17-03-14          प्रातः मुरली       ओम् शान्ति       “बापदादा”        मधुबन
 


मीठे बच्चे बाप की सकाश लेने के लिए खुशबूदार फूल बनो, सवेरे-सवेरे उठकर याद में बैठ प्यार से बाबा से मीठी-मीठी बातें करो”  

प्रश्न
:-   
बाप को सब बच्चे नम्बरवार याद करते हैं लेकिन बाप किन बच्चों को याद करते हैं?

उत्तर:-
जो बच्चे बहुत मीठे हैं, जिन्हें सर्विस के बिना और कुछ सूझता ही नहीं | जो अति प्रेम से बाप को याद करते, ख़ुशी में प्रेम के आँसू बहाते | ऐसे बच्चों को बाप भी याद करते हैं | बाप की नज़र फूलों तरफ़ जाती है, कहेंगे फलानी आत्मा बड़ी अच्छी है, यह आत्मा जहाँ सर्विस देखती, भागती रहती है, अनेकों का कल्याण करती है | तो बाप उसे याद करते हैं |

ओम् शान्ति |

बाप बैठकर सब आत्माओं को समझाते हैं | शरीर भी याद पड़ता तो आत्मा भी याद पड़ती है | शरीर बिगर आत्मा को नहीं याद किया जा सकता | समझा जाता है यह आत्मा अच्छी है, यह बाह्यमुखी है, यह इस दुनिया का सैर आदि करना चाहती है | यह उस दुनिया को भूली हुई है | पहले उनका नाम-रूप सामने आता है | फ़लाने की आत्मा को याद किया जाता है | फ़लाने की आत्मा अच्छी सर्विस करती है, इनका बुद्धियोग बाबा के साथ है, इनमें यह यह गुण हैं | पहले शरीर को याद करने से फिर आत्मा याद आती है | पहले शरीर याद आयेगा क्योंकि शरीर बड़ी चीज़ है ना | फिर आत्मा जो सूक्ष्म बहुत छोटी है, वह याद आयेगी | इन बड़े शरीर की कोई महिमा नहीं की जाती है | महिमा आत्मा की ही की जाती है | इनकी आत्मा अच्छी सर्विस करती है | फ़लाने की आत्मा इनसे अच्छी है | पहले तो शरीर याद आता है | बाप को तो अनेक आत्माओं को याद करना पड़ता है | शरीर का नाम याद नहीं आता, सिर्फ़ रूप सामने आता है | फ़लाने की आत्मा कहने से शरीर ज़रूर याद करना पड़ता है | शरीर का नाम याद नहीं आता, सिर्फ़ रूप सामने आता है | फ़लाने की आत्मा कहने से शरीर ज़रूर याद पड़ता है | जैसे समझते हो इस दादा के शरीर में शिवबाबा आते हैं | जानते हैं इनके तन में बाबा है | शरीर ज़रूर याद पड़ेगा | पूछते हैं – हम कैसे याद करें? शिवबाबा को ब्रह्मा तन में याद करें या परमधाम में याद करें? बहुतों का प्रश्न उठता है | बाबा कहते है – याद तो आत्मा को ही करना है | परन्तु शरीर भी ज़रूर याद आता है | पहले शरीर फिर आत्मा | बाबा इनके शरीर में बैठा है तो ज़रूर शरीर याद आयेगा | फ़लाने शरीर वाली आत्मा में यह गुण हैं | बाबा भी देखते रहते हैं – कौन मुझे याद करते हैं, किसमें बहुत गुण हैं, किस-किस फूल में खुशबू है? फूलों से सबका प्यार होता है | गुलदस्ता बनाते हैं | उसमें राजा, रानी, प्रजा भिन्न-भिन्न फूल-पत्ते आदि सब बनाते हैं | बाप की नज़र फूलों की तरफ़ जायेगी | कहेंगे, फ़लाने की आत्मा बड़ी अच्छी है | बड़ी सर्विस करती है | आत्म-अभिमान में रह बाप को याद करते रहते हैं | जहाँ सर्विस देखते हैं, वहाँ भागते हैं | फिर भी सवेरे उठकर याद में बैठते होंगे तो किसको याद करते होंगे? शिवबाबा परमधाम में याद आता होगा या मधुबन में याद आता होगा? बाबा याद आता होगा ना | इसमें शिवबाबा है क्योंकि बाप तो अभी नीचे आ गया | मुरली चलाने नीचे आये हैं | इनका अपने घर में तो कोई काम नहीं होगा | वहाँ जाकर क्या करेंगे? इस तन में ही प्रवेश करते हैं | तो पहले ज़रूर शरीर याद आयेगा फिर आत्मा | फ़लाने शरीर में जो आत्मा है यह अनन्य अच्छी है | इनको सर्विस बिगर कुछ सूझता नहीं है | बहुत मीठी है | बाबा बैठे रहते हैं, सबको देखते रहते हैं | फलानी बच्ची बहुत अच्छी है, बहुत याद करती है | बांधेली बच्चियों को विकार के लिए कितनी मार मिलती है! कितना प्रेम से याद करती होंगी! जब बहुत याद करती हैं तो ख़ुशी के मारे प्रेम के आँसू भी आ जाते हैं | कभी-कभी वह आँसू गिर भी पड़ते हैं | बाबा को और धन्धा क्या है | सबको याद करते हैं | बहुत बच्चियाँ याद आती हैं | फ़लाने की आत्मा में दम नहीं है | बाप को याद नहीं करती | किसको सुख नहीं देती | यह अपना ही कल्याण नहीं करती | बाप तो यही जाँच करते रहेंगे | याद करना माना सकाश देना | आत्मा का कनेक्शन परमात्मा के साथ रहता है ना | एक दिन आयेगा जबकि बच्चे योग में बहुत रहेंगे | यह भी किसको याद करेंगे तो झट साक्षात्कार होगा | आत्मा तो है छोटी बिन्दी | साक्षात्कार करें तो भी कोई समझ न सकें फिर भी शरीर ही याद आता है | आत्मा है छोटी परन्तु याद करती है तो उनकी आत्मा पावन बनती जाती है | बगीचे में वैराइटी फूल होते हैं | बाबा भी देखते हैं यह बहुत अच्छा खुशबूदार फूल है, यह इतना नहीं | तो पद भी कम होगा | बाबा के जो मददगार बनते हैं, वही ऊँच पद पाते हैं | वह भी जो बाप को याद करते रहते हैं | ब्राह्मण से ट्रान्सफर हो देवता बनते हैं | यह वर्णन भी संगम पर ही कर सकते हैं कि यह दैवी फूल है या आसुरी फूल है? फूल तो सब हैं परन्तु वैराइटी बहुत है | बाबा भी याद करते रहते हैं | टीचर अपने स्टूडेन्ट को याद करेंगे ना | यह कम पढ़ते हैं | दिल में तो समझेंगे ना | यह बाप भी है, टीचर भी है | बाप तो है ही | टीचरपने का जास्ती चलता है | टीचर को तो रोज़ पढ़ाना है | इस पढ़ाई की ताकत से वह पद पाते हैं | सुबह को तुम सब भाई बाप की याद में बैठते हो, वह सब्जेक्ट है याद की | फिर मुरली चलती है, वह है पढ़ाई की सब्जेक्ट | मुख्य है ही योग और पढ़ाई | उनको ज्ञान और विज्ञान भी कहा जाता है | यह ज्ञान-विज्ञान भवन है, जहाँ बाप आकर सिखलाते हैं | ज्ञान से सारे सृष्टि की नॉलेज मिल जाती है | विज्ञान माना तुम योग में रहते हो जिससे तुम पावन बन जाते हो | तुमको अर्थ का पता है | बाप बच्चों को देखते रहते हैं | देही-अभिमानी बनने से ही भूत निकलेंगे | ऐसे नहीं, सबके भूत फट से निकल जायेंगे | हिसाब-किताब जब चुक्तू हो फिर चलन अनुसार ही पद पायेंगे | क्लास ट्रान्सफर होते हैं | इस दुनिया का ट्रान्सफर नीचे हो रहा है और तुम्हारा ऊपर हो रहा है | कितना फ़र्क है | वह कलियुगी सीढी नीचे उतरते जाते हैं और तुम पुरुषोत्तम संगमयुगी, सीढी ऊपर चढ़ते जाते हो | दुनिया तो यही है, सिर्फ़ बुद्धि का कम है | तुम कहते हो हम संगमयुगी हैं | पुरुषोत्तम बनाने लिए बाप को आना पड़ता है | तुम्हारे लिए अब पुरुषोत्तम संगमयुग है | बाकी सब घोर अन्धियारे में हैं | भक्ति को वह बहुत अच्छा समझते हैं क्योंकि ज्ञान का उन्हों को मालूम ही नहीं है | तुमको अभी ज्ञान मिला है, तब तुम समझते हो | ज्ञान की एक चुटकी से आधाकल्प के लिए हम चढ़ जाते हैं | फिर वहाँ ज्ञान की बात भी नहीं होगी | यह सब बातें महारथी बच्चे ही सुनकर धारण कर और सुनाते रहेंगे | बाकी तो यहाँ से निकले और ख़लास | कर्म, अकर्म, विकर्म का राज़ भी भगवान ही समझाते हैं | यह है कल्प का संगमयुग | जबकि पुरानी दुनिया ख़त्म हो नई दुनिया स्थापन होनी है | विनाश सामने खड़ा है | तुम संगमयुग पर खड़े हो और मनुष्यों  के लिए कलियुग चल रहा है | कितना घोर अन्धियारा है | गिरते ही रहते हैं | कोई तो गिराने के निमित्त भी होगा | वह है रावण |

इस सभा में वास्तव में कोई पतित बैठ नहीं सकता | पतित वायुमण्डल को ख़राब करेंगे | अगर कोई छिपकर आकर बैठते हैं तो उनको चोट भी लगती है | एकदम गिर पड़ेंगे | ईश्वरीय सभा में कोई दैत्य आकर बैठते हैं तो झट पता पड़ेगा | पत्थरबुद्धि तो है ही, बाकी भी पत्थरबुद्धि हो जायेगा | सौगुणा दण्ड पड़ जायेगा | अपने को नुकसान पहुँचायेंगे | कहते हैं हम देखेंगे इनको पता पड़ता है? हमको क्या पड़ी – जो करेगा, सो पायेगा | हमको जानने की ज़रूरत नहीं | बाप से सदैव सच्चा रहना है | कहते हैं सच तो बिठो नच | सच्चे रहेंगे तो अपनी राजधानी में भी डांस करेंगे | बाप है ही ट्रुथ | तो बच्चों को भी ट्रुथ बनना चाहिए | बाबा पूछते हैं – शिवबाबा कहाँ है? कहते हैं – इसमें है | परमधाम छोड़कर, दूर देश के रहने वाले आये देश पराये | उनको तो अब बहुत सर्विस करनी है | बाप कहते हैं – मुझे रात-दिन यहाँ सर्विस करनी पड़ती है | सन्देशियों को, भक्तों को साक्षात्कार कराना पड़ता है | है तो यहाँ ही | वहाँ तो कोई सर्विस नहीं | सर्विस बिगर बाबा को सुख न आये | सारी दुनिया की सर्विस करनी है | सब पुकारते हैं बाबा आओ | कहते हैं मैं इस रथ में आता हूँ | उन्होंने फिर घोड़े गाड़ी बना दी है | अब घोड़े गाड़ी में कृष्ण कैसे बैठेंगे! ऐसे भी नहीं कोई शौक होता है तो घोड़े-गाड़ी पर बैठने का |

देही-अभिमानी और देह-अभिमानी बनने की बातें संगमयुग पर ही होती हैं और सिवाए बाप के यह बातें और कोई समझा भी नहीं सकते हैं | तुम भी अभी जानते हो | पहले नहीं जानते थे | क्या कोई गुरु ने सिखाया? गुरु तो बहुत किये | कोई ने भी नहीं सिखाया | बहुत लोग गुरु करते हैं | समझते हैं कोई से शान्ति का रास्ता मिल जाए | बाप कहते हैं शान्ति का सागर तो एक बाप ही है, वह साथ ले जाते हैं | सुखधाम-शान्तिधाम का किसको पता ही नहीं है | कलियुग में है शुद्र वर्ण | पुरुषोत्तम संगमयुग पर है ब्राह्मण वर्ण | इन वर्णों का भी तुम्हारे सिवाए कोई को पता नहीं है | यहाँ तो सुनते हैं, बाहर निकलने से सब कुछ भूल जाते हैं | धारणा होती नहीं | बाप कहते हैं कहाँ भी जाते हो, बैज पड़ा हो | इसमें लज्जा की बात नहीं है | यह तो बाबा ने बहुत कल्याण के लिए बनाया है | किसको भी समझा कर दो | कोई सेन्सीबुल होगा तो कहेगा इस पर आपका खर्चा हुआ होगा | बोलो – खर्चा तो होता ही है | गरीबों के लिए फ़्री है | वह धारणा कर लें तो ऊँच पद पा सकते हैं | गरीब के पास पैसे ही नहीं तो क्या करेंगे | कोई के पास पैसे हैं परन्तु मनहूस हैं | इसने प्रैक्टिकल करके दिखाया | सब कुछ माताओं के हवाले कर दिया | तुम बैठ सब कुछ सम्भालो क्योंकि अब तो यह ज्ञान मिला है कि पिछाड़ी में कुछ भी याद न आये | अन्तकाल जो स्त्री सिमरे.... | बड़ी बिल्डिंग्स आदि होंगी तो अवश्य याद पड़ेंगी | परन्तु थोड़ा भी ज्ञान सुना तो प्रजा में ज़रूर आयेंगे | बाप तो हैं ही गरीब निवाज़ | कोई-कोई के पास पैसे होते हैं तो भी मनहूस होते हैं | ऐसे नहीं समझते कि पहला वारिस तो शिवबाबा है | भगवान् वारिस तो भक्ति मार्ग में भी है | ईश्वर अर्थ देते हैं | क्या वह कंगाल है जो उनको देते हैं! समझते हैं ईश्वर के नाम पर गरीबों को देंगे तो ईश्वर एवज में देंगे | दूसरे जन्म में मिलता तो है | कहते हैं दे दान तो छूटे ग्रहण | बाप को सब कुछ दे दिया, शरीर, मित्र-सम्बन्धी आदि सब कुछ बाबा को समर्पण कर दिया | यह सब कुछ आपका है | इस समय सारी दुनिया पर ग्रहण लगा हुआ है | वह कैसे एक सेकेण्ड में छूटता है, काले से गोरे कैसे बनते हैं, यह अब तुम ही जानते हो औरों को समझाते हो | जो कहते हैं – हम अन्दर में समझते हैं परन्तु किसको समझा नहीं सकते हैं, वह भी कोई काम के नहीं | बाप कहते – दे दान तो छूटे ग्रहण | हम तुमको अविनाशी रत्न देते हैं, वह सबको देते जाओ तो भारत पर वा सारी दुनिया पर जो राहू का ग्रहण बैठा हुआ है, वह उतर जाये और बृहस्पति की दशा हो जाये | सबसे अच्छी होती है बृहस्पति की दशा | अब तुम जानते हो भारत ख़ास और आम दुनिया पर राहू का ग्रहण लगा हुआ है | वह कैसे छूटे? यह तो बाप है ना | बाप तुम्हारे से पुराना लेकर नया देते हैं | इसको कहा जाता है बृहस्पति की दशा | मुक्तिधाम में जाने वालों के लिए बृहस्पति की दशा नहीं कहेंगे | अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 1.    सदा ख़ुशी में डांस करने के लिए सच्चे बाप से सदा सच्चा रहना है | कुछ भी छिपाना नहीं है |

2.    बाप जो अविनाशी रत्न देते हैं, वह सबको बांटने हैं | साथ-साथ शिवबाबा को अपना वारिस बनाकर सब  
      
कुछ सफल करना है | इसमें मनहूस नहीं बनना है |

वरदान:-

बीती हुई बातों वा वृत्तियों को समाप्त कर सम्पूर्ण सफलता प्राप्त करने वाली स्वच्छ आत्मा भव  

सेवा में स्वच्छ बुद्धि, स्वच्छ वृत्ति और स्वच्छ कर्म सफलता का सहज आधार है | कोई भी सेवा का कार्य जब आरम्भ करते हो तो पहले चेक करो कि बुद्धि में किसी आत्मा की बीती हुई बातों की स्मृति तो नहीं है | उसी वृत्ति, दृष्टि से उनको देखना, उनसे बोलना....इससे सम्पूर्ण सफलता नहीं हो सकती | इसलिए बीती हुई बातों को वा वृत्तियों को समाप्त कर स्वच्छ आत्मा बनो तब ही सम्पूर्ण सफलता प्राप्त होगी |

स्लोगन:- 

जो स्व परिवर्तन करता है – विजय माला उसी के गले में पड़ती है |  

ओम् शान्ति |