07-11-13 प्रातःमुरली
ओम् शान्ति “बापदादा”
मधुबन
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“मीठे
बच्चे
–तुम
ब्रह्मा की सन्तान आपस में भाई-बहन हो, तुम्हारी वृत्ति बहुत
शुद्ध पवित्र होनी चाहिए”
प्रशन:- किन
बच्चों के समझाने का प्रभाव बहुत अच्छा पद सकता है?
उत्तर:-
जो
गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र रहते हैं | ऐसे
अनुभवी बच्चे किसी को भी समझायें तो उनके समझाने का बहुत अच्छा
प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि शादी करके भी अपवित्र वृत्ति न जाये
– यह बहुत बड़ी मंज़िल है | इसमें बच्चों को बहुत-बहुत ख़बरदार भी
रहना है |
गीत:-
हमारे
तीर्थ न्यारे हैं.....
ओम्
शान्ति
|
यहाँ सम्मुख शिव भगवानुवाच है
|
गीता में दिखाते हैं – श्रीकृष्ण भगवानुवाच परन्तु कृष्ण तो उस
नाम-रूप से सम्मुख हो न सके
|
यह तो सम्मुख कहते हैं, निराकार भगवानुवाच
|
कृष्णवाच कहें तो वह साकार हो जाता है
|
जो भी वेद-शास्त्र आदि सुनाते हैं, वह ऐसे नहीं कहेंगे कि
भगवानुवाच क्योंकि वह साधू, सन्त, महात्मा आदि सब साकार में
बैठे हैं
|
और फिर बाप कहते हैं – हे रूहानी राही
|
रूहानी बाप ज़रूर रूहों को ही कहेंगे कि बच्चे, थक मत जाना
|
यात्रा पर कई थक जाते हैं तो फिर वापस आ जाते हैं
|
वह है जिस्मानी यात्रा
|
भिन्न-भिन्न मन्दिरों में जिस्मानी तीर्थ यात्रा करने जाते हैं
|
कोई शिव के मन्दिर में जाते हैं, वहाँ सब जिस्मानी चित्र रखे
हैं भक्ति मार्ग के
|
यह तो सुप्रीम रूह परमपिता परमात्मा आत्माओं को कहते हैं कि हे
बच्चे, अब मुझ एक के साथ बुद्धि का योग लगाओ और ज्ञान भी देते
हैं
|
तीर्थों पर जाते हैं तो वहाँ भी ब्राह्मण लोग बैठे हैं,
कथा-कीर्तन करते हैं
|
तुम्हारी तो एक ही सत्य नारायण की कथा है, नर से नारायण बनने
की
|
तुम जानते हो पहले स्वीट होम में जायेंगे फिर विष्णुपुरी में
आयेंगे
|
इस समय तुम हो ब्रह्मापुरी में, इसको पियरघर कहा जाता है
|
तुमको जेवर आदि कुछ नहीं है क्योंकि तुम पियरघर में हो
|
तुम जानते हो ससुरघर में हमको अपार सुख मिलने हैं
|
यहाँ कलियुगी ससुरघर में तो अपार दुःख हैं
|
तुमको तो जाना है उस पार सुखधाम में
|
यहाँ से ट्रांसफर होना है
|
बाप सभी को नयनों पर बिठाकर ले जाते हैं
|
दिखाते हैं ना कृष्ण का बाप उनको टोकरी में बिठाकर उस पार ले
गया तो यह बेहद का बाप तुम बच्चों को उस पार ससुरघर ले जाते
हैं
|
पहले अपने निराकारी घर में ले जायेंगे फिर ससुरघर भेज देंगे
|
तो वहाँ यह सब पियरघर, ससुरघर की बातें भूल जायेंगे
|
वह है निराकारी पियरघर, वहाँ यह नॉलेज भूल जाती है, नॉलेज के
संस्कार निकल जाते हैं, बाकी प्रालब्ध के संस्कार रह जाते हैं
|
फिर तुम बच्चों को प्रालब्ध ही ध्यान में रहती है
|
प्रालब्ध अनुसार जाकर सुख के जन्म लेंगे
|
सुखधाम जाना है
|
प्रालब्ध मिल गई फिर ज्ञान ख़त्म
|
तुम जानते हो प्रालब्ध में हमारी फिर वही एक्ट चलेगी
|
तुम्हारे संस्कार ही प्रालब्ध के हो जायेंगे
|
अभी हैं पुरुषार्थ के संस्कार
|
ऐसे नहीं कि पुरुषार्थ और प्रालब्ध दोनों के संस्कार वहाँ
रहेंगे
|
नहीं, वहाँ यह ज्ञान नहीं रहता
|
तो यह तुम्हारी रूहानी यात्रा है, तुम्हारा चीफ पण्डा है बाप
|
यूँ तो तुम भी रूहानी पण्डे बन जाते हो, सबको साथ में ले जाते
हो
|
वह हैं जिस्मानी पण्डे, तुम हो रूहानी पण्डे
|
वह लोग अमरनाथ पर बड़े धूमधाम से जाते हैं, झुण्ड के झुण्ड ख़ास
अमरनाथ पर बहुत धूमधाम से जाते हैं
|
बाबा ने देखा है कितने साधू-सन्त बाजे गाजे ले जाते हैं
|
साथ में डॉक्टर आदि भी ले जाते हैं क्योंकि ठण्डी का समय होता
है
|
कई बीमार पड़ जाते हैं
|
तुम्हारी यात्रा तो बहुत सहज है
|
बाप कहते हैं याद में रहना ही तुम्हारी यात्रा है
|
याद मुख्य है
|
बच्चे याद करते रहें तो ख़ुशी का पारा चढ़ा रहे
|
साथ में औरों को भी यात्रा पर ले जाना है
|
यह यात्रा एक ही बार होती है
|
वह जिस्मानी यात्रायें तो भक्ति मार्ग से शुरू होती हैं
|
वह भी कोई शुरुआत में नहीं होती
|
ऐसे नहीं कि फट से मन्दिर, चित्र आदि बन जाते हैं
|
वह तो आहिस्ते-आहिस्ते बाद में बनते जाते हैं
|
पहले-पहले शिव का मन्दिर बनेगा
|
वह भी पहले घर में सोमनाथ का मन्दिर बनाते हैं तो फिर कहाँ
जाने की दरकार नहीं रहती
|
यह मन्दिर आदि बाद में बनते हैं, समय लगता है
|
आहिस्ते-आहिस्ते नये शास्त्र, नये चित्र, नये मन्दिर आदि बनते
रहते
|
टाइम लगता है क्योंकि पढ़ने वाले भी चाहिए ना
|
मठ आदि जब वृद्धि को पाएंगे, फिर विचार होगा शास्त्र बनायें
|
तो इतने तीर्थस्थान बनें, मन्दिर बनें, चित्र बनें, टाइम लगता
है ना
|
भल कहा जाता है कि भक्ति मार्ग द्वापर से शुरू होता है परन्तु
टाइम तो लगता है ना
|
फिर कलायें कमती होती जायेंगी
|
पहले अव्यभिचारी भक्ति, फिर व्यभिचारी भक्ति हो जाती है
|
यह सब बातें अच्छी रीति चित्रों पर सिद्ध कर बताई जाती हैं
|
समझाने वालों की बुद्धि में यही चलता रहेगा कि ऐसे-ऐसे चित्र
बनायें, यह समझायें
|
सबकी बुद्धि में नहीं चलेगा
|
नम्बरवार है ना
|
कोई की बुद्धि बिल्कुल चलती नहीं, वह फिर पद भी ऐसे पायेंगे
|
मालूम पड़ जाता है – यह क्या बनेंगे? जितना आगे चलेंगे – तुम
समझते जायेंगे
|
जब लड़ाई आदि लगेगी फिर प्रैक्टिकल देख लेंगे
|
फिर बहुत पछतायेंगे
|
उस समय पढ़ाई तो हो न सके
|
लड़ाई के समय त्राहि-त्राहि होती रहेगी, सुन नहीं सकेंगे
|
पता नहीं क्या हो जायेगा
|
पार्टीशन हुआ तो क्या हो गया, देखा ना
|
यह विनाश का समय बहुत कड़ा है
|
हाँ, बाकी साक्षात्कार आदि बहुत होंगे, जिससे जान जायेंगे कि
यह कितना पढ़ा है
|
बहुत पछतायेंगे भी और साक्षात्कार होंगे – देखो, तुमने पढ़ाई
छोड़ दी तब यह हाल हुआ है
|
धर्मराज साक्षात्कार कराने के सिवाए सजायें देंगे? सब
साक्षात्कार करायेंगे
|
फिर उस समय कर कुछ नहीं सकेंगे
|
कहेंगे हाय तक़दीर
|
तदबीर का समय तो गया
|
तो बाप कहते हैं क्यों नहीं अभी पुरुषार्थ करते हो
|
सर्विस से ही दिल पर चढ़ेंगे
|
बाप कहेंगे यह बच्चे अच्छी सर्विस करते हैं
|
मिलेट्री का कोई मरता है तो उनके मित्र-सम्बन्धियों आदि को भी
इनाम देते हैं
|
यहाँ तुमको इनाम देने वाला है बेहद का बाप
|
बाप से भविष्य 21 जन्मों के लिए इनाम मिलता है
|
यह तो हरेक को अपनी दिल पर हाथ रख पूछना है कि मैं कितना पढ़ता
हूँ
|
धारणा नहीं होती तो गोया तक़दीर में नहीं है
|
कहेंगे कर्म ही ऐसे फूटे हुए हैं
|
बहुत ख़राब कर्म करने वाले कुछ उठा नहीं सकते हैं
|
बाप समझाते हैं – मीठे बच्चे, तुम्हें इस रूहानी यात्रा पर
अपने साथियों को भी ले जाना है
|
फ़र्ज़ है हरेक को यह यात्रा की बात बताना
|
बोलो, हमारी यह रूहानी यात्रा है
|
वह है जिस्मानी
|
दिखाते हैं रंगून की तरफ़ एक छम-छम तलाव है, जहाँ स्नान करने से
परी बन जाते हैं
|
लेकिन वह परी आदि तो बनते नहीं
|
यह है ज्ञान स्नान करने की बात, जिससे फिर तुम बहिश्त की परी
बन जाते हो और ज्ञान-योगबल से वैकुण्ठ में आना-जाना तो
तुम्हारे लिए कॉमन बात है
|
और ही तुमको रोका जाता है, घड़ी-घड़ी ध्यान में नहीं जाओ, आदत पड़
जायेगी
|
तो यह ज्ञान मान-सरोवर है, परमपिता परमात्मा आकर इस मनुष्य तन
द्वारा ज्ञान सुनाते हैं, इसलिए इनको मान-सरोवर कहा जाता है
|
मान-सरोवर अक्षर सागर से निकला है
|
ज्ञान सागर में ज्ञान स्नान करना तो बहुत अच्छा है
|
बहिश्त की बीबी को महारानी कहा जाता है
|
बाप कहेंगे तुम भी बहिश्त के मालिक बनो
|
बच्चों पर लव रहता है
|
हरेक पर रहम पड़ता है, साधुओं पर भी रहम आता है
|
यह तो गीता में लिखा हुआ है कि साधुओं का भी उद्धार करते हैं
|
उद्धार होता है – ज्ञान योग से
|
तुम बच्चों में समझाने की बड़ी फुर्ती चाहिए
|
बोलो – तुम और तो सब जानते हो लेकिन छांछ जानते हो, बाकी मक्खन
खिलाने वाले को तुम जानते ही नहीं हो
|
बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं
|
परन्तु किसकी बुद्धि में भी बैठे ना
|
बाप को जानने से मनुष्य हीरे जैसा बनते हैं, न जानने से मनुष्य
कौड़ी मिसल, बिल्कुल पतित हैं
|
बाप को जानने से ही पावन बनते हैं
|
पतित दुनिया में कोई पावन हो न सके
|
तो जो महारथी बच्चे हैं, वह अच्छी रीति समझा सकेंगे
|
कितने ढेर ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं
|
प्रजापिता ब्रह्मा नाम भी मशहूर है
|
प्रजापिता ब्रह्मा के यह हैं मुख वंशावली
|
ब्रह्मा को ही 100 भुजा, 1000 भुजा दिखाते हैं
|
यह भी समझाया जाता है इतनी भुजायें तो हो नहीं सकती
|
बाकी ब्रह्मा तो बहुत बचड़े वाला है
|
ब्रह्मा फिर किसका बच्चा? इनका तो बाप है ना
|
ब्रह्मा है शिवबाबा का बच्चा
|
इनका और कौन बाप हो सकता? मनुष्य तो कोई हो नहीं सकता
|
ब्रह्मा, विष्णु, शंकर गाये जाते हैं सूक्ष्मवतन के
|
वह तो यहाँ आ न सकें
|
प्रजापिता ब्रह्मा तो ज़रूर यहाँ होगा ना
|
सूक्ष्मवतन में तो प्रजा नहीं रचेंगे
|
तो परमपिता परमात्मा आकर इस ब्रह्मा मुख द्वारा शक्ति सेना
रचते हैं
|
पहले-पहले परिचय देना है हम ब्रह्मा मुख वंशावली हैं
|
तुम भी ब्रह्मा के बच्चे हो ना
|
प्रजापिता ब्रह्मा है सबका बाप
|
फिर उनसे और बिरादरियाँ निकलती हैं, नाम बदलते जाते हैं
|
अब तुम ब्राह्मण हो
|
प्रैक्टिकल में देखो प्रजापिता ब्रह्मा की कितनी औलाद है
|
ज़रूर औलाद को वर्सा मिलता होगा
|
ब्रह्मा के पास तो कोई प्रॉपर्टी है नहीं, प्रॉपर्टी है
शिवबाबा के पास
|
ब्रह्मा वल्द शिव
|
बेहद के बाप से ही वर्सा मिलता है
|
ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा बैठ पढ़ाते हैं
|
हमको दादे का वर्सा मिलता है
|
बाबा समझाते तो बहुत हैं, परन्तु योग नहीं
|
कायदे पर नहीं चलते तो बाप भी क्या करे
|
बाप कहते हैं इनकी तकदीर
|
अगर बाबा पूछें तो बाबा बता सकते हैं – इस हालत में तुम्हारा
क्या पद होगा? दिल भी गवाही देता है, मैं कितनी सर्विस करता
हूँ? श्रीमत पर कहाँ तक चलता हूँ? श्रीमत कहती है मनमनाभव
|
सबको बाप और वर्से का परिचय देते रहते हैं, ढिंढोरा भी पीटते
रहते हैं
|
बाबा ईशारा देते रहते हैं, तुम्हें गवर्मेन्ट को भी समझाना है
|
जो वह भी समझें बरोबर भारत की ताकत ही चली गई है
|
परमपिता परमात्मा सर्वशक्तिमान से योग ही नहीं है
|
इनसे तुम योग लगते हो तो एकदम विश्व के मालिक बनते हो, माया पर
भी तुम जीत पहनते हो
|
गृहस्थ व्यवहार में रहते माया पर जीत पानी है
|
हमारा मददगर बाप है
|
कितना समझाया जाता है, धारणा करनी चाहिए
|
बाबा ने समझाया है धन दिए धन ना खुटे
|
सर्विस करेंगे तब बाबा की दिल पर चढ़ सकेंगे
|
नहीं तो इम्पसिबुल है
|
इसका मतलब यह नहीं कि बाबा प्यार नहीं करते
|
बाबा प्यार सर्विसएबुल को करेंगे
|
मेहनत करनी चाहिए
|
सबको यात्रा लायक बनाते हैं
|
मनमनाभव
|
यह है रूहानी यात्रा, मुझे याद करो तो तुम मेरे पास पहुँच
जायेंगे
|
शिव पुरी में आकर फिर विष्णुपुरी में चले जायेंगे
|
यह बातें सिर्फ़ तुम बच्चे जानते हो
|
कोई और मनमनाभव का अर्थ समझते नहीं, पढ़ते तो बहुत हैं
|
बाप महामन्त्र देते हैं, मुझे याद करो तो तुम विकार्मजीत बन
जायेंगे
|
अच्छा!
मीठे-मीठे
सिकिलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और
गुडमॉर्निंग
|
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते
|
धारणा
के लिए मुख्य सार:-
1. ज्ञान स्नान करना है | प्यार से सर्विस कर बाप के
दिलतख़्त पर बैठना है | पुरुषार्थ के समय में
अलबेला नहीं बनना है |
2. बाप की पलकों पर बैठ कलियुगी दुःखधाम से सुखधाम चलना है
| इसलिए अपना सब कुछ ट्रान्सफर
कर देना है |
वरदान:-
अटेन्शन
और अभ्यास के निज़ी संस्कार द्वारा स्व और सर्व की सेवा में
सफलतामूर्त भव
ब्राह्मण
आत्माओं का निज़ी संस्कार “अटेन्शन और अभ्यास” है | इसलिए कभी
अटेन्शन का भी टेन्शन नहीं रखना | सदा स्व सेवा और औरों की
सेवा साथ-साथ करो | जो स्व सेवा छोड़ पर सेवा में लगे रहते हैं
उन्हें सफलता नहीं मिल सकती, इसलिये दोनों का बैलेन्स रख आगे
बढ़ो | कमज़ोर नहीं बनो | अनेक बार के निमित्त बने हुए विजयी
आत्मा हो, विजयी आत्मा के लिए कोई मेहनत नहीं, मुश्किल नहीं |
स्लोगन:-
ज्ञानयुक्त रहमदिल बनो तो कमज़ोरियों से दिल का वैराग्य आयेगा
|
ओम्
शान्ति
|