01-02-15
प्रातः मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त
बापदादा”
रिवाइज
30-01-79
मधुबन
“सर्व
बन्धनों से मुक्ति की युक्ति”
आज
बापदादा सभी स्नेही सिकीलधे बच्चों को देख हर्षा रहे हैं ।
जैसे बापदादा दूर देश से बच्चों से मिलने आते हैं वैसे बच्चे
भी दूर देशों से बाप के साथ मिलने आते हैं । यह अलौकिक मेला
अर्थात् बाप बच्चों का मिलन कल्प के अन्दर अब संगम पर ही होता
है - अब नहीं तो कब नहीं । बाप-दादा सभी बच्चों की विशेष
धारणाओं को देख रहे हैं । सुनना - यह तो जन्म-जन्मान्तर से
करते ही आये लेकिन इस अलौकिक जन्म में अर्थात् ब्राह्मण जीवन
में विशेषता है ही धारणा स्वरूप बनने की । तो बाप-दादा रिजल्ट
देख रहे हैं । हरेक ब्राह्मण बच्चा कर्म करने के पहले
त्रिकालदर्शी स्टेज पर स्थित हो तीनों कालों को जानने वाले बन
कर्म के आदि,
मध्य,
अन्त
को जान कर्म करते हैं! और फिर कर्म करते समय साक्षी दृष्टा हो
पार्ट बजाते हैं । ऐसे पार्ट बजाने वाले वर्तमान समय और भविष्य
में भी पूज्य स्वरूप बन अनेक आत्माओं के आगे दृष्टान्त रूप
बनते हैं । त्रिकालदर्शी,
साक्षी दृष्टा और फिर दृष्टान्त रूप । तीनों ही स्थिति में अभी
कहाँ तक पहुँचे हैं?
जैसे
साकार बाप को देखा ऐसे फालो फादर है?
हर
कर्म त्रिकालदर्शी बन करने से कभी भी कोई कर्म विकर्म नहीं हो
सकता,
सदा
सुकर्म होगा । त्रिकालदर्शी न बनने के कारण ही व्यर्थ कर्म वा
पाप कर्म होते हैं । ऐसे ही साक्षी दृष्टा बन कर्म करने से कोई
भी कर्म के बन्धन में कर्म-बन्धनी आत्मा नहीं बनेंगे । कर्म का
फल श्रेष्ठ होने के कारण कर्म सम्बन्ध में आयेंगे,
बन्धन में नहीं । सदा कर्म करते हुए भी न्यारे और बाप के
प्यारे अनुभव करेंगे,
ऐसी
न्यारी और प्यारी आत्मायें अभी भी अनेक आत्माओं के सामने
दृष्टान्त अर्थात् एक्जैम्पुल बनते हैं,
जिसको देखकर अनेक आत्मायें स्वयं भी कर्मयोगी बन जाती हैं और
भविष्य में भी पूज्यनीय बन जाती हैं । ऐसे बाप समान बने हो?
बन्धन मुक्त आत्मा बने हो?
सर्व
सम्बन्ध बाप के साथ जोड़ना अर्थात् सर्व बन्धनों से मुक्त होना
। अनेक जन्मों के अनेक प्रकार के बन्धन को समाप्त करने का सहज
साधन बाप से सर्व सम्बन्ध । अगर किसी भी प्रकार का बन्धन अनुभव
करते हो तो उसका कारण है सम्बन्ध नहीं । बाप-दादा रिजल्ट देख
रहे थे कि अभी तक कौन-कौन से बन्धन हैं?
देह
के बन्धन का कारण है देही का सम्बन्ध बाप से नहीं जोड़ा है ।
बाप की स्मृति और देही स्वरूप के स्मृति की धारणा नहीं हुई है
। पहला पाठ कच्चा है । सेकेण्ड में देह से न्यारे बनने का
अभ्यास सेकेण्ड में देह के बन्धन से मुक्त बना देता है । स्वीच
आन हुआ और भस्म । जैसे साइन्स के साधनों द्वारा भी वस्तु
सेकेण्ड में परिवर्तन हो जाती है वैसे साइलेन्स की शक्ति से,
देही
के सम्बन्ध से बंधन खत्म । अब तक भी अगर पहली स्टेज देह के
बन्धन में है तो क्या कहेंगे। अभी तक पहले क्लास में हैं ।
जैसे कोई स्टूडेंट कमजोर होने के कारण कई वर्ष एक ही क्लास में
रहते हैं - तो सोचो ईश्वरीय पढ़ाई का लास्ट टाइम चल रहा है और
अब तक भी देह के सम्बन्ध की पहली चौपड़ी में हैं,
ऐसे
स्टूडेंट को क्या कहेंगे?
किस
लाइन में आयेंगे?
पाने
वाले वा देखने वाले?
तो
अब तक पहली क्लास में तो नहीं बैठे हो?
परधर्म में स्थित होना सहज होता है वा स्वधर्म में?
स्वधर्म है देही अर्थात् आत्मिक स्वरूप । परधर्म है देह स्वरूप,
तो
सहज क्या अनुभव होता है?
जैसा
नाम है सहज राजयोगी वैसा ही अनुभव है?
वा
नाम और काम में फर्क है?
दूसरे नम्बर का बन्धन है मन का बन्धन । इस मन के बन्धन का साधन
है सदा मनमनाभव । यह पहला मन्त्र सदा जीवन में अनुभव करते हो?
सदा
एक बाप दूसरा न कोई । यह पहला वायदा निभाना अर्थात् मन के
बन्धनों से मुक्त होना । तो पहला वायदा निभाना आता है ना?
कहना
आता है वा निभाना आता है?
निभाना अर्थात् पाना - इसमें भी चेक करो कि कहाँ तक बन्धन
मुक्त बने हैं?
सदा
सर्व आकर्षणों से परे एक ही लगन में मगन हैं?
एक
रस है?
अचल
हैं वा चंचल हैं?
अगर
अब तक चंचल हैं तो क्या कहेंगे?
अभी
तक छोटा बच्चा है और स्टेज आकर पहुँची है वानप्रस्थ की,
ऐसी
स्टेज के समय यह चंचलता। बचपन की स्टेज अच्छी लगती है?
ब्राह्मण जन्म का अधिकार मास्टर सर्वशक्तिमान का प्राप्त किया
है?
अधिकार के आगे यह देह वा मन के बन्धन रह सकते हैं?
प्रैक्टिकल अनुभव क्या है?
सदा
यह तीन बातें याद करो - त्रिकालदर्शी फिर साक्षी दृष्टा और
उसकी रिजल्ट विश्व के आगे दृष्टान्त रूप । इस स्थिति को सदा
याद रखो तो सदा बन्धन मुक्त जीवनमुक्त अवस्था का अनुभव करेंगे
। पुरूषार्थ का समय बहुत बीत चुका । अब थोड़े का भी थोड़ा-सा रहा
है । समय के प्रमाण अपनी रिजल्ट चेक करो । इस मेले का भी
थोड़ा-सा समय रह गया है,
इसलिए अब सुना तो बहुत,
सुनना अर्थात् वाणी द्वारा ही यह ब्राह्मण जन्म लिया इसलिए मुख
वंशावली कहलाते हो । तो जन्म से ही सुनते आये हो अब क्या करना
है?
सुनने के बाद है स्वरूप बनना,
इसलिए लास्ट स्टेज स्मृति स्वरूप की हैं । ऐसी स्टेज तक कहाँ
तक पहुँचे हो?
सीजन
की रिजल्ट भी क्या?
सुनना और मिलना वा समान बनना?
स्नेह का सबूत है ही समान बनना । जिस स्टेज से बाप का स्नेह है,
ऐसी
स्टेज को पाना । ऐसे स्नेही हो ना?
सदा
अपने समूर्ण स्वरूप को सामने रखने से माया का सामना करना बहुत
सहज होगा । बाप-दादा यही रिजल्ट देखने चाहता - इस रिजल्ट को
प्रैक्टिकल में लाने के लिए विशेष धारणायें याद रखो – 1.
मधुरता 2. नम्रता । इन विशेष दो धारणाओं से सदा विथ कल्याणकारी
महादानी वरदानी बन जायेंगे और सहज ही स्नेह का सबूत दे सकेंगे
। समझा - अभी क्या करना है?
यह
करना है और कुछ छोड़ना भी है । छोड़ना क्या है?
ज्ञानी तू आत्मा होने के कारण भक्ति के संस्कार भिखारी बन
मांगने का वा सिर्फ बाप की महिमा वा कीर्तन गाने का,
मन
द्वारा यहाँ वहाँ भटकने का,
अपने
खजानों को व्यर्थ गँवाने का यह पुराने संस्कार सदा के लिए
समाप्त करो अर्थात् पुराने संस्कारों का संस्कार करो । यह है
छोड़ना । तो अब समझा क्या करना है?
क्या
छोड़ना है?
ज्ञानी तू आत्मा अर्थात् विजयी । अच्छा -
ऐसे
सेकेण्ड में स्व परिवर्तन करने वाले,
स्व
परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन करने वाले,
सर्व
बन्धनों से मुक्त सदा योगयुक्त,
जीवन
मुक्त,
बाप-दादा के स्नेही अर्थात् समान बनने वाले ऐसे सदा विजयी
रत्नों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते ।
पार्टियों से मुलाकात :-
1.
सदा अपने को पदमापदमपति समझते हो?
जो
हर कदम में पदमों की कमाई जमा करते हैं वह क्या हो गये?
पदमापदमपति हो गये ना! आपके आगे आजकल के नम्बरवन धनवान भी क्या
हैं?
भिखारी क्योंकि जितना धन होगा तो धन के साथ और क्या होता है?
दु
:ख भी होता है । तो जो दुखी होंगे वह सुख के भिखारी तो होंगे
ना । तो चाहे जितना भी बड़ा विश्व में प्रसिद्ध नामी-ग्रामी
धनवान हो लेकिन आपके आगे सब भिखारी हैं । अब ऐसा समय
प्रैक्टिकल में देखेंगे जो नामी-ग्रामी धनवान अभी सुनने के लिए
तैयार नहीं हैं,
जिन्हें सोचने की फुर्सत नहीं है वह सब आपके आगे भिखारी की
क्यू में होंगे,
तरसेंगे,
तड़फेंगे एक सेकेण्ड के सुख के लिए । ऐसे समय पर आप सभी महादानी
स्टेज पर स्थित हो सबको दान देंगे । तो इतना नशा रहता है?
कि
हम विश्व में सबसे मालामाल हैं । शुरू में भी स्थापना के समय
अखबार में क्या डलवाया था - लोगों ने कहा ओम मण्डली गई कि गई
और बाप ने डलवाया ओम मण्डली सारे वर्ल्ड में रिचेस्ट हैं,
मालामाल हैं । सब भूख मर सकते हैं लेकिन बाप के बच्चे भूखे
नहीं मर सकते क्योंकि
'
अमरभव '
का
वरदान मिला हुआ है । जो वरदानी हैं वह सदा मालामाल हैं तो ऐसा
नशा और खुशी सदा कायम रहे,
कभी-कभी नहीं । अमरभव अर्थात् निरन्तर सदा खुशी में बाप के साथ
समानता की रास खेलते रहो । बाप के साथ रास भी वही खेलेंगे जो
समान होंगे । सदा समानता ही रास हैं तो ऐसे रास खेलते हो?
जो
यहाँ सदा बाप के समान रहते हैं वा खुशी में नाचते रहते हैं वही
फिर भविष्य में भी साथ-साथ रास करेंगे । ब्रह्मा बाप के साथ
पार्ट बजाना,
तो
बाप समान होंगे तब तो पार्ट बजायेंगे ना ।
शक्ति सेना सदा विजय का झण्डा लहराने वाली हो ना?
इतना
ऊंचा झण्डा है जो सारी विश्व देख सके । झण्डा लहराया जरूर है
लेकिन अभी ऊँचा उठाना है । अगर कोई अट्रैक्शन की वस्तु कहा भी
नज़र आती तो सबकी नजर आटोमेटिकली जाती है,
न
चाहते भी आकर्षण होती है । तो ऐसा आकर्षण वाला झण्डा लहराओ जो
न चाहते भी सबकी नजर जाए । वैसे तो धरनी अभी परिवर्तन होती जा
रही है,
अभी
सबके कानों में यह आवाज गूँजने वाला है कि अगर सत्य कार्य है
तो इन्हों का ही है,
सब
तरफ से निराश होंगे और इसी तरफ आशा का दीपक दिखाई देगा । इसके
लिए सम्पर्क बढ़ाओ । समय पर सम्पर्क नहीं सदा सम्पर्क । सम्पर्क
में आने वालों को आगे बढ़ाते चलो,
कोई
न कोई प्रोग्राम समय प्रति समय रखते रहो । हर वर्ग की सेवा
करनी है,
अन्त
में कोई भी उल्हना न दे सके कि हमें नहीं बताया इसलिए सब धर्म
वालों को सन्देश जरूर देना है ।
2.
तमोगुणी वातावरण से सेफ्टी का साधन - बाप का साथ :-
अपने
को इस पुरानी दुनिया में रहत कमल पुष्प के समान न्यारे और अति
बाप के प्यारे अनुभव करते हो?
जैसे
कमल का पुष्प कीचड़ में रहते भी न्यारा रहता है,
ऐसे
पुरानी दुनिया में रहते हुए,
तमोगुणी वातावरण से न्यारे रहते हो?
तमोगुणी वातावरण का प्रभाव तो नहीं पड़ता । जो सदा बाप को अपना
साथी बनाते और साक्षी हो पार्ट बजाते वह सदा न्यारे होंगे ।
जैसे वाटरप्रुफ होता है ना तो कितना भी पानी पड़े लेकिन एक बूँद
भी असर नहीं करेंगी । ऐसे सदा मायाप्रुफ हो कि माया का असर
होता है?
जब
बाप के साथ का किनारा करते हो तब असर होता है । किनारा देख
माया अपना वार कर देती है । सदा साथ रहो तो माया का वार नहीं
हो सकता । सभी बच्चों को मायाजीत बनने का वरदान है लेकिन
मायाजीत का पेपर तो होगा ना! पास नहीं होंगे तो पास विद ऑनर
कैसे कहलायेंगे । सदा यह याद रखो कि हम सर्वशक्तिमान के साथ
हैं । अगर कोई बहादुर का साथ होता है तो कितना निर्भय रहते हैं,
यह
तो सर्वशक्तिमान का साथ है तो कितना निर्भय रहना चाहिए । सदा
अपने भाग्य का सितारा चमकता हुआ देखो । दुनिया वाले आज भी आपके
भाग्य का वर्णन कर रहे हैं,
तो
अपने भाग्य का सितारा देखते रहो ।
3.
डबल लाइट की स्थिति से पहाड़ जैसा कार्य भी रूई समान :-
सभी
डबल लाइट हो ना! किसी भी प्रकार का बोझ अनुभव न हो यह है डबल
लाइट । डबल लाइट अर्थात् बिन्दी स्वरूप आत्मा में भी कोई बोझ
नहीं और जब फरिश्ते बन जाते तो उसमें भी कोई बोझ नहीं । तो या
तो अपना बिन्दु रूप याद रहे या कर्म में फरिश्ता स्वरूप - ऐसी
स्टेज पर स्थित होने से कितना भी बड़ा कार्य ऐसे अनुभव करेंगे
जैसे करन करावनहार करा रहे हैं । निमित्त समझेंगे तो डबल लाइट
रहेंगे । ट्रस्टी होकर चलने से बोझ भी नहीं और सफलता भी ज्यादा
। गृहस्थी समझने से मेहनत भी ज्यादा और सफलता भी कम । तो सदा
डबल लाइट के स्वरूप की स्मृति की समर्थी में रहो तो कोई भी
पहाड़ जैसा कार्य भी राई नहीं लेकिन रूई जैसा हो जायेगा । राई
फिर भी सख्त होती है,
उससे
भी हल्की,
रूई
के समान अर्थात् असम्भव भी सम्भव हो जायेगा । अच्छा -
4.
अपनी स्थिति को शक्तिशाली बनाने का साधन है - श्रेष्ठ स्मृति
:-
सदा
अपने को श्रेष्ठ आत्मा समझते हुए हर संकल्प और कर्म श्रेष्ठ
करते हो?
क्योंकि जैसी स्मृति होती है वैसी स्थिति स्वत : बन जाती है ।
तो स्मृति रहती है कि हम महान श्रेष्ठ आत्मा हैं । स्मृति को
सदा चेक करो कि निरन्तर विशेष आत्मा की रहती है या चलते-फिरते
साधारण बन जाती है?
सदा
अपना आक्यूपेशन कि मैं विश्व में ब्राह्मण चोटी हूँ । सदा अपने
मस्तक पर स्मृति का तिलक लगा हुआ हो । लौकिक रीति से भी
ब्राह्मण तिलक लगाते हैं,
तो
यह निशानी अब संगमयुग की है,
तो
सदा तिलक कायम रहता है?
माया
मिटाती तो नहीं है?
सदा
अटेंशन रहे तो स्मृति का तिलक अमिट और अविनाशी रहेगा । अच्छा -
ओम् शान्ति ।
वरदान:-
तीन
सेवाओं के बैलेन्स द्वारा सर्व गुणों की अनुभूति करने वाले
गुणमूर्त
भव ! 
जो बच्चे संकल्प, बोल
और हर कर्म द्वारा सेवा पर तत्पर रहते हैं वही सफलतामूर्त बनते
हैं । तीनों में मार्क्स समान हैं, सारे
दिन मे तीनों सेवाओं
का बैलेन्स है तो पास विद आनर वा गुणमूर्त बन जाते
हैं
। उनके द्वारा सर्व दिव्य गुणों का
श्रृंगार
स्पष्ट दिखाई देता है । एक दूसरे को बाप के
गुणों
का वा स्वयं की धारणा के गुणों का सहयोग देना ही गुणमूर्त बनना
है
क्योंकि
गुणदान सबसे बड़ा दान है |
स्लोगन:-
निश्चय
रूपी फाउण्डेशन पक्का है तो श्रेष्ठ जीवन का अनुभव स्वत: होता
है । 
ओम्
शान्ति |