04-02-15
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा”
मधुबन
“मीठे
बच्चे - सत का संग ज्ञान मार्ग में ही होता है,
अभी तुम सत बाप के संग में बैठे हो,
बाप की याद में रहना माना सतसंग करना” 
प्रश्न:-
सतसंग की आवश्यकता तुम बच्चों को अभी ही है - क्यों?
उत्तर:-
क्योंकि तमोप्रधान आत्मा एक सत बाप,
सत
शिक्षक और सतगुरू के संग से ही सतोप्रधान अर्थात् काले से गोरी
बन सकती है । बिना सतसंग के निर्बल आत्मा बलवान नहीं बन सकती ।
बाप के संग से आत्मा में पवित्रता का बल आ जाता है,
21
जन्म के लिए उसका बेड़ा पार हो जाता है ।
ओम्
शान्ति |
बच्चे सतसंग में बैठे हो,
इस
सत के संग में कल्प- कल्प संगम पर ही बच्चे बैठते हैं । दुनिया
तो यह नहीं जानती कि सत का संग किसको कहा जाता है । सतसंग नाम
यह अविनाशी चला आता है । भक्ति मार्ग में भी कहते हैं हम फलाने
सतसंग में जाते हैं । अब वास्तव में भक्ति मार्ग में कोई सतसंग
में जाते नहीं । सतसंग होता ही ज्ञान मार्ग में है । अब तुम सत
के संग में बैठे हो । आत्मायें सत बाप के संग में बैठी हैं ।
और कोई जगह आत्मायें परमपिता परमात्मा के संग में नहीं बैठती ।
बाप को जानते नहीं । भल कहते हैं हम सतसंग में जाते हैं परन्तु
वह देह- अभिमान में आ जाते हैं । तुम देह- अभिमान में नहीं
आयेंगे । तुम समझते हो हम आत्मा हैं,
सत
बाबा के संग बैठे हैं । और कोई भी मनुष्य सत के संग में बैठ
नहीं सकता । सत का संग-यह नाम भी अभी ही है । सत का संग-इसका
यथार्थ रीति अर्थ बाप बैठ समझाते हैं । तुम आत्मायें अब
परमात्मा बाप जो सत्य है,
उनके
साथ बैठी हो । वह सत बाप,
सत
टीचर,
सतगुरू है । तो गोया तुम सतसंग में बैठे हो । फिर भल यहाँ वा
घर में बैठे हो परन्तु अपने को आत्मा समझ याद बाप को करते हो ।
हम आत्मा अब सत बाप को याद कर रहे हैं अर्थात् सत के संग में
हैं । बाप मधुबन में बैठे हैं । बाप को याद करने की युक्तियाँ
भी अनेक प्रकार की मिलती हैं । याद से ही विकर्म विनाश होंगे ।
यह भी बच्चे जानते हैं - हम 16 कला सम्पूर्ण बनते हैं फिर
उतरते-उतरते कला कम होती जाती है । भक्ति भी पहले अव्यभिचारी
है फिर गिरते-गिरते व्यभिचारी भक्ति होने से तमोप्रधान बन जाते
हैं फिर उनको सत का संग जरूर चाहिए । नहीं तो पवित्र कैसे बनें?
तो
अब तुम आत्माओं को सत बाप का संग मिला है । आत्मा जानती है
हमको बाबा को याद करना है,
उनका
ही संग है । याद को भी संग कहेंगे । यह है सत का संग । यह देह
होते हुए भी तुम आत्मा मुझे याद करो,
यह
है सत का संग । जैसे कहते हैं ना इनको बड़े आदमी का संग लगा हुआ
है,
इसलिए देह- अभिमानी बन पड़ा है । अभी तुम्हारा संग हुआ है सत
बाप के साथ,
जिससे तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जाते हो । बाप कहते हैं
मैं एक ही बार आता हूँ । अभी आत्मा का परमात्मा से संग होने से
तुम 21 जन्म के लिए पार हो जाते हो । फिर तुमको संग लगता है
देह का । यह भी ड्रामा बना हुआ है । बाप कहते हैं मेरे साथ तुम
बच्चों का संग होने से तुम सतोप्रधान बन जाते हो,
जिसको गोल्डन एजड कहा जाता है ।
साधू-सन्त आदि तो समझते हैं आत्मा निर्लेप है,
सभी
परमात्मा ही परमात्मा हैं । तो इसका मतलब परमात्मा में खाद पड़ी
है । परमात्मा में तो खाद पड़ नहीं सकती । बाप कहते हैं क्या
मुझ परमात्मा में खाद पड़ती है?
नहीं
। मैं तो सदैव परमधाम में रहता हूँ क्योंकि मुझे तो जन्म-मरण
में आना नहीं है । यह तुम बच्चे जानते हो,
तुम्हारे में भी कोई का संग जास्ती है,
कोई
का कम है । कोई तो अच्छी रीति पुरूषार्थ कर योग में रहते हैं,
जितना समय आत्मा बाप का संग करेगी उतना फायदा है । विकर्म
विनाश होंगे । बाप कहते हैं-हे आत्मायें,
मुझ
बाप को याद करो,
मेरा
संग करो । मुझे यह शरीर का आधार तो लेना पड़ता है । नहीं तो
परमात्मा बोले कैसे?
आत्मा सुने कैसे?
अभी
तुम बच्चों का संग है सत के साथ । सत बाप को निरन्तर याद करना
है । आत्मा को सत का संग करना है । आत्मा भी वन्डरफुल है,
परमात्मा भी वन्डरफुल है,
दुनिया भी वन्डरफुल है । यह दुनिया कैसे चक्र लगाती है,
वंडर
है । तुम सारे ड्रामा में आलराउन्ड पार्ट बजाते हो । तुम्हारी
आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट नूँधा हुआ है-वंडर है । सतयुगी
आत्मायें और आजकल की आत्मायें । उसमें भी तुम्हारी आत्मा सबसे
जास्ती आलराउन्डर है । नाटक में कोई का शुरू से पार्ट होता है,
कोई
का बीच से,
कोई
का पिछाड़ी में पार्ट होता है । वह है सब हद के ड्रामा,
वह
भी अभी निकले हैं । अब साइंस का इतना जोर है । सतयुग में कितना
उनका बल रहेगा । नई दुनिया कितना जल्दी बनती होगी । वहाँ
पवित्रता का बल है मुख्य । अभी हैं निर्बल । वहाँ हैं बलवान ।
यह लक्ष्मी-नारायण बलवान हैं ना । अभी रावण ने बल छीन लिया है
फिर तुम उस रावण पर जीत पाकर कितना बलवान बनते हो । जितना सत
का संग करेंगे अर्थात् आत्मा जितना सत बाप को याद करती है उतना
बलवान बनती है । पढ़ाई में भी बल तो मिलता है ना । तुमको भी बल
मिलता है,
सारे
विश्व पर तुम हुक्म चलाते हो । आत्मा का सत के साथ योग संगम पर
ही होता है । बाप कहते हैं आत्मा को मेरा संग मिलने से आत्मा
बहुत बलवान बन जाती है । बाप वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी है ना,
उन
द्वारा बल मिलता है । इसमें सब वेदों-शास्त्रों के आदि-मध्य-
अन्त का ज्ञान आ जाता है ।
जैसे
बाप ऑलमाइटी है,
तुम
भी ऑलमाइटी बनते हो । विश्व पर तुम राज्य करते हो । तुम से कोई
छीन नहीं सकता । तुमको मेरे द्वारा कितना बल मिलता है,
इनको
भी बल मिलता है,
जितना बाप को याद करेंगे उतना बल मिलेगा । बाप और कोई तकलीफ
नहीं देते हैं । सिर्फ याद करना है,
बस ।
84 जन्मों का चक्र अब पूरा हुआ है,
अब
वापिस जाना है । यह समझना कोई बड़ी बात नहीं है । जास्ती
रेजगारी में जाने की तो दरकार नहीं है । बीज को जानने से समझ
जाते हैं,
इनसे
यह सारा झाड़ ऐसे निकलता है । नटशेल में बुद्धि में आ जाता है ।
यह बड़ी विचित्र बातें हैं । भक्ति मार्ग में मनुष्य कितने
धक्के खाते हैं । मेहनत करते हैं,
मिलता कुछ भी नहीं । फिर भी बाप आकर तुमको विश्व का मालिक
बनाते हैं । हम योगबल से विश्व का मालिक बनते हैं,
यही
पुरूषार्थ करना है । भारत का योग मशहूर है । योग से तुम्हारी
आयु कितनी बड़ी हो जाती है । सत के संग से कितना फायदा होता है,
आयु
भी बड़ी और काया भी निरोगी बन जाती है । यह सब बातें तुम बच्चों
की बुद्धि में ही बिठाई जाती है । और कोई का भी सत के साथ संग
नहीं है सिवाए तुम ब्राह्मणों के । तुम प्रजापिता ब्रह्मा की
सन्तान हो,
दादे
पोत्रे हो । तो इतनी खुशी होनी चाहिए ना कि हम दाद पोत्रे हैं
। वर्सा भी दादे से मिलता है,
यही
याद की यात्रा है । बुद्धि में यही सिमरण रहना चाहिए । उन
सतसंगों में तो एक जगह जाकर बैठते हैं,
यहाँ
वह बात नहीं । ऐसे नहीं कि एक जगह बैठने से ही सत का संग होगा
। नहीं,
उठते-बैठते,
चलते-फिरते हम सत के संग में हैं । अगर उनको याद करते हैं तो ।
याद नहीं करते हैं तो देह- अभिमान में हैं,
देह
तो असत चीज है ना । देह को सत नहीं कहेंगे । शरीर तो जड़ है,
5
तत्वों का बना हुआ,
उनमें आत्मा नहीं होती तो चुरपुर न हो । मनुष्य के शरीर की तो
वैल्यु है नहीं,
और
सबके शरीर की वैल्यु है । सौभाग्य तो आत्मा को मिलना है,
मैं
फलाना हूँ,
आत्मा कहती है ना । बाप कहते हैं आत्मा कैसी हो गई है,
अण्डे,
कच्छ,
मच्छ
सब खा जाती है । हर एक भस्मासुर है,
अपने
को आपेही भस्म करते हैं । कैसे?
काम
चिता पर बैठ हर एक अपने को भस्म कर रहे हैं तो भस्मासुर ठहरे
ना । अभी तुम ज्ञान चिता पर बैठ देवता बनते हो । सारी दुनिया
काम चिता पर बैठ भस्म हो गई है,
तमोप्रधान काली हो गई है । बाप आते हैं बच्चों को काले से गोरा
बनाने । तो बाप बच्चों को समझाते हैं देह- अभिमान छोड़ अपने को
आत्मा समझो । बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं फिर पढ़ाई तो घर में
रहते भी बुद्धि में रहती है ना । यह भी तुम्हारी बुद्धि में
रहनी चाहिए । यह है तुम्हारी स्टूडेंट लाइफ । एम ऑबजेक्ट सामने
खड़ी है । उठते,
बैठते,
चलते
बुद्धि में यह नॉलेज रहनी चाहिए ।
यहाँ
बच्चे आते हैं रिफ्रेश होते हैं,
युक्तियाँ समझाई जाती है कि ऐसे-ऐसे समझाओ । दुनिया में ढेर के
ढेर सतसंग होते हैं । कितने मनुष्य आकर इकट्ठे होते हैं ।
वास्तव में वह सत का संग तो है नहीं । सत का संग तो अभी तुम
बच्चों को ही मिलता है । बाप ही आकर सतयुग स्थापन करते हैं ।
तुम मालिक बन जाते हो । देह- अभिमान अथवा झूठे अभिमान से तुम
गिर पड़ते हो और सत के संग से तुम चढ़ जाते हो । आधाकल्प तुम
प्रालब्ध भोगते हो । ऐसे नहीं कि वहाँ भी तुमको सत का संग है ।
नहीं,
सत
का संग और झूठ का संग तब कहते हैं जब दोनों हाजिर हैं । सत बाप
जब आते हैं,
वही
आकर सब बाते समझाते हैं । जब तक वह सत बाप नहीं आये तब तक कोई
जानते भी नहीं हैं । अब बाप तुम बच्चों को कहते हैं-हे
आत्मायें,
मेरे
साथ संग रखो । देह का जो संग मिला है,
उनसे
उपराम हो जाओ । देह का संग भल सतयुग में भी होगा परन्तु वहाँ
तुम हो ही पावन । अभी तुम सत के संग से पतित से पावन बनते हो
फिर शरीर भी सतोप्रधान मिलेगा । आत्मा भी सतोप्रधान रहेगी ।
अभी तो दुनिया भी तमोप्रधान है । दुनिया नई और पुरानी होती है
। नई दुनिया में बरोबर आदि सनातन देवी-देवता धर्म था । आज उस
धर्म को गुम कर आदि सनातन हिन्दू धर्म कह देते हैं,
मूँझ पड़े हैं । अभी तुम भारतवासी समझते हो कि
हम प्राचीन देवी-देवता धर्म के थे । सतयुग के मालिक थे ।
परन्तु वह नशा कहाँ?
कल्प
की आयु ही लम्बी लिख दी है । सब बातें भूल गये हैं । इनका नाम
ही है भूल भुलैया का खेल । अभी सत बाप द्वारा तुम सारी नॉलेज
जानने से ऊँच पद पाते हो फिर आधाकल्प बाद नीचे गिरते हो
क्योंकि रावण राज्य शुरू होता है । दुनिया पुरानी तो होगी ना ।
तुम समझते हो हम नई दुनिया के मालिक थे,
अभी
पुरानी दुनिया में हैं । कोई-कोई को यह भी याद नहीं पड़ता है ।
बाबा हमको स्वर्गवासी बनाते हैं । आधाकल्प हम स्वर्गवासी
रहेंगे फिर आधाकल्प बाद नीचे गिरते हो क्योंकि रावण राज्य शुरू
होता है । दुनिया पुरानी तो होगी ना । तुम समझते हो बाबा हमको
स्वर्गवासी बनाते हैं । आधाकल्प हम स्वर्गवासी रहेंगे फिर
नर्कवासी बनेंगे । तुम भी मास्टर ऑलमाइटी बने हो नम्बरवार
पुरूषार्थ अनुसार । यह है ज्ञान अमृत का डोज । शिवबाबा को
आरगन्स मिले हैं पुराने । नया आरगन्स तो मिलता नहीं । पुराना
बाजा मिलता है । बाप आते भी वानप्रस्थ में ही हैं । बच्चों को
खुशी होती है तो बाप भी खुश होते हैं । बाप कहते हैं हम जाते
हैं बच्चों को नॉलेज दे रावण से छुड़ाने । पार्ट तो खुशी से
बजाया जाता है ना । बाप बहुत खुशी से पार्ट बजाते हैं । बाप को
कल्प-कल्प आना पड़ता है । यह पार्ट कभी बन्द नहीं होता है ।
बच्चों को बहुत खुशी रहनी चाहिए । जितना सत का संग करेंगे उतना
खुशी होगी,
याद
कम करते हैं इसलिए इतनी खुशी नहीं रहती है । बाप बच्चों को
मिलकियत देते हैं । जो बच्चे सच्ची दिल वाले हैं,
उन
पर बाप का बहुत प्यार रहता है । सच्ची दिल पर साहेब राजी रहते
हैं । अन्दर बाहर जो सच्चे रहते हैं,
बाप
के मददगार बनते हैं,
सर्विस पर तत्पर रहते हैं वही बाप को प्रिय लगते हैं । अपनी
दिल से पूछना है-हम सच्ची-सच्ची सर्विस करते हैं?
सच्चे बाबा के साथ संग रखते हैं?
अगर
सत बाबा के साथ संग नहीं रखेंगे तो क्या गति होगी?
बहुतों को रास्ता बताते रहेंगे तो ऊँच पद भी पायेंगे । सत बाप
से हमने क्या वर्सा पाया है,
अपने
अन्दर देखना है । यह तो जानते हैं नम्बरवार हैं । कोई कितना
वर्सा पाते हैं,
कोई
कितना पाते हैं । रात-दिन का फर्क रहता है । अच्छा
!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
तुम्हें
जो इस देह का संग मिला है,
इस संग से उपराम रहना है । सत के संग से पावन बनना है ।
2.
इस
स्टूडेंट लाइफ में चलते फिरते बुद्धि में नॉलेज घूमती रहे । एम
ऑज्जेक्ट को सामने रख पुरूषार्थ करना है । सच्ची दिल से बाप का
मददगार बनना है ।
वरदान:-
मन
की स्वतन्त्रता द्वारा सर्व आत्माओं को शान्ति का दान देने
वाले मन्सा महादानी
भव ! 
बांधेलियां तन से भल परतन्त्र हैं लेकिन मन से यदि स्वतन्त्र
हैं तो अपनी वृत्ति द्वारा,
शुद्ध संकल्प द्वारा विश्व के वायुमण्डल को बदलने की सेवा कर
सकती हैं । आजकल विश्व को आवश्यकता है मन के शान्ति की । तो मन
से स्वतन्त्र आत्मा मन्सा द्वारा शान्ति के वायब्रेशन फैला
सकती है । शान्ति के सागर बाप की याद में रहने से आटोमेटिक
शान्ति की किरणें फैलती हैं । ऐसे शान्ति का दान देने वाले ही
मन्सा महादानी हैं ।
स्लोगन:-
स्नेह
रूप का अनुभव तो सुनाते हो अब शक्ति रूप का अनुभव सुनाओ ।
ओम्
शान्ति |