23-02-15      प्रातः मुरली      ओम् शान्ति      “बापदादा”      मधुबन
 


मीठे बच्चे - इस शरीर रूपी कपड़े को यहां ही छोड़ना है, इसलिए इससे ममत्व मिटा दो, कोई भी मित्र-सम्बन्धी याद न आये”   

प्रश्न:-   
जिन बच्चों में योगबल है, उनकी निशानी क्या होगी?

उत्तर:-

उन्हें किसी भी बात में थोड़ा भी धक्का नहीं आयेगा, कहाँ भी लगाव नहीं होगा । समझो आज किसी ने शरीर छोड़ा तो दु:ख नहीं हो सकता, क्योंकि जानते हैं इनका ड्रामा में इतना ही पार्ट था । आत्मा एक शरीर छोड़ जाए दूसरा शरीर लेगी ।

ओम् शान्ति |

यह ज्ञान बड़ा गुप्त है, इसमें नमस्ते भी नहीं करनी पड़ती । दुनिया में नमस्ते अथवा राम-राम आदि कहते हैं । यहाँ ये सब बातें चल नहीं सकती क्योंकि यह एक फैमली है । फैमली में एक-दो को नमस्ते वा गुडमॉर्निंग करें-इतना शोभता नहीं है । घर में तो खान-पान खाया ऑफिस में गया, फिर आया, यह चलता रहता है । नमस्ते करने की दरकार नहीं रहती । गुडमॉर्निंग का फैशन भी यूरोपियन से निकला है । नहीं तो आगे कुछ चलता नहीं था । कोई सतसंग में आपस में मिलते हैं तो नमस्ते करते हैं, पाँव पड़ते हैं । यह पाँव आदि पड़ना नम्रता के लिए सिखलाते हैं । यहाँ तो तुम बच्चों को देही- अभिमानी बनना है । आत्मा, आत्मा को क्या करेगी? फिर भी कहना तो होता है । जैसे बाबा को कहेंगे-बाबा नमस्ते । अब बाप भी कहते हैं-मैं साधारण ब्रह्मा तन द्वारा तुमको पढ़ाता हूँ, इन द्वारा स्थापना कराता हूँ । कैसे? सो तो जब बाप सम्मुख हो तब समझावे, नहीं तो कोई कैसे समझे । यह बाप सम्मुख बैठ समझाते हैं तो बच्चे समझते हैं । दोनों को नमस्ते करनी पड़े-बापदादा नमस्ते । बाहर वाले अगर यह सुनें तो मूँझेंगे कि यह क्या कहते हैं 'बापदाद ' । डबल नाम भी बहुत मनुष्यों के होते हैं ना । जैसे लक्ष्मी-नारायण अथवा राधेकृष्ण.... भी नाम हैं । यह तो जैसे स्त्री-पुरूष इकट्ठे हो गये । अब यह तो है बापदादा । इन बातों को तुम बच्चे ही समझ सकते हो । जरूर बाप बड़ा ठहरा । वह नाम भल डबल है परन्तु हैं तो एक ना । फिर दोनों नाम क्यों रख दिये हैं? अभी तुम बच्चे जानते हो यह रांग नाम हैं । बाबा को और तो कोई पहचान न सके । तुम कहेंगे नमस्ते बापदादा । बाप फिर कहेंगे नमस्ते जिस्मानी रूहानी बच्चे, परनु इतना लम्बा शोभता नहीं है । अक्षर तो राइट है । तुम अभी जिस्मानी बच्चे भी हो तो रूहानी भी हो । शिवबाबा सभी आत्माओं का बाप है और फिर प्रजापिता भी जरूर है । प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान भाई-बहन हैं । प्रवृत्ति मार्ग हो जाता है । तुम हो सब ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ । ब्रह्माकुमार- कुमारियॉ होने से प्रजापिता भी सिद्ध हो जाता है । इसमें अन्धश्रद्धा की कोई बात नहीं । बोलो ब्रह्माकुमार-ब्रह्याकुमारियों’ को बाप से वर्सा मिलता है । ब्रह्मा से नहीं मिलता, ब्रह्मा भी शिवबाबा का बच्चा है । सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा, विष्णु, शंकर - यह है रचना । इन्हों का रचयिता है शिव । शिव के लिए तो कोई कह न सके कि इनका क्रियेटर कौन? शिव का क्रियेटर कोई होता नहीं । ब्रह्मा, विष्णु, शंकर यह है रचना । इन्हों के भी ऊपर है शिव, सब आत्माओं का बाप । अब क्रियेटर है तो फिर प्रश्न उठता है कब क्रियेट किया? नहीं, यह तो अनादि है । इतनी आत्माओं को कब क्रियेट किया? यह प्रश्न नहीं उठ सकता । यह अनादि ड्रामा चला आता है, बेअन्त है । इसका कभी अन्त नहीं होता । यह बातें तुम बच्चों में भी नम्बरवार समझते हैं । यह है बहुत सहज । एक बाप के सिवाए और किसी से लगाव न हो, कोई भी मरे वा जिये । गायन भी है अम्मा मरे तो भी हलुआ खाना..... समझो कोई भी मर जाता है, फिक्र की बात नहीं होती क्योंकि यह ड्रामा अनादि बना हुआ है । ड्रामानुसार उनको इस समय जाना ही था, इसमें कर ही क्या सकते हैं । जरा भी दु:खी होने की बात नहीं । यह है योगबल की अवस्था । लॉ कहता है जरा भी धक्का नहीं आना चाहिए । सब एक्टर्स हैं ना । अपना- अपना पार्ट बजाते रहते हैं । बच्चों को ज्ञान मिला हुआ है ।

बाप से कहते हैं-हे परमपिता परमात्मा आकर हमको ले जाओ । इतने सब शरीरों का विनाश कराए सब आत्माओं को साथ में ले जाना, यह तो बहुत भारी काम हुआ । यहाँ कोई एक मरता है तो 12 मास रोते रहते हैं । बाप तो इतनी सारी ढेर आत्माओं को ले जायेंगे । सबके शरीर यहाँ छूट जायेंगे । बच्चे जानते हैं महाभारत लड़ाई लगती है तो मच्छरों सदृश्य जाते रहते हैं । नेचुरल कैलेमिटीज भी आने की हैं । यह सारी दुनिया बदलती है । अभी देखो इंगलैण्ड, रशिया आदि कितने बड़े- बड़े हैं । सतयुग में यह सब थे क्या? दुनिया में यह भी किसकी बुद्धि में नहीं आता कि हमारे राज्य में यह कोई भी थे नहीं । एक ही धर्म, एक ही राज्य था, तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं जिनकी बुद्धि में अच्छी रीति बैठता है । अगर धारणा हो तो वह नशा सदैव चढ़ा रहे । नशा कोई को बहुत मुश्किल चढ़ा रहता है । मित्र-सम्बन्धी आदि सब तरफ से याद निकालकर एक बेहद की खुशी में ठहर जाए, बड़ी कमाल है । हॉ, यह भी अन्त में होगा । पिछाड़ी में ही कर्मातीत अवस्था को पा लेते हैं । शरीर से भी भान टूट जाता है । बस अभी हम जाते हैं, यह जैसे कॉमन हो जायेगा । जैसे नाटक वाले पार्ट बजाए फिर जाते हैं घर । यह देह रूपी कपड़ा तो तुमको यहाँ ही छोड़ना है । यह कपड़े यहाँ ही लेते हैं, यहॉ ही छोड़ते हैं । यह सब नई बातें तुम्हारी बुद्धि में हैं, और किसकी बुद्धि में नहीं । अल्फ और बे । अल्फ है सबसे ऊपर में । कहते भी हैं ब्रह्मा द्वारा स्थापना, शंकर द्वारा विनाश, विष्णु द्वारा पालना । अच्छा, बाकी शिव का काम क्या है? ऊंच ते ऊँच शिवबाबा को कोई भी जानते नहीं । कह देते वह तो सर्वव्यापी है । यह सब उनके ही रूप हैं । सारी दुनिया की बुद्धि में यह पक्का हो गया है, इसलिए सब तमोप्रधान बने हैं । बाप कहते हैं-सारी दुनिया दुर्गति को पाई हुई है । फिर हम ही आकर सबको सद्गति देते हैं । अगर सर्वव्यापी है तो क्या सब भगवान ही भगवान है? एक तरफ कहते ऑल ब्रदर्स, फिर कह देते ऑल फादर्स, समझते नहीं हैं । अब तुम बच्चों को बेहद का बाप कहते हैं, बच्चे, मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे । तुम्हें इस दादा को वा मम्मा को भी याद नहीं करना है । बाप तो कहते हैं कि न मम्मा, न बाबा, कोई की महिमा कुछ भी नहीं । शिवबाबा न होता तो यह ब्रह्मा भी क्या करता? इनको याद करने से क्या होगा! हाँ, तुम जानते हो इन द्वारा हम बाप से वर्सा ले रहे हैं, इनसे नहीं । यह भी उनसे वर्सा लेते हैं, तो याद उनको करना है । यह तो बीच में दलाल है । बच्चे और बच्ची की सगाई होती है, तब याद तो एक-दूसरे को करेंगे ना । शादी कराने वाला तो बीच में दलाल ठहरा । इन द्वारा बाप तुम आत्माओं की सगाई अपने साथ कराते हैं इसलिए गायन भी है सतगुरू मिला दलाल के रूप में । सतगुरू कोई दलाल नहीं है । सतगुरू तो निराकार है । भल गुरू ब्रह्मा, गुरू विष्णु, कहते हैं परन्तु वह कोई गुरू हैं नहीं । सतगुरू एक बाप ही है जो सर्व की सद्गति करते हैं । बाप ने तुमको सिखाया है तब तुम औरों को भी रास्ता बताते हो और सबको कहते हो कि देखते हुए भी नहीं देखो । बुद्धि शिवबाबा से लगी रहे । इन आँखों से जो कुछ देखते हो कब्रदाखिल होना है । याद एक बाप को करना है, न कि इनको । बुद्धि कहती है इनसे थोड़ेही वर्सा मिलेगा । वर्सा तो बाप से मिलना है । जाना भी बाप के पास है । स्टूडेंट, स्टूडेंट को थोड़ेही याद करेंगे । स्टूडेंट तो टीचर को याद करेंगे ना । स्कूल में जो तीखे बच्चे होते हैं वह फिर औरों को भी उठाने की कोशिश करते हैं । बाप भी कहते हैं एक-दो को ऊँचा उठाने की कोशिश करो परन्तु तकदीर में नहीं है तो पुरूषार्थ भी नहीं करते हैं । थोड़े में ही राजी हो जाते हैं । समझाना चाहिए प्रदर्शनी में बहुत आते हैं, बहुतों को समझाने से उन्नति बहुत होती है । निमन्त्रण देकर मंगाते हैं । तो बड़े-बड़े समझदार आदमी आते हैं । बिगर निमन्त्रण से तो कई प्रकार के लोग आ जाते हैं । क्या-क्या उल्टा-सुल्टा बकते रहते हैं । रॉयल मनुष्यों की चाल-चलन भी रॉयल होती है । रॉयल आदमी रॉयल्टी से अन्दर घुसेंगे । चलन में भी बहुत फर्क रहता है । उनमें चलने की, बोलने की कोई फजीलत नहीं रहती । मेले में तो सभी प्रकार के आ जाते हैं, किसको मना नहीं की जाती है इसलिए कहाँ भी प्रदर्शनी में निमन्त्रण कार्ड पर मंगायेंगे तो रायॅल अच्छे- अच्छे लोग आयेंगे । फिर वह औरों को भी जाकर सुनायेंगे । कभी फीमेल्स का प्रोग्राम रखो तो सिर्फ फीमेल्स ही आकर देखे क्योंकि कहाँ-कहाँ फीमेल्स बहुत पर्दे नशीन होती हैं । तो सिर्फ फीमेल्स का ही प्रोग्राम हो । मेल कोई भी न आये । बाबा ने समझाया है पहले-पहले तुमको यह समझाना है कि शिवबाबा निराकार है । शिवबाबा और प्रजापिता ब्रह्मा दोनों बाबा हुए । दोनों एकरस तो हो न सके, जो दोनों बाबाओं से वर्सा मिले । वर्सा दादे का या बाप का मिलेगा । दादे की मिलकियत पर हक लगता है । भल कैसा भी कपूत बच्चा होगा तो भी दादे का वर्सा मिल जायेगा । यह यहाँ का कायदा है । समझते भी हैं इनको पैसा मिलने से एक वर्ष के अन्दर उड़ा देंगे । लेकिन गवर्मेंट के लॉ ऐसे हैं जो देना पड़ता है । गवर्मेंट कुछ कर नहीं सकती है । बाबा तो अनुभवी हैं । एक राजा का बच्चा था, एक करोड़ रूपया 12 मास में खत्म कर दिया । ऐसे भी होते हैं । शिवबाबा तो नहीं कहेंगे कि हमने देखा है । यह (दादा) कहते हैं हमने बहुत ऐसे मिसाल देखे हैं । यह दुनिया तो बड़ी गन्दी है । यह है ही पुरानी दुनिया, पुराना घर । पुराने घर को हमेशा तोड़ना होता है । इन लक्ष्मी-नारायण के राजाई घर देखो कैसे फर्स्टक्लास हैं ।

अभी तुम बाप द्वारा समझ रहे हो और तुम भी नर से नारायण बनते हो । यह है ही सत्य नारायण की कथा । यह भी तुम बच्चे ही समझते हो । तुम्हारे में भी पूरे फ्लावर्स अभी बने नहीं हैं, इसमें रॉयल्टी बड़ी अच्छी चाहिए । तुम उन्नति को दिन-प्रतिदिन पाते रहते हो । फ्लावर्स बनते जाते हो ।

तुम बच्चे प्यार से कहते हो ''बापदादा'' । यह भी तुम्हारी नई भाषा है, जो मनुष्यों की समझ में नहीं आ सकती । समझो बाबा कहाँ भी जाये तो बच्चे कहेंगे बापदादा नमस्ते । बाप रेसपान्ड देंगे रूहानी जिस्मानी बच्चों को नमस्ते । ऐसे कहना पड़े ना । कोई सुनेंगे तो कहेंगे यह तो कोई नई बात है, बापदादा इकट्ठे कैसे कहते हैं । बाप और दादा दोनों एक कभी होते हैं क्या? नाम भी दोनों के अलग हैं । शिवबाबा, ब्रह्मा दादा, तुम इन दोनों के बच्चे हो । तुम जानते हो इनके अन्दर शिवबाबा बैठा है । हम बापदादा के बच्चे हैं । यह भी बुद्धि में याद रहे तो खुशी का पारा चढ़ा रहे और ड्रामा पर भी पक्का रहना है । समझो कोई ने शरीर छोड़ा, जाकर दूसरा पार्ट बजायेंगे । हर एक आत्मा को अविनाशी पार्ट मिला हुआ है, इसमें कुछ भी ख्याल होने की दरकार नहीं । उनको दूसरा पार्ट जाए बजाना है । वापिस तो बुला नहीं सकते । ड्रामा है ना । इसमें रोने की कोई बात नहीं । ऐसी अवस्था वाले ही निर्मोही राजा जाकर बनते हैं । सतयुग में सब निर्मोही होते हैं । यहाँ कोई मरता है तो कितना रोते हैं । बाप को पा लिया तो फिर रोने की दरकार ही नहीं । बाबा कितना अच्छा रास्ता बताते हैं । कन्याओं के लिए तो बहुत अच्छा है । बाप फालतू पैसे खर्च करे और तुम जाकर नर्क में पड़ो । इससे तो बोलो हम इन पैसों से रूहानी युनिवर्सिटी कम हॉस्पिटल खोलेंगे । बहुतों का कल्याण करेंगे तो तुम्हारा भी पुण्य, हमारा भी पुण्य हो जायेगा । बच्चे खुद भी उत्साह में रहने वाले हो कि हम भारत को स्वर्ग बनाने के लिए तन-मन- धन सब खर्च करेंगे । इतना नशा रहना चाहिए । देना हो तो दो, न देना हो तो न दो । तुम अपना कल्याण और बहुतों का कल्याण करने नहीं चाहते हो? इतनी मस्ती होनी चाहिए । खास कुमारियों को तो बहुत खड़ा होना चाहिए । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. अपनी चाल चलन बहुत रॉयल रखनी है । बहुत फज़ीलत से बातचीत करनी है । नम्रता का गुण धारण करना है ।

2. इन आँखों से जो कुछ दिखाई देता है - यह सब कब्रदाखिल होना है इसलिए इसको देखते भी नहीं देखना है । एक शिवबाबा को ही याद करना है । किसी देहधारी को नहीं ।

वरदान:-

संगमयुग के महत्व को जान एक का अनगिनत बार रिटर्न प्राप्त करने वाले सर्व प्राप्ति सम्पन्न भव !   

संगमयुग पर बापदादा का वायदा है-एक दो लाख लो । जैसे सर्व श्रेष्ठ समय, सर्व श्रेष्ठ जन्म, सर्व श्रेष्ठ टाइटल इस समय के हैं वैसे सर्व प्राप्तियों का अनुभव अभी ही होता है । अभी एक का सिर्फ लाख गुणा नहीं मिलता लेकिन जब चाहो जैसे चाहो, जो चाहो बाप सर्वेंट रूप में बांधे हुए हैं । एक का अनगिनत बार रिटर्न मिल जाता है क्योंकि वर्तमान समय वरदाता ही आपका है । जब बीज आपके हाथ में है तो बीज द्वारा जो चाहो वह सेकण्ड में लेकर सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न बन सकते हो ।

स्लोगन:- 

कैसी भी परिस्थिति हो, परिस्थिति चली जाए लेकिन खुशी नहीं जाए ।   

 

ओम् शान्ति |