25-03-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
सारी दुनिया में तुहारे जैसा पदमापदम भाग्यशाली स्टूडेन्ट कोई
नहीं, तुम्हें स्वयं ज्ञान सागर बाप टीचर बनकर पढ़ाते हैं

प्रश्न:-
कौन-सा शौक सदा बना रहे तो मोह की रगें टूट जायेंगी?
उत्तर:-
सर्विस करने का शौक बना रहे तो मोह की रगें टूट जायेंगी | सदा
बुद्धि में याद रहे कि इन आँखों से जो कुछ देखते हैं यह सब
विनाशी है | इसे देखते हुए भी नहीं देखना है | बाप की श्रीमत
है – हियर नो ईविल, सी नो ईविल......|
ओम्
शान्ति
|
शिव
भगवानुवाच मीठे सालिग्रामों या रूहानी बच्चों प्रति | यह तो
बच्चे समझते हैं हम सतयुगी आदि सनातन पवित्र देवी-देवता धर्म
के थे, तो यह याद रखना है | आदि सनातन देवी-देवता धर्म को तो
बहुत मानते हैं परन्तु देवता धर्म के बदले हिन्दू नाम रख दिया
है | तुम जानते हो हम आदि सनातन कौन थे? फिर पुर्नजन्म
लेते-लेते यह बने हैं | यह भगवान् बैठ समझाते हैं | भगवान् कोई
देहधारी मनुष्य नहीं है | और सबको अपनी अपनी देह है, शिवबाबा
को कहा जाता है विदेही | उनको अपनी देह नहीं है और सबको अपनी
देह है, तो अपने को भी ऐसा विदेही समझना कितना मीठा लगता है |
हम क्या थे, अब क्या बन रहे हैं | यह ड्रामा कैसा बना हुआ है –
यह भी तुम अभी समझते हो | यह देवी-देवता धर्म ही पवित्र गृहस्थ
आश्रम था | अभी आश्रम नहीं है | तुम जानते हो अभी हम आदि सनातन
देवी-देवता धर्म की स्थापना कर रहे हैं | हिन्दू नाम तो अभी
रखा है | आदि सनातन हिन्दू धर्म तो है नहीं | बाबा ने बहुत बार
कहा है – आदि सनातन धर्म वालों को समझाओ | बोलो, इसमें लिखो
आदि सनातन देवी-देवता पवित्र धर्म के हो या हिन्दू धर्म के हो?
तो उनके 84 जन्मों का मालूम पड़े | यह नॉलेज तो बहुत सहज है |
सिर्फ़ लाखों वर्ष कहने से मनुष्य मूँझ पड़ते हैं | यह भी ड्रामा
में नूँध है | सतोप्रधान से तमोप्रधान बनने का भी ड्रामा में
पार्ट है | देवता धर्म वाले ही 84 जन्म लेते-लेते कितने छी-छी
बन पड़े हैं | पहले भारत कितना ऊँच था | भारत की ही महिमा करनी
चाहिए | अब फिर तमोप्रधान, पुरानी दुनिया से नई दुनिया ज़रूर
बननी है | आगे चलकर तुम्हारी बात को समझेंगे ज़रूर | बोलो, घोर
नींद से जागो | बाप और वर्से को याद करो | तुम बच्चों को सारा
दिन ख़ुशी रहनी चाहिए | सारी दुनिया में, सारे भारत में
तुम्हारे जैसे पदमापदम भाग्यशाली स्टूडेन्ट कोई नहीं | समझते
हो जो हम थे वही फिर बनेंगे | छांट करके फिर वही निकलेंगे |
इसमें तुम मूँझो मत | प्रदर्शनी में थोड़ा भी सुनकर जाते हैं तो
वह भी प्रजा बनती जाती है क्योंकि अविनाशी ज्ञान धन का तो
विनाश नहीं होता है | दिन-प्रतिदिन तुम्हारी संस्था जोर भरती
जायेगी | फिर ढेरों के ढेर तुम्हारे पास आयेंगे | धीरे-धीरे
धर्म की स्थापना होती है | जब कोई बड़ा आदमी बाहर से आता है तो
उनका मुँह देखने के लिए कितने ढेर मनुष्य जाते हैं | यहाँ तो
वह बात नहीं | तुम जानते हो इस दुनिया में जो भी चीज़ें हैं, सब
विनाशी हैं | उन्हें नहीं देखना है | सी नो ईविल....यह किचड़ा
तो भस्म होने वाला है | जो भी कुछ देखते हैं मनुष्य आदि, समझते
हैं यह तो सब कलियुगी हैं | तुम हो संगमयुगी ब्राह्मण |
संगमयुग को कोई जानते नहीं | इतना सिर्फ़ याद करो – यह संगमयुग
है, अब घर जाना है | पवित्र भी ज़रूर बनना है | अब बाप कहते हैं
यह काम विकार आदि-मध्य-अन्त दुःख देने वाला है, इसको जीतो |
विष के लिए देखो कितना तंग करते है | बाप कहते हैं काम
महाशत्रु है, उसको जीतना है | अब इस समय कितने ढेर मनुष्य हैं
दुनिया में | तुम एक-एक को कहाँ तक समझायेंगे | एक को समझाते
हो तो दूसरा कहता है जादू है, फिर पढ़ाई छोड़ देते हैं इसलिए बाप
कहते हैं आदि सनातन धर्म वालों को समझाओ | आदि सनातन है ही
देवता धर्म | तुम समझाते हो इन लक्ष्मी-नारायण ने यह पद कैसे
पाया? मनुष्य से देवता कैसे बने? ज़रूर अन्तिम जन्म होगा | 84
जन्म पूरे कर फिर यह बने | जिनको सर्विस का शौक है वह तो इसमें
लगे रहते हैं | और सब तरफ़ से मोह आदि टूट जाता है | हम इन
आँखों से जो कुछ देखते हैं इनको भूलना है | जैसे कि देखते ही
नहीं हैं | सी नो ईविल...... | मनुष्य तो बन्दरों का चित्र बना
देते हैं | समझते कुछ भी नहीं | बच्चियाँ कितनी मेहनत करती हैं
| बाबा उन्हें आफरीन दते हैं, जो समझाकर लायक बनाती हैं |
प्राइज़ भी उन्हों को ही मिलती है, जो काम करके दिखाते हैं |
तुम जानते हो बाबा हमको कितनी प्राइज़ देंगे | पहला नम्बर है
सूर्यवंशी राजधानी की प्राइज़ | सेकेण्ड नम्बर है चन्द्रवंशी की
प्राइज़ | नम्बरवार तो होते ही हैं | भक्ति मार्ग के शास्त्र भी
कितने बैठ बनाते हैं | अब बाप समझाते हैं इन शास्त्र पढने,
यज्ञ-तप करने से मेरे से कोई मिलता नहीं है | दिन-प्रतिदिन
कितने पाप आत्मा बनते जाते हैं | पुण्य आत्मा कोई बन न सके |
बाप ही आकर पुण्य आत्मा बनाते हैं | एक है हद का दान-पुण्य,
दूसरा है बेहद का | भक्ति मार्ग में इनडायरेक्ट ईश्वर अर्थ
दान-पुण्य करते हैं परन्तु ईश्वर किसको कहा जाता है यह जानते
ही नहीं | अभी तुम जानते हो | तुम कहते हो कि शिवबाबा ही हमको
क्या से क्या बनाते हैं! भगवान् तो एक ही है | उनको फिर
सर्वव्यापी कह दिया है | तो उनको समझाना चाहिए कि यह तुम लोगों
ने क्या किया है | तुम्हारे पास आते भी हैं, थोड़ा सुनकर बाहर
गये, ख़लास | यहाँ की यहाँ रही | सब भूल जाता है | तुमको कहते
हैं ज्ञान बहुत अच्छा है, हम फिर आयेंगे | परन्तु मोह की रगें
टूटती नहीं हैं | मोह जीत राजा की कथा कितनी अच्छी है | मोहजीत
राजा फर्स्टक्लास यह लक्ष्मी-नारायण हैं | परन्तु मनुष्य समझते
ही नहीं | वन्डर है | रावण राज्य में सीढी उतरते एकदम नीचे
गिर जाते हैं | बच्चों का खेल होता है ना | ऊपर जाकर फिर नीचे
गिरते हैं | तुम्हारा भी खेल बहुत सहज है | बाप कहते हैं अच्छी
रीति धारणा करो | कोई छी-छी काम नहीं करो | बाप कहते हैं मैं
बीजरूप सत चित आनन्द स्वरूप हूँ | ज्ञान का सागर हूँ | अब
ज्ञान का सागर ऊपर बैठा रहेगा क्या? ज़रूर कभी आकर ज्ञान दिया
होगा | ज्ञान क्या चीज़ है, यह भी किसको मालूम नहीं है | अब बाप
कहते हैं मैं तुमको पढ़ाने आता हूँ तो रेग्युलर पढ़ना चाहिए | एक
दिन भी पढ़ाई मिस नहीं करनी चाहिए | कोई न कोई प्वाइन्ट ज़रूर
अच्छी मिलेगी | मुरली नहीं पढ़ेंगे तो ज़रूर प्वाइन्ट्स मिस हो
जायेंगी | अथाह प्वाइन्ट्स हैं | यह भी तुमको समझाना है कि तुम
भारतवासी आदि सनातन देवी-देवता धर्म के थे | अभी कितने ढेर
धर्म हैं | फिर हिस्ट्री मस्ट रिपीट | यह चढ़ने और उतरने की
सीढी है | जैसे जिन्न को हुक्म दिया – सीढी उतरो और चढ़ो | तुम
सब जिन्न हो ना | 84 की सीढी चढ़ते हो फिर उतरते हो | कितने ढेर
मनुष्य हैं | हर एक को कितना पार्ट बजाना होता है | बच्चों को
तो बड़ा वन्डर लगना चाहिए | तुमको बेहद के नाटक की पूरी पहचान
मिली है | सारे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को अभी तुम ही जानते
हो | कोई भी मनुष्य नहीं जान सकते हैं | सतयुग में किसके मुख
द्वारा कोई भी कुवचन नहीं निकलते हैं | यहाँ तो एक-दो को गाली
देते रहते हैं | यह है विषय वैतरणी नदी, रौरव नर्क | सभी
मनुष्य रौरव नर्क में पड़े हैं | यहाँ तो है यथा राजा रानी तथा
प्रजा | तुम्हारी विजय होनी है अन्त में, जब समझेंगे आदि सनातन
देवी-देवता धर्म की स्थापना किसने की? यही पहले नम्बर की मुख्य
बात है, जो कोई नहीं जानते |
बाप
कहते हैं मैं तो हूँ ही गरीब निवाज़ | यह पिछाड़ी को समझेंगे, जब
टू लेट हो जाते हैं | अब तुमको तीसरा नेत्र मिला है | स्वीट घर
और स्वीट राजाई बुद्धि में याद है | बाप कहते हैं अब
शान्तिधाम-सुखधाम में जाना है | तुमने जो पार्ट बजाया अब
बुद्धि में तो आता है ना | और सब मरे पड़े हैं, सिवाए तुम
ब्राह्मणों के | ब्राह्मण ही खड़े हो जायेंगे | ब्राह्मण ही सो
देवता बनते हैं | यह एक धर्म स्थापन हो रहा है | और धर्म कैसे
स्थापन होते हैं, यह भी बुद्धि में है | समझाने वाला एक बाप है
| ऐसे बाप को घड़ी-घड़ी याद करना चाहिए | धन्धा आदि भल करो सिर्फ़
पवित्र बनो | आदि सनातन देवी-देवता धर्म पवित्र था | अब फिर
पवित्र बनना है | चलते-फिरते मुझ बाप को याद करो तो तुम
सतोप्रधान बन जायेंगे | ताकत तब आयेगी जब सतोप्रधान बनेंगे |
सिवाए याद की यात्रा तुम ऊँच ते ऊँच पद कभी भी पा नहीं सकते हो
| जब सतोप्रधान तक पहुँचेंगे तब ही पाप कटेंगे | यह है योग
अग्नि – यह अक्षर गीता के है | योग-योग कह माथा मारते हैं |
विलायत से भी फँसाकर ले आते हैं – योग सिखाने के लिए | अब जब
तुम्हारी बात कोई समझे | परमात्मा सुप्रीम सोल तो एक ही है |
वही आकर सबको सुप्रीम बनाते हैं | एक दिन अख़बार वाले ऐसी-ऐसी
बातें डालेंगे | यह तो बरोबर है | राजयोग सिवाए एक परमपिता
परमात्मा के और कोई सिखला न सके | ऐसी बातें बड़े-बड़े अक्षरों
में डालनी चाहिए | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
सूर्यवंशी राजधानी की प्राइज़ लेने के लिए बापदादा की आफ़रीन
लेनी है | सर्विस करके दिखाना है | मोह की रगें तोड़ देनी हैं |
2.
ज्ञान सागर विदेही बाप स्वयं पढ़ाने आते हैं इसलिए रोज़ पढ़ना है
| एक दिन भी पढ़ाई मिस नहीं करनी है | बाप समान विदेही बनने का
पुरुषार्थ करना है |
वरदान:-
सेवा
द्वारा मेवा प्राप्त करने वाले सर्व हद की चाहना से परे सदा
सम्पन्न और समान भव
! 
सेवा
का अर्थ है मेवा देने वाली | अगर कोई सेवा असन्तुष्ट बनाये तो
वो सेवा, सेवा नहीं है | ऐसी सेवा भल छोड़ दो लेकिन सन्तुष्टता
नहीं छोड़ो | जैसे शरीर की तृप्ति वाले सदा सन्तुष्ट रहते हैं
वैसे मन की तृप्ति वाले भी सन्तुष्ट होंगे | सन्तुष्टता तृप्ति
की निशानी है | तृप्त आत्मा में कोई भी हद की इच्छा, मान, शान,
सैलवेशन, साधन की भूख नहीं होगी | वे हद की सर्व चाहना से परे
सदा सम्पन्न और समान होंगे |
स्लोगन:-
सच्ची
दिल से निःस्वार्थ सेवा में आगे बढ़ना अर्थात् पुण्य का खाता
जमा होना
|
ओम् शान्ति
|