18-01-15
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“पिताश्री
जी के पुण्य स्मृति दिवस पर प्रातः क्लास में सुनाने के लिए
बापदादा के मधुर अनमोल महावाक्य”
“मीठे
बच्चे - तुम्हारी चलन बहुत रॉयल होनी चाहिए तुम देवता बन रहे
हो तो लक्ष्य और लक्षण,
कथनी और करनी समान बनाओ”
गीत:-
तुम्हें पाके हमने जहान पा लिया है
.. 
ओम्
शान्ति |
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत सुना । अभी तो थोड़े बच्चे हैं
फिर अनेकानेक बच्चे हो जायेंगे । प्रजापिता ब्रह्मा को जानना
तो सभी को है ना । सभी धर्म वाले मानेंगे । बाबा ने समझाया है
वह लौकिक बाप भी हद के ब्रह्मा हैं । उन्हों का सरनेम से सिजरा
बनता है । यह फिर है बेहद का । नाम ही है प्रजापिता ब्रह्मा ।
वह हद के ब्रह्मा प्रजा रचते हैं,
लिमिटेड । कोई दो चार रचेंगे,
कोई
नहीं भी रचते । इनके लिए तो यह कह नहीं सकेंगे कि सन्तान नहीं
है । इनकी सन्तान तो सारी दुनिया है । बेहद के बापदादा दोनों
का मीठे-मीठे बच्चों में बहुत रूहानी लव है । बच्चों को कितना
लव से पढ़ाते हैं और क्या से क्या बनाते हैं! तो बच्चों को
कितना खुशी का पारा चढ़ा रहना चाहिए । खुशी का पारा तब चढ़ेगा जब
बाप को निरन्तर याद करते रहेंगे । बाप कल्प-कल्प बहुत प्यार से
बच्चों को पावन बनाने की सेवा करते हैं । 5 तत्वों सहित सबको
पावन बनाते हैं । कौड़ी से हीरे जैसा बनाते हैं । कितनी बड़ी
बेहद की सेवा है । बाप बच्चों को बहुत प्यार से शिक्षा भी देते
रहते हैं क्योंकि बच्चों को सुधारना बाप वा टीचर का ही काम है
। बाप की श्रीमत से ही तुम श्रेष्ठ बनते हो । यह भी बच्चों को
चार्ट में देखना चाहिए कि हम श्रीमत पर चलते हैं वा अपनी मनमत
पर?
श्रीमत से ही तुम एक्यूरेट बनेंगे । जितनी बाप से प्रीत बुद्धि
होगी उतनी गुप्त खुशी से भरपूर रहेंगे । अपनी दिल से पूछना है
हमको इतनी कापारी खुशी है?
अव्यभिचारी याद है?
कोई
तमन्ना तो नहीं है?
एक
बाप की याद है?
स्वदर्शन चक्र फिरता रहे तब प्राण तन से निकले । एक शिवबाबा
दूसरा न कोई । यही अन्तिम मन्त्र है ।
बाप
रूहानी बच्चों से पूछते हैं मीठे बच्चे,
जब
बापदादा को सामने देखते हो तो बुद्धि में आता है कि हमारा बाबा,
बाप
भी है,
शिक्षक भी है,
सतगुरू भी है । बाप हमको इस पुरानी दुनिया से ले जाते हैं नई
दुनिया में । यह पुरानी दुनिया तो अब खलास हुई कि हुई । यह तो
अब कोई काम की नहीं है । बाप कल्प-कल्प नई दुनिया बनाते हैं ।
हम कल्प-कल्प नर से नारायण बनते हैं । बच्चों को यह सिमरण कर
कितना हुल्लास में रहना चाहिए । बच्चे,
टाइम
बहुत थोड़ा है । आज क्या है कल क्या होगा । आज और कल का खेल है
इसलिए बच्चों को गफलत नहीं करनी है । तुम बच्चों की चलन बड़ी
रॉयल होनी चाहिए । अपने आपको देखना है देवताओं मिसल हमारी चलन
है?
देवताई दिमाग रहता है?
जो
लक्ष्य है वह बन भी रहे हैं या सिर्फ कथनी ही है?
जो
नॉलेज मिली है उसमें मस्त रहना चाहिए । जितना अन्तर्मुख हो इन
बातों पर विचार करते रहेंगे तो बहुत खुशी रहेगी । यह भी तुम
बच्चे जानते हो कि इस दुनिया से उस दुनिया में जाने का बाकी
थोड़ा समय है । जब उस दुनिया को छोड़ दिया फिर पिछाड़ी में क्यों
देखें! बुद्धियोग उस तरफ क्यों जाता?
यह
भी बुद्धि से काम लेना है । जब पार निकल गये फिर बुद्धि क्यों
जाती?
बीती
हुई बातों का चिन्तन मत करो । इस पुरानी दुनिया की कोई भी आश न
रहे । अब तो एक ही श्रेष्ठ आश रखनी है - हम तो चले सुखधाम ।
कहाँ भी ठहरना नहीं है । देखना नहीं है । आगे बढ़ते जाना है ।
एक तरफ ही देखते रहो तब ही अचल- अडोल स्थिर अवस्था रहेगी । समय
बहुत नाजुक होता जाता है,
इस
पुरानी दुनिया की हालतें बिगड़ती ही जाती हैं । तुम्हारा इससे
कोई कनेक्शन नहीं । तुम्हारा कनेक्शन है नई दुनिया से,
जो
अब स्थापन हो रही है । बाप ने समझाया है,
अभी
84 का चक्र पूरा हुआ । अब यह दुनिया खत्म होनी ही है,
इसकी
बहुत सीरियस हालत है । इस समय सबसे अधिक गुस्सा प्रकृति को आता
है इसलिए सब खलास कर देती है । अभी तुम जानते हो यह प्रकृति
अपना गुस्सा जोर से दिखायेगी - सारी पुरानी दुनिया को डुबो
देगी । फ्लडस होंगे । आग लगेगी । मनुष्य भखो मरेंगे ।
अर्थक्येक में मकान आदि सब गिर पड़ेंगे । यह सब हालतें सारी
दुनिया के लिए आनी है । अनेक प्रकार से मौत होगी । गैस के
ऐसे-ऐसे बाम्ब्स छोडेंगे - जिसकी बॉस (बदबू) से ही मनुष्य मर
जाए । यह सब ड्रामा प्लेन बना हुआ है । इसमें दोष किसी का भी
नहीं है । विनाश तो होने का ही है इसलिए तुम्हें इस पुरानी
दुनिया से बुद्धि का योग हटा देना है । अब तुम कहेंगे वाह
सतगुरू.... जिसने हमको यह रास्ता बताया है । हमारा सच्चा-सच्चा
गुरू बाबा एक ही है । जिसका नाम भक्ति में भी चला आता है ।
जिसकी ही वाह-वाह गाई जाती है । तुम बच्चे कहेंगे - वाह सतगुरू
वाह! वाह तकदीर वाह! वाह ड्रामा वाह! बाप के ज्ञान से हमको
सद्गति मिल रही है । तुम बच्चे निमित्त बने हो विश्व में
शान्ति स्थापन करने के । तो सबको यह खुशखबरी सुनाओ कि अब नया
भारत,
नई
दुनिया जिसमें लक्ष्मी-नारायण का राज्य था वह फिर से स्थापन हो
रहा है । यह दुःखधाम बदल सुखधाम बनना है । अन्दर में खुशी रहनी
चाहिए कि हम सुखधाम के मालिक बन रहे हैं । वहाँ ऐसे कोई नहीं
पूछेगा कि तुम राजी-खुशी हो?
तबियत ठीक है?
यह
इस दुनिया में पूछा जाता है क्योंकि यह है ही दु :ख की दुनिया
। तुम बच्चों से भी यह कोई पूछ नहीं सकता । तुम कहेंगे हम
ईश्वर के बच्चे,
तुम
हमसे क्या खुश खैराफत पूछते हो! हम तो सदैव राजी खुशी हैं ।
स्वर्ग से भी यहाँ जास्ती खुशी हैं क्योंकि स्वर्ग स्थापन करने
वाला बाप मिला तो सब कुछ मिला । परवाह थी पार ब्रह्म में रहने
वाले बाप की वह मिल गया,
बाकी
किसकी परवाह! यह सदैव नशा रहना चाहिए । बहुत रॉयल,
मीठा
बनना है । अपनी तकदीर को ऊंच बनाने का अभी ही समय है ।
पदमापदमपति बनने का मुख्य साधन है - कदम-कदम पर खबरदारी से
चलना । अन्तर्मुखी बनना । यह सदैव ध्यान रहे -
' '
जैसा
कर्म हम करेंगे हमको देख और करेंगे ।
' '
देह
अहंकार आदि विकारों का बीज तो आधाकल्प से बोया हुआ है । सारे
दुनिया में यह बीज है । अब उसको मर्ज करना है । देह- अभिमान का
बीज नहीं बोना है । अभी देही- अभिमानी का बीज बोना है ।
तुम्हारी अब है वानप्रस्थ अवस्था । मोस्ट बिलवेड बाप मिला है
उनको ही याद करना है । बाप के बदले देह को वा देहधारियों को
याद करना - यह भी भूल है | तुम्हें आत्म- अभिमानी बनने की,
शीतल
बनने की बहुत मेहनत करनी है ।
मीठे
बच्चे,
इस
अपनी लाइफ से तुम्हें कभी भी तंग नहीं होना चाहिए । यह जीवन
अमूल्य गाई हुई है,
इनकी
सम्भाल भी करनी है । साथ-साथ कमाई भी करनी है । यहाँ जितने दिन
रहेंगे,
बाप
को याद कर अथाह कमाई जमा करते रहेंगे । हिसाब-किताब चुक्तू
होता रहेगा इसलिए कभी भी तंग नहीं होना है । बच्चे कहते हैं
बाबा । सतयुग कब आयेगा?
बाबा
कहते बच्चे पहले तुम कर्मातीत अवस्था तो बनाओ । जितना समय मिले
पुरुषार्थ करो कर्मातीत बनने का । बच्चों में नष्टोमोहा बनने
की भी बड़ी हिम्मत चाहिए । बेहद के बाप से पूरा वर्सा लेना है
तो नष्टोमोहा बनना पड़े । अपनी अवस्था को बहुत ऊँच बनाना है ।
बाप के बने हो तो बाप की ही अलौकिक सेवा में लग जाना है ।
स्वभाव बहुत मीठा चाहिए । मनुष्य को स्वभाव ही बहुत तंग करता
है । ज्ञान का जो तीसरा नेत्र मिला है,
उससे
अपनी जांच करते रहो । जो भी डिफेक्ट हों उनको निकाल प्युअर
डाइमन्ड बनना है । थोड़ा भी डिफेक्ट होगा तो वैल्यु कम हो
जायेगी इसलिए मेहनत कर अपने को वैल्युबुल हीरा बनाना है ।
तुम
बच्चों से बाप अब नई दुनिया के सम्बन्ध का पुरुषार्थ कराते हैं
। मीठे बच्चे,
अब
बेहद के बाप और बेहद सुख के वर्से से सम्बन्ध रखो । एक ही बेहद
का बाप है जो बन्धन से छुड़ाकर तुम्हें अलौकिक सम्बन्ध में ले
जाते हैं । सदैव यह स्मृति रहे कि हम ईश्वरीय सम्बन्ध के हैं ।
यह ईश्वरीय सम्बन्ध ही सदा सुखदाई है । अच्छा
!
मीठे-मीठे सिकीलधे,
अति
स्नेही बच्चों को मात-पिता बापदादा का दिल व जान,
सिक
व प्रेम से याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते ।
18
जनवरी 'स्मृति दिवस'
को सदाकाल का समर्थी दिवस मनाने के लिए
शिक्षाएं (18-01-79)
आज
सभी बच्चे विशेष साकारी याद - प्रेम स्वरूप की स्मृति में
ज्यादा रहे । साकारी सो आकारी बाप सभी के नयनों में समाये हुए
हैं । अमृतवेले से लेकर देश-विदेश के बच्चों की याद के सन्देश
सारे वतन में वायुमण्डल की रीति से फैले हुए थे - प्रेम के
आसुँओ की मालायें वतन को सजा रही थी । हरेक बच्चा ब्रह्मा बाप
के लव में लवलीन थे । चारों ओर दिल के दिलरूबा की आवाज बापदादा
के पास पहुँच रही थी - हरेक के मन से बाप की महिमा के सुन्दर
आलाप साजों के समान वतन में गूँज रहे थे । हरेक के आशाओं के
दीपक जगे हुए,
वतन
को जगमगा रहे थे । बापदादा बच्चों के स्नेह को देख मुस्करा रहे
थे । विदेशी वा देशवासी बच्चे अपने बुद्धियोग द्वारा वतन में
भी पहुँचे हुए थे । ब्रह्मा बाप भी बच्चों के स्नेह के सागर
में बच्चों के लव में लवलीन थे और याद का रिटर्न दे रहे थे ।
बच्चे बाप से पूछते हैं आप हम सबसे पहले अकेले वतनवासी क्यों?
मैजारटी बच्चों का यही स्नेह का सवाल था । बाप बोले - जैसे आदि
में स्थापना के कार्य प्रति साकार रूप में निमित्त एक ही बने,
अल्फ
की तार पहले एक को आई । सेवा अर्थ - सर्वस्व त्यागमूर्त एक
अकेले बने,
जिसको देख बच्चों ने फालो फादर किया । त्याग और भाग्य दोनों
में नम्बरवन बाप निमित्त बने । अब अन्त में भी बच्चों को ऊँचा
उठाने के लिए वा अव्यक्त बनाने के लिए बाप को ही अव्यक्त
वतनवासी बनना पड़ा । इस साकारी दुनिया से ऊंचा स्थान अव्यक्त
वतन अपनाना पड़ा । अभी बाप कहते हैं बाप समान स्वयं को और सेवा
को सम्पन्न करो । बाप समान अव्यक्त वतनवासी बन जाओ । बापदादा
अभी भी आव्हान करते हैं । देर किसकी है?
ड्रामा की देर है?
ड्रामा में भी निमित्त कारण कौन?
सिर्फ एक छोटी-सी बात दृढ़ संकल्प रूप से धारण करो तो सदाकाल का
मिलन हो जायेगा । जैसे आज के दिन सहजयोगी,
निरन्तरयोगी,
एक
बाप दूसरा न कोई - इसी स्थिति में स्थित रहे,
ऐसे
ही सदा अमर भव के वरदानी बनो,
तो
क्या होगा?
सदाकाल के लिए जुदाई को विदाई मिल जायेगी और सदा मिलन की बधाई
होगी । स्नेह स्वरूप को समान स्वरूप में परिवर्तन करो । जैसे
जिस भी आत्मा से स्नेह होता है तो स्नेह का स्वरूप यही है कि
जो स्नेही को पसन्द हो वही स्नेह करने वाले को पसन्द हो ।
चलना-खाना-पीना-रहना स्नेही के दिलपसन्द हो । ऐसे ही बाप से
स्नेह - जानते हो बाप का स्नेह किससे है?
बाप
को सदा क्या पसन्द है?
अपने
दिल पसन्द नहीं लेकिन स्नेही बाप के दिलपसन्द । तो सदा जो भी
संकल्प करो वा कर्म करो पहले यह सोचो कि स्नेही बाप के
दिलपसन्द हैं?
अगर
बाप को पसन्द नहीं तो लोकपसन्द भी नहीं । तो सिर्फ इतनी सी बात
है स्नेही के पसन्दी से चलना है । इतना रिटर्न सदा कर सकते हो
ना! सर्व सम्बन्ध के स्नेह से इतना सा रिटर्न क्या मुश्किल
लगता है?
आज
के स्मृति दिवस को सदाकाल के लिए समर्थी दिवस मनाओ । यह संकल्प
करो - जो बाप की पसन्दी वही मेरी पसन्दी । सदा बाप-पसन्द,
लोक-पसन्द रहना है ।
दिलशिकस्त होना,
किसी
भी संस्कार वा परिस्थितियों के वशीभूत होना,
अल्पकाल की प्राप्ति कराने वाले व्यक्ति वा वैभवों के तरफ
आकर्षित होना.... इन सब कमजोरियों रूपी कलियुगी पर्वत को आज के
समर्थी दिवस पर सब बच्चे दृढ़ सकल्प की अंगुली दे सदाकाल के लिए
समाप्त करो अर्थात् सदाकाल के विजयी बनो । विजय आपका तिलक है ।
विजय आप के गले की माला है । विजय जन्मसिद्ध अधिकार है । सदा
इस समर्थी स्वरूप में रहो । यह है स्नेह का रिटर्न । बाप
बच्चों से पूछते हैं - जैसे ब्रह्मा बाप ने सारे ज्ञान का सार
स्वयं धारण कर बच्चों को फालो फादर करने की हिम्मत दी,
साकार रूप द्वारा अन्तिम महावाक्य अमूल्य सौगात दी,
उस
सौगात को स्वरूप में लाया?
सौगात के रिटर्न में बाप को स्वरूप बन दिखाया?
सिर्फ तीन बोल जो थे (निराकारी,
निरहंकारी,
निर्विकारी) उनको साकार में लाया?
साकार स्नेह के रिटर्न में साकार रूप है | इन ही तीन बोल से
बाप ने कर्मातीत अवस्था को पाया,
तो
फालो फादर । साकार बाप ने स्थिति का स्तम्भ बनकर दिखाया,
जिसके स्नेह में यह स्मृति स्तम्भ भी बनाया है । ऐसे ही
तत्त्वम । सर्वगुणों के स्तम्भ बनो,
जो
विश्व के हर धर्म वाली आत्मायें धारणा स्वरूप स्तम्भ आपको माने
। विश्व के आगे आदि पिता के समान शक्ति और शान्ति स्तम्भ बनो ।
स्नेह के सन्देश जो बच्चों ने भेजे रिटर्न में बापदादा भी सभी
स्नेही बच्चों को पदमगुणा स्नेह दे रहे हैं । अब पदमापदम
भाग्यशाली सदा रहो । अच्छा
!
ऐसे
सदा बाप के स्मृति सो समर्थी स्वरूप,
बाप
के सदा दिलपसन्द,
सदा
दृढ़ संकल्प द्वारा स्वयं का और विश्व का सेकेण्ड में परिवर्तन
करने वाले,
सदा
विश्व के आगे शक्ति और शान्ति स्तम्भ समान स्थित रहने वाले,
ऐसे
बापदादा के समीप सिकीलधे बच्चों की बापदादा का याद-प्यार और
नमस्ते ।
वरदान:-
एक
के साथ सर्व रिश्ता निभाने वाले सर्व किनारों से मुक्त
सम्पूर्ण फरिश्ता
भव ! 
जैसे
कोई चीज़ बनाते हैं जब वह बनकर तैयार हो जाती है तो किनारा छोड़
देती है,
ऐसे
जितना सम्पन्न स्टेज के समीप आते जायेंगे उतना सर्व से किनारा
होता जायेगा । जब सब बन्धनों से वृत्ति द्वारा किनारा हो जाए
अर्थात् किसी में भी लगाव न हो तब सम्पूर्ण फरिश्ता बनेंगे ।
एक के साथ सर्व रिश्ते निभाना-यही ठिकाना है,
इससे
ही अन्तिम फरिश्ते जीवन की मंजिल समीप अनुभव होगी । बुद्धि का
भटकना बन्द हो जायेगा ।
स्लोगन:-
स्नेह
ऐसा चुम्बक है जो ग्लानि करने वाले को भी समीप ले आता है । 
अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए विशेष होमवर्क
जैसे
ब्रह्मा बाप ने निश्चय के आधार पर,
रुहानी नशे के आधार पर,
निश्चित भावी के ज्ञाता बन सेकेण्ड में सब सफल कर दिया । अपने
लिए कुछ नहीं रखा । तो स्नेह की निशानी है सब कुछ सफल करो ।
सफल करने का अर्थ है श्रेष्ठ तरफ लगाना ।
ओम्
शान्ति |