04-05-14
प्रातः मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा”
रिवाइज:
28-06-77
मधुबन
“वेस्ट
(waste)
मत करो और वेट (weight)
कम करो”
आवाज़
से परे अपने निराकारी स्टेज और आकारी स्टेज, जहाँ इशारों की
भाषा ज़्यादा है अर्थात् मूवी है, दोनों ही स्थिति में साकारी
सृष्टि के समान आवाज़ नहीं है – ऐसे आवाज़ से परे स्थिति अच्छी
लगती है? मुख द्वारा सुनना, सुनाना इससे ऊपर अपनी वृत्ति
द्वारा वा दृष्टि द्वारा वा वायब्रेशन्स द्वारा वा अपने
श्रेष्ठ अनुभवों के प्रभाव द्वारा किसी आत्माओं की सेवा करना
अर्थात् सुनाना वा परिचय देना, सम्बन्ध जोड़ना इसके अनुभवी हो?
जैसे वाणी द्वारा सम्बन्ध जोड़ना इसके अनुभवी हो? वैसे
डायरेक्शन मिले कि इन आत्माओं की वृत्ति वा दृष्टि वा श्रेष्ठ
अनुभवों के प्रभाव से सेवा करो तो कर सकते हो वा सिर्फ़ वाणी
द्वारा कर सकते हो? जैसे वाणी द्वारा आत्माओं को बाप से
सम्बन्ध जुटाने के नम्बरवार निमित्त बनते हो वैसे अपनी सूक्ष्म
स्थिति के वा मास्टर सर्वशक्तिमान् वा मास्टर ज्ञान सूर्य की
स्थिति द्वारा, आत्माओं को स्वयं के स्थिति वा बाप के सम्बन्ध
का अनुभव पॉवरफुल वातावरण, वायब्रेशन वा स्वयं के शक्ति स्वरूप
के सम्पर्क से उन्हें भी करा सकते हो? क्योंकि जैसे समय समीप आ
रहा है, पाण्डव सेना के प्रत्यक्ष होने का प्रभाव गुप्त रूप
में फैलता जा रहा है | सेवा की रुपरेखा समय प्रमाण और सेवा
प्रमाण परिवर्तन अवश्य होगी | जैसे आजकल भी साइन्स द्वारा हर
चीज़ को क्वान्टिटी के बजाए क्वालिटी में ला रहे हैं, ऐसा छोटा
सा रूप बना रहे हैं जो रूप छोटा लेकिन शक्ति अधिक भरी हुई होती
है | जैसे मिठास के विस्तार को सैक्रीन के रूप में लाते हैं |
विस्तार को सार में ला रहे हैं, इसी प्रकार पाण्डव सेना
अर्थात् साइलेन्स की शक्ति वाली श्रेष्ठ आत्मायें भी जो एक
घन्टे के भाषण द्वारा किसको परिचय दे सकते हो, वह एक सेकण्ड की
पॉवरफुल दृष्टि द्वारा पॉवरफुल स्टेज द्वारा, कल्याण की भावना
द्वारा, आत्मिक भाव द्वारा स्मृति दिला सकते हो वा अपरोक्ष
साक्षात्कार करा सकते हो? अभी ऐसी प्रैक्टिस की आवश्यकता है |
इसके लिए दो बातों की आवश्यकता है, जिससे ऐसी श्रेष्ठ सेवा के
निमित्त बन सकते हो, वह कौनसी दो बातों तरफ़ विशेष अटेन्शन
दिलाते हैं | वह जानते हो कौन सी होगी?
एक
तो चारों और यह अटेन्शन दिलाते हैं कोई भी चीज़ वेस्ट मत करो और
दूसरी बात वेट कम करो | वह लोग तो शरीर का वेट कम करने के लिए
कहते हैं, लेकिन बापदादा आत्मा के ऊपर जो बोझ है, जिस बोझ के
कारण ऊँची स्टेज का अनुभव नहीं कर पाती तो वेट को कम करो | एक
वेस्ट मत करो और दूसरा वेट कम करो | इन दो बातों के ऊपर विशेष
अटेन्शन चाहिए | अपनी शक्तियां वा समय वेस्ट करने से जमा नहीं
होती और जमा न होने के कारण जो ख़ुशी वा शक्तिशाली स्टेज का
अनुभव होना चाहिए, वह चाहते हुए भी नहीं कर सकते | जैसे आप
श्रेष्ठ आत्माओं का विश्व कल्याणकारी बनने का कार्य है, उसी
प्रमाण समय वा शक्तियां न सिर्फ़ अपने प्रति लेकिन अनेक आत्माओं
की सेवा प्रति भी स्टॉक जमा होना चाहिए | अगर वेस्ट होता रहेगा
तो स्वयं भी अपने को भरपूर अनुभव नहीं करेंगे | जैसे आजकल की
गवर्मेन्ट भी बचत की स्कीम बनाती है | वैसे अपने प्रति आवश्यक
समय वा शक्तियों में से इकॉनामी का लक्ष्य रखते हुए बचत करनी
चाहिए क्योंकि विश्व की सर्व आत्माएं आप श्रेष्ठ आत्माओं का
परिवार है | जितना बड़ा परिवार होता है उतना ही एकानामी का
ख्याल रखा जाता है |
आप
जैसा बड़ा परिवार और किसका है? तो सब आत्माओं को सामने रखते
हुए, स्वयं को बेहद की सेवा अर्थ निमित्त समझते हुए अपने समय
और शक्तियों को कार्य में लगाते हो | मास्टर रचता की स्थिति
स्मृति में रहती है वा अपने प्रति ही कमाया और खाया वा कुछ
खाया, कुछ गंवाया | ऐसे अलबेले हो चल रहे हो | तो अपने सर्व
ख़ज़ानों की बजट बनाओ | इतनी बड़ी जिम्मेवारी का कार्य उठाने वाली
आत्माएं, अगर जमा नहीं होगा तो कार्य कैसे सफ़ल कर सकेंगी |
ड्रामानुसार होना ही है – यह हुई नॉलेज की बात | लेकिन ड्रामा
में मुझे भी निमित्त बन सेवा द्वारा श्रेष्ठ प्राप्ति करनी है,
यह लक्ष्य रखते हुए हर खज़ाने का बजट बनाओ | बजट में लक्ष्य
क्या रखना है? स्लोगन याद है? ‘कम खर्च बाला नशीन’ | हर खज़ाने
को चेक करो कितना जमा है? उस जमा के खाते से हद के आत्माओं की
सेवा हो सकती है वा बेहद की सेवा हो सकती है? हरेक सब्जेक्ट की
भी चेकिंग करो कि हर सब्जेक्ट द्वारा बेहद की सेवा के निमित्त
बन सकते हैं, वा सिर्फ़ ज्ञान द्वारा कर सकते हैं, धारणा द्वारा
नहीं? जब फुल पास होना है तो हर सब्जेक्ट द्वारा सेवा के
निमित्त बनना आवश्यक है | अगर एक भी सब्जेक्ट में कमी है तो
फुल पास नहीं लेकिन पास होंगे | एक है पास विथ ऑनर और दूसरी
स्टेज है पास होना | जो सिर्फ़ पास होते हैं पास विथ ऑनर नहीं
तो उन्हों को पास विथ ऑनर के अन्तर में धर्मराज की सजाओं से
पास होना पड़ता है अर्थात् थोड़ा बहुत भी सजाओं का अनुभव पास
करेंगे | पास विथ ऑनर औरों को पास करते हुए देखेंगे इसलिए हर
सब्जेक्ट में फुल पास होना है – तो हर खजाने की बचत करो और बजट
बनाओ अर्थात् वेस्ट मत करो | हर सेकेण्ड, संकल्प या स्वयं के
प्रति शक्तिशाली बनाने अर्थ वा सर्व आत्माओं की सेवा अर्थ
कार्य में लगाओ |
दूसरी बात वेट कम करो | एक तो पिछले जन्मों का रहा हुआ
हिसाब-किताब का बोझ समाप्त करने में लगे हो, लेकिन वह बोझ कोई
बड़ी बात नहीं है, ब्राह्मण बनकर वा ब्रह्माकुमार/ब्रह्माकुमारी
कहलाकर विश्व कल्याणकारी वा विश्व सेवाधारी कहलाकर फिर भी अगर
ऐसा कोई विकल्प वा विकर्म करते हैं तो वह बोझ उस बोझ से सौगुणा
है | ऐसे कितने प्रकार के बोझ अपने संस्कारों के वश, स्वभाव के
वश, ज्ञान की बुद्धि के अभिमान वश, नाम और शान के स्वार्थ वश,
स्वयं के सैल्वेशन प्राप्त करने के वश वा अलबेलेपन वा आलस्य के
वश अब तक कितने बोझ उठाए हैं? सदैव यह ध्यान पर रखना है कि
ज्ञानी तू आत्मा कहलाते अथवा सर्विसएबुल कहलाते ऐसा कोई कर्म
वा वातावरण फ़ैलाने के वायब्रेशन उत्पन्न होने के निमित्त न बने
जिससे सर्विस के बजाए डिस-सर्विस हो क्योंकि सर्विस भी हो
लेकिन एक बार की डिस-सर्विस दस बार की सर्विस को समाप्त कर
देती है | जैसे रबड़ से मिट जाता है वैसे एक बार की डिससर्विस
दस बार की सर्विस के खाते को ख़त्म कर देती है | और वह समझता
रहता कि मैं बहुत सर्विस करता हूँ | लेकिन खाता खाली होने के
कारण निशानी दिखाई भी देती है लेकिन अभिमान के वश बाहर से
मिया-मिट्ठू बन जाते हैं | निशानी क्या होती है? एक तो याद में
शक्ति वा प्राप्ति का अनुभव नहीं होता | अन्दर की सन्तुष्टता
नहीं होगी | हर समय कोई न कोई परिस्थिति वा व्यक्ति वा प्रकृति
का वैभव स्थिति को हलचल में लाने के वा ख़ुशी, शक्ति ख़त्म करने
के निमित्त बनेंगे | बाहर का दिखावा इतना सुन्दर होगा जो अनेक
आत्माएं उन्हें न परखने कारण सबसे अच्छा खुशमिजाज़ और
पुरुषार्थी समझेंगे | लेकिन अन्दर बिल्कुल उलझन में खोखलापन
होता है | नाम, शान का खाता फुल होता है – लेकिन ख़ज़ानों का
खाता, अनुभूतियों का खाता खाली के बराबर होता है अर्थात् नाम
मात्र होता है | और निशानी क्या होगी? ऐसी आत्मा स्वयं विघ्नों
के वश होने के कारण सेवा के कार्य में विघ्न रूप बन जाती है |
नाम विघ्न विनाशक है लेकिन बनते विघ्न रूप हैं | ऐसी आत्माओं
के ऊपर समय प्रति समय का बोझ वेट बढ़ने के कारण अनेक प्रकार के
मानसिक व्यर्थ चिन्तन वा मानसिक अशान्ति, ऐसे अनेक रोग पैदा कर
लेते हैं |
दूसरी बात वेट होने के कारण पुरुषार्थ की रफ़्तार तीव्र नहीं हो
सकती | हाई जम्प तो छोड़ो लेकिन दौड़ भी नहीं लगा सकते | प्लैन
बनायेंगे कि यह करेंगे, यह करेंगे लेकिन सफ़ल नहीं हो सकते |
तीसरी गुह्य बात ऐसी वेट वाली आत्माएं जो विघ्न रूप वा
डिस-सर्विस के निमित्त बनती है, बाप को अर्पण किया हुआ अपना
तन-मन वा ईश्वरीय सेवा अर्थ मिला हुआ धन अपने विघ्नों के कारण
वेस्ट करती हैं अर्थात् सफ़लता नहीं पाती, उसके वेस्ट करने का
भी बोझ चढ़ता है, इसलिए पापों की गहन गति को भी अच्छी रीति जानो
| अब क्या करना है? वेस्ट मत करो वेट कम करो | धर्मराज पुरी
में जाने के पहले अपना धर्मराज बनो | अपना पूरा चोपड़ा खोलो और
चेक करो पाप और पुण्य का खाता क्या रहा हुआ है, क्या जमा करना
है; और विशेष स्वयं प्रति प्लैन बनाओ | पाप के खाते को भस्म
करो | पुण्य के खाते को बढ़ाओ | बापदादा बच्चों के खाते को
देखते हुए समझते हैं मालामाल हो जाएँ | (बरसात पड़ रही है)
प्रकृति भी पाठ पढ़ा रही है | जैसे प्रकृति अपनी मौसम वा समय
प्रमाण तीव्रगति से कार्य कर रही है ऐसे ब्राह्मणों के कमाई
जमा करने की मौसम है तो मौसम प्रमाण तीव्र रफ़्तार से जमा करो |
अच्छा |
सदा
फ़रिश्ते, वेटलेस अर्थात् लाईट रूप, हर सेकेण्ड और संकल्प में
भी पिछला भस्म करते भविष्य जमा करने वाले, सदा विश्व सेवाधारी
स्वरूप में स्थित रह आत्माओं को सर्व ख़ज़ाने महादानी बन दान
करने वाले अपने शक्तियों के ख़ज़ानों में सम्पन्न हो शक्तियों
द्वारा वरदानी बनने वाले, रहम दिल आत्माएं सदा विश्व
कल्याणकारी आत्माओं को बापदादा का याद, प्यार और नमस्ते |
पार्टियों से : -
सदा स्वचिन्तन और शुभचिन्तक दोनों स्टेज रहती हैं? जब
शुभचिन्तन होता है तो व्यर्थ समाप्त हो जाता है | व्यर्थ का
रहता है अर्थात् शुभचिन्तन का अनुभव कम है | जैसे अगर एक बार
बढ़िया चीज़ का टेस्ट कर लिया तो घटिया चीज़ स्वीकार करने का
संकल्प भी नहीं आयेगा | वैसे शुभ चिन्तन में रहने वाला व्यर्थ
चिन्तन कर नहीं सकता | चिन्तन चलाना अर्थात् उसका स्वरूप बन
जाए | जैसे सागर के अन्दर रहने वाले जीव-जन्तु सागर में समाए
हुई होते, बाहर नहीं निकलना चाहते | मछली भी पानी के अन्दर
रहती, बाहर आई तो ख़त्म | सागर व पानी ही उसका संसार है, इतना
बड़ा बाहर संसार उसके लिए कुछ भी नहीं, ऐसे ज्ञान सागर बाप में
समाए हुए, इन्हों का संसार भी बाप अर्थात् सागर होता है | ऐसे
अनुभव करते हो वा बाहर चक्र लगाने की दिल होती है? जब तक यह
अनुभव नहीं किया, स्वरूप में समाने का, तब तक जो ब्राह्मण जीवन
का गायन है – अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलने का, हर्षित
होने का, वह नहीं हो सकता | ऐसे अनुभवी ही इस ब्राह्मण जीवन के
सुख के महत्व को जानते हैं | ब्राह्मणों की चोटी कहते हैं, यह
चोटी अर्थात् ऊँची स्टेज है | अगर यहाँ तक नहीं पहुँचे तो विजय
का झंडा कैसे लहरायेंगे? ऊँची चोटी पर जाकर झण्डा लहरायेंगे तो
विजयी कहा जायेगा |
वर्तमान समय का पुरुषार्थ क्या है? सुनना, सुनाना चलता रहता,
अनुभवी बनना है | अनुभवी का प्रभाव ज़्यादा होता | वही बात
अनुभवी सुनावे और वही बात सुनी हुई सुनावे तो अन्तर पड़ेगा ना?
लोग भी अभी अनुभव करना चाहते | योग शिविर में विशेष अनुभव
क्यों करते? क्योंकि अनुभवी बनने का साधन है – सुनाने के साथ
अनुभव कराया जाता है | इससे रिज़ल्ट अच्छी निकलती है | जब
आत्माएं अनुभव चाहती हैं तो आप भी अनुभवी बनकर अनुभव कराओ |
अनुभव कैसे हो – उसके लिए कौन सा साधन अपनाना है? जैसे कोई
इन्वेन्टर, कोई भी इनवेन्शन निकालने के लिए बिल्कुल एकान्त में
रहते हैं | तो यहाँ की एकान्त अर्थात् एक के अन्त में खोना है,
तो बाहर की आकर्षण से एकान्त चाहिए | ऐसे नहीं सिर्फ़ कमरे में
बैठने की एकान्त चाहिए, लेकिन मन एकान्त हो | मन की एकाग्रता
अर्थात् एक की याद में रहना, एकाग्र होना यही एकान्त है |
एकान्त में जाकर इनवेन्शन निकालते हैं ना | चारों और के
वायब्रेशन से परे चले जाते तो यहाँ भी स्वयं को आकर्षण से परे
जाना पड़े | ऐसे भी कई होते हैं जिन्हें एकान्त पसन्द नहीं आता,
संगठन में रहना, हँसना, बोलना ज़्यादा पसन्द आता है, लेकिन यह
हुआ बाहरमुखता में आना | अभी अपने को एकान्त वासी बनाओ अर्थात्
सर्व आकर्षण के वायब्रेशन से अन्तर्मुख बनो | अब समय ऐसा आ रहा
है जो यही अभ्यास काम में आयेगा | अगर बाहर की आकर्षण के
वशीभूत होने का अभ्यास होगा तो समय पर धोखा दे देगा |
सरकमस्टान्स ऐसे आयेंगे जो इस अभ्यास के सिवाए और कोई आधार ही
नहीं दिखाई देगा | एकान्तवासी अर्थात् अनुभवी मूर्त | दिल्ली
वाले सेवा के आदि के निमित्त बने हैं तो इस विशेषता में भी
निमित्त बनो | तो इस स्थिति के अनुभव को दूसरे भी कॉपी करेंगे
| यह सबसे बड़े ते बड़ी सेवा है | संगठित रूप में और
इन्डिविज्युअल रूप में दोनों ही रूप से ऐसे अभ्यास का वातावरण
फैलाओ | अच्छा |
वरदान:-
स्व-परिवर्तन से विश्व परिवर्तन के कार्य में दिल-पसन्द सफ़लता
प्राप्त करने वाले सिद्धि स्वरूप भव
! 
हर
एक स्व परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन करने की सेवा में लगे
हुए हैं | सभी के मन में यही उमंग-उत्साह है की इस विश्व को
परिवर्तन करना ही है और निश्चय भी है कि परिवर्तन होना ही है |
जहाँ हिम्मत है वहाँ उमंग-उत्साह है | स्व परिवर्तन से ही
विश्व परिवर्तन के कार्य में दिलपसन्द सफ़लता प्राप्त होती है |
लेकिन यह सफ़लता तभी मिलती है जब एक ही समय वृत्ति, वायब्रेशन
और वाणी तीनों शक्तिशाली हों |
स्लोगन:-
जब बोल में स्नेह और संयम हो तब वाणी की एनर्जी जमा होगी
|
ओम् शान्ति
|