18-07-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - बाप समान अपकारियों पर भी उपकार करना सीखो, निंदक को भी अपना मित्र बनाओ”   

                                                        
प्रश्न:-   
बाप की कौन-सी दृष्टि पक्की है? तुम बच्चों को कौन-सी पक्की करनी है ?


उत्तर:-
बाप की दृष्टि पक्की है कि जो भी आत्मायें हैं सब मेंरे बच्चे हैं इसलिए बच्चे- बच्चे कहते रहते हैं । तुम कभी भी किसी को बच्चे- बच्चे नहीं कह सकते हो । तुम्हें यह दृष्टि पक्की करनी है कि यह आत्मा हमारा भाई है । भाई को देखो, भाई से बात करो, इससे रूहानी प्यार रहेगा । क्रिमिनल ख्यालात खत्म हो जायेंगे । निंदा करने वाला भी मित्र बन जायेगा ।

 

ओम् शान्ति |

रूहानी बाप बैठ समझाते हैं । रूहानी बाप का नाम क्या है? जरूर कहेंगे शिव । वह सबका रूहानी बाप है, उनको ही भगवान् कहा जाता है । तुम बच्चों में भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार समझते हैं । यह जो आकाशवाणी कहते हैं, अब आकाशवाणी किसकी निकलती है? शिवबाबा की । इस मुख को आकाश तत्व कहा जाता है । आकाश के तत्व से वाणी तो सब मनुष्यों की निकलती है । जो भी सब आत्मायें हैं, अपने बाप को भूल गई हैं । अनेक प्रकार के गायन करते रहते हैं । जानते कुछ भी नहीं । गायन भी यहाँ करते हैं । सुख में तो कोई भी बाप को याद नहीं करते । सभी कामनायें वहाँ पूरी हो जाती है । यहाँ तो कामनायें बहुत रहती हैं । बरसात नहीं होती तो यज्ञ रचते हैं । ऐसे नहीं कि सदैव यज्ञ करने से बरसात पड़ती है । नहीं, कहाँ फैमन पड़ता है भल यज्ञ करते हैं, परन्तु यज्ञ करने से कुछ होता नहीं है । यह तो ड्रामा है । आफतें जो आनी हैं वह तो आती ही रहती हैं । कितने ढेर मनुष्य मरते हैं, कितने जानवर आदि मरते रहते हैं । मनुष्य कितने दु :खी होते हैं । क्या बरसात को बंद करने के लिए भी यज्ञ है? जब एकदम मूसलधार बरसात होगी तो यज्ञ करेंगे? इन सब बातों को अभी तुम समझते हो और क्या जानें । 

बाप खुद बैठ समझाते हैं, मनुष्य बाप की महिमा भी करते हैं और गाली भी देते हैं । वन्डर है, बाबा की ग्लानि कब से शुरू हुई? जब से रावण राज्य शुरू हुआ है । मुख्य ग्लानि की है जो ईश्वर को सर्वव्यापी कहा है, इसी से ही गिर पड़े हैं । गायन है निंदा हमारी जो करे मित्र हमारा सो । अब सबसे जास्ती ग्लानि किसने की है? तुम बच्चों ने । अब फिर मित्र भी तुम बनते हो । यूँ तो ग्लानि सारी दुनिया करती है । उनमें भी नम्बरवन तुम हो फिर तुम ही मित्र बनते हो । सबसे नजदीक वाले मित्र हैं बच्चे । बेहद का बाप कहते हैं हमारी निंदा तुम बच्चों ने की है । अपकारी भी तुम बच्चे बनते हो । ड्रामा कैसा बना हुआ है । यह है विचार सागर मंथन करने की बातें । विचार सागर मंथन का कितना अर्थ निकलता है । कोई समझ न सके । बाप कहते हैं कि तुम बच्चे पढ़कर उपकार करते हो । गायन भी है यदा-यदाहि...... भारत की बात है । खेल देखो कैसा है! शिव जयन्ती अथवा शिव रात्रि भी मनाते हैं । वास्तव में अवतार है एक । अवतार को भी ठिक्कर-भित्तर में कह दिया है । बाप उल्हना देते हैं । गीता पाठी श्लोक पढ़ते हैं परन्तु कहते हैं हमको पता नहीं । 

तुम ही प्यारे ते प्यारे बच्चे हो । कोई से भी बात करेंगे तो बच्चे-बच्चे ही कहते रहेंगे । बाप की तो वह दृष्टि पक्की हो गई है । सब आत्मायें हमारे बच्चे हैं । तुम्हारे में से एक भी नहीं होगा जिसके मुख से बच्चा अक्षर निकले । यह तो जानते हैं कोई किस मर्तबे वाला है, क्या है । सब आत्मायें हैं । यह भी ड्रामा बना हुआ है, इसलिए कुछ भी गम-खुशी नहीं होती । सब हमारे बच्चे हैं । कोई ने मेहतर का शरीर धारण किया है, कोई ने फलाने का शरीर धारण किया है । बच्चे-बच्चे कहने की आदत पड़ गई है । बाबा की नजर में सब आत्मायें हैं । उनमें भी गरीब बहुत अच्छे लगते हैं क्योंकि ड्रामा अनुसार उन्होंने बहुत ग्लानि की है । अब फिर मेरे पास आ गये हैं । सिर्फ यह लक्ष्मी-नारायण हैं जिनकी कभी ग्लानि नहीं की जाती । कृष्ण की भी बहुत ग्लानि की है । वन्डर है ना । कृष्ण ही बड़ा बना तो उसकी ग्लानि नहीं है । यह ज्ञान कितना अटपटा है । ऐसी गुह्य बातें कोई समझ थोड़ेही सकते हैं, इसमें चाहिए सोने का बर्तन । वह याद की यात्रा से ही बन सकता है । यहाँ बैठे भी यथार्थ याद थोड़ेही करते हैं । यह नहीं समझते कि हम छोटी आत्मा हैं, याद भी बुद्धि से करना है । यह बुद्धि में आता नहीं है । छोटी सी आत्मा वह हमारा बाप भी है, टीचर भी है, यह बुद्धि में आना भी असम्भव हो जाता है । बाबा-बाबा तो कहते हैं, दु :ख में सिमरण सब करते हैं । भगवानुवाच है ना-दु :ख में सब याद करते हैं, सुख में करे न कोई । दरकार ही नहीं याद करने की । यहाँ तो इतने दु :ख आफतें आदि आती है, याद करते हे  भगवान् रहम करो, कृपा करो । अब भी बच्चे बनते हैं तो भी लिखते हैं-कृपा करो, शक्ति दो, रहम करो । बाबा लिखते हैं शक्ति आपेही योगबल से लो । अपने ऊपर कृपा रहम आपेही करो । अपने को आपेही राजतिलक दो । युक्ति बताता हूँ - कैसे दे सकते हो । टीचर पढ़ने की युक्ति बताते हैं । स्ट्रडेट का काम है पढ़ना, डायरेक्शन पर चलना । टीचर कोई गुरू थोड़ेही है जो कृपा आशीर्वाद करे । जो अच्छे बच्चे होंगे वह दौड़ेंगे । हर एक स्वतन्त्र है, जितना दौड़ी लगानी है वह लगाये । याटू की यात्रा ही दौड़ी है । 

एक-एक आत्मा इन्डिपेन्डेट है । भाई-बहन का भी नाता छुड़ा दिया । भाई- भाई समझो फिर भी क्रिमिनल आई छूटती नहीं है । वह अपना काम करती रहती है । इस समय मनुष्यों के अंग सब क्रिमिनल हैं । किसको लात मारी, घूँसा मारा तो क्रिमिनल अंग हुआ ना । अंग- अंग क्रिमिनल है । वहाँ कोई भी अंग क्रिमिनल नहीं होगा । यहाँ अंग- अंग से क्रिमिनल काम करते रहते हैं । सबसे जास्ती क्रिमिनल अंग कौन सा है? आँखें । विकार की आश पूरी नहीं हुई तो फिर हाथ चलाने लग पड़ते । पहले-पहले है आँखें । तब सूरदास की भी कहानी है । शिवबाबा तो कोई शास्त्र पढ़ा हुआ नहीं है । यह रथ पढ़ा हुआ है । शिवबाबा को तो ज्ञान का सागर कहा जाता है । यह तुम समझते हो कि शिवबाबा कोई पुस्तक नहीं उठाता । मैं तो नॉलेजफुल हूँ, बीजरूप हूँ । यह सृष्टि रूपी झाड़ है, उसका रचयिता है बाप, बीज । बाबा समझाते हैं मेरा निवास स्थान मूलवतन में है । अभी मैं इस शरीर में विराजमान हूँ और कोई कह न सके कि मैं इस मनुष्य सृष्टि का बीजरूप हूँ । मैं परमपिता परमात्मा हूँ, कोई कह नहीं सकेगा । सेन्सीबुल कोई अच्छा हो, उनको कोई कहे ईश्वर सर्वव्यापी है तो झट पूछेगा क्या तुम भी ईश्वर हो? क्या तुम अल्लाह-सांई हो? हो नहीं सकता । परनु इस समय कोई सेन्सीबुल नहीं है । अल्लाह का भी पता नहीं, खुद ही कहते हैं अल्लाह हूँ । वह भी इंग्लिश में कहते हैं ओमनी प्रेजेंट । अर्थ समझे तो कभी नहीं कहें । बच्चे अब जानते हैं शिवबाबा की जयन्ती सो नये विश्व की जयन्ती । उसमें पवित्रता-सुख-शान्ति सब कुछ आ जाता है । शिवजयन्ती सो कृष्ण जयन्ती, सो दशहरा जयन्ती । शिवजयन्ती सो दीपमाला जयन्ती, शिवजयन्ती सो स्वर्ग जयन्ती । सब जयन्तियां आ जाती हैं । यह सब नई बातें बाप बैठ समझाते हैं । शिव जयन्ती सो शिवालय जयन्ती, वैश्यालय मरन्ती । सब नई बातें बाप बैठ समझाते हैं । शिव जयन्ती सो नये विश्व की जयन्ती । चाहते हैं ना विश्व में शान्ति हो । तुम कितना भी अच्छी रीति समझाते हो, जगते ही नहीं । अज्ञान अँधेरे में सोये पड़े है ना । भक्ति करते सीढ़ी नीचे उतरते जाते हैं । बाप कहते हैं मैं आकर सबकी सद्गति करता हूँ । स्वर्ग और नर्क का राज़ तुम बच्चों को बाप समझाते हैं । अखबारें जो तुम्हारी ग्लानि करती हैं उनको लिख देना चाहिए-निंदा हमारी जो करे मित्र हमारा सोय । तुम्हारी भी सद्गति हम जरूर करेंगे, जितनी चाहिए उतनी गाली दो । ईश्वर की ग्लानि करते हैं, हमारी की तो क्या हुआ । तुम्हारी सद्गति हम जरूर करेंगे । नहीं चाहेंगे तो भी नाक से पकड़कर ले जायेंगे । डरने की तो बात नहीं, जो कुछ करते हैं कल्प पहले भी किया है । हम बीके तो सबकी सद्गति करेंगे । अच्छी तरह से समझाना चाहिए । अबलाओं पर अत्याचार तो कल्प पहले भी हुआ था, यह बच्चे भूल जाते हैं । बाप कहते हैं बेहद के बच्चे सब हमारी ग्लानि करते हैं । सबसे प्यारे मित्र बच्चे ही लगते हैं । बच्चे तो फूल होते हैं । बच्चों को माँ-बाप चुम्मन करते हैं, माथे पर चढ़ाते, उनकी सेवा करते हैं । बाबा भी तुम बच्चों की सेवा करते हैं । 

अभी तुमको यह नॉलेज मिली हुई है, जो तुम साथ ले जाते हो । जो नहीं लेते उनका भी ड्रामा में पार्ट है । वही पार्ट बजायेंगे । हिसाब-किताब चुक्तु कर घर चले जाते हैं । स्वर्ग तो देख न सकें । सब थोड़ेही स्वर्ग देखेंगे । यह ड्रामा बना हुआ है । पाप खूब करते हैं, आयेंगे भी देरी से । तमोप्रधान बहुत देरी से आयेंगे । यह राज़ भी बहुत अच्छा समझने का है । अच्छे- अच्छे महारथी बच्चों पर भी ग्रहचारी बैठती है तो झट गुस्सा आ जाता है फिर चिट्ठी भी नहीं लिखते हैं । बाबा भी कहते है कि उनकी मुरली बंद कर दो | ऐसे को बाप का खजाना देने से फायदा ही क्या । फिर कोई की आँख खुले तो कहेंगे भूल हुई । कोई तो परवाह नहीं करते । इतनी गफलत नहीं करनी चाहिए । ऐसे बहुत ढेर हैं, बाप को याद भी नहीं करते हैं, कोई को आप समान भी नहीं बनाते हैं । नहीं तो बाबा को लिखना चाहिए-बाबा, हम हरदम आपको याद करते हैं । कई तो फिर ऐसे हैं जो सबका नाम लिख देते हैं-फलाने को याद देना, यह याद सच्ची थोड़ेही है । झूठ चल न सके । अन्दर दिल खाती रहेगी । बच्चों को प्याइंट तो अच्छी- अच्छी समझाते रहते हैं । दिन-प्रतिदिन बाबा गुह्य बातें समझाते रहते हैं । दुःख के पहाड़ गिरने वाले हैं । सतयुग में दुःख का नाम नहीं । अभी है रावण राज्य । मैसूर का राजा भी रावण आदि बनाकर दशहरा बहुत मनाते हैं । राम को भगवान कहते हैं । राम की सीता चोरी हुई । अब वह तो सर्वशक्तिमान् ठहरा, उसकी चोरी कैसे हो सकती । यह सब है अन्धश्रधा । इस समय हर एक में 5 विकारों की गन्दगी है । फिर भगवान् को सर्वव्यापी कहना यह बहुत बड़ा झूठ है । तब तो बाप कहते हैं- यदा यदाहि..... । मैं आकर सचखण्ड, सच्चा धर्म स्थापन करता हूँ । सचखण्ड सतयुग को, झूठ खण्ड कलयुग को कहा जाता है । अभी बाप झूठ खण्ड को सचखण्ड बनाते हैं । अच्छा! 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात- पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉनिग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. इस गुह्य वा अटपटे ज्ञान को समझने के लिए बुद्धि को याद की यात्रा से सोने का बर्तन बनाना है । याद की रेस करनी है । 

2. बाप के डायरेक्शन पर चलकर, पढ़ाई को ध्यान से पढ़कर अपने ऊपर आपेही कृपा वा आशीर्वाद करनी है, अपने को राजतिलक देना है । निंदक को अपना मित्र समझ उनकी भी सद्गति करनी है ।

 

वरदान:-

सब कुछ बाप हवाले कर कमल पुष्प समान न्यारे प्यारे रहने वाले डबल लाइट भव !   

बाप का बनना अर्थात् सब बोझ बाप को दे देना । डबल लाइट का अर्थ ही है सब कुछ बाप हवाले करना । यह तन भी मेरा नहीं । तो जब तन ही नहीं तो बाकी क्या । आप सबका वायदा ही है तन भी तेरा, मन भी तेरा, धन भी तेरा-जब सब कुछ तेरा कहा तो बोझ किस बात का इसलिए कमल पुष्प का दृष्टान्त स्मृति में रख सदा न्यारे और प्यारे रहो तो डबल लाइट बन जायेंगे ।

 

स्लोगन:- 

रूहानियत से रोब को समाप्त कर, स्वयं को शरीर की स्मृति से गलाने वाले ही सच्चे पाण्डव हैं ।     

 

ओम् शान्ति |