रहते
कमल फूल समान रह सकते हो । फिर बच्चों को पतित बनने की आदत
क्यों डालते हो । जबकि बाप 21 जन्मों के लिए पतित होने से
बचाते हैं । इसमें लोक लाज कुल की मर्यादा भी छोड़नी पड़े । यह
है बेहद की बात । बैचलर्स (कुमार) तो सब धर्मों में बहुत रहते
हैं परन्तु सेफ्टी से रहना जरा मुश्किल होता है,
फिर
भी रावण राज्य में रहते हैं ना । विलायत में भी ऐसे बहुत
मनुष्य शादी नहीं करते हैं फिर पिछाड़ी में कर लेते हैं
कम्पैनियनशिप के लिए । क्रिमिनल आई से नहीं करते हैं । ऐसे भी
दुनिया में बहुत होते हैं । पूरी सम्भाल करते हैं,
फिर
जब मरते हैं तो कुछ उनको देकर जाते हैं । कुछ धर्माऊ लगा देते
हैं । ट्रस्ट बनाकर जाते हैं । विलायत में भी बड़े-बड़े ट्रस्ट
होते हैं जो फिर यहाँ भी मदद करते हैं । यहाँ ऐसा ट्रस्ट नहीं
होगा जो विलायत को भी मदद करे । यहाँ तो गरीब लोग हैं,
क्या
मदद करेंगे । वहाँ तो उन्हों के पास पैसे बहुत हैं । भारत तो
गरीब है ना । भारतवासियों की क्या हालत है! भारत कितना सिरताज
था,
कल
की बात है । खुद भी कहते हैं 3 हजार वर्ष पहले पैराडाइज था ।
बाप ही बनाते हैं । तुम जानते हो बाप कैसे ऊपर से नीचे आते
हैं-पतितों को पावन बनाने । वह है ही ज्ञान का सागर,
पतित-पावन,
सर्व
का सद्गति दाता अर्थात् सबको पावन बनाने वाला । तुम बच्चे
जानते हो मेरी महिमा तो सब गाते हैं । मैं यहाँ पतित दुनिया
में ही आता हूँ तुमको पावन बनाने । तुम पावन बन जाते हो तो फिर
पहले-पहले पावन दुनिया में आते हो । बहुत सुख उठाते हो फिर
रावणराज्य में गिरते हो । भल गाते तो हैं परमपिता परमात्मा
ज्ञान का सागर,
शान्ति का सागर,
पतित-पावन हैं । परन्तु पावन बनाने के लिए कब आएंगे-यह कोई भी
जानते ही नहीं है । बाप कहते हैं तुम मेरी महिमा करते हो ना ।
अब मैं आया हूँ तुमको अपना परिचय दे रहा हूँ । मैं हर 5 हजार
वर्ष के बाद इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर आता हूँ,
कैसे
आता हूँ वह भी समझाता हूँ । चित्र भी हैं । ब्रह्मा कोई
सूक्ष्मवतन में नहीं होता हैं । ब्रह्मा यहाँ है और ब्राह्मण
भी यहाँ हैं,
जिसको ग्रेट-ग्रेट ग्रैंड फादर कहा जाता हैं,
जिसका फिर सिजरा बनता है । मनुष्य सृष्टि का सिजरा तो
प्रजापिता ब्रह्मा से ही चलेगा ना । प्रजापिता है तो जरूर उनकी
प्रजा होगी । कुख वंशावली तो हो न सके,
जरूर
एडाप्टेड होंगे । ग्रेट-ग्रेट ग्रैंड फादर हैं तो जरूर एडाप्ट
किया होगा । तुम सब एडाप्टेड बच्चे हो । अभी तुम ब्राह्मण बने
हो फिर तुमको देवता बनना है । शूद्र से ब्राह्मण फिर ब्राह्मण
से देवता,
यह
बाजोली का खेल है । विराट रूप का भी चित्र है ना । वहाँ से
सबको यहाँ आना है जरूर । जब सब आ जाते हैं फिर क्रियेटर भी आते
हैं । वह क्रियेटर डायरेक्टर है,
एक्ट
भी करते हैं । बाप कहते हैं-हे आत्मायें तुम मुझे जानते हो ।
तुम आत्मायें मेरे सब बच्चे हो ना । तुमने पहले सतयुग में
शरीरधारी बन कितना अच्छा सुख का पार्ट बजाया फिर 84 जन्म बाद
तुम कितना दु:ख में आ गये हो । ड्रामा के क्रियेटर,
डायरेक्टर,
प्रोड्यूसर होते है ना । यह है बेहद का ड्रामा । बेहद ड्रामा
को कोई भी जानते नहीं हैं । भक्ति मार्ग में ऐसी-ऐसी बातें
बताते हैं जो मनुष्यों की बुद्धि में वही बैठ गयी हैं ।
अब
बाप कहते हैं - मीठे-मीठे बच्चों,
यह
सब भक्ति मार्ग के शास्त्र हैं । भक्ति मार्ग की ढेर सामग्री
है,
जैसे
बीज की सामग्री झाड़ है,
इतने
छोटे बीज से झाड़ कितना अथाह फैल जाता है । भक्ति का भी इतना
विस्तार हैं । ज्ञान तो बीज है,
उसमें कोई भी सामग्री की दरकार नहीं रहती है । बाप कहते हैं
अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो और कोई व्रत नेम नहीं हैं ।
यह सब बन्द हो जाता है । तुमको सद्गति मिल जायेगी फिर कोई बात
की दरकार नहीं । तुमने ही बहुत भक्ति की है । उसका फल तुमको
देने के लिए आया हूँ । देवतायें शिवालय में थे ना,
तब
तो मन्दिर में जाकर उन्हों की महिमा गाते हैं । अब बाप समझाते
हैं-मीठे-मीठे बच्चों,
मैंने 5 हजार वर्ष पहले भी तुमको समझाया था कि अपने को आत्मा
समझो । देह के सब सम्बन्ध छोड़ मुझ एक बाप को याद करो तो इस योग
अग्नि से तुम्हारे पाप भस्म हो जायेंगे । बाप जो कुछ अभी
समझाते हैं,
कल्प-कल्प समझाते आये हैं । गीता में भी कोई-कोई अक्षर अच्छे
हैं । मनमनाभव अर्थात् मुझे याद करो । शिवबाबा कहते हैं मैं
यहाँ आया हूँ । किसके तन में आता हूँ,
वह
भी बताता हूँ । ब्रह्मा द्वारा सब वेदों-शास्रों का सार तुमको
सुनाता हूँ । चित्र भी दिखाते हैं परन्तु अर्थ नहीं समझते ।
अभी तुम समझते हो-शिवबाबा कैसे ब्रह्मा तन द्वारा सब शास्त्रों
आदि का सार सुनाते हैं । 84 जन्मों के ड्रामा का राज भी तुमको
समझाते हैं । इनके ही बहुत जन्मों के अन्त में आता हूँ । यही
फिर पहले नम्बर का प्रिन्स बनते हैं फिर 84 जन्मों में आते हैं
। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
इस रावण राज्य में रहते पतित लोकलाज कुल की
मर्यादा को छोड़ बेहद बाप की बात माननी हैं,
गृहस्थ
व्यवहार में कमल फूल समान रहना है ।
2.
इस वैराइटी विराट लीला को अच्छी तरह समझना है,
इसमें पार्ट बजाने वाली आत्मा निर्लेप नहीं,
अच्छे- बुरे कर्म करती और उसका फल पाती है,
इस राज को समझकर श्रेष्ठ कर्म करने हैं ।
वरदान:-
संबंध और प्राप्तियों की स्मृति द्वारा सदा खुशी में रहने वाले
सहजयोगी भव
!
सहजयोग का आधार है - संबध और प्राप्ति । संबंध के आधार पर
प्यार पैदा होता है और जहाँ प्राप्तियां होती हैं वहाँ
मन-बुद्धि सहज ही जाता है । तो संबंध में मेरेपन के अधिकार से
याद करो,
दिल
से कहो मेरा बाबा और बाप द्वारा जो शक्तियों का,
ज्ञान का,
गुणों का,
सुख-शान्ति,
आनंद,
प्रेम का खजाना मिला है उसे स्मृति में इमर्ज करो,
इससे
अपार खुशी रहेगी और सहजयोगी भी बन जायेंगे ।
स्लोगन:-
देह- भान
से मुक्त बनो तो दूसरे सब बन्धन स्वत: खत्म हो जायेंगे । 
ओम्
शान्ति |