11-05-14
प्रातः मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा”
रिवाइज:
30-06-77
मधुबन
“बापदादा
की हर ब्राह्मण आत्मा प्रति श्रेष्ठ कामनाएँ”
सर्व
ख़ुशनसीब, सर्व श्रेष्ठ आत्माओं के कल्याण अर्थ निमित्त बने हुए
बापदादा के साथ सदा सहयोगी रहने का पार्ट बजाने वाली सर्व
आत्माओं को देख बापदादा भी हर्षित होते हैं | बाप के स्नेह वा
लग्न में रहने वाली स्नेही आत्माओं को मिलन के उमंग, उत्साह
में देख बाप भी बच्चों को स्नेह और उमंग का रिटर्न दे रहे हैं
|
बापदादा जानते हैं कि सभी बच्चों के अन्दर स्नेह, सहयोग की
भावना और बाप समान बनने का श्रेष्ठ संकल्प भी है
|
इन सबको देख बापदादा बच्चों को स्वयं से भी सर्व श्रेष्ठ ताज,
तख़्त नशीन परमधाम के चमकते हुए सितारे और विश्व के सर्व
आत्माओं के दिल के सहारे, विश्व की आत्माओं के आगे सदा पूर्वज
और पूज्य – ऐसे श्रेष्ठ देखने चाहते हैं
|
बच्चों को श्रेष्ठ देखते बाप को ज़्यादा ख़ुशी होती है
|
हरेक ब्राह्मण आत्मा सदा ऊँचे ते ऊँचे बाप के साथ ऊँची स्थिति
में स्थित रहे | जैसा ऊँचा नाम, वैसा ऊँचा काम | जैसा विश्व के
आगे ऊँचा मान है, ऐसा ही स्वमान वा शान सदा कायम रहे – यही
बापदादा की हर ब्राह्मण आत्मा में श्रेष्ठ कामना है |
बच्चों को क्या करना है? जो बापदादा द्वारा ज्ञान का, गुणों
का, शक्तियों का श्रृंगार मिला है, उस श्रृंगार को धारण करो |
जैसे आपके जड़ चित्र सदा सजे सजाए हैं, ऐसे चैतन्य रूप में भी
सदा सजे सजाए बापदादा के दिल तख़्त नशीन, अतीन्द्रिय सुख में
झूमते हुए सदा फ़रिश्ते रूप के नशे में रहना है | यही बापदादा
को रिटर्न करना है | रिटर्न करना आता है? दिल की चाहना और करना
समान हो | ऐसे नहीं कि चाहते हैं, लेकिन करते नहीं हैं | अपनी
सर्व श्रेष्ठ अथॉरिटीज़ को, कौनसी अथॉरिटी? साकारी
कर्मेन्द्रियाँ अर्थात् कर्मचारी और साथ-साथ अपनी सूक्ष्म
शक्तियां मन, बुद्धि, संस्कार अर्थात् कार्यकर्ताओं को यथार्थ
रीति से चलाने की अथॉरिटी | ऐसी अथॉरिटी धारण की है? मास्टर
सर्वशक्तिमान मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी होकर अपनी कर्मेन्द्रियों
को चलाते हो वा ब्राह्मण परिवार के ही सहयोगी कार्यकर्ताओं
अर्थात् मददगार आत्माओं वा सर्विस साथियों के ऊपर अथॉरिटी
चलाते हो? ब्राह्मण आत्माओं के सम्पर्क में स्नेह और सहयोग की
भावना रखनी है, न कि अथॉरिटी यूज करनी है और कर्मेन्द्रियों के
ऊपर सूक्ष्म शक्तिओं के ऊपर अथॉरिटी चलानी है | उसमें कभी भी
अधीन होना कि मेरे स्वभाव, संस्कार ऐसे हैं – आलमाइटी अथॉरिटी
के यह बोल नहीं हैं | जो स्वयं के ऊपर अथॉरिटी नहीं चलाते तो
अथॉरिटी को मिस यूज़ करते हैं | तो अथॉरिटी को मिस यूज़ मत करो |
बापदादा ने सर्व बच्चों के मिलन-मेले में बच्चों का
उमंग-उत्साह भी देखा, श्रेष्ठ भावना भी देखी, विश्व कल्याण की
कामना भी देखी | साथ-साथ बाप समान बनने की श्रेष्ठ इच्छा भी
देखी | लेकिन इन सब बातों को संकल्प और वाणी तक देखा |
प्रैक्टिकल में सदा ‘लक्ष्य के प्रमाण लक्षण’ स्वयं को वा सर्व
को दिखाई दे – उसका बैलेन्स में अन्तर देखा | बैलेन्स करने की
कला अभी चढ़ती कला में चाहिए | संकल्प है, लेकिन संकल्प की
सम्पूर्ण स्टेज दृढ़ संकल्प है | संकल्प है, लेकिन दृढ़ता चाहिए
| स्व-दर्शन जिससे माया को सदा के लिए विदाई मिल जाती है, उसके
साथ-साथ स्व-दर्शन और परदर्शन दोनों चक्कर घूमते रहते हैं |
परदर्शन माया का आह्वान करता है | स्वदर्शन माया को चैलेन्ज
करता है | परदर्शन की लीला की लहर भी अच्छी तरह से दिखाई देती
है | बेहद के ड्रामा के हर पार्ट के त्रिकालदर्शी बनने का
लक्ष्य भी देखा | लेकिन व्यर्थ बातों के त्रिकालदर्शी भी
ज़्यादा बनते हैं | पहले भी ऐसे हुआ था, अभी है और यह होता ही
रहेगा – ऐसे त्रिकालदर्शी बन गए हैं | और एक मजे की बात क्या
होती है, जो भक्ति में भी आपको कॉपी की है, वह कौन सी बात?
मनगढ़ंत कहानियाँ – जैसे गणेश वा हनुमान रियल हैं क्या? लेकिन
कहानी कितनी रमणीक हैं! ऐसे छोटी सी बात का भाव बदल मनगढ़ंत भाव
भरकर पूरी स्टोरी तैयारी कर लेते हैं | और सुनने, सुनाने वाले
बड़ी रूचि और समय देकर सुनते-सुनाते हैं | ऐसी भी लहर देखी |
बापदादा, श्रेष्ठ पद पाने के लिए वा सर्व के स्नेही बनने के
लिए सदैव यही शिक्षा देते हैं कि स्वयं को बदलना है | लेकिन
स्वयं को बदलना है, स्वयं को बदलने के बजाए, परिस्थितियों को
और अन्य आत्माओं को बदलने का सोचते हैं – यह बदले, तो मैं ठीक
हूँगा | परिस्थिति बदले तो मैं परिवर्तन हूँगा | सैलवेशन मिले
तो परिवर्तित हूँगा | सहयोग व सहारा मिले तो परिवर्तन हूँगा |
इसकी रिज़ल्ट क्या होती? जो किसी भी आधार पर परिवर्तन होता है,
उसको जन्म-जन्म प्रारब्ध भी आधार पर ही रहेगी | उसका कमाई का
खाता जिस बात में जितनों का आधार लेते हैं वह शेयर्स में बंट
जाता है | स्वयं का खाता जमा नहीं होता इसलिए जमा न होने की
शक्ति और ख़ुशी से सदा वंचित रहते हैं तो सदा लक्ष्य रखो कि
स्वयं को परिवर्तन होना है | मैं स्वयं विश्व की आधार मूर्त
हूँ, सिवाए बाप के आधार के अल्पकाल के आधार समय पर छोड़ देंगे |
विनाशी हिलने वाले आधार आपको भी सदा कोई न कोई हलचल में लाते
रहेंगे | एक समाप्त होंगे, दूसरे जन्म लेंगे – इसी में ही और
शक्तियां व्यर्थ होंगी | और बात, चलते-चलते अलबेले होने के
कारण, कमजोरी के बोल बार-बार ऐसे बोलते, जैसे बड़ा मान से बोल
रहे हैं – संकोच नहीं होता | सच्चाई, सफ़ाई समझकर बोलते हैं |
क्या बोलते हैं? मैं डिस्टर्ब हूँ, मैं कुछ करके दिखाऊंगी |
क्या करके दिखाउंगी? हंगामा, या अपने आपको कुछ करके दिखाउंगी |
डिस-सर्विस होगी यह देख लेना, मैं हूँ ही कमज़ोर, संस्कार वश
हूँ | मैं बदल नहीं सकती | आपको यह सैलवेशन देनी होगी |
ऐसे-ऐसे बोल बहुत इज़ी रूप में, बहादुरी दिखाने के रूप में,
दबाने और धमकाने के रूप में, बहुत बोलते हैं | बापदादा को रहम
आता है | ऐसी कमज़ोर आत्माएं जो संकल्प के बाद वाणी तक भी लाती
हैं, कर्म तक भी लाती हैं | इसमें अकल्याण किसका? समझते ऐसे
हैं जैसेकि बाप का वा सर्विस का अकल्याण होना है | समझते हैं
बाप को नुकसान पड़ेगा | लेकिन इन बातों के संस्कार बनाने वाले
अपना ही अकल्याण करने के निमित्त बन जाते हैं | ड्रामानुसार
विश्व सेवा का कार्य निश्चित ही सफ़ल हुआ पड़ा है | कोई हिला
नहीं सकता |
यह
तो बापदादा निमित्त बना है एक कर्म का पदमगुणा फल देने के लिए
| बच्चों को सेवा अर्थ निमित्त बनाते हैं | करेंगे तो पदमगुणा
पायेंगे | तो बच्चों के भाग्य बनाने के लिए निमित्त बनाया हुआ
है | बाकी कोई के हिलने से कार्य नहीं हिल जाता है | कल्प-कल्प
की निश्चित भावी, विजय की हुई पड़ी है इसलिए ऐसी कमज़ोर भाषा को
परिवर्तन करो अर्थात् स्वयं का कल्याण करो | बाप, कल्याणकारी
समय और विश्व कल्याण करने के कर्म में समर्थ बन स्वयं का
भविष्य बनाओ |
बाप
जानते हैं मेहनत भी बहुत करते हैं; त्याग भी किया है, सहन भी
बहुत करते हैं | लेकिन जिससे स्नेह होता है उसकी छोटी-सी
कमज़ोरी भी देख नहीं सकते हैं | सदा श्रेष्ठ बनाने की शुभ भावना
रहती है इसलिए यह सब देखते, सुनते हुए भी, सम्पन्न बनाने के
लिए इशारा दे रहे हैं | बापदादा सदा बच्चों के साथ हर क़दम में
सहयोगी है और अन्त तक रहेंगे | बाप को किसी के प्रति घृणा नहीं
होती | सदैव अपकारी के भी शुभ चिन्तक हैं इसलिए सदा सहयोग लेते
चलते चलो | अमृतवेले का महत्व जान बाप द्वारा वरदान लेते रहो |
सीज़न की समाप्ति अर्थात् सहयोग की समाप्ति नहीं है | हरेक
बच्चे के साथ सर्व स्वरूपों से सर्व सम्बन्धों से, बापदादा का
सदा हाथ और साथ है | अभी ड्रामानुसार समय मिला है यह अपना लक
समझ समय का लाभ उठाओ | विनाश की घड़ी के कांटे आप हो | आपका
सम्पन्न होना समय का सम्पन्न होना है | इसलिए सदा स्व-चिन्तन,
स्वदर्शन चक्रधारी बनो | अच्छा |
ऐसे
भविष्य तक़दीर बनाने के निमित्त बनी हुई आत्माएं, स्वयं द्वारा
कल की तस्वीर दिखाने वाले, सदा बाप को रिटर्न देने वाले
आलमाइटी अथॉरिटी बच्चों को बापदादा का याद, प्यार और नमस्ते |
पार्टियों से :-
महादानी बच्चों की निशानी क्या दिखाई देगी? महादानी बनने से
लाभ कौन-कौन से होते हैं? महादानी अर्थात् बाप और सेवा के
सिवाए और कोई भी बात अपने तरफ़ आकर्षित न करे | सदा इसी लग्न
में मग्न | महादानी अर्थात् जो हर समय देता रहे | कोई भी आत्मा
खाली हाथ न जाए | अगर महादानी नहीं बनेंगे तो वरदानी फिर कैसे
बनेंगे? जो महादानी, वरदानी दोनों है वही विश्व कल्याणकारी हैं
| सदैव जो मिलता रहता है वह देने से बढ़ेगा | महादानी बच्चों का
ऐसा कोई समय या दिन नहीं जा सकता जिसमें दान न करे |
महादानी बनना अर्थात् दूसरों की सेवा करना, दूसरों की सेवा
करने से स्वयं की सेवा स्वतः हो जाती है | महादानी बनना
अर्थात् स्वयं को मालामाल करना, दूसरों को देना ही लेना है |
जितनी आत्माओं को सुख, शान्ति, शक्ति वा ज्ञान देते हो, उतनी
आत्माओं के प्राप्ति की आवाज़ या शुक्रिया जो निकलता, वह आपके
लिए आशीर्वाद का रूप हो जाता | सबकी आशीर्वाद आपको आगे बढ़ाती
रहगी | इतनी आत्माओं की आशीर्वाद मिलने से अपार ख़ुशी रहेगी
इसलिए चारों ही सब्जेक्ट में महादानी बनने के लिए अमृतवेले
अपना प्रोग्राम बनाओ | एक भी सब्जेक्ट में कम न होना चाहिए |
‘और
संग तोड़ एक संग जोड़ो’ यह कहावत क्यों प्रसिद्ध है? क्योंकि एक
बाप का प्यारा बनने के लिए सर्व से न्यारा बनना पड़ता है | जब
एक में सर्व सम्बन्धों की प्राप्ति हो जाती है तो सहज ही सर्व
से किनारा हो जाता है | तो सर्व से तोडना और एक से जोड़ना आपके
लिए सहज है क्योंकि एक द्वारा सर्व प्राप्ति होने से अप्राप्त
कोई वस्तु नहीं रहती जिस तरफ़ बुद्धि भटके | पहले प्यार मिलता
है फिर न्यारे होते – इसलिए भी सहज है | तो सबसे न्यारा और बाप
का प्यारा, इसी को ही कमल पुष्प समान कहा जाता है | तो चेक करो
कमल पुष्प समान हैं? कीचड़ के छींटे तो नहीं पड़ते?
योग्य टीचर की निशानी क्या है? योग्य टीचर अर्थात् हर सेकण्ड
हर संकल्प द्वारा सेवा करने वाली | अगर सेकण्ड व संकल्प व्यर्थ
जाता है तो टीचर कहेंगे, लेकिन योग्य टीचर नहीं | योग्य टीचर
अर्थात् योगयुक्त अर्थात् युक्तियुक्त | जो योगयुक्त होगा उसका
हर संकल्प समर्थ होगा | जब संकल्प रूपी बीज समर्थ होगा तो फल
भी समर्थ होगा | निमित्त है अर्थात् एक्जाम्पुल है, जैसे
एक्जाम्पुल होगा वैसे और भी होंगे |
सुनने का अन्दाज़ कितना है? इसी सीजन में भी कितना सुना होगा?
अब ड्रामा की भावी सुना रही है कि आवाज़ से परे जाना है | यह
शरीर की खिटखिट भी निमित्त सुना रही है कि शिक्षा बहुत हो गई
है | अभी सुनने के बाद समाना अर्थात् स्वरूप बनना – उसकी सीजन
है | सुनने की सीजन कितने वर्ष चली! चाहे साकार द्वारा, चाहे
रिवाइज़ कोर्स द्वारा, सुनने का सीजन बहुत चला है | तो अभी
स्वरूप द्वारा सर्विस करना | अभी लास्ट यही सीजन रह गया है ना
जिसमें ही प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजेगा | आवाज़ बन्द होगा
साइलेन्स होगा | लेकिन साइलेन्स द्वारा ही नगाड़ा बजेगा | जब तक
मुख से नगाड़े ज़्यादा हैं, तब तक प्रत्यक्षता का नहीं | जब
प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजेगा तब मुख के नगाड़े बन्द हो जायेंगे |
गाया हुआ भी है ‘साइन्स के ऊपर साइलेन्स की जीत’, न कि वाणी की
| समय के समाप्ति की निशानी क्या होगी? ऑटोमेटिकली आवाज़ में
आने की दिल नहीं होगी – प्रोग्राम प्रमाण नहीं, लेकिन नैचुरल
स्थिति | जैसे साकार बाप को देखा तो सम्पूर्णता की निशानी क्या
दिखाई दी? दो मिनट हैं या एक मिनट है, उसकी पहचान इस स्थिति से
होती जा रही है | ऑटोमेटिक वैराग्य आयेगा – ज़्यादा आवाज़ में
आने से | जैसे अभी चाहते हुए भी आदत आवाज़ में ले आती, वैसे
चाहते हुए भी आवाज़ से परे हो जायेंगे | प्रोग्राम बनाकर आवाज़
में आयेंगे | जब यह चेन्ज दिखाई दे, तब समझो अभी विजय का नगाड़ा
बजने वाला है | आजकल चारों ओर मैजारिटी से पूछेंगे तो सबको सुख
से भी शान्ति अधिक चाहिए | वह एक घड़ी भी शान्ति का अनुभव इतना
श्रेष्ठ मानते हैं जैसे भगवान की प्राप्ति हो गई | तो एक
सेकण्ड में शान्ति का अनुभव कराने वाले स्वयं शान्त स्वरूप में
स्थित होंगे ना | विनाश कब होगा? उसके लिए कौन निमित्त बनेगा?
घड़ी की सुइयां कौन सी होंगी? घंटे बजने के निमित्त सुई होती है
ना! तो विनाश के घंटे बजने के लिए सुई कौन है? सर्व शक्तियों
का स्टॉक जमा किया है? क्योंकि अगर स्टॉक जमा नहीं होगा तो
अनेक जन्म की प्रारब्ध को भी पा नहीं सकेंगे | इसी एक जन्म में
अनेक जन्मों का जमा करते हो | इतना जमा किया है जो 21 जन्म वह
प्रारब्ध भोगते रहो? इतना जमा किया है, जो भिखारी आत्माओं को
महादानी बन दान कर सको? सदा स्टॉक को चेक करो | स्टॉक में
सर्वशक्तियां चाहिए | ऐसे नहीं समाने की शक्ति है, सहन शक्ति
नहीं तो हर्जा नहीं | लेकिन फाइनल पेपर में क्वेश्चन वही आएगा
जिस शक्ति की कमी है | ऐसे कभी नहीं सोचना छः नहीं, दो तो हैं,
धारणा नहीं है, सर्विस तो है ही | सर्विस नहीं है, योग तो है
ही | लेकिन सब चाहिए | जैसे बाप में सब हैं ना ज्ञान, शक्ति,
गुण.......तो फ़ालो फादर करना है |
सदा
स्वचिन्तन से अपने स्टॉक को जमा करने में लगो | इसी समय को आगे
चल करके बहुत याद करना पड़ेगा | तो पीछे यह नहीं सोचना पड़े,
पश्चाताप नहीं करना पड़े, उसके लिए अभी से स्वचिन्तन में लगो |
सदैव अपने को हर सब्जेक्ट में आगे बढ़ाने में लगे हो? हर गुण के
अनुभव को आगे बढ़ाते जाओ | जितना आगे बढ़ायेंगे उतनी नवीनता का
अनुभव करेंगे | अनुभवी मूर्त होने की रिसर्च करो तो बहुत मज़ा
आयेगा | जैसे बाप सागर है वैसे मास्टर सागर बनो | अभी ऐसा
पुरुषार्थ चाहिए | अच्छा |
वरदान:-
हलचल
में दिलशिकस्त होने के बजाए बड़ी दिल रखने वाले हिम्मतवान भव
! 
कभी
भी कोई शारीरिक बीमारी हो, मन का तूफ़ान हो, धन में या
प्रवृत्ति में हलचल हो, सेवा में हलचल हो – उस हलचल में
दिलशिकस्त नहीं बनो | बड़ी दिल वाले बनो | जब हिसाब-किताब आ
गया, दर्द आ गया तो उसे सोच-समझकर, दिलशिकस्त बन बढ़ाओ नहीं,
हिम्मत वाले बनो, ऐसे नहीं सोचो हाय क्या करूँ....हिम्मत नहीं
हारो | हिम्मतवान बनो तो बाप की मदद स्वतः मिलेगी |
स्लोगन:-
किसी की
भी कमजोरी को देखने की आँखें बन्द कर मन को अन्तर्मुखी बनाओ
|
ओम् शान्ति
|