03-11-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे -
"सभी
को पहले-पहले अल्फ का पाठ पक्का कराओ,
आप
आत्मा भाई- भाई हैं" 
प्रश्न:-
किस
एक बात में श्रीमत,
मनुष्य मत के बिल्कुल ही विपरीत है?
उत्तर:-
मनुष्य मत कहती है हम मोक्ष में चले जायेंगे । श्रीमत कहती है
यह ड्रामा अनादि अविनाशी है । मोक्ष किसी को मिल नहीं सकता ।
भल कोई कहे यह पार्ट बजाना हमको पसन्द नहीं । परन्तु इसमें कुछ
भी कर नहीं सकते । पार्ट बजाने आना ही है । श्रीमत ही तुम्हें
श्रेष्ठ बनाती है । मनुष्य मत तो अनेक प्रकार की है ।
ओम्
शान्ति |
अभी
यह तो बच्चे जानते हैं कि हम बाबा के सामने बैठे हैं । बाप भी
जानते हैं बच्चे हमारे सामने बैठे हैं । यह भी तुम बच्चे जानते
हो बाप हमें शिक्षा देते हैं जो फिर औरों को देनी है ।
पहले-पहले तो बाप का ही परिचय देना है क्योंकि सभी बाप को और
बाप की शिक्षा को भूले हुए हैं । अभी जो बाप पढ़ाते हैं यह पढ़ाई
फिर 5 हजार वर्ष बाद मिलेगी । यह ज्ञान और कोई को है नहीं ।
मुख्य हुआ बाप का परिचय फिर यह सब समझाना है । हम सब भाई- भाई
हैं । सारी दुनिया की जो सभी आत्मायें हैं,
सब
आपस में भाई- भाई हैं । सभी अपना मिला हुआ पार्ट इस शरीर
द्वारा बजाते हैं । अभी तो बाप आयें हैं नई दुनिया में ले जाने
के लिए,
जिसको स्वर्ग कहा जाता है । परन्तु अभी हम सब भाई पतित हैं,
एक
भी पावन नहीं । सभी पतितों को पावन बनाने वाला एक ही बाप है ।
यह है ही पतित विकारी रावण की दुनिया । रावण का अर्थ ही है - 5
विकार स्त्री में,
5
विकार पुरूष में । बाप बहुत सिम्पुल रीति समझाते हैं । तुम भी
ऐसे समझा सकते हो । तो पहले-पहले यह समझाओ कि हम आत्माओं का वह
बाप है,
सभी
ब्रदर्स हैं । पूछो यह ठीक है?
लिखो
हम सब भाई- भाई हैं । हमारा बाप भी एक है । हम सब सोल्स का वह
है सुप्रीम सोल । उनको फादर कहा जाता है । यह पक्का बुद्धि में
बिठाओ तो सर्वव्यापी आदि की किचड़ा पट्टी निकल जाए । अल्फ पहले
पढ़ाना है । बोलो,
यह
पहले अच्छी रीति बैठ लिखो - आगे सर्वव्यापी कहता था,
अब
समझता हूँ सर्वव्यापी नहीं हैं । हम सब भाई- भाई हैं । सब
आत्मायें कहती हैं गॉड फादर,
परमपिता परमात्मा,
अल्लाह । पहले तो यह निश्चय बिठाना है कि हम आत्मा हैं,
परमात्मा नहीं है । न हमारे में परमात्मा व्यापक है । सभी में
आत्मा व्यापक है । आत्मा शरीर के आधार से पार्ट बजाती है । यह
पक्का कराओ । अच्छा फिर वह बाप सृष्टि चक्र के आदि,
मध्य,
अन्त
का ज्ञान सुनाते हैं । बाप ही टीचर के रूप में बैठ समझाते हैं
। लाखों वर्ष की तो बात नहीं । यह चक्र अनादि बना-बनाया है ।
इक्वल कैसे हैं-इसको जानना पड़े । सतयुग-त्रेता पास्ट हुआ,
नोट
करो । उनको कहा जाता है स्वर्ग और सेमी स्वर्ग । वहाँ
देवी-देवताओं का राज्य चलता है । सतयुग में है 16 कला,
त्रेता में है 14 कला । सतयुग का प्रभाव बहुत भारी है । नाम ही
है स्वर्ग,
हेविन । नई दुनिया सतयुग को कहा जाता है । उसकी ही महिमा करनी
है । नई दुनिया में है ही एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म ।
चित्र भी तुम्हारे पास हैं निश्चय कराने के लिए । यह सृष्टि का
चक्र फिरता रहता है । इस कल्प की आयु ही 5 हजार वर्ष है । अब
सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी तो बुद्धि में बैठा । विष्णुपुरी ही बदल
राम- सीता पुरी बनती है । उनकी भी डिनायस्टी चलती है ना । दो
युग पास्ट हुए फिर आता है द्वापरयुग । रावण का राज्य ।
देवतायें वाम मार्ग में चले जाते हैं तो विकार का सिस्टम बन
जाता है । सतयुग-त्रेता में सभी निर्विकारी रहते हैं । एक आदि
सनातन देवी-देवता धर्म रहता है । चित्र भी दिखाना है,
ओरली
भी समझाना है । बाप हमको टीचर होकर ऐसे पढ़ाते हैं । बाप अपना
परिचय खुद ही आकर देते हैं । खुद कहते हैं मैं आता हूँ पतितों
को पावन बनाने के लिए तो मुझे शरीर जरूर चाहिए । नहीं तो बात
कैसे करूँ । मैं चैतन्य हूँ,
सत
हूँ और अमर हूँ । सतो,
रजो,
तमो
में आत्मा आती है । आत्मा ही पतित,
आत्मा ही पावन बनती है । आत्मा में ही सब संस्कार हैं । पास्ट
के कर्म वा विकर्म का संस्कार आत्मा ले आती है । सतयुग में तो
विकर्म होता नहीं,
कर्म
करते हैं,
पार्ट बजाते हैं । परन्तु वह कर्म अकर्म बन जाता है । गीता में
भी अक्षर हैं । अभी तुम प्रैक्टिकल में समझ रहे हो । जानते हो
बाबा आया हुआ है पुरानी दुनिया को बदल नई दुनिया बनाने,
जहाँ
कर्म अकर्म हो जाते हैं । उनको ही सतयुग कहा जाता है और यहाँ
फिर यह कर्म विकर्म ही होते हैं जिसको कलियुग कहा जाता है ।
तुम अभी हो संगम पर । बाबा दोनों ही तरफ की बात सुनाते हैं ।
एक-एक बात अच्छी रीति समझे-बाप टीचर ने क्या समझाया?
अच्छा,
बाकी
है गुरू का कर्तव्य,
उनको
बुलाया ही है कि आकर हम पतितों को पावन बनाओ । आत्मा पावन बनती
है फिर शरीर भी पावन बनता है । जैसे सोना,
वैसे
जेवर भी बनता है । 24 कैरेट का सोना लेंगे और खाद नहीं डालेंगे
तो जेवर भी ऐसा सतोप्रधान बनेगा । अलाए डालने से फिर तमोप्रधान
बन पडता है क्योंकि खाद पड़ती है ना । पहले भारत 24 कैरेट पक्के
सोने की चिड़िया था अर्थात् सतोप्रधान नई दुनिया थी फिर अब
तमोप्रधान है । पहले प्योर सोना है । नई दुनिया पवित्र,
पुरानी दुनिया अपवित्र । खाद पड़ती जाती है । यह बाप ही समझाते
हैं और कोई मनुष्य गुरू लोग नहीं जानते । बुलाते हैं आकर पावन
बनाओ । सतगुरू का काम है वानप्रस्थ अवस्था में मनुष्यों को
गृहस्थ से किनारा कराना । तो यह सारी नॉलेज ड्रामा प्लैन
अनुसार बाप ही आकर देते हैं । वह है मनुष्य सृष्टि का बीजरूप ।
वही सारे वृक्ष की नॉलेज समझाते हैं । शिवबाबा का नाम सदैव शिव
ही है । बाकी आत्मायें सब आती हैं पार्ट बजाने,
तो
भिन्न-भिन्न नाम धराती हैं । बाप को बुलाते हैं परन्तु उन्हें
जानते नहीं-वह कैसे भाग्यशाली रथ में आते हैं तुमको पावन
दुनिया में ले जाने । तो बाप समझाते हैं मैं उनके तन में आता
हूँ,
जो
बहुत जन्मों के अन्त में है,
पूरा
84 जन्म लेते हैं । राजाओं का राजा बनाने के लिए इस भाग्यशाली
रथ में प्रवेश करना होता है । पहले नम्बर में हैं श्रीकृष्ण ।
वह है नई दुनिया का मालिक । फिर वही नीचे उतरते हैं ।
सूर्यवंशी,
चन्द्रवंशी,
फिर
वैश्य,
शूद्र वंशी फिर ब्रह्मा वंशी बनते हैं । गोल्डन से सिल्वर...
फिर तुम आइरन से गोल्डन बन रहे हो । बाप कहते हैं मुझ एक अपने
बाप को याद करो । जिसमें मैंने प्रवेश किया है,
इनकी
आत्मा में तो जरा भी यह नॉलेज नहीं थी । इनमें मैं प्रवेश करता
हूँ,
इसलिए इनको भाग्यशाली रथ कहा जाता है । खुद कहते हैं मैं इनके
बहुत जन्मों के अन्त में आता हूँ । गीता में अक्षर एक्यूरेट है
। गीता को ही सर्व शास्त्रमई शिरोमणी कहा जाता है ।
इस
संगमयुग पर ही बाप आकर ब्राह्मण कुल और देवी-देवता कुल की
स्थापना करते हैं । औरों का तो सबको मालूम है ही,
इनका
कोई को पता नहीं है । बहुत जन्मों के अन्त में अर्थात् संगमयुग
पर ही बाप आते हैं । बाप कहते हैं मैं बीजरूप हूँ । कृष्ण तो
है ही सतयुग का रहवासी । उनको दूसरी जगह तो कोई देख न सके ।
पुनर्जन्म में तो नाम,
रूप,
देश,
काल
सब बदल जाता है । पहले छोटा बच्चा सुन्दर होता है फिर बड़ा होता
है फिर वह शरीर छोड़ दूसरा छोटा लेता है । यह बना- बनाया खेल है
। ड्रामा के अन्दर फिक्स है । दूसरे शरीर में तो उनको कृष्ण
नहीं कहेंगे । उस दूसरे शरीर पर नाम आदि फिर दूसरा पड़ेगा । समय,
फीचर्स,
तिथि,
तारीख आदि सब बदल जाता है । वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी हूबहू
रिपीट कहा जाता है । तो यह ड्रामा रिपीट होता रहता है । सतो,
रजो,
तमो
में आना ही है । सृष्टि का नाम,
युग
का नाम सब बदलते जाते हैं । अभी यह है संगमयुग । मैं आता ही
हूँ संगम पर । यह हमको अन्दर में पक्का करना है । बाप हमारा
बाप,
टीचर,
गुरू
है जो फिर सतोप्रधान बनने की युक्ति बहुत अच्छी बताते हैं ।
गीता में भी है देह सहित देह के सब धर्म छोड़ अपने को आत्मा
समझो । वापिस अपने घर जरूर जाना है । भक्ति मार्ग में कितनी
मेहनत करते हैं भगवान पास जाने के लिए । वह है मुक्तिधाम ।
कर्म से मुक्त हम इनकारपोरियल दुनिया में जाकर बैठते हैं ।
पार्टधारी घर गया तो पार्ट से मुक्त हुआ । सब चाहते हैं हम
मुक्ति पावें । परन्तु मुक्ति तो किसको मिल न सके । यह ड्रामा
अनादि अविनाशी है । कोई कहे यह पार्ट बजाना हमको पसन्द नहीं,
परन्तु इसमें कोई कुछ कर न सके । यह अनादि ड्रामा बना हुआ है ।
एक भी मुक्ति को नहीं पा सकते | वह सब हैं अनेक प्रकार की
मनुष्य मत | यह है श्रीमत,
श्रेष्ठ बनाने लिए । मनुष्य को श्रेष्ठ नहीं कहेंगे । देवताओं
को श्रेष्ठ कहा जाता है । उन्हों के आगे सब नमन करते हैं । तो
वह श्रेष्ठ ठहरे ना । परन्तु यह भी किसको पता नहीं है । अभी
तुम समझते हो कि 84 जन्म तो लेना ही है । श्रीकृष्ण देवता है,
वैकुण्ठ का प्रिन्स । वह यहाँ कैसे आयेगा । न उसने गीता सुनाई
। सिर्फ देवता था इसलिए सभी लोग उनको पूजते हैं । देवता हैं
पावन,
खुद
पतित ठहरे । कहते भी हैं मुझ निर्गुण हारे में कोई गुण
नाही....... आप हमको ऐसा बनाओ । शिव के आगे जाकर कहेंगे हमको
मुक्ति दो । वह कभी जीवनमुक्त,
जीवनबंध में आते ही नहीं इसलिए उन्हें पुकारते हैं मुक्ति दो ।
जीवनमुक्ति भी वही देते हैं ।
अभी
तुम समझते हो बाबा और मम्मा के हम सब बच्चे हैं,
उनसे
हमें अथाह धन मिलता है । मनुष्य तो बेसमझी से मांगनी करते रहते
हैं । बेसमझ तो जरूर दुःखी ही होंगे ना । अथाह दु :ख भोगने
पड़ते हैं । तो यह सब बातें बच्चों को बुद्धि में रखनी है । एक
बेहद के बाप को न जानने कारण कितना आपस में लडते रहते हैं ।
आरफन बन पड़े हैं । वह होते हैं हद के आरफन्स,
यह
हैं बेहद के आरफन्स । बाप नई दुनिया स्थापन करते हैं । अभी है
ही पतित आत्माओं की पतित दुनिया । पावन दुनिया सतयुग को कहा
जाता है,
पुरानी दुनिया कलियुग को । तो बुद्धि में यह सब बातें हैं ना ।
पुरानी दुनिया का विनाश हो जायेगा फिर नई दुनिया में ट्रांसफर
हो जायेंगे । अभी हम टेम्प्रेरी संगमयुग पर खड़े हैं । पुरानी
दुनिया से नई बन रही है । नई दुनिया का भी पता है । तुम्हारी
बुद्धि अब नई दुनिया में जानी चाहिए । उठते-बैठते यही बुद्धि
में रहे कि हम पढ़ाई पढ़ रहे हैं । बाप हमको पढ़ाते हैं ।
स्टूडेंट को यह याद रहना चाहिए फिर भी वह याद नम्बरवार
पुरूषार्थ अनुसार रहती है । बाप भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार
याद-प्यार देते हैं । अच्छा पढ़ने वाले को टीचर जरूर प्यार
जास्ती करेंगे । कितना अन्तर पड़ जाता है । अब बाप तो समझाते
रहते हैं । बच्चों को धारणा करनी है । एक बाप के सिवाए और कोई
तरफ बुद्धि न जाए । बाप को याद नहीं करेंगे तो पाप कैसे कटेंगे
। माया घड़ी-घड़ी तुम्हारा बुद्धियोग तोड़ देगी । माया बहुत धोखा
देती है । बाबा मिसाल देते हैं भक्ति मार्ग में हम लक्ष्मी की
बहुत पूजा करते थे । चित्र में देखा लक्ष्मी पांव दबा रही है
तो उसे मुक्त करा दिया । उनकी याद में बैठते जब बुद्धि इधर-उधर
जाती थी तो अपने को थप्पड़ मारते थे-बुद्धि और तरफ क्यों जाती
है?
आखरीन विनाश भी देखा,
स्थापना भी देखी । साक्षात्कार की आश पूरी हुई,
समझा
अब यह नई दुनिया आती है,
हम
यह बनेंगे । बाकी यह पुरानी दुनिया तो विनाश हो जायेगी । पक्का
निश्चय हो गया । अपनी राजधानी का भी साक्षात्कार हुआ तो बाकी
इस रावण के राज्य को क्या करेंगे,
जबकि
स्वर्ग की राजाई मिलती है,
यह
हुई ईश्वरीय बुद्धि । ईश्वर ने प्रवेश कर यह बुद्धि चलाई ।
ज्ञान कलष तो माताओं को मिलता है,
तो
माताओं को ही सब कुछ दे दिया,
तुम
कारोबार सम्भालो,
सबको
सिखलाओ । सिखलाते- सिखलाते यहाँ तक आ गये । एक-दो को
सुनाते-सुनाते देखो अब कितने हो गये हैं । आत्मा पवित्र होती
जाती है फिर आत्मा को शरीर भी पवित्र चाहिए । समझते भी हैं फिर
भी माया भुला देती है ।
तुम
कहते हो 7 रोज पढ़ो तो कहते हैं कल आयेंगे । दूसरे दिन माया
खलास कर देती है । आते ही नहीं । भगवान पढ़ाते हैं तो भगवान से
नहीं आकर पढते हैं! कहते भी हैं - हॉ,
जरूर
आयेंगे परन्तु माया उड़ा देती है । रेग्युलर होने नहीं देती है
। जिन्होंने कल्प पहले पुरूषार्थ किया वह जरूर करेंगे और कोई
हट्टी है नहीं । तुम पुरूषार्थ बहुत करते हो । बड़े-बड़े
म्युजियम बनाते हो । जिन्होंने कल्प पहले समझा है वही समझेंगे
। विनाश होना है । स्थापना भी होती जाती है । आत्मा पढ़कर
फर्स्टक्लास शरीर लेगी । एम आब्जेक्ट यह है ना । यह याद क्यों
नहीं पड़ना चाहिए । अभी हम नई दुनिया में जाते हैं,
अपने
पुरूषार्थ अनुसार । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1.बुद्धि
में सदा याद रहे कि अभी हम थोड़े समय के लिए संगमयुग में बैठे
हैं,
पुरानी
दुनिया विनाश होगी तो हम नई दुनिया में ट्रान्सफर हो जायेंगे
इसलिए इससे बुद्धियोग निकाल देना है ।
2.सभी
आत्माओं को बाप का परिचय दे कर्म,
अकर्म,
विकर्म की गुह्य गति सुनानी है,
पहले अल्फ का ही पाठ पक्का कराना है ।
वरदान:-
सर्व
खजानों से सम्पन्न बन निरन्तर सेवा करने वाले अखुट,
अखण्ड महादानी भव
!
बापदादा ने संगमयुग पर सभी बच्चों को
''
अटल-
अखण्ड'
'
का
वरदान दिया है । जो इस वरदान को जीवन में धारण कर अखण्ड
महादानी अर्थात् निरन्तर सहज सेवाधारी बनते हैं वह नम्बरवन बन
जाते हैं । द्वापर से भक्त आत्मायें भी दानी बनती हैं लेकिन
अखुट खजानों के दानी नहीं बन सकती । विनाशी खजाने या वस्तु के
दानी बनते हैं,
लेकिन आप दाता के बच्चे जो सर्व खजानों से सम्पन्न हो वह एक
सेकण्ड भी दान देने के बिना रह नहीं सकते ।
स्लोगन:-
अन्दर की सच्चाई सफाई प्रत्यक्ष तब होती है जब स्वभाव में
सरलता हो
| 
ओम्
शान्ति |