07-05-14
प्रातः मुरली ओम् शान्ति
“बापदादा” मधुबन
मीठे बच्चे
–
बाप है सर्व सम्बन्धों के प्यार की सैक्रीन, एक मीठे माशुक को याद
करो तो बुद्धि सब तरफ़ से हट जायेगी
| 
प्रश्न:-
कर्मातीत
बनने का सहज पुरुषार्थ व युक्ति कौन-सी है?
उत्तर:-
भाई-भाई
की दृष्टि को पक्का करने का पुरुषार्थ करो | बुद्धि से एक बाप के
सिवाए और सब कुछ भूल जाये | कोई भी देहधारी सम्बन्ध याद न आये तब
कर्मातीत बनेंगे | अपने को आत्मा भाई-भाई समझना – यही पुरुषार्थ की
मंज़िल है |
ओम् शान्ति
|
डबल ओम्
शान्ति | डबल कैसे है, यह तो तुम बच्चों की ही बुद्धि में है | बाप
भी बच्चों को ही बैठ समझाते हैं | पहले तो बाप का निश्चय होना
चाहिए क्योंकि यह बाप भी है, टीचर भी है, गुरु भी है | यूँ तो
लौकिक रीति से अलग-अलग होते हैं | टीचर जवानी में किया जाता है |
गुरु 60 वर्ष की आयु के बाद करते हैं | यह तो जब आते हैं, तीनों ही
इकट्ठी सर्विस करते हैं | कहते हैं छोटे-बड़े सब पढ़ सकते हैं |
बच्चों की ब्रेन अच्छी फ्रेश होती है | यह तो बच्चे समझ गये,
छोटे-बड़े सब जीव की आत्मा ज़रूर हैं | आत्मा जीव में प्रवेश करती है
| आत्मा और जीव में फ़र्क तो है ना | यहाँ तुम बच्चों को आत्मा और
परमात्मा का ज्ञान दिया जाता है | आत्मा तो अविनाशी है, बाकी शरीर
यहाँ भ्रष्टाचार से पैदा होता है | वहाँ तो भ्रष्टाचार का नाम ही
नहीं होता | गाया जाता है सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया |
श्रेष्ठाचारी और भ्रष्टाचारी अक्षर है ना | यह सब बातें बाप ही
समझाते हैं | बच्चों को सिर्फ़ यह पक्का निश्चय हो जाए कि हम
आत्माओं का बाप हमको पढ़ाते हैं | बाप आते ही हैं पुरुषोत्तम
संगमयुग पर | तो इससे सिद्ध होता है कनिष्ट से पुरुषोत्तम बनाते
हैं | यह दुनिया ही कनिष्ट तमोप्रधान है, इसको रौरव नर्क कहा जाता
है | अब हमको वापिस जाना है, इसलिए अपने को आत्मा समझो | बाप आये
हैं लेने लिए | हम भाई-भाई हैं – यह पक्का निश्चय कर लो | यह देह
तो रहेगी नहीं | फिर विकार की दृष्टि ख़लास हो जायेगी | यह है बड़ी
मंज़िल | इस मंज़िल पर बहुत थोड़े पहुँच सकते हैं, मेहनत है | पिछाड़ी
में कोई भी चीज़ याद न आये, इसको कहा जाता है कर्मातीत अवस्था | यह
देह भी विनाशी है, इससे भी ममत्व निकल जाए | पुराने सम्बन्ध में
ममत्व नहीं रखना है | अब तो नये सम्बन्ध में जाना है | पुराना
आसुरी सम्बन्ध स्त्री-पुरुष का कितना छी-छी है | बाप कहते हैं अपने
को आत्मा समझो | अब वापिस जाना है | आत्मा-आत्मा समझते रहेंगे तो
फिर शरीर का भान नहीं रहेगा | स्त्री-पुरुष की कशिश निकल जायेगी |
लिखा हुआ भी है अन्तकाल जो स्त्री सिमरे, ऐसे चिन्तन में जो
मरे....इसलिए कहते हैं अन्तकाल गंगा जल मुख में हो, कृष्ण की याद
हो | भक्ति मार्ग में तो कृष्ण की याद रहती है | कृष्ण भगवानुवाच
कह देते हैं | यहाँ तो बाप कहते हैं देह को भी याद नहीं करना है |
अपने को आत्मा समझो और सब तरफ़ से दिल हटाते जाओ | सभी सम्बन्धों का
प्यार एक में जैसे सैक्रीन हो जाता है | सबका मीठा और फिर सबका
माशुक भी है | माशुक एक ही है | परन्तु भक्ति मार्ग में नाम कितने
रख दिये हैं | भक्ति का विस्तार बहुत है | यज्ञ, तप, दान, तीर्थ,
व्रत करना, शास्त्र पढ़ना यह सब भक्ति की सामग्री है | ज्ञान की
सामग्री तो कुछ भी है नहीं | यह भी तुम नोट करते हो समझाने के लिए
| बाकी तुम्हारे कागज़ आदि कुछ भी रहेंगे नहीं | बाप समझाते हैं –
बच्चे, तुम शान्तिधाम से आये थे, शान्त ही थे | शान्ति के सागर से
तुम शान्ति का, पवित्रता का वर्सा लेते हो | अभी तुम वर्सा ले रहे
हो ना | ज्ञान भी ले रहे हो | स्टेटस सामने खड़ा है | यह ज्ञान
सिवाए बाप के और कोई दे न सके | यह है रूहानी ज्ञान | रूहानी बाप
एक ही बार आते हैं, रूहानी ज्ञान देने लिए | उनको कहते भी हैं
पतित-पावन |
सुबह को
बच्चों को बैठ ड्रिल कराते हैं | वास्तव में इसको ड्रिल भी नहीं
कहा जाए | बाप सिर्फ़ कहते हैं – बच्चे, अपने को आत्मा समझ मुझे याद
करो | कितना सहज है | तुम आत्मा हो ना | कहाँ से आये हो? परमधाम से
| ऐसे और कोई भी पूछेंगे नहीं | पारलौकिक बाप ही बच्चों से पूछते
हैं – बच्चों, परमधाम से आये हो ना, इस शरीर में पार्ट बजाने |
पार्ट बजाते-बजाते अब नाटक पूरा हुआ | आत्मा पतित बनी तो शरीर भी
पतित बना है | सोने में ही अलाए पड़ती है फिर उनको गलाया जाता है |
वह सन्यासी लोग ऐसे अर्थ कभी नहीं समझायेंगे | वो तो ईश्वर को
जानते ही नहीं | बाप से योग रखो, यह मानते ही नहीं | बाप जो
सिखलाते हैं वह और कोई सिखला न सके | इसमें तो प्रैक्टिकल में
मेहनत करनी होती है | बाप तो कितना सहज करके समझाते हैं | गाते भी
हैं पतित-पावन है, सर्वशक्तिमान् है, उसे ही श्री-श्री कहा जाता है
| और श्री कहा जाता है देवताओं को | उनको शोभता है | उन्हों की
आत्मा और शरीर दोनों पवित्र हैं | आत्मा को तो कोई निर्लेप कह न
सके | आत्मा ही 84 जन्म लेती है | परन्तु मनुष्य न जानने के कारण
अनराइटियस बन पड़े हैं | एक बाप ही आकर राइटियस बनाते हैं | रावण
अनराइटियस बनाते हैं | चित्र तो तुम्हारे पास हैं | बाकी ऐसा 10
शीश वाला रावण कोई होता नहीं | सतयुग में तो रावण है नहीं, यह तो
क्लियर है | परन्तु जो सुनने वाले होंगे वह कहेंगे यहाँ का सैपलिंग
हैं | कोई थोडा सुनेंगे, कोई बहुत भी सुनेंगे | भक्ति मार्ग का
देखो विस्तार कितना है | अनेक प्रकार के भक्त हैं | और फिर पहले से
ही सुना है – भगाते थे | कृष्ण के लिये भी कहते हैं ना – भगाया |
फिर ऐसे कृष्ण को प्यार क्यों करते हैं? पूजते क्यों हैं? तो बाप
बैठ समझाते हैं, कृष्ण तो फर्स्ट प्रिन्स है | वह तो कितना
बुद्धिवान होगा | सारे विश्व का मालिक क्या कम बुद्धिवान होगा!
वहाँ उन्हों को वजीर आदि होते नहीं | राय लेने की दरकार नहीं | राय
लेकर तो सम्पूर्ण बना है, फिर राय क्या लेंगे! तुमको आधाकल्प कोई
की राय नहीं लेनी होती है | स्वर्ग और नर्क का नाम भी सुना है | यह
तो स्वर्ग हो न सके | पत्थरबुद्धि हैं जो समझते हैं यहाँ हमको धन
है, महल आदि सब हैं, यही स्वर्ग है | परन्तु तुम जानते हो स्वर्ग
तो है नई दुनिया | स्वर्ग में तो सब सद्गति में होते हैं |
स्वर्ग-नर्क इकठ्ठा थोड़ेही होगा | स्वर्ग किसको कहा जाता है, उसकी
आयु कितनी है – यह सब बाप ने तुम्हें समझाया है | दुनिया तो एक ही
है | नई को सतयुग, पुरानी को कलियुग कहा जाता है | अब भक्ति मार्ग
ख़लास होना है | भक्ति के बाद चाहिए ज्ञान | सभी जीव आत्मायें पार्ट
बजाते-बजाते पतित बनी हैं | यह भी बाप ने समझाया है | तुम सुख
जास्ती पाते हो |
¾
है सुख, बाकी
¼
है दुःख | इसमें भी जब तमोप्रधान हो जाते हैं तब दुःख जास्ती होता
है | आधा-आधा हो तो मज़ा ही कैसे हो | मज़ा तब है जबकि स्वर्ग में
दुःख का नाम-निशान नहीं रहता, तब तो स्वर्ग को सब याद करते हैं |
नई दुनिया और पुरानी दुनिया का यह बेहद का खेल है, जिसको कोई जान
नहीं सकता | बाप भारतवासियों को ही समझाते हैं, बाकी जो सब हैं, वह
आधाकल्प में ही आते हैं | आधाकल्प में हो सिर्फ़ तुम सूर्यवंशी,
चन्द्रवंशी | तुम पवित्र रहते हो इसलिए तुम्हारी आयु बड़ी रहती है
और दुनिया भी नई है | वहाँ एवरीथिंग न्यु है, अनाज, पानी, धरनी आदि
सब नया | आगे चलकर तुम बच्चों को सब साक्षात्कार कराते रहेंगे कि
ऐसे-ऐसे होगा | शुरू में भी हुए, फिर पिछाड़ी में भी होने चाहिए |
नज़दीक आयेंगे तो ख़ुशी होती रहेगी | मनुष्य बाहर देश से अपने देश
में आते हैं तो ख़ुशी होती है ना | कोई बाहर में कहाँ मरते हैं तो
उनको एरोप्लेन से भी अपने देश में ले आते हैं | सबसे फर्स्टक्लास
पवित्र ते पवित्र धरनी भारत है | भारत की महिमा को तुम बच्चों के
सिवाए और कोई जानते ही नहीं | वन्डर ऑफ़ दी वर्ल्ड है ना – उसका नाम
है स्वर्ग | वह जो वन्डर्स दिखाते हैं, वह हैं सब नर्क के | कहाँ
नर्क के वन्डर्स, कहाँ स्वर्ग के – रात-दिन का फ़र्क है! नर्क के
वन्डर्स भी बहुत मनुष्य देखने जाते हैं | कितने ढेर मन्दिर हैं |
वहाँ तो मन्दिर होते नहीं | नैचुरल ब्युटी रहती है | मनुष्य बहुत
थोड़े होते हैं | सुगन्ध आदि की भी दरकार नहीं रहती है | हर एक को
अपना-अपना फर्स्टक्लास बगीचा रहता है, फर्स्टक्लास फूल होते हैं |
वहाँ की तो हवा भी फर्स्टक्लास होगी | गर्मी आदि कभी तंग नहीं
करेगी | सदैव बहारी मौसम रहेगा | अगरबत्ती की भी दरकार नहीं |
स्वर्ग का तो नाम सुनते ही मुख पानी होता है | तुम कहेंगे ऐसे
स्वर्ग में तो झट पहुँचें, क्योंकि तुम स्वर्ग को जानते हो परन्तु
फिर दिल कहती है – अभी तो हम बेहद के बाप के साथ हैं, बाप पढ़ाते
हैं, ऐसा चान्स फिर थोड़ेही मिलेगा | यहाँ मनुष्य, मनुष्य को पढ़ाते,
वहाँ देवतायें, देवताओं को पढ़ायेंगे | यहाँ तो बाप पढ़ाते हैं |
रात-दिन का फ़र्क है! कितनी ख़ुशी होनी चाहिए |
84 जन्म
भी तुमने लिये हैं | तुम ही वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी को जानते
हो कि हमने तो अनेक बार यह राज्य लिया फिर रावण राज्य में आये | अब
बाप कहते हैं, तुम एक जन्म पवित्र बनो तो 21 जन्म तुम पावन बन
जायेंगे | क्यों नहीं बनेंगे! परन्तु माया ऐसी है, भाई-बहन की भी
दाल नहीं गलती, कच्चे रह जाते हैं | दाल गले तब, जब अपने को आत्मा
समझ भाई-भाई समझो | देह का भान निकल जाए | यह है मेहनत | सहज भी
बहुत है | कोई को कहेंगे बहुत डिफिकल्ट है तो उनकी दिल हट जायेगी
इसलिए इसका नाम ही है सहज याद | ज्ञान भी सहज है | 84 के चक्र को
जानना है, पहले-पहले बाप का परिचय देना है | बाप की याद से ही
आत्मा की जंक उड़ जायेगी और पवित्र दुनिया का वर्सा पायेंगे | पहले
बाप को याद करो | भारत का प्राचीन योग ही कहते हैं, जिससे भारत को
विश्व की बादशाही मिलती है | प्राचीन कितने वर्ष हुए? तो लाखों
वर्ष कहते | तुम जानते हो 5 हज़ार वर्ष की बात है, वही राजयोग फिर
से बाप सिखला रहे हैं, इसमें मूँझने की दरकार ही नहीं | पूछा जाता
है तुम आत्माओं का निवास स्थान कहाँ है? तो कहेंगे हमारा निवास
स्थान भ्रकुटी है | तो आत्मा को ही देखना पड़े | यह ज्ञान तुमको अभी
मिलता है फिर वहाँ ज्ञान की दरकार ही नहीं रहेगी |
मुक्ति-जीवनमुक्ति को पा लिया, ख़लास | मुक्ति वाले भी अपने समय पर
जीवनमुक्ति में आकर सुख पायेंगे | सब जीवनमुक्ति में आते हैं वाया
मुक्ति | यहाँ से जायेंगे शान्तिधाम और कोई दुनिया है नहीं |
ड्रामा अनुसार सबको वापिस जाना ही है | विनाश की तैयारियाँ हो रही
हैं | इतना खर्चा कर बाम्ब्स बनाते हैं सो रखने के लिए थोड़ेही
बनाते हैं | बारूद है ही विनाश के लिए | सतयुग-त्रेता में यह चीजें
होती नहीं | अब 84 जन्म पूरे हुए, हम यह शरीर छोड़ घर जायेंगे |
दीपमाला पर सब नये-नये अच्छे-अच्छे कपड़े पहनते हैं ना | तुम आत्मा
भी नई बनती हो | यह है बेहद की बात | आत्मा पवित्र बनने से शरीर भी
फर्स्टक्लास मिलता है | इस समय आर्टिफिशल फैशन करते हैं, पाउडर आदि
लगाकर खूबसूरत बन जाते हैं | वहाँ तो नैचुरल ब्युटी होती है |
आत्मा एवर ब्युटीफुल बन जाती है | यह तो तुम समझते हो | स्कूल में
सब एक जैसे नहीं होते | तुम भी पुरुषार्थ करते हो – हम ऐसा
लक्ष्मी-नारायण बनें |
यह है
तुम्हारा ईश्वरीय कुल | फिर होता है सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी घराना |
तुम ब्राह्मणों में राजाई नहीं है | तुम अभी संगम पर हो | कलियुग
में अब राजाई है नहीं | भल कोई राजाई रह भी जाती, निल तो कभी होती
नहीं | अब तुम यह बनने लिए पुरुषार्थ कर रहे हो | देखेंगे हम
आत्मायें भाई-भाई हैं और वह है बाप | बाप कहते हैं एक दो को
भाई-भाई देखो | तीसरा नेत्र ज्ञान का तो मिला है | तुम आत्मा कहाँ
निवास करती हो? आत्मा भाई पूछता है, आत्मा कहाँ रहती है? तो कहते
हैं – यहाँ, भ्रकुटी में | यह तो कॉमन बात है | एक बाप के सिवाए
कुछ भी याद न आये | पिछाड़ी में तो शरीर भी ऐसे बाप की याद में छूटे
– यह प्रैक्टिस करनी है | अच्छा!
मीठे-मीठे
सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और
गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1. सतयुग
में फर्स्टक्लास सुन्दर शरीर प्राप्त करने के लिए अभी आत्मा को
पावन बनाना है, कट उतार देनी है | आर्टिफिशल फैशन नहीं करना है |
2. एवर
पवित्र बनने के लिए प्रैक्टिस करनी है कि एक बाप के सिवाए कुछ भी
याद न आये | यह देह भी भूली हुई हो | भाई-भाई की दृष्टि नैचुरल
पक्की हो |
वरदान:-
अपने
राज्य अधिकारी वा पूज्य स्वरूप की स्मृति से दाता बन देने वाले
सर्व ख़ज़ानों से सम्पन्न भव
! 
सदा इसी
स्मृति में रहो कि मैं पूज्य आत्मा औरों को देने वाली दाता हूँ,
लेवता नहीं, देवता हूँ | जैसे बाप ने आप सबको आपेही दिया है ऐसे आप
भी मास्टर दाता बन देते चलो, मांगो नहीं | अपने राज्य अधिकारी वा
पूज्य स्वरूप की स्मृति में रहो | आज तक आपके जड़ चित्रों से जाकर
मांगनी करते हैं, कहते हैं हमको बचाओ | तो आप बचाने वाले हो,
बचाओ-बचाओ कहने वाले नहीं | परन्तु दाता बनने के लिए याद से, सेवा
से, शुभ भावना, शुभ कामना से सर्व ख़ज़ानों से सम्पन्न बनो |
स्लोगन:-
चलन और चेहरे
की प्रसन्नता ही रूहानी पर्सनैलिटी की निशानी है |
ओम् शान्ति
|