03-09-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - तुम जितना समय बाप की याद में रहेंगे उतना समय कमाई ही
कमाई है,
याद से
ही तुम बाप के समीप आते जायेंगे” 
प्रश्न:-
जो
बच्चे याद में नहीं रह सकते हैं,
उन्हें किस बात में लज्जा आती है?
उत्तर:-
अपना
चार्ट रखने में उन्हें लज्जा आती । समझते हैं सच लिखेंगे तो
बाबा क्या कहेंगे । लेकिन बच्चों का कल्याण इसमें ही है कि
सच्चा-सच्चा चार्ट लिखते रहें । चार्ट लिखने में बहुत फायदे
हैं । बाबा कहते-बच्चे,
इसमें
लज्जा मत करो ।
ओम्
शान्ति |
रूहानी बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं । अब तुम बच्चे 15 मिनट
पहले आकर यहाँ बाप की याद में बैठते हो । अब यहाँ और तो कोई
काम है नहीं । बाप की याद में ही आकर बैठते हो । भक्ति मार्ग
में तो बाप का परिचय है नहीं । यहाँ बाप का परिचय मिला है और
बाप कहते हैं मामेंकम याद करो । मैं तो सब बच्चों का बाप हूँ ।
बाप को याद करने से वर्सा तो ऑटोमेटिकली याद आना चाहिए । छोटे
बच्चे तो नहीं हो ना । भल लिखते हैं हम 5 मास वा 2 मास के हैं
परन्तु तुम्हारी कर्मेन्द्रियां तो बड़ी हैं । तो रूहानी बाप
समझाते हैं,
यहाँ
बाप और वर्से की याद में बैठना है । जानते हो हम नर से नारायण
बनने के पुरूषार्थ में तत्पर हैं वा स्वर्ग में जाने के लिए
पुरूषार्थ कर रहे हैं । तो यह बच्चों को नोट करना चाहिए-हमने
यहाँ बैठे-बैठे कितना समय याद किया?
लिखने से बाप समझ जायेंगे । ऐसे नहीं कि बाप को मालूम पड़ता
है-हर एक कितना समय याद में रहते हैं?
वह
तो हर एक अपने चार्ट से समझ सकते हैं-बाप की याद थी या बुद्धि
कहाँ और तरफ चली गई?
यह
भी बुद्धि में है अभी बाबा आयेंगे तो यह भी याद ठहरी ना ।
कितना समय याद किया,
वह
चार्ट में सच लिखेंगे । झूठ लिखने से तो और ही सौगुणा पाप
चढ़ेगा और ही नुकसान हो जायेगा इसलिए सच लिखना है-जितना याद
करेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे । और यह भी जानते हो हम नजदीक
आते जाते हैं । आखरीन जब याद पूरी हो जायेगी तो हम फिर बाबा के
पास चले जायेंगे । फिर कोई तो झट नई दुनिया में आकर पार्ट
बजायेंगे,
कोई
वहाँ ही बैठे रहेंगे । वहाँ कोई संकल्प तो आयेगा नहीं । वह है
ही मुक्तिधाम,
दु
:ख-सुख से न्यारे । सुखधाम में जाने के लिए अब तुम पुरूषार्थ
करते हो । जितना तुम याद करेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे । याद
का चार्ट रखने से ज्ञान की धारणा भी अच्छी होगी । चार्ट रखने
में तो फायदा ही है । बाबा जानते हैं याद में न रहने कारण
लिखने में लज्जा आती है । बाबा क्या कहेंगे,
मुरली में सुना देंगे । बाप कहते हैं इसमें लज्जा की क्या बात
है । दिल अन्दर हर एक समझ सकते हैं-हम याद करते हैं वा नहीं?
कल्याणकारी बाप तो समझाते हैं,
नोट
करेंगे तो कल्याण होगा । जब तक बाबा आये,
उतना
समय जो बैठे उसमें याद का चार्ट कितना रहा?
फर्क
देखना चाहिए । प्यारी चीज को तो बहुत याद किया जाता है ।
कुमार- कुमारी की सगाई होती है तो दिल में एक-दो की याद ठहर
जाती है । फिर शादी होने से पक्की हो जाती है । बिगर देखे समझ
जाते हैं-हमारी सगाई हुई है । अभी तुम बच्चे जानते हो कि
शिवबाबा हमारा बेहद का बाप है । भल देखा नहीं है परन्तु बुद्धि
से समझ सकते हो,
वह
बाप अगर नाम-रूप से न्यारा है तो फिर पूजा किसकी करते हो?
याद
क्यों करते हो?
नाम-रूप से न्यारी बेअन्त तो कोई चीज होती नहीं । जरूर चीज को
देखा जाता है तब वर्णन होता है । आकाश को भी देखते हैं ना ।
बेअन्त कह नहीं सकते । भक्ति मार्ग में भगवान को याद करते हैं
- 'हे
भगवान'
तो
बेअन्त थोड़ेही कहेंगे ।
'
हे
भगवान'
कहने
से तो झट उनकी याद आती है तो जरूर कोई चीज़ है । आत्मा को भी
जाना जाता है,
देखा
नहीं जाता ।
सब
आत्माओं का एक ही बाप होता है,
उनको
भी जाना जाता है । तुम बच्चे जानते हो-बाप आकर पढ़ाते भी हैं ।
आगे यह मालूम नहीं था कि पढ़ाते भी हैं । कृष्ण का नाम डाल दिया
है । कृष्ण तो इन आखों से देखने में आता है । उनके लिए तो
बेअन्त,
नाम-रूप से न्यारा कह न सके । कृष्ण तो कभी कहेंगे नहीं-मामेकम
याद करो । वह तो सम्मुख है । उनको बाबा भी नहीं कहेंगे ।
मातायें तो कृष्ण को बच्चा समझ गोद में बिठाती हैं ।
जन्माष्टमी पर छोटे कृष्ण को झुलायेंगे । क्या सदैव छोटा ही
है! फिर रास विलास भी करते हैं । तो जरूर थोड़ा बड़ा हुआ फिर
उनसे बड़ा हुआ वा क्या हुआ,
कहाँ
गया,
किसको भी पता नहीं । सदैव छोटा शरीर तो नहीं होगा ना । कुछ भी
ख्याल नहीं करते हैं । यह पूजा आदि की रस्म चली आती है । ज्ञान
तो कोई में है नहीं । दिखाते हैं कृष्ण ने कंसपुरी में जन्म
लिया । अब कंसपुरी की तो बात ही नहीं । कोई का भी विचार नहीं
चलता । भक्त लोग तो कहेंगे कृष्ण हाजिराहजूर है फिर उनको स्नान
भी कराते हैं,
खिलाते भी हैं । अब वह खाता तो नहीं । रखते हैं मूर्ति के
सामने और खुद खा लेते हैं । यह भी भक्ति मार्ग हुआ ना ।
श्रीनाथ जी पर इतना भोग लगाते हैं,
वह
तो खाता नहीं,
खुद
खा जाते हैं । देवियों की पूजा में भी ऐसे करते हैं । खुद ही
देवियाँ बनाते हैं,
उनकी
पूजा आदि कर फिर डुबो देते हैं । जेवरात आदि उतारकर डुबोते हैं
फिर वहाँ तो बहुत रहते हैं,
जिसको जो हाथ में आया वह उठा लेते हैं । देवियों की ही जास्ती
पूजा होती है । लक्ष्मी और दुर्गा दोनों की मूर्तियाँ बनाते
हैं । बड़ी मम्मा भी यहाँ बैठी है ना,
जिसको ब्रह्मपुत्रा भी कहते हैं । समझेंगे ना कि इस जन्म और
भविष्य के रूप की पूजा कर रहे हैं । कितना वन्डरफुल ड्रामा है
। ऐसी-ऐसी बातें शास्त्रों में आ न सके । यह है प्रैक्टिकल
एक्टिविटी । तुम बच्चों को अब ज्ञान है । समझते हो सबसे जास्ती
चित्र बनाये हैं आत्माओं के । जब रूद्र यज्ञ रचते हैं तो लाखों
सालिग्राम बनाते हैं । देवियों के कब लाखों चित्र नहीं
बनायेंगे । वह तो जितने पुजारी होंगे उतनी देवियाँ बनाते होंगे
। वह तो एक ही टाइम पर लाख सालिग्राम बनाते हैं । उनका कोई
फिक्स दिन नहीं होता है । कोई मुहूर्त्त आदि नहीं होता है ।
जैसे देवियों की पूजा फिक्स टाइम पर होती है । सेठ लोगों को तो
जब ख्याल में आयेगा कि रूद्र या सालिग्राम रचे तो ब्राह्मण
बुलायेंगे । रूद्र कहा जाता है एक बाप को फिर उनके साथ ढेर
सालिग्राम बनाते हैं । वो सेठ लोग कहते हैं इतने सालिग्राम
बनाओ । उनकी तिथि-तारीख कोई मुकरर नहीं होती । ऐसे भी नहीं कि
शिव जयन्ती पर ही रूद्र पूजा करते हैं । नहीं,
अक्सर करके शुभ दिन बृहस्पति को ही रखते हैं । दीपमाला पर
लक्ष्मी का चित्र थाली में रखकर उनकी पूजा करते हैं । फिर रख
देते हैं । वह है महालक्ष्मी,
युगल
है ना । मनुष्य इन बातों को जानते नहीं । लक्ष्मी को पैसे कहाँ
से मिलेंगे?
युगल
तो चाहिए ना । तो यह (लक्ष्मी-नारायण) युगल हैं । नाम फिर
महालक्ष्मी रख देते हैं । देवियाँ कब हुई,
महालक्ष्मी कब होकर गई?
यह
सब बातें मनुष्य नहीं जानते हैं । तुमको अब बाप बैठ समझाते हैं
। तुम्हारे में भी सबको एकरस धारणा नहीं होती है । बाबा इतना
सब समझाकर फिर भी कहते शिवबाबा याद है?
वर्सा याद है?
मूल
बात है यह । भक्ति मार्ग में कितना पैसा वेस्ट करते हैं । यहाँ
तुम्हारी पाई भी वेस्ट नहीं होती है । तुम सर्विस करते हो
सालवेन्ट बनने के लिए । भक्ति मार्ग में तो बहुत पैसे खर्च
करते हैं,
इनसालवेट बन पड़ते हैं । सब मिट्टी में मिल जाता है । कितना
फर्क है! इस समय जो कुछ करते हैं वह ईश्वरीय सर्विस में
शिवबाबा को देते हैं । शिवबाबा तो खाते नहीं हैं,
खाते
तुम हो । तुम ब्राह्मण बीच में ट्रस्टी हो । ब्रह्मा को नहीं
देते हो । तुम शिवबाबा को देते हो । कहते हैं-बाबा,
आपके
लिए धोती-कमीज लाई है । बाबा कहते हैं-इनको देने से तुम्हारा
कुछ भी जमा नहीं होगा । जमा वह होता है जो तुम शिवबाबा को याद
कर इनको देते हो । फिर यह तो समझते हो ब्राह्मण शिवबाबा के
खजाने से ही पलते हैं । बाबा से पूछने की दरकार नहीं है कि
क्या भेजूँ?
यह
तो लेंगे नहीं । तुम्हारा जमा ही नहीं होगा,
अगर
ब्रह्मा को याद किया तो । ब्रह्मा को तो लेना है शिवबाबा के
खजाने से । तो शिवबाबा ही याद पड़ेगा । तुम्हारी चीज क्यों
लेवें । बी. के. को देना भी रांग है । बाबा ने समझाया है तुम
कोई से भी चीज़ लेकर पहनेंगे तो उनकी याद आती रहेगी । कोई हल्की
चीज़ है तो उनकी बात नहीं । अच्छी चीज तो और ही याद
दिलायेगी-फलाने ने यह दिया है । उनका कुछ जमा तो होता नहीं ।
तो घाटा पड़ा ना । शिवबाबा कहते हैं मामेकम याद करो । मुझे कपड़े
आदि की दरकार नहीं । कपड़े आदि बच्चों को चाहिए । वह शिवबाबा के
खजाने से पहनेंगे । मुझे तो अपना शरीर है नहीं । यह तो शिवबाबा
के खजाने से लेने के हकदार है । सजाई के भी हकदार हैं । बाप के
घर में ही बच्चे खाते पीते हैं ना । तुम भी सर्विस करते,
कमाई
करते रहते हो । जितनी सर्विस बहुत,
उतनी
बहुत कमाई होगी । खायेंगे पियेंगे शिवबाबा के भण्डारे से ।
उनको नहीं देंगे तो जमा ही नहीं होगा । शिवबाबा को ही देना
होता है । बाबा,
आपसे
भविष्य 21 जन्मों के लिए पदमापदमपति बनेंगे । पैसे तो खत्म हो
जायेंगे इसलिए समर्थ को हम दे देते हैं । बाप समर्थ है ना । 21
जन्मों के लिए वह देते हैं । इनडायरेक्ट भी ईश्वर अर्थ देते
हैं ना । इनडायरेक्ट में इतना समर्थ नहीं है । अभी तो बहुत
समर्थ है क्योंकि सम्मुख है । वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी इस समय
के लिए है ।
ईश्वर अर्थ कुछ दान-पुण्य करते हैं तो अल्पकाल के लिए कुछ मिल
जाता है । यहाँ तो बाप तुमको समझाते हैं-मैं सम्मुख हूँ । मैं
ही देने वाला हूँ । इसने भी शिवबाबा को सब कुछ देकर सारे विश्व
की बादशाही ले ली ना । यह भी जानते हो-इस व्यक्त का ही अव्यक्त
रूप में साक्षात्कार होता है । इनमें शिवबाबा आकर बच्चों से
बात करते हैं । कभी भी यह ख्याल नहीं करना चाहिए-हम मनुष्य से
लेवें । बोलो,
शिवबाबा के भण्डारे में भेज दो,
इनको
देने से तो कुछ नहीं मिलेगा,
और
ही घाटा पड़ जायेगा । गरीब होंगे,
करके
3 - 4 रूपये की कोई चीज तुमको देंगे । इनसे तो शिवबाबा के
भण्डारे में डालने से पदम् हो जायेगा । अपने को घाटा थोड़ेही
डालना है । पूजा अक्सर देवियों की ही होती है क्योंकि तुम
देवियां ही खास निमित्त बनती हो ज्ञान देने के । भल गोप भी
समझाते हैं परन्तु अक्सर करके तो मातायें ही ब्राह्मणी बन
रास्ता बताती हैं इसलिए देवियों का नाम जास्ती है । देवियों की
बहुत पूजा होती है । यह भी तुम बच्चे समझते हो आधाकल्प हम
पूज्य थे । पहले हैं फुल पूज्य,
फिर
सेमी पूज्य क्योंकि दो कला कम हो जाती है । राम की डिनायस्टी
कहेंगे त्रेता में । वह तो लाखों वर्ष की बात कह देते हैं,
तो
उनका कोई हिसाब ही नहीं हो सकता । भक्ति मार्ग वाली की बुद्धि
में और तुम्हारी बुद्धि में कितना रात-दिन का फर्क है! तुम हो
ईश्वरीय बुद्धि,
वह
हैं रावण की बुद्धि । तुम्हारी बुद्धि में है कि यह सारा चक्र
ही 5 हजार वर्ष का है,
जो
फिरता रहता है । जो रात में हैं वह कहते हैं लाखों वर्ष,
जो
दिन में हैं वह कहते 5 हजार वर्ष । आधाकल्प भक्ति मार्ग में
तुमने असत्य बातें सुनी हैं । सतयुग में ऐसी बातें होती ही
नहीं । वहाँ तो वर्सा मिलता है । अब तुमको डायरेक्ट मत मिलती
है । श्रीमद् भगवत गीता है ना । और कोई शास्त्र पर श्रीमद् नाम
है नहीं । हर 5 हज़ार वर्ष बाद यह पुरूषोत्तम संगमयुग,
गीता
का युग आता है । लाखों वर्ष की तो बात हो नहीं सकती है । कभी
भी कोई आये तो ले जाओ संगम पर । बेहद के बाप ने रचयिता अर्थात्
अपना और रचना का सारा परिचय दिया है । फिर भी कहते हैं- अच्छा,
बाप
को याद करो,
और
कुछ धारणा नहीं कर सकते हो तो अपने को आत्मा समझ बाप को याद
करो । पवित्र तो बनना ही है । बाप से वर्सा लेते हो तो दैवीगुण
भी धारण करने हैं । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
21 जन्मों के लिए पद्मों की कमाई जमा करने के
लिए डायरेक्ट ईश्वरीय सेवा में सब कुछ सफल करना है । ट्रस्टी
बन शिवबाबा के नाम पर सेवा करनी है ।
2.
याद में जितना समय बैठते,
उतना
समय बुद्धि कहाँ-कहाँ गई-यह चेक करना है । अपना सच्चा-सच्चा
पोतामेल रखना है । नर से नारायण बनने के लिए बाप और वर्से की
याद में रहना है ।
वरदान:-
दाता
की देन को स्मृति में रख सर्व लगावों से मुक्त रहने वाले,
आकर्षणमुक्त भव
!
कई
बच्चे कहते हैं कि इनसे मेरा कोई लगाव नहीं है,
परन्तु इनका यह गुण बहुत अच्छा है या इनमें सेवा की विशेषता
बहुत है । लेकिन किसी व्यक्ति या वैभव के तरफ बार-बार संकल्प
जाना भी आकर्षण है । किसी की भी विशेषता को देखते,
गुणों को वा सेवा को देखते दाता को नहीं भूलो । यह दाता की देन
है - यह स्मृति लगावों से मुक्त,
आकर्षणमुक्त बना देगी । किसी पर भी प्रभावित नहीं होंगे ।
स्लोगन:-
ऐसे
रूहानी सोशल वर्कर बनो जो भटकती हुई आत्मा को ठिकाना दे दो,
भगवान से मिला दो । 
ओम्
शान्ति |