26-01-15      प्रातः मुरली      ओम् शान्ति      “बापदादा”      मधुबन
 


मीठे बच्चे - तुम भारत के मोस्ट वैल्युबुल सर्वेंट हो, तुम्हें अपने तन-मन-धन से श्रीमत पर इसे रामराज्य बनाना है”   

प्रश्न:-   
सच्ची अलौकिक सेवा कौन-सी है, जो अभी तुम बच्चे करते हो?

उत्तर:-

तुम बच्चे गुप्त रीति से श्रीमत पर पावन भूमि सुखधाम की स्थापना कर रहे हो - यही भारत की सच्ची अलौकिक सेवा है । तुम बेहद बाप की श्रीमत पर सबको रावण की जेल से छुड़ा रहे हो । इसके लिए तुम पावन बनकर दूसरों को पावन बनाते हो ।

गीत:-

नयन हीन को राह दिखाओ.. 

ओम् शान्ति |

हे प्रभू, ईश्वर, परमात्मा कहने और पिता अक्षर कहने में कितना फर्क है । हे ईश्वर, हे प्रभू कहने से कितना रिगार्ड रहता है । और फिर उनको पिता कहते हैं, तो पिता अक्षर बहुत साधारण है । पितायें तो ढेर के ढेर हैं । प्रार्थना में भी कहते हैं-हे प्रभू, हे ईश्वर । बाबा क्यों नहीं कहते? है तो परमपिता ना । परनु बाबा अक्षर जैसे दब जाता है, परमात्मा अक्षर ऊंचा हो जाता है । बुलाते हैं-हे प्रभू, नैन हीन को राह बताओ । आत्मायें कहती हैं-बाबा, हमको मुक्ति-जीवनमुक्ति की राह बताओ । प्रभू अक्षर कितना बड़ा है । पिता अक्षर हल्का है । यहाँ तुम जानते हो बाप आकर समझाते हैं । लौकिक रीति से तो पितायें बहुत हैं, बुलाते भी हैं तुम मात-पिता.... कितना साधारण अक्षर है । ईश्वर वा प्रभू कहने से समझते हैं वह क्या नहीं कर सकते हैं । अभी तुम बच्चे जानते हो बाप आया हुआ है । बाप रास्ता बहुत ही ऊंच सहज बतलाते हैं । बाप कहते हैं-मेरे बच्चे, तुम रावण की मत पर काम चिता पर चढ़ भस्मीभूत हो गये हो । अब मैं तुमको पावन बनाकर घर ले जाने आया हूँ । बाप को बुलाते भी इसलिए हैं कि आकर पतित से पावन बनाओ । बाप कहते हैं मैं आया हूँ तुम्हारी सेवा में । तुम बच्चे भी सब भारत की अलौकिक सेवा में हो । जो सर्विस तुम्हारे सिवाए और कोई कर नहीं सकते । तुम भारत के लिए ही करते हो, श्रीमत पर पवित्र बन और भारत को बनाते हो । बापू गांधी की भी आश थी कि रामराज्य हो । अब कोई मनुष्य तो रामराज्य बना न सके । नहीं तो प्रभू को पतित-पावन कह क्यों बुलाते? अब तुम बच्चों को भारत के लिए कितना लव है । सच्ची सेवा तो तुम करते हो, खास भारत की और आम सारी दुनिया की ।

तुम जानते हो भारत को फिर से रामराज्य बनाते हैं, जो बापू जी चाहते थे । वह हद का बापू जी था, यह फिर है बेहद का बापू जी । यह बेहद की सेवा करते हैं । यह तुम बच्चे ही जानते हो । तुम्हारे में भी नम्बरवार यह नशा रहता है कि हम रामराज्य बनायेंगे । गवर्मेंट के तुम सर्वेंट हो । तुम दैवी गवर्मेंट बनाते हो । तुमको भारत के लिए फखुर है । जानते हो सतयुग में यह पावन भूमि थी, अब तो पतित है । तुम जानते हो अभी हम बाप द्वारा फिर से पावन भूमि वा सुखधाम बना रहे हैं, सो भी गुप्त । श्रीमत भी गुप्त मिलती है । भारत गवर्मेंट के लिए ही तुम कर रहे हो । श्रीमत पर तुम भारत की ऊंच ते ऊंच सेवा अपने तन-मन- धन से कर रहे हो । कांग्रेसी लोग कितना जेल आदि में गये । तुमको तो जेल आदि में जाने की दरकार नहीं । तुम्हारी तो है ही रूहानी बात । तुम्हारी लड़ाई भी है 5 विकारों रूपी रावण से । जिस रावण का सारे पृथ्वी पर राज्य है । तुम्हारी यह सेना है । लंका तो एक छोटा टापू है । यह सृष्टि बेहद का टापू है । तुम बेहद के बाप की श्रीमत पर सबको रावण की जेल से छुड़ाते हो । यह तो तुम जानते हो कि इस पतित दुनिया का विनाश तो होना ही है । तुम शिव शक्तियाँ हो । शिव शक्ति यह गोप भी हैं । तुम गुप्त रीति भारत की बहुत बड़ी सेवा कर रहे हो । आगे चल सबको पता पड़ेगा । तुम्हारी है श्रीमत पर रूहानी सेवा । तुम गुप्त हो । गवर्मेंट जानती ही नहीं कि यह बी.के. तो भारत को अपने तन-मन- धन से श्रेष्ठ से श्रेष्ठ सचखण्ड बनाते हैं । भारत सचखण्ड था, अब झूठखण्ड है । सच तो एक ही बाप है । कहा भी जाता है गॉड इज ट्रुथ । तुमको नर से नारायण बनने की सत्य शिक्षा दे रहे हैं । बाप कहते हैं कल्प पहले भी तुमको नर से नारायण बनाया था, रामायण में तो क्या-क्या कथायें बैठ लिख दी हैं । कहते हैं राम ने बन्दर सेना ली । तुम पहले बन्दर मिसल थे । एक सीता की तो बात नहीं । बाप समझाते हैं कैसे हम रावण राज्य का विनाश कराए रामराज्य स्थापन करते हैं, इसमें कोई तकलीफ की बात नहीं । वह तो कितना खर्चा करते हैं । रावण का बुत बनाकर फिर उसको जलाते हैं । समझते कुछ भी नहीं । बड़े- बड़े लोग सब जाते हैं, फारेनेर्स को भी दिखाते हैं, समझते कुछ नहीं । अभी बाप समझाते हैं तो तुम बच्चों को दिल में उमंग है कि हम भारत की सच्ची रूहानी सेवा कर रहे हैं । बाकी सारी दुनिया रावण की मत पर है, तुम हो राम की श्रीमत पर । राम कहो, शिव कहो, नाम तो बहुत रख दिये हैं । तुम बच्चे भारत के मोस्ट वैल्युबुल सर्वेंट हो श्रीमत पर । कहते भी हैं-हे पतित-पावन, आकर पावन बनाओ । तुम जानते हो सतयुग में हमको कितना सुख मिलता है । कारून का खजाना मिलता हैं । वहाँ एवरेज आयु भी कितनी बड़ी रहती है । वे हैं योगी, यहाँ हैं सब भोगी । वह पावन, यह पतित । कितना रात-दिन का फर्क है । कृष्ण को भी योगी कहते हैं, महात्मा भी कहते हैं । परन्तु वह तो सच्चा महात्मा है । उनकी तो महिमा गाई जाती है सर्वगुण सम्पन्न.. । आत्मा और शरीर दोनों पवित्र हैं । सन्यासी तो गृहस्थियों के पास विकार से जन्म ले फिर सन्यासी बनते हैं । यह बातें अभी तुमको बाप समझाते हैं । इस समय मनुष्य तो हैं- अनराइटियस, अनहैप्पी । सतयुग में कैसे थे? रिलीजस, राइटियस थे । 100 परसेन्ट सालवेन्ट थे । एवर हैप्पी रहते थे । रात-दिन का फर्क है । यह एक्यूरेट तुम ही जानते हो । यह किसको पता थोड़ेही पड़ता है कि भारत हेवन से हेल कैसे बना है? लक्ष्मी-नारायण की पूजा करते हैं, मन्दिर बनाते हैं, समझते कुछ भी नहीं । बाप समझाते रहते हैं- अच्छे- अच्छे पोजीशन वाले जो हैं, बिड़ला को भी समझा सकते हो, इन लक्ष्मी-नारायण ने यह पद कैसे पाया, क्या किया जो इन्हों के मन्दिर बनाये हैं? बिगर आक्यूपेशन जाने पूजा करना भी तो पत्थर पूजा अथवा गुड़ियों की पूजा हो गई । और धर्म वाले तो जानते हैं क्राइस्ट फलाने समय पर आया, फिर आयेगा ।

तो तुम बच्चों को कितना रूहानी गुप्त फखुर होना चाहिए । रूह को खुशी होनी चाहिए । आधाकल्प देह- अभिमानी बने हो । अब बाप कहते हैं - अशरीरी बनो, अपने को आत्मा समझो । हमारी आत्मा बाप से सुन रही है । और सतसंगों में कभी ऐसा नहीं समझेंगे । यह रूहानी बाप रूहों को बैठ समझाते हैं । रूह ही सब कुछ सुनती है ना । आत्मा कहती है मैं प्राइम मिनिस्टर हूँ, फलाना हूँ । आत्मा ने इस शरीर द्वारा कहा कि मैं प्राइम मिनिस्टर हूँ । अभी तुम कहते हो हम आत्मा पुरूषार्थ कर स्वर्ग का देवी-देवता बन रही हूँ । अहम् आत्मा, मम शरीर है । देही- अभिमानी बनने में ही बड़ी मेहनत लगती है । घड़ी-घड़ी अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते रहो तो विकर्म विनाश हो जायें । तुम मोस्ट ओबीडियंट सर्वेंट हो । कर्तव्य करते हो गुप्त रीति से । तो नशा भी गुप्त चाहिए । हम गवर्मेंट के रूहानी सर्वेंट हैं । भारत को स्वर्ग बनाते हैं । बापू जी भी चाहता था नई दुनिया में नया भारत हो, नई देहली हो । अभी नई दुनिया तो है नहीं । यह पुरानी देहली कब्रिस्तान बनती है फिर परिस्तान बनना है । अभी इनको परिस्तान थोड़ेही कहेंगे । नई दुनिया में परिस्तान नई देहली तुम बना रहे हो । यह बड़ी समझने की बातें हैं । यह बातें भूलनी नहीं चाहिए । भारत को फिर से सुखधाम बनाना कितना ऊंच कार्य है । ड्रामा प्लैन अनुसार सृष्टि पुरानी होनी ही है । दुःखधाम है ना । दु :ख हर्ता, सुखकर्ता एक बाप को ही कहा जाता है । तुम जानते हो बाप 5 हजार वर्ष बाद आकर दु :खी भारत को सुखी बनाते हैं । सुख भी देते हैं, शान्ति भी देते हैं । मनुष्य कहते भी हैं मन की शान्ति कैसे मिले? अब शान्ति तो शान्तिधाम स्वीट होम में ही होती है । उसको कहा जाता है शान्तिधाम, जहाँ आवाज नहीं, राम नहीं । सूर्य चाँद आदि भी नहीं होते । अभी तुम बच्चों को यह सारा ज्ञान है । बाप भी आकर ओबीडियंट सर्वेंट बना है ना । लेकिन बाप को तो बिल्कुल जानते ही नहीं । सबको महात्मा कह देते हैं । अब महान् आत्मा तो सिवाए स्वर्ग के कभी हो नहीं सकते । वहाँ आत्मायें पवित्र हैं । पवित्र थी तो पीस प्रासपर्टी भी थी । अभी प्योरिटी नहीं है तो कुछ नहीं है । प्योरिटी का ही मान है । देवतायें पवित्र हैं तब तो उनके आगे माथा टेकते हैं । पवित्र को पावन, अपवित्र को पतित कहा जाता है । यह है सारे विश्व का बेहद का बापू जी, ऐसे तो मेयर को भी कहेंगे सिटी फादर । वहाँ थोड़ेही ऐसी बातें होंगी । वहाँ तो कायदेसिर राज्य चलता है । बुलाते भी हैं-हे पतित-पावन आओ । अब बाप कहते हैं-पवित्र बनो, तो कहते हैं यह कैसे होगा, फिर बच्चे कैसे पैदा होंगे? सृष्टि कैसे वृद्धि को पायेगी? उनको यह पता नहीं कि लक्ष्मी-नारायण सम्पूर्ण निर्विकारी थे । तुम बच्चों को कितना आपोजीशन सहन करना पड़ता है ।

ड्रामा में जो कल्प पहले हुआ है वह रिपीट होता है । ऐसे नहीं कि ड्रामा पर रुक जाना है-ड्रामा में होगा तो मिलेगा! स्कूल में ऐसे बैठे रहने से कोई पास हो जायेंगे क्या? हर एक चीज के लिए मनुष्य का पुरूषार्थ तो चलता है । पुरूषार्थ बिगर पानी भी मिल न सके । सेकण्ड बाई सेकण्ड जो पुरूषार्थ चलता है वह प्रालब्ध के लिए । यह बेहद का पुरूषार्थ करना है बेहद के सुख के लिए । अभी है ब्रह्मा की रात सो ब्राह्मणों की रात फिर ब्राह्मणों का दिन होगा । शास्त्रों में भी पढ़ते थे परन्तु समझते कुछ नहीं थे । यह बाबा खुद बैठकर रामायण भागवत आदि सुनाते थे, पण्डित बन बैठते थे । अभी समझते हैं वह तो भक्ति मार्ग है । भक्ति अलग है, ज्ञान अलग चीज है । बाप कहते हैं तुम काम चिता पर बैठ सब काले बन गये हो । कृष्ण को भी श्याम सुन्दर कहते हैं ना । पुजारी लोग अन्धश्रधालु हैं । कितनी भूत पूजा है । शरीर की पूजा, गोया 5 तत्वों की पूजा हो गई । इसको कहा जाता है - व्यभिचारी पूजा । भक्ति पहले अव्यभिचारी थी, एक शिव की ही होती थी । अभी तो देखो क्या-क्या पूजा होती रहती है । बाप वन्डर भी दिखाते हैं, नॉलेज भी समझा रहे हैं । काँटों से फूल बना रहे हैं । उनको कहते ही हैं गॉर्डन ऑफ फ्लावर्स । कराची में पहरे पर एक पठान रहता था, वह भी ध्यान में चला जाता था, कहता था हम बहिश्त में गया, खुदा ने हमको फूल दिया । उनको बड़ा मजा आता था । वन्डर है ना । वह तो 7 वन्डर्स कहते हैं । वास्तव में वन्डर ऑफ वर्ल्ड तो स्वर्ग है-यह किसको भी पता नहीं है ।

तुम्हें कितना फर्स्टक्लास ज्ञान मिला है । तुमको कितनी खुशी होनी चाहिए । कितना हाइएस्ट बापदादा है और कितना सिम्पुल रहते हैं, बाप की ही महिमा गाई जाती है, वह निराकार, निरहंकारी है । बाप को तो आकर सेवा करनी है ना । बाप हमेशा बच्चों की सेवा कर, उनको धन-दौलत दे खुद वानप्रस्थ अवस्था ले लेते हैं । बच्चों को माथे पर चढ़ाते हैं । तुम बच्चे विश्व के मालिक बनते हो । स्वीट होम में जाकर फिर स्वीट बादशाही आकर लेंगे, बाप कहते हैं हम तो बादशाही नहीं लेंगे । सच्चा निष्काम सेवाधारी तो एक बाप ही है । तो बच्चों को कितनी खुशी रहनी चाहिए । परन्तु माया भुला देती है । इतने बड़े बापदादा को भूलना थोड़ेही चाहिए । दादा की मिलकियत का कितना फखुर रहता है । तुमको तो शिवबाबा मिला है । उनकी मिलकियत है । बाप कहते हैं मुझे याद करो और दैवी गुण धारण करो । आसुरी गुणों को निकाल देना चाहिए । गाते भी हैं मुझ निर्गुण हारे में कोई गुण नाही । निर्गुण संस्था भी है । अब अर्थ तो कोई समझते नहीं हैं । निर्गुण अर्थात् कोई गुण नहीं । परन्तु वह समझते थोड़ेही हैं । तुम बच्चों को बाप एक ही बात समझाते हैं-बोलो, हम तो भारत की सेवा में हैं । जो सबका बापू जी है, हम उनकी श्रीमत पर चलते हैं । श्रीमत भगवत गीता गाई हुई है । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. जैसे हाइएस्ट बापदादा सिम्पुल रहते हैं ऐसे बहुत-बहुत सिम्पुल, निराकारी और निरहंकारी बनकर रहना है । बाप द्वारा जो फर्स्टक्लास ज्ञान मिला है, उसका चिंतन करना है ।

2. ड्रामा जो हूबहू रिपीट हो रहा है, इसमें बेहद का पुरुषार्थ कर बेहद सुख की प्राप्ति करनी है । कभी ड्रामा कहकर रुक नहीं जाना है । प्रालब्ध के लिए पुरुषार्थ जरूर करना है ।

वरदान:-

कर्मों की गति को जान गति-सद्गति का फैंसला करने वाले मास्टर दुःख हर्ता सुख कर्ता भव !   

अभी तक अपने जीवन की कहानी देखने और सुनाने में बिजी नहीं रहो । बल्कि हर एक के कर्म की गति को जान गति सद्गति देने के फैंसले करो । मास्टर दुख हर्ता सुख कर्ता का पार्ट बजाओ । अपनी रचना के दुख अशान्ति की समस्या को समाप्त करो, उन्हें महादान और वरदान दो । खुद फैसल्टीज़ (सुविधायें) न लो, अब तो दाता बनकर दो । यदि सैलवेशन के आधार पर स्वयं की उन्नति वा सेवा में अल्पकाल के लिए सफलता प्राप्त हो भी जाये तो भी आज महान होंगे कल महानता की प्यासी आत्मा बन जायेंगे ।

स्लोगन:- 

अनुभूति न होना-युद्ध की स्टेज है, योगी बनो योद्धे नहीं ।   

 

अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए विशेष होमवर्क

चलते-फिरते अपने को निराकारी आत्मा और कर्म करते अव्यक्त फरिश्ता समझो तो साक्षी दृष्टा बन जायेंगे। इस देह की दुनिया में कुछ भी होता रहे, लेकिन फरिश्ता ऊपर से साक्षी हो सब पार्ट देखते, सकाश अर्थात् सहयोग देता है । सकाश देना ही निभाना है।

 

ओम् शान्ति |