26-01-14     प्रातः मुरली   ओम् शान्ति    “अव्यक्त-बापदादा    रिवाइज: 07-06-77 मधुबन
 


“संगमयुग (धर्माऊयुग) को विशेष वरदान – चढ़ती कला सर्व का भला”

सभी समय के प्रमाण स्वयं को चढ़ती कला में हर सेकेण्ड वा संकल्प में अनुभव करते हो? क्योंकि यह तो सब जानते हो कि यह छोटा सा संगमयुग ही चढ़ती कला का है | इस युग को वा समय को ड्रामानुसार वरदान मिला हुआ है – ‘चढ़ती कला सर्व का भला’ – और कोई भी युग को ऐसा वरदान प्राप्त नहीं है |

संगमयुग को धर्माऊयुग भी कहा जाता है अर्थात् यथार्थ धर्म और यथार्थ कर्म करने वाली श्रेष्ठ आत्माएं इस धर्माऊयुग में पार्ट बजाती हैं | धर्म सत्ता, राज्य सत्ता, विज्ञान की सत्ता, सर्व सत्ताएं इस युग में ही अपना विशेष पार्ट दिखाती हैं अर्थात् इस समय ही यह तीनों सत्ताएं आत्माओं को प्राप्त होती हैं | ऐसे श्रेष्ठ समय के विशेष पार्टधारी कौन हैं, स्वयं को ऐसे श्रेष्ठ समय पर पार्टधारी समझते हो?
 

चढ़ती कला का आधार आप विशेष आत्माओं के ऊपर है | आपकी चढ़ती कला से ही सर्व आत्माओं का भला अर्थात् कल्याण होता है | सर्व आत्माओं की बहुत समय की आशाएं मुक्ति को प्राप्त करने की, आपकी चढ़ती कला के आधार से ही पूर्ण होती हैं | सर्व आत्माओं के मुक्ति प्राप्ति करने का आधार आप आत्माओं के जीवन-मुक्ति की प्राप्ति है | ऐसे अपने को आधार मूर्त समझ चलते हो? देने वाला दाता बाप है – लेकिन निमित्त किसको बनाया है? वर्सा बाप द्वारा प्राप्त होता है, लेकिन बाप भी निमित्त बच्चों को बनाते हैं | इतना अटेन्शन हर कदम अपने ऊपर रहता है कि हम विशेष आत्माओं के आधार से सर्व आत्माओं का भला है | यह स्मृति रखने से अलबेलापन और आलस्य समाप्त हो जायेगा, जो वर्तमान समय किसी न किसी रूप में मैजारिटी में दिखाई देता है | जिस कारण चढ़ती कला के बजाए रूकती कला में आ जाते हैं और इस रुकने की कला में भी बहुत होशियार हो गये हैं | होशियारी क्या करते हैं? ज्ञान की सुनी हुई बातें वा समय प्रति समय जो युक्तियाँ बाप द्वारा मिलती रहती हैं, उन युक्तियों वा बातों को यथार्थ रीति से यूज़ नहीं करते, मिस यूज़ करते हैं | भाव को बदल बोल को पकड़ लेते हैं | अपने पुराने स्वभाव के वशीभूत हो यथार्थ भाव को स्वभाव वश बदल लेते हैं | 

जैसे बापदादा बच्चों को मास्टर त्रिकालदर्शी बनाने के लिए ड्रामा के सर्व रहस्य बच्चों के आगे स्पष्ट करते हैं | बाप ड्रामा के राज़ अनुसार पुरुषार्थियों के नम्बर वा राजधानी के रहस्य सुनाते हैं कि ड्रामा में राजधानी में सब प्रकार के पद पाने वाले होते हैं वा माला नम्बरवार बनती है, तो सब महारथी तो बनेंगे नहीं अथवा सभी विजयमाला में तो आयेंगे नहीं | सब महाराजा तो बनेंगे नहीं | इसलिए हमारा पार्ट ही ऐसा दिखाई देता है | बाप सुनाते हैं एडवान्स में जाने के लिए, लेकिन बच्चे एडवान्स में जाने की बजाए उल्टा एडवान्टेज़ उठा लेते हैं अर्थात् अपने अलबेलेपन और आलस्य को नहीं मिटाते लेकिन बाप की बात का भाव बदल उसी बात को आधार बना देते हैं | और बाप को सुनाते हैं कि आपने ऐसे कहा | इसी प्रकार अपने भिन्न-भिन्न स्वभाव के वश यथार्थ बातों का भाव बदल, रूकती कला की बाज़ी बहुत अच्छी दिखाते हैं | मायाजीत बनने की युक्तियों को समय पर कार्य में लगाने का अटेन्शन खुद कम रखते हैं, लेकिन अपने आपको बचने का साधन बाप के बोल को यूज़ करते हैं | क्या कहते हैं कि आपने ही तो कहा है कि माया बड़ी दुस्तर है | ब्रह्मा बाप को भी नहीं छोडती, महारथियों को भी माया वार करती है | जब ब्रह्मा बाप को भी नहीं छोडती, महारथियों को भी नहीं छोडती तो हमारे पास आई और हार खाई तो क्या बड़ी बात है, यह तो होना ही है, अन्त तक यह तो चलना ही है! इस प्रकार पुरुषार्थ में रुकने के बोल, अपना आधार बनाए चढ़ती कला में जाने से वंचित हो जाते हैं | बाप कहते हैं माया आयेगी लेकिन मायाजीत जगतजीत बनने वाले कौन गाए हुए हैं? अगर माया ही न आवे तो बिना दुश्मन का सामना करने कोई विजयी कहलाते हैं? माया आएगी लेकिन हार खाना – यह तो बाप नहीं कहते | माया पर वार करना है न कि हार खाना है | कल्प-कल्प के विजयी रत्न हैं और विजयी बनकर ही दिखायेंगे – यह समर्थ बोल भूल जाते हैं | लेकिन अपनी कमज़ोरी के कारण बाप के बोल को भी कमज़ोर बना देते हैं | जैसे ब्रह्मा बाप ने मायाजीत बन जगतजीत का पद प्राप्त कर ही लिया, जो कल्प-कल्प की नूँध यादगार रूप में भी है | तो जैसे बाप ब्रह्मा ने माया प्रबल होते हुए भी, स्वयं को बलवान बनाया; न कि घबराया | तो ऐसे फॉलो फादर करो | 

विजयी बनने का भाव उठाओ | पुरुषार्थहीन होने का भाव, अपने अल्प बुद्धि के प्रमाण समझते हुए स्वयं को धोखा मत दो | बाप के हर बोल में हर आत्मा के तीनों काल का कल्याण भरा हुआ है, तब ही विश्व कल्याणी गाये हुए हैं | कल्याण के बोल को स्वयं के अकल्याण अर्थ कार्य में नहीं लगाओ | आजकल मैजारिटी इसी प्रकार के नॉलेजफुल बहुत हैं | इस प्रकार के नॉलेजफुल समझने से अपने को समझदार सिद्ध करने का तरीका बहुत अच्छा आता है | व्यर्थ कर्म वा रॉयल रूप में विकर्म कहें | लेकिन अपने को समझदार सिद्ध करने का तरीका बहुत अच्छा आता है | व्यर्थ कर्म वा रॉयल रूप के विकर्म जो दिखाई कुछ देते हैं, लेकिन होता है स्वयं को और दूसरों को नुकसान दिलाने वाला | उसकी परख ही है, ऐसे कर्म करने से स्वयं भी अन्दर से सन्तुष्ट नहीं होगा | ख़ुशी का अनुभव, शक्ति का अनुभव नहीं करेगा | अपने को गुणों से, शक्तियों से ख़ज़ाने से खाली अनुभव करेगा | लेकिन बाहर से देह अहंकार के कारण, समझ का अहंकार होने के कारण अपनी समझदारी को स्पष्ट करता रहेगा | उसका हर बोल अन्दर से खाली, लेकिन बाहर से स्वयं को छिपाने का रूप होगा | जैसे कहावत भी है  ‘खाली वस्तु आवाज़ ज़्यादा करती है |’ दिखावा बहुत होता है लेकिन अन्दर का धोखा, बाहर का दिखावा होता है | साथ-साथ ऐसे कर्मों का परिणाम अनेक ब्राह्मण आत्माएं और दुनिया की अज्ञानी आत्माओं की डिस-सर्विस करने के निमित्त बन जाते हैं | ऐसे विकर्मों वा व्यर्थ कर्मों के कारण एक स्वयं से डिससैटिस्फाय (असन्तुष्ट), दूसरा अनेकों की डिससर्विस, इस कारण चढ़ती कला की बजाए रूकती कला में आ जाते हैं |

अपने आप को चेक करो, चलते-चलते ख़ुशी कम क्यों हो जाती है? वा तीव्र पुरुषार्थ का उमंग, उत्साह कम क्यों हो जाता है? वा योगयुक्त की बजाए व्यर्थ संकल्पों की तरफ़ क्यों भटक जाते हैं? वा अपने स्वभाव-संस्कारों का बन्धन क्यों नहीं चुक्तू होता? कारण क्या होता है? कारण जानते हो? विशेष कारण है – जैसे शुरू में आते हो तो बाप से प्राप्त हुए पुरुषार्थ की युक्तियों और मेहनत से करने लग जाते हो | दिन-रात थकावट अथवा माया की रुकावट आदि कोई की परवाह नहीं करते | बाप मिला, वर्सा पाना है, अधिकारी बनना है – इसी नशे में कदम को बहुत तीव्र रूप से आगे बढाते चलते हो | लेकिन अब क्या करते? जैसे आजकल के ज़माने में मेहनत करना मुश्किल लगता है | तनख्वाह चाहिए लेकिन मेहनत नहीं चाहिए | वैसे ब्राह्मण आत्माएं भी मेहनत से अलबेली हो जाती हैं वा आलस्य में आ जाती हैं | बनना सभी महावीर, महारथी चाहते लेकिन मेहनत प्यादे की भी नहीं करते | बनी बनाई स्टेज चाहते हैं – मेहनत से स्टेज बनाने नहीं चाहते | सोचेंगे हम कम किसमें भी न होवें, लिस्ट महारथियों में हो | लेकिन महारथी का वास्तविक अर्थ है ‘महारथी की महानता’, उसमें स्थिति होना मुश्किल अनुभव करते हैं | सहयोगी नाम का एडवान्टेज़ ठीक उठाते हैं | इस कारण जो कदम-कदम पर मेहनत और अटेन्शन चाहिए; पुरुषार्थी जीवन की स्मृति चाहिए, बाप के साथ की समर्थी चाहिए – वह प्रैक्टिकल में नहीं है | मेहनत नहीं करने चाहे, लेकिन बाप की मदद से पार होना चाहते हैं | बाप का काम ज़्यादा याद रखते हैं, अपना काम भूल जाते हैं, इस कारण जो युक्तियाँ बताई जाती हैं – वह कार्य में नहीं लगाते, समय पर यूज़ करने नहीं आती | लेकिन बार-बार बाप से पूछने आते हैं योग क्यों नहीं लगता, क्या करूँ? बन्धन क्यों नहीं कटता, क्या करूँ? जब रिवाईज़ कोर्स चल रहा है, रियलाइज़ेशन कोर्स चल रहा है, तो क्या कोर्स में बापदादा ने यह बताया नहीं है? कुछ रह गया है क्या, जो फिर सुनना पड़े? यह तो पहले दूसरे क्लास का कोर्स है | इस कारण सुने हुए को मनन करो | मनन न करने से शक्तिशाली न बन कमज़ोर हो गए हो और कमज़ोर होने के कारण बार-बार रुकते हो | चढ़ती कला का अनुभव नहीं कर पाते हो | इसलिए सदा यह याद रखो कि हम निमित्त बनी हुई आत्माओं की चढ़ती कला से ही सर्व का भला है | अच्छा | 

बाप को और बाप के हर बोल को यथार्थ रूप से समझने वाले, अपने पर सदा मेहनत से स्वयं को महान् बनाए सर्व को महान् बनाने वाले, हर कदम में चढ़ती कला का लक्ष्य और लक्षण अनुभव करने वाले, सदा स्वयं को अनेक प्रकार के माया के रॉयल रूप से बचाने वाले, ऐसे मायाजीत कल्प-कल्प के विजयी रत्नों को बापदादा का याद, प्यार और नमस्ते|” 

पार्टियों से

सदा निश्चय बुद्धि विजयी रत्न हैं – यह स्मृति रहती है? निश्चय का फल है – विजय | कोई भी कार्य करते हैं, अगर कार्य करते हुए स्वयं में, बाप में, ड्रामा में निश्चय है, सब प्रकार से निश्चय है तो कभी भी विजय न हो ऐसा हो नहीं सकता | अगर हार होती है तो उसका कारण – निश्चय में कमी | अगर स्वयं में भी संशय है – यह होगा – नहीं होगा’ सफलता होगी या नहीं, तो भी सम्पूर्ण निश्चय नहीं कहेंगे | निश्चय बुद्धि का संकल्प दृढ़ होगा, कमज़ोरी का नहीं | जो होगा वह कर लेंगे, यह भी संशय का संकल्प है | जो होगा नहीं, हुआ ही पड़ा है – ऐसा निश्चय | कर्म करने के पहले भी निश्चय हो कि हुआ ही पड़ा है | ऐसी स्टेज है? कैसी भी माया आवे लेकिन डगमग न हों | निश्चय बुद्धि हर तूफ़ान व माया के विघ्न को ऐसे पार करेगा जैसे कुछ है ही नहीं | जैसे साइन्स के साधन हैं तो गर्मी होते भी उसके लिए गर्मी नहीं है | ऐसे जो निश्चयबुद्धि होगा उनके आगे माया के तूफ़ान आयेंगे लेकिन उसके लिए बड़ी बात नहीं होगी | सेफ़ रहने के साधन उसके पास हैं तो मायाजीत बन जायेंगे | 

हर कार्य में स्वयं निश्चयबुद्धि | ऐसा निश्चय बुद्धि सदा साक्षी होकर अपना पार्ट भी देखते और दूसरों का भी देखते विचलित नहीं होते | क्या, क्यों में नहीं जाते | 

स्थापना के कार्य में जो आदि रत्न हैं, उन्हें आदि रत्न का नशा है? यह नशा भी ख़ुशी दिलाता है | जिस भाग्य को आज स्वप्न में भी देखने की इच्छा रखते, वह भाग्य आपने प्रैक्टिकल जीवन बिताकर अनुभव किया | आप लोगों ने चेतन्य में अनुभव किया, अभी सब चरित्र सुनने वाले हैं; तो यह कम भाग्य है क्या? और किसी भी प्रकार का भाग्य अभी भी प्राप्त कर सकते, लेकिन यह भाग्य प्राप्त नहीं कर सकते | ऐसा भाग्य तो कोटों में कोऊ, कोई ने कोई को प्राप्त होता है | अगर आदि में आने वाले और कुछ भी याद न करें, सिर्फ़ भाग्य का सुमिरण करते रहें कि कल्प-कल्प का नूँधा हुआ हमारा पार्ट है तो भी सदा ख़ुश रहेंगे | ब्राह्मणों की विशेषता है ख़ुशी | ख़ुशी नहीं तो ब्राह्मण नहीं | 

वर्तमान समय विदेश से फ़ास्ट सर्विस शुरू हो रही है | थोड़े समय में बहुतों को एक ही समय सब साधनों से पैगाम देने का शुरू हो गया है, जैसे अभी विदेश सन्देश देने में ज़्यादा सहयोगी हैं | सब साधन सहज ही प्राप्त होते जा रहे हैं, यही कॉपी विदेश से भारत करेगा | भारतवासी फ़्राक दिल नहीं होते हैं; संकोच वाले होते हैं | और विदेशी फ़्राक दिल होते हैं | तो यही वहाँ का आवाज़ भारत तक पहुँचते भारत को शिक्षा मिलेगी, शर्म आयेगा कि विदेशी हमारे भारत की फिलासाफी को महत्व देते और हम नहीं देते | यह एक ही समय में सब साधनों द्वारा फ़ास्ट सर्विस का फाउन्डेशन फैलता जा रहा है | हर वर्ष कोई नवीनता चाहिए | तो विदेश से यह आकर्षित होंगे ज्ञान और योग की नॉलेज में | यह भारतवासियों को एक पाठ मिल जायेगा | जो भी होता है उस पार्ट में कोई न कोई विशेषता है | तो रेस्पान्ड चारों ओर के उमंग-उत्साह होने कारण अच्छा है | यह भी यादगार बनते जायेंगे | यही विदेश जहाँ-जहाँ ब्राह्मणों द्वारा सेवा का पार्ट चलता है, वही फिर भविष्य में सैर के स्थान बन जायेंगे | यादगार के रूप में बनेंगे, मन्दिर नहीं होंगे | प्रैक्टिकल स्थान की व्यू यादगार के रूप में होगी | विशेष नामी-ग्रामी व्यक्तियों द्वारा जो सेवा हो रही है, उससे भारत को शिक्षा भी मिल रही है और भविष्य राजधानी के स्थान भी निश्चित होते जा रहे हैं | अच्छा | 

वरदान:-   

सदा श्रेष्ठ समय प्रमाण श्रेष्ठ कर्म करते वाह-वाह के गीत गाने वाले भाग्यवान आत्मा भव !   

इस श्रेष्ठ समय पर सदा श्रेष्ठ कर्म करते “वाह-वाह” के गीत मन से गाते रहो | “वाह मेरा श्रेष्ठ कर्म या वाह श्रेष्ठ कर्म सिखलाने वाले बाबा” | तो सदा वाह-वाह! के गीत गाओ | कभी गलती से भी दुःख का नज़ारा देखते भी हाय शब्द नहीं निकलना चाहिए | वाह ड्रामा वाह! और वाह बाबा वाह! जो स्वप्न में भी नहीं था वह भाग्य घर बैठे मिल गया | इसी भाग्य के नशे में रहो | 

स्लोगन:- 
मन-बुद्धि को शक्तिशाली बना दो तो कोई भी हलचल में अचल अडोल रहेंगे |      

ओम् शान्ति |