08-08-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
"मीठे
बच्चे - यह है बेहद की अनलिमिटेड स्टेज,
जिसमें
तुम आत्मायें पार्ट बजाने के लिए बांधी हुई हो,
इसमें हरेक का फिक्स पार्ट है" 
प्रश्न:-
कर्मातीत अवस्था को प्राप्त करने का पुरूषार्थ क्या है?
उत्तर:-
कर्मातीत बनना है तो पूरा-पूरा सरेन्डर होना पड़े । अपना कुछ
नहीं । सब कुछ भूले हुए होंगे तब कर्मातीत बन सकेंगे । जिन्हें
धन,
दौलत,
बच्चे
आदि याद आते,
वह
कर्मातीत बन नहीं सकते इसलिए बाबा कहते मैं हूँ गरीब निवाज ।
गरीब बच्चे जल्दी सरेन्डर हो जाते हैं । सहज ही सब कुछ भूल एक
बाप की याद में रह सकते हैं ।
ओम्
शान्ति |
रूहानी बाप बैठ अपने रूहानी बच्चों को समझाते हैं,
बच्चों की बुद्धि में जरूर है कि अब घर जाना है । भक्तों की
बुद्धि में नहीं रहता । तुम जानते हो यह 84 का चक्र अब पूरा
हुआ । यह बहुत बड़ा बेहद का माण्डवा अथवा स्टेज है । अनलिमिटेड
स्टेज है । इस पुराने माण्डवे को छोड़ घर जाना है । अपवित्र
आत्मायें तो जा नहीं सकती । पवित्र जरूर बनना है । अब इस खेल
का अन्त है । अपरमपार दु :खों की अब पिछाड़ी है । इस समय यह सब
माया का पाम्प है,
जिसको मनुष्य स्वर्ग समझते हैं,
कितने महल,
माड़ियां,
मोटरें आदि हैं,
इसको
कहा जाता है माया का कॉम्पीटीशन । नर्क की स्वर्ग के साथ
कॉम्पीटीशन है । अल्पकाल के लिए सुख है । यह है माया की लालच,
ड्रामा अनुसार । कितने ढेर मनुष्य हैं । पहले तो सिर्फ एक आदि
सनातन देवी-देवता धर्म ही था । अब तो माण्डवा कुल भर गया है ।
अब यह चक्र पूरा होता है सब तमोप्रधान है,
सृष्टि भी तमोप्रधान है फिर सतोप्रधान होनी है । सारी सृष्टि
नई चाहिए ना । नई से पुरानी | पुरानी से नई यह तो अनगिनत बार
चलता आया है । अनादि खेल है । कब शुरू हुआ यह नहीं कह सकते ।
अनादि चलता ही रहता है । यह भी तुम जानते हो और कोई नहीं जानता
। तुम भी इस ज्ञान मिलने के पहले कुछ नहीं जानते थे । देवता भी
नहीं जानते थे सिर्फ तुम पुरूषोत्तम संगमयुगी ब्राह्मण ही
जानते हो फिर यह ज्ञान प्राय: लोप हो जायेगा । बाप ने सुखधाम
का मालिक बनाया बाकी और क्या चाहिए । बाप से जो पाना था,
पा
लिया बाकी कुछ पाने के लिए रहता नहीं । तो बाप समझाते
हैं-बच्चे,
तुम
ही सबसे जास्ती पतित बने हो । पहले-पहले तुम ही आये हो पार्ट
बजाने । तुमको ही पहले जाना पड़ेगा | चक्र है ना । पहले-पहले
तुम ही माला में पिरोयेंगे । यह रूद्र माला है ना । धागे में
सारी दुनिया के मनुष्य पिरोये हुए हैं । धागे से निकल परमधाम
में चले जायेंगे फिर ऐसे ही धागे में पिरोये जायेंगे । बहुत
बड़ी माला है । शिवबाबा को कितने ढेर बच्चे हैं । पहले-पहले तुम
देवतायें आते हो । यह है बेहद की माला,
जिसमें सब मणके मिसल पिरोये हुए हो । रूद्र माला और विष्णु की
माला गाई जाती है । प्रजापिता ब्रह्मा की माला नहीं है । तुम
ब्रह्माकुमार-कुमारि कीयों माला होती नहीं क्योंकि तुम चढ़ते,
गिरते हो,
हार
खाते हो । घड़ी-घड़ी माया गिरा देती है इसलिए ब्राह्मणों की माला
नहीं बनती,
जब
पूरे पास हो जाते हो तब विष्णु की माला बनती है । यूं तो
प्रजापिता ब्रह्मा का भी सिजरा है । जब पास हो जाते हैं तो
कहेंगे ब्रह्मा की भी माला है । सिजरा बना हुआ है । इस समय
माला नहीं बन सकती है क्योंकि आज पवित्र बनते,
कल
फिर माया थपड़ मार कला काया ही निकाल देती । की कमाई चट हो जाती
है । टूट पड़ते हैं । कहाँ से गिरते हैं,
विचार करो । बाप तो विश्व का मालिक बनाते हैं । उनकी श्रीमत पर
चलने से तुम ऊँच पद पा सकते हो । हार खाई तो खलास । काम विकार
महाशत्रु है,
उनसे
हार नहीं खानी है । बाकी सब विकार हैं बाल बच्चे । बड़ा शत्रु
है काम विकार । उनके ऊपर ही जीत पानी है । काम पर जीत पाने से
तुम जगतजीत बनेंगे । यह 5 विकार आधाकल्प के दुश्मन है,
वह
भी छोड़ते नहीं है । सब चिल्लाते हैं क्रोध करना पडता है,
परन्तु दरकार क्या पड़ी है,
प्यार से भी काम हो सकता है । चोर को भी प्यार से अगर
समझायेंगे तो वह झट सच कह देंगे । बाप कहते हैं मैं प्यार का
सागर हूँ ना,
तो
बच्चों को भी प्यार से काम लेना है । भल कोई भी पोजीशन हो ।
बाबा के पास मिलेट्री वाले भी आते हैं । उन्हों को भी बाबा
समझाते हैं तुम स्वर्ग में जाना चाहते हो तो सिर्फ शिवबाबा को
याद करो । उन्हें कहा जाता है-तुम युद्ध के मैदान में मरेंगे
तो स्वर्ग में जायेंगे । वास्तव में युद्ध का मैदान तो यह है ।
वह तो लड़ाई करते-करते मर जाते हैं तो फिर वहाँ जाकर जन्म लेते
हैं क्योंकि संस्कार ले जाते हैं । स्वर्ग में तो जा न सके ।
तो बाबा उन्हों को समझाते थे शिवबाबा को याद करने से तुम
स्वर्ग में जा सकते हो क्योंकि स्वर्ग की स्थापना हो रही है ।
शिवबाबा की याद से ही विकर्म विनाश होंगे । यह थोड़ा भी ज्ञान
मिला ना तो अविनाशी ज्ञान का विनाश नहीं होता है ।
तुम
बच्चे यह मेला आदि करते हो तो कितनी प्रजा बनती है । तुम
रूहानी सेना हो ना इसमें कमान्डर,
मेजर
आदि थोड़े होते हैं,
प्रजा तो बहुत बनती है । जो अच्छी रीति समझाते हैं तो कुछ न
कुछ अच्छा पद पाते हैं । उनमें भी फर्स्ट,
सेकण्ड,
थर्ड
ग्रेड होती हैं । तुम शिक्षा देते रहते हो,
कोई
तो बिल्कुल आपसमान बन जाते हैं । कोई सबसे ऊपर भी जा सकते हैं
। देखा जाता है एक-दो से ऊपर चले जाते हैं । नये-नये पुरानों
से तीखे चले जाते हैं । बाप से पूरा योग लग जाये तो बहुत ऊंच
चला जायेगा । सारा मदार है योग पर । नॉलेज तो बहुत सहज है,
तुम
फील करते होंगे । बाप की याद में विघ्न पड़ते हैं । बाप कहते
हैं भोजन खाओ तो भी याद में । परन्तु कोई 2 मिनट,
कोई
5 मिनट याद में रहते हैं । सारा समय याद में रहें,
बडा
मुश्किल है । माया कहाँ न कहाँ उड़ाय भुला देती है । सिवाए बाप
के और कोई की याद नहीं रहेगी तब ही कर्मातीत अवस्था होगी । अगर
कुछ भी अपना होगा तो वह याद जरूर पड़ेगा । कुछ भी याद न आये,
यह
बाबा मिसाल है,
इनको
क्या याद आयेगा?
कोई
बाल बच्चे,
धन
आदि है?
सिर्फ तुम बच्चे ही याद आते हो । तुम तो जरूर बाप को याद पड़ेगे
ही क्योंकि बाप आये हैं कल्याण करने के लिए । याद सबको करते
हैं । परन्तु फिर भी बुद्धि फूलों तरफ ही चली जाती है । फूल
अनेक प्रकार के होते हैं । कोई बिगर खुशबू भी होते हैं । बगीचा
है ना । बाप को बागवान,
माली
भी कहते हैं । यह तो तुम जानते हो - मनुष्य क्रोध में आकर
कितना लड़ते- झगड़ते हैं। बहुत देह अभिमान है । बाप समझाते
हैं-कभी कोई क्रोध करे तो शान्त रहना चाहिए । क्रोध भूत है ना
। भूत के आगे शान्ति से रेसपान्ड देना है ।
सर्व
शास्त्र शिरोमणी श्रीमद् भगवद गीता है ईश्वरीय मत की । ईश्वरीय
मत,
आसुरी मत और दैवी मत एक ईश्वर ही आकर बताते हैं । राजयोग की
नॉलेज देते हैं । फिर यह नॉलेज गुम हो जायेगी । राजाओं का राजा
बन गया फिर नॉलेज क्या करेंगे?
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जन्म तो प्रालब्ध भोगते हो । वहाँ यह मालूम नहीं पड़ता है कि इस
पुरूषार्थ का यह फल है । अनेक बार तुम सतयुग में गये हो । यह
चक्र फिरता रहता है । सतयुग-त्रेता है ज्ञान का फल । ऐसे नहीं
कि वहाँ ज्ञान मिलता है । बाप आकर यहाँ भक्ति का फल ज्ञान देते
हैं । बाप ने बताया है तुमने जास्ती भक्ति की है । अब एक बाप
को याद करो तो तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे । इसमें है
मेहनत । रचना के आदि-मध्य- अन्त को याद करो तो चक्रवर्ती राजा
बन जायेंगे । भगवान् बच्चों को भगवान्- भगवती बनायेंगे ना ।
परन्तु देहधारी को भगवान्- भगवती कहना रांग है । ब्रह्मा,
विष्णु और शिव का कितना सम्बन्ध है । यह ब्रह्मा फिर विष्णु
बनने वाला है और इसमें शिव की प्रवेशता है । सूक्ष्मवतन वालों
को फरिश्ता कहा जाता है । तुमको फरिश्ता बनना है,
साक्षात्कार होता है,
बाकी
कुछ है नहीं । साइलेन्स,
मूवी
और यहाँ टाँकी । यह है डिटेल । बाकी नटशेल में तो फिर भी कहते
हैं मनमनाभव मामेकम याद करो और सृष्टि चक्र को याद करो । यहाँ
बैठे हो तो भी शान्तिधाम,
सुखधाम को याद करो । इस पुराने दु :खधाम को भूल जाओ । यह है
बेहद का सन्यास बुद्धि से । उनका है हद का सन्यास । वह
निवृत्ति मार्ग वाले प्रवृत्ति मार्ग का ज्ञान दे न सके ।
राजा-रानी बनना प्रवृत्ति मार्ग है । वहाँ है ही सुख । वह तो
सुख को मानते ही नहीं । सन्यासी भी करोड़ों की अंदाज में हैं ।
उन्हों की परवरिश वा कमाई होती है गहस्थियों से । एक तो तुमने
दान-पुण्य में लगाया,
फिर
पाप का धन्धा किया तो पाप आत्मा बन पड़े । तुम बच्चे तो अभी
अविनाशी ज्ञान रत्नों की लेन-देन करते हो । वे धर्मशाला आदि
बनवाते हैं तो दूसरे जन्म में अच्छा फल मिलेगा । यह तो है बेहद
का बाप । यह है डायरेक्ट,
वह
है इन डायरेक्ट । ईश्वर अर्पणम करते हैं । अब भूख तो दोनों को
है नहीं । शिव बाबा तो दाता है,
उनको
भूख होगी क्या । श्रीकृष्ण दाता नहीं । बाप तो सबको देने वाला
है,
लेने
वाला नहीं है । एक देवे 10
पावे,
गरीब
2 रूपया देते हैं तो पदम् मिल जाते हैं (सुदामा का मिसाल) ।
भारत सोने की चिड़िया था ना । बाप ने कितना धनवान बनाया ।
सोमनाथ के मन्दिर में कितना अकीचार धन था । कितना लूटकर ले गये
। । बड़े-बड़े हीरे-जवाहर थे । अब तो देखने में भी नहीं आते,
कटकुट हो गये । फिर हिस्ट्री रिपीट होगी । वहाँ सब खानियां
तुम्हारे लिए भरपूर हो जायेंगी । हीरे जवाहर तो वहाँ जैसे
पत्थर मिसल रहते हैं । बाप अविनाशी ज्ञान रत्न देते हैं,
जिससे तुम अथाह धनवान बन जाते हो । तो मीठे-मीठे बच्चों को
कितनी खुशी होनी चाहिए । जितना पढ़ते रहेंगे,
खुशी
का पारा चढ़ता रहेगा । बड़ा इम्तहान पास करते हैं तो बुद्धि में
रहता है ना-यह पास कर फिर यह बनेंगे,
यह
करेंगे । तुम भी जानते हो यह देवता बनेंगे । यह तो जड़ चित्र
हैं । हम वहाँ चैतन्य बनेंगे । यह चित्र भी तुमने जो बनाये
कहाँ से आये?
दिन
दृष्टि से तुम देख आये हो । चित्र बड़े वन्डरफुल है । कोई
समझेंगे यह ब्रह्मा ने बनाये हैं । अगर यह कोई से सीखा होता तो
सिर्फ एक थोड़ेही सीखा होता,
और
भी सीखे हुए होते ना । यह कहते हैं मैं कुछ भी सीखा हुआ नहीं
हूँ । यह तो बाप ने दिव्य दृष्टि द्वारा बनावाये हैं । यह
चित्र सब श्रीमत से बने हुए हैं । यह मनुष्य मत के नहीं हैं ।
यह सब खलास हो जायेंगे । कुछ भी नाम निशान नहीं रहेगा । इस
सृष्टि का ही अन्त है । भक्ति की कितनी सामग्री है । यह नहीं
रहेगी । नई दुनिया में सब कुछ नया । तुम अनेक बार स्वर्ग के
मालिक बने हो फिर माया ने हराया है । माया विकारों को कहा जाता
है,
न कि
धन को । तुम बच्चे रावण की ज़ंजीर में आधाकल्प से फँसे हुए थे ।
रावण है सबसे पुराना दुश्मन । आधाकल्प उनका राज्य चलता है ।
लाखों वर्ष कह देने से फिर आधा- आधा का हिसाब ही नहीं निकलता ।
कितना फर्क है । तुमको तो बाप ने बताया है,
सारे
कल्प की आयु ही 5 हजार वर्ष है । 84 लाख योनियां तो हैं नहीं ।
यह बड़ा गपोड़ा है । सूर्यवंशी,
चन्द्रवंशी देवी-देवता इतने लाखों वर्ष राज्य करते थे क्या ।
यह बुद्धि काम नहीं करती । सन्यासी तो समझते हैं अभी हम अपने
को रांग मान लेवें तो सब फालोअर्स हमको छोड़ देंगे । रेवोल्युशन
हो जाए इसलिए अभी वो तुम्हारी मत पर चल अपनी राजाई नहीं
छोड़ेंगे । पिछाड़ी में कुछ समझेंगे,
अभी
नहीं । न साहूकार लोग ही ज्ञान लेंगे । बाप कहते हैं मैं गरीब
निवाज हूँ । साहूकार लोग कभी सरेन्डर होकर कर्मातीत अवस्था को
पा नहीं सकेंगे । बाप तो बड़ा जबरदस्त सर्राफ है । गरीबों का ही
लेंगे । साहूकारों का लेंवे तो फिर इतना देना पड़े । साहूकार
उठते ही मुश्किल हैं क्योंकि इसमें सब कुछ भूलना पड़ता है । कुछ
भी पास न रहे तब कर्मातीत अवस्था हो । साहूकार लोग तो भूल नहीं
सकेंगे । जिन्होंने कल्प पहले वर्सा लिया है वही लेंगे ।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1.
जैसे बाप प्यार का सागर है,
ऐसे
मास्टर प्यार का सागर बन प्यार से काम निकालना है । क्रोध नहीं
करना है । क्रोध कोई करे तो तुम्हें शान्त रहना है ।
2.
बुद्धि से इस पुरानी दु :ख की दुनिया को भूल
बेहद का सन्यासी बनना है । शान्तिधाम और सुखधाम को याद करना है
। अविनाशी ज्ञान रत्नों की लेन-देन करनी है ।
वरदान:-
रूहानी नशे द्वारा पुरानी दुनिया को भूलने वाले स्वराज्य सो
विश्व राज्य अधिकारी भव
!
संगमयुग पर जो बाप के वर्से के अधिकारी हैं वही स्वराज्य और
विश्व राज्य अधिकारी बनते हैं । आज स्वराज्य है कल विश्व का
राज्य होगा । आज कल की बात है,
ऐसी
अधिकारी आत्मा रूहानी नशे में रहती है और नशा पुरानी दुनिया
सहज भुला देता है । अधिकारी कभी कोई वस्तु के,
व्यक्ति के,
संस्कार के अधीन नहीं हो सकते । उन्हें हद की बातें छोडनी नहीं
पड़ती,
स्वतः छूट जाती हैं ।
स्लोगन:-
हर सेकेण्ड,
हर श्वाँस,
हर खजाने को सफल करने वाले ही सफलतामूर्त बनते हैं । 
ओम्
शान्ति |