15-07-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - बहन- भाई के भी भान से निकल भाई- भाई समझो तो सिविल आई बन जायेगी, आत्मा जब सिविल- आइज्ड बनें तब कर्मातीत बन सकती है”   

                                                        
प्रश्न:-   
अपनी खामियों को निकालने के लिए कौन- सी युक्ति रचनी चाहिए?


उत्तर:-
अपने कैरेक्टर्स का रजिस्टर रखो । उसमें रोज का पोतामेल नोट करो । रजिस्टर रखने से अपनी कमियों का मालूम पड़ेगा फिर सहज ही उन्हें निकाल सकेंगे । खामियों को निकालते-निकालते उस अवस्था तक पहुँचना है जो एक बाप के सिवाए दूसरा कुछ भी याद न रहे । किसी भी पुरानी चीज़ में ममत्व न रहे । अन्दर कुछ भी मांगने की तमन्ना न रहे ।

 

ओम् शान्ति |

एक है मानव बुद्धि, दूसरी है ईश्वरीय बुद्धि, फिर होगी दैवी बुद्धि । मानव बुद्धि है आसुरी बुद्धि । क्रिमिनल आइज्ड है ना । एक होते हैं सिविल- आइज्ड, दूसरे होते हैं क्रिमिनल- आइज्ड । देवतायें हैं वाइसलेस, सिविल- आइज्ड और यहाँ कलियुगी मनुष्य हैं विशश क्रिमिनल- आइज्ड । उनके ख्यालात ही विशश होंगे । क्रिमिनल- आइज्ड मनुष्य रावण की जेल में पड़े रहते है । रावण राज्य में सब हैं क्रिमिनल- आइज्ड, एक भी सिविल- आइज्ड नहीं है । अभी तुम हो पुरुषोत्तम संगमयुग पर । अभी बाबा तुमको क्रिमिनल- आइज्ड से बदल कर सिविल- आइज्ड बना रहे हैं । क्रिमिनल- आइज्ड में भी अनेक प्रकार होते हैं-कोई सेमी, कोई कैसे । जब सिविल- आइज्ड बन जायेंगे तब कर्मातीत अवस्था होगी फिर ब्रदर्ली- आइज़ (भाई- भाई की दृष्टि) बन जायेगी । आत्मा, आत्मा को देखती है, शरीर तो रहते ही नहीं तो क्रिमिनल- आइज्ड कैसे होंगे इसलिए बाप कहते हैं अपने को बहन- भाई के भान से निकालते जाओ । भाई- भाई समझो । यह भी बड़ी गुह्य बात है । कभी किसकी बुद्धि में आ नहीं सकती । सिविल- आइज्ड का अर्थ किसी की बुद्धि में आ नहीं सकता । अगर आ जाए तो ऊंच पद पा लेवे । बाप समझाते हैं अपने को आत्मा समझो, शरीर को भूलना है । यह शरीर छोड़ना भी है बाप की याद में । मैं आत्मा बाबा के पास जा रहा हूँ । देह का अभिमान छोड़, पवित्र बनाने वाले बाप की याद में ही शरीर छोड़ना है । क्रिमिनल- आइज्ड होंगे तो अन्दर में जरूर खाता रहेगा । मंजिल बहुत भारी है । भल कोई भी अच्छे- अच्छे बच्चे हो तो भी कुछ न कुछ भूलें होती जरूर हैं क्योंकि माया है ना । कर्मातीत तो कोई भी हो नहीं सकता । कर्मातीत अवस्था को पिछाड़ी में पायेंगे तब सिविल- आइज्ड हो सकते हैं । फिर वह रूहानी ब्रदर्ली लव रहता है । रूहानी ब्रदर्ली लव बहुत अच्छा रहता है, फिर क्रिमिनल दृष्टि नहीं होती, तब ही ऊँच पद पा सकेंगे । बाबा एम ऑब्जेक्ट तो पूरी बतलाते हैं । बच्चे समझते हैं कि यह-यह हमारे में खामी है । रजिस्टर जब रखेंगे तब खामी का भी मालूम पड़ेगा । हो सकता है कोई रजिस्टर न रखने से भी सुधर सकता है । परन्तु जो कच्चे हैं उनको रजिस्टर जरूर रखना चाहिए । कच्चे तो बहुत हैं, कोई-कोई को तो लिखना ही नहीं आता है । अवस्था तुम्हारी ऐसी चाहिए जो और कोई की याद नहीं आये । हम आत्मा बिना शरीर के आई, अब अशरीरी बनकर जाना है । इस पर एक कहानी है-उसने कहा तुम लाठी भी न उठाओ, वह भी पिछाड़ी में याद आयेगी । कोई भी चीज़ में ममत्व नहीं रखना है । बहुतों का ममत्व पुरानी वस्तुओं में रहता है । कुछ भी याद न आये सिवाए बाप के । कितनी ऊंची मंजिल है । कहाँ ठिकरियाँ, कहाँ शिवबाबा की याद । मांगने की तमन्ना नहीं होनी चाहिए । हरेक को कम से कम 6 घण्टा सर्विस जरूर करनी चाहिए । वैसे तो गवर्मेन्ट की सर्विस 8 घण्टा होती है परन्तु पाण्डव गवर्मेन्ट की सर्विस कम से कम 5 - 6 घण्टा जरूर करो । विशश मनुष्य कभी बाबा को याद नहीं कर सकते हैं । सतयुग में है वाइसलेस वर्ल्ड । देवी-देवताओं की महिमा गाई जाती है-सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण .....तुम बच्चों की अवस्था कितनी उपराम रहनी चाहिए । कोई भी छी-छी चीज में ममत्व नहीं रहना चाहिए । शरीर में भी ममत्व न रहे, इतना योगी बनना है । जब सच-सच ऐसे योगी होंगे तो वह जैसे फ्रेश (ताजा) रहेंगे । जितना तुम सतोप्रधान बनते जायेंगे, खुशी का पारा उतना चढ़ता जायेगा । 5 हजार वर्ष पहले भी ऐसी खुशी थी । सतयुग में भी वही खुशी होगी । यहाँ भी खुशी रहेगी फिर यही खुशी साथ में ले जायेंगे । अन्त मती सो गति कहा जाता है ना । अभी की मत है फिर गति सतयुग में होगी । यह बहुत विचार सागर मंथन करना होता है । 

बाप तो है ही दु :ख हर्ता, सुख कर्ता । तुम कहते हो हम बाप के बच्चे हैं तो किसको भी दु :ख नहीं देना चाहिए । सबको सुख का रास्ता बताना चाहिए । यदि सुख नहीं देते तो जरूर दुःख देंगे । यह पुरुषोत्तम संगमयुग है, जबकि तुम पुरुषार्थ करते हो सतोप्रधान बनने के लिए । पुरुषार्थी भी नम्बरवार होते हैं । जब बच्चे अच्छी सर्विस करते हैं तो बाप उनकी महिमा करते हैं यह फलाना बच्चा योगी है । जो सर्विस-एबुल बच्चे हैं वह वाइसलेस लाइफ में हैं । जिसको जरा भी ऐसे-वैसे ख्यालात नहीं आते हैं वही पिछाड़ी में कर्मातीत अवस्था को पायेंगे । तुम ब्राह्मण ही सिविल- आइज्ड बन रहे हो । मनुष्य को कभी देवता नहीं कहा जा सकता है । जो क्रिमिनल- आइज्ड होगा वह पाप जरूर करेगा । सतयुगी दुनिया पवित्र दुनिया है । यह है पतित दुनिया । यह अर्थ भी समझते नहीं है । जब ब्राह्मण बनें तब समझें । कहते हैं ज्ञान तो बहुत अच्छा है, जब फुर्सत होगी तब आऊंगा । बाबा समझते हैं आयेगा कभी भी नहीं । यह तो बाप की इनसल्ट हुई । मनुष्य से देवता बनते हैं तो फौरन करना चाहिए ना । कल पर डाला तो माया नाक से पकड़ गटर में डाल देगी । कल-कल करते काल खा जायेगा । शुभ कार्य में देरी नहीं करनी चाहिए । काल तो सिर पर खड़ा है । कितने मनुष्य अचानक मर पड़ते हैं । अभी बाम्ब्स गिरे तो कितने मनुष्य मर जायेंगे! अर्थक्येक होती है ना, तो पहले थोड़ेही पता पड़ता है । ड्रामा अनुसार नैचुरल कैलेमिटीज भी होनी है, जिसको तो कोई जान नहीं सकता । बहुत नुकसान हो जाता है । फिर गवर्मेन्ट रेल का किराया आदि भी बढ़ा देती है । मनुष्यों को तो जाना ही पड़े । ख्याल करते रहते हैं-कैसे आमदनी बढ़ायें जो मनुष्य दे सकें । अनाज कितना महंगा हो गया है । तो बाप बैठ समझाते हें-सिविल- आइज्ड को कहेंगे पवित्र आत्मा । यह तो दुनिया ही क्रिमिनल- आइज्ड है । तुम अभी सिविल- आइज्ड बनते हो । मेहनत है, ऊँच पद पाना मासी का घर नहीं है । जो बहुत सिविल- आइज्ड बनेंगे वही ऊंच पद पायेंगे । तुम तो यहाँ आये हो नर से नारायण बनने के लिए । परन्तु जो सिविल- आइज्ड नहीं बनते, ज्ञान उठा नहीं सकते, वह पद भी कम पाएंगे । इस समय सभी मनुष्यों की है क्रिमिनल- आइज्ड । सतयुग में होती है सिविल- आइज्ड । 

बाप समझाते हैं - मीठे बच्चे, तुम देवी-देवता स्वर्ग के मालिक बनना चाहते हो तो बहुत-बहुत सिविल- आइज्ड बनो । अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तब 100 प्रतिशत सोल कॉन्सेस बन सकेंगे । कोई को भी अर्थ समझाना है । सतयुग में पाप की कोई बात ही नहीं होती । वह है ही सर्वगुण सम्पन्न, सम्पूर्ण सिविल- आइज्ड । चन्द्रवंशी की भी दो कला कम होती हैं । चन्द्रमा की भी पिछाड़ी में आकर बाकी लकीर रहती है । एकदम निल नहीं होती है । कहेंगे प्राय: लोप हो गया । बादलों में दिखाई नहीं पड़ता । तो बाप कहते हैं तुम्हारी ज्योति भी बिल्कुल बुझ नहीं जाती है, कुछ न कुछ लाइट रहती है । सुप्रीम बैटरी से फिर तुम पॉवर लेते हो । खुद ही आकर सिखलाते हैं कि मेरे साथ तुम कैसे योग रख सकते हो । टीचर पढ़ाते हैं तो बुद्धियोग टीचर के साथ रहता है ना । टीचर जो मत देंगे वह पढ़ेंगे । हम भी पढ़कर टीचर अथवा बैरिस्टर बनेंगे, इसमें कृपा वा आशीर्वाद आदि की बात ही नहीं रहती है । माथा टेकने की भी दरकार नहीं । हाँ, कोई हरीओम या राम-राम करते हैं तो रिटर्न में करना पड़ता है । यह एक इज्ज्त देनी होती है । अहंकार नहीं दिखाना है । तुम जानते हो हमको तो एक बाप को ही याद करना है । कोई भक्ति छोड़ते हैं तो भी हंगामा हो जाता है । भक्ति छोड़ने वाले को नास्तिक समझते हैं । उनके नास्तिक कहने और तुम्हारे कहने में कितना फर्क है । तुम कहते हो वह बाप को नहीं जानते हैं इसलिए नास्तिक, निधन के हैं, इसीलिए सब लड़ते-झगड़ते रहते हैं । घर-घर में झगड़ा- अशान्ति है । क्रोध की निशानी है अशान्ति । वहाँ कितनी अपार शान्ति है । मनुष्य कहते हैं भक्ति मे बड़ी शान्ति मिलती है, परन्तु वह है अल्पकाल के लिंए । सदा के लिए शान्ति चाहिए ना । तुम धणी से निधनके बन जाते हो तब शान्ति से फिर अशान्ति में आ जाते हो । बेहद का बाप बेहद सुख का वर्सा देते हैं । हद के बाप से हद के सुख का वर्सा मिलता है । वह वास्तव में है दु :ख का, काम कटारी का वर्सा, जिसमें दु :ख ही दुःख है इसलिए बाप कहते हैं-तुम आदि-मध्य- अन्त दुःख पाते हो । 

बाप कहते हैं मुझ पतित-पावन बाप को याद करो, इसको कहा जाता है सहज याद और सहज ज्ञान, सृष्टि चक्र का । तुम अपने को आदि सनातन देवी-देवता धर्म का समझेंगे तो जरूर स्वर्ग में आयेंगे । स्वर्ग में सब सिविल- आइज्ड थे, देह- अभिमानी को क्रिमिनल- आइज्ड कहा जाता है । सिविल- आइज्ड में कोई विकार नहीं होता । बाप कितना सहज कर समझाते हैं परन्तु बच्चों को यह भी याद नहीं रहता है क्योंकि क्रिमिनल- आइज्ड हैं । तो छी-छी दुनिया ही उन्हें याद पड़ती है । बाप कहते हैं इस दुनिया को भूल जाओ । अच्छा । 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. ऐसा योगी बनना है जो शरीर में जरा भी ममत्व न रहे । कोई भी छी-छी चीज में आसक्ति न जाये । अवस्था ऐसी उपराम रहे । खुशी का पारा चढ़ा हुआ हो । 

2. काल सिर पर खड़ा है इसलिए शुभ कार्य में देरी नहीं करनी है । कल पर नहीं छोडना है ।

 

वरदान:-

स्वयं को निमित्त समझ व्यर्थ संकल्प या व्यर्थ वृत्ति से मुक्त रहने वाले विश्व कल्याणकारी भव !   

मैं विश्व कल्याण के कार्य अर्थ निमित्त हूँ इस जिम्मवारी की स्मृति में रहो तो कभी भी किसी के प्रति वा अपने प्रति व्यर्थ संकल्प वा व्यर्थ वृत्ति नहीं हो सकती । जिम्मेवार आत्मायें एक भी अकल्याणकारी संकल्प नहीं कर सकते । एक सेकण्ड भी व्यर्थ वृत्ति नहीं बना सकते क्योंकि उनकी वृत्ति से वायुमण्डल का परिवर्तन होना है इसलिए सर्व के प्रति उनकी शुभ भावना, शुभ कामना स्वतः रहती है ।

 

स्लोगन:- 

अज्ञान की शक्ति क्रोध है और ज्ञान की शक्ति शान्ति है ।     

 

ओम् शान्ति |