01-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
मीठे बच्चे -
निश्चयबुद्धि विजयन्ती, निश्चय के आधार पर ही स्वर्ग की राजाई के लायक बन सकते, पहला
निश्चय चाहिए कि भगवान् टीचर बनकर हमें पढ़ा रहे हैं।
प्रश्नः-
बाप
सर्वशक्तिमान होते भी सब कार्य प्रेरणा से क्यों नहीं करते?
उत्तर:-
बाबा कहते
- मैं ज्ञान का सागर हूँ, मुझे ज्ञान सुनाने के लिए आना ही पड़ेगा। प्रोफेसर अगर घर
में बैठ जाए तो पढ़ा कैसे सकेगा? मुझे तो तुम बच्चों को पढ़ाकर लायक बनाना है,
स्वर्ग का वर्सा देना है इसलिए मैं शरीर का आधार लेकर आता हूँ। इसमें बच्चों को जरा
भी संशय नहीं आना चाहिए।
गीत:-
जो
पिया के साथ है....

ओम्
शान्ति।
बाप को पिया कहा जाता है। बाप पानी की बरसात तो नहीं बरसायेंगे। यह तो समझने की बात
है। जब कोई बात नहीं समझते हैं तो कहा जाता है तुम तो जैसे पत्थरबुद्धि हो। अब
पारसनाथ तो नामीग्रामी है। पारसनाथ पारस बनाते हैं। पत्थर कौन बनाते हैं? पत्थरनाथ
बनाने वाला रावण को कहा जाता है। तुम हो राम सम्प्रदाय, तुम नम्बरवार पत्थरबुद्धि
से पारसनाथ बनते जाते हो। यथा राजा-रानी तथा प्रजा पारसबुद्धि कैसे बनें? जरूर कोई
बनाने वाला है, जिसने पारसबुद्धि तो बनाया परन्तु इसमें कोई सूर्यवंशी घराने में,
कोई चन्द्रवंशी घराने में, कोई दास-दासी बनेंगे, कोई फिर प्रजा में साहूकार बनेंगे।
है सारा पुरुषार्थ पर। जरूर परमपिता परमात्मा को ही पारसनाथ कहेंगे। कोई मनुष्य को
ज्ञान सागर नहीं कहेंगे। निराकार बाप की ही महिमा है। ज्ञान सागर है तो ज्ञान सुनाने
के लिए उनको शरीर जरूर चाहिए। जो संस्कार ले जाते हैं उस अनुसार कर्म करने लिए शरीर
तो चाहिए ना। वह तो है निराकार परमपिता परमात्मा। उनकी बड़ी भारी महिमा है। सबका
बाप एक निराकार परन्तु वह भी तो आत्मा है ना। आत्मा ही आरगन्स द्वारा कहती है यह
मेरे बच्चे हैं।
बाप ने समझाया है मनुष्य ब्राह्मणों को खिलाते हैं, उनमें आत्मा को बुलाते हैं फिर
उनसे पूछते हैं। अच्छा, न भी पूछें, ब्राह्मण तो खिलाते हैं ना। समझो किसका पति मर
जाता है तो कहते हैं मैं पति का श्राद्ध खिलाती हूँ। अच्छा, तुम्हारा पति तो मर गया
फिर किसको बुलायेंगी? आत्मा को वा शरीर को? समझ की बात है ना। जरूर आत्मा को
बुलायेंगी ना। शरीर तो खत्म हो गया। ब्राह्मण को खिलाते हैं, गोया ब्राह्मण में
प्रवेश कर आत्मा खाती है। अब क्या सबूत है जो मर गया उसकी आत्मा आती है? आती तो
जरूर है। आत्मा आकर बोलती है, उनसे पूछते हैं फलानी चीज कहाँ रखी है तो बतलाती भी
है। तो जरूर समझते हैं कि हम पति की आत्मा को खिलाती हूँ, पति की आत्मा को माथा
टेकती हूँ। ब्राह्मण को नहीं देखते। जैसे कि पति के नाम-रूप को देखकर माथा टेकते
हैं। वह नाम-रूप तो भस्म हो गया तो वह शरीर भी याद आता है। ब्राह्मणों में आत्मा आती
है। दूसरे की आत्मा आई है, यह महसूस होता है। अब आत्मा आई तो जरूर विश्वास रखना
पड़ता है ना। तुम बच्चों को भी समझाया जाता है कि परमपिता परमात्मा है निराकार, उनको
अपना शरीर नहीं है तो वर्सा कैसे देवें? तो जरूर शरीर का आधार लेना पड़े। पहले तो
बरोबर निश्चय चाहिए कि परमपिता परमात्मा है, वह इन द्वारा वर्सा देने आया है।
प्रेरणा से तो नहीं देंगे। उनको तो आकर पढ़ाना है, ज्ञान सागर है ना। यह समझने की
बातें हैं। जिसकी तकदीर में भविष्य ऊंच प्रालब्ध नहीं है तो वह समझ नहीं सकेंगे।
इनकी आत्मा कहती है कि मैं ज्ञान सागर नहीं हूँ। वह परमपिता परमात्मा कहते हैं मैं
ज्ञान का सागर हूँ, परन्तु मैं निराकार ऊपर से बैठ प्रेरणा से कैसे पढ़ाऊं? ऐसे तो
कभी पढ़ाई होती नहीं। प्रोफेसर घर बैठ जाए तो प्रेरणा से पढ़ा सकेंगे क्या? जरूर
स्कूल में आना पड़े ना। परमपिता परमात्मा भी घर में रहकर तो नहीं पढ़ायेंगे ना।
प्रेरणा से चित्र थोड़ेही समझाया जाता है। यह चित्र भी शिवबाबा ने निकलवाया है। फिर
खुद ही आकर समझाते हैं कि मैंने ही निकलवाये हैं। यह (ब्रह्मा) तो जानता ही नहीं
था। मैंने बच्चों को दिव्य दृष्टि देकर बनवाये हैं। करनकरावनहार बाप है। पहले बाप
समझाते हैं कि मैं हूँ तुम आत्माओं का बाप। नहीं तो तुम बच्चों को वर्सा कैसे मिले?
मन्दिर भी बरोबर हैं। इनकी आत्मा का मन्दिर है। बाकी सब जीव आत्माओं के मन्दिर हैं
क्योंकि जीव आत्मा जन्म-मरण में आती है, परमात्मा नहीं आता है। तो उनका रूप निराकार
ही रखा है। तो बाप कहते हैं मैं तुम्हें राजयोग सिखलाता हूँ। यह बाबा भी कहते - मैं
भी सीख रहा हूँ। अब इसमें प्रेरणा वा शक्ति की तो बात नहीं है। अगर कोई कहे कि शक्ति
आती है तो वर्सा कैसे मिलेगा? यह बाप तो कहते हैं मैं तुम्हें राजयोग सिखलाता हूँ।
भगवानुवाच है तो जरूर शरीर में आना पड़े। ऐसे नहीं कि इनमें शक्ति है। यहाँ तो
पढ़ाई की बात है। मैं तुम्हारा बाप हूँ फिर मुझे टीचर भी बनना पड़े। सबको प्रेरणा
कैसे दूँ? फिर तो सबको एक जैसा पढ़ाना पड़े। यह तो राजधानी स्थापन हो रही है। कोई
को दास-दासी बनना पड़े, कोई को प्रजा बनना पड़े। कोई भी अगर पूछना चाहते हैं तो बाबा
से पूछ सकते हैं - हम कहाँ तक लायक बने हैं? सूर्यवंशी वा चन्द्रवंशी वा दास-दासी
बनेंगे? अगर हम इस समय शरीर छोड़ें तो क्या पद पायेंगे? बाबा से आकर पढ़ें तो बाबा
पढ़ाई के अनुसार बता सकते हैं। स्कूल में बच्चे मास्टर को कहेंगे कि मास्टर जी हम
कितने मार्क्स से पास होंगे? मास्टर एबाउट बता देगा कि तुम पूरा पढ़ते नहीं हो
इसलिए इतने मार्क्स कैसे मिलेंगे? खुद भी समझेंगे कि बरोबर हम पूरा पढ़ता नहीं हूँ।
हरेक की दिल बोलेगी। बेहद का बाप भी बता सकते हैं कोई को तो बाबा कहते हैं तुम बहुत
अच्छा फूल हो, विजय माला में तुम इतने नम्बर में आ सकते हो, इस समय के अनुसार
क्योंकि चलते-चलते गिर भी पड़ते हैं ना। बाबा के बहुत बच्चे देखो आज हैं नहीं
क्योंकि श्रीमत पर न चले और काम के वश वा देह-अभिमान के वश हो गये, कोई लोभ-मोह के
वश हो गये। माया ऐसी है जो चोरी भी करा देती है। यह सब माया कराती है। कहते हैं ना
कि कख का चोर सो लख का चोर।
कोई-कोई में बुरी आदतें होती हैं, कोई में काम की आदत होती तो यह भागा। वह यहाँ ठहर
न सके। लोभ वश चोरी भी कर लेते हैं। माया चोरी कराती है, माया की प्रवेशता है ना।
पहले नम्बर देह-अभिमान को छोड़ते नहीं। बाबा कहते हैं अपने को आत्मा निश्चय करो।
आत्मा इमार्टल है, शरीर मार्टल है। तुम देही-अभिमानी बनो। कोई तो दो-तीन मास में
देही-अभिमानी बन जाते हैं, कोई फिर 25 वर्ष में भी नहीं बनते। एक ही कोर्स बहुत बड़ा
है जो 50-60 वर्ष चलता है। पढ़ाई के कोर्स और पढ़ाने वाले टीचर को न जाना तो पढ़ेगा
क्या? इस बाबा को जानने से तो शिवबाबा को भी जानें, जिसके साथ बुद्धियोग लगाना है।
हमें विश्व का मालिक बनना है सो कोई मनुष्य तो नहीं बनायेंगे। जब तक निश्चय नहीं
हुआ है तब तक गोया कुछ भी नहीं समझा है। 20-25 वर्ष वालों को भी पूरा निश्चय नहीं
बैठा है। हिलते रहते हैं। अभी-अभी निश्चय, अभी-अभी संशय। बाबा समझाते हैं तुम गॉड
फादर कहते हो तो तुम आत्मायें उनके बच्चे ठहरे। वह तुम्हारा बाप है। सब लिखो कि
हाँ, हमारा एक वही गॉड फादर है। फादर से वर्सा मिलता है स्वर्ग की राजधानी का, तो
जरूर राजयोग सिखाया होगा ना। बाप ही सिखलायेंगे। जब तक बाप पर पूरा निश्चय नहीं है
तो समझो वह स्वर्ग के लायक नहीं हैं। बाप को ही नहीं जानते तो वर्सा कैसे पायेंगे?
बाप तो आते हैं वर्सा देने, परन्तु लेते नहीं क्योंकि भाग्य में नहीं हैं।
निश्चयबुद्धि विजयन्ती, संशयबुद्धि विनशन्ती। पहले-पहले बाप को तो जानो। निराकार
बाप परमपिता परमात्मा है ना। वह आकर पढ़ाते हैं। वर्सा उनसे मिलता है। उनको राजयोग
सिखलाना है, इसमें प्रेरणा की तो कोई बात ही नहीं। टीचर घर में बैठ पढ़ाये - यह तो
इम्पासिबुल है। बाबा कहते हैं कि मैं आता हूँ, मेरा मन्दिर भी है। निराकार तो कुछ
कर न सके इसलिए शरीर लेना पड़ता है। नहीं तो मेरे में जो सृष्टि चक्र का ज्ञान है
वह मैं सिखलाऊं कैसे? जरूर तन में आना पड़े। बच्चे वृद्धि को पाते रहते हैं। एक-दो
को लेकर आते रहते हैं। जो देवी-देवता धर्म का होगा उसका ही सैपलिंग लगेगा। जो आकर
ब्राह्मण बनते हैं, उन्हों का ही कलम लगता है। ब्राह्मणों का पिता है ब्रह्मा।
ब्रह्मा का बाप है शिवबाबा। तो रूहानी बाप और जिस्मानी बाप भी है। तुम शिवबाबा के
रूहानी बच्चे हो और ब्रह्मा की आत्मा भी शिवबाबा का बच्चा है। फिर जिस्मानी भी
ब्राह्मणों का बाप है, जिससे यह ब्रह्माकुमार-कुमारियां निकले। तुम ब्रह्मा के बच्चे
शिवबाबा के पोत्रे हो। वर्सा उनसे मिलता है। यह भी समझ की बात है। बाबा से कोई भी
बच्चा पूछे कि मैं किस पद को पाऊंगा तो बाबा बता देंगे।
कोई नये-नये को ले आते हैं, बात मत पूछो। एक बार मिलने से ही तीर लग जाता है। कैसे
अच्छे-अच्छे पत्र लिखते हैं - बाबा फलाने ने ऐसी अच्छी बातें सुनाई जो पक्का निश्चय
हो गया है, अब आप आये हो, आपसे हम पूरा वर्सा लेकर ही छोड़ेंगे। बाबा से कभी मिले
भी नहीं हैं तो भी ऐसे-ऐसे पत्र लिखते हैं तो समझा जाता है यह सिकीलधा बच्चा है।
सैपलिंग अच्छा है, झट समझ जाते हैं। श्रीनगर का सेन्टर खुला, वहाँ के नये-नये बच्चों
ने पत्र लिखा है - बस, अब तो मिलने लिए अट्रैक्शन रहती है। सिर्फ यह बन्धन है। कारण
भी लिख देते हैं। जो देवता धर्म के होंगे वही आयेंगे। जो श्रीकृष्ण पुरी में आने
वाले होंगे वही ब्रह्मापुरी में आयेंगे। ब्रह्मपुरी नहीं। कोई-कोई ब्रह्मकुमारी
लिखते हैं। यह तो रांग है। ब्रह्म तो तत्व है। उसकी कुमारी कैसे होगी? प्रजापिता
ब्रह्मा तो मशहूर है। प्रजापिता तो यहाँ ही होगा ना। प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे
ब्रह्माकुमार-कुमारियां अर्थात् परमपिता परमात्मा शिव की शक्तियां। शक्ति मिलती है
शिवबाबा से, इनकी (ब्रह्मा की) आत्मा से नहीं। तो याद शिवबाबा को करना है। इससे ही
हम पतित से पावन होंगे। इस समय तो सभी पाप आत्मायें हैं। सभी का जन्म विकार से होता
है। यह बातें कोई झट समझ जाते हैं, कोई तो कुछ भी समझते नहीं। यह नॉलेज बड़ी
वन्डरफुल है। भगवान् को भक्ति का फल देने के लिए आना पड़ता है। बच्चों को पढ़ाते
हैं, कहते हैं मैं तुम्हारा बाप भी हूँ, टीचर भी और सतगुरू भी हूँ। सभी को वापिस ले
जाने के लिए आया हूँ इसलिए लिबरेटर भी कहते हैं। सो प्रेरणा से थोड़ेही लिबरेट
करेंगे। स्कूल में भी वृद्धि होती है। लेकिन पुरानी दुनिया को याद किया तो बाप को
भूले। आखिर भूलते-भूलते पुरानी दुनिया में ही चले जाते हैं। फिर ज्ञान का कुछ भी नहीं
रहता है। बस, सौदा कैंसिल। बाप को जो दिया वह वापिस ले लेते हैं। बुद्धि का ताला
एकदम बन्द हो जाता है। बाप बुद्धिवानों की बुद्धि है ना। कितना अच्छी रीति समझाते
हैं। सुनने वालों के नैन-चैन से ही मालूम पड़ जाता है - इनको कहाँ तक धारणा होती
है? ऊंच पद पा सकेंगे वा नहीं? बाबा झट समझ जाते हैं कि यह समझने वाला है या नहीं?
या बुद्धियोग कहाँ भटकता रहता है? नब्ज देखी जाती है। नब्ज देखने वाला भी होशियार
चाहिए। मंजिल है बहुत भारी। तुम झट समझ जायेंगे - यह उठ सकेगा वा नहीं? नम्बरवार तो
हैं ना।
भल यह ब्रह्मा ब्रह्मपुत्रा (बड़ी नदी) है, परन्तु अपनी महिमा तो नहीं करेंगे।
सरस्वती भी होशियार है। उस पढ़ाई में तो यहाँ ही इम्तहान
हो जाता है। इस पढ़ाई का इम्तहान अभी नहीं होना है। जब तक जियेंगे तब तक ज्ञानामृत
पियेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1)
किसी भी पुरानी आदत के वशीभूत हो उल्टा कर्म नहीं करना है। देह-अभिमान की आदत को
छोड़ देही-अभिमानी रहने का कोर्स पूरा करना है।
2) निश्चय में कभी भी हिलना नहीं है। जब तक जीना है, पढ़ाई पढ़नी और पढ़ानी है।
वरदान:-
उड़ती कला द्वारा बाप समान आलराउन्ड पार्ट बजाने वाले चक्रवर्ती भव
जैसे
बाप आलराउन्ड पार्टधारी है, सखा भी बन सकते तो बाप भी बन सकते। ऐसे उड़ती कला वाले
जिस समय जिस सेवा की आवश्यकता होगी उसमें सम्पन्न पार्ट बजा सकेंगे। इसको ही कहा
जाता है आलराउन्ड उड़ता पंछी। वे ऐसे निर्बन्धन होंगे जो जहाँ भी सेवा होगी वहाँ
पहुंच जायेंगे। हर प्रकार की सेवा में सफलतामूर्त बनेंगे। उन्हें ही कहा जाता है
चक्रवर्ती, आलराउन्ड पार्टधारी।
स्लोगन:-
एक दो की विशेषताओं को स्मृति में रख फेथफुल बनो तो संगठन एकमत हो जायेगा।