“ज्ञान
चन्द्रमा और ज्ञान सितारों की रिमझिम”
बाप-दादा
सभी लवली और लकी बच्चों को देखते हुए हर्षित हो रहे हैं | हरेक
के मस्तक पर तक़दीर का सितारा चमकता हुआ देख रहे हैं | साकारी
सृष्टि की आत्मायें आकाश की तरफ़ देखती हैं और आकाश से भी परे
रहने वाला बाप साकारी सृष्टि में धरती के सितारे देखने आये हैं
| जैसे चन्द्रमा के साथ सितारों की रिमझिम अति सुन्दर लगती है
वैसे ही ब्रह्मा चन्द्रमा, बच्चे अर्थात् सितारों से ही सजते
हैं | माँ का स्नेह बच्चों से ज़्यादा होता है या बच्चों का माँ
से ज़्यादा होता है? बच्चे खेल में बिज़ी होते हैं तो माँ को भूल
जाते हैं | माता की ममता बच्चों को याद दिलाती है | ऐसे भी अगर
स्नेह नहीं होता तो बच्चों को प्राप्ति भी नहीं होती |
आज
अमृत वेले विशेष इस समय के मधुबन की संगठित आत्मायें बाप की
याद के साथ-साथ ब्रह्मा माँ की याद में ज़्यादा थीं | आज वतन
में भी बाप सूर्य गुप्त थे लेकिन चन्द्रमा अर्थात् ब्रह्मा-बड़ी
माँ ब्राह्मण बच्चों या सितारों के साथ मिलन मनाने में लवलीन
थे | आज वतन में क्या दृश्य था? मात-पिता और बच्चों की
रूहरिहान सदा चलती है लेकिन आज थी माता-पिता की | क्या
रूहरिहान होगी, जानते हो?
आज
अमृतवेले ब्रह्मा ब्राह्मणों के स्नेह में विशेष थे क्योंकि
मधुबन जो ब्रह्मा की साकार रूप में कर्म-भूमि, सेवा-भूमि या
माँ और बाप दोनों रूप में साकार रूप में बच्चों की मिलन-भूमि
है, ऐसे स्वयं द्वारा तन और मन द्वारा सजाई हुई ऐसी भूमि पर
रिमझिम देख आज ब्रह्मा बाप या माँ को साकार रूप में साकार
सृष्टि की विशेष याद आई | ब्रह्मा बोले “चन्द्रमा का सितारों
से एक-समान रूप के मिलन में अब तक कितना समय है?” अर्थात्
व्यक्त और अव्यक्त रूप का मिलन कब तक? उत्तर क्या मिला होगा
?बाप
बोले ‘ “जब माँ कहेगी कि सब एवररेडी हैं” इसलिए ब्रह्मा माँ
परिक्रमा लगाने निकली | चारों और का चक्कर लगाते हर ब्राह्मण
की रूहानियत देखते रहे | चक्कर लगाने के बाद वतन में जब
रूहरिहान हुई तो ब्रह्मा बोले – “मेरे बच्चे लक्ष्य में नम्बर
वन हैं सबके अन्दर समय का इन्तज़ार है, समय पर तैयार हो ही
जायेंगे |” बाप बोले – “राजधानी तैयार हो गई है?” ब्रह्मा आज
ब्राह्मण बच्चों का तरफ़ ले रहे थे | ब्रह्मा बोले 16108 की
माला तो तैयार हुई ही पड़ी है | ब्राह्मणों की संख्या कितनी
बताते हो? क्या 50 हज़ार से 16108 नहीं निकलेंगे? मणके तैयार
हैं लेकिन नम्बरवार पिरोने के लिए लास्ट सेकण्ड भी अभी रहा हुआ
है | मणके फिक्स हो गये हैं, जगह फिक्स नहीं हुई है | जगह में
लास्ट से फ़ास्ट हो सकते हैं | आज ब्रह्मा ने 16108 मणकों
अर्थात् सभी सहयोगी आत्माओं के तक़दीर की लकीर फाइनल कर दी | इस
कारण भाग्य विधाता, भाग्य बाँटने वाला ब्रह्मा को ही कहते हैं
और यादगार रूप में भी जन्मपत्री, जन्मदिवस पर या नाम संस्कार
पर ब्राह्मण ही जन्म-पत्री बनाते हैं | तो ब्रह्मा माँ ने
16108 मणकों की निश्चित तक़दीर सुनाई | आप सब तो उसमें हो ना!
आज
विशेष ब्रह्मा द्वारा विदेशी या देशी दोनों तरफ़ के बच्चों की
महिमा के गुणगान हो रहे थे | जैसे आदि में आये हुए बच्चों के
भाग्य की महिमा है, वैसे ही अव्यक्त रूप में पालना लेने वाले
नये बच्चों की भी इतनी महिमा है | जैसे आदि में कोई प्रैक्टिकल
जीवन का प्रभाव नहीं था सिर्फ़ एक बाप का स्नेह ही प्रमाण था |
भविष्य क्या होना है – यह कुछ स्पष्ट नहीं था, गुप्त था |
लेकिन आत्मायें शमा पर पूरे पतंगे थी | ऐसे ही नये बच्चों के
आगे अनेक जीवन के प्रमाण हैं | आदि मध्य अन्त स्पष्ट हैं | 84
जन्मों की जन्म-पत्री स्पष्ट है | पुरुषार्थ और प्रारब्ध दोनों
ही स्पष्ट हैं लेकिन बाप अव्यक्त हैं | बाप की पालना अव्यक्त
रूप में होते हुए भी व्यक्त रूप का अनुभव कराती है | अव्यक्त
को व्यक्त अनुभव करना, समीप और साथ का अनुभव करना – यह कमाल
नये बच्चों की है | जैसे आदि में बच्चों की कमाल है वैसे ही
लास्ट सो फ़ास्ट जाने वालों की भी कमाल है | ऐसी कमाल के गुणगान
कर रहे थे | सुना आज की रूहरिहान |
उल्ह्नों की मालायें भी खूब थी, वह उल्ह्नों की मालायें,
ब्रह्मा को स्नेह रूप बना रही थी | सुनाया ना, कि आज ब्रह्मा
विशेष बच्चों के स्नेह में समाये हुए थे | स्नेह की मूर्ति
होते हुए भी ड्रामा की सीट पर सेट थे इसलिए स्नेह को समा रहे
थे | आप लोग भी सागर के बच्चे समाने वाले हो ना | दिखा भी सकते
हो और समा भी सकते हो | मर्ज और इमर्ज करना अच्छी तरह से जानते
हो ना क्योंकि हो ही हीरो एक्टर | जब चाहें, जैसे चाहें वैसा
रूप धारण कर सकते हो अर्थात् पार्ट बजा सकते हो | अच्छा-
ऐसे
सदा स्नेही, सव शक्तियों से सम्पन्न, सदा अति प्यारे और अति
न्यारे, सदैव अपने तक़दीर के चमकते हुए सितारे को देखने वाले,
सर्वश्रेष्ठ तक़दीरवान, वर्तमान और भविष्य तख़्तनशीन, ऐसे पदमपति
सेकेण्ड में स्वयं को या सर्व को परिवर्तन करने वाले
विश्व-कल्याणकारी बच्चों को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते |
दादियों से मुलाकात : -
आज
अमृतवेले ब्रह्मा ने जो विशेष आत्माओं की तक़दीर की लकीर फाइनल
की थी, उसमें फाइनल कौन से रत्न होंगे? 8 रत्न फाइनल हुए
होंगे? माँ-बाप के पास तो निश्चित हैं ही | बाकी है स्टेज पर
प्रसिद्ध करना | बाप के पास 108 ही निश्चित हैं क्यों? बाप के
पास भविष्य भी ऐसा ही क्लीयर है जैसे वर्तमान | अनन्य बच्चों
के पास भी भविष्य ऐसा ही स्पष्ट होता जा रहा है क्योंकि बाप के
साथ सर्व कार्य में समीप और सहयोगी हैं तो अष्ट रत्न चीफ
जस्टिस हैं | जस्टिस की जजमेण्ट हाँ या ना की फाइनल होती है |
बाप प्रेज़ीडेन्ट है लेकिन बच्चे चीफ जस्टिस हैं
|
जजमेंट बच्चों की है | चीफ जस्टिस की
जजमेंट सदा यथार्थ होती है |
जस्टिस के ऊपर चीफ जस्टिस हाँ या ना कर सकते हैं लेकिन चीफ
जस्टिस के जजमेण्ट की बहुत वैल्यु होती है इसलिए जब तक भविष्य
भी वर्तमान के समान स्पष्ट न हो तो जजमेण्ट यथार्थ कैसे दे
सकेंगे? वर्तमान और भविष्य की समानता इसी को ही बाप की समानता
कहा जाता है | ऐसी स्टेज (अवस्था) अनुभव में लाई है?
आज
साकारी रूप में याद किया था या अव्यक्त रूप में? सितारों को
देख चन्द्रमा याद आता है ना इसलिए आज ब्रह्मा ने भी याद किया |
अच्छा |
पार्टियों से मुलाकात
गुजरात पार्टी:- गुजरात को विशेष लास्ट सो फ़ास्ट जाने का वरदान
मिला हुआ है | गुजरात वालों को यह नशा रहता है कि ड्रामा
अनुसार हम आत्माओं को विशेष भाग्य प्राप्त है | जैसे स्थान के
हिसाब से गुजरात मधुबन के भी समीप है ऐसे ही पुरुषार्थ में
समीपता लाने का स्वतः वरदान भी ड्रामा अनुसार प्राप्त है
क्योंकि जैसे स्थान के हिसाब से समीप हो वैसे ज्ञान की धारणा
के हिसाब से धारणा योग्य धरती है | जैसे धरती अच्छी होती है तो
फल जल्दी निकलता है | मेहनत कम और फल ज़्यादा निकलता है | तो
गुजरात को धरनी का और समीप होने का वरदान है | ऐसी वरदानी
आत्माएं पुरुषार्थ में कितनी तेज़ होंगी? धारणा की सब्जेक्ट में
गुजरात देश के निवासियों को लिफ्ट है | कलियुगी दुनिया के
हिसाब से अति तमोप्रधान के हिसाब से फिर भी अच्छी कहेंगे इसलिए
गुजरात को अपने दोनों वरदानों की लिफ्ट के आधार से फर्स्ट में
पहुँचना चाहिए | वरदानों का लाभ लो तो हर मुश्किल बात सहज
अनुभव करेंगे | देखने में अति मुश्किल होगी लेकिन अति सहज रीति
से हल हो जायेगा | इसको कहा जाता है पहाड़ भी रुई समान बन जाता
है | राई फिर भी सख्त होती है, रुई नर्म और हलकी होती है | तो
ऐसे अनुभव करते हो? अच्छा |
सेवाधारियों ने सेवा का पार्ट तो बजाया | सेवाधारी की विशेषता
कौन सी होती है, जिसे सब देख कहें कि यह सबसे फर्स्ट क्लास
सेवाधारी है? सेवा करने में भी नम्बरवार होते हैं | नम्बरवन
सेवाधारी की विशेषता क्या होगी? फर्स्ट क्लास सेवाधारी की
विशेषता यही दिखाई देगी, जो सेवा करते भी सेवा द्वारा बाप के
गुणों और कर्तव्य को प्रसिद्ध करे – सिर्फ़ कर्मणा सर्विस नहीं
| चाहे स्थूल कर रहे हो, लेकिन हर कर्म द्वारा, हर क़दम द्वारा
बाप के गुण और कर्तव्य को प्रसिद्ध करे | यह है फर्स्ट क्लास
सेवा | सेवा करते हुई भी मास्टर ज्ञान सागर, सुख का सागर,
शान्ति का सागर अनुभव हो | तो ऐसा लक्ष्य रखा या सिर्फ़ कर्मणा
में अथक बनने का लक्ष्य रखा? फर्स्टक्लास सेवाधारी अर्थात् एक
समय में तीनों प्रकार की सेवा करने वाले | मूर्त द्वारा भी,
मन्सा द्वारा भी और कर्म द्वारा भी | मूर्त से अलौकिक सेवाधारी
की झलक अर्थात् फ़रिश्तेपन की झलक दिखाई दे और मन्सा अपने
श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा सेवा करे – ऐसे एक ही समय में तीन
सेवाएँ इकट्ठी हों – इसको कहा जाता है फर्स्ट क्लास सेवाधारी |
सेवा करना यह एक गुण हुआ, लेकिन मास्टर सर्व गुण के सागर रहना
– यह विशेषता है जो और कहाँ हो नहीं सकती | अथक तो सब बन सकते,
लेकिन ऑलराउन्ड सेवाधारी, एक समय में तीन प्रकार के सेवाधारी
नहीं मिलेंगे | तो जो ब्राह्मणों की विशेषता है वह लक्ष्य रख
लक्षण द्वारा दिखाना |
अभी
विशेष काम क्या करेंगे? सुनाया था ना कि याद की यात्रा का, हर
प्राप्ति का और भी अन्तर्मुख हो, अति सूक्ष्म और गुह्य ते
गुह्य अनुभव करो, रिसर्च करो, संकल्प करो और फिर उसका परिणाम
देखो, सिद्धि देखो – जो संकल्प किया वह सिद्ध हुआ या नहीं? जो
शक्ति धारण की उस शक्ति की प्रैक्टिकल रिज़ल्ट कितने परसेन्ट
रही? अभी अनुभवों के गुह्यता की प्रयोगशाला में रहना | ऐसे
महसूस हो जैसे यह सब कोई विशेष लगन में मगन इस संसार से उपराम
हैं | कर्म और योग का बैलेन्स और आगे बढ़ाओ | कर्म करते योग की
पॉवरफुल स्टेज रहे – इसका अभ्यास बढ़ाओ | बैलेन्स रहना अर्थात्
तीव्र गति | बैलेन्स न होने के कारण चलते-चलते तीव्र गति की
बजाए साधारण गति हो जाती है | तो अभी जैसे सेवा के लिए
इनवेन्शन करते वैसे इन विशेष अनुभवों के अभ्यास के लिए समय
निकालो और नवीनता ला करके सबके आगे एग्जाम्पुल बनो | अभी वर्णन
सब करते योग अर्थात् याद, योग अर्थात् कनेक्शन | लेकिन कनेक्शन
की प्रैक्टिकल रूप, प्रमाण क्या है, प्राप्ति क्या है. उसकी
महीनता में जाओ | मोटे रूप में नहीं, लेकिन रूहानियत की
गुह्यता में जाओ तब फ़रिश्ता रूप प्रत्यक्ष होगा | प्रत्यक्षता
का साधन ही है स्वयं में पहले सर्व अनुभव प्रत्यक्ष हों | जैसे
विदेश की सेवा में भी रिज़ल्ट क्या होगी? प्रभाव किसका पड़ता?
दृष्टि का और रूहानियत की शक्ति का, चाहे भाषा ना समझे लेकिन
जो छाप लगती है वह फ़रिश्तेपन की, सूरत और नयनों द्वारा रूहानी
दृष्टि की | रिज़ल्ट में यही देखना ना | तो अन्त में न समय
होगा, न इतनी शक्ति रहेगी | चलते-चलते बोलने की शक्ति भी कम
होती जायेगी | लेकिन जो वाणी कर्म करती है उससे कई गुणा अधिक
रूहानियत की शक्ति कार्य कर सकती है | जैसे वाणी में आने का
अभ्यास हो गया है, वैसे रूहानियत का अभ्यास हो जायेगा तो वाणी
में आने का दिल नहीं होगा | अच्छा |
वरदान:-
साक्षी हो कर्मेन्द्रियों से कर्म कराने वाले कर्तापन के भान
से मुक्त, अशरीरी भव
जब
चाहो शरीर में आओ और जब चाहो अशरीरी बन जाओ | कोई कर्म करना है
तो कर्मेन्द्रियों का आधार लो लेकिन आधार लेने वाली मैं आत्मा
हूँ, यह नहीं भूले, करने वाली नहीं हूँ, कराने वाली हूँ | जैसे
दूसरों से काम कराते हो तो उस समय अपने को अलग समझते हो, वैसे
साक्षी हो कर्मेन्द्रियों से कर्म कराओ, तो कर्तापन के भान से
मुक्त, अशरीरी बन जायेंगे | कर्म के बीच-बीच में एक दो मिनट भी
अशरीरी होने का अभ्यास करो तो लास्ट समय में बहुत मदद मिलेगी |
स्लोगन:-
विश्व
राजन बनना है तो विश्व को सकाश देने वाले बनो
|
ओम्
शान्ति
|