07-01-15          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - पुण्य आत्मा बनना है तो अपना पोतामेल देखो कि कोई पाप तो नहीं होता है, सच का खाता जमा है?”   


प्रश्न:-   
सबसे बड़ा पाप कौन-सा है?


उत्तर:-

किसी पर भी बुरी दृष्टि रखना-यह सबसे बड़ा पाप है । तुम पुण्य आत्मा बनने वाले बच्चे किसी पर भी बुरी दृष्टि (विकारी दृष्टि) नहीं रख सकते । जाँच करनी है हम कहाँ तक योग में रहते हैं? कोई पाप तो नहीं करते हैं? ऊंच पद पाना है तो खबरदारी रखो कि ज़रा भी कुदृष्टि न हो । बाप जो श्रीमत देते हैं उस पर पूरा चलते रहो ।


गीत:-   
मुखड़ा देख ले प्राणी..


ओम् शान्ति |

बेहद का बाप अपने बच्चों को कहते हैं बच्चे, अपने भीतर जरा जाँच करो । यह तो मनुष्यों को मालूम रहता है कि हमने सारे जीवन में कितने पाप, कितने पुण्य किये हैं? रोजाना अपना पोतामेल देखो-कितने पाप और कितने पुण्य किये हैं? किसको रंज (नाराज) तो नहीं किया? हर एक मनुष्य समझ सकते हैं-हमने लाइफ में क्या-क्या किया है? कितना पाप किया है, कितना दान-पुण्य आदि किया है? मनुष्य यात्रा पर जाते हैं तो दान-पुण्य करते हैं । कोशिश करके पाप नहीं करते हैं । तो बाप बच्चों से ही पूछते हैं-कितने पाप, कितने पुण्य किये हैं? अभी तुम बच्चों को पुण्य आत्मा बनना है । कोई भी पाप नहीं करना है । पाप भी अनेक प्रकार के होते हैं । कोई पर बुरी दृष्टि जाती है तो यह भी पाप है । बुरी दृष्टि होती ही है विकार की । वह है सबसे खराब । कभी भी विकार की दृष्टि नहीं जानी चाहिए । अक्सर करके स्त्री-पुरूष की तो विकार की ही दृष्टि होती है । कुमार-कुमारी की भी कहाँ न कहाँ विकार की दृष्टि उठती है । अब बाप कहते हैं यह विकार की दृष्टि नहीं होनी चाहिए । नहीं तो तुमको बन्दर कहना पड़े । नारद का मिसाल है ना । बोला हम लक्ष्मी को वर सकते हैं! तुम भी कहते हो ना हम तो लक्ष्मी को वरेंगे । नारी से लक्ष्मी, नर से नारायण बनेंगे । बाप कहते हैं अपने दिल से पूछो-कितने तक हम पुण्य आत्मा बने हैं? कोई पाप तो नहीं करते हैं? कहाँ तक योग में रहते हैं?

तुम बच्चे तो बाप को पहचानते हो तब तो यहाँ बैठे हो ना । दुनिया के मनुष्य थोड़ेही बाबा को पहचानेंगे कि यह बापदादा है । तुम ब्राह्मण बच्चे तो जानते हो परमपिता परमात्मा ब्रह्मा में प्रवेश होकर हमको अविनाशी ज्ञान रत्नों का खजाना देते हैं । मनुष्यों के पास होता है विनाशी धन । वही दान करते हैं, वह तो हैं पत्थर । यह हैं ज्ञान के रत्न । ज्ञान सागर बाप के पास ही रत्न हैं । यह एक-एक रत्न लाखों रूपयों का है । रत्नागर बाप से ज्ञान रत्न धारण कर और फिर इन रत्नों का दान करना है । जितना जो लेवे और देवे, उतना ऊंच पद पाये । तो बाप समझाते हैं अपने अन्दर देखो हमने कितने पाप किये हैं? अभी कोई पाप तो नहीं होता है? ज़रा भी कुदृष्टि न हो । बाप जो श्रीमत देते हैं उस पर पूरा चलते रहें, यह खबरदारी चाहिए । माया के तूफान तो भल आये परन्तु कर्मेन्द्रियों से कोई विकर्म नहीं करना है । कोई तरफ कुदृष्टि जाये तो उसके आगे खड़ा भी नहीं होना चाहिए । एकदम चला जाना चाहिए । मालूम पड़ जाता है-इनकी कुदृष्टि है | अगर ऊंच पद पाना है तो बहुत खबरदार रहना है । कुदृष्टि होगी तो फिर लूले-लंगड़े बन पड़ेंगे । बाप जो श्रीमत देते हैं, उस पर चलना है । बाप को बच्चे ही पहचान सकते हैं । समझो बाबा कहाँ जाता है, बच्चे ही समझेंगे कि बापदादा आया है । और मनुष्य देखते तो बहुत हैं परन्तु उनको थोड़ेही पता है । कोई पूछे भी यह कौन है? बोलो, बापदादा हैं । बैज तो सबके पास होने ही चाहिए । बोलो, शिवबाबा हमको इस दादा द्वारा अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान देते हैं । यह है स्प्रीचुअल नॉलेज । स्प्रीचुअल फादर सभी रूहों का बाप बैठ यह नॉलेज देते हैं । शिव भगवानुवाच, गीता में कृष्ण भगवानुवाच रांग है । ज्ञान सागर पतित-पावन शिव को ही कहा जाता है । ज्ञान से ही सद्गति होती है । यह है अविनाशी ज्ञान रत्न । सद्गति दाता एक ही बाप है । यह सब अक्षर पूरी रीति याद रखने चाहिए । अभी बच्चे समझते हैं कि हम बाप को जानते हैं और बाप भी समझते हैं कि हम बच्चों को जानते हैं । बाप तो कहेगा ना-यह सब हमारे बच्चे हैं, परन्तु जान नहीं सकते हैं । तकदीर में होगा तो आगे चलकर जानेंगे । समझो यह बाबा कहॉ जाता हैं, कोई पूछते हैं कि यह कौन है? जरूर शुद्ध भाव से ही पूछेंगे । अक्षर ही यह बोलो कि बापदादा हैं । बेहद का बाप है निराकार । वह जब तक साकार में न आये तब तक बाप से वर्सा कैसे मिले? तो शिवबाबा प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट कर वर्सा देते हैं । यह प्रजापिता ब्रह्मा और यह बी.के. हैं । पढ़ाने वाला ज्ञान का सागर है । उनसे ही वर्सा मिलता है । यह ब्रह्मा भी पढ़ता है । यह ब्राह्मण से फिर देवता बनने वाला है । कितना सहज है समझाना । कोई को भी बैज पर समझाना अच्छा है । बोलो, बाबा कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे । पावन बन और पावन दुनिया में चले जायेंगे । यह पतित-पावन बाप है ना । हम पुरूषार्थ कर रहे हैं पावन बनने का । जब विनाश का समय होगा तो फिर हमारी पढ़ाई पूरी हो जायेगी । कितना सहज है समझाना । कोई भी कहाँ आते-जाते हैं तो भी बैज साथ में होना चाहिए । इस बैज के साथ फिर एक छोटा पर्चा भी होना चाहिए । उसमें लिखा हो कि भारत में बाप आकरके फिर से आदि सनातन देवी- देवता धर्म स्थापन करते हैं । और सभी अनेक धर्म इस महाभारत लड़ाई द्वारा कल्प पहले मिसल ड्रामा प्लैन अनुसार खलास हो जायेंगे । ऐसे पर्चे 2 - 4 लाख छपे हों, जो कोई को भी पर्चा दे सकते हैं । ऊपर में त्रिमूर्ति हो, दूसरे तरफ सेंटर्स की एड्रेस हो । बच्चों को सारा दिन सर्विस का ख्याल चलना चाहिए ।

बच्चों ने गीत सुना - रोज अपना पोतामेल बैठ निकालना चाहिए कि आज सारे दिन में हमारी अवस्था कैसी रही? बाबा ने ऐसे बहुत मनुष्य देखे हैं जो रोज रात को सारे दिन का पोतामेल बैठ लिखते हैं । जाँच करते हैं-कोई खराब काम तो नहीं किया? सारा लिखते हैं । समझते हैं अच्छी जीवन कहानी लिखी हुई होगी तो पिछाड़ी वाले भी पढ़कर ऐसे सीखेंगे । ऐसा लिखने वाले अच्छे आदमी ही होते हैं । विकारी तो सब होते ही हैं । यहाँ तो वह बात नहीं है । तुम अपना पोतामेल रोज देखो । फिर बाबा के पास भेज देना चाहिए तो उन्नति अच्छी होगी और डर भी रहेगा । सब क्लीयर लिखना चाहिए- आज हमारी बुरी दृष्टि गई, यह हुआ....... । जो एक-दो को दु :ख देते हैं बाबा उन्हें गाजी कहते हैं । जन्म-जन्मान्तर के पाप तुम्हारे सिर पर हैं । अभी तुमको याद के बल से पापों का बोझ उतारना है इसलिए रोज देखना चाहिए हम सारे दिन में कितना गाजी बने हैं? किसको दुख देना गोया गाजी बनना है । पाप बन जाता है । बाप कहते हैं गाजी बन किसको दुःख मत दो । अपनी पूरी जाँच करो-हमने कितना पाप, कितना पुण्य किया है? जो भी मिले सबको यह रास्ता बताना ही है । सबको बहुत प्यार से बोलो, बाप को याद करना है और पवित्र बनना है । गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र बनना है । भल तुम संगम पर हो परन्तु यह तो रावण राज्य है ना । इस मायावी विषय वैतरणी नदी में रहते कमल फूल समान पवित्र बनना है । कमल फूल बहुत बाल बच्चों वाला होता है । फिर भी पानी से ऊपर रहता है । गृहस्थी है, बहुत चीजें पैदा करता है । यह दृष्टान्त तुम्हारे लिए भी है, विकारों से न्यारा होकर रहो । यह एक जन्म पवित्र रहो तो फिर यह अविनाशी हो जायेगा । तुमको बाप अविनाशी ज्ञान रत्न देते हैं । बाकी तो सब हैं पत्थर । वो लोग तो भक्ति की ही बातें सुनाते हैं । ज्ञान सागर पतित-पावन तो एक ही है तो ऐसे बाप से बच्चों का कितना लव रहना चाहिए । बाप का बच्चों से, बच्चों का बाप से लव रहता है । बाकी और कोई से कनेक्शन नहीं । सौतेले वह हैं जो बाप की मत पर पूरा नहीं चलते हैं । रावण की मत पर चलते हैं तो राम की मत थोड़ेही ठहरी । आधाकल्प है रावण सम्प्रदाय इसलिए इनको भ्रष्टाचारी दुनिया कहा जाता है । अब तुम्हें और सबको छोड़ एक बाप की मत पर चलना है । बी .के. की मत मिलती है सो भी जाँच करनी होती है कि यह मत राइट है वा रांग है? तुम बच्चों को राइट और रांग समझ भी अभी मिली है । जब राइटियस आये तब ही राइट और रांग बताये । बाप कहते हैं तुमने आधाकल्प यह भक्ति मार्ग के शास्त्र सुने हैं, अब मैं तुमको जो सुनाता हूँ-यह राइट है या वह राइट है? वह कहते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है, मैं कहता हूँ मैं तो तुम्हारा बाप हूँ । अब जज करो कौन राइट है? यह भी बच्चों को ही समझाया जाता है ना, जब ब्राह्मण बनें तब समझें । रावण सम्प्रदाय तो बहुत है, तुम तो बहुत थोड़े हो । उनमें भी नम्बरवार हैं । अगर कोई कुदृष्टि है, तो भी उनको रावण सम्प्रदाय कहा जायेगा । राम सम्प्रदाय का तब समझा जाए जब सारी दृष्टि बदल कर दैवी बन जाए । अपनी अवस्था से हर एक समझ तो सकते हैं ना । पहले तो ज्ञान था नहीं, अभी बाप ने रास्ता बताया है । तो देखना है अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान करता रहता हूँ? भक्त लोग दान करते हैं विनाशी धन का । अभी तुमको दान करना है अविनाशी धन का, न कि विनाशी । अगर विनाशी धन है तो अलौकिक सेवा में लगाते जाओ । पतित को दान करने से पतित ही बन जाते हो । अभी तुम अपना धन दान करते हो तो इसका एवजा फिर 21 जन्मों के लिए नई दुनिया में मिलता है । यह सब बातें समझने की हैं । बाबा सर्विस की युक्तियाँ भी बतालते रहते हैं । सब पर रहम करो । गाया हुआ भी है परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा स्थापना करते हैं । परन्तु अर्थ नहीं समझते । परमात्मा को ही सर्वव्यापी कह दिया है । तो बच्चों को सर्विस का शौक बहुत अच्छा रखना है । औरों का कल्याण करेंगे तो अपना भी कल्याण होगा । दिन-प्रतिदिन बाबा बहुत सहज करते जाते हैं । यह त्रिमूर्ति का चित्र तो बहुत अच्छी चीज है । इसमें शिवबाबा भी है, फिर प्रजापिता ब्रह्मा भी है । प्रजापिता ब्रह्माकुमार-कुमारियों द्वारा फिर से भारत में 100 परसेन्ट पवित्रता-सुख-शान्ति का दैवी स्वराज्य स्थापन कर रहे हैं । बाकी अनेक धर्म इस महाभारत लड़ाई से कल्प पहले मुआफिक विनाश हो जायेंगे । ऐसे-ऐसे पर्चे छपवाकर बाँटने चाहिए । बाबा कितना सहज रास्ता बताते हैं । प्रदर्शनी में भी पर्चे दो । पर्चे द्वारा समझाना सहज है । पुरानी दुनिया का विनाश तो होना ही है । नई दुनिया की स्थापना हो रही है । एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है । बाकी यह सब विनाश हो जायेंगे कल्प पहले मुआफिक । कहाँ भी जाओ, पॉकेट में भी पर्चे और बैजेस सदैव पड़े रहे । सेकण्ड में जीवनमुक्ति गाई हुई है । बोलो, यह है बाप, यह दादा । उस बाप को याद करने से यह सतयुगी देवता पद पायेंगे । पुरानी दुनिया का विनाश, नई दुनिया की स्थापना, विष्णुपुरी नई दुनिया में फिर इन्हों का राज्य होगा । कितना सहज है । तीर्थों आदि पर मनुष्य जाते हैं, कितने धक्के खाते हैं । आर्य समाजी आदि भी ट्रेन भरकर जाते हैं । इसको कहा जाता है धर्म के धक्के, वास्तव में है अधर्म के धक्के । धर्म में तो धक्के खाने की दरकार नहीं है । तुम तो पढ़ाई पढ़ रहे हो । भक्ति मार्ग में मनुष्य क्या-क्या करते रहते हैं!

बच्चों ने गीत में भी सुना कि मुखड़ा देख..... यह मुखड़ा तुम्हारे सिवाए तो कोई देख नहीं सकते हैं । भगवान को भी तुम दिखला सकते हो । यह है ज्ञान की बातें । तुम मनुष्य से देवता, पाप आत्मा से पुण्य आत्मा बनते हो । दुनिया इन बातों को बिल्कुल नहीं जानती । यह लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग के मालिक कैसे बनें-यह किसी को पता नहीं है । तुम बच्चे तो सब जानते हो । किसको बुद्धि में तीर लग जाए तो बेड़ा पार हो जाए । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. अगर विनाशी धन है तो उसको सफल करने के लिए अलौकिक सेवा में लगाना है । अविनाशी धन का दान भी जरूर करना है । 

2. अपने पोतामेल में देखना है कि हमारी अवस्था कैसी है? सारे दिन में कोई खराब काम तो नहीं होते हैं? एक-दो को दु :ख तो नहीं देते हैं? किसी पर कुदृष्टि तो नहीं जाती है?

 

वरदान:-

रूहानियत की स्थिति द्वारा व्यर्थ बातों का स्टॉक खत्म करने वाले खुशी के खजाने से सम्पन्न भव !   

रूहानियत की स्थिति द्वारा व्यर्थ बातों के स्टॉक को समाप्त करो, नहीं तो एक दो के अवगुणों का वर्णन करते बीमारी के जर्मस वायुमण्डल में फैलाते रहेंगे, इससे वातावरण पावरफुल नहीं बनेगा । आपके पास अनेक भावों से अनेक आत्मायें आयेंगी लेकिन आपकी तरफ से शुभ भावना की बातें ही ले जाएं । यह तब होगा जब स्वयं के पास खुशी की बातों का स्टॉक जमा होगा । यदि दिल में किसी के प्रति कोई व्यर्थ बातें होगी तो जहाँ बातें हैं वहाँ बाप नहीं, पाप है ।

 

स्लोगन:- 

स्मृति का स्विच आन हो तो मूड ऑफ हो नहीं सकती ।   

 

अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए विशेष होमवर्क

हर समय नवीनता का अनुभव करते औरों को भी नये उमंग-उत्साह में लाना । खुशी में नाचना और बाप के गुणों के गीत गाना । मधुरता की मिठाई से स्वयं का मुख मीठा करते दूसरों को भी मधुर बोल, मधुर संस्कार, मधुर स्वभाव द्वारा मुख मीठा कराना ।

 

ओम् शान्ति |