27-01-15
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा”
मधुबन
“मीठे
बच्चे - यह हार और जीत,
दु:ख और सुख का खेल है,
बाप दु:ख से लिबरेट करते हैं,
इसलिए
बाप को लिबरेटर कहा जाता है” 
प्रश्न:-
राजाई पद वालों की निशानी क्या होगी?
उत्तर:-
उनकी
रहनी करनी ही अलग होगी । उनकी कथनी-करनी सब एक होगी । पवित्रता
के आधार पर ही राजाई पद प्राप्त होता है इसलिए पवित्रता की
निशानी लाइट का ताज दिखाते हैं । वह सिर्फ देवताओं को ही मिल
सकता है,
जिनकी
आत्मा और शरीर दोनों पवित्र हैं ।
ओम्
शान्ति |
ओम्
शान्ति का अर्थ तो सिम्पुल है-मैं आत्मा हूँ,
मेरा
स्वधर्म शान्त है । यह बेहद के बाप ने सिखलाया है कि और सबकी
याद छोड़ मुझे याद करो तो पतित से पावन बनेंगे । आत्मा के पतित
बनने के कारण शरीर भी पतित बना है । अब फिर आत्मा को पावन बनना
है । पावन बनेंगे पतित-पावन बाप को याद करने से । वह है सभी
आत्माओं का बाप । गॉड फादर परमपिता परमात्मा अर्थात् सुप्रीम
सोल,
भक्ति मार्ग में यह पता नहीं था कि हम आत्मा हैं,
हमारा फादर वह निराकार है । फादर ही आकर समझाते हैं कि आत्मा
क्या है?
भल
सब कहते तो हैं आत्मा और शरीर है और यह भी समझते हैं कि वह
छोटा स्टॉर मिसल है परन्तु आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट आ हुआ
है-यह किसको पता नहीं है । अभी तुम जानते हो हम आत्मायें घर से
यहाँ इस माण्डवे अथवा नाटकशाला में आई है पार्ट बजाने । हमारा
असली घर वह है,
वह
है रूहानी बाप का घर,
जहाँ
हम आत्मायें भी रहती हैं । यह फिर है रूहानी और जिस्मानी घर ।
असुल वह शान्तिधाम है रूहानी घर फिर आत्माओं को यहाँ आना पड़ता
है । तो इस शरीर और आत्मा का फिर यह घर हुआ-पार्ट बजाने लिए ।
मुख्य तो आत्मा ही है जो इस शरीर के साथ पार्ट बजाती हैं |
दुनिया में इन बातों को जानते नहीं,
न
कोई समझाने वाला है । पतित-पावन एक परमपिता परमात्मा को ही कहा
जाता है । अब बाप ने समझाया है आत्मा बिन्दी है । यह बात औरों
को भी समझानी है ताकि अपने को आत्मा समझ पतित-पावन बाप को याद
करें,
वह
है परम आत्मा । अब वह पावन बनाने लिए क्या करेंगे?
जरूर
याद की ही युक्ति बतायेंगे । सब कहते हैं भगवान गॉड फादर को
याद करो । क्यों याद करते हैं?
याद
करने से क्या होगा?
कुछ
भी नहीं जानते । कहते भी हैं वह लिबरेटर हैं,
परन्तु कब और कैसे लिबरेट करते-यह नहीं जानते । बाप को ही दु
:ख हर्ता सुख कर्ता कहते हैं ना । तो जरूर आकर दु :ख से लिबरेट
कर और फिर सुख में ले जायेंगे । यह खेल ही सुख और दु :ख,
हार
और जीत का है । हार से बादशाही गंवा देते हैं । यह भी
भारतवासियों को पता नहीं है कि हम बादशाह थे फिर कैसे राज्य
गंवाया है । यह तो 5 हजार वर्ष की बात है । सतयुग में इन
लक्ष्मी-नारायण का राज्य था फिर वह राज्य कहाँ गया,
क्या
हुआ-यह भी तुम अभी समझते हो । आत्मा को सतोप्रधान से सतो,
रजो,
तमो
में आना पड़ता है । अंग्रेजी में यह अक्षर है गोल्डन,
सिलवर,
कॉपर,
आइरन
फिर आता है संगम जबकि आइरन एजड पुरानी दुनिया बदल नई बनती हैं
। यह कल्याणकारी संगमयुग है क्योंकि सीढ़ी उतरते आये हैं ना ।
कला कम होती जाती है,
सुख
से दु :ख में आना ही है । यह बातें बुद्धि में धारण करनी है ।
अगर कोई भी नया आता है तो वह जैसे एक बच्चे मिसल ठहरा । छोटे
बच्चों को चित्रों पर सिखलाया जाता है ना । बुद्धि तो है ना ।
छोटे बच्चे के आरगन्स छोटे हैं तो बोल नहीं सकते । फिर
आहिस्ते- आहिस्ते आरगन्स बड़े होते हैं तो समझ भी बड़ी हो जाती
है । पढ़ाई से समझ और ही अच्छी होती है । इस दुनिया की
हिस्ट्री-जॉग्राफी का भी मालूम तो पड़ना चाहिए ना । स्कूल में
भी हिस्ट्री-जॉग्राफी पढ़ाते हैं ताकि मालूम पड़े कि पास्ट में
क्या- क्या हुआ है?
कैसे
राज्य करते थे फिर कैसे लड़ाईयां लगी?
वह
हद की हिस्ट्री-जाग्राफी हद के टीचर पढ़ाते हैं । यह बाप तो
बेहद का टीचर है,
वह
ऊंच ते ऊंच बाप ब्रह्मा के तन में आकर सारी नॉलेज देते हैं ।
शिवबाबा तो निराकार है,
वह
ज्ञान कैसे दें?
राजयोग कैसे सिखलाये?
अपना
शरीर तो नहीं है । बाप सम्मुख आकर श्रीमत देते हैं,
इसमें प्रेरणा की तो बात ही नहीं । प्रेरणा से कुछ होता नहीं ।
अभी बाप के साथ कोई बात करते हैं तो फोन में वा पत्र में
समाचार आता है ना,
बाप
जरूर आते हैं तब तो उनकी जयन्ती भी मनाते हैं । आत्मा तो जरूर
शरीर में ही आयेगी ना । शिव जयन्ती भी भारत में ही मनाते हैं,
और
खंडो में नहीं मनाते । शिव की पूजा करते हैं परन्तु शिव जयन्ती
का अर्थ कोई नहीं समझते । शिवबाबा अथवा देवतायें आदि जो होकर
गये हैं,
उन्हों की फिर बाद में पूजा होती है ।
अभी
तुम जानते हो बाप खुद कहते हैं मैं कल्प-कल्प,
कल्प
के संगम पर आता हूँ । मैं तुमको सृष्टि के आदि-मध्य- अन्त का
सारा ज्ञान सुनाता हूँ । मैं ही नॉलेजफुल हूँ । चैतन्य बीज
होने के कारण सारे सृष्टि रूपी झाड़ अथवा ड्रामा के आदि-मध्य-
अन्त का ज्ञान है । तुम्हारी आत्मा में भी नॉलेज है ना,
जो
इस शरीर द्वारा सुनाते हैं । जैसे तुम्हारी आत्मा
कर्मेन्द्रियों से सुनती है,
वैसे
बाप भी कर्मेन्द्रियों द्वारा तुमको समझाते हैं । वह बाप ही
सत्य है,
चैतन्य है,
महिमा गाई जाती है ना । अभी यह तो तुम समझते हो आत्मा में ही
संस्कार हैं । आत्मा बोलती,
सुनती है आरगन्स द्वारा,
परन्तु मनुष्यों को यह पता न होने कारण देह- अभिमान में आकर
बात करते हैं । अभी तुमको बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ मुझे
याद करो । भक्ति मार्ग में तो हे परमात्मा,
हे
प्रभु कहने की एक रस्म हो जाती है । जानते कुछ भी नहीं ।
शिवलिंग का बड़ा चित्र देख बस उनको ही याद करने लगते हैं । अब
वह इतना बड़ा तो है नहीं । यह चित्र हैं सब भक्ति मार्ग के ।
अभी तुम सिद्ध कर बतलाते हो-शिव का असली रूप भी बिन्दी है ।
अभी
तुम बच्चों को यह भी पहचान मिलती है कि हम इन फीचर्स वाले
देवतायें बनेंगे । फीचर्स तो भिन्न-भिन्न होते हैं ना । बाकी
देखना है पद को । राजाई पद वालों की तो रहनी करनी ही अलग होगी
। उनकी कथनी-करनी सब एक होगी । अभी तुम समझते हो हम भविष्य में
यह बनेंगे । यह जो लाइट दिखाई जाती है,
यह
है प्योरिटी की लाइट । वह सिर्फ देवताओं को ही मिल सकती है,
जिनकी आत्मा और शरीर दोनों पवित्र हैं । क्राइस्ट को भी
प्योरिटी की लाइट दे सकते हैं । धर्म स्थापन करने आते हैं तो
जरूर पवित्र होंगे । परन्तु उनकी पवित्रता अपने टाइम तक रहेगी
फिर अपवित्र तो बनना ही है । हर एक मनुष्य को पवित्र अपवित्र
बनना पड़ता है । तुम बच्चे जानते हो शिवबाबा भारत में ही आते
हैं,
परन्तु उनको कितने वर्ष हुए-यह किसको भी पता नहीं है । भारत
स्वर्ग था तो जरूर उनके आगे संगम पर बाप ने राजयोग सिखाया होगा
और कर्म- अकर्म-विकर्म की गति समझाई होगी । दैवी राज्य,
आसुरी राज्य किसको कहा जाता है,
यह
बाप ही बैठ समझाते हैं । ब्राह्मण वर्ण है सबसे ऊंच । तो
प्रजापिता ब्रह्मा तो जरूर चाहिए ना । उनके ढेर बच्चे होंगे ।
प्रजापिता को ढेर बच्चे कोई ऐसे तो पैदा नहीं होंगे । तुम हो
एडाप्टेड बच्चे । नहीं तो इतने कुमार-कुमारियाँ कहाँ से आये?
गुरू
लोग भी एडाप्ट करते हैं ना । कहेंगे हम फलाने का शिष्य हैं ।
बाप बच्चों को एडाप्ट करते हैं-तुम हमारे बच्चे हो । तुम भी
समझते हो वह बाबा,
यह
दादा है । प्रापर्टी दादा की है । इस ब्रह्मा को भी एडाप्ट
किया है । तुमको मुख से एडाप्ट किया है । इनको एडाप्ट किया
है-इनमें प्रवेश कर,
यह
बड़ी समझने की बातें हैं,
जो
धारण करनी है । चित्रों पर समझाने की भी प्रैक्टिस करनी चाहिए
। वह भी तकदीर पर है । भविष्य ऊँच पद तकदीर में नहीं हैं तो
तदबीर करते नहीं हैं ।
बाबा
समझाते हैं भल किचन (भण्डारे) में काम करते हैं,
यह
मैडल लगा रहे । कोई को भी समझाते रहें-यह बाबा है,
बाबा-बाबा कहने से बुद्धियोग जुड़ जायेगा । जो खुद याद में
होंगे वह औरों को भी बाप की याद दिलाते रहेंगे । बाप तो तदबीर
कराते हैं परन्तु तकदीर में नहीं है तो ध्यान ही नहीं देते हैं
। धारणा तो होनी चाहिए ना । अलफ और बे याद करना है । हमारा
बाबा आकर स्वर्ग स्थापन करते हैं । रावण नर्क स्थापन करते हैं
।
तुम
बच्चे एक-दो को शिवबाबा की याद दिलाते रहो - यह सबसे बड़ी सेवा
है,
इससे
पतित से पावन बन जायेंगे । और कोई उपाय नहीं सिवाए याद के ।
पतित-पावन शिवबाबा मूलवतन में रहते हैं,
वह
निराकारी शिवपुरी हो गई,
जहाँ
आत्माएं रहती हैं । एक है शिव बाबा,
बाकी
है सालिग्राम । हम आत्माएं बच्चे हैं,
वह
परमात्मा बाप है । आत्मा कोई छोटी-बड़ी नहीं होती । ऐसे नहीं कि
परमात्मा कोई बड़ा होगा । नहीं,
शरीर
सिर्फ छोटा-बड़ा होता है । सबको यह बतलाओ कि बाप आया हुआ है,
जिसे
दुःख में याद करते हैं- ओ गॉड फादर! स्वर्ग का वर्सा बाप ही
आकर देते हैं । पुकारते भी उनको हैं - हे भगवान,
हे
राम! मरने समय भी उनको याद करते हैं । अभी तुम भी कहते हो-
भगवान को याद करो । यह अन्तिम जन्म गृहस्थ व्यवहार में रहते
कमल फूल समान पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे ।
अमरलोक है पवित्र लोक । यह है मृत्युलोक,
अपवित्र लोक । जो ब्राह्मण कुल भूषण हैं वह जानते हैं हम देवता
थे फिर क्षत्रिय बने । अब ब्राह्मण बनें हैं फिर सो देवता
बनेंगे । तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट ही है नर से नारायण बनना । उस
पढ़ाई में कितने दर्जें पढ़ने होते हैं । यहाँ तो एक ही बात है ।
सिर्फ योग में समय लगता है । पढ़ाई में तो 3 रोज में होशियार हो
जायेंगे । परन्तु पतित से पावन होने में मेहनत है । याद से ही
पाप कटने हैं । तो कितना भिन्न-भिन्न प्रकार से समझाते रहते
हैं । मनुष्य तो कहते ज्ञान तो एक ही है,
इसमें नया क्या है?
उनको
यह पता ही नहीं कि नई बात है । बाप को याद करना है-इसमें ही
माया विघ्न डालती है । तूफान आया,
यह
गिरा । काम तो महाशत्रु है । एकदम हडगुड टूट पड़ते हैं । फिर
खड़ा होने में 2 - 3 वर्ष चाहिए । तो भी इतना नहीं उठ सकते ।
बड़ा भारी दण्ड पड़ जाता है । एकदम चकनाचूर हो जाते हैं फिर ऊँच
पद पा न सकें । इसमें दूसरों को समझाने वाले अगर गिरते हैं तो
सत्यानाश हो जाती है । राहू की दशा बैठ जाती है । ऊपर से जोर
से मनुष्य गिरते हैं तो फिर बचने की उम्मींद नहीं रहती है,
या
तो लूला-लंगड़ा बन जाते हैं या तो खत्म हो जाते हैं । तो विकार
में गिरने वाले की भी यह हालत हो जाती है । बाप कहते हैं यह
क्या,
मैं
आया हूँ पावन बनाने,
तुम
फिर यह धन्धा करते हो! बड़ी जबरदस्त चोट खाते हैं । भल ज्ञान
सुनाते रहते परन्तु वह दर्जा नहीं मिल सकता । अन्दर खाता
रहेगा-मैंने बड़ी भारी अवज्ञा की है । यह है बड़े ते बड़ी अवज्ञा
। काम विकार में गिरने का बड़ा दण्ड मिल जाता है । घर में अगर
बच्चा गंदा काम करता है तो फिर सारी आयु भी वह असर पड़ जाता है
। मरने समय भी पाप याद आता रहेगा । बच्चों को देह- अभिमान में
आकर कोई भी उल्टा कार्य नहीं करना चाहिए । बहुत गन्दे काम करते
रहते हैं । न बतलाने से और ही सौ गुणा हो जाता है,
विकर्मों की वृद्धि होती जाती है ।
तुम
ईश्वरीय सन्तान हो,
मुख
से सदैव रत्न निकलें,
कभी
कुवचन न निकलें । बाबा कहते हैं तुम्हारे मुख से कभी कडुवा
अक्षर न निकले,
तुम्हारी चलन बहुत रॉयल होनी चाहिए । तुम हो ईश्वरीय सन्तान ।
शिव वंशी ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ । शिववंशी तो सब आत्माएं हैं
फिर बी .के. के अलग- अलग नाम हैं । आत्मा को तो आत्मा ही कहते,
शरीर
का नाम बदलता है । बाप का ड्रामा अनुसार नाम शिव है । भल शरीर
का आधार लेते हैं,
फिर
भी आत्मा ही रह जाती । यह शरीर उनका थोड़ेही है जो नाम पड़े ।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
सदा
स्मृति में रहे कि हम ईश्वरीय सन्तान हैं,
हमारे मुख से कभी कोई कडुवा वचन न निकले । सदैव ज्ञान रत्न ही
निकलते रहें । चलन बड़ी रॉयल हो ।
2.
देह-
अभिमान में आकर कोई भी अवज्ञा नहीं करनी है,
इस अन्तिम जन्म में कमल फूल समान पवित्र बन पवित्र दुनिया का
मालिक बनना है ।
वरदान:-
मैं
और मेरे पन को समाप्त कर समानता व सम्पूर्णता का अनुभव करने
वाले सच्चे त्यागी
भव ! 
हर
सेकेण्ड,
हर
संकल्प में बाबा-बाबा याद रहे,
मैं
पन समाप्त हो जाए,
जब
मैं नहीं तो मेरा भी नहीं । मेरा स्वभाव,
मेरे
संस्कार,
मेरी
नेचर,
मेरा
काम या ड्यूटी,
मेरा
नाम,
मेरी
शान जब यह मैं और मेरा पन समाप्त हो जाता तो यही समानता और
सम्पूर्णता है । यह मैं और मेरे पन का त्याग ही बड़े से बड़ा
सूक्ष्म त्याग है । इस मैं पन के अश्व को अश्वमेध यज्ञ में
स्वाहा करो तब अन्तिम आहुति पड़ेगी और विजय के नगाड़े बजेंगे ।
स्लोगन:-
हाँ जी
कर सहयोग का हाथ बढ़ाना अर्थात् दुआओं की मालायें पहनना । 
अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए विशेष होमवर्क
यदि किसी
भी प्रकार का भारीपन अथवा बोझ है तो आत्मिक एक्सरसाइज करो ।
अमी- अभी कर्मयोगी अर्थात् साकारी स्वरूपधारी बन साकार सष्ठि
का पार्ठ बजाओ,
अभी- अभी आकरी फरिश्ता बन आकारी वतनवासी अव्यक्त रूप का अनुअव
करो,
अभी- अमी
निराकारी बन मूलवतनवासी का अनुभव करो,
इस एक्सरसाइज से हल्के हो जायेंगे,
भारीपन खत्म हो जायेगा ।
ओम्
शान्ति |