09-08-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - तुम्हारे में ऑनेस्ट वह है जो सारे यूनिवर्स की सेवा
करे,
बहुतों
को आप समान बनाये,
आराम पसन्द न हो” 
प्रश्न:-
तुम
ब्राह्मण बच्चे कौन-से बोल कभी भी बोल नहीं सकते हो?
उत्तर:-
तुम
ब्राह्मण ऐसे कभी नहीं बोलेंगे कि हमारा ब्रह्मा से कोई
कनेक्शन नहीं,
हम तो
डायरेक्ट शिवबाबा को याद करते हैं । बिना ब्रह्मा बाप के
ब्राह्मण कहला नहीं सकते,
जिनका
ब्रह्मा से कनेक्शन नहीं अर्थात् जो ब्रह्मा मुख वंशावली नहीं
वह शूद्र ठहरे । शूद्र कभी देवता नहीं बन सकते हैं ।
ओम्
शान्ति |
रूहानी बाप बैठ समझाते हैं दादा के द्वारा-बच्चे म्यूजियम अथवा
प्रदर्शनी का उद्घाटन कराते हैं परन्तु उद्घाटन तो बेहद के बाप
ने कब से कर लिया है । अब यह शाखायें अथवा ब्रांचेज निकलती
रहती हैं । पाठशालायें बहुत चाहिए ना । एक तो है यह पाठशाला
जिसमें बाप रहते हैं,
इसका
नाम रखा है मधुबन । बच्चे जानते हैं मधुबन मे सदैव मुरली बजती
रहती है । किसकी?
भगवान् की । अब भगवान् तो है निराकार । मुरली बजाते हैं साकार
रथ द्वारा । उनका नाम रखा है भाग्यशाली रथ । यह तो कोई भी समझ
सकते हैं । इसमें बाप प्रवेश करते हैं,
यह
तो तुम बच्चे ही समझते हो । और तो कोई न रचता को,
न
रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं । सिर्फ बड़े आदमी गवर्नर
आदि हैं तो उनसे उद्घाटन कराते हैं । यह भी बाबा हमेशा लिखते
रहते हैं कि जिनसे उद्घाटन कराते हो,
उनको
पहले परिचय देना है-बाप कैसे नई दुनिया स्थापन करते हैं । उनकी
यह ब्रांचेज खुल रही हैं । कोई न कोई से खुलवाते हैं ताकि उनका
कल्याण हो जाये । कुछ समझे कि बराबर बाप आया हुआ है । ब्रह्मा
द्वारा स्थापना हो रही है-विश्व में शान्ति के राज्य की वा आदि
सनातन देवी-देवता धर्म की । उसका उद्घाटन तो हो चुका है । अभी
यह ब्रांचेज खुल रही है । जैसेकि बैंक की ब्रांचेज खुलती जाती
है । बाप को ही आकर नॉलेज देनी है । यह नॉलेज परमपिता परमात्मा
में ही रहती है इसलिए उनको ही ज्ञान सागर कहा जाता है । रूहानी
बाप में ही रूहानी ज्ञान है जो आकर रूहों को देते हैं । समझाते
हैं-हे बच्चों,
हे
आत्माओं,
तुम
अपने को आत्मा समझो । आत्मा नाम तो कॉमन है । महान् आत्मा,
पुण्य आत्मा,
पाप
आत्मा कहा जाता है । तो आत्मा को परमपिता परमात्मा बाप भी समझा
रहे हैं । बाप क्यों आयेंगे?
जरूर
बच्चों को वर्सा देने लिए । फिर सतोप्रधान नई दुनिया में आना
है । वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट कहा जाता है । नई अथवा
पुरानी दुनिया मनुष्यों की ही है । बाप कहते हैं मैं आया हूँ
नई दुनिया रचने । बिगर मनुष्यों के तो दुनिया होती नहीं । नई
दुनिया में देवी-देवताओं का राज्य था,
जिसकी अब फिर से स्थापना हो रही है । अभी तुम बच्चे शूद्र से
ब्राह्मण बने हो । फिर तुमको ब्राह्मण से देवता बनाने आया हूँ
। तुम यह सुना सकते हो कि बाप ऐसे समझाते हैं । तुम नई दुनिया
में कैसे जा सकते हो । अभी तो तुम्हारी आत्मा पतित विकारी है
सो अब निर्विकारी बनना है । जन्म-जन्मान्तर के पापों का बोझा
सिर पर है । पाप कब से शुरू होते हैं?
बाप
कितने वर्षों के लिए पुण्य आत्मा बनाते हैं?
यह
भी तुम बच्चे अभी जानते हो । 21 जन्म तुम पुण्य आत्मा रहते हो
फिर पाप आत्मा बनते हो । जहाँ पाप होता है,
वहाँ
दुःख ही होगा । पाप कौन से हैं?
वह
भी बाप बतलाते हैं । एक तो तुम धर्म की ग्लानि करते हो । कितने
तुम पतित बन गये हो । मुझे बुलाते आये हो-हे पतित-पावन आओ,
सो
अब मैं आया हूँ । पावन बनाने वाले बाप को तुम गाली देते,
ग्लानी करते हो इसलिए तुम पाप आत्मा बन पड़े हो । कहते भी हैं
हे प्रभु जन्म-जन्मान्तर का पापी हूँ,
आकर
पावन बनाओ । तो बाप समझाते हैं कि जिसने सबसे जास्ती जन्म लिए
हैं,
उनके
ही बहुत जन्मों के अन्त में प्रवेश करता हूँ । बाबा बहुत जन्म
किसको कहते?
बच्चे 84 जन्मों को । जो पहले-पहले आये हैं,
वही
84 जन्म लेते हैं । पहले तो यही लक्ष्मी-नारायण आते हैं । यहाँ
तुम आते ही हो नर से नारायण बनने के लिए । कथा भी सत्य नारायण
की सुनाते हैं । कब राम-सीता बनने की कथा सुनाई है किसी ने?
उसकी
ग्लानि की हुई है । बाप बनाते ही हैं नर से नारायण,
नारी
से लक्ष्मी । जिनकी कभी कोई निंदा नहीं करते हैं । बाप कहते
हैं मैं राजयोग सिखलाता हूँ । विष्णु के दो रूप यह
लक्ष्मी-नारायण हैं । छोटेपन में राधे-कृष्ण हैं । यह कोई
भाई-बहन नहीं,
अलग-अलग राजाओं के बच्चे थे । वह महाराजकुमार,
वह
महाराजकुमारी,
जिनको स्वयंवर के बाद लक्ष्मी-नारायण कहा जाता है । यह सब
बातें कोई मनुष्य नहीं जानते । कल्प पहले यह सब बातें जिनकी
बुद्धि में बैठी होगी उनकी ही बुद्धि में बैठेगी । इन
लक्ष्मी-नारायण,
राधे-कृष्ण आदि सबके मन्दिर हैं,
विष्णु का भी मन्दिर है,
जिनको नर-नारायण का मन्दिर कहते हैं । और फिर लक्ष्मी-नारायण
का अलग-अलग मन्दिर भी है । ब्रह्मा का भी मन्दिर है । ब्रह्मा
देवता नम: फिर कहते शिव परमात्माए नम: वह तो अलग हो गया ना ।
देवताओं को कभी भगवान् थोड़े ही कहा जाता है । तो बाप समझाते
हैं पहले जिससे उद्घाटन कराना है,
उनको
समझाना है,
विश्व में शान्ति स्थापन अर्थ भगवान् ने फाउन्डेशन लगा दिया है
। विश्व में शान्ति लक्ष्मी-नारायण के राज्य में थी ना । यह
सतयुग के मालिक थे ना । तो मनुष्य को नर से नारायण,
नारी
से लक्ष्मी बनाने की यह बड़ी गॉडली युनिवर्सिटी है अथवा ईश्वरीय
विश्व विद्यालय है । विश्व विद्यालय तो बहुतों ने नाम रखे हैं
। वास्तव में वह कोई वर्ल्ड युनिवर्सिटी है नहीं । युनिवर्स तो
सारी विश्व हो गई । सारे विश्व में बेहद का बाप एक ही कॉलेज
खोलते हैं । तुम जानते हो विश्व में पावन बनने की
विश्व-विद्यालय केवल यह एक ही है,
जो
बाप स्थापन करते हैं । हम सारे विश्व को शान्तिधाम,
सुखधाम ले जाते हैं इसलिए इसको कहा जाता है ईश्वरीय विश्व
विद्यालय । ईश्वर आकर सारे विश्व को मुक्ति-जीवनमुक्ति का
वर्सा देते हैं । कहाँ बाप की बात,
कहाँ
यह सब कहते रहते युनिवर्सिटी । युनिवर्स अर्थात् सारी दुनिया
को चेन्ज करना,
यह
तो बाप का ही काम है । हमको यह नाम रखने नहीं देते और गवर्मेंट
खुद रखती है । यह तो तुमको समझाना है,
वह
भी पहले तो नहीं समझायेंगे । बोलो,
हमारा नाम ही हैं ब्रह्माकुमार-कुमारियां । इनका ब्रह्मा नाम
ही तब पड़ा है जब बाप ने आकर रथ बनाया है । प्रजापिता नाम तो
मशहूर है ना । वह आया कहाँ से?
उनके
बाप का नाम क्या है?
ब्रह्मा को देवता दिखाते हैं ना । देवताओं का बाप तो जरूर
परमात्मा ही होगा । वह है रचता,
ब्रह्मा को कहेंगे पहली-पहली रचना । उनका बाप है शिवबाबा,
वह
कहते हैं मैं इनमें प्रवेश कर इनकी पहचान तुमको देता हूँ ।
तो
बच्चो को समझाना है - यह ईश्वरीय म्यूजियम है । बाप कहते हैं
मुझे बुलाया ही है हे पतित-पावन आओ,
आकर
पतित से पावन बनाओ । अब हे बच्चों,
हे
आत्माओं,
तुम
अपने बाप को याद करो तो पतित से पावन बन जायेंगे । मनमनाभव यह
अक्षर तो गीता के ही हैं । भगवान् एक ही ज्ञान सागर पतित-पावन
हैं,
कृष्ण तो पतित-पावन हो न सके । वह पतित दुनिया में आ न सके ।
पतित दुनिया में पतित-पावन बाप ही आयेंगे । अब मुझे याद करो तो
पाप भस्म होंगे । कितनी सहज बात है । भगवानुवाच अक्षर जरूर
कहना है । परमपिता परमात्मा कहते हैं काम विकार महाशत्रु है ।
पहले निर्विकारी दुनिया थी,
अब
विकारी दुनिया है । दु:ख ही दुःख है । निर्विकारी होंगे तो फिर
सुख ही सुख होगा । तो यह समझाना है भगवानुवाच काम महाशत्रु है,
इस
पर जीत पाने से तुम जगतजीत बनेंगे । एक बाप को याद करो । हम भी
उनको याद करते हैं । जैसे कोई कॉलेज खुलता है तो उसका भी
उद्घाटन कराते हैं ना । यह भी कॉलेज है,
ढेर
सेंटर्स हैं । सेंटर्स में टीचर्स मुकरर हैं । टीचर को भी
ख्याल जरूर रखना चाहिए । बाबा नये-नये सेंटर्स पर अच्छी-अच्छी
ब्राह्मणियों (टीचर्स) को रखते हैं इसलिए कि जल्दी-जल्दी आप
समान बनाकर फिर और सेंटर्स पर भागना चाहिए सर्विस को उठाने लिए
। देखेंगे कौन-कौन ठीक रीति मुरली पढ़कर सुना सकते हैं,
समझा
सकते हैं तो उनको कहेंगे अब तुम यहाँ बैठ क्लास चलाओ । ऐसी
ट्रायल कराकर,
उनको
बिठाकर चला जाना चाहिए और जगह सेंटर जमाने । ब्राह्मणियों का
काम है एक सेंटर जमाया फिर जाकर और सेंटर जमावें । एक-एक टीचर
को 10-20 सेंटर्स स्थापन करने चाहिए । बहुत सर्विस करनी चाहिए
। दुकान खोलते जायें,
आप
समान बनाकर कोई को छोड़ते जायें । दिल में आना चाहिए - कोई को
आप समान बनाकर तैयार करूं तो और सेंटर खुले । परन्तु ऐसे
ऑनेस्ट कोई बिरले रहते हैं । ऑनेस्ट उसको कहा जाता हैं जो सारे
युनिवर्स की सेवा करे । एक सेंटर खोला,
आप
समान बनाया,
फिर
दूसरे स्थान पर सेवा की । एक ही स्थान पर अटक नहीं जाना चाहिए
। अच्छा,
किसको समझा नहीं सकते हो तो और काम करो । उसमें देह-अभिमान
नहीं आना चाहिए । मैं तो बड़े घर की हूँ,
यह
काम कैसे करूँ हमको दर्द होगा । थोड़ा भी काम करने से हड्डी
दु:खेगी,
इसको
देह-अभिमान कहा जाता है । कुछ भी समझते नहीं हैं,
औरों
की सर्विस करनी चाहिए ना । जो फिर वह भी लिखे कि बाबा फलानी ने
हमको समझाया,
हमारी जीवन बना दी । सर्विस का सबूत मिलना चाहिए । एक-एक टीचर
बनना चाहिए । फिर खुद ही लिखे-बाबा,
हमारे पिछाडी ढेर सम्भालने वाले हैं,
हमने
बहुत आप समान बनाये हैं,
हम
सेन्टर खोलते जायें । ऐसे बच्चे को कहेंगे फूल । सर्विस ही
नहीं करेंगे तो फूल कैसे बनेंगे । फूलों का भी बगीचा है ना ।
तो उद्घाटन करने वाले को भी समझाना चाहिए । हम
ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं । शूद्र से ब्राह्मण बन देवता बनते
हैं । बाप इस ब्राह्मण कुल और सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी कुल की
स्थापना करते हैं । इस समय तो सब शूद्र वर्ण के हैं । सतयुग
में देवता वर्ण के थे फिर क्षत्रिय,
वैश्य वर्ण के बने । बाबा जानते हैं कितनी पॉइंट्स बच्चे भूल
जाते हैं । पहले-पहले ब्राह्मण वर्ण,
प्रजापिता ब्रह्मा की औलाद... ब्रह्मा कहाँ से आये । यह
ब्रह्मा बैठा है ना । अच्छी रीति समझाना चाहिए । ब्रह्मा
द्वारा स्थापना,
किसकी?
ब्राह्मणों की । फिर उन्हों को शिक्षा दे देवता बनाते हैं । हम
बाप से पढ़ रहे हैं । उन्होंने भगवानुवाच तो लिख दिया है अर्जुन
प्रति । अब अर्जुन कौन था,
किसको पता नहीं । तुम जानते हो हम ब्रह्मा की औलाद ब्राह्मण
हैं । अगर कोई कहते हम तो शिवबाबा के बच्चे हैं,
ब्रह्मा से हमारा कनेक्शन नहीं तो फिर देवता वह कैसे बनेंगे?
ब्रह्मा के थ्रू ही बनेंगे ना । शिवबाबा ने तुमको कैसे,
किस
द्वारा कहा मुझे याद करो?
ब्रह्मा द्वारा कहा ना । प्रजापिता ब्रह्या के तो बच्चे हो ना
। ब्रह्माकुमार-कुमारी कहलाते हो । हम ब्रह्मा के बच्चे हैं ।
तो जरूर ब्रह्मा याद आयेगा । शिवबाबा ब्रह्मा तन से पढ़ाते हैं
। ब्रह्मा बाबा हैं बीच में । ब्राह्मण बनने बिगर देवता कैसे
बन सकेंगे । मैं जिस रथ में आता हूँ,
उनको
भी जानना चाहिए । ब्राह्मण बनना चाहिए । ब्रह्मा को बाबा नहीं
कहें तो बच्चा ही कैसे ठहरा । ब्राह्मण अपने को नहीं समझते तो
गोया शूद्र हैं । शूद्र से फट देवता बने मुश्किल हैं ।
ब्राह्मण बन शिवबाबा को याद करने बिगर देवता बन कैसे सकेंगे,
इसमें मूँझने की भी दरकार नहीं । तो उद्घाटन करने वालों को भी
समझाना है कि बाप द्वारा उद्घाटन हो चुका है । आपको भी बताते
हैं कि सिर्फ बाप को याद करो तो पाप कट जायेंगे । वह बाप ही
पतित-पावन है फिर तुम पावन बन देवता बन जायेंगे । बच्चे बहुत
सर्विस कर सकते हैं । बोलो,
हम
बाप का पैगाम देते हैं । अब करो,
न
करो,
तुम्हारी मर्जी । हम पैगाम देकर जाते हैं । और कोई भी रीति से
पावन होना ही नहीं है । जब फुर्सत मिले,
सर्विस करो । समय तो बहुत मिलता है । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1.
नये-नये सेंटर्स की वृद्धि करने के लिए आप
समान बनाने की सेवा करनी है । सेंटर्स खोलते जाना है । एक जगह
पर बैठना नहीं है ।
2.
फूलों का बगीचा तैयार करना है । हरेक को फूल
बनकर दूसरों को आप समान फूल बनाना है । किसी भी सेवा में
देह-अभिमान न आये ।
वरदान:-
ज्ञान रत्नों को धारण कर व्यर्थ को समाप्त करने वाले होलीहंस
भव !
होलीहंस की दो विशेषतायें हैं - एक है ज्ञान रत्न चुगना और
दूसरा निर्णय शक्ति द्वारा दूध और पानी को अलग करना । दूध और
पानी का अर्थ है - समर्थ और व्यर्थ का निर्णय । व्यर्थ को पानी
के समान कहते हैं और समर्थ को दूध समान । तो व्यर्थ को समाप्त
करना अर्थात् होलीहंस बनना । हर समय बुद्धि में ज्ञान रत्न
चलते रहे,
मनन
चलता रहे तो रत्नों से भरपूर हो जायेंगे ।
स्लोगन:-
सदा अपने श्रेष्ठ पोजीशन में स्थित रह ऑपोज़ीशन को समाप्त करने
वाले ही विजयी आत्मा हैं । 
ओम्
शान्ति |