23-06-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे
–
लक्ष्य
को सदा सामने रखो तो दैवीगुण आते जायेंगे | अब अपनी सम्भाल
करनी है, आसुरी गुणों को निकाल दैवीगुण धारण करने हैं” 
प्रश्न:-
आयुष्वान भव का वरदान मिलते हुए भी बड़ी आयु के लिए कौन-सी
मेहनत करनी है?
उत्तर:-
बड़ी
आयु के लिए तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने की मेहनत करो | जितना
बाप को याद करेंगे उतना सतोप्रधान बनेंगे और आयु बड़ी होगी फिर
मृत्यु का डर निकल जायेगा | याद से दुःख दूर हो जायेंगे | तुम
फूल बन जायेंगे | याद में ही गुप्त कमाई है | याद से पाप कट
जाते हैं | आत्मा हल्की हो जाती है, आयु बड़ी हो जाती है |
ओम्
शान्ति
|
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति बाप समझा रहे हैं, पढ़ा भी रहे
हैं | क्या समझा रहे हैं? मीठे बच्चों, तुमको एक तो आयु बड़ी
चाहिए क्योंकि तुम्हारी आयु बहुत बड़ी थी | 150 वर्ष की आयु थी,
बड़ी आयु कैसे मिलती है? तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने से | जब
तुम सतोप्रधान थे तो तुम्हारी आयु बहुत बड़ी थी | अभी तुम ऊपर
चढ़ रहे हो | जानते हो हम तमोप्रधान बने तो हमारी आयु छोटी हो
गई थी | तन्दुरुस्ती भी ठीक नहीं थी | बिल्कुल ही रोगी बन गये
थे | यह जीवन पुरानी है नई से भेंट की जाती है | अभी तुम जानते
हो बाप हमको बड़ी आयु बनाने की युक्ति बताते हैं | मीठे-मीठे
बच्चों मुझे याद करोगे तो तुम जैसे सतोप्रधान थे बड़ी आयु वाले,
तन्दुरुस्त थे, ऐसे फिर से बन जाओगे | आयु छोटी होने से मरने
का डर रहता है | तुमको तो गैरन्टी मिलती है कि सतयुग में ऐसे
अचानक कभी मरेंगे नहीं | बाप को याद करते रहेंगे तो आयु बड़ी
होगी और सब दुःख भी दूर हो जायेंगे | कोई भी किसम का दुःख नहीं
होगा, और तुमको क्या चाहिए? तुम कहते हो ऊँच पद भी चाहिए |
तुमको मालूम नहीं था कि ऐसा पद भी मिल सकता है | अब बाप युक्ति
बताते हैं – ऐसे करो | एम ऑब्जेक्ट सामने है | तुम ऐसा पद पा
सकते हो | यहाँ ही दैवी गुण धारण करना है | अपने से पूछना है
हमारे में कोई अवगुण तो नहीं हैं? अवगुण भी अनेक प्रकार के हैं
| सिगरेट पीना, छी-छी चीज़ें खाना यह अवगुण है | सबसे बड़ा अवगुण
है विकार का, जिसको ही बैड कैरेक्टर कहते हैं | बाप कहते हैं
तुम विशश बन गये हो | अब वाइसलेस बनने की तुमको युक्ति बताते
हैं | इसमें इन विकारों को, अवगुणों को छोड़ देना है | कभी भी
विशश नहीं बनना है | इस जन्म में जो सुधारेंगे तो वह सुधार 21
जन्मों तक चलना है | सबसे जरुरी बात है वाइसलेस बनना |
जन्म-जन्मान्तर का जो बोझ सिर पर चढ़ा हुआ है, वह योगबल से ही
उतरेगा | बच्चे जानते हैं जन्म-जन्मान्तर हम विशश बने हैं |
अभी बाप से हम प्रतिज्ञा करते हैं कि फिर कभी विशश नहीं बनेंगे
| बाप ने कहा है अगर पतित बने तो सौ गुणा दण्ड भी खाना पड़ेगा
और फिर पद भी भ्रष्ट हो जायेगा क्योंकि निंदा कराई ना तो गोया
उस तरफ़ (विशश मनुष्यों की तरफ़) चला गया | ऐसे बहुत चले जाते
हैं अर्थात् हार खा लेते हैं | आगे तुमको पता नहीं था कि यह
धन्धा विकार का नहीं करना चाहिए | कोई-कोई अच्छे बच्चे होते
हैं, कहते हैं हम ब्रह्मचर्य में रहेंगे | सन्यासियों को देख
समझते हैं, पवित्रता अच्छी है | पवित्र और अपवित्र, दुनिया में
अपवित्र तो बहुत रहते हैं | पाखाने में जाना भी अपवित्र बनना
है इसलिए फ़ौरन स्नान करना चाहिए | अपवित्रता अनेक प्रकार की
होती है | किसको दुःख देना, लड़ना-झगड़ना भी अपवित्र कर्तव्य है
| बाप कहते हैं जन्म-जन्मान्तर तो तुमने पाप किया है | वह सब
आदतें अब मिटानी है | अभी तुमको सच्चा-सच्चा महान् आत्मा बनना
है | सच्चे-सच्चे महान् आत्मा तो यह लक्ष्मी-नारायण ही हैं और
कोई तो यहाँ बन न सके क्योंकि सब तमोप्रधान हैं | ग्लानि भी
बहुत करते हैं ना | उन्हों को पता नहीं पड़ता कि हम क्या करते
हैं | एक होते हैं गुप्त पाप, दूसरे प्रत्यक्ष पाप भी होते हैं
| यह है ही तमोप्रधान दुनिया | बच्चे जानते हैं बाप हमको अभी
समझदार बना रहे हैं इसलिए उनको सब याद करते हैं | सबसे अच्छी
समझ तुमको मिलती है कि पावन बनना है और फिर गुण भी चाहिए |
देवताओं के आगे जो तुम महिमा गाते आये हो, अभी ऐसा तुमको बनना
है | बाप समझाते हैं मीठे-मीठे बच्चों, तुम कितने मीठे-मीठे
गुल-गुल फूल थे फिर कांटे बन पड़े हो | अब बाप को याद करो तो
याद से तुम्हारी आयु बड़ी होगी | पाप भी भस्म होंगे | सिर से
बोझा हल्का होगा | अपनी सम्भाल करनी है | हमारे में क्या-क्या
अवगुण हैं वह निकालने हैं | जैसे नारद का मिसाल है, उनको कहा
तुम लायक हो? उसने देखा कि बरोबर हम लायक नहीं हैं | बाप तुमको
ऊँच बनाते हैं, बाप के तुम बच्चे हो ना | जैसे कोई का बाप
महाराजा होता है तो कहेंगे ना हमारा बाबा महाराजा है | बाबा
बहुत सुख देने वाला है | जो अच्छे स्वभाव के महाराजा होते हैं,
उनको कभी क्रोध नहीं आता है | अभी तो आहिस्ते-आहिस्ते सबकी
कलायें उतरती गई हैं | सभी अवगुण प्रवेश करते गये हैं | कला
कमती होती गई है | तमो होते गये हैं | तमोप्रधान की भी जैसे
अन्त आकर हुई है | कितना दुःखी हो पड़े हैं | तुमको कितना सहन
करना पड़ता है | अभी अविनाशी सर्जन द्वारा तुम्हारी दवाई हो रही
है | बाप कहते हैं यह 5 विकार तो घड़ी-घड़ी तुमको सतायेंगे | तुम
जितना पुरुषार्थ करेंगे बाप को याद करने का, उतना माया तुमको
नीचे गिराने की कोशिश करती है | तुम्हारी अवस्था ऐसी मज़बूत
होनी चाहिए जो कोई माया का तूफ़ान हिला न सके | रावण कोई और चीज़
नहीं है वा कोई मनुष्य नहीं है | 5 विकारों रूपी रावण को ही
माया कहा जाता है | आसुरी रावण सम्प्रदाय तुमको पहचानते ही
नहीं हैं कि आखरीन में यह हैं कौन? यह बी.के. क्या समझाते हैं?
रियल्टी में कोई नहीं जानते | यह बी.के. क्यों कहलाते हैं?
ब्रह्मा किसकी सन्तान है? अभी तुम बच्चे जानते हो हमको वापिस
घर जाना है | यह बाप बैठ तुम बच्चों को शिक्षा देते हैं |
आयुश्वान भव, धनवान भव......तुम्हारी सब कामनायें पूरी करते,
वरदान देते हैं | परन्तु सिर्फ़ वरदान से कोई काम नहीं होता |
मेहनत करनी है | हर एक बात समझने की है | अपने को राज-तिलक
देने के अधिकारी बनना है | बाप अधिकारी बनाते हैं | तुम बच्चों
को शिक्षा देते हैं ऐसे-ऐसे करो | पहले नम्बर की शिक्षा देते
हैं मामेकम् याद करो | मनुष्य याद नहीं करते हैं क्योंकि वह
जानते ही नहीं तो याद भी रांग है | कहते ईश्वर सर्वव्यापी है |
फिर शिवबाबा को याद कैसे करेंगे! शिव के मन्दिर में जाकर पूजा
करते, तुम पूछो इनका आक्यूपेशन बताओ? तो कहेंगे भगवान्
सर्वव्यापी है | पूजा करते हैं, उनसे रहम मांगते हैं, मांगते
हुए फिर कोई पूछता परमात्मा कहाँ है? तो कहते सर्वव्यापी है |
चित्र के सम्मुख क्या करते हैं और फिर चित्र सम्मुख नहीं तो
कला काया ही चट हो जाती है | भक्ति में कितनी भूलें करते हैं |
फिर भी भक्ति से कितना प्यार है | कृष्ण के लिए कितना निर्जल
आदि करते हैं | यहाँ तुम पढ़ रहे हो और वह भक्त लोग क्या-क्या
करते हैं | तुमको अभी हँसी आती है | ड्रामा अनुसार भक्ति करते
कदम नीचे उतरते आये हैं | ऊपर तो कोई चढ़ न सके |
अभी
यह है पुरुषोत्तम संगमयुग, जिसका कोई को पता नहीं है | अभी तुम
पुरुषोत्तम बनने के लिए पुरुषार्थ करते हो | टीचर स्टूडेन्ट का
सर्वेन्ट होता है ना, स्टूडेन्ट की सर्विस करते हैं! गवर्मेन्ट
सर्वेन्ट है | बाप भी कहते हैं – सेवा करता हूँ, तुमको पढ़ाता
भी हूँ | सभी आत्माओं का बाप है | टीचर भी बनते हैं | सृष्टि
के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान भी सुनाते हैं | यह ज्ञान और कोई
मनुष्य में हो न सके | कोई सिखला न सके | तुम पुरुषार्थ ही
करते हो कि हम यह बनें | दुनिया में मनुष्य कितने तमोप्रधान
बुद्धि हैं | बहुत खौफ़नाक़ दुनिया है | जो मनुष्य को नहीं करना
चाहिए वह करते हैं | कितना खून, डाका आदि लगते हैं | क्या नहीं
करते हैं | 100 परसेन्ट तमोप्रधान हैं | अभी तुम फिर 100
परसेन्ट सतोप्रधान बन रहे हो | उसके लिए युक्ति बताई है याद की
यात्रा | याद से ही विकर्म विनाश होंगे, बाप से जाकर मिलेंगे |
भगवान् बाप आते कैसे हैं – यह भी तुम अब समझते हो | इस रथ में
आये हैं | ब्रह्मा के थ्रू सुनाते हैं | जो फिर तुम धारण कर
औरों को सुनाते हो तो दिल होती है डायरेक्ट सुनें | बाप के
परिवार में जायें | यहाँ बाप भी है, माँ भी है, बच्चे भी हैं
| परिवार में आ जाते हैं | वह तो दुनिया ही आसुरी है | तो
आसुरी परिवार से तुम तंग हो जाते हो इसलिए धन्धा आदि छोड़कर
बाबा के पास रिफ्रेश होने आते हो | यहाँ रहते भी हैं ब्राह्मण
| तो इस परिवार में आकर बैठते हो | घर में जायेंगे तो फिर ऐसा
परिवार नहीं होगा | वहाँ तो देहधारी हो जाते, उस गोरख़धन्धे से
निकल तुम यहाँ आते हो | अब बाप कहते हैं देह के सब सम्बन्ध
छोड़ो | खुशबूदार फूल बनना है | फूल में खुशबू होती है | सब
उठाकर खुशबू लेते हैं | अक के फूल को नहीं उठायेंगे | तो फूल
बनने के लिए पुरुषार्थ करना है इसलिए बाबा भी फूल ले आते हैं,
ऐसा बनना है | घर गृहस्थ में रहते एक बाप को याद करना है | तुम
जानते हो यह देह के सम्बन्धी तो ख़लास हो जाने हैं | तुम यहाँ
गुप्त कमाई कर रहे हो | तुमको शरीर छोड़ना है, कमाई करके और
बहुत ख़ुशी से हर्षितमुख हो शरीर छोड़ना है | घूमते फिरते भी बाप
की याद में रहो तो तुमको कभी थकावट नहीं होगी | बाप की याद में
अशरीरी हो कितना भी चक्र लगाओ, भल यहाँ से नीचे आबूरोड तक चले
जाओ तो भी थकावट नहीं होगी | पाप कट जायेंगे | हल्के हो
जायेंगे | तुम बच्चों को कितना फ़ायदा होता है और कोई तो जान न
सके | सारी दुनिया के मनुष्य पुकारते हैं पतित-पावन आकर पावन
बनाओ | फिर उनको महात्मा कैसे कहेंगे | पतित को फिर माथा
थोड़ेही टेका जाता है | माथा पावन के आगे झुकाया जाता है |
कन्या का मिसाल – जब विकारी बनती तो सबके आगे सिर झुकाती है और
फिर पुकारती है हे पतित-पावन आओ | अरे, पतित बने ही क्यों जो
पुकारना पड़े | सबके शरीर तो विकार की पैदाइस हैं ना क्योंकि
रावण का राज्य है | अभी तुम रावण से निकल आये हो | इसको कहा
जाता है – पुरुषोत्तम संगमयुग | अभी तुम पुरुषार्थ कर रहे हो
रामराज्य में जाने के लिये | सतयुग है राम राज्य | सिर्फ़
त्रेता में रामराज्य कहें तो फिर सूर्यवंशी लक्ष्मी-नारायण का
राज्य कहाँ गया? तो यह सब ज्ञान अभी तुम बच्चों को मिल रहा है
| नये-नये भी आते हैं जिनको तुम ज्ञान देते हो | लायक बनाते हो
| कोई का संग ऐसा मिलता है जो फिर लायक से नालायक बन पड़ते हैं
| बाप पावन बनाते हैं | तो अब पतित बनना ही नहीं है | जबकि बाप
आया है पावन बनाने, माया ऐसी ज़बरदस्त है जो पतित बना देती है |
हरा देती है | कहते हैं बाबा रक्षा करो | वाह, लड़ाई के मैदान
में ढेर मरते हैं फिर रक्षा की जाती है क्या! यह माया की गोली
बन्दूक की गोली से भी बहुत कड़ी है | काम की चोट खाई गोया ऊपर
से गिरे | सतयुग में सब पवित्र गृहस्थ धर्म वाले होते हैं
जिनको देवता कहा जाता है | अभी तुम जानते हो बाप कैसे आये हैं,
कहाँ रहते हैं, कैसे आकर राजयोग सिखाते हैं? दिखलाते हैं
अर्जुन के रथ पर बैठ ज्ञान दिया जाता है | फिर उनको सर्वव्यापी
क्यों कहते? बाप जो स्वर्ग की स्थापना करते हैं उन्हें ही भूल
गये हैं | अभी वह स्वयं अपना परिचय देते हैं | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
महान्
आत्मा बनने के लिए अपवित्रता की जो भी गन्दी आदतें हैं, वह
मिटा देनी है | दुःख देना, लड़ना-झगड़ना......यह सब अपवित्र
कर्तव्य हैं जो तुम्हें नहीं करने हैं | अपने आपको राजतिलक
देने का अधिकारी बनाना है |
2.
बुद्धि
को सब गोरख़धन्धों से, देहधारियों से निकाल खुशबूदार फूल बनना
है | गुप्त कमाई जमा करने के लिए चलते-फिरते अशरीरी रहने का
अभ्यास करना है |
वरदान:-
सफ़ल
करने की विधि से सफ़लता का वरदान प्राप्त करने वाले वरदानी
मूर्त भव
! 
संगमयुग पर आप बच्चों को वर्सा भी है तो वरदान भी है कि “सफ़ल
करो और सफ़लता पाओ” | सफ़ल करना है बीज और सफ़लता है फल | अगर बीज
अच्छा है तो फल नहीं मिले यह हो नहीं सकता | तो जैसे दूसरों को
कहते हो कि समय, संकल्प, सम्पत्ति सब सफ़ल करो | ऐसे अपने सर्व
ख़ज़ानों की लिस्ट को चेक करो कि कौन सा ख़ज़ाना सफ़ल हुआ और कौन सा
व्यर्थ | सफ़ल करते रहो तो सर्व ख़ज़ानों से सम्पन्न वरदानी मूर्त
बन जायेंगे |
स्लोगन:-
परमात्म
अवार्ड लेने के लिए व्यर्थ और निगेटिव को अवाइड करो |
ओम्
शान्ति
|