15-01-15
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - तुम अपने को संगमयुगी ब्राह्मण समझो तो सतयुगी झाड़
देखने में आयेंगे और अपार खुशी में रहेंगे” 
प्रश्न:-
जो
ज्ञान के शौकीन बच्चे हैं,
उनकी
निशानी क्या होगी?
उत्तर:-
वे
आपस में ज्ञान की ही बातें करेंगे । कभी परचिंतन नहीं करेंगे ।
एकान्त में जाकर विचार सागर मंथन करेंगे ।
प्रश्न:-
इस
सृष्टि ड्रामा का कौन सा राज तुम बच्चे ही समझते हो?
उत्तर:-
इस
सृष्टि में कोई भी चीज सदा कायम नहीं है,
सिवाए
एक शिवबाबा के । पुरानी दुनिया की आत्माओं को नई दुनिया में ले
जाने के लिए कोई तो चाहिए,
यह भी
ड्रामा का राज तुम बच्चे ही समझते हो ।
ओम्
शान्ति |
रूहानी बच्चों प्रति पुरूषोत्तम संगमयुग पर आने वाला बाप समझा
रहे हैं । यह तो बच्चे समझते -हम ब्राह्मण हैं । अपने को
ब्राह्मण समझते हो वा यह भी भूल जाते हो?
ब्राह्मणों को अपना कुल नहीं भूलता है । तुमको भी यह जरूर याद
रहना चाहिए कि हम ब्राह्मण हैं । एक बात याद रहे तो भी बेड़ा
पार है । संगम पर तुम नई-नई बातें सुनते हो तो उसका चिन्तन
चलना चाहिए,
जिसको विचार सागर मंथन कहा जाता है । तुम हो रूप-बसन्त ।
तुम्हारी आत्मा में सारा ज्ञान भरा जाता है तो रत्न निकलने
चाहिए । अपने को समझना है हम संगमयुगी ब्राह्मण हैं । कोई तो
यह भी समझते नहीं हैं । अगर अपने को संगमयुगी समझें तो सतयुग
के झाड़ देखने में आयें और अथाह खुशी भी रहे । बाप जो समझाते
हैं वह अन्दर रिपीट होना चाहिए । हम संगमयुग पर हैं,
यह
भी तुम्हारे सिवाए और कोई को पता नहीं है । संगमयुग की पढ़ाई
टाइम भी लेती है । यह एक ही पढाई है नर से नारायण,
नर्कवासी से स्वर्गवासी बनने की । यह याद रहने से भी खुशी
रहेगी-हम सो देवता स्वर्गवासी बन रहे हैं । संगमयुगवासी होंगे
तब तो स्वर्गवासी बनेंगे । आगे नर्कवासी थे तो बिल्कुल गन्दी
अवस्था थी,
गंदे
काम करते थे । अब वह मिटाना है । मनुष्य से देवता स्वर्गवासी
बनना है । कोई की स्त्री मर जाती है,
तुम
पूछो-तुम्हारी युगल कहाँ हैं?
कहेंगे वह स्वर्गवासी हो गई । स्वर्ग क्या चीज है,
वह
नहीं जानते । अगर स्वर्गवासी हुई फिर तो खुश होना चाहिए ना ।
अभी तुम बच्चे इन बातों को जानते हो । अन्दर विचार चलना
चाहिए-हम अभी संगम पर हैं,
पावन
बन रहे हैं । स्वर्ग का वर्सा बाप से ले रहे हैं । यह घड़ी-घड़ी
सिमरण करना है,
भूलना नहीं चाहिए । परन्तु माया भुलाकर एकदम कलियुगी बना देती
है । एक्टिविटी ऐसी चलती है,
जैसे
एकदम कलियुगी । वह खुशी का पारा नहीं रहता । शक्ल जैसे मुर्दे
मिसल । बाप भी कहते हैं-सब काम चिता पर बैठ जलकर मुर्दे हो पड़े
हैं । तुम जानते हो हम मनुष्य से देवता बनते हैं तो वह खुशी
होनी चाहिए ना इसलिए गायन भी है अतीन्द्रिय सुख की भासना
गोप-गोपियों से पूछो । तुम अपनी दिल से पूछो हम उस भासना में
रहते हैं?
तुम
ईश्वरीय मिशन हो ना । ईश्वरीय मिशन क्या काम करती है?
पहले
तो शूद्र से ब्राह्मण,
ब्राह्मण से देवता बनाती है । हम ब्राह्मण हैं-यह भूलना नहीं
चाहिए । वह ब्राह्मण तो झट कह देते हैं-हम ब्राह्मण हैं । वह
तो हैं कुख की सन्तान । तुम हो मुख वंशावली । तुम ब्राह्मणों
को बहुत नशा होना चाहिए । गाया हुआ भी है ब्रह्मा भोजन.... ।
तुम किसी को ब्रह्मा भोजन खिलाते हो तो कितना खुश होते हैं ।
हम पवित्र ब्राह्मणों के हाथ का खाते हैं । मन्सा-वाचा-कर्मणा
पवित्र होना चाहिए । कोई अपवित्र कर्तव्य नहीं करना चाहिए ।
टाइम तो लगता है । जन्मते ही तो कोई नहीं बनता । भल गायन है
सेकण्ड में जीवन मुक्ति,
बाप
का बच्चा बना और वर्सा मिला । एक बार पहचान कर कहा-यह
प्रजापिता ब्रह्मा है । ब्रह्मा वल्द शिव । निश्चय करने से ही
वारिस हो जाता है । फिर अगर कोई अकर्तव्य करेंगे तो सजायें
बहुत खानी पड़ेगी । जैसे काशी कलवट का समझाया है । सजा खाने से
हिसाब-किताब चुक्तू हो जाता है । मुक्ति के लिए ही कुएं में
कूदते थे । यहाँ तो वह बात नहीं है । शिवबाबा बच्चों को कहते
हैं-मामेकम याद करो । कितना सहज है । फिर भी माया का चक्र आ
जाता है । यह तुम्हारी युद्ध सबसे जास्ती टाइम चलती है ।
बाहुबल की युद्ध इतना समय नहीं चलती है । तुम तो जब से आये हो,
युद्ध शुरू है । पुरानों से कितनी युद्ध चलती है,
नये
जो आयेंगे उनसे भी चलेगी । उस लड़ाई में भी मरते रहते हैं,
दूसरे शामिल होते रहते हैं । यहाँ भी मरते हैं,
वृद्धि को भी पाते हैं । झाड़ बड़ा तो होना ही है । बाप
मीठे-मीठे बच्चों को समझाते हैं-यह याद रहना चाहिए,
वह
बाप भी है,
सुप्रीम टीचर भी है,
सतगुरू भी है । कृष्ण को तो सतगुरू,
बाप,
टीचर
नहीं कहेंगे ।
तुम्हें सबका कल्याण करने का शौक होना चाहिए । महारथी बच्चे
सर्विस पर रहते हैं । उन्हों को तो बहुत खुशी रहती है । जहाँ
से निमन्त्रण मिलता है,
भागते हैं । प्रदर्शनी सर्विस कमेटी में भी अच्छे- अच्छे बच्चे
चुने जाते हैं । उन्हों को डायरेक्शन मिलते हैं,
सर्विस करते रहे तो कहेंगे यह ईश्वरीय मिशन के अच्छे बच्चे हैं
। बाप भी खुश होगा यह तो बहुत अच्छी सर्विस करते हैं । अपनी
दिल से पूछना चाहिए-हम सर्विस करते हैं?
कहते
हैं ऑन गॉड फादरली सर्विस । गॉड फादर की सर्विस क्या है?
बस,
सबको
यही पैगाम दो-मन्मनाभव । आदि-मध्य- अन्त की नॉलेज तो बुद्धि
में है । तुम्हारा नाम ही है-स्वदर्शन चक्रधारी । तो उसका
चिंतन चलना चाहिए । स्वदर्शन चक्र रूकता थोड़ेही है । तुम
चैतन्य लाइट हाउस हो । तुम्हारी महिमा बहुत गाई जाती है । बेहद
के बाप का गायन भी तुम समझते हो । वह ज्ञान का सागर पतित-पावन
है,
गीता
का भगवान है । वही ज्ञान और योगबल से यह कार्य कराते हैं,
इसमें योगबल का बहुत प्रभाव है । भारत का प्राचीन योग मशहूर है
। वह तुम अभी सीखते हो । सन्यासी तो हठयोगी हैं,
वह
पतितों को पावन बना न सके । ज्ञान है ही एक बाप के पास । ज्ञान
से तुम जन्म लेते हो । गीता को माई बाप कहा जाता है,
मात-पिता है ना । तुम शिवबाबा के बच्चे हो फिर मात-पिता चाहिए
ना । मनुष्य तो भल गाते हैं परन्तु समझते थोड़ेही हैं । बाप
समझाते हैं-इसका अर्थ कितना गुह्य है । गॉड फादर कहा जाता है,
फिर
मात-पिता क्यों कहा जाता?
बाबा
ने समझाया है- भल सरस्वती है परन्तु वास्तव में सच्ची-सच्ची
मदर ब्रह्मपुत्रा है । सागर और ब्रह्मपुत्रा हैं,
पहले-पहले संगम इनका होता है । बाबा इनमें प्रवेश करते हैं ।
यह कितनी महीन बातें हैं । बहुतों की बुद्धि में यह बातें रहती
नहीं जो चिंतन करें । बिल्कुल कम बुद्धि है,
कम
दर्जा पाने वाले हैं । उन्हों के लिए बाप फिर भी कहते- अपने को
आत्मा समझो । यह तो सहज है ना । हम आत्माओं का बाप है परमात्मा
। वह तुम आत्माओं को कहते हैं मामेकम याद करो तो विकर्म विनाश
हो । यह है मुख्य बात । डल बुद्धि वाले बड़ी बातें समझ न सके ।
इसलिए गीता में भी है-मन्मनाभव । सभी लिखते हैं-बाबा,
याद
की यात्रा बहुत डिफीकल्ट है । घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं । कोई न
कोई प्याइंट पर हारते हैं । यह बॉक्सिंग है-माया और ईश्वर के
बच्चों की । इसका किसको भी पता नहीं है । बाबा ने समझाया
है-माया पर जीत पाकर कर्मातीत अवस्था में जाना है । पहले-पहले
तुम आये हो कर्म सम्बन्ध में । उसमें आते- आते फिर आधाकल्प बाद
तुम कर्म बन्धन में आ गये हो । पहले-पहले तुम पवित्र आत्मा थी
। कर्मबन्धन न सुख का,
न दु
:ख का था,
फिर
सुख के संबंध में आये । यह भी अभी तुम समझते हो-हम सम्बन्ध में
थे,
अभी
दु :ख में हैं फिर जरूर सुख में होंगे । नई दुनिया जब थी तो
मालिक थे,
पवित्र थे,
अभी
पुरानी दुनिया में पतित हो पड़े हैं । फिर हम सो देवता बनते हैं,
तो
यह याद करना पड़े ना ।
बाप
कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप मिट जायेंगे,
तुम
मेरे घर में आ जायेंगे । वाया शान्तिधाम सुखधाम में आ जायेंगे
। पहले-पहले जाना है घर,
बाप
कहते हैं मुझे याद करो तो तुम पवित्र बनेंगे,
मैं
पतित-पावन तुमको पवित्र बना रहा हूँ - घर आने लिए । ऐसे-ऐसे
अपने से बातें करनी होती है । बरोबर अभी चक्र पूरा होता है,
हमने
इतने जन्म लिए हैं । अब बाप आया है पतित से पावन बनाने । योगबल
से ही पावन बनेंगे । यह योगबल बहुत नामीग्रामी है,
जो
बाप ही सिखला सकते हैं । इसमें शरीर से कुछ भी करने की दरकार
नहीं । तो सारा दिन इन बातों का मंथन चलना चाहिए । एकान्त में
कहाँ भी बैठो अथवा जाओ,
बुद्धि में यही चलता रहे । एकान्त तो बहुत है,
ऊपर
छत पर तो डरने की बात नहीं । आगे तुम सवेरे में मुरली सुनने के
बाद चलते थे पहाड़ों पर । जो सुना उसका चिंतन करने के लिए
पहाड़ियों पर जाकर बैठते थे । जो ज्ञान के शौकीन होंगे,
वह
तो आपस में ज्ञान की बातें ही करेंगे । ज्ञान नहीं है तो फिर
परचिंतन करते रहेंगे । प्रदर्शनी में तुम कितनों को यह रास्ता
बताते हो । समझते हो हमारा धर्म बहुत सुख देने वाला है । दूसरे
धर्म वालों को सिर्फ इतना समझाना है कि बाप को याद करो । यह
नहीं समझना है कि यह मुसलमान हैं,
मैं
फलाना हूँ । नहीं,
आत्मा को देखना है,
आत्मा को समझाना है । प्रदर्शनी में समझाते हो तो यह प्रैक्टिस
रहे-हम आत्मा भाई को समझाते हैं । अब हमको बाप से वर्सा मिल
रहा है । अपने को आत्मा समझ भाईयों को ज्ञान देते हैं- अभी चलो
बाप के पास,
बहुत
समय बिछुड़े हो । वह है शान्तिधाम,
यहाँ
तो कितनी अशान्ति-दु :ख आदि हैं । अब बाप कहते हैं अपने को
आत्मा समझने की प्रैक्टिस डालो तो नाम,
रूप,
देह
सब भूल जाये । फलाना मुसलमान है,
ऐसे
क्यों समझते हो?
आत्मा समझकर समझाओ । समझ सकते हैं - यह आत्मा अच्छी है या बुरी
है । आत्मा के लिए ही कहा जाता है-बुरे से दूर भागना चाहिए ।
अभी तुम बेहद के बाप के बच्चे हो । यहाँ पार्ट बजाया अब फिर
वापिस चलना है,
पावन
बनना है । बाप को जरूर याद करना पड़े । पावन बनेंगे तो पावन
दुनिया के मालिक बनेंगे । जबान से प्रतिज्ञा करनी होती है ।
बाप भी कहते हैं प्रतिज्ञा करो । बाप युक्ति भी बताते हैं कि
तुम आत्मा भाई- भाई हो फिर शरीर में आते हो तो भाई-बहिन हो ।
भाई-बहिन कभी विकार में जा नहीं सकते । पवित्र बन और बाप को
याद करने से तुम विश्व के मालिक बन जायेंगे । समझाया जाता
है-माया से हारे फिर उठकर खड़े हो जाओ । जितना खड़े होंगे उतनी
प्राप्ति होगी । ना (घाटा) और जमा तो होता है ना । आधाकल्प जमा
फिर रावण राज्य में ना हो जाता है । हिसाब है ना । जीत जमा,
हार
ना । तो अपनी पूरी जांच करनी चाहिए । बाप को याद करने से तुम
बच्चों को खुशी होगी । वह तो सिर्फ गायन करते हैं,
समझ
कुछ नहीं । बेसमझी से सब-कुछ करते हैं । तुम तो पूजा आदि करते
नहीं हो । बाकी गायन तो करेंगे ना । उस एक बाप का गायन है
अव्यभिचारी । बाप आकर तुम बच्चों को आपेही पढ़ाते हैं । तुम्हे
कुछ प्रश्न पूछने की दरकार नहीं है । चक्र स्मृति में रहना
चाहिए । समझना चाहिए-कैसे हम माया पर जीत पाते हैं और फिर हार
खाते हैं । बाप समझाते हैं हार खाने से सौ गुणा दण्ड पड़ जायेगा
। बाप कहते हैं-सतगुरू की निंदा नहीं कराओ,
नहीं
तो ठौर नहीं पायेंगे । यह सत्य नारायण की कथा है,
इसको
कोई नहीं जानते हैं । गीता अलग,
सत्य
नारायण की कथा अलग कर दी है । नर से नारायण बनने के लिए यह
गीता है ।
बाप
कहते हैं हम तुमको नर से नारायण बनने की कथा सुनाता हूँ,
इसको
गीता भी कहते,
अमरनाथ की कथा भी कहते हैं । तीसरा नेत्र बाप ही देते हैं । यह
भी जानते हो हम देवता बनते हैं तो गुण भी जरूर होने चाहिए । इस
सृष्टि में कोई भी चीज़ सदा कायम है नहीं । सदा कायम तो एक
शिवबाबा ही है,
बाकी
तो सबको नीचे आना ही है । परन्तु वह भी संगम पर आते हैं,
सभी
को वापिस ले जाते हैं । पुरानी दुनिया की आत्माओं को नई दुनिया
में ले जाने के लिए कोई तो चाहिए ना । तो ड्रामा के अन्दर यह
सब राज है । बाप आकर पवित्र बनाते हैं,
कोई
भी देहधारी को भगवान नहीं कहा जा सकता । इस समय बाप समझाते हैं,
आत्मा के पंख टूटे हुए हैं तो उड़ नहीं सकती । बाप आकर ज्ञान और
योग के पंख देते हैं । योगबल से तुम्हारे पाप भस्म हो जायेंगे,
पुण्य आत्मा बन जायेंगे । पहले-पहले तो मेहनत भी करनी चाहिए,
इसलिए बाप कहते हैं मामेकम याद करो,
चार्ट रखो । जिनका चार्ट अच्छा होगा,
वह
लिखेंगे और उनको खुशी होगी । अभी सभी मेहनत करते हैं,
चार्ट नहीं लिखते तो योग का जौहर नहीं भरता । चार्ट लिखने में
फायदा है बहुत । चार्ट के साथ प्याइंटस भी चाहिए । चार्ट में
तो दोनों लिखेंगे-सर्विस कितनी की और याद कितना किया?
पुरूषार्थ ऐसा करना है जो पिछाड़ी में कोई भी चीज़ याद न आये ।
अपने को आत्मा समझ पुण्य आत्मा बन जायें-यह मेहनत करनी है ।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
एकान्त
में ज्ञान का मनन- चिन्तन करना है । याद की यात्रा में रह,
माया पर जीत पाकर कर्मातीत अवस्था को पाना है ।
2.
किसी को
भी ज्ञान सुनाते समय बुद्धि में रहे कि हम आत्मा भाई को ज्ञान
देते हैं । नाम,
रूप,
देह सब भूल जाये । पावन बनने की प्रतिज्ञा कर,
पावन बन पावन दुनिया का मालिक बनना है ।
वरदान:-
सदा
बाप के अविनाशी और निस्वार्थ प्रेम में लवलीन रहने वाले
मायाप्रूफ
भव ! 
जो
बच्चे सदा बाप के प्यार में लवलीन रहते हैं उन्हें माया
आकर्षित नहीं कर सकती । जैसे वाटरप्रूफ कपड़ा होता है तो पानी
की एक बूंद भी नहीं टिकती । ऐसे जो लगन में लवलीन रहते हैं वह
मायाप्रूफ बन जाते हैं । माया का कोई भी वार,
वार
नहीं कर सकता क्योंकि बाप का प्यार अविनाशी और नि:स्वार्थ है,
इसके
जो अनुभवी बन गये वह अल्पकाल के प्यार में फँस नहीं सकते । एक
बाप दूसरा मैं,
उसके
बीच में तीसरा कोई आ ही नहीं सकता ।
स्लोगन:-
न्यारे-प्यारे होकर कर्म करने वाला ही सेकण्ड में फुलस्टॉप लगा
सकता है । 
अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए विशेष होमवर्क
अव्यक्त
रिथति का अनुभव करने के लिए सदा याद रहे कि
“समस्याओं
को दूर भगाना है सम्पूर्णता को समीप लाना है”
।
इसके लिए किसी भी ईश्वरीय मर्यादा में बेपरवाह नहीं बनना,
आसुरी मर्यादा वा माया से बेपरवाह बनना । समस्या का सामना करना
तो समस्या समाप्त हो जायेगी ।
ओम्
शान्ति |