04-03-14       प्रातः मुरली       ओम् शान्ति   “बापदादा”     मधुबन


मीठे बच्चे जितना समय मिले अन्तर्मुखी रहने का पुरुषार्थ करो, बाह्र्मुखता में न आओ, तब ही पाप कटेंगे |   

प्रश्न:-   
चढ़ती कला का पुरुषार्थ क्या है जो बाप हर बच्चे को सिखलाते हैं?

उत्तर:-
1. बच्चे चढ़ती कला में जाना है तो बुद्धियोग को बाप से लगाओ | फ़लाना ऐसा है, यह ऐसा करता है, इसमें यह अवगुण हैं – इन बातों में जाने की दरकार नहीं | अवगुण देखने से मुँह मोड़ लो | 2. कभी भी पढ़ाई से रूठना नहीं | मुरली में जो अच्छी-अच्छी प्वाइन्ट्स हैं, उन्हें धारण करते रहो, तब ही चढ़ती कला हो सकती है | 

ओम् शान्ति |

अभी यह है ज्ञान का क्लास और सवेरे योग का क्लास | योग कौन-सा? यह बहुत अच्छी रीति समझाना है क्योंकि बहुत मनुष्य हठयोग में फँसे हुए हैं | जो हठयोग मनुष्य सिखलाते हैं | यह है राजयोग, जो परमात्मा सिखलाते हैं क्योंकि राजा तो कोई है नहीं जो राजयोग सिखलावे | यहलक्ष्मी-नारायण भगवती-भगवान् हैं, राजयोग सीखे तब तो भविष्य में भगवती-भगवान् बनें | यह है ही पुरुषोत्तम संगमयुग की समझनी | इसको कहा जाता है पुरुषोत्तम | पुरानी और नई दुनिया का बीच | पुराने मनुष्य और नये देवतायें | इस समय सभी मनुष्य पुराने हैं | नई दुनिया में नई आत्मायें, देवतायें होते हैं | वहाँ मनुष्य नहीं कहेंगे | भल हैं मनुष्य परन्तु दैवीगुणों वाले हैं, इसलिए देवी-देवता कहा जाता है | पवित्र भी रहते हैं | बाप बच्चों को समझाते हैं काम महाशत्रु है | यह रावण का पहला-पहला भूत है | कोई बहुत क्रोध करते हैं तो कहा जाता है – भौं-भौं क्यों करते हो! यह दो विकार बड़े शत्रु हैं | लोभ-मोह के लिए भौं-भौं नहीं कहेंगे | मनुष्यों में साइन्स घमण्ड के कारण क्रोध कितना है – यह भी बहुत नुकसानकारक है | काम का भूत आदि, मध्य, अन्त दुःख देने वाला है | एक-दो पर काम कटारी चलाते हैं | यह सब बातें समझकर फिर औरों को समझानी हैं | तुम्हारे सिवाए बाप से वर्सा लेने का सच्चा रास्ता तो कोई बतला न सके | तुम बच्चे ही बता सकते हो | बेहद के बाप से इतना बड़ा वर्सा कैसे मिलता है! जो किसको समझा नहीं सकते तो ज़रूर पढ़ाई पर ध्यान नहीं है | बुद्धियोग कहाँ भटकता है | युद्ध का मैदान है ना | ऐसे कोई मत समझे – सहज बात है | मन के तूफ़ान वा विकल्प ढेर के ढेर न चाहते हुए भी आयेंगे, इसमें मूँझना नहीं है | योगबल से ही माया भागेगी, इसमें पुरुषार्थ बहुत है | धन्धेधोरी में कितने थक जाते हैं क्योंकि देह-अभिमान में रहते हैं | देह-अभिमान के कारण बहुत बातचीत करनी पड़ती है | बाप कहते हैं देही-अभिमानी बनो | देही-अभिमानी बनने से जो बाप समझाते हैं वही औरों को समझायेंगे | अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो | बाप ही शिक्षा देंगे कि बच्चे बाहरमुखी नहीं होना चाहिए | अन्तर्मुखी होना है | भल कहाँ बाहरमुखी होना भी पड़े, फिर भी जितनी फ़ुर्सत मिले कोशिश कर अन्तर्मुखी होना चाहिए, तब ही पाप कटेंगे | नहीं तो न पाप कटेंगे, न ऊँच पद पायेंगे | जन्म-जन्मान्तर के पाप सिर पर हैं | सबसे जास्ती पाप ब्राह्मणों के हैं, उनमें भी नम्बरवार हैं | जो बहुत ऊँच बनते हैं, वही बिल्कुल नीच भी बनते हैं | जो प्रिन्स बनते हैं उनको ही फिर बेगर भी बनना है | ड्रामा को अच्छी रीति समझना है, जो पहले आये हैं वह पिछाड़ी में आयेंगे | जो पहले पावन बनते हैं वही पहले पतित बनते हैं | बाप कहते हैं मैं भी आता ही हूँ इनके बहुत जन्मों के अन्त में, सो भी जब वानप्रस्थ अवस्था है | इस समय छोटे-बड़े सबकी वानप्रस्थ अवस्था है | बाप के लिए गायन भी है सर्व की सद्गति करने वाले | वह होती ही है पुरुषोत्तम संगमयुग पर | यह पुरुषोत्तम संगमयुग भी याद रखना चाहिए | जैसे मनुष्यों को कलियुग याद है, संगमयुग सिर्फ़ तुमको याद है | तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं | बहुतों को तो अपना गोरख़धन्धा ही याद रहता है | बाहर से मुँह हटा हुआ हो तो धारणा भी हो जाए | एक कहावत है – अन्तकाल जो स्त्री सिमरे.....जो गीत वा श्लोक अच्छे-अच्छे हैं, जिनका हमारे ज्ञान से कनेक्शन है, वह रखने चाहिए | जैसे छी-छी दुनिया से जाना ही होगा | दूसरा, नैनहीन को राह दिखाओ......ऐसे-ऐसे गीत अपने पास रखने चाहिए | बनाये तो मनुष्यों ने हैं, जिनको इस संगम का पता ही नहीं है | इस समय सब ज्ञान नैनहीन अन्धे हैं | जब परमात्मा आये तब आकर राह दिखाये | अकेले तो नहीं दिखायेंगे | यह है उनकी शिव शक्ति सेना | यह शक्ति सेना क्या करती है? श्रीमत पर नई दुनिया की स्थापना | तुम भी राजयोग सीखते हो जो भगवान् के सिवाए कोई सिखला न सके | भगवान् तो निराकार है, उनको तो अपना शरीर है नहीं, बाकी जो भी हैं सब शरीरधारी हैं | ऊँच ते ऊँच तो एक बाप ही है, जो तुमको पढ़ाते हैं | यह तो तुम ही जानो | तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं तो तुमको वार्निंग देनी चाहिए | बड़े-बड़े अख़बार में डालना चाहिए | मनुष्य जो योग सिखलाते हैं, वह है हठयोग | राजयोग एक परमपिता परमात्मा बाप ही सिखलाते हैं, जिससे मुक्ति-जीवनमुक्ति मिलती है | हठयोग से दोनों नहीं मिलते | वह है हठयोग जो कि परम्परा से चला आता है, पुराना है | यह राजयोग सिर्फ़ संगमयुग पर बाप सिखलाते हैं | 

बाबा ने समझाया है जब भाषण करते हो तो टॉपिक्स निकालनी चाहिए | परन्तु ऐसे करते नहीं हैं | श्रीमत पर चलने वाले बहुत थोड़े हैं | पहले भाषण लिखो फिर पक्का करो तो याद आयेगा | तुमको ओरली भाषण करना है | तुमको पढ़कर तो सुनाना नहीं है | विचार सागर मंथन कर भाषण करने की ताकत उसमें रहेगी जो अपने को आत्मा समझकर फिर बोलते हैं | हम भाइयों को सुनाते हैं, ऐसे समझने से ताक़त रहेगी | यह बहुत ऊँची मंज़िल है ना | पान का बीड़ा उठाना मासी का घर नहीं है | जितना तुम रुसतम बनेंगे, उतना माया का वार होगा | अंगद वा महावीर भी रुसतम था, तब कहा रावण भी हमको हिलाकर दिखाये | यह स्थूल बातें नहीं | शास्त्रों में यह दन्त कथायें हैं | यह कान जो परमात्मा बाप का सुनहरी ज्ञान सुनने वाले थे वह दन्त कथायें सुन-सुनकर एकदम पत्थर बन गये हैं | भक्ति मार्ग में माथा भी घिसाया तो पैसा भी गँवाया | सीढ़ी नीचे ही उतरते आये | 84 जन्मों की भी कहानी है ना | जो भी भक्ति की है, नीचे ही उतरे हैं | अब बाप ऊपर चढ़ना सिखलाते हैं | अब तुम्हारी चढ़ती कला है | अगर बुद्धियोग बाप के साथ नहीं लगायेंगे तो ज़रूर नीचे ही गिरेंगे | बाप को याद करते हो तो ऊपर चढ़ते हो | मेहनत है बहुत, परन्तु बच्चे गफ़लत करते हैं | धन्धे में बाप को और नॉलेज को भूल जाते हैं | माया तूफ़ान में लाती है – फ़लाना ऐसा है, यह करता है, यह ब्राह्मणी ऐसी है, इसमें यह अवगुण है | अरे, इसमें तुम्हारा क्या जाता है! सर्वगुण सम्पन्न तो कोई बना नहीं है | कोई का अवगुण न देख गुण ग्रहण करना है | अवगुण देखो तो मुँह मोड़ लो | मुरली तो मिलती है वह सुनते धारण करते रहो | बुद्धि से समझना है यह बाबा की बात बिल्कुल ठीक है | जो बात ठीक न लगे, छोड़ देनी चाहिए | पढ़ाई से कभी रूठना नहीं चाहिए | ब्राह्मणी से वा पढ़ाई से रूठना गोया बाप से रूठना | ऐसे बहुत बच्चे हैं, जो फिर सेन्टर पर नहीं आते हैं | भल कोई कैसा भी है तुम्हारा काम मुरली से है, मुरली जो सुनाये उनमें से अच्छी-अच्छी प्वाइन्ट्स धारण करनी है | किसी से बात करने में मज़ा नहीं आता तो शान्त करके मुरली सुनकर चले जाना चाहिए | रूठना नहीं चाहिए कि हम यहाँ नहीं आयेंगे | नम्बरवार तो हैं | यह भी अच्छा है जो सुबह को तुम याद में बैठते हो | बाबा आकर सर्च लाइट देते हैं | बाबा अनुभव सुनाते हैं जब बैठते हैं तो जो अनन्य हैं वह बच्चे पहले याद आते हैं | भल विलायत में हैं, कलकत्ते में हैं, तो पहले अनन्य को याद कर सर्चलाइट देते हैं | बच्चे तो भल यहाँ भी बैठे हैं परन्तु बाबा याद उनको करते हैं जो सर्विस करते हैं | जैसे अच्छे बच्चे शरीर छोड़ जाते हैं तो उनकी आत्मा को भी याद करते हैं, बहुत सर्विस करके गये हैं | तो ज़रूर यहाँ ही नज़दीक कोई घर में होंगे | तो उनको भी बाबा याद कर सर्चलाइट देते हैं | हैं तो सब बाबा के बच्चे | परन्तु कौन-कौन अच्छी सर्विस करते हैं, यह तो सब जानते हैं | बाबा ने कहा – यहाँ सर्च लाइट दो, तो देते हैं | दो इन्जन हैं ना | यह भी इतना ऊँच पद पाते हैं तो ज़रूर ताक़त होगी | भल बाबा कहते हैं हमेशा यही समझो कि शिवबाबा पढ़ाते हैं तो उनकी याद रहनी चाहिए | बाकी यह तो समझते हो यहाँ दो बत्ती हैं | और तो कोई में दो बत्ती नहीं हैं इसलिए यहाँ दो बत्तियों के सम्मुख आते हैं तो अच्छी तरह से रिफ्रेश होते हैं | टाइम भी सवेरे का अच्छा है | स्नान कर छत पर एकान्त में चले जाना चाहिए | बाबा ने इसलिए बड़ी-बड़ी छतें बनाई हैं | पादरी लोग भी एकदम साइलेन्स में जाते हैं, ज़रूर क्राइस्ट को याद करते होंगे | गॉड को जानते नहीं | अगर गॉड को याद करते होंगे तो शिवलिंग ही बुद्धि में आता होगा | अपनी मस्ती में जाते हैं, तो उनसे गुण उठाना है | दतात्रेय के लिए भी कहते हैं वह सबसे गुण उठाते थे | तुम बच्चे भी नम्बरवार दतात्रेय हो | यहाँ एकान्त बहुत अच्छा है | जितनी चाहो कमाई कर सकते हो | बाहर तो गोरख़धन्धा याद पड़ेगा | 4 बजे का टाइम भी बहुत अच्छा है | बाहर कहाँ जाने की ज़रूरत नहीं है | घर में बैठे हो, पहरा भी है | यज्ञ में पहरा भी रखना पड़ता है | यज्ञ के हर वस्तु की सम्भाल रखनी पड़ती है क्योंकि यज्ञ की एक-एक चीज़ बहुत-बहुत वैल्युबुल है, इसलिए सेफ़्टी फर्स्ट | यहाँ कोई आयेंगे नहीं | समझते हैं यहाँ जेवर आदि तो कुछ हैं नहीं | यह मन्दिर भी नहीं है | आजकल चोरी सब जगह होती है | विलायत में भी पुरानी चीज़ें चोरी करके ले जाते हैं | जमाना बहुत डर्टी है, काम महाशत्रु है | वह सब कुछ भुला देता है | तो तुम्हारा सवेरे एक क्लास होता है एवरहेल्दी बनने का और फिर यह है एवरवेल्दी बनने का | बाप को याद भी करना है तो विचार सागर मंथन भी करना है | बाप को याद करेंगे तो वर्सा भी याद आयेगा | यह युक्ति बहुत सहज है | जैसे बाप बीजरूप है | झाड़ के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं | तुम्हारा भी धन्धा यह है | बीज को याद करने से पवित्र बनेंगे | चक्र को याद करेंगे तो चक्रवर्ती राजा बनेंगे अर्थात् धन मिलेगा | राजा विकर्म और राजा विकर्माजीत दो संवत मिक्स कर दिये हैं | रावण आया तो विक्रम संवत शुरू हुआ, डेट बदल गई | वह चलता है एक से 2500 वर्ष, फिर चलता है 2500 से 5000 वर्ष तक | हिन्दुओं को तो अपने धर्म का पता नहीं | यह एक ही धर्म है जो असली अपने धर्म को भूल अधर्मी बने हैं | धर्म स्थापक को भी भूले हैं | तुम समझा सकते हो आर्य समाज कब शुरू हुआ | आर्य (सुधरे हुए) सतयुग में थे | अन आर्य अभी हैं | अब बाप आकर तुमको सुधारते हैं | तुम्हारी बुद्धि में सारा चक्र है | जो अच्छे पुरुषार्थ हैं वह खुद भी जानते हैं, औरों को भी पुरुषार्थ कराते हैं | बाप है गरीब निवाज़ | गाँव वालों को सन्देश देना है | 6 चित्र काफ़ी हैं | 84 के चक्र का चित्र बहुत अच्छा है | उस पर अच्छी तरह समझाओ | परन्तु माया इतनी प्रबल है जो सब-कुछ भुला देती है | यहाँ तो दोनों लाइट इकट्ठी हैं | एक बाप की, एक इनकी – दोनों ज़बरदस्त हैं | परन्तु यह कहते हैं तुम एक ही ज़बरदस्त लाइट को पकड़ो | सब बच्चे यहाँ भागते हैं | समझते हैं डबल लाइट है | बाप सम्मुख सुनाते हैं | गायन है तुम्हीं से सुनूँ, तुम्हीं से बोलूँ....परन्तु ऐसे नहीं, यहाँ बैठ जाना है | 8 रोज़ काफ़ी हैं | अगर बिठा दें तो ढेर हो जायें | 

ड्रामा अनुसार सब कुछ चलता रहता है | परन्तु तुमको आन्तरिक ख़ुशी बहुत होनी चाहिए | वह ख़ुशी उन्हें होती, जो आपसमान बनाते हैं | प्रजा बनावें तब राजा बनें | पासपोर्ट भी चाहिए | बाबा से कोई पूछे तो बाबा फट से कहते हैं अपने को देखो – मेरे में क्या अवगुण हैं? स्तुति-निन्दा सब सहन करना पड़ता है | जो यज्ञ से मिले, उसमें खुश रहना है | यज्ञ के भोजन से तो बहुत लव चाहिए | सन्यासी थाली धोकर पीते हैं क्योंकि उनको भोजन का महत्व है | समय ऐसा आना है जो अनाज़ भी न मिले | तो सब कुछ सहन करना पड़ता है, तब पास हो सकेंगे | अच्छा! 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते | 

धारणा के लिए मुख्य सार:-  

1.    किसी में भी कोई अवगुण दिखाई दे तो अपना मुँह मोड़ लेना है | पढ़ाई से कभी रूठना नहीं है | दत्तात्रेय मिसल सबसे गुण उठाने हैं | 

2.    बाहर से बुद्धि निकाल अन्तर्मुखी रहने का अभ्यास करना है | धन्धेधोरी में रहते देही-अभिमानी रहना है | बहुत बातचीत में नहीं आना है | 

वरदान:-  
समय को शिक्षक बनाने के बजाए बाप को शिक्षक बनाने वाले मास्टर रचयिता भव
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कई बच्चों को सेवा का उमंग है लेकिन वैराग्य वृत्ति अटेन्शन नहीं है, इसमें अलबेलापन है | चलता है....होता है.....हो जायेगा......समय आयेगा तो ठीक हो जायेगा.....ऐसा सोचना अर्थात् समय को अपना शिक्षक बनाना | बच्चे बाप को भी दिलासा देते हैं – फ़िकर नहीं करो, समय पर ठीक हो जायेगा, कर लेंगे | आगे बढ़ जायेंगे | लेकिन आप मास्टर रचयिता हो, समय आपकी रचना है | रचना मास्टर रचयिता का शिक्षक बनें यह शोभा नहीं देता |

स्लोगन:- 
बाप की पालना का रिटर्न है – स्व और सर्व को परिवर्तन करने में सहयोगी बनना
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ओम् शान्ति |