29-07-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
"मीठे
बच्चे - सर्विस समाचार सुनने,
पढ़ने का भी तुम्हें शौक चाहिए,
क्योंकि इससे उमंग-उत्साह बढ़ता है,
सर्विस करने का संकल्प उठता है" 
प्रश्न:-
संगमयुग पर बाप तुम्हें सुख नहीं देते हैं लेकिन सुख का रास्ता
बताते हैं - क्यों?
उत्तर:-
क्योंकि बाप के सब बच्चे हैं,
अगर
एक बच्चे को सुख दें तो यह भी ठीक नहीं । लौकिक बाप से बच्चों
को बराबर हिस्सा मिलता है,
बेहद
का बाप हिस्सा नहीं बाँटते,
सुख
का रास्ता बताते हैं । जो उस रास्ते पर चलते हैं,
पुरूषार्थ करते हैं,
उन्हे
ऊंच पद मिलता है । बच्चों को पुरूषार्थ करना है,
सारा
मदार पुरूषार्थ पर है ।
ओम्
शान्ति
|
बच्चे जानते हैं बाप मुरली बजाते हैं । मुरली सबके पास जाती है
और जो मुरली पढ़कर सर्विस करते हैं उन्हों का समाचार मैगजीन में
आता है । अब जो बच्चे मैगजीन पढ़ते हैं,
उन्हें सेन्टर्स के सर्विस समाचार का मालूम पड़ेगा-फलानी-फलानी
जगह ऐसी सर्विस हो रही है । जो पढ़ेंगे ही नहीं तो उनको कुछ भी
समाचार का मालूम नहीं पड़ेगा और पुरूषार्थ भी नहीं करेंगे ।
सर्विस का समाचार सुनकर दिल में आता है मैं भी ऐसी सर्विस करूँ
। मैगजीन से मालूम पड़ता है,
हमारे भाई-बहिन कितनी सर्विस करते हैं । यह तो बच्चे समझते
हैं-जितनी सर्विस,
उतना
ऊंच पद मिलेगा । इसलिए मैगजीन भी उत्साह दिलाती है सर्विस के
लिए । यह कोई फालतू नहीं बनती है । फालतू वह समझते हैं जो खुद
पढ़ते नहीं हैं । कोई कहते हम अक्षर नहीं जानते,
अरे
रामायण,
भागवत,
गीता
आदि सुनने के लिए जाते हैं,
यह
भी सुननी चाहिए । नहीं तो सर्विस का उमंग नहीं बढ़ेगा । फलानी
जगह यह सर्विस हुई । शौक हो तो किसको कहें वह पढ़कर सुनाये ।
बहुत सेन्टर्स पर ऐसे भी होगा जो मैगजीन नहीं पढ़ते होंगे ।
बहुत हैं जिनके पास तो सर्विस का नाम-निशान भी नहीं रहता । तो
पद भी ऐसा पाएंगे । यह तो समझते हैं राजधानी स्थापन हो रही है,
उसमें जो जितनी मेहनत करते हैं,
उतना
पद पाते हैं । पढ़ाई में अटेंशन नहीं देंगे तो फेल हो जायेंगे ।
सारा मदार है इस समय की पढ़ाई पर । जितना पढ़ेंगे और पढ़ायेंगे
उतना अपना ही फायदा है । बहुत बच्चे हैं जिनको मैगजीन पढ़ने का
ख्याल भी नहीं आता है । वो पाई-पैसे का पद पा लेंगे । वहाँ यह
ख्यालात नहीं रहती कि इसने पुरूषार्थ नहीं किया है तो यह पद
मिला है । नहीं । कर्म-विकर्म की बातें सब यहाँ बुद्धि में हैं
। कल्प के संगमयुग पर ही बाप समझाते हैं,
जो
नहीं समझते हैं वह तो जैसे पत्थरबुद्धि हैं । तुम भी समझते हो
हम तुच्छ बुद्धि थे फिर उसमें भी परसेन्टेज होती है । बाबा
बच्चों को समझाते रहते हैं,
अभी
कलियुग है,
इनमें अपार दुःख होते हैं । यह- यह दु :ख है,
जो
सेन्सीबुल होंगे वह झट समझ जायेंगे कि यह तो ठीक बोलते हैं ।
तुम भी जानते हो कल हम कितने दु :खी थे,
अपार
दुःखों के बीच थे । अभी फिर अपार सुखों के बीच में जा रहे हैं
। यह है ही रावण राज्य कलियुग-यह भी तुम जानते हो । जो जानते
हैं लेकिन औरों को नहीं समझाते हैं तो बाबा कहेगा कुछ नहीं
जानते हैं । जानते हैं तब कहें जब सर्विस करें,
समाचार मैगजीन में आये । दिन-प्रतिदिन बाबा बहुत सहज प्याइंटस
भी सुनाते रहते हैं । वो लोग तो समझते कलियुग अजुन बच्चा है,
जब
संगम समझे तब भेंट कर सकें-सतयुग और कलियुग में । कलियुग में
अपार दु :ख हैं,
सतयुग में अपार सुख हैं । बोलो,
अपार
सुख हम बच्चों को बाप दे रहे हैं जो हम वर्णन कर रहे हैं । और
कोई ऐसे समझा न सके । तुम नई बातें सुनाते हो और कोई तो यह पूछ
न सके कि तुम स्वर्गवासी हो या नर्कवासी हो?
तुम
बच्चों में भी नम्बरवार हैं,
इतनी
प्याइंट्स याद नहीं कर सकते हैं,
समझाने समय देह- अभिमान आ जाता है । आत्मा ही सुनती वा धारण
करती है । परन्तु अच्छे- अच्छे महारथी भी यह भूल जाते हैं ।
देह- अभिमान में आकर बोलने लग पड़ते हैं,
ऐसे
सबका होता है । बाप तो कहते हैं सब पुरूषार्थी हैं । ऐसे नहीं
कि आत्मा समझ बात करते हैं । नहीं,
बाप
आत्मा समझ ज्ञान देते हैं । बाकी जो भाई- भाई हैं,
वह
पुरूषार्थ कर रहे हैं-ऐसी अवस्था में ठहरने का । तो बच्चों को
भी समझाना है,
कलियुग में अपार दु :ख हैं,
सतयुग में अपार सुख हैं । अभी संगमयुग चल रहा है । बाप रास्ता
बताते हैं,
ऐसे
नहीं बाप सुख देते हैं । सुख का रास्ता बताते हैं । रावण भी दु
:ख देते नहीं हैं,
दु
:ख का उल्टा रास्ता बताते हैं । बाप न दुःख देते हैं,
न
सुख देते हैं,
सुख
का रास्ता बताते हैं । फिर जो जितना पुरूषार्थ करेंगे उतना सुख
मिलेगा । सुख देते नहीं हैं । बाप की श्रीमत पर चलने से सुख
पाते हैं । बाप तो सिर्फ रास्ता बताते हैं,
रावण
से दु:ख का रास्ता मिलता है । अगर बाप देता हो तो फिर सबको एक
जैसा वर्सा मिलना चाहिए । जैसे लौकिक बाप भी वर्सा बांटते हैं
। यहाँ तो जो जैसा पुरूषार्थ करे । बाप रास्ता बहुत सहज बताते
हैं । ऐसे-ऐसे करेंगे तो इतना ऊंच पद पाएंगे । बच्चों को
पुरूषार्थ करना होता है-हम सबसे जास्ती पद पायें,
पढ़ना
है । ऐसे नहीं यह भल ऊंच पद पायें,
मैं
बैठा रहूँ । नहीं,
पुरूषार्थ फर्स्ट । ड्रामा अनुसार पुरूषार्थ जरूर करना होता है
। कोई तीव्र पुरूषार्थ करते हैं,
कोई
डल । सारा पुरूषार्थ पर मदार है । बाप ने तो रास्ता बताया
है-मुझे याद करो । जितना याद करेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे ।
ड्रामा पर छोड़ नहीं देना है । यह तो समझ की बात है ।
वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है । तो जरूर जो पार्ट
बजाया है वही बजाना पड़े । सब धर्म फिर से अपने समय पर आयेंगे ।
समझो क्रिस्चियन अब 100
करोड़ है फिर इतने ही पार्ट बजाने आयेंगे । न आत्मा विनाश होती,
न
उनका पार्ट कभी विनाश हो सकता है । यह समझने की बातें हैं । जो
समझते हैं तो समझायेंगे भी जरूर । धन दिये धन ना खुटे । धारणा
होती रहेगी,
औरों
को भी साहूकार बनाते रहेंगे लेकिन तकदीर में नहीं है तो फिर
अपने को भी बेवश समझते हैं । टीचर कहेंगे तुम बोल नहीं सकते तो
तुम्हारी तकदीर में पाई-पैसे का पद है । तकदीर में नहीं तो
तदबीर क्या कर सकते । यह है बेहद की पाठशाला । हर एक टीचर की
सब्जेक्ट अपनी होती है । बाप के पढ़ाने का तरीका बाप ही जाने और
तुम बच्चे जानो,
और
कोई नहीं जान सकते । तुम बच्चे कितनी कोशिश करते हो तो भी जब
कोई समझें । बुद्धि में बैठता ही नहीं है । जितना नजदीक होते
जायेंगे,
देखने में आता है होशियार होते जायेंगे । अब म्युजियम,
रूहानी कॉलेज आदि भी खोलते हैं । तुम्हारा तो नाम ही न्यारा है
रूहानी युनिवर्सिटी । गवर्मेन्ट भी देखेगी । बोलो तुम्हारी है
जिस्मानी युनिवर्सिटी,
यह
है रूहानी । रूह पढ़ती है । सारे 84 के चक्र में एक ही बार
रूहानी बाप आकर रूहानी बच्चों को पढ़ाते हैं । ड्रामा (फिल्म)
तुम देखेंगे फिर 3 घण्टे बाद हूबहू रिपीट होगा । यह भी 5 हजार
वर्ष का चक्र हूबहू रिपीट होता है । यह तुम बच्चे जानते हो ।
वह तो सिर्फ भक्ति में शास्त्रों को ही राइट समझते हैं । तुमको
तो कोई शास्त्र नहीं है । बाप बैठ समझाते हैं,
बाप
कोई शास्त्र पढ़ा है क्या?
वह
तो गीता पढ़कर सुनायेंगे । पढ़ा हुआ तो माँ के पेट से नहीं
निकलेगा । बेहद के बाप का पार्ट है पढ़ाने का । अपना परिचय देते
हैं । दुनिया को तो पता ही नहीं । गाते भी हैं-बाप ज्ञान का
सागर है । कृष्ण के लिए नहीं कहते ज्ञान का सागर है । यह
लक्ष्मी-नारायण ज्ञान सागर हैं क्या?
नहीं
। यही वन्डर है,
हम
ब्राह्मण ही यह ज्ञान सुनाते हैं श्रीमत पर । तुम समझाते हो इस
हिसाब से हम ब्राह्मण ही प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान ठहरे ।
अनेक बार बने थे,
फिर
होंगे । मनुष्यों की समझ में जब आयेगा तब मानेंगे । तुम जानते
हो कल्प-कल्प हम प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान एडोपटेड बच्चे
बनते हैं । जो समझते हैं वह निक्षयबुद्धि भी हो जाते हैं ।
ब्राह्मण बनने बिगर देवता कैसे बनेंगे । हर एक की बुद्धि पर है
। स्कूल में ऐसा होता है-कोई तो स्कॉलरशिप लेते,
कोई
फेल हो पड़ते हैं । फिर नयेसिर पढ़ना पड़े । बाप कहते हैं विकार
में गिरे तो की कमाई चट हुई,
फिर
बुद्धि में बैठेगा नहीं । अन्दर खाता रहेगा ।
तुम
समझते हो इस जन्म में जो पाप किये हैं,
उनका
तो सबको पता है । बाकी आगे जन्मों में क्या किया है वह तो याद
नहीं है । पाप किये जरूर हैं । जो पुण्य आत्मा थे वही फिर पाप
आत्मा बनते हैं । हिसाब-किताब बाप बैठ समझाते हैं । बहुत बच्चे
हैं,
भूल
जाते हैं,
पढ़ते
नहीं हैं । अगर पढ़ें तो जरूर पढ़ाये भी । कोई डल बुद्धि होशियार
बुद्धि बन जाते,
कितनी बड़ी पढ़ाई है । इस बाप की पढ़ाई से ही सूर्यवशी-चन्द्रवशी
घराना बनने का है । वह इस जन्म में ही पढ़कर और मर्तबा पा लेते
हैं । तुम तो जानते हो इस पढ़ाई का पद फिर नई दुनिया में मिलना
है । वह कोई दूर नहीं है । जैसे कपड़ा बदला जाता है ऐसे ही
पुरानी दुनिया को छोड़ जाना है नई दुनिया में । विनाश भी होगा
जरूर । अब तुम नई दुनिया के बन रहे हो । फिर यह पुराना चोला
छोड़ जाना है । नम्बरवार राजधानी स्थापन हो रही है,
जो
अच्छी रीति पके वही पहले स्वर्ग में आयेंगे । बाकी पीछे आयेंगे
। स्वर्ग में थोड़ेही आ सकेंगे । स्वर्ग में जो दास-दासियां
होंगे वह भी दिल पर चढ़े हुए होंगे । ऐसे नहीं कि सब आ जायेंगे
। अब रूहानी कॉलेज आदि खोलते रहते हैं,
सब
आकर पुरूषार्थ करेंगे । जो पढ़ाई में ऊंचे तीखे जायेंगे,
वह
ऊंच पद पायेंगे । डल बुद्धि कम पद पायेंगे । हो सकता है,
आगे
चल डल बुद्धि भी अच्छा पुरूषार्थ करने लग पड़े । कोई समझदार
बुद्धि नीचे भी चले जाते हैं । पुरूषार्थ से समझा जाता है । यह
सारा ड्रामा चल रहा है । आत्मा शरीर धारण कर यहाँ पार्ट बजाती
है,
नया
चोला धारण कर नया पार्ट बजाती है । कब क्या,
कब
क्या बनती है । संस्कार आत्मा में होते हैं । ज्ञान बाहर में
ज़रा भी किसी के पास नहीं है । बाप जब आकर पढ़ायें तब ही ज्ञान
मिले । टीचर ही नहीं तो ज्ञान कहाँ से आये । वह हैं भक्त ।
भक्ति में अपार दु :ख हैं,
मीरा
को भल साक्षात्कार हुआ परन्तु सुख थोड़ेही था । क्या बीमार नहीं
पड़ी होगी । वहाँ तो कोई प्रकार के दु :ख की बात होती ही नहीं ।
यहाँ अपार दु :ख हैं,
वहाँ
अपार सुख हैं । यहाँ सब दु :खी होते हैं,
राजाओं को भी दुःख है ना,
नाम
ही है दुःखधाम । वह है सुखधाम । सम्पूर्ण दुःख और सम्पूर्ण सुख
का यह है संगमयुग । सतयुग में सम्पूर्ण सुख,
कलियुग में सम्पूर्ण दु :ख । दुःख की जो वैराइटी है सब वृद्धि
को पाती रहती है । आगे चल कितना दु :ख होता रहेगा । अथाह दुःख
के पहाड़ गिरेंगे ।
वह
लोग तो तुम्हें बोलने का टाइम बहुत थोड़ा देते हैं । दो मिनट
देवे तो भी समझाओ,
सतयुग में अपार सुख थे जो बाप देते हैं । रावण से अपार दुःख
मिलते हैं । अब बाप कहते हैं काम पर जीत पहनो तो जगत जीत
बनेंगे । इस ज्ञान का विनाश नहीं होता है । थोड़ा भी सुना तो
स्वर्ग में आयेंगे । प्रजा तो बहुत बनती है । कहाँ राजा,
कहाँ
रंक । हर एक की बुद्धि अपनी- अपनी है । जो समझकर औरों को
समझाते हैं,
वही
अच्छा पद पाते हैं । यह स्कूल भी मोस्ट अनकॉमन है । भगवान् आकर
पढ़ाते हैं । श्रीकृष्ण तो फिर भी दैवी गुणों वाला देवता है ।
बाप कहते हैं मैं दैवी गुणों और आसुरी गुणों से न्यारा हूँ ।
मैं तुम्हारा बाप आता हूँ पढ़ाने । रूहानी नॉलेज सुप्रीम रूह ही
देता है । गीता का ज्ञान कोई देहधारी मनुष्य वा देवता ने नहीं
दिया । विष्णु देवता नम : कहते,
तो
कृष्ण कौन?
देवता कृष्ण ही विष्णु है-यह कोई जानते नहीं । तुम्हारे में भी
भूल जाते हैं । खुद पूरा समझा हुआ हो तो औरों को भी समझाये ।
सर्विस करके सबूत ले आये तब समझें कि सर्विस की इसलिए बाबा
कहते हैं लम्बे-चौड़े समाचार न लिखो,
वह
फलाना आने वाला है,
ऐसे
कहकर गया है...... यह लिखने की दरकार नहीं है । कम लिखना होता
है । देखो,
आया,
ठहरता है?
समझकर और सर्विस करने लगे तब समाचार लिखो । कोई-कोई शो करके
समाचार देते हैं । बाबा को हर बात की रिजल्ट चाहिए । ऐसे तो
बहुत आते हैं बाबा के पास,
फिर
चले जाते हैं,
उनसे
क्या फायदा । उनको बाबा क्या करे । न उन्हें फायदा,
न
तुम्हें । तुम्हारे मिशन की वृद्धि तो हुई नहीं । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
किसी भी
बात में बेवश नहीं होना है । स्वयं में ज्ञान को धारण कर दान
करना है । औरों की भी तकदीर जगानी है ।
2.
किसी से भी बात करते समय स्वयं को आत्मा समझ आत्मा से बात करनी
है । जरा भी देह- अभिमान न आये । बाप से जो अपार सुख मिले हैं,
वो दूसरों को बाँटने हैं ।
वरदान:-
नॉलेज की लाइट माइट से रांग को राइट में परिवर्तन करने वाले
ज्ञानी तू आत्मा भव
!
कहा
जाता है नॉलेज इज लाइट,
माइट
। जहाँ लाइट अर्थात् रोशनी है कि ये रांग है,
ये
राइट है,
ये
अंधकार है,
ये
प्रकाश है,
ये
व्यर्थ है,
यह
समर्थ है - तो रांग समझने वाले रांग कर्मों वा संकल्पों के
वशीभूत हो नहीं सकते । ज्ञानी तू आत्मा अर्थात् समझदार,
ज्ञान स्वरूप,
कभी
यह नहीं कह सकते कि ऐसा होना तो चाहिए...... लेकिन उनके पास
रांग को राइट में परिवर्तन करने की शक्ति होती है ।
स्लोगन:-
जो सदा शुभ-चिन्तक और शुभ-चिन्तन में रहते हैं वह व्यर्थ
चिन्तन से छूट जाते हैं ।
ओम्
शान्ति
|