27-01-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
पावन बनने के लिए याद की यात्रा बहुत ज़रूरी है, यही मुख्य
सब्जेक्ट है, इस योगबल से तुम सर्विसएबुल गुणवान बन सकते हो |
प्रश्न:-
तुम
बच्चे जो योग सीखते हो यही सबसे निराला योग है कैसे?
उत्तर:-
आज तक
जो योग सीखते या सिखाते आये वह मनुष्यों का मनुष्यों के साथ
योग जुटा | लेकिन अभी हम निराकार के साथ योग लगाते हैं |
निराकार आत्मा निराकार बाप को याद करे – यह है सबसे निराली बात
| दुनिया में कोई भगवान को याद भी करते तो बिगर परिचय |
आक्यूपेशन के बिना किसी को याद करना यह भक्ति है | ज्ञानवान
बच्चे परिचय सहित याद करते हैं |
ओम्
शान्ति
|
रूहानी बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं | बच्चों को पहले-पहले तो
बाप का परिचय मिला है | छोटा बच्चा पैदा होता है तो उनको
पहले-पहले माँ बाप का परिचय मिलता है | तुम्हारे में भी
नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार हैं, जिनको रचता बाप का परिचय मिला
है | यह भी बच्चे जानते हैं ऊँच ते ऊँच बाप ही है, उनकी ही
महिमा बतानी है | महिमा गाते भी हैं शिवाए नमः, ब्रह्मा नमः
शोभता नहीं | शिवाए नमः शोभता है | ब्रह्मा देवता नमः, विष्णु
देवताए नमः अक्षर शोभता है | उन्हों को देवता कहना पड़े | ऊँच
ते ऊँच है भगवान | जब कोई आते हैं तो पहले-पहले बाप की महिमा
ज़रूर बतानी है | वह सुप्रीम बाप है | बच्चे भूल जाते हैं कि
बाप की महिमा कैसे सुनायें | पहले तो यह समझाना है कि वह
सुप्रीम बाप है, टीचर भी है, सतगुरु भी है | तीनों को याद करना
पड़े | यूँ तो याद शिवबाबा को ही करना है – तीनों रूपों में |
यह तो पक्का करना पड़े | तुम बाप की महिमा को जानते हो, तब तो
करते हो | उन्होंने तो ऊँचे ते ऊँच बाप को ठिक्कर भित्तर में
कह दिया है | मनुष्य में भी कह देते हैं लेकिन मनुष्य तन में
भी सदैव तो रह नहीं सकते | वह तो सिर्फ़ लोन लेते हैं | वह खुद
कहते हैं मैं इनके तन का आधार लेता हूँ | तो पहली बात पक्की
करनी है कि बाप है सत्य | वही सत्य नारायण की कथा सुनाते हैं |
नर से नारायण सत्य बाप ने बनाया है | सतयुग में इन
लक्ष्मी-नारायण का ही राज्य था | वह कैसे बने? किसने बनाया? कब
कथा सुनाई? कब राजयोग सिखाया? यह सब तुम अभी समझते हो | और सब
योग होते हैं मनुष्यों के मनुष्यों के साथ | ऐसा होता नहीं जो
मनुष्य का योग निराकार के साथ हो, वह भी परिचय से | आजकल भल
शिव से योग लगाते हैं, पूजा करते हैं परन्तु जानते उनको कोई
नहीं | यह भी नहीं समझते कि प्रजापिता ब्रह्मा ज़रूर साकार
दुनिया पर होगा | मूँझे हुए हैं | समझते हैं प्रजापिता ब्रह्मा
तो पहले-पहले सतयुग में होना चाहिए | अगर सतयुग में प्रजापिता
ब्रह्मा हो तो फिर सूक्ष्मवतन में क्यों दिखाया है? अर्थ नहीं
समझते | यह साकार है कर्मबन्धन में, वह सूक्ष्म वतन है
कर्मातीत | यह ज्ञान कोई में भी नहीं है | ज्ञान देने वाला एक
बाप ही है | वह जब आकर ज्ञान दे तब तुम दूसरों को सुनाओ | बाप
का किसको परिचय देना बहुत सहज है | अल्फ पर ही समझाना है | यह
सभी आत्माओं का बेहद का बाप है | किसको परिचय देने में कोई
तकलीफ़ नहीं है | बहुत सहज है | परन्तु निश्चय नहीं, प्रैक्टिस
नहीं तो किसको समझा नहीं सकते | किसको गायन नहीं देते तो गोया
अज्ञानी है | ज्ञान नहीं तो भक्ति है ना | देह-अभिमान है |
ज्ञान होगा ही देही-अभिमानी में | हम आत्मा हैं, हमारा बाप
परमपिता परमात्मा वही बाप, टीचर, सतगुरु भी है | प्रजापिता
ब्रहमा भी है ना | बाप ने प्रजापिता ब्रह्मा का आक्यूपेशन भी
बताया है | तो अपना भी आक्यूपेशन बताया है | मनुष्यों ने तो
शिव और शंकर को मिलकर एक कर दिया है | कहते हैं शंकर ने आँख
खोली तो विनाश हो गया | अब विनाश तो बाम्ब्स से, नैचुरल
कैलेमिटीज़ से होता है | शिव शंकर महादेव कहते हैं | यह चित्र
कोई यथार्थ नहीं है | यह सब भक्ति मार्ग के चित्र हैं | वहाँ
ऐसी कोई बात नहीं | प्रजापिता ब्रह्मा भी देहधारी है | कितने
ढेर बच्चे हैं | तो यह सब चित्र पूजा के लिए ही हैं | बाप ने
समझाया है यह व्यक्त वह अव्यक्त | जब अव्यक्त बने हैं तो
फ़रिश्ता हो जाते हैं | मूलवतन, सूक्ष्मवतन दोनों ही हैं ज़रूर |
सूक्ष्मवतन में भी जाते हैं | बाप ने समझाया है प्रजापिता
ब्रह्मा जो मनुष्य है वही फ़रिश्ता बनता है | फिर राजाई का भी
उसमें दिखाया है | फिर यह राज्य करेंगे | सूक्ष्मवतन के चित्र
न हो तो समझाने में मुश्किलात हो | वास्तव में विष्णु का
चतुर्भुज रूप भी है नहीं | यह हैं भक्ति मार्ग के चित्र | बाप
समझाते हैं आत्मा को ही पतित से पावन बनना है | पवित्र बनकर
चली जायेगी अपने धाम | आत्मायें निराकारी दुनिया में रहती हैं,
साकारी हैं यहाँ | बाकी सूक्ष्मवतन की कोई मुख्य कहानी है नहीं
| सूक्ष्मवतन का राज़ भी बाप अभी समझाते हैं | तो मूलवतन,
सूक्ष्मवतन फिर है स्थूलवतन | तो पहले सबको बाप का परिचय देना
है | भक्ति मार्ग में भी बाबा को हे भगवान, हे प्रभू कहते हैं
| सिर्फ़ जानते हैं | हमेशा कहते हैं शिव परमात्माए नमः, शिव
देवता कभी नहीं कहेंगे | ब्रह्मा देवता कहेंगे | शिव को
परमपिता परमात्मा ही कहते हैं | शिव देवता कभी नहीं कहेंगे,
शिव परमात्मा ही कहेंगे | उनको फिर सर्वव्यापी थोड़ेही कहा जाता
है | पतितों को पावन बनने का कर्तव्य करना है तो क्या भित्तर
ठिक्कर में जाकर करेंगे? इसको ही घोर अन्धियारा कहा जाता है |
यह भी ड्रामा में नूँध है |
बाप
आकर समझाते हैं यदा यदाहि.......किसकी ग्लानि? वो लोग तो श्लोक
सुनाकर फिर अर्थ सुनाते हैं | यह तो तुम बच्चों को वहाँ जाकर
देखना चाहिए | बोलना चाहिए कि हम इनका अर्थ समझाते हैं | फिर
फट से बैठ सुनाना चाहिए | ऐसे थोड़ेही समझेंगे कि यह बी.के. हैं
| भल सफ़ेद ड्रेस है परन्तु छापा थोड़ेही लगा हुआ है | तुम कहाँ
भी जाकर सुन सकते हो और कह सकते हो इसका अर्थ तो बताओ | देखो
वह क्या सुनाते हैं | बाकी यह इतने सब चित्र तो डीटेल समझने के
हैं | अथाह ज्ञान है | सागर को स्याही बनाओ.....तो भी अन्त
नहीं | फिर सेकेण्ड की भी बात सुनाई, सिर्फ़ बाप का परिचय देना
है | वही बेहद का बाप स्वर्ग का रचयिता है | हम सभी उनके बच्चे
ब्रदर्स हैं | तो हमको भी ज़रूर स्वर्ग का राज्य होना चाहिए,
परन्तु सबको मिल न सके | बाप आते ही हैं भारत में और भारतवासी
ही स्वर्गवासी बनते हैं | दूसरे तो आते ही पीछे हैं | यह तो
बहुत सहज है, परन्तु समझते नहीं हैं | बाबा को तो वन्डर लगता
है | एक दिन गणिकायें आदि भी आकर सुनेंगी | पिछाड़ी में आने
वाले तीखे हो जायेंगे | वहाँ भी कोई जाकर सर्विस कर सकते हैं |
बहुतों को लज्जा आती है, देह-अभिमान बहुत है | बाबा कहते हैं
वेश्याओं को भी समझाना है | भारत का नाम भी उन्होंने ही गिराया
है | इसमें मुख्य चाहिए योगबल | बिल्कुल ही पतित हैं, पावन
होने के लिए याद की यात्रा चाहिए | अभी वह याद का बल कुछ कम है
| किसमें ज्ञान है तो फिर याद कम है | डिफ़िकल्ट सब्जेक्ट है,
इनमें पास हों तब गणिकाओं का उद्धार कर सकें | अच्छी-अच्छी
अनुभवी मातायें जाकर समझायें | कन्याओं को तो अनुभव नहीं |
मातायें समझा सकती हैं | बाप कहते हैं पवित्र बनो तो विश्व के
मालिक बन जायेंगे | दुनिया ही शिवालय बन जायेगी | सतयुग को
शिवालय कहा जाता है, वहाँ अथाह सुख हैं | उन्हों को भी ऐसे
समझाओ कि बाप कहते हैं अब प्रतिज्ञा करो पवित्र बनने की | ऐसे
पतितों को पावन बनाने की तलवार बहुत तीखी चाहिए | इसमें शायद
अभी देरी है | समझाने में भी नम्बरवार हैं | सेन्टर पर रहते
हैं | बाबा जानते हैं सब एकरस नहीं हैं | सर्विस पर जो जाते
हैं उनमें रात दिन का फ़र्क है | तो पहले जब किसको समझाओ तो बाप
का ही परिचय दो | बाप की ही महिमा करो | इतने गुण सिवाए बाप के
और किसके हो नहीं सकते | वही गुणवान बनाते हैं | बाप ही सतयुग
की स्थापना करते हैं | अभी यह है संगमयुग जबकि तुम पुरुषोत्तम
बन रहे हो | तुम आत्माओं को बैठ समझायेंगे | यह तो समझाते हो
आत्मा का ही शरीर है | कहाँ तक कोई समझते हैं यह शक्ल से मालूम
पड़ता है | कोई मूडी होते हैं तो सारी शक्ल ही बदल जाती है |
आत्मा समझ बैठेंगे तो शक्ल भी अच्छी रहेगी | यह भी प्रैक्टिस
होती है | घर गृहस्थ में रहने वाले इतने उछल नहीं सकते क्योंकि
गोरख़धन्धा लगा पड़ा है | पूरा अभ्यास करें तब चलते-फिरते,
उठते-बैठते पक्के हों | याद से ही तुम पावन बनते हो | आत्मा
जितना योग में रहती उतना पावन बनती है | सतयुग में तुम
सतोप्रधान थे तो बहुत ख़ुश थे |
अभी
संगम पर तुम हँसते बहलते रहते हो, बेहद का बाप मिला बाकी क्या
चाहिए | बाप पर तो कुर्बान होना है | साहूकार कोई मुश्किल
निकलते हैं | गरीबों को ही मिलता है, ड्रामा ही ऐसा बना हुआ है
| धीरे-धीरे वृद्धि को पाते रहेंगे | कोटों में कोई विजय माला
का दाना बनते हैं | बाकी प्रजा तो बननी ही है नम्बरवार | कितने
ढेर बन जायेंगे | साहूकार गरीब सब होंगे | यह पूरी राजधानी
स्थापन हो रही है | बाकी सब अपने-अपने