24-03-15
प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - तुम अभी पुरानी दुनिया के गेट से निकलकर शान्तिधाम और
सुखधाम में जा रहे हो,
बाप ही
मुक्ति-जीवनमुक्ति का रास्ता बताते हैं” 
प्रश्न:-
वर्तमान समय सबसे अच्छा कर्म कौन सा है?
उत्तर:-
सबसे
अच्छा कर्म है मन्सा,
वाचा,
कर्मणा अन्धों की लाठी बनना। तुम बच्चों को विचार सागर मंथन
करना चाहिए कि ऐसा कौन-सा शब्द लिखें जो मनुष्यों को घर का
(मुक्ति का) और जीवनमुक्ति का रास्ता मिल जाए। मनुष्य सहज समझ
लें कि यहाँ शान्ति सुख की दुनिया में जाने का रास्ता बताया
जाता है।
ओम्
शान्ति।
जादूगर की बत्ती सुना है?
अलाउद्दीन की बत्ती भी गाया जाता है। अलाउद्दीन की बत्ती वा
जादूगर की बत्ती क्या-क्या दिखाती है! वैकुण्ठ,
स्वर्ग,
सुखधाम। बत्ती को प्रकाश कहा जाता है। अभी तो अन्धियारा है ना।
अब यह जो प्रकाश दिखाने के लिए बच्चे प्रदर्शनी मेले करते हैं,
इतना
खर्चा करते हैं,
माथा
मारते हैं। पूछते हैं बाबा इनका नाम क्या रखें?
यहाँ
बाम्बे को कहते हैं गेट-वे ऑफ इन्डिया। स्टीमर पहले बाम्बे में
ही आते हैं। देहली में भी इन्डिया गेट है। अब अपना यह है गेट
ऑफ मुक्ति जीवनमुक्ति। दो गेट्स हैं ना। हमेशा गेट दो होते हैं
इन और आउट। एक से आना,
दूसरे से जाना। यह भी ऐसे है-हम नई दुनिया में आते हैं फिर
पुरानी दुनिया से बाहर निकल अपने घर चले जाते हैं। परन्तु वापस
आपेही तो हम जा नहीं सकते क्योंकि घर को भूल गये हैं,
गाइड
चाहिए। वह भी हमको मिला है जो रास्ता बताते हैं। बच्चे जानते
हैं बाबा हमको मुक्ति-जीवनमुक्ति,
शान्ति और सुख का रास्ता बताते हैं। तो गेट ऑफ शान्तिधाम
सुखधाम लिखें। विचार सागर मंथन करना होता है ना। बहुत ख्यालात
चलते हैं-मुक्ति-जीवनमुक्ति किसको कहा जाता है,
वह
भी कोई को पता नहीं है। शान्ति और सुख तो सभी चाहते हैं।
शान्ति भी हो और धन दौलत भी हो। वह तो होता ही है सतयुग में।
तो नाम लिख दें-गेट ऑफ शान्तिधाम और सुखधाम अथवा गेट ऑफ
प्योरिटी,
पीस,
प्रासपर्टी। यह तो अच्छे अक्षर हैं। तीनों ही यहाँ नहीं हैं।
तो इस पर फिर समझाना भी पड़े। नई दुनिया में यह सब था। नई
दुनिया की स्थापना करने वाला है पतित-पावन,
गाड
फादर। तो जरूर हमको इस पुरानी दुनिया से निकल घर जाना पड़े। तो
यह गेट हुआ ना-प्योरिटी,
पीस,
प्रासपर्टी का। बाबा को यह नाम अच्छा लगता है। अब वास्तव में
उसकी ओपानिंग तो शिवबाबा करते हैं। परन्तु हम ब्राह्मणों
द्वारा कराते हैं। दुनिया में ओपानिंग सेरीमनी तो बहुत होती
रहती हैं ना। कोई हॉस्पिटल की करेंगे,
कोई
युनिवार्सिटी की करेंगे। यह तो एक ही बार होती है और इस समय ही
होती है तो इसलिए विचार किया जाता है। बच्चों ने लिखा-ब्रह्मा
बाबा आकर उद्घाटन करें। बापदादा दोनों को बुलायें। बाप कहते
हैं तुम बाहर कहीं जा नहीं सकते। उद्घाटन करने के लिए जायें,
विवेक नहीं कहता,
कायदा नहीं। यह तो कोई भी खोल सकते हैं। अखबार में भी
पड़ेगा-प्रजापिता ब्रह्माकुमार- कुमारियां। यह नाम भी बड़ा अच्छा
है ना। प्रजापिता तो सबका बाप हो गया। वह कोई कम है क्या! और
फिर बाप खुद सेरीमनी कराते हैं। करनकरावनहार है ना। बुद्धि में
रहना चाहिए ना हम स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। तो कितना
पुरूषार्थ कर श्रीमत पर चलना चाहिए। वर्तमान समय
मंसा-वाचा-कर्मणा सबसे अच्छा कर्म तो एक ही है-अंधों की लाठी
बनना। गाते भी हैं - हे प्रभू अंधों की लाठी। सब अन्धे ही
अन्धे हैं। तो बाप आकर लाठी बनते हैं। ज्ञान का तीसरा नेत्र
देते हैं,
जिससे तुम स्वर्ग में नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जाते हो।
नम्बरवार तो हैं ही। यह बहुत बड़ी बेहद की हॉस्पिटल कम
युनिवार्सिटी है। समझाया जाता है-आत्माओं का बाप परमपिता
परमात्मा पतित-पावन है। तुम उस बाप को याद करो तो सुखधाम चले
जायेंगे। यह है हेल,
इनको
हेविन नहीं कहेंगे। हेविन में है ही एक धर्म। भारत स्वर्ग था,
दूसरा कोई धर्म नहीं था। यह सिर्फ याद करें,
यह
भी मनमनाभव है। हम स्वर्ग में सारे विश्व के मालिक थे-इतना भी
याद नहीं पड़ता है! बुद्धि में है हमको बाप मिला है तो वह खुशी
रहनी चाहिए। परन्तु माया भी कम नहीं है। ऐसे बाप का बनकर फिर
भी इतनी खुशी में नहीं रहते हैं। घुटके खाते रहते हैं। माया
घड़ी-घड़ी बहुत घुटके खिलाती है। शिवबाबा की याद भुला देती है।
खुद भी कहते हैं याद ठहरती नहीं है। बाप घुटका खिलाते हैं
ज्ञान सागर में,
माया
फिर घुटका खिलाती है विषय सागर में। बड़ा खुशी से घुटका खाने लग
पड़ते हैं। बाप कहते हैं शिवबाबा को याद करो। माया फिर भुला
देती है। बाप को याद ही नहीं करते। बाप को जानते ही नहीं। दु:ख
हर्ता सुख कर्ता तो परमपिता परमात्मा है ना। वह है ही दु:ख
हरने वाला। वह फिर गंगा में जाकर डुबकी लगाते हैं। समझते हैं
गंगा पतित-पावनी है। सतयुग में गंगा को दु:ख हरनी पाप कटनी
नहीं कहेंगे। साधू सन्त आदि सब जाकर नदियों के किनारे बैठते
हैं। सागर के किनारे क्यों नहीं बैठते हैं?
अभी
तुम बच्चे सागर के किनारे बैठे हो। ढेर के ढेर बच्चे सागर पास
आते हैं। फिर समझते हैं सागर से निकली हुई यह छोटी-बड़ी नदियाँ
भी हैं। ब्रह्म पुत्रा,
सिंध,
सरस्वती यह भी नाम रखे हुए हैं।
बाप
समझाते हैं - बच्चे,
तुम्हें मन्सा-वाचा-कर्मणा बहुत-बहुत ध्यान रखना है,
कभी
भी तुम्हें क्रोध नहीं आना चाहिए। क्रोध पहले मन्सा में आता
फिर वाचा और कर्मणा में भी आ जाता है। यह तीन खिड़कियाँ हैं
इसलिए बाप समझाते हैं-मीठे बच्चे,
वाचा
अधिक नहीं चलाओ,
शान्त में रहो,
वाचा
में आये तो कर्मणा में आ जायेगा। गुस्सा पहले मन्सा में आता है
फिर वाचा-कर्मणा में आता है। तीनों खिड़कियों से निकलता है।
पहले मन्सा में आयेगा। दुनिया वाले तो एक-दो को दु:ख देते रहते
हैं,
लड़ते-झगड़ते रहते हैं। तुमको तो कोई को भी दु:ख नहीं देना है।
ख्याल भी नहीं आना चाहिए। साइलेन्स में रहना बड़ा अच्छा है। तो
बाप आकर स्वर्ग का अथवा सुख-शान्ति का गेट बतलाते हैं। बच्चों
को ही बतलाते हैं। बच्चों को कहते हैं तुम भी औरों को बतलाओ।
प्योरिटी,
पीस,
प्रासपर्टी होती है स्वर्ग में। वहाँ कैसे जाते हैं,
वह
समझना है। यह महाभारत लड़ाई भी गेट खोलती है। बाबा का विचार
सागर मंथन तो चलता है ना। क्या नाम रखें?
सवेरे विचार सागर मंथन करने से मक्खन निकलता है। अच्छी राय
निकलती है,
तब
बाबा कहते हैं सवेरे उठ बाप को याद करो और विचार सागर मंथन
करो-क्या नाम रखा जाए?
विचार करना चाहिए,
कोई
का अच्छा विचार भी निकलता है। अब तुम समझते हो पतित को पावन
बनाना माना नर्कवासी से स्वर्गवासी बनाना। देवतायें पावन हैं,
तब
तो उनके आगे माथा टेकते हैं। तुम अभी किसको माथा नहीं टेक सकते
हो,
कायदा नहीं। बाकी युक्ति से चलना होता है। साधू लोग अपने को
ऊंच पवित्र समझते हैं,
औरों
को अपवित्र नींच समझते हैं। तुम भल जानते हो हम सबसे ऊंच हैं
परन्तु कोई हाथ जोड़े तो रेसपान्ड देना पड़े। हरीओम् तत्सत् करते
हैं,
तो
करना पड़े। युक्ति से नहीं चलेंगे तो वह हाथ नहीं आयेंगे। बड़ी
युक्तियां चाहिए। जब मौत सिर पर आता है तो सभी भगवान का नाम
लेते हैं। आजकल इतफाक तो बहुत होते रहेंगे। आहिस्ते-आहिस्ते आग
फैलती है। आग शुरू होगी विलायत से फिर आहिस्ते-आहिस्ते सारी
दुनिया जल जायेगी। पिछाड़ी में तुम बच्चे ही रह जाते हो।
तुम्हारी आत्मा पवित्र हो जाती है तो फिर तुमको वहाँ नई दुनिया
मिलती है। दुनिया का नया नोट तुम बच्चों को मिलता है। तुम
राज्य करते हो। अलाउद्दीन की बत्ती भी मशहूर है ना! नोट ऐसा
करने से कारून का खजाना मिल जाता है। है भी बरोबर। तुम जानते
हो अल्लाह अवलदीन झट इशारे से साक्षात्कार कराते हैं। सिर्फ
तुम शिवबाबा को याद करो तो सब साक्षात्कार हो जायेंगे। नौधा
भक्ति से भी साक्षात्कार होता है ना। यहाँ तुमको एम ऑब्जेक्ट
का साक्षात्कार तो होता ही है फिर तुम बाबा को,
स्वर्ग को बहुत याद करेंगे। घड़ी-घड़ी देखते रहेंगे। जो बाबा की
याद में और ज्ञान में मस्त होंगे वही अन्त की सभी सीन सीनरी
देख सकेंगे। बड़ी मंजिल है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना,
मासी
का घर नहीं है। बहुत मेहनत है। याद ही मुख्य है। जैसे बाबा
दिव्य दृष्टि दाता है तो स्वयं अपने लिए दिव्य दृष्टि दाता बन
जायेंगे। जैसे भक्ति मार्ग में तीव्र वेग से याद करते हैं तो
साक्षात्कार होता है। अपनी मेहनत से जैसे दिव्य दृष्टि दाता बन
जाते हैं। तुम भी याद की मेहनत में रहेंगे तो बहुत खुशी में
रहेंगे और साक्षात्कार होते रहेंगे। यह सारी दुनिया भूल जाए।
मनमनाभव हो जाएं। बाकी क्या चाहिए! योगबल से फिर तुम अपना शरीर
छोड़ देते हो। भक्ति में भी मेहनत होती है,
इसमें भी मेहनत चाहिए। मेहनत का रास्ता बाबा बहुत फर्स्टक्लास
बताते रहते हैं। अपने को आत्मा समझने से फिर देह का भान ही
नहीं रहेगा। जैसे बाप समान बन जायेंगे। साक्षात्कार करते
रहेंगे। खुशी भी बहुत रहेगी। रिजल्ट सारी पिछाड़ी की गाई हुई
है। अपने नाम-रूप से भी न्यारा होना है तो फिर दूसरे के
नाम-रूप को याद करने से क्या हालत होगी! नॉलेज तो बहुत सहज है।
प्राचीन भारत का योग जो है,
जादू
उसमें है। बाबा ने समझाया है ब्रह्म ज्ञानी भी ऐसे शरीर छोड़ते
हैं। हम आत्मा हैं,
परमात्मा में लीन होना है। लीन कोई होते नहीं हैं। हैं ब्रह्म
ज्ञानी। बाबा ने देखा है बैठे-बैठे शरीर छोड़ देते हैं।
वायुमण्डल बड़ा शान्त रहता है,
सन्नाटा हो जाता है। सन्नाटा भी उनको भासेगा जो ज्ञान मार्ग
में होंगे,
शान्त में रहने वाले होंगे। बाकी कई बच्चे तो अभी बेबियाँ हैं।
घड़ी-घड़ी गिर पड़ते हैं,
इसमें बहुत-बहुत गुप्त मेहनत है। भक्ति मार्ग की मेहनत
प्रत्यक्ष होती है। माला फेरो,
कोठी
में बैठ भक्ति करो। यहाँ तो चलते-फिरते तुम याद में रहते हो।
कोई को पता पड़ न सके कि यह राजाई ले रहे हैं। योग से ही सारा
हिसाब-किताब चुक्तू करना है। ज्ञान से थोड़े ही चुक्तू होता है।
हिसाब-किताब चुक्तू होगा याद से। कर्मभोग याद से चुक्तू होगा।
यह है गुप्त। बाबा सब कुछ गुप्त सिखलाते हैं। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के
लिए मुख्य सार :-
1)
मन्सा-वाचा-कर्मणा कभी भी क्रोध नहीं करना है। इन तीनों
खिड़कियों पर बहुत ध्यान रखना है। वाचा अधिक नहीं चलाना है।
एक-दो को दु:ख नहीं देना है।
2)
ज्ञान
और योग में मस्त रह अन्तिम सीन सीनरी देखनी हैं। अपने वा
दूसरों के नाम-रूप को भूल मैं आत्मा हूँ,
इस स्मृति से देहभान को समाप्त करना है।
वरदान:-
अलबेलेपन की नींद को तलाक देने वाले निद्राजीत,
चक्रवर्ती भव! 
साक्षात्कार मूर्त बन भक्तों को साक्षात्कार कराने के लिए अथवा
चक्रवर्ती बनने के लिए निद्राजीत बनो। जब विनाशकाल भूलता है तब
अलबेलेपन की नींद आती है। भक्तों की पुकार सुनो,
दु:खी आत्माओं के दु:ख की पुकार सुनो,
प्यासी आत्माओं के प्रार्थना की आवाज सुनो तो कभी भी अलबेलेपन
की नींद नहीं आयेगी। तो अब सदा जागती ज्योत बन अलबेलेपन की
नींद को तलाक दो और साक्षात्कार मूर्त बनो।
स्लोगन:-
तन-मन-धन,
मन-वाणी-कर्म -किसी भी प्रकार से बाप के कर्तव्य में सहयोगी
बनो तो सहजयोगी बन जायेंगे। 