14-08-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - अभी तुम्हारी सब आशायें पूरी होती हैं, पेट भर जाता है, बाप आये हैं तुम्हें तृप्त आत्मा बनाने |”   

                            
प्रश्न:-   
अभी तुम बच्चे भक्ति तो नहीं करते हो लेकिन भक्त जरूर हो - कैसे?


उत्तर:-
जब तक देह-अभिमान है तब तक भक्त हो । तुम ज्ञानी बनने के लिए पढ़ रहे हो । जब इम्तिहान पास करेंगे, कर्मातीत बन जायेंगे तब सम्पूर्ण ज्ञानी कहेंगे । फिर पढ़ने की दरकार नहीं ।

 

ओम् शान्ति |

भक्त और भगवान दो चीजे हैं ना । बच्चे और बाप । भक्त तो ढेर के ढेर हैं । भगवान है एक । तुम बच्चों को बहुत सहज बात लगती हैं, आत्मायें शरीर द्वारा भक्ति करती हैं, क्यों? भगवान बाप से मिलने के लिए । तुम भक्त अभी ड्रामा को समझ गये हो । जब पूरे ज्ञानी बन जायेंगे तो यहाँ नहीं रहेंगे । स्कूल में पढ़ते हैं, इम्तहान पास किया तो दूसरे दर्जे में चले जायेंगे । अभी तुमको भगवान पढ़ा रहे हैं । ज्ञानी को तो पढ़ाई की दरकार नहीं रहती । भक्तों को भगवान पढ़ा रहे हैं । तुम जानते हो हम आत्मा भक्ति करते थे । अब भक्ति से निकल ज्ञान में कैसे जायें - यह बाप सिखलाते हैं । अभी भक्ति करते नहीं हो परन्तु देह-अभिमान में तो आ जाते हो ना । यह भी तुम समझते हो, वो भक्त लोग तो भगवान को भी नहीं जानते । खुद कहते हैं हम नहीं जानते । नम्बरवन जो भक्त हैं, उनसे भी बाप पूछते हैं तुम जिस भगवान के भक्त थे, उनको जानते थे? वास्तव में भगवान भी होना एक चाहिए । यहाँ तो अनेक भगवान हो गये हैं । अपने को भगवान कहते रहते हैं । इसको कहा जाता हैं अज्ञान । भक्ति में घोर अन्धियारा है । वह है ही भक्ति मार्ग । भक्त लोग गाते हैं ज्ञान अंजन सतगुरू दिया, अज्ञान अंधेर विनाश । ज्ञान अजन गुरू लोग नहीं दे सकते । गुरू तो ढेर हैं । तुम बच्चे जानते हो भक्ति में क्या-क्या करते थे, किसको याद करते थे, किसको पूजते थे । वह भक्ति का अन्धियारा अभी तुम्हारा छूट गया क्योंकि बाप को जान लिया । बाप ने परिचय दिया है-मीठे-मीठे बच्चे, तुम आत्मा हो । तुमने इस शरीर के साथ पार्ट बजाया है । तुम्हारा है बेहद का ज्ञान । बेहद का पार्ट बजाते रहते हो । तुम हद से निकल अब बेहद में चले गये हो । यह दुनिया भी बढ़ते-बढ़ते कितनी बेहद में चली गई है । फिर जरूर हद में आयेगी । हद से बेहद में, बेहद से हद में कैसे आते हैं- अभी तुम बच्चों को मालूम पड़ता है । आत्मा छोटी स्टार मिसल है, इतना समझते हैं फिर भी इतना बड़ा लिंग बना देते हैं । वह भी क्या करें क्योंकि छोटी-सी बिन्दु की पूजा तो कर न सके । कहते हैं भ्रकुटी के बीच चमकता है सितारा । अब उस सितारे की भक्ति कैसे करे? भगवान का तो किसको पता नहीं है । आत्मा का मालूम है । आत्मा भ्रकुटी के बीच रहती है । बस । यह बुद्धि में नहीं आता कि आत्मा ही शरीर ले पार्ट बजाती है । पहले-पहले तुम ही पूजा करते थे । बड़े-बड़े लिंग बनाते हैं । रावण का भी दिन-प्रतिदिन बड़ा चित्र बनाते हैं, छोटा रावण तो बना न सके । मनुष्य तो छोटा होता है फिर बड़ा होता है । रावण को कभी छोटा नहीं दिखाते हैं, वह तो छोटा-बड़ा होता नहीं । वह कोई स्थूल चीज नहीं । रावण 5 विकारों को कहा जाता है । 5 विकारों की वृद्धि होती जाती है क्योंकि तमोप्रधान बनते जाते हैं । आगे देह-अभिमान इतना नहीं था, फिर बढ़ता गया है । एक की पूजा की फिर दूसरे की पूजा की । ऐसे वृद्धि को पाते गये हैं । आत्मा तमोप्रधान बन गई है । दुनिया में और कोई मनुष्य नहीं होगा जिसको यह बुद्धि में हो कि सतोप्रधान कब होते हैं? फिर तमोप्रधान कब बनते हैं? इन बातों से मनुष्य बिल्कुल अन्जान हैं । नॉलेज कोई डिफीकल्ट नहीं है । बाप आकर बिल्कुल सहज नॉलेज सुनाते हैं, पढ़ाते हैं । फिर भी सारी पढ़ाई का तन्त रह जाता है - हम आत्मा बाप के बच्चे हैं, बाप को याद करना है । 

यह भी गायन है-कोटो में कोई, कितने थोड़े निकलते हैं । कोटो में कोई ही यथार्थ रीति जानते हैं । किसको? बाप को । कहेंगे, बाप कभी ऐसा होता है क्या? अपने बाप को तो सभी जानते हैं । बाप को क्यों भूल गये हैं? इसका नाम ही है भूल-भुलैया का खेल । एक होता है हद का बाप, दूसरा होता है बेहद का बाप । दो बाप से वर्सा मिलता है । हद के बाप से थोड़ा वर्सा मिलता है । दिन-प्रतिदिन बिल्कुल थोड़ा होता जाता है । जैसेकि कुछ भी है नहीं । जब तक बेहद का बाप न आये तो पेट ही न भरे । पेट ही सारा खाली हो जाता है, बाप आकर पेट भरते हैं । हर बात में पेट ऐसा भर देते हैं जो तुम बच्चों को कोई चीज की दरकार ही नहीं । सब आशायें पूरी कर देते हैं । तृप्त आत्मा हो जाती है । जैसे ब्राह्मणों को खिलाते हैं तो आत्मा तृप्त हो जाती है । यह है बेहद की तृप्ति । फर्क देखो कितना है । आत्मा के हद की तृप्ति और बेहद की तृप्ति में फर्क देखो कितना है । बाप को जानने से ही तृप्ति हो जाती हैं क्योंकि बाप स्वर्ग का मालिक बनाते हैं । तुम जानते हो हम बेहद बाप के बच्चे हैं, बाप को तो सब याद करते हैं ना । भल कोई-कोई कहते हैं-यह तो नेचर है, हम ब्रह्म में लीन हो जायेंगे । बाप ने बताया है कि ब्रह्म में कोई भी लीन नहीं होता । यह तो अनादि ड्रामा है जो फिरता रहता है, इसमें मूंझने की बिल्कुल दरकार नहीं । 4 युगों का चक्र फिरता रहता है । हूबहू रिपीट होता रहेगा । बाप एक ही है, दुनिया भी एक ही है । वो लोग कितना माथा मारते हैं । समझते हैं मून में भी दुनिया है, सितारों में भी दुनिया है । कितना ढूंढते हैं । मून में भी प्लाट लेने का सोचते हैं-यह कैसे हो सकता । किसको पैसा देंगे? इसको कहा जाता हैं साइंस का घमण्ड । बाकी तो है कुछ भी नहीं । ट्रायल करते रहते हैं । यह माया का पाम्प है ना । स्वर्ग से भी जास्ती शो करके दिखाते हैं । स्वर्ग को तो भूल ही गये हैं । स्वर्ग में तो अथाह धन था । एक मन्दिर से ही देखो कितना धन ले गये । भारत में ही इतना धन था, बहुत खजाना भरपूर था । मुहम्मद गजनवी आया, लूटकर ले गया । आधाकल्प तो तुम समर्थ रहते हो, चोरी आदि का कोई नाम नहीं होता । रावण राज्य ही नहीं । रावण राज्य शुरू हुआ और चोरी चकारी, झगड़े आदि शुरू हुए हैं । रावण का नाम लेते हैं । बाकी रावण कोई है नहीं । विकारों की प्रवेशता हुई । रावण के लिए मनुष्य क्या-क्या करते हैं । कितना मनाते हैं । तुम भी दशहरा मनाते थे, देखने जाते थे रावण को कैसे जलाते हैं । फिर सोना लूटने जाते हैं । है क्या चीज़, अभी वन्डर लगता है । क्या बन पड़े थे । कितनी पूजा आदि करते थे । कोई बड़ा दिन होता है तो क्या-क्या करते रहते हैं । भक्ति मार्ग जैसे गुड़ियों का खेल है । वह भी कितना समय चलता है, यह तुम जानते हो । शुरू में इतना नहीं करते थे । फिर वृद्धि को पाते-पाते अब देखो क्या हाल हो गया है । इतना खर्चा कर चित्र वा मन्दिर आदि क्यों बनाते हैं? यह है वेस्ट ऑफ मनी । मन्दिर आदि बनाने में लाखों रूपये खर्च करते हैं । बाप कितना प्यार से बैठ समझाते हैं । हमने तुम बच्चों को अथाह धन दिया, वह सब कहाँ गंवाया । रावण राज्य में तुम क्या से क्या बन पड़े हो । ऐसे नहीं कि ईश्वर की भावी पर राजी रहना है । यह कोई ईश्वर की भावी नहीं है, यह तो माया की भावी है । अभी तुमको ईश्वर का राज्य-भाग्य मिलता है । वहाँ तो दु:ख की कोई बात होती नहीं । ईश्वर की भावी और आसुरी भावी में कितना फर्क है । यह समझ तुमको अभी मिलती है । सो भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार । ज्ञान इंजेक्शन किसको लगता है, यह तो समझ सकते हैं । फलाने को ज्ञान का इंजेक्शन अच्छा लगा है, फलाने को कम लगा हुआ है, इनको बिल्कुल लगा हुआ ही नहीं है । यह तो बाबा ही जानते हैं ना । सर्विस पर सारा मदार है । सर्विस से ही बाप बतायेंगे इनको इंजेक्शन लगा नहीं, बिल्कुल सर्विस करना जानते ही नहीं । ऐसे भी हैं किसको जास्ती इंजेक्शन लगा है, किसको बिल्कुल नहीं । 

कहा जाता है - ज्ञान अंजन सतगुरू दिया, अज्ञान अन्धेर विनाश । ज्ञान का, सुख का सागर परमपिता परमात्मा है । फिर उनको ठिक्कर भित्तर में ठोक दिया है । बच्चों को कितना निश्चय होना चाहिए । बेहद का बाप हमको बेहद का सुख देते हैं । गाते भी हैं बेहद का बाबा आप जब आयेंगे तो हम आपके ही बनेंगे । आपकी मत पर ही चलेंगे । भक्ति में तो बाप का मालूम ही नहीं रहता है, यह पार्ट अभी ही चलता है । अभी ही बाप पढ़ाते हैं । तुम जानते हो यह पढ़ाई का पार्ट फिर 5 हजार वर्ष बाद चलेगा । बाप फिर 5 हजार वर्ष बाद आयेंगे । आत्मायें सब भाई-भाई हैं फिर शरीर धारण कर पार्ट बजाती है । मनुष्य सृष्टि की भी वृद्धि होती रहती है । आत्माओं का भी स्टॉक है ना । जितना मनुष्यों का स्टॉक पूरा होगा उतना ही वहाँ आत्माओं का स्टॉक होगा । एक्टर्स एक भी कम जास्ती नहीं होंगे । यह सब बेहद के एक्टर्स हैं । इनको अनादि पार्ट मिला हुआ है । यह वन्डरफुल है ना । अभी तुम बच्चे कितने समझदार बने हो । यह पढ़ाई कितनी ऊंच है । तुम्हें पढ़ाने वाला स्वयं ज्ञान का सागर बाप है, बाकी सब हैं भक्ति के सागर । जैसे भक्ति का मान है, वैसे ज्ञान का भी मान है । भक्ति में कितना मनुष्य दान-पुण्य करते हैं ईश्वर अर्थ क्योंकि वेद शास्त्र आदि कितने बड़े बड़े बनाते हैं । 

अभी तुम बच्चों को भक्ति और ज्ञान का अन्तर मिला है । कितनी विशाल बुद्धि चाहिए । तुम्हारी कभी कोई में आँख नहीं जायेगी । तुम कहेंगे क्या हम इन किंग क्वीन आदि को देखें । उनको क्या देखना है । दिल में कोई आश नहीं होती । यह सब खत्म होने वाला है । जिनके पास जो है सब खत्म होने का है । पेट तो वही दो रोटी मांगता हैं लेकिन इसके लिए कितना पाप करते हैं । इस समय दुनिया में पाप ही पाप हैं । पेट पाप बहुत कराता है । एक-दो के ऊपर झूठे कलंक लगा देते हैं । पैसे भी ढेर कमाते हैं । कितने पैसे छिपा लेते हैं । गवर्मेंट क्या कर सकती हैं । परन्तु कोई कितना भी छिपावे, छिप नहीं सकता । अभी तो नैचुरल कैलेमिटीज भी आनी हैं । बाकी थोड़ा समय है । बाबा कहते हैं, शरीर निर्वाह अर्थ कुछ भी करो, उसके लिए मना नहीं करते । बच्चों को खुशी का पारा चढ़ा रहना चाहिए । बाप और वर्सा याद रहे । बाप तो सारे विश्व का मालिक तुमको बना देते हैं । धरती आसमान सब अपने हो जाते हैं । कोई भी हद नहीं रहती । बच्चे जानते हैं हम ही मालिक थे । भारत अविनाशी खण्ड गाया हुआ है । तो तुम बच्चों को बहुत खुशी रहनी चाहिए । हद के पढ़ाई की भी खुशी होती है ना । यह तो बेहद की पढ़ाई है । बेहद का बाप पढ़ाते हैं । ऐसे बाप को याद करना चाहिए । बच्चे तो समझ सकते हैं-वह जिस्मानी धंधा आदि क्या है, कुछ भी नहीं । हम बाप से क्या वर्सा पाते हैं । कितना रात-दिन का फर्क है । हम तो जिस्मानी धंधा आदि करते भी जाकर सिरताज बनेंगे । बाप आया है पढ़ाने तो बच्चों को खुशी होनी चाहिए । वह कामकाज भी करते रहना है । यह तो समझते हैं, यह पुरानी दुनिया है, इनके विनाश के लिए सब तैयारियाँ हो रही हैं । ऐसे-ऐसे काम करते हैं जो डर लगता है-कहाँ बड़ी लड़ाई न लग जाए । यह सब ड्रामा अनुसार होना ही है । ऐसा नहीं कि ईश्वर कराते हैं । ड्रामा में नूध है । आज नहीं तो कल विनाश जरूर होना है । अभी तुम पढ़ रहे हो । तुम्हारे लिए नई दुनिया जरूर चाहिए । यह सब बातें अन्दर सिमरण कर खुश होना चाहिए । बाबा ने यह रथ भी ले लिया, इनको तो कुछ भी है नहीं । सब कुछ छोड़ दिया । बेहद की बादशाही मिलती है तो फिर यह क्या करेंगे । बाबा का गीत भी बनाया हुआ है- अल्फ को अल्लाह मिला तो फिर यह गदाई क्या करेंगे । कम जास्ती दे एकदम खलास कर दिया । शरीर भी बाबा को दे दिया । ओह! हम तो विश्व के मालिक बनते हैं, अनेक बार मालिक बने हैं । कितना सहज है । तुम भल अपने घर में रहो, अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो । अच्छा! 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. ऐसा तृप्त और विशालबुद्धि बनना है जो किसी में भी आँख न डूबे । दिल में कोई भी आश न रहे क्योंकि यह सब विनाश होना है । 

2. शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते खुशी का पारा सदा चढ़ा रहे । बाप और वर्सा याद रहे । बुद्धि हद से निकल सदा बेहद में रहे ।

 

वरदान:-

त्रिकालदर्शी बन दिव्य बुद्धि के वरदान को कार्य में लगाने वाले सफलता सम्पन्न भव !    

बापदादा ने हर बच्चे को दिव्य बुद्धि का वरदान दिया है । दिव्य बुद्धि द्वारा ही बाप को, अपने आपको और तीनों कालों को स्पष्ट जान सकते हो । सर्वशक्तियों को धारण कर सकते हो । दिव्य बुद्धि वाली आत्मा कोई भी संकल्प को कर्म वा वाणी में लाने के पहले हर बोल वा कर्म के तीनों काल जानकर प्रैक्टिकल में आती है । उनके आगे पास्ट और फ्यूचर भी इतना स्पष्ट होता है जितना प्रेजेंट स्पष्ट है । ऐसे दिव्य बुद्धि वाले त्रिकालदर्शी होने के कारण सदा सफलता सम्पन्न बन जाते हैं ।

 

स्लोगन:- 

सम्पूर्ण पवित्रता को धारण करने वाले ही परमानन्द का अनुभव कर सकते हैं ।   

 

ओम् शान्ति |