02-01-15
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - तुम्हारी जब कर्मातीत अवस्था होगी तब विष्णुपुरी में
जायेंगे,
पास विद् ऑनर होने वाले बच्चे ही कर्मातीत बनते हैं
|” 
प्रश्न:-
तुम
बच्चों पर दोनों बाप कौन-सी मेहनत करते हैं?
उत्तर:-
बच्चे
स्वर्ग के लायक बनें । सर्वगुण सम्पन्न,
16
कला सम्पूर्ण बनाने की मेहनत बापदादा दोनों करते हैं । यह जैसे
तुम्हें डबल इंजन मिली है । ऐसी वन्डरफुल पढ़ाई पढ़ाते हैं जिससे
तुम 21 जन्म की बादशाही पा लेते हो ।
गीत:-
बचपन
के दिन भुला न देना… 
ओम्
शान्ति |
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों ने गीत सुना । ड्रामा प्लैन अनुसार
ऐसे-ऐसे गीत सलेक्ट किये हुए हैं । मनुष्य चक्रित होते हैं कि
यह क्या नाटक के रिकॉर्ड पर वाणी चलाते हैं । यह फिर किस
प्रकार का ज्ञान है! शास्त्र,
वेद,
उपनिषद आदि छोड़ दिये,
अब
रिकार्ड के ऊपर वाणी चलती है! यह भी तुम बच्चों की बुद्धि में
है कि हम बेहद के बाप के बने हैं,
जिससे अतीन्द्रिय सुख मिलता है ऐसे बाप को भूलना नहीं है । बाप
की याद से ही जन्म-जन्मान्तर के पाप दग्ध होते हैं । ऐसे न हो
जो याद को छोड़ दो और पाप रह जाएं । फिर पद भी कम हो जायेगा ।
ऐसे बाप को तो अच्छी रीति याद करने का पुरूषार्थ करना चाहिए ।
जैसे सगाई होती है तो फिर एक-दो को याद करते हैं । तुम्हारी भी
सगाई हुई है फिर जब तुम कर्मातीत अवस्था को पाते हो तब
विष्णुपुरी में जायेंगे । अभी शिवबाबा भी है । प्रजापिता
ब्रह्मा बाबा भी है । दो इंजन मिली हैं - एक निराकारी,
दूसरी साकारी । दोनों ही मेहनत करते हैं कि बच्चे स्वर्ग के
लायक बन जाएं । सर्वगुण सम्पन्न 16 कला सम्पूर्ण बनना है ।
यहाँ इम्तहान पास करना है । यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं
है । यह पढ़ाई बड़ी वन्डरफुल है- भविष्य 21 जन्मों के लिए । और
पढ़ाई होती है मृत्युलोक के लिए,
यह
पढ़ाई है अमरलोक के लिए । उसके लिए पढ़ना तो यहाँ है ना । जब तक
आत्मा पवित्र न बने तब तक सतयुग में जा न सके इसलिए बाप संगम
पर ही आते हैं,
इसको
ही पुरूषोत्तम कल्याणकारी युग कहा जाता है । जबकि तुम कौड़ी से
हीरे जैसा बनते हो इसलिए श्रीमत पर चलते रहो । श्री श्री
शिवबाबा को ही कहा जाता है । माला का अर्थ भी बच्चों को समझाया
है । ऊपर में फूल हैं शिवबाबा,
फिर
है युगल मेरू । प्रवृत्ति मार्ग है ना । फिर हैं दाने,
जो
विजय पाने वाले हैं,
उनकी
ही रूद्र माला फिर विष्णु की माला बनती है । इस माला का अर्थ
कोई भी नहीं जानते । बाप बैठ समझाते हैं तुम बच्चों को कौड़ी से
हीरे जैसा बनना है । 63 जन्म तुम बाप को याद करते आये हो । तुम
अब आशिक हो एक माशुक के । सब भक्त हैं एक भगवान के । पतियों का
पति,
बापों का बाप वह एक ही है । तुम बच्चों को राजाओं का राजा
बनाते हैं । खुद नहीं बनते हैं । बाप बार-बार समझाते हैं - बाप
की याद से ही तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप भस्म होंगे ।
साधू सन्त तो कह देते आत्मा निर्लेप है । बाप समझाते हैं
संस्कार अच्छे वा बुरे आत्मा ही ले जाती है । वह कह देते बस
जिधर देखता हूँ सब भगवान ही भगवान है । भगवान की ही यह सब लीला
है । बिल्कुल ही वाम मार्ग में गन्दे बन जाते हैं । ऐसे-ऐसे की
मत पर भी लाखों मनुष्य चल रहे हैं । यह भी ड्रामा में नूंध है
। हमेशा बुद्धि में तीन धाम याद रखो-शान्तिधाम जहाँ आत्मायें
रहती हैं,
सुखधाम जहाँ के लिए तुम पुरूषार्थ कर रहे हो,
दु:खधाम शुरू होता है आधाकल्प के बाद । भगवान को कहा जाता है
हेविनली गॉड फादर । वह कोई हेल स्थापन नहीं करते हैं । बाप
कहते हैं मैं तो सुखधाम ही स्थापन करता हूँ । बाकी यह हार और
जीत का खेल है । तुम बच्चे श्रीमत पर चलकर अभी माया रूपी रावण
पर जीत पाते हो । फिर आधाकल्प बाद रावण राज्य शुरू होता है ।
तुम बच्चे अभी युद्ध के मैंदान पर हो । यह बुद्धि में धारण
करना है फिर दूसरों को समझाना है । अन्धों की लाठी बन घर का
रास्ता बताना है क्योंकि सब उस घर को भूल गये हैं । कहते भी
हैं कि यह एक नाटक है । परन्तु इसकी आयु लाखों हजारों वर्ष कह
देते हैं । बाप समझाते हैं रावण ने तुमको कितना अन्धा बना दिया
है । अभी बाप सब बातें समझा रहे हैं । बाप को ही नॉलेजफुल कहा
जाता है । इसका अर्थ यह नहीं कि हर एक के अन्दर को जानने वाले
हैं । वह तो रिद्धि-सिद्धि वाले सीखते हैं जो तुम्हारे अन्दर
की बातें सुना लेते हैं । नॉलेजफुल का अर्थ यह नहीं है । यह तो
बाप की ही महिमा है । वह ज्ञान का सागर,
आनद
का सागर है । मनुष्य तो कह देते कि वह अन्तर्यामी है । अभी तुम
बच्चे समझते हो कि वह तो टीचर है,
हमको
पढ़ाते हैं । वह रूहानी बाप भी है,
रूहानी सतगुरू भी है । वह जिस्मानी टीचर गुरू होते हैं,
सो
भी अलग- अलग होते हैं,
तीनों एक हो न सके । करके कोई-कोई बाप टीचर भी होता है । गुरू
तो हो न सके । वह तो फिर भी मनुष्य हैं । यहाँ तो वह सुप्रीम
रूह परमपिता परमात्मा पढ़ाते हैं । आत्मा को परमात्मा नहीं कहा
जाता । यह भी कोई समझते नहीं । कहते हैं परमात्मा ने अर्जुन को
साक्षात्कार कराया तो उसने कहा बस करो,
बस
करो हम इतना तेज सहन नहीं कर सकते । यह जो सब सुना है तो समझते
हैं परमात्मा इतना तेजोमय है । आगे बाबा के पास आते थे तो
साक्षात्कार में चले जाते थे । कहते थे बस करो,
बहुत
तेज है,
हम
सहन नहीं कर सकते । जो सुना हुआ है वही बुद्धि में भावना रहती
है । बाप कहते हैं जो जिस भावना से याद करते हैं,
मैं
उनकी भावना पूरी कर सकता हूँ । कोई गणेश का पुजारी होगा तो
उनको गणेश का साक्षात्कार करायेंगे । साक्षात्कार होने से
समझते हैं बस मुक्तिधाम में पहुँच गया । परन्तु नहीं,
मुक्तिधाम में कोई जा न सके । नारद का भी मिसाल है । वह
शिरोमणि भक्त गाया हुआ है । उसने पूछा हम लक्ष्मी को वर सकते
हैं तो कहा अपनी शक्ल तो देखो । भक्त माला भी होती है ।
फीमेल्स में मीरा और मेल्स में नारद मुख्य गाये हुए हैं । यहाँ
फिर ज्ञान में मुख्य शिरोमणि हैं सरस्वती । नम्बरवार तो होते
हैं ना ।
बाप
समझाते हैं माया से बड़ा खबरदार रहना है । माया ऐसा उल्टा काम
करा लेगी । फिर अन्त में बहुत रोना,
पछताना पड़ेगा- भगवान आया और हम वर्सा ले न सके! फिर प्रजा में
भी दास-दासी जाकर बनेंगे । पीछे पढ़ाई तो पूरी हो जाती है,
फिर
बहुत पछताना पड़ता है इसलिए बाप पहले से ही समझा देते हैं कि
फिर पछताना न पड़े । जितना बाप को याद करते रहेंगे तो योग अग्नि
से पाप भस्म होंगे । आत्मा सतोप्रधान थी फिर उसमें खाद
पड़ते-पड़ते तमोप्रधान बनी है । गोल्डन,
सिलवर,
कॉपर,
आइरन
नाम भी है । अभी आइरन एज से फिर तुमको गोल्डन एज में जाना है ।
पवित्र बनने बिगर आत्मायें जा न सके । सतयुग में प्योरिटी थी
तो पीस,
प्रासपर्टी भी थी । यहाँ प्योरिटी नहीं तो पीस प्रासपर्टी भी
नहीं । रात-दिन का फर्क है । तो बाप समझाते हैं यह बचपन के दिन
भूल न जाना । बाप ने एडाप्ट किया है ना । ब्रह्मा द्वारा
एडाप्ट करते हैं,
यह
एडाप्शन है । स्त्री को एडाप्ट किया जाता है । बाकी बच्चों को
फिर क्रियेट किया जाता है । स्त्री को रचना नहीं कहेंगे । यह
बाप भी एडाप्ट करते हैं कि तुम हमारे वही बच्चे हो जिनको कल्प
पहले एडाप्ट किया था । एडाप्टेड बच्चों को ही बाप से वर्सा
मिलता है । ऊंच ते ऊंच बाप से ऊंच ते ऊंच वर्सा मिलता है । वह
है ही भगवान फिर सेकण्ड नम्बर में है लक्ष्मी-नारायण सतयुग के
मालिक । अभी तुम सतयुग के मालिक बन रहे हो । अभी सम्पूर्ण नहीं
बने हो,
बन
रहे हो ।
पावन
बनकर पावन बनाना,
यही
रूहानी सच्ची सेवा है । तुम अभी रूहानी सेवा करते हो इसलिए तुम
बहुत ऊंचे हो । शिवबाबा पतितों को पावन बनाते हैं । तुम भी
पावन बनाते हो । रावण ने कितना तुच्छ बुद्धि बना दिया है । अभी
बाप फिर लायक बनाए विश्व का मालिक बनाते हैं । ऐसे बाप को फिर
पत्थर ठिक्कर में कैसे कह सकते?
बाप
कहते हैं यह खेल बना हुआ है । कल्प बाद फिर ऐसा होगा । अब
ड्रामा प्लैन अनुसार मैं आया हूँ तुमको समझाने । इसमें जरा भी
फर्क नहीं पड़ सकता । बाप एक सेकण्ड की देरी नहीं कर सकते ।
जैसे बाबा का रीइनकारनेशन होता है,
वैसे
तुम बच्चों का भी रीइनकारनेशन होता है,
तुम
अवतरित हो । आत्मा यहाँ आकर फिर साकार में पार्ट बजाती है,
इसको
कहा जाता है अवतरण । ऊपर से नीचे आया पार्ट बजाने । बाप का भी
दिव्य,
अलौकिक जन्म है । बाप खुद कहते हैं मुझे प्रकृति का आधार लेना
पड़ता है । मैं इस तन में प्रवेश करता हूँ । यह मेरा मुकरर तन
है । यह बहुत बड़ा वन्डरफुल खेल है । इस नाटक में हर एक का
पार्ट नूंधा हुआ है जो बजाते ही रहते हैं । 21 जन्मों का पार्ट
फिर ऐसे ही बजायेंगे । तुमको क्लीयर नॉलेज मिली है सो भी
नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार । महारथियों की बाबा महिमा तो करते
हैं ना । यह जो दिखाते हैं पाण्डव और कौरवों की युद्ध हुई,
यह
सब हैं बनावटी बातें । अभी तुम समझते हो वह है जिस्मानी डबल
हिंसक,
तुम
हो रूहानी डबल अहिंसक । बादशाही लेने के लिए देखो तुम बैठे
कैसे हो । जानते हो बाप की याद से विकर्म विनाश होंगे । यही
फुरना लगा हुआ है । मेहनत सारी याद करने में ही है इसलिए भारत
का प्राचीन योग गाया हुआ है । वह बाहर वाले भी यह भारत का
प्राचीन योग सीखना चाहते हैं । समझते हैं कि सन्यासी लोग हमको
यह योग सिखलायेंगे । वास्तव में वह सिखलाते कुछ भी नहीं है ।
उन्हों का सन्यास है ही हठयोग का । तुम हो प्रवृत्ति मार्ग
वाले । तुम्हारी शुरू में ही किंगडम थी । अभी है अन्त । अभी तो
पंचायती राज्य है । दुनिया में अंधकार तो बहुत है । तुम जानते
हो अभी तो खूने नाहेक खेल होना है । यह भी एक खेल दिखाते हैं,
यह
तो बेहद की बात है,
कितने खून होंगे । नैचुरल कैलेमिटीज होगी । सबका मौत होगा ।
इनको खूने नाहेक कहा जाता है । इसमें देखने की बड़ी हिम्मत
चाहिए । डरपोक तो झट बेहोश हो जायेंगे,
इसमें निडरपना बहुत चाहिए । तुम तो शिव शक्तियाँ हो ना ।
शिवबाबा है सर्वशक्तिमान्,
हम
उनसे शक्ति लेते हैं,
पतित
से पावन बनने की युक्ति बाप ही बतलाते हैं । बाप बिल्कुल
सिम्पुल राय देते हैं-बच्चे,
तुम
सतोप्रधान थे,
अब
तमोप्रधान बने हो,
अब
बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम पतित से पावन सतोप्रधान बन
जायेंगे । आत्मा को बाप के साथ योग लगाना है तो पाप भस्म हो
जाएं । अथॉरिटी भी बाप ही है । चित्रों में दिखाते हैं-विष्णु
की नाभी से ब्रह्मा निकला । उन द्वारा बैठ सब शास्त्रों वेदों
का राज समझाया । अभी तुम जानते हो ब्रह्मा सो विष्णु,
विष्णु सो ब्रह्मा बनते हैं । ब्रह्मा द्वारा स्थापना करते फिर
जो स्थापना हुई उनकी पालना भी जरूर करेंगे ना । यह सब अच्छी
रीति समझाया जाता है,
जो
समझते हैं उनको यह ख्याल रहेगा कि यह रूहानी नॉलेज कैसे सबको
मिलनी चाहिए । हमारे पास धन है तो क्यों नहीं सेंटर्स खोले ।
बाप कहते हैं अच्छा किराये पर ही मकान ले लो,
उसमें हॉस्पिटल कम युनिवर्सिटी खोलो । योग से है मुक्ति,
ज्ञान से है जीवनमुक्ति । दो वर्से मिलते हैं । इसमें सिर्फ 3
पैर पृथ्वी के चाहिए,
और
कुछ नहीं । गॉड फादरली युनिवर्सिटी खोलो । विश्व विद्यालय वा
युनिवर्सिटी,
बात
तो एक ही हुई । यह मनुष्य से देवता बनने की कितनी बड़ी
युनिवर्सिटी है । पूछेंगे,
आपका
खर्चा कैसे चलता है?
अरे,
बी.के. के बाप को इतने ढेर बच्चे हैं,
तुम
पूछने आये हो! बोर्ड पर देखो क्या लिखा हुआ है?
बड़ी
वन्डरफुल नॉलेज है । बाप भी वन्डरफुल है ना । विश्व के मालिक
तुम कैसे बनते हो?
शिवबाबा को कहेंगे श्री श्री क्योंकि ऊंच ते ऊंच है ना ।
लक्ष्मी-नारायण को कहेंगे श्री लक्ष्मी,
श्री
नारायण । यह सब अच्छी रीति धारण करने की बातें हैं । बाप कहते
हैं मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ । यह है सच्ची-सच्ची अमरकथा
। सिर्फ एक पार्वती को थोड़ेही अमर कथा सुनाई होगी । कितने ढेर
मनुष्य अमरनाथ पर जाते हैं । तुम बच्चे बाप के पास आये हो
रिफ्रेश होने । फिर सबको समझाना है,
जाकर
रिफ्रेश करना है,
सेण्टर खोलना है । बाप कहते हैं सिर्फ 3 पैर पृथ्वी का लेकर
हॉस्पिटल कम युनिवर्सिटी खोलते जाओ तो बहुतों का कल्याण होगा ।
इसमें खर्चा तो कुछ भी नहीं है । हेल्थ,
वेल्थ और हैपीनेस एक सेकण्ड में मिल जाती है । बच्चा जन्मा और
वारिस हुआ । तुमको भी निश्चय हुआ और विश्व के मालिक बने । फिर
है पुरूषार्थ पर मदार । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1.
अन्तिम
खूने नाहेक सीन देखने के लिए बहुत-बहुत निर्भय,
शिव शक्ति बनना है । सर्वशक्तिमान् बाप की याद से शक्ति लेनी
है ।
2.
पावन
बनकर,
पावन बनाने की रूहानी सच्ची सेवा करनी है । डबल अहिंसक बनना है
। अन्धों की लाठी बन सबको घर का रास्ता बताना है ।
वरदान:-
कल्याणकारी बाप और समय का हर सेकण्ड लाभ उठाने वाले
निश्चयबुद्धि,
निश्चिंत
भव ! 
जो
भी दृश्य चल रहा है उसे त्रिकालदर्शी बनकर देखो,
हिम्मत और हुल्लास में रह स्वयं भी समर्थ आत्मा बनो और विश्व
को भी समर्थ बनाओ । स्वयं के तूफानों में हिलो मत,
अचल
बनो । जो समय मिला है,
साथ
मिला है,
अनेक
प्रकार के खजाने मिल रहे हैं उनसे सम्पत्तिवान और समर्थीवान
बनो । सारे कल्प में ऐसे दिन फिर आने वाले नहीं हैं इसलिए अपनी
सब चिंतायें बाप को देकर निश्चयबुद्धि बन सदा निश्चिंत रहो,
कल्याणकारी बाप और समय का हर सेकण्ड लाभ उठाओ ।
स्लोगन:-
बाप के संग का रंग लगाओ तो बुराईयां स्वत: समाप्त हो जायेंगी । 
अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए विशेष होमवर्क
(2) पूरा ही दिन सर्व के प्रति कल्याण की भावना,
सदा स्नेह और सहयोग देने की भावना,
हुल्लास बढ़ाने की भावना,
अपनेपन की भावना और आत्मिक स्वरुप की भावना
रखना है । भावना अव्यक्त स्थिति बनाने का आधार है ।
ओम्
शान्ति |