24-08-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “अव्यक्त-बापदादा”
रिवाइज:07-12-78
मधुबन
“बाप
समान सम्पूर्ण बनने के चिन्ह”
सदा
अपने स्मृति की समर्थी से अपने तीनों स्थान और तीनों स्थिति,
निराकारी,
आकारी और साकारी तीनों स्थिति में सहज ही स्थित हो सकते हो?
जैसे
आदि स्थिति साकार स्वरूप में सहज ही स्थित रहते हो,
ऐसे
अनादि निराकारी स्थिति इतनी ही सहज अनुभव होती है?
अभी-अभी अनादि,
अभी-अभी आदि स्मृति की समर्थी द्वारा दोनों स्थिति में समानता
अनुभव हो - ऐसे अनुभव करते हो?
जैसे
साकार स्वरूप अपना अनुभव होता है,
स्थित होना नेचुरल अनुभव करते हो - ऐसे अपने अनादि निराकारी
स्वरूप में,
जो
सदा एक अविनाशी है,
उस
सदा एक अविनाशी स्वरूप में स्थित होना भी नेचुरल हो । संकल्प
किया और स्थित हुआ - इसी को कहा जाता है बाप समान सम्पूर्ण
अवस्था,
कर्मातीत अन्तिम स्टेज । तो अपने आप से पूछो - अन्तिम स्टेज के
कितना समीप पहुँचे हो?
जितना सम्पूर्ण अवस्था के नजदीक होंगे अर्थात् बाप के नजदीक
होंगे उसी अनुसार भविष्य प्रालब्ध में भी राज्य अधिकारी होंगे
। साथ-साथ आदि भक्त जीवन में भी समीप सम्बन्ध में होंगे ।
पूज्य अथवा पुजारी दोनों जीवन में साकार बाप के समीप होंगे
अर्थात् सारे कल्प में आदि आत्मा के सम्बन्ध - सम्पर्क में
रहेंगे । हीरो पार्टधारी आत्मा के साथ-साथ आप आत्माओं का भी
भिन्न नाम रूप से विशेष पार्ट होगा । अब के सम्पूर्ण स्थिति के
नजदीक से अर्थात् बापदादा की समीपता के आधार से सारे कल्प की
समीपता का आधार है,
इसलिए जितना चाहो उतना अपनी कल्प की प्रालब्ध बनाओ । समीपता का
आधार श्रेष्ठता है । श्रेष्ठता का आधार अपने मरजीवे जीवन में
विशेष दो बातों की चेकिंग करो- एक सदा पर-उपकारी रहे हैं
?
दूसरा आदि से अब तक सदा बाल ब्रह्मचारी रहे हैं?
मरजीवे जीवन के आदिकाल से अर्थात् बाल्यकाल से अब तक सदा
ब्रह्मचारी रहे हैं?
ब्रह्मचारी जीवन अर्थात् ब्रह्मा समान पवित्र जीवन । जिसको
ब्रह्मचारी कहो या ब्रह्माचारी कहो - आदि से अन्त तक अखण्ड रहे
हैं?
अगर
बार-बार खण्डित रहे हैं,
तो
बाल ब्रह्मचारी वा सदा ब्रह्मचारी नहीं कहला सकते । किसी भी
प्रकार की पवित्रता अर्थात् स्वच्छता खण्डन हुई है तो परम
पूज्यनीय नहीं बन सकते हैं । बाप समान न होने कारण समीप
सम्बन्ध में नहीं आ सकते इसलिए श्रेष्ठता का आधार,
समीपता का आधार बाल ब्रह्मचारी अर्थात् सदा ब्रह्माचारी,
जिसको ही फालो फादर भी कहते हैं । तो अपने को चेक करो - अखण्ड
हैं?
अखण्ड रहने वाले को सर्व प्राप्तियाँ भी अखण्ड अनुभव होती हैं
। खण्डित पुरुषार्थी को प्राप्तियाँ भी अल्पकाल अनुभव होती हैं
। अपना रजिस्टर चेक करो - सदा साफ रहा है?
किसी
भी प्रकार के दाग से रजिस्टर को खराब तो नहीं किया?
सदा
ब्रह्मचारी अर्थात् संकल्प में भी किसी प्रकार की अपवित्रता
वृत्ति को चंचल नहीं बनाये । पहली हार वृत्ति की चंचलता,
फिर
दृष्टि और कृति की चंचलता होती है । वृत्ति की चंचलता रजिस्टर
को दागी बना देती है इसलिए वृत्ति से भी सदा ब्रह्मचारी ।
आज
बापदादा बच्चों के इस रजिस्टर को देख रहे थे कि कितने बच्चे
सदा ब्रह्मचारी हैं और कितने ब्रह्मचारी हैं?
बाल
ब्रह्मचारी का महत्व होता है,
बाल
ब्रह्मचारी वर्तमान समय भी पूज्य अर्थात् श्रेष्ठ हैं ।
बापदादा भी ऐसे बच्चों को पूज्य बच्चों के रूप में देखते हैं ।
विश्व के आगे भी अभी अन्त में पूज्य के रूप में प्रत्यक्ष
होंगे । बाप के आगे पूज्य प्रसिद्ध होने वाले सदा समीप सम्बन्ध
में रहते हैं । ऐसे अपना रजिस्टर देखना । दूसरी बात -
पर-उपकारी इसका भी विस्तार बहुत गुह्य है । इसका विस्तार स्वयं
सोचना । विश्व के प्रति और ब्राह्मण परिवार के प्रति दोनों
सम्बन्ध में सदा उपकारी बने हैं वा कभी स्व-उपकारी,
कभी
पर-उपकारी । वास्तव में पर-उपकार ही स्व-उपकार है । इसी रीति
से इस बात में भी अपना रजिस्टर चेक करना फिर बापदादा भी
सुनायेंगे । समझा । अच्छा
–
सदा
अपने अनादि और आदि स्वरूप में सहज स्थित होने वाले,
सदा
स्वच्छ और स्पष्ट रहने वाले पूज्य आत्मायें,
सारे
कल्प में समीप सम्बन्ध में आने वाली आत्मायें,
सदा
ब्रह्मचारी बच्चों को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते ।
टीचर्स से मुलाकात -
टीचर्स को विशेष लिफ्ट है क्योंकि टीचर्स का काम ही है सर्व
आत्माओं को मार्ग दर्शन कराना । तो दिन रात एक ही लगन में रहने
वाले,
एक
की ही याद और एक ही कार्य - इससे एकरस स्थिति सहज ही बन जाती
है । एक की लगन में रहने से सहज मंज़िल का अनुभव होता है । एक
ही एक है तो सहज मार्ग हो गया ना?
सेकण्ड में स्विच आन किया और मंजिल पर पहुँचे । सोचा और स्वरूप
हुआ,
यह
है लिफ्ट । टीचर्स को अपने भाग्य को देख सदा बाप के गुण गाने
चाहिए । वाह बाबा और वाह ड्रामा - यही गीत सदा चलता रहे । इसी
खुशी में चाहे तन का बन्धन हो,
चाहे
मन का हो लेकिन कुछ नहीं लगेगा । सदा बिजी रहने से किसी भी
प्रकार से माया का वार,
वार
नहीं कर सकता । माया की हार होगी,
वार
नहीं हो सकता ।
समीप
आत्माओं के लिए पुरुषार्थ भी एक मनोरंजन का साधन
ब्रह्मा बाप की जो पहली विशेषता है नष्टोमोहा जिसके आधार पर ही
सदा स्मृति स्वरूप बने,
तो
ऐसे फालो फादर करते हो?
इसी
विशेषता से समीप आत्मा बन जायेंगे । स्वयं से वा सर्व से
नष्टोमोहा - इसलिए समीप आत्माओं को सहज ही सर्व प्राप्तियाँ
होती हैं । पुरुषार्थ भी एक खेल अनुभव होता है,
मुश्किल नहीं । पुरुषार्थ करना भी एक मनोरंजन है । वैसे कोई
हिसाब करो और मनोरंजन रीति से हिसाब करो तो फर्क पड़ जाता है ना
- तो समीप आत्मा को पुरुषार्थ भी मनोरंजन अनुभव होता । समीप
आत्मा की मुख्य निशानी - आदि से अन्त तक मुश्किल का अनुभव न हो
।
सफलता का आधार साक्षी और साथीपन का अनुभव
सदा
अपने को बाप के साथी समझकर चलते हो?
अगर
साथीपन का अनुभव होगा तो साक्षीपन का अनुभव होगा क्योंकि बाप
का साथ होने के कारण जैसे बाप साक्षी हो पार्ट बजाते हैं वैसे
आप भी साथी होने के कारण साक्षी हो पार्ट बजायेंगे । तो दोनों
ही अनुभव,
अनुभव करते हो,
अकेले नहीं लेकिन सदा सर्वशक्तिमान का साथ है । जहाँ साथ है
वहाँ सफलता तो स्वत: ही हुई पड़ी है । वैसे भी भक्ति मार्ग में
यही पुकारते हैं कि थोड़े समय के साथ का अनुभव करा दो,
झलक
दिखा दो लेकिन अब क्या हुआ?
सर्व
सम्बन्ध से साथी हो गये । झलक वा दर्शन अल्पकाल के लिए होता है
लेकिन सम्बन्ध सदाकाल का होता है,
तो
अब बाप के समीप सम्बन्ध में आ गये कि अभी तक भी जिज्ञासु हो?
जिज्ञासा तब तक होती जब तक प्राप्ति नहीं । अब जिज्ञासु नहीं
अधिकारी हो,
हर
सेकण्ड का साथ है,
हर
सेकण्ड में सम्बन्ध के कारण समीप हैं । जीवन में साथी की तलाश
करते हैं और साथी के आधार पर ही अपना जीवन बिताते हैं,
अब
कौन सा साथी बनाया है?
अविनाशी साथी । और कोई भी साथी समय पर वा सदा नहीं पहुँच सकता
लेकिन बापदादा सदा और सेकण्ड में पहुँच सकते । वह जन्म-जन्म का
साथ है,
भविष्य में भी बाप का तो साथ रहेगा ना । शिव बाप साक्षी हो
जायेंगे और ब्रह्मा बाप साथी हो जायेंगे । अभी दोनों साथी हैं
। ऐसे अनुभव करने वाले सदा खुश रहते हैं,
जो
पाना था वह पा लिया तो खुशी होगी ना
|
पा
लिया है,
बाकी
है बाप समान स्वयं को बनाना,
इसमें नम्बरवार हैं ।
शक्ति सेना को बापदादा विशेष चढ़ती कला का सहयोग क्यों देते हैं?
क्योंकि शक्तियों को,
माताओं को सबने नीचे गिराया,
अब
बाप आकर ऊंचा चढ़ाते हैं । अपने से भी आगे शक्तियों को रखते हैं
तो शक्तियों को विशेष खुशी होनी चाहिए - शक्ति का चेहरा सदा
चमकता हुआ दिखाई दे,
क्योंकि बाप ने विशेष आगे रखा है । वैसे भी कोई अल्पकाल की
प्राप्ति होती है तो वह चमक चेहरे पर दिखाई देती है,
यह
कितनी प्राप्ति है
|
माताएं कभी रोती तो नहीं हैं,
कभी
आँखों में आँसू भरते हैं?
अब
नयनों में रूहानियत आ गई जहाँ रूहानियत होगी वहाँ पर आँसू नहीं
होंगे । पाण्डव आँखों से रोते हैं या मन से?
जब
सुख के सागर में समाने वाले हो तो रोना कहाँ से आया । रोना
अर्थात् दु:ख की निशानी,
सुख
के सागर में समाये हुए रो कैसे सकते?
कभी
भी दु:ख की लहर स्वप्न में भी न आये । स्वप्न भी सुख स्वरूप
हों क्योंकि सुख का सागर अपने समीप सम्बन्ध में आ गये,
तो
सदा सुख में,
खुशी
में रहो कभी रोना नहीं । सतयुग में आपकी प्रजा रोयेगी क्या?
तो
होवनहार राजा क्यों रोते?
शक्तियाँ तो एक सैम्पुल हैं अगर सैम्पुल रोने वाला होगा तो और
सौदा कैसे करेंगे इसलिए कभी नहीं रोना,
न
आँखों से रोना न मन से । समझा ।
वरदान:-
सेवा
के उमंग-उत्साह द्वारा सेफ्टी का अनुभव करने वाले मायाजीत भव
!
जो
बच्चे स्थूल काम के साथ-साथ रूहानी सेवा के लिए भागते हैं,
एवररेडी रहते हैं तो यह सेवा का उमंग- उत्साह भी सेफ्टी का
साधन बन जाता है । जो सेवा में लगे रहते हैं
वह
माया से बचे रहते हैं । माया भी देखती है कि
इन्हों को फुरसत नहीं है तो वो भी वापस चली जाती है । जिन
बच्चों का बाप और सेवा से प्यार है उन्हें एक्स्ट्रा हिम्मत की
मदद मिलती हैं, जिससे सहज ही मायाजीत बन जाते हैं ।
स्लोगन:-
ज्ञान और
योग को अपने जीवन की नेचर बना लो तो पुरानी नेचर बदल जायेगी ।
ओम्
शान्ति
|