13-03-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
अविनाशी ज्ञान-रत्न तुम्हें राव (राजा) बनाते हैं, यह बेहद का
स्कूल है, तुम्हें पढ़ना और पढ़ाना है, ज्ञान-रत्नों से झोली
भरनी है
| 
प्रश्न:-
कौन-से बच्चे सभी को प्यारे लगते हैं? ऊँच पद के लिये किस
पुरुषार्थ की ज़रूरत है?
उत्तर:-
जो
बच्चे अपनी झोली भरकर बहुतों को दान करते हैं वह सभी को प्यारे
लगते हैं | ऊँच पद के लिये बहुतों की आशीर्वाद चाहिये | इसमें
धन की बात नहीं लेकिन ज्ञान धन से अनेकों का कल्याण करते रहो |
ख़ुशमिज़ाज़ और योगी बच्चे ही बाप का नाम निकालते हैं |
ओम्
शान्ति
|
रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं | बच्चे जानते हैं
हमको अब वापिस जाना है, आगे बिल्कुल नहीं जानते थे | बाप
बच्चों को समझाते हैं, इनका समझाना भी ड्रामानुसार अब राइट
देखने में आता है | और कोई समझा न सके | अब हमको वापिस जाना है
| अपवित्र कोई वापिस जा न सके | यह ज्ञान भी इस समय ही मिलता
है और एक बाप ही देते हैं | पहले तो यह याद करना है कि हमको
वापिस जाना है | बाबा को बुलाते हैं मालूम कुछ भी नहीं था |
अचानक जब समय आया तो बाबा आ गया | अब नई-नई बातें समझाते रहते
हैं | बच्चे जानते हैं अब हमको वापिस जाना है, इसलिये अब पतित
से पावन होना है | नहीं तो सज़ा खानी पड़ेगी और पद भी भ्रष्ट हो
जायेगा | इतना फ़र्क है जैसे यहाँ राव और रंक | वैसे वहाँ राव
और रंक बनते हैं | सारा मदार पुरुषार्थ पर है | अब बाप कहते
हैं तुम खुद ही पतित थे तब तो पुकारते हैं | यह भी अब तुमको
समझाते हैं | अज्ञानकाल में यह बुद्धि में नहीं रहता | बाप
कहते हैं आत्मा जो तमोप्रधान बनी है उसको सतोप्रधान बनना है |
अब सतोप्रधान कैसे बने – यह भी सीढी पर समझाया है | इनके साथ
दैवी गुण भी धारण करने हैं | यह है बेहद का स्कूल | स्कूल में
रजिस्टर रखते हैं गुड, बैटर, बैस्ट का | जो सर्विसएबुल बच्चे
हैं वह बहुत मीठे हैं | उनका रजिस्टर अच्छा है | अगर रजिस्टर
अच्छा नहीं है तो वह उछलते नहीं हैं | सारा मदार है पढ़ाई, योग
और दैवी गुणों पर | बच्चे जानते हैं बेहद का बाप हमको पढ़ाते
हैं | पहले हम शुद्र वर्ण के थे, अब ब्राह्मण वर्ण के हैं |
प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे हम ब्राह्मण हैं, यह तो बहुतों को
भूल जाता है | जबकि तुम बाप को याद करते हो तो ब्रह्मा को भी
याद करना पड़े | हम ब्राह्मण कुल के हैं – यह भी नशा चढ़े | भूल
जाते तो यह नशा नहीं चढ़ता है कि हम ब्राह्मण कुल के हैं फिर
देवता कुल के बनेंगे | ब्राह्मण कुल किसने बनाया? ब्रह्मा
द्वारा मैं तुमको ब्राह्मण कुल में ले आता हूँ | ब्राह्मणों की
यह डिनायस्टी नहीं है | छोटा-सा कुल है | अपने को अब ब्राह्मण
समझेंगे तो देवता भी बनेंगे | अपने धन्धे में लग जाने से
सब-कुछ भूल जाते हैं | ब्राह्मणपन भी भूल जाता है | धन्धे से
फ़ारिग हुए फिर पुरुषार्थ करना चाहिये | कोई-कोई को धन्धे में
जास्ती ध्यान देना पड़ता है | काम पूरा हुआ फिर अपनी बात | याद
में बैठ जाओ | तुम्हारे पास बैज बहुत अच्छा है, इसमें
लक्ष्मी-नारायण का चित्र भी है, त्रिमूर्ती भी है | बाबा हमें
ऐसा बनाते हैं! बस, यही मन्मनाभव है | कोई को आदत पड़ जाती है,
कोई को नहीं पड़ती है | भक्ति तो अब पूरी हुई | अब बाप को याद
करना है | अब बेहद का बाप तुमको बेहद का वर्सा देते हैं, तो
ख़ुशी होती है | किसको अच्छी लगन लग जाती है, किसको बहुत कम |
है बहुत सहज |
गीता के आदि और अन्त में अक्षर है मन्मनाभव | यह वो ही गीता
एपिसोड है | सिर्फ़ कृष्ण का नाम डाल दिया है | भक्ति मार्ग में
जो भी दृष्टान्त आदि हैं वह सब इस समय के हैं | भक्ति मार्ग
में कोई ऐसे नहीं कहेंगे कि देह का भान भी छोड़ो, अपने को आत्मा
समझो | यहाँ तुमको यह शिक्षा बाप आते ही देते हैं | यह निश्चय
है – देवी-देवता धर्म की स्थापना हमारे द्वारा हो रही है |
राजधानी भी स्थापन हो रही है | इसमें लड़ाई आदि की बात नहीं है
| बाप अब तुम्हें पवित्रता सिखाते हैं, वह भी आधाकल्प कायम
रहेगी | वहाँ रावण राज्य ही नहीं | विकारों पर तुम अब जीत पा
रहे हो | यह तुम जानते हो – हम हुबहू कल्प पहले जैसे राजधानी
स्थापन की थी, अब कर रहे हैं | हमारे लिये यह पुरानी दुनिया
ख़त्म होने वाली है | ड्रामा का चक्र फिरता रहता है | वहाँ सोना
ही सोना होगा | जो था वह फिर होगा | इसमें मूँझने की बात नहीं
है | माया मच्छन्दर का खेल दिखाते हैं | ध्यान में सोने की
ईंटें देखा | तुम भी बैकुण्ठ में सोने के महल देखते हो | वहाँ
की चीज़ें तुम यहाँ नहीं ला सकते हो | यह है साक्षात्कार |
भक्ति में तुम इन बातों को नहीं जानते थे | अब बाप कहते हैं –
मैं आया हूँ तुमको ले जाने के लिये | तुम्हारे बिगर बेआरामी
होती है | जब समय आता है तो हमको बेआरामी हो जाती है – बस
जाऊं, बच्चे बहुत दुःखी हैं, पुकारते हैं | तरस पड़ता है, बस
जाऊं | ड्रामा में जब समय होता है तब ख्याल होता है – बस जाऊं
| नाटक दिखाते हैं विष्णु अवतरण | लेकिन विष्णु अवतरण तो होता
ही नहीं | दिन-प्रतिदिन मनुष्यों की बुद्धि ख़त्म होती जाती है
| कुछ समझ में नहीं आता | आत्मा पतित बन पड़ी है | अब बाप कहते
हैं – बच्चे, पावन बनो तो राम राज्य हो | राम को जानते नहीं |
शिव की पूजा जो की जाती है उनको राम नहीं कहेंगे | शिवबाबा
कहना शोभता है | भक्ति में कोई रस नहीं | तुमको अब रस आता है |
बाप खुद कहते हैं – मीठे बच्चे, मैं तुमको ले जाने आया हूँ |
फिर तुम्हारी आत्मा वहाँ से आपही सुखधाम चली जायेगी | वहाँ
तुम्हारा साथी नहीं बनूँगा | अपनी अवस्था अनुसार तुम्हारी
आत्मा जाकर दूसरे शरीर में, गर्भ में प्रवेश करेगी | दिखाते
हैं सागर में पीपल के पत्ते पर श्रीकृष्ण आया | सागर की तो बात
ही नहीं | गर्भ में बड़े आराम से रहते हैं | बाबा कहते – मैं
गर्भ में नहीं जाता हूँ | मैं तो प्रवेश करता हूँ | मैं बच्चा
नहीं बनता | मेरे बदले कृष्ण को बच्चा समझ दिल बहलाते हैं |
समझते हैं कृष्ण ने ज्ञान दिया इसलिये उनको बहुत प्यार करते
हैं | मैं सभी को साथ ले जाता हूँ | फिर तुमको भेज देता हूँ |
फिर मेरा पार्ट पूरा | आधा कल्प कोई पार्ट नहीं | फिर भक्ति
मार्ग में पार्ट शुरू होता है | यह भी ड्रामा बना हुआ है |
अब
बच्चों को ज्ञान समझना और समझाना तो सहज है | दूसरे को
सुनायेंगे तो ख़ुशी होगी और पद भी ऊँच पायेंगे | यहाँ बैठ सुनते
तो अच्छा लगता है | बाहर जाने से भूल जाते हैं | जैसे जेल बर्ड
होते हैं | कोई न कोई शरारत (हरकत) करके जेल में जाते ही रहते
हैं | तुम्हारा भी ऐसा हाल होता है | गर्भ में अन्जाम करके फिर
वहाँ की वहाँ रही | यह सब बातें बनाई हैं तो मनुष्य कुछ पाप
कर्म न करें | आत्मा संस्कार अपने साथ ले जाती है | तो कोई
छोटेपन से पण्डित बन जाते हैं | लोग समझते हैं आत्मा निर्लेप
है | परन्तु आत्मा निर्लेप नहीं | अच्छे वा बुरे संस्कार आत्मा
ही ले जाती है तब ही कर्मों का भोग होता है | अभी तुम पवित्र
संस्कार ले जाते हो | तुम पढकर फिर पद पाते हो | बाबा तो सारी
आत्माओं के झुण्ड को वापस ले जाते हैं | बाकी थोड़े रहते हैं |
वह पिछाड़ी में आते रहते हैं | रहते भी वही हैं जिनको पिछाड़ी
में आना है | माला है ना | नम्बरवार बनते जाते हैं | बाकी जो
बनेंगे वह स्वर्ग में भी पिछाड़ी में आयेंगे | बाबा कितना अच्छा
समझाते हैं, कोई को धारणा होती है, कोई को नहीं | अवस्था ऐसी
है तो पद भी ऐसा ही मिल जाता है | तुम बच्चों को रहमदिल,
कल्याणकारी बनना है | ड्रामा ही ऐसा बना हुआ है | दोष किसको
नहीं दे सकते | कल्प पहले जितनी पढ़ाई की होगी उतनी ही होगी |
जास्ती होगी नहीं, कितना भी पुरुषार्थ करावें, कोई फ़र्क नहीं
पड़ेगा | फ़र्क तब पड़े जब किसको सुनायें | नम्बरवार तो हैं ही |
कहाँ राव, कहाँ रंक! यह अविनाशी ज्ञान-रत्न राव (राजा) बनाते
हैं | अगर पुरुषार्थ नहीं करते तो रंक बन जाते हैं | यह बेहद
का स्कूल है | इसमें फर्स्ट, सेकेण्ड, थर्ड हैं | भक्ति में
पढ़ाई की बात नहीं | वहाँ है उतरने की बात | शोभनीक बहुत हैं |
झांझ बजाते, स्तुति करते, यहाँ तो शान्त में रहना है | भजन आदि
कुछ नहीं | तुमने आधा कल्प भक्ति की है | भक्ति का कितना शो है
| सबका अपना=अपना पार्ट है | कोई गिरता, कोई चढ़ता, कोई की
तक़दीर अच्छी, कोई की कम | तदबीर तो बाबा एकरस कराते हैं | पढ़ाई
में भी एकरस है तो टीचर भी एक है | बाकी सब हैं मास्टर्स | कोई
बड़ा आदमी कहे – फ़ुर्सत नहीं, बोलो – घर में आकर पढ़ायें?
क्योंकि उन्हों को तो अपना अहंकार रहता है | एक को हाथ करने से
औरों पर भी असर पड़ता है | अगर वह भी किसको कहें कि यह ज्ञान
अच्छा है, तो कहेंगे इन्हें भी ब्रह्माकुमारियों का संग लग
गया, इसलिये सिर्फ़ अच्छा कह देते हैं | बच्चों में योग की पॉवर
अच्छी चाहिये | ज्ञान तलवार में योग का जौहर चाहिये | खुशमिज़ाज़
और योगी होगा तो नाम निकालेंगे | नम्बरवार तो हैं | राजधानी
बननी है | बाप कहते हैं धारणा तो बहुत सहज है | बाबा को जितना
याद करेंगे उतना लव रहेगा | कशिश होगी | सुई साफ़ है तो चुम्बक
तरफ़ खिंचती है | कट होगी तो खींचेगी नहीं | यह भी ऐसे है | तुम
साफ़ हो जाते हो तो पहले नम्बर में चले जाते हो | बाप की याद से
कट निकलेगी |
गायन है – बलिहारी गुरु आपकी.....इसलिये कहते हैं गुरु
ब्रह्मा, गुरु विष्णु.....वह सगाई कराने वाले गुरु मनुष्य हैं
| तुमने सगाई शिव के साथ की है, न कि ब्रह्मा से | तो याद भी
शिव को ही करना है | दलाल के चित्र की ज़रूरत नहीं | सगाई पक्की
हो गई फिर एक-दो को याद करते रहते हैं तो इनको भी दलाली मिल
जाती है | सगाई का भी मिलता है ना | दूसरा फिर इनमें प्रवेश
करते हैं, लोन लेते हैं तो वह भी कशिश करते हैं | तब बच्चों को
भी समझाते हैं कि जितना तुम बहुतों का कल्याण करेंगे उतना
तुमको उजूरा मिलेगा | यह हैं ज्ञान की बातें | दूसरों को ज्ञान
देते रहो तो आशीर्वाद मिल जाती है | पैसे की दरकार नहीं |
मम्मा के पास धन नहीं था, परन्तु बहुतों का कल्याण किया |
ड्रामा में हरेक का पार्ट है | कोई धनवान धन देते हैं,
म्यूज़ियम बनाते हैं तो बहुतों की आशीर्वाद मिल जाती है | अच्छा
साहूकार का पद मिल जाता है | साहूकार के पास दास-दासियाँ बहुत
होती हैं | प्रजा में साहूकारों के पास बहुत धन होता है फिर
उनसे लोन लेते हैं | साहूकार बनना भी अच्छा है | वह भी गरीब ही
साहूकार बनते हैं | बाकी साहूकारों में हिम्मत कहाँ! इस
ब्रह्मा ने फट से सब कुछ दे दिया | कहते हैं हाथ जिनका
ऐसे.....(देने वाला) बाबा ने प्रवेश किया तो सब-कुछ छुड़ा दिया
| कराची में तुम कैसे रहे हुए थे | बड़े-बड़े मकान, मोटरें, बस
आदि सब कुछ था | अब बाप कहते हैं – आत्म-अभिमानी बनो | कितना
नशा चढना चाहिये – भगवान् हमको पढ़ाते हैं! बाप तुमको अथाह
ख़ज़ाने देते हैं | तुम धारणा नहीं करते हो | लेने का दम नहीं |
श्रीमत पर नहीं चलते हो | बाप कहते हैं बच्चे अपनी झोली भर लो
| वह लोग शंकर के आगे जाकर कहते हैं – झोली भर दो | बाबा यहाँ
बहुतों की झोली भरते हैं | बाहर जाने से खाली हो जाती है | बाप
कहते हैं तुमको बहुत भारी ख़ज़ाना देता हूँ | ज्ञान-रत्नों से
झोली भर-भरकर देता हूँ | फिर भी नम्बरवार हैं जो अपनी झोली
भरते हैं | वह फिर दान भी करते हैं, सबको प्यारे भी लगते हैं |
होगा नहीं तो देंगे क्या?
तुम्हें 84 के चक्र को अच्छी तरह समझना और समझाना है | बाकी
मेहनत है योग की | अब तुम युद्ध के मैदान पर हो | माया पर जीत
पाने के लिये लड़ते हो | नापास हुए तो चन्द्रवंशी में चले
जायेंगे | यह समझ की बात है | बच्चों को बहुत ख़ुशी होनी चाहिये
– बाबा, आप कितना वर्सा देते हो | उठते-बैठते सारा दिन यह
बुद्धि में रहे तब धारणा हो सके | योग है मुख्य | योग से ही
तुम विश्व को पवित्र बनाते हो | नॉलेज अनुसार तुम राज्य करते
हो | यह पैसे आदि तो मिटटी में मिल जाने वाले हैं | बाकी यह
अविनाशी कमाई तो सब साथ चलेगी | जो सेन्सीबुल होंगे वह कहेंगे
हम बाबा से पूरा ही वर्सा लेंगे | तक़दीर में नहीं तो पाई पैसे
का पद पायेंगे | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
अपनी पढ़ाई और दैवी गुणों का रजिस्टर ठीक रखना है | बहुत-बहुत
मीठा बनना है | हम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण हैं – इस नशे
में रहना है |
2.
सर्व के प्यार वा आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये ज्ञान-रत्नों
से अपनी झोली भरकर दान करना है | बहुतों के कल्याण के निमित्त
बनना है |
वरदान:-
सेवा में विघ्नों को उन्नति की सीढी समझ आगे बढ़ने वाले
निर्विघ्न, सच्चे सेवाधारी भव
! 
सेवा ब्राह्मण जीवन को सदा निर्विघ्न बनाने का साधन भी है और
फिर सेवा में ही विघ्नों का पेपर भी ज़्यादा आता है | निर्विघ्न
सेवाधारी को सच्चा सेवाधारी कहा जाता है | विघ्न आना यह भी
ड्रामा में नूँध है | आने ही हैं और आते ही रहेंगे क्योंकि यह
विघ्न वा पेपर अनुभवी बनाते हैं | इसको विघ्न न समझ, अनुभव की
उन्नति हो रही है – इस भाव से देखो तो उन्नति की सीढी अनुभव
होगी और आगे बढ़ते रहेंगे |
स्लोगन:-
विघ्न
रूप नहीं, विघ्न-विनाशक बनो
|
ओम्
शान्ति
|