27-08-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - मैं विदेही बाप तुम देहधारियों को विदेही बनाने के लिए
पढ़ाता हूँ, यह है नई बात जो बच्चे ही
समझते हैं” 
प्रश्न:-
बाबा
को एक ही बात बार-बार समझाने की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
उत्तर:-
क्योंकि बच्चे घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं । कोई-कोई बच्चे कहते
हैं-बाबा तो वही बात बार-बार समझाते हैं । बाबा कहते-बच्चे,
मुझे
जरूर वही बात सुनानी पड़े क्योंकि तुम भूल जाते हो । तुम्हें
माया के तूफान हैरान करते हैं,
अगर
मैं रोज़ खबरदार न करूँ तो तुम माया के तूफानों से हार खा लेंगे
। अभी तक तुम सतोप्रधान कहाँ बने हो?
जब बन
जायेंगे तब सुनाना बंद कर देंगे ।
ओम्
शान्ति |
इसको
विचित्र रूहानी पढ़ाई भी कहा जाता है । नई दुनिया सतयुग में भी
देहधारी ही एक-दो को पढ़ाते हैं । नॉलेज तो सब पढ़ाते हैं । यहाँ
भी पढ़ाते हैं । वह सब देहधारी एक-दो को पढ़ाते हैं,
ऐसे
कभी नहीं होगा कि विदेही बाप या रूहानी बाप पढ़ाते हो ।
शास्त्रों में भी कृष्ण भगवानुवाच लिख दिया है । वह भी
जिस्मानी हो गया । यह नई बात सुनकर मूँझ जाते हैं । तुम्हारे
में भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार समझते हैं कि रूहानी बाप हम
रूहों को पढ़ाते हैं । यह है नई बात । सिर्फ इस संगम पर ही बाप
खुद आकर कहते हैं,
इस
द्वारा मैं तुमको पढ़ाता हूँ । ज्ञान का सागर,
शान्ति का सागर,
सब
आत्माओं का बाप भी वही है । यह समझ की बात है ना । देखने में
तो कुछ नहीं आता । आत्मा ही है मुख्य और वह अविनाशी है । शरीर
तो विनाशी है । अभी वह अविनाशी आत्मा बैठ पढ़ाती है । भल तुम
सामने देखते हो यह तो साकार में शरीर बैठा है परन्तु यह तुम
जानते हो,
यह
ज्ञान देहधारी नहीं देते है । ज्ञान देने वाला विदेही बाप है ।
कैसे देते हैं?
वह
भी तुम समझते हो । मनुष्य तो बड़ा मुश्किल समझते हैं । कितना
तुमको माथा मारना पड़ता है - यह निश्चय कराने के लिए । वह तो कह
देते निराकार का कोई नाम,
रूप,
देश,
काल
ही नहीं है । वह बाप खुद बैठ पढ़ाते हैं । कहते हैं मैं सब
आत्माओं का बाप हूँ,
जिसको तुम देख नहीं सकते हो । समझते हो वह विदेही है । ज्ञान,
आनन्द,
प्रेम का सागर है । वह कैसे पढ़ायेंगे । बाप खुद समझाते हैं-मैं
कैसे आता हूँ,
किसका आधार लेता हूँ
?
मैं
कोई गर्भ से जन्म नहीं लेता हूँ । मैं कभी मनुष्य वा देवता
नहीं बनता हूँ । देवता भी शरीर लेते हैं । मैं तो सदैव अशरीरी
ही रहता हूँ । मेरा ही ड्रामा में यह पार्ट है,
जो
मैं कभी पुनर्जन्म में नहीं आता हूँ । तो यह समझ की बात है ना
। देखने में तो आता ही नहीं । वह तो समझते हैं कृष्ण भगवानुवाच
। भक्ति मार्ग में रथ भी कैसे बैठ बनाया है । बाप कहते
हैं-बच्चे,
तुम
मूंझते तो नहीं हो?
अगर
कुछ नहीं समझते हो तो बाप से आकर समझो । यूँ तो बिगर पूछे भी
बाप सब कुछ समझाते रहते हैं । तुमको कुछ भी पूछने की दरकार
नहीं है । मैं इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर ही अवतार लेता हूँ ।
मेरा जन्म भी वन्डरफुल है । तुम बच्चों को भी वंडर लगता है,
कितना बड़े ते बड़ा इम्तहान पास कराते हैं । बहुत बड़े ते बड़ा
विश्व का मालिक बनाने के लिए पढ़ाते हैं । वन्डरफुल बात है ना ।
हे आत्माओं,
हर 5
हजार वर्ष बाद मैं तुम्हारी सर्विस में आता हूँ । आत्माओं को
पढ़ाते है ना । कल्प-कल्प,
कल्प
के संगमयुगे तुम्हारी सेवा में आता हूँ । आधाकल्प तुम पुकारते
आये हो-हे बाबा,
हे
पतित-पावन आओ । कृष्ण को कोई पतित-पावन नहीं कहते हैं ।
पतित-पावन परमपिता परमात्मा को ही कहते हैं । तो बाबा को भी
आना पड़ेगा पतितों को पावन बनाने,
इसलिए कहा जाता है- अकाल मूर्त-सत बाबा,
अकाल
मूर्त-सत टीचर,
अकालमूर्त-सतगुरू । सिख लोगों के भी बहुत अच्छे स्लोगन हैं ।
परन्तु उन्हों को यह पता नहीं है कि सतगुरू अकाल मूर्त आते कब
हैं । यह भी गायन है-मनुष्य से देवता किये करत न लागी वार । कब
आकर मनुष्य को देवता बनाते हैं?
वही
सर्व की सद्गति करने वाला है,
यह
तो पक्का निश्चय होना चाहिए । क्या आकर कहते हैं?
सिर्फ कहते हैं मनमनाभव । उसका अर्थ भी समझाते हैं और कोई भी
अर्थ नहीं समझाते । तुमको सतगुरू अकाल मूर्त बैठ समझाते हैं इस
देह द्वारा कि अपने को आत्मा समझो,
तो
यह समझना चाहिए । विश्व का मालिक बनाने के लिए बाप को आना पड़ता
है - तुम बच्चों की सेवा में । समझाते हैं-हे रूहानी बच्चों,
तुम
सतोप्रधान थे,
फिर
तमोप्रधान बने । यह सृष्टि का चक्र फिरता है ना । पावन दुनिया
इन देवताओं की ही थी । वह सब कहाँ गये?
यह
किसको भी पता नहीं । मूँझे हुए हैं । बाप आकर तुमको समझदार
बनाते हैं । बच्चे,
मैं
एक ही बार आता हूँ,
पावन
दुनिया में मैं आऊं ही क्यों
|
वहाँ
तो काल आ नहीं सकता । बाप तोकालों का काल है । सतयुग में आने
की दरकार ही नहीं । वहाँ काल भी नहीं आता तो महाकाल भी नहीं
आता । यह आकर सब आत्माओं को ले जाते है । खुशी से चलते हो ना
|
हाँ
बाबा,
हम
खुशी से चलने के लिए तैयार हैं । तब तो आपको बुलाया था कि इस
पतित दुनिया से पावन दुनिया में ले चलो वाया शान्तिधाम । यह
बातें घड़ी-घड़ी भूल न जाओ । परन्तु माया दुश्मन खड़ी है,
घड़ी-घड़ी भुला देती हैं । मैं मास्टर सर्वशक्तिमान् हूँ,
तो
माया भी शक्तिमान है । वह भी आधाकल्प तुम पर राज्य करती है,
भुला
देती है इसलिए रोज़-राज बाप को समझाना पड़ता है,
रोज़
सुजाग न करें तो माया बहुत नुकसान कर दे । खेल है पवित्र और
अपवित्र का । अब बाप कहते हैं अपनी चलन सुधारने के लिए पवित्र
बनो । काम विकार के लिए कितने झगड़े होते हैं ।
बाप
कहते हैं अभी तुमको ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है तो आत्मा को
ही देखो । इन जिस्मानी नेत्रों से देखो ही नहीं । हम सब
आत्मायें भाई- भाई हैं । विकार कैसे करें । हम अशरीरी आये थे,
फिर
अशरीरी बनकर जाना है । आत्मा सतोप्रधान आई थी,
सतोप्रधान बनकर जाना है स्वीट होम । मुख्य है ही पवित्रता की
बात । मनुष्य कहते हैं रोज़ वही बात समझाते हैं,
यह
तो ठीक है । परन्तु जो समझाया जाता है,
उस
पर चलें भी ना । करने के लिए समझाया जाता है । परन्तु कोई चलते
थोड़े
ही
है तो जरूर रोज़ रोज़ समझाना पड़े । ऐसे थोड़े ही कहते हैं-बाबा आप
जो रोज़ समझाते हो वह हमने अच्छी रीति समझ लिया है,
अब
हम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे । आप छूटे । ऐसे कहते
हैं क्या?
इसलिए बाबा को रोज़ समझाना पड़ता है । बात तो एक ही है । परन्तु
करते नहीं हैं ना । बाप को याद ही नहीं करते हैं । कहते
हैं-बाबा,
घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं । बाप को घड़ी-घड़ी कहना पड़ता है याद
दिलाने लिए । तुम भी एक-दो को यही समझाओ- अपने को आत्मा समझ
परमात्मा को याद करो तो तुम्हारे पाप कट जाये,
और
कोई उपाय नहीं । शुरू और अन्त में यही बात कहते हैं । याद से
ही सतोप्रधान बनना है । खुद ही लिखते हैं-बाबा,
माया
के तूफान भुला देते हैं । तो क्या बाप सावधान न करें,
छोड़
दे?
बाप
जानते हैं नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार है । जब तक सतोपधान नहीं
बने हैं,
जा
नहीं सकते हैं । लड़ाई का भी कनेक्शन है ना । लड़ाई लगेगी ही तब,
जब
तुम नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार सतोप्रधान बनेंगे । ज्ञान तो एक
सेकण्ड का है । बेहद के बाप को पाया,
अब
उनसे बेहद का सुख तब मिलेगा जब पवित्र बनेंगे । पुरूषार्थ
अच्छी रीति करना है । कई तो कुछ भी समझते नहीं हैं । बाप को
याद करने का अक्ल भी नहीं आता है । कभी यह पढ़ाई तो पढ़ी नहीं है
। सारे चक्र में निराकार बाप से कोई पढ़ा नहीं है । तो यह नई
बात है ना । बाप कहते हैं मैं तो हर 5 हजार वर्ष बाद आता हूँ -
तुमको सतोप्रधान बनाने । जब तक सतोप्रधान नहीं बने हो तब तक यह
पद पा नहीं सकेंगे । जैसे और पढ़ाई में फेल होते हैं वैसे इसमें
भी फेल होते हैं । शिवबाबा को याद करने से क्या होगा,
कुछ
नहीं समझते । बाप है तो जरूर बाप से स्वर्ग का वर्सा मिलना है
। बाप एक ही बार समझाते हैं,
जिससे तुम देवता बनते हो । तुम देवता बनेंगे फिर नम्बरवार सब
आयेंगे पार्ट बजाने । इतनी सब बातें बुढ़ियों आदि की बुद्धि में
बैठ न सकें । तो बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ बाप को याद
करो । बस,
वही
शिवबाबा सब आत्माओं का बाप है । शरीर का बाप तो हर एक का अपना-
अपना है । शिवबाबा तो है निराकार,
उनको
याद करते-करते पवित्र बन शरीर छोड़ फिर बाप के पास जाकर पहुँचना
है । बाप समझाते तो बहुत हैं परन्तु सब एकरस नहीं समझते हैं ।
माया भुला देती है । इनको युद्ध कहा जाता है । बाप कितना अच्छी
रीति बैठ समझाते हैं । कितनी बातों की स्मृति देते हैं । मुख्य
जो भूलें हुई है उनकी लिस्ट बनाओ । एक बाप सर्वव्यापी की ।
भगवानुवाच-मैं सर्वव्यापी नहीं हूँ । सर्वव्यापी तो 5 विकार
हैं,
यह
बड़ी भारी भूल है । गीता का भगवान् कृष्ण नहीं,
परमपिता परमात्मा शिव है । इन भूलों को सुधारों तो देवता बन
जायेंगे । परन्तु ऐसे कभी कोई बच्चे ने लिखा नहीं है कि ऐसे
हमने समझाया कि इन भूलों के कारण ही भारत पावन से पतित बना है
। वह भी बताना पड़े । भगवान सर्वव्यापी हो कैसे सकता । भगवान तो
एक है जो सुप्रीम बाप,
सुप्रीम टीचर,
सुप्रीम सतगुरू है । कोई भी देहधारी को सुप्रीम फादर,
टीचर,
सतगुरू कह नहीं सकते । कृष्ण तो सारी सृष्टि में सबसे ऊंचा है
। जब सृष्टि सतोप्रधान होती है,
तब
वह आते हैं फिर सतो में राम,
फिर
नम्बरवार अपने समय पर ही आयेंगे । शास्त्रों में दिखाते हैं ।
सबके विकार ले ले कर गला ही काला हो गया । लेकिन अभी
समझाते-समझाते गला ही सूख जाता है । बात कितनी थोड़ी है परन्तु
माया कितनी जबरदस्त है । हर एक अपने दिल से पूछे-हम ऐसे गुणवान
सतोप्रधान बने हैं?
बाप
समझाते हैं जब तक विनाश नहीं हुआ है तब तक तुम कर्मातीत अवस्था
को पा नहीं सकेंगे । भल कितना भी माथा मारो । सारा समय शिवबाबा
को बैठ याद करो और कोई बात ही नहीं करो । बस बाबा लड़ाई से पहले
मैं कर्मातीत अवस्था को पाकर दिखाऊंगा,
ऐसा
कोई निकले-ऐसा ड्रामा में हो नहीं सकता । पहले नम्बर में तो एक
ही जाना है । यह भी कहते हैं हमको कितना माथा मारना पड़ता है ।
माया तो और ही रूसतम बनकर आती है । बाबा खुद कहते हैं मेरे तो
बाजू में एकदम शिवबाबा बैठा है,
तो
भी मैं याद नहीं कर सकता हूँ,
भूल
जाता हूँ । समझता हूँ मेरे साथ बाबा है । फिर मुझे भी तो याद
करना पड़ता है,
जैसे
तुम करते हो । ऐसे नहीं,
मैं
तो साथ हूँ,
इसमें ही खुश हो जाना है । नहीं,
मुझे
भी कहते हैं-निरन्तर याद करो । साथ वाले तुम रूसतम हो,
तुमको तो और ही जास्ती तूफान आयेंगे । नहीं तो बच्चों को कैसे
समझा सकेंगे । यह सब तूफान तो तुमसे पास होंगे । मैं उनके इतने
नजदीक बैठे हुए भी कर्मातीत अवस्था को पा नहीं सकता हूँ तो फिर
दूसरा कौन बनेगा । यह मंज़िल बहुत ऊंची है । ड्रामा अनुसार सब
पुरूषार्थ करते रहते हैं । भल कोई ऐसी कोशिश करके दिखाये-बाबा,
हम
आपसे पहले कर्मातीत अवस्था को पाकर यह बनकर दिखाते हैं । हो
नहीं सकता । यह ड्रामा बना बनाया है ।
तुमको पुरूषार्थ बहुत करना है । मुख्य सारी बात है कैरेक्टर्स
की । देवताओं के कैरेक्टर्स और पतित मनुष्यों के कैरेक्टर्स
में कितना फर्क है । तुमको विकारी से निर्विकारी बनाने वाला
शिवबाबा है । तो अब पुरूषार्थ कर बाप को याद करना पड़े । भूलो
नहीं । बाकी अबलायें बिचारी परवश हैं अर्थात् रावण के वश हैं
तो क्या कर सकती है । तुम हो राम ईश्वर के वश । वह हैं रावण के
वश । तो युद्ध चलती है । बाकी राम और रावण की युद्ध नहीं होती
है । बाप तुम बच्चों को भिन्न-भिन्न प्रकार से रोज़ समझाते
हैं-मीठे-मीठे बच्चों,
अपने
को सुधारते जाओ । रोज़ रात को पोतामेल देखो,
सारे
दिन में कोई आसुरी चलन तो नहीं चली?
बगीचे में फूल नम्बरवार तो होते ही हैं । दो एक जैसे कभी हो
नहीं सकते । सभी आत्माओं को अपना- अपना पार्ट मिला हुआ है । हर
एक एक्टर्स पार्ट बजाते रहते हैं । बाप भी आकर स्थापना का
कार्य करके ही छोड़ते हैं । हर 5 हजार वर्ष के बाद आकर विश्व का
मालिक बना ही देते हैं । बेहद का बाप है ना तो जरूर नई दुनिया
का वर्सा देंगे । अच्छा
|
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1.
ज्ञान के तीसरे नेत्र से आत्मा को ही देखना है
। जिस्मानी नेत्रों से देखना ही नहीं है । अशरीरी बनने का
अभ्यास करना है ।
2.
बाप की याद से अपने दैवी कैरेक्टर बनाने हैं ।
अपने दिल से पूछना है कि हम कहाँ तक गुणवान बने हैं?
हमने सारे दिन में आसुरी चलन तो नहीं चली?
वरदान:-
बालक
सो मालिकपन की स्मृति से सर्व खजानों को अपना बनाने वाले
स्वराज्य अधिकारी भव
!
इस
समय आप बच्चे सिर्फ बालक नहीं हो लेकिन बालक सो मालिक हो,
एक
स्वराज्य अधिकारी मालिक और दूसरा बाप के वर्से के मालिक । जब
स्वराज्य अधिकारी हो तो स्व की सर्व कर्मेन्द्रियाँ आर्डर
प्रमाण हो । लेकिन समय प्रति समय मालिकपन की स्मृति को भुलाकर
वश में करने वाला यह मन है इसलिए बाप का मन्त्र है मनमनाभव ।
मनमनाभव रहने से किसी भी व्यर्थ बात का प्रभाव नहीं पड़ेगा और
सर्व खजाने अपने अनुभव होंगे ।
स्लोगन:-
परमात्म मुहब्बत के झूले में उड़ती कला की मौज मनाना यही सबसे
श्रेष्ठ भाग्य है । 
ओम्
शान्ति |