20-01-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
यहाँ तुम वनवाह में हो, अच्छा-अच्छा पहनना, खाना....यह शौक तुम
बच्चों में नहीं होना चाहिए, पढ़ाई और कैरेक्टर पर पूरा-पूरा
ध्यान दो
|
प्रश्न:-
ज्ञान रत्नों से सदा भरपूर रहने का साधन क्या है?
उत्तर:-
दान
| जितना-जितना दूसरों को दान करेंगे उतना स्वयं भरपूर रहेंगे |
सयाने वह जो सुनकर धारण करे और फिर दूसरों को दान करे | बुद्धि
रूपी झोली में अगर छेद होगा तो बह जायेगा, धारणा नहीं होगी
इसलिए कायदे अनुसार पढ़ाई पढ़नी है | 5 विकारों से दूर रहना है |
रूप-बसन्त बनना है |
ओम्
शान्ति
|
रूहानी बाप रूहानी बच्चों को समझाते हैं | रूहानी बाप भी
कर्मेन्द्रियों से बोलते हैं, रूहानी बच्चे भी कर्मेन्द्रियों
से सुनते हैं | दुनिया में कोई मनुष्य ऐसे कह न सके | तुम्हारे
में भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार समझाते हैं | जैसे टीचर
पढ़ाते हैं तो स्टूडेन्ट का रजिस्टर शो करता है | रजिस्टर से
उनकी पढ़ाई और चलन का पता पड़ जाता है | मूल है ही पढ़ाई और
कैरेक्टर, यह है ईश्वरीय पढ़ाई जो कोई पढ़ा न सके | रचता और रचना
के आदि-मध्य-अन्त की, सृष्टि चक्र की नॉलेज है, यह कोई भी
मनुष्य सारी दुनिया में नहीं जानते | ऋषि मुनि जो इतने पढ़े
लिखे अथॉरिटी हैं, वह प्राचीन ऋषि मुनि खुद कहते थे कि हम रचता
और रचना को नहीं जानते | बाप ने ही आकर पहचान दी है | गाया भी
जाता है – यह है काँटों का जंगल | जंगल को आग ज़रूर लगती है |
फूलों के बगीचे को कभी आग नहीं लगती क्योंकि जंगल सारा सूखा
हुआ है | बगीचा हरा होता है | बगीचा भी स्थापन हुआ था |
तुम्हारा बगीचा अब गुप्त स्थापन हो रहा है | तुम जानते हो हम
बगीचे के फूल खुशबूदार देवता बन रहे हैं, उसका नाम है ही
स्वर्ग | अब स्वर्ग स्थापन हो रहा है | वन्डर है, तुम कितना भी
लोगों को समझाते हो परन्तु किसकी बुद्धि में बैठता नहीं है, जो
इस धर्म के नहीं होंगे उनकी बुद्धि में बैठेगा भी नहीं | एक
कान से सुनेंगे दूसरे से निकाल देंगे | सतयुग त्रेता में
भारतवासी कितने थोड़े होंगे | फिर द्वापर कलियुग में कितनी
वृद्धि हो जाती है | वहाँ एक दो बच्चे यहाँ 4-5 बच्चे तो ज़रूर
वृद्धि हो गई | भारतवासी ही अब हिन्दू कहलाते हैं | वास्तव में
देवता धर्म के थे और कोई भी धर्म वाला अपने धर्म को नहीं भूलता
| यह भारतवासी ही भूले हुए हैं | देखो इस समय कितने ढेर मनुष्य
हैं | इतने सब तो ज्ञान आकर नहीं लेंगे | हर एक अपने जन्मों को
भी समझ सकते हैं | जिसने पूरे 84 जन्म लिए होंगे, वह ज़रूर
पुराने भक्त होंगे | तुम समझ सकते हो कि हमने कितनी भक्ति की
है | थोड़ी की होगी तो ज्ञान भी थोड़ा ही उठायेंगे और थोड़ों को
समझायेंगे | बहुत भक्ति की होगी तो ज्ञान भी बहुत उठायेंगे और
बहुतों को समझायेंगे | ज्ञान नहीं उठाते तो समझा भी कम सकते,
इसलिए उन्हें फल भी थोड़ा मिलता है | हिसाब है ना | बाप को एक
बच्चे ने हिसाब निकाल भेजा तो इस्लामियों के इतने जन्म,
बौद्धियों के इतने जन्म होने चाहिए | बुद्धि भी धर्म स्थापक है
| उनके पहले कोई बुद्ध धर्म का था नहीं | बुद्ध की सोल ने
प्रवेश किया | उसने बुद्ध धर्म स्थापन किया | फिर एक से वृद्धि
होती है | वह भी एक प्रजापिता है | एक से कितनी वृद्धि होती है
| तुमको तो राजा बनना है – नई दुनिया में | यहाँ तो वनवाह में
हो | किसी चीज़ का शौक नहीं रहना चाहिए | हम अच्छे कपडे आदि
पहनें, यह भी देह-अभिमान है | यहाँ तो वनवाह अच्छा | यह दुनिया
ही थोड़ा समय है | यहाँ अच्छा कपड़ा पहना, वहाँ फिर कम हो जायेगा
| यह शौक भी छोड़ना है | आगे चलकर तुम बच्चों को आपेही
साक्षात्कार होते रहेंगे | तुम खुद कहेंगे यह तो बहुत सर्विस
करते हैं, कमाल है | यह ज़रूर ऊँच नम्बर लेंगे | फिर आप समान
बनाते रहेंगे | दिन प्रतिदिन बगीचा तो बड़ा होने का है | जितने
देवी-देवता सतयुग के वा त्रेता के हैं, वह सब गुप्त यहाँ ही
बैठे हैं फिर प्रत्यक्ष हो जायेंगे | अभी तुम गुप्त पद पा रहे
हो | तुम जानते हो हम पढ़ रहे हैं – मृत्युलोक में, पद अमरलोक
में पायेंगे | ऐसी पढ़ाई कभी देखी | यह वन्डर है | पढ़ना पुरानी
दुनिया में, पद पाना नई दुनिया में | पढ़ाने वाला भी वही है जो
अमरलोक की स्थापना और मृत्युलोक का विनाश कराने वाला है |
तुम्हारा यह पुरुषोत्तम संगमयुग बहुत छोटा है, इनमें ही बाप
आते हैं – पढ़ाने के लिए | आने से ही पढ़ाई शुरू हो जाती है | तब
बाप कहते हैं लिखो – शिव जयन्ती सो गीता जयन्ती | इनको मनुष्य
नहीं जानते | उन्होंने कृष्ण का नाम रख दिया है | अब यह भूल जब
कोई समझे | कितने बड़े-बड़े आदमी म्यूज़ियम में आते हैं, ऐसे नही
कि वह बाप को जानते हैं, कुछ नहीं,
इसलिए बाबा कहते हैं फार्म भराओ तो पता लगे कि कुछ सीखा है |
बाकी यहाँ आकर क्या करेंगे | जैसे साधू सन्त महात्मा के पास
जाते हैं, यहाँ वह बात नहीं | इनका तो वही साधारण रूप है |
ड्रेस में भी कुछ फ़र्क नहीं इसलिए कोई समझ नहीं सकते हैं |
समझते हैं यह तो जौहरी था | पहले था विनाशी रत्नों का जौहरी |
अभी बने हैं अविनाशी रत्नों का जौहरी | तुम सौदा भी बेहद बाप
से करते हो | जो बड़ा सौदागर, जादूगर, रत्नागर है | तो हर एक
अपने को समझे कि हम रूप बसन्त हैं | हमारे अन्दर ज्ञान रत्न
लाखों रूपये के हैं | इन ज्ञान रत्नों से तुम पारसबुद्धि बन
जाते हो | यह भी समझने की बातें हैं | कोई अच्छे सयाने हैं जो
इन बातों को धारण करते हैं | अगर धारणा नहीं होती तो कोई काम
के नहीं | समझो उसकी झोली में छेद है, बह जाता है | बाप कहते
हैं मैं तुमको अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान देता हूँ | अगर तुम
दान देते रहेंगे तो भरतू रहेंगे | नहीं तो कुछ भी नहीं, खाली
हैं | पढ़ते नहीं, कायदे अनुसार चलते नहीं | इसमें सब्जेक्ट बड़ी
अच्छी हैं | 5 विकारों से तुमको बिल्कुल दूर जाना है |
बाप ने समझाया है यह जो राखी बन्धन मनाते हैं वह भी इस समय का
है | परन्तु मनुष्य अर्थ नहीं जानते तो राखी क्यों बाँधी जाती
है | वो तो अपवित्र होते रहते राखी बाँधते रहते | आगे ब्राह्मण
लोग बाँधते थे | अब बहनें भाई को बाँधती हैं – खर्ची के लिए |
वहाँ पवित्रता की बात नहीं | बड़ी फैशन वाली राखियाँ बनाते हैं
| यह दीवाली दशहरा सब संगम के हैं | जो बाप ने एक्ट की है वह
फिर भक्ति मार्ग में चलती है | बाप तुमको सच्ची गीता सुनाए यह
लक्ष्मी-नारायण बनाते हैं | अभी तुम फर्स्ट ग्रेड में जाते हो
| सत्य नारायण की कथा सुनकर तुम नर से नारायण बनते हो | अब तुम
बच्चों को सारी दुनिया को जगाना है | कितनी योग की ताकत चाहिए
| योग की ताकत से ही तुम कल्प-कल्प स्वर्ग की स्थापना करते हो
| योगबल से होती है स्थापना, बाहुबल से होता है विनाश | अक्षर
ही दो हैं – अल्फ और बे | योगबल से तुम विश्व के मालिक बनते हो
| तुम्हारा ज्ञान बिल्कुल ही गुप्त है | तुम जो सतोप्रधान थे,
वह अब तमोप्रधान बने हो | फिर सतोप्रधान बनना है | हर एक चीज़
नई से पुरानी ज़रूर होती है | नई दुनिया में क्या नहीं होगा |
पुरानी दुनिया में तो कुछ भी नहीं है | जैसे खोखा | कहाँ भारत
स्वर्ग था, कहाँ भारत अब नर्क है | रात दिन का फ़र्क है | रावण
का बुत बनाकर जलाते हैं, परन्तु अर्थ नहीं जानते | तुम अब
समझते हो यह क्या-क्या कर रहे हैं | तुम्हारे में भी कल अज्ञान
था, आज ज्ञान है | कल नर्क में थे, आज स्वर्ग में जा रहे हो –
रीयल | ऐसे नहीं जैसे दुनिया वाले लोग कहते हैं स्वर्गवासी हुआ
| तुम अब स्वर्ग में जायेंगे तो फिर नर्क होगा ही नहीं | कितनी
समझने की बात है | है भी सेकेण्ड की बात | बाप को याद करो तो
विकर्म विनाश होंगे | यह सबको बताते रहो | बोलो, तुम इन
(लक्ष्मी-नारायण) जैसे थे फिर 84 जन्म लेकर यह बने हो |
सतोप्रधान से तमोप्रधान बने हो फिर सतोप्रधान बनना है | आत्मा
तो विनाश नहीं होती | बाकी उनको तमोप्रधान से सतोप्रधान फिर
बनना ही पड़े | बाबा किसम-किसम से समझाते रहते हैं | मेरी बैटरी
कभी पुरानी नहीं होती | बाबा सिर्फ़ कहते हैं अपने को बिन्दू
आत्मा समझो | कहते हैं इनकी आत्मा निकल गई | तो आत्मा
संस्कारों अनुसार एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है | अब आत्माओं को
घर जाना है | यह भी ड्रामा है | सृष्टि चक्र रिपीट होता ही
रहता है | पिछाड़ी में हिसाब निकाल कहते हैं दुनिया में इतने
मनुष्य हैं | ऐसे क्यों नहीं कहते इतनी आत्मायें हैं | बाप
कहते हैं बच्चे मुझे कितना भूल गये हैं | फिर सबका मुझे ही
कल्याण करना है, तब तो बाप को पुकारते हैं | तुम बाप को भूल
जाते हो, बाप बच्चों को नहीं भूलते | बाप आते हैं पतितों को
पावन बनाने | यह है गऊमुख | बाकी बैल आदि की बात नहीं | यह
भाग्यशाली रथ है | बाबा तुम बच्चों को कहते हैं शिवबाबा हमको
श्रृंगारते हैं | यह पक्का याद रहे | शिवबाबा को याद करने से
बहुत फ़ायदा है | बाबा हमें इनके द्वारा (ब्रह्मा द्वारा) पढ़ाते
हैं, तो इनको नहीं याद करना है | सतगुरु एक शिवबाबा है, उस पर
तुम्हें बलिहार जाना है | यह भी उन पर बलिहार गया ना | बाप
कहते हैं मामेकम् याद करो | बच्चे जाते हैं सतयुगी फूलों की
दुनिया में, फिर काँटों में मोह क्यों होना चाहिए | 63 जन्म तो
भक्ति मार्ग के शास्त्र पढ़ते पूजा करते आये हो | तुमने पूजा भी
पहले शिवबाबा की की है, तब तो सोमनाथ का मन्दिर बनाया है |
मन्दिर तो सभी राजाओं के घर में थे, कितने हीरे जवाहर थे |
पीछे आकर चढ़ाई की | एक मन्दिर से कितना सोना आदि ले गये | तुम
ऐसे धनवान विश्व के मालिक बनते हो | यह धनवान थे, विश्व के
मालिक थे परन्तु इनके राज्य को कितना समय हो गया है, कोई को
पता नहीं है | बाप कहते हैं 5 हज़ार वर्ष हुए | 2500 वर्ष राज्य
किया, बाकी 2500 वर्ष में इतने मठ पंथ आदि वृद्धि को पाते हैं
|
तुम बच्चों को बहुत ख़ुशी होनी चाहिए कि हमको बेहद का बाप पढ़ाते
हैं | अथाह मिलकियत मिलती है | दिखाते हैं सागर से देवता निकले
रत्नों की थालियाँ भरकर आये | अब तुमको ज्ञान रत्नों की
थालियाँ भर भरकर मिलती हैं | बाप तो ज्ञान का सागर है | कोई
अच्छी थाली भरते हैं, कोई की बह जाती है | जो अच्छी रीति
पढ़ेंगे, पढ़ायेंगे वह ज़रूर अच्छा धनवान बनेंगे | राजधानी स्थापन
हो रही है | यह ड्रामा में नूँध है | जो अच्छी रीति पढ़ते हैं
उनको ही स्कॉलरशिप मिलती है | यह है ईश्वरीय स्कॉलरशिप,
अविनाशी | वह है विनाशी | सीढी बड़ी वन्डरफुल है | 84 जन्मों की
कहानी है ना | बाप कहते हैं सीढी की इतनी बड़ी ट्रांसलाइट बनाओ
जो दूर से बिल्कुल साफ दिखाई दे | मनुष्य देखकर वन्डर खायेंगे
| फिर तुम्हारा नाम भी बाला होता जायेगा | अभी जो फेरी पहनकर
(चक्र लगाकर) जाते हैं वह पिछाड़ी में आयेंगे | दो चार बार फेरी
पहनी, तक़दीर में होगा तो जम जायेंगे | शमा तो एक ही है, कहाँ
जायेंगे | बच्चों को बहुत मीठा बनना है | मीठा तब बनेंगे जब
योग में रहेंगे | योग से ही कशिश होगी | जब तक कट (जंक) नहीं
निकली होगी तो किसको कशिश भी नहीं होगी | यह सीढ़ी का राज़ सब
आत्माओं को बताना है | धीरे-धीरे नम्बरवार सब जानते जायेंगे |
यह है ड्रामा | वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती रहती
है | जिसने यह समझाया, उसको याद करना चाहिए ना | बाप को ओमनी
प्रेजन्ट कहते हैं लेकिन वहाँ तो ओमनी प्रेजन्ट है माया, यहाँ
है बाप क्योंकि सेकेण्ड में आ सकता है | तुमको समझना चाहिए कि
बाबा इसमें बैठा ही है | करन-करावनहार है ना | करता भी है,
कराता भी है, बच्चों को डायरेक्शन देते हैं | खुद भी करते रहते
हैं | क्या कर सकते हैं, क्या नहीं कर सकते हैं – इस शरीर में,
वह हिसाब करो | बाबा खाते नहीं वासना लेते हैं | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
रूप-बसन्त बन अपनी बुद्धि रूपी झोली अविनाशी ज्ञान रत्नों से
सदा भरपूर रखनी है | बुद्धि रूपी झोली में कोई छेद न हो |
ज्ञान रत्न धारण कर दूसरों को दान करना है |
2.
स्कॉलरशिप लेने के लिए पढ़ाई अच्छी तरह पढ़नी है | पूरा वनवाह
में रहना है | किसी भी प्रकार का शौक नहीं रखना है | खुशबूदार
फूल बनकर दूसरों को बनाना है |
वरदान:-
पवित्रता की शक्तिशाली दृष्टि वृत्ति द्वारा सर्व प्राप्तियाँ
कराने वाले दुःख हर्ता सुख कर्ता भव
!
साइन्स की दवाई में अल्पकाल की शक्ति है जो दुःख दर्द को
समाप्त कर लेती है लेकिन पवित्रता की शक्ति अर्थात् साइलेन्स
की शक्ति में तो दुआ की शक्ति है | यह पवित्रता की शक्तिशाली
दृष्टि वा वृत्ति सदाकाल की प्राप्ति कराने वाली है इसलिए आपके
जड़ चित्रों के सामने ओ दयालू, दया करो कहकर दया वा दुआ मांगते
हैं | तो जब चैतन्य में ऐसे मास्टर दुःख हर्ता सुख कर्ता बन
दया की है तब तो भक्ति मार्ग में पूजे जाते हो |
स्लोगन:-
समय की
समीपता प्रमाण सच्ची तपस्या वा साधना है ही बेहद का वैराग्य
|
ओम् शान्ति
|