02-03-14     प्रातः मुरली   ओम् शान्ति    “अव्यक्त-बापदादा    रिवाइज: 12-06-77 मधुबन   


“कमल पुष्प समान स्थितिः ही ब्राह्मण जीवन का श्रेष्ठ आसन है”  

सदा ब्राह्मण जीवन के श्रेष्ठ आसन, कमल पुष्प समान स्थिति में स्थित रहते हो? ब्राह्मणों का आसन सदा साथ रहता है, तो आप सब ब्राह्मण भी सदा आसन पर विराजमान रहते हो? कमल पुष्प समान स्थिति अर्थात् सदा हर कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म करते हुए भी इन्द्रियों की आकर्षण से न्यारे और प्यारे | सिर्फ़ स्मृति में न्यारा और प्यारा नहीं, लेकिन हर सेकेण्ड का सर्व कर्म न्यारे और प्यारे स्थिति में हो | इसी का यादगार आप सबके गायन में अब तक भी भक्त हर कर्मेन्द्रिय के प्रति महिमा में नयन कमल, मुख कमल, हस्त कमल कहकर गायन करते हैं | तो यह किस समय की स्थिति का आसन है? इस ब्राह्मण जीवन का | अपने आपसे पूछो हर कर्मेन्द्रिय कमल समान बनी है? नयन कमल बने हैं? हस्त कमल बने हैं? कमल अर्थात् कर्म करते हुए भी विकारी बन्धनों से मुक्त | देह को देख भी रहे हैं लेकिन देखते हुए भी नयन कमल वाले, देह की आकर्षण के बन्धन में नहीं आयेंगे | जैसे कमल जल में रहते हुए जल से न्यारा अर्थात् जल की आकर्षण के बन्धन से न्यारा, अनेक भिन्न-भिन्न सम्बन्ध से न्यारा रहता है | कमल के सम्बन्ध भी बहुत होते हैं | अकेला नहीं होता है, प्रवृत्ति मार्ग की निशानी का सूचक है | ऐसे ब्राह्मण अर्थात् कमल पुष्प समान बनने वाली आत्माएं प्रवृत्ति में रहते, चाहे लौकिक, चाहे अलौकिक साथ-साथ किचड़े अर्थात् तमोगुणी पतित वातावरण में रहते हुए भी न्यारे | जो गुण रचना में हैं तो मास्टर रचयिता में वही गुण हैं | सदा इस आसन पर स्थित रहते हो? वा कभी-कभी स्थित होते हो? सदा अपने इस आसन को धारण करने वाले ही सर्व बन्धनमुक्त और सदा योगयुक्त बन सकते हैं | अपने आपको देखो – पाँच विकार, पाँच प्रकृति के तत्वों के बन्धन से कितने परसेन्ट में मुक्त हुए हैं | लिप्त आत्मा हो वा मुक्त आत्मा हो? 

आप सबने बापदादा से वायदा किया है कि सबको छोड़कर आपके ही बनेंगे, जो कहेंगे, जैसे करायेंगे, जैसे चलायेंगे वैसे चलेंगे | वायदा निभा रहे हो? सारे दिन में कितना समय वायदा निभाते हो और कितना समय वायदा भूलते हो? गीत रोज़ गाते हो – मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई | ऐसी स्थिति है? दूसरा कोई सम्बन्ध, स्नेह, सहयोग वा प्राप्ति, व्यक्ति वा वैभव द्वारा बाप से किनारा करने वाला रहा है? है कोई व्यक्ति व वस्तु जो बन्धनमुक्त आत्मा को अपने आकर्षण के बन्धन में बाँधने वाला हो? जब दूसरा कोई नहीं तो निरन्तर बन्धनमुक्त और योगयुक्त आत्मा का अनुभव करते हो? वा कहते हो दूसरा कोई नहीं परन्तु है? कोई है व सब समाप्त हो गये? अगर है तो गीत क्यों गाते हो? बापदादा को खुश करने के लिए गाते हो? वा कह कर अपनी स्थिति बनाने के लिए गाते हो? ब्राह्मण जीवन की विशेषता जानते हो? ब्राह्मण अर्थात् सोचना, बोलना, करना सब एक हो | अन्तर न हो | तो ब्राह्मण जीवन की विशेषता कब धारण करेंगे? अभी वा अन्त में? कई ऐसे भी बच्चे हैं जो स्वयं के पुरुषार्थ के बजाए समय पर छोड़ देते हैं | समय आने पर कर लेंगे! हो जायेगा! आत्मायें स्वयं कमज़ोर होने कारण समय पर रखते हैं | आप लोगों के पास भी जब कोई म्युज़ियम वा प्रदर्शनी देखने आते हैं तो क्या कहते हैं? समय मिलेगा तो आयेंगे | अभी हमको समय नहीं है | यह अज्ञानियों के बोल हैं क्योंकि समय के ज्ञान से अज्ञानी हैं लेकिन आपको तो ज्ञान है कि कौन सा समय चल रहा है; इस वर्तमान समय को कौन सा समय कहते हैं? कल्याणकारी युग अर्थात् समय कहते हो ना! सारे कल्प की कमाई का समय कहते हो, श्रेष्ठ कर्म रूपी बीज बोने का समय कहते हो | पाँच हज़ार वर्ष के संस्कारों का रिकार्ड भरने का समय कहते हो | विश्व कल्याण, विश्व परिवर्तन का समय कहते हो | समय के ज्ञान वाले भी वर्तमान समय को गंवाते हुए आने वाले समय पर छोड़ दें तो उसको क्या कहा जायेगा?  

बापदादा ने पहले भी सुनाया है आप श्रेष्ठ आत्मायें सृष्टि के आधार मूर्त हो, ऐसे आधार मूर्त समय के व किसी भी प्रकार के आधार पर रहें तो अधीन कहेंगे व आधार मूर्त कहेंगे? तो अपने आपको चेक करो कि सृष्टि के आधार मूर्त आत्मा किसी भी प्रकार के आधार पर तो नहीं चल रहे हैं! सिवाए एक बाप के आधार मूर्त, किसी भी हद के सहारे के आधार पर चलने वाली आत्मा तो नहीं हैं? वायदा तो यही किया है मेरा तो एक ही सहारा है लेकिन प्रैक्टिकल क्या है? एक सहारे का प्रैक्टिकल प्रमाण क्या अनुभव होगा? सदा एक अविनाशी सहारा लेने वाला इस कलियुगी पतित दुनिया से किनारा किया हुआ अनुभव करेगा | ऐसी आत्मा की जीवन नैया कलियुगी दुनिया का किनारा छोड़ चली | सदा स्वयं को कलियुगी पतित विकारी आकर्षण से किनारा किया हुआ अर्थात् परे महसूस करेंगे | कोई भी कलियुगी आकर्षण उसको खैंच नहीं सकती | जैसे साइन्स के द्वारा धरती की आकर्षण से परे हो जाते, स्पेस में चले जाते अर्थात् दूर चले जाते | अगर किसी भी प्रकार की आकर्षण चाहे देह के सम्बन्ध की व देह के पदार्थ की आकर्षित करती है, तो इससे सिद्ध है कोई न कोई अल्पकाल का सहारा बनाया हुआ है | इस सहारे का प्रत्यक्ष प्रमाण विनाशी अल्पकाल का सहारा होने के कारण प्राप्ति भी अल्पकाल की होती है अर्थात् विनाशी, थोड़े समय के लिए होती है | जैसे कई कहते हैं थोड़ा अनुभव होता है, याद रहती है, शक्ति मिलती है | शक्ति स्वरूप का अनुभव होता है लेकिन सदा नहीं रहता, उसका कारण? अवश्य एक सहारे के बजाए कोई न कोई हद के सहारे का आधार लिया हुआ है | आधार भी हिलता है और स्वयं भी हिलता है अर्थात् हलचल में आते हैं | तो अपने आधार को चेक करो | चेक करना आता है? चेक करने के लिए दिव्य अर्थात् समर्थ बुद्धि चाहिए | अगर नहीं तो बुद्धिवान आत्माओं के सहयोग से अपनी चेकिंग करो | 

बापदादा ने हर ब्राह्मण आत्मा को जन्म होते ही दिव्य समर्थ बुद्धि और दिव्य नेत्र ब्राह्मण जन्म के वरदान रूप में दिया है | वा यूँ कहो कि ब्राह्मणों के बर्थ दे गिफ्ट बाप द्वारा हरेक को प्राप्त है | क्या अपने जन्म की गिफ्ट को सम्भालना आता है? अगर सदैव इस गिफ्ट को यथार्थ रीति से यूज़ करो तो सदा कमल पुष्प समान रहो अर्थात् सदा कमल पुष्प समान स्थिति के आसन पर स्थित रहो | समझा क्या चेकिंग करनी है? सर्व कर्मेन्द्रियाँ कहाँ तक कमल बनी हैं? ऐसे कमल समान बनने वाले सदा आकर्षण से परे अर्थात् सदा हर्षित रहेंगे | सदा हर्षित न रहना अर्थात् कहाँ न कहाँ आकर्षित होते हैं तब हर्षित नहीं रह सकते | अब इन सब बातों से बुद्धि द्वारा किनारा करो | कहना और करना एक करो | वायदा करने वाले नहीं लेकिन निभाने वाले बनो | अच्छा | 

सदा सर्व सम्बन्धों से एक बाप दूसरा न कोई ऐसे सदा स्वयं को आधार मूर्त समझने वाले, समय के आधार से परे स्वयं को समर्थ समझ चलने वाले ऐसी समर्थ आत्माओं, बन्धनमुक्त आत्माओं को, सदा योगयुक्त आत्माओं को बापदादा का याद, प्यार और नमस्ते | 

पार्टियों से:-

पाण्डव और शक्तियां दोनों ही युद्धस्थल पर उपस्थित हैं? युद्ध करते हुए विजय प्राप्त करते हुए आगे बढ़ते चल रहे हो? तो विजयी आत्माओं को सदा विजय की ख़ुशी होगी | विजय वालों को दुःख की लहर नहीं होगी | दुःख होता है हार में | विजयी रत्न सदा खुश अर्थात् हर्षित रहते हैं | स्वपन में भी दुःख का दृश्य न आए अर्थात् दुःख के अनुभव की महसूसता न आए | स्वप्न में भी तो दुःख होता है | कोई ऐसा दृश्य देख करके स्वप्न भी दुःख के नहीं होते? जब स्वप्न भी सुखदाई होंगे तो ज़रूर साकार में सुख स्वरूप होंगे | जब आप अपने गुणों की महिमा करते हो तो कहते हो, सुख स्वरूप.....या दुःख भी कहते हो? आत्मा का अनादि स्वरूप सुख है तो दुःख कहाँ से आया? जब अनादि स्वरूप से नीचे आते हो तो दुःख होता | तो ऐसे अनुभव करते हो कि दुःख से किनारा हो गया है? दूसरों के दुःख की बातें सुनते दुःख की लहर न आए क्योंकि मालूम है दुःखों की दुनिया है | आपके लिए दुःख की दुनिया समाप्त हो गयी | आपके लिए तो कल्याणकारी चढ़ती कला का युग है | तो संकल्प में भी दुःख की दुनिया को छोड़ चले, लंगर उठ गया है ना? अगर दुःख देने वाले सम्बन्धी या दुःख की परिस्थिति अपनी तरफ़ खींचती है तो समझो कुछ रस्सियाँ सूक्ष्म में रह गयी हैं | सूक्ष्म रस्सियाँ सब समाप्त हैं या कुछ रही हैं? उसकी परख अथवा निशानी है – खिंचावट | अगर बन्धी हुई रस्सियाँ हैं तो आगे बढ़ नहीं सकेंगे | अगर अभी तक दुःख की दुनिया का किनारा छोड़ा नहीं तो संगमयुगी नहीं हुए ना? फिर तो कलियुग और संगम के बीच के हो गए | न यहाँ के न वहाँ के, ऐसे की अवस्था क्या होगी? कब कहाँ, कब कहाँ | बुद्धि का एक ठिकाना अनुभव नहीं करेंगे | भटकना अच्छा लगता है क्या? जब अच्छा नहीं लगता तो ख़त्म करो | सदा अपने सुख स्वरूप में स्थित रहो | बोलो तो भी सुख के बोल, सोचो तो भी सुख की बातें, देखो तो भी सुख स्वरूप आत्मा को देखो | ऐसा अभ्यास चाहिए, जैसे सतयुगी देवताओं को ‘दुःख’ शब्द का पता भी नहीं होगा | अगर उनसे पूछो तो कहेंगे दुःख कुछ होता भी है क्या | तो वह संस्कार यहाँ ही भरने है | ऐसे संस्कार बनाओ जो दुःख शब्द का ज्ञान भी न हो | प्राप्ति के आधार पर मेहनत कुछ भी नहीं है | राज्य के संस्कार बन जाएं, उसके लिए अगर एक जन्म के कुछ वर्ष मेहनत भी करनी पड़े तो क्या बड़ी बात है! पाँच हज़ार वर्ष के संस्कार बनाने के लिए थोड़े समय की मेहनत है | 

विघ्न आता है उसमें कोई नुकसान नहीं, क्योंकि आता है विदाई लेने के लिए | लेकिन अगर रुक जाता है तो नुकसान है | आये और चला जाए | विघ्न को मेहमान बनाकर बिठाओ नहीं | अभी ऐसा पुरुषार्थ चाहिए – आया और गया | विघ्न को अगर घड़ी-घड़ी का भी मेहमान बनाया तो आदत पड़ जायेगी फिर ठिकाना बना देंगे, इसलिए आया और गया | आधाकल्प माया मेहमान है इसलिए तरस तो नहीं पड़ता? अब तरस मत करो | 

अभी भी याद की यात्रा के अनुभव और डीप रूप में हो सकते हैं | वर्णन सब करते हैं, याद में रहते भी हैं; लेकिन याद से जो प्राप्तियाँ होनी हैं उस प्राप्ति की अनुभूति को और आगे बढाते जाएं | उसमें अभी समय और अटेन्शन देने की आवश्यकता है; जिससे मालूम पड़ेगा सचमुच अनुभव के सागर में डूबे हुए हैं | जैसे पवित्रता, शान्ति के वातावरण की भासना आती है, वैसे श्रेष्ठ योगी लग्न में मग्न रहने वाले हैं – यह अनुभव हो | नॉलेज का प्रभाव है, योग के सिद्धि स्वरूप का प्रभाव हो | वह तब होगा जब आपको अनुभव होगा | जैसे उस सागर के तले में जाते हैं, वैसे अनुभव के सागर के तले में जाओ | रोज़ नया अनुभव हो, तो याद की यात्रा पर अटेन्शन हो | 

अन्तर्मुख होकर आगे बढ़ना, वह अभी कम है | सेवा करते हुए भी याद में डूबा हुआ है यह प्रभाव अभी नहीं पड़ता | सेवा करते हैं – यह प्रभाव है | लेकिन निरन्तर योगी हैं – वह स्टेज पर आओ | इसकी इनवेन्शन निकालने की धुन में लगो | जो किसी ने नहीं किया है, वह मैं करूँ – यह रेस करो | याद की यात्रा के अनुभवों की रेस करो | इसके लिए जो योग शिविर कराते हैं, उन्हें चान्स अच्छा है और कोई ड्यूटी नहीं एक ही ड्यूटी है | इससे निर्विघ्न सहज होते, वातावरण चेन्ज होता है | सब अपने में बिज़ी, दूसरे को देखने, सुनने की, विघ्नों में कमज़ोर होने की मार्जिन नहीं रहती | ऐसा प्लैन बनाओ जो हरेक अपने में डूबा हुआ हो, चाहे साकार अलौकिक जीवन का नशा हो, चाहे प्राप्तियों का | उसमें ही लवलीन रहो, वातावरण में मत जाओ जो लहर फैले | अच्छा | 

वरदान:-   

हद की कामनाओं से मुक्त रह प्रश्नों से पार रहने वाले सदा प्रसन्नचित भव !    

जो बच्चे हद की कामनाओं से मुक्त रहते हैं उनके चेहरे पर प्रसन्नता की झलक दिखाई देती है | प्रसन्नचित कोई भी बात में प्रश्न-चित नहीं होते | वो सदा निःस्वार्थी और सदा सभी को निर्दोष अनुभव करेंगे, किसी और के ऊपर दोष नहीं रखेंगे | चाहे कोई भी परिस्थति आ जाए, चाहे कोई आत्मा हिसाब-किताब चुक्तू करने वाली सामना करने आती रहे, चाहे शरीर का कर्मभोग सामना करने आता रहे लेकिन सन्तुष्टता के कारण वे सदा प्रसन्नचित रहेंगे | 

स्लोगन:- 


व्यर्थ की चेकिंग अटेन्शन से करो, अलबेले रूप में नहीं |     

 

ओम् शान्ति |