22-07-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


"मीठे बच्चे - सुन्न अवस्था अर्थात् अशरीरी बनने का अभी समय है, इसी अवस्था में रहने का अभ्यास करो"   

                                                        
प्रश्न:-   
सबसे ऊंची मज़िल कौन-सी है, उसकी प्राप्ति कैसे होगी?


उत्तर:-
सम्पूर्ण सिविलाइज्ड बनना, यही ऊंच मंजिल है । कर्मेन्द्रियों में ज़रा भी चलायमानी न आये तब सम्पूर्ण सिविलाइज्ड बनें । जब ऐसी अवस्था हो तब विश्व की बादशाही मिल सकती है । गायन भी है चढ़े तो चाखे.... अर्थात् राजाओं का राजा बने, नहीं तो प्रजा । अब जांच करो मेरी वृत्ति कैसी है? कोई भी भूल तो नहीं होती है?

 

ओम् शान्ति |

आत्म- अभिमानी हो बैठना है । बाप बच्चों को समझाते हैं कि अपने को आत्मा समझो । अब बाबा आलराउण्डर से पूछते हैं सतयुग में आत्म- अभिमानी होते हैं या देह- अभिमानी? वहाँ तो ऑटोमेंटिकली आत्म- अभिमानी रहते हैं, घड़ी-घड़ी याद करने की दरकार नहीं रहती । हाँ, वहाँ यह समझते हैं अब यह शरीर बड़ा हुआ, अब इसको छोड़ दूसरा नया लेना है । जैसे सर्प का मिसाल है, वैसे आत्मा भी यह पुराना शरीर छोड़ नया लेती है । भगवान् मिसाल दे समझाते हैं । तुम्हें सभी मनुष्यों को ज्ञान की भू- भू कर आपसमान ज्ञानवान बनाना है । जिससे परिस्तानी निर्विकारी देवता बन जायें । ऊंच ते ऊंच पढ़ाई है मनुष्य से देवता बनाना । गायन भी है ना मनुष्य को देवता किये. किसने किया? देवताओं ने नहीं किया । भगवान् ही मनुष्यों को देवता बनाते हैं । मनुष्य इन बातों को जानते नहीं । तुमसे सब जगह पूछते हैं- आपकी एम आबजेक्ट क्या है? तो क्यों नहीं एम आबजेक्ट की लिखत का छोटा पर्चा छपा हुआ हो । जो कोई भी पूछे तो उनको पर्चा दे दो जिससे समझ जायें । बाबा ने बहुत अच्छी रीति समझाया है-इस समय यह कलियुगी पतित दुनिया है जिसमें महान् अपरमअपार दु :ख हैं । अब हम मनुष्यों को सतयुगी पावन महान् सुखधाम में ले जाने की सर्विस कर रहे हैं वा रास्ता बताते हैं । ऐसे नहीं हम अद्वेत नॉलेज देते हैं । वे लोग शास्त्रों की नॉलेज को अद्वेत नॉलेज समझते हैं । वास्तव में वह कोई अद्वेत नॉलेज है नहीं । अद्वेत नॉलेज लिखना भी रांग है । मनुष्यों को क्लीयर कर बताना है, ऐसी लिखत छपी हुई हो जो झट समझ जाएं कि इन्हों का उद्देश्य क्या है? कलियुगी पतित भ्रष्टाचारी मनुष्यों को हम अपार दु:खों से निकाल सतयुगी पवित्र श्रेष्ठाचारी अपार सुखों की दुनिया में ले जाते हैं । बाबा यह एसे (निबन्ध) बच्चों को देते हैं । ऐसे क्लीयर कर लिखना है । सब जगह ऐसी तुम्हारी लिखत रखी हो, झट वह निकालकर दे देनी चाहिए तो समझे हम तो दु :खधाम में है । गंद में पड़े है । मनुष्य कोई समझते थोड़ेही हैं कि हम कलियुगी पतित, दु :खधाम के मनुष्य हैं । यह हमको अपार सुखों में ले जाते हैं । तो ऐसा एक अच्छा पर्चा बनाना है । जैसे बाबा ने भी छपाया था-सतयुगी हो या कलियुगी? परन्तु मनुष्य समझते थोड़ेही हैं । रत्नों को भी पत्थर समझ फेंक देते हैं । यह है ज्ञान रत्न । वह समझते हैं शास्त्रों में रत्न हैं । तुम क्लीयर कर ऐसा बोलो जो समझें यहाँ तो अपार दु :ख हैं । दु :खों की भी लिस्ट हो, कम से कम 101 तो जरूर हों । इस दु :खधाम में अपार दु :ख हैं, यह सब लिखो, सारी लिस्ट निकालो । दूसरे तरफ फिर अपार सुख, वहाँ दु :ख का नाम नहीं होता । हम वह राज्य अथवा सुखधाम स्थापन कर रहे हैं जो झट मनुष्यों का मुख बन्द हो जाए । यह कोई समझते थोड़ेही हैं कि इस समय दु :खधाम है, इसको तो वह स्वर्ग समझ बैठे हैं । बड़े-बडे महल, नये-नये मन्दिर आदि बनाते रहते हैं, यह थोड़ेही जानते हैं कि यह सब खत्म हो जाने हैं । पैसे तो उन्हों को बहुत मिलते हैं रिश्वत के । बाप ने समझाया है यह सब है माया का, साइंस का घमण्ड, मोटरें, एरोप्लेन आदि यह सब माया का शो है । यह भी कायदा है, जब बाप स्वर्ग की स्थापना करते हैं तो माया भी अपना भभका दिखाती है, इसको कहा जाता है माया का पोंम्प । 

अब तुम बच्चे सारे विश्व में शान्ति स्थापन कर रहे हो । अगर माया की कहाँ प्रवेशता हो जाती है तो बच्चों को अन्दर खाता है । जब कोई किसके नाम- रूप में फँस पड़ते हैं तो बाप समझाते हैं यह क्रिमिनलाइज़ है । कलियुग में है क्रिमिनलाइजेशन । सतयुग में है सिविलाइजेशन । इन देवताओं के आगे सब माथा टेकते हैं, आप निर्विकारी हम विकारी इसलिए बाप कहते हैं हर एक अपनी अवस्था को देखे । बड़े-बड़े अच्छे महारथी अपने को देख हमारी बुद्धि किसके नाम-रूप में जाती तो नहीं? फलानी बहुत अच्छी है, यह करें-कुछ अन्दर में आता है? यह तो बाबा जानते हैं इस समय सम्पूर्ण सिविलाइज्ड कोई है नहीं । वह तो बिल्कुल जो पास विद् ऑनर 8 रत्न हैं, उनकी ही इस समय सिविलाइज्ड हो सकती है । 108 भी नहीं । जरा भी चलायमानी न आये, बहुत मुश्किल है । कोई विरले ऐसे होते हैं । आँखें कुछ न कुछ धोखा जरूर देती है । तो ड्रामा जल्द किसकी सिविलाइज्ड नहीं बनायेगा । खूब पुरूषार्थ कर अपनी जाँच करनी है-कहाँ हमारी आँखें धोखा तो नहीं देती हैं? विश्व का मालिक बनना बड़ी ऊँच मंजिल है । चढ़े तो चाखे..... अर्थात् राजाओं का राजा बनते, गिरे तो प्रजा में चले जायेंगे । आजकल तो कहेंगे विकारी जमाना है । भल कितने बड़े आदमी हैं, समझो क्वीन है उनके अन्दर भी डर रहता होगा कि कहाँ कोई हमें उड़ा न दे । हर एक मनुष्य में अशान्ति है । कोई-कोई बच्चे भी कितनी अशान्ति फैलाते हैं । तुम शान्ति स्थापन कर रहे हो, तो पहले तो खुद शान्ति में रहो, तब दूसरे में भी वह बल भरे । वहाँ तो बड़ा शान्ति का राज्य चलता है । आँखें सिविल बन जाती है । तो बाप कहते हैं अपनी जाँच करो- आज मुझ आत्मा की वृत्ति कैसी रही? इसमें बहुत मेहनत है । अपनी सम्भाल रखनी है । बेहद के बाप को भी सच कभी नहीं बताते हैं । कदम-कदम पर भूले होती रहती हैं । थोड़ा भी उस क्रिमिनल दृष्टि से देखा, भूल हुई, फौरन नोट करो । 10 - 20 भूलें तो रोज करते ही होंगे, जब तक अभुल बनें । परन्तु सच कोई बताते थोड़ेही हैं। देह- अभिमानी से कुछ न कुछ पाप जरूर होगा । वह अन्दर खाता रहेगा । कई तो समझते ही नहीं कि भूल किसको कहते हैं । जानवर समझते हैं क्या। तुम भी इस ज्ञान के पहले बन्दरबुद्धि थे । अब कोई 50 परसेन्ट, कोई 10 परसेन्ट कोई कितना चेंज होते जाते हैं । यह आँखें तो बहुत धोखा देने वाली हैं । सबसे तीखी हैं आँखें । 

बाप कहते तुम आत्मा अशरीरी आई थी । शरीर नहीं था । क्या अभी तुमको पता है कि दूसरा कौन-सा शरीर लेंगे, किस सम्बन्ध में जायेंगे? मालूम नहीं पड़ता । गर्भ में सुन्न ही सुन्न रहते हैं । आत्मा बिल्कुल ही सुन्न हो जाती । जब शरीर बड़ा हो तब पता पड़े । तो तुमको ऐसा बनकर जाना है । बस, यह पुराना शरीर छोड़कर हमको जाना है फिर जब शरीर लेंगे तो स्वर्ग में अपना पार्ट बजायेंगे । सुन्न होने का अभी समय है | भल आत्मा संस्कार ले जाती है, जब शरीर बड़ा होता है तब संस्कार इमर्ज होते हैं । अभी तुमको घर जाना है इसलिए पुरानी दुनिया का, इस शरीर का भान उड़ा देना है । कुछ भी याद न रहे । परहेज बहुत रखना है । जो अन्दर में होगा वही बाहर निकलेगा । शिवबाबा के अन्दर में भी ज्ञान है, मेरा भी पार्ट है । मेरे लिए ही कहते हैं ज्ञान का सागर........... महिमा गाते हैं, अर्थ कुछ नहीं जानते । अभी तुम अर्थ सहित जानते हो । बाकी आत्मा की बुद्धि ऐसी वर्थ नाट ए पेनी हो जाती है । अब बाप कितना बुद्धिवान बनाते हैं । मनुष्यों के पास तो करोड़, पदम् हैं । यह माया का पॉम्प है ना । साइंस में जो अपने काम की चीज़ें हैं, वह वहाँ भी होंगी । वह बनाने वाले वहाँ भी जायेंगे । राजा तो नहीं बनेंगे । यह लोग पिछाड़ी में तुम्हारे पास आयेंगे फिर ओरों को भी सिखायेंगे । एक बाप से तुम कितने सीखते हो । एक बाप ही दुनिया को क्या से क्या बना देते हैं । इन्वेंशन हमेशा एक निकालते हैं फिर फैलाते हैं । बॉम्बस बनाने वाला भी पहले एक था । समझा इनसे दुनिया विनाश हो जायेगी । फिर और बनाते गये । वहाँ भी साइंस तो चाहिए ना । टाइम पड़ा है । सीखकर होशियार हो जायेंगे । बाप की पहचान मिल गई फिर स्वर्ग में आकर नौकर-चाकर बनेंगे । वहाँ सब सुख की बातें होती हैं । जो सुखधाम में था वह फिर होगा । वहाँ कोई रोग-दुख की बात नहीं । यहाँ तो अपरम्पार दुःख है । वहाँ अपरम्पार सुख हैं । अभी हम यह स्थापन कर रहे हैं । दुख हर्ता, सुख कर्ता एक बाप ही है । पहले तो खुद की भी ऐसी अवस्था चाहिए, सिर्फ पण्डिताई नहीं चाहिए । ऐसी एक पण्डित की कथा है, बोला राम नाम कहने से पार हो जायेंगे यह इस समय की बात है । तुम बाप की याद में विषय सागर से क्षीरसागर में चले जाते हो । यहाँ तुम बच्चों की अवस्था बड़ी अच्छी चाहिए । योगबल नहीं है, क्रिमिनल आइज़ हैं तो उनका तीर लग नहीं सकता । आँखें सिविल चाहिए । बाप की याद में रह किसको ज्ञान देंगे तो तीर लग जायेगा । ज्ञान तलवार में योग का जौहर चाहिए । नॉलेज से धन की कमाई होती है । ताकत है याद की । बहुत बच्चे तो बिल्कुल याद करते ही नहीं, जानते ही नहीं । बाप कहते हैं मनुष्यों को समझाना है कि यह है दु:खधाम, सतयुग है सुखधाम । कलियुग में सुख का नाम नहीं । अगर है भी तो भी काग विष्टा के समान है । सतयुग में तो अपार सुख हैं । मनुष्य अर्थ नहीं समझते । मुक्ति के लिए ही माथा मारते रहते हैं । जीवनमुक्ति को तो कोई जानते ही नहीं । तो ज्ञान भी दे कैसे सकते । वह आते ही हैं रजोप्रधान समय में वह फिर राजयोग कैसे सिखलायेंगे । यहाँ तो सुख है काग विष्टा समान । राजयोग से क्या हुआ था-यह भी नहीं जानते । तुम बच्चे जानते हो यह भी सब ड्रामा चल रहा है । अखबार में भी तुम्हारी निन्दा लिखते हैं, यह तो होना ही है । अबलाओं पर किस्म-किस्म के सितम आते हैं । दुनिया में अनेक दु :ख हैं । अभी कोई सुख है थोड़ेही । भल कितना बड़ा साहूकार है, बीमार हुआ, अँधा हुआ, तो दु :ख तो होता है ना । दुखों की लिस्ट में सब लिखो । रावण राज्य कलियुग के अन्त में यह सब बातें हैं । सतयुग में दुःख की एक भी बात नहीं होती है । सतयुग तो होकर गया है ना । अभी है संगमयुग । बाप भी संगम पर ही आते हैं । अभी तुम जानते हो 5 हजार वर्ष में हम क्या-क्या जन्म लेते हैं । कैसे सुख से फिर दु :ख में आते हैं । जिनको सारा ज्ञान बुद्धि में है, धारणा है वह समझ सकते हैं । बाप तुम बच्चों की झोली भरते हैं । गायन भी है- धन दिये धन ना खुटे । धन दान नहीं करते हैं तो गोया उनके पास है ही नहीं । तो फिर मिलेगा भी नहीं । हिसाब है ना! देते ही नहीं तो मिलेगा कहाँ से । वृद्धि कहाँ से होगी । यह सब है अविनाशी ज्ञान रत्न । नम्बरवार तो हर बात में होते हैं ना । यह भी तुम्हारी रूहानी सेना है । कोई रूह जाकर ऊँच पद पायेगी, कोई रूह प्रजा पद पायेगी । जैसे कल्प पहले पाया था । अच्छा! 

मीठे-मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों को नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार बापदादा व मात-पिता का दिल व जान, सिक व प्रेम से याद-प्यार और गुडमार्निग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. अपनी सम्भाल करने के लिए कदम-कदम पर जाँच करनी है कि(अ) आज मुझ आत्मा की वृत्ति कैसी रही(ब) आँखें सिविल रहीं? (स) देह- अभिमान वश कौन-सा पाप हुआ? 

2. बुद्धि में अविनाशी ज्ञान धन धारण कर फिर दान करना है । ज्ञान तलवार में याद का जौहर जरूर भरना है ।

 

वरदान:-

विशेषता के संस्कारों को नेचुरल नेचर बनाए साधारणता को समाप्त करने वाले मरजीवा भव !   

जो नेचर होती है वह स्वत: अपना काम करती है, सोचना, बनाना या करना नहीं पड़ता है लेकिन स्वत: हो जाता है । ऐसे मरजीवा जन्मधारी ब्राह्मणों की नेचर ही है विशेष आत्मा के विशेषता की । यह विशेषता के संस्कार नेचुरल नेचर बन जाएं और हर एक के दिल से निकले कि मेरी यह नेचर है । साधारणता पास्ट की नेचर है, अभी की नहीं क्योंकि नया जन्म ले लिया । तो नये जन्म की नेचर विशेषता है साधारणता नहीं ।

 

स्लोगन:- 

रॉयल वह हैं जो सदा ज्ञान रत्नों से खेलते, पत्थरों से नहीं ।     

 

ओम् शान्ति |