20-11-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - इस समय निराकार बाप साकार में आकर तुम्हारा श्रृंगार
करते हैं,
अकेला नहीं” 
प्रश्न:-
तुम
बच्चे याद की यात्रा में क्यों बैठते हो?
उत्तर:-
1.
क्योंकि तुम जानते हो इस याद से ही हमें बहुत बड़ी आयु मिलती है,
हम निरोगी बनते हैं । 2.
याद करने से हमारे पाप कटते हैं । हम सच्चा सोना बन जाते हैं ।
आत्मा से रजो-तमो की खाद निकल जाती है,
वह कंचन बन जाती है । 3. याद से ही तुम
पावन दुनिया के मालिक बन जायेंगे । 4.
तुम्हारा श्रृंगार होगा । 5. तुम बहुत
धनवान बन जायेंगे । यह याद ही तुम्हें पद्मापद्म भाग्यशाली
बनाती है ।
ओम्
शान्ति |
रूहानी बच्चों को रूहानी बाप समझा रहे हैं । यहाँ बैठ तुम क्या
करते हो?
ऐसे
नहीं,
सिर्फ शान्ति में बैठे हो । अर्थ सहित ज्ञानमय अवस्था में बैठे
हो । तुम बच्चों को ज्ञान है-बाप को हम क्यों याद करते हैं ।
बाप हमको बहुत बड़ी आयु देते हैं । बाप को याद करने से हमारे
पाप कट जायेंगे । हम सच्चा सोना सतोप्रधान बन जायेंगे ।
तुम्हारा कितना श्रृंगार होता है । तुम्हारी आयु बड़ी हो जायेगी
। आत्मा कंचन हो जायेगी । अब आत्मा में खाद पड़ी हुई है । याद
की यात्रा से वह सब खाद जो रजो-तमो की पड़ी है वह सब निकल
जायेगी । इतना तुमको फायदा होता है । फिर आयु बड़ी हो जायेगी ।
तुम स्वर्ग के निवासी बन जायेंगे और बहुत धनवान बनेंगे । तुम
पद्मापद्म भाग्यशाली बन जायेंगे इसलिए बाप कहते हैं मनमनाभव,
मामेकम याद करो । कोई देहधारी के लिए नहीं कहते । बाप को तो
शरीर है नहीं । तुम्हारी आत्मा भी निराकार थी । फिर पुनर्जन्म
में आते- आते पारसबुद्धि से पत्थरबुद्धि बन गई है । अब फिर
कंचन बनना है । अभी तुम पवित्र बन रहे हो । पानी के स्नान तो
जन्म-जन्मान्तर किये । समझा हम इससे पावन बनेंगे परन्तु पावन
बनने बदले और ही पतित बन नुकसान में पड़े हो क्योंकि यह है ही
झूठी माया,
झूठ
बोलने के संस्कार हैं सबके । बाप कहते हैं मैं तुमको पावन
बनाकर जाता हूँ फिर तुमको पतित कौन बनाता?
अभी
तुम फील करते हो ना । कितना गंगा स्नान करते आये परन्तु पावन
तो बने नहीं । पावन बनकर तो पावन दुनिया में जाना पड़े ।
शान्तिधाम और सुखधाम है पावन धाम । यह तो है ही रावण की दुनिया,
इसको
दु :खधाम कहा जाता है । यह तो सहज समझने की बात है ना । इसमें
कोई मुश्किलात ही नहीं । न किसको सुनाने में मुश्किलात है । जब
कोई मिले तो सिर्फ यह बोलो अपने को आत्मा समझ बेहद के बाप को
याद करो । आत्माओं का बाप है परमपिता परमात्मा शिव । हरेक के
शरीर का तो अलग- अलग बाप होता है । आत्माओं का तो एक ही बाप है
। कितना अच्छी रीति समझाते हैं और हिन्दी में ही समझाते हैं ।
हिन्दी भाषा ही मुख्य है । तुम पद्मापद्म भाग्यशाली इन
देवी-देवताओं को कहेंगे ना । यह कितने भाग्यशाली हैं । यह
किसको भी पता नहीं है कि यह स्वर्ग के मालिक कैसे बनें । अभी
तुमको बाप सुना रहे हैं । इस सहज योग द्वारा इस पुरुषोत्तम
संगम पर ही यह बनते हैं । अभी है पुरानी दुनिया और नई दुनिया
का संगम । फिर तुम नई दुनिया के मालिक बन जायेंगे । अब बाप
सिर्फ कहते हैं दो अक्षर अर्थ सहित याद करो । गीता में है
मनमनाभव । अक्षर तो पढ़ते हैं परन्तु अर्थ बिल्कुल नहीं जानते ।
बाप कहते हैं मुझे याद करो क्योंकि मैं ही पतित-पावन हूँ,
और
कोई ऐसे कह न सके । बाप ही कहते हैं मुझे याद करने से तुम पावन
बन पावन दुनिया में चले जायेंगे । पहले-पहले तुम सतोप्रधान थे
फिर पुनर्जन्म लेते- लेते तमोप्रधान बने हो । अब 84 जन्म बाद
फिर तुम नई दुनिया में देवता बनते हो ।
रचयिता और रचना दोनों को तुम जान गये हो । तो अभी तुम आस्तिक
बन गये हो । आगे जन्म-जन्मान्तर तुम नास्तिक थे । यह बात जो
बाप सुनाते हैं और कोई जानते ही नहीं । कहाँ भी जाओ,
कोई
भी तुमको यह बातें नहीं सुनायेंगे । अभी दोनों ही बाप तुम्हारा
श्रृंगार कर रहे हैं । पहले तो बाप अकेले था । शरीर बिगर था ।
ऊपर बैठ तुम्हारा श्रृंगार कर न सके । कहते हैं ना - बत्त बारह
(1 और 2 मिलकर 12 होते हैं) बाकी प्रेरणा वा शक्ति आदि की बात
नहीं । ऊपर से प्रेरणा द्वारा मिल न सके । निराकार जब साकार
शरीर का आधार लेते हैं तब तुम्हारा श्रृंगार करते हैं । समझते
भी हैं-बाबा हमको सुखधाम में ले जाते हैं । ड्रामा के प्लैन
अनुसार बाबा बंधायमान है,
उनको
ड्यूटी मिली हुई है । हर 5 हजार वर्ष बाद आते हैं तुम बच्चों
के लिए । इस योगबल से तुम कितने कंचन बनते हो । आत्मा और काया
दोनो कंचन बनती है फिर छी-छी बनते हो । अभी तुम साक्षात्कार
करते हो-इस पुरूषार्थ से हम ऐसा श्रृंगारा हुआ बनेंगे । वहाँ
क्रिमिनल आई होती नहीं । तो भी अंग सब ढके हुए होते हैं । यहाँ
तो देखो छी-छी बातें रावण राज्य में सीखते हैं । इन
लक्ष्मी-नारायण को देखो ड्रेस आदि कितनी अच्छी है । यहाँ सब है
देह- अभिमानी । उन्हों को देह- अभिमानी नहीं कहेंगे । उन्हों
की नैचुरल ब्यूटी है । बाप तुमको ऐसा नैचुरल ब्यूटीफुल बनाते
हैं । आजकल तो सच्चा जेवर कोई पहन भी नहीं सकता है । कोई पहने
तो उनको ही लूट जायें । वहाँ तो ऐसी कोई बात नहीं । ऐसा बाप
तुमको मिला है,
इन
बिगर तो तुम बन न सको । बहुत कहते हैं हम तो डायरेक्ट शिवबाबा
से लेते हैं । परन्तु वह देंगे ही कैसे । भल कोशिश करके देखो
डायरेक्ट मांगो । देखो मिलता है! ऐसे बहुत कहते हैं-हम तो
शिवबाबा से वर्सा लेंगे । ब्रह्मा से पूछने की भी क्या दरकार
है । शिवबाबा प्रेरणा से कुछ दे देंगे! अच्छे- अच्छे पुराने
बच्चे उनको भी माया ऐसे चक पहन लेती है (काट लेती है) । एक को
मानते हैं,
परन्तु एक क्या करेंगे । बाप कहते हैं मैं एक कैसे आऊँ । मुख
बिगर बात कैसे कर सकूँ । मुख का तो गायन है ना । गऊमुख से अमृत
लेने के लिए कितना धक्का खाते हैं । फिर श्रीनाथ द्वारे पर
जाकर दर्शन करते हैं । परन्तु उनका दर्शन करने से क्या होगा ।
उसको कहा जाता है भूत पूजा । उनमें आत्मा तो है नहीं । बाकी 5
तत्वों का पुतला बना हुआ है तो गोया माया को याद करना हो गया ।
5 तत्व प्रकृति है ना । उनको याद करने से क्या होगा?
प्रकृति का आधार तो सबको है परन्तु वहाँ हैं सतोप्रधान प्रकृति
। यहाँ हैं तमोप्रधान प्रकृति । बाप को सतोप्रधान प्रकृति का
आधार कभी नहीं लेना पड़ता । यहाँ तो सतोप्रधान प्रकृति मिल न
सके । यह जो भी साधू-सन्त हैं बाप कहते हैं इन सबका उद्धार
मुझे करना पड़ता है । मैं निवृत्ति मार्ग में आता ही नहीं हूँ ।
यह है ही प्रवृत्ति मार्ग । सबको कहता हूँ पवित्र बनो । वहाँ
तो नाम-रूप आदि सब बदल जाता है । तो बाप समझाते हैं देखो यह
नाटक कैसा बना हुआ है । एक के फीचर्स न मिले दूसरे से । इतने
करोड़ों हैं,
सबके
फीचर्स अलग । कितना भी कोई कुछ करे तो भी एक के फीचर्स दूसरे
से मिल न सकें । इसको कहा जाता है कुदरत,
वन्डर । स्वर्ग को वन्डर कहा जाता है ना । कितना शोभनिक है ।
माया के 7 वन्डर,
बाप
का एक वन्डर । वह 7 वन्डर्स तराजू के एक तरफ रखो,
यह
एक वन्डर दूसरे तरफ में रखो तो भी यह भारी हो जायेगा । एक तरफ
ज्ञान,
एक
तरफ भक्ति को रखो तो ज्ञान का तरफ बहुत भारी हो जायेगा । अभी
तुम समझते हो भक्ति सिखलाने वाले तो ढेर हैं । ज्ञान देने वाला
एक ही बाप है । तो बाप बैठ बच्चों को पढ़ाते हैं,
श्रृंगार करते हैं । बाप कहते हैं पवित्र बनो तो कहते-नहीं,
हम
तो छी-छी बनेंगे । गरूड पुराण में भी विषय वैतरणी नदी दिखाते
हैं ना । बिच्छू,
टिण्डन,
सर्प
आदि सब एक-दो को काटते रहते हैं । बाप कहते हैं तुम कितने
निधनके बन जाते हो । तुम बच्चों को ही बाप समझाते हैं । बाहर
में कोई को ऐसा सीधा कहो तो बिगड़ जायें । बड़ा युक्ति से समझाना
होता है । कई बच्चों में बातचीत करने का भी अक्ल नहीं रहता ।
छोटे बच्चे एकदम इनोसेट होते हैं इसलिए उनको महात्मा कहा जाता
है । कहाँ कृष्ण महात्मा,
कहाँ
यह सन्यासी निवृत्ति मार्ग वाले महात्मा कहलाते हैं । वह है
प्रवृत्ति मार्ग । वह कभी भ्रष्टाचार से पैदा नहीं होते । उनको
कहते ही हैं श्रेष्ठाचारी । अभी तुम श्रेष्ठाचारी बन रहे हो ।
बच्चे जानते हैं यहाँ बापदादा दोनों इकट्ठे हैं । यह जरूर
श्रृंगार अच्छा ही करेंगे । सबकी दिल होगी ना-जिन्होंने इन
बच्चों को ऐसा श्रृंगार कराया है तो हम क्यों न उनके पास जाये
इसलिए तुम यहाँ आते हो रिफ्रेश होने । दिल कशिश करती है,
बाप
के पास आने । जिनको पूरा निश्चय होता है वह तो कहेंगे चाहे
मारो,
चाहे
कुछ भी करो,
हम
कभी साथ नहीं छोड़ेंगे । कोई तो बिगर कारण भी छोड़ देते हैं । यह
भी ड्रामा का खेल बना हुआ है । फ़ारकती वा डायओर्स दे देते हैं
।
बाप
जानते हैं यह रावण के वश के हैं । कल्प-कल्प ऐसा होता है । कोई
फिर आ जाते हैं । बाबा समझाते हैं हाथ छोड़ने से पद कम हो जाता
है । सन्मुख आते हैं,
प्रतिज्ञा करते हैं-हम ऐसे बाप को कभी नहीं छोड़ेंगे । परन्तु
माया रावण भी कम नहीं है । झट अपनी तरफ खींच लेती है । फिर
सम्मुख आते हैं तो उनको समझाया जाता है । बाप लाठी थोड़ेही
लगायेंगे । बाप तो फिर भी प्यार से ही समझायेंगे,
तुमको माया ग्राह खा जाता,
अच्छा हुआ जो बचकर आ गये । घायल होंगे तो पद कम हो जायेगा । जो
सदैव एकरस ही रहेंगे वह कभी हटेगे नहीं । कभी हाथ नहीं छोड़ेंगे
। यहाँ से बाप को छोड़ मरकर माया रावण के बनते हैं तो उनको माया
और ही जोर से खायेगी । बाप कहते हैं तुमको कितना श्रृंगार करते
हैं । समझाया जाता है अच्छे होकर चलो । किसको दुःख नहीं दो ।
ब्लड से भी लिखकर देते हैं फिर वैसे के वैसे बन जाते हैं ।
माया बड़ी जबरदस्त है । कान-नाक से पकड़कर बहुत तड़फाती है । अब
तुमको ज्ञान का तीसरा नेत्र देते हैं तो क्रिमिनल दृष्टि कभी
नहीं जानी चाहिए । विश्व का मालिक बनना है तो कुछ मेहनत भी
करनी पड़े ना । अब तुम्हारी आत्मा और शरीर दोनों तमोप्रधान हैं
। खाद पड़ गई है । इस खाद को भस्म करने के लिए बाप कहते हैं
मुझे याद करो । तुम बाप को याद नहीं कर सकते हो,
लज्जा नहीं आती है । याद नहीं करेंगे तो माया के भूत तुमको हप
कर लेंगे । तुम कितना छी-छी बन गये हो,
रावण
राज्य में एक भी ऐसा नहीं जो विकार से पैदा न हुआ हो । वहाँ इस
विकार का नाम नहीं,
रावण
ही नहीं । रावण राज्य होता ही है द्वापर से । पावन बनाने वाला
एक ही बाप है । बाप कहते हैं बच्चे यह एक जन्म ही पवित्र बनना
है फिर तो विकार की बात ही नहीं होती । वह है ही निर्विकारी
दुनिया । तुम जानते हो यह पवित्र देवी-देवता थे फिर 84 जन्म
लेते-लेते नीचे आये हैं । अब हैं पतित तब पुकारते हैं शिवबाबा
हमको इस पतित दुनिया से छुड़ाओ । अभी जब बाप आये हैं तब तुमको
समझ पड़ी है कि यह पतित काम हैं । आगे नहीं समझते थे क्योंकि
तुम रावण राज्य में थे । अब बाप कहते हैं सुखधाम चलना है तो
छी-छी बनना छोड़ो । आधाकल्प तुम छी-छी बने हो । सिर पर पापों का
बहुत बोझा है और तुमने गाली भी बहुत दी है । बाप को गाली देने
से बहुत पाप चढ़ जाते हैं,
यह
भी ड्रामा में पार्ट है । तुम्हारी आत्मा को भी 84 का पार्ट
मिला हुआ है,
वह
बजाना ही है । हरेक को अपना पार्ट बजाना है । फिर तुम रोते
क्यों हो! सतयुग में कोई रोता नहीं । फिर ज्ञान की दशा पूरी
होती हैं तो वही रोना पीटना शुरू हो जाता है । मोहजीत की कथा
भी तुमने सुनी है । यह तो एक झूठा दृष्टान्त बनाया है । सतयुग
में कोई की अकाले मृत्यु होती नहीं । मोह जीत बनाने वाला तो एक
ही बाप है । परमपिता परमात्मा के तुम वारिस बनते हो,
जो
तुमको विश्व का मालिक बनाते हैं । अपने से पूछो हम आत्मायें
उनके वारिस हैं?
बाकी
जिस्मानी पढ़ाई में क्या रखा है । आजकल तो पतित मनुष्यों की
शक्ल भी नहीं देखनी चाहिए,
न
बच्चों को दिखानी चाहिए । बुद्धि में हमेशा समझो हम संगमयुग पर
हैं । एक बाप को ही याद करते हैं और सबको देखते हुए नहीं देखते
हैं । हम नई दुनिया को ही देखते हैं । हम देवता बनते हैं,
उस
नये सम्बन्धों को ही देखते हैं । पुराने सम्बन्ध को देखते हुए
नहीं देखते हैं । यह सब भस्म होने वाला है । हम अकेले आये थे
फिर अकेले ही जाते हैं । बाप एक ही बार आते हैं साथ ले जाने ।
इनको शिवबाबा की बरात कहा जाता है । शिवबाबा के बच्चे सब हैं ।
बाप विश्व की बादशाही देते हैं,
मनुष्य से देवता बनाते हैं । आगे विष उगलते थे,
अब
अमृत उगलते हैं । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
स्वयं
को संगमयुग निवासी समझकर चलना है । पुराने सम्बन्धों को देखते
हुए भी नहीं देखना है । बुद्धि में रहे हम अकेले आये थे,
अकेले जाना है ।
2.
आत्मा
और शरीर दोनों को कंचन (पवित्र) बनाने के लिए ज्ञान के तीसरे
नेत्र से देखने का अभ्यास करना है । क्रिमिनल दृष्टि खत्म करनी
है । ज्ञान और योग से अपना श्रृंगार करना है ।
वरदान:-
पवित्रता के फाउंडेशन द्वारा सदा श्रेष्ठ कर्म करने वाली पूज्य
आत्मा
भव ! 
पवित्रता पूज्य बनाती है । पूज्य वही बनते हैं जो सदा श्रेष्ठ
कर्म करते हैं । लेकिन पवित्रता सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं । मन्सा
संकल्प में भी किसी के प्रति निगेटिव सकल्प उत्पन्न न हो । बोल
भी अयथार्थ न हो । सम्बन्ध- सम्पर्क में भी फर्क न हो,
सबके
साथ अच्छा एक जैसा सम्बन्ध हो । मन्सा-वाचा-कर्मणा किसी में भी
पवित्रता खण्डित न हो तब कहेंगे पूज्य आत्मा । मैं परम पूज्य
आत्मा हूँ - इस स्मृति से पवित्रता का फाउन्डेशन मजबूत बनाओ ।
स्लोगन:-
सदा इसी
अलौकिक नशे में रहो
“वाह
रे मैं”
तो मन और तन से नेचुरल खुशी की डांस करते रहेंगे । 
ओम्
शान्ति |