19-12-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - तुम अभी पुरूषोत्तम संगमयुग पर हो,
तुम्हें यहाँ रहते नई दुनिया को याद करना है और आत्मा को पावन
बनाना है” 
प्रश्न:-
बाप
ने तुम्हें ऐसी कौन-सी समझ दी है जिससे बुद्धि का ताला खुल गया?
उत्तर:-
बाप
ने इस बेहद अनादि ड्रामा की ऐसी समझ दी है,
जिससे
बुद्धि पर जो गॉडरेज का ताला लगा था वह खुल गया । पत्थरबुद्धि
से पारसबुद्धि बन गये । बाप ने समझ दी है कि इस ड्रामा में हर
एक एक्टर का अपना- अपना अनादि पार्ट है,
जिसने
कल्प पहले जितना पढ़ा है,
वह
अभी भी पढ़ेंगे । पुरूषार्थ कर अपना वर्सा लेंगे ।
ओम्
शान्ति |
रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप बैठ सिखलाते हैं । जब से बाप
बना है तब से ही टीचर भी है,
तब
से ही फिर सतगुरू के रूप में शिक्षा दे रहे हैं । यह तो बच्चे
समझते ही हैं जबकि वह बाप,
टीचर,
गुरू
है तो छोटा बच्चा तो नहीं है ना । ऊँच ते ऊंच,
बड़े
ते बड़ा है । बाप जानते हैं यह सब मेरे बच्चे हैं । ड्रामा
प्लैन अनुसार पुकारा भी है कि आकरके हमको पावन दुनिया में ले
चलो । परन्तु समझते कुछ नहीं हैं । अभी तुम समझते हो पावन
दुनिया सतयुग को,
पतित
दुनिया कलियुग को कहा जाता है । कहते भी हैं आकरके हमको रावण
की जेल से लिबरेट कर दुखों से छुड़ाकर अपने शान्तिधाम- सुखधाम
में ले चलो । नाम दोनों अच्छे हैं । मुक्ति-जीवनमुक्ति वा
शान्तिधाम-सुखधाम । सिवाए तुम बच्चों के और कोई की बुद्धि में
नहीं है कि शान्तिधाम कहाँ,
सुखधाम कहाँ होता है?
बिल्कुल ही बेसमझ हैं । तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट ही समझदार बनने
की है । बेसमझों के लिए एम ऑब्जेक्ट होती है कि ऐसा समझदार
बनना है । सभी को सिखलाना है-यह है एम आब्जेक्ट,
मनुष्य से देवता बनना । यह है ही मनुष्यों की सृष्टि,
वह
है देवताओं की सृष्टि । सतयुग में हैं देवताओं की सृष्टि,
तो
जरूर मनुष्यों की सृष्टि कलियुग में होगी । अब मनुष्य से देवता
बनना है तो जरूर पुरूषोत्तम संगमयुग भी होगा । वह हैं देवतायें,
यह
हैं मनुष्य । देवतायें हैं समझदार । बाप ने ही ऐसा समझदार
बनाया है । बाप जो विश्व का मालिक है,
भल
मालिक बनता नहीं है परन्तु गाया तो जाता है ना । बेहद का बाप,
बेहद
का सुख देने वाला है । बेहद का सुख होता ही है नई दुनिया में
और बेहद का दु :ख होता है पुरानी दुनिया में । देवताओं के
चित्र भी तुम्हारे सामने हैं । उन्हों का गायन भी है । आजकल तो
5 भूतों को भी पूजते रहते हैं ।
अभी
बाप तुमको समझाते हैं तुम हो पुरूषोत्तम संगमयुग पर । तुम्हारे
में भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जानते हैं-हमारी एक टांग
स्वर्ग में,
एक
टांग नर्क में है । रहते तो यहाँ हैं परन्तु बुद्धि नई दुनिया
में है और जो नई दुनिया में ले जाते हैं उनको याद करना है ।
बाप की याद से ही तुम पवित्र बनते हो । यह शिवबाबा बैठ समझाते
हैं । शिवजयन्ती मनाते तो जरूर हैं,
परन्तु शिवबाबा कब आया,
क्या
आकर किया,
यह
कुछ भी पता नहीं है । शिवरात्रि मनाते हैं और कृष्ण की जयन्ती
मनाते हैं,
वही
अक्षर जो कृष्ण के लिए कहते वह शिवबाबा के लिए तो नहीं कहेंगे
इसलिए उनकी फिर शिवरात्रि कहते हैं । अर्थ कुछ नहीं समझते ।
तुम बच्चों को तो अर्थ समझाया जाता है । अथाह दु :ख हैं कलियुग
के अन्त में,
फिर
अथाह सुख होते हैं सतयुग में । यह तुम बच्चों को अभी ज्ञान
मिला है । तुम आदि-मध्य- अन्त को जानते हो । जिन्होंने कल्प
पहले पढ़ा है वही अब पढ़ेंगे,
जिसने जो पुरूषार्थ किया होगा वही करने लगेंगे और ऐसा ही पद भी
पायेंगे । तुम्हारी बुद्धि में पूरा चक्र है । तुम ही ऊँच ते
ऊंच पद पाते हो फिर तुम उतरते भी ऐसे हो । बाप ने समझाया है यह
जो भी मनुष्यों की आत्मायें हैं,
माला
है ना,
सब
नम्बरवार आती हैं । हर एक एक्टर को अपना- अपना पार्ट मिला हुआ
है-किस समय किसको क्या पार्ट बजाना है । यह अनादि बना-बनाया
ड्रामा है जो बाप बैठ समझाते हैं । अब जो तुमको बाप समझाते हैं
वह अपने भाइयों को समझाना है । तुम्हारी बुद्धि में है कि हर 5
हजार वर्ष बाद बाप आकर हमको समझाते हैं,
हम
फिर भाइयों को समझाते हैं । भाई- भाई आत्मा के सम्बन्ध में हैं
। बाप कहते हैं इस समय तुम अपने को अशरीरी आत्मा समझो । आत्मा
को ही अपने बाप को याद करना है - पावन बनने लिए । आत्मा पवित्र
बनती है तो फिर शरीर भी पवित्र मिलता हैं । आत्मा अपवित्र तो
जेवर भी अपवित्र । नम्बरवार तो होते ही हैं । फीचर्स,
एक्टिविटी एक न मिले दूसरे से । नम्बरवार सब अपना- अपना पार्ट
बजाते हैं,
फर्क
नहीं पड़ सकता । नाटक में वही सीन देखेंगे जो कल देखी होगी ।
वही रिपीट होगी ना । यह फिर बेहद का और कल का ड्रामा है । कल
तुमको समझाया था । तुमने राजाई ली फिर राजाई गॅवाई । आज फिर
समझ रहे हो राजाई पाने लिए । आज भारत पुराना नर्क है,
कल
नया स्वर्ग होगा । तुम्हारी बुद्धि में है- अभी हम नई दुनिया
में जा रहे हैं । श्रीमत पर श्रेष्ठ बन रहे हैं । श्रेष्ठ जरूर
श्रेष्ठ सृष्टि पर रहेंगे । यह लक्ष्मी-नारायण श्रेष्ठ हैं तो
श्रेष्ठ स्वर्ग में रहते हैं । जो भ्रष्ट हैं वो नर्क में रहते
हैं । यह राज़ तुम अभी समझते हो । इस बेहद के ड्रामा को जब कोई
अच्छी रीति समझे,
तब
बुद्धि में बैठे । शिव रात्रि भी मनाते हैं परन्तु जानते कुछ
भी नहीं हैं । तो अब तुम बच्चों को रिफ्रेश करना होता है । तुम
फिर औरों को भी रिफ्रेश करते हो । अभी तुमको ज्ञान मिल रहा है
फिर सद्गति को पा लेंगे । बाप कहते हैं मैं स्वर्ग में नहीं
आता हूँ,
मेरा
पार्ट ही है पतित दुनिया को बदल पावन दुनिया बनाना । वहाँ तो
तुम्हारे पास कारून का खजाना होता है । यहाँ तो कंगाल हैं
इसलिए बाप को बुलाते हैं आकर बेहद का वर्सा दो । कल्प-कल्प
बेहद का वर्सा मिलता है फिर कंगाल भी हो जाते हैं । चित्रों पर
समझाओ तब समझ सकें । पहले नम्बर में लक्ष्मी-नारायण फिर 84
जन्म लेते मनुष्य बन गये । यह ज्ञान अभी तुम बच्चों को मिला है
। तुम जानते हो आज से 5 हजार वर्ष पहले आदि सनातन देवी-देवता
धर्म था,
जिसको बैकुण्ठ,
पैराडाइज,
डीटी
वर्ल्ड भी कहते हैं । अभी तो नहीं कहेंगे । अभी तो डेविल
वर्ल्ड है । डेविल वर्ल्ड की इन्द्र,
डीटी
वर्ल्ड की आदि का अब है संगम । यह बातें अभी तुम समझते हो,
और
कोई के मुख से सुन न सको । बाप ही आकर इनका मुख लेते हैं । मुख
किसका लेंगे,
समझते नहीं हैं । बाप की सवारी किस पर होगी?
जैसे
तुम्हारी आत्मा की इस शरीर पर सवारी है ना । शिवबाबा को अपनी
सवारी तो है नहीं,
तो
उनको मुख जरूर चाहिए । नहीं तो राजयोग कैसे सिखाये?
प्रेरणा से तो नहीं सीखेंगे । तो यह सब बातें दिल में नोट करनी
है । परमात्मा की भी बुद्धि में सारी नॉलेज है ना । तुम्हारी
भी बुद्धि में यह बैठना चाहिए । यह नॉलेज बुद्धि से धारण करनी
है । कहा भी जाता है तुम्हारी बुद्धि ठीक है ना?
बुद्धि आत्मा में रहती है । आत्मा ही बुद्धि से समझ रही है ।
तुम्हारी पत्थरबुद्धि किसने बनाई?
अभी
समझते हो रावण ने हमारी बुद्धि क्या बना दी है! कल तुम ड्रामा
को नहीं जानते थे,
बुद्धि को एकदम गॉडरेज का ताला लगा हुआ था ।
'गॉड'
अक्षर तो आता है ना । बाप जो बुद्धि देते हैं वह बदलकर
पत्थरबुद्धि हो जाती है । फिर बाप आकर ताला खोलते हैं । सतयुग
में हैं ही पारसबुद्धि । बाप आकर सबका कल्याण करते हैं |
नम्बरवार सबकी बुद्धि खुलती हैं । फिर एक-दो के पीछे आते रहते
हैं । ऊपर में तो कोई रह न सके । पतित वहाँ रह न सकें । बाप
पावन बनाकर पावन दुनिया में ले जाते हैं । वहॉ सब पावन
आत्मायें रहती हैं । वह है निराकारी सृष्टि ।
तुम
बच्चों को अभी सब मालूम पड़ा हैं इसलिए अपना घर भी जैसे बहुत
नजदीक दिखाई पड़ता है । तुम्हारा घर से बहुत प्यार है ।
तुम्हारे जैसा प्यार तो कोई का है नहीं । तुम्हारे में भी
नम्बरवार हैं । जिनका बाप के साथ लॅव है,
उनका
घर के साथ भी लॅव है । मुरब्बी बच्चे होते हैं ना । तुम समझते
हो यहाँ जो अच्छी रीति पुरूषार्थ कर मुरब्बी बच्चा बनेंगे वही
ऊँच पद पायेंगे । छोटे अथवा बड़े शरीर के ऊपर नहीं हैं । ज्ञान
और योग में जो मस्त हैं,
वह
बड़े हैं । कई छोटे-छोटे बच्चे भी ज्ञान- योग में तीखे हैं तो
बड़ों को पढ़ाते हैं । नहीं तो कायदा है बड़े छोटो को पढ़ाते हैं ।
आजकल तो मिडगेड भी हो जाते हैं । यूँ तो सब आत्मायें मिडगेड
हैं । आत्मा बिन्दी है,
उनका
क्या वजन करें । सितारा है । मनुष्य लोग सितारा नाम सुन ऊपर
में देखेंगे । तुम सितारा नाम सुन अपने को देखते हो । धरती के
सितारे तुम हो । वह हैं आसमान के जो जड़ हैं,
तुम
चैतन्य हो । उनमें तो फेर-बदल कुछ नहीं होता,
तुम
तो 84 जन्म लेते हो,
कितना बड़ा पार्ट बजाते हो । पार्ट बजाते-बजाते चमक डल हो जाती
है,
बैटरी डिस्चार्ज हो जाती है । फिर बाप आकर भिन्न-भिन्न प्रकार
से समझाते हैं क्योंकि तुम्हारी आत्मा उझाई हुई है । ताकत जो
भरी थी वह खलास हो गई है । अब फिर बाप द्वारा ताकत भरते हो ।
तुम अपनी बैटरी चार्ज कर रहे हो । इसमें माया भी बहुत विघ्न
डालती है बैटरी चार्ज करने नहीं देती । तुम चैतन्य बैटरियॉ हो
। जानते हो बाप के साथ योग लगाने से हम सतोप्रधान बनेंगे । अभी
तमोप्रधान बने हैं । उस हद की पढ़ाई और इस बेहद की पढ़ाई में
बहुत फर्क है । कैसे नम्बरवार सब आत्मायें ऊपर जाती हैं फिर
अपने समय पर पार्ट बजाने आना है । सबको अपना अविनाशी पार्ट
मिला हुआ है । तुमने यह 84 का पार्ट कितनी बार बजाया होगा!
तुम्हारी बैटरी कितनी बार चार्ज और डिस्चार्ज हुई है! जब जानते
हो हमारी बैटरी डिस्चार्ज है तो फिर चार्ज करने में देरी क्यों
करनी चाहिए?
परन्तु माया बैटरी चार्ज करने नहीं देती । माया बैटरी चार्ज
करना तुमको भुला देती है । घड़ी-घड़ी बैटरी डिस्चार्ज करा देती
है । कोशिश करते हो बाप को याद करने की परन्तु कर नहीं सकते हो
। तुम्हारे में जो बैटरी चार्ज कर सतोप्रधान तक नजदीक आते हैं,
उनसे
भी कभी-कभी माया गफलत कराए बैटरी डिस्चार्ज कर देती है । यह
पिछाड़ी तक होता रहेगा । फिर जब लड़ाई का अन्त होता है तो सब
खत्म हो जाते हैं फिर जिसकी जितनी बैटरी चार्ज हुई होगी उस
अनुसार पद पायेंगे । सभी आत्मायें बाप के बच्चे हैं,
बाप
ही आकर सबकी बैटरी चार्ज कराते हैं । खेल कैसा वन्डरफुल बना
हुआ है । बाप के साथ योग लगाने से घड़ी-घड़ी हट जाते हैं तो
कितना नुकसान होता है । न हटें उसके लिए पुरूषार्थ कराया जाता
है । पुरूषार्थ करते-करते जब समाप्ति होती है तो फिर नम्बरवार
पुरूषार्थ अनुसार तुम्हारा पार्ट पूरा होता है । जैसे कल्प-
कल्प होता है । आत्माओं की माला बनती रहती है । तुम बच्चे
जानते हो रूद्राक्ष की माला है,
विष्णु की भी माला है । पहले नम्बर में तो उनकी माला रखेंगे ना
। बाप दैवी दुनिया रचते हैं ना । जैसे रूद्र माला है,
वैसे
रूण्ड माला है । ब्राह्मणों की माला अभी नहीं बन सकेगी,
बदली-सदली होती रहेगी । फाइनल तब होंगे जब रूद्र माला बनेगी ।
यह ब्राह्मणों की भी माला है परन्तु इस समय नहीं बन सकती ।
वास्तव में प्रजापिता ब्रह्मा की सब सन्तान हैं । शिवबाबा के
सन्तान की भी माला है,
विष्णु की भी माला कहेंगे । तुम ब्राह्मण बनते हो तो ब्रह्मा
की और शिव की भी माला चाहिए । यह सारा ज्ञान तुम्हारी बुद्धि
में नम्बरवार है । सुनते तो सभी हैं परन्तु कोई का उस समय ही
कानों से निकल जाता है,
सुनते ही नहीं । कोई तो पढ़ते ही नहीं,
उनको
पता ही नहीं- भगवान पढ़ाने आये हैं । पढ़ते ही नहीं हैं,
यह
पढ़ाई तो कितना खुशी से पढ़नी चाहिए । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
याद की
यात्रा से आत्मा रूपी बैटरी को चार्ज कर सतोप्रधान तक पहुँचना
है । ऐसी कोई गफलत नहीं करनी है,
जो बैटरी डिस्चार्ज हो जाए ।
2.
मुरब्बी
बच्चा बनने के लिए बाप के साथ-साथ घर से भी लव रखना है । ज्ञान
और योग में मस्त बनना है । बाप जो समझाते हैं वह अपने भाइयों
को भी समझाना है ।
वरदान:-
स्नेह की शक्ति से माया की शक्ति को समाप्त करने वाले सम्पूर्ण
ज्ञानी
भव ! 
स्नेह में समाना ही सम्पूर्ण ज्ञान है । स्नेह ब्राह्मण जन्म
का वरदान है । संगमयुग पर स्नेह का सागर स्नेह के हीरे मोतियों
की थालियां भरकर दे रहे हैं,
तो
स्नेह में सम्पन्न बनो । स्नेह की शक्ति से परिस्थिति रूपी
पहाड़ परिवर्तन हो पानी समान हल्का बन जायेगा । माया का कैसा भी
विकराल रूप वा रॉयल रूप सामना करे तो सेकण्ड में स्नेह के सागर
में समा जाओ । तो स्नेह की शक्ति से माया की शक्ति समाप्त हो
जायेगी ।
स्लोगन:-
तन-मन-
धन,
मन-वाणी
और कर्म से बाप के कर्तव्य में सदा सहयोगी ही योगी हैं । 
ओम्
शान्ति |