04-06-14           प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे अब चने मुट्ठी के पीछे अपना समय बरबाद नहीं करो, अब बाप के मददगार बन बाप का नाम बाला करो” (विशेष कुमारियों प्रति)   


प्रश्न:-   
इस ज्ञान मार्ग में तुम्हारे कदम आगे बढ़ रहे हैं, उसकी निशानी क्या है?


उत्तर:-
जिन बच्चों को शान्तिधाम और सुखधाम सदा याद रहता है | याद के समय बुद्धि कहाँ पर भी भटकती नहीं है, बुद्धि में व्यर्थ के ख्यालात नहीं आते, बुद्धि एकाग्र है, झुटका नहीं खाते, ख़ुशी का पारा चढ़ा हुआ है तो इससे सिद्ध है कि कदम आगे बढ़ रहे हैं |

 

ओम् शान्ति |

बच्चे इतना समय यहाँ बैठे हैं | दिल में भी आता है कि हम जैसे शिवालय में बैठे हैं | शिवबाबा भी याद आ जाता है | स्वर्ग भी याद आ जाता है | याद से ही सुख मिलता है | यह भी बुद्धि में याद रहे, हम शिवालय में बैठे हैं तो भी ख़ुशी होगी | जाना तो आखरीन सभी को शिवालय में है | शान्तिधाम में कोई को बैठ नहीं जाना है | वास्तव में शान्तिधाम को भी शिवालय कहेंगे, सुखधाम को भी शिवालय कहेंगे | दोनों स्थापन करते हैं | तुम बच्चों को याद भी दोनों को करना है | वह शिवालय है शान्ति के लिए और वह शिवालय है सुख के लिए | यह है दुःखधाम | अभी तुम संगम पर बैठे हो | शान्तिधाम और सुखधाम के सिवाए और किसकी भी याद नहीं होनी चाहिए | भल कहाँ भी बैठे हो, धन्धे आदि में बैठे हो तो भी बुद्धि में दोनों शिवालय याद आने चाहिए | दुःखधाम भूल जाना है | बच्चे जानते हैं यह वेश्यालय, दुःखधाम अब ख़त्म हो जाना है |

यहाँ बैठे तुम बच्चों को झुटका आदि भी नहीं आना चाहिए | बहुतों की बुद्धि कहाँ-कहाँ और तरफ़ चली जाती है | माया के विघ्न पड़ते हैं | तुम बच्चों को बाप घड़ी-घड़ी कहते हैं – बच्चे, मनमनाभव | भिन्न-भिन्न प्रकार की युक्तियाँ भी बतलाते हैं | यहाँ बैठे हो, बुद्धि में यह याद करो कि हम पहले शान्तिधाम, शिवालय में जायेंगे फिर सुखधाम में आयेंगे | ऐसा याद करने से पाप कटते जायेंगे | जितना तुम याद करते हो उतना कदम बढ़ाते हो | यहाँ और कोई ख्यालात में नहीं बैठना चाहिए | नहीं तो तुम औरों को नुकसान पहुँचाते हो | फ़ायदे के बदले और ही नुकसान करते हो | आगे जब बैठते थे तो समाने कोई को जाँच करने के लिए बिठाया जाता था – कौन झुटका खाते हैं, कौन आँखें बन्द कर बैठते हैं, तो बड़ा ख़बरदार रहते थे | बाप भी देखते थे इनका बुद्धियोग कहाँ भटकता है क्या या झुटका खाते हैं क्या? ऐसे भी बहुत आते हैं, जो कुछ भी समझते नहीं है | ब्राह्मणियाँ ले आती हैं | शिवबाबा के आगे बच्चे बड़े अच्छे होने चाहिए, जो गफ़लत में नहीं रहें क्योंकि यह कोई ऑर्डनरी टीचर नहीं | बाप बैठ सिखलाते है | यहाँ बहुत सावधान होकर बैठना चाहिए | बाबा 15 मिनट शान्ति में बिठाते हैं | तुम तो घण्टा दो घण्टा बैठते हो | सब तो महारथी नहीं हैं | जो कच्चे हैं, उनको सावधान करना है | सावधान करने से सुज़ाग हो जायेंगे | जो याद में नहीं रहते, व्यर्थ ख्यालात चलाते हैं, वह जैसे विघ्न डालते हैं क्योंकि बुद्धि कहाँ न कहाँ भटकती है | महारथी, घोड़ेसवार, प्यादे सब बैठे हैं |

बाबा आज विचार सागर मंथन करके आये थे – म्यूज़ियम में अथवा प्रदर्शनी में तुम बच्चे जो शिवालय, वेश्यालय और पुरुषोत्तम संगमयुग तीनों ही बताते हो, यह बहुत अच्छा है समझाने के लिए | यह बहुत बड़े-बड़े बनाने चाहिए | सबसे अच्छा बड़ा हाल इनके लिए होना चाहिए, जो मनुष्यों की बुद्धि में झट बैठे | बच्चों का विचार चलना चाहिए कि इसमें हम इम्प्रूवमेंट कैसे लायें | पुरुषोत्तम संगमयुग बहुत अच्छा बनाना चाहिए | उससे मनुष्यों को बहुत अच्छी समझानी मिल सकती है | तपस्या में भी तुम 5-6 को बिठाते हो परन्तु नहीं, 10-15 को तपस्या में बिठाना चाहिए | बड़े-बड़े चित्र बनाकर क्लीयर अक्षर में लिखना चाहिए | तुम इतना समझाते हो फिर भी समझते थोड़ेही हैं | तुम मेहनत करते हो समझाने के लिए, पत्थर बुद्धि हैं ना | तो जितना हो सके अच्छी रीति समझाना चाहिए | जो सर्विस में रहते हैं उन्हों को सर्विस बढ़ाने का ख्याल करना है | प्रोजेक्टर, प्रदर्शनी में इतना मज़ा नहीं है, जितना म्यूज़ियम में | प्रोजेक्टर से तो कुछ भी समझते नहीं | सबसे अच्छा है म्यूज़ियम, भल छोटा हो | एक कमरे में तो यह शिवालय, वेश्यालय और पुरुषोत्तम संगमयुग का सीन हो | समझाने में बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए |

बेहद का बाप, बेहद का टीचर आये हैं तो बैठ थोड़ेही जायेंगे कि बच्चे एम.ए., बी.ए. पास कर लें | बाप बैठा थोड़ेही रहेगा | थोड़े टाइम में चला जायेगा | बाकी थोडा समय है तो भी जागते नहीं | अच्छी-अच्छी जो बच्चियां होंगी वह कहेंगी कि इन 4-5 सौ रुपयों के लिए क्यों हम मुफ़्त अपना टाइम बरबाद करें | फिर शिवालय में हम क्या पद पायेंगे! बाबा देखते हैं कुमारियाँ तो फ्री हैं | भल कितना भी बड़ा पगार हो, तो भी यह तो जैसे मुट्ठी में चने हैं, यह सब ख़लास हो जायेंगे | कुछ भी रहेगा नहीं | बाप चने मुट्ठी अब छुड़ाने आये हैं परन्तु छोड़ते ही नहीं हैं | उसमें हैं चने मुट्ठी, इसमें है विश्व की बादशाही | वह तो पाई पैसे के चने हैं उनके पिछाड़ी कितना हैरान होते हैं | कुमारियाँ तो फ्री हैं | वह पढ़ाई तो पाई पैसे की है | उनको छोड़ यह नॉलेज पढ़ते रहें तो दिमाग़ भी खुले | ऐसी छोटी-छोटी बच्चियां बड़ों-बड़ों को बैठ नॉलेज दें, बाप आये हैं – शिवालय स्थापन करने | यह तो जानते हैं कि यहाँ का सब कुछ मिट्टी में मिल जाना है | यह चने भी नसीब में नहीं आयेंगे | किसकी मुट्ठी में 5 चने अर्थात् लाख होंगे, वह भी ख़त्म हो जायेंगे | अभी टाइम बहुत थोडा है | दिन-प्रतिदिन हालत ख़राब होती जाती है | अचानक आफ़तें आ जाती हैं | मौत भी अचानक होते रहते हैं, मुट्ठी में चने होते ही प्राण निकल जाते हैं | तो मनुष्यों को इस बन्दरपने से छुड़ाना है | सिर्फ़ म्यूज़ियम देख खुश नहीं होना है, कमाल कर दिखाना है | मनुष्यों को सुधारना है | बाप तुम बच्चों को विश्व की बादशाही दे रहे हैं | बाकी तो भूगरा (चना) भी किसको नसीब में नहीं आयेगा | सब ख़त्म हो जायेंगे, इससे तो क्यों न बाप से बादशाही ले लो | कोई तकलीफ़ की बात नहीं | सिर्फ़ बाप को याद करना है और स्वदर्शन चक्र फिराना है | भूगरों से (चनों से) मुट्ठी खाली कर हीरे-जवाहरों से मुट्ठी भरकर जाना है | बाप समझाते हैं – मीठे बच्चे, इन चने मुट्ठी के पिछाड़ी तुम अपना समय क्यों बरबाद करते हो? हाँ, कोई बुजुर्ग हैं, बाल-बच्चे बहुत हैं तो उनको सम्भालना होता है | कुमारियों के लिए तो बहुत सहज है, कोई भी आये तो उनको समझाओ कि बाप हमको यह बादशाही देते हैं | तो बादशाही लेनी चाहिए ना | अभी तुम्हारी मुट्ठी हीरों से भर रही है | बाकी और तो सब विनाश हो जायेंगे | बाप समझाते हैं तुमने 63 जन्म पाप किये हैं | दूसरा पाप है बाप और देवताओं की ग्लानि करना | विकारी भी बने हैं और गाली भी दिया है | बाप की कितनी ग्लानि की है | बाप बच्चों को बैठ समझाते हैं – बच्चे, टाइम नहीं गंवाना चाहिए | ऐसे नहीं, बाबा हम याद नहीं कर सकते | बोलो, बाबा हम अपने को आत्मा याद नहीं कर सकते | अपने को भूल जाते हैं | देह-अभिमान में आना गोया अपने को भूलना | अपने को आत्मा याद नहीं कर सकते तो बाप को फिर कैसे याद करेंगे | बहुत बड़ी मंज़िल है | सहज भी बहुत है | बाकी हाँ, माया का आपोजीशन होता है |

मनुष्य गीता आदि भल पढ़ते हैं परन्तु अर्थ कुछ भी नहीं समझते | भारत की है ही मुख्य गीता | हर एक धर्म का अपना-अपना एक शास्त्र है | जो धर्म स्थापन करने वाले हैं उनको सतगुरु नहीं कह सकते | यह बड़ी भूल है | सतगुरु तो एक ही है, बाकी गुरु कहलाने वाले तो ढेर हैं | कोई ने कारपेन्टर का काम सिखाया, इन्जीनियर का काम सिखाया तो वह भी गुरु हो गया | हर एक सिखलाने वाला गुरु होता है, सतगुरु एक ही है | अब तुमको सतगुरु मिला है वह सत्य बाप भी है तो सत्य टीचर भी है | इसलिए बच्चों को जास्ती गफ़लत नहीं करनी चाहिए | यहाँ से अच्छी रीति रिफ्रेश होकर जाते हैं फिर घर जाने से यहाँ का सब भूल जाते हैं | गर्भजेल में बहुत सजायें मिलती हैं | वहाँ तो गर्भ महल होता है | विकर्म कोई होता नहीं जो सजा खानी पड़े | यहाँ तुम बच्चे समझते हो हम बाप से सम्मुख पढ़ रहे हैं | बाहर अपने घर में तो ऐसे नहीं कहेंगे | वहाँ समझेंगे भाई पढ़ाते हैं | यहाँ तो डायरेक्ट बाप के पास आये हैं | बाप बच्चों को अच्छी रीति समझाते हैं | बाप की और बच्चों की समझानी में फ़र्क हो जाता है | बाप बैठ बच्चों को सावधान करते हैं | बच्चे-बच्चे कह समझाते हैं | तुम शिवालय और वेश्यालय को समझाते हो, बेहद की बात है | यह क्लीयर कर दिखाओ तो मनुष्यों को कुछ मज़ा आये | वहाँ तो ऐसे ही हंसी-कुड़ी में समझाते हो, सीरियस हो समझाओ तो अच्छी रीति समझें | रहम करो अपने पर, क्या इस वेश्यालय में ही रहना है! बाबा के ख्यालात तो चलते हैं ना – कैसे-कैसे समझायें | बच्चे कितनी मेहनत करते हैं फिर भी जैसे डिब्बी में ठिकरी | हाँ-हाँ करते जाते, बहुत अचकचा है, गाँव में समझाना चाहिए | ख़ुद नहीं समझते | साहूकार पैसे वाले लोग तो समझेंगे भी नहीं | बिल्कुल अटेन्शन ही नहीं देंगे | वह पिछाड़ी में आयेंगे | फिर तो टू लेट हो जायेंगे | न उनका धन काम में आएगा, न योग में रह सकेंगे | बाकी हाँ, सुनेंगे तो प्रजा में आयेंगे | गरीब बहुत ऊँच पद पा सकते हैं | तुम कन्याओं के पास क्या है | कन्या को गरीब कहा जाता है क्योंकि बाप का वर्सा तो बच्चे को मिलता है | बाकी कन्या-दान किया जाता है, तब विकार में जाती है | कहेंगे शादी करो तो पैसे देंगे | पवित्र रहना है तो एक पाई भी नहीं देंगे | मनोवृत्ति देखो कैसी है | तुम कोई से भी डरो मत | खुली रीति समझाना चाहिए | फुर्त होना चाहिए | तुम तो बिल्कुल सच कहते हो | यह है संगमयुग | उस तरफ़ है चने मुट्ठी, इस तरफ़ है हीरों की मुट्ठी | अभी तुम बन्दर से मन्दिर लायक बनते हो | पुरुषार्थ कर हीरे जैसा जन्म लेना चाहिए ना | शक्ल भी बहादुर शेरनी जैसी होनी चाहिए | कोई-कोई की शक्ल जैसे रीढ़ बकरी मिसल है | थोडा आवाज़ से डर जायेंगे | तो बाप सभी बच्चों को ख़बरदार करते हैं | कन्याओं को तो फँसना नहीं चाहिए | और ही बन्धन में फंसेंगे तो फिर विकार के लिए डन्डे खायेंगे | ज्ञान अच्छी रीति धारण करेंगी तो विश्व महारानी बनेंगी | बाप कहते हैं मैं तुमको विश्व की बादशाही देने आया हूँ | परन्तु किसी-किसी के नसीब में नहीं है | बाप है ही गरीब निवाज | गरीब हैं कन्यायें | माँ-बाप शादी नहीं करा सकते हैं तो दे देते हैं | तो उनको नशा चढ़ना चाहिए | हम अच्छी रीति पढ़कर पद तो अच्छा पायें | अच्छे स्टूडेन्ट जो होते हैं, वह पढ़ाई पर ध्यान देते हैं – हम पास विद् आनर हो जायें | उनको ही फिर स्कालरशिप मिलती है | जितना पुरुषार्थ करेंगे उतना ऊँच पद पायेंगे, वह भी 21 जन्म के लिए | यहाँ है अल्पकाल का सुख | आज कुछ मर्तबा, कल मौत आ गया, ख़लास | योगी और भोगी में फ़र्क है ना | तो बाप कहते हैं गरीबों पर ज़्यादा अटेन्शन दो | साहूकार मुश्किल उठायेंगे | सिर्फ़ कहते बहुत अच्छा है | यह संस्था बहुत अच्छी है, बहुतों का कल्याण करेगी | अपना कुछ भी कल्याण नहीं करते | बहुत अच्छा कहा, बाहर गये, ख़लास | माया डन्डा उठाकर बैठी है, जो हौंसला ही गुम कर देती है | एक ही थप्पड़ लगाने से अक्ल चट कर देती है | बाप समझाते है – भारत का हाल देखो क्या हो गया है | बच्चों ने ड्रामा को तो अच्छी रीति समझा है | अच्छा! 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-  

1. चने मुट्ठी छोड़ बाप से विश्व की बादशाही लेने का पूरा पुरुषार्थ करना है | किसी भी बात में डरना नहीं है, निडर बन बन्धनों से मुक्त होना है | अपना समय सच्ची कमाई में सफ़ल करना है | 

2. इस दुःखधाम को भूल शिवालय अर्थात् शान्तिधाम, सुखधाम को याद करना है | माया के विघ्नों को जान उनसे सावधान रहना है |

 

वरदान:-  

इस ब्राह्मण जीवन में परमात्म आशीर्वाद की पालना प्राप्त करने वाली महान आत्मा भव !    

इस ब्राह्मण जीवन में परमात्म-आशीर्वादें और ब्राह्मण परिवार की आशीर्वादें प्राप्त होती हैं | यह छोटा सा युग सर्व प्राप्तियां और सदाकाल की प्राप्तियां करने का युग है | स्वयं बाप हर श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ संकल्प के आधार पर हर ब्राह्मण बच्चे को हर समय दिल से आशीर्वाद देते रहते हैं | लेकिन यह सर्व आशीर्वाद लेने का आधार याद और सेवा का बैलेन्स है | इस महत्व को जान महान आत्मा बनो |


स्लोगन:-   

फ़्राकदिल बन चेहरे और चलन से गुण व शक्तियों की गिफ्ट बाँटना ही शुभ भावना, शुभ कामना है |   

  

ओम् शान्ति |