13-01-15
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - तुम्हें अपने योगबल से ही विकर्म विनाश कर पावन बन
पावन दुनिया बनानी है,
यही तुम्हारी सेवा है” 
प्रश्न:-
देवी-देवता धर्म की कौन- सी विशेषता गाई हुई है?
उत्तर:-
देवी-देवता धर्म ही बहुत सुख देने वाला है । वहाँ दु :ख का
नाम-निशान नहीं । तुम बच्चे 3/4 सुख पाते हो । अगर आधा सुख,
आधा
दु :ख हो तो मजा ही न आये ।
ओम् शान्ति
|
भगवानुवाच । भगवान ने ही समझाया है कि कोई मनुष्य को भगवान
नहीं कहा जा सकता । देवताओं को भी भगवान नहीं कहा जाता । भगवान
तो निराकार है,
उनका
कोई भी साकारी वा आकारी रूप नहीं है । सूक्ष्मवतनवासियों का भी
सूक्ष्म आकार है इसलिए उसको कहा जाता है सूक्ष्मवतन । यहाँ
साकारी मनुष्य तन है इसलिए इसको स्थूल वतन कहा जाता है ।
सूक्ष्मवतन में यह स्थूल 5 तत्वों का शरीर होता नहीं । यह 5
तत्वों का मनुष्य शरीर बना हुआ है,
इनको
कहते हैं मिट्टी का पुतला । सूक्ष्मवतनवासियों को मिट्टी का
पुतला नहीं कहेंगे । डीटी (देवता) धर्म वाले भी हैं मनुष्य,
परन्तु उनको कहेंगे दैवीगुण वाले मनुष्य । यह
दैवीगुण प्राप्त किये हैं शिवबाबा से । दैवीगुण वाले मनुष्य और
आसुरी गुण वाले मनुष्यों में कितना फर्क है । मनुष्य ही शिवालय
वा वेश्यालय में रहने लायक बनते हैं । सतयुग को कहा जाता है
शिवालय । सतयुग यहाँ ही होता है । कोई मूलवतन वा सूक्ष्मवतन
में नहीं होता है । तुम बच्चे जानते हो वह शिवबाबा का स्थापन
किया हुआ शिवालय है । कब स्थापन किया?
संगम
पर । यह पुरूषोत्तम युग है । अभी यह दुनिया है पतित तमोप्रधान
। इसको सतोप्रधान नई दुनिया नहीं कहेंगे । नई दुनिया को
सतोप्रधान कहा जाता है । वही फिर जब पुरानी बनती है तो उसको
तमोप्रधान कहा जाता है । फिर सतोप्रधान कैसे बनती हैं?
तुम
बच्चों के योगबल से । योगबल से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होते
हैं और तुम पवित्र बन जाते हो । पवित्र के लिए तो फिर जरूर
पवित्र दुनिया चाहिए । नई दुनिया को पवित्र,
पुरानी दुनिया को अपवित्र कहा जाता है । पवित्र दुनिया बाप
स्थापन करते हैं,
पतित
दुनिया रावण स्थापन करते हैं । यह बातें कोई मनुष्य नहीं जानते
। यह 5 विकार न हो तो मनुष्य दु :खी होकर बाप को याद क्यों
करे! बाप कहते हैं मैं हूँ ही दु:ख हर्ता सुखकर्ता । रावण का 5
विकारों का पुतला बना दिया है - 10
शीश का । उस रावण को दुश्मन समझकर जलाते हैं । सो भी ऐसे नहीं
कि द्वापर आदि से ही जलाना शुरू करते हैं । नहीं,
जब
तमोप्रधान बनते हैं तब कोई मत- मतान्तर वाले बैठ यह नई बातें
निकालते हैं । जब कोई बहुत दुःख देते हैं तब उनका एफीजी (
पुतला) बनाते हैं । तो यहाँ भी मनुष्यों को जब बहुत दु :ख
मिलता है तब यह रावण का बुत बनाकर जलाते हैं । तुम बच्चों को
3/4 सुख रहता है । अगर आधा दु :ख हो तो वह मज़ा ही क्या रहा!
बाप कहते हैं तुम्हारा यह देवी-देवता धर्म बहुत सुख देने वाला
है । सृष्टि तो अनादि बनी हुई है । यह कोई पूछ नहीं सकता कि
सृष्टि क्यों बनी,
फिर
कब पूरी होगी?
यह
चक्र फिरता ही रहता है । शास्त्रों में कल्प की आयु लाखों वर्ष
लगा दी है । जरूर संगमयुग भी होगा,
जबकि
सृष्टि बदलेगी । अभी जैसे तुम फील करते हो,
ऐसे
और कोई समझते नहीं । इतना भी नहीं समझते-बचपन में राधे-कृष्ण
नाम है फिर स्वयंवर होता है । दोनों अलग- अलग राजधानी के हैं
फिर उनका स्वयंवर होता है तो लक्ष्मी-नारायण बनते हैं । यह सब
बातें बाप समझाते हैं । बाप ही नॉलेजफुल है । ऐसे नहीं कि वह
जानी- जाननहार है । अब तुम बच्चे समझते हो बाप तो आकर नॉलेज
देते हैं । नॉलेज पाठशाला में मिलती है । पाठशाला में एम
ऑब्जेक्ट तो जरूर होनी चाहिए । अभी तुम पढ़ रहे हो । छी-छी
दुनिया में राज्य नहीं कर सकते । राज्य करेंगे गुल-गुल दुनिया
में । राजयोग कोई सतयुग में थोड़ेही सिखायेंगे । संगमयुग पर ही
बाप राजयोग सिखलाते हैं । यह बेहद की बात है । बाप कब आते हैं,
किसको भी पता नहीं । घोर अन्धियारे में हैं । ज्ञान सूर्य नाम
से जापान में वो लोग अपने को सूर्यवंशी कहलाते हैं । वास्तव
में सूर्यवंशी तो देवतायें ठहरे । सूर्यवंशियों का राज्य सतयुग
में ही था । गाया भी जाता है ज्ञान सूर्य प्रगटा.... तो
भक्तिमार्ग का अन्धियारा विनाश । नई दुनिया सो पुरानी,
पुरानी दुनिया सो फिर नई होती है । यह बेहद का बड़ा घर है ।
कितना बड़ा माण्डवा है । सूर्य,
चाँद,
सितारे कितना काम देते हैं । रात्रि को बहुत काम चलता है । ऐसे
भी कई राजा लोग हैं जो दिन को सो जाते,
रात
को अपनी सभा आदि लगाते हैं,
खरीददारी करते हैं । यह अभी तक भी कहाँ- कहाँ चलता है । मिल्स
आदि भी रात को चलती है । यह है हद के दिन-रात । वह है बेहद की
बात । यह बातें सिवाए तुम्हारे और किसी की बुद्धि में नहीं हैं
। शिवबाबा को भी जानते नहीं । बाप हर बात समझाते रहते हैं ।
ब्रह्मा के लिए भी समझाया है-प्रजापिता ब्रह्मा है । बाप जब
सृष्टि रचते हैं तो जरूर किसम प्रवेश करेंगे । पावन मनुष्य तो
होते ही सतयुग में है । कलियुग में तो सब विकार से पैदा होते
हैं इसलिए पतित कहा जाता है । मनुष्य कहेंगे विकार बिगर सृष्टि
कैसे चलेगी?
अरे,
देवताओं को तुम कहते हो सम्पूर्ण निर्विकारी । कितनी शुद्धता
से उन्हों के मन्दिर बनाते हैं । ब्राह्मण बिगर कोई को अन्दर
एलाउ नहीं करेंगे । वास्तव में इन देवताओं को विकारी कोई टच कर
नहीं सकता । परन्तु आजकल तो पैसे से ही सब कुछ होता है । कोई
घर में मन्दिर आदि रखते हैं तो भी ब्राह्मण को ही बुलाते हैं ।
अब विकारी तो वह ब्राह्मण भी है,
सिर्फ नाम ब्राह्मण है । यह तो दुनिया ही विकारी है तो पूजा भी
विकारियों से होती है । निर्विकारी कहाँ से आये! निर्विकारी
होते ही हैं सतयुग में । ऐसे नहीं कि जो विकार में नहीं जाते
उनको निर्विकारी कहेंगे । शरीर तो फिर भी विकार से पैदा हुआ है
ना । बाप ने एक ही बात बताई है कि यह सारा रावण राज्य है ।
रामराज्य में है सम्पूर्ण निर्विकारी,
रावण
राज्य में है विकारी । सतयुग में पवित्रता थी तो पीस
प्रासपर्टी थी । तुम दिखला सकते हो सतयुग में इन
लक्ष्मी-नारायण का राज्य थाना । वहाँ 5 विकार होते नहीं । वह
है ही पवित्र राज्य,
जो
भगवान स्थापन करते हैं । भगवान पतित राज्य थोड़ेही स्थापन करते
हैं । सतयुग में अगर पतित होते तो पुकारते ना । वहाँ तो कोई
पुकारते ही नहीं । सुख में कोई याद नहीं करते । परमात्मा की
महिमा भी करते हैं-सुख के सागर,
पवित्रता के सागर..... । कहते भी हैं शान्ति हो । अब सारी
दुनिया में शान्ति मनुष्य कैसे करेंगे?
शान्ति का राज्य तो एक स्वर्ग में ही था । जब कोई आपस में लड़ते
हैं तो सुलह (शान्ति) कराना होता है । वहाँ तो है ही एक राज्य
।
बाप
कहते हैं इस पुरानी दुनिया को ही अब खत्म होना है । इस महाभारत
लड़ाई में सब विनाश होते हैं । विनाश काले विपरीत बुद्धि- अक्षर
भी लिखा हुआ है । बरोबर पाण्डव तो तुम हो ना । तुम हो रूहानी
पण्डे । सबको मुक्तिधाम का रास्ता बताते हो । वह है आत्माओं का
घर शान्तिधाम । यह है दुःखधाम । अब बाप कहते हैं इस दुःखधाम को
देखते हुए भी भूल जाओ । बस,
अभी
तो हमको शान्तिधाम में जाना है । यह आत्मा कहती है,
आत्मा रियलाइज करती है । आत्मा को स्मृति आई है कि मैं आत्मा
हूँ । बाप कहते हैं मैं जो हूँ जैसा हूँ..... और तो कोई समझ न
सके । तुमको ही समझाया है - मैं बिन्दी हूँ । तुम्हें यह
घड़ी-घड़ी बुद्धि में रहना चाहिए कि हमने 84 का चक्र कैसे लगाया
है । इसमें बाप भी याद आयेगा,
घर
भी याद आयेगा,
चक्र
भी याद आयेगा । इस वर्ल्ड की हिस्ट्री-जाग्राफी को तुम ही
जानते हो । कितने खण्ड हैं । कितनी लड़ाई आदि लगी । सतयुग में
लड़ाई आदि की बात ही नहीं । कहाँ राम राज्य,
कहाँ
रावण राज्य । बाप कहते हैं अभी तुम जैसेकि ईश्वरीय राज्य में
हो क्योंकि ईश्वर यहाँ आया है राज्य स्थापन करने । ईश्वर खुद
तो राज्य करते नहीं,
खुद
राजाई लेते नहीं । निष्काम सेवा करते हैं । ऊंच ते ऊंच भगवान
है सब आत्माओं का बाप । बाबा कहने से एकदम खुशी का पारा चढ़ना
चाहिए । अतीन्द्रिय सुख तुम्हारी अन्तिम अवस्था का गाया हुआ है
। जब इम्तहान के दिन नजदीक आते हैं,
उस
समय सब साक्षात्कार होते हैं । अतीन्द्रिय सुख भी बच्चों को
नम्बरवार है । कोई तो बाप की याद में बड़ी खुशी में रहते हैं ।
तुम बच्चों को सारा दिन यही फीलिंग रहे कि ओहो बाबा,
आपने
हमें क्या से क्या बना दिया! आपसे कितना न हमें सुख मिलता
है...... बाप को याद करते प्रेम के आंसू आ जाते । कमाल है,
आप
आकरके हमको दु :ख से छुड़ाते हो,
विषय
सागर से क्षीरसागर में ले चलते हो,
सारा
दिन यही फीलिंग रहनी चाहिए । बाप जिस समय तुमको याद दिलाते हैं
तो तुम कितने गदगद होते हो । शिवबाबा हमको राजयोग सिखला रहे
हैं । बरोबर शिवरात्रि भी मनाई जाती है । परन्तु मनुष्यों ने
शिवबाबा के बदले श्रीकृष्ण का नाम गीता में दे दिया है । यह
बड़े ते बड़ी एकज भूल है । नम्बरवन गीता में ही भूल कर दी है ।
ड्रामा ही ऐसा बना हुआ है । बाप आकर यह भूल बताते हैं कि
पतित-पावन मैं हूँ वा कृष्ण?
तुमको मैंने राजयोग सिखलाए मनुष्य से देवता बनाया । गायन भी
मेरा है ना । अकाल मूर्त,
अजोनि...... कृष्ण की यह महिमा थोड़ेही कर सकते । वह तो
पुनर्जन्म में आने वाला है । तुम बच्चों में भी नम्बरवार है,
जिनकी बुद्धि में यह सब बातें रहती हैं । ज्ञान के साथ चलन भी
अच्छी चाहिए । माया भी कोई कम नहीं । जो पहले आयेंगे वह जरूर
इतनी ताकत वाले होंगे । पार्टधारी भिन्न-भिन्न होते हैं ना ।
हीरो-हीरोइन का पार्ट भारतवासियों को ही मिला हुआ है । तुम
सबको रावण राज्य से छुड़ाते हो । श्रीमत पर तुमको कितना बल
मिलता है । माया भी बड़ी दुश्तर है,
चलते-चलते धोखा दे देती है ।
बाबा
प्यार का सागर है तो तुम बच्चों को भी बाप समान प्यार का सागर
बनना है । कभी कड़वा नहीं बोलो । किसको दु :ख देंगे तो दु :खी
होकर मरेंगे । यह आदतें सब मिटानी चाहिए । गन्दे ते गन्दी आदत
है विषय सागर में गोते खाना । बाप भी कहते हैं काम महाशत्रु है
। कितनी बच्चियॉ मार खाती हैं । कोई-कोई तो बच्ची को कह देंगे
भल पवित्र बनो । अरे,
पहले
खुद तो पवित्र बनो । बच्ची दे दी,
खर्चे आदि के बोझ से और ही छूटा क्योंकि समझते हैं-पता नहीं,
इनकी
तकदीर में क्या है,
घर
भी कोई सुखी मिले या न मिले । आजकल खर्चा भी बहुत लगता है ।
गरीब लोग तो झट दे देते हैं । कोई को फिर मोह रहता है । आगे एक
भीलनी आती थी,
उनको
ज्ञान में आने नहीं दिया क्योंकि जादू का डर था । भगवान को
जादूगर भी कहते हैं । रहमदिल भी भगवान को ही कहेंगे । कृष्ण को
थोड़ेही कहेंगे । रहमदिल वह जो बेरहमी से छुड़ाये । बेरहमी है
रावण । पहले-पहले है ज्ञान । ज्ञान,
भक्ति फिर वैराग्य । ऐसे नहीं कि भक्ति,
ज्ञान फिर वैराग्य कहेंगे । ज्ञान का वैराग्य थोड़ेही कह सकते |
भक्ति का वैराग्य करना होता है इसलिए ज्ञान,
भक्ति,
वैराग्य यह राइट अक्षर है । बाप तुमको बेहद का अर्थात् पुरानी
दुनिया का वैराग्य कराते हैं । सन्यासी तो सिर्फ घरबार से
वैराग्य कराते हैं । यह भी ड्रामा में नूंध है । मनुष्यों की
बुद्धि में बैठता ही नहीं । भारत 100
परसेन्ट सालवेन्ट,
निर्विकारी,
हेल्दी था,
कभी
अकाले मृत्यु नहीं होती थी,
इन
सब बातों की धारणा बहुत थोड़ी को ही होती है । जो अच्छी सर्विस
करते हैं,
वह
बहुत साहूकार बनेंगे । बच्चों को तो सारा दिन बाबा- बाबा ही
याद रहना चाहिए । परन्तु माया करने नहीं देती । बाप कहते हैं
सतोप्रधान बनना है तो चलते,
फिरते,
खाते
मुझे याद करो । मैं तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ,
तुम
याद नहीं करेंगे! बहुतों को माया के तूफान बहुत आते हैं । बाप
समझाते हैं-यह तो होगा । ड्रामा में नूंध है । स्वर्ग की
स्थापना तो होनी ही है । सदैव नई दुनिया तो रह नहीं सकती ।
चक्र फिरेगा तो नीचे जरूर उतरेंगे । हर चीज नई से फिर पुरानी
जरूर होती है । इस समय माया ने सबको अप्रैल फूल बनाया है,
बाप
आकर गुल-गुल बनाते हैं । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
बाप
समान प्यार का सागर बनना है । कभी किसी को दु :ख नहीं देना है
। कडुवे बोल नहीं बोलने हैं । गन्दी आदतें मिटा देनी हैं ।
2.
बाबा से
मीठी-मीठी बातें करते इसी फीलिंग में रहना है कि ओहो बाबा,
आपने हमें क्या से क्या बना दिया! आपने हमें कितना सुख दिया
है! बाबा,
आप क्षीर सागर में ले चलते हो....... सारा दिन बाबा- बाबा याद
रहे ।
वरदान:-
मास्टर रचयिता की स्टेज द्वारा आपदाओं में भी मनोरंजन का अनुभव
करने वाले सम्पूर्ण योगी
भव ! 
मास्टर रचयिता की स्टेज पर स्थित रहने से बड़े से बड़ी आपदा एक
मनोरंजन का दृश्य अनुभव होगी । जैसे महाविनाश की आपदा को भी
स्वर्ग के गेट खुलने का साधन बताते हो,
ऐसे
किसी भी प्रकार की छोटी बड़ी समस्या व आपदा मनोरंजन का रूप
दिखाई दे,
हाय-हाय के बजाए ओहो शब्द निकले- दु :ख भी सुख के रूप में
अनुभव हो । दु :ख-सुख की नॉलेज होते हुए भी उसके प्रभाव में न
आयें,
दु
:ख को भी बलिहारी सुख के दिन आने की समझें-तब कहेंगे सम्पूर्ण
योगी ।
स्लोगन:-
दिलतख्त
को छोड़ साधारण संकल्प करना अर्थात् धरनी में पांव रखना । 
अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए विशेष होमवर्क
अभ्यास
करो कि इस स्थूल देह में प्रवेश कर कमीन्द्रयों से कार्य कर
रहे हैं । जब चाहे प्रवेश करो और जब चाहे न्यारे हो जाओ । एक
सेकेण्ड में धारण करो और एक सेकेण्ड में देह के भान को छोड़
देही बन जाओ ।
ओम्
शान्ति |