15-02-14       प्रातः मुरली       ओम् शान्ति   “बापदादा”     मधुबन


मीठे बच्चे बाप आये हैं काँटों को फूल बनाने, बाप का प्यार काँटों से भी है, तो फूलों से भी है | काँटों को ही फूल बनाने की मेहनत करते हैं |   


प्रश्न:-   
जिन बच्चों में ज्ञान की धारणा होगी उनकी निशानी सुनाओ?

                      
उत्तर:-
वह कमाल करके दिखायेंगे | वह अपना और दूसरों का कल्याण करने के बिगर रह नहीं सकते | तीर लग गया तो नष्टोमोहा बन रूहानी सर्विस में लग जायेंगे | उनकी अवस्था एकरस अचल-अडोल होगी | कभी कोई बेसमझी का काम नहीं करेंगे | किसी को भी दुःख नहीं देंगे | अवगुण रूपी काँटों को निकालते जायेंगे |
 

ओम् शान्ति |  

यह तो बच्चे जानते हैं बाप बड़ी लीवर घड़ी है | बिल्कुल एक्यूरेट टाइम पर काँटों को फूल बनाने आते हैं | सेकेण्ड भी कम जास्ती नहीं हो सकता | ज़रा भी फ़र्क नहीं पड़ सकता | यह भी मीठे-मीठे बच्चे जानते हैं कि इस समय है कलियुगी काँटों का जंगल | तो फूल बनने वालों को यह महसूसता आनी चाहिए कि हम फूल बन रहे हैं | पहले हम सब काँटे थे, कोई छोटे, कोई बड़े | कोई बहुत दुःख देते हैं, कोई थोड़ा | अब बाप का प्यार तो सबसे है | गायन भी है काँटों से भी प्यार, फूलों से भी प्यार | पहले किससे प्यार है? ज़रूर काँटों से प्यार है | इतना प्यार हो जो मेहनत कर उनको काँटों से फूल बनाते हैं | आते ही हैं काँटों की दुनिया में | इसमें सर्वव्यापी की बात नहीं हो सकती | एक की ही महिमा होती है | महिमा होती है आत्मा की | जब आत्मा शरीर धारण कर पार्ट बजाती है | श्रेष्ठाचारी भी आत्मा बनती है तो भ्रष्टाचारी भी आत्मा बनती है | आत्मा शरीर धारण कर जैसे-जैसे कर्म करती है, उस अनुसार कहा जाता है यह कुकर्मी है, यह सुकर्मी है | आत्मा ही अच्छा वा बुरा कर्म करती है | अपने से पूछो सतयुगी दैवी फूल हो व कलियुगी आसुरी काँटे हो? कहाँ सतयुग, कहाँ कलियुग! कहाँ डीटी, कहाँ डेविल! बहुत फ़र्क है | काँटे जो होते हैं वह अपने को फूल कह न सकें | फूल होते हैं सतयुग में, कलियुग में होते नहीं | अब यह है संगमयुग, जब तुम काँटे से फूल बनते हो | टीचर लेसन देते हैं, बच्चों का काम है उनको रिफ़ाइन कर बताना | उसमें यह भी लिखो कि अगर फूल बनने चाहते हो तो अपने को आत्मा समझो और फूल बनाने वाले परमपिता परमात्मा को याद करो तो तुम्हारे अवगुण निकल जायेंगे और तुम सतोप्रधान बन जायेंगे | बाबा निबन्ध देते हैं | बच्चों का काम है करेक्ट कर छपाना | तो सभी मनुष्य सोच में पड़ जायें | यह पढ़ाई है | बाबा तुम्हें बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी पढ़ाते हैं | उन स्कूलों में तो पुराने वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी पढ़ाई जाती है | नई दुनिया की हिस्ट्री-जॉग्राफी तो कोई जानते ही नहीं | तो यह पढ़ाई भी है, समझानी भी है | कोई छी-छी काम करना बेसमझी है | फिर समझाया जाता है यह विकारी काम दुःख देने का नहीं करना है | दुःख हर्ता, सुखकर्ता बाप की महिमा है ना | यहाँ तुम भी सीख रहे हो किसको दुःख नहीं देना है | बाप शिक्षा देते हैं – सदैव सुख देते रहो | यह अवस्था कोई जल्दी नहीं बनती है | सेकेण्ड में बाप का वर्सा तो ले सकते हो | बाकी लायक बनने में टाइम लगता है | समझते हैं बेहद के बाप का वर्सा है स्वर्ग की बादशाही | तुम समझाते भी होंगे कि पारलौकिक बाप से भारत को विश्व की बादशाही मिली थी | तुम सब विश्व के मालिक थे | यह तो तुम बच्चों को अन्दर में ख़ुशी होनी चाहिए | कल की बात है, जब तुम स्वर्ग के मालिक थे | मनुष्य कह देते लाखों वर्ष | कहाँ एक-एक युग की आयु लाखों वर्ष कह देते हैं, कहाँ सारे कल्प की आयु 5 हज़ार वर्ष है | बहुत फ़र्क है | 

ज्ञान का सागर एक ही बेहद का बाप है | उनसे दैवीगुण धारण करने चाहिए | यह दुनिया के मनुष्य दिन-प्रतिदिन तमोप्रधान बनते जाते हैं | जास्ती अवगुण सीखते जाते हैं | आगे इतना करप्शन, एडलट्रेशन. भ्रष्टाचार नहीं था, अब बढ़ता जाता है | अभी तुम बाप की याद के बल से सतोप्रधान बनते जा रहे हो | जैसे उतरते हो, फिर जाना भी ऐसे ही है | पहले तो बाप मिला उसकी ख़ुशी होगी, कनेक्शन जुटा फिर है याद की यात्रा | जिसने जास्ती भक्ति की होगी उनकी जास्ती याद की यात्रा होगी | बहुत बच्चे कहते हैं बाबा याद ठहरती नहीं है | भक्ति में भी ऐसे होता है | कथा सुनने बैठते हैं तो बुद्धि और-और तरफ़ भाग जाती है | सुनाने वाला देखता रहता है फिर अचानक पूछते हैं हमने क्या सुनाया तो वायरे हो जाते हैं | (मूँझ जाते हैं) कोई झट बतायेंगे | सब तो एक जैसे नहीं होते हैं | भल यहाँ बैठे हैं परन्तु धारणा कुछ भी नहीं | अगर धारणा होती तो कमाल कर दिखाते | वह अपना और दूसरों का कल्याण करने बिना रह नहीं सकते | भल किसको घर में बहुत सुख है, महल मोटरें आदि हैं परन्तु एक बार तीर लग गया तो बस, पति को कहेंगे यह यह रूहानी सर्विस करने चाहते हैं | परन्तु माया बड़ी जबरदस्त है, करने नहीं देती | मोह है ना | इतने महल, इतने सुख कैसे छोड़े | अरे, यह इतने सब पहले जो भागे | बड़े-बड़े लखपति, करोड़पति घर की थी, सब छोड़कर चली आई | यह तक़दीर दिखाती है, इतनी ताक़त नहीं है छोड़ने की | रावण की जंज़ीरों में जकड़े हुए हैं | यह हैं बुद्धि की जंज़ीरें | बाप समझाते हैं – अरे, तुम स्वर्ग के मालिक पूज्य बनते हो! बाप गैरन्टी करते हैं 21 जन्म तुम कभी बीमार नहीं पड़ेंगे | एवर हेल्दी 21 जन्मों तक रहेंगे | तुम भल रहो पति के पास सिर्फ़ उनकी छुट्टी लो – पवित्र बनूँगी और बनाऊँगी | यह तुम्हारा फ़र्ज़ है बाप को याद करना, जिससे अपार सुख मिलते हैं | याद करते-करते तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे | कितनी समझ की बात है | शरीर पर भरोसा नहीं है | बाप का तो बन जाओ | उन जैसी प्यारी वस्तु कोई और नहीं है | बाप विश्व का मालिक बनाते हैं, कहते हैं जितना चाहो उतना सतोप्रधान बनो | तुम अपार सुख देखेंगे | बाबा स्वर्ग का द्वार इन नारियों से खुलवाते हैं | माताओं पर ही ज्ञान का कलष रखा जाता है | बाबा ने माताओं को ही ट्रस्टी बनाया है, सब-कुछ तुम मातायें ही सम्भालो | इनके द्वारा कलष रखा ना | फिर उन्होंने लिख दिया है सागर मंथन किया, अमृत का कलष लक्ष्मी को दिया | अभी तुम जानते हो – बाबा स्वर्ग का द्वार खोल रहे हैं | तो क्यों न हम बाबा से वर्सा लें | क्यों न विजय माला में पिरो जायें, महावीर बनें | बेहद का बाप बच्चों को गोद में लेते हैं – किसलिए? स्वर्ग का मालिक बनाने के लिए | एकदम काँटों को बैठ शिक्षा देते हैं | तो काँटों पर भी प्यार है ना तब तो उनको फूल बनाते हैं | बाप को बुलाते ही हैं पतित दुनिया और पतित शरीर में, निर्वाणधाम छोड़कर यहाँ आओ | बाप कहते हैं ड्रामा अनुसार मुझे काँटों की ही दुनिया में आना पड़ता है | तो ज़रूर प्यार है ना | बिगर प्यार फूल कैसे बनायेंगे? अभी तुम कलियुगी काँटे से सतयुगी देवता सतोप्रधान विश्व के मालिक बनो | कितना प्यार से समझाया जाता है | कुमारी फूल है तब तो सब उनके चरणों में गिरते हैं | वह जब काँटा (पतित) बनती है तो, सबको माथा टेकना पड़ता है | तो क्या करना चाहिए? फूल का फूल रहना चाहिये तो एवरफूल बन जायेंगे | कुमारी तो निर्विकारी है ना, भल जन्म विकार से लिया है | जैसे सन्यासी जन्म तो विकार से लेते हैं ना | शादी कर फिर घर-बार को तलाक देते हैं | उन्हें फिर महान् आत्मा कहते हैं | कहाँ वह सतयुग के महान् आत्मा विश्व के मालिक, कहाँ वह कलियुग के! तब बाबा ने कहा – प्रश्न लिखो कि कलियुगी काँटे हो वा सतयुगी फूल हो? भ्रष्टाचारी हो या श्रेष्ठाचारी? 

यह है भ्रष्टाचारी दुनिया जबकि रावण का राज्य है | कहते हैं आसुरी राज्य, राक्षस राज्य है | परन्तु अपने को कोई समझते थोड़ेही हैं | अब तुम बच्चे युक्ति से प्रश्न पूछते हो तब वह आपेही समझते हैं बरोबर हम तो कामी, क्रोधी, लोभी हैं | प्रदर्शनी में भी ऐसे लिखो तो उनको फीलिंग आये कि मैं तो कलियुगी काँटा हूँ | अभी तुम फूल बन रहे हो | बाबा तो एवरफूल है | वह कभी काँटा बनते नहीं | वह फूल कहते हैं – तुमको भी काँटे से फूल बनाता हूँ | तुम मुझे याद करो | माया कितनी प्रबल है | तो क्या तुमको माया का बनना है? बाप तुमको अपनी तरफ़ खींचते हैं, माया अपनी तरफ़ खींचती है | यह है पुरानी जुत्ती | आत्मा को पहले नई जुत्ती मिलती है फिर पुरानी होती है | इस समय सब जुत्तियाँ तमोप्रधान हैं | मैं तुमको मखमल का बना देता हूँ | वहाँ आत्मा प्योर होने के कारण शरीर भी मखमल का होता है | नो डिफेक्ट | यहाँ तो बहुत डिफेक्ट हैं | वहाँ के फीचर्स तो देखो कितने सुन्दर हैं | वो फीचर तो यहाँ कोई बना न सके | अब बाप भी कहते हैं हम कितना ऊँच बनाते हैं | घर गृहस्थ में कमल समान पवित्र बनो और जन्म-जन्मान्तर की जो कट चढ़ी हुई है, उनको निकालने के लिए योग अग्नि है | इसमें सब पाप भस्म हो जायेंगे | तुम पक्का सोना बन जायेंगे | खाद निकालने की युक्ति बहुत अच्छी बताते हैं, मामेकम् याद करो | तुम्हारी बुद्धि में यह ज्ञान है | आत्मा भी बहुत छोटी है | बड़ी हो तो इनमें प्रवेश कर न सके | कैसे करेगी? आत्मा को देखने के लिए डॉक्टर बहुत माथा मारते हैं, परन्तु देखने में नहीं आती है | साक्षात्कार होता है | परन्तु साक्षात्कार से तो कोई फ़ायदा नहीं होता | समझो तुमको वैकुण्ठ का साक्षात्कार हुआ लेकिन इससे फ़ायदा क्या! वैकुण्ठवासी तो तब बनेंगे जब पुरानी दुनिया ख़त्म हो | इसके लिए तुम योग का अभ्यास करो | तो बाप समझाते हैं बच्चे, पहले काँटों से प्यार होता है | सबसे जास्ती प्यार का सागर है बाप | तुम बच्चे भी मीठे बनते जाते हो | बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ भाई-भाई को देखो तो क्रिमिनल ख्यालात बिल्कुल निकल जायेंगे | भाई-बहन के सम्बन्ध से भी बुद्धि चलायमान होती है इसलिए भाई-भाई को देखो | वहाँ तो शरीर ही नहीं जो भान आये या मोह जाये | बाप आत्माओं को ही पढ़ाते हैं | तो तुम भी अपने को आत्मा समझो | यह शरीर विनाशी है, इनसे थोड़ेही दिल लगानी है | सतयुग में इनसे प्रीत नहीं होती है | मोह जीत राजा की कथा सुनी है ना | बोला आत्मा एक शरीर छोड़ जाकर दूसरा लेगी | पार्ट मिला हुआ है, मोह क्यों रखें? इसलिए बाबा भी कहते हैं ख़बरदार रहना | अम्मा मरे, बीबी मरे हलुआ खाना | यह प्रतिज्ञा करो कोई भी मरे हमको रोना नहीं है | तुम अपने बाप को याद करो, सतोप्रधान बनो | और कोई रास्ता नहीं है सतोप्रधान बनने का | पुरुषार्थ से ही विजय माला का दाना बनेंगे | पुरुषार्थ से जो चाहे सो बन सकते हो | बाप तो समझते हैं जितना पुरुषार्थ कल्प पहले किया होगा वही करेंगे | बाप तो है ही गरीब निवाज़ | दान भी गरीबों को ही दिया जाता है | बाप खुद कहते हैं मैं भी साधारण तन में आता हूँ | न गरीब, न साहूकार | तुम बच्चे ही बाप को जानते हो, बाकी सारी दुनिया तो सर्वव्यापी कह देती है | बाप ऐसा धर्म स्थापन करते हैं जो वहाँ दुःख का नाम भी नहीं रहेगा |

 

भक्ति मार्ग में मनुष्य आशीर्वाद माँगते हैं | यहाँ तो कृपा की कोई बात नहीं | माथा किसको टेकेंगे? बिन्दी है ना | बड़ी चीज़ हो तो माथा भी टेकें | छोटी चीज़ को माथा भी नहीं टेक सकते | हाथ किसको जोड़ेंगे | यह भक्ति मार्ग की निशानियाँ सब गुम हो जाती हैं | हाथ जोड़ना भक्ति मार्ग हो जाता है | बहन-भाई हैं, घर में हाथ जोड़ते हैं क्या? बच्चा माँगते हैं वारिस बनाने के लिए | बच्चा मालिक ठहरा ना इसलिए बाप बच्चों को नमस्ते करते हैं | बाप तो बच्चों का सर्वेन्ट है | अच्छा!  

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते | 

धारणा के लिए मुख्य सार:-  

1.    विनाशी शरीर से दिल नहीं लगानी है | मोहजीत बनना है, प्रतिज्ञा करो कि कोई भी शरीर छोड़े, हम कभी रोयेंगे नहीं | 

2.    बाप समान मीठा बनना है, सबको सुख देना है | किसको दुःख नहीं देना है | काँटों को फूल बनाने की सेवा करनी है | अपना और दूसरों का कल्याण करना है |

 

वरदान:-  
ज्ञान सम्पन्न दाता बन सर्व आत्माओं के प्रति शुभचिन्तक बनने वाले श्रेष्ठ सेवाधारी भव !   

शुभ-चिन्तक बनने का विशेष आधार शुभ चिन्तन है | जो व्यर्थ चिन्तन वा परचिन्तन करते हैं वह शुभ चिन्तक नहीं बन सकते | शुभचिन्तक मणियों के पास शुभ-चिन्तन का शक्तिशाली ख़ज़ाना सदा भरपूर होगा | भरपूरता के कारण ही औरों के प्रति शुभचिन्तक बन सकते हैं | शुभचिन्तक अर्थात् सर्व ज्ञान रत्नों से भरपूर, ऐसे ज्ञान सम्पन्न दाता ही चलते-फिरते हर एक की सेवा करते श्रेष्ठ सेवाधारी बन जाते हैं |


स्लोगन:- 
विश्व राज्य अधिकारी बनना है तो विश्व परिवर्तन के कार्य में निमित्त बनो |      

ओम् शान्ति |