07-03-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे
–
अपने को आत्मा भाई-भाई समझ एक-दो से रूहानी प्रेम रखो,
सतोप्रधान बनना है तो किसी की खामी नहीं निकालो” 
प्रश्न:-
किस आधार पर बाप से पदमों का वर्सा ले सकते हो?
उत्तर:-
बाप
से पदमों का वर्सा लेने के लिए याद की यात्रा पर रहो | एक बाप
के सिवाए और सब बातें भूलते जाओ | फलाना ऐसा करता, वह ऐसा
है.....इन बातों में टाइम वेस्ट मत करो | मंज़िल भारी है इसलिए
सदा सतोप्रधान बनने का लक्ष्य रहे | बाप के लव में चटके रहो,
अपनी सूक्ष्म चेकिंग करते रहो तब पूरा वर्सा ले सकेंगे |
ओम् शान्ति
|
अब तुम बच्चे
जो बैठे हो उनको यह मालूम है कि बेहद का बाप फिर से सतोप्रधान
बना रहे हैं, मूल युक्ति यही बता रहे हैं कि अपने को आत्मा
भाई-भाई समझो | मुख्य शिक्षा यही देते हैं कि तुम्हारा आपस में
बहुत-बहुत रूहानी प्रेम होना चाहिए | पहले तुम्हारा था, अब
नहीं है | मूलवतन में तो प्रेम की बात नहीं रहती | तो बेहद का
बाप आकर शिक्षा देते हैं बच्चे, आजकल करते-करते समय बीतता जा
रहा है | दिन, मास, वर्ष बीतते जा रहे हैं | बाप ने बताया है
तुम यह लक्ष्मी-नारायण थे, किसने तुमको ऐसा बनाया? बाप ने | यह
भी बाप ने बताया है कि तुम नीचे कैसे उतरे हो? ऊपर से लेकर
नीचे उतरते-उतरते समय बीतता जा रहा है | वह दिन गया, मास गया,
वर्ष गया, समय गया | तुम जानते हो कि पहले-पहले हम सतोप्रधान
थे | हमारा आपस में बहुत लव था | बाप ने तुम सब भाइयों को
शिक्षा दी है, तुम सब भाई-भाई का आपस में बहुत प्यार होना
चाहिए | मैं तुम्हारा बाप हूँ | कितना प्यार से मैं तुमको
सम्भालता हूँ | तुमको तमोप्रधान से सतोप्रधान बना देता हूँ |
तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट है ही सतोप्रधान बनने की | समझते हो
जितना-जितना हम सतोप्रधान बनते जायेंगे, उतना ख़ुशी में भी आते
जायेंगे | हम सतोप्रधान थे | हम भाई-भाई आपस में बहुत प्रेम से
रहते थे | अब बाप द्वारा हमको पता पड़ा है, हम देवतायें आपस में
बहुत प्रेम से चलते थे | इन देवताओं की और हेविन की बहुत महिमा
है | तुम भी हेविन के रहवासी थे | फिर आजकल करते-करते नीचे आते
गये | एक तारीख से लेकर आज आकर 5 हज़ार वर्ष से बाकी कुछ वर्ष
रहे हैं | शुरू से लेकर तुम कैसे पार्ट बजाते आये हो, वह सब
बुद्धि में है | अब देह-अभिमान होने कारण एक-दो को उस दृष्टि
से देखते हैं तो आपस में लड़ते-झगड़ते हैं | फिर यह बन्द कैसे
हो? यह भी बाप समझाते हैं कि बच्चे, तुम ही सतोप्रधान पूज्य
देवी-देवता थे | फिर धीरे-धीरे नीचे गिरते तुम तमोप्रधान बने
हो | तुम कितने मीठे थे | अब फिर ऐसा मीठा बनो | तुम सुखदाई
थे, अब दुःखदाई बने हो | रावण राज्य में एक-दो को दुःख देने
काम कटारी चलाने लगे हो | जब सतोप्रधान थे तो काम कटारी नहीं
चलाते थे | तुम्हारे यह 5 विकार कितने शत्रु हैं | यह है ही
विकारी दुनिया | यह भी तुम जानते हो – राम राज्य किसको कहा
जाता है और रावण राज्य किसको कहा जाता है | आजकल करते सतयुग,
त्रेता, द्वापर पूरे हुए | अब कलियुग भी पूरा होने वाला है |
तुम ही सतोप्रधान से तमोप्रधान बन पड़े हो | तुम्हारी रूहानी
ख़ुशी गायब हो गई | आयु भी तुम्हारी छोटी हो गई | अब मैं आया
हूँ, ज़रूर तुमको सतोप्रधान बनाऊंगा | तुमने ही बुलाया कि
पतित-पावन आओ | बाप समझाते हैं 5 हज़ार वर्ष के बाद जब संगमयुग
आता है तब मैं आता हूँ | अब तुम अपने को आत्मा समझ बाप को याद
करो | जितना याद करेंगे उतना खामियाँ निकलती जायेंगी | तुम जब
सतोप्रधान थे तो तुम्हारे में कोई भी खामी नहीं थी | तुम अपने
को देवी-देवता कहलाते थे | अब वह खामियाँ कैसे निकलें? आत्मा
को ही अशान्ति होती है | अब अपनी जांच करनी है कि हम अशान्त
क्यों बने? जब हम भाई-भाई थे तो हमारा बहुत प्रेम था | अब फिर
वही बाप आया है | कहते हैं अपने को आत्मा भाई-भाई समझो | एक-दो
से प्रेम रखो | देह-अभिमान में आने से एक-दो की खामियाँ
निकालते हो | बाप कहते हैं तुम अपना पुरुषार्थ करो ऊँच पद पाने
का | तुम जानते हो हमको बाप ने ऐसा वर्सा दिया था जो हमको
भरपूर कर दिया | अब फिर बाप आया हुआ है तो क्यों न हम उनकी मत
पर चलकर फिर से पूरा वर्सा लेवें | हम ही देवता थे फिर 84 जन्म
लिए | तुम मीठे-मीठे बच्चे कितने अडोल थे | कोई मतभेद नहीं था
| किसकी निन्दा आदि नहीं करते थे | अभी कुछ न कुछ कमियां हैं,
वह सब निकाल देनी हैं | हम सब भाई-भाई हैं | एक बाप को ही याद
करना है | यह ओना लगा हुआ है कि हम सतोप्रधान बन जायें | फलाना
ऐसा है, इसने ऐसा किया – इन सब बातों को भूल जाना है | बाप
कहते हैं यह सब छोड़ो, अपने को आत्मा समझो | अब सतोप्रधान बनने
के लिए पुरुषार्थ करो | देह-अभिमान में आने से ही अवगुण देखा
जाता है | अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो | भाई-भाई देखो तो
गुण ही गुण दिखाई पड़ेगा | सबको गुणवान बनाने की कोशिश करो |
कोई उल्टा-सुल्टा कुछ भी करे | समझा जाता है यह तमो व
रजोप्रधान है, तो ज़रूर उनकी चाल ऐसी होगी | सबसे जास्ती गुण
हैं बाप में | तो बाप से ही गुण ग्रहण करो, और सब बातों को छोड़
दो | अवगुण छोड़, गुण धारण करो | बाप कितना गुणवान बनाते हैं |
कहते हैं तुम बच्चों को भी मेरे समान गुणवान बनना है | बाप
सुखदाई है | हमको भी सुखदाई बनना है | बस, यही फुरना रहे कि
हमको सतोप्रधान बनना है | और कोई बात न सुनो, न ग्लानि करो |
सबमें कोई न कोई खामी है | खामी भी ऐसी है जो कोई समझ न सके |
दूसरे समझते हैं इनमें खामी है | वह अपने को बहुत अच्छा समझते
हैं | परन्तु कहाँ न कहाँ उल्टा बोल निकल पड़ता है | सतोप्रधान
अवस्था में यह बातें नहीं होती | यहाँ खामियाँ हैं, परन्तु न
समझने कारण अपने को मिया मिट्ठू समझ बैठे हैं | बाप कहते हैं
मिया मिट्ठू एक मैं ही हूँ, जो तुम सबको मिट्ठू (मीठा) बनाने
आया हूँ | सब अवगुण आदि छोड़ दो | अपनी नब्ज़ भी देखो, हम कितना
मीठे-मीठे रूहानी बाप को प्यार से याद करते हैं | कितना खुद
समझता हूँ, और औरों को समझाता हूँ | देह-अभिमान में आ गये तो
कोई फ़ायदा नहीं | मूल बात ही यह समझानी है कि दुनिया तमोप्रधान
है | जब सतोप्रधान थे तो देवताओं का राज्य था | अब 84 जन्म भोग
तमोप्रधान बने हैं, अब फिर सतोप्रधान बनना है | तमोप्रधान भी
भारतवासी ही बने हैं और सतोप्रधान भी वही बनेंगे | और कोई को
सतोप्रधान कह नहीं सकते | सतयुग में कोई धर्म होता नहीं | बाप
कहते हैं तुम अनेक बार तमोप्रधान से सतोप्रधान बने हो, अब फिर
बनो | श्रीमत पर चलकर मुझे याद करो | यही ओना चाहिए | पाप सिर
पर बहुत हैं, बाप ने अभी सुजाग किया है | देवताओं के आगे जाकर
कहते हैं – हम विकारी हैं क्योंकि देवताओं में पवित्रता की
कशिश है इसलिए उनके आगे जाकर कहते हैं और घर जाकर भूल जाते हैं
| देवताओं के आगे जाते हैं तो अपने से घृणा आती है | घर में
जाते तो कुछ घृणा नहीं | ख्याल भी नहीं करते कि इन्हों को ऐसा
बनाने वाला कौन? अब बाप कहते हैं – देवता बनना है तो यह पढ़ाई
ज़रूर पढ़ो | श्रीमत पर चलना पड़े | पहले-पहले बाप कहते हैं अपने
को सतोप्रधान बनाना है इसलिए मामेकम् याद करो और कोई
झरमुई-झगमुई नहीं करो | अपनी ही ओना रखो कि हमको यह बनना है |
बाप कहते हैं तुम ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले थे फिर
कहाँ गये! इनके ही 84 जन्मों की कहानी लिखी हुई है | अब हमको
ऐसा बनना है | दैवीगुण धारण करने हैं | भाई-भाई समझकर बाप को
याद करना है | बाप से वर्सा लेना है | बुद्धि में आना चाहिए
निन्दा-स्तुति तो करते आते हैं | वास्तव में स्तुति तो है ही
नहीं, निन्दा है | जिनकी एक तरफ़ स्तुति करते, उनकी दूसरे तरफ़
निन्दा भी करते हैं क्योंकि जानते ही नहीं, एक तरफ़ बाप की
महिमा करते, दूसरे तरफ़ सर्वव्यापी कह देते हैं | ठिक्कर-भित्तर
में परमात्मा कहने से बेमुख हो पड़े हैं | विनाश काले विपरीत
बेमुख बुद्धि विन्श्यंती विनाश काले प्रीत सम्मुख बुद्धि
विजयन्ती |
जितना हो सके
कोशिश करनी है बाप को याद करने की | आगे भी याद करते थे परन्तु
वह व्यभिचारी याद थी | बहुतों को याद करते थे | अब बाप कहते
हैं अव्यभिचारी याद में रहो | सिर्फ़ मामेकम् याद करो | भक्ति
मार्ग के ढेर चित्र हैं, जिनको भी तुम याद करते आये हो | अब
फिर सतोप्रधान बनना है | वहाँ भक्ति मार्ग है ही नहीं जो याद
करना पड़े | बाप कहते हैं फुरना यही रखो कि हम सतोप्रधान कैसे
बनें? ज्ञान मिल गया कि यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, वह तो
सहज है | अच्छा, कोई मुख से नहीं भी समझा सकते परन्तु बुद्धि
में ज़रूर आता है कि हम सतोप्रधान से तमोप्रधान कैसे बने हैं,
अब फिर सतोप्रधान बनना है ज़रूर | अगर कोई बोल नहीं सकता है तो
कहेंगे अपनी तक़दीर | भावी भी है | बाप ने बहुत सहज उपाय बताया
है – बैज पर समझाना सहज है, यह है बेहद का बाप | इनसे ही वर्सा
मिलता है | बाप ज़रूर स्वर्ग की स्थापना करते हैं | सो तो ज़रूर
यहाँ ही करेंगे | शिव जयन्ती माना स्वर्ग की जयन्ती | स्वर्ग
में हैं देवी-देवतायें, वह फिर कैसे बनें? वह इस पुरुषोत्तम
संगमयुग पर पढ़ाई से बनें | तुम बच्चों को भी समझ मिली है, फिर
औरों को भी यह समझ देनी है | तुम्हारा है सहज ज्ञान और सहज
योग, सहज वर्सा | परन्तु यहाँ कोई पाई पैसे का वर्सा लेने वाला
भी है, तो पदमों का वर्सा लेने वाला भी है | सारा मदार पढ़ाई पर
है | याद की यात्रा से और सब बातें भूल जाओ | फलाना ऐसा
है........इसमें टाइम वेस्ट न करो | मंज़िल बहुत भारी है |
सतोप्रधान बनने में ही माया विघ्न डालती है | पढ़ाई में विघ्न
नहीं पड़ते हैं | बाबा कहते हैं अपने को देखो हमारा कितना लव
है? लव ऐसा हो जो बाप से चटका रहे | सिखलाने वाला बाप है |
इनकी आत्मा नहीं सिखाती है, यह भी सीखती है | बाबा आप हमको
कितना समझदार बनाते हैं | ऊँचे ते ऊँच तो आप हो फिर मनुष्य
सृष्टि में आप हमको कितना ऊँच बनाते हो | ऐसे अन्दर में बाबा
की महिमा करनी चाहिए | बाबा आप कितनी कमाल करते हो | बाप कहते
हैं – बच्चे, तुम फिर से अपना राज्य लो, मामेकम् याद करो, ख़ुशी
से | अपने से पूछना है – हम बाबा को कितना याद करते हैं? कहते
हैं ख़ुशी जैसी ख़ुराक नहीं | तो बाप के मिलने की भी ख़ुशी है
परन्तु इतनी ख़ुशी बच्चों को अन्दर नहीं रहती है | नहीं तो
विवेक कहता है कि बहुत ख़ुशी रहनी चाहिए | इस पढ़ाई से हम यह
राजा बनने वाले हैं | बेहद के बाप के हम बच्चे हैं | सुप्रीम
बाबा हमको पढ़ाते हैं | बाबा कितना रहमदिल है, कैसे बैठ तुम
बच्चों को नई-नई बातें सुनाते हैं | अभी तुम्हारी बुद्धि में
बहुत नई-नई बातें हैं जो और कोई की बुद्धि में नहीं हैं |
अच्छा!
मीठे-मीठे
सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और
गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
देही-अभिमानी अवस्था धारण कर सुखदाई बनना है | किसी की भी
खामियाँ (कमियाँ) नहीं निकालनी हैं | आपस में बहुत-बहुत प्यार
से रहना है, मतभेद में नहीं आना है |
2.
और सब बातों को छोड़ एक बाप से गुण ग्रहण करना है | सतोप्रधान
बनने का फुरना (फ़िक्र) रखना है | किसी की बात न सुननी है, न
ग्लानि करनी है | मिया मिट्ठू नहीं बनना है |
वरदान:-
मैं पन को
“बाबा” में समा देने वाले निरन्तर योगी, सहजयोगी भव
!
जिन बच्चों का
बाप से हर श्वांस में प्यार है, हर श्वांस में बाबा-बाबा है |
उन्हें योग की मेहनत नहीं करनी पड़ती है | याद का प्रूफ़ है –
कभी मुख से “मैं” शब्द नहीं निकल सकता | बाबा-बाबा ही निकलेगा
| “मैं पन” बाबा में समा जाए | बाबा बैकबोन है, बाबा ने कराया,
बाबा सदा साथ है, तुम्हीं साथ रहना, खाना, चलना, फिरना.....यह
इमर्ज रूप में स्मृति रहे तब कहेंगे सहजयोगी |
स्लोगन:-
मैं-मैं करना माना
माया रूपी बिल्ली का आह्वान करना
|
ओम्
शान्ति
|