15-01-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
अभी
तुम्हें शान्ति और सुख के टावर में चलना है इसलिए अपने स्वभाव
और कैरेक्टर को सुधारते जाओ, पुराने को परिवर्तन करो | 
प्रश्न:-
दिमाग़ सदा रिफ्रेश रहे उसकी युक्ति क्या है?
उत्तर:-
बाप
जो सुनाते हैं उसका मंथन करो, विचार सागर मंथन करने से दिमाग़
सदा रिफ्रेश हो जाता है | जो सदा रिफ्रेश रहते हैं वह दूसरों
की भी सर्विस कर सकते हैं | उनकी बैटरी सदा चार्ज होती रहती है
क्योंकि विचार सागर मंथन करने से सर्वशक्तिमान् बाप के साथ
कनेक्शन जुटा रहता है |
गीत:-
नयनहीन को राह दिखाओ....
ओम्
शान्ति
|
यह
गीत भी मनुष्यों का गाया हुआ है | परन्तु अर्थ कुछ भी नहीं
जानते | जैसे और प्रार्थना करते हैं, यह भी जैसे एक प्रार्थना
है | परमात्मा को जानते नहीं | अगर परमात्मा को जानें तो सब
कुछ जान जायें | सिर्फ़ परमात्मा कह देते हैं परन्तु उनके जीवन
का कुछ भी पता नहीं | तो नैनहीन हुए ना | तुमको अब ज्ञान का
तीसरा नेत्र मिला है, इसलिए तुमको त्रिनेत्री कहा जाता है |
दुनिया में भल मनुष्य यह अक्षर कहते हैं त्रिनेत्री,
त्रिकालदर्शी, त्रिमूर्ति....परन्तु अर्थ कुछ भी नहीं जानते |
जैसे कहते हैं साइन्स और साइलेन्स का आपस में क्या सम्बन्ध है!
भल प्रश्न पूछते हैं उत्तर खुद भी नहीं जानते | कहते हैं
वर्ल्ड में पीस हो परन्तु वह कब हुई थी? किसने की थी? कुछ भी
नहीं जानते | सिर्फ़ पूछते रहते हैं तो ज़रूर कोई जानने वाला
चाहिए जो बताये | तुम बच्चों को बाप ने समझाया है यह सब खेल
बना हुआ है | टावर ऑफ़ पीस, सुख का टावर, सबका टावर होता है,
शान्ति का टावर है मूलवतन, जहाँ हम आत्मायें रहती हैं | उसको
कहेंगे टावर ऑफ़ साइलेन्स | फिर सतयुग में है टावर ऑफ़ सुख, टावर
ऑफ़ पीस, प्रासपर्टी | ऐसे कोई मुख से नहीं कहेंगे कि हम
आत्माओं का घर मुक्तिधाम है | यह सब बातें बाप ही समझाते हैं,
टीचर हो तो ऐसा हो | वह है टावर ऑफ़ नॉलेज | तुमको भी शान्ति और
सुख के टावर में ले जाते हैं | यह फिर है टावर ऑफ़ दुःखधाम | हर
बात में इनसालवेन्ट हैं | पवित्रता सुख शान्ति का वर्सा तुम इस
समय ही पाते हो | बलिहारी इस पुरुषोत्तम संगमयुग की है, इनको
कल्याणकारी युग कहा जाता है | कलियुग के बाद फिर होता है सतयुग
| वह सुख का टावर है | वह शान्ति का टावर है | यह दुःख का टावर
है | यहाँ अथाह दुःख हैं | सब दुःख आकर इकट्ठे हुए हैं | कहते
हैं ना दुःख के पहाड़ गिरते हैं, जब अर्थक्वेक आदि होती है तो
कितना त्राहि-त्राहि करते हैं |
बाप
ने समझाया है बाकी टाइम थोड़ा है | बच्चों को याद की यात्रा में
टाइम लगता है | बहुत हैं जो पूरा समझते ही नहीं | बिन्दी
समझें, क्या समझें | अरे जैसी आत्मा है वैसे ही परमात्मा भी है
| आत्मा को जानते हो ना, वह लक्की सितारा है | बिल्कुल सूक्ष्म
है | इन आँखों से नहीं देख सकते हैं | तो यह सब बातें बाप
समझाते हैं | ऐसी बातों पर विचार सागर मंथन करने से भी दिमाग़
रिफ्रेश हो जाता है | कहाँ भी जायेंगे तो समझायेंगे कि टावर ऑफ़
शान्ति, टावर ऑफ़ सुख, टावर ऑफ़ पवित्रता है ही न्यु वर्ल्ड में
| पुराने स्वभाव को, कैरेक्टर्स को सुधार कर बाप नई दुनिया का
मालिक बनाते हैं | मनुष्य भल गाते हैं वेद शास्त्र गीता आदि
पढ़ते हैं परन्तु समझते कुछ भी नहीं हैं | सीढी तो नीचे उतरते
ही आते हैं | भल अपने को शास्त्रों की अथॉरिटी समझते हैं
परन्तु उनको उतरना ही है | आत्मा पहले सबकी सतोप्रधान होती है
फिर धीरे-धीरे बैटरी ख़लास हो जाती है, इस समय सबकी बैटरी खलास
है | अब फिर बैटरी चार्ज होती है | बाप कहते हैं मनमनाभव |
अपने को आत्मा समझो | बाप है सर्वशक्तिमान्, उनको याद करने से
तुम्हारे पाप कट जायेंगे और फिर बैटरी भर जायेगी | तुम अभी फील
कर रहे हो, हमारी बैटरी भर रही है | कोई की नहीं भी भरती है |
सुधरने के बदले और ही बिगड़ जाते हैं | बाप से प्रतिज्ञा भी
करते हैं बाबा हम कभी विकार में नहीं जायेंगे | आपसे तो 21
जन्मों का वर्सा ज़रूर लेंगे, फिर भी गिर पड़ते हैं | बाप कहते
हैं काम विकार पर जीत पाने से तुम जगतजीत बनेंगे | फिर अगर
विकार में गया तो अक्ल चट | यह काम महाशत्रु है | एक दो को
देखने से काम की आग लगती है | बाप कहते हैं तुम काम चिता पर
बैठ सांवरे बन गये हो, अब तुमको गोरा बनाते हैं | यह बाप ही
तुम बच्चों को समझाते हैं | पढ़ाई से तुम्हारी बुद्धि खुलती है
| झाड़ का वर्णन भी करते हैं | यह है कल्प वृक्ष | मनुष्य
सृष्टि का वैराइटी झाड़ | उनको उल्टा झाड़ कहा जाता है | कितने
वैराइटी धर्म हैं | इतनी करोड़ों आत्माओं को अविनाशी पार्ट मिला
हुआ है | दो का एक जैसा पार्ट हो न सके | अभी तुमको ज्ञान का
तीसरा नेत्र मिला है | विचार करो कितनी ढेर आत्मायें हैं |
जैसे मछलियों का एक खिलौना होता है, तार पर ऐसे नीचे उतरती
हैं, यह भी ऐसे ही है | हम भी ड्रामा की रस्सी में बँधे हुए
हैं | ऐसे उतरते-उतरते कल्प आकर पूरा हुआ है फिर हम ऊपर जाते
हैं | यह समझ भी बच्चों को अब मिली है | ऊपर से आत्मायें आती
हैं, नम्बरवार एड होती जाती हैं | इस खेल में तुम पार्टधारी हो
| मुख्य क्रियेटर, डायरेक्टर, एक्टर होते हैं ना | मुख्य तो है
शिवबाबा | फिर कौन से एक्टर हैं? ब्रह्मा, विष्णु, शंकर |
भक्ति मार्ग वालों ने अनेक चित्र बनाये हैं परन्तु अर्थ का कुछ
भी पता नहीं | लाखों वर्ष कह देते हैं | अब बाप आकर सारी नॉलेज
देते हैं | अब तुम समझते हो सतयुग में यह ज्ञान हमको नहीं होगा
| जैसे यहाँ कारोबार चलती है, वैसे वहाँ पवित्रता, सुख शान्ति
की राजधानी चलती है | बाप भी वन्डरफुल है, इतनी छोटी बिन्दी है
| जैसे तुम्हारी आत्मा ऐसे इनकी आत्मा भी बाप से सारा ज्ञान ले
रही है | बाबा फिर बड़ा थोड़ेही होगा | वह भी बिन्दी है |
तुम्हारी आत्मा जो बिन्दी है, उनमें सारा ज्ञान धारण हो रहा है
| यह ज्ञान कल्प के बाद फिर बाप देंगे | जैसे रिकार्ड भरा हुआ
होता है जो रिपीट होता है ना | आत्मा में भी सारा पार्ट भरा
हुआ है | कोई बहुत वन्डरफुल बात होती है तो उनको क़ुदरत कहा
जाता है | इस अनादि ड्रामा के पार्ट से एक भी छूट नहीं सकता |
सबको पार्ट बजाना ही है | यह बड़ी वन्डरफुल बातें हैं, जो अच्छी
रीति समझकर धारण करते हैं तो ख़ुशी का पारा चढ़ता है | तुमको
कितनी स्कालरशिप मिलती है | तो पुरुषार्थ अच्छी रीति करना
चाहिए | आप समान बनाना है | तुम सब टीचर हो | टीचर तुम्हें
पढाकर आप समान टीचर बनाते हैं | ऐसे नहीं कि गुरु भी बनना है |
नहीं तुम टीचर बनाते हो क्योंकि राजयोग सिखलाते हो फिर तुम चले
जायेंगे | यह भी तुम समझते हो | वो लोग तो जानते नहीं, न
सद्गति दे सकते हैं | सर्व का सद्गति दाता तो एक बाप है ना |
लिब्रेटर गाइड भी वही है | जब तुम वहाँ से आते हो तो बाप गाइड
नहीं बनता है | बाप गाइड भी अभी बनता है | जब तुम घर से आते हो
तो घर को ही भूल जाते हो | अभी तुम भी गाइड हो, पण्डे हो |
सबको रास्ता बताते हो | अशरीरी भव | तुम्हारा नाम पाण्डव सेना
भी है | शरीरधारी तो हैं ना | जब अकेले हो तो सेना नहीं कहेंगे
| शरीर के साथ जब माया पर जीत पाते हो तब तुमको सेना कहते हैं
| उन्होंने फिर लड़ाई की बातें लिख दी हैं | यह है बेहद की बात
| वो लोग कान्फ्रेन्स आदि करते हैं, संस्कृत आदि के कॉलेज
खोलते हैं | कितना खर्चा करते हैं | खर्चा करते-करते जैसेकि
खाली हो पड़े हैं | चाँदी, सोना, हीरा सब ख़लास हो गये हैं | फिर
तुम्हारे लिए सब कुछ नया निकलेगा | तो तुम बच्चों को चलते
फिरते बहुत ख़ुशी होनी चाहिए | बाप और वर्से को याद करना है |
तुम्हारा पार्ट चलता रहता है | कभी बन्द होने वाला नहीं है |
बाप समझाते हैं – तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो | 84 का
हिसाब-किताब भी इनको बताते हैं, जो पहले-पहले आते हैं | तुम
बच्चों को अथाह सुख मिलता है | टावर ऑफ़ हेल्थ, वेल्थ,
हैपीनेस....तो कितना नशा होना चाहिए | बाप हमको बेह्द का वर्सा
देते हैं | जितना तुम नज़दीक आते जायेंगे, उतनी आफतें भी आती
जायेंगी | झाड़ की वृद्धि भी होनी है | झाड़ कच्चे हैं तो झट
तूफ़ान लगने से झड़ जाते हैं | यह तो होना ही है | तुम्हारा एम
ऑब्जेक्ट का चित्र सामने खड़ा है | तुम और कोई चित्र नहीं रख
सकते | भक्ति मार्ग में मनुष्य ढेर चित्र रखते हैं | ज्ञान
मार्ग में है एक | सो भी नॉलेज बुद्धि में है | बाकी बिन्दी का
चित्र क्या निकालेंगे | आत्मा तो सितारा है ना | यह भी समझने
की बातें हैं | आत्मा को तो इन आँखों से देख नहीं सकते | बहुत
कहते हैं बाबा हमको साक्षात्कार हो, वैकुण्ठ देखें | परन्तु
देखने से मालिक थोड़ेही बनेंगे | मनुष्य कहते हैं फ़लाना स्वर्ग
पधारा | परन्तु स्वर्ग है कहाँ, जानते थोड़ेही हैं | जो
आत्मायें स्वर्ग में गई हैं वही कहती हैं | आत्मा को तो सब याद
रहता है ना | अब तुमको ऊँचे ते ऊँचा बाप पढ़ा रहे हैं, जिससे
तुम ऊँचे से ऊँचा पद पा रहे हो | नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार –
नर से नारायण ज़रूर बनेंगे |
यह
जो शान्ति मांगते हैं, तुम्हारा काम है उन्हें समझाना | कई
समझते भी हैं कि यह एक्यूरेट कहते हैं | वह समय भी आयेगा, लिखा
हुआ है कुमारियों द्वारा भीष्म पितामह आदि को ज्ञान के बाण
मारे | बाकी ऐसे नहीं अर्जुन ने बाण मारा, गंगा निकली |
ऐसी-ऐसी बातें सुनकर कह देते हैं यहाँ से गंगा निकल आई | गऊमुख
भी बनाया है | अभी तुम बच्चे देखते हो तुम्हारा यादगार भी खड़ा
है | वह जड़ देलवाड़ा, यह है चैतन्य | उसमें ऊपर वैकुण्ठ दिखाया
है | नीचे तपस्या कर रहे हैं, ऊपर राजाई के चित्र हैं इसलिए
मनुष्य समझते हैं स्वर्ग ऊपर है | बाम्ब्स बनाने वाले खुद भी
समझते हैं यह हमारे ही विनाश के लिए हैं | कहते हैं ऐसे करेंगे
तो ज़रूर विनाश होगा | लिखा भी हुआ है महाभारी लड़ाई में ऐसे हुआ
था, सब ख़त्म हुए थे | सतयुग में है ही एक धर्म तो ज़रूर बाकी सब
ख़त्म हो जायेंगे | यह भी बच्चे जानते हैं भक्ति करते-करते नीचे
उतरते ही आते हैं, ड्रामा प्लैन अनुसार | वास्तव में यहाँ कोई
आशीर्वाद आदि की बात नहीं है | जो ड्रामा में बना हुआ है वही
होता है | कुछ ऐसी बात हो जाती है तो मनुष्य कह देते हैं जो
ईश्वर की इच्छा | तुम ऐसे नहीं कहेंगे | तुम तो कहते हो भावी
ड्रामा की | तुम ईश्वर के भावी नहीं कहेंगे | ईश्वर का भी
ड्रामा में पार्ट है | सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, यह भी बाप
ही समझाते हैं | तुम फिर औरों को समझाते हो | अब बाप कहते हैं
बच्चे तुम्हारी अवस्था ऐसी हो जो पिछाड़ी में कुछ भी याद न आये
| अपने को आत्मा समझें, इसको कहा जाता है कर्मातीत अवस्था |
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
स्कॉलरशिप लेने के लिए अच्छी तरह से पुरुषार्थ करो | टीचर बन
औरों को राजयोग सिखाओ | गाइड बन सबको घर का रास्ता दिखाने की
सेवा करो |
2.
सर्वशक्तिमान् बाप की याद से अपनी बैटरी चार्ज करनी है | बाप
से प्रतिज्ञा करने के बाद कभी काम की चोट नहीं खानी है |
वरदान:-
चमत्कार दिखाने के बजाए अविनाशी भाग्य का चमकता हुआ सितारा
बनाने वाले सिद्धि स्वरूप भव! 
आजकल
जो अल्पकाल की सिद्धि वाले हैं वह लास्ट में ऊपर से आने के
कारण सतोप्रधान स्टेज के प्रमाण पवित्रता के फ़लस्वरूप अल्पकाल
के चमत्कार दिखाते हैं लेकिन वह सिद्धि सदाकाल नहीं रहती
क्योंकि थोड़े समय में ही सतो रजो तमो तीनों स्टेजेस से पास
करते हैं | आप पवित्र आत्मायें सदा सिद्धि स्वरूप हैं, चमत्कार
दिखाने के बजाए चमकती हुई ज्योतिस्वरूप बनाने वाले हैं |
अविनाशी भाग्य का चमकता हुआ सितारा बनाने वाले हैं, इसलिए सब
आपके पास ही अंचली लेने आयेंगे |
स्लोगन:-
बेहद की
वैराग्य वृत्ति का वायुमण्डल हो तो सहयोगी सहज योगी बन जायेंगे
|
ओम्
शान्ति
|