11-02-15
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा”
मधुबन
“मीठे
बच्चे - तुम्हें चलते फिरते याद में रहने का अभ्यास करना है ।
ज्ञान और योग यही मुख्य दो चीजें हैं,
योग माना याद
|” 
प्रश्न:-
अक्लमंद (होशियार) बच्चे कौन से बोल मुख से नहीं बोलेंगे?
उत्तर:-
हमें
योग सिखलाओ,
यह
बोल अक्लमंद बच्चे नहीं बोलेंगे । बाप को याद करना सीखना होता
है क्या! यह पाठशाला है पढ़ने पढ़ाने के लिए । ऐसे नहीं,
याद
करने के लिए कोई खास बैठना है । तुम्हें कर्म करते बाप को याद
करने का अभ्यास करना है ।
ओम्
शान्ति |
अब
रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं । बच्चे जानते हैं
रूहानी बाप इस रथ द्वारा हमको समझा रहे हैं । अब जबकि बच्चे
हैं तो बाप को वा किसी बहन वा भाई को कहना कि मुझे बाबा को याद
करना सिखलाओ,
यह
रांग हो जाता है । तुम कोई छोटी बच्चियां तो नहीं हो ना । यह
तो जानते हो मुख्य है रूह । वह तो है अविनाशी । शरीर है विनाशी
। बड़ा तो रूह हुआ ना । अज्ञानकाल में यह ज्ञान किसको नहीं रहता
है कि हम आत्मा हैं,
शरीर
द्वारा बोलते हैं । देह- अभिमान में आकर ही बोलते हैं-मैं यह
करता हूँ । अभी तुम देही- अभिमानी बने हो । जानते हो आत्मा
कहती है मैं इस शरीर द्वारा बोलती हूँ,
कर्म
करती हूँ । आत्मा मेल है । बाप समझाते हैं-यह बोल बहुत करके
सुने जाते हैं,
कहते
हैं हमको योग में बिठाओ । सामने एक बैठते हैं,
इस
ख्याल से कि हम भी बाबा की याद में बैठें,
यह
भी बैठें । अब पाठशाला कोई इसके लिए नहीं है । पाठशाला तो पढ़ाई
के लिए है । बाकी ऐसे नहीं,
यहाँ
बैठकर सिर्फ तुम्हें याद करना है । बाप ने तो समझाया है चलते
फिरते,
उठते
बैठते बाप को याद करो,
इसके
लिए खास बैठने की भी दरकार नहीं । जैसे कोई कहते हैं राम-राम
कहो,
क्या
बिगर राम-राम कहे याद नहीं कर सकते हैं?
याद
तो चलते फिरते कर सकते हैं । तुमको तो कर्म करते बाप को याद
करना है । आशिक माशूक कोई खास बैठकर एक- दो को याद नहीं करते
हैं । काम काज धन्धा आदि सब करना है,
सब
कुछ करते अपने माशक को याद करते रहो । ऐसे नहीं कि उनको याद
करने के लिए खास कहाँ जाकर बैठना है ।
तुम
बच्चे गीत वा कवितायें आदि सुनाते हो,
तो
बाबा कह देते हैं यह भक्ति मार्ग के हैं । कहते भी हैं शान्ति
देवा,
सो
तो परमात्मा को ही याद करते हैं,
न कि
कृष्ण को । ड्रामा अनुसार आत्मा अशान्त हो पड़ी है तो बाप को
पुकारती है क्योंकि शान्ति,
सुख,
ज्ञान का सागर वह है । ज्ञान और योग मुख्य दो चीजें हैं,
योग
माना याद । उन्हों का हठयोग बिल्कुल ही अलग है । तुम्हारा है
राजयोग । बाप को सिर्फ याद करना है । बाप द्वारा तुम बाप को
जानने से सृष्टि के आदि,
मध्य,
अन्त
को जान गये हो । तुमको सबसे बड़ी खुशी तो यह है कि हमको भगवान
पढ़ाते हैं । भगवान का भी पहले-पहले पूरा परिचय होना चाहिए ।
ऐसा तो कभी नहीं जाना कि जैसे आत्मा स्टॉर है,
वैसे
भगवान भी स्टार है । वह भी आत्मा है । परन्तु उनको परम आत्मा,
सुप्रीम सोल कहा जाता है । वह कभी पुनर्जन्म तो लेते नहीं हैं
। ऐसे नहीं कि वह जन्म मरण में आते हैं । नहीं,
पुनर्जन्म नहीं लेते हैं । खुद आकर समझाते हैं मैं कैसे आता
हूँ?
त्रिमूर्ति का गायन भी भारत में है । त्रिमूर्ति ब्रह्मा-
विष्णु-शंकर का चित्र भी दिखाते हैं । शिव परमात्माए नम : कहते
हैं ना । उस ऊंच ते ऊँच बाप को भूल गये हैं,
सिर्फ त्रिमूर्ति का चित्र दे दिया है । ऊपर में शिव तो जरूर
होना चाहिए,
जिससे यह समझे कि इनका रचयिता शिव है । रचना से कभी वर्सा नहीं
मिल सकता है । तुम जानते हो ब्रह्मा से कुछ भी वर्सा नहीं
मिलता । विष्णु को तो हीरे जवाहरों का ताज है ना । शिवबाबा
द्वारा फिर पेनी से पाउण्ड बने हैं । शिव का चित्र न होने से
सारा खण्डन हो जाता है । ऊंच ते ऊंच है परमपिता परमात्मा,
उनकी
यह रचना है । अभी तुम बच्चों को बाप से स्वर्ग का वर्सा मिलता
है,
21
जन्मों के लिए । भल वहाँ फिर भी समझते हैं लौकिक बाप से वर्सा
मिला है । वहाँ यह पता नहीं कि यह बेहद के बाप से पाई हुई
प्रालब्ध है । यह तुमको अभी पता है । अभी की कमाई वहाँ 21 जन्म
चलती है । वहाँ यह मालूम नहीं रहता है,
इस
ज्ञान का बिल्कुल पता नहीं रहता । यह ज्ञान न देवताओ में हैं,
न
शूद्रों में रहता है । यह ज्ञान है ही तुम ब्राह्मणों में । यह
है रूहानी ज्ञान,
स्प्रीचुअल का अर्थ भी नहीं जानते हैं । डॉक्टर आफ फिलॉसाफी
कहते हैं । डाक्टर आफ स्प्रीचुअल नॉलेज एक ही बाप है । बाप को
सर्जन भी कहा जाता है ना । साधू सन्यासी आदि कोई सर्जन थोड़ेही
हैं । वेद शास्त्र आदि पढ़ने वालों को डॉक्टर थोड़ेही कहेंगे ।
भल टाइटल भी दे देते हैं परन्तु वास्तव में रूहानी सर्जन है एक
बाप,
जो
रूह को इंजेक्शन लगाते हैं । वह है भक्ति । उनको कहना चाहिए
डाक्टर आफ भक्ति अथवा शास्त्रों का ज्ञान देते हैं । उनसे
फायदा कुछ भी नहीं होता,
नीचे
गिरते ही जाते हैं । तो उनको डॉक्टर कैसे कहेंगे?
डॉक्टर तो फायदा पहुँचाते हैं ना । यह बाप तो है अविनाशी ज्ञान
सर्जन । योगबल से तुम एवरहेल्दी बनते हो । यह तो तुम बच्चे ही
जानते हो । बाहर वाले क्या जानें । उनको अविनाशी सर्जन कहा
जाता है । आत्माओं में जो विकारों की खाद पड़ी है,
उसे
निकालना,
पतित
को पावन बनाकर सद्गति देना-यह बाप में शक्ति है । ऑलमाइटी
पतित-पावन एक फादर है । ऑलमाइटी कोई मनुष्य को नहीं कह सकते
हैं । तो बाप कौन-सी शक्ति दिखाते हैं?
सर्व
को अपनी शक्ति से सद्गति दे देते हैं । उनको कहेंगे डॉक्टर ऑफ
स्प्रीचुअल नॉलेज । डॉक्टर आफ फिलॉसाफी-यह तो ढेर के ढेर
मनुष्य हैं । स्प्रीचुअल डॉक्टर एक है । तो अब बाप कहते हैं
अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो और पवित्र बनो । मैं आया
ही हूँ पवित्र दुनिया स्थापन करने,
फिर
तुम पतित क्यों बनते हो?
पावन
बनो,
पतित
मत बनो । सभी आत्माओं को बाप का डायरेक्शन है-गृहस्थ व्यवहार
में रहते कमल फूल समान पवित्र रहो । बाल ब्रह्मचारी बनो तो फिर
पवित्र दुनिया के मालिक बन जायेंगे । इतने जन्म जो पाप किये
हैं,
अब
मुझे याद करने से पाप भस्म हो जायेंगे । मूलवतन में पवित्र
आत्मायें ही रहती हैं । पतित कोई जा नहीं सकते हैं । बुद्धि
में यह तो याद रखना ही है-बाबा हमको पढ़ाते हैं । स्टूडेंट ऐसे
कहेंगे क्या कि हमको टीचर की याद सिखलाओ । याद सिखलाने की क्या
दरकार है । यहाँ (संदली पर) कोई न बैठे तो भी हर्जा नहीं है ।
अपने बाप को याद करना है । तुम सारा दिन धन्धे धोरी आदि में
रहते हो तो भूल जाते हो,
इसलिए यहाँ बिठाया जाता है । यह 10
- 15 मिनट भी याद करें । तुम बच्चों को तो काम काज करते याद
में रहने की आदत डालनी है । आधाकल्प बाद माशूक मिलता है । अब
कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारी आत्मा से खाद निकल जायेगी
और तुम विश्व के मालिक बन जायेंगे । तो क्यों नहीं याद करना
चाहिए । स्त्री का जब हथियाला बांधते हैं तो उनको कहते हैं पति
तुम्हारा गुरू ईश्वर सब कुछ है । परन्तु वह तो फिर भी मित्र,
सम्बन्धी,
गुरू
आदि बहुतों को याद करती है । वह तो देहधारी की याद हो गई । यह
तो पतियों का पति है,
उनको
याद करना है । कोई कहते हैं हमको नेष्ठा में बिठाओ । परन्तु
इससे क्या होगा । 10
मिनट यहाँ बैठते हैं तो भी ऐसे मत समझो कि कोई एकरस हो बैठते
हैं । भक्ति मार्ग में किसकी पूजा करने बैठते हैं तो बुद्धि
बहुत भटकती रहती है । नौधा भक्ति करने वालों को यही तात लगी
रहती है कि हमको साक्षात्कार हो । वह आश लगाकर बैठे रहते हैं ।
एक की लगन में लवलीन हो जाते हैं,
तब
साक्षात्कार होता है । उनको कहा जाता है नौंधा भक्त । वह भक्ति
ऐसी है जैसे आशिक-माशूक । खाते पीते बुद्धि में याद रहती है ।
उनमें विकार की बात नहीं होती,
शरीर
पर प्यार हो जाता है । एक-दो को देखने बिगर रह नहीं सकते ।
अब
तुम बच्चों को बाप ने समझाया हैं - मुझे याद करने से तुम्हारे
विकर्म विनाश होंगे । कैसे तुमने 84 जन्म लिए हैं । बीज को याद
करने से सारा झाड़ याद आ जाता है । यह वैराइटी धर्मों का झाड़ है
ना । यह सिर्फ तुम्हारी बुद्धि में ही है कि भारत गोल्डन एज
में था,
अब
आइरन एज में है । यह अंग्रेजी अक्षर अच्छे हैं,
इनका
अर्थ अच्छा निकलता है । आत्मा सच्चा सोना होती है फिर उनमें
खाद पड़ती है । अभी बिल्कुल झूठी हो गई है,
इनको
कहा जाता है आइरन एजेड । आत्मायें आइरन एजेड होने से जेवर भी
ऐसा हो गया है । अभी बाप कहते हैं मैं पतित-पावन हूँ,
मामेकम् याद करो । तुम मुझे बुलाते हो हे पतित-पावन आओ । मैं
कल्प-कल्प आकर तुमको यह युक्ति बतलाता हूँ । मन्मनाभव,
मध्याजी भव अर्थात् स्वर्ग के मालिक बनो । कोई कहते हैं हमको
योग में बहुत मजा आता है,
ज्ञान में इतना मजा नहीं । बस,
योग
करके यह भागेंगे । योग ही अच्छा लगता है,
कहते
हैं हमको तो शान्ति चाहिए । अच्छा,
बाप
को तो कहाँ भी बैठ याद करो । याद करते-करते तुम शान्तिधाम में
चले जायेंगे । इसमें योग सिखलाने की बात ही नहीं है । बाप को
याद करना है । ऐसे बहुत हैं जो सेंटर्स पर जाकर आधा पीना घण्टा
बैठते हैं,
कहते
हैं हमको नेष्ठा कराओ या तो कहेंगे बाबा ने प्रोग्राम दिया है
नेष्ठा का । यहाँ बाबा कहते हैं चलते फिरते याद में रहो । ना
से तो बैठना अच्छा है । बाबा मना नहीं करते हैं,
भल
सारी रात बैठो,
परन्तु ऐसी आदत थोड़ेही डालनी है कि बस रात को ही याद करना है ।
आदत यह डालनी है कि काम काज करते याद करना है । इसमें बड़ी
मेहनत है । बुद्धि घड़ी-घड़ी और तरफ भाग जाती है । भक्ति मार्ग
में भी बुद्धि भाग जाती है फिर अपने को चुटकी काटते हैं ।
सच्चे भक्त जो होते हैं उनकी बात करते हैं । तो यहाँ भी अपने
साथ ऐसी-ऐसी बातें करनी चाहिए । बाबा को क्यों नहीं याद किया?
याद
नहीं करेंगे तो विश्व के मालिक कैसे बनेंगे?
आशिक-माशूक तो नाम-रूप में फंसे रहते हैं । यहाँ तो तुम अपने
को आत्मा समझ बाप को याद करते हो । हम आत्मा इस शरीर से अलग
हैं । शरीर में आने से कर्म करना होता है । बहुत ऐसे भी हैं जो
कहते हैं हम दीदार करें । अब दीदार क्या करेंगे । वह तो बिन्दी
है ना । अच्छा,
कोई
कहते हैं कृष्ण का दीदार करें । कृष्ण का तो चित्र भी है ना ।
जो जड़ है सो फिर चैतन्य में देखेंगे इससे फायदा क्या हुआ?
साक्षात्कार से थोड़ेही फायदा होगा । तुम बाप को याद करो तो
आत्मा पवित्र हो । नारायण का साक्षात्कार होने से नारायण
थोड़ेही बन जायेंगे ।
तुम
जानते हो हमारी एम ऑब्जेक्ट है ही लक्ष्मी-नारायण बनने की
परन्तु पढ़ने बिगर थोड़ेही बनेंगे । पढ़कर होशियार बनो,
प्रजा भी बनाओ तब लक्ष्मी-नारायण बनेंगे । मेहनत है । पास विद्
ऑनर होना चाहिए जो धर्मराज की सजा न मिले । यह मुरब्बी बच्चा
भी साथ है,
यह
भी कहते हैं तुम तीखे जा सकते हो । बाबा के ऊपर तो कितना बोझा
है । सारा दिन कितने ख्यालात करने पड़ते हैं । हम इतना याद नहीं
कर सकते हैं । भोजन पर थोड़ी याद रहती फिर भूल जाते हैं । समझता
हूँ बाबा और हम दोनों सैर करते हैं । सैर करते-करते बाबा को
भूल जाता हूँ । खिसकनी वस्तु है ना । घड़ी-घडी याद खिसक जाती है
। इसमें बहुत मेहनत है । याद से ही आत्मा पवित्र होनी है ।
बहुतों को पढायेंगे तो ऊँच पद पायेंगे । जो अच्छा समझते हैं वह
अच्छा पद पायेंगे । प्रदर्शनी में कितनी प्रजा बनती है । तुम
एक-एक लाखों की सेवा करेंगे और फिर अपनी भी अवस्था ऐसी चाहिए ।
कर्मातीत अवस्था हो जायेगी फिर शरीर नहीं रहेगा । आगे चल तुम
समझेंगे अब लड़ाई जोर हो जायेगी फिर ढेर तुम्हारे पास आते
रहेंगे । महिमा बढ़ती जायेगी । अन्त में सन्यासी भी आयेंगे,
बाप
को याद करने लग पड़ेंगे । उनका पार्ट ही मुक्तिधाम में जाने का
है । नॉलेज तो लेंगे नहीं । तुम्हारा मैसेज सभी आत्माओं तक
पहुँचना है,
अखबारों द्वारा बहुत सुनेंगे । कितने गांव हैं,
सबको
पैगाम देना है । मैसेन्जर पैगम्बर तुम ही हो । पतित से पावन
बनाने वाला और कोई है नहीं,
सिवाए बाप के । ऐसे नहीं कि धर्म स्थापक किसको पावन बनाते हैं
। उनका धर्म तो वृद्धि को पाना है,
वह
वापिस जाने का रास्ता कैसे बतायेंगे?
सर्व
का सद्गति दाता एक है । तुम बच्चों को अब पवित्र जरूर बनना है
। बहुत हैं जो पवित्र नहीं रहते हैं । काम महाशत्रु है ना ।
अच्छे- अच्छे बच्चे गिर पड़ते हैं,
कुदृष्टि भी काम का ही अंश है । यह बड़ा शैतान है । बाप कहते
हैं इस पर जीत पहनो तो जगतजीत बन जायेंगे । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
काम-काज
करते याद में रहने की आदत डालनी है । बाप के साथ जाने वा पावन
नई दुनिया का मालिक बनने के लिए पवित्र जरूर बनना है ।
2. ऊंच
पद पाने के लिए बहुतों की सेवा करनी है । बहुतों को पढ़ाना है ।
मैसेन्जर बन यह मैसेज सभी तक पहुँचाना है ।
वरदान:-
पुरूषार्थ के सूक्ष्म आलस्य का भी त्याग करने वाले आलराउन्हर
अलर्ट
भव ! 
पुरूषार्थ की थकावट आलस्य की निशानी है । आलस्य वाले जल्दी
थकते हैं,
उमंग
वाले अथक होते हैं । जो पुरूषार्थ में दिलशिकस्त होते हैं
उन्हें ही आलस्य आता है,
वह
सोचते हैं क्या करें इतना ही हो सकता है,
ज्यादा नहीं हो सकता । हिम्मत नहीं है,
चल
तो रहे हैं,
कर
तो रहे हैं- अब इस सूक्ष्म आलस्य का भी नाम निशान न रहे इसके
लिए सदा अलर्ट,
एवररेडी और आलराउन्डर बनो ।
स्लोगन:-
समय के
महत्व को सामने रख सर्व प्राप्तियों का खाता फुल जमा करो ।
ओम्
शान्ति |