16-11-14
प्रातः मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त
बापदादा”
रिवाइज
04-01-79
मधुबन
“सम्पूर्णता
के आईने में निज स्वरूप को देखो”
आज
बापदादा ब्राह्मण बच्चों की आदि से अब तक के जीवन में,
ब्राह्मणों का जो विशेष कर्तव्य है - विनाश और स्थापना का,
उस
कर्तव्य में हरेक किस रफ्तार से चल रहे हैं,
उस
कर्तव्य की गति को देख रहे हैं । कहाँ तक अपने कर्तव्य की
जिम्मेवारी निभाई है और आगे भी कितनी रही हुई है?
ब्राह्मणों का कर्तव्य के आधार से विशेष टाइटिल है - विश्व
कल्याणकारी,
विश्व के आधारमूर्त,
विश्व के उद्धारमूर्त,
विश्व के परिवर्तक । तो जैसे टाइटिल हैं उसी प्रमाण कर्तव्य का
प्रैक्टिकल रूप कहाँ तक हुआ है और कहाँ तक होना है?
हरेक
अपने कर्तव्य की परसेंटेज को देखो । समय प्रमाण स्पीड तीव्र है
या अभी तीव्र होनी है?
पहली
बात स्वयं को चेक करो - स्वयं प्रति विनाश और स्थापना के
कर्तव्य में पास्ट के हिसाब-किताब,
पुराने स्वभाव-संस्कार कहाँ तक विनाश किए हैं?
और
नये स्वभाव-संस्कार अर्थात् बाप समान स्वभाव- संस्कार की
स्थापना कहाँ तक की है?
सम्पूर्ण विनाश किया है वा अधूरा किया है?
जितना पुराना विनाश किया है उतना नया संस्कार वा स्वभाव धारण
होगा । तो चेक करो किस गति से यह कार्य कर रहे हैं?
दूसरी बात,
स्वयं के सम्पर्क में आने वाली आत्मायें वा सम्बन्ध में रहने
वाली आत्माएं जो हैं उन्हों के पुराने संस्कार - स्वभाव देखते
हुए न देखो अर्थात् अपने कर्तव्य की स्मृति द्वारा वा अपने
टाइटिल की समर्थी द्वारा उन आत्माओं में भी परिवर्तन करने के
कार्य की गति कहाँ तक है?
चैरिटी बिगेन्स एट होम किया है?
कितनी भी तमोगुणी आत्मा हो,
लेकिन ब्राह्मणों के कर्तव्य प्रमाण सदा ऐसी आत्माओं के प्रति
भी कल्याण की भावना रहती है वा घृणा की भावना रहती है?
रहम
आता है वा रोब में आते हो?
रोब
में आकर बाप के आगे वा निमित्त बनी हुई आत्माओं के आगे बार-बार
उन आत्माओं के प्रति प्रोब (सिद्ध) करते रहते - यह ऐसे करते,
यह
ऐसे कहते । ऐसे,
वैसे
क्यों?
यह
प्रोब करते हैं ।
तीसरी बात,
विश्व की सर्व आत्माओं प्रति सदा संकल्प में कल्याण करने की
क्षति रहती है?
बेहद
की सेवा अर्थात् विश्व सेवा की जिम्मेवारी समझते हुए चलते हो?
मन्सा द्वारा भी विश्व प्रति अपनी शक्तियों के खजाने वा ज्ञान,
गुणों के खजाना को महादानी बन दान करते रहते हो?
अपने
को विश्व के आगे अथॉरिटी समझते हो?
वा
जहाँ निवास करते हो उस देश वा गाँव की अथॉरिटी समझते हो?
प्रैक्टिकल स्मृति में क्या सेवा रहती है?
सामने हद आती है या बेहद?
संकल्प में इतनी समर्थी है जो विश्व की आत्माओं तक शक्तिशाली
संकल्प द्वारा सेवा कर सको?
वृत्ति की शुद्धि अनुसार वायुमण्डल को शुद्ध कर सको । वृत्ति
की शक्ति है - शुद्धि अर्थात् प्युरिटी । प्युरिटी का आधार है
- भाई- भाई की स्मृति की वृत्ति । तो यह वृत्ति कहाँ तक बनी है?
इसी
प्रकार अपने कर्तव्य की गति और विधि को चेक करो । जब तक स्वयं
में विनाश और स्थापना का प्रैक्टिकल स्वरूप नहीं लाया है तब तक
विश्व में कर्तव्य की प्रत्यक्षता होना भी,
स्वयं की गति के प्रमाण ही होगा क्योंकि आज विश्व की आत्मायें
देखकर सौदा करने वाली हैं,
सिर्फ सुनकर मानने वाली नहीं हैं । अपनी यथार्थ मान्यताओं को
मानने के लिए पहले स्वयं उन मान्यताओं का स्वरूप बनना पड़े ।
जिस स्वरूप के सैम्पुल द्वारा सौदा सिम्पुल समझ में आयेगा ।
नहीं तो अब तक अनेक अल्पज्ञ अयथार्थ मान्यताओं द्वारा मैजारटी
आत्मायें विश्व परिवर्तन वा स्वयं का परिवर्तन अति मुश्किल वा
असम्भव समझ बैठी है,
इस
कारण दिलशिकस्त की बीमारी ज्यादा है । जैसे आजकल शारीरिक रोग
हार्टफेल का ज्यादा हैं,
वैसे
आध्यात्मिक उन्नति में दिलशिकस्त का रोग ज्यादा है । ऐसी
दिलशिकस्त आत्माओं को प्रैक्टिकल परिवर्तन द्वारा ही अर्थात्
आँखों देखी वस्तु द्वारा ही हिम्मत वा शक्ति आ सकती है । सुना
बहुत हैं अब देखना चाहते हैं । प्रमाण द्वारा परिवर्तन चाहते
हैं । तो विश्व परिवर्तन के लिए वा विश्व कल्याण के लिए सदा
स्व-कल्याण पहले सैम्पुल के रूप में दिखाओ । अब समझा कर्तव्य
के लिए क्या चेक करना है?
विश्व कल्याण की सेवा के क्षेत्र में सहज सफलता का साधन -
प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा बाप की प्रत्यक्षता है । जो बोले वह
देखें । बोलते हो कि हम ब्राह्मण आलमाइटी अथॉरिटी हैं,
मास्टर सर्वशक्तिमान हैं,
मायाजीत हैं,
रहमदिल हैं,
रूहानी सेवाधारी हैं । तो जो बोलते हो वह प्रैक्टिकल स्वरूप
देखना चाहते हैं । नाम मास्टर सर्वशक्तिमान और स्वयं के व्यर्थ
संकल्प को भी समाप्त नहीं कर सके तो विश्व कल्याणकारी कौन
मानेगा! चलते-चलते स्वयं के संस्कार-स्वभाव परिवर्तन करने में
दिलशिकस्त होने वाले को विश्व परिवर्तक कौन मानेगा! स्वयं ही
सहयोग मांगने वाले को वरदानी कौन मानेगा! इसलिए सम्पूर्णता के
आइने में स्वयं का स्वरूप देखो । स्वयं को सम्पन्न बनाए
सैम्पुल बनो । समझा क्या करना है?
इस
वर्ष स्वयं को सम्पन्न बनाए विश्व कल्याणकारी बनो । चेक भी करो
और चेन्ज भी करो ।
पहले
गुजरात आरम्भ करे - जब सुनने में इतनी खुशी होती है तो बनने
में कितनी खुशी होगी । गुजरात की धरनी वैसे भी सात्विक है - तो
गुजरात को सेम्पुल तैयार करने चाहिए । जिसको देखो वह सेम्पुल
नज़र आए । गुजरात ने विस्तार अच्छा किया है । वृद्धि भी अच्छी
है - अब बाकी क्या करना है?
ऐसी
विधि करो - जो ऐसा वायुमण्डल पावरफुल हो जिससे विघ्नों का
विनाश भी हो और विश्व की आत्माओं की आकर्षण भी ऐसे रूहानी
वायुमण्डल के तरफ हो । गुजरात को लाइट हाउस बनाओ । न सिर्फ
गुजरात लाइट हाउस हो बल्कि विश्व लाइट हाउस,
जिस
द्वारा विश्व की आत्माओं को स्वयं के वा बाप के परिचय की रोशनी
मिले । परमात्म बाम्ब आरम्भ करो । ऐसा बाम्ब फैंका जो एक ठका
होने से ही आत्मायें दौड़ती हुई अपने एसलम में पहुँच जायें ।
पहले गुजरात आबू में क्यू शुरू करे । जो ओटे सो अर्जुन हो
जायेगा । अर्जुन अर्थात् पहला नम्बर । अच्छा ।
ऐसे
सदा सेवाधारी सेकेण्ड वा संकल्प भी सेवा के बिना चैन न आवे,
निरन्तर योगी,
निरन्तर सेवाधारी सर्व प्रकार की सेवा में प्रत्यक्षफल दिखाने
वाले ऐसे प्रत्यक्ष प्रमाण बन विश्व का कल्याण करने वाली
आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते ।
पार्टियों से मुलाकात
1 -
संगमयुग के समय हर कदम में पदमों की कमाई का चान्स
सदा
बाप की याद में रहते हुए हर कदम उठाते पदमों की कमाई जमा करते
रहते हो?
यह
जो गायन है हर कदम में पदम,
यह
कीन्हों का है?
आप
सबका है ना । इस संगम पर ही पदमों की कमाई की खान मिलती है ।
फिर सारे कल्प में यह चान्स नहीं मिलता । संगमयुग है जमा करने
का युग,
सतयुग को भी प्रालब्ध का युग कहेंगे,
जमा
करने का नहीं । अभी जमा करने का युग है,
जितना जमा करना चाहो उतना जमा कर सकते हो । तो कितना जमा किया
है वा करते जा रहे हो?
जितना करना चाहिए उतना कर रहे हो वा जितने और उतने में अन्तर
है?
एक
कदम अर्थात् एक सेकेण्ड भी बिना जमा के न जाए अर्थात् व्यर्थ न
हो । इतना अटेंशन रहता है ।
सतयुग में भी विश्व महाराजा वा राजा बनने का आधार इस समय के
जमा करने पर है । तो क्या बनेंगे,
बड़े
महाराजा या छोटे राजा?
बड़े
राजे जो होंगे उन्हों के पास अनगिनत सम्पत्ति होगी,
तो
इतनी अनगिनत कमाई जमा की है?
सदा
भण्डारा भरपूर है?
अप्राप्त नहीं कोई वस्तु ऐसे संस्कार अभी हैं । सदा तृप्त
आत्मा अप्राप्त कुछ नहीं,
ऐसे
हैं?
अब
सभी बन्धन कांटो । थोड़ा सहयोग दो,
ऐसे
तो नहीं,
सहयोग मिले,
आगे
बढ़ाया जाए तो आगे बढ़ें,
इससे
सिद्ध है कि सम्पन्न नहीं हैं । स्वयं की शक्ति में कमी है तब
दूसरे की शक्ति से आगे बढ़ाये तब बढ़ेंगे । तो क्या इसको ही
तृप्त वा सम्पन्न आत्मा कहेंगे?
बापदादा तो स्वत: ही दाता है,
देते
ही रहेंगे,
वह
मांगने की भी जरूरत नहीं । तो ऐसे तृप्त आत्मा भविष्य में अखुट
खजाने के मालिक होंगे,
अभी
से संस्कार भरेंगे तब भविष्य में होंगे । अच्छा ।
2.
फर्स्ट जन्म की सम्पन स्टेज तक पहुंचने का साधन – हाईजम्प
अभी
पुरुषार्थ का समय गया,
क्योंकि समय की स्पीड बहुत तीव्र है,
पीछे
आने वालों को थोड़े समय में सब पढ़ाई पूरी करनी है इसलिए तीव्र
पुरुषार्थ कर हाईजम्प लगाओ । तीव्र पुरुषार्थ के लिए सिर्फ एक
बात का अटेंशन रखो - अपनी सम्पूर्ण स्टेज को सामने रखते
वर्तमान का पोतामेल चेक करो - सम्पूर्ण स्टेज
16
कला है,
तो
16
कलाओं में कितनी कलायें मैंने धारण की,
ऐसे
चेक करते जाओ,
जो
कमी है उसको भरते जाओ इसको कहा जाता है पुरुषार्थ । अच्छा ।
विदाई के समय -
जैसे बाप बच्चों को देख खुश होते हैं वैसे हर बच्चा सदैव खुशी
में नाचता रहे । वह खुशी का चेहरा वाणी से ज्यादा सेवा करता है,
चेहरा चैतन्य चलता फिरता म्युजियम हो जाए,
जैसे
म्युजियम में भिन्न-भिन्न चित्र रखते हो,
वैसे
चेहरे में बाप के सर्व गुण दिखाई दें । मुख की सर्विस में तो
जाकर के सुनाना पड़ता हैं,
चेहरे द्वारा न बुलाते भी आप ही आएंगे । तो अभी सब अपने को
चैतन्य म्यूजियम बनाओ । जब इतने सारे म्युजियम बन जायेंगे तभी
स्वर्ग का उद्घाटन होगा । ब्रह्मा बाप इसी उद्घाटन के लिए रुके
हुए हैं,
तो
जल्दी तैयार हो जाओ तो जल्दी उद्घाटन हो । कब उद्घाटन करेंगे?
डेट
फिक्स हो सकती है कि अचानक होगा,
क्या
होगा?
संगमयुग तो अच्छा है लेकिन सबको सुख और शान्ति दैने का भी
संकल्प चाहिए,
औरों
को दु:खी देख,
तड़फता हुआ देख रहम भी तो आना चाहिए ना । अच्छा - ओम शान्ति
वरदान:-
अविनाशी नशे में रह रूहानी मज़े और मौज का अनुभव करने वाले
ब्राह्मण सो फरिश्ता
भव ! 
आप
ब्राह्मण सो फरिश्ते देवताओं से भी ऊंचे हो,
देवताई जीवन में बाप का ज्ञान इमर्ज नहीं होगा । परमात्म मिलन
का अनुभव भी नहीं होगा इसलिए अभी सदा यह नशा रहे कि हम देवताओ
से भी ऊंच ब्राह्मण सो फरिश्ता हैं । यह अविनाशी नशा ही रूहानी
मजे और मौज का अनुभव कराने वाला है । अगर नशा सदा नहीं रहेगा
तो कभी मजे में रहेंगे,
कभी
मूझेंगे ।
स्लोगन:-
अपनी
सेवा को भी बाप के आगे अर्पित कर दो तब कहेंगे समर्पित आत्मा । 
ओम्
शान्ति |