06-05-14     प्रातः मुरली     ओम् शान्ति    “बापदादा”      मधुबन
 


मीठे बच्चे याद से याद मिलती है, जो बच्चे प्यार से बाप को याद करते हैं उनकी कशिश बाप को भी होती है |   


प्रश्न:-   
तुम्हारे परिपक्व अवस्था की निशानी क्या है? उस अवस्था को पाने का पुरुषार्थ सुनाओ?


उत्तर:-
जब तुम बच्चों की परिपक्व अवस्था होगी तो सब कर्मेन्द्रियाँ शीतल हो जायेंगी | कर्मेन्द्रियों से कोई उल्टा कर्म नहीं होगा | अवस्था अचल-अडोल बन जायेगी | इस समय की अडोल अवस्था से 21 जन्म के लिए कर्मेन्द्रियाँ वश हो जायेंगी | इस अवस्था को पाने के लिए अपनी जाँच रखो, नोट करने से सावधान रहेंगे | योगबल से ही कर्मेन्द्रियों को वश करना है | योग ही तुम्हारी अवस्था को परिपक्व बनायेगा |

ओम् शान्ति |

यह है याद की यात्रा | सभी बच्चे इस यात्रा पर रहते हैं, सिर्फ़ तुम यहाँ नजदीक में हो | जो जो जहाँ भी हैं बाप को याद करते हैं, तो वह ऑटोमेटिकली नजदीक आ जाते हैं | जैसे चन्द्रमा के आगे कोई सितारे बहुत नजदीक होते हैं, कोई बहुत चमकते हैं | कोई नजदीक, कोई दूर भी होते हैं | देखने में आता है यह स्टार बहुत चमकता है | यह बहुत नजदीक है, यह तो चमकता नहीं है | तुम्हारा भी गायन है | तुम हो ज्ञान और योग के सितारे | ज्ञान सूर्य मिला है बच्चों को | बाप बच्चों को ही याद करते हैं | जो सर्विसएबुल बच्चे हैं | बाप है सर्वशक्तिमान् | उस बाप को ही याद करते हैं, तो याद से याद मिलती है | जहाँ-जहाँ ऐसे-ऐसे सर्विसएबुल बच्चे हैं तो ज्ञान सूर्य बाप भी उन्हों को याद करते हैं | बच्चे भी याद करते हैं | जो बच्चे याद नहीं करते उनको बाप भी याद नहीं करते | उनको बाप की याद भी नहीं पहुँचती है | याद से याद ज़रूर मिलती है | बच्चों को भी याद करना है | बच्चे पूछते हैं – बाबा, आप हमको याद करते हैं? बाप कहते हैं क्यों नहीं | इस रीति बाप क्यों नहीं याद करते | जो जास्ती पवित्र हैं और बाप से बहुत प्यार है तो कशिश भी ऐसे करते हैं | हरेक अपने से पूछे कि हम कहाँ तक बाबा को याद करते हैं? एक की याद में रहने से फिर यह पुरानी दुनिया भूल जाती है | बाप को ही याद करते-करते जाकर मिलते हैं | अब  मिलने का समय आया हुआ है | ड्रामा का राज़ भी बाप ने समझाया है | बाप आते हैं आकर बच्चों को अपना रूहानी बच्चा बनाते हैं | पतित से पावन कैसे बनो – सो सिखाते हैं | बाप तो एक ही है उनको ही सब याद करते हैं | परन्तु याद सबको नम्बरवार अपने-अपने पुरुषार्थ अनुसार मिलती है | जितना याद करेंगे कर्मेन्द्रियाँ चंचल नहीं होंगी | कर्मेन्द्रियाँ चंचल बहुत होती हैं ना, इसको ही माया कहा जाता है | कर्मेन्द्रियों से कुछ भी ख़राब कर्म न हो | यहाँ योगबल से कर्मेन्द्रियों को वश करना है | वो लोग तो दवाइयों से वश करते हैं | बच्चे कहते हैं – बाबा, यह क्यों नहीं वश होती हैं? बाप कहते हैं तुम जितना याद करेंगे उतना कर्मेन्द्रियाँ वश हो जायेंगी | इसको कहा जाता है कर्मातीत अवस्था | यह सिर्फ़ याद की यात्रा से ही होता है इसलिए भारत का प्राचीन राजयोग गाया हुआ है | सो तो भगवान् ही सिखलायेंगे | भगवान् सिखलाते हैं अपने बच्चों को | तुम्हें इन विकारी कर्मेन्द्रियों पर योगबल से जीत पाने का पुरुषार्थ करना है | सम्पूर्ण पिछाड़ी में होंगे | जब परिपक्व अवस्था होगी फिर कोई भी कर्मेन्द्रियाँ चंचलता नहीं करेंगी | अभी चंचलता बन्द होने से फिर 21 जन्म के लिए कोई भी कर्मेन्द्रिय धोख़ा नहीं देगी | 21 जन्म के लिए कर्मेन्द्रियाँ वश हो जाती हैं | सबसे मुख्य है काम | याद करते-करते कर्मेन्द्रियाँ वश होती जायेंगी | अभी कर्मेन्द्रियों को वश करने से आधाकल्प के लिए इनाम मिलता है | वश नहीं कर सकते हैं तो फिर पाप रह जाते हैं | तुम्हारे पाप योगबल से कटते जायेंगे | तुम पवित्र होते जाते हो | यह है नम्बरवन सब्जेक्ट | बुलाते भी हैं पतित से पावन होने लिए | तो बाप ही आकर पावन बनाते हैं |

बाप ही नॉलेजफुल है | बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो, बाप को याद करो | यह भी नॉलेज है | एक है योग की नॉलेज, दूसरा है 84 जन्म के चक्र की नॉलेज | दो नॉलेज हैं | फिर उसमें दैवीगुण ऑटोमेटिकली मर्ज हैं | बच्चे जानते हैं हम मनुष्य से देवता बनते हैं तो दैवीगुण भी ज़रूर धारण करने हैं | अपनी जाँच करनी है | नोट करने से अपने ऊपर सावधान रहेंगे | अपनी जाँच रखेंगे तो कोई भूल नहीं होगी | बाप खुद कहते हैं – मामेकम् याद करो | तुमने ही मुझे बुलाया है क्योंकि तुम जानते हो बाबा पतित-पावन है, वह जब आते हैं तब ही यह डायरेक्शन देते हैं | अब इस डायरेक्शन पर अमल करना है आत्माओं को | तुम पार्ट बजाते हो इस शरीर द्वारा | तो बाप को भी ज़रूर इस शरीर में आना पड़े | यह बहुत वन्डरफुल बातें हैं | त्रिमूर्ति का चित्र कितना क्लीयर है | ब्रह्मा तपस्या कर यह बनते हैं | फिर 84 जन्मों के बाद यह बनते हैं | यह भी बुद्धि में याद रहे की हम ब्राह्मण सो देवता थे फिर 84 का चक्र लगाया | अब फिर देवता बनने के लिए आये हैं | जब देवताओं की डिनायस्टी पूरी हो जाती है तो भक्ति मार्ग में भी बहुत प्रेम से उनको याद करते हैं | अब वह बाप तुमको यह पद पाने लिए युक्ति बताते हैं | याद भी बहुत सहज है | सिर्फ़ सोने का बर्तन चाहिए | जितना पुरुषाथ करेंगे उतनी प्वाइन्ट्स इमर्ज होंगी | ज्ञान भी अच्छा सुनाते रहेंगे | समझेंगे जैसेकि बाबा हमारे में प्रवेश कर मुरली चला रहे हैं | बाबा भी बहुत मदद करते हैं | औरों का भी कल्याण करना है | वह भी ड्रामा में नूँध है | एक सेकण्ड न मिले दूसरे से | टाइम पास होता जाता है | इतने वर्ष, इतने मास कैसे पास होते हैं | शुरू से लेकर टाइम पास होता आया है | यह सेकेण्ड फिर 5 हज़ार वर्ष बाद रिपीट करेंगे | यह भी अच्छी रीति समझना है और बाप को याद करना है जिससे विकर्म विनाश हों | और कोई उपाय  नहीं | इतना समय जो कुछ करते आये हो वह सब थी भक्ति | कहते भी हैं भक्ति का फल भगवान् देंगे | क्या फल देंगे? कब और कैसे देते हैं? यह कुछ भी पता नहीं है | बाप जब फल देने के लिए आवे तब लेने वाले और देने वाले इकट्ठे हों | ड्रामा का पार्ट आगे चलता जाता है | सारे ड्रामा में अभी यह है अन्तिम लाइफ | हो सकता है कोई शरीर भी छोड़ दे | और कोई पार्ट बजाना है तो जन्म भी ले सकते हैं | किसका बहुत हिसाब-किताब होगा तो जन्म भी ले सकते हैं | किसके बहुत पाप होंगे तो घड़ी-घड़ी एक जन्म ले फिर दूसरा, तीसरा जन्म लेते छोड़ते रहेंगे | गर्भ में गया, दुःख भोगा, फिर शरीर छोड़ दूसरा लिया | काशी कलवट मेन भी यह हालत होती है | पाप सिर पर बहुत हैं | योगबल तो है नहीं | काशी कलवट खाना – यह है अपने शरीर का घात करना | आत्मा भी समझती है यह घात करते हैं | कहते भी हैं – बाबा, आप आयेंगे तो हम आप पर बलिहार जायेंगे | बाकी भक्ति मार्ग में बलि चढ़ते हैं | वह भक्ति हो जाती है | दान-पुण्य, तीर्थ आदि जो कुछ भी करते हैं वह किससे  लेन-देन होती है? पाप आत्माओं से | रावण राज्य है ना | बाप कहते हैं खबरदारी से लेन-देन करना | कहाँ कोई ख़राब काम में लगाया तो सिर्फ़ पर बोझा चढ़ जायेगा | दान-पुण्य भी बड़ा खबरदारी से करना होता है | गरीबों को तो अन्न और कपड़े का दान किया जाता है वा आजकल धर्मशालायें आदि बनाकर देते हैं | साहूकारों के लिए तो बड़े-बड़े महल हैं | गरीबों के लिए हैं झोपड़ियाँ | वह तो गन्दे नाले के आगे रहे हुए हैं | उस किचड़े की खाद बनती है जो बिकती है, जिस पर फिर खेती आदि होती है | सतयुग में तो ऐसे किचड़े आदि पर खेती नहीं होती है | वहाँ तो नई मिट्टी होती है | उसका नाम ही है पैरडाइज़ | नाम भी गाया हुआ है पुखराज परी, सब्ज परी | रत्न हैं ना | कोई कितनी सर्विस करते हैं, कोई कितनी करते हैं | कोई कहते हम सर्विस नहीं कर सकते हैं | बाबा के रत्न तो सभी हैं परन्तु उनमें भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार हैं जो फिर पूजे जाते हैं | पूजा होती है देवताओं की | भक्ति मार्ग में अनेक पूजायें होती हैं | वह सब ड्रामा में नूँध है, जिसको देखकर मज़ा आता है | हम एक्टर्स हैं | इस समय तुमको नॉलेज मिलती है | तुम बहुत खुश होते हो | जानते हो भक्ति का भी पार्ट है | भक्ति में भी बड़े खुश होते हैं | गुरु ने कहा माला फेरो | बस, उस ख़ुशी में फेरते ही रहते हैं | समझ कुछ भी नहीं |

 शिव निराकार है, उनको भला दूध पानी आदि क्यों चढाते हैं? मूर्तियों को भोग लगाते हैं, वह कोई खाती थोड़ेही हैं | भक्ति का पेशगीर (विस्तार) कितना बड़ा है | भक्ति है झाड़, ज्ञान है बीज | रचता और रचना को सिवाए तुम बच्चों के और कोई नहीं जानते | कोई-कोई बच्चे तो अपनी हड्डियाँ भी इस सर्विस में स्वाहा करने वाले हैं | तुमको कोई कहते हैं यह तुम्हारी कल्पना है | अरे, यह तो वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है | कल्पना रिपीट थोड़ेही होती है | यह तो नॉलेज है | यह हैं नई बातें, नई दुनिया के लिए | भगवानुवाच | भगवान भी नया, उनके महावाक्य भी नये | वह कहते हैं कृष्ण भगवानुवाच | तुम कहते हो शिव भगवानुवाच | हरेक की अपनी-अपनी बातें हैं, एक न मिले दूसरे से | यह है पढ़ाई | स्कूल में पढ़ते हो | कल्पना की तो बात ही नहीं | बाप है ज्ञान का सागर, नॉलेजफुल | जबकि ऋषि-मुनि भी कहते हैं हम रचता और रचना को नहीं जानते हैं | उन्हों को यह नॉलेज कहाँ से मिले जबकि आदि सनातन देवी-देवता ही नहीं जानते! जिन्हों ने जाना, उन्होंने पद पाया | फिर जब संगमयुगआये तब बाप आकर समझाये | नये-नये इन बातों में मूँझते हैं | कहते हैं – बस, तुम इतने थोड़े ही राईट हो, बाकी सब झूठे हैं | तुम समझाते हो गीता जो माई बाप है उसे ही खण्डन कर दिया है | बाकी सब तो रचना हैं | उनसे वर्सा मिल न सके | वेदों-शास्त्रों में रचता और रचना की नॉलेज हो न सके | पहले तो बताओ वेदों से कौन-सा धर्म स्थापन हुआ? धर्म तो हैं ही 4, हरेक धर्म का धर्मशास्त्र एक ही होता है | बाप ब्राह्मण कुल स्थापन करते हैं | ब्राह्मण ही फिर सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी कुल में अपना पद पाते हैं | बाप आकर तुमको सम्मुख समझाते हैं – इस रथ द्वारा | रथ तो ज़रूर चाहिए | आत्मा तो है निराकार | उनको साकार शरीर मिलता है | आत्मा क्या चीज़ है, उनको ही नहीं जानते तो बाप को फिर कैसे जानेंगे | राईट तो बाप ही सुनाते हैं | बाकी सब हैं अनराइटियस, जिससे फायदा कुछ भी नहीं | माला किसकी सिमरते हैं? कुछ पता नहीं | बाप को ही नहीं जानते | बाप ख़ुद आकर अपना परिचय देते हैं | ज्ञान से सद्गति होती है | आधाकल्प है ज्ञान, आधाकल्प है भक्ति | भक्ति शुरू होती है रावण राज्य से | भक्ति से सीढ़ी उतरते-उतरते तमोप्रधान बन पड़े हैं | किसके भी आक्यूपेशन को नहीं जानते हैं | भगवान् की कितनी पूजा करते हैं, जानते कुछ भी नहीं | तो बाप समझाते हैं इतना ऊँच पद पाने के लिए अपने को आत्मा समझना है और बाप को याद करना है | इसमें है मेहनत | अगर किसकी बुद्धि मोटी है तो मोटी बुद्धि से याद करें | परन्तु याद एक को ही करें | गाते भी हैं बाबा आप आयेंगे तो आप से ही बुद्धियोग जोड़ेंगे | अब बाप भी आये हैं | तुम सब किससे मिलने आये हो? जो प्राण दान देते हैं | आत्मा को अमरलोक में ले जाते हैं | बाप ने समझाया है काल पर जीत पहनाता हूँ, तुमको अमरलोक में ले जाता हूँ | दिखाते हैं ना अमरकथा पार्वती को सुनाई | अब अमरनाथ तो एक ही है | हिमालय पहाड़ पर बैठ थोड़ेही कथा सुनायेंगे | भक्ति मार्ग की हर बात में वन्डर लगता है | अच्छा!

 मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1. योगबल से कर्मेन्द्रिय जीत बन सम्पूर्ण पवित्र बनना है | इस अवस्था को पाने के लिए अपनी जांच करते रहना है |

2. सदा बुद्धि में याद रखना है कि हम ही ब्राह्मण सो देवता थे, अब फिर देवता बनने के लिये आये हैं इसलिए बहुत खबरदारी से पाप और पुण्य को समझकर लेन-देन करनी है |

 

वरदान:-

 दिल की महसूसता से दिलाराम की आशीर्वाद प्राप्त करने वाले स्व परिवर्तक भव !   

 स्व को परिवर्तन करने के लिए दो बातों की महसूसता सच्चे दिल से चाहिए 1- अपनी कमजोरी की महसूसता 2- जो परिस्थिति वा व्यक्ति निमित्त बनते हैं उनकी इच्छा और उनके मन की भावना की महसूसता | परिस्थिति के पेपर के कारण को जान स्वयं को पास होने के श्रेष्ठ स्वरूप की महसूसता हो कि स्वस्थिति श्रेष्ठ है, परिस्थति पेपर है – यह महसूसता सहज परिवर्तन करा लेगी और सच्चे दिल से महसूस किया तो दिलाराम की आशीर्वाद प्राप्त होगी |


स्लोगन:- 

 वारिस वह है जो एवररेडी बन हर कार्य में जी हज़ूर हाज़िर कहता है |   

 

ओम् शान्ति |