11-06-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे
–
तुम्हें
शरीर से अलग होकर बाप के पास जाना है, तुम शरीर को साथ ले नहीं
जायेंगे, इसलिए शरीर को भूल आत्मा को देखो” 
प्रश्न:-
तुम
बच्चे अपनी आयु को योगबल से बढ़ाने का पुरुषार्थ करते हो?
उत्तर:-
क्योंकि तुम्हारी दिल होती है कि हम बाप द्वारा सब कुछ इस जन्म
में जान जायें | बाप द्वारा सब कुछ सुन लें, इसलिए तुम योगबल
से अपनी आयु को बढ़ाने का पुरुषार्थ करते हो | अभी ही तुम्हें
बाप से प्यार मिलता है | ऐसा प्यार फिर सारे कल्प में नहीं मिल
सकता | बाकी जो शरीर छोड़कर चले गये, उनके लिए कहेंगे ड्रामा |
उनका इतना ही पार्ट था |
ओम्
शान्ति
|
बच्चे जन्म-जन्मान्तर और सतसंगों में गये हैं और यहाँ भी आये
हैं | वास्तव में इसको भी सतसंग कहा जाता है | सत का संग तारे
| बच्चों के दिल में आता है – हम पहले भक्ति मार्ग के सतसंगों
में जाते थे और अभी यहाँ बैठे हैं | रात-दिन का फ़र्क भासता है
| यहाँ पहले-पहले तो बाप का प्यार मिलता है | फिर बाप को
बच्चों का प्यार मिलता है | अभी इस जन्म में तुम्हारी चेन्ज हो
रही है | तुम बच्चे समझ गये हो हम आत्मा हैं, न कि शरीर | शरीर
नहीं कहेगा कि हमारी आत्मा | आत्मा कह सकती है, हमारा शरीर |
अब बच्चे समझते हैं – जन्म-जन्मान्तर तो वह साधू, सन्त,
महात्मा आदि करते आये | आजकल फिर फैशन पड़ा है – साईं बाबा,
मैहर बाबा..... वह भी सब जिस्मानी हो गये | जिस्मानी प्यार में
सुख तो होता ही नहीं है | अभी तुम बच्चों का है रूहानी प्यार |
रात-दिन का फ़र्क है | यहाँ तुमको समझ मिलती है, वहाँ तो
बिल्कुल बेसमझ हैं | तुम अभी समझते हो बाबा आकरके हमको पढ़ाते
हैं | वह सबका बाप है | मेल अथवा फिमेल सब अपने को आत्मा समझते
हैं | बाबा बुलाते भी हैं – हे बच्चों | बच्चे भी रेस्पान्स
करेंगे | यह है बाप और बच्चों का मेला | बच्चे जानते हैं यह
बाप और बच्चों का, आत्मा और परमात्मा का मेला एक ही बार होता
है | बच्चे बाबा-बाबा कहते रहेंगे | ‘बाबा’ अक्षर बहुत मीठा है
| बाबा कहने से ही वर्सा याद आयेगा | तुम छोटे तो नहीं हो |
बाप की समझ बच्चे को जल्दी पड़ती है | बाबा से क्या वर्सा मिलता
है | वह छोटा बच्चा तो समझ न सके | यहाँ तुम जानते हो कि हम
बाबा के पास आये हैं | बाप कहते हैं हे बच्चों, तो इसमें सब
बच्चे आ गये | सब आत्मायें घर से यहाँ आती हैं पार्ट बजाने |
कौन कब पार्ट बजाने आते हैं, यह भी बुद्धि में है | सबके
कनेक्शन अलग-अलग हैं, जहाँ से आते हैं | फिर पिछाड़ी में सब
अपने-अपने सेक्शन में जाते हैं | यह भी सब ड्रामा में नूँध है
| बाप किसको भेजते नहीं हैं | ऑटोमेटिकली यह ड्रामा बना हुआ है
| हर एक अपने-अपने धर्म में आते रहते हैं | बुद्ध का धर्म
स्थापन हुआ नहीं है तो कोई उस धर्म का आयेगा नहीं | पहले-पहले
सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी ही आते हैं | जो बाप से अच्छी रीति पढ़ते
हैं, वही नम्बरवार सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी में शरीर लेते हैं |
वहाँ विकार की तो बात ही नहीं | योगबल से आत्मा आकर गर्भ में
प्रवेश करती है | उससे समझेंगे कि मेरी आत्मा इस शरीर में जाकर
प्रवेश करेगी | बूढ़े समझते हैं – हमारी आत्मा योगबल से जाकर यह
शरीर लेगी | मेरी आत्मा अब पुनर्जन्म लेती है | वह बाप भी
समझते हैं – हमारे पास बच्चा आया है | बच्चे की आत्मा आ रही
है, जिसका साक्षात्कार होता है | वह अपने लिए समझते हैं हम
जाकर दूसरे शरीर में प्रवेश करते हैं | यह भी विचार उठते हैं
ना | ज़रूर वहाँ का कायदा होगा | बच्चा किस आयु में आयेगा, वहाँ
तो सब रेग्युलर चलता है ना | वह तो आगे चल महसूस होगा | सब
मालूम पड़ेगा, ऐसे तो नहीं 15-20 वर्ष में कोई बच्चा होगा, जैसे
यहाँ होता है | नहीं, वहाँ आयु 150 वर्ष की होती है, तो बच्चा
तब आएगा जब आधा लाइफ़ से थोड़ा आगे होंगे, उस समय बच्चा आता है
क्योंकि वहाँ आयु बड़ी होती है, एक ही तो बच्चा आना होता है |
फिर बच्ची भी आनी है, कायदा होगा | पहले बच्चे की फिर बच्ची की
आत्मा आती है | विवेक कहता है पहले बच्चा आना चाहिए | पहले
मेल, पीछे फिमेल | 8-10 वर्ष देरी से आयेंगे | आगे चल तुम
बच्चों को सब साक्षात्कार होना है | कैसे वहाँ की रस्म-रिवाज़
है, यह सब बातें नई दुनिया की बाप बैठ समझाते हैं | बाप ही नई
दुनिया स्थापन करने वाला है | रस्म-रिवाज़ सुनाते जायेंगे | आगे
चल बहुत सुनायेंगे और तब साक्षात्कार होते रहेंगे | बच्चे कैसे
पैदा होगे, कोई नई बात नहीं |
तुम
तो ऐसी जगह जाते हो जहाँ कल्प-कल्प जाना ही पड़ता है | वैकुण्ठ
तो अब नज़दीक आ गया है | अब तो बिल्कुल नज़दीक ही आकर पहुँचे हो
| हर एक बात तुमको नज़दीक देखने आयेगी, जितना तुम ज्ञान योग में
मज़बूत होते जायेंगे | अनेक बार तुमने पार्ट बजाया है | अभी
तुमको समझ मिलती है, जो ही तुम साथ ले जायेंगे | वहाँ की क्या
रस्म-रिवाज़ होगी, सब जान जायेंगे | शुरु में तुमको सब
साक्षात्कार हुए थे उस समय तो अजुन तुम अल्फ़-बे पढ़ते थे | फिर
लास्ट में भी ज़रूर तुमको साक्षात्कार होने चाहिए | सो बाप बैठ
सुनाते हैं, वह सब देखने की चाहना तुमको यहाँ होगी | समझेंगे,
कहाँ शरीर न छूट जाये, सब कुछ देखकर जायें | इसमें आयु बढ़ाने
के लिए चाहिए योगबल | जो बाप से सब कुछ सुनें, सब कुछ देखें |
जो पहले से गये उनका चिन्तन नहीं करना चाहिए | वह तो ड्रामा का
पार्ट है | तक़दीर में नहीं था – ज़्यादा बाप से लव लेना क्योंकि
जितना-जितना तुम सर्विसएबुल बनते हो, तो बाप को बहुत-बहुत
प्यारे लगते हो | जितना सर्विस करते हो, जितना बाप को याद
करते हो वह याद जमती रहेगी | तुमको बहुत मज़ा आयेगा | अभी तुम
बनते हो ईश्वरीय सन्तान | बाप कहते हैं तुम आत्मायें हमारे पास
थी ना | भक्ति मार्ग में मुक्ति के लिए बहुत परिश्रम करते हैं
| जीवनमुक्ति को तो जानते नहीं | यह बहुत लवली ज्ञान है | बहुत
लव रहता है | बाप, बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरु भी है |
सच्चा-सच्चा सुप्रीम बाबा है जो हमको 21 जन्मों के लिए सुखधाम
में ले जाते हैं | आत्मा ही दुःखी होती है | दुःख-सुख सब आत्मा
ही महसूस करती है | कहा भी जाता है पाप आत्मा, पुण्य आत्मा |
अभी बाप आये हैं हमको सभी दुःखों से छुड़ाने | अभी तुम बच्चों
को बेहद में जाना है | सब सुखी हो जायेंगे | सारी दुनिया ही
सुखी हो जायेगी | ड्रामा में पार्ट है, उनको भी तुम समझ गये हो
| तुम कितना ख़ुशी में रहते हो | बाबा आया है हमको स्वर्ग में
ले चलने लिए | हम सब आत्माओं को स्वर्ग में ले जायेंगे | बाप
धैर्य देते हैं – मीठे-मीठे बच्चों, मैं तुमको सब दुःखों से
दूर करने आया हूँ | तो ऐसे बाप में कितना प्यार होना चाहिए |
सभी सम्बन्धों ने तुमको दुःख दिया है | यह है ही दुःखदाई
सन्तान | तुम दुःखी होते, दुःख की ही बातें सुनते आये हो | अब
बाप सब बातें समझा रहे हैं | अनेक बार समझाया है और चक्रवर्ती
राजा बनाया है | तो जो बाप हमको ऐसा स्वर्ग का मालिक बनाते
हैं, उन पर कितना प्यार होना चाहिए | एक बाप को ही तुम याद
करते हो | सिवाए बाप के और कोई से सम्बन्ध नहीं | आत्मा को ही
समझाया जाता है | हम सुप्रीम बाप के बच्चे हैं | अब जैसे हमको
रास्ता मिला है, फिर औरों को भी सुख का रास्ता बताना है |
तुमको सिर्फ़ आधाकल्प के लिए ही नहीं, पौना कल्प के लिए सुख
मिलता है | तुम पर भी कई कुर्बान जाते हैं क्योंकि तुम बाप का
सन्देश बताकर सब दुःख दूर कर देते हो |
तुम
समझते हो इन्हें भी (ब्रह्मा को भी) यह नॉलेज सुप्रीम बाप से
मिलती है | यह फिर हमको पैगाम देते हैं | हम फिर औरों को पैगाम
देंगे | बाप का परिचय देते सब बच्चों को जगाते रहते हैं,
अज्ञान नींद से | भक्ति को अज्ञान कहा जाता है | ज्ञान और
भक्ति अलग-अलग है | ज्ञान सागर बाप अब तुम बच्चों को ज्ञान
सिखला रहे हैं | तुम्हारे दिल में आता है, बाबा हर 5 हज़ार वर्ष
बाद आकर हमें जगाते हैं | हमारा जो दीवा है, उसमें घृत बाकी
थोडा जाकर रहा है इसलिए अब फिर ज्ञान घृत डाल दीप जगाते है |
जब बाप को याद करते हैं तो आत्मा रूपी दीप प्रज्जवलित होता है
| आत्मा में जो कट चढ़ी हुई है वह उतरेगी बाप की याद से, इसमें
ही माया की लड़ाई चलती है | माया घड़ी-घड़ी भुला देती है और कट
उतारने के बजाय चढ़ती जाती है | बल्कि जितना उतरी थी, उससे भी
जास्ती चढ़ जाती है | बाप कहते हैं – बच्चे, मुझे याद करो तो कट
उतर जायेगी | इसमें मेहनत है | शरीर की कशिश न हो |
देही-अभिमानी बनो | हम आत्मा हैं, बाबा के पास शरीर सहित तो जा
नहीं सकेंगे | शरीर से अलग होकर ही जाना है | आत्मा को देखने
से कट उतरेगी, शरीर को देखने से कट चढ़ती है | कभी चढ़ती, कभी
उतरती – यह चलता रहता है | कभी नीचे, कभी ऊपर – बड़ा नाज़ुक
रास्ता है | यह होते-होते पिछाड़ी में कर्मातीत अवस्था को पाते
हैं | मुख्य हर बात में आँखें ही धोखा देती हैं, इसलिए शरीर को
न देखो | हमारी बुद्धि शान्तिधाम-सुखधाम में लटकी हुई है और
दैवी गुण भी धारण करने हैं | भोजन भी शुद्ध खाना है | देवताओं
का पवित्र भोजन है | वैष्णव अक्षर विष्णु से निकला है | देवता
कभी गन्दी चीज़ थोड़ेही खाते होंगे | विष्णु का मन्दिर है, जिसको
नर-नारायण भी कहते हैं | अब लक्ष्मी-नारायण तो साकारी ठहरे |
उनको 4 भुजा होनी नहीं चाहिए | परन्तु भक्ति मार्ग में उनको भी
4 भुजा दी हैं | इसको कहा जाता है बेहद का अज्ञान | समझते नहीं
कि 4 भुजा वाला कोई मनुष्य तो हो नहीं सकता | सतयुग में 2 भुजा
वाले होते हैं | ब्रह्मा को भी 2 भुजायें है | ब्रह्मा की बेटी
सरस्वती, उनको फिर मिलाकर 4 भुजा दी हैं | अब सरस्वती कोई
ब्रह्मा की स्त्री नहीं है, यह तो प्रजापिता ब्रह्मा की बेटी
है | जितने बच्चे एडाप्ट होते जाते हैं, उतनी इनकी भुजायें
बढ़ती जाती हैं | ब्रह्मा की ही 108 भुजायें कहते हैं | विष्णु
वा शंकर की नहीं कहेंगे | ब्रह्मा की भुजायें बहुत हैं | भक्ति
मार्ग में तो कुछ समझ नहीं | बाप आकर बच्चों को समझाते हैं,
तुम कहते हो बाबा ने आकर हमको समझदार बनाया है | मनुष्य कहते
हैं हम शिव के भक्त हैं | अच्छा, तुम शिव को क्या समझते हो?
अभी तुम समझते हो शिवबाबा सब आत्माओं का बाप है, इसलिए उनकी
पूजा करते हैं | मुख्य बात बाप कहते हैं – मामेकम् याद करो |
तुमने बुलाया भी है – हे पतित-पावन आकर हमको पावन बनाओ | सभी
पुकारते ही रहते हैं – पतित-पावन सीताराम | यह भी गाते रहते थे
| बाबा को थोड़ेही मालूम था कि बाप स्वयं आकर मेरे में प्रवेश
करेंगे | कितना वन्डर है, कभी ख्याल में भी नहीं था | पहले तो
आश्चर्य खाते थे यह क्या होता है! मैं किसको देखता हूँ तो
बैठे-बैठे उनको कशिश होती है | यह क्या होता है? शिवबाबा कशिश
करते थे | सामने बैठो तो ध्यान में चले जाते थे | आश्चर्य में
पड़ गये, यह क्या है! इन बातों को समझने के लिए फिर एकान्त
चाहिए | तब वैराग्य आने लगा – कहाँ जाऊँ? अच्छा, बनारस जाता
हूँ | यह उनकी कशिश थी | जो इसको भी कराते थे, इतनी बड़ी
कारोबार सब छोड़कर गया | उन बिचारों को क्या पता कि बनारस में
क्यों जाते हैं? फिर वहाँ बगीचे में जाकर ठहरा | वहाँ पैन्सिल
हाथ में उठाकर दीवारों पर चक्र बैठ निकलता था | बाबा क्या
कराते थे, कुछ पता नहीं पड़ता था | रात को नींद आ जाती थी |
समझता था कहाँ उड़ गया हूँ | फिर जैसे नीचे आ जाता था | कुछ पता
नहीं क्या हो रहा है | शुरू में कितने साक्षात्कार होते थे |
बच्चियां बैठे-बैठे ध्यान में चली जाती थी | तुमने बहुत कुछ
देखा है | तुम कहेंगे जो हमने देखा सो तुमने नहीं देखा | फिर
पिछाड़ी में भी बाबा बहुत साक्षात्कार करायेंगे क्योंकि नज़दीक
होते जायेंगे | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
बाप का
सन्देश सुनाकर सबके दुःख दूर करने हैं | सबको सुख का रास्ता
बताना है | हदों से निकल बेहद में जाना है |
2.
अन्त के
सब साक्षात्कार करने के लिए तथा बाप के प्यार की पालना लेने के
लिए ज्ञान-योग में मज़बूत बनना है | दूसरों का चिन्तन न कर
योगबल से अपनी आयु बढ़ानी है |
वरदान:-
हर
सेकण्ड के हर संकल्प का महत्व जानकर जमा का खाता भरपूर करने
वाली समर्थ आत्मा भव
! 
संगमयुग पर अविनाशी बाप दवारा हर समय अविनाशी प्राप्तियां होती
हैं | सारे कल्प में ऐसा भाग्य प्राप्त करने का यह एक ही समय
है – इसलिए आपका स्लॉगन है “अब नहीं तो कभी नहीं” | जो भी
श्रेष्ठ कार्य करना है वह अभी करना है | इस स्मृति से कभी भी
समय, संकल्प वा कर्म व्यर्थ नहीं गवायेंगे, समर्थ संकल्पों से
जमा का खाता भरपूर हो जायेगा और आत्मा समर्थ बन जायेगी |
स्लोगन:-
हर बोल, हर कर्म की अलौकिकता ही पवित्रता है, साधारणता को
अलौकिकता में परिवर्तन कर दो |
ओम्
शान्ति
|