01-07-14
प्रातः मुरली
ओम्
शान्ति
“बापदादा”
मधुबन
“मीठे
बच्चे –
देही-
अभिमानी बनो तो शीतल हो जायेंगे,
विकारों की बांस निकल जायेगी,
अन्तर्मुखी हो जायेंगे,
फूल
बन जायेंगे” 
प्रश्न:-
बापदादा सभी
बच्चों
को कौन-से
दो वरदान देते हैं?
उन्हें
स्वरूप
में
लाने की विधि क्या है?
उत्तर:-
बाबा सभी
बच्चों
को
शान्ति और सुख का वरदान देते हैं । बाबा कहते-बच्चे,
तुम शान्ति
में
रहने का अभ्यास करो । कोई उल्टा-सुल्टा
बोलते हैं तो तुम जवाब न दो । तुम्हे शान्त रहना है । फालतू
झरमुई, झगमुई की
बातें
नहीं
करनी है । किसी को भी दुःख
नहीं
देना है । मुख
में
शान्ति का मुहलरा डाल दो तो यह
दोनों
वरदान स्वरूप
में
आ
जायेंगे
|
ओम् शान्ति
|
मीठे-मीठे
बच्चे कभी सम्मुख हैं, कभी दूर चले
जाते हैं । सम्मुख फिर वही रहते हैं जो याद करते हैं क्योकि
याद की यात्रा में ही सब कुछ समाया हुआ है । गाया जाता है ना
- नजर से निहाल । आत्मा की नजर जाती है
परमपिता
में
और कुछ भी उनको अच्छा
नहीं
लगता । उनको याद करने से विकर्म विनाश होते
हैं
।
तो अपने पर कितनी खबरदारी रखनी चाहिए । याद न करने से माया समझ
जाती है-इनका
योग टूटा हुआ है तो अपनी तरफ खीचती है । कुछ न कुछ उल्टा कर्म
करा देती है । ऐसे बाप की निन्दा कराते
हैं
।
भक्ति मार्ग
में
गाते
हैं-बाबा,
मेरे तो एक आप दूसरा न कोई । तब बाप कहते
हैं-बच्चे,
मजिल बहुत ऊँची है । काम करते हुए बाप को
याद करना-यह है ऊंच ते ऊंच मंजिल ।
इसमें
प्रैक्टिस बहुत अच्छी चाहिए ।
नहीं
तो निन्दक बन जाते
हैं,
उल्टा काम करने वाले । समझो कोई
में
क्रोध आया,
आपस
में
लड़ते-झगड़ते
हैं
तो भी निन्दा कराई ना,
इसमें
बड़ी खबरदारी रखनी है । अपने गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए
बुद्धि बाप से लगानी है । ऐसे
नहीं
कि कोई सम्पूर्ण हो गया है ।
नहीं
।
कोशिश ऐसी करनी चाहिए-
हम देही- अभिमानी बनें । देह-
अभिमान
में
आने से कुछ न कुछ उल्टा काम करते
हैं
तो गोया बाप की निन्दा कराते हैं । बाप कहते
हैं
ऐसे सतगुरू की निन्दा कराने वाले लक्ष्मी-नारायण
बनने की ठौर पा न सके इसलिए पूरा पुरूषार्थ करते रहो,
इससे तुम बहुत ही शीतल बन
जायेंगे
।
पाँच
विकारों
की
बातें
सब निकल जायेंगी । बाप से बहुत ताकत मिल जायेगी । काम-काज
भी करना है । बाप ऐसे
नहीं
कहते कि कर्म न करो । वहाँ तो तुम्हारे कर्म,
अकर्म हो
जायेंगे
।
कलियुग
में
जो कर्म होते
हैं,
वह विकर्म हो जाते
हैं
।
अभी संगमयुग पर तुमको सीखना होता है । वहाँ सीखने की बात
नहीं
।
यहाँ की शिक्षा ही वहाँ साथ चलेगी । बाप
बच्चों
को समझाते
हैं-
बाहरमुखता अच्छी
नहीं
है । अन्तर्मुखी भव । वह भी समय आयेगा जबकि तुम बच्चे
अन्तर्मुख हो
जायेंगे
।
सिवाए बाप के और कुछ याद
नहीं
आयेगा । तुम आये भी ऐसे थे,
कोई की याद नहीं थी । गर्भ से जब बाहर
निकले तब पता पड़ा कि यह हमारे माँ-बाप
हैं,
यह फलाना है । तो फिर अब जाना भी ऐसे है ।
हम एक बाप के
हैं
और कोई उनके सिवाए बुद्धि
में
याद न आये । भल टाइम पड़ा है परन्तु पुरूषार्थ तो पूरी रीति
करना है । शरीर पर तो कोई भरोसा
नहीं
।
कोशिश करते रहना चाहिए,
घर
में
भी बहुत शान्ति हो,
क्लेश
नहीं
।
नहीं
तो सब कहेंगे इनमें
कितनी अशान्ति है । तुम
बच्चों
को तो रहना है बिल्कुल शान्त । तुम शान्ति का वर्सा ले रहे हो
ना । अभी तुम रहते हो काँटों के बीच
में
।
फूलों के बीच
में
नहीं
हो । काँटो के बीच रह फूल बनना है । काँटो का काँटा
नहीं
बनना है । जितना तुम बाप को याद करेंगे उतना शान्त रहेंगे ।
कोई उल्टा-सुल्टा
बोले, तुम शान्ति
में
रहो । आत्मा है ही शान्त । आत्मा का स्वधर्म है शान्त । तुम
जानते हो अभी हमको उस घर
में
जाना है । बाप भी है शान्ति का सागर । कहते
हैं
तुमको भी शान्ति का सागर बनना है । फालतू झरमुई-झगमुई
बहुत नुकसान करती है । बाप डायरेक्शन देते
हैं-ऐसी
बातें नहीं
करनी चाहिए,
इससे तुम बाप की निन्दा कराते हो । शान्ति
में
कोई निन्दा वा विकर्म होता
नहीं
।
बाप को याद करते रहने से और ही विकर्म विनाश होंगे । अशान्त न
खुद हो,
न ओरों को करो । किसको दु :ख
देने से आत्मा नाराज होती है । बहुत
हैं
जो रिपोर्ट लिखते
हैं-बाबा,
यह घर
में
आते
हैं
तो धमचक्र मचा देते
हैं
।
बाबा लिखते
हैं
तुम अपने शान्ति स्वधर्म
में
रहो । हातमताई की कहानी भी है ना,
उनको कहा तुम मुख
में
मुहलरा डाल दो तो आवाज निकलेगा ही
नहीं
।
बोल
नहीं
सकेंगे ।
तुम बच्चों को शान्ति
में
रहना है । मनुष्य शान्ति के लिए बहुत धक्के खाते
हैं
।
तुम बच्चे जानते हो हमारा मीठा बाबा शान्ति का सागर है ।
शान्ति कराते-कराते
विश्व
में
शान्ति स्थापन करते
हैं
।
अपने भविष्य मर्तबे को भी याद करो । वहाँ होता ही है एक धर्म,
दूसरा कोई धर्म होता
नहीं
।
उनको ही विश्व
में
शान्ति कहा जाता है । फिर जब दूसरे-दूसरे
धर्म आते
हैं
तो हंगामें होते
हैं
।
अभी कितनी शान्ति रहती है । समझते हो हमारा घर वही है । हमारा
स्वधर्म है शान्त । ऐसे तो
नहीं
कहेंगे
शरीर का स्वधर्म शान्त है । शरीर विनाशी
चीज है, आत्मा अविनाशी चीज है ।
जितना समय आत्मायें वहाँ रहती
हैं
तो कितना शान्त रहती
हैं
।
यहाँ तो सारी दुनिया
में
अशान्ति है इसलिए शान्ति माँगते रहते
हैं
।
परन्तु कोई चाहे सदा शान्त
में
रहें,
यह तो हो न सके । भल 63
जन्म वहाँ रहते
हैं
फिर भी आना जरूर पड़ेगा । अपना पार्ट दुःख-सुख
का बजाकर फिर चले
जायेंगे
।
ड्रामा को अच्छी रीति ध्यान
में
रखना होता है ।
तुम
बच्चों
को भी ध्यान
में
रहे कि बाबा हमको वरदान देते
हैं
- सुख और शान्ति का । ब्रह्मा की आत्मा भी
सब सुनती है । सबसे नजदीक तो इनके कान सुनते
हैं
।
इनका मुख कान के नजदीक है । तुम्हारा फिर इतना दूर है । यह झट
सुन लेते
हैं
।
सब
बातें
समझ सकते
हैं
।
बाप कहते
हैं
मीठे-
मीठे
बच्चों!
मीठे-मीठे तो
सबको कहते
हैं
क्योंकि बच्चे तो सब
हैं
।
जो भी जीव आत्मायें
हैं
वह सब बाप के बच्चे अविनाशी
हैं
।
शरीर तो विनाशी है । बाप अविनाशी है । बच्चे आत्मायें भी
अविनाशी
हैं
।
बाप
बच्चों
से वार्तालाप करते
हैं-इसको
कहा जाता है रूहानी नॉलेज । सुप्रीम रूह बैठ रूहो को समझाते
हैं
।
बाप का प्यार तो है ही । जो भी सब रूहे
हैं,
भल तमोप्रधान
हैं
।
जानते
हैं
यह सब जब घर
में
थे तो सतोप्रधान थे । सबको कल्प-कल्प
हम आकर शान्ति का रास्ता बताता हूँ । वर देने की बात
नहीं
है । ऐसे
नहीं
कहते धनवान भव,
आयुष्वान भव ।
नहीं
।
सतयुग
में
तुम ऐसे थे परन्तु आशीर्वाद
नहीं
देते
हैं
।
कृपा वा आशीर्वाद
नहीं
माँगनी है । बाप,
बाप भी है, टीचर
भी है-यही बात याद करनी है । ओहो!
शिवबाबा बाप भी है,
टीचर भी है,
ज्ञान का सागर भी है । बाप ही बैठ अपना और रचना के आदि-मध्य-
अन्त का ज्ञान सुनाते
हैं,
जिससे तुम चक्रवर्ती महाराजा बन जाते हो ।
यह सारा आलराउण्ड चक्र है ना । बाप समझाते
हैं
इस समय सारी दुनिया रावण राज्य
में
है । रावण सिर्फ लंका
में
नहीं
है । यह है बेहद की लंका । चारों तरफ पानी है । सारी
लंका
रावण की थी,
अब फिर राम की बनती है ।
लंका
तो सोने की थी । वहाँ सोना बहुत होता है । एक मिसाल भी बताते
हैं
ध्यान
में
गया,
वहाँ एक सोने की ईट देखी । जैसे यहाँ
मिट्टी की है, वहाँ सोने की होगी ।
तो ख्याल किया सोना ले जायें । कैसे-कैसे
नाटक बनाये
हैं
।
भारत तो नामीग्रामी है,
और खण्डो
में
इतने हीरे-जवाहर
नहीं
होते । बाप कहते
हैं
मैं सबको वापिस ले जाता हूँ,
गाइड बन करके । चलो बच्चे,
अब घर जाना है । आत्मायें पतित
हैं,
पावन होने बिगर घर जा
नहीं
सकती
हैं
।
पतित को पावन बनाने वाला एक बाप ही है इसलिए सब यहाँ ही हैं ।
वापिस कोई भी जा
नहीं
सकते । लॉ
नहीं
कहता । बाप कहते हें-बच्चे,
माया तुम्हें और ही जोर से देह-
अभिमान
में
लायेगी । बाप को याद करने
नहीं
देगी । तुमको खबरदार रहना है । इस पर ही युद्ध है । आँखें बड़ा
धोखा देती है । इन आँखों को कब्जे
में
(अधिकार
में)
रखना है । देखा गया भाई-बहन
में
भी दृष्टि ठीक
नहीं
रहती है तो अब समझाया जाता है भाई-
भाई समझो । यह तो सब कहते
हैं
हम सब भाई-
भाई
हैं
।
परन्तु समझते कुछ भी
नहीं
।
जैसे
मेंढक
ट्राँ-ट्रॉ
करते रहते
हैं,
अर्थ कुछ नहीं समझते । अभी तुम हर एक बात
का यथार्थ अर्थ समझ गये हो ।
बाप मीठे-मीठे
बच्चों
को बैठ समझाते
हैं
कि तुम भक्ति मार्ग
में
भी आशिक थे,
माशुक को याद करते थे । दुःख
में
झट उनको याद करते
हैं-हाय
राम! हे भगवान रहम करो!
स्वर्ग
में
तो ऐसे कभी
नहीं
कहेंगे । वहाँ रावण राज्य ही
नहीं
होता है । तुमको रामराज्य
में
ले जाते
हैं
तो उनकी मत पर चलना चाहिए । अभी तुमको मिलती है ईश्वरीय मत फिर
मिलेगी दैवी मत । इस कल्याणकारी संगमयुग को कोई भी
नहीं
जानते
हैं
क्योंकि सबको बताया हुआ है,
कलियुग अजुन छोटा बच्चा है । लाखो वर्ष पड़े
हैं
।
बाबा कहते यह है भक्ति का घोर अन्धियारा । ज्ञान है सोझरा ।
ड्रामा अनुसार भक्ति की भी नूंध है,
यह फिर भी होगी । अब तुम समझते हो भगवान्
मिल गया तो भटकने की दरकार
नहीं
रहती । तुम कहते हो हम जाते
हैं
बाबा के पास अथवा बापदादा के पास । इन बातों को मनुष्य तो समझ
न सके । तुम्हारे
में
भी जिनको पूरा निश्चय
नहीं
बैठता तो माया एकदम हप कर लेती है । एकदम गज को ग्राह हप कर
लेता है । आश्चर्यवत सुनन्ती...पुराने
तो चले गये, उनका भी गायन है,
अच्छे- अच्छे
महारथियों को माया हरा देती है । बाबा को लिखते
हैं-बाबा,
आप अपनी माया को
नहीं
भेजो । अरे,
यह हमारी थोड़ेही है । रावण अपना राज्य करते
हैं,
हम अपना राज्य स्थापन कर रहे
हैं
।
यह परमपरा से चला आता है । रावण ही तुम्हारा सबसे बड़ा दुश्मन
है । जानते
हैं
रावण दुश्मन है,
इसलिए उसको हर वर्ष जलाते
हैं
।
मैसूर
में
तो दशहरा बहुत मनाते
हैं,
समझते कुछ
नहीं
।
तुम्हारा नाम है शिव शक्ति सेना । उन्होंने फिर नाम बन्दर सेना
डाल दिया है । तुम जानते हो बरोबर हम बन्दर मिसल थे,
अब शिवबाबा से शक्ति ले रहे हो,
रावण पर जीत पाने । बाप ही आकर राजयोग
सिखलाते
हैं
।
इस पर कथायें भी अनेक बना दी है । अमरकथा भी कहते
हैं
।
तुम जानते हो बाबा हमको अमरकथा सुनाते हैं । बाकी कोई पहाड़ आदि
पर नहीं सुनाते । कहते हैं शंकर ने पार्वती को अमरकथा सुनाई ।
शिव शंकर का चित्र भी रखते
हैं
।
दोनों
को मिला दिया है । यह सब है भक्ति मार्ग । दिन-प्रतिदिन
सब तमोप्रधान होते गये हैं । सतोप्रधान से सतो होते
हैं
तो दो कला कम होती है । त्रेता को भी वास्तव
में
स्वर्ग
नहीं
कहा जाता है । बाप आते
हैं
तुम
बच्चों
को स्वर्गवासी बनाने । बाप जानते
हैं
ब्राह्मणकुल और सूर्यवशी-चन्द्रवशी
कुल
दोनों
स्थापन हो रहे
हैं
।
रामचन्द्र को क्षत्रिय की निशानी दी है । तुम सब क्षत्रिय हो
ना,
जो माया पर जीत पाते हो । कम मार्क्स से
पास होने वाले को चन्द्रवशी कहा जाता है,
इसलिए राम को बाण आदि दे दिया है । हिंसा
तो त्रेता
में
भी होती
नहीं
।
गायन भी है राम राजा,
राम प्रजा....
परन्तु यह क्षत्रियपन की निशानी दे दी है तो मनुष्य मूँझते
हैं
।
यह हथियार आदि होते
नहीं
हैं
।
शक्तियों के लिए भी कटारी आदि दिखाते
हैं
।
समझते कुछ भी
नहीं
हैं
।
तुम बच्चे अभी समझ गये हो कि बाप ज्ञान का सागर है इसलिए बाप
ही आदि-मध्य-
अन्त का राज समझाते
हैं
।
बेहद के बाप का जो
बच्चों
पर लव है,
वह हद के बाप का हो न सके । 21
जन्मों के लिए
बच्चों
को सुखदाई बना देते हैं । तो लवली बाप ठहरा ना!
कितना लवली है बाप,
जो तुम्हारे सब दुःख दूर कर देते
हैं
।
सुख का वर्सा मिल जाता
हैं
। वहाँ दुःख का नाम निशान
नहीं
होता । अभी यह बुद्धि
में
रहना चाहिए ना । यह भूलना
नहीं
चाहिए । कितना सहज है,
सिर्फ मुरली पढ़कर सुनानी है,
फिर भी कहते
हैं
ब्राह्मणी चाहिए । ब्राह्मणी बिगर धारणा
नहीं
होती । अरे,
सत्य नारायण की कथा तो छोटे बच्चे भी याद
कर सुनाते
हैं
।
मैं तुमको रोज-रोज
समझाता हूँ सिर्फ अल्फ को याद करो । यह ज्ञान तो 7
रोज
में
बुद्धि
में
बैठ जाना चाहिए । परन्तु बच्चे भूल जाते
हैं,
बाबा तो वण्डर खाते
हैं
।
अच्छा!
मीठे-मीठे
सिकीलधे
बच्चों
प्रति मात-पिता
बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निग । रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों
को नमस्ते ।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1)
बाप से आशीर्वाद वा कृपा नहीं मांगनी है ।
बाप, टीचर,
गुरू को याद कर अपने ऊपर आपेही कृपा करनी
है । माया से खबरदार रहना है, आँखें
धोखा देती
हैं,
इन्हे अपने अधिकार में रखना है ।
2)
फालतू झरमुई-झगमुई
की
बातें
बहुत
नुकसान करती
हैं
इसलिए जितना हो सके शान्त रहना है,
मुख
में
मुहलरा डाल देना है । कभी भी उल्टा-सुल्टा
नहीं
बोलना है । न खुद अशान्त होना है,
न किसी को अशान्त करना है |
वरदान:-
हजूर को सदा साथ रख कम्बाइन्ड स्वरूप का अनुभव करने वाले विशेष
पार्टधारी भव
! 
बच्चे जब दिल से कहते बाबा तो दिलाराम हाजिर हो जाता,
इसीलिए कहते हजूर हाजिर । और विशेष आत्मायें तो
हैं
ही कम्बाइन्ड । लोग कहते
हैं
जिधर देखते
हैं
उधर तू ही तू है और बच्चे कहते
हैं
हम जो भी करते
हैं,
जहाँ भी जाते
हैं
बाप साथ ही है । कहा जाता है करनकरावनहार तो करनहार और
करावनहार कम्बाइन्ड हो गया । इस स्मृति
में
रहकर पार्ट बजाने वाले विशेष पार्टधारी बन जाते
हैं|
स्लोगन:-
स्वयं
को इस पुरानी दुनिया
में
गेस्ट
समझकर रहो तो पुराने संस्कारों और संकल्पों को गेट आउट कर
सकेंगे । 
ओम्
शान्ति |