08-02-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
अपनी पुरानी आदतों को मिटाने के लिए याद की यात्रा करते रहो,
याद से ही पुरानी आदतें मिटेंगी
| 
प्रश्न:-
बेहद का बाप बेहद का रहमदिल है - कैसे?
उत्तर:-
बाबा कहते – मैं रहमदिल हूँ, मैं बच्चों का दुःख सहन नहीं कर
सकता | सेकेण्ड में जीवनमुक्ति देने आता हूँ | ज्ञान भी
सेकेण्ड का है तो विनाश भी सेकेण्ड में होता है | ऐसे नहीं
विनाश हो और हॉस्पिटल में तड़पते रहें इसलिए ऐसी चीज़ें बना रहे
हैं जो सेकेण्ड में विनाश हो जायेगा | यह ड्रामा में नूँधा हुआ
है | बाप बच्चों को धीरज देते हैं – बच्चे, विनाश के बाद विश्व
में शान्ति हो जायेगी |
ओम्
शान्ति
|
रूहानी बाप इस रथ द्वारा बच्चों प्रति समझाते हैं, बच्चे
अपने-अपने रथ अथवा आरगन्स द्वारा सुनते हैं | यह तो तुम समझते
हो हम बाप के साथ बैठे हैं | यह टीचर भी है, गुरु भी है |
पहले-पहले बाप है | जैसे बाप के आगे बच्चे होते हैं तो क्या
बच्चे घड़ी-घड़ी हाथ जोड़ते हैं! अगर जोड़ते हैं तो समझता हूँ वह
बाप नहीं समझते हैं, कोई साधू-सन्त आदि समझते हैं क्योंकि
जन्म-जन्मान्तर से हिरे हुए हैं, गुरुओं को हाथ जोड़ने, पाँव
पड़ने पर | अभी ज्ञान पूरी रीति समझा नहीं है, जिनको बाप समझाते
हैं वह समझते हैं | बाप आये हैं वर्सा देने तो बच्चों को बहुत
ख़ुशी होनी चाहिए | कल्प-कल्प बाप आते ही हैं वर्सा देने |
इसमें डरने की कोई बात नहीं | साधू आदि से डरते हैं कि कहाँ
बददुआ न दे दें, गुरु जी नाराज़ न हो जाएं | तुम बच्चे तो जानते
हो – बाप बहुत मीठा है | बाप आये हैं फिर से आदि सनातन
देवी-देवता धर्म की स्थापना करने | पहले-पहले तुमको ब्राह्मण
बनना है | ऊँचे से ऊँचा कुल है ही ब्राह्मणों का | प्रजापिता
ब्रह्मा के बच्चे भी हैं ना | ब्रह्मा है ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड
फादर तो बच्चे भी ज़रूर होंगे | यह समझने की बात है |
भक्तिमार्ग में तो जो आया वह कह देते हैं | महर्षि भी कहते हैं
खाओ पियो मौज करो, यह सब आदतें आपेही मिट जायेंगी | अब सिवाए
योग के कोई आदत मिट नहीं सकती और मिटाने वाला भी ज़रूर कोई
चाहिए | इस समय सब पतित तमोप्रधान हैं | तुम कहेंगे इन
लक्ष्मी-नारायण का अन्तिम जन्म है | भिन्न नाम, रूप, देश, काल
में पतित हैं, इसमें बड़ी समझने की बात है | अब देखो गाते हैं
मुझ निर्गुण हारे में.......निर्गुण का भी अर्थ नहीं जानते |
इस समय कोई में गुण नहीं हैं | विवेक भी कहता है – रावण राज्य
में सब बेगुणी बन जाते हैं | निर्गुण बालक की संस्था कितनी बड़ी
है | अब निर्गुण को तो गुणवान बनना है | वास्तव में तुम
निर्गुण थे | तुम्हारे में कोई गुण नहीं था | तुम पतित काँटे
थे | अब तुम आये हो गुणवान बनने | चढ़ती कला करने वाला एक ही
बाप है | बाप द्वारा सर्व का भला होना है | ग्रन्थ में है तेरे
बहाने सर्व का भला | सर्व का भला होता है सतयुग में और
शान्तिधाम में | यह है दुःखधाम | तुम बच्चे सारे चक्र को जान
चुके हो | तुम हो स्वदर्शन चक्रधारी | पहले तो बाप है स्वदर्शन
चक्रधारी | 84 के चक्र को बाप ही जानते हैं | तुमको भी
स्वदर्शन चक्रधारी बाप ही बनाते हैं | परन्तु अलंकार न बाप को
हैं, न तुमको हैं क्योंकि तुम भी पुरुषार्थी हो | सबको पूरी
धारणा होती नहीं | जब पूरे पक्के हो जाते तब सारा ज्ञान बुद्धि
में आ जाता है | हैं सारी ज्ञान की बातें, उन्होंने स्वदर्शन
चक्र कृष्ण को देकर हिंसक बना दिया है | कुछ भी समझते नहीं हैं
| बाप सब चित्रों का अर्थ समझाते हैं | वह है अनराइटियस और यह
है राइटियस | तुम जानते हो इस रथ पर रथी, बाबा बैठ सब राइटियस
नॉलेज सुनाते हैं कि यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है | इतने
सब अनेक धर्म कैसे वृद्धि को पाते हैं | पिछाड़ी में सबका विनाश
होता है | फिर बाप आकर वही धर्म स्थापन करते हैं | सेकेण्ड बाई
सेकेण्ड आत्मा जो एक्ट करती है सो हुबहू फिर वही एक्ट करेगी |
इसमें मूँझने की दरकार नहीं है | दुनिया तो वही है, सिर्फ़ नई
सो पुरानी होती है | वो लोग समझते हैं ऊपर में भी दुनिया है |
कहते हैं चन्द्रमा में प्लाट लेंगे, यह करेंगे...... | यह है
माया का अति घमण्ड, साइन्स का अति घमण्ड | कहाँ-कहाँ जाते हैं,
आगे चलकर और भी नई-नई बातें देखेंगे | सेकेण्ड बाई सेकेण्ड नया
चलता रहता है | भल टैम्प्रेरी अच्छा रूप भी देखेंगे | परन्तु
पिछाड़ी में विनाश भी ज़रूर होना है | इसको कहा जाता है माया का
पाम्प | इन सब बातों को अच्छी तरह समझकर धारण करना है | तुम
जानते हो बाबा आया है पतित दुनिया का विनाश और पावन दुनिया की
स्थापना करने | स्थापना, विनाश और पालना | बाकी शंकर द्वारा
विनाश कराये – यह तो लॉ नहीं कहता | यह तो उनकी महिमा का चित्र
बना दिया है | जैसे हनूमान का चित्र बनाया है, रावण का चित्र
बनाते हैं परन्तु रावण क्या चीज़ है, जानते नहीं हैं | अब बाप
कितना अच्छी रीति समझाते हैं | हमारी आत्मा मानती भी है कि
बरोबर हम पतित बन पड़े थे | अब बाप कहते हैं मामेकम् याद करो तो
पावन बन जायेंगे |
तुम बच्चों को ही पुरुषार्थ करना है | बाकी वो गुरु लोग तो ढेर
हैं | कितने उनके फ़ालोअर्स हैं | वो थोड़ेही इतना ज़ल्दी छोड़ेंगे
| उनका तुमको ख्याल नहीं करना है | तुम सबको शान्तिधाम का
रास्ता बताओ | चक्र के राज़ को भी तुम जानते हो | जो जहाँ का है
वह वहाँ जायेगा | हर एक को अपना-अपना पार्ट बजाना है, मूँझने
की दरकार नहीं | बाप कहते हैं – मैं तुम बच्चों को पुरुषार्थ
कराता हूँ | ऐसे नहीं, मैं प्रेरणा करता हूँ | प्रेरणा अर्थात्
विचार – यह तो तुम बच्चों को नॉलेज मिलती है | याद के यात्रा
की भी नॉलेज मिलती है तो चक्र की भी नॉलेज है | बाप कहते हैं –
मामेकम्, यह है याद का रीयल ज्ञान, जो है ही बाप के पास | बाप
को कहते हैं ज्ञान का सागर | बाप कहते हैं मुझे बुलाते ही हैं
ज्ञान का सागर आओ | फिर मुझे सर्वव्यापी कह मिट्टी में मिला
देना, यह तो अज्ञान है ना | कितनी ग्लानि कर दी है | अब इन
सबका विनाश भी ड्रामा में नूँधा हुआ है | बाप कहते हैं मैं
रहमदिल हूँ | ऐसा न हो विनाश हो और हॉस्पिटल में तड़पते रहें,
दुःखही होते रहें | नहीं, चीज़ें ऐसी-ऐसी बनाते हैं जो सेकेण्ड
में विनाश हो जाये | सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिलती है तो विनाश
भी सेकेण्ड में चाहिए | ज्ञान भी सेकेण्ड का है | वह भी बारूद
बनाते हैं | यह है बेहद की बात | यह सूर्य चाँद इस बड़े माण्डवे
की शोभा हैं | दिन और रात भी ज़रूर चाहिए | पुरानी दुनिया से
फिर नई दुनिया भी ज़रूर बनेगी | जास्ती मनुष्य हो जाएं तो फिर
इतना खाना कहाँ से आयेगा | अब तो तत्व भी तमोप्रधान हो गये हैं
| समुद्र भी देखो कितनी चीज़ें हप कर लेता है | स्टीमर डूब जाते
हैं अकाले मृत्यु होती रहती है | वहाँ दुःख की कोई बात नहीं |
उसका नाम ही है हेविन | यह लक्ष्मी-नारायण हेविन के मालिक थे |
अब तुमको एक्यूरेट नॉलेज मिलती है | पहले तुम कुछ भी नहीं
जानते थे तो बाबा से प्रश्न भी क्या पूछेंगे | बाबा सब-कुछ
आपेही बताते हैं | बाप कहते हैं मामेकम् याद करो | इन प्रश्नों
में टाइम वेस्ट मत करो | पहले जरुरी पुरुषार्थ करो | किचड़ा
निकालो | 84 का चक्र भी तुमने लगाया है | यह समझ बुद्धि में आ
गई है | यह चक्र का नॉलेज बुद्धि में हो | बाप की याद हो तब
आत्मा यह शरीर छोड़कर जाये | अन्त घड़ी जब ऐसी अवस्था हो तब पद
पा सकते हैं | पढ़ाई पढ़ते-पढ़ते ट्रान्सफर हो जाना है | वह एक
क्लास से दूसरे क्लास में ट्रान्सफर होते हैं, तुम मृत्युलोक
से अमरलोक में ट्रान्सफर होते हो | तुमको ख़ातिरी है |
कल्प-कल्प हम बाबा से नॉलेज सुनते हैं | तो तुम बच्चों को बहुत
ख़ुशी होनी चाहिए | यह गीता एपिसोड रिपीट हो रहा है | यह
पुरुषोत्तम संगमयुग है | यह युग बदल रहा है | युग बदलना माना
नीचे से ऊँचा बनना | अब हमारे दुःख के दिन गये | बच्चों को बाप
धीरज देते हैं, बाकी थोड़े रोज़ हैं | विनाश के बाद शान्ति हो
जायेगी | बाकी ऐसे नहीं है कि सब धर्म मिलकर एक हो जायेंगे |
यह झाड़ है, सब नम्बरवार आते रहते हैं | बाकी सब धर्म मिलकर एक
क्या हो जाएं | बाप जो धर्म स्थापन करता है वह तो है ही एक |
इन बिचारों को तो कुछ भी मालूम नहीं | तुमको तो वन्डर खाना
चाहिए | क्या कहते हैं, कौन-सा एक धर्म हो जाए – यह तो बताओ |
जिसको जो आता है वह कह देते हैं | तुमको तो अब अथॉरिटी मिली है
तो तुम पूछ सकते हो | एक धर्म किसको कहा जाता है? आगे कब हुआ
है जो फिर हो? विश्व में शान्ति तो सतयुग में थी | वहाँ दुःख
के बात नहीं | तो बाप कहते हैं यह सब ज्ञान देने के लिए मुझे
आना पड़ता है | और कोई की ताक़त नहीं जो यह बातें समझा सके |
तुम्हारे में भी सब एक जैसे नहीं समझते | पढ़ाई में नम्बरवार
होते हैं, इसमें हार्टफेल नहीं होना है | पुरुषार्थ कर फालो
करो, टीचर की पढ़ाई धारण करो | कल्याणकारी बच्चों को औरों का भी
कल्याण करना है | गृहस्थ व्यवहार में रहते बुद्धियोग बाप से
लगाओ | जैसे आशिक-माशूक होते हैं, भोजन खाते हैं तो भी सामने
आशिक की शक्ल आती रहेगी | विकार के लिए नहीं, शक्ल पर आशिक
होते हैं | काम करते भी माशूक को देखते रहेंगे | दीदार भी ऐसे
होता है | यह तो समझ की बात है | बाप पढ़ाते हैं | बाप को तो
तुम इन आँखों से देख नहीं सकते | न आत्मा को देख सकते हो |
दिव्य दृष्टि से देख सकते हो | परन्तु देखने से क्या फ़ायदा?
देखने से पद नहीं मिलता है | यह तो पढ़ाई है | मूल बात है योग
की, जिससे तुम पावन बनते हो | मेहनत भी इसमें लगती है |
भगवानुवाच – अपने को आत्मा समझो | फिर भी बच्चे भूल जाते हैं |
यह तो बाप समझते हैं सब नम्बरवार ही समझेंगे | फिर भी
पुरुषार्थ कराते रहते हैं |
बाप कहते हैं – बच्चे, तुम ही पवित्र गृहस्थ धर्म में थे, अब
अपवित्र हो | अब मैं आर्डिनेन्स निकालता हूँ – इस काम महाशत्रु
को जीतो और मामेकम याद करो तो तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के
विकर्म विनाश होंगे | धीरे-धीरे तुम विकारी बने हो | पाप चढ़
गये हैं | आब कोई पाप नहीं करना | मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया
तो बहुत दण्ड पड़ेगा | सतगुरु का निन्दक ठौर न पाये | बाप आकर
पावन बनाते हैं फिर तुम पतित कैसे बनते हो! हर एक को सीढी नीचे
उतरनी ही है, सतोप्रधान से सतो-रजो-तमो में आना ही है | यह है
काँटों का झाड़ फिर तुम फूलों के झाड में आयेंगे | कोई भी बात
में मूँझने की दरकार नहीं है | बाप कहते हैं इस ड्रामा में तुम
आलराउन्ड पार्ट बजाते हो | तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो,
अभी बाप ने समझाया है | सुनकर कितनी दिल खुश होती है | बाप
हमको पढ़ाते हैं! बाप भी निराकार है, हम भी निराकार बन जायेंगे
तो शान्तिधाम चले जायेंगे | बाप को बुलाया है – आकर पावन बनाकर
हमको घर ले चलो | देखो, मेरी ड्यूटी कैसी है! तुम खुद पुकारते
हो, आकर हमको पावन बनाओ, रावण राज्य से लिबरेट करो | तो फिर
तुम और कोई के संग में मत आओ | मूल बात है बाप को याद करो और
चक्र को याद करो तो चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे | शरीर का भान
निकाल दो | भाई-बहिन समझ फिर भी क्रिमिनल एसाल्ट कर देते हैं |
बाप कहते हैं – अच्छा, भाई-भाई समझो | फिर नाम-रूप में आयेंगे
नहीं, इतनी मेहनत करो | इसमें बड़ी मेहनत है | कोई मुश्किल ही
ठहर सकते हैं | मेहनत बिगर विश्व के मालिक कैसे बनेंगे? किसको
स्वप्न में भी नहीं होगा, सो भी जो एकदम तमोप्रधान पाप आत्मा,
अजामिल जैसे विकारी बने हैं वही फिर सतोप्रधान पावन बनते हैं |
अब बाप कहते हैं याद करो तो पाप कट जाएं | जो देवतायें थे
उन्हों को ही 84 जन्मों की कहानी सुनाते हैं | मूँझने की बात
नहीं | फिर भी माया भुला देती है | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का
दिल व जान सिक व प्रेम से यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी
बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
ड्रामा की कोई भी सीन देख मूँझना नहीं है | हर एक को अपना
एक्यूरेट पार्ट बजाना ही है | चक्र के राज़ को समझ सबको
शान्तिधाम का रास्ता बताओ | पावन बनो और बनाओ |
2.
प्रश्नों के विस्तार में जाकर अपना टाइम वेस्ट नहीं करना है |
बाबा आपेही सब बताते हैं | किसी के संग में नहीं आना है | बाप
की आज्ञा पर चलते रहना है |
वरदान:-
बिन्दी रूप में स्थित रह औरों को भी ड्रामा के बिन्दी की
स्मृति दिलाने वाले विघ्न विनाशक भव
! 
जो
बच्चे किसी भी बात में क्वेश्चन मार्क नहीं करते, सदा बिन्दी
रूप में स्थित रह हर कार्य में औरों को भी ड्रामा की बिन्दी
स्मृति में दिलाते हैं – उन्हें ही विघ्न-विनाशक कहा जाता है |
वह औरों को भी समर्थ बनाकर सफलता की मंज़िल के समीप ले आते हैं
| वह हद की सफलता की प्राप्ति को देख खुश नहीं होते लेकिन बेहद
के सफलतामूर्त होते हैं | सदा एकरस, एक श्रेष्ठ स्थिति में
स्थित रहते हैं | वह अपनी सफलता की स्व-स्थिति से असफलता को भी
परिवर्तन कर देते हैं |
स्लोगन:-
दुआयें
लो, दुआयें दो तो बहुत ज़ल्दी मायाजीत बन जायेंगे
|
ओम्
शान्ति
|