31-07-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - रक्षाबन्धन का पर्व प्रतिज्ञा का पर्व है, जो संगमयुग से ही शुरू होता है, अभी तुम पवित्र बनने और बनाने की प्रतिज्ञा करते हो”   

                            
प्रश्न:-   
तुम्हारे सब कार्य किस आधार पर सफल हो सकते हैं? नाम बाला कैसे होगा?


उत्तर:-
ज्ञान बल के साथ योग का भी बल हो तो सब कार्य आपेही करने के लिए तैयार हो जायें । योग बहुत गुप्त है इससे तुम विश्व का मालिक बनते हो । योग में रहकर समझाओ तो अखबार वाले आपेही तुम्हारा सन्देश छापेंगे । अखबारों से ही नाम बाला होना है, इनसे ही बहुतों को सन्देश मिलेगा ।

 

ओम् शान्ति |

आज बच्चों को रक्षाबन्धन पर समझाते हैं क्योंकि अभी नजदीक है । बच्चे राखी बांधने के लिए जाते हैं । अब जो चीज़ होकर जाती है उनका पर्व मनाते हैं । यह तो बच्चों को मालूम है आज से 5 हजार वर्ष पहले भी यह प्रतिज्ञा पत्र लिखाया था, जिसको बहुत नाम दिये हैं । यह है पवित्रता की निशानी । सबको कहना होता है पवित्र बनने की राखी बांधों । यह भी जानते हो पवित्र दुनिया सतयुग आदि में ही होती है । इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर ही राखी पर्व शुरू होता है, जो फिर मनाया जायेगा जब भक्ति शुरू होगी, इनको कहा जाता है अनादि पर्व । वह भी कब से शुरू होता है? भक्ति मार्ग से क्योंकि सतयुग में तो यह पर्व आदि होते ही नहीं । यह होते हैं यहाँ । सब त्योहार आदि संगम पर होते हैं, वही फिर भक्ति मार्ग से शुरू होते हैं । सतयुग में कोई त्योहार होता नहीं । तुम कहेंगे दीप माला होगी? नहीं । वह भी यहाँ मनाते हैं वहाँ नहीं होनी चाहिए । जो यहाँ मनाते हैं वह वहाँ नहीं मना सकते । यह सब कलियुग के पर्व हैं । रक्षा-बन्धन मनाते हैं, अब यह कैसे मालूम पड़े कि यह राखी क्यों मनाई जाती है? तुम सबको राखी बांधती हो, कहती हो पावन बनो क्योंकि अब पावन दुनिया स्थापन हो रही है । त्रिमूर्ति के चित्र में भी लिखा हुआ है-ब्रह्मा द्वारा स्थापना होती है पावन दुनिया की इसलिए पवित्र बनाने के लिए राखी बंधन मनाया जाता है । अभी है ज्ञान मार्ग का समय । तुम बच्चों को समझाया गया है भक्ति की कोई भी बात सुनाये तो उनको समझाना चाहिए हम अभी ज्ञान मार्ग में हैं । ज्ञान सागर एक ही भगवान है, जो सारी दुनिया को वाइसलेस बनाते हैं । भारत वाइसलेस था तो सारी दुनिया वाइसलेस थी । भारत को वाइसलेस बनाने से सारी दुनिया वाइसलेस हो जाती है । भारत को वर्ल्ड नहीं कहेंगे । भारत तो एक खण्ड है वर्ल्ड में । बच्चे जानते हैं नई दुनिया में सिर्फ एक भारत खण्ड होता है । भारत खण्ड में जरूर मनुष्य भी रहते होंगे । भारत सचखण्ड था, सृष्टि के आदि में देवता धर्म ही था, उसको ही कहा जाता है निर्विकारी पवित्र धर्म, जिसको 5 हजार वर्ष हुए । अभी यह पुरानी दुनिया बाकी थोड़े रोज है । कितना दिन वाइसलेस बनने में लगते हैं?

प्रतिज्ञा करनी चाहिए-बाबा, हम पवित्र तो जरूर बनेंगे । यह उत्सव सबसे बड़ा समझना चाहिए । सब पुकारते भी हैं हे परमपिता परमात्मा, यह कहते हुए भी परमपिता बुद्धि में नहीं आता । तुम जानते हो परमपिता परमात्मा आते हैं जीव आत्माओं को ज्ञान देने । आत्मा-परमात्मा अलग रहे....... यह मेला इस संगमयुग पर ही होता है । कुम्भ का मेला भी इसको कहा जाता है, जो हर 5 हजार वर्ष बाद एक ही बार होता है । वह पानी में स्नान करने का मेला तो अनेक बार मनाते आये हो, वह है भक्ति मार्ग । यह है ज्ञान मार्ग । संगम को भी कुम्भ कहा जाता है । तीन नदियां वास्तव में हैं नहीं, गुप्त नदी पानी की कैसे हो सकती है! बाप कहते हैं तुम्हारी यह गीता गुप्त है । तो यह समझाया जाता है तुम योगबल से विश्व की बादशाही लेते हो, इसमें नाच-तमाशा आदि कुछ भी नहीं है । वह भक्ति मार्ग पूरा आधाकल्प चलता है और यह ज्ञान चलता है एक लाइफ । फिर दो युग है ज्ञान की प्रालब्ध, ज्ञान नहीं चलता है । भक्ति तो द्वापर-कलियुग से चली आई है । ज्ञान सिर्फ एक ही बार मिलता है फिर उसकी प्रालब्ध 21 जन्म चलती है । अभी तुम्हारी आँखें खुली हैं । आगे तुम अज्ञान नींद में थे । अब राखी बंधन पर ब्राह्मण लोग राखी बांधते हैं । तुम भी ब्राह्मण हो । वह है कुख वंशवाली, तुम हो मुख वंशावली । भक्ति मार्ग में कितनी अन्धश्रधा है । दुबन में फंसे हुए हैं । दुबन (दलदल) में पांव फँस पड़ते हैं ना । तो भक्ति के दुबन में मनुष्य फँस जाते हैं और एकदम गले तक आ जाते हैं । तब बाप फिर आते हैं बचाने । जब बाकी चोटी रहती है, पकड़ने लिए तो चाहिए ना । बच्चे बहुत मेहनत करते हैं समझाने की । करोड़ो मनुष्य हैं, एक-एक के पास जाना मेहनत लगती है । तुम्हारी बदनामी अखबारों द्वारा हुई है कि यह भगाते हैं, घरबार छुड़ाते हैं, बहन- भाई बनाते हैं । शुरू की बात कितनी फैल गई । अखबारों में धूम मच गई । अब एक-एक को तो समझा नहीं सकते । फिर तुम्हें अखबारें ही काम में आयेंगी । अखबारों द्वारा ही तुम्हारा नाम बाला होगा । अभी विचार करना है-क्या करें जो समझें । रक्षाबंधन का अर्थ क्या है? जबकि बाप आये हैं पावन बनाने, तब बाप ने बच्चों से पवित्रता की प्रतिज्ञा ली है । पतितों को पावन बनाने वाले ने राखी बांधी है । 

कृष्ण का जन्म मनाते हैं फिर जरूर गद्दी पर बैठा होगा । कारोनेशन कभी दिखाते नहीं हैं । सतयुग आदि में लक्ष्मी-नारायण थे । उनका कारोनेशन हुआ होगा । प्रिन्स का जन्म मनाते हैं फिर कारोनेशन कहाँ? दीवाली पर कारोनेशन होती है, बड़ा भभका होता है, वह है सतयुग का । संगम की जो बात है वह वहाँ होती नहीं । घर-घर में रोशनी यहाँ होने की है । वहाँ दीपमाला आदि नहीं मनाते हैं । वहाँ तो आत्माओं की ज्योत जगी हुई है । वहाँ फिर कारोनेशन मनाया जाता है, न कि दीपमाला । जब तक आत्माओं की ज्योत नहीं जगी है तो वापिस जा नहीं सकते । तो अब यह तो सब पतित हैं, उनको पावन बनाने के लिए सोच करना है । बच्चे सोचकर जाते हैं बड़े-बड़े आदमियों के पास । बच्चों की बदनामी हुई अखबारों द्वारा, फिर नाम भी इन द्वारा होगा । थोड़ा पैसा दो तो अच्छा डालेंगे । अब तुम पैसे कहाँ तक देंगे । पैसे देना भी रिश्वत है । बेकायदे हो जाता । आजकल रिश्वत बिगर तो काम ही नहीं होता है । तुम भी रिश्वत दो, वो लोग भी रिश्वत दें तो दोनों एक हो जायें । तुम्हारी बात है योगबल की । योगबल इतना चाहिए जो तुम कोई से भी काम करा सको । भूँ- भूँ करते रहना है । ज्ञान का बल तो तुम्हारे में भी है । इन चित्रों आदि में ज्ञान है, योग गुप्त है । अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है, बेहद का वर्सा लेने के लिए । वह है ही गुप्त, जिससे तुम विश्व के मालिक बनते हो, कहाँ भी बैठ तुम याद कर सकते हो । सिर्फ यहाँ बैठकर योग नहीं साधना है । ज्ञान और याद दोनों सहज हैं । सिर्फ 7 दिन का कोर्स लिया, बस । जास्ती दरकार नहीं । फिर तुम जाकर औरों को आपसमान बनाओ । बाप ज्ञान का, शान्ति का सागर है । यह दो बातें हैं मुख्य । इनसे तुम शान्ति का वर्सा ले रहे हो । याद भी बड़ी सूक्ष्म है । 

तुम बच्चे भल बाहर में चक्र लगाओ, बाप को याद करो । पवित्र बनना है, दैवीगुण भी धारण करना है । कोई भी अवगुण नहीं होना चाहिए । काम का भी भारी अवगुण है । बाप कहते हैं अब तुम पतित मत बनो । भल स्त्री सामने हो, तुम अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो । देखते हुए न देखो । हम तो अपने बाप को याद करते हैं, वह ज्ञान का सागर है । तुमको आपसमान बनाते हैं तो तुम भी ज्ञान सागर बनते हो । इसमें मूँझना नहीं चाहिए । वह है परम आत्मा । परमधाम में रहते हैं इसलिए परम कहा जाता है । वह तो तुम भी रहते हो । अब नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार तुम ज्ञान ले रहे हो । पास विद् ऑनर जो होते हैं उनको कहेंगे पूरा ज्ञान सागर बने हैं । बाप भी ज्ञान सागर, तुम भी ज्ञान के सागर । आत्मा कोई छोटी-बड़ी नहीं होती है । परमपिता भी कोई बड़ा नहीं होता । यह जो कहते हैं हजारों सूर्य से तेजोमय-यह सब हैं गपोड़े । बुद्धि में जिस रूप से याद करते हैं वह साक्षात्कार हो जाता है । इसमें समझ चाहिए । आत्मा का साक्षात्कार वा परमात्मा का साक्षात्कार, बात एक हो जायेगी । बाप ने रियलाइज कराया है - मैं ही पतित-पावन, ज्ञान का सागर हूँ । समय पर आकर सबकी सद्गति करता हूँ । सबसे जास्ती भक्ति तुमने की है फिर बाप तुमको ही पढ़ाते हैं । रक्षाबधन के बाद कृष्ण जन्माष्टमी होती है । फिर है दशहरा । वास्तव में दशहरे के पहले तो कृष्ण आ न सके । दशहरा पहले होना चाहिए फिर कृष्ण आना चाहिए । यह हिसाब भी तुम निकालेंगे । पहले तो तुम कुछ भी नहीं समझते थे । अभी बाप कितना समझदार बनाते हैं । टीचर समझदार बनाते हैं ना । अभी तुम जानते हो कि भगवान बिन्दू स्वरूप है । झाड़ कितना बड़ा है । आत्मायें ऊपर में बिन्दी रूप में रहती हैं । मीठे-मीठे बच्चों को समझाया जाता है, वास्तव में एक सेकण्ड में समझदार बनना चाहिए । परन्तु पत्थरबुद्धि ऐसे हैं जो समझते ही नहीं । नहीं तो है एक सेकण्ड की बात । हद का बाप तो जन्म बाई जन्म नया मिलता है । यह बेहद का बाप तो एक ही बार आकर 21 जन्मों का वर्सा देते हैं । अभी तुम बेहद के बाप से बेहद का वर्सा ले रहे हो । आयु भी बड़ी हो जाती है । ऐसे भी नहीं 21 जन्म कोई एक बाप रहेगा । नहीं, तुम्हारी आयु बड़ी हो जाती है । तुम कभी दु :ख नहीं देखते हो । पिछाड़ी में तुम्हारी बुद्धि में यह ज्ञान जाकर रहेगा । बाप को याद करना और वर्सा लेना है । बस, बच्चा पैदा हुआ और वारिस बना । बाप को जाना तो बस बाप और वर्से को याद करो, पवित्र बनो । दैवीगुण धारण करो । बाप और वर्सा कितना सहज है । एम ऑबजेक्ट भी सामने है । अब बच्चों को विचार करना है - हम अखबार द्वारा कैसे समझायें । त्रिमूर्ति भी देना पड़े क्योंकि समझाया जाता है ब्रह्मा द्वारा स्थापना । ब्राह्मणों को पावन बनाने बाप आया है इसलिए राखी बंधवाते हैं । पतित पावन, भारत को पावन बना रहे हैं, हर एक को पावन बनना है क्योंकि अब पावन दुनिया स्थापन होती है । अभी तुम्हारे 84 जन्म पूरे हुए हैं । जिसने बहुत जन्म लिये होंगे वह अच्छी रीति समझते रहेंगे । पिछाड़ी में आने वाले को इतनी खुशी नहीं होगी क्योंकि भक्ति कम की है । भक्ति का फल देने बाप आता है । भक्ति किसने जास्ती की है यह भी अब तुम जानते हो । पहले नम्बर में तुम ही आये हो, तुमने ही अव्यभिचारी भक्ति की है । तुम भी अपने से पूछो हमने जास्ती भक्ति की है या इसने? सबसे तीखी जो सर्विस करते हैं जरूर उसने जास्ती भक्ति भी की है । बाबा नाम तो लिखते हैं-कुमारका है, जनक है, मनोहर है, गुलज़ार है । नम्बरवार तो होते हैं । यहाँ नम्बरवार बिठा नहीं सकते । तो विचार करना है-रक्षा बन्धन का अखबार में कैसे डालें । वह तो ठीक है, मिनिस्टर आदि के पास जाते हैं, राखी बांधते हैं परन्तु पवित्र तो बनते नहीं हैं । तुम कहते हो पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया स्थापन हो जाए । 63 जन्म विकारी बनें, अब बाप कहते हैं यह अन्तिम जन्म पवित्र बनो । खुदा को याद करो तो तुम्हारे सिर पर जो पाप हैं वह उतर जाएं । अच्छा! 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. पास विद् ऑनर होने के लिए बाप समान ज्ञान सागर बनना है । कोई भी अवगुण अन्दर है तो उसकी जांच कर निकाल देना है । शरीर को देखते हुए न देख, आत्मा निश्चय कर आत्मा से बात करनी है । 

2. योगबल इतना जमा करना है जो अपना हर काम सहज हो जाए । अखबारों द्वारा हरेक को पावन बनने का सन्देश देना है । आप समान बनाने की सेवा करनी है ।

 

वरदान:-

प्याइंट स्वरूप में स्थित हो मन बुद्धि को निगेटिव के प्रभाव से सेफ रखने वाले विशेष आत्मा भव !    

जैसे कोई सीजन होती है तो सीजन से बचने के लिए उसी प्रमाण अटेंशन रखा जाता है । बारिश आयेगी तो छाते, रेनकोट आदि का अटेंशन रखेंगे । सर्दी आयेगी तो गर्म कपड़े रखेंगे.....ऐसे वर्तमान समय मन बुद्धि में निगेटिव भाव और भावना पैदा करने का विशेष कार्य माया कर रही है इसलिए विशेष सेफ्टी के साधन अपनाओ । इसका सहज साधन है - एक प्याइंट स्वरूप में स्थित होना । आश्चर्य और क्वेश्चनमार्क के बजाए बिन्दु लगाना अर्थात् विशेष आत्मा बनना ।

 

स्लोगन:- 

आज्ञाकारी वह है जो हर संकल्प, बोल और कर्म में जी हज़ूर करता है ।     

 

ओम् शान्ति |