19-07-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - सच्चे बाप के साथ अन्दर बाहर सच्चा बनो, तब ही देवता बन सकेंगे । तुम बाह्मण ही फरिश्ता सो देवता बनते हो”   

                                                        
प्रश्न:-   
इस ज्ञान को सुनने वा धारण करने का अधिकारी कौन हो सकता है ?


उत्तर:-
जिसने आलराउण्ड पार्ट बजाया है, जिसने सबसे जास्ती भक्ति की है, वही ज्ञान को धारण करने में बहुत तीखे जायेंगे । ऊंच पद भी वही पायेंगे । तुम बच्चों से कोई कोई पूछते हैं-तुम शास्त्रों को नहीं मानते हो? तो बोलो जितना हमने शास्त्र पढ़े है, भक्ति की है, उतना दुनिया में कोई नहीं करता । हमें अब भक्ति का फल मिला है, इसलिए अब भक्ति की दरकार नहीं ।

 

ओम् शान्ति |

बेहद का बाप बेहद के बच्चों को बैठ समझाते हैं, सभी आत्माओं का बाप सभी आत्माओं को समझाते हैं क्योंकि वह सर्व का सद्गति दाता है । जो भी आत्मायें हैं, जीव आत्मायें ही कहेंगे । शरीर नहीं तो आत्मा देख नहीं सकती । भल ड्रामा के प्लैन अनुसार स्वर्ग की स्थापना बाप कर रहे हैं परन्तु बाप कहते हैं मैं स्वर्ग को देखता नहीं हूँ । जिन्हों के लिए है वही देख सकते हैं । तुमको पढ़ाकर फिर मैं तो कोई शरीर धारण करता ही नहीं हूँ । तो बिगर शरीर देख कैसे सकूँगा । ऐसे नहीं, जहाँ-तहाँ मौजूद हूँ । सब कुछ देखते हैं । नहीं, बाप सिर्फ देखते हैं तुम बच्चों को, जिनको गुल-गुल (फूल) बनाकर याद की यात्रा सिखलाते हैं । ' योग' अक्षर भक्ति का है । ज्ञान देने वाला एक ज्ञान का सागर है, उनको ही सतगुरू कहा जाता है । बाकी सब है गुरू । सच बोलने वाला, सचखण्ड स्थापन करने वाला वही है । भारत सचखण्ड था, वहाँ सब देवी-देवता निवास करते थे । तुम अभी मनुष्य से देवता बन रहे हो । तो बच्चों को समझाते हैं-सच्चे बाप के साथ अन्दर- बाहर सच्चा बनना है । पहले तो कदम-कदम पर झूठ ही था, वह सब छोड़ना पड़ेगा, अगर स्वर्ग में ऊंच पद पाना चाहते हो तो । भल स्वर्ग में तो बहुत जायेंगे परन्तु बाप को जानकर भी विकर्मों को विनाश नहीं किया तो सजायें खाकर हिसाब- किताब चुक्तू करना पड़ेगा, फिर पद भी बहुत कम मिलेगा । राजधानी स्थापन हो रही है पुरूषोत्तम संगमयुग पर । राजधानी न तो सतयुग में स्थापन हो सकती, न कलियुग में क्योंकि बाप सतयुग या कलियुग में नहीं आते हैं । इस युग को कहा जाता है पुरूषोत्तम कल्याणकारी युग । इसमें ही बाप आकर सबका कल्याण करते हैं । कलियुग के बाद सतयुग आना है इसलिए संगमयुग भी जरूर चाहिए । बाप ने बताया है यह पतित पुरानी दुनिया है । गायन भी है दूर देश का रहने वाला...... तो पराये देश में अपने बच्चे कहाँ से मिलेंगे । पराये देश में फिर पराये बच्चे ही मिलते हैं । उन्हों को अच्छी रीति समझाते हैं - मैं किसमें प्रवेश करता हूँ । अपना भी परिचय देते हैं और जिसमें प्रवेश करता हूँ उनको भी समझाता हूँ कि यह तुम्हारा बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है । कितना क्लीयर है । 

अभी तुम यहाँ पुरूषार्थी हो, सम्पूर्ण पवित्र नहीं । सम्पूर्ण पवित्र को फरिश्ता कहा जाता है । जो पवित्र नहीं उनको पतित ही कहेंगे । फरिश्ता बनने के बाद फिर देवता बनते हो । सूक्ष्मवतन में तुम सम्पूर्ण फरिश्ता देखते हो, उन्हों को फरिश्ता कहा जाता है | तो बाप समझाते हैं-बच्चे, एक अल्फ को ही याद करना है । अल्फ माना बाबा, उनको अल्लाह भी कहते हैं । बच्चे समझ गये हैं बाप से स्वर्ग का वर्सा मिलता है । स्वर्ग कैसे रचते हैं? याद की यात्रा और ज्ञान से । भक्ति में ज्ञान होता नहीं । ज्ञान सिर्फ एक ही बाप देते हैं ब्राह्मणों को । ब्राह्मण चोटी हैं ना । अभी तुम ब्राह्मण हो फिर बाजोली खेलेंगे । ब्राह्मण देवता क्षत्रिय.........इसको कहा जाता है विराट रूप । विराट रूप कोई ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का नहीं कहेंगे । उसमें चोटी ब्राह्मण तो हैं नहीं । बाप ब्रह्मा तन में आते हैं-यह तो कोई जानता नहीं । ब्राह्मण कुल ही सर्वोत्तम कुल है, जबकि बाप आकर पढ़ाते हैं । बाप शूद्रों को तो नहीं पढ़ायेंगे ना । ब्राहमणों को ही पढ़ाते हैं । पढ़ाने में भी टाइम लगता है, राजधानी स्थापन होनी है । तुम ऊंच ते ऊंच पुरूषोत्तम बनो । नई दुनिया कौन रचेगा? बाप ही रचेगा । यह भूलो मत । माया तुमको भुलाती है, उनका तो धन्धा ही यह है । ज्ञान में इतना इंटरफियर नहीं करती है, याद में ही करती है । आत्मा में बहुत किचड़ा भरा हुआ है, वह बाप की याद बिगर साफ हो न सके । योग अक्षर से बच्चे बहुत मूँझते हैं । कहते हैं बाबा हमारा योग नहीं लगता । वास्तव में योग अक्षर उन हठयोगियों का है । सन्यासी कहते हैं ब्रह्म से योग लगाना है । अब ब्रह्म तत्व तो बहुत बड़ा लम्बा- चौड़ा है, जैसे आकाश में स्टॉर्स देखने में आते हैं, वैसे वहाँ भी छोटे-छोटे स्टॉर मिसल आत्मायें हैं । वह है आसमान से पार, जहाँ सूर्य चांद की रोशनी नहीं । तो देखो कितने छोटे-छोटे रॉकेट तुम हो । तब बाबा कहते हैं-पहले- पहले आत्मा का ज्ञान देना चाहिए । वह तो एक भगवान् ही दे सकते हैं । ऐसे नहीं, सिर्फ भगवान् को नहीं जानते । परन्तु आत्मा को भी नहीं जानते । इतनी छोटी सी आत्मा में 84 के चक्र का अविनाशी पार्ट भरा हुआ है, इनको ही कुदरत कहा जाता है, और कुछ नहीं कह सकते । आत्मा 84 का चक्र लगाती ही रहती है । हर 5 हजार वर्ष बाद यह चक्र फिरता ही रहता है । यह ड्रामा में नूँध है । दुनिया अविनाशी है, कभी विनाश को नहीं पाती । वो लोग दिखाते हैं बड़ी प्रलय होती है फिर कृष्ण अंगूठा चूसता हुआ पीपल के पत्ते पर आता है । परन्तु ऐसे कोई होता थोड़ेही है । यह तो बेकायदे है । महाप्रलय कभी होती नहीं । एक धर्म की स्थापना और अनेक धर्मों का विनाश चलता ही रहता है । इस समय मुख्य 3 धर्म हैं । यह तो आस्पीशियस संगमयुग है । पुरानी दुनिया और नई दुनिया में रात-दिन का फर्क है । कल नई दुनिया थी, आज पुरानी है । कल की दुनिया में क्या था-यह तुम समझ सकते हो । जो जिस धर्म का है, उस धर्म की ही स्थापना करते हैं । वो तो सिर्फ एक आते हैं, बहुत नहीं होते । फिर धीरे- धीरे वृद्धि होती है । 

बाप कहते हैं तुम बच्चों को कोई तकलीफ नहीं देता हूँ । बच्चों को तकलीफ कैसें देंगे! मोस्ट बिलवेड बाप है ना । कहते हैं मैं तुम्हारा सद्गति दाता, दु :ख हर्ता सुख कर्ता हूँ । याद भी मुझ एक को करते हैं । भक्ति मार्ग में क्या कर दिया है, कितनी गालियां मुझे देते हैं! कहते हैं गॉड इज वन । सृष्टि का चक्र भी एक ही है, ऐसे नहीं, आकाश में कोई दुनिया है । आकाश में स्टॉर्स हैं । मनुष्य तो समझते हैं एक-एक स्टॉर में सृष्टि है । नीचे भी दुनिया है । यह सब है भक्ति मार्ग की बातें । ऊंच ते ऊंच भगवान् एक है । कहते भी हैं सारे सृष्टि की आत्मायें तुम्हारे में पिरोई हुई हैं, यह जैसे माला है । इनको बेहद की रूद्र माला भी कह सकते हैं । सूत्र में बाधी हुई है । गाते हैं परन्तु समझते कुछ नहीं । बाप आकर समझाते हैं-बच्चे, मैं तुमको ज़रा भी तकलीफ नहीं देता हूँ । यह भी बताया है जिन्होंने पहले-पहले भक्ति की है, वही ज्ञान में तीखे जायेंगे । भक्ति जास्ती की है तो फल भी उनको जास्ती मिलना चाहिए । कहते हैं भक्ति का फल भगवान् देते हैं, वह है ज्ञान का सागर । तो जरूर ज्ञान से ही फल देंगे । भक्ति के फल का किसको भी पता नहीं है । भक्ति का फल है ज्ञान, जिससे स्वर्ग का वर्सा सुख मिलता है । तो फल देते हैं अर्थात् नर्कवासी से स्वर्गवासी बनाते हैं एक बाप । रावण का भी किसको पता नहीं है । कहते भी हैं यह पुरानी दुनिया है । कब से पुरानी है-वह हिसाब नहीं लगा सकते हैं । बाप है मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ का बीजरूप । सत्य है । वह कभी विनाश नहीं होता, इनको उल्टा झाड़ कहते हैं । बाप ऊपर में है, आत्मायें बाप को ऊपर देख बुलाती हैं, शरीर तो नहीं बुला सकता | आत्मा तो एक शरीर से निकल दूसरे में चली जाती है । आत्मा न घटती, न बढ़ती, न कभी मृत्यु को पाती है । यह खेल बना हुआ है । सारे खेल के आदि-मध्य- अन्त का राज बाप ने बताया है । आस्तिक भी बनाया है । यह भी बताया कि इन लक्ष्मी-नारायण में यह ज्ञान नहीं है । वहाँ तो आस्तिक-नास्तिक का पता ही नहीं रहता है । इस समय बाप ही अर्थ समझाते हैं । नास्तिक उनको कहा जाता है जो न बाप को, न रचना के आदि-मध्य- अन्त को, न डयुरेशन को जानते हैं । इस समय तुम आस्तिक बने हो । वहाँ यह बातें ही नहीं । खेल है ना । जो बात एक सेकण्ड में होती वह फिर दूसरे सेकण्ड में नहीं होती । ड्रामा में टिक-टिक होती रहती है । जो पास्ट हुआ चक्र फिरता जायेगा । जैसे बाइसकोप होता है, दो घण्टे या तीन घण्टे बाद फिर वही बाइसकोप हूबहू रिपीट होगा । मकान आदि तोड़ डालते हैं फिर देखेंगे बना हुआ है । वही हूबहू रिपीट होता है । इसमें मूँझने की बात ही नहीं । मुख्य बात है आत्माओं का बाप परमात्मा है । आत्मायें परमात्मा अलग रहे बहुकाल......... अलग होती हैं, यहाँ आती हैं पार्ट बजाने । तुम पूरे 5 हजार वर्ष अलग रहे हो । तुम मीठे बच्चों को आलराउण्ड पार्ट मिला है इसलिए तुमको ही समझाते हैं । ज्ञान के भी तुम अधिकारी हो । सबसे जास्ती भक्ति जिसने की है, ज्ञान में भी वही तीखे जायेंगे, पद भी ऊंच पाएंगे । पहले-पहले एक शिवबाबा की भक्ति होती है फिर देवताओं की । फिर 5 तत्वों की भी भक्ति करते, व्यभिचारी बन जाते हैं । अभी बेहद का बाप तुमको बेहद में ले जाते हैं, वह फिर बेहद के भक्ति के अज्ञान में ले जाते हैं । अब बाप तुम बच्चों को समझाते हैं- अपने को आत्मा समझ मुझ एक बाप को याद करो । फिर भी यहाँ से बाहर जाने से माया भुला देती है । जैसे गर्भ में पश्चाताप करते हैं-हम ऐसे नहीं करेंगे, बाहर आने से भूल जाते हैं । यहाँ भी ऐसे हैं, बाहर जाने से ही भूल जाते हैं । यह भूल और अभुल का खेल है । अभी तुम बाप के एडाप्टेड बच्चे बने हो । शिवबाबा है ना । वह हैं सब आत्माओं का बेहद का बाप । बाप कितना दूर से आते हैं । उनका घर है परमधाम । परमधाम से आयेंगे तो जरूर बच्चों के लिए सौगात ले आयेंगे । हथेली पर बहिश्त सौगात में ले आते हैं । बाप कहते हैं सेकण्ड में स्वर्ग की बादशाही लो । सिर्फ बाप को जानो । सभी आत्माओं का बाप तो है ना । कहते हैं मैं तुम्हारा बाप हूँ । मैं कैसे आता हूँ-वह भी तुमको समझाता हूँ । मुझे रथ तो जरूर चाहिए । कौन-सा रथ? कोई महात्मा का तो नहीं ले सकते । मनुष्य कहते हैं तुम ब्रह्मा को भगवान, ब्रह्मा को देवता कहते हो । अरे, हम कहाँ कहते हैं! झाड़ के ऊपर एकदम अन्त में खड़े हैं, जबकि झाड़ सारा तमोप्रधान है । ब्रह्मा भी वहाँ खड़ा है तो बहुत जन्मों के अन्त का जन्म हुआ ना । बाबा खुद कहते हैं मेरे बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में जब वानप्रस्थ अवस्था होती है तब बाप आये हैं । जो आकर धंधा आदि छुड़ाया । साठ वर्ष के बाद मनुष्य भक्ति करते हैं भगवान् से मिलने के लिए । 

बाप कहते हैं तुम सब मनुष्य मत पर थे, अभी बाबा तुम्हें श्रीमत दे रहे हैं । शास्त्र लिखने वाले भी मनुष्य हैं । देवतायें तो लिखते नहीं, न पढ़ते हैं । सतयुग में शास्त्र होते नहीं । भक्ति ही नहीं । शास्त्रों में सब कर्मकाण्ड लिखा हुआ है । यहाँ वह बात है नहीं । तुम देखते हो बाबा ज्ञान देते हैं । भक्ति मार्ग में तो हमने शास्त्र बहुत पढ़े हैं । कोई पूछे तुम वेदो-शास्त्रों आदि को नहीं मानते हो? बोलो, जो भी मनुष्य मात्र हैं उनसे ज्यादा हम मानते हैं । शुरू से लेकर अव्यभिचारी भक्ति हमने शुरू की है । अभी हमको ज्ञान मिला है । ज्ञान से सद्गति होती है फिर हम भक्ति को क्या करेंगे । बाप कहते हें-बच्चे, हियर नो ईविल, सी नो ईविल तो बाप कितना सिम्पल रीति समझाते हैं-मीठे-मीठे बच्चे, अपने को आत्मा निश्चय करो । मैं आत्मा हूँ, वह कह देते अल्लाह हूँ । तुमको शिक्षा मिलती है मैं आत्मा हूँ, बाप का बच्चा हूँ । यही माया घड़ी-घड़ी भुलाती है । देह- अभिमानी होने से ही उल्टा काम होता है । अब बाप कहते हैं-बच्चे, बाप को भूलो मत । टाइम वेस्ट मत करो । अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात- पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. रचयिता और रचना के राज़ को यथार्थ समझ आस्तिक बनना है । ड्रामा के ज्ञान में मूँझना नहीं है । अपनी बुद्धि को हद से निकाल बेहद में ले जाना है । 

2. सूक्ष्मवतनवासी फरिश्ता बनने के लिए सम्पूर्ण पवित्र बनना है । आत्मा में जो किचड़ा भरा है, उसे याद के बल से निकाल साफ करना है ।

 

वरदान:-

सर्वशक्तिमान बाप को कम्बाइन्ड रूप में साथ रखने वाले सफलता-मूर्त भव !   

जिन बच्चों के साथ सर्व शक्तिमान बाप कम्बाइन्ड है - उनका सर्वशक्तियों पर अधिकार है और जहाँ सर्व शक्तियां हैं वहाँ सफलता न हो, यह असम्भव है । यदि सदा बाप से कम्बाइन्ड रहने में कमी है तो सफलता भी कम होती है । सदा साथ निभाने वाले अविनाशी साथी को कम्बाइन्ड रखो तो सफलता जन्म सिद्ध अधिकार है क्योंकि सफलता मास्टर सर्वशक्तिमान के आगे-पीछे घूमती है ।

 

स्लोगन:- 

सच्चे वैष्णव वह हैं जो विकारों रूपी गन्दगी को छूते भी नहीं ।     

 

ओम् शान्ति |