17-10-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - एक बाप की याद में रहना ही अव्यभिचारी याद है, इस याद से तुम्हारे पाप कट सकते हैं”   


प्रश्न:-   
बाप जो समझाते हैं उसे कोई सहज मान लेते, कोई मुश्किल समझते - इसका कारण क्या है?


उत्तर:-
जिन बच्चों ने बहुत समय भक्ति की हैं, आधाकल्प से पुराने भक्त हैं, वह बाप की हर बात को सहज मान लेते हैं क्योंकि उन्हें भक्ति का फल मिलता हैं । जो पुराने भक्त नहीं उन्हें हर बात समझने में मुश्किल लगता । दूसरे धर्म वाले तो इस ज्ञान को समझ भी नहीं सकते ।

 

ओम् शान्ति |

मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप बैठ समझाते हैं तुम बच्चे सब क्या कर रहे हो? तुम्हारी है अव्यभिचारी याद । एक होती है व्यभिचारी याद, दूसरी होती है अव्यभिचारी याद । तुम सबकी है अव्यभिचारी याद । किसकी याद है? एक बाप की । बाप को याद करते-करते पाप कट जायेंगे और तुम वहां पहुँच जायेंगे । पावन बनकर फिर नई दुनिया में जाना है । आत्माओं को जाना है । आत्मा ही इन आरगन्स द्वारा सब कर्म करती है ना । तो बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ और बाप को याद करो । मनुष्य तो अनेकानेक को याद करते हैं । भक्ति मार्ग में तुमको याद करना है एक को । भक्ति भी पहले-पहले तुमने ऊंच ते ऊंच शिवबाबा की ही की थी । उनको कहा जाता है अव्यभिचारी भक्ति । वही सर्व को सद्गति देने वाला रचता बाप है । उनसे बच्चों को बेहद का वर्सा मिलता है । भाई- भाई से वर्सा नहीं मिलता । वर्सा हमेशा बाप से बच्चों को मिलता है । थोड़ा बहुत कन्याओं को मिलता है । वह तो फिर जाकर हाफ पार्टनर बनती है । यहॉ तो तुम सब आत्मायें हो । सब आत्माओं का बाप एक है । सबको बाप से वर्सा लेने का हक है । तुम हो भाई- भाई, भल शरीर स्री-पुरुष का है । आत्मा सब भाई- भाई हैं । वह तो सिर्फ कहने मात्र कह देते हैं हिन्दू-मुस्लिम भाई- भाई । अर्थ नहीं समझते । तुम अभी अर्थ समझते हो । भाई- भाई माना सब आत्मायें एक बाप के बच्चे हैं फिर प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे भाई- बहन हैं । अभी तुम जानते हो इस दुनिया से सबको वापस जाना है । जो भी मनुष्य मात्र हैं, सबका पार्ट अब पूरा होता है । फिर बाप आकर पुरानी दुनिया से नई दुनिया में ले जाते हैं, पार ले जाते हैं । गाते भी हैं - खिवैया पार लगाओ अर्थात् सुखधाम में ले चलो । यह पुरानी दुनिया बदलकर फिर नई दुनिया जरूर बननी है । मूलवतन से लेकर सारी दुनिया का नक्शा तुम्हारी बुद्धि में हैं । हम आत्मायें सब स्वीटधाम, शान्तिधाम की निवासी हैं । यह तो बुद्धि में याद है ना । हम जब सतयुगी नई दुनिया में हैं तो बाकी और सभी आत्मायें शान्तिधाम में रहती हैं । आत्मा तो कभी विनाश नहीं होती । आत्मा में अविनाशी पार्ट भरा हुआ है । वह कभी भी विनाश नहीं हो सकता । समझो यह इन्जीनियर है फिर 5 हजार वर्ष बाद हूबहू ऐसा ही इन्जीनियर बनेगा । यही नाम रूप देश काल रहेगा । यह सब बातें बाप ही आकर समझाते हैं । यह अनादि- अविनाशी ड्रामा हैं । इस ड्रामा की आयु 5 हजार वर्ष हैं । सेकण्ड भी कम जास्ती नहीं हो सकता । यह अनादि बना-बनाया ड्रामा है । सबको पार्ट मिला हुआ है । देही- अभिमानी हो, साक्षी हो खेल को देखना है । बाप को तो देह है नहीं । वह नॉलेजफुल है, बीजरूप है । बाकी आत्मायें जो ऊपर निराकारी दुनिया में रहती हैं वह फिर आती हैं नम्बरवार पार्ट बजाने । पहले-पहले नम्बर शुरू होता है देवताओं का । पहले नम्बर की ही डिनायस्टी के चित्र हैं फिर चन्द्रवंशी डिनायस्टी के भी चित्र हैं । सबसे ऊंच है सूर्यवंशी लक्ष्मी-नारायण का राज्य, उन्हों का राज्य कब कैसे स्थापन हुआ-कोई भी मनुष्यमात्र नहीं जानते । सतयुग की आयु ही लाखों वर्ष लिख दी है । कोई की भी जीवन कहानी को नहीं जानते । इन लक्ष्मी-नारायण की जीवन कहानी को जानना चाहिए । बिगर जाने माथा टेकना अथवा महिमा करना यह तो रांग है । बाप बैठ मुख्य-मुख्य जो हैं उनकी जीवन कहानी सुनाते हैं । अभी तुम जानते हो-कैसे इन्हों की राजधानी चलती है । सतयुग में श्रीकृष्ण था ना । अभी वह कृष्णपुरी फिर स्थापन हो रही है । कृष्ण तो है स्वर्ग का प्रिन्स । लक्ष्मी-नारायण की राजधानी कैसे स्थापन हुई-यह सब तुम समझते हो ।

नम्बरवार माला भी बनाते हैं । फलाने-फलाने माला के दाने बनेंगे । परन्तु चलते-चलते फिर हार भी खा लेते हैं । माया हरा देती है । जब तक सेना में हैं, कहेंगे यह कमान्डर है, यह फलाना है । फिर मर पड़ते हैं । यहाँ मरना अर्थात् अवस्था कम होना, माया से हारना । खत्म हो जाते हैं । आश्चर्यवत् सुनन्ती, कथन्ती, भागन्ती.... अहो मम माया..... फारकती देवन्ती हो जाते हैं । मरजीवा बनते हैं, बाप का बनते हैं फिर रामराज्य से रावणराज्य में चले जाते हैं । इस पर ही फिर युद्ध दिखलाई है-कौरव और पाण्डवों की । फिर असुरों और देवताओं की भी युद्ध दिखाई है । एक युद्ध दिखाओ ना । दो क्यों? बाप समझाते हैं यहाँ की ही बात है । लड़ाई तो हिंसा हो जाती, यह तो है ही अहिंसा परमो देवी-देवता धर्म । तुम अभी डबल अहिंसक बनते हो । तुम्हारी है ही योगबल की बात । हथियारों आदि से तुम कोई को कुछ करते नहीं । वह ताकत तो क्रिश्चियन में भी बहुत है । रशिया और अमेरिका दो भाई हैं । इन दोनों की है काम्पीटीशन, बाम्ब्स आदि बनाने की । दोनों एक-दो से ताकत वाले हैं । इतनी ताकत है, अगर दोनों आपस में मिल जाएं तो सारे वर्ल्ड पर राज्य कर सकते हैं । परन्तु लॉ नहीं है जो बाहुबल से कोई विश्व पर राज्य पा सके । कहानी भी दिखाते हैं - दो बिल्ले आपस में लड़े, मक्सन बीच में तीसरा खा गया । यह सब बातें अब बाप समझाते हैं । यह थोड़ेही कुछ जानता था । यह चित्र आदि भी बाप ने ही दिव्य दृष्टि से बनवाये हैं और अब समझा रहे हैं, वह आपस में लड़ते हैं । सारे विश्व की बादशाही तुम ले लेते हो । वह दोनों हैं बहुत पॉवरफुल । जहाँ-तहाँ आपस में लड़ा देते हैं । फिर मदद देते रहते हैं क्योंकि उन्हों का भी व्यापार है जबरदस्त । सो जब दो बिल्ले आपस में लड़े तब तो बारूद आदि काम आये । जहाँ-तहाँ दो को लड़ा देते हैं । यह हिन्दुस्तान-पाकिस्तान पहले अलग था क्या । दोनों इकट्ठे थे, यह सब ड्रामा में नूँध है । अभी तुम पुरुषार्थ कर रहे हो-योगबल से विश्व का मालिक बनें । वह आपस में लड़ते हैं, मक्खन बीच में तुम खा लेते हो । माखन अर्थात् विश्व की बादशाही तुमको मिलती है और बहुत ही सिम्पल रीति मिलती है । बाप कहते हैं-मीठे-मीठे बच्चों, पवित्र जरूर बनना है । पवित्र बन पवित्र दुनिया में चलना है । उनको कहा जाता है वाइसलेस वर्ल्ड, सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया । हरेक चीज सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो में जरूर आती है । बाप समझाते हैं-तुम्हारे में यह बुद्धि नहीं थी क्योंकि शास्त्रों में लाखों वर्ष कह दिया है । भक्ति है ही अज्ञान अन्धियारा । यह भी पहले तुमको पता थोड़ेही था । अब समझते हो वह तो कह देते कलियुग अभी 40 हजार वर्ष और चलेगा । अच्छा,  40 हजार वर्ष पूरा हो फिर क्या होगा? किसको भी यह पता नहीं है इसलिए कहा जाता है अज्ञान नीद में सोये हुए हैं । भक्ति है अज्ञान । ज्ञान देने वाला तो एक ही बाप ज्ञान का सागर है । तुम हो ज्ञान नदियाँ । बाप आकर तुम बच्चों को अर्थात् आत्माओं को पढ़ाते हैं । वह बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है । और कोई भी ऐसे नहीं कहेंगे, यह हमारा बाप, टीचर, गुरू है । यह तो है बेहद की बात । बेहद का बाप, टीचर, सतगुरू है । खुद बैठ समझाते हैं मैं तुम्हारा सुप्रीम बाप हूँ, तुम सब हमारे बच्चे हो । तुम भी कहते हो-बाबा, आप वही हो । बाप भी कहते हैं तुम कल्प-कल्प मिलते हो । तो वह है परम आत्मा, सुप्रीम । वह आकर बच्चों को सब बातें समझाते हैं । कलियुग की आयु 40 हजार वर्ष और कहना बिल्कुल गपोड़ा है । 5 हजार वर्ष में सब आ जाता है । बाप जो समझाते हैं तुम मानते हो, समझते हो । ऐसे नहीं कि तुम नहीं मानते । अगर नहीं मानते तो यहाँ नहीं आते । इस धर्म के नहीं हैं तो फिर मानते नहीं हैं । बाप ने समझाया है सारा मदार भक्ति पर है । जिन्होंने बहुत भक्ति की है तो भक्ति का फल भी उन्हों को मिलना चाहिए । उन्हों को ही बाप से बेहद का वर्सा मिलता हैं । तुम जानते हो हम सो देवता विश्व के मालिक बनते हैं । बाकी थोड़े रोज हैं । इस पुरानी दुनिया का विनाश तो दिखाया हुआ है, और कोई शास्त्र में ऐसी बात है नहीं । एक गीता ही है भारत का धर्म शास्त्र । हरेक को अपना धर्म शास्त्र पढ़ना चाहिए और वह धर्म जिस द्वारा स्थापन हुआ उनको भी जानना चाहिए । जैसे क्रिस्चियन, क्राइस्ट को जानते हैं, उनको ही मानते हैं, पूजते हैं । तुम आदि सनातन देवी-देवता धर्म के हो तो देवताओं को ही पूजते हो । परन्तु आजकल अपने को हिन्दू धर्म का कह देते हैं ।

तुम बच्चे अब राजयोग सीख रहे हो । तुम राजऋषि हो । वह हैं हठयोग ऋषि । रात-दिन का फर्क है । उन्हों का सन्यास है कच्चा, हद का । सिर्फ घरबार छोड़ने का । तुम्हारा सन्यास वा वैराग्य है सारी पुरानी दुनिया को छोड़ने का । पहले-पहले अपने घर स्वीट होम में जाकर फिर नई दुनिया सतयुग में आयेंगे । ब्रह्मा द्वारा आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना होती है । अभी तो यह पतित पुरानी दुनिया है । यह समझने की बातें हैं । बाप द्वारा पढ़ते हैं । यह तो जरूर रीयल हैं ना । इसमें निश्चय न होने की तो बात ही नहीं । यह नॉलेज बाप ही पढ़ाते हैं । वह बाप टीचर भी है, सच्चा सतगुरू भी है, साथ ले जाने वाला । वो गुरू लोग तो आधा पर छोड़कर चले जाते हैं । एक गुरू गया तो दूसरा गुरू करेंगे । उनके चेले को गद्दी पर बिठायेंगे । यहाँ तो है बाप और बच्चों की बात । वह फिर है गुरू और चेले के वर्से का हक । वर्सा तो बाप का ही चाहिए ना । शिवबाबा आते ही हैं भारत में । शिवरात्रि और कृष्ण की रात्रि मनाते हैं ना । शिव की जन्मपत्री तो है नहीं । सुनायें कैसे? उनकी तिथि-तारीख तो होती नहीं । कृष्ण जो पहला नम्बर वाला है, उनकी दिखाते हैं । दीपावली मनाना तो दुनिया के मनुष्यों का काम है । तुम बच्चों के लिए थोड़ेही दीपावली है । हमारा नया वर्ष, नई दुनिया सतयुग को कहा जाता है । अभी तुम नई दुनिया के लिए पढ़ रहे हो । अभी तुम हो पुरूषोत्तम संगमयुग पर । उन कुम्भ के मेलों में कितने ढेर मनुष्य जाते हैं । वह होता है पानी की नदियों पर मेला । कितने ढेर मेले लगते हैं । उन्हों की भी अन्दर बहुत पंचायत होती है । कभी-कभी तो उन्हों का आपस में ही बड़ा झगड़ा हो जाता है क्योंकि देह- अभिमानी हैं ना । यहाँ तो झगड़े आदि की बात ही नहीं । बाप सिर्फ कहते हैं-मीठे-मीठे लाडले बच्चों, मुझे याद करो । तुम्हारी आत्मा जो सतोप्रधान से तमोप्रधान बनी है, खाद पड़ी है ना, वह योग अग्नि से ही निकलेगी । सोनार लोग जानते हैं, बाप को ही पतित-पावन कहते हैं । बाप सुप्रीम सोनार ठहरा । सबकी खाद निकाल सच्चा सोना बना देते हैं । सोना अग्नि में डाला जाता है । यह है योग अर्थात् याद की अग्नि क्योंकि याद से ही पाप भस्म होते हैं । तमोप्रधान से सतोप्रधान याद की यात्रा से ही बनना है । सब तो सतोप्रधान नहीं बनेंगे । कल्प पहले मिसल ही पुरूषार्थ करेंगे । परम आत्मा का भी ड्रामा में पार्ट नूँधा हुआ है, जो नूंध है वह होता रहता है । बदल नहीं सकता । रील फिरता ही रहता है । बाप कहते हैं आगे चल तुमको गुह्य-गुह्य बातें सुनाएंगे । पहले-पहले तो यह निश्चय करना है वह है सब आत्माओं का बाप । उनको याद करना है । मनमनाभव का भी अर्थ यह है । बाकी कृष्ण भगवानुवाच तो है ही नहीं । अगर कृष्ण हो फिर तो सब उनके पास चले आयें । सब पहचान लें  । फिर ऐसे क्यों कहते कि मुझे कोटों में कोई जानते हैं । यह तो बाप समझाते हैं इसलिए मनुष्यों को समझने में तकलीफ होती है । आगे भी ऐसा हुआ था । मैंने ही आकर देवी-देवता धर्म की स्थापना की थी फिर यह शास्त्र आदि सब गुम हो जाते हैं । फिर अपने समय पर भक्ति मार्ग के शास्त्र आदि सब वही निकलेंगे । सतयुग में एक भी शास्त्र नहीं होता । भक्ति का नाम-निशान नहीं । अभी तो भक्ति का राज्य हैं । सबसे बड़े ते बड़े हैं श्री श्री 108 जगतगुरू कहलाने वाले । आजकल तो एक हजार आठ भी कह देते हैं । वास्तव में यह माला है यहाँ की । माला जब फेरते हैं तो जानते हैं फूल निराकार है फिर है मेरू । ब्रह्मा- सरस्वती युगल दाना क्योंकि प्रवृत्ति मार्ग है ना । प्रवृत्ति मार्ग वाले निवृत्ति मार्ग वालों को गुरू करेंगे तो क्या देंगे? हठयोग सीखना पड़े । वह तो अनेक प्रकार के हठयोग हैं, राजयोग है ही एक प्रकार का । याद की यात्रा है ही एक, जिसको राजयोग कहा जाता है । बाकी और सब हैं हठयोग, शरीर की तंदुरुस्ती के लिए । यह राजयोग बाप ही सिखलाते हैं । आत्मा है फर्स्ट फिर पीछे है शरीर । तुम फिर अपने को आत्मा के बदले शरीर समझ उल्टे हो पड़े हो । अब अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो अन्त मती सो गति हो जायेगी । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. इस अनादि अविनाशी बने-बनाये ड्रामा में हरेक के पार्ट को देही- अभिमानी बन, साक्षी होकर देखना है । अपने स्वीट होम और स्वीट राजधानी को याद करना है, इस पुरानी दुनिया को बुद्धि से भूल जाना है ।  

2. माया से हारना नहीं है । याद की अग्नि से पापों का नाश कर आत्मा को पावन बनाने का पुरूषार्थ करना है ।

 

वरदान:-

दृढ़ता की शक्ति से मन-बुद्धि को सीट पर सेट करने वाले सहजयोगी भव !    

बच्चों का बाप से प्यार है इसलिए याद में शक्तिशाली हो बैठने का, चलने का, सेवा करने का अटेंशन बहुत देते हैं लेकिन मन पर अगर पूरा कण्ट्रोल नहीं है, मन आर्डर में नहीं है तो थोड़ा टाइम अच्छा बैठते हैं फिर हिलना डुलना शुरू कर देते हैं । कभी सेट होते कभी अपसेट । लेकिन एकाग्रता की वा दृढ़ता की शक्ति से मन-बुद्धि को एकरस स्थिति की सीट पर सेट कर दो तो सहजयोगी बन जाएंगे ।

 

स्लोगन:- 

जो भी शक्तियां हैं उन्हें समय पर यूज करो तो बहुत अच्छे- अच्छे अनुभव होंगे ।   

 

ओम् शान्ति |