23-08-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:18-1-80 मधुबन


स्मृति दिवस पर बापदादा की बच्चों प्रति शिक्षायें

आज स्मृति दिवस के स्मृति स्वरूप अर्थात् समर्थ स्वरूप बच्चों को देखकर बापदादा भी सदा ‘समर्थ भव’ का वरदान दे रहे हैं। जैसे आज के इस स्मृति दिवस पर स्वत: स्मृति स्वरूप रहे हो, एक ही लगन में मगन, एक बाप दूसरा न कोई - ऐसे सहजयोगी, निरन्तर योगयुक्त, जीवनमुक्त, सदा फरिश्ता स्वरूप भव।

आज के दिन सभी बच्चों का चार्ट बाप-समान अव्यक्त वतन वासी, सदा स्नेही लवलीन अवस्था का रहा। ऐसे ही बाप- समान न्यारे और सदा प्यारे भव। चारों ओर के बच्चों का आज के समर्थ दिवस पर बाप को प्रत्यक्ष करने का एक ही दृढ़ संकल्प अभी भी बाप के पास पहुँच रहा है। सब बच्चे अपने एक ही उमंग हुल्लास के संकल्प से देश व विदेश में सेवा की स्टेज पर कोई मन से, कोई तन से उपस्थित हैं। यहाँ होते भी बापदादा के सामने सभी बच्चों की सेवा के उमंग, उत्साह भरे चेहरे सामने हैं। बाप-दादा को वर्ल्ड का चक्कर लगाने में कितना समय लगता है? जितने में आप लोग साइन्स के साधनों टी.वी. वा रेडियों द्वारा स्वीच ऑन कर सुनते हो व देखते हो, इतने समय में बाप-दादा वर्ल्ड का चक्कर लगाते हैं। बाप- दादा देख रहे हैं कि हर स्थान के बच्चे क्या-क्या कर रहे हैं। जैसे आज के दिन सबको एक ही सेवा की धुन लगी हुई है, हरेक की बुद्धि में प्रत्यक्षता का झण्डा लहरा रहा है कि विश्व में यह झण्डा लहरायें। सबके हृदय में बाप-दादा बस रहा है और ही पुरूषार्थ प्रैक्टिकल में ला रहे हैं कि सभी कैसे दिल चीरकर दिखायें कि बाप हमारे दिल में है। इस समय का सबका रूप यादगार में गाये हुए सेवक हनुमान के मिसल है। कोई संकल्प के तीर लगा रहे हैं जिस श्रेष्ठ संकल्प से वायुमण्डल द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करें। कोई अपने मुख के स्नेही और शक्तिशाली बोल से बाप को प्रत्यक्ष करने में लगे हुए हैं। ऐसा दृश्य याद और सेवा के बैलेन्स का बाप-दादा देख रहे हैं। स्नेह भी आज सम्पूर्ण रूप में इमर्ज है और शक्ति स्वरूप भी आज सेवा अर्थ इमर्ज रूप में है। आज के इस दिन के समान सदा याद और सेवा के बैलेन्स में रहना।

यह वर्ष विशेष हर आत्मा को यथा योग्य वर्सा देने का वर्ष है। सर्व तड़पती हुई आत्माओं को यथा-योग्य तृप्त आत्मा बनाने का वर्ष है। विशेष इस वर्ष में याद और सेवा का बैलेन्स रखना और सदा ब्लिसफुल रहना। साथ-साथ सर्व आत्माओं को ब्लैसिंग देते रहना। इस वर्ष का संगठित रूप का विशेष स्लोगन है स्व के प्रति और सर्व के प्रति सदा विघ्न-विनाशक बनना। उसका सहज साधन है क्वेश्चन मार्क को सदा के लिए विदाई देना और फुलस्टाप द्वारा सर्व शक्तियों का फुल स्टॉक करना। इस वर्ष की विशेष सर्व विघ्न प्रूफ चमकीली फरिश्ता ड्रेस सदा पहनकर रखना। मिट्टी की ड्रेस नहीं पहनना और सदा सर्व गुणों के गहनों से सजे रहना। विशेष 8 शक्तियों के शस्त्रों से सदा अष्ट शक्ति शस्त्रधारी सम्पन्न मूर्ति बनकर रहना। सदा कमल पुष्प के आसन पर अपने श्रेष्ठ जीवन के पांव रखना। और क्या करेंगे?

रोज़ अमृतबेले विश्व वरदानी स्वरूप से विश्व-कल्याणकारी बाप के साथ कम्बाइन्ड रूप बन विश्व वरदानी शक्ति और विश्व कल्याणकारी शिव। शिव और शक्ति कम्बाइन्ड रूप से मन्सा संकल्प वा वृत्ति द्वारा वायब्रेशन की खुशबू फैलाना। जैसे आजकल की स्थूल खुशबू के साधनों से भिन्न-भिन्न प्रकार की खुशबू फैलाते हैं। कोई गुलाब की खुशबू, कोई चन्दन की खुशबू। ऐसे आप द्वारा सुख, शान्ति, शक्ति, प्रेम, आनन्द की भिन्न-भिन्न खुशबू फैलती जाए। रोज़ अमृतबेले भिन्न-भिन्न श्रेष्ठ वायब्रेशन के फाउन्टेन के मुआफ़िक आत्माओं के ऊपर गुलाबबाशी डालना। सिर्फ संकल्प का आटोमिटिक स्वीच ऑन करना। यह तो आता है ना क्योंकि आज के विश्व में अशुद्ध वृत्ति की बदबू बहुत है। उनको खुशबूदार बनाओ। समझा - इस वर्ष में क्या करना है।

इस वर्ष में जो भी पुराने और नये सर्विस के भिन्न-भिन्न साधन हैं उनको तन-मन-धन, समय आदि जो भी हैं, सब लगाकर फाइनल सर्व आत्माओं में से सलेक्ट करो कि कौन-सी आत्मायें मुक्ति के वर्से के योग्य हैं और कौन-सी आत्मायें जीवनमुक्ति के योग्य हैं, जो जिसके योग्य है उनको वैसा ही सन्देश दे फाइनल करो। अभी सेवा की फाइल फाइनल करो। जैसे फाइल के हर कागज़ में ऑफीसर अपनी सही करके सम्पन्न करके आगे बढ़ता है। तो आप सब सेवाधारी हर आत्मा पर मुक्ति व जीवनमुक्ति की साइन करो। फाइनल की स्टैम्प लगाओ तो फाइल सम्पूर्ण हो जाएगी। समझा, इस वर्ष में क्या करना है? सिलेक्शन की मशीनरी तेज़ करो। देखेंगे कितने में फाइल तैयार करते हो। पहले विदेश फाइल तैयार करता है या देश। जिसको जिस धर्म में जाना है, स्टैम्प लगा दो|

आज बाप-दादा चारों ओर के सर्व स्नेही और सेवाधारी बच्चों को याद प्यार दे रहे हैं। आज के दिन तन से भले भिन्न- भिन्न स्थानों पर हैं लेकिन मन से बाप को प्रत्यक्ष करने की धुन के कारण बाप के तरफ ही मनमनाभव हैं।

ऐसे सदा स्नेह और सेवा में अविनाशी रहने वाले, सदा बाप की सेवा में तत्पर रहने वाले, प्रत्यक्षता का झण्डा लहराने वाले, सर्व विजयी बच्चों को यादप्यार और नमस्ते।

(आज जानकी दादी विदाई ले लण्डन जा रही थी - तो बापदादा ने सबसे छुटटी लेने के लिए जानकी दादी को तख्त पर अपने बाजू में बिठाया)

बाप-दादा को भी मुरबी बच्चों का रिस्पेक्ट रखना होता है इसलिए बाप-दादा बधाई देते हैं न कि विदाई। वैसे तो यह मस्त फकीर है। विश्व की परिक्रमा बाप बच्चों के साथ साकार द्वारा भी करते हैं। वैसे तो सेकेण्ड में विश्व परिक्रमा लगाते हैं लेकिन साकार रूप में बच्चों द्वारा सेवा की परिक्रमा लगाते हैं। बाप को विश्व की परिक्रमा अर्थात् सेवा की परिक्रमा दिलाने के लिए जा रही हो। इस वर्ष की विशेषता – ‘चक्रवर्ती भव’ आगे-आगे बाप होंगे पीछे-पीछे आप। आप बाप को परिक्रमा लगवायेंगी व बाप आपको परिक्रमा साथ-साथ दिलायेंगे।

(मीठी दीदी बाप-दादा के सम्मुख आकर बैठी हैं)

आज वतन में सभी बच्चे स्नेह से तो पहुँचे ही थे। लेकिन आज का समर्थी दिवस मनाने के लिए सेवा में गई हुई श्रेष्ठ आत्मायें भी पहुँची। उनकी भी रूह-रूहान बड़ी अच्छी थी। वे अपने विश्व सेवा के वण्डरफुल पार्ट को देखते हुए हर्षित हो रही थीं कि भिन्न शरीर से विश्व सेवा का अलौकिक राज़युक्त पार्ट कौन-सा है - बाप-दादा सुना रहे थे। विश्व की पतित-पावनी सरस्वती नदी का गायन ही है - गुप्त सेवाधारी। गंगा और जमुना प्रसिद्ध हैं साकार में। लेकिन सरस्वती की सेवा गुप्त रूप में भी दिखाई है और प्रख्यात में सितारधारी यादगार रूप में भी है। और गुप्त रूप में गुप्त नदी के रूप में यादगार है। दोनों ही पार्ट वन्डरफुल हैं। जन्म द्वारा सेवा के पार्ट का सम्बन्ध है। जहाँ जीत वहाँ जन्म। कोई राज्य की जीत नहीं लेकिन जन्म द्वारा विकारों पर जीत हो जाती है। जहाँ जन्म वहाँ जीत है, न कि जहाँ जीत वहाँ जन्म। यह जो थोड़ा बहुत गायन है वह प्रैक्टिकल में पार्ट तो चलना ही है। अब यह विशेष सेवाधारी, समय का और साकार सेवाधारियों के सेवा की समाप्ति का इन्तजार कर रहे हैं, क्योंकि जब साकार सेवा का पार्ट समाप्त हो तब नये राज्य के लेन-देन के वन्डरफुल पार्ट की आदि हो। तो एडवान्स का ग्रुप, उसमें भी जो विशेष नामीग्रामी आत्मायें हैं उनका संगठन बहुत मज़बूत है। श्रेष्ठ जन्म, फर्स्ट जन्म, दिलाने के लिए धरनी तैयार करने का वन्डरफुल पार्ट इन आत्माओं द्वारा तीव्रगति से चल रहा है। जैसे विनाशकारी बटन दबाने के लिए रूके हुए हैं। वैसे दिव्य जन्म द्वारा स्थापना कराने के निमित्त बनी हुई एडवान्स सेवा की पार्टी टचिंग करने के लिए, मैसेज देने के लिए, प्रत्यक्षता करने के लिए रूकी हुई है। वह तो सम्बन्ध के स्नेह से प्रत्यक्ष करेंगे। यह भी विचित्र कहानियों के रूप से स्थापना के जन्म का पार्ट नूँधा हुआ है। पहले कृष्ण पीछे राधे होगी ना। तो जन्म-स्थान और उनकी स्थिति दोनों का सम्पूर्ण कार्य समाप्त कर पीछे जन्म होगा राधे का। इसलिए वह बड़ा वह छोटी हो जायेगी। जैसे यहाँ भी सेवा के क्षेत्र में पहले जगत अम्बा धरनी बनाने गई और फिर बाप गये। ऐसे जगत अम्बा और मुरबी बच्चा विश्व किशोर साथी, सामना करने वाले थे। मैदान पर आगे सेवा में आने वाले रहे, वैसे ही अभी भी भिन्न रूप में कार्य के संस्कार वही हैं। दोनों स्थापना के जन्म की कहानी में हीरो पार्टधारी हैं। गर्भ महल तैयार करा रहे हैं। यहाँ भी तो कारोबार में निमित्त दोनों मूर्तियाँ रहीं। तो यह महल तैयार करने वाले भी ऐसे पॉवरफुल चाहिए। यहाँ स्थापना की तैयारी की और फिर वहाँ आप सबके लिए जो विशेष अष्ट रतन हैं, उनके लिए तैयारी कर रहे हैं, महल तैयार कर रहे हैं। जब तैयारी हो तब तो आत्मायें वहाँ जायेंगी ना। तो अब अपवित्र सृष्टि में पवित्र महल तैयार करना कितना श्रेष्ठ कार्य करना पड़े। ऐसी पॉवरफुल आत्मायें चाहिए जो यह पॉवरफुल कार्य कर सकें। ऐसी वैसी नहीं कर सकतीं। वह भी डेट पूछ रहे हैं किस डेट तक महल तैयार चाहिए, डेट बताओ। वह तो कहते हैं साकार सेवा का पार्ट समाप्त होगा तब हमारे कार्य की आदि होगी। इनकी अन्त हमारी आदि। पहले अन्त होगी तब तो फिर आदि होगी। तो सेवा के पार्ट के समाप्ति की डेट कौन-सी है? वही डेट फिर राज्य के जन्म की होगी। सुना, उनकी रूह-रूहान। वैसे तो सब आत्मायें इमर्ज थीं लेकिन उनके भी ग्रुप्स हैं।

सर्विसएबुल बच्चों को देखते हुए बाबा बोले - सर्विस के प्लैन तो सभी ने बहुत अच्छे-अच्छे बनाये हैं लेकिन सभी सर्विस के प्लैन सफल तभी होंगे जब निमित्त बने हुए विशेष तीन बातों का अटेन्शन देंगे।

1- एक तो जिस आत्मा की जो विशेषता है उस विशेषता को मूल्य देते हुए उनको आगे उमंग-उत्साह में लाना, उसके लिए निमित्त बने हुए को भी अथक सेवाधारी बनना पड़े।

2- अपने सेवाकेन्द्र का व जो भी सम्पर्क के सेवाकेन्द्र हैं उनका वातावरण रूहानियत का बनाकर रखना, जिससे स्वयं की और आने वाली आत्माओं की, जो नये-नये आते हैं उनकी सहज उन्नति हो सके क्योंकि वातावरण धरनी को बनाता है। तो सेवाकेन्द्र का वातावरण रूहानी हो। जो भी सेवाकेन्द्र पर आते हैं वह अपने गृहस्थ व्यवहार के झंझट से आते हैं, गृहस्थ के वातावरण से थके हुए होते हैं, तो उन्हें एकस्ट्रा सहयोग की आवश्यकता होती है, तो रूहानी वायुमण्डल का उनको सहयोग देकर सहज पुरुषार्थी बना सकते हो। जैसे एयरकन्डीशन होता है तो वातावरण को क्रियेट करते हैं, ठण्डी में अगर गर्म स्थान मिल जाता है तो जाने से ही आराम महसूस करते हैं, इसी रीति से रूहानियत के आधार पर सेवाकेन्द्र का ऐसा वायुमण्डल हो जो अनुभव करें कि यह स्थान सहज ही उन्नति प्राप्त करने का है इसलिए सेवाकेन्द्र पर आते हैं तो आते ही बाहर का और सेवाकेन्द्र का अन्तर महसूस हो, जिससे स्वत: आकर्षित हों।

3- ब्राह्मण परिवार की विशेषता है - अनेक होते भी एक। तो हर सेवाकेन्द्र का वायब्रेशन ऐसा हो जो सबको महसूस हो कि ये अनेक नहीं लेकिन एक हैं। एकता का वायब्रेशन सारे विश्व में एक धर्म, एक राज्य स्थापन करेगा। यह भी विशेष अटेन्शन देकर भिन्नता को मिटाकर एकता लाना।

इस नये वर्ष में विशेष इन तीनों बातों को प्रैक्टिकल में लाना। सुनना और कहना तो हो रहा है लेकिन इस साल में यह तीनों बातें प्रैक्टिकल में लाओ। सेवाधारी स्वयं प्रति नहीं लेकिन सेवा प्रति। स्वयं का सब-कुछ सेवा प्रति स्वाहा करने वाले। जैसे साकार बाप ने सेवा में हड्डियाँ भी स्वाहा की ना, ऐसे हर कर्मेन्द्रिय द्वारा सेवा सदा होती रहे। मुख से भी सेवा, नयनों से भी सेवा, सेवा ही सेवा। तो सभी ऐसे सेवाधारी हो ना।

प्लैन अच्छे बनाये हैं अभी प्रैक्टिकल की लिस्ट आयेगी। जैसे प्लैन की फाइल आ गई वैसे प्लैन की रिजल्ट आयेगी। अच्छा - सभी 108 की माला में आने वाले हो ना। सब एनाउन्स ऑटोमेटिकली हो जायेगा। अपनी सीट हरेक लेते हुए अपना नम्बर एनाउन्स करेंगे। सेवा की सीट नम्बर एनाउन्स करेगी। सेवा माईक बनेगी, मुख का माइक एनाउन्स नहीं करेगा। अच्छा।

वरदान:

सागर के तले में जाकर अनुभव रूपी रत्न प्राप्त करने वाले सदा समर्थ आत्मा भव!   

समर्थ आत्मा बनने के लिए योग की हर विशेषता का, हर शक्ति का और हर एक ज्ञान की मुख्य पाइंट का अभ्यास करो। अभ्यासी, लगन में मगन रहने वाली आत्मा के सामने किसी भी प्रकार का विघ्न ठहर नहीं सकता इसलिए अभ्यास की प्रयोगशाला में बैठ जाओ। अभी तक ज्ञान के सागर, गुणों के सागर, शक्तियों के सागर में ऊपर-ऊपर की लहरों में लहराते हो, लेकिन अब सागर के तले में जाओ तो अनेक प्रकार के विचित्र अनुभव के रत्न प्राप्त कर समर्थ आत्मा बन जायेंगे।

स्लोगन:

अशुद्धि ही विकार रूपी भूतों का आवाहन करती है इसलिए संकल्पों से भी शुद्ध बनो।