15-04-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
यह सच्चा-सच्चा सत का संग है ऊपर चढ़ने का, तुम अभी सत बाप के
संग में आये हो इसलिए झूठ संग में कभी नहीं जाना
| 
प्रश्न:-
तुम
बच्चों की बुद्धि किस आधार पर सदा बेहद में टिक सकती है?
उत्तर:-
बुद्धि में स्वदर्शन चक्र फिरता रहे, जो कुछ ड्रामा में चल रहा
है, यह सब नूँध है | सेकेण्ड का भी फ़र्क नहीं पड़ सकता | वर्ल्ड
की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होनी है | यह बात बुद्धि में अच्छी
तरह आ जाये तो बेहद में टिक सकते हो | बेहद में टिकने के लिए
ध्यान पर रहे कि अब विनाश होना है, हमें वापिस घर जाना है,
पावन बन करके ही हम घर जायेंगे |
ओम्
शान्ति
|
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप बैठ समझाते हैं |
समझाते उनको हैं जो बेसमझ हैं | स्कूल में टीचर पढ़ाते हैं
क्योंकि बच्चे बेसमझ हैं | बच्चे पढ़ाई से समझ जाते हैं | तुम
बच्चे भी पढ़ाई से समझ जाते हो | हमको पढ़ाने वाला कौन है! यह तो
कभी भूलो नहीं | पढ़ाने वाला टीचर है, सुप्रीम बाप | तो उनकी मत
पर चलना है | श्रेष्ठ बनना है | श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ होते हैं
सूर्यवंशी | भल चन्द्रवंशी भी श्रेष्ठ हैं | परन्तु यह हैं
श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ | तुम यहाँ आये हो श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनने
| तुम बच्चे जानते हो हमको ऐसा बनना है | ऐसा स्कूल 5 हज़ार
वर्ष बाद ही खुलता है | यहाँ तुम समझकर बैठे हो, यह सचमुच सत
का संग है | सत है ऊँचे ते ऊँच, उनका तुमको संग है | वह बैठकर
सतयुग का श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ देवता बनाते हैं अर्थात् फूल
बनाते हैं | तुम काँटे से फूल बनते जाते हो | कोई फ़ौरन बन जाते
हैं, कोई को टाइम लगता है | बच्चे जानते हैं यह है संगमयुग |
सो भी सिर्फ़ बच्चे जानते हैं, निश्चय है कि यह पुरुषोत्तम बनने
का युग है | पुरुषोत्तम भी कौन-सा? ऊँच ते ऊँच आदि सनातन
देवी-देवता धर्म के जो महाराजा-महारानी हैं, वह बनने लिए तुम
यहाँ आये हो | तुम समझते हो हम आये हैं बेहद के बाप से बेहद का
सतयुगी सुख लेने | हद की जो भी बातें हैं वह सब ख़त्म हो जाती
हैं | हद के बाप, हद के भाई, चाचे, काके, मामे, हद की पाई-पैसे
की मिलकियत आदि जिसमें बहुत मोह रहता है, यह सब ख़लास हो जाना
है |
बाप समझाते हैं यह मिलकियत सब हद की है | अभी तुमको बेहद में
चलना है | बेहद मिलकियत प्राप्त करने के लिए तुम यहाँ आये हो |
और तो सब हैं हद की चीज़ें | शरीर भी हद का है | बीमार पड़ता है,
विनाश हो पड़ता है | अकाले मृत्यु हो जाता है | आजकल तो देखो
क्या-क्या बनाते रहते हैं! साइन्स ने भी कमाल कर दी है | माया
का पॉम्प कितना है | साइन्स वाले खूब हिम्मत कर रहे हैं |
जिनके पास बहुत महल माड़ियाँ आदि हैं वह तो समझते हैं अभी हमारे
लिए सतयुग है | यह नहीं समझते कि सतयुग में एक धर्म होता है |
वह नई दुनिया होती है | बाप कहते हैं बिल्कुल ही बेसमझ हैं |
तुम कितने समझदार बनते हो | ऊपर चढ़ते हो फिर सीढ़ी नीचे उतरते
हो | सतयुग में तुम समझदार थे फिर 84 जन्म लेते-लेते बेसमझ
बनते हो | फिर बाप आकर समझदार बनाते हैं, जिसको पारसबुद्धि
कहते हैं | तुम जानते हो हम पारसबुद्धि बहुत समझदार थे | गीत
भी है ना | बाबा आप जो वर्सा देते हैं, सारी जमीन, आकाश के हम
मालिक बन जाते हैं | कोई भी हमसे छीन नहीं सकता | कोई का दखल
नहीं हो सकता | बाप बहुत-बहुत देते हैं | इससे जास्ती कोई झोली
भर न सके | जब ऐसा बाप मिला है, जिसको आधाकल्प याद किया है |
दुःख में सिमरण करते हैं ना | जब सुख मिल जाता है फिर सिमरण
करने की दरकार नहीं | दुःख में सब सिमरण करते हैं – हाय
राम....ऐसे अनेक प्रकार के अक्षर बोलते हैं | सतयुग में ऐसा
कोई भी अक्षर होता नहीं | तुम बच्चे यहाँ आये हो पढ़ने के लिए –
बाप के सम्मुख | बाप के डायरेक्ट वर्शन्स सुनते हो |
इनडायरेक्ट ज्ञान बाप देते नहीं | ज्ञान डायरेक्ट ही मिलता है
| बाप को आना पड़ता है | कहते हैं मीठे-मीठे बच्चों के पास आया
हूँ | मुझे बुलाते हो – ‘ओ बापदादा’ | बाप भी रेस्पान्स करते
हैं ‘ओ बच्चों’, अब मुझे अच्छी रीति याद करो, भूलो नहीं | माया
के विघ्न तो अनेक आयेंगे | तुम्हारी पढ़ाई छुड़ाए तुमको
देह-अभिमान में लायेंगे, इसलिए ख़बरदार रहो | यह सच्चा-सच्चा
सतसंग है – ऊपर चढ़ने का | वह सब सतसंग आदि हैं उतराई के | सत
का संग एक ही बार होता है, झूठ संग जन्म-जन्मान्तर अनेक बार
होते हैं | बाप बच्चों को कहते हैं यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है
| अब वहाँ चलना है, जहाँ कोई अप्राप्त वस्तु नहीं होती | जिसके
लिए ही तुम पुरुषार्थ कर रहे हो | यह जो बाबा कहते हैं यह तो
तुम अभी सुनते हो, वहाँ यह कुछ भी पता नहीं पड़ेगा | अभी तुम
कहाँ जाते हो? अपने सुखधाम में | सुखधाम तुम्हारा ही था | तुम
सुखधाम में थे, अब दुःखधाम में हो | बाबा ने बहुत-बहुत सहज
रास्ता बताया है,
वही याद करो | हमारा घर है शांतिधाम,
वहाँ से हम स्वर्ग में आएंगे | और कोई
स्वर्ग में आता ही नहीं है, सिवाय
तुम्हारे | तो तुम ही सिमरण करेंगे
| हम पहले सुख में जाते हैं फिर दुख
में |
कलियुग में सुखधाम होता ही नहीं | सुख मिलता ही नहीं इसलिए
सन्यासी भी कहते – सुख काग विष्टा के समान है | अभी बच्चे
समझते हैं बाबा आया है, हमको घर ले चलने | हम पतितों को पावन
बनाकर ले जायेंगे | पावन बनेंगे याद की यात्रा से | यात्रा पर
बहुत नीचे-ऊपर होते हैं | कोई तो बीमार पड़ जाते हैं फिर लौट
आते हैं | यह भी ऐसे हैं | यह है रूहानी यात्रा, अन्त मती सो
गति हो जायेगी | हम अपने शान्तिधाम में जा रहे हैं | है बहुत
सहज | परन्तु माया बहुत भुलाती है | तुम्हारी युद्ध माया के
साथ है | बाप बहुत सहज कर समझाते हैं, हम अभी शान्तिधाम जाते
हैं | बाप को ही याद करते हैं | दैवीगुण धारण करते हैं |
पवित्र बनते हैं | 3-4 बातें मुख्य हैं जो बुद्धि में रखनी हैं
– विनाश तो होना ही है, 5 हज़ार वर्ष पहले भी हम गये थे | फिर
पहले-पहले हम ही आयेंगे | गायन भी है ना – राम गयो, रावण गयो |
जाना तो सबको है शान्तिधाम | तुम जो पढ़ते हो – उस पढ़ाई अनुसार
पद पाते हो | तुम्हारी एम् ऑब्जेक्ट सामने खड़ी है | कोई कहे हम
साक्षात्कार करें | यह चित्र (लक्ष्मी-नारायण का) साक्षात्कार
नहीं तो फिर क्या है! इसके सिवाए किसका साक्षात्कार करना है?
बेहद के बाप का? और तो कोई साक्षात्कार काम के नहीं | बाबा का
साक्षात्कार चाहते हैं | बाबा से मीठी और कोई चीज़ नहीं | बाप
कहते हैं – मीठे बच्चों, पहले अपना साक्षात्कार किया है? आत्मा
कहती है कि बाबा का साक्षात्कार करें | तो अपना साक्षात्कार
किया है? यह तो तुम बच्चे जान गये हो | अब समझ मिली है – हम
आत्मा हैं, हमारा घर है शान्तिधाम | वहाँ से हम आत्मायें आती
हैं पार्ट बजाने | ड्रामा के प्लैन अनुसार पहले-पहले सतयुग आदि
में हम आते हैं | आदि और अन्त का यह है पुरुषोत्तम संगमयुग |
इसमें सिर्फ़ ब्राह्मण ही होते हैं और कोई नहीं | कलियुग में तो
अनेकानेक धर्म कुल आदि हैं | सतयुग में एक ही डिनायस्टी होगी |
यह तो सहज है ना | इस समय तुम संगमयुगी ईश्वरीय परिवार के हो |
तुम न सतयुगी हो, न कलियुगी | यह भी जानते हो कि कल्प-कल्प बाप
आकर ऐसी पढ़ाई पढ़ाते हैं | यहाँ तुम बैठे हो तो यही स्मृति में
आना चाहिए | शान्तिधाम, सुखधाम और यह है दुःखधाम | इस दुःखधाम
का है वैराग्य अथवा सन्यास – बुद्धि से | वह कोई बुद्धि से
सन्यास नहीं करते हैं | वह तो घरबार छोड़ सन्यास करते हैं |
तुमको तो बाप कभी नहीं कहते घरबार छोड़ो | इतना ज़रूर है भारत की
सेवा करनी है वा अपनी सेवा करनी है | सेवा तो घर में भी कर
सकते हो | पढ़ने लिए आना ज़रूर है | फिर होशियार होकर औरों को भी
आप समान बनाना है | टाइम तो बहुत थोड़ा है | गायन भी है ना बहुत
गई थोड़ी रही | दुनिया के मनुष्य तो बिल्कुल ही घोर अन्धियारे
में हैं, समझते हैं अभी 40 हज़ार वर्ष पड़े हैं | तुमको बाप
समझाते हैं – बच्चों, अब बाकी थोड़ा समय है | तुमको बेहद में
टिकना है | सारी दुनिया में जो कुछ चल रहा है सब नूँध है | जूँ
मिसल ड्रामा चल रहा है | वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट
होनी है | वही आकर पढ़ेंगे जो सतयुग में जाने वाले होंगे | अनेक
बार तुमने पढ़ा है | तुम अपना स्वर्ग स्थापन करते हो श्रीमत पर
| यह भी जानते हो ऊँच ते ऊँच भगवान् आते भी भारत में हैं |
कल्प पहले भी आये थे | तुम कहेंगे कल्प-कल्प ऐसा बाप आते हैं |
कहते हैं मैं कल्प-कल्प ऐसी स्थापना करूँगा | विनाश भी तुम
देखते हो | तुम्हारी बुद्धि में सब बैठता जाता है | स्थापना,
विनाश और पालना का कर्तव्य कैसे होता है, तुम जानते हो | फिर
औरों को समझाना है | आगे नहीं जानते थे | बाप को जानने से बाप
द्वारा तुम सब कुछ जान जाते हो | वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी
यथार्थ रीति से तुम जानते हो | मनुष्य कैसे तमोप्रधान से
सतोप्रधान बनते हैं – यह बाप तुमको समझा रहे हैं | तुमको फिर
औरों को समझाना है |
तुम
बच्चे अभी पारसबुद्धि बन रहे हो | सतयुग में होते ही हैं
पारसबुद्धि | यह है पुरुषोत्तम संगमयुग | इनको गीता एपिसोड कहा
जाता है, जब तुम पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बनते हो | गीता
सुनाने वाला तो भगवान् खुद है | मनुष्य नहीं सुनाते | तुम
आत्मायें सुनती हो फिर औरों को सुनाती हो | इसको कहा जाता है
रूहानी नॉलेज, जो रूहानी भाइयों को सुनाते हो | वृद्धि को पाते
रहते हो | तुम जानते हो बाबा आकरके सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी
डिनायस्टी स्थापन करते हैं | किसके द्वारा? ब्रह्मा मुख
वंशावली ब्राह्मण कुल भूषणों द्वारा | बाप श्रीमत देते हैं |
यह समझने की बात है | दिल पर नोट करना है, यह तो बहुत सहज है |
यह है दुःखधाम | अभी हमको घर जाना है | कलियुग के बाद है सतयुग
| बात तो बहुत छोटी और सहज है | भल तुम न पढ़े हो तो भी कोई
हर्ज़ा नहीं है | जो पढ़ना जानते हैं उनसे फिर सुनना चाहिए |
शिवबाबा है सब आत्माओं का बाप | अभी उनसे वर्सा लेना है | बाप
पर निश्चय करेंगे तो स्वर्ग का वर्सा मिलेगा | अन्दर में भी
अजपाजाप चलता रहे | शिवबाबा से बेहद सुख, स्वर्ग का वर्सा मिल
रहा है इसलिए शिवबाबा को ज़रूर याद करना है | सबको हक़ है बेहद
के बाप से वर्सा लेने का | जैसे हद का बर्थ राइट मिलता है वैसे
यह फिर है बेहद का | शिवबाबा से तुमको सारे विश्व का राज्य
मिलता है | छोटे-छोटे बच्चों को भी यह समझाना चाहिए | हर एक
आत्मा का हक़ है बाप से बर्थ राइट लेने का | कल्प-कल्प लेते भी
ज़रूर हैं | तुम वर्सा लेते हो जीवनमुक्ति का | जिनको मुक्ति का
वर्सा मिलता है वह भी जीवनमुक्ति में आते ज़रूर हैं | पहला जन्म
तो सुख का ही होता है | तुम्हारा यह है 84वाँ जन्म | यह नॉलेज
सारी तुम्हारी बुद्धि में रहनी चाहिए | बेहद का बाप हमको पढ़ाते
हैं – यह भूलो मत | देहधारी कभी ज्ञान दे न सकें | उसमें
रूहानी ज्ञान होता नहीं | तुमको समझाया जाता है – भाई-भाई समझो
| जो भी मनुष्य मात्र हैं और किसको भी यह शिक्षा नहीं मिलती है
| भल गीता भी सुनाते हैं कि भगवानुवाच – काम महाशत्रु है, इन
पर जीत पाने से तुम जगत जीत बनेंगे परन्तु समझते नहीं | अब
भगवान् तो है ट्रुथ (सत्य) | देवता भी भगवान् से ट्रुथ सीखे
हैं | कृष्ण ने भी यह पद कहाँ से पाया? लक्ष्मी-नारायण कहाँ से
बने? क्या कर्म किया? कोई बता सकेंगे? अब तुम ही जानते हो
निराकार बाप ने उन्हों को ऐसे कर्म सिखाया, ब्रह्मा बाप द्वारा
| यह सृष्टि है ना | अभी तुम हो प्रजापिता
ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ | तुम्हारे पास नॉलेज है रूहानी बाप की
| तुम समझते हो हम भगवान् को जान गये हैं | ऊँच ते ऊँच वह
निराकार है | उसका साकार रूप नहीं | बाकी जो भी देखते हो वह
साकार है | मन्दिरों में भी लिंग देखते हो अर्थात् उनको शरीर
नहीं | ऐसे नहीं कि वह नाम-रूप से न्यारा है | हाँ, और सब
देहधारियों के नाम पड़ते हैं, जन्म पत्री है | शिवबाबा तो है
निराकार | उनकी जन्मपत्री नहीं है | कृष्ण की है नम्बरवन | शिव
जयन्ती भी मनाते हैं | शिवबाबा है निराकार कल्याणकारी | बाप
आते हैं तो ज़रूर वर्सा देंगे | उनका नाम शिव है | वह बाप,
टीचर, सतगुरु तीनों ही एक है | कितना अच्छी रीति पढ़ाते हैं |
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
इस दुःखधाम का बुद्धि से सन्यास कर शान्तिधाम और सुखधाम स्मृति
में रखना है | भारत की वा अपनी सच्ची सेवा करनी है | सबको
रूहानी नॉलेज सुनानी है |
2.
अपना सतयुगी जन्म सिद्ध अधिकार लेने के लिए एक बाप में पूरा
निश्चय रखना है | अन्दर से अजपाजाप करते रहना है | पढ़ाई रोज़
ज़रूर पढ़नी है |
वरदान:-
स्व-दर्शन द्वारा माया के सब चक्रों को समाप्त करने वाले
मायाजीत भव
!
अपने
आपको जानना अर्थात् स्व का दर्शन होना और चक्र का ज्ञान जानना
अर्थात् स्वदर्शन चक्रधारी बनना | जब स्वदर्शन चक्रधारी बनते
हो तो अनेक माया के चक्र स्वतः समाप्त हो जाते हैं | देहभान का
चक्र, सम्बन्ध का चक्र, समस्याओं का चक्र.....माया के अनेक
चक्र हैं | 63 जन्म इन्हीं अनेक चक्रों में फँसते रहे अब
स्वदर्शन चक्रधारी बनने से मायाजीत बन गये | स्वदर्शन चक्रधारी
बनना अर्थात् ज्ञान योग के पंखों से उड़ती कला में जाना |
स्लोगन:-
विदेही
स्थिति में रहो तो परिस्थितियाँ सहज पार हो जायेंगी
|
ओम् शान्ति
|