03-08-14    प्रातः मुरली   ओम् शान्ति  “अव्यक्त-बापदादा”   रिवाइज:01-12-78   मधुबन
 


सर्व खजानों की चाबी - एकनामी बनना

बापदादा सदा बच्चों की तकदीर को देख हर्षित होते हैं । वाह तकदीर वाह! ऐसी श्रेष्ठ तकदीर जो बाप को भी अपने स्नेह सम्बन्ध से निराकार से साकार बना लेते । आवाज़ से परे बाप को आवाज़ में लाते । स्वयं भगवान को जैसे चाहे वैसे स्वरूप में लाकर मालिक को सेवाधारी बना लेते । बाप के सर्व खजानों के अधिकारी बनने की वा बाप को स्वयं पर समर्पण कराने की चाबी बच्चों के हाथ में है । जिसके हाथ में ऐसी चाबी हो उनसे श्रेष्ठ और कोई हो सकता है? ऐसी चाबी को सम्भालने वाले नॉलेजफुल और सेन्सीबुल बने हो? चाबी तो बाप ने दे दी, जिस चाबी द्वारा जो चाहो एक सेकेण्ड में प्राप्त कर सकते हो । जब रचयिता ही सेवाधारी बन गए तो सर्व रचना आप श्रेष्ठ आत्माओं के आगे सेवा के लिए बाँधी हुई है । जब आसुरी रावण अपने साइन्स की शक्ति से प्रकृति अर्थात् तत्वों को आज भी अपने कन्ट्रोल में रख रहे हैं तो आप ईश्वरीय सन्तान मास्टर रचयिता, मास्टर सर्वशक्तिमान के आगे यह प्रकृति और परिस्थिति दासी नहीं बन सकती । अपने साइलेन्स की शक्ति को अच्छी तरह से जानते हो? वा बहुत शक्तियाँ मिलने के कारण उनके महत्त्व को भूल जाते हो? जब साइन्स की अणु शक्ति महान कर्तव्य कर सकती है तो आत्मिक शक्ति, परमात्म-शक्ति क्या नहीं कर सकती है? उसका अनुभव अभी बहुत थोड़ा और कभी-कभी करते हो । परमात्म-शक्ति को अपना बना सकते, रूप परिवर्तन करा सकते तो प्रकृति और परिस्थिति का रूप और गुण परिवर्तन नहीं कर सकते? तमोगुणी प्रकृति को स्वयं की सतोगुणी स्थिति से परिवर्तन नहीं कर सकते हो? परिस्थिति पर स्व-स्थिति से विजय नहीं पा सकते हो? ऐसे मास्टर रचता शक्तिशाली बने हो

बापदादा बच्चों की श्रेष्ठ प्राप्ति को देख यही कहते कि एक-एक बच्चा ऐसी श्रेष्ठ आत्मा है जो एक बच्चा भी बहुत कमाल कर सकता है । तो इतने क्या करेंगे? चाबी तो बहुत बढ़िया मिली है, लगाने वाले लगाते नहीं हैं । सभी को चाबी मिली है, न कि कोई कोई को । नये पुराने छोटे बड़े सब अधिकारी हैं जैसे आजकल की दुनिया में भी स्वागत अथवा कोई गेस्ट की रिसेप्शन करते हैं तो सिटी-की (चाबी) देते है ना । बापदादा ने भी हर बच्चे की रिसेप्शन में बच्चों को स्वयं की और खजानों की चाबी आने से ही दे दी । ऐसे जादू की चाबी जिससे जिस शक्ति का आवाहन करो उस शक्ति का स्वरूप बन सकते हो । एक सेकेण्ड में इस जादू की चाबी द्वारा जिस लोक में जाने चाहो, उस लोक के वासी बन सकते हो । जिस काल को जानने चाहो उस काल को जानने वाले रूहानी ज्योतिषी बन सकते हो । संकल्प शक्ति को जिस रफ्तार से जिस मार्ग पर ले जाना चाहो उसी रीति से संकल्प शक्ति के अधिकारी बन सकते हो । तो ऐसी चाबी काम में क्यों नहीं लगाते? महत्व को नहीं जाना है क्या? किनारे रखने के संस्कार इमर्ज हो जाते हैं । अच्छी चीज़ को सम्भाल कर किनारे रखते हैं ना कि समय पर काम में लायेंगे, लेकिन यह चाबी हर समय कार्य में लाओ । चाबी लगाओ और खजाना लो । इसमें एकानामी नहीं करो लेकिन एकनामी बनो । एकनामी बनना ही चाबी को लगाने का तरीका है । तो यह करने नहीं आता? आजकल तो चाबी साथ रखने का फैशन है । सौगात में भी कीचैन देते हैं । यह सम्भालना मुश्किल लगता है क्या? कोई भी कर्म शुरू करने के पहले जैसा कर्म वैसी शक्ति का आवाह्न इस चाबी द्वारा करो - तो हर शक्ति आप मास्टर रचता की सेवाधारी बन सेवा करेगी । आवाहन नहीं करते हो लेकिन कर्म की हलचल में आवाहन के बजाए आवागमन के चक्र में आ जाते हो । अच्छा-बुरा, सफलता- असफलता इस आवागमन के चक्कर में आ जाते हो । आवाहन करो अर्थात् मालिक बन आर्डर करो । यह सर्वशक्तियॉ आपकी भुजायें समान हैं, आपकी भुजायें आपके आर्डर के बिना कुछ नहीं कर सकती हैं । आर्डर करो सहनशक्ति कार्य सफल करो तो देखो सफलता सदा हुई पड़ी है । आर्डर नहीं करते हो लेकिन क्या करते हो? जानते हो? आर्डर के बजाए डरते हो कैसे सहन होगा, कैसे सामना कर सकेंगे। कर सकेंगे वा नहीं कर सकेंगे। इस प्रकार का डर आर्डर नहीं कर सकता है । अब क्या करेंगे? डरेंगे वा आर्डर करेंगे? महाकाल के बच्चे भी डरें तो और कौन निर्भय होंगे? हर बात में निर्भय बनो । अलबेले और आलस्यपन में निर्भय नहीं बनना, मायाजीत बनने में निर्भय बनो । तो सुना जादू की चाबी । सौगात को सम्भालना सीखो और सदा कार्य में लगाओ । अच्छा । 

ऐसे श्रेष्ठ तकदीरवान रूहानी शक्ति स्वरूप मास्टर रचता, प्रकृति और परिस्थितियों को अधिकार से विजय पाने वाले, सदा विजयी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते । 

मधुबन दादियों से बातचीत -

संगमयुग के राजाओं का साक्षात्कार होता है? राज्यवंश यहाँ से ही आरम्भ होता है । अभी राजे और प्रजा दोनों ही संस्कार प्रत्यक्ष रूप में दिखाई दे रहे हैं? प्रजा अर्थात् सदा हर बात में अधीनता के संस्कार । उसको कितना भी अधिकारी पन की स्टेज का तख्त दो लेकिन तख्तनशीन बन नहीं सकते । सदा निर्बल और कमजोर आत्मा दिखाई देंगे । स्वयं की हिम्मत नहीं होगी लेकिन दूसरे की हिम्मत और सहयोग से कार्य सफल कर सकते हैं । सहयोग और चीज़ है और हिम्मत बढ़ाने के लिए सहयोग और चीज़ है । हिम्मत देंगे तो कर सकेंगे । यह अधिकारीपन की निशानी नहीं है । हिम्मत रखने से सहयोग के पात्र स्वत: ही बनेंगे इसलिए पूछा कि राज्य वंश दिखाई दे रहा है? जब अभी का राज्य वंश प्रत्यक्ष हो तब प्रत्यक्षता हो । कितने प्रत्यक्ष हुए हैं? कितने राजे, कितनी रानियाँ बनी हैं? राजा और रानी में भी फर्क होगा - वन और टू का अन्तर तो होगा । अभी इस पर रूहरिहान करना । राजा की निशानी क्या होगी और बाल-बच्चों की क्वालिफिकेशन क्या होगी? राज्य वंश के बच्चों में भी वंश के संस्कार तो होंगे ना । इस पर रूहरिहान करना । अच्छा । 

कुमारों के साथ -

कुमारों का चित्र सदा बाप के साथ रहने का दिखाया है, तुम्हीं से खेलूं, तुम्हीं से खाऊँ - यह चित्र दिखाया है सखे रूप से । सखा अर्थात् साथ । तो कुमारों को सखा रूप से साथी रूप में दिखाया है, ग्वालबाल के रूप में दिखाया है ना । तो अपने को सदा बाप के साथी समझकर तुम्हीं से खाऊँ, तुम्हीं से बैठूं....... सभी कुमार युगल मूर्त हो चलते हो? युगल हो या अकेले हो? कभी अकेले का संकल्प नहीं करना । साथी को सदा साथ रखो तो सदा खुश रहेंगे और दिन-रात खुशी में नाचते अपना और दूसरों का भविष्य बनायेंगे । अकेला कभी नहीं समझना । अकेला समझा और माया आई । कुमारों की यही कम्पलेन है कि हम अकेले हैं । यह साथ तो दु:ख सुख का साथी है । वह साथ तो माथा खराब कर देता । तो युगल हो ना! प्रवृत्ति वाले नहीं हो, सुख की प्रवृत्ति मिल जाए और क्या चाहिए । हमारे जैसा साथी किसी को मिल नहीं सकता । साथी को साथ रखना - साथ रखेंगे तो मन सदा मनोरंजन में रहेगा । अच्छा । 

माताओं से -

निर्मोही हो? नष्टोमोहा हो ना । माताओं को विशेष विघ्न मोह का ही आता है । नष्टोमोहा अर्थात् तीव्र पुरुषार्थ । अगर ज़रा भी मोह चाहे देह के सम्बन्ध में है तो तीव्र पुरुषार्थी के बजाए पुरुषार्थी में आ जाते । तीव्र पुरुषार्थी हैं फर्स्ट नम्बर, पुरुषार्थी हैं सेकेण्ड नम्बर । क्या भी हो, कुछ भी हो खुशी में नाचते रहो । मिरूआ मौत मलूका शिकार इसको कहते हैं नष्टोमोहा । नष्टामोहा वाले ही विजय माला के दाने बनते हैं । मोह पर विजय प्राप्त कर ली तो सदा विजयी । पास हो या फुल पास हो? पेपर बहुत आयेंगे, पेपर आना अर्थात् क्लास आगे बढ़ना । अगर इम्तहान ही न हो तो क्लास चेन्ज कैसे होगा! इसलिए फुल पास होना है, न कि पास होना है । अच्छा । 

युगलों से -

स्मृति से पुराना सौदा कैन्सिल कर सिंगल बनो फिर युगल बनो । पुराना हिसाब-किताब सब चुक्तू और नया शुरू । माया के सम्बन्ध को डायवोर्स दे दिया । बाप के सम्बन्ध से सौदा कर दिया, इसी से मायाजीत, मोह जीत विजयी रहेंगे । सहयोगी भले हो, कम्पेनियन नहीं । कम्पेनियन एक है, कम्पेनियन-पन का भान आया और गया । 

जो बाप की याद में रहते उनके ऊपर सदा बाप का हाथ है । सभी मोस्ट लकी हो । घर बैठे भगवान मिल जाए तो इससे बड़ा लक और क्या चाहिए? जो स्वप्न में न हो और साकार हो जाए तो और क्या चाहिए? बाप आपके पास पहले आया, पीछे आप आये हो । इसी अपने भाग्य का वर्णन करते सदा खुश रहो, भगवान को मैंने अपना बना लिया । कहीं भी रहे लेकिन हर कर्म, हर दिनचर्या में सदा बाप के साथ का अनुभव करो ।  

भाईयों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात -

पाण्डव अर्थात् सदा के विजयी । पाण्डवों का नाम विजय के कारण ही प्रसिद्ध है । पाण्डव सेना वह भी विशेष सागर के कण्ठे पर श्रेष्ठ संग में रहने वाली । तो ऐसी पाण्डव सेना सदा विजयी हो? विजय का खेल सदा चलता है या हार-जीत का । अब समय और सहयोग के प्रमाण ड्रामा अनुसार जो भाग्य प्राप्त है उसी प्रमाण सदा विजयी का खेल चलना चाहिए । 

ड्रामा अनुसार जो विशेषता प्राप्त है उसे सदा कार्य में लगाओ तो औरों की भी विशेषता दिखाई देगी । विशेषता न देख बातों को देखते हो इसलिए हार होती है । हरेक की विशेषता को स्मृति में रखो । एक-दो में फेथफुल रहो तो उनकी बातों का भाव बदल जायेगा । अगर आपस में दो मित्र होते हैं और उनके बीच तीसरा उनकी ग्लानि करने आता है तो वह उसके भाव को बदल देते हैं । जैसे आपको कोई ब्रह्मा बाप के लिए कहे कि यह क्या, यह तो गाली देते हैं - लेकिन तुम उन्हें निश्चय से समझायेंगे कि यह गाली नहीं है यह तो स्पष्टीकरण है । जहाँ निक्षय होता है वहाँ शब्द का भाव बदल साधारण बात हो जाती है । हरेक की विशेषता को देखो तो अनेक होते भी एक दिखाई देंगे । एक मत संगठन हो जायेगा । कोई किसकी ग्लानि की बातें सुनावे तो उसे टेका देने के बजाए सुनाने वाले का रूप परिवर्तन कर दो । अर्थ में भावना परिवर्तन कर दो । यह अभ्यास चाहिए नहीं तो एक की बात दूसरे से सुनी, दूसरे की बात तीसरे से सुनी और फिर वह व्यर्थ बातें वातावरण में फैलती रहती, जिस कारण पावरफुल वातावरण नहीं बन पाता । साक्षात्कार मूर्त भी नहीं बन सकते । इसलिए सदैव सबके प्रति शुभ भावना, कल्याण की भावना हो । एक-दो की ग्लानि की बातें सुनना टाइम वेस्ट करना है । कमाई से वंचित होना है । अगर परिवर्तन कर सकते हो तो सुनो - नहीं तो सुनते हुए भी नहीं सुनो

हरेक की विशेषता का वर्णन करो । कोई कहे भी कि हमने ऐसा देखा तो भी आपके मुख से कोई ऐसी बात न निकले । आप उनकी विशेषता सुनाकर उस बात को चेन्ज़ कर दो । सबके मुख से हरेक के प्रति वाह-वाह! निकले । तब ही बाप की वाह- वाह! होगी । कोई की बात अगर नीचे ऊपर देखते हो, सुनते हो तो दिल में नहीं रखो, ऊपर दिया और खत्म । अपने आप को सदा खाली और हल्का रखो । अगर दिल के अन्दर किसी भी प्रकार की बात होगी तो जहाँ बाते हैं वहाँ बाप नहीं । किसके अवगुण को एक दो के सामने वर्णन नहीं करना चाहिए क्योंकि वर्णन करना अर्थात् बीमारी के जर्म्स को फैलाना । कोई ऐसे जर्म्स होते हैं तो उसी समय कोई पावरफुल दवाई डाल खत्म किया जाता है । कोई पूछे फलाना कैसे है तो दिल से निकले बहुत अच्छा है । अनेक भावों से अनेक आत्मायें आती हैं लेकिन आप की तरफ से शुभ भावना की बातें ही ले जाये । भावना शुभ हो, एक भावना, एक कामना एक की ही लगन में निर्विघ्न । व्यर्थ बातों का स्टॉक खत्म और खुशी की बातों का स्टॉक जमा हो । खुशी में झूलने वाली आत्मायें सबको नज़र आयें । हर बोल में रूहानियत हो, रूहानियत के शब्द बहुत मीठे होते हैं । समय प्रमाण स्टेज भी बहुत ऊँची होनी चाहिए । चढ़ती कला का अर्थ ही है जो पहले था उसको पार कर चलें । ऐसी स्थिति होनी चाहिए जो साक्षात्कार मूर्त दिखाई दें, फिर देखो कितनी भीड़ होती है । तुम्हारी स्थिति सदैव एकाग्र रहे तब नाम बाला होगा । वृत्ति की, दृष्टि की, स्वभाव की चेकिंग करने वाले सब आयेंगे लेकिन उन्हें रीयल ज्ञान का परिचय हो जाए । अच्छा - ओम् शान्ति ।

 

वरदान:-

सन्तुष्टता की विशेषता द्वारा हर कड़े पेपर में भी सफल होने वाले दृढ़ता सम्पन्न भव !   

सन्तुष्टता ब्राह्मणों का विशेष लक्षण है । जो भी पार्ट मिला है उसमें सन्तुष्ट रहना ही आगे बढ़ना है । कुछ भी नीचे ऊपर हो जाए, कोई इनसल्ट भी कर दे, लेकिन दाता के बच्चे कभी किसी बात में असन्तुष्ट नहीं हो सकते । वे स्वयं से भी सन्तुष्ट और औरों से भी सन्तुष्ट होंगे । इसके लिए दृढ़ता सम्पन्न संकल्प करो कि कितना भी कड़ा पेपर आ जाए लेकिन मुझे सन्तुष्ट रहना ही है तो सफल होते रहेंगे ।

 

स्लोगन:- 

खुशनुम: वह है जिसके दिल में सदा खुशी का सूर्य उदय रहता है ।     

 

ओम् शान्ति |