24-07-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - माया रावण के संग में आकर तुम भटक गये,
पवित्र पौधे अपवित्र बन गये,
अब फिर पवित्र बनो
।“ 
प्रश्न:-
हर
एक बच्चे को अपने ऊपर कौन-सा वन्डर लगता है?
बाप
को बच्चों पर कौन-सा वन्डर लगता है?
उत्तर:-
बच्चों को वन्डर लगता कि हम क्या थे,
किसके
बच्चे थे,
ऐसे
बाप का हमें वर्सा मिला था,
उस
बाप को ही हम भूल गये । रावण आया इतनी फागी आ गई जो रचयिता और
रचना सब भूल गया । बाप को बच्चों पर वन्डर लगता,
जिन
बच्चों को मैंने इतना ऊंच बनाया,
राज्य- भाग्य दिया,
वही
बच्चे मेरी ग्लानि करने लगे । रावण के संग में आकर सब कुछ गँवा
दिया ।
ओम्
शान्ति
|
क्या
सोच रहे हो?
नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार हर एक की जीव आत्मा अब अपने ऊपर
वन्डर खा रही है कि हम क्या थे,
किसके बच्चे थे और बरोबर बाप से वर्सा मिला था,
फिर
कैसे हम भूल गये! हम सतोप्रधान दुनिया में सारे विश्व के मालिक
थे,
बहुत
सुखी थे । फिर हम सीढ़ी उतरे । रावण आया गोया इतनी फागी आ गई जो
रचता और रचना को हम भूल गये । फागी में मनुष्य रास्ता आदि भूल
जाते हैं ना । तो हम भी भूल गये-हमारा घर कहाँ है,
कहाँ
के रहने वाले थे । अब बाबा देख रहे हैं हमारे बच्चे,
जिन्हें हम आज से 5 हजार वर्ष पहले राज्य- भाग्य देकर गये,
बड़े
आनन्द मौज में थे,
यह
भूमि फिर क्या हो गई! कैसे रावण के राज्य में आ गये! पराये
राज्य में तो जरूर दुःख ही मिलेगा । कितने तुम भटके! अन्धश्रधा
में बाप को ढूँढते रहे परन्तु मिले कहाँ । जिसको पत्थर-ठिक्कर
में डाल दिया तो मिलेगा फिर कैसे । आधाकल्प तुम भटक- भटक कर
जैसे फाँ हो गये । अपने ही अज्ञान के कारण रावण राज्य में
तुमने कितना दु :ख उठाया है । भारत भक्ति मार्ग में कितना गरीब
बन गया है । बाप बच्चों की तरफ देखते हैं तो ख्याल होता है
भक्ति मार्ग में कितना भटके हैं! आधाकल्प भक्ति की है,
किसलिए?
भगवान् से मिलने लिए । भक्ति के बाद ही भगवान् फल देते हैं ।
क्या देते हैं?
वह
तो कोई जानते नहीं,
बिल्कुल बुद्धु बन गये हैं । यह सब बातें बुद्धि में आनी
चाहिए-हम क्या थे फिर कैसे राज्य- भाग्य करते थे फिर कैसे सीढ़ी
नीचे उतरते-उतरते रावण की जंजीरों में बंधते गये । अपरमअपार
दुःख थे । पहले-पहले तुम अपरमअपार सुख में थे । तो दिल में आना
चाहिए,
अपने
राज्य में कितना सुख था फिर पराये राज्य में कितना दु :ख उठाया
। जैसे वो लोग समझते हैं अंग्रेजों के राज्य में हमने दु :ख
उठाया है । अब तुम बैठे हो,
अन्दर में यह ख्याल आना चाहिए हम कौन थे,
किसके बच्चे थे?
बाप
ने हमको सारे विश्व का राज्य दिया फिर कैसे हम रावण राज्य में
जकड़ गये । कितने दुःख देखे,
कितने गन्दे कर्म किये । सृष्टि दिन-प्रतिदिन गिरती ही गई है ।
मनुष्यों के संस्कार दिन-प्रतिदिन क्रिमिनल होते गये हैं । तो
बच्चों को स्मृति में आना चाहिए । बाप देखते हैं यह पवित्र
पौधे थे,
जिसको राज्य- भाग्य दिया वह फिर मेरे आक्यूपेशन को ही भूल गये
। अब फिर तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना चाहते हो तो मुझ बाप
को याद करो तो सब पाप कट जायें । परन्तु याद भी नहीं कर सकते,
घड़ी-घड़ी कहते हैं बाबा हम भूल जाते हैं । अरे,
तुम
याद नहीं करेंगे तो पाप कैसे कटेंगे?
एक
तो तुम विकारों में गिर पतित बने और दूसरा फिर बाप को गाली
देने लगे । माया के संग में तुम इतना गिर पड़े जो जिसने तुमको
आसमान में चढ़ाया उनको ठिक्कर-भित्तर में ले गये । माया के संग
में तुमने ऐसा काम किया है! बुद्धि में आना चाहिए ना । एकदम
पत्थरबुद्धि तो नहीं बनना चाहिए । बाप रोज़-रोज़ कहते हैं मैं
फर्स्टक्लास प्वाइंट तुमको सुनाता हूँ ।
जैसे
बाम्बे में संगठन हुआ तो उसमें बतला सकते हैं कि बाप कहते
हैं-हे भारत-वासियों,
तुमको हमने राज्य- भाग्य दिया । तुम देवतायें हेविन में थे फिर
तुम रावण राज्य में कैसे आये,
यह
भी ड्रामा में पार्ट है । तुम रचता और रचना के आदि-मध्य- अन्त
को समझो तब ऊँच पद पा सको । और मेरे को याद करो तो तुम्हारे
विकर्म विनाश हो । यहाँ भल सब बैठे हैं फिर भी किसकी बुद्धि
कहाँ,
किसकी बुद्धि कहाँ है । बुद्धि में आना चाहिए - हम कहाँ थे,
अब
हम पराये रावण राज्य में आकर पड़े हैं,
तो
कितने दु :खी हुए हैं । हम शिवालय में तो बहुत सुखी थे । अब
बाप आये हैं वेश्यालय से निकालने,
तो
भी निकलते ही नहीं । बाप कहते हैं तुम शिवालय चलेंगे फिर वहाँ
यह विष नहीं मिलेगा । यहाँ का गन्दा खान-पान नहीं मिलेगा । यह
तो विश्व के मालिक थे ना । फिर यह कहाँ गये?
फिर
से अपना राज्य- भाग्य ले रहे हैं । कितना सहज है । यह तो बाप
समझाते हैं,
सब
सर्विसएबुल नहीं होंगे । नम्बरवार राजधानी स्थापन करनी है,
जैसे
5 हजार वर्ष पहले की थी । सतोप्रधान बनना है,
बाप
कहते हैं यह है तमोप्रधान पुरानी दुनिया । एक्यूरेट पुरानी जब
होगी तब तो बाप आयेंगे ना । बाप बिगर तो कोई समझा न सके ।
भगवान् इस रथ द्वारा हमको पढ़ा रहे हैं,
यह
याद रहे तो भी बुद्धि में ज्ञान हो । फिर औरों को बताकर आपसमान
भी बनाये । बाप समझाते हैं पहले तो तुम्हारे क्रिमिनल
कैरेक्टर्स थे,
जो
मुश्किल सुधरते हैं । आँखों की क्रिमिनलिटी निकलती नहीं है ।
एक तो काम की क्रिमिनलिटी वह मुश्किल छूटती है फिर साथ में 5
विकार हैं । क्रोध की क्रिमिनलिटी भी कितनी है । बैठे-बैठे भूत
आ जाता है । यह भी क्रिमिनलिटी हुई । सिविलाइज्ड तो हुए नहीं ।
नतीजा क्या होगा! सौ गुणा पाप चढ़ जायेगा । घड़ी-घड़ी क्रोध करते
रहेंगे । बाप समझाते हैं तुम अभी रावण राज्य में तो नहीं हो ना
। तुम तो ईश्वर के पास बैठे हुए हो । तो इन विकारों से छूटने
की प्रतिज्ञा करनी है । बाप कहते हैं अब मुझे याद करो । क्रोध
मत करो । 5 विकार तुमको आधाकल्प गिराते आये हैं । सबसे ऊंच भी
तुम थे । सबसे जास्ती गिरे भी तुम हो । इन 5 भूतों ने तुमको
गिराया है । अब शिवालय में जाने के लिए इन विकारों को निकालना
है । इस वेश्यालय से दिल हटाते रहो । बाप को याद करो तो अन्त
मती सो गति हो जायेगी । तुम घर में पहुँच जायेंगे और कोई यह
रास्ता बता नहीं सकते । भगवानुवाच,
मैंने तो कभी भी कहा नहीं है कि मैं सर्वव्यापी हूँ । मैंने तो
राजयोग सिखाया और कहा तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ फिर वहाँ
तो इस नॉलेज की दरकार ही नहीं रहती । मनुष्य से देवता बन जाते
हैं,
तुम
वर्सा पा लेते हो । इसमें हठयोग आदि की बात नहीं । अपने को
आत्मा समझो,
अपने
को शरीर क्यों समझते हो । शरीर समझने से फिर ज्ञान उठा नहीं
सकते । यह भी भावी । तुम समझते हो हम रावणराज्य में थे,
अब
रामराज्य में जाने के लिए पुरूषार्थ कर रहे हैं । अभी हम
पुरूषोत्तम संगमयुग वासी हैं ।
भल
गृहस्थ में रहो । इतने सब यहाँ कहाँ रहेंगे । ब्राह्मण बनकर सब
यहाँ ब्रह्मा के पास भी नहीं रह सकते हैं । रहना भी अपने घर
में है और बुद्धि से समझना है - हम शूद्र नहीं,
हम
ब्राह्मण हैं । ब्राह्मणों की चोटी कितनी छोटी है । तो गृहस्थ
में रहते,
शरीर
निर्वाह लिए धन्धा आदि करते सिर्फ बाप को याद करो । हम क्या थे,
अब
हम पराये राज्य में बैठे हैं । कितना हम दु :खी थे । अब बाबा
हमको फिर ले जाते हैं तो गृहस्थ व्यवहार में रहते वह अवस्था
जमानी है । शुरू में कितने बड़े-बड़े झाड़ आये,
फिर
उनसे कोई रहे,
बाकी
चले गये । तुम्हारी बुद्धि में है हम अपने राज्य में थे फिर
अभी कहाँ आकर पड़े हैं । फिर अपने राज्य में जाते हैं । तुम
लिखते हो,
कहते
हो बाबा फलाना बहुत अच्छा रेग्युलर था फिर आते नहीं । नहीं आते
हैं तो गोया विकार में गिरे । फिर ज्ञान की धारणा हो न सके ।
उन्नति के बदले गिरते-गिरते पाई पैसे का पद पा लेंगे । कहाँ
राजा,
कहाँ
नीच पद! भल सुख तो वहाँ है ही परन्तु पुरूषार्थ किया जाता है
ऊंच पद पाने का । बड़ा मर्तबा कौन पा सकते हैं?
यह
तो सभी समझ सकते हैं,
अभी
सब पुरूषार्थ कर रहे हैं । किंग महेन्द्र (भोपाल के) भी
पुरूषार्थ कर रहा है । वह किंग तो पाई पैसे के हैं,
यह
तो सूर्यवंशी राजधानी में जाने वाला है । पुरूषार्थ ऐसा हो जो
विजय माला में जा सकें । बाप बच्चों को समझाते हैं- अपने दिल
में जांच करते रहना है - हमारी आँखें कहाँ क्रिमिनल तो नहीं
होती हैं?
अगर
सिविलाइज़ हो जाए तो बाकी क्या चाहिए । भल विकार में नहीं
जायेंगे परन्तु कुछ न कुछ आँखें धोखा देती रहती हैं । नम्बरवन
है काम,
क्रिमिनल आई बड़ी खराब है इसलिए नाम ही है क्रिमिनल- आइज्ड,
सिविल- आइज्ड । बेहद का बाप बच्चों को जानते तो हैं ना-यह क्या
कर्म करते हैं,
कितनी सर्विस करते हैं?
फलाने की क्रिमिनल- आइज अभी तक गई नहीं है,
अभी
तक ऐसे गुप्त समाचार आते हैं । आगे चल और भी एक्यूरेट लिखेंगे
। खुद भी फील करेंगे हम तो इतना समय झूठ बोलते,
गिरते आये हैं । ज्ञान पूरा बुद्धि में बैठा नहीं था । यही
कारण था जो हमारी अवस्था नहीं बनी । बाप से हम छिपाते थे । ऐसे
बहुत छिपाते हैं । सर्जन से 5 विकारों की बीमारी छिपानी नहीं
है,
सच
बताना चाहिए-हमारी बुद्धि इस तरफ जाती है,
शिवबाबा तरफ नहीं जाती । बताते नहीं हैं तो वह वृद्धि को पाती
रहती है । अब बाप समझाते हैं-बच्चे,
देही- अभिमानी बनो,
अपने
को आत्मा समझो । आत्मा भाई- भाई है । तुम कितने सुखी थे जब
पूज्य थे । अब तुम पुजारी दु :खी बन पड़े हो । तुमको क्या हो
गया! सब कहते हैं यह गृहस्थ आश्रम तो परमपरा से चला आया है ।
क्या राम-सीता को बच्चे नहीं थे! लेकिन वहाँ विकार से बच्चे
नहीं होते । अरे,
वह
तो है ही सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया । वहाँ भ्रष्टाचार से
पैदाइस नहीं होती,
विकार नहीं था । वहाँ यह रावण राज्य होता ही नहीं,
वह
तो राम राज्य है । वहाँ रावण कहाँ से आया । मनुष्यों की बुद्धि
बिल्कुल चट खाते में हैं । किसने की?
मैंने तुमको सतोप्रधान बनाया था,
तुम्हारा बेड़ा पार किया था फिर तुमको तमोप्रधान किसने बनाया?
रावण
ने । यह भी तुम भूल गये हो । कहते हैं यह तो परम्परा से चला
आता है,
अरे,
परम्परा कब से?
कोई
हिसाब तो बताओ । कुछ भी समझते नहीं । बाप समझाते हैं-तुमको
कितना राज्य- भाग्य देकर गये । तुम भारतवासी बहुत ही खुशी में
थे,
और
कोई था ही नहीं । क्रिस्चियन भी कहते हैं पैराडाइज था,
चित्र भी देवताओं के हैं,
उनसे
कोई पुरानी चीज़ तो है नहीं । पुराने ते पुराने यह
लक्ष्मी-नारायण होंगे या इन्हों की कोई वस्तु होगी । सबसे
पुराने ते पुराना है श्रीकृष्ण । नये से नया भी श्रीकृष्ण था ।
पुराना क्यों कहते?
क्योंकि पास्ट हो गया ना । तुम ही गोरे थे फिर सांवरे बने ।
सांवरे कृष्ण को भी देखकर बड़ा खुश होते हैं । झूले में भी
सांवरे को झुलायेगे । उनको क्या पता कि गोरा कब था । कृष्ण को
कितना प्यार करते हैं! राधे ने क्या किया?
बाप
कहते हैं तुम यहाँ सत के संग में बैठे हो,
बाहर
कुसंग में जाने से फिर भूल जाते हो । माया बड़ी प्रबल है,
गज
को ग्राह हप कर लेते हैं । ऐसे भी हैं - अभी भागे कि भागे ।
थोड़ा भी अपना अहंकार आने से और ही सत्यानाश कर लेते हैं । बेहद
का बाप तो समझाते रहेंगे । इसमें फंक नहीं होना चाहिए । बाबा
ने ऐसे क्यों कहा,
हमारी इज्जत गई! अरे इज्जत तो रावण राज्य में चट हो ही गई है ।
देह- अभिमान में आने से अपना ही नुकसान कर देंगे । पद भ्रष्ट
हो पड़ेगा । क्रोध,
लोभ
भी क्रिमिनल आई है । आँखों से चीज देखते हैं,
तब
तो लोभ होता है ।
बाप
आकर अपना बगीचा देखते हैं किस-किस किस्म के फूल हैं । यहाँ से
जाकर फिर उस बगीचे में फूलों को देखते हैं । शिवबाबा को फूल भी
बरोबर चढ़ाते हैं । वह तो है निराकार,
चैतन्य फूल । तुम अभी पुरूषार्थ कर ऐसा फूल बनते हो । बाबा
कहते हैं-मीठे-मीठे बच्चों,
जो
कुछ बीता,
उसको
ड्रामा समझो । सोचो नहीं । कितनी मेहनत करते हैं,
होता
तो कुछ नहीं,
ठहरता नहीं । अरे,
प्रजा भी तो चाहिए ना । थोड़ा भी सुना तो वह प्रजा हो गई ।
प्रजा तो ढेर बननी है । ज्ञान कभी विनाश को नहीं पाता है । एक
बार सुना-शिवबाबा है,
तो
भी बस,
प्रजा में आ जायेंगे । अन्दर में तुम्हें यह स्मृति आनी चाहिए
हम जिस राज्य में थे,
वह
फिर से अब पा रहे हैं । उसके लिए पूरा पुरूषार्थ करना चाहिए ।
बिल्कुल एक्यूरेट सर्विस चल रही है । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
शिवालय
में जाने के लिए इन विकारों को निकालना है । इस वेश्यालय से
दिल हटाते जाना है । शूद्रों के संग से किनारा कर लेना है ।
2.
जो कुछ बीता उसे ड्रामा समझ कोई भी विचार नहीं करना है ।
अहंकार में कभी नहीं आना है । कभी शिक्षा मिलने पर फंक नहीं
होना है ।
वरदान:-
कर्म
और योग के बैलेन्स द्वारा ब्लैसिंग का अनुभव करने वाले
कर्मयोगी भव
!
कर्मयोगी अर्थात् हर कर्म योगयुक्त हो । कर्मयोगी आत्मा सदा ही
कर्म और योग का साथ अर्थात् बैलेन्स रखने वाली होगी । कर्म और
योग का बैलेन्स होने से हर कर्म में बाप द्वारा तो ब्लैसिंग
मिलती ही है लेकिन जिसके भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हैं उनसे
भी दुआयें मिलती हैं । कोई अच्छा काम करता है तो दिल से उसके
लिए दुआयें निकलती हैं कि बहुत अच्छा है । बहुत अच्छा मानना ही
दुआयें हैं ।
स्लोगन:-
सेकेण्ड में संकल्पों को स्टॉप करने का अभ्यास ही कर्मातीत
अवस्था के समीप लायेगा ।
ओम्
शान्ति
|