13-06-14           प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे शरीर सहित जो कुछ भी देखने में आता है, यह सब विनाश होना है, तुम आत्माओं को अब घर लौटना है इसलिए पुरानी दुनिया को भूल जाओ”   

                                                        
प्रश्न:-   
तुम बच्चे किन शब्दों में सभी को बाप का मैसेज सुना सकते हो?


उत्तर:-
सभी को सुनाओ कि बेहद का बाप बेहद का वर्सा देने आया है | अब हद के वर्से का समय पूरा हुआ अर्थात् भक्ति पूरी हुई | अब रावण राज्य समाप्त होता है | बाप आया है तुम्हें रावण 5 विकारों की जेल से छुड़ाने | यह पुरुषोत्तम संगमयुग है, इसमें तुम्हें पुरुषार्थ कर दैवी गुणों वाला बनना है | सिर्फ़ पुरुषोत्तम संगमयुग को भी समझ लें तो स्थिति श्रेष्ठ बन सकती है |

 

ओम् शान्ति |

अब रूहानी बच्चे क्या कर रहे हैं? अव्यभिचारी याद में बैठे हैं | एक होती है अव्यभिचारी याद, दूसरी होती है व्यभिचारी याद | अव्यभिचारी याद अथवा अव्यभिचारी भक्ति जब पहले शुरू होती है तो सब शिव की पूजा करते हैं | ऊँच ते ऊँच भगवान् वही है, वह बाप भी है फिर शिक्षक भी है | पढ़ाते हैं | क्या पढ़ाते हैं? मनुष्य से देवता बनाते हैं | देवता से मनुष्य बनने में तुम बच्चों को 84 जन्म लगे हैं | और मनुष्य से देवता बनने में एक सेकण्ड लगता है | यह तो बच्चे जानते हैं – हम बाप की याद में बैठे हैं | वह हमारा टीचर भी है, सतगुरु भी है | योग सिखाते हैं कि एक की याद में रहो | वह ख़ुद कहते हैं – हे आत्माओं, हे बच्चे, देह के सब सम्बन्ध छोड़ो, अब वापिस जाना है | यह पुरानी दुनिया बदल रही है | अभी यहाँ रहना नहीं है | पुरानी दुनिया के विनाश लिए ही यह बारूद आदि बनाये हुए हैं | नैचुरल कैलेमिटीज़ भी मदद करती है | विनाश तो होना है ज़रूर | तुम पुरुषोत्तम संगमयुग पर हो | यह आत्मा जानती है | हम अभी लौट रहे हैं इसलिए बाप कहते हैं इस पुरानी दुनिया, पुरानी देह को भी छोड़ना है | देह सहित जो भी इस दुनिया में देखने में आता है, यह सब विनाश हो जाना है | शरीर भी ख़त्म होना है | अब हम आत्माओं को घर लौटना है | लौटने बिगर नई दुनिया में आ नहीं सकेंगे | अब तुम पुरुषोत्तम बनने का पुरुषार्थ कर रहे हो | पुरुषोत्तम हैं यह देवतायें | सबसे ऊँच ते ऊँच है निराकार बाप | फिर मनुष्य सृष्टि में आओ तो इसमें हैं ऊँच देवता | वह भी मनुष्य हैं परन्तु दैवीगुणों वाले | फिर वही आसुरी गुणों वाले बनते हैं | अब फिर आसुरी गुणों से दैवीगुणों में जाना पड़े | सतयुग में जाना पड़े | किसको? तुम बच्चों को | तुम बच्चे पढ़ रहे हो औरों को भी पढ़ाते हो | सिर्फ़ बाप का ही मैसेज देना है | बेहद का बाप बेहद का वर्सा देने आये हैं | अब हद का वर्सा पूरा होता है |

बाप ने समझाया है – 5 विकारों रूपी रावण की जेल में सब मनुष्य हैं | सब दुःख ही उठाते हैं | सूखी रोटी मिलती है | बाप आकरके सबको रावण की जेल से छुड़ाए सदा सुखी बनाते हैं | बाप के सिवाए मनुष्य को देवता कोई बना न सके | तुम यहाँ बैठे हो, मनुष्य से देवता बनने के लिए | अभी है कलियुग | बहुत धर्म हो गये हैं | तुम बच्चों को रचता और रचना का परिचय ख़ुद बाप बैठ देते हैं | तुम सिर्फ़ ईश्वर, परमात्मा कहते थे | तुमको यह पता नहीं था कि वह बाप भी है, टीचर भी है, गुरु भी है | उनको कहा जाता है सतगुरु | अकालमूर्त भी कहा जाता है | तुमको आत्मा और जीव कहा जाता है | वह अकालमूर्त इस शरीर रूपी तख़्त पर बैठे हैं | वह जन्म नहीं लेते हैं | तो वह अकालमूर्त बाप बच्चों को समझाते हैं – मेरा अपना रथ नहीं है, मैं तुम बच्चों को पावन कैसे बनाऊं! मुझे तो रथ चाहिए ना | अकालमूर्त को भी तख़्त तो चाहिए | अकाल तख़्त मनुष्य का होता है, और कोई का नहीं होता है | तुम हर एक को तख़्त चाहिए | अकालमूर्त  आत्मा यहाँ विराजमान है | वह सभी का बाप है, उनको कहा जाता है महाकाल, वह पुनर्जन्म में नहीं आते हैं | तुम आत्मायें पुनर्जन्म में आती हो | मैं आता हूँ कल्प के संगमयुगे | भक्ति को रात, ज्ञान को दिन कहा जाता है | यह पक्का याद करो | मुख्य हैं ही दो बातें – अल्फ़ और बे, बाप और बादशाही | बाप आकर बादशाही देते हैं और बादशाही के लिए पढ़ाते हैं | इसलिए इसको पाठशाला भी कहा जाता है | भगवानुवाच, भगवान् तो है निराकार | उनका भी पार्ट होना चाहिए | वह हैं ऊँच ते ऊँच भगवान्, उनको सभी याद करते हैं | बाप कहते हैं ऐसा कोई मनुष्य नहीं होगा जो भक्ति मार्ग में याद न करता हो | दिल से ही सब पुकारते हैं – हे भगवान्, हे लिबरेटर, ओ गॉड फादर क्योंकि वह है सभी आत्माओं का फ़ादर, ज़रूर बेहद का ही सुख देंगे | हद का बाप हद का सुख देते हैं | कोई को पता नहीं | अब बाप आये हैं, कहते हैं – बच्चों, और संग तोड़ मुझ एक बाप को याद करो | यह भी बाप ने बताया है तुम देवी-देवता नई दुनिया में रहते हो | वहाँ तो अपार सुख हैं | उन सुखों का अन्त नहीं पाया जाता है | नये मकान में सदैव सुख होता है, पुराने में दुःख होता है | तब तो बाप बच्चों के लिए नया मकान बनवाते हैं | बच्चों का बुद्धियोग नये मकान में चला जाता है | यह तो हुई हद की बात | अभी तो बेहद का बाप नई दुनिया बना रहे हैं | पुरानी दुनिया में जो कुछ देखते हो वह कब्रिस्तान होना है, अभी परिस्तान स्थापन हो रहा है | तुम संगमयुग पर हो | कलियुग की तरफ़ भी देख सकते हो, सतयुग की तरफ़ भी देख सकते हो | तुम संगमयुग पर साक्षी हो देखते हो | प्रदर्शनी में अथवा म्युज़ियम में आते हैं तो वहाँ भी तुम संगम पर खड़ा कर दो | इस तरफ़ है कलियुग, उस तरफ़ है सतयुग | हम बीच में हैं | बाप नई दुनिया स्थापन करते हैं | जहाँ पर बहुत थोड़े मनुष्य होते हैं | और कोई भी धर्म वाला नहीं आता है | सिर्फ़ तुम ही पहले-पहले आते हो | अभी तुम स्वर्ग में जाने का पुरुषार्थ कर रहे हो | पावन बनने के लिए ही मुझे पुकारा है कि हे बाबा, हमको पावन बनाकर पावन दुनिया में ले चलो | ऐसे नहीं कहते कि शान्तिधाम में ले चलो | परमधाम को कहा जाता है स्वीट होम | अभी हमको घर जाना है, जिसको मुक्तिधाम कहा जाता है, जिसके लिए ही सन्यासी आदि शिक्षा देते हैं | वह सुखधाम का ज्ञान दे नहीं सकते | वह हैं निवृत्ति मार्ग वाले | तुम बच्चों को समझाया गया है – कौन-कौन धर्म कब-कब आते हैं | मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ में पहले-पहले फाउन्डेशन तुम्हारा है | बीज को कहा जाता है वृक्षपति | बाप कहते हैं मैं ऊपर में निवास करता हूँ | जब झाड़ एकदम जड़जड़ीभूत हो जाता है, तब मैं आता हूँ देवता धर्म स्थापन करने | बनेन ट्री का बड़ा वन्डरफुल झाड़ है | बिगर फाउन्डेशन बाकी सारा झाड़ खड़ा है | इस बेहद के झाड़ में भी आदि सनातन देवी-देवता धर्म है नहीं | बाकी सब धर्म खड़े हैं |

तुम मूलवतन निवासी थे | यहाँ पार्ट बजाने आये हो | तुम बच्चे आलराउन्ड पार्ट बजाने वाले हो | इसलिए 84 जन्म हैं मैक्सीमम | फिर मिनिमम एक जन्म | मनुष्य फिर कह देते 84 लाख जन्म | वह भी किसके होंगे – यह भी समझ नहीं सकते | बाप आकर तुम बच्चों को समझाते हैं – 84 जन्म तुम लेते हो | पहले-पहले मेरे से तुम बिछुड़ते हो | सतयुगी देवतायें ही पहले होते हैं | जब वह आत्मायें यहाँ पार्ट बजाती हैं तो बाकी सब आत्मायें कहाँ चली जाती हैं? यह भी तुम जानते हो – बाकी सब आत्मायें शान्तिधाम में होती हैं | तो शान्तिधाम अलग हुआ ना | बाकी दुनिया तो यही है | पार्ट यहाँ बजाते हैं | नई दुनिया में सुख का पार्ट, पुरानी दुनिया में दुःख का पार्ट बजाना पड़ता है | सुख और दुःख का यह खेल है | वह है रामराज्य | दुनिया में कोई भी मनुष्य यह नहीं जानते कि सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है | न रचयिता को, न रचना के आदि, मध्य, अन्त को जानते हैं | ज्ञान का सागर एक बाप को ही कहा जाता है | रचयिता और रचना के आदि, मध्य, अन्त का ज्ञान कोई शास्त्र में है नहीं | मैं तुमको सुनाता हूँ | फिर यह प्रायः लोप हो जाता है | सतयुग में यह रहता नहीं | भारत का ही प्राचीन सहज राजयोग गाया हुआ है | गीता में भी राजयोग नाम आता है | बाप तुम्हें राजयोग सिखलाकर राजाई का वर्सा देते हैं | बाकी रचना से वर्सा मिल न सके | वर्सा मिलता ही है रचता बाप से | हर एक मनुष्य क्रियेटर है, बच्चों को रचते हैं | वह हैं हद के ब्रह्मा, यह है बेहद के ब्रह्मा | वह है निराकार आत्माओं के पिता, वह लौकिक पिता, यह फिर है प्रजापिता | प्रजापिता कब होना चाहिए? क्या सतयुग में? नहीं | पुरुषोत्तम संगमयुग पर होना चाहिए | मनुष्यों को यह भी पता नहीं है कि सतयुग कब होता है | उन्होंने तो सतयुग, कलियुग आदि को लाखों वर्ष दे दिये हैं | बाप समझाते हैं 1250 वर्ष का एक युग होता है | 84 जन्मों का भी हिसाब चाहिए ना | सीढ़ी का भी हिसाब चाहिए ना – हम कैसे उतरते हैं | पहले-पहले फाउन्डेशन में हैं देवी-देवता | उनके बाद फिर आते हैं इस्लामी, बौद्धी | बाप ने झाड़ का राज़ भी बताया है | बाप के सिवाए तो कोई सिखला न सके | तुमको कहेंगे यह चित्र आदि कैसे बनायें? किसने सिखाया? बोलो, बाबा ने हमें ध्यान में दिखाया, फिर हम यहाँ बनाते हैं | फिर उनको बाप ही इस रथ में आकर करेक्ट करते हैं कि ऐसे-ऐसे बनाओ | ख़ुद ही करेक्ट करते हैं |

कृष्ण को श्याम सुन्दर कहते हैं, परन्तु मनुष्य तो समझ नहीं सकते कि क्यों कहा जाता है? यह वैकुण्ठ का मालिक था तो गोरा था फिर गांवडे का छोरा सांवरा बना, इसलिए उनको ही श्याम-सुन्दर कहते हैं | यही पहले आते हैं | तत्तवम् | इन लक्ष्मी-नारायण की राजाई चलती है | आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना कौन करते हैं? यह भी किसको पता नहीं है | भारत को भी भुलाए हिन्दुस्तान के रहवासी हिन्दू कह देते हैं | मैं भारत में ही आता हूँ | भारत में देवताओं का राज्य था जो अब प्रायः लोप हो गया है | मैं आता हूँ फिर से स्थापना करने | पहले-पहले है ही आदि सनातन देवी देवता धर्म | यह झाड़ वृद्धि को पाता रहता है | नये-नये पत्ते, मठ-पंथ पिछाड़ी में आते हैं | तो उनकी शोभा हो जाती है | फिर अन्त में जब सारा झाड़ जड़जड़ीभूत अवस्था को पाता है, तब फिर मैं आता हूँ | यदा यदा हि..... | आत्मा अपने को भी नहीं जानती, तो बाप को भी नहीं जानती | अपने को भी गाली देते, बाप को और देवताओं को भी गाली देते रहते हैं | तमोप्रधान, बेसमझ बन जाते हैं तब मैं आता हूँ | पतित दुनिया में ही आना पड़े | तुम मनुष्यों को जीयदान देते हो अर्थात् मनुष्य से देवता बनाते हो | सब दुःखों से दूर कर देते हो, सो भी आधाकल्प के लिए | गायन भी है ना वन्दे मातरम् | कौन-सी मातायें, जिनकी वन्दना करते हैं? तुम मातायें हो, सारी सृष्टि को बहिश्त बनाती हो | भल पुरुष भी हैं, लेकिन मैजारिटी माताओं की है इसलिए बाप माताओं की महिमा करते हैं | बाप आकर तुमको इतनी महिमा लायक बनाते हैं | अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-  

1. अपार सुखों की दुनिया में चलने के लिए संगम पर खड़ा होना है | साक्षी हो सब कुछ देखते हुए बुद्धियोग नई दुनिया में लगाना है | बुद्धि में रहे अभी हम वापस घर लौट रहे हैं | 

2. सभी को जीयदान देना है, मनुष्य से देवता बनाने की सेवा करनी है | बेहद के बाप से पढ़कर दूसरों को पढ़ाना है | दैवी गुण धारण करने और कराने हैं |

 

वरदान:- 

निश्चित विजय के नशे में रह बाप की पदमगुणा मदद प्राप्त करने वाले मायाजीत भव !    

बाप की पदमगुणा मदद के पात्र बच्चे माया के वार को चैलेन्ज करते हैं कि आपका काम है आना और हमारा काम है विजय प्राप्त करना | वे माया के शेर रूप को चींटी समझते हैं क्योंकि जानते हैं कि माया का राज्य अब समाप्त होना है, हम अनेक बार के विजयी आत्माओं की विजय 100 परसेन्ट निश्चित है | यह निश्चित का नशा बाप की पदमगुणा मदद का अधिकार प्राप्त कराता है | इस नशे से सहज ही मायाजीत बन जाते हो |

 

स्लोगन:- 

संकल्प शक्ति को जमा कर स्व प्रति वा विश्व प्रति इसका प्रयोग करो |     

 

ओम् शान्ति |