09-01-15
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - बाप का पार्ट एक्यूरेट है,
वह अपने समय पर आते हैं,
ज़रा भी फर्क नहीं पड़ सकता,
उनके आने का यादगार शिवरात्रि खूब धूमधाम से मनाओ”
प्रश्न:-
किन
बच्चों के विकर्म पूरे-पूरे विनाश नहीं हो पाते?
उत्तर:-
जिनका
योग ठीक नहीं है,
बाप
की याद नहीं रहती तो विकर्म विनाश नहीं हो पाते । योगयुक्त न
होने से इतनी सद्गति नहीं होती,
पाप
रह जाते हैं फिर पद भी कम हो जाता है । योग नहीं तो नाम-रूप
में फंसे रहते हैं,
उनकी
ही बातें याद आती रहती हैं,
वह
देही- अभिमानी रह नहीं सकते ।
गीत:-
यह
कौन आज आया सवेरे सवेरे.. 
ओम्
शान्ति |
सवेरा कितने बजे होता है?
बाबा
सवेरे कितने बजे आते हैं?
(कोई
ने कहा 3 बजे,
कोई
ने कहा 4,
कोई
ने कहा संगम पर,
कोई
ने कहा 12 बजे) बाबा एक्यूरेट पूछते हैं । 12 को तो तुम सवेरा
नहीं कह सकते हो । 12 बजकर एक सेकण्ड हुआ,
एक
मिनट हुआ तो ए .एम. अर्थात् सवेरा शुरू हुआ । यह बिल्कुल सवेरा
है । ड्रामा में इनका पार्ट बिल्कुल एक्यूरेट है । सेकण्ड की
भी देरी नहीं हो सकती,
यह
ड्रामा अनादि बना हुआ है । 12 बजकर एक सेकण्ड जब तक नहीं हुआ
है तो ए .एम नहीं कहेंगे,
यह
बेहद की बात है । बाप कहते हैं मैं आता हूँ सवेरे-सवेरे ।
विलायत वाली का ए एम.,
पी.एम एक्यूरेट चलता है । उन्हों की बुद्धि फिर भी अच्छी है ।
वह इतना सतोप्रधान भी नहीं बनते हैं,
तो
तमोप्रधान भी नहीं बनते हैं । भारतवासी ही 100
परसेन्ट सतोप्रधान फिर 100 परसेन्ट
तमोप्रधान बनते हैं । तो बाप बड़ा एक्यूरेट है । सवेरे अर्थात्
12 बजकर एक मिनट,
सेकण्ड का हिसाब नहीं रखते । सेकण्ड पास होने में मालूम भी
नहीं पड़ता । अब यह बातें तुम बच्चे ही समझते हो । दुनिया तो
बिल्कुल घोर अन्धियारे में हैं । बाप को सभी भक्त दु :ख में
याद करते हैं-पतित- पावन आओ । परन्तु वह कौन है?
कब
आते हैं?
यह
कुछ भी नहीं जानते । मनुष्य होते हुए एक्यूरेट कुछ नहीं जानते
क्योंकि पतित तमोप्रधान है । काम भी कितना तमोप्रधान है । अभी
बेहद का बाप ऑर्डीनेन्स निकालते हैं - बच्चे कामजीत जगतजीत बनो
। अगर अभी पवित्र नहीं बनेंगे तो विनाश को पायेंगे । तुम
पवित्र बनने से अविनाशी पद को पायेंगे । तुम राजयोग सीख रहे हो
ना । स्लोगन में भी लिखते हैं
' '
बी
होली बी योगी ।
' '
वास्तव में लिखना चाहिए बी राजयोगी । योगी तो कॉमन अक्षर है ।
ब्रह्म से योग लगाते हैं,
वह
भी योगी ठहरे । बच्चा बाप से,
सी
पुरूष से योग लगाती हैं परन्तु यह तुम्हारा हैं राजयोग । बाप
राजयोग सिखलाते हैं इसलिए राजयोग लिखना ठीक हैं । बी होली एण्ड
राजयोगी । दिन-प्रतिदिन करेक्शन तो होती रहती है । बाप भी कहते
हैं आज तुमको गुह्य से गुह्य बातें सुनाता हूँ । अब शिव जयन्ती
भी आने वाली है । शिव जयन्ती तो तुमको अच्छी रीति मनानी है ।
शिव जयन्ती पर तो बहुत अच्छी रीति सर्विस करनी है । जिनके पास
प्रदर्शनी है,
सभी
अपने- अपने सेण्टर पर अथवा घर में शिव जयन्ती अच्छी रीति मनाओ
और लिख दो-शिवबाबा गीता ज्ञान दाता बाप से बेहद का वर्सा लेने
का रास्ता आकर सीखो । भल बत्तियाँ आदि भी जला दो । घर-घर में
शिव जयन्ती मनानी चाहिए । तुम ज्ञान गंगाये हो ना । तो हर एक
के पास गीता पाठशाला होनी चाहिए । घर-घर में गीता तो पढ़ते हैं
ना । पुरूषों से भी मातायें भक्ति में तीखी होती हैं । ऐसे
कुटुम्ब (परिवार) भी होते हैं जहाँ गीता पढ़ते हैं । तो घर में
भी चित्र रख देने चाहिए । लिख दे कि बेहद के बाप से आकर फिर से
वर्सा लो ।
यह
शिव जयन्ती का त्योहार वास्तव में तुम्हारी सच्ची दीपावली है ।
जब शिव बाप आते हैं तो घर-घर में रोशनी हो जाती है । इस
त्योहार को खूब बत्तियाँ आदि जलाकर रोशनी कर मनाओ । तुम सच्ची
दीपावली मनाते हो । फाइनल तो होना है सतयुग में । वहाँ घर-घर
में रोशनी ही रोशनी होगी अर्थात् हर आत्मा की ज्योत जगी रहती
है । यहाँ तो अन्धियारा है । आत्मायें आसुरी बुद्धि बन पड़ी है
। वहाँ आत्मायें पवित्र होने से दैवी बुद्धि रहती है । आत्मा
ही पतित,
आत्मा ही पावन बनती है । अभी तुम वर्थ नाट ए पेनी से पाउण्ड बन
रहे हो । आत्मा पवित्र होने से शरीर भी पवित्र मिलेगा । यहाँ
आत्मा अपवित्र है तो शरीर और दुनिया भी इमप्योर है । इन बातों
को तुम्हारे में से कोई थोड़े हैं जो यथार्थ रीति समझते हैं और
उनके अन्दर खुशी होती है । नम्बरवार पुरूषार्थ तो करते रहते
हैं । ग्रहचारी भी होती है । कभी राहू की ग्रहचारी बैठती है तो
आक्षर्यवत् भागन्ती हो जाते हैं । बृहस्पति की दशा से बदलकर
ठीक राहू की दशा बैठ जाती है । काम विकार में गया और राहू की
दशा बैठी । मल्लयुद्ध होती है ना । तुम माताओं ने देखा नहीं
होगा क्योंकि मातायें होती हैं घर की घरेत्री । अब तुमको मालूम
है भ्रमरी को घरेत्री अर्थात् घर बनाने वाली कहते हैं । घर
बनाने का अच्छा कारीगर है,
इसलिए घरेत्री नाम है । कितनी मेहनत करती है
'
वो
भी पक्का मिस्री है । दो-तीन कमरा बनाती है । 3 - 4 कीड़े ले
आती है । वैसे तुम भी ब्राह्मणियॉ हो । चाहे 1 - 2 को बनाओ,
चाहे
10
- 12 को,
चाहे
100
को,
चाहे
500
को बनाओ । मण्डप आदि बनाते हो,
यह
भी घर बनाना हुआ ना । उनमें बैठ सबको भूँ- भूँ करते हो । फिर
कोई तो समझकर कीड़े से ब्राह्मण बनते हैं,
कोई
सड़ा हुआ निकलते हैं अर्थात् इस धर्म के नहीं हैं । इस धर्म
वालों को ही पूरी रीति टच होगा । तुम तो फिर भी मनुष्य हो ना ।
तुम्हारी ताकत उनसे (भ्रमरी से) तो जास्ती है । तुम 2 हजार के
बीच में भी भाषण कर सकते हो । आगे चल 4 - 5 हजार की सभा में भी
तुम जायेंगे । भ्रमरी की तुम्हारे से भेंट है । आजकल सन्यासी
लोग भी बाहर विदेशों में जाकर कहते हैं हम भारत का प्राचीन
राजयोग सिखाते हैं । आजकल मातायें भी गेरू कफनी पहनकर जाती हैं,
फॉरेनर्स को ठगकर आती हैं । उनको कहती हैं भारत का प्राचीन
राजयोग भारत में चलकर सीखो । तुम ऐसे थोड़ेही कहेंगे कि भारत
में चलकर सीखो । तुम तो फॉरेन में जायेंगे तो वहाँ ही बैठ
समझायेंगे - यह राजयोग सीखो तो स्वर्ग में तुम्हारा जन्म हो
जायेगा । इसमें कपड़ा आदि बदलने की बात नहीं है । यहाँ ही देह
के सब सम्बन्ध भूल अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो । बाप ही
लिबरेटर गाइड है,
सबको
दु :ख से लिबरेट करते हैं ।
अभी
तुमको सतोप्रधान बनना है । तुम पहले गोल्डन एज में थे,
अब
आइरन एज में हो । सारी वर्ल्ड,
सभी
धर्म वाले आइरन एज में हैं । कोई भी धर्म वाला मिले,
उनको
कहना है बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो तो तुम
पावन बन जायेंगे,
फिर
मैं साथ ले जाऊंगा । बस,
इतना
ही बोलो,
जास्ती नहीं । यह तो बहुत सहज है । तुम्हारे शास्त्रों में भी
है कि घर- घर में सन्देश दिया । कोई एक रह गया तो उसने उल्हना
दिया मुझे कोई ने बताया नहीं । बाप आये हैं,
तो
पूरा ढिंढोरा पीटना चाहिए । एक दिन जरूर सबको पता पड़ेगा कि बाप
आये हैं - शान्तिधाम-सुखधाम का वर्सा देने । बरोबर जब डिटीजम
था तो और कोई धर्म नहीं था । सभी शान्तिधाम में थे । ऐसे-ऐसे
ख्यालात चलने चाहिए,
स्लोगन बनाने चाहिए । बाप कहते हैं देह सहित सब सम्बन्धों को
छोड़ो । अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो तो आत्मा पवित्र
बन जायेगी । अभी आत्मायें अपवित्र हैं । अभी सबको पवित्र बनाए
बाप गाइड बन वापिस ले जायेंगे । सब अपने- अपने सेक्शन में चले
जायेंगे । फिर डीटी धर्म वाले नम्बरवार आयेंगे । कितना सहज है
। यह तो बुद्धि में धारण होना चाहिए । जो सर्विस करते हैं,
वह
छिपे नहीं रह सकते । डिस-सर्विस करने वाले भी छिप नहीं सकते ।
सर्विसएबुल को तो बुलाते हैं । जो कुछ भी ज्ञान नहीं सुना सकते
उनको थोड़ेही बुलायेंगे । वह तो और ही नाम बदनाम कर देंगे ।
कहेंगे बी.के. ऐसे होते हैं क्या?
पूरा
रेसपॉन्ड भी नहीं करते । तो नाम बदनाम हुआ ना । शिवबाबा का नाम
बदनाम करने वाले ऊँच पद पा न सके । जैसे यहाँ भी कोई तो
करोड़पति हैं,
पद्मपति भी हैं,
कोई
तो देखो भूख मर रहे हैं । ऐसे कोर्स भी आकर प्रिन्स बनेंगे ।
अभी तुम बच्चे ही जानते हो वही श्रीकृष्ण जो स्वर्ग का प्रिन्स
था वह फिर बेगर बनते हैं,
फिर
बेगर टू प्रिन्स बनेंगे । यह बेगर थे ना,
थोड़ा-बहुत कमाया - वह भी तुम बच्चों के लिए । नहीं तो तुम्हारी
सम्भाल कैसे हो?
यह
सब बातें शास्त्रों में थोड़ेही हैं । शिवबाबा ही आकर बतलाते
हैं । बरोबर यह गाँव का छोरा था | नाम कोई श्रीकृष्ण नहीं था ।
यह आत्मा की बात है इसलिए मनुष्य मुंझे हुए हैं । तो बाबा ने
समझाया शिवजयन्ती पर हर एक घर-घर में चित्रों पर सर्विस करें ।
लिख दें कि बेहद के बाप से 21 जन्मों के लिए स्वर्ग की बादशाही
सेकण्ड में कैसे मिलती है,
सो
आकर समझो । जैसे दीवाली पर मनुष्य बहुत दुकान निकाल बैठते हैं,
तुमको फिर अविनाशी ज्ञान रत्नों का दुकान निकाल बैठना है ।
तुम्हारा कितना अच्छा सजाया हुआ दुकान होगा । मनुष्य दीवाली पर
करते हैं,
तुम
फिर शिवजयन्ती पर करो । जो शिवबाबा सबके दीप जगाते हैं,
तुमको विश्व का मालिक बनाते हैं । वह तो लक्ष्मी से विनाशी धन
मांगते हैं और यहाँ जगत अम्बा से तुमको विश्व की बादशाही मिलती
है । यह राज बाप समझाते हैं । बाबा कोई शास्त्र थोड़ेही उठाते
हैं । बाप कहते हैं मैं नॉलेजफुल हूँ ना । हाँ,
यह
जानते हैं,
फलाने-फलाने बच्चे सर्विस बहुत अच्छी करते हैं इसलिए याद पड़ती
है । बाकी ऐसे नहीं कि एक-एक के अन्दर को बैठ जानता हूँ । हाँ,
कोई
समय पता पड़ जाता है-यह पतित हैं,
शक
पड़ता है । उनकी शक्ल ही मायूस हो जाती है तो ऊपर से बाबा भी
कहला भेजता है,
इनसे
पूछो । यह भी ड्रामा में नूध है । जो कोई-कोई के लिए बताते हैं,
बाकी
ऐसे नहीं सबके लिए बतायेंगे । ऐसे तो ढेर हैं,
काला
मुंह करते हैं । जो करेंगे सो अपना ही नुकसान करेंगे । सच
बतलाने से कुछ फायदा होगा,
नहीं
बताने से और ही नुकसान करेंगे । समझना चाहिए बाबा हमको गोरा
बनाने आये हैं और हम फिर काला मुंह कर लेते हैं! यह है ही
काँटों की दुनिया । ह्युमन काँटे हैं । सतयुग को कहा जाता है
गार्डन ऑफ अल्लाह और यह है फारेस्ट इसलिए बाप कहते हैं जब-जब
धर्म की ग्लानि होती है,
तब
मैं आता हूँ । फर्स्ट नम्बर श्रीकृष्ण देखो फिर 84 जन्मों के
बाद कैसा बन जाता है । अभी सब हैं तमोप्रधान । आपस में लड़ते
रहते हैं । यह सब ड्रामा में है । फिर स्वर्ग में यह कुछ नहीं
होगा । प्याइंटस तो ढेर की ढेर हैं,
नोट
करनी चाहिए । जैसे बैरिस्टर लोग भी प्याइंटस का बुक रखते हैं
ना । डॉक्टर लोग भी किताब रखते हैं,
उसमें देखकर दवाई देते हैं । तो बच्चों को कितना अच्छी रीति
पढ़ना चाहिए,
सर्विस करनी चाहिए । बाबा ने नम्बरवन मन्त्र दिया है मन्मनाभव
। बाप और वर्से को याद करो तो स्वर्ग के मालिक बन जायेंगे ।
शिव जयन्ती मनाते हैं । परन्तु शिवबाबा ने क्या किया?
जरूर
स्वर्ग का वर्सा दिया होगा । उसको 5 हजार वर्ष हुए । स्वर्ग से
नर्क,
नर्क
से स्वर्ग बनेगा ।
बाप
समझाते हैं-बच्चे,
योगयुक्त बनो तो तुम्हें हर बात अच्छी तरह समझ में आयेगी ।
परनु योग ठीक नहीं है,
बाप
की याद नहीं रहती तो कुछ समझ नहीं सकते । विकर्म भी विनाश नहीं
हो पाते । योगयुक्त न होने से इतनी सद्गति भी नहीं होती हैं,
पाप
रह जाते हैं । फिर पद भी कम हो जाता है । बहुत हैं,
योग
कुछ भी नहीं है,
नाम-रूप में फँसे रहते हैं,
उनकी
ही याद आती रहेगी तो विकर्म विनाश कैसे होंगे?
बाप
कहते हैं देही- अभिमानी बनो । अच्छा
!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
शिव
जयन्ती पर अविनाशी ज्ञान रत्नों की दुकान निकाल सेवा करनी है ।
घर-घर में रोशनी कर सबको बाप का परिचय देना है ।
2.
सच्चे
बाप से सच्चा होकर रहना है,
कोई भी विकर्म करके छिपाना नहीं है । ऐसा योगयुक्त बनना है,
जो कोई भी पाप रह न जाये । किसी के भी नाम-रूप में नहीं फँसना
है ।
वरदान:-
दातापन की भावना द्वारा इच्छा मात्रम अविद्या की स्थिति का
अनुभव करने वाले तृप्त आत्मा
भव ! 
सदा
एक लक्ष्य हो कि हमें दाता का बच्चा बन सर्व आत्माओं को देना
है,
दातापन की भावना रखने से सम्पन्न आत्मा हो जायेंगे और जो
सम्पन्न होंगे वह सदा तृप्त होंगे । मैं देने वाले दाता का
बच्चा हूँ-देना ही लेना है,
यही
भावना सदा निर्विघ्न,
इच्छा मात्रम अविद्या की स्थिति का अनुभव कराती है । सदा एक
लक्ष्य की तरफ ही नजर रहे,
वह
लक्ष्य है बिन्दु और कोई भी बातों के विस्तार को देखते हुए
नहीं देखो,
सुनते हुए भी नहीं सुनो ।
स्लोगन:-
बुद्धि
वा स्थिति यदि कमजोर है तो उसका कारण है व्यर्थ संकल्प । 
अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए विशेष होमवर्क
(9)
बुद्धि रूपी पांव पृथ्वी पर न रहें । जैसे
कहावत है कि फरिश्तों के पांव पृथ्वी पर नहीं होते । ऐसे
बुद्धि इस देह रूपी पृथ्वी अर्थात् प्रकृति की आकर्षण से परे
रहे । प्रकृति को अधीन करने वाले बनो न कि अधीन होने वाले ।
ओम्
शान्ति |