10-05-15
प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा”
रिवाइज:30-11-79
मधुबन
स्वमान
में स्थित आत्मा के लक्षण
बापदादा हरेक बच्चे को पदमापदम भाग्यशाली आत्मा देखते हैं।
हरेक की श्रेष्ठ प्रालब्ध सदा बाप के सामने है और यही बेहद के
बाप को बच्चों पर नाज है। इतने सब बच्चे विश्व के आगे
परम-पूज्य हैं। चाहे नम्बरवार पुरुषार्थी हैं फिर भी लास्ट
बच्चा भी दुनिया के आगे गायन योग्य और पूज्यनीय है। लास्ट
बच्चे का भी अभी तक गायन और पूजन चल रहा है। एक बेहद के बाप के
इतने बच्चे ऐसे योग्य बनते हैं। अब सोचो कि सभी कितने पदमापदम
भाग्यशाली हैं। अब तक भी भक्त लोग आप नम्बरवार देवता धर्म की
आत्माओं के दर्शन के लिए प्यासे हैं। चेतन में ऐसे भाग्यशाली
बने हैं,
ऐसे
योग्य बने हैं तब तो अभी तक भी उनके दर्शन के प्यासे हैं इसलिए
बाप-दादा को 16 हजार की माला के लास्ट दाने पर भी नाज है।
चाहे
कैसे भी हों,
अलबेले पुरुषार्थी हों,
मध्यम पुरुषार्थी हों या तीव्र पुरुषार्थी हों लेकिन बाप के
बने,
पूज्यनीय और गायन योग्य बने क्योंकि पारसनाथ बाप के संग में
लोहे से पारस तो बन ही गये। पारस की वैल्यु जरूर होती है इसलिए
कभी भी स्वमान में अपने को कम नहीं समझना। देह-अभिमान में नहीं
आना। स्वमान में रहने वाला कभी भी अभिमान में नहीं आ सकता। वह
सदा निर्माण होता है। जितना बड़ा स्वमान उतना ही
`हाँ
जी'
में
निर्माण। स्वमान वाला सबको मान देने वाला दाता होता है।
छोटे-बड़े,
ज्ञानी-अज्ञानी,
मायाजीत या मायावश,
गुणवान हो या कोई एक-दो अवगुणवान भी हो अर्थात् गुणवान बनने का
पुरुषार्थी हो लेकिन स्वमान वाले सभी को मान देने वाले दाता
होते हैं अर्थात् स्वयं सम्पन्न होने के कारण सदा रहमदिल
होंगे। दाता अथवा रहमदिल। कभी किसी प्रकार की आत्मा के प्रति
संकल्प मात्र भी रोब में नहीं आयेंगे। या रहम होता है या रोब
होता है। यह
`ऐसा
क्यों',
`ऐसा
करना नहीं चाहिए',
`होना
नहीं चाहिए',
`ज्ञान
यह कहता है क्या',
यह
भी सूक्ष्म रोब का अंश है इसलिए रहमदिल दाता स्वमान वाला सभी
को मान देगा,
मान
देकर ऊपर उठायेगा। अगर कोई पुरुषार्थी अपनी कमजोरी से या
अलबेलेपन के कारण नीचे गिर भी जाते हैं अर्थात् अपनी स्टेज से
नीचे आ जाते हैं तो भी आप स्वमानधारी पुण्य आत्मा हो। पुण्य
आत्मा का काम है - गिरे हुए को उठाना,
सहयोगी बनाना न कि
`क्यों
गिरा',
`गिरना
ही चाहिए',
`कर्मो
का फल भोग रहे हैं',
`करेंगे
तो जरूर पायेंगे',
स्वमानधारियों के संकल्प में भी किसी के प्रति ऐसा संकल्प या
बोल नहीं निकल सकता। ऐसे पुण्य आत्मा परवश को भी स्वतन्त्र
बनायेंगे। रोब का अंश भी नहीं होगा। स्वमानधारी इसको कहा जाता
है। ऐसे को देह-अभिमान कभी आ नहीं सकता। बाप-दादा हरेक बच्चे
को ऐसी पुण्य आत्मा की नजर से देखते हैं। फॉलो फादर।
बाम्बे निवासी फॉलो फादर करने में होशियार हैं ना?
बाम्बे है ही बाप की इसलिए साकार बाप का आना भी ज्यादा बाम्बे
में ही हुआ। जितना बार साकार में आना हुआ उतनी पालना मिली। तो
ऐसी धरती के निवासी भी ऐसे पुण्य आत्मा अर्थात् किसी के पाप को
भी परिवर्तन कर दें। किसी की भी कमी को न देखें लेकिन कमाल को
देखें। तो वह कमी भी कमाल में परिवर्तन हो जायेगी। पुण्य भूमि
के निवासी ऐसे महान हो ना?
बाम्बे निवासी तो नम्बरवन एवररेडी होंगे। किसी घड़ी भी विनाश
ज्वाला प्रज्वलित हो जाए उसके पहले एवररेडी हो ना?
उस
समय तो तैयारी नहीं करने लगेंगे?
यह
तो नहीं सोचेंगे कि अभी सम्पन्न नहीं बने हैं?
प्रजा नहीं बनाई है?
पहले
से ही सब में सम्पन्न होना है। प्रकृति भी आपका इन्तजार कर रही
है - दासी बन सेवा करने के लिए। दासी तो जरूर मालिक का इन्तजार
ही करेगी ना इसलिए सदा मालिकपन की स्टेज पर रहो।
कुमारों के साथ - कुमार और ब्रह्माकुमार। प्रवृत्ति के जीवन
में भी कुमार और ब्राह्मण जीवन में भी ब्रह्माकुमार। सिर्फ
कुमार नहीं लेकिन ब्रह्माकुमार। अगर सिर्फ कुमार रहेंगे तो
माया आयेगी। ब्रह्माकुमार रहेंगे तो माया भाग जायेगी। तो जैसे
ब्रह्मा आदि देव है,
ब्रह्माकुमार भी आदि रत्न होंगे। आदि देव के बच्चे मास्टर आदि
देव। आदि रत्न समझेंगे तो अपने जीवन के मूल्य को जानेंगे। आप
सब प्रभु के रत्न,
ईश्वर के रत्न हो,
तो
आपकी कितनी वैल्यु हो गई। सदा अपने को आदि देव के बच्चे मास्टर
आदि देव,
आदि
रत्न समझो तो जो भी कार्य करेंगे वह समर्थ होगा व्यर्थ नहीं।
कुमार जितना सर्विस में रहेंगे उतना मायाजीत रहेंगे। अपने को
फ्री नहीं रखना।
2.
कुमार सब रीति से निर्बन्धन हैं। लौकिक जिम्मेवारी से भी
निर्बन्धन और माया के बन्धनों से भी निर्बन्धन। कोई भी बन्धन
के अधीन नहीं। बन्धन मुक्त की निशानी है - सदा योगयुक्त।
योगयुक्त बंधन-मुक्त जरूर होंगे। मन का भी बन्धन नहीं। लौकिक
जिम्मेवारी तो खेल है। बन्धन की रीति से नहीं लेकिन डायरेक्शन
प्रमाण खेल की रीति से हंसकर खेलो तो छोटी-छोटी बातों में
थकेंगे नहीं। अगर बन्धन समझते हो तो तंग होते हो। क्या,
क्यों का प्रश्न उठता है। लेकिन डायरेक्शन प्रमाण खेल खेल रहे
हैं ऐसा समझने से अथक रहेंगे। जिम्मेवार बाप है,
आप
निमित्त हैं। कुमार तो डबल निर्बन्धन हैं कोई पूँछ नहीं है।
सदा लक्की रहना,
घबराना नहीं,
अपने
हाथ से भोजन बनाना बहुत अच्छा है। अपने लिए और बाप के लिए
प्यार से बनाओ। पहले बाप को खिलाओ। अपने को अकेला समझते हो तो
थक जाते हो। सदा यह समझो कि हम दो हैं,
दूसरे के लिए बनाना है तो विधिपूर्वक प्यार से बनाओ तो बहुत
अच्छा लगेगा। कुमारों का आपस में ग्रुप होना चाहिए,
कभी
कोई बीमार पड़े तो एक की डयुटी हो। एक-दूसरे की मदद कर सेवा
करो। कभी भी पूँछ लगाने का संकल्प नहीं करना,
नहीं
तो बहुत परेशान हो जायेंगे। बाहर से तो पता नहीं चलता लेकिन
अगर लगा दिया तो मुश्किल हो जायेगी। अभी तो स्वतन्त्र हो फिर
जिम्मेवारी बढ़ जायेगी। सभी ने बाप को कम्पेनियन बनाया है ना?
तो
एक कम्पेनियन छोड़कर दूसरा बनाया जाता है क्या?
ये
तो लौकिक में भी अच्छा नहीं माना जाता। तो कुमार कभी अपने को
अकेला नहीं समझो,
यदि
अकेला समझा तो उदास हो जायेंगे।
कुमार ज्वाला रूप बनकर ज्वाला जगाओ तो जल्दी विनाश हो जायेगा।
ऐसी योग की अग्नि तेज करो जो विनाश की ज्वाला तेज हो जाए।
कभी
भी किसी बात में क्यों और क्या करने वाले तो नहीं हो ना?
किसी
भी बात में क्यों क्या वह करते हैं जो मास्टर त्रिकालदर्शा
नहीं। जो तीनों कालों को जानते हैं वह
`क्यों',
`क्या',
नहीं
करेंगे। क्यों-क्या करने वाले छोटे बच्चे होते हैं,
आप
सब तो वानप्रस्थ तक पहुँच गये हो ना। वानप्रस्थ स्थिति में
रहने से माया से परे रहेंगे। जितनी लाइन क्लीयर होगी उतना
पुरूषार्थ की स्पीड तेज होगी। सबकी लाइन क्लीयर है?
कुमार तो बहुत कमाल कर सकते हैं। रूहानी यूथ ग्रुप हो ना। आजकल
के यूथ गवर्मेन्ट को भी बदलना चाहते हैं तो बदल देते। वह करते
हैं डिस्ट्रक्शन,
नुकसान और आप करेंगे कनस्ट्रक्शन। आपको विनाश नहीं करना है। आप
स्थापना करेंगे तो विनाश आपेही हो जायेगा।
कुमारियों को कहते हैं 100 ब्राह्मणों से उत्तम एक कन्या। और
कुमार कितनों से श्रेष्ठ हैं। 7 शीतलाओं के साथ एक कुमार
दिखाते हैं तो आप 700 ब्राह्मणों से उत्तम हुए। कुमार
हार्डवर्कर हैं,
जो
करना चाहें वह कर सकते हैं। हरेक कुमार को अपना ग्रुप तैयार
करना चाहिए। आपस में रीस नहीं लेकिन रेस करो। माया कितना भी
हिलाने की कोशिश करे लेकिन आप अंगद के मुआफिक जरा भी नहीं हिलो,
नाखून से भी हिला न सके। अगर जरा भी कमजोरी के संस्कार होंगे
तो माया अपना बना लेगी इसलिए मरजीवा बनो,
पुराने संस्कारों से मरजीवा। कोई भी विघ्न आपके लिए पाठ है,
आप
उनके अनुभवी बनते-बनते पास विद आनर हो जायेंगे। कुछ भी होता है
तो उससे पाठ ले लेना चाहिए। क्यों-क्या में नहीं जाना चाहिए।
कुमार तो हैं ही सदा सेवाधारी। आलराउन्ड सेवा -
मन्सा-वाचा-कर्मणा,
सब
में सेवाधारी। अगर इतने सब आलराउन्ड सेवाधारी हैं तो बहुत
हैन्डस हो गये। आप सब बहुत कमाल कर सकते हो।
अधर
कुमारों के साथ - आधाकल्प आप दर्शन करने जाते रहे,
अभी
बाप परमधाम से आते हैं आपके दर्शन के लिए। देखने को ही दर्शन
कहते हैं। बाप बच्चों को देखने के लिए आते हैं। वह दर्शन नहीं
यह दर्शन अर्थात् मिलना। ऐसा दर्शन जिससे प्रसन्न हो जाएं। अधर
कुमार अर्थात् सदा पवित्र प्रवृत्ति में रहने वाले। बेहद की
प्रवृत्ति में सदा सेवाधारी,
हद
की प्रवृत्ति में न्यारे। अधर कुमारों का ग्रुप है -
कमलपुष्पों का गुलदस्ता।
प्रवृत्ति में रहते विघ्न-विनाशक की स्टेज पर रहते हो ना?
विघ्न-विनाशक स्टेज है - सदा बाप-समान मास्टर सर्वशक्तिमान की
स्थिति में रहना। इस स्थिति में रहेंगे तो विघ्न वार कर ही
नहीं सकते। अगर सदा मास्टर सर्वशक्तिमान की स्थिति में नहीं
रहते तो कभी विघ्न-वश कभी विघ्न-विनाशक। जितना समय विघ्नों के
वश हो उतना समय लाख गुणा घाटे में जाता है। जैसे एक घण्टा सफल
करते हो तो लाख गुणा जमा होता,
ऐसे
एक घण्टा वेस्ट जाता है तो लाख गुणा घाटा होता है इसलिए अब
व्यर्थ का खाता बन्द करो। हर सेकेण्ड अटेन्शन। बड़े-से-बड़े बाप
के बड़े बच्चे हो तो सदा यह अटेन्शन दो। प्रवृत्ति में रहते सदा
माया से निवृत। न्यारा और प्यारा। न्यारे होकर फिर प्रवृत्ति
के कार्य में आओ तो सदा मायाप्रूफ अर्थात् न्यारे रहेंगे।
न्यारा सदा प्रभु का प्यारा होता है। न्यारापन अर्थात्
ट्रस्टीपन। ट्रस्टी की किसी में अटैचमेंट नहीं होती क्योंकि
मेरापन नहीं होता। तो सभी ट्रस्टी हो ना। गृहस्थी समझेंगे तो
माया आयेगी। ट्रस्टी समझेंगे तो माया भाग जायेगी। मेरेपन से
माया का जन्म होता है। जब मेरापन नहीं तो माया का जन्म ही
नहीं। जैसे गन्दगी में कीड़े पैदा होते हैं वैसे ही जब मेरापन
आता है तो माया का जन्म होता है। तो मायाजीत बनने का सहज तरीका
- सदा ट्रस्टी समझो। इसमें तो होशियार हो ना?
ब्रह्माकुमार अर्थात् ट्रस्टी। चाहे प्रवृत्ति में हो लेकिन हो
ब्रह्माकुमार न कि प्रवृत्ति कुमार। जब ब्रह्माकुमार की स्मृति
रहती है तो प्रवृत्ति में भी न्यारे,
ब्रह्माकुमार के बजाए कोई और सम्बन्ध समझा तो माया आयेगी इसलिए
अपना अलौकिक सरनेम सदा याद रखो।
जैसे
लौकिक में सब बातों के अनुभवी हो,
ऐसे
मास्टर ज्ञानसागर बन ज्ञान की गहराई में भी अनेक अनुभव रूपी
रत्नों को प्राप्त करते जा रहे हो ना?
जितना सागर के तले में जाते हैं उतना क्या मिलता है?
रत्न। ऐसे ही जितना ज्ञान की गहराई में जायेंगे उतना अनुभव के
रत्न मिलेंगे और ऐसे अनुभवी मूर्त हो जायेंगे जो आपके अनुभव को
देख और भी अनुभवी बन जायेंगे। ऐसे अनुभवी बने हो?
एक
है ज्ञान सुनना और सुनाना,
दूसरा है अनुभवी मूर्त बनना। सुनना व सुनाना - पहली स्टेज,
अनुभवी मूर्त बनना यह है लास्ट स्टेज। जितना अनुभवी होंगे उतना
अविनाशी और निर्विघ्न होंगे। अनुभवों को बढ़ाते जाओ,
हर
गुण में अनुभवी मूर्त बनो। जो बोलो वह अनुभव हो। पाण्डव सब
अनुभवी मूर्त हो ना?
अनुभवी को कोई हिलाना भी चाहे तो हिला नहीं सकता। अनुभव के आगे
माया की कोई भी कोशिश सफल नहीं होगी। माया के विघ्नों के भी तो
अनुभवी हो गये हो ना?
अनुभवी कभी धोखा नहीं खाते। अनुभव का फाउन्डेशन मजबूत हो।
सदा
पुरूषार्थ की तीव्रगति से चलते रहो। शुद्ध संकल्प का स्टॉक हो
तो व्यर्थ खत्म हो जायेगा। जो रोज ज्ञान सुनते हो,
उसमें से कोई-न-कोई बात पर मनन करते रहो। व्यर्थ संकल्प चलना
अर्थात् मनन शक्ति की कमी है। मनन करना सीखो। एक ही शब्द लेकर
के उसकी गुह्यता में जाओ। अपने आपको रोज कोई-न-कोई टॉपिक सोचने
को दो,
फिर
व्यर्थ संकल्प समाप्त हो जायेंगे। जब भी कोई व्यर्थ संकल्प आये
तो बुद्धि से मधुबन पहुँच जाना। यहाँ का वातावरण,
यहाँ
का श्रेष्ठ संग याद करेंगे तो भी व्यर्थ खत्म हो जायेगा। लाइन
चेन्ज हो जायेगी। अधर कुमार अगर ब्रह्माकुमार नहीं बने तो आगे
नहीं बढ़ सकते।
अपने
को सदा पदमापदम भाग्यशाली आत्मा समझकर हर कर्म करो तो हर कर्म
श्रेष्ठ होगा। आपके द्वारा बहुतों को सन्देश मिलता रहेगा। आप
मैसेन्जर हो। जहाँ भी जाओ,
जो
भी सम्पर्क में आये उन्हें बाप का परिचय देते रहो। बीज डालते
जाओ। ऐसे भी नहीं सोचना इतनों को कहा लेकिन आये 2-4 ही। किसी
बीज का फल जल्दी निकलता है,
किसी
बीज का फल सीजन में निकलता है। अविनाशी बीज है,
फल
अवश्य देगा,
इसलिए बीज डालते जाओ अर्थात् मैसेज देते जाओ। सदा याद और सेवा
का बैलेन्स रखते हुए ब्लिसफुल बनो। अच्छा।
वरदान:-
लोक
पसन्द सभा की टिकेट बुक करने वाले राज्य सिंहासन अधिकारी भव
! 
कोई
भी संकल्प या विचार करते हो तो पहले चेक करो कि यह विचार व
संकल्प बाप पसन्द है?
जो
बाप पसन्द है वह लोक पसन्द स्वत: बन जाते हैं। यदि किसी भी
संकल्प में स्वार्थ है तो मन पसन्द कहेंगे और विश्व कल्याणार्थ
है तो लोकपसन्द व प्रभू पसन्द कहेंगे। लोक पसन्द सभा के मेम्बर
बनना अर्थात् ला एण्ड आर्डर का राज्य अधिकार व राज्य सिंहासन
प्राप्त कर लेना।
स्लोगन:-
परमात्म
साथ का अनुभव करो तो सब कुछ सहज अनुभव करते हुए सेफ रहेंगे। 