09-09-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - अपनी बैटरी चार्ज करने का ख्याल करो, अपना टाइम परचिन्तन में वेस्ट मत करो, अपनी घोट तो नशा चढ़े”   

                            
प्रश्न:-   
ज्ञान एक सेकेण्ड का होते हुए भी बाप को इतना डिटेल से समझाने वा इतना समय देने की आवश्यकता क्यों?


उत्तर:-
क्योंकि ज्ञान देने के बाद बच्चों में सुधार हुआ है या नहीं, यह भी बाप देखते हैं और फिर सुधारने के लिए ज्ञान देते ही रहते हैं । सारे बीज और झाड़ का ज्ञान देते हैं, जिस कारण उन्हें ज्ञान सागर कहा जाता । अगर एक सेकण्ड का मंत्र देकर चले जाएं तो ज्ञान सागर का टाइटिल भी न मिले ।

 

ओम् शान्ति |

रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते है । भक्ति मार्ग में परमपिता परमात्मा शिव को यहाँ ही पूजते हैं । भल बुद्धि में है कि यह होकर गये हैं । जहाँ पर लिंग देखते हैं तो उनकी पूजा करते हैं । यह तो समझते हैं शिव परमधाम में रहने वाला है, होकर गये हैं, इसलिए उनका यादगार बनाकर पूजते हैं । जिस समय याद किया जाता है तो बुद्धि में जरूर आता है कि निराकार है, जो परमधाम में रहने वाला है, उनको शिव कह पूजते हैं । मन्दिर में जाकर माथा टेकते हैं, उन पर दूध, फल, जल आदि चढ़ाते हैं । परन्तु वह तो जड़ है । जड़ की भक्ति ही करते हैं । अभी तुम जानते हो-वह है चैतन्य, उनका निवास स्थान परमधाम है । वह लोग जब पूजा करते हैं तो बुद्धि में रहता है कि परमधाम निवासी है, होकर गये हैं तब यह चित्र बनाये गये हैं, जिसकी पूजा की जाती है । वह चित्र कोई शिव नहीं है, उनकी प्रतिमा है । वैसे ही देवताओं को भी पूजते हैं, जड़ चित्र है, चैतन्य नहीं है । परन्तु वह चैतन्य जो थे वह कहाँ गये, यह नहीं समझते । जरूर पुनर्जन्म ले नीचे आये होंगे । अभी तुम बच्चों को ज्ञान मिल रहा है । समझते हो जो भी पूज्य देवता थे वह पुनर्जन्म लेते आये हैं । आत्मा वही है, आत्मा का नाम नहीं बदलता । बाकी शरीर का नाम बदलता है । वह आत्मा कोई न कोई शरीर में है । पुनर्जन्म तो लेना ही है । तुम पूजते हो उनको, जो पहले-पहले शरीर वाले थे (सतयुगी लक्ष्मी-नारायण को पूजते हो) इस समय तुम्हारा ख्याल चलता है, जो नॉलेज बाप देते हैं । तुम समझते हो जिस चित्र की पूजा करते हैं वह पहले नम्बर वाला है । यह लक्ष्मी-नारायण चैतन्य थे । यहाँ ही भारत में थे, अभी नहीं हैं । मनुष्य यह नहीं समझते कि वह पुनर्जन्म लेते-लेते भिन्न नाम-रूप लेते 84 जन्मों का पार्ट बजाते रहते हैं । यह किसके ख्याल में भी नहीं आता । सतयुग में थे तो जरूर परन्तु अब नहीं है । यह भी किसको समझ नहीं आती । अभी तुम जानते हो-ड्रामा के प्लैन अनुसार फिर चैतन्य में आयेंगे जरूर । मनुष्यों की बुद्धि में यह ख्याल ही नहीं आता । बाकी इतना जरूर समझते हैं कि यह थे । अब इनके जड़ चित्र हैं, परन्तु वह चैतन्य कहाँ चले गये - यह किसकी बुद्धि में नहीं आता है । मनुष्य तो 84 लाख पुनर्जन्म कह देते हैं, यह भी तुम बच्चों को मालूम पड़ा है कि 84 जन्म ही लेते हैं, न कि 84 लाख । अब रामचन्द्र की पूजा करते हैं, उनको यह भी पता नहीं है कि राम कहाँ गया । तुम जानते हो कि श्रीराम की आत्मा तो जरूर पुनर्जन्म लेती रहती होगी । यहाँ इम्तहान में नापास होती है । परन्तु कोई न कोई रूप में होगी तो जरूर ना । यहाँ ही पुरूषार्थ करते रहते हैं । इतना नाम बाला है राम का, तो जरूर आयेंगे, उनको नॉलेज लेनी पड़ेगी । अभी कुछ मालूम नहीं पड़ता है तो उस बात को छोड़ देना पड़ता है । इन बातों में जाने से भी टाइम वेस्ट होता है, इससे तो क्यों न अपना टाइम सफल करें । अपनी उन्नति के लिए बैटरी चार्ज करें । दूसरी बातों का चिंतन तो परचिन्तन हो गया । अभी तो अपना चिंतन करना है । हम बाप को याद करें । वह भी जरूर पढ़ते होंगे । अपनी बैटरी चार्ज करते होंगे । परन्तु तुमको अपनी करनी है । कहा जाता- अपनी घोट तो नशा चढ़े ।

बाप ने कहा है - जब तुम सतोप्रधान थे तो तुम्हारा बहुत ऊंच पद था । अब फिर पुरूषार्थ करो, मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हों । मंजिल है ना । यह चिंतन करते-करते सतोप्रधान बनेंगे । नारायण का ही सिमरण करने से हम नारायण बनेंगे । अन्तकाल में जो नारायण सिमरे...... । तुमको बाप को याद करना है, जिससे पाप कटें । फिर नारायण बनें । यह नर से नारायण बनने की हाइएस्ट युक्ति है । एक नारायण तो नहीं बनेंगे ना । यह तो सारी डिनायस्टी बनती है । बाप हाइएस्ट पुरूषार्थ करायेंगे । यह है ही राजयोग की नॉलेज, सो भी पूरे विश्व का मालिक बनना है । जितना पुरूषार्थ करेंगे, उतना जरूर फायदा है । एक तो अपने को आत्मा जरूर निश्चय करो । कोई-कोई लिखते भी ऐसे हैं, फलानी आत्मा आपको याद करती है । आत्मा शरीर के द्वारा लिखती है । आत्मा का कनेक्शन है शिवबाबा के साथ । मैं आत्मा फलाने शरीर के नाम- रूप वाली हूँ । यह तो जरूर बताना पड़े ना क्योंकि आत्मा के शरीर पर ही भिन्न-भिन्न नाम पड़ते हैं । मैं आत्मा आपका बच्चा हूँ, मुझ आत्मा के शरीर का नाम फलाना है । आत्मा का नाम तो कभी बदलता नहीं । मैं आत्मा फलाने शरीर वाली हूँ । शरीर का नाम तो जरूर चाहिए । नहीं तो कारोबार चल न सके । यहाँ बाप कहते हैं मैं भी इस ब्रह्मा के तन में आता हूँ टैम्पेरी, इनकी आत्मा को भी समझाते हैं । मैं इस शरीर से तुमको पढ़ाने आया हूँ । यह मेरा शरीर नहीं है । मैंने इनमें प्रवेश किया है । फिर चले जायेंगे अपने धाम । मैं आया ही हूँ तुम बच्चों को यह मन्त्र देने । ऐसे नहीं कि मन्त्र देकर चला जाता हूँ । नहीं, बच्चों को देखना भी पड़ता है कि कहाँ तक सुधार हुआ है । फिर सुधारने की शिक्षा देते रहते हैं । सेकण्ड का ज्ञान देकर चले जाएं तो फिर ज्ञान का सागर भी न कहा जाए । कितना समय हुआ है, तुमको समझाते ही रहते हैं । झाड़ की, भक्ति मार्ग की सब बातें समझने की डिटेल है । डिटेल में समझाते हैं । होलसेल माना मनमनाभव । परन्तु ऐसा कहकर चले तो नहीं जायेंगे । पालना (देख-रेख) भी करनी पड़े । कई बच्चे बाप को याद करते-करते फिर गुम हो जाते हैं । फलानी आत्मा जिसका नाम फलाना था, बहुत अच्छा पढ़ता था-स्मृति तो आयेगी ना । पुराने-पुराने बच्चे कितने अच्छे थे, उनको माया ने हप कर लिया । शुरू में कितने आये । फट से आकर बाप की गोद ली । भट्ठी बनी । इसमें सबने अपना लक (भाग्य) अजमाया फिर लक अजमाते- अजमाते माया ने एकदम उड़ा दिया । ठहर न सके । फिर 5 हजार वर्ष के बाद भी ऐसे ही होगा । कितने चले गये, आधा झाड़ तो जरूर गया । भल झाड़ वृद्धि को पाया है परन्तु पुराने चले गये, समझ सकते हैं-उनसे कुछ फिर आयेंगे जरूर पढ़ने । स्मृति आयेगी कि हम बाप से पढ़ते थे और सब अभी तक पढ़ते रहते हैं । हमने हार खा ली । फिर मैदान में आयेंगे । बाबा आने देंगे, फिर भी भल आकर पुरूषार्थ करें । कुछ न कुछ अच्छा पद मिल जायेगा ।

बाप स्मृति दिलाते हैं-मीठे-मीठे बच्चे, मामेकम् याद करो तो पाप कट जायेंगे । अब कैसे याद करते हो, क्या यह समझते हो कि बाबा परमधाम में है ? नहीं । बाबा तो यहाँ रथ में बैठे हैं । इस रथ का सबको मालूम पड़ता जाता है । यह है भाग्यशाली रथ । इनमें आया हुआ है । भक्तिमार्ग में थे तो उनको परमधाम में याद करते थे परन्तु यह नहीं जानते थे कि याद से क्या होगा । अभी तुम बच्चों को बाप खुद इस रथ में बैठ श्रीमत देते हैं, इसलिए तुम बच्चे समझते हो बाबा यहाँ इस मृत्युलोक में पुरूषोत्तम संगमयुग पर हैं । तुम जानते हो हमको ब्रह्मा को याद नहीं करना है । बाप कहते हैं मामेकम याद करो, मैं इस रथ में रहकर तुमको यह नॉलेज दे रहा हूँ । अपनी भी पहचान देता हूँ, मैं यहाँ हूँ । आगे तो तुम समझते थे परमधाम में रहने वाला है । होकर गया है परन्तु कब, यह पता नहीं था । होकर तो सब गये हैं ना । जिनके भी चित्र हैं, अभी वह कहाँ हैं, यह किसको पता नहीं है । जो जाते हैं वह फिर अपने समय पर आते हैं । भिन्न-भिन्न पार्ट बजाते रहते हैं । स्वर्ग में तो कोई जाते नहीं । बाप ने समझाया है स्वर्ग में जाने के लिए तो पुरूषार्थ करना होता है और पुरानी दुनिया का अन्त, नई दुनिया की आदि चाहिए, जिनको पुरूषोत्तम संगमयुग कहा जाता है । यह ज्ञान अभी तुमको है । मनुष्य कुछ नहीं जानते । समझते भी हैं शरीर जल जाता है, बाकी आत्मा चली जाती है । अब कलियुग है तो जरूर जन्म कलियुग में ही लेंगे । सतयुग में थे तो जन्म भी सतयुग में लेते थे । यह भी जानते हो आत्माओं का सारा स्टॉक निराकारी दुनिया में होता है । यह तो बुद्धि में बैठा है ना । फिर वहाँ से आते हैं, यहाँ शरीर धारण कर जीव आत्मा बन जाते हैं । सबको यहाँ आकर जीव आत्मा बनना है । फिर नम्बरवार वापिस जाना है । सबको तो नहीं ले जायेंगे, नहीं तो प्रलय हो जाए । दिखाते हैं कि प्रलय हो गई, रिजल्ट कुछ नहीं दिखाते । तुम तो जानते हो यह दुनिया कभी खाली नहीं हो सकती है । गायन है राम गयो रावण गयो, जिनका बहुत परिवार है । सारी दुनिया में रावण सम्प्रदाय है ना । राम सम्प्रदाय तो बहुत थोड़ी है । राम की सम्प्रदाय है ही सतयुग-त्रेता में । बहुत फर्क रहता है । बाद में फिर और टाल-टालियां निकलती हैं । अभी तुमने बीज और झाड़ को भी जाना है । बाप सब कुछ जानते हैं, तब तो सुनाते रहते हैं इसलिए उनको ज्ञान सागर कहा जाता है, एक ही बात अगर होती तो फिर कुछ शास्त्र आदि भी बन न सके । झाड़ की डिटेल भी समझाते रहते हैं । मूल बात नम्बरवन सब्जेक्ट है बाप को याद करना । इसमें ही मेहनत है । इस पर ही सारा मदार है । बाकी झाड़ को तो तुम जान गये हो । दुनिया में इन बातों को कोई भी नहीं जानते हैं । तुम सब धर्म वालों की तिथि-तारीख आदि सब बताते हो । आधाकल्प में यह सब आ जाते हैं । बाकी हैं सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी । इनके लिए बहुत युग तो नहीं होंगे ना । है ही दो युग । वहाँ मनुष्य भी थोड़े हैं । 84 लाख जन्म तो हो भी न सकें । मनुष्य समझ से बाहर हो जाते हैं इसलिए फिर बाप आकर समझ देते हैं । बाप जो रचयिता है, वही रचता और रचना के आदि-मध्य- अन्त की नॉलेज बैठ देते हैं । भारतवासी तो बिल्कुल कुछ नहीं जानते । सबको पूजते रहते हैं, मुसलमानों को, पारसी आदि को, जो आया उनको पूजने लग पड़ेंगे क्योंकि अपने धर्म और धर्म-स्थापक को भूल गये हैं । और तो सब अपने- अपने धर्म को जानते हैं, सबको मालूम है फलाना धर्म कब, किसने स्थापन किया । बाकी सतयुग-त्रेता की हिस्ट्री-जॉग्राफी का किसको भी पता नहीं है । चित्र भी देखते हैं शिवबाबा का यह रूप है । वही ऊंच ते ऊंच बाप है । तो याद भी उनको करना है । यहाँ फिर सबसे जास्ती पूजा करते हैं कृष्ण की क्योंकि नेक्स्ट में है ना । प्यार भी उनको करते हैं, तो गीता का भगवान भी उनको समझ लिया है । सुनाने वाला चाहिए तब तो उनसे वर्सा मिले । बाप ही सुनाते हैं, नई दुनिया की स्थापना और पुरानी दुनिया का विनाश कराने वाला और कोई हो न सके सिवाए एक बाप के । ब्रह्मा द्वारा स्थापना, शंकर द्वारा विनाश, विष्णु द्वारा पालना-यह भी लिखते हैं । यहाँ के लिए ही है । परन्तु समझ कुछ भी नहीं । तुम जानते हो वह है निराकारी सृष्टि । यह है साकारी सृष्टि । सृष्टि तो यही है, यहाँ ही रामराज्य और रावणराज्य होता है । महिमा सारी यहॉ की है । बाकी सूक्ष्मवतन का सिर्फ साक्षात्कार होता है । मूलवतन में तो आत्मायें रहती हैं फिर यहाँ आकर पार्ट बजाती हैं । बाकी सूक्ष्मवतन में क्या है, यह चित्र बना दिया है, जिस पर बाप समझाते हैं । तुम बच्चों को ऐसा सूक्ष्मवतन वासी फरिश्ता बनना है । फरिश्ते हड्डी-मास बिगर होते हैं । कहते हैं ना-दधीचि ऋषि ने हड्डियाँ भी दे दी । बाकी शंकर का गायन तो कहाँ है नहीं । ब्रह्मा-विष्णु का मन्दिर है । शंकर का कुछ है नहीं । तो उनको लगा दिया है विनाश के लिए । बाकी ऐसे कोई आंख खोलने से विनाश करता नहीं है । देवतायें फिर हिंसा का काम कैसे करेंगे । न वह करते हैं, न शिवबाबा ऐसा डायरेक्यान देते हैं । डायरेक्शन देने वाले पर भी आ जाता है ना । कहने वाला ही फँस जाता है । वह तो शिव-शंकर को ही इकट्ठा कह देते हैं । अब बाप भी कहते हैं मुझे याद करो, मामेकम याद करो । ऐसा तो नहीं कहते शिव-शंकर को याद करो । पतित-पावन एक को ही कहते हैं । भगवान अर्थ सहित बैठ समझाते हैं, यह कोई जानते नहीं हैं तो यह चित्र देख मूँझ पड़ते हैं | अर्थ तो जरूर बताना पड़े ना । समझने में टाइम लगता है । कोटों में कोई विरला निकलता है । मैं जो हूँ, जैसा हूँ, कोटों में कोई ही मुझे पहचान सकते हैं । अच्छा! 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. किसी भी बात के चिंतन में अपना समय नहीं गँवाना है । अपनी मस्ती में रहना है । स्वयं के प्रति चिंतन कर आत्मा को सतोप्रधान बनाना है ।

2. नर से नारायण बनने के लिए अन्तकाल में एक बाप की ही याद रहे । इस हाइएस्ट युक्ति को सामने रखते हुए पुरूषार्थ करना है-मैं आत्मा हूँ । इस शरीर को भूल जाना है ।

 

वरदान:-

समय प्रमाण हर कार्य में सफल होने वाले ज्ञानी योगी तू आत्मा भव !    

ज्ञान का अर्थ है समझ । समझदार उसे कहा जाता है जो समय प्रमाण समझदारी से कार्य करते हुए सफलता को प्राप्त करे । समझदार की निशानी है वह कभी धोखा नहीं खा सकते । और योगी की निशानी है क्लीन और क्लीयर बुद्धि । जिसकी बुद्धि क्लीन और क्लीयर है वह कभी नहीं कहेगा कि पता नहीं ऐसा क्यों हो गया! यह शब्द ज्ञानी और योगी आत्मायें नहीं बोल सकती, वे ज्ञान और योग को हर कर्म में लाती हैं ।

 

स्लोगन:- 

अचल- अडोल वही रहते जो अपने आदि अनादि संस्कार-स्वभाव को स्मृति में रखते हैं ।   

 

ओम् शान्ति |