14-10-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - बुद्धि को रिफाइन बनाना है तो एक बाप की याद में रहो, याद से ही आत्मा स्वच्छ बनती जायेगी”   

                            
प्रश्न:-   
वर्तमान समय मनुष्य अपना टाइम व मनी वेस्ट कैसे कर रहे हैं?


उत्तर:-
जब कोई शरीर छोड़ता है तो उनके पीछे कितना पैसा आदि खर्च करते रहते हैं । जब शरीर छोड़कर चला गया तो उसकी कोई वैल्यु तो रही नहीं, इसलिए उसके पिछाड़ी जो कुछ करते हैं उसमें अपना टाइम और मनी वेस्ट करते हैं ।

 

ओम् शान्ति |

रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं, यह भी ऐसे कहते हैं ना, फिर बाप है या दादा है । दादा भी कहेंगे रूहानी बाप तुम बच्चों को यह नॉलेज सुनाते हैं-पास्ट, प्रेजेंट, फ्यूचर का । वास्तव में सतयुग से लेकर त्रेता अन्त तक क्या हुआ है, यह है मुख्य बात । बाकी द्वापर-कलियुग में कौन-कौन आये, क्या हुआ, उनकी हिस्ट्री- जॉग्राफी तो बहुत है । सतयुग-त्रेता की कोई हिस्ट्री- जॉग्राफी है नहीं और तो सबकी हिस्ट्री-जॉग्राफी हैं, बाकी देवी-देवताओं को लाखों वर्ष पहले ले गये हैं । यह है बेहद की बेसमझी । तुम भी बेहद की बेसमझी में थे । अभी थोड़ा- थोड़ा समझ रहे हो । कोई तो अभी भी कुछ समझते नहीं हैं । बहुत कुछ समझने का है । बाप ने आबू की महिमा पर समझाया है, इस पर ख्याल करना चाहिए । तुम्हारी बुद्धि में आना चाहिए तुम यहाँ बैठे हो । तुम्हारा यादगार देलवाड़ा मन्दिर कब बना है, कितने वर्ष बाद बना है । कहते हैं 1250 वर्ष हुए हैं तो बाकी कितने वर्ष रहे? 3750 वर्ष रहे । तो उन्होंने भी अभी का यादगार और बैकुण्ठ का यादगार बनाया है । मन्दिरों की भी काम्पीटीशन होती है ना । एक-दो से अच्छा बनाएंगे । अभी तो पैसा ही कहाँ है जो बनावे । पैसा तो बहुत था, तो सोमनाथ का मन्दिर कितना बड़ा बनाया है । अभी तो बना न सकें । भल आगरे आदि में बनाते रहते हैं परन्तु वह सब हैं फालतू । मनुष्य तो अन्धियारे में हैं ना । जब तक बनावे तब तक विनाश भी आ जायेगा । यह बातें कोई भी नहीं जानते हैं । तोड़ते और बनाते रहते हैं । पैसे मुफ्त में आते रहते हैं । सब वेस्ट होता रहता है । वेस्ट ऑफ टाइम, वेस्ट ऑफ मनी, वेस्ट ऑफ एनर्जी । कोई मरता है तो कितना टाइम गँवाते हैं । हम कुछ भी नहीं करते । आत्मा तो चली गई, बाकी खाल क्या काम की । सर्प खाल छोड देता है, उनकी कोई वैल्यू है क्या । कुछ भी नहीं । भक्ति मार्ग में खाल की वैल्यू है । जड़ चित्र की कितनी पूजा करते हैं । परन्तु यह कब आये, कैसे आये । कुछ भी पता नहीं है । इनको कहा जाता है भूत पूजा । पाच तत्वों की पूजा करते हैं । समझो यह लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग में राज्य करते थे, अच्छा 150 वर्ष आयु पूरी हुई, शरीर छोड़ दिया, बस । शरीर तो कोई काम का न रहा । उनकी वहाँ क्या वैल्यू होगी । आत्मा चली गई, शरीर चण्डाल के हाथ दे दिया, वह रसम-रिवाज अनुसार जला देंगे । ऐसे नहीं उनकी मिट्टी लेकर उडाएंगे नाम करने के लिए । कुछ भी नहीं । यहाँ तो कितना करते हैं । ब्राह्मण खिलाते हैं, यह करते हैं । वहाँ यह कुछ होता नहीं । खाल तो कोई काम की नहीं रही । खाल को जला देते हैं । बाकी चित्र रहते हैं । सो भी एक्यूरेट चित्र मिल न सके । यह आदि देव की पत्थर की मूर्ति एक्यूरेट थोड़ेही है । पूजा जब शुरू की है तब के पत्थर की है । असुल जो था वह तो जलकर खत्म हो गया ना फिर भक्ति मार्ग में यह निकला है । इन बातों पर भी सोच तो चलता है ना । आबू की महिमा को अच्छी रीति सिद्ध करना है । तुम भी यहाँ बैठे हो । यहाँ ही बाप सारे विश्व को नर्क से स्वर्ग बना रहे हैं तो यही सबसे ऊँच ते ऊँच तीर्थ ठहरा । अभी इतनी भावना नहीं है सिर्फ एक शिव में भावना है, कहाँ भी जाओ शिव का मन्दिर जरूर होगा । अमरनाथ में भी शिव का ही है । कहते हैं शंकर ने पार्वती को कथा सुनाई । वहाँ तो कथा की बात ही नहीं । मनुष्यों को कुछ भी समझ नहीं है । अभी तुमको समझ आई है, आगे पता था क्या ।

अभी बाबा आबू की कितनी महिमा करते हैं । सर्व तीर्थों में यह महान् तीर्थ है । बाबा समझाते तो बहुत हैं, परन्तु जबकि अनन्य बच्चों की बुद्धि में बैठे, अभी तो देह- अभिमान बहुत है । ज्ञान तो बहुत ढेर चाहिए । रिफाइननेस बहुत आनी है । अभी तो योग बड़ा मुश्किल कोई का लगता है । योग के साथ फिर नॉलेज भी चाहिए । ऐसे नहीं सिर्फ योग में रहना है । योग में नॉलेज जरूर चाहिए । देहली में ज्ञान-विज्ञान भवन नाम रखा है परन्तु इनका अर्थ क्या है, यह समझते थोड़ेही हैं । ज्ञान- विज्ञान तो सेकण्ड का है । शान्तिधाम, सुखधाम । परन्तु मनुष्यों में जरा भी बुद्धि नहीं है । अर्थ थोड़ेही समझते हैं । चिन्मियानन्द आदि कितने बड़े-बड़े सन्यासी आदि हैं, गीता सुनाते हैं, कितने उन्हों के ढेर फालोअर्स हैं । सबसे बड़ा जगत का गुरू तो एक ही बाप है । बाप और टीचर से बड़ा गुरू होता है । स्त्री कभी दूसरा पति नहीं करेगी तो गुरू भी दूसरा नहीं करना चाहिए । एक गुरू किया, उनको ही सद्गति करनी है फिर और गुरू क्यों? सतगुरू तो एक ही बेहद का बाप है । सबकी सद्गति करने वाला है । परन्तु इन बातों को बहुत हैं जो बिल्कुल समझते नहीं । बाप ने समझाया है यह राजधानी स्थापन हो रही है, तो नम्बरवार होंगे ना । कोई तो रिंचक भी समझ नहीं सकते । ड्रामा में पार्ट ऐसा है । टीचर तो समझ सकते हैं । जिस शरीर द्वारा समझाते हैं उनको भी तो मालूम पड़ता होगा । यह तो गुड़ जाने, गुड़ की गोथरी जाने । गुड़ शिवबाबा को कहा जाता है, वह सबकी अवस्था को जानते हैं । हरेक की पढ़ाई से समझ सकते हैं-कौन कैसे पढ़ते हैं, कितनी सर्विस करते हैं । कितना बाबा की सर्विस में जीवन सफल करते हैं । ऐसे नहीं, इस ब्रह्मा ने घरबार छोडा है इसलिए लक्ष्मी-नारायण बनते हैं । मेहनत करते हैं ना । यह नॉलेज बहुत ऊँची है । कोई अगर बाप की अवज्ञा करते हैं तो एकदम पत्थर बन पड़ते हैं । बाबा ने समझाया था - यह इन्द्रसभा है । शिवबाबा ज्ञान वर्षा करते हैं । उनकी अवज्ञा की तो शास्त्रों में लिखा हुआ है पत्थरबुद्धि हो गये, इसलिए बाबा सबको लिखते रहते हैं । साथ में सम्भाल से कोई को ले आओ । ऐसे नहीं, विकारी अपवित्र यहाँ आकर बैठे । नहीं तो फिर ले आने वाली ब्राह्मणी पर दोष पड़ जाता है । ऐसे कोई को ले नहीं आना है । बड़ी रेसपॉन्सिबिलिटी है । बहुत ऊँच ते ऊँच बाप है । तुमको विश्व की बादशाही देते हैं तो उनका कितना रिगार्ड रखना चाहिए । बहुतों को मित्र-सम्बन्धी आदि याद पड़ते हैं, बाप की याद है नहीं । अन्दर ही घुटका खाते रहते हैं । बाप समझाते हैं - यह है आसुरी दुनिया । अभी दैवी दुनिया बनती है, हमारी एम ऑबजेक्ट यह है । यह लक्ष्मी-नारायण बनना है । जो भी चित्र हैं, सबकी बायोग्राफी को तुम जानते हो । मनुष्यों को समझाने के लिए कितनी मेहनत की जाती है । तुम भी समझते होंगे, यह कुछ अच्छा बुद्धिवान है । यह तो कुछ नहीं समझते हैं । तुम बच्चों में जिसने जितना ज्ञान उठाया है, उस अनुसार ही सर्विस कर रहे हैं । मुख्य बात है ही गीता के भगवान की । सूर्यवंशी देवी-देवताओं का यह एक ही शास्त्र है । अलग- अलग नहीं है । ब्राह्मणों का भी अलग नहीं है । यह बड़ी समझने की बातें हैं । इस ज्ञान मार्ग में भी चलते-चलते अगर विकार में गिर पड़े, तो ज्ञान बह जायेगा । बहुत अच्छे- अच्छे जाकर विकारी बने तो पत्थरबुद्धि हो गये । इसमें बड़ी समझ चाहिए । बाप जो समझाते हैं उनको उगारना चाहिए । यहाँ तो तुमको बहुत सहज है, कोई गोरखधन्धा, हंगामा आदि नहीं । बाहर में रहने से धन्धे आदि की कितनी चिंता रहती है । माया खूब तूफान में लाती है । यहाँ तो कोई गोरखधन्धा नहीं । एकान्त लगी पड़ी है । बाप तो फिर भी बच्चों को पुरूषार्थ कराते रहते हैं । यह बाबा भी पुरूषार्थी है । पुरूषार्थ कराने वाला तो बाप है । इसमें विचार सागर मंथन करना पड़ता है । यहाँ तो बाप बच्चों के साथ बैठे हैं । जो पूरी अंगुली देते हैं उनको ही सर्विसएबुल कहेंगे । बाकी घुटका खाने वाले तो नुकसान करते हैं और ही डिससर्विस करते हैं, विघ्न डालते हैं । यह तो जानते हो-महाराजा-महारानी बनेंगे तो उन्हों के दास-दासियां भी चाहिए । वह भी यहाँ के ही आएंगे । सारा मदार पढ़ाई पर है । इस शरीर को भी खुशी से छोड़ना है, दुःख की बात नहीं । पुरूषार्थ के लिए टाइम तो मिला हुआ है । ज्ञान सेकेण्ड का है, बुद्धि में है शिवबाबा से वर्सा मिलता है । थोड़ा भी ज्ञान सुना, शिवबाबा को याद किया तो भी आ सकते हैं । प्रजा तो बहुत बनने की है हमारी राजधानी सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी यहाँ स्थापन हो रही है । बाप का बनकर अगर ग्लानि करते हैं तो बहुत बोझा चढता है । एकदम जैसे रसातल में चले जाते हैं । बाबा ने समझाया है जो अपनी पूजा बैठ कराते हैं वह पूज्य कैसे कहला सकते । सर्व का सद्गति दाता, कल्याण करने वाला तो एक ही बाप है । मनुष्य तो शान्ति का भी अर्थ नहीं समझते हैं । हठयोग से प्राणायाम आदि चढ़ाना, उसको ही शान्ति समझते हैं । उसमें भी बहुत मेहनत लगती है, कोई की ब्रेन खराब हो जाती है । प्राप्ति कुछ भी नहीं । वह है अल्पकाल की शान्ति । जैसे सुख को अल्पकाल काग विष्टा समान कहते हैं वैसे वह शान्ति भी काग विष्टा के समान है । वह है ही अल्पकाल के लिए । बाप तो 21 जन्मों के लिए तुमको सुख-शान्ति दोनो देते हैं । कोई तो शान्तिधाम में पिछाड़ी तक रहते होंगे । जिनका पार्ट है, वह इतना सुख थोड़ेही देख सकेंगे । वहाँ भी नम्बरवार मर्तबे तो होंगे ना । भल दास-दासियां होंगे परन्तु अन्दर थोड़ेही घुस सकेंगे । कृष्ण को भी देख न सकें । सबके अलग- अलग महल होंगे ना । कोई टाइम होगा देखने का । जैसे देखो पोप आता है तो उनका दर्शन करने के लिए कितने लोग जाते हैं । ऐसे बहुत निकलेंगे, जिनका बहुत प्रभाव होगा । लाखों मनुष्य जायेंगे दर्शन करने के लिए । यहाँ शिवबाबा का दर्शन कैसे होगा? यह तो समझने की बात है । अब दुनिया को कैसे पता पड़े कि यह सबसे ऊंच तीर्थ है । देलवाड़ा जैसा मन्दिर शायद आसपास और भी हो, वह भी जाकर देखना चाहिए । कैसे बना हुआ है । उनको ज्ञान देने की भी दरकार नहीं । वह फिर तुमको ज्ञान देने लग जायेंगे । राय देते हैं ना-यह करना चाहिए, यह करना चाहिए । यह तो जानते नहीं कि इनको पढ़ाने वाला कौन है । एक-एक को समझाने में मेहनत लगती है । उन पर कहानियॉ भी हैं । कहते थे शेर आया, शेर आया....... । तुम भी कहते हो मौत आया कि आया तो वह विश्वास नहीं करते हैं । समझते हैं अभी तो 40 हजार वर्ष पड़े हैं, मौत कहाँ से आयेगा । परन्तु मौत आना तो जरूर है, सबको ले जायेंगे । वहाँ कोई भी किचड़ा होता नहीं । यहाँ की गऊ और वहाँ की गऊ में भी कितना फर्क हैं । कृष्ण थोड़ेही गऊयें चराता था । उन्हों के पास तो दूध हेलीकॉप्टर में आता होगा । यह कीचड़पट्टी दूर रहती होगी । सामने घर में थोड़ेही किचड़ा रहेगा । वहॉ तो अपरमअपार सुख हैं, जिसके लिए पूरा पुरूषार्थ करना है । कितने अच्छे- अच्छे बच्चे सेण्टर से आते हैं । बाबा देखकर कितना खुश होते हैं । नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार फूल निकलते हैं । फूल जो हैं वह अपने को भी फूल समझते हैं । देहली में भी बच्चे कितनी सर्विस करते हैं रात-दिन । ज्ञान भी कितना ऊंच है । आगे तो कुछ नहीं जानते थे । अब कितनी मेहनत करनी पड़ती है । बाबा के पास तो सब समाचार आते हैं । कोई का सुनाते हैं, कोई का नहीं सुनाते हैं क्योंकि ट्रेटर भी बहुत होते हैं । बहुत फर्स्टक्लास भी ट्रेटर्स बन पड़ते हैं । थर्डक्लास भी ट्रेटर हैं । थोड़ा ज्ञान मिला तो समझते हैं हम शिवबाबा के भी बाबा बन गये । पहचान तो है नहीं कि कौन नॉलेज देते हैं । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. विश्व की बादशाही देने वाले बाप का बहुत-बहुत रिगार्ड रखना है । बाप की सर्विस में अपनी जीवन सफल करनी है, पढ़ाई पर पूरा-पूरा ध्यान देना है ।  

2. बाप से जो ज्ञान मिलता है उस पर विचार सागर मंथन करना है । कभी भी विघ्न रूप नहीं बनना है । डिस-सर्विस नहीं करनी है । अहंकार में नहीं आना है ।

 

वरदान:-

योग करने और कराने की योग्यता के साथ-साथ प्रयोगी आत्मा भव !    

बापदादा ने देखा बच्चे योग करने और कराने दोनों में होशियार हैं । तो जैसे योग करने-कराने में योग्य हो, ऐसे प्रयोग करने में योग्य बनो और बनाओ । अभी प्रयोगी जीवन की आवश्यकता है । सबसे पहले चेक करो कि अपने संस्कार परिवर्तन में कहाँ तक प्रयोगी बने हैं? क्योंकि श्रेष्ठ संस्कार ही श्रेष्ठ संसार के रचना की नींव हैं । अगर नींव मजबूत है तो अन्य सब बातें स्वत: मजबूत हुई पड़ी हैं ।

 

स्लोगन:- 

अनुभवी आत्मायें कभी वायुमण्डल वा संग के रंग में नहीं आ सकती ।   

 

ओम् शान्ति |