10-08-14    प्रातः मुरली   ओम् शान्ति  “अव्यक्त-बापदादा”   रिवाइज:03-12-78   मधुबन
 


पाप और पुण्य की गुह्य गति

                                                        
आज बापदादा सर्व बच्चों को विशेष अभ्यास की स्मृति दिला रहे हैं - एक सेकेण्ड में इस आवाज की दुनिया से परे हो आवाज से परे दुनिया के निवासी बन सकते हो? जितना आवाज में आने का अभ्यास है, सुनने का अभ्यास है, आवाज को धारण करने का अभ्यास है, वैसे आवाज से परे स्थिति में स्थित हो सर्व प्राप्ति करने का अभ्यास है? जैसे आवाज द्वारा रमणीकता का अनुभव करते हो, सुख का अनुभव करते हो ऐसे ही आवाज से परे अविनाशी सुख-स्वरूप, रमणीक अवस्था का अनुभव करते हो? शान्त के साथ-साथ अति शान्त और अति रमणीक स्थिति का अनुभव है? स्मृति का स्वीच आन किया और ऐसी स्थिति पर स्थित हुए । ऐसी रूहानी लिफ्ट की गिफ्ट प्राप्त हैं? सदा एवररेडी हो? सेकेण्ड के इशारे से एकरस स्थिति में स्थित हो जाओ, ऐसा रूहानी लश्कर तैयार है? वा स्थित होने में ही समय चला जायेगा? अब ऐसा समय आने वाला है जो ऐसे सत्य अभ्यास के आगे अनेकों के अयथार्थ अभ्यास स्वत: ही प्रत्यक्ष हो जायेंगे । कहना नहीं पड़ेगा कि आपका अभ्यास अयथार्थ है - लेकिन यथार्थ अभ्यास के वायुमण्डल, वायब्रेशन द्वारा स्वयं ही सिद्ध हो जायेगा । ऐसा संगठन तैयार है

अभी समय अनुसार अनेक प्रकार के लोग चेकिंग करने आयेंगे । संगठित रूप में जो चैलेंज करते हो कि हम सब ब्राह्मण एक की याद में एकरस स्थिति में स्थित होने वाले हैं - तो ब्राह्मण संगठन की चेकिंग होगी । इन्डीविज्युअल (व्यक्तिगत) तो कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन आप सब विश्व कल्याणकारी, विश्व परिवर्तक हो । विश्व कल्याणकारी संगठन विश्व को अपनी वृत्ति वा वायब्रेशन द्वारा वा अपने स्मृति स्वरूप के समर्थी द्वारा कैसे सेवा करते हैं - उसकी चेकिंग करने बहुत आयेंगे । आज की साइंस द्वारा साइलेन्स शक्ति का नाम बाला होगा । योग द्वारा शक्तियाँ कौन सी और कहाँ तक फैलती हैं, उनकी विधि और गति क्या होती है, यह सब प्रत्यक्ष दिखाई देंगे । ऐसा संगठन तैयार है? समय प्रमाण अब व्यर्थ की बातों को छोड़ समर्थी स्वरूप बनो । ऐसे विल सेवाधारी बनो । इतना बड़ा कार्य जिसके लिए निमित्त बने हुए हो उसको स्मृति में रखो । इतने श्रेष्ठ कार्य के आगे स्वयं के पुरुषार्थ में हलचल वा स्वयं की कमजोरियाँ क्या अनुभव होती हैं? अपनी कमजोरियाँ, इतने विशाल कार्य के आगे क्या अनुभव करते हो, अच्छी लगती हैं? वा स्वयं से ही शर्म आता है? चैलेंज और प्रैक्टिकल समान होना चाहिए । नहीं तो चैलेंज और प्रैक्टिकल में महान अन्तर होने से सेवाधारी के बजाए क्या टाइटिल मिल जायेगा? ऐसे करने वाली आत्मायें अनेक आत्माओं को वंचित करने के निमित्त बन जाती, पुण्य आत्मा के बजाए बोझ वाली आत्मायें बन जाती हैं - इस पाप और पुण्य की गहन गति को जानो । पाप की गति श्रेष्ठ भाग्य से वंचित कर देती है । संकल्प द्वारा भी पाप होता है । संकल्प के पाप का भी प्रत्यक्षफल प्राप्त होता हैं । संकल्प में स्वयं की कमजोरी, किसी भी विकार की - पाप के खाते में जमा होती ही है । लेकिन अन्य आत्माओं के प्रति संकल्प में भी किसी विकार के वशीभूत वृत्ति है तो यह भी महापाप है, किसी अन्य आत्माओं के प्रति व्यर्थ बोल भी पाप के खाते में जमा होता है । ऐसे ही कर्म अर्थात् सम्बन्ध और सम्पर्क द्वारा किसी के प्रति शुभ भावना के बजाए और कोई भी भावना है तो यह भी पाप का खाता जमा होता है क्योंकि यह भी दुःख देना है । शुभ भावना पुण्य का खाता बढ़ाती है । व्यर्थ भावना, घृणा की भावना वा ईष्या की भावना पाप का खाता बढ़ाती है इसलिए बाप के बच्चे बने, वर्से के अधिकारी बने अर्थात् पुण्य आत्मा बने, यह निश्चय, यह नशा तो बहुत अच्छा । लेकिन नशा और ईर्ष्या मिक्स नहीं करना । बाप के बनने के बाद प्राप्ति अनगिनत है लेकिन पुण्य आत्मा के साथ पाप का बोझा भी सौ गुना के हिसाब से है इसलिए इतने अलबेले भी मत बनना । बाप को जाना और वर्से को जाना, ब्रह्माकुमार, कुमारी कहलाया - इसलिए अब तो पुण्य ही पुण्य है, पाप तो खत्म हो गया वा सम्पूर्ण बन गये, ऐसी बात नहीं सोचना । ब्राह्मण जीवन के नियमों को भी ध्यान में रखो । मर्यादायें सदा सामने रखो । पुण्य और पाप दोनों का ज्ञान बुद्धि में रखो । चेक करो पुण्य आत्मा कहलाते हुए मन्सा-वाचा-कर्मणा कोई पाप तो नहीं किया? कौन सा खाता जमा हुआ? किसी भी प्रकार की चलन द्वारा बाप वा नॉलेज का नाम बदनाम तो नहीं किया? बाप के पास तो हरेक का खाता स्पष्ट है लेकिन स्वयं के आगे भी स्पष्ट करो । अपने आपको चलाओ मत अर्थात् धोखा मत दो - यह तो होता ही है, यह तो सबमें है! भले सबमें हो लेकिन मैं सेफ हूँ - ऐसी शुभकामना रखो तब विश्व सेवाधारी बन सकेंगे । संगठित रूप में एकमत एकरस स्थिति का अनुभव करा सकेंगे । अब तक भी पाप का खाता जमा होगा तो चुक्तू कब करेंगे? अन्य आत्माओं को पुण्य आत्मा बनाने के निमित्त कैसे बनेंगे? इसलिए अलबेलेपन में भी पाप का खाता बनाना बन्द करो । सदा पुण्य आत्मा भव का वरदान लो । अज्ञानी लोग यह स्लोगन कहते हैं - बुरा न सुनो, न देखो, न सोचो अब बाप कहते हैं व्यर्थ भी न सुनो, न सुनाओ और न सोचो । सदा शुभभावना से सोचो, शुभ बोल बोलो, व्यर्थ को भी शुभ-भाव से सुनो । जैसे साइन्स के साधन बुरी चीज को परिवर्तन कर अच्छा बना देते, रूप परिवर्तन कर देते तो आप सदा शुभचिंतक, सर्व आत्माओं के बोल के भाव को परिवर्तन नहीं कर सकते? सदा भाव और भावना श्रेष्ठ रखो तो सदा पुण्य आत्मा बन जायेंगे । स्वयं का परिवर्तन ही अन्य का परिवर्तन है । इसमें पहले मैं, ऐसा सोचो - इस मरजीवा बनने में ही मजा है, इसी को ही महाबली कहा जाता है । घबराओ नहीं । खुशी से मरो - यह मरना तो जीना ही है, यही सच्चा जीयदान है । 

आपका पहला वचन (वायदा) क्या है? एक बाप दूसरा न कोई अर्थात् मरना । नाम मरना है लेकिन सब कुछ पाना है । निभाना मुश्किल लगता है क्या? है सहज, सिर्फ परिवर्तन करना नहीं आता - भाव और भावना का परिवर्तन करना नहीं आता । वाह ड्रामा वाह जब कहते हो तो यह सब क्या हुआ । हर बात वाह-वाह हो गई ना! हाय-हाय खत्म कर दो, वाह-वाह आ जाती है । वाह बाप, वाह ड्रामा और वाह मेरा पार्ट । इसी स्मृति में रहो तो विश्व वाह-वाह करेगी । मुश्किल तब लगता है जब बाप के साथ को भूल जाते हो - बाप को साथी बनाकर मुश्किल को सहज कर सकते हो । अकेले होने से बोझ अनुभव करते हो । तो ऐसे साथी बनाकर मुश्किल को सहज बनाओ । अच्छा । 

सदा सहयोगी, स्वयं के परिवर्तन द्वारा विल परिवर्तन करने वाले, हर संकल्प और हर सेकेण्ड में पुण्य का खाता जमा करने वाले, अपने समर्थी द्वारा विश्व को समर्थ बनाने वाले, ऐसे महान, सदा श्रेष्ठ पुण्य आत्माओं को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते । 

पार्टियों से मुलाकात

1. सदा बाप द्वारा मिला हुआ महामंत्र याद रहता है? कितना सहज है मंत्र । इसी मंत्र से सर्व दु:खों से पार हो, सुख के सागर बाप समान बन जाते हो । कोई भी प्रकार का दु:ख आता है तो मंत्र लिया और दु:ख गया । अभी दु:ख की लहर भी नहीं आ सकती । स्वप्न में भी, जरा भी दु:ख का अनुभव न हो, तन बीमार हो जाए, धन नीचे-ऊपर हो जाए, कुछ भी हो लेकिन दु:ख की लहर अन्दर नहीं आनी चाहिए । लहर क्रास कर चली जाए । सागर में कभी नहाया है? लहर आती हैं तो जम्प कर पार कर जाते हैं । अगर तरीका आता है तो उसमें नहाने का सुख लेते, नहीं तो डूब जाते । तो लहरों में लहराना आता है या डूब जाते हो? सागर के बच्चे डूब तो नहीं सकते । लहर को क्रास करो जैसे कि खेल कर रहे हैं । दुःख के दिन समाप्त हो गये ।

2. विजयी भव के वरदान से माया को विदाई -

बापदादा द्वारा सदा विजयी भव का वरदान प्राप्त हुआ है? जब अलौकिक जन्म लिया तो सौगात वा जन्म का वरदान बाप ने “विजयी भव”  का दिया । जब यह वरदान याद रहता है तो माया विदाई ले लेती है । माया मूर्छित बन जाती है, सामना नहीं कर सकती । जैसे शेर के आगे बकरी क्या करेगी? देखते ही मूर्छित हो जायेगी ना । तो जब यह वरदान स्मृति में रहता तो माया सामना नहीं कर सकती । माया का राज्य तो अभी समाप्त होने वाला है, यह तो सिर्फ जैसे कोई हठ से आगे किया जाता है वैसे थोड़ा सा साँस होते हुए माया अपना हठ दिखा रही है । माया शक्तिशाली नहीं । और आप सब हैं - मास्टर सर्वशक्तिमान् । मास्टर सर्वशक्तिमान् के आगे शक्तिहीन माया क्या कर सकती? जैसे कल्प पहले भी कहा यह सब मरे हुए हैं, ऐसे ही यह माया भी मरी हुई है, जिन्दा नहीं हैं, सिर्फ निमित्त मात्र विजयी बनना है । 

3. विजयीपन के नशे से सर्व आकर्षणों से परे -

सदा अपने को रूहानी शस्त्रधारी शक्ति सेना या पाण्डव सेना समझते हो? तो सेना को वा योद्धाओं को सदैव क्या याद रहता है? विजय । तो सदैव विजय का झण्डा अपने मस्तक पर लहराया हुआ अनुभव करते हो? सदा विजय का झण्डा लहराने वाले विजयी रत्न हो ना? ऐसे विजयी रत्नों का यादगार बाप के गले का हार आज तक पूजा जाता है । हरेक को यह नशा रहना ही चाहिए कि मैं गले का हार हूँ । विजयी की निशानी सदा हर्षित होंगे । किसी भी प्रकार के आकर्षण से परे होंगे । क्या भी हो जाए लेकिन बाप जैसा आकर्षण स्वरूप कोई है क्या? तो सबसे सुन्दर कौन? शिवबाबा हैं ना । तो सदैव बाप की याद रहे, उसी आकर्षण में आकर्षित रहो फिर कोई आकर्षण आकर्षित नहीं कर सकता । अगर कोई भी आपको अपना राज्यभाग देने आये तो लेंगे? (नहीं) क्यों? क्योंकि आजकल के प्रेजीडेण्ट की कुर्सी भी काँटों की कुर्सी है । ताजतख्त छोड़कर काँटों की कुर्सी कौन लेगा? आज है कल नहीं । सदा इस नशे में रहो कि हमको जो मिला वह किसी को मिल नहीं सकता । अभी यह प्रेज़ीडेंट चाहे तो स्वर्ग में आयेगा? जब तक बाप का न बने तब तक स्वर्ग में नहीं आ सकते । यहीं रह जायेंगे । हम स्वर्ग में जायेंगे, ऐसा नशा और खुशी रहे - हम विश्व के मालिक के बालक हैं । सदा भाग्य का सुहाग प्राप्त है - तो सदा सुहागिन हो गई ना । 

4. चलता-फिरता चैतन्य आकर्षक करने वाला बोर्ड – खुशी का चेहरा” -

जो भाग्यशाली होते हैं वह सदा खुश-आबाद होते हैं । जो भी देखे तो खुशी का खजाना देखते हुए खजाने के तरफ आकर्षित हो जाये, वैसे भी देखो कोई अमूल्य चीज रखी होगी तो न चाहते भी सब आकर्षित होते है, तो जिन्हों के पास खुशी का खजाना है, उसके पीछे तो स्वत: ही सब आकर्षित होंगे । खुशी का चेहरा चलता-फिरता चैतन्य आकर्षित करने वाला बोर्ड है । जहाँ जायेगा बाप का परिचय देगा । खुशी का चेहरा देखेंगे तो बनाने वाले की याद जरूर आयेगी । जब एक बोर्ड इतनों को परिचय देता, आप इतने चैतन्य बोर्ड कितनों को परिचय देते होंगे? इतने आकर्षण करने वाले बोर्ड तैयार हो जाएं तो और भी जगह बड़ी करनी पड़ेगी । 

5. बाप-दादा का सर्वश्रेष्ठ श्रृंगार - सन्तुष्ट मणी -

जो सन्तुष्ट मणियां हैं वही बाप का श्रेष्ठ श्रृंगार हैं । जो सदा सन्तुष्ट रहते हैं उन्हें सन्तुष्टमणी कहा जाता है । सदा सन्तुष्टता की झलक मस्तक से चमकती रहे, ऐसे ही साक्षात्-मूर्त बन सकते हैं । अपने को ऐसे श्रेष्ठ श्रृंगार समझकर सदा खुशनसीब रहते हो? ऐसा नसीब या ऐसी तकदीर सारे कल्प में भी किसी की नहीं हो सकती । नसीबवान तो सदा खुशी में नाचते रहेंगे । बापदादा को जितनी खुशी होती है उससे ज्यादा बच्चों को होनी चाहिए, भटकते हुए को ठिकाना मिल जाए या प्यासे की प्यास बुझ जाये तो वह खुशी में नाचेगा ना । ऐसी खुशी में रहो जो कोई उदास आपको देखे तो वह भी खुश हो जाए, उसकी उदासी मिट जाए । 

6. विशेष आत्माओं का विशेष कर्तव्य – हर कर्म पर अटेंशन

जो कर्म मैं करूँगा मुझे देख सब करेंगे ऐसा अटेंशन हर कर्म पर रखना यही विशेष आत्माओं का कर्तव्य है । हर कर्म ऐसा हो जो सभी देखकर वन्स मोर करें । जैसे ड्रामा में जो विशेष पार्टधारी होते, जिन्हें हीरो पार्टधारी कहते हैं, उनका अपने ऊपर कितना अटेंशन रहता है, हर कदम सोच-समझकर उठायेंगे, क्योंकि सब की नजर हीरो पर होती है । तो इतना अटेंशन रखकर चलो ।

 

वरदान:-

योगबल द्वारा माया की शक्ति पर जीत प्राप्त करने वाले सदा विजयी भव !     

ज्ञान बल और योग बल सबसे श्रेष्ठ बल है । जैसे साइन्स का बल अंधकार पर विजय प्राप्त कर रोशनी कर देता है । ऐसे योगबल सदा के लिए माया पर जीत प्राप्त कर विजयी बना देता है । योगबल इतना श्रेष्ठ बल है जो माया की शक्ति इसके आगे कुछ भी नहीं है । योगबल वाली आत्मायें स्वप्न में भी माया से हार नहीं खा सकती । स्वप्न में भी कोई कमजोरी आ नहीं सकती । ऐसा विजय का तिलक आपके मस्तक पर लगा हुआ है ।

 

स्लोगन:- 

नम्बरवन में आना है तो व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन कर दो ।     

 

ओम् शान्ति |