08-11-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - बाप है अविनाशी वैद्य, जो एक ही महामंत्र से तुम्हारे सब दु :ख दूर कर देता है"   


प्रश्न:-   
माया तुम्हारे बीच में विघ्न क्यों डालती है? कोई कारण बताओ?


उत्तर:-

1. क्योंकि तुम माया के बड़े ते बड़े ग्राहक हो । उसकी ग्राहकी खत्म होती है इसलिए विघ्न डालती है । 2. जब अविनाशी वैद्य तुम्हें दवा देता है तो माया की बीमारी उथलती है इसलिए विघ्नों से डरना नहीं है । मनमनाभव के मन्त्र से माया भाग जायेगी

 

ओम् शान्ति |

बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं, मनुष्य 'मन की शान्ति, मन की शान्ति' कह हैरान होते हैं । रोज कहते भी हैं ओम् शान्ति । परन्तु इसका अर्थ न समझने के कारण शान्ति मांगते ही रहते हैं । कहते भी हैं आई एम आत्मा अर्थात् आई एम साइलेन्स । हमारा स्वधर्म है साइलेन्स । फिर जब कि स्वधर्म शान्ति है तो फिर मांगना क्यों? अर्थ न समझने के कारण फिर भी मांगते रहते हैं । तुम समझते हो यह रावण राज्य है । परन्तु यह भी नहीं समझते हैं कि रावण सारी दुनिया का आम और भारत का खास दुश्मन है इसलिए रावण को जलाते रहते हैं । ऐसा कोई भी मनुष्य है, जिसको कोई वर्ष-वर्ष जलाते हों? इनको तो जन्म-जन्मान्तर, कल्प-कल्पान्तर जलाते आयें हैं क्योंकि यह तुम्हारा दुश्मन बहुत बड़ा है । 5 विकारों में सब फँसते हैं । जन्म ही भ्रष्टाचार से होता है तो रावण का राज्य हुआ । इस समय अथाह दु :ख हैं । इसका निमित्त कौन? रावण । यह कोई को पता नहीं-दु :ख किस कारण होता है । यह तो राज्य ही रावण का है । सबसे बड़ा दुश्मन यह है । हर वर्ष उसकी एफीजी बनाकर जलाते रहते हैं । दिन-प्रतिदिन और ही बड़ा बनाते जाते हैं । दु :ख भी बढ़ जाता हैं । इतने बड़े- बड़े साधू, सन्त, महात्मायें, राजायें आदि हैं परन्तु एक को भी यह पता नहीं है कि रावण हमारा दुश्मन है, जिसको हम वर्ष-वर्ष जलाते हैं । और फिर खुशी मनाते हैं, समझते हैं रावण मरा और हम लंका के मालिक बनें । परन्तु मालिक बनते नहीं हैं । कितना पैसा खर्च करते हैं । बाप कहते हैं तुमको इतने अनगिनत पैसे दिये, सब कहाँ गँवाये? दशहरे पर लाखों रूपये खर्च करते हैं । रावण को मारकर फिर लंका को लूटते हैं । कुछ भी समझते नहीं, रावण को क्यों जलाते हैं । इस समय सब इन विकारों की जेल में पड़े हैं । आधाकल्प रावण को जलाते हैं क्योंकि दु :खी हैं । समझते भी हैं रावण के राज्य में हम बहुत दु :खी हैं । यह नहीं समझते हैं कि सतयुग में यह 5 विकार होते नहीं । यह रावण को जलाना आदि होता नहीं । पूछो यह कब से मनाते आये हो! कहेंगे यह तो अनादि चला आता है । रक्षाबन्धन कब से शुरू हुआ? कहेंगे अनादि चला आता है । तो यह सब समझ की बातें हैं ना । मनुष्यों की बुद्धि क्या बन पड़ी है । न जानवर हैं, न मनुष्य हैं । कोई काम के नहीं । स्वर्ग को बिल्कुल जानते नहीं । समझते हैं-बस, यही दुनिया भगवान ने बनाई है । दु :ख में याद तो फिर भी भगवान को करते हैं-हे भगवान् इस दु :ख से छुड़ाओ । परन्तु कलियुग में तो सुखी हो न सकें । दु :ख तो जरूर भोगना ही है । सीढ़ी उतरनी ही है । नई दुनिया से पुरानी दुनिया के अन्त तक के सब राज बाप समझाते हैं । बच्चों पास आते हैं तो बोलते हैं कि सब दु :खों की दवाई एक है । अविनाशी वैद्य है ना । 21 जन्मों के लिए सबको दु :खों से मुक्त कर देते हैं । वह वैद्य लोग तो खुद भी बीमार हो जाते हैं । यह तो है अविनाशी वैद्य । यह भी समझते हो-दु :ख भी अथाह है, सुख भी अथाह है । बाप अथाह सुख देते हैं । वहाँ दु :ख का नाम-निशान नहीं होता । सुखी बनने की ही दवाई है । सिर्फ मुझे याद करो तो पावन सतोप्रधान बन जायेंगे, सब दु :ख दूर हो जायेंगे । फिर सुख ही सुख होगा । गाया भी जाता हैं-बाप दु :ख हर्ता, सुख कर्ता है । आधाकल्प के लिए तुम्हारे सब दु :ख दूर हो जाते हैं । तुम सिर्फ अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो ।

आत्मा और जीव दो का खेल है । निराकार आत्मा अविनाशी है और साकार शरीर विनाशी है, इनका खेल है । अब बाप कहते हैं देह सहित देह के सब सम्बन्धों को भूल जाओ । गृहस्थ व्यवहार में रहते अपने को ऐसा समझो कि हमको अब वापिस जाना है । पतित तो जा न सके इसलिए मामेकम याद करो तो सताप्रधान बन जायेंगे । बाप के पास दवाई है ना । यह भी बताता हूँ, माया विघ्न जरूर डालेगी । तुम रावण के ग्राहक हो ना । उनकी ग्राहकी चली जायेगी तो जरूर फथकेंगे । तो बाप समझाते हैं यह तो पढ़ाई है । कोई दवाई नहीं है । दवाई यह है याद की यात्रा । एक ही दवाई से तुम्हारे सब दु :ख दूर हो जायेंगे, अगर मेरे को निरन्तर याद करने का पुरूषार्थ करेंगे तो । भक्ति मार्ग में ऐसे बहुत हैं जिनका मुख चलता ही रहता है । कोई न कोई मन्त्र राम नाम जपते रहते हैं, उनको गुरू का मन्त्र मिला हुआ है । इतना बार तुमको रोज जपना है । उनको कहते हैं राम के नाम की माला जपना । इसको ही राम नाम का दान कहते हैं । ऐसी बहुत संस्थायें बनी हुई हैं । राम-राम जपते रहेंगे तो झगड़ा आदि कोई करेंगे नहीं, बिजी रहेंगे । कोई कुछ कहेगा भी तो भी रेसपॉन्स नहीं देंगे । बहुत थोड़े ऐसा करते हैं । यहाँ फिर बाप समझाते हैं राम-राम कोई मुख से कहना नहीं है । यह तो अजपाजाप है सिर्फ बाप को याद करते रहो । बाप कहते हैं मैं कोई राम नहीं हूँ । राम तो त्रेता का था, जिसकी राजाई थी, उनको तो जपना नहीं है । अब बाप समझाते हैं भक्ति मार्ग में यह सब सिमरण करते, पूजा करते तुम सीढ़ी नीचे ही उतरते आये हो क्योंकि वह सब हैं अनराइटियस । राइटियस तो एक ही बाप है । वह तुम बच्चों को बैठ समझाते हैं । यह कैसे भूल- भुलैया का खेल है । जिस बाप से इतना बेहद का वर्सा मिलता है उनको याद करें तो चेहरा ही उनका चमकता रहे । खुशी में चेहरा खिल जाता है । मुख पर मुस्कराहट आ जाती है । तुम जानते हो बाप को याद करने से हम यह बनेंगे । आधाकल्प के लिए हमारे सब दु :ख दूर हो जायेंगे । ऐसे नहीं, बाबा कुछ कृपा कर देंगे नहीं, यह समझना है-हम बाप को जितना याद करेंगे उतना सतोप्रधान बन जायेंगे । यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक कितने हर्षितमुख हैं । ऐसा बनना है । बेहद के बाप को याद कर अन्दर में खुशी होती है फिर से हम विश्व का मालिक बनेंगे । यह आत्मा की खुशी के संस्कार ही फिर साथ चलेंगे । फिर थोड़ा- थोड़ा कम होता जायेगा । इस समय माया तुमको फथकायेगी भी बहुत । माया कोशिश करेगी-तुम्हारी याद को भुलाने की । सदैव ऐसे हर्षित मुख रह नहीं केंगे । जरूर कोई समय घुटका खायेंगे । मनुष्य जब बीमार पड़ते हैं तो उनको कहते भी होंगे शिवबाबा को याद करो परन्तु शिवबाबा है कौन, यह किसको पता नहीं तो क्या समझ याद करें? क्यों याद करें? तुम बच्चे तो जानते हो बाप को याद करने से हम तमोप्रधान से सतोप्रधान बनेंगे । देवी-देवता सतोप्रधान हैं ना, उनको कहा ही जाता है डीटी वर्ल्ड । मनुष्यों की दुनिया नहीं कहा जाता । मनुष्य नाम होता नहीं । फलाना देवता । वह है ही डीटी वर्ल्ड, यह है ह्युमन वर्ल्ड । यह सब समझने की बातें हैं । बाप ही समझाते हैं बाप को कहा जाता है ज्ञान का सागर । बाप अनेक प्रकार की समझानी देते रहते हैं । फिर भी पिछाड़ी में महामन्त्र देते हैं-बाप को याद करो तो तुम सतोप्रधान बन जायेंगे और तुम्हारे सब दु :ख दूर हो जायेंगे । कल्प पहले भी तुम देवी-देवता बने थे । तुम्हारी सीरत देवताओं जैसी थी । वहाँ कोई भी उल्टा-सुल्टा बोलते नहीं थे । ऐसा कोई काम ही नहीं होता । वह है ही डीटी वर्ल्ड । यह है ह्युमन वर्ल्ड । फर्क है ना । यह बाप बैठ समझाते हैं । मनुष्य तो समझते हैं डीटी वर्ल्ड को लाखों वर्ष हो गये । यहाँ तो कोई को देवता कह नहीं सकते । देवतायें तो स्वच्छ थे । महान् आत्मा देवी-देवता को कहा जाता है । मनुष्य को कभी नहीं कह सकते । यह है रावण की दुनिया । रावण बड़ा भारी दुश्मन है । इन जैसा दुश्मन कोई होता नहीं । हर वर्ष तुम रावण को जलाते हो । यह है कौन? किसको पता नहीं है । कोई मनुष्य तो नहीं है, यह हैं 5 विकार इसलिए इनको रावण राज्य कहा जाता है । 5 विकारों का राज्य है ना । सबमें 5 विकार हैं । यह दुर्गति और सद्गति का खेल बना हुआ है । अभी तुमको सद्गति के टाइम आदि का भी बाप ने समझाया है । दुर्गति का भी समझाया है । तुम ही ऊंच चढ़ते हो फिर तुम ही नीचे गिरते हो । शिवजयन्ती भी भारत में ही होती है । रावण जयन्ती भी भारत में ही होती है । आधाकल्प है दैवी दुनिया, लक्ष्मी-नारायण, राम-सीता का राज्य होता है । अभी तुम बच्चे सबकी बायोग्राफी को जानते हो । महिमा सारी तुम्हारी है । नवरात्रि पर पूजा आदि सब तुम्हारी होती है । तुम ही स्थापना करते हो । श्रीमत पर चल तुम विश्व को चेंज करते हो तो श्रीमत पर पूरा चलना चाहिए ना । नम्बरवार पुरूषार्थ करते रहते हैं । स्थापना होती रहती है । इसमें लड़ाई आदि की कोई बात नहीं । अभी तुम समझते हो यह पुरूषोत्तम संगमयुग है ही बिस्कुल अलग । पुरानी दुनिया का अन्त, नई दुनिया का आदि । बाप आते ही हैं पुरानी दुनिया को चेंज करने । तुमको समझाते तो बहुत हैं परन्तु बहुत हैं जो भूल जाते हैं । भाषण के बाद स्मृति आती है-यह-यह प्याइंटस समझानी थी । हूबहू कल्प-कल्प जैसे स्थापना हुई है वैसे होती रहेगी, जिन्होंने जो पद पाया है वही पायेंगे । सब एक जैसा पद नहीं पा सकते हैं । ऊंच ते ऊंच पद पाने वाले भी हैं तो कम से कम पद पाने वाले भी हैं । जो अनन्य बच्चे हैं वह आगे चलकर बहुत फील करेंगे-यह साहूकारों की दासी बनेंगी, यह राजाई घराने की दासी बनेंगी । यह बड़े साहूकार बनेंगे, जिनको कब-कब इनवाइट करते रहेंगे । सबको थोड़ेही इनवाइट करेंगे, सब मुँह थोड़ेही देखेंगे

बाप भी ब्रह्मा मुख से समझाते हैं, सन्मुख सब थोड़ेही देख सकेंगे । तुम अभी सम्मुख आये हो, पवित्र बने हो । ऐसे भी होता है जो अपवित्र आकर यहाँ बैठते हैं, कुछ सुनेंगे तो फिर देवता बन जायेंगे फिर भी कुछ सुनेंगे तो असर पड़ेगा । नहीं सुने तो फिर आवें ही नहीं । तो मूल बात बाप कहते हैं मनमनाभव । इस एक ही मन्त्र से तुम्हारे सब दु:ख दूर हो जाते हैं । मनमनाभव-यह बाप कहते हैं फिर टीचर होकर कहते हैं मध्याजीभव । यह बाप भी है, टीचर भी है, गुरू भी है । तीनों ही याद रहें तो भी बहुत हर्षितमुख अवस्था रहे । बाप पढाते हैं फिर बाप ही साथ ले जाते हैं । ऐसे बाप को कितना याद करना चाहिए । भक्ति मार्ग में तो बाप को कोई जानते ही नहीं । सिर्फ इतना जानते हैं भगवान है, हम सब ब्रदर्स हैं । बाप से क्या मिलना हैं, वह कुछ भी पता नहीं हैं । तुम अभी समझते हो एक बाप हैं, हम उनके बच्चे सब ब्रदर्स हैं । यह बेहद की बात है ना । सब बच्चों को टीचर बन पढ़ाते हैं । फिर सबका हिसाब-किताब चुक्तू कराए वापिस ले जायेंगे । इस छी-छी दुनिया से वापिस जाना है, नई दुनिया में आने के लिए तुमको लायक बनाते हैं । जो-जो लायक बनते हैं, वह सतयुग में आते हैं । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. अपनी अवस्था को सदा एकरस और हर्षितमुख रखने के लिए बाप, टीचर और सतगुरू तीनों को याद करना है । यहाँ से ही खुशी के संस्कार भरने हैं । वर्से की स्मृति से चेहरा सदा चमकता रहे | 

2. श्रीमत पर चलकर सारे विश्व को चेन् करने की सेवा करनी है । 5 विकारों में जो फँसे हैं, उन्हे निकालना है । अपने स्वधर्म की पहचान देनी है |

 

वरदान:- 

स्मृति को अनुभव की स्थिति में स्थित करने वाले नम्बरन विशेष आत्मा भव !   

सभी ब्राह्मण आत्माओं के अन्दर संकल्प रहता है कि हम विशेष आत्मा नम्बरवन बनें लेकिन संकल्प और कर्म के अन्तर को समाप्त करने के लिए स्मृति को अनुभव में लाना है । जैसे सुनना, जानना याद रहता है ऐसे स्वयं को उस अनुभव की स्थिति में लाना है इसके लिए स्वयं के और समय के महत्व को जान मन और बुद्धि को किसी भी अनुभव की सीट पर सेट कर लो तो नम्बरवन विशेष आत्मा बन जायेंगे ।

 

स्लोगन:- 

बुराई की रीस को छोड़ अच्छाई की रेस करो |   

 

ओम् शान्ति |