24-12-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - विनाश के पहले सबको बाप का परिचय देना है, धारणा कर दूसरों को समझाओ तय ऊंच पद मिल सकेगा”   


प्रश्न:-   
राजयोगी स्टूडेंट्स को बाप का डायरेक्शन क्या है?


उत्तर:-

तुम्हें डायरेक्शन है कि एक बाप का बनकर फिर औरों से दिल नहीं लगानी है । प्रतिज्ञा कर फिर पतित नहीं बनना है । तुम ऐसा सम्पूर्ण पावन बन जाओ जो बाप और टीचर की याद स्वत: निरन्तर बनी रहे । एक बाप से ही प्यार करो, उसे ही याद करो तो तुम्हें बहुत ताकत मिलती रहेगी ।

 

ओम् शान्ति |

रूहानी बाप बैठ समझाते हैं । समझाते तब हैं जबकि यह शरीर है । सन्मुख ही समझाना होता है । जो सम्मुख समझाया जाता है वह फिर लिखत के द्वारा सबके पास जाता है । तुम यहाँ आते हो सम्मुख सुनने के लिए । बेहद का बाप आत्माओं को सुनाते हैं । आत्मा ही सुनती है । सब कुछ आत्मा ही करती है-इस शरीर द्वारा इसलिए पहले-पहले अपने को आत्मा जरूर समझना है । गायन है आत्मायें-परमात्मा अलग रहे बहुकाल । सबसे पहले-पहले बाप से कौन बिछुड़कर आते हैं यहाँ पार्ट बजाने? तुमसे पूछेंगे कितना समय तुम बाप से अलग रहे हो? तो तुम कहेंगे 5 हजार वर्ष । पूरा हिसाब है ना । यह तो तुम बच्चों को पता है कैसे नम्बरवार आते हैं । बाप जो ऊपर में थे वह भी अभी नीचे आ गये हैं - तुम सबकी बैटरी चार्ज करने । अभी बाप को याद करना है । अभी तो बाप सम्मुख है ना । भक्ति मार्ग में तो बाप के आक्यूपेशन का पता ही नहीं है । नाम, रूप, देश, काल को जानते ही नहीं । तुमको तो नाम, रूप, देश, काल का सब पता है । तुम जानते हो इस रथ द्वारा बाप हमको सब राज समझाते हैं । रचता और रचना के आदि, मध्य, अन्त का राज़ समझाया है । यह कितना सूक्ष्म है । इस मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ का बीजरूप बाप ही है । वह यहाँ आते जरूर हैं । नई दुनिया स्थापन करना उनका ही काम है । ऐसे नहीं कि वहाँ बैठे स्थापना करते हैं । तुम बच्चे जानते हो बाबा इस तन द्वारा हमको सम्मुख समझा रहे हैं । यह भी बाप का प्यार करना हुआ ना । और कोई को भी उनकी बायोग्राफी का पता नहीं है । गीता है आदि सनातन देवी- देवता धर्म का शास्त्र । यह भी तुम जानते हो-इस ज्ञान के बाद है विनाश । विनाश जरूर होना है । और जो भी धर्म स्थापक आते हैं, उनके आने पर विनाश नहीं होता है । विनाश का टाइम ही यह है, इसलिए तुमको जो ज्ञान मिलता है वह फिर खलास हो जाता है । तुम बच्चों की बुद्धि में यह सब बातें हैं । तुम रचता और रचना को जान गये हो । हैं दोनों अनादि जो चलते आते हैं । बाप का पार्ट ही है संगम पर आने का । भक्ति आधाकल्प चलती है, ज्ञान नहीं चलता है । ज्ञान का वर्सा आधाकल्प के लिए मिलता है । ज्ञान तो एक ही बार सिर्फ संगम पर मिलता है । यह क्लास तुम्हारा एक ही बार चलता है । यह बातें अच्छी रीति समझ कर फिर औरों को समझाना भी है । पद का सारा मदार है सर्विस करने पर । तुम जानते हो पुरूषार्थ कर अब नई दुनिया में जाना है । धारणा कर और दूसरों को समझाना-इस पर ही तुम्हारा पद है । विनाश होने के पहले सबको बाप का परिचय देना है और रचना के आदि, मध्य, अन्त का परिचय देना है । तुम भी बाप को याद करते हो कि जन्म-जन्मान्तर के पाप कट जाएं । जब तक बाप पढ़ाते रहते हैं, याद जरूर करना है । पढ़ाने वाले के साथ योग तो रहेगा ना । टीचर पढ़ाते हैं तो उनके साथ योग रहता है । योग बिगर पढ़ेंगे कैसे? योग अर्थात् पढ़ाने वाले की याद । यह बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है । तीनों रूप में पूरा याद करना पड़ता है । यह सतगुरू तुम्हें एक ही बार मिलता है । ज्ञान से सद्गति मिली, बस फिर गुरू की रस्म ही खत्म । बाप, टीचर की रस्म चलती है, गुरू की रस्म खत्म हो जाती है । सद्गति मिल गई ना । निर्वाणधाम में तुम प्रैक्टिकल में जाते हो फिर अपने समय पर पार्ट बजाने आयेंगे । मुक्ति-जीवनमुक्ति दोनों तुमको मिल जाती है । मुक्ति भी जरूर मिलती है । थोड़े समय के लिए घर जाकर रहेंगे । यहाँ तो शरीर से पार्ट बजाना पड़ता है । पिछाड़ी में सब पार्टधारी आ जायेंगे । नाटक जब पूरा होता है तो सब एक्टर्स स्टेज पर आ जाते हैं । अभी भी सब एक्टर्स स्टेज पर आकर इकट्ठे हुए हैं । कितना घोर घमसान है । सतयुग आदि में इतना घोर घमसान नहीं था । अभी तो कितनी अशान्ति है । तो अब जैसे बाप को सृष्टि चक्र की नॉलेज है तो बच्चों को भी नॉलेज है । बीज को नॉलेज है ना-हमारा झाड़ कैसे वृद्धि को पाकर फिर खत्म होता है । अभी तुम बैठे हो नई दुनिया की सैपलिंग लगाने अथवा आदि सनातन देवी-देवता धर्म का सैपलिंग लगाने । तुमको पता है इन लक्ष्मी-नारायण ने राज्य कैसे पाया? तुम जानते हो हम अभी नई दुनिया का प्रिन्स बनेंगे । उस दुनिया में रहने वाले सब अपने को मालिक ही कहेंगे ना । जैसे अभी भी सब कहते हैं भारत हमारा देश है । तुम समझते हो अभी हम संगम पर खड़े हैं, शिवालय में जाने वाले हैं । बस, अभी गये कि गये । हम जाकर शिवालय के मालिक बनेंगे । तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट ही यह है । यथा राजा रानी तथा प्रजा, सब शिवालय के मालिक बन जाते हैं । बाकी राजधानी में भिन्न-भिन्न स्टेट्स तो होते ही हैं । वहाँ वजीर तो कोई होता ही नहीं । वजीर तब होते हैं जब पतित बनते हैं । लक्ष्मी- नारायण वा राम-सीता का वजीर नहीं सुना होगा क्योंकि वह खुद सतोप्रधान पावन बुद्धि वाले हैं । फिर जब पतित बनते हैं तब राजा-रानी एक वजीर रखते हैं राय लेने के लिए । अभी तो देखो अनेकानेक वजीर हैं ।

तुम बच्चे जानते हो यह बहुत मजे का खेल है । खेल हमेशा मजे का ही होता है । सुख भी होता है, दुःख भी होता है । इस बेहद के खेल को तुम बच्चे ही जानते हो । इसमें रोने-पीटने आदि की बात ही नहीं । गाते भी हैं बीती सो बीती देखो......बनी-बनाई बन रही । यह नाटक तुम्हारी बुद्धि में हैं । हम इनके एक्टर्स हैं । हमारे 84 जन्मों का पार्ट एक्यूरेट अविनाशी है । जो जिस जन्म में जो एक्ट करते आये हैं वही करते रहेंगे । आज से 5 हजार वर्ष पहले भी तुमको यही कहा था कि अपने को आत्मा समझो । गीता में भी अक्षर हैं । तुम जानते हो बरोबर आदि सनातन देवी-देवता धर्म जब स्थापन हुआ था तो बाप ने कहा था देह के सब धर्म छोड़ अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो । मन्मनाभव का अर्थ तो बाप ने अच्छी रीति समझाया है । भाषा भी यही है । यहाँ देखो कितनी ढेर भाषायें हैं । भाषाओं पर भी कितना हंगामा है । भाषा बिगर तो काम चल न सके । ऐसी-ऐसी भाषाये सीखकर आते हैं जो मदर लैंगवेज खलास हो जाती हैं । जो जास्ती भाषायें सीखते हैं उनको इनाम मिलता है । जितने धर्म, उतनी भाषायें होंगी । वहाँ तो तुम जानते हो अपनी ही राजाई होगी । भाषा भी एक होगी । यहाँ तो 100 माइल पर एक भाषा है । वहाँ तो एक ही भाषा होती है । यह सब बातें बाप बैठ समझाते हैं तो उस बाप को ही याद करते रहो । शिवबाबा समझाते हैं ब्रह्मा द्वारा । रथ तो जरूर चाहिए ना । शिवबाबा हमारा बाप है । बाबा कहते हैं मेरे तो बेहद के बच्चे हैं । बाबा इन द्वारा पढ़ाते हैं ना । टीचर को कभी गले से थोड़ेही लगाते हैं | बाप तो तुमको पढ़ाने आये हैं । राजयोग सिखलाते हैं तो टीचर ठहरा ना । तुम स्टूडेंट हो । स्टूडेंट कभी टीचर को भाकी पहनते हैं क्या? एक बाप का बनकर फिर औरों से दिल नहीं लगानी है ।

बाप कहते हैं मैं तुमको राजयोग सिखलाने आया हूँ ना । तुम शरीरधारी, हम अशरीरी ऊपर में रहने वाले । कहते हो-बाबा, पावन बनाने आओ तो गोया तुम पतित हो ना? फिर मेरे को भाकी कैसे पहन सकते? प्रतिज्ञा कर फिर पतित बन जाते हैं । जब एकदम पावन बन जायेंगे, पिछाड़ी में फिर याद में भी रहेंगे, टीचर को, गुरू को याद करते रहेंगे । अभी तो छी-छी बन गिर पड़ते हैं, और ही सौ गुणा दण्ड पड़ जाता है । यह तो बीच में दलाल के रूप में मिला है, उनको याद करना है । बाबा कहते हैं मैं भी उनका मुरब्बी बच्चा हूँ । फिर मैं कहाँ भाकी पहन सकता हूँ! तुम फिर भी इस शरीर द्वारा मिलते हो । मैं उनको कैसे भाकी पहनूँ? बाप तो कहते हैं - बच्चे, तुम एक बाप को ही याद करो, प्यार करो । याद से पॉवर बहुत मिलती है । बाप सर्वशक्तिमान् है । बाप से ही तुमको इतनी पॉवर मिलती है । तुम कितने बलवान बनते हो । तुम्हारी राजधानी पर कोई जीत पहन न सके । रावण राज्य ही खत्म हो जाता है । दु :ख देने वाला कोई रहता ही नहीं । उनको सुखधाम कहा जाता है । रावण सारे विश्व में सबको दु :ख देने वाला है । जानवर भी दुःखी होते हैं । वहाँ तो जानवर भी आपस में प्रेम से रहते हैं । यहाँ तो प्रेम है नहीं ।

तुम बच्चे जानते हो यह ड्रामा कैसे फिरता है । इसके आदि-मध्य- अन्त का राज बाप ही समझाते हैं । कोई अच्छी रीति पढ़ते हैं, कोई कम पढ़ते हैं । पढ़ते तो सब हैं ना । सारी दुनिया भी पढ़ेगी अर्थात् बाप को याद करेगी । बाप को याद करना - यह भी पढ़ाई है ना । उस बाप को सब याद करते हैं, वह सर्व का सद्गति दाता, सबको सुख देने वाला है । कहते भी हैं आकर पावन बनाओ तो जरूर पतित ठहरे । वह तो आते ही हैं विकारियों को निर्विकारी बनाने । पुकारते भी हैं कि हे अल्लाह, आकर हमको पावन बनाओ । उनका यही धंधा है, इसलिए बुलाते हैं । तुम्हारी भाषा भी करेक्ट होनी चाहिए । वो लोग कहते हैं अल्लाह, वह कहते हैं गॉड । गॉड फादर भी कहते हैं । पिछाड़ी वालों की बुद्धि फिर भी अच्छी रहती है । इतना दुःख नहीं उठाते । तो अब तुम सम्मुख बैठे हो, क्या करते हो? बाबा को इस भ्रकुटी में देखते हो । बाबा फिर तुम्हारी भ्रकुटी में देखते हैं । जिसमें मैं प्रवेश करता हूँ, उनको देख सकता हूँ? वह तो बाजू में बैठा है, यह बड़ी समझने की बात है । मैं इनके बाजू में बैठा हुआ हूँ । यह भी समझता है, हमारे बाजू में बैठा है । तुम कहेंगे हम सामने दो को देखते हैं | बाप और दादा दोनों आत्मा को देखते हो । तुम्हारे में ज्ञान है-बापदादा किसको कहते हैं? आत्मा सामने बैठी है । भक्ति मार्ग में तो आँख बन्द कर बैठ सुनते हैं । पढ़ाई कोई ऐसे थोड़ेही होती है । टीचर को तो देखना पड़े ना । यह तो बाप भी है, टीचर भी है तो सामने देखना होता है । सामने बैठे और आंखें बन्द हो.... झुटका खाते रहें, ऐसी पढ़ाई तो होती नहीं । स्टूडेंट टीचर को जरूर देखता रहेगा । नहीं तो टीचर कहेंगे यह तो झुटका खाते रहते हैं । यह कोई भाग पीकर आये हैं । तुम्हारी बुद्धि में हैं बाबा इस तन में हैं । मैं बाबा को देखता हूँ । बाप समझाते हैं यह क्लास कॉमन नहीं है - जो कोई आँखें बन्दकर बैठे । स्कूल में कभी कोई आँखें बन्द करके बैठते हैं क्या? और सतसंगों को स्कूल नहीं कहा जाता है । भल गीता बैठ सुनाते हैं परन्तु उसको स्कूल नहीं कहा जाता । वह कोई बाप थोड़ेही है जिसको देखे । कोई-कोई शिव के भक्त होते हैं तो शिव को ही याद करते हैं, कान से कथा सुनते रहते । शिव की भक्ति करने वालों को शिव को ही याद करना पड़े । कोई भी सतसंग में प्रश्न-उत्तर आदि नहीं होता है । यहाँ होता है । यहाँ तुम्हारी आमदनी बहुत है । आमदनी में कभी उबासी नहीं आ सकती । धन मिलता है ना तो खुशी होती है । उबासी, गुम की निशानी है । बीमार होगा वा देवाला निकला होगा तो उबासी आती रहेगी । पैसा मिलता रहेगा तो कभी उबासी नहीं आयेगी । बाबा व्यापारी भी है | रात को स्टीमर आते थे तो रात को जागना पड़ता था । कोई-कोई बेगम रात को आती है तो सिर्फ फीमेल के लिए ही खुला रहता है । बाबा भी कहते हैं प्रदर्शनी आदि में फीमेल्स के लिए खास दिन रखो तो बहुत आयेंगी । पर्देनशीन भी आयेंगी । बहुएं पर्देनशीन रहती हैं । मोटर में भी पर्दा रहता है । यहाँ तो आत्मा की बात है । ज्ञान मिल गया तो पर्दा भी खुल जायेगा । सतयुग में पर्दा आदि होता नहीं । यह तो प्रवृत्ति मार्ग का ज्ञान है ना । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. यह खेल बड़ा मजे का बना हुआ है, इसमें सुख और दुःख का पार्ट नूँधा हुआ है इसलिए रोने पीटने की बात नहीं । बुद्धि में रहे बनी-बनाई बन रही, बीती का चिंतन नहीं करना है । 

2. यह कॉमन क्लास नहीं है, इसमें आँखें बन्द करके नहीं बैठना है । टीचर को सामने देखना है । उबासी आदि नहीं लेनी है । उबासी गम (दु:ख) की निशानी है ।

 

वरदान:-

ब्रह्मा बाप समान लक्ष्य को लक्षण में लाने वाले प्रत्यक्ष सेम्पल बन सर्व के सहयोगी भव !   

जैसे ब्रह्मा बाप ने स्वयं को निमित्त एक्जैम्पुल बनाया, सदा यह लभ्य लक्षण में लाया - जो ओटे सो अर्जुन, इसी से नम्बरवन बनें । तो ऐसे फालो फादर करो । कर्म द्वारा सदा स्वयं जीवन में गुण मूर्त बन, प्रत्यक्ष सैम्पुल बन औरों को सहज गुण धारण करने का सहयोग दो - इसको कहते हैं गुणदान । दान का अर्थ ही है सहयोग देना । कोई भी आत्मा अब सुनने के बजाए प्रत्यक्ष प्रमाण देखना चाहती है । तो पहले स्वयं को गुणमूर्त बनाओ ।

 

स्लोगन:- 

सर्व की निराशाओं का अंधकार दूर करने वाले ही ज्ञान दीपक हैं ।   

 

ओम् शान्ति |