22-06-14
प्रातः मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा”
रिवाइज:
14-02-78
मधुबन
“समीप
आत्मा की निशानियाँ”
स्वयं को सदा बापदादा के साथ अर्थात् सदा समीप अनुभव करते हो?
समीप आत्मा की निशानी क्या होगी? जितना जो समीप होगा उतना
स्थिति में, कर्तव्य में, गुणों में बाप समान अर्थात् दाता
होगा | जैसे बाप हर सेकण्ड और संकल्प में विश्व कल्याणकारी है
वैसे बाप समान विश्व कल्याणकारी होगा | विश्व कल्याणकारी का हर
संकल्प हर आत्मा के प्रति, प्रकृति के प्रति शुभ भावना वाला
होगा | एक भी संकल्प शुभ भावना के सिवाए नहीं होगा | जैसे बीज
फल से भरपूर होता है अर्थात् सारे वृक्ष का सार बीज में भरा
हुआ होता है, ऐसे संकल्प रूपी बीज में शुभ भावना, कल्याण की
भावना, सर्व को बाप समान बनाने की भावना, निर्बल को बलवान
बनाने की भावना, दुःखी अशान्त को स्वयं की प्राप्त हुई
शक्तियों के आधार से सदा सुखी शान्त बनाने की भावना, यह सर्व
रस या सार हर संकल्प में भरा हुआ होगा | कोई भी संकल्प रूपी
बीज इस सार से खाली अर्थात् व्यर्थ नहीं होगा | कल्याण की
भावना से समर्थ होगा |
जैसे
स्थूल साज़ आत्माओं को अल्पकाल के लिए हुल्लास में लाते हैं | न
चाहते हुए भी सबके पाँव नाचने लगते हैं ना, मन नाचने लगता है,
वैसे विश्व कल्याणकारी का हर बोल रूहानी साज़ के समान उत्साह और
उमंग दिलाता है | उदास आत्मा बाप से मिलन मनाने का अनुभव करती
और ख़ुशी में नाचने लग पड़ती है | विश्व कल्याणकारी का कर्म,
कर्मयोगी होने के कारण हर कर्म चरित्र के समान गायन योग्य होता
है | हर कर्म की महिमा कीर्तन करने योग्य होती | जैसे भक्त लोग
कीर्तन में वर्णन करते हैं – देखना अलौकिक, चलना
अलौकिक......हर कर्मेन्द्रिय की महिमा अपरमपार करते रहते हैं,
ऐसे हर कर्म महान अर्थात् महिमा योग्य होता है | ऐसी आत्मा को
कहा जाता है बाप समान समीप आत्मा | ऐसे विश्व कल्याणकारी आत्मा
का हर सेकण्ड का सम्पर्क आत्मा को सर्व कामनाओं की प्राप्ति का
अनुभव कराता है | कोई आत्मा को शक्ति का, कोई को शान्ति का,
मुश्किल को सहज करने का, अधीन से अधिकारी बनने का, उदास से
हर्षित होने का, इसी प्रकार विश्व कल्याणकारी महान् आत्मा का
सम्पर्क सदा उमंग और उत्साह दिलाता है | परिवर्तन का अनुभव
कराता है, छत्रछाया का अनुभव कराता है | ऐसे विश्व कल्याणकारी
अर्थात् समीप आत्मा बनने वाले, ऐसे को ही लगन में मगन रहने
वाली आत्मा कहा जाता है | ऐसे बन रहे हो ना?
लकी
तो सभी हो, जो बाप ने अपना बना लिया | बाप ने बच्चों को
स्वीकार किया अर्थात् अधिकारी बनाया | यह अधिकार तो सबको मिल
ही गया | लेकिन विश्व का मालिक बनने का अधिकार, विश्व
कल्याणकारी बनने के आधार से होगा | अब हरेक अपने से पूछो –
अधिकारी बने हैं? राज्य-भाग्य के अधिकारी बने हैं? तख़्तनशीन
बनने के अधिकारी बने हैं या रॉयल फैमिली में आने के अधिकारी
बने हैं?
विदेशी आत्माएं अपने को क्या समझती हैं? सब राज्य करेंगे या
राज्य में आयेंगे? या जो मिलेगा वह मंज़ूर है? विदेशी आत्माओं
में से सतयुग की 8 बादशाही में तख़्तनशीन बनने के उम्मीदवार कौन
समझता है? 8 की बादशाही में से लक्ष्मी-नारायण दी फर्स्ट,
सेकण्ड उसमें आयेंगे! 8 बादशाही में आने के लिए क्या करना
पड़ेगा? यह सोचा है कि सिर्फ 8 ही हैं बहुत सिम्पल बात है, यह
देखो कि हर समय हर परिस्थिति में अष्ट शक्तियां साथ-साथ इमर्ज
रूप में होती हैं? अगर दो-चार शक्तियां हैं और एक भी शक्ति कम
है तो अष्ट बद्शाहियों में नहीं आ सकते | अष्ट शक्तियों की
समानता हो और एक ही समय अष्ट ही शक्तियां इमर्ज चाहिए | ऐसे भी
नहीं कि सहन शक्ति 100 परसेन्ट लेकिन निर्णय शक्ति 60 परसेन्ट
या 50 परसेन्ट है | दोनों में समानता चाहिए अर्थात् परसेन्टेज
फुल चाहिए, तब ही सम्पूर्ण राज गद्दी के अधिकारी होंगे | अब
बताओ क्या बनेंगे? अष्ट लक्ष्मी-नारायण के राज्य या तख़्त के
अधिकारी होंगे?
विदेशी आत्माओं में उमंग और हिम्मत अच्छी है | हिम्मते बच्चे
मद्दे बाप हाईजम्प का सैम्पुल बन सकते हैं | लेकिन यह सब बातें
ध्यान में रखनी पड़ेगी | विशेष आत्माएं हो तब तो बाप दादा भी
जानते हैं, रेस में नम्बरवन दौड़ लगाने वाले ऐसे उमंग उत्साह
वाले दूर रहते भी समीप अनुभव करने वाले, ऐसी आत्मायें भी हैं
जरुर | अब स्टेज पर प्रैक्टिकल में अपना पार्ट बजाओ |
पुरुषार्थ को आगे बढ़ाना है | फर्स्ट नम्बर की विशेषता क्या है,
उसी प्रमाण अपना पुरुषार्थ करना है – हर कर्म में चढ़ती कला हो
| अच्छा |
अफ्रीका
पार्टी :-
सब
तीव्र पुरुषार्थी हो ना? तीव्र पुरुषार्थी अर्थात् सोचा और
किया | सोचने और करने में अन्तर नहीं | जैसे कई बातों में
प्लैन बहुत बनाते हैं, प्रैक्टिकल में अन्तर हो जाता है, तो
तीव्र पुरुषार्थी जो होगा वह जो प्लैन बनायेगा वही प्रैक्टिकल
होगा | तो ऐसे तीव्र पुरुषार्थी हो ना? पराया राज्य होने के
कारण परिस्थितियां तो आपके तरफ़ बहुत आती हैं, लेकिन जो सदा बाप
के साथ है उसके आगे परिस्थिति भी स्व-स्थिति के आधार पर
परिवर्तन हो जाती है | पहाड़ भी राई बन जाता है | ऐसे अनुभव
करेंगे जैसे कई बार यह सब बातें पार कर चुके हैं, नथिंग न्यु |
नई बातों में घबराना होता है लेकिन नथिंगन्यु | ऐसा अनुभव करने
वाले सदा कमल पुष्प के समान रहते हैं | जैसे पानी नीचे होता
है, कमल ऊपर रहता है, इसी प्रकार परिस्थिति नीचे है, हम ऊपर
हैं, नीचे की बात नीचे | कभी कोई बात आवे तो सोचो बापदादा
हमारे साथ हैं | आलमाइटी के आगे कितनी भी बड़ी परिस्थिति चींटी
के समान है | कैसी भी परिस्थिति हो लेकिन जो बाप के बने हैं
उनका बाप जिम्मेवार है | सोचो नहीं – कहाँ रहेंगे, कैसे
रहेंगे, क्या खायेंगे | सच्चे दिल का साथी बाप है | जब तक बाप
है तक तक भूखे नहीं रह सकते | जब भक्तों को अनेक प्रकार के
अनुभव होते हैं, वह तो भिखारी हैं उनका पेट भी भर जाता है तो
आप तो अधिकारी हैं, आप भूखे कैसे रह सकते! इसलिए ज़रा भी घबराओ
नहीं, क्या होगा? जो होगा वह अच्छा होगा | सिर्फ छोटा सा पेपर
होगा कि कहाँ तक निश्चय है? पेपर सारे जीवन का नहीं होता, एक
या दो घण्टे का पेपर होता है | अगर बापदादा सदा साथ है, पेपर
देने के टाइम पर एक बल एक भरोसा है तो बिलकुल ऐसे पार हो
जायेंगे जैसे कुछ था ही नहीं | जैसे स्वप्न होता है ना, स्वप्न
की जो बातें होती वह उठने के बाद समाप्त हो जाती, तो यह भी
दिखाई बड़ा रूप देता लेकिन है कुछ नहीं | तो ऐसे निश्चयबुद्धि
हो? हरेक के मस्तक के ऊपर विक्टरी का तिलक लगा हुआ है तो ऐसी
आत्माएं जो हैं ही विजय के तिलक वाले, उनकी हार हो नहीं सकती |
मेहनत करके आये हो, परिस्थिति पार करके आये हो इसलिए बापदादा
भी मुबारक देते हैं | यह भी ड्रामा में है | जैसे स्टीमर टूट
जाता है तो कोई कहाँ, कोई कहाँ जाकर पड़ते हैं, तो यह भी द्वापर
में सब बिछुड़ गये, कोई विदेश में कोई देश में, अभी बाप बिखरे
हुए बच्चों को इकट्ठे कर रहे हैं | अभी बेफिकर रहो | कुछ भी
होगा तो पहले बाबा के सामने आयेगा | महावीर होना | कहानी सुनी
है ना भट्ठी के बीच पूंगरे बच गये | क्या भी हो लेकिन अप सेफ
हो, सिर्फ माया प्रूफ की ड्रेस पड़ी होनी चाहिए | ड्रेस तो सदा
साथ रहती है ना माया प्रूफ की?
प्लेन में भी देखो इमर्जेन्सी ड्रेस देते हैं कि कुछ हो तो
पहन लेना | तो आपको बहुत सहज साधन मिला है |
एक-एक रत्न वैल्यूएबल है क्योंकि अगर वैल्यूएबुल रत्न नहीं
होते तो कोटों में कोई आप ही कैसे आते | जिसको दुनिया अपनाने
के लिए तड़फ रही है, उसने मुझे अपना लिया | एक सेकण्ड के दर्शन
के लिए दुनिया तड़फ रही है, आप तो बच्चे बन गये तो कितना नशा,
कितनी ख़ुशी होनी चाहिए, सदा मन ख़ुशी में नाचता रहे | वर्तमान
समय की ख़ुशी का नाचना भविष्य चित्र में भी दिखाते हैं | कृष्ण
को सदैव डान्स के पोज़ में दिखाते हैं ना |
जैसे
बाप जैसा कोई नहीं, वैसे आपके भाग्य जैसा और कोई भाग्यशाली
नहीं | अच्छा – जो नहीं पहुँच सके हैं उन्हों को भी बहुत-बहुत
याद देना | बापदादा का स्नेह अवश्य समीप लाता है | अमृतवेले उठ
बाप से रूह-रिहान करो तो सब परिस्थितियों का हल स्पष्ट दिखाई
देगा | कोई भी बात हो उसका रेसपांस रूह-रिहान में मिल जायेगा |
मधुबन वरदान भूमि से विशेष यह वरदान लेकर जाना तो और भी लिफ्ट
मिल जायेगी | जब बाप बैठे हैं बोझ उठाने के लिए तो खुद क्यों
उठाते? जितना हल्का होंगे उतना ऊपर उड़ेंगे | अनुभव करेंगे कि
कैसे हलके बनने से ऊँची स्टेज हो जाती है |
बाप
को जान लिया, पा लिया इससे बड़ा भाग्य तो कोई होता नहीं | घर
बैठे बाप मिल गया | बाप ने ही आकर जगाया ना बच्चे उठो, देश कोई
भी हो लेकिन स्थिति सदा बाप के साथ रहने की हो, चाहे देश से
दूर है लेकिन बाप के साथ रहने वाले नजदीक से नजदीक हैं |
कुमारियाँ निर्बन्धन हैं किसलिए? सेवा के लिए | ड्रामा में यह
भी एक लिफ्ट है | इस लिफ्ट का लाभ लेना चाहिए | जितना-जितना
समय ईश्वरीय सेवा में लगाती जायेंगी तो लौकिक सर्विस का भी
सहयोग मिलेगा, बन्धन नहीं होगा | कुमारियाँ बाप को अति प्रिय
हैं क्योंकि जैसे बाप निर्बन्धन है वैसे कुमारियाँ हैं | तो
बाप समान हो गई ना | अच्छा |
ट्रीनीडाड ग्याना:-
वरदान भूमि में आकर अनेक वरदानों से स्वयं को सम्पन्न बनाया |
मधुबन है ही कमाई से झोली भरने का स्थान | मधुबन आना अर्थात्
अपने को वर्तमान और भविष्य के अधिकारी बनने का स्टैम्प लगाना |
अधिकारी बनने का साधन है, माया की अधीनता को छोड़ना | तो
अधिकारी हो ना | अच्छा |
कैनाडा
:-
कैनाडा से कितने रत्न निकाले हैं | क्वान्टिटी नहीं तो
क्वालिटी तो है | जब एक दीपक से दीपमाला हो जाती है तो एक से
इतने तो बने हैं ना | इसलिए एक-एक को समझना चाहिए कि मुझ एक को
अनेकों को सन्देश देकर माला तैयार करनी है | जो भी सम्पर्क में
आये उन्हें बाप का परिचय देते चलो तो कोई न कोई निकल आयेगा |
हिम्मत नहीं हारना कि कोई निकलता नहीं, निकलेंगे | बाप मिला,
सब कुछ मिला, इसी स्मृति से अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति
ऑटोमेटिकली हो जायेगी | दुःख की अविद्या, दुःख का नाम निशान
नहीं | जैसे भविष्य में दुःख और अशान्ति का अज्ञान होगा वैसे
अभी भी अनुभव करेंगे कि दुःख अशान्ति की दुनिया और है | वह
कलियुगी है, हम संगमयुगी हैं | संगमयुगी के पास दुःख अशान्ति
का नाम नहीं, दुःखी को देख तरस आयेगा | दुःख का अनुभव तो बहुत
समय किया | अब संगमयुग है ही अतीन्द्रिय सुख में रहने का समय,
यह अनुभव सतयुग में भी नहीं होगा | जैसा समय वैसा लाभ लो |
सीजन है अतीन्द्रिय सुख पाने की, तो सीजन में न पाया तो फिर कब
पायेंगे | बाप की याद ही झूला है, इस झूले में ही झूलते रहो,
इससे नीचे नहीं आओ | लेस्टर का भी सर्विस में नम्बर आगे है |
लन्दन में लेस्टर की महिमा भी अच्छी है | रहमदिल हैं जो
हमजिन्स को बढ़ाते जाते | कुमार, कुमारियाँ, युगल सब वृद्धि को
पाते जा रहे हैं, रिजल्ट अच्छी है, लेकिन और भी बढ़ाओ | ऐसी
संख्या बढ़ जाये जो जहाँ देखो वहां ब्राह्मण ही दिखाई दें |
वरदान:-
सेवाओं में शुभ भावना की एडीशन द्वारा शक्तिशाली फल प्राप्त
करने वाले सफलतामूर्त भव
!
जो
भी सेवा करते हो उसमें सर्व आत्माओं के सहयोग की भावना हो,
ख़ुशी की भावना वा सद्भावना हो तो हर कार्य सहज सफल होगा | जैसे
पहले जमाने में कोई कार्य करने जाते थे तो सारे परिवार की
आशीर्वाद लेकर जाते थे | तो वर्तमान सेवाओं में यह एडीशन चाहिए
| कोई भी कार्य शुरू करने के पहले सभी की शुभ भावनायें, शुभ
कामनायें लो | सर्व की सन्तुष्टता का बल भरो तब शक्तिशाली फल
निकलेगा |
स्लोगन:-
जैसे बाप
जी-हाज़िर करते हैं वैसे आप भी सेवा में जी हाज़िर, जी हज़ूर करो
तो पुण्य जमा हो जायेगा
|
ओम्
शान्ति
|