04-09-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - सदा श्रीमत पर चलना - यही श्रेष्ठ पुरुषार्थ है, श्रीमत पर चलने से आत्मा का दीपक जग जाता है”   

                            
प्रश्न:-   
पूरा-पूरा पुरुषार्थ कौन कर सकते हैं? ऊंच पुरुषार्थ क्या है?


उत्तर:-
पूरा पुरुषार्थ वही कर सकते जिनका अटेंशन वा बुद्धियोंग एक में है । सबसे ऊंचा पुरुषार्थ है बाप के ऊपर पूरा-पूरा कुर्बान जाना । कुर्बान जाने वाले बच्चे बाप को बहुत प्रिय लगते हैं ।

                            
प्रश्न:-   
सच्ची-सच्ची दीपावली मनाने के लिए बेहद का बाप कौन-सी राय देते हैं?


उत्तर:-
बच्चे, बेहद की पवित्रता को धारण करो । जब यहाँ बेहद पवित्र बनेंगे, ऐसा ऊंचा पुरुषार्थ करेंगे तब लक्ष्मी- नारायण के राज्य में जा सकेंगे अर्थात् सच्ची-सच्ची दीपावली वा कारोनेशन डे मना सकेंगे ।

 

ओम् शान्ति |

बच्चे अभी यहाँ बैठकर क्या कर रहे हैं? चलते फिरते अथवा यहाँ बैठे-बैठे जन्म-जन्मान्तर के जो पाप सिर पर हैं, उन पापों का याद की यात्रा से विनाश करते हैं । यह तो आत्मा जानती है, हम जितना बाप को याद करेंगे उतना पाप कटते जायेंगे । बाप ने तो अच्छी रीति समझाया है- भल यहाँ बैठे हो तो भी जो श्रीमत पर चलने वाले हैं, उनको तो बाप की राय अच्छी ही लगेगी । बेहद बाप की राय मिलती है, बेहद पवित्र बनना है । तुम यहाँ आये हो बेहद पवित्र बनने के लिए, सो बनेंगे ही याद की यात्रा से । कई तो बिल्कुल याद कर नहीं सकते, कई समझते हैं हम याद की यात्रा से अपने पाप काट रहे हैं, गोया अपना कल्याण कर रहे हैं । बाहर वाले तो इन बातों को जानते नहीं । तुमको ही बाप मिला है, तुम रहते ही हो बाप के पास । जानते हो अभी हम ईश्वरीय सन्तान बने हैं, आगे आसुरी सन्तान थे । अब हमारा संग ईश्वरीय सन्तानों से है । गायन भी है ना-संग तारे कुसंग डुबोये । बच्चों को घड़ी-घड़ी यह भूल जाता है कि हम ईश्वरीय सन्तान हैं तो हमको ईश्वरीय मत पर ही चलना चाहिए, न कि अपनी मनमत पर । मनमत मनुष्य मत को कहा जाता है । मनुष्य मत आसुरी ही होती है । जो बच्चे अपना कल्याण चाहते हैं वह बाप को अच्छी रीति याद करते रहते हैं, सतोप्रधान बनने के लिए । सतोप्रधान की महिमा भी होती है । बरोबर जानते हैं हम सुखधाम के मालिक बनते हैं नम्बरवार । जितना-जितना श्रीमत पर चलते हैं, उतना ऊंच पद पाते हैं, जितना अपनी मत पर चलते तो पद भ्रष्ट हो जायेगा । अपना कल्याण करने के लिए बाप के डायरेक्शन तो मिलते ही रहते हैं । बाप ने समझाया है यह भी पुरुषार्थ है, जो जितना याद करते हैं तो उनके भी पाप कटते हैं । याद की यात्रा बिगर तो पवित्र बन नहीं सकेंगे । उठते, बैठते, चलते यही ओना रखना है । तुम बच्चों को कितने वर्षों से शिक्षा मिली है तो भी समझते हैं हम बहुत दूर हैं । इतना बाप को याद नहीं कर सकते हैं । सतोप्रधान बनने में तो बहुत टाइम लग जायेगा । इस बीच में शरीर छूट जाए तो कल्प-कल्पान्तर के लिए कम पद हो जायेगा । ईश्वर का बने हैं तो उनसे पूरा वर्सा लेने का पुरुषार्थ करना चाहिए । बुद्धि एक तरफ ही रहनी चाहिए । तुमको अब श्रीमत मिलती है । वह है ऊंच ते ऊंच भगवान । उनकी मत पर नहीं चलेंगे तो बहुत धोखा खायेंगे । चलते हो वा नहीं, वह तो तुम जानो और शिवबाबा जाने । तुमको पुरुषार्थ कराने वाला वह शिवबाबा है । देहधारी सब पुरुषार्थ करते हैं । यह भी देहधारी है, इनको शिवबाबा पुरुषार्थ कराते हैं । बच्चों को ही पुरुषार्थ करना है । मूल बात है पतितों को पावन बनाने की । वैसे दुनिया में पावन तो बहुत होते हैं । सन्यासी भी पवित्र रहते हैं । वह तो एक जन्म के लिए पावन बनते हैं । ऐसे बहुत हैं जो इस जन्म में बाल ब्रह्मचारी रहते हैं । वह कोई दुनिया को मदद नहीं दे सकते हैं पवित्रता की । मदद तब हो जबकि श्रीमत पर पावन बनें और दुनिया को पावन बनायें ।

अभी तुमको श्रीमत मिल रही है । जन्म-जन्मान्तर तो तुम आसुरी मत पर चले हो । अब तुम जानते हो सुखधाम की स्थापना हो रही है । जितना हम श्रीमत पर पुरुषार्थ करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे । यह ब्रह्मा की मत नहीं है । यह तो पुरुषार्थी है । इनका पुरुषार्थ जरूर इतना ऊँच है तब तो लक्ष्मी-नारायण बनते हैं । तो बच्चों को यह फालो करना है । श्रीमत पर चलना पड़े, मनमत पर नहीं । अपने आत्मा की ज्योति को जगाना है । अभी दीपावली आती है, सतयुग में दीपावली होती नहीं । सिर्फ कारोनेशन है । बाकी आत्मायें तो सतोप्रधान बन जाती है । यह जो दीपमाला मनाते हैं, वह है झूठी । बाहर के दीपक जगाते हैं, वहाँ तो घर- घर में दीप जगा हुआ है अर्थात् सबकी आत्मा सतोप्रधान रहती है । 21 जन्मों के लिए ज्ञान घृत पड़ जाता है । फिर आहिस्ते- आहिस्ते कम होते-होते इस समय ज्योति उझाई है-सारी दुनिया की । इसमें भी खास भारतवासी, आम दुनिया । अभी पाप आत्मायें तो सब हैं, सबकी कयामत का समय है, सबको हिसाब-किताब चुक्तू करना है । अभी तुम बच्चों को पुरुषार्थ करना है ऊँच ते ऊँच पद पाने का, श्रीमत पर चलने से ही पायेंगे । रावण राज्य में तो शिवबाबा की बहुत अवज्ञा की है । अब भी उनके फरमान पर नहीं चलेंगे तो बहुत धोखा खायेंगे । उनको ही बुलाया है कि आकर हमको पावन बनाओ । तो अब अपना कल्याण करने के लिए शिवबाबा की श्रीमत पर चलना पड़े । नहीं तो बहुत अकल्याण हो जायेगा । मीठे-मीठे बच्चे यह भी जानते हो - शिवबाबा की याद बिगर हम सम्पूर्ण पावन बन नहीं सकते । तुमको इतने वर्ष हुए हैं फिर भी ज्ञान की धारणा क्यों नहीं होती है । सोने के बर्तन में ही धारणा होगी । नये-नये बच्चे कितने सर्विसएबुल हो जाते हैं । फर्क देखो कितना है । पुराने-पुराने बच्चे इतना याद की यात्रा में नहीं रहते, जितना नये रहते हैं । कई अच्छे शिवबाबा के लाडले बच्चे आते हैं, कितनी सर्विस करते हैं । जैसेकि शिवबाबा के पिछाड़ी आत्मा को कुर्बान कर दिया है । कुर्बान करने से फिर सर्विस भी कितनी करते हैं । कितने प्रिय मीठे लगते हैं । बाप को मदद करते ही हैं याद की यात्रा में रहने से । बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम पावन बनेंगे । बुलाया ही है कि मुझे आकर पावन बनाओ तो अब बाप कहते हैं मुझे याद करते रहो । देह के सम्बन्ध सब त्याग करना पड़े । मित्र- सम्बन्धियों आदि की भी याद न रहे, सिवाए एक बाप के, तब ही ऊँच पद पा सकेंगे । याद नहीं करेंगे तो ऊँच पद पा नहीं सकेंगे । यह बापदादा भी समझ सकते हैं । तुम बच्चे भी जानते हो । नये-नये आते हैं, समझते हैं दिन-प्रतिदिन सुधरते जाते हैं । श्रीमत पर चलने से ही सुधरते हैं । क्रोध पर भी पुरुषार्थ करते-करते जीत पाते हैं । तो बाप भी समझाते हैं, खराबियों को निकालते रहो । क्रोध भी बड़ा खराब है । अपने अन्दर को भी जलाते हैं, दूसरे को भी जलाते हैं । वह भी निकलना चाहिए । बच्चे बाप की श्रीमत पर नहीं चलते हैं तो पद कम हो जाता है, जन्म-जन्मान्तर, कल्प-कल्पान्तर का घाटा पड़ जाता है । तुम बच्चे जानते हो कि वह है जिस्मानी पढ़ाई, यह है रूहानी पढ़ाई जो रूहानी बाप पढ़ाते हैं । हर प्रकार की सम्भाल भी होती रहती है । कोई विकारी यहाँ अन्दर (मधुबन में) आ न सके । बीमारी आदि में भी विकारी मित्र-सम्बन्धी आयें, यह तो अच्छा नहीं । पसन्द भी हम न करें । नहीं तो अन्तकाल वह मित्र-सम्बन्धी ही याद पड़ेंगे । फिर वह ऊंच पद पा नहीं सकेंगे । बाप तो पुरुषार्थ कराते हैं, कोई की भी याद न आये । ऐसे नहीं, हम बीमार हैं इसलिए मित्र-सम्बन्धी आदि आयें देखने के लिए । नहीं, उन्हों को बुलाना, कायदा नहीं । कायदेसिर चलने से ही सद्गति होती है । नहीं तो मुफ्त अपने को नुकसान पहुँचाते हैं । परन्तु तमोप्रधान बुद्धि यह समझते नहीं हैं । ईश्वर राय देते हैं तो भी सुधरते नहीं । बड़ा खबरदारी से चलना चाहिए । यह है होलीएस्ट ऑफ होली स्थान । पतित ठहर न सकें । मित्र-सम्बन्धी आदि याद होंगे तो मरने समय जरूर वह याद आयेंगे । देह- अभिमान में आने से अपने को ही नुकसान पहुँचाते हैं । सजा के निमित्त बन पड़ते हैं । श्रीमत पर न चलने से बड़ी दुर्गति हो जाती है । सर्विस लायक बन न सके । कितना भी माथा मारे परन्तु सर्विस लायक हो नहीं सकते । अवज्ञा की तो पत्थरबुद्धि बन जाते हैं । ऊपर चढ़ने बदले नीचे गिर जाते हैं । बाप तो कहेंगे बच्चों को आज्ञाकारी बनना चाहिए । नहीं तो पद भ्रष्ट हो पड़ेगा । लौकिक बाप के पास भी 4 - 5 बच्चे होते हैं, परन्तु उनमें जो आज्ञाकारी होते हैं वही बच्चे प्रिय लगते हैं । जो आज्ञाकारी नहीं वह तो दुख ही देंगे । अभी तुम बच्चों को दोनों बाप बहुत बड़े मिले हैं, उनकी अवज्ञा नहीं करनी है । अवज्ञा करेंगे तो जन्म- जन्मान्तर, कल्प-कल्पान्तर बहुत कम पद पायेंगे । पुरुषार्थ ऐसा करना है जो अन्त में एक ही शिवबाबा याद आये । बाप कहते हैं मैं जान सकता हूँ - हर एक क्या पुरुषार्थ करते हैं । कोई तो बहुत थोड़ा याद करते हैं, बाकी तो अपने मित्र-सम्बन्धियों को ही याद करते रहते हैं । वह इतना खुशी में नहीं रह सकते । ऊँच पद पा न सकें ।

तुम्हारा तो रोज सतगुरूवार है । बृहस्पति के दिन कॉलेज में बैठते हैं । वह है जिस्मानी विद्या । यह तो है रूहानी विद्या । तुम जानते हो शिवबाबा हमारा बाप, टीचर, सतगुरू है । तो उनके डायरेक्शन पर चलना चाहिए, तब ही ऊंच पद पा सकेंगे । जो पुरुषार्थी हैं, उन्हों के अन्दर बहुत खुशी रहती है । बात मत पूछो । खुशी है तो औरों को भी खुश करने का पुरुषार्थ करते हैं । बच्चियां देखो कितनी मेहनत करती रहती हैं-दिन-रात क्योंकि यह वन्डरफुल ज्ञान है ना । बापदादा को तरस पड़ता है कि कई बच्चे बेसमझी से कितना घाटा पाते हैं । देह- अभिमान में आकर अन्दर में बड़ा जलते हैं । क्रोध में मनुष्य ताम्बे जैसा लाल हो जाते हैं । क्रोध मनुष्य को जलाता है, काम काला बना देता है । मोह अथवा लोभ में इतना जलते नहीं हैं । क्रोध में जलते हैं । क्रोध का भूत बहुतों में है । कितना लड़ते हैं । लड़ने से अपना ही नुकसान कर लेते हैं । निराकार साकार दोनो की अवज्ञा करते हैं । बाप समझते हैं यह तो कपूत हैं । मेहनत करेंगे तो ऊंच पद पायेंगे । तो अपने कल्याण के लिए सब सम्बन्ध भुला देने हैं । सिवाए एक बाप के किसको भी याद नहीं करना है । घर में रहते सम्बन्धियों को देखते हुए शिवबाबा को याद करना है । तुम हो संगमयुग पर, अब अपने नये घर को, शान्तिधाम को याद करो ।

यह तो बेहद की पढ़ाई है ना । बाप शिक्षा देते हैं इसमें बच्चों का ही फायदा है । कई बच्चे अपनी बेढंगी चलन से मुफ्त अपने को नुकसान पहुँचाते हैं । पुरुषार्थ करते हैं विश्व की बादशाही लेने के लिए परन्तु माया बिल्ली कान काट लेती है । जन्म लिया है, कहते हैं हम यह पद पायेंगे परन्तु माया बिल्ली लेने नहीं देती, तो पद भ्रष्ट हो जाता है । माया बड़ा जोर से वार कर देती है । तुम यहाँ आते हो राज्य लेने के लिए । परन्तु माया हैरान करती है । बाप को तरस पड़ता है बिचारे ऊंच पद पावें तो अच्छा है । मेरी निंदा कराने वाला न बनें | सतगुरू का निंदक ठौर न पाये, किसकी निंदा? शिवबाबा की । ऐसी चलन नहीं चलनी चाहिए जो बाप की निंदा हो, इसमें अहंकार की बात नहीं । अच्छा! 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. अपने कल्याण के लिए देह के सब सम्बन्ध भुला देने हैं, उनसे प्रीत नहीं रखनी है । ईश्वर की ही मत पर चलना है, अपनी मत पर नहीं । कुसंग से बचना है, ईश्वरीय संग में रहना है ।

2. क्रोध बहुत खराब है, यह स्वयं को जलाता है, क्रोध के वश होकर अवज्ञा नहीं करनी है । खुश रहना है और सबको खुश करने का पुरुषार्थ करना है ।

 

वरदान:-

परमात्म ज्ञान की नवीनता ' 'पवित्रता' ' को धारण करने वाले सर्व लगावों से मुक्त भव !    

इस परमात्म ज्ञान की नवीनता ही पवित्रता है । फलक से कहते हो कि आग-कपूस इकट्ठा रहते भी आग नहीं लग सकती । विश्व को आप सबकी यह चैलेन्ज है कि पवित्रता के बिना योगी वा जानी तू आत्मा नहीं बन सकते । तो पवित्रता अर्थात् सम्पूर्ण लगाव-मुक्त । किसी भी व्यक्ति वा साधनों से भी लगाव न हो । ऐसी पवित्रता द्वारा ही प्रकृति को पावन बनाने की सेवा कर सकेंगे ।

 

स्लोगन:- 

पवित्रता आपके जीवन का मुख्य फाउन्डेशन है, धरत परिये धर्म न छोड़िये ।   

 

ओम् शान्ति |