03-07-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे –
बाजोली का खेल याद करो,
इस
खेल में सारे चक्र का,
ब्रह्मा
और
ब्राह्मणों
का राज समाया हुआ है” 
प्रश्न:-
संगमयुग
पर बाप से कौन-सा
वर्सा सभी
बच्चों
को प्राप्त होता है?
उत्तर:-
ईश्वरीय बुद्धि का । ईश्वर
में
जो गुण
हैं
वह हमें
वर्से
में
देते हैं । हमारी बुद्धि हीरे जैसी पारस बन रही है । अभी हम
ब्राह्मण बन बाप से बहुत भारी खजाना ले रहे
हैं,
सर्व
गुणों
से अपनी झोली भर रहे हैं ।
ओम्
शान्ति |
आज है सतगुरूवार,
बृहस्पतिवार । दिनो
में
भी कोई उत्तम दिन होता है ।
बृहसपति
का दिन ऊंच कहते
हैं
ना । बृहस्पति अर्थात् वृक्षपति डे पर स्कूल वा कॉलेज
में
बैठते
हैं
। अभी तुम बच्चे जानते हो कि इस मनुष्य सृष्टि रूपी
झाड़
का बीजरूप है बाप और वह अकाल
मूर्त
है । अकाल
मूर्त
बाप के अकालमूर्त
बच्चे । कितना सहज है । मुश्किलात सिर्फ है याद की । याद से ही
विकर्म विनाश होते
हैं
।
तुम पतित से पावन होते हो । बाप समझाते
हैं
तुम
बच्चों
पर अविनाशी बेहद की दशा है । एक होती है हद की दशा और दूसरी
होती है बेहद की । बाप है वृक्षपति । वृक्ष से पहले-पहले
ब्राह्मण निकले । बाप कहते हैं मैं वृक्षपति सत-चित-
आनन्द स्वरूप हूँ । फिर महिमा गाते हैं
ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर.
......।
तुम जानते हो सतयुग
में
देवी-देवतायें
सब शान्ति के,
पवित्रता के सागर
हैं
। भारत सुख-शान्ति-पवित्रता
का सागर था, उसको कहा जाता है
विश्व में
शान्ति । तुम हो
ब्राह्मण
। वास्तव
में
तुम भी अकालमूर्त
हो,
हरेक आत्मा अपने तख्त पर विराजमान है । यह
सब चैतन्य अकाल तख्त
हैं
।
भ्रकुटी
के बीच अकालमूर्त
आत्मा विराजमान है,
जिसको सितारा भी कहा जाता है । वृक्षपति
बीजरूप को ज्ञान का सागर कहते
हैं,
तो जरूर उनको आना
पड़े
। पहले-पहले
चाहिए
ब्राह्मण,
प्रजापिता
ब्रह्मा
के एडाप्टेड
चिल्ड्रेन
। तो जरूर मम्मा भी चाहिए । तुम
बच्चों
को बहुत अच्छी रीति समझाते
हैं
। जैसे बाजोली खेलते
हैं
ना । उसका भी अर्थ समझाया है । बीजरूप शिवबाबा है फिर है
ब्रह्मा । ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण रचे गये । इस समय तुम
कहेंगे कि हम सो ब्राह्मण सो देवता । पहले हम शूद्र बुद्धि थे
। अब फिर से बाप पुरूषोत्तम बुद्धि बनाते
हैं
। हीरे जैसी पारस बुद्धि बनाते
हैं
। यह बाजोली का राज भी समझाते
हैं
।
शिवबाबा भी है,
प्रजापिता ब्रह्मा और एडाप्टेड बच्चे सामने
बैठे
हैं
। अभी तुम कितने विशालबुद्धि बने हो । ब्राह्मण सो फिर देवता
बनेंगे
। अभी तुम ईश्वरीय बुद्धि बनते हो जो ईश्वर
में
गुण
हैं
वह तुमको वर्से
में
मिलते
हैं
।
समझाते समय यह भूलो मत । बाप ज्ञान का सागर है नम्बरवन । उनको
ज्ञानेश्वर कहा जाता है । ज्ञान सुनाने वाला ईश्वर । ज्ञान से
होती है सद्गति ।
पतितों
को पावन बनाते
हैं
ज्ञान और योग से । भारत का प्राचीन राजयोग मशहूर है
क्योंकि
आइरन एज से गोल्डन एज बना था । यह तो समझाया है कि योग दो
प्रकार का है-वह
है हठयोग और यह है राजयोग । वह हद का,
यह है बेहद का । वह
हैं
हद के सन्यासी,
तुम हो बेहद के सन्यासी । वह घरबार छोडते
हैं, तुम सारी दुनिया का सन्यास
करते हो । अभी तुम हो प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान,
यह छोटा-सा नया
झाड़
है । तुम जानते हो पुराने से नये बन रहे
हैं
। सैपलिंग लग रहा है । बरोबर हम बाजोली खेलते
हैं
। हम सो ब्राह्मण फिर हम सो देवता ।
' सो' अक्षर
जरूर लगाना है । सिर्फ हम
नहीं
। हम सो शूद्र थे,
हम सो ब्राह्मण
बनें........
यह बाजोली बिल्कुल भूलनी
नहीं
चाहिए । यह तो बिल्कुल सहज है । छोटे-छोटे
बच्चे भी समझा सकते
हैं,
हम 84 जन्म कैसे
लेते
हैं,
सीढी कैसे उतरे
हैं
फिर ब्राह्मण
बन
चढते
हैं
। ब्राह्मण से देवता बनते
हैं
।
अभी ब्राह्मण बन बहुत भारी खजाना ले रहे
हैं
। झोली भर रहे
हैं
।
ज्ञान
सागर कोई शंकर को
नहीं
कहा जाता है । वह झोली
नहीं
भरते
हैं
। यह तो चित्रकारों
ने बना दिया है ।
शंकर
की बात है
नहीं
। यह विष्णु और ब्रह्मा यहाँ के
हैं
।
लक्ष्मी-नारायण
का युगल रूप ऊपर
में
दिखाया है । यह है इनका
(ब्रह्मा का)
अन्तिम जन्म । पहले-पहले यह विष्णु
था, फिर 84
जन्मों
के बाद यह
(ब्रह्मा) बना
है । इनका नाम
मैंने
ब्रह्मा रखा है । सबका नाम बदल दिया
क्योंकि
सन्यास किया ना । शूद्र से ब्राह्मण
बनें
तो नाम बदल लिया । बाप ने बहुत रमणीक नाम रखे
हैं
। तो अब तुम समझते हो,
देखते हो वृक्षपति इस रथ पर बैठा है । उनका
यह अकालतख्त है, इनका भी है । इस
तख्त का वह लोन लेते
हैं
।
उनको अपना तख्त तो मिलता
नहीं
। कहते
हैं
मैं
इस रथ
में
विराजमान होता हूँ,
पहचान देता हूँ ।
मैं
तुम्हारा बाप हूँ सिर्फ जन्म-मरण
में
नहीं
आता हूँ,
तुम आते हो । अगर
मैं
भी आऊं तो तुमको तमोप्रधान से सतोप्रधान कौन
बनायेंगे?
बनाने वाला तो चाहिए ना इसलिए ही
मेरा
ऐसा पार्ट है । मुझे बुलाते भी हो हे पतित-पावन
आओ । निराकार शिवबाबा
को
आत्मायें
पुकारती
हैं
क्योंकि
आत्माओं
को
दुःख
है ।
भारतवासी आत्मायें
खास बुलाती
हैं
कि आकर पतितों
को पावन बनाओ । सतयुग
में
तुम बहुत पवित्र सुखी थे,
कभी भी पुकारते
नहीं
थे । तो बाप खुद कहते
हैं
तुमको सुखी बनाकर
मैं
फिर वानप्रस्थ
में
बैठ जाता हूँ । वहाँ
मेरी
दरकार ही
नहीं
। भक्ति मार्ग
में
मेरा
पार्ट है फिर
मेरा
पार्ट आधाकल्प
नहीं
। यह तो बिल्कुल सहज है । इसमें
किसका प्रश्र उठ
नहीं
सकता । गायन भी है
दुःख
में
सिमरण सब करें..........
। सतयुग-त्रेता
में
भक्ति मार्ग होता ही
नहीं
। ज्ञान मार्ग भी
नहीं
कहेंगे
। ज्ञान तो मिलता ही है
संगम
पर,
जिससे तुम 21
जन्म
प्रालब्ध पाते हो । नम्बरवार पास होते
हैं
। फेल भी होते
हैं
|
तुम्हारी यह युद्ध चल रही है । तुम देखते हो जिस रथ पर बाप
विराजमान है,
वह तो जीत लेते
हैं
। फिर अनन्य बच्चे भी जीत पा लेते
हैं
जैसे कुमारका है,
फलानी है, जरूर
जीत पायेगी ।
बहुतों
को आपसमान बनाती
हैं
। तो
बच्चों
को यह बुद्धि
में
रखना है-यह
बाजोली है । छोटे बच्चे भी यह समझ सकते
हैं
इसलिए बाबा कहते
हैं
बच्चों
को भी सिखलाओ । उनको भी बाप से वर्सा लेने का हक है । जास्ती
बात तो है
नहीं
।
थोड़ा
भी इस ज्ञान को जानने से ज्ञान का विनाश
नहीं
होता । स्वर्ग
में
तो जरूर आ
जायेंगे
। जैसे क्राइस्ट का स्थापन किया हुआ
क्रिस्चियन
धर्म कितना
बड़ा
है । यह देवी-देवता
तो सबसे पहले और
बड़ा
धर्म है । जो दो युग चलता है तो जरूर उनकी
संख्या
भी
बड़ी
होनी चाहिए । परन्तु हिन्दू कहला दिया है । कहते भी
हैं
33 करोड देवतायें
। फिर हिन्दू
क्यों
कहते
हैं
। माया ने बुद्धि को
बिल्कुल
ही मार डाला है तो यह हाल हो गया है । बाप कहते
हैं
माया को जीतना कोई कठिन बात
नहीं
है । तुम हर कल्प जीत पाते हो । सेना हो ना । बाप मिला है इन
विकारों
रूपी रावण पर जीत पहनाने लिए ।
तुम पर अभी बृहस्पति की दशा है । भारत पर ही दशा आती है । अभी
सभी पर राहू की दशा है । बाप वृक्षपति आते
हैं
तो जरूर भारत पर बृहस्पति की दशा बैठेगी । इसमें
सब कुछ आ जाता है । तुम बच्चे जानते हो हमको निरोगी काया मिलती
है,
वहाँ मृत्यु का नाम
नहीं
होता । अमरलोक है ना । ऐसे
नहीं
कहेंगे
कि फलाना मरा । मरने का नाम
नहीं,
एक शरीर
छोड़
दूसरा ले लेते
हैं
। शरीर लेने और
छोड़ने
पर खुशी ही रहती है । राम का नाम
नहीं
। तुम पर अभी
बृहसपति
की दशा है । सब पर तो
बृहसपति
की दशा हो न सके । स्कूल में भी कोई पास होते
हैं
कोई नापास होते
हैं
। यह भी पाठशाला है । तुम कहेंगे हम राजयोग सीखते
हैं,
सिखलाने वाला कौन है?
बेहद का बाप । तो कितनी खुशी होनी चाहिए,
इसमें
कोई और बात
नहीं
। पवित्रता की है मुख्य बात । लिखा हुआ भी है-हे
बच्चों।
देह सहित देह के सब सम्बन्ध
छोड़
मामेकम्
याद करो । यह गीता के अक्षर
हैं
। यह गीता एपीसोड चल रहा है । उसमें
भी
मनुष्यों
ने
अगड़म-बगड़म
कर दिया है । आटे
में
नमक कुछ है । बात कितनी सहज है,
जो बच्चा भी समझ जाए । फिर भी भूलते क्यो
हो? भक्ति मार्ग में भी कहते थे
बाबा आप
आयेंगे
तो हम आपके ही
बनेंगे
। दूसरा न कोई । हम आपके बन आपसे पूरा वर्सा
लेंगे
। बाप का बनते ही
हैं
वर्सा लेने लिए । एडाप्ट होते
हैं,
जानते
हैं
बाप से हमको क्या मिलेगा । तुम भी एडाप्ट हुए हो । जानते हो हम
बाप से
विश्व
की बादशाही,
बेहद का वर्सा
लेंगे
। और कोई
में
ममत्व नहीं
रखेंगे
। समझो कोई का लौकिक बाप भी है,
उनके पास क्या होगा । करके लाख डेढ़ होगा ।
यह बेहद का बाप तुमको बेहद का वर्सा देते
हैं
।
तुम बच्चे आधाकल्प झूठी कथायें सुनते आये हो । अब सच्ची कथा
बाप से सुनते हो । तो ऐसे बाप को याद करना चाहिए । ध्यान से
सुनना चाहिए । हम सो का अर्थ भी समझाना है । वह तो कह देते
आत्मा सो परमात्मा । यह
84
जन्मों
की कहानी तो कोई बता न सके । बाप के लिए कहते
हैं
कुत्ते-बिल्ली
सबमें
है । बाप की ग्लानि करते
हैं
ना । यह भी
ड्रामा में
नूँध है । कोई पर दोष
नहीं
रखते
हैं
।
ड्रामा
ही ऐसा बना हुआ है । तुमको जो ज्ञान से देवता बनाते
हैं
तुम फिर उनको ही
गालियाँ
देने लग पड़ते हो । तुम ऐसे बाजोली खेलते हो । यह
ड्रामा
भी बना हुआ है ।
मैं
फिर आकर तुम पर भी उपकार करता हूँ । जानता हूँ तुम्हारा भी दोष
नहीं
है,
यह खेल है । कहानी तुमको समझाता हूँ,
यह है सच्ची-सच्ची
कथा जिससे तुम देवता बनते हो । भक्ति मार्ग
में
फिर ढेर कथायें
बना दी हैं । एम आब्जेक्ट कुछ भी
नहीं
है । वह सब
हैं
गिरने के लिए । उस पाठशाला में विद्या पढ़ाते
हैं
फिर भी शरीर निर्वाह लिए एम है । पण्डित लोग अपने शरीर निर्वाह
लिए बैठ कथा सुनाते
हैं
। लोग उनके आगे पैसे रखते जाते
हैं,
प्राप्ति कुछ भी
नहीं
|
तुमको तो अभी ज्ञान रत्न मिलते
हैं,
जिससे तुम नई दुनिया के मालिक बनते हो ।
वहां
हर चीज नई मिलेगी । नई दुनिया
में
सब कुछ नया होगा । हीरे जवाहर आदि सब नये
होंगे
। अब बाप कहते
हैं
और सब बातें
तुम
छोड़
बाजोली याद करो । फकीर लोग भी बाजोली खेलते
तीर्थों
पर जाते
हैं
। कोई पैदल भी जाते
हैं
। अभी तो मोटरें
एरोप्लेन भी निकल
पड़े
हैं । गरीब तो उनमें
जा न सके । कोई बहुत श्रद्धा वाले होते
हैं
तो पैदल भी चले जाते हैं । दिन-प्रतिदिन
साइंस
से बहुत सुख मिलता जाता है । यह है अल्पकाल का सुख,
गिरते
हैं
तो कितना नुकसान हो जाता है । इन चीजों
में
सुख है अल्पकाल के लिए । बाकी फाइनल मौत भरा हुआ है । वह है
साइन्स । तुम्हारी है साइलेन्स । बाप को याद करने से सब रोग
खत्म हो जाते
हैं,
निरोगी बन जाते
हैं
। अभी तुम समझते हो सतयुग
में
एवरहेल्दी थे । यह
84
का
चक्र फिरता ही रहता है । बाप एक ही बार आकर समझाते
हैं
तुमने
मेरी
ग्लानि की है,
अपने को चमाट मारी है । ग्लानि करते-करते
तुम शूद्र बुद्धि बन पड़े हो ।
सिक्ख
लोग भी कहते हैं जप साहेब तो सुख मिले अर्थात् मनमनाभव । अक्षर
ही दो
हैं,
बाकी जास्ती माथा मारने की तो दरकार ही
नहीं
है । यह भी बाप आकर समझाते
हैं
। अभी तुम समझते हो साहेब को याद करने से तुमको
21 जन्म का सुख मिलता है । वह भी उसका
रास्ता बताते
हैं
। परन्तु पूरा रास्ता तो जानते ही
नहीं
। सिमर-सिमर
सुख पाओ । तुम बच्चे जानते हो बरोबर सतयुग
में
बीमारी आदि दु
:ख की कोई बात भी
नहीं
होती । यह तो कॉमन बात है । उसको सतयुग गोल्डन एज कहा जाता है,
इसको कलियुग आइरन एज कहा जाता है । सृष्टि
का चक्र फिरता रहता है । समझानी कितनी अच्छी है । बाजोली है,
अभी तुम ब्राह्मण हो फिर देवता
बनेंगे
। यह बातें तुम भूल जाते हो । बाजोली याद हो तो यह ज्ञान सारा
याद रहे । ऐसे बाप को याद कर रात को सो जाना चाहिए । फिर भी
कहते
हैं
बाबा भूल जाते
हैं
। माया घड़ी-घडी
भुला देती है । लड़ाई है तुम्हारी माया के साथ । फिर आधाकल्प
तुम उन पर राज्य करते हो । बात तो सहज बताते
हैं
। नाम है ही सहज ज्ञान,
सहज याद । बाप को सिर्फ याद करो,
क्या तकलीफ देते
हैं
। भक्ति मार्ग
में
तो तुमने बहुत तकलीफ ली है । दीदार के लिए गला काटने को तैयार
हो जाते हैं,
काशी कलवट खाते हैं । हाँ,
जो
निश्चयबुद्धि
होकर करते
हैं
उनके फिर विकर्म विनाश होते हैं । फिर नयेसिर शुरू होगा हिसाब-
किताब । बाकी
मेरे
पास नहीं आते
हैं
।
मेरी
याद से विकर्म विनाश होते
हैं,
न कि जीवघात से ।
मेरे
पास तो कोई आते
नहीं
। कितनी सहज बात है । यह बाजोली तो
बूढ़ों
को भी याद रहनी चाहिए,
बच्चों
को भी याद रहनी चाहिए । अच्छा!
मीठे-मीठे
सिकीलधे
बच्चों
प्रति मात-पिता
बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निग । रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों
को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
वृक्षपति बाप से सुख-शान्ति-पवित्रता
का वर्सा लेने के लिए अपने आपको अकालमूर्त
आत्मा समझ बाप को याद करना है । ईश्वरीय बुद्धि बनानी है ।
2.
बाप से सच्ची कथा सुनकर दूसरो को सुनानी है
। मायाजीत बनने के लिए आपसमान बनाने की सेवा करनी है,
बुद्धि में रहे हम कल्प-कल्प
के विजयी हैं, बाप हमारे साथ है
|
वरदान:-
हर श्रेष्ठ संकल्प को कर्म में लाने वाले मास्टर
सर्वशक्तिमान
भव ! 
मास्टर सर्वशक्तिमान माना
संकल्प
और कर्म समान हो । अगर
संकल्प
बहुत श्रेष्ठ हो और कर्म
संकल्प
प्रमाण न हो तो मास्टर सर्वशक्तिमान
नहीं
कहेंगे
। तो चेक करो जो श्रेष्ठ
संकल्प
करते
हैं
वो कर्म तक आते
हैं
या
नहीं
। मास्टर सर्वशक्तिमान की निशानी है कि जो शक्ति जिस समय
आवश्यक हो वो शक्ति कार्य
में
आये । स्थूल और सूक्ष्म सब
शक्तियां
इतना
कन्ट्रोल संकल्प में
हो जो जिस समय जिस शक्ति की आवश्यकता हो उसे काम
में
लगा सके ।
स्लोगन:-
ज्ञानी तू आत्मा
बच्चों
में
क्रोध है तो इससे बाप के नाम की ग्लानी होती है । 
ओम्
शान्ति |