30-05-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
तुम्हें कर्मातीत बनकर जाना है, इसलिए अन्दर में कोई भी फ्लो
नहीं रहना चाहिए, अपनी जांच कर कमियां निकालते जाओ
| 
प्रश्न:-
किस
अवस्था को जमाने में मेहनत लगती है? उसका पुरुषार्थ क्या है?
उत्तर:-
इन
आँखों से देखने वाली कोई भी चीज़ सामने न आये | देखते भी न देखो
| देह में रहते देही-अभिमानी रहो | यह अवस्था जमाने में टाइम
लगता है | बुद्धि में सिवाए बाप और घर के कोई वस्तु याद न आये,
इसके लिए अन्तर्मुखी हो अपनी जाँच करनी है | अपना चार्ट रखना
है |
ओम्
शान्ति
|
मीठे-मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चे यह तो जानते हैं कि हम अपनी
दैवी राजधानी स्थापन कर रहे हैं, इसमें राजायें भी हैं तो
प्रजा भी हैं | पुरुषार्थ तो सब करते हैं जो जास्ती पुरुषार्थ
करते हैं, वह जास्ती प्राइज़ लेते हैं | यह तो एक कॉमन कायदा है
| यह कोई नई बात नहीं है | इसको दैवी बगीचा कहो वा राजधानी कहो
| अभी यह है कलियुगी बगीचा अथवा काँटों का जंगल | उसमें भी कोई
बहुत फल देने वाले झाड़ होते हैं, कोई कम फल देने वाले होते हैं
| कोई कम रस वाले आम होते, कोई कैसे होते हैं | फूलों के, फलों
के ऐसे भिन्न-भिन्न प्रकार के झाड़ होते हैं | वैसे ही तुम
बच्चों में भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार हैं | कोई बहुत अच्छा
फल देते हैं, कोई हल्का फल देते हैं | भिन्न-भिन्न झाड़ होते
हैं | यह फल देने वाला बगीचा है | इस दैवी झाड़ की स्थापना हो
रही है अथवा फूलों के बगीचे की स्थापना हो रही है कल्प पहले
मिसल | आहिस्ते-आहिस्ते मीठे खुशबूदार भी बन रहे हैं –
नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार | सब वैराइटी हैं ना | बाप के पास
भी आते हैं, बाप का मुखड़ा देखने | यह तो ज़रूर समझते हो बाबा
हमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं | यह बच्चों को निश्चय है ज़रूर
| बेहद का बाबा हमको बेहद का मालिक बना रहे हैं | मालिक बनने
में ख़ुशी भी बहुत होती है | हद के मालिकपने में दुःख है, यह
खेल ही सुख और दुःख का बना हुआ है और यह भी भारतवासियों के लिए
ही है | बच्चों को बाबा कहे पहले अपना घर तो सम्भालो | घर पर
धनी की नज़र रहती है ना | तो बाप भी एक-एक बच्चे को बैठ देखते
हैं – इनमें कौन-कौन से गुण हैं और कौन से अवगुण हैं? बच्चे
ख़ुद भी जानते हैं | बाबा अगर कहे कि बच्चे तुम सब अपनी-अपनी
खामियां आपेही लिखकर आओ तो झट लिख सकते हैं | हम अपने में
क्या-क्या खामी समझते हैं? कोई न कोई खामी है ज़रूर | सम्पूर्ण
तो कोई बने नहीं हैं | हाँ, बनना ज़रूर है | कल्प-कल्प बने हैं,
इसमें कोई संशय नहीं | परन्तु इस समय खामी है | वह बतलाने से
बाबा उस पर ही समझायेंगे | इस समय तो बहुत खामियां हैं | मुख्य
सब खामियां होती ही हैं देह-अभिमान के कारण | वह फिर बहुत
हैरान करती हैं | अवस्था को आगे बढ़ने नहीं देती, इसलिए अब पूरी
रीति पुरुषार्थ करना है | यह शरीर भी अभी छोड़कर जाना है |
दैवीगुण भी यहाँ ही धारण करके जाना है | कर्मातीत अवस्था में
जाने का अर्थ भी तो बाबा समझा रहे हैं | कर्मातीत होकर जाना है
तो कोई भी फ्लो न रहे क्योंकि तुम हीरे बनते हो ना | हमारे में
क्या-क्या फ्लो है! यह तो हर एक जानते हैं क्योंकि तुम चैतन्य
हो | जड़ हीरे में फ्लो होगा तो वह निकाल थोड़ेही सकेंगे | तुम
तो चैतन्य हो | तुम इस फ्लो को निकाल सकते हो | तुम कौड़ी से
हीरे जैसा बनते हो | तुम अपने को अच्छी रीति जानते हो | सर्जन
पूछते हैं कौन-सा फ्लो है, जो तुमको अटकाता है, आगे बढ़ने नहीं
देता है? फ्लोलेस तो पिछाड़ी में बनना है | वह सब अभी निकालना
है | अगर फ्लो नहीं निकलता तो हीरे की वैल्यु कम हो जाती है |
यह भी बड़ा पक्का जौहरी है ना | सारी आयु हीरे ही इन आँखों से
देखे हैं | ऐसा जौहरी कोई होगा नहीं, जिसको इतना हीरों को
परखने का शौक हो | तुम भी हीरे बन रहे हो | जानते हो कोई न कोई
फ्लो है ज़रूर | सम्पूर्ण बने नहीं हैं | चैतन्य होने कारण तुम
पुरुषार्थ से फ्लो निकाल सकते हो | हीरे जैसा तो बनना है ज़रूर
| सो तब बनेंगे जब पूरा पुरुषार्थ करेंगे |
बाप
कहते हैं तुम्हारी अवस्था ऐसी पक्की हो, जो शरीर छूटने समय
अन्त में कोई भी याद न आये | यह तो क्लीयर है | मित्र-सम्बन्धी
आदि सबको भूलना है | सम्बन्ध रखना ही है एक बाप से | अभी तुम
हीरे बन रहे हो | यह जवाहरात की दुकान है | तुम हर एक जौहरी हो
| यह बातें दूसरा कोई भी जानता नहीं | तुम बच्चे जानते हो – हर
एक के दिल में है, हम विश्व के मालिक बन रहे हैं – पुरुषार्थ
अनुसार | जिन्हों को ऊँचा पद मिला है, उन्हों ने ज़रूर
पुरुषार्थ किया है | हैं तो तुम्हारे में से ही ना | तुम
बच्चों को ही इतना पुरुषार्थ करना है इसलिए बाबा एक-एक बच्चे
को देखते रहते हैं | जैसे फूलों को देखा जाता है ना | यह कैसा
खुशबूदार फूल है! यह कैसा है! इनमें बाकी क्या फ्लो है?
क्योंकि तुम चैतन्य हो | चैतन्य हीरे जान सकते हैं ना – हमारे
में क्या-क्या खामी है, जो बाप से बुद्धियोग तुड़ाए कहाँ न कहाँ
भटकाते हैं | बाप तो कहते हैं – बच्चे, मामेकम् याद करो |
दूसरा कोई याद न आये | गृहस्थ व्यवहार में रहते एक बाप को याद
करना है | इन्हों की तो भट्ठी बननी थी, जो तैयार हो निकली
सर्विस के लिए | देखते हैं पुराने-पुराने जो हैं वह अच्छी
सर्विस कर रहे हैं | थोड़े नये भी एड होते जाते हैं | पुरानों
की भट्ठी बननी थी | भल पुराने हैं तो भी खामियां हैं ज़रूर | हर
एक अपने दिल में समझते हैं कि बाबा जो अवस्था बनाने लिए कहते
हैं वह अभी बनी नहीं है | एम ऑब्जेक्ट तो बाप समझाते हैं |
सबसे जास्ती खाद है देह-अभिमान की, तब ही देह की तरफ़ बुद्धि
चली जाती है | देह में होते हुए देही-अभिमानी बनना है | इन
आँखों से देखने वाली चीज़ कोई भी सामने न आये, ऐसी अवस्था जमानी
है | हमारी बुद्धि में सिवाए एक बाप के और शान्तिधाम के, कोई
भी वस्तु याद न आये | कुछ भी साथ नहीं ले जाना है
|
पहले पहले हम नए सम्बंध में आये | अभी
है पुराना सम्बंध | पुराने सम्बंध की
जरा भी याद न आए |
गायन
भी है अन्तकाल......यह अभी की बात है | गीत तो कलियुगी
मनुष्यों ने बनाये हैं | परन्तु वह समझते थोड़ेही हैं | मूल बात
बाबा समझाते हैं एक बाप के सिवाए और कोई याद न आये | एक बाप की
याद से ही तुम्हारे पाप कट जायेंगे और पवित्र हीरे बनेंगे |
कोई-कोई पत्थर तो बहुत वैल्युबुल होते हैं | माणिक भी
वैल्युबुल होते हैं | बाप अपने से भी बच्चों की वैल्यु ऊँच
करते रहते हैं | अपनी जांच करनी होती है, बाप कहते हैं
अन्तर्मुख हो अपने में देखो – हमारे में क्या खामी है? कहाँ तक
देह-अभिमान है? बाबा पुरुषार्थ के लिए भिन्न-भिन्न युक्तियाँ
समझाते रहते हैं | जितना हो सके एक की याद रहे | भल कितने भी
प्यारे हों, खूबसूरत बच्चे बहुत लवली हों, तो भी किसकी याद न
आये | यहाँ की कोई भी चीज़ याद न आये | कोई-कोई बच्चे में बहुत
मोह रहता है | बाप कहते हैं उन सबसे ममत्व मिटाए एक की याद रखो
| एक लवली बाप से ही योग रखना है | उनसे सब कुछ मिल जाता है |
योग से ही तुम लवली बनते हो | लवली आत्मा बनती है | बाप लवली
प्योर है ना | आत्मा को लवली प्योर बनाने के लिए बाप कहते हैं
– बच्चे, जितना मुझे याद करेंगे तुम अथाह लवली बनेंगे | तुम
इतने लवली बनते हो जो तुम देवी-देवताओं की अब तक पूजा हो रही
है | बहुत लवली बनते हो ना | आधाकल्प तुम राज्य करते हो और फिर
आधाकल्प तुम ही पूजे जाते हो | तुम ख़ुद ही पुजारी बन अपने
चित्रों को पूजते हो | तुम हो सबसे लवली बनने वाले, परन्तु जब
लवली बाप को अच्छी रीति याद करेंगे तब ही लवली बनेंगे | सिवाए
एक बाप के और कोई याद न आये | तो अपनी जांच करो कि बाप को बहुत
लव से याद करते हैं? बाप की याद में प्रेम के आंसू आ जाएँ |
बाबा मेरा तो आपके सिवाए दूसरा न कोई | और कोई की याद न आये,
माया के तूफ़ान न आयें | तूफ़ान तो बहुत आते हैं ना | अपने ऊपर
बहुत जाँच रखनी है | हमारा लव बाप के सिवाए और कोई तरफ़ तो नहीं
जाता है? भल कितनी भी प्यारी चीज़ हो, तो भी एक बाप की ही याद
आये | तुम सब एक माशूक के आशिक बनते हो | आशिक-माशूक जो होते
हैं, एक बार एक-दो को देख लिया, बस! शादी आदि भी नहीं करते |
रहते भी अलग हैं | परन्तु एक-दो की याद बुद्धि में रहती है |
अभी तुम जानते हो हम सब आशिक हैं एक माशूक के | उस माशूक को
तुम भक्ति मार्ग में भी बहुत याद करते थे | यहाँ भी तुम्हें
बहुत याद करना है, जबकि वह सम्मुख है | बाप कहते हैं मामेकम्
याद करो तो तुम्हारा बेडा पार हो, इसमें संशय की कोई बात नहीं
है | भगवान् से मिलने के लिए सब भक्ति करते हैं |
यहाँ
कोई-कोई बच्चे तो बहुत हड्डी सर्विस करते हैं | सर्विस के लिए
जैसे एकदम तड़फते हैं | बहुत मेहनत करते हैं | यह भी तुम जानते
हो कि बड़े आदमी इतना नहीं समझ सकेंगे | परन्तु तुम्हारी मेहनत
कोई व्यर्थ नहीं जाती है | कोई समझकर लायक बनते हैं, फिर बाबा
के आगे आते हैं | तुम समझते हो यह लायक है वा नहीं? दृष्टि तो
उन्हों को तुम बच्चों से मिलती है, श्रृंगार करने वाले तुम
बच्चे हो | जो भी यहाँ आये हुए हैं, उन सबको तुम बच्चों ने
श्रंगार कराया है | बाबा ने तुमको कराया है, तुम फिर औरों को
श्रृंगार कराए ले आते हो | बाप आफ़रीन देते हैं, जैसा श्रृंगार
किया है, ऐसा ही औरों को भी कराते हैं | बल्कि अपने से भी औरों
को अच्छा करा सकते हैं | सबकी अपनी-अपनी तक़दीर है ना | कोई-कोई
समझने वाले समझाने वालों से भी तीखे हो जाते हैं | समझते हैं
इनसे हम अच्छा समझा सकते हैं | समझाने का नशा चढ़ता है तो वह
फिर निकल पड़ते हैं | बाप-दादा दोनों की दिल पर चढ़ पड़ते हैं |
बहुत नये-नये हैं, जो पुरानों से भी तीखे हैं |
काँटों से अच्छा फूल बन पड़े हैं इसलिए बाबा एक-एक को बैठ देखते
हैं – इनमें क्या-क्या कमी है? यह कमी इनमें से निकल जाए तो
बहुत अच्छी सर्विस करें | बागवान है ना | दिल होता है – उठकर
पिछाड़ी में भी जाकर देखूँ क्योंकि पिछाड़ी में भी जाकर बैठते
हैं | अच्छे-अच्छे महारथियों को तो फ्रन्ट में बैठना चाहिए |
इसमें किसको धक्का आने की तो बात ही नहीं | अगर धक्का आएगा,
रुठेंगे तो अपनी तक़दीर से रुठेंगे | सामने फूलों को देख-देख
अथाह ख़ुशी होती है | यह बड़ा अच्छा है, इसमें थोडा डिफेक्ट है |
यह बहुत अच्छा साफ है | इनमें अन्दर कोई जंक जमी पड़ी है | तो
वह सारा किचड़ा निकालना है | बाप जैसा लव कोई नहीं करता |
स्त्री का भी पति में लव रहता है ना | पति का इतना नहीं होता |
वह तो दूसरी-तीसरी स्त्री कर लेते हैं | स्त्री का पति गया, बस
– या हुसैन, या हुसैन करती रहती है | पुरुषों के लिए तो एक
जुत्ती गई तो और कर लेंगे | शरीर को जुत्ती कहा जाता है |
शिवबाबा का भी लांग बूट है ना | अब तुम बच्चे समझते हो हम बाबा
को याद करेंगे, फर्स्टक्लास बनेंगे | कोई-कोई फैशनेबुल होते
हैं तो जुत्तियां भी 4-5 रखते हैं | नहीं तो आत्मा की जुत्ती
एक है | पाँव की जुत्ती भी एक होनी चाहिए | परन्तु यह फैशन पड़
गया है |
अभी
तुम समझते हो बाप से हम क्या वर्सा पाते हैं | हम उस पैराडाइज़
के मालिक बन रहे हैं | हेविन को कहा ही जाता है वन्डर ऑफ़
वर्ल्ड | ज़रूर हेविनली गॉड फादर ही हेविन स्थापन करेंगे | अब
तुम प्रैक्टिकल में श्रीमत पर अपने लिए स्वर्ग की स्थापना कर
रहे हो | यहाँ तो कितने बड़े-बड़े महल बनाते हैं | यह सब ख़त्म हो
जायेंगे | तुम वहाँ क्या करेंगे! दिल में आना चाहिए, यहाँ तो
हमारे पास कुछ भी नहीं है | वैसे ही भल बाहर में घर गृहस्थ में
रहते हैं – यह भी समझते हैं, सब कुछ बाबा का है, हमारे पास तो
कुछ भी नहीं, हम ट्रस्टी हैं | ट्रस्टी कुछ नहीं रखते हैं |
बाबा ही मालिक हैं | यह सब कुछ बाबा का है | घर में रहते भी
ऐसे समझो | साहूकारों की बुद्धि में तो यह बातें आ न सकें |
बाबा कहते हैं ट्रस्टी हो रहो | कुछ भी करो बाबा को इशारा देते
रहो | लिखते हैं बाबा मकान बनाऊं? बाबा कहेंगे भले बनाओ |
ट्रस्टी होकर रहो | बाप तो बैठा है ना | बाप जायेंगे तो सब
इकट्ठे जायेंगे अपने घर | फिर तुम चले जायेंगे अपनी राजधानी
में | हमको फिर कल्प-कल्प आना ही है पावन बनाने | अपने समय पर
आता हूँ | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
सभी से ममत्व निकाल एक लवली बाप को याद करना है | अन्तर्मुख हो
अपनी कमियों की जांच कर निकालना है
|
वेल्यूबुल हीरा बनना है |
2.
जैसे बाप ने हम बच्चों को श्रृंगार किया है, ऐसे सबका श्रृंगार
करना है | काँटों को फूल बनाने की सेवा में लग जाना है |
ट्रस्टी होकर रहना है |
वरदान:-
ब्राह्मण जीवन में वैराइटी अनुभूतियों द्वारा रमणीकता का अनुभव
करने वाले सम्पन्न आत्मा भव
!
जीवन
में हर मनुष्य आत्मा की पसन्दी वैराइटी है | तो सारे दिन में
भिन्न-भिन्न सम्बन्ध, भिन्न-भिन्न स्वरूप की वैराइटी अनुभव
करो, तो बहुत रमणीक जीवन का अनुभव करेंगे | ब्राह्मण जीवन
भगवान से सर्व सम्बन्ध अनुभव करने वाली सम्पन्न जीवन है इसलिए
एक भी सम्बन्ध की कमी नहीं करना | अगर कोई छोटा या हल्का आत्मा
का सम्बन्ध मिक्स हो गया तो सर्व शब्द समाप्त हो जायेगा | जहाँ
सर्व है वहाँ ही सम्पन्नता है इसलिए सर्व सम्बन्धों से स्मृति
स्वरूप बनो |
स्लोगन:-
बाप समान
अव्यक्त रूपधारी बन प्रकृति के हर दृश्य को देखो तो हलचल में
नहीं आयेंगे |
ओम्
शान्ति
|