14-11-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - शान्ति का गुण सबसे बड़ा गुण है,
इसलिए शान्ति से बोलो,
अशान्ति फैलाना बन्द करो” 
प्रश्न:-
संगमयुग पर बाप से बच्चों को कौन-सा वर्सा मिलता है?
गुणवान बच्चों की निशानियां क्या होंगी?
उत्तर:-
पहला
वर्सा मिलता है ज्ञान का,
2
शान्ति का,
3.
गुणों का । गुणवान बच्चे सदा खुशी में रहेंगे । किसी का अवगुण
नहीं देखेंगे,
किसकी
कम्पलेन नहीं करेंगे,
जिसमें अवगुण हैं उनका संग भी नहीं करेंगे । कोई ने कुछ कहा तो
सुना अनसुना कर अपनी मस्ती में रहेंगे ।
ओम्
शान्ति |
रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं । एक तो तुमको बाप
से ज्ञान का वर्सा मिल रहा है । बाप से भी गुण उठाना है और फिर
इन चित्रों से (लक्ष्मी-नारायण से) भी गुण उठाना है । बाप को
कहा जाता है शान्ति का सागर । तो शान्ति भी धारण करनी चाहिए ।
शान्ति के लिए ही बाप समझाते हैं एक-दो से शान्ति से बोलो । यह
गुण उठाया जाता है । ज्ञान का गुण उठा ही रहे हो । यह नॉलेज
पढ़नी है । यह नॉलेज सिर्फ यह विचित्र बाप ही पढाते हैं ।
विचित्र आत्मायें (बच्चे) पढ़ते हैं । यह है यहाँ की नई खूबी,
जिसको और कोई जानते नहीं हैं । कृष्ण जैसे दैवीगुण भी धारण
करने हैं । बाप ने समझाया है मैं शान्ति का सागर हूँ तो शान्ति
यहाँ स्थापन करनी है । अशान्ति खत्म होनी है । अपनी चलन को
देखना चाहिए-कहाँ तक हम शान्त में रहते हैं । बहुत पुरूष लोग
होते हैं जो शान्ति पसन्द करते हैं । समझते हैं कि शान्त रहना
अच्छा है । शान्ति का गुण भी बहुत भारी है । परन्तु शान्ति
कैसे स्थापन होगी,
शान्ति का अर्थ क्या है-यह भारतवासी बच्चे नहीं जानते । बाप
भारतवासियों के लिए ही कहेंगे । बाप आते भी भारत में ही हैं ।
अभी तुम समझते हो बरोबर अन्दर में भी शान्ति जरूर होनी चाहिए ।
ऐसे नहीं कोई अशान्त करे तो खुद को भी अशान्त करना है । नहीं,
अशान्त होना यह भी अवगुण है । अवगुण को निकालना है । हर एक से
गुण ग्रहण करना है । अवगुण तरफ देखना भी नहीं चाहिए । भल आवाज
सुनते करते हो तो भी खुद शान्त रहना चाहिए क्योंकि बाप और दादा
दोनों शान्त रहते हैं । कभी बिगड़ते नहीं हैं । रड़ी नहीं मारते
। यह ब्रह्मा भी सीखा है ना । जितना शान्त में रहो,
उतना
अच्छा है । शान्ति से ही याद कर सकते हैं । अशान्ति वाले याद
कर न सके । हर एक से गुण ग्रहण करना ही है । दतात्रय आदि के
मिसाल भी यहाँ से लगते हैं । देवताओं जैसे गुणवान तो कोई होते
नहीं । एक ही विकार मूल है,
उस
पर तुम विजय पा रहे हो,
पाते
रहते हो । कर्मेन्द्रियों पर विजय पानी है । अवगुणों को छोड़
देना है । देखना भी नहीं है,
बोलना भी नहीं है । जिनमें गुण हैं उनके पास ही जाना चाहिए ।
रहना भी बहुत मीठा शान्त है । थोड़ा ही बोलने से तुम सब कार्य
कर सकते हो । सबसे गुण ग्रहण कर गुणवान बनना है । समझू सयाने
जो होते हैं वह शान्त रहना पसन्द करते हैं । कई भक्त लोग
ज्ञानियों से भी सयाने निर्माणचित होते हैं । बाबा तो अनुभवी
है ना । यह जिस लौकिक बाप का बच्चा था,
वह
टीचर था,
बहुत
निर्माण,
शान्त रहता था । कभी क्रोध में नहीं आता था । जैसे साधू लोग
होते हैं तो उन्हों की महिमा की जाती है,
भगवान से मिलने के लिए पुरूषार्थ करते रहते हैं ना । काशी में,
हरिद्वार में जाकर रहते हैं । बच्चों को बहुत ही शान्त और मीठा
रहना चाहिए । यहाँ कोई अशान्त रहते हैं तो शान्ति फैलाने के
निमित्त नहीं बन सकते । अशान्ति वाले से बात भी नहीं करनी
चाहिए । दूर रहना चाहिए । फर्क है ना । वह बगुले और वह हंस ।
हस सारा दिन मोती चुगते रहते हैं । उठते,
बैठते,
चलते
अपने ज्ञान को सिमरण करते रहो । सारा दिन बुद्धि में यही
रहे-किसको कैसे समझायें,
बाप
का परिचय कैसे देवें ।
बाबा
ने समझाया है जो भी बच्चे आते हैं उनसे फॉर्म भराया जाता है ।
सेंटर्स पर जब कोई कोर्स लेने चाहते हैं तो उनसे फॉर्म भराना
है,
कोर्स नहीं लेना है तो फॉर्म भराने की दरकार नहीं । फॉर्म
भराया ही इसलिए जाता है कि मालूम पड़े इनमें क्या- क्या है?
क्या
समझाना है?
क्योंकि दुनिया में तो इन बातों को कोई समझते
नहीं है । तो उनका सारा मालूम पड़ता है फॉर्म से । बाप से कोई
मिलते हैं तो भी फॉर्म भराना होता है । तो मालूम पड़े क्यों
मिलते हैं?
कोई
भी आते हैं तो उनको हद और बेहद के बाप का परिचय देना है
क्योंकि तुमको बेहद के बाप ने आकर अपना परिचय दिया है तो तुम
फिर औरों को परिचय देते हो । उनका नाम है शिवबाबा । शिव
परमात्माए नम: कहते हैं ना । वह कृष्ण को देवताए नम : कहेंगे ।
शिव को कहेंगे शिव परमात्माए नम: । बाप कहते हैं मुझे याद करो
तो तुम्हारे पाप कट जाएं । मुक्ति-जीवनमुक्ति का वर्सा पाने के
लिए पवित्र आत्मा जरूर बनना पड़े । वह है ही पवित्र दुनिया,
जिसको सतोप्रधान दुनिया कहा जाता हैं । वहाँ जाना है तो बाप
कहते हैं मुझे याद करो । यह तो बहुत सहज है । कोई से भी फॉर्म
भराकर फिर तुम कोर्स देते हो । एक दिन भराओ फिर समझाओ फिर
फॉर्म भराओ तो मालूम पड़ेगा हमने उनको समझाया,
वह
याद रहा वा नहीं । तुम देखेंगे दो दिन के फॉर्म में फर्क जरूर
होगा । झट तुमको मालूम पड़ जायेगा - क्या समझा है?
हमारी समझानी पर कुछ विचार किया है वा नहीं?
यह
फॉर्म सबके पास होने चाहिए । बाबा मुरली में डायरेक्शन देते
हैं तो बड़े-बड़े सेंटर्स को तो झट एक्ट में लाना चाहिए । फॉर्म
रखना है । नहीं तो मालूम कैसे पड़े । खुद भी फील करेंगे-कल क्या
लिखा था,
आज
क्या लिखता हूँ?
फॉर्म तो बहुत जरूरी है । अलग- अलग छपावें तो भी हर्जा नहीं ।
या तो एक जगह छपाकर सब तरफ भेज देवें । यह है दूसरों का कल्याण
करना । तुम बच्चे यहाँ आये हो देवी-देवता बनने । देवता अक्षर
बहुत ऊंच है । देवीगुण धारण करने वाले को देवता कहा जाता है ।
अभी तुम दैवीगुण धारण कर रहे हो तो जहाँ प्रदर्शनी वा म्युजियम
होते हैं वहाँ यह फॉर्म बहुत होने चाहिए । तो मालूम पड़े कैसी
अवस्था है । समझकर फिर समझाना पड़े । बच्चों को तो सदैव गुण ही
वर्णन करने हैं,
अवगुण कभी नहीं । तुम गुणवान बनते हो ना । जिनमें बहुत गुण
होंगे वह दूसरों में भी गुण फूँक सकेंगे । अवगुण वाले कभी गुण
फूँक न सकें । बच्चे जानते हैं समय कोई बहुत नहीं रहा है ।
पुरूषार्थ बहुत करना है । बाप ने समझाया है-तुम रोज मुसाफिरी
करते हो,
यात्रा करते रहते हो । यह जो गायन है अतीन्द्रिय सुख
गोप-गोपियों से पूछो-यह पिछाड़ी की बात है । अभी तो नम्बरवार है
। कोई तो अन्दर में खुशी के गीत गाते रहते हैं- ओहो! परमपिता
परमात्मा हमको मिला है,
उनसे
हम वर्सा लेते हैं । उनके पास कोई कम्पलेन हो न सके । कोई ने
कुछ कहा तो भी सुना- अनसुना कर अपनी मस्ती में मस्त रहना चाहिए
। कोई भी बीमारी वा दुःख आदि है तो तुम सिर्फ याद में रहो । यह
हिसाब-किताब अभी ही चुक्तू करना है फिर तो तुम 21 जन्म फूल
बनते हो । वहाँ दु :ख की बात ही नहीं होगी । गाया जाता है खुशी
जैसी खुराक नहीं । फिर सुस्ती आदि सब उड़ जाती है,
इसमें तो यह है सच्ची खुशी,
वह
है झूठी । धन मिला,
जेवर
मिला तो खुश होंगे । यह है बेहद की बात । तुमको तो अथाह खुशी
में रहना चाहिए । जानते हो हम 21 जन्मों के लिए सदा सुखी
रहेंगे । इसी स्मृति में रहो-हम क्या बनते हैं । बाबा कहने से
ही दु :ख दूर हो जाने चाहिए । यह तो 21 जन्मों की खुशी है । अब
बाकी थोड़े दिन हैं । हम जाते हैं अपने सुखधाम । फिर और कुछ भी
याद न रहे । यह बाबा अपना अनुभव सुनाते हैं । कितने समाचार आते
हैं,
खिट-खिट चलती है । बाबा को कोई बात का दु :ख थोड़ेही होता है ।
सुना,
अच्छा यह भावी । यह तो कुछ भी नहीं है,
हम
तो कारून के खजाने वाले बनते हैं । अपने से बात करने से ही
खुशी होती है । बड़ा शान्त में रहते हैं,
उनका
चेहरा भी बहुत खुशनुम : रहेगा । स्कॉलरशिप आदि मिलती है तो
चेहरा कितना हर्षित रहता है । तुम भी पुरूषार्थ कर रहे हो - इन
लक्ष्मी-नारायण जैसा हर्षितमुख होने के लिए । इनमें ज्ञान तो
नहीं है । तुमको तो ज्ञान भी है तो खुशी रहनी चाहिए ।
हर्षितपना भी होना चाहिए । इन देवताओं से तुम बहुत ऊंच हो ।
ज्ञान सागर बाप हमको कितना ऊंच ज्ञान देते हैं । अविनाशी ज्ञान
रत्नों की लॉटरी मिल रही है तो कितना खुश रहना चाहिए । यह
तुम्हारा जन्म हीरे जैसा गाया जाता है । नॉलेजफुल बाप को ही
कहा जाता है । इन देवताओं को नहीं कहा जाता । तुम ब्राह्मण ही
नॉलेजफुल हो तो तुमको नॉलेज की खुशी रहती है । एक तो बाप मिलने
की खुशी होती है । सिवाए तुम्हारे किसको खुशी हो न सके । भक्ति
मार्ग में हड्डी सुख नहीं रहता है । भक्ति मार्ग का है
आर्टीफिशल अल्पकाल का सुख । उनका तो नाम ही है स्वर्ग,
सुखधाम,
हेविन । वहाँ अपार सुख,
यहाँ
अपार दु :ख । अभी बच्चों को मालूम पड़ता है-रावणराज्य में हम
कितना छी-छी बने हैं । आहिस्ते- आहिस्ते नीचे उतरते आये हैं ।
यह है ही विषय सागर । अब बाप इस विष के सागर से निकाल तुमको
क्षीरसागर में ले जाते हैं । बच्चों को यहाँ मीठा बहुत लगता है
फिर भूल जाने से क्या अवस्था हो जाती है । बाप कितना खुशी का
पारा चढ़ाते हैं । इस ज्ञान अमृत का ही गायन है । ज्ञान अमृत का
गिलास पीते रहना है । यहाँ तुमको बहुत अच्छा नशा चढ़ता है फिर
बाहर जाने से वह नशा कम हो जाता है । बाबा खुद फील करते हैं,
यहाँ
बच्चों को अच्छी फीलिंग आती है-हम अपने घर जाते हैं,
हम
बाबा की श्रीमत पर राजधानी स्थापन कर रहे हैं । हम बड़े
वारियर्स हैं । यह सब बुद्धि में नॉलेज है,
जिससे तुम इतना पद पाते हो । पढ़ाते देखो कौन हैं! बेहद का बाप,
एकदम
बदला देते हैं । तो बच्चों को दिल में कितनी न खुशी होनी चाहिए
। यह भी दिल में आना चाहिए कि औरों को भी खुशी देवें । रावण का
है श्राप और बाप का मिलता है वर्सा । रावण के श्राप से तुम
कितने दु :खी- अशान्त बने हो । बहुत गोप भी हैं जिनकी दिल होती
है सर्विस करें । परन्तु कलष माताओं को मिलता है । शक्ति दल है
ना । वन्दे मातरम् गाया जाता है । साथ में वन्दे पितरम् तो है
ही । परन्तु नाम माताओं का है । पहले लक्ष्मी फिर नारायण ।
पहले सीता,
पीछे
राम । यहाँ पहले मेल का नाम फिर स्त्री का लिखते हैं । यह भी
खेल है ना । बाप समझाते तो सब कुछ हैं । भक्ति मार्ग का राज भी
समझाते हैं । भक्ति में क्या-क्या होता हैं । जब तक ज्ञान नहीं
है तो पता थोड़ेही पड़ता है । अभी तुम समझते हो पहले तो हम जैसे
अनपढ़ जाट थे । गन्द में पड़े थे । अभी सबका कैरेक्टर्स सुधरता
है । तुम्हारा दैवी कैरेक्टर बन रहा है । 5 विकारों से आसुरी
कैरेक्टर हो जाता है । कितनी चेंज होती है । तो चेन्ज में आना
चाहिए ना । शरीर छूट जाए फिर थोड़ेही चेन्ज हो सकेगी । बाप में
ताकत है,
कितने में चेन्ज लाते हैं । कई बच्चे अपने अनुभव सुनाते हैं-हम
बहुत कामी,
शराबी थे,
हमारे में बड़ी चेन्ज हुई है । अभी हम बहुत प्रेम से रहते हैं ।
प्रेम के आंसू भी आ जाते हैं । बाप समझाते तो बहुत हैं परन्तु
यह सब बातें भूल जाती हैं । नहीं तो खुशी का पारा चढ़ा रहे । हम
बहुतों का कल्याण करें । मनुष्य बहुत दु :खी हैं,
उनको
रास्ता बतावें । समझाने के लिए भी कितनी मेहनत करनी पड़ती है ।
गाली भी खानी पड़ती है । पहले से ही आवाज है,
यह
सबको भाई-बहन बना देते हैं । अरे,
भाई-बहन का सम्बन्ध तो अच्छा है ना । तुम आत्मायें तो भाई- भाई
हो । परन्तु फिर भी जन्म-जन्मान्तर की दृष्टि जो पक्की हुई है,
वह
टूटती नहीं है । बाबा पास तो बहुत समाचार आते हैं । बाप समझाते
हैं इस छी-छी दुनिया से तुम बच्चों की दिल हट जाना चाहिए ।
गुल-गुल बनना चाहिए । कितने ज्ञान सुनकर भी भूल जाते हैं ।
सारा ज्ञान उड़ जाता है । काम महाशत्रु है ना । बाबा तो बहुत
अनुभवी है । इस विकार के पिछाड़ी राजाओं ने अपनी राजाई गँवाई है
। काम बहुत खराब है । सब कहते भी हैं बाबा यह बहुत कड़ा दुश्मन
है । बाप कहते हैं काम को जीतने से तुम विश्व का मालिक बनेंगे
। परन्तु काम विकार ऐसा कड़ा है जो प्रतिज्ञा करके फिर गिर पड़ते
हैं । बहुत मुश्किल से कोई सुधरते हैं । इस समय सारी दुनिया का
कैरेक्टर बिगड़ा हुआ है । पावन दुनिया कब थी,
कैसे
बनी,
इन्होंने राज्य- भाग्य कैसे पाया,
कभी
कोई बता न सके । आगे समय आयेगा तुम लोग विलायत आदि में भी
जायेंगे । वह भी सुनेंगे । पैराडाइज कैसे स्थापन होता है ।
तुम्हारी बुद्धि में यह सब बातें अच्छी रीति है । तो अब
तुम्हें यही लात और तात रहनी चाहिए,
और
सब बातें भूल जानी है । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
उठते,
बैठते,
चलते ज्ञान का सिमरण कर मोती चुगने वाला हंस बनना है । सबसे
गुण ग्रहण करने हैं । एक-दूसरे में गुण ही फूंकने हैं ।
2.
अपना
चेहरा सदा खुशनुम : रखने के लिए अपने आपसे बातें करनी है -
ओहो! हम तो कारून के खजाने के मालिक बनते हैं । ज्ञान सागर बाप
द्वारा हमें ज्ञान रत्नों की लॉटरी मिल रही है!
वरदान:-
सदा
एक के स्नेह में समाये हुए एक बाप को सहारा बनाने वाले सर्व
आकर्षण मुक्त
भव ! 
जो
बच्चे एक बाप के स्नेह में समाये हुए हैं वे सर्व प्राप्तियों
में सम्पन्न और सन्तुष्ट रहते हैं । उन्हें किसी भी प्रकार का
सहारा आकर्षित नहीं कर सकता । उन्हें सहज ही एक बाप दूसरा न
कोई - यह अनुभूति होती है । उनका एक बाप ही संसार है,
एक
बाप द्वारा ही सर्व सम्बन्धों के रस का अनुभव होता है । उनके
लिए सर्व प्राप्तियों का आधार एक बाप है न कि वैभव वा साधन
इसलिए वे सहज आकर्षण मुक्त हो जाते हैं ।
स्लोगन:-
परोपकारी
बन स्व-उपकार और पर-उपकार दोनों का अटेंशन रख आगे बढ़ते और
बढ़ाते चलो । 
ओम्
शान्ति |