27-11-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - तुम यह राजयोग की पढ़ाई पढ़ते हो राजाई के लिए, यह हैं तुम्हारी नई पढ़ाई”   


प्रश्न:-   
इस पढ़ाई में कई बच्चे चलते-चलते फेल क्यों हो जाते हैं?


उत्तर:-

क्योंकि इस पढ़ाई में माया के साथ बॉक्सिंग है । माया की बॉक्सिंग में बुद्धि को बहुत कड़ी चोट लग जाती है । चोट लगने का कारण बाप से सच्चे नहीं है । सच्चे बच्चे सदा सेफ रहते हैं ।

 

ओम् शान्ति |

यह तो सब बच्चों को निश्चय होगा कि हम आत्माओं को परमात्मा बाप पढ़ाते हैं । 5 हजार वर्ष बाद एक ही बार बेहद का बाप आकर बेहद के बच्चों को पढ़ाते हैं । कोई नया आदमी यह बातें सुने तो समझ न सके । रूहानी बाप, रूहानी बच्चे क्या होते हैं, यह भी समझ नहीं सकेंगे । तुम बच्चे जानते हो हम सभी ब्रदर्स हैं । वह हमारा बाप भी है, टीचर भी है, सुप्रीम गुरू भी है । तुम बच्चों को यह जरूर ऑटोमेटिकली याद रहेगा, यहाँ बैठे समझते होंगे-सभी आत्माओं का एक ही रूहानी बाप है । सभी आत्मायें उसको ही याद करती हैं । कोई भी धर्म का हो । सभी मनुष्य मात्र याद जरूर करते हैं । बाप ने समझाया है आत्मा तो सबमें है ना । अब बाप कहते हैं - देह के सब धर्म छोड़ अपने को आत्मा समझो । अभी तुम आत्मा यहाँ पार्ट बजा रही हो । कैसा पार्ट बजाती हो, वह भी समझाया गया है । बच्चे भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार ही समझते हैं । तुम राजयोगी हो ना । पढ़ने वाले सब योगी ही होते हैं । पढ़ाने वाले टीचर के साथ योग जरूर रखना पड़ता है । एम आब्जेवट का भी मालूम रहता है-इस पढ़ाई से हम फलाना बनेंगे । यह पढ़ाई तो एक ही है, इनको कहा जाता है राजाओं का राजा बनने की पढ़ाई । राजयोग है ना । राजाई प्राप्त करने के लिए बाप से योग । और कोई मनुष्य यह राजयोग कभी सिखला न सके । तुमको कोई मनुष्य नहीं सिखलाते हैं । परमात्मा तुम आत्माओं को सिखलाते हैं । तुम फिर औरों को सिखलाते हो । तुम भी अपने को आत्मा समझो । हम आत्माओं को बाप सिखलाते हैं । यह याद न रहने से जौहर नहीं भरता है, इसलिए बहुतों की बुद्धि में नहीं बैठता है । तो बाप हमेशा कहते हैं, योगयुक्त हो, याद की यात्रा में रहकर समझाओ । हम भाई- भाई को सिखलाते हैं । तुम भी आत्मा हो, वह सबका बाप, टीचर, गुरू है । आत्मा को देखना है । भल गायन है सेकण्ड में जीवनमुक्ति परन्तु इसमें मेहनत बहुत है । आत्म- अभिमानी न बनने से तुम्हारे वचनों में ताकत नहीं रहती है क्योंकि जिस प्रकार बाप समझाते हैं उस रीति कोई समझाते नहीं है । कोई-कोई तो बहुत अच्छा समझाते हैं । कौन कांटा है और कौन फूल है-मालूम तो सब पड़ता है, स्कूल में बच्चे 5 - 6 दर्जा पढ़कर फिर ट्रान्सफर होते हैं । अच्छे- अच्छे बच्चे जब ट्रान्सफर होते हैं तो दूसरे क्लास के टीचर को भी झट मालूम पड़ता है । यह बच्चे तीखे पुरुषार्थी हैं, इन्होंने अच्छा पढ़ा हुआ है तब ऊंच नम्बर में आये हैं । टीचर तो जरूर समझते होंगे ना । वह है लौकिक पढ़ाई, यहाँ तो वह बात नहीं । यह है पारलौकिक पढ़ाई । यहाँ तो ऐसे नहीं कहेंगे । यह पहले बहुत अच्छा पढ़कर आये हैं तब अच्छा पढ़ते हैं । नहीं । उस इम्तहान में तो ट्रान्सफर होते हैं तो टीचर समझेंगे इसने पढ़ाई में मेहनत की है, तब आगे नम्बर लिया है । यहाँ तो है ही नई पढ़ाई, जो पहले से कोई पढ़े हुए नहीं हैं । नई पढ़ाई है, नया पढ़ाने वाला है । सब नये हैं । नयो को पढ़ाते हैं । उनमें जो अच्छी रीति पढ़ते हैं तो कहेंगे यह अच्छे पुरूषार्थी हैं । यह है नई दुनिया के लिए नई नॉलेज और कोई पढ़ाने वाला तो है नहीं । जितना-जितना जो अटेंशन देते हैं उतना ऊँच नम्बर में जाते हैं । कोई तो बहुत मीठे आज्ञाकारी होते हैं । देखने से ही पता पड़ता है, यह पढ़ाने वाला बहुत अच्छा है, इनमें कोई अवगुण नहीं है । चलन से, बात करने से मालूम पड़ जाता है । बाबा पूछते भी सबसे हैं-यह कैसा पढ़ाते हैं, इनमें कोई खामी तो नहीं है । ऐसे बहुत कहते हैं कि हमारे पूछे बिगर समाचार कभी नहीं देना । कोई अच्छा पढ़ाते हैं, कोई शुरूड बुद्धि नहीं होते हैं । माया का वार बहुत होता है । यह बाप जानते हैं, माया इन्हों को धोखा बहुत देती है । भल 10 वर्ष भी पढ़ाया है परन्तु माया ऐसी जबरदस्त है-देह- अहंकार आया और यह फँसा । बाप समझाते हैं जो भी पहलवान हैं, उन पर माया की चोट लगती है । माया भी बलवान से बलवान होकर लड़ती है ।

तुम समझते होंगे बाबा ने जिसमें प्रवेश किया है यह नम्बरवन है । फिर नम्बरवार तो बहुत हैं ना । बाबा मिसाल करके एक- दो का देते हैं । होते तो नम्बरवार बहुत हैं । जैसे देहली में गीता बच्ची बहुत होशियार है । है बच्ची बड़ी मीठी । बाबा हमेशा कहते हैं गीता तो सच्ची गीता है । मनुष्य वह गीता पढ़ते हैं परन्तु यह नहीं समझते हैं कि भगवान ने कैसे राजयोग सिखाकर राजाओं का राजा बनाया था । बरोबर सतयुग था तो एक ही धर्म था, कल की बात है । बाप कहते हैं कल तुमको इतना साहूकार बनाकर गया । तुम पदमापदम भाग्यशाली थे, अब तुम क्या बन गये हो । तुम फील करते हो ना । उन गीता सुनाने वालों से कोई को फीलिंग आती है क्या, जरा भी नहीं समझते । ऊंच ते ऊंच श्रीमत भगवत गीता ही गाई जाती है । वह तो गीता किताब बैठ पढ़ते वा सुनाते हैं । बाप तो किताब नहीं पढ़ते । फर्क तो है ना । उनकी याद की यात्रा तो है ही नहीं । वह तो नीचे गिरते ही रहते हैं । सर्वव्यापी के ज्ञान से सब देखो कैसे बन गये हैं । तुम जानते हो कल्प-कल्प ऐसे ही होगा । बाप कहते हैं तुमको सिखलाकर विषय सागर से पार कर देते हैं । कितना फर्क है । शास्त्र पढ़ना तो भक्ति मार्ग हुआ ना । बाप कहते हैं यह पढ़ने से मेरे से कोई नहीं मिलते । वह समझते हैं कोई भी तरफ जाओ पहुँचना तो सबको एक ही जगह है । कभी कहते हैं भगवान किस न किस रूप में आकर पढ़ायेंगे । जब बाप को आकर पढ़ाना है तो फिर तुम क्या पढ़ाते हो? बाप समझाते हैं गीता में आटे में नमक मिसल कोई राइट अक्षर हैं, जिसमें तुम पकड़ सकते हो । सतयुग में तो कोई भी शास्त्र आदि होते ही नहीं । यह है ही भक्ति मार्ग के शास्त्र । ऐसे नहीं कहेंगे कि यह अनादि है । शुरू से चले आते हैं । नहीं । अनादि का अर्थ नहीं समझते । बाप समझाते हैं यह तो ड्रामा अनादि बरोबर है । तुमको बाप राजयोग सिखलाते हैं | बाप कहते हैं अभी तुमको सिखलाता हूँ फिर गुम हो जाता हूँ । तुम कहेंगे हमारा राज्य अनादि था । राज्य वही है सिर्फ पावन से बदल पतित होने से नाम बदल जाता है । देवता के बदले हिन्दू कहलाते हैं । हैं तो आदि सनातन देवी-देवता धर्म के ना । जैसे दूसरे सतोप्रधान से सतो, रजो, तमो में आते हैं, तुम भी ऐसे उतरते हो । रजो में आते हो तो अपवित्रता के कारण देवता के बदले हिन्दू कहलाते हो । नहीं तो हिन्दू हिन्दुस्तान का नाम है । तुम असुल में तो देवी-देवता थे ना । देवतायें सदैव पावन होते हैं । अभी तो मनुष्य पतित बन गये हैं । तो नाम भी हिन्दू रख दिया है । पूछो हिन्दू धर्म कब, किसने रचा? तो बता नहीं सकेंगे । आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, जिसको पैराडाइज आदि बहुत अच्छे- अच्छे नाम देते हैं । जो पास्ट हुआ है वह फिर रिपीट होना है । इस समय तुम शुरू से लेकर अन्त तक सब जानते हो । जानते जायेंगे तो जीते रहेंगे । कई तो मर भी जाते हैं । बाप का बनते हैं तो माया की युद्ध चलती है । युद्ध होने से ट्रेटर बन पड़ते हैं । रावण के थे, राम के बने । फिर रावण, राम के बच्चों पर जीत पहन अपनी तरफ ले जाता है । कोई बीमार हो पड़ते हैं । फिर न वहाँ के रहते, न यहाँ के रहते । न खुशी है, न रंज । बीच में पड़े रहते हैं । तुम्हारे पास भी बहुत हैं जो बीच में हैं । बाप का भी पूरा नहीं बनते हैं, रावण का भी पूरा नहीं बनते । अभी तुम हो पुरूषोत्तम संगमयुग पर । उत्तम पुरूष बनने के लिए पुरूषार्थ कर रहे हो । यह बड़ी समझने की बातें हैं । बाबा पूछते हैं हाथ तो बहुत बच्चे उठाते हैं । परन्तु समझा जाता है-बुद्धि नहीं है । भल बाबा कहते हैं शुभ बोलो । कहते तो सब हैं-हम नर से नारायण बनेंगे । कथा ही नर से नारायण बनने की है । अज्ञान काल में भी सत्य नारायण की कथा सुनते हैं ना । वहाँ तो कोई पूछ नहीं सकते । यह तो बाप ही पूछते हैं । तुम क्या समझते हो-इतनी हिम्मत है? तुम्हें पावन भी जरूर बनना है । कोई आते हैं तो पूछा जाता है इस जन्म में कोई पाप कर्म तो नहीं किये हैं? जन्म-जन्मान्तर के पापी तो हो ही । इस जन्म के पाप बता दो तो हल्के हो जायेंगे । नहीं तो दिल अन्दर खाता रहेगा । सच बतलाने से हल्के होंगे । कई बच्चे सच नहीं बताते हैं तो माया एकदम जोर से घूँसा लगा देती है । तुम्हारी बड़ी कड़ी बॉक्सिंग है । उस बाक्सिंग में तो शरीर को चोट लगती है, इसमें बुद्धि को बहुत चोट लगती है । यह बाबा भी जानते हैं । यह ब्रह्मा कहते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त का हूँ । सबसे पावन था, अभी सबसे पतित हूँ । फिर पावन बनता हूँ । ऐसे तो नहीं कहता हूँ कि मैं महात्मा हूँ । बाप भी खातिरी देते हैं, यह सबसे जास्ती पतित हैं । बाप कहते हैं मैं पराये देश, पराये शरीर में आता हूँ । इनके बहुत जन्मों के अन्त में मैं इनमें प्रवेश करता हूँ, जिसने पूरे 84 जन्म लिये हैं । अब यह भी पावन बनने का पुरूषार्थ करते हैं, खबरदार भी बहुत रहना होता है । बाप तो जानते हैं ना । यह बाबा का बच्चा बहुत नजदीक है । यह तो बाप से जुदा कभी हो नहीं सकता । ख्याल भी नहीं आ सकता कि छोड़कर जाऊं । एकदम हमारे बाजू में बैठा है । मेरा तो बाबा है ना । मेरे घर में बैठा हैं । बाबा जानते हैं हँसी कुड़ी भी करते हैं । बाबा आज हमको स्नान तो कराओ, भोजन तो खिलाओ । मैं छोटा बच्चा हूँ, बहुत प्रकार से बाबा को याद करता हूँ । तुम बच्चों को समझाता हूँ- ऐसे-ऐसे याद करो । बाबा आप तो बहुत मीठे हो । एकदम हमको विश्व का मालिक बना देते हो । यह बात और किसकी बुद्धि में हो न सके । बाप सबको रिफ्रेश करते रहते हैं । सब पुरूषार्थ तो करते हैं, परन्तु चलन भी ऐसी हो ना । भूल हो जाए तो झट लिखना चाहिए -बाबा, हमसे यह भूल हो जाती है । कोई-कोई लिखते भी हैं-बाबा हमसे यह भूल हुई माफ करना । हमारा बच्चा बनकर फिर भूल करने से सौ गुना वृद्धि हो जाती है । माया से हारते हैं तो फिर वही के वही बन जाते हैं । बहुत हारते हैं । यह बड़ी बॉक्सिंग है । राम और रावण की लड़ाई है । दिखाते भी हैं बन्दर सेना ली । यह सब बच्चों का खेल बना हुआ है । जैसे छोटे बच्चे बेसमझ होते हैं ना । बाप भी कहते हैं यह तो इन्हों की पाई-पैसे की बुद्धि है । कहते हैं हर एक ईश्वर का रूप है । तो हर एक ईश्वर बन क्रियेट भी करते हैं, पालना करते हैं फिर विनाश भी कर देते । अब ईश्वर कोई का विनाश थोड़ेही करते हैं । यह तो कितनी अज्ञानता है इसलिए कहा जाता है गुडियों की पूजा करते रहते हैं । वन्डर है । मनुष्यों की बुद्धि क्या हो जाती है । कितना खर्चा करते हैं । बाप उल्हना देते हैं - हम तुमको इतना बड़ा बनाकर गया, तुमने क्या किया! तुम भी जानते हो हम सो देवता थे फिर चक्र लगाते हैं, अभी हम ब्राह्मण बने हैं । फिर हम सो देवता..... बनेंगे । यह तो बुद्धि में बैठा हुआ है ना । यहाँ बैठते हो तो बुद्धि में यह नॉलेज रहनी चाहिए । बाप भी नॉलेजफुल है ना । रहते भल शान्तिधाम में हैं फिर भी उनको नॉलेजफुल कहा जाता है । तुम्हारी भी आत्मा में सारी नॉलेज रहती है ना । कहते हैं इस ज्ञान से तो हमारी आंख खुल गई है । बाप तुमको ज्ञान के चक्षु देते हैं । आत्मा को सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त का पता पड़ गया है । चक्र फिरता रहता है । ब्राह्मणों को ही स्वदर्शन चक्र मिलता है । देवताओं को पढ़ाने वाला कोई होता नहीं । उनको शिक्षा की दरकार नहीं । पढ़ना तो तुमको है जो फिर तुम देवता बनते हो । अब बाप बैठ यह नई-नई बातें समझाते हैं । यह नई पढ़ाई पढ़कर तुम ऊँच बनते हो । फर्स्ट सो लास्ट । लास्ट सो फर्स्ट । यह पढ़ाई है ना । अभी तुम समझते हो बाबा हर कल्प आकर पतित से पावन बनाते हैं, फिर यह नॉलेज खलास हो जायेगी । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. बहुत-बहुत आज्ञाकारी, मीठा होकर चलना है । देह- अहंकार में नहीं आना है । बाप का बच्चा बनकर फिर कोई भी भूल नहीं करनी है । माया की बॉक्सिंग में बहुत-बहुत खबरदार रहना है । 

2. अपने वचनों (वाक्यों) में ताकत भरने के लिए आत्म- अभिमानी रहने का अभ्यास करना है । स्मृति रहे-बाप का सिखलाया हुआ हम सुना रहे हैं तो उसमें जौहर भरेगा ।

 

वरदान:-

सदा अलर्ट रह सर्व की आशाओं को पूर्ण करने वाले मास्टर मुक्ति-जीवनमुक्ति दाता भव !   

अब सभी बच्चों में यह शुभ संकल्प इमर्ज होना चाहिए कि सर्व की आशाओं को पूर्ण करें । सबकी इच्छा है कि जन्म-मरण से मुक्त हो जायें, तो उसका अनुभव कराओ । इसके लिए अपने शक्तिशाली सतोप्रधान वायब्रेशन से प्रकृति और मनुष्यात्माओं की वृत्तियों को चेंज करो । मास्टर दाता बन हर आत्मा की आशाओं को पूर्ण करो । मुक्ति, जीवनमुक्ति का दान दो । यह जिम्मेवारी की स्मृति आपको सदा अलर्ट बना देगी ।

 

स्लोगन:- 

मुरलीधर की मुरली पर देह की भी सुध-बुध भूलने वाले ही सच्चे गोप गोपियां हैं ।   

 

ओम् शान्ति |