16-02-14 "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज: 13-11-97    मधुबन


“संगमयुग के प्राप्तियों की प्रालब्ध का अनुभव करो, मास्टर दाता, महा सहयोगी बनो” 

आज भाग्य विधाता बाप अपने श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चों को देख रहे हैं | हर एक बच्चे के भाग्य की रेखायें देख-देख भाग्य विधाता बाप भी हर्षित होते हैं क्योंकि सारे कल्प में चक्र लगाओ तो आप जैसा श्रेष्ठ भाग्य किसी धर्म आत्मा, महान आत्मा, राज्य अधिकारी आत्मा, किसी का भी इतना बड़ा भाग्य नहीं है, जितना आप संगमयुगी श्रेष्ठ आत्माओं का है | मस्तक से अपने भाग्य की रेखाओं को देखते हो? बापदादा हर एक बच्चों के मस्तक में चमकती हुई ज्योति की श्रेष्ठ रेखा देख रहे हैं | आप सभी भी अपनी रेखायें देख रहे हो? नयनों में देखो तो स्नेह और शक्ति की रेखायें स्पष्ट हैं | मुख में देखो मधुर श्रेष्ठ वाणी की रेखायें चमक रही हैं | होठों पर देखो रूहानी मुस्कान, रूहानी ख़ुशी की झलक की रेखा दिखाई दे रही है | ह्रदय में देखो वा दिल में देखो तो दिलाराम के लव में लवलीन रहने की रेखा स्पष्ट है | हाथों में देखो दोनों ही हाथ सर्व ख़ज़ानों से सम्पन्न होने की रेखा देखो, पांवों में देखो हर कदम में पदम की प्राप्ति की रेखा स्पष्ट है | कितना बड़ा भाग्य है! 

भाग्य विधाता बाप ने हर एक बच्चे को पुरुषार्थ से, श्रेष्ठ कर्मों की कलम से यह सब रेखायें खींचने की खुली दिल से, खुली छुट्टी दे दी है | जितनी लकीर लम्बी खींचने चाहो उतनी खींच सकते हो, लेकिन समय के अन्दर | जिसको जितनी लम्बी लकीर खींचनी है वह स्वयं ही खींच सकते हो, बाप ने कलम आपके हाथ में दिया है | तो वह लकीर खींचने आती है? खींची है या खींचना नहीं आती है? सभी को आती है? (हाँ जी) बहुत अच्छा | देखो, अभी के तक़दीर की लकीर आपको सारे कल्प में भी श्रेष्ठ बनाती है, 21 जन्म तो सदा सम्पन्न और सुखी रहने की रेखा चलती ही है और द्वापर, कलियुग में भी आपके पूज्य बनने की रेखा श्रेष्ठ रहती है | तो इस समय के भाग्य की रेखा सारा कल्प सदा साथ चलती है क्योंकि अविनाशी बाप की अविनाशी रेखा है | तो सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य की रेखा स्मृति में रहती है? रहती तो है लेकिन कभी इमर्ज रहती है, कभी मर्ज रहती है वा सदा ही इमर्ज रहती है? इसमें हाथ उठा रहे हैं | देखना, सदा इमर्ज रहे | इमर्ज रहने की निशानी है कि पुरानी स्मृतियाँ पुराने संस्कार की रेखायें मर्ज हो जाती हैं | कभी भी पुराने संस्कारों की रेखायें वा पुरानी बातों के स्मृति की रेखायें इमर्ज नहीं हों | मर्ज हों | और मर्ज रहते-रहते समाप्त हो जायें | जहाँ श्रेष्ठ भाग्य की रेखायें इमर्ज हैं, वहाँ पुरानी रेखायें इमर्ज होना असम्भव है | अगर होती हैं तो सिद्ध होता है कि श्रेष्ठ भाग्य की रेखा सदा इमर्ज नहीं रहती | तो क्या समझते हो? इतने श्रेष्ठ भाग्य की रेखायें इमर्ज होनी चाहिए या मर्ज? 

बापदादा वर्तमान समय सभी बच्चों को वर्तमान संगमयुग की प्राप्तियों के प्रालब्ध रूप में देखने चाहते हैं | पुरुषार्थ बहुत समय किया, अभी पुरुषार्थ स्वतः चले, मेहनत वाला पुरुषार्थ नहीं | क्या अन्त तक पुरुषार्थ की मेहनत करते रहेंगे? संगमयुग के प्राप्तियों की प्रालब्ध का अनुभव अब नहीं करेंगे तो कब करेंगे! भविष्य की प्रालब्ध अलग चीज़ है | वह तो आपकी इस पुरुषार्थ के प्रालब्ध की परछाई है | वह तो आपके पीछे-पीछे आपेही आयेगी | लेकिन विशेष बात है इस समय के प्रालब्ध प्राप्त करने की | ऐसे नहीं – कोई पूछता है कैसे हैं? क्या हालचाल है? तो अभी तक यही नहीं कहते रहो कि पुरुषार्थ चल रहा है | पुरुषार्थ तो है लेकिन पुरुषार्थ की प्रालब्ध अभी अनुभव करो | वह प्रालब्ध है सर्व शक्ति सम्पन्न, सर्व ज्ञान सम्पन्न, सर्व विघ्न विनाशक मूर्त, यह अभी की प्रालब्ध भविष्य में स्वतः ही प्राप्त होगी | जैसे भविष्य में सिर्फ़ प्रालब्ध है, पुरुषार्थ समाप्त है | ऐसे अभी बाकी रहे हुए समय में प्रालब्ध स्वरूप का विशेष अनुभव करो | जब प्रालब्ध कहते हैं तो पुरुषार्थ की ही प्रालब्ध होती है | पुरुषार्थ किया है, उस पुरुषार्थ अनुसार ही प्रालब्ध का अनुभव कर सकते हैं | लेकिन बापदादा बच्चों से क्या चाहते हैं? पूछते हैं ना बापदादा हमसे क्या चाहते हैं? तो बापदादा यही चाहते हैं कि अब थोड़े समय के लिए पुरुषार्थ के प्रालब्ध स्वरूप बन जाओ | बन सकते हो कि पुरुषार्थ की मेहनत अच्छी लगती है? प्रालब्ध वाले बनेंगे? अभी पुरुषार्थ कर रहा हूँ, पुरुषार्थ हो जायेगा, करके दिखायेंगे, यह शब्द समाप्त हों | करके दिखायें क्या, दिखाओ | और कब दिखायेंगे? क्या विनाश के समय दिखायेंगे? इसकी बहुत सहज विधि है कि अब मास्टर दाता बनो | बाप से लिया है और लेते भी रहो लेकिन आत्माओं से लेने की भावना नहीं रखो – यह कर लें तो ऐसा हो | यह बदले तो मैं बदलूँ, यह लेने की भावना है | ऐसा हो तो ऐसा हो | यह लेने की भावनायें हैं | ऐसा हो नहीं, ऐसा करके दिखाना है | हो जाए तो नहीं, लेकिन होना ही है और मुझे करना है | मुझे वायब्रेशन देना है | मुझे रहमदिल बनना है | मुझे गुणों का सहयोग देना है, मुझे शक्तियों का सहयोग देना है | मास्टर दाता बनो | लेना है तो एक बाप से लो | अगर आत्माओं से भी मिलता है तो बाप का दिया हुआ ही मिलेगा | तो दाता बन फ़्राकदिल बनो | देते रहो, देने आता है? या सिर्फ़ लेने आता है? अब जो जमा किए हैं वह दो | आपस में ब्राह्मण आत्मायें भी मास्टर दाता बनो | और दे तो मैं दूँ, नहीं | मुझे देना है | ख़ज़ाना है आपके पास? भरपूर है? गुणों से भरपूर है? शक्तियों से भरपूर है? है तो देते क्यों नहीं हो? अपने लिए छिपाकर रखा है क्या? जब ख़ज़ानों से भरपूर हो तो देते जाओ | यह क्यों करता? यह क्यों कहता? यह सोच नहीं करो | रहमदिल बन अपने गुणों का, अपनी शक्तियों का सहयोग दो – इसको कहा जाता है मास्टर दाता | महा सहयोगी | सहयोगी भी नहीं, महा सहयोगी बनो | तो समझा बापदादा क्या चाहता है? 

बापदादा अभी तक बच्चों के पुरुषार्थ की मेहनत देख नहीं सकते | डायमण्ड जुबली समाप्त हुई और डायमण्ड अभी तक बेदाग़ बनने के पुरुषार्थ में लगे हुए हैं | डायमण्ड जुबली अर्थात् हर ब्राह्मण आत्मा (डायमण्ड) चमकता रहे | आप सोचेंगे कि डायमण्ड जुबली हमारी तो थी नहीं, वह तो दादियों की हुई | आपकी हुई या दादियों की हुई, किसकी हुई? यज्ञ के स्थापना के कार्य की डायमण्ड जुबली | सिर्फ़ दादियों की नहीं, स्थापना के कार्य की डायमण्ड जुबली | तो आप सभी चाहे दो साल के हो, चाहे 12 साल के हो चाहे 50 के हो, लेकिन स्थापना के कार्य के निमित्त तो हो न या नहीं? निमित्त हो? ब्राह्मण माना ही ब्रह्मा बाप के साथ स्थापना के कार्य के निमित्त आत्मा | वही ब्रह्माकुमार या ब्रह्माकुमारी कहला सकते हैं | तो ब्रह्माकुमार, कुमारी सभी हो या पुरुषार्थी कुमार कुमारी हो? क्या हो? ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारियां अर्थात् जन्म लिया और ब्रह्मा बाप के साथी स्थापना के निमित्त आत्मा बनें | तो ऐसे नहीं सोचना हम तो अभी नए हैं | हम तो अभी छोटे हैं | लेकिन समय के अनुसार जब समय समाप्ति के नज़दीक है तो छोटों को, नयों को इतना ही तीव्र पुरुषार्थ करना ही है, अगर ब्राह्मण हैं तो | अगर क्षत्रिय हैं तो छुट्टी है | लेकिन ब्राह्मण हैं तो ब्राह्मण सो देवता कहा जाता है | क्षत्रिय सो देवता नहीं | तो ब्राह्मण आत्माओं को स्थापना के निमित्त बनना ही है | हैं ही निमित्त | इसलिए अभी मास्टर दाता बनो | दान नहीं करो लेकिन सहयोग दो | ब्राह्मण ब्राह्मण को दान नहीं कर सकता, सहयोग दे सकता है | तो क्या कहा? महा दाता और महा सहयोगी बनो | अभी एक साल वाला भी है तो भी समय के अनुसार अभी बचपन की बातें समाप्त करो क्योंकि सभी बच्चे वानप्रस्थ अवस्था के समीप हो | समय की गति प्रमाण, ड्रामा के नियम प्रमाण अभी सभी की वानप्रस्थ अवस्था समीप है | 

बापदादा जानते हैं कि बच्चों का बाप से जिगरी स्नेह है | जिगरी स्नेह है ना? या ऊपर-ऊपर का स्नेह है? दिल का स्नेह है तब तो भागकर आये हो ना? देखो बेहद के हाल में, बेहद के बाप के बच्चे, बेहद के रूप में विराजमान हैं | यह हाल अच्छा लगता है ना या दूर लगता है? देखो, बैठने में तो दूर है लेकिन बापदादा अपने दिल की बहुत बड़ी स्क्रीन में आप सब दूर बैठे हुए बच्चों को अति समीप देख रहे हैं | दूर नहीं देख रहे हैं | बापदादा के दिल की स्क्रीन बहुत बड़ी है | अभी तक साइन्स वालों ने भी नहीं निकाली है | इसीलिए आप दूर नहीं बैठे हो, बापदादा के दिल में बैठे हो | ऐसे समझते हो? कुर्सी पर बैठे हो, दरी पर बैठे हो या दिल में बैठे हो? दृश्य तो बहुत अच्छा सुन्दर लग रहा है | फुल पीछे तक भरा हुआ है या कुछ खाली है? बापदादा देख रहे हैं – पीछे थोड़ा खाली है | 

देखो आप लोगों को बापदादा ने काम दिया था | आप भूल गये होंगे लेकिन बापदादा को याद है | कौन-सा काम दिया था? (क्रोध मुक्त का) आज वह नहीं पूछेंगे | पहला चान्स लिया है ना तो आज क्रोधमुक्त का पूछेंगे तो दिलशिकस्त हो जायेंगे | बापदादा को रिज़ल्ट पता है | पूछेंगे | आप लोगों से भी वहाँ रिज़ल्ट मंगायेंगे | आज छोड़ देते हैं | तो काम दिया था कि 9 लाख तैयार करके दिखाओ | याद है – हर ज़ोन को कहा था | तो किस ज़ोन ने 9 लाख तैयार किये हैं? 

बंगाल-बिहार का सेवा का टर्न है | तो बंगाल-बिहार ने 9 लाख तैयार किया है? चुप हैं, बोलते नहीं हैं | चलो एक ज़ोन नहीं, सभी ज़ोन ने, देश विदेश वालों ने मिलकर 9 लाख तैयार किये हैं? विदेश वाले बताओ | 9 लाख हैं? बापदादा तो अपनी डेट फिक्स करते हैं और उसी फ़िक्स डेट पर आते हैं | आप भी सब बातों की डेट फ़िक्स करते हो? यह हाल कब तक बनेगा, फ़ंक्शन कब होगा, यह डेट फ़िक्स करते हो ना? तो इसकी डेट कौन सी है? फ़िक्स है? विनाश के इन्ड (अन्त) में या पहले? क्या होगा? क्या सोचा है? कौन सी डेट है? कोई डेट है या अभी फ़िक्स नहीं किया है? यह भी बाप करे | करना आपको है | बापदादा तो कहेंगे कि शुभ कार्य में देरी नहीं करो फिर क्या करेंगे? चलो, इस सीजन के इन्ड में हो जाए तो भी अच्छा | इतनी हिम्मत है? सिर्फ़ दाता बन जाओ | अगर दाता बनेंगे तो दाता की भावना से आपकी रॉयल फैमिली और समीप वाली प्रजा बहुत जल्दी बनेंगी | वह लोग तो इन्तज़ार कर रहे हैं, सिर्फ़ सदा दाता बनने की देरी है | महान सहयोगी बनने की देरी है | ज़्यादा ख़ज़ाना स्वयं प्रति वा सिर्फ़ स्वयं की सेवाओं के प्रति लगाते हो | अपने-अपने सेवाओं के ड्यूटीज़ में ज़्यादा समय लगाते हो | महान दाता बन, बेहद के दाता बन वर्ल्ड के गोले पर खड़े हो, बेहद की सेवा में वायब्रेशन फैलाओ | विश्व राजा बनना है सिर्फ़ ज़ोन के वा अपने-अपने ड्यूटीज़ के सर्किल के राजा नहीं बनना है | विश्व कल्याणकारी हो | अभी बेहद में जाओ | बेहद में जाने से हदों की बातें स्वतः ही समाप्त हो जायेंगी | मनोबल बहुत श्रेष्ठ बल है, उसको यूज़ नहीं करते हो | वाणी, सम्बन्ध, सम्पर्क उससे सेवा में बिज़ी रहते हो | अब मनोबल को बढ़ाओ | बेहद की सेवा जो अभी आप वाणी या सम्बन्ध, सहयोग से करते हो, वह मनोबल से करो | तो मनोबल की बेहद की सेवा अगर आपने बेहद की वृत्ति से, मनोबल द्वारा विश्व के गोले के ऊपर ऊँचा स्थित हो, बाप के साथ परमधाम की स्थिति में स्थित हो थोड़ा समय भी यह सेवा की तो आपको उसकी प्रालब्ध कई गुणा ज़्यादा मिलेगी | 

आजकल के समय और सरकमस्टांश के प्रमाण अन्तिम सेवा यही मन्सा वा मनोबल की सेवा है | इसका अभ्यास अभी से करो | चाहे वाणी द्वारा वा सम्बन्ध सम्पर्क द्वारा सेवा करते हो लेकिन अब इस मन्सा सेवा का अभ्यास अति आवश्यक है, साथ-साथ अभ्यास करते चलो | समझा क्या करना है? यह मन्सा सेवा वही रंगत दिखायेगी जो स्थापना के आदि में बाप की मन्सा द्वारा रूहानी आकर्षण ने बच्चों को आकर्षित किया | और मन्सा सेवा के फल स्वरूप अभी भी देख रहे हो कि वही आत्मायें अब भी फाउन्डेशन हैं | ड्रामा अनुसार यह बाप की मन्सा आकर्षण का सबूत है जो कितने पक्के हैं | तो अन्त में भी अभी बाप के साथ आपकी भी मन्सा आकर्षण, रूहानी आकर्षण से जो आत्मायें आयेंगी वह समय अनुसार समय कम, मेहनत कम और ब्राह्मण परिवार में वृद्धि करने के निमित्त बनेंगी | वही पहले वाली रंगत अन्त में भी देखेंगे | जैसे आदि में ब्रह्मा बाप को साधारण न देख कृष्ण के रूप में अनुभव करते थे | साक्षात्कार अलग चीज़ है लेकिन साक्षात् स्वरूप में कृष्ण ही देखते, खाते-पीते चलते थे | ऐसा है ना? तो स्थापना में एक बाप ने किया, अन्त में आप बच्चे भी आत्माओं के आगे साक्षात् देवी-देवता दिखाई देंगे | वह समझेंगे ही नहीं कि यह कोई साधारण हैं | वही पूज्यपन का प्रभाव अनुभव करेंगे, तब बाप सहित आप सभी के प्रत्यक्षता का पर्दा खुलेगा | अभी अकेले बाप को नहीं करना है | बच्चों के साथ प्रत्यक्ष होना है | जैसे स्थापना में ब्रह्मा के साथ विशेष ब्राह्मण भी स्थापना के निमित्त बने, ऐसे समाप्ति के समय भी बाप के साथ-साथ अनन्य बच्चे भी देव रूप में साक्षात् अनुभव होंगे | इसके लिए यही जो आज सुनाया अभी से प्रालब्ध स्वरूप में स्थित रहो | छोड़ो छोटी-छोटी बातों को, अब ऊँचे जाओ | विशेष प्रालब्ध स्वरूप का साक्षात्कार स्वयं भी करो और कराओ | समझा | अभी सभी अपने अनादि स्वरूप में एक सेकेण्ड में स्थित हो सकते हो? क्योंकि अन्त में एक सेकेण्ड की ही सीटी बजने वाली है | तो अभी से अभ्यास करो | बस टिक जाओ | (ड्रिल कराई) अच्छा | 

सर्व चारों ओर के बच्चों को सदा भाग्य की रेखायें इमर्ज रूप में स्मृति में रखने वाली आत्माओं को, सदा अपने संगमयुगी सर्व प्राप्ति स्वरूप प्रालब्ध को अनुभव करने वाले, सदा मास्टर दाता, महा सहयोगी आत्माओं को, सदा मनसा सेवा द्वारा विश्व के आत्माओं के कल्याणकारी आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते | 

वरदान:-  

इस अन्तिम जन्म में मिली हुई सर्व पॉवर्स को यूज़ करने वाले विल पॉवर सम्पन्न भव !    

यह स्वीट ड्रामा बहुत अच्छा बना-बनाया है, इसे कोई बदल नहीं सकता | लेकिन ड्रामा में इस श्रेष्ठ ब्राह्मण जन्म को बहुत ही पॉवर्स मिली हुई हैं | बाप ने विल किया है इसलिए विल पॉवर है | इस पॉवर को यूज़ करो – जब चाहो इस शरीर के बन्धन से न्यारे कर्मातीत स्थिति में स्थित हो जाओ | न्यारा हूँ, मालिक हूँ, बाप द्वारा निमित्त आत्मा हूँ – इस स्मृति से मन बुद्धि को एकाग्र कर लो तब कहेंगे विल पॉवर सम्पन्न |

स्लोगन:- 
दिल से सेवा करो तो दुआओं का दरवाज़ा खुल जायेगा |     

ओम् शान्ति |