22-01-15          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - तुम्हारी नज़र शरीरों पर नहीं जानी चाहिए, अपने को आत्मा समझो, शरीरों को मत देखो”   

प्रश्न:-   

हर एक ब्राह्मण बच्चे को विशेष किन दो बातों पर ध्यान देना है?

उत्तर:-

1 - पढ़ाई पर, 2 - दैवी गुणों पर । कई बच्चों में क्रोध का अंश भी नहीं है, कोई तो क्रोध में आकर बहुत लड़ते हैं । बच्चों को ख्याल करना चाहिए कि हमको दैवीगुण धारण करके देवता बनना है । कभी गुस्से में आकर बातचीत नहीं करनी चाहिए । बाबा कहते किसी बच्चे में क्रोध है तो वह भूतनाथ- भूतनाथिनी है । ऐसे भूत वालों से तुम्हें बात भी नहीं करनी है ।

गीत:-

तकदीर जगाकर आई हूँ.. 

ओम् शान्ति |

बच्चों ने गीत सुना । और कोई भी सतसंग में कभी रिकॉर्ड पर नहीं समझाते हैं । वहाँ शास्त्र सुनाते हैं । जैसे गुरूद्वारे में ग्रन्थ का दो वचन निकालते हैं फिर कथा करने वाला बैठ उनका विस्तार करते हैं । रिकॉर्ड पर कोई समझाये, यह कहाँ होता नहीं है । अब बाप समझाते हैं कि यह सब गीत हैं भक्ति मार्ग के । बच्चों को समझाया गया है, ज्ञान अलग चीज़ है, जो एक निराकार शिव से मिल सकता है । इसको कहा जाता है रूहानी ज्ञान । ज्ञान तो बहुत प्रकार के होते हैं ना । कोई से पूछा जायेगा यह गलीचा कैसे बनता है, तुमको ज्ञान है? हर चीज का ज्ञान होता है । वह हैं ही जिस्मानी बातें । बच्चे जानते हैं हम आत्माओं का रूहानी बाप वह एक है, उनका रूप दिखाई नहीं पड़ता है । उस निराकार का चित्र भी है सालिग्राम मिसल । उनको ही परमात्मा कहते हैं । उनको कहा ही जाता है निराकार । मनुष्य जैसा आकार नहीं है । हर वस्तु का आकार जरूर होता है । उन सबमें छोटे में छोटा आकार हैं आत्मा का । उनको कुदरत ही कहेग । आत्मा बहुत छोटी हैं जो इन आँखों से देखने में नहीं आती । तुम बच्चों को दिव्य दृष्टि मिलती है जिससे सब साक्षात्कार करते हो । जो पास्ट हो गये हैं उनको दिव्य दृष्टि से देखा जाता है । पहले नम्बर में तो यह पास्ट हो गया है । अब फिर आये हैं तो उनका भी साक्षात्कार होता है । है बहुत सूक्ष्म । इससे समझ सकते हैं, सिवाए परमपिता परमात्मा के आत्मा का ज्ञान कोई दे नहीं सकता । मनुष्य, आत्मा को यथार्थ रीति नहीं जानते वैसे परमात्मा को भी यथार्थ रीति नहीं जान सकते । दुनिया में मनुष्यों की अनेक मत है । कोई कहते आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती, कोई क्या कहते । अभी तुम बच्चों ने जाना है, सो भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार, सबकी बुद्धि में एकरस तो बैठ नहीं सकता । घड़ी-घड़ी बुद्धि में भी बिठाना होता है । हम आत्मा हैं, आत्मा को ही 84 जन्मों का पार्ट बजाना है । अब बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ मुझ परमपिता परमात्मा को जानो और याद करो । बाप कहते हैं मैं इनमें प्रवेश कर तुम बच्चों को नॉलेज देता हूँ । तुम बच्चे अपने को आत्मा नहीं समझते हो इसलिए तुम्हारी नजर इस शरीर पर चली जाती है । वास्तव में तुम्हारा इनसे कोई काम नहीं है । सर्व का सद्गति दाता तो वह शिवबाबा है, उनकी मत पर हम सबको सुख देते हैं । इनको भी अहंकार नहीं आता कि हम सबको सुख देते हैं | जो बाप को पूरा याद नहीं करते हैं उनसे अवगुण निकलते नहीं हैं । अपने को आत्मा निश्चय नहीं करते हैं । मनुष्य तो न आत्मा को, न परमात्मा को जानते हैं । सर्वव्यापी का ज्ञान भी भारतवासियों ने फैलाया है । तुम्हारे में भी जो सर्विसएबुल बच्चे हैं वह समझते हैं, बाकी सब इतना नहीं समझते हैं । अगर बाप की पूरी पहचान बच्चों को हो तो बाप को याद करें, अपने में दैवीगुण धारण करें ।

शिवबाबा तुम बच्चों को समझाते हैं । यह है नई बातें । ब्राह्मण भी जरूर चाहिए । प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान कब होते हैं, यह दुनिया में किसको पता नहीं है । ब्राह्मण तो ढेर के ढेर हैं । परन्तु वह है कुख वंशावली । वह कोई मुख वंशावली ब्रह्मा की सन्तान नहीं हैं । ब्रह्मा की सन्तान को तो ईश्वर बाप से वर्सा मिलता है । तुमको अब वर्सा मिल रहा है ना । तुम ब्राह्मण अलग हो, वो अलग हैं । तुम ब्राह्मण होते ही हो संगम पर, वह होते हैं द्वापर-कलियुग में । यह संगमयुगी ब्राह्मण ही अलग हैं । प्रजापिता ब्रह्मा के ढेर बच्चे हैं । भल हद के बाप को भी ब्रह्मा कहेंगे क्योंकि बच्चे पैदा करते हैं । परन्तु वह है जिस्म की बात । यह बाप तो कहेंगे सब आत्मायें हमारे बच्चे हैं । तुम हो मीठे-मीठे रूहानी बच्चे । यह किसको समझाना सहज है । शिवबाबा को अपना शरीर नहीं है । शिव जयन्ती मनाते हैं, परन्तु उनका शरीर देखने में नहीं आता । बाकी और सबका शरीर है । सब आत्माओं का अपना- अपना शरीर है । शरीर का नाम पड़ता है, परमात्मा का अपना शरीर ही नहीं इसलिए उनको परम आत्मा कहा जाता है । उनकी आत्मा का ही नाम शिव है । वह कभी बदलता नहीं । शरीर बदलते हैं तो नाम भी बदल जाते हैं । शिवबाबा कहते हैं मैं तो सदैव निराकार परम आत्मा ही हूँ । ड्रामा के प्लैन अनुसार अभी यह शरीर लिया है । सन्यासियों का भी नाम बदलता है । गुरू का बनते हैं तो नाम बदलता है । तुम्हारे भी नाम बदले थे । परन्तु कहाँ तक नाम बदलते रहेंगे । कितने भागन्ती हो गये । जो उस समय थे उनका नाम रख दिया । अब नाम नहीं रखते हैं । किस पर भी विश्वास नहीं है । माया बहुतों को हरा देती है तो भागन्ती हो जाते हैं इसलिए बाबा किसका भी नाम नहीं रखते हैं । किसका रखे, किसका न रखे, वह भी ठीक नहीं । कहते तो सब हैं-बाबा, हम आपके हो चुके हैं, परन्तु यथार्थ रीति हमारे होते थोड़ेही हैं । बहुत हैं जो वारिस बनने के राज को भी नहीं जानते हैं । बाबा के पास मिलने आते हैं परन्तु वारिस नहीं हैं । विजय माला में नहीं आ सकते । कोई अच्छे- अच्छे बच्चे समझते हैं हम तो वारिस हैं । परन्तु बाबा समझते हैं यह वारिस हैं नहीं । वारिस बनने के लिए भगवान को अपना वारिस बनाना पड़े, यह राज समझाना भी मुश्किल है । बाबा समझाते हैं वारिस किसको कहा जाता है । भगवान को कोई वारिस बनाये तो मिलकियत देनी पड़े । तो बाप फिर वारिस बनाये । मिलकियत तो सिवाए गरीबों के कोई साहूकार दे न सके । माला कितनी थोड़ों की बनती है । यह भी कोई बाबा से पूछे तो बाबा बता सकते हैं-तुम वारिस बनने के हकदार हो वा नहीं? यह बाबा भी बता सकते हैं । यह कॉमन बात है समझने की । वारिस बनने में भी बहुत अक्ल चाहिए । देखते हैं लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक थे, परन्तु वह मालिकपना कैसे लिया-यह कोई नहीं जानते । अभी तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट तो सामने हैं । तुमको यह बनना है । बच्चे भी कहते हैं हम तो सूर्यवंशी लक्ष्मी-नारायण बनेंगे, न कि चन्द्रवशी राम-सीता । राम-सीता की भी शास्त्रों में निंदा की हुई है । लक्ष्मी- नारायण की कभी निंदा नहीं सुनेंगे । शिवबाबा की, कृष्ण की भी निंदा है । बाप कहते हैं मैं तुम बच्चों को इतना ऊंच ते ऊँच बनाता हूँ । मेरे से भी बच्चे तीखे चले जाते हैं । लक्ष्मी-नारायण की भी कोई निंदा नहीं करेंगे । भल कृष्ण की आत्मा तो वही है, परन्तु न जानने कारण निंदा कर दी है । लक्ष्मी-नारायण का मन्दिर भी बड़ा खुशी से बनाते हैं । वास्तव में बनाना चाहिए राधे-कृष्ण का, क्योंकि वह सतोप्रधान हैं । यह उन्हों की युवा अवस्था है तो उनको सतो कहते हैं । वह छोटे हैं इसलिए सतोप्रधान कहेंगे । छोटा बच्चा महात्मा समान होता है । जैसे छोटे बच्चों को विकार आदि का पता नहीं रहता, वैसे वहाँ बड़ों को भी पता नहीं रहता कि विकार क्या चीज है । यह 5 भूत वहाँ होते ही नहीं । विकारों का जैसेकि पता ही नहीं है । इस समय है ही रात । काम की चेष्टा भी रात को ही होती है । देवतायें हैं दिन में तो काम की चेष्ठा होती नहीं । विकार कोई होते नहीं । अभी रात में सब विकारी हैं । तुम जानते हो दिन होते ही हमारे सब विकार चले जायेंगे । पता नहीं रहता कि विकार क्या चीज हैं । यह रावण के विकारी गुण हैं । यह है विशश वर्ल्ड । वाइसलेस वर्ल्ड में विकार की कोई बात नहीं होती । उनको कहा ही जाता है ईश्वरीय राज्य । अभी हैं आसुरी राज्य । यह कोई नहीं जानते । तुम सब कुछ जानते हो, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार । ढेर बच्चे हैं । कोई भी मनुष्य समझ नहीं सकते कि यह सब बी .के. किसके बच्चे हैं ।

सब याद करते हैं-शिवबाबा को, ब्रह्मा को भी नहीं । यह खुद कहते हैं शिवबाबा को याद करो, जिससे विकर्म विनाश होंगे, और कोई को भी याद करने से विकर्म विनाश नहीं होंगे । गीता में भी कहा है मामेकम याद करो । कृष्ण तो कह न सके । वर्सा मिलता ही है निराकार बाप से । अपने को जब आत्मा समझे तब निराकार बाप को याद करें । मैं आत्मा हूँ, पहले यह पक्का निश्चय करना पड़े । मेरा बाप परमात्मा है, वह कहते हैं मुझे याद करो तो मैं तुमको वर्सा दूँगा । मैं सबको सुख देने वाला हूँ । मैं सभी आत्माओं को शान्तिधाम ले जाता हूँ । जिन्होंने कल्प पहले बाप से वर्सा लिया होगा वही आकर वर्सा लेंगे, ब्राह्मण बनेंगे । ब्राह्मणों में भी कुछ बच्चे पक्के हैं । मातेले भी बनेंगे, सौतेले भी बनेंगे । हम निराकार शिवबाबा की वंशावली हैं । जानते हैं बिरादरी कैसे बढ़ती जाती है । अभी ब्राह्मण बनने के बाद हमको वापिस जाना है । सब आत्मायें शरीर छोड़कर वापिस जानी है । पाण्डव और कौरव दोनों को शरीर छोड़ना है । तुम यह ज्ञान के संस्कार ले जाते हो फिर उस अनुसार प्रालब्ध मिलती है । वह भी ड्रामा में नूंध है फिर ज्ञान का पार्ट खत्म हो जाता है । तुमको 84 जन्मों के बाद फिर ज्ञान मिला है । फिर यह ज्ञान प्राय: लोप हो जाता है । तुम प्रालब्ध भोगते हो । वहाँ और कोई धर्म वालों के चित्र आदि नहीं रहते । तुम्हारे भक्तिमार्ग में भी चित्र रहते हैं । सतयुग में किसका चित्र आदि नहीं रहता । तुम्हारे चित्र आलराउन्डर भक्ति मार्ग में रहते हैं । तुम्हारे राज्य में और कोई का चित्र नहीं है, सिर्फ देवी-देवता ही रहते हैं । इससे ही समझते हैं आदि सनातन देवी-देवता ही हैं । पीछे सृष्टि बढ़ती जाती है । तुम बच्चों को यह ज्ञान सिमरण कर अतीन्द्रिय सुख में रहना है । बहुत प्याइंटस हैं । परन्तु बाबा समझते हैं माया घड़ी-घड़ी भुला देती है । तो यह याद रहना चाहिए कि शिवबाबा हमको पढ़ा रहे हैं । वह हैं ऊँच ते ऊँच । हमको अब वापस घर जाना है । कितनी सहज बातें हैं । सारा मदार है याद पर । हमको देवता बनना है । दैवी गुण भी धारण करने हैं । 5 विकार हैं भूत । काम का भूत, क्रोध का भूत, देह- अभिमान का भूत भी होता है । हाँ, कोई में जास्ती भूत होते हैं, कोई में कम । तुम ब्राह्मण बच्चों को पता है यह 5 बड़े भूत हैं । नम्बरवन है काम का भूत, सेकण्ड नम्बर है क्रोध का भूत । कोई रफढफ बोलता है तो बाप कहते हैं यह क्रोधी हैं । यह भूत निकल जाना चाहिए । परन्तु भूत निकलना बड़ा मुश्किल है । क्रोध एक-दो को दु :ख देता है । मोह में बहुतों को दु :ख नहीं होगा । जिसको मोह है उनको ही दु :ख होगा इसलिए बाप समझाते हैं इन भूतों को भगाओ ।

हर बच्चे को विशेष पढ़ाई और दैवीगुणों पर अटेंशन देना है । कई बच्चों में तो क्रोध का अंश भी नहीं है । कोई तो क्रोध में आकर बहुत लड़ते हैं । बच्चों को ख्याल करना चाहिए हमको दैवीगुण धारण कर देवता बनना है । कभी गुस्से से बात नहीं करनी चाहिए । कोई गुस्सा करता है तो समझो इनमें क्रोध का भूत है । वह जैसे भूतनाथ- भूतनाथिनी बन जाते हैं, ऐसे भूत वालों से कभी बात नहीं करनी चाहिए । एक ने क्रोध में आकर बात की फिर दूसरे में भी भूत आ गया तो भूत आपस में लड़ पड़ेंगे । भूतनाथिनी अक्षर बड़ा छी-छी है । भूत की प्रवेशता नहीं हो जाए इसलिए मनुष्य किनारा करते हैं । भूत के सामने खड़ा भी नहीं होना चाहिए, नहीं तो प्रवेशता हो जायेगी । बाप आकर आसुरी गुण निकाल दैवीगुण धारण कराते हैं । बाप कहते हैं मैं आया हूँ दैवीगुण धारण कराए देवता बनाने । बच्चे जानते हैं हम दैवीगुण धारण कर रहे हैं । देवताओं के चित्र भी सामने हैं । बाबा ने समझाया है क्रोध वाले से एकदम किनारा कर लो । अपने को बचाने की युक्ति चाहिए । हमारे में क्रोध न आ जाए, नहीं तो सौ गुणा पाप पड़ जायेगा । कितनी अच्छी समझानी बाप बच्चों को देते हैं । बच्चे भी समझते हैं - बाबा हूबहू कल्प पहले मुआफिक समझाते हैं, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार समझते ही रहेंगे । अपने ऊपर भी रहम करना है, दूसरे पर भी रहम करना है । कोई अपने पर रहम नहीं करते, दूसरे पर करते हैं तो वह ऊंच चढ़ जाते हैं, खुद रह जाते हैं । खुद विकारों पर जीत पहनते नहीं, दूसरे को समझाते हैं, वह जीत पहन लेते हैं । ऐसे भी वन्डर होता है । अच्छा !

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. ज्ञान का सिमरण कर अतीन्द्रिय सुख में रहना है । किसी से भी रफढफ बातचीत नहीं करनी है । कोई गुस्से से बात करे तो उससे किनारा कर लेना है ।

2. भगवान का वारिस बनने के लिए पहले उन्हें अपना वारिस बनाना है । समझदार बन अपना सब बाप हवाले कर ममत्व मिटा देना है । अपने ऊपर आपेही रहम करना है ।

वरदान:-

सत्यता, स्वच्छता और निर्भयता के आधार से प्रत्यक्षता करने वाले रमता योगी भव !   

परमात्म प्रत्यक्षता का आधार सत्यता है । और सत्यता का आधार स्वच्छता वा निर्भयता है । यदि किसी भी प्रकार की अस्वच्छता अर्थात् सच्चाई सफाई की कमी है, या अपने ही तमोगुणी संस्कारों पर विजयी बनने में, संस्कार मिलाने में या विश्व सेवा के क्षेत्र में अपने सिद्धान्तों को सिद्ध करने में भय है तो प्रत्यक्षता नहीं हो सकती । इसलिए सत्यता और निर्भयता को धारण कर एक ही धुन में मस्त रहने वाले रमता योगी, सहज राजयोगी बनो तो सहज ही अन्तिम प्रत्यक्षता होगी ।

स्लोगन:- 

बेहद की दृष्टि, वृत्ति ही युनिटी का आधार है इसलिए हद में नहीं आओ ।   

 

अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए विशेष होमवर्क

चाहे कोई भी साधारण कर्म भी कर रहे हो तो भी बीच-बीच में अव्यक्त स्थिति बनाने का अटेंशन रहे । कोई भी कार्य करो तो सदैव बापदादा को अपना साथी समझकर डबल फोर्स से कार्य करो तो स्मृति बहुत सहज रहेगी । स्थूल कारोबार का प्रोग्राम बनाते बुद्धि का प्रोग्राम भी सेट कर लो तो समय की बचत हो जायेगी ।

 

ओम् शान्ति |