10-04-14           प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे तुम सवेरे अमीर बनते हो, शाम को फ़क़ीर बनते हो | फ़क़ीर से अमीर, पतित से पावन बनने के लिये दो शब्द याद रखो – मन्मनाभव, मध्याजीभव |   

प्रश्न:-   
कर्मबन्धन से मुक्त होने की युक्ति क्या है?

उत्तर:-
1. याद की यात्रा तथा ज्ञान का सिमरण, 2. एक के साथ सर्व सम्बन्ध रहें, अन्य कोई में भी बुद्धि न जाये, 3. जो सर्वशक्तिमान् बैटरी है, उस बैटरी से योग लगा हुआ हो | अपने ऊपर पूरा ध्यान  हो, दैवी गुणों के पंख लगे हुए हों तो कर्मबन्धन से मुक्त होते जायेंगे |

ओम् शान्ति |

बाप ने बैठ समझाया है – यह है भारत के लिये कहानी | क्या कहानी है? सुबह को अमीर है, शाम को फ़क़ीर है | इस पर एक कहानी है | सुबह को अमीर था.......यह बातें तुम जब अमीर हो तब नहीं सुनते हो | फ़क़ीर और अमीर की बातें तुम बच्चे संगमयुग पर ही सुनते हो | यह दिल में धारण करना है | बरोबर भक्ति फ़क़ीर बनाती है, ज्ञान अमीर बनाता है | दिन और रात भी बेहद का है | फ़क़ीर और अमीर भी बेहद की बात है और बनाने वाला भी बेहद का बाप है | सभी पतित आत्माओं के लिये एक ही बैटरी है पावन बनाने की | ऐसे-ऐसे टोटके याद रखो तो भी ख़ुशी में रहेंगे | बाप कहते हैं – बच्चे, तुम सवेरे अमीर बन जाते हो फिर शाम को फ़क़ीर बन जाते हो | कैसे बनते हो – यह भी बाप समझाते हैं | फिर पतित से पावन, फ़क़ीर से अमीर बनने की युक्ति भी बाप ही बतलाते हैं | मन्मनाभव, मध्याजीभव – यही दो युक्तियाँ हैं | यह भी बच्चे जानते हैं – यह पुरुषोत्तम संगमयुग है | तुम जो भी यहाँ बैठे हो, गैरन्टी है तुम स्वर्ग के अमीर ज़रूर बनेंगे, नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार | स्कूल में भी ऐसे होता है | नम्बरवार क्लास ट्रान्सफर होता है | इम्तहान पूरा होता है तो फिर नम्बरवार जाकर बैठते हैं, वह है हद की बात, यह है बेहद की बात | नम्बरवार रूद्र माला में जाते हैं | माला अथवा झाड़ | बीज तो झाड़ का ही है | परमात्मा फिर मनुष्य सृष्टि का बीज है, यह बच्चे जानते हैं कि झाड़ वृद्धि को कैसे पाता है, पुराना कैसे होता है | आगे यह तुम नहीं जानते थे, बाप ने आकर समझाया है | अभी यह है पुरुषोत्तम संगमयुग | अभी तुम बच्चों को पुरुषार्थ करना है | दैवीगुण के पंख भी धारण करने हैं | अपने ऊपर पूरा ध्यान देना है | याद की यात्रा से ही तुम पावन बनेंगे और कोई उपाय नहीं | बाप जो सर्वशक्तिमान् बैटरी है उनसे पूरा योग लगाना है | उनकी बैटरी कभी ढीली नहीं होती | वह सतो, रजो, तमो में नहीं आते क्योंकि उनकी सदा कर्मातीत अवस्था है | तुम बच्चे कर्मबन्धन में आते हो | कितने कड़े बन्धन हैं | इन कर्मबन्धनों से मुक्त होने का एक ही उपाय है – याद की यात्रा | इसके सिवाए और कोई उपाय नहीं | जैसे यह ज्ञान है, यह भी हड्डियाँ नर्म करता है | यूँ तो भक्ति भी नर्म बनाती है | कहेंगे यह बिचारा भक्त आदमी है, इनमें ठगी आदि कुछ भी नहीं है | परन्तु भक्तों में ठगी भी होती है | बाबा अनुभवी है | आत्मा शरीर द्वारा धन्धाधोरी करती है तो इस जन्म का भी सब कुछ स्मृति में आता है | 4-5 वर्ष की आयु से अपनी जीवन कहानी याद रहनी चाहिए | कोई 10-20 वर्ष की बात भी भूल जाते हैं | जन्म-जन्मान्तर का नाम रूप तो याद नहीं रह सकता | एक जन्म का तो कुछ बता सकते हैं | फ़ोटो आदि रखते हैं | दूसरे जन्म का तो पता नहीं रह सकता | हर एक आत्मा भिन्न नाम, रूप, देश, काल में पार्ट बजाती है | नाम, रूप, सब बदलता रहता है | यह तो बुद्धि में है कैसे आत्मा एक शरीर छोड़ फिर दूसरा लेती है | ज़रूर 84 जन्म, 84 नाम, 84 बाप बने होंगे | अन्त में फिर तमोप्रधान सम्बन्ध हो जाता है | इस समय जितने सम्बन्ध होते हैं, उतने कभी नहीं होते हैं | कलियुगी सम्बन्धों को बन्धन ही समझना चाहिए | कितने बच्चे होते हैं, फिर शादी करते हैं, फिर बच्चे पैदा करते हैं | इस समय सबसे जास्ती बन्धन है – चाचे, मामे, काके का.......जितने जास्ती सम्बन्ध उतने जास्ती बन्धन | अख़बार में पड़ा पाँच बच्चे इकट्ठे जन्में, पाँचों ही तन्दुरुस्त हैं | हिसाब करो कितने ढेर सम्बन्ध बन जाते हैं | इस समय तुम्हारा सम्बन्ध सबसे छोटा है | सिर्फ़ के बाप से सर्व सम्बन्ध हैं | दूसरा कोई से भी तुम्हारा बुद्धि योग नहीं है, सिवाए एक के | सतयुग में फिर इससे जास्ती हैं | हीरे जैसा जन्म तुम्हारा अभी है | हाइएस्ट बाप बच्चों को एडाप्ट करते हैं | जीते जी गोद में जाना वर्सा पाने के लिये, सो अभी ही होता है | तुम ऐसे बाप की गोद में आये हो जिससे तुमको वर्सा मिलता है | तुम ब्राह्मणों से ऊँच कोई है नहीं | सबका योग एक के साथ है | तुम्हारा आपस में भी कोई सम्बन्ध नहीं | बहन-भाई का सम्बन्ध भी गिरा देता है | सम्बन्ध एक से होना चाहिये | यह है नई बात | पवित्र होकर वापिस जाना है | ऐसे-ऐसे विचार सागर मंथन करने से तुम बहुत रौनक में आयेंगे | सतयुगी रौनक और कलियुगी रौनक में रात-दिन का फ़र्क है | भक्ति मार्ग के समय है ही रावण का राज्य | पिछाड़ी में साइन्स का घमण्ड भी कितना होता है | जैसे सतयुग से भेंट करते हैं |  

एक बच्ची ने समाचार लिखा कि हमने प्रश्न पूछा कि स्वर्ग में हो या नर्क में? तो 4-5 ने कहा हम स्वर्ग में हैं | बुद्धि में रात-दिन का फ़र्क पड़ जाता है | कोई समझते हैं हम तो नर्क में हैं, फिर उनको समझाना पड़ता है कि स्वर्गवासी बनने चाहते हो? स्वर्ग कौन स्थापन करते हैं? यह बहुत मीठी-मीठी बातें हैं | तुम नोट करते हो, परन्तु वह कॉपी में ही नोट्स रह जाते हैं, समय पर याद नहीं आते | अब पतित से पावन बनाने वाला परमपिता परमात्मा शिव है | वह कहते हैं मामेकम् याद करो तो पाप कट जायेंगे | याद में कोई तो आमदनी होगी ना | याद की रस्म अब निकली है | याद से ही तुम कितने ऊँच स्वच्छ बनते हो | जितनी जो मेहनत करेगा उतना ऊँच पद पायेगा | बाबा से भी पूछ सकते हो | दुनिया में तो सम्बन्ध और जायदाद के पीछे झगड़े ही झगड़े हैं | यहाँ तो कोई सम्बन्ध नहीं | एक बाप, दूसरा न कोई | बाप है बेहद का मालिक | बात तो बड़ी सहज है | उस तरफ़ है स्वर्ग और इस तरफ़ है नर्क | नर्कवासी अच्छे या स्वर्गवासी अच्छे? जो सयाने होंगे वह तो कहेंगे स्वर्गवासी अच्छे | कोई तो कह देते हैं नर्कवासी और स्वर्गवासी, इन बातों से हमें कोई मतलब नहीं क्योंकि बाप को नहीं जानते हैं | कोई फिर बाप की गोद से निकल माया की गोद में चले जाते हैं | वन्डर है ना | बाप भी वन्डरफुल तो ज्ञान भी वन्डरफुल, सब वन्डरफुल | इन वन्डर्स को समझने वाला भी ऐसा चाहिये, जिसकी बुद्धि इस वन्डर में ही लगी रहे | रावण तो वन्डर नहीं है, न उनकी रचना वन्डर है | रात-दिन का फ़र्क है | शास्त्रों में लिखा है – कालीदह में गया, सर्प ने डसा, काला हो गया | अब तुम अच्छी रीति यह सब समझा सकते हो | कृष्ण के चित्र को कोई उठाकर पढ़े तो रिफ्रेश हो जाये | 84 जन्मों की कहानी है | जैसे कृष्ण की वैसे तुम्हारी | स्वर्ग में तो तुम आते हो ना | फिर त्रेता में भी आते रहते हैं | वृद्धि होती रहती है | ऐसे नहीं, त्रेता में जो राजा होते हैं वह त्रेता में ही आयेंगे | पढ़े के आगे अनपढ़े को भरी ढोनी पड़ेगी | यह ड्रामा का राज़ बाबा ही जान सकते हैं | अब तुम जानते हो तुम्हारे मित्र-सम्बन्धी आदि सब नर्कवासी हैं | हम पुरुषोत्तम संगमयुगी हैं | अब पुरुषोत्तम बन रहे हैं | बाहर के रहने और यहाँ 7 रोज़ आकर रहने में बहुत फ़र्क पड़ जाता है | हंसों के संग से निकल बगुलों के संग में जाते हैं | बहुत बिगाड़ने वाले भी हैं | बहुत बच्चे मुरली की परवाह नहीं करते हैं | बाप समझाते हैं – गफ़लत नहीं करो | तुमको खुशबूदार फूल बनना है | सिर्फ़ एक बात ही तुम्हारे लिये काफ़ी है – याद की यात्रा | यहाँ तुमको ब्राह्मणों का ही संग है | कहाँ ऊँच ते ऊँच, कहाँ नीच | बच्चे लिखते हैं बाबा बगुलों के झुण्ड में  हम एक हंस क्या करेंगे? बगुले कांटे लगाते हैं | कितनी मेहनत करनी पड़ती है | बाप की श्रीमत पर चलने से पद भी ऊँच मिलेगा | सदैव हंस होकर रहो | बगुले के संगम में बगुला न बन जाओ | गायन है आश्चर्यवत् सुनन्ती, कथन्ती, भागन्ती......थोड़ा भी ज्ञान है तो स्वर्ग में आयेंगे | परन्तु फ़र्क रात-दिन का पड़ जाता है | सजायें बहुत कड़ी खायेंगे | बाप कहते हैं मेरी मत पर न चल, पतित बनें तो सौ गुणा दण्ड पड़ जाता है | फिर पद भी कम हो जाता है | यह राजाई स्थापन हो रही है | यह बातें भूल जाती हैं | यह भी याद हरे तो भी ऊँच पद पाने के पुरुषार्थ ज़रूर करें | नहीं करते हैं तो समझा जाता है – एक कान से सुन दूसरे से निकाल देते हैं | बाप से योग नहीं | यहाँ रहते भी बुद्धियोग बाल बच्चों की तरफ़ है | बाप कहते हैं सब कुछ भूल जाना है – इसको कहा जाता है वैराग्य | इसमें भी परसेन्टेज़ है | कहाँ न कहाँ ख्यालात चले जाते हैं | एक-दो से लव हो जाता है तो भी बुद्धि लटक जाती है | 

बाबा रोज़ समझाते हैं – इन आँखों से जो कुछ देखते हो, वह सब ख़त्म होने वाला है | तुम्हारा बुद्धियोग नई दुनिया में रहे और बेहद के सम्बन्धियों से बुद्धियोग रखना है | यह माशूक वन्डरफुल है | भक्ति में गाते हैं आप जब आयेंगे तो आपके बिगर हम किसको भी याद नहीं करेंगे | अब मैं आया हूँ, तो अब तुमको सब तरफ़ से बुद्धियोग हटाना पड़े ना | यह सब कुछ मिट्टी में मिल जाना है | तुम्हारा जैसे मिट्टी के साथ बुद्धियोग है | मेरे साथ बुद्धियोग होगा तो मालिक बन जायेंगे | बाप कितना समझदार बनाते हैं | मनुष्य नहीं जानते कि भक्ति क्या है और ज्ञान क्या है? अब तुमको ज्ञान मिला है तब तुम भक्ति को भी समझते हो | अब तुमको फीलिंग आती है कि भक्ति में कितना दुःख है | मनुष्य भक्ति करते हैं अपने को बहुत सुखी समझते हैं | फिर भी कहते हैं भगवान् आकर फल देंगे | किसको और कैसे फल देंगे – वह कुछ भी नहीं समझते | अब तुम जानते हो – बाप भक्ति का फल देने आये हैं | विश्व की राजधानी का फल जिस बाप से मिलता है वह बाप जो डायरेक्शन देते हैं, उस पर चलना पड़े | उनको कहा जाता है ऊँचे ते ऊँची मत | मत मिलती तो सबको है | फिर कोई चल सके, कोई चल न सके | बेहद की बादशाही स्थापन होनी है | तुम अभी समझते हो – हम क्या थे, अब हमारी क्या हालत है | माया एकदम ख़त्म कर देती है | यह तो जैसे मुर्दों की दुनिया है | भक्ति मार्ग में तुम जो कुछ सुनते थे वह सब सत सत करते थे | लेकिन तुम जानते हो कि सच तो एक बाप ही सुनाते हैं | ऐसे बाप को याद करना चाहिये | यहाँ कोई बाहर वाला बैठा हो तो उनको कुछ भी समझ में नहीं आयेगा | कहेंगे यह तो पता नहीं क्या सुनाते हैं | सारी दुनिया कहती है परमात्मा सर्वव्यापी है और यह कहते हैं वह हमारा बाप है | कांध से ना-ना करते रहेंगे | तुम्हारे अन्दर से हाँ-हाँ निकलती रहेगी, इसलिये नये कोई को एलाउ नहीं किया जाता है | अच्छा! 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
 

धारणा के लिए मुख्य सार:-  

1. खुशबूदार फूल बनने के लिये संग की बहुत सम्भाल करनी है | हंसों का संग करना है, हंस होकर रहना है | मुरली में कभी बेपरवाह नहीं बनना है, गफ़लत नहीं करनी है | 

2. कर्मबन्धन से मुक्त होने के लिये संमगयुग पर अपने सर्व सम्बन्ध एक बाप से रखने है | आपस में कोई सम्बन्ध नहीं रखना है | किसी हद के सम्बन्ध में लव रख बुद्धियोग लटकाना नहीं है | एक को ही याद करना है |

वरदान:-  

स्नेह और अथॉरिटी के बैलेन्स द्वारा सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को समर्पित कराने वाली महान आत्मा भव !    

जो भी सम्पर्क में आते हैं उन्हें ऐसा सम्बन्ध में लाओ जो सम्बन्ध में आते-आते समर्पण बुद्धि हो जाएं और कहें कि जो बाप ने कहा है वही सत्य है, इसको कहते हैं समर्पण बुद्धि | फिर उनके प्रश्न समाप्त हो जायेंगे | सिर्फ़ यह नहीं कहें कि इन्हों का ज्ञान अच्छा है लेकिन यह नया ज्ञान है जो नई दुनिया लायेगा – यह आवाज़ हो तब कुम्भकारण जागेंगे | तो नवीनता की महानता द्वारा स्नेह और अथॉरिटी के बैलेन्स से ऐसा समर्पित कराओ तब कहेंगे माईक तैयार हुए |

स्लोगन:- 

एक परमात्मा के प्यारे बनो तो विश्व के प्यारे बन जायेंगे |     

 

ओम् शान्ति |