23-11-13 प्रातःमुरली
ओम् शान्ति “बापदादा”
मधुबन
“मीठे बच्चे – सर्व पर ब्लैसिंग करने वाला ब्लिसफुल एक बाप है,
बाप को ही दुःख हर्ता, सुख कर्ता कहा जाता है, उनके सिवाए कोई
भी दुःख नहीं हर सकता”
प्रश्न:-
भक्ति मार्ग और ज्ञान मार्ग दोनों में एडाप्ट होने की रस्म है
लेकिन अन्तर क्या है?
उत्तर:-
भक्ति मार्ग में जब किसी के पास एडाप्ट होते हैं तो गुरु और
चेले का सम्बन्ध रहता है, सन्यासी भी एडाप्ट होंगे तो अपने को
फ़ालोअर कहलायेंगे, लेकिन ज्ञान मार्ग में तुम फ़ालोअर या चेले
नहीं हो | तुम बाप के बच्चे बने हो | बच्चा बनना अर्थात् वर्से
का अधिकारी बनना |
गीत:-
ओम नमो शिवाए...

ओम्
शान्ति
|
बच्चों
ने गीत सुना | यह है परमपिता परमात्मा शिव की महिमा | कहते भी
हैं शिवाए नमः | रुद्राय नमः वा सोमनाथ नमः नहीं कहते हैं |
शिवाए नमः कहते हैं और बहुत स्तुति भी उनकी होती है | अब शिवाए
नमः हुआ बाप | गॉड फादर का नाम हुआ शिव | वह है निराकार | यह
किसने कहा – ओ गॉड फादर? आत्मा ने | सिर्फ़ ‘ओ फादर’ कहते हैं
तो वह जिस्मानी फादर हो जाता है | ‘ओ गॉड फादर’ कहने से रूहानी
फादर हो जाता है | यह समझने की बातें हैं | देवताओं को
पारसबुद्धि कहा जाता है | देवतायें तो विश्व के मालिक थे | अभी
कोई मालिक हैं नहीं | भारत का धनी-धोणी कोई है नहीं | राजा को
भी पिता, अन्नदाता कहा जाता है | अभी तो राजायें हैं नहीं | तो
यह शिवाए नमः किसने कहा? कैसे पता पड़े कि यह बाप है?
ब्रह्माकुमार-कुमारियां तो ढेर हैं | यह ठहरे शिवबाबा के
पोत्रे-पोत्रियां | ब्रह्मा द्वारा इनको एडाप्ट करते हैं | सब
कहते हैं हम ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं | अच्छा, ब्रह्मा किसका
बच्चा? शिव का | ब्रह्मा, विष्णु, शंकर तीनों ही शिव के बच्चे
हैं | शिवबाबा है ऊँच ते ऊँच भगवान्, निराकारी वतन में रहने
वाला | ब्रह्मा, विष्णु शंकर हैं सूक्ष्मवतनवासी | अच्छा,
मनुष्य सृष्टि कैसे रची? तो कहते हैं ड्रामा अनुसार मैं ब्रह्मा
के साधारण तन में प्रवेश कर इनको प्रजापिता बनाता हूँ | मुझे
प्रवेश ही इनमें करना है जिसको ब्रह्मा नाम दिया है | एडाप्ट
करने बाद नाम बदल जाता है | सन्यासी भी नाम बदलते हैं | पहले
गृहस्थियों के पास जन्म लेते हैं फिर संस्कार अनुसार छोटेपन
में ही शास्त्र आदि पढ़ते हैं फिर वैराग्य आता है | सन्यासियों
पास जाकर एडाप्ट होते हैं, कहेंगे यह मेरा गुरु है | उनको बाप
नहीं कहेंगे | चेले वा फ़ालोअर्स बनाते हैं गुरु के | गुरु चेले
को एडाप्ट करते हैं कि तुम हमारे चेले वा फ़ालोअर हो | यह बाप
कहते हैं कि तुम हमारे बच्चे हो | तुम आत्मा बाप को भक्ति
मार्ग में बुलाती आई हो, क्योंकि यहाँ दुःख बहुत है,
त्राहि-त्राहि हो रही है | पतित-पावन बाप तो एक ही है |
निराकार शिव को आत्मा नमः करती है | तो बाप तो है ही | ‘तुम
मात-पिता’ यह भी गॉड फादर के लिए ही गाते हैं | फादर है तो मदर
भी ज़रूर चाहिए | मदर-फादर बिगर रचना होती नहीं | बाप को बच्चों
के पास आना ही है | यह सृष्टि चक्र कैसे रिपीट होता है, इसके
आदि, मध्य, अन्त को जानना – इसको कहा जाता है त्रिकालदर्शी बनना
| इतने सब करोड़ों एक्टर्स हैं, हर एक का पार्ट अपना है | यह
बेहद का ड्रामा है | बाप कहते हैं मैं क्रियेटर, डायरेक्टर,
प्रिन्सिपल एक्टर हूँ | एक्ट कर रहा हूँ ना | मेरी आत्मा को
सुप्रीम कहते हैं | आत्मा और परमात्मा का रूप एक ही है |
वास्तव में आत्मा है ही बिन्दी | भृकुटी के बीच में आत्मा
स्टार रहता है ना | बिल्कुल सूक्ष्म है | उनको देख नहीं सकते
हैं | आत्मा भी सूक्ष्म है तो आत्मा का बाप भी सूक्ष्म है |
बाप समझाते हैं तुम आत्मा बिन्दी समान हो | मैं शिव भी बिन्दी
समान हूँ | परन्तु मैं सुप्रीम, क्रियेटर, डायरेक्टर हूँ |
ज्ञान सागर हूँ | मेरे में सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त का ज्ञान
है | मैं नॉलेजफुल, ब्लिसफुल हूँ, सब पर ब्लैसिंग करता हूँ |
सबको सद्गति में ले जाता हूँ | दुःख हर्ता, सुख कर्ता एक ही
बाप है | सतयुग में दुःखी कोई होता ही नहीं | लक्ष्मी-नारायण
का ही राज्य है |
बाप समझाते
हैं मैं इस सृष्टि रूपी झाड़ का बीजरूप हूँ | समझो, आम का झाड़
है, वह तो है जड़ बीज, वह बोलेगा नहीं | अगर चैतन्य होता तो
बोलता कि मुझ बीज से ऐसे टाल-टालियाँ, पत्ते आदि निकलते हैं |
अब यह है चैतन्य, इसको कल्प वृक्ष कहा जाता है | मनुष्य सृष्टि
झाड़ का बीज परमपिता परमात्मा है | बाप कहते हैं मैं ही आकर इसका
नॉलेज समझाता हूँ, बच्चों को सदा सुखी बनाता हूँ | दुःखी बनाती
है माया | भक्ति मार्ग को पूरा होना है | ड्रामा को फिरना ज़रूर
है | यह है बेहद वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी | चक्र फिरता रहता
है | कलियुग बदल फिर सतयुग होना है | सृष्टि तो एक ही है | गॉड
फादर इज़ वन | इनका कोई फादर नहीं | वही टीचर भी है, पढ़ा रहे
हैं | भगवानुवाच – मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ | मनुष्य तो
मात-पिता को जानते नहीं | तुम बच्चे जानते हो निराकार शिवबाबा
के हम निराकारी बच्चे हैं | फिर साकारी ब्रह्मा के भी बच्चे
हैं | निराकार बच्चे सब भाई-भाई हैं और ब्रह्मा के बच्चे
भाई-बहन हैं | यह है पवित्र रहने की युक्ति | बहन-भाई विकार
में कैसे जायेंगे | विकार की ही आग लगती है ना | काम अग्नि कहा
जाता है, उससे बचने की युक्ति बाप बतलाते हैं | एक तो प्राप्ति
बहुत ऊँच है | अगर हम बाप की श्रीमत पर चलेंगे तो बेहद के बाप
का वर्सा पाएंगे | याद से ही एवरहेल्दी बनते हैं | प्राचीन
भारत का योग मशहूर है | बाप कहते हैं मुझे याद करते-करते तुम
पवित्र बन जायेंगे, पाप भस्म हो जायेंगे | बाप की याद में शरीर
छोड़ेंगे तो मेरे पास चले आयेंगे | यह पुरानी दुनिया ख़त्म होनी
है | यह वही महाभारत की लड़ाई है | जो बाप के बने हैं उनकी ही
विजय होनी है | यह राजधानी स्थापन हो रही है | भगवान् राजयोग
सिखलाते हैं स्वर्ग का मालिक बनाने लिए | फिर माया रावण नर्क
का मालिक बनती है | वह जैसे श्राप मिलता है |
बाप कहते हैं
– लाडले बच्चे, मेरी मत पर तुम स्वर्गवासी भव | फिर जब रावण
राज्य शुरू होता है तो रावण कहता है – हे ईश्वर के बच्चे,
नर्कवासी भव | नर्क के बाद फिर स्वर्ग ज़रूर आना है | यह नर्क
है ना | कितनी मारामारी लगी पड़ी है | सतयुग में लड़ाई-झगड़ा होता
नहीं | भारत ही स्वर्ग था, और कोई राज्य था ही नहीं | अभी भारत
नर्क है, अनेक धर्म हैं | गाया जाता है अनेक धर्म का विनाश, एक
धर्म की स्थापना करने मुझे आना पड़ता है | मैं एक ही बार अवतार
लेता हूँ | बाप को आना है पतित दुनिया में | आते ही तब हैं जब
पुरानी दुनिया ख़त्म होनी है | उसके लिए लड़ाई भी चाहिए |
बाप कहते हैं
– मीठे बच्चे, तुम अशरीरी आये थे, 84 जन्मों का पार्ट पूरा
किया, अब वापस चलना है | मैं तुम्हें पतित से पावन बनाकर वापस
ले जाता हूँ | हिसाब तो है ना | 5 हज़ार वर्ष में देवतायें 84
जन्म लेते हैं | सब तो 84 जन्म नहीं लेंगे | अब बाप कहते हैं
मुझे याद करो और वर्सा लो | सृष्टि का चक्र बुद्धि में फिरना
चाहिए | हम एक्टर्स हैं ना | एक्टर होकर ड्रामा के क्रियेटर,
डायरेक्टर, मुख्य एक्टर को न जानें तो वह बेसमझ ठहरे | इससे
भारत कितना कंगाल बन गया है | फिर बाप आकर सालवेन्ट बना देते
हैं | बाप समझाते हैं तुम भारतवासी स्वर्ग में थे फिर तुमको 84
जन्म तो ज़रूर लेने पड़े | अभी तुम्हारे 84 जन्म पूरे हुए | यह
पिछाड़ी का जन्म बाकी है | भगवानुवाच, भगवान् तो सबका एक है |
कृष्ण को और सब धर्म वाले भगवान् नहीं मानेंगे | निराकार को ही
मानेंगे | वह सब आत्माओं का बाप है | कहते हैं मैं बहुत जन्मों
के अन्त में आकर इनमें प्रवेश करता हूँ | राजाई स्थापन हो
जायेगी फिर विनाश शुरू होगा और मैं चला जाऊंगा | यह है बड़ा
भारी यज्ञ और जो भी यज्ञ आदि हैं सब इसमें स्वाहा हो जाने हैं
| सारी दुनिया का किचड़ा इनमें पड़ जाता है फिर कोई यज्ञ रचा
नहीं जाता | भक्ति मार्ग ख़लास हो जाता है | सतयुग-त्रेता के
बाद फिर भक्ति मार्ग शुरू होता है | अब भक्ति पूरी होती है |
तो यह महिमा सारी शिवबाबा की है | इनके इतने नाम दिए हैं,
जानते तो कुछ नहीं | यह तो शिव है फिर रूद्र, सोमनाथ,
बाबुरीनाथ भी कहते हैं | एक के अनेक नाम रख दिये हैं |
जैसे-जैसे सर्विस की है वैसा नाम पड़ा है | तुमको सोमरस पिला
रहे हैं | तुम मातायें स्वर्ग का द्वार खोलने के निमित्त बनी
हो | वन्दना पवित्र की ही होती है | अपवित्र, पवित्र की वन्दना
करते हैं | कन्या को सब माथा टेकते हैं | यह
ब्रह्माकुमार-कुमारियां इस भारत का उद्धार कर रहे हैं | पवित्र
बन बाप से पवित्र दुनिया का वर्सा लेना है | गृहस्थ व्यवहार
में रहते पवित्र बनना है, इसमें मेहनत है | काम महाशत्रु है |
काम बिगर रह नहीं सकते तो मारने लगते हैं | रूद्र यज्ञ में
अबलाओं पर अत्याचार होते हैं | मार खा-खा कर आखरीन उन्हों का
(जो मारते हैं) पाप का घड़ा भरता है तब फिर विनाश हो जाता है |
बहुत बच्चियाँ हैं, कभी देखा नहीं है, लिखती हैं बाबा हम आपको
जानते हैं | आपसे वर्सा लेने लिए पवित्र ज़रूर बनूँगी | बाप
समझाते हैं शास्त्र पढ़ना, तीर्थ आदि करना – यह सब भक्ति मार्ग
की जिस्मानी यात्रा तो करते आये हो, अब तुमको वापिस चलना है
इसलिए मेरे से योग लगाओ | और संग तोड़ एक मुझ साथ जोड़ो तो तुमको
साथ ले जाऊंगा फिर स्वर्ग में भेज दूंगा | वह है शान्तिधाम |
वहाँ आत्मायें कुछ बोलती नहीं | सतयुग है सुखधाम, यह है
दुःखधाम | अभी इस दुःखधाम में रहते शान्तिधाम-सुखधाम को याद
करना है तो फिर तुम स्वर्ग में आ जायेंगे | तुमने 84 जन्म लिए
हैं | वर्ण फिरते जाते हैं | पहले है ब्राह्मणों की चोटी फिर
देवता वर्ण, क्षत्रिय वर्ण बाजोली खेलते हैं ना | फिर अभी हम
ब्राह्मण से देवता बनेंगे | यह चक्र फिरता रहता है, इनको जानने
से चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे | बेहद के बाप से बेहद का वर्सा
चाहिए | तो ज़रूर बाप की मत पर चलना पड़े | तुम समझते हो निराकार
परम आत्मा ने आकर इस साकार शरीर में प्रवेश किया है | हम
आत्मायें जब निराकारी हैं तो वहाँ रहती हैं | यह सूर्य-चाँद
बत्तियां हैं | इसे बेहद का दिन और रात कहा जाता है | सतयुग
त्रेता दिन, द्वापर कलियुग रात | बाप आकर सद्गति मार्ग बताते
हैं | कितनी अच्छी समझानी मिलती है | सतयुग में होता है सुख,
फिर थोड़ा-थोड़ा कम होता जाता है | सतयुग में 16 कला, त्रेता में
14 कला...... यह सब समझने की बातें हैं | वहाँ कभी अकाले
मृत्यु नहीं होती | रोने, लड़ने-झगड़ने की बात नहीं, है सारा
पढ़ाई पर मदार | पढ़ाई से ही मनुष्य से देवता बनना है | भगवान्
पढ़ाते हैं भगवान् भगवती बनाने के लिए | वह तो पाई-पैसे की पढ़ाई
है | यह पढ़ाई है हीरे जैसी | सिर्फ़ इस अन्तिम जन्म में पवित्र
बनने की बात है | यह है सहज ते सहज राजयोग | बैरिस्टरी आदि
पढ़ना – वह कोई इतना सहज नहीं | यहाँ तो बाप और चक्र को याद
करने से चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे | बाप को नहीं जाना गोया
कुछ नहीं जाना | बाप खुद विश्व का मालिक नहीं बनते, बच्चों को
बनाते हैं | शिवबाबा कहते हैं यह (ब्रह्मा) महाराजा बनेंगे,
मैं नहीं बनूँगा | मैं निर्वाणधाम में बैठ जाता हूँ, बच्चों को
विश्व का मालिक बनाता हूँ | सच्ची-सच्ची निष्काम सेवा निराकार
परमपिता परमात्मा ही कर सकते हैं, मनुष्य नहीं कर सकते | ईश्वर
को पाने से सारे विश्व के मालिक बन जाते हैं | धरती आसमान सबके
मालिक बन जाते हैं | देवतायें विश्व के मालिक थे ना | अभी तो
कितने पार्टीशन हो गये हैं | अभी फिर बाप कहते हैं हम तुमको
विश्व का मालिक बनाता हूँ | स्वर्ग में तुम ही थे | भारत विश्व
का मालिक था, अभी कंगाल है | फिर से इन माताओं द्वारा विश्व का
मालिक बनाता हूँ | मैजारटी माताओं की है इसलिए वन्दे मातरम्
कहा जाता है |
टाइम थोड़ा
है, शरीर पर भरोसा नहीं है | मरना तो सबको है | सबकी वानप्रस्थ
अवस्था है, सबको वापिस जाना है | यह भगवान् पढ़ाते हैं |
नॉलेजफुल, पीसफुल, ब्लिसफुल उनको कहा जाता है | वही फिर ऐसा
सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण पवित्र बनाते हैं | अच्छा!
मीठे-मीठे
सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का नम्बरवार पुरुषार्थ
अनुसार याद-प्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते |
धारणा के लिए
मुख्य सार:-
1. यह
पढ़ाई हीरे जैसा बनाती है इसलिए इसे अच्छी तरह पढ़ना है और सब
संग तोड़ एक बाप
संग जोड़ना है |
2. श्रीमत
पर चलकर स्वर्ग का पूरा वर्सा लेना है | चलते-फिरते स्वदर्शन
चक्र फिराते रहना है |
वरदान:-
संस्कार
मिटाने और मिलाने में एवररेडी रहने वाले रूहानी सेवाधारी भव 