11-02-14       प्रातः मुरली       ओम् शान्ति   “बापदादा”     मधुबन


मीठे बच्चे तुम्हारे मोह की रगें अब टूट जानी चाहिए क्योंकि यह सारी दुनिया विनाश होनी है, इस पुरानी दुनिया की किसी भी चीज़ में रूचि न हो |   


प्रश्न:-   
जिन बच्चों को रूहानी मस्ती चढ़ी रहती है, उनका टाइटिल क्या होगा? मस्ती किन बच्चों को चढ़ती है?


उत्तर:-
रूहानी मस्ती में रहने वाले बच्चों को कहा जाता है – ‘मस्त कलंधर’, वही कलंगीधर बनते हैं | उन्हें राजाईपने की मस्ती चढ़ी रहती है | बुद्धि में रहता – अभी हम फ़क़ीर से आमिर बनते हैं | मस्ती उन्हें चढ़ती जो रूद्र माला में पिरोने वाले हैं | नशा उन बच्चों को रहता है जिन्हें निश्चय है कि हमें अब घर जाना है | फिर नई दुनिया में आना है |

 

ओम् शान्ति |

 

रूहानी बाप रूहानी बच्चों से रूहरिहान कर रहे हैं | इसको कहा जाता है रूहानी ज्ञान रूहों प्रति | रूह है ज्ञान का सागर | मनुष्य कभी ज्ञान का सागर नहीं हो सकते | मनुष्य हैं भक्ति के सागर | हैं तो सभी मनुष्य | जो ब्राह्मण बनते हैं वह ज्ञान सागर से ज्ञान लेकर मास्टर ज्ञान सागर बन जाते हैं | फिर देवताओं में न भक्ति होती, न ज्ञान होता | देवतायें यह ज्ञान नहीं जानते | ज्ञान का सागर एक ही परमपिता परमात्मा है इसलिए उनको ही हीरे जैसा कहेंगे | वही आकर कौड़ी से हीरा, पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बनाते हैं | मनुष्यों को कुछ भी पता नहीं | देवता ही फिर आकर मनुष्य बनते हैं | देवतायें बने श्रीमत से | आधाकल्प वहाँ कोई की मत की दरकार नहीं | यहाँ तो ढेर गुरुओं की मत लेते रहते हैं | अब बाप ने समझाया है सतगुरु की श्रीमत मिलती है | खालसे लोग कहते हैं सतगुरु अकाल | उसका भी अर्थ नहीं जानते | पुकारते भी हैं सतगुरु अकालमूर्त अर्थात् सद्गति करने वाला अकालमूर्त | अकालमूर्त परमपिता परमात्मा को ही कहा जाता है | सतगुरु और गुरु में भी रात-दिन का फ़र्क है | तो वह ब्रह्मा का दिन और रात कह देते हैं | ब्रह्मा का दिन, ब्रह्मा की रात, तो ज़रूर कहेंगे ब्रह्मा पुर्नजन्म लेते हैं | ब्रह्मा सो यह देवता विष्णु बनते हैं | तुम शिवबाबा की महिमा करते हो | उनका हीरे जैसा जन्म है |

 

अभी तुम बच्चे गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए पावन बनते हो | तुम्हें पवित्र बन फिर यह ज्ञान धारण करना है | कुमारियों को तो कोई बन्धन नहीं हैं | उन्हें सिर्फ़ माँ-बाप वा भाई-बहन की स्मृति रहेगी | फिर ससुरघर जाने से दो परिवार हो जाते हैं | अब बाप तुमको कहते हैं अशरीरी बन जाओ | अब तुम सबको वापिस जाना है | तुमको पवित्र बनने की युक्ति भी बताता हूँ | पतित-पावन मैं ही हूँ | मैं गैरन्टी करता हूँ तुम मुझे याद करो तो इस योग अग्नि से तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप भस्म हो जायेंगे | जैसे पुराना सोना आग में डालने से उनसे खाद निकल जाती है, सच्चा सोना रह जाता है | यह भी योग अग्नि है | इस संगम पर ही बाबा यह राजयोग सिखलाते हैं, इसलिए उनकी बहुत महिमा है | राजयोग जो भगवान् ने सिखाया था वह सब सीखना चाहते हैं | विलायत से भी सन्यासी लोग बहुतों को ले आते हैं | वह समझते हैं इन्हों ने सन्यास किया है | अब सन्यासी तो तुम भी हो | परन्तु बेहद के सन्यास को कोई भी जानते नहीं | बेहद का सन्यास तो एक ही बाप सिखलाते हैं | तुम जानते हो यह पुरानी दुनिया ख़त्म होने वाली है | इस दुनिया की कोई चीज़ में हमारी रूचि नहीं रहती है | फ़लाने ने शरीर छोड़ा, जाकर दूसरा लिया पार्ट बजाने लिए, हम फिर रोयें क्यों! मोह की रग निकल जाती है | हमारा सम्बन्ध जुटा है अब नई दुनिया से | ऐसे बच्चे पक्के मस्त कलंगीधर होते हैं | तुम्हारे में राजाईपने की मस्ती है | बाबा में भी मस्ती है ना – हम यह कलंगीधर जाकर बनेंगे फ़क़ीर से अमीर बनेंगे | अन्दर में मस्ती चढ़ी हुई है, इसलिए मस्त कलंधर कहते हैं | इनका तो साक्षात्कार भी करते हैं | तो जैसे इनको मस्ती चढ़ी हुई है, तुमको भी चढनी चाहिए | तुम भी रूद्र माला में पिरोने वाले हो | जिनको पक्का निश्चय हो जाता है उनको नशा चढ़ेगा | हम आत्माओं को अब जाना है घर | फिर नई दुनिया में आयेंगे | इस निश्चय से जो इनको भी देखते हैं तो उनको बच्चा (श्रीकृष्ण) देखने में आता है | कितना शोभनीक है | कृष्ण तो यहाँ है नहीं | उनके पिछाड़ी कितने हैरान होते हैं | झूले बनाते, उनको दूध पिलाते हैं  वह हैं जड़ चित्र, यह तो रीयल है ना | इनको भी यह निश्चय है कि हम बालक बनेंगे | तुम बच्चियाँ भी दिव्य दृष्टि में छोटा बच्चा देखती हो ना | इन आँखों से तो देख न सकें | आत्मा को जब दिव्य दृष्टि मिलती है तो शरीर का भान नहीं रहता | उस समय अपने को महारानी और उनको बच्चा समझेंगे | यह साक्षात्कार भी इस समय बहुतों को होता है | सफ़ेद पोशधारी का भी साक्षात्कार बहुतों को होता है | फिर उनको कहते हैं तुम इनके पास जाओ, ज्ञान लो तो ऐसा प्रिन्स बनेंगे | यह जादूगरी ठहरी ना | सौदा भी बहुत अच्छा करते हैं | कौड़ी लेकर हीरा-मोती देते हैं | हीरे जैसा तुम बनते हो | तुमको शिवबाबा हीरे जैसा बनाते हैं, इसलिए बलिहारी उनकी है | मनुष्य न समझने कारण जादू-जादू कह देते हैं | जो आश्चर्यवत् भागन्ती हो जाते हैं वह जाकर उल्टा-सुल्टा सुनाते हैं | ऐसे बहुत ट्रेटर बन जाते हैं | ऐसे ट्रेटर बनने वाले ऊँच पद पा नहीं सकते | उनको कहा जाता है गुरु का निन्दक ठौर न पाये | यहाँ तो सत्य बाप है ना | यह भी अभी तुम समझते हो | मनुष्य तो कह देते वह युगे-युगे आता है | अच्छा, चार युग हैं फिर 24 अवतार कैसे कह सकते? फिर कहते ठिक्कर-भित्तर कण-कण में परमात्मा है, तो सब परमात्मा हो गये | बाप कहते हैं मैं कौड़ी से हीरा बनाने वाला, मुझे फिर ठिक्कर-भित्तर में ठोक दिया है | सर्वव्यापी है गोया सबमें है फिर तो कोई वैल्यु न रही | मेरा कैसा अपकार करते हैं | बाबा कहते यह भी ड्रामा में नूँध है | जब ऐसे बन जाते हैं तब फिर बाप आकर उपकार करते हैं अर्थात् मनुष्य को देवता बनाते हैं |

 

वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी फिर रिपीट होगी | सतयुग में फिर यह लक्ष्मी-नारायण ही आयेंगे | वहाँ सिर्फ़ भारत ही होता है | शुरू में बहुत थोड़े देवतायें होंगे फिर वृद्धि को पाते-पाते पाँच हज़ार वर्ष में कितने हो गये | अभी यह ज्ञान और कोई की बुद्धि में है नहीं | बाकी है भक्ति | देवताओं के चित्रों की महिमा गाते हैं | यह नहीं समझते कि यह चैतन्य में थे, फिर कहाँ गये? चित्रों की पूजा करते हैं परन्तु वह हैं कहाँ? उनको भी तमोप्रधान बन फिर सतोप्रधान बनना है | यह कोई की बुद्धि में नहीं आता | ऐसे तमोप्रधान बुद्धि को फिर सतोप्रधान बनाना बाप का ही काम है | यह लक्ष्मी-नारायण पास्ट हो गये हैं, इसलिए इन्हों की महिमा है | ऊँचे ते ऊँचा एक भगवान ही है | बाकी तो सब पुर्नजन्म लेते रहते हैं | ऊँचे ते ऊँचा बाप ही सबको मुक्ति-जीवनमुक्ति देते हैं | वह न आते तो और ही वर्थ नाट ए पेनी तमोप्रधान बन पड़ते | जब यह राज्य करते थे तो वर्थ पाउण्ड थे | वहाँ कोई पूजा आदि नहीं करते थे | पूज्य देवी-देवतायें ही पुजारी बन गये, वाम मार्ग में विकारी बन पड़े | यह किसको पता नही कि यह सम्पूर्ण निर्विकारी थे | तुम ब्राह्मणों में भी यह बातें नम्बरवार समझते हैं | खुद ही पूरा नहीं समझा होगा तो औरों को क्या समझायेगा | नाम है ब्रह्माकुमार-कुमारी, समझा न सके तो नुकसान कर देते हैं | इसलिए कहना चाहिए हम बड़ी बहन को बुलाते हैं,  वह आपको समझायेंगी | भारत ही हीरे जैसा था, अब कौड़ी जैसा है | बेगर भारत को सिरताज कौन बनाये? लक्ष्मी-नारायण अब कहाँ हैं, हिसाब बताओ? बता नहीं सकेंगे | वह हैं भक्ति के सागर | वही नशा चढ़ा हुआ है | तुम हो ज्ञान सागर | वह तो शास्त्रों को ही ज्ञान समझते हैं | बाप कहते हैं शास्त्रों में है भक्ति की रस्म रिवाज़ | जितनी तुम्हारे में ज्ञान की ताकत भरती जायेगी तो तुम चुम्बक बन जायेंगे | तो फिर सबको कशिश होगी | अभी नहीं है | फिर भी यथा योग, यथा शक्ति जितना बाप को याद करते हैं | ऐसे नहीं, सदैव बाप को याद करते हैं | फिर तो यह शरीर भी न रहे | अभी तो बहुतों को पैगाम देना है, पैगम्बर बनना है | तुम बच्चे ही पैगम्बर बनते हो और कोई नहीं बनते | क्राइस्ट आदि आकर धर्म स्थापन करते हैं, उनको पैगम्बर नहीं कहा जायेगा | क्रिश्चियन धर्म स्थापन किया और तो कुछ नहीं किया | वह किसके शरीर में आया फिर उनके पीछे दूसरे आते हैं | यहाँ तो राजधानी स्थापन हो रही है | आगे चल तुम सबको साक्षात्कार होगा – हम क्या-क्या बनेंगे, यह-यह हमने विकर्म किया | साक्षात्कार होने में देरी नहीं लगती | काशी कलवट खाते थे, एकदम खड़ा होकर कुँए में कूद पड़ते थे | अभी तो गवर्मेन्ट ने बन्द कराया है | वह समझते हैं हम मुक्ति को पायेंगे | बाप कहते हैं मुक्ति को तो कोई पा नहीं सकता | थोड़े टाइम में जैसे सब जन्मों का दण्ड मिल जाता है | फिर नयेसिर हिसाब-किताब शुरू होता है | वापस तो कोई जा नहीं सकते | कहाँ जाकर रहेंगे? आत्माओं का सिजरा ही बिगड़ जाये | नम्बरवार आयेंगे फिर जायेंगे | बच्चों को साक्षात्कार होता है तब यह चित्र आदि बनाते हैं | 84 जन्मों के सारे सृष्टि के चक्र के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान तुमको मिला है | फिर तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं | कोई बहुत मार्क्स से पास होते हैं कोई कम | सौ मार्क्स तो किसी की होती नहीं | 100 हैं ही एक बाप की | वह तो कोई बन न सके | थोड़ा-थोड़ा फ़र्क पड़ जाता है | एक जैसे भी बन न सकें | कितने ढेर मनुष्य हैं सबके फीचर्स अपने-अपने हैं | आत्मायें सभी कितनी छोटी बिन्दू हैं | मनुष्य कितने बड़े-बड़े हैं परन्तु फीचर्स एक के न मिलें दूसरे से | जितनी आत्मायें हैं, उतनी ही फिर होंगी तब तो वहाँ घर में रहेंगी | यह भी ड्रामा बना हुआ है | इसमें कुछ भी फ़र्क नहीं हो सकता | एक बार जो शूटिंग हुई वही फिर देखेंगे | तुम कहेंगे 5 हज़ार वर्ष पहले भी हम ऐसे मिले थे | एक सेकेण्ड भी कम जास्ती नहीं हो सकता | ड्रामा है ना | जिसको यह रचता और रचना का ज्ञान बुद्धि में है उनको कहा जाता है स्वदर्शन चक्रधारी | बाप से ही यह नॉलेज मिलती है | मनुष्य, मनुष्य को यह ज्ञान दे न सकें | भक्ति सिखलाते हैं मनुष्य, ज्ञान सिखलाता है एक बाप | ज्ञान का सागर तो एक ही बाप है | फिर तुम ज्ञान नदियाँ बनती हो | ज्ञान सागर और ज्ञान नदियों से ही मुक्ति-जीवनमुक्ति मिलती है | वह तो इतने सब शहर ख़त्म हो जाते हैं | खण्ड ही नहीं रहते | बरसात तो पड़ती होगी | पानी, पानी में जाकर पड़ता है | यही भारत होगा |

 

अभी तुमको सारी नॉलेज मिली है | यह है ज्ञान, बाकी है भक्ति | हीरे जैसा एक ही शिवबाबा है, जिसकी जयन्ती मनाई जाती है | पूछना चाहिए शिवबाबा ने क्या किया? वह तो आकर पतितों को पावन बनाते हैं | आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सुनाते हैं | तब गाया जाता है ज्ञान सूर्य प्रगटा.........ज्ञान से दिन, भक्ति से रात होती है | अब तुम जानते हो हमने 84 जन्म पूरे किये हैं | अब बाबा को याद करने पावन बन जायेंगे | फिर शरीर भी पावन मिलेगा | तुम सब नम्बरवार पावन बनते हो | कितनी सहज बात है | मुख्य बात है याद की | बहुत हैं जिन्हें अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना भी नहीं आता है | फिर भी बच्चे बने हैं तो स्वर्ग में ज़रूर आयेंगे | इस समय के पुरुषार्थ अनुसार ही राजाई स्थापन होती है | अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1.    सदा इसी नशे में रहना है कि हम मास्टर ज्ञान सागर हैं, स्वयं में ज्ञान की ताकत भरकर चुम्बक बनना है, रूहानी पैगम्बर बनना है | 

2.    कोई ऐसा कर्म नहीं करना है जिससे सतगुरु बाप का नाम बदनाम हो | कुछ भी हो जाये लेकिन कभी रोना नहीं है |

 

वरदान:-  

कर्म और योग के बैलेन्स द्वारा कर्मातीत स्थिति का अनुभव करने वाले कर्मबन्धन मुक्त भव !   

 

कर्म के साथ-साथ योग का बैलेन्स हो तो हर कर्म में स्वतः सफ़लता प्राप्त होती है | कर्मयोगी आत्मा कभी कर्म के बन्धन में नहीं फंसती | कर्म के बन्धन से मुक्त को ही कर्मातीत कहते हैं | कर्मातीत का अर्थ यह नहीं है कि कर्म से अतीत हो जाओ | कर्म से न्यारे नहीं, कर्म के बन्धन में फँसने से न्यारे बनो | ऐसी कर्मयोगी आत्मा अपने कर्म से अनेकों का कर्म श्रेष्ठ बनाने वाली होगी | उसके लिए हर कार्य मनोरंजन लगेगा, मुश्किल का अनुभव नहीं होगा |


स्लोगन:- 

परमात्म प्यार ही समय की घण्टी है जो अमृतवेले उठा देती है |     

 

ओम् शान्ति |