13-09-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - तुम्हारी यह पढ़ाई सोर्स ऑफ इनकम है, इस पढ़ाई से 21 जन्मों के लिए कमाई का प्रबन्ध हो जाता है”   

                            
प्रश्न:-   
मुक्तिधाम में जाना कमाई है या घाटा?


उत्तर:-
भक्तों के लिए यह भी कमाई है क्योंकि आधाकल्प से शान्ति-शान्ति मांगते आये हैं । बहुत मेंहनत के बाद भी शान्ति नहीं मिली । अब बाप द्वारा शान्ति मिलती है अर्थात् मुक्तिधाम में जाते हैं तो यह भी आधाकल्प की मेंहनत का फल हुआ इसलिए इसे भी कमाई कहेंगे, घाटा नहीं । तुम बच्चे तो जीवनमुक्ति में जाने का पुरूषार्थ करते हो । तुम्हारी बुद्धि में अभी सारे वर्ल्ड की हिस्ट्री-जाग्रॉफी नाच रही है ।

 

ओम् शान्ति |

मीठे- मीठे रूहानी बच्चों को रूहानी बाप ने यह तो समझाया है कि रूह ही सब कुछ समझती है । इस समय तुम बच्चों को रूहानी दुनिया में बाप ले जाते हैं । उनको कहा जाता है रूहानी दैवी दुनिया, इसको कहा जाता है जिस्मानी दुनिया, मनुष्यों की दुनिया । बच्चे समझते हैं दैवी दुनिया थी, वह दैवी मनुष्यों की पवित्र दुनिया थी । अभी मनुष्य अपवित्र हैं इसलिए उन देवताओं का गायन पूजन करते हैं । यह स्मृति है कि बरोबर पहले झाड़ में एक ही धर्म होगा । विराट रूप में झाड़ पर भी समझाना है । इस झाड़ का बीजरूप ऊपर में है । झाड़ का बीज है बाप, फिर जैसा बीज वैसा फल अर्थात् पत्ते निकलते हैं । यह भी वन्डर है ना । कितनी छोटी चीज़ कितना फल देती है । कितना उनका रूप बदलता जाता है । इस मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ को कोई नहीं जानता, इसको कहा जाता है कल्प वृक्ष, इसका बस गीता में ही वर्णन है । सब जानते हैं गीता ही नम्बरवन धर्म का शास्त्र है । शास्त्र भी नम्बरवार तो होते हैं ना । कैसे नम्बरवार धर्मों की स्थापना होती है, यह भी सिर्फ तुम ही समझते हो, और कोई में भी यह ज्ञान होता नहीं । तुम्हारी बुद्धि में है पहले-पहले किस धर्म का झाड़ होता है फिर उनमें और धर्मों की वृद्धि कैसे होती है । इसको कहा जाता है विराट नाटक । बच्चों की बुद्धि में सारा झाड़ है । झाड़ की उत्पत्ति कैसे होती है, मुख्य बात है यह । देवी-देवताओं का झाड़ अभी नहीं है और सब टाल-टालियां खड़ी हैं । बाकी आदि सनातन देवी-देवता धर्म का फाउन्डेशन है नहीं । यह भी गायन है-एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना करते हैं, बाकी और सब धर्म विनाश हो जाते हैं । अभी तुम जानते हो कितना छोटा- सा दैवी झाड़ होगा । फिर और सब इतने धर्म होंगे ही नहीं । झाड़ पहले छोटा होता है फिर बड़ा होता जाता है । बढ़ते-बढ़ते अभी कितना बड़ा हो गया है । अभी इनकी आयु पूरी होती है, इनसे बनेन ट्री का मिसाल बहुत अच्छा समझाते हैं । यह भी गीता का ज्ञान है जो बाप तुम्हें सम्मुख बैठ सुनाते हैं, जिससे तुम राजाओं का राजा बनते हो । फिर भक्ति मार्ग में यह गीता शास्त्र आदि बनेंगे । यह अनादि ड्रामा बना हुआ है । फिर भी ऐसे ही होगा । फिर जो-जो धर्म स्थापन होंगे उनका अपना शास्त्र होगा । सिक्ख धर्म का अपना शास्त्र, क्रिस्चियन और बौद्धियों का अपना शास्त्र होगा । अभी तुम्हारी बुद्धि में सारे वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी नाच रही है । बुद्धि ज्ञान डांस कर रही है । तुम सारे झाड़ को जान गये हो । कैसे-कैसे धर्म आते हैं, कैसे वृद्धि को पाते हैं । फिर अपना एक धर्म स्थापन होता है, बाकी खलास हो जाते हैं । गाते हैं ना - ज्ञान सूर्य प्रगटा..... अभी बिल्कुल अन्धियारा है ना । कितने ढेर मनुष्य हैं, फिर यह इतने सब होंगे ही नहीं । इन लक्ष्मी-नारायण के राज्य में यह थे नहीं । फिर एक धर्म स्थापन होना ही है । यह नॉलेज बाप ही आकर सुनाते हैं । तुम बच्चे कमाई के लिए कितनी नॉलेज आकर पढ़ते हो । बाप टीचर बनकर आते हैं तो आधाकल्प तुम्हारी कमाई का प्रबन्ध हो जाता है । तुम बहुत धनवान बन जाते हो । तुम जानते हो अभी हम पढ़ रहे हैं । यह है अविनाशी ज्ञान रत्नों की पढ़ाई । भक्ति को अविनाशी ज्ञान रत्न नहीं कहेंगे । भक्ति में मनुष्य जो कुछ पढ़ते हैं, उनसे घाटा ही होता है | रत्न नहीं बनते । ज्ञान रत्नों का सागर एक बाप को ही कहा जाता है । बाकी वह है भक्ति । उसमें कोई भी एम आब्जेक्ट है नहीं । कमाई है नहीं । कमाई के लिए तो स्कूल में पढ़ते हैं । फिर भक्ति करने के लिए गुरू के पास जाते हैं । कोई जवानी में गुरू करते हैं, कोई बुढ़ापे में गुरू करते हैं । कोई छोटेपन में ही सन्यास ले लेते हैं । कुम्भ के मेले पर कितने ढेर आते हैं । सतयुग में तो यह कुछ भी नहीं होगा । तुम बच्चों की स्मृति में सब बातें आ गई हैं । रचता और रचना के आदि- मध्य- अन्त को तुम जान गये हो । उन्होंने तो कल्प की आयु ही बड़ी कर दी है । ईश्वर सर्वव्यापी कह दिया है । ज्ञान का पता नहीं है । बाप आकर अज्ञान नींद से सुजाग करते हैं । अभी तुमको ज्ञान की धारणा होती जाती है । बैटरी भरती जाती है । ज्ञान से है कमाई, भक्ति से है घाटा । टाइम पर जब घाटे का समय पूरा होता है तो फिर बाप कमाई कराने आते हैं । मुक्ति में जाना - वह भी कमाई है । शान्ति तो सब मांगते रहते हैं । शान्ति देवा कहने से बुद्धि बाप तरफ चली जाती है । कहते हैं - विश्व में शान्ति हो, परन्तु वह कैसे होगी - यह किसको भी पता नहीं है । शान्तिधाम सुखधाम अलग होते हैं - यह भी नहीं जानते हैं । जो पहला नम्बर है, उनको भी कुछ पता नहीं था | अभी तुमको सारी नॉलेज है । तुम जानते हो - हम इस कर्म- क्षेत्र पर कर्म का पार्ट बजाने आये हैं । कहाँ से आये हैं? ब्रह्मलोक से । निराकारी दुनिया से आये हैं इस साकारी दुनिया में पार्ट बजाने । हम आत्मा दूसरी जगह की रहने वाली हैं । यहाँ यह 5 तत्वों का शरीर रहता है । शरीर है तब हम बोल सकते हैं । हम चैतन्य पार्टधारी हैं । अभी तुम ऐसे नहीं कहेंगे कि इस ड्रामा के आदि-मध्य- अन्त को हम नहीं जानते हैं । आगे नहीं जानते थे । अपने बाप को, अपने घर को, अपने रूप को यथार्थ रीति नहीं जानते थे । अभी जानते हैं आत्मा कैसे पार्ट बजाती रहती है । स्मृति आई है । पहले स्मृति नहीं थी ।

तुम जानते हो सच्चा बाप ही सच सुनाते हैं, जिससे हम सचखण्ड के मालिक बन जाते हैं । सच के ऊपर भी सुखमनी में है । सत कहा जाता है - सचखण्ड को । देवतायें सब सच बोलने वाले होते हैं । सच सिखलाने वाला है बाप । उनकी महिमा देखो कितनी है । गाई हुई महिमा तुमको काम में आती है । शिवबाबा की महिमा करते हैं । वही झाड़ के आदि-मध्य- अन्त को जानते हैं । सच बाप सुनाते हैं तो तुम बच्चे सच्चे बन जाते हो । सचखण्ड भी बन जाता है । भारत सचखण्ड था । नम्बरवन ऊंच ते ऊंच तीर्थ भी यह है क्योंकि सर्व की सद्गति करने वाला बाप भारत में ही आते हैं । एक धर्म की स्थापना होती है, बाकी सबका विनाश हो जाता है । बाप ने समझाया है - सूक्ष्मवतन में कुछ है नहीं । यह सब साक्षात्कार होते हैं । भक्ति मार्ग में भी साक्षात्कार होता है । साक्षात्कार नहीं होता तो इतने मन्दिर आदि कैसे बनते! पूजा क्यों होती । साक्षात्कार करते हैं, फील करते हैं यह चैतन्य थे । बाप समझाते हैं - भक्ति मार्ग में जो कुछ मन्दिर आदि बनते हैं, जो तुमने सुना देखा है, वह सब रिपीट होगा । चक्र फिरता ही रहता है । ज्ञान और भक्ति का खेल बना हुआ है । हमेशा कहते हैं ज्ञान, भक्ति, वैराग्य । परन्तु डीटेल कुछ नहीं जानते । बाप बैठ समझाते हैं - ज्ञान है दिन, भक्ति है रात । वैराग्य है रात का । फिर दिन होता है । भक्ति में है दु :ख इसलिए उसका वैराग्य । सुख का तो वैराग्य नहीं कहेंगे । सन्यास आदि भी दु :ख के कारण लेते हैं । समझते हैं पवित्रता में सुख है इसलिए स्त्री को त्याग चले जाते हैं । आजकल तो धनवान भी बन गये हैं क्योंकि सम्पत्ति बिगर तो सुख मिल न सके । माया वार कर जंगल से फिर शहर में ले आती है । विवेकानन्द और रामकृष्ण भी दो बड़े सन्यासी होकर गये हैं । सन्यास की ताकत रामकृष्ण में थी । बाकी भक्ति का समझाना करना, वह विवेकानन्द का था । दोनों की पुस्तके हैं । पुस्तक जब लिखते हैं तो एकाग्रचित हो बैठ लिखते हैं । रामकृष्ण जब अपनी बायोग्राफी बैठ लिखते थे तो शिष्य को भी कहा तुम जाकर दूर बैठो । था बहुत तीखा कड़ा सन्यासी, नाम भी बहुत है । बाप ऐसे नहीं कहते कि स्त्री को माँ कहो । बाप तो कहते हैं उनको भी आत्मा समझो । आत्मायें तो सब भाई- भाई हैं । सन्यासियों की बात अलग है, उसने स्त्री को माँ समझा । माँ की बैठ बड़ाई की है । यह ज्ञान का रास्ता है, वैराग्य की बात अलग है । वैराग्य में आकर स्त्री को माँ समझा । माता अक्षर में क्रिमिनल आई नहीं होगी । बहन में भी क्रिमिनल दृष्टि जा सकती है, माता में कभी खराब ख्याल नहीं जायेंगे । बाप की बच्ची में भी क्रिमिनल दृष्टि जा सकती है, माँ में कभी नहीं जायेगी । सन्यासी स्त्री को माँ समझने लगा । उनके लिए ऐसे नहीं कहते कि दुनिया कैसे चलेगी, पैदाइस कैसे होगी? वह तो एक को वैराग्य आया, माँ कह दिया । उनकी महिमा देखो कितनी है । यहाँ बहन- भाई कहने से भी बहुतों की दृष्टि जाती है इसलिए बाबा कहते हैं - भाई- भाई समझो । यह है ज्ञान की बात । वह है एक की बात, यहाँ तो प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान ढेर भाई-बहन हैं ना । बाप बैठ सब बातें समझाते हैं । यह भी तो शास्त्र आदि पढ़ा हुआ है । वह धर्म ही अलग है निवृत्ति मार्ग का, सिर्फ पुरूषों के लिए है । वह है हद का वैराग्य, तुमको तो सारी बेहद की दुनिया से वैराग्य है । संगम पर ही बाप आकर तुम्हें बेहद की बातें समझाते हैं । अभी इस पुरानी दुनिया से वैराग्य करना है । यह बहुत पतित छी-छी दुनिया है । यहाँ शरीर पावन हो न सके । आत्मा को नया शरीर सतयुग में ही मिल सकता है । भल यहाँ आत्मा पवित्र बनती है, परन्तु शरीर फिर भी अपवित्र रहता है, जब तक कर्मातीत अवस्था हो । सोने में खाद पड़ती है तो जेवर भी खाद वाला बनता है । खाद निकल जाए तो जेवर भी सच्चा बनेगा । इन लक्ष्मी-नारायण की आत्मा और शरीर दोनों सतोप्रधान हैं । तुम्हारी आत्मा और शरीर दोनों ही तमोप्रधान काले हैं । आत्मा काम चिता पर बैठ काली बन गई है । बाप कहते हैं फिर हम आकर सांवरे से गोरा बनाते हैं । यह ज्ञान की सारी बात है । बाकी पानी आदि की बात नहीं । सब काम चिता पर बैठ पतित बन पड़े हैं इसलिए राखी बधवाई जाती है कि पावन बनने की प्रतिज्ञा करो ।

बाप कहते हैं हम आत्माओं से बात करते हैं । मैं आत्माओं का बाप हूँ, जिसको तुम याद करते आये हो - बाबा आओ, हमको सुखधाम में ले चलो । दु :ख हरो, कलियुग में होते हैं अपार दु :ख । बाप समझाते हैं तुम काम चिता पर बैठ काले तमोप्रधान हो गये हो । अब मैं आया हूँ - काम चिता से उतार ज्ञान चिता पर बिठाने के लिए । अब पवित्र बन स्वर्ग में चलना है । बाप को याद करना है । बाप कशिश करते हैं । बाबा के पास युगल आते हैं - एक को कशिश होती है, दूसरे को नहीं होती । पुरूष ने फट से कह दिया - हम इस अन्तिम जन्म में पवित्र रहेंगे, काम चिता पर नहीं चढेंगे । ऐसे नहीं कि निश्चय हो गया । निश्चय अगर होता तो बेहद बाप को पत्र लिखते, कनेक्शन में रहते । सुना है पवित्र रहते हैं, अपने धन्धे आदि में ही मस्त रहते हैं । बाप की याद ही कहाँ है । ऐसे बाप को तो बहुत याद करना चाहिए । स्री-पुरूष का आपस में कितना प्यार होता है, पति को कितना याद करती है । बेहद के बाप को तो सबसे जास्ती याद करना चाहिए । गायन भी है ना - प्यार करो चाहे ठुकराओ, हम हाथ कभी नहीं छोड़ेंगे । ऐसे नहीं, यहाँ आकर रहना है, वह तो फिर सन्यास हो गया । घरबार छोड़ यहाँ आकर रहें । तुमको तो कहा जाता है, गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनो । यह पहले तो भट्ठी बननी थी, जिससे इतने तैयार हो निकले, उनका भी बहुत अच्छा वृतान्त है । जो बाप का बनकर अन्दर (यज्ञ में) रहकर के रूहानी सर्विस नहीं करते वह जाकर दास-दासियां बनते हैं फिर पिछाड़ी में नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार ताज मिल जाता है । उन्हों का भी घराना होता है, प्रजा में नहीं आ सकते । कोई बाहर का आए अन्दर वाला नहीं बन सकता । वल्लभाचारी बाहर वालों को कभी अन्दर आने नहीं देते हैं । यह सब समझने की बातें हैं । ज्ञान है सेकण्ड का, फिर बाप को ज्ञान का सागर क्यों कहा जाता है? समझाते ही रहते हैं पिछाड़ी तक समझाते ही रहेंगे । जब राजधानी स्थापन हो जायेगी तुम कर्मातीत अवस्था में आ जाएंगे फिर ज्ञान पूरा हो जायेगा । है सेकण्ड की बात । परन्तु फिर समझाना पड़ता है । हद के बाप से हद का वर्सा, बेहद का बाप विश्व का मालिक बना देते हैं । तुम सुखधाम में जायेंगे तो बाकी सब शान्तिधाम में चले जाएंगे । वहाँ तो है ही सुख ही सुख । यह तो खातिरी है - बाप आये हैं । हम नई दुनिया के मालिक बन रहे हैं - राजयोग की पढ़ाई से । अच्छा! 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. इस पतित छी-छी दुनिया से बेहद का वैराग्य रख आत्मा को पावन बनाने का पूरा-पूरा पुरूषार्थ करना है । एक बाप की ही कशिश में रहना है ।

2. ज्ञान की धारणा से अपनी बैटरी भरनी है । ज्ञान रत्नों से स्वयं को धनवान बनाना है । अभी कमाई का समय है इसलिए घाटे से बचना है ।

 

वरदान:-

हद की इच्छाओं को छोड़ अच्छा बनने वाले इच्छा मात्रम् अविद्या भव !    

मन में कोई भी हद की इच्छा होगी तो अच्छा बनने नहीं देगी । जैसे धूप में चलते हो तो परछाई आगे जाती है, उसको अगर पकड़ने की कोशिश करो तो पकड़ नहीं सकते, पीठ करके आ जाओ तो परछाई पीछे-पीछे आयेगी । ऐसे ही इच्छा आकर्षित कर रूलाने वाली है, उसे छोड़ दो तो वह पीछे-पीछे आयेगी । मांगने वाला कभी भी सम्पन्न नहीं बन सकता । कोई भी हद की इच्छाओं के पीछे भागना ऐसे है जैसे मृगतृष्णा । इससे सदा बचकर रहो तो इच्छा मात्रम अविद्या बन जायेंगे ।

 

स्लोगन:- 

अपने श्रेष्ठ कर्म वा श्रेष्ठ चलन द्वारा दुआयें जमा कर लो तो पहाड़ जैसी बात भी रुई के समान अनुभव होगी ।   

 

ओम् शान्ति |