18-03-15
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा”
मधुबन
“मीठे
बच्चे - रूहानी सर्विस कर अपना और दूसरों का कल्याण करो,
बाप से सच्ची दिल रखो तो बाप की दिल पर चढ़ जायेंगे” 
प्रश्न:-
देही-अभिमानी बनने की मेहनत कौन कर सकते हैं?
देही-अभिमानी की निशानियाँ सुनाओ?
उत्तर:-
जिनका पढ़ाई से और बाप से अटूट प्यार है वह देही-अभिमानी बनने
की मेहनत कर सकते हैं। वह शीतल होंगे,
किसी
से भी अधिक बात नहीं करेंगे,
उनका
बाप से लव होगा,
चलन
बड़ी रॉयल होगी। उन्हें नशा रहता कि हमें भगवान पढ़ाते हैं,
हम
उनके बच्चे हैं। वह सुखदाई होंगे। हर कदम श्रीमत पर उठायेंगे।
ओम्
शान्ति।
बच्चों को सर्विस समाचार भी सुनना चाहिए फिर मुख्य-मुख्य जो
महारथी सर्विसएबुल हैं उन्हों को राय निकालनी चाहिए। बाबा
जानते हैं सर्विसएबुल बच्चों का ही विचार सागर मंथन चलेगा।
मेले वा प्रदर्शनी की ओपानिंग किससे करायें! क्या-क्या प्वाइंट
सुनानी चाहिए। शंकराचार्य आदि अगर तुम्हारी इस बात को समझ गये
तो कहेंगे यहाँ की नॉलेज तो बहुत ऊंची है। इन्हों को पढ़ाने
वाला कोई तीखा दिखता है। भगवान पढ़ाते हैं,
वह
तो मानेंगे नहीं। तो प्रदर्शनी आदि का उद्घाटन करने जो आते हैं
उनको क्या-क्या समझाते हैं,
वह
समाचार सबको बताना चाहिए या तो टेप में शॉर्ट में भरना चाहिए।
जैसे गंगे ने शंकराचार्य को समझाया,
ऐसे-ऐसे सर्विसएबुल बच्चे तो बाप की दिल पर चढ़ते हैं। यूँ तो
स्थूल सर्विस भी है परन्तु बाबा का अटेन्शन रूहानी सर्विस पर
जायेगा,
जो
बहुतों का कल्याण करते हैं। भल कल्याण तो हर बात में हैं।
ब्रह्माभोजन बनाने में भी कल्याण है,
अगर
योगयुक्त हो बनायें। ऐसा योगयुक्त भोजन बनाने वाला हो तो
भण्डारे में बड़ी शान्ति हो। याद की यात्रा पर रहे। कोई भी आये
तो झट उनको समझाये। बाबा समझ सकते हैं-सर्विसएबुल बच्चे कौन
हैं,
जो
दूसरों को भी समझा सकते हैं उन्हों को ही अक्सर करके सर्विस पर
बुलाते भी हैं। तो सर्विस करने वाले ही बाप की दिल पर चढ़े रहते
हैं। बाबा का अटेन्शन सारा सर्विसएबुल बच्चों तरफ ही जाता है।
कई तो सम्मुख मुरली सुनते हुए भी कुछ समझ नहीं सकते। धारणा
नहीं होती क्योंकि आधाकल्प की देह-अभिमान की बीमारी बड़ी कड़ी
है। उसको मिटाने के लिए बहुत थोड़े हैं जो अच्छी रीति पुरूषार्थ
करते हैं। बहुतों से देही-अभिमानी बनने की मेहनत पहुँचती नहीं
है। बाबा समझाते हैं-बच्चे,
देही-अभिमानी बनना बड़ी मेहनत है। भल कोई चार्ट भी भेज देते हैं
परन्तु पूरा नहीं। फिर भी कुछ अटेन्शन रहता है। देही-अभिमानी
बनने का अटेन्शन बहुतों का कम रहता है। देही-अभिमानी बड़े शीतल
होंगे। वह इतना जास्ती बातचीत नहीं करेंगे। उन्हों का बाप से
लव ऐसा होगा जो बात मत पूछो। आत्मा को इतनी खुशी होनी चाहिए जो
कभी कोई मनुष्य को न हो। इन लक्ष्मी-नारायण को तो ज्ञान है
नहीं। ज्ञान तुम बच्चों को ही है,
जिनको भगवान पढ़ाते हैं। भगवान हमको पढ़ाते हैं,
यह
नशा भी तुम्हारे में कोई एक-दो को रहता है। वह नशा हो तो बाप
की याद में रहें,
जिसको देही-अभिमानी कहा जाता है। परन्तु वह नशा नहीं रहता है।
याद में रहने वाले की चलन बड़ी अच्छी रॉयल होगी। हम भगवान के
बच्चे हैं इसलिए गायन भी है-अतीन्द्रिय सुख गोप-गोपियों से
पूछो,
जो
देही-अभिमानी हो बाप को याद करते हैं। याद नहीं करते हैं इसलिए
शिवबाबा के दिल पर नहीं चढ़ते हैं। शिवबाबा के दिल पर नहीं तो
दादा के भी दिल पर नहीं चढ़ सकते। उनके दिल पर होंगे तो जरूर
इनके दिल पर भी होंगे। बाप हर एक को जानते हैं। बच्चे खुद भी
समझते हैं कि हम क्या सर्विस करते हैं। सर्विस का शौक बच्चों
में बहुत होना चाहिए। कोई को सेन्टर जमाने का भी शौक रहता है।
कोई को चित्र बनाने का शौक रहता है। बाप भी कहते हैं-मुझे
ज्ञानी तू आत्मा बच्चे प्यारे लगते हैं,
जो
बाप की याद में भी रहते हैं और सर्विस करने के लिए भी फथकते
रहते हैं। कोई तो बिल्कुल ही सर्विस नहीं करते हैं,
बाप
का कहना भी नहीं मानते हैं। बाप तो जानते हैं ना-कहाँ किसको
सर्विस करनी चाहिए। परन्तु देह-अभिमान के कारण अपनी मत पर चलते
हैं तो वह दिल पर नहीं चढ़ते हैं। अज्ञान काल में भी कोई बच्चा
बदचलन वाला होता है तो बाप की दिल पर नहीं रहता है। उनको कपूत
समझते हैं। संगदोष में खराब हो पड़ते हैं। यहाँ भी जो सर्विस
करते हैं वही बाप को प्यारे लगते हैं। जो सर्विस नहीं करते
उनको बाप प्यार थोड़ेही करेंगे। समझते हैं तकदीर अनुसार ही
पढ़ेंगे,
फिर
भी प्यार किस पर रहेगा?
वह
तो कायदा है ना। अच्छे बच्चों को बहुत प्यार से बुलायेंगे।
कहेंगे तुम बहुत सुखदाई हो,
तुम
पिता स्नेही हो। जो बाप को याद ही नहीं करते उनको पिता स्नेही
थोड़ेही कहेंगे। दादा स्नेही नहीं बनना है,
स्नेही बनना है बाप से। जो बाप का स्नेही होगा उनका बोलचाल बड़ा
मीठा सुन्दर रहेगा। विवेक ऐसा कहता है-भल टाइम है परन्तु शरीर
पर कोई भरोसा थोड़ेही है। बैठे-बैठे एक्सीडेंट हो जाते हैं। कोई
हार्टफेल हो जाते हैं। किसको रोग लग जाता है,
मौत
तो अचानक हो जाता है ना इसलिए श्वांस पर तो भरोसा नहीं है।
नैचुरल कैलेमिटीज की भी अभी प्रैक्टिस हो रही है। बिगर टाइम
बरसात पड़ने से भी नुकसान कर देती है। यह दुनिया ही दु:ख देने
वाली है। बाप भी ऐसे समय पर आते हैं जबकि महान दु:ख है,
रक्त
की नदियां भी बहनी हैं। कोशिश करना चाहिए-हम अपना पुरूषार्थ कर
21 जन्मों का कल्याण तो कर लेवें। बहुतों में अपना कल्याण करने
का फुरना भी दिखाई नहीं पड़ता है।
बाबा
यहाँ बैठ मुरली चलाते हैं तो भी बुद्धि सर्विसएबुल बच्चों तरफ
रहती है। अब शंकराचार्य को प्रदर्शनी में बुलाया है,
नहीं
तो यह लोग ऐसे कहाँ जाते नहीं हैं। बड़े घमण्ड से रहते हैं,
तो
उन्हों को मान भी देना पड़े। ऊपर सिंहासन पर बिठाना पड़े। ऐसे
नहीं,
साथ
में बैठ सकते हैं। नहीं,
रिगार्ड उन्हों को बहुत चाहिए। निर्माण हो तो फिर चांदी आदि का
सिंहासन भी छोड़ दें। बाप देखो कैसे साधारण रहते हैं। कोई भी
जानते नहीं। तुम बच्चों में भी कोई विरले जानते हैं। कितना
निरहंकारी बाप है। यह तो बाप और बच्चे का सम्बन्ध है ना। जैसे
लौकिक बाप बच्चों के साथ रहते,
खाते
खिलाते हैं,
यह
है बेहद का बाप। सन्यासियों आदि को बाप का प्यार नहीं मिलता
है। तुम बच्चे जानते हो कल्प-कल्प हमको बेहद के बाप का प्यार
मिलता है। बाप गुल-गुल (फूल) बनाने की बहुत मेहनत करते हैं।
परन्तु ड्रामा अनुसार सब तो गुल-गुल बनते नहीं हैं। आज बहुत
अच्छे-अच्छे कल विकारी हो जाते हैं। बाप कहेंगे तकदीर में नहीं
है तो और क्या करेंगे। बहुतों की गंदी चलन हो पड़ती है। आज्ञा
का उल्लंघन करते हैं। ईश्वर की मत पर भी नहीं चलेंगे तो उनका
क्या हाल होगा! ऊंच ते ऊंच बाप है,
और
तो कोई है नहीं। फिर देवताओं के चित्रों में देखेंगे तो यह
लक्ष्मी-नारायण ही ऊंच ते ऊंच हैं। परन्तु मनुष्य यह भी नहीं
जानते कि इन्हों को ऐसा किसने बनाया। बाप तुम बच्चों को रचता
और रचना की नॉलेज अच्छी रीति बैठ समझाते हैं। तुमको तो अपना
शान्तिधाम,
सुखधाम ही याद आता है। सर्विस करने वालों के नाम स्मृति में
आते हैं। जरूर जो बाप के आज्ञाकारी बच्चे होंगे,
उनके
तरफ ही दिल जायेगी। बेहद का बाप एक ही बार आते हैं। वह लौकिक
बाप तो जन्म- जन्मान्तर मिलता है। सतयुग में भी मिलता है।
परन्तु वहाँ यह बाप नहीं मिलता है। अभी की पढ़ाई से तुम पद पाते
हो। यह भी तुम बच्चे ही जानते हो कि बाप से हम नई दुनिया के
लिए पढ़ रहे हैं। यह बुद्धि में याद रहना चाहिए। है बहुत सहज।
समझो बाबा खेल रहे हैं,
अनायास कोई आ जाते हैं तो बाबा झट वहाँ ही उनको नॉलेज देने लग
पड़ेंगे। बेहद के बाप को जानते हो?
बाप
आये हैं पुरानी दुनिया को नई बनाने। राजयोग सिखलाते हैं।
भारतवासियों को ही सिखलाना है। भारत ही स्वर्ग था। जहाँ इन
देवी-देवताओं का राज्य था। अभी तो नर्क है। नर्क से फिर स्वर्ग
बाप ही बनायेंगे। ऐसी-ऐसी मुख्य बातें याद कर कोई भी आये तो
उनको बैठ समझाओ। तो कितना खुश हो जाए। सिर्फ बोलो बाप आया हुआ
है। यह वही महाभारत लड़ाई है जो गीता में गाई हुई है। गीता का
भगवान आया था,
गीता
सुनाई थी। किसलिए?
मनुष्य को देवता बनाने। बाप सिर्फ कहते हैं मुझ बाप को और
वर्से को याद करो। यह दु:खधाम है। इतना बुद्धि में याद रहे तो
भी खुशी रहे। हम आत्मा बाबा के साथ जाने वाली हैं शान्तिधाम।
फिर वहाँ से पार्ट बजाने आयेंगे पहले-पहले सुखधाम में। जैसे
कॉलेज में पढ़ते हैं तो समझते हैं हम यह-यह पढ़ते हैं फिर यह
बनेंगे। बैरिस्टर बनेंगे वा पुलिस सुपरिटेन्डेन्ट बनेंगे,
इतना
पैसा कमायेंगे। खुशी का पारा चढ़ा रहेगा। तुम बच्चों को भी यह
खुशी रहनी चाहिए। हम बेहद के बाप से यह वर्सा पाते हैं फिर हम
स्वर्ग में अपने महल बनायेंगे। सारा दिन बुद्धि में यह चिंतन
रहे तो खुशी भी हो। अपना और दूसरों का भी कल्याण करें। जिन
बच्चों के पास ज्ञान धन है उनका फर्ज है दान करना। अगर धन है,
दान
नहीं करते हैं तो उन्हें मनहूस कहा जाता है। उनके पास धन होते
भी जैसेकि है ही नहीं। धन हो तो दान जरूर करें। अच्छे-अच्छे
महारथी बच्चे जो हैं वह सदैव बाबा की दिल पर चढ़े रहते हैं।
कोई-कोई के लिए ख्याल रहता है-यह शायद टूट पड़े। सरकमस्टांश ऐसे
हैं। देह का अहंकार बहुत चढ़ा हुआ है। कोई भी समय हाथ छोड़ दें
और जाकर अपने घर में रहे। भल मुरली बहुत अच्छी चलाते हैं
परन्तु देह-अभिमान बहुत है,
थोड़ा
भी बाबा सावधानी देंगे तो झट टूट पड़ेंगे। नहीं तो गायन है -
प्यार करो चाहे ठुकराओ....... यहाँ बाबा राइट बात करते हैं तो
भी गुस्सा चढ़ जाता है। ऐसे-ऐसे बच्चे भी हैं,
कोई
तो अन्दर में बहुत शुक्रिया मानते हैं,
कोई
अन्दर जल मरते हैं। माया का देह-अभिमान बहुत है। कई ऐसे भी
बच्चे हैं जो मुरली सुनते ही नहीं हैं और कोई तो मुरली बिगर रह
नहीं सकते। मुरली नहीं पढ़ते हैं तो अपना ही हठ है,
हमारे में तो ज्ञान बहुत है और है कुछ भी नहीं।
तो
जहाँ शंकराचार्य आदि प्रदर्शनी में आते हैं,
सर्विस अच्छी होती है तो वह समाचार सबको भेजना चाहिए तो सबको
मालूम पड़े कैसे सर्विस हुई तो वह भी सीखेंगे। ऐसी-ऐसी सर्विस
के लिए जिनको ख्यालात आते हैं उनको ही बाबा सर्विसएबुल
समझेंगे। सर्विस में कभी थकना नहीं चाहिए। यह तो बहुतों का
कल्याण करना है ना। बाबा को तो यही ओना रहता है,
सबको
यह नॉलेज मिले। बच्चों की भी उन्नति हो। रोज मुरली में समझाते
रहते हैं - यह रूहानी सर्विस है मुख्य। सुनना और सुनाना है।
शौक होना चाहिए। बैज लेकर रोज मन्दिरों में जाकर समझाओ-यह
लक्ष्मी-नारायण कैसे बनें?
फिर
कहाँ गये,
कैसे
राज्य-भाग्य पाया?
मन्दिर के दर पर जाकर बैठो। कोई भी आये बोलो,
यह
लक्ष्मी-नारायण कौन हैं,
कब
इन्हों का भारत में राज्य था?
हनूमान भी जुत्तियों में जाकर बैठता था ना। उसका भी रहस्य है
ना। तरस पड़ता है। सर्विस की युक्तियाँ बाबा बहुत बतलाते हैं,
परन्तु अमल में बहुत कोई मुश्किल लाते हैं। सर्विस बहुत है।
अंधों की लाठी बनना है। जो सर्विस नहीं करते,
बुद्धि साफ नहीं है तो फिर धारणा नहीं होती है। नहीं तो सर्विस
बहुत सहज है। तुम यह ज्ञान रत्नों का दान करते हो। कोई साहूकार
आये तो बोलो हम आपको यह सौगात देते हैं। इनका अर्थ भी आपको
समझाते हैं। इन बैजेज का बाबा को बहुत कदर है। और किसको इतना
कदर नहीं है। इनमें बहुत अच्छा ज्ञान भरा हुआ है। परन्तु किसकी
तकदीर में नहीं है तो बाबा भी क्या कर सकते हैं। बाप को और
पढ़ाई को छोड़ना-यह तो बड़े ते बड़ा आपघात है। बाप का बनकर और फिर
फारकती देना-इस जैसा महान पाप कोई होता नहीं। उन जैसा कमबख्त
कोई होता नहीं। बच्चों को श्रीमत पर चलना चाहिए ना। तुमको
बुद्धि में है हम विश्व के मालिक बनने वाले हैं,
कम
बात थोड़ेही है। याद करेंगे तो खुशी भी रहेगी। याद न रहने से
पाप भस्म नहीं होंगे। एडाप्ट हुए तो खुशी का पारा चढ़ना चाहिए।
परन्तु माया बहुत विघ्न डालती है। कच्चों को गिरा देती है। जो
बाप की श्रीमत ही नहीं लेते तो वह क्या पद पायेंगे। थोड़ी मत ली
तो फिर ऐसा ही हल्का पद पायेंगे। अच्छी रीति मत लेंगे तो ऊंच
पद पायेंगे। यह बेहद की राजधानी स्थापन हो रही है। इसमें खर्चे
आदि की भी कोई बात नहीं है। कुमारियाँ आती हैं,
सीखकर बहुतों को आपसमान बनाती हैं,
इसमें फी आदि की बात ही नहीं। बाप कहते हैं तुमको स्वर्ग की
बादशाही देता हूँ। मैं स्वर्ग में भी नहीं आता हूँ। शिवबाबा तो
दाता है ना। उनको खर्चा क्या देंगे। इसने सब कुछ उनको दे दिया,
वारिस बना दिया। एवज में देखो राजाई मिलती है ना। यह पहला-
पहला मिसाल है। सारे विश्व पर स्वर्ग की स्थापना होती है।
खर्चा पाई भी नहीं। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के
लिए मुख्य सार :-
1)
पिता
स्नेही बनने के लिए बहुत-बहुत सुखदाई बनना है। अपना बोल चाल
बहुत मीठा रॉयल रखना है। सर्विसएबुल बनना है। निरहंकारी बन
सेवा करनी है।
2)
पढ़ाई और
बाप को छोड़कर कभी आपघाती महापापी नहीं बनना है। मुख्य है
रूहानी सर्विस,
इस सर्विस में कभी थकना नहीं है। ज्ञान रत्नों का दान करना है,
मनहूस नहीं बनना है।
वरदान:-
निमित्तपन की स्मृति से माया का गेट बन्द करने वाले डबल लाइट
भव! 
जो
सदा स्वयं को निमित्त समझकर चलते हैं उन्हें डबल लाइट स्थिति
का स्वत:अनुभव होता है। करनकरावनहार करा रहे हैं,
मैं
निमित्त हूँ-इसी स्मृति से सफलता होती है। मैं पन आया अर्थात्
माया का गेट खुला,
निमित्त समझा अर्थात् माया का गेट बन्द हुआ। तो निमित्त समझने
से मायाजीत भी बन जाते और डबल लाइट भी बन जाते। साथ-साथ सफलता
भी अवश्य मिलती है। यही स्मृति नम्बरवन लेने का आधार बन जाती
है।
स्लोगन:-
त्रिकालदर्शी बनकर हर कर्म करो तो सफलता सहज मिलती रहेगी। 