03-06-15 प्रातः
मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - याद में रहो तो दूर होते भी
साथ में हो, याद से साथ का भी अनुभव
होता है और विकर्म भी विनाश होते हैं”
प्रश्न:-
दूरदेशी बाप बच्चों को दूरांदेशी बनाने के लिए कौन-सा
ज्ञान देते हैं?
उत्तर:-
आत्मा कैसे चक्र में भिन्न-भिन्न
वर्णों में आती है, इसका ज्ञान
दूरांदेशी बाप ही देते हैं। तुम जानते हो अभी हम ब्राह्मण वर्ण
के हैं इसके पहले जब ज्ञान नहीं था तो शूद्र वर्ण के थे,
उसके पहले वैश्य.....
वर्ण के थे। दूरदेश में रहने वाला बाप आकर यह दूरांदेशी बनने
का सारा ज्ञान बच्चों को देते हैं।
गीतः
जो
पिया के साथ है........
ओम्
शान्ति।
जो
ज्ञान सागर के साथ है उनके लिए ज्ञान बरसात है। तुम बाप के साथ
हो ना। भल विलायत में हो वा कहाँ भी हो,
साथ हो। याद तो रखते हो ना। जो भी बच्चे याद
में रहते हैं, वो सदैव साथ में हैं।
याद में रहने से साथ रहते हैं और विकर्म विनाश होते हैं फिर
शुरू होता है विकर्मीजीत संवत। फिर जब रावण राज्य होता है तब
कहते हैं राजा विक्रम का संवत। वह विकर्मीजीत,
वह विक्रमी। अभी तुम विकर्मीजीत बन रहे हो।
फिर तुम विक्रमी बन जायेंगे। इस समय सभी अति विकर्मी हैं।
किसको भी अपने धर्म का पता नहीं है। आज बाबा एक छोटा-सा
प्रश्न
पूछते हैं-सतयुग में
देवतायें यह जानते हैं कि हम आदि सनातन देवी-देवता
धर्म के हैं? जैसे तुम समझते हो हम
हिन्दू धर्म के हैं, कोई कहेंगे हम
क्रिश्चियन धर्म के हैं। वैसे वहाँ देवतायें अपने को देवी-देवता
धर्म का समझते हैं? विचार की बात है
ना। वहाँ दूसरा कोई धर्म तो है नहीं जो समझें कि हम फलाने धर्म
के हैं। यहाँ बहुत धर्म हैं, तो पहचान
देने के लिए अलग-अलग नाम रखे हैं। वहाँ
तो है ही एक धर्म इसलिए कहने की दरकार नहीं रहती है कि हम इस
धर्म के हैं। उनको पता भी नहीं है कि कोई धर्म होते हैं,
उनकी ही राजाई है। अभी तुम जानते हो हम आदि
सनातन देवी-देवता धर्म के हैं। देवी-देवता
और कोई को कहा नहीं जा सकता। पतित होने कारण अपने को देवता कह
नहीं सकते। पवित्र को ही देवता कहा जाता है। वहाँ ऐसी कोई बात
होती नहीं। कोई से भेंट नहीं की जा सकती। अभी तुम संगमयुग पर
हो, जानते हो आदि सनातन देवी-
देवता धर्म फिर से स्थापन हो रहा है। वहाँ तो
धर्म की बात ही नहीं है। है ही एक धर्म। यह भी बच्चों को
समझाया है, यह जो कहते हैं-महाप्रलय
होती है अर्थात् कुछ भी नहीं रहता, यह
भी रांग हो जाता है। बाप बैठ समझाते हैं-राइट
क्या है? शास्त्रों में तो जलमई दिखा
दी है। बाप समझाते हैं सिवाए भारत के बाकी जलमई हो जाती है।
इतनी बड़ी सृष्टि क्या करेंगे। एक भारत में ही देखो कितने गांव
हैं। पहले जंगल होता है फिर उनसे वृद्धि होती जाती है। वहाँ तो
सिर्फ तुम आदि सनातन देवी-देवता धर्म
के ही रहते हो। यह तुम ब्राह्मणों की बुद्धि में बाबा धारणा
करा रहे हैं। अभी तुम जानते हो ऊंच ते ऊंच शिवबाबा कौन है?
उनकी पूजा क्यों की जाती है?
अक आदि के फूल क्यों चढ़ाते हैं?
वह तो निराकार है ना। कहते हैं नाम रूप से
न्यारा है, परन्तु नाम रूप से न्यारी
कोई चीज तो होती नहीं। तब क्या है-जिसको
फूल आदि चढ़ाते हैं? पहले-
पहले पूजा उनकी होती है। मन्दिर भी उनके बनते
हैं क्योंकि भारत की और सारी दुनिया के बच्चों की सर्विस करते
हैं। मनुष्यों की ही सर्विस की जाती है ना। इस समय तुम अपने को
देवी-देवता धर्म के नहीं कहला सकते।
तुमको पता भी नहीं था कि हम देवी-देवता
थे फिर अभी बन रहे हैं। अभी बाप समझा रहे हैं तो समझाना चाहिए-यह
नॉलेज सिवाए बाप के कोई दे न सके। उनको ही कहते हैं ज्ञान का
सागर, नॉलेजफुल। गाया हुआ है रचता और
रचना को ऋषि-मुनि आदि कोई भी नहीं
जानते। नेती-नेती करते गये हैं। जैसे
छोटे बच्चे को नॉलेज है क्या? जैसे बड़े
होते जायेंगे, बुद्धि खुलती जायेगी।
बुद्धि में आता जायेगा, विलायत कहाँ है,
यह कहाँ है। तुम बच्चे भी पहले इस बेहद की
नॉलेज को कुछ भी नहीं जानते थे। यह भी कहते हैं भल हम शास्त्र
आदि पढ़ते थे परन्तु समझते कुछ भी नहीं थे। मनुष्य ही इस ड्रामा
में एक्टर हैं ना।
सारा
खेल दो बातों पर बना हुआ है। भारत की हार और भारत की जीत। भारत
में सतयुग आदि के समय पवित्र धर्म था,
इस समय है अपवित्र धर्म। अपवित्रता के कारण
अपने को देवता नहीं कह सकते हैं फिर भी श्री श्री नाम रखा देते
हैं। लेकिन श्री माना श्रेष्ठ। श्रेष्ठ कहा ही जाता है पवित्र
देवताओं को। श्रीमत भगवानुवाच कहा जाता है ना। अब श्री कौन
ठहरे? जो बाप के सम्मुख सुनकर श्री
बनते हैं या जिन्होंने अपने को श्री श्री कहलाया है?
बाप के कर्तव्य पर जो नाम पड़े हैं,
वह भी अपने ऊपर रखा दिये हैं। यह सब हैं
रेजगारी बातें। फिर भी बाप कहते हैं-बच्चों,
एक बाप को याद करते रहो। यही वशीकरण मन्त्र
है। तुम रावण पर जीत पहन जगतजीत बनते हो। घड़ी-घड़ी
अपने को आत्मा समझो। यह शरीर तो यहाँ 5
तत्वों का बना हुआ है। बनता है, छूटता
है फिर बनता है। अब आत्मा तो अविनाशी है। अविनाशी आत्माओं को
अब अविनाशी बाप पढ़ा रहे हैं संगमयुग पर। भल कितने भी विघ्न आदि
पड़ते हैं, माया के तूफान आते हैं,
तुम बाप की याद में रहो। तुम समझते हो हम ही
सतोप्रधान थे फिर तमोप्रधान बने हैं। तुम्हारे में भी नम्बरवार
जानते हैं। तुम बच्चों की बुद्धि में है-हमने
ही पहले-पहले भक्ति की है। जरूर जिसने
पहले-पहले भक्ति की है उसने ही शिव का
मन्दिर बनाया क्योंकि धनवान भी वह होते हैं ना। बड़े राजा को
देख और भी राजायें और प्रजा भी करेंगे। यह सब हैं डीटेल की
बातें। एक सेकण्ड में जीवनमुक्ति कहा जाता है। फिर कितने वर्ष
लग जाते हैं समझाने में। ज्ञान तो सहज है,
उसमें इतना टाइम नहीं लगता है,
जितना याद की यात्रा पर लगता है। पुकारते भी
हैं बाबा आओ, आकर हमको पतित से पावन
बनाओ, ऐसे नहीं कहते कि बाबा हमें
विश्व का मालिक बनाओ। सब कहेंगे पतित से पावन बनाओ। पावन
दुनिया कहा जाता है सतयुग को, इनको
पतित दुनिया कहेंगे, पतित दुनिया कहते
हुए भी अपने को समझते नहीं। अपने प्रति घृणा नहीं रखते। तुम
किसके हाथ का नहीं खाते हो, तो कहते
हैं हम अछूत हैं क्या? अरे,
तुम खुद ही कहते हो ना। पतित तो सब हैं ना।
तुम कहते भी हो हम पतित हैं, यह
देवतायें पावन हैं। तो पतित को क्या कहेंगे। गायन है ना-अमृत
छोड़ विष काहे को खाए। विष तो खराब है ना। बाप कहते हैं यह विष
तुमको आदि-मध्य-अन्त
दु:ख देता है परन्तु इनको प्वाइजन
समझते थोड़ेही हैं। जैसे अमली अमल बिगर रह नहीं सकता,
शराब की आदत वाला शराब बिगर रह न सके। लड़ाई का
समय होता है तो उनको शराब पिलाकर नशा चढ़ाए लड़ाई पर भेज देते
हैं। नशा मिला बस, समझेंगे हमको ऐसा
करना है। उन लोगों को मरने का डर नहीं रहता है। कहाँ भी
बॉम्ब्स ले जाकर बॉम्ब सहित गिरते हैं। गायन भी है मूसलों की
लड़ाई लगी, राइट बात अभी तुम प्रैक्टिकल
में देख रहे हो। आगे तो सिर्फ पढ़ते थे,
पेट से मूसल निकाले फिर यह किया। अभी तुम समझते हो पाण्डव कौन
हैं, कौरव कौन हैं?
स्वर्गवासी बनने के लिए पाण्डवों ने जीते जी
देह-अभिमान से गलने का पुरूषार्थ किया।
तुम अभी यह पुरानी जुत्ती छोड़ने का पुरूषार्थ करते हो। कहते हो
ना-पुरानी जुत्ती छोड़ नई लेनी है। बाप
बच्चों को ही समझाते हैं। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प
आता हूँ। मेरा नाम है शिव। शिव जयन्ती भी मनाते हैं।
भक्तिमार्ग के लिए कितने मन्दिर आदि बनाते हैं। नाम भी बहुत रख
दिये हैं। देवियों के भी ऐसे नाम रख देते हैं। इस समय तुम्हारी
पूजा हो रही है। यह भी तुम बच्चे ही जानते हो जिसकी हम पूजा
करते थे वह हमको पढ़ा रहे हैं। जिन लक्ष्मी-नारायण
के हम पुजारी थे वह अभी हम खुद बन रहे हैं। यह ज्ञान बुद्धि
में है। सिमरण करते रहो फिर औरों को भी सुनाओ। बहुत हैं जो
धारणा नहीं कर सकते हैं। बाबा कहते हैं जास्ती धारणा नहीं कर
सकते हो तो हर्जा नहीं। याद की तो धारणा है ना। बाप को ही याद
करते रहो। जिनकी मुरली नहीं चलती है तो यहाँ बैठे सिमरण करें।
यहाँ कोई बन्धन झंझट आदि है नहीं। घर में बाल बच्चों आदि का
वातावरण देख वह नशा गुम हो जाता है। यहाँ चित्र भी रखे हैं।
किसको भी समझाना बहुत सहज है। वो लोग तो गीता आदि पूरी कण्ठ कर
लेते हैं। सिक्ख लोगों को भी ग्रंथ कण्ठ रहता है। तुमको क्या
कण्ठ करना है? बाप को। तुम कहते भी हो
बाबा, यह है बिल्कुल नई चीज। यह एक ही
समय है जबकि तुमको अपने को आत्मा समझ एक बाप को याद करना है।
5 हजार वर्ष पहले भी सिखाया था,
और कोई की ताकत नहीं जो ऐसे समझा सके। ज्ञान
सागर है ही एक बाप, दूसरा कोई हो न
सके। ज्ञान सागर बाप ही तुमको समझाते हैं,
आजकल ऐसे भी बहुत निकले हैं जो कहते हैं हमने
अवतार लिया है इसलिए सच की स्थापना में कितने विघ्न पड़ते हैं
परन्तु गाया हुआ है सच की नांव हिलेगी,
डुलेगी लेकिन डूबेगी नहीं।
अब
तुम बच्चे बाप के पास आते हो तो तुम्हारी दिल में कितनी खुशी
रहनी चाहिए। आगे यात्रा पर जाते थे,
तो दिल में क्या आता था?
अभी घरबार छोड़ यहाँ आते हो तो क्या ख्यालात
आते हैं? हम बापदादा के पास जाते हैं।
बाप ने यह भी समझाया है-मुझे सिर्फ
शिवबाबा कहते हैं जिसमें प्रवेश किया है,
वह है ब्रह्मा। बिरादरियां होती हैं ना। पहली-पहली
बिरादरी ब्राह्मणों की है फिर देवताओं की बिरादरी हो जाती है।
अभी दूरदेशी बाप बच्चों को दूरांदेशी बनाते हैं। तुम जानते हो
आत्मा कैसे सारे चक्र में भिन्न-भिन्न
वर्णो मे आई है, इसका ज्ञान दूरांदेशी
बाप ही देते हैं। तुम विचार करेंगे अभी हम ब्राह्मण वर्ण के
हैं, इसके पहले जब ज्ञान नहीं था तो
शूद्र वर्ण के थे। हमारा है ग्रेट-ग्रेट
ग्रैन्ड फादर। ग्रेट शूद्र, ग्रेट
वैश्य, ग्रेट क्षत्रिय......
उनके पहले ग्रेट ब्राह्मण थे। अब यह बातें
सिवाए बाप के और कोई समझा न सके। इनको कहा जाता है दूरांदेश का
ज्ञान। दूरदेश में रहने वाला बाप आकर दूरदेश का सारा ज्ञान
देते हैं बच्चों को। तुम जानते हो हमारा बाबा दूरदेश से इसमें
आते हैं। यह पराया देश, पराया राज्य
है। शिवबाबा को अपना शरीर नहीं है और वह है ज्ञान का सागर,
स्वर्ग का राज्य भी उनको देना है। कृष्ण
थोड़ेही देंगे। शिवबाबा ही देगा। कृष्ण को बाबा नहीं कहेंगे।
बाप राज्य देते हैं, बाप से ही वर्सा
मिलता है। अभी हद के वर्से सब पूरे होते हैं। सतयुग में तुमको
यह मालूम नहीं रहेगा कि हमने यह संगम पर 21
जन्मों का वर्सा लिया हुआ है। यह अभी जानते हो
हम 21 जन्मों का वर्सा आधाकल्प के लिए
ले रहे हैं। 21 पीढ़ी यानी पूरी आयु। जब
शरीर बूढ़ा होगा तब समय पर शरीर छोड़ेंगे। जैसे सर्प पुरानी खल
छोड़ नई ले लेते हैं। हमारा भी पार्ट बजाते-बजाते
यह चोला पुराना हो गया है।
तुम
सच्चे-सच्चे
ब्राह्मण हो। तुम्हें ही भ्रमरी कहा जाता है। तुम कीड़ों को
आपसमान ब्राह्मण बनाती हो। तुम्हें कहा जाता है कि कीड़े को ले
आकर बैठ भूँ-भूँ करो। भ्रमरी भी भूँ
भूँ करती है फिर कोई को तो पंख आ जाते हैं,
कोई मर जाते हैं। मिसाल सब अभी के हैं। तुम
लाडले बच्चे हो, बच्चों को नूरे रत्न
कहा जाता है। बाप कहते हैं नूरे रत्न। तुमको अपना बनाया है तो
तुम भी हमारे हुए ना। ऐसे बाप को जितना याद करेंगे पाप कट
जायेंगे। और कोई को भी याद करने से पाप नहीं कटेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे
सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा
का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी
बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के
लिए मुख्य सार :-
1)
जीते जी
देह-अभिमान
से गलने का पुरूषार्थ करना है। इस पुरानी जुत्ती में जरा भी
ममत्व न रहे।
2)
सच्चा
ब्राह्मण बन कीड़ों पर ज्ञान की भूँ-भूँ
कर उन्हें आप समान ब्राह्मण बनाना है।
वरदान:-
परिस्थितियों
को गुडलक
समझ अपने
निश्चय के
फाउन्डेशन को
मजबूत बनाने
वाले अचल अडोल
भव! 
कोई
भी परिस्थिति आये तो आप हाई जम्प दे दो क्योंकि परिस्थिति आना
भी गुड-लक
है। यह निश्चय के फाउन्डेशन को मजबूत करने का साधन है। आप जब
एक बारी अंगद के समान मजबूत हो जायेंगे तो यह पेपर भी नमस्कार
करेंगे। पहले विकराल रूप में आयेंगे और फिर दासी बन जायेंगे।
चैलेन्ज करो हम महावीर हैं। जैसे पानी के ऊपर लकीर ठहर नहीं
सकती, ऐसे मुझ मास्टर सागर के ऊपर कोई
परिस्थिति वार कर नहीं सकती। स्व-स्थिति
में रहने से अचल-अडोल बन जायेंगे।
स्लोगन:-
सर्व को
आत्मिक प्यार की अनुभूति कराते हुए सदा न्यारे और प्यारे बनो। 