21-09-14    प्रातः मुरली   ओम् शान्ति  “अव्यक्त-बापदादा”   रिवाइज:19-12-78   मधुबन
 


रीयल्टी ही सबसे बड़ी रॉयल्टी है

बापदादा बच्चों को देख हर्षित होते हैं क्योंकि बाप जानते हैं कि यही बच्चे होवनहार हैं, हर बच्चे के वर्तमान और भविष्य तकदीर को देखते हुए बापदादा हर बच्चे की तस्वीर में तकदीर देखते हैं । ब्राह्मणों के वर्तमान फीचर्स से फ्यूचर को देखते हैं । हरेक बच्चा स्वर्ग का अधिकारी है । बच्चों के अधिकार को देख बापदादा को भी ईश्वरीय फखुर है कि सारे विश्व में ऐसे तकदीरवान बच्चे किसी के हो नहीं सकते । ऐसा फखुर बच्चों को भी रहता है कि हमारे जैसी तकदीर किसी की हो नहीं सकती ।

बापदादा आज विशेष रूप से हर बच्चे में एक विशेषता देख रहे हैं कि हर एक में रीयल्टी की रॉयल्टी कहाँ तक आई है? रीयल्टी ही रॉयल्टी है । इससे बड़ी रॉयल्टी और कोई नहीं है । रॉयल्टी किन बातों की वा रीयल्टी किस बात की? पहले अपने स्वरूप की रीयल्टी । अगर रीयल्टी अर्थात् अपने असली स्वरूप की सदा स्मृति है तो स्वरूप की रीयल्टी से इस स्थूल सूरत में भी अलौकिक रॉयल्टी नजर आयेगी । जो भी देखेंगे उनके मुख से यही निकलेगा कि यह इस दुनिया के नहीं है लेकिन अलौकिक दुनिया के फरिश्ते हैं अथवा यह स्वर्ग का कोई देवता उतरा है । ऐसे रॉयल्टी का अनुभव होगा । दूसरी बात स्मृति में भी रीयल्टी अर्थात् एक बाप दूसरा न कोई । इस रीयल्टी की स्मृति से कर्म में वा बोल में रॉयल्टी दिखाई देगी । हर कर्म सत्य अर्थात् श्रेष्ठ होने के कारण जो भी सम्पर्क में आयेंगे उन्हें हर कर्म में बाप समान चरित्र अनुभव होंगे । हर बोल में बाप के समान अथॉरिटी और प्राप्ति की अनुभूति होगी अर्थात् हर बोल समर्थ अर्थात् फल देने वाला होगा । जिसको कहा जाता है सत-वचन । ऐसे कर्म और बोल में रीयल्टी की रॉयल्टी होगी । उनका सम्पर्क अर्थात् संग रीयल होने के कारण पारस का कार्य करेगा । जैसे पारस लोहे को परिवर्तन कर देता है - ऐसे रीयल्टी की रॉयल्टी वाली आत्मा का संग असमर्थ को समर्थ बना देगा अर्थात् नकली को असली बना देगा । ऐसी आत्मा के रीयल और रॉयल नयन अर्थात् दिव्य दृष्टि जादू की वस्तु समान काम करेंगे । अभी- अभी जीवनमुक्ति के स्टेज की अनुभूति, अभी- अभी लास्ट अन्तिम जन्म, अभी- अभी फर्स्ट जन्म का स्पष्ट साक्षात्कार करायेंगे । अभी- अभी अति दुःखी स्टेज, अभी- अभी अति सुखमय जीवन का अनुभव करायेंगे । 'हम सो-सो हम' के जादू के मन्त्र का अनुभव करायेंगे अर्थात् 84 जन्मों का ही ज्ञान स्मृति में दिलायेंगे । अभी- अभी स्थूलवतन, संगमयुग के सुख की अनुभूति करायेंगे, अभी- अभी सूक्ष्म फरिश्ते स्वरूप का अनुभव करायेंगे । अभी- अभी परमधाम निवासी आत्मिक स्वरूप का अनुभव करायेंगे, अभी- अभी स्वर्ग के सुखमय जीवन का अनुभव करायेंगे । एक सेकेण्ड में इन चारों ही धामों का अनुभव करायेंगे, यह है जादू मन्त्र ।

ऐसे रॉयल्टी वाले सदा सर्व कर्मेन्द्रियों द्वारा कोई न कोई प्राप्ति कराने वाले अर्थात् देने वाले दाता होंगे । ऐसे रॉयल्टी वाले किसी भी प्रकार के मायावी आकर्षण तरफ संकल्प द्वारा भी झुकेंगे नहीं अर्थात् प्रभावित नहीं होंगे । जैसे आजकल की रॉयल्टी वाली आत्मायें सदा भरपूर रहने के कारण यहाँ वहाँ किसी के अधीन नहीं होगी । ऐसे सदा बुद्धि भरपूर रहने के कारण, स्थूल में कहते हैं पेट भरा हुआ है और यहाँ बुद्धि हर खजाने से भरपूर होगी, इसीलिए कोई भी व्यक्ति वा वैभव के तरफ जो अल्पज्ञ और अल्पकाल के हैं, वहाँ बुद्धि नहीं जायेगी अर्थात् अप्राप्त कोई वस्तु नहीं होगी - जो लेने के लिए कहाँ नज़र जाए । उनके नयनों में सदा बिन्दु रूप बाप ही समाया हुआ होगा । यह है रॉयल्टी अर्थात् रीयल्टी । यह देह भी रीयल नहीं, देही रीयल है । तो अपने आप से पूछो रीयल्टी की रॉयल्टी कहाँ तक आई है । नम्बरवार होगी ना मेरा नम्बर कौन सा है - यह चेक करो । फर्स्ट डिवीजन में है वा सेकेण्ड में है, थर्ड तो नहीं कहेंगे ना ।

पंजाब का नम्बर कौन सा है? सब फर्स्ट डिवीजन वाले हैं ना! अगर सेकेण्ड में भी हो तो आज फर्स्ट में आ जाना । सेकेण्ड नम्बर वालों को भी संगमयुग में सर्व प्राप्ति की अनुभूति नहीं होगी । कोई प्राप्ति होगी कोई नहीं होगी । जैसे कई कहते हैं शान्ति की अनुभूति तो होती है लेकिन अतीन्द्रिय सुख का अनुभव नहीं है । खुशी की अनुभूति होती है लेकिन शक्ति रूप की अनुभूति नहीं होती । फर्स्ट डिवीजन वाले को हर गुण की अनुभूति हर शक्ति की अनुभूति होगी । अगर कोई भी कमी है अर्थात् 14 कला है सेकेण्ड डिवीजन । ऐसी आत्मायें अभी भी श्रेष्ठ प्राप्ति से वंचित रह जाती और भविष्य में भी सतोप्रधान प्राप्ति के बजाए सतो प्राप्ति करती है । तो सेकेण्ड डिवीजन हो गये ना । फर्स्ट डिवीजन वाले राज्य के, प्रकृति की सतोप्रधानता का सुख लेंगे और वह सतो का सुख लेंगे, सतोप्रधान का नहीं । तो अब सोचो कि क्या लेना है? सतोप्रधानता की प्राप्ति वा सतो की प्राप्ति । सर्व प्राप्ति की अनुभूति वा कोई-कोई प्राप्ति की अनुभूति, खुद ही अपना जज बनो - तो धर्मराज के पास जाना नहीं पड़ेगा । समझा - रीयल्टी ही रॉयल्टी कैसे है । फिर सुनायेंगे कि रॉयल्टी का विस्तार और भी क्या है । अच्छा । ऐसे सदा रॉयल्टी में रहने वाले, सदा सर्व प्राप्ति के अनुभूति स्वरूप, हर कर्म चरित्र अर्थात् श्रेष्ठ कर्म करने वाले, एक सेकेण्ड में चारो धाम का अनुभव कराने वाले, ऐसे श्रेष्ठ तकदीरवान बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते ।

दीदी जी से बातचीत -

भविष्य राज्य की रॉयल फैमली अभी से प्रत्यक्ष होती जायेगी ना । जो बापदादा के बोल सुने हैं कि अन्त में सब स्पष्ट साक्षात्कार होगा - तो क्या वह दिव्य दृष्टि से होगा? साक्षात्कार में कि साक्षात रूप में होगा? सबको दिव्य दृष्टि से साक्षात्कार होने का ड्रामा तो और होगा लेकिन यह साक्षात रूप में साक्षात्कार होगा । अभी जल्दी ही हरेक आत्मा अपने रीयल्टी द्वारा रॉयल्टी का रूप प्रत्यक्ष रूप में दिखायेगी - जिसमें यह किसको भी क्वेश्चन नहीं होगा कि यह होगा या नहीं होगा । अभी तो आपस में अगर नम्बर भी निकालो तो फिर भी क्वेश्चन उठते हैं, यह कैसे, यह ऐसे! लेकिन अभी जल्दी ही प्रत्यक्ष देखेंगे । राजा कौन, रानी कौन वा रॉयल फैमली कौन! इसके भी पुरुषार्थ की गति बड़ी गहन है । समान होते हुए भी चाहे अभी पलस में भी दिखाई देते हों - फिर भी पुरुषार्थ की गति गुह्य होने के कारण नम्बर वन टू हो ही जायेगा । अभी हरेक के पुरुषार्थ की विशेषता दिखाई भी देती है लेकिन जैसे कोई धूल के अन्दर हीरा चमकता हो - कभी स्पष्ट दिखाई देगा, कभी छिपा हुआ नजर आयेगा - तो अभी के पुरुषार्थ में चमकते हुए हीरे नजर जरूर आते हैं लेकिन ऐसे दिखाई देते हैं और फिर अन्त में अन्त अर्थात् लास्ट घडी नहीं संगम का अन्त अर्थात् कुछ समय पहले से ही प्रत्यक्षता जरूर होगी । प्रत्यक्षता का पार्ट बजाते हुए अपना वर्तमान माला के मणके का नम्बर और भविष्य राज्य का स्वरूप दोनों ही प्रत्यक्ष होंगे । लेकिन अभी थोड़ा सा रीस की धूल का पर्दा है । अभी रेस में चलते-चलते कभी रेस के बजाए रीस में बदल जाता है, यही धूल का पर्दा चमकते हुए हीरों को छिपा देता है और जब यह पर्दा हट जायेगा तो छिपे हुए हीरे अपने प्रत्यक्ष के सम्पन्न स्वरूप में आ जायेंगे - यह पर्दा समाप्त हो जायेगा । सम्पन्नता का साक्षात्कार होने से कोई में संकल्प ही नहीं उठेगा कि यह भी यह नम्बर ले सकते हैं अर्थात् रीस का पर्दा खत्म हो जायेगा और सम्पन्न हीरे चमकते हुए स्टेज पर प्रत्यक्ष हो जायेंगे । जैसे साकार में मम्मा बाबा की तरफ कोई की रीस नहीं हो सकती ना - ऐसे नम्बरवार इतने स्पष्ट होंगे जो कोई रीस कर ही नहीं सकते । ऐसे रॉयल फैमली अभी से ही रॉयल्टी में दिखाई देगी । अभी तो 8 नम्बर भी नहीं निकाल सकते ना! अभी फिर भी क्वेश्चन मार्क आ जाता है फिर फुलस्टाप आ जायेगा | अभी स्पष्ट रूप में 8 नम्बर निकालने में भी क्वेश्चन उठता है - रखें या ना रखें । 

अभी तीव पुरुषार्थ की पालिश हो रही है, पालिश में थोड़ी बहुत कमी छिप जाती है । जब 8 नम्बर है तो कुछ तो कमी होगी ना पहले से । लेकिन इतनी नहीं होगी जो स्पष्ट दिखाई दे इसलिए पालिश हो रही है । अभी तो तीव्र पुरुषार्थ के प्रोग्राम का संकल्प है । फैमिली में तो बहुत आ जायेंगे । अच्छा । आज तो पंजाब का टर्न है । जैसा नाम है वैसा ही काम है ना! शेर की विशेषता क्या होती है? शेर की विशेषता है अकेले होते हुए भी अपने को बादशाह समझते हैं अर्थात् निर्भय होते हैं । तो पंजाब के निवासी ऐसे निर्भय है ना । किसी भी प्रकार के माया के रूप से डरने वाले नहीं । ऐसा है ना पंजाब!

पंजाब की धरनी का विशेष महत्व क्या है - जानते हो? पंजाब स्थापना के आदि में अपना विशेष शक्ति रूप का दृश्य अच्छा दिखलाया । अनेक प्रकार की हलचल में भी अचल रहे हैं क्योंकि पंजाब की धरनी विशेष धर्म की धरनी है, ऐसे धर्म की धरनी में आदि सनातन धर्म की स्थापना करना, इसमें सामना करके विजयी बने हैं । पंजाब की धरनी की विशेषता चरित्र में है कि चारों ओर हंगामें की आग के बीच थोड़े से बच्चे विजयी बनकर पंजाब में भी विजय का झण्डा लहराया । हिंसक धरनी के ऊपर अहिंसक की विजय हुई । तो यह भी पंजाब की धरनी का चरित्र विशेष रूप में गाया जाता है । दूसरी विशेषता - पंजाब में नदियों का गायन ज्यादा है - ऐसे ही पंजाब से ज्ञान गंगायें भी अधिक निकली हैं । आदि समय के हिसाब से पंजाब से ज्ञान नदियाँ भी ज्यादा निकली हैं तो पंजाब की धरनी कन्या दान में श्रेष्ठ निकली अर्थात् महादानी निकली । तीसरी भी विशेषता है - पंजाब की भूमि में सेवा के विस्तार की भूमि भी महत्वपूर्ण है, जैसे नदियों का पानी चारों ओर विस्तार से फैला हुआ है वैसे पंजाब में भी सेवाकेन्द्रों का विस्तार अच्छा है । जगह-जगह पर तीर्थ स्थान बनाये हुए हैं । 

महिमा सुन करके खुश हो गये, सदा ही ऐसे खुश रहो । पंजाब का विस्तार देख बापदादा खुश होते हैं - अभी क्या करना है? पंजाब की धरनी से नाम से काम करने वाली, सार वाली आत्मायें निकालो । जिसका नाम सुनते अनेक आत्मायें अपना भाग्य बना सके । ऐसी विशेष सेवा अभी और भी करनी है । सिर्फ सेवा निमित्त ऐसी विशेष आत्माओं का भी पार्ट है । तो ऐसी आत्माओं को अब सम्पर्क सम्बन्ध में लाओ । समझा क्या करना है! बड़े आवाज से ललकार करो - छोटे आवाज से करते हो तो छोटा आवाज वहाँ के गुरूद्वारों के आवाज में छिप जाता है । अच्छा । 

प्रश्न: - स्थाई नशे में कौन रह सकते हैं? स्थाई नशे में रहने वालों की निशानी क्या होगी? 

उत्तर:- स्थाई नशे में वही रह सकते जो बापदादा के दिल तख्तनशीन हैं । संगमयुगी श्रेष्ठ आत्माओं का स्थान ही है बाप का दिलतख्त । ऐसा तख्त सारे कल्प में नहीं मिल सकता, विश्व के राज्य का वा स्टेट के राज्य का तख्त तो मिलता रहेगा लेकिन ऐसा तख्त फिर नहीं मिलेगा । यह इतना विशाल तख्त है जो चलो फिरो, खाओ-सोओ लेकिन सदा तख्तनशीन । जो ऐसे तख्तनशीन बच्चे हैं वह पुरानी देह वह देह की दुनिया से विस्मृत रहते हैं, देखते हुए भी नहीं देखते । 

प्रश्न:- किस धारणा के आधार से सदा सुख के सागर में समाये रहेंगे? 

उत्तर:- अन्तर्मुखी बनो - अन्तर्मुखी सदा सुखी । इन्दौर निवासी अर्थात् अन्तर्मुखी सदा सुखी । बाप सुख का सागर है तो बच्चे भी सुख के सागर में लवलीन रहते होंगे । सुखदाता के बच्चे स्वयं भी सुखदाता । सर्व आत्माओं को सुख का खजाना बाँटने वाले । जो भी आवे, जिस भावना से आये, वह भावना आपसे सम्पन्न करके जाए, सर्व सम्पन्न मूर्तियाँ बनो । जैसे बाप के खजाने में अप्राप्त कोई वस्तु नहीं, वैसे बच्चे भी बाप समान तृप्त आत्मा होंगे । अच्छा - ओम् शान्ति ।

 

वरदान:-

मनमनाभव के मन्त्र द्वारा मन के बन्धन से छूटने वाले निर्बन्धन, ट्रस्टी भव !     

कोई भी बंधन पिंजड़ा है । पिंजड़े की मैना अब निर्बन्धन उड़ता पंछी बन गयी । अगर कोई तन का बंधन भी है तो भी मन उड़ता पंछी है क्योंकि मनमनाभव होने से मन के बन्धन छूट जाते हैं । प्रवृत्ति को सम्भालने का भी बन्धन नहीं । ट्रस्टी होकर सम्भालने वाले सदा निर्बन्धन रहते हैं । गृहस्थी माना बोझ, बोझ वाला कभी उड़ नहीं सकता । लेकिन ट्रस्टी हैं तो निर्बन्धन हैं और उड़ती कला से सेकण्ड में स्वीट होम पहुँच सकते हैं ।

 

स्लोगन:- 

उदासी को अपनी दासी बना दो, उसे चेहरे पर आने न दो ।     

 

ओम् शान्ति |