06-04-14     प्रातः मुरली   ओम् शान्ति    “अव्यक्त-बापदादा    रिवाइज: 18-06-77 मधुबन
 


 “योग के पॉवरफुल स्टेज कैसे बने?”
 

रूहानी मिलन मनाने के लिए वरदान भूमि पर आये हो | रूहानी मिलन वाणी से परे स्थिति में स्थित होने से होता है वा वाणी द्वारा होता है? वाणी से परे स्थिति प्रिय लगती है वा वाणी में आने की स्थिति प्रिय लगती है? वाणी से परे स्थिति शक्तिशाली है और सर्व की सेवा के निमित्त बनती है या वाणी द्वारा सर्व के सेवा की स्थिति शक्तिशाली अनुभव होती है? बेहद की सेवा वाणी से परे स्थिति द्वारा होती है वा वाणी से होती है? अन्तिम सम्पूर्ण स्टेज जिसमें सर्व शक्तियों से सम्पन्न मास्टर सर्वशक्तिमान् मास्टर नॉलेजफुल की स्थिति प्रैक्टिकल रूप में होती है | ऐसी सम्पूर्ण स्थिति वाणी से परे की होती है वा वाणी में आने से होती है? सर्व आत्माओं के प्रति विश्व कल्याणकारी महादानी, वरदानी, सर्व प्रति सर्व कामनाओं की पूर्ति करने वाली स्टेज वाणी से परे स्थिति की है वा वाणी में आने की? दोनों के अनुभवी दोनों स्टेजेस को जानने वाले हो? दोनों में से ज़्यादा समय किसमें स्थित हो सकते हो? कौन सी स्थिति सहज अनुभव होती है? ऐसे एवेररेडी हो जो सेकेण्ड में जिस स्थिति में स्थित होने का डायरेक्शन मिले तो उसी समय स्वयं को स्थित कर सको वा स्थित होने में ही समय निकल जायेगा? क्योंकि जैसे सम्पन्न होने का समय समीप आ रहा है तो समय के पहले स्वयं में यह विशेषता अनुभव करते हो? अन्तिम समय फुलस्टॉप होने का सर्वश्रेष्ठ साधन यही है जो डायरेक्शन मिले उसी प्रमाण, उसी घड़ी उस स्थिति में स्थित हो जाना | इस साधन को, प्रैक्टिस को अनुभव में ला रहे हो? प्रैक्टिस है? बापदादा ने अभ्यास तो बहुत समय से सिखाया है और सिखा रहे हैं लेकिन इस अभ्यास में स्वयं को सम्पन्न कितने समझते हो? अभी इस वर्ष के अन्त तक स्वयं को ऐसे एवेररेडी बना सकेंगे? तैयार हो वा समय को देखते स्वयं का अभ्यास करने में और ही अलबेले हो गए हो? ना मालूम कब विनाश होगा? इस बात को सोचते हुए पुरुषार्थ में सम्पन्न होने के बजाए व्यर्थ चिन्तन वा व्यर्थ संकल्पों की कमज़ोरी में आराम पसन्द तो नहीं हो गए हो? 

आजकल बच्चों के पुरुषार्थ की रफ़्तार देखते हुए बापदादा मुस्कराते रहते हैं | सर्व आत्माओं को बार-बार सन्देश यही देते हो कि योगी बनो, ज्ञानी बनो तो सन्देश देने वाले स्वयं को भी यह सन्देश देते हो? मैजारिटी आत्माएं विशेष सब्जेक्ट याद की यात्रा वा योगी बनो की स्टेज में कमज़ोर दिखाई दे रही हैं | बार-बार एक ही शिकायत बापदादा के आगे वा निमित्त बनी हुई आत्माओं के आगे करते हैं – योग क्यों नहीं लगता वा निरन्तर योग क्यों नहीं रहता? योग की पॉवरफुल स्टेज कैसे बने? अनेक बार अनेक प्रकार की युक्तियाँ मिलते हुए भी बार-बार यही चिटकियाँ बापदादा को मिलती हैं | इससे क्या समझा जाए? सर्व शक्तिमान् के बच्चे बन शक्तिहीन आत्मा होना, जो स्वयं को भी कन्ट्रोल न कर सके वो विश्व के राज्य का कन्ट्रोल कैसे करेंगे? कारण क्या है? योग तो सीखा, लेकिन योगयुक्त रहने की युक्तियों का प्रयोग करना नहीं आता है | योग-योग करते परन्तु प्रयोग में लाने का अटेन्शन नहीं रखते | 

वर्तमान समय विशेष एक लहर दिखाई देती है | कोई भी बात सामने आती तो बाप द्वारा मिली हुई सामना करने की शक्ति स्वयं प्रयोग नहीं करते, लेकिन बाप को सामने कर देते हैं कि आपको साथ ले जाना है, हमें शक्ति दो, मदद देना आपका काम है, आप नहीं करेंगे तो कौन करेगा! थोड़ी सी आशीर्वाद कर दो, आप तो सागर हो, हमको थोड़ी सी अंचली दे दो | स्वयं के सामना करने की हिम्मत छोड़ देते हैं, और हिम्मतहीन बनने के कारण मदद से भी वंचित रह जाते हैं | ब्राह्मण जीवन का विशेष आधार है – हिम्मत | जैसे श्वास नहीं तो जीवन नहीं, वैसे हिम्मत नहीं तो ब्राह्मण नहीं | बाप का भी वायदा है – हिम्मते बच्चे मददे बाप” सिर्फ़ मददे बाप नहीं है | आजकल की लहर में बाप के ऊपर छोड़ देते हैं और स्वयं अलबेले रह जाते हैं | अब करना क्या है? विशेष कमज़ोरी यह  है जो हर शक्ति को वा हर ज्ञान की युक्ति को सुनते हुए वा मिलते हुए स्वयं के प्रति यूज़ नहीं करते अर्थात् अभ्यास में नहीं लाते | सिर्फ़ वर्णन करने तक लाते | लेकिन अन्तर्मुख हो हर शक्ति को धारणा के अभ्यास में लाओ | जैसे कोई नई इनवेन्शन (आविष्कार) करने वाला व्यक्ति दिन रात उसी इनवेन्शन की लग्न में खोया हुआ रहता है वैसे हर शक्ति के अभ्यास में खोये हुए रहना चाहिए | जैसे सहनशक्ति वा सामना करने की शक्ति किसको कहा जाता है? सहनशक्ति से प्राप्ति क्या होती है, सहनशक्ति को किस समय यूज़ किया जाता है? सहनशक्ति न होने के कारण किस प्रकार के विघ्नों के वशीभूत हो जाते हैं? अगर कोई माया का रूप क्रोध के रूप में सामना करने आये तो किस रीति से विजयी बन सकते हो? कौन-कौन सी परिस्थितियों के रूप में माया सहनशक्ति के पेपर ले सकती है? इनएडवान्स (पहले से ही) विस्तार से बुद्धि द्वारा सामने लाओ | रीयल पेपर हॉल में जाने के पहले स्वयं का मास्टर बन स्वयं का पेपर लो, तो रीयल इम्तिहान में कभी फेल नहीं होंगे | ऐसे एक-एक शक्ति के विस्तार और अभ्यास में जाओ | अभ्यास कम करते हो, व्यास सब बन गए हो, लेकिन अभ्यास नहीं करते हो | इसी प्रकार स्वयं को बिज़ी रखने नहीं आता, इसलिए माया आपको बिज़ी कर देती है | अगर सदा अभ्यास में बिज़ी रहो तो व्यर्थ संकल्पों की कम्प्लेन भी समाप्त हो जाए | साथ-साथ आपके अभ्यास में रहने का प्रभाव आपके चेहरे से दिखाई दे | क्या दिखाई देगा? अन्तर्मुखी सदा हर्षितमुखी दिखाई देंगे, क्योंकि माया का सामना करना समाप्त हो जायेगा | ऐसे अनुभवों को बढ़ाते चलने से बार-बार एक ही शिकायत करने से छूट जायेंगे | जैसे सर्वशाक्तियों के अभ्यास के लिए सुनाया वैसे ही स्वयं को योगी तू आत्मा कहलाते हो, लेकिन योग की परिभाषा जो औरों को सुनाते हो वह स्वयं को अभ्यास है?  

योग की मुख्य विशेषताएं – सहज योग है, कर्म योग है, राजयोग है, निरन्तर योग है, परमात्म योग है | जो वर्णन करते हो वे सब बातें स्वयं के अभ्यास में लाए हो? सहज योग क्यों कहा जाता है? उसका स्पष्टीकरण अच्छी तरह से जानते हो? वा अभ्यास में भी लाया है? नॉलेजफुल तो हो, सभी अभ्यास में लाओ | और सर्व विशेषताओं का अभ्यास चाहिए तब सम्पूर्ण योगी बन सकेंगे | सहज योग का अभ्यास है और राजयोग का नहीं, तो फुल पास नहीं हो सकेंगे इसलिए हर योग की विशेषता का, हर शक्ति का और हर एक ज्ञान की मुख्य प्वाइंट का अभ्यास करो | यही कमी होने के कारण मैजारिटी कमज़ोर बन जाते हैं, वैसे अभ्यास की कमी के कारण कमज़ोर आत्मा बन जाते हैं | अभ्यासी आत्मा, लग्न में मग्न रहने वाली आत्मा के सामने किसी भी प्रकार का विघ्न सामने नहीं आता | लग्न की अग्नि से विघ्न दूर से ही भस्म हो जाते हैं | जैसे आप लोग मॉडल बनाते हो ना शक्ति स्वरूप के, शक्ति से असुर वा पांच विकार भस्म हुए दिखाते हो ना, या भागते हुए दिखाते हो | तो यह मॉडल किसका बनाते हो? अभी क्या करेंगे? हर बात का प्रयोग करने की विधि में लग जाओ | अभ्यास की प्रयोगशाला में बैठे रहो तो एक बाप का सहारा और माया के अनेक प्रकार के विघ्नों का किनारा अनुभव करेंगे | अभी ज्ञान के सागर, गुणों के सागर, शक्तियों के सागर में ऊपर-ऊपर की लहरों में लहरा रहे हो, इसलिए अल्पकाल की रिफ्रेशमेंट अनुभव करते हो | लेकिन अब सागर के तले में जाओ तो अनेक प्रकार के विचित्र अनुभव कर रत्न प्राप्त कर सकेंगे | स्वयं भी समर्थ बनो | अब यही चिटकियाँ नहीं लिखना, बाप को हंसी आती है | छोटी-छोटी बातें और वही-वही बातें लिखते हो | विनाशी डॉक्टर का कार्य भी बाप के ऊपर रखते हैं | रचना अपनी, कर्मबन्धन अपना बनाया हुआ और तोड़ने की ड्यूटी फिर बाप के ऊपर | बाप की ड्यूटी है युक्ति बताना वा खुद ही करना? बताने के लिए निमित्त है वा करने के लिए भी निमित्त है? नटखट हो जाते हैं | नटखट बच्चे सब बाप के ऊपर ही छोड़ देते हैं | कहते हैं – बच्चा कहना नहीं मानता, आप इसको ठीक करो | बाप तो ठीक करने का तरीका सुना रहे हैं | करेंगे तो पायेंगे | बाप को वर्ल्ड सर्वेन्ट समझते हुए सब बाप के ऊपर छोड़ना चाहते हैं, इसलिए जो डायरेक्शन मिलते हैं उस पर ध्यान देकर प्रैक्टिकल में लाओ तो सब विघ्नों से मुक्त हो जायेंगे | समझा! अच्छा –  

सदा बाप की हर आज्ञा को पालन करने वाले आज्ञाकारी, एक बाप दूसरा न कोई इस पाठ को पालन करने वाले वफ़ादार, सदा स्वयं को अभ्यास में बिज़ी रखने वाले, सम्पूर्ण ज्ञान और योग की हर विशेषता को जीवन में लाने वाले ऐसी विशेष आत्माओं को बापदादा का याद, प्यार और नमस्ते | 

विदाई के समय – दादियों से 

महारथियों की स्पीड सबसे फ़ास्ट अर्थात् तीव्र है, लेकिन साथ-साथ ब्रेक भी इतनी पॉवरफुल हो | हर सेकेण्ड में संकल्प द्वारा सारी विश्व तो क्या तीनों लोकों के चक्र को सामने लाते, तीनों लोकों का चक्कर भी लगावें और अगर स्टॉप करें तो बिल्कुल बुद्धि बीज-रूप स्थिति में सेकेण्ड में स्थित हो जाये – ऐसी प्रैक्टिस हो | अति विस्तार और स्टॉप | ब्रेक इतनी पॉवरफुल हो; स्टॉप करने में टाइम न लगे | जैसे स्थूल मिलिट्री वालों को अगर मार्शल ऑर्डर करता है, दौड़ रहे हैं फुल फ़ोर्स में और मार्शल ऑर्डर करे – ‘स्टॉप’ तो उसी समय स्टॉप होना पड़े | अगर कोई सेकेण्ड भी देर लगाये तो शूट कर देते हैं | तो जैसे वह शारीरीक प्रैक्टिस है, वैसे यह है सूक्ष्म प्रैक्टिस | महारथियों के पुरुषार्थ की गति भी तीव्र और ब्रेक भी पॉवरफुल हो, तब अन्त में पास विद् ऑनर बनेंगे क्योंकि उस समय की परिस्थितियां बुद्धि में संकल्प लाने वाली होंगी, उस समय सब संकल्पों से परे एक संकल्प में स्थित होने का अभ्यास चाहिए | परिस्थितियां खींचेंगी | ऐसे टाइम पर ब्रेक पॉवरफुल नहीं होगी तो पास नहीं हो सकेंगे इसलिए महारथियों की प्रैक्टिस ऐसी होनी चाहिए, जिस समय विस्तार में बिखरी हुई बुद्धि हो उस समय स्टॉप करने की प्रैक्टिस करो | जैसे ड्राइवर को जब मोटर चलाने की प्रैक्टिस कराते हैं तो जान-बूझकर ऐसा रास्ता बना हुआ होता है जिससे मालूम पड़े कि यह कहाँ तक एक्सीडेन्ट से परे रह सकते हैं | इसी रीति से यह भी पहले से ही प्रैक्टिस चाहिए | स्टॉप कहना और होना | यह है अष्ट रत्नों की सौगात | एक सेकेण्ड भी यहाँ-वहाँ नहीं, इसलिए सिर्फ़ 8 निकलते हैं | ऐसी प्रैक्टिस है? बिल्कुल ऐसे अनुभवी हो जैसे स्थूल हाथ आदि कन्ट्रोल में हैं, वैसे सूक्ष्म शक्तियां संकल्प कन्ट्रोल में हो | वास्तव में है यह विस्तार के संकल्प को कन्ट्रोल करने की बात, लेकिन उनको लोगों ने श्वास को कन्ट्रोल करने का साधन बना दिया है | यहाँ है विस्तार के बजाए एक संकल्प में स्थित होना, उन लोगों ने श्वास को कन्ट्रोल करने का अभ्यास चालू कर दिया है | अब महारथियों के याद की यात्रा की ऐसी सिद्धि चाहिए | ऐसे एक संकल्प को धारण करने वाले, जो जितना समय चाहे बुद्धि को स्थित कर लें | अच्छा | ओम् शान्ति | 

वरदान:-   
फ़रिश्ता स्वरूप में स्थित रह हर कर्म करने वाले ब्रह्मा बाप समान अव्यक्त फ़रिश्ता भव
 !   

बच्चे कहते हैं हमारा ब्रह्मा बाप से बहुत प्यार है, तो प्यार का अर्थ है समान बनना | जैसे ब्रह्मा बाबा फ़रिश्ता रूप हैं ऐसे ब्रह्मा बाप समान फ़रिश्ता स्वरूप में स्थित होकर हर कर्म करो | फ़रिश्ता माना लाइट का आकार | तो लाइट के आकार में रहकर कर्म करो, लाइट का शरीर देखो | इस फ़रिश्ते स्वरूप में कोई विघ्न प्रभाव नहीं डाल सकता | आपके संकल्प, वृत्ति, दृष्टि सब डबल लाइट हो जायेंगे | 

स्लोगन:- 
जिनका सोचना, बोलना और करना समान है वही सर्वोत्तम पुरुषार्थी है |     

 

ओम् शान्ति |