03-03-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
अन्तर्मुखी हो याद का अभ्यास करो, चेक करो कि आत्म-अभिमानी और
परमात्म-अभिमानी कितना समय रहते हैं
|
प्रश्न:-
जो
बच्चे एकान्त में जाकर आत्म-अभिमानी बनने की प्रैक्टिस करते
हैं उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:-
उनके मुख से कभी उल्टा-सुल्टा बोल नहीं निकलेगा | 2- भाई-भाई
का आपस में बहुत लव होगा | सदा क्षीरखण्ड होकर रहेंगे | 3-
धारणा बहुत अच्छी होगी | उनसे कोई विकर्म नहीं होगा | 4- उनकी
दृष्टि बहुत मीठी होगी | कभी देह-अभिमान नहीं आयेगा | 5- कोई
को भी दुःख नहीं देंगे |
ओम्
शान्ति
|
रूहानी बच्चों प्रति, सिर्फ़ रूह कहेंगे तो फिर जीव निकल जाता
है इसलिए रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप समझाते हैं – अपने को
आत्मा समझना है | हम आत्माओं को बाप से यह नॉलेज मिलती है |
बच्चों को देही-अभिमानी हो रहना है | बाप आये ही हैं बच्चों को
ले जाने लिए | भल सतयुग में तुम आत्म-अभिमानी बनते हो परन्तु
परमात्म-अभिमानी नहीं | यहाँ तुम आत्म-अभिमानी भी बनते हो तो
परमात्म-अभिमानी भी अर्थात् हम बाप की सन्तान हैं | यहाँ और
वहाँ में बहुत फ़र्क है | यहाँ है पढ़ाई, वहाँ पढ़ने की बात नहीं
| यहाँ हर एक अपने को आत्मा समझा है और बाबा हमको पढ़ाते हैं,
इस निश्चय में रहकर सुनेंगे तो धारणा बहुत अच्छी होगी |
आत्म-अभिमानी बनते जायेंगे | इस अवस्था में टिकने की मंज़िल
बहुत बड़ी है | सुनने में बहुत सहज लगता है | बच्चों को यही
अनुभव सुनाना है कि हम कैसे अपने को आत्मा और दूसरे को भी
आत्मा समझ बात करते हैं | बाप कहते हैं मैं भल इस शरीर में हूँ
परन्तु मेरी यह असुल की प्रैक्टिस है | मैं बच्चों को आत्मा ही
समझता हूँ | आत्मा को पढ़ाता हूँ | भक्ति मार्ग में भी आत्मा
पार्ट बजाती आई है | पार्ट बजाते-बजाते पतित बनी है | अब फिर
आत्मा को पवित्र बनना है | सो जब तक बाप को परमात्मा समझकर याद
नहीं करेंगे तो पवित्र कैसे बनेंगे | इस पर बच्चों को बहुत
अन्तर्मुखी हो याद का अभ्यास करना है | नॉलेज सहज है | बाकी यह
निश्चय पक्का रहे कि हम आत्मा पढ़ते हैं, बाबा हमको पढ़ाते हैं,
तो धारणा भी होगी और कोई विकर्म नहीं होगा | ऐसे नहीं, इस समय
हमसे कोई विकर्म नहीं होता है | विकर्माजीत तो अन्त में बनेंगे
| भाई-भाई की दृष्टि बहुत मीठी रहती है | इसमें कभी देह-अभिमान
नहीं आयेगा | बच्चे समझते हैं बाप की नॉलेज बड़ी डीप है | अगर
ऊँच ते ऊँच बनना है तो यह प्रैक्टिस अच्छी रीति करनी पड़े | इस
पर गौर करना पड़े | अन्तर्मुखी होने के लिए एकान्त भी चाहिए |
यहाँ जैसा एकान्त घर में धन्धेधोरी में तो मिल न सके | यहाँ
तुम सब प्रैक्टिस बहुत अच्छी कर सकते हो | आत्मा को ही देखना
पड़े | अपने को भी आत्मा समझना है यह प्रैक्टिस यहाँ करने से
आदत पड़ जायेगी | फिर अपना चार्ट भी रखना चाहिए – कहाँ तक
आत्म-अभिमानी बने हैं? आत्मा को ही हम सुनाते हैं, उनसे ही
बातचीत करते हैं | यह प्रैक्टिस बहुत अच्छी चाहिए | बच्चे
समझते होंगे यह बात तो ठीक है | देह-अभिमान निकल जाए और हम
आत्म-अभिमानी बन जाएं, धारणा करते और कराते जाएं | कोशिश कर
अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना – यह चार्ट बड़ा डीप है |
बड़े-बड़े महारथी भी समझते होंगे – बाबा जो दिन-प्रतिदिन
सब्जेक्ट देते हैं विचार सागर मंथन करने के लिए, यह तो बहुत
बड़ी प्वाइन्ट्स हैं | फिर कभी भी मुख से कोई उल्टा-सुल्टा
अक्षर नहीं निकलेगा | भाइयों-भाइयों का आपस में बहुत लव हो
जायेगा | हम सब ईश्वर की सन्तान हैं | बाप की महिमा को तो
जानते ही हो | कृष्ण की महिमा अलग, उनको कहते हैं सर्वगुण
सम्पन्न.....परन्तु कृष्ण के पास गुण कहाँ से आये? भल उनकी
महिमा अलग है, परन्तु सर्वगुण सम्पन्न बना तो ज्ञान सागर बाप
से ही है ना | तो अपनी जांच बहुत रखनी है, क़दम-क़दम पर पूरा
पोतामेल निकालना है | व्यापारी लोग सारे दिन की मुरादी रात को
सम्भालते हैं | तुम्हारा भी व्यापार है ना | रात्री को जाँच
करनी है कि हमने सबको भाई-भाई समझकर बात की? कोई को भी दुःख तो
नहीं दिया? क्योंकि तुम जानते हो हम सब भाई क्षीर सागर की तरफ़
जा रहे हैं | यह है विषय सागर | तुम अभी न रावण राज्य में हो,
न राम राज्य में | तुम बीच में हो तो अपने को आत्मा समझ बाप को
याद करना है | देखना है कहाँ तक हमारी वह भाई-भाई के दृष्टि की
अवस्था रही? हम सब आत्मायें आपस में भाई-भाई हैं, हम इस शरीर
से पार्ट बजाते हैं | आत्मा अविनाशी है, शरीर विनाशी है, हमने
84 जन्मों का पार्ट बजाया है | अब बाप आये हैं, कहते हैं
मामेकम् याद करो, अपने को आत्मा समझो | आत्मा समझने से भाई-भाई
हो जाते हैं | यह बाप ही समझाते हैं | बाप के सिवाए और कोई का
पार्ट ही नहीं | प्रेरणा आदि की बात नहीं | जैसे टीचर बैठ
समझाते हैं, वैसे बाप बच्चों को समझाते हैं | यह विचार करने की
बात है, इसमें समय भी देना पड़ता है | बाप ने धन्धा आदि करने के
लिए तो कह दिया है लेकिन याद की यात्रा भी जरुरी है | उसके लिए
भी टाइम निकलना चाहिए | सर्विस भी सबकी भिन्न-भिन्न है | कोई
बहुत टाइम निकाल सकते हैं | मैगजीन में भी युक्ति से लिखना है
कि यहाँ ऐसे बाप को याद करना होता है | एक-दो को भाई-भाई समझना
होता है |
बाप आकर सभी आत्माओं को पढ़ाते हैं | आत्मा में दैवीगुणों के
संस्कार अभी भरने हैं | मनुष्य पूछते हैं भारत का प्राचीन योग
क्या है? तुम समझा सकते हो परन्तु तुम अभी बहुत थोड़े हो,
तुम्हारा नाम निकला नहीं है | ईश्वर योग सिखलाते हैं | ज़रूर
उनके बच्चे भी होंगे | वह भी जानते होंगे यह किसको भी पता नहीं
है | निराकार बाप कैसे आकर पढ़ाते हैं, वह खुद ही समझाते हैं
मैं कल्प-कल्प संगमयुग पर आकर खुद बताता हूँ कि मैं ऐसे आता
हूँ | किसके तन में आता हूँ, इसमें मूँझने की बात नहीं | यह
बना-बनाया ड्रामा है | एक में ही आता हूँ | प्रजापिता ब्रह्मा
द्वारा स्थापना | वह मुरब्बी बच्चा पहले-पहले बनते हैं | आदि
सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन करते हैं | फिर वही पहले नम्बर
में आते हैं | इस चित्र पर समझानी बहुत अच्छी है | ब्रह्मा सो
विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा कैसे बनते हैं – यह और कोई समझा न
सके | समझाने की युक्ति चाहिए | अभी तुम जानते हो बाबा कैसे
देवता धर्म की स्थापना कर रहे हैं, कैसे चक्र फिरता है, इन
बातों को और कोई जान न सके | तो बाप कहते हैं ऐसे-ऐसे युक्ति
से लिखो | यथार्थ योग कौन सिखला सकते हैं – यह मालूम पड़ जाए तो
तुम्हारे पास ढेर आ जायें | इतने बड़े आश्रम जो हैं, सब हिलने
लग पड़ेंगे | यह पिछाड़ी को होना है, फिर वन्डर खायेंगे | इतनी
सब संस्थायें भक्ति मार्ग की हैं | ज्ञान मार्ग की एक भी नहीं
| तब ही तुम्हारी विजय होगी | यह भी तुम जानते हो हर 5 हज़ार
वर्ष के बाद बाप आते हैं | बाप द्वारा तुम सीख रहे हो, औरों को
सिखलाते हो | कैसे किसको लिखत में समझाना है – यह सब कल्प-कल्प
युक्तियाँ निकलती हैं, जो बहुतों को पता पड़ जाता है | सिवाए
बाप के एक धर्म की स्थापना कोई कर नहीं सकता | तुम जानते हो –
उस तरफ़ है रावण, इस तरफ़ है राम | रावण पर तुम जीत पाते हो | वह
सब हैं रावण सम्प्रदाय | तुम ईश्वरीय सम्प्रदाय बहुत थोड़े हो |
भक्ति का कितना शो है | जहाँ-जहाँ पानी है, वहाँ मेला लगता है
| कितना खर्चा करते हैं | कितने डूबते मरते हैं | यहाँ तो ऐसी
बात नहीं | फिर भी बाप कहते हैं आश्चर्यवत् मेरे को
पहचानान्ति, सुनन्ती, सुनावन्ति, पवित्र रहन्ती फिर भी अहो
माया तेरे द्वारा हार खावन्ति | कल्प-कल्प ऐसे होता है | हार
खावन्ति भी होते हैं | माया के साथ युद्ध है | माया का भी
प्रभाव है | भक्ति को तो हिलना ही है | आधा कल्प तुम प्रालब्ध
भोगते हो फिर रावण राज्य से भक्ति शुरू होती है | उनकी
निशानियाँ भी कायम हैं, विकार में जाते हैं फिर देवता तो रहे
नहीं | कैसे विकारी बनते हैं, यह दुनिया में कोई जानते नहीं |
शास्त्रों में लिख दिया है वाम मार्ग में गये | कब गये – यह
नहीं समझते हैं | यह सब बातें अच्छी रीति समझने और समझाने की
हैं | यह भी तब समझें जब निश्चयबुद्धि हों | उनकी कोशिश होगी,
कहेंगे ऐसे बाप से हमको मिलाओ | परन्तु पहले देखो घर जाने के
बाद वह नशा रहता है? निश्चय बुद्धि रहते हैं? भल याद सतावे,
चिट्ठी लिखते रहें, आप हमारे सच्चे बाबा हो, आप से ऊँचा वर्सा
मिलता है, आप से मिलने बिगर हम रह नहीं सकते | सगाई के बाद
मिलना होता है | सगाई के बाद तड़फते हैं | तुम जानते हो हमारा
बेहद का बाप टीचर साजन आदि सब कुछ है | और सबसे दुःख मिला,
उनकी एवज में बाप सुख देते हैं | वहाँ भी सब सुख देते हैं | इस
समय तुम सुख के सम्बन्ध में बंध रहे हो |
यह
पुरुषोत्तम बनने का पुरुषोत्तम युग है | मूल बात है – अपने को
आत्मा समझना है, बाप को प्यार से याद करना है | याद से ख़ुशी का
पारा चढ़ेगा | हमने सबसे जास्ती भक्ति की है | धक्के बहुत खाये
| अब बाप आया है वापिस ले जाने तो ज़रूर पवित्र बनना है |
दैवीगुण धारण करने हैं | पोतामेल रखना है – सारे दिन में कितने
को बाप का परिचय दिया? बाप का परिचय देने बिगर सुख नहीं आता,
तड़फन लग जाती है | यज्ञ में बहुत विघ्न भी पड़ते हैं, मारें
खाते हैं | और कोई सतसंग नहीं जहाँ पवित्रता की बात हो | यहाँ
तुम पवित्र बनते हो तो असुर लोग विघ्न डालते हैं | पावन बनकर
घर जाना है | संस्कार आत्मा ले जाती है | कहते हैं युद्ध के
मैदान में मरेंगे तो स्वर्ग में जायेंगे इसलिए ख़ुशी से लड़ाई
में जाते हैं | तुम्हारे पास कमान्डर, मेजर सिपाही आदि
कहाँ-कहाँ से आते हैं | स्वर्ग में कैसे जायेंगे? लड़ाई के
मैदान में मित्र-सम्बन्धी याद आते हैं | अब बाप समझाते हैं
सबको वापिस जाना है | अपने को आत्मा समझो भाई-भाई समझो | बाप
को याद करो | जो जितना पुरुषार्थ करेंगे उतना ऊँच पद पायेंगे |
वो लोग कहते हैं हम भाई-भाई हैं | परन्तु अर्थ नहीं जानते |
बाप को ही नहीं जानते |
लोग समझते हैं हम निष्काम सेवा करते हैं | हमको फल की इच्छा
नहीं | परन्तु फल तो ज़रूर मिलना है | निष्काम सेवा तो एक बाप
ही करते हैं | बच्चे जानते हैं बाप की कितनी ग्लानि की है |
देवताओं की भी ग्लानि की है | अब देवतायें किसी की हिंसा तो कर
नहीं सकते | यहाँ तो तुम डबल अहिंसक बनते हो | न काम कटारी
चलाना, न क्रोध करना | क्रोध भी बड़ा विकार है | कहते हैं
बच्चों पर बहुत क्रोध किया | बाप समझाते हैं थप्पड़ आदि कभी
नहीं मारना | वह भी भाई है, उनमें भी आत्मा है | आत्मा
छोटी-बड़ी नहीं होती है | यह बच्चा नहीं परन्तु तुम्हारा छोटा
भाई है | आत्मा समझना है | छोटे भाई को मारना नहीं चाहिए इसलिए
कृष्ण के लिए दिखाते हैं ओखरी से बाँधा | वास्तव में ऐसी बातें
हैं नहीं | यह भिन्न-भिन्न शिक्षायें हैं | बाकी कृष्ण को क्या
परवाह पड़ी है माखन की | वह महिमा भी करते हैं उल्टी चोरी की |
तुम महिमा करेंगे सुल्टी, तुम कहेंगे वह सर्वगुण सम्पन्न, 16
कला सम्पूर्ण है | परन्तु यह ग्लानि की भी ड्रामा में नूँध है
| अभी सब तमोप्रधान बन पड़े हैं | बाप आकर सतोप्रधान बनाते हैं
| पढ़ाने वाला है बेहद का बाप | उनकी मत पर चलना पड़े | डिफिकल्ट
से डिफ़िकल्ट यह सब्जेक्ट है | पद भी तुम कितना ऊँच पाते हो |
अगर सहज हो तो सब इस इम्तहान में लग जायें | इसमें बड़ी मेहनत
है | देह-अभिमान आने से विकर्म बन जायेंगे इसलिए छुई-मुई का
दृष्टान्त है | बाप को याद करने से तुम खड़े हो जायेंगे | भूलने
से कुछ न कुछ भूल हो जायेगी | पद भी कम हो पड़ता है | शिक्षा तो
सबको दी है, जिसकी बाद में गीता बनाई है | गरुड़ पुराण में रोचक
बातें लिखी हैं, जो मनुष्यों को डर लगे | रावण राज्य में पाप
तो होते ही हैं क्योंकि है ही काँटों का जंगल | बाप कहते हैं
दृष्टि को भी बदलना है | बहुत समय से हिरे हुए हैं इसलिए शरीर
की तरफ़ प्यार चला जाता है | विनाशी चीज़ से प्यार रखने से फ़ायदा
ही क्या? अविनाशी से प्यार रखने में अविनाशी बन जाता है |
बच्चों को यही डायरेक्शन है – उठते-बैठते चलते-फिरते बाप को
याद करो | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
शरीर विनाशी है, उससे प्यार निकाल अविनाशी आत्मा से प्यार रखना
है | अविनाशी बाप को याद करना है | आत्मा भाई-भाई हैं, हम भाई
से बात करते हैं – यह अभ्यास करना है |
2.
विचार सागर मंथन कर अपनी ऐसी अवस्था बनानी है जो मुख से कभी
कोई उल्टा-सुल्टा बोल न निकले | क़दम-क़दम पर अपना पोतामेल चेक
करना है |
वरदान:-
चलन और चेहरे से पवित्रता के श्रृंगार की झलक दिखने वाले
श्रृंगारी मूर्त भव
! 
पवित्रता ब्राह्मण जीवन का श्रृंगार है | हर समय पवित्रता के
श्रृंगार की अनुभूति चेहरे वा चलन से औरों को हो | दृष्टि में,
मुख में, हाथों में, पांवों में सदा पवित्रता का श्रृंगार
प्रत्यक्ष हो | हर एक वर्णन करे कि इनके फ़ीचर्स से पवित्रता
दिखाई देती है | नयनों में पवित्रता की झलक है, मुख पर
पवित्रता की मुस्कराहट है | और कोई बात उन्हें नज़र न आये –
इसको ही कहते हैं – पवित्रता के श्रृंगार से श्रृंगारी हुई
मूर्त |
स्लोगन:-
व्यर्थ
सम्बन्ध-सम्पर्क भी एकाउन्ट को खाली कर देता है इसलिए व्यर्थ
को समाप्त करो | 
ओम्
शान्ति
|