13-12-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - आत्मा रूपी बैटरी को ज्ञान और योग से भरपूर कर सतोप्रधान बनाना हैं, पानी के स्नान से नहीं |”   


प्रश्न:-   
इस समय सभी मनुष्य आत्माओं को भटकाने वाला कौन है? वह भटकाता क्यों है?


उत्तर:-

सभी को भटकाने वाला रावण है क्योंकि वह खुद भी भटकता है । उसे अपना कोई घर नहीं है । रावण को कोई बाबा नहीं कहेंगे । बाप तो परमधाम घर से आता है अपने बच्चों को ठिकाना देने । अभी तुम्हें घर का पता चल गया इसलिए तुम भटकते नहीं हो । तुम कहते हो हम बाप से पहले-पहले जुदा हुए अब फिर पहले-पहले घर जायेंगे ।

 

ओम् शान्ति |

मीठे-मीठे बच्चे यहाँ बैठकर समझते हैं, इनमें जो शिवबाबा आये हैं, कैसे भी करके हमको साथ घर जरूर ले जायेंगे । वह आत्माओं का घर है ना । तो बच्चों को जरूर खुशी होती होगी, बेहद का बाप आकर के हमको गुल- गुल बनाते हैं । कोई कपड़ा आदि नहीं पहनाते हैं । इसको कहा जाता है योगबल, याद का बल । जितना टीचर का मर्तबा है उतना और बच्चों को भी मर्तबा दिलाते हैं । पढ़ाई से स्टूडेंट जानते हैं कि हम यह बनेंगे । तुम भी समझते हो हमारा बाबा टीचर भी है, सतगुरू भी है । यह है नई बात | हमारा बाबा टीचर है, उनको हम याद करते हैं । हमको टीच कर यह बना रहे हैं । हमारा बेहद का बाबा आया हुआ है - हमको वापिस घर ले जाने । रावण का कोई घर नहीं होता, घर राम का होता है । शिवबाबा कहाँ रहते हैं? तुम झट कहेंगे परमधाम में । रावण को तो बाबा नहीं कहेंगे । रावण कहाँ रहते हैं? पता नहीं । ऐसे नहीं कहेंगे कि रावण परमधाम में रहते हैं । नहीं, उनका जैसेकि ठिकाना ही नहीं । भटकता रहता है, तुमको भी भटकाता है । तुम रावण को याद करते हो क्या? नहीं । कितना तुमको भटकाते हैं । शास्त्र पढ़ो, भक्ति करो, यह करो । बाप कहते हैं इसको कहा जाता है भक्ति मार्ग, रावण राज्य । गांधी भी कहते थे रामराज्य चाहिए । इस रथ में हमारा शिवबाबा आया हुआ है । बड़ा बाबा है ना । वह आत्माओं से बच्चे-बच्चे कह बात करते हैं । अभी तुम्हारी बुद्धि में है रूहानी बाप और रूहानी बाप की बुद्धि में हो तुम रूहानी बच्चे क्योंकि हमारा कनेक्शन है ही मूलवतन से । आत्मायें परमात्मा अलग रहे बहुकाल.... । वहाँ तो आत्मायें बाप के साथ इकट्ठी रहती हैं । फिर अलग होती हैं अपना- अपना पार्ट बजाने । बहुतकाल का हिसाब चाहिए ना । वह बाप बैठ बतलाते हैं । तुम अब पढ़ाई पढ़ रहे हो । तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं जो अच्छी रीति पढ़ते हैं । वही पहले-पहले मेरे से जुदा हुए हैं । वही फिर मुझे बहुत याद करेंगे तो फिर पहले-पहले आ जायेंगे ।

बाप बच्चों को बैठ सारे सृष्टि चक्र का गुह्य राज समझाते हैं, जो और कोई भी नहीं जानते । गुह्य भी कहा जाता, गुह्यतम् भी कहा जाता है । यह तुम जानते हो बाप कोई ऊपर से बैठ नहीं समझाते हैं, यहाँ आकर समझाते हैं-मैं इस कल्प वृक्ष का बीजरूप हूँ । इस मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ को कल्प वृक्ष कहा जाता है । दुनिया के मनुष्य तो बिल्कुल कुछ नहीं जानते । कुम्भकरण की नींद में सोये हुए हैं फिर बाप आकर जगाते हैं । अभी तुम बच्चों को जगाया है और सब सोये पड़े हैं । तुम भी कुम्भकरण की आसुरी नींद में सोये हुए थे । बाप ने आकर जगाया है, बच्चों जागो । तुम गाफिल हो (अलबेले हो) सोये पड़े हो, इसको कहा जाता है अज्ञान नींद । वह नींद तो सब करते हैं । सतयुग में भी करते हैं । अभी सब हैं अज्ञान की नींद में । बाप आकर ज्ञान देकर सबको जगाते हैं । अब तुम बच्चे जागे हो, जानते हो बाबा आया हुआ है, हमको ले जायेगा । अभी तो न यह शरीर काम का रहा है, न आत्मा, दोनों पतित बन पड़े हैं, एकदम मुलम्मे का है । 9 कैरेट कहें अर्थात् बहुत थोड़ा सोना, सच्चा सोना 24 कैरेट का होता है । अब बाप तुम बच्चों को 24 कैरेट में ले जाना चाहते हैं । तुम्हारी आत्मा को सच्चा-सच्चा गोल्डन एजेड बनाते हैं । भारत को सोने की चिड़िया कहते थे । अभी तो लोहे की, ठिक्कर भित्तर की चिड़िया कहेंगे । हैं तो चैतन्य ना । यह समझने की बातें हैं । जैसे आत्मा को समझते हो वैसे बाप को भी समझ सकते हो । कहते भी हैं चमकता है सितारा । बहुत छोटा सितारा है । डॉक्टरों आदि ने बहुत कोशिश की है देखने की परन्तु दिव्य दृष्टि बिगर देख नहीं सकते । बहुत सूक्ष्म है । कोई कहते हैं आँखों से आत्मा निकल गई, कोई कहते हैं मुख से निकल गई । आत्मा निकलकर जाती कहाँ हैं? दूसरे तन में जाकर प्रवेश करती है । अभी तुम्हारी आत्मा ऊपर चली जायेगी शान्तिधाम । यह पक्का मालूम है बाप आकर हमको घर ले जायेंगे । एक तरफ है कलियुग, दूसरे तरफ है सतयुग । अभी हम संगम पर खड़े हैं । वन्डर है । यहाँ करोड़ों मनुष्य हैं और सतयुग में सिर्फ 9 लाख! बाकी सबका क्या हुआ? विनाश हो जाता है । बाप आते ही हैं नई दुनिया की स्थापना करने । ब्रह्मा द्वारा स्थापना होती है । फिर पालना भी होती है दो रूप में । ऐसे तो नहीं 4 भुजा वाले कोई मनुष्य होंगे । फिर तो शोभा ही नहीं है । बच्चों को भी समझा देते हैं - चतुर्भुज है श्री लक्ष्मी, श्री नारायण का कम्बाइन्ड रूप । श्री अर्थात् श्रेष्ठ । त्रेता में दो कला कम हो जाती हैं । तो बच्चों को यह जो नॉलेज अभी मिलती है इसकी स्मृति में रहना है । मुख्य है ही दो अक्षर, बाप को याद करो । दूसरे कोई की समझ में नहीं आयेगा । बाप ही पतित-पावन सर्व शक्तिमान् है । गाते भी हैं बाबा, आपने हमको सारा आसमान धरती सब कुछ दे दिया । ऐसी कोई चीज नहीं जो न दी हो । सारे विश्व का राज्य दे दिया है ।

तुम जानते हो यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक थे । फिर ड्रामा का चक्र फिरता है । सम्पूर्ण निर्विकारी बनना है, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार । यह भी जानते हो विकारी से निर्विकारी, निर्विकारी से विकारी, यह 84 जन्मों का पार्ट अनगिनत बार बजाया है । उसकी गिनती नहीं कर सकते । आदमशुमारी भल गिनती कर लेते हैं । बाकी यह जो तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान, सतोप्रधान से तमोप्रधान बनते हो, इनका हिसाब निकाल नहीं सकते कि कितना बार बने हो । बाबा कहते हैं 5 हजार वर्ष का यह चक्र है । यह ठीक है । लाखों वर्ष की बात तो याद भी न रह सके । अभी तुम्हारे में गुणों की धारणा होती है । ज्ञान का तीसरा नेत्र मिल जाता है । इन आँखों से तुम पुरानी दुनिया को देखते हो । तीसरा नेत्र जो मिलता है, उनसे नई दुनिया को देखना है । यह दुनिया तो कोई काम की नहीं है । पुरानी दुनिया है । नई और पुरानी दुनिया में फर्क देखो कितना है । तुम जानते हो हम ही नई दुनिया के मालिक थे फिर 84 जन्म लेते-लेते यह बने हैं । यह अच्छी रीति याद रखना चाहिए और फिर दूसरे को भी समझाना है-कैसे हम यह बनते हैं? ब्रह्मा सो विष्णु, फिर विष्णु सो ब्रह्मा बनते हैं । ब्रह्मा और विष्णु का फर्क देखते हो ना । विष्णु कैसा सजा-सजाया बैठा है और यह ब्रह्मा कैसे साधारण बैठा है । तुम जानते हो यह ब्रह्मा, वह विष्णु बनने वाला है । यह किसको समझाना भी बहुत सहज है । ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का आपस में क्या सम्बन्ध है? तुम जानते हो यह विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण हैं । यही विष्णु देवता सो फिर यह मनुष्य ब्रह्मा बनते हैं । वह विष्णु सतयुग का है, ब्रह्मा यहाँ का है । बाप ने समझाया है ब्रह्मा से विष्णु बनना सेकण्ड में, फिर विष्णु से ब्रह्मा बनने में 5 हजार वर्ष लगते हैं । ततत्वम् । केवल एक ब्रह्मा ही तो नहीं बनते हैं ना! यह बातें सिवाए बाप के और कोई समझा न सके । यहाँ कोई मनुष्य गुरू की बात नहीं है । इनका भी गुरू शिवबाबा, तुम ब्राह्मणों का भी गुरू शिवबाबा है । उनको सद्गुरु कहा जाता है । तो बच्चों को शिवबाबा को ही याद करना है । कोई को भी यह समझाना तो बहुत सहज है-शिवबाबा को याद करो । शिवबाबा स्वर्ग नई दुनिया रचते हैं । ऊंच ते ऊंच भगवान् शिव है । वह हम आत्माओं का बाबा है । तो भगवान् बच्चों को कहते हैं मुझ बाप को याद करो । याद करना कितना सहज है । बच्चा पैदा होता है और झट माँ-माँ उनके मुख से आपेही निकलता है । माँ-बाप के सिवाए और कोई पास नहीं जायेगा । माँ मर जाती है, वह फिर और बात है । पहले हैं माँ और बाप फिर पीछे और मित्र-सम्बन्धी आदि होते हैं । उसमें भी जोड़ी-जोड़ी होगी । चाचा-चाची दो हैं ना । कुमारी होगी फिर बड़ी होते ही कोई चाची कहेंगे, कोई मामी कहेंगे ।

अभी तुमको बाप समझाते हैं तुम सब भाई- भाई हो । बस, और सब सम्बन्ध कैन्सल करते हैं । भाई- भाई समझेंगे तो एक बाप को याद करेंगे । बाप भी कहते हैं-बच्चों, मुझ एक बाप को याद करो । कितना बड़ा बेहद का बाप है । वह बड़ा बाबा तुमको बेहद का वर्सा देने आये हैं । घडी-घड़ी कहते हैं मनमनाभव । अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो, यह बात भूलो मत । देह- अभिमान में आने से ही भूल जाते हैं । पहले-पहले तो अपने को आत्मा समझना है-हम आत्मा सालिग्राम हैं और एक बाप को ही याद करना है । बाप ने समझाया है मैं पतित-पावन हूँ, मुझे याद करने से तुम्हारी बैटरी जो खाली हो गई है वह भरपूर हो जायेगी, तुम सतोप्रधान बन जायेंगे । पानी की गंगा में तो जन्म-जन्मान्तर घुटका खाया है लेकिन पावन बन नहीं सके । पानी कैसे पतित-पावन हो सकता है? ज्ञान से ही सद्गति होती है । इस समय है ही पाप आत्माओं की झूठी दुनिया । लेन-देन भी पाप आत्माओं से ही होती है । मन्सा-वाचा-कर्मणा पाप आत्मा ही बनते हैं । अभी तुम बच्चों को समझ मिली हैं । तुम कहते हो हम यह लक्ष्मी-नारायण बनने के लिए पुरूषार्थ करते हैं । अभी तुम्हारी भक्ति करना बंद है । ज्ञान से सद्गति होती है । यह (देवतायें) सद्गति में हैं ना । बाप ने समझाया है यह बहुत जन्मों के अन्त में है । बाप कितना सहज समझाते हैं । तुम बच्चे कितनी मेहनत करते हो । कल्प-कल्प करते हो । पुरानी दुनिया को बदल नई दुनिया बनानी है । कहते हैं ना भगवान जादूगर है, रत्नागर है, सौदागर है । जादूगर तो है ना । पुरानी दुनिया को हेल से बदल हेविन बना देते हैं । कितना जादू है अभी तुम हेविन के रहवासी बन रहे हो । जानते हो अभी हम हेल के रहवासी हैं । हेल और हेविन अलग है । 5 हजार वर्ष का चक्र है । लाखों वर्ष की तो बात ही नहीं । यह बातें भूलनी नहीं चाहिए । भगवानुवाच है ना-कोई जरूर है जो पुनर्जन्म रहित है । कृष्ण को तो शरीर है । शिव को है नहीं । उनको मुख तो जरूर चाहिए । तुमको सुनाने के लिए आकर पढ़ाते हैं ना । ड्रामा अनुसार सारी नॉलेज ही उनके पास है । वह सारे कल्प में एक ही बार आते हैं दु :खधाम को सुखधाम बनाने । सुख-शान्ति का वर्सा जरूर बाप से मिला है तब तो मनुष्य चाहते हैं ना, बाप को याद करते हैं ।

बाप ज्ञान देखो कैसे सहज रीति देते हैं । यहाँ बैठे भी बाप को याद करो, बाजोली याद करो तो भी मन्मनाभव ही है । बाप ही यह सारा ज्ञान देने वाला है । तुम कहेंगे हम बेहद के बाप पास जाते हैं । बाप हमको शान्तिधाम-सुखधाम ले जाने का रास्ता बताते हैं । यहाँ बैठे घर को याद करना है । अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है, घर को याद करना है और नई दुनिया को याद करना है । यह पुरानी दुनिया तो खत्म होनी ही है । आगे चलकर तुम वैकुण्ठ को भी बहुत याद करेंगे । घड़ी-घडी वैकुण्ठ में जाते रहेंगे । शुरू में बच्चियाँ घड़ी-घड़ी आपस में बैठ वैकुण्ठ में चली जाती थी । यह देखकर बड़े- बड़े घर वाले अपने बच्चों को भेज देते थे । नाम ही रखा था ओम निवास । कितने ढेर बच्चे आये फिर हंगामा हुआ । बच्चों को पढ़ाते थे । आपेही ध्यान में चले जाते थे । अभी यह ध्यान-दीदार का पार्ट बंद कर दिया है । यहाँ भी कब्रिस्तान बना देते थे । सबको सुला देते थे, कहते थे अब शिवबाबा को याद करो, ध्यान में चले जाते थे । अब तुम बच्चे भी जादूगर हो । किसको भी देखेंगे और वह झट ध्यान में चले जायेंगे । यह जादू कितना अच्छा है । नौधा भक्ति में तो जब एकदम प्राण देने तैयार होते हैं तब उनको दीदार होता है । यहाँ तो बाप खुद आये हैं, तुम बच्चों को पढ़ाकर ऊंच पद प्राप्त कराते हैं । आगे चल तुम बच्चे बहुत साक्षात्कार करते रहेंगे । बाप से अभी भी कोई पूछे तो बता सकते हैं कौन गुलाब का फूल है, कौन चम्पा का फूल है, कौन टांगर है? टुह भी होती है ना । (टांगर, टुह यह सब वैरायटी फूलों के नाम हैं) । अच्छा ।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. देह के सब सम्बन्ध कैन्सिल कर आत्मा भाई- भाई हैं, यह निश्चय करना है और बाप को याद कर पूरे वर्से का अधिकारी बनना है । 

2. अब पाप आत्माओं से लेन-देन नहीं करनी है । अज्ञान नींद से सबको जगाना है, शान्तिधाम-सुखधाम जाने का रास्ता बताना है ।

 

वरदान:-

कैसे भी वायुमण्डल में मन-बुद्धि को सेकण्ड में एकाग्र करने वाले सर्वशक्ति सम्पन्न भव !   

बापदादा ने सभी बच्चों को सर्वशक्तियां वर्से में दी हैं । याद की शक्ति का अर्थ है - मन-बुद्धि को जहाँ लगाना चाहो वहाँ लग जाए । कैसे भी वायुमण्डल के बीच अपने मन-बुद्धि को सेकण्ड में एकाग्र कर लो । परिस्थिति हलचल की हो, वायुमण्डल तमोगुणी हो, माया अपना बनाने का प्रयत्न कर रही हो फिर भी सेकण्ड में एकाग्र हो जाओ - ऐसी कंट्रोलिंग पावर हो तब कहेंगे सर्वशक्ति सम्पन्न ।

 

स्लोगन:- 

विश्व कल्याण की जिम्मेवारी और पवित्रता की लाइट का ताज पहनने वाले ही डबल ताजधारी बनते हैं ।   

 

ओम् शान्ति |