22-01-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
अल्फ
और बे, बाप और वर्सा याद रहे तो ख़ुशी का पारा चढ़ा रहेगा, यह
बहुत सहज सेकेण्ड की बात है
| 
प्रश्न:-
बेअन्त ख़ुशी किन बच्चों को रहेगी? सदा ख़ुशी का पारा चढ़ा रहे
उसका साधन क्या है?
उत्तर:-
जो
बच्चे अशरीरी बनने का अभ्यास करते, बाप जो सुनाते हैं उसको
अच्छी रीति धारण कर दूसरों को कराते हैं, उन्हें ही बेअन्त
ख़ुशी रह सकती है | ख़ुशी का पारा सदा चढ़ा रहे इसके लिए अविनाशी
ज्ञान रत्नों का दान करते रहो | बहुतों का कल्याण करो | सदा यह
स्मृति रहे कि हम अभी सुख और शान्ति की चोटी पर जा रहे हैं तो
ख़ुशी रहेगी |
ओम्
शान्ति
|
बापदादा का विचार है कि एक सेकेण्ड में बच्चों से लिखाकर लेवें
कि किसकी याद में बैठे हो? इस लिखने में कोई टाइम नहीं लगता है
| हरेक एक सेकेण्ड में लिखकर बाबा को दिखा जाये | (सबने लिखकर
बापदादा को दिखाया फिर बाबा ने भी लिखा | बाबा ने जो लिखा सो
कोई ने नहीं लिखा) बाबा ने लिखा अल्फ और बे, कितना सहज है |
अल्फ माना बाबा, बे माना बादशाही | बाबा पढ़ाते हैं और तुम
राजाई प्राप्त करते हो | और जास्ती लिखने की दरकार नहीं |
तुमने तो लिखने में दो मिनट भी लगाया | अल्फ बे सेकेण्ड की बात
है | सन्यासी सिर्फ़ अल्फ को याद करेंगे | तुमको बादशाही भी याद
है | याद की आदत पड़ जाती है | बुद्धि में बैठता है तो ख़ुशी का
पारा चढ़ा रहता है | अल्फ का अर्थ कितना बड़ा हाइएस्ट चोटी है |
उससे ऊपर और कोई चीज़ ही नहीं | रहने का स्थान भी ऊँचे ते ऊँचा
है | सेकेण्ड में मुक्ति-जीवनमुक्ति का अर्थ भी कोई नहीं जानते
| उसका भी ज़रूर अर्थ होगा | बच्चा पैदा होता है तो लिखते हैं
इतने घण्टे, इतने मिनट, इतने सेकेण्ड हुए | टिक-टिक चलती रहती
है | टिक हुई अल्फ बे, बस सेकेण्ड भी नहीं लगता | कहने की भी
दरकार नहीं | याद तो है ही | तुम बच्चों की इतनी अच्छी अवस्था
होनी चाहिए | परन्तु वह तब होगी जब याद रहेगी | यहाँ बैठे हो
तो बाप और राजाई याद रहनी चाहिए | बुद्धि देखती है, जिसको
दिव्य दृष्टि कहा जाता है | आत्मा भी देखती है | बाप को आत्मा
ही याद करती होगी | तुम भी बाप को याद करो तो राजाई इकट्ठी याद
आ जायेगी | कितनी देरी लगती है | यहाँ भी याद में बैठेंगे तो
बहुत गद-गद हो जायेंगे | बाबा भी इस ख़ुशी में बैठे हैं | बाप
को यहाँ की कोई बात याद ही नहीं | बाबा याद करते हैं वहाँ की
बातें | बाबा और राजाई जैसेकि दर पर खड़े हैं | बाप कहते हैं
तुम बच्चों के लिए राजाई ले आया हूँ | तुम सिर्फ़ याद नहीं करते
इसलिए ख़ुशी नहीं ठहरती | तुम उठते बैठते अपने को आत्मा समझो और
मुझ बाप और वर्से को याद करो | कितना ऊँचा स्थान है जहाँ तुम
रहते हो | दुनिया थोड़ेही जानती है | मनुष्य मुक्ति में जाने के
लिए कितना माथा मारते हैं | अभी मुक्तिधाम है कहाँ? तुम समझते
हो आत्मा तो रॉकेट है | वो लोग चाँद तक जाते हैं फिर है पोलर |
तुम तो पोलर से भी बहुत ऊँच जाते हो | चन्द्रमा तो इस दुनिया
का है | कहा जाता है सूर्य चाँद से परे, आवाज़ से भी परे | इस
शरीर को छोड़ देना है | तुम आते हो स्वीट साइलेन्स होम से | आने
जाने में टाइम नहीं लगता है | अपना घर है | यहाँ तो कहाँ भी
जाओ तो टाइम लगता है | आत्मा शरीर छोड़ती है तो सेकेण्ड में
कहाँ का कहाँ चली जाती है | एक शरीर छोड़ दूसरे में जाकर प्रवेश
करती है | तो अपने को आत्मा समझना है | तुम बहुत ऊँच चोटी पर
जाते हो | मनुष्य शान्ति चाहते हैं | शान्ति की हाइएस्ट चोटी
है निराकारी दुनिया और सुख की भी हाइएस्ट चोटी है स्वर्ग |
ऊँचे ते ऊँचे को टावर कहा जाता है | तुम्हारा घर भी कितना ऊँचा
है | दुनिया वाले कभी इन बातों पर ख्याल नहीं करते | उनको यह
बातें समझाने वाला कोई है नहीं | उसको कहा जाता है शान्ति का
टावर | मनुष्य तो कहते रहते हैं विश्व में शान्ति हो | परन्तु
इसका अर्थ नहीं जानते कि शान्ति कहाँ है | यह लक्ष्मी-नारायण
सुख के टावर में हैं वहाँ कोई लोभ, लालच नहीं | वहाँ का खान
पान, बोलना बड़ा रॉयल होता है और फिर सुख भी हाइएस्ट | उन्हों
की महिमा देखो कितनी है क्योंकि उन्होंने बहुत मेहनत की है |
यह एक नहीं है, सारी माला बनी हुई है | वास्तव में 9 रत्न गाये
हुए हैं | ज़रूर उन्होंने गुप्त मेहनत की होगी | बाप और वर्से
की याद रहे तब ही विकर्म विनाश होंगे | परन्तु माया याद करने
नहीं देती | कभी काम, कभी क्रोध....बहुत तूफ़ानों में लाती है |
अपनी नब्ज़ देखनी है | नारद को भी कहा शक्ल देखो | तो वह अवस्था
अभी है नहीं, बनानी है | बाबा एम आब्जेक्ट ज़रूर बतायेंगे |
अन्दर में पुरुषार्थ करते रहो | आगे चलकर वह अवस्था तुम्हारी
होगी | अशरीरी रहने की प्रैक्टिस करनी है | अब जाना है वापिस |
बाबा ने कहा है मुझे याद करो | याद नहीं करेंगे तो सजायें भी
बहुत खानी पड़ेगी और फिर पद भी कम | यह हैं बहुत सूक्ष्म बातें
| वो लोग साइन्स में कितना डीप जाते हैं | क्या-क्या बनाते
रहते हैं | वह भी संस्कार तो चाहिए ना, जो फिर वहाँ भी जाकर यह
चीज़ें बनायेंगे | सिर्फ़ यह दुनिया बदली होनी है | यहाँ के
संस्कार अनुसार ही जाकर जन्म लेंगे | जैसे लड़ाई वालों की
बुद्धि में लड़ाई के संस्कार रहते हैं, तो वह संस्कार ले जाते
हैं | लड़ने बिगर रह नहीं सकते | आफ़ीसर के पास क्यू लगी रहती है
| भरती करते समय जांच करते हैं, कोई बीमारी तो नहीं है |
आँख-कान आदि सब ठीक हैं | लड़ाई में तो सब ठीक चाहिए | यहाँ भी
देखा जाता है कि कौन-कौन विजय माला का दाना बनेंगे | तुम्हें
पुरुषार्थ कर कर्मातीत अवस्था को पाना है | आत्मा अशरीरी आई
है, अशरीरी बन जाना है | वहाँ शरीर का कोई सम्बन्ध नहीं | अब
अशरीरी बनना है | आत्मायें वहाँ से आती हैं, आकर शरीर में
प्रवेश करती हैं | ढेर की ढेर आत्मायें आती रहती हैं | सबको
अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है | जो नई पवित्र आत्मायें आती हैं,
उनको ज़रूर पहले सुख मिलना है इसलिए उनकी महिमा होती है | बड़ा
झाड़ है ना | कितने नामीग्रामी बड़े आदमी हैं | अपनी-अपनी ताकत
अनुसार बहुत सुख में होंगे | तो अब बच्चों को मेहनत करनी है,
कर्मातीत अवस्था में पवित्र होकर जाना है | अपनी चाल को देखना
है किसको दुःख तो नहीं देते हैं! बाप कितना मीठा है | मोस्ट
बिलवेड है ना | तो बच्चों को भी बनना है | यह तो तुम बच्चे
जानते हो कि बाप यहाँ है | मनुष्यों को थोड़ेही यह मालूम है कि
बाप यहाँ स्थापना कर रहे हैं फिर भी जन्म-जन्मान्तर उनको याद
करते रहते हैं | शिव के मन्दिर में जाकर कितनी पूजा करते हैं |
कितनी ऊँची चोटी पर बद्रीनाथ आदि के मन्दिर में जाते हैं |
कितने मेले लगते हैं क्योंकि बहुत मीठा है ना | गाते भी हैं
ऊँचे ते ऊँचा भगवान | बुद्धि में निराकार ही याद आयेगा |
निराकार तो है ही | फिर है ब्रह्मा-विष्णु-शंकर | उनको भगवान
नहीं कहेंगे |
अभी तुम बच्चे समझते हो कि हम ही सतोप्रधान देवता थे, जब हम
विश्व के मालिक थे तो इतने ढेर मनुष्य थे ही नहीं | सिर्फ़ भारत
में ही इनका राज्य होगा | बाकी सब चले जायेंगे – शान्तिधाम में
| यह सब तुम देखते रहेंगे, इसमें बड़ी विशालबुद्धि चाहिए | वहाँ
तुमको पहाड़ी आदि पर जाने की दरकार नहीं | वहाँ कोई भी
एक्सीडेंट आदि नहीं होते | वह है ही वन्डर ऑफ़ स्वर्ग | जब वह
स्वर्ग का वन्डर नहीं है तो माया के वन्डर्स बनते हैं | यह
बातें दुनिया वाले नहीं समझ सकते | अब तुम स्वर्ग में जाने के
लिए पुरुषार्थ कर रहे हो | वह है सुख का टावर | यह है दुःख का
टावर | लड़ाई में कितने मनुष्य रोज़ मरते हैं फिर जन्मते भी
होंगे | गाया जाता है ईश्वर का अन्त नहीं पाया जाता | अब ईश्वर
तो है बिन्दी, उनका अन्त क्या पायेंगे | बाप कहते हैं इस रचना
के आदि मध्य अन्त को कोई नहीं जानते | साधू सन्त कोई रचता और
रचना का अन्त नहीं पा सकते हैं | तुमको बाप पढ़ाते हैं, इसको
पढ़ाई कहा जाता है | सृष्टि चक्र के राज़ को तुम बच्चे ही जानते
जा रहे हो | वह तो कहते हैं हम नहीं जानते या तो लाखों वर्ष कह
देते हैं |
बाप बाप ने समझाया है यह जो कुछ तुम यहाँ देखते हो – ये वहाँ
नहीं रहेगा | स्वर्ग है टॉवर आफ सुख | यहाँ है दुःख ही दुःख |
अचानक मौत ऐसा आयेगा जो सब ख़त्म हो जायेंगे | मौत देखना मासी
का घर नहीं है, इनको कहा जाता है दुःख की चोटी | वह है सुख की
चोटी | बस तीसरा कोई अक्षर नहीं | तुम्हारे में भी बहुत हैं जो
सुनते हैं परन्तु धारणा नहीं होती है | धारणा तब हो जब बुद्धि
गोल्डन एज हो | धारणा नहीं होती तो ख़ुशी भी नहीं रहती | एकदम
हाइएस्ट पढ़ाई वाले भी हैं तो लोएस्ट भी हैं | पढ़ाई में फ़र्क तो
है ना | उन्हों को कितना भी बेहद का बाप समझाये परन्तु कभी भी
नहीं समझेंगे | याद बिगर तो तुम पवित्र कभी नहीं बन सकेंगे |
बाप ही चुम्बक है | वह एकदम हाइएस्ट पॉवर वाला है | उन पर कभी
कट चढ़ नहीं सकती, बाकी सब पर कट चढ़ी हुई हिया, उनको उतार फिर
सतोप्रधान बनना है | बाप कहते हैं मामेकम् याद करो और कोई में
ममत्व न रहे | साहूकारों को तो सारा दिन धन दौलत ही सामने आता
रहेगा | गरीबों को तो कुछ है नहीं परन्तु गरीब भी कुछ समझदार
हों जो धारणा कर सकें | याद बिगर किचड़ा कैसे निकलेगा | हम
पवित्र कैसे बनेंगे | तुम यहाँ आये हो ऊँच चोटी पर जाने |
जानते हो बाप की शिक्षा पर चलने से हम ऊँच सुख के चोटी पर
जायेंगे | इसमें मेहनत है | बाप आते हैं टावर पर ले जाने | तो
श्रीमत पर चलना पड़े | पहले नम्बर में इन लक्ष्मी-नारायण का ही
गायन है | वह एकदम टावर में होंगे | फिर कुछ न कुछ कम | नई
दुनिया को ही टावर ऑफ़ सुख कहा जाता है | वहाँ कोई मैली चीज़
नहीं होती | ऐसी मिटटी नहीं, ऐसी हवायें वहाँ लगती नहीं जो
मकानों को ख़राब करें | स्वर्ग की तो बहुत महिमा है | उसके लिए
पुरुषार्थ करना है | लक्ष्मी-नारायण कितने ऊँच हैं, उनको देखने
से ही दिल ख़ुश हो जाती है | आगे चलकर बहुतों को साक्षात्कार
होते रहेंगे | शुरू में कितने साक्षात्कार होते थे | कितना
बाबा ने जलवा दिखाया | ताज आदि पहनकर आते थे | वह चीज़ें तो
यहाँ मिल न सकें | बाबा तो जौहरी है | आगे जो 50 हज़ार मणी लेते
थे वह अब 50 लाख में भी न मिले | तुम स्वर्ग के लिए पुरुषार्थ
कर रहे हो | वहाँ अथाह सुख है | बाप इतना पढ़ाते हैं परन्तु
बच्चों में रात दिन का फ़र्क पड़ जाता है | कहाँ राजा रानी कहाँ
दास दासियाँ | जो अच्छी रीति पढ़ते और पढ़ाते हैं वह छिपे नहीं
रह सकते हैं | झट कहेंगे बाबा हम फलानी जगह जाकर सर्विस करते
हैं | सर्विस तो ढेर पड़ी है | तुम्हें इस जंगल को मंगल
(मन्दिर) बनाना है | रोटी टुक्कड़ खाया न खाया, यह भागे सर्विस
पर | धन्धे वाले लोग ऐसे करते हैं | अच्छा ग्राहक आ जाता है तो
फिर खाया न खाया भागे | धन कमाने का शौक रहता है | यह तो बेहद
के बाप से अथाह धन मिलता है | भल थोड़ा टाइम पड़ा है परन्तु कल
शरीर छूट जाए, कोई भरोसा नहीं है | विनाश तो होना ही है |
तुम्हारे लिए तो मिरुआ मौत मलूका शिकार | तुम्हारी ख़ुशी का
पारावार नहीं | तुमको बेअन्त ख़ुशी होनी चाहिए | तुमको बहुतों
का कल्याण करना है | पिछाड़ी को कर्मातीत अवस्था होनी है | तुम
याद करते-करते अशरीरी बन जायेंगे तब अनायास ही उड़ेंगे | यह बड़ी
मेहनत है | कोई तो बहुत सर्विस करते हैं | सारा दिन म्यूज़ियम
समझाने पर खड़े हैं | दिन रात सर्विस में तत्पर हैं | सैकड़ों
म्यूज़ियम खुल जायेंगे | लाखों लोग तुम्हारे पास आयेंगे, तुमको
फ़ुर्सत नहीं मिलेगी | सबसे जास्ती तुम्हारे दुकान निकलेंगे –
इन अविनाशी ज्ञान रत्नों के | अच्छा -
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
ज्ञान की धारणा करने के लिए अपनी बुद्धि गोल्डन एज की बनाओ |
बाप की याद के सिवाए और किसी भी चीज़ में ममत्व न रहे |
2.
कर्मातीत अवस्था को प्राप्त कर घर जाने के लिए अशरीरी बनने का
अभ्यास करो | अपनी चाल भी देखो कि किसको दुःख तो नहीं देते हैं
| बाप समान मीठे बने हैं |
वरदान:-
सेवा में रहते सम्पूर्णता के समीपता की अनुभूति करने वाले
ब्रह्मा बाप समान एक्जैम्पुल भव
!
जैसे ब्रह्मा बाप सेवा में रहते, समाचार सुनते एकान्तवासी बन
जाते थे | एक घण्टे के समाचार को 5 मिनट में सार समझ बच्चों को
खुश करके, अपनी अन्तर्मुखी, एकान्तवासी स्थिति का अनुभव करा
देते थे | ऐसे फ़ालो फादर करो | ब्रह्मा बाप ने कभी नहीं कहा कि
मैं बहुत बिज़ी हूँ लेकिन बच्चों के आगे एक्जैम्पुल बनें | ऐसे
समय प्रमाण अभी इस अभ्यास की आवश्यकता है | दिल की लगन हो तो
समय निकल आयेगा और अनेकों के लिए एक्जैम्पुल बन जायेंगे |
स्लोगन:-
हर
कर्म में – कर्म और योग का अनुभव होना ही कर्मयोग है
|
ओम्
शान्ति
|