10-01-14       प्रातः मुरली       ओम् शान्ति   “बापदादा”     मधुबन


मीठे बच्चे रूहानी सर्जन तुम्हें ज्ञान-योग की फर्स्टक्लास वन्डरफुल ख़ुराक खिलाते हैं, यही रूहानी ख़ुराक एक दो को खिलाते सबकी खातिरी करते रहो |    

प्रश्न:-   
विश्व का राज्य भाग्य लेने के लिए कौन सी एक मेहनत करो? पक्की-पक्की आदत डालो?

उत्तर:-

ज्ञान के तीसरे नेत्र से अकाल तख़्तनशीन आत्मा भाई को देखने की मेहनत करो | भाई-भाई समझ सभी को ज्ञान दो | पहले खुद को आत्मा समझ फिर भाईयों को समझाओ, यह आदत डालो तो विश्व का राज्य भाग्य मिल जायेगा | इसी आदत से शरीर का भान निकल जायेगा, माया के तूफ़ान वा बुरे संकल्प भी नहीं आयेंगे | दूसरों को ज्ञान का तीर भी अच्छा लगेगा |

ओम् शान्ति |

ज्ञान का तीसरा नेत्र देने वाला रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं | ज्ञान का तीसरा नेत्र सिवाए बाप के और कोई दे नहीं सकता | अभी तुम बच्चों को ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है | तुम जानते हो अब यह पुरानी दुनिया बदलने वाली है | बिचारे मनुष्य नहीं जानते कि कौन बदलाने वाला है और कैसे बदलाते हैं क्योंकि उन्हों को ज्ञान का तीसरा नेत्र ही नहीं है | तुम बच्चों को अभी ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है जिससे तुम सृष्टि के आदि मध्य अन्त को जान गये हो | यह है ज्ञान की सेक्रीन | सेक्रीन की एक बूंद भी कितनी मीठी होती है | ज्ञान का भी एक ही अक्षर है मन्मनाभव | अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो | बाप शान्तिधाम और सुखधाम का रास्ता बता रहे हैं | बाप आये हैं बच्चों को स्वर्ग का वर्सा देने, तो बच्चों को कितनी ख़ुशी रहनी चाहिए | कहते भी हैं ख़ुशी जैसी ख़ुराक नहीं | जो सदैव ख़ुशी मौज में रहते हैं उनके लिए वह जैसे ख़ुराक होती है | 21 जन्म मौज में रहने की यह जबरदस्त ख़ुराक है | यही ख़ुराक सदैव एक दो को खिलाते रहो | तुम श्रीमत पर सभी की रूहानी खातिरी करते हो | सच्ची-सच्ची खुश-खैराफ़त भी यह है – किसको बाप का परिचय देना | मीठे बच्चे जानते हैं बेहद के बाप द्वारा हमको जीवनमुक्ति की ख़ुराक मिलती है | सतयुग में भारत जीवनमुक्त था, पावन था | बाप बहुत बड़ी ऊँची ख़ुराक देते हैं तब तो गायन है अतीन्द्रिय सुख पूछना हो तो गोप-गोपियों से पूछो | यह ज्ञान और योग की कितनी फर्स्ट क्लास वन्डरफुल ख़ुराक है और यह ख़ुराक एक ही सर्जन के पास है | और किसको इस खुराक का मालूम ही नहीं है |

बाप कहते हैं मीठे बच्चों तुम्हारे लिए हथेली पर सौगात ले आया हूँ | मुक्ति, जीवनमुक्ति की यह सौगात मेरे पास ही रहती है | कल्प-कल्प मैं ही आकर तुमको देता हूँ | फिर रावण छीन लेता है | तो अभी तुम बच्चों को कितना ख़ुशी का पारा चढ़ा रहना चाहिए | तुम जानते हो हमारा एक ही बाप, टीचर और सच्चा-सच्चा सतगुरु है जो हमको साथ ले जाते हैं | मोस्ट बिलवेड बाप से विश्व की बादशाही मिलती है, यह कम बात है क्या! सदैव हर्षित रहना चाहिए | गॉडली स्टूडेन्ट लाइफ़ इज़ दी बेस्ट | यह अभी का ही गायन है | फिर नई दुनिया में भी तुम सदैव ख़ुशियाँ मनाते रहेंगे | दुनिया नहीं जानती कि सच्ची-सच्ची ख़ुशियाँ कब मनाई जायेंगी | मनुष्यों को तो सतयुग का ज्ञान ही नहीं है | तो यहाँ ही मनाते रहते हैं | परन्तु इस पुरानी तमोप्रधान दुनिया में ख़ुशी कहाँ से आई! यहाँ तो त्राहि-त्राहि करते रहते हैं | कितना दुःख की दुनिया है |

बाप तुम बच्चों को कितना सहज रास्ता बताते हैं, गृहस्थ – व्यवहार में रहते कमल फूल समान रहो | धन्धा-धोरी आदि करते भी मुझे याद करते रहो | जैसे आशिक और माशूक होते हैं, वह तो एक दो को याद करते रहते हैं | वह उनका आशिक, वह उनका माशूक होता है | यहाँ यह बात नहीं है, यहाँ तो तुम सभी एक माशूक के जन्म-जन्मान्तर से आशिक हो रहते हो | बाप तुम्हारा आशिक नहीं बनता | तुम उस माशूक को आने लिए याद करते आये हो | जब दुःख जास्ती होता है तो जास्ती सुमिरण करते हैं, तब तो गायन भी है दुःख में सुमिरण सब करें, सुख में करे न कोय | इस समय बाप भी सर्वशक्तिमान है, दिन-प्रतिदिन माया भी सर्वशक्तिमान-तमोप्रधान होती जाती है इसलिए अब बाप कहते हैं मीठे बच्चे देही-अभिमानी बनो | अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो और साथ-साथ दैवीगुण भी धारण करो तो तुम ऐसे (लक्ष्मी-नारायण) बन जायेंगे | इस पढ़ाई में मुख्य बात है ही याद की | ऊँचे ते ऊँच बाप को बहुत प्यार, स्नेह से याद करना चाहिए | वह बाप ही नई दुनिया स्थापन करने वाला है | बाप कहते हैं मैं आया हूँ तुम बच्चों को विश्व का मालिक बनाने इसलिए अब मुझे याद करो तो तुम्हारे अनेक जन्मों के पाप कट जायें | पतित-पावन बाप को ही बुलाते हैं ना | अब बाप आये हैं, तो ज़रूर पावन बनना पड़े | बाप दुःख-हर्ता, सुख-कर्ता है | बरोबर सतयुग में पावन दुनिया थी तो सभी सुखी थे | अब बाप फिर से कहते हैं बच्चे, शान्तिधाम और सुखधाम को याद करते रहो | अभी है संगमयुग, खिवैया तुमको इस पार से उस पार ले जाते हैं | नईया कोई एक नहीं, सारी दुनिया जैसे एक बड़ा जहाज है, उनको पार ले जाते हैं |

तुम मीठे बच्चों को कितनी ख़ुशियाँ होनी चाहिए | तुम्हारे लिए तो सदैव ख़ुशी ही ख़ुशी है | बेहद का बाप हमको पढ़ा रहे हैं, वाह! यह तो कब न सुना, न पढ़ा | भगवानुवाच, मैं तुमको राजयोग सिखाता हूँ | तुम रूहानी बच्चों को राजयोग सिखा रहा हूँ तो पूरी रीति सीखना चाहिए | धारणा करनी चाहिए | पूरी रीति पढ़ना चाहिए | पढ़ाई में नम्बरवार तो सदैव होते ही हैं | अपने को देखना चाहिए – मैं उत्तम हूँ, मध्यम हूँ वा कनिष्ट हूँ? बाप कहते हैं अपने को देखो मैं ऊँच पद पाने के लायक हूँ? रूहानी सर्विस करता हूँ? क्योंकि बाप कहते हैं बच्चे सर्विसअबुल बनो, फालो करो | मैं आया ही हूँ सर्विस के लिए, रोज़ सर्विस करता हूँ, इसलिए ही तो यह रथ लिया है | इनका रथ बीमार पड़ जाता है तो मैं इनमें बैठ मुरली लिखता हूँ | मुख से तो बोल नहीं सकते तो मैं लिख देता हूँ, ताकि बच्चों के लिए मुरली मिस न हो तो मैं भी सर्विस पर हूँ ना | यह है रूहानी सर्विस |

बाप मीठे-मीठे बच्चों को समझाते हैं, बच्चे तुम भी बाप की सर्विस में लग जाओ | आन गॉड फादरली सर्विस | सारे विश्व का मालिक बाप ही तुमको विश्व का मालिक बनाने आये हैं | जो अच्छा पुरुषार्थ करते हैं उनको महावीर कहा जाता है | देखा जाता है कौन महावीर हैं जो बाबा के डायरेक्शन पर चलते हैं | बाप का फ़रमान है अपने को आत्मा समझ भाई-भाई देखो | इस शरीर को भूल जाओ | बाबा भी इन शरीरों को नहीं देखते हैं | बाप कहते हैं मैं आत्माओं को देखता हूँ | बाकी यह तो ज्ञान है कि आत्मा शरीर बिगर बोल नहीं सकती | मैं भी इस शरीर में आया हूँ, लोन लिया हुआ है | शरीर के साथ ही आत्मा पढ़ सकती है | बाबा के बैठक यहाँ है | यह है अकाल तख़्त, आत्मा अकालमूर्त है | आत्मा कब छोटी बड़ी नहीं होती है, शरीर छोटा बड़ा होता है | जो भी आत्मायें हैं, उन सभी का तख़्त यह भृकुटी का बीच है | शरीर तो सभी के भिन्न-भिन्न होते हैं | किसका अकाल तख़्त पुरुष का है, किसका अकाल तख़्त स्त्री का है, किसका अकाल तख़्त बच्चे का है | बाप बैठ बच्चों को रूहानी ड्रिल सिखलाते हैं | जब कोई से बात करो तो पहले अपने को आत्मा समझो | हम आत्मा फ़लाने भाई से बात करते हैं | बाप का पैगाम देते हैं कि शिवबाबा को याद करो | याद से ही जंक उतरनी है | सोने में जब अलाय (खाद) पड़ती है तो सोने की वैल्यु ही कम हो जाती है | तुम आत्माओं में भी जंक पड़ने से वैल्युलेस हो गये हो | अब फिर पावन बनना है | तुम आत्माओं को अब ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है, उस नेत्र से अपने भाईयों को देखो | भाई-भाई को देखने से कर्मेन्द्रियाँ कभी चंचल नहीं होंगी | राज्य-भाग्य लेना है, विश्व का मालिक बनना है तो यह मेहनत करो | भाई-भाई समझ सभी को ज्ञान दो तो फिर यह आदत पक्की हो जायेगी | सच्चे-सच्चे ब्रदर्स तुम सभी हो | बाप भी ऊपर से आये हैं, तुम भी आये हो | बाप बच्चों सहित सर्विस कर रहे हैं | सर्विस करने की बाप हिम्मत देते हैं | हिम्मते मर्दा....तो यह प्रैक्टिस करनी है – मैं आत्मा भाई को पढाता हूँ | आत्मा पढ़ती है ना | इसको स्प्रीचुअल नॉलेज कहा जाता है, जो रूहानी बाप से ही मिलती है | संगम पर ही बाप आकर यह नॉलेज देते हैं कि अपने को आत्मा समझो | तुम नंगे (अशरीरी) आये थे फिर यहाँ शरीर धारण कर तुमने 84 जन्म पार्ट बजाया है | अब फिर वापिस चलना है इसलिए अपने को आत्मा समझ भाई-भाई की दृष्टि से देखना है | यह मेहनत करनी है | अपनी मेहनत करनी है, दूसरे में हमारा क्या जाता | चैरिटी बिगेन्स एट होम अर्थात् पहले खुद को आत्मा समझ फिर भाईयों को समझाओ तो अच्छी रीति तीर लगेगा | यह जौहर भरना है | मेहनत करेंगे तब ही ऊँच पर पायेंगे | बाप आये ही हैं फल देने लिए तो मेहनत करनी पड़े | कुछ सहन भी करना पड़ता है |

कोई उल्टी-सुल्टी बात बोले तो तुम चुप रहो | तुम चुप रहेंगे तो फिर दूसरा क्या करेगा! ताली दो हाथ से बजती है | एक ने मुख की ताली बजाई, दूसरा चुप कर दे तो वह आपेही चुप हो जायेंगे | ताली से ताली बजने से आवाज़ हो जाता है | बच्चों को एक दो का कल्याण करना है | बाप समझाते हैं बच्चे, सदैव ख़ुशी में रहने चाहते हो तो मन्मनाभव | अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो | भाईयों (आत्माओं) तरफ़ देखो | भाईयों को भी यह नॉलेज दो | योग कराते हो तो भी अपने को आत्मा समझ भाईयों को देखते रहेंगे तो सर्विस अच्छी होगी | बाबा ने कहा है भाईयों को समझाओ | भाई सभी बाप से वर्सा लेते हैं | यह रूहानी नॉलेज एक ही बार तुम ब्राह्मण बच्चों को मिलती है | तुम ब्राह्मण हो फिर देवता बनने वाले हो | इस संगमयुग को थोड़ेही छोड़ेंगे, नहीं तो पार कैसे जायेंगे! कूदेंगे थोड़ेही | यह वन्डरफुल संगमयुग है | तो बच्चों को रूहानी यात्रा पर रहने की आदत डालनी है | तुम्हारे ही फ़ायदे की बात है | बाप की शिक्षा भाईयों को देनी है | बाप कहते हैं मैं तुम आत्माओं को ज्ञान दे रहा हूँ, आत्मा को ही देखना है | भल शरीर द्वारा ज्ञान देते हो परन्तु इसमें शरीर का भान तोड़ना होता है | तुम्हारी आत्मा समझती है परमात्मा बाप हमको ज्ञान दे रहे हैं | बाप भी कहते हैं आत्माओं को देखता हूँ, आत्मायें भी कहती हैं हम परमात्मा बाप को देख रहे हैं | उनसे नॉलेज ले रहे हैं, इसको कहा जाता है स्प्रीचुअल ज्ञान की लेन-देन, आत्मा की आत्मा के साथ | आत्मा में ही ज्ञान है, आत्मा को ही ज्ञान देना है | यह जैसे जौहर है | तुम्हारे ज्ञान में यह जौहर भर जायेगा तो किसको भी समझाते से झट तीर लग जायेगा | बाप कहते हैं प्रैक्टिस करके देखो, तीर लगता है ना | यह नई आदत डालनी है तो फिर शरीर का भान निकल जायेगा | माया के तूफ़ान कम आयेंगे | बुरे संकल्प नहीं आयेंगे | क्रिमिनल आई भी नहीं रहेगी | हम आत्मा ने 84 का चक्र लगाया | अब नाटक पूरा होता है | अब बाबा की याद में रहना है | याद से ही तमोप्रधान से सतोप्रधान बन, सतोप्रधान दुनिया के मालिक बन जायेंगे | कितना सहज है | बाप जानते हैं बच्चों को यह शिक्षा देना भी मेरा पार्ट है | कोई नई बात नहीं | हर 5000 वर्ष बाद हमको आना होता है | मैं बंधायमान हूँ | बच्चों को बैठ समझाता हूँ मीठे बच्चे रूहानी याद की यात्रा में रहो तो अन्त मते सो गति हो जायेगी | यह अन्त काल है ना | मामेकम् याद करो तो तुम्हारी सद्गति हो जायेगी | यह देही-अभिमानी बनने की शिक्षा एक ही बार तुम बच्चों को मिलती है | कितना वन्डरफुल ज्ञान है | बाबा वन्डरफुल है तो बाबा का ज्ञान भी वन्डरफुल है | कब कोई बता न सके | अभी वापस चलना है इसलिए बाप कहते हैं मीठे बच्चों यह प्रैक्टिस करो | अपने को आत्मा समझ आत्मा को ज्ञान दो | तीसरे नेत्र से भाई-भाई को देखना है, यही बड़ी मेहनत है | अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1.  जैसे बाप बच्चों को रूहानी सर्विस पर आये हैं, ऐसे बाप को फालो कर रूहानी सर्विस करनी है, बाप के डायरेक्शन पर चल, ख़ुशी की ख़ुराक खानी और खिलानी है |


2. 
कोई उल्टी-सुल्टी बात बोले तो चुप रहना है, मुख की ताली नहीं बजानी है | सहन करना है |


वरदान:-
 
एक स्थान पर रहते अनेक आत्माओं की सेवा करने वाले लाइट-माइट सम्पन्न भव !    

जैसे लाइट हाउस एक स्थान पर स्थित होते दूर-दूर की सेवा करता है | ऐसे आप सभी एक स्थान पर होते अनेकों की सेवा अर्थ निमित्त बन सकते हो इसमें सिर्फ़ लाइट-माइट से सम्पन्न बनने की आवश्यकता है | मन-बुद्धि सदा व्यर्थ सोचने से मुक्त हो, मन्मनाभव के मन्त्र का सहज स्वरूप हो - मन्सा शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना, श्रेष्ठ वृत्ति और श्रेष्ठ वायब्रेशन से सम्पन्न हो तो यह सेवा सहज कर सकते हो | यही मन्सा सेवा है |


स्लोगन:-
 
अब आप ब्राह्मण आत्मायें माईट बनो और दूसरी आत्माओं को माइक बनाओ |       


ओम् शान्ति
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