28-06-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे –
मायाजीत बनने के लिए गफलत करना छोड़ो,
दुःख
देना और दु:ख
लेना -
यह
बहुत बड़ी गफलत है,
जो
तुम बच्चों को नहीं करनी चाहिए” 
प्रश्न:-
बाप की हम सब
बच्चों
के प्रति कौन-सी
एक आश है?
उत्तर:-
बाप की आश है कि
मेंरे
सभी बच्चे
मेंरे
समान एवर प्योर बन जायें ।बाप एवर गोरा है,
वह आया है बच्चों को काले से गोरा बनाने ।
माया काला बनाती, बाप गोरा बनाते
हैं । लक्ष्मी-नारायण गोरे हैं,
तब काले पतित मनुष्य जाकर उनकी महिमा गाते
हैं, अपने को नीच समझते हैं । बाप
की श्रीमत अब मिलती है-मीठे बच्चे,
अब गोरा सतोप्रधान बनने का पुरूषार्थ करो ।
ओम्
शान्ति |
बाप क्या कर रहे हैं और बच्चे क्या कर रहे हैं?
बाप भी जानते हैं और बच्चे भी जानते हैं कि हमारी आत्मा जो
तमोप्रधान बन गई है,
उनको सतोप्रधान बनाना है । जिसको गोल्डन एजड कहा जाता है । बाप
आत्माओं को देखते हैं । आत्मा को ही ख्याल होता है,
हमारी आत्मा काली बन गई है । आत्मा के कारण फिर शरीर भी काला
बन गया है । लक्ष्मी-
नारायण के मन्दिर
में
जाते हैं,
आगे तो जरा भी ज्ञान
नहीं
था । देखते थे यह तो सर्वगुण सम्पन्न हैं,
गोरे हैं,
हम तो काले भूत हैं। परन्तु ज्ञान
नहीं
था । अभी तो लक्ष्मी-नारायण
के मन्दिर
में
जायेंगे तो समझेंगे हम तो पहले ऐसे सर्वगुण सम्पन्न थे,
अभी काले पतित बन गये हैं । उनके आगे कहते हैं हम काले विशश
पापी हैं । शादी करते हैं तो पहले लक्ष्मी-नारायण
के मन्दिर
में
ले जाते हैं । दोनो ही पहले निर्विकारी हैं फिर विकारी बनते
हैं । तो निर्विकारी देवताओं के आगे जाकर अपने को विकारी पतित
कहते हैं । शादी के पहले ऐसे
नहीं
कहेंगे । विकार
में
जाने से ही फिर मन्दिर
में
जाकर उनकी महिमा करते हैं । आजकल तो लक्ष्मी-नारायण
के मन्दिर
में,
शिव के मन्दिर
में
शादियां होती हैं । पतित बनने के लिए कगन बांधते हैं । अभी तुम
गोरा बनने के लिए कगन बांधते हो इसलिए गोरा बनाने वाले शिवबाबा
को याद करते हो । जानते हो इस रथ के भ्रकुटी के बीच शिवबाबा है,
वह एवर-प्योर
है । उनकी यही आश रहती है कि बच्चे भी प्योर गोरा बन जायें ।
मामेकम् याद कर प्योर हो जायें । आत्मा को याद करना है बाप को
। बाप भी
बच्चों
को देख-देख
हर्षित होते हैं । तुम बच्चे भी बाप को देख-देख
समझते हो पवित्र बन जायें । तो फिर हम ऐसे लक्ष्मी-नारायण
बनेंगे। यह एम ऑबजेक्ट
बच्चों
को बहुत खबरदारी से याद रखनी है । ऐसे
नहीं,
बस बाबा के पास आयें हैं । फिर वहाँ जाने से अपने ही धन्धे आदि
में
पूरे हो जाओ इसलिए यहाँ सम्मुख बाप बैठ
बच्चों
को समझाते हैं । भ्रकुटी के बीच आत्मा रहती है । अकाल आत्मा का
यह तख्त है,
जो आत्मा हमारे बच्चे हैं,
वह इस तख्त पर बैठे हैं । खुद आत्मा तमोप्रधान है तो तख्त भी
तमोप्रधान है । यह अच्छी रीति समझने की बातें हैं । ऐसा
लक्ष्मी-नारायण
बनना कोई मासी का घर
नहीं
है । अभी तुम समझते हो हम इन जैसा बन रहे हैं । आत्मा पवित्र
बनकर ही जायेगी । फिर देवी-देवता
कहलायेंगे । हम ऐसे स्वर्ग के मालिक बनते हैं । परन्तु माया
ऐसी है जो भुला देती है । कई यहाँ से सुनकर बाहर जाते हैं फिर
भूल जाते हैं इसलिए बाबा अच्छी रीति पक्का कराते हैं-
अपने को देखना है,
जितना इन देवताओं
में
गुण है वह हमने धारण किये हैं,
श्रीमत पर चलकर?
चित्र भी सामने है । तुम जानते हो हमको यह बनना है । बाप ही
बनायेंगे । दूसरा कोई मनुष्य से देवता बना न सके । एक बाप ही
बनाने वाला है । गायन भी है मनुष्य से देवता । तुम्हारे
में
भी नम्बरवार जानते हैं । यह बातें भक्त लोग
नहीं
जानते । जब तक भगवान् की श्रीमत न लेवे,
कुछ भी समझ न सके । तुम बच्चे अब श्रीमत ले रहे हो । यह अच्छी
रीति बुद्धि
में
रखो कि हम शिवबाबा की मत पर बाबा को याद करते-करते
यह बन रहे हैं । याद से ही पाप भस्म होंगे,
और कोई उपाय
नहीं
।
लक्ष्मी-नारायण
तो गोरे हैं ना । मन्दिरो
में
फिर सांवरे बना रखे हैं । रघुनाथ मन्दिर
में
राम को काला बनाया है-क्यों?
किसको पता
नहीं
।
बात कितनी छोटी है । राम तो है त्रेता का । थोड़ा-सा
फर्क हो जाता है,
2
कला कम हुई ना । बाबा समझाते हैं शुरू
में
यह थे सतोप्रधान खूबसूरत । प्रजा भी सतोप्रधान बन जाती है
परन्तु सजायें खाकर बनती है । जितनी जास्ती सजा,
उतना पद भी कम हो जाता है । मेहनत
नहीं
करते तो पाप कटते
नहीं
।
पद कम हो जाता है । बाप तो क्लीयर कर समझाते हैं । तुम यहाँ
बैठे हो गोरा बनने के लिए । परन्तु माया बड़ी दुश्मन है,
जिसने काला बनाया है । देखते हैं अब गोरा बनाने वाला आया है तो
माया सामना करती है । बाप कहते हैं यह तो ड्रामा अनुसार उनको
आधाकल्प का पार्ट बजाना है । माया घडी-घड़ी
मुख मोड़ और तरफ ले जाती है । लिखते हैं बाबा हमको माया बहुत
तंग करती है । बाबा कहते यही युद्ध है । तुम गोरे से काले फिर
काले से गोरे बनते हो,
यह खेल है । समझाते भी उनको हैं जिसने पूरे
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जन्म लिये हैं । उनके पांव भारत में ही आते हैं । ऐसे भी नहीं,
भारत में सब
84
जन्म लेने वाले हैं ।
अभी तुम बच्चों का यह टाइम मोस्ट वैल्युबुल है । पुरूषार्थ
करना चाहिए पूरा,
हमको ऐसा बनना है । जरूर बाप ने कहा है सिर्फ मुझे याद करो और
दैवीगुण भी धारण करने हैं । किसको भी दु
:ख
नहीं
देना है । बाप कहते हैं-बच्चों,
अब ऐसी गफलत मत करो । बुद्धियोग एक बाप से लगाओ । तुमने
प्रतिज्ञा की थी हम आप पर वारी जायेंगे । जन्म-जन्मान्तर
प्रतिज्ञा करते आये हो-बाबा,
आप आएँगे तो हम आपकी मत पर ही चलेंगे,
पावन बन देवता बन जायेंगे । अगर युगल तुम्हारा साथ
नहीं
देता तो तुम अपना पुरूषार्थ करो । युगल साथी
नहीं
बनते तो जोड़ी नहीं बनेगी । जिसने जितना याद किया होगा,
दैवीगुण धारण किया होगा,
उनकी ही जोड़ी बनेगी । जैसे देखो ब्रह्मा-सरस्वती
ने अच्छा पुरूषार्थ किया है तो जोड़ी बनती है । यह बहुत अच्छी
सर्विस करते हैं,
याद में रहते हैं,
यह भी गुण है ना । गोपों में भी अच्छे-
अच्छे बहुत बच्चे हैं । कोई खुद भी समझते हैं,
माया की कशिश होती है । यह जंजीर टूटती नहीं है । घड़ी-घड़ी
नाम-रूप
में फँसा देती है । बाप कहते हैं नाम-
रूप में
नहीं
फँसो । मेरे में फंसो ना । जैसे तुम निराकार हो,
मैं भी निराकार हूँ । तुमको आप समान बनाता हूँ । टीचर आप समान
बनायेंगे ना । सर्जन,
सर्जन बनायेंगे । यह तो बेहद का बाप है,
उनका नाम बाला है । बुलाते भी हैं-हे
पतित-पावन
आओ । आत्मा बुलाती है,
शरीर द्वारा-बाबा
आकर हमको पावन बनाओ । तुम जानते हो हमें
पावन कैसे बना रहे हैं । जैसे हीरे होते हैं,
उनमें भी कोई काले दागी होते हैं । अभी आत्मा में अलाए पड़ा है
। उसको निकाल फिर सच्चा सोना बनते हैं । आत्मा को बहुत प्योर
बनना है । तुम्हारी एम ऑबजेक्ट क्लीयर है । और सतसंगो
में
ऐसे कभी
नहीं
कहेंगे ।
बाप समझाते हैं,
तुम्हारा उद्देश्य है यह बनने का । यह भी जानते हो ड्रामा
अनुसार हम आधाकल्प रावण के संग
में
विकारी बने हैं । अब यह बनना है । तुम्हारे पास बैज भी है । इस
पर समझाना बहुत सहज है । यह है त्रिमूर्ति । ब्रह्मा द्वारा
स्थापना परन्तु ब्रह्मा तो करते नहीं हैं । वह तो पतित से पावन
बनते हैं । मनुष्यों को यह पता नहीं है कि यह पतित ही फिर पावन
बनते हैं । अब तुम बच्चे समझते हो मंजिल पढ़ाई की ऊंची है । बाप
आते हैं पढ़ाने के लिए । ज्ञान है ही बाबा
में,
वह कोई से पढ़ा हुआ नहीं है । ड्रामा के प्लैन अनुसार उनमें
ज्ञान है । ऐसे नहीं कहेंगे कि इनमें ज्ञान कहाँ से आया?
नहीं,
वह है ही नॉलेजफुल । वही तुम्हे पतित से पावन बनाते हैं ।
मनुष्य तो पावन बनने के लिए गंगा आदि
में
स्नान करते ही रहते हैं । समुद्र
में
भी स्नान करते हैं । फिर पूजा भी करते हैं,
सागर देवता समझते हैं । वास्तव में नदियां जो बहती हैं वह तो
हैं ही । कभी विनाश को
नहीं
पाती । बाकी पहले यह ऑर्डर
में
रहती थी । बाढ़ आदि का नाम
नहीं
था । कभी मनुष्य डूबते नहीं थे । वहाँ तो मनुष्य ही थोड़े होते
थे,
फिर वृद्धि को पाते रहते हैं । कलियुग अन्त तक कितने मनुष्य हो
जाते हैं । वहाँ तो आयु भी बहुत बड़ी रहती है । कितने कम मनुष्य
होंगे । फिर
2500
वर्ष
में
कितनी वृद्धि हो जाती है ।झाड़ का कितना विस्तार हो जाता है ।
पहले-
पहले भारत में सिर्फ हमारा ही राज्य था । तुम ऐसे कहेंगे ।
तुम्हारे में भी कोई हैं जिनको याद रहता है हम अपना राज्य
स्थापन कर रहे हैं । हम रूहानी वारियर्स योगबल वाले हैं । यह
भी भूल जाते हैं । हम माया से लड़ाई करने वाले हैं । अब यह
राजधानी स्थापन हो रही है । जितना बाप को याद करेंगे उतना
विजयी बनेंगे । एम ऑबजेक्ट है ही ऐसा बनने के लिए । इन द्वारा
बाबा हमको यह देवता बनाते हैं । तो फिर क्या करना चाहिए?
बाप को याद करना चाहिए । यह तो हुआ दलाल । गायन भी है जब
सतगुरु मिला दलाल के रूप
में
।
बाबा यह शरीर लेते हैं तो यह बीच
में
दलाल हुआ ना । फिर तुम्हारा योग लगवाते हैं शिवबाबा से,
बाकी सगाई आदि नाम मत लो । शिवबाबा इस द्वारा हमारी आत्मा को
पवित्र बनाते हैं । कहते है-हे
बच्चों,
मुझ बाप को याद करो । तुम तो ऐसे
नहीं
कहेंगे-मुझ
बाप को याद करो । तुम बाप का ज्ञान सुनायेंगे-बाबा
ऐसे कहते हैं । यह भी बाप अच्छी रीति समझाते हैं । आगे चल
बहुतों को साक्षात्कार होंगे फिर दिल अन्दर खाता रहेगा । बाप
कहते हैं अब टाइम बहुत थोड़ा रहा है । इन आँखों से तुम विनाश
देखेंगे । जब रिहर्सल होगी तो तुम देखेंगे ऐसा विनाश होगा । इन
आँखों से भी बहुत देखेंगे । बहुतों को वैकुण्ठ का भी
साक्षात्कार होगा । यह सब जल्दी-जल्दी
होते रहेंगे । ज्ञान मार्ग में सब है रीयल,
भक्ति में है इमीटेशन । सिर्फ साक्षात्कार किया,
बना थोड़ेही । तुम तो बनते हो । जो साक्षात्कार किया है फिर इन
आँखों से देखेंगे । विनाश देखना कोई मासी का घर
नहीं
है,
बात मत पूछो । एक-दो
के सामने खून करते हैं । दो हाथ से ताली बजेगी ना । दो भाइयों
को अलग कर देते हैं-
आपस में बैठ लड़ो । यह भी ड्रामा बना हुआ है । इस राज को वह
समझते नहीं है । दो को अलग करने से लड़ते रहते हैं । तो उन्हों
का बारूद बिकता रहेगा । कमाई हुई ना । परन्तु पिछाड़ी
में
इनसे काम
नहीं
होगा । घर बैठे बॉम फेकेंगे और खलास । उसमें न मनुष्यों की,
न
हथियारों की दरकार है । तो बाप समझाते हैं-बच्चे,
स्थापना तो जरूर होनी है । जितना जो पुरूषार्थ करेंगे उतना ऊँच
पद पाएंगे । समझाते तो बहुत हैं,
भगवान् कहता है यह काम कटारी न चलाओ । काम को जीतने से जगतजीत
बनना है । आखरीन
में
कोई को तीर लगेगा जरूर । अच्छा!
मीठे-मीठे
सिकीलधे
बच्चों
प्रति मात-पिता
बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निग । रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों
को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1)
यह टाइम मोस्ट वैल्युबल है,
इसमें
ही पुरूषार्थ कर बाप पर पूरा वारी जाना है । दैवी गुण धारण
करने हैं । कोई प्रकार की गफलत
नहीं
करनी है । एक बाप की मत पर चलना है ।
2)
एम आब्जेक्ट को सामने रख बहुत खबरदारी से चलना है । आत्मा को
सतोप्रधान पवित्र बनाने की मेहनत करनी है । अन्दर
में
जो भी दाग है,
उन्हें जाँच कर निकालना है ।
वरदान:-
सोच-समझकर
हर कर्म करने वाले पश्चाताप से मुक्त ज्ञानी तू आत्मा भव
!
दुनिया
में
भी कहते हैं पहले सोचो फिर करो । जो सोचकर
नहीं
करते,
करके फिर सोचते हैं तो पश्चाताप का रूप हो जाता है । पीछे
सोचना,
यह पश्चाताप का रूप है और पहले सोचना
-
यह ज्ञानी तू आत्मा का गुण है । द्वापर-कलियुग
में
तो अनेक प्रकार के पश्चाताप ही करते रहे लेकिन अब संगम पर ऐसा
सोच समझकर संकल्प वा कर्म करो जो कभी मन
में
भी,
एक सेकण्ड भी पश्चाताप न हो,
तब कहेंगे ज्ञानी तू आत्मा ।
स्लोगन:-
रहमदिल बन सर्व गुणों और शक्तियों का दान देने वाले ही मास्टर
दाता हैं । 
ओम्
शान्ति |