18-12-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - बाप का मददगार बन इस आइरन एजड पहाड़ को गोल्डन एजड
बनाना है,
पुरूषार्थ कर नई दुनिया के लिए फर्स्टक्सास सीट रिजर्व करानी
है” 
प्रश्न:-
बाप
की फर्ज़- अदाई क्या है?
कौन-
सा फर्ज़ पूरा करने के लिए संगम पर बाप को आना पड़ता है?
उत्तर:-
बीमार
और दु :खी बच्चों को सुखी बनाना,
माया
के फंदे से निकाल घनेरे सुख देना-यह बाप की फर्ज़- अदाई है,
जो
संगम पर ही बाप पूरी करते हैं । बाबा कहते-मैं आया हूँ तुम
सबका मर्ज मिटाने,
सब पर
कृपा करने । अब पुरूषार्थ कर 21 जन्मों के लिए अपनी ऊंची तकदीर
बना लो ।
गीत:-
भोलेनाथ से निराला.......

ओम्
शान्ति |
भोलानाथ शिव भगवानुवाच-ब्रह्मा मुख कमल से बाप कहते हैं-यह
वैराइटी भिन्न-भिन्न धर्मों का मनुष्य सृष्टि झाड़ है ना । इस
कल्प वृक्ष अथवा सृष्टि के आदि-मध्य- अन्त का राज़ बच्चों को
समझा रहा हूँ । गीत में भी इनकी महिमा है । शिवबाबा का जन्म
यहाँ है,
बाप
कहते हैं मैं आया हूँ भारत में । मनुष्य यह नहीं जानते कि
शिवबाबा कब पधारे थे?
क्योंकि गीता में कृष्ण का नाम डाल दिया है । द्वापर की तो बात
ही नहीं । बाप समझाते हैं-बच्चे,
5
हज़ार वर्ष पहले भी मैंने आकर के यह ज्ञान दिया था । इस झाड़ से
सभी को मालूम पड़ जाता है । झाड़ को अच्छी रीति देखो । सतयुग में
बरोबर देवी-देवताओं का राज्य था,
त्रेता में राम-सीता का है । बाबा आदि-मध्य- अन्त का राज़
बतलाते हैं । बच्चे पूछते हैं-बाबा,
हम
माया के फंदे में कब फँसे?
बाबा
कहते हैं द्वापर से । नम्बरवार फिर दूसरे धर्म आते हैं । तो
हिसाब लगाने से समझ सकते हैं कि इस दुनिया में हम फिर से कब
आयेंगे?
शिवबाबा कहते हैं मैं 5 हज़ार वर्ष बाद आया हूँ,
संगम
पर अपना फर्ज़ निभाने । सभी जो भी मनुष्य मात्र हैं,
सभी
दु :खी हैं,
उनमें भी खास भारतवासी । ड्रामा अनुसार भारत को ही मैं सुखी
बनाता हूँ । बाप का फर्ज़ होता है बच्चे बीमार पड़ें तो उनकी दवा
दर्मल करना । यह है बहुत बड़ी बीमारी । सभी बीमारियों का मूल ये
5 विकार हैं । बच्चे पूछते हैं यह कब से शुरू हुए?
द्वापर से । रावण की बात समझानी है । रावण को कोई देखा नहीं
जाता । बुद्धि से समझा जाता है । बाप को भी बुद्धि से जाना
जाता है । आत्मा मन-बुद्धि सहित है । आत्मा जानती है कि हमारा
बाप परमात्मा है । दु :ख-सुख,
लेप-छेप में आत्मा आती है । जब शरीर है तो आत्मा को दु :ख होता
है । ऐसे नहीं कहते कि मुझ परमात्मा को दु :खी मत करो | बाप भी
समझाते हैं कि मेरा भी पार्ट है,
कल्प-कल्प संगम पर आकर मैं पार्ट बजाता हूँ । जिन बच्चों को
मैंने सुख में भेजा था,
वह
दु :खी बन पड़े हैं इसलिए फिर ड्रामा अनुसार मुझे आना पड़ता है ।
बाकी कच्छ- मच्छ अवतार यह बातें हैं नहीं । कहते हैं परशुराम
ने कुल्हाड़ा ले क्षत्रियों को मारा । यह सब हैं दन्त कथायें ।
तो अब बाप समझाते हैं मुझे याद करो ।
यह
है जगत अम्बा और जगत पिता । मदर और फादर कन्ट्री कहते हैं ना ।
भारतवासी याद भी करते हैं-तुम मात- पिता.... तुम्हारी कृपा से
सुख घनेरे तो बरोबर मिल रहे हैं । फिर जो जितना पुरूषार्थ
करेंगे । जैसे बाइसकोप में जाते है,
फर्स्टक्लास का रिजर्वेशन कराते हैं ना | बाप भी कहते हैं चाहे
सूर्यवंशी,
चाहे
चन्द्रवंशी में सीट रिजर्व कराओ,
जितना जो पुरूषार्थ करे उतना पद पा सकते हैं । तो सब मर्ज
मिटाने बाप आये हैं । रावण ने सबको बहुत दु :ख दिया है । कोई
भी मनुष्य,
मनुष्य की गति-सद्गति कर न सके । यह है ही कलियुग का अन्त ।
गुरू लोग शरीर छोड़ते हैं फिर यहाँ ही पुनर्जन्म लेते हैं । तो
फिर वह ओरों की क्या सद्गति करेंगे! क्या इतने सभी अनेक गुरू
मिलकर पतित सृष्टि को पावन बनायेंगे?
गोवर्धन पर्वत कहते हैं ना । यह मातायें इस आइरन एजड पहाड़ को
गोल्डन एजड बनाती हैं । गोवर्धन की फिर पूजा भी करते हैं,
वह
है तत्व पूजा । सन्यासी भी ब्रह्म अथवा तत्व को याद करते हैं ।
समझते हैं वही परमात्मा है,
ब्रह्म भगवान है । बाप कहते हैं यह तो भ्रम है । ब्रह्माण्ड
में तो आत्मायें अण्डे मिसल रहती हैं,
निराकारी झाड़ भी दिखाया गया है । हर एक का अपना- अपना सेक्सन
है । इस झाड़ का फाउन्डेशन है- भारत का सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी
घराना । फिर वृद्धि होती है । मुख्य है 4 धर्म । तो हिसाब करना
चाहिए-कौन-कौन से धर्म कब आते हैं?
जैसे
गुरूनानक 500
वर्ष पहले आये । ऐसे तो नहीं सिक्ख लोग कोई 84 जन्म का पार्ट
बजाते हैं । बाप कहते हैं 84 जन्म सिर्फ तुम आलराउन्डर
ब्राह्मणों के हैं । बाबा ने समझाया है कि तुम्हारा ही
आलराउन्ड पार्ट है । ब्राह्मण,
देवता,
क्षत्रिय,
वैश्य,
शूद्र तुम बनते हो । जो पहले देवी-देवता बनते हैं वही सारा
चक्र लगाते हैं । बाप कहते हैं तुमने वेद-शास्त्र तो बहुत सुने
। अभी यह सुनो और जज करो कि शास्त्र राइट हैं या गुरू लोग राइट
हैं या जो बाप सुनाते हैं वह राइट है?
बाप
को कहते ही हैं टुथ । मैं सच बतलाता हूँ जिससे सतयुग बन जाता
है और द्वापर से लेकर तुम झूठ सुनते आये हो तो उससे नर्क बन
पड़ा है ।
बाप
कहते हैं-मैं तुम्हारा गुलाम हूँ,
भक्ति मार्ग में तुम गाते आये हो-मैं गुलाम,
मैं
गुलाम तेरा... अभी मैं तुम बच्चों की सेवा में आया हूँ । बाप
को निराकारी,
निरहंकारी गाया जाता है । तो बाप कहते हैं मेरा फर्ज़ है तुम
बच्चों को सदा सुखी बनाना । गीत में भी है अगम-निगम का भेद
खोले.... बाकी डमरू आदि बजाने की कोई बात नहीं है । यह तो आदि-
मध्य- अन्त का सारा समाचार सुनाते हैं । बाबा कहते हैं तुम सभी
बच्चे एक्टर्स हो,
मैं
इस समय करनकरावनहार हूँ । मैं इनसे (ब्रह्मा से) स्थापना
करवाता हूँ । बाकी गीता में जो कुछ लिखा हुआ है,
वह
तो है नहीं । अभी तो प्रैक्टिकल बात है ना । बच्चों को यह सहज
ज्ञान और सहज योग सिखलाता हूँ,
योग
लगवाता हूँ । कहा है ना योग लगवाने वाले,
झोली
भरने वाले,
मर्ज
मिटाने वाले । गीता का भी पूरा अर्थ समझाते हैं । योग सिखलाता
हूँ और सिखलवाता भी हूँ । बच्चे योग सीखकर फिर ओरों को सिखलाते
हैं ना । कहते हैं योग से हमारी ज्योत जगाने वाले... ऐसे गीत
भी कोई घर में बैठकर सुने तो सारा ही ज्ञान बुद्धि में चक्र
लगायेगा । बाप की याद से वर्से का भी नशा चढ़ेगा । सिर्फ
परमात्मा वा भगवान कहने से मुख मीठा नहीं होता । बाबा माना ही
वर्सा ।
अब
तुम बच्चे बाबा से आदि-मध्य- अन्त का ज्ञान सुनकर फिर ओरों को
सुनाते हो,
इसे
ही शंखध्वनि कहा जाता है । तुमको कोई पुस्तक आदि हाथ में नहीं
है । बच्चों को सिर्फ धारणा करनी होती है । तुम हो सच्चे
रूहानी ब्राह्मण,
रूहानी बाप के बच्चे । सच्ची गीता से भारत स्वर्ग बनता है । वह
तो सिर्फ कथायें बैठ बनाई हैं । तुम सब पार्वतियाँ हो,
तुमको यह अमरकथा सुना रहा हूँ । तुम सब द्रोपदियाँ हो । वहाँ
कोई नंगन होते नहीं । कहते हैं तब बच्चे कैसे पैदा होंगे?
अरे,
हैं
ही निर्विकारी तो विकार की बात कैसे हो सकती । तुम समझ नहीं
सकेंगे कि योगबल से बच्चे कैसे पैदा होंगे! तुम आरग्यु करेंगे
। परन्तु यह तो शास्त्रों की बातें हैं ना । वह है ही सम्पूर्ण
निर्विकारी दुनिया । यह है विकारी दुनिया । मैं जानता हूँ
ड्रामा अनुसार माया फिर तुमको दु .खी करेगी । मैं कल्प-कल्प
अपना फर्ज़ पालन करने आता हूँ । जानते हैं कल्प पहले वाले
सिकीलधे ही आकर अपना वर्सा लेंगे । आसार भी दिखाते हैं । यह
वही महाभारत लड़ाई है । तुम्हें फिर से देवी-देवता अथवा स्वर्ग
का मालिक बनने का पुरूषार्थ करना है । इसमें स्थूल लडाई की कोई
बात नहीं है । न असुरोँ व देवताओं की लड़ाई ही हुई है । वहाँ तो
माया ही नहीं जो लड़ाये । आधाकल्प न कोई लड़ाई,
न
कोई भी बीमारी,
न दु
:ख- अशान्ति । अरे,
वहाँ
तो सदैव सुख,
बहार
ही बहार रहती है । हास्पिटल होती नहीं,
बाकी
स्कूल में पढ़ना तो होता ही है । अब तुम हर एक यहाँ से वर्सा ले
जाते हो । मनुष्य पढ़ाई से अपने पैर पर खड़े हो जाते हैं । इस पर
कहानी भी है-कोई ने पूछा तुम किसका खाती हो?
तो
कहा हम अपनी तकदीर का खाती हैं | वह होती है हद की तकदीर । अभी
तुम अपनी बेहद की तकदीर बनाते हो जो 21 जन्म फिर अपना ही राज्य
भाग्य भोगते हो । यह है बेहद के सुख का वर्सा,
अब
तुम बच्चे कन्ट्रास्ट को अच्छी रीति जानते हो,
भारत
कितना सुखी था । अब क्या हाल है! जिन्होंने कल्प पहले राज्य-
भाग्य लिया होगा वही अब लेंगे । ऐसे भी नहीं कि जो ड्रामा में
होगा वो मिलेगा,
फिर
तो भूख मर जायेंगे । यह ड्रामा का राज़ पूरा समझना है ।
शास्त्रों में कोई ने कितनी आयु,
कोई
ने कितनी लिख दी है । अनेकानेक मत-मतान्तर हैं । कोई फिर कहते
हैं हम तो सदा सुखी हैं ही । अरे,
तुम
कभी बीमार नहीं होते हो?
वह
तो कहते हैं रोग आदि तो शरीर को होता है,
आत्मा निर्लेप है । अरे,
चोट
आदि लगती है तो दु :ख आत्मा को होता है ना-यह बड़ी समझने की
बातें हैं । यह स्कूल है,
एक
ही टीचर पढ़ते हैं । नॉलेज एक ही है । एम ऑबजेक्ट एक ही है,
नर
से नारायण बनने की । जो नापास होंगे वह चन्द्रवंशी में चले
जायेंगे । जब देवतायें थे तो क्षत्रिय नहीं,
जब
क्षत्रिय थे तो वैश्य नहीं,
जब
वैश्य थे तो शूद्र नहीं । यह सब समझने की बातें हैं । माताओं
के लिए भी अति सहज है । एक ही इप्तहान है । ऐसे भी मत समझो कि
देरी से आने वाले कैसे पढ़ेंगे । लेकिन अभी तो नये तीखे जा रहे
हैं । प्रैक्टिकल में है । बाकी माया रावण का कोई रूप नहीं,
कहेंगे इनमें काम का भूत है,
बाकी
रावण का कोई बुत वा शरीर तो है नहीं ।
अच्छा,
सभी
बातों का सैक्रीन है मन्मनाभव । कहते हैं मुझे याद करो तो इस
योग अग्नि से विकर्म विनाश होंगे । बाप गाइड बनकर आते हैं ।
बाबा कहते-बच्चे,
मैं
तो सन्मुख तुम बच्चों को पढ़ा रहा हूँ । कल्प-कल्प अपनी फर्ज़-
अदाई पालन करता हूँ । पारलौकिक बाप कहते हैं मैं अपना फर्ज़
बजाने आया हूँ-तुम बच्चों की मदद से । मदद देंगे तब तो तुम भी
पद पायेंगे । मैं कितना बड़ा बाप हूँ । कितना बड़ा यज्ञ रचा है ।
ब्रह्मा की मुख वंशावली तुम सभी ब्राह्मण-ब्राह्मणियां भाई-बहन
हो । जब भाई-बहिन बनें तो स्त्री-पुरूष की दृष्टि बदल जाए ।
बाप कहते हैं इस ब्राह्मण कुल को कलंकित नहीं करना,
पवित्र रहने की युक्तियां हैं । मनुष्य कहते हैं यह कैसे होगा?
ऐसे
हो नहीं सकता,
इकट्ठे रहें और आग न लगे! बाबा कहते हैं बीच में ज्ञान तलवार
होने से कभी आग नहीं लग सकती,
परन्तु जबकि दोनों मन्मनाभव रहें,
शिवबाबा को याद करते रहें,
अपने
को ब्राह्मण समझें । मनुष्य तो इन बातों को नहीं समझने कारण
हंगामा मचाते हैं,
यह
गालियाँ भी खानी पड़ती हैं । कृष्ण को थोड़ेही कोई गाली दे सकते
। कृष्ण ऐसे आ जाए तो विलायत आदि से एकदम एरोप्लेन में भाग
आयें,
भीड़
मच जाए । भारत में पता नहीं क्या हो जाए ।
अच्छा,
आज
भोग है - यह है पियरघर और वह है ससुरघर । संगम पर मुलाकात होती
है । कोई-कोई इनको जादू समझते हैं । बाबा ने समझाया है कि यह
साक्षात्कार क्या है?
भक्ति मार्ग में कैसे साक्षात्कार होते हैं,
इनमें संशयबुद्धि नहीं होना है । यह रस्म-रिवाज है । शिवबाबा
का भण्डारा है तो उनको याद कर भोग लगाना चाहिए । योग में रहना
तो अच्छा ही है । बाबा की याद रहेगी । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
स्वयं
को ब्रह्मा मुख वंशावली समझकर पक्का पवित्र ब्राह्मण बनना है ।
कभी अपने इस ब्राह्मण कुल को कलंकित नहीं करना है ।
2.
बाप
समान निराकारी,
निरहंकारी बन अपनी फर्ज़- अदाई पूरी करनी है । रूहानी सेवा पर
तत्पर रहना है ।
वरदान:-
प्रत्यक्षफल द्वारा अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति करने वाले
निःस्वार्थ सेवाधारी
भव ! 
सतयुग में संगम के कर्म का फल मिलेगा लेकिन यहाँ बाप का बनने
से प्रत्यक्ष फल वर्से के रूप में मिलता है । सेवा की और सेवा
करने के साथ-साथ खुशी मिली । जो याद में रहकर,
निःस्वार्थ भाव से सेवा करते हैं उन्हें सेवा का प्रत्यक्ष फल
अवश्य मिलता है । प्रत्यक्षफल ही ताजा फल है जो एवरहेल्दी बना
देता है । योगयुक्त,
यथार्थ सेवा का फल है खुशी,
अतीन्द्रिय सुख और डबल लाइट की अनुभूति ।
स्लोगन:-
विशेष
आत्मा वह है जो अपनी चलन द्वारा रूहानी रायॅल्टी की झलक और फलक
का अनुभव कराये । 
ओम्
शान्ति |