11-03-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
विचार सागर मंथन करने की आदत डालो, एकान्त में सुबह-सुबह विचार
सागर मंथन करो तो अनेक नई-नई प्वाइन्ट बुद्धि में आयेंगी
| 
प्रश्न:-
बच्चों को अपनी अवस्था फर्स्ट क्लास बनानी है तो किन-किन बातों
का सदा ध्यान रहे?
उत्तर:-
1-
एक बाप जो सुनाते हैं वही सुनो, बाकी इस दुनिया का कुछ भी नहीं
सुनो | 2- संग की सम्भाल रखो | जो अच्छी रीति पढ़ते हैं, धारणा
करते हैं उनका ही संग करो तो अवस्था फर्स्ट क्लास हो जायेगी |
कई बच्चों की अवस्था को देख बाबा को ख्याल आता कि ड्रामा में
कुछ परिवर्तन हो जाये परन्तु फिर कहते – यह भी राजधानी स्थापन
हो रही है |
ओम्
शान्ति
|
एक
ही बेहद का बाप, बेहद के बच्चों को बैठ समझाते हैं वा पढ़ाते
हैं | बाकी मनुष्य जो कुछ पढ़ते हैं, सुनते हैं वह तुमको सुनना,
पढ़ना कुछ भी नहीं है क्योंकि यह तो समझ गये हो – एक ही यह
ईश्वरीय पढ़ाई है, जो अभी तुम्हें पढ़नी है | तुमको सिर्फ़ एक
ईश्वर से ही पढ़ना है | बाप जो पढाये, सिखाये – ओरली पढ़ना है |
वह तो अनेक प्रकार की किताब लिखते हैं, जो सारी दुनिया पढ़ती है
| कितनी ढेर किताबें पढ़ते होंगे | सिर्फ़ तुम बच्चे ही कहते हो
एक से ही सुनो और वही औरों को सुनाओ क्योंकि उनसे जो कुछ
सुनेंगे उसमें ही कल्याण है | बाकी ढेर किताबें हैं | नई-नई
निकलती रहती हैं | तुम जानते हो राइटियस तो एक बाप ही सुनाते
हैं | बस, उनसे ही सुनना है | बाप तो बच्चों को बहुत थोड़ा
समझाते हैं, उसको डिटेल में समझाकर फिर भी एक ही बात पर आ जाते
हैं | भल मनमनाभव अक्षर बाबा राइट कहते हैं परन्तु बाबा ने ऐसे
कहा नहीं है | बाप तो कहते हैं अपने को आत्मा समझो, मुझ बाप को
याद करो और सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान जो सुनाता हूँ वह
धारण करो | यह भी तुम जानते हो, हम जो देवता बनते हैं वही फिर
वृद्धि को पाते हैं | बच्चों को मूलवतन भी याद है फिर नई
दुनिया भी याद है |
पहले है ऊँचे ते ऊँचा बाप | फिर यह नई दुनिया, जिसमें यह
लक्ष्मी-नारायण ऊँचे ते ऊँच राज्य करने वाले हैं | चित्र तो
ज़रूर चाहिये | तो वह बाकी निशानी रह गई है | यही एक चित्र है |
राम का भी है परन्तु राम राज्य को हेविन नहीं कहेंगे | वह है
ही सेमी | अब ऊँच ते ऊँच बाप पढ़ा रहे हैं | इसमें किताब आदि की
कोई ज़रूरत नहीं है | यह किताब आदि कुछ भी चलनी नहीं है, जो
दूसरे जन्म में पढ़ सकें | यह पढ़ाई इस जन्म के लिए ही है | यह
अमरकथा भी है | नर से नारायण बनने की शिक्षा भी बाप देते हैं
नई दुनिया के लिये | बच्चे 84 के चक्र को भी जान गये हैं | यह
पढ़ाई का समय है | बुद्धि में मंथन चलना चाहिये | तुमको औरों को
भी पढ़ाना है | सवेरे उठ विचार सागर मंथन करना है | सवेरे ही
विचार सागर मंथन अच्छा होता है | जो समझाने वाले होंगे उन्हों
का ही मंथन होगा | टॉपिक्स, प्वाइन्ट्स आदि निकलती हैं | भक्ति
की बातें जन्म-जन्मान्तर सुनी | यह ज्ञान जन्म-जन्मान्तर नहीं
सुनेंगे | यह बाप एक बार सुनाते हैं, फिर यह नॉलेज तुमको भी
भूल जाती है | भक्ति मार्ग की कितनी किताबें हैं | विलायत से
भी आती हैं | यह सब ख़त्म होने वाली हैं | सतयुग में तो कोई
किताब आदि की दरकार नहीं | यह सब है कलियुगी सामग्री | यहाँ जो
कुछ तुम देखते हो – हॉस्पिटल, जेल, जज आदि वहाँ कुछ भी नहीं
होंगे | वह दुनिया ही दूसरी होगी | दुनिया तो यही है परन्तु नई
और पुरानी में फ़र्क तो ज़रूर होगा ना | उनको कहा जाता है स्वर्ग
| वही दुनिया फिर नर्क बनती है | मुख से कहते हैं – फ़लाना
स्वर्गवासी हुआ | सन्यासी के लिए कहेंगे ब्रहम में लीन हुआ,
निर्वाण गया | परन्तु निर्वाण में कोई जाता नहीं है | तुम
जानते हो यह रूद्र माला कैसे बनी है? रुण्य माला भी है |
विष्णु की राजधानी की माला बनती है | अब माला के राज़ को तुम
बच्चे ही जानते हो | नम्बरवार पढ़ाई अनुसार ही माला में पिरोये
जाते हैं | पहले-पहले यह निश्चय चाहिये | यह ईश्वरीय पढ़ाई है |
वह सुप्रीम बाप और सुप्रीम शिक्षक भी है | तुम्हारी बुद्धि में
जो नॉलेज है वही औरों को देनी है | आप समान बनाना है | विचार
सागर मंथन करना है | अखबारें भी सवेरे निकलती हैं | वह कॉमन
बात है | यह तो एक-एक बात लाखों रूपये की है | कोई अच्छी तरह
समझते हैं, कोई कम समझते हैं | समझने और समझाने के अनुसार ही
फिर नई दुनिया में पद मिलता है | विचार सागर मंथन करने में बड़ा
एकान्त चाहिये | रामतीर्थ के लिये बताते हैं – जब लिखता था,
चेले को कहा दो माइल दूर हो जाओ, नहीं तो वायब्रेशन आयेगा |
तुम अब परफेक्ट बन रहे हो | सारी दुनिया की है डिफेक्टेड
बुद्धि | तुम इस पढ़ाई से यह लक्ष्मी-नारायण बनते हो | कितनी
ऊँच पढ़ाई है! परन्तु नम्बरवार बिठा नहीं सकते | पिछाड़ी में
बैठने से फंक हो जायेंगे, घुटका खायेंगे, वायुमण्डल ख़राब
करेंगे | यूँ तो लॉ कहता है – नम्बरवार बिठाना चाहिये | परन्तु
इन सब बातों को गुड़ जाने, गुड़ की गोथरी जाने | यह है बहुत ऊँच
नॉलेज | तुम्हारी अलग-अलग क्लास तो नहीं कर सकते | वास्तव में
तुमको क्लास में इस तरह बैठना चाहिये जो अंग, अंग से न लगे |
माइक पर तो दूर भी आवाज़ सुन सकते हो | बाप कहते हैं – इस
दुनिया का तुम और कुछ भी न सुनो, न पढ़ो | उन्हों का संग भी न
करो | जो अच्छी तरह पढ़ते हैं उनका ही संग करना चाहिये | जहाँ
अच्छी सर्विस है, जैसे म्यूज़ियम आदि हैं, तो वहाँ बहुत तीखी और
योगयुक्त बच्चियाँ चाहिये |
यह
भी बाप समझाते हैं – ड्रामा बना हुआ है | कभी-कभी बाबा सोचते –
कुछ ड्रामा में चेन्ज हो जाये | परन्तु चेन्ज हो नहीं सकता |
यह बना-बनाया खेल है | बच्चों की अवस्था को देख ख्याल आता है
कि कुछ चेन्ज हो जाये | क्या ऐसे-ऐसे स्वर्ग में चलेंगे? फिर
ख्याल आता है – स्वर्ग में तो सारी राजधानी चाहिये | कोई
दास-दासियाँ, चण्डाल आदि भी होंगे | ड्रामा में कुछ चेन्ज नहीं
हो सकती | भगवानुवाच – यह ड्रामा बना हुआ है, इसको मैं भी
चेन्ज नहीं कर सकता हूँ | भगवान के ऊपर तो कोई भी है नहीं |
मनुष्य तो कह देते हैं – भगवान् क्या नहीं कर सकता! परन्तु
भगवान् खुद कहता है – मैं कुछ नहीं कर सकता हूँ | यह बना-बनाया
खेल है | विघ्न पड़ते हैं, कुछ भी नहीं कर सकते | ड्रामा में
नूँध है, मैं क्या कर सकता हूँ | बहुत बच्चियाँ पुकारती हैं –
हमको नंगन होने से बचाओ | अब बाप क्या करेंगे | बाप सिर्फ़ कह
देंगे – ड्रामा की भावी | यह तो बना-बनाया ड्रामा है | ऐसे मत
समझो भगवान् की भावी | भगवान् के हाथ में होता तो समझो कोई
अनन्य शरीर छोड़ देते हैं, उनको भी बचा लेते | ऐसे बहुतों को
संशय आता है | भगवान् पढ़ाते हैं! अगर भगवान् के बच्चे हैं तो
क्या भगवान् भी अपने बच्चों को नहीं बचा सकते! उल्हना देते हैं
| कहते हैं ऐसे साधू लोग तो किसके प्राणों को बचा सकते हैं,
प्राण फिर से आ जाते हैं | चिता से भी उठ जाते हैं | फिर
कहेंगे ईश्वर ने लौटा दिया, काल ले गया, उस पर प्रभू ने रहम
किया | बाप समझाते हैं – जो कुछ ड्रामा में नूँध है वही होता
है | बाप भी कुछ नहीं कर सकता | इसको कहा जाता है ड्रामा की
भावी | ड्रामा का अक्षर तुम जानते हो | वह कहेंगे जो कुछ होना
था हुआ, फ़िक्र काहे का | तुमको बेफ़िक्र बनाते हैं | सेकेण्ड
बाई सेकेण्ड जो कुछ होता है ड्रामा ही समझो | आत्मा ने शरीर
छोड़ जाकर दूसरा पार्ट बजाया | अनादि पार्ट को तुम कैसे फेर
सकते हो! भल अभी थोड़ी कच्ची अवस्था है, थोड़ा बहुत विचार आ जाता
है | परन्तु भावी कुछ कर नहीं सकती | लोग भल क्या-क्या भी कहें
परन्तु हमारी बुद्धि में ड्रामा का राज़ है | पार्ट बजाना है |
फ़िक्र की बात नहीं | जब तक कच्ची अवस्था है थोड़ी-बहुत लहर आती
है |
इस
समय तुम सब पढ़ रहे हो | तुम सब देहधारी हो, मैं एक विदेही हूँ
| सब देहधारियों को सिखलाता हूँ | बाप समझाते हैं – कोई-कोई
समय तुम बच्चों को फिर यह ब्रह्मा भी बैठ समझाते हैं | यह बाप
का पार्ट और प्रजापिता ब्रह्मा का पार्ट वन्डरफुल है | यह बाप
विचार सागर मंथन कर तुमको सुनाते रहते हैं | कितनी वन्डरफुल
नॉलेज है! कितनी बुद्धि चलानी पड़ती है | बाबा का विचार सागर
मंथन सुबह को चलता है | तुमको भी ऐसा बनना है, जैसा टीचर | फिर
भी फ़िक्र तो ज़रूर रहता है | टीचर स्टूडेन्ट को कभी 100 मार्क्स
नहीं देंगे | कुछ कम देंगे | वह है ऊँचे ते ऊँचा | हम हैं
देहधारी | तो बाबा मिसल 100 परसेन्ट कैसे बनेंगे? यह बड़ी गुह्य
बातें हैं | कोई तो सुनकर धारण करते हैं, ख़ुशी होती है |
कोई-कोई कहते हैं बाबा की तो एक ही वाणी चलती है, रिपीटेशन
होती है | अब कोई नये-नये बच्चे आते हैं तो मुझे पहली प्वाइन्ट
उठानी पड़ती हैं | कोई नई प्वाइन्ट भी निकल आती हैं औरों को
समझाने के लिये | बच्चों को फिर भी बाप को मदद करनी पड़ती है |
मैगज़ीन निकालते हैं | कल्प पहले भी ऐसा लिखा होगा | अगर अख़बार
निकालें तो उस पर बहुत ध्यान देना पड़े | ऐसी कोई बात न हो जो
मनुष्य पढकर नाराज़ हो जायें | मैगज़ीन तो तुम पढ़ते हो | कोई
कच्ची-पक्की बात होगी कहेंगे अब तक सम्पूर्ण नहीं बने हैं |
एक्यूरेट 16 कला सम्पूर्ण बनने में समय तो लगता है | अभी तो
बहुत सर्विस करनी है | बहुत प्रजा बनानी है | यह भी बाप ने
समझाया है – अनेक प्रकार की मार्क्स हैं | कोई निमित्त हैं,
बहुतों को ज्ञान लेने के लिये प्रबन्ध करते हैं तो उनको भी फल
मिल जाता है | अब तो पुरानी दुनिया ही ख़त्म होनी है | यहाँ है
अल्पकाल का सुख | बीमारी आदि तो सबको होती है | बाबा सब बातों
का अनुभवी है | दुनिया की बातें भी समझाते हैं | बाबा ने कहा
था – अख़बार वा मैगज़ीन में वन्डरफुल बातें लिखो जो समझें कि
ब्रह्माकुमारियों ने यह बात बिल्कुल ठीक लिखी है | यह लड़ाई 5
हज़ार वर्ष पहले हुबहू लगी थी | कैसे? यह आकर समझो | तुम्हारा
नाम भी होगा, मनुष्य सुनकर खुश भी होंगे | बहुत बड़ी बात है!
परन्तु जब किसकी बुद्धि में बैठे | जो लिखते हैं उनको फिर
समझाना भी है | समझाना नहीं आता होगा इसलिये फिर लिखते भी नहीं
| अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
एक बाप जो सुनाते व पढ़ाते हैं, वही सुनो व पढ़ो | बाकी कुछ भी
पढ़ने-सुनने की दरकार नहीं | संग की बहुत-बहुत सम्भाल रखो |
सवेरे-सवेरे एकान्त में बैठ विचार सागर मंथन करो |
2.
ड्रामा की भावी निश्चित बनी हुई है इसलिये सदा बेफ़िक्र रहो |
किसी भी बात में संशय मत उठाओ | लोग भल क्या भी कहेंगे लेकिन
तुम ड्रामा पर अटल रहो |
वरदान:-
संगठन में रहते, सबके स्नेही बनते बुद्धि का सहारा एक बाप को
बनाने वाले कर्मयोगी भव
! 
कोई कोई बच्चे संगठन में स्नेही बनने के बजाए न्यारे बन जाते
हैं | डरते हैं कि कहीं फँस न जाएं, इससे तो दूर रहना ठीक है |
लेकिन नहीं, 21 जन्म परिवार में रहना है, अगर डरकर किनारा
करेंगे तो यह भी कर्म-सन्यासी के संस्कार हुए | कर्मयोगी बनना
है, कर्म सन्यासी नहीं | संगठन में रहो, सबके स्नेही बनो लेकिन
बुद्धि का सहारा एक बाप हो, दूसरा न कोई | बुद्धि को कोई आत्मा
का साथ, गुण वा कोई विशेषता आकर्षित न करे तब कहेंगे कर्मयोगी
पवित्र आत्मा |
स्लोगन:-
बापदादा के राइट हैण्ड बनो, लेफ़्ट हैण्ड नहीं
|
ओम्
शान्ति
|