11-08-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


"मीठे बच्चे - अब विकर्म करना बन्द करो क्योंकि अब तुम्हें विकर्माजीत संवत शुरू करना है |"   

                           
प्रश्न:-   
हर एक ब्राह्मण बच्चे को किस एक बात में बाप को फॉलो अवश्य करना है?


उत्तर:-
जैसे बाप स्वयं टीचर बनकर तुम्हें पढ़ाते हैं, ऐसे बाप के समान हर एक को टीचर बनना है । जो पढ़ते हो उसे दूसरों को पढ़ाना है । तुम टीचर के बच्चे टीचर, सतगुरू के बच्चे सतगुरू भी हो । तुम्हें सचखण्ड स्थापन करना है । तुम सच की नैया पर हो, तुम्हारी नैया हिलेगी डुलेगी लेकिन डूब नहीं सकती ।

 

ओम् शान्ति |

रूहानी बाप बैठ बच्चों के साथ रूहरिहान करते हैं । रूहों से पूछते हैं क्योंकि यह नई नॉलेज है ना । मनुष्य से देवता बनने की यह है नई नॉलेज अथवा पढ़ाई । यह तुमको कौन पढ़ाते हैं? बच्चे जानते हैं रूहानी बाप हम बच्चों को ब्रह्मा द्वारा पढ़ाते हैं । यह भूलना नहीं चाहिए । वह बाप है फिर पढ़ाते हैं तो टीचर भी हो गया । यह भी तुम जानते हो हम पढ़ते ही हैं नई दुनिया के लिए । हर एक बात में निश्चय होना चाहिए । नई दुनिया के लिए पढ़ाने वाला बाप ही होता है । मूल बात ही बाप की हुई । बाप हमको यह शिक्षा देते हैं ब्रह्मा द्वारा । कोई द्वारा तो देंगे ना । गाया हुआ भी है भगवान ब्रह्मा द्वारा राजयोग सिखलाते हैं । ब्रह्मा द्वारा आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना करते हैं, जो देवी-देवता धर्म अभी नहीं है । अब तो है ही कलियुग । तो सिद्ध होता है स्वर्ग की स्थापना हो रही है । स्वर्ग में सिर्फ देवी-देवता धर्म वाले हैं, बाकी इतने सब धर्म होंगे ही नहीं अर्थात् विनाश हो जायेंगे क्योंकि सतयुग में और कोई धर्म था ही नहीं । यह बातें तुम बच्चों की बुद्धि में हैं, अब तो अनेक धर्म हैं । अब फिर बाप हमको मनुष्य से देवता बनाते हैं क्योंकि अब संगमयुग है । यह तो बहुत सहज बात समझाने की है । त्रिमूर्ति में भी दिखाते हैं-ब्रह्मा द्वारा स्थापना । किसकी? स्थापना जरूर नई दुनिया की होगी, पुरानी की तो नहीं होगी । बच्चों को यह निश्चय है कि नई दुनिया में रहते ही हैं दैवी गुण वाले देवतायें । तो अब हमको भी गृहस्थ व्यवहार में रहते दैवी गुण धारण करने हैं । पहले-पहले काम पर जीत पाकर निर्विकारी बनना है । कल इन देवी-देवताओं के आगे जाकर कहते भी थे कि आप सम्पूर्ण निर्विकारी हो, हम विकारी हैं । अपने को विकारी फील करते थे क्योंकि विकार में जाते थे । अब बाप कहते हैं तुमको भी ऐसे निर्विकारी बनना है । दैवी गुण धारण करने हैं । यह विकार काम-क्रोध आदि अगर हैं तो दैवी गुण नहीं कहेंगे । विकार में जाना, क्रोध करना यह आसुरी गुण है । देवताओं में लोभ होगा क्या? वहाँ 5 विकार होते नहीं । यह है ही रावण की दुनिया । रावण का जन्म होता है त्रेता और द्वापर के संगम पर । जैसे यह पुरानी दुनिया और नई दुनिया का संगम है ना, ऐसे वह भी संगम हो जाता है । अभी रावण राज्य में बहुत दु:ख है, बीमारी है, इसको कहा ही जाता है रावण राज्य । रावण को हर वर्ष जलाते हैं । वाम मार्ग में जाने से विकारी बन जाते हैं । अब तुमको निर्विकारी बनना है । यहाँ ही दैवीगुण धारण करने हैं । जैसा जो कर्म करता है ऐसा ही फल पाता है । बच्चों से अब कोई विकर्म नहीं होना चाहिए । 

एक होता है राजा विकर्माजीत, दूसरा होता है राजा विक्रम । यह है ही विक्रम संवत यानी रावण विकारियों का संवत । यह कोई समझते नहीं । न कल्प की आयु का ही किसको पता है । वास्तव में विकर्माजीत होते हैं देवतायें । 5 हजार वर्ष में 2500 वर्ष हुए राजा विक्रम के, 2500 वर्ष राजा विकर्माजीत के । आधा है विक्रम का । वह लोग भल कहते हैं परन्तु कुछ भी पता नहीं है । तुम कहेंगे विकर्माजीत का संवत एक वर्ष से शुरू होता है फिर 2500 वर्ष बाद विक्रम संवत शुरू होता है । अभी विक्रम संवत पूरा होगा फिर तुम विकर्माजीत महाराजा-महारानी बन रहे हो, जब बन जायेंगे तो विकर्माजीत संवत शुरू हो जायेगा । यह सब तुम ही जानते हो । तुमको कहते हैं ब्रह्मा को क्यों बिठाया है? अरे, तुम्हारी इनसे क्यों आकर पड़ी है । हमको पढ़ाने वाला कोई यह थोड़ेही है । हम तो शिवबाबा से पढ़ते हैं । यह भी उनसे पढ़ता है । पढ़ाने वाला तो ज्ञान का सागर है, वह है विचित्र, उनको चित्र अर्थात् शरीर होता नहीं । उनको कहा ही जाता है निराकार । वहाँ सब निराकारी आत्मायें रहती हैं । फिर यहाँ आकर साकारी बनती हैं । परमपिता परमात्मा को सब याद करते हैं, वह है आत्माओं का पिता । लौकिक बाप को परम अक्षर नहीं कहेंगे । यह समझ की बात है ना । स्कूल के स्टूडेंट पढ़ाई पर अटेंशन देते हैं । जब कोई मर्तबा पा लेते, बैरिस्टर आदि बन जाते तो फिर पढ़ाई बन्द । ऐसे थोड़ेही बैरिस्टर बनकर फिर पढ़ेगा । नहीं, पढ़ाई पूरी हो जाती है । तुम भी देवता बन गये फिर तुमको पढ़ाई की दरकार नहीं रहती । 2500 वर्ष देवताओं का राज्य चलता है । यह बातें तुम बच्चे ही जानते हो तुमको फिर औरों को समझाना पड़े । यह भी ख्याल रखना चाहिए । पढ़ाते नहीं तो टीचर कैसे ठहरे! तुम सब टीचर्स हो, टीचर की औलाद हो ना तो तुमको भी टीचर ही बनना है । तो कितने टीचर्स चाहिए पढ़ाने लिए? जैसे बाप, टीचर, सतगुरू है, वैसे तुम भी टीचर हो । सतगुरू के बच्चे सतगुरू हो । वह कोई सतगुरू नहीं है । वह गुरू के बच्चे गुरू । सत माना सच । सचखण्ड भी भारत को कहा जाता था, यह झूठ खण्ड है । सच खण्ड बाबा ही स्थापन करते हैं, वह है सच्चा साईं बाबा । जब रीयल बाप आते हैं तो झूठे भी बहुत निकल पड़ते हैं । गायन भी है ना-नैया डोलेगी तूफान आयेंगे परन्तु डूबेगी नहीं । बच्चों को समझाया जाता है, माया के तूफान बहुत आयेंगे । उनसे डरना नहीं है । सन्यासी लोग तुमको ऐसे कभी नहीं कहेंगे कि माया के तूफान आयेंगे । उनको पता ही नहीं है, नैया को पार कहाँ ले जायेंगे । 

तुम बच्चे जानते हो भक्ति से सद्गति नहीं होती है । नीचे ही उतरते जाते हैं । भल कहते हैं भगवान् आकर भक्तों को भक्ति का फल देते हैं । भक्ति तो जरूर करनी चाहिए । अच्छा, भक्ति का फल भगवान क्या आकर देंगे? जरूर सद्गति देंगे । कहते हैं परन्तु कब और कैसे देंगे-यह पता नहीं है । तुम कोई से पूछो तो कह देंगे यह तो अनादि चलती आ रही है । परम्परा से चली आई है । रावण को कब से जलाना शुरू किया है? कहेंगे परम्परा से । तुम समझाते हो तो कहते हैं इन्हों का ज्ञान तो कोई नया है । जिन्होंने कल्प पहले समझा है, वह झट समझ जाते हैं । ब्रह्मा की तो बात ही छोड़ दो । शिवबाबा का जन्म तो है ना, जिसको शिवरात्रि भी कहते हैं । बाप समझाते हैं मेरा जन्म दिव्य और अलौकिक है । प्राकृतिक मनुष्यों सदृश्य जन्म नहीं मिलता है क्योंकि वह सब गर्भ से जन्म लेते हैं, शरीरधारी बनते हैं । मैं तो गर्भ में प्रवेश नहीं करता हूँ । यह नॉलेज सिवाए परमपिता परमात्मा, ज्ञान सागर के और कोई दे न सके । ज्ञान सागर कोई मनुष्य को नहीं कहा जाता है । यह उपमा है ही निराकार की । निराकार बाप आत्माओं को पढ़ाते हैं, समझाते हैं । तुम बच्चे इस रावण के राज्य में पार्ट बजाते-बजाते देह-अभिमानी बन पड़े हो । आत्मा सब कुछ करती है । यह ज्ञान उड़ गया है । यह तो आरगन्स है ना । मैं आत्मा हूँ, चाहे इनसे कर्म कराऊँ, चाहे न कराऊँ । निराकारी दुनिया में तो शरीर रहित बैठे रहते हैं । अभी तुम अपने घर को भी जान गये हो । वो लोग फिर घर को ईश्वर मान लेते हैं । ब्रह्म ज्ञानी, तत्व ज्ञानी हैं ना । कहते हैं ब्रह्म में लीन हो जायेंगे । अगर कहें ब्रह्म में निवास करेंगे तो ईश्वर अलग हो जाये । यह तो ब्रह्म को ही ईश्वर कह देते हैं । यह भी ड्रामा में नूंध है । बाप को भी भूल जाते हैं । जो बाप विश्व का मालिक बनाते हैं, उनको तो याद करना चाहिए ना क्योंकि वही स्वर्ग बनाने वाला है । अभी तुम हो पुरूषोत्तम संगमयुगी ब्राह्मण । तुम उत्तम पुरूष बनते हो । कनिष्ट पुरूष उत्तम के आगे माथा टेकते हैं । देवताओं के मन्दिर में जाकर कितनी महिमा गाते हैं । अभी तुम जानते हो हम सो देवता बनते हैं । यह तो बहुत सिम्पुल बात है । विराट रूप के बारे में भी बतलाया है । विराट चक्र है ना । वह तो सिर्फ गाते हैं ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय । लक्ष्मी- नारायण आदि के चित्र तो हैं ना । बाप आकर सबको करेक्ट करते हैं । तुमको भी करेक्ट कर रहे हैं क्योंकि भक्ति मार्ग में जन्म-जन्मान्तर तुम जो कुछ करते आये हो वह है रांग इसलिए तुम तमोप्रधान बने हो । अभी है ही अनराइटियस वर्ल्ड । इसमे दु:ख ही दु:ख है क्योंकि रावण का राज्य है, सब विकारी हैं । रावण का राज्य है अनराइटियस, राम का राज्य है राइटियस । यह है कलियुग, वह है सतयुग । यह तो समझ की बात है ना । इनको शास्त्र उठाते कभी देखा है क्या । अपना भी नॉलेज दिया, रचना की भी समझानी दी है । शास्त्र बुद्धि में उन्हों के होते जो पढ़कर औरों को सुनाते हैं । तो सबका सुख दाता एक शिवबाबा है । वही ऊंच ते ऊंच बाप है, उनको परमपिता परमात्मा कहा जाता है । बेहद का बाप जरूर बेहद का वर्सा देते हैं । 5 हजार वर्ष पहले तुम स्वर्गवासी थे, अब नर्कवासी हो । राम कहा जाता है बाप को । वह राम नहीं, जिसकी सीता चुराई गई । वह कोई सद्गति दाता थोड़ेही है, वह राम राजा था । महाराजा भी नहीं था । महाराजा और राजा का भी राज समझाया है-वह 16 कला, वह 14 कला । रावण राज्य में भी राजायें, महाराजायें होते है हैं । वह बहुत साहूकार, वह कम साहूकार । उनको कोई सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी नहीं कहेंगे । इनमें साहूकार को महाराजा का लकब मिलता है । कम साहूकार को राजा का । अभी तो है ही प्रजा का प्रजा पर राज्य । धनी धोणी कोई है नहीं । राजा को प्रजा अन्न दाता समझती थी । अभी तो वह भी गये, बाकी प्रजा का देखो क्या हाल है! लडाई-झगड़ा आदि कितना है । अभी तुम्हारी बुद्धि में आदि से अन्त तक सारी नॉलेज है । रचयिता बाप अब प्रैक्टिकल में है, जिसकी फिर भक्ति मार्ग में कहानी बनेगी । अभी तुम भी प्रैक्टिकल में हो । आधाकल्प तुम राज्य करेंगे फिर बाद में कहानी हो जायेगी । चित्र तो रहते हैं । कोई से पूछो यह कब राज्य करते थे? तो लाखों वर्ष कह देंगे । सन्यासी हैं निवृत्ति मार्ग वाले, तुम हो पवित्र गृहस्थ आश्रम वाले । फिर अपवित्र गृहस्थ आश्रम में जाना है । स्वर्ग के सुखों को कोई जानता नहीं । निवृत्ति मार्ग वाले तो कभी प्रवृत्ति मार्ग सिखला न सके । आगे तो जंगल में रहते थे, उनमें ताकत थी । जंगल में ही उन्हों को भोजन पहुँचाते थे, अभी वह ताकत ही नहीं रही है । जैसे तुम्हारे में भी वहाँ राज्य करने की ताकत थी, अभी कहाँ है । हो तो वही ना । अभी वह ताकत नहीं रही है । भारतवासियों का असुल जो धर्म था वह अभी नहीं है । अधर्म हो गया है । बाप कहते हैं मैं आकर धर्म की स्थापना, अधर्म का विनाश करता हूँ । अधर्मियों को धर्म में ले आता हूँ । बाकी जो बचते हैं, वह विनाश हो जायेंगे । फिर भी बाप बच्चों को समझाते हैं कि सबको बाप का परिचय दो । बाप को ही दु:ख हर्ता सुख कर्ता कहा जाता है | जब बहुत दु:खी होते हैं तब ही बाप आकर सुखी बनाते हैं । यह भी अनादि बना-बनाया खेल है । अच्छा! 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर उत्तम पुरूष बनने के लिए आत्म-अभिमानी बनने का पुरूषार्थ करना है । सत् बाप मिला है तो कोई भी असत्य, अनराइटियस काम नहीं करना है । 

2. माया के तूफानों से डरना नहीं है । सदा याद रहे सत की नैया हिलेगी डुलेगी लेकिन डूबेगी नहीं । सतगुरू के बच्चे सतगुरू बन सबकी नैया पार लगानी है ।

 

वरदान:-

ईश्वरीय संग में रह उल्टे संग के वार से बचने वाले सदा के सतसंगी भव !    

कैसा भी खराब संग हो लेकिन आपका श्रेष्ठ संग उसके आगे कई गुणा शक्तिशाली है । ईश्वरीय संग के आगे वह संग कुछ भी नहीं है । सब कमजोर है । लेकिन जब खुद कमजोर बनते हो तब उल्टे संग का वार होता है । जो सदा एक बाप के संग में रहते हैं अर्थात् सदा के सतसंगी है वह और किसी संग के रंग में प्रभावित नहीं हो सकते । व्यर्थ बातें, व्यर्थ संग अर्थात् कुसंग उन्हें आकर्षित कर नहीं सकता ।

 

स्लोगन:- 

बुराई को भी अच्छाई में परिवर्तन करने वाले ही प्रसन्नचित्त रह सकते हैं ।   

 

ओम् शान्ति |