12-04-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते हुए बेहद की उन्नति करो, जितना
अच्छी रीति बेहद की पढ़ाई पढ़ेंगे, उतनी उन्नति होगी
| 
प्रश्न:-
तुम
बच्चे जो बेहद की पढ़ाई पढ़ रहे हो, इसमें सबसे ऊँच डिफीकल्ट
सब्जेक्ट कौन-सी है?
उत्तर:-
इस
पढ़ाई में सबसे ऊँची सब्जेक्ट है भाई-भाई की दृष्टि पक्की करना
| बाप ने ज्ञान का जो तीसरा नेत्र दिया है उस नेत्र से आत्मा
भाई-भाई को देखो | ज़रा भी आँखें धोख़ा न दें | किसी भी देहधारी
के नाम-रूप में बुद्धि न जाये | बुद्धि में ज़रा भी विकारी
छी-छी संकल्प न चलें | यह है मेहनत | इस सब्जेक्ट में पास होने
वाले विश्व का मालिक बन जायेंगे |
ओम्
शान्ति
|
बेहद
का बाप बैठ बेहद के बच्चों को समझाते हैं | हर एक बात एक हद की
होती है, दूसरी बेहद की भी होती है | इतना समय तुम हद में थे,
अब बेहद में हो | तुम्हारी पढ़ाई भी बेहद की है | बेहद की
बादशाही के लिए पढ़ाई है, इससे बड़ी पढ़ाई कोई होती नहीं | कौन
पढ़ाते हैं? बेहद का बाप भगवान् | शरीर निर्वाह अर्थ भी सब कुछ
करना है | फिर अपनी उन्नति के लिए भी कुछ करना होता है | बहुत
लोग नौकरी करते भी उन्नति के लिए पढ़ते रहते हैं | वहाँ है हद
की उन्नति, यहाँ बेहद बाप के पास है बेहद की उन्नति | बाप कहते
हैं हद की और बेहद की दोनों उन्नति करो | बुद्धि से समझते हो
हमको बेहद की सच्ची कमाई अब करनी है | यहाँ तो सब कुछ मिट्टी
में मिल जाना है | जितना-जितना तुम बेहद की कमाई में जोर भरते
जायेंगे तो हद के कमाई की बातें भूलती जायेंगी | सब समझ
जायेंगे अब विनाश होना है | विनाश नज़दीक आयेगा तो भगवान् को भी
ढूंढेंगे | विनाश होता है तो ज़रूर स्थापना करने वाला भी होगा |
दुनिया तो कुछ भी नहीं जानती | तुम प्रजापिता
ब्रह्माकुमार-कुमारियां भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार पढ़ाई पढ़
रहे हो | हॉस्टल में वह स्टूडेन्ट रहते हैं तो पढ़ते हैं |
परन्तु यह हॉस्टल तो न्यारी है | इस हॉस्टल में तो कई ऐसे ही
रहते हैं, जो शुरू में चले आये वह रह गये हैं | ऐसे ही आ गये |
वैरायटी आ गये | ऐसे नहीं, सब अच्छे आये | छोटे-छोटे बच्चे भी
तुम ले आये | तुम बच्चों को भी सम्भालते थे | फिर उनमें कितने
चले गये | बगीचे में फूल भी देखो, पक्षी भी देखो कैसे
टिकलू-टिकलू करते हैं | यह मनुष्य सृष्टि भी इस समय ऐसे है |
हमारे में कोई सभ्यता नहीं थी | सभ्यता वालों की महिमा गाते थे
| कहते थे हम निर्गुण हारे में कोई गुण नाहीं...... | भल कितने
भी बड़े आदमी आते हैं, फ़ील करते हैं कि हम रचयिता बाप और रचना
के आदि-मध्य-अन्त को नहीं जानते हैं | फिर वह किस काम के | तुम
भी कुछ काम के नहीं थे | अब तुम समझते हो बाप की कमाल है | बाप
विश्व का मालिक बनाते हैं | जो राजाई हमसे कोई भी छीन नहीं
सकते | ज़रा भी कोई विघ्न डाल न सके | क्या से हम क्या बनते
हैं! तो ऐसे बाप की श्रीमत पर ज़रूर चलना चाहिए | भल दुनिया में
कितनी ग्लानि, हंगामे आदि होते हैं | यह कोई नई बात नहीं है |
5 हज़ार वर्ष पहले भी हुआ था | शास्त्रों में भी है | बच्चों को
बताया है, यह जो भक्ति मार्ग के शास्त्र हैं, वह फिर भक्ति
मार्ग में पढ़ेंगे | इस समय तुम ज्ञान से सुखधाम में जाते हो |
उसके लिए पूरा पुरुषार्थ करना चाहिए | जितना अब पुरुषार्थ
करेंगे, उतना कल्प-कल्प होगा | अपने अन्दर जाँच करनी है – कहाँ
तक हम ऊँच पद पायेंगे | यह तो हर एक स्टूडेन्ट समझ सकते हैं कि
हम जितना अच्छा पढ़ेंगे उतना ऊँच जायेंगे | यह हमसे होशियार
हैं, हम भी होशियार बनें | व्यापारियों में भी ऐसे होता है –
मैं इनसे ऊपर जाऊं यानि होशियार बनूँ | अल्पकाल सुख के लिए
मेहनत करते हैं | बाप कहते हैं – मीठे-मीठे बच्चों, मैं
तुम्हारा कितना बड़ा बाप हूँ | साकारी बाप भी है तो निराकारी भी
है | दोनों इकट्ठे हैं | दोनों मिलकर कहते हैं – मीठे बच्चे,
अब तुम बेहद की पढ़ाई को समझ गये हो | और तो कोई जानते ही नहीं
| पहली बात तो हमको पढ़ाने वाला कौन? भगवान् क्या पढ़ाते हैं?
राजयोग | तुम राजऋषि हो | वह हैं हठयोगी | वे भी हैं ऋषि,
परन्तु हद के | वह कहते हैं हमने घरबार छोड़ा है | यह कोई अच्छा
काम किया है क्या? तुम घरबार तब छोड़ते हो, जब तुमको विकार के
लिए तंग करते हैं | उनको क्या तंगी हुई? तुमको मार पड़ी तब तुम
भागी हो | एक-एक से पूछो, कुमारियों ने, स्त्रियों ने कितनी
मार खाई है, तब चली आई | शुरू में कितने आये | यहाँ मिलता था
ज्ञान अमृत तो चिट्ठी ले आई कि हम ज्ञान अमृत पीने ओम राधे के
पास जा रहे हैं | यह विकार पर झगड़ा, हंगामा शुरू से चलता आ रहा
है | बन्द तब होगा जब आसुरी दुनिया का विनाश होगा | फिर
आधाकल्प के लिए बन्द हो जायेगा |
अभी
तुम बच्चे बेहद के बाप से प्रालब्ध लेते हो | बेहद का बाप सबको
बेहद की प्रालब्ध देते हैं | हद का बाप हद की प्रालब्ध देते
हैं | वह भी सिर्फ़ बच्चे को ही वर्सा मिलता है | यहाँ बाप कहते
हैं – तुम बच्ची हो या बच्चा, दोनों वर्से के हक़दार हैं | उस
लौकिक बाप के पास भेद रहता है, सिर्फ़ बच्चे को वारिस बनाते हैं
| स्त्री को हाफ पार्टनर कहते हैं | परन्तु उनको भी हिस्सा
देते नहीं हैं | बच्चा ही सम्भाल लेते हैं | बाप का बच्चों में
मोह रहता है | यह बाप तो कायदे अनुसार सभी बच्चों (आत्माओं) को
वर्सा देते हैं | यहाँ बच्चे वा बच्ची के भेद का मालूम ही नहीं
है | तुम कितने सुख का वर्सा बेहद के बाप से लेते हो | फिर भी
पूरा पढ़ते नहीं | पढ़ाई को छोड़ देते हैं | बच्चियाँ लिखती हैं –
बाबा, फ़लाने ने ब्लड से लिखकर दिया है | अब नहीं आता है | ब्लड
से भी लिखते हैं – बाबा, आप प्यार करो वा ठुकराओ, हम आपको कभी
छोड़ेंगे नहीं | परन्तु परवरिश लेकर फिर भी चले जाते हैं | बाप
ने समझाया है – यह सब ड्रामा है | कोई आश्चर्यवत् भागन्ती
होंगे | यहाँ बैठे हैं तो निश्चय है, ऐसे बेहद के बाप को हम
कैसे छोड़ें | यह तो पढ़ाई भी है | गैरन्टी भी करते हैं, हम साथ
ले जायेंगे | सतयुग आदि में इतने सब मनुष्य नहीं थे | अभी संगम
पर सभी मनुष्य हैं, सतयुग में बहुत थोड़े होंगे | इतने सब धर्म
वाले कोई भी नहीं रहेंगे | उसकी सारी तैयारी हो रही है | यह
शरीर छोड़ शान्तिधाम चले जायेंगे | हिसाब-किताब चुक्तू कर जहाँ
से आये हैं पार्ट बजाने, वहाँ चले जायेंगे | वह तो होता है दो
घण्टे का नाटक, यह है बेहद का नाटक | तुम जानते हो हम उस घर के
रहवासी हैं और हैं भी एक बाप के बच्चे | रहने का स्थान है
निर्वाणधाम, वाणी से परे | वहाँ आवाज़ होता नहीं | मनुष्य समझते
हैं ब्रह्म में लीन हो जाते हैं | बाबा कहते हैं आत्मा अविनाशी
है, उनका कभी विनाश हो न सके | कितनी जीव आत्मायें हैं | आत्मा
अविनाशी जीव द्वारा पार्ट बजाती हैं | सब आत्मायें ड्रामा में
एक्टर्स हैं | रहने का स्थान ब्रह्माण्ड वह घर है | आत्मा
अन्डे मिसल दिखाई पड़ती है | वहाँ ब्रह्माण्ड में उनके रहने का
स्थान है | हर एक बात को अच्छी रीति समझना है | नहीं समझते हैं
तो आगे चलकर आपेही समझ जायेंगे, अगर सुनते ही रहेंगे तो | छोड़
देंगे तो फिर कुछ भी समझ नहीं सकेंगे | तुम बच्चे जानते हो यह
पुरानी दुनिया ख़त्म हो नई दुनिया स्थापन होती है | बाप कहते
हैं कल तुम विश्व के मालिक थे, अब फिर तुम विश्व के मालिक बनने
आये हो | गीत भी है ना – बाबा हमको ऐसा मालिक बनाते हैं जो कोई
हमसे छीन न सके | आकाश, जमीन आदि पर हमारा कब्ज़ा (अधिकार) रहता
है | इस दुनिया में देखो क्या-क्या है | सब हैं मतलब के साथी |
वहाँ तो ऐसे नहीं होगा | जैसे लौकिक बाप बच्चों को कहते हैं –
यह धन माल सब कुछ तुमको देकर जाते हैं, इनको अच्छी रीति
सम्भालना | बेहद का बाप भी कहते हैं तुमको धन माल सब कुछ देते
हैं | तुमने हमको बुलाया है पावन दुनिया में ले चलो तो ज़रूर
पावन बनाकर विश्व का मालिक बनाऊंगा | बाप कितना युक्ति से
समझाते हैं | इसका नाम ही है सहज ज्ञान और योग | सेकेण्ड की
बात है | सेकेण्ड में मुक्ति जीवनमुक्त | तुम अब कितना
दूरादेशी बुद्धि हो गये हो | यही चिंतन होता रहे कि हम बेहद के
बाप द्वारा पढ़ रहे हैं | हम अपने लिए राज्य स्थापन कर रहे हैं,
तो उसमें हम ऊँच पद क्यों न पायें | कम क्यों पायें | राजधानी
स्थापन होती है | उसमें भी मर्तबे होंगे ना | दास-दासियाँ ढेर
होंगे | वह भी बहुत सुख पाते हैं | साथ में महलों में रहेंगे |
बच्चों आदि को सम्भालते होंगे | कितना सुखी होंगे | सिर्फ़ नाम
है – दास-दासी | जो राजा-रानी खाते, वही दास-दासियाँ भी खाते
हैं | प्रजा को तो नहीं मिलता है, दास-दासियों का भी बहुत मान
है, परन्तु उनमें भी नम्बरवार हैं | तुम बच्चे सारे विश्व के
मालिक बनते हो | दासी-दासियाँ तो यहाँ भी राजाओं के पास होती
हैं | प्रिन्सेज़ की जब सभा लगती है, आपस में मिलते हैं तो फुल
श्रृंगार किये हुए, ताज़ आदि सहित होते हैं | फिर उनमें भी
नम्बरवार बड़ी शोभनीक सभा लगती है | उसमें रानियाँ नहीं बैठती
हैं | वह पर्दे में रहती हैं | यह सब बातें बाप समझाते हैं |
उनको तुम प्राण दाता भी कहते हो, जीय दान देने वाला | घड़ी-घड़ी
शरीर छोड़ने से बचाने वाला है | वहाँ मरने की चिन्ता नहीं होती
है | यहाँ कितनी चिन्ता रहती है | थोड़ा कुछ होता तो बुलायेंगे
डॉक्टर को कि कहाँ मर न जाये | वहाँ डर की बात नहीं | तुम काल
पर जीत पाते हो तो कितना नशा रहना चाहिए | पढ़ाने वाले को याद
करो तो भी याद की यात्रा हुई | बाप-टीचर-सतगुरु को याद करो तो
भी ठीक है, जितना श्रीमत पर चलेंगे, मन्सा-वाचा-कर्मणा पावन
बनना है | बुद्धि में विकारी संकल्प भी न आयें | वह तब होगा जब
भाई-भाई समझेंगे | बहन-भाई समझने से भी छी-छी हो जाते हैं |
सबसे अधिक धोख़ा देने वाली यह आँखें हैं इसलिए बाप ने तीसरा
नेत्र दिया है तो अपने को आत्मा समझ भाई-भाई को देखो | इसको
कहा जाता है ज्ञान का तीसरा नेत्र | बहन-भाई भी फेल होते हैं
तो दूसरी युक्ति निकाली जाती है – अपने को भाई-भाई समझो | बड़ी
मेहनत है | सब्जेक्ट होती है ना | कोई बहुत डिफीकल्ट सब्जेक्ट
होती है | यह पढ़ाई है, इसमें भी ऊँच सब्जेक्ट है – तुम किसी के
भी नाम-रूप में नहीं फँस सकते हो | बहुत बड़ा इम्तहान है |
विश्व का मालिक बनना है | मुख्य बात बाप कहते हैं भाई-भाई समझो
| तो बच्चों को इतना पुरुषार्थ करना चाहिए | परन्तु चलते-चलते
कितने ट्रेटर भी बन पड़ते हैं | यहाँ भी ऐसे होता है |
अच्छे-अच्छे बच्चों को माया अपना बना देती है | तब बाप कहते
हैं मुझे फ़ारकती भी दे देते हैं, डायओर्स भी देते हैं | फ़ारकती
बच्चे और बाप की होती है और डायओर्स स्त्री और पति का होता है
| बाप कहते हैं हमको दोनों मिलते हैं | अच्छी-अच्छी बच्चियाँ
भी डायओर्स दे जाकर रावण की बन जाती हैं | वन्डरफुल खेल है ना
| माया क्या नहीं कर देती है | बाप कहते हैं माया बड़ी कड़ी है |
गायन है गज को ग्राह ने खाया | बहुत गफ़लत कर बैठते हैं | बाप
से बेअदबी करते हैं तो माया कच्चा खा लेती है | माया ऐसी है जो
कोई-कोई को एकदम पकड़ लेती है | अच्छा!
बच्चों को कितना सुनाए, कितना सुनाऊं | मुख्य बात है अल्फ |
मुसलमान भी कहते हैं – सवेरे उठकर अल्फ को याद करो | यह वेला
सोने की नहीं है | इस उपाय से ही विकर्म विनाश होते हैं, और
कोई उपाय नहीं | बाप तुम बच्चों के साथ कितना वफ़ादार है | कभी
तुमको छोड़ेंगे नहीं | आये ही हैं सुधार कर साथ ले जाने | याद
की यात्रा से ही तुम सतोप्रधान होंगे | उस तरफ़ जमा होता जायेगा
| बाप कहते हैं अपना चौपड़ा रखो – कितना याद करते हैं, कितनी
सर्विस करते हैं | व्यापारी लोग घाटा देखते हैं तो खबरदार रहते
हैं | घाटा नहीं डालना चाहिए | कल्प-कल्पान्तर का घाटा पड़ जाता
है | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
मन्सा-वाचा-कर्मणा पावन बनना है, बुद्धि में विकारी संकल्प भी
न आयें, इसके लिए आत्मा भाई-भाई हूँ, यह अभ्यास करना है | किसी
के नाम-रूप में नहीं फँसना है |
2.
जैसे बाप वफ़ादार है, बच्चों को सुधार कर साथ ले जाते हैं, ऐसे
वफ़ादार रहना है | कभी भी फ़ारकती या डायओर्स नहीं देना |
वरदान:-
बाप
के साथ रहते-रहते उनके समान बनने वाले सर्व आकर्षणों के प्रभाव
से मुक्त भव
!
जहाँ
बाप की याद है अर्थात् बाप का साथ है वहाँ बॉडी-कॉनसेस की
उत्पत्ति हो नहीं सकती | बाप के साथ वा पास रहने वाले दुनिया
के विकारी वायब्रेशन अथवा आकर्षण के प्रभाव से दूर हो जाते हैं
| ऐसे साथ रहने वाले साथ रहते-रहते बाप समान बन जाते हैं |
जैसे बाप ऊँचे ते ऊँचा है ऐसे बच्चों की स्थिति भी ऊँची बन
जाती है | नीचे की कोई भी बातें उन पर अपना प्रभाव डाल नहीं
सकती |
स्लोगन:-
मन और
बुद्धि कन्ट्रोल में हो तो अशरीरी बनना सहज हो जायेगा
|
ओम् शान्ति
|