05-01-14    प्रात: मुरली   “अव्यक्त बापदादा”   रिवाइज 31-05-77   मधुवन



विश्व कल्याण करने का सहज साधन है श्रेष्ठ संकल्पों की एकाग्रता



अपने निराकारी और साकारी दोनों स्थितियों को अच्छी तरह से जान गए हो? दोनों ही स्थितियों में स्थित रहना सहज अनुभव होता है वा साकार स्थति में स्थित रहना सहज लगता है और निराकारी स्थिति में स्थित होने में मेहनत लगती है? संकल्प किया और स्थित हुआ | सेकण्ड का संकल्प जहाँ चाहे वहाँ स्थित कर सकता है, संकल्प ही ऊँच ले जाने और नीचे ले आने की रूहानी लिफ्ट है जिस द्वारा जहाँ चाहे सर्व श्रेष्ठ अर्थात् निराकारी स्थिति में स्थित हो जाओ, चाहे आकारी स्थिति में स्थित हो जाओ, चाहे साकारी स्थिति में स्थित हो जाओ | ऐसी प्रैक्टिस अनुभव करते हो? संकल्प की शक्ति को जहाँ चाहो वहाँ लगा सकते हो! क्योंकि आत्मा मालिक है इन सूक्ष्म शक्तियों की | मास्टर सर्वशक्तिमान् अर्थात् सर्वशक्तियों को जब चाहें, जहाँ चाहें, जैसे चाहें वैसे कार्य में लगा सकते हैं | ऐसा मालिकपन का अनुभव करते हो? संकल्प को रचने वाले रचयिता स्वयं को अनुभव करते हो? रचना के वशीभूत तो नहीं हो जाते हो? ऐसा अभ्यास है जो एक सेकेण्ड में जिस स्थिति में स्थित होने का डायरेक्शन मिले, उसी स्थिति में सेकेण्ड में स्थित हो जाओ – ऐसी प्रैक्टिस है? वा युद्ध करते ही समय बीत जायेगा? अगर युद्ध करते हुए समय बीत जाए, स्वयं को स्थित न कर सको तो उसको मास्टर सर्वशक्तिमान् कहेंगे वा क्षत्रिय कहेंगे? क्षत्रिय अर्थात् चन्द्रवंशी |

वर्तमान समय विश्व कल्याण करने का सहज साधन अपने श्रेष्ठ संकल्प की एकाग्रता द्वारा, सर्व आत्माओं की भटकती हुई बुद्धि को एकाग्र करना है | सारे विश्व की सर्व आत्माएं विशेष यही चाहना रखती हैं कि भटकी हुई बुद्धि एकाग्र हो जाए वा मन चंचलता से एकाग्र हो जाए | यह विश्व की मांग वा चाहना कैसे पूर्ण करेंगे? अगर स्वयं ही एकाग्र नहीं होंगे, तो औरों को कैसे कर सकेंगे? इसलिए एकाग्रता अर्थात् सदा एक बाप दूसरा न कोई, ऐसे निरन्तर एकरस स्थिति में स्थित होने का विशेष अभ्यास करो | उसके लिए जैसे सुनाया था, एक तो व्यर्थ संकल्पों को शुद्ध संकल्पों में परिवर्तन करो | दूसरी बात, माया के आने वाले अनेक प्रकार के विघ्नों को अपनी ईश्वरीय लगन के आधार से सहज समाप्त करते, कदम को आगे बढ़ाते चलो | विघ्नों से घबराने का मुख्य कारण कौनसा है? जब भी कोई विघ्न आता है, तो विघ्न आते हुए यह भूल जाते हो कि बापदादा ने पहले से ही यह नॉलेज दे दी है कि लगन की परीक्षा में यह सब आयेंगे ही | जब पहले से ही मालूम है कि विघ्न आने ही हैं, फिर घबराने की क्या जरुरत? नई बात क्यों समझते हो?

माया क्यों आती है? व्यर्थ संकल्प क्यों आते हैं? बुद्धि क्यों भटकती है? वातावरण क्यों प्रभाव डालता है? सम्बन्धी साथ क्यों नहीं देते हैं? पुराने संस्कार अब तक क्यों इमर्ज होते है? यह सब क्वेश्चन विघ्नों को मिटाने के बजाए, बाप की लगन से हटाने के निमित्त बन जाते हैं | क्या यह बाप के महावाक्य भूल जाते हो कि जितना आगे बढ़ेंगे उतना माया भिन्न-भिन्न रूप से परीक्षा लेने के लिए आयेगी | लेकिन परीक्षा ही आगे बढ़ाने का साधन है न कि गिराने का, क्यों कारण, निवारण के बजाए, कारण सोचने में समय गँवा देते हो | शक्ति गँवा देते हो | कारण की बजाए निवारण सोचो, तो निर्विघ्न हो जाओ | क्यों आया? नहीं, लेकिन यह तो आना ही है – इस स्मृति में रहने से, समर्थी स्वरूप हो जायेंगे |

दूसरी बात, छोटे से विघ्नों में क्यों के क्वेश्चन उठने से व्यर्थ संकल्पों की क्यू लग जाती है, और उसी क्यू को समाप्त करने में काफी समय लग जाता है इसलिए मुख्य कमज़ोरी है, जो ज्ञान स्वरूप अर्थात् नॉलेजफुल स्थिति में स्थित होते हुए, विघ्नों को पार नहीं कर पाते हो | ज्ञानी हो, लेकिन ज्ञान स्वरूप होना है |

वातावरण प्रभाव क्यों डालता है, उसका भी कारण? अपने पॉवरफुल वृत्ति द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन करने वाले हैं, यह स्मृति भूल जाते हो | जब कहते ही हो विश्व परिवर्तक हैं तो विश्व के परिवर्तन में वायुमण्डल को भी परिवर्तन करना है | अशुद्ध को ही शुद्ध बनाने के लिए निमित्त हो | फिर यह क्यों सोचते हो कि वायुमण्डल ऐसा था, इसलिए कमज़ोर हो गया | जब है ही कलियुगी, तमोप्रधान, आसुरी सृष्टि, उसमें वातावरण अशुद्ध नहीं होगा तो क्या होगा? तमोगुणी सृष्टि के बीच रहते हुए, वातावरण को परिवर्तन करना, यही ब्राह्मणों का कर्तव्य है | कर्तव्य की स्मृति में रहने से अर्थात् रचतापन की स्थिति में रहने से वातावरण अर्थात् रचना के वश नहीं होंगे | तो जो सोचना चाहिए कि परिवर्तक होके परिवर्तन कैसे करूँ, इस सोचने के बजाए यह सोचने लग जाते कि वातावरण ऐसा है इसलिए कमज़ोर हो गया हूँ, वातावरण बदलेगा तो मैं बदलूँगा, वातावरण अच्छा होगा तो स्थिति अच्छी होगी | लेकिन वातावरण को बदलने वाला कौन? यह भूल जाते हो | इस कारण थोड़े से वातावरण का प्रभाव पड़ जाता है |

और क्या कहते कि सम्बन्धी नहीं सुनते वा संग अच्छा नहीं है, इस कारण शक्तिशाली नहीं बनते | बापदादा ने तो पहले से ही सुना दिया है कि हर आत्मा का अपना-अपना, अलग-अलग पार्ट है | कोई सतोगुणी, कोई रजोगुणी, कोई तमोगुणी | जब वैरायटी आत्मायें हैं और वैरायटी ड्रामा है, तो सब आत्माओं का एक जैसा पार्ट हो नहीं सकता | अगर किसी आत्मा का तमोगुणी अर्थात् अज्ञान का पार्ट है, तो शुभ भावना और शुभकामना से उस आत्मा को शान्ति और शक्ति का दान दो | लेकिन उसी अज्ञानी के पार्ट को देख, अपनी श्रेष्ठ स्थिति के अनुभव को भूल क्यों जाते हो? अपनी स्थिति में हलचल क्यों करते हो? साक्षी हो पार्ट देखते हुए, जो शक्ति का दान देना है, वह दो, लेकिन घबराओ मत | अपने सतोप्रधान पार्ट में स्थित रहो | तमोगुणी आत्मा के संग के रंग का प्रभाव पड़ने का कारण है सदा बाप के श्रेष्ठ संग में नहीं रहते | सदा श्रेष्ठ संग में रहने वाले के ऊपर और कोई संग का रंग प्रभाव नहीं डाल सकता | तो निवारण का सोचो |

और क्या कहते, हमारे सम्बन्धी के बुद्धि का ताला खोलो | बाप ने सर्व आत्माओंकी बुद्धियों का ताला खोलने की चाबी बच्चों को पहले से ही दे दी है | तो चाबी को यूज़ क्यों नहीं करते हो? अपना कार्य भूलने कारण, बाप को भी बार-बार याद दिलाते हो कि बाबा आप ही इनकी बुद्धि का ताला खोलना वा बुद्धि को परिवर्तन करना | बाप तो सर्व आत्माओं रूपी बच्चों के प्रति सदा विश्व कल्याणकारी हैं ही | फिर बार-बार क्यों याद दिलाते हो? बाप को अपने समान भूलने वाले समझते हो क्या? कहने की भी आवश्यकता नहीं | जितना आपको अपने हद के पार्ट के सम्बन्ध का ख्याल है, बाप तो सदा बच्चों के सम्बन्ध में रहने वाले हैं, तो बाप बच्चों को भूल नहीं सकता | लेकिन बाप जानते हैं कि हरेक आत्मा का कोई अपना समय-समय का पार्ट है, कोई का आदि में पार्ट है, कोई का मध्य में, कोई का अन्त में पार्ट है, कोई का भक्ति का पार्ट है, कोई का ज्ञान का पार्ट है इसलिए बार-बार यह चिन्तन मत करो, ताला कब खुलेगा | लेकिन ताला खोलने का साधन है – अपने मन्सा संकल्प द्वारा सेवा, अपनी वृत्ति द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन करने की सेवा | अपने जीवन के परिवर्तन द्वारा आत्माओं को परिवर्तन करने की सेवा की फ़र्ज़-अदाई निभाते चलो | अभी बार-बार यह नहीं बोलना कि ताला खोलो | अपना ताला खोला, तो उनका खुल ही जायेगा | मुख्य तीन बातें बार-बार लिखते और कहते हो – योग क्यों नहीं लगता? ताला क्यों नहीं खुलता? और माया क्यों आती है? सोचते बहुत हो, इसलिए माया को भी मज़ा आता है | जैसे मल्ल युद्ध में भी अगर थोड़ा सा भी गिरने लगता है तो दूसरे को मज़ा आता है और गिराकर ऊपर चढ़ने का | तो जब यह सोचते हो माया आ गई | माया क्यों आई! तो माया घबराया हुआ देख और वार कर लेती है इसलिए सुनाया माया आनी ही है | माया का आना अर्थात् विजयी बनाने के निमित्त बनना | शक्तियों की प्राप्ति को अनुभव में लाने कल लिए निमित्त कारण माया बनती है | अगर दुश्मन न हो तो विजयी कैसे कहा जायेगा? विजयी रत्न बनाने के निमित्त यह माया के छोटे-छोटे रूप हैं इसलिए मायाजीत समझ, विजयी रत्न समझ माया से विजय प्राप्त करो | समझा | मास्टर सर्व शक्तिमान, कमज़ोर मत बनो, माया को चैलेन्ज करने वाले बनो | अच्छा |

सदा मायाजीत सो जगतजीत, वातावरण को अपनी समर्थ वृत्ति से सतोप्रधान बनाने वाले, श्रेष्ठ मत और बाप के संग से अनेक मायावी संगदोष से पार रहने वाले, सदा ज्ञान-स्वरूप, शक्ति-स्वरूप स्थिति में स्थित रहने वाले, ऐसे सदा विजयी रत्नों को बापदादा का याद, प्यार और नमस्ते |

पार्टियों से –
संगमयुग का बड़े ते बड़ा ख़ज़ाना कौनसा है? सबसे बड़े से बड़ा ख़ज़ाना है अतीन्द्रिय सुख, जो किसी भी युग में प्राप्त नहीं हो सकता | सतयुग में भी अतीन्द्रिय सुख का वर्णन नहीं करेंगे | यह अतीन्द्रिय सुख अब का ही ख़ज़ाना है | इस ख़ज़ाने का अनुभव है? जो सबसे बढ़िया चीज़ होती या अच्छी लगती उसको कभी भूला नहीं जाता | अतीन्द्रिय सुख बड़े ते बड़ा और अच्छे ते अच्छा ख़ज़ाना है तो सदा याद रहना चाहिए | याद अर्थात् अनुभव में आना | जो इस अनुभव में रहेंगे वह इन्द्रियों के सुख में नहीं रहेंगे | जो सदा अतीन्द्रिय सुख में नहीं रहते वह इन्द्रियों के सुख की तरफ़ आकर्षित हो जाते हैं | इन्द्रियों के सुख के अनुभवी तो हो ना | उस अल्पकाल के सुख में भी दुःख भरा हुआ है | जैसे आजकल कड़वी दवाई के ऊपर मीठा बोर्ड लगा देते हैं | तो यह इन्द्रियों का सुख, दिखाई सुख देता है लेकिन है क्या? जब समझते हो दुःख है फिर उनकी आकर्षण में क्यों आते हो?

सदा अपने को विशेष पार्टधारी समझ पार्ट बजाते हो? जो विशेष पार्टधारी होते हैं उनकी हर एक्ट विशेष होती है | तो आपका भी हर कर्म के ऊपर इतना अटेन्शन है? कोई भी कर्म साधारण न हो | साधारण आत्मा जो भी कर्म करेगी वह देह-अभिमान से | विशेष आत्मा देही-अभिमानी बन कर्म करेगी | देही-अभिमानी बन पार्ट बजाने वाले की रिज़ल्ट क्या होगी? वह स्वयं भी सन्तुष्ट और सर्व भी उनसे सन्तुष्ट होंगे | जो अच्छा पार्ट बजाते तो देखने वाले वंसमोर (एक बार और) करते | तो सर्व का सन्तुष्ट रहना अर्थात् वंस मोर करना | सिर्फ़ स्वयं से सन्तुष्ट रहना बड़ी बात नहीं लेकिन स्वयं सन्तुष्ट रहकर दूसरों को भी करना – यह है पूरा स्लोगन | वह तब हो सकता जब देही-अभिमानी होकर विशेष पार्ट बजाओ | ऐसा पार्ट बजाने में मज़ा आयेगा, ख़ुशी भी होगी |

सदा स्वयं के श्रेष्ठ स्वमान मास्टर सर्वशक्तिमान की स्मृति में रहते हो? सबसे अच्छा स्वमान कौनसा है? मास्टर सर्वशक्तिमान | जैसे कोई बड़ा ऑफिसर वा राजा होता, जब वह स्वमान की सीट पर स्थित होता तो दूसरे भी उसे सम्मान देते हैं | अगर स्वयं सीट पर नहीं तो उसका ऑर्डर कोई नहीं मानेगा | तो ऐसे ही जब तक आप अपने स्वमान की सीट पर नहीं तो माया भी आपके आगे सरेन्डर नहीं हो सकती क्योंकि वह जानती है, यह सीट पर सेट नहीं है | सीट पर सेट होना अर्थात् स्वयं को मास्टर सर्वशक्तिमान् समझना |

संगमयुग ही प्रत्यक्षफल वाला है | सतयुग में संगमयुग का ही फल चलता रहता | संगम पर एक का सौ गुणा भर करके प्रत्यक्ष फल मिलता है | सिर्फ़ एक बार संकल्प किया – मैं बाप का हूँ तो अनेक जन्म एक संकल्प के आधार पर फल प्राप्त होता रहता है | एक बार संकल्प किया – मैं मास्टर सर्वशक्तिमान् हूँ तो मायाजीत बनने का, विजयी बनने के नशे का अनुभव होगा | प्रत्यक्षफल संगमयुग पर ही अनुभव होता | जैसे बीज बोया जाता तो फल मिलता है ना | ऐसे संकल्प करना वा पुरुषार्थ करना – यह है बीज और उसका फल, एक का पदम गुणा मिल जाता, तब तो संगम की महिमा है | सबसे बड़े ते बड़ा संगमयुग का फल है स्वयं बाप प्रत्यक्ष रूप में मिलता | परमात्मा भी साकार मनुष्य रूप में मिलने आता है | इस फल में और सब फल आ जाते हैं | अच्छा |


वरदान:-
 
गीता का पाठ पढ़ने और पढ़ाने वाले नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप भव !    

गीता का पहला पाठ है – अशरीरी आत्मा बनो और अन्तिम पाठ है नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बनो | पहला पाठ है विधि और अन्तिम पाठ है विधि से सिद्धि | तो हर समय पहले स्वयं यह पाठ पढ़ो फिर औरों को पढ़ाओ | ऐसा श्रेष्ठ कर्म करके दिखाओ जो आपके श्रेष्ठ कर्मों को देख अनेक आत्मायें श्रेष्ठ कर्म करके अपने भाग्य की रेखा श्रेष्ठ बना सकें |


स्लोगन:-
 
परमात्म स्नेह में समाये रहो तो मेहनत से मुक्त हो जायेंगे |       

ओम् शान्ति |