14-09-14    प्रातः मुरली   ओम् शान्ति  “अव्यक्त-बापदादा”   रिवाइज:14-12-78   मधुबन
 


विघ्नों से मुक्त होने की सहज युक्ति

                                                        
बापदादा सदा अपने सिकीलधे लाडले बच्चों को स्नेह की नजर से, अपने सर्व श्रेष्ठ सिरताज बच्चों को उसी पदमापदम भाग्यशाली रूप में देखते हुए सदा खुश होते हैं कि कल्प पहले वाले बिछुड़े हुए बच्चे कितना श्रेष्ठ पद पाने के योग्य बने हैं । हर बच्चे की योग्यता, हर बच्चे की विशेषता बापदादा के आगे सदा स्पष्ट है और बापदादा हर बच्चे की विशेषता के मूल्य को जानते हुए हर एक को अमोलक रत्न समझते हैं । सदैव बापदादा के स्मृति स्वरूप सदा सहयोगी बच्चे हैं । बापदादा अपने वैरायटी मूल्यवान रत्नों के ही सदा साथ रहते हैं । ऐसे अमूल्य रत्न जिन्हों को बाप ने अपने गले का हार बनाया, दिलतख्त नशीन बनाया, नयनों के सितारे बनाया, सिर का ताज बनाया, विश्व में अपने साथ-साथ पूज्यनीय बनाया, अनेक भक्तों के ईष्ट देव बनाया-ऐसे स्वमान में सदा स्थित रहते हो? जिस नजर से बापदादा देखते वा विश्व देखता उसी स्वरूप में सदा स्थित रहते हो

आज बाप और दादा दोनों की रूह-रूहाण चल रही थी बच्चों के ऊपर । बापदादा बोले- ' ' सहजयोगी बच्चे, राजऋषि बच्चे' ' चलते-चलते तीव्रगति के बजाए कभी कभी रूक जाते हैं-क्यों रूकते? अपने जीवन की भविष्य श्रेष्ठ मंजिल स्पष्ट दिखाई नहीं देती । आगे क्या होगा...... यह क्वेश्चन मार्क का पेपर सामने आ जाता है जिसके कारण तीव्रगति वा तीव्र पुरूषार्थ बदल पुरूषार्थ के रूप में हो जाता है । आई हुई रूकावट को मिटाने की वा पत्थर को पार करने की हिम्मत कम हो जाती है इसलिए चलते-चलते थक जाते हैं । कोई थक जाते, कोई दिलशिकस्त हो जाते अर्थात् अपने से नाउम्मीद हो जाते हैं । ऐसे समय पर बाप का सहारा मिलते हुए भी अपने को बेसहारे अनुभव करते हैं लेकिन बापदादा एक सेकण्ड का सहज साधन वा किसी भी विष्य से मुक्त होने की युक्ति जो समय प्रति समय सुनाते रहते हैं वह भूल जाते हैं । सेकण्ड में स्वयं का स्वरूप अर्थात् आत्मिक ज्योति स्वरूप और कर्म में निमित्त भाव का स्वरूप-यह डबल लाइट स्वरूप सेकण्ड में हाई जम्प दिलाने वाला है । लेकिन बच्चे क्या करते हैं? हाई जम्प के बजाए पत्थर को तोड़ने लग पड़ते हैं । हटाने लग जाते हैं । जिस कारण जो भी यथा शक्ति हिम्मत और हुल्लास है वह उसी में ही खत्म कर देते और थक जाते हैं वा दिलशिकस्त हो जाते हैं । जब ऐसी मेहनत बच्चों की देखते तो बापदादा को भी तरस पड़ता है । जम्प लगाओ और सेकण्ड में पार हो जाओ यह भूल जाते हैं । तो आज यह रूह-रूहाण हो रही थी कि बच्चे क्या करते और बापदादा क्या कहते । सहज मार्ग को थोड़ी सी विस्मृति के कारण इतना मुश्किल कर देते जो स्वयं ही थक जाते हैं ।

और क्या करते हैं? अपने ही व्यर्थ संकल्पों का तूफान स्वयं ही रचते और उसी तूफान में स्वयं ही हिल जाते । अपने निश्चय के फाउण्डेशन वा अनेक प्रकार की प्राप्तियों के आधार में स्वय ही हिल जाते हैं । नामालूम विनाश होगा या नहीं होगा, भगवानुवाच ठीक है वा नहीं है, दुनिया के आगे निश्चय से कहें वा नहीं कहें, गुप्त रहें वा प्रत्यक्ष होवें’-जमा करें वा सेवा में लगायें....प्रवृत्ति को सम्भाले वा सेवा में लगें । आखिर भी क्या होना है! बाप तो निराकार और आकारी हो गये-साकार में सामना करने वाले तो हम हैं । ऐसे व्यर्थ सकल्पों का तूफान रच स्वयं को ही डगमग करते हैं | अपने निश्चय के फाउण्डेशन को हिला देते हैं । जैसे तूफान कहाँ पहुंचा देता है-वैसे यह व्यर्थ सकल्पों का तूफान तीव्र पुरूषार्थ से पुरूषार्थ तरफ ले आता है । ऐसे तूफानों में मत आओ-बापदादा ऐसे बच्चों से पूछते हैं कि क्या अबतक भी ट्रस्टी हो वा गृहस्थी हो? जब ट्रस्टी हो तो जिम्मेवार कौन? आप वा बाप? जब बाप जिम्मेवार है तो होगा या नहीं होगा, क्या होगा यह बाप की जिम्मेवारी है वा आपकी है

निश्चयबुद्धि की पहली निशानी क्या है? निश्चयबुद्धि अर्थात् सदा निश्चिन्त । जब बाप ने आपकी सब चिंतायें अपने ऊपर ले ली फिर आप क्यों चिंता करते हो । विनाश हो न हो वा कब होगा, यह चिंता ब्राह्मण जीवन में क्यों? क्या ब्राह्मण जीवन, हीरे तुल्य जीवन, बाप से मिलन मनाने की जीवन, चढ़ती कला की जीवन, सर्व खजानों से सम्पन्न होने वाली जीवन, सर्व अनुभूति सम्पन्न जीवन अच्छी नहीं लगती है? जल्दी समाप्त करने चाहते हो? कोई कष्ट वा तकलीफ है क्या? भक्तिमार्ग में यही पुकारा कि यह अतीन्द्रिय सुख की जीवन के दिन एक से चौगुने हो जायें- और अब थक गये हो? ऐसा संकल्प करने वाली के ऊपर बापदादा को हंसी आती है । अप्राप्ति क्या है जो ऐसे संकल्प उठाते हो? जब कल्याणकारी बाप कहते हो, कल्याणकारी जीवन कहते हो तो जो भी भगवानुवाच है उसमें अनेक प्रकार के कल्याण समाये हुए हैं । क्यों और कैसे कहा, इस संकल्प से निश्चयबुद्धि का फाउण्डेशन हिलाते क्यों हो? अगर ऐसे छोटे-छोटे तूफानों में फाउण्डेशन हिल जाता है तो महाविनाश के महान तूफान में कैसे ठहर सकेंगे? यह तो सिर्फ एक अपने व्यर्थ संकल्पों का तूफान है लेकिन महाविनाश में तो अनेक प्रकार के चारों ओर के तूफान होंगे फिर क्या करेंगे? इतनी छोटी सी बात में जिसमें और ही आगे के लिए समय मिला है, साथ मिला है, अनेक प्रकार के खजाने मिल रहे हैं, प्राप्ति होते हुए समाप्ति की उत्कण्ठा क्यों करते हो? सुख के दिनों में धीरज धरो । कब और क्यों के अधीर्य में मत आओ । अपने ही व्यर्थ संकल्पों के तूफान समाप्त करो, सम्पत्तिवान बनो, समर्थीवान बनो । सदा निश्चयबुद्धि । कल्याणकारी बाप और कल्याणकारी समय का हर सेकण्ड लाभ उठाओ । सारे कल्प में ऐसे सम्पत्तिवान, भाग्यवान दिन, भाग्य विधाता के संग के दिन फिर नहीं आने वाले हैं । विनाश के समय भी यह प्राप्ति का समय याद करेंगे इसलिए ड्रामा अनुसार कल्याण अर्थ जो ड्रामा का दृश्य चल रहा है उसको त्रिकालदर्शी बन, हिम्मत और हुल्लास वाली समर्थ आत्मायें बन, स्वयं भी समर्थ रहो और विश्व को भी समर्थ बनाओ । पत्थर तोड़ने में थको मत, स्वयं के तूफान में हिलो मत, अचल बनो । समझा । करते क्या हो और करना क्या है? यही रूह-रूहाण बापदादा की हुई कि बच्चे क्या खेल करते हैं! अब समर्थी का खेल खेलो ..जिससे यह सब खेल समाप्त हो जाए ।  

दिलशिकस्त के बजाए दिल सदा खुश हो जाए । अभी ऐसे संकल्प इस महान यज्ञ में आहुति डालकर जाना-साथ नहीं लेकर जाना-सदा के लिए स्वाहा । जब स्वयं ही स्वाहा हो तो यह संकल्प कैसे आ सकते? इसलिए स्वाहा का भोग लगाकर जाना । समर्थ संकल्पों रूपी फलों का भोग लगाना-समझा कौन सा भोग लगाना है । अच्छा । 

ऐसे सदा निश्चिंत, सदा निश्चयबुद्धि, हर महावाक्य के महान अर्थ को जानने वाले, संकल्प के भी ट्रस्टी अर्थात् जो बाप के संकल्प वह बच्चे के संकल्प ऐसे मन, बुद्धि, संस्कार में समान, बापदादा के समीप आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते । 

पार्टियों से मुलाकात :-

बापदादा हर बच्चे को सर्वश्रेष्ठ आत्मा के रूप में देखते हैं, क्योंकि विश्व के अन्दर कितनी भी श्रेष्ठ आत्मायें हैं लेकिन आपके आगे क्या है? तुच्छ अर्थात् कुछ भी नहीं । जो आत्मायें अपने अविनाशी बाप की विशेष रचना - स्वर्ग के अधिकारी नहीं बन सकती - तो क्या हुई? जो बच्चा बाप के प्रापर्टी के अधिकार से वंचित रह जाए तो वह क्या हुआ? तो कितनी भी आजकल की नामीग्रामी आत्मायें हैं लेकिन आपके श्रेष्ठ प्राप्ति के आगे कुछ भी नहीं है । तो सबसे श्रेष्ठ हुए ना । आज की दुनिया के प्रेजीडेंट भी आपको कहें ब्रह्माकुमार के बजाए प्रेजीडेंट बन जाओ तो बनेंगे? नहीं ना! क्योंकि जानते हो कि कहाँ आज की पुरानी दुनिया का अल्पकाल का मर्तबा और कहाँ सदाकाल का मर्तबा । तो संकल्प मात्र भी बुद्धि वहां नहीं झुक सकती क्योंकि जब राजाओं के राजा बन रहे हैं तो यह क्या है? यह तो बेताज भी बादशाह नहीं हैं, बादशाह में तो पावर होती है - वह कहाँ है? एक बेताज दूसरा बिना शक्ति, तो आँख नहीं डूबेगी ना । ऐसी श्रेष्ठता वा महानता सदा मति में रहे । सदा स्मृति स्वरूप रहने से सर्व प्राप्ति का अनुभव कर सकेंगे । थोड़े में राजी होने वाले नहीं, थोड़े में राजी कौन होते हैं? भक्त । तो भक्त तो नहीं हो ना - अधिकारी हो ना । अधिकारी को अपने सर्व अधिकार का अनुभव होता, आज घर में रहने वाले भी अपने पूरे अधिकार माँगते हैं, नौकर भी पूरे अधिकार माँगेगा । अगर थोड़ा भी कम होगा तो कहेगा मेरा अधिकार दो । तो बाप तो सर्व अधिकार देने वाले हैं, तो सर्व अधिकार प्राप्त करो । भक्त नहीं लेकिन अधिकारी बनो । भक्त आत्मा जब तक ब्राह्मण न बने तब तक स्वर्ग में नहीं आ सकते, भक्त से ब्राह्मण बनना पड़े, फिर ब्राह्मण से देवता बने । भक्त-पन का अंशमात्र भी न हो - इसको कहा जाता है सम्पूर्ण अधिकारी । भक्त और भगवान का मिलन, बच्चे और बाप का मिलन - दोनो में रात दिन का फर्क होता है ना । तो कौन सा मिलन अच्छा लगता है? जब माया के वशीभूत हो जाते हो तो किस रूप में मिलते हो? ' ' कृपा करो, आशीर्वाद करो, शक्ति दो, क्या करूँ, कैसे करूँ कोई रास्ता दो, हमारे पास माया को न भेजो' ' - यह कमजोरी है ना । महावीर कहे दुश्मन न आये और मैं महावीर हूँ, तो उसको क्या कहेंगे? महावीर तो दुश्मन का आवाहन करते हैं कि आओ और हम विजयी बनें । महावीर पेपर को देख घबरायेंगे नहीं, चैलेन्ज़ करेंगे क्योंकि त्रिकालदर्शी होने के कारण जानते हैं कि हम कल्प-कल्प के विजयी हैं । अच्छा ।  

राजस्थान और इन्दौर जोन की पार्टी के साथ पर्सनल मुलाकात :-

राजस्थान को वरदान बहुत मिला हुआ है । पहले-पहले सेवा का साधन गिफ्ट में राजस्थान को मिला । पहला-पहला तीर्थस्थान तो राजस्थान ही हुआ । बाप, दादा दोनों का राजस्थान को वरदान है । वरदान फल तो जरूर देगा ही लेकिन किस समय देगा वह समय देख रहे हैं । मेले के साथ-साथ विशेष रूप से ऐसा वातावरण बनाओ जैसे चुम्बक सबको अपनी तरफ आकर्षित कर लेता है, ऐसे रूहानी वातावरण, रूहों को अपनी तरफ आकर्षित करे, यह है मेले की सफलता । विशेष अटेंशन रखते हुए हर वर्ग की आत्माओं को इस मेले के साधन द्वारा सम्पर्क में लाना । साधन बहुत आकर्षण वाला है, साधन का पूरा लाभ उठाओ, सबमें आवाज फैल जाये । मेहनत करने से फल जरूर निकलेगा । एक दिन आयेगा जरूर जो राजस्थान की संख्या कमाल की लिस्ट में आयेगी, सिर्फ इसके लिए परोपकारी बनो । परोपकारी से विश्व उपकारी बन जाएंगे । बापदादा की विशेष धरनी जिस पर बाप की नजर पड़ी वह फल अवश्य देगी । राजस्थान की महिमा बाप जानते हैं, राजस्थान में रहने वाले कम जानते हैं । बाप जानते हैं कि क्या होने वाला है । होगा फिर सुनाना! मुख्य केन्द्र भी राजस्थान में है ना तो आसपास भी जरूर आकर्षण के केन्द्र बनेंगे । वह भी टाइम आयेगा । साकार बाप की पहली-पहली नजर कहाँ गई? राजस्थान पर, तो कोई तो विशेषता होगी ना । समय जब पहुँच जाता है, पर्दा खुल जाता है और दृश्य सामने आ जाता । अच्छा । 

टीचर्स से मुलाकात :-

टीचर्स का विशेष कर्तव्य ही है बाप की याद और सेवा । तो सभी टीचर्स ने हिम्मत अच्छी दिखाई है, मेहनत भी अच्छी कर रहे हैं और मेहनत का फल भी दिन प्रतिदिन फलीभूत होता जायेगा । मध्य प्रदेश को वरदान है फलताफूलता रहेगा क्योंकि एकमत और एकरस अवस्था में रहते हुए एक ही कार्य में लगने वाली आत्मायें स्वयं भी सदा प्रफुल्लति रहते हैं और धरनी को भी फलदायक बनाते हैं । जैसे आजकल साइन्स द्वारा अभी- अभी बीज डाला अभी- अभी फल मिला । पहले से तीव्रगति है जो बीज डाला वह प्राप्त हो जाता है । ऐसे ही अपने साइलेन्स के बल से सहज और तीव्रगति से प्रत्यक्षता भी देखेंगे, हाई जम्प लगाने वाले हो ना । पत्थर तोड़ने वाले तो नहीं । जैसी निमित्त आत्मायें होती हैं, वैसे वायुमण्डल भी बनता है, स्वयं सहयोगी हैं तो आने वाली आत्माओं को भी सहयोगी बना देती । स्वयं उलझन में होंगे तो आने वाली आत्माओं में भी वही वायब्रेशन फैलाते हैं । तो निमित्त आत्माओं को सदा निर्विघ्न एक बाप की लगन में मगन रहने वाले, इसी स्थिति में रहना है ।अच्छा ।

 

वरदान:-

व्यर्थ या डिस्टर्ब करने वाले बोल से मुक्त डबल लाइट अव्यक्त फरिश्ता भव !      

अव्यक्त फरिश्ता बनना है तो व्यर्थ बोल जो किसी को भी अच्छे नहीं लगते हैं उन्हें सदा के लिए समाप्त करो । बात होती है दो शब्दों की लेकिन उसे लम्बा करके बोलते रहना, यह भी व्यर्थ है । जो चार शब्दों में काम हो सकता है वो 12 - 15 शब्दों में नहीं बोलो । कम बोलो- धीरे बोलो.... यह स्लोगन गले में डालकर रखो । व्यर्थ वा डिस्टर्ब करने वाले बोल से मुक्त बनो तो अव्यक्त फरिश्ता बनने में बहुत मदद मिलेगी ।

 

स्लोगन:- 

जो स्वयं को परमात्म प्यार के पीछे कुर्बान करते हैं, सफलता उनके गले की माला बन जाती है ।     

 

ओम् शान्ति |