10-06-14         प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे सदा इसी नशे में रहो कि हमारा पदमापदम भाग्य है, जो पतित-पावन बाप के हम बच्चे बने हैं, उनसे हमें बेहद सुख का वर्सा मिलता है”   

                                                        
प्रश्न:-   
तुम बच्चों को किसी भी धर्म से घृणा वा नफ़रत नहीं हो सकती है - क्यों?


उत्तर:-
क्योंकि तुम बीज और झाड़ को जानते हो | तुम्हें पता है यह मनुष्य सृष्टि रूपी बेहद का झाड़ है इसमें हर एक का अपना-अपना पार्ट है | नाटक में कभी भी एक्टर्स एक-दूसरे से घृणा नहीं करेंगे | तुम जानते हो हमने इस नाटक में हीरो-हीरोइन का पार्ट बजाया | हमने जो सुख देखे, वह और कोई देख नहीं सकता | तुम्हें अथाह ख़ुशी है कि सारे विश्व पर राज्य करने वाले हम हैं |

 

ओम् शान्ति |

ओम् शान्ति कहने से ही बच्चों को जो नॉलेज मिली है, वह सारी बुद्धि में आ जानी चाहिए | बाप की भी बुद्धि में कौन-सी नॉलेज है? यह मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ है, जिसे कल्प वृक्ष भी कहते हैं, उसकी उत्पत्ति, पालना फिर विनाश कैसे होता है, सारा बुद्धि में आना चाहिए | जैसे वह जड़ झाड़ होता है, यह है चैतन्य | बीज भी चैतन्य है | उनकी महिमा भी गाते हैं, वह सत्य है, चैतन्य है अर्थात् झाड़ के आदि, मध्य, अन्त का राज़ समझा रहे हैं | कोई भी आक्यूपेशन को जानता नहीं | प्रजापिता ब्रह्मा के आक्यूपेशन को भी जानना चाहिए ना | ब्रह्मा को कोई याद नहीं करते, जानते ही नहीं | अजमेर में ब्रह्मा का मन्दिर है | त्रिमूर्ति चित्र छपाते हैं, उनमें ब्रह्मा, विष्णु, शंकर है | ब्रह्मा देवताए नमः कहते हैं | अब तुम बच्चे जानते हो – इस समय ब्रह्मा को देवता नहीं कहा जाता है | जब सम्पूर्ण बनें तब देवता कहा जाए | सम्पूर्ण बन चले जाते हैं सूक्ष्मवतन में |

बाबा कहते हैं तुम्हारे बाप का नाम क्या है? किससे पूछते हैं? आत्मा से | आत्मा कहती है हमारा बाबा | जिसको मालूम नहीं है कि किसने कहा, वह तो प्रश्न पूछ न सके | अब बच्चे समझ तो गये हैं – बरोबर दो बाप सबके हैं | ज्ञान तो एक ही बाप देते हैं | अभी तुम बच्चे समझते होंगे यह शिवबाबा का रथ है | बाबा इस रथ द्वारा हमको ज्ञान सुनाते हैं | एक तो यह है जिस्मानी ब्रह्मा बाप का रथ | दूसरा फिर रूहानी बाप का यह रथ है | उस रूहानी बाप की महिमा है सुख का सागर, शान्ति का सागर........| पहले तो यह बुद्धि में रहेगा यह बेहद का बाप है जिससे बेहद का वर्सा मिलता है | पावन दुनिया के मालिक बनते हैं | निराकार को बुलाते हैं पतित-पावन आओ | आत्मा ही बुलाती है | जब पावन आत्मा है तब नहीं पुकारते | पतित हैं तो पुकारते हैं | अब तुम आत्मा जानती हो वह पतित-पावन बाप इस तन में आया है | यह भूलना नहीं है, हम उनके बने हैं | यह सौभाग्य तो क्या पदम भाग्य की बात है | फिर उस बाप को भूलना क्यों चाहिए | इस समय बाप आये हैं – यह नई बात है | शिव जयन्ती भी हर वर्ष मनाई जाती है | तो ज़रूर वह एक बार ही आते हैं | लक्ष्मी-नारायण सतयुग में थे | इस समय नहीं हैं | तो समझाना चाहिए उन्हों ने पुनर्जन्म लिया होगा | 16 कला से 12-14 कला में आये होंगे | यह तुम्हारे बिना कोई नहीं जानते | सतयुग कहा जाता है नई दुनिया को | वहाँ सब-कुछ नया ही नया है | देवता धर्म नाम भी गाया जाता है | वही देवतायें जब वाम मार्ग में जाते हैं तो फिर उनको नया भी नहीं, तो देवता भी नहीं कह सकते | कोई भी ऐसे नहीं कहेंगे कि हम उनकी वंशावली के हैं | अगर अपने को उस वंशावली के समझते तो फिर उन्हों की महिमा, अपनी निंदा क्यों करते? महिमा जब करते हैं तो ज़रूर उन्हों को पवित्र, अपने को अपवित्र पतित समझते हैं | पावन से पतित बनते हैं, पुनर्जन्म लेते हैं | पहले-पहले जो पावन थे वही फिर पतित बने हैं | तुम जानते हो पावन से अब पतित बने हैं | तुम स्कूल में पढ़ते हो | उनमें भी नम्बरवार फर्स्ट, सेकण्ड क्लास तो होती है |

अभी बच्चे समझते हैं हमको बाप पढ़ाते हैं, तब तो आते हैं ना | नहीं तो यहाँ आने की क्या दरकार है | यह कोई गुरु, महात्मा, महापुरुष आदि कुछ नहीं है | यह तो साधारण मनुष्य तन है, सो भी बहुत पुराना है | बहुत जन्मों के अन्त में प्रवेश करता हूँ | और तो कोई इनकी महिमा नहीं सिर्फ़ इसमें प्रवेश करता हूँ तब इनका नाम होता है | नहीं तो प्रजापिता ब्रह्मा कहाँ से आया | मनुष्य मूँझते तो ज़रूर हैं ना | बाप ने तुमको समझाया है तब तुम औरों को समझाते हो | ब्रह्मा का बाप कौन? ब्रह्मा, विष्णु, शंकर – उन्हों का रचयिता यह शिवबाबा है | बुद्धि ऊपर चली जाती है | परमपिता परमात्मा जो परमधाम में रहते हैं, उनकी यह रचना है | ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का आक्यूपेशन अलग है | कोई आपस में 3-4 होते हैं, सबका आक्यूपेशन अपना-अपना होता है | पार्ट हर एक का अपना-अपना है | इतनी करोड़ों आत्मायें हैं – एक का पार्ट न मिले दूसरे से | ये वन्डरफुल बातें समझी जाती हैं | कितने ढेर मनुष्य हैं | अभी चक्र पूरा होता है | अन्त है ना | सब वापस जायेंगे, फिर से चक्र रिपीट होना है | बाप यह सब बातें भिन्न-भिन्न प्रकार से समझाते रहते हैं, नई बात नहीं | कहते हैं कल्प पहले भी समझाया था | बहुत लवली बाप है, ऐसे बाप को तो बहुत प्यार से याद करना चाहिए | तुम भी बाप के लवली बच्चे हो ना | बाप को याद करते आये हो | पहले सब एक की पूजा करते थे | भेदभाव की बात है नहीं | अभी तो कितना भेदभाव है | यह राम के भक्त हैं, यह कृष्ण के भक्त हैं | राम के भक्त धूप जगाते तो कृष्ण का नाक बन्द कर देते हैं | ऐसी भी कुछ बातें शास्त्रों में हैं | वह कहे हमारा भगवान् बड़ा, वह कहे हमारा बड़ा, दो भगवान् समझ लेते हैं | तो रांग होने कारण सब अनराइटियस काम ही करते हैं |

बाप समझाते हैं – बच्चे, भक्ति भक्ति है, ज्ञान ज्ञान है | ज्ञान का सागर एक ही बाप है | बाकी वह सब हैं भक्ति के सागर | ज्ञान से सद्गति होती है | अभी तुम बच्चे ज्ञानवान बने हो | बाप ने तुम्हें अपना और सारे चक्र का भी परिचय दिया है, जो और कोई दे न सके इसलिए बाप कहते हैं तुम बच्चे हो स्वदर्शन चक्रधारी | परमपिता परमात्मा तो एक ही है | बाकी सब बच्चे ही बच्चे हैं | परमपिता अपने को कोई कह न सके | जो अच्छे समझदार मनुष्य हैं, समझते हैं यह कितना बड़ा ड्रामा है | उनमें सब एक्टर्स अविनाशी पार्ट बजाते हैं | वह छोटे नाटक तो विनाशी होते हैं, यह है अनादि अविनाशी | कभी बन्द होने वाला नहीं है | इतनी छोटी आत्मा, इतना बड़ा पार्ट मिला हुआ है – शरीर लेने और छोड़ने का और पार्ट बजाने का | यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं | अगर इसको किसी गुरु ने सुनाया होता तो उनके और भी फ़ालोअर्स होते ना, सिर्फ़ एक फालोअर क्या काम का | फालोअर तो वह जो पूरा फ़ालो करे | इनकी ड्रेस आदि तो वह है नहीं | कौन कहेंगे शिष्य है | यह तो बाप बैठ पढ़ाते हैं | बाप को ही फ़ालो करना है, जैसे बारात होती है ना | शिव की भी बारात कहते हैं | बाबा कहते हैं यह हमारी बारात है | तुम सब भक्तियाँ हो, मैं हूँ भगवान् | तुम सब सजनियाँ हो, बाबा आया है तुमको श्रृंगार कर ले जाने | कितनी ख़ुशी होनी चाहिए | अब तुम सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त को जानते हो | तुम बाप को याद करते-करते पवित्र बन जाते हो तो पवित्र राजाई मिलती है | बाप समझाते हैं मैं आता ही हूँ अन्त में | मुझे बुलाते ही हैं पावन दुनिया की स्थापना और पतित दुनिया का विनाश कराने आओ, इसलिए महाकाल भी कहते हैं | महाकाल का भी मन्दिर होता है | काल के मन्दिर तो देखते हैं ना | शिव को काल कहेंगे ना | बुलाते हैं कि आकर पावन बनाओ | आत्माओं को ले जाते हैं | बेहद का बाप कितनी ढेर आत्माओं को लेने लिए आये हैं | काल-काल महाकाल, सब आत्माओं को पवित्र गुल-गुल बनाकर ले जाते है | गुल-गुल बन जायें तो फिर बाप भी ले चलेंगे गोद में | अगर पवित्र नहीं बनेंगे तो सजायें खानी पड़ेंगी, फ़र्क तो रहता है ना | पाप रह जाते हैं तो फिर सज़ा खानी पड़े | पद भी ऐसा मिलता है इसलिए बाप समझाते हैं – मीठे बच्चों, बहुत-बहुत मीठा बनो | कृष्ण सबको मीठा लगता है ना | कितना प्रेम से कृष्ण को झुलाते हैं, ध्यान में कृष्ण को छोटा देख झट गोद में उठाकर प्यार करते हैं | वैकुण्ठ में चले जाते हैं | वहाँ कृष्ण को चैतन्य रूप में देखते हैं | अभी तुम बच्चे जानते हो सचमुच वैकुण्ठ आ रहा है | हम भविष्य में यह बनेंगे | श्रीकृष्ण पर कलंक लगाते हैं, वह सब रांग है | तुम बच्चों को पहले नशा चढ़ना चाहिए | शुरू में बहुत साक्षात्कार हुए थे फिर पिछाड़ी में बहुत होंगे, ज्ञान कितना रमणीक है | कितनी ख़ुशी रहती है | भक्ति में तो कुछ भी ख़ुशी नहीं रहती | भक्ति वालों को यह थोड़ेही मालूम रहता है कि ज्ञान में कितना सुख है, भेंट कर न सकें | तुम बच्चों को पहले यह नशा चढ़ना चाहिए | यह ज्ञान सिवाए बाप के कोई भी ऋषि-मुनि आदि दे नहीं सकते | लौकिक गुरु तो किसको भी मुक्ति-जीवनमुक्ति का रास्ता बता नहीं सकते | तुम समझते हो कोई भी मनुष्य गुरु हो नहीं सकता, जो कहे हे आत्माओं, बच्चों, मैं तुमको समझाता हूँ | बाप को तो ‘बच्चे-बच्चे’ कहने की प्रैक्टिस है | जानते हैं यह हमारी रचना है | यह बाप भी कहते हैं मैं सबका रचयिता हूँ | तुम सब भाई-भाई हो | उनको पार्ट मिला है, कैसे मिला है वह बैठ समझाते हैं | आत्मा में ही सारा पार्ट भरा हुआ है | जो भी मनुष्य आते हैं, 84 जन्मों में कभी एक जैसे फ़ीचर्स मिल न सकें | थोड़ी-थोड़ी चेन्ज होती ज़रूर है | तत्व भी सतो, रजो, तमो होते जाते हैं | हर जन्म के फ़ीचर्स एक न मिले दूसरे से | यह भी समझने की बातें हैं | बाप रोज़ समझाते रहते हैं – मीठे बच्चे, बाप में कभी संशय नहीं लाओ | संशय और निश्चय – दो अक्षर हैं ना | बाप माना बाप | इसमें संशय तो हो न सके | बच्चा कह न सके कि मैं बाप को याद कर नहीं सकता हूँ | तुम घड़ी-घड़ी कहते हो योग नहीं लगता | योग अक्षर ठीक नहीं है | तुम तो राजऋषि हो | ‘ऋषि’ अक्षर पवित्रता का है | तुम राजऋषि हो तो ज़रूर पवित्र होंगे | थोड़ी बात में फेल होने से फिर राजाई मिल न सके | प्रजा में चले जाते हैं | कितना घाटा पड़ जाता है | नम्बरवार पद होते हैं ना | एक का पद न मिले दूसरे से | यह बेहद का बना-बनाया ड्रामा है | सिवाए बाप के कोई समझा न सके | तो तुम बच्चों को कितनी ख़ुशी होती है | जैसे बाप की बुद्धि में सारा ज्ञान है वैसे तुम्हारी बुद्धि में भी है | बीज और झाड़ को समझना है | मनुष्य सृष्टि का झाड़ है, इनके साथ बनेन ट्री का मिसाल बिल्कुल एक्यूरेट है | बुद्धि भी कहती है हमारा आदि सनातन देवी-देवता धर्म का जो थुर था वह प्रायः लोप हो गया है | बाकी सब धर्मों की टाल-टालियाँ आदि खड़ी हैं | ड्रामा अनुसार यह सब होना ही है, इसमें घृणा नहीं आती | नाटक में एक्टर्स को कभी घृणा आयेगी क्या! बाप कहते हैं तुम पतित बन गये हो फिर पावन बनना है | तुम जितना सुख देखते हो उतना और कोई नहीं देखते | तुम हीरो-हीरोइन हो, विश्व पर राज्य पाने वाले हो तो अथाह ख़ुशी होनी चाहिए ना | भगवान् पढ़ाते हैं! कितना रेग्युलर पढ़ना चाहिए, इतनी ख़ुशी होनी चाहिए | बेहद का बाप हमें पढ़ाते हैं | राजयोग भी बाप ही सिखलाते हैं | कोई शरीरधारी तो सिखला न सकें | बाप ने आत्माओं को सिखलाया है, आत्मा ही धारण करती है | बाप एक बार ही आते हैं पार्ट बजाने | आत्मा ही पार्ट बजाकर एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है | आत्माओं को बाप पढ़ाते हैं | देवताओं को नहीं पढ़ायेंगे | वहाँ तो देवतायें ही पढ़ायेंगे | संगमयुग पर बाप ही पढ़ाते हैं, पुरुषोत्तम बनाने के लिए | तुम ही पढ़ते हो | यह संगमयुग एक ही है, जब तुम पुरुषोत्तम बनते हो | सत्य बनाने वाला, सतयुग की स्थापना करने वाला एक ही सच्चा बाबा है | अच्छा! 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-  

1. संगमयुग पर डायरेक्ट भगवान् से पढ़ाई पढ़कर, ज्ञानवान आस्तिक बनना और बनाना है | कभी भी बाप वा पढ़ाई में संशय नहीं लाना है | 

2. बाप समान लवली बनना है | भगवान् हमारा श्रृंगार कर रहे हैं, इस ख़ुशी में रहना है | किसी भी एक्टर से घृणा वा नफ़रत नहीं करनी है | हरेक का इस ड्रामा में एक्यूरेट पार्ट है |

 

वरदान:- 

ब्राह्मण जीवन की प्रॉपर्टी और पर्सनालिटी का अनुभव करने और कराने वाली विशेष आत्मा भव !   

बापदादा सभी ब्राह्मण बच्चों को स्मृति दिलाते हैं कि ब्राह्मण बने – अहो भाग्य! लेकिन ब्राह्मण जीवन का वर्सा, प्रॉपर्टी सन्तुष्टता है और ब्राह्मण जीवन की पर्सनालिटी प्रसन्नता है | इस अनुभव से कभी वंचित नहीं रहना | अधिकारी हो | जब दाता, वरदाता खुली दिल से प्राप्तियों का ख़ज़ाना दे रहे हैं तो उसे अनुभव में लाओ और औरों को भी अनुभवी बनाओ तब कहेंगे विशेष आत्मा |

 

स्लोगन:- 

लास्ट समय का सोचने के बजाए लास्ट स्थिति का सोचो |     

ओम् शान्ति |