06-02-15
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा”
मधुबन
“मीठे
बच्चे - तुम आत्माओं का स्वधर्म शान्ति है,
तुम्हारा देश शान्तिधाम है,
तुम आत्मा शान्त स्वरूप हो इसलिए तुम शान्ति मांग नहीं सकते” 
प्रश्न:-
तुम्हारा योगबल कौन-सी कमाल करता है?
उत्तर:-
योगबल
से तुम सारी दुनिया को पवित्र बनाते हो,
तुम
कितने थोड़े बच्चे योगबल से यह सारा पहाड़ उठाए सोने का पहाड़
स्थापन करते हो । 5 तत्व सतोप्रधान हो जाते हैं,
अच्छा
फल देते हैं । सतोप्रधान तत्वों से यह शरीर भी सतोप्रधान होते
हैं । वहाँ के फल भी बहुत बड़े-बड़े स्वादिष्ट होते हैं ।
ओम्
शान्ति |
जब
ओम् शान्ति कहा जाता है तो बहुत खुशी होनी चाहिए क्योंकि
वास्तव में आत्मा है ही शान्त स्वरूप,
उसका
स्वधर्म ही शान्त है । इस पर सन्यासी भी कहते हैं,
शान्ति का तो तुम्हारे गले में हार पड़ा है । शान्ति को बाहर
कहाँ ढूँढते हो । आत्मा स्वत: शान्त स्वरूप है । इस शरीर में
पार्ट बजाने आना पड़ता है । आत्मा सदा शान्त रहे तो कर्म कैसे
करेगी?
कर्म
तो करना ही है । हाँ,
शान्तिधाम में आत्माएं शान्त रहती हैं । वहाँ शरीर है नहीं,
यह
कोई भी सन्यासी आदि नहीं समझते कि हम आत्मा हैं,
शान्तिधाम में रहने वाली हैं । बच्चों को समझाया गया
है-शान्तिधाम हमारा देश है,
फिर
हम सुखधाम में आकर पार्ट बजाते हैं फिर रावण राज्य होता है
दु:खधाम में । यह 84 जन्मों की कहानी है । भगवानुवाच है ना
अर्जुन प्रति कि तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो । एक को
क्यों कहते हैं?
क्योंकि एक की गैरंटी है । इन राधे- कृष्ण की तो गैरंटी है ना
तो इनको ही कहते हैं । यह बाप भी जानते हैं,
बच्चे भी जानते हैं कि यह जो सब बच्चे हैं सब तो 84 जन्म लेने
वाले नहीं हैं । कोई बीच में आयेंगे,
कोई
अन्त में आयेंगे । इनकी तो सर्टेन है । इनको कहते हैं-हे बच्चे
। तो यह अर्जुन हुआ ना । रथ पर बैठा है ना । बच्चे खुद भी समझ
सकते हैं-हम जन्म कैसे लेंगे?
सर्विस ही नहीं करते हैं तो सतयुग नई दुनिया में पहले कैसे
आयेंगे?
इनकी
तकदीर कहाँ हैं । पीछे जो जन्म लेंगे उनके लिए तो पुराना घर
होता जायेगा ना । मैं इनके लिए कहता हूँ,
जिनके लिए तुमको भी सर्टेन है । तुम भी समझ सकते हो-मम्मा-बाबा
84 जन्म लेते हैं । कुमारका है,
जनक
है,
ऐसे-
ऐसे महारथी जो हैं वह 84 जन्म लेते हैं । जो सर्विस नहीं करते
हैं तो जरूर कुछ जन्म बाद में आयेंगे । समझते हैं हम तो नापास
हो जायेंगे,
पिछाड़ी में आ जायेंगे । स्कूल में दौड़ी पहन निशाने तक आकर फिर
वापिस लौटते हैं ना । सब एकरस हो न सके । रेस में जरा पाव इंच
का भी फर्क पड़ता है तो प्लस में आ जाता है,
यह
भी अश्व रेस है । अश्व घोड़े को कहा जाता है । रथ को भी घोड़ा
कहा जाता है । बाकी यह जो दिखाते हैं दक्ष प्रजापिता ने यज्ञ
रचा,
उसमें घोड़े को हवन किया,
यह
सब बातें हैं नहीं । न दक्ष प्रजापिता है,
न
कोई यज्ञ रचा है । पुस्तकों में भक्ति मार्ग की कितनी दन्त
कथायें हैं । उनका नाम ही कथा है । बहुत कथायें सुनते हैं ।
तुम तो यह पढ़ते हो । पढ़ाई को कथा थोड़ेही कहेंगे । स्कूल में
पढ़ते हैं,
एम
ऑब्जेक्ट रहती है । हमको इस पढ़ाई से यह नौकरी मिलेगी । कुछ न
कुछ मिलता है । अभी तुम बच्चों को देही- अभिमानी बहुत बनना है
। यही मेहनत है । बाप को याद करने से ही विकर्म विनाश होंगे ।
खास याद करना होता है,
ऐसे
नहीं कि मैं तो शिवबाबा का बच्चा हूँ ना फिर याद क्या करें ।
नहीं,
याद
करना है अपने को स्टूडेंट समझकर । हम आत्माओं को शिवबाबा पढ़ा
रहे हैं,
यह
भी भूल जाते हैं । शिवबाबा एक ही टीचर है जो सृष्टि के
आदि-मध्य- अन्त का राज सुनाते हैं,
यह
भी याद नहीं रहता है । हर एक बच्चे को अपने दिल से पूछना है कि
कितना समय बाप की याद ठहरती है?
जास्ती टाइम तो बाहरमुखता में ही जाता है । यह याद ही मुख्य है
। इस भारत के योग की ही बहुत महिमा है । परन्तु योग कौन
सिखलाते हैं-यह किसको पता नहीं है । गीता में कृष्ण का नाम डाल
दिया है । अब कृष्ण को याद करने से तो एक भी पाप नहीं कटेगा
क्योंकि वह तो शरीरधारी है । पांच तत्वों का बना हुआ है । उनको
याद किया तो गोया मिट्टी को याद किया,
5
तत्वों को याद किया । शिवबाबा तो अशरीरी है इसलिए कहते हैं
अशरीरी बनो,
मुझ
बाप को याद करो । कहते भी हो-हे पतित-पावन,
वह
तो एक हुआ ना । युक्ति से पूछना चाहिए-गीता का भगवान कौन?
भगवान रचयिता तो एक होता है । अगर मनुष्य अपने को भगवान कहलाते
भी हैं तो ऐसे कभी नहीं कहेंगे कि तुम सब हमारे बच्चे हो । या
तो कहेंगे ततत्वम या कहेंगे ईश्वर सर्वव्यापी है । हम भी भगवान,
तुम
भी भगवान,
जिधर
देखता हूँ तू ही तू है । पत्थर में भी तू,
ऐसे
कह देते । तुम हमारे बच्चे हो,
यह
कह नहीं सकते । यह तो बाप ही कहते हैं - हे मेरे लाडले रूहानी
बच्चों । ऐसे और कोई कह न सके । मुसलमान को अगर कोई कहे मेरे
लाडले बच्चों,
तो
थप्पड़ मार दे । यह एक ही पारलौकिक बाप कह सकते हैं । और कोई
सृष्टि के आदि-मध्य- अन्त का ज्ञान दे न सके । 84 के सीढ़ी का
राज कोई समझा न सके सिवाए निराकार बाप के । उनका असली नाम ही
है शिव । यह तो मनुष्यों ने अथाह नाम रख दिये हैं । अनेक
भाषायें हैं । तो अपनी- अपनी भाषा में नाम रख देते हैं । जैसे
बाम्बे में बबुलनाथ कहते हैं,
परन्तु वह अर्थ थोड़ेही समझते । तुम समझते हो कांटों को फूल
बनाने वाला है । भारत में शिवबाबा के हजारों नाम होंगे,
अर्थ
कुछ नहीं जानते । बाप बच्चों को ही समझाते हैं । उसमें भी
माताओं को बाबा जास्ती आगे करते हैं । आजकल फीमेल्स का मान भी
है क्योंकि बाप आये हैं ना । बाप माताओं की महिमा ऊँच करते हैं
। तुम शिव शक्ति सेना हो,
तुम
ही शिवबाबा को जानते हो । सच तो एक ही है । गाया भी जाता है सच
की बेड़ी हिले डुले,
डूबे
नहीं । तो तुम सच्चे हो,
नई
दुनिया की स्थापना कर रहे हो । बाकी झूठी बेड़िया सब खत्म हो
जायेंगी । तुम भी कोई यहाँ राज्य करने वाले नहीं हो । तुम फिर
दूसरे जन्म में आकर राज्य करेंगे । यह बड़ी गुप्त बातें हैं जो
तुम ही जानते हो । यह बाबा न मिला होता तो कुछ भी नहीं जानते
थे । अभी जाना है ।
यह
है युधिष्ठिर,
युद्ध के मैदान में बच्चों को खड़ा करने वाला । यह है
नानवायोलेन्स,
अहिंसक । मनुष्य हिंसा समझ लेते हैं मारामारी को । बाप कहते
हैं पहली मुख्य हिंसा तो काम कटारी की है इसलिए काम महाशत्रु
कहा है,
इन
पर ही विजय पानी है । मूल बात है ही काम विकार की,
पतित
माना विकारी । विकारी कहा ही जाता है पतित बनने वाले को,
जो
विकार में जाते हैं । क्रोध करने वाले को ऐसे नहीं कहेंगे कि
यह विकारी हैं । क्रोधी को क्रोधी,
लोभी
को लोभी कहेंगे । देवताओं को निर्विकारी कहा जाता है ।
देवतायें निर्लोभी,
निर्मोही,
निर्विकारी हैं । वह कभी विकार में नहीं जाते । तुमको कहते हैं
विकार बिगर बच्चे कैसे होंगे?
उन्हों को तो निर्विकारी मानते हो ना । वह हैं ही वाइसलेस
दुनिया । द्वापर कलियुग है विशश दुनिया । खुद को विकारी,
देवताओं को निर्विकारी कहते तो हैं ना । तुम जानते हो हम भी
विकारी थे । अब इन जैसा निर्विकारी बन रहे हैं । इन
लक्ष्मी-नारायण ने भी याद के बल से यह पद पाया है फिर पा रहे
हैं । हम ही देवी-देवता थे,
हमने
कल्प पहले ऐसे राज्य पाया था,
जो
गँवाया,
फिर
हम पा रहे हैं । यही चिंतन बुद्धि में रहे तो भी खुशी रहेगी ।
परन्तु माया यह स्मृति भुला देती है । बाबा जानते हैं तुम
स्थाई याद में रह नहीं सकेंगे । तुम बच्चे अडोल बन याद करते
रहो तो जल्दी कर्मातीत अवस्था हो जाए और आत्मा वापिस चली जाए ।
परन्तु नहीं । पहले नम्बर में तो यह जाने वाला है । फिर है
शिवबाबा की बरात । शादी में मातायें मिट्टी के मटके में ज्योति
जगाकर ले जाती हैं ना,
यह
निशानी है । शिवबाबा साजन तो सदा जागती ज्योत है । बाकी हमारी
ज्योति जगाई है । यहाँ की बात फिर भक्ति मार्ग में ले गये हैं
। तुम योगबल से अपनी ज्योति जगाते हो । योग से तुम पवित्र बनते
हो । ज्ञान से धन मिलता है । पढ़ाई को सोर्स ऑफ इनकम कहा जाता
है ना । योगबल से तुम खास भारत और आम सारे विश्व को पवित्र
बनाते हो । इसमें कन्यायें बहुत अच्छी मददगार बन सकती हैं ।
सर्विस कर ऊँच पद पाना है । जीवन हीरे जैसा बनाना है,
कम
नहीं । गाया जाता है फालो फादर मदर । सी मदर फादर और अनन्य
ब्रदर्स,
सिस्टर्स ।
तुम
बच्चे प्रदर्शनी में भी समझा सकते हो कि तुमको दो फादर हैं -
लौकिक और पारलौकिक । इसमें बड़ा कौन?
बड़ा
तो जरूर बेहद का बाप हुआ ना । वर्सा उनसे मिलना चाहिए । अभी
वर्सा दे रहे हैं,
विश्व का मालिक बना रहे हैं । भगवानुवाच-तुमको राजयोग सिखाता
हूँ फिर तुम दूसरे जन्म में विश्व के मालिक बनेंगे । बाप
कल्प-कल्प भारत में आकर भारत को बहुत साहूकार बनाते हैं । तुम
विश्व के मालिक बनते हो इस पढ़ाई से । उस पढ़ाई से क्या मिलेगा?
यहाँ
तो तुम हीरे जैसा बनते हो 21 जन्म लिए । उस पढ़ाई में रात-दिन
का फर्क है । यह तो बाप,
टीचर,
गुरू
एक ही है । तो बाप का वर्सा,
टीचर
का वर्सा और गुरू का वर्सा सब देते हैं । अब बाप कहते हैं देह
सहित सबको भूलना है । आप मुये मर गई दुनिया । बाप के एडाप्टेड
बच्चे बने,
बाकी
किसको याद करेंगे । दूसरों को देखते हुए जैसे कि देखते नहीं ।
पार्ट में भी आते हैं परन्तु बुद्धि में है- अब हमको घर जाना
है फिर यहॉ आकर पार्ट बजाना है । यह बुद्धि में रहे तो भी बहुत
खुशी रहेगी । बच्चों को देह भान छोड़ देना चाहिए । यह पुरानी
चीज यहाँ छोड़नी है,
अब
वापिस जाना है । नाटक पूरा होता है । पुरानी सृष्टि को आग लग
रही है । अन्धे की औलाद अन्धे अज्ञान नींद में सोये पड़े हैं ।
मनुष्य तो समझेंगे यह सोया हुआ मनुष्य दिखाया है । परन्तु यह
अज्ञान नींद की बात है,
जिससे तुम जगाते हो । ज्ञान अर्थात् दिन है सतयुग,
अज्ञान अर्थात् रात है कलियुग । यह बड़ी समझने की बातें हैं ।
कन्या शादी करती हैं तो माता- पिता,
सासू-ससुर आदि भी याद आयेगा । उनको भूलना पड़े । ऐसे भी युगल
हैं,
जो
सन्यासियों को दिखाते हैं-हम युगल बनकर कभी विकार में नहीं
जाते हैं । ज्ञान तलवार बीच में है । बाप का फरमान है-पवित्र
रहना है । देखो रमेश-उषा हैं,
कभी
भी पतित नहीं बने हैं,
यह
डर है अगर हम पतित बनें तो 21 जन्मों की राजाई खत्म हो जायेगी
। देवाला मार देंगे । ऐसे कोई-कोई फेल हो पड़ते हैं । गन्धर्वी
विवाह का नाम तो है ना । तुम जानते हो पवित्र रहने से पद बहुत
ऊंच मिलेगा । एक जन्म के लिए पवित्र बनना है । योगबल से
कर्मेन्द्रियों पर भी कन्ट्रोल आ जाता है । योगबल से तुम सारी
दुनिया को पवित्र बनाते हो । तुम कितने थोड़े बच्चे योगबल से यह
सारा पहाड़ उड़ाए सोने का पहाड़ स्थापन करते हो । मनुष्य थोड़ेही
समझते हैं,
वह
तो गोवर्धन पर्वत पिछाड़ी परिक्रमा देते रहते हैं । यह तो बाप
ही आकर सारी दुनिया को गोल्डन एजेड बनाते हैं । ऐसे नहीं कि
हिमालय कोई सोने का हो जायेगा । वहाँ तो सोने की खानियाँ भरतू
हो जायेंगी । 5 तत्व सतोप्रधान हैं,
फल
भी अच्छा देते हैं । सतोप्रधान तत्वों से यह शरीर भी सतोप्रधान
होते हैं । वहाँ के फल भी बहुत बड़े-बड़े स्वादिष्ट होते हैं ।
नाम ही है स्वर्ग । तो अपने को आत्मा समझ बाप को याद करने से
ही विकार छूटेंगे । देह- अभिमान आने से विकार की चेष्टा होती
है । योगी कभी विकार में नहीं जायेंगे । ज्ञान बल तो है,
परन्तु योगी नहीं होगा तो गिर पड़ेगा । जैसे पूछा जाता
है-पुरूषार्थ बड़ा या प्रालब्ध?
तो
कहते हैं पुरूषार्थ बड़ा । वैसे इसमें कहेंगे योग बड़ा । योग से
ही पतित से पावन बनते हैं । अब तुम बच्चे तो कहेंगे हम बेहद के
बाप से पढेंगे । मनुष्य से पढ़ने से क्या मिलेगा?
मास
में क्या कमाई होगी?
यह
तुम एक-एक रत्न धारण करते हो । यह हैं लाखों रूपयों के । वहाँ
पैसे की गिनती नहीं की जाती । अनगिनत धन होता है । सबको अपनी-
अपनी खेतियां आदि होती हैं । अब बाप कहते हैं हम तुमको राजयोग
सिखलाते हैं । यह है एम ऑब्जेक्ट । पुरूषार्थ करके ऊंच बनना है
। राजधानी स्थापन हो रही है । इन लक्ष्मी-नारायण ने कैसे
प्रालब्ध पाई,
इनकी
प्रालब्ध को जान गये तो बाकी क्या चाहिए । अभी तुम जानते हो
कल्प 5 हजार वर्ष बाद बाप आते हैं,
आकर
भारत को स्वर्ग बनाते हैं । तो बच्चों को सर्विस करने का उमंग
होना चाहिए । जब तक कोई को रास्ता नहीं बताया है,
खाना
नहीं खायेंगे-इतना उल्लास-उमंग हो तब ऊँच पद पा सकते हैं ।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
ईश्वरीय
सर्विस कर अपना जीवन 21 जन्मों के लिए हीरे जैसा बनाना है ।
मात-पिता और अनन्य भाई- बहिनों को ही फालो करना है ।
2.
कर्मातीत अवस्था बनाने के लिए देह सहित सबको भूलना है । अपनी
याद अडोल और स्थाई बनानी है । देवताओं जैसा निर्लोभी,
निर्मोही,
निर्विकारी बनना है ।
वरदान:-
विकारों रूपी सांप को भी शैया बनाने वाले विष्णु के समान सदा
विजयी,
निश्चिंत
भव ! 
जो
विष्णु की शेश शैया दिखाते हैं यह आप विजयी बच्चों के सहजयोगी
जीवन का यादगार है । सहजयोग द्वारा विकारों रूपी सांप भी अधीन
हो जाते हैं । जो बच्चे विकारों रूपी सांपों पर विजय प्राप्त
कर उन्हें आराम की शैया बना देते हैं वह सदा विष्णु के समान
हर्षित व निश्चिंत रहते हैं । तो सदा यह चित्र अपने सामने देखो
कि विकारों को अधीन किया हुआ अधिकारी हूँ । आत्मा सदा आराम की
स्थिति में निश्चिंत है ।
स्लोगन:-
बालक और
मालिक पन के बैलेन्स से प्लैन को प्रैक्टिकल में लाओ ।
ओम्
शान्ति |