03-02-15
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा”
मधुबन
“मीठे
बच्चे - तुम्हें अपार खुशी होनी चाहिए कि हम अभी पुराना कपड़ा
छोड़ घर जायेंगे फिर नया कपड़ा नई दुनिया में लेंगे” 
प्रश्न:-
ड्रामा का कौन-सा राज अति सूक्ष्म समझने का है?
उत्तर:-
यह
ड्रामा जूँ मिसल चलता रहता है,
टिक-टिक होती रहती है । जिसकी जो एक्ट चली वह फिर हूबहू 5 हजार
वर्ष के बाद रिपीट होगी,
यह
राज बहुत सूक्ष्म समझने का है । जो बच्चे इस राज को यथार्थ
नहीं समझते तो कह देते ड्रामा में होगा तो पुरूषार्थ कर लेंगे,
वह
ऊंच पद नहीं पा सकते ।
ओम्
शान्ति |
बच्चों को बाप की पहचान मिली फिर बाप से वर्सा लेना है और पावन
बनना है । कहते भी हैं-हे पतित- पावन आकर हमको पावन बनाओ
क्योंकि समझते हैं हम पतित बुद्धि हैं । बुद्धि भी कहती है यह
पतित आइरन एजड दुनिया है । नई दुनिया को सतोप्रधान,
पुरानी दुनिया को तमोप्रधान कहा जाता है । तुम बच्चों को अभी
बाप मिला है,
भक्तों को भगवान् मिला है,
कहते
भी हैं भक्ति के बाद भगवान् आकर भक्ति का फल देते हैं क्योंकि
मेहनत करते हैं तो फल भी मांगते हैं । भक्त क्या मेहनत करते
हैं सो तो तुम जानते हो । तुम आधाकल्प भक्ति मार्ग में धक्के
खाकर थक गये हो । भक्ति में बहुत मेहनत की है । यह भी ड्रामा
में नूंध है । मेहनत की जाती है फायदे के लिए । समझते हैं
भगवान् आकर भक्ति का फल दे,
तो
फल देने वाला फिर भी भगवान् ही रहा । भक्त भगवान को याद करते
हैं क्योंकि भक्ति में दु:ख हैं,
तो
कहते हैं आकर हमारे दु:ख हरो,
पावन
बनाओ ।
कीई
भी नहीं जानते हैं कि अभी रावण राज्य है । रावण ने ही पतित
बनाया है । कहते भी हैं राम राज्य चाहिए परन्तु वह कब,
कैसे
होना है-कोई को भी यह पता नहीं हैं । आत्मा अन्दर समझती है कि
अब रावण राज्य है । यह है ही भक्ति मार्ग । भक्त बहुत
नाच-तमाशे करते हैं । खुशी भी होती है,
फिर
रोते भी हैं । भगवान् के प्रेम में आंसू आ जाते हैं परन्तु
भगवान् को जानते नहीं । जिसके प्रेम में ऑसू आते हैं,
उनको
जानना चाहिए ना । चित्रों से तो कुछ मिल नहीं सकता । हाँ,
बहुत
भक्ति करते हैं तो साक्षात्कार होता है । बस वही उनके लिए खुशी
की बात है । भगवान् खुद ही आकर अपना परिचय देते हैं कि मैं कौन
हूँ । मैं जो हूँ,
जैसा
हूँ,
दुनिया में कोई नहीं जानते । तुम्हारे में जो बाबा कहते हैं
उनमें भी कोई पक्के हैं,
कोई
कच्चे हैं । देह- अभिमान टूटने में ही मेहनत लगती है । देही-
अभिमानी बनना पड़े । बाप कहते हैं तुम आत्मा हो,
तुम
84 जन्म भोग तमोप्रधान बनी हो । अभी आत्मा को तीसरा नेत्र मिला
है । आत्मा समझ रही है । तुम बच्चों को सारे सृष्टि चक्र का
नॉलेज बाप देते हैं । बाप नॉलेजफुल है तो बच्चों को भी नॉलेज
देते हैं । कोई पूछे सिर्फ तुम ही 84 जन्म लेते हो?
बोलो-हाँ,
हमारे में कोई 84,
कोई 82 जन्म लेते हैं । बहुत में बहुत 84 जन्म
ही लेते हैं । 84 जन्म उनके हैं जो शुरू में आते हैं । जो
अच्छी रीति पढ़कर ऊंच पद पाते हैं,
वह
जल्दी आयेंगे । माला में नजदीक पिरोये जायेंगे । जैसे नया घर
बनता रहता है तो दिल में आता जल्दी बन जाये तो हम जाकर बैठें ।
तुम बच्चों को भी खुशी होनी चाहिए- अभी हमको यह पुराने कपड़े
छोड़ नये लेने हैं । नाटक में एक्टर्स घण्टा आधा पहले से ही घड़ी
को देखते रहते हैं,
टाइम
पूरा हो तो घर जाये । वह टाइम आ जाता है । तुम बच्चों के लिए
बेहद की घड़ी है । तुम जानते हो जब कर्मातीत अवस्था को पायेंगे
तो फिर यहाँ रहेंगे नहीं । कर्मातीत बनने लिए भी याद में रहना
पड़े,
बड़ी
मेहनत है । नई दुनिया में तुम जाते हो फिर एक-एक जन्म में कला
कम होती जाती है । नये मकान में 6 मास बैठो तो कुछ न कुछ दाग
आदि हो जाते हैं ना । थोड़ा फर्क पड़ जाता है । तो वहाँ नई
दुनिया में भी कोई तो पहले आयेंगे,
कोई
थोड़ा देरी से आयेंगे । पहले जो आयेंगे उनको कहेंगे सतोप्रधान
फिर आहिस्ते- आहिस्ते कला कम होती जाती है । यह ड्रामा का चक्र
जूँ मिसल चलता रहता है । टिक-टिक होती रहती है । तुम जानते हो
सारी दुनिया में जिसकी जो भी एक्ट चलती है,
यह
चक्र फिरता रहता है । यह बड़ी सूक्ष्म बातें हैं समझने की । बाप
अनुभव से सुनाते हैं ।
तुम
जानते हो यह पढ़ाई फिर 5 हजार वर्ष बाद रिपीट होगी । यह
बना-बनाया खेल है । इस चक्र का किसको पता नहीं है । इसका
क्रियेटर,
डायरेक्टर,
मुख्य एक्टर कौन हैं-कुछ भी नहीं जानते । अभी तुम बच्चों को
पता है - हम 84 जन्म भोग अब वापिस जाते हैं । हम आत्मा हैं ।
देही- अभिमानी बने तब खुशी का पारा चढ़े । वह है हद का नाटक,
यह
है बेहद का । बाबा हम आत्माओं को पढ़ा रहे हैं,
यह
नहीं बतायेंगे कि फलाने समय यह होगा । बाबा से कोई भी बात
पूछते हैं तो कहते हैं ड्रामा में जो कुछ बताने का है वह बता
देते हैं,
ड्रामा अनुसार जो उत्तर मिलना था सो मिल गया,
बस
उस पर चल पड़ना है । ड्रामा बिगर बाप कुछ भी नहीं कर सकते हैं ।
कई बच्चे कहते हैं ड्रामा में होगा तो पुरूषार्थ कर लेंगे,
वह
कभी ऊंच पद पा नहीं सकते । बाप कहते हैं पुरूषार्थ तुमको करना
है । ड्रामा तुमको पुरूषार्थ कराता है कल्प पहले मुआफिक । कोई
ड्रामा पर ठहर जाते हैं कि जो ड्रामा में होगा,
तो
समझा जाता है इनकी तकदीर में नहीं हैं । अब तुमको स्मृति आई
हैं-हम आत्मा हैं,
हम
यह पार्ट बजाने आये हैं । आत्मा भी अविनाशी है,
पार्ट भी अविनाशी है । 84 जन्मों का पार्ट आत्मा में नूंधा हुआ
है फिर वही पार्ट बजायेंगे । इसको कहा जाता है कुदरत । कुदरत
का और क्या विस्तार करेंगे । अब मुख्य बात है-पावन जरूर बनना
है । यही फिकरात है । कर्म करते हुए बाप की याद में रहना है ।
तुम एक माशूक के आशिक हो ना । एक माशूक को सब आशिक याद करते
हैं । वह माशूक कहते हैं अभी मुझे याद करो । मैं तुमको पावन
बनाने आया हूँ । तुम मुझे ही पतित-पावन कहते हो फिर मुझे भूल
कर गंगा को क्यों पतित-पावनी कहते हो?
अभी
तुमने समझा है तो वह सब छोड़ दिया है । तुम समझते हो बाप ही
पतित-पावन है । अब पतित-पावन कृष्ण को समझ कभी याद नहीं करेंगे
। परन्तु भगवान् कैसे आते हैं-यह कोई नहीं जानते । कृष्ण की
आत्मा जो सतयुग में थी वह अनेक रूप धारण करते-करते अभी
तमोप्रधान बनी है फिर सतोप्रधान बनती है । शास्त्रों में यह
भूल कर दी है । यह भी भूल जब हो तब तो हम आकर अभुल बनायें ना ।
यह भूले भी ड्रामा में हैं,
फिर
भी होगी । अब तुमको समझाया है,
शिव
भगवानुवाच । भगवान् कहते भी शिव को हैं । भगवान् तो एक ही होता
है । सब भक्तों को फल देने वाला एक भगवान् । उनको कोई भी जान
नहीं सकते । आत्मा कहती है ओ गॉड फादर । वो लौकिक फादर तो यहाँ
हैं फिर भी उस बाप को याद करते हैं,
तो
आत्मा के दो फादर हो जाते हैं । भक्ति मार्ग में उस फादर को
याद करते रहते हैं । आत्मा तो है ही । इतनी सब आत्माओं को
अपना- अपना पार्ट मिला हुआ है । एक शरीर छोड़ फिर दूसरा ले
पार्ट बजाना होता है । यह सब बातें बाप ही समझाते हैं । कहते
भी हैं हम यहाँ पार्ट बजाने आये हैं । यह एक माण्डवा है ।
उनमें यह चांद-सितारे आदि सब बत्तियां हैं । इन सूर्य,
चांद,
सितारों को मनुष्य देवता कह देते हैं क्योंकि यह बहुत अच्छा
काम करते हैं,
रिमझिम करते हैं,
किसको तकलीफ नहीं देते हैं,
सबको
सुख देते हैं । बहुत काम करते हैं इसलिए इनको देवता कह देते ।
अच्छा काम करने वाले को कहते हैं ना-यह तो जैसे देवता है । अब
वास्तव में देवतायें तो सतयुग में थे । सब सुख देने वाले थे ।
सबकी प्रीत थी इसलिए देवताओं से उनकी भेंट की हैं । देवताओं के
गुण भी गाये जाते हैं । उन्हों के आगे जाकर गाते हैं-हम
निर्गुण हारे में कोई गुण नाही,
आप
ही तरस परोई .......... आपको तो तरस पड़ता होगा । बाप कहते हैं
तरस पड़ा है तब तो फिर से आया हूँ,
तुमको गुणवान बनाने । तुम पूज्य थे,
अब
पुजारी बने हो फिर पूज्य बनो । हम सो का अर्थ भी तुमको समझाया
है । मनुष्य तो कह देते- आत्मा सो परमात्मा,
परमात्मा सो आत्मा । बाप कहते हैं यह रांग है । तुम आत्मा
निराकार थी फिर सो देवता,
क्षत्रिय,
वैश्य,
शूद्र बनी । अभी सो ब्राह्मण वर्ण में आई हो । आत्मा पहले
सतोप्रधान,
सतो,
रजो,
तमो
में आती है । अभी तुम बच्चे समझते हो यह नॉलेज बाबा कल्प-कल्प
संगमयुग पर हमको आकर देते हैं । बरोबर भारत स्वर्ग था,
वहाँ
कितने थोड़े मनुष्य होंगे । अभी कलियुग है । सब धर्म आ गये हैं
। सतयुग में थोड़ेही कोई धर्म था । वहाँ होता ही है एक धर्म ।
बाकी सब आत्मायें चली जाती है । तुम जानते हो अभी इस पुरानी
दुनिया का विनाश सामने खड़ा है । बाप राजयोग सिखला रहे हैं ।
कोई भी आये,
बोलो
यह बेहद की घड़ी है । बाप ने दिव्य दृष्टि दे यह घड़ी बनवाई है ।
जैसे वह घड़ी तुम घड़ी-घड़ी देखते हो,
अब
यह बेहद की घड़ी याद पड़ती है । बाप ब्रह्मा द्वारा एक धर्म की
स्थापना,
शंकर
द्वारा आसुरी दुनिया का विनाश कराते हैं । बुद्धि भी कहती
है-चक्र फिरना जरूर है । कलियुग के बाद सतयुग आयेगा । अभी
मनुष्य भी बहुत हैं,
उपद्रव भी बहुत होते रहते हैं । मूसल भी वही हैं । शास्त्रों
में तो कितनी कथायें बना दी हैं । बाप आकर वेदो-शास्त्रों का
सार समझाते हैं । मुख्य धर्म भी 4 हैं । यह ब्राह्मण धर्म है
पांचवा । सबसे ऊँच ते ऊंच यह है छोटा धर्म । यज्ञ की सम्भाल
करने वाले ब्राह्मण हैं । यह ज्ञान यज्ञ है । उपद्रव को मिटाने
के लिए यज्ञ रचते हैं,
वह
समझते हैं - यह लड़ाई आदि न लगे । अरे लड़ाई नहीं लगेगी तो सतयुग
कैसे आयेगा,
इतने
सब मनुष्य कहाँ जायेंगे! हम सब आत्माओं को ले जाते हैं तो जरूर
शरीर यहाँ छोड़ना पड़े । तुम पुकारते भी हो-हे बाबा,
आकर
हमको पतित से पावन बनाओ ।
बाप
कहते हैं हमको जरूर पुरानी दुनिया का विनाश कराना होगा । पावन
दुनिया है ही सतयुग,
सबको
मुक्तिधाम ले जाता हूँ । सब काल को तो बुलाते हैं ना । यह नहीं
समझते कि हम तो कालों के काल को बुलाते हैं । बाप कहते हैं यह
भी ड्रामा में नूंध है । आत्माओं को छी-छी दुनिया से निकाल
शान्तिधाम ले जाता हूँ । यह तो अच्छी बात हैं ना । तुमको
मुक्ति में जाकर फिर जीवनमुक्ति में आना है फिर जीवनबंध में ।
इतने सब सतयुग में तो नहीं आयेंगे फिर नम्बरवार आयेंगे इसलिए
अब शान्तिधाम और सुखधाम को याद करो । पिछाड़ी में जो आते हैं,
उन्ही का तो पार्ट ही थोड़ा है । पहले जरूर वह सुख पायेंगे ।
तुम्हारा पार्ट सबसे ऊँच है । तुम बहुत सुख पाते हो । धर्म
स्थापक तो सिर्फ धर्म की स्थापना करते,
किसी
को लिबरेट नहीं करते । बाप तो भारत में आकर सबको ज्ञान देते
हैं । वही सबका पतित-पावन है,
सबको
लिबरेट करते हैं । और धर्म स्थापक कोई सद्गति करने नहीं आते,
वह
आते हैं धर्म स्थापन करने । वह कोई शान्तिधाम-सुखधाम में नहीं
ले जाते,
सबको
शान्तिधाम,
सुखधाम में बाप ही ले जाते हैं । जो दु:ख से छुड़ाए सुख देते
हैं,
उनके
ही तीर्थ होते हैं । मनुष्य समझते नहीं,
वास्तव में सच्चा तीर्थ तो एक बाबा का ही है । महिमा भी एक की
ही है । सब उनको पुकारते हैं- हे लिबरेटर आओ । भारत ही सच्चा
तीर्थ है,
जहाँ
बाप आकर सबको मुक्ति-जीवनमुक्ति देते हैं । तो तुम फिर भक्ति
मार्ग में उनके बड़े-बड़े मन्दिर बनाते हो । हीरे-जवाहरों के
मन्दिर बनाते हो । सोमनाथ का मन्दिर कितना खूबसूरत बनाते हैं
और अभी देखो बाबा कहाँ बैठे हैं,
पतित
शरीर में,
पतित
दुनिया में । तुम ही पहचानते हो । तुम बाबा के मददगार बनते हो
। औरों को रास्ता बताने में जो मदद करेगा उनको ऊँच पद मिलेगा ।
यह तो कायदा है । बाप कहते हैं मेहनत करो । बहुतों को रास्ता
बताओ कि बाप और वर्से को याद करो । 84 का चक्र तो सामने हैं,
यह
है जैसे अन्धों के आगे आइना । यह ड्रामा हूबहू रिपीट होता है
फिर भी मुझे कोई नहीं जानेगा । ऐसे नहीं कि मेरा मन्दिर लूटते
हैं तो मैं कुछ करूँ । ड्रामा में लूटने का ही है,
फिर
भी लूट ले जायेंगे । मुझे बुलाते ही हैं पतित से पावन बनाओ तो
मैं आकर तुम बच्चों को पढ़ाता हूँ । ड्रामा में विनाश की भी
नूँध है,
सो
फिर भी होगा । मैं कोई फूंक नहीं देता हूँ कि विनाश हो जाए ।
यह मूसल आदि बने हैं-यह भी ड्रामा में नूध है । मैं भी ड्रामा
के बंधन में बांधा हुआ हूँ । मेरा पार्ट सबसे बड़ा है-सृष्टि को
बदलना,
पतित
से पावन बनाना । अब समर्थ कौन?
मैं
या ड्रामा?
रावण
को भी ड्रामा अनुसार आना ही है । जो नॉलेज मेरे में हैं,
वह
आकर देता हूँ । तुम शिवबाबा की सेना हो । रावण पर जीत पाते हो
। बाप कहते हैं सेंटर्स खोलते रहो । मैं आता हूँ पढ़ाने । मैं
कुछ लेता नहीं हूँ । पैसे जो कुछ हैं वह इसमें सफल करो । ऐसे
भी नहीं सब खलास कर भूख मरो । भूख कोई मर नहीं सकता । बाबा ने
सब कुछ दिया फिर भूख मरते हैं क्या?
तुम
भूख मरते हो क्या?
शिवबाबा का भण्डारा है । आजकल तो दुनिया में देखो कितने मनुष्य
भूख मरते रहते हैं । अभी तुम बच्चों को तो बाप से पूरा वर्सा
लेने का पुरूषार्थ करना है । यह है रूहानी नेचर क्योर ।
बिल्कुल सिम्पुल बात सिर्फ मुख से कहते हैं मन्मनाभव । आत्मा
को क्योर करते हैं इसलिए बाप को अविनाशी सर्जन भी कहते हैं ।
कैसा अच्छा ऑपरेशन सिखलाते हैं । मुझे याद करो तो तुम्हारे सब
दुःख दूर हो जायेंगे । चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे । इन कांटों
के जंगल में रहते हुए ऐसे समझो कि हम फूलों के बगीचे में जा
रहे हैं । घर जा रहे हैं । एक-दो को याद दिलाते रहो । अल्लाह
को याद करो तो बे बादशाही मिल जायेगी । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
ऊंच पद
पाने के लिए बाप का पूरा-पूरा मददगार बनना । अन्धों को रास्ता
दिखाना । बेहद की घड़ी को सदा याद रखना है ।
2.
यज्ञ की
सम्भाल करने के लिए सच्चा-सच्चा ब्राह्मण बनना है । पैसे आदि
जो हैं उन्हें सफल कर बाप से पूरा-पूरा वर्सा लेना है ।
वरदान:-
बाप
की छत्रछाया के अनुभव द्वारा विघ्न-विनाशक की डिग्री लेने वाले
अनुभवी मूर्त
भव ! 
जहाँ
बाप साथ है वहाँ कोई कुछ भी कर नहीं सकता । यह साथ का अनुभव ही
छत्रछाया बन जाता है । बापदादा बच्चों की सदा रक्षा करते ही
हैं । पेपर आते हैं आप लोगों को अनुभवी बनाने के लिए इसलिए
सदैव समझना चाहिए कि यह पेपर क्लास आगे बढ़ाने के लिए आ रहे हैं
। इससे ही सदा के लिए विघ्न विनाशक की डिग्री और अनुभवी मूर्त
बनने का वरदान मिल जायेगा । यदि अभी कोई थोड़ा शोर करते वा
विघ्न डालते भी हैं तो धीरे- धीरे ठण्डे हो जायेंगे ।
स्लोगन:-
जो समय
पर सहयोगी बनते हैं उन्हें एक का पदमगुणा फल मिल जाता है ।
ओम्
शान्ति |