13-02-15
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा”
मधुबन
“मीठे
बच्चे - तुम्हें बाप द्वारा जो अद्वैत मत मिल रही है,
उस मत पर चलकर कलियुगी मनुष्यों को सतयुगी देवता बनाने का
श्रेष्ठ कर्तव्य करना है
|” 
प्रश्न:-
सभी
मनुष्य-मात्र दु:खी क्यों बने हैं,
उसका
मूल कारण क्या है?
उत्तर:-
रावण
ने सभी को श्रापित कर दिया है,
इसलिए
सभी दु:खी बने हैं । बाप वर्सा देता,
रावण
श्राप देता-यह भी दुनिया नहीं जानती । बाप ने वर्सा दिया तब तो
भारतवासी इतने सुखी स्वर्ग के मालिक बने,
पूज्य
बनें । श्रापित होने से पुजारी बन जाते हैं ।
ओम्
शान्ति |
बच्चे यहाँ मधुबन में आते हैं बापदादा के पास । हाल में जब आते
हो,
देखते हो पहले बहन- भाई बैठते हैं फिर पीछे देखते हो बापदादा
आया हुआ है तो बाप की याद आती है । तुम हो प्रजापिता ब्रह्मा
के बच्चे,
ब्राह्मण और ब्राह्मणियॉ । वह ब्राह्मण तो ब्रह्मा बाप को
जानते ही नहीं हैं । तुम बच्चे जानते हो - बाप जब आते हैं तो
ब्रह्मा-विष्णु-शंकर भी जरूर चाहिए । कहते ही हैं त्रिमूर्ति
शिव भगवानुवाच । अब तीनों द्वारा तो नहीं बोलेंगे ना । यह
बातें अच्छी रीति बुद्धि में धारण करनी है । बेहद के बाप से
जरूर स्वर्ग का वर्सा मिलता है,
इसलिए सभी भक्त भगवान से क्या चाहते हैं?
जीवनमुक्ति । अभी है जीवन-बन्ध । सभी बाप को याद करते हैं कि
आकर इस बंधन से मुक्त करो । अभी तुम बच्चे ही जानते हो कि बाबा
आया हुआ है । कल्प-कल्प बाप आते हैं । पुकारते भी हैं-तुम मात
पिता परन्तु इसका अर्थ तो कोई भी नहीं समझते । निराकार बाप के
लिए समझ लेते हैं । गाते हैं परन्तु मिलता कुछ भी नहीं है ।
अभी तुम बच्चों को उनसे वर्सा मिलता है फिर कल्प बाद मिलेगा ।
बच्चे जानते हैं बाप आधाकल्प के लिए आकर वर्सा देते हैं और
रावण फिर श्राप देते हैं । यह भी दुनिया नहीं जानती कि हम सभी
श्रापित हैं । रावण का श्राप लगा हुआ है इसलिए सभी दु:खी हैं ।
भारतवासी सुखी थे । कल इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य भारत में था
। देवताओं के आगे माथा टेकते हैं,
पूजा
करते हैं परन्तु सतयुग कब था,
यह
किसको पता नहीं । अब देखो लाखों वर्ष की आयु सिर्फ सतयुग की
दिखा दी है,
फिर
त्रेता की,
द्वापर-कलियुग की,
उस
हिसाब से मनुष्य कितने ढेर हो जाएं । सिर्फ सतयुग में ही ढेर
मनुष्य हो जायें । कोई भी मनुष्य की बुद्धि में नहीं बैठता है
। बाप बैठ समझाते हैं कि देखो गाया भी जाता हैं 33 करोड़
देवतायें होते हैं । ऐसे थोड़ेही वह कोई लाखों वर्ष में हो सकते
हैं । तो यह भी मनुष्यों को समझाना पड़े ।
अभी
तुम समझते हो कि बाबा हमको स्वच्छ बुद्धि बनाते हैं । रावण
मलेच्छ बुद्धि बनाते हैं । मुख्य बात तो यह है । सतयुग में हैं
पवित्र,
यहाँ
हैं अपवित्र । यह भी किसको पता नहीं है कि रामराज्य कब से कब
तक?
रावण
राज्य कब से कब तक होता है?
समझते हैं यहाँ ही राम राज्य भी है,
रावण
राज्य भी है । अनेक मत-मतान्तर हैं ना । जितने हैं मनुष्य,
उतनी
हैं मतें । अभी यहाँ तुम बच्चों को एक अद्वेत मत मिलती है जो
बाप ही देते हैं । तुम अभी ब्रह्मा द्वारा देवता बन रहे हो ।
देवताओं की महिमा गाई जाती है - सर्वगुण सम्पन्न,
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कला सम्पूर्ण...... हैं तो वह भी मनुष्य,
मनुष्य की महिमा गाते हैं क्यों?
जरूर
फर्क होगा ना । अभी तुम बच्चे भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार
मनुष्य को देवता बनाने का कर्तव्य सीखते हो । कलियुगी मनुष्य
को तुम सतयुगी देवता बनाते हो अर्थात् शान्तिधाम,
ब्रह्माण्ड का और विश्व का मालिक बनाते हो,
यह
तो शान्तिधाम नहीं है ना । यहाँ तो कर्म जरूर करना पड़े । वह है
स्वीट साइलेन्स होम । अभी तुम समझते हो हम आत्मायें स्वीट होम,
ब्रह्माण्ड के मालिक हैं । वहाँ दु:ख-सुख से न्यारे रहते हैं ।
फिर सतयुग में विश्व के मालिक बनते हैं । अभी तुम बच्चे लायक
बन रहे हो । एम ऑब्जेक्ट एक्यूरेट सामने खड़ी है । तुम बच्चे हो
योगबल वाले । वह हैं बाहुबल वाले । तुम भी हो युद्ध के मैदान
पर,
परन्तु तुम हो डबल अहिंसक । वह हैं हिंसक । हिंसा काम कटारी को
कहा जाता है । सन्यासी भी समझते हैं यह हिंसा हैं इसलिए पवित्र
बनते हैं । परन्तु तुम्हारे सिवाए बाप के साथ प्रीत कोई की है
नहीं । आशिक माशूक की प्रीत होती है ना । वह आशिक माशूक तो एक
जन्म के गाये जाते हैं । तुम सभी हो मुझ माशूक के आशिक ।
भक्तिमार्ग में मुझ एक माशूक को याद करते आये हो । अब मैं कहता
हूँ यह अन्तिम जन्म सिर्फ पवित्र बनो और यथार्थ रीति याद करो
तो फिर याद करने से ही तुम छूट जायेंगे । सतयुग में याद करने
की दरकार ही नहीं रहेगी । दु :ख में सिमरण सब करते हैं । यह है
नर्क । इनको स्वर्ग तो नहीं कहेंगे ना । बड़े आदमी जो धनवान हैं
वह समझते हैं हमारे लिए तो यहाँ ही स्वर्ग है । विमान आदि सब
कुछ वैभव हैं,
कितना अन्धश्रद्धा में रहते हैं । गाते भी हैं तुम मात
पिता..... परन्तु समझते कुछ नहीं । कौन से सुख घनेरे मिले-यह
कोई भी नहीं जानते हैं । बोलती तो आत्मा है ना । तुम आत्मायें
समझती हो हमको सुख घनेरे मिलने हैं । उसका नाम ही है-स्वर्ग,
सुखधाम । स्वर्ग सभी को बहुत मीठा भी लगता है । तुम अभी जानते
हो स्वर्ग में हीरे जवाहरों के कितने महल थे । भक्ति मार्ग में
भी कितना अनगिनत धन था,
जो
सोमनाथ का मन्दिर बनाया है । एक-एक चित्र लाखों की कीमत वाले
थे । वह सब कहाँ चले गये?
कितना लूटकर ले गये! इतना अथाह धन था । अभी तुम बच्चों की
बुद्धि में है हम बाप द्वारा फिर से स्वर्ग के मालिक बनते हैं
। हमारे महल सोने के होंगे । दरवाजों पर भी जड़ित लगी हुई होगी
। जैनियों के मन्दिर भी ऐसे बने हुए होते हैं । अब हीरे आदि तो
नहीं है ना,
जो
पहले थे । अभी तुम जानते हो हम बाप से स्वर्ग का वर्सा ले रहे
हैं । शिवबाबा आते भी भारत में ही है । भारत को ही शिव भगवान
से स्वर्ग का वर्सा मिलता है । क्रिस्चियन भी कहते हैं
क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले भारत हेवन था । राज्य कौन करते
थे?
यह
किसको पता नहीं है । बाकी यह समझते हैं भारत बहुत पुराना है ।
तो यही स्वर्ग था ना । बाप को कहते भी हैं हेविनली गॉड फादर
अर्थात् हेवन स्थापन करने वाला फादर । जरूर फादर आये होंगे,
तब
तुम स्वर्ग के मालिक बने होंगे । हर 5 हजार वर्ष बाद स्वर्ग के
मालिक बनते हो फिर आधाकल्प बाद रावण राज्य शुरू होता है ।
चित्रों में ऐसा क्लीयर कर दिखाओ जो लाखों वर्ष की बात बुद्धि
से ही निकल जाए । लक्ष्मी-नारायण कोई एक नहीं,
इन्हों की डिनायस्टी होगी ना फिर उन्हों के बच्चे राजा बनते
होंगे । राजायें तो बहुत बनते हैं ना । सारी माला बनी हुई है ।
माला को ही सिमरण करते हैं ना । जो बाप के मददगार बन बाप की
सर्विस करते हैं उन्हों की ही माला बनती है । जो पूरा चक्र में
आते,
पूज्य पुजारी बनते हैं उन्हों का यह यादगार है । तुम पूज्य से
पुजारी बनते हो तो फिर अपनी माला को बैठ पूजते हो । पहले माला
पर हाथ लगाकर फिर माथा टेकेंगे । पीछे माला को फेरना शुरू करते
हैं । तुम भी सारा चक्र लगाते हो फिर शिवबाबा से वर्सा पाते हो
। यह राज़ तुम ही जानते हो । मनुष्य तो कोई किसके नाम पर,
कोई
किसके नाम पर माला फेरते हैं । जानते कुछ भी नहीं । अभी तुमको
माला का सारा ज्ञान है,
और
कोई को यह ज्ञान नहीं । क्रिस्चियन थोड़ेही समझते हैं कि यह
किसकी माला फेरते हैं । यह माला है ही उन्हों की जो बाप के
मददगार बन सर्विस करते हैं । इस समय सब पतित हैं,
जो
पावन थे वह सब यहाँ आते- आते अब पतित बने हैं,
फिर
नम्बरवार सब जायेंगे । नम्बरवार आते हैं,
नम्बरवार जाते हैं । कितनी समझने की बातें हैं । यह झाड़ है ।
कितने टाल- टालिया मठ पंथ हैं । अभी यह सारा झाड़ खलास होना है,
फिर
तुम्हारा फाउन्डेशन लगेगा । तुम हो इस झाड़ के फाउन्डेशन ।
उसमें सूर्यवंशी चन्द्रवंशी दोनों हैं । सतयुग-त्रेता में जो
राज्य करने वाले थे,
उन्हों का अभी धर्म ही नहीं है,
सिर्फ चित्र हैं । जिनके चित्र हैं उन्हों की बायोग्राफी को तो
जानना चाहिए ना । कह देते फलानी चीज लाखों वर्ष पुरानी है । अब
वास्तव में पुराने ते पुराना है आदि सनातन देवी-देवता धर्म ।
उनके आगे तो कोई चीज हो नहीं सकती । बाकी सब 2500
वर्ष की पुरानी चीजें होंगी,
नीचे
से खोदकर निकालते हैं ना । भक्ति मार्ग में जो पूजा करते हैं
वह पुराने चित्र निकालते हैं क्योंकि अर्थक्येक में सब मन्दिर
आदि गिर पड़ते हैं फिर नये बनते हैं । हीरे सोने आदि की खानियां
जो अभी खाली हो गई है वह फिर वहाँ भरतू हो जायेंगी । यह सब
बातें अभी तुम्हारी बुद्धि में है ना | बाप ने वर्ल्ड की
हिस्ट्री-जॉग्राफी समझाई है । सतयुग में कितने थोड़े मनुष्य
होते हैं फिर वृद्धि को पाते हैं । आत्मायें सब परमधाम से आती
रहती हैं । आते- आते झाड़ बढ़ता है । फिर जब झाड़ जड़जड़ीभूत अवस्था
को पाता है तो कहा जाता है राम गयो रावण गयो,
जिनका बहु परिवार हैं । अनेक धर्म हैं ना । हमारा परिवार कितना
छोटा है । यह सिर्फ ब्राह्मणों का ही परिवार है । वह कितने
अनेक धर्म हैं,
जनसंख्या बतलाते हैं ना । वह सब हैं रावण सम्प्रदाय । यह सब
जायेंगे । बाकी थोड़े ही रहेंगे । रावण सम्प्रदाय फिर स्वर्ग
में नहीं आयेंगे,
सब
मुक्तिधाम में ही रहेंगे । बाकी तुम जो पढ़ते हो वह नम्बरवार
आयेंगे स्वर्ग में ।
अभी
तुम बच्चों ने समझा है कैसे वह निराकारी झाड़ है,
यह
मनुष्य सृष्टि का झाड़ है । यह तुम्हारी बुद्धि में है । पढ़ाई
पर ध्यान नहीं देंगे तो इम्तहान में नापास हो जायेंगे । पढ़ते
और पढ़ाते रहेंगे तो खुशी भी रहेगी । अगर विकार में गिरा तो
बाकी यह सब भूल जायेगा । आत्मा जब पवित्र सोना हो तब उसमें
धारणा अच्छी हो । सोने का बर्तन होता है पवित्र गोल्डन । अगर
कोई पतित बना तो ज्ञान सुना नहीं सकता । अभी तुम सामने बैठे हो,
जानते हो गॉड फादर शिवबाबा हम आत्माओं को पढ़ा रहे हैं । हम
आत्मायें इन आरगन्स द्वारा सुन रही हैं । पढ़ाने वाला बाप है,
ऐसी
पाठशाला सारी दुनिया में कहाँ होगी । वह गॉड फादर है,
टीचर
भी है,
सतगुरू भी है,
सबको
वापिस ले जायेंगे । अभी तुम बाप के सन्मुख बैठे हो । सम्मुख
मुरली सुनने में कितना फर्क है । जैसे यह टेप मशीन निकली है,
सबके
पास एक दिन आ जायेगी । बच्चों के सुख के लिए बाप ऐसी चीजें
बनवाते हैं । कोई बड़ी बात नहीं है ना । यह सांवल शाह है ना ।
पहले गोरा था,
अभी
सांवरा बना है तब तो श्याम सुन्दर कहते हैं । तुम जानते हो हम
सुन्दर थे,
अब
श्याम बने हैं फिर सुन्दर बनेंगे । सिर्फ एक क्यों बनेगा?
एक
को सर्प ने डसा क्या?
सर्प
तो माया को कहा जाता है ना । विकार में जाने से सावरा बन जाते
हैं । कितनी समझने की बातें हैं । बेहद का बाप कहते हैं गृहस्थ
व्यवहार में रहते यह अन्तिम जन्म फार माई सेक (मेरे सदके)
पवित्र बनो । बच्चों से यह भीख मांगते हैं । कमल फूल समान
पवित्र बनो और मुझे याद करो तो यह जन्म भी पवित्र बनेंगे और
याद में रहने से पास्ट के विकर्म भी विनाश होंगे । यह है योग
अग्नि,
जिससे जन्म-जन्मान्तर के पाप दग्ध होते हैं । सतोप्रधान से सतो,
रजो,
तमो
में आते हैं तो कला कम हो जाती हैं । खाद पड़ती जाती है । अब
बाप कहते हैं सिर्फ मामेकम् याद करो । बाकी पानी की नदियां में
स्नान करने से थोड़ेही पावन बनेंगे । पानी भी तत्व है ना । 5
तत्व कहे जाते हैं । यह नदियाँ कैसे पतित-पावनी हो सकती हैं ।
नदियाँ तो सागर से निकलती हैं । पहले तो सागर पतित-पावन होना
चाहिए ना । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
विजय
माला में आने के लिए बाप का मददगार बन सर्विस करनी है । एक
माशूक के साथ सच्ची प्रीत रखनी है । एक को ही याद करना है ।
2. अपनी
एक्यूरेट एम ऑबजेक्ट को सामने रख पूरा पुरूषार्थ करना है । डबल
अहिंसक बन मनुष्य को देवता बनाने का श्रेष्ठ कर्तव्य करते रहना
है ।
वरदान:-
आलमाइटी सत्ता के आधार पर आत्माओं को मालामाल बनाने वाले पुण्य
आत्मा
भव ! 
जैसे
दान पुण्य की सत्ता वाले सकामी राजाओं में सत्ता की फुल पावर
थी,
जिस
पावर के आधार पर चाहे किसी को क्या भी बना दें । ऐसे आप
महादानी पुण्य आत्माओं को डायरेक्ट बाप द्वारा प्रकृतिजीत
मायाजीत की विशेष सत्ता मिली हुई है । आप अपने शुद्ध संकल्प के
आधार से किसी भी आत्मा का बाप से सम्बन्ध जोड़कर मालामाल बना
सकते हो,
सिर्फ इस सत्ता को यथार्थ रीति यूज करो ।
स्लोगन:-
जब आप
सम्पूर्णता की बधाईयां मनायेंगे तब समय,
प्रकृति और माया विदाई लेगी ।
ओम्
शान्ति |