18-09-14 प्रातः
मुरली
ओम्
शान्ति
“बापदादा”
मधुबन
“मीठे
बच्चे - तुम
बाप फे पास
आये हो
अपने
कैरेक्टर्स
सुधारने,
तुम्हें
अभी दैवी
कैरेक्टर्स
बनाने हैं”

प्रश्न:-
तुम
बच्चों को
आँखें
बन्द करके
बैठने की
मना क्यों
की जाती है?
उत्तर:-
क्योंकि
नजर से
निहाल
करने वाला
बाप
तुम्हारे
सन्मुख है
। अगर
आँखें
बन्द होगी
तो निहाल
कैसे
होंगे ।
स्कूल में
आँखें
बन्द करके
नहीं
बैठते हैं
। आँखें
बन्द
होंगी तो
सुस्ती
आयेगी ।
तुम बच्चे
तो स्कूल
में पढ़ाई
पढ़ रहे हो,
यह
सोर्स ऑफ
इनकम है ।
लाखों
पद्मों की
कमाई हो
रही है,
कमाई
में
सुस्ती,
उदासी
नहीं आ
सकती
|
ओम्
शान्ति
|
मीठे-मीठे
रूहानी
बच्चों
प्रति बाप
समझाते
हैं । यह तो
बच्चे
जानते हैं
कि रूहानी
बाप
परमधाम से
आकर हमको
पढ़ा रहे
हैं । क्या
पढ़ा रहे
हैं?
बाप
के साथ
आत्मा का
योग लगाना
सिखलाते
हैं जिसको
याद की
यात्रा
कहा जाता
है । यह भी
बताया है-बाप
को याद
करते-करते
मीठे
रूहानी
बच्चे तुम
पवित्र बन
अपने
पवित्र
शान्तिधाम
में पहुँच
जाएंगे ।
कितनी सहज
समझानी है
। अपने को
आत्मा
समझो और
अपने
प्रीतम
बेहद के
बाप को याद
करो तो
तुम्हारे
जन्म-जन्मान्तर
के पाप जो
हैं,
वह
भस्म होते
जाएंगे ।
इसको ही
योग अग्नि
कहा जाता
है । यह
भारत का
प्राचीन
राजयोग है,
जो
बाप ही हर 5
हजार वर्ष
के बाद आकर
सिखलाते
हैं । बेहद
का बाप ही
भारत में,
इस
साधारण तन
में आकर
तुम
बच्चों को
समझाते
हैं । इस
याद से ही
तुम्हारे
जन्म-जन्मान्तर
के पाप कट
जाएंगे
क्योंकि
बाप पतित-पावन
है और
सर्वशक्तिमान्
है ।
तुम्हारी
आत्मा की
बैटरी अभी
तमोप्रधान
बन गई है ।
जो
सतोप्रधान
थी अब उनको
फिर से
सतोप्रधान
कैसे
बनायें,
जो
तुम
सतोप्रधान
दुनिया
में जा सको
वा
शान्तिधाम
घर में जा
सको ।
बच्चों को
यह बहुत
अच्छी
रीति याद
रखना है ।
बाप
बच्चों को
यह डोज़
देते हैं ।
यह याद की
यात्रा
उठते-बैठते,
चलते-फिरते
तुम कर
सकते हो ।
जितना हो
सके
गृहस्थ
व्यवहार
में रहते
हुए कमल
फूल समान
पवित्र
रहना है ।
बाप को भी
याद करना
है और साथ-साथ
दैवीगुण
भी धारण
करने हैं
क्योंकि
दुनिया
वालों के
तो आसुरी
कैरेक्टर्स
हैं । तुम
बच्चे
यहाँ आये
हो दैवी
कैरेक्टर्स
बनाने । इन
लक्ष्मी-नारायण
के
कैरेक्टर्स
बड़े मीठे
थे । भक्ति
मार्ग में
उन्हों की
ही महिमा
गाई हुई है
। भक्ति
मार्ग कब
से शुरू
होता है,
यह
भी किसको
पता नहीं
है । अभी
तुमने
समझा है और
रावण
राज्य कब
से शुरू
हुआ,
यह
भी अब समझा
है । तुम
बच्चों को
यह सारी
नॉलेज
बुद्धि
में रखनी
है । जबकि
जानते हो
हम ज्ञान
सागर
रूहानी
बाप के
बच्चे हैं,
अब
रूहानी
बाप हमको
पढ़ाने आते
हैं । यह भी
जानते हो
यह कोई
ऑर्डनरी
बाप नहीं
है । यह है
रूहानी
बाप,
जो
हमको
पढ़ाने आया
है । उनका
निवास
स्थान
सदैव
ब्रह्मलोक
में है ।
लौकिक बाप
तो सबके
यहाँ हैं ।
यह बच्चों
को अच्छी
रीति
निश्चय
में रखना
है-हम
आत्माओं
को पढ़ाने
वाला
परमपिता
परमात्मा
है,
जो
बेहद का
बाप है ।
भक्ति
मार्ग में
लौकिक बाप
होते हुए
भी
परमपिता
परमात्मा
को बुलाते
हैं । उनका
एक ही नाम
यथार्थ
शिव है ।
बाप खुद
समझाते
हैं-मीठे-मीठे
बच्चों,
मेरा
नाम एक ही
शिव है । भल
अनेक नाम
अनेक
मन्दिर
बनाये हैं
परन्तु वह
सब है
भक्ति
मार्ग की
सामग्री ।
यथार्थ
नाम मेरा
एक ही शिव
है । तुम
बच्चों को
आत्मा ही
कहते हैं,
सालिग्राम
कहें तो भी
हर्जा
नहीं ।
अनेकानेक
सालिग्राम
हैं । शिव
एक ही है ।
वह है बेहद
का बाप,
बाकी
सब हैं
बच्चे ।
इसके पहले
तुम हद के
बच्चे,
हद
के बाप के
पास रहते
थे । ज्ञान
तो था नहीं
। बाकी
अनेक
प्रकार की
भक्ति
करते रहते
थे ।
आधाकल्प
भक्ति की
है,
द्वापर
से लेकर
भक्ति
शुरू होती
है |
रावणराज्य
भी शुरू
हुआ है । यह
है बहुत
सहज बात ।
परन्तु
इतनी सहज
बात भी कोई
मुश्किल
समझते हैं
।
रावणराज्य
कब से शुरू
होता है,
यह
भी कोई
नहीं
जानता ।
तुम मीठे
बच्चे
जानते हो-बाप
ही ज्ञान
का सागर है
। जो उनके
पास है वह
आकर
बच्चों को
देते हैं ।
शास्त्र
तो हैं
भक्ति
मार्ग के ।
अभी
तुम समझ
गये हो-ज्ञान,
भक्ति
और फिर है
वैराग्य ।
यह 3 मुख्य
हैं ।
सन्यासी
लोग भी
जानते हैं-ज्ञान
भक्ति और
वैराग्य ।
परन्तु
सन्यासियों
का है अपना
हद का
वैराग्य ।
वह बेहद का
वैराग्य
सिखला न
सकें । दो
प्रकार के
वैराग्य
हैं-एक है
हद का,
दूसरा
है बेहद का
। वह है
हठयोगी
सन्यासियों
का
वैराग्य ।
यह है बेहद
का ।
तुम्हारा
है राजयोग,
वह
घरबार छोड़
जंगल में
चले जाते
हैं तो
उन्हों का
नाम ही पड़
जाता है
सन्यासी ।
हठयोगी
घरबार
छोड़ते हैं
पवित्र
रहने के
लिए । यह भी
है अच्छा ।
बाप कहते
हैं- भारत
तो बहुत
पवित्र था
। इतना
पवित्र
खण्ड और
कोई होता
नहीं ।
भारत की तो
बहुत ऊंची
महिमा है
जो
भारतवासी
खुद नहीं
जानते हैं
। बाप को
भूलने
कारण सब
कुछ भूल
जाते हैं
अर्थात्
नास्तिक
निधनके बन
पड़ते हैं ।
सतयुग में
कितनी सुख-शान्ति
थी । अभी
कितनी
दुःख-
अशान्ति
है! मूलवतन
तो है ही
शान्तिधाम,
जहाँ
हम
आत्मायें
रहती हैं ।
आत्मायें
अपने घर से
यहाँ आती
हैं बेहद
का पार्ट
बजाने ।
अभी यह है
पुरूषोत्तम
संगमयुग
जबकि बेहद
का बाप आते
हैं नई
दुनिया
में ले
चलने के
लिए । बाप
आकर उत्तम
ते उत्तम
बनाते हैं
। ऊँच ते
ऊँच भगवान
कहा जाता
है ।
परन्तु वह
कौन है,
किसको
कहा जाता
है,
यह
कुछ भी
समझते
नहीं हैं ।
एक बड़ा
लिंग रख
दिया है ।
समझते हैं
यह
निराकार
परमात्मा
है । हम
आत्माओं
का वह बाप
है-यह भी
नहीं
समझते,
सिर्फ
पूजा करते
हैं ।
हमेशा
शिवबाबा
कहते हैं,
रूद्र
बाबा वा
बबुलनाथ
बाबा नहीं
कहेंगे ।
तुम लिखते
भी हो
शिवबाबा
याद है?
वर्सा
याद है?
यह
स्लोगन्स
घर-घर में
लगाने
चाहिए-शिवबाबा
को याद करो
तो पाप
भस्म
होंगे
क्योंकि
पतित-पावन
एक ही बाप
है । इस
पतित
दुनिया
में तो एक
भी पावन हो
नहीं सकता
। पावन
दुनिया
में फिर एक
भी पतित
नहीं हो
सकता ।
शास्त्रों
में तो सब
जगह पतित
लिख दिये
हैं ।
त्रेता
में भी
कहते रावण
था,
सीता
चुराई गई ।
कृष्ण के
साथ कंस,
जरासन्धी,
हिरण्यकश्यप
आदि
दिखाये
हैं ।
कृष्ण पर
कलंक लगा
दिये हैं ।
अब सतयुग
में यह सब
हो नहीं
सकते ।
कितने
झूठे कलंक
लगाये हैं
। बाप पर भी
कलंक
लगाये हैं
तो
देवताओं
पर भी कलंक
लगाये हैं
। सबकी
ग्लानि
करते रहते
हैं । तो अब
बाप कहते
हैं यह याद
की यात्रा
है आत्मा
को पवित्र
बनाने की ।
पावन बन
फिर पावन
दुनिया
में जाना
है । बाप 84
का चक्र भी
समझाते
हैं । अभी
तुम्हारा
यह अन्तिम
जन्म है
फिर घर
जाना है ।
घर में
शरीर तो
नहीं
जायेगा ।
सब
आत्मायें
जानी है
इसलिए
मीठे-मीठे
रूहानी
बच्चों,
अपने
को आत्मा
समझकर
बैठो,
देह
नहीं समझो
। और
सतसंगो
में तो तुम
देह-
अभिमानी
हो बैठते
हो । यहाँ
बाप कहते
हैं देही-
अभिमानी
होकर बैठो
। जैसे
मेरे में
यह
संस्कार
है,
मैं
ज्ञान का
सागर हूँ......
तुम
बच्चों को
भी ऐसा
बनना है ।
बेहद के
बाप और हद
के बाप का
कॉन्ट्रास्ट
भी बतलाते
हैं । बेहद
का बाप बैठ
तुमको
सारा
ज्ञान
समझाते
हैं । आगे
नहीं
जानते थे ।
अभी
सृष्टि का
चक्र कैसे
फिरता है,
उनका
आदि- मध्य-
अन्त और
चक्र की
आयु कितनी
है,
सब
बतलाते
हैं ।
भक्ति
मार्ग में
तो कल्प की
आयु लाखों
वर्ष
सुनाकर
घोर
अन्धियारें
में डाल
दिया है ।
नीचे ही
उतरते आये
हैं । कहते
भी हैं ना
जितना हम
भक्ति
करेंगे
उतना बाप
को नीचे
खीचेंगे ।
बाप आकर
हमको पावन
बनाएंगे ।
बाप को
खीचते हैं
क्योंकि
पतित हैं,
बड़े
दुःखी बन
जाते हैं ।
फिर कहते
हैं हम बाप
को बुलाते
हैं । बाप
भी देखते
हैं
बिल्कुल
दु :खी
तमोप्रधान
बन गये हैं,
5
हजार वर्ष
पूरे हुए
हैं तब फिर
आते हैं ।
यह पढ़ाई
कोई इस
पुरानी
दुनिया के
लिए नहीं
है ।
तुम्हारी
आत्मा
धारण कर
साथ ले
जायेगी ।
जैसे मैं
ज्ञान का
सागर हूँ,
तुम
भी ज्ञान
की नदियां
हो । यह
नॉलेज कोई
इस दुनिया
के लिए
नहीं है ।
यह तो छी-छी
दुनिया,
छी-छी
शरीर है,
इनको
तो छोड़ना
है । शरीर
तो यहाँ
पवित्र हो
नहीं सकता
। मैं
आत्माओं
का बाप हूँ
। आत्माओं
को ही
पवित्र
बनाने आया
हूँ । इन
बातों को
मनुष्य तो
कुछ भी समझ
नहीं सकते
हैं,
बिल्कुल
ही
पत्थरबुद्धि,
पतित
हैं इसलिए
गाते हैं
पतित-पावन
आत्मा ही
पतित बनी
है । आत्मा
ही सब कुछ
करती है ।
भक्ति भी
आत्मा
करती है,
शरीर
भी आत्मा
लेती है ।
अब
बाप कहते
हैं मैं
तुम
आत्माओं
को ले जाने
आया हूँ ।
मैं बेहद
का बाप तुम
आत्माओं
के बुलावे
पर आया हूँ
। तुमने
कितना
पुकारा है
। अभी तक भी
बुलाते
रहते हैं-हे
पतित-पावन,
ओ
गॉड फादर
आकर इस
पुरानी
दुनिया के
दु :खों से,
डेविल
से लिबरेट
करो तो हम
सब घर में
चले जावें
। और तो कोई
को पता ही
नहीं है-हमारा
घर कहाँ है,
घर
में कैसे,
कब
जायेंगे ।
मुक्ति
में जाने
के लिए
कितना
माथा
मारते हैं,
कितने
गुरू करते
हैं । जन्म-जन्मान्तर
माथा
मारते चले
आये हैं ।
वे गुरू
लोग
जीवनमुक्ति
के सुख को
तो जानते
ही नहीं ।
वे चाहते
हैं
मुक्ति ।
कहते भी
हैं विश्व
में
शान्ति
कैसे हो?
सन्यासी
भी मुक्ति
को ही
जानते हैं
।
जीवनमुक्ति
को तो
जानते
नहीं ।
परन्तु
मुक्ति-जीवनमुक्ति
दोनों
वर्सा बाप
ही देते
हैं । तुम
जब
जीवनमुक्ति
में रहते
हो तो बाकी
सब मुक्ति
में चले
जाते हैं ।
अभी तुम
बच्चे
नॉलेज ले
रहे हो,
यह
बनने के
लिए ।
तुमने ही
सबसे
जास्ती
सुख देखा
है फिर
सबसे
जास्ती दु :ख
भी तुमने
देखा है ।
आदि सनातन
देवी-देवता
धर्म वाले
तुम ही फिर
धर्म-
भ्रष्ट,
कर्म-
भ्रष्ट हो
गये हो ।
तुम
पवित्र
प्रवृत्ति
मार्ग
वाले थे,
यह
लक्ष्मी-नारायण
पवित्र
प्रवृत्ति
मार्ग के
हैं | घरबार
छोड़ना यह
सन्यासियों
का धर्म है
। सन्यासी
भी पहले
अच्छे थे ।
तुम भी
पहले बहुत
अच्छे थे,
अभी
तमोप्रधान
बने हो ।
बाप कहते
हैं यह
ड्रामा का
खेल है ।
बाप
समझाते
हैं-यह
पढ़ाई है ही
नई दुनिया
के लिए ।
पतित शरीर,
पतित
दुनिया
में
ड्रामा
अनुसार
हमको फिर 5
हजार वर्ष
के बाद आना
पड़ता है । न
कल्प
लाखों
वर्ष का है,
न
मैं
सर्वव्यापी
हूँ । यह तो
तुम मेरी
ग्लानि
करते आये
हो । मैं
फिर भी तुम
पर कितना
उपकार
करता हूँ ।
जितनी
शिवबाबा
की ग्लानि
की है,
उतना
और कोई की
नहीं की है
। जो बाप
तुमको
विश्व का
मालिक
बनाते हैं
उनके लिए
तुम कहते
रहते हो
सर्वव्यापी
हैं । जब
ग्लानि की
भी हद हो
जाती है,
तब
फिर मैं
आकर उपकार
करता हूँ ।
यह है
पुरूषोत्तम
संगमयुग,
कल्याणकारी
युग । जबकि
तुमको
पवित्र
बनाने आता
हूँ ।
कितनी सहज
युक्ति
पावन
बनाने की
बतलाते
हैं ।
तुमने
भक्तिमार्ग
में बहुत
धक्के
खाये हैं,
तलाव
में भी
स्नान
करने जाते
हैं,
समझते
हैं इससे
पावन बन
जाएंगे ।
अब कहा वह
पानी और
कहा पतित-पावन
बाप । वह सब
है
भक्तिमार्ग,
यह
है ज्ञान
मार्ग ।
मनुष्य
कितने घोर
अन्धियारे
में हैं ।
कुम्भकरण
की नींद
में सोये
हुए हैं ।
यह तो तुम
जानते हो-गाया
भी जाता है
विनाशकाले
विपरीत
बुद्धि
विनशयन्ति
। अभी
तुम्हारी
नम्बरवार
पुरूषार्थ
अनुसार
प्रीत
बुद्धि है
। पूरी
नहीं है,
क्योंकि
माया घड़ी-घड़ी
भुला देती
है । यह है 5
विकारों
की लड़ाई ।
पाँच
विकारों
को रावण
कहा जाता
है । रावण
पर गधे का
शीश
दिखाते
हैं । बाबा
ने यह भी
समझाया है -
स्कूल में
कब आँखें
बन्द करके
नहीं
बैठना
होता है ।
वह तो
भक्तिमार्ग
में भगवान
को याद
करने की
शिक्षा
देते हैं
कि आँखें
बन्द करके
बैठो ।
यहाँ तो
बाप कहते
हैं यह
स्कूल है ।
सुना भी है
नजर से
निहाल.....कहते
हैं यह
जादूगर है
। अरे,
वह
तो गायन भी
है ।
देवतायें
भी नजर से
निहाल
होते हैं ।
नजर से
मनुष्य को
देवता
बनाने
वाला
जादूगर
हुआ ना ।
बाप बैठ
बैटरी
चार्ज करे
और बच्चे
आँखें
बन्द कर
बैठें तो
क्या
कहेंगे!
स्कूल में
आँखें
बन्द कर
नहीं
बैठते ।
नहीं तो
सुस्ती
आती है ।
पढ़ाई तो है
सोर्स ऑफ
इनकम ।
लाखों
पद्मों की
कमाई है ।
कमाई में
कभी उबासी
नहीं
लेंगे ।
यहाँ
आत्माओं
को
सुधारना
है । यह एम
आब्जेक्ट
खड़ी है ।
उन्हों की
राजधानी
देखनी हो
तो जाओ
देलवाड़ा
में । वह है
जड़,
यह
है चेतन्य
देलवाड़ा
मन्दिर ।
देवतायें
भी है,
स्वर्ग
भी है ।
सर्व का
सद्गति
दाता आबू
में ही आते
हैं,
इसलिए
बड़े ते बड़ा
तीर्थ आबू
ठहरा । जो
भी धर्म
स्थापक
अथवा गुरू
लोग हैं,
सबकी
सद्गति
बाप यहाँ
आकर करते
हैं । यह
सबसे बड़ा
तीर्थ है,
परन्तु
गुप्त है ।
इनको कोई
जानते
नहीं हैं ।
अच्छा!
मीठे-मीठे
सिकीलधे
बच्चों
प्रति मात-पिता
बापदादा
का याद-प्यार
और
गुडमोर्निंग।
रूहानी
बाप की
रूहानी
बच्चों को
नमस्ते ।
धारणा
के लिए
मुख्य सार:-
1.
जो
संस्कार
बाप में
हैं,
वही
संस्कार
धारण करने
हैं । बाप
समान
ज्ञान का
सागर बनना
है । देही-
अभिमानी
होकर रहने
का अभ्यास
करना है ।
2.
आत्मा
रूपी
बैटरी को
सतोप्रधान
बनाने के
लिए चलते-फिरते
याद की
यात्रा
में रहना
है । दैवी
कैरेक्टर्स
धारण करने
हैं । बहुत-बहुत
मीठा बनना
है ।
वरदान:-
धारणा
स्वरूप
द्वारा
सेवा करके
खुशी का
प्रत्यक्षफल
प्राप्त
करने वाले
सच्चे
सेवाधारी
भव !
सेवा
का उमंग
रखना बहुत
अच्छा है
लेकिन यदि
सरकमस्टांस
अनुसार
सेवा का
चांस आपको
नहीं
मिलता है
तो अपनी
अवस्था
गिरावट वा
हलचल में न
आये । अगर
ज्ञान
सुनाने का
चांस नहीं
मिलता है
लेकिन आप
अपनी
धारणा
स्वरूप का
प्रभाव
डालते हो
तो सेवा की
मार्क्स
जमा हो
जाती हैं ।
धारणा
स्वरूप
बच्चे ही
सच्चे
सेवाधारी
हैं ।
उन्हें
सर्व की
दुआयें और
सेवा के
रिटर्न
में
प्रत्यक्षफल
खुशी की
अनुभूति
होती है ।
स्लोगन:-
सच्चे
दिल से
दाता,
विधाता,
वरदाता
को राजी कर
लो तो
रूहानी
मौज में
रहेंगे ।

ओम्
शान्ति