02-02-14    ओम् शान्ति  “अव्यक्त-बापदादा  रिवाइज: 03-04-97   मधुबन


“पुराने संस्कारों को ख़त्म कर अपने निजी संस्कार धारण करने वाले एवररेडी बनो”

आज बापदादा अपने चारों ओर से विश्व के बाप के लव में लवलीन और लक्की बच्चों को देख रहे हैं | हर एक बच्चे के भाग्य पर बाप को भी नाज़ है कि मेरे बच्चे वर्तमान समय इतने महान हैं जो सारे कल्प में चाहे देवता स्वरूप में, चाहे धर्म नेताओं के रूप में, चाहे महात्माओं के रूप में, चाहे पदमपति आत्माओं के रूप में किसी का भी इतना भाग्य नहीं है जितना आप ब्राह्मणों का भाग्य है | तो अपने ऐसे श्रेष्ठ भाग्य को सदा स्मृति में रखते हो? सदा यह अनहद गीत मन में गाते रहते हो कि वाह भाग्य विधाता बाप और वाह मुझ श्रेष्ठ आत्मा का भाग्य! यह भाग्य का गीत सदा आटोमेटिक बजता रहता है? बाप बच्चों को देख-देख सदा हर्षित होते हैं | बच्चे भी हर्षित होते हैं लेकिन कभी-कभी बीच में अपने भाग्य को इमर्ज करने के बजाए मर्ज कर देते हैं | जब बाप देखते हैं कि बच्चों के अन्दर अपने सौभाग्य का नशा, निश्चय मर्ज हो जाता है तो क्या कहेंगे? ड्रामा | लेकिन बापदादा सभी बच्चों को सदा ही भाग्य के स्मृति स्वरूप देखने चाहते हैं | आप भी सभी चाहते यही हैं ‘लेकिन’...बीच में आ जाता है | किसी से भी पूछो तो सब बच्चे यही लक्ष्य रख करके चल रहे हैं कि मुझे बाप समान बनना ही है | लक्ष्य बहुत अच्छा है | जब लक्ष्य श्रेष्ठ है, बहुत अच्छा है फिर कभी इमर्ज रूप, कभी मर्ज रूप क्यों? कारण क्या? बापदादा से इतने अच्छे-अच्छे वायदे भी करते हैं, रूहरिहान भी करते हैं फिर भी लक्ष्य और लक्षण में अन्तर क्यों? तो बापदादा ने रिजल्ट में देखा कि कारण क्या है? वैसे तो आप सब जानते हैं, नई बात नहीं है फिर भी बापदादा रिवाइज़ कराते हैं | 

बापदादा ने देखा तीन बातें हैं – एक है सोचना, संकल्प करना | दूसरा है बोलना, वर्णन करना और तीसरा है कर्म में प्रैक्टिकल अनुभव में और चलन में लाना, कर्म में लाना | तो तीनों का समान बैलेन्स कम है | जब बैलेन्स होता है तो निश्चय और नशा इमर्ज होता है और जब बैलेन्स कम है तो निश्चय और नशा मर्ज हो जाता है | रिज़ल्ट में देखा गया कि सोचने की गति बहुत अच्छी भी है और फ़ास्ट भी है | बोलने में रफ़्तार और नशा वह भी 75 परसेन्ट ठीक है | बोलने में मैजारिटी होशियार भी हैं लेकिन प्रैक्टिकल चलन में लाने में टोटल मार्क्स कम हैं | तो दोनों बातों में ठीक हैं लेकिन तीसरी बात में बहुत कम हैं | कारण? जब संकल्प भी अच्छा है, बोल भी बहुत सुन्दर रूप में हैं फिर प्रैक्टिकल में कम क्यों होता है? कारण क्या, जानते हो? हाँ या ना बोलो | जानते बहुत अच्छा हैं | अगर किसी को भी कहेंगे इस टॉपिक पर भाषण करो या क्लास कराओ तो कितना अच्छा क्लास करायेंगे! और बड़े निश्चय, नशे, फ़लक से भाषण भी करेंगे, क्लास भी करायेंगे | कराते हैं | बापदादा सबके क्लासेज़ सुनते हैं क्या-क्या बोलते हैं | मुस्कराते रहते हैं, वाह! वाह बच्चे वाह! 

मूल बात है – बापदादा ने पहले भी सुनाया है यह रिवाइज़ कोर्स चल रहा है | तो बाप कहते हैं कि कारण एक ही है, ज़्यादा भी नहीं है, एक ही कारण है और बापदादा समझते हैं कि कारण को निवारण करना मुश्किल भी नहीं है, बहुत सहज है | लेकिन सहज को मुश्किल बना देते हैं | मुश्किल है नहीं, बना देते हैं, क्यों? नशा मर्ज हो जाता है | एक ही कारण है जो भी धारणा की बातें सुनते हो, करते भी हो, चाहे शक्तियों के रूप में, चाहे गुणों के रूप में, धारणा की बातें बहुत अच्छी-अच्छी करते हो, इतनी अच्छी करते हो जो सुनने वाले चाहे अज्ञानी, चाहे ज्ञानी सुनकर बहुत अच्छा, बहुत अच्छा कहकर खूब तालियाँ बजाते हैं, बहुत अच्छा कहा | लेकिन, कितने बार ‘लेकिन’ आया? यह लेकिन’ ही विघ्न डाल देता है | ‘लेकिन’ शब्द समाप्त होना अर्थात् बाप समान समीप आना और बाप के समीप आना अर्थात् समय को समीप लाना | लेकिन अभी तक ‘लेकिन’ शब्द कहना पड़ता है | बाप को अच्छा नहीं लगता, लेकिन कहना ही पड़ता है | तो कारण क्या? जो भी कहते हो, धारण भी करते हो, धारणा के रूप से धारण करते हो और वह धारणा किसकी थोड़ा समय, किसकी ज़्यादा समय भी चलती है लेकिन धारणा प्रैक्टिकल में सदा बढ़ती चले उसके लिए यही मुख्य बात है कि जैसे द्वापर से लेकर अन्तिम जन्म तक जो भी अवगुण वा कमजोरियां हैं उसकी धारणा संस्कार रूप में बन गई हैं और संस्कार बनने के कारण मेहनत नहीं करना पड़ता | छोड़ना भी चाहते हैं, अच्छा नहीं लगता है फिर भी कहते हैं क्या करें, मेरा संस्कार ऐसा है | आप बुरा नहीं मानना, मेरा संस्कार ऐसा है | संस्कार बना कैसे? बनाया तभी तो बना ना! तो जब द्वापर से यह उल्टे संस्कार बन गये, जिससे आप समय पर मज़बूर भी होते हो फिर भी कहते हो क्या करें, संस्कार हैं | तो संस्कार सहज, न चाहते हुए भी प्रैक्टिकल में आ जाते हैं ना! किसी को क्रोध आ जाता है, थोड़े समय के बाद कहते हैं आप बुरा नहीं मानना, मेरा संस्कार है | क्रोध को संस्कार बनाया, अवगुण को संस्कार बनाया और गुणों को संस्कार क्यों नहीं बनाया है? जैसे क्रोध अज्ञान की शक्ति है और ज्ञान की शक्ति शान्ति है | सहन शक्ति है | तो अज्ञान की शक्ति क्रोध को बहुत अच्छी तरह से संस्कार बना लिया है और यूज़ भी करते रहते हो फिर माफ़ी भी लेते रहते हो | माफ़ कर देना, आगे से नहीं होगा | और आगे और ज़्यादा होता है | कारण? क्योंकि संस्कार बना दिया है | तो बापदादा एक ही बात बच्चों को बार-बार सुनाते हैं कि अभी हर गुण को, हर ज्ञान की बात को संस्कार रूप में बनाओ | 

ब्राह्मण आत्माओं के निजी संस्कार कौन से हैं? क्रोध या सहनशक्ति? कौन सा है? सहनशक्ति, शान्ति की शक्ति यह है ना! तो अवगुणों को तो सहज ही संस्कार बना दिया, कूट-कूट कर अन्दर डाल दिया है जो न चाहते भी निकलता रहता है | ऐसे हर गुण को अन्दर कूट-कूट कर संस्कार बनाओ | मेरा निज़ी संस्कार कौन सा है? यह सदा याद रखो | वह तो रावण की जायदाद संस्कार बना दिया | पराये मॉल को अपना बना लिया | अब बाप के ख़ज़ाने को अपना बनाओ | रावण की चीज़ को सम्भाल कर रखा है और बाप की चीज़ को गुम कर देते हो, क्यों? रावण से प्यार है! रावण अच्छा लगता है या बाप अच्छा लगता है? कहेंगे तो सभी बाप अच्छा लगता है, यही मन से कह रहे हैं ना? लेकिन जो अच्छा लगता है उसकी बात निश्चय की स्याही से दिल में समा जाती है | जब कोई रावण के संस्कार के वश होते हैं और फिर भी कहते रहते हैं – बाबा आपसे मेरा बहुत प्यार है, बहुत प्यार है | बाप पूछते हैं कितना प्यार है? तो कहते हैं आकाश से भी ज़्यादा | बाप सुनकरके खुश भी होते हैं कि कितने भोले बच्चे हैं | फिर भी बाप कहते हैं कि बाप का सभी बच्चों से वायदा है – कि दिल से अगर एक बार भी “मेरा बाबा” बोल दिया, फिर भले बीच-बीच में भूल जाते हो लेकिन एक बार भी दिल से बोला “मेरा बाबा”, तो बाप भी कहते हैं जो भी हो, जैसे भी हो मेरे ही हो | ले तो जाना ही है | सिर्फ़ बाप चाहते हैं कि बराती बनकर नहीं चलना, सजनी बनकर चलना | सुनकर के तो सभी बहुत खुश हो रहे हैं | अपने ऊपर हँसी भी आ रही है | अभी सुनने के समय अपने ऊपर हँसते हो ना! अपने ऊपर हँसी आती है और जब जोश करते हो तब लाल, पीले हो जाते हो | लेकिन बाप ने रिज़ल्ट में देखा कि बच्चों में एक विशेषता बहुत अच्छी है, कौन सी? पवित्रता में रहना, इसके लिए कितना भी सहन करना पड़ा है, कितना भी अपोजिशन करने वाले सामने आये हैं लेकिन इस बात में 75 परसेन्ट अच्छे हैं | कोई-कोई गसिया (गपोड़ा) भी लगाते हैं लेकिन फिर भी 75 परसेन्ट ने इस बात में पास होकर दिखलाया है | अब उसके बाद दूसरा सब्जेक्ट कौन सा आता है? क्रोध | देह-भान तो टोटल है ही | लेकिन देखा गया है कि क्रोध की सब्जेक्ट में बहुत कम पास हैं | ऐसे समझते हैं कि शायद क्रोध कोई विकार नहीं है, यह शस्त्र है, विकार नहीं है | लेकिन क्रोध ज्ञानी तू आत्मा के लिए महाशत्रु है | क्योंकि क्रोध अनेक आत्माओं के सम्बन्ध, सम्पर्क में आने से प्रसिद्ध हो जाता है और क्रोध को देख करके बाप के नाम की बहुत ग्लानि होती है | कहने वाले यही कहते हैं, देख लिया ज्ञानी तू आत्मा बच्चों को | क्रोध के बहुत रूप हैं | एक तो महान रूप आप अच्छी तरह से जानते हो, दिखाई देता है – यह क्रोध कर रहा है | दूसरा – क्रोध का सूक्ष्म स्वरूप अन्दर में ईर्ष्या, द्वेष, घृणा होती है | इस स्वरूप में जोर से बोलना या बाहर से कोई रूप नहीं दिखाई देता है, लेकिन जैसे बाहर क्रोध होता है तो क्रोध अग्नि रूप है ना, वह अन्दर खुद भी जलता रहता है और दूसरे को भी जलाता है | ऐसे ईर्ष्या, द्वेष, घृणा – यह जिसमें है, वह इस अग्नि में अन्दर ही अन्दर जलता रहता है | बाहर से लाल, पीला नहीं होता, लाल पीला फिर भी ठीक है लेकिन वह काला होता है | तीसरा क्रोध की चतुराई का रूप भी है | वह क्या है? कहने में समझने में ऐसे समझते हैं वा कहते हैं कि कहाँ-कहाँ सीरियस होना ही पड़ता है | कहाँ-कहाँ लॉ उठाना ही पड़ता है – कल्याण के लिए | अभी कल्याण है या नहीं वह अपने से पूछो | बापदादा ने किसी को भी अपने हाथ में लॉ उठाने की छुट्टी नहीं दी है | क्या कोई मुरली में कहा है कि भले लॉ उठाओ, क्रोध नहीं करो? लॉ उठाने वाले के अन्दर का रूप वही क्रोध का अंश होता है | जो निमित्त आत्मायें हैं वह भी लॉ उठाते नहीं हैं, लेकिन उन्हों को लॉ रिवाइज़ कराना पड़ता है | लॉ कोई भी नहीं उठा सकता लेकिन निमित्त हैं तो बाप द्वारा बनाये हुए लॉ को रिवाइज़ करना पड़ता है | निमित्त बनने वालों को इतनी छुट्टी है, सबको नहीं | 

आज बापदादा थोड़ा ऑफिसियल शिक्षा दे रहे हैं, प्यार से उठाना क्योंकि बापदादा बच्चों के लिखे हुए, किये हुए वायदे देखकर, सुनकर मुस्कराते रहते हैं | अभी बापदादा ने जो सुनाया कि हर गुण को निज़ी संस्कार बनाओ | अन्डरलाइन किया? तो अभी से यह कहना – कि शान्त स्वरूप में रहना, सहनशील बनना – यह तो मेरा संस्कार बन गया है | फिर बापदादा जब मिलन मनाने आये, तो इसे अपना निज़ी संस्कार बनाकर बापदादा के आगे इन 5-6 मास में दिखाना | इसलिए आज रिज़ल्ट सुना रहे हैं | क्रोध की रिपोर्ट बहुत आती है | छोटा-बड़ा, भिन्न-भिन्न रूप से क्रोध करते हैं | अभी बापदादा ज़्यादा नहीं खोलते हैं लेकिन कहानियाँ बहुत मज़े की हैं | इसलिए आज से क्रोध को क्या करेंगे? विदाई देंगे? (सभी ने ताली बजाई) देखो, ताली बजाना बहुत सहज है लेकिन क्रोध की ताली नहीं बजे | बापदादा अभी यह बार-बार सुनने नहीं चाहते हैं फिर भी रहम पड़ता है तो सुन लेते हैं | तो अब से यह नहीं कहना कि बाबा वायदा तो किया लेकिन.....फिर-फिर आ गया, क्या करें! चाहते नहीं हैं, आ जाता है | आप ही माया को समझा दो, क्रोध को समझा दो | तो यह पुरुषार्थ भी बाप करे और प्रालब्ध बच्चे लेंगे? यह भी मेहनत बाप करे? तो ऐसा वायदा नहीं करना, जो फिर 5 मास के बाद रिज़ल्ट देखें | भले आप बताओ नहीं बताओ, बाप के पास तो पहुँचती है | ऐसी रिज़ल्ट न हो – क्या करें, हो जाता है, सरकमस्टांश ऐसे आते हैं, बात बहुत बड़ी हो गई ना! बाप को भी समझाने की कोशिश करते हैं, बड़े होशियार हैं | कहते हैं बाबा छोटी-मोटी बातें हम पार कर लेते हैं, यह बात ही बड़ी थी ना! अभी दोष किस पर रखा? बात पर | और बात क्या करती है? आई और गई | 5 हज़ार वर्ष के बाद फिर बात आयेगी | जो 5 हज़ार वर्ष के बाद बात आनी है, उस पर दोष रख देते हैं | ऐसे नहीं करना | क्या करूँ.....! यह संकल्प में भी नहीं लाना | बापदादा क्रोध के लिए क्यों विशेष कह रहा है? क्योंकि अगर क्रोध को आपने विदाई दे दी तो इसमें लोभ, इच्छा सब आ जाता | लोभ सिर्फ़ पैसे और खाने का नहीं होता है, भिन्न-भिन्न प्रकार की, चाहे ज्ञान की, चाहे अज्ञान की कोई भी इच्छा – यह भी लोभ है | तो क्रोध को ख़त्म करने से लोभ स्वतः ख़त्म होता जायेगा, अहंकार भी ख़त्म हो जायेगा | अभिमान आता है ना – मैं बड़ा, मैं समझदार, मैं जानता हूँ - यह क्या अपने को समझते हैं! तब क्रोध आता है | तो अभिमान और लोभ यह भी साथ-साथ विदाई ले लेंगे | इसीलिए बापदादा विशेष लोभ के लिए न कह करके क्रोध को अन्डरलाइन करा रहा है | तो संस्कार बनायेंगे? अभी सब हाथ उठाओ और सबका फ़ोटो निकालो | (सबने हाथ उठाया) अभी थोड़ी सी मुबारक देते हैं, बहुत नहीं और जब फिर से रिज़ल्ट देखेंगे फिर वतन के देवतायें भी, स्वर्ग के देवतायें भी आपके ऊपर वाह, वाह के पुष्प गिरायेंगे | 

आज से हर एक अपने में देखे – दूसरे का नहीं देखना | दूसरे की यह बातें देखने के लिए मन की आँख बन्द करना | यह आँखें तो बन्द कर नहीं सकते ना, लेकिन मन की आँख बन्द करना – दूसरा करता है या तीसरा करता है, मुझे नहीं देखना है | बाप इतना भी फ़ोर्स देकर कहते हैं कि अगर कोई विरला महारथी भी कोई ऐसी कमज़ोरी करे तो भी देखने के लिए और सुनने के लिए मन को अन्तर्मुखी बनाना | हँसी की बात सुनायें – बापदादा आज थोड़ा स्पष्ट सुना रहे हैं, बुरा तो नहीं लगता है | अच्छा – एक और भी स्पष्ट बात सुनाते हैं | बापदादा ने देखा है कि मैजारिटी समय प्रति समय, सदा नहीं कभी-कभी महारथियों की विशेषता को कम देखते और कमज़ोरी को बहुत गहराई से देखते हैं और फ़ालो करते हैं | एक दो से वर्णन भी करते हैं कि क्या है, सबको देख लिया है | महारथी भी करते हैं, हम तो हैं ही पीछे | अभी महारथी जब बदलेंगे ना तो हम बदल जायेंगे | लेकिन महारथियों की तपस्या, महारथियों के बहुतकाल का पुरुषार्थ उन्हों को एडीशनल मार्क्स दिलाकर भी पास विद आनर कर लेती है | आप इसी इन्तजार में रहेंगे कि महारथी बदलेंगे तो हम बदलेंगे तो धोखा खा लेंगे इसलिए मन को अन्तर्मुखी बनाओ | समझा यह भी बापदादा बहुत सुनते हैं, देख लिया......देख लिया | हमारी भी तो आँखें हैं ना, हमारे भी तो कान हैं ना, हम भी बहुत सुनते हैं | लेकिन महारथियों से इस बात में रीस नहीं करना | अच्छाई की रेस करो, बुराई की रीस नहीं करो, नहीं तो धोखा खा लेंगे | बाप को तरस पड़ता है क्योंकि महारथियों का फाउन्डेशन निश्चय, अटूट-अचल है, उसकी दुआयें एक्स्ट्रा महारथियों को मिलती हैं इसलिए कभी भी मन की आँख को इस बात के लिए नहीं खोलना | बन्द रखो | सुनने के बजाए मन को अन्तर्मुखी रखो | समझा | अच्छा | 

चारों ओर के सर्व बापदादा के लवलीन आत्मायें, सर्व बाप के सेवाधारी आत्मायें, सर्व सहज पुरुषार्थ को अपनाने वाली श्रेष्ठ आत्मायें, सदा बाप समान बनने के लक्ष्य और लक्षण को समान बनाने वाली, बाप के समीप आत्माओं को बापदादा का बहुत-बहुत यादप्यार और नमस्ते | 

वरदान:-   

अपने शुभ-चिन्तन की शक्ति से आत्माओं को चिन्ता मुक्त बनाने वाली शुभचिंतक मणी भव !   

आज के विश्व में सब आत्मायें चिंतामणी हैं | उन चिन्ता मणियों को आप शुभचिंतक मणियाँ अपने शुभ-चिन्तन की शक्ति द्वारा परिवर्तन कर सकते हो | जैसे सूर्य की किरणें दूर-दूर तक अन्धकार को मिटाती हैं ऐसे आप शुभचिंतक मणियों की शुभ संकल्प रूपी चमक वा किरणें  विश्व में चारों ओर फ़ैल रही हैं | इसलिए समझते हैं कि कोई स्प्रीचुअल लाइट गुप्त रूप में अपना कार्य कर रही है | यह टचिंग अभी शुरू हुई है, आख़रीन ढूँढते-ढूँढ़ते स्थान पर पहुँच जायेंगे |   

स्लोगन:- 
बापदादा के डायरेक्शन को क्लीयर कैच करने के लिए मन-बुद्धि की लाइट क्लीयर रखो |      

ओम् शान्ति |