03-01-15          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - पास विद् ऑनर होना है तो श्रीमत पर चलते रहो, कुसंग और माया के तूफानों से अपनी सम्भाल करो |”   


प्रश्न:-   
बाप ने बच्चों की क्या सेवा की, जो बच्चों को भी करनी है?


उत्तर:-

बाप ने लाडले बच्चे कहकर हीरे जैसा बनाने की सेवा की । ऐसे हम बच्चों को भी अपने मीठे भाइयों को हीरे जैसा बनाना है । इसमें कोई तकलीफ की बात नहीं है, सिर्फ कहना है कि बाप को याद करो तो हीरे जैसा बन जायेंगे ।


प्रश्न:-   
बाप ने कौन-सा हुक्म अपने बच्चों को दिया है?


उत्तर:-

बच्चे, तुम सच्ची कमाई करो और कराओ । तुम्हें किसी से भी उधार लेने का हुक्म नहीं है ।


गीत:-

इस पाप की दुनिया से… 

 

ओम् शान्ति |

नई दुनिया में चलने वाले मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति बाप गुडमॉर्निग कर रहे हैं । रूहानी बच्चे नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जानते हैं कि बरोबर हम इस दुनिया से दूर जा रहे हैं । कहाँ? अपने स्वीट साइलेन्स होम में । शान्तिधाम ही दूर है, जहाँ से हम आत्मायें आती हैं । वह है मूलवतन, यह है स्थूल वतन । वह है हम आत्माओं का घर । उस घर में बाप बिगर तो कोई ले न जा सके । तुम सब ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ रूहानी सर्विस कर रहे हो । किसने सिखाया है? दूर ले चलने वाले बाप ने । कितनों को ले जायेंगे दूर? अनगिनत हैं । एक पण्डे के बच्चे तुम सब भी पण्डे हो । तुम्हारा नाम ही है पाण्डव सेना । तुम बच्चे हर एक को दूर ले जाने की युक्ति बतलाते हो-मन्मनाभव, बाप को याद करो । कहते भी हैं-बाबा, इस दुनिया से कहीं दूर ले चलो । नई दुनिया में तो ऐसे नहीं कहेंगे । यहाँ है रावण राज्य, तो कहते हैं इससे दूर ले चलो, यहाँ चैन नहीं है । इसका नाम ही है दुःखधाम । अभी बाप तुमको कोई धक्का नहीं खिलाते हैं । भक्ति मार्ग में बाप को ढूंढने लिए तुम कितने धक्के खाते हो । बाप खुद कहते हैं मैं हूँ ही गुप्त । इन आँखों से कोई मुझे देख नहीं सकते । कृष्ण के मन्दिर में माथा टेकने के लिए चाखड़ी रखते हैं, मुझे तो पैर हैं नहीं जो तुमको माथा टेकना पड़े । तुमको तो सिर्फ कहता हूँ-लाडले बच्चे, तुम भी औरों को कहते हो-मीठे भाईयों, पारलौकिक बाप को याद करो तो विकर्म विनाश हों । बस और कोई तकलीफ नहीं । जैसे बाप हीरे जैसा बनाते हैं, बच्चे भी औरों को हीरे जैसा बनाते हैं । यही सीखना है-मनुष्य को हीरे जैसा कैसे बनायें? ड्रामा अनुसार कल्प पहले मुआफिक कल्प-कल्प के संगम पर बाप आकर हमको सिखलाते हैं । फिर हम औरों को सिखलाते हैं | बाप हीरे जैसा बना रहे हैं । तुमको मालूम हैं खोजों के गुरू आगाखां को सोने, चांदी, हीरों में वजन किया था । नेहरू को सोने में वजन किया था । अब वह कोई हीरे जैसा बनाते तो नहीं थे । बाप तो तुमको हीरे जैसा बनाते हैं । उनको तुम किसमें वजन करेंगे? तुम हीरे आदि क्या करेंगे । तुमको तो दरकार ही नहीं । वो लोग तो रेस में बहुत पैसे उड़ाते हैं । मकान, प्रापर्टी आदि बनाते रहते हैं । तुम बच्चे तो सच्ची कमाई कर रहे हो । तुम कोई से उधार लो तो फिर 21 जन्म के लिए भरकर देना पड़े । तुम्हें किसी से उधार लेने का हुक्म नहीं है । तुम जानते हो इस समय है झूठी कमाई, जो खत्म हो जाने वाली है । बाबा ने देखा यह तो कौड़ियाँ हैं, हमको हीरे मिलते हैं, तो फिर यह कौड़ियाँ क्या करेंगे? क्यों न बाप से बेहद का वर्सा लेवें । खाना तो मिलना ही है । एक कहावत भी है-हाथ जिनका ऐसे...... पहला पूर (पहला नम्बर) वह पा लेते हैं । बाबा को शर्राफ भी कहते हैं ना । तो बाप कहते हैं तुम्हारी पुरानी चीजें एक्सचेंज करता हूँ । कोई मरता है तो पुरानी चीजें करनीघोर को देते हैं ना । बाप कहते मैं तुमसे लेता क्या हूँ, यह सैम्पुल देखो । द्रोपदी भी एक तो नहीं थी ना । तुम सब द्रोपदियॉ हो । बहुत पुकारती हैं बाबा हमको नंगन होने से बचाओ । बाबा कितना प्यार से समझाते हैं-बच्चे, यह अन्तिम जन्म पवित्र बनो । बाप कहते हैं ना बच्चों को, कि मेरे दाढ़ी की लाज़ रखो, कुल को कलंक नहीं लगाओ । तुम मीठे-मीठे बच्चों को कितना फखुर होना चाहिए । बाप तुमको हीरे जैसा बनाते हैं, इनको भी वह बाप हीरे जैसा बनाते हैं । याद उनको करना है । यह बाबा ब्रह्मा कहते हैं मुझे याद करने से तुम्हारे विकर्म विनाश नहीं होंगे । मैं तुम्हारा गुरू नहीं हूँ । वह हमको सिखलाते हैं, हम फिर तुमको सिखलाते हैं । हीरे जैसा बनना है तो बाप को याद करो ।

बाबा ने समझाया है भक्ति मार्ग में भल कोई देवता की भक्ति करते रहते हैं, फिर भी बुद्धि दुकान, धन्धे आदि तरफ भागती रहती है, क्योंकि उससे आमदनी होती है । बाबा अपना अनुभव भी सुनाते हैं कि जब बुद्धि इधर-उधर भागती थी तो अपने को चमाट मारता था-यह याद क्यों आते हैं? तो अब हम आत्माओं को एक बाप को ही याद करना हैं, परन्तु माया घड़ी- घड़ी भुला देती है, घूसा लगता है । माया बुद्धियोग तोड़ देती है । ऐसे-ऐसे अपने साथ बातें करनी चाहिए । बाप कहते हैं - अब अपना कल्याण करो तो दूसरों का भी कल्याण करो, सेंटर्स खोलो । ऐसे बहुत बच्चे बोलते हैं-बाबा, फलानी जगह सेंटर्स खोलूँ? बाप कहते हैं मैं तो दाता हूँ । हमको कुछ दरकार नहीं । यह मकान आदि भी तुम बच्चों के लिए बनाते हैं ना । शिवबाबा तो तुमको हीरे जैसा बनाने आये हैं । तुम जो कुछ करते हो वह तुम्हारे ही काम में आता है । यह कोई गुरू नहीं है जो चेला आदि बनावे, मकान बच्चे ही बनाते हैं अपने रहने के लिए । हाँ, बनाने वाले जब आते हैं तो खातिरी की जाती है कि आप ऊपर में नये मकान में जाकर रहो । कोई तो कहते हैं हम नये मकान में क्यों रहें, हमको तो पुराना ही अच्छा लगता है । जैसे आप रहते हो, हम भी रहेंगे । हमको कोई अहंकार नहीं है कि मैं दाता हूँ । बापदादा ही नहीं रहते तो मैं क्यों रहूँ? हमको भी अपने साथ रखो । जितना आपके नजदीक होंगे उतना अच्छा है ।

बाप समझाते हैं जितना पुरूषार्थ करेंगे तो सुखधाम में ऊंच पद पायेंगे । स्वर्ग में तो सब जायेंगे ना । भारतवासी जानते हैं भारत पुण्य आत्माओं की दुनिया थी, पाप का नाम नहीं था । अभी तो पाप आत्मा बन गये हैं । यह है रावण राज्य । सतयुग में रावण होता नहीं । रावण राज्य होता ही है आधाकल्प बाद । बाप इतना समझाते हैं तो भी समझते नहीं । कल्प-कल्प ऐसा होता आया है । नई बात नहीं । तुम प्रदर्शनियाँ करते हो, कितने ढेर आते हैं । प्रजा तो बहुत बनेगी । हीरे जैसा बनने में तो टाइम लगता है । प्रजा बन जाए वह भी अच्छा । अभी है ही कयामत का समय । सबका हिसाब-किताब चुक्तू होता है । 8 की माला जो बनी हुई है वह हैं पास विद् ऑनर्स की । 8 दाने ही नम्बरवन में जाते हैं, जिनको जरा भी सजा नहीं मिलती है । कर्मातीत अवस्था को पा लेते हैं । फिर हैं 108, नम्बरवार तो कहेंगे ना । यह बना-बनाया अनादि ड्रामा है, जिसको साक्षी होकर देखते हैं कि कौन अच्छा पुरूषार्थ करते हैं? कोई-कोई बच्चे पीछे आये हैं, श्रीमत पर चलते रहते हैं । ऐसे ही श्रीमत पर चलते रहे तो पास विद् ऑनर्स बन 8 की माला में आ सकते हैं । हाँ, चलते-चलते कभी ग्रहचारी भी आ जाती है । यह उतराई-चढ़ाई सबके आगे आती है । यह कमाई है । कभी बहुत खुशी में रहेंगे, कभी कम । माया का तूफान अथवा कुसंग पीछे हटा देता है । खुशी गुम हो जाती है । गाया भी हुआ है संग तारे कुसंग बोरे । अब रावण का संग बोरे, राम का संग तारे । रावण की मत से ऐसे बने हैं । देवतायें भी वाममार्ग में जाते हैं । उन्हों के चित्र कैसे गन्दे दिखाते हैं । यह निशानी है वाम मार्ग में जाने की । भारत में ही राम राज्य था, भारत में ही अब रावण राज्य है । रावण राज्य में 100 परसेन्ट दुःखी बन जाते हैं । यह खेल है । यह नॉलेज किसको भी समझाना कितना सहज है ।

(एक नर्स बाबा के सामने बैठी है) बाबा इस बच्ची को कहते हैं तुम नर्स हो, वह सर्विस भी करती रहो, साथ-साथ तुम यह सर्विस भी कर सकती हो । पेशेन्ट को भी यह ज्ञान सुनाती रहो कि बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे, फिर 21 जन्मों के लिए तुम रोगी नहीं बनेंगे । योग से ही हेल्थ और इस 84 के चक्र को जानने से वेल्थ मिलती है । तुम तो बहुत सर्विस कर सकती हो, बहुतों का कल्याण करेंगी । पैसा भी जो मिलेगा वह इस रूहानी सेवा में लगायेंगी । वास्तव में तुम भी सब नर्सेस हो ना । छी-छी गन्दे मनुष्यों को देवता बनाना - यह नर्स समान सेवा हुई ना । बाप भी कहते हैं मुझे पतित मनुष्य बुलाते हैं कि आकर पावन बनाओ । तुम भी रोगियों की यह सेवा करो, तुम पर कुर्बान जायेंगे । तुम्हारे द्वारा साक्षात्कार भी हो सकता है । अगर योगयुक्त हो तो बड़े-बड़े सर्जन आदि सब तुम्हारे चरणों में आकर पड़े । तुम करके देखो । यहॉ बादल आते हैं रिफ्रेश होने । फिर जाकर वर्षा कर दूसरों को रिफ्रेश करेंगे । कई बच्चों को यह भी पता नहीं रहता है कि बरसात कहाँ से आती है? समझते हैं इन्द्र वर्षा करते हैं । इन्द्रधनुष कहते हैं ना । शास्त्रों में तो कितनी बातें लिख दी हैं । बाप कहते हैं यह फिर भी होगा, ड्रामा में जो नूध है । हम किसकी ग्लानि नहीं करते हैं, यह तो बना-बनाया अनादि ड्रामा है । समझाया जाता है कि यह भक्ति मार्ग है । कहते भी हैं ज्ञान, भक्ति, वैराग्य । तुम बच्चों को इस पुरानी दुनिया से वैराग्य है । आप मुये मर गई दुनिया । आत्मा शरीर से अलग हो गई तो दुनिया ही खलास ।

बाप बच्चों को समझाते हैं-मीठे बच्चे, पढ़ाई में गफलत मत करो । सारा मदार पढ़ाई पर है । बैरिस्टर कोई तो एक लाख रूपया कमाते हैं और कोई बैरिस्टर को पहनने के लिए कोट भी नहीं होगा । पढ़ाई पर सारा मदार है । यह पढ़ाई तो बहुत सहज है । स्वदर्शन चक्रधारी बनना है अर्थात् अपने 84 जन्मों के आदि-मध्य- अन्त को जानना है । अभी इस सारे झाड़ की  जड़जड़ीभूत अवस्था है, फाउन्डेशन है नहीं । बाकी सारा झाड़ खड़ा है । वैसे यह आदि सनातन देवी-देवता धर्म जो था, धुर था, वह अभी है नहीं । धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट बन गये हैं । मनुष्य किसको सद्गति दे नहीं सकते हैं । बाप बैठ यह सब बातें समझाते हैं, तुम सदा के लिए सुखी बन जाते हो । कभी अकाले मृत्यु नहीं होगा । फलाना मर गया, यह अक्षर वहाँ होता नहीं । तो बाप राय देते हैं, बहुतों को रास्ता बतायेंगे तो वह तुम पर कुर्बान जायेंगे । किसको साक्षात्कार भी हो सकता है । साक्षात्कार सिर्फ एम ऑबजेक्ट है । उसके लिए पढ़ना तो पड़े ना । पढ़ने बिगर थोड़ेही बैरिस्टर बन जायेंगे । ऐसे नहीं कि साक्षात्कार हुआ माना मुक्त हुए, मीरा को साक्षात्कार हुआ, ऐसे नहीं कि कृष्णपुरी में चली गई । नौधा भक्ति करने से साक्षात्कार होता है । यहाँ फिर है नौधा याद । सन्यासी फिर ब्रह्म ज्ञानी, तत्व ज्ञानी बन जाते हैं । बस, ब्रह्म में लीन होना है । अब ब्रह्म तो परमात्मा नहीं है ।

अब बाप समझाते हैं अपना धन्धा आदि शरीर निर्वाह के लिए भल करो परन्तु अपने को ट्रस्टी समझकर, तो ऊंच पद मिलेगा । फिर ममत्व मिट जायेगा । यह बाबा लेकर क्या करेंगे? इसने तो सब कुछ छोड़ा ना । घरबार वा महल आदि तो बनाना नहीं है । यह मकान बनाते हैं क्योंकि ढेर बच्चे आयेंगे । आबूरोड से यहाँ तक क्यू लग जायेगी । तुम्हारा अभी प्रभाव निकले तो माथा ही खराब कर दें । बड़े आदमी आते हैं तो भीड़ हो जाती है । तुम्हारा प्रभाव पिछाड़ी में निकलना है, अभी नहीं । बाप को याद करने का अभ्यास करना है ताकि पाप कट जायें । ऐसे याद में शरीर छोड़ना है । सतयुग में शरीर छोड़ेंगे, समझेंगे एक छोड़ दूसरा नया लेंगे । यहाँ तो देह- अभिमान कितना रहता है । फर्क है ना । यह सब बातें नोट करनी और करानी है । औरों को भी आप समान हीरे जैसा बनाना पड़े । जितना पुरूषार्थ करेंगे, उतना ऊंच पद पायेंगे । यह बाप समझाते हैं, यह कोई साधू-महात्मा नहीं है ।

यह ज्ञान बड़े मजे का है, इसको अच्छी रीति धारण करना है । ऐसे नहीं, बाप से सुना फिर यहाँ की यहाँ रही । गीत में भी सुना ना, कहते हैं साथ ले जाओ । तुम इन बातों को आगे नहीं समझते थे, अब बाप ने समझाया है तब समझते हो । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. पढ़ाई में कभी गफलत नहीं करनी है । स्वदर्शन चक्रधारी बनकर रहना है । हीरे जैसा बनाने की सेवा करनी है । 

2. सच्ची कमाई करनी और करानी है । अपनी पुरानी सब चीजें एक्सचेंज करनी है । कुसंग से अपनी सम्भाल करनी है ।

 

वरदान:-

अपने डबल लाइट स्वरूप द्वारा आने वाले विघ्नों को पार करने वाले तीव्र पुरुषार्थी भव !   

आने वाले विघ्नों में थकने वा दिलशिकस्त होने के बजाए सेकण्ड में स्वयं के आत्मिक ज्योति स्वरूप और निमित्त भाव के डबल लाइट स्वरूप द्वारा सेकण्ड में हाई जम्प दो । विघ्न रूपी पत्थर को तोड़ने में समय नहीं गॅवाओ । जम्प लगाओ और सेकण्ड में पार हो जाओ । थोड़ी सी विस्मृति के कारण सहज मार्ग को मुश्किल नहीं बनाओ । अपने जीवन की भविष्य श्रेष्ठ मंजिल को स्पष्ट देखते हुए तीव्र पुरूषार्थी बनो । जिस नज़र से बापदादा वा विश्व आपको देख रही है उसी श्रेष्ठ स्वरूप में सदा स्थित रहो ।

 

स्लोगन:- 

सदा खुश रहना और खुशी बाँटना-यही सबसे बड़ा शान है ।   

 

अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए विशेष होमवर्क

(3) अपने हर संकल्प को हर कार्य को अव्यक्त बल से अव्यक्त रूप द्वारा वेरीफाय कराना है । बापदादा को अव्यक्त रूप से सदा सम्मुख और साथ रखकर हर संकल्प, हर कार्य करना है । साथीऔर साथके अनुभव से बाप समान साक्षी अर्थात् न्यारा और प्यारा बनना है ।

ओम् शान्ति |