08-09-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - जब तुम नम्बरवार सतोप्रधान बनेंगे तब यह नैचुरल
कैलेमिटीज़ या विनाश का फोर्स बढ़ेगा और यह पुरानी दुनिया समाप्त
होगी” 
प्रश्न:-
कौन-सा पुरूषार्थ करने वालों को बाप का पूरा वर्सा प्राप्त
होता है?
उत्तर:-
पूरा
वर्सा लेना है तो पहले बाप को अपना वारिस बनाओ अर्थात् जो कुछ
तुम्हारे पास है,
वह सब
बाप पर बलिहार करो । बाप को अपना बच्चा बना लो तो पूरे वर्से
के अधिकारी बन जायेंगे । 2. सम्पूर्ण पवित्र बनो तब पूरा वर्सा
मिलेगा । सम्पूर्ण पवित्र नहीं तो मोचरा खाकर थोड़ी-सी मानी
(रोटी) मिल जायेगी ।
ओम्
शान्ति |
बच्चों को सिर्फ एक की याद में नहीं बैठना है । तीन की याद में
बैठना है । भल एक ही है परन्तु तुम जानते हो वह बाप भी है,
शिक्षक भी है,
सतगुरू भी है । हम सबको वापिस ले जाने आये हैं,
यह
नई बात तुम ही समझते हो । बच्चे जानते हैं वह जो भक्ति सिखाते
हैं,
शास्त्र सुनाते हैं,
वह
सब हैं मनुष्य । इनको तो मनुष्य नहीं कहेंगे ना । यह तो है
निराकार,
निराकार आत्माओं को बैठ पढ़ाते हैं । आत्मा शरीर द्वारा सुनती
है । यह ज्ञान बुद्धि में होना चाहिए । अभी तुम बेहद के बाप की
याद में बैठे हो । बेहद के बाप ने कहा है-रूहानी बच्चों,
मुझे
याद करो तो पाप कट जाएं । यहाँ शास्त्र आदि की कोई बात नहीं ।
जानते हो बाप हमको राजयोग सिखला रहे हैं । कितना भारी टीचर है,
ऊंच
ते ऊँच,
तो
पद भी ऊंच ते ऊंच प्राप्त कराते हैं । जब तुम सतोप्रधान बन
जायेंगे नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार तब फिर लड़ाई होगी । नैचुरल
कैलेमिटीज़ भी होगी । याद भी जरूर करना है । बुद्धि में सारा
ज्ञान भी होना चाहिए । सिर्फ एक ही बार पुरूषोत्तम संगमयुग पर
बाप आकर समझाते हैं,
नई
दुनिया के लिए । छोटे बच्चे भी बाप को याद करते हैं । तुम तो
समझदार हो,
जानते हो बाप को याद करने से विकर्म विनाश होंगे और बाप से ऊंच
पद पाएंगे । यह भी जानते हो इन लक्ष्मी-नारायण ने नई दुनिया
में जो पद पाया है वह शिवबाबा से ही पाया है । यह
लक्ष्मी-नारायण ही फिर 84 का चक्र लगाकर अभी ब्रह्मा-सरस्वती
बने हैं । यही फिर लक्ष्मी- नारायण बनेंगे । अभी पुरूषार्थ कर
रहे हैं । सृष्टि के आदि,
मध्य,
अन्त
का तुमको ज्ञान है । अब तुम अन्धश्रद्धा से देवताओं के आगे
माथा नहीं झुकायेंगे । देवताओं के आगे मनुष्य जाकर अपने को
पतित सिद्ध करते हैं । कहते हैं आप सर्वगुण सम्पन्न हो,
हम
पापी विकारी हैं,
कोई
गुण नहीं है । तुम जिनकी महिमा गाते थे,
अभी
तुम स्वयं बन रहे हो । कहते हैं-बाबा,
यह
शास्त्र आदि कब से पढ़ना शुरू हुआ है?
बाप
कहते हैं जब से रावण राज्य शुरू हुआ है । यह सब है भक्ति की
सामग्री । तुम जब यहाँ बैठते हो तो बुद्धि में सारा ज्ञान धारण
होना चाहिए । यह संस्कार आत्मा ले जायेगी । भक्ति के संस्कार
नहीं जाने हैं । भक्ति के संस्कार वाले पुरानी दुनिया में
मनुष्यों के पास ही जन्म लेंगे । यह भी जरूर है । तुम्हारी
बुद्धि में यह ज्ञान का चक्र चलना चाहिए । साथ-साथ बाबा को भी
याद करना है । बाबा हमारा बाप भी है । बाप को याद किया तो
विकर्म विनाश होंगे । बाबा हमारा टीचर भी है तो पढ़ाई बुद्धि
में आयेगी और सृष्टि चक्र का ज्ञान बुद्धि में है,
जिससे तुम चक्रवर्ती राजा बनेंगे ।
(याद की यात्रा चल रही है)
ओम्
शान्ति । भक्ति और ज्ञान । बाप को कहा जाता है ज्ञान का सागर ।
उनको भक्ति का सारा मालूम है- भक्ति कब शुरू हुई,
कब
पूरी होगी । मनुष्यों को यह पता नहीं । बाप ही आकर समझाते हैं
। सतयुग में तुम देवी-देवता विश्व के मालिक थे । वहाँ भक्ति का
नाम नहीं । एक भी मंदिर नहीं था । सब देवी-देवता ही थे । पीछे
जब आधी दुनिया पुरानी होती है यानी 2500
वर्ष पूरे होते हैं
अथवा त्रेता और द्वापर का संगम होता है तब रावण आता है । काम
तो जरूर चाहिए । त्रेता और द्वापर के संगम पर रावण आते हैं
जबकि देवी-देवता वाम मार्ग में गिरते हैं । यह सिवाए तुम्हारे
कोई नहीं जानते । बाप भी आते हैं कलियुग अन्त और सतयुग आदि के
संगम पर और रावण आता है त्रेता और द्वापर के संगम पर । अब उस
संगम को कल्याणकारी नहीं कहेंगे । उनको तो अकल्याणकारी ही
कहेंगे । बाप का ही नाम कल्याणकारी है । द्वापर से अकल्याणकारी
युग शुरू होता है । बाप तो है चैतन्य बीजरूप । उनको सारे झाड़
की नॉलेज है । वह बीज भी अगर चैतन्य हो तो समझावे-मेरे से यह
झाड़ ऐसे निकलता है । परन्तु जड़ होने कारण बता नहीं सकता । हम
समझ सकते हैं कि बीज डालने से पहले झाड़ छोटा- सा निकलता है ।
फिर बड़ा हो फल देना शुरू करता है । परन्तु चैतन्य ही सब कुछ
बता सकते हैं । दुनिया में तो आजकल मनुष्य क्या-क्या करते रहते
हैं । इन्वेंशन निकालते रहते हैं । चन्द्रमा में जाने की कोशिश
करते हैं । यह सब बातें अभी तुम सुन रहे हो । चन्द्रमा तरफ
कितना ऊँचा लाखों माइल्स तक चले जाते हैं,
जाँच
करने के लिए कि देखें चन्द्रमा क्या चीज है?
समुद्र में कितना दूर तक जाते हैं,
जाँच
करते हैं,
परन्तु अन्त पा नहीं सकते,
पानी
ही पानी है । एरोप्लेन में ऊपर जाते हैं,
उन्हों को पेट्रोल इतना डालना है जो फिर वापिस भी आ सके । आकाश
बेहद है ना,
सागर
भी बेहद है । जैसे यह बेहद का ज्ञान सागर है,
वह
है पानी का बेहद का सागर । आकाश तत्व भी बेहद है । धरती भी
बेहद है,
चलते
जाओ । सागर के नीचे फिर धरती है । पहाड़ी किस पर खड़ी है?
धरती
पर । फिर धरती को खोदते हैं तो पहाड़ निकल आता,
उसके
नीचे फिर पानी भी निकल आता है । सागर भी धरनी पर है । उसका कोई
अन्त नहीं पा सकते हैं कि कहाँ तक पानी है,
कहाँ
तक धरती है?
परमपिता परमात्मा जो बेहद का बाप है,
उनके
लिए बेअन्त नहीं कहेंगे । मनुष्य भल कहते हैं ईश्वर बेअन्त है,
माया
भी बेअन्त है । परन्तु तुम समझते हो ईश्वर तो बेअन्त हो ही
नहीं सकता । बाकी यह आकाश बेअन्त है । यह 5 तत्व हैं,
आकाश,
वायु...... यह 5 तत्व तमोप्रधान बन जाते हैं । आत्मा भी
तमोप्रधान बनती है फिर बाप आकर सतोप्रधान बनाते हैं । कितनी
छोटी आत्मा है,
84
जन्म भोगती है । यह चक्र फिरता ही रहता है । यह अनादि नाटक है,
इनका
अन्त नहीं होता । यह परमपरा से चला आता है । कब से शुरू हुआ-यह
कहें तो फिर अन्त भी हो । बाकी यह बात समझानी है-कब से नई
दुनिया शुरू होती है । फिर पुरानी होती है । यह 5 हजार वर्ष का
चक्र है जो फिरता ही रहता है । अभी तुम जानते हो,
बाकी
उन्हों ने तो धुक्का (गपोड़ा) लगा दिया है । शास्त्रों में लिखा
है कि सतयुग की आयु इतने लाखों वर्ष है । तो मनुष्य
सुनते-सुनते उनको ही सच समझ लेते हैं । यह पता नहीं पड़ता-
भगवान कब आकर अपना परिचय देंगे?
न
जानने के कारण कह देते हैं कलियुग की आयु 40
हजार वर्ष अभी पड़ी है । जब तक तुम न समझाओ । अभी तुम निमित्त
हो समझाने के लिए कि कल्प 5 हजार वर्ष का है,
न कि
लाखों वर्ष का है ।
भक्ति मार्ग की कितनी सामग्री है,
मनुष्यों को पैसा होता है तो फिर खर्चा करते हैं । बाप कहते
हैं मैं तुमको कितने पैसे देकर जाता हूँ! बेहद का बाप तो जरूर
बेहद का वर्सा देंगे । इससे सुख भी मिलता है,
आयु
भी बड़ी होती है । बाप बच्चों को कहते है-मेरे लाडले बच्चों,
आयुष्मान भव । वहाँ तुम्हारी आयु 150
वर्ष रहती है,
कभी
काल नहीं खा सकता है । बाप वर देते हैं,
तुमको आयुष्मान बनाते हैं । तुम अमर बनेंगे । वहाँ कभी अकाले
मृत्यु नहीं होगी । वहाँ तुम बहुत सुखी रहते हो इसलिए कहा जाता
है सुखधाम । आयु भी बड़ी होती,
धन
भी बहुत मिलता है,
सुखी
भी बहुत रहते हो । कंगाल से सिरताज बन जाते हैं । तुम्हारी
बुद्धि में है-बाप आते हैं देवी-दवता धर्म की स्थापना करने ।
वह तो जरूर छोटा झाड़ होगा । वहाँ है ही एक धर्म,
एक
राज्य,
एक
भाषा । उसको ही कहा जाता है विश्व में शान्ति । सारे विश्व में
हम ही पार्टधारी हैं । यह दुनिया नहीं जानती । अगर जानती हो तो
बताये कब से हम पार्ट बजाते आये हैं?
अभी
तुम बच्चों को बाप समझा रहे हैं । गीत में भी है ना-बाबा से जो
मिलता है सो और कोई से नहीं मिलता । सारी पृथ्वी,
आसमान,
सारी
विश्व की राजधानी दे देते हैं । यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के
मालिक थे फिर बाद में जो राजायें आदि होते हैं वह भारत के थे ।
गायन भी है जो बाबा देते हैं,
वह
और कोई दे न सके । बाप ही आकर प्राप्ति कराते हैं । तो यह सारा
ज्ञान बुद्धि में रहना चाहिए जो कोई को भी समझा सको । इतना
समझने का है । अब समझा कौन सकते हैं?
जो
बन्धनमुक्त हो । बाबा के पास जब कोई आते हैं तो बाबा पूछते
हैं-कितने बच्चे हैं?
तो
कहते 5 बच्चे अपने हैं और छठा बच्चा शिवबाबा है तो जरूर सबसे
बड़ा बच्चा ठहरा ना । शिवबाबा के बन गये तो फिर शिवबाबा अपना
बच्चा बनाए विश्व का मालिक बना देते हैं । बच्चे वारिस हो जाते
हैं । यह लक्ष्मी-नारायण शिवबाबा के पूरे वारिस हैं । आगे जन्म
में शिवबाबा को सब कुछ दे दिया । तो वर्सा जरूर बच्चों को
मिलना चाहिए । बाबा ने कहा-मुझे वारिस बनाओ फिर दूसरा कोई नहीं
। कहते-बाबा यह सब कुछ आपका है,
आपका
फिर हमारा है । आप हमको सारे विश्व की बादशाही का वर्सा देते
हो क्योंकि तुमको जो कुछ था वह दे दिया । ड्रामा में नूंध है
ना । अर्जुन को विनाश भी दिखाया तो चतुर्भुज भी दिखाया ।
अर्जुन कोई और तो नहीं है,
इनको
साक्षात्कार हुआ । देखा,
राजाई मिलती है तो क्यों न शिवबाबा को वारिस बनाऊँ । वह फिर
हमको वारिस बनाते हैं । यह सौदा तो बहुत अच्छा है । कभी कोई से
कुछ पूछा नहीं । गुप्त सब कुछ दिया । इसको कहा जाता है गुप्त
दान । किसको क्या पता,
इन्हों को क्या हो गया । किन्हों ने समझा इनको वैराग्य आया,
शायद
सन्यासी बन गया । तो यह बच्चियां भी कहती हैं- 5 बच्चे तो अपने
हैं,
बाकी
एक बच्चा हम इनको बनायेंगे । इसने भी सब कुछ बाबा के आगे रख
दिया,
जिससे बहुतों की सर्विस हो । बाबा को देख सबको ख्याल आया,
सब
घरबार छोड़ भाग आये । वहाँ से ही हंगामा शुरू हुआ । घरबार छोड़ने
की उन्होंने हिम्मत दिखाई । शास्त्रों में भी लिखा है- भट्ठी
बनी थी क्योंकि उन्हों को एकान्त जरूर चाहिए । सिवाए बाप के और
कोई याद न रहे । मित्र-सम्बन्धियों आदि की भी याद न रहे
क्योंकि आत्मा जो पतित बनी है उनको पावन जरूर बनाना है । बाप
कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनो । इस पर ही
मुसीबत आती है । कहते थे यह स्त्री-पुरूष के बीच में झगड़ा
डालने वाला ज्ञान है क्योंकि एक पवित्र बने,
दूसरा न बने तो मारामारी चल पड़े । इन सबने मारें खाई हैं
क्योंकि अचानक नई बात हुई ना । सब आश्चर्य खाने लगे,
यह
क्या हुआ जो इतने सब भागते हैं । मनुष्यों में समझ तो नहीं है
। इतना कहते थे-कोई ताकत है! ऐसा तो कभी हुआ नहीं जो अपना
घरबार छोड़ भागे । ड्रामा में यह सब चरित्र शिवबाबा के हैं ।
कोई हाथ खाली भागे,
यह
भी खेल है । घरबार आदि सब छोड़ भागे,
कुछ
भी याद नहीं रहा । बाकी सिर्फ यह शरीर है,
जिससे काम करना है । आत्मा को भी याद की यात्रा से पवित्र
बनाना है,
तब
ही पवित्र आत्मायें वापिस जा सकती हैं । स्वर्ग में अपवित्र
आत्मा तो जा न सकें । कायदा नहीं । मुक्तिधाम में पवित्र ही
चाहिए । पवित्र बनने में ही कितने विघ्न पड़ते है । आगे कोई
सतसंग आदि में जाने के लिए रूकावट थोड़ेही होती थी । कहाँ भी
चले जाते थे । यहाँ पवित्रता के कारण विघ्न पड़ते हैं । यह तो
समझते हैं-पवित्र बनने बिगर वापिस घर जा न सकें । धर्मराज
द्वारा मोचरे (सजायें) खाने पड़ेंगे । फिर थोड़ी मानी मिलेगी |
मोचरा नहीं खायेंगे तो पद भी अच्छा मिलेगा । यह समझ की बात है
। बाप कहते हैं-मीठे बच्चों,
तुमको हमारे पास आना है । यह पुराना शरीर छोड़ पवित्र आत्मा बन
आना है । फिर जब 5 तत्व सतोप्रधान नये हो जायेंगे तब तुमको
शरीर नये सतोप्रधान मिलेंगे । सारे उथल-पाथल हो नये बन जायेंगे
। जैसे बाबा इनमें आकर बैठते हैं,
वैसे
आत्मा बिगर कोई तकलीफ गर्भ महल में जाकर बैठेगी । फिर जब समय
होता है तो बाहर आ जाती है तो जैसे बिजली चमक जाती है क्योंकि
आत्मा पवित्र है । यह सब ड्रामा में नूँध है । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
आत्मा को पावन बनाने के लिए एकान्त की भट्ठी
में रहना है । एक बाप के सिवाए दूसरा कोई भी मित्र-सम्बन्धी
याद न आये ।
2.
बुद्धि में सारा ज्ञान रख,
बन्धनमुक्त बन दूसरों की सर्विस करनी है । बाप से सच्चा सौदा
करना है । जैसे बाप ने सब कुछ गुप्त किया,
ऐसे गुप्त दान करना है ।
वरदान:-
कर्मों के हिसाब-किताब को समझकर अपनी अचल स्थिति बनाने वाले
सहज योगी भव
!
चलते-चलते अगर कोई कर्मो का हिसाब किताब सामने आता है तो उसमें
मन को हिलाओ नहीं,
स्थिति को नीचे ऊपर नहीं करो । चलो आया तो परखकर उसे दूर से ही
खत्म कर दो । अभी योद्धे नहीं बनो । सर्वशक्तिवान बाप साथ है
तो माया हिला नहीं सकती । सिर्फ निश्चय के फाउंडेशन को
प्रैक्टिकल में लाओ और समय पर यूज़ करो तो सहजयोगी बन जायेंगे ।
अब निरन्तर योगी बनो,
युद्ध करने वाले योद्धे नहीं ।
स्लोगन:-
डबल लाइट
रहना है तो अपनी सर्व जिम्मेवारियों का बोझ बाप हवाले कर दो । 
ओम्
शान्ति |