28-01-15      प्रातः मुरली      ओम् शान्ति      “बापदादा”      मधुबन
 


मीठे बच्चे - सवेरे-सवेरे उठ बाप से मीठी रूहरिहान करो, बाप ने जो शिक्षायें दी हैं उन्हें उगारते रहो”   

प्रश्न:-   
सारा दिन खुशी-खुशी में बीते, उसके लिए कौन-सी युक्ति रचनी चाहिए?

उत्तर:-

रोज़ अमृतवेले उठकर ज्ञान की बातों में रमण करो । अपने आपसे बातें करो । सारे ड्रामा के आदि- मध्य- अन्त का सिमरण करो, बाप को याद करो तो सारा दिन खुशी में बीतेगा । स्टूडेंट अपनी पढ़ाई की रिहर्सल करते हैं । तुम बच्चे भी अपनी रिहर्सल करो ।

गीत:-

आज अन्धेरे में है इंसान.. 

ओम् शान्ति |

मीठे- मीठे सिकीलधे बच्चों ने गीत सुना । तुम भगवान के बच्चे हो ना । तुम जानते हो भगवान हमको राह दिखा रहे हैं । वह पुकारते रहते हैं कि हम अन्धेरे में हैं क्योंकि भक्ति मार्ग है ही अन्धियारा मार्ग । भक्त कहते हैं हम तुमसे मिलने के लिए भटक रहे हैं । कब तीर्थों पर, कब कहाँ दान-पुण्य करते, मन्त्र जपते हैं । अनेक प्रकार के मन्त्र देते हैं फिर भी कोई समझते थोड़ेही हैं कि हम अन्धेरे में हैं । सोझरा क्या चीज़ है-कुछ भी समझते नहीं, क्योंकि अन्धियारे में हैं । अभी तुम तो अन्धियारे में नहीं हो । तुम वृक्ष में पहले-पहले आते हो । नई दुनिया में जाकर राज्य करते हो, फिर सीढ़ी उतरते हो । इसके बीच में इस्लामी, बौद्धी, क्रिश्चियन आते हैं । अब बाप फिर सैपलिंग लगा रहे हैं । सवेरे उठकर ऐसे-ऐसे ज्ञान की बातों में रमण करना चाहिए । कितना यह वन्डरफुल नाटक है, इस ड्रामा के फिल्म रील की ड्यूरेशन है 5000 वर्ष । सतयुग की आयु इतनी, त्रेता की आयु इतनी...... बाबा में भी यह सारा ज्ञान है ना । दुनिया में और कोई नहीं जानते । तो बच्चों को सवेरे उठकर एक तो बाप को याद करना है और ज्ञान का सिमरण करना है खुशी में । अभी हम सारे ड्रामा के आदि-मध्य- अन्त को जान चुके हैं । बाप कहते हैं कल्प की आयु ही 5 हजार वर्ष है । मनुष्य कह देते लाखों वर्ष । कितना वंडरफुल नाटक है । बाप बैठ जो शिक्षा देते हैं उसको फिर उगारना चाहिए, रिहर्सल करना चाहिए । स्टूडेंट पढ़ाई की रिहर्सल करते हैं ना ।

तुम मीठे-मीठे बच्चे सारे ड्रामा को जान गये हो । बाबा ने कितना सहज रीति बताया है कि यह अनादि, अविनाशी ड्रामा है । इसमें जीतते हैं और फिर हारते हैं । अब चक्र पूरा हुआ, हमको अब घर जाना है । बाप का फरमान मिला है मुझ बाप को याद करो । यह ड्रामा की नॉलेज एक ही बाप देते हैं । नाटक कभी लाखों वर्ष का थोड़ेही होता है । कोई को याद भी न रहे । 5 हजार वर्ष का चक्र है जो सारा तुम्हारी बुद्धि में है । कितना अच्छा हार और जीत का खेल है । सवेरे उठकर ऐसे-ऐसे ख्याल चलने चाहिए । हमको बाबा रावण पर जीत पहनाते हैं । ऐसी-ऐसी बातें सवेरे-सवेरे उठ अपने साथ करनी चाहिए तो आदत पड़ जायेगी । इस बेहद के नाटक को कोई नहीं जानते हैं । एक्टर होकर आदि-मध्य- अन्त को नहीं जानते हैं । अभी हम बाबा द्वारा लायक बन रहे हैं ।

बाबा अपने बच्चों को आप समान बनाते हैं । आप समान भी क्या, बाप तो बच्चों को अपने कन्धे पर चढ़ाते हैं । बाबा का कितना प्यार है बच्चों से । कितना अच्छी रीति समझाते हैं मीठे-मीठे बच्चों, मैं तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ । मैं नहीं बनता हूँ, तुम बच्चों को बनाता हूँ । तुम बच्चों को गुल-गुल बनाकर फिर टीचर बन पढ़ाता हूँ । फिर सद्गति के लिए ज्ञान देकर तुमको शान्तिधाम-सुखधाम का मालिक बनाता हूँ । मैं तो निर्वाणधाम में बैठ जाता हूँ । लौकिक बाप भी मेहनत कर, धन कमाकर सब कुछ बच्चों को देकर खुद वानप्रस्थ में जाकर भजन आदि करते हैं । परन्तु यहाँ तो बाप कहते हैं अगर वानप्रस्थ अवस्था है तो बच्चों को समझाकर तुम्हें इस सर्विस में लग जाना है । फिर गृहस्थ व्यवहार में फँसना नहीं है । तुम अपना और दूसरों का कल्याण करते रहो । अभी तुम सबकी वानप्रस्थ अवस्था है । बाप कहते हैं मैं आया हूँ तुमको वाणी से परे ले जाने लिए । अपवित्र आत्माएं तो जा न सकें । यह बाप सन्मुख समझा रहे हैं । मजा भी सम्मुख में है । वहाँ तो फिर बच्चे बैठ सुनाते हैं । यहाँ बाप सम्मुख हैं तब तो मधुबन की महिमा है ना । तो बाप कहते हैं सवेरे उठने की आदत डालो । भक्ति भी मनुष्य सवेरे उठकर करते हैं परन्तु उससे वर्सा तो मिलता नहीं, वर्सा मिलता है रचता बाप से । कभी रचना से वर्सा मिल न सके इसलिए कहते हैं हम रचता और रचना के आदि- मध्य- अन्त को नहीं जानते हैं । अगर वह जानते होते तो वह परम्परा चला आता । बच्चों को यह भी समझाना है कि हम कितने श्रेष्ठ धर्म वाले थे फिर कैसे धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट बने हैं । माया गॉडरेज का ताला बुद्धि को लगा देती है इसलिए भगवान को कहते हैं आप बुद्धिवानों की बुद्धि हो, इनकी बुद्धि का ताला खोलो । अब तो बाप सम्मुख समझा रहे हैं । मैं ज्ञान का सागर हूँ, तुमको इन द्वारा समझाता हूँ । कौन-सा ज्ञान? यह सृष्टि चक्र के आदि, मध्य, अन्त का ज्ञान जो कोई भी मनुष्य दे न सके ।

बाप कहते हैं, सतसंग आदि में जाने से फिर भी स्कूल में पढ़ना अच्छा है । पढ़ाई सोर्स ऑफ इनकम है । सतसंगो में तो मिलता कुछ नहीं । दान-पुण्य करो, यह करो, भेंटा रखो, खर्चा ही खर्चा है । पैसा भी रखो, माथा भी टेको, टिप्पड़ ही घिस जाती । अभी तुम बच्चों को जो ज्ञान मिल रहा है, उसको सिमरण करने की आदत डालो और दूसरों को भी समझाना है । बाप कहते हैं अब तुम्हारी आत्मा पर बृहस्पति की दशा है । वृक्षपति भगवान तुमको पढ़ा रहे हैं, तुमको कितनी खुशी होनी चाहिए । भगवान पढ़ाकर हमको भगवान भगवती बनाते हैं, ओहो! ऐसे बाप को जितना याद करेंगे तो विकर्म विनाश होंगे । ऐसे-ऐसे विचार सागर मंथन करने की आदत डालनी चाहिए । दादा हमको इस बाप द्वारा वर्सा दे रहे हैं । खुद कहते हैं मैं इस रथ का आधार लेता हूँ । तुमको ज्ञान मिल रहा है ना । ज्ञान गंगायें ज्ञान सुनाकर पवित्र बनाती हैं कि गंगा का पानी? अब बाप कहते हैं-बच्चे, तुम भारत की सच्ची-सच्ची सेवा करते हो । वह सोशल वर्कर्स तो हद की सेवा करते हैं । यह है रूहानी सच्ची सेवा । भगवानुवाच बाप समझाते हैं, भगवान पुनर्जन्म रहित है । श्रीकृष्ण तो पूरे 84 जन्म लेते हैं । उनका गीता में नाम लगा दिया है । नारायण का क्यों नहीं लगाते हैं? यह भी किसको पता नहीं कि कृष्ण ही नारायण बनते हैं । श्रीकृष्ण प्रिन्स था फिर राधे से स्वयंवर हुआ । अब तुम बच्चों को ज्ञान मिला है । समझते हो शिवबाबा हमको पढ़ाते हैं । वह बाबा भी है, टीचर, सतगुरू भी है । सद्गति देते हैं । ऊंच ते ऊंच भगवान् शिव ही है । वह कहते हैं मेरी निंदा करने वाले ऊंच ठौर पा नहीं सकते । बच्चे अगर नहीं पढ़ते हैं तो मास्टर की इज्जत जाती है । बाप कहते हैं तुम मेरी इज्जत नहीं गंवाना । पढ़ते रहो । एम ऑब्जेक्ट तो सामने खड़ी है । वह फिर गुरू लोग अपने लिए कह देते हैं, जिस कारण मनुष्य डर जाते हैं । समझते हैं कोई श्राप न मिल जाए । गुरू से मिला हुआ मन्त्र ही सुनाते रहते हैं । सन्यासियों से पूछा जाता है तुमने घरबार कैसे छोड़ा? कहते हैं यह व्यक्त बातें मत पूछो । अरे, क्यों नहीं बताते हो? हमको क्या पता तुम कौन हो? शुरूड बुद्धि वाले ऐसी बात करते हैं । अज्ञान काल में कोई-कोई को नशा रहता है । स्वामी राम तीर्थ का अनन्य शिष्य स्वामी नारायण था । उनकी किताब आदि बाबा की पढ़ी हुई है । बाबा को यह सब पढ़ने का शौक रहता था । छोटेपन में वैराग्य आता था । फिर एक बार बाइसकोप देखा, बस वृत्ति खराब हुई । साधूपना बदल गया । तो अब बाप समझाते हैं वह सब गुरू आदि हैं भक्ति मार्ग के । सर्व का सद्गति दाता तो एक ही है, जिसको सब याद करते हैं । गाते भी हैं मेरा तो एक गिरधर गोपाल दूसरा न कोई । गिरधर कृष्ण को कहते हैं । वास्तव में गाली यह ब्रह्मा खाते हैं । कृष्ण की आत्मा जब अन्त में गांव का छोरा तमोप्रधान है तब गाली खाई है । असुल में तो यही कृष्ण की आत्मा है ना । गांव में पला हुआ है । रास्ते चलते ब्राह्मण फंस गया अर्थात् बाबा ने प्रवेश किया, कितनी गाली खाई । अमेरिका तक आवाज चला गया । वन्डरफुल ड्रामा है । अभी तुम जानते हो तो खुशी होती है । अब बाप समझाते हैं यह चक्र कैसे फिरता है? हम कैसे ब्राह्मण थे फिर देवता, क्षत्रिय... .बने । यह 84 का चक्र है | यह सारा स्मृति में रखना है । रचता और रचना के आदि-मध्य- अन्त को जानना है, जो कोई नहीं जानते हैं । तुम बच्चे समझते हो हम विश्व का मालिक बनते हैं, इसमें कोई तकलीफ तो नहीं । ऐसे थोड़ेही कहते आसन आदि लगाओ । हठयोग ऐसे सिखलाते हैं बात मत पूछो । कोई-कोई की ब्रेन ही खराब हो जाती हैं । बाप कितनी सहज कमाई कराते हैं । यह हैं 21 जन्मों के लिए सच्ची कमाई । तुम्हारी हथेली पर बहिश्त है । बाप बच्चों के लिए स्वर्ग की सौगात लाते हैं । ऐसे और कोई मनुष्य कह न सके । बाप ही कहते हैं, इनकी आत्मा भी सुनती है । तो बच्चों को सवेरे उठ ऐसे-ऐसे विचार करने चाहिए । भक्त लोग भी सवेरे गुप्त माला फेरते हैं । उसको गऊमुख कहते हैं । उसमें अन्दर हाथ डाल माला फेरते हैं । राम-राम जैसे कि बाजा बजता है । वास्तव में गुप्त तो यह है, बाप को याद करना । अजपाजाप इसको कहा जाता है । खुशी रहती है, कितना वन्डरफुल ड्रामा है । यह बेहद का नाटक है जो सिवाए तुम्हारे और कोई की बुद्धि में नहीं है । तुम्हारे में भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार है । है बहुत इजी । हमको तो अब भगवान पढ़ाते हैं । बस उनको ही याद करना है । वर्सा भी उनसे मिलता है । इस बाबा ने तो धक से सब कुछ छोड़ दिया क्योंकि बीच में बाबा की प्रवेशता थी ना । सब कुछ इन माताओं के अर्पण कर दिया । बाप ने कहा इतनी बड़ी स्थापना करनी है, सब इस सेवा में लगा दो । एक पैसा भी किसको देना नहीं है । नष्टोमोहा इतना चाहिए । बड़ी मंजिल है । मीरा ने लोकलाज विकारी कुल की मर्यादा छोड़ी तो कितना उनका नाम है । यह बच्चियाँ भी कहती हैं हम शादी नहीं करेंगी । लखपति हो, कोई भी हो, हम तो बेहद के बाप से वर्सा लेंगी । तो ऐसा नशा चढ़ना चाहिए । बच्चों को बेहद का बाप बैठ श्रृंगारते हैं । इसमें पैसे आदि की दरकार भी नहीं है । शादी के दिन वनवाह में बिठाते हैं, पुराने फटे हुए कपड़े आदि पहनाते हैं । फिर शादी के बाद नये कपड़े, जेवर आदि पहनाते हैं । यह बाप कहते हैं मैं तुमको ज्ञान रत्नों से श्रृंगारता हूँ, फिर तुम यह लक्ष्मी-नारायण बनेंगे । ऐसे और कोई कह न सके ।

बाप ही आकर पवित्र प्रवृत्ति मार्ग की स्थापना करते हैं इसलिए विष्णु को भी 4 भुजा दिखाते हैं । शंकर के साथ पार्वती, ब्रह्मा के साथ सरस्वती दिखाई है । अब ब्रह्मा की कोई स्त्री तो है नहीं । यह तो बाप का बन गया । कैसी वन्डरफुल बातें हैं । मात-पिता तो यह है ना । यह प्रजापिता भी है, फिर इन द्वारा बाप रचते हैं तो माँ भी ठहरी । सरस्वती ब्रह्मा की बेटी गाई जाती है । यह सब बातें बाप बैठ समझाते हैं । जैसे बाबा सवेरे उठकर विचार सागर मंथन करते हैं, बच्चों को भी फालो करना है । तुम बच्चे जानते हो कि यह हार-जीत का वन्डरफुल खेल बना हुआ है, इसे देखकर खुशी होती है, घृणा नहीं आती । हम यह समझते हैं, हम सारे ड्रामा के आदि-मध्य- अन्त को जान गये हैं इसलिए घृणा की तो बात ही नहीं । तुम बच्चों को मेहनत भी करनी है । गृहस्थ व्यवहार में रहना है, पावन बनने का बीड़ा उठाना हैं । हम युगल इकट्ठे रह पवित्र दुनिया का मालिक बनेंगे । फिर कोई-कोई तो फेल भी हो पड़ते हैं । बाबा के हाथ में कोई शास्त्र आदि नहीं हैं । यह तो शिवबाबा कहते हैं मैं ब्रह्मा द्वारा तुमको सभी वेदों-शास्त्रों का सार सुनाता हूँ, कृष्ण नहीं । कितना फर्क है । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना है । ऐसा कोई कर्म न हो जिससे बाप, टीचर और सतगुरू की निंदा हो । इज्जत गँवाने वाला कोई कर्म नहीं करना है ।

2. विचार सागर मंथन करने की आदत डालनी है । बाप से जो ज्ञान मिला है उसका सिमरण कर अपार खुशी में रहना है । किसी से भी घृणा नहीं करनी है ।

वरदान:-

नीरस वातावरण में खुशी की झलक का अनुभव कराने वाले एवरहैप्पी भव !   

एवरहैप्पी अर्थात् सदा खुश रहने का वरदान जिन बच्चों को प्राप्त है वह दुख की लहर उत्पन्न करने वाले वातावरण में, नीरस वातावरण में, अप्राप्ति का अनुभव कराने वाले वातावरण में सदा खुश रहेंगे और अपनी खुशी की झलक से दुख और उदासी के वातावरण को ऐसे परिवर्तन करेंगे जैसे सूर्य अंधकार को परिवर्तन कर देता है । अंधकार के बीच रोशनी करना, अशान्ति के अन्दर शान्ति लाना, नीरस वातावरण में खुशी की झलक लाना इसको कहा जाता है एवरहैप्पी । वर्तमान समय इसी सेवा की आवश्यकता है ।

स्लोगन:- 

अशरीरी वह है जिसे शरीर की कोई भी आकर्षण अपनी तरफ आकर्षित न करे ।   

 

अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए विशेष होमवर्क

बाप को अव्यक्त रूप में सदा साथी अनुभव करना और सदा उमंग-उत्साह और खुशी में झूमते रहना । कोई बात नीचे ऊपर आई हो तो भी ड्रामा का खेल समझकर बहुत अच्छा, बहुत अच्छा करते अच्छा बनना और अच्छे बनने के वायब्रेशन से नगेटिव को पाजिटिव में बदल देना ।

 

ओम् शान्ति |