07-10-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - देही- अभिमानी बनने की प्रैक्टिस करो,
इस
प्रैक्टिस से ही तुम पुण्य आत्मा बन सकेंगे” 
प्रश्न:-
किस
एक नॉलेज के कारण तुम बच्चे सदा हर्षित रहते हो?
उत्तर:-
तुम्हें नॉलेज मिली है कि यह नाटक बड़ा वन्डरफुल बना हुआ है,
इसमें
हर एक एक्टर का अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है । सब अपना- अपना
पार्ट बजा रहे हैं । इस कारण तुम सदा हर्षित रहते हो ।
प्रश्न:-
कौन-सा एक हुनर बाप के पास ही है,
दूसरों के पास नहीं?
उत्तर:-
देही-
अभिमानी बनाने का हुनर एक बाप के पास है क्योंकि वह खुद सदा
देही है,
सुप्रीम है । यह हुनर किसी भी मनुष्य को आ नहीं सकता ।
ओम्
शान्ति |
रूहानी बच्चों अर्थात् आत्माओं प्रति बाप बैठ समझाते हैं ।
अपने को आत्मा तो समझना है ना । बाप ने बच्चों को समझाया है
पहले-पहले यह प्रैक्टिस करो कि हम आत्मा है,
न कि
शरीर । जब अपने को आत्मा समझेंगे तब ही परमपिता को याद करेंगे
| अपने को आत्मा नहीं समझेंगे तो फिर जरूर लौकिक सम्बन्धी,
धन्धा आदि ही याद आता रहेगा इसलिए पहले-पहले तो यह प्रैक्टिस
होनी चाहिए कि मैं आत्मा हूँ तो फिर रूहानी बाप की याद ठहरेगी
। बाप यह शिक्षा देते हैं कि अपने को देह नहीं समझो । यह ज्ञान
बाप एक ही बार सारे कल्प में देते हैं । फिर 5 हजार वर्ष बाद
यह समझानी मिलेगी । अपने को आत्मा समझेंगे तो बाप भी याद आयेगा
। आधाकल्प तुमने अपने को देह समझा है । अब अपने को आत्मा समझना
है । जैसे तुम आत्मा हो,
मैं
भी आत्मा ही हूँ । परन्तु सुप्रीम हूँ । मैं हूँ ही आत्मा तो
मेरे को कोई देह याद पड़ती ही नहीं । यह दादा तो शरीरधारी है ना
। वह बाप है निराकार । यह प्रजापिता ब्रह्मा तो साकारी हो गया
। शिवबाबा का असली नाम है ही शिव । वह है ही आत्मा सिर्फ वह
ऊंच ते ऊंच अर्थात् सुप्रीम आत्मा है सिर्फ इस समय ही आकर इस
शरीर में प्रवेश करता हूँ । वह कभी देह- अभिमानी हो न सके ।
देह- अभिमानी साकारी मनुष्य होते हैं,
वह
तो है ही निराकार । उनको आकर यह प्रैक्टिस करानी है । कहते हैं
तुम अपने को आत्मा समझो । मैं आत्मा हूँ,
आत्मा हूँ-यह पाठ बैठकर पढ़ो । मैं आत्मा शिवबाबा का बच्चा हूँ
। हर बात की प्रैक्टिस चाहिए ना । बाप कोई नई बात नहीं समझाते
हैं । तुम जब अपने को आत्मा पक्का-पक्का समझेंगे तब बाप भी
पक्का याद रहेगा । देह- अभिमान होगा तो बाप को याद कर नहीं
सकेंगे | आधाकल्प तुमको देह का अहंकार रहता है । अभी तुमको
सिखाता हूँ कि अपने को आत्मा समझो । सतयुग में ऐसे कोई सिखाता
नहीं है कि अपने को आत्मा समझो । शरीर पर नाम तो पड़ता ही है ।
नहीं तो एक-दो को बुलावे कैसे । यहाँ तुमने बाप से जो वर्सा
पाया है वही प्रालब्ध वहाँ पाते हो । बाकी बुलायेंगे तो नाम से
ना । कृष्ण भी शरीर का नाम है ना । नाम बिगर तो कारोबार आदि चल
न सके । ऐसे नहीं कि वहां यह कहेंगे कि अपने को आत्मा समझो ।
वहाँ तो आत्म- अभिमानी रहते ही हैं । यह प्रैक्टिस तुमको अभी
कराई जाती है क्योंकि पाप बहुत चढ़े हुए हैं । आहिस्ते- आहिस्ते
थोड़ा- थोड़ा पाप चढ़ते-चढ़ते अभी कुल पाप आत्मा बन पड़े हो ।
आधाकल्प के लिए जो कुछ किया वह खलास भी तो होगा ना । आहिस्ते-
आहिस्ते कम हाता जाता है । सतयुग में तुम सतोप्रधान हो,
त्रेता में सता बन जाते हो । वर्सा अभी मिलता है । अपने को
आत्मा समझ बाप को याद करने से ही वर्सा मिलता है । यह देही-
अभिमानी बनने की शिक्षा बाप अभी देते हैं । सतयुग में यह
शिक्षा नहीं मिलती । अपने- अपने नाम पर ही चलते हैं । यहाँ तुम
हर एक को याद के बल से पाप आत्मा से पुण्य आत्मा बनना है ।
सतयुग में इस शिक्षा की दरकार ही नहीं । न तुम यह शिक्षा वहाँ
ले जाते हो । वहाँ न यह ज्ञान,
न
योग ले जाते हो । तुमको पतित से पावन अभी ही बनना है । फिर
आहिस्ते- आहिस्ते कला कम होती है । जैसे चन्द्रमा की कला कम
होते-होते लीक जाकर रहती है । तो इसमें मूँझो नहीं । कुछ भी न
समझो तो पूछो ।
पहले
तो यह पक्का निश्चय करो कि हम आत्मा हैं । तुम्हारी आत्मा ही
अभी तमोप्रधान बनी है । पहले सतोप्रधान थी फिर दिन-प्रतिदिन
कला कम होती जाती है । मैं आत्मा हूँ-यह पक्का न होने से ही
तुम बाप को भूलते हो । पहले-पहले मूल बात ही यह है । आत्म-
अभिमानी बनने से बाप याद आयेगा तो वर्सा भी याद आयेगा । वर्सा
याद आयेगा तो पवित्र भी रहेंगे । दैवीगुण भी रहेंगे । एम
ऑबजेक्ट तो सामने है ना । यह है गॉडली युनिवर्सिटी । भगवान्
पढाते हैं । देही- अभिमानी भी वही बना सकते हैं और कोई भी यह
हुनर जानता ही नहीं है । एक बाप ही सिखाते हैं । यह दादा भी
पुरूषार्थ करते हैं । बाप तो कभी देह लेते ही नहीं,
जो
उनको देही- अभिमानी बनने का पुरूषार्थ करना पड़े । वह सिर्फ इस
ही समय आते हैं तुमको देही- अभिमानी बनाने । यह कहावत है जिनके
माथे मामला,
वह
कैसे नीद करें..... । बहुत धंधा आदि टू-मच
होता है तो फुर्सत नहीं मिलती और जिनको फुर्सत है वह आते हैं
बाबा के सामने पुरूषार्थ करने । कोई नये भी आते हैं । समझते
हैं नॉलेज तो बड़ी अच्छी हैं । गीता में भी यह अक्षर है-मुझ बाप
को याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जाएं । तो बाप यह
समझाते हैं । बाप कोई को दोष नहीं देते हैं । यह तो जानते हैं
तुमको पावन से पतित बनना ही है और हमको आकर पतित से पावन बनाना
ही है । यह बना-बनाया ड्रामा है,
इसमें कोई के निंदा की बात नहीं । तुम बच्चे अभी ज्ञान को
अच्छी रीति जानते हो और तो कोई भी ईश्वर को जानते ही नहीं
इसलिए निधनके नास्तिक कहलाये जाते हैं । अभी बाप तुम बच्चों को
कितना समझदार बनाते हैं । टीचर रूप में शिक्षा देते हैं । कैसे
यह सृष्टि का चक्र चलता है,
यह
शिक्षा मिलने से तुम भी सुधरते हो । भारत जो शिवालय था सो अब
वेश्यालय है ना । इसमें ग्लानि की तो बात ही नहीं । यह खेल है,
जो
बाप समझाते हैं । तुम देवता से असुर कैसे बने हो,
ऐसे
नहीं कहते क्यों बने?
बाप
आये ही हैं बच्चों को अपना परिचय देने और सृष्टि का चक्र कैसे
फिरता है,
यह
नॉलेज देते हैं । मनुष्य ही जानेंगे ना । अभी तुम जानकर फिर
देवता बनते हो । यह पढाई है मनुष्य से देवता बनने की,
जो
बाप ही बैठ पढ़ाते हैं । यहाँ तो सब मनुष्य ही मनुष्य हैं ।
देवता तो इस सृष्टि पर आ नहीं सकते जो टीचर बनकर पढ़ाये । पढ़ाने
वाला बाप देखो कैसे पढ़ाने आते हैं । गायन भी है परमपिता
परमात्मा कोई रथ लेते हैं,
यह
पूरा नहीं लिखते कि कौन-सा रथ लेते हैं । त्रिमूर्ति का राज़ भी
कोई समझते नहीं । परमपिता अर्थात् परम आत्मा । वो जो हैं सो
अपना परिचय तो देंगे ना । अहंकार की बात नहीं । न समझने के
कारण कहते हैं इनमें अहंकार है । यह ब्रह्मा तो कहते नहीं कि
मैं परमात्मा हूँ । यह तो समझ की बात है,
यह
तो बाप के महावाक्य हैं-सभी आत्माओं का बाप एक है । इनको दादा
कहा जाता है । यह भाग्यशाली रथ है ना । नाम भी ब्रह्मा रखा है
क्योंकि ब्राह्मण चाहिए ना । आदि देव प्रजापिता ब्रह्मा है ।
प्रजा का पिता है,
अब
प्रजा कौन-सी?
प्रजापिता ब्रह्मा शरीरधारी है तो एडाप्ट किया ना । बच्चों को
शिवबाबा समझाते हैं मैं एडाप्ट नहीं करता हूँ । तुम सब
आत्मायें तो सदैव मेरे बच्चे हो ही । मैं तुमको बनाता नहीं हूँ
। मैं तो तुम आत्माओं का अनादि बाप हूँ । बाप कितना अच्छी रीति
समझाते हैं फिर भी कहते हैं अपने को आत्मा समझो । तुम सारी
पुरानी दुनिया का सन्यास करते हो । बुद्धि से जानते हैं सब
वापिस जायेंगे इस दुनिया से । ऐसे नहीं,
सन्यास कर जंगल में जाना है । सारी दुनिया का
सन्यास कर हम अपने घर चले जायेंगे इसलिए कोई भी चीज याद न आये
सिवाए एक बाप के । 60 वर्ष की आयु हुई
तो फिर वाणी से परे वानप्रस्थ में जाने का पुरूषार्थ करना
चाहिए । यह वानप्रस्थ की बात है अभी की । भक्ति मार्ग में तो
वानप्रस्थ का किसको पता ही नहीं है । वानप्रस्थ का अर्थ नहीं
बता सकते हैं । वाणी से परे मूलवतन को कहेंगे । वहाँ सभी
आत्मायें निवास करती हैं तो सबकी वानप्रस्थ अवस्था है,
सबको
जाना है घर ।
शास्त्रों में दिखाते हैं आत्मा भ्रकुटी के बीच चमकता हुआ
सितारा है । कई समझते हैं आत्मा अंगुष्ठे मिसल है । अंगुष्ठे
मिसल को ही याद करते हैं । स्टार को याद कैसे करें?
पूजा
कैसे करें?
तो
बाप समझाते हैं तुम देह- अभिमान में जब आते हो तो पुजारी बन
जाते हो । भक्ति का समय शुरू होता है,
उसको
भक्ति कल्ट कहते हैं । ज्ञान कल्ट अलग है । ज्ञान और भक्ति
इकट्ठे नहीं हो सकते । दिन और रात इकट्ठे नहीं हो सकते । दिन
सुख को कहा जाता और रात दुःख अर्थात् भक्ति को कहा जाता है ।
कहते हैं प्रजापिता ब्रह्मा का दिन और फिर रात । तो प्रजा और
ब्रह्मा जरूर दोनों ही इकट्ठे होंगे ना । तुम समझते हो हम
ब्राह्मण ही आधाकल्प सुख भोगते हैं फिर आधाकल्प दु :ख । यह
बुद्धि से समझने की बात है । यह भी जानते हो सब बाप को याद
नहीं कर सकते हैं फिर भी बाप खुद समझाते रहते हैं अपने को
आत्मा समझो और मुझे याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे । यह पैगाम
सबको पहुँचाना है । सर्विस करनी है । जो सर्विस ही नहीं करते
तो वह फूल नहीं ठहरे । बागवान बगीचे में आयेंगे तो उनको फूल ही
सामने चाहिए,
जो
सर्विसएबुल हैं बहुतों का कल्याण करते हैं । जिनको देह- अभिमान
है वह खुद भी समझेंगे हम फूल तो हैं नहीं । बाबा के सामने तो
अच्छे- अच्छे फूल बैठे हैं । तो बाप की उन पर नजर जायेगी ।
डांस भी अच्छा चलेगा । (डासिंग गर्ल का मिसाल) स्कूल में भी
टीचर तो जानते हैं ना-कौन नम्बरवन,
कौन
नम्बर दो,
तीन
में हैं । बाप का भी अटेंशन सर्विस करने वाली तरफ ही जायेगा ।
दिल पर भी वह चढ़ते हैं । डिससर्विस करने वाले थोड़ेही दिल पर
चढ़ते । बाप पहली-पहली मुख्य बात समझाते हैं अपने को आत्मा
निश्चय करो तब बाप की याद ठहरेगी । देह- अभिमान होगा तो बाप की
याद ठहरेगी नहीं । लौकिक सम्बन्धियों तरफ,
धन्धे धोरी तरफ बुद्धि चली जायेगी । देही- अभिमानी होने से
पारलौकिक बाप ही याद आयेगा । बाप को तो बहुत प्यार से याद करना
चाहिए । अपने को आत्मा समझना-इसमें मेहनत है । एकान्त चाहिए ।
7 रोज की भट्ठी का कोर्स बहुत कड़ा है । कोई की याद न आये ।
किसको पत्र भी नहीं लिख सकते । यह भट्ठी तुम्हारी शुरू की थी ।
यहाँ तो सबको रख नहीं सकते इसलिए कहा जाता है घर में रहकर
प्रैक्टिस करो । भक्त लोग भी भक्ति के लिए अलग कोठी बना देते
हैं । अन्दर कोठरी में बैठ माला सिमरते हैं,
तो
इस याद की यात्रा में भी एकान्त चाहिए । एक बाप को ही याद करना
है । इसमें कुछ जबान चलाने की भी बात नहीं है । इस याद के
अभ्यास में फुर्सत चाहिए ।
तुम
जानते हो लौकिक बाप है हद का क्रियेटर,
यह
है बेहद का । प्रजापिता ब्रह्मा तो बेहद का ठहरा ना । बच्चों
को एडाप्ट करते हैं । शिवबाबा एडाप्ट नहीं करते हैं । उनके तो
बच्चे सदैव हैं ही । तुम कहेंगे शिवबाबा के हम बच्चे आत्मायें
अनादि है ही । ब्रह्मा ने तुमको एडाप्ट किया है । हर एक बात
अच्छी रीति समझने की है । बाप रोज-रोज बच्चों को समझाते हैं,
कहते
हैं बाबा याद नहीं रहती । बाप कहते हैं इसमें थोड़ा समय निकालना
चाहिए । कोई- कोई ऐसे होते हैं जो बिल्कुल समय दे नहीं सकते ।
बुद्धि में काम बहुत रहता है । फिर याद की यात्रा कैसे हो ।
बाप समझाते हैं मूल बात ही यह है- अपने को आत्मा समझ मुझ बाप
को याद करो तो तुम पावन बन जाएंगे । मैं आत्मा हूँ,
शिवबाबा का बच्चा हूँ-यह मनमनाभव हुआ ना । इसमें मेहनत चाहिए ।
आशीर्वाद की बात नहीं । यह तो पढ़ाई है इसमें कृपा वा आशीर्वाद
नहीं चलती । मैं कभी तुम्हारे ऊपर हाथ रखता हूँ क्या! तुम
जानते हो बेहद के बाप से हम वर्सा ले रहे हैं । अमर भव,
आयुष्मान भव..... इसमें सब आ जाता है । तुम कुल एज (आयु) पाते
हो । वहाँ कभी अकाले मृत्यु नहीं होती । यह वर्सा कोई
साधू-सन्त आदि दे नहीं सकते । वह कहते हैं पुत्रवान भव... तो
मनुष्य समझते उनकी कृपा से बच्चा हुआ है । बस जिनको बच्चा नहीं
होगा वह जाकर उनका शिष्य बनेंगे । ज्ञान तो एक ही बार मिलता है
। यह है अव्यभिचारी ज्ञान,
जिसकी आधाकल्प प्रालब्ध चलती है । फिर हैं अज्ञान । भक्ति को
अज्ञान कहा जाता है । हर एक बात कितना अच्छी रीति समझाई जाती
है । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1.
अभी वानप्रस्थ अवस्था है इसलिए बुद्धि से सब
कुछ सन्यास कर एक बाप की याद में रहना है । एकान्त में बैठ
अभ्यास करना है-हम आत्मा हैं आत्मा हैं ।
2.
सर्विसएबुल फूल बनना है । देह- अभिमान वश ऐसा
कोई कर्म नहीं करना है जो डिससर्विस हो जाए । बहुतों के कल्याण
के निमित्त बनना है । थोड़ा समय याद के लिए अवश्य निकालना है ।
वरदान:-
अपने
बोल की वैल्यु को समझ उसकी एकॉनामी करने वाले महान आत्मा भव
!
जैसे
महान आत्माओं को कहते हैं - सत वचन महाराज । तो आपके बोल सदा
सत वचन अर्थात् कोई न कोई प्राप्ति कराने वाले वचन हो ।
ब्राह्मणों के मुख से कभी किसी को श्रापित करने वाले बोल नहीं
निकलने चाहिए इसलिए युक्तियुक्त बोलो और काम का बोलो । बोल की
वैल्यु को समझो । शुभ शब्द सुख देने वाले शब्द बोलो,
हंसीमजाक के बोल नहीं बोलो,
बोल
की एकॉनामी करो तो महान आत्मा बन जायेंगे ।
स्लोगन:-
यदि श्रीमत का हाथ सदा साथ है तो सारा ही युग हाथ में हाथ देकर
चलते रहेंगे । 
ओम्
शान्ति |