13-08-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


"मीठे बच्चे - बाप, टीचर और सतगुरू यह तीन अक्षर याद करो तो अनेक शिफ्तें (विशेषतायें) आ जायेंगी |"   

                            
प्रश्न:-   
किन बच्चों के हर कदम में पदमों की कमाई जमा होती रहती है?


उत्तर:-
जो अपना हर कदम सर्विस में बढ़ाते रहते हैं, वही पदमों की कमाई जमा करते हैं । अगर बाबा की सर्विस में कदम नहीं उठायेंगे तो पद्म कैसे पायेंगे । सर्विस ही कदम में पद्म देती है, इसी से पद्मापद्मपति बनते हो ।

 

प्रश्न:-   
किस राज को जानने के कारण तुम बच्चे सभी के कल्याणकारी बनते हो?


उत्तर:-
बाबा ने हम बच्चों को यह राज समझाया है कि सभी की यह एक ही हट्टी है, यहाँ सबको आना ही है । यह बहुत गुह्य राज है । इस राज को जानने वाले बच्चे ही सबके कल्याणकारी बनते हैं ।

 

ओम् शान्ति |

रूहानी बाप के रूहानी बच्चे यह तो हर एक जानते होंगे कि बाबा हमारा बाप भी है, टीचर भी है और सतगुरू भी है । बच्चे जानते हैं, जानते हुए भी घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं । यहाँ जो बैठे हैं, वह जानते तो होंगे ना परन्तु भूल जाते हैं । दुनिया वाले तो बिल्कुल नहीं जानते । बाप कहते हैं सिर्फ यह तीन अक्षर भी याद रहे तो बहुत सर्विस कर सकते हैं । प्रदर्शनी अथवा म्युजियम में तुम्हारे पास बहुत आते हैं, घर में भी मित्र-सम्बन्धी आदि बहुत आते हैं । कोई भी आये तो समझाना चाहिए कि जिसको भगवान कहा जाता है वह बाबा भी है, टीचर भी है और सतगुरू भी है । यह याद हो तो भी ठीक, और कोई की याद न आये । और कोई को तो ऐसे कह न सकें । तुम बच्चे जानते हो हमारा बाबा बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है । कितना सहज है । परन्तु कोई-कोई की तो ऐसी पत्थरबुद्धि है जो यह 3 अक्षर भी बुद्धि में धारण नहीं कर सकते, भूल जाते हैं । बाबा हमको मनुष्य से देवता बनाते हैं क्योंकि बेहद का बाप हैं ना । बेहद का बाप है तो जरूर बेहद का वर्सा ही देंगे । बेहद का वर्सा है देवताओं के पास । इतना सिर्फ याद करें तो घर में भी बहुत सर्विस कर सकते हैं । परन्तु यह भी भूल जाने के कारण किसको बता नहीं सकते । घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं क्योंकि सारे कल्प के भूले हुए हैं । अब बाप बैठ समझाते हैं । वास्तव में यह ज्ञान बहुत सिम्पल है, बाकी याद की यात्रा से सम्पूर्ण बनना, इसमें मेहनत हैं । बाबा हमारा बाप भी है, शिक्षा भी देते हैं, वर्सा भी देते हैं, पवित्र भी बनाते हैं क्योंकि पतित-पावन बाप है, सिर्फ कहते हैं कि सबको यही कहो कि मुझे याद करो । बाबा की सर्विस में जरा भी कदम नहीं उठा तो वह फिर पद्म कैसे पायेंगे! पद्मपति तो सर्विस से ही बन सकते हैं । सर्विस ही कदम में पद्म ले आती है । सर्विस के लिए बच्चे कहाँ-कहाँ से भागते रहते हैं । कितने कदम उठाये जाते हैं । पद्म तो उन्हों को मिलेगा ना । यह भी बुद्धि कहती है पहले शूद्र को ब्राह्मण बनाना पड़े । ब्राह्मण ही नहीं बनायेंगे तो क्या बनेंगे! सर्विस तो चाहिए ना । बच्चों को सर्विस का समाचार भी इसलिए सुनाया जाता है कि टैम्पटेशन हो । सर्विस से ही पद्म मिले हैं । सिर्फ एक बात ही सुनाओ जो दुनिया में और कोई नहीं जानते । बेहद का बाप, बाप है । परन्तु बाप का कोई को पता नहीं है । सिर्फ ऐसे ही गॉड फादर कहते रहते हैं । वह टीचर है-यह तो कोई की बुद्धि में नहीं होगा । स्टूडेंट की बुद्धि में हमेशा टीचर याद रहता है, जो पूरी रीति नहीं पढ़ते हैं उनको अनपढ़ा कहा जाता है । बाबा कहते हैं हर्जा नहीं है । तुम कुछ भी न पढ़े हुए यह तो समझ सकते हो ना कि हम भाई-भाई हैं । हमारा बाप बेहद का है । बाप आते ही हैं एक धर्म की स्थापना करने, ब्रह्मा द्वारा करते हैं । परन्तु लोग कुछ भी समझते नहीं हैं । ईश्वर अगर कभी न आया हुआ होता तो उनको बुलाते ही क्यों कि हे लिबरेटर आओ, हे पतित-पावन आओ । जबकि पतित-पावन को याद करते हैं फिर शास्त्र क्यों पढ़ते? तीर्थों पर क्यों जाते? वहाँ बैठा है क्या? कोई जानते ही नहीं जबकि पतित-पावन ईश्वर है तो गंगा स्नान आदि से कोई पावन हो कैसे सकते । स्वर्ग में कोई जा कैसे सकते, जन्म तो यहाँ ही लेना है । नई दुनिया और पुरानी दुनिया में फर्क तो है ना । इसको सतयुग थोड़े ही कहेंगे । अब तो कलियुग है ना । मनुष्यों की तो बिल्कुल पत्थरबुद्धि है । जहाँ थोड़ा सुख देखते हैं तो स्वर्ग समझ लेते हैं । यह बाप ही समझाते हैं, बाप कोई गाली नहीं देते हैं । बाप शिक्षा भी देते हैं, सबको सद्गति भी देते हैं । भगवान बाप है तो बाप से जरूर कुछ मिलना चाहिए । बाबा अक्षर भी ऐसा है जो उनसे वर्से की खुशबू जरूर आती है । और भल कितना भी काका, मामा आदि है परन्तु उनसे वर्से की खुशबू नहीं आती । अन्तर्मुख हो विचार करना है कि बाप ठीक कहते हैं । गुरू के पास कोई जायदाद होती नहीं । वह तो खुद ही घरबार छोड़ते हैं । तुमने सन्यास किया है विकारों का । वह तो कह देते हैं हमने घरबार छोड़ा, तुम कहते हो हम सारी दुनिया के विकारों का सन्यास करते हैं । नई दुनिया में जाना कितना सहज है । हम सन्यास करते हैं सारी पुरानी सृष्टि, तमोप्रधान दुनिया का । सतयुग है नई दुनिया । यह भी जानते हो नई दुनिया थी जरूर । सब गाते हैं । स्वर्ग कहा ही जाता है नई दुनिया को । परन्तु वो लोग सिर्फ कहने मात्र कह देते हैं, समझ कुछ नहीं । तो बाप बच्चों को कहते हैं सिर्फ यह विचार करो-बाबा, हमारा बाप भी है, शिक्षक और सतगुरू भी है । सबको ले जायेंगे । अक्षर ही दो हैं-मनमनाभव, इसमें सब आ जाता हैं, परन्तु यह भी भूल जाते हैं । पता नहीं बुद्धि में क्या-क्या याद रहता है । नहीं तो रोज लिखकर दो कि इतना समय हम किस अवस्था में बैठे थे? तुम बैठे हो बाप, टीचर, सतगुरू के सामने तो वही याद आना चाहिए ना । स्टूडेंट को टीचर ही याद आयेगा ना परन्तु यहाँ माया है ना । एकदम माथा ही मूड देती है । सारा राज्य-भाग्य ही ले लेती है । तुमको पता नहीं पड़ता है । आये तो थे वर्सा लेने परन्तु मिलता कुछ भी नहीं । ऐसे ही कहेंगे ना । भल स्वर्ग में तो चलेंगे परन्तु वह कोई बड़ी बात थोड़े ही है । यहाँ आये भल परन्तु पढ़े नहीं, फिर स्वर्ग में तो जायेंगे ना । यहाँ तो बैठे हैं ना । समझते हैं स्वर्ग में जाना हैं, फिर क्या भी बनें । वह तो पढ़ाई नहीं हुई ना । थोड़ा भी सुना तो उसका फल मिल जाता है । पढ़ाई से तो बड़ी स्कॉलरशिप मिलती है । बाप से ऊंच ते ऊंच पद पाना है तो पुरूषार्थ करना पड़े । पढ़ाई याद होगी तो 84 का चक्र भी याद आ जायेगा । यहाँ बैठने से सब याद आना चाहिए । परन्तु यह भी याद आता नहीं है । अगर याद आये तो किसको सुनाये भी । चित्र तो सबके पास हैं । शिव के चित्र पर तुम कोई को सुनायेंगे तो कभी गुस्सा नहीं करेंगे । बोलो, आओ तो हम आपको बतायें कि यह शिव बेहद का बाप है ना । इनके साथ आपका क्या सम्बन्ध है? ऐसे फालतू चित्र तो नहीं होगा । शिव के लिए जरूर कहेंगे यह भगवान हैं, भगवान तो निराकार ही होता है । उनको बाप कहा जाता है । वह शिक्षा भी देते हैं । तुम्हारी आत्मा शिक्षा लेती है । आत्मा ही सब कुछ करती है । टीचर भी आत्मा बनती है । बाप भी इस रथ पर आकर पढ़ाते हैं । सतयुग की स्थापना करते हैं । वहाँ कलियुग का नाम निशान ही नहीं । मनुष्य कहाँ से आयेंगे । सर्विसएबुल बच्चों को सारा दिन ख्याल चलते रहते हैं । सर्विस नहीं करते तो समझा जाता है बुद्धि ही नहीं चलती । जैसे बुद्धू बैठे हैं । बाप को समझ नहीं सकते । पतित-पावन बाप को याद करने से ही वर्सा मिलेगा । याद करते-करते मरेंगे तो बाप की सब मिलकियत मिलेगी । बेहद के बाप की मिलकियत है स्वर्ग । 

बच्चों के पास बैज भी है, घर में मित्र-सम्बन्धी आदि तो बहुत आते हैं । कोई मरता है तो भी बहुत आते हैं । उन्हों की भी तुम बहुत अच्छी सर्विस कर सकते हो । शिवबाबा का चित्र तो बहुत अच्छा है । भल बड़ा ही रख दो, इसमें कोई कुछ कहेंगे नहीं । ऐसे नहीं कहेंगे कि यह ब्रह्मा है । यह है गुप्त । तुम गुप्त भी समझा सकते हो । सिर्फ शिव का चित्र रखो और सब चित्र उठा दो । यह शिवबाबा बाप, टीचर, सतगुरू है । यह आते हैं नई दुनिया की स्थापना करने और संगम पर ही आते हैं । यह ज्ञान तो बुद्धि में है ना । बोलो, शिवबाबा को याद करो और किसी को याद नहीं करो । शिवबाबा पतित-पावन है, वह कहते हैं मुझे याद करो तो तुम मेरे साथ आकर मिलेंगे । तुम गुप्त सर्विस कर सकते हो । यह लक्ष्मी-नारायण इस नॉलेज से ही बने हैं । कहेंगे शिवबाबा निराकार है, वह कैसे आते हैं? अरे, तुम्हारी आत्मा भी तो निराकार है, वह कैसे आती है? वह भी ऊपर से आती है ना, पार्ट बजाने । यह भी बाप आकर समझाते हैं । बैल पर तो आ न सके । बोलेगा कैसे? साधारण बूढ़ेतन में आते हैं । समझाने की भी बड़ी युक्ति चाहिए । कोई कहते तुम भक्ति नहीं करते हो? बोलो, हम तो सब कुछ करते हैं । युक्ति से चलना होता है । किसको उठाने लिए सोचना चाहिए-क्या युक्ति रचे? कोई को नाराज भी नहीं करना है । गृहस्थ व्यवहार में रहते सिर्फ पवित्र रहना है । तुम कहते हो-बाबा, सर्विस नहीं मिलती है । अरे, सर्विस तो बहुत कर सकते हो । गंगा जी पर जाकर बैठ जाओ । बोलो, यह पानी में स्नान करने से क्या होगा? क्या पावन बन जायेंगे? तुम तो भगवान को कहते हो हे पतित-पावन आओ, आकर पावन बनाओ । फिर वह पतित-पावन है या यह? ऐसी नदियाँ तो ढेर हैं । बाप पतित-पावन तो एक ही है । यह पानी की नदियाँ तो सदैव हैं ही । बाप को तो पावन बनाने के लिए आना पड़ता है । आते भी हैं पुरूषोत्तम संगमयुग पर, आकर पावन बनाते हैं । वहाँ कोई पतित होता नहीं । नाम ही है स्वर्ग, नई दुनिया । अभी तो है पुरानी दुनिया । इस संगमयुग का तुमको ही पता है और कोई समझ न सके । बाप तो अनेक प्रकार की सर्विस की युक्तियां समझाते हैं । बुद्धू भी न बनो । कहते हैं अमरनाथ पर भी कबूतर होते हैं । पिजन पैगाम पहुँचाते हैं । ऐसे नहीं, परमात्मा का पैगाम ऊपर से कबूतर लायेंगे । यह भी सिखलाते हैं । उनके पाँव में लिखकर बाधेंगे तो ले जायेगा । उनको सहज रीति दाना मिलता है तो और कहाँ भटकने की दरकार नहीं । तुमको भी यहाँ दाना मिलता है, तुम्हारी बुद्धि में है विश्व की बादशाही, जो यहाँ से मिलती है । वह फिर समझते हैं दाना यहाँ मिलता हैं तो फिर हिर जाते हैं । तुम तो चैतन्य हो, तुमको अविनाशी ज्ञान रत्नों का दाना मिलता है । शास्त्रों में भी है चिड़ियाओं ने सागर को सुखाया । बहुत कथायें लिख दी हैं । मनुष्य कहेंगे सत । फिर कहते हैं सागर से देवता निकले । रत्नों की थालियां भरकर ले आये । कहेंगे सत । अब समुद्र से देवता कैसे निकलेंगे? समुद्र में मनुष्य वा देवता रहते हैं क्या! कुछ भी समझते नहीं । जन्म जन्मान्तर झूठ ही पढ़ते-सुनते रहते हैं इसलिए कहते हैं झूठी माया । सच्चे और झूठे संसार में कितना रात-दिन का फर्क हैं! झूठ बोलते-बोलते इनसालवेट बन पड़े हैं । तुम कितना युक्ति से समझाते हो, फिर भी कोटो में कोई की ही बुद्धि में बैठता है । यह ह बहुत सहज ज्ञान और सहज योग । बाप, टीचर, सतगुरू को याद करने से उनकी शिफ्तें भी बुद्धि में आ जायेंगी । अपनी जांच करनी चाहिए । हम सब बाबा को याद करते हैं वा और तरफ बुद्धि जाती है? तुम्हारी बुद्धि को अभी समझ मिलती है । कितनी मीठी-मीठी बातें बाप समझाते हैं । युक्तियाँ बताते हैं । तुम कोई को बैठकर समझायेंगे फिर तुम्हारे दुश्मन भी नहीं बनेंगे । शिवबाबा ही तुम्हारा बाप, टीचर, सतगुरू है, उनको याद करो । समझाने की युक्ति रचनी चाहिए । ब्रह्मा के चित्र पर बहुत पीछे पड़ते हैं । शिव का चित्र देख कभी उड़ायेंगे नहीं । अरे, यह तो आत्माओं का बाप है ना । तो बाप को याद करो, इनसे बहुतों को फायदा हो सकता है । इनको याद करने से तुम पतित से पावन बन जायेंगे । वह सबका बाप है । एक बाप के सिवाए कोई की याद नहीं आनी चाहिए और संग तोड़ एक संग जोड़ना है । यह है किसके कल्याण करने की युक्तियां । बाप को याद ही नहीं कर सकेंगे तो पावन कैसे बनेंगे । घर में भी तुम बहुत सर्विस कर सकते हो । बहुत मित्र-सम्बन्धी आदि तुमको मिलेंगे । भिन्न-भिन्न युक्तियां रचो । बहुतों का कल्याण कर सकते हो । हट्टी तो एक ही है । और कोई हट्टी है नहीं, तो जायेंगे कहाँ? अच्छा! 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. गृहस्थ व्यवहार में बहुत युक्ति से चलना है, कोई को नाराज भी नहीं करना है, पवित्र भी जरूर बनना है । 

2. एक बाप से अविनाशी ज्ञान रत्नों का दाना ले अपनी बुद्धि रूपी झोली भरपूर रखनी है, बुद्धि को भटकाना नहीं है, पैगम्बर बन सबको बाप का पैगाम देना है ।

 

वरदान:-

अकाल तख्त और दिलतख्त पर बैठ सदा श्रेष्ठ कर्म करने वाले कर्मयोगी भव !    

इस समय आप सभी बच्चों को दो तख्त मिलते हैं - एक अकाल तख्त, दूसरा दिल तख्त । लेकिन तख्त पर वही बैठता है जिसका राज्य होता है । जब अकाल तख्तनशीन हैं तो स्वराज्य अधिकारी हैं और बाप के दिल तख्तनशीन हैं तो बाप के वर्से के अधिकारी हैं, जिसमें राज्य भाग्य सब आ जाता है । कर्मयोगी अर्थात् दोनों तख्तनशीन । ऐसी तख्तनशीन आत्मा का हर कर्म श्रेष्ठ होता है क्योंकि सब कर्मेन्द्रियां लॉ और ऑर्डर पर रहती हैं ।

 

स्लोगन:- 

जो सदा स्वमान की सीट पर सेट रहते हैं वही गुणवान और महान हैं ।   

 

ओम् शान्ति |