29-01-15      प्रातः मुरली      ओम् शान्ति      “बापदादा”      मधुबन
 


मीठे बच्चे - यह अनादि बना-बनाया ड्रामा है, यह बहुत अच्छा बना हुआ है, इसके पास्ट, प्रेजेंट और फ्यूचर को तुम बच्चे अच्छी तरह जानते हो”   

प्रश्न:-   
किस कशिश के आधार पर सभी आत्मायें तुम्हारे पास खींचती हुई आयेंगी?

उत्तर:-

पवित्रता और योग की कशिश के आधार पर । इसी से ही तुम्हारी वृद्धि होती जायेगी । आगे चलकर बाप को फट से जान जायेंगे । देखेंगे इतने ढेर सब वर्सा ले रहे हैं तो बहुत आयेंगे । जितनी देरी होगी उतनी तुम्हारे में कशिश होती जायेगी |

ओम् शान्ति |

रूहानी बच्चों को यह तो मालूम है कि हम आत्मायें परमधाम से आती हैं-बुद्धि में है ना । जब सभी आत्माएं आकर के पूरी होती हैं, बाकी थोड़े रहते हैं तब बाप आते हैं । अभी तुम बच्चों को कोई को भी समझाना बहुत सहज है । दूरदेश का रहने वाला सबसे पिछाड़ी में आते हैं । बाकी थोड़े रहते हैं । अभी तक भी वृद्धि होती रहती है ना । यह भी जानते हो - बाप को कोई भी जानते नहीं हैं तो फिर रचना के आदि- मध्य- अन्त को कैसे जानेंगे । यह बेहद का ड्रामा है ना । तो ड्रामा के एक्टर्स को मालूम होना चाहिए । जैसे हद के एक्टर्स को भी मालूम होता है - फलाने-फलाने को यह पार्ट मिला हुआ है । जो चीज पास्ट हो जाती है उनका ही फिर छोटा ड्रामा बनाते हैं । षचर का तो बना न सके । पास्ट जो हुआ हैं उसे लेकर और कुछ कहानियाँ भी बनाकर ड्रामा तैयार करते हैं, वही सबको दिखाते हैं । फ्यूचर को तो जानते ही नहीं । अभी तुम समझते हो बाप आया है, स्थापना हो रही है, हम वर्सा पा रहे हैं । जो जो आते रहते हैं, उनको हम रास्ता बताते हैं-देवी-देवता पद पाने । यह देवतायें इतना ऊंच कैसे बने? यह भी किसको पता नहीं है । वास्तव में आदि सनातन तो देवी-देवता धर्म ही है । अपने धर्म को भूल जाते हैं तो कह देते हैं-हमारे लिए तो सब धर्म एक ही है ।

अब तुम बच्चे जानते हो बाबा हमको पढ़ा रहे हैं । बाप के डायरेक्शन से ही चित्र आदि बनाये जाते हैं । बाबा दिव्य दृष्टि से चित्र बनवाते थे । कोई तो फिर अपनी बुद्धि से भी बनाते हैं । बच्चों को यह भी समझाया है, यह जरूर लिखो पार्टधारी एक्टर्स तो हैं परन्तु क्रियेटर, डायेरक्टर आदि को कोई नहीं जानते । बाप अब नये धर्म की स्थापना कर रहे हैं । पुराने से नई दुनिया बननी है । यह भी बुद्धि में रहना चाहिए । पुरानी दुनिया में ही बाप आकर के तुमको ब्राह्मण बनाते हैं । ब्राह्मण ही फिर देवता बनेंगे । युक्ति देखो कैसी अच्छी है । भल यह है अनादि बना-बनाया ड्रामा । परन्तु बना बहुत अच्छा है । बाप कहते हैं तुमको गुह्य-गुह्य बातें नित्य सुनाता रहता हूँ । जब विनाश शुरू होगा तो तुम बच्चों को पास्ट की सारी हिस्ट्री मालूम होगी । फिर सतयुग में जायेंगे तो पास्ट की हिस्ट्री कुछ भी याद नहीं रहेगी । प्रैक्टिकल एक्ट करते रहते हो । पास्ट का किसको सुनायेंगे? यह लक्ष्मी-नारायण पास्ट को बिल्कुल जानते नहीं । तुम्हारी बुद्धि में तो पास्ट, प्रेजेंट, फ्यूचर सब है-कैसे विनाश होगा, कैसे राजाई होगी, कैसे महल बनायेंगे? बनेंगे तो जरूर ना । स्वर्ग की सीन-सीनरियाँ ही अलग हैं । जैसे-जैसे पार्ट बजाते रहेंगे मालूम पड़ता जायेगा । इसको कहा जाता है-खूने नाहेक खेल । नाहेक नुकसान होता रहता है ना । अर्थक्येक होती है, कितना नुकसान होता है । बाम्ब्स फेंकते हैं, यह नाहेक है ना । कोई कुछ करता थोड़ेही है । विशाल बुद्धि जो है वह समझते हैं-विनाश बरोबर हुआ था । जरूर मारामारी हुई थी । ऐसा खेल भी बनाते हैं । यह तो समझ भी सकते हैं । कोई समय किसकी बुद्धि में टच होता है । तुम तो प्रैक्टिकल में हो । तुम उस राजधानी के मालिक भी बनते हो । तुम जानते हो अभी उस नई दुनिया में चलना जरूर है । ब्राह्मण जो बनते हैं, ब्रह्मा द्वारा या ब्रह्माकुमार-कुमारियों द्वारा नॉलेज लेते हैं तो वहाँ आ जाते हैं । रहते तो अपने घर-गृहस्थ में हैं ना । बहुतों को तो जान भी न सको । सेंटर्स पर कितने आते हैं । इतने सब याद थोड़ेही रह सकते हैं । कितने ब्राह्मण हैं, वृद्धि होते-होते अनगिनत हो जायेंगे । एक्यूरेट हिसाब निकाल नहीं सकेंगे । राजा को मालूम थोड़ेही पड़ता है-एक्यूरेट हमारी प्रजा कितनी है । भल आदमशुमारी आदि निकालते हैं फिर भी फर्क पड़ जाता है । अब तुम भी स्टूडेंट, यह भी स्टूडेंट है । सब भाइयों (आत्माओं) को याद करना है-एक बाप को । छोटे बच्चों को भी सिखलाया जाता है-बाबा-बाबा कहो । यह भी तुम जानते हो आगे चलकर बाप को फट से जान जायेंगे । देखेंगे इतने ढेर सब वर्सा ले रहे हैं तो बहुत आयेंगे । जितना देरी होगी उतना तुम्हारे में कशिश होती जायेगी । पवित्र बनने से कशिश होती है, जितना योग में रहेंगे उतना कशिश होगी, औरों को भी खींचेंगे । बाप भी खींचते हैं ना । बहुत वृद्धि को पाते रहेंगे । उसके लिए युक्तियाँ भी रची जा रही है । गीता का भगवान कौन? कृष्ण को याद करना तो बहुत सहज है । वह तो साकार रूप है ना । निराकार बाप कहते हैं मामेकम याद करो-इस बात पर ही सारा मदार है इसलिए बाबा ने कहा था इस बात पर सबसे लिखाते रहो । बड़ी-बड़ी लिस्ट बनायेंगे तो मनुष्यों को पता पड़ेगा ।

तुम ब्राह्मण जब पक्के निश्चयबुद्धि होंगे, झाड़ वृद्धि को पाता रहेगा । माया के तूफान भी पिछाड़ी तक चलेंगे । विजय पा ली फिर न पुरूषार्थ रहेगा, न माया रहेगी । याद में ही बहुत करके हारते हैं । जितना तुम योग में मजबूत रहेंगे, उतना हारेंगे नहीं । यह राजधानी स्थापन हो रही है । बच्चों को निश्चय है हमारी राजाई होगी फिर हम हीरे-जवाहर कहाँ से लायेंगे। खानियाँ सब कहाँ से आयेंगी! यह सब थे तो सही ना । इसमें मूंझने की तो बात ही नहीं । जो होना है सो प्रैक्टिकल में देखेंगे । स्वर्ग बनना तो जरूर है । जो अच्छी रीति पढ़ते हैं, उन्हों को निश्चय रहेगा हम जाकर भविष्य में प्रिन्स बनूँगा । हीरे-जवाहरों के महल होंगे । यह निश्चय भी सर्विसएबुल बच्चों को ही होगा जो कम पद पाने वाले होंगे, उनको तो कभी ऐसे-ऐसे ख्याल आयेंगे भी नहीं कि हम महल आदि कैसे बनायेंगे । जो बहुत सर्विस करेंगे वही महलों में जायेंगे ना | दास-दासियाँ तो तैयार मिलेंगे । सर्विसएबुल बच्चों को ही ऐसे-ऐसे ख्याल आयेंगे । बच्चे भी समझते हैं कौन-कौन अच्छी सर्विस करने वाले हैं । हम तो पढ़े हुए के आगे भरी ढोयेंगे । जैसे यह बाबा है, बाबा को ख्यालात रहती है ना । बूढ़ा और बालक समान हो गया इसलिए इनकी एक्टिविटी भी बचपन मिसल होती है । बाबा की तो एक ही एक्ट है-बच्चों को पढ़ाना, सिखलाना । विजय माला का दाना बनना हैं तो पुरुषार्थ भी बहुत चाहिए । बहुत मीठा बनना है । श्रीमत पर चलना पड़े तब ही ऊँच बनेंगे । यह तो समझ की बात है ना । बाप कहते हैं हम जो सुनाते हैं उस पर जज करो | आगे चल और भी तुमको साक्षात्कार होता रहेगा । नजदीक आते रहेंगे तो याद आती रहेगी । 5 हजार वर्ष हुए हैं अपनी राजधानी से लौटे हैं । 84 जन्मों का चक्र लगाकर आये हैं । जैसे वास्कोडिगामा के लिए कहते हैं-वर्ल्ड का चक्र लगाया । तुमने इस वर्ल्ड में 84 का चक्र लगाया है । वो वास्कोडिगामा एक गया ना । यह भी एक है, जो तुमको 84 जन्मों का राज समझाते हैं । डिनायस्टी चलती है । तो अपने अन्दर देखना है-हमारे में कोई देह- अभिमान तो नहीं है? फंक तो नहीं हो जाते हैं? कहाँ बिगड़ते तो नहीं हैं?

तुम योगबल में होंगे, शिवबाबा को याद करते रहेंगे तो तुमको कोई भी चमाट आदि मार नहीं सकेंगे । योगबल ही ढाल है । कोई कुछ कर भी नहीं सकेंगे । अगर कोई चोट खाते हैं तो जरूर देह- अभिमान है । देही- अभिमानी को चोट कोई मार न सके । भूल अपनी ही होती है । विवेक ऐसा कहता है-देही- अभिमानी को कोई कुछ भी कर नहीं सकेंगे इसलिए कोशिश करनी है देही- अभिमानी बनने की । सबको पैगाम भी देना है । भगवानुवाच, मन्मनाभव । कौन-सा भगवान? यह भी तुम बच्चों को समझाना है । बस इस एक ही बात में तुम्हारी विजय होनी है । सारी दुनिया में मनुष्यों की बुद्धि में कृष्ण भगवानुवाच है । जब तुम समझाते हो तो कहते हैं - बात तो बरोबर है । परन्तु जब तुम्हारे मुआफिक समझे तब कहे बाबा जो सिखलाते हैं वह ठीक है । कृष्ण थोड़ेही कहेंगे - मैं ऐसा हूँ, मेरे को कोई जान नहीं सकते । कृष्ण को तो सब जान लेवें । ऐसे भी नहीं है कि कृष्ण के तन से भगवान कहते हैं । नहीं | कृष्ण तो होता ही है सतयुग में । वहाँ कैसे भगवान आयेंगे? भगवान तो आते ही हैं पुरुषोत्तम संगमयुग पर । तो तुम बच्चे बहुतों से लिखाते जाओ । तुम्हारी ऐसी बड़ी चौपड़ी छपी हुई होनी चाहिए, उसमें सबकी लिखत हो । जब देखेंगे यह तो इतने सबने ऐसे लिखा हैं तो खुद भी लिखेंगे । फिर तुम्हारे पास बहुतों की लिखत हो जायेगी-गीता का भगवान कौन? ऊपर में भी लिखा हुआ हो कि ऊंच ते ऊंच बाप ही है, कृष्ण तो ऊँच ते ऊंच है नहीं । वह कह न सके कि मामेकम याद करो । ब्रह्मा से भी ऊँच ते ऊंच भगवान् है ना । मुख्य बात ही यह है जिसमें सबका देवाला निकल जायेगा ।

बाबा कोई ऐसे नहीं कहते कि यहाँ बैठना है । नहीं, सतगुरू को अपना बनाए फिर अपने घर में जाकर रहो । शुरू में तो तुम्हारी भट्ठी थी । शास्त्रों में भी भट्ठी की बात है परन्तु भट्ठी किसको कहा जाता है, यह कोई नहीं जानते हैं । भट्ठी होती है ईटों की । उनमें कोई पक्की, कोई खजर निकलती हैं । यहाँ भी देखो सोना है नहीं, बाकी भित्तर-ठिक्कर है । पुरानी चीज़ का मान बहुत है । शिवबाबा का, देवताओ का भी मान है ना । सतयुग में तो मान की बात ही नहीं । वहाँ थोड़ेही पुरानी चीजें बैठ ढूंढते हैं । वहाँ पेट भरा हुआ रहता है । ढूंढने की दरकार नहीं रहती । तुमको खोदना करना नहीं पड़ता, द्वापर के बाद खोदना शुरू करेंगे । मकान बनाते हैं, कुछ निकल आता है तो समझते हैं नीचे कुछ है । सतयुग में तुमको कोई परवाह नहीं । वहाँ तो सोना ही सोना होता है । ईटें ही सोने की होती हैं । कल्प पहले जो हुआ है, जो नूंध है वही साक्षात्कार होता है । आत्माओं को बुलाया जाता है, वह भी ड्रामा में नूंध है । इसमें मुंझने की दरकार नहीं । सेकण्ड बाई सेकण्ड पार्ट बजता है, फिर गुम हो जाता है । यह पढ़ाई है । भक्ति मार्ग में तो अनेक चित्र हैं । तुम्हारे यह चित्र सब अर्थ सहित है । अर्थ बिगर कोई चित्र नहीं । जब तक तुम किसको समझाओ नहीं तब तक कोई समझ न सके । समझाने वाला समझदार नॉलेजफुल एक बाप ही है । अभी तुमको मिलती है ईश्वरीय मत । ईश्वरीय घराने के अथवा कुल के तुम हो । ईश्वर आकर घराना ही स्थापन करते हैं । अभी तुमको राजाई कुछ नहीं है । राजधानी थी, अब नहीं है । देवी-देवताओं का धर्म भी जरूर है । सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी राजाई है ना । गीता से ब्राह्मण कुल भी बनता है, सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी कुल भी बनता है । बाकी और कोई हो न सकें । तुम बच्चे सृष्टि के आदि-मध्य- अन्त को जान गये हो । आगे तो समझते थे-बड़ी प्रलय होती है । पीछे दिखाते हैं-सागर में पीपल के पत्ते पर कृष्ण आते हैं । पहला नम्बर तो श्रीकृष्ण ही आते हैं ना । बाकी सागर की बात नहीं है, अभी तुम बच्चों को समझ बड़ी अच्छी आई है । खुशी भी उनको होगी जो रूहानी पढ़ाई अच्छी रीति पढ़ते होंगे । जो अच्छी रीति पढ़ते हैं वही पास विद् ऑनर होते हैं । अगर कोई से दिल लगी हुई होगी तो पढ़ाई के समय भी वह याद आता रहेगा । बुद्धि वहाँ चली जायेगी इसलिए पढ़ाई हमेशा ब्रह्मचर्य में होती है । यहाँ तुम बच्चों को समझाया जाता है एक बाप के सिवाए और कहाँ भी बुद्धि नहीं जानी चाहिए । परन्तु जानते हैं बहुतों को पुरानी दुनिया याद आ जाती है । फिर यहाँ बैठे भी सुनते ही नहीं । भक्ति मार्ग में भी ऐसे होते हैं । सतसंग में बैठे भी बुद्धि कहाँ-कहाँ भागती रहेगी । यह तो बहुत बड़ा जबरदस्त इम्तहान है । कोई तो जैसे बैठे हुए भी सुनते नहीं हैं । कई बच्चों को तो खुशी होती है । सामने खुशी में झूलते रहेंगे । बुद्धि बाप के साथ होगी तो फिर अन्त मति सो गति हो जायेगी । इसके लिए बहुत अच्छा पुरुषार्थ करना है । यहाँ तो तुमको बहुत धन मिलता है । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. विजय माला का दाना बनने के लिए बहुत अच्छा पुरुषार्थ करना है, बहुत मीठा बनना है, श्रीमत पर चलना है ।

2. योग ही सेफ्टी के लिए ढाल है इसलिए योगबल जमा करना है । देही- अभिमानी बनने की पूरी कोशिश करनी है ।

वरदान:-

नाउम्मीदी की चिता पर बैठी हुई आत्माओं को नये जीवन का दान देने वाले त्रिमूर्ति प्राप्तियों से सम्पन्न भव !   

संगमयुग पर बाप द्वारा सभी बच्चों को एवरहेल्दी, वेल्दी और हैप्पी रहने का त्रिमूर्ति वरदान प्राप्त होता है जो बच्चे इन तीनों प्राप्तियों से सदा सम्पन्न रहते हैं उनका खुशनसीब, हर्षितमुख चेहरा देखकर मानव जीवन में जीने का उमंग-उत्साह आ जाता है क्योंकि अभी मनुष्य जिंदा होते भी नाउम्मीदी की चिता पर बैठे हुए हैं । अब ऐसी आत्माओं को मरजीवा बनाओ । नये जीवन का दान दो । सदा स्मृति में रहे कि यह तीनों प्राप्तियाँ हमारा जन्म सिद्ध अधिकार हैं । तीनों ही धारणाओं के लिए डबल अंडरलाइन लगाओ ।

स्लोगन:- 

न्यारे और अधिकारी होकर कर्म में आना-यही बन्धनमुक्त स्थिति है ।   

 

अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए विशेष होमवर्क

मन की एकाग्रता ही एकरस स्थिति का अनुभव करायेगी । एकाग्रता की शक्ति हारा अव्यक्त फरिश्ता स्थिति का सहज अनुभव कर सकेंगे । एकाग्रता अर्थात् मन को जहाँ चाहो, जैसे चाहो, जितना समय चाहो उतना समय एकाग्र कर लो । मन वश में हो ।

 

ओम् शान्ति |