06-11-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे - "अपनी
जांच करो कि कितना समय बाप की स्मृति रहती
है,
क्योंकि स्मृति में
है
ही
फायदा,
विस्मृति में
है
घाटा" 
प्रश्न:-
इस पाप आत्माओं की दुनिया में कौन-सी बात बिल्कुल असम्भव
है
और
क्यों?
उत्तर:-
यहाँ कोई कहे हम पुण्य आत्मा हैं,
यह बिल्कुल असम्भव
है
क्योंकि
दुनिया ही कलियुगी तमोप्रधान
है
।
मनुष्य जिसको पुण्य का काम समझते
हैं
वह
भी पाप हो जाता
है
क्योंकि
हर कर्म विकारों
के
वश हो करते
हैं ।
ओम्
शान्ति |
यह तो बच्चे समझते होंगे हम अभी ब्रह्मा के बच्चे
ब्रह्माकुमार-कुमारियॉ
हैं । फिर बाद में होते हैं-देवी- देवता । यह तो तुम ही समझते
हो,
दूसरा कोई नहीं समझते । तुम जानते हो हम
ब्रह्माकुमार-कुमारियां
बेहद की पढ़ाई
पढ़
रहे
हैं
।
84
जन्मों
की
पढ़ाई
भी
पढ़ते,
सृष्टि चक्र की
पढ़ाई
भी
पढ़ते
। फिर तुमको यह शिक्षा मिलती
है
कि पवित्र बनना
है
।
यहाँ बैठे तुम बच्चे बाप को याद तो जरूर करते हो पावन बनने के
लिए । अपने दिल से पूछो सच- सच हम बाप की याद में बैठे थे या
माया रावण बुद्धि को और तरफ ले गयी । बाप ने कहा
है
मामेकम
याद करो तो पाप कटे । अब अपने से पूछना
है
हम बाबा की याद
में
रहे या बुद्धि कहाँ चली गई?
स्मृति रहनी चाहिए-कितना समय हम बाबा की
याद में रहे? कितना समय हमारी
बुद्धि कहॉ-कहाँ गई? अपनी अवस्था को
देखो । जितना टाइम बाप को याद
करेंगे,
उससे ही पावन बनेंगे । जमा और ना का भी
पोतामेल
रखना
है
।
आदत होगी तो याद भी रहेगा । लिखते
रहेंगे
।
डायरी तो सबके पॉकेट
में
रहती ही
है
।
जो भी व्यापार वाले होते हैं,
उन्हों
की
है
हद की डायरी । तुम्हारी
है
बेहद की डायरी । तो तुमको अपना चार्ट नोट करना
है
।
बाप का फरमान
है-
धन्धा आदि सब कुछ करो परन्तु कुछ समय निकाल
मेरे
को याद करो । अपने पोतामेल
को देख फायदा बढ़ाते जाओ । घाटा न डालो । तुम्हारी युद्ध तो
है
ना 1
सेकण्ड
में
फायदा,
सेकण्ड
में
घाटा । झट मालूम
पड़ता
है,
हमने फायदा किया या घाटा?
तुम व्यापारी हो ना । कोई विरला यह व्यापार
करे । स्मृति से
है
फायदा,
विस्मृति से
है
घाटा । यह अपनी जांच करनी
है,
जिनको ऊंच पद पाना
है
उनको तो ओना रहता
है-देखे,
हम कितना समय विस्मृति
में
रहे?
यह तो तुम बच्चे जानते हो हम सब आत्माओं
का बाप पतित-पावन
है
।
हम असुल आत्मायें
हैं । अपने घर से यहाँ आये हैं,
यह शरीर लेकर पार्ट बजाते हैं । शरीर
विनाशी
है,
आत्मा अविनाशी
है
।
संस्कार
भी आत्मा में रहते
हैं
।
बाबा पूछते
हैं-हे
आत्मा याद करो,
इस जन्म के छोटेपन
में
कोई उल्टा काम तो
नहीं
किया
है?
याद करो । 3 - 4
वर्ष से लेकर याद तो रहती
है,
हमने छोटेपन में कैसे बिताया
है,
क्या-क्या किया
है?
कोई भी बात दिल अन्दर खाती तो
नहीं
है?
याद करो । सतयुग
में
पाप कर्म होते ही
नहीं
तो पूछने की बात
नहीं
रहती । यहाँ तो पाप होते ही हैं । मनुष्य जिसको पुण्य का काम
समझते हैं वह भी पाप ही
है
।
यह
है
ही पाप
आत्माओं
की दुनिया । तुम्हारी लेन-देन भी
हैं
पाप
आत्माओं
से । पुण्य आत्मा यहाँ
हैं
ही
नहीं
।
पुण्य
आत्माओं
की दुनिया
में
फिर एक भी पाप आत्मा
नहीं
।
पाप
आत्माओं
की दुनिया में एक भी पुण्य आत्मा
नहीं
हो सकती । जिन गुरुओं के चरणों में गिरते हैं वह भी कोई पुण्य
आत्मा नहीं
है
।
यह तो
है
ही कलियुग सो भी तमोप्रधान । तो इसमें
कोई पुण्य आत्मा होना ही असम्भव
है
।
पुण्य आत्मा बनने लिए ही बाप को बुलाते
हैं
कि आकर हमको पावन आत्मा बनाओ । ऐसे नहीं,
कोई बहुत दान-पुण्य आदि करते हैं,
धर्मशाला आदि बनाते हैं तो वह कोई पुण्य
आत्मा
हैं
।
नहीं,
शादियों आदि के लिए हाल आदि बनाते हैं यह
कोई पुण्य
थोड़ेही
है
।
यह समझने की बातें
हैं । यह
है
रावण राज्य,
पाप आत्माओं की आसुरी दुनिया । इन बातों
को सिवाए तुम्हारे और कोई
नहीं
जानते । रावण भल
है
परन्तु उनको पहचानते थोड़ेही हैं । शिव का चित्र भी
है
परन्तु पहचानते
नहीं
हैं
।
बड़े-बड़े शिवलिंग आदि बनाते हैं,
फिर भी कह देते नाम-रूप से न्यारा
है,
सर्वव्यापी
है
इसलिए बाप ने कहा
है
यदा यदाहि भारत
में
ही शिवबाबा की ग्लानि होती
है
।
जो बाप तुमको विश्व का मालिक बनाते
हैं,
तुम मनुष्य मत पर चल उनकी कितनी ग्लानि
करते हो । मनुष्य मत और ईश्वरीय मत का किताब भी
है
ना । यह तो तुम ही जानते हो और समझाते हो हम श्रीमत पर देवता
बनते
हैं
।
रावण मत पर फिर आसुरी मनुष्य बन जाते हैं । मनुष्य मत को आसुरी
मत कहा जायेगा । आसुरी कर्तव्य ही करते रहते हैं । मूल बात
ईश्वर को सर्वव्यापी कह देते । कच्छ अवतार,
मच्छ अवतार....
तो कितने आसुरी छी-छी बन गये
हैं
।
तुम्हारी आत्मा कच्छ-मच्छ अवतार
नहीं
लेती,
मनुष्य तन में ही आती
है
।
अभी तुम समझते हो हम कोई कच्छ-मच्छ थोड़ेही बनते हैं,
84 लाख योनी थोड़ेही लेते
हैं
।
अभी तुमको बाप की श्रीमत मिलती
है
- बच्चे,
तुम 84 जन्म लेते हो । 84 और 84 लाख का
क्या परसेन्टेज कहेंगे! झूठ तो पूरा झूठ,
सच की रत्ती
नहीं
।
इनका भी अर्थ समझना चाहिए । भारत का हाल देखो क्या
है
।
भारत सचखण्ड था,
जिसको हेविन ही कहा जाता था । आधाकल्प
है
राम राज्य,
आधाकल्प
है
रावण राज्य । रावण राज्य को आसुरी सम्प्रदाय
कहेंगे
।
कितना कड़ा अक्षर
है
।
आधा कल्प देवताओं का राज्य चलता
है
।
बाप ने समझाया
है
लक्ष्मी-नारायण दी फर्स्ट,
दी सेकण्ड, दी
थर्ड कहा जाता
है
।
जैसे एडवर्ड फर्स्ट सेकण्ड होता
है
ना । पहली
पीढ़ी,
फिर दूसरी
पीढ़ी
ऐसे चलती
है
।
तुम्हारा भी पहले होता
है
सूर्यवंशी
राज्य फिर चन्द्रवंशी
।
बाप ने आकर
ड्रामा
का राज भी अच्छी रीति समझाया
है
।
तुम्हारे
शास्त्रों में
यह बातें नहीं थी । कोई-कोई
शास्त्रों में
थोड़ी लकीरें
लगाई हुई
है
परन्तु उस समय
जिन्होंने
पुस्तक बनाये
हैं
उन्होंने
कुछ समझा
नहीं
है
।
बाबा भी जब बनारस गये थे उस समय यह दुनिया अच्छी नहीं लगती थी,
वहाँ सारी दीवारों
पर लकीर बैठ लगाते थे । बाप यह सब कराते थे परन्तु हम तो उस
समय बच्चे थे ना । पूरा समझ
में
नहीं
आता था । बस कोई
है
जो हमसे यह कराता
है
।
विनाश देखा तो अन्दर में खुशी भी थी । रात को सोते थे तो भी
जैसे उड़ते रहते थे परन्तु कुछ समझ में नहीं आता था । ऐसे- ऐसे
लकीर
खींचते
रहते थे । कोई ताकत
है
जिसने प्रवेश किया
है
।
हम वन्डर खाते थे । पहले तो धन्धा आदि करते थे फिर क्या हुआ,
कोई को देखते थे और झट ध्यान
में
चले जाते थे । कहता था यह क्या होता
है
जिसको देखता हूँ उनकी
आँखें
बन्द हो जाती है । पूछते थे क्या देखा तो कहते थे वैकुण्ठ देखा,
कृष्ण देखा । यह भी सब समझने की बातें हुई
ना इसलिए सब कुछ
छोड़कर
बनारस चले गये समझने लिए । सारा दिन बैठा रहता था । पेंसिल और
दीवार और कोई धन्धा ही नहीं । बेबी थे ना । तो ऐसे-ऐसे जब देखा
तो समझा अब यह कुछ करना
नहीं
हैं
।
धन्धा आदि
छोड़ना
पड़ेगा
। खुशी थी यह गदाई छोड़नी
है
।
रावण राज्य
है
ना । रावण पर गधे का शीश दिखाते हैं ना,
तो ख्याल हुआ यह
राजाई
नहीं,
गदाई
है
।
गधा घड़ी-घड़ी मिट्टी में
लथेड़
कर धोबी के कपड़े सब खराब कर देता
है
।
बाप भी कहते हैं तुम क्या थे,
अब तुम्हारी क्या अवस्था हो गई
है
।
यह बाप ही बैठ समझाते
हैं
और यह दादा भी समझाते हैं । दोनों
का चलता रहता
है
।
ज्ञान
में
जो अच्छी रीति समझाते
हैं
वह तीखे
कहेंगे
।
नम्बरवार तो
है
ना । तुम बच्चे भी समझाते हो,
यह राजधानी स्थापन हो रही
है
।
जरूर नम्बरवार पद पायेंगे
।
आत्मा ही अपना पार्ट कल्प-कल्प बजाती
है
।
सब एक समान ज्ञान
नहीं
उठायेंगे
।
यह स्थापना ही वन्डरफुल
है
।
दूसरे कोई स्थापना का ज्ञान थोड़ेही देते हैं । समझो सिक्ख
धर्म की स्थापना हुई । शुद्ध आत्मा ने प्रवेश किया,
कुछ समय के बाद
सिक्ख
धर्म की स्थापना हुई । उन्हों का हेड कौन?
गुरुनानक । उसने आकर जप साहेब बनाया । पहले
तो नई आत्मायें
ही
होंगी क्योंकि
पवित्र आत्मा होती
है
।
पवित्र को महान् आत्मा कहते हैं । सुप्रीम तो एक बाप को कहा
जाता
है
।
वह भी धर्म स्थापना करते
हैं
तो महान्
कहेंगे
।
परन्तु नम्बरवार पीछे-पीछे आते हैं । 500
वर्ष पहले एक आत्मा आई,
आकर सिक्ख
धर्म स्थापन किया,
उस समय
ग्रन्थ
कहाँ से आयेगा । जरूर सुखमनी जप साहेब आदि बाद
में
बनाये
होंगे
ना! क्या शिक्षा देते
हैं
।
उमंग
आता
है
तो बाप की बैठ महिमा करते हैं । बाकी यह पुस्तक आदि तो बाद
में
बनते हैं । जब बहुत हो । पढ़ने वाले भी चाहिए ना । सबके शास्त्र
पीछे बने होंगे । जब भक्ति मार्ग शुरू हो तब
शास्त्र
पढ़े । ज्ञान चाहिए ना । पहले सतोप्रधान होंगे फिर सता,
रजो, तमो में
आते हैं । जब बहुत वृद्धि हो तब महिमा हो और शास्त्र आदि बनें
।
नहीं
तो वृद्धि कौन करे । फालोअर्स बने ना । सिक्ख
धर्म की आत्मायें आवे जो आकर फालो करें । उसमें
बहुत टाइम चाहिए ।
नई आत्मा जो आती
हैं
उनको दुःख तो हो
नहीं
सकता । लॉ नहीं कहता । आत्मा सतोप्रधान से सतो,
रजो, तमो में
आवे तब दु :ख हो । लॉ भी
है
ना! यहाँ
हैं
मिक्सअप,
रावण
सम्प्रदाय
भी
है
तो राम
सम्प्रदाय
भी
हैं
।
अभी तो सम्पूर्ण बने नहीं हैं । सम्पूर्ण
बनेंगे
तो फिर शरीर
छोड़
देंगे
।
कर्मातीत अवस्था वाले को कोई दु .ख हो न सके । वह इस छी-छी
दुनिया
में
रह
नहीं
सकते । वह चले जायेंगे
बाकी जो
रहेंगे
वह कर्मातीत नहीं बने
होंगे
।
सब तो एक साथ कर्मातीत हो
नहीं
सकते । भल विनाश होता
है
तो भी कुछ
बचेंगे
।
प्रलय
नहीं
होती । गाते भी हैं राम गयी रावण गयो रावण का बहुत परिवार था ।
हमारा परिवार तो
थोड़ा
है
।
वह कितने ढेर धर्म
हैं
।
वास्तव
में
सबसे
बड़ा
हमारा परिवार होना चाहिए क्योंकि देवी-देवता धर्म सबसे पहला
है
।
अभी तो सब मिक्सअप हुए हैं तो क्रिश्चियन बहुत बन गये हैं ।
जहाँ मनुष्य सुख देखते
हैं,
पोजीशन देखते हैं तो उस धर्म के बन जाते
हैं । जब-जब पोप आता
हैं
तो बहुत
क्रिस्चियन
बनते हैं । फिर वृद्धि भी बहुत होती
है
।
सतयुग में तो
है
ही एक बच्चा,
एक बच्ची । और कोई धर्म की ऐसे वृद्धि नहीं
होती । अभी देखो सबसे
क्रिस्चियन
तीखे
हैं
।
जो बहुत बच्चे पैदा करते
हैं
उनको इनाम मिलता
है
क्योंकि उन्हों को तो मनुष्य चाहिए ना । जो मिलेट्री लश्कर काम
में
आयेगा ।
हैं
तो सब
क्रिस्चियन
।
रशिया,
अमेरिका
सब क्रिश्चियन
है,
एक कहानी
है
दो बन्दर लड़े माखन बिल्ला खा गया । यह भी ड्रामा बना हुआ
है
।
आगे तो हिन्दू,
मुसलमान इकट्ठे रहते थे । जब अलग हुए तब
पाकिस्तान की नई
राजाई
खड़ी हो गई । यह भी
ड्रामा
बना हुआ
है
।
दो
लड़ेंगे
तो बारूद
लेंगे,
धन्धा होगा ।
ऊँच
ते
ऊँच
उन्हों
का यह धन्धा
है
।
परन्तु
ड्रामा में
विजय की भावी तुम्हारी
है
।
100
परसेन्ट सरटेन
है,
तुम्हें कोई भी जीत
नहीं
सकते । बाकी सब खत्म हो जायेंगे
।
तुम जानते हो नई दुनिया में हमारा राज्य होगा,
जिसके लिए ही तुम
पढ़ते
हो । लायक बनते हो । तुम लायक थे अब न लायक बन
पड़े
हो फिर लायक बनना
है
।
गाते भी हैं पतित-पावन आओ । परन्तु अर्थ
थोड़ेही
समझते हैं । यह
है
ही सारा जंगल । अब बाप आये
हैं,
आकर कांटो के जंगल को गॉर्डन ऑफ फ्लावर
बनाते हैं । वह
है
डीटी वर्ल्ड । यह
है
डेविल वर्ल्ड । सारी मनुष्य सृष्टि का राज समझाया
है
।
तुम अभी समझते हो हम अपने धर्म को भूल धर्म भ्रष्ट हो गये
हैं
।
तो सब कर्म विकर्म ही होते
हैं
।
कर्म,
विकर्म, अकर्म
की गति बाबा तुमको समझाकर गये थे । तुम समझते हो बरोबर कल हम
ऐसे थे फिर आज हम यह बनते हैं । नजदीक
हैं
ना । बाबा कहते
हैं
कल तुमको देवता बनाया था । राज्य- भाग्य दिया था फिर सब कहाँ
किया?
तुमको स्मृति आई
है-
भक्तिमार्ग में हमने कितना धन गँवाया
है
।
कल की बात
है
ना । बाप तो आकर हथेली पर बहिश्त देते
हैं
।
यह ज्ञान बुद्धि
में
रहना चाहिए । बाबा ने यह भी समझाया
है
यह
आँखें
कितना धोखा देती हैं,
क्रिमिनल आई को ज्ञान से सिविल बनाना
है ।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1.
अपनी
बेहद की डायरी में चार्ट नोट करना
है
कि
हमने याद में रहकर कितना फायदा बढ़ाया?
घाटा तो
नहीं
पड़ा?
याद के समय बुद्धि कहाँ-कहाँ गई?
2.
इस जन्म
में
छोटेपन से हमसे कौन-कौन से उल्टे कर्म अथवा पाप हुए
हैं,
वह नोट करना
है
।
जिस बात में दिल खाती
है
उसे
बाप को सुनाकर हल्का हो जाना
है
। अब
कोई भी पाप का काम नहीं करना
है
|
वरदान:-
मन-बुद्धि द्वारा श्रेष्ठ स्थितियों रूपी आसन पर स्थित रहने
वाले तपस्वीमूर्त
भव
! 
तपस्वी सदा कोई न कोई आसन पर बैठकर तपस्या करते हैं । आप
तपस्वी आत्माओं का आसन
है
- एकरस स्थिति,
फरिश्ता स्थिति
इन्हीं
श्रेष्ठ स्थितियों
में स्थित होना अर्थात् आसन पर बैठना । स्थूल आसन पर तो स्थूल
शरीर बैठता
है
लेकिन आप इस श्रेष्ठ आसन पर मन बुद्धि को बिठाते हो । वे
तपस्वी एक टांग पर
खड़े
हो जाते और आप एकरस स्थिति
में
एकाग्र हो जाते हो । उन्हों का
है
हठयोग और आपका
है
सहजयोग ।
स्लोगन:-
प्यार
के सागर बाप के बच्चे प्रेम की भरपूर गंगा बनकर रहो
| 
ओम्
शान्ति |