01-01-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
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तुम्हें सम्पूर्ण पावन बनना है इसलिए कभी किसको दुःख नहीं दो, कर्मेन्द्रियों से कोई विकर्म न हो, सदा बाप के फ़रमान पर चलते रहो |
प्रश्न:-
पत्थर से पारस बनने की युक्ति क्या है? कौन सी बीमारी इसमें विघ्न रूप बनती है?
उत्तर:-
पत्थर से पारस बनने के लिए पूरा नारायणी नशा चाहिए | देह-अभिमान टूटा हुआ हो | यह देह-अभिमान ही कड़े ते कड़ी बीमारी है | जब तक देही-अभिमान नहीं तब तक पारस नहीं बन सकते | पारस बनने वाले ही बाप के मददगार बन सकते हैं | 2. सर्विस भी तुम्हारी बुद्धि को सोने का बना देगी | इसके लिए पढ़ाई पर पूरा अटेन्शन चाहिए |
ओम् शान्ति |
रुहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप सावधानी देते हैं कि बच्चे अपने को संगमयुगी समझो | सतयुगी तो नहीं समझेंगे | तुम ब्राह्मण ही अपने को संगमयुगी समझेंगे | और तो सभी अपने को कलियुगी समझेंगे | बहुत फ़र्क है – सतयुग और कलियुग, स्वर्गवासी और नर्कवासी | तुम तो न स्वर्गवासी हो, न नर्कवासी | तुम हो पुरुषोत्तम संगमवासी | इस संगमयुग को तुम ब्राह्मण ही जानते हो और कोई नहीं जानते | तुम भल जानते भी हो परन्तु भूल जाते हो | अब मनुष्यों को कैसे समझायें | वे तो रावण की जंज़ीरों में फँसे हुए हैं | रामराज्य तो है नहीं | रावण को जलाते रहते हैं, इससे सिद्ध है कि रावण राज्य है | रामराज्य क्या है और रावणराज्य क्या है, यह भी तुम समझते हो – नम्बरवार | बाप आते है संगमयुग पर तो यह भेंट भी अभी की जाती है – सतयुग और कलियुग की | कलियुग में रहने वालों को नर्कवासी, सतयुग में रहने वालों को स्वर्गवासी कहा जाता है | स्वर्गवासी को पावन, नर्कवासी को पतित कहा जाता है | तुम्हारी तो बात ही निराली है | तो तुम इस पुरुषोत्तम संगमयुग को जानते हो | तुम समझते हो हम ब्राह्मण हैं | वर्णों वाला चित्र भी बहुत अच्छा है | इस पर भी तुम समझा सकते हो | कान्ट्रास्ट बताना चाहिए, जो मनुष्य अपने को नर्कवासी पतित कंगाल समझें | लिखना चाहे अब यह पुरानी कलियुगी दुनिया है | सतयुग स्वर्ग नई दुनिया है | तुम नर्कवासी हो या स्वर्गवासी? तुम देवता हो या असुर? ऐसे तो कोई नहीं कहेंगे कि हम स्वर्गवासी हैं | कई ऐसे समझते हैं हम तो स्वर्ग में बैठे हैं | अरे यह तो नर्क है ना | सतयुग है कहाँ | यह रावणराज्य है, तब तो रावण को जलाते हैं | उन्हों के पास भी कितने जवाब होते हैं | सर्वव्यापी पर भी कितनी डिबेट करते हैं | तुम बच्चे तो एकदम क्लीयर पूछते हो – अब नई दुनिया है या पुरानी दुनिया | ऐसा क्लीयर कान्ट्रास्ट बताना है, इसमें बहुत ब्रेन चाहिए | ऐसा युक्ति से लिखना चाहिए जो मनुष्य अपने से पूछें कि मैं नर्कवासी हूँ या स्वर्गवासी? यह पुरानी दुनिया है या नई दुनिया है? यह रामराज्य है या रावण राज्य? हम पुरानी कलियुगी दुनिया के रहवासी हैं या नई दुनिया के वासी हैं? हिन्दी में लिखकर फिर अंग्रेजी, गुजराती में ट्रान्सलेट करें | तो मनुष्य अपने से पूछें कि हम कहाँ के रहवासी हैं | कोई शरीर छोड़ते हैं तो कहते हैं स्वर्ग पधारा लेकिन स्वर्ग अभी है कहाँ? अभी तो कलियुग है | ज़रूर पुनर्जन्म भी यहाँ ही लेंगे ना | स्वर्ग तो सतयुग को कहा जाता है, वहाँ अभी कैसे जायेंगे | यह सब विचार सागर मंथन करने की बातें हैं | ऐसे क्लीयर कान्ट्रास्ट हो, उसमें लिख दो भगवानुवाच – हर एक अपने से पूछे मैं सतयुगी रामराज्य निवासी हूँ या कलियुगी रावण राज्य का निवासी हूँ? तुम ब्राह्मण हो संगमवासी, तुमको तो कोई जानते ही नहीं | तुम हो सबसे न्यारे | तुम सतयुग कलियुग को यथार्थ जानते हो | तुम ही पूछ सकते हो कि तुम विकारी भ्रष्टाचारी हो या निर्विकारी श्रेष्ठाचारी हो? यह तुम्हारा किताब भी बन सकता है | नई-नई बातें निकालनी पड़े ना, जिससे मनुष्य समझें कि ईश्वर सर्वव्यापी नहीं हैं | तुम्हारी यह लिखत देख आपेही अन्दर से पूछेंगे | इसको आइरन एज तो सब कहेंगे | सतयुगी डीटी राज्य तो इनको कोई कह न सके | यह हेल है या हेविन | ऐसी फर्स्टक्लास लिखत लिखो कि मनुष्य अपने को समझ जाएं कि हम बरोबर नर्कवासी पतित हैं | हमारे में दैवीगुण तो हैं नहीं | कलियुग में सतयुगी कोई हो न सके | ऐसे विचार सागर मंथन कर लिखना चाहिए | जो ओटे सो अर्जुन......गीता में अर्जुन का नाम दिया है |
बाबा कहते हैं यह जो गीता है उसमे आटे में लून (नमक) है | लून और चीनी में कितना फ़र्क है ......वह मीठा वह खारा | कृष्ण भगवानुवाच लिखकर गीता ही खारी कर दी है | मनुष्य कितना दलदल में फँस पड़ते हैं | बिचारों को ज्ञान के राज़ का भी पता नहीं है, ज्ञान भगवान तुमको भी सुनाते हैं और किसको पता ही नहीं | नॉलेज तो बहुत सहज है | परन्तु भगवान पढ़ाते हैं यह भूल जाते हैं | टीचर को ही भूल जाते हैं | नहीं तो स्टूडेन्ट कभी टीचर को भूलते नहीं हैं | घड़ी-घड़ी कहते हैं बाबा हम आपको भूल जाते हैं | बाबा कहते हैं, माया कम नहीं | तुम देह-अभिमानी बन पड़ते हो | बहुत विकर्म बन जाते हैं | ऐसा कोई खाली दिन नहीं जो विकर्म न होते हों | एक मुख्य विकर्म यह करते हो जो बाप के फ़रमान को ही भूल जाते हो | बाप फ़रमान करते हैं मनमनाभव, अपने को आत्मा समझो | यह फरमान बहुत सहज भी है तो बहुत कड़ा है | कितना भी माथा मारे फिर भी भूल जायेंगे क्योंकि आधाकल्प का देह-अभिमान है ना | 5 मिनट भी यथार्थ रीति याद में बैठ नहीं सकते | अगर सारा दिन याद में रहें फिर तो कर्मातीत अवस्था हो जाए | बाप ने समझाया है इसमें मेहनत है | तुम वह जिस्मानी पढ़ाई तो अच्छी रीति पढ़ते हो | हिस्ट्री-जॉग्राफी पढ़ने की कितनी प्रैक्टिस है | परन्तु याद की यात्रा का बिल्कुल ही अभ्यास नहीं | अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना – यह है नई बात | विवेक कहता है ऐसे बाप को तो अच्छी रीति याद करना चाहिए | थोड़ा टाइम निकाल रोटी टुक्कड़ खाते हैं, वह भी बाबा की याद में | जितना याद में रहेंगे उतना पावन बनेंगे | ऐसे बहुत बच्चे हैं, जिनके पास इतने पैसे हैं जो ब्याज़ मिलता रहे | बाप को याद करते रोटी टुक्कड़ खाते रहें, बस | परन्तु माया याद करने नहीं देती | कल्प पहले जिसने जितना पुरुषार्थ किया है उतना ही करेंगे | टाइम लगता है | कोई ज़ल्दी दौड़ी लगाकर पहुँच जायें यह हो न सके | इसमें तो दो बाप हैं | बेहद के बाप को अपना शरीर है नहीं | वह इनमें प्रवेश होकर बात करते हैं | तो बाप की श्रीमत पर चलना चाहिए | बाप बच्चों को यह श्रीमत देते हैं कि देह सहित सब धर्म छोड़ अपने को आत्मा समझो | तुम पवित्र आये थे | 84 जन्म लेते-लेते तुम्हारी आत्मा पतित बनी है | अब पावन बनने के लिए श्रीमत पर चलो, तब बाप गैरन्टी करते हैं तुम्हारे पाप कट जायेंगे, तुम्हारी आत्मा कंचन बन जायेगी, फिर वहाँ देह भी कंचन मिलेगी | जो इस कुल का होगा वह तुम्हारी बातें सुनकर सोच में पड़ जायेगा, कहेगा तुम्हारी बात तो ठीक है | पावन बनना है तो किसको दुःख नहीं देना है | मन्सा, वाचा, कर्मणा पवित्र बनना है | मन्सा में तूफ़ान आयेंगे | तुम बेहद की बादशाही लेते हो ना, तुम भल सच बताओ वा न बताओ परन्तु बाप खुद कहते हैं – माया के बहुत विकल्प आयेंगे, परन्तु कर्मेन्द्रियों से कभी विकर्म नहीं करना | कर्मेन्द्रियों से कोई पाप नहीं करना है |
तो यह कान्ट्रास्ट की बातें अच्छी रीति लिखनी चाहिए | कृष्ण पूरे 84 जन्म लेते हैं और शिव पुनर्जन्म नहीं लेते | वह सर्वगुण सम्पन्न देवता है, यह तो है ही बाप | तुमने देखा है पाण्डवों के चित्र कितने बड़े-बड़े बनाये हैं | इसका मतलब है कि वह इतनी बड़ी विशाल बुद्धि वाले थे | बुद्धि बड़ी थी, उन्होंने फिर शरीर को बड़ा बना दिया है | तुम्हारी जैसी विशाल बुद्धि और कोई की हो न सके | तुम्हारी है ईश्वरीय बुद्धि | भक्ति में कितने बड़े-बड़े चित्र बनाकर पैसे बरबाद करते हैं | कितने वेद, शास्त्र, उपनिषद बनाए कितना खर्चा किया | बाप कहते हैं तुम कितने पैसे गंवाते आये हो | बेहद का बाप उल्हना देते हैं | तुम फील करते हो बाबा ने पैसे बहुत दिये | राजयोग सिखलाकर राजाओं का राजा बनाया | वह जिस्मानी पढ़ाई पढ़कर बैरिस्टर आदि बनते हैं, फिर उससे कमाई होती है इसलिए कहा जाता है नॉलेज सोर्स आफ इनकम है | यह ईश्वरीय पढ़ाई भी सोर्स आफ इनकम है, जिससे बेहद की बादशाही मिलती है | भागवत, रामायण आदि में कोई नॉलेज नहीं है | एम आब्जेक्ट ही कुछ नहीं | बाप जो नॉलेजफुल है वह बैठ तुम बच्चों को समझाते हैं | यह है बिल्कुल नई पढ़ाई | वह भी कौन पढ़ाते हैं? भगवान् | नई दुनिया का मालिक बनने के लिए पढ़ाते हैं | इन लक्ष्मी-नारायण ने यह पढ़ाई से ऊँच पद पाया है | कहाँ राजाई, कहाँ प्रजा | कोई की तक़दीर खुल जाए तो बेडा पार है | स्टूडेन्ट समझ सकते हैं कि हम पढ़ते हैं और फिर पढ़ा सकते हैं वा नहीं | पढ़ाई पर पूरा अटेन्शन रखना चाहिए | पत्थरबुद्धि होने के कारण कुछ भी समझते नहीं हैं | तुमको बनना है सोने की बुद्धि | वह उन्हों की बनेगी जो सर्विस में रहेंगे | बैज पर भी किसको समझा सकते हो | बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लो | भारत स्वर्ग था ना | कल की बात है | कहाँ 5 हज़ार वर्ष की बात, कहाँ लाखों वर्ष की बात | कितना फ़र्क है | तुम समझाते हो तो भी समझते नहीं हैं जैसे बिल्कुल ही पत्थरबुद्धि है | यह बैज ही तुम्हारे लिए जैसे एक गीता है, इसमें सारी पढ़ाई है | मनुष्यों को तो भक्ति मार्ग की गीता ही याद रहती है | अभी तुम जो बाप द्वारा गीता सुनते हो उससे तुम 21 जन्म के लिए सद्गति को पाते हो | शुरू शुरु में तुमने ही गीता पढ़ी है | पूजा भी तुमने ही शुरू की है | अब पुरुषार्थ कर ग़रीबों को भक्ति मार्ग की जंज़ीरों से छुड़ाना है | कोई न कोई को समझाते रहो | उसमें से एक दो निकलेंगे | अगर 5-6 इकट्ठे आते हैं तो कोशिश कर अलग-अलग फार्म भराए अलग-अलग समझाना चाहिए | नहीं तो उन्हों में एक भी ऐसा होगा तो औरों को खराब कर देगा | फार्म तो ज़रूर अलग भराओ | एक दो का देखें भी नहीं, तो वह समझ सकेंगे | यह सब युक्तियाँ चाहिए तब तुम सक्सेसफुल होते जायेंगे |
बाप भी व्यापारी है, जो होशियार होंगे वह अच्छा व्यापार करेंगे | बाप कितना फ़ायदे में ले जाते हैं | झुण्ड इकठ्ठा आये तो बोलो फार्म अलग-अलग भरना है | अगर सब रिलीजस माइन्ड हो तो इकठ्ठा बिठाकर पूछना चाहिए | गीता पढ़ी है? देवताओं को मानते हो? बाबा ने कहा है भक्तों को ही सुनाना है | हमारे भक्त और देवताओं के भक्त वह जल्दी समझेंगे | पत्थर को पारस बनाना कोई मासी का घर नहीं है | देह-अभिमान कड़े ते कड़ी बहुत गन्दी बीमारी है | जब तक देह-अभिमान नहीं टूटा है तब तक सुधरना बड़ा मुश्किल है | इसमें तो पूरा नारायणी नशा चाहिए | हम अशरीरी आये, अशरीरी बनकर जाना है | यहाँ क्या रखा है | बाप ने कहा है मुझे याद करो | इसमें ही मेहनत है, बड़ी मंज़िल है | चलन से मालूम पड़ता है यह अच्छे मददगार बनेंगे कल्प पहले मिसल | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1.
मन्सा, वाचा, कर्मणा पवित्र रहना है | कर्मेन्द्रियों से कोई विकर्म न हो – इसकी सम्भाल करनी है | आत्मा को कंचन बनाने के लिए याद में ज़रूर रहना है |
2.
देह-अभिमान की कड़ी बीमारी से छूटने के लिए नारायणी नशे में रहना है | अभ्यास करो हम अशरीरी आये थे, अब अशरीरी बनकर वापस जाना है |
वरदान:-
सदा उमंग-उत्साह में रह मन में ख़ुशी के गीत गाने वाले अविनाशी खुशनसीब भव!
आप खुशनसीब बच्चे अविनाशी विधि से अविनाशी सिद्धियाँ प्राप्त करते हो | आपके मन से सदा वाह-वाह की ख़ुशी के गीत बजते रहते हैं | वाह बाबा! वाह तक़दीर! वाह मीठा परिवार! वाह श्रेष्ठ संगम का सुहावना समय! हर कर्म वाह-वाह है इसलिए आप अविनाशी ख़ुशनसीब हो | आपके मन में कभी व्हाई, आई (क्यों, मैं) नहीं आ सकता | व्हाई के बजाए वाह-वाह और आई के बजाए बाबा-बाबा शब्द ही आता है |
स्लोगन:-
जो संकल्प करते हो उसे अविनाशी गवर्मेन्ट की स्टैम्प लगा दो तो अटल रहेंगे |
ओम्
शान्ति
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