05-11-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे - "बाप
आये
हैं तुम बच्चों का
श्रृंगार
करने,
सबसे अच्छा
श्रृंगार है
पवित्रता का" 
प्रश्न:-
पूरे 84 जन्म लेने वालो की मुख्य निशानी क्या होगी?
उत्तर:-
1.
वह
बाप के साथ-साथ टीचर और सतगुरू तीनों
को
याद करेंगे
।
ऐसे नहीं,
बाप याद आये तो टीचर भूल जाए । जब तीनों
को
याद करें
तब
ही कृष्णपुरी में जा सकें
अर्थात् आदि से पार्ट बजा सकें
।
2.
उन्हें
कभी भी माया के तूफान हरा
नहीं
सकते
हैं ।
ओम्
शान्ति |
बाप पहले
बच्चों
को कहते
हैं
यह भूल तो
नहीं
जाते हो-हम बाप के आगे,
टीचर के आगे और सतगुरू के आगे बैठे हुए
हैं
।
बाबा नहीं समझते कि सब कोई इस याद में बैठे
हैं
।
फिर भी बाप का फर्ज
है
समझाना । यह
है
अर्थ सहित याद करना । हमारा बाबा बेहद का बाप भी
है,
टीचर भी
है
और बराबर हमारा सतगुरू भी
है
जो
बच्चों
को साथ में ले जायेगा । बाप आये ही
हैं
बच्चों
का
श्रृंगार
करने । पवित्रता से
श्रृंगार
करते आते
हैं
।
धन भी अथाह देते हैं । धन देते ही
हैं
नई दुनिया के लिए,
जहाँ तुमको जाना
है
।
यह
बच्चों
को याद करना
हैं
।
बच्चे
गफलत करते
हैं
जो भूल जाते हैं । वह जो पूरी खुशी होनी चाहिए वह कम हो जाती
है
।
ऐसा बाप तो कभी मिलता ही नहीं । तुम जानते हो हम बाबा के बच्चे
जरूर हैं । वह हमको पढ़ाते हैं इसलिए टीचर भी जरूर
है
।
हमारी पढ़ाई
है
ही नई दुनिया अमरपुरी के लिए । अभी हम
संगमयुग
पर बैठे
हैं
।
यह याद तो जरूर बच्चों को होनी चाहिए । पक्का-पक्का याद करना
है
।
यह भी जानते हो इस समय
कंसपुरी
आसुरी दुनिया
में
हैं । समझो कोई को साक्षात्कार होता
है
परन्तु साक्षात्कार से कोई कृष्णपुरी,
उनकी डिनायस्टी
में
नहीं
जा सकेंगे
।
जा तब
सकेंगे
जब बाप,
टीचर, गुरू तीनों
को ही याद करते
रहेंगे
।
यह आत्माओं से बात की जाती
है
।
आत्मा ही कहती
है
हाँ बाबा । बाबा आप तो सच कहते हो । आप बाप भी हो,
पढ़ाने
वाले टीचर भी हो । सुप्रीम आत्मा पढ़ाती
है
।
लौकिक
पढ़ाई
भी आत्मा ही शरीर के साथ पढ़ाती
है
।
परन्तु वह आत्मा भी पतित तो शरीर भी पतित
है
।
दुनिया के मनुष्यों
को यह पता
नहीं
है
कि हम नर्कवासी हैं ।
अभी तुम समझते हो हम तो अब चले अपने वतन । यह तुम्हारा वतन
नहीं
है
।
यह
है
रावण का पराया वतन । तुम्हारे वतन
में
तो अथाह सुख
है
।
कांग्रेसी
लोग ऐसे नहीं समझते-हम पराये राज्य में हैं । आगे मुसलमानों के
राज्य में बैठे थे फिर
क्रिस्चियन
के राज्य
में
बैठे । अभी तुम जानते हो हम अपने राज्य
में
जाते
हैं
।
आगे रावण राज्य को हम अपना राज्य समझ बैठे थे । यह भूल गये हैं
हम पहले रामराज्य में थे । फिर 84 जन्मों के चक्र में आने से
रावण राज्य में,
दु :ख में आकर पड़े हैं । पराये राज्य में
तो दुःख ही होता
है
।
यह सारा ज्ञान अन्दर
में
आना चाहिए । बाप तो जरूर याद आयेगा । परन्तु तीनों को याद करना
है
।
यह नॉलेज भी मनुष्य ही ले सकते हैं । जानवर तो नहीं पढ़ेंगे ।
यह भी तुम बच्चे समझते हो वहाँ कोई बैरिस्टरी आदि की
पढ़ाई
होती
नहीं
।
बाप यहाँ ही तुमको
मालामाल कर रहे
हैं
तो सब तो राजायें
नहीं
बनते हैं । व्यापार भी चलता होगा परन्तु वहाँ तुमको अथाह धन
रहता
है
।
घाटा आदि होने का कायदा ही नहीं । लूट मार आदि वहाँ होती नहीं
। नाम ही
है
स्वर्ग । अभी तुम
बच्चों
को स्मृति आई
है
हम स्वर्ग में थे फिर पुनर्जन्म लेते-लेते नीचे उतरते
हैं
।
बाप कहानी भी
उन्हों
को ही बताते हैं । 84 जन्म नहीं लिये
होंगे
तो माया हरा देगी । यह भी बाप समझाते रहते हैं । माया का कितना
बड़ा तूफान
है
।
बहुतों
को माया हराने की कोशिश करती
है,
आगे चल तुम बहुत देखेंगे,
सुनेंगे । बाप के पास सबके चित्र होते तो
तुमको वन्डर दिखाते-यह फलाना इतना दिन आया,
बाप का बना फिर माया खा गई । मर गया,
माया के साथ जा मिला । यहाँ इस समय कोई
शरीर
छोड़ते
हैं
तो इसी दुनिया
में
आकर जन्म लेते हैं । तुम शरीर
छोड़ेंगे
तो बाबा के साथ बेहद घर
में
जायेंगे । वहाँ बाबा,
मम्मा, बच्चे सब
हैं ना । परिवार ऐसा ही होता
है
।
मूलवतन
में
बाप और भाई- भाई हैं,
और कोई सम्बन्ध
नहीं
।
यहाँ
बाप और भाई-बहन
हैं
फिर वृद्धि को पाते
हैं
।
चाचा,
मामा आदि बहुत संबध हो जाते हैं । इस
संगम
पर तुम प्रजापिता ब्रह्मा के बनते हो तो भाई-बहिन हो । शिवबाबा
को याद करते हो तो भाई- भाई हो । यह सब बातें
अच्छी रीति याद करनी
हैं
।
बहुत बच्चे भूल जाते
हैं
।
बाप तो समझाते रहते
हैं
।
बाप का फर्ज
है
बच्चों
को सिर पर उठाना,
तब तो नमस्ते-नमस्ते करते रहते हैं । अर्थ
भी समझाते
हैं
।
भक्ति करने वाले साधू-सन्त आदि कोई तुमको जीवनमुक्ति का रास्ता
नहीं बताते,
वह मुक्ति के लिए ही पुरूषार्थ करते रहते
हैं
।
वह है ही निवृत्ति मार्ग वाले । वह राजयोग कैसे सिखलायेंगे ।
राजयोग
है
ही प्रवृत्ति मार्ग का । प्रजापिता ब्रह्मा को 4 भुजायें
देते
हैं
तो प्रवृत्ति मार्ग हुआ ना । यहाँ बाप ने इनको एडाप्ट
किया तो नाम रखा
है
ब्रह्मा और सरस्वती ।
ड्रामा में
नूँध देखो कैसी
है
।
वानप्रस्थ अवस्था
में
ही मनुष्य गुरू करते हैं,
60 वर्ष के बाद
। इसमें
भी 60
वर्ष के बाद बाप ने प्रवेश किया तो बाप,
टीचर, गुरू बन
गये । अभी तो कायदे भी
बिगड़
गये
हैं
।
छोटे बच्चे को भी गुरू करा देते हैं । यह तो
है
ही निराकार । तुम्हारी आत्मा का यह बाप भी बनते,
टीचर, सतगुरू भी
बनते हैं । निराकारी दुनिया को कहा जाता
है
आत्माओं
की दुनिया । ऐसे तो नहीं कहेंगे
दुनिया ही नहीं
है
।
शान्तिधाम कहा जाता
है
।
वहाँ आत्मायें रहती
हैं
।
अगर कहें परमात्मा का नाम,
रूप, देश,
काल नहीं तो बच्चे फिर कहाँ से आयेंगे
।
तुम बच्चे अब समझते हो यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे
रिपीट होती
है
।
हिस्ट्री चैतन्य की होती
है,
जॉग्राफी तो जड़ वस्तु की
है
।
तुम्हारी आत्मा जानती
है
हम कहाँ तक राज्य करते हैं । हिस्ट्री गाई जाती
है
जिसको कहानी कहा जाता
है
।
जॉग्राफी देश की होती
है
।
चैतन्य ने राज्य किया,
जड़ तो राज्य
नहीं
करेंगे
।
कितने समय से फलाने का राज्य था,
क्रिस्चियन
ने भारत पर कब से कब तक राज्य किया । तो इस वर्ल्ड की
हिस्ट्री-जॉग्राफी को कोई जानते ही
नहीं
।
कहते
हैं
सतयुग को तो लाखों
वर्ष हुआ । उसमें
कौन राज्य करके गये,
कितना समय राज्य किया-यह कोई नहीं जानता ।
इसको कहा जाता
है
हिस्ट्री । आत्मा चैतन्य,
शरीर जड़
है
।
सारा खेल ही जड़ और चैतन्य का
है
।
मनुष्य जीवन ही उत्तम गाया जाता
है
।
आदमशुमारी भी
मनुष्यों
की गिनी जाती
है
।
जानवरों
की तो कोई गिनती कर भी न सके । सारा खेल तुम्हारे पर
है
।
हिस्ट्री-जॉग्राफी भी तुम सुनते हो । बाप इसमें आकर तुमको सब
बातें समझाते हैं,
इसको कहा जाता
है
बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी । यह नॉलेज न होने कारण तुम कितने
बेसमझ बन पड़े हो । मनुष्य होकर दुनिया की हिस्ट्री-जॉग्राफी को
न जाने तो वह मनुष्य ही क्या काम का । अभी बाप द्वारा तुम
वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी सुन रहे हो । यह पढ़ाई कितनी अच्छी
है,
कौन पढ़ाते
हैं?
बाप । बाप ही ऊंच ते ऊंच पद दिलाने वाला
है
।
इन लक्ष्मी-नारायण का और जो उन्हों के साथ स्वर्ग में रहते हैं
उन्हों का ऊंच ते ऊच पद
है
ना । वहाँ बैरिस्टरी आदि तो करते
नहीं
।
वहाँ तो सिर्फ सीखना
है
।
हुनर न सीखें तो मकान आदि कैसे बनें । एक-दो को हुनर सिखलाते
हैं । नहीं तो इतने मकान आदि कौन बनायेंगे
।
आपेही तो
नहीं
बन जायेंगे
।
यह सब राज अभी तुम
बच्चों
की बुद्धि
में
भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार रहते
हैं
।
तुम जानते हो यह चक्र फिरता रहता
है,
इतना समय हम राज्य करते थे फिर रावण के
राज्य में आते हैं । दुनिया को इन बातों का पता नहीं है कि हम
रावण राज्य
में
हैं । कहते हैं हमको बाबा रावण के राज्य से लिबरेट करो ।
कांग्रेसी
लोगों ने
क्रिस्चियन
राज्य से अपने को लिबरेट किया । अब फिर कहते
हैं
गॉड फादर हमको लिबरेट करो । स्मृति आती
है
ना कोई भी यह
नहीं
जानते कि ऐसे
क्यों
कहते
हैं
।
अभी तुमने समझा
है
सारे सृष्टि पर ही रावण राज्य
है,
सब कहते
हैं
रामराज्य चाहिए तो लिबरेट कौन करेगा?
समझते हैं गॉड फादर लिबरेट कर गाइड बन ले
जायेंगे । भारतवासियों को इतना अक्ल नहीं
है
।
यह तो बिल्कुल तमोप्रधान हैं । वह न इतना दुःख उठाते
हैं,
न इतना सुख ही पाते
हैं
।
भारतवासी सबसे सुखी बनते हैं तो दुःखी भी बने हैं । हिसाब
है
ना । अभी कितना दु :ख
है!
जो रिलीजस माइन्डेड
हैं
वह याद करते
हैं-
ओ गॉड फादर,
लिबरेटर । तुम्हारी भी दिल में
है
बाबा आकर हमारे दु :ख हरो और सुखधाम ले चलो । वह कहते हैं
शान्तिधाम ले चलो । तुम कहेंगे
शान्तिधाम और सुखधाम ले चलो । अब बाप आया हुआ
है
तो बहुत खुशी होनी चाहिए । भक्ति मार्ग
में
कनरस कितना
है
।
उनमें
रीयल बात कुछ भी
है
नहीं । एकदम आटे
में
नमक
है
।
चण्डिका देवी का भी
मेला
लगता
है
।
अब चण्डियों का फिर
मेला
क्यों
लगता
है?
चण्डी किसको कहा जाता
है?
बाबा ने बताया
है
चण्डाल का जन्म भी यहाँ के ही लेते
हैं
।
यहाँ रहकर,
खा पीकर कुछ देकर फिर कहते हैं-हमने जो
दिया वह हमको दो । हम नहीं मानते । संशय पड़ जाता
है
तो वह क्या जाकर बनेंगे
।
ऐसी चण्डिका का भी
मेला
लगता
है
।
फिर भी सतयुगी तो बनते हैं ना । कुछ समय भी मददगार बने तो
स्वर्ग
में
आ
गये । वह भक्त लोग तो जानते
नहीं,
ज्ञान तो कोई के पास
हैं
नहीं
।
वह
चित्रों
वाली गीता
है,
कितना पैसा कमाते
हैं
।
आजकल चित्रों पर तो सब आशिक होते हैं । उसको आर्ट समझते हैं ।
मनुष्यों
को क्या पता देवताओं के चित्र कैसे होते
हैं
।
तुम असुल
में
कितने फर्स्टक्लास थे । फिर क्या बन गये हो । वहाँ कोई अंधा,
काना आदि होता नहीं । देवताओं की नैचुरल
शोभा होती
है
।
वहाँ नैचुरल
ब्युटी
होती
है
।
तो बाप भी सब समझाकर फिर कहते
हैं-बच्चे,
बाप को याद करो । बाप,
बाप भी
है,
टीचर, सतगुरू भी
है
।
तीनों
रूप
में
याद करो तो तीनों
वर्से मिलेंगे
।
पिछाड़ी
वाले तीनों
रूप
में
याद कर
नहीं
सकेंगे
।
फिर मुक्ति
में
चले जायेंगे । बाबा ने समझाया
है
सूक्ष्मवतन आदि
में
जो कुछ देखते हो यह तो सब
हैं
साक्षात्कार की बातें
।
बाकी हिस्ट्री-जॉग्राफी सारी यहाँ की
है
।
इनकी आयु का किसको पता नहीं
है
।
अभी तुम
बच्चों
को बाप ने समझाया
है
तुम फिर कोई को भी समझा सकते हो । पहले-पहले तो बाप का परिचय
देना
है
।
वह बेहद का बाप
है
सुप्रीम । लौकिक बाप को परमात्मा वा सुप्रीम आत्मा कभी
नहीं
कहा जाता । सुप्रीम तो एक ही
है
जिसको भगवान कहा जाता
है
।
वह नॉलेजफुल
है
तो तुमको नॉलेज सिखलाते
हैं
।
यह
ईश्वरीय
नॉलेज
है
सोर्स ऑफ इनकम । नॉलेज भी उत्तम,
मध्यम, कनिष्ट
होती
है
ना । बाप
हैं
ऊंच ते ऊंच तो पढ़ाई भी ऊंच ते ऊंच
है
।
मर्तबा भी ऊंच
है
।
हिस्ट्री,
जाँग्राफी तो झट जान जाते हैं । बाकी याद
की यात्रा
में
युद्ध चलती
है
।
इसमें तुम हारते हो तो नॉलेज
में
भी तुम हारते हो । हारकर भागन्ती हो जाते
हैं
तो नॉलेज
में
भी भागन्ती हो जाते
हैं
।
फिर जैसा था वैसा बन जाते
हैं
और ही उनसे भी बदतर । बाप के आगे चलन से देह- अभिमान झट
प्रसिद्ध हो जाता
है
।
ब्राह्मणों
की माला भी
है
परन्तु कइयों को पता नहीं
है
कि हम कैसे नम्बरवार यहाँ बैठे । देह- अभिमान
है
ना ।
निश्चय
वाले को जरूर अपार खुशी होगी । किसको
निश्चय है
हम यह शरीर
छोड़कर
प्रिन्स बनूँगा?
(सबने हाथ उठाया)
बच्चों
को इतनी खुशी रहती
है
।
तुम सबमें
तो पूरे दैवीगुण होने चाहिए,
जबकि
निश्चय है
।
निश्चयबुद्धि
माना विजयी माला में पिरोवन्ती माना शहजादा बनन्ती । एक दिन
जरूर आयेगा जो
फारेनर्स
सबसे जास्ती आबू में आयेंगे
और सब तीर्थ यात्रा आदि छोड़
देंगे
।
वह चाहते हैं भारत का राजयोग सीखे । कौन
है
जिसने पैराडाइज स्थापन किया । पुरूषार्थ किया जाता
है,
कल्प पहले यह हुआ होगा तो जरूर
म्युजियम
बन जायेगा । समझाना
है
ऐसी प्रदर्शनी हमेशा
के लिए लगाने चाहते
हैं
।
4 - 5 वर्ष के लिए लीज पर भी मकान लेकर लगा सकते
हैं
।
हम भारत की ही सेवा करते
हैं,
सुखधाम बनाने के लिए । इसमें
बहुतों
का कल्याण होगा | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों
प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग । रूहानी
बाप की रूहानी
बच्चों
को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
अपार
खुशी
में
रहने
के लिए सदा स्मृति रहे कि स्वयं
बाप
हमारा
श्रृंगार
कर
रहे
हैं,
वह हमें
अथाह
धन देते
हैं
। हम
नई दुनिया अमरपुरी के लिए पढ़ रहे हैं ।
2.
विजयमाला
में
पिरोने
के लिए
निश्चयबुद्धि
बन दैवीगुण धारण करने हैं । जो दिया उसे वापस लेने का
संकल्प
कभी
न आये ।
संशयबुद्धि
बन अपना पद
नहीं
गँवाना
है
|
वरदान:-
संगमयुग के
महत्व
को जान हर समय विशेष
अटेंशन
रखने वाले हीरो पार्टधारी
भव
! 
हर कर्म करते हुए सदा यही वरदान
स्मृति में
रहे कि
मैं
हीरो पार्टधारी हूँ तो हर कर्म विशेष होगा,
हर सेकेण्ड, हर
समय, हर
संकल्प
श्रेष्ठ होगा । ऐसे
नहीं
कह सकते कि यह तो सिर्फ 5 मिनट साधारण हुआ । संगमयुग के 5 मिनट
भी बहुत महत्व वाले
हैं
।
5 मिनट 5 साल से भी ज्यादा हैं इसलिए हर समय इतना
अटेंशन
रहे । सदा का राज्यभाग्य प्राप्त करना
है
तो
अटेंशन
भी सदाकाल का हो ।
स्लोगन:-
जिनके
संकल्प में दृढ़ता
की
शक्ति
है,
उनके लिए हर कार्य सम्भव
है
| 
ओम्
शान्ति |