25-02-15
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा”
मधुबन
“मीठे
बच्चे - तुमने अब तक जो कुछ पढ़ा है उसे भूल जाओ,
जीते जी मरना माना सब कुछ भूलना,
पिछला कुछ भी याद न आये” 
प्रश्न:-
जो
पूरा जीते जी मरे हुए नहीं हैं उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:-
वह
बाप से भी आरग्यु करते रहेंगे । शास्त्रों का मिसाल देते
रहेंगे । जो पूरा मर गये वह कहेंगे बाबा जो सुनाते वही सच है ।
हमने आधाकल्प जो सुना वह झूठ ही था इसलिए अब उसे मुख पर भी न
लायें । बाप ने कहा है हियर नो ईविल........
गीत
: -
ओम नमो शिवाए.. 
ओम्
शान्ति |
बच्चों को समझाया गया है जब शान्ति में बिठाते हो,
जिसको नेष्ठा अक्षर दिया है,
यह
ड्रिल कराई जाती है । अब बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं
कि जो जीते जी मरे हैं,
कहते
हैं हम जीते जी मर चुके हैं,
जैसे
मनुष्य मरता है तो सब कुछ भूल जाता है सिर्फ संस्कार रहते हैं
। अभी तुम भी बाप का बनकर दुनिया से मर गये हो । बाप कहते हैं
तुम्हारे में भक्ति के संस्कार थे,
अब
वह संस्कार बदल रहे हैं तो जीते जी तुम मरते हो ना । मरने से
मनुष्य पढ़ा हुआ सब कुछ भूल जाता है फिर दूसरे जन्म में नये सिर
पढ़ना होता है । बाप भी कहते हैं तुम जो कुछ पढ़े हुए हो वह भूल
जाओ । तुम तो बाप के बने हो ना । मैं तुमको नई बात सुनाता हूँ
। तो अब वेद,
शास्त्र,
ग्रंथ,
जप,
तप
आदि यह सब बातें भूल जाओ इसलिए ही कहा है - हियर नो ईविल,
सी
नो ईविल....... । यह तुम बच्चों के लिए है । कई बहुत शास्त्र
आदि पढ़े हुए हैं,
पूरा
मरे नहीं हैं तो फालतू आरग्यु करेंगे । मर गये फिर कभी आरग्यु
नहीं करेंगे । कहेंगे बाप ने जो सुनाया है वही सच है,
बाकी
बाते हम मुख पर क्यों लाये! बाप कहते हैं यह मुख में लाओ ही
नहीं । हियर नो ईविल । बाप ने डायरेक्शन दिया ना-कुछ भी सुनो
नहीं । बोलो अभी हम ज्ञान सागर के बच्चे बने हैं तो भक्ति को
क्यों याद करें! हम एक भगवान को ही याद करते हैं । बाप ने कहा
है भक्तिमार्ग को भूल जाओ । मैं तुमको सहज बात सुनाता हूँ कि
मुझ बीज को याद करो तो झाड़ सारा बुद्धि में आ ही जायेगा ।
तुम्हारी मुख्य है गीता । गीता में ही भगवान की समझानी है । अब
यह है नई बातें । नई बात पर हमेशा ज्यादा ध्यान दिया जाता है ।
है भी बड़ी सिम्पुल बात । सबसे बड़ी बात है याद करने की ।
घड़ी-घड़ी कहना पड़ता है-मन्मनाभव । बाप को याद करो,
यही
बहुत गुह्य बातें हैं,
इसमें ही विघ्न पड़ते हैं । बहुत बच्चे हैं जो सारे दिन में दो
मिनट भी याद नहीं करते । बाप का बनते भी अच्छा कर्म नहीं करते
तो याद भी नहीं करते,
विकर्म करते रहते हैं । बुद्धि में बैठता ही नहीं हैं तो
कहेंगे यह बाप की आज्ञा का निरादर है,
पढ़
नहीं सकेंगे,
वह
ताकत नहीं मिलती । जिस्मानी पढ़ाई से भी बल मिलता है ना । पढ़ाई
है सोर्स ऑफ इनकम । शरीर निर्वाह होता है सो भी अल्पकाल के लिए
। कई पढ़ते-पढ़ते मर जाते हैं तो वह पढ़ाई थोड़ेही साथ ले जायेंगे
। दूसरा जन्म ले फिर नये सिर पढ़ना पड़े । यहाँ तो तुम जितना
पढ़ेंगे,
वह
साथ ले जायेंगे क्योंकि तुम प्रालब्ध पाते हो दूसरे जन्म में ।
बाकी तो वह सब हैं ही भक्ति मार्ग । क्या-क्या चीजें हैं,
यह
कोई नहीं जानते । रूहानी बाप तुम रूहों को बैठ ज्ञान देते हैं
। एक ही बार बाप सुप्रीम रूह आकर रूहों को नॉलेज देते हैं,
जिससे विश्व के मालिक बन जाते हो । भक्ति मार्ग में स्वर्ग
थोड़ेही होता है । अभी तुम धणी के बने हो । माया कई बार बच्चों
को भी निधन का बना देती है,
छोटी-छोटी बातों में आपस में लड़ पड़ते हैं । बाप की याद में
नहीं रहते तो निधन के हुए ना । निधनका बना तो जरूर कुछ न कुछ
पाप कर्म कर देंगे । बाप कहते हैं मेरा बनकर मेरा नाम बदनाम न
करो । एक- दो से बड़ा प्यार से चलो,
उल्टा-सुल्टा बोलो मत ।
बाप
को ऐसी-ऐसी अहिल्यायें,
कुब्जाएं,
भीलनियों का भी उदार करना पड़ता है । कहते हैं भीलनी के बेर
खाये । अब ऐसे ही भीलनी के थोड़ेही खा सकते हैं । भीलनी से जब
ब्राह्मणी बन जाती है तो फिर क्यों नहीं खायेंगे! इसलिए
ब्रह्मा भोजन की महिमा है । शिवबाबा तो खायेंगे नहीं । वह तो
अभोक्ता है । बाकी यह रथ तो खाते हैं ना । तुम बच्चों को कोई
से आरग्यु करने की दरकार नहीं है । हमेशा अपना सेफ साइड रखना
चाहिए । अक्षर ही दो बोलो-शिवबाबा कहते हैं । शिवबाबा को ही
रूद्र कहा जाता है । रूद्र ज्ञान यज्ञ से विनाश ज्वाला निकली
तो रूद्र भगवान हुआ ना । कृष्ण को तो रूद्र नहीं कहेंगे ।
विनाश भी कोई कृष्ण नहीं कराते,
बाप
ही स्थापना,
विनाश,
पालना कराते हैं । खुद कुछ नहीं करते,
नहीं
तो दोष पड़ जाए । वह है करनकरावनहार । बाप कहते हैं हम कोई कहते
नहीं हैं कि विनाश करो । यह सारा ड्रामा में नूँधा हुआ है ।
शंकर कुछ करता है क्या?
कुछ
भी नहीं । यह सिर्फ गायन है कि शंकर द्वारा विनाश । बाकी विनाश
तो वह आपेही कर रहे हैं । यह अनादि बना हुआ ड्रामा है जो
समझाया जाता है । रचयिता बाप को ही सब भूल गये हैं । कहते हैं
गॉड फादर रचयिता है परन्तु उनको जानते ही नहीं । समझते हैं कि
वह दुनिया क्रियेट करते हैं । बाप कहते हैं मैं क्रियेट नहीं
करता हूँ,
मैं
चेन्ज करता हूँ । कलियुग को सतयुग बनाता हूँ । मैं संगम पर आता
हूँ,
जिसके लिये गाया हुआ है-सुप्रीम ऑस्पीशियस युग । भगवान
कल्याणकारी है,
सबका
कल्याण करते हैं परन्तु कैसे और क्या कल्याण करते हैं,
यह
कुछ जानते नहीं । अंग्रेजी में कहते हैं लिबरेटर,
गाइड,
परन्तु उनका अर्थ थोड़ेही समझते हैं । कहते हैं भक्ति के बाद
भगवान मिलेगा,
सद्गति मिलेगी । सर्व की सद्गति तो कोई मनुष्य कर न सके । नहीं
तो परमात्मा को पतित-पावन सर्व का सद्गति दाता क्यों गाया जाये?
बाप
को कोई भी जानते नहीं,
निधण
के हैं । बाप से विपरीत बुद्धि हैं । अब बाप क्या करें । बाप
तो खुद मालिक है । उनकी शिव जयन्ती भी भारत में मनाते हैं ।
बाप कहते हैं मैं आता हूँ भक्तों को फल देने । आता भी भारत में
हूँ । आने के लिए मुझे शरीर तो जरूर चाहिए ना । प्रेरणा से
थोड़ेही कुछ होगा । इनमें प्रवेश कर,
इनके
मुख द्वारा तुमको ज्ञान देता हूँ । गऊमुख की बात नहीं है । यह
तो इस मुख की बात है । मुख तो मनुष्य का चाहिए,
न कि
जानवर का । इतना भी बुद्धि काम नहीं करती है । दूसरे तरफ फिर
भागीरथ दिखाते हैं,
वह
कैसे और कब आते हैं,
जरा
भी किसको पता नहीं है । तो बाप बच्चों को बैठ समझाते हैं कि
तुम मर गये तो भक्ति मार्ग को एकदम भूल जाओ । शिव भगवानुवाच
मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हो जायेंगे । मैं ही पतित-पावन
हूँ । तुम पवित्र हो जाएंगे फिर सबको ले जाऊंगा । मैसेज घर-घर
में दो । बाप कहते हैं - मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे ।
तुम पवित्र बन जाएंगे । विनाश सामने खड़ा है । तुम बुलाते भी हो
हे पतित-पावन आओ,
पतितों को पावन बनाओ,
रामराज्य स्थापन करो,
रावण
राज्य से मुक्त करो । वह हर एक अपने- अपने लिए कोशिश करते हैं
। बाप को कहते हैं मैं आकर सर्व की मुक्ति करता हूँ । सभी 5
विकारों रूपी रावण की जेल में पड़े हैं । मैं सर्व की सद्गति
करता हूँ । मुझे कहा भी जाता है दुःख हर्ता सुख कर्ता ।
रामराज्य तो जरूर नई दुनिया में होगा ।
तुम
पाण्डवों की अभी है प्रीत बुद्धि । कोई-कोई की तो फौरनप्रीत
बुद्धि बन जाती है । कोई-कोई की आहिस्ते- आहिस्ते प्रीत जुटती
है । कोई तो कहते हैं बस हम सब कुछ बाप को सरेन्डर करते हैं ।
सिवाए एक के दूसरा कोई रहा ही नहीं । सबका सहारा एक गॉड ही है
। कितनी सिम्पुल से सिम्पुल बात है । बाप को याद करो और चक्र
को याद करो तो चक्रवर्ती राजा- रानी बनेंगे । यह स्कूल ही है
विश्व का मालिक बनने का,
तब
चक्रवर्ती राजा नाम पड़ा है । चक्र को जानने से फिर चक्रवर्ती
बनते हैं । यह बाप ही समझाते हैं । बाकी आरग्यु कुछ भी नहीं
करनी है । बोलो भक्ति मार्ग की सब बातें छोड़ो । बाप कहते हैं
सिर्फ मुझे याद करो । मूल बात ही यह है । जो तीव्र पुरूषार्थी
होते हैं वह जोर से पढ़ाई में लग जाते हैं,
जिनको पढ़ाई का शौक होता है वह सवेरे उठकर पढ़ाई करते हैं ।
भक्ति वाले भी सवेरे उठते हैं । नौधा भक्ति कितनी करते हैं,
जब
सिर काटने लगते हैं तो साक्षात्कार होता है । यहाँ तो बाबा
कहते हैं यह साक्षात्कार भी नुकसानकारक हैं । साक्षात्कार में
जाने से पढ़ाई और योग दोनों बंद हो जाते हैं । टाइम वेस्ट हो
जाता है इसलिए ध्यान आदि का शौक तो बिल्कुल नहीं रखना है । यह
भी बड़ी बीमारी है,
जिससे माया की प्रवेशता हो जाती है । जैसे लड़ाई के समय न्यूज
सुनाते हैं तो बीच में ऐसी कुछ खराबी कर देते हैं जो कोई सुन न
सके । माया भी बहुतों को विघ्न डालती है । बाप को याद करने
नहीं देती है । समझा जाता है इनकी तकदीर में विघ्न हैं । देखा
जाता है कि माया की प्रवेशता तो नहीं है । बेकायदे तो नहीं कुछ
बोलते हैं तो फिर झट बाबा नीचे उतार देंगे । बहुत मनुष्य कहते
हैं-हमको सिर्फ साक्षात्कार हो तो इतना सब धन माल आदि हम आपको
दे देंगे । बाबा कहते हैं यह तुम अपने पास ही रखो । भगवान को
तुम्हारे पैसे की क्या दरकार रखी है । बाप तो जानते हैं इस
पुरानी दुनिया में जो कुछ है,
सब
भस्म हो जायेगा । बाबा क्या करेंगे?
बाबा
पास तो फुरी-फुरी (बूँद-बूँद) तलाव हो जाता है । बाप के
डायरेक्शन पर चलो,
हॉस्पिटल कम युनिवर्सिटी खोलो,
जहाँ
कोई भी आकर विश्व का मालिक बन सके । तीन पैर पृथ्वी में बैठ
तुमको मनुष्य को नर से नारायण बनाना है । परन्तु 3 पैर पृथ्वी
के भी नहीं मिलते हैं । बाप कहते हैं मैं तुमको सभी
वेदों-शास्त्रों का सार बताता हूँ । यह शास्त्र हैं सब भक्ति
मार्ग के । बाबा कोई निंदा नहीं करते हैं । यह तो खेल बना हुआ
है । यह सिर्फ समझाने के लिए कहा जाता है । है तो फिर भी खेल
ना । खेल की हम निंदा नहीं कर सकते हैं । हम कहते हैं ज्ञान
सूर्य,
ज्ञान चन्द्रमा तो फिर वह चन्द्रमा आदि में जाकर ढूँढते हैं ।
वहाँ कोई राजाई रखी है क्या?
जापानी लोग सूर्य को मानते हैं । हम कहते हैं सूर्यवंशी,
वह
फिर सूर्य की बैठ पूजा करते हैं,
सूर्य को पानी देते हैं । तो बाबा ने बच्चों को समझाया है कोई
बात में जास्ती आरग्यु नहीं करनी है । बात ही एक सुनाओ बाप
कहते हैं-मामेकम याद करो तो पावन बनेंगे । अभी रावण राज्य में
सभी पतित हैं । परन्तु अपने को पतित कोई मानते थोड़ेही हैं ।
बच्चे,
तुम्हारी एक आंख में शान्तिधाम,
एक
आँख में सुखधाम बाकी इस दुःखधाम को भूल जाओ । तुम हो चैतन्य
लाइट हाउस । अभी प्रदर्शनी में भी नाम रखा है- भारत दी लाइट
हाउस लेकिन वह कोई थोड़ेही समझेंगे । तुम अभी लाइट हाउस हो ना ।
पोर्ट पर लाइट हाउस स्टीमर को रास्ता बताते हैं । तुम भी सबको
रास्ता बताते हो मुक्ति और जीवनमुक्ति धाम का । जब कोई भी
प्रदर्शनी में आते हैं तो बहुत प्रेम से बोलो-गॉड फादर तो सबका
एक है ना । गॉड फादर या परमपिता कहते हैं कि मुझे याद करो तो
जरूर मुख द्वारा कहेंगे ना । ब्रह्मा द्वारा स्थापना,
हम
सब ब्राह्मण-ब्राह्मणिया हैं ब्रह्मा मुख वंशावली । तुम
ब्राह्मणों की वह ब्राह्मण भी महिमा गाते हैं ब्राह्मण देवताए
नम: । ऊंच ते ऊँच है ही एक बाप । वह कहते हैं मैं तुमको ऊंच ते
ऊंच राजयोग सिखाता हूँ,
जिससे तुम सारे विश्व के मालिक बनते हो । वह राजाई तुमसे कोई
छीन न सके । भारत का विश्व पर राज्य था । भारत की कितनी महिमा
है । अभी तुम जानते हो कि हम श्रीमत पर यह राज्य स्थापन कर रहे
हैं । अच्छा
!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
तीव्र
पुरूषार्थी बनने के लिए पढ़ाई का शौक रखना है । सवेरे-सवेरे
उठकर पढ़ाई पढ़नी है । साक्षात्कार की आश नहीं रखनी है,
इसमें भी टाइम वेस्ट जाता है ।
2.
शान्तिधाम और सुखधाम को याद करना है,
इस दु :खधाम को भूल जाना है । किसी से भी आरग्यु नहीं करनी है,
प्रेम से मुक्ति और जीवनमुक्तिधाम का रास्ता बताना है ।
वरदान:-
सदा
बेहद की स्थिति में स्थित रहने वाले बन्धनमुक्त,
जीवनमुक्त
भव ! 
देह-अभिमान हद की स्थिति है और देही अभिमानी बनना-यह है बेहद
की स्थिति । देह में आने से अनेक कर्म के बन्धनों में,
हद
में आना पड़ता है लेकिन जब देही बन जाते हो तो ये सब बन्धन खत्म
हो जाते हैं । जैसे कहा जाता बन्धनमुक्त ही जीवनमुक्त है,
ऐसे
जो बेहद की स्थिति में स्थित रहते हैं वह दुनिया के वायुमण्डल,
वायब्रेशन,
तमोगुणी वृत्तियां,
माया
के वार इन सबसे मुक्त हो जाते हैं । इसको ही कहा जाता है
जीवनमुक्त स्थिति,
जिसका अनुभव संगमयुग पर ही करना है ।
स्लोगन:-
निश्चयबुद्धि की निशानी-निश्चित विजयी और निश्चिंत उनके पास
व्यर्थ आ नहीं सकता ।
ओम्
शान्ति |