25-01-14  प्रातः मुरली  ओम् शान्ति   “बापदादा”   मधुबन


मीठे बच्चे मनुष्य शरीर की उन्नति का प्रबन्ध रचते, आत्मा की उन्नति वा चढ़ती का साधन बाप ही बतलाते हैं – यह बाप की ही रेस्पान्सिबिल्टी है |   

प्रश्न:-   
सदा बच्चों की उन्नति होती रहे उसके लिए बाप कौन-कौन सी श्रीमत देते हैं?

उत्तर:-

बच्चे, अपनी उन्नति के लिए 1- सदा याद की यात्रा पर रहो | याद से ही आत्मा की जंक निकलेगी | 2- कभी भी बीती को याद नहीं करो और आगे के लिए कोई आश न रखो | 3- शरीर निर्वाह के लिए  कर्म भले करो लेकिन जो भी टाइम मिले वह वेस्ट नहीं करो, बाप की याद में टाइम सफ़ल करो | 4- कम से कम 8 घण्टा ईश्वरीय सेवा करो तो तुम्हारी उन्नति होती रहेगी |

ओम् शान्ति |

रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को अथवा आत्माओं को समझाते हैं, मनुष्य कहते हैं आत्मा की रेस्पान्सिबिल्टी है परमात्मा के ऊपर | वही सब आत्माओं की उन्नति और मन की शान्ति का रास्ता बता सकते हैं | आत्मा रहती है भ्रकुटी में सबसे न्यारी | अक्सर करके रोग होते हैं शरीर में | यहाँ भ्रकुटी में नहीं | भल सिर में दर्द पड़ेगा परन्तु जो आत्मा का तख़्त है वहाँ कोई तकलीफ़ नहीं होगी क्योंकि उस तख़्त पर आत्मा विराजमान है | अब आत्मा की उन्नति अथवा शान्ति देने वाला सर्जन तो एक ही परमात्मा है | जब आत्मा की उन्नति हो तब आत्मा को हेल्थ वेल्थ भी मिले | शरीर को तो कितना भी करो उससे कोई उन्नति नहीं होगी | शरीर की कुछ न कुछ खिटपिट तो रहती ही है | आत्मा की उन्नति तो सिवाए बाप के कोई कर न सके | और सब दुनिया में शरीर की उन्नति का प्रबन्ध रचते हैं, बाकी आत्मा की चढ़ती कला वा उन्नति होती नहीं है | वह तो बाप ही सिखलाते हैं | सारा मदार आत्मा पर है | आत्मा ही 16 कला बनती है फिर आत्मा ही बिल्कुल कला रहती हो जाती है | 16 कलायें बनती हैं फिर कला कम कैसे होती हैं, यह भी बाप ही समझाते हैं | बाप कहते हैं सतयुग में तुमको बहुत सुख था | आत्मा चढ़ती कला में थी और सतसंगों में आत्मा की उन्नति कैसे हो – यह बात नहीं समझाई जाती है | वह जिस्मानी नशे में रहते हैं | देह-अभिमान है, बाप तुमको देही-अभिमानी बनाते हैं | आत्मा जो तमोप्रधान बनी है उनको सतोप्रधान बनाना है | यहाँ सब हैं रूहानी बातें | वहाँ हैं जिस्मानी बातें | सर्जन लोग एक हार्ट निकल दूसरा डालते हैं | उनका आत्मा से कोई तैलुक नहीं | आत्मा तो भ्रकुटी में रहती है, उनका आपरेशन आदि कुछ नहीं होता |
 

अच्छा बाप समझाते हैं कि आत्मा की उन्नति तो एक ही बार होती है | आत्मा जब तमोप्रधान हो जाती है तब आत्मा की उन्नति करने वाला बाप आता है | उनके बिगर किसी भी आत्मा की चढ़ती कला हो न सके | बाप कहते हैं यह छी-छी तमोप्रधान आत्मायें मेरे पास आ न सकें | तुम्हारे पास जब कोई आते हैं तो कहते हैं शान्ति कैसे मिले अथवा उन्नति कैसे हो? परन्तु यह नहीं जानते कि उन्नति के बाद हम कहाँ जायेंगे, क्या होगा? पुकारते हैं पतित से पावन बनाओ | जीवनमुक्तिधाम में ले जाओ | तो आत्माओं को ही ले जायेंगे ना | शरीर तो यहाँ ख़त्म हो जायेंगे | परन्तु यह बातें किसकी बुद्धि में नहीं हैं | यह है ईश्वरीय मत | बाकी वह सब हैं मानव मत | ईश्वरीय मत से एकदम आसमान में चढ़ जाते हो – शान्तिधाम, सुखधाम में | फिर ड्रामा अनुसार नीचे भी उतरना ही है | आत्मा की उन्नति के लिए बाप के सिवाए और कोई सर्जन नहीं | सर्जन फिर तुमको आप समान बनाते हैं | कोई तो बहुतों की उन्नति अच्छी करते हैं, कोई मीडियम, कोई थर्ड औरों की उन्नति करते हैं | आत्माओं की उन्नति का जवाबदार है ही एक बाप | दुनिया में यह किसको मालूम नहीं है | बाप कहते हैं इन साधुओं आदि का भी उद्धार करने मैं आता हूँ | पहले जब आत्मा आती है तो पवित्र ही आती है | अब बाप आयें हैं सबकी उन्नति करने | नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार तुम्हारी देखो कितनी उन्नति हो जाती है | वहाँ तुमको शरीर भी फर्स्टक्लास मिलता है | बाप है ही अविनाशी सर्जन | वही आकर तुम्हारी उन्नति करते हैं | तो तुम ऊँच ते ऊँच अपने स्वीट होम में चले जायेंगे | वो लोग मून पर जाते हैं | अविनाशी सर्जन तुमको उन्नति प्राप्त कराने के लिए कहते हैं मामेकम् याद करो तो विकर्म विनाश होंगे | बाप विश्व के बच्चों को लिबरेट करते हैं | जब तुम स्वर्ग में जायेंगे तब सब शान्तिधाम में होंगे | बाप कितना वन्डरफुल कार्य करते हैं | कमाल है बाप की! तब कहते हैं तुम्हारी गति मत तुम ही जानो | आत्मा में ही मत है, आत्मा अलग हो जाए तो मत मिल न सके | ईश्वरीय मत से चढ़ती कला, मानव मत से उतरती कला – यह भी ड्रामा में नूँध है | वो लोग समझते हैं अभी स्वर्ग बन गया है | आगे चलकर मालूम पड़ेगा कि यह नर्क है वा स्वर्ग | भाषा के ऊपर कितना हंगामा करते हैं | दुःखी हैं ना | स्वर्ग में दुःख होता नहीं | अर्थक्वेक भी नहीं होगी | अब पुरानी दुनिया का विनाश होना है फिर स्वर्ग बन जाएगा | फिर आधा कल्प वह भी गुम हो जाता है | कहते हैं द्वारिका सागर के नीचे चली गई | सोने की चीजें नीचे दब गई हैं | सो तो जरूर अर्थक्वेक से नीचे जायेंगी | समुद्र को थोड़ेही खोदकर निकालेंगे | धरती को खोदते हैं, वहाँ से माल निकालते हैं | 

बाप कहते हैं मैं सबका उपकार करता हूँ | मेरा फिर सब अपकार करते, गाली देते | मैं तो अपकारी का भी उपकार करता हूँ, तो मेरी ज़रूर महिमा होनी चाहिए | भक्ति मार्ग में देखो कितना मान है | तुम बच्चे भी बाप की कितनी महिमा करते हो | चित्र में 32 गुण दिखाये हैं | अभी तुम भी बाप जैसे गुणवान बन रहे हो तो कितना पुरुषार्थ करना चाहिए | टाइम वेस्ट नहीं करना चाहिए | बहुत हाइएस्ट बाप पढ़ाते हैं तो रोज़ ज़रूर पढ़ना चाहिए | यह अविनाशी बाप भी है, टीचर भी है, पिछाड़ी में आने वाले पुरानों से भी तीखे जा रहे हैं | अब सारी दुनिया की उन्नति हो रही है – बाप द्वारा | श्रीकृष्ण को भी गुणवान बनाने वाला बाप है, सबको देने वाला है | बाकी सब लेते हैं | यह घराना बन रहा है –नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार | बेहद का बाप देखो कितना मीठा और कितना प्यारा है | ऊँचे ते ऊँचे बाप द्वारा अब सबकी उन्नति हो रही है | बाकी तो सबको सीढी उतरनी है | कमाल है बाप की | भल खाओ-पिओ सब कुछ करो सिर्फ़ बाबा के गुण गाओ | ऐसे नहीं बाबा की याद में रहने से खाना नहीं खा सकते | रात फ़ुर्सत बहुत मिलती है | 8 घण्टा तो फ़ुर्सत है | बाप कहते हैं कम से कम 8 घण्टा इस गवर्मेन्ट की सर्विस करो | जो भी आये उनको आत्मा की उन्नति के लिए रास्ता बताओ | जीवनमुक्ति माना विश्व का मालिक और मुक्ति माना ब्रह्माण्ड का मालिक | ये समझाना तो सहज है ना | परन्तु तक़दीर में नहीं है तो तदबीर क्या कर सकेंगे | 

बाप समझाते हैं कि बाप की याद सिवाए आत्मा की जंक निकल नहीं सकती | भल ज्ञान सारा दिन सुनाओ परन्तु आत्मा की उन्नति का उपाय याद के सिवाए और कोई नहीं | बाप बच्चों को बहुत प्यार से रोज़-रोज़ समझाते हैं परन्तु अपनी उन्नति करते हैं वा नहीं करते हैं, वह हर एक खुद समझ सकते है | यह सिर्फ़ तुम नहीं सुनते हो परन्तु सब सेन्टर्स वाले बच्चे सुनते हैं | यह टेप रखी है | यह भी अपने में आवाज़ भरकर जाती है – सर्विस पर | यह बहुत सर्विस देती है | बच्चे समझते हैं शिवबाबा की मुरली हम सुनते हैं | तुम्हारे द्वारा सुनने से इनडायरेक्ट हो जाता है फिर यहाँ आते हैं डायरेक्ट सुनने के लिए | फिर बाबा ब्रह्मा मुख द्वारा सुनाते हैं अथवा मुख द्वारा ज्ञान अमृत देते हैं | इस समय दुनिया तमोप्रधान हो गई है तो उस पर ज्ञान की वर्षा चाहिए | वह पानी की वर्षा तो बहुत होती है | उस पानी से तो कोई पावन बन नहीं सकता | यह है सारी ज्ञान की बात | 

बाप कहते हैं अब जागो, मैं तुमको शान्तिधाम ले जाता हूँ | आत्मा की उन्नति भी इसमें है, बाकी सब हैं जिस्मानी बातें | रूहानी बातें सिर्फ़ तुम ही सुनते हो | पदमपति, भाग्यशाली सिर्फ़ तुम ही बनते हो | बाप है गरीब निवाज़ | गरीब ही सुनते हैं, तब बाप कहते हैं अहिल्याओं, गणिकाओं को भी समझाओ | सतयुग में ऐसी बातें नहीं होती | वह है बेहद का शिवालय | अब है बेहद का वेश्यालय, बिल्कुल ही तमोप्रधान हैं | इससे जास्ती मार्जिन नहीं है | अब इस पतित दुनिया को चेन्ज होना है | भारत में राम राज्य और रावण राज्य होता है | जब अनेक धर्म हो जाते हैं तब अशान्ति हो जाती है | लड़ाई तो लगती ही रहती है | अब तो बहुत ज़ोर से लड़ाई लगेगी | कड़ी लड़ाई लग फिर बन्द हो जायेगी क्योंकि राजाई भी स्थापना हो, कर्मातीत अवस्था भी हो | अभी तो कोई कह न सके | वह अवस्था आएगी तो पढ़ाई पूरी हो जायेगी | फिर ट्रान्सफर हो जायेंगे – अपने पुरुषार्थ अनुसार | इस भंभोर को आग तो लगनी है | फटाफट विनाश हो जायेगा | उनको खूनी नाहेक खेल कहा जाता है | नाहेक सब मर जायेंगे रक्त की नदियाँ बहेंगी | हाहाकार से जयजयकार होगी | बाकी सब अज्ञान निद्रा में सोते-सोते ही ख़त्म हो जायेंगे | बड़ी युक्ति से स्थापना होती है | विघ्न भी पड़ेंगे, अत्याचार भी होंगे | अब माताओं द्वारा स्वर्ग का द्वार खुलता है | हैं तो पुरुष भी बहुत, परन्तु माता जन्म देती है तो उनको पुरुष से इज़ाफा ज़्यादा मिलती है | स्वर्ग में तो नम्बरवार सब जायेंगे कोई दो जन्म मेल के भी बन सकते हैं, हिसाब-किताब जो ड्रामा में नूँध है वही होता है | आत्मा की उन्नति होने से कितना फ़र्क पड़ जाता है | कोई तो एकदम हाइएस्ट बन जाता है कोई तो बिल्कुल लोएस्ट | कहाँ राजा तो कहाँ प्रजा | 

मीठे-मीठे बच्चों को बाप समझाते हैं अब पुरुषार्थ करो | योग से पवित्र बनो तब धारणा हो | मंज़िल बहुत ऊँची है | अपने को आत्मा समझ बहुत प्यार से बाप को याद करना है | आत्मा का परमात्मा के साथ लव है ना | यह है रूहानी लव, जिससे आत्मा की उन्नति होती है | जिस्मानी लव से गिर पड़ते हैं | तक़दीर में नहीं है तो भागन्ती हो जाते हैं | यज्ञ की बड़ी सम्भाल चाहिए | माताओं की पाई-पाई से यज्ञ की सर्विस हो रही है | यहाँ गरीब ही साहूकार बनते हैं | सारा मदार पढ़ाई पर है | तुम अभी सदा सुहागिन बनती हो – यह सबको फीलिंग आती है | माला का दाना बनने वालों को कितनी अच्छी फीलिंग चाहिए | शिवबाबा को याद करते, सर्विस करते रहो तो बहुत उन्नति हो सकती है | शिवबाबा की सर्विस में शरीर भी न्योछावर करना चाहिए | सारा दिन नशा रहे – यह मासी का घर नहीं है | देखना है हमने अपनी कितनी उन्नति की है | बाबा कहते हैं – बीती को याद न करो | आगे की कोई आश मत रखो | शरीर निर्वाह अर्थ कर्म तो करना है | जो टाइम मिले उसमें बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे | बाबा बाँधेलियों को भी समझाते हैं कि तुम्हें पति को बहुत नम्रता प्यार से समझाना है, कोई मारे तो उन पर फूलों की वर्षा करो | अपने को बचाने की बड़ी युक्ति चाहिए | आँखें बड़ी शीतल चाहिए | कभी हिलें नहीं | इस पर अंगद का भी मिसाल है, बिल्कुल अडोल था | तुम सब महावीर हो, जो कुछ पास्ट हुआ उनको याद नहीं करना है | सदैव हर्षित रहना है | बाप खुद कहते हैं मैं भी ड्रामा के बन्धन में बाँधा हुआ हूँ | बाकी और कोई बात नहीं | कृष्ण के लिए लिखा है स्वदर्शन चक्र से मारा | यह सब कथायें हैं | बाप तो हिंसा कर न सके | यह तो बाप टीचर है, मारने की बात नहीं है | यह बातें सब इस समय की हैं | एक तरफ़ ढेर मनुष्य हैं दूसरे तरफ़ तुम हो, जिनको आना होगा आते रहेंगे | कल्प पहले मिसल पद पाते रहेंगे | इसमें चमत्कार की बात नहीं | बाप रहमदिल है, दुःख हर्ता सुख कर्ता है, फिर दुःख कैसे देंगे | अच्छा –  

मीठे-मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का दिल व जान सिक व प्रेम से यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

धारणा
के लिए मुख्य सार:-

1.   
कम से कम 8 घण्टा ईश्वरीय गवर्मेन्ट की सर्विस कर अपना टाइम सफल करना है | बाप जैसा गुणवान बनना है | 

2.    जो बीता उसे याद नहीं करना है | बीती को बीती कर सदैव हर्षित रहना है | ड्रामा पर अडोल रहना है |

वरदान:-
 
पुराने स्वभाव-संस्कार के बोझ को समाप्त कर डबल लाइट रहने वाले फ़रिश्ता भव !   

जब बाप के बन गये तो सारा बोझ बाप को दे दो | पुराने स्वभाव संस्कार का थोड़ा बोझ भी रहा हुआ होगा तो ऊपर से नीचे ले आयेगा | उड़ती कला का अनुभव करने नहीं देगा इसलिए बापदादा कहते हैं सब दे दो | यह रावण की प्रॉपर्टी अपने पास रखेंगे तो दुःख ही पायेंगे | फ़रिश्ता अर्थात् ज़रा भी रावण की प्रॉपर्टी न हो | सब पुराने खाते भस्म करो तब कहेंगे डबल लाइट फ़रिश्ता |


स्लोगन:- 
निर्भय और हर्षितमुख हो बेहद के खेल को देखो तो हलचल में नहीं आयेंगे |     

 

ओम् शान्ति |