20-07-14    प्रातः मुरली   ओम् शान्ति  “अव्यक्त-बापदादा”   रिवाइज:27-11-78   मधुबन
 


अल्पकाल के नाम और मान से न्यारे ही सर्व के प्यारे बन सकते हैं

आज बापदादा विशेष बच्चों से मिलन मनाने आए हैं, जैसे बच्चे निरन्तर योगी हैं अर्थात् बाप के स्नेह के सागर में सदा लवलीन हैं, ऐसे ही बाप भी बच्चों के स्नेह में निरन्तर बच्चों के गुण गाते हैं । हर बच्चे की गुण माला और हर बच्चे के श्रेष्ठ चरित्र के चित्र बापदादा के पास हैं । बापदादा के पास बहुत बड़ा, बहुत सुन्दर चैतन्य मूर्तियों का मन्दिर कहो वा चित्रशाला कहो, सदा सामने है । हरेक का चित्र और माला सदा बाप देखते रहते हैं । किन्हों की माला बड़ी है, किन्हों की छोटी है । तुम सबको तो एक बाप को याद करना पड़ता - बापदादा को सर्व बच्चों को याद करना पड़ता - एक को भी भूल नहीं सकते । अगर भूलें तो उल्हनों की माला पहननी पड़े । तो बच्चे उल्हनों की माला पहनाते, बाप विजयी माला पहनाते । बहुत होशियार हैं बच्चे! मदद लेने में होशियार हैं, हिम्मत रखने में नम्बरवार हैं । सुना तो बहुत है, अब बाकी क्या करना है? अब तो सिर्फ मिलन मनाते रहना है । जैसे अभी का मिलन सम्पन्न स्टेज का अनुभव कराता है, ऐसे निरन्तर मिलन मनाओ । सुनने का रिटर्न सदा बाप समान सम्पन्न स्वरूप में दिखाओ । अनेक तड़फती हुई आत्माओं के इन्तजार को समाप्त करो । सम्पन्न दर्शनीय मूर्त बन अनेकों को दर्शन कराओ । अब दु :ख अशान्ति की अनुभूति अति में जा रही है - उसे अपनी अन्तिम स्टेज द्वारा समाप्त करने का कार्य अति तीव्रता से करो । मास्टर रचता की स्टेज पर स्थित हो अपनी रचना के बेहद दु :ख और अशान्ति की समस्या को समाप्त करो । दुःख हर्ता सुख कर्ता का पार्ट बजाओ । सुख-शान्ति के खजाने से अपनी रचना को महादान और वरदान दो, रचना की पुकार सुनने में आती है! वा अपनी ही जीवन की कहानी देखने और सुनने में बिजी हो? अपने जीवन के कर्मों की कहानी जानने वाले त्रिकालदर्शी बने हो ना । तो अभी हर कर्म अन्य आत्माओं के कल्याण प्रति कार्य में लगाओ । अपनी कहानी ज्यादा वर्णन न करो - मेरा भी कुछ करो वा मेरा भी कुछ सुनो, मेरे फैंसले करने में समय दो । अब अनेको के फैंसले करने वाले बनो - हरेक के कर्म गति को जान गति सद्गति देने के फैंसले करो । फैसल्टीज न लो, अब तो दाता बनकर दो । कोई भी सेवा प्रति वा स्वयं प्रति सैलवेशन के आधार पर स्वयं की उन्नति वा सेवा की अल्पकाल की सफलता प्राप्त हो जायेगी लेकिन आज महान होंगे कल महानता की प्यासी आत्मा बन जायेंगे । सदा प्राप्ति की इच्छा में रहेंगे । नाम हो जाए, काम हो जाए, इसके इच्छा मात्रम अविद्या स्वरूप नहीं बन सकेंगे । जैसे बाप नाम रूप से न्यारे हैं तो सबसे अधिक नाम का गायन बाप का है, वैसे ही अल्पकाल के नाम और मान से न्यारे बनो तो सदाकाल के लिये सर्व के प्यारे स्वत: बन जायेंगे । नाम और मान के भिखारीपन का अंशमात्र भी त्याग करो ऐसे त्यागी विश्व के भाग्य विधाता बन सकते । कर्म का फल खाने के अभ्यासी ज्यादा हैं इसलिए कच्चा फल खा लेते हैं - जमा होने अर्थात् पकने नहीं देते । कच्चा फल खाने से क्या होता है? कोई न कोई हलचल हो जायेगी । ऐसे ही स्थिति में हलचल हो जाती है । कर्म का फल तो स्वत : ही आपके सामने सम्पन्न स्वरूप में आयेगा । एक श्रेष्ठ कर्म करने का सौगुणा सम्पन्न फल के स्वरूप में आयेगा लेकिन अल्पकाल की इच्छा मात्रम अविद्या हो । त्याग करो तो भाग्य आपे ही आपके पीछे आयेगा । इच्छा - अच्छा कर्म समाप्त कर देती है, इसलिए इच्छा मात्रम अविद्या । इस विद्या की अविद्या । महान ज्ञानी स्वरूप तो हो लेकिन इसमें ज्यादा समझदार नहीं बनना । यह होना ही चाहिए, मैंने किया, मुझे मिलना ही चाहिए इसको इन्साफ नहीं समझना । मेरा कुछ इन्साफ (न्याय) होना चाहिए । भगवान के घर में भी इन्साफ नहीं हो तो कहाँ इन्साफ मिलेगा! कभी भी ऐसे इन्साफ माँगने वाले नहीं बनना । किसी भी प्रकार के माँगने वाला स्वयं को तृप्त आत्मा अनुभव नहीं करेगा । तो सदा सर्व प्राणियों से तृप्त आत्मा बनो । ब्राह्मण जीवन का स्लोगन है अप्राप्त नहीं कोई वस्तु मास्टर सर्वशक्तिमान् के खजाने में । यह स्लोगन सदा स्मृति में रखो । अब गुह्य ज्ञान के साथ-साथ परिवर्तन भी गुह्य करो । मुश्किल लगता है क्या? अनेकों की मुश्किल को सहज करने वाले सैलवेशन आर्मी हो । अच्छा । ऐसे सदा महादानी वरदानी, अल्पकाल की इच्छा मात्रम् अविद्या वाले, स्वयं के त्यागी सर्व के भाग्य बनाने वाले विधाता, सदा सम्पन्न और सन्तुष्ट रहने वाले, सर्व की समस्याओं का समाधान करने वाले - ऐसे बाप समान महान आत्माओं को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते । 

दादियों से पर्सनल मुलाकात:-

खिलाड़ी बनकर हर समय का खेल देखने में मज़ा आता है ना । खिलाड़ी  की स्टेज सदा हर्षित मुख रहने का अनुभव कराती है । किसी भी प्रकार की कोई भी बात, जिसकी दुनिया वाले आपदा समझते हैं लेकिन खिलाड़ी बन खेल करने वाले और खेल देखने वाले ऐसी आपदा के रूप को खेल समझ मनोरंजन अनुभव करेंगे । बड़े में बड़ी आपदा भी मनोरंजन का दृश्य अनुभव हो - यह है मास्टर रचता की स्टेज । जैसे महाविनाश को भी स्वर्ग के गेट खुलने का साधन बताते हो - कहाँ महाविनाश और कहाँ स्वर्ग का गेट! तो महाविनाश की आपदा को भी मनोरंजन का रूप दे दिया ना - तो ऐसे किसी भी प्रकार की छोटी-बड़ी समस्या वा आपदा मनोरंजन का रूप दिखाई दे । हाय-हाय के बजाए ' ओहो! ' शब्द निकले । इसको कहा जाता है अंगद के समान स्टेज । जो योगियों की स्टेज लोग वर्णन करते हैं - दु :ख भी सुख के रूप में अनुभव हो - दुःख-सुख समान, निन्दा-स्तुति समान । यह दु :ख है, यह सुख है - इसकी नॉलेज होते हुए भी दु :ख के प्रभाव में नहीं आओ । दु :ख की भी बलिहारी सुख के दिन आने की समझो । इसको कहा जाता है सम्पूर्ण योगी । परिवर्तन की शक्ति इसको कहा जाता है । दुश्मन को भी दोस्ती में परिवर्नन कर दे - दुश्मन की दुश्मनी चल न सके । दुश्मन बन आवे और बलिहार बनकर जावे ' यह है शक्तियों का महिमा । ऐसे शक्ति सेना तैयार है! जब विश्व को परिवर्तन करने की चैलेन्ज करते हो तो यह क्या बड़ी बात है - इसका सहज साधन है - लेने वाला नहीं लेकिन देने वाले दाता बनो । दाता के आगे सब स्वयं ही झुकते हैं । वैसे भी कोई चीज़ दो तो वह अपना सिर और आँखें नीचे कर लेते हैं - निर्माणता दिखाने लिए ऐसे करते हैं । वह स्थूल युक्ति है और यहाँ संस्कार स्वभाव से झुकेंगे । तब तो दुश्मन भी बलिहार जायेंगे । तो ऐसी शक्ति सेना तैयार है

(बाम्बे वाले सिल्वर जुबली मना रहे हैं)

सिल्वर जुबली भले मनाओ लेकिन स्वयं के संस्कार मिलन की जुबली भी मनाओ । ऐसी जुबली में तो बापदादा भी आ सकते । भाषण वाली जुबली में नहीं आयेगें - संस्कार मिलन की जुबली में आयेंगे । हाँ पहले दिखाओ - बाम्बे एक एक्जैम्पुल बने - सदा विजयी, सदा निर्विघ्न, ऐसी जुबली मनाओ । वह जुबली हो लोगों को जगाने के लिए, लोगों को भी आजकल अनुभव कराने वाले अनुभवी मूर्तियों की दरकार है । जैसे विदेश में अनुभव कराने का आरम्भ हुआ है - वह अनुभव करते हैं कि कोई रूहानी शक्ति बोल रही है । ऐसी लहर भारत में अनुभव कराओ । ऐसी सिलवर जुबली मनाओ - टापिक द्वारा टॉप की स्टेज का अनुभव कराओ । ऐसा प्लेन बनाओ, जैसे मन्दिर जाने से ही वृत्ति परिवर्तन हो जाती है, वैसे प्रोग्राम में आते ही कुछ नई अनुभूति अनुभव करें । अल्पकाल के लिए करें तो भी अल्पकाल की छाप स्मृति में रह जायेगी । समझा - अब क्या करना है । अच्छा | 

अव्यक्त महावाक्य - सफल करो और सफलता मूर्त बनो 

जैसे ब्रह्मा बाप ने निश्चय के आधार पर, रूहानी नशे के आधार पर निश्चित भावी के ज्ञाता बन सेकेण्ड में सब कुछ सफल कर दिया; अपने लिए नहीं रखा, सफल किया । जिसका प्रत्यक्ष सबूत देखा कि अन्तिम दिन तक तन से पत्र-व्यवहार द्वारा सेवा की, मुख से महावाक्य उच्चारण किये । अन्तिम दिन भी समय, सकल्प शरीर को सफल किया । तो सफल करने का अर्थ ही है- श्रेष्ठ तरफ लगाना । ऐसे जो सफल करते हैं उन्हें सफलता स्वत: प्राप्त होती है । सफलता प्राप्त करने का विशेष आधार है-हर सेकेण्ड, हर श्वांस, हर खजाने को सफल करना । संकल्प, बोल, कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क जिसमें भी सफलता अनुभव करने चाहते हो तो स्व के प्रति चाहे अन्य आत्माओं के प्रति सफल करते जाओ । व्यर्थ न जाने दो तो ऑटोमेटिकली सफलता के खुशी की अनुभूति करते रहेंगे क्योंकि सफल करना अर्थात् वर्तमान के लिए सफलता मूर्त बनना और भविष्य के लिए जमा करना ।

इस बाह्मण जीवन में -

* जो समय को सफल करते हैं वह समय की सफलता के फलस्वरूप राज्य- भाग्य का फुल समय राज्य- अधिकारी बनते हैं ।

* जो श्वांस सफल करते हैं, वह अनेक जन्म सदा स्वस्थ रहते हैं । कभी चलते-चलते श्वांस बन्द नहीं होगा, हार्टफेल नहीं होगा ।

* जो ज्ञान का खजाना सफल करते हैं, वह ऐसा समझदार बन जाते हैं जो भविष्य में अनेक वजीरों की राय नहीं लेनी पड़ती, स्वयं ही समझदार बन राज्य- भाग्य चलाते हैं ।

* जो सर्व शक्तियों का खजाना सफल करते हैं अर्थात् उन्हें कार्य में लगाते हैं वह सर्व शक्ति सम्पन्न बन जाते हैं । उनके भविष्य राज्य में कोई शक्ति की कमी नहीं होती । सर्व शक्तियां स्वत: ही अखण्ड, अटल, निर्विघ्न कार्य की सफलता का अनुभव कराती हैं ।

* जो सर्व गुणों का खजाना सफल करते हैं, वह ऐसे गुणमूर्त बनते हैं जो आज लास्ट समय में भी उनके जड़ चित्र का गायन "सर्व गुण सम्पन्न देवता के रूप में होता है ।

* जो स्थूल धन का खजाना सफल करते हैं वह 21 जन्मों के लिए मालामाल रहते हैं । तो सफल करो और सफलता मूर्त बनो । 

ऐसे सदा सफलता मूर्त बनने का साधन है-एक बल एक भरोसा । निश्चय सदा ही निश्चिंत बनाता है और निश्चित स्थिति वाला जो भी कार्य करेगा उसमें सफल जरूर होगा । जैसे ब्रह्मा बाप ने दृढ़ सकल्प से हर कार्य में सफलता प्राप्त की, दृढ़ता सफलता का आधार बना । ऐसे फालो फ़ादर करो । हर खजाने को, गुणों को, शक्तियों को कार्य में लगाओ तो बढ़ते जायेंगे । बचत की विधि, जमा करने की विधि को अपनाओं तो व्यर्थ का खाता स्वतः ही परिवर्तन हो सफल हो जायेगा । बाप द्वारा जो भी खजाने मिले हैं उनका दान करो, कभी भी स्वप्न में भी गलती से प्रभू देन को अपना नहीं समझना । मेरा यह गुण है, मेरी शक्ति है-यह मेरापन आना अर्थात् खजानों को गंवाना । अपने ईश्वरीय सस्कारों को भी सफल करो तो व्यर्थ संस्कार स्वत: ही चले जायेंगे । ईश्वरीय संस्कारो को बुद्धि के लॉकर में नहीं रखो । कार्य में लगाओ, सफल करो । सफल करना माना बचाना या बढ़ाना । मनसा से सफल करो, वाणी से सफल करो, सम्बन्ध-सम्पर्क से, कर्म से, अपने श्रेष्ठ संग से, अपने अति शक्तिशाली वृत्ति से सफल करो । सफल करना ही सफलता की चाबी है । आपके पास समय और संकल्प रूपी जो श्रेष्ठ खजाने हैं, इन्हें कम खर्च बाला नशीन की विधि द्वारा सफल करो । संकल्प का खर्च कम हो लेकिन प्राप्ति ज्यादा हो । जो साधारण व्यक्ति दो चार मिनट संकल्प चलाने के बाद, सोचने के बाद सफलता या प्राप्ति कर सकता है वह आप एक दो सेकेण्ड में कर सकते हो । ऐसे ही वाणी और कर्म, कम खर्चा और सफलता ज्यादा हो तब ही कमाल गाई जायेगी । 

सफलता प्राप्त करने का आधार है सत्यता लेकिन सत्यता में सभ्यता समाई हुई हो । सभ्यता पूर्वक बोल, सभ्यता पूर्वक चलन, इसमें ही सफलता होती है । सफलता मूर्त बनने की सहज विधि है-सर्व की दुआयें । जिन बच्चों को बाप की दुआएं वा सर्व आत्माओं की दुआएं प्राप्त होती हैं उन्हें मेहनत का अनुभव नहीं होता । वह सदा सफल होते हैं । अच्छा ।

 

वरदान:-

अविनाशी उमंग-उत्साह द्वारा तूफान को तोहफा बनाने वाले श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा भव !   

उमंग-उत्साह ही ब्राह्मणों की उड़ती कला के पंख हैं । इन्हीं पंखों से सदा उड़ते रहो । यह उमंग-उत्साह आप ब्राह्मणों के लिए बड़े से बड़ी शक्ति है । नीरस जीवन नहीं है । उमंग-उत्साह का रस सदा है । उमंग- उत्साह मुश्किल को भी सहज कर देता है, वे कभी दिलशिकस्त नहीं हो सकते । उत्साह तूफान को तोहफा बना देता है, उत्साह किसी भी परीक्षा वा समस्या को मनोरंजन अनुभव कराता है । ऐसे अविनाशी उमंग-उत्साह में रहने वाले ही श्रेष्ठ ब्राह्मण हैं ।

 

स्लोगन:- 

शान्ति की वासधूप जगाकर रखो तो अशान्ति की बांस समाप्त हो जायेगी ।     

 

ओम् शान्ति |