09-10-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - रावण का कायदा हैं आसुरी मत,
झूठ
बोलना,
बाप का कायदा हैं श्रीमत,
सच बोलना” 
प्रश्न:-
किन
बातों का विचार कर बच्चों को आश्चर्य खाना चाहिए?
उत्तर:-
1.
कैसा यह बेहद का वन्डरफुल नाटक है, जो
फीचर्स, जो एक्ट सेकण्ड बाई सेकण्ड पास
हुआ वह फिर हूबहू रिपीट होगा । कितना वन्डर है,
जो एक का फीचर न मिले दूसरे से । 2.
कैसे बेहद का बाप आकरके सारे विश्व की सद्गति करते हैं,
पढ़ाते हैं, यह भी
वन्डर है ।
ओम्
शान्ति |
रूहानी बाप शिव बैठकर अपने रूहानी बच्चों सालिग्रामों को समझा
रहे हैं,
क्या
समझा रहे हैं?
सृष्टि के आदि-मध्य- अन्त का राज समझाते हैं और यह समझाने वाला
एक ही बाप है और तो जो भी आत्मायें अथवा सालिग्राम हैं सबके
शरीर का नाम है । बाकी एक ही परम आत्मा है,
जिसको शरीर नहीं है । उस परम आत्मा का नाम है शिव । उनको ही
पतित-पावन परमात्मा कहा जाता है । वही तुम बच्चों को इस सारे
विश्व के आदि-मध्य- अन्त का राज समझा रहे हैं । पार्ट बजाने के
लिए तो सब यहाँ आते हैं । यह भी समझाया है विष्णु के दो रूप
हैं । शंकर का तो कोई पार्ट है नहीं । यह सब बाप बैठ समझाते
हैं । बाप कब आते हैं?
जबकि
नई सृष्टि की स्थापना होती है और पुरानी का विनाश होना है ।
बच्चे जानते हैं नई दुनिया में एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म
की स्थापना होती है । वह तो सिवाए परमपिता परमात्मा के और कोई
कर ही नहीं सकते । वही एक परम आत्मा है जिसको परमात्मा कहा
जाता है । उनका नाम है शिव । उनके शरीर का नाम नहीं पड़ता है ।
और जो भी हैं सबके शरीर का नाम पड़ता है । यह भी समझते हो
मुख्य- मुख्य जो हैं वह तो सब आ गये हैं । ड्रामा का चक्र
फिरते-फिरते अभी अन्त आकर हुई है । अन्त में बाप ही चाहिए ।
उनकी जयन्ती भी मनाते हैं । शिवजयन्ती भी इस समय मनाते हैं
जबकि दुनिया बदलनी है । घोर अन्धियारे से घोर रोशनी होती है
अर्थात् दु :खधाम से सुखधाम होना है । बच्चे जानते हैं परमपिता
परमात्मा शिव एक ही बार पुरूषोत्तम संगमयुग पर आते हैं,
पुरानी दुनिया का विनाश,
नई
दुनिया की स्थापना करने । पहले नई दुनिया की स्थापना,
पीछे
पुरानी दुनिया का विनाश होता है । बच्चे समझते हैं पढ़कर हमको
होशियार होना है और दैवीगुण भी धारण करने हैं । आसुरी गुण
पलटने हैं । दैवी गुणों और आसुरी गुणों का वर्णन चार्ट में
दिखाना होता ह । अपने को देखना है हम किसको तंग तो नहीं करते
हैं?
झूठ
तो नहीं बोलते हैं?
श्रीमत के खिलाफ तो नहीं चलते हैं?
झूठ
बोलना,
किसको दुःख देना,
तंग
करना-यह है रावण के कायदे और वह है राम के कायदे । श्रीमत और
आसुरी मत का गायन भी है । आधाकल्प चलती है आसुरी मत,
जिससे मनुष्य असुर,
दु
:खी,
रोगी
बन जाते हैं । पांच विकार प्रवेश हो जाते हैं । बाप आकर श्रीमत
देते हैं । बच्चे जानते हैं श्रीमत से हमको दैवीगुण मिलते हैं
। आसुरी गुणों को बदलना है । अगर आसुरी गुण रह जायेंगे तो पद
कम हो पड़ेगा । जन्म- जन्मान्तर के पापों का बोझा जो सिर पर है,
नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार हल्का हो जायेगा । यह भी समझते हो
कि अभी यह हैं पुरूषोत्तम संगमयुग । बाप द्वारा अभी दैवीगुण
धारण कर नई दुनिया के मालिक बनते हैं । तो सिद्ध होता है
पुरानी दुनिया जरूर खलास होनी ही है । नई दुनिया की स्थापना
ब्रह्माकुमार,
कुमारियों द्वारा होनी है । यह भी पक्का निश्चय है इसलिए
सर्विस पर लगे हुए हैं । कोई न कोई का कल्याण करने की मेहनत
करते रहते हैं ।
तुम
जानते हो हमारे भाई-बहन कितनी सर्विस करते हैं । सबको बाप का
परिचय देते रहते हैं । बाप आये हैं जरूर पहले- पहले थोड़ों को
ही मिलेगा । फिर वृद्धि को पाते जाएंगे । एक ब्रह्मा द्वारा
कितने ब्रह्माकुमार बनते हैं । ब्राह्मण कुल तो जरूर चाहिए ना
। तुम जानते हो हम सभी ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं शिवबाबा के
बच्चे,
सब
भाई- भाई हैं । असुल में भाई- भाई हैं फिर प्रजापिता ब्रह्मा
के बनने से भाई-बहन बनते हैं । फिर देवता कुल में जाएंगे तो
सम्बन्ध की वृद्धि होती जायेगी । इस समय ब्रह्मा के बच्चे और
बच्चियां हैं तो एक ही कुल हुआ,
इनको
डिनायस्टी नहीं कहेंगे । राजाई न कौरवों की है,
न
पाण्डवों की । डिनायस्टी तब होती है जब राजा-रानी नम्बरवार
गद्दी पर बैठते हैं । अभी तो है ही प्रजा का प्रजा पर राज्य ।
शुरू से लेकर पवित्र डिनायस्टी और अपवित्र डिनायस्टी चली आई है
। पवित्र डिनायस्टी देवताओं की ही चली है । बच्चे जानते हैं 5
हजार वर्ष पहले हेविन था तो पवित्र डिनायस्टी थी । उन्हीं के
चित्र भी हैं,
मन्दिर कितने आलीशान बने हुए हैं । और कोई के मन्दिर नहीं है ।
इन देवताओं के ही बहुत मन्दिर हैं । बच्चों को समझाया है कि और
सबके शरीर के नाम बदलते हैं । इनका ही नाम शिव चला आया है ।
शिव भगवानुवाच,
कोई
भी देहधारी को भगवान नहीं कहा जाता । बाप बिगर और कोई बाप का
परिचय दे न सके क्योंकि वह तो बाप को जानते ही नहीं । यहाँ भी
बहुत हैं जिनकी बुद्धि में नहीं आता है - बाप को कैसे याद करें
। मूँझते हैं । इतनी छोटी बिन्दी उनको कैसे याद करें । शरीर तो
बड़ा है,
उनको
ही याद करते रहते हैं । यह भी गायन है भ्रकुटी के बीच चमकता है
सितारा अर्थात् आत्मा सितारे मिसल है । आत्मा को सालिग्राम कहा
जाता है । शिवलिंग की भी बड़े रूप में पूजा होती है । जैसे
आत्मा को देख नहीं सकते,
शिवबाबा भी किसको देखने में तो आ न सके । भक्ति मार्ग में
बिन्दी की पूजा कैसे करें क्योंकि पहले-पहले शिवबाबा की
अव्यभिचारी पूजा शुरू होती है ना । तो पूजा के लिए जरूर बड़ी
चीज़ चाहिए । सालिग्राम भी बड़े अण्डे मिसल बनाते हैं । एक तरफ
अगुष्ठ मिसल भी कहते और फिर सितारा भी कहते हैं । अभी तुमको तो
एक बात पर ठहरना है । आधाकल्प बड़ी चीज की पूजा की है । अब फिर
बिन्दी समझना इसमें मेहनत भी है,
देख
नहीं सकते । यह बुद्धि से जाना जाता है । शरीर में आत्मा
प्रवेश करती है जो फिर निकलती है,
कोई
देख तो नहीं सकता । बड़ी चीज हो तो देखने में भी आये । बाप भी
ऐसे बिन्दी हैं परन्तु वह ज्ञान का सागर हैं,
और
कोई को ज्ञान का सागर नहीं कहेंगे । शास्त्र तो हैं भक्ति
मार्ग के । इतने सब वेद-शास्त्र आदि किसने बनाये?
कहते
हैं व्यास ने बनाये । क्राइस्ट की आत्मा ने कोई शास्त्र बनाया
नहीं । यह तो बाद में मनुष्य बैठ बनाते हैं । ज्ञान तो उनमें
है नहीं । ज्ञान सागर है ही एक बाप । शास्त्रों में ज्ञान की,
सद्गति की बाते हैं नहीं । हरेक धर्म वाला अपने- अपने धर्म
स्थापक को याद करते हैं । देहधारी को याद करते हैं । क्राइस्ट
का भी चित्र है ना । सबके चित्र हैं । शिवबाबा तो है ही परम
आत्मा । अभी तुम समझते हो आत्मायें सब हैं ब्रदर्स । ब्रदर्स
में ज्ञान हो न सके,
जो
किसको ज्ञान देकर और सद्गति करे । सद्गति करने वाला हैं ही एक
बाप । इस समय ब्रदर्स भी हैं और बाप भी है । बाप आकर सारे
विश्व की आत्माओं को सद्गति देते हैं । विश्व का सद्गति दाता
है ही एक । श्री श्री
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जगतगुरू कहो अथवा विश्व का गुरू कहो,
बात
एक ही है । अभी तो है आसुरी राज्य । संगम पर ही बाप आकर यह सब
बातें समझाते हैं ।
तुम
जानते हो बरोबर अब नई दुनिया की स्थापना हो रही है और पुरानी
दुनिया का विनाश होता है । यह भी समझाया है पतित-पावन एक ही
निराकार बाप है । कोई देहधारी पतित-पावन हो न सके । पतित-पावन
परमात्मा ही है । अगर पतित- पावन सीताराम भी कहें तो भी बाप ने
समझाया है भक्ति का फल देने भगवान आता है । तो सभी सीतायें
ठहरी ब्राइड्स और ब्राइडग्रुम एक राम,
जो
सभी को सद्गति देने वाला है । यह सब बातें बाप ही बैठ समझाते
हैं । ड्रामा अनुसार तुम ही फिर 5 हजार वर्ष बाद यह बाते
सुनेंगे । अभी तुम सब पढ़ रहे हो । स्कूल में कितने ढेर पढ़ते
हैं । यह सब ड्रामा बना हुआ है । जिस समय जो पढते हैं,
जो
एक्ट चलती है वही एक्ट फिर कल्प बाद हूबहू होगी,
हूबहू 5 हजार वर्ष बाद फिर पढ़ेंगे । यह अनादि ड्रामा बना हुआ
है । जो भी देखेंगे सेकण्ड बाई सेकण्ड नई चीज दिखाई पड़ेगी ।
चक्र फिरता रहेगा । नई-नई बातें तुम देखते रहेंगे । अभी तुम
जानते हो यह 5 हजार वर्ष का ड्रामा है जो चलता रहता है । इनकी
डीटेल तो बहुत है । मुख्य- मुख्य बातें समझाई जाती हैं । जैसे
कहते हैं परमात्मा सर्वव्यापी है,
बाप
समझाते हैं मैं सर्वव्यापी नहीं हूँ । बाप आकर अपना और रचना के
आदि-मध्य- अन्त का परिचय देते हैं । तुम अभी जानते हो बाप
कल्प-कल्प आते हैं हमको वर्सा देने । यह भी गायन है ब्रह्मा
द्वारा स्थापना । इसमें समझानी बहुत अच्छी है । विराट रूप का
भी जरूर अर्थ होगा ना | परन्तु सिवाए बाप के कब कोई समझा न सके
। चित्र तो बहुत हैं परन्तु एक की भी समझानी कोई के पास है
नहीं । ऊंच ते ऊंच शिवबाबा है,
उनका
भी चित्र है परन्तु जानते कोई नहीं । अच्छा फिर सूक्ष्मवतन है
उनको छोड़ दो,
उनकी
दरकार ही नहीं । हिस्ट्री- जॉग्राफी यहाँ की समझनी होती है,
वह
तो है साक्षात्कार की बात । जैसे यहाँ इसमें बाप बैठ समझाते
हैं वैसे सूक्ष्मवतन में कर्मातीत शरीर में बैठकर इनसे मिलते
हैं अथवा बोलते हैं । बाकी वहाँ तो वर्ल्ड की
हिस्ट्री-जॉग्राफी है नहीं । हिस्ट्री- जॉग्राफी यहाँ की है ।
बच्चों की बुद्धि में बैठा हुआ है सतयुग में देवी-देवता थे,
जिनको 5 हजार वर्ष हुआ । इस आदि सनातन देवता धर्म की स्थापना
कैसे हुई-यह भी कोई जानते नहीं । और धर्मों की स्थापना के बारे
में तो सब जानते हैं । किताब आदि भी है । लाखों वर्ष की तो बात
ही नहीं हो सकती । यह तो बिल्कुल रांग है परन्तु मनुष्यों की
बुद्धि कुछ काम नहीं करती । हर बात बाप समझाते हैं- मीठे-मीठे
बच्चों,
अच्छी रीति धारण करो । मुख्य बात है बाप की याद । यह याद की ही
दौड़ी है । रेस होती है ना । कोई अकेले- अकेले दौड़ते हैं । कोई
जोड़ी को इकट्ठा बांध फिर दौड़ते हैं । यहाँ जो जोड़ी है वह
इकट्ठे दौड़ी लगाने की प्रैक्टिस करते हैं । सोचते हैं सतयुग
में भी ऐसे इकट्ठे जोड़ी बन जाये । भल नाम-रूप तो बदल जाता है,
वही
शरीर थोड़ेही मिलता है । शरीर तो बदलता रहता है । समझते हैं
आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है । फीचर्स तो दूसरा होगा ।
परन्तु बच्चों को वन्डर लगना चाहिए जो फीचर्स,
जो
एक्ट सेकण्ड बाई सेकण्ड पास्ट हुई वह फिर हूबहू
5000
वर्ष के बाद रिपीट होनी है । कितना वन्डरफुल यह नाटक है,
और
कोई समझा नहीं सकते । तुम जानते हो हम सब पुरूषार्थ करते हैं ।
नम्बरवार तो बनेंगे ही । सब तो कृष्ण नहीं बनेंगे । फीचर्स
सबके डिफरेंट होंगे । कितना बडा वन्डरफुल नाटक है । एक का फीचर
न मिले दूसरे से । वही हूबहू खेल रिपीट होता है । यह सब विचार
कर आश्चर्य खाना होता है । कैसे बेहद का बाप आकर पढ़ाते हैं ।
जन्म-जन्मान्तर तो भक्ति मार्ग के शास्त्र आदि पढ़ते आये,
साधुओं की कथायें आदि भी सुनी । अब बाप कहते हैं भक्ति का समय
पूरा हुआ । अब भक्तों को भगवान द्वारा फल मिलता है । यह नहीं
जानते भगवान कब किस रूप में आयेगा?
कभी
कहते हैं शास्त्र पढ़ने से भगवान मिलेगा?
कभी
कहते यहाँ आएंगे । शास्त्रों से ही अगर काम हो जाता तो फिर बाप
को क्यों आना पड़े । शास्त्र पढ़ने से ही भगवान मिल जाए तो बाकी
भगवान आकर क्या करेंगे । आधाकल्प तुम यह शास्त्र पढ़ते-पढ़ते
तमोप्रधान ही बनते आये हो । तो बच्चों को सृष्टि का चक्र भी
समझाते रहते हैं और दैवी चलन भी चाहिए । एक तो किसको दुःख नहीं
देना है । ऐसे नहीं,
कोई
को विष चाहिए,
वह
नहीं देते हो तो यह कोई दु :ख देना है । ऐसे तो बाप कहते नहीं
है । कई ऐसे भी बुद्धू निकलते हैं जो कहते हैं बाबा कहते हैं
ना-किसको दु :ख नहीं देना है । अब यह विष मांगते हैं तो उनको
देना चाहिए,
नहीं
तो यह भी किसको दु :ख देना हुआ ना । ऐसे समझने वाले मूढ़मती भी
हैं । बाप तो कहते हैं
' 'पवित्र
जरूर बनना है
' '
।
आसुरी चलन और दैवी चलन की भी समझ चाहिए । मनुष्य तो यह भी नहीं
समझते,
वह
तो कह देते आत्मा निर्लेप है । कुछ भी करो,
कुछ
भी खाओ-पियो,
विकार में जाओ,
कोई
हर्जा नहीं । ऐसे भी सिखलाते हैं । कितनों को पकड़कर ले आते हैं
। बाहर में भी वेजीटेरियन बहुत रहते हैं । जरूर अच्छा है तब तो
वेजीटेरियन बनते हैं । सब जातियों में वैष्णव होते हैं । छी-छी
चीज नहीं खाते हैं । मैनारिटी होते हैं । तुम भी मैनारिटी हो ।
इस समय तुम कितने थोड़े हो । आहिस्ते- आहिस्ते वृद्धि को पाते
रहेंगे । बच्चों को यही शिक्षा मिलती है-दैवीगुण धारण करो ।
छी-छी वस्तु ऐसी कोई के हाथ की बनाई हुई नहीं खानी चाहिए ।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1.
अपने चार्ट में देखना है - (1) हम श्रीमत के
खिलाफ तो नहीं चलते हैं? (2)
झूठ तो नहीं बोलते हैं?
(3)
किसको तंग तो नहीं करते हैं?
दैवीगुण धारण किये हैं?
2.
पढ़ाई के साथ-साथ दैवी चलन धारण करनी है ।
“पवित्र
जरूर बनना हैं”
। कोई भी छी-छी वस्तुयें नहीं खानी हैं । पूरा वैष्णव बनना है
। रेस करनी है ।
वरदान:-
चलते-फिरते अपने द्वारा अष्ट शक्तियों की किरणों का अनुभव
कराने वाले फरिश्ता रूप भव
!
जो
बहुत कीमती मूल्यवान बेदाग डायमण्ड होता है उसे लाइट के आगे
रखो तो भिन्न-भिन्न रंग दिखाई देते हैं । ऐसे जब आप फरिश्ता
रूप बनेंगे तो आप द्वारा चलते-फिरते अष्ट शक्तियों के किरणों
की अनुभूति होगी । कोई को आपसे सहनशक्ति की फीलिंग आयेगी,
कोई
को निर्णय करने के शक्ति की फीलिंग आयेगी,
कोई
से क्या,
कोई
से क्या शक्तियों की फीलिंग आयेगी
|
स्लोगन:-
प्रत्यक्ष प्रमाण वह है जिसका हर कर्म सर्व को प्रेरणा देने
वाला है । 
ओम्
शान्ति |