27-04-14     प्रातः मुरली   ओम् शान्ति    “अव्यक्त-बापदादा    रिवाइज: 25-06-77 मधुबन
 


 “पवित्रता की सम्पूर्ण स्टेज”

बापदादा सभी बच्चों की विशेष दो बातें देख रहे हैं | हरेक आत्मा यथा योग, यथा शक्ति ऑनेस्ट और होलिएस्ट कहाँ तक बने हैं | हरेक पुरुषार्थी आत्मा बाप के समबन्ध में ऑनेस्ट अर्थात् बाप से ईमानदार सच्ची दिल वाले बनने का लक्ष्य रख चल रहे हैं, लेकिन ऑनेस्ट बनने में भी नम्बरवार हैं |

1. जितना ऑनेस्ट होगा उतना ही होलीएस्ट होगा | होलीएस्ट बनने की मुख्य बात है – बाप से सच्चा बनना | सिर्फ़ ब्रह्मचर्य धारण करना यह प्यूरिटी की हाइएस्ट स्टेज नहीं है; लेकिन प्यूरिटी अर्थात् रीयल्टी अर्थात् सच्चाई | ऐसे सच्ची दिल वाले दिलवाला बाप के दिलतख़्त नशीन हैं और दिलतख़्त नशीन बच्चे ही राज्य तख़्तनशीन होते हैं |

2. ऑनेस्ट अर्थात् ईमानदार उसको कहा जाता है जो बाप के प्राप्त ख़ज़ानों को बाप के डायरेक्शन बिना किसी भी कार्य में नहीं लगावे | अगर मनमत और परमत प्रमाण समय को, वाणी को, कर्म को, श्वांस को वा संकल्प को परमत वा संगदोष में व्यर्थ तरफ़ गंवाते, स्व-चिन्तन के बजाए परचिन्तन करते हैं, स्वमान की बजाए किसी भी प्रकार के अभिमान में आ जाते हैं | इसी प्रकार से श्रीमत के विरुद्ध अर्थात् श्रीमत के बदले मनमत के आधार पर चलते हैं तो उसको ऑनेस्ट वा ईमानदार नहीं कहेंगे | यह सब ख़ज़ाने बापदादा ने विश्व कल्याण की सेवा अर्थ दिये हैं, तो जिस कार्य के अर्थ दिये हैं उस कार्य के बजाए अगर अन्य कार्य में लगाते हैं, तो यह अमानत में ख्यानत करना है इसलिए सबसे बड़े ते बड़ी प्यूरिटी की स्टेज है – ऑनेस्ट बनना | हरेक अपने आपसे पूछो कि हम कहाँ तक ऑनेस्ट बने हैं?

3. ऑनेस्ट का तीसरा लक्षण है – सदा सर्व प्रति शुभ भावना व सदा श्रेष्ठ कामना होगी |

4. ऑनेस्ट अर्थात् सदा संकल्प और बोल वा कर्म द्वारा सदा निमित्त और निर्माण होंगे |

5. ऑनेस्ट अर्थात् हर कदम में समर्थ स्थिति का अनुभव हो | सदा हर संकल्प में बाप का साथ और सहयोग के हाथ का अनुभव हो |

6. ऑनेस्ट अर्थात् हर कदम में चढ़ती कला का अनुभव हो |

7. ऑनेस्ट अर्थात् जैसे बाप जो है, जैसा है बाप बच्चों के आगे प्रत्यक्ष है; वैसे बच्चे जो हैं, जैसे हैं वैसे ही बाप के आगे स्वयं को प्रत्यक्ष करें | ऐसे नहीं कि बाप तो सब कुछ जानता है, लेकिन बाप के आगे स्वयं को प्रत्यक्ष करना सबसे बड़े ते बड़ा सहज चढ़ती कला का साधन है | अनेक प्रकार के बुद्धि के ऊपर बोझ समाप्त करने की सरल युक्ति है | स्वयं को स्पष्ट करना अर्थात् पुरुषार्थ का मार्ग स्पष्ट होना है | स्वयं की स्पष्टता से श्रेष्ठ बनाना है | लेकिन करते क्या हो? कुछ बताते कुछ छिपाते हैं | और बताते भी हैं तो कोई सैलवेशन के प्राप्ति के स्वार्थ के आधार पर | चतुराई से अपना केस सज-धज कर, मनमत और परमत के प्लैन अच्छी तरह से बनाकर बाप के आगे वा निमित्त बनी हुई आत्माओं के आगे पेश करते हैं | भोलानाथ बाप समझ और निमित्त बनी हुई आत्माओं को भी भोला समझ चतुराई से अपने आपको सच्चा सिद्ध करने से रिज़ल्ट क्या होती है? बापदादा वा निमित्त बनी हुई आत्माएं जानते हुए भी खुश करने के अर्थ अल्पकाल के लिए, ‘हाँ जी’ का पाठ तो पढ़ लेंगे क्योंकि जानते हैं कि हर आत्मा की सहन शक्ति, सामना करने की शक्ति कहाँ तक है | इस राज़ को जानते हुए नाराज़ नहीं होंगे | उनको और ही आगे बढ़ाने की युक्ति देंगे | राज़ी भी करेंगे, लेकिन राज़ से राज़ी करना और दिल से राज़ी करना – फ़र्क होता है | बनने चतुर चाहते हैं, लेकिन बन जाते हैं भोले, कैसे? जो थोड़े में राज़ी हो जाते हैं | हार को जीत समझ लेते हैं | है जन्म-जन्म की हार, लेकिन अल्पकाल की प्राप्ति में राज़ी हो अपने आपको सयाना, होशियार समझ विजयी मान बैठते हैं | बाप को ऐसे बच्चों के ऊपर रहम भी पड़ता है कि समझदारी के पर्दे के अन्दर अपने ऊपर सदाकाल के अकल्याण के निमित्त बन रहे हैं | फिर भी बापदादा क्या कहेंगे? श्रेष्ठ पुरुषार्थी की भावी नहीं है |

8. ऑनेस्ट अर्थात् किसी भी बातों के आधार पर फाउन्डेशन न हो | हरेक बात के अनुभव के आधार पर, प्राप्ति के आधार पर फाउन्डेशन हो | बात बदली और फाउन्डेशन बदला, निश्चय से संशय में आ गया | और क्यों, कैसे के क्वेश्चन में आ गया, उसको प्राप्ति के आधार पर अनुभव नहीं कहेंगे | ऐसा कमज़ोर फाउन्डेशन छोटी सी बात में हलचल पैदा कर लेता है | जैसे आजकल की एक रमणीक बात बाप के आगे क्या रखते हैं कि 1977 तक पवित्र रहना था, अब तो ज़्यादा समय पवित्र रहना मुश्किल है इसलिए बाप के ऊपर बात रखते हुए खुद को निर्दोष बनाकर खुदा को दोषी बना देते हैं | लेकिन पवित्रता ब्राह्मणों का निज़ी संस्कार है | हद के संस्कार नहीं हैं | हद की पवित्रता अर्थात् एक जन्म तक की पवित्रता हद का सन्यास है | बेहद के सन्यासियों का जन्म-जन्मान्तर के लिए अपवित्रता का सन्यास है | बापदादा ने पवित्रता के लिए कब समय की सीमा दी थी क्या? स्लोगन में भी यह लिखते हो कि बाप से सदाकाल के लिए पवित्रता, सुख-शान्ति का वर्सा लो | समय के आधार पर पवित्र रहना, इसको कौन सी पवित्रता की स्टेज कहेंगे? इससे सिद्ध है कि स्वयं का अनुभव और प्राप्ति के आधार पर फाउन्डेशन नहीं है | तो ऑनेस्ट बच्चों के यह लक्षण नहीं हैं | ऑनेस्ट अर्थात् सदा होलीएस्ट | समझा, ऑनेस्ट किसको कहा जाता है? अच्छा |

ऐसे सदा सच्ची दिलवाले, सत्यता के आधार पर सर्व के आधार मूर्त बनने वाले, हर कदम और प्राप्ति के आधार पर अपने जीवन के हर कदम को चलाने वाले, सदा श्रेष्ठ मत और श्रेष्ठ गति पर चलने वाले, ऐसे तीव्र पुरुषार्थियों को बापदादा का याद, प्यार और नमस्ते |

अव्यक्त बापदादा से पर्सनल मुलाकात :-

1. स्वयं को सदा विजयी अनुभव करते हो? मास्टर सर्वशक्तिमान् अर्थात् सदा विजयी | श्रेष्ठ पार्टधारी आत्माओं का यादगार भी विजयमाला के रूप में है सिर्फ़ माला नहीं कहते लेकिन विजय माला | इससे क्या सिद्ध होता है? कि श्रेष्ठ आत्मा ही विजयी आत्मा है इसलिए विजयमाला गाई हुई है | ऐसे विजयी हो? या कभी माला में पिरो जाते, कभी निकल जाते |

किसी भी बात में हार होने का कारण क्या होता है, वह जानते हो? हार खाने का मूल कारण – स्वयं को बार-बार चेक नहीं करते हो | जो समय प्रति समय युक्तियाँ मिलती, उनको समय पर यूज़ नहीं करते | इस कारण समय पर हार खा लेते हैं | युक्तियाँ हैं, लेकिन समय बीत जाने के बाद, पश्चाताप के रूप में स्मृति में आती – ऐसे होता था तो ऐसे करते...... | तो चेकिंग की कमज़ोरी होने कारण चेन्ज भी नहीं हो सकते | चेकिंग करने का यन्त्र है – दिव्य बुद्धि | वैसे चेकिंग का तरीका चार्ट रखना तो है, लेकिन चार्ट भी दिव्य बुद्धि द्वारा ही ठीक रख सकेंगे | दिव्य बुद्धि नहीं तो रांग को भी राइट समझ लेते | अगर कोई यन्त्र ठीक नहीं तो रिज़ल्ट उल्टी निकलेगी | दिव्य बुद्धि द्वारा चेकिंग करने से यथार्थ चेकिंग होती है | तो दिव्य बुद्धि द्वारा चेकिंग करो, तो चेन्ज हो जायेंगे; हार के बदले जीत हो जायेगी |

2. सदा अपने को चलते-फिरते लाईट के कार्ब के अन्दर आकारी फ़रिश्ते के रूप में अनुभव करते हो? जैसे ब्रह्मा बाप अव्यक्त फ़रिश्ते के रूप में चारों और की सेवा के निमित्त बने हैं, ऐसे बाप समान स्वयं को भी लाईट के स्वरूप आत्मा और लाईट के आकारी स्वरूप फ़रिश्ते अनुभव करते हो? बापदादा दोनों के समान बनना है ना? दोनों से स्नेह है ना? स्नेह का सबूत है – समान बनना | जिससे स्नेह होता है तो जैसे वह बोलेगा वैसे ही बोलेगा, स्नेह अर्थात् संस्कार मिलाना और संस्कार मिलन के आधार पर स्नेह भी होता | संस्कार नहीं मिलता तो कितना भी स्नेही बनाने की कोशिश करो, नहीं बनेगा |

तो दोनों बाप के स्नेही हो? बाप समान बनना अर्थात् लाईट रूप आत्मा स्वरूप में स्थित होना और दादा समान बनना अर्थात् फ़रिश्ता | दोनों बाप को स्नेह का रिटर्न देना पड़े | तो स्नेह का रिटर्न दे रहे हो? फ़रिश्ता बनकर चलते हो कि पांच तत्व से अर्थात् मिट्टी से बनी हुई देह अर्थात् धरनी अपने तरफ़ आकर्षित करती है? जब आकारी हो जायेंगे तो यह देह (धरनी) आकर्षित नहीं करेगी | बाप समान बनना अर्थात् डबल लाईट बनना | दोनों ही लाईट है? वह आकारी रूप में, वह निराकारी रूप में | तो दोनों समान हो ना? समान बनेंगे तो सदा समर्थ और विजयी रहेंगे | समान नहीं तो कभी हार, कभी जीत, इसी हलचल में होंगे |

अचल बनने का साधन है समान बनना | चलते- फिरते सदैव अपने को निराकारी आत्मा या कर्म करते अव्यक्त फ़रिश्ता समझो | तो सदा ऊपर रहेंगे, उड़ते रहेंगे ख़ुशी में | फ़रिश्ते सदैव उड़ते हुए दिखाते हैं | फ़रिश्ते का चित्र भी पहाड़ी के ऊपर दिखायेंगे | फ़रिश्ता अर्थात् ऊँची स्टेज पर रहने वाला | कुछ भी इस देह की दुनिया में होता रहे, लेकिन फ़रिश्ता ऊपर से साक्षी हो सब पार्ट देखता रहे और सकाश देता रहे | सकाश भी देना है क्योंकि कल्याण के प्रति निमित्त हैं | साक्षी हो देखते, सकाश अर्थात् सहयोग देना है | सीट से उतर कर सकाश नहीं दी जाती | सकाश देना ही निभाना है | निभाना अर्थात् कल्याण की सकाश देना, लेकिन ऊँची स्टेज पर स्थित होकर देना – इसका विशेष अटेन्शन हो | निभाना अर्थात् मिक्स नहीं हो जाना, लेकिन निभाना अर्थात् वृति-दृष्टि से सहयोग की सकाश देना | फिर किसी भी प्रकार के वातावरण की सेक में नहीं आयेगा | अगर सेक आता है तो समझना चाहिए साक्षीपन की स्टेज पर नहीं हैं | कार्य के साथी नहीं बनना है, बाप के साथी बनना है | जहाँ साक्षी बनना चाहिए वहाँ साथी बन जाते तो सेक लगता | ऐसे निभाना सीखेंगे तो दुनिया के आगे लाईट हाउस बन करके प्रख्यात होंगे |

 

आजकल की लहर कौन सी है? महारथियों के मन में जैसे शुरू में जोश था की अपने हमजिन्स को अपवित्रता से पवित्रता में लाना ही है | पहला जोश याद है? कैसी लग्न थी? सबको छुड़ाने की भी लग्न थी; शक्ति भरने की भी लग्न थी | आदि में जोश था की हमजिन्स को छुड़ाना ही है, बचाना है | अभी ऐसी लहर है? चाहे चलते-चलते कमज़ोर होने वाले, चाहे नई आत्माएं जो कि बन्धनयुक्त हैं, ऐसे को बन्धनमुक्त बनाएं – इतना जोश है या ड्रामा कह छोड़ देते हो? वर्तमान समय आप लोगों का पार्ट कौन सा है? वरदानी का, महादानी का, कल्याणकारी का | ड्रामा तो है, लेकिन ड्रामा में आपका पार्ट क्या है? तो यह लहर जरुर फैलनी चाहिए? जैसे फायर ब्रिगेडियर (आग बुझाने वाले) को जोश आता है | आग लग रही है, तो रुक नहीं सकते, तो ऐसी लहर होनी चाहिए | आपकी लहर से उन्हों का बचाव हो | अगर आप लोग ड्रामा कह छोड़ देंगे या सोचेंगे राजधानी स्थापन हो रही है, तो उन्हों का कल्याण कैसे होगा? नॉलेजफुल होने के कारण यह नॉलेज है कि यह ड्रामा है, लेकिन ड्रामा के अन्दर आपका कर्तव्य कौन सा है? तो महारथियों की लहर क्या होनी चाहिए? कुछ भी सुनते हो तो शुभचिन्तन चलना चाहिए, परचिन्तन नहीं | आपका शुभचिन्तन उन्हों की बुद्धियों को शीतल कर सकता है | आप लोग छोड़ देंगे तो वह तो गए क्योंकि प्रैक्टिकल में निमित्त शक्तियों का पार्ट है | बाप तो बैकबोन है | शक्तियों को कौन सी स्थिति में रहना चाहिए? जैसे देवियों के चित्र में दो विशेषतायें दिखाते हैं | आँखों में मातृत्व भावना और हाथों से शस्त्रधारी अर्थात् असुर का संघार करने वाली, मातृ भावना अर्थात् रहम की भावना और संघार की भावना भी | संघार करना अर्थात् उन्हों के आसुरी संस्कारों को ख़त्म करने का प्लैन भी हो और रहम भी हो | लॉफुल और लवफुल का बैलेन्स हो, दोनों साथ-साथ हों | यह जो कमजोरी की लहर है, यह ऐसे नहीं कि विनाश के कारण प्रत्यक्ष हो गये हैं, कमज़ोरी बहुत समय की होती है, लेकिन अभी छिपा नहीं सकते | पहले अन्दर-अन्दर गुप्त कमजोरी चलती रहती, अभी समय नज़दीक आ रहा है इसलिए कमज़ोरी छिपा नहीं सकते | राजा बनने वाले, प्रजा पद वाले, कम पद पाने वाले, सेवाधारी बनने वाले, सब अभी प्रत्यक्ष होंगे | अन्त में जो साक्षात्कार कहा है, वह कैसे होगा? यह साक्षात्कार करा रहे हैं | बाकी ऐसे नहीं है, कमज़ोरी नहीं थी अब हुई है लेकिन अब प्रसिद्ध होने का चान्स मिला है | जैसे समाप्ति के समय सब बीमारियाँ निकलती हैं, वैसे समाप्ति का समय होने के कारण हरेक की वैरायटी कमजोरियां प्रत्यक्ष होंगी | अभी तो एक लहर देखी है और भी कई लहरें देखेंगे | अति में जाना जरुर है, अति हो तब तो अन्त हो | जो भी अन्दर कमजोरियां हैं, अन्दर छिप नहीं सकती किसी न किसी रूप में प्रत्यक्ष रूप में आयेंगी, लेकिन आपकी भावना – इन सबका भी कल्याण हो जाए | आप वरदानी हो तो आपका हर संकल्प, हर आत्मा के प्रति कल्याण का हो | लहरें तो और भी आयेंगी – एक ख़त्म होगी, दूसरी आयेगी, यह सब मनोरंजन के बाइप्लाट्स हैं और पद भी स्पष्ट हो रहे हैं | यह होते रहेंगे | आश्चर्यवत् सीन होनी चाहिए | एक तरफ़ नए-नए रेस में आगे दिखाई देंगे | दूसरे तरफ़ थकने वाले, रुकने वाले भी प्रसिद्ध होंगे | तीसरे तरफ़ जो बहुत समय से कमजोरियाँ रही हुई हैं, वह भी प्रत्यक्ष होंगी, नथिंग न्यू है | लेकिन रहम की दृष्टि और भावना दोनों साथ हों | अच्छा – ओम् शान्ति |

 

वरदान:-  

बाप और वरदाता इस डबल सम्बन्ध से डबल प्राप्ति करने वाले सदा शक्तिशाली आत्मा भव !    

सर्व शक्तियां बाप का वर्सा और वरदाता का वरदान हैं | बाप और वरदाता – इस डबल सम्बन्ध से हर एक बच्चे को यह प्राप्ति जन्म से ही होती है | जन्म से ही बाप बालक सो सर्व शक्तियों का मालिक बना देता है | साथ-साथ वरदाता के नाते से जन्म होते ही मास्टर सर्वशक्तिवान बनाए “सर्वशक्ति भव” का वरदान दे देता है | तो एक दवारा यह डबल अधिकार मिलने से सदा शक्तिशाली बन जाते हो |

 

स्लोगन:- 

देह और देह के साथ पुराने स्वभाव, संस्कार वा कमजोरियों से न्यारा होना ही विदेही बनना है |     

 

ओम् शान्ति |