28-09-14    प्रातः मुरली   ओम् शान्ति  “अव्यक्त-बापदादा”   रिवाइज:21-12-78   मधुबन
 


हर कल्प की अति समीप आत्माओं का रूप, रेखा और वेला

आज बापदादा अमृतवेले बच्चों से मधुर मिलन मनाते, चारों ओर के बच्चों को देखते हुए आपस में एक विशेष बात पर रूह-रिहान कर रहे थे । किस बात पर? हर बच्चे के दिव्य जन्म की रूप-रेखा वा जन्म की घड़ी अर्थात् वेला को देख रहे थे । हरेक की वेला और रूप रेखाओं के आधार पर वर्तमान संगमयुगी जीवन और भविष्य जीवन का आधार है । रूप में क्या देखा? जन्मते ही शक्ति रूप की झलक रही वा वियोग से योग की रेखा रही अर्थात् तड़प वा प्यास-रूप रहा वा सेवाधारी स्वरूप रहा वा सदा आते ही अतीन्द्रिय सुख में सुख रूप रहा? उसके साथ रेखायें क्या रही? वरदानी की रेखा रही, हिम्मत और हुल्लास की रेखा रही वा जन्मते ही सहयोग के आधार पर चलने की रेखा रही? ऐसे ही वेला को भी देख रहे थे, सेकण्ड में निश्चय बुद्धि रहे, सप्ताह कोर्स के बाद रहे वा और भी अधिक समय के बाद निश्चय बुद्धि बने वा संशय निश्चय की युद्ध चलते-चलते निश्चय बुद्धि बने वा अब भी युद्ध में ही चल रहे हैं? सेकण्ड का निश्चय अर्थात् नजर से निहाल । सेकण्ड नम्बर श्रेष्ठ बोल से निहाल, तीसरा नम्बर सौदागर से सौदे के मुआफिक मूल्य को बार-बार जानने के बाद मरजीवे बने, चौथा नम्बर जरा सा प्राप्ति के, स्नेह के, सम्पर्क के, परिवर्तन के आधार पर अभी संशय अभी निश्चय । तो बापदादा आज हर बच्चे की इन बातों को देखते हुए रूह-रिहान कर रहे थे । इस मरजीवा जीवन में सदा निर्विघ्न वा सदा तीव्र पुरुषार्थी, सदा प्राप्ति द्वारा अनुभवी मूर्त वा पुरूषार्थी जीवन वा चढ़ती कला वा उतरती कला, इस रफ्तार में चलने वाली जीवन - इन तीनों प्रकार की जीवन का आधार रूप, रेखा और वेला पर है ।

जो हर कल्प की अति समीप आत्मायें वा पदमापदम भाग्यशाली आत्मायें हैं उनकी रूप, रेखा और वेला क्या होती है वह जानते हो? ऐसी आत्मायें सेकण्ड में पहुंची और बाप की बनी । कल्प पहले के भाग्य की टचिंग के आधार पर जन्मते ही ऐसे अनुभव करेंगे ब्राह्मण बनना है, नहीं लेकिन ब्राह्मण थे, पहले भी थे और अब भी हैं”', सेकेण्ड में अपना-पन अनुभव होगा । देखा और जाना । ऐसी वेला वाले की रूप-रेखा क्या होती है? पहले नम्बर की वेला जो अभी सुनाई उनका रूप क्या होगा? जन्मते ही सर्व प्रापर्टी के अधिकारी होते हैं, ऐसे हर स्वरूप के अनुभूति का अधिकार अनुभव करेंगे । जैसे बीज में सारे वृक्ष का सार समाया हुआ है ऐसे नम्बर वन अर्थात् बाप समान समीप आत्मायें वा नम्बर वन वेला वाली आत्मायें सर्व स्वरूप की प्राप्ति के खजाने के आते ही अनुभवी होंगे । ऐसे अनुभव करते हैं कि यही स्वरूप निजी स्वरूप है । सुख का अनुभव होता, शान्ति का नहीं वा शान्ति का होता सुख का नहीं, शक्ति का नहीं, यह फर्स्ट नम्बर की वेला का अनुभव नहीं । सेकेण्ड में वर्से के अधिकारी - यह है वेला और स्वरूप ।

अब रेखा क्या होगी? निश्चय बुद्धि बनना वा निश्चय करना है, यह संकल्प मात्र भी नहीं होगा । जन्मते ही नेचुरल निश्चय बुद्धि की रेखा होगी । कैसे वा ऐसे के विस्तार में नहीं जायेंगे, हैं ही इसमें ऐसे और वैसे का प्रश्न नहीं उठता । ऐसे पूरे जीवन के अटूट निश्चय की रेखा अन्य आत्माओं को भी स्पष्ट दिखाई देगी । निश्चय की रेखा की लाइन अखण्ड होगी, बीच-बीच में खण्डित नहीं होगी । ऐसी रेखा वाले के मस्तक में अर्थात् स्मृति में सदा विजय का तिलक नजर आयेगा । ऐसी रेखा वाले, जैसे ब्राह्मणों का भविष्य श्रीकृष्ण रूप में जन्म से ही ताजधारी दिखाया है, ऐसे जन्मते ही सेवा की जिम्मेवारी के ताजधारी होंगे, सदा ज्ञान रत्नों से खेलने वाले होंगे । सदा याद और खुशी के झूले में झूलते हुए जीवन बिताने वाले होंगे । सदा हर कर्म में वरदान का हाथ अपने ऊपर अनुभव करेंगे । हर दिनचर्या में अपने साथ सर्व सम्बन्धों से समीप और साकार रूप में साथ का अनुभव करेंगे । स्वतः योगी और सहज योगी होंगे । यह है नम्बर वन रूप, रेखा और वेला वालों की निशानी । अब अपने आपको चेक करो - पहले नम्बर की रूप, रेखा और वेला वाले कितने होंगे? 8 वा 108? आप सब कहाँ हो? अभी भी चेन्ज कर सकते हो । लास्ट सो फास्ट जा सकता है । अभी भी परिवर्तन की मार्जिन है । अभी टू लेट का बोर्ड नहीं लगा है । गुप्त पुरुषार्थी दिन रात एक दृढ़ संकल्प के पुरुषार्थी हाई जम्प दे सकते हैं इसलिए फिर भी अपने भाग्य को नम्बरवन बनाने के पुरुषार्थ की लाटरी डालो तो नम्बर निकल आयेगा । समझा क्या करना है। लास्ट चान्स ह इसलिए बीती सो बीती करो, भविष्य को श्रेष्ठ बनाओ इसलिए बापदादा फिर भी सबको चान्स दे रहे हैं, फिर उल्हना नहीं देना - हम कर सकते थे लेकिन किया नहीं । समय नहीं मिला, सरकमस्टान्सेज नहीं थे, अभी भी रहमदिल बाप के रहम का हाथ सबके ऊपर है इसलिए अपने ऊपर भी रहमदिल बनो । अच्छा ।

ऐसे सदा बाप के वरदानों के हाथ अपने ऊपर अनुभव करने वाले, सदा अपने ऊपर और सर्व के ऊपर रहमदिल, अटूट अखण्ड निश्चयबुद्धि, अखण्ड योगी, सदा विजय के तिलकधारी, जन्मते ही ताजधारी, ऐसे सदा तख्तनशीन बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते ।

पार्टियों से मुलाकात -

1. निजधाम और निजस्वरूप की मति से उपराम स्थिति:

अपने निज-स्वरूप और निज- धाम की स्थिति सदा याद रहती है? निराकारी दुनिया और निराकारी रूप दोनों की स्मृति इस पुरानी दुनिया में रहते भी सदा न्यारा और प्यारा बना देती है । इस दुनिया के हैं ही नहीं । हैं ही निराकारी दुनिया के निवासी, यहाँ सेवा अर्थ अवतरित हुए हैं - तो जो अवतार होते हैं उन्हों को क्या याद रहता हैं? जिस कार्य अर्थ अवतार लेते हैं वही कार्य याद रहता है ना! अवतार अवतरित होते ही हैं धर्म की स्थापना के लिए - तो आप सभी भी अवतरित अर्थात् अवतार हो तो क्या याद रहता है? यही धर्म स्थापन करने का कार्य । स्वयं धर्म आत्मा बन धर्म स्थापन करने के कार्य में सदा रहने वाले, तो शक्ति अवतार हो ना! हर एक शक्ति, अवतार है । पाण्डव भी शक्तिरूप हैं । एक सर्वशक्तिमान है बाकी सब शक्तियाँ हैं, तो सब शक्ति अवतार हैं - सिर्फ यह भी स्मृति रहे तो कितनी मीठी जीवन का अनुभव करेंगे । हम इस मृत्युलोक के नहीं लेकिन अवतार हैं । सिर्फ यह छोटी सी बात याद रहे तो उपराम हो जायेंगे । अगर अपने को अवतार न समझ गृहस्थी समझते हो तो गहस्थी की गाड़ी कीचड़ में फँसी रहती । गृहस्थी है ही बोझ की स्थिति और अवतार बिल्कुल हल्का । वह फँसा हुआ है वह बिल्कुल न्यारा । कभी अवतार कभी गृहस्थी यह चक्कर अगर चलता रहता तो संगमयुगी श्रेष्ठ जीवन का, सुहावने सुख के जीवन का कभी-कभी अनुभव होगा, सदा नहीं । ऐसे सुख के दिन फिर कभी नहीं आने हैं, एक एक संगम का दिन अति प्रिय है तो ऐसे प्रिय दिन का सुहावना समय कैसे व्यतीत करते हो? अमूल्य रीति से व्यतीत करते हो वा साधारण रीति से? एक-एक सेकेण्ड की वैल्यू होती है - उसको जानते हो? 5000 वर्ष की श्रेष्ठ प्रालब्ध का आधार यह थोड़ी सी घडियाँ हैं, तो ऐसे अमूल्य घड़ियों को अमूल्य रीति से यूज करना चाहिए ना । साधारण रीति से व्यतीत करना अर्थात् रत्न की वैल्यू पत्थर के समान करना । अगर समय को व्यर्थ गँवाते हैं तो रत्न को पत्थर के समान यूज करते हैं । समय का मूल्य रखना अर्थात् अपना मूल्य रखना । समय की पहचान है ही, लेकिन पहचान स्वरूप होकर चलना - यह है अटेंशन की बात । इस संगम का एक सेकेण्ड भी क्या नहीं कर सकता । एक सेकेण्ड में यहाँ से चारों धाम का अनुभव करके आ सकते हो । ऐसे अनुभवी हो? छोटी-छोटी बातों में तो टाइम नहीं चला जाता? अब हाई जम्प लगाओ । अभी धीरे- धीरे चलने का समय समाप्त हुआ । बचपन नाज नखरे से चलने का होता, बचपन का नाज अच्छा भी लगता लेकिन बड़ा होकर नाज़ से चले तो अच्छा लगेगा । तो अब बचपन बीत चुका, वानप्रस्थ तक पहुँच गये । अब यह नाज़ नखरे शोभते नहीं । वानप्रस्थ में सिर्फ एक ही कार्य रह जाता - बाप की याद और सेवा, सोओ तो भी याद और सेवा इसी को कहा जाता है वानप्रस्थ । अभी तक भी अगर बचपन की बातें वा बचपन के संस्कार रह गये हो तो समाप्त करो । बन्धन हैं, क्या करूँ, कैसे करूँ यह सब बचपन के नाज नखरे हैं, अब यह दिन समाप्त हो गये, हैं क्या? त्रिकालदर्शी अपने को नहीं जान सकते जो कहते हो क्या करुँ! अब इसमें टाइम नहीं गँवाना - होना तो चाहिए, चाहते हैं कर नहीं पाते, यह बचपन की बातों का खेल अब समाप्त । इसका ही अब समाप्ति समारोह मनाओ । अच्छा ।

2. ट्रस्टी समझने से पावरफुल स्टेज की अनुभूति:

सभी सदा अपने को ट्रस्टी समझकर चलते हो? ट्रस्टी अर्थात् सदा हल्का, गृहस्थी अर्थात् सदा बोझ वाला । गृहस्थी होंगे तो उतरती कला में जायेंगे, ट्रस्टी होंगे तो चढ़ती कला में जायेंगे । ट्रस्टी सदा बेफिकर बादशाह होते अर्थात् फिकर से फारिग होते हैं, उन्हें रूहानी फूखुर रहता है कि हम मास्टर सर्वशक्तिमान हैं । कैसे भी सरकमस्टान्सेज हो लेकिन स्वयं हल्का रहेगा, स्वयं सदा न्यारा । जरा भी वातावरण के प्रभाव में नहीं आयेंगे । गृहस्थी समझने से क्या, क्यों शुरू हो जाता, ट्रस्टी समझेंगे तो फुलस्टाप आ जाता, फुलस्टाप अर्थात् पावरफुल स्टेज का अनुभव ।

3. अंगद समान स्थिति बनाने के लिए निश्चय का फाउंडेशन मजबूत करो:

सभी अंगद के समान अचल हो? माया के किसी भी प्रकार की हलचल में भी अचल । माया का कोई भी वार स्थिति को हिला न सके । हिलने का कारण क्या होता है? निश्चय का फाउन्डेशन मजबूत न होने के कारण ही हिलते हैं । अगर निश्चय हो कि कल्याणकारी समय है, हर बात में कल्याण है, तो कितने भी तूफान क्यों न आये लेकिन हिला नहीं सकते । अब निश्चय के फाउन्डेशन को तीव्र पुरुषार्थ का पानी देकर मजबूत करो तो सदा अंगद के समान रहेंगे । माया के वार को वार नहीं समझेंगे । अभी हिलने का समय गया, यदि अभी भी हिलते रहे तो लास्ट पेपर में भी हिल जायेंगे तो फिर जन्म-जन्म के लिए फेल हो जायेंगे, इसलिए स्मृति के संस्कार मजबूत करो । सदा याद रखो कि यह अंगद का यादगार हमारा ही यादगार है तो शक्ति आयेगी ।

4. हिम्मत और उल्लास को एकरस बनाने के लिए एकरस स्थिति:

सदा हिम्मत और उल्लास एकरस रहता है? जब एकरस स्थिति होगी तो हिम्मत और उल्लास भी सदा एकरस होगा, नीचे ऊपर नहीं । कभी बहुत, कभी कम उसका कारण क्या है? सर्व प्राप्ति का अनुभव सदा सामने वा स्मृति में नहीं रहता । आज अल्पकाल की प्राप्ति भी हिम्मत और हुल्लास में लाती है तो यह तो सदाकाल की और सर्व प्राप्ति हुई हैं उन सबकी लिस्ट सामने रखो । जब प्राप्ति अटल, अचल है तो हिम्मत और हुल्लास भी अचल होना चाहिए । अचल के बजाए कब मन चंचल हो जाता वा स्थिति चंचलता में आ जाती - यह चंचलता के संस्कार किसमें होते हैं? अब तो विश्व में आप आत्मायें सबसे बुजुर्ग हो, अनुभवी हो फिर चंचलता क्यों? सदा बाप और प्राप्ति को सामने रखने से अचल अर्थात् एकरस बन जायेंगे । सब विघ्न खत्म हो जायेंगे । जन्म से ही विजय का तिलक लगा हुआ है सिर्फ वह मिट न जाये - यह अटेंशन रखना है । सदैव नया उमंग, नया हुल्लास और नया प्लैन होना चाहिए । कोई ऐसे सर्विस के साधन बनाओ जिससे कम खर्चा और सफलता ज्यादा हो । अभी बहुत सेवा की मार्जिन है । उसको पूरा करो, हर प्रोग्राम में विशेषता वा नवीनता जरूर हो । सबको अनुभव कराने का प्लैन बनाओ । अच्छा ।

टीचर्स से-

टीचर्स तो बाप समान हैं ना, जैसे बाप शिक्षक है वैसे आप भी शिक्षक हो तो समानता हो गई ना! तो समान वाले को क्या कहा जाता है? फ्रैण्ड । टीचर भी बापदादा की फ्रैण्डस हैं । यह फ्रैण्डस का सम्बन्ध भी याद रहे तो सहजयोगी हो जायेंगे । फ्रैण्डस का नाता बहुत समीप का नाता है । फ्रैण्डस आपस में जितना स्पष्ट होते हैं उतना माँ-बाप से नहीं होते । फ्रैण्डस का सम्बन्ध याद रहे तो तुम्ही से खाऊँ, तुम्ही से बैठूं, तुम्हीं से खेलू यह अभ्यास सहज हो जायेगा । तो सभी फ्रैण्डस को मुबारक हो । पंजाब और दिल्ली दोनों की टीचर्स हैं, तो दोनों भाई-बहन हो गये, दिल्ली है भाई पंजाब है बहन । पंजाब भी दिल्ली से निकला है ना! अच्छा । ओम् शान्ति !

 

वरदान:-

साक्षी स्थिति में स्थित हो परिस्थितियों के खेल को देखने वाले सन्तोषी आत्मा भव !     

कैसी भी हिलाने वाली परिस्थिति हो लेकिन साक्षी स्थिति में स्थित हो जाओ तो अनुभव करेंगे जैसे पपेट शो (कठपुतली का खेल) है । रीयल नहीं है । अपनी शान में रहते हुए खेल को देखो । संगमयुग का श्रेष्ठ शान है सन्तुष्टमणी बनना वा सन्तोषी होकर रहना । इस शान में रहने वाली आत्मा परेशान नहीं हो सकती । संगमयुग पर बापदादा की विशेष देन सन्तुष्टता है ।

 

स्लोगन:- 

ऐसे खुशनुमः बनो जो मन की खुशी सूरत से स्पष्ट दिखाई दे ।     

 

ओम् शान्ति |