15-03-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे बच्चे – तुम
रॉयल कुल के रॉयल स्टूडेन्ट हो, तुम्हारी चलन बहुत रॉयल होनी
चाहिए तब ही बाप का शो कर सकेंगे |

प्रश्न:-
विनाश के समय अन्तिम पेपर में पास कौन होगा? उसके लिए
पुरुषार्थ क्या है?
उत्तर:-
अन्तिम
पेपर में पास वही हो सकता है जिसे बाप के सिवाए पुरानी दुनिया
की कोई भी चीज़ न आये | याद आई तो फेल | इसके लिए बेहद की सारी
दुनिया से ममत्व निकल जाए | भाई-भाई की पक्की अवस्था हो |
देह-अभिमान टूटा हुआ हो |
ओम् शान्ति |
बच्चों को सदैव यह नशा रहना चाहिए कि हम कितने रॉयल स्टूडेन्ट
हैं | बेहद का मालिक हमको पढ़ा रहे हैं | तुम इतने ऊँच कुल के
रॉयल स्टूडेन्ट हो तो रॉयल स्टूडेन्ट की चलन भी रॉयल चाहिए तब
ही बाप का शो करेंगे | तुम विश्व में शान्ति स्थापन करने के
लिए निमित्त बने हुए हो, श्रीमत पर | तुमको शान्ति की प्राइज़
मिलती है | वह भी एक जन्म के लिए नहीं, जन्म-जन्मान्तर के लिए
मिलती है | बच्चे बाप का शुक्रिया क्या मानेंगे! बाप आपेही आकर
हाथ में बहिश्त (स्वर्ग) देते हैं | बच्चों को पता था क्या कि
बाप यह आकर देंगे! अब बाप कहते हैं – मीठे बच्चे, मुझे याद करो
| याद के लिए क्यों कहते हैं? क्योंकि इस याद से ही विकर्म
विनाश होने हैं | बेहद के बाप की पहचान मिली और निश्चय हुआ |
तकलीफ़ की कोई बात नहीं | भक्ति मार्ग में बाबा-बाबा करते रहते
हैं | ज़रूर बाप से कुछ वर्सा मिलेगा | तुम्हें पुरुषार्थ की
मार्जिन भी है | जितना पुरुषार्थ करेंगे उतना ऊँच पद मिलेगा |
बाप, टीचर, सतगुरु – तीनों की श्रीमत मिलती है | उस मत पर चलना
है | रहना भी अपने घर में है | मत पर चलने में ही विघ्न पड़ते
हैं | माया का पहला विघ्न है ही देह-अभिमान | बाप कहते हैं
अपने को आत्मा समझो | फिर क्यों नहीं श्रीमत को मानते हो?
बच्चे कहते हैं हम कोशिश तो करते हैं परन्तु माया करने नहीं
देती | बच्चे समझते हैं पढ़ाई में खास पुरुषार्थ ज़रूर चाहिए |
जो अच्छे बच्चे हैं उनको फालो करना चाहिए | सभी यही पुरुषार्थ
करते हैं कि हम बाप से ऊँच वर्सा ले लेवें | काँटे से फूल बनने
के लिए याद की फ़ालो करना चाहिए | सभी यही पुरुषार्थ करते हैं
कि हम बाप से ऊँच वर्सा ले लेवें | काँटे से फूल बनने के लिए
याद की बहुत ज़रूरत है | 5 विकारों के काँटे निकल जाएं तो फूल
बन जायेंगे | वह निकलेंगे योगबल से | कई बच्चे सोचते हैं फलाना
ऐसे चला गया, शायद हम भी चले जायें | लेकिन उसे देख फिर
पुरुषार्थ करना चाहिए ना | शरीर छोड़ें तो बाबा की याद हो,
वशीकरण मन्त्र याद हो | और कुछ भी याद न हो सिवाए एक बाप के,
तब प्राण तन से निकलें | बाबा, बस हम आपके पास आये कि आये |
ऐसे बाबा को याद करने से आत्मा में जो किचड़ा भरा हुआ होगा, वह
सब भस्म हो जायेगा | आत्मा में है तो शरीर में भी कहेंगे |
जन्म-जन्मान्तर का किचड़ा है, वह सारा जलना है | जब तुम्हारा
किचड़ा सारा जल जाये तब दुनिया भी साफ़ हो जाये | दुनिया से सारा
किचड़ा निकालना है – तुम्हारे लिए | तुम्हें सिर्फ़ अपना किचड़ा
नहीं साफ़ करना है, सभी का किचड़ा साफ़ करना है | बाबा को बुलाए
हैं कि बाबा आकर इस दुनिया से किचड़े को साफ़ करो | सारे विश्व
को पवित्र बनाओ | किसके लिए? उस पवित्र दुनिया में तुम बच्चे
ही तो पहले-पहले राज्य करने आते हो | तो बाप तुम्हारे लिए
तुम्हारे देश में आये हैं |
भक्ति और ज्ञान में बहुत फ़र्क है | भक्ति के कितने अच्छे-अच्छे
गीत गाते हैं | परन्तु किसका कल्याण नहीं करते हैं | कल्याण तो
है ही अपने स्वधर्म में टिकने में और बाप को याद करने में |
तुम्हारा याद करना ऐसा ही है जैसे लाइट हाउस फिरता है |
स्वदर्शन को ही लाइट हाउस कहते हैं | तुम बच्चे दिल अन्दर
समझते हो बापदादा से हमें स्वर्ग का वर्सा मिलना है | यह है ही
सत्य नारायण की कथा, नर से नारायण बनने की | बाप समझाते हैं
तुम्हारी आत्मा जो तमोप्रधान बनी है, उनको सतोप्रधान बनना है |
सतयुग में सतोप्रधान थे अब फिर सतोप्रधान बनाने बाप आया है |
बाप कहते हैं मुझे याद करने से ही तुम सतोप्रधान बन जायेंगे |
बाप ने ही गीता सुनाई थी | अब तो मनुष्य सुनाते हैं, कितना
फ़र्क हो गया है | भगवान् तो भगवान् है, वही मनुष्य से देवता
बनाते हैं | नई दुनिया में हैं ही पवित्र देवतायें | बेहद का
बाप है ही नई दुनिया का वर्सा देने वाला | बाप को याद करते रहो
तो अन्त मती सो गति हो जायेगी | तुम जानते हो – बाप आते हैं
संगमयुग पर, पुरुषोत्तम बनाने के लिए | अब यह 84 का चक्र पूरा
होता है, फिर शुरू होगा | यह भी ख़ुशी होनी चाहिए | प्रदर्शनी
में जो लोग आते हैं, उनको भी पहले शिवबाबा के चित्र के सामने
लाकर खड़ा करो | बाप कहते हैं मुझे याद करने से तुम यह बन
जायेंगे | फादर से वर्सा ही सतयुग का मिलता है | भारत सतयुग
था, अब नहीं है फिर बनना है इसलिए बाप और बादशाही को याद करो
तो अन्त मती सो गति हो जायेगी | यह है सच्चा बाप, इनके बच्चे
बनने से तुम सचखण्ड के मालिक बन जायेंगे | पहले-पहले अल्फ को
पक्का कराओ | अल्फ बाबा, बे बादशाही | बाप को याद करो तो याद
से ही विकर्म विनाश होंगे और तुम स्वर्ग में चले जायेंगे |
कितना सहज है | जन्म-जन्मान्तर भक्ति की बातें सुनते-सुनते
बुद्धि को माया का ताला लग गया है | बाप आकर चाबी से ताला
खोलते हैं | इस समय सभी के कान जैसे बन्द हैं | पत्थरबुद्धि
हैं | तुम लिखते भी हो – शिवबाबा याद है? स्वर्ग का वर्सा याद
है? बादशाही याद करने से मुख मीठा तो होगा ना | बाप कहते हैं
मैं तुम बच्चों का कितना उपकार करता हूँ | तुम तो अपकार ही
करते आये हो | वह भी ड्रामा में नूँध है, किसका दोष नहीं है |
तुम बच्चों की यह मिशन है ही पत्थरबुद्धियों को पारसबुद्धि
अथवा काँटों को फूल बनाने के लिए | यह मिशन तुम्हारी चालू है |
सब एक-दो को काँटों से फूल बना रहे हैं | उन्हों को भी ऐसा
बनाने वाला ज़रूर किंग फ्लावर होगा | स्वर्ग की स्थापना करने
वाला अथवा फूलों का बगीचा बनाने वाला एक ही बाप है | तुम हो
खुदाई खिदमतगार | तमोप्रधान को सतोप्रधान बनाना – यह खिदमत है
और कोई तकलीफ़ नहीं देते हैं | समझाना भी बहुत सहज है | कलियुग
में है ही तमोप्रधान | अगर कलियुग की आयु बढ़ा देंगे तो और ही
तमोप्रधान बनेंगे |
तुम
जानते हो अब हमको फूल बनाने वाला बाप आया है | काँटा बनाना
रावण का काम है | फूल बाप बनाते हैं | जिसको शिवबाबा याद है,
उनको ज़रूर स्वर्ग भी याद होगा | प्रभातफेरी जब निकालते हो तो
उसमें भी दिखाओ कि हम प्रजापिता ब्रह्माकुमार-कुमारियां भारत
पर इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य स्थापना कर रहे हैं | हम
ब्राह्मण सो देवता बनते हैं | देवता सो फिर क्षत्रिय, सो
वैश्य......यह बाजोली है | किसको समझाना बहुत सहज है | हम
ब्राह्मण हैं | ब्राह्मणों की चोटी होती है | तुम भी समझते हो
हमने 84 का चक्र पूरा किया | बच्चों को कितनी अच्छी नॉलेज
मिलती है | और सब है भक्ति | ज्ञान एक बाप ही सुनाते हैं |
सर्व का सद्गति दाता एक बाप ही है | पुरुषोत्तम संगमयुग भी एक
ही है | इस समय बाप तुम बच्चों को पढ़ाते हैं | भक्ति में फिर
यादगार चलता है | बाप ने तुम बच्चों को रास्ता बताया है कि यह
पुरुषार्थ करने से तुम यह वर्सा ले सकते हो | यह पढ़ाई बहुत सहज
है | नर से नारायण बनने की पढ़ाई है | कथा कहना रांग है क्योंकि
कथा में एम ऑब्जेक्ट नहीं होती है | पढ़ाई में एम ऑब्जेक्ट है |
कौन पढ़ाते हैं? ज्ञान सागर | बाप कहते हैं मैं आकर तुम्हारी
रत्नों से झोली भरता हूँ | बेहद के बाप से तुम प्रश्न क्या
पूछेंगे | इस समय सब हैं पत्थरबुद्धि | रावण को ही नहीं जानते
| तुमको अब अक्ल मिलता है पूछने के लिए | मनुष्यों से पूछो –
आखिर रावण है कौन? कब से इनका जन्म हुआ? कब से जलाते हो?
कहेंगे अनादि है | तुम अनेक प्रकार से प्रश्न पूछ सकते हो | वह
भी समय आयेगा तो पूछेंगे | कोई रेसपॉन्स कर नहीं सकेंगे |
तुम्हारी आत्मा याद की यात्रा में तत्पर हो जायेगी | अब अपने
से पूछो – हम सतोप्रधान बने हैं? दिल गवाही देती है? अभी
कर्मातीत अवस्था तो हुई नहीं है | होनी है | इस समय तुम बहुत
थोड़े हो इसलिए तुम्हारी कोई सुनते नहीं हैं और तुम्हारी बात ही
न्यारी है | पहले-पहले तो बताओ बाप संगमयुग पर आते हैं | एक-एक
बात जब समझें तब आगे बढ़ाओ | बहुत धैर्य से प्यार से समझाना है
कि तुमको दो बाप हैं – लौकिक और पारलौकिक | पारलौकिक बाप से
बेहद का वर्सा तब मिलता है जब सतोप्रधान बनते हो | बाप याद पड़े
तो ख़ुशी का पारा चढ़े | तुम बच्चों में बहुत गुण भरे जाते हैं |
तुम बच्चों को बाप आकर क्वालिफिकेशन सिखलाते हैं | हेल्थ-वेल्थ
भी देते हैं, गुण भी सुधारते हैं | एज्यूकेशन भी देते हैं |
जेल की सजाओं से भी छुड़ाते हैं |
तुम
बहुत अच्छी रीति मिनिस्टर आदि को भी समझा सकते हो | समझाना ऐसे
चाहिए जो उनको पानी-पानी कर देना चाहिए | तुम्हारा ज्ञान बहुत
मीठा है | प्रेम से बैठकर सुनें तो प्रेम के आँसू आ जाएं |
हमेशा इस दृष्टि से देखो कि हम भाई को रास्ता बताते हैं |
बोलो, हम श्रीमत पर भारत की सच्ची सेवा कर रहे हैं | भारत की
सेवा में ही पैसे लगाते हैं | बाबा कहते हैं देहली में सेवा का
घेराव डालो, विस्तार करो | परन्तु अभी तक किसी को घायल किया
नहीं है, घायल करने में योगबल चाहिए | योगबल से तुम विश्व के
मालिक बनते हो | साथ-साथ ज्ञान भी है | योग से ही तुम किसको
कशिश कर सकेंगे | अभी बच्चे भाषण भल अच्छा करते हैं परन्तु योग
की कशिश कम है | मुख्य बात है योग की | तुम बच्चे योग से अपने
को पवित्र बनाते हो | तो योगबल बहुत चाहिए | उसकी बहुत कमी है
| अन्दर ख़ुशी में नाचना चाहिए, यह ख़ुशी का डांस है | इस
ज्ञान-योग से तुम्हारे अन्दर डांस होती है | बाप की याद में
रहते-रहते तुम अशरीरी बन जाते हो | ज्ञान से अशरीरी होना है,
इसमें गुम होने की बात नहीं, बुद्धि में ज्ञान चाहिए | अब घर
जाना है फिर राजाई में आयेंगे | बाप ने विनाश और स्थापना का
साक्षात्कार भी कराया है | यह दुनिया सारी जली पड़ी है, हम नई
दुनिया के लायक बन रहे हैं | अब घर जाना है इसलिए शरीर में भी
कोई ममत्व नहीं रहना चाहिए | इस शरीर से, इस दुनिया से उपराम
रहना चाहिए | सिर्फ़ अपने घर को और राजधानी को याद करना है |
कोई भी चीज़ में आसक्ति नहीं हो | विनाश भी कड़ा होने वाला है |
जब विनाश होने लगेगा तो तुमको ख़ुशी होगी – बस, हम ट्रान्सफर
हुए कि हुए | पुरानी दुनिया की कोई भी चीज़ याद आई तो फेल |
बच्चों के पास कुछ है नहीं तो याद क्या आयेगा? बेहद की सारी
दुनिया से ममत्व मिट जाए, इसमें मेहनत है | भाई-भाई की पक्की
अवस्था भी तब रह सकती है जब देह-अभिमान टूट जाए | देह-अभिमान
में आने से कुछ न कुछ घाटा पड़ता है | देही-अभिमानी होने से
घाटा नहीं पड़ेगा | हम भाई को पढ़ाते हैं | भाई से बातें करते
हैं, यह पक्की टेव (आदत) पड़ जाये | अगर स्कालरशिप लेनी है तो
इतना पुरुषार्थ करना है | जब समझाते हो तब भी याद रहे कि हम सब
भाई-भाई हैं | सब आत्मायें एक बाप के बच्चे हैं | सब भाईओं का
बाप के वर्से पर हक है | बहन का भी भान न आये | इसको कहा जाता
है आत्म-अभिमानी | आत्मा को यह शरीर मिला है, उसमें किसका नाम
मेल का, किसका फ़ीमेल का पड़ा है | इनसे परे बाकी आत्मा है |
सोचना चाहिए – बाबा जो रास्ता बताते हैं वह बरोबर ठीक है |
यहाँ बच्चे आते ही हैं यह प्रैक्टिस करने | ट्रेन में किसको भी
बैज पर समझा सकते हो | बैठकर एक-दो से पूछो तुमको कितने बाप
हैं? फिर उत्तर दो | यह है दूसरे का ध्यान खिंचवाने की युक्ति
| फिर तुमको दो बाप हैं, हमको तीन हैं | इस अलौकिक बाप द्वारा
हमको वर्सा मिलता है | तुम्हारे पास फर्स्टक्लास चीज़ है | कोई
कहे इससे क्या फ़ायदा है? बोलो, हमारा फ़र्ज़ है अन्धों की लाठी
बन रास्ता दिखाना | जैसे नन्स सर्विस करती हैं, तुम भी करो |
तुमको बहुत प्रजा बनानी है | ऊँच पद पाने के लिए पुरुषार्थ
करना है | तुम सबको चढ़ती कला का रास्ता बताते हो | एक बाप को
याद करते रहो तो भी बहुत ख़ुशी होगी और विकर्म भी विनाश होंगे |
बाप से वर्सा लेना बहुत सहज है | परन्तु बहुत बच्चे गफ़लत करते
हैं | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
अन्त समय में पास होने के लिए इस शरीर और दुनिया से उपराम रहना
है, किसी भी चीज़ में आसक्ति नहीं रखनी है | बुद्धि में रहे कि
अब हम ट्रान्सफर हुए कि हुए |
2.
बहुत धैर्य और प्यार से सबको दो बाप का परिचय देना है | ज्ञान
रत्नों से झोली भरकर दान करना है | काँटों को फूल बनाने की
सेवा ज़रूर करनी है |
वरदान:-
विघ्नकारी आत्मा को शिक्षक समझ उनसे पाठ पढ़ने वाले
अनुभवी-मूर्त भव

जो
आत्मायें विघ्न डालने के निमित्त बनती हैं उन्हें विघ्नकारी
आत्मा नहीं देखो, उनको सदा पाठ पढ़ाने वाली, आगे बढ़ाने वाली
निमित्त आत्मा समझो | अनुभवी बनाने वाले शिक्षक समझो | जब कहते
हो निन्दा करने वाले मित्र हैं, तो विघ्नों को पास कराके
अनुभवी बनाने वाले शिक्षक हुए इसलिए विघ्नकारी आत्मा को उस
दृष्टि से देखने के बजाए सदा के लिए विघ्नों से पार कराने के
निमित्त, अचल बनाने के निमित्त समझो, इससे और भी अनुभवों की
अथॉरिटी बढ़ती जायेगी |
स्लोगन:-
कम्प्लेन्ट के फ़ाइल ख़त्म कर फाइन और रिफ़ाइन बनो |

ओम्
शान्ति
|