10-01-15
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - निराकार बाप तुम्हें अपनी मत देकर आस्तिक बनाते हैं,
आस्तिक बनने से ही तुम बाप का वर्सा ले सकते हो” 
प्रश्न:-
बेहद
की राजाई प्राप्त करने के लिए किन दो बातों पर पूरा-पूरा
अटेंशन देना चाहिए?
उत्तर:-
1-
पढ़ाई और 2- सर्विस । सर्विस के लिए लक्षण भी बहुत अच्छे चाहिए
। यह पढ़ाई बहुत वन्डरफुल है इससे तुम सजाई प्राप्त करते हो ।
द्वापर से धन दान करने से राजाई मिलती है लेकिन अभी तुम पढ़ाई
से प्रिन्स- प्रिन्सेज बनते हो ।
गीत:-
हमारे तीर्थ न्यारे हैं..
ओम्
शान्ति |
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत की एक लाइन सुनी । तुम्हारे
तीर्थ हैं - घर में बैठ चुपके से मुक्तिधाम पहुँचना । दुनिया
के तीर्थ तो कॉमन हैं,
तुम्हारे हैं न्यारे । मनुष्यों का बुद्धियोग तो साधू-सन्तों
आदि तरफ बहुत ही भटकता रहता है । तुम बच्चों को तो सिर्फ बाप
को ही याद करने का डायरेक्शन मिलता है । वह है निराकार बाप ।
ऐसे नहीं कि निराकार को मानने वाले निराकारी मत के ठहरे ।
दुनिया में मत- मतान्तर तो बहुत हैं ना । यह एक निराकारी मत
निराकार बाप देते हैं,
जिससे मनुष्य ऊंच ते ऊंच पद जीवनमुक्ति वा मुक्ति पाते हैं ।
इन बातों को जानते कुछ नहीं हैं । सिर्फ ऐसे ही कह देते
निराकार को मानने वाले हैं । अनेकानेक मतें हैं । सतयुग में तो
होती है एक मत । कलियुग में हैं अनेक मत । अनेक धर्म हैं,
लाखों-करोड़ो मतें होगी । घर-घर में हर एक की अपनी मत । यहाँ
तुम बच्चों को एक ही बाप ऊँच ते ऊँच मत देते हैं,
ऊंच
ते ऊंच बनाने की । तुम्हारे चित्र देखकर बहुत लोग कहते हैं कि
यह क्या बनाया है?
मुख्य बात क्या है?
बोलो,
यह
रचता और रचना के आदि-मध्य- अन्त का ज्ञान है,
जिस
ज्ञान से हम आस्तिक बनते हैं । आस्तिक बनने से बाप से वर्सा
मिलता है । नास्तिक बनने से वर्सा गंवाया है । अभी तुम बच्चों
का धन्धा ही यह है - नास्तिक को आस्तिक बनाना । यह परिचय तुमको
मिला है बाप से । त्रिमूर्ति का चित्र तो बड़ा क्लीयर है ।
ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण तो जरूर चाहिए ना । ब्राह्मणों से ही
यज्ञ चलता है । यह बड़ा भारी यज्ञ है । पहले-पहले तो यह समझाना
होता है कि ऊंच ते ऊँच बाप हैं । सभी आत्मायें भाई- भाई ठहरी ।
सभी एक बाप को याद करते हैं । उनको बाप कहते हैं,
वर्सा भी रचता बाप से ही मिलता है । रचना से तो मिल न सके
इसलिए ईश्वर को सभी याद करते हैं । अब बाप हैं ही स्वर्ग का
रचयिता और भारत में ही आते हैं,
आकर
यह कार्य करते हैं । त्रिमूर्ति का चित्र तो बड़ी अच्छी चीज है
। यह बाबा,
यह
दादा । ब्रह्मा द्वारा बाबा सूर्यवंशी घराने की स्थापना कर रहे
हैं । बाप कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हो । एम
ऑब्जेक्ट पूरी है इसलिए बाबा मैडल्स भी बनवाते हैं । बोलो,
शॉर्ट में शॉर्ट दो अक्षर में आपको समझाते हैं । बाप से सेकण्ड
में वर्सा मिलना चाहिए ना । बाप है ही स्वर्ग का रचयिता । यह
मैडल्स तो बहुत अच्छी चीज है । परन्तु बहुत देह- अभिमानी बच्चे
समझते नहीं हैं । इनमें सारा ज्ञान है-एक सेकण्ड का । बाबा
भारत को ही आकर स्वर्ग बनाते हैं । नई दुनिया बाप ही स्थापन
करते हैं । यह पुरूषोत्तम संगमयुग भी गाया हुआ है । यह सारा
ज्ञान बुद्धि में टपकना चाहिए । कोई का योग है तो फिर ज्ञान
नहीं,
धारणा नहीं होती । सर्विस करने वाले बच्चों को ज्ञान की धारणा
अच्छी हो सकती है । बाप आकर मनुष्य को देवता बनाने की सेवा करे
और बच्चे कोई सेवा न करें तो वह क्या काम के?
वह
दिल पर चढ़ कैसे सकते?
बाप
कहते हैं-ड्रामा में मेरा पार्ट ही है रावण राज्य से सबको
छुड़ाना । राम राज्य और रावण राज्य भारत में ही गाया हुआ है ।
अब राम कौन हैं?
यह
भी जानते नहीं । गाते भी हैं-पतित-पावन,
भक्तों का भगवान एक । तो पहले-पहले जब कोई अन्दर घुसे तो बाप
का परिचय दो । आदमी- आदमी देखकर समझाना चाहिए । बेहद का बाप
आते ही हैं बेहद के सुख का वर्सा देने । उनको अपना शरीर तो है
नहीं तो वर्सा कैसे देते हैं?
खुद
कहते हैं कि मैं इस ब्रह्मा तन से पढ़ाकर,
राजयोग सिखलाए यह पद प्राप्त कराता हूँ । इस मैडल में सेकण्ड
की समझानी है । कितना छोटा मैडल है परन्तु समझाने वाले बड़े
देही- अभिमानी चाहिए । वह बहुत कम हैं । यह मेहनत कोई से
पहुँचती नहीं है इसलिए बाबा कहते हैं चार्ट रखकर देखो-सारे दिन
में हम कितना टाइम याद में रहते हैं?
सारा
दिन ऑफिस में काम करते याद में रहना है । कर्म तो करना ही है ।
यहाँ योग में बिठाकर कहते हैं बाप को याद करो । उस समय कर्म तो
करते नहीं हो । तुमको तो कर्म करते याद करना है । नहीं तो
बैठने की आदत पड़ जाती है । कर्म करते याद में रहेंगे तब
कर्मयोगी सिद्ध होंगे । पार्ट तो जरूर बजाना है,
इसमें ही माया विघ्न डालती है । सच्चाई से चार्ट भी कोई लिखते
नहीं हैं । कोई-कोई लिखते हैं,
आधा
घण्टा,
पौना
घण्टा याद में रहे । सो भी सवेरे ही याद में बैठते होंगे ।
भक्ति मार्ग में भी सवेरे उठकर राम की माला बैठ जपते हैं । ऐसे
भी नहीं,
उस
समय एक ही धुन में रहते हैं । नहीं,
और
भी बहुत संकल्प आते रहेंगे । तीव्र भक्तों की बुद्धि कुछ ठहरती
हैं । यह तो है अजपाजाप । नई बात है ना । गीता में भी मन्मनाभव
अक्षर है । परन्तु कृष्ण का नाम देने से कृष्ण को याद कर लेते
हैं,
कुछ
भी समझते नहीं । मैडल साथ में जरूर हो । बोलो,
बाप
ब्रह्मा तन से बैठ समझाते हैं,
हम
उस बाप से प्रीत रखते हैं । मनुष्यों को तो न आत्मा का,
न
परमात्मा का ज्ञान है । सिवाए बाप के यह ज्ञान कोई दे न सके ।
यह त्रिमूर्ति शिव सबसे मुख्य है । बाप और वर्सा । इस चक्र को
समझना तो बहुत सहज है । प्रदर्शनी से भी प्रजा तो लाखों बनती
रहती है ना । राजायें थोड़े होते हैं,
उन्हों की प्रजा तो करोड़ो की अन्दाज में होती है । प्रजा ढेर
बनती हैं,
बाकी
राजा बनाने लिए पुरूषार्थ करना है । जो जास्ती सर्विस करते हैं
वे जरूर ऊँच पद पायेंगे । कई बच्चों को सर्विस का बहुत शौक हैं
। कहते हैं नौकरी छोड़ दे,
खाने
लिए तो है ही । बाबा का बन गये तो शिवबाबा की ही परवरिश लेंगे
। परन्तु बाबा कहते हैं-मैंने वानप्रस्थ में प्रवेश किया है ना
। मातायें भी जवान हैं तो घर में रहते दोनों सर्विस करनी है ।
बाबा हर एक की सरकमस्टाँश को देख राय देते हैं । शादी आदि के
लिए अगर एलाउ न करें तो हंगामा हो जाए इसलिए हर एक का
हिसाब-किताब देख राय देते हैं । कुमार है तो कहेंगे तुम सर्विस
कर सकते हो । सर्विस कर बेहद के बाप से वर्सा लो । उस बाप से
तुमको क्या मिलेगा?
धूलछांई । वह तो सब मिट्टी में मिल जाना है । दिन- प्रतिदिन
टाइम कम होता जाता है । कई समझते हैं हमारी मिलकियत के बच्चे
वारिस बनेंगे । परन्तु बाप कहते हैं कुछ भी मिलने का नहीं है ।
सारी मिलकियत खाक में मिल जायेगी । वह समझते हैं पिछाड़ी वाले
खायेंगे । धनवान का धन खत्म होने में कोई देरी नहीं लगती है ।
मौत तो सामने खड़ा ही है । कोई भी वर्सा ले नहीं सकेंगे । बहुत
थोड़े हैं जो पूरी रीति समझा सकते हैं । जास्ती सर्विस करने
वाले ही ऊँच पद पायेंगे । तो उन्हों का रिगॉर्ड भी रखना चाहिए,
इनसे
सीखना है । 21 जन्म के लिए रिगॉर्ड रखना पड़े । ऑटोमेटिक जरूर
वह ऊंच पद पायेंगे,
तो
रिगॉर्ड तो जहाँ-तहाँ रहना ही है । खुद भी समझ सकते हैं,
जो
मिला सो अच्छा है । इसमें ही खुश होते हैं ।
बेहद
की राजाई के लिए पढ़ाई और सर्विस पर पूरा अटेंशन चाहिए । यह है
बेहद की पढ़ाई । यह राजधानी स्थापन हो रही है ना । इस पढ़ाई से
यहाँ तुम पढ़कर प्रिन्स बनते हो । कोई भी मनुष्य धन दान करते
हैं तो वह राजा के पास वा साहूकार के पास जन्म लेते हैं ।
परन्तु वह है अल्पकाल का सुख । तो इस पढ़ाई पर बहुत अटेंशन देना
चाहिए । सर्विस का ओना रहना चाहिए । हम अपने गांव में जाकर
सर्विस करें । बहुतों का कल्याण हो जायेगा । बाबा जानते हैं -
ऐसा सर्विस का शौक अजुन कोई में है नहीं । लक्षण भी तो अच्छे
चाहिए ना । ऐसे नहीं कि डिससर्विस कर और ही यज्ञ का भी नाम
बदनाम करे और अपना ही नुकसान कर दे । बाबा तो हर बात के लिए
अच्छी रीति समझाते हैं । मैडल्स आदि के लिए कितना ओना रहता हैं
। फिर समझा जाता हैं-ड्रामा अनुसार देरी पड़ती हैं । यह
लक्ष्मी-नारायण का ट्रांसलाइट चित्र भी फर्स्टक्लास हैं ।
परन्तु बच्चों पर आज बृहस्पति की दशा तो कल फिर राहू की दशा
बैठ जाती है । ड्रामा में साक्षी हो पार्ट देखना होता है । ऊँच
पद पाने वाले बहुत कम होते हैं । हो सकता है ग्रहचारी उतर जाए
। ग्रहचारी उतरती है तो फिर जम्प कर लेते हैं । पुरूषार्थ कर
अपना जीवन बनाना चाहिए,
नहीं
तो कल्प-कल्पान्तर के लिए सत्यानाश हो जायेगी । समझेंगे कल्प
पहले मुआफिक ग्रहचारी आई है । श्रीमत पर नहीं चलेंगे तो पद भी
नहीं मिलेगा । ऊँच ते ऊंच है भगवान की श्रीमत । इन लक्ष्मी-
नारायण के चित्र को तुम्हारे सिवाए कोई समझ न सके । कहेंगे
चित्र तो बहुत अच्छा बनाया है,
बस
तुमको यह चित्र देखने से मूलवतन,
सूक्ष्मवतन,
स्थूलवतन सारा सृष्टि का चक्र बुद्धि में आ जायेगा । तुम
नॉलेजफुल बनते हो-नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार । बाबा को तो यह
चित्र देख बहुत खुशी होती है । स्टूडेंट को तो खुशी होनी चाहिए
ना-हम पढ़कर यह बनते हैं । पढ़ाई से ही ऊँच पद मिलता है । ऐसे
नहीं कि जो भाग्य में होगा । पुरूषार्थ से ही प्रालब्ध मिलती
है । पुरूषार्थ कराने वाला बाप मिला है,
उनकी
श्रीमत पर नहीं चलेंगे तो बुरी गति होगी । पहले-पहले तो कोई को
भी इस मैडल्स पर ही समझाओ फिर जो लायक होंगे वह झट कहेंगे -
हमको यह मिल सकते हैं?
हाँ,
क्यों नहीं । इस धर्म का जो होगा उसको तीर लग जायेगा । उसका
कल्याण हो सकता है । बाप तो सेकण्ड में हथेली पर बहिश्त देते
हैं,
इसमें तो बहुत खुशी रहनी चाहिए । तुम शिव के भक्तों को यह
ज्ञान दो । बोलो शिवबाबा कहते हैं मुझे याद करो तो राजाओं का
राजा बन जायेंगे । बस सारा दिन यही सर्विस करो । खास बनारस में
शिव के मन्दिर तो बहुत हैं,
वहाँ
अच्छी सर्विस हो सकती है । कोई न कोई निकलेंगे । बहुत इजी
सर्विस है । कोई करके देखो,
खाना
तो मिलेगा ही,
सर्विस करके देखो । सेण्टर तो वहाँ है ही । सवेरे जाओ मन्दिर
में,
रात
को लौट आओ । सेण्टर बना दो । सबसे जास्ती तुम शिव के मन्दिर
में सर्विस कर सकते हो । ऊंच ते ऊंच है ही शिव का मन्दिर ।
बाम्बे में बबुलनाथ का मन्दिर है । सारा दिन वहाँ जाकर सर्विस
कर बहुतों का कल्याण कर सकते हैं । यह मैडल ही बस है । ट्रायल
करके देखो । बाबा कहते हैं यह मैडल्स लाख तो क्या 10
लाख बनाओ । बुजुर्ग लोग तो बहुत अच्छी सर्विस कर सकते हैं ।
ढेर प्रजा बन जायेगी । बाप सिर्फ कहते हैं मुझे याद करो बस,
मन्मनाभव अक्षर भूल गये हो । भगवानुवाच है ना । कृष्ण थोड़ेही
भगवान है,
वह
तो पूरे 84 जन्म लेते हैं । शिवबाबा इन कृष्ण को भी यह पद
प्राप्त कराते हैं । फिर धक्का खाने की क्या दरकार है । बाप तो
कहते हैं सिर्फ मुझे याद करो । तुम सबसे अच्छी सर्विस शिव के
मन्दिर में कर सकेंगे । सर्विस की सफलता के लिए देही- अभिमानी
अवस्था में स्थित होकर सर्विस करो । दिल साफ तो मुराद हासिल ।
बनारस के लिए बाबा तो खास राय देते हैं वहाँ वानप्रस्थियों के
आश्रम भी है । बोलो हम ब्रह्मा के बच्चे ब्राह्मण हैं । बाप
ब्रह्मा द्वारा कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हो,
और
कोई उपाय नहीं है । सुबह से लेकर रात तक शिव के मन्दिर में बैठ
सर्विस करो । ट्राई करके देखो । शिवबाबा खुद कहते हैं - हमारे
मन्दिर तो बहुत हैं । तुमको कोई भी कुछ कहेंगे नहीं,
और
ही खुश होंगे-यह तो शिवबाबा की बहुत महिमा करते हैं । बोलो यह
ब्रह्मा,
यह
ब्राह्मण हैं,
यह
कोई देवता नहीं है । यह भी शिवबाबा को याद कर यह पद लेते हैं ।
इन द्वारा शिवबाबा कहते हैं मामेकम् याद करो । कितना इजी है ।
बुजुर्ग की कोई इनसल्ट नहीं करेगा । बनारस में अभी तक इतनी कोई
सर्विस हुई नहीं है । मैडल वा चित्रों पर समझाना बहुत सहज है ।
कोई गरीब है तो बोलो तुमको फ्री देते हैं,
साहूकार है तो बोलो तुम देंगे तो बहुतों के कल्याण के लिए और
भी छपा लेंगे तो तुम्हारा भी कल्याण हो जायेगा । यह तुम्हारा
धन्धा सबसे तीखा हो जायेगा । कोई ट्रायल करके देखो । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
ज्ञान
को जीवन में धारण कर फिर सर्विस करनी है | जो जास्ती सर्विस
करते हैं,
अच्छे लक्षण हैं उनका रिगॉर्ड भी जरूर रखना है ।
2.
कर्म
करते याद में रहने की आदत डालनी है । सर्विस की सफलता के लिए
अपनी अवस्था देही- अभिमानी बनानी है । दिल साफ रखनी है ।
वरदान:-
साथी
और साक्षीपन के अनुभव द्वारा सदा सफलतामूर्त
भव ! 
जो
बच्चे सदा बाप के साथ रहते हैं वह साक्षी स्वत : बन जाते हैं
क्योंकि बाप स्वयं साक्षी होकर पार्ट बजाते हैं तो उनके साथ
रहने वाले भी साक्षी होकर पार्ट बजायेंगे और जिनका साथी स्वयं
सर्वशक्तिमान् बाप है वे सफलता मूर्त भी स्वत: बन ही जाते हैं
। भक्ति मार्ग में तो पुकारते हैं कि थोड़े समय के साथ का अनुभव
करा दो,
झलक
दिखा दो लेकिन आप सर्व सम्बन्धों से साथी हो गये-तो इसी खुशी
और नशे में रहो कि पाना था सो पा लिया ।
स्लोगन:-
व्यर्थ
संकल्पों की निशानी है-मन उदास और खुशी गायब । 
अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए विशेष होमवर्क
(10)
चेक करो - जो भी संकल्प उठता है वह स्वयं वा सर्व के प्रति
कल्याण का है? सेकेण्ड में कितने
संक्ल्प उठे - उसमें कितने सफल हुए और कितने असफल हुए?
संकल्प और कर्म में अन्तर न हो । संकल्प जीवन
का अमूल्य खजाना है । जैसे स्थूल खजाने को व्यर्थ नहीं करते
वैसे एक संकल्प भी व्यर्थ न जाये ।
ओम्
शान्ति |