18-01-16 प्रातःमुरली ओम् शान्ति बापदादा मधुबन
"पिताश्री जी के
पुण्य स्मृति दिवस पर प्रातःक्लास में सुनाने के लिए बापदादा के मधुर अनमोल
महावाक्य"
मीठे
बच्चे यह मनुष्य तन बहुत-बहुत वैल्युबुल है, जबकि तुम बाप के बच्चे बने हैं तो
तुम्हें इस समय अपना एक भी श्वांस व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए । 
ओम् शान्ति।
रूहानी रूहानी बाप रूहानी बच्चों प्रति पहले-पहले यादप्यार दे रहे हैं। सुबह को
पहले-पहले गुडमार्निंग किया जाता है ना। तुम बच्चों से सवेरे-सवेरे कौन आकर
गुडमार्निंग करते हैं? बेहद का बाप। तो बच्चों को बड़े उल्हास से, भभके से कहना
चाहिए– बाबा गुडमार्निंग । वाह बाबा वाह! आखिर वह दिन आया आज... जिसे दुनिया ढूंढ
रही है, उससे हम सम्मुख में गुडमार्निंग करते हैं। सवेरे-सवेरे उठकर पहले-पहले
शिवबाबा से गुडमार्निंग करो तो बहुत खुशी रहेगी। सवेरे का टाइम बहुत अच्छा होता है
इसलिए रात्रि को भल जल्दी से सो जाओ सवेरे उठकर अपने आप से बातें करो। उठते ही कहो
शिवबाबा गुडमार्निंग। और किसी तरफ बुद्धि न जाए। बाबा तो हरेक बच्चे को जानते हैं
ना! तुम्हारी भविष्य के लिए बहुत भारी कमाई हो रही है। कल्प-कल्पान्तर यही कमाई काम
में आयेगी।
बाप समझाते हैं कि यह तुम्हारा अन्तिम जन्म बहुत वैल्युबुल है। इनका मूल्य कोई कर
नहीं सकता, इतना वैल्युबुल है। जैसे अविनाशी ज्ञान रत्नों का मूल्य कथन नहीं कर सकते,
बहुत वैल्युबुल हैं वैसे यह टाइम भी बहुत वैल्युबुल है। तुम बच्चे जानते हो हम अब
कौड़ी से हीरे जैसा, बेगर से प्रिन्स बन रहे हैं। यह मनुष्य तन बहुत वैल्युबुल है
जबकि बाप के बच्चे बने हैं। तुम बच्चों को इस समय अपना एक भी श्वास व्यर्थ नहीं
गँवाना चाहिए। कैसे सफल करना है सो तो बाप समझाते हैं - श्वाँसो श्वाँस बाप को याद
करो। हमारा स्वधर्म ही है आवाज से परे रहना। इस शरीर द्वारा हम पार्ट बजाते हैं।
आत्मा असल शान्तिधाम की रहने वाली है। बाप कितनी अच्छी मीठी बातें सुनाते हैं। मीठे
लाडले बच्चे मुझ मोस्ट बिलवेड बाप को और सुखधाम को याद करो।
तुम
जानते हो अभी वह बाप आये हैं, वह हमें सुखधाम में चलने की पढाई पढा रहे हैं। एम
आब्जेक्ट भी हरेक की बुद्धि में है। पवित्रता के मैनर्स भी यहाँ ही धारण करने हैं।
यह तो बच्चे जानते हैं बाप ज्ञान का सागर है, उनकी कितनी खुशबू है। जो भी
अच्छे-अच्छे फूल हैं उनकी जरूर अच्छी खुशबू होगी। वह सदैव खुश रहेंगे। औरों को भी
आप समान फूल बनायेंगे। जो बहुत कांटों को फूल बनाते हैं वही सच्चे खुशबूदार फूल
हैं। जैसे माली फूलों को अलग पाट (बर्तन) में निकालकर रखते हैं वैसे तुम फूलों को
भी अब संगमयुगी पाट में अलग रखा हुआ है फिर तुम फूल स्वर्ग में चले जायेंगे। कलियुगी
कांटे भस्म हो जायेंगे।
तुम
बच्चे समझते हो हमारे जैसा खुशनसीब दुनिया में और कोई नहीं। हम डायरेक्ट बाप के बने
हैं। उनसे हमें सद्गति का वर्सा मिलता है। गरीब बच्चे तो बाप को झट पहचान कर बलिहार
जाते हैं। बाबा है भी गरीब निवाज। यहाँ के गरीब ही वहाँ साहूकार बनते हैं। बच्चों
को कभी भी यह ख्याल नहीं आना चाहिए कि हम तो अनपढ हैं। इसमें तो बाप को ही याद करना
है। बुद्धि में रहे यह सब कब्रिस्तान होना है। यह जो हम धन्धा आदि भी करते हैं यह
थोड़े समय के लिए है। धनवान लोग धर्मशालायें आदि बनाते हैं वह कोई धन्धे के लिए नहीं
बनाते हैं। जहाँ तीर्थ हैं वहाँ धर्मशालायें भी बनवा देते हैं। तुम्हारे सेन्टर्स
तो बहुत बड़े-बड़े तीर्थ हैं। वहाँ से ही मनुष्यों को सुख-शान्ति मिलती है। यह पढाई
है सोर्स आफ इनकम। इससे तुम्हारी बहुत बड़ी आमदनी होती है। तुम बच्चों के लिए यह
मधुबन भी बड़े से बड़ा तीर्थ है। इन जैसा बड़ा तीर्थ कोई होता नहीं। उन तीर्थों पर
जाने से तो कुछ मिलता नहीं। यहाँ तुम बाप से अविनाशी ज्ञान रत्नों का खजाना लेते
हो।
तुम
सच्चे-सच्चे रूहानी सोशल वर्कर हो। तुम्हें बहुत नम्रचित बन रूहानी सेवा करनी है।
बाप से वर्सा लेना है, तो मंसा- वाचा-कर्मणा खूब सर्विस करनी है। इस रूहानी सर्विस
में ही इस अन्तिम जन्म को सफल करना है। अगर और दुनियावी बातों में लग गये तो फिर यह
सर्विस कब करेंगे। कल-कल करते शरीर ही छूट जायेगा। बाबा की सर्विस न की तो वर्सा
कैसे मिलेगा। तुम बच्चों को बहुत भारी सर्विस करनी है। विलायत में भी तुम्हारी मिशन
जायेगी। तुम्हें सारे विश्व का कल्याण करना है। तुम्हारा यह ब्राह्मणों का झाड़
धीरे-धीरे बहुत वृद्धि को पायेगा। प्रदशनियाँ ढेर जहाँ-तहाँ होती रहेंगी। जैसे
मन्दिर, टिकाणे निकलते जाते हैं, वैसे तुम्हारी प्रदर्शनी भी गाँव-गाँव में होगी।
सबके पास बाप का पैगाम जाना है जरूर। बाप तो सर्व का कल्याणकारी है ना।
बाप
का बच्चों में कितना लव रहता है। बाप बच्चों को देख-देख हर्षित होते हैं। तो बच्चों
को भी इतनी खुशी में रहना चाहिए। बाप को याद कर अन्दर गदगद होना चाहिए। अपने साथ
प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि हम ऐसा कोई विकर्म नहीं करेंगे जो दिल अन्दर खाती रहे।
जितना हो सके अपने को सुधारना है। अगर अन्दर में कोई खामी है तो सच्ची दिल से बाप
को सुनाना चाहिए। बाप अविनाशी सर्जन है ना। सुनाने से वह बीमारी निकल जायेगी। अपनी
खामियाँ बतायेंगे तब तो बाप राय देंगे। खामियाँ तो बहुतों में हैं, कोई में क्रोध
है, कोई में लोभ है या फालतू चिन्तन है तो उसे ज्ञान की धारणा हो नहीं सकती। क्रोध
बड़ा नुकसान कर देता है। क्रोधी अपना और दूसरों का जी जलाता है, मोह का भूत तो
सत्यानाश ही कर देता है। शिवबाबा की याद भूल जाती है इसलिए बाबा कहते मीठे बच्चे
भूतों को निकाल दो। तुम्हारे मुख से सदैव शुद्ध वचन निकलने चाहिए, कटुवचन नहीं।
हंसीमज़ाक भी नहीं। ऐसे नहीं हमने तो हंसी की। हंसी भी ऐसी नहीं करनी चाहिए जिसमें
विकारों की वायु हो, बिल्कुल नहीं। बहुत खबरदार रहना है। यह भूतों की बीमारी ऐसी है
जो दोनों जहान से उड़ा देती है।
मीठे
बच्चे तुम्हारी यह गॉडली स्टूडेन्ट लाइफ है। तुम्हें गृहस्थ व्यवहार में रहते यह
पढाई पढना है। बहुत बच्चे डबल कोर्स भी उठाते हैं, लिफ्ट मिलती है। तुम्हारा कोर्स
है गृहस्थ व्यवहार में रहते यह पढाई पढना। इसमें भी कन्यायें बहुत तीखी जा सकती
हैं। कन्याओं को तो इस सेवा में लग जाना चाहिए।
बच्चों
में नष्टोमोहा बनने की भी हिम्मत चाहिए। फट से नष्टोमोहा हो जाना है। बेहद का बाप
मिला है तो उनसे पूरा वर्सा लेना है। बाबा ने बच्चों को समझाया है– चार्ट रखो। बाबा
को याद करने समय बाबा से क्या-क्या बातें की। कितनी बाबा की महिमा की। भोजन पर कितना
समय याद किया! अपनी अवस्था को ऊंच बनाना बहुत जरूरी है। नष्टोमोहा तो जरूर बनना पड़े।
बाप के बने हो तो उनकी सेवा में लग जाओ। अपनी जांच करो मेरा दैवी स्वभाव है? मनुष्य
को स्वभाव बहुत सताता है। हरेक को अपना तीसरा नेत्र मिला है तो उससे जांच करनी है
कि मेरी याद बाबा तक पहुँचती है? जो भी डिफेक्ट हैं उनको निकाल प्युअर डाइमन्ड बनना
है। थोड़ा भी डिफेक्ट होगा तो वैल्यु कम हो जायेगी इसलिए मेहनत कर अपने को
वैल्युबुल हीरा बनाना है। बाप फिर भी बच्चों को कहते हैं– मामेकम् याद करो। याद में
दिल ही भर जानी चाहिए। बाप की याद सतानी चाहिए। बाबा-बाबा आप हमको क्या से क्या बना
रहे हो। और तो कोई जानते ही नहीं कि तुम क्या बन रहे हो। तो ऐसे बाप को बहुत-बहुत
लव से याद करना है। याद में ही सब कुछ समाया हुआ है।
बाप
मीठे-मीठे बच्चों को रूहानी ड्रिल भी सिखलाते हैं। बाप का फरमान है अपने को आत्मा
समझ भाई-भाई देखो। इस शरीर को भूल जाओ। भाई-भाई को देखने से कर्मेन्द्रियाँ चंचल नहीं
होंगी। राज्य-भाग्य लेना है, विश्व का मालिक बनना है तो यह मेहनत करो। भाई समझकर
ज्ञान दो तो आदत पक्की हो जायेगी। अच्छा-
मीठे-मीठे सिकीलधे, सर्विसएबुल, अज्ञाकारी सपूत बच्चों को बापदादा का यादप्यार और
गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
अव्यक्त महावाक्य– (रिवाइज)
जैसे
एक सेकेण्ड में स्वीच आन और आफ किया जाता है, ऐसे ही एक सेकेण्ड में शरीर का आधार
लिया और फिर एक सेकेण्ड में शरीर से परे अशरीरी स्थिति में स्थित हो सकते हो?
अभी-अभी शरीर में आये फिर अभी-अभी अशरीरी बन गये, यह प्रैक्टिस करनी है, इसी को ही
कर्मातीत अवस्था कहा जाता है। ऐसा अनुभव होगा, जैसे कोई कैसा भी वस्त्र धारण करना
वा न करना अपने हाथ में होता है। ऐसे अनुभव इस शरीर रूपी वस्त्र में हो। कर्म करते
हुए भी अनुभव ऐसा होना चाहिए जैसे कोई वस्त्र धारण करके कार्य रहे हैं। कार्य पूरा
हुआ और वस्त्र से न्यारे हुए। शरीर और आत्मा दोनों का न्यारापन चलते-फिरते भी अनुभव
हो। जैसे कोई प्रैक्टिस हो जाती है ना। लेकिन यह प्रैक्टिस किनको हो सकती है? जो
शरीर के साथ वा शरीर के सम्बन्ध में जो भी बातें हैं, शरीर की दुनिया, सम्बन्ध वा
अनेक जो भी वस्तुएं हैं उनसे बिल्कुल डिटैच होंगे, जरा भी लगाव नहीं होगा तब न्यारा
हो सकेंगे। अगर सूक्ष्म संकल्प में भी हल्कापन नहीं हैं, डिटैच नहीं हो सकते तो
न्यारेपन का अनुभव नहीं कर सकेंगे। तो अब हर एक को यह प्रैक्टिस करनी है, बिल्कुल
ही न्यारेपन का अनुभव हो। इसी स्टेज पर रहने से अन्य आत्माओं को भी आप लोगों से
न्यारेपन का अनुभव होगा, वह भी महसूस करेंगे। जैसे योग में बैठने के समय कई आत्माओं
को अनुभव होता है ना - यह ड्रिल कराने वाले न्यारी स्टेज पर है, ऐसे चलतेफिरते
फरिश्तेपन के साक्षात्कार होंगे। यहाँ बैठे हुए भी अनेक आत्माओं को, जो भी आपके
सतयुगी फैमिली में समीप आने वाले होंगे उन्हों को आप लोगों के फरिश्ते रूप और
भविष्य राज्य पद के दोनों इक्ट्ठे साक्षात्कार होंगे। जैसे शुरू में ब्रह्मा में
सम्पूर्ण स्वरूप और श्रीकृष्ण का दोनों साथ-साथ साक्षात्कार करते थे, ऐसे अब उन्हों
को तुम्हारे डबल रूप का साक्षात्कार होगा। जैसे-जैसे नम्बरवार इस न्यारी स्टेज पर
आते जायेंगे तो आप लोगों के भी यह डबल साक्षात्कार होंगे। अभी यह पूरी प्रैक्टिस हो
जाए तो यहाँ वहाँ से यही समाचार आने शुरू हो जायेंगे। जैसे शुरू में घर बैठे भी
अनेक समीप आने वाली आत्माओं को साक्षात्कार हुए ना। वैसे अब भी साक्षात्कार होंगे।
यहाँ बैठे भी बेहद में आप लोगों का सूक्ष्म स्वरूप सर्विस करेगा। अब यही सर्विस रही
हुई है। साकार में सभी इग्जाम्पल तो देख लिया। सभी बातें नम्बरवार ड्रामा अनुसार
होनी हैं। जितना-जितना स्वयं आकारी फरिश्ते स्वरूप में होंगे उतना आपका फरिश्ता रूप
सर्विस करेगा। आत्मा को सारे विश्व का चक्र लगाने में कितना समय लगता है? तो अभी
आपके सूक्ष्म स्वरूप भी सर्विस करेंगे। लेकिन जो इस न्यारी स्थिति में होंगे। स्वयं
फरिश्ते रूप में स्थित होंगे। शुरू में सभी साक्षात्कार हुए हैं। फरिश्ते रूप में
सम्पूर्ण स्टेज और पुरुषार्थी स्टेज दोनों अलग-अलग साक्षात्कार होता था। जैसे साकार
ब्रह्मा और सम्पूर्ण ब्रह्मा का अलग-अलग साक्षात्कार होता था, वैसे अन्य बच्चों के
साक्षात्कार भी होंगे। हंगामा जब होगा तो साकार शरीर द्वारा तो कुछ कर नहीं सकेंगे
और प्रभाव भी इस सर्विस से पड़ेगा। जैसे शुरू में भी साक्षात्कार से ही प्रभाव हुआ
ना। परोक्ष-अपरोक्ष अनुभव ने प्रभाव ड़ाला। वैसे अन्त में भी यही सर्विस होनी है।
अपने सम्पूर्ण स्वरूप का साक्षात्कार अपने आपको होता है? अभी शक्तियों को पुकारना
शुरू हो गया है। अभी परमात्मा को कम पुकारते हैं, शक्तियों की पुकार तेज रफतार से
चालू हो गई है। तो ऐसी प्रैक्टिस बीच-बीच में करनी है। आदत पड़ जाने से फिर बहुत
आनन्द फील होगा। एक सेकेण्ड में आत्मा शरीर से न्यारी हो जाये, यह प्रैक्टिस हो
जायेगी। अभी यही पुरुषार्थ करना है। अच्छा!
वरदान:
कल्याण की भावना द्वारा हर आत्मा के संस्कारों को परिवर्तन करने वाले निश्चयबुद्धि
भव! 
जैसे
बाप में 100 प्रतिशत निश्चयबुद्धि हो, कोई कितना भी डगमग करने की कोशिश करे लेकिन
हो नहीं सकते, ऐसे दैवी परिवार वा संसारी आत्माओं द्वारा भल कोई कैसा भी पेपर ले,
क्रोधी बन सामना करे वा कोई इनसल्ट कर दे, गाली दे– उसमें भी डगमग हो नहीं सकते,
इसमें सिर्फ हर आत्मा प्रति कल्याण की भावना हो, यह भावना उनके संस्कारों को
परिवर्तन कर देगी। इसमें सिर्फ अधैर्य नहीं होना है, समय प्रमाण फल अवश्य निकलेगा–
यह ड्रामा की नूंध है।
स्लोगन:
पवित्रता की शक्ति से अपने संकल्पों को शुद्ध, ज्ञान स्वरूप बनाकर कमजोरियों को
समाप्त करो। 
ब्रह्मा बाप समान सम्पन्न स्थिति का अनुभव करो
18)
जैसे आदि देव ब्रह्मा और आदि आत्मा श्रीकृष्ण दोनों का अन्तर दिखाते भी साथ दिखाते
हैं। ऐसे आप सब अपना ब्राह्मण स्वरूप और देवता स्वरूप दोनों को सामने रखते हुए देखो
कि आदि से अन्त तक हम कितनी श्रेष्ठ आत्मायें हैं। इसी नशे और खुशी में रह सम्पन्न
स्थिति का अनुभव करो।