22-11-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - अपनी खामियां निकालनी हैं तो सच्चे दिल से बाप को सुनाओ, बाबा तुम्हें कमियों को निकालने की युक्ति बतायेंगे”   


प्रश्न:-   
बाप की करेंट किन बच्चों को मिलती है?


उत्तर:-

जो बच्चे ईमानदारी से सर्जन को अपनी बीमारी सुना देते हैं, बाबा उन्हें दृष्टि देता । बाबा को उन बच्चों पर बहुत तरस पड़ता है । अन्दर में आता इस बच्चे का यह भूत निकल जाये । बाबा उन्हें करेंट देता है ।

 

ओम् शान्ति |

बाप बच्चों से पूछते रहते हैं । हर एक बच्चे को अपने से पूछना है कि बाप से कुछ मिला? किस-किस चीज में कमी है? हर एक को अपने अन्दर झांकना है । जैसे नारद का मिसाल है, उनको कहा तुम अपनी शक्ल आइने में देखो - लक्ष्मी को वरने लायक हैं? तो बाप भी तुम बच्चों से पूछते हैं - क्या समझते हो, लक्ष्मी को वरने लायक बने हो? अगर नहीं तो क्या-क्या खामियां हैं? जिनको निकालने के लिए बच्चे पुरूषार्थ करते हैं । खामियों को निकालने का पुरूषार्थ करते वा करते ही नहीं हैं? कोई-कोई तो पुरूषार्थ करते रहते हैं । नये-नये बच्चों को यह समझाया जाता है - अपने अन्दर में देखो कोई खामी तो नहीं है? क्योंकि तुम सबको परफेक्ट बनना है । बाप आते ही हैं परफेक्ट बनाने के लिए इसलिए एम ऑब्जेक्ट का चित्र भी सामने रखा है । अपने अन्दर से पूछो हम इन जैसे परफेक्ट बने हैं? वह जिस्मानी विद्या पढ़ाने वाले टीचर आदि तो इस समय सब विकारी हैं । यह (लक्ष्मी-नारायण) सम्पूर्ण निर्विकारियों का सेम्पुल है । आधाकल्प तुमने इन्हों की महिमा की है । तो अब अपने से पूछो - हमारे में क्या-क्या खामियां हैं, जिनको निकाल हम अपनी उन्नति करें? और बाप को बतावें कि बाबा यह खामी है, जो हमसे निकलती नहीं हैं, कोई उपाय बताओ । बीमारी सर्जन द्वारा ही छूट सकती है । कोई-कोई नायब सर्जन भी होशियार होते हैं । डॉक्टर से कम्पाउन्डर सीखते हैं । होशियार डॉक्टर बन जाते हैं । तो ईमानदारी से अपनी जांच करो - मेरे में क्या-क्या खामियां हैं? जिस कारण मैं समझता हूँ - यह पद पा नहीं सकूँगा । बाप तो कहेंगे ना - तुम इन जैसा बन सकते हो । खामियां बतायें तब बाबा राय दे । बीमारियां तो बहुत हैं । बहुतों में खामियां हैं । कोई में बहुत क्रोध है, लोभ है उन्हें ज्ञान की धारणा नहीं हो सकती हैं, जो कोई को धारणा करा सकें । बाप रोज बहुत समझाते हैं । वास्तव में इतनी समझाने की जरूरत ही नहीं दिखती । मन्त्र का अर्थ बाप समझा देते हैं । बाप तो एक ही है । बेहद के बाप को याद करना है और उनसे यह वर्सा पाकर हमको ऐसा बनना है । और स्कूलों में 5 विकारों को जीतने की बात ही नहीं होती । यह बात अभी ही होती हैं जो बाप आकर समझाते हैं । तुम्हारे में जो भूत हैं, जो दु :ख देते हैं, उनका वर्णन करेंगे तो उनको निकालने की बाप युक्ति बताको । बाबा यह-यह भूत हमको तंग करते हैं । भूत निकालने वाले के आगे वर्णन किया जाता है ना । तुम्हारे में कोई वह भूत नहीं । तुम जानते हो यह 5 विकारों रूपी भूत जन्म-जन्मान्तर के हैं । देखना चाहिए हमारे में क्या भूत हैं? उसको निकालने लिए फिर राय लेनी चाहिए । आँखें भी बहुत धोखा देने वाली हैं, इसलिए बाप समझाते हैं अपने को आत्मा समझ दूसरे को भी आत्मा समझने की प्रैक्टिस डालो । इस युक्ति से तुम्हारी यह बीमारी निकल जायेगी । हम सब आत्मायें तो आत्मा भाई- भाई ठहरे । शरीर तो है नहीं । यह भी जानते हो हम आत्मायें सब वापिस जाने वाली हैं । तो अपने को देखना है हम सर्वगुण सम्पन्न बने हैं? नहीं तो हमारे में क्या अवगुण हैं? तो बाप भी उस आत्मा को बैठ देखते हैं, इनमें यह खामी हैं तो उनको करेंट देंगे । इस बच्चे का यह विघ्न निकल जाए । अगर सर्जन से ही छिपाते रहेंगे तो कर ही क्या सकते? तुम अपने अवगुण बताते रहेंगे तो बाप भी राय देंगे । जैसे तुम आत्माएं बाप को याद करती हो - बाबा, आप कितने मीठे हो! हमको क्या से क्या बना देते हो! बाप को याद करते रहेंगे तो भूत भागते रहेंगे । कोई न कोई भूत है जरूर । बाप सर्जन को बताओ, बाबा हमको इनकी युक्ति बताओ । नहीं तो बहुत घाटा पड़ जायेगा, सुनाने से बाप को भी तरस पड़ेगा - यह माया के भूत इनको का करते हैं । भूतों को भगाने वाला तो एक ही बाप है । युक्ति से भगाते हैं । समझाया जाता है - इन 5 भूतों को भगाओ । फिर भी सब भूत नहीं भागते हैं । कोई में विशेष रहता है, कोई में कम । परन्तु हैं जरूर । बाप देखते हैं इनमें यह भूत हैं । दृष्टि देते समय अन्दर चलता है ना । यह तो बहुत अच्छा बच्चा है और तो सब इनमें अच्छे- अच्छे गुण हैं परन्तु बोलते कुछ नहीं है, किसको समझा नहीं सकते हैं । माया ने जैसे गला बन्द कर दिया है, इनका गला खुल जाए तो औरों की भी सर्विस करने लग पड़े । दूसरे-दूसरे की सर्विस में अपनी सर्विस, शिवबाबा की सर्विस नहीं करते हैं । शिवबाबा खुद सर्विस करने आये हैं, कहते हैं इन जन्म-जन्मान्तर के भूतों को भगाना है ।

बाप बैठ समझाते हैं यह भी जानते हो झाड़ धीरे- धीरे वृद्धि को पाता है । पत्ते झड़ते रहते हैं । माया विघ्न डाल देती है । बैठे- बैठे ख्याल बदली हो जाते हैं । जैसे सन्यासियों को घृणा आती हैं तो एकदम गुम हो जाते हैं । न कोई कारण, न कोई बातचीत । कनेक्शन तो सबका बाप के साथ है । बच्चे तो नम्बरवार हैं । वह भी बाप को सच बतायें तो वह खामियां निकल सकती हैं और ऊंच पद पा सकते हैं । बाप जानते हैं कई न बतलाने के कारण अपने को बहुत घाटा डालते हैं । कितना भी समझाओ परन्तु वह काम करने लग पड़ते हैं । माया पकड़ लेती है । माया रूपी अजिगर हैं, सबको पेट में डाल बैठी हैं | दुबन में गले तक फँस पड़े हैं । बाप कितना समझाते हैं । और कोई बात नहीं सिर्फ बोलो दो बाप हैं । एक लौकिक बाप तो सदैव मिलता ही है, सतयुग में भी मिलता है तो कलियुग में भी मिलता है । ऐसे नहीं कि सतयुग में फिर पारलौकिक बाप मिलता है । पारलौकिक बाप तो एक ही बार आते हैं । पारलौकिक बाप आकर नर्क को स्वर्ग बनाते हैं । उनकी भक्ति मार्ग में कितनी पूजा करते हैं । याद करते हैं । शिव के मन्दिर तो बहुत हैं । बच्चे कहते हैं सर्विस नहीं है । अरे, शिव के मन्दिर तो जहाँ तहाँ हैं, वहाँ जाकर तुम पूछ सकते हो, इनको क्यों पूजते हो? यह शरीरधारी तो हैं नहीं । यह हैं कौन? कहेंगे परमात्मा । इन बिगर और कोई को कहेंगे नहीं । तो बोलो यह परमात्मा बाप है ना । उनको खुदा भी कहते हैं, अल्लाह भी कहते हैं । अक्सर करके परमपिता परमात्मा कहा जाता है, उनसे क्या मिलने का है, यह कुछ पता है? भारत में शिव का नाम तो बहुत लेते हैं शिव जयन्ती त्योहार भी मनाते हैं । कोई को भी समझाना बहुत सहज है । बाप भिन्न-भिन्न प्रकार से समझाते तो बहुत रहते हैं । तुम किसके पास भी जा सकते हो । परन्तु बहुत ठण्डाई से, नम्रता से बात करनी है । तुम्हारा नाम तो भारत में बहुत फैला हुआ है । थोड़ी भी बात करेंगे तो झट समझ जायेंगे - यह बी.के. हैं । गांव आदि तरफ तो बहुत इनोसेण्ट हैं । तो मन्दिरों में जाकर सर्विस करना बहुत सहज है । आओ तो हम तुमको शिवबाबा की जीवन कहानी सुनावें । तुम शिव की पूजा करते हो, उनसे क्या मांगते हो? हम तो आपको इनकी पूरी जीवन कहानी बता सकते हैं । दूसरे दिन फिर लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जाओ । तुम्हारे अन्दर में खुशी रहती है । बच्चे चाहते हैं गाँवड़ो में सर्विस करें । सबकी अपनी- अपनी समझ है ना । बाप कहते हैं पहले-पहले जाओ शिवबाबा के मन्दिर में । फिर लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जाकर पूछो - इन्हों को यह वर्सा कैसे मिला हुआ है? आओ तो हम आपको इन देवी-देवताओं के 84 जन्मों की कहानी सुनायें । गांव वालों को भी जगाना है । तुम जाकर प्यार से समझायेंगे । तुम आत्मा हो, आत्मा ही बात करती है, यह शरीर तो खत्म हो जाने वाला है । अब हम आत्माओं को पावन बन बाप के पास जाना है । बाप कहते हैं मुझे याद करो । तो सुनने से ही उनको कशिश होगी । जितना तुम देही- अभिमानी होंगे उतना तुम्हारे में कशिश आयेगी । अभी इतना इस देह आदि से, पुरानी दुनिया से पूरा वैराग्य नहीं आया है । यह तो जानते हो यह पुराना चोला छोड़ना है, इनमें क्या ममत्व रखना है । शरीर होते शरीर में कोई ममत्व नहीं होना चाहिए । अन्दर में यही तात रहे - अब हम आत्माएं पावन बनकर अपने घर जायें । फिर यह भी दिल होती हैं - ऐसे बाबा को कैसे छोड़े? ऐसा बाबा तो फिर कभी मिलेगा नहीं । तो ऐसे-ऐसे ख्याल करने से बाप भी याद आयेगा, घर भी याद आयेगा । अब हम घर जाते हैं । 84 जन्म पूरे हुए । भल दिन में अपना धंधा आदि करो । गृहस्थ व्यवहार में तो रहना ही है । उसमें रहते हुए भी तुम बुद्धि में यह रखो कि यह तो सब कुछ खत्म हो जाना है । अभी हमको वापिस अपने घर जाना है । बाप ने कहा है - गृहस्थ व्यवहार में भी जरूर रहना हैं । नहीं तो कहाँ जायेंगे? धन्धा आदि करो, बुद्धि में यह याद रहे । यह तो सब कुछ विनाश होने का है । पहले हम घर जायेंगे फिर सुखधाम में आएंगे । जो भी टाइम मिले अपने से बातें करनी चाहिए । बहुत टाइम है, 8 घण्टा धन्धा आदि करो । 8 घण्टा आराम भी करो । बाकी 8 घण्टा यह बाप से रूहरिहान कर फिर जाकर रूहानी सर्विस करनी है । जितना भी समय मिले शिवबाबा के मन्दिर में, लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जाकर सर्विस करो । मन्दिर तो तुमको बहुत मिलेंगे । तुम कहाँ भी जाएंगे तो शिव का मन्दिर जरूर होगा । तुम बच्चों के लिए मुख्य है याद की यात्रा । याद में अच्छी रीति रहेंगे तो तुम जो भी मांगो मिल सकता है । प्रकृति दासी बन जाती है । उनकी शक्ल आदि भी ऐसी खींचने वाली रहती है, कुछ भी मांगने की दरकार नहीं । सन्यासियों में भी कोई-कोई पक्के रहते हैं । बस ऐसे निश्चय से बैठते - हम ब्रह्म में जाकर लीन होंगे । इस निश्चय में बहुत पक्के रहते हैं । उन्हों का अभ्यास होता है, हम इस शरीर को छोड़ जाते हैं । परन्तु वह तो हैं रांग रास्ते पर । बड़ी मेहनत करते हैं ब्रह्म में लीन होने के लिए । भक्ति में दीदार के लिए कितनी मेहनत करते हैं । जीवन भी दे देते हैं । आत्मघात नहीं होता है, जीवघात होता है । आत्मा तो है ही, वह जाकर दूसरा जीवन अर्थात् शरीर लेती है ।

तो तुम बच्चे सर्विस का अच्छी रीति शौक रखो तो बाप भी याद आवे । यहाँ भी मन्दिर आदि बहुत हैं । तुम योग में पूरा रहकर किसको कुछ भी कहेंगे, कोई बिचार नहीं आयेगा । योग वाले का तीर पूरा लगेगा । तुम बहुत सर्विस कर सकते हो । कोशिश करके देखो, परन्तु पहले अपने अन्दर को देखना है - हमारे में कोई माया का भूत तो नहीं है? माया के भूत वाले थोड़ेही सक्सेस हो सकते हैं । सर्विस तो बहुत है । बाबा तो नहीं जा सकते हैं ना क्योंकि बाप साथ में है । बाप को हम कहाँ कीचड़े में ले जावें! किसके साथ बोलें! बाप तो बच्चों से ही बोलना चाहते हैं । तो बच्चों को सर्विस करनी है । गायन भी हैं सन शोज फादर । बाप ने तो बच्चों को होशियार बनाया ना । अच्छे- अच्छे बच्चे हैं जिनको सर्विस का शौक रहता है । कहते हैं हम गाँवड़ो में जाकर सर्विस करें । बाबा कहते हैं भल करो । सिर्फ फोल्डिंग चित्र साथ में हो । चित्रों बिगर किसको समझाना डिफीकल्ट लगता है । रात-दिन यही ख्यालात रहती हैं - औरों की जीवन कैसे बनायें? हमारे में जो खामियां हैं वह कैसे निकाल, उन्नति को पायें । तुमको खुशी भी होती है । बाबा यह 8 - 9 मास का बच्चा है । ऐसे बहुत निकलते हैं । जल्दी ही सर्विस लायक बन जाते हैं । हर एक को यह भी ख्याल रहता है हम अपने गांव को उठायें, हमजिन्स भाइयों की सेवा करें । चैरिटी बिगन्स एट होम । सर्विस का शौक बहुत चाहिए । एक जगह ठहरना नहीं चाहिए । चक्र लगाते रहें । टाइम तो बहुत थोड़ा है ना । कितने बड़े-बड़े अखाड़े उन्हों के बन जाते हैं । ऐसी आत्मा आकर प्रवेश करती है जो कुछ न कुछ शिक्षा बैठ देती है तो नाम हो जाता है । यह तो बेहद का बाप बैठ शिक्षा देते हैं कल्प पहले मिसल । यह रूहानी कल्प वृक्ष बढ़ेगा । निराकारी झाड़ से नम्बरवार आत्मायें आती है । शिवबाबा की बड़ी लम्बी माला वा झाड़ बना हुआ है । इन सब बातों को याद करने से भी बाप ही याद आयेगा । उन्नति जल्दी होगी । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. कम से कम 8 घण्टा बाप से रूहरिहान कर बड़ी ठण्डाई वा नम्रता से रूहानी सर्विस करनी है । सर्विस में सक्सेस होने के लिए अन्दर में कोई भी माया का भूत न हो । 

2. अपने आपसे बातें करनी है कि यह जो कुछ हम देखते हैं यह सब विनाश होना है, हम अपने घर जाएंगे फिर सुखधाम में आएंगे ।

 

वरदान:-

दृढ़ संकल्प रूपी व्रत द्वारा वृत्तियों का परिवर्तन करने वाले महान आत्मा भव !   

महान बनने का मुख्य आधार है ' 'पवित्रता' ' । इस पवित्रता के व्रत को प्रतिज्ञा के रूप में धारण करना अर्थात् महान आत्मा बनना । कोई भी दृढ़ संकल्प रूपी व्रत वृत्ति को बदल देता है । पवित्रता का व्रत लेना अर्थात् अपनी वृत्ति को श्रेष्ठ बनाना । व्रत रखना अर्थात् स्थूल रीति से परहेज करना, मन में पक्का संकल्प लेना । तो पावन बनने का व्रत लिया और हम आत्मा भाई- भाई हैं - यह ब्रदरहुड की वृत्ति बनाई । इसी वृत्ति से ब्राह्मण महान आत्मा बन गये ।

 

स्लोगन:- 

व्यर्थ से बचना है तो मुख पर दृढ़ संकल्प का बटन लगा दो ।   

 

ओम् शान्ति |