10-05-14     प्रातः मुरली     ओम् शान्ति    “बापदादा”    मधुबन
 


मीठे बच्चे ज्ञान की बुलबुल बन आप समान बनाने की सेवा करो, जांच करो कि कितनों को आप समान बनाया है, याद का चार्ट क्या है?   

 

प्रश्न:-   
भगवान् अपने बच्चों से कौन-सी प्रामिस करते हैं जो मनुष्य नहीं कर सकते?


उत्तर:-
भगवान् प्रामिस करते – बच्चे, मैं तुमको अपने घर ज़रूर ले जाऊँगा | तुम श्रीमत पर चलकर पावन बनेंगे तो मुक्ति और जीवनमुक्ति में जायेंगे | नहीं तो मुक्ति में हर एक को जाना ही है | कोई चाहे, न चाहे, ज़बरदस्ती भी हिसाब-किताब चुक्तू कराके ले जाऊँगा | बाबा कहते जब मैं आता हूँ तो तुम सबकी वानप्रस्थ अवस्था होती है, मैं सबको ले जाता हूँ |

ओम् शान्ति |

बच्चों को अब पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए | जो गायन है – सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण........यह सब गुण धारण करने हैं | जांच करनी है, हमारे में यह गुण हैं? क्योंकि जो बनते हैं, वहाँ ही ध्यान जायेगा तुम बच्चों का | अब यह है पढ़ने और पढ़ाने पर मदार | अपने दिल से पूछना है कि हम कितनों को पढ़ाते हैं? सम्पूर्ण देवता तो कोई बना नहीं है | चन्द्रमा जब सम्पूर्ण हो जाता है तो कितनी रोशनी करता है | यहाँ भी देखा जाता है – नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार हैं? यह तो बच्चे भी समझ सकते हैं | टीचर भी समझते हैं | एक-एक बच्चे पर नज़र जाती है कि क्या कर रहे हैं? मेरे अर्थ क्या सर्विस कर रहे हैं? सब फूलों को देखते हैं | फूल तो सब हैं | बगीचा है ना | हर एक अपनी अवस्था को जानते हैं | अपनी ख़ुशी को जानते हैं | अतीन्द्रिय सुखमय जीवन हर एक को अपनी-अपनी भासती है | एक तो बाप को बहुत-बहुत याद करना है | याद करने से ही फिर रिटर्न होती है | तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने के लिए तुम बच्चों को बहुत सहज उपाय बताता हूँ – याद की यात्रा | हर एक अपनी दिल से पूछे हमारे याद का चार्ट ठीक है? और किसको आप समान भी बनाता हूँ? क्योंकि ज्ञान बुलबुल हो ना | कोई पैरेट्स हैं, कोई क्या हैं! तुमको कबूतर नहीं, पैरेट (तोता) बनना है | अपने अन्दर से पूछना बड़ा सहज है | कहाँ तक हमको बाबा याद है? कहाँ तक अतीन्द्रिय सुख में रहते हैं? मनुष्य से देवता बनना है ना | मनुष्य तो मनुष्य ही हैं | मेल अथवा फीमेल दोनों देखने में तो मनुष्य ही आते हैं | फिर तुम दैवीगुण धारण कर देवता बनते हो | तुम्हारे सिवाए और कोई देवता बनने वाले ही नहीं हैं | यहाँ आते ही हैं दैवी घराने का भाती बनने | वहाँ भी तुम दैवी घराने के भाती हो | वहाँ तुम्हारे में कोई राग-द्वेष का आवाज़ भी नहीं होगा | ऐसे दैवी परिवार का बनने के लिए खूब पुरुषार्थ करना है | पढ़ना भी कायदे अनुसार है, कभी मिस नहीं करना चाहिए | भल बीमार हो तो भी बुद्धि में शिवबाबा की याद हो | इसमें तो मुख चलाने की बात नहीं है | आत्मा जानती है,  हम शिवबाबा के बच्चे हैं | बाबा हमको ले चलने के लिए आये हैं | यह प्रैक्टिस बहुत अच्छी चाहिए | भल कहाँ भी हो परन्तु बाप की याद में रहो | बाप आये ही हैं शान्तिधाम-सुखधाम में ले चलने | कितना सहज है | बहुत हैं जो जास्ती धारणा नहीं कर सकते | अच्छा याद करो | यहाँ सब बच्चे बैठे हैं, इनमें भी नम्बरवार हैं | हाँ, बनना ज़रूर है | शिवबाबा को याद ज़रूर करते हैं | और संग तोड़ एक संग जोड़ने वाले तो सब होंगे | और कोई की याद नहीं रहती होगी | परन्तु इसमें पिछाड़ी तक पुरुषार्थ करना पड़ता है | मेहनत करनी है | अन्दर में सदैव एक शिवबाबा की ही याद रहे | कहाँ भी घूमने-फिरने जाते हो तो भी अन्दर में याद बाप की ही रहे | मुख चलाने की भी दरकार नहीं रहती | सहज पढ़ाई है | पढ़ाकर तुमको आप समान बनाते हैं | ऐसी अवस्था में ही तुम बच्चों को जाना है | जैसे सतोप्रधान अवस्था से आये हैं, उस अवस्था में फिर जाना है | यह कितना सहज है समझाने में | घर का कामकाज करते, चलते-फिरते अपने को फूल बनाना है | जांच करनी है हमारे में कोई गड़बड़ तो नहीं है? हीरे का दृष्टान्त भी बहुत अच्छा है, अपनी जाँच करने लिए | तुम ख़ुद ही मैग्नीफाय ग्लास हो | तो अपनी जाँच करनी है मेरे में देह-अभिमान रिंचक भी तो नहीं है? भल इस समय सब पुरुषार्थी हैं, परन्तु एम ऑब्जेक्ट तो सामने है ना | तुम्हें सबको पैगाम देना है | बाबा ने कहा था अख़बार में भल खर्चा हो, यह पैगाम सबको मिल जाए | बोलो, एक बाप को याद करो तो विकर्म विनाश हो जाएँ और पवित्र बन जायेंगे | अभी कोई पवित्र नहीं हैं | बाप ने समझाया है पवित्र आत्मायें होती है हैं नई दुनिया में | यह पुरानी दुनिया अपवित्र है | एक भी पवित्र हो न सके | आत्मा जब पवित्र बन जाती है तो फिर पुराना शरीर छोड़ देती है | छोड़ना ही है | याद करते-करते तुम्हारी आत्मा एकदम पवित्र बन जायेगी | शान्तिधाम से हम एकदम पवित्र आत्मा आई फिर गर्भ महल में बैठी | फिर इतना पार्ट बजाया | अब चक्र पूरा किया फिर तुम आत्मायें जायेंगी अपने घर | वहाँ से फिर सुखधाम में आयेंगी | वहाँ गर्भ महल होता है | फिर भी पुरुषार्थ करना है ऊँच पद पाने के लिए, यह पढ़ाई है | अभी नर्क वेश्यालय विनाश हो शिवालय स्थापन हो रहा है | अब तो सबको वापिस जाना है |

तुम भी समझते हो हम यह शरीर छोड़ जाकर नई दुनिया में प्रिन्स-प्रिन्सेज़ बनेंगे | कोई समझेंगे हम प्रजा में चले जायेंगे, इसमें बिल्कुल लाइन क्लीयर हो | एक बाप की ही याद रहे, और कुछ भी याद न आये | इसको कहा जाता है पवित्र बेगर | शरीर भी याद न रहे | यह तो पुराना छी-छी शरीर है ना | यहाँ जीते जी मरना है, यह बुद्धि में रहना है | अभी हमको वापिस घर जाना है | अपने घर को भूल गये थे | अब फिर बाप ने याद दिलाया है | अभी यह नाटक पूरा होता है | बाप समझाते हैं तुम सब वानप्रस्थी हो | सारे विश्व में जो भी मनुष्य मात्र हैं, सबकी इस समय वानप्रस्थ अवस्था है | मैं आया हूँ, सभी आत्माओं को वाणी से परे ले जाता हूँ | बाप कहते हैं अभी तुम छोटे-बड़े सबकी वानप्रस्थ अवस्था है | वानप्रस्थ किसको कहा जाता है, यह भी तुम जानते नहीं थे | ऐसे ही जाकर गुरु करते थे | तुम लौकिक गुरुओं द्वारा आधाकल्प पुरुषार्थ करते आये हो, परन्तु ज्ञान कोई भी नहीं | अब बाप ख़ुद कहते हैं तुम छोटे-बड़े सबकी वानप्रस्थ अवस्था है | मुक्ति तो सबको मिलनी है | छोटे-बड़े सब ख़त्म हो जायेंगे | बाप आया है सबको घर ले जाने | इसमें तो बच्चों को बहुत ख़ुशी होनी चाहिए | यहाँ दुःख भासता है, इसलिए अपने घर स्वीट होम को याद करते हैं | घर जाना चाहते हैं परन्तु अक्ल तो है नहीं | कहते हैं हम आत्माओं को अब शान्ति चाहिए | बाप कहते हैं कितने समय के लिए चाहिए? यहाँ तो हर एक को अपना-अपना पार्ट बजाना है | यहाँ कोई शान्त थोड़ेही रह सकते | आधाकल्प इन गुरुओं आदि ने तुमसे बहुत मेहनत कराई, मेहनत करते, भटकते-भटकते और ही अशान्त बन पड़े हो | अब जो शान्तिधाम का मालिक है, वह आकर सभी को वापिस ले जाते हैं | पढ़ाते भी रहते हैं | भक्ति करते ही हैं निर्वाणधाम में जाने के लिए, मुक्ति के लिए | यह कभी भी किसके दिल में नहीं आयेगा कि हम सुखधाम में जायें | सब वानप्रस्थ में जाने लिए पुरुषार्थ करते हैं | तुम तो पुरुषार्थ करते हो सुखधाम में जाने के लिए | जानते हो पहले वाणी से परे अवस्था ज़रूर चाहिए | भगवान् भी प्रामिस करते हैं बच्चों से – मैं तुम बच्चों को अपने घर ज़रूर ले जाऊँगा, जिसके लिए तुमने आधाकल्प भक्ति की है | अब श्रीमत पर चलेंगे तो मुक्ति-जीवनमुक्ति में चलेंगे | नहीं तो शान्तिधाम तो सबको जाना ही है | कोई चलना चाहे वा न चाहे, ड्रामा अनुसार सबको जाना है ज़रूर | पसन्द करो, न करो, मैं आया हूँ सबको वापिस ले चलने | ज़बरदस्ती भी हिसाब-किताब चुक्तू कराए ले चलूँगा | तुम सतयुग में जाते हो, बाकी सब वाणी से परे शान्तिधाम में रहते हैं | छोड़ेंगे कोई को भी नहीं | नहीं चलेंगे तो भी सज़ा देकर मार-पीटकर भी ले चलूँगा | ड्रामा में पार्ट ही ऐसा है इसलिए अपनी कमाई करके चलना है तो पद भी अच्छा मिलेगा | पिछाड़ी में आने वाले क्या सुख पायेंगे | बाप सबको कहते हैं जाना ज़रूर है | शरीरों को आग लगाए बाकी सब आत्माओं को ले जाऊँगा | आत्माओं को ही मेरे साथ-साथ चलना है | मेरी मत पर सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण बनेंगे तो पद भी अच्छा मिलेगा | तुमने बुलाया है ना कि आकर हम सबको मौत दो | अब मौत आया कि आया | बचना किसको भी नहीं है | छी-छी शरीर रहने नहीं हैं | बुलाया ही है वापिस ले जाओ | तो अब बाप कहते हैं – बच्चे, इस छी-छी दुनिया से तुमको वापिस ले चलूँगा | तुम्हारा यादगार भी खड़ा है | देलवाड़ा मन्दिर है ना – दिल लेने वाले का मन्दिर, आदि देव बैठा है | शिवबाबा भी है, बापदादा दोनों ही हैं, इनके शरीर में बाबा विराजमान है | तुम वहाँ जाते हो तो आदि देव को देखते हो | तुम्हारी आत्मा जानती है यह तो बापदादा बैठे हैं |

इस समय तुम जो पार्ट बजा रहे हो उसकी निशानी यादगार खड़ा है | महारथी, घोड़ेसवार, प्यादे भी हैं | वह है जड़, यह है चैतन्य | ऊपर में बैकुण्ठ भी है | तुम मॉडल देखकर आते हो, कैसा देलवाड़ा मन्दिर है, तुम तो जानते हो, कल्प-कल्प यह मन्दिर बनता है ऐसा ही, जो तुम जाकर देखेंगे | कोई-कोई मूँझ पड़ते हैं | यह सब पहाड़ियाँ आदि टूट फूट गई फिर बनेंगी! कैसे? यह ख्यालात करने नहीं चाहिए | अभी तो स्वर्ग भी नहीं है, फिर वह कैसे आयेगा! पुरुषार्थ से सब बनता है ना | तुम अभी तैयारी कर रहे हो, स्वर्ग में जाने लिए | कोई-कोई उलझन में आकर पढ़ाई ही छोड़ देते हैं | बाप कहते हैं इसमें मूँझने की तो कोई दरकार नहीं है | वहाँ सब कुछ हम अपना बनायेंगे | वह दुनिया ही सतोप्रधान होगी | वहाँ के फल-फूल आदि सब देखकर आते हैं, शूबीरस पीते हैं | सूक्ष्मवतन, मूलवतन में तो यह कुछ है नहीं | बाकी यह सब है बैकुण्ठ में | वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है | यह निश्चय तो पक्का होना चाहिए | बाकी किसकी तक़दीर में नहीं है तो कहेंगे यह कैसे हो सकता है! हीरे जवाहरात जो अभी देखने में ही नहीं आते वह फिर कैसे होंगे! पूज्य कैसे बनेंगे? बाप कहते हैं यह खेल बना हुआ है – पूज्य और पुजारी का | हम सो ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय.......यह सृष्टि चक्र जानने से तुम चक्रवर्ती राजा बनते हो | तुम समझते हो, तब तो कहते हो – बाबा, कल्प पहले भी आपसे मिले थे | हमारा ही यादगार मन्दिर सामने खड़ा है | इसके बाद ही स्वर्ग की स्थापना होगी | यह जो तुम्हारे चित्र हैं इनमें कमाल है, कितना रुचि से आकर देखते हैं | सारी दुनिया में कहाँ भी कोई ने नहीं देखा है | न कोई ऐसा चित्र बनाकर ज्ञान दे सकते हैं | कॉपी कर न सकें | यह चित्र तो खज़ाना है | जिससे तुम पदमापदम भाग्यशाली बनते हो | तुम समझते हो हमारे क़दम-क़दम में पदम हैं | पढ़ाई का क़दम | जितना योग रखेंगे, जितना पढ़ेंगे उतना पदम | एक तरफ़ माया भी फुलफोर्स में आयेगी | तुम इस समय ही श्याम-सुन्दर बनते हो | सतयुग में तुम सुन्दर थे, गोल्डन एज़ड, कलियुग में हो श्याम, आयरन एज़ड | हर एक चीज़ ऐसे होती है | यहाँ तो धरती भी कलराठी है | वहाँ तो धरती भी फर्स्ट क्लास होगी | हर चीज़ सतोप्रधान होती है | ऐसी राजधानी के तुम मालिक बन रहे हो | अनेक बार बने हो | फिर भी ऐसी राजधानी के मालिक बनने का पूरा पुरुषार्थ करना चाहिए | पुरुषार्थ बिगर प्रालब्ध कैसे पायेंगे | तकलीफ़ कोई नहीं है |

मुरली छपती है, आगे चलकर लाखों-करोड़ों के अन्दाज़ में छपेगी | बच्चे कहेंगे जो कुछ पैसे हैं वह यज्ञ में लगा दें, रखकर क्या करेंगे? आगे चल देखना क्या-क्या होता है | विनाश की तैयारियाँ भी देखते रहेंगे | रिहर्सल होती रहेगी | फिर शान्ति हो जायेगी | बच्चों की बुद्धि में सारा ज्ञान है | है तो बड़ा सहज | सिर्फ़ बाप को याद करना है | अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. इस शरीर को भी भूल पूरा पवित्र बेगर बनना है | लाइन क्लीयर रखनी है | बुद्धि में रहे – अब नाटक पूरा हुआ, हम जाते हैं अपने स्वीट होम |

2. पढ़ाई के हर क़दम में पदम हैं, इसलिए अच्छी तरह रोज़ पढ़ना है | देवता घराने का भाती बनने का पुरुषार्थ करना है | अपने आपसे पूछना है कि हमें अतीन्द्रिय सुख कहाँ तक भासता है? ख़ुशी रहती है ?

 

वरदान:-  

सहनशक्ति की धारणा दवारा सत्यता को अपनाने वाले सदा के विजयी भव !   

दुनिया वाले कहते हैं कि आजकल सच्चे लोगों का चलना ही मुश्किल है, झूठ बोलना ही पड़ेगा, कई ब्राह्मण आत्मायें भी समझती हैं कि कहाँ-कहाँ चतुराई से तो चलना ही पड़ता है, लेकिन ब्रह्मा बाप को देखा सत्यता व पवित्रता के लिए कितनी अपोजीशन हुई फिर भी घबराये नहीं | सत्यता के लिए सहनशक्ति की आवश्यकता होती है | सहन करना पड़ता है, झुकना पड़ता है, हार खानी पड़ती है लेकिन वह हार नहीं है, सदा की विजय है |


स्लोगन:- 

प्रसन्न रहना और प्रसन्न करना – यह है दुआयें देना और दुआयें लेना |   

 

ओम् शान्ति |