17-11-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - तुम्हें एक बाप से ही सुनना है और सुन करके दूसरों को सुनाना है”   


प्रश्न:-   
बाप ने तुम बच्चों को कौन-सी समझ दी है, जो दूसरों को सुनानी है?


उत्तर:-

बाबा ने तुम्हें समझ दी कि तुम आत्मायें सब भाई- भाई हो । तुम्हें एक बाप की याद में रहना है । यही बात तुम सभी को सुनाओ क्योंकि तुम्हें सारे विश्व के भाईयों का कल्याण करना है । तुम ही इस सेवा के निमित्त हो ।

 

ओम् शान्ति |

ओम् शान्ति अक्सर करके क्यों कहा जाता है? यह है परिचय देना- आत्मा का परिचय आत्मा ही देती है । बातचीत आत्मा ही करती है शरीर द्वारा । आत्मा बिगर तो शरीर कुछ कर नहीं सकता । तो यह आत्मा अपना परिचय देती है । हम आत्मा हैं परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं । वह तो कह देते अहम् आत्मा सो परमात्मा । तुम बच्चों को यह सब बातें समझाई जाती हैं । बाप तो बच्चे-बच्चे ही कहेंगे ना । रूहानी बाप कहते हैं-हे रूहानी बच्चों, इन आरगन्स द्वारा तुम समझते हो । बाप समझाते हैं पहले-पहले है ज्ञान फिर है भक्ति । ऐसे नहीं कि पहले भक्ति, पीछे ज्ञान है । पहले है ज्ञान दिन, भक्ति है रात । फिर पीछे दिन कब आये? जब भक्ति का वैराग्य हो । तुम्हारी बुद्धि में यह रहना चाहिए । ज्ञान और विज्ञान है ना । अभी तुम ज्ञान की पढ़ाई पढ़ रहे हो । फिर सतयुग-त्रेता में तुमको ज्ञान की प्रालब्ध मिलती है । ज्ञान बाबा अभी देते हैं जिसकी प्रालब्ध फिर सतयुग में होगी । यह समझने की बातें हैं ना । अभी बाप तुमको ज्ञान दे रहे हैं । तुम जानते हो फिर हम ज्ञान से परे विज्ञान अपने घर शान्तिधाम में जायेंगे । उसको न ज्ञान, न भक्ति कहेंगे । उसको कहा जाता हैं विज्ञान । ज्ञान से परे शान्तिधाम में चले जाते हैं । यह सब ज्ञान बुद्धि में रखना हैं । बाप ज्ञान देते हैं-कहाँ के लिए? भविष्य नई दुनिया के लिए देते हैं । नई दुनिया में जायेंगे तो पहले अपने घर जरूर जायेंगे । मुक्तिधाम में जाना हैं । जहाँ की आत्मायें रहवासी हैं वहाँ तो जरूर जायेंगे ना । यह नई-नई बातें तुम ही सुनते हो और कोई समझ नहीं सकते । तुम समझते हो हम आत्मायें स्प्रीचुअल फादर के स्प्रीचुअल बच्चे हैं । रूहानी बच्चों को जरूर रूहानी बाप चाहिए । रूहानी बाप और रूहानी बच्चे । रूहानी बच्चों का एक ही रूहानी बाप हैं । वह आकर नॉलेज देते हैं । बाप कैसे आते हैं-वह भी समझाया है । बाप कहते हैं मुझे भी प्रकृति धारण करनी पड़ती है । अभी तुमको बाप से सुनना ही सुनना है । सिवाए बाप के और कोई से सुनना नहीं है । बच्चे सुनकर फिर और भाईयों को सुनाते हैं । कुछ न कुछ सुनाते जरूर हैं । अपने को आत्मा समझो, बाप को याद करो क्योंकि वही पतित-पावन है । बुद्धि वहाँ चली जाती है । बच्चों को समझाने से समझ जाते हैं क्योंकि पहले बेसमझ थे । भक्ति मार्ग में बेसमझाई से रावण के चम्बे में आने से क्या करते हैं! कैसे छी-छी बन जाते हैं! शराब पीने से क्या बन जाते हैं? शराब गन्दगी को और ही फैलाती है । अभी तुम बच्चों की बुद्धि में है कि बेहद के बाप से हमको वर्सा लेना है । कल्प-कल्प लेते आये हैं इसलिए दैवीगुण भी जरूर धारण करने हैं । कृष्ण के दैवीगुणों की कितनी महिमा है । वैकुण्ठ का मालिक कितना मीठा है । अभी कृष्ण की डिनायस्टी नहीं कहेंगे । डिनायस्टी विष्णु अथवा लक्ष्मी-नारायण की कहेंगे । अभी तुम बच्चों को मालूम है बाप ही सतयुगी राजाई की डिनायस्टी स्थापन करते हैं । यह चित्र आदि भल न भी हो तो भी समझा सकते हैं । मन्दिर तो बहुत बनते रहते हैं, जिनमें ज्ञान है वह औरों का भी कल्याण करने, आपसमान बनाने भागते रहेंगे । अपने को देखना है हमने कितनों को ज्ञान सुनाया है! कोई-कोई को झट ज्ञान का तीर लग जाता है । भीष्म-पितामह आदि ने भी कहा है ना-हमको कुमारियों ने ज्ञान बाण मारा । यह सब पवित्र कुमार-कुमारियाँ हैं अर्थात् बच्चे हैं । तुम सब बच्चे हो इसलिए कहते हो हम ब्रह्मा के बच्चे कुमार-कुमारियाँ भाई-बहन हैं । यह पवित्र नाता होता है । सो भी एडाप्टेड चिल्ड्रेन हैं । बाप ने एडाप्ट किया है । शिवबाबा ने एडाप्ट किया है प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा । वास्तव में एडाप्ट अक्षर भी नहीं कहेंगे । शिवबाबा के बच्चे तो हैं ही । सब मुझे बुलाते हैं शिवबाबा, शिवबाबा आओ । परन्तु समझ कुछ नहीं हैं । सब आत्मायें शरीर धारण कर पार्ट बजाती हैं । तो शिवबाबा भी जरूर शरीर द्वारा पार्ट बजायेंगे ना । शिवबाबा पार्ट न बजावे फिर तो कोई काम का न रहा । वैल्यु ही नहीं होती । उनकी वैल्यु ही तब होती है जबकि सारी दुनिया को सद्गति में पहुँचाते हैं तब उनकी महिमा भक्तिमार्ग में गाते हैं । सद्गति हो जाती है फिर पीछे तो बाप को याद करने की दरकार ही नहीं रहती । वह सिर्फ गॉड फादर कहते हैं तो फिर टीचर गुम हो जाता । कहने मात्र रह जाता कि परमपिता परमात्मा पावन बनाने वाला है । वह सद्गति करने वाला भी नहीं कहते । भल गायन में आता है - सर्व का सद्गति दाता एक है । परन्तु बिगर अर्थ कह देते हैं । अभी तुम जो कुछ कहते हो सो अर्थ सहित । समझते हो भक्ति रात अलग है, ज्ञान दिन अलग है । दिन का भी टाइम होता है । भक्ति का भी टाइम होता है । यह बेहद की बात है । तुम बच्चों को नॉलेज मिली है बेहद की । आधाकल्प है दिन, आधाकल्प है रात । बाप कहते हैं मैं भी आता हूँ रात को दिन बनाने ।

तुम जानते हो आधाकल्प है रावण का राज्य, उसमें अनेक प्रकार के दु :ख हैं फिर बाप नई दुनिया स्थापन करते हैं तो उसमें सुख ही सुख मिलता है । कहा भी जाता है यह सुख और दु :ख का खेल है । सुख माना राम, दु :ख माना रावण । रावण पर जीत पाते हो तो फिर रामराज्य आता है, फिर आधाकल्प बाद रावण, रामराज्य पर जीत पहन राज्य करते हैं । तुम अभी माया पर जीत पाते हो । अक्षर बाई अक्षर तुम अर्थ सहित कहते हो । यह तुम्हारी है ईश्वरीय भाषा । यह कोई समझेगा थोड़ेही । ईश्वर कैसे बात करते हैं । तुम जानते हो यह गॉड फादर की भाषा है क्योंकि गॉड फादर नॉलेजफुल है । गाया भी जाता है वह ज्ञान का सागर नॉलेजफुल है तो जरूर किसको तो नॉलेज देंगे ना । अभी तुम समझते हो कैसे बाबा नॉलेज देते हैं । अपनी भी पहचान देते हैं और सृष्टि चक्र का भी नॉलेज देते हैं । जो नॉलेज लेने से हम चक्रवर्ती राजा बनते हैं । स्वदर्शन चक्र है ना । याद करने से हमारे पाप कटते जाते हैं । यह है तुम्हारा अहिंसक चक्र याद का । वह चक्र है हिंसक, सिर काटने का । वह अज्ञानी मनुष्य एक-दो का सिर काटते रहते हैं । तुम इस स्वदर्शन चक्र को जानने से बादशाही पाते हो । काम महाशत्रु है, जिससे आदि, मध्य, अन्त दुःख मिलता है । वह है दु :ख का चक्र । तुमको बाप यह चक्र का नॉलेज समझाते हैं । स्वदर्शन चक्रधारी बना देते हैं । शास्त्रों में तो कितनी कथायें बना दी हैं । तुमको अभी वह सब भूलना पड़ता है । सिर्फ एक बाप को याद करना है क्योंकि बाप से ही स्वर्ग का वर्सा लेंगे । बाप को याद करना है और वर्सा लेना है । कितना सहज है । बेहद का बाप नई दुनिया स्थापन करते हैं तो वर्सा लेने के लिए ही याद करते हो । यह है मनमनाभव, मध्याजी भव । बाप और वर्से को याद करते, बच्चों को खुशी का पारा चढ़ा रहना चाहिए । हम बेहद के बाप के बच्चे हैं । बाप स्वर्ग की स्थापना करते हैं, हम मालिक थे फिर जरूर होंगे । फिर तुम ही नर्कवासी हुए हो । सतोप्रधान थे, अब तमोप्रधान बने हो । भक्ति मार्ग में भी हम ही आये हैं । आलराउण्ड चक्र लगाया है । हम ही भारतवासी सूर्यवंशी थे फिर चन्द्रवंशी, वैश्य वंशी...... बन नीचे गिरे हैं । हम भारतवासी देवी-देवता थे फिर हम ही गिरे हैं । तुमको अभी सारा मालूम पड़ता है । वाम मार्ग में जाते तो कितना छी-छी बन जाते हो । मन्दिर में भी ऐसे छी-छी चित्र बनाये हुए हैं । आगे घड़ियाँ भी ऐसे चित्रों वाली बनाते थे । अब तुम समझते हो हम कितने गुल-गुल थे फिर हम ही पुनर्जन्म लेते-लेते कितने छी-छी बनते हैं । यह सतयुग के मालिक थे तो दैवी गुणों वाले मनुष्य थे । अभी आसुरी गुणों वाले बने हैं और कोई फर्क नहीं हैं । पूंछ वाले वा सूंढ वाले मनुष्य होते नहीं हैं । देवताओं की सिर्फ यह निशानियाँ है । बाकी तो स्वर्ग प्राय: लोप हो गया है सिर्फ यह चित्र निशानी है । चन्द्रवंशियों की भी निशानी है । अभी तुम माया पर जीत पाने के लिए युद्ध करते हो । युद्ध करते-करते फेल हो जाते हैं तो उनकी निशानी तीर कमान है । भारतवासी वास्तव में है ही देवी-देवता घराने के । नहीं तो किस घराने के गिने जाएं । परन्तु भारतवासियों को अपने घराने का मालूम न होने कारण हिन्दू कह देते हैं । नहीं तो वास्तव में तुम्हारा है ही एक घराना । भारत में है सब देवता घराने के, जो बेहद का बाप स्थापन करते हैं । शास्त्र भी भारत का एक ही है । डीटी डिनायस्टी की स्थापना होती है, फिर उनमें भिन्न-भिन्न बैन्चेज हो जाती हैं । बाप स्थापन करते हैं देवी-देवता धर्म । मुख्य हैं 4 धर्म । फाउन्डेशन देवी-देवता धर्म का ही है । रहने वाले सब मुक्तिधाम के हैं । फिर तुम अपने देवताओं की बैन्चेज में चले जायेंगे । भारत की बाउंड्री एक ही है और कोई धर्म की नहीं है । यह है असुल देवता धर्म के । फिर उनसे और धर्म निकले हैं ड्रामा के प्लैन अनुसार । भारत का असुल धर्म है ही डीटी, जो स्थापन करने वाला भी है बाप । फिर नये-नये पत्ते निकलते हैं । यह सारा ईश्वरीय झाड़ है । बाप कहते हैं मैं इस झाड़ का बीजरूप हूँ । यह फाउन्डेशन है फिर उनसे ट्यूब्स निकलती हैं । मुख्य बात है ही हम सब आत्मायें भाई- भाई हैं । सब आत्माओं का बाप एक ही है, सभी उनको याद करते हैं । अब बाप कहते हैं इन आँखों से तुम जो कुछ देखते हो उनको भूल जाना है । यह है बेहद का वैराग्य, उनका है हद का । सिर्फ घरबार से वैराग्य आ जाता है । तुमको तो इस सारी पुरानी दुनिया से वैराग्य है । भक्ति के बाद है वैराग्य पुरानी दुनिया का । फिर हम नई दुनिया में जायेंगे वाया शान्तिधाम । बाप भी कहते हैं यह पुरानी दुनिया भस्म होनी है । इस पुरानी दुनिया से अब दिल नहीं लगानी है । रहना तो यहाँ ही हैं, जब तक लायक बन जायें । हिसाब-किताब सब चुक्यू करना हैं ।

तुम आधाकल्प के लिए सुख जमा करते हो । उनका नाम ही हैं शान्तिधाम, सुखधाम । पहले सुख होता है, पीछे दु :ख । बाप ने समझाया है, जो भी नई-नई आत्मायें ऊपर से आती हैं, जैसे क्राइस्ट की आत्मा आई, उनको पहले दु :ख नहीं होता है । खेल है ही पहले सुख, पीछे दुःख । नये-नये जो आते हैं वह हैं सतोप्रधान । जैसे तुम्हारा सुख का अन्दाज जास्ती है, वैसे सबका दुःख का अन्दाज जास्ती है । यह सब बुद्धि से काम लिया जाता है । बाप आत्माओं को बैठ समझा रहे हैं । वह फिर और आत्माओं को समझाते हैं । बाप कहते हैं मैंने यह शरीर धारण किया है । बहुत जन्मों के अन्त में अर्थात् तमोप्रधान शरीर में मैं प्रवेश करता हूँ । फिर उनको ही फर्स्ट नम्बर में जाना है । फर्स्ट सो लास्ट, लास्ट सो फर्स्ट । यह भी समझाना पड़ता है । फर्स्ट के पीछे फिर कौन? मम्मा । उनका पार्ट होना चाहिए । उसने बहुतों को शिक्षा दी है । फिर तुम बच्चों में नम्बरवार हैं जो बहुतों को शिक्षा देते, पढ़ाते हैं । फिर वह पढ़ने वाले भी ऐसी कोशिश करते हैं जो तुमसे भी ऊंच चले जाते हैं । बहुत सेंटर्स पर ऐसे हैं जो पढ़ाने वाली टीचर से ऊंच चले जाते हैं । एक-एक को देखा जाता है । सबकी चलन से मालूम तो पड़ता है ना । कोई-कोई को तो माया ऐसा नाक से पकड़ लेती है जो एकदम खलास कर देती है । विकार में गिर पड़ते हैं । आगे चलकर तुम बहुतों का सुनते रहेंगे । वन्डर खायेंगे, यह तो हमको ज्ञान देती थी, फिर यह कैसे चली गई । हमको कहती थी पवित्र बनो और खुद फिर छी-छी बन गई । समझेंगे तो जरूर ना । बहुत छी-छी बन जाते हैं । बाबा ने कहा है बड़े-बड़े अच्छे महारथियों को भी माया जोर से फथकायेगी । जैसे तुम माया को फथकाकर जीत पहनते हो, माया भी ऐसे करेगी । बाप ने कितने अच्छे- अच्छे फर्स्टक्लास, रमणीक नाम भी रखे । परन्तु अहो माया, आश्चर्यवत् सुनन्ती, कथन्ती, फिर भागन्ती गिरन्ती हो गये । माया कितनी जबरदस्त है इसलिए बच्चों को बहुत खबरदार रहना है । युद्ध का मैदान है ना । माया के साथ तुम्हारी कितनी बड़ी युद्ध है । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. यहाँ ही सब हिसाब-किताब चुक्तू कर आधाकल्प के लिए सुख जमा करना है । इस पुरानी दुनिया से अब दिल नहीं लगानी है । इन आँखों से जो कुछ दिखाई देता है, उसे भूल जाना है । 

2. माया बड़ी जबरदस्त है, उससे खबरदार रहना है । पढ़ाई में गैलप कर आगे जाना है । एक बाप से ही सुनना और उनसे ही सुना हुआ दूसरों को सुनाना है ।

 

वरदान:-

हर कर्म में विजय का अटल निश्चय और नशा रखने वाले अधिकारी आत्मा भव !   

विजय हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है - इस स्मृति से सदा उड़ते चलो । कुछ भी हो जाए - ये स्मृति में लाओ कि मैं सदा विजयी हूँ । क्या भी हो जाए - यह निश्चय अटल हो । नशे का आधार है ही निश्चय । निश्चय कम तो नशा कम इसलिए कहते हैं निश्चयबुद्धि विजयी । निश्चय में कभी-कभी वाले नहीं बनना । अविनाशी बाप है तो अविनाशी प्राप्ति के अधिकारी बनो । हर कर्म में विजय का निश्चय और नशा हो ।

 

स्लोगन:- 

बाप के स्नेह की छत्रछाया के नीचे रहो तो कोई भी विघ्न ठहर नहीं सकता ।   

 

ओम् शान्ति |