05-01-15          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - इस पुरानी दुनिया में कोई भी सार नहीं है, इसलिए तुम्हें इससे दिल नहीं लगानी है, बाप की याद टूटी तो सजा खानी पड़ेगी”   


प्रश्न:-   
बाप का मुख्य डायरेक्शन क्या है? उसका उल्लंघन क्यों होता है?


उत्तर:-

बाप का डायरेक्शन है किसी से सेवा मत लो क्योंकि तुम खुद सर्वेंट हो । परन्तु देह- अभिमान के कारण बाप के इस डायरेक्शन का उल्लंघन करते हैं । बाबा कहते तुम यहाँ सुख लेंगे तो वहाँ का सुख कम हो जायेगा । कई बच्चे कहते हैं हम तो इन्डिपेन्डेट रहेंगे परन्तु तुम सब बाप पर डिपेन्ड करते हो ।


गीत:-   
दिल का सहारा टूट न जाए..


ओम् शान्ति |

शिव भगवानुवाच अपने सालिग्रामों प्रति । शिव और सालिग्राम को तो सब मनुष्य जानते हैं । दोनों निराकार हैं । अब कृष्ण भगवानुवाच कह नहीं सकते । भगवान एक ही होता है । तो शिव भगवानुवाच किसके प्रति? रूहानी बच्चों प्रति । बाबा ने समझाया है बच्चों का अब कनेक्शन है ही बाप से क्योंकि पतित-पावन ज्ञान का सागर, स्वर्ग का वर्सा देने वाला तो शिवबाबा ही ठहरा । याद भी उनको करना है । ब्रह्मा है उनका भाग्यशाली रथ । रथ द्वारा ही बाप वर्सा देते हैं । ब्रह्मा वर्सा देने वाला नहीं है, वह तो लेने वाला है । तो बच्चों को अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है । मिसला समझो रथ को कोई तकलीफ होती है वा कारणे- अकारण बच्चों को मुरली नहीं मिलती है तो बच्चों का सारा अटेंशन जाता है शिवबाबा तरफ । वह तो कभी बीमार पड़ नहीं सकते । बच्चों को इतना ज्ञान मिला है वह भी समझा सकते हैं । प्रदर्शनी में बच्चे कितना समझाते हैं । ज्ञान तो बच्चों में है ना । हर एक की बुद्धि में चित्रों का ज्ञान भरा हुआ है । बच्चों को कोई अटक नहीं रह सकती । समझो पोस्ट का आना-जाना बंद हो जाता है, स्ट्राइक हो जाती है फिर क्या करेंगे? ज्ञान तो बच्चों में है । समझाना है सतयुग था, अब कलियुग पुरानी दुनिया है । गीत में भी कहते हैं पुरानी दुनिया में कोई सार नहीं है, इनसे दिल नहीं लगानी है । नहीं तो सजा मिल जायेगी । बाप की याद से सजायें कटती जायेंगी । ऐसा न हो बाप की याद टूट जाये फिर सजा खानी पड़े और पुरानी दुनिया में चले जायें । ऐसे तो ढेर गये हैं, जिनको बाप याद भी नहीं है । पुरानी दुनिया से दिल लग गई, जमाना बहुत खराब है । कोई से दिल लगाई तो सजा बहुत मिलेगी । बच्चों को ज्ञान सुनना है । भक्ति मार्ग के गीत भी नहीं सुनने हैं । अभी तुम हो संगम पर । ज्ञान सागर बाप द्वारा तुमको संगम पर ही ज्ञान मिलता है । दुनिया में यह किसको पता नहीं है कि ज्ञान सागर एक ही है । वह जब ज्ञान देते हैं तब मनुष्यों की सद्गति होती है । सद्गति दाता एक ही है फिर उनकी मत पर चलना है । माया छोड़ती कोई को भी नहीं है । देह- अभिमान के बाद ही कोई न कोई भूल होती है । कोई सेमी काम वश हो जाते हैं, कोई क्रोध वश । मन्सा में तूफान बहुत आते हैं - प्यार करें, ये करें..... । कोई के शरीर से दिल नहीं लगानी है । बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो तो शरीर का भान न रहे । नहीं तो बाप की आज्ञा का उल्लंघन हो जाता है । देह- अहंकार से नुकसान बहुत होता है इसलिए देह सहित सब-कुछ भूल जाना है । सिर्फ बाप को और घर को याद करना है । आत्माओं को बाप समझाते हैं, शरीर से काम करते मुझे याद करो तो विकर्म भस्म हो जायेंगे । रास्ता तो बहुत सहज है । यह भी समझते हैं तुमसे भूलें होती रहती हैं । परन्तु ऐसा न हो- भूलों में फँसते ही जाओ । एक बारी भूल हुई फिर वह भूल नहीं करनी चाहिए । अपना कान पकड़ना चाहिए, फिर यह भूल नहीं होगी । पुरुषार्थ करना चाहिए । अगर घड़ी- घड़ी भूल होती है तो समझना चाहिए हमारा बहुत नुकसान होगा । भूल करते-करते तो दुर्गति को पाया है ना । कितनी बड़ी सीढ़ी उतरकर क्या बने हैं! आगे तो यह ज्ञान नहीं था । अभी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार ज्ञान में सब प्रवीण हो गये हैं । जितना हो सके अनुर्मखी भी रहना है, मुख से कुछ कहना नहीं है । जो ज्ञान में प्रवीण बच्चे हैं, वह कभी पुरानी दुनिया से दिल नहीं लगायेंगे । उनकी बुद्धि में रहेगा हम तो रावण राज्य का विनाश करना चाहते है । यह शरीर भी पुराना रावण सम्प्रदाय का है तो हम रावण सम्प्रदाय को क्यों याद करें? एक राम को याद करें । सच्चे पिताव्रता बने ना ।

बाप कहते हैं मुझे याद करते रहो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे । पिताव्रता अथवा भगवान व्रता बनना चाहिए । भक्त भगवान को ही याद करते हैं कि हे भगवान आकर हमें सुख-शान्ति का वर्सा दो । भक्तिमार्ग में तो कुर्बान जाते हैं, बलि चढ़ते हैं । यहाँ बलि चढ़ने की बात तो है नहीं । हम तो जीते जी मरते हैं गोया बलि चढ़ते हैं । यह है जीते जी बाप का बनना क्योंकि उनसे वर्सा लेना है । उनकी मत पर चलना है । जीते जी बलि चढ़ना, वारी जाना वास्तव में अभी की बात है । भक्ति मार्ग में वह फिर कितना जीवघात आदि करते हैं । यहाँ जीवघात की बात नहीं । बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो, बाप से योग लगाओ, देह- अभिमान में नहीं आओ । उठते-बैठते बाप को याद करने का पुरुषार्थ करना है । 100 परसेन्ट पास तो कोई हुआ नहीं है । नीचे-ऊपर होते रहते हैं । भूलें होती हैं, उस पर सावधानी नहीं मिलेगी तो भूलें छोड़ेंगे कैसे? माया किसको भी छोड़ती नहीं है । कहते हैं बाबा हम माया से हार जाते हैं, पुरुषार्थ करते भी हैं फिर पता नहीं क्या होता है । हमसे इतनी कड़ी भूलें पता नहीं कैसे हो जाती हैं । समझते भी हैं ब्राह्मण कुल में इससे हमारा नाम बदनाम होता है । फिर भी माया का ऐसा वार होता है जो समझ में नहीं आता । देह- अभिमान में आने से जैसे बेसमझ बन जाते हैं । बेसमझी के काम होते हैं तो ग्लानि भी होती, वर्सा भी कम हो जाता । ऐसे बहुत भूलें करते हैं । माया ऐसा जोर से थप्पड़ लगा देती है जो खुद तो हार खाते हैं और फिर गुस्से में आकर किसको थपड़ वा जूता आदि मारने लग पड़ते हैं फिर पश्चाताप भी करते हैं । बाबा कहते हैं कि अब तो बहुत मेहनत करनी पड़े । अपना भी नुकसान किया तो दूसरे का भी नुकसान किया, कितना घाटा हो गया । राहू का ग्रहण बैठ गया । अब बाप कहते हैं दे दान तो छूटे ग्रहण । राहू का ग्रहण बैठता है तो फिर वह टाइम लेता है । सीढ़ी चढ़कर फिर उतरना मुश्किल होता है । मनुष्य को शराब की आदत पडती है तो फिर वह छोड़ने में कितनी मुश्किलात होती है । सबसे बड़ी भूल है - काला मुंह करना । घड़ी-घड़ी शरीर याद आता है । फिर बच्चे आदि होते हैं तो उनकी ही याद बनी रहती है । वह फिर दूसरों को ज्ञान क्या देंगे । उनका कोई सुनेंगे भी नहीं । हम तो अभी सबको भूलने की कोशिश कर एक को याद करते हैं । इसमें सम्भाल बहुत करनी पड़ती है । माया बड़ी तीखी है । सारा दिन शिवबाबा को याद करने का ही ख्याल रहना चाहिए । अब नाटक पूरा होता है, हमको जाना है । यह शरीर भी खत्म हो जाना है । जितना बाप को याद करेंगे तो देह- अभिमान टूटता जायेगा और कोई की भी याद नहीं होगी । कितनी बड़ी मंजिल है, सिवाए एक बाप के और कोई के साथ दिल नहीं लगानी है । नहीं तो जरूर वह सामने आयेंगे । वैर जरूर लेंगे । बहुत ऊँची मंजिल है । कहना तो बड़ा सहज है, लाखों में कोई एक दाना निकलता है । कोई स्कॉलरशिप भी लेते हैं ना । जो अच्छी मेहनत करेंगे, जरूर स्कॉलरशिप लेंगे । साक्षी हो देखना है, कैसे सर्विस करता हूँ? बहुत बच्चे चाहते हैं जिस्मानी सर्विस छोड़ इसमें लग जावें । परन्तु बाबा सरकमस्टांश भी देखते हैं । अकेला है, कोई सम्बन्धी नहीं है तो हर्जा नहीं । फिर भी कहते हैं नौकरी भी करो और यह सेवा भी करो । नौकरी में भी बहुतों के साथ मुलाकात होगी । तुम बच्चों को ज्ञान तो बहुत मिला हुआ है । बच्चों द्वारा भी बाप बहुत सर्विस कराते रहते हैं । कोई में प्रवेश कर सर्विस करते हैं । सर्विस तो करनी ही है । जिनके माथे मामला वो कैसे नीद करें! शिवबाबा तो है ही जागती ज्योत । बाप कहते हैं मैं तो दिन-रात सर्विस करता हूँ, थकता शरीर है । फिर आत्मा भी क्या करे, शरीर काम नहीं देता है । बाप तो अथक है ना । वह है जागती ज्योत, सारी दुनिया को जगाते हैं | उनका पार्ट ही वन्डरफुल है, जिसको तुम बच्चों में भी थोड़े जानते हैं । कालों का काल है बाप । उनकी आज्ञा नहीं मानेंगे तो धर्मराज से डंडा खायेंगे । बाप का मुख्य डायरेक्शन है किसी से सेवा मत लो । परन्तु देह- अभिमान में आकर बाप की आज्ञा का उल्लंघन करते हैं । बाबा कहते तुम खुद सर्वेंट हो । यहाँ सुख लेंगे तो वहाँ सुख कम हो जायेगा । आदत पड़ जाती है तो सर्वेंट बिगर रह नहीं सकते हैं | कई कहते हैं हम तो इन्डिपेन्डेट रहेंगे परन्तु बाप कहते हैं डिपेन्ड रहना अच्छा है । तुम सब बाप पर डिपेन्ड करते हो । इन्डिपेन्डेट बनने से गिर पड़ते हैं । तुम सब डिपेन्ड करते हो शिवबाबा पर । सारी दुनिया डिपेन्ड करती है, तब तो कहते हैं हे पतित-पावन आओ । उनसे ही सुख-शान्ति मिलती है, परन्तु समझते नहीं है । यह भक्ति मार्ग का समय भी पास करना ही है, जब रात पूरी होती है तब बाप आते हैं । एक सेकण्ड का भी फर्क नहीं पड़ सकता । बाप कहते हैं मैं इस ड्रामा को जानने वाला हूँ । ड्रामा के आदि, मध्य, अन्त को और कोई भी नहीं जानते । सतयुग से लेकर यह ज्ञान प्राय :लोप है । अभी तुम रचयिता और रचना के आदि, मध्य, अन्त को जानते हो, इसको ही ज्ञान कहा जाता है, बाकी सब है भक्ति । बाप को नॉलेजफुल कहते हैं । हमको वह नॉलेज मिल रही है । बच्चों को नशा भी अच्छा होना चाहिए । परन्तु यह भी समझते हैं कि राजधानी स्थापन होती है । कोई तो प्रजा में भी साधारण नौकर-चाकर बनते हैं । जरा भी ज्ञान समझ में नहीं आता । वन्डर है ना! ज्ञान तो बड़ा सहज है । 84 जन्मों का चक्र अब पूरा हुआ है । अब जाना है अपने घर । हम ड्रामा के मुख्य एक्टर्स हैं । सारे ड्रामा को जान गये हैं । सारे ड्रामा में हीरो-हीरोइन एक्टर हम हैं । कितना सहज है । परन्तु तकदीर में नहीं है तो तदबीर भी क्या करें! पढ़ाई में ऐसा होता है । कोई नापास हो जाते हैं, कितना बड़ा स्कूल है । राजधानी स्थापन होनी है । अब जितना जो पढ़ेंगे, बच्चे जान सकते हैं हम क्या पद पायेंगे? ढेर के ढेर हैं, सब वारिस तो नहीं बनेंगे । पवित्र बनना बड़ा मुश्किल है । बाप कितना सहज समझाते हैं, अब नाटक पूरा होता है । बाप की याद से सतोप्रधान बन, सतोप्रधान दुनिया का मालिक बनना है । जितना हो सके याद में रहना है । परन्तु तकदीर में नहीं है तो फिर बाप के बदले और- और को याद करते हैं । दिल लगाने से फिर रोना भी बहुत पड़ता है । बाप कहते हैं इस पुरानी दुनिया से दिल नहीं लगानी है । यह तो खत्म होनी है । यह और कोई को पता नहीं है । वह तो समझते हैं कलियुग अभी बहुत समय चलना है । घोर नींद में सोये पड़े हैं । तुम्हारी यह प्रदर्शनी प्रजा बनाने के लिए विहंग मार्ग की सर्विस का साधन है । राजा-रानी भी कोई निकल पड़ेगा । बहुत हैं जो सर्विस का अच्छा शौक रखते हैं । फिर कोई गरीब, कोई साहूकार हैं । औरों को आपसमान बनाते हैं, उनका भी फायदा तो मिलता है ना । अन्धों की लाठी बनना है, सिर्फ यह बतलाना हैं कि बाप और वर्से को याद करो, विनाश सामने खड़ा हैं । जब विनाश का समय नजदीक देखेंगे तब तुम्हारी बातों को सुनेंगे । तुम्हारी सर्विस भी वृद्धि को पाती जायेगी, समझेंगे बराबर ठीक है । तुम रड़ियाँ तो मारते रहते हो कि विनाश होना है ।

तुम्हारी प्रदर्शनी, मेला सर्विस वृद्धि को पाती रहेगी । कोशिश करनी है कोई अच्छा हाल मिल जाए, किराया देने के लिए तो हम तैयार हैं । बोलो, तुम्हारा और ही नाम बाला होगा । ऐसे बहुतों के पास हाल पड़े होते हैं । पुरुषार्थ करने से 3 पैर पृथ्वी के मिल जायेंगे । जब तक तुम छोटी-छोटी प्रदर्शनी रखो । शिव जयन्ती भी तुम मनायेंगे तो आवाज होगा । तुम लिखते भी हो शिव जयन्ती की छुटटी का दिन मुकरर करो । वास्तव में जन्म दिन तो एक का ही मनाना चाहिए । वही पतित-पावन है । स्टैम्प भी वास्तव में असली यह त्रिमूर्ति की है । सत्य मेव जयते... यह है विजय पाने का समय । समझाने वाला भी अच्छा चाहिए । सभी सेंटर्स के जो मुख्य हैं उन्हों को अटेंशन देना पड़े । अपनी स्टैम्प निकाल सकते हैं । यह है त्रिमूर्ति शिव जयन्ती । सिर्फ शिव जयन्ती कहने से समझ नहीं सकेंगे । अब काम तो बच्चों को ही करना है । बहुतों का कल्याण होगा तो कितनी लिफ्ट मिलेगी, सर्विस की लिफ्ट बहुत मिलती हैं । प्रदर्शनी से बहुत सर्विस हो सकती है । प्रजा तो बनेगी ना । बाबा देखते हैं सर्विस पर किन बच्चों का अटेंशन रहता है! दिल पर भी वही चढ़ेंगे । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. अगर एक बार कोई भूल हुई तो उसी समय कान पकड़ना है, दुबारा वह भूल न हो । कभी भी देह अहंकार में नहीं आना है । ज्ञान में प्रवीण बन अन्तर्मुखी रहना है । 

2. सच्चा पिताव्रता बनना है, जीते जी बलि चढ़ना है । किसी से भी दिल नहीं लगानी है । बेसमझी का कोई भी काम नहीं करना है ।

 

वरदान:-

स्वयं के प्रति इच्छा मात्रम् अविद्या बन बाप समान अखण्डदानी, परोपकारी भव !   

जैसे ब्रह्मा बाप ने स्वयं का समय भी सेवा में दिया, स्वयं निर्मान बन बच्चों को मान दिया, काम के नाम की प्राप्ति का भी त्याग किया । नाम, मान, शान सबमें परोपकारी बनें, अपना त्याग कर दूसरों का नाम किया, स्वयं को सदा सेवाधारी रखा, बच्चों को मालिक बनाया । स्वयं का सुख बच्चों के सुख में समझा । ऐसे बाप समान इच्छा मात्रम् अविद्या अर्थात् मस्त फकीर बन अखण्डदानी परोपकारी बनो तो विश्व कल्याण के कार्य में तीव्रगति आ जायेगी । केस और किस्से समाप्त हो जायेंगे ।

 

स्लोगन:- 

ज्ञान, गुण और धारणा में सिन्धू बनो, स्मृति में बिन्दू बनो ।   

 

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कोई भी कर्म करो, बोल बोलो वा संकल्प करो तो पहले चेक करो कि यह ब्रह्मा बाप समान है! ब्रह्मा बाप की विशेषता विशेष यही रही- जो सोचा वो किया, जो कहा वो किया । ऐसे फालो फादर | अपने स्वमान की स्मृति से, बाप के साथ की समर्थी से, दृढ़ता और निश्चय की शक्ति से श्रेष्ठ पोजीशन पर रह आपोजीशन को समाप्त कर देना ।

 

ओम् शान्ति |