04-02-14       प्रातः मुरली       ओम् शान्ति   “बापदादा”     मधुबन


मीठे बच्चे आत्म-अभिमानी बनने का अभ्यास करो तो दैवीगुण आते जायेंगे, क्रिमिनल ख़्यालात समाप्त हो जायेंगे, अपार ख़ुशी रहेगी |   


प्रश्न:-   
अपनी चलन को सुधारने वा अपार ख़ुशी में रहने के लिए कौन-सी बात सदा स्मृति में रखनी है?


उत्तर:-
सदा स्मृति रहे कि हम दैवी स्वराज्य स्थापन कर रहे हैं, हम मृत्युलोक को छोड़ अमरलोक में जा रहे हैं – इससे बहुत ख़ुशी रहेगी, चलन भी सुधरती जायेगी क्योंकि अमरलोक नई दुनिया में जाने के लिए दैवीगुण ज़रूर चाहिए | स्वराज्य के लिए बहुतों का कल्याण भी करना पड़े, सबको रास्ता बताना पड़े |

 

ओम् शान्ति |

 

बच्चों को अपने को यहाँ का नहीं समझना चाहिए | तुमको मालूम हुआ है हमारा जो राज्य था जिसको रामराज्य वा सूर्यवंशी राज्य कहते हैं उसमें कितनी सुख-शान्ति थी | अब हम फिर से देवता बन रहे हैं | आगे भी बने थे | हम ही सर्वगुण सम्पन्न....दैवीगुण वाले थे | हम अपने राज्य में थे | अभी रावण राज्य में हैं | हम अपने राज्य में बहुत सुखी थे | तो अन्दर में बहुत ख़ुशी और निश्चय होना चाहिए क्योंकि तुम फिर से अपनी राजधानी में जा रहे हो | रावण ने तुम्हारा राज्य छीन लिया है | तुम जानते हो हमारा अपना सूर्यवंशी राज्य था | हम रामराज्य के थे, हम ही दैवीगुण वाले थे, हम ही बहुत सुखी थे फिर रावण ने हमारा राज्य-भाग्य छीन लिया | अब बाप आकर अपना और पराये का राज़ समझाते हैं | आधाकल्प हम रामराज्य में थे फिर आधाकल्प हम रावण राज्य में रहे | बच्चों को हर बात का निश्चय हो तो ख़ुशी में रहें और चलन भी सुधरे | अब पराये राज्य में हम बहुत दुःखी हैं | हिन्दू भारतवासी समझते हैं हम पराये (फ़ॉरेन) राज्य में दुःखी थे, अब सुखी हैं अपने राज्य में | परन्तु यह है अल्पकाल काग विष्टा समान सुख | तुम बच्चे अभी सदा काल के सुख की दुनिया में जा रहे हो | तो तुम बच्चों को अन्दर बहुत ख़ुशी रहनी चाहिए | ज्ञान में नहीं हैं तो जैसे ठिक्कर पत्थरबुद्धि हैं | तुम बच्चे जानते हो हम अवश्य अपना राज्य लेंगे, इसमें तकलीफ़ की कोई बात नहीं | राज्य लिया था फिर आधाकल्प राज्य किया फिर रावण ने हमारी कला काया ही चट कर दी | कोई अच्छे बच्चे की जब चलन बिगड़ जाती है तो कहा जाता है तुम्हारी कला काया चट हो गई है क्या? यह हैं बेहद की बातें | समझना चाहिए माया ने हमारी कला काया चट कर दी | हम गिरते ही आये | अब बेहद का बाप दैवीगुण सिखलाते हैं | तो ख़ुशी का पारा चढ़ना चाहिए | टीचर नॉलेज देते हैं तो स्टूडेन्ट को ख़ुशी होती है | यह है बेहद की नॉलेज | अपने को देखना है – मेरे में कोई आसुरी गुण तो नहीं हैं? सम्पूर्ण नहीं बनेंगे तो सजायें खानी पड़ेंगी | परन्तु हम सजायें खायें ही क्यों? इसलिए बाप, जिससे यह राज्य मिलता है उसको याद करना है | दैवीगुण जो हमारे में थे वह अब धारण करने हैं | वहाँ यथा राजा-रानी तथा प्रजा सबमें दैवीगुण थे | दैवीगुणों को तो समझते हो ना | अगर कोई समझते नहीं तो लायेंगे कैसे? गाते भी हैं सर्वगुण सम्पन्न......तो पुरुषार्थ कर ऐसा बनना है | बनने में मेहनत लगती है | क्रिमिनल आई हो जाती है | बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो तो क्रिमिनल ख़्यालात उड़ जायेंगे | युक्तियाँ तो बाप बहुत समझाते हैं, जिसमें दैवीगुण हैं उनको देवता कहा जाता है, जिनमें नहीं हैं उनको मनुष्य कहा जाता है | हैं तो दोनों ही मनुष्य | परन्तु देवताओं को पूजते क्यों हैं? क्योंकि उनमें दैवीगुण हैं और उनके (मनुष्यों के) कर्तव्य बन्दर जैसे हैं | कितना आपस में लड़ाई-झगड़ा आदि करते हैं | सतयुग में ऐसी बातें होती नहीं | यहाँ तो होती हैं | ज़रूर अपनी भूल होती है तो सहन करना पड़ता है | आत्म-अभिमानी नहीं हैं तो सहन करना पड़ता है | तुम जितना आत्म-अभिमानी बनते जायेंगे उतने दैवीगुण भी धारण होंगे | अपनी जाँच करनी है कि हमारे में दैवी गुण हैं? बाप सुखदाता है तो  बच्चों का काम है सबको सुख देना | अपने दिल से पूछना है कि हम किसको दुःख तो नहीं देते हैं? परन्तु कोई-कोई की आदत होती है जो दुःख देने बिगर रह नहीं सकते | बिल्कुल सुधरते नहीं जैसे जेल बर्डस | वह जेल में ही अपने को सुखी समझते हैं | बाप कहते हैं वहाँ तो जेल आदि होता ही नहीं, पाप होता ही नहीं जो जेल में जाना पड़े | यहाँ जेल में सजायें भोगनी पड़ती हैं | अभी तुम समझते हो हम अपने राज्य में थे तो बहुत साहूकार थे, जो ब्राह्मण कुल वाले होंगे वह ऐसे ही समझेंगे कि हम अपना राज्य स्थापन कर रहे हैं | वह एक ही हमारा राज्य था, जिसको देवताओं का राज्य कहा जाता है | आत्मा को जब ज्ञान मिलता है तो ख़ुशी होती है | जीव आत्मा ज़रूर कहना पड़े | हम जीव आत्मा जब देवी-देवता धर्म की थी तो सारे विश्व पर हमारा राज्य था | यह नॉलेज है तुम्हारे लिए | भारतवासी थोड़ेही समझते हैं कि हमारा राज्य था, हम भी सतोप्रधान थे | तुम ही यह सारी नॉलेज समझते हो | तो हम ही देवता थे और हमको ही अब बनना है | भल विघ्न भी पड़ते हैं परन्तु तुम्हारी दिन-प्रतिदिन उन्नति होती जायेगी | तुम्हारा नाम बाला होता जायेगा | सब समझेंगे यह अच्छी संस्था है, अच्छा काम कर रहे हैं | रास्ता भी बहुत सहज बताते हैं | कहते हैं तुम ही सतोप्रधान थे, देवता थे, अपनी राजधानी में थे | अब तमोप्रधान बने हो और तो कोई अपने को रावण राज्य में समझते नहीं हैं |

 

तुम जानते हो हम कितने स्वच्छ थे, अब तुच्छ बने हैं | पुनर्जन्म लेते-लेते पारसबुद्धि से पत्थरबुद्धि बन पड़े हैं | अब हम अपना राज्य स्थापन कर रहे हैं तो तुमको उछलना चाहिए, पुरुषार्थ में लग जाना चाहिए | जो कल्प पहले लगे होंगे वे अब भी लगेंगे ज़रूर | नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार हम अपना दैवी राज्य स्थापन कर रहे हैं | यह भी तुम घड़ी-घड़ी भूल जाते हो | नहीं तो अन्दर बहुत ख़ुशी रहनी चाहिए | एक-दो को यही याद दिलाओ कि मनमनाभव | बाप को याद करो जिससे ही अब राजाई लेते हैं | यह कोई नई बात नहीं है | कल्प-कल्प हमको बाप श्रीमत देते हैं, जिससे हम दैविगुण धारण करते हैं | नहीं तो सजायें खाकर फिर कम पद लेंगे | यह बड़ी भारी लॉटरी है | अब पुरुषार्थ कर ऊँच पद पाया तो कल्प-कल्पान्तर पाते ही रहेंगे | बाप कितना सहज समझाते हैं | प्रदर्शनी में भी यही समझाते रहो कि तुम भारतवासी ही देवताओं की राजधानी के थे फिर पुनर्जन्म लेते-लेते सीढी नीचे उतरते-उतरते ऐसे बने हो | कितना सहज समझाते हैं | सुप्रीम बाप, सुप्रीम टीचर, सुप्रीम गुरु है ना | तुम कितने ढेर स्टूडेन्ट हो, दौड़ी लगाते रहते हो | बाबा भी लिस्ट मंगाते रहते हैं कितने निर्विकारी पवित्र बने हैं?

 

बच्चों को समझाया गया है कि भ्रकुटी के बीच में आत्मा चमकती है | बाप कहते हैं मैं भी यहाँ आकर बैठता हूँ | अपना पार्ट बजाता हूँ | मेरा पार्ट ही है पतितों को पावन बनाना | ज्ञान सागर हूँ | बच्चे पैदा होते हैं, कोई तो बहुत अच्छे होते हैं, कोई खराब भी निकल पड़ते हैं | फिर आश्चर्यवत् सुनन्ती, कथन्ती, भागन्ती हो जाते हैं | अरे माया, तुम कितनी प्रबल हो | फिर भी बाप कहते हैं भागन्ती होकर भी कहाँ जायेंगे? यही एक बाप तारने वाला है | एक बाप है सद्गति दाता, बाकी इस ज्ञान को कोई तो बिल्कुल जानते ही नहीं | जिसने कल्प पहले माना है, वही मानेंगे | इसमें अपनी चलन को बहुत सुधारना पड़ता है, सर्विस करनी पड़ती है | बहुतों का कल्याण करना है | बहुतों को जाकर रास्ता बताना है | बहुत-बहुत मीठी जबान से समझाना है कि तुम भारतवासी ही विश्व के मालिक थे | अब फिर तुम इस प्रकार से अपना राज्य ले सकते हो | यह तो तुम समझते हो बाप जो समझाते हैं, ऐसा कोई समझा न सके फिर भी चलते-चलते माया से हार खा लेते हैं | बाप खुद कहते हैं विकारों पर जीत पाने से ही तुम जगतजीत बनेंगे | यह देवतायें जगतजीत बने हैं | ज़रूर उन्हों ने ऐसा कर्म किया है | बाप ने कर्मों की गति भी बताई है | रावण राज्य में कर्म विकर्म ही होते हैं, राम राज्य में कर्म अकर्म होते हैं | मूल बात है काम पर जीत पाकर जगतजीत बनने की | बाप को याद करो, अब वापिस घर जाना है | हमको 100 परसेन्ट सरटेन है कि हम अपना राज्य लेकर ही छोड़ेंगे | परन्तु राज्य यहाँ नहीं करेंगे | यहाँ राज्य लेते हैं | राज्य करेंगे अमरलोक में | अब मृत्युलोक और अमरलोक के बीच में हैं, यह भी भूल जाते हैं इसलिए बाप घड़ी-घड़ी याद दिलाते हैं | अब यह पक्का निश्चय है कि हम अपनी राजधानी में जायेंगे | यह पुरानी राजधानी ख़त्म ज़रूर होनी है | अब नई दुनिया में जाने के लिए दैवीगुण ज़रूर धारण करने हैं | अपने से बातें करनी है | अपने को आत्मा समझना है क्योंकि अभी ही हमको वापस जाना है | तो अपने को आत्मा भी अभी समझना है फिर कभी वापिस थोड़ेही जाना है जो यह ज्ञान मिलेगा | वहाँ 5 विकार ही नहीं होंगे जो हम योग लगायें | योग तो इस समय लगाना होता है पावन बनने के लिए | वहाँ तो सब सुधरे हुए हैं | फिर धीरे-धीरे कला कम होती जाती है | यह तो बहुत सहज है, क्रोध भी किसको दुःख देता है ना | मुख्य है देह-अभिमान | वहाँ तो देह-अभिमान होता ही नहीं | आत्म-अभिमानी होने से क्रिमिनल आई नहीं रहती | सिविल आई बन जाती है | रावण राज्य में क्रिमिनल आई बन जाती है | तुम जानते हो हम अपने राज्य में बहुत सुखी रहते हैं | कोई काम नहीं, कोई क्रोध नहीं, इस पर शुरू का गीत भी बना हुआ है | वहाँ यह विकार होते नहीं | हमारी अनेक बार यह हार और जीत हुई है | सतयुग से कलियुग तक जो कुछ हुआ वह फिर रिपीट होना है | बाप अथवा टीचर के पास जो नॉलेज है वह तुमको सुनाते रहते हैं | यह रूहानी टीचर भी वन्डरफुल है | ऊँचे से ऊँचा भगवान्, ऊँचे से ऊँचा टीचर भी है और हमको भी ऊँचे से ऊँचा देवता बनाते हैं | तुम खुद देख रहे हो – बाप कैसे डीटीज्म स्थापन कर रहे हैं | तुम खुद ही देवता बन रहे हो | अभी तो सभी अपने को हिन्दू कहते रहते हैं | उन्हों को भी समझाया जाता है कि वास्तव में आदि सनातन देवी-देवता धर्म है और सबका धर्म चलता रहता है | यह एक ही देवी-देवता धर्म है, जो प्रायः लोप हो गया है | यह तो बहुत पवित्र धर्म था | इन जैसा पवित्र धर्म कोई होता नहीं | अब पवित्र न होने कारण कोई भी अपने को देवता नहीं कहला सकते हैं | तुम समझा सकते हो कि हम आदि सनातन देवी-देवता धर्म के थे तब तो देवताओं को पूजते हैं | क्राइस्ट को पूजने वाले क्रिश्चियन ठहरे, बुद्ध को पूजने वाले बौद्धि ठहरे, देवताओं को पूजने वाले देवता ठहरे | फिर अपने को हिन्दू क्यों कहलाते हो? युक्ति से समझाना है | सिर्फ़ कहेंगे हिन्दू धर्म, धर्म नहीं हैं, तो बिगड़ेंगे | बोलो, हिन्दू आदि सनातन धर्म के थे तो कुछ समझें कि आदि सनातन धर्म तो कोई हिन्दू नहीं है | आदि सनातन अक्षर ठीक है | देवता पवित्र थे, यह अपवित्र हैं इसलिए अपने को देवता नहीं कहला सकते हैं | कल्प-कल्प ऐसे होता है, इनके राज्य में कितने साहूकार थे | अब तो कंगाल बन पड़े हैं | वह पदमापदमपति थे | बाप युक्तियाँ बहुत अच्छी देते हैं | पूछा जाता है तुम सतयुग में रहने वाले हो या कलियुग में? कलियुग के हो तो ज़रूर नर्कवासी हो | सतयुग में रहने वाले तो स्वर्गवासी देवता होंगे | ऐसा प्रश्न पूछेंगे तो समझेंगे कि प्रश्न पूछने वाला ज़रूर खुद ट्रान्सफर कर देवता बना सकते होंगे | और तो कोई पूछ नहीं सकते | वह भक्ति मार्ग ही अलग है | भक्ति का फल क्या है? वह है ज्ञान | सतयुग-त्रेता में भक्ति होती नहीं | ज्ञान से आधा कल्प दिन, भक्ति से आधा कल्प रात | मानने वाले होंगे तो मानेंगे | न मानने वाले तो ज्ञान को भी नहीं मानेंगे तो भक्ति को भी नहीं मानेंगे | सिर्फ़ पैसा कमाना ही जानते हैं | तुम बच्चे तो योगबल से अब राजाई स्थापन कर रहे हो श्रीमत पर | फिर आधा कल्प के बाद राज्य गँवाते भी हो | यह चक्र चलता ही रहता है | अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1.    बहुतों का कल्याण करने के लिए अपनी जबान बहुत मीठी बनानी है | मीठी जबान से सर्विस करनी है | सहनशील बनना है |

 

2.    कर्मों की गहन गति को समझ विकारों पर जीत पानी है | जगतजीत देवता बनना है | आत्म-अभिमानी बन क्रिमिनल दृष्टि को सिविल बनाना है |

 

वरदान:-  

ऊँचा बाप, ऊँचे हम, और ऊँचा कार्य इस स्मृति से शक्तिशाली बनने वाले बाप समान भव !   

 

जैसे आजकल की दुनिया में कोई वी.आई.पी. का बच्चा होगा तो वह अपने को भी वी.आई.पी. समझेगा | लेकिन बाप से ऊँचा तो कोई नहीं है | हम ऐसे ऊँचे से ऊँचे बाप की सन्तान ऊँची आत्मायें हैं – यह स्मृति शक्तिशाली बनाती है | ऊँचा बाप, ऊँचे हम और ऊँचा कार्य – ऐसी स्मृति में रहने वाले सदा बाप समान बन जाते हैं | सारे विश्व के आगे श्रेष्ठ और ऊँची आत्मायें आपके सिवाए कोई नहीं हैं इसलिए आपका ही गायन और पूजन होता है |


स्लोगन:- 

सम्पूर्णता के दर्पण में सूक्ष्म लगावों को चेक करो और मुक्त बनो |     

 

ओम् शान्ति |