01-03-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
तुम्हें गुप्त ख़ुशी होनी चाहिए कि हम परमात्मा बाप की
यूनिवर्सिटी के स्टूडेन्ट हैं, भविष्य नई दुनिया का वर्सा पाने
के लिए पढ़ रहे हैं
| 
प्रश्न:-
किस स्मृति में सदा रहो तो दैवीगुण धारण होते रहेंगे?
उत्तर:-
हम
आत्मा शिवबाबा की सन्तान हैं, बाबा हमें कांटों से फूल बनाने
आये हैं – यही स्मृति सदा रहे तो दैवीगुण धारण होते रहेंगे |
पढ़ाई और योग पर पूरा ध्यान रहे, विकारों से नफ़रत हो तो दैवीगुण
आते जायेंगे | जिस समय कोई विकार वार करे तो समझना चाहिए – मैं
काँटा हूँ, मुझे तो फूल बनना है |
ओम्
शान्ति
|
बच्चों की बुद्धि में है कि हम रूहानी यूनिवर्सिटी में बैठे
हैं | यह नशा होना चाहिए | ऑर्डिनरी रीति स्कूल में जैसे बैठते
हैं, ऐसे यहाँ बुद्धू होकर नहीं बैठना है | बहुत बच्चे जैसे
बुद्धू होकर बैठते हैं | याद रहना चाहिए – यह ऊँच ते ऊँच
परमपिता परमात्मा की यूनिवर्सिटी है | उनके हम स्टूडेन्ट हैं |
तो तुम्हारे में कितनी फ़लक होनी चाहिए | यह है गुप्त ख़ुशी,
गुप्त ज्ञान | हर एक बात गुप्त है | कइयों को यहाँ बैठे भी
बाहर के गन्दे ख्यालात आते रहते हैं | यहाँ तुम पढ़ते हो भविष्य
नई दुनिया का वर्सा पाने के लिए | तो तुमको कितनी ख़ुशी होनी
चाहिए | दैवीगुण भी होने चाहिए | भल यहाँ सब ब्राह्मण ही आते
हैं | वहाँ की कीचड़पट्टी से तो तुम निकलकर यहाँ आते हो | तो
तुम बच्चों को कितना ख़ुशी में रहना चाहिए | सारी दुनिया इस समय
गन्द में पड़ी है | कहाँ कलियुगी गन्द, कहाँ सतयुगी फुलवाड़ी |
कलियुग में एक-दो को काँटे लगते रहते हैं | तुमको तो अब फूल
बनना है | तो कितनी ख़ुशी रहनी चाहिए | क्रोध तो सबके बीच में आ
जाता है | काम तो सबके बीच में हो न सके | वह तो छिपाकर करते
हैं | क्रोध तो बाहर में निकल पड़ता है | क्रोध करते हैं तो
उसका असर भी थोड़ा दिन चलता है | क्रोध का भी नशा है, लोभ का भी
नशा है | अपने से आपेही नफ़रत आनी चाहिए | तुम समझते हो हमको
बाबा फूल बनाते हैं | काम और क्रोध बहुत गन्दा है | मनुष्य की
सारी शोभा ही गँवा देते हैं | यहाँ शोभा दिखायेंगे तब वहाँ भी
शोभा पायेंगे | बाबा रोज़ बच्चों को समझाते रहते हैं कि दैवीगुण
धारण करो | स्वर्ग में चलना है ना | यह लक्ष्मी-नारायण कितने
गुणवान हैं | महिमा भी इनके आगे जाकर गाते हैं – हम नीच, पापी,
कामी हैं | आप सर्वगुण सम्पन्न हो | तुम समझाते भी हो स्वर्ग
है फलों का बगीचा और नर्क है काँटों का जंगल | शिवबाबा स्वर्ग
स्थापन करते, रावण नर्क बनाते हैं | विचार करना चाहिए हम आत्मा
बाप की सन्तान हैं | हमारे में गंद कहाँ से आया? अगर गंद होगा
तो बाप का नाम बदनाम करेंगे | क्रोध करेंगे तो गोया बाप की
निन्दा करायेंगे | क्रोध का भूत आया और बाप को भूले | बाप की
याद हो तो कोई भी भूत आये ही नहीं | अगर किसी की दिल को दुःख
पहुँचाते हैं तो वह भी असर पड़ जाता है | एक बार क्रोध किया तो
6 मास तब सबकी बुद्धि में रहता है कि यह क्रोधी है | फिर दिल
से उतर जाता है | बापदादा की दिल से भी उतर जाता है | यह दादा
भी विश्व का मालिक बनते हैं, इसमें भी ज़रूर खूबियाँ होंगी |
परन्तु कोई की तक़दीर में नहीं है तो तदवीर करते नहीं | कितनी
सहज तदवीर है, सिर्फ़ बाप को याद करो तो आत्मा स्वच्छ बन जायेगी
| और कोई उपाय नहीं है | इस समय राजऋषि तो कोई है नहीं, राजयोग
सिखलाने वाला एक ही बाप है | मनुष्य, मनुष्य को सुधार न सकें |
बाप आकर सबको सुधारते हैं | जो बिल्कुल अच्छी तरह सुधर जाते
हैं, वह सतयुग में पहले-पहले आते हैं | तो कोई भी गन्दी आदत है
तो छोड़नी चाहिए | पढ़ाई पर, योग पर पूरा ध्यान देना चाहिए | यह
भी जानते हैं सब तो एक जैसे ऊँच नहीं बनेंगे | परन्तु बाप तो
पुरुषार्थ करायेंगे | जितना हो सके पुरुषार्थ कर ऊँच पद पाओ |
नहीं तो कल्प-कल्पान्तर नहीं पा सकेंगे | बाबा बार-बार समझाते
रहते हैं कि बाप को याद करो तो किचड़ा निकल जाये | वह सन्यासी
तो हठयोग सिखलाते हैं | भारत में जब लक्ष्मी-नारायण का राज्य
था तो सबकी आयु बड़ी थी, हेल्दी-वेल्दी थे | अब तो सब बिल्कुल
छोटी आयु वाले हैं | भारत को ऐसा किसने बनाया? यह कोई जानते
नहीं | बिल्कुल घोर अन्धियारे में हैं | तुम कितना भी समझाओ
परन्तु उन्हों को समझाना बड़ा मुश्किल है | फिर भी गरीब साधारण
ही समझने की कोशिश करते हैं | यहाँ कोई लखपति है क्या? आज का
लाख भी बड़ी बात नहीं है | आज लखपति तो बहुत हैं | उन्हें भी
बाबा साधारण कहते हैं | आज तो करोड़पति की बात है | शादियों पर
भी कितना खर्चा करते हैं | तुम बच्चों को बड़ा युक्ति से समझाना
है जो किसको तीर लग जाए | बड़े-बड़े आदमी कोई एम.पी. आदि आते हैं
तो बहुत खुश होते हैं | परन्तु एक में भी ताकत नहीं जो आवाज़ कर
सके | तुम समझाते हो परन्तु यथार्थ पूरा समझकर नहीं जाते हैं |
ऊँच ते ऊँच भगवान्, ऊँच ते ऊँच यह वर्सा | लक्ष्मी-नारायण को
किसने यह स्वर्ग का वर्सा दिया? यह कहाँ के रहवासी हैं? यह
बहुतों को पता नहीं पड़ता है | म्युज़ियम में आते बहुत हैं,
समझने के लिए | सेवा का चान्स अच्छा है परन्तु योग है नहीं |
बाप को याद करें तो प्रफुल्लता भी आये | हम किसकी सन्तान हैं |
कितने बच्चे कायदेसिर पढ़ते नहीं हैं | बाप से योग है नहीं |
सम्पूर्ण तो कोई बना नहीं है | नम्बरवार हैं | बच्चों को
एकान्त में बैठ बाप को याद करना है | ऐसे बाप से हम स्वर्ग का
वर्सा पाते हैं | इस दुनिया में हम ही सबसे पतित बने हैं, फिर
हमको ही पावन बनना है | यह अच्छी रीति याद करना है | बाप हर
प्रकार की राय तो देते हैं – ऐसे-ऐसे करो | जैसे क्वीन
विक्टोरिया का वजीर गरीब था, रोड की लाइट पर (बत्ती) पर पढ़-पढ़
कर ऊँच पद पा लिया | शौक था | यह भी गरीबों के लिए है | बाप है
गरीब निवाज़ | साहूकार क्या भगवान् को याद कर सकेंगे | कहेंगे
हमारे लिए तो स्वर्ग यहाँ ही है | अरे, बाबा ने स्वर्ग की
स्थापना की नहीं है | अब कर रहे हैं | बाप को याद करो, पावन तो
ज़रूर बनना है | बच्चों को युक्ति रचनी है – कैसे किसको समझायें
कि भारत का प्राचीन योग सिवाए परमपिता परमात्मा के कोई सिखला
नहीं सकते | हठयोग है निवृत्ति मार्ग वालों के लिए | बाप
समझाते रहते हैं जब किसका कल्याण होना होगा तो फिर लिखेंगे भी
ऐसे | अभी देरी है तो किसकी बुद्धि में आता नहीं है |
तुम्हारी है यह ईश्वरीय मिशन | तुम्हें मनुष्यों को देवता
बनाने की सेवा करनी है | दुनिया में तो अनेक प्रकार की मतें
निकलती रहती हैं, तो उनका कितना शो होता है | अन्धश्रद्धा
कितनी है | रात-दिन का फ़र्क है | तुम ब्राह्मणों में भी
रात-दिन का फ़र्क है | कोई तो कुछ भी जानते नहीं | है बहुत सहज,
अपने को आत्मा समझो, बाप को याद करो तो पाप कट जायेंगे |
दैवीगुण धारण करो तो ऐसे बन जायेंगे | ढिंढोरा पिटवाते रहो |
देह-अभिमान न हो तो ढोलक गले में डाल सबको बताते रहो कि बाप
आया है | कहते हैं मुझे याद करो तो तुम पतित से पावन बन
जायेंगे | यह घर-घर में सन्देश देना है | सभी पर कट (जंक) चढ़ी
हुई है | तमोप्रधान दुनिया है, सबको बाप का पैगाम ज़रूर
पहुँचाना है | पिछाड़ी में तुम्हारी वाह-वाह निकलेगी | कहेंगे
कमाल है इन्हों की! इतना जगाया परन्तु हम जगे नहीं | जो जगे
उन्होंने पाया, जो सोये उन्होंने खोया | बाप बादशाही देने आते
हैं फिर भी खो लेते हैं | सर्विस की युक्तियाँ रचनी चाहिए |
बाप आया है कहते हैं मामेकम् याद करो तो विकर्म विनाश होंगे,
पवित्र बन पवित्र दुनिया का मालिक बन जायेंगे | याद नहीं
करेंगे तो पाप कटेंगे नहीं | कोई भी कट न रहे तब ऊँच पद पा
सकते हो | नहीं तो पद भी कम, सजायें भी खायेंगे | सर्विस की
अच्छी मार्जिन है | चित्र साथ में ले जाने से सर्विस कर सकेंगे
| चित्र ऐसे अच्छी रीति बनाने चाहिए जो ख़राब न हों | यह चित्र
बहुत अच्छी चीज़ हैं | बाकी मॉडल्स तो खिलौने हैं | बड़े-बड़े
आदमियों के बड़े-बड़े चित्र होते हैं | हजारों वर्ष भी चलते हैं
| तुम्हारे यह 6 चित्र काफ़ी हैं | बोलो यह सृष्टि का चक्र कैसे
फिरता है – हम आपको समझायेंगे | इस चक्र को याद करने से तुम
चक्रवर्ती राजा बनेंगे | बैज भी बहुत अच्छा है | परन्तु इनकी
वैल्यु बच्चों के पास नहीं है | इस पर भी तुम समझाते रहो तो भी
तुम्हारी कमाई बहुत होगी | यह बैज तो ऐसा है जो छाती से लटका
रहे | यह बाबा इस ब्रह्मा द्वारा यह वर्सा देते हैं | ट्रेन
में भी चक्र लगाते यह समझाते रहो | छोटे बच्चे भी कर सकते हैं
| तुमको कोई मना नहीं कर सकते | यह बैज ऐसी चीज़ है,
हीरे-जवाहर, फल-फूल, महल सब कुछ इसमें मर्ज है | परन्तु बच्चों
की बुद्धि में नहीं आता है | बाबा ने बहुत बारी समझाया है –
चित्र साथ में ज़रूर हो | तुमको कोई उल्टा-सुल्टा भी बोलेंगे |
कृष्ण को भी गाली मिली थी – भगाते थे, यह करते थे | लेकिन उनको
भी पटरानी बनाया ना | विश्व का मालिक बनकर फिर ऐसे काम थोड़ेही
करेंगे | इस ज्ञान में नशा बहुत होना चाहिए | हम चाहते हैं
जल्दी विनाश हो जाए | फिर कहते हैं अभी तो बाबा साथ हैं | बाबा
को छोड़ देंगे तो फिर बाबा 5 हज़ार वर्ष के बाद मिलेगा | ऐसे
बाबा को हम कैसे छोड़ें | बाबा से तो हम पढ़ते रहें | यह है
ब्राह्मणों का ऊँचे ते ऊँचा जन्म | ऐसा बाप जो हमको राजाई दे
रहा है, फिर तो हम उनसे मिलेंगे नहीं | परन्तु गंगा पर रहने
वालों को इतना कदर नहीं रहता | बाहर वाले कितना महत्व रखते हैं
| यहाँ भी बाहर वाले कुर्बान जाते हैं | अगर योग का बल नहीं है
तो किसी पर भी समझाने का असर नहीं होता, कुछ भी समझते नहीं |
आते बहुत हैं, लिखते हैं ऐसे-ऐसे समझाया, कहते हैं बहुत अच्छा
है | बाबा समझते हैं सुना ऐसे जैसे सुना ही नहीं | ज़रा भी समझा
नहीं | बाप को ही नहीं जाना है | अगर कुछ समझे तो ऐसे बाप से
कनेक्शन तो रखे, चिट्ठी लिखे | झट तुमसे पूछे कि तुम ऐसे बाप
को चिट्ठी कैसे लिखते हो, बताओ | शिवबाबा केयरऑफ़ ब्रह्मा |
एकदम लिखने लग पड़े | यह तो रथ है ना | परन्तु ज़्यादा कीमत तो
उनकी है जो इसमें प्रवेश करते हैं |
सर्विस करते-करते बहुत बच्चों के गले थक जाते हैं | परन्तु योग
नहीं है तो तीर नहीं लगता है | इसको भी ड्रामा कहेंगे | बाबा
को जान लिया तो फिर बाबा से मिलने बिगर रह नहीं सकेंगे | ट्रेन
में भी योगयुक्त हो आयें, हम जाते हैं बाबा के पास | जैसे
विलायत से आते हैं तो स्त्री, बाल बच्चे सब याद आते हैं | यह
तो हम किसके पास जाते हैं! तो रास्ते में कितनी ख़ुशी होनी
चाहिए | सर्विस करते-करते आना चाहिए | बाबा है सागर, देखते हैं
बच्चे फ़ालो कर रहे हैं | ज्ञान की लहरें उठती हैं तो देखकर खुश
होते हैं | यह तो बहुत अच्छा सपूत बच्चा है | सवेरे याद की
यात्रा में बहुत फ़ायदा है | ऐसे भी नहीं, सिर्फ़ सुबह को याद
करना है | उठते-बैठते खाते-पीते याद किया, सर्विस की तो तुम
यात्रा पर हो | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1. किसी
की दिल को दुःखी नहीं करना है | अन्दर कोई भी भूत है तो जाँच
करके उसे निकालना है, फूल बन सबको सुख देना है |
2.
हम ज्ञान सागर के बच्चे हैं तो अन्दर ज्ञान की लहरें सदा उठती
रहें | सर्विस की युक्तियाँ रचनी हैं, ट्रेन में भी सर्विस
करनी है | साथ-साथ पावन बनने के लिए याद की यात्रा पर भी रहना
है |
वरदान:-
अपवित्रता का अंश आलस्य और अलबेलेपन का त्याग करने वाले
सम्पूर्ण निर्विकारी भव
! 
दिनचर्या के कोई भी कर्म में नीचे ऊपर होना, आलस्य में आना या
अलबेला होना – यह विकार का अंश है, जिसका प्रभाव पूज्यनीय बनने
पर पड़ता है | यदि आप अमृतवेले स्वयं को जागृत स्थिति में अनुभव
नहीं करते, मज़बूरी से वा सुस्ती से बैठते हो तो पुजारी भी
मज़बूरी वा सुस्ती से पूजा करेंगे | तो आलस्य वा अलबेलेपन का भी
त्याग कर दो तब सम्पूर्ण निर्विकारी बन सकेंगे |
स्लोगन:-
सेवा
भल करो लेकिन व्यर्थ खर्च नहीं करो
|
ओम् शान्ति
|