25-12-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - अपने लक्ष्य और लक्ष्य-दाता बाप को याद करो तो दैवीगुण
आ जायेंगे,
किसी को दुःख देना,
ग्लानि करना,
यह सब आसुरी लक्षण हैं” 
प्रश्न:-
बाप
का तुम बच्चों से बहुत ऊंचा प्यार है,
उसकी
निशानी क्या है?
उत्तर:-
बाप
की जो मीठी-मीठी शिक्षायें मिलती हैं,
यह
शिक्षायें देना ही उनके ऊंचे प्यार की निशानी है । बाप की पहली
शिक्षा है - मीठे बच्चे,
श्रीमत के बिगर कोई उल्टा-सुल्टा काम नहीं करना,
2 तुम
स्टूडेंट हो तुम्हें अपने हाथ में कभी भी लॉ नहीं उठाना है ।
तुम अपने मुख से सदैव रत्न निकालो,
पत्थर
नहीं ।
ओम्
शान्ति |
बाप
बैठ बच्चों को समझाते हैं । अब इनको (लक्ष्मी-नारायण) तो अच्छी
रीति देखते हो । यह है एम ऑब्जेक्ट अर्थात् तुम इस घराने के थे
। कितना रात-दिन का फर्क है इसलिए घड़ी-घड़ी इनको टेखना है ।
हमको ऐसा बनना है । इन्हों की महिमा तो अच्छी रीति जानते हो ।
यह पॉकेट में रखने से ही खुशी रहेगी । अन्दर में दुविधा जो
रहती है,
वह
नहीं रहनी चाहिए,
इसको
देह- अभिमान कहा जाता है । देही- अभिमानी हो इन लक्ष्मी-नारायण
को देखेंगे तो समझेंगे हम ऐसे बन रहे हैं,
तो
जरूर इनको देखना पड़े । बाप समझाते हैं तुमको ऐसा बनना है ।
मध्याजी भव,
इनको
देखो,
याद
करो । दृष्टान्त बताते हैं ना-उसने सोचा मैं भैंस हूँ तो वह
अपने को भैंस ही समझने लगा । तुम जानते हो यह हमारा एम
ऑब्जेक्ट है । यह बनने का है । कैसे बनेंगे?
बाप
की याद से । हर एक अपने से पूछे-बरोबर हम इनको देख बाप को याद
कर रहे हैं?
यह
तो समझते हो कि बाबा हमको देवता बनाते हैं । जितना हो सके याद
करना चाहिए । यह तो बाप कहते हैं कि निरन्तर याद रह नहीं सकती
। परन्तु पुरूषार्थ करना है । भल गृहस्थ व्यवहार का कार्य करते
हुए इनको (लक्ष्मी-नारायण को) याद करेंगे तो बाप जरूर याद
आयेगा । बाप को याद करेंगे तो यह जरूर याद पड़ेगा । हमको ऐसा
बनना है । यही सारा दिन धुन लगी रहे । तो फिर एक-दो की ग्लानि
कभी नहीं करेंगे । यह ऐसा है,
फलाना ऐसा है जो इन बातों में लग जाते हैं वह ऊँच पद पा नहीं
सकेंगे । ऐसे ही रह जाते हैं । कितना सहज करके समझाया जाता है
। इनको याद करो,
बाप
को याद करो तो तुम यह बन ही जायेंगे । यहाँ तो तुम सामने बैठे
हो,
सभी
के घर में यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र जरूर होना चाहिए । कितना
एक्यूरेट चित्र है । इनको याद करेंगे तो बाबा याद आयेगा । सारा
दिन और बातों के बदले यही सुनाते रहो । फलाना ऐसा है,
यह
है
किसकी निंदा करना-इसको दुविधा कहा जाता है । तुम्हें अपनी दैवी
बुद्धि बनाना है । किसको दु :ख देना,
ग्लानि करना,
चंचलता करना-यह स्वभाव नहीं होना चाहिए । इसमें तो आधाकल्प रहे
हो । अभी तुम बच्चों को कितनी मीठी शिक्षा मिलती है,
इनसे
ऊंच प्यार दूसरा कोई होता नहीं । कोई भी उल्टा-सुल्टा काम
श्रीमत बिगर नहीं करना चाहिए । बाप ध्यान के लिए भी डायरेक्शन
देते हैं सिर्फ भोग लगाकर आओ । बाबा यह तो कहते नहीं कि
वैकुण्ठ में जाओ,
रास-विलास आदि करो । दूसरी जगह गये तो समझो माया की प्रवेशता
हुई । माया का नम्बरवन कर्तव्य है पतित बनाना । बेकायदे चलन से
नुकसान बहुत होता है । हो सकता है फिर कड़ी सजायें भी खानी पड़े,
अगर
अपने को सम्भालो नहीं तो । बाप के साथ- साथ धर्मराज भी है ।
उनके पास बेहद का हिसाब-किताब रहता है । रावण की जेल में कितना
वर्ष सजायें खाई हैं । इस दुनिया में कितना अपार दु :ख है ।
अभी बाप कहते हैं और सब बातें भूल एक बाप को याद करो और सभी
दुविधा अन्दर से निकाल दो । विकार में कौन ले जाते हैं?
माया
के भूत । तुम्हारा एम ऑब्जेक्ट है ही यह । राजयोग है ना । बाप
को याद करने से यह वर्सा मिलेगा । तो इस धन्धे में लग जाना
चाहिए । किचड़ा सारा अन्दर से निकाल देना चाहिए । माया की
पराकाष्ठा भी बहुत कड़ी है । परन्तु उनको उड़ाते रहना है । जितना
हो सके याद की यात्रा में रहना है । अभी तो निरन्तर याद हो न
सके । आखरीन निरन्तर तक भी आयेंगे तब ही ऊंच पद पायेंगे । अगर
अन्दर दुविधा,
खराब
ख्यालात होंगे तो ऊंच पद मिल नहीं सकता । माया के वश होकर ही
हार खाते हैं ।
बाप
समझाते हैं - बच्चे,
गन्दे काम से हार मत खाओ । निन्दा आदि करते तो तुम्हारी बहुत
बुरी गति हो गई है । अभी सद्गति होती है तो बुरे कर्म मत करो ।
बाबा देखते हैं माया ने गले तक ग्रास (हप) कर लिया है । पता भी
नहीं पड़ता है । खुद समझते हैं हम बहुत अच्छा चल रहे हैं,
परन्तु नहीं । बाप समझाते हैं-मन्सा,
वाचा,
कर्मणा मुख से रत्न ही निकलने चाहिए । गन्दी बातें करना पत्थर
है । अभी तुम पत्थर से पारस बनते हो तो मुख से कभी पत्थर नहीं
निकलने चाहिए । बाबा को तो समझाना पड़ता है । बाप का हक है
बच्चों को समझाना । ऐसे तो नहीं,
भाई
भाई को सावधानी देंगे । टीचर का काम है शिक्षा देना । वह कुछ
भी कह सकते हैं । स्टूडेंट को हाथ में लॉ नहीं उठाना है । तुम
स्टूडेंट हो ना । बाप समझा सकते हैं,
बाकी
बच्चों को तो बाप का डायरेक्शन है एक बाप को याद करो ।
तुम्हारी तकदीर अभी खुली है । श्रीमत पर न चलने से तुम्हारी
तकदीर बिगड़ पड़ेगी फिर बहुत पछताना पड़ेगा । बाप की श्रीमत पर न
चलने से एक तो सजाये खानी पड़े,
दूसरा पद भी भ्रष्ट । जन्म-जन्मान्तर,
कल्प-कल्पान्तर की बाजी है । बाप आकर पढ़ाते हैं तो बुद्धि में
रहना चाहिए-बाबा हमारा टीचर है,
जिनसे यह नई नॉलेज मिलती है कि अपने को आत्मा समझो । आत्मायें
और परमात्मा का मेला कहा जाता है ना । 5 हजार वर्ष बाद मिलेंगे,
इसमें जितना वर्सा लेना चाहो ले सकते हो । नहीं तो बहुत-बहुत
पछतायेंगे,
रोयेंगे । सब साक्षात्कार हो जायेगा । स्कूल में बच्चे
ट्रान्सफर होते हैं तो पिछाड़ी में बैठने वालों को सभी देखते
हैं । यहाँ भी ट्रान्सफर होते हैं । तुम जानते हो यहाँ शरीर
छोड़कर फिर जाए सतयुग में प्रिन्स के कॉलेज में भाषा सीखेंगे ।
वहाँ की भाषा तो सभी को पढ़नी पड़ती है,
मदर
लैंगवेज । बहुतों में पूरा ज्ञान नहीं है फिर पढ़ते भी नहीं है
रेगुलर । एक-दो बार मिस किया तो आदत पड़ जाती है मिस करने की ।
संग है माया के मुरीदों का । शिवबाबा के मुरीद थोड़े हैं । बाकी
सब हैं माया के मुरीद । तुम शिवबाबा के मुरीद बनते हो तो माया
सहन नहीं कर सकती है,
इसलिए सम्भाल बहुत करनी चाहिए । छी-छी गन्दे मनुष्यों से बड़ी
सम्भाल रखनी है । हंस और बगुले हैं ना । बाबा ने रात को भी
शिक्षा दी है,
सारा
दिन कोई न कोई की निंदा करना,
परचिंतन करना,
इनको
कोई दैवीगुण नहीं कहा जाता है । देवतायें ऐसा काम नहीं करते
हैं । बाप कहते हैं बाप और वर्से को याद करो फिर भी निंदा करते
रहते हैं । निंदा तो जन्म-जन्मान्तर करते आये हो । दुविधा
अन्दर रहती ही है । यह भी अन्दर मारामारी है । मुफ्त अपना खून
करते हैं । बहुतों को घाटा डालते हैं । फलाना ऐसा है,
इसमें तुम्हारा क्या जाता है । सबका सहायक एक बाप है । अभी तो
श्रीमत पर चलना है । मनुष्य मत तो बड़ा गन्दा बना देती है ।
एक-दो की ग्लानि करते रहते हैं । ग्लानि करना यह है माया का
भूत । यह है ही पतित दुनिया । तुम समझते हो कि हम अभी पतित से
पावन बन रहे हैं । तो यह बड़ी खराबियाँ हैं । समझाया जाता है आज
से अपना कान पकड़ना चाहिए-कभी ऐसा कर्म नहीं करेंगे । कुछ भी
अगर देखते हो तो बाबा को रिपोर्ट करनी चाहिए । तुम्हारा क्या
जाता है! तुम एक-दो की ग्लानि क्यों करते हो! बाप सुनता तो
सब-कुछ है ना । बाप ने कानों और आँखों का लोन लिया है ना । बाप
भी देखते हैं तो यह दादा भी देखते हैं । चलन,
वातावरण तो कोई-कोई का बिल्कुल ही बेकायदे चलता है । जिनका बाप
नहीं होता है,
उनको
छोरा कहा जाता है । वह अपने बाप को भी नहीं जानते,
याद
भी नहीं करते हैं । सुधरने बदले और ही बिगड़ते हैं,
इसलिए अपना ही पद गँवाते हैं । श्रीमत पर नहीं चलते तो छोरे
हैं । माँ-बाप की श्रीमत पर नहीं चलते हैं । त्वमेव माताक्ष
पिता.... बन्धू आदि भी बनते हैं ।
परन्तु ग्रेट-ग्रेट ग्रैंड फादर ही नहीं तो मदर फिर कहा से
होगी,
इतनी
भी बुद्धि नहीं । माया बुद्धि एकदम फेर देती है । बेहद के बाप
की आज्ञा नहीं मानते हैं तो दण्ड पड़ जाता है । जरा भी सद्गति
नहीं होती है । बाप देखते हैं तो कहेंगे ना-इनकी क्या बुरी गति
होगी । यह तो टांगर,
अक
के फूल हैं । जिसको कोई भी पसन्द नहीं करता है । तो सुधरना
चाहिए ना । नहीं तो पद भ्रष्ट हो जायेंगे । जन्म-जन्मान्तर के
लिए घाटा पड़ जायेगा । परन्तु देह- अभिमानियों की बुद्धि में
बैठता ही नहीं । आत्म- अभिमानी ही बाप से लव कर सकते हैं ।
बलिहार जाना कोई मासी का घर नहीं हैं । बड़े-बड़े आदमी बलिहार तो
जा न सके । वह बलिहार जाने का अर्थ भी नहीं समझते हैं । हृदय
विदीर्ण होता है । बहुत बन्धनमुक्त भी हैं । बच्चा आदि कुछ भी
नहीं है । कहते हैं बाबा आप ही हमारे सब कुछ हो । ऐसे मुख से
कहते हैं परन्तु सच नहीं । बाप से भी झूठ बोल देते हैं ।
बलिहार गये तो अपना ममत्व निकाल देना चाहिए । अभी तो पिछाड़ी है
तो श्रीमत पर चलना पड़े । मिलकियत आदि से भी ममत्व निकल जाए ।
बहुत हैं ऐसे बन्धनमुक्त । शिवबाबा को अपना बनाया है,
एडाप्ट करते हैं ना । यह हमारा बाप टीचर सतगुरू है । हम उनको
अपना बनाते हैं,
उनकी
पूरी मिलकियत लेने । जो बच्चे बन गये हैं वह घराने में जरूर
आते हैं । परन्तु फिर उसमें पद कितने हैं । कितने दास-दासियां
हैं । एक-दो पर हुक्म चलाते हैं । दासियों में भी नम्बरवार
बनते हैं । रॉयल घराने में बाहर के दास-दासियां तो नहीं आयेंगे
ना '
जो
बाप के बने हैं,
उनको
बनना है । ऐसे-ऐसे बच्चे हैं जिनमें पाई का भी अक्ल नहीं हैं ।
बाबा ऐसे तो कहते नहीं कि मम्मा को याद करो वा मेरे रथ को याद
करो । बाप कहते हैं मामेकम याद करो । देह के सब बन्धन छोड़ अपने
को आत्मा समझो । बाप समझाते हैं कि प्रीत रखनी है तो एक से रखो
तब बेड़ा पार होगा । बाप के डायरेक्शन पर चलो । मोहजीत राजा की
कथा भी है ना! पहले नम्बर में हैं बच्चे,
बच्चा तो मिलकियत का मालिक बनेगा । स्त्री तो हाफ पार्टनर है,
बच्चा तो फुल मालिक बन जाता है । तो बुद्धि उस तरफ जाती है,
बाबा
को फुल मालिक बनायेंगे तो यह सब कुछ तुमको दे देंगे । लेन-देन
की बात ही नहीं । यह तो समझ की बात है । भल तुम सुनते हो फिर
दूसरे दिन सब भूल जाता है । बुद्धि में रहेगा तो दूसरों को भी
समझा सकता । बाप को याद करने से तुम स्वर्ग के मालिक बनेंगे ।
यह तो बहुत सहज है,
मुख
चलाते रहो । एम आब्जेक्ट बताते रहो । विशालबुद्धि तो झट
समझेंगे । अन्त में यह चित्र आदि ही काम आयेंगे । इसमें सारा
ज्ञान भरा हुआ है । लक्ष्मी-नारायण और राधे-कृष्ण का आपस में
क्या सम्बन्ध है?
यह
कोई नहीं जानते । लक्ष्मी-नारायण तो जरूर पहले प्रिन्स होंगे ।
बेगर टू प्रिन्स है ना! बेगर टू किंग नहीं कहा जाता । प्रिन्स
के बाद ही किंग बनते हैं । यह तो बहुत ही सहज है परन्तु माया
कोई को पकड़ लेती है,
किसकी निंदा करना,
ग्लानि करना - यह तो बहुतों की आदत है । और तो कोई काम है ही
नहीं । बाप को कभी याद नहीं करेंगे । एक-दो की ग्लानि का धन्धा
ही करते हैं । यह है माया का पाठ । बाप का पाठ तो बिल्कुल ही
सीधा है । पिछाड़ी में यह सन्यासी आदि जागेंगे,
कहेंगे कि ज्ञान है तो इन बी.के. में हैं । कुमार-कुमारियां तो
पवित्र होते हैं । प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे हैं । हमारे में
कोई खराब ख्याल भी नहीं आना चाहिए । बहुतों को अभी भी खराब
ख्यालात आते हैं,
फिर
इसकी सजा भी बहुत कड़ी है । बाप समझाते तो बहुत हैं । अगर कुछ
चाल तुम्हारी फिर खराब देखी तो यहाँ रह नहीं सकेंगे । थोड़ी सजा
भी देनी होती है,
तुम
लायक नहीं हो । बाप को ठगते हो । तुम बाप को याद कर नहीं
सकेंगे । अवस्था सारी गिर जाती है । अवस्था गिरना ही सजा है ।
श्रीमत पर न चलने से अपना पद भ्रष्ट कर देते हैं । बाप के
डायरेक्शन पर न चलने से और ही भूत की प्रवेशता होती है । बाबा
को तो कभी-कभी ख्याल आता है,
कही
बहुत बड़ी कड़ी सजायें अभी ही शुरू न हो जायें । सजायें भी बहुत
गुप्त होती हैं ना । कहीं कड़ी पीड़ा न आये । बहुत गिरते हैं,
सजा
खाते हैं । बाप तो सब ईशारे में समझाते रहते हैं । अपनी तकदीर
को लकीर बहुत लगाते हैं इसलिए बाप खबरदार करते रहते हैं,
अभी
गफलत करने का समय नहीं है,
अपने
को सुधारो । अन्त घड़ी आने में कोई देरी नहीं है । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
कोई भी
बेकायदे,
श्रीमत के विरूद्ध चलन नहीं चलनी है । स्वयं को स्वयं ही
सुधारना है । छी-छी गन्दे मनुष्यों से अपनी सम्भाल करनी है ।
2.
बन्धनमुक्त हैं तो पूरा-पूरा बलिहार जाना है । अपना ममत्व
निकाल देना है । कभी भी किसी की निंदा वा परचिंतन नहीं करना है
। गन्दे खराब ख्यालातों से स्वयं को मुक्त रखना है ।
वरदान:-
समर्थ स्थिति का स्विच आन कर व्यर्थ के अंधकार को समाप्त करने
वाले अव्यक्त फरिश्ता
भव ! 
जैसे
स्थूल लाइट का स्विच आन करने से अंधकार समाप्त हो जाता है ।
ऐसे समर्थ स्थिति है स्विच । इस स्विच को आन करो तो व्यर्थ का
अंधकार समाप्त हो जायेगा । एक-एक व्यर्थ संकल्प को समाप्त करने
की मेहनत से छूट जायेंगे । जब स्थिति समर्थ होगी तो
महादानी-वरदानी बन जायेंगे क्योंकि दाता का अर्थ ही है समर्थ ।
समर्थ ही दे सकता है और जहाँ समर्थ है वहाँ व्यर्थ खत्म हो
जाता है । तो यही अव्यक्त फरिश्तों का श्रेष्ठ कार्य है ।
स्लोगन:-
सत्यता
के आधार से सर्व आत्माओं के दिल की दुआयें प्राप्त करने वाले
ही भाग्यवान आत्मा है । 
ओम्
शान्ति |