06-06-14  प्रात:मुरली     ओम शान्ति    “बापदादा”     मधुबन

 


 

"मीठे बच्चे - यहाँ तुम बदलने के लिए आये हो, तुम्हें आसुरी गुणों को बदल दैवी गुण धारण करने हैं, यह देवता बनने की पढ़ाई है"   

 

प्रश्र:-
तुम बच्चे कौन
-सी पढ़ाई बाप से ही पढ़ते हो, दूसरा कोई पढ़ा नही सकता?

 

उत्तर:-
मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई
, अपवित्र से पवित्र बनकर नई दुनिया में जाने की पढ़ाई एक बाप के सिवाए और कोई भी पढ़ा नही सकता । बाप ही सहज ज्ञान और राजयोग की पढ़ाई द्वारा पवित्र प्रवृत्ति मार्ग स्थापन करते है ।

 

ओम् शान्ति

बाप बैठ बच्चों को समझाते है । वास्तव मे दोनो ही बाप है, एक हद का, दूसरा बेहद का । वह बाप भी है तो यह बाप भी है । बेहद का बाप आकर पढ़ाते है । बच्चे जानते है हम नई दुनिया सतयुग के लिए पढ़ रहे है । ऐसी पढ़ाई कहाँ मिल नहीं सकती । तुम बच्चो ने सतसंग तो बहुत किये है । तुम भक्त थे ना । जरूर गुरू किये हुए है, शास्त्र अध्ययन किये हुए है । परन्तु अभी बाप ने आकर जगाया है । बाप कहते है अभी यह पुरानी दुनिया बदलनी है । अभी मैं तुमको नई दुनिया के लिए पढ़ाता हूँ, तुम्हारा टीचर हूँ । कोई भी गुरू के लिए टीचर नहीं कहेंगे | स्कूल मे टीचर पढ़ाते है, जिससे ऊँच पद पाते है । परन्तु वह पढ़ाते है यहाँ के लिए । अभी तुम जानते हो हम जो पढ़ाई पढ़ते है वह है नई दुनिया के लिए । गोल्डन एजड वर्ल्ड कहा जाता है । यह तो जानते हो कि इस समय आसुरी गुणों को बदल दैवी गुण धारण करने है । यहाँ तुम बदलने के लिए आये हो । कैरेक्टर की महिमा की जाती है । देवताओं के आगे जाकर कहते है आप ऐसे हो, हम ऐसे हैं । तुमको अभी एम ऑबजेक्ट मिली है । भविष्य के लिए बाप नई दुनिया भी स्थापन करते है और तुमको पढ़ाते भी है । वहाँ तो विकार की बात होती नही । तुम रावण पर जीत पाते हो, रावण राज्य में है ही सब विकारी । यथा राजा रानी तथा प्रजा । अभी तो है पंचायती राज्य । उनके पहले राजा रानी का राज्य था, परन्तु वह भी पतित थे । उन पतित राजाओं के पास मंदिर भी होते हैं । निर्विकारी देवताओं की पूजा करते थे । जानते है वह देवता पास्ट होकर गये है । अभी उनका राज्य है नही । बाप आत्माओं को पावन बनाते है और याद भी दिलाते है कि तुम देवता शरीर वाले थे । तुम्हारी आत्मा और शरीर दोनों पवित्र थे । अब फिर से बाप आकर पतित से पावन बनाते हैं, इसलिए ही तुम यहाँ आये हो ।

बाबा ऑडीनेन्स निकालते है - बच्चे, काम महाशत्रु है । यह तुमको आदि-मध्य- अन्त दुःख देते हैं । अभी तुमको गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए पावन बनना है । ऐसे नहीं, देवी-देवता आपस में प्यार नहीं करते होंगे परन्तु वहाँ विकारी दृष्टि नहीं रहती, निर्विकारी होकर रहते हैं । बाप भी कहते है गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान रहो । अपना भविष्य ऐसा बनाना है जैसे तुम पवित्र जोड़ी थे । हर एक आत्मा भिन्न नाम रूप लेकर पार्ट बजाती आई है । अभी तुम्हारा यह है अन्तिम पार्ट । पवित्रता के लिए बहुत मुंझते है कि क्या करे, कैसे कम्पेनियन होकर रहे । कम्पेनियन होकर रहने का अर्थ क्या है? विलायत में जब बूढ़े होते है तो फिर कम्पेनियन रखने के लिए शादी कर लेते है, सम्भाल के लिए । ऐसे बहुत है जो ब्रह्मचारी हो रहना पसन्द करते है । सन्यासियों की तो बात अलग है, गृहस्थ में रहने वाले भी बहुत होते है जो शादी करना पसन्द नहीं करते है । शादी करना फिर बाल बच्चे आदि सम्भालना, ऐसी जाल फैलाये ही क्यों जो खुद ही फस पड़े । ऐसे बहुत यहाँ भी आते है । 40 साल हो गये ब्रह्मचारी रहते, इसके बाद क्या शादी करेंगे । स्वतन्त्र रहना पसन्द करते हैं । तो बाप उनको देख खुश होते है । यह तो है ही बन्धन-मुक्त, बाकी रहा शरीर का बन्धन, उसमें देह सहित सबको भूलना है सिर्फ एक बाप को याद करना है । कोई भी देहधारी क्राइस्ट आदि को याद नहीं करना है । निराकार शिव तो देहधारी नहीं है । उनका नाम शिव है । शिव के मन्दिर भी है । आत्मा को पार्ट मिला हुआ है 84 जन्मों का । यह अविनाशी ड्रामा है, इसमें कुछ भी बदली नहीं हो सकता है ।

तुम जानते हो पहले-पहले हमारा धर्म, कर्म जो श्रेष्ठ था वह अभी भ्रष्ट बन गया है । ऐसे नहीं, देवता धर्म ही खत्म है । गाते भी हैं देवतायें सर्वगुण सम्पन्न थे । लक्ष्मी-नारायण दोनों पवित्र थे । पवित्र प्रवृत्ति मार्ग था । अभी अपवित्र प्रवृत्ति मार्ग है । चौरासी जन्मों में भिन्न-भिन्न नाम-रूप बदलता आया है । बाप ने बताया है-मीठे-मीठे बच्चों , तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो, मैं तुमको 84 जन्मों की कहानी सुनाता हूँ । तो जरूर पहले जन्म से लेकर समझाना पड़े । तुम पवित्र थे, अब विकारी बने हो तो देवतओं के आगे जाकर माथा टेकते हो । क्रिस्चियन लोग क्राइस्ट के आगे, बौद्धी लोग बुद्ध के आगे, सिक्ख लोग गुरूनानक की दरबार के आगे जाकर माथा टेकते है, इससे मालूम पड़ता है कि यह किस पंथ के है । तुम्हारे लिए तो कह देते है यह हिन्दू है । आदि सनातन देवी-देवता धर्म कहाँ गया, यह किसको पता नही । प्राय: लोप हो गया है । भारत में चित्र तो अथाह बनाये हुए है । मनुष्यों की भी अनेक मते है । शिव के भी अनेक नाम रख दिये है । असुल में उनका एक ही नाम शिव है । ऐसे भी नहीं, उसने पुनर्जन्म लिया है तब नाम फिरते जाते है । नहीं । मनुष्यों की अनेक मते है, तो अनेक नाम रखते है । श्रीनाथ द्वारे में जाओ तो वहाँ भी बैठे तो वही लक्ष्मी-नारायण है, जगन्नाथ के मन्दिर में भी मूर्ति वही है । नाम भिन्न-भिन्न रखे है । जब तुम सूर्यवंशी थे तो पूजा आदि नहीं करते थे । तुम सारे विश्व पर राज्य करते थे, सुखी थे । श्रीमत पर श्रेष्ठ राज्य स्थापन किया था । उसको कहा जाता है सुखधाम । और कोई ऐसे नहीं कहेंगे कि हमको बाप पढ़ाते है, मनुष्य से देवता बनाते है । निशानी भी है, जरूर उन्हों का ही राज्य था । वहाँ किले आदि होते नही । किले आदि बनाते है सेफ्टी के लिए । इन देवी-देवताओं के राज्य में किले आदि थे नहीं । दूसरा कोई चढ़ाई करने वाला होता नहीं । अभी तुम जानते हो हम उसी देवी-देवता धर्म में ट्रासफर हो रहे है । उसके लिए तुम राजयोग की पढ़ाई पढ़ रहे हो । राजाई पानी है । भगवानुवाच- मैं तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ । अभी तो कोई राजा-रानी नहीं है । कितने लड़ाई-झगड़े आदि होते रहते है । यह है कलियुग, आइरन एजड वर्ल्ड । तुम गोल्डन एज में थे । अभी फिर पुरूषोत्तम संगमयुग पर खड़े हो । बाप तुमको पहले नम्बर में ले जाने आये है, सबका कल्याण करते है । तुम जानते हो हमारा भी कल्याण होता है पहले-पहले हम जरूर सतयुग में आएँगे । बाकी जो-जो धर्म है वह सब शान्तिधाम में चले जायेंगे । बाप कहते है सबको पवित्र भी बनना है । तुम हो ही पवित्र देश के रहने वाले, जिसको निर्वाणधाम कहा जाता है । वाणी से परे सिर्फ अशरीरी आत्मायें रहती है । बाप तुमको अब वाणी से परे ले जाते है । ऐसा तो कोई कह न सके कि हम तुमको निर्वाणधाम शान्तिधाम में ले जाता हूँ । वह तो कहते हैं हम ब्रह्म में लीन होंगे । तुम बच्चे जानते हो अभी यह तमोप्रधान दुनिया है, इसमें तुमको स्वाद नहीं आयेगा इसलिए नई दुनिया की स्थापना और पुरानी दुनिया का विनाश करने के लिए भगवान् को यहाँ आना पड़ता है । शिव जयन्ती भी यहाँ मनाते है । तो क्या आकर करते है' कोई बताये । जयन्ती मनाते हैं तो जरूर आते हैं ना । रथ पर विराजमान होते हैं । उन्होंने फिर वह घोड़ी गाड़ी का रथ दिखाया है । बाप बैठ बताते हैं, मैं किस रथ पर सवार होता हूँ । बच्चों को बताता हूँ । यह ज्ञान फिर प्राय : लोप हो जाता है । इनके 84 जन्मों के अन्त में बाबा को आना पड़ता है । यह ज्ञान कोई दे न सके । ज्ञान है दिन, भक्ति है रात । नीचे उतरते ही रहते है । भक्ति का कितना शो है, कितने कुम्भ के मेले, फलाने मेले लगते रहते है । ऐसे कोई भी नही कहता है कि अभी तुमको पवित्र बनकर नई दुनिया में जाना है, बाप ही बतलाते हैं अभी संगमयुग है । तुमको पढ़ाई भी वही मिलती है जो कल्प पहले मिली थी, मनुष्य से देवता बने थे । गायन भी है मनुष्य से देवता किये....... जरूर बाप ही बनायेंगे ना । तुम जानते हो हम अपवित्र गृहस्थ धर्म वाले थे, अब बाप आकर फिर पवित्र प्रवृत्ति मार्ग का बनाते हैं । तुम बहुत ऊँच पद पाते हो । ऊँच ते ऊँच बाप कितना ऊँच बनाते है । बाप की है श्री- श्री अर्थात् श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत । हम श्रेष्ठ बनते हैं । श्री- श्री के अर्थ का किसको पता नहीं है । एक शिवबाबा का ही यह टाइटिल है परन्तु वह फिर अपने को श्री- श्री कह देते हैं । माला फेरी जाती है । माला है 108 की, उन्हों ने 16108 की बनाई है । उसमें 8 तो आने ही है । चार जोड़ी और एक बाप । आठ रत्न और 9वाँ हूँ मैं । उनको रत्न कहते हैं । उनको ऐसा बनाने वाला बाप है । तुम बाप द्वारा पारस बुद्धि बनते हो । रंगून में एक तलाव है, कहते हैं उनमें स्नान करने से परियाँ बन जाते है । वास्तव में यह है ज्ञान स्नान, जिससे तुम देवता बन जाते हो । बाकी वह तो सब है भक्ति मार्ग की बातें | यह तो कभी हो नहीं सकता कि पानी में स्नान करने से परी बन जाये । यह सब है भक्ति मार्ग । क्या-क्या बाते बना दी है । कुछ भी समझते नहीं है । अभी तुम समझते हो तुम्हारा ही यादगार देलवाडा, गुरू शिखर आदि खड़ा है । बाप बहुत ऊँच रहते है ना । तुम जानते हो बाप और हम आत्मायें जहाँ निवास करती हैं, वह है मूलवतन । सूक्ष्मवतन तो केवल साक्षात्कार मात्र है । वह कोई दुनिया नहीं है । सूक्ष्मवतन वा मूलवतन के लिए यह नहीं कहेंगे कि वर्ल्ड हिस्ट्री रिपीट । वर्ल्ड तो एक ही है । इस वर्ल्ड की हिस्ट्री रिपीट कहा जाता है । 

मनुष्य कहते हैं वर्ल्ड में पीस हो । यह नहीं जानते कि आत्मा का स्वधर्म ही शान्त है । बाकी जंगल में थोडेही शान्ति मिल सकती है । तुम बच्चों को सुख और सबको शान्ति मिल जाती है । जो भी आते हैं पहले शान्तिधाम में जाकर सुखधाम में आएँगे । कई कहेंगे हम ज्ञान नहीं ले, पिछाड़ी में आएँगे तो बाकी इतना समय मुक्तिधाम में रहेंगे । यह तो अच्छा है, बहुत समय मुक्ति में रहेंगे । यहाँ करके एक-दो जन्म पद पाएँगे । वह क्या हुआ? जैसे मच्छर निकलते हैं और मर जाते हैं । तो एक जन्म में यहाँ क्या सुख रखा है । वह तो कोई काम का नहीं रहा जैसे कि पार्ट ही नहीं है । तुम्हारा पार्ट तो बहुत ऊँच है । तुम्हारे जितना सुख कोई देख न सके इसलिए पुरूषार्थ करना चाहिए । करते भी रहते हैं । कल्प पहले भी तुमने पुरूषार्थ किया था । अपने पुरूषार्थ अनुसार प्रालब्ध पाई है । पुरूषार्थ बिगर तो प्रालब्ध पा न सके । पुरूषार्थ जरूर करना है । बाप कहते हैं यह भी ड्रामा बना हुआ है । तुम्हारा भी पुरूषार्थ चल पड़ेगा । ऐसे तो चल न सके । तुमको पुरूषार्थ तो जरूर करना पड़े । पुरूषार्थ बिगर थोडेही कुछ होना है । खासी आपेही कैसे ठीक होगी? दवाई लेने का पुरूषार्थ करना पड़े । कोई-कोई ऐसे भी ड्रामा पर बैठ जाते हैं , जो ड्रामा में होगा । ऐसा उल्टा ज्ञान बुद्धि में नहीं बिठाना है । यह भी माया विघ्न डालती है । बच्चे पढ़ाई को ही छोड़ देते है । इसको कहा जाता है-माया से हार । लड़ाई है ना । वह भी जबरदस्त है । अच्छा

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) श्रेष्ठ राज्य स्थापन करने के लिए श्रीमत पर चलकर बाप का मददगार बनना है । जैसे देवतायें निर्विकारी हैं, ऐसे गृहस्थ में रहते निर्विकारी बनना है । पवित्र प्रवृत्ति बनानी है ।

2) ड्रामा की प्वाइंट को उल्टे रूप से यूज नहीं करना है । ड्रामा कहकर बैठ नहीं जाना है । पढाई पर पूरा ध्यान देना है । पुरूषार्थ से अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बनानी है ।

 

वरदान:-
अपने सम्पर्क द्वारा अनेक आत्माओं की चिंताओं को मिटाने वाले सर्व के प्रिय भव !   

वर्तमान समय व्यक्तियों में स्वार्थ भाव होने के कारण और वैभवों द्वारा अल्पकाल की प्राप्ति होने के कारण आत्मायें कोई न कोई चिंता में परेशान है । आप शुभचिंतक आत्माओं के थोड़े समय का सम्पर्क भी उन आत्माओं की चिंताओं को मिटाने का आधार बन जाता है । आज विश्व को आप जैसी शुभचिंतक आत्माओं की आवश्यकता है इसलिए आप विश्व को अतिप्रिय हो ।

 

स्लोगन: -
आप हीरे तुल्य आत्माओं के बोल भी रत्न समान मूल्यवान हो
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ओम् शान्ति