14-05-14
प्रातः मुरली ओम् शान्ति
“बापदादा”
मधुबन
मीठे
बच्चे
–
इस जन्म के पापों से हल्का होने के लिए बाप को सच-सच सुनाओ और
पिछले जन्मों के विकर्मों को योग अग्नि से समाप्त करो
| 
प्रश्न:-
ख़ुदाई खिदमतगार बनने के लिए कौन-सी एक चिन्ता (फुरना) चाहिए?
उत्तर:-
हमें
याद की यात्रा में रहकर पावन ज़रूर बनना है | पावन बनने का
फुरना चाहिए | यही मुख्य सब्जेक्ट है | जो बच्चे पावन बनते हैं
वही बाप के ख़िदमतगार बन सकते | बाप अकेला क्या करेगा इसलिए
बच्चों को श्रीमत पर अपने ही योगबल से विश्व को पावन बनाकर
पावन राजधानी बनानी है | पहले स्वयं को पावन बनाना है |
ओम्
शान्ति
|
यह
तो ज़रूर बच्चे समझते हैं हम बाबा के पास जाते हैं रिफ्रेश होने
के लिए | वहाँ सेन्टर्स पर जब जाते हैं तो ऐसे नहीं समझ सकते |
तुम बच्चों की बुद्धि में है बाबा मधुबन में है | बाप की मुरली
चलती ही है बच्चों के लिए | बच्चे समझेंगे हम जाते हैं मधुबन
में मुरली सुनने | मुरली अक्षर कृष्ण के लिए समझ लिया है |
मुरली का अर्थ कोई और नहीं है | तुम बच्चों को अब अच्छी तरह से
समझ आई है ना | बाप ने समझाया है और तुम फील करते हो, बरोबर हम
बहुत बेसमझ बन पड़े थे | ऐसे कोई भी अपने को समझते नहीं हैं |
यहाँ जब आते हैं तब निश्चयबुद्धि होते हैं | बरोबर हम बहुत
बेसमझ बन गये थे | तुम सतयुग में कितने समझदार, विश्व के मालिक
थे | कोई मूर्ख थोड़ेही विश्व के मालिक बन सकते हैं | यह
लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक थे, इतने समझदार थे तब तो भक्ति
मार्ग में पूजे जाते हैं | जड़ चित्र कुछ बोल तो नहीं सकते |
शिवबाबा की पूजा करते हैं वह कुछ बोलते हैं क्या! शिवबाबा एक
ही बार आकर बोलते हैं | पूजा करने वालों को भी पता नहीं है कि
यह ज्ञान सुनाने वाला बाप है | कृष्ण के लिए समझते हैं उसने
मुरली बजाई | जिसकी पूजा करते उनके आक्यूपेशन को बिल्कुल नहीं
जानते | तो यह पूजा आदि निष्फल ही हो जायेगी, जब तक बाप आये |
तुम बच्चों में कइयों ने वेद-शास्त्र आदि कुछ भी पढ़े नहीं हैं
| अब तुम्हें एक सत्य बाप पढ़ा रहे हैं | तुम समझते हो बरोबर
सच्चा पढ़ाने वाला एक ही बाप है | बाप को कहा ही जाता है सत्य |
नर से नारायण बनने की सच्ची कथा सुनाते हैं | अर्थ तो ठीक है |
सत्य बाप आते हैं, अब नर से नारायण बनना है तो ज़रूर सतयुग
स्थापना करेंगे ना | पुरानी दुनिया कलियुग थोड़ेही बनेगी | कथा
सुनने समय यह कोई को बुद्धि में नहीं होता है कि हम नर से
नारायण बनेंगे | अभी तुमको नर से नारायण बनने का राजयोग
सिखलाते हैं | यह भी कोई नई बात नहीं | बाप कहते हैं मैं
कल्प-कल्प आकर समझाता हूँ | युगे-युगे कैसे आऊंगा! ब्रह्मा का
चित्र दिखाकर तुम समझा सकते हो, यह रथ है | यह है बहुत जन्मों
के अन्त का जन्म, पतित | अब यह भी पावन बनते हैं | हम भी बनते
हैं | सिवाए योगबल के कोई पावन बन नहीं सकता | विकर्म विनाश हो
न सके | पानी में स्नान करने से कोई पावन नहीं बनते | यह है
योग अग्नि | पानी होता है आग को बुझाने वाला | आग होती है
जलाने वाली | तो पानी कोई आग तो नहीं है, जिससे विकर्म विनाश
हो | सबसे ज़्यादा गुरु आदि इसने किये हैं, शास्त्र भी बहुत पढ़े
| इस जन्म में जैसे पण्डित था लेकिन उससे फ़ायदा तो कुछ भी नहीं
हुआ | पुण्य आत्मा तो बनते ही नहीं | पाप ही करते आये | बाप ने
समझाया है जो अपने को बच्चे समझते हैं तो इस जन्म में जो पाप
आदि किये हैं, जबकि सम्मुख बाप आया है तो पाप कर्म बता देने
चाहिए, तो हल्का हो जायेगा | इस जन्म में हल्के हो जायेंगे |
फिर पुरुषार्थ करना है, जन्म-जन्मान्तर के पाप कर्म का बोझा जो
सर पर है उसे उतारना है | बाप योग की बात समझाते हैं | योग से
ही विकर्म विनाश होंगे | यह बातें तुम अभी सुनते हो | सतयुग
में यह बातें कोई सुना न सके | यह सारा ड्रामा बना हुआ है |
सेकण्ड बाई सेकण्ड यह सारा ड्रामा फिरता रहता है | एक सेकण्ड न
मिले दूसरे से | सेकण्ड बाई सेकण्ड आयु भी कम होती जाती है |
अभी तुम आयु को कम होने से ब्रेक देते हो और योग से आयु को
बढ़ाते हो | अब तुम बच्चों को अपनी आयु को बड़ा बनाना है योगबल
से | योग के लिए बाबा बहुत ज़ोर देते हैं, परन्तु कई समझते नहीं
| कहते हैं बाबा हम भूल जाते हैं | तब बाबा कहते हैं योग कोई
और बात नहीं, यह है याद की यात्रा | बाप को याद करते-करते पाप
कटते जायेंगे, अन्त मती सो गति हो जायेगी | इस पर एक मिसाल भी
देते हैं – कोई ने किसको कहा तुम भैंस हो तो बस वह समझने लगा
मैं तो भैंस हूँ | बोला, इस दरवाजे से निकलो | तो बोला मैं
भैंस हूँ, कैसे निकलूँ! सचमुच जैसे भैंस बन गया | यह एक मिसाल
बैठ बनाया है, बाकी कोई ऐसा है नहीं | यह कोई यथार्थ मिसाल
नहीं है | हमेशा रियल बात पर मिसाल दिया जाता है |
इस
समय बाप तुमको जो समझाते हैं उनके फिर भक्ति मार्ग में त्यौहार
बनाये जाते हैं | कितने मेले मलाखड़े आदि होते हैं | बाकी इस
समय जो कुछ होता है उनके त्यौहार बन जाते हैं | तुम यहाँ कितने
स्वच्छ बनते हो | मेले मलाखड़े में तो कितने मैले होते हैं,
शरीर को मिट्टी मलते हैं | समझते हैं पाप मिट जायेंगे | बाबा
का ख़ुद यह सब किया हुआ है | नासिक में पानी बहुत गन्दा होता है
| वहाँ जाकर मिट्टी मलते हैं | समझते हैं पाप विनाश हो जायेंगे
| फिर उस मिट्टी को साफ करने के लिए पानी ले आते हैं | विलायत
में कोई बड़े महाराजा आदि जाते थे तो गंगा जल का मटका साथ ले
जाते थे फिर स्टीमर में वही पानी पीते थे | आगे एरोप्लेन, मोटर
आदि थे नहीं | 100-500 वर्षों में क्या-क्या बन गया है! सतयुग
आदि में यह साइन्स आदि काम में आती है | वहाँ तो महल आदि बनाने
करने में देरी नहीं लगती | अभी तुम्हारी बुद्धि पारसबुद्धि
बनती है तो सब काम सहज कर लेती है | जैसे यहाँ मिट्टी की ईंटें
बनती हैं, वहाँ सोने की होती हैं | इस पर माया मच्छ्न्दर का
खेल भी दिखाते हैं | यह तो उन्होंने नाटक बैठ बनाये हैं,
दिखाने के लिए | बरोबर स्वर्ग में सोने की ईंटें हैं | उसको
कहा ही जाता है गोल्डन एज | इसको कहा जाता है आयरन एज | स्वर्ग
को तो सभी याद करते हैं | चित्र भी उन्हों के कायम हैं | कहते
भी हैं आदि सनातन धर्म, फिर हिन्दू धर्म कह देते हैं | देवता
के बदले हिन्दू कह देते हैं क्योंकि विकारी हैं तो देवता कैसे
कहें | तुम कहाँ भी जाते हो तो यह समझाते हो क्योंकि तुम हो
मैसेन्जर, पैगम्बर | बाप का परिचय हर एक को देना है | कोई झट
समझेंगे कि बरोबर तुम ठीक कहते हो | दो बाप बरोबर हैं | कोई कह
देंगे परमात्मा तो सर्वव्यापी है | तुम समझते हो एक से हद का
वर्सा मिलता है | पारलौकिक बाप से बेहद का वर्सा मिलता है 21
जन्म के लिए | यह ज्ञान भी अभी है | वहाँ यह ज्ञान नहीं रहता |
संगम पर ही वर्सा मिलता है जो फिर 21 पीढ़ी जन्म बाई जन्म तुम
राज्य करते हो | तुम सारे विश्व के मालिक बनते हो | यह तुमको
अभी मालूम पड़ा है | जो पक्के निश्चयबुद्धि हैं उनको कोई संशय
उठाने की बात ही नहीं | बेहद के बाप से बेहद का वर्सा मिलता है
| शिवबाबा आयेंगे तो जरूर कुछ वर्सा देते होंगे इसलिए बाबा
कहते हैं यह बैज बहुत अच्छा है | यह ज़रूर पड़ा हो | घर-घर में
मैसेज देना है कि कोई माने या न माने | विनाश आएगा तो समझेंगे
भगवान् आया हुआ है | फिर जिन्हों को तुमने मैसेज दिया होगा, वे
याद करेंगे कि यह सफेद पोश वाले फ़रिश्ते कौन थे? सूक्ष्मवतन
में भी तुम फ़रिश्ते देखते हो ना! तुम जानते हो मम्मा-बाबा
योगबल से ऐसा फ़रिश्ता बनते हैं, तो हम भी बनेंगे | यह सब बातें
बाप इसमें प्रवेश कर तुमको समझाते हैं | डायरेक्ट नॉलेज देते
हैं | जो बाबा में नॉलेज है वह तुम बच्चों में भी है | जब ऊपर
में जाते हो तो नॉलेज का पार्ट भी पूरा हो जाता है | फिर जो
पार्ट मिला है वह सुख का पार्ट बजाते हैं और यह नॉलेज भूल जाती
है |
तो
तुम बच्चे कहाँ भी जाते हो तो मैसेन्जर की निशानी – यह बैज साथ
में ज़रूर चाहिए | भल कोई हंसी करे | इस पर क्या हंसी करेंगे |
तुम तो यथार्थ बात सुनाते हो | यह बेहद का बाप है | उनका नाम
है शिवबाबा, वह कल्याणकारी है | आकर स्वर्ग की स्थापना करते
हैं | यह है पुरुषोत्तम संगमयुग | यह सारा ज्ञान तुम बच्चों को
मिला है | फिर भूलना क्यों चाहिए | बात तो बिल्कुल सहज है |
चलते-फिरते बाप और वर्से को याद करना है | शान्तिधाम और सुखधाम
| तुम बच्चे यहाँ आते हो मुरली सुनकर जाते हो फिर सुनानी भी
चाहिए | ऐसे नहीं सिर्फ़ एक ही ब्राह्मणी मुरली चलाये |
ब्राह्मणी को आप समान बनाकर तैयार करना चाहिए, तब बहुतों का
कल्याण कर सकेंगे | अगर एक ब्राह्मणी कहाँ चली जाती है तो
दूसरी क्यों नहीं सेन्टर चला सकती! क्या धारणा नहीं की है?
स्टूडेन्ट को पढ़ने और पढ़ाने का शौक चाहिए | मुरली तो बहुत सहज
है, कोई भी धारण कर क्लास करा सकते हैं | यहाँ तो बाप बैठे हैं
| बाप बच्चों को कहते हैं कोई भी बात में संशय नहीं होना चाहिए
| एक बाप ही है जो सब कुछ जानते हैं | एक ही एम-ऑब्जेक्ट है,
इसमें कोई प्रश्न आदि पूछने का भी नहीं रहता | सुबह को भी बैठ
बच्चों को याद की यात्रा में मदद करता हूँ | सारे बेहद के
बच्चे याद रहते हैं | तुम सब बच्चों को इस याद की मदद से सारे
विश्व को पावन बनाना है, इसमें ही तुम अंगुली देते हो | पवित्र
तो सारी दुनिया को बनाना है ना | तो बाप सभी बच्चों पर नज़र
रखते हैं ना | सब शान्तिधाम में चले जायें | सबका अटेन्शन
खिंचवाते हैं | बाप तो बेहद में ही बैठेंगे | मैं आया हूँ सारी
दुनिया को पावन बनाने | सारी दुनिया को करेन्ट दे रहा हूँ तो
पवित्र हो जाएँ | जिनका पूरा योगबल होगा वह समझेंगे बाबा अभी
बैठकर याद की यात्रा सिखला रहे हैं, जिससे विश्व में शान्ति
होती है | बच्चे भी याद में रहते हैं तो मदद मिलती है | मददगार
बच्चे भी चाहिए ना | ख़ुदाई खिदमतगार, निश्चयबुद्धि ही याद
करेंगे | तुम्हारी पहली सब्जेक्ट है ही पावन बनने की | गोया
तुम बच्चे निमित्त बनते हो बाप के साथ | बाप को बुलाते ही हैं
– हे पतित-पावन आओ | अब वह अकेला क्या करेगा | ख़िदमतगार चाहिए
ना | तुम जानते हो हम विश्व को पवित्र बनाकर फिर सारे विश्व पर
राज्य करेंगे | बुद्धि में जब ऐसा निश्चय होगा तब नशा चढ़ेगा |
तुम बच्चे जानते हो हम बाप की श्रीमत से, अपने योगबल से अपने
लिए राजधानी स्थापन कर रहे हैं | यह नशा चढ़ना चाहिए | यह है
रूहानी बात | बच्चे समझते हैं हर कल्प बाबा इस रूहानी बल से
हमको विश्व का मालिक बनाते हैं | यह भी समझते हो कि शिवबाबा
आकर स्वर्ग की स्थापना करते हैं | अभी सिर पर इस याद की यात्रा
का ही फुरना है | पुरुषार्थ करना है | धन्धा आदि करते भी याद
की यात्रा रहे | एवरहेल्दी बनाने के लिए बाप कमाई बड़ी ज़बरदस्त
कराते हैं | इस समय सब कुछ भुलाना पड़ता है | हम आत्मायें जा
रही हैं, आत्म-अभिमानी बनने की प्रैक्टिस कराई जाती है |
खाते-पीते, चलते-फिरते यह क्या बाप को याद नहीं कर सकते, कपड़ा
सिलाई करते, बुद्धियोग बाप की याद में रहे | बहुत सहज है | यह
तो समझते हो 84 का चक्र पूरा हुआ है | अभी बाप हम आत्माओं को
राजयोग सिखलाने आये हैं | यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी
रिपीट होती रहती है | कल्प पहले भी ऐसे हुआ था, जो अब रिपीट हो
रहा है | यह रिपीटेशन का राज़ भी बाप ही समझाते हैं | हर एक को
ड्रामा में पार्ट मिला हुआ है, वह बजाते रहते हैं | बच्चों को
राय दी जाती है कि बाप को याद करो तो सतोप्रधान बनेंगे | फिर
यह शरीर भी छूट जायेगा | तुम्हारी बुद्धि में अब यही है कि हम
आत्मा सतोप्रधान बनें क्योंकि वापिस घर जाना है | सतयुग में
ऐसे नहीं कहेंगे | वहाँ तो कहेंगे एक पुराना शरीर छोड़ दूसरा
लेना है | वहाँ तो दुःख की बात नहीं | यहाँ यह दुःखधाम है |
पुराने शरीर हैं तो समझते हैं इनको छोड़ अब वापिस अपने घर जायें
| बाप को निरन्तर याद करना है | वह निराकार बाप ही ज्ञान का
सागर है | वही आकर सबकी सद्गति करते हैं | बाप कहते हैं साधुओं
का भी उद्धार करता हूँ | तुम अब एक बाप से योग लगाओ | तुम सब
आत्माओं को बाप से वर्सा लेने का हक़ है | अपने को आत्मा समझ
देही-अभिमानी बनो और बाप को निरन्तर याद करो तो पाप कटते
जायेंगे | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
मुरली सुनकर फिर सुनानी है | पढ़ने के साथ-साथ पढ़ाना भी है |
कल्याणकारी बनना है | बैज मैसेन्जर की निशानी है, यह सदा लगाकर
रखना है |
2.
विश्व में शान्ति स्थापन करने के लिए याद की यात्रा में रहना
है | जैसे बाप की नज़र बेहद में रहती है, सारी दुनिया को पावन
बनाने के लिए करेन्ट देते हैं, ऐसे फ़ालो फादर कर मददगार बनना
है |
वरदान:-
बुद्धि को मेरेपन के फेरे से निकाल उलझनों से मुक्त रहने वाले
न्यारे, ट्रस्टी भव
!
जब
बुद्धि कहाँ भी उलझन में आती है तो समझ लो ज़रूर कोई न कोई
मेरापन है | जहाँ मेरा आया वहाँ बुद्धि का फेरा हुआ | गृहस्थी
बनकर सोचने से गड़बड़ होती है इसलिए बिल्कुल न्यारे और ट्रस्टी
बन जाओ | ये मेरापन – मेरा नाम ख़राब होगा, मेरी ग्लानि
होगी....यह सोचना ही उलझना है | फिर जितना सुलझाने की कोशिश
करेंगे उतना उलझते जायेंगे इसलिए ट्रस्टी बन इन उलझनों से
मुक्त हो जाओ | भगवान के बच्चे कभी उलझनों में नहीं आ सकते |
स्लोगन:-
बड़े बाप
के बच्चे हो इसलिए न तो छोटी दिल करो और न छोटी बातों में
घबराओ | 
ओम् शान्ति
|