14-02-14       प्रातः मुरली       ओम् शान्ति   “बापदादा”     मधुबन


मीठे बच्चे अब अशरीरी होकर घर जाना है इसलिए अब किसी से बात करते हो तो आत्मा भाई-भाई समझ बात करो, देही-अभिमानी रहने की मेहनत करो |   


प्रश्न:-   
भविष्य राज तिलक प्राप्त करने का आधार क्या है?


उत्तर:-
पढ़ाई | हरेक को पढ़कर राज तिलक लेना है | बाप की है पढ़ाने की ड्यूटी, इसमें आशीर्वाद की बात नहीं | पूरा निश्चय है तो श्रीमत पर चलते चलो | गफ़लत नहीं आनी है | अगर मतभेद में आकर पढ़ाई छोड़ी तो नापास हो जायेंगे, इसलिए बाबा कहते – मीठे बच्चे, अपने ऊपर रहम करो | आशीर्वाद मांगनी नहीं है, पढ़ाई पर ध्यान देना है |

 

ओम् शान्ति |

सुप्रीम टीचर बच्चों को पढ़ाते हैं | बच्चे जानते हैं परमपिता परमात्मा, पिता भी है, टीचर भी है | ऐसा तुमको पढ़ाते हैं जो और कोई पढ़ा न सके | तुम कहते हो शिवबाबा हमको पढ़ाते हैं | अब यह बाबा कोई एक का नहीं है | मन्मनाभव, मध्याजीभव, इसका अर्थ समझाते हैं मुझे याद करो | बच्चे तो अब समझदार हुए हैं | बेहद का बाप कहते हैं तुम्हारा वर्सा तो है ही – यह कभी भूलना नहीं चाहिए | बाप आत्माओं से ही बातें करते हैं | अभी तुम जीव आत्मायें हो ना | बेहद का बाप भी निराकार है | तुम जानते हो इस तन द्वारा वह हमको पढ़ा रहे हैं और कोई ऐसे नहीं समझेंगे | स्कूल में टीचर पढ़ाते हैं तो कहेंगे लौकिक टीचर, लौकिक बच्चों को पढ़ाते हैं | यह है पारलौकिक सुप्रीम टीचर जो पारलौकिक बच्चों को पढ़ाते हैं | तुम भी परलोक, मूलवतन के निवासी हो | बाप भी परलोक में रहते हैं | बाप कहते हैं हम भी शान्तिधाम के निवासी हैं और तुम भी वहाँ के ही निवासी हो | हम दोनों एक धाम के रहवासी हैं | तुम अपने को आत्मा समझो | मैं परम आत्मा हूँ | अभी तुम यहाँ पार्ट बजा रहे हो | पार्ट बजाते-बजाते तुम अभी पतित बन गये हो | यह सारा बेहद का माण्डवा है, जिसमें खेल होता है | यह सारी सृष्टि कर्मक्षेत्र है, इसमें खेल हो रहा है | यह भी सिर्फ़ तुम ही जानते हो कि यह बेहद का खेल है, इसमें दिन और रात भी होते हैं | सूर्य और चाँद कितनी बेहद की रोशनी देते हैं, यह है बेहद की बात | अभी तुमको ज्ञान भी है | रचता ही आकर रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त का परिचय देते हैं | बाप कहते हैं तुमको रचना के आदि-मध्य-अन्त का राज़ सुनाने आया हूँ | यह पाठशाला है, पढ़ाने वाला अभोक्ता है | ऐसे कोई नहीं कहेंगे कि हम अभोक्ता हैं | अहमदाबाद में एक साधू ऐसे कहता था, परन्तु बाद में ठगी पकड़ी गई | इस समय ठगी भी बहुत निकल पड़ी है | वेषधारी बहुत हैं | इनको तो कोई वेष है नहीं | मनुष्य समझते हैं कृष्ण ने गीता सुनाई तो आजकल कितने कृष्ण बन पड़े हैं | अब इतने कृष्ण तो होते नहीं | यहाँ तो तुमको शिवबाबा आकर पढ़ाते हैं, आत्माओं को सुनाते हैं |

 

तुमको बार-बार कहा गया है कि अपने को आत्मा समझ भाई-भाई को सुनाओ | बुद्धि में रहे – बाबा की नॉलेज हम भाईओं को सुनाते हैं | मेल अथवा फ़ीमेल दोनों भाई-भाई हैं | इसलिए बाप कहते हैं तुम सब मेरे वर्से के हक़दार हो | वैसे फ़ीमेल को वर्सा नहीं मिलता है क्योंकि उनको ससुरघर जाना है | यहाँ तो हैं ही सब आत्मायें | अशरीरी होकर जाना है घर | अभी जो तुमको ज्ञान रत्न मिलते हैं यह विनाशी रत्न बन जाते हैं | आत्मा ही ज्ञान का सागर बनती है ना | आत्मा ही सब कुछ करती है | परन्तु मनुष्यों को देह-अभिमान होने के कारण, देही-अभिमानी बनते नहीं हैं | अब तुमको देही-अभिमानी बन एक बाप को याद करना है | कुछ तो मेहनत चाहिए ना | लौकिक गुरु को कितना याद करते हैं | मूर्ति रख देते हैं | अब कहाँ शिव का चित्र, कहाँ मनुष्य का चित्र | रात-दिन का फ़र्क है | वह गुरु का फोटो पहन लेते हैं | पति लोगों को अच्छा नहीं लगता कि दूसरों का फोटो पहनें | हाँ, शिव का पहनेंगे तो वह सबको अच्छा लगेगा क्योंकि वह तो परमपिता है ना | उनका चित्र तो होना चाहिए | यह है गले का हार बनाने वाला | तुम रूद्र माला का मोती बनेंगे | यूँ तो सारी दुनिया रूद्र माला भी है, प्रजापिता ब्रह्मा की माला भी है, ऊपर में सिजरा है | वह है हद का सिजरा, यह है बेहद का | जो भी मनुष्यमात्र हैं, सबकी माला है | आत्मा कितनी छोटे से छोटी बिन्दी है | बिल्कुल छोटी बिन्दी है | ऐसे-ऐसे बिन्दी देते जाओ तो अनगिनत हो जायेंगी | गिनती करते-करते थक जायेंगे | परन्तु देखो, आत्मा का झाड़ कितना छोटा है | ब्रह्म तत्व में बहुत थोड़ी जगह में रहती हैं | वह फिर यहाँ आती है पार्ट बजाने | तो यहाँ फिर कितनी लम्बी-चौड़ी दुनिया है | कहाँ-कहाँ एरोप्लेन में जाते हैं | वहाँ फिर एरोप्लेन आदि की दरकार नहीं | आत्माओं का छोटा-सा झाड़ है | यहाँ मनुष्यों का कितना बड़ा झाड़ है |

 

यह सब हैं प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान | जिसको कोई एडम, कोई आदि देव कहते हैं | मेल-फ़ीमेल तो ज़रूर हैं | तुम्हारा है प्रवृत्ति मार्ग | निवृत्ति मार्ग का खेल होता नहीं | एक हाथ से क्या होगा | दोनों पहिये चाहिए | दो हैं तो आपस में रेस करते हैं | दूसरा पहिया साथ नहीं देता है तो ढीले पड़ जाते हैं | परन्तु एक के कारण ठहर नहीं जाना चाहिए | पहले-पहले पवित्र प्रवृत्ति मार्ग था | फिर होता है अपवित्र | गिरते ही जाते हैं | तुम्हारी बुद्धि में सारा ज्ञान है | यह झाड़ कैसे बढ़ता है, कैसे एडीशन होती जाती है | ऐसा झाड़ कोई निकल न सके | कोई की बुद्धि में रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त का नॉलेज है ही नहीं | इसलिए बाबा ने कहा था – यह लिखो कि हमने रचता द्वारा रचता और रचना की नॉलेज का अन्त पाया है | वह तो न रचता को जानते, न रचना को | अगर परम्परा यह ज्ञान चला आता तो कोई बतावे ना | सिवाए तुम ब्रह्माकुमार-कुमारियों के कोई बता न सके | तुम जानते हो हम ब्राह्मणों को ही परमपिता परमात्मा पढ़ाते हैं | हम ब्राह्मणों का ही ऊँचे से ऊँचा धर्म है | चित्र भी ज़रूर दिखाना पड़ता है | चित्र बिगर कब बुद्धि में बैठेगा नहीं | चित्र बहुत बड़े-बड़े होने चाहिए | वैरायटी धर्मों का झाड़ कैसे बढ़ता है, यह भी समझाया है | आगे तो कहते थे हम आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो हम आत्मा | अब बाप ने इसका भी अर्थ बताया है | इस समय हम सो ब्राह्मण हैं फिर हम सो देवता बनेंगे, नई दुनिया में | अभी हम पुरुषोत्तम संगमयुग पर हैं अर्थात् यह है पुरुषोत्तम बनने का संगमयुग | यह सब तुम समझा सकते हो – रचता और रचना का अर्थ, हम सो का अर्थ | ओम् अर्थात् मैं आत्मा फर्स्ट, फिर यह शरीर है | आत्मा अविनाशी और यह शरीर विनाशी है | हम यह शरीर धारण कर पार्ट बजाते हैं | इसको कहा जाता है आत्म अभिमानी | हम आत्मा फ़लाना पार्ट बजाती हैं, हम आत्मा यह करती हैं, हम आत्मा परमात्मा के बच्चे हैं | कितना वन्डरफुल ज्ञान है | यह ज्ञान बाप में ही है, इसलिए बाप को ही बुलाते हैं |

 

बाप है ज्ञान का सागर | उनकी भेंट में फिर है अज्ञान के सागर, आधा कल्प है ज्ञान, आधा कल्प है अज्ञान | ज्ञान का किसको पता ही नहीं है | ज्ञान कहा जाता है रचता द्वारा रचना को जानना | तो ज़रूर रचता में ही ज्ञान है ना, इसलिए उनको क्रियेटर कहा जाता है | मनुष्य समझते हैं क्रियेटर ने यह रचना रची है | बाप समझाते हैं यह तो अनादि बना-बनाया खेल है | कहते हैं पतित-पावन आओ, तो रचता कैसे कहेंगे? रचता तब कहें जब प्रलय हो फिर रचे | बाप तो पतित दुनिया को पावन बनाते हैं | तो यह सारे विश्व का जो झाड़ है उनके आदि-मध्य-अन्त को तो मीठे-मीठे बच्चे ही जानते हैं | जैसे माली हरेक बीज को और झाड़ को जानते हैं ना | बीज को देखने से सारा झाड़ बुद्धि में आ जाता है | तो यह है ह्यूमेनिटी का (मनुष्य सृष्टि का) बीज | उन्हें कोई नहीं जानते | गाते भी हैं परमपिता परमात्मा सृष्टि का बीजरूप है | सत, चित, आनन्द स्वरूप है, सुख, शान्ति, पवित्रता का सागर है | तुम जानते हो यह सारा ज्ञान परमपिता परमात्मा इस शरीर द्वारा दे रहे हैं | तो ज़रूर यहाँ आयेंगे ना | पतितों को पावन प्रेरणा से कैसे बनायेंगे | तो बाप यहाँ आकर सबको पावन बनाकर ले जाते हैं | वह बाप ही तुमको पाठ पढ़ा रहे हैं | यह है पुरुषोत्तम संगमयुग | इस पर तुम भाषण कर सकते हो कि कैसे पुरुष तमोप्रधान से श्रेष्ठ सतोप्रधान बनते हैं | तुम्हारे पास टॉपिक तो बहुत हैं | यह पतित तमोप्रधान दुनिया सतोप्रधान कैसे बनती है – यह भी समझने लायक है | आगे चलकर तुम्हारा यह ज्ञान सुनेंगे | भल छोड़ भी देंगे फिर आयेंगे क्योंकि गति-सद्गति की हट्टी एक ही है | तुम कह सकते हो कि सर्व का सद्गति दाता एक बाप ही है | उनको श्री श्री कहते हैं | श्रेष्ठ से श्रेष्ठ है परमपिता परमात्मा | वो हमें श्रेष्ठ बनाते हैं | श्रेष्ठ है सतयुग | भ्रष्ट है कलियुग | कहते भी हैं भ्रष्टाचारी हैं | परन्तु अपने को नहीं समझते | पतित दुनिया में एक भी श्रेष्ठ नहीं | श्री श्री जब आये तब आकर श्री बनाये | श्री का टाइटिल सतयुग आदि में देवताओं का था | यहाँ तो सबको श्री श्री कह देते हैं | वास्तव में श्री अक्षर है ही पवित्रता का | दूसरे धर्म वाले कोई भी अपने को श्री नहीं कहते | श्री पोप कहेंगे क्या? यहाँ तो सबको कहते रहते हैं | कहाँ हंस मोती चुगने वाले, कहाँ बगुले गन्द खाने वाले | फ़र्क तो है ना | यह देवतायें हैं फ़ुल, वह है गॉर्डन ऑफ़ अल्लाह | बाप तुमको फूल बना रहा है | बाकी फूलों में वैरायटी है | सबसे अच्छा फूल है किंग फ़्लावर | इन लक्ष्मी-नारायण को नई दुनिया का किंग क्वीन फ़्लावर कहेंगे |

 

तुम बच्चों को आन्तरिक ख़ुशी होनी चाहिए | इसमें बाहर का कुछ करना नहीं होता | यह बत्तियाँ आदि जलाने का भी अर्थ चाहिए | शिव जयन्ती पर जलानी चाहिए या दीवाली पर? दीवाली पर लक्ष्मी का आह्वान करते हैं | उनसे पैसे माँगते हैं | जबकि भण्डारा भरने वाला तो शिव भोला भण्डारी है | तुम जानते हो शिवबाबा द्वारा हमारा अखुट ख़ज़ाना भर जाता है | यह ज्ञान रत्न धन है | वहाँ भी तुम्हारे पास अथाह धन रहता है | नई दुनिया में तुम मालामाल हो जायेंगे | सतयुग में ढेरों के ढेर हीरे जवाहर थे | फिर वो ही होंगे | मनुष्य मूँझते है | यह सब ख़त्म होगा, फिर कहाँ से आयेगा? खानियाँ खुद गई, पहाड़ियाँ टूट गई फिर कैसे होंगी? बोलो, हिस्ट्री रिपीट होती है ना, जो कुछ था सो फिर रिपीट होगा | तुम बच्चे पुरुषार्थ कर रहे हो, स्वर्ग का मालिक बनने का | स्वर्ग की हिस्ट्री-जॉग्राफी फिर रिपीट होगी | गीत में है ना – आपने सारी सृष्टि, सारा समुद्र, सारी पृथ्वी हमको दे दी है जो कोई हमसे छीन नहीं सकता | उसकी भेंट में अब क्या है! जमीन के लिए, पानी के लिए, भाषा के लिए लड़ते हैं |

 

स्वर्ग के रचता बाबा का जन्म मनाया जाता है | ज़रूर उसने स्वर्ग की बादशाही दी होगी | अब तुमको बाप पढ़ा रहे हैं | तुमको इस शरीर के नाम रूप से न्यारा हो अपने को आत्मा समझना है | पवित्र बनना है – या तो योगबल से या तो सजायें खाकर | फिर पद भी कम हो जाता है | स्टूडेन्ट की बुद्धि में रहता है ना – हम इतना मर्तबा पाते हैं | टीचर ने इतना पढ़ाया है | फिर टीचर को भी सौगात देते हैं | यह तो बाप तुमको विश्व का मालिक बनाते हैं | तो तुम फिर भक्ति मार्ग में उनको याद करते रहते हो | बाकी बाप को आप सौगात क्या देंगे? यहाँ तो जो कुछ देखते हो वह तो रहना नहीं है | यह तो पुरानी छी-छी दुनिया है तब तो मुझे बुलाते हैं | बाप तुमको पतित से पावन बनाते हैं | इस खेल को याद करना चाहिए | मेरे में रचना के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज है, जो तुमको सुनाता हूँ, तुम अब सुनते हो फिर भूल जाते हो | पाँच हज़ार वर्ष के बाद फिर चक्र पूरा होगा | तुम्हारा पार्ट कितना लवली है | तुम सतोप्रधान व लवली बनते हो | फिर तमोप्रधान भी तुम ही बनते हो | तुम ही बुलाते हो बाबा आओ | अब मैं आया हूँ | अगर निश्चय है तो श्रीमत पर चलना चाहिए | गफ़लत नहीं करनी चाहिए | कई बच्चे मतभेद में आकर पढ़ाई छोड़ देते हैं | श्रीमत पर नहीं चलेंगे, पढ़ेंगे नहीं तो नापास भी तुम ही होंगे | बाप तो कहते हैं अपने पर रहम करो | हरेक को पढकर अपने को राज तिलक देना है | बाप को तो है पढ़ाने की ड्यूटी, इसमें आशीर्वाद की बात नहीं | फिर तो सभी पर आशीर्वाद करनी पड़े | यह कृपा आदि भक्ति मार्ग में माँगते हैं | यहाँ वह बात नहीं | अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1.    प्रवृत्ति में रहते आपस में रेस करनी है | परन्तु अगर किसी कारण से एक पहिया ढीला पड़ जाता है तो उसके पीछे ठहर नहीं जाना है | स्वयं को राजतिलक देने लायक बनाना है |

 

2.    शिव जयन्ती बड़ी धूम-धाम से मनानी है क्योंकि शिवबाबा जो ज्ञान रत्न देते हैं, उससे ही तुम नई दुनिया में मालामाल बनेंगे | तुम्हारे सब भण्डारे भरपूर हो जायेंगे |

 

वरदान:-  

सदा एकरस मूड द्वारा सर्व आत्माओं को सुख-शान्ति-प्रेम की अंचली देने वाले महादानी भव !   

 

आप बच्चों की मूड सदा ख़ुशी की एकरस रहे, कभी मूड ऑफ, कभी मूड बहुत खुश......ऐसे नहीं | सदा महादानी बनने वालों की मूड कभी बदलती नहीं है | देवता बनने वाले माना देने वाले | आपको कोई कुछ भी दे लेकिन आप महादानी बच्चे सबको सुख की अंचली, शान्ति की अंचली, प्रेम की अंचली दो | तन की सेवा के साथ मन से ऐसी सेवा में बिज़ी रहो तो डबल पुण्य जमा हो जायेगा |


स्लोगन:- 

आपकी विशेषतायें प्रभू प्रसाद हैं, इन्हें सिर्फ़ स्वयं प्रति यूज़ नहीं करो, बाँटो और बढ़ाओ |     

 

ओम् शान्ति |