01-06-14
प्रातः मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा”
रिवाइज:
03-01-78
मधुबन
“इन्तजार के पहले इन्तजाम करो”
बाप
बच्चों को देख सदा हर्षित होते हैं | हरेक बच्चा वर्तमान समय
में विश्व की सर्व आत्माओं में श्रेष्ठ है और भविष्य में भी
विश्व द्वारा पूज्यनीय है | ऐसे सर्व श्रेष्ठ गायन और पूजन
योग्य योगी तू आत्माएं, ज्ञानी तू आत्मायें, दिव्य-गुणधारी,
सदा विश्व के सेवाधारी बाप-दादा के सदा स्नेह और सहयोग में
रहने वाले, ऐसे बच्चों को देख बाप को कितनी ख़ुशी होती है |
नम्बरवार होते हुए भी लास्ट नम्बर का मणका भी विश्व के आगे
महान है | ऐसे अपनी महानता को, अपनी महिमा को जानते हुए चलते
रहते हो? या चलते-चलते अपने को साधारण समझ लेते हो? अलौकिक बाप
द्वारा प्राप्त हुई अलौकिक जीवन, अलौकिक कर्म साधारण नहीं हैं
| लास्ट नम्बर के मणके को भी आज अन्त तक भक्त आत्मायें आँखों
पर रखती हैं क्योंकि लास्ट नम्बर भी बापदादा के नयनों के तारे
हैं | नूरे रत्न हैं | ऐसे नूरे रत्न को अब तक भी नयनों पर रखा
जाता है | अपने श्रेष्ठ भाग्य को जानते हुए, वर्णन करते हुए
अनजान नहीं बनो | एक बार भी मन से, सच्चे दिल से अपने को बाप
का बच्चा निश्चय किया तो उस एक सेकेण्ड की महिमा और प्राप्ति
बहुत बड़ी है | डायरेक्ट बाप का बच्चा बनना – जानते हो कितनी
बड़ी लाटरी है | एक सेकण्ड में नाम संस्कार शूद्र से ब्राह्मण
हो जाता है | संसार बदल जाता - संस्कार बदल जाते, दृष्टि,
वृत्ति, स्मृति सब बदल जाता एक सेकण्ड के खेल में | ऐसा
श्रेष्ठ सेकण्ड भूल जाते हो | दुनिया वाले अब तक नहीं भूले हैं
| आप आत्माएं चक्कर लगाते बदल भी गई लेकिन दुनिया वाले नहीं
भूले
|
अभी आप सबका भाग्य वर्णन करते इतने खुश होते हैं
|
समझते हैं भगवान ही मिल गया | जब
दुनिया वाले नहीं भूले हैं,
आप स्वयं अनुभवी मूर्त तो सर्व प्राप्ति करने वाली आत्मायें
हो, फिर भूल क्यों जाते हो? भूलना नहीं चाहिए लेकिन भूल जाते
हो |
इस
नये वर्ष में बापदादा को कौन-सी नवीनता दिखायेंगे | जो समय
दिया हुआ था उस प्रमाण तो सब सम्पूर्ण ही दिखाई देने चाहिए |
लक्ष्य प्रमाण सर्व ब्राह्मण आत्माओं का अपना पुरुषार्थ
सम्पन्न होना चाहिए | आप तो परिवर्तन के लिए तैयार हो ना! अब
जो समय मिला है वह ब्राह्मणों के स्वयं के पुरुषार्थ के लिए
नहीं है लेकिन हर संकल्प, हर बोल द्वारा दाता के बच्चे विश्व
की आत्माओं प्रति प्राप्त हुए ख़ज़ानों को देने अर्थ है | यह
एक्स्ट्रा टाइम स्वयं के पुरुषार्थ प्रति नहीं लेकिन दूसरों के
प्रति समय, गुण और खज़ाना देने के लिए है | बाप ने जिस कार्य के
लिए समय और खज़ाना दिया है अगर उसके बदले स्वयं प्रति समय और
सम्पत्ति लगाते हो तो यह भी अमानत में खयानत होती है | यह
विशेष वर्ष ब्राह्मण आत्माओं के प्रति महादानी वरदानी बनने का
है | जैसे आप लोग प्रोग्राम बनाते हो कि इस मास में विशेष योग
का प्रोग्राम होगा, दूसरे मास में विशेष सेवा का होगा | वैसे
ड्रामा प्लैन अनुसार यह एक्स्ट्रा समय महादानी बनने के लिए
मिला है | अब तक पुरानी भाषा, पुरानी बातें, पुरानी रीति रसम
वह अच्छी रीति सब जानते हो | इस वर्ष का समय इसके लिए नहीं है
| जैसे बाप के आगे स्वयं को समर्पण किया वैसे अब अपना समय और
सर्व प्राप्तियां, ज्ञान, गुण और शक्तियां विश्व की सेवा अर्थ
समर्पण करो | जो संकल्प उठता है तो चेक करो कि विश्व सेवा
प्रति है? ऐसे सेवा प्रति अर्पण होने से स्वयं सम्पन्न सहज हो
जायेंगे | जैसे जब कोई सेवा का विशेष प्रोग्राम बनाते हो तो
विशेष कार्य में बिज़ी होने के कारण स्वयं के आराम या स्वयं के
प्रति सैलवेशन देने वाली बातें या चलते-चलते अन्य आत्माओं
द्वारा आई हुई छोटी-छोटी परीक्षाओं को अटेन्शन नहीं देते हो,
अवाइड करते हो क्योंकि सदा कार्य को सामने रखते हो और बिज़ी
रहते हो | स्वयं प्रति समय न लगाकर सेवा में विशेष लगाते हो |
ऐसे ही इस नये वर्ष में हर सेकेण्ड और संकल्प को सेवा प्रति
समझने से, इस कार्य में बिज़ी होने से परीक्षाओं को पास ऐसे
करेंगे जैसे कुछ है ही नहीं | संकल्प में भी नहीं आयेगा कि यह
बात क्या थी और क्या हुआ | स्वयं को समर्पण करने से इस सेवा की
लगन में यह छोटे बड़े पेपर्स या परीक्षायें स्वतः ही समर्पण हो
जायेंगी | जैसे अग्नि के अन्दर हर वस्तु का नाम रूप बदल जाता
है वैसे परीक्षा का नाम रूप बदल परीक्षा प्राप्ति का रूप बन
जायेगी | माया शब्द से घबरायेंगे नहीं, सदा विजयी बनने की ख़ुशी
में नाचते रहेंगे | माया को अपनी दासी अनुभव करेंगे तो दासी
सेवाधारी बनेंगी या उससे घबरायेंगे? स्वयं सरेण्डर हो जाओ सेवा
में तो माया स्वतः ही सरेण्डर हो जायेगी | लेकिन सरेण्डर नहीं
होते हो तो माया भी अच्छी तरह से चान्स लेती है | चान्स लेने
के कारण ब्राह्मणों का भी चान्सलर बन जाती है | माया को
चान्सलर बनने नहीं दो | स्वयं सेवा का चान्स ले चान्सलर बनो |
अब सुना समय क्यों मिला है? अब कोई कम्प्लेन नहीं करना | समय
के हिसाब से हरेक को कम्प्लीट होना है | कम्प्लीट आत्मा कभी
कम्प्लेन नहीं करती है | हो ही जाता, होता ही है, यह भाषा नहीं
बोलती | नया वर्ष, नई भाषा, नया अनुभव | पुरानी चीज़ सम्भालना
अच्छा लगता है लेकिन यूज़ करना अच्छा नहीं होता | तो आप यूज़
क्यों करते हो? 5000 वर्ष के लिए सम्भाल कर रख दो | पुराने से
प्रीत नहीं रखो |
सदैव
भक्त आत्माओं, भिखारी आत्माओं और प्यासी आत्माओं के सामने अपने
को साक्षात् बाप और साक्षात्कार मूर्त समझकर चलो | तीनों ही
लाइन लम्बी है | इस क्यू को समाप्त करने में लग जाओ | प्यासी
आत्माओं की प्यास बुझाओ | भिखारियों को दान दो | भक्तों को
भक्ति का फल बाप के मिलने का का मार्ग बताओ | इस क्यू को
सम्पन्न करने में बिज़ी रहेंगे तो स्वयं के प्रति क्यों की क्यू
समाप्त हो जायेगी | समय की इन्तजार में नहीं रहो लेकिन तीनों
प्रकार की आत्माओं को सम्पन्न बनाने के इन्तजाम में रहो | अब
तो नहीं पूछेंगे कि विनाश कब होगा? क्यू को समाप्त करो तो
परिवर्तन का समय भी समाप्त हो जायेगा | संगम का समय सतयुग से
श्रेष्ठ नहीं लगता है? थक गये हो क्या? जब पूछते हो विनाश कब
होगा तो थके हुए हो तब तो पूछते हो | बाप का बच्चों के प्रति
अति स्नेह है | बाप को यह मेला अच्छा लगता है और बच्चों को
स्वर्ग अच्छा लगता है | स्वर्ग तो 21 जन्म मिलेगा ही लेकिन यह
संगम नहीं मिलेगा | तो थक मत जाओ | सेवा में लग जाओ तो
प्रत्यक्ष फल अनुभव करेंगे | भविष्य फल तो आपका निश्चित है ही
लेकिन प्रत्यक्ष फल का अनुभव सुख सारे कल्प में नहीं मिलेगा
इसलिए भक्तों की पुकार सुनो, रहमदिल बनो, महादानी बन, महान
पुण्यात्मा का पार्ट बजाओ | अच्छा |
ऐसे
बाप के फ़रमानबरदार दृढ़ संकल्प और सेकेण्ड में आज्ञाकारी, बाप
समान सदा विश्व के कल्याणकारी महादानी, महान वरदानी सर्व को
सम्पन्न करने वाले, सदा स्वयं को सेवा में तत्पर करने वाले ऐसे
बाप समान बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते |
दादियों जी से बातचीत
सबको
एक बात का इन्तजार है, वह कौन-सी बात है? जो शुरू की पहेली है
मैं कौन? वही लास्ट तक भी है | सबको इन्तजार है आखिर भी भविष्य
में मैं कौन या माला में कहाँ? अब यह इन्तजार कब पूरा होगा? सब
एक दो में रूहरिहान भी करते हैं 8 में कौन होंगे, 100 में कौन
होंगे, 16000 को तो कोई सवाल ही नहीं | आखिर भी 8 में या 100
में कौन होंगे? विदेशी सोचते हैं हम कौन-सी माला में होंगे और
शुरू में आने वाले फिर सोचते हैं लास्ट सो फ़ास्ट हैं | ना
मालूम हमारा स्थान है या लास्ट वालों का है? आखिर हिसाब क्या
है? किताब तो बाप के पास है ना | फिक्स नहीं किये गये हैं | आप
लोगों ने भी आर्ट काम्पीटीशन की तो चित्र कैसे चुना? पहले थोड़े
अलग किये फिर उसमें से एक, दो, तीन नम्बर लगाया | पहले चुनने
होते हैं फिर नम्बरवार फिक्स होते हैं | तो अब चुने गये हैं
लेकिन फिक्स नहीं हुए हैं | पीछे आने वालों का क्या होगा? सदैव
कुछ सीट्स अन्त तक भी होती हैं | रिज़र्वेशन होती है तो भी
लास्ट तक कुछ कोटा रखते हैं लेकिन वह कोटों में कोई, कोई में
भी कोई होता है |
अच्छा आप सब किस माला में हो? अपने में उम्मीद रखो | कोई न कोई
ऐसी वन्डरफुल बात होगी जिनके आधार पर आप सबकी उम्मीदें पूरी हो
जायेंगी | अष्ट रत्नों की विशेषता एक विशेष बात से है | अष्ट
रत्न प्रैक्टिकल में जैसे यादगार हैं विशेष तो जो अष्ट
शक्तियाँ हैं वह हर शक्ति उनके जीवन में प्रैक्टिकल दिखाई देगी
| अगर एक शक्ति भी प्रैक्टिकल जीवन में कम दिखाई देती है तो
जैसे अगर मूर्ति की एक भुजा खण्डित हो तो पूज्यनीय नहीं होती,
उसी प्रकार से अगर एक शक्ति की भी कमी दिखाई देती तो अष्ट
देवताओं की लिस्ट में अब तक फिक्स नहीं कहें जायेंगे | दूसरी
बात – अष्ट देवतायें भक्तों के लिए विशेष इष्ट माने जाते हैं |
इष्ट अर्थात् महान पूज्य | इष्ट द्वारा हर भक्त को हर प्रकार
की विधि और सिद्धि प्राप्त होती है | यहाँ भी जो अष्ट रत्न
होंगे वह सर्व ब्राह्मण परिवार के आगे अब भी इष्ट अर्थात् हर
संकल्प और चलन द्वारा विधि और सिद्धि का मार्ग दर्शन करने वाले
सबके सामने अब भी ऐसे ही महानमूर्त माने जायेंगे | तो अष्ट
शक्तियां भी होंगी और परिवार के सामने इष्ट अर्थात् श्रेष्ठ
आत्मा, महान आत्मा, वरदानी आत्मा के रूप में होंगे | यह है
अष्ट रत्नों की विशेषता | अच्छा |
पार्टियों से : -
1.
दुनिया
के वायब्रेशन से अथवा माया से सेफ़ रहने का साधन:
सदा
एक बाप दूसरा न कोई इसी लगन में मगन रहते वह माया के हर प्रकार
के वार से बचे रहते हैं | जैसे जब लड़ाई के समय बाम्ब्स गिराते
हैं तो अण्डरग्राउण्ड हो जाते हैं, तो उसका असर उनको नहीं होता
तो ऐसे ही जब एक लगन में मगन रहते हो तो दुनिया के वायब्रेशन
से, माया से बचे रहेंगे, सदा सेफ़ रहेंगे | माया की हिम्मत नहीं
जो वार करे | लगन में मगन रहो | यही है सेफ्टी का साधन |
2.
बाप के
समीप रत्नों की निशानी:
बाप
के समीप रहने वालों के ऊपर बाप के सत के संग का रंग चढ़ा हुआ
होगा | सत के संग का रंग है रूहानियत | तो समीप रत्न सदा
रूहानी स्थिति में स्थित होंगे | शरीर में रहते हुए न्यारे,
रूहानियत में स्थित रहेंगे | शरीर को देखते हुए भी न देखें और
आत्मा जो न दिखाई देने वाली चीज़ है – वह प्रत्यक्ष दिखाई दे –
यही तो कमाल है | रूहानी मस्ती में रहने वाले ही बाप को साथी
बना सकते हैं क्योंकि बाप रूह है |
3.
पुरानी
दुनिया के सर्व आकर्षणों से परे होने की सहज युक्ति:
सदैव
नशे में रहो कि हम अविनाशी खज़ाने के मालिक हैं | जो बाप का
खज़ाना ज्ञान, सुख शान्ति, आनन्द है.......वह सर्व गुण हमारे
हैं | बच्चा बाप की प्रॉपर्टी का स्वतः ही मालिक होता है |
अधिकारी आत्मा को अपने अधिकार का नशा रहता है, नशे में सब भूल
जाता है ना | कोई स्मृति नहीं होती, एक ही स्मृति रहे बाप और
मैं इसी स्मृति से पुरानी दुनिया की आकर्षण से ऑटोमेटिकली परे
हो जायेंगे | नशे में रहने वाले के सामने सदा निशाना भी स्पष्ट
होगा | निशाना है फ़रिश्तेपन का और देवतापन का |
4.
एक
सेकण्ड का वन्डरफुल खेल, जिससे पास विद् ऑनर बन जायें:
एक
सेकेण्ड का खेल है अभी-अभी शरीर में आना और अभी-अभी शरीर से
अव्यक्त स्थिति में स्थित हो जाना | इस सेकेण्ड के खेल का
अभ्यास है? जब चाहो जैसे चाहो उसी स्थिति में स्थित रह सको |
अन्तिम पेपर सेकण्ड का ही होगा, जो इस सेकण्ड की हलचल में आया
तो फेल, अचल रहा तो पास | ऐसी कन्ट्रोलिंग पॉवर है? अभी ऐसा
अभ्यास तीव्र रूप का होना चाहिए | जितना हंगामा हो उतना स्वयं
की स्थिति अति शान्त | जैसे सागर बाहर आवाज़ सम्पन्न होता,
अन्दर बिल्कुल शान्त, ऐसा अभ्यास चाहिए | कन्ट्रोलिंग पॉवर
वाले ही विश्व को कन्ट्रोल कर सकते हैं | जो स्वयं को नहीं कर
सकते वह विश्व का राज्य कैसे करेंगे | समेटने की शक्ति चाहिए |
एक सेकण्ड में विस्तार से सार में चले जायें और एक सेकेण्ड में
सार से विस्तार में आ जायें यही है वन्डरफुल खेल |
5.
अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते रहो:
आपको सभी आत्मायें सुख में झूलता देख दुःखी से सुखी बन जायें |
आपके नयन, मुख चेहरा सब सुख दें, ऐसा सुखदायी बनो | ऐसा सुखदाई
जो बनता उसे संकल्प में भी दुःख की लहर नहीं आ सकती | अच्छा |
वरदान:-
बाप
और सेवा में मगन रहने वाले निर्विघ्न, निरन्तर सेवाधारी भव
!
जहाँ
सेवा का उमंग है वहाँ अनेक बातों से सहज ही किनारा हो जाता है
| एक बाप और सेवा में मग्न रहो तो निर्विघ्न, निरन्तर
सेवाधारी, सहज मायाजीत बन जायेंगे | समय प्रति समय सेवा की
रुपरेखा बदल रही है और बदलती रहेगी | अभी आप लोगों को ज़्यादा
कहना नहीं पड़ेगा लेकिन वह स्वयं कहेंगे कि यह श्रेष्ठ कार्य है
इसलिए हमें भी सहयोगी बनाओ | यह समय के समीपता की निशानी है |
तो खूब उमंग-उत्साह से सेवा करते आगे बढ़ते चलो |
स्लोगन:-
उमंग-उत्साह से सेवा करते आगे बढ़ते चलो
|
ओम्
शान्ति
|