07-12-14
प्रातः मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त
बापदादा”
रिवाइज
08-01-79
मधुबन
“संगमयुग
में समानता में समीप भविष्य सम्बन्ध में समीप आत्मायें”
आज
बापदादा चारों ओर के विदेशी और देशवासी बच्चों को दूर होते भी
सन्मुख देख सर्व बच्चों को उसमें भी विशेष रूप में विदेशी
बच्चों को एक बात के लिए विशेष शाबास दे रहे हैं क्योंकि
कोने-कोने में बाप के छिपे हुए बच्चों ने बाप को पहचान निश्चय
से बहुत अच्छा जम्प लगाया है । भिन्न धर्म के पर्दे के अन्दर
होते हुए भी सेकेण्ड में पर्दे को हटाए बाप के साथ सहयोगी
आत्माएं बन गए,
लगन
में आए हुए विघ्नों को भी सहज ही पार कर रहे हैं । इसलिए
बाप-दादा विशेष शाबास देते हैं । ऐसे हिम्मत रखने वाले बच्चों
के साथ बाप-दादा का सदा सहयोग है - हर बच्चे के साथ-साथ हर
कर्म में बाप का साथ है । सभी बच्चों को बाप-दादा द्वारा
बुद्धि रूपी लिफ्ट की गिफ्ट मिली हुई है । गिफ्ट तो सबको मिली
हुई है लेकिन उसको कार्य में लाना हरेक के ऊपर है । बहुत
पावरफुल और बहुत सहज लिफ्ट की गिपट है । सेकेण्ड में जहाँ चाहो
वहाँ पहुँच सकते हो । यह वन्डरफुल लिफ्ट तीनों लोको तक जाने
वाली हैं । जैसे ही स्मृति का स्वीच आन किया तो एक सेकेण्ड में
वहाँ पहुँच जायेंगे । लिफ्ट द्वारा जितना समय जिस लोक का अनुभव
करना चाहो उतना समय वहाँ स्थित रह सकते हो । इस लिफ्ट को विशेष
यूज करने की विधि हैं अमृतबेले केयरफुल बन स्मृति के स्वीच को
यथार्थ रीति से सेट करो तो सारा दिन आटोमेटिकली चलती रहेगी ।
सेट करना तो आता है ना । अच्छी तरह से अभ्यासी हो ना?
दिव्य बुद्धि रूपी लिफ्ट सारे दिन में कहाँ अटकती तो नहीं है?
अथॉरिटी होकर इस लिफ्ट को कार्य में लगाने से कभी भी यह लिफ्ट
धोखा नहीं देगी । वर्तमान संगमयुग की लिफ्ट यह दिव्य बुद्धि की
लिफ्ट है । साथ-साथ भविष्य स्वर्ग के राज्य की गिफ्ट भी
बाप-दादा अभी देते हैं - स्वर्ग के गेट की चाबी बाप-दादा
बच्चों को ही देते हैं । चाबी है अधिकारपन अर्थात् अधिकारी
बनना । अधिकार की चाबी से गेट खुला हुआ है । तो नम्बरवन
अधिकारी कौन बनता अर्थात् अधिकार द्वारा गेट पहले कौन खोलता,
उसको भी अच्छी तरह से जानते हो - लेकिन अकेले नहीं खोलते ।
उद्घाटन के समय आप भी सभी होंगे ना । देखने वाले होंगे वा करने
वाले होंगे?
कौन
होंगे?
साथी
होंगे ना । कम से कम ताली बजाने के साथी तो होंगे ना । खुशियों
की पुष्प वर्षा करेंगे ना । बाप-दादा समय की समीपता को देख हर
बच्चे का बाप-दादा के साथ क्या समीप सम्बन्ध हैं,
देख
रहे हैं । अति समीप कौन हैं और समीप कौन हैं,
और
थोड़ा सा दूर से देखने वाले कौन हैं । बच्चों का डबल भविष्य
बापदादा के सामने आता है । एक संगमयुग का भविष्य अर्थात् बाप
समान बनने का भविष्य और दूसरा फर्स्ट जन्म का भविष्य अर्थात्
स्वर्ग का भविष्य । यहाँ समानता में समीप होंगे और वहाँ
सम्बन्ध में समीप होंगे । जितना यहाँ समीपता द्वारा सदा साथ है
उतना ही मूलवतन में भी ऐसी आत्माएं साथ-साथ हैं । और स्वर्ग
में भी हर दिनचर्या में सम्बन्ध का साथ है - जैसे यहाँ तुम्हीं
से बोलूँ,
तुम्हीं से खेलूँ,
तुम्हीं से साथ निभाऊंगा वैसे भविष्य में भी सवेरे से साथ
बगीचे में खेलेंगे,
रास
करेंगे,
पाठशाला में पढ़ेंगे,
सदा
मिलते रहेंगे और फिर साथ-साथ राज्य करेंगे । जैसे ब्रह्मा बाप
सदा स्वराज्य करने वाले अर्थात् स्व अधीन नहीं लेकिन स्व
अधिकारी थे । ऐसे ब्रह्मा बाप को फालो करने वाले जिन्हों का
सदा संकल्प साकार में है कि स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार
है,
ऐसे
स्वराज्य करने वाले वहाँ भी साथ में राज्य करेंगे । यहाँ के
नम्बरवन रेगुलर और पंचुअल गॉडली स्टूडेंट वहाँ भी साथ-साथ
पढ़ेंगे क्योंकि ब्रह्मा बाप नम्बरवन गॉडली स्टूडेंट हैं । जो
यहाँ अतीन्द्रिय सुख के झूले में बाप के साथ-साथ सदा झूलते हैं
वह वहाँ भी झूले में साथ झूलेंगे । जो यहाँ अनेक प्राप्तियों
की खुशी में नाचते हैं वह वहाँ भी साथ-साथ रास करेंगे । जो
यहाँ बाप के गुण और संस्कार के समीप सर्व सम्बन्धों से बाप का
साथ अनुभव करते हैं वही वहाँ रॉयल कुल के समीप सम्बन्ध में
आयेंगे । तो बापदादा हरेक के नयनों से दोनों भविष्य देखते हैं
- फर्स्ट जन्म में आना ही फर्स्ट नम्बर की प्रालब्ध है । तो
विदेशी बच्चे सब फर्स्ट जन्म में आयेंगे ना । इतने सब फर्स्ट
में आयेंगे । फर्स्ट में कौन आयेंगे उसकी पहचान विशेष एक बात
से करो,
वह
कौनसी?
आदि
से अब तक अव्यभिचारी और निर्विघ्न होंगे,
विघ्न आए भी हो तो विघ्नों को जम्प दे पार किया है वा विघ्नों
के वश हुए - निर्विघ्न का अर्थ यह नहीं कि विघ्न आए ही न हो -
लेकिन विघ्न विनाशक वा विघ्नों के ऊपर सदा विजयी रहे । यह
दोनों बातें अगर आदि से अन्त तक ठीक है तो फर्स्ट जन्म में
साथी बन सकते हैं - सहज मार्ग है ना । अच्छा -
कर्नाटक के बच्चे भी आए हैं । यह भी भारत का विदेश ही है ।
लण्डन से सहज आ सकते हैं लेकिन यह बहुत मेहनत से आते हैं इसलिए
मेहनत का फल प्रत्यक्ष बाप का मिलन हुआ है । लगन वाले अच्छे
हैं - बच्चों की लगन को देख बाप भी हर्षित होते हैं । सदा इसी
लगन के दीप को बार-बार अटेंशन के घृत से अविनाशी रखना ।
कर्नाटक के तरफ दीप बहुत जगाते भी हैं । जैसे स्थूल दीपक जगाते
रहे वैसे अब लगन का दीपक सदा जगता रहे । सब अपने को बाप के
खुशनसीब बच्चे समझते हो ना - अच्छा आज तो मिलने का दिन है ।
सभी
सिकीलधे बच्चों को श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले बच्चों को सदा
स्वराज्य अधिकारी बच्चों को,
तिलक
और तख्तनशीन बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते ।
पार्टियों से मुलाकात
1.
बाह्मण जन्म की मुख्य पर्सनैलिटी है प्यूरिटी -
सदा
अपने को मन-वाणी और कर्म में सम्पूर्ण प्यूरिटी की पर्सनैलिटी
वाले अनुभव करते हैं?
क्योंकि ब्राह्मणों की पर्सनैलिटी है ही प्यूरिटी तो जो
ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी है वह अपने जीवन में अनुभव करते
हो?
जितनी पर्सनैलिटी होगी उतना ही विशेष आत्मायें गाई जायेगी ।
मुख्य पर्सनैलिटी प्यूरिटी है । ब्रह्मा बाप भी आदि देव वा
पहला प्रिन्स कैसे बनें?
इस
प्युरिटी की पर्सनैलिटी के आधार पर वन नम्बर की पर्सनैलिटी की
लिस्ट में आए । तो फालो फादर है ना । संस्कार ही पवित्रता के
हैं । ब्राह्मण जन्म के संस्कार ही पवित्र हैं इसलिए आजकल के
ब्राह्मणों द्वारा ही किसी भी प्रकार की शुद्धि वा श्रेष्ठ
कार्य कराते हैं क्योंकि उन्हों को महान समझते हैं,
श्रेष्ठता ही पवित्रता है । तो ऐसे ब्राह्मण जीवन के निजी जन्म
संस्कार अपने में अनुभव करते हो । पवित्रता जन्म संस्कार बनी
है?
जैसे
कोई के क्रोध के संस्कार जन्म से होते हैं तो कहते हैं चाहते
नहीं हैं,
मेरे
जन्म के संस्कार हैं,
ऐसे
यह जन्म के संस्कार स्वत:ही कार्य करते हैं । कभी स्वप्न में
भी अपवित्रता के संकल्प नहीं आए - इसको कहा जाता है प्युरिटी
की पर्सनैलिटी वाले । इस पर्सनैलिटी के कारण ही विश्व की
आत्माएं आज तक नमस्कार कर रही है । महान आत्माओं को न जानते भी
नमस्कार करते हैं,
साधारण को नहीं,
तो
ऐसे महान हो ना ।
2.
मोह का बीज है सम्बन्ध - उस बीज को कट करने से सब शिकायतें
समाप्त -
मातायें सब नष्टोमोहा हो ना । जब बाप के साथ सर्व सम्बन्ध जोड़
लिए तो और किसमें मोह हो सकता है क्या?
बिना
सम्बन्ध के कोई में मोह नहीं हो सकता । सदा यह याद रखो जब
सम्बन्ध नहीं तो मोह कहाँ से आया,
मोह
का बीज है सम्बन्ध । जब बीज को ही कट कर दिया तो बिना बीज के
वृक्ष कैसे पैदा होगा । अगर अभी तक होता है तो सिद्ध है कि कुछ
तोड़ा है कुछ जोड़ा है,
दो
तरफ है । तो दो तरफ वाले को न वह मंजिल मिलती न किनारा होता ।
तो ऐसे तो नहीं हो ना । सब नष्टोमोहा हो ना । फिर कभी शिकायत
नहीं करना कि क्या करें बन्धन है,
कटता
नहीं.... जहाँ मोह नष्ट हो गया तो स्मृति स्वरूप स्वत: हो जाते
फिर कटता नहीं,
मिटता नहीं यह भाषा खत्म हो जाती । सर्व प्राप्ती स्वरूप हो
जाते । सदा मनमनाभव रहने वाले मन के बन्धन से भी मुक्त रहते
हैं ।
विदेशी भाई बहनों के साथ :-
सभी बाप के सदा नियरेस्ट और डियरेस्ट हो?
क्या
समझते हो अपने को?
अपनी
कल्प पहले की प्रालब्ध स्पष्ट सामने है ना । डबल विदेशी
आत्माओं का नम्बरवन इस संगमयुग के विशेष पार्टों में विशेष
पार्ट जुड़ा हुआ है । डबल विदेशी बच्चों को बापदादा द्वारा
विशेष वरदान है,
कौन
सा?
विदेशी बच्चे जब से जन्म लेते हैं तभी पहली घड़ी में ही बापदादा
द्वारा विशेष वरदान सदा छत्रछाया के अन्दर रहने का मिल जाता है
। जैसे भारत के शास्त्रों में दिखाया है,
जब
श्रीकृष्ण का जन्म हुआ तो जेल में जन्म होते हुए भी जब नदी पार
किया तो साँप ही सेफ्टी के साधन बन गये,
तो
विदेशी बच्चों को वरदान है कि कैसे भी वातावरण अशुद्ध है,
कैसी
भी परिस्थितियां हैं लेकिन फिर भी बाप की छत्रछाया बच्चों को
सदा सेफ रखती आई है और अन्त तक रखेगी । 2 -साथ-साथ विदेशी
बच्चों को बाप के सदा साथ के अनुभव की विशेष मदद है । तीसरी
बात विदेशी बच्चों को विशेष रूप से जन्मते ही सेवा के संस्कार
का सहयोग है । यह भी विशेष ड्रामानुसार पार्ट मिला हुआ है ।
चौथी बात - याद की यात्रा में सहज ही अनुभवों की खान प्राप्त
होने का वरदान भी विदेशियों को प्राप्त है । तो बताओ कितने
लकीएस्ट हो?
बापदादा के संगमयुगी विशेष अमूल्य रत्न हो,
जिन
अमूल्य रत्नों को बापदादा विश्व में सेम्पुल के रूप में रखेंगे
सलिए सदा बाप और सेवा के सिवाए कोई भी बात याद न रहे । साथ का
अनुभव करते हो?
शक्ति सेना क्या समझती है?
शिव
और शक्ति सदा साथ है ना,
नाम
ही है शिव-शक्ति । जो शिव शक्ति है वह याद के सिवाए रह नहीं
सकती । कभी भी कोई कार्य करो तो सदा यह सोचो कि विश्व सेवा के
अर्थ निमित्तमात्र यह कार्य कर रहे हैं,
इसी
को ही कमल पुष्प के समान कहा जाता है । तो सभी कमल पुष्प के
समान कार्य करते न्यारे और बाप के प्यारे बनकर रहते हो?
पाण्डव कमलपुष्प के समान है ना । यह लौकिक कार्य भी अनेक
आत्माओं को सम्पर्क में लाने का साधन है क्योंकि ईश्वरीय सेवा
के लिए सम्पर्क तो बनाना ही पड़ता है ना । यही बना बनाया
सम्पर्क मिल जाता है इसलिए डबल कार्य के लिए डायरेक्शन दिये
जाते हैं । और जैसे सम्पर्क आगे बढ़ाते जायेंगे,
सम्पर्क की आवश्यकता नहीं रहेगी फिर लौकिक पूरा हो जायेगा,
अलौकिक कार्य के निमित्त बन जायेंगे । सभी की यह स्टेज आती है
और सदा है । यह भी सेवा का चान्स समझकर कार्य करो ।
आस्ट्रेलिया पार्टी –
आस्ट्रेलिया वालों ने बाप को प्रत्यक्ष करने का संकल्प साकार
में बहुत अच्छा लाया है । जो अनुभव किया वह अन्य आत्माओं को भी
कराने का जो प्रैक्टिकल रूप दिखाया वह बहुत अच्छा । इस विशेषता
के कारण आस्ट्रेलिया का नम्बर बापदादा के पास नम्बर वन में है
। जैसे गायन है भारत के लिए घर-घर मन्दिर,
वैसे
आस्ट्रेलिया वालों के घर-घर में अर्थात् जो भी आने वाले हैं,
यह
सेवा का सबूत देने में,
घर-घर को मन्दिर बनाने में नम्बर वन आ रहे हैं । तो आप सब कौन
हो गये?
मन्दिर में रहने वाली चैतन्य मूर्तियाँ । आप सब समझते हो हम
नम्बर वन है?
बाप
को भी खुशी है । ऐसे ही आपको देखकर सब फालो करेंगे ।
आस्ट्रेलिया में क्यू सबसे पहले लगेगी । जैसे बाप बच्चों में
उम्मीद रखते हैं तो आप सभी उम्मीदों के सितारे हो । चारों ओर
ऐसे आवाज फैलाओ जो आस्ट्रेलिया का आवाज भारत में पहले पहुँच
जाए । आवाज तब पहुँचेगा जब बुलन्द होगा । बुलन्द आवाज करने के
लिए चारों ओर से एक आवाज निकले कि हमारा बाप गुप्तवेष में आ
गया है । जैसे बाप ने आप बच्चों को गुप्त से प्रत्यक्ष किया
वैसे आप सबको फिर बाप को प्रत्यक्ष करना है । सब शक्तियों
मिलकर अंगुली देगी तो सहज ही हो जायेगा । बहुत अच्छे- अच्छे
रत्न हैं । एक-एक रत्न की अपनी- अपनी विशेषता है । सदा अपने को
कल्प पहले वाले रत्न समझ कर चलेंगे तो विजय का जन्म सिद्ध
अधिकार प्राप्त हो जायेगा,
विजयी रहेंगे । अच्छा! ओम शान्ति ।
वरदान:-
डायरेक्ट परमात्म लाइट के कनेक्शन द्वारा अंधकार को भगाने वाले
लाइट हाउस
भव ! 
आप
बच्चों के पास डायरेक्ट परमात्म लाइट का कनेक्शन है । सिर्फ
स्वमान की स्मृति का स्विच डायरेक्ट लाइन से आन करो तो लाइट आ
जायेगी और कितना भी गहरा सूर्य की रोशनी को भी छिपाने वाला
काला बादल हो,
वह
भी भाग जायेगा । इससे स्वयं तो लाइट में रहेंगे ही लेकिन औरों
के लिए भी लाइट हाउस बन जायेंगे ।
स्लोगन:-
स्व
पुरुषार्थ में तीव्र बनो तो आपके वायब्रेशन से दूसरों की माया
सहज भाग जायेगी । 
ओम्
शान्ति |