04-04-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे बच्चे – बाप है दाता, तुम बच्चों को बाप से कुछ भी मांगने की दरकार नहीं, कहावत है मांगने से मरना भला |

प्रश्न:-
कौन-सी स्मृति सदा रहे तो किसी भी बात की चिन्ता वा चिन्तन नहीं रहेगा?
उत्तर:-
जो पास्ट हुआ – अच्छा वा बुरा, ड्रामा में था | सारा चक्र पूरा होकर फिर रिपीट होगा | जैसा जो पुरुषार्थ करते, ऐसा पद पाते हैं | यह बात स्मृति में रहे तो किसी भी बात की चिन्ता वा चिन्तन नहीं रहेगा | बाप का डायरेक्शन है – बच्चे, बीती को चितवो नहीं | उल्टी-सुल्टी कोई भी बात न सुनो, न सुनाओ | जो बात बीत गई उसका न तो विचार करो और न रिपीट करो |
ओम् शान्ति |
रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप बैठ समझाते हैं | रूहानी बाप को दाता कहा जाता है | वह आपेही सब कुछ बच्चों को देते हैं | आते ही हैं विश्व का मालिक बनाने | कैसे बनना है, यह सब कुछ बच्चों को समझाते हैं, डायरेक्शन देते रहते हैं | दाता है ना | तो सब आपेही देते रहते हैं | मांगने से मरना भला | कोई भी चीज़ मांगनी नहीं होती है | शक्ति, आशीर्वाद, कृपा कई बच्चे माँगते रहते हैं | भक्ति मार्ग में मांग-मांग कर माथा पटक सारी सीढी नीचे उतरते आये हो | अभी मांगने की कोई दरकार नहीं | बाप कहते हैं डायरेक्शन पर चलो | एक तो कहते हैं बीती को कभी चितवो नहीं | ड्रामा में जो कुछ हुआ पास्ट हो गया | उनका विचार नहीं करो | रिपीट न करो | बाप तो सिर्फ़ दो अक्षर ही कहते हैं मामेकम् याद करो | बाप डायरेक्शन अथवा श्रीमत देते हैं | उस पर चलना बच्चों का काम है | यह है सबसे श्रेष्ठ डायरेक्शन | कोई कितने भी प्रश्न-उत्तर आदि करेंगे, बाबा तो दो अक्षर ही समझायेंगे | मैं हूँ पतित-पावन | तुम मुझे याद करते रहो तो तुम्हारे पाप भस्म हो जायेंगे | बस, याद के लिए कोई डायरेक्शन दिया जाता है क्या! बाप को याद करना है, कोई रड़ी मारना वा चिल्लाना नहीं है | अन्दर में सिर्फ़ बेहद के बाप को याद करना है | दूसरा डायरेक्शन क्या देते हैं? 84 के चक्र को याद करो क्योंकि तुमको देवता बनना है, देवताओं की महिमा तो तुमने आधाकल्प की है |
(बच्चे के रोने का आवाज़ हुआ) अभी यह डायरेक्शन सभी सेन्टर्स वालों को दिये जाते हैं कि बच्चों को कोई भी लेकर न आये | उन्हों का कोई प्रबन्ध करना है | बाप से जिन्हों को वर्सा लेना होगा वह आपेही प्रबन्ध करेंगे | यह रूहानी बाप की यूनिवर्सिटी है, इसमें छोटे बच्चों की दरकार नहीं | ब्राह्मणी (टीचर) का काम है सर्विसएबुल लायक जब बनें तब उन्हों को रिफ्रेश करने के लिए ले आना है | कोई भी बड़े आदमी हो वा छोटा हो, यह यूनिवर्सिटी है | यहाँ बच्चों को जो ले आते हैं वह यह नहीं समझते कि यह यूनिवर्सिटी है | मुख्य बात है – यह यूनिवर्सिटी है | इसमें पढ़ने वाले बड़े अच्छे समझदार चाहिए | कच्चे भी डिस्ट्रबेन्स करेंगे क्योंकि बाप की याद में नहीं होंगे तो बुद्धि इधर-उधर भटकती रहेगी | नुकसान कर देंगे | याद में रह नहीं सकेंगे | बाल-बच्चे लायेंगे तो इसमें बच्चों का ही नुकसान है | कोई तो जानते ही नहीं कि यह गॉड फादरली यूनिवर्सिटी है, यहाँ मनुष्य से देवता बनना होता है | बाप कहते हैं भल गृहस्थ व्यवहार में बाल बच्चों के साथ रहो, यहाँ सिर्फ़ एक सप्ताह तो क्या 3-4 दिन भी काफी है | नॉलेज तो बहुत सहज है | बाप को पहचानना है | बेहद के बाप को पहचानने से बेहद का वर्सा मिलेगा | कौन-सा वर्सा? बेहद की बादशाही | ऐसे मत समझो, प्रदर्शनी वा म्यूज़ियम में सर्विस नहीं होती है | ढेर अनगिनत प्रजा बनती है | ब्राह्मण कुल, सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी – तीनों यहाँ स्थापन हो रहे हैं | तो यह बहुत बड़ी यूनिवर्सिटी है | बेहद का बाप पढ़ाते हैं | एकदम दिमाग ही पुर (भरपूर) हो जाना चाहिए | परन्तु बाप है साधारण तन में | पढ़ाते भी साधारण रीति हैं, इसलिए मनुष्यों को जंचता नहीं है | गॉड फादरली यूनिवर्सिटी फिर ऐसी होगी! बाप कहते हैं मैं हूँ गरीब निवाज़ | गरीबों को ही पढ़ाता हूँ | साहूकार को ताक़त नहीं पढने की | उन्हों की बुद्धि में तो महल माड़ी ही होती है | गरीब ही साहूकार बनते हैं, साहूकार गरीब बनेंगे – यह कायदा है | दान कभी साहूकारों को दिया जाता है क्या? यह भी अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान है | साहूकार दान ले नहीं सकेंगे | बुद्धि में बैठेगा नहीं | वह अपनी हद की रचना धन-दौलत में ही फँसे रहते हैं | उन्हों के लिए तो यहाँ ही जैसे स्वर्ग है | कहते हैं हमको दूसरे स्वर्ग की दरकार नहीं | कोई बड़ा आदमी मरा तो भी कहेंगे स्वर्ग पधारा | आपेही कह देते हैं कि यह स्वर्ग गया | तो ज़रूर अभी नर्क ठहरा ना | परन्तु इतने पत्थरबुद्धि हैं जो समझते नहीं हैं – नर्क क्या है? यह तो तुम्हारी कितनी बड़ी यूनिवर्सिटी है | बाप कहते हैं जिनकी बुद्धि को ताला लगा हुआ है, उन्हों को ही आकर पढ़ाता हूँ | बाप जब आये तब आकर ताला खोले | बाप खुद डायरेक्शन देते हैं – तुम्हारी बुद्धि का ताला कैसे खुलेगा? बाप से कुछ भी माँगना नहीं है, इसमें निश्चय चाहिए | कितना मोस्ट बिलवेड बाबा है, जिसको भक्ति में याद करते थे | जिसे याद किया जाता है वह ज़रूर कभी आयेगा भी ना | याद करते ही हैं फिर से रिपीट होने के लिए | बाप आकर बच्चों को ही समझाते हैं | बच्चों को फिर बाहर वालों को समझाना है कि कैसे बाबा आया हुआ है | क्या कहते हैं? बच्चे, तुम सब पतित हो, मैं ही आकर पावन बनाता हूँ | तुम आत्मा जो पतित बनी हो, अब सिर्फ़ मुझ पतित-पावन बाप को याद करो, मुझ सुप्रीम आत्मा को याद करो | इसमें कुछ भी मांगने की दरकार नहीं है | तुमने भक्ति मार्ग में आधाकल्प माँगा ही माँगा है, मिला कुछ भी नहीं | अभी मांगना बन्द करो | हम आपेही तुमको देता रहता हूँ | बाप का बनने से वर्सा तो मिलता ही है | जो बालिग़ (बड़े) बच्चे होते हैं, वह झट बाप को समझ जाते हैं | बाप का वर्सा है ही स्वर्ग की बादशाही – 21 पीढ़ी | यह तो तुम जानते हो – जब नर्कवासी हैं तो ईश्वर अर्थ दान-पुण्य करने से अल्पकाल के लिए सुख मिलता है | मनुष्य धर्माऊ भी निकालते हैं | अक्सर करके व्यापारी लोग निकालते हैं | तो जो व्यापारी होंगे वह कहेंगे हम बाप से व्यापार करने आये हैं | बच्चे बाप से व्यापार करते हैं ना | बाप की प्रॉपर्टी लेकर फिर उससे श्राद्ध आदि खिलाते हैं, दान-पुण्य करते हैं | धर्मशाला, मन्दिर आदि बनायेंगे तो उस पर बाप का नाम रखेंगे क्योंकि जिससे प्रॉपर्टी मिली उनके लिए तो ज़रूर करना चाहिए | वह भी सौदा हो गया | वह सब हैं जिस्मानी बातें | अभी बाप कहते हैं बीती को चितवो नहीं | उल्टी-सुल्टी बात सुनो नहीं | उल्टे-सुल्टे कोई प्रश्न पूछे तो बोलो – इन बातों में जाने की दरकार नहीं | तुम पहले बाप को याद करो | भारत का प्राचीन राजयोग नामीग्रामी है | जितना याद करेंगे, दैवीगुण धारण करेंगे, उतना ऊँच पद पायेंगे | यह है यूनिवर्सिटी | एम-ऑब्जेक्ट क्लीयर है | पुरुषार्थ कर ऐसा बनना है | दैवीगुण धारण करने हैं | किसको दुःख नहीं देना है, कोई भी प्रकार का | दुःख हर्ता, सुख कर्ता बाप के बच्चे हो ना | सो तो सर्विस से मालूम पड़ेगा | बहुत नये-नये भी आते हैं | 25-30 वर्ष वालों से 10-12 दिन के तीखे हो जाते हैं | तुम बच्चों को फिर आप समान बनाना है | जब तक ब्राह्मण न बनें तो देवता कैसे बनेंगे | ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर तो ब्रह्मा है ना | जो होकर जाते हैं उनका गायन करते रहते हैं, फिर ज़रूर वह आयेंगे | जो भी त्यौहार आदि गाये जाते हैं, सब होकर गये हैं, फिर होंगे | इस समय सब त्यौहार हो रहे हैं – रक्षा बन्धन आदि.....सबका राज़ बाप समझाते रहते हैं | तुम बाप के बच्चे हो तो पावन भी ज़रूर बनना है | पतित-पावन बाप को बुलाते हैं तो बाप रास्ता बताते हैं | कल्प-कल्प जिसने वर्सा लिया है, वही एक्यूरेट चलते रहते हैं | तुम भी साक्षी होकर देखते हो | बापदादा भी साक्षी हो देखते हैं – यह कहाँ तक ऊँच पद पा सकते हैं? इनके कैरेक्टर्स कैसे हैं? टीचर को तो सब मालूम रहता है ना – कितने को आप-समान बनाते हैं, कितना समय याद में रहते हैं? पहले तो बुद्धि में यह याद रखना चाहिए कि यह गॉड फादरली यूनिवर्सिटी है | यूनिवर्सिटी है ही नॉलेज के लिए | वह है हद की यूनिवर्सिटी | यह है बेहद की | दुर्गति से सद्गति, हेल से हेविन बनाने वाला एक ही बाप है | बाप की दृष्टि तो सब आत्माओं के तरफ़ जाती है | सबका कल्याण करना है | वापिस ले जाना है | न सिर्फ़ तुमको परन्तु सारे वर्ल्ड की आत्माओं को याद करते होंगे | उसमें पढ़ाते बच्चों को हैं | यह भी समझते हो जैसे नम्बरवार जो आये हैं वह फिर जायेंगे भी ऐसे | सब आत्मायें नम्बरवार आती हैं | तुम भी नम्बरवार कैसे जायेंगे – वह सब समझाया जाता है | कल्प पहले जो हुआ है वही होगा | यह भी तुमको समझाया जाता है – तुम फिर कैसे नई दुनिया में आयेंगे | नम्बरवार जो नई दुनिया में आते हैं, उनको ही समझाया जाता है |
तुम बच्चे बाप को जानने से, अपने धर्म को और सब धर्म के सारे झाड़ को जान जाते हो | इसमें कुछ भी मांगने की दरकार नहीं, आशीर्वाद भी नहीं | लिखते हैं बाबा दया करो, कृपा करो | बाप तो कुछ भी नहीं करेंगे | बाप तो आये ही हैं रास्ता बताने | ड्रामा में मेरा पार्ट ही है सबको पावन बनाने का | ऐसे ही पार्ट बजाता हूँ, जैसे कल्प-कल्प बजाया है | जो पास्ट हुआ, अच्छा वा बुरा, ड्रामा में था | चिन्तन कोई बात का नहीं करना है | हम आगे बढ़ते रहते हैं | यह बेहद का ड्रामा है ना | सारा चक्र पूरा होकर फिर रिपीट होगा | जो जैसा पुरुषार्थ करते हैं, ऐसा ही पद पाते हैं | मांगने की दरकार नहीं | भक्ति मार्ग में तुमने अथाह माँगा है | सभी पैसे ख़लास कर दिये हैं | यह सब ड्रामा में बना हुआ है | वह सिर्फ़ समझाते हैं | आधाकल्प भक्ति करते, शास्त्र पढ़ते कितना खर्चा होता है | अभी तो तुमको कुछ भी खर्च करने की दरकार नहीं है | बाप तो दाता है ना | दाता को दरकार नहीं है | वह तो आये ही हैं देने के लिए | ऐसे मत समझो कि हमने शिवबाबा को दिया | अरे, शिवबाबा से तो बहुत-बहुत मिलता है | तुम यहाँ लेने आये हो ना | टीचर के पास स्टूडेन्ट लेने के लिए आते हैं | उस लौकिक बाप, टीचर, गुरु से तो तुमने घाटा ही पाया | अब बच्चों को श्रीमत पर चलना है तब ही ऊँच पद पा सकेंगे | शिवबाबा है डबल श्री श्री, तुम बनते हो सिंगल श्री | श्री लक्ष्मी, श्री नारायण कहा जाता है | श्री लक्ष्मी, श्री नारायण दो हो गये | विष्णु को श्री श्री कहेंगे क्योंकि दो ज्वाइंट हैं | फिर भी दोनों को बनाते कौन हैं? जो एक ही श्री श्री है | बाकी श्री श्री तो कोई होते नहीं | आजकल तो श्री लक्ष्मी-नारायण, श्री सीता-राम भी नाम रखाते हैं | तो बच्चों को यह सब धारण करके ख़ुशी में रहना है |
आजकल स्प्रीचुअल कॉन्फ्रेंन्स भी होती रहती हैं | परन्तु स्प्रीचुअल का अर्थ नहीं समझते | रूहानी नॉलेज तो सिवाए एक के कोई दे न सके | बाप सभी रूहों का बाप है | उनको स्प्रीचुअल कहते हैं | फिलॉसाफी को भी स्प्रीचुअल कह देते हैं | यह तो समझते हो – यह जंगल है, सब एक-दो को दुःख देते रहते हैं | तुम जानते हो अहिंसा परमो देवी-देवता धर्म गाया हुआ है | वहाँ कोई मारपीट होती नहीं | गुस्सा करना भी हिंसा है फिर सेमी हिंसा कहो, कुछ भी कहो | यहाँ तो बिल्कुल अहिंसक बनना है | कोई भी मन्सा, वाचा, कर्मणा खराब बात नहीं होनी चाहिए | कोई पुलिस आदि में काम करते हैं तो उसमें भी युक्ति से काम निकालना है | जहाँ तक हो सके प्यार से काम निकालना चाहिए | बाबा का अपना अनुभव है, प्यार से अपना काम निकाल लेते हैं, इसमें बड़ी युक्ति चाहिए | बड़ा प्यार से किसको समझाना है – कैसे एक का सौ गुणा दण्ड पड़ता है | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1. हम दुःख हर्ता, सुख कर्ता बाप के बच्चे हैं, इसलिए किसी को भी दुःख नहीं देना है | एम ऑब्जेक्ट को सामने रख दैवीगुण धारण करने हैं | आप समान बनाने की सेवा करनी है |
2. ड्रामा के हर पार्ट को जानते हुए कोई भी बीती बात का चिन्तन नहीं करना है | मन्सा, वाचा, कर्मणा कोई ख़राब कर्म न हो – यह ध्यान देकर डबल अहिंसक बनना है |
वरदान:-
सेवा में स्नेह और सत्यता की अथॉरटी के बैलेन्स द्वारा सफलतामूर्त भव

जैसे इस झूठ खण्ड में ब्रह्मा बाप को सत्यता की अथॉरिटी का प्रत्यक्ष स्वरूप देखा | उनके अथॉरिटी के बोल कभी अहंकार के भासना नहीं देंगे | अथॉरिटी के बोल में स्नेह समाया हुआ है | अथॉरिटी के बोल सिर्फ़ प्यारे नहीं प्रभावशाली होते हैं | तो फालो फादर करो – स्नेह और अथॉरिटी, निर्माणता और महानता दोनों साथ-साथ दिखाई दें | वर्तमान समय सेवा में इस बैलेन्स को अन्डरलाइन करो तो सफलता मूर्त बन जायेंगे |
स्लोगन:-
मेरे को तेरे में परिवर्तन करना अर्थात् भाग्य का अधिकार लेना |

ओम् शान्ति |