24-02-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
ऊंच पद पाने के लिए बाप तुम्हें जो पढ़ाते हैं उसे ज्यों का
त्यों धारण करो, सदा श्रीमत पर चलते रहो
|
प्रश्न:-
कभी भी अफ़सोस न हो, उसके लिए किस बात पर अच्छी तरह विचार करो?
उत्तर:-
हर
एक आत्मा जो पार्ट बजा रही है, वह ड्रामा में एक्यूरेट नूँधा
हुआ है | यह अनादि और अविनाशी ड्रामा है | इस बात पर विचार करो
तो कभी भी अफ़सोस नहीं हो सकता | अफ़सोस उन्हें होता जो ड्रामा
के आदि मध्य अन्त को रियलाइज़ नहीं करते हैं | तुम बच्चों को इस
ड्रामा को ज्यों का त्यों साक्षी होकर देखना है, इसमें रोने
रुसने की कोई बात नहीं |
ओम्
शान्ति
|
रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं कि आत्मा कितनी
छोटी है | बहुत छोटी है और छोटी सी आत्मा से शरीर कितना बड़ा
देखने में आता है | छोटी आत्मा अलग हो जाती है तो फिर कुछ भी
नहीं देख सकती | आत्मा के ऊपर विचार किया जाता है | इतनी छोटी
बिन्दी क्या-क्या काम करती है | मैग्नीफाय ग्लास होते हैं,
उनसे छोटे-छोटे हीरों को देखा जाता है | कोई दाग़ आदि तो नहीं
है | तो आत्मा भी कितनी छोटी है | कैसे मैग्नीफाय ग्लास है –
जिससे देखते हो | रहती कहाँ है? क्या कनेक्शन है? इन आँखों से
कितना बड़ा धरती आसमान देखने में आता है! बिन्दी निकल जाने से
कुछ नहीं रहता | जैसे बिन्दी बाप वैसे बिन्दी आत्मा | इतनी
छोटी आत्मा प्युअर इमप्युअर बनती है | यह बहुत विचार करने की
बातें हैं | दूसरा कोई नहीं जानते – आत्मा क्या है, परमात्मा
क्या है | इतनी छोटी आत्मा शरीर में रह क्या-क्या बनाती है |
क्या-क्या देखती है | उस आत्मा में सारा पार्ट भरा हुआ है – 84
का | कैसे वह काम करती है, वन्डर है | इतनी छोटी सी बिन्दी में
84 जन्मों का पार्ट नूँधा हुआ है | एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है
| समझो नेहरु मरा, क्राइस्ट मरा | आत्मा निकल गई तो शरीर मर
गया | कितना बड़ा शरीर है और कितनी छोटी आत्मा है | यह भी बाबा
ने बहुत बार समझाया है कि मनुष्यों को कैसे पता पड़े कि यह
सृष्टि का चक्र हर 5 हज़ार वर्ष बाद फिरता है | फ़लाना मरा यह
कोई नई बात नहीं | उनकी आत्मा ने यह शरीर छोड़ दूसरा लिया | 5
हज़ार वर्ष पहले भी इस नाम रूप को इसी समय छोड़ा था | आत्मा
जानती है हम एक शरीर छोड़ दूसरे में प्रवेश करती हूँ |
अभी तुम शिवजयन्ती मनाते हो | दिखाते हो 5 हज़ार वर्ष पहले भी
शिवजयन्ती मनाई थी | हर 5 हज़ार वर्ष बाद शिवजयन्ती जो हीरे
तुल्य है, मनाते ही आते हैं | यह सही बातें हैं | विचार सागर
मंथन करना होता है जो औरों को समझा सकें | यह त्योहार होते
हैं, तुम कहेंगे नई बात नहीं, हिस्ट्री रिपीट होती है जो फिर 5
हज़ार वर्ष बाद जो भी पार्टधारी हैं वह अपना शरीर लेते हैं | एक
नाम रूप देश काल छोड़ दूसरा लेते हैं | इस पर विचार सागर मंथन
कर ऐसा लिखें जो मनुष्य वन्डर खायें | बच्चों से हम पूछते हैं
ना – आगे कब मिले हो? इतनी छोटी आत्मा से ही पूछना होता है ना
| तुम इस नाम रूप में आगे कब मिले थे? आत्मा ने सुना | तो बहुत
कहते हैं हाँ बाबा, आपसे कल्प पहले मिले थे | सारा ड्रामा का
पार्ट बुद्धि में है | वह होते हैं हद के ड्रामा के एक्टर्स |
यह है बेहद का ड्रामा | यह ड्रामा बड़ा एक्यूरेट है, इसमें ज़रा
भी फ़र्क नहीं पड़ सकता | वह बाइस्कोप होते हैं हद के, मशीन पर
चलते हैं | दो चार रोल भी हो सकते हैं, जो फिरते हैं | यह तो
अनादि अविनाशी एक ही बेहद का ड्रामा है | इसमें कितनी छोटी
आत्मा एक पार्ट बजाए फिर दूसरा बजाती है | 84 जन्मों का कितना
बड़ा फिल्म रोल होगा | यह क़ुदरत है | कोई की बुद्धि में बैठेगा!
है तो रिकार्ड मिसल, बड़ा वन्डरफुल है | 84 लाख तो हो न सके |
84 का ही चक्र है, इनकी पहचान कैसे दी जाए | अख़बार वालों को भी
समझाओ तो डालेंगे | मैगज़ीन में भी घड़ी-घड़ी डाल सकते हैं | हम
इस संगम के समय की ही बातें करते हैं | सतयुग में तो यह बातें
होंगी नहीं | न कलियुग में होंगी | जानवर आदि जो भी कुछ हैं,
सबके लिए कहेंगे फिर 5 हज़ार वर्ष के बाद देखेंगे | फ़र्क नहीं
पड़ सकता | ड्रामा में सारी नूँध है | सतयुग में जानवर भी बहुत
खूबसूरत होंगे | यह सारी वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट
होगी | जैसे ड्रामा के शूटिंग होती है | मक्खी उड़ी वह भी निकल
गई तो फिर रिपीट होगी | अब हम इन छोटी-छोटी बातों का ख्याल तो
नहीं करेंगे | पहले तो बाप खुद कहते हैं हम कल्प-कल्प संगमयुगे
इस भाग्यशाली रथ पर आता हूँ | आत्मा ने कहा कैसे इसमें आते
हैं, इतनी छोटी बिन्दी है | उनको फिर ज्ञान का सागर कहते हैं |
यह बातें तुम बच्चों में भी जो समझू हैं, वह समझ सकते हैं | हर
5 हज़ार वर्ष के बाद मैं आता हूँ | कितनी यह वैल्युबुल पढ़ाई है
| बाप के पास ही एक्यूरेट नॉलेज है जो बच्चों को देते हैं |
तुम्हारे से कोई पूछे तुम झट कहेंगे सतयुग की आयु 1250 वर्ष की
है | एक-एक जन्म की आयु 150 वर्ष होती है | कितना पार्ट बजता
है | बुद्धि में सारा चक्र फिरता है | हम 84 जन्म लेते हैं |
सारी सृष्टि ऐसे चक्र में फिरती रहती है | यह अनादि अविनाशी
बना बनाया ड्रामा है | इसमें नई एडीशन हो नहीं सकती | गायन भी
है चिन्ता ताकी कीजिए जो अनहोनी होए | जो कुछ होता है ड्रामा
में नूँध है | साक्षी होकर देखना पड़ता है | उस नाटक में कोई
ऐसा पार्ट होता है तो जो कमज़ोर दिल वाले होते हैं वो रोने लग
पड़ते हैं | है तो नाटक ना | यह रीयल है, इसमें हर आत्मा अपना
पार्ट बजाती है | ड्रामा कभी बन्द नहीं होता है | इसमें रोने
रुसने की कोई बात नहीं है | कोई भी नई बात थोड़ेही है | अफ़सोस
उनको होता है जो ड्रामा के आदि मध्य अन्त को रियलाइज़ नहीं करते
| यह भी तुम जानते हो | इस समय जो हम इस ज्ञान से पद पाते हैं,
चक्र लगाकर फिर वही बनेंगे | यह बड़ी आश्चर्यवत विचार सागर मंथन
करने की बातें हैं | कोई भी मनुष्य इन बातों को नहीं जानते |
ऋषि मुनि भी कहते थे – हम रचता और रचना को नहीं जानते हैं |
उनको क्या पता कि रचता इतनी छोटी बिन्दी है | वही नई सृष्टि का
रचता है | तुम बच्चों को पढ़ाते हैं, ज्ञान का सागर है | यह
बातें तुम बच्चे ही समझते हो | तुम थोड़ेही कहेंगे हम नहीं
जानते हैं | तुमको बाप इस समय सब समझाते हैं |
तुमको कोई भी बात में अफ़सोस करने की जरूरत नहीं | सदैव हर्षित
रहना है | उस ड्रामा की फिल्म चलते चलते घिस जायेगी, पुरानी हो
जायेगी फिर बदली करेंगे | पुरानी को ख़लास कर देते हैं | यह तो
बेहद का अविनाशी ड्रामा है | ऐसी-ऐसी बातों पर विचार कर पक्का
कर लेना चाहिए | यह ड्रामा है | हम बाप की श्रीमत पर चल पतित
से पावन बन रहे हैं और कोई बात हो नहीं सकती, जिससे हम पतित से
पावन बन जायें अथवा तमोप्रधान से सतोप्रधान बनें | पार्ट
बजाते-बजाते हम सतोप्रधान से तमोप्रधान बने हैं फिर सतोप्रधान
बनना है | न आत्मा विनाश को पा सकती, न पार्ट विनाश को पा सकता
| ऐसी-ऐसी बातों पर कोई का विचार नहीं चलता | मनुष्य तो सुनकर
वन्डर खायेंगे | वह तो सिर्फ़ भक्ति मार्ग के शास्त्र ही पढ़ते
हैं | रामायण, भागवत, गीता आदि वही हैं | इसमें तो विचार सागर
मंथन करना होता है | बेहद का बाप जो समझाते हैं उसको ज्यों का
त्यों हम धारण कर ले तो अच्छी ही पद पा लें | सब एक जैसी धारणा
नहीं कर सकते हैं | कोई तो बहुत महीनता से समझाते हैं | आजकल
जेल में भी भाषण करने जाते हैं | वेश्याओं के पास भी जाते हैं,
गूँगे बहरों के पास भी बच्चे जाते होंगे क्योंकि उन्हों का भी
हक़ है | इशारे से समझ सकते हैं | आत्मा समझने वाली तो अन्दर है
ना | चित्र सामने रख दो, पढ़ तो सकेंगे ना | बुद्धि तो आत्मा
में है ना | भल अन्धे लूले लंगड़े हैं परन्तु कोई न कोई प्रकार
से समझ सकते हैं | अन्धों के कान तो हैं | तुम्हारा सीढी का
चित्र तो बहुत अच्छा है | यह नॉलेज कोई को भी समझकर स्वर्ग में
जाने लायक बना सकते हो | आत्मा बाप से वर्सा ले सकती है |
स्वर्ग में जा सकती है | करके आरगन्स डिफेक्टेड हैं | वहाँ तो
लूले लंगड़े होते नहीं | वहाँ आत्मा और शरीर दोनों कंचन मिल
जाते हैं | प्रकृति भी कंचन है, नई चीज़ ज़रूर सतोप्रधान होती है
| यह भी ड्रामा बना हुआ है | एक सेकेण्ड न मिले दूसरे से | कुछ
न कुछ फ़र्क पड़ता है | ऐसे ड्रामा को ज्यों का त्यों साक्षी
होकर देखना है | यह नॉलेज तुमको अब मिलती है फिर कभी नहीं
मिलनी है | आगे यह नॉलेज थोड़ेही थी, यह अनादि अविनाशी बना
बनाया ड्रामा कहा जाता है | इसको अच्छी रीति समझ और धारण कर
किसी को समझाना है |
तुम ब्राह्मण ही इस ज्ञान को जानते हो | यह तो चोबचीनी (ताक़त
की दवा) तुमको मिलती है | अच्छे ते अच्छी चीज़ की महिमा की जाती
है | नई दुनिया कैसे स्थापन होती है फिर से यह राज्य कैसे होगा
तुम्हारे में भी नम्बरवार जानते हैं | जो जानते हैं वह दूसरों
को समझा भी सकते हैं | बहुत ख़ुशी रहती है | किन्हों को तो पाई
की भी ख़ुशी नहीं है | सबका अपना-अपना पार्ट है | जिनको बुद्धि
में बैठता होगा, विचार सागर मंथन करते होंगे तो दूसरों को भी
समझायेंगे | तुम्हारी यह है पढ़ाई जिससे तुम यह बनते हो | तुम
कोई को भी समझाओ कि तुम आत्मा हो | आत्मा ही परमात्मा को याद
करती है | आत्मायें सब ब्रदर्स हैं | कहावत है गॉड इज़ वन |
बाकी इन मानुषों में आत्मा है | सब आत्माओं का पारलौकिक बाप एक
है | जो पक्के निश्चयबुद्धि होंगे उनको कोई फिरा नहीं सकते |
कच्चे को जल्दी फिरा देंगे | सर्वव्यापी के ज्ञान पर कितनी
डिबेट करते हैं | वह भी अपने ज्ञान पर पक्के हैं, हो सकता है
हमारे इस ज्ञान का न हो | उनको देवता धर्म कैसे कह सकते | आदि
सनातन देवी-देवता धर्म तो प्रायः लोप है | तुम बच्चों को मालूम
है, हमारा ही आदि सनातन धर्म पवित्र प्रवृत्ति वाला था | अब तो
अपवित्र हो गया है | जो पहले पूज्य थे वही पुजारी बन पड़े हैं |
बहुत प्वाइन्ट्स कण्ठ होंगी तो समझाते रहेंगे | बाप तुमको
समझाते हैं तुम फिर औरों को समझाओ कि यह सृष्टि चक्र कैसे
फिरता है | सिवाए तुम्हारे और कोई नहीं जानते | तुम्हारे में
भी नम्बरवार हैं |
बाबा को भी घड़ी-घड़ी प्वाइन्ट्स रिपीट करनी पड़ती हैं क्योंकि
नये-नये आते हैं | शुरू में कैसे स्थापना हुई, तुम्हारे से
पूछेंगे फिर तुमको भी रिपीट करना पड़ेगा | तुम बहुत बिज़ी रहेंगे
| चित्रों पर भी तुम समझा सकते हो | परन्तु ज्ञान की धारणा
सबको एकरस तो नहीं हो सकती है | इसमें ज्ञान चाहिए, याद चाहिए,
धारणा बड़ी अच्छी चाहिए | सतोप्रधान बनने के लिए बाप को याद
ज़रूर करना है | कई बच्चे तो अपने धन्धे में फँसे रहते हैं |
कुछ भी पुरुषार्थ ही नहीं करते | यह भी ड्रामा में नूँध है |
कल्प पहले जिन्होंने जितना पुरुषार्थ किया है उतना ही करेंगे |
पिछाड़ी में तुमको एकदम भाई-भाई होकर रहना है | नंगे आये हैं,
नंगे जाना है | ऐसा न हो पिछाड़ी में कोई याद आ जाये | अभी तो
कोई वापिस जा न सके | जब तक विनाश न हो, स्वर्ग में कैसे जा
सकेंगे | ज़रूर या तो सूक्ष्मवतन में जायेंगे या यहाँ ही जन्म
लेंगे | बाकी जो कमी रही होगी उसका पुरुषार्थ करेंगे | वह भी
बड़े हों तब समझ सकें | यह भी ड्रामा में सारी नूँध है |
तुम्हारी एकरस अवस्था तो पिछाड़ी में ही होगी | ऐसे नहीं लिखने
से सब याद हो सकता है | फिर लाइब्रेरीज़ आदि में इतनी किताबें
क्यों होती हैं | डॉक्टर, वकील लोग बहुत किताबें रखते हैं |
स्टडी करते रहते हैं, वह मनुष्य, मनुष्य के वकील बनते हैं |
तुम आत्मायें, आत्माओं के वकील बनती हो | आत्मायें, आत्माओं को
पढ़ाती हैं | वह है जिस्मानी पढ़ाई | यह है रूहानी पढ़ाई | इस
रूहानी पढ़ाई से फिर 21 जन्म कभी भूलचूक नहीं होगी | माया के
राज्य में बहुत भूलचूक होती रहती है, जिस कारण से सहन करना
पड़ता है | जो पूरा नहीं पढ़ेंगे, कर्मातीत अवस्था को नहीं
पायेंगे तो सहन करना ही पड़ेगा | फिर पद भी कम हो जायेगा |
विचार सागर मंथन कर औरों को सुनाते रहेंगे तब चिन्तन चलेगा |
बच्चे जानते हैं कल्प पहले भी ऐसे बाप आया था, जिसकी शिवजयन्ती
मनाई जाती है | लड़ाई आदि की तो कोई बात नहीं | वह सब हैं
शास्त्रों की बातें | यह पढ़ाई है | आमदनी में ख़ुशी होती है |
जिनको लाख होते हैं, उनको जास्ती ख़ुशी होती है | कोई लखपति भी
होते हैं, कोई कखपति भी होते हैं अर्थात् थोड़े पैसे वाले भी
होते हैं | तो जिसके पास जितने ज्ञान रत्न होंगे उतनी ख़ुशी भी
होगी | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
विचार सागर मंथन कर स्वयं को ज्ञान रत्नों से भरपूर करना है |
ड्रामा के राज़ को अच्छी रीति समझकर दूसरों को समझाना है | किसी
भी बात में अफ़सोस न कर सदा हर्षित रहना है |
2.
अपनी अवस्था बहुतकाल से एकरस बनानी है ताकि पिछाड़ी में एक बाप
के सिवाए दूसरा कोई भी याद न आये | अभ्यास करना है हम भाई भाई
हैं, अभी वापस जाते हैं |
वरदान:-
सर्व सत्ताओं को सहयोगी बनाए प्रत्यक्षता का पर्दा खोलने वाले
सच्चे सेवाधारी भव
!
प्रत्यक्षता का पर्दा तब खुलेगा जब सब सत्ता वाले मिलकर कहेंगे
कि श्रेष्ठ सत्ता, ईश्वरीय सत्ता आध्यात्मिक सत्ता है तो यही
एक परमात्म सत्ता है | सभी एक स्टेज पर इकट्ठे हो ऐसा स्नेह
मिलन करें | इसके लिए सबको स्नेह के सूत्र में बाँध समीप लाओ,
सहयोगी बनाओ | यह स्नेह ही चुम्बक बनेगा जो सब एक साथ संगठन
रूप में बाप की स्टेज पर पहुँचेंगे | तो अब अन्तिम प्रत्यक्षता
के हीरो पार्ट में निमित्त बनने की सेवा करो तब कहेंगे सच्चे
सेवाधारी |
स्लोगन:-
सेवा
द्वारा सर्व की दुआयें प्राप्त करना – यह आगे बढ़ने की लिफ्ट है
| 
ओम्
शान्ति
|