17-02-15      प्रातः मुरली      ओम् शान्ति      “बापदादा”      मधुबन
 


मीठे बच्चे - बाप जो है, जैसा है, उसे यथार्थ रीति जानकर याद करना, यही मुख्य बात है, मनुष्यों को यह बात बहुत युक्ति से समझानी है |”   

प्रश्न:-   
सारे युनिवर्स के लिए कौन-सी पढ़ाई है जो यहाँ ही तुम पढ़ते हो?

उत्तर:-

सारे युनिवर्स के लिए यही पढ़ाई है कि तुम सब आत्मा हो । आत्मा समझकर बाप को याद करो तो पावन बन जायेंगे । सारे युनिवर्स का जो बाप है वह एक ही बार आते हैं सबको पावन बनाने । वही रचता और रचना की नॉलेज देते हैं इसलिए वास्तव में यह एक ही युनिवर्सिटी है, यह बात बच्चों को स्पष्ट कर समझानी है ।

ओम् शान्ति |

भगवानुवाच - अब यह तो रूहानी बच्चे समझते हैं कि भगवान् कौन है । भारत में कोई भी यथार्थ रीति जानते नहीं । कहते भी हैं-मैं जो हूँ, जैसा हूँ मुझे यथार्थ रीति कोई नहीं जानते । तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं । नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जानते हैं । भल यहाँ रहते हैं परन्तु यथार्थ रीति से नहीं जानते । यथार्थ रीति जानकर और बाप को याद करना, यह बड़ी मुश्किलात है । भल बच्चे कहते हैं कि बहुत सहज है परन्तु मैं जो हूँ, मुझे निरन्तर बाप को याद करना है, बुद्धि में यह युक्ति रहती है । मैं आत्मा बहुत छोटा हूँ । हमारा बाबा भी बिन्दी छोटा है । आधाकल्प तो भगवान का कोई नाम भी नहीं लेते हैं । दु:ख में ही याद करते हैं-हे भगवान । अब भगवान कौन हैं, यह तो कोई मनुष्य समझते नहीं । अब मनुष्यों को कैसे समझायें-इस पर विचार सागर मंथन चलना चाहिए । नाम भी लिखा हुआ है-प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय । इससे भी समझते नहीं हैं कि यह रूहानी बेहद के बाप का ईश्वरीय विश्व विद्यालय है । अब क्या नाम रखें जो मनुष्य झट समझ जायें? कैसे मनुष्यों को समझायें कि यह युनिवर्सिटी है? युनिवर्स से युनिवर्सिटी अक्षर निकला है । युनिवर्स अर्थात् सारा वर्ल्ड, उसका नाम रखा है-युनिवर्सिटी, जिसमें सब मनुष्य पढ़ सकते हैं । युनिवर्स के पढ़ने लिए युनिवर्सिटी है । अब वास्तव में युनिवर्स के लिए तो एक ही बाप आते हैं, उनकी यह एक ही युनिवर्सिटी है । एम ऑब्जेक्ट भी एक है । बाप ही आकर सारे युनिवर्स को पावन बनाते हैं, योग सिखाते हैं । यह तो सब धर्म वालों के लिए है । कहते हैं अपने को आत्मा समझो, सारे युनिवर्स का बाप है-इनकारपोरियल गॉड फादर, तो क्यों न इसका नाम स्प्रीचुअल युनिवर्सिटी ऑफ स्प्रीचुअल इनकारपोरियल गॉड फादर रखें । ख्याल किया जाता है ना । मनुष्य ऐसे हैं जो सारे वर्ल्ड में बाप को एक भी नहीं जानते हैं । रचता को जानें तो रचना को भी जानें । रचता द्वारा ही रचना को जाना जा सकता है । बाप बच्चों को सब कुछ समझा देंगे । और कोई भी जानते नहीं । ऋषि-मुनि भी नेती-नेती करते गये । तो बाप कहते हैं तुमको पहले यह रचता और रचना की नॉलेज नहीं थी । अभी रचता ने समझाया है । बाप कहते हैं मुझे सब पुकारते भी हैं कि आकर हमको सुख-शान्ति दो क्योंकि अभी दु:ख- अशान्ति है । उनका नाम ही है दु:ख हर्ता सुख कर्ता । वह कौन है? भगवान । वह कैसे दु :ख हर कर सुख देते हैं, यह कोई नहीं जानते हैं । तो ऐसा क्लीयर कर लिखें जो मनुष्य समझें निराकार गॉड फादर ही यह नॉलेज देते हैं । ऐसे-ऐसे विचार सागर मंथन करना चाहिए । बाप समझाते हैं मनुष्य सभी हैं पत्थरबुद्धि । अभी तुमको पारसबुद्धि बना रहे हैं । वास्तव में पारसबुद्धि उन्हें कहेंगे जो कम से कम 50 से अधिक मार्क्स लें । फेल होने वाले पारसबुद्धि नहीं । राम ने भी कम मार्क्स लिए तब तो क्षत्रिय दिखाया है । यह भी कोई समझते नहीं हैं कि राम को बाण क्यों दिखाये हैं? श्रीकृष्ण को स्वदर्शन चक्र दिखाया है कि उसने सबको मारा और राम को बाण दिखाये हैं । एक खास मैगजीन निकलती है, जिसमें दिखाया हैं-कृष्ण कैसे स्वदर्शन चक्र से अकासुर-बकासुर आदि को मारते हैं । दोनों को हिंसक बना दिया है और फिर डबल हिंसक बना दिया है । कहते हैं उन्हों को भी बच्चे पैदा हुए ना । अरे, वह हैं ही निर्विकारी देवी- देवता । वहाँ रावण राज्य है ही नहीं । इस समय रावण सम्प्रदाय कहा जाता है ।

अभी तुम समझाते हो हम योगबल से विश्व की बादशाही लेते हैं तो क्या योगबल से बच्चे नहीं हो सकते । वह है ही निर्विकारी दुनिया । अभी तुम शूद्र से ब्राह्मण बने हो । ऐसा अच्छी रीति समझाना है जो मनुष्य समझे इनके पास पूरा ज्ञान है । थोड़ा भी इस बात को समझेंगे तो समझा जायेगा यह ब्राह्मण कुल का है । कोई के लिए तो झट समझ जायेंगे - यह ब्राह्मण कुल का है नहीं । आते तो अनेक प्रकार के हैं ना । तो तुम स्प्रीचुअल युनिवर्सिटी ऑफ स्प्रीचुअल इनकारपोरियल गॉड फादर लिखकर देखो, क्या होता है? विचार सागर मंथन कर अक्षर मिलाने होते हैं, इसमें बड़ी युक्ति चाहिए लिखने की । जो मनुष्य समझे यहाँ यह नॉलेज गॉड फादर समझाते हैं अथवा राजयोग सिखलाते हैं । यह अक्षर भी कॉमन है । जीवनमुक्ति डीटी सावरन्टी इन सेकण्ड । ऐसे-ऐसे अक्षर हो जो मनुष्यों की बुद्धि में बैठे । ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी की स्थापना होती है । मन्मनाभव का अर्थ है-बाप और वर्से को याद करो । तुम हो ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण कुल भूषण, स्वदर्शन चक्रधारी । अब वह तो स्वदर्शन चक्र विष्णु को दिखाते हैं । कृष्ण को भी 4 भुजाये दिखाते हैं । अब उनको 4 भुजायें हो कैसे सकती? बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं । बच्चों को बड़ा विशाल बुद्धि, पारसबुद्धि बनना है । सतयुग में यथा राजा-रानी तथा प्रजा पारसबुद्धि कहेंगे ना । वह है पारस दुनिया, यह है पत्थरों की दुनिया । तुमको यह नॉलेज मिलती है-मनुष्य से देवता बनने की । तुम अपना राज्य श्रीमत पर फिर से स्थापन कर रहे हो । बाबा हमको युक्ति बतलाते हैं कि राजा-महाराजा कैसे बन सकते हो? तुम्हारी बुद्धि में यह ज्ञान भर जाता है औरों को समझाने के लिए । गोले पर समझाना भी बड़ा सहज है । इस समय जनसंख्या देखो कितनी है! सतयुग में कितने थोड़े होते हैं । संगम तो है ना । ब्राह्मण तो थोड़े होंगे ना । ब्राह्मणों का युग ही छोटा है । ब्राह्मणों के बाद हैं देवतायें, फिर वृद्धि को पाते हैं । बाजोली होती है ना । तो सीढ़ी के चित्र के साथ विराट रूप भी होगा तो समझाने में क्लीयर होगा । जो तुम्हारे कुल के होंगे उनकी बुद्धि में रचता और रचना की नॉलेज सहज ही बैठ जायेगी । उनकी शक्ल से भी मालूम पड़ जाता है कि यह हमारे कुल का है या नहीं? अगर नहीं होगा तो तवाई की तरह सुनेगा । जो समझू होगा वह ध्यान से सुनेगा । एक बार किसको पूरा तीर लगा तो फिर आते रहेंगे । कोई प्रश्न पूछेंगे और कोई अच्छा फूल होगा तो रोज आपेही आकर पूरा समझकर चला जायेगा । चित्रों से तो कोई भी समझ सकते हैं । यह तो बरोबर देवी-देवता धर्म की स्थापना बाप कर रहे हैं । कोई न पूछते भी आपेही समझते रहेंगे । कोई तो बहुत पूछते रहेंगे, समझेंगे कुछ भी नहीं । फिर समझाना होता है, हंगामा तो करना नहीं है । फिर कहेंगे ईश्वर तुम्हारी रक्षा भी नहीं करते हैं! अब वह रक्षा क्या करते हैं सो तो तुम जानते हो । कर्मों का हिसाब-किताब तो हर एक को अपना चुक्तू करना है । ऐसे बहुत हैं, तबियत खराब होती है तो कहते हैं रक्षा करो । बाप कहते हैं हम तो आते हैं पतितों को पावन बनाने । वह धन्धा तुम भी सीखो । बाप 5 विकारों पर जीत पहनाते हैं तो और ही जोर से वह सामना करेंगे । विकार का तूफान बहुत जोर से आता हैं । बाप तो कहते हैं बाप का बनने से यह सब बीमारियाँ उथल खायेंगी, तूफान जोर से आयेंगे । पूरी बॉक्सिंग है । अच्छे- अच्छे पहलवानों को भी हरा लेते हैं । कहते हैं - न चाहते भी कुदृष्टि हो जाती है, रजिस्टर खराब हो जायेगा । कुदृष्टि वाले से बात नहीं करनी चाहिए । बाबा सभी सेंटर्स के बच्चों को समझा रहे हैं कि कुदृष्टि वाले बहुत ढेर हैं, नाम लेने से और ही रेटर बन जायेंगे । अपनी सत्यानाश करने वाले उल्टे काम करने लग पड़ते हैं । काम विकार नाक से पकड़ लेता है । माया छोड़ती नहीं है, कुकर्म, कुदृष्टि, कुवचन निकल पड़ते हैं, कुचलन हो पड़ती है इसलिए बहुत-बहुत सावधान रहना है ।

तुम बच्चे जब प्रदर्शनी आदि करते हो तो ऐसी युक्ति रचो जो कोई भी सहज समझ सके । यह गीता ज्ञान स्वयं बाप पढ़ा रहे हैं, इसमें कोई शास्त्र आदि की बात नहीं है । यह तो पढ़ाई है । किताब गीता तो यहाँ है नहीं । बाप पढ़ाते हैं । किताब थोड़ेही हाथ में उठाते हैं । फिर यह गीता नाम कहाँ से आया? यह सब धर्मशास्र बनते ही बाद में हैं । कितने अनेक मठ-पंथ हैं । सबके अपने- अपने शास्त्र हैं । टाल-डाल जो भी हैं, छोटे-छोटे मठ-पंथ, उनके भी शास्त्र आदि अपने- अपने हैं । तो वह हो गये सब बाल-बच्चे । उनसे तो मुक्ति मिल न सके । सर्वशास्त्र मई शिरोमणी गीता गाई हुई है । गीता का भी ज्ञान सुनाने वाले होंगे ना । तो यह नॉलेज बाप ही आकर देते हैं । कोई भी शास्त्र आदि हाथ में थोड़ेही हैं । मैं भी शास्त्र नहीं पढ़ा हूँ, तुमको भी नहीं पढ़ाते हैं । वह सीखते हैं, सिखलाते हैं । यहाँ शास्त्रों की बात नहीं । बाप है ही नॉलेजफुल । हम तुमको सभी वेदों-शास्त्रों का सार बतलाते हैं । मुख्य है ही 4 धर्मों के 4 धर्मशास्त्र । ब्राह्मण धर्म का कोई किताब है क्या? कितनी समझने की बातें हैं । यह सब बाप बैठ डिटेल में समझाते हैं । मनुष्य सब पत्थरबुद्धि हैं तब तो इतने कंगाल बने हैं । देवतायें थे गोल्डन एज में, वहाँ सोने के महल बनते थे, सोने की खानियां थी । अभी तो सच्चा सोना है नहीं । सारी कहानी भारत पर ही है । तुम देवी- देवता पारसबुद्धि थे, विश्व पर राज्य करते थे । अभी स्मृति आई है, हम स्वर्ग के मालिक थे फिर नर्क के मालिक बने हैं । अब फिर पारसबुद्धि बनते हैं । यह ज्ञान तुम बच्चों की बुद्धि में है जो फिर औरों को समझाना है । ड्रामा अनुसार पार्ट चलता रहता है, जो टाइम पास होता है सो एक्यूरेट फिर भी पुरूषार्थ तो करायेंगे ना । जिन बच्चों को नशा है कि स्वयं भगवान

हमको हेविन का मालिक बनाने के लिए पुरूषार्थ कराते हैं उनकी शक्ल बड़ी फर्स्टक्लास खुशनुम : रहती है । बाप आते भी हैं बच्चों को पुरूषार्थ कराने, प्रालब्ध के लिए । यह भी तुम जानते हो, दुनिया में थोड़ेही कोई जानते हैं । हेविन का मालिक बनाने भगवान पुरूषार्थ कराते हैं तो खुशी होनी चाहिए । शक्ल बड़ी फर्स्टक्लास, खुशनुम होनी चाहिए । बाप की याद से तुम सदैव हर्षित रहेंगे । बाप को भूलने से ही मुरझाइस आती है । बाप और वर्से को याद करने से खुशनुम : हो जाते हैं । हर एक की सर्विस से समझा जाता है । बाप को बच्चों की खुशबू तो आती है ना । सपूत बच्चों से खुशबू आती है, कपूत से बदबू आती है । बगीचे में खुशबूदार फूल को ही उठाने के लिए दिल होगी । अक को कौन उठायेंगे! बाप को यथार्थ रीति याद करने से ही विकर्म विनाश होंगे । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. माया की बॉक्सिंग में हारना नहीं है । ध्यान रहे कभी मुख से कुवचन न निकले, कुदृष्टि, कुचलन, कुकर्म न हो जाए ।

2. फर्स्टक्लास खुशबूदार फूल बनना है । नशा रहे कि स्वयं भगवान हमको पढ़ाते हैं । बाप की याद में रह सदैव हर्षित रहना है, कभी मुरझाना नहीं है ।

वरदान:-

ड्रामा की नॉलेज से अचल स्थिति बनाने वाले प्रकृति या मायाजीत भव !   

प्रकृति वा माया द्वारा कैसा भी पेपर आये लेकिन जरा भी हलचल न हो । यह क्या, यह क्यों, यह क्वेश्चन भी उठा, जरा भी कोई समस्या वार करने वाली बन गई तो फेल हो जायेंगे इसलिए कुछ भी हो लेकिन अन्दर से यह आवाज निकले कि वाह मीठा ड्रामा वाह! हाय क्या हुआ! यह संकल्प भी न आये । ऐसी स्थिति हो जो कोई संकल्प में भी हलचल न हो । सदा अचल, अडोल स्थिति रहे तब प्रकृतिजीत व मायाजीत का वरदान प्राप्त होगा ।

स्लोगन:- 

खुशखबरी सुनाकर खुशी दिलाना यही सबसे श्रेष्ठ कर्तव्य है ।   

 

ओम् शान्ति |