15-03-15
प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा”
रिवाइज:13-03-98
मधुबन
होली
शब्द के अर्थ स्वरूप में स्थित होना अर्थात बाप समान बनना
आज
बापदादा अपने होलीएस्ट,
हाइएस्ट और रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड बच्चों को चारों तरफ देख रहे
हैं। चाहे साकार में सम्मुख हैं,
चाहे
दूर बैठे दिल से समीप हैं - चारों ओर के बच्चों को देख हर्षित
होते रहते हैं। हर एक बच्चा ऐसा होलीएस्ट बनता है जो सारे कल्प
में और कोई भी ऐसा महान पवित्र आत्मा न बना है,
न बन
सकते हैं। समय प्रति समय धर्म आत्मायें,
महान
आत्मायें,
पवित्र रहे हैं लेकिन उन्हों की पवित्रता और आपकी पवित्रता में
अन्तर है। इस समय आप पवित्र बनते हो,
इसी
पवित्रता की प्राप्ति वा प्रालब्ध भविष्य अनेक जन्म तक
तन-मन-धन,
सम्बन्ध,
सम्पर्क और साथ में आत्मा भी पवित्र है। शरीर भी पवित्र हो और
आत्मा भी पवित्र हो - ऐसी पवित्रता आप आत्मायें प्राप्त करती
हो। मन-वचन-कर्म तीनों ही पवित्र बनने से ऐसी प्रालब्ध प्राप्त
होती है। तो ऐसी होलीएस्ट आत्मायें हो। अपने को ऐसे श्रेष्ठ
होलीएस्ट आत्मायें समझते हो?
अभी
बने हैं वा बन रहे हैं?
बनना
सहज है या थोड़ा-थोड़ा मुश्किल है?
लेकिन कल्प पहले भी बने हैं और अब भी बनना ही है। पक्का या
थोड़ा-थोड़ा चलता है?
नहीं। स्वप्न मात्र भी अपवित्रता समाप्त होनी ही है,
इतना
निश्चय है ना कि आज बन रहे हैं और कल बन ही जायेंगे। तो
होलीएस्ट भी हैं और हाइएस्ट भी हैं। ऊंचे ते ऊंचे बाप के बच्चे
ऊंचे ते ऊंचे हैं। हाइएस्ट बनते हो तब पूजे जाते हो। चाहे आजकल
की हाइएस्ट आत्मायें,
सकामी राजे थे,
अब
तो नहीं हैं। चाहे प्रेजीडेंट हो,
चाहे
प्राइममिनिस्टर हो लेकिन वह पूज्य नहीं बनते हैं। आप पूज्य
बनने वाली आत्माओं के आगे पुजारी बन नमन और पूजन करते हैं। अभी
भी स्व-राज्य अधिकारी बनते हो और भविष्य में भी राजाओं के राजे
बनते हो। तो ऐसा हाइएस्ट पद प्राप्त करते हो। साथ में रिचेस्ट
इन दी वर्ल्ड हो। आपका टाइटल ही है पदमा-पदम-पति। और ऐसा खजाना
है जो अरबपति,
खरबपति,
अरब-खरब से भी ऐसा खजाना प्राप्त नहीं कर सकते। आप श्रेष्ठ
आत्माओं का बाप द्वारा ऐसा भाग्य बना रहे हैं जो अनुभव करते हो
और वर्णन भी करते हो कि हमारे कदम में पदम हैं। कदम में पदम
हैं या सौ हैं,
हजार
हैं?
ऐसा
कोई बड़े से बड़ा मिल्यूनर भी इतनी कमाई नहीं कर सकता। कदम में
कितना टाइम लगेगा?
कदम
उठाओ,
कितना समय लगता है?
सेकण्ड। चलो दो सेकण्ड कह दो। अगर दो सेकण्ड भी कहो तो दो
सेकण्ड में पदम,
तो
सारे दिन में कितने पदम हुए?
हिसाब करो। ऐसा कोई मिल्यूनर है जो एक दिन में इतनी कमाई करे?
ऐसा
कोई होगा?
तो
रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड हो ना! और आपका ऐसा खजाना है जो आग भी
नहीं जला सकती,
पानी
डुबो नहीं सकता,
चोर
लूट नहीं सकता,
राजा
भी खा नहीं सकते। ऐसा खजाना इस पुरूषोत्तम संगमयुग में ही
प्राप्त करते हो। तो अपना ऐसा स्वमान स्मृति में रहता है?
हाँ
या ना?
पीछे
वाले हाथ हिला रहे हैं। पीछे वाले आराम से बैठे हो ना?
रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड हो तो आराम ही आराम है। बड़े से बड़ी
युनिवर्सिटी में भी ऐसे कोचों पर पढ़ाई पढ़ने के लिए नहीं बैठते
हैं,
लेकिन आप बेगर टू प्रिन्स हो। बेगर भी हो और प्रिन्स भी हो।
सर्व त्याग माना बेगर। सर्व प्राप्तियां अर्थात् प्रिन्स। बिना
त्याग के इतना बड़ा भाग्य नहीं मिलता है। त्याग का ही भाग्य
मिला है। तन-मन-धन,
सम्बन्ध सभी त्याग किया अर्थात् परिवर्तन किया। तन मेरा के
बजाए तेरा किया। मन,
धन,
सम्बन्ध एक शब्द परिवर्तन होने से मेरे के बजाए तेरा किया,
है
एक शब्द का परिवर्तन लेकिन इसी त्याग से भाग्य के अधिकारी बन
गये। तो भाग्य के आगे यह त्याग क्या है?
छोटी
बात है या थोड़ी बड़ी भी है?
कभी-कभी बड़ी हो जाती है। तेरा कहना माना बड़ी बात को छोटा करना
और मेरा कहना माना छोटी बात को बड़ी करना। क्या भी हो जाए,
100
हिमालय से भी बड़ी समस्या आ जाए लेकिन तेरा कहना और पहाड़ को रूई
बनाना,
राई
भी नहीं,
रूई।
जो रूई सेकण्ड में उड़ जाए। सिर्फ तेरा कहना नहीं मानना,
सिर्फ मानना भी नहीं चलना। एक शब्द का परिवर्तन सहज ही है ना!
और फायदा ही है,
नुकसान तो है नहीं। तेरा कहने से सारा बोझ बाप को दे दिया।
तेरा तुम ही जानों। आप सिर्फ निमित्त-मात्र हो। इसमें फायदा है
ना?
न्यारे और परमात्मा के प्यारे बन गये। जो परमात्मा के प्यारे
बनते हैं वह विश्व के प्यारे बनते हैं। सिर्फ भविष्य प्राप्ति
नहीं है,
वर्तमान भी है। एक सेकण्ड में अनुभव किया भी है और करके देखो।
कोई भी बात आ जाए तेरा कह दो,
मान
जाओ और तेरा समझकर करो तो देखो बोझ हल्का होता है या नहीं होता
है। अनुभव है ना?
सभी
अनुभवी बैठे हो ना! सिर्फ क्या होता है,
मेरा
मेरा कहने की बहुत आदत है ना,
63
जन्मों की आदत है तो तेरा तेरा कहकर फिर मेरा कह देते हो और
मेरा माना गये,
फिर
वह बात तो एक घण्टे में,
दो
घण्टे में,
एक
दिन में खत्म हो जाती है लेकिन जो तेरे से मेरा किया उसका फल
लम्बा चलता है। बात आधे घण्टे की होगी लेकिन चाहे पश्चाताप के
रूप में,
चाहे
परिवर्तन करने के लक्ष्य से,
वह
बात बार-बार स्मृति में आती रहती है इसलिए बाप सभी बच्चों को
कहते हैं अगर
“मेरा
शब्द”
से
प्यार है,
आदत
है,
संस्कार है,
कहना
ही है तो मेरा बाबा कहो। आदत से मजबूर होते हैं ना। तो जब भी
मेरा-मेरा आवे तो मेरा बाबा कहकर खत्म कर दो। अनेक मेरे को एक
मेरा बाबा में समा दो। रशिया वाले एक डॉल लाते हैं ना,
तो
डॉल में डॉल..... एक डॉल हो जाती है। ऐसे आप भी एक मेरा बाबा
में अनेक मेरा समा दो,
खत्म। यह कर सकते हो?
करते
हो लेकिन कभी-कभी मेरे के विस्तार में चले जाते हो। अभी
कभी-कभी है,
सदा
मेरा,
तेरा
हो जाए उसमें नम्बरवार हैं। नम्बरवन भी हैं,
ए वन
भी हैं लेकिन फिर भी पीछे के नम्बर भी हैं। तो होली मनाने आये
हो ना?
तो
यही मन्त्र याद करो मैं बाप की हो ली,
बन
गये। परमात्म परिवार की हो ली अर्थात् हो गई। तो ऐसी होली मनाई?
अभी
क्या करना है?
अभी
जलाना है या जला दिया?
इसमें हाँ नहीं कहते,
सोच
रहे हैं?
देखो,
भक्ति मार्ग में जो भी उत्सव मनाते हैं,
यादगार हैं लेकिन कुछ-कुछ अर्थ से बने हुए हैं। पहले जलाना है
फिर मनाना है। पहले मनाना फिर जलाना नहीं। पहले भस्म करो,
अशुद्धि को,
कमजोरी को,
बुराई को जलाओ फिर मनाओ। तो आपने तो बहुत पहले जला दिया ना या
अभी भी थोड़ा सा दुपट्टे का कोना रह गया है?
पाण्डवों के बुशर्ट या जो चोला पहनते हैं उसका कुछ कोना रह गया
हो?
साड़ी
का कोना तो नहीं रह गया?
वास्तव में देखो आत्मिक मनाना और उस मनाने से शक्ति,
अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करना,
वह
तभी कर सकते हैं जब पहले जलाया है। मनोरंजन के रूप से मनाना वह
अलग चीज है। वह तो संगमयुग है मौजों का युग,
इसलिए मनोरंजन की रीति से भी मनाते हो और मनाओ,
खूब
मनाओ। लेकिन परमात्म रंग में रंग जाना अर्थात् बाप समान बन
जाना। यह है रंग में रंग जाना। जैसे बाप अशरीरी है,
अव्यक्त है वैसे अशरीरी पन का अनुभव करना वा अव्यक्त फरिश्ते
पन का अनुभव करना - यह है रंग में रंग जाना। कर्म करो लेकिन
अव्यक्त फरिश्ता बनके काम करो। अशरीरीपन की स्थिति का जब चाहो
तब अनुभव करो। ऐसे मन और बुद्धि आपके कन्ट्रोल में हो। आर्डर
करो - अशरीरी बन जाओ। आर्डर किया और हुआ। फरिश्ते बन जायें। मन
को जहाँ जिस स्थिति में स्थित करने चाहो वहाँ सेकण्ड में स्थित
हो जाए। ऐसे नहीं ज्यादा टाइम नहीं लगा,
5
सेकण्ड लग गये,
2
सेकण्ड लग गये। आर्डर में तो नहीं हुआ,
कन्ट्रोल में तो नहीं रहा। कैसी भी परिस्थिति हो,
हलचल
हो लेकिन हलचल में अचल हो जाओ। ऐसे कन्ट्रोलिंग पावर है?
या
सोचते - सोचते.. अशरीरी हो जाऊं,
अशरीरी हो जाऊं,
उसमें ही टाइम चला जायेगा?
कई
बच्चे बहुत भिन्न-भिन्न पोज बदलते रहते,
बाप
देखते रहते। सोचते हैं अशरीरी बनें फिर सोचते हैं अशरीरी माना
आत्मा रूप में स्थित होना,
हाँ
मैं हूँ तो आत्मा,
शरीर
तो हूँ ही नहीं,
आत्मा ही हूँ। मैं आई ही आत्मा थी,
बनना
भी आत्मा है ... अभी इस सोच में अशरीरी हुए या अशरीरी बनने की
युद्ध की?
आपने
मन को आर्डर किया सेकण्ड में अशरीरी हो जाओ,
यह
तो नहीं कहा सोचो - अशरीरी क्या है?
कब
बनेंगे,
कैसे
बनेंगे?
आर्डर तो नहीं माना ना! कन्ट्रोलिंग पावर तो नहीं हुई ना! अभी
समय प्रमाण इसी प्रैक्टिस की आवश्यकता है। अगर कन्ट्रोलिंग
पावर नहीं है तो कई परिस्थितियां हलचल में ले आ सकती हैं इसलिए
एक होली शब्द ही याद करो तो भी ठीक है। होली - बीती सो बीती और
हो ली बाप की बन गई। और क्या बन गई?
होली
अर्थात् पवित्र आत्मा बन गई। एक शब्द होली याद करो तो एक होली
शब्द के तीन अर्थ यूज करो,
वर्णन नहीं करो,
हाँ
होली माना बीती सो बीती। हाँ बीती सो बीती है - ऐसे नहीं सोचते
रहो,
वर्णन करते रहो,
नहीं। अर्थ स्वरूप में स्थित हो जाओ। सोचा और हुआ। ऐसे नहीं
सोचा तो सोच में ही पड़े रहो। नहीं। जो सोचा वह हो गया,
बन
गये,
स्थित हो गये।
(10
वर्षों से पुराने डबल विदेशी भाई-बहिनों की सेरीमनी मनाई गई)
जिन्होंने सेरीमनी मनाई,
तो
ऐसी सेरीमनी मनाई ना?
होली
मनाई ना?
बापदादा भी हर न्यारे और प्यारे दृश्य देख हर्षित होते हैं।
सारा परिवार भी खुश होते हैं। अपना फोटो अच्छी तरह से देखा?
अच्छा लगा ना?
सिर्फ फेस देखा वा मन की स्थिति भी देखी?
इस
आइने में तो शक्ल देखी,
बहुत
अच्छा। अच्छा किया। लेकिन नॉलेज के आइने में अपनी स्थिति भी
देखी?
अच्छा है,
बापदादा भी
10-15
वर्ष नहीं देखते,
लेकिन इतना समय चलते रहे हैं,
अविनाशी रहे हैं,
अमर
रहे हैं,
इसको
देख करके खुश होते हैं। कमाल तो की है। कल्चर बदला,
देश
बदला,
रसम-रिवाज बदले,
संस्कार डबल फारेनर्स के बदले,
भारतवासी हो गये। अभी क्या कहेंगे?
मधुबन निवासी हो या अमेरिका,
लण्डन ... कहाँ के हो?
मधुबन के हो?
(मधुबन
निवासी) अमेरिका,
रशिया याद नहीं है?
मधुबन आपकी परमानेंट एड्रेस है। और अमेरिका,
रशिया,
अफ्रीका,
आस्ट्रेलिया,
जापान... कितने नाम हैं,
यह
आपके सार्विस स्थान हैं। रहने का परमानेंट एड्रेस मधुबन है,
बाकी
सेवा के लिए भिन्न नाम,
भिन्न रूप,
भिन्न भाषा,
भिन्न कल्चर में गये हो। नहीं तो देखो अगर आप वहाँ जन्म नहीं
लेते तो भारत की बहनों को कितनी भाषायें सीखनी पड़ती। कितनी
भाषायें सीखती?
तो
आप सभी सेवा के लिए गये हो। और बापदादा ने देखा है कि डबल
फारेनर्स को सेवास्थान खोलने का शौक भी अच्छा है। फ्लैट मिला,
सेन्टर खोला। अच्छा है। तब तो देखो इतने देशों में सेवाकेन्द्र
खुले हैं। तो बापदादा डबल विदेशियों के इस उमंग-उत्साह के लिए
बहुत-बहुत-बहुत मुबारक देते हैं। थोड़े समय में सेवा अच्छी
फैलाई है। तो फास्ट हुए ना! विदेश को टोटल कितने वर्ष हुए?
लण्डन में स्थापना हुए कितने वर्ष हुए?
(1998
में 27
वर्ष)। (भारत में
62
वर्ष और फारेन के
27
वर्ष) तो बापदादा सेवा के वृद्धि को देख खुश हैं। अभी सिर्फ एक
सेवा रही हुई है। ऐसे बापदादा छोड़ते नहीं हैं,
हो
गई। नहीं। और रही हुई हैं। बापदादा सभी डबल विदेशियों को यही
भविष्य के लिए इशारा देते हैं कि अभी अखबारों की सेवा ज्यादा
करो। फारेन की अखबारें,
भारत
की सेवा करेंगी। अभी थोड़ी-थोड़ी कारणें अकारणें शुरू तो हुई हैं
लेकिन जैसे शुरू आदि में स्थापना हुई तो फारेन की अखबारों में
समाचार छपा। अभी फिर फारेन की अखबारों में ऐसी बातें आवें जो
भारतवासियों की आंख खुले। भारत की अखबारों में तो पड़ना शुरू हो
गया है लेकिन फारेन की अखबारें भी भारत को जगायेंगी और दूसरा
ऐसा वर्ल्ड के रेडियों में आये,
जैसे
आप लोगों ने ब्रह्माकुमारीज का कम्प्युटर में डाला है ना। तो
कोई भी जो चाहे वह देख सकता है। डाला तो बहुत अच्छा है लेकिन
उसकी सूचना किसको पता नहीं है,
भारत
में फायदा ले सकते हैं लेकिन एडवरटाइज नहीं हुई है। इन्वेन्शन
अच्छी की है,
अच्छा है डबल फारेन में प्रकृति के साधनों का लाभ अच्छा लेते
हैं। भारत में यह बी.बी.सी. का सब सुनते हैं,
उसमें आवे,
फिर
देखो कितना आवाज आता है। करो कमाल। पहचान निकालो,
लोकल
टी.वी. और रेडियों में तो आपका आता ही है,
लेकिन ऐसा आवाज फैले जो न सुनने वाले भी सुन लें। अभी हर वर्ष
कुछ नया तो करते हो ना,
प्लैन तो बनाते हो ना?
मीटिंग भी बहुत करते हो। करो,
खूब
करो। हिम्मत बच्चों की मदद बाप की तो है ही। सिर्फ कोई निमित्त
बनें। हर कार्य के लिए कोई न कोई निमित्त बन जाता है और हो भी
जाता है क्योंकि ड्रामा में होना नूंधा हुआ है। सिर्फ समय पर
कोई निमित्त बन जाता है। तो इस कार्य के लिए भी कोई निमित्त
बनना ही है। अच्छा। चारों ओर की होलीएस्ट आत्मायें,
सदा
हाइएस्ट स्थिति में स्थित रहने वाली हाइएस्ट आत्मायें,
सदा
सर्व खजानों से सम्पन्न रिचेस्ट आत्मायें,
सदा
हर कदम में पदम जमा करने वाली,
बाप
समान बनने वाली श्रेष्ठ आत्मायें,
सदा
रहमदिल,
क्षमा के सागर बच्चे मास्टर क्षमा करने वाली आत्मायें,
विश्व के दु:खी आत्माओं को सकाश द्वारा सुख-शान्ति की अंचली
देने वाली आत्मायें,
हर
समय अपने जमा के खाते में भरपूर रहने वाले अति तीव्र
पुरूषार्था आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
वरदान:-
बाप
समान वरदानी बन हर एक के दिल को आराम देने वाले मास्टर दिलाराम
भव ! 
जो
बाप समान वरदानी मूर्त बच्चे हैं वह कभी किसी की कमजोरी को
नहीं देखते,
वह
सबके ऊपर रहमदिल होते हैं। जैसे बाप किसी की कमजोरियां दिल पर
नहीं रखते ऐसे वरदानी बच्चे भी किसी की कमजोरी दिल में धारण
नहीं करते,
वे
हरेक की दिल को आराम देने वाले मास्टर दिलाराम होते हैं इसलिए
साथी हो या प्रजा सभी उनका गुणगान करते हैं। सभी के अन्दर से
यही आशीर्वाद निकलती है कि यह हमारे सदा स्नेही,
सहयोगी हैं।
स्लोगन:-
संगमयुग
पर श्रेष्ठ आत्मा वह है जो सदा बेफिक्र बादशाह है। 