20-01-15
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - तुम अशरीरी बन जब बाप को याद करते हो तो तुम्हारे लिए
यह दुनिया ही खत्म हो जाती है,
देह
और दुनिया भूली हुई है” 
प्रश्न:-
बाप द्वारा सभी बच्चों को ज्ञान का तीसरा नेत्र क्यों मिला है?
उत्तर:-
अपने को आत्मा समझ,
बाप जो है जैसा है,
उसी रूप में याद करने के लिए तीसरा नेत्र मिला है । परन्तु यह
तीसरा नेत्र काम तब करता है जब पूरा योगयुक्त रहें अर्थात् एक
बाप से सच्ची प्रीत हो । किसी के नाम-रूप में लटके हुए न हो ।
माया प्रीत रखने में ही विघ्न डालती है । इसी में बच्चे धोखा
खाते हैं ।
गीत:-
मरना तेरी गली में.. 
ओम्
शान्ति |
सिवाए तुम ब्राह्मण बच्चों के इस गीत का अर्थ कोई समझ न सके ।
जैसे वेद- शास्त्र आदि बनाये हैं परन्तु जो कुछ पढ़ते हैं उसका
अर्थ नहीं समझ सकते इसलिए बाप कहते हैं मैं ब्रह्मा मुख द्वारा
सब वेदों-शास्त्रों का सार समझाता हूँ,
वैसे ही इन गीतों का अर्थ भी कोई समझ नहीं सकते,
बाप ही इनका अर्थ बताते हैं । आत्मा जब शरीर से न्यारी हो जाती
है तो दुनिया से सारा संबंध टूट जाता है । गीत भी कहता है अपने
को आत्मा समझ अशरीरी बन बाप को याद करो तो यह दुनिया खत्म हो
जाती है । यह शरीर इस पृथ्वी पर है,
आत्मा इनसे निकल जाती है तो फिर उस समय उनके लिए मनुष्य सृष्टि
है नहीं । आत्मा नंगी बन जाती है । फिर जब शरीर में आती है तो
पार्ट शुरू होता है । फिर एक शरीर छोड़ दूसरे में जाकर प्रवेश
करती है । वापिस महत्व में नहीं जाना है । उड़कर दूसरे शरीर में
जाती है । यहाँ इस आकाश तत्व में ही उनको पार्ट बजाना है ।
मूलवतन में नहीं जाना है । जब शरीर छोड़ते हैं तो न यह
कर्मबन्धन,
न
वह कर्मबन्धन रहता है । शरीर से ही अलग हो जाते हैं ना । फिर
दूसरा शरीर लेते तो वह कर्मबन्धन शुरू होता है । यह बाते सिवाए
तुम्हारे और कोई मनुष्य नहीं जानते । बाप ने समझाया है सब
बिल्कुल ही बेसमझ हैं । परन्तु ऐसे कोई समझते थोड़ेही हैं ।
अपने को कितना अक्लमंद समझते हैं,
पीस प्राइज देते रहते हैं । यह भी तुम ब्राह्मण कुल भूषण अच्छी
रीति समझा सकते हो । वह तो जानते ही नहीं कि पीस किसको कहा
जाता है?
कोई तो महात्माओं के पास जाते हैं कि मन की शान्ति कैसे हो?
यह
तो कहते हैं वर्ल्ड में शान्ति कैसे हो! ऐसे नहीं कहेंगे कि
निराकारी दुनिया में शान्ति कैसे हो?
वह
तो हैं ही शान्तिधाम । हम आत्मायें शान्तिधाम में रहती हैं
परन्तु यह तो मन की शान्ति कहते हैं । वह जानते नहीं कि शान्ति
कैसे मिलेगी?
शान्तिधाम तो अपना घर है । यहाँ शान्ति कैसे मिल सकती?
हाँ,
सतयुग में सुख,
शान्ति,
सम्पत्ति सब हैं,
जिसकी स्थापना बाप करते हैं । यहाँ तो कितनी अशान्ति है । यह
सब अब तुम बच्चे ही समझते हो । सुख,
शान्ति,
सम्पत्ति भारत में ही थी । वह वर्सा था बाप का और दु :ख,
अशान्ति,
कंगालपना,
यह
वर्सा है रावण का । यह सब बातें बेहद का बाप बैठ बच्चों को
समझाते हैं । बाप परमधाम में रहने वाला नॉलेजफुल हैं,
जो
सुखधाम का हमको वर्सा देते हैं । वह हम आत्माओं को समझा रहे
हैं । यह तो जानते हो नॉलेज होती है आत्मा में । उनको ही ज्ञान
का सागर कहा जाता है । वह ज्ञान का सागर इस शरीर द्वारा वर्ल्ड
की हिस्ट्री-जाग्राफी समझाते हैं । वर्ल्ड की आयु तो होनी
चाहिए ना । वर्ल्ड तो है ही । सिर्फ नई दुनिया और पुरानी
दुनिया कहा जाता है । यह भी मनुष्यों को पता नहीं । न्यु
वर्ल्ड से ओल्ड वर्ल्ड होने में कितना समय लगता है?
तुम बच्चे जानते हो कलियुग के बाद सतयुग जरूर आना है इसलिए
कलियुग और सतयुग के संगम पर बाप को आना पड़ता है । यह भी तुम
जानते हो परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा नई दुनिया की
स्थापना,
शंकर द्वारा विनाश कराते हैं । त्रिमूर्ति का अर्थ ही यह
है-स्थापना,
विनाश,
पालना । यह तो कॉमन बात है । परन्तु यह बातें तुम बच्चे भूल
जाते हो । नहीं तो तुमको खुशी बहुत रहे | निरन्तर याद रहनी
चाहिए । बाबा हमको अब नई दुनिया के लिए लायक बना रहे हैं । तुम
भारतवासी ही लायक बनते हो,
और
कोई नहीं । हाँ,
जो
और- और धर्मों में कनवर्ट हो गये हैं,
वह
आ सकते हैं । फिर इसमें कनवर्ट हो जायेगे,
जैसे उसमें हुए थे । यह सारी नॉलेज तुम्हारी बुद्धि में हैं ।
मनुष्यों को समझाना है यह पुरानी दुनिया अब बदलती है । महाभारत
लड़ाई भी जरूर लगनी है । इस समय ही बाबा आकर राजयोग सिखलाते हैं
। जो राजयोग सीखते हैं,
वह
नई दुनिया में चले जायेंगे । तुम सबको समझा सकते हो कि ऊँच ते
ऊंच है भगवान,
फिर ब्रह्मा- विष्णु- शंकर,
फिर आओ यहाँ,
मुख्य है जगत अम्बा,
जगत पिता | बाप आते भी यहाँ हैं ब्रह्मा के तन में,
प्रजापिता ब्रह्मा तो यहाँ है ना । ब्रह्मा द्वारा स्थापना
सूक्ष्मवतन में तो नहीं होगी ना । यहाँ ही होती है । यह व्यक्त
से अव्यक्त बन जाते हैं । यह राजयोग सीख फिर विष्णु के दो रूप
बनते हैं । वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी समझनी चाहिए ना ।
मनुष्य ही समझेंगे । वर्ल्ड का मालिक ही वर्ल्ड की
हिस्ट्री-जॉग्राफी समझा सकते हैं । वह नॉलेजफुल,
पुनर्जन्म रहित है । यह नॉलेज किसकी बुद्धि में नहीं है ।
परखने की भी बुद्धि चाहिए ना । कुछ बुद्धि में बैठता है या ऐसे
ही हैं,
नब्ज देखनी चाहिए । एक अजमल खाँ नामीग्रामी वैद्य होकर गया है
। कहते हैं देखने से ही उनको बीमारी का पता पड़ जाता था । अब
तुम बच्चों को भी समझना चाहिए कि यह लायक है या नहीं?
बाप ने बच्चों को ज्ञान का तीसरा नेत्र दिया है,
जिससे तुम अपने को आत्मा समझ,
बाप जो हैं,
जैसा है,
उसको उसी रूप में याद करते हो । परन्तु ऐसी बुद्धि उनकी होगी
जो पूरा योगयुक्त होंगे,
जिनकी बाप से प्रीत बुद्धि होगी । सब तो नहीं हैं ना । एक दो
के नाम-रूप में लटक पड़ते हैं । बाप कहते हैं प्रीत तो मेरे साथ
लगाओ ना । माया ऐसी है जो प्रीत रखने नहीं देती है । माया भी
देखती है हमारा ग्राहक जाता है तो एकदम नाक-कान से पकड़ लेती है
। फिर जब धोखा खाते हैं तब समझते हैं माया से धोखा खाया ।
मायाजीत,
जगतजीत बन नहीं सकेंगे,
ऊँच पद पा नहीं सकेंगे,
इसमें ही मेहनत है । श्रीमत कहती है मामेकम् याद करो तो
तुम्हारी जो पतित बुद्धि है वह पावन बन जायेगी । परन्तु कइयों
को बड़ा मुश्किल लगता है । इसमें सब्जेक्ट एक ही है अलफ और बे ।
बस,
दो
अक्षर भी याद नहीं कर सकते हैं! बाबा कहे अलफ को याद करो फिर
अपनी देह को,
दूसरे की देह को याद करते रहते हैं । बाबा कहते हैं देह को
देखते हुए तुम मुझे याद करो । आत्मा को अब तीसरा नेत्र मिला है
मुझे देखने-समझने का,
उससे काम लो । तुम बच्चे अभी त्रिनेत्री,
त्रिकालदर्शी बनते हो । परन्तु त्रिकालदर्शी भी नम्बरवार हैं ।
नॉलेज धारण करना कोई मुश्किल नहीं है । बहुत ही अच्छा समझते
हैं परन्तु योगबल कम है,
देही- अभिमानी-पना बहुत कम है । थोड़ी बात में क्रोध,
गुस्सा आ जाता है,
गिरते रहते हैं । उठते हैं,
गिरते हैं । आज उठे कल फिर गिर पड़ते हैं । देह- अभिमान मुख्य
है फिर और विकार लोभ,
मोह आदि में फंस पड़ते हैं । देह में भी मोह रहता है ना ।
माताओं में मोह जास्ती होता है । अब बाप उससे छुड़ाते हैं ।
तुमको बेहद का बाप मिला है फिर मोह क्यों रखते हो?
उस
समय शक्ल बातचीत ही बन्दर मिसल हो जाती है । बाप कहते
हैं-नष्टोमोहा बन जाओ,
निरन्तर मुझे याद करो । पापों का बोझा सिर पर बहुत है,
वह
कैसे उतरे?
परन्तु माया ऐसी है,
याद करने नहीं देगी । भल कितना भी माथा मारो घड़ी-घड़ी बुद्धि को
उड़ा देती है । कितनी कोशिश करते हैं हम मोस्ट बिलवेड बाबा की
ही महिमा करते रहें । बाबा,
बस
आपके पास आये कि आये,
परन्तु फिर भूल जाते हैं । बुद्धि और तरफ चली जाती है । यह
नम्बरवन में जाने वाला भी पुरुषार्थी है ना । बच्चों की बुद्धि
में यह याद रहना चाहिए कि हम गॉड फादरली स्टूडेंट हैं । गीता
में भी है- भगवानुवाच,
मैं तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ । सिर्फ शिव के बदले कृष्ण
का नाम डाल दिया है । वास्तव में शिवबाबा की जयन्ती सारी
दुनिया में मनानी चाहिए । शिवबाबा सबको दुःख से लिबरेट कर गाइड
बन ले जाते हैं । यह तो सब मानते हैं कि वह लिबरेटर,
गाइड है । सबका पतित-पावन बाप है,
सबको शान्तिधाम-सुखधाम में ले जाने वाला है तो उनकी जयन्ती
क्यों नहीं मनाते हैं?
भारतवासी ही नहीं मनाते हैं इसलिए ही भारत की यह बुरी गति हुई
है । मौत भी बुरी गति से होता है । वह तो बॉम्बस ऐसे बनाते हैं,
गैस निकला और खलास,
जैसे क्लोरोफॉर्म लग जाता है । यह भी उन्हों को बनाने ही हैं ।
बन्द होना इम्पॉसिबुल है । जो कल्प पहले हुआ था सो अब रिपीट
होगा । इन मूसलों और नैचुरल कैलेमिटीज से पुरानी दुनिया का
विनाश हुआ था,
सो
अभी भी होगा । विनाश का समय जब होगा तो ड्रामा प्लैन अनुसार
एक्ट में आ ही जायेंगे । ड्रामा विनाश जरूर करायेगा । रक्त की
नदियाँ यहाँ बहेगी । सिविलवार में एक-दो को मार डालते हैं ना ।
तुम्हारे में भी थोड़े जानते हैं कि यह दुनिया बदल रही है । अब
हम जाते हैं सुखधाम । तो सदैव ज्ञान के अतीन्द्रिय सुख में
रहना चाहिए । जितना याद में रहेंगे उतना सुख बढ़ता जायेगा ।
छी-छी देह से नष्टोमोहा होते जायेंगे । बाप सिर्फ कहते हैं अलफ
को याद करो तो बे बादशाही तुम्हारी है । सेकण्ड में बादशाही,
बादशाह को बच्चा हुआ तो गोया बच्चा बादशाह बना ना । तो बाप
कहते हैं मुझे याद करते रहो और चक्र को याद करो तो चक्रवर्ती
महाराजा बनेंगे,
इसलिए गाया जाता है सेकण्ड में जीवनमुक्ति,
सेकण्ड में बेगर टू प्रिन्स । कितना अच्छा है । तो श्रीमत पर
अच्छी रीति चलना चाहिए । कदम-कदम पर राय लेनी होती है ।
बाप समझाते हैं मीठे बच्चे,
ट्रस्टी बनकर रहो तो ममत्व मिट जाये । परन्तु ट्रस्टी बनना
मासी का घर नहीं है । यह खुद ट्रस्टी बने हैं,
बच्चों को भी ट्रस्टी बनाते हैं । यह कुछ भी लेते हैं क्या?
कहते हैं तुम ट्रस्टी हो सम्भालो । ट्रस्टी बने तो फिर ममत्व
मिट जाता है । कहते भी हैं ईश्वर का सब कुछ दिया हुआ है । फिर
कुछ नुकसान पड़ता है या कोई मर जाता है तो बीमार हो पड़ते हैं ।
मिलता है तो खुशी होती है । जबकि कहते हो ईश्वर का दिया हुआ है
तो फिर मरने पर रोने की क्या दरकार है?
परन्तु माया कम नहीं है,
मासी का घर थोडेही है । इस समय बाप कहते हैं तुमने हमको बुलाया
है कि इस पतित दुनिया में हम नहीं रहना चाहते हैं,
हमको पावन दुनिया में ले चलो,
साथ ले चलो परन्तु इसका अर्थ भी समझते नहीं । पतित-पावन आयेगा
तो जरूर शरीर खत्म होंगे ना,
तब
तो आत्माओं को ले जायेंगे । तो ऐसे बाप के साथ प्रीत बुद्धि
होनी चाहिए । एक से ही लव रखना है,
उनको ही याद करना है । माया के तूफान तो आयेंगे ।
कर्मेन्द्रियों से कोई विकर्म नहीं करना चाहिए । वह बेकायदे हो
जाता है । बाप कहते हैं मैं आकर इस शरीर का आधार लेता हूँ । यह
इनका शरीर है ना । तुमको याद बाप को करना है । तुम जानते हो
ब्रह्मा भी बाबा,
शिव भी बाबा है । विष्णु और शंकर को बाबा नहीं कहेंगे । शिव है
निराकार बाप । प्रजापिता ब्रह्मा है साकारी बाप । अब तुम साकार
द्वारा निराकार बाप से वर्सा ले रहे हो । दादा इनमें प्रवेश
करते हैं तब कहते हैं दादे का वर्सा बाप द्वारा हम लेते हैं ।
दादा (ग्रैन्ड फादर) है निराकार,
बाप है साकार । यह वन्डरफुल नई बातें हैं ना । त्रिमूर्ति
दिखाते हैं परन्तु समझते नहीं । शिव को उड़ा दिया है । बाप
कितनी अच्छी- अच्छी बातें समझाते हैं तो खुशी रहनी चाहिए-हम
स्टूडेंट हैं । बाबा हमारा बाप,
टीचर,
सतगुरू है । अभी तुम वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी बेहद के बाप
से सुन रहे हो फिर औरों को सुनाते हो । यह 5 हजार वर्ष का चक्र
है । कॉलेज के बच्चों को वर्ल्ड की हिस्ट्री-जाग्राफी समझानी
चाहिए । 84 जन्मों की सीढ़ी क्या है,
भारत की चढ़ती कला और उतरती कला कैसे होती है,
यह
समझाना है । सेकण्ड में भारत स्वर्ग बन जाता है फिर 84 जन्मों
में भारत नर्क बनता है । यह तो बहुत ही सहज समझने की बात है ।
भारत गोल्डन एज से आइरन एज में कैसे आया है-यह तो भारतवासियों
को समझाना चाहिए । टीचर्स को भी समझाना चाहिए । वह है जिस्मानी
नॉलेज,
यह
है रूहानी नॉलेज । वह मनुष्य देते हैं,
यह
गॉड फादर देते हैं । वह है मनुष्य सृष्टि का बीजरूप,
तो
उनके पास मनुष्य सृष्टि का ही नॉलेज होगा । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा
के लिए मुख्य सार:-
1.
इस
छी-छी देह से पूरा नष्टोमोहा बन ज्ञान के अतीन्द्रिय सुख में
रहना है । बुद्धि में रहे अब यह दुनिया बदल रही है हम जाते हैं
अपने सुखधाम ।
2.
ट्रस्टी बनकर सब कुछ सम्भालते हुए अपना ममत्व मिटा
देना
है । एक बाप से सच्ची प्रीत रखनी है । कर्मेन्द्रियों से कभी
भी कोई विकर्म नहीं करना है ।
वरदान:-
डबल लाइट बन सर्व समस्याओं को हाई जम्प दे पार करने वाले तीव्र
पुरुषार्थी
भव
! 
सदा स्वयं को अमूल्य रत्न समझ बापदादा के दिल की डिब्बी में
रहो अर्थात् सदा बाप की याद में समाये रहो तो किसी भी बात में
मुश्किल का अनुभव नहीं करेंगे,
सब
बोझ समाप्त हो जायेंगे । इसी सहजयोग से डबल लाइट बन,
पुरूषार्थ में हाई जम्प देकर तीव्र पुरूषार्थी बन जायेंगे । जब
भी कोई मुश्किल का अनुभव हो तो बाप के सामने बैठ जाओ और
बापदादा के वरदानों का हाथ स्वयं पर अनुभव करो इससे सेकण्ड में
सर्व समस्याओं का हल मिल जायेगा ।
स्लोगन:-
सहयोग
की शक्ति असम्भव बात को भी सम्भव बना देती है । यही सेफ्टी का
किला है । 
अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए विशेष होमवर्क
संगठित
रूप में शक्तिशाली वायुमण्डल बनाने की जिम्मेवारी समझकर रहना ।
जब देखो कि कोई व्यक्त भाव में ज्यादा है तो उनको बिना कहे
अपना ऐसा अव्यक्ति शान्त रूप धारण कर लो जो वह इशारे से समझकर
शान्त हो जाए,
इससे
वातावरण अव्यक्त बन जायेगा ।
ओम्
शान्ति |