17-12-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - यह पुरूषोत्तम संगमयुग ट्रांसफर होने का युग है,
अभी तुम्हें कनिष्ट से उत्तम पुरूष बनना है”
प्रश्न:-
बाप
के साथ-साथ किन बच्चों की भी महिमा गाई जाती है?
उत्तर:-
जो
टीचर बन बहुतों का कल्याण करने के निमित्त बनते हैं,
उनकी
महिमा भी बाप के साथ-साथ गाई जाती है । करन-करावनहार बाबा
बच्चों से अनेकों का कल्याण कराते हैं तो बच्चों की भी महिमा
हो जाती है । कहते हैं-बाबा,
फलाने
ने हमारे पर दया की,
जो हम
क्या से क्या बन गये! टीचर बनने बिगर आशीर्वाद मिल नहीं सकती ।
ओम्
शान्ति |
रूहानी बाप रूहानी बच्चों से पूछते हैं । समझाते भी हैं फिर
पूछते भी हैं । अब बाप को बच्चों ने जाना है । भल कोई
सर्वव्यापी भी कहते हैं परन्तु उनके पहले बाप को पहचानना तो
चाहिए ना-बाप कौन है?
पहचान कर फिर कहना चाहिए,
बाप
का निवास स्थान कहाँ हैं?
बाप
को जानते ही नहीं तो उनके निवास स्थान का पता कैसे पड़े । कह
देते वह तो नाम-रूप से न्यारा है,
गोया
है नहीं । तो जो चीज है नहीं उनके रहने के स्थान का भी कैसे
विचार किया जाए?
यह
अभी तुम बच्चे जानते हो । बाप ने पहले-पहले तो अपनी पहचान दी
है,
फिर
रहने का स्थान समझाया जाता है । बाप कहते हैं मैं तुमको इस सा
द्वारा पहचान देने आया हूँ । मैं तुम सबका बाप हूँ,
जिसको परमपिता कहा जाता है । आत्मा को भी कोई नहीं जानते हैं ।
बाप का नाम,
रूप,
देश,
काल
नहीं हैं तो बच्चों का फिर कहाँ से आये?
बाप
ही नाम-रूप से न्यारा है तो बच्चे फिर कहाँ से आये?
बच्चे हैं तो जरूर बाप भी है । सिद्ध होता है वह नाम-रूप से
न्यारा नहीं है । बच्चों का भी नाम- रूप है । भल कितना भी
सूक्ष्म हो । आकाश सूक्ष्म है तो भी नाम तो है ना आकाश । जैसे
यह पोलार सूक्ष्म है,
वैसे
बाप भी बहुत सूक्ष्म है । बच्चे वर्णन करते हैं वन्डरफुल
सितारा है,
जो
इनमें प्रवेश करते हैं,
जिसको आत्मा कहते हैं । बाप तो रहते ही हैं परमधाम में,
वह
रहने का स्थान है । ऊपर नजर जाती है ना । ऊपर अंगुली से इशारा
कर याद करते है । तो जरूर जिसको याद करते हैं,
कोई
वस्तु होगी । परमपिता परमात्मा कहते तो हैं ना । फिर भी
नाम-रूप से न्यारा कहना-इसे अज्ञान कहा जाता है । बाप को जानना,
इसे
ज्ञान कहा जाता है । यह भी तुम समझते हो हम पहले अज्ञानी थे ।
बाप को भी नहीं जानते थे,
अपने
को भी नहीं जानते थे । अब समझते हो हम आत्मा हैं,
न कि
शरीर । आत्मा को अविनाशी कहा जाता है तो जरूर कोई चीज है ना ।
अविनाशी कोई नाम नहीं । अविनाशी अर्थात् जो विनाश को नहीं पाती
। तो जरूर कोई वस्तु है । बच्चों को अच्छी रीति समझाया गया है,
मीठे-मीठे बच्चों,
जिनको बच्चे-बच्चे कहते हैं वह आत्मायें अविनाशी हैं । यह
आत्माओं का बाप परमपिता परमात्मा बैठ समझाते हैं । यह खेल एक
ही बार होता है जबकि बाप आकर बच्चों को अपना परिचय देते हैं ।
मैं भी पार्टधारी हूँ । कैसे पार्ट बजाता हूँ,
यह
भी तुम्हारी बुद्धि में है । पुरानी अर्थात् पतित आत्मा को नया
पावन बनाते हैं तो फिर शरीर भी तुम्हारे वहाँ गुल-गुल होते हैं
। यह तो बुद्धि में है ना ।
अभी
तुम बाबा-बाबा कहते हो,
यह
पार्ट चल रहा है ना । आत्मा कहती है बाबा आया हुआ है - हम
बच्चों को शान्तिधाम घर ले जाने के लिए । शान्तिधाम के बाद है
ही सुखधाम । शान्तिधाम के बाद दु :खधाम हो न सके । नई दुनिया
में सुख ही कहा जाता है । यह देवी-देवतायें अगर चैतन्य हो और
इनसे कोई पूछे आप कहाँ के रहने वाले हो,
तो
कहेंगे हम स्वर्ग के रहने वाले हैं । अब यह जड़ मूर्ति तो नहीं
कह सकती । तुम तो कह सकते हो ना,
हम
असुल स्वर्ग में रहने वाले देवी- देवतायें थे फिर 84 का चक्र
लगाए अब संगम पर आये हैं । यह ट्रांसफर होने का पुरूषोत्तम
संगमयुग है । बच्चे जानते हैं हम बहुत उत्तम पुरूष बनते हैं ।
हम हर 5 हजार वर्ष बाद सतोप्रधान बनते हैं । सतोप्रधान भी
नम्बरवार कहेंगे । तो यह सारा पार्ट आत्मा को मिला हुआ है ।
ऐसे नहीं कहेंगे कि मनुष्य को पार्ट मिला हुआ है । अहम् आत्मा
को पार्ट मिला हुआ है । मैं आत्मा 84 जन्म लेती हूँ । हम आत्मा
वारिस हैं,
वारिस हमेशा मेल होते हैं,
फीमेल नहीं । तो अभी तुम बच्चों को यह पक्का समझना है हम सब
आत्मायें मेल है । सबको बेहद के बाप से वर्सा मिलता है । हद के
लौकिक बाप से सिर्फ बच्चों को वर्सा मिलता है,
बच्ची को नहीं | ऐसे भी नहीं,
आत्मा सदैव फीमेल बनती है । बाप समझाते हैं तुम आत्मा कभी मेल
का,
कभी
फीमेल का शरीर लेती हो । इस समय तुम सब मेल्स हो । सब आत्माओं
को एक बाप से वर्सा मिलता है । सब बच्चे ही बच्चे हैं । सबका
बाप एक है । बाप भी कहते हैं-हे बच्चों,
तुम
सब आत्मायें मेल्स हो । हमारे रूहानी बच्चे हो । फिर पार्ट
बजाने लिए मेल-फीमेल दोनों चाहिए । तब तो मनुष्य सृष्टि की
वृद्धि हो । इन बातों को तुम्हारे सिवाए कोई भी नहीं जानते हैं
। भल कहते तो हैं हम सभी ब्रदर्स हैं परन्तु समझते नहीं ।
अभी
तुम कहते हो बाबा आपसे हमने अनेक बार वर्सा लिया है । आत्मा को
यह पक्का हो जाता है । आत्मा बाप को जरूर याद करती है- ओ बाबा
रहम करो । बाबा अब आप आओ,
हम
आपके सब बच्चे बनेंगे । देह सहित देह के सब सम्बन्ध छोड़ हम
आत्मा आपको ही याद करेंगे । बाप ने समझाया है अपने को आत्मा
समझ मुझ बाप को याद करो । बाप से हम वर्सा कैसे पाते हैं,
हर 5
हजार वर्ष बाद हम यह देवता कैसे बनते हैं,
यह
भी जानना चाहिए ना । स्वर्ग का वर्सा किससे मिलता है,
यह
अभी तुम समझते हो । बाप तो स्वर्गवासी नहीं है,
बच्चों को बनाते हैं । खुद तो नर्क में ही आते हैं,
तुम
बाप को बुलाते भी नर्क में हो,
जबकि
तुम तमोप्रधान बनते हो । यह तमोप्रधान दुनिया है ना ।
सतोप्रधान दुनिया थी,
5
हजार वर्ष पहले इनका राज्य था । इन बातो को,
इस
पढ़ाई को अभी तुम ही जानते हो । यह हैं मनुष्य से देवता बनने की
पढ़ाई । मनुष्य से देवता किये करत न लागी वार बच्चा बना और
वारिस बना,
बाप
कहते हैं तुम सब आत्मायें मेरे बच्चे हो । तुमको वर्सा देता
हूँ । तुम भाई- भाई हो,
रहने
का स्थान मूलवतन अथवा निर्वाणधाम है,
जिसको निराकारी दुनिया भी कहते हैं । सब आत्मायें वहाँ रहती
हैं । इस सूर्य चाँद से भी उस पार वह तुम्हारा स्वीट साइलेन्स
घर है परन्तु वहाँ बैठ तो नहीं जाना है । बैठकर क्या करेंगे ।
वह तो जैसे जड़ अवस्था हो गई । आत्मा जब पार्ट बजाये तब ही
चैतन्य कहलाये । है चैतन्य परन्तु पार्ट न बजाये तो जड़ हुई ना
। तुम यहाँ खड़े हो जाओ,
हाथ
पांव न चलाओ तो जैसे जड़ हुए । वहाँ तो नैचुरल शान्ति रहती है,
आत्मायें जैसे कि जड़ है । पार्ट कुछ भी नहीं बजाती । शोभा तो
पार्ट में है ना । शान्तिधाम में क्या शोभा होगी?
आत्मायें सुख-दुःख की भासना से परे रहती है । कुछ पार्ट ही
नहीं बजाती तो वहाँ रहने से क्या फायदा?
पहले-पहले सुख का पार्ट बजाना है । हर एक को पहले से ही पार्ट
मिला हुआ है । कोई कहते हैं हमको तो मोक्ष चाहिए । बुदबुदा
पानी में मिल गया बस,
आत्मा जैसेकि है नहीं । कुछ भी पार्ट न बजावे तो जैसे जड़
कहेंगे । चैतन्य होते हुए जड़ होकर पड़ा रहे तो क्या फायदा?
पार्ट तो सबको बजाना ही है । मुख्य हीरो-हीरोइन का पार्ट कहा
जाता है । तुम बच्चों को हीरो-हीरोइन का टाइटिल मिलता है ।
आत्मा यहाँ पार्ट बजाती है । पहले सुख का राज्य करती है फिर
रावण के दु :ख के राज्य में जाती है । अब बाप कहते हैं तुम
बच्चे सबको यह पैगाम दो । टीचर बन औरों को समझाओ । जो टीचर
नहीं बनते उनका पद कम होगा । टीचर बनने बिगर किसको आशीर्वाद
कैसे मिलेगी?
किसको पैसा देंगे तो उनको खुशी होगी ना । अन्दर में समझते हैं
बी.के. हमारे ऊपर बहुत दया करती हैं,
जो
हमको क्या से क्या बना देती हैं! यूँ तो महिमा एक बाप की ही
करते हैं-वाह बाबा,
आप
इन बच्चों द्वारा हमारा कितना कल्याण करते हो! कोई द्वारा तो
होता है ना । बाप करनकरावनहार है,
तुम्हारे द्वारा कराते हैं । तुम्हारा कल्याण होता है । तो तुम
फिर औरों को कलम लगाते हो । जैसे-जैसे जो सर्विस करते हैं,
उतना
ऊँच पद पाते हैं । राजा बनना है तो प्रजा भी बनानी है । फिर जो
अच्छे नम्बर में आते हैं वह भी राजा बनते हैं । माला बनती है
ना । अपने से पूछना चाहिए हम माला में कौन-सा नम्बर बनेंगे?
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रत्न मुख्य हैं ना । बीच में है हीरा बनाने वाला । हीरे को बीच
में रखते हैं । माला में ऊपर फूल भी है ना । अन्त में तुमको
पता पड़ेगा-कौन-से मुख्य दाने बनते हैं,
जो
डिनायस्टी में आयेंगे । पिछाड़ी में तुमको सब साक्षात्कार होगा
जरूर । देखेंगे,
कैसे
यह सब सजायें खाते हैं । शुरू में दिव्य दृष्टि में तुम
सूक्ष्मवतन में देखते थे । यह भी गुप्त है । आत्मा सजायें कहाँ
खाती हैं-यह भी ड्रामा में पार्ट है । गर्भ जेल में सजायें
मिलती हैं । जेल में धर्मराज को देखते हैं फिर कहते हैं बाहर
निकालो । बीमारियां आदि होती हैं,
वह
भी कर्म का हिसाब है ना । यह सब समझने की बातें हैं । बाप तो
जरूर राइट ही सुनायेंगे ना । अभी तुम राइटियस बनते हो ।
राइटियस उनको कहा जाता है जो बाप से बहुत ताकत लेते हैं ।
तुम
विश्व के मालिक बनते हो ना । कितनी ताकत रहती है । हंगामें आदि
की कोई बात नहीं । ताकत कम है तो कितने हगामें हो जाते हैं ।
तुम बच्चों को ताकत मिलती है- आधाकल्प के लिए । फिर भी
नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार । एक जैसी ताकत नहीं पा सकते,
न एक
जैसा पद पा सकते हैं । यह भी पहले से नूंध है । ड्रामा में
अनादि नूँध है । कोई पिछाड़ी में आते हैं,
एक-दो जन्म लिया और शरीर छोड़ा । जैसे दीवाली पर मच्छर होते हैं,
रात
को जन्म लेते हैं,
सुबह
को मर जाते हैं । वह तो अनगिनत होते हैं । मनुष्य की तो फिर भी
गिनती होती है । पहले-पहले जो आत्मायें आती हैं उनकी आयु कितनी
बड़ी होती है! तुम बच्चों को खुशी होनी चाहिए - हम बहुत बड़ी आयु
वाले बनेंगे । तुम कुल पार्ट बजाते हो । बाप तुमको ही समझाते
हैं,
तुम
कैसे कुल पार्ट बजाते हो । पढ़ाई अनुसार ऊपर से आते हो पार्ट
बजाने । तुम्हारी यह पढ़ाई है ही नई दुनिया के लिए । बाप कहते
हैं अनेक बार तुमको पढ़ाता हूँ । यह पढ़ाई अविनाशी हो जाती है ।
आधाकल्प तुम प्रालब्ध पाते हो । उस विनाशी पढ़ाई से सुख भी
अल्पकाल लिए मिलता है । अभी कोई बैरिस्टर बनता है फिर कल्प बाद
बैरिस्टर बनेगा । यह भी तुम जानते हो-जो भी सबका पार्ट है,
वही
पार्ट कल्प-कल्प बजता रहेगा । देवता हो या शूद्र हो,
हर
एक का पार्ट वही बजता है,
जो
कल्प-कल्प बजता है । उनमें कोई फर्क नहीं हो सकता । हर एक अपना
पार्ट बजाते रहते हैं । यह सारा बना- बनाया खेल है । पूछते हैं
पुरूषार्थ बड़ा या प्रालब्ध बड़ी?
अब
पुरूषार्थ बिगर तो प्रालब्ध मिलती नहीं । पुरूषार्थ से
प्रालब्ध मिलती है ड्रामा अनुसार । तो सारा बोझ ड्रामा पर आ
जाता है । पुरूषार्थ कोई करते हैं,
कोई
नहीं करते हैं । आते भी हैं फिर भी पुरूषार्थ नहीं करते तो
प्रालब्ध नहीं मिलती । सारी दुनिया में जो भी एक्ट चलती है,
सारा
बना-बनाया ड्रामा है । आत्मा में पहले से ही पार्ट नूँधा हुआ
है आदि से अन्त तक । जैसे तुम्हारी आत्मा में 84 का पार्ट है,
हीरा
भी बनती है तो कौड़ी जैसा भी बनती है । यह सब बातें तुम अभी
सुनते हो । स्कूल में अगर कोई नापास हो पड़ता है तो कहेंगे यह
बुद्धिहीन है । धारणा नहीं होती,
इसको
कहा जाता है वैराइटी झाड़,
वैराइटी फीचर्स । यह वैरायटी झाड़ का नॉलेज बाप ही समझाते हैं ।
कल्प वृक्ष पर भी समझाते हैं । बड़ के झाड़ का मिसाल भी इस पर है
। उनकी शाखायें बहुत फैलती हैं ।
बच्चे समझते हैं हमारी आत्मा अविनाशी है,
शरीर
तो विनाश हो जायेगा । आत्मा ही धारणा करती है,
आत्मा 84 जन्म लेती है,
शरीर
तो बदलते जाते हैं । आत्मा वही है,
आत्मा ही भिन्न-भिन्न शरीर लेकर पार्ट बजाती है । यह नई बात है
ना । तुम बच्चों को भी अभी यह समझ मिली हैं । कल्प पहले भी ऐसे
समझा था । बाप आते भी हैं भारत में । तुम सबको पैगाम देते रहते
हो,
कोई
भी ऐसा नहीं रहेगा जिसको पैगाम न मिले । पैगाम सुनना सभी का हक
है । फिर बाप से वर्सा भी लेंगे । कुछ तो सुनेंगे ना फिर भी
बाप के बच्चे हैं ना । बाप समझाते हैं-मैं तुम आत्माओं का बाप
हूँ । मेरे द्वारा इस रचना के आदि-मध्य- अन्त को जानने से तुम
यह पद पाते हो । बाकी सब मुक्ति में चले जाते हैं । बाप तो
सबकी सद्गति करते हैं । गाते हैं अहो बाबा,
तेरी
लीला... क्या लीला?
कैसी
लीला?
यह
पुरानी दुनिया को बदलने की लीला है । मालूम होना चाहिए ना ।
मनुष्य ही जानेंगे ना । बाप तुम बच्चों को ही आकर सब बातें
समझाते हैं । बाप नॉलेजफुल है । तुमको भी नॉलेजफुल बनाते हैं ।
नम्बरवार तुम बनते हो । स्कॉलरशिप लेने वाले नॉलेजफुल
कहलायेंगे । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1.
सदा इसी
स्मृति में रहना है कि हम आत्मा मेल हैं,
हमें बाप से पूरा वर्सा लेना है । मनुष्य से देवता बनने की
पढ़ाई पढ़नी और पढ़ानी है ।
2.
सारी
दुनिया में जो भी एक्ट चलती है,
यह सब बना-बनाया ड्रामा है,
इसमें पुरूषार्थ और प्रालब्ध दोनों की नूंध है । पुरूषार्थ के
बिना प्रालब्ध नहीं मिल सकती,
इस बात को अच्छी तरह समझना है ।
वरदान:-
सन्तुष्टता के तीन सर्टीफिकेट ले अपने योगी जीवन का प्रभाव
डालने वाले सहजयोगी
भव ! 
सन्तुष्टता योगी जीवन का विशेष लक्ष्य है,
जो
सदा सन्तुष्ट रहते और सर्व को सन्तुष्ट करते हैं उनके योगी
जीवन का प्रभाव दूसरों पर स्वत: पड़ता है । जैसे साइन्स के
साधनों का वायुमण्डल पर प्रभाव पड़ता है,
ऐसे
सहजयोगी जीवन का भी प्रभाव होता है । योगी जीवन के तीन
सर्टीफिकेट हैं एक - स्व से सन्तुष्ट,
दूसरा - बाप सन्तुष्ट और तीसरा - लौकिक अलौकिक परिवार सन्तुष्ट
।
स्लोगन:-
स्वराज्य का तिलक,
विश्व कल्याण का ताज और स्थिति के तख्त पर विराजमान रहने वाले
ही राजयोगी हैं । 
ओम्
शान्ति |