24-01-14  प्रातः मुरली  ओम् शान्ति   “बापदादा”   मधुबन



मीठे बच्चे
अपने को आत्मा समझ, आत्मा भाई से बात करो, ऐसी दृष्टि पक्की करो तो भूत प्रवेश नहीं करेंगे, जब कोई में भूत देखो तो उससे किनारा कर लो |   

प्रश्न:-   
बाप का बनने के बाद भी आस्तिक और नास्तिक बच्चे हैं, वह कैसे?

उत्तर:-
आस्तिक वह हैं जो ईश्वरीय कायदों का पालन करते, देही-अभिमानी रहने का पुरुषार्थ करते और नास्तिक वह हैं जो ईश्वरीय कायदों के खिलाफ़ भूतों के वश हो आपस में लड़ते झगड़ते हैं | 2. आस्तिक बच्चे देह सहित देह के सब सम्बन्धों से बुद्धियोग तोड़ अपने को भाई-भाई समझते हैं | नास्तिक देह-अभिमान में रहते हैं |

ओम् शान्ति
|

पहले-पहले बाप बच्चों को समझाते हैं कि हे बच्चे बुद्धि में सदा यह याद रखो कि शिवबाबा हमारा सुप्रीम बाप भी है, सुप्रीम शिक्षक भी है, सुप्रीम सतगुरु भी है | यह पहले-पहले बुद्धि में ज़रूर आना चाहिए | हर एक अपने को जान सकते हैं कि हमारी बुद्धि में आया वा नहीं | अगर बुद्धि में याद आता तो आस्तिक हैं, नहीं आता है तो नास्तिक हैं | स्टूडेन्ट की बुद्धि में फट से आना चाहिए कि टीचर आया है | घर में रहते हैं तो वह भूल जाता है | उस रुहाब से बहुत कोई मुश्किल समझते हैं कि हमारा सुप्रीम बाबा आया हुआ है | वह टीचर भी है और वापिस ले जाने वाला सतगुरु भी है | याद आने से ख़ुशी का पारा चढ़ेगा | नहीं तो अपने ही दुःख दर्द दुनिया की छी-छी बातों में, भिन्न-भिन्न ख्यालात में बैठे रहते हैं | दूसरी बात बहुत करके बच्चों से पूछते हैं कि विनाश में बाकी कितना समय है | बोलो, यह पूछने की बात नहीं है | पहले तो यह हमको किसने समझाया है, उनको जानो | पहले बाप का परिचय दो | आदत पड़ी हुई होगी तो समझायेंगे, नहीं तो भूल जायेंगे | बाप कितना कहते हैं अपने को आत्मा समझो | दूसरे को आत्मा की दृष्टि से देखो, परन्तु वह दृष्टि नहीं ठहरती | रूपये से एक आना भी मुश्किल बैठता | जैसे बुद्धि में ठहरता ही नहीं है
| यह कोई बाप श्राप नहीं देते | यह तो बाप समझाते हैं कि ज्ञान बहुत ऊँचा है | राजाई स्थापन होती है | रंक से लेकर राव बनते हैं | राव थोड़े बनते हैं | बाकी रंक नम्बरवार होते हैं | लास्ट नम्बर वाले की बुद्धि में कभी कोई बात बैठ न सके | तो पहले जब किसको भी समझाते हो तो शिवबाबा का जो 32 गुणों वाला चित्र बनाया है उस पर समझाना चाहिए | उसमें भी लिखा हुआ है सुप्रीम फादर, सुप्रीम टीचर, सतगुरु है

पहले जब यह निश्चय होगा कि समझाने वाला सुप्रीम फादर है तो फिर संशय नहीं लायेंगे | बाप बिगर यह स्थापना कोई कर न सके | तुम जब समझाते हो कि यह स्थापना हो रही है तो उन्हों की बुद्धि में यह ज़रूर आना चाहिए कि इन्हों को समझाने वाला कोई है | कोई मनुष्य मात्र तो ऐसे कह न सके कि यह राज्य स्थापन हो रहा है | तो पहले-पहले बाप का निश्चय पक्का कराना है | हमको परमात्मा बाप पढ़ाते हैं | यह कोई मनुष्य मत नहीं है, यह ईश्वरीय मत है | नई दुनिया तो ज़रूर बाप द्वारा ही स्थापन होगी | पुरानी दुनिया का विनाश, यह भी बाप का ही काम है | यह निश्चय जब तक नहीं होगा तो पूछते ही रहेंगे कि कैसे होता है इसलिए पहले-पहले तो श्रीमत की बात बुद्धि में बिठानी पड़े तब आगे समझ सकें | नहीं तो मनुष्य मत समझ लेते हैं | हर एक मनुष्य की मत अलग है | मनुष्यों की मत एक हो न सके | इस समय तुमको मत देने वाला एक ही है | उनकी श्रीमत पर क़ायदेसिर चलना वह भी बड़ा मुश्किल है | बाप कहते हैं देही-अभिमानी बनो | ऐसा समझो कि हम भाई-भाई से बात करते हैं तो लड़ना झगड़ना कभी हो न सके | देह-अभिमान में आया समझो नास्तिक | देही-अभिमानी नहीं हैं तो वह नास्तिक हैं | देही-अभिमानी बनें तो समझो आस्तिक हैं | देह-अभिमान बहुत नुकसान कारक है | ज़रा भी लड़ते झगड़ते हैं तो समझो नास्तिक हैं | बाप को जानते ही नहीं | क्रोध का भूत है तो नास्तिक ठहरा | बाप के बच्चों में भूत कहाँ से आया | वह आस्तिक नहीं ठहरा | भल कितना भी कहे हमारा बाप में प्यार है | परन्तु ईश्वरीय कायदे के खिलाफ़ बात करते तो उन्हें रावण सम्प्रदाय का समझना चाहिए | देह-अभिमान में हैं | कोई में भूत देखो वा दृष्टि खराब देखो तो हट जाना चाहिए | भूत के आगे खड़ा रहने से भूत की प्रवेशता हो जायेगी | भूत, भूत में लड़ पड़ते हैं | भूत आये तो पूरा नास्तिक है | देवतायें तो सर्वगुण सम्पन्न होते हैं वह गुण नहीं हैं तो नास्तिक हैं | नास्तिक वर्सा थोड़ेही लेंगे | ज़रा भी खामी नहीं होनी चाहिए | नहीं तो सज़ा खाकर प्रजा में जाना पड़ेगा | भूत से दूर रहना चाहिए | भूत का सामना किया तो भूत आ जायेगा | भूत से कभी सामना नहीं किया जाता है | उनसे जास्ती बात भी नहीं करनी चाहिए | बाप कहते हैं – यह है भूतों की दुनिया | भूत जब तक निकले नहीं हैं तो सजायें भी खानी पड़ेंगी | पद भी पा नहीं सकेंगे | लड़ाई तो एक ही है | कोई राव बन जाते हैं, कोई रंक बन जाते हैं | राव की दुनिया थी, अभी रंकों की दुनिया है | सबमें भूत हैं | भूत निकलने का पूरा पुरुषार्थ करना चाहिए | बाबा मुरली में बहुत समझाते हैं | किसम-किसम के स्वभाव होते हैं | बात मत पूछो | 

तो प्रदर्शनी आदि में पहले-पहले बाप का परिचय देना है | बाप कितना लवली है | वह हमको ऐसा देवता बनाते हैं | गायन भी है मनुष्य से देवता किये.... देवतायें थे सतयुग में तो ज़रूर उनसे पहले कलियुग था | यह सृष्टि चक्र का गायन भी तुम बच्चों की बुद्धि में अब है | वहाँ यह ज्ञान इन देवताओं में नहीं रहेगा | अब तुम नॉलेजफुल बनते हो फिर पद मिल गया तो नॉलेज की दरकार नहीं | यह है बेहद का बाप, जिससे 21 पीढ़ी तुमको स्वर्ग का वर्सा मिलता है | तो ऐसे बाप को कितना याद करना चाहिए | बाबा सदैव समझाते हैं कि हमेशा समझो कि शिवबाबा हमको समझा रहे हैं | शिवबाबा इस रथ द्वारा हमको पढ़ा रहे हैं | वह हमारा बाप टीचर गुरु है | यह है बेहद की पढ़ाई | तुम समझते हो पहले हम तुच्छ बुद्धि थे | इस कालेज का कोई को ज़रा भी पता नहीं है | इसलिए समझाने के समय अच्छी तरह से घोट-घोट कर समझाओ | कृष्ण की तो बात ही नहीं | बाप ने समझाया है कृष्ण का कोई चरित्र है ही नहीं | सिवाए शिवबाबा के | ब्रह्मा, विष्णु, शंकर के भी चरित्र हो न सकें | चरित्र है ही एक का जो मनुष्य से देवता बनाते हैं | विश्व को हेविन बनाते हैं | तुम उस बाप की श्रीमत पर चलते हो | बाप के मददगार हो | बाप नहीं होता तो तुम कुछ  भी कर नहीं सकते | तुम अभी वर्थ नाट ए पेनी से वर्थ पाउण्ड बन रहे हो | अब नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार तुम सब जान गये हो | तो पहले-पहले है बाप का परिचय | कृष्ण तो छोटा बच्चा है | सतयुग में उनकी बेहद की बादशाही है | उनके राज्य में और कोई था नहीं | अभी तो कलियुग है, कितने ढेर धर्म हैं | यह एक ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म कब स्थापन हुआ, यह कोई की बुद्धि में नहीं है | तुम बच्चों की बुद्धि में नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार है | तो पहले बाप की महिमा पर अच्छी तरह से समझाना चाहिए | हम जानते हैं ज़रूर बाप से हमको पहचान मिली है | बाप कहते हैं सर्व का सद्गति दाता भी मैं हूँ | कल्प-कल्प मैं तुम बच्चों को राय देता हूँ कि अपने को आत्मा समझो और मुझे याद करो | तो आत्मा पतित से पावन बन जायेगी | आत्म-अभिमानी भव | दूसरे को भी आत्मा समझने से तुम्हारी क्रिमिनल आई नहीं होगी | आत्मा ही शरीर द्वारा कर्म करती है – हम आत्मा हैं, यह आत्मा है – यह पक्का करना है | तुम जानते हो पहले-पहले हम 100 परसेन्ट पावन थे, फिर पतित बने | आत्मा ही बुलाती है कि बाबा आओ | आत्मा का अभिमान पक्का रहना चाहिए और सम्बन्ध सब भूल जाने चाहिए | हम आत्मा स्वीट होम में रहने वाली हैं | यहाँ पार्ट बजाने आये हैं | यह भी तुम बच्चे ही समझते हो | तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं जिनको याद रहती है | भगवान पढ़ाते हैं, कितनी ख़ुशी रहनी चाहिए | भगवान हमारा बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरु भी है | तुम कहेंगे हम उनके सिवाए और कोई को याद नहीं करते | बाप कहते हैं देह सहित देह के सभी सम्बन्ध तोड़ मामेकम् याद करो | तुम सब ब्रदर्स हो | कोई मानते हैं, कोई नहीं मानते हैं तो समझो नास्तिक हैं | हम शिवबाबा के बच्चे हैं तो पावन होने चाहिए | बाप को बुलाते ही हैं बाबा आकर हमको पावन विश्व का मालिक बनाओ | सतयुग में तो पावन होने की बात ही नहीं है | पहले तो यह समझो कि यह शिवबाबा है, इनसे नई दुनिया स्थापन होती है | अगर पूछे कि विनाश कब होगा, तो बोलो पहले अल्फ को समझो | अल्फ को नहीं समझा तो पीछे की बात बुद्धि में कैसे आयेगी | हम सत्य बाप के बच्चे सत्य बोलते हैं | हम कोई मनुष्य के बच्चे नहीं हैं | हम शिवबाबा के बच्चे हैं | भगवानुवाच, भगवान उनको कहा जाता है जो सभी ब्रदर्स का बाप है | मनुष्य अपने को भगवान कहला न सकें | भगवान तो निराकार है | वह बाप टीचर सतगुरु है | कोई मनुष्य बाप, टीचर, सतगुरु हो न सके | कोई भी मनुष्य किसकी सद्गति कर नहीं सकते | भगवान हो न सकें | 

बाबा है पतित-पावन | पतित बनाता है रावण | बाकी यह सब हैं भक्ति के गुरु | यह भी तुम समझते हो जो यहाँ आते हैं वह आस्तिक तो बनते हैं | बेहद के बाप पास आकर निश्चय करते हैं यह हमारा बाप टीचर गुरु है | जब कम्प्लीट दैवीगुण आ जायेंगे तो लड़ाई भी लगेगी | समय अनुसार तुम खुद समझेंगे कि अब कर्मातीत अवस्था को पहुँच रहे हैं | अभी कर्मातीत अवस्था हुई कहाँ है | अभी बहुत काम है | बहुतों को पैगाम देना है | बाप से वर्सा लेने का तो सबको हक़ है | अब तो लड़ाई जोर से होगी | फिर यह हॉस्पिटल डॉक्टर आदि कुछ नहीं रहेंगे | बाप बच्चों को सम्मुख समझा रहे हैं कि तुम्हारी आत्मा इस शरीर द्वारा 84 जन्मों का पार्ट बजाती है | किसके 70-80 जन्म भी होंगे | जाना तो सबको है | विनाश तो होना ही है | अपवित्र आत्मा जा न सके | पावन होने लिए बाप को ज़रूर याद करना है, मेहनत है | 21 जन्मों के लिए स्वर्गवासी बनना है | कोई कम बात है क्या | मनुष्य तो कह देते फलाना स्वर्गवासी हुआ | अरे स्वर्ग है कहाँ? कुछ भी समझते नहीं | तुम बच्चों को बड़ी ख़ुशी रहनी चाहिए कि भगवान हमको पढ़ाते हैं, विश्व का मालिक बनाते हैं | ख़ुशी एक होती है स्थाई दूसरी होती है अल्पकाल की | पढ़ेंगे पढ़ायेंगे नहीं तो ख़ुशी क्या होगी? आसुरी गुणों को भगाना है | बाप कितना समझाते हैं, कर्मभोग कितना है | जब तक कर्मभोग है तो यह निशानी है अभी तक कर्मातीत अवस्था हुई नहीं है | अभी मेहनत करनी है | कोई भी माया के तूफ़ान न आयें | बच्चों को यह निश्चय है कि बाप ने हमको अनेक बार मनुष्य से देवता बनाया है | यह बुद्धि में आये तो भी अहो सौभाग्य | यह बेहद का बड़ा स्कूल है | वह होता है हद का छोटा | बाप को तो बहुत तरस पड़ता है, कैसे समझाऊं – कोई से तो अब तक भी भूत निकले नहीं हैं | दिल पर चढ़ने बदले गिर पड़ते हैं | कई बच्चियाँ तो तैयार हो रही हैं, अनेकों का कल्याण करने के लिए | अच्छा! 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते | 

धारणा के लिए मुख्य सार:-  
1.   
कोई भी बात ईश्वरीय कायदे के खिलाफ़ नहीं करनी है | किसी में भी अगर भूत की प्रवेशता है या दृष्टि खराब है तो उसके सामने से हट जाना है, उनसे जास्ती बात नहीं करनी है | 

2.    स्थाई ख़ुशी में रहने के लिए पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना है | आसुरी गुणों को निकाल दैवीगुण धारण कर आस्तिक बनना है | 

वरदान:-  
ईश्वरीय विधान को समझ विधि से सिद्धि प्राप्त करने वाले फर्स्ट डिवीजन के अधिकारी भव !   
एक कदम की हिम्मत तो पदम क़दमों की मदद – ड्रामा में इस विधान की विधि नूँधी हुई है | अगर यह विधि, विधान में नहीं होती तो सभी विश्व के पहले राजा बन जाते | नम्बरवार बनने का विधान इस विधि के कारण ही बनता है | तो जितना चाहे हिम्मत रखो और मदद लो | चाहे सरेन्डर हो, चाहे प्रवृत्ति वाले हो – अधिकार समान है लेकिन विधि से सिद्धि है | इस ईश्वरीय विधान को समझ अलबेलेपन की लीला को समाप्त करो तो फर्स्ट डिवीज़न का अधिकार मिल जायेगा |


स्लोगन:- 
संकल्प के ख़ज़ाने के प्रति एकानामी के अवतार बनो |     
 

ओम् शान्ति |