12-03-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
प्राण दान देने वाला बाप है, वह नॉलेज ऐसी देते हैं जिससे
प्राण दान मिल जाता है, ऐसे प्राण दान देने वाले बाप को प्यार
से याद करो
| 
प्रश्न:-
किस आधार पर 21 जन्मों तक तुम्हारे सब भण्डारे भरपूर रहते हैं?
उत्तर:-
संगमयुग पर तुम बच्चों को जो नॉलेज मिलती है, यह सोर्स ऑफ़ इनकम
है | इस पढ़ाई के आधार से सब भण्डारे भरपूर हो जाते हैं | इस
पढ़ाई से 21 जन्मों की ख़ुशी मिल जाती है | ऐसी कोई चीज़ नहीं,
जिसके प्राप्ति की इच्छा रहे | बाबा नॉलेज का दान ऐसा देते
हैं, जिससे आत्मा क्या से क्या बन जाती है |
ओम्
शान्ति
|
भगवानुवाच – सालिग्राम समझते हैं शिवबाबा हमको पढ़ाने आते हैं |
बच्चे जानते हैं वही सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं |
बच्चों को अब कोई नई बात नहीं लगती | समझ में आ गया है |
मनुष्य तो सब भूले हुए हैं | जिसने पढ़ाया, उनके बदले पहले
नम्बर में पढने वाले का नाम डाल दिया है | तुमको पढ़ते-पढ़ते यह
बात सिद्ध करनी है | भारत के शास्त्रों की ही बात है और धर्म
के शास्त्रों की नहीं | भूल ही भारत के शास्त्रों की है |
तुम्हारे सिवाए यह बात और कोई सिद्ध नहीं कर सकता | बच्चे
जानते हैं यह अनादि ड्रामा है, फिर भी रिपीट होगा | तुम
मनुष्यमात्र को सुधारने का पुरुषार्थ करते हो | मनुष्य जब
सुधरते हैं तो दुनिया ही सुधर जाती है | सतयुग है सुधरी हुई
दुनिया और कलियुग है अनसुधरी हुई पुरानी दुनिया | यह भी तुम
बच्चे अच्छी रीति समझते हो और धारण कर समझाने लायक भी बनते हो
| इसमें बड़ी रिफाइननेस चाहिये | बाबा तुमको कितना रिफाइन कर
समझाते हैं, सुधारते हैं | बाप कहते हैं जब तुम सुधर जाते हो
फिर मुझे सुधारने की ज़रूरत नहीं रहती | तुम अन-आर्य बन पड़े
थे, अब आर्य अर्थात् देवी-देवता बनना है | सो तो सतयुग में ही
होंगे | वह सब सुधरे हुए हुए थे अब अनसुधरेले उनकी पूजा करते
हैं | यह किसकी बुद्धि में नहीं आता कि हम उनको क्यों सुधरेले
कहते हैं? हैं सब मनुष्य, जो सुधरेले आर्य थे वही सब अनसुधरेले
बने हैं | आर्य और अन-आर्य | बाकी वह जो आर्य समाज है, वह
मठ-पंथ है | यह सब झाड़ से क्लीयर समझ सकते हैं | यह है मनुष्य
सृष्टि का झाड़, इसकी आयु 5 हज़ार वर्ष है | इसका नाम कल्प वृक्ष
है | परन्तु कल्प वृक्ष अक्षर से मनुष्यों की बुद्धि में झाड़
नहीं आता है | तुमको झाड़ के रूप में समझाया है | वह कह देते
कल्प लाखों वर्ष का है | बाप कहते 5 हज़ार वर्ष का है | और कोई
कितनी आयु सुनाते, कोई कितनी | पूरा समझाने वाला कोई है नहीं |
आपस में कितना शास्त्रवाद करते हैं | तुम्हारी तो यह रूहरिहान
है, तुम सेमीनार करते हो, इसको रूहरिहान कहा जाता है |
प्रश्न-उत्तर समझने के लिये भी करते हैं | बाबा जो कुछ तुमको
सुनाते हैं, उससे ही टॉपिक निकाल तुम सुनाते हो | वो लोग क्या
सुनाते हैं, यह भी तुम जाकर सुनो | फिर आकर सुनाना चाहिये कि
इस प्रकार का वाद-विवाद चलता है |
पहले तो यह समझाना है कि गीता का भगवान् कौन? भगवान् बाप को
भूलने कारण बिल्कुल चट खाते में आ गये हैं | तुम बच्चों का तो
बाप से लव है | तुम बाबा को याद करते हो | बस, बाबा ही प्राण
दान देने वाला है | नॉलेज का दान ऐसा देते हैं जो क्या से क्या
बन जाते हैं | तो बाप पर लव रहना चाहिये | बाबा हमको ऐसी-ऐसी
नई बात सुनाते हैं | हम कृष्ण को कितना याद करते हैं, वह कुछ
देता ही नहीं | नारायण को याद करते हैं | याद करने से कुछ होता
है क्या? हम तो कंगाल के कंगाल ही रह गये | देवतायें कितने
सालवेन्ट थे | अब सभी आर्टिफ़िशियल चीज़ें हो गई हैं | जिसका दाम
नहीं, उनका आज दाम हो गया है | वहाँ अनाज़ आदि के दाम की बात ही
नहीं | सबको अपनी-अपनी प्रॉपर्टी आदि है, कोई अप्राप्त वस्तु
नहीं, जिसके प्राप्ति की इच्छा रहे | बाबा कहते हैं – मैं
तुम्हारा भण्डारा भरपूर कर देता हूँ | तुमको ऐसी नॉलेज देता
हूँ जिससे तुम्हारा भण्डारा भर जाता है | तुम्हारी बुद्धि में
है नॉलेज इज़ सोर्स ऑफ़ इनकम | नॉलेज ही सब कुछ है | इस पढ़ाई से
तुम कितना ऊँच बनते हो! पढ़ाई का भण्डार है ना | वह टीचर्स
पढ़ाते हैं, उनसे अल्पकाल का सुख मिलता है | इस पढ़ाई से तुमको
21 जन्म का सुख मिलता है | तुम बच्चों को बहुत ख़ुशी होनी
चाहिये | यह समझने में टाइम लगता है | जल्दी कोई समझ न सके |
कोटों में कोई निकलता है | आधाकल्प सभी मनुष्य एक-दो को गिराते
ही आये हैं | चढ़ाने वाला एक बाप है | बेहद की पढ़ाई पढ़ाने वाले
के बदले पढ़ने वाले का नाम डाल दिया है | दुनिया इन बातों को
नहीं जानती | कहते हैं – भगवानुवाच, पढ़ाकर गये | फिर उनका कोई
शास्त्र रहता नहीं | सतयुग में कोई शास्त्र है नहीं | यह सब
हैं भक्ति मार्ग के शास्त्र | कितना बड़ा झाड़ है | भक्ति की यह
अनेक टाल-टालियां न हों तो झाड़ का नाम भी न रहे | यह सब धारणा
करने की बातें हैं | तुम धारणा करते हो | पढ़ाने वाला तो पढ़ाकर
गुम हो जाता है | पढने वाले आकर विश्व के मालिक बनते हैं |
कितनी नई बातें हैं | एक भी बात कोई की बुद्धि में बैठती नहीं
है | स्टूडेन्ट भी तुम सब नम्बरवार हो, कोई पास होते, कोई फेल
होते | यह है बेहद का बड़ा इम्तहान | तुम जानते हो हम अभी अच्छी
तरह पढ़ेंगे तो कल्प-कल्पान्तर अच्छा पढ़ेंगे | अच्छा पढ़ने वाले
ही ऊँच पद पाते हैं | नम्बरवार सब जायेंगे | सारा क्लास
ट्रान्सफर होता है | नम्बरवार जाकर बैठते हैं, यह ज्ञान भी
आत्मा में है | अच्छा वा बुरा संस्कार आत्मा में है | शरीर तो
मिट्टी है | आत्मा निर्लेप हो नहीं सकती | 100 परसेन्ट
सतोप्रधान और 100 परसेन्ट तमोप्रधान कौन हैं – यह भी तुम समझते
हो | पहले तो गरीबों को उठाना पड़े | वह पहले आयेंगे | गुरुओं
के भी अच्छे-अच्छे अनन्य शिष्य जब आयेंगे तब उन सबकी बुद्धि
खुलेगी | देखेंगे यह तो हमारे ही पत्ते निकलते जाते हैं | यहाँ
के जो होंगे वह तो निकल आयेंगे | बाप आकर नया झाड़ शुरू करते
हैं | जो और-और धर्मों में जाकर पड़े हैं, वह सब लौटेंगे | फिर
भी अपने भारत में ही आयेंगे | भारतवासी ही थे ना | हमारी डाल
के जो हैं वह सब आ जायेंगे | आगे चलकर तुम सब समझते जायेंगे |
अब बाहर से सबको धक्का मिलता जाता है | जहाँ-जहाँ बाहर वाले
हैं उनको भगाते रहते हैं | समझते हैं – यह बहुत धनवान हो गये
हैं | यहाँ वाले गरीब हो गये हैं |
पिछाड़ी में सबको अपने-अपने धर्म में जाना है | आखिर सब
अपने-अपने घर तरफ़ भागेंगे | विलायत में कोई मरता है तो उनको
भारत में ले आते हैं क्योंकि भारत है फर्स्टक्लास पवित्र भूमि
| भारत में ही नई दुनिया थी | इस समय इसको वाइसलेस वर्ल्ड नहीं
कह सकते | यह है विशश वर्ल्ड इसलिये बुलाते हैं – हे पतित-पावन
आओ, आकर हमको पावन बनाओ | भल दुनिया तो यही है परन्तु इस समय
दुनिया में कोई पावन तो है नहीं | पावन आत्मायें मूलवतन में
हैं | वह है ब्रह्म महत्त्व | सब पावन बनकर वहाँ जायेंगे | फिर
नम्बरवार आयेंगे पार्ट बजाने | आदि सनातन देवी-देवता धर्म का
यह फाउन्डेशन है | फिर तीन ट्यूब निकलती हैं | यह तो देवता
धर्म है | यह कोई ट्यूब नहीं है | पहले यह फाउन्डेशन फिर 3
ट्यूब्स निकलती हैं | मुख्य हैं 4 धर्म | सबसे अच्छा धर्म है
यह ब्राह्मण धर्म | इनकी बहुत महिमा है | हीरे जैसा तुम यहाँ
बनते हो | बाप तुमको यहाँ पढ़ाते हैं | तो तुम कितने बड़े हो |
देवताओं से भी तुम ब्राह्मण बड़े नॉलेजफुल हो | वन्डर है ना |
हम जो नॉलेज लेते हैं वह हमारे साथ चलती है | फिर वहाँ नॉलेज
को ही भूल जाते हैं | तुम जानते हो पहले हम क्या पढ़ते थे, अब
हम क्या पढ़ते हैं | आई.सी.एस. वाले क्या पढ़ते हैं और बाद में
क्या पढ़ते हैं | फ़र्क तो है ना | आगे चलकर बहुत नई प्वाइन्ट्स
सुनेंगे | अभी नहीं बतायेंगे | पार्ट ही आगे सुनने का है |
बुद्धि में रहता है – नॉलेज का पार्ट जब पूरा होना होगा तब हम
भी उस समय बाबा के ज्ञान को धारण कर लेंगे | फिर हमारा पार्ट
स्वर्ग में शुरू हो जायेगा | उनका पार्ट पूरा हो जायेगा |
बुद्धि में बहुत अच्छी धारणा चाहिये | सिमरण करते रहो, बाप को
याद करते रहो | याद नहीं होगी तो कम पद पायेंगे | बाप को याद
करते-करते शरीर का भान निकल जायेगा | सन्यासी भी इस अवस्था का
अभ्यास करते-करते शरीर छोड़ देते हैं | परन्तु उन्हों का रास्ता
अलग है, इसलिये उनको फिर जन्म लेना पड़ता है | फ़ालोअर्स समझते
हैं, वह ब्रह्म में लीन हो गया फिर वापिस आ नहीं सकता | बाप
समझाते हैं वापिस कोई भी जा नहीं सकते | पिछाड़ी में सब एक्टर्स
जब स्टेज पर आयेंगे तब फिर घर जायेंगे | वह है हद का विनाशी
नाटक, यह है बेहद का अविनाशी नाटक | तुम अच्छी तरह समझा सकते
हो, यह ड्रामा जूँ मिसल चलता है | वह तो फिर छोटे-छोटे ड्रामा
बनाते हैं | झूठी फिल्म बनाते हैं | उनमें थोड़ी अच्छी बातें
होती हैं जैसे विष्णु अवतरण दिखाते हैं | ऐसे नहीं, ऊपर से कोई
उतर आता है | लक्ष्मी-नारायण पार्ट बजाने आते हैं | बाकी ऊपर
से कोई नहीं आते हैं | अब तुम बच्चों को बाप पढ़ाते हैं | तब यह
बातें तुम सब समझ सकते हो | पहले तुम भी तुच्छ बुद्धि थे | जब
बाप ने समझाया है तब तुम्हारे कपाट खुल गये हैं | इतना समय जो
कुछ सुना वह कोई काम का नहीं था और ही गिरते गये इसलिये तुम
सबसे लिखवाते हो | जब लिखकर देवें तब समझा जाये – कुछ बुद्धि
में बैठा है | बाहर से आते हैं, फॉर्म भराते हैं तो मालूम पड़े
हमारे कुल का है | मूल बात है बाप को जानना | समझें कि बरोबर
कल्प-कल्प बाप हमको पढ़ाते हैं | यह पूछना है – कब से पवित्र
बने हो? जल्दी नहीं सुधरते | घड़ी-घड़ी माया पकड़ लेती है | देखती
है – कच्चा है तो हप कर लेती है | कई महारथियों को भी माया हप
कर गई | शास्त्रों में भी मिसाल अभी के हैं | मन्दिर में भी
घोड़े सवार, महारथी, प्यादे आदि दिखाते हैं | तुम अब अपना
यादगार देखते हो | जब तुम बन जायेंगे तो भक्ति उड़ जायेगी | तुम
किसको माथा नहीं टेक सकते हो | तुम पूछेंगे यह कहाँ गये? इनकी
बायोग्राफ़ी बताओ | बाबा ने तुम बच्चों को नॉलेजफुल बनाया है तब
तुम पूछते हो, तो नशा रहना चाहिये | पास विद् ऑनर 8 होते हैं |
यह बहुत बड़ा इम्तहान है | अपने को देखना है – हमारी आत्मा
पवित्र बनी है? बैटरी भरेगी तब जब योग होगा | बाप से योग होता
तो सतोप्रधान बनेंगे | तमोप्रधान आत्मा वापिस नहीं जा सकती है
|
यह
भी ड्रामा है | वहाँ दुःख देने वाली कोई चीज़ नहीं है | गायें
भी सुन्दर हैं | कृष्ण के साथ गायें कितनी सुन्दर दिखाते हैं |
बड़े-बड़े आदमी का फर्नीचर भी सुन्दर | गायें अच्छा दूध देती
हैं, तब तो दूध की नदियाँ बहती हैं | अब यहाँ नहीं हैं | अभी
तुम नॉलेजफुल बन गये हो | इस दुनिया को तुम तुच्छ समझते हो |
इनका सारा किचड़ा स्वाहा होना है | फिर सारा किचड़ा निकल सब
स्वच्छ बन जायेंगे | हम अपनी राजधानी में जाते हैं | उनका नाम
है स्वर्ग | सुनते ही ख़ुशी होती है | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
इस अन-सुधरी पुरानी दुनिया को सुधारने के लिये स्वयं को
सुधारना है, अपनी बुद्धि को बाप की याद से रिफाइन बनाना है |
2.
आपस में रूहरिहान करनी है, वाद-विवाद नहीं | नॉलेज का दान दे
सर्व का भण्डारा भरपूर करना है |
वरदान:-
पवित्रता के वरदान को निज़ी संस्कार बनाकर पवित्र जीवन बनाने
वाले मेहनत मुक्त भव
! 
कई
बच्चों को पवित्रता में मेहनत लगती है, इससे सिद्ध है वरदाता
बाप से जन्म का वरदान नहीं लिया है | वरदान में मेहनत नहीं
होती | हर ब्राह्मण आत्मा को जन्म का पहला वरदान है पवित्र भव,
योगी भव” | जैसे जन्म के संस्कार बहुत पक्के होते हैं, तो
पवित्रता ब्राह्मण जन्म का आदि संस्कार, निज़ी संस्कार है | इसी
स्मृति से पवित्र जीवन बनाओ | मेहनत से मुक्त बनो |
स्लोगन:-
ट्रस्टी वह है जिसमें सेवा की शुद्ध भावना है
|
ओम्
शान्ति
|