01-01-15
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - चुस्त स्टूडेंट बन अच्छे मार्क्स से पास होने का
पुरूषार्थ करो,
सुस्त स्टूडेंट नहीं बनना,
सुस्त वह जिन्हें सारा दिन मित्र-सम्मन्धी याद आते हैं
|” 
प्रश्न:-
संगमयुग पर सबसे तकदीरवान किसको कहेंगे?
उत्तर:-
जिन्होंने अपना तन-मन- धन सब सफल किया है वा कर रहे हैं - वो
हैं तकदीरवान । कोई-कोई तो बहुत मनहूस होते हैं फिर समझा जाता
है तकदीर में नहीं है । समझते नहीं कि विनाश सामने खड़ा है,
कुछ
तो कर लें । तकदीरवान बच्चे समझते हैं बाप अभी सम्मुख आया है,
हम
अपना सब-कुछ सफल कर लें । हिम्मत रख अनेकों का भाग्य बनाने के
निमित्त बन जायें ।
गीत:-
तकदीर जगा कर आई हूँ…

ओम्
शान्ति |
यह
तो तुम बच्चे तकदीर बना रहे हो । गीता में श्रीकृष्ण का नाम
डाल दिया है और कहते हैं भगवानुवाच मैं तुमको राजयोग सिखाता
हूँ । अब कृष्ण भगवानुवाच तो है नहीं । यह श्रीकृष्ण तो एम
ऑब्जेक्ट है फिर शिव भगवानुवाच कि मैं तुमको राजाओं का राजा
बनाता हूँ । तो पहले जरूर प्रिन्स कृष्ण बनेंगे । बाकी कृष्ण
भगवानुवाच नहीं है । कृष्ण तो तुम बच्चों की एम ऑब्जेक्ट है,
यह
पाठशाला है । भगवान पढ़ाते हैं,
तुम
सब प्रिन्सप्रिन्सेज बनते हो ।
बाप
कहते हैं बहुत जन्मों के अन्त के भी अन्त में मैं तुमको यह
ज्ञान सुनाता हूँ फिर सो श्रीकृष्ण बनने लिए । इस पाठशाला का
टीचर शिवबाबा है,
श्रीकृष्ण नहीं । शिवबाबा ही दैवी धर्म की स्थापना करते हैं ।
तुम बच्चे कहते हो हम आये हैं तकदीर बनाने । आत्मा जानती है हम
परमपिता परमात्मा से अब तकदीर बनाने आये हैं । यह है
प्रिन्सप्रिन्सेज बनने की तकदीर । राजयोग है ना । शिवबाबा
द्वारा पहले-पहले स्वर्ग के दो पत्ते राधे-कृष्ण निकलते हैं ।
यह जो चित्र बनाया है,
यह
ठीक है,
समझाने के लिए अच्छा है । गीता के ज्ञान से ही तकदीर बनती है ।
तकदीर जगी थी सो फिर फूट गई । बहुत जन्मों के अन्त में तुम
एकदम तमोप्रधान कोर बन गये हो । अब फिर प्रिन्स बनना है । पहले
तो जरूर राधे-कृष्ण ही बनेंगे फिर उन्हों की भी राजधानी चलती
है । सिर्फ एक तो नहीं होगा ना । स्वयंवर बाद राधे-कृष्ण सो
फिर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं । नर से प्रिन्स वा नारायण बनना
एक ही बात है । तुम बच्चे जानते हो यह लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग
के मालिक थे । जरूर संगम पर ही स्थापना हुई होगी इसलिए संगमयुग
को पुरूषोत्तम युग कहा जाता है । आदि सनातन देवी-देवता धर्म की
स्थापना होती है,
बाकी
और सब धर्म विनाश हो जायेंगे । सतयुग में बराबर एक ही धर्म था
। वह हिस्ट्री-जाग्राफी जरूर फिर से रिपीट होनी है । फिर से
स्वर्ग की स्थापना होगी । जिसमें लक्ष्मी-नारायण का राज्य था,
परिस्तान था,
अभी
तो कब्रिस्तान है । सब काम चिता पर बैठ भस्म हो जायेंगे ।
सतयुग में तुम महल आदि बनायेंगे । ऐसे नहीं कि नीचे से कोई
सोने की द्वारिका वा लंका निकल आयेगी । द्वारिका हो सकती है,
लंका
तो नहीं होगी । गोल्डन एज कहा जाता है राम राज्य को । सच्चा
सोना जो था वो सब लूट गया । तुम समझाते हो भारत कितना धनवान था
। अभी तो कंगाल है । कंगाल अक्षर लिखना कोई बुरी बात नहीं है ।
तुम समझा सकते हो सतयुग में एक ही धर्म था । वहाँ और कोई धर्म
हो नहीं सकता । कई कहते हैं यह कैसे हो सकता,
क्या
सिर्फ देवतायें ही होंगे?
अनेक
मत-मतान्तर हैं,
एक न
मिले दूसरे से । कितना वन्डर है । कितने एक्टर्स हैं । अभी
स्वर्ग की स्थापना हो रही है,
हम
स्वर्गवासी बनते हैं यह याद रहे तो सदा हर्षितमुख रहेंगे । तुम
बच्चों को बहुत खुशी रहनी चाहिए । तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट तो ऊंच
है ना । हम मनुष्य से देवता,
स्वर्गवासी बनते हैं । यह भी तुम ब्राह्मण ही जानते हो कि
स्वर्ग की स्थापना हो रही है । यह भी सदैव याद रहना चाहिए ।
परन्तु माया घड़ी-घड़ी भुला देती है । तकदीर में नहीं है तो
सुधरते नहीं । झूठ बोलने की आदत आधाकल्प से पड़ी हुई है,
वह
निकलती नहीं । झूठ को भी खजाना समझ रखते हैं,
छोड़ते ही नहीं तो समझा जाता है इनकी तकदीर ऐसी है । बाप को याद
नहीं करते । याद भी तब रहे जब पूरा ममत्व निकल जाये । सारी
दुनिया से वैराग्य । मित्र-सम्बन्धियों आदि को देखते हुए
जैसेकि देखते ही नहीं । जानते हैं यह सब नर्कवासी,
कब्रिस्तानी हैं । यह सब खत्म हो जाने हैं । अब हमको वापिस घर
जाना है इसलिए सुखधाम-शान्तिधाम को ही याद करते हैं । हम कल
स्वर्गवासी थे,
राज्य करते थे,
वह
गंवा दिया है फिर हम राज्य लेते हैं । बच्चे समझते हैं भक्ति
मार्ग में कितना माथा टेकना,
पैसे
बरबाद करना होता है । चिल्लाते ही रहते,
मिलता कुछ भी नहीं । आत्मा पुकारती है-बाबा आओ,
सुखधाम ले चलो सो भी जब अन्त में बहुत दुःख होता है तब याद
करते हैं ।
तुम
देखते हो अभी यह पुरानी दुनिया खत्म होनी है । अभी हमारा यह
अन्तिम जन्म है,
इसमें हमको सारी नॉलेज मिली है । नॉलेज पूरी धारण करनी है ।
अर्थक्वेक आदि अचानक होती है ना । हिन्दुस्तान,
पाकिस्तान के पार्टीशन में कितने मरे होंगे । तुम बच्चों को
शुरू से लेकर अन्त तक सब मालूम पड़ा है । बाकी जो रहा हुआ होगा
वह भी मालूम पड़ता जायेगा । सिर्फ एक सोमनाथ का मन्दिर सोने का
नहीं होगा,
और
भी बहुतों के महल,
मन्दिर आदि होंगे सोने के । फिर क्या होता है,
कहाँ
गुम हो जाते हैं?
क्या
अर्थक्येक में ऐसे अन्दर चले जाते हैं जो निकलते ही नहीं?
अन्दर सड़ जाते हैं.... क्या होता है?
आगे
चल तुमको पता पड़ जायेगा । कहते हैं सोने की द्वारिका चली गई ।
अभी तुम कहेंगे ड्रामा में वह नीचे चली गई फिर चक्र फिरेगा तो
ऊपर आयेगी । सो भी फिर से बनानी होगी । यह चक्र बुद्धि में
सिमरण करते बड़ी खुशी रहनी चाहिए । यह चित्र तो पॉकेट में रख
देना चाहिए । यह बैज बहुत सर्विस लायक है । परन्तु इतनी सर्विस
कोई करते नहीं हैं । तुम बच्चे ट्रेन में भी बहुत सर्विस कर
सकते हो परन्तु कोई भी कभी समाचार लिखते नहीं है कि ट्रेन में
क्या सर्विस की?
थर्ड
क्लास में भी सर्विस हो सकती है । जिन्होंने कल्प पहले समझा है,
जो
मनुष्य से देवता बने हैं वही समझेंगे । मनुष्य से देवता गाया
जाता है । ऐसे नहीं कहेंगे कि मनुष्य से क्रिश्चियन वा मनुष्य
से सिक्ख । नहीं,
मनुष्य से देवता बने अर्थात् आदि सनातन देवी-देवता धर्म की
स्थापना हुई । बाकी सब अपने- अपने धर्म में चले गये । झाड़ में
दिखाया जाता है फलाने-फलाने धर्म फिर कब स्थापन होंगे?
देवतायें हिन्दू बन गये । हिन्दू से फिर और- और धर्म में
कनवर्ट हो गये । वह भी बहुत निकलेंगे जो अपने श्रेष्ठ
धर्म-कर्म को छोड़ दूसरे धर्मो में जाकर पड़े हैं,
वह
निकल आयेंगे । पीछे थोड़ा समझेंगे,
प्रजा में आ जायेंगे । देवी-देवता धर्म में सब थोड़ेही आयेंगे ।
सब अपने- अपने सेक्शन में चले जायेंगे । तुम्हारी बुद्धि में
यह सब बातें हैं । दुनिया में क्या-क्या करते रहते हैं । अनाज
के लिए कितना प्रबन्ध रखते हैं । बड़ी-बड़ी मशीनें लगाते हैं ।
होता कुछ भी नहीं है । सृष्टि को तमोप्रधान बनना ही है । सीढ़ी
नीचे उतरनी ही है । ड्रामा में जो नूंध है वह होता रहता है ।
फिर नई दुनिया की स्थापना होनी ही है । साइंस जो अभी सीख रहे
हैं,
थोड़े
वर्ष में बहुत होशियार हो जायेंगे । जिससे फिर वहाँ बहुत
अच्छी- अच्छी चीजें बनेगी । यह साइंस वहाँ सुख देने वाली होगी
। यहाँ सुख तो थोडा है,
दु
:ख बहुत है । इस साइंस को निकले कितने वर्ष हुए हैं?
आगे
तो यह बिजली,
गैस
आदि कुछ नहीं था । अभी तो देखो क्या हो गया है । वहाँ तो फिर
सीखे सिखाये चलेंगे । जल्दी-जल्दी काम होता जायेगा । यहाँ भी
देखो मकान कैसे बनते हैं । सब कुछ रेडी रहता है । कितनी मंजिल
बनाते हैं । वहाँ ऐसे नहीं होगा । वहाँ तो सबको अपनी- अपनी
खेती होती है । टैक्स आदि कुछ नहीं पड़ेगा । वहाँ तो अथाह धन
होता है । जमीन भी ढेर होती है । नदियाँ तो सब होंगी,
बाकी
नाले नहीं होंगे जो बाद में खोदे जाते हैं ।
बच्चों को अन्दर में कितनी खुशी रहनी चाहिए हमको डबल इंजन मिली
हुई है । पहाड़ी पर ट्रेन को डबल इंजन मिलती है । तुम बच्चे भी
अंगुली देते हो ना । तुम हो कितने थोड़े । तुम्हारी महिमा भी
गाई हुई है । तुम जानते हो हम खुदाई खिदमतगार है । श्रीमत पर
खिदमत (सेवा) कर रहे हैं । बाबा भी खिदमत करने आये हैं । एक
धर्म की स्थापना,
अनेक
धर्मों का विनाश करा देते हैं,
थोडा
आगे चलकर देखेंगे,
बहुत
हंगामें होंगे । अभी भी डर रहे हैं-कहाँ लड़कर बाख्स न चला दें
। चिगारी तो बहुत लगती रहती है । घड़ी-घड़ी आपस में लड़ते रहते
हैं । बच्चे जानते हैं पुरानी दुनिया खत्म होनी ही है । फिर हम
अपने घर चले जायेंगे । अभी 84 का चक्र पूरा हुआ है । सब इकट्ठे
चले जायेंगे । तुम्हारे में भी थोड़े हैं जिनको घड़ी-घड़ी याद
रहती है । ड्रामा अनुसार चुस्त और सुस्त दोनों ही प्रकार के
स्टूडेंट हैं । चुस्त स्टूडेंट अच्छी मार्क्स से पास हो जाते
हैं । सुस्त जो होगा उनका तो सारा दिन लड़ना-झगड़ना ही होता रहता
है । बाप को याद नहीं करते । सारा दिन मित्र-सम्बन्धी ही बहुत
याद आते रहते हैं । यहाँ तो सब कुछ भूल जाना होता है । हम
आत्मा हैं,
यह
शरीर रूपी दुम लटका हुआ है । हम कर्मातीत अवस्था को पा लेंगे
फिर यह दुम छूट जायेगा । यही फिक्र है,
कर्मातीत अवस्था हो जाये तो यह शरीर खत्म हो जाये । हम श्याम
से सुन्दर बन जाये । मेहनत तो करनी है ना । प्रदर्शनी में भी
देखो कितनी मेहनत करते हैं । महेन्द्र (भोपाल) ने कितनी हिम्मत
दिखाई है । अकेला कितनी मेहनत से प्रदर्शनी आदि करते हैं ।
मेहनत का फल भी तो मिलेगा ना । एक ने कितनी कमाल की है ।
कितनों का कल्याण किया है । मित्र-सम्बन्धियों आदि की मदद से
ही कितना काम किया है । कमाल है! मित्र-सम्बन्धियों को समझाते
हैं यह पैसे आदि सब इस कार्य में लगाओ,
रखकर
क्या करेंगे?
सेण्टर भी खोला है हिम्मत से । कितनों का भाग्य बनाया है । ऐसे
5 - 7 निकलें तो कितनी सर्विस हो जाये । कोई-कोई तो बहुत मनहूस
होते हैं । फिर समझा जाता तकदीर में नहीं है । समझते नहीं
विनाश सामने खड़ा है,
कुछ
तो कर ले । अभी मनुष्य जो दान करेंगे ईश्वर अर्थ,
कुछ
भी मिलेगा नहीं । ईश्वर तो अभी आया है स्वर्ग की राजाई देने ।
दान-पुण्य करने वालों को कुछ भी मिलेगा नहीं । संगम पर
जिन्होंने अपना तन-मन- धन सब सफल किया है वा कर रहे हैं,
वह
है तकदीरवान । परन्तु तकदीर में नहीं है तो समझते ही नहीं ।
तुम जानते हो वह भी ब्राह्मण है,
हम
भी ब्राह्मण हैं । हम हैं प्रजापिता ब्रह्माकुमार-कुमारियॉ ।
इतने ढेर ब्राह्मण,
वह
हैं कुख वंशावली । तुम हो मुख वंशावली । शिवजयन्ती संगम पर
होती है । अब स्वर्ग बनाने लिए बाप मन्त्र देते हैं मन्मनाभव ।
मुझे याद करो तो तुम पवित्र बन पवित्र दुनिया का मालिक बन
जायेंगे । ऐसे युक्ति से पर्चे छपाने चाहिए । दुनिया में मरते
तो बहुत हैं ना । जहाँ भी कोई मरे तो वहाँ पर्चे बांटने चाहिए
। बाप जब आते हैं तब ही पुरानी दुनिया का विनाश होता है और
उसके बाद स्वर्ग के द्वार खुलते हैं । अगर कोई सुखधाम चलना
चाहे तो यह मन है मन्मनाभव । ऐसा रसीला छपा हुआ पर्चा सबके पास
हो । शमशान में भी बांट सकते हैं । बच्चों को सर्विस का शौक
चाहिए । सर्विस की युक्तियाँ तो बहुत बतलाते हैं । यह तो अच्छी
रीति लिख देना चाहिए । एम ऑब्जेक्ट तो लिखा हुआ है । समझाने की
बड़ी अच्छी युक्ति चाहिए । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
कर्मातीत अवस्था को प्राप्त करने के लिए इस शरीर रूपी दुम को
भूल जाना है । एक बाप के सिवाए कोई मित्र-सम्बन्धी आदि याद न
आये,
यह मेहनत करना है ।
2.
श्रीमत
पर खुदाई खिदमतगार बनना है । तन-मन- धन सब सफल कर अपनी ऊंच
तकदीर बनानी है ।
वरदान:-
रीयल्टी द्वारा हर कर्म या बोल में रॉयल्टी दिखलाने वाले
फर्स्ट डिवीजन के अधिकारी
भव ! 
रीयल्टी अर्थात् अपने असली स्वरूप की सदा स्मृति,
जिससे स्थूल सूरत में भी रॉयल्टी नज़र आयेगी । रीयल्टी अर्थात्
एक बाप दूसरा न कोई । इस स्मृति से हर कर्म वा बोल में रॉयल्टी
दिखाई देगी । जो भी सम्पर्क में आयेगा उन्हें हर कर्म में बाप
समान चरित्र अनुभव होंगे,
हर
बोल में बाप के समान अथॉर्टी और प्राप्ति की अनुभूति होगी ।
उनका संग रीयल होने के कारण पारस का काम करेगा । ऐसी रीयल्टी
वाली रॉयल आत्मायें ही फर्स्ट डिवीजन के अधिकारी बनती हैं ।
स्लोगन:-
श्रेष्ठ
कर्मों का खाता बढ़ाओ तो विकर्मों का खाता समाप्त हो जायेगा । 
इस
अव्यक्त मास में अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए विशेष
होमवर्क सभी ब्रह्मा वत्स 1 जनवरी से 31 जनवरी 2015
तक विशेष अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए यह प्याइंटस
अपने पास नोट करें तथा पूरा दिन इस पर मनन चिंतन करते हुए
अनुभवी मूर्त बनें और अन्तर्मुखी रह अव्यक्त वतन की सैर करते
रहें ।
(1) सारा
दिन हर आत्मा के प्रति शुभ भावना और श्रेष्ठ भाव को धारण करने
का विशेष अटेंशन रख अशुभ भाव को शुभ भाव में,
अशुभ भावना को शुभ भावना में परिवर्तन कर खुशनुमा स्थिति में
रहना है ।
ओम्
शान्ति |