Home

Hindi Murli - htm

Contact Us


03-11-13        प्रातःमुरली      ओम् शान्ति      “अव्यक्त बापदादा”     रिवाइज: 19-05-77      मधुबन   
 Listen 
    Download 


“आत्म ज्ञान और परमात्म ज्ञान में अन्तर”

स्वयं को सदा स्वदर्शन चक्रधारी अनुभव करते हो? सिर्फ़ समझते हैं वा हर समय अनुभव होता है? एक होता है समझना, दूसरा होता है स्वरूप में लाना अर्थात् अनुभव करना | इस श्रेष्ठ जीवन की वा श्रेष्ठ नॉलेज की श्रेष्ठता है अनुभव करना | हर बात जब तक अनुभव में नहीं लाई है तो फिर आत्म ज्ञान और परमात्म ज्ञान में कोई अन्तर नहीं रहता | आत्माएं हैं आत्म ज्ञान सुनाने और समझाने वाली न कि अनुभव कराने वाली | परमात्म ज्ञान, हर बात का अनुभव कराते हुए चढ़ती कला की ओर ले जाता है | अपने आप से पूछो कि ज्ञान की हर बात अनुभव में लाई है? समझने वाले हो, सुनने वाले हो या अनुभवी मूर्त हो? जीवन में अनेक प्रकार के अनुभव आत्मा को नॉलेजफुल और पॉवरफुल बनाते हैं? किसी भी ज्ञान की प्वाइन्ट में पॉवरफुल नहीं हो तो अवश्य वह सब प्वाइन्ट के अनुभवी मूर्त नहीं बने हो | समझने, समझाने वाले वा वर्णन मूर्त बने हो लेकिन मनन मूर्त नहीं बने हो | जैसे औरों को सप्ताह कोर्स में विशेष सात प्वाइन्ट्स सुनाते हो वह सात ही प्वाइन्ट्स में सुनने तक है? बापदादा रिज़ल्ट को देखते जानते हैं कि अनुभवी मूर्त सर्व बातों में बहुत कम हैं क्योंकि अनुभवी अर्थात् सदा किसी भी प्रकार के धोखे से, दुःख, दुविधा से परे रहेंगे | अनुभव ही फाउन्डेशन है | अनुभव रूपी फाउन्डेशन कमज़ोर है तो किसी भी प्रकार के स्वयं के संस्कार, अन्य के संस्कार वा माया के छोटे-बड़े विघ्नों से मजबूर हो जाते हैं तो सिद्ध है कि अनुभव का फाउन्डेशन मज़बूत नहीं है | अनुभवी मूर्त सदा स्वयं को सम्पन्न समझते हुए मज़बूरी को मज़बूरी न समझ जीवन के लिए मजबूती का आधार समझेंगे | मज़बूरी की स्थिति अप्राप्ति की निशानी है | अनुभवी मूर्त सर्व प्राप्ति स्वरूप हैं |

इसी प्रकार दुःख के लहर वा धोखा खा लेते हैं तो उसका भी कारण माया के अनेक रूपों के अनुभवी नहीं है | अनुभवी जो हैं वह माया को बेसमझ बच्चे की तरह समझते हैं | जैसे बेसमझ बच्चे कोई भी कर्म करते हैं तो समझा जाता है कि हैं ही बेसमझ, बच्चे का काम ही ऐसा होता है | इसी प्रकार अनुभवी अर्थात् बुजुर्ग के आगे छोटे बच्चे खेल करते हैं तो माया के अनेक प्रकार की लीला को अनुभवी मूर्त, बच्चों का खेल अनुभव करेंगे | और दूसरे माया के छोटे से विघ्न को पहाड़ समान समझेंगे और सदा यही संकल्प करेंगे कि माया बड़ी बलवान है, माया को जीतना बड़ा मुश्किल है | कारण क्या? अनुभव की कमी | ऐसी आत्माएं बापदादा के शब्दों को लेंगी, भाव को नहीं समझेंगी | अनुभव का आधार नहीं होगा लेकिन शब्दों को आधार बनायेंगी कि बापदादा भी कहते हैं, ‘माया को जीतना मासी का घर नहीं है वा माया भी सर्व शक्तिमान् है | अभी अजुन सम्पूर्ण नहीं बने हो – अन्त में सम्पूर्ण बनेंगे |’ ऐसे-ऐसे शब्दों को अपना आधार बनाकर चलने से आधार कमज़ोर होने कारण बार-बार डगमग होते रहते हैं इसलिए शब्दों को आधार नहीं बनाओ, लेकिन बाप के भाव को समझो | अनुभव को अपना आधार बनाओ | डगमग होने का कारण ही है अनुभव की कमी | कहलाते हैं ‘मास्टर सर्वशक्तिमान’, ‘विजयी रत्न’, ‘स्वदर्शन चक्रधारी’, ‘शिव शक्ति पाण्डव सेना’, ‘सहज राजयोगी’, ‘महादानी-वरदानी’, ‘विश्व कल्याणकारी’ हैं, लेकिन जब स्वयं के कल्याण की कोई बात आती है, मायाजीत बनने की कोई बात आती है तो क्या करते हैं और क्या कहते हैं? जानते हो ना कि क्या करते हैं? बहुत मज़ेदार खेल करते हैं | नॉलेजफुल से बिल्कुल अन्जान बन जाते हैं | जैसे माया बेसमझ बच्चा है वैसे माया के वश हो, नॉलेजफुल को भूल बेसमझ बच्चे समान करते हैं | क्या कहते हैं? ‘ऐसे थोड़ेही समझा था, यह पहले मालूम होता तो त्याग नहीं करते, ब्राह्मण नहीं बनते | इतना सामना करना पड़ेगा | सहन करना पड़ेगा | हर बात में अपने को बदलना पड़ेगा | मिटना पड़ेगा, मरना पड़ेगा | यह तो मालूम ही नहीं था |’ त्रिकालदर्शी, नॉलेजफुल होते हुए यह कहना, बेसमझ, बचपन नहीं? लेकिन यह सब क्यों होता है? क्योंकि बाप के सदा साथ का अनुभव नहीं | सदा बाप के साथ के अनुभवी ऐसा कमज़ोरी का संकल्प भी नहीं कर सकते | बाप के साथ के नशे का कल्प पहले वाला यादगार भी अभी तक गाया जा रहा है | कौन सा? अक्षोणी सेना के सामने होते, बड़े-बड़े महावीर सामने होते भी पाण्डवों को किसका नशा था? बाप के साथ का | अक्षोणी सेना अर्थात् माया के अनेक भिन्न-भिन्न स्वरूप भी बाप के साथ के अक्षोणी नहीं लेकिन एक क्षण में भस्मीभूत हुए पड़े हैं | ऐसा नशा यादगार में भी गाया हुआ है | महावीर को महावीर नहीं समझा, लेकिन मरे हुए मुर्दे समझे | यह किसका यादगार है? बाप के साथ रहने वाले अनुभवी आत्माओं का | इस कारण कहा अनुभवी कभी धोखा नहीं खाते | मुश्किल अनुभव नहीं करते | अन्जान अनुभव नहीं करते | कल्प पहले के यादगार को प्रैक्टिकल अनुभव कर रहे हो वा सिर्फ़ वर्णन करते हो? बापदादा जब बच्चों की ऐसी स्थिति देखते हैं, जो स्वयं का कल्याण नहीं कर सकते, स्वयं को परिवर्तन नहीं कर सकते और अपनी कमज़ोरी को बहादुरी समझ कर वर्णन करते हैं तो बाप भी समझते हैं – समझने वाले हैं लेकिन अनुभवी नहीं | इस कारण नॉलेजफुल हैं, लेकिन पॉवरफुल नहीं | सुनने सुनाने वाले हैं, लेकिन समझने वाले, बाप समान बनने वाले नहीं | जो समान नहीं वो सामना भी नहीं कर सकते | कभी मुरझाते, कभी मुस्कराते रहते इसलिए एकान्तवासी बनो, अन्तर्मुखी बनो | हर बात के अनुभव में स्वयं को सम्पन्न बनाओ | पहला पाठ बाप और बच्चे का है – किसका बच्चा हूँ? क्या प्राप्ति है? इस पहले पाठ के अनुभवी मूर्त बनो तो सहज ही मायाजीत हो जायेंगे | अल्प समय अनुभव में रहते हो | ज़्यादा समय सुनने और समझने में रहते हो | लेकिन अनुभवी मूर्त अर्थात् सदा सर्व अनुभव में रहना | समझा! सागर के बच्चे बने हो लेकिन सागर अर्थात् सम्पन्न का अनुभव नहीं किया है | अच्छा !

सदा अन्तर्मुखी अर्थात् हर्षितमुखी, माया के हर वार को माखन से बल समझ पार करने वाले, ऐसे सहजयोगी, सदा बाप के साथ का अनुभव करने वाले, सर्व अनुभवी मूर्तों को बापदादा का याद, प्यार और नमस्ते

दीदी-दादी से:-

साक्षी होकर सर्व आत्माओं का अपना-अपना पार्ट देखते हुए, कोई भी पार्ट को देख ऐसा क्यों, की हलचल होती है? महारथी और घोड़ेसवार दोनों का विशेष अन्तर क्या है? घोड़ेसवार की निशानी क्या होगी? क्वेश्चन मार्क और महारथियों की निशानी होगी फुल स्टॉप, जैसे कोई भी सेना होती है तो उसमें यह फर्स्ट नम्बर है, यह सेकण्ड है, उसकी निशानी होती है | फिर उनको मैडल मिलता है जिससे मालूम पद जाता है कि यह फर्स्ट, यह सेकण्ड है | तो अनादि ड्रामा में रूहानी सेना के सेनानियों को कोई मैडल नहीं देता है लेकिन ऑटोमेटिकली ड्रामानुसार उन्हों को स्थिति रूपी मैडल प्राप्त हो ही जाता है | कोई मैडल लगाता नहीं है – स्वतः ही लगा हुआ होता है | तो सुनाया कि महावीर का मैडल होगा – फुल स्टॉप | स्टॉप भी नहीं फुल-स्टॉप | और सेकण्ड नम्बर अर्थात् घोड़ेसवार की निशानी – कब स्टॉप, कब क्वेश्चन | विशेष निशानी ‘क्वेश्चन’ की होगी | इससे ही समझना चाहिए कि किस स्टेज वाली आत्मा है | यह निशानी ही मैडल है | स्पष्ट दिखाई देता है ना? दिन-प्रतिदिन हरेक आत्मा अपना स्वयं ही साक्षात्कार कराती रहेगी | न चाहते हुए भी हरेक की स्टेज प्रमाण स्थिति दिखाई देती जा रही है | सरकमस्टांस ऐसे आयेंगे, समस्याएं उन्हों के सामने ऐसी आयेंगी जो न चाहते हुए भी स्वयं को छिपा नहीं सकेंगे क्योंकि अब जैसे समय समीप आ रहा है तो समीप समय के करन माला स्वयं ही अपना साक्षात्कार करायेगी | स्थिति अपना नम्बर ऑटोमेटिकली प्रसिद्ध करती जा रही है | ऐसे अनुभव होता है ना? किसको आगे बढ़ना है तो उसको चान्स ही ऐसा मिल जाता है | किसको पीछे का नम्बर है तो ऑटोमेटिकली समस्या वा बातें ऐसी सामने आएगी करने की शक्ति नहीं होगी | और इसका भी मूल करन कि शुरू से हर गुण, हर शक्ति का, हर पाइन्ट का अनुभवी बनकर नहीं चले हैं | बहुत थोड़ी आत्माएं होंगी जिन्हों का फाउन्डेशन अनुभव है | लेकिन मैजारिटी का आधार संगठन को देखना वा सिर्फ़ सात्विक जीवन पर प्रभावित होना, एक सहारा समझ कर चलना वा किसके साथ से उल्लास-उमग से चल पड़ना, किसके कहने से चला पड़ना, नॉलेज अच्छी है उसके सहारे चल पड़े - ऐसे चलन वालों का अनुभव का फाउन्डेशन मज़बूत न होने कारण चलते-चलते उलझते बहुत हैं | लेकिन नम्बर तो बनने ही हैं | कई ऐसे अब भी हैं जो योग सिखाते हैं लेकिन योग का अनुभव नहीं है | वर्णन करते हैं – योग किसको कहा जाता है, योग से यह प्राप्ति होती है, लेकिन योगी जीवन किसको कहा जाता है, उसका अनुभव बहुत अल्पकाल का है | “ड्रामा” कहते हैं, लेकिन ड्रामा के रहस्य को जान ड्रामा के आधार पर जीवन में अनुभव करना वह बहुत कम है | ऐसा दिखाई देता है ना? फिर भी बाप कहते हैं ऐसी आत्माओं को भी साथ देते हुए मंज़िल तक तो ले जाना ही है ना? बाप अपना वायदा तो निभाएंगे ना | लेकिन संगमयुग की प्राप्ति का जो श्रेष्ठ भाग्य है उससे खाली रह जाते हैं | सहयोग की लिफ्ट से चलते रहेंगे | लेकिन जो सारे कल्प में नहीं मिलना है और अब मिल रहा है, उससे वंचित रह जाते हैं | ऐसे को देख करके रहम भी आता है, तरस भी पड़ता है | सागर के बच्चे बनकर भी तालाब में नहाने के अधिकारी बन जाते हैं | अपनी छोटी-छोटी कमज़ोरी की बातों में समय बिताना – यह तालाब में नहाना हुआ ना? अच्छा

पार्टियों से:-

सभी सदा साथ का अनुभव करते हो? क्योंकि मुख्य बात है बाप को अपना साथी बनाना | अगर सदा साथी बनाएंगे तो माया स्वतः ही अपना साथ छोड़ देगी क्योंकि जब देखेगी इन आत्माओं ने मुझे छोड़ औरों को साथी बना दिया तो किनारे हो जायेगी | सदा बाप के साथी बनो, सेकेण्ड भी किनारा नहीं | जब साथी साथी निभाने के लिए तैयार है फिर किनारा क्यों करते? फ़ायदा भी है | फायदे वाली बात कभी छोड़ी जाती है क्या? साथी का साथ न होने कारण अकेले करते इसलिए मेहनत लगती | बाप का साथ अर्थात् हुआ ही पड़ा है | किनारा करते तो छोटी बात भी मुश्किल लगती इसलिए अन्तर्मुखी हो इन अनुभवों के अन्दर जाओ फिर शक्तिशाली अनुभव करेंगे |

सदा अपने को ख़ुशी में अनुभव करते हो? जैसे स्थूल ख़ज़ाने का मालिक सदा ख़ज़ाने के नशे में रहते, ऐसे ख़ुशी के ख़ज़ाने से भरपूर अपने को समझे हुए चलते हो? सदा ख़ुशी का ख़ज़ाना कायम रहता है वा कभी लूट जाता है है? अगर ख़ज़ाना कोई लूट लेता तो ख़ुशी भी चली जाती | ख़ुशी जाना अर्थात् ख़ज़ाने का जाना | ख़ज़ाना तो बाप ने दिया लेकिन उसे सम्भालने वाले नम्बरवार हैं | यह ख़ज़ाना अपना है तो अपनी चीज़ की कितनी सम्भाल रखी जाती | छोटी सी चीज़ को भी सम्भाला जाता है | यह तो बड़े ते बड़ा ख़ज़ाना है | अगर सम्भालना आता तो सदा सम्पन्न होंगे | तो सदा ख़ुशी में रहते हो? ब्राह्मण जीवन है ही ख़ुशी | अगर ख़ुशी नहीं तो कुछ भी नहीं | सदैव अटेन्शन रखो, रास्ता जान लो कि किस रास्ते से ख़ज़ाना लूट जाता है, उस रास्ते को बन्द करो फिर सदा शक्तिशाली अनुभव करेंगे | ख़ज़ाने को सम्भालना सीखो | सम्भालने का आधार है अटेन्शन | तो सदा खुश रहने का अपने से वचन लो | दूसरे के आगे वचन लेने से टेम्प्रेरी टाईम रहता | लेकिन स्वयं अपने आप से वचन लो कि कुछ भी हो जाए लेकिन प्रतिज्ञा को कभी नहीं तोड़ेंगे | बाप मिला, वर्सा मिला बाकी क्या रहा | इतनी श्रेष्ठ प्राप्ति वाला कितना नशे में रहेगा! सदा मायाजीत अर्थात् सदा हर्षित | स्वयं और दूसरों की सेवा का बैलेन्स हो तो मेहनत कम और सफलता ज़्यादा होगी | अच्छा

 वरदान:-    रूहानी एक्सरसाइज़ द्वारा वेट (बोझ) को समाप्त करने वाले समान और समीप भव   

रूहानी एक्सरसाइज़ अर्थात् अभी-अभी निराकारी, अभी-अभी अव्यक्त फ़रिश्ता, अभी-अभी साकारी कर्मयोगी | अभी-अभी विश्व सेवाधारी | ऐसी एक्सरसाइज़ रोज़ करो तो व्यर्थ का जो बोझ है वो समाप्त हो जायेगा | जब बोझ (वेट) समाप्त हो, माशूक समान डबल लाइट बनो तब जोड़ी अच्छी लगेगी | यदि माशूक हल्का हो और आशिक भारी हो तो जोड़ी अच्छी नहीं लगेगी | रूहानी माशूक आशिकों को कहते हैं समान बनो, समीप बनो |

 

स्लोगन:-         अपने जीवन रूपी गुलदस्ते द्वारा दिव्यता की खुशबू फैलाना ही गुणमूर्त बनना है |  

ओम् शान्ति |