25-08-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - तुम्हारा अनादि नाता है भाई-भाई का, तुम साकार में भाई-बहिन हो इसलिए तुम्हारी कभी क्रिमिनल दृष्टि नहीं जा सकती”   

                            
प्रश्न:-   
विजयी अष्ट रत्न कौन बनते हैं? उनकी वैल्यु क्या है?


उत्तर:-
जिनकी मन्सा में क्रिमिनल ख्यालात नहीं रहते, पूरी सिविल आई हो, वही अष्ट रत्न बनते हैं अर्थात् कर्मातीत अवस्था को पाते हैं । उनकी इतनी अधिक वैल्यु होती जो किसी पर कभी ग्रहचारी बैठती है तो उसे अष्ट रत्न की अंगूठी पहनाते हैं । समझते हैं इससे ग्रहचारी उतर जायेगी । अष्ट रत्न बनने वाले दूरादेशी बुद्धि होने कारण भाई-भाई की स्मृति में निरन्तर रहते हैं ।

 

ओम् शान्ति |

रूहानी बच्चे जानते हैं । उन्हों का नाम क्या है? ब्राह्मण । ब्रह्माकुमार और कुमारियाँ ढेर हैं । इससे सिद्ध होता है यह अडॉप्टेड चिल्ड्रेन हैं क्योंकि एक ही बाप के बच्चे हैं । तो जरूर अडॉप्टेड हैं । तुम ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ ही अडॉप्टेड चिल्ड्रेन हो । बहुत चिल्ड्रेन हैं । एक होते हैं प्रजापिता ब्रह्मा के और एक होते हैं परमपिता परमात्मा शिव के, तो जरूर उन्हीं का आपस में कनेक्शन है क्योंकि उनके हैं रूहानी बच्चे और इनके हैं जिस्मानी बच्चे । अगर उनके हैं तो जैसे भाई-भाई हैं । प्रजापिता ब्रह्मा के साकार भाई-बहन हो जाते हैं । भाई-बहन का क्रिमिनल नाता कभी होता नहीं । तुम्हारे लिए भी आवाज होता है ना कि यह सबको भाई-बहन बनाती हैं, जिससे शुद्ध नाता रहे । क्रिमिनल दृष्टि न जाये । सिर्फ इस जन्म के लिए यह दृष्टि पड़ जाने से फिर भविष्य कभी क्रिमिनल दृष्टि नहीं पड़ेगी । ऐसे नहीं कि वहाँ बहन-भाई समझते हैं । वहाँ तो जैसे महाराजा-महारानी होते हैं, वैसे ही होते हैं । अब तुम बच्चे जानते हो हम पुरूषोत्तम संगमयुग पर हैं और हम सब भाई-बहन हैं । प्रजापिता ब्रह्मा नाम तो है ना । प्रजापिता ब्रह्मा कब हुआ था-यह दुनिया को पता नहीं है । तुम यहाँ बैठे हो, जानते हो हम पुरूषोत्तम संगमयुगी बी.के. हैं । अभी इसे धर्म नहीं कहेंगे, यह कुल की स्थापना हो रही है । तुम ब्राह्मण कुल के हो । तुम कह सकते हो हम ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ जरूर एक प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान हैं । यह नई बात है ना । तुम कह सकते हो हम बी.के. हैं । यूं तो वास्तव में हम सब ब्रदर्स हैं । एक बाप के बच्चे हैं । उनके लिए अडॉप्टेड नहीं कहेंगे । हम आत्माएं उनकी सन्तान तो अनादि हैं । वह परमपिता परमात्मा सुप्रीम सोल है । और किसको ‘सुप्रीम’ अक्षर नहीं कहेंगे । सुप्रीम कहा जाता है सम्पूर्ण पवित्र को । ऐसे नहीं कहेंगे सबमें प्योरिटी है । प्योरिटी सीखते हैं इस संगम पर । तुम तो पुरूषोत्तम संगमयुग के निवासी हो । जैसे कलियुग निवासी, सतयुग के निवासी कहा जाता है । सतयुग, कलियुग को तो बहुत ही जानते हैं । अगर दूरादेशी बुद्धि हो तो समझ सकेंगे । कलियुग और सतयुग के बीच को कहा जाता है संगमयुग । शास्त्रो में फिर युगे-युगे कह दिया है । बाप कहते हैं मैं युगे-युगे नहीं आता हूँ । तुम्हारी बुद्धि में यह होना चाहिए कि हम पुरूषोत्तम संगमयुगी ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ है । न हम सतयुग में हैं, न कलियुग में हैं । संगम के बाद सतयुग आना है जरूर । 

तुम अभी सतयुग में जाने के लिए पुरूषार्थ कर रहे हो । वहाँ पवित्रता बिगर कोई जा नहीं सकते । इस समय तुम पवित्र बनने के लिए पुरूषार्थी हो । सब तो पवित्र नहीं हैं । कई पतित भी होते हैं । चलते-चलते गिर पड़ते हैं, फिर छिपकर आए अमृत पीते हैं। वास्तव में जो अमृत छोड़ विष खाते हैं, उनको कुछ समय आने नहीं देते । परन्तु यह भी गायन है-जब अमृत बांटा था तो विकारी असुर छिपकर आए बैठते थे । कहते हैं इन्द्र सभा में ऐसे अपवित्र आकर बैठते तो उन्हें श्राप लग जाता है । एक कहानी भी बताते हैं कि एक परी एक विकारी को ले आई, फिर उनका क्या हाल हुआ? विकारी तो जरूर गिर पड़ेंगे । यह समझ की बात है । विकारी चढ़ न सकें । कहते हैं वह जाकर पत्थर बना । अब ऐसे नहीं कि मनुष्य पत्थर वा झाड़ बनते हैं । पत्थरबुद्धि बन गये हैं । यहाँ आते हैं पारसबुद्धि बनने के लिए परन्तु छिपकर विष पीते हैं तो सिद्ध होता है पत्थरबुद्धि ही रहेंगे । यह सामने समझाया जाता है, शास्त्र में तो ऐसे ही बैठ लिखा है । नाम रखा है इन्द्र सभा । जहाँ पुखराज परी, किस्म- किस्म की परियाँ दिखाते हैं । रत्नो में भी नम्बरवार होते हैं ना । कोई बहुत अच्छा रत्न, कोई कम । कोई की वैल्यु कम, कोई की बहुत होती है । 9 रत्न की अंगूठी भी बहुत बनाते हैं । एडवरटाइज करते हैं । नाम तो रत्न ही है । यहाँ बैठे हैं ना । परन्तु उनमें भी कहेंगे यह हीरा है, यह पन्ना है, यह माणिक, पुखराज भी बैठे हैं । रात-दिन का फर्क है । उनकी वैल्यु में भी बहुत फर्क होता है । वैसे ही फिर फूलों से भेंट की जाती है । उनमे भी वैराइटी है । बच्चे जानते हैं कौन-कौन फूल हैं । ब्राह्मणियाँ पण्डे बनकर आती हैं, वह अच्छा फूल होता है । कोई तो फिर स्टूडेंट भी जास्ती तीखे होते हैं, समझाने करने में । बाबा ब्राह्मणी को फूल न देकर उनको देंगे । सिखलाने वाले से भी उनमें गुण बड़े अच्छे होते हैं । कोई भी विकार नहीं होता । कोई कोई में अवगुण होते हैं-क्रोध का भूत, लोभ का भूत । तो बाप जानते हैं यह फेवरेट (मनपसन्द) पण्डा है, यह सेकेण्ड नम्बर है । कोई-कोई पण्डा इतना फेवरेट नहीं होता, जितना जिज्ञासू, जिनको ले आते हैं वह फेवरेट होते हैं । ऐसे भी होते हैं-सिखलाने वाले माया के चम्बे में आकर विकार में चले जाते हैं । ऐसे हैं, बहुतों को दुबन से निकालते और खुद फँस मरते हैं । माया बड़ी जबरदस्त है । बच्चे भी समझते हैं, क्रिमिनल आई बहुत धोखा देती है । जब तक क्रिमिनल आई है तो भाई-बहन का जो डायरेक्शन मिला है वह भी नहीं चल सकता । सिविल आई बदल कर क्रिमिनल आई बन जाती है । जब क्रिमिनल आई टूट कर पक्की सिविल आई बन जाती है तो उसको कहा जाता है कर्मातीत अवस्था । इतनी अपनी जाँच करनी है । इकट्ठे रहते हुए विकार की दृष्टि न जाये । यहाँ तुम भाई-बहन बनते हो, ज्ञान तलवार बीच में हैं । हमको तो पवित्र रहने की पक्की प्रतिज्ञा करनी है । परन्तु लिखते हैं बाबा कशिश होती है, वह अवस्था अज़ुन पक्की नहीं हुई है । पुरूषार्थ करते रहते हैं-यह भी न हो । एकदम सिविल आई जब बन जाये तब ही विजय पा सकते हैं । अवस्था ऐसी चाहिए जो कोई विकारी संकल्प भी न उठे, इसको ही कर्मातीत अवस्था कहा जाता है । मंज़िल है । 

कितनी वन्डरफुल माला बनती है । 8 रत्न की भी माला होती है । बच्चे तो ढेर के ढेर हैं । सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी घराना यहाँ स्थापन होता है । उन सबको मिलाकर फुल पास, स्कॉलरशिप लेने वाले 8 रत्न निकलते हैं । बीच में फिर उन्हों को रत्न बनाने वाला हीरा ‘शिव’ डालते हैं, जिसने ऐसे रत्न बनाये । ग्रहचारी बैठती है तो भी 8 रत्न की अंगूठी पहनते हैं । इस समय भारत पर राहू की ग्रहचारी है । पहले थी वृक्षपति की अर्थात् बृहस्पति की दशा । तुम सतयुगी देवता थे, विश्व पर राज्य करते थे । फिर राहू की दशा बैठ गई । अभी तुम जानते हो हमारे ऊपर बृहस्पति की दशा थी, नाम है वृक्षपति । शार्ट में बृहस्पति कहा जाता है । हमारे पर बरोबर बृहस्पति की दशा थी, जबकि हम विश्व के मालिक थे, अभी राहू की दशा बैठी है, जो हम कौड़ी मिसल बनें हैं । यह तो हर एक समझ सकते हैं । पूछने की भी बात नहीं है । गुरुओं आदि से पूछते हैं - इस इम्तिहान में पास होंगे? यहाँ भी बाबा से पूछते हैं - हम पास होंगे? कहता हूँ अगर ऐसे पुरूषार्थ से चलते रहे तो क्यों नहीं पास होंगे । परन्तु माया बड़ी प्रबल है । तूफान में ला देगी । इस समय तो ठीक है, आगे चल तूफान बहुत आये तो? अभी तुम युद्ध के मैदान में हो, फिर हम गारंटी कैसे कर सकते हैं? आगे माला बनाते थे, जिनको 2-3 नम्बर में रखते थे, वह हैं नहीं । एकदम कांटा बन गये । तो बाप ने कहा-ब्राह्मणों की माला बन नहीं सकती है । युद्ध के मैदान में हैं ना । आज ब्राह्मण, कल शूद्र बन जायेंगे, विकार में गया, गोया शूद्र बना । राहू की दशा बैठ गई । बृहस्पति की दशा के लिए पुरूषार्थ करते थे, वृक्षपति पढ़ाते थे । चलते-चलते माया का थप्पड़ लगा, फिर राहू की दशा बैठ गई । ट्रेटर बन पड़ते हैं । ऐसे सब जगह होते हैं । एक राजाई से निकल दूसरी राजाई में जाकर शरण लेते हैं । फिर वह लोग भी देखते हैं यह हमारे काम का है तो शरण दे देते हैं । ऐसे बहुत ट्रेटर बनते हैं एरोप्लेन सहित जाकर दूसरी राजाई में बैठते हैं । फिर वो लोग एरोप्लेन वापिस कर लेते हैं, उनको शरण दे देते हैं । एरोप्लेन को थोड़े ही शरण लेते, वह तो उनकी प्रापर्टी है ना । उनकी चीज़ उनको वापिस कर देते हैं । बाकी मनुष्य, मनुष्य को शरण देते हैं । 

अभी तुम बच्चे शरण आये हो बाप के पास । कहते हो हमारी लाज रखो । द्रौपदी ने पुकारा कि हमको यह नंगन करते हैं, पतित होने से बचाओ । सतयुग में कभी नंगन नहीं होते । उनको तो कहते ही हैं समूर्ण निर्विकारी । छोटे बच्चे तो होते ही हैं निर्विकारी । यह गृहस्थ व्यवहार में रहते सम्पूर्ण निर्विकारी रहते हैं । भल स्त्री-पुरूष साथ रहते हैं तो भी निर्विकारी रहते हैं, इसलिए कहते हम नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बन रहे हैं । वह है निर्विकारी दुनिया, वहाँ रावण नहीं । उसको कहा जाता है राम राज्य । राम शिवबाबा को कहा जाता है । राम नाम जपने का अर्थ ही है बाप को याद करना । राम-राम जब कहते हैं तो बुद्धि में निराकार ही रहता है । राम-राम कहते हैं, सीता को छोड़ देते हैं । वैसे कृष्ण का नाम लेते हैं, राधे को छोड़ देते हैं । यहाँ तो बाप है ही एक, वह कहते हैं मामेकम् याद करो । कृष्ण को पतित-पावन नहीं कहो । छोटेपन में राधे-कृष्ण भाई-बहन भी नहीं थे । अलग-अलग राजाई के थे । बच्चे तो होते ही शुद्ध हैं । बाबा भी कहते हैं-बच्चे तो फूल हैं, उनमें विकार की दृष्टि नहीं होती । जब बड़े होते हैं तब दृष्टि जाती है इसलिए बालक और महात्मा को समान कहते हैं । बल्कि बच्चा महात्मा से भी ऊंच है । महात्मा को फिर भी मालूम है हम भ्रष्टाचार से पैदा हुआ हूँ । छोटे बच्चे को यह मालूम नहीं रहता है । बच्चा बाप का बना और वर्सा तो है ही । तुम विश्व की राजधानी के मालिक बनते हो । कल की बात है तुम विश्व के मालिक थे । अब फिर तुम बनते हो । इतनी प्राप्ति होती है । तो स्त्री-पुरूष बहन-भाई बन पवित्र रहें तो क्या बड़ी बात है । कुछ तो मेहनत भी चाहिए ना । हाँ, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार अब ब्रहस्पति की दशा में जाते हो । स्वर्ग में तो जाते हैं फिर पढ़ाई से कोई ऊंच पद पाते हैं, कोई मध्यम, कोई फूल बनते, कोई क्या । बगीचा है ना । फिर पद भी ऐसे लेंगे । पुरूषार्थ खूब करना है, ऐसा फूल बनने के लिए । इसलिए बाबा फूल ले आते हैं बच्चों को दिखाने । बगीचे में तो अनेक प्रकार के फूल होते हैं । सतयुग है फूलों का बगीचा और यह है काँटों का जंगल । अभी तुम कांटे से फूल बनने का पुरूषार्थ कर रहे हो । एक-दो को काँटा मारने से बचने का पुरूषार्थ कर रहे हो, जो जितना पुरूषार्थ करेंगे उतना जीत पायेंगे । मूल बात है काम पर जीत पाने से ही जगतजीत बनेंगे । यह तो बच्चे कर रहे । जवानों को बहुत मेहनत करनी पड़ती है, बुढ़ों को कम । वानप्रस्थ अवस्था वालों को और कम । बच्चों को बहुत कम । 

तुम जानते हो हमको विश्व के बादशाही की प्रापर्टी मिलती है, उसके लिए एक जन्म पवित्र रहे तो क्या हर्जा । उनको कहा जाता है बाल ब्रह्मचारी । अन्त तक पवित्र रहते हैं । जो पवित्र बने हैं, उनको बाप की कशिश होती है, बच्चों को छोटेपन से ही ज्ञान मिलता जाए तो बच सकते हैं । छोटे बच्चे अबोध होते हैं परन्तु फिर बाहर स्कूल आदि में संग का रंग लग जाता है । संग तारे, कुसंग डुबोये । बाप कहते हैं हम तुमको पार ले जाते हैं शिवालय में । सतयुग है बिल्कुल नई दुनिया । बहुत थोड़े मनुष्य रहते हैं फिर वृद्धि को पाते हैं । वहाँ तो बहुत थोड़े देवतायें रहते हैं | तो नई दुनिया में जाने का पुरूषार्थ करना है । अच्छा

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. बाप का मन पसन्द बनने के लिए गुणवान बनना है । अच्छे-अच्छे गुण धारण कर फूल बनना है । अवगुण निकाल देने हैं । किसी को भी कांटा नहीं लगाना है । 

2. फुल पास होने वा स्कॉलरशिप लेने के लिए ऐसी अवस्था बनानी है जो कुछ भी याद न आये, पूरी सिविल आई बन जाये । सदा बृहस्पति की दशा बनी रहे ।

 

वरदान:-

गम्भीरता के गुण द्वारा फुल मार्क्स जमा करने वाले गम्भीरता की देवी वा देवता भव !    

वर्तमान समय गम्भीरता के गुण की बहुत-बहुत आवश्यकता है क्योंकि बोलने की आदत बहुत हो गई है, जो आता है वो बोल देते हो । किसी ने कोई अच्छा काम किया और बोल दिया तो आधा खत्म हो जाता है । आधा ही जमा होता है और जो गम्भीर होता है उसका फुल जमा होता है इसलिए गम्भीरता की देवी वा देवता बनो और अपनी फुल मार्क्स इक्ट्ठी करो । वर्णन करने से मार्क्स कम हो जायेगी ।

 

स्लोगन:- 

बिन्दु रूप में स्थित रहो तो समस्याओं को सेकण्ड में बिन्दु लगा सकेंगे ।   

 

ओम् शान्ति |