26-09-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - तुम्हारा काम है अपने आपसे बातें कर पावन बनना,
दूसरी आत्माओं के चिंतन में अपना टाइम वेस्ट मत करो” 
प्रश्न:-
कौन-सी बात बुद्धि में आ गई तो पुरानी सब आदतें छूट जायेंगी?
उत्तर:-
हम
बेहद बाप की सन्तान हैं तो विश्व के मालिक ठहरे,
हमें
देवता बनना है-यह बात बुद्धि में आ गई तो पुरानी सब आदतें छूट
जायेंगी । तुम कहो,
न कहो,
आपेही
छोड़ देंगे । उल्टा-सुल्टा खान-पान,
शराब
आदि खुद ही छोड़ देंगे । कहेंगे वाह! हमको तो यह लक्ष्मी-नारायण
बनना है । 21 जन्मों का राज्य- भाग्य मिलता है तो क्यों नहीं
पवित्र रहेंगे!
ओम्
शान्ति |
बाप
घड़ी-घड़ी बच्चों का अटेंशन खिंचवाते हैं कि बाप की याद में बैठे
हो?
बुद्धि कोई और तरफ तो नहीं भागती है?
बाप
को बुलाते ही इसलिए हैं कि बाबा आकर हमें पावन बनाओ । पावन तो
जरूर बनना है और नॉलेज तो तुम किसको भी समझा सकते हो । यह
सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है,
किसको भी तुम समझाओ तो झट समझ जायेंगे । भल पवित्र नहीं होगा
तो भी नॉलेज तो पढ़ ही लेगा । कोई बड़ी बात नहीं है । 84 का चक्र
और हरेक युग की इतनी आयु है,
इतने
जन्म होते हैं । कितना सहज है । इनका कनेक्शन याद से नहीं है,
यह
तो है पढ़ाई । बाप तो यथार्थ बात समझाते हैं । बाकी है
सतोप्रधान बनने की बात । वह होंगे याद से । अगर याद नहीं
करेंगे तो बहुत छोटा पद पा लेंगे । इतना ऊँच पद पा नहीं सकेंगे
इसलिए कहा जाता है अटेंशन । बुद्धि का योग बाप के साथ हो ।
इनको ही प्राचीन योग कहा जाता है । टीचर के साथ योग तो हरेक का
होगा ही । मूल बात है याद की । याद की यात्रा से ही सतोप्रधान
बनना है और सतोप्रधान बन वापस घर जाना है । बाकी पढ़ाई तो
बिल्कुल सहज है । कोई बच्चा भी समझ सकते हैं । माया की युद्ध
इस याद में ही चलती है । तुम बाप को याद करते हो और माया फिर
अपनी तरफ खींचकर भुला देती है । ऐसे नहीं कहेंगे कि मेरे में
तो शिवबाबा बैठा है,
मैं
शिव हूँ । नहीं,
मैं
आत्मा हूँ,
शिवबाबा को याद करना है । ऐसे नहीं मेरे अन्दर शिव की प्रवेशता
है । ऐसे हो नहीं सकता । बाप कहते हैं मैं कोई में जाता नहीं
हूँ । हम इस रथ पर सवार होकर ही तुम बच्चों को समझाते हैं ।
हाँ,
कोई
डल बुद्धि बच्चे हैं और कोई अच्छा जिज्ञासू आ जाता है तो उनकी
सर्विस अर्थ मैं प्रवेश कर दृष्टि दे सकता हूँ । सदैव नहीं बैठ
सकता हूँ । बहु रूप धारण कर किसका भी कल्याण कर सकते हैं ।
बाकी ऐसे कोई नहीं कह सकते कि मेरे में शिवबाबा की प्रवेशता है,
मुझे
शिवबाबा यह कहते हैं । नहीं,
शिवबाबा तो बच्चों को ही समझाते हैं । मूल बात है ही पावन बनने
की,
जो
फिर पावन दुनिया में जा सके । 84 का चक्र तो बहुत सहज समझाते
हैं । चित्र सामने लगे हुए हैं । बाप बिगर इतना ज्ञान तो कोई
दे न सके । आत्मा को ही नॉलेज मिलती है । उनको ही ज्ञान का
तीसरा नेत्र कहा जाता है । आत्मा को ही सुख- दुःख होता है,
उनको
यह शरीर है ना । आत्मा ही देवता बनती है । कोई बैरिस्टर,
कोई
व्यापारी आत्मा ही बनती है । तो अब आत्माओं से बाप बैठ बात
करते हैं,
अपनी
पहचान देते हैं । तुम जब देवता थे,
तो
मनुष्य ही थे,
परन्तु पवित्र आत्मायें थी । अभी तुम पवित्र नहीं हो इसलिए
तुम्हें देवता नहीं कह सकते । अब देवता बनने के लिए पवित्र
जरूर बनना है । उसके लिए बाबा को याद करना है । अक्सर करके यही
कहते हैं-बाबा,
मेरे
से यह भूल हुई जो हम देह- अभिमान में आ गया । बाप बैठ बच्चों
को समझाते हैं पावन जरूर बनना है । कोई विकर्म न करो । तुमको
सर्वगुण सम्पन्न यहाँ बनना है । पावन बनने से मुक्तिधाम में
चले जायेंगे । और कोई प्रश्र पूछने की बात ही नहीं है । तुम
अपने से बात करो,
दूसरी आत्माओं का चिंतन नहीं करो । कहते हैं लड़ाई में दो करोड़
मरे । इतनी आत्मायें कहाँ गई?
अरे,
वह
कहाँ भी गये,
उसमें तुम्हारा क्या जाता है । तुम क्यों टाइम वेस्ट करते हो?
और
कोई भी बात पूछने की दरकार नहीं । तुम्हारा काम है पावन बनकर
पावन दुनिया का मालिक बनना । और बातों में जाने से मूंझ पड़ेंगे
। कोई को पूरा उत्तर नहीं मिलता है तो मूंझ पड़ते हैं ।
बाप
कहते हैं मनमनाभव । देह सहित देह के सब सम्बन्ध छोड़ो,
मेरे
पास ही तुमको आना है । मनुष्य मरते हैं तो जब शमशान में ले
जाते हैं उस समय मुंह इस तरफ और पाव शमशान तरफ रखते हैं फिर जब
शमशान के पास पहुँचते हैं तो पाव इस तरफ और मुँह शमशान की तरफ
कर देते हैं । तुम्हारा भी घर ऊपर में है ना । ऊपर में कोई
पतित जा नहीं सकते । पावन बनने के लिए बुद्धि का योग बाप के
साथ लगाना है । बाप के पास मुक्तिधाम में जाना है । पतित हैं
इसलिए ही बुलाते हैं कि हम पतितों को आकर पावन बनाओ,
लिबरेट करो । तो बाप कहते हैं अब पवित्र बनो । बाप जिस भाषा
में समझाते हैं,
उसमें ही कल्प-कल्प समझायेंगे । जो भाषा इनकी होगी,
उसमें ही समझायेंगे ना । आजकल हिन्दी बहुत चलती है,
ऐसे
नहीं कि भाषा बदल सकती है । नहीं,
संस्कृत भाषा आदि कोई देवताओं की तो है नहीं । हिन्दू धर्म की
संस्कृत नहीं है । हिन्दी ही होनी चाहिए । फिर संस्कृत क्यों
उठाते हैं?
तो
बाप समझाते हैं यहाँ जब बैठते हो तो बाप की याद में ही बैठना
है,
और
कोई बातों में तुम जाओ ही नहीं । इतने मच्छर निकलते हैं,
कहाँ
जाते हैं?
अर्थक्येक में ढेर के ढेर फट से मरते हैं,
आत्मायें कहाँ जाती हैं?
इसमें तुम्हारा क्या जाता है । तुमको बाप ने श्रीमत दी है कि
अपनी उन्नति के लिए पुरूषार्थ करो । औरों के चिंतन में मत जाओ
। ऐसे तो अनेक बातों का चिंतन हो जायेगा । बस,
तुम
मुझे याद करो,
जिसके लिए बुलाया है उस युक्ति में चलो । तुम्हे बाप से वर्सा
लेना है,
और
बातों में नहीं जाना है इसलिए बाबा घड़ी-घड़ी कहते हैं अटेंशन!
कहाँ बुद्धि तो नहीं जाती । भगवान की श्रीमत तो माननी चाहिए ना
। और कोई बात में फायदा नहीं । मुख्य बात है पावन बनने की । यह
पक्का याद रखो-हमारा बाबा,
बाबा
भी है,
टीचर
भी है,
प्रीसेप्टर भी है । यह जरूर दिल में याद रखना है-बाप,
बाप
भी है,
हमको
पढ़ाते हैं,
योग
सिखलाते हैं । टीचर पढ़ाते हैं तो बुद्धि का योग टीचर में और
पढ़ाई में भी जाता है । यही बाप भी कहते हैं तुम बाप के तो बन
ही गये हो । बच्चे तो हो ही,
तब
तो यहाँ बैठे हो । टीचर से पढ़ रहे हो । कहाँ भी रहते बाप के तो
हो ही फिर पढ़ाई में अटेंशन देना है । शिवबाबा को याद करेंगे तो
विकर्म विनाश होंगे और तुम सतोप्रधान बन जायेंगे । यह नॉलेज और
कोई दे न सके । मनुष्य तो घोर अन्धियारे में हैं ना । ज्ञान
में देखो-कितनी ताकत है । ताकत कहाँ से मिलती है?
बाप
से ताकत मिलती है जिससे तुम पावन बनते हो । फिर पढ़ाई भी
सिम्पुल है । उस पढ़ाई में तो बहुत मास लगते हैं । यहॉ तो 7 रोज
का कोर्स है । उससे तुम सब कुछ समझ जायेंगे फिर उसमें है
बुद्धि पर मदार । कोई जास्ती टाइम लगाते हैं,
कोई
कम । कोई तो 2 - 3 दिन में ही अच्छी रीति समझ जाते हैं । मूल
बात है बाप को याद करना,
पवित्र बनना । वही मुश्किलात होती है । बाकी पढ़ाई तो मोस्ट
सिम्पुल है । स्वदर्शन चक्रधारी बनना है । एक रोज के कोर्स में
भी सब कुछ समझ सकते हो । हम आत्मा है,
बेहद
के बाप की सन्तान है तो जरूर हम विश्व के मालिक ठहरे । यह
बुद्धि में आता है ना । देवता बनना है तो दैवीगुण भी धारण करने
हैं,
जिसको बुद्धि में आ गया वह फट से सब आदतें छोड़ देंगे । तुम कहो,
न
कहो,
आपही
छोड़ देंगे । उल्टा-सुल्टा खान-पान,
शराब
आदि खुद ही छोड़ देंगे । कहते हैं-वाह,
हमको
यह बनना है,
21
जन्मों के लिए राज्य मिलता है तो क्यों नहीं पवित्र रहेंगे ।
चटक जाना चाहिए । मुख्य बात है याद की यात्रा । बाकी 84 के
चक्र की नॉलेज तो एक सेकेण्ड में मिल जाती है । देखने से ही
समझ जाते हैं । नया झाड़ जरूर छोटा होगा । अभी तो कितना बड़ा झाड़
तमोप्रधान बन गया है । कल फिर नया छोटा बन जायेगा । तुम जानते
हो-यह ज्ञान कभी कहाँ से भी मिल नहीं सकता । यह पढ़ाई है,
पहली
मुख्य शिक्षा भी मिलती है कि बाप को याद करो । बाप पढ़ाते हैं,
यह
निश्चय करो । भगवानुवाच-मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ । और कोई
मनुष्य ऐसे कह न सके । टीचर पढ़ाते हैं तो जरूर टीचर को याद
करेंगे ना । बेहद का बाप भी है,
बाप
हमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं । परन्तु आत्मा कैसे पवित्र
बनेगी-यह कोई भी बता नहीं सकते हैं । भल अपने को भगवान कहें वा
कुछ भी कहें परन्तु पावन बना नहीं सकते । आजकल भगवान तो बहुत
हो गये हैं । मनुष्य मुंझ पड़े हैं । कहते हैं अनेक धर्म निकलते
हैं,
क्या
पता कौन-सा राइट है । भल तुम्हारी प्रदर्शनी वा म्यूजियम आदि
का उद्घाटन करते हैं परन्तु समझते कुछ भी नहीं । वास्तव में
उद्घाटन तो हो ही गया है । पहले फाउन्डेशन पड़ता है,
फिर
जब मकान बनकर तैयार होता है तब उद्घाटन होता है । फाउन्डेशन
लगाने के लिए भी बुलाया जाता है । तो यह भी बाप ने स्थापना कर
दी है,
बाकी
नई दुनिया का उद्घाटन तो हो ही जाना है,
उसमें किसके उद्घाटन करने की दरकार नहीं रहती । उद्घाटन तो
स्वत ही हो जायेगा । यहाँ पढ़कर फिर हम नई दुनिया में चले
जायेंगे ।
तुम
समझते हो अभी हम स्थापना कर रहे हैं जिसके लिए ही मेहनत करनी
होती है । विनाश होगा फिर यह दुनिया ही बदल जायेगी । फिर तुम
नई दुनिया में राज्य करने आ जायेंगे । सतयुग की स्थापना बाप ने
की है फिर तुम आयेंगे तो स्वर्ग की राजधानी मिल जायेगी । बाकी
ओपनिंग सेरीमनी कौन करेगा?
बाप
तो स्वर्ग में आते नहीं । आगे चल देखना है स्वर्ग में क्या
होता है । पिछाड़ी में क्या होता है! आगे चल समझेंगे । तुम
बच्चे जानते हो पवित्रता बिगर विद् आनर तो हम स्वर्ग में जा
नहीं सकते । इतना पद भी नहीं पा सकते हैं इसलिए बाप कहते हैं
खूब पुरूषार्थ करो । धन्धा आदि भी भल करो परन्तु जास्ती पैसा
क्या करेंगे । खा तो सकेंगे नहीं । तुम्हारे पुत्र-पोत्रे आदि
भी नहीं खायेंगे । सब मिट्टी में मिल जायेगा इसलिए थोड़ा स्टॉक
रखो युक्ति से । बाकी तो सब वहाँ ट्रासफर कर दो । सब तो
ट्रासफर नहीं कर सकते हैं । गरीब जल्दी ट्रासफर कर देते हैं ।
भक्ति मार्ग में भी ट्रासफर करते हैं दूसरे जन्म के लिए ।
परन्तु वह है इनडायरेक्ट । यह है डायरेक्ट । पतित मनुष्यों की
पतितों से ही लेन-देन है । अभी तो बाप आये हैं,
तुम्हारी तो पतितों से लेन-देन है नहीं । तुम हो ब्राह्मण,
ब्राह्मणों को ही तुम्हें मदद करनी है । जो खुद सर्विस करते
हैं,
उनको
तो मदद की दरकार नहीं । यहाँ गरीब साहूकार आदि सब आते हैं ।
बाकी करोड़पति तो मुश्किल आयेंगे । बाप कहते हैं मैं हूँ गरीब
निवाज । भारत बहुत गरीब खण्ड है । बाप कहते हैं मैं आता भी
भारत में हूँ,
उसमें से भी यह आबू सबसे बड़ा तीर्थ है जहाँ बाप आकर सारे विश्व
की सद्गति करते हैं । यह है नर्क । तुम जानते हो नर्क से फिर
स्वर्ग कैसे होता है । अभी तुम्हारी बुद्धि में सारी नॉलेज है
। बाप युक्ति ऐसी बताते हैं पावन बनने की,
जो
सबका कल्याण कर देते हैं । सतयुग में कोई अकल्याण की बात,
रोना,
पीटना आदि कुछ भी नहीं होता । अभी जो बाप की महिमा है-ज्ञान का
सागर,
सुख
का सागर है । अभी तुम्हारी भी यह महिमा है,
जो
बाप की है । तुम भी आनन्द के सागर बनते हो,
बहुतों को सुख देते हो फिर जब तुम्हारी आत्मा संस्कार ले नई
दुनिया में जायेगी तो वहाँ फिर तुम्हारी महिमा बदल जायेगी ।
फिर तुमको कहेंगे सर्वगुण सम्पन्न.... अभी तुम हेल में बैठे हो,
इनको
कहा जाता है काँटों का जंगल । बाप को ही बागवान,
खिवैया कहा जाता है । गाते भी हैं हमारी नईया पार करो क्योंकि
दुखी हैं तो आत्मा पुकारती है । महिमा भल गाते हैं परन्तु
समझते कुछ भी नहीं । जो आया सो कह देते हैं । ऊंच ते ऊँच भगवान
की निंदा करते रहते हैं । तुम कहेंगे हम तो आस्तिक हैं । सर्व
का सद्गति दाता जो बाप है,
उनको
हम जान गये हैं । बाप ने खुद परिचय दिया है । तुम भक्ति नहीं
करते हो तो कितना तंग करते हैं । वह है मैजारिटी,
तुम्हारी है मैनारिटी । जब तुम्हारी मैजारिटी हो जायेगी,
तब
उन्हों को भी कशिश होगी । बुद्धि का ताला खुल जायेगा । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
अपनी उन्नति का ही चिंतन करना है । दूसरी किसी
भी बात में नहीं जाना है । पढ़ाई और याद पर पूरा अटेंशन देना है
। बुद्धि भटकानी नहीं है ।
2.
अब बाप डायरेक्ट आये हैं इसलिए अपना सब-कुछ
युक्ति से ट्रासफर कर देना है । पतित आत्माओं से लेन-देन नहीं
करना है । विद् ऑनर स्वर्ग में चलने के लिए पवित्र जरूर बनना
है ।
वरदान:-
अनादि स्वरूप की स्मृति द्वारा सन्तुष्टता का अनुभव करने और
कराने वाले सन्तुष्टमणी भव
!
अपने
अनादि और आदि स्वरूप को स्मृति में लाओ और उसी स्मृति स्वरूप
में स्थित हो जाओ तो स्वयं भी स्वयं से सन्तुष्ट रहेंगे और
औरों को भी सन्तुष्टता की विशेषता का अनुभव करा सकेंगे ।
असन्तुष्टता का कारण होता है अप्राप्ति । आपका स्लोगन है -
पाना था वो पा लिया । बाप का बनना अर्थात् वर्से का अधिकारी
बनना,
ऐसी
अधिकारी आत्मायें सदा भरपूर,
सन्तुष्टमणी होंगी ।
स्लोगन:-
बाप समान
बनने के लिए - समझना,
चाहना और करना इन तीनों की समानता हो । 
ओम्
शान्ति |