19-11-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - सन शोज़ फादर, मनमत को छोड़ श्रीमत पर चलो तब बाप का शो कर सकेंगे”   


प्रश्न:-   
किन बच्चों की रक्षा बाप जरूर करते ही हैं?


उत्तर:-

जो बच्चे सच्चे हैं, उनकी रक्षा जरूर होती है । अगर रक्षा नहीं होती है तो अन्दर में जरूर कोई न कोई झूठ होगा । पढ़ाई मिस करना, संशय में आना माना अन्दर में कुछ न कुछ झूठ है । उन्हें माया अंगूरी मार देती है ।


प्रश्न:-   
किन बच्चों के लिए माया चुम्बक है?


उत्तर:-

जो माया की खूबसूरती की तरफ आकर्षित हो जाते हैं, उन्हों के लिए माया चुम्बक है । श्रीमत पर चलने वाले बच्चे आकर्षित नहीं होंगे ।

 

ओम् शान्ति |

रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं, यह तो बच्चों ने निश्चय किया है रूहानी बाप हम रूहानी बच्चों को पढ़ाते हैं । जिसके लिए ही गायन है- आत्मायें परमात्मा अलग रहे बहुकाल... मूलवतन में अलग नहीं रहते हैं । वहाँ तो सब इकट्ठे रहते हैं । अलग रहते हैं तो जरूर आत्मायें वहाँ से बिछुड़ती हैं, आकरके अपना- अपना पार्ट बजाती हैं । सतोप्रधान से उतरते-उतरते तमोप्रधान बनती हैं । बुलाते हैं पतित-पावन आकर हमको पावन बनाओ । बाप भी कहते हैं हम हर 5 हजार वर्ष के बाद आते हैं । यह सृष्टि का चक्र ही 5 हजार वर्ष है । आगे तुम यह नहीं जानते थे । शिवबाबा समझाते हैं तो जरूर कोई तन द्वारा समझायेंगे । ऊपर से कोई आवाज तो नहीं करते हैं । शक्ति वा प्रेरणा आदि की कोई बात नहीं । तुम आत्मा शरीर में आकर वार्तालाप करती हो । वैसे बाप भी कहते हैं मैं भी शरीर द्वारा डायरेक्शन देता हूँ । फिर उस पर जो जितना चलते हैं, अपना ही कल्याण करते हैं । श्रीमत पर चलें वा न चलें, टीचर का सुनें वा न सुनें, अपने लिए ही कल्याण वा अकल्याण करते हैं । नहीं पढ़ेंगे तो जरूर फेल होंगे । यह भी समझाते रहते हैं शिवबाबा से सीखकर फिर औरों को सिखलाना है । फादर शोज सन । जिस्मानी फादर की बात नहीं । यह है रूहानी बाप । यह भी तुम समझते हो जितना हम श्रीमत पर चलेंगे उतना वर्सा पायेंगे । पूरा चलने वाले ऊंच पद पायेंगे । नहीं चलने वाले ऊंच पद नहीं पायेंगे । बाप तो कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप कट जाएं । रावण राज्य में तुम्हारे पर पाप तो बहुत चढ़े हुए हैं । विकार में जाने से ही पाप आत्मा बनते हैं । पुण्य आत्मा और पाप आत्मा जरूर होते हैं । पुण्य आत्मा के आगे पाप आत्मायें जाकर माथा टेकती हैं । मनुष्यों को यह पता नहीं है कि देवतायें जो पुण्य आत्मा हैं, वही फिर पुनर्जन्म में आते- आते पाप आत्मा बनते हैं । वह तो समझते हैं यह सदैव पुण्य आत्मा हैं । बाप समझाते हैं, पुनर्जन्म लेते-लेते सतोप्रधान से तमोप्रधान तक आते हैं । जब बिल्कुल पाप आत्मा बन जाते हैं तो फिर बाप को बुलाते हैं । जब पुण्य आत्मा हैं तो याद करने की दरकार नहीं रहती । तो यह तुम बच्चों को समझाना है, सर्विस करनी है । बाप तो नहीं जाकर सबको सुनायेंगे | बच्चे सर्विस करने लायक हैं तो बच्चों को ही जाना चाहिए । मनुष्य तो दिन-प्रतिदिन असुर बनते जाते हैं । पहचान न होने कारण बकवास करने में भी देरी नहीं करते हैं । मनुष्य कहते हैं गीता का भगवान कृष्ण है । तुम समझाते हो वह तो देहधारी है, उनको देवता कहा जाता है । कृष्ण को बाप नहीं कहेंगे । यह तो सब फादर को याद करते हैं ना । आत्माओं का फादर तो दूसरा कोई होता नहीं । यह प्रजापिता ब्रह्मा भी कहते हैं-निराकार फादर को याद करना है । यह कारपोरियल फादर हो जाता है । समझाया तो बहुत जाता है, कई पूरा न समझकर उल्टा रास्ता ले जंगल में जाकर पड़ते हैं । बाप तो रास्ता बताते हैं स्वर्ग में जाने का । फिर भी जंगल तरफ चले जाते हैं । बाप समझाते हैं तुमको जंगल तरफ ले जाने वाला है-रावण । तुम माया से हार खाते हो । रास्ता भूल जाते हो तो फिर उस जंगल के कांटे बन जाते हो । वह फिर स्वर्ग में देरी से आयेंगे । यहाँ तुम आये ही हो स्वर्ग में जाने का पुरूषार्थ करने । त्रेता को भी स्वर्ग नहीं कहेंगे । 25 परसेण्ट कम हुआ ना । वह फेल गिना जाता है । तुम यहाँ आये ही हो पुरानी दुनिया छोड़ नई दुनिया में जाने । त्रेता को नई दुनिया नहीं कहेंगे । नापास वहाँ चले जाते हैं क्योंकि रास्ता ठीक पकड़ते नहीं । नीचे-ऊपर होते रहते हैं । तुम महसूस करते हो जो याद होनी चाहिए वह नहीं रहती । स्वर्गवासी जो बनते हैं उनको कहेंगे अच्छे पास । त्रेता वाले नापास गिने जाते हैं । तुम नर्कवासी से स्वर्गवासी बनते हो । नहीं तो फिर नापास कहा जाता है । उस पढ़ाई में तो फिर दुबारा पढ़ते हैं । इसमें दूसरा वर्ष पढ़ने की तो बात नहीं । जन्म-जन्मान्तर, कल्प-कल्पान्तर वही इम्तहान पास करते हैं जो कल्प पहले किया है । इस ड्रामा के राज को अच्छी रीति समझना चाहिए । कई समझते हैं हम चल नहीं सकते हैं । बुढ़ा है तो उनको हाथ से पकड़कर चलाओ तो चलेंगे, नहीं तो गिर पड़ेंगे । परन्तु तकदीर में नहीं है तो कितना भी जोर देते फूल बनाने का, परन्तु बनते नहीं । अक भी फूल होता है । यह कांटे तो चुभते हैं ।

बाप कितना समझाते हैं । कल तुम जिस शिव की पूजा करते थे वह आज तुमको पढ़ा रहे हैं । हर बात में पुरूषार्थ के लिए ही जोर दिया जाता है । देखा जाता है-माया अच्छे- अच्छे फूलों को नीचे गिरा देती है । हड़गुड़ तोड देती है, जिसको फिर ट्रेटर कहा जाता है । जो एक राजधानी छोड़ दूसरे में चला जाता है उनको रेटर कहा जाता है । बाप भी कहते हैं मेरे बनकर फिर माया का बन जाते हैं तो उनको भी ट्रेटर कहा जाता है । उनकी चलन ही ऐसी हो जाती है । अब बाप माया से छुड़ाने आये हैं । बच्चे कहते हैं-माया बड़ी दुश्तर है, अपनी तरफ बहुत खींच लेती है । माया जैसे चुम्बक है । इस समय चुम्बक का रूप धरती है । कितनी खूबसूरती दुनिया में बढ़ गई है । आगे यह बाइसकोप आदि थोड़ेही थे । यह सब 100 वर्ष में निकले हैं । बाबा तो अनुभवी है ना । तो बच्चों को इस ड्रामा के गुहय राज को अच्छी रीति समझना चाहिए, हरेक बात एक्यूरेट नूंधी हुई है । सौ वर्ष में यह जैसे बहिश्त बन गया है, आपोजीशन के लिए । तो समझा जाता है- अब स्वर्ग और ही जल्दी होना है । साइंस भी बहुत काम में आती है । यह तो बहुत सुख देने वाली भी है ना । वह सुख स्थाई हो जाए उसके लिए इस पुरानी दुनिया का विनाश भी होना है । सतयुग के सुख हैं ही भारत के भाग्य में । वह तो आते ही बाद में हैं, जब भक्तिमार्ग शुरू होता है, जब भारतवासी गिरते हैं तब दूसरे धर्म वाले नम्बरवार आते हैं । भारत गिरते-गिरते एकदम पट पर आ जाता है । फिर चढ़ना है । यहाँ भी चढ़ते हैं फिर गिरते हैं । कितना गिरते हैं, बात मत पूछो । कोई तो मानते ही नहीं कि बाबा हमको पढ़ाते हैं । अच्छे- अच्छे सर्विसएबुल जिनकी बाप महिमा करते हैं वह भी माया के चम्बे में आ जाते हैं । कुश्ती होती है ना । माया भी ऐसे लड़ती है । एकदम पूरा गिरा देती है । आगे चल तुम बच्चों को मालूम पड़ता जायेगा । माया एकदम पूरा सुला देती है । फिर भी बाप कहते हैं एक बार ज्ञान सुना है तो स्वर्ग में जरूर आयेंगे । बाकी पद तो नहीं पा सकेंगे ना । कल्प पहले जिसने जो पुरूषार्थ किया है वा पुरूषार्थ करते-करते गिरे हैं, ऐसे ही अब भी गिरते और चढ़ते हैं । हार और जीत होती है ना । सारा मदार बच्चों का याद पर है । बच्चों को यह अखुट खजाना मिलता है । वह तो कितना लाखों का देवाला मारते हैं । कोई लाखों का धनवान बनते हैं, सो भी एक जन्म में । दूसरे जन्म में थोड़ेही इतना धन रहेगा । कर्मभोग भी बहुत है । वहाँ स्वर्ग में तो कर्मभोग की बात होती नहीं । इस समय तुम 21 जन्मों के लिए कितना जमा करते हो । जो पूरा पुरूषार्थ करते हैं, पूरा स्वर्ग का वर्सा पाते हैं । बुद्धि में रहना चाहिए हम बरोबर स्वर्ग का वर्सा पाते हैं । यह ख्याल नहीं करना है कि फिर नीचे गिरेंगे । यह सबसे जास्ती गिरे अब फिर चढ़ना ही है । ऑटोमेटिकली पुरूषार्थ भी होता रहता है । बाप समझाते हैं-देखो, माया कितनी प्रबल है । मनुष्यों में कितना अज्ञान भर गया है, अज्ञान के कारण बाप को भी सर्वव्यापी कह देते हैं । भारत कितना फर्स्टक्लास था । तुम समझते हो हम ऐसे थे, अब फिर बन रहे हैं । इन देवताओं की कितनी महिमा है, परन्तु कोई जानते नहीं है, तुम बच्चों के सिवाए । तुम ही जानते हो बेहद का बाप ज्ञान सागर आकर हमको पढ़ाते हैं फिर भी माया बहुतों को संशय में ला देती है । झूठ कपट छोड़ते नहीं । तब बाप कहते हैं-सच्चा-सच्चा अपना चार्ट लिखो । परन्तु देह- अभिमान के कारण सच नहीं बताते हैं । तो वह भी विकर्म बन जाता है, सच बताना चाहिए ना । नहीं तो बहुत सजा खानी पड़ती है । गर्भ जेल में भी बहुत सजा मिलती है । कहते हैं तोबा-तोबा.... हम फिर ऐसा काम नहीं करेंगे । जैसे किसको मार मिलती है तो भी ऐसे माफी माँगते हैं । सजा मिलने पर भी ऐसे करते हैं । अभी तुम बच्चे समझते हो माया का राज्य कब से शुरू हुआ है । पाप करते रहते हैं । बाप देखते हैं-यह इतना मीठे-मीठे मुलायम नहीं बनते हैं । बाप कितना मुलायम बच्चे मिसल हो चलते हैं, क्योंकि ड्रामा पर चलते रहते हैं । कहेंगे जो हुआ ड्रामा की भावी । समझाते भी हैं कि आगे फिर ऐसा न हो । यह बापदादा दोनो इकट्ठे हैं ना । दादा की मत अपनी, ईश्वर की मत अपनी है । समझना चाहिए कि यह मत कौन देता है? यह भी बाप तो है ना । बाप की तो माननी चाहिए । बाबा तो बड़ा बाबा है ना, इसलिए बाबा कहते हैं ऐसे ही समझो शिवबाबा समझाते हैं । नहीं समझेंगे तो पद भी नहीं पायेंगे । ड्रामा के प्लेन अनुसार बाप भी है, दादा भी है । बाप की श्रीमत मिलती है । माया ऐसी है जो महावीर, पहलवानों से भी कोई न कोई उल्टा काम करा देती है । समझा जाता है यह बाप की मत पर नहीं है । खुद भी फील करते हैं, मैं अपनी आसुरी मत पर हूँ । श्रीमत देने वाला आकर उपस्थित हुआ है । उनकी है ईश्वरीय मत । बाप खुद कहते हैं इनकी अगर कोई ऐसी मत मिल भी गई तो भी उनको मैं ठीक करने वाला बैठा हूँ । फिर भी हमने रथ लिया है ना । हमने रथ लिया तब ही इसने गाली खाई है । नहीं तो कभी गाली नहीं खाई । मेरे कारण कितनी गाली खाते हैं । तो इनकी भी सम्भाल करनी पड़े । बाप रक्षा जरूर करते हैं । जैसे बच्चों की रक्षा बाप करते हैं ना । जितना सच्चाई पर चलते हैं उतनी रक्षा होती है । झूठे की रक्षा नहीं होती । उनकी तो फिर सजा कायम हो जाती है इसलिए बाप समझाते हैं - माया तो एकदम नाक से पकड़कर खत्म कर देती है । बच्चे खुद फील करते हैं माया खा लेती है तो फिर पढ़ाई छोड़ देते हैं । बाप कहते हैं पढ़ाई जरूर पढ़ा । अच्छा, कहाँ किसका दोष है । इसमें जैसा जो करेगा, सो भविष्य में पायेगा क्योंकि अभी दुनिया बदल रही है । माया ऐसे अंगूरी मार देती है जो वह खुशी नहीं रहती है । फिर चिल्लाते हैं-बाबा, पता नहीं क्या होता है । युद्ध के मैदान में बहुत खबरदार रहते हैं कि कहाँ कोई अंगूरी न मार दे । फिर भी जास्ती ताकत वाले होते हैं तो दूसरे को गिरा देते हैं । फिर दूसरे दिन पर रखते हैं । यह माया की लड़ाई तो अन्त तक चलती रहती है । नीचे-ऊपर होते रहते हैं । कई बच्चे सच नहीं बताते हैं । इज्जत का बहुत डर है-पता नहीं बाबा क्या कहेंगे । जब तक सच बताया नहीं है तब तक आगे चल न सकें । अन्दर में खटकता रहता है, फिर वृद्धि हो जाती है । आपेही सच कभी नहीं बतायेंगे । कहाँ दो हैं तो समझते हैं यह बाबा को सुनायेंगे तो हम भी सुना दे । माया बड़ी दुश्तर है । समझा जाता है उनकी तकदीर में इतना ऊंच पद नहीं है तो सर्जन से छिपाते हैं । छिपाने से बीमारी छूटेगी नहीं । जितना छिपायेंगे उतना गिरते ही रहेंगे । भूत तो सबमें हैं ना । जब तक कर्मातीत अवस्था नहीं बनी, तब तक क्रिमिनल आई भी छोड़ती नहीं है । सबसे बड़ा दुश्मन है काम । कई गिर पड़ते हैं । बाबा तो बार- बार समझाते हैं शिवबाबा के सिवाए कोई देहधारी को याद नहीं करना है । कई तो ऐसे पक्के हैं, जो कभी किसकी याद भी नहीं आयेगी । पवित्रता स्त्री होती है ना, उनकी कुबुद्धि नहीं होती है । अच्छा ।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. हमें पढ़ाने वाला स्वयं ज्ञान का सागर, बेहद का बाप है, इसमें कभी संशय नहीं लाना है, झूठ कपट छोड़ अपना सच्चा-सच्चा चार्ट रखना है | देह- अभिमान में आकर कभी ट्रेटर नहीं बनना है । 

2. ड्रामा को बुद्धि में रख बाप समान बहुत-बहुत मीठा मुलायम (नम्र) बनकर रहना है । अपना अहंकार नहीं दिखाना है । अपनी मत छोड़ एक बाप की श्रेष्ठ मत पर चलना है ।

 

वरदान:-

सर्व के प्रति अपनी दृष्टि और भावना प्यार की रखने वाले सर्व के प्यारे फरिश्ता भव !   

स्वप्न में भी किसी के पास फरिश्ता आता है तो कितना खुश होते हैं । फरिश्ता अर्थात् सर्व के प्यारे । हद के प्यारे नहीं, बेहद के प्यारे । जो प्यार करे उसके प्यारे नहीं लेकिन सर्व के प्यारे । कोई कैसी भी आत्मा हो लेकिन आपकी दृष्टि, आपकी भावना प्यार की हो - इसको कहा जाता है सर्व के प्यारे । कोई इनसल्ट करे, घृणा करे तो भी उसके प्रति प्यार वा कल्याण की भावना उत्पन्न हो क्योंकि उस समय वह परवश है ।

 

स्लोगन:- 

जो सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न हैं वही सदा हर्षित, सदा सुखी और खुशनसीब हैं ।   

 

ओम् शान्ति |