01-03-15
प्रातः मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त
बापदादा”
रिवाइज
05-02-79
मधुबन
“मधुवन
निवासियों के साथ बाप-दादा की रूहरिहान”
आज
विशेष यादगार भूमि,
जिसकी महिमा आज भी भक्त लोग कर रहे हैं ऐसे महान भूमि वा महान
तीर्थ स्थान पर रहने वाले विशेष भाग्यशाली आत्माओं से मिलने
आये हैं । जैसे भूमि समर्थ है,
जिस
भूमि में आने से अनेक आत्माओं का व्यर्थ समाप्त हो जाता है ।
सब समर्थ बन जाते हैं,
अनेक
प्रकार के अनुभवों का खजाना सहज प्राप्त कर लेते हैं । ऐसी
भूमि जिस द्वारा जो वरदान चाहे वह वरदान याद और भूमि के आधार
से सहज ही पा सकते हैं । तो ऐसी भूमि के निवासी स्वयं क्या
होंगे?
भक्त
लोग इस दिव्य भूमि के वा श्रेष्ठ स्थान के दर्शन के लिए अब तक
भी तड़पते रहते हैं । ऐसे भूमि पर रहने वाले दर्शनीय मूर्त हैं?
जैसा
स्थान का महत्व है ऐसे ही स्थिति भी रहती है वा स्थिति से
स्थान की महिमा ज्यादा है?
दूर
रहने वाले सिर्फ मधुबन की स्मृति से ही समर्थ बन जाते हैं,
तो
मधुबन निवासी क्या होंगे?
जैसा
महत्व है वैसे ही महान हैं?
मधुबन स्थूल सूक्ष्म प्राप्तियों का भण्डारा है । तो उसी
अनुसार सभी अपनी स्पीड और स्टेज श्रेष्ठ समझते हो?
मधुबन निवासियों को जो साधन है,
संग
है,
भूमि
के महत्व का सहयोग है,
वायुमण्डल का सहज साधन है उसी प्रमाण सिद्धि स्वरूप हो?
वर्ष
बीते,
यह
वर्ष भी बीत गया,
नया
वर्ष चालू हो गया इसका भी मास पूरा हो गया,
एक
मास की रिजल्ट में भी अनुभव क्या रहा?
चढ़ती
कला का अनुभव रहा?
हर
कदम जमा करने वाला अर्थात् समर्थ रहा?
स्वयं के प्रति और सर्व के प्रति विघ्न-विनाशक रहे?
जबकि
समय समीप आ रहा है तो चारों ही सबजेक्ट में मार्क्स चाहिए ।
जैसे सेवा के लिए सभी के मुख से एक ही आवाज निकलता है कि
सेवाधारी बहुत अच्छे हैं,
वैसे
ही ज्ञान,
योग
और धारणा युक्त भी हों । जैसे टोटल वायुमण्डल में स्वर्ग का
अनुभव करते हैं,
वैसे
व्यक्तिगत भी स्वर्ग वाले अर्थात् सर्व प्राप्ति स्वरूप अनुभव
करें । चलते फिरते एक दो को फरिश्ता नजर आये । अच्छा ।
सेवाओं प्रति इशारे :-
इस
वर्ष सभी वर्ग वालों को सम्पर्क में लाओ । ऐसे सम्पर्क में हो
जो अपनी अथॉरिटी से इशारा मिलते ही सब कार्य सम्पन्न कर दे ।
समय पर सम्पर्क करते हो,
बाद
में सम्पर्क हल्का हो जाता है,
अभी
सम्पर्क बढ़ाओ । जैसे शुरू में लक्ष्य रहता था कि हरेक का भाग्य
जरूर बनाना है,
वैसे
अब लक्ष्य हो कि हर वर्ग की आत्माओं को सम्पर्क में लाकर विशेष
सेवा के अर्थ निमित्त बनाकर सहयोग लें । अभी सभी स्थानों पर
मध्यम क्यालिटी है,
लेकिन आखरीन तो सब तक पहुँचना है,
ऐसी
विशेष आत्मा निकले जो एक द्वारा अनेकों को सन्देश प्राप्त हो
जाए । उमंग-उत्साह पैदा हो जाए तब तो क्यू लगेगी । इस वर्ष यह
क्वालिटी की सर्विस होनी चाहिए । विश्व पिता का टाइटिल है तो
विश्व में तो वैरायटी चाहिए ना । नास्तिक भी हो तो भी सम्पर्क
में जरूर आये । नई विश्व की स्थापना के लिए सब प्रकार के बीज
चाहिए,
तब
विश्व कल्याणकारी बन सकेंगे । धर्म,
राज्य के नेतायें भी इतना जरूर माने कि इन्हों का परिवर्तन और
जो विधि है,
वह
बहुत अच्छी है । धर्मनेतायें भी ऐसे अनुभव कर सहयोग में आयेंगे
। अच्छा -
टीचर्स के साथ मुलाकात
:-
सभी
टीचर्स विशेष सेवाधारी अर्थात् बाप को अपनी वाणी द्वारा और
कर्म द्वारा प्रत्यक्ष करने वाली हो ना । प्रत्यक्ष करना ही
विशेष सेवाधारियों का कर्तव्य है - अब तक जो किया वह यथाशक्ति
नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार बहुत अच्छा किया लेकिन अब तक रिजल्ट
में आत्माओं को यह अनुभव - कि यह महान आत्मायें हैं,
महान
जीवन वाली हैं,
यह
अनुभव कोई-कोई आत्माओं ने किया और वर्णन भी करते हैं लेकिन अब
बाकी क्या रहा?
बाप
ने जीवन बनाकर बच्चों को आगे किया जो जीवन की महिमा करते रहते
लेकिन अब बच्चों का कर्तव्य क्या है?
जो
बाप बैकबोन है,
गुप्तरूप में पार्ट बजा रहे हैं,
बाप
को प्रत्यक्ष करना है,
सुनाने वालों को पहचानते हैं,
लेकिन बनाने वाला अभी भी गुप्त है तो अब बनाने वाले को
प्रत्यक्ष करना अर्थात् विजय का झण्डा लहराना है । विशेष जिस
समय स्टेज पर आते हो उस समय स्वयं भी बाप के स्नेह और प्राप्ति
में लवलीन स्वरूप हो - जैसे लौकिक रीति से भी कोई किसके स्नेह
में लवलीन होता है तो चेहरे से,
नयनों से,
वाणी
से अनुभव होता है कि यह लवलीन है,
आशिक
है । ऐसे जब स्टेज पर आते हो तो जितना अपने अन्दर बाप का स्नेह
इमर्ज होगा उतना स्नेह का बाण औरों को भी स्नेह में घायल कर
देगा । भाषण की लिंक सोचना,
प्याइन्ट्स दुहराना,
यह
स्वरूप नहीं हो लेकिन स्नेह और प्राप्ति का सम्पन्न स्वरूप हो,
अथॉरिटी हो - जिस चीज की अथॉरिटी होते हैं उनको सोचना नहीं
पड़ता है । सोचा हुआ ही होता है । स्टेज पर आने के पहले मनन
करके बुद्धि में पहले से ही टापिक का स्पष्टीकरण कर लेना चाहिए
। उस समय इस अटेंशन में नहीं रहना चाहिए । टापिक तैयार होगी तो
टापिक की भी अथॉरिटी हो बोलेंगे । प्याइंट को ही सोचते रहेंगे
तो अथॉर्टी अनुभव नहीं होगी । पहले स्नेह और प्राप्ति स्वरूप
हो - दूसरा जब बोलना शुरू करते हो तो एक अन्दर की अथॉरिटी और
बोल में पहले दिल की आवाज से बाप की महिमा हो । जैसे दिन है
शिवरात्रि का,
तो
शिवरात्रि अर्थात् बाप को प्रत्यक्ष करने का दिन इसी को ही
परमात्म-बाम्ब कहा जाता । जो अन्दर में समाया हुआ है वह लोगों
को प्रत्यक्ष दिखाई दे । यह है बाम्ब का फटना । जैसे बाम्ब
फटता है तो क्या करता है?
सबको
अग्नि में जला देता है । तो यह परमात्म-बाम्ब अर्थात् स्नेह का
बाम्ब,
सम्बन्ध जोड़ने का बाम्ब,
दिल
के आवाज से महिमा करने का बाम्ब,
लगन
में मगन की आग में सभी को हिला दे । जब बाम्ब फटता है तो सब
हिल जाते हैं ना । तो सबकी बुद्धि को हिलावे यह किसकी महिमा
है! यह किसकी अथॉरिटी से बोल रहे हैं,
यह
क्या और किसका सन्देश दे रहे हैं । अथॉरिटी भी हो,
मधुरता भी हो । शब्दों की मधुरता हो लेकिन अन्दर समाई हुई
अथॉरिटी हो । शब्द भी रहमदिल की भावना के हों । स्पष्ट भी करते
रहें लेकिन स्पष्ट करते हुए,
बाप
की महिमा करते हुए सम्बन्ध भी जोड़ते जायें । हम यह क्यों कहते,
इससे
क्या प्राप्ति होगी,
हम
लोगों का अनुभव क्या है! एक घड़ी की भी प्राप्ति क्या है! ऐसे
बीच-बीच में निजी अनुभव का आवाज लगे । सिर्फ भाषण नहीं लगे,
लगन
में मगन मूर्त अनुभव हो । यह नवीनता है । लोग कहते हैं लेकिन
स्वरूप नहीं बनते,
आपका
बोल और स्वरूप दोनों साथ-साथ हो । स्पष्ट भी हो,
स्नेह भी हो,
नम्रता भी,
मधुरता भी और महानता भी हो,
सत्यता भी हो लेकिन स्वरूप की नम्रता भी हो,
इसी
रूप से बाप को प्रत्यक्ष करना है । निर्भय हो लेकिन बोल
मर्यादा के अन्दर हों । दोनों बातों का बैलेन्स हो - जहाँ
बैलेन्स होता है वहाँ कमाल दिखाई देती है और वह शब्द कड़े नहीं,
मीठे
लगते हैं तो अथॉरिटी और नम्रता दोनों के बैलेन्स की कमाल दिखाओ
। इसको कहा जाता है बाप की प्रत्यक्षता का साधन । जैसे झूठे
शास्त्रों की अथॉरिटी वाले भी कितनी अथॉरिटी से बोलते हैं । जो
बिल्कुल असत्य बात उसको कैसे सिद्ध कर बताते हैं । न सिर्फ
सिद्ध करते हैं लेकिन मनवाते भी हैं,
सतवचन महाराज कहलवाते भी हैं,
जब
वह झूठ की अथॉरिटी वाले भी इतना प्रभाव डाल सकते,
यह
तो अनुभव के बोल हैं,
प्राप्ति स्वरूप के बोल हैं । बाप से सम्बन्ध है उसकी बातें
हैं,
तो
क्यों नहीं कहलवाएंगे वा मनवाएंगे । तो अब समझा क्या करना है!
परिचय को पूरा स्पष्ट करना है - एक प्यॉइंट सुनाकर बाप के तरफ
अटेंशन खिंचवाओ,
सारी
प्यॉइंटस बोलकर बाप की महिमा के बोल,
बोल
करके बाप तरफ अटेंशन खिंचवाओ,
बार-बार पत्थर पर स्नेह का पानी डालते जाओ तब यह पत्थर पानी
होगा । और जितना हो सके साइलेन्स का प्रभाव हो । रूप रेखा ही
अलौकिक हो,
सिम्पुल,
स्वच्छ,
रूहानियत वा प्योरिटी के वायब्रेशन हो । सुनने वाली जो सहयोगी
ब्राह्मण आत्मायें होती उन्हों में भी वायुमण्डल को बनाने का
संकल्प हो । जैसे अगरबत्ती वायुमण्डल को परिवर्तन कर देती वैसे
सब ब्राह्मण आत्माओं की वृत्ति रहम की वृत्ति अगरबत्ती का काम
करे - जो आने से ही उनको महसूस हो यह सभा कोई अलौकिक सभा है ।
अच्छा - स्नेह मिलन से स्नेह की झोली भरकर जायेंगे और फिर सबको
स्नेह बाँट देंगे । बाप का स्नेह,
ऐसा
स्नेह स्वरूप हो जायेंगे जो सबको आपके चित्र,
चलन
से बाप का स्नेह नजर आये । ऐसा मिलन मना रहे हो ना । स्नेह
मिलन अर्थात् दृढ़ संकल्प द्वारा स्वपरिवर्तन और सबके परिवर्तन
के सहयोगी बनना । यह है स्नेह मिलन की विशेषता । स्नेह मिलन
अर्थात् प्रैक्टिकल संस्कार मिलन । जैसे मिलन में हाथ मिलाते
हैं ना । यह मिलन है संस्कार मिलन । अगर सबके संस्कार मिलकर
बाप समान हो जाएं,
एक
ही सबके संस्कार हो जाए तो क्या होगा?
एक
राज्य,
एक
धर्म वाली दुनिया आ जायेगी । यहाँ एक होना ही एक धर्म एक राज्य
की दुनिया को लाने का आधार बनेगी । स्नेह मिलन अर्थात् कम्पलेन
खत्म और कम्पलीट होकर जायें । उल्हने खत्म उल्लास में आ जायें
- यह है स्नेह मिलन ।
मधुबन विदेशी भाई बहनों से मुलाकात :-
बापदादा सभी लवलीन रहने वाले बच्चों को देख हर्षित होते हैं -
जो सदा लवलीन रहते उसकी निशानी क्या होती?
लवलीन आत्मा को याद में रहने का पुरूषार्थ नहीं करना पड़ेगा,
लेकिन स्वत: योगी होगा । सिवाय बाप और सेवा के कुछ दिखाई नहीं
देगा । जब बुद्धि को एक ही ठिकाना मिल जाता तो बुद्धि का भटकना
स्वत: ही बन्द हो जाता । लवलीन आत्मा सर्व प्राप्तियों में रह
औरों को प्राप्ति कराने में तत्पर होगी,
इसलिए सदा मायाजीत होगी । लवलीन रहने वाले हो या मेहनत करने
वाले हो?
विदेश में रहने वाली आत्माओं को विशेष विदेश की सेवा- अर्थ
योगी जीवन का अनुभव सेवा में सफलता मूर्त बना सकता है ।
जितना-जितना अपनी स्टेज को पावरफुल बनायेंगे,
पावरफुल अर्थात् सर्व प्राप्ति के अनुभवी मूर्त तब सफलतामूर्त
होंगे क्योंकि दिन प्रतिदिन वैरायटी प्रकार की इच्छा वाली
आत्मायें आपके सामने आयेंगी तो सर्व इच्छाओं को पूर्ण करने
वाले तब बन सकेंगे जब सर्व प्राप्ति के अनुभवी स्वरूप होंगे ।
आपको सभी ढूंढने आयेंगे कि सुख-शान्ति के मास्टर दाता कहाँ है!
जब अपने पास सर्वशक्तियों का स्टाक होगा तब तो सबको सन्तुष्ट
कर सकेंगे । जैसे विदेश में रिवाज है एक ही स्टोर में सब चीजें
मिल जाती हैं । ऐसे आपको भी बनना है । ऐसे भी नहीं कि सहन
शक्ति हो लेकिन सामना करने की शक्ति नहीं । सर्वशक्तियों का
स्टाक चाहिए तब सफलता मूर्त बन सकेंगे । अभी विदेश में मन्सा
सेवा का वातावरण और भी पावरफुल बनाओ क्योंकि वहाँ की वैरायटी
आत्मायें वायुमण्डल से प्रभावित होंगी । पहले वायब्रेशन उन्हों
को खींचेगा फिर नॉलेज सुन सकेंगे । मन्सा सेवा करने के लिए सदा
एकाग्रता का अभ्यास चाहिए । व्यर्थ समाप्त हो तब मन्सा सेवा कर
सकेंगे । मधुबन से मन्सा पावरफुल सर्विस का अनुभव करके और वहाँ
के लिए अभ्यासी बनकर जाओ । जो भी देखे वह अनुभव करे कि यह
शक्तियों की खान आये हुए हैं । जो शक्तियाँ अनुभव में आ गई तो
अनुभव सदाकाल जीवन का अंग होता है,
ज्यादा से ज्यादा अनुभवों की खान बनकर जा रहे हैं?
जैसे
बाप परफेक्ट हैं तो बच्चे भी बाप समान,
कोई
डिफेक्ट न हो । अच्छा ।
सेवाधारी ग्रुप से :-
सेवाधारी अर्थात् बाप समान क्योंकि बाप भी सेवाधारी बनकर आते
हैं । बाप का स्वरूप ही है विश्व सेवक । जैसे बाप विश्व
सेवाधारी हैं वैसे आप सब भी बाप समान विश्व सेवाधारी हो! शरीर
द्वारा स्थूल सेवा करते हो लेकिन मन्सा द्वारा विश्व परिवर्तन
की सेवा में तत्पर रहते । तन-मन दोनों में सेवाधारी । एक ही
समय पर दोनों ही इकट्ठी सेवा करते हो । ऐसे नहीं तन की सेवा
करते तो मन की नहीं कर सकते । दोनों ही एक समय पर करने से डबल
प्राप्ति होगी । डबल सेवाधारी ही डबल ताजधारी बनते हैं । अगर
सिंगल सेवा करेंगे तो डबल ताज नहीं मिलेगा । कर्म करते हुए चेक
करो डबल सेवा के बदले सिंगल तो नहीं हो गई?
अटेंशन रखते-रखते संस्कार बन जायेंगे । जो मन्सा और कर्मणा
दोनों सेवा साथ-साथ करते हैं तो देखने वाले को अनुभव होगा कि
यह कोई अलौकिक शक्ति है । लोग स्वत: ही आपके पीछे होंगे । इसी
अभ्यास को आगे बढ़ाओ । इतना अभ्यास बढ़ाओ जो नैचुरल और निरन्तर
हो जाए । अच्छा ।
वरदान:-
ब्रह्म-महूर्त के समय वरदान लेने और दान देने वाले बाप समान
वरदानी,
महादानी
भव ! 
ब्रहम महूर्त के समय विशेष ब्रह्मलोक निवासी बाप ज्ञान सूर्य
की लाईट और माइट की किरणें बच्चों को वरदान रूप में देते हैं ।
साथ-साथ ब्रह्मा बाप भाग्य विधाता के रूप में भाग्य रूपी अमृत
बाँटते हैं सिर्फ बुद्धि रूपी कलष अमृत धारण करने योग्य हो ।
किसी भी प्रकार का विघ्न या रूकावट न हो,
तो
सारे दिन के लिए श्रेष्ठ स्थिति वा कर्म का महूर्त निकाल सकते
हो क्योंकि अमृतवेले का वातावरण ही वृत्ति को बदलने वाला होता
है इसलिए उस समय वरदान लेते हुए दान दो अर्थात् वरदानी और
महादानी बनो ।
स्लोगन:-
क्रोधी
का काम है क्रोध करना और आपका काम है स्नेह देना । 
ओम्
शान्ति |