13-01-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
अब तुम्हारी सुनवाई होती है, बाप तुम्हें दुःख से निकाल सुख
में ले जाते हैं, अभी तुम सबकी वानप्रस्थ अवस्था है, वापस घर
जाना है
| 
प्रश्न:-
सदा
योगयुक्त रहने तथा श्रीमत पर चलने की आज्ञा बार-बार हर बच्चे
को क्यों मिलती है?
उत्तर:-
क्योंकि अभी अन्तिम विनाश का दृश्य सामने है | करोड़ों मनुष्य
मरेंगे, नैचुरल कैलेमिटीज़ होंगी | उस समय स्थिति एकरस रहे, सब
दृश्य देखते भी मिरुआ मौत मलूका शिकार..ऐसा अनुभव हो, उसके लिए
योगयुक्त बनना पड़े | श्रीमत पर चलने वाले योगी बच्चे ही मौज
में रहेंगे | उनकी बुद्धि में रहेगा कि हम तो पुराना शरीर छोड़
अपने स्वीट होम में जायेंगे |
ओम्
शान्ति
|
रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों से रूहरिहान करते हैं अथवा रूहों
को समझाते हैं क्योंकि रूहों ने भक्ति मार्ग में बहुत याद किया
है | सब आशिक हैं एक माशूक के | उस माशूक शिवबाबा का चित्र बना
हुआ है | उनको बैठ पूजते हैं | उनसे क्या मांगने चाहते हैं, वह
पता नहीं है | पूजते तो सब हैं, शंकराचार्य भी पूजा करते हैं |
सब उनको बड़ा समझते हैं | भल धर्म स्थापक हैं, परन्तु वह भी
पुनर्जन्म लेते-लेते उतरते हैं | अभी सब पिछाड़ी के जन्म में
आकर पहुँचे हैं | बाबा कहते हैं तुम छोटे बड़े सबकी वानप्रस्थ
अवस्था है | मैं तुम सबको वापिस ले जाता हूँ | मुझे बुलाते ही
हैं कि पतित दुनिया में आओ | कितना रिगार्ड रखते हैं | पतित
दुनिया पराये राज्य में आओ | ज़रूर दुःखी होंगे तब तो बुलायेंगे
| गाया जाता है दुःख हर्ता सुख करता तो ज़रूर छी-छी पुरानी
दुनिया, पुराने शरीर में आना पड़े | वह भी तमोप्रधान शरीर में |
सतोप्रधान दुनिया में मुझे कोई याद भी नहीं करता | ड्रामा
अनुसार सबको मैं सुखी बना लेता हूँ | बुद्धि से काम लेना है कि
सतयुग में ज़रूर आदि सनातन देवी देवता धर्म होगा और सतसंगों में
तो सिर्फ़ शास्त्र पढ़ते-पढ़ते नीचे उतरते जाते हैं | दलदल में
पड़ने वाले दुःखी होते हैं | यह है ही दुःखधाम | वह है सुखधाम |
बाप कितना सहज करके समझाते हैं क्योंकि बिचारी अबलायें कुछ भी
नहीं जानती हैं | कोई को भी यह पता नहीं है कि फिर वापिस भी
जाना है या सदैव पुनर्जन्म लेते ही रहना है | अभी तो सब धर्म
वाले हैं | पहले-पहले स्वर्ग था तो एक ही धर्म था | सारा चक्र
तुम्हारी बुद्धि में है | कोई और की बुद्धि में यह बातें रह न
सके | वह तो कल्प की आयु ही लाखों वर्ष कह देते हैं | इसको कहा
जाता है घोर अन्धियारा | ज्ञान है घोर सोझरा | अभी तुम बच्चों
की बुद्धि में रोशनी है | तुम कोई मन्दिर आदि में जायेंगे तो
तुम कहेंगे हम शिवबाबा के पास जाते हैं | यह लक्ष्मी-नारायण हम
बनते हैं | यह बातें और सतसंगों में नहीं होती | वह सब हैं
भक्ति मार्ग की बातें | अभी तुम रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त
को जानते हो | ऋषि मुनि आदि कहते थे हम नहीं जानते हैं | तुम
भी पहले नहीं जानते थे | इस समय सारे विश्व में भक्ति है | यह
पुरानी दुनिया है, कितने ढेर मनुष्य हैं | सतयुग नई दुनिया में
तो एक ही अद्वैत धर्म था, फिर होता है द्वैत धर्म | अनेक
धर्मों में तालियाँ बजती हैं | सबकी एक दो में खिट-खिट है |
ड्रामा अनुसार उन्हों की पॉलिसी ही ऐसी है | किसको भी अलग करते
हैं तो लड़ाई होती है, पार्टीशन होते हैं | मनुष्य बाप को न
जानने के कारण पत्थरबुद्धि बन पड़े हैं | इस समय बाप समझाते हैं
दैवी देवता धर्म ही प्रायः लोप हो गया है | एक भी नहीं जिसको
पता हो कि इन्हों का भी राज्य था | तुम अभी समझते हो हम देवता
बन रहे हैं | शिवबाबा हमारा ओबीडियन्ट सर्वेन्ट है | बड़े आदमी
हमेशा चिट्ठी लिखते हैं तो नीचे लिखते हैं ओबीडियन्ट सर्वेन्ट
| बाप भी कहते हैं हम ओबीडियन्ट सर्वेन्ट हैं तो दादा भी कहते
है हम ओबीडियन्तट सर्वेन्ट हैं | हम फिर 5 हज़ार वर्ष के बाद हर
कल्प के पुरुषोत्तम संगमयुग में आता हूँ | बच्चों की आकर सेवा
करता हूँ | मुझे कहते हैं दूर देश के रहने वाला...इनका भी अर्थ
नहीं जानते | इतने शास्त्र आदि पढ़ते हैं परन्तु अर्थ नहीं
समझते | बाप आकर सब वेदों शास्त्रों का सार समझाते हैं |
तुम
बच्चे जानते हो कि इस समय रावण राज्य है | मनुष्य पतित बनते
जाते हैं | यह भी ड्रामा बना हुआ है | तुम बच्चों को दोज़क से
निकाल बहिश्त में ले जाते हैं | उनको ही गार्डन ऑफ़ अल्लाह कहते
हैं | यह है काँटों का जंगल | संगमयुग है फूलों का बगीचा |
वहाँ तुम सदैव सुखी रहते हो | एवरहेल्दी, एवरवेल्दी बन जाते हो
| आधाकल्प सुख फिर आधाकल्प दुःख, यह चक्र फिरता ही रहता है |
इनकी इन्ड होती नहीं है | सबसे बड़ा बाप आते हैं सबको शान्तिधाम
सुखधाम में ले जाते हैं | तुम सब सुखधाम में जाते हो तो बाकी
सब शान्तिधाम में रहते हैं | आधाकल्प है सुख का, आधाकल्प है
दुःख का | उनमें भी सुख जास्ती है | अगर आधा-आधा होता तो टेस्ट
क्या आयेगी | भक्ति मार्ग में भी बहुत धनवान थे | अभी तुमको
याद आता है कि हम कितने धनवान थे! बहुत धनवान जब देवाला मारते
हैं तो याद आता है कि हमारे पास क्या-क्या था, कितना धन था |
बाप समझाते हैं भारत साहूकार था | पैरडाइज़ था | अब देखो कितना
गरीब है | गरीबों पर ही रहम पड़ता है | अब एकदम कंगाल बन पड़े
हैं | भीख मांग रहे हैं | जो सालवेन्ट थे अब इनसालवेन्ट बन पड़े
हैं | यह भी नाटक है, बाकी जो भी धर्म आते हैं वह बाईप्लाट हैं
| कितने धर्म के मनुष्य वृद्धि को पाते रहते हैं | भारतवासियों
के ही 84 जन्म हैं | एक बच्चे ने और धर्मों का हिसाब-किताब
निकालकर भेजा था | परन्तु जास्ती इन बातों में जाने से कोई
फ़ायदा नहीं | यह भी वेस्ट ऑफ़ टाइम हुआ | इतना समय अगर बाप की
याद में रहते तो कमाई होती | अपनी तो मुख्य बात है – हम पूरा
पुरुषार्थ कर विश्व का मालिक बनें | बाप कहते हैं तुम ही
सतोप्रधान थे, तुम ही तमोप्रधान बने हो | 84 जन्म भी तुमने
लिये हैं, अब फिर वापिस चलना है | बाप से वर्सा लेना है |
तुमने आधाकल्प बाप को याद किया, अब बाप आये हैं तुम्हारी
सुनवाई होती है | बाप फिर से तुमको सुखधाम में ले जाते हैं |
भारत के उत्थान और पतन की भी जैसे एक कहानी है | अब यह है पतित
दुनिया | सम्बन्ध भी पुराना है | अब फिर से नये सम्बन्ध में
चलना है | इस समय एक्टर्स सब हाज़िर हैं | इनमें कोई फ़र्क नहीं
पड़ सकता है | आत्मा तो अविनाशी है | कितनी ढेर आत्मायें होंगी
| उनका कभी विनाश नहीं होता | इतनी करोड़ों आत्माओं को पहले तो
वापिस जाना है | बाकी शरीर तो सबके ख़त्म हो जाते हैं इसलिए
होलिका भी मनाते हैं |
तुम
जानते हो हम सो पूज्य थे फिर पुजारी बने, अब फिर पूज्य बनते
हैं | वहाँ यह नॉलेज नहीं होगी, न यह शास्त्र आदि होंगे | सब
ख़त्म हो जायेंगे | जो योगयुक्त होंगे, श्रीमत पर चलने वाले
होंगे वह सब कुछ देखेंगे | कैसे अर्थक्वेक में सब ख़लास होता है
| अख़बारों में भी पड़ता है, कैसे गाँव के गाँव ख़त्म हो जाते हैं
| बाम्बे पहले इतनी नहीं थी | समुद्र को सुखाया फिर समुद्र हो
जायेगा | यह मकान आदि सब कुछ नहीं रहेगा | सतयुग में मीठे पानी
पर महल होंगे | खारे पानी पर होते नहीं | तो यह रहेंगे नहीं |
एक ही उछल समुद्र की आती तो सब ख़त्म हो जायेंगे | बहुत उपद्रव
होंगे | करोड़ों मनुष्य मरेंगे | अनाज कहाँ से आयेगा | वो लोग
भी समझते हैं आफतें आनी हैं | मनुष्य मरेंगे तो जो योगयुक्त
होंगे वह उस समय मौज में रहेंगे | मिरुआ मौत मलूका शिकार |
बर्फ़ की बरसात पड़ने से ढेर मनुष्य मर जाते हैं | बहुत नैचुरल
कैलेमिटीज़ होंगी | यह सब ख़त्म हो जायेंगे | इनको कहा जाता है
नैचुरल कैलेमिटीज़, गॉडली कैलेमिटीज़ नहीं कहेंगे | गॉड को दोष
कैसे देंगे | ऐसे भी नहीं शंकर ने आँख खोली तो विनाश हो गया |
यह सब हैं भक्ति मार्ग की बातें | मूसलों के लिए भी शास्त्रों
में लिखा है | तुम जानते हो इन मिसाइल्स से कैसे विनाश करते
हैं | कैसे आग, गैस, ज़हर आदि सब उसमें पड़ते हैं | बाप समझाते
हैं – पिछाड़ी में सब फट से मर जाएं कोई बच्चे आदि भी दुःखी न
हों, इसलिए नैचुरल कैलेमिटीज़ से झट मरेंगे | यह सब बना बनाया
ड्रामा है | आत्मा तो अविनाशी है, कभी विनाश नहीं होती, न छोटी
बड़ी होती है | शरीर सब यहाँ ख़लास होंगे | बाकी आत्मायें सब
स्वीट होम में चली जायेंगी | बाप कल्प-कल्प आते हैं संगमयुग
पर, तुम भी इस पुरुषोत्तम संगमयुग पर ही ऊँचे ते ऊँच बनते हो |
वास्तव में श्री-श्री शिवबाबा को और श्री इन देवताओं को कहा
जाता है | आजकल तो देखो सबको श्री-श्री कहते रहते हैं |
श्रीमती, श्री फ़लाना | अब श्रीमत तो एक बाप ही देते हैं |
विकार में जाना, क्या यह श्रीमत है | यह तो है ही भ्रष्टाचारी
दुनिया |
अब
मीठे-मीठे बच्चों को बाप कहते हैं मुझे याद करो तो खाद निकल
जाए | गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र रहो | स्व
को अब विश्व के आदि-मध्य-अन्त के चक्र का ज्ञान हुआ है |
परन्तु यह अलंकार तुमको नहीं दे सकते | आज तुम अपने को
स्वदर्शन चक्रधारी समझते हो कल माया थप्पड़ लगा दे तो ज्ञान ही
उड़ जाये इसलिए तुम ब्राह्मणों की माला भी नहीं बन सकती | माया
थप्पड़ लगाए बहुतों को गिरा देती है, तो उनकी माला कैसे बनेगी |
दशायें बदलती रहती हैं | रूद्र माला ठीक है | विष्णु की माला
भी है | बाकी ब्राह्मणों की माला नहीं बन सकती | तुम बच्चों को
डायरेक्शन देते हैं कि देह सहित देह के सब धर्म छोड़ मामेकम्
याद करो | बाप तो निराकार है | उनको अपना शरीर तो है नहीं | और
आये भी हैं इनकी वानप्रस्थ अवस्था में | जब 60 वर्ष की आयु हुई
| वानप्रस्थ अवस्था में ही गुरु किया जाता है | मैं तो हूँ
सतगुरु, परन्तु गुप्त वेष में | वह हैं भक्ति के गुरु, मैं हूँ
ज्ञान मार्ग का | प्रजापिता ब्रह्मा को देखो कितने ढेर बच्चे
हैं | बुद्धि हद से निकल बेहद में चली गई है | मुक्ति में जाकर
फिर जीवनमुक्ति में आते हैं | तुम पहले आते हो दूसरे पीछे आते
हैं | हर एक को पहले सुख फिर दुःख भोगना पड़ता है | यह वर्ल्ड
ड्रामा है तब तो कहते हैं अहो प्रभू तेरी लीला....तुम्हारी
बुद्धि ऊपर से नीचे तक चक्र लगती रहती है | तुम हो लाइट हाउस,
रास्ता बताने वाले | तुम बाप के बच्चे हो ना | फादर कहते हैं
मुझे याद करो तो तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे |
ट्रेन में भी तुम समझा सकते हो – बेहद का बाप स्वर्ग का रचयिता
है, भारत में स्वर्ग था | बाप आते हैं भारत में | शिव जयन्ती
भी भारत में मनाई जाती है | परन्तु कब होती है, यह कोई नहीं
जानते | तिथि तारीख दोनों ही नहीं हैं क्योंकि गर्भ से जन्म
नहीं लेते | बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो | तुम अशरीरी आये
थे, पवित्र थे फिर अशरीरी होकर जायेंगे | मामेकम् याद करते रहो
तो पाप कट जायेंगे | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
लाइट हाउस बन सबको रास्ता बताना है | बुद्धि हद से निकाल बेहद
में रखनी है | स्वदर्शन चक्रधारी बनना है |
2.
अब वापस घर जाना है इसलिए इस वानप्रस्थ अवस्था में सतोप्रधान
बनने का पुरुषार्थ करना है | अपना टाइम वेस्ट नहीं करना है |
वरदान:-
परमात्म लगन से स्वयं को वा विश्व को निर्विघ्न बनाने वाले
तपस्वीमूर्त भव
! 
एक
परमात्म लगन में रहना ही तपस्या है | इस तपस्या का बल ही स्वयं
को और विश्व को सदा के लिए निर्विघ्न बना सकता है | निर्विघ्न
रहना और निर्विघ्न बनाना ही आपकी सच्ची सेवा है, जो अनेक
प्रकार के विघ्नों से सर्व आत्माओं को मुक्त कर देती है | ऐसे
सेवाधारी बच्चे तपस्या के आधार पर बाप से जीवनमुक्ति का वरदान
लेकर औरों को दिलाने के निमित्त बन जाते हैं |
स्लोगन:-
बिखरे हुए स्नेह को समेट कर एक बाप से स्नेह रखो तो मेहनत से
छूट जायेंगे
| 
ओम्
शान्ति
|