23-05-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
याद का आधार है प्यार, प्यार में कमी है तो याद एकरस नहीं रह
सकती और याद एकरस नहीं है तो प्यार नहीं मिल सकता
| 
प्रश्न:-
आत्मा की सबसे प्यारी चीज़ कौन सी है? उसकी निशानी क्या है?
उत्तर:-
यह
शरीर आत्मा के लिए सबसे प्यारी चीज़ है | शरीर से इतना प्यार है
जो वह छोड़ना नहीं चाहती | बचाव के लिए अनेक प्रबन्ध रचती है |
बाप कहते बच्चे, यह तो तमोप्रधान छी-छी शरीर है | तुम्हें अब
नया शरीर लेना है इसलिए इस पुराने शरीर से ममत्व निकाल दो | इस
शरीर का भान न रहे, यही है मंज़िल |
ओम्
शान्ति
|
रूहानी बाप रूहानी बच्चों को समझाते हैं, अब यह तो बच्चे जानते
हैं कि दैवी स्वराज्य का उद्घाटन तो हो चुका है | अब तैयारी हो
रही है वहाँ जाने लिए | जहाँ कोई शाखा खोलते हैं तो कोशिश की
जाती है बड़े आदमी द्वारा ओपनिंग कराने की | बड़े आदमी को देख
नीचे वाले ऑफिसर्स आदि सब आयेंगे | समझो गवर्नर आएगा तो
बड़े-बड़े मिनिस्टर्स आदि आयेंगे | अगर कलेक्टर को तुम बुलाओ तो
बड़े आदमी नहीं आयेंगे इसलिए कोशिश की जाती है बड़े ते बड़ा कोई
आये
|
किस न किस बहाने से अन्दर आये तो तुम उनको रास्ता बताओ | बेहद
के बाप से बेहद का वर्सा कैसे मिल रहा है | ऐसा कोई दूसरा
मनुष्य नहीं जो जानता हो तुम ब्राह्मणों के सिवाए | ऐसे भी
सीधा नहीं कहना है – भगवान् आया है | ऐसे भी बहुत कहते हैं –
भगवान् आ गया है | परन्तु नहीं, ऐसे अपने को भगवान कहलाने वाले
तो ढेर आये हैं | यह तो समझाना है बेहद का बाप आकर बेहद का
वर्सा दे रहे हैं कल्प पहले मिसल, ड्रामा प्लैन अनुसार | यह
सारी लाइन लिखनी पड़े | मनुष्य लिखत पढ़ेंगे फिर कोशिश करेंगे,
जिनकी तक़दीर में होगा | तुम बच्चों को मालूम है ना कि हम बेहद
के बाप से बेहद का वर्सा ले रहे हैं | यहाँ तो निश्चयबुद्धि
बच्चे ही आते हैं | निश्चयबुद्धि भी फिर कोई समय संशयबुद्धि बन
जाते हैं | माया पिछाड़ लेती है | चलते-चलते हार खा लेते हैं |
ऐसा तो लॉ भी नहीं है जो एक तरफ़ सदैव जीत हो | हार होवे ही
नहीं | हार और जीत दोनों चलती हैं | युद्ध में भी 3 प्रकार के
होते हैं, फर्स्टक्लास, सेकण्ड क्लास और थर्डक्लास | कभी-कभी
युद्ध न करने वाले भी देखने के लिए आ जाते हैं | वह भी एलाऊ
किया जाता है | शायद कुछ रंग लग जाये और इस सेना में आ जायें
क्योंकि दुनिया को यह पता नहीं है कि तुम महारथी योद्धे हो |
परन्तु तुम्हारे हाथ में हथियार आदि तो कुछ भी नहीं हैं |
तुम्हारे हाथ में हथियार आदि शोभेंगे भी नहीं | परन्तु बाप
समझाते हैं ना – ज्ञान तलवार, ज्ञान कटारी | तो उन्होंने फिर
स्थूल में समझ लिया है | तुम बच्चों को बाप ज्ञान के
अस्त्र-शस्त्र देते हैं, इसमें हिंसा की बात ही नहीं | परन्तु
यह समझते नहीं हैं | देवियों को स्थूल हथियार आदि दे दिये हैं
| उनको भी हिंसक बना दिया है | यह है बिल्कुल बेसमझी | बाप
अच्छी तरह जानते हैं कि कौन-कौन फूल बनने वाले हैं, वह तो बाप
ख़ुद ही कहते हैं फूल आगे होने चाहिए | सरटेन है यह फूल बनने
वाले हैं, बाबा नाम नहीं लेते हैं | नहीं तो और कहेंगे हम
कांटे बनेंगे क्या! बाबा पूछते हैं नर से नारायण कौन बनेंगे तो
सब हाथ उठाते हैं | यूँ तो ख़ुद समझते हैं जो जास्ती सर्विस
करते हैं वो बाप को भी याद करते हैं | बाप से प्यार है तो याद
भी उनकी रहेगी | एकरस तो कोई भी याद कर नहीं सकेंगे | याद नहीं
कर सकते इसलिए प्यार नहीं | प्यारी चीज़ को तो बहुत याद किया
जाता है | बच्चे प्यारे होते हैं तो माँ-बाप गोदी में उठा लेते
हैं | छोटे बच्चे भी फूल हैं | जैसे तुम बच्चों की दिल होती है
शिवबाबा के पास जायें, वैसे छोटे बच्चे भी खींचते हैं | झट
बच्चे को उठाए गोद में बिठायेंगे, प्यार करेंगे |
यह
बेहद का बाप तो बहुत प्यारा है | सभी शुभ मनोकामनायें पूरी कर
देते हैं | मनुष्यों को क्या चाहिए? एक तो चाहते हैं
तन्दुरुस्ती अच्छी हो, कभी बीमार न हों | सबसे अच्छी है यह
तन्दुरुस्ती | तन्दुरुस्ती अच्छी हो, परन्तु पैसे न हों तो वह
तन्दुरुस्ती भी क्या काम की | फिर चाहिए धन, जिससे सुख मिले |
बाप कहते हैं तुमको हेल्थ और वेल्थ दोनों ही मिलनी है ज़रूर |
यह कोई नई बात नहीं है | यह तो बहुत-बहुत पुरानी बात है | तुम
जब-जब मिलेंगे तो ऐसे ही कहेंगे | बाकी ऐसा नहीं कहेंगे कि
लाखों वर्ष हुए वा पदमों वर्ष हुए | नहीं, तुम जानते हो यह
दुनिया नई कब होती है, पुरानी कब होती है? हम आत्मायें नई
दुनिया में जाती हैं फिर पुरानी में आती हैं | तुम्हारा नाम ही
रखा है ऑलराउंडर | बाप ने समझाया है तुम ऑलराउंडर्स हो | पार्ट
बजाते-बजाते अभी बहुत जन्मों के अन्त में आकर पहुँचे हो |
पहले-पहले शुरू में तुम पार्ट बजाने आते हो | वह है स्वीट
साइलेन्स होम | मनुष्य शान्ति के लिए कितना हैरान होते हैं |
यह नहीं समझते कि हम शान्तिधाम में थे फिर वहाँ से आये ही हो
पार्ट बजाने | पार्ट पूरा हुआ फिर हम जहाँ से आये हैं वहाँ
ज़रूर जायेंगे | सभी शान्तिधाम से आते है | सभी का घर वह
ब्रह्मलोक है, ब्रह्माण्ड, जहाँ सब आत्मायें रहती हैं | रूद्र
कोई भी इतना बड़ा बनाते हैं अण्डे मिसल | उनको यह पता नहीं है
कि आत्मा बिल्कुल छोटी है | कहते भी हैं स्टार मिसल है फिर भी
पूजा बड़े की ही होती है | तुम जानते हो इतनी छोटी बिन्दी की तो
पूजा हो नहीं सकती | फिर पूजा किसकी करें, तो बड़ा बनाते हैं
फिर पूजा करते हैं, दूध चढ़ाते हैं | वास्तव में तो वह शिव है
अभोक्ता | फिर उनको दूध क्यों चढाते हैं? दूध पिये तो फिर
भोक्ता हो गया | यह भी एक वन्डर है | सब कहते हैं वह हमारा
वारिस है, हम उनके वारिस हैं क्योंकि हम उन पर फ़िदा हुए हैं |
जैसे बाप बच्चों पर फ़िदा हो सारी प्रॉपर्टी उनको दे ख़ुद
वानप्रस्थ में चले जाते हैं, यहाँ भी तुम समझते हो बाबा के पास
हम जितना जमा करेंगे वह सेफ़ हो जायेगा | गायन भी है किनकी दबी
रहेगी धूल में...... | तुम बच्चे जानते हो कुछ भी रहता ही नहीं
है | सब भस्म हो जाना है | ऐसे भी नहीं है, समझो एरोप्लेन
गिरते हैं, विनाश होता है तो चोरों को माल मिलता है | लेकिन
चोर आदि ख़ुद भी ख़त्म हो जायेंगे | उस समय चोरी आदि भी बन्द हो
जाती है | नहीं तो एरोप्लेन गिरता है तो पहले-पहले सब माल
चोरों के हाथ में आता है | फिर वहाँ ही जंगलों में माल छिपा
देते हैं | सेकण्ड में काम कर लेते हैं | अनेक प्रकार की चोरी
के काम करते हैं – कोई रॉयल्टी से कोई अनरॉयल्टी से | तुम
जानते हो यह सब विनाश हो जायेंगे और तुम सारे विश्व के मालिक
बन जायेंगे | तुमको कहाँ कुछ ढूँढ़ना नहीं पड़ेगा | तुम तो बहुत
ऊँच घर में जन्म लेते हो | पैसे की दरकार ही नहीं | राजाओं को
कभी पैसे लेने का ख्याल भी नहीं होगा | देवताओं को तो बिल्कुल
नहीं रहता | बाप तुमको इतना सब कुछ दे देते हैं जो कभी चोरी
चकारी, इर्ष्या आदि की बात ही नहीं | तुम बिल्कुल फूल बन जाते
हो | कांटे और फूल हैं ना | यहाँ सब कांटे ही कांटे हैं | जो
विकार के सिवाए रह नहीं सकते तो उनको ज़रूर काँटा ही कहना पड़े |
राजा से लेकर सब कांटे हैं | तब बाबा कहते हैं मैं तुमको इन
लक्ष्मी-नारायण जैसा बनाता हूँ अर्थात् राजाओं का भी राजा
बनाता हूँ | यह कांटे, फूलों के आगे जाकर माथा झुकाते हैं | यह
लक्ष्मी-नारायण तो समझदार हैं ना | यह भी बाप ने समझाया है
सतयुग वालों को महाराजा, त्रेता वालों को राजा कहा जाता है |
बड़े आदमी को कहेंगे महाराजा, छोटी आमदनी वाले को राजा कहेंगे |
महाराजा की दरबार पहले होगी | मर्तबे तो होते हैं ना |
कुर्सियां भी नम्बरवार मिलेंगी | समझो न आने वाला कोई आ जाता
है तो भी पहले कुर्सी उनको देंगे | इज्ज़त रखनी होती है |
तुम
जानते हो हमारी माला बनती है | यह भी तुम बच्चों की ही बुद्धि
में है और किसकी बुद्धि में नहीं है | रूद्र माला उठाकर फेरते
रहते हैं | तुम भी फेरते थे ना | अनेक मन्त्र जपते थे | बाप
कहते हैं यह भी भक्ति है | यहाँ तो एक को ही याद करना है और
बाप ख़ास कहते हैं – मीठे-मीठे रूहानी बच्चों, भक्ति मार्ग में
देह-अभिमान के कारण तुम सबको याद करते थे, अब मामेकम् याद करो
| एक बाप मिला है तो उठते-बैठते बाप को याद करो तो बहुत ख़ुशी
होगी | बाप को याद करने से सारे विश्व की बादशाही मिलती है |
जितना टाइम कम होता जायेगा उतना जल्दी-जल्दी याद करते रहेंगे |
दिन-प्रतिदिन क़दम बढ़ाते रहेंगे | आत्मा कभी थकती नहीं है |
शरीर से कोई पहाड़ आदि पर चढ़ेंगे तो थक जायेंगे | बाप को याद
करने में तुमको कोई थकावट नहीं होगी | ख़ुशी में रहेंगे | बाबा
को याद कर आगे चलते जायेंगे | आधाकल्प बच्चों ने मेहनत की है –
शान्तिधाम में जाने के लिए | एम ऑब्जेक्ट का कुछ भी पता नहीं
है | तुम बच्चों को तो परिचय है | भक्ति मार्ग में जिसके लिए
इतना सब कुछ किया वह कहते हैं अब मुझे याद करो | तुम ख्याल करो
बाबा ठीक कहते हैं या नहीं? वह तो समझते हैं पानी से ही पावन
हो जायेंगे | पानी तो यहाँ भी है | क्या यह गंगा का पानी है?
नहीं, यह तो बरसात का इकठ्ठा किया हुआ पानी है, झरनों से आता
ही रहता है, उनको गंगा का पानी नहीं कहेंगे | कभी बन्द नहीं
होता – यह भी कुदरत है | बरसात बन्द हो जाती है परन्तु पानी
आता ही रहता है | वैष्णव लोग हमेशा कुँए का पानी पीते हैं | एक
तरफ़ समझते हैं यह पवित्र है, दूसरे तरफ़ फिर पतित से पावन बनने
के लिए गंगा में स्नान करने जाते हैं | इसे तो अज्ञान ही
कहेंगे | बरसात का पानी तो अच्छा ही होता है | यह भी ड्रामा की
कुदरत कहा जाता है | ख़ुदाई नैचुरल कुदरत | बीज कितना छोटा है,
उनसे झाड़ कितना बड़ा निकलता है | यह भी जानते हो धरती कलराठी हो
जाती है तो फिर उनमें ताक़त नहीं रहती, स्वाद नहीं रहता है |
तुम बच्चों को बाप यहाँ ही सब अनुभव कराते हैं – स्वर्ग कैसा
होगा | अभी तो नहीं है | ड्रामा में यह भी नूँध है | बच्चों को
साक्षात्कार होता है | वहाँ के फल आदि कैसे अच्छे मीठे होते
हैं – तुम ध्यान में देख आकर सुनाते हो | फिर अभी जो
साक्षात्कार करते हो वह वहाँ जब जायेंगे तब इन आँखों से
देखेंगे, मुख से खायेंगे | जो भी साक्षात्कार करते हो वह सब इन
आँखों से देखेंगे, फिर है पुरुषार्थ पर | अगर पुरुषार्थ ही
नहीं करेंगे तो क्या पद पायेंगे? तुम्हारा पुरुषार्थ चल रहा है
| तुम ऐसे बनेंगे | इस विनाश के बाद इन लक्ष्मी-नारायण का
राज्य होगा | यह भी अब मालूम पड़ा है | पावन बनने में ही टाइम
लगता है | याद की यात्रा मुख्य है, देखा गया – बहन-भाई समझने
से भी बाज़ नहीं आते हैं तो अब फिर कहते हैं भाई-भाई समझो |
बहन-भाई समझने से भी दृष्टि नहीं फिरती | भाई-भाई देखने से फिर
शरीर ही नहीं रहता | हम सब आत्मायें हैं, शरीर नहीं हैं | जो
कुछ यहाँ देखने में आता है वह तो विनाश हो जायेगा | यह शरीर
छोड़कर तुमको अशरीरी होकर जाना है | तुम यहाँ आते ही हो सीखने
के लिए कि हम यह शरीर छोड़कर कैसे जायें | मंज़िल है ना | शरीर
तो आत्मा को बहुत प्यारा है | शरीर न छूटे इसके लिए आत्मा
कितने प्रबन्ध करती है | कहीं हमारा यह शरीरी छूट न जाये |
आत्मा का इस शरीर से बहुत-बहुत प्यार है | बाप कहते हैं यह तो
पुराना शरीर है | तुम भी तमोप्रधान हो, तुम्हारी आत्मा छी-छी
है इसलिए दुःखी बीमार हो पड़ते हैं | बाप कहते हैं – अभी शरीर
से प्यार नहीं रखना है | यह तो पुराना शरीर है | अब तुमको नया
खरीद करना है | कोई दुकान नहीं रखा है जहाँ से खरीद करना है |
बाप कहते हैं मुझे याद करो तो पावन बन जायेंगे | फिर शरीर भी
तुमको पावन मिलेगा | 5 तत्व भी पावन बन जायेंगे | बाप सब बातें
समझाकर फिर कहते हैं मनमनाभव | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
शिवबाबा के हम वारिस हैं, वह हमारा वारिस है, इस निश्चय से बाप
पर पूरा फ़िदा होना है | जितना बाबा के पास जमा करेंगे उतना सेफ़
हो जायेगा | कहा जाता – किनकी दबी रहेगी धूल में......|
2.
कांटे से फूल अभी ही बनना है | एकरस याद और सर्विस से बाप के
प्यार का अधिकारी बनना है | दिन-प्रतिदिन याद में कदम आगे
बढ़ाते रहना है |
वरदान:-
सेवा
के साथ-साथ बेहद के वैराग्य वृत्ति की साधना को इमर्ज करने
वाले सफ़लता मूर्त भव
!
सेवा
से ख़ुशी वा शक्ति मिलती है लेकिन सेवा में ही वैराग्य वृत्ति
भी खत्म हो जाती है इसलिए अपने अन्दर वैराग्य वृत्ति को जगाओ |
जैसे सेवा के प्लैन को प्रैक्टिकल में इमर्ज करते हो तब सफ़लता
मिलती है | ऐसे अभी बेहद के वैराग्य वृत्ति को इमर्ज करो |
चाहे कितने भी साधन प्राप्त हों लेकिन बेहद के वैराग्य वृत्ति
की साधना मर्ज नहीं हो | साधन और साधना का बैलेन्स हो तब सफ़लता
मूर्त बनेंगे |
स्लोगन:-
असम्भव
को सम्भव बनाना ही परमात्म प्यार की निशानी है |
ओम्
शान्ति
|