14-02-15      प्रातः मुरली      ओम् शान्ति      “बापदादा”      मधुबन
 


मीठे बच्चे - तुम्हें भगवान पढ़ाते हैं, तुम्हारे पास हैं ज्ञान रत्न, इन्हीं रत्नों का धंधा तुम्हें करना है, तुम यहां ज्ञान सीखते हो, भक्ति नहीं |”   

प्रश्न:-   
मनुष्य ड्रामा की किस वन्डरफुल नूँध को भगवान की लीला समझ उसकी बड़ाई करते हैं?

उत्तर:-

जो जिसमें भावना रखते, उन्हें उसका साक्षात्कार हो जाता है तो समझते हैं यह भगवान ने साक्षात्कार कराया लेकिन होता तो सब ड्रामा अनुसार है । एक ओर भगवान की बड़ाई करते, दूसरी ओर सर्वव्यापी कह ग्लानि कर देते हैं ।

ओम् शान्ति |

भगवानुवाच - बच्चों को यह तो समझाया हुआ है कि मनुष्य को वा देवता को भगवान नहीं कहा जाता । गाते भी हैं ब्रह्मा देवताए नम:, विष्णु देवताए नम:, शंकर देवताए नम: फिर कहा जाता है शिव परमात्माए नम: । यह भी तुम जानते हो शिव को अपना शरीर नहीं है । मूलवतन में शिवबाबा और सालिग्राम रहते हैं । बच्चे जानते हैं कि अभी हम आत्माओं को बाप पढ़ा रहे हैं और जो भी सतसंग हैं वास्तव में वह कोई सत का संग है नहीं । बाप कहते हैं वह तो माया का संग है । वहाँ ऐसे कोई नहीं समझेंगे कि हमको भगवान पढ़ाते हैं । गीता भी सुनेंगे तो कृष्ण भगवानुवाच समझेंगे । दिन- प्रतिदिन गीता का अभ्यास कम होता जाता है क्योंकि अपने धर्म को ही नहीं जानते । कृष्ण के साथ तो सभी का प्यार है, कृष्ण को ही झुलाते हैं । अब तुम समझते हो हम झुलायें किसको? बच्चे को झुलाया जाता है, बाप को तो झुला न सकें । तुम शिवबाबा को झुलायेंगे? वह बालक तो बनते नहीं, पुनर्जन्म में आते नहीं । वह तो बिन्दु हैं, उनको क्या झुलायेंगे । कृष्ण का बहुतों को साक्षात्कार होता है । कृष्ण के मुख में तो सारी विश्व है क्योंकि विश्व का मालिक बनते हैं । तो विश्व रूपी माखन है । वो जो आपस में लड़ते हैं वह भी सृष्टि रूपी माखन के लिए लड़ते हैं । समझते हैं हम जीत पा लें । कृष्ण के मुख में माखन का गोला दिखाते हैं, यह भी अनेक प्रकार के साक्षात्कार होते हैं । परन्तु अर्थ कुछ भी नहीं समझते हैं । यहाँ तुमको साक्षात्कार का अर्थ समझाया जाता है । मनुष्य समझते हैं हमको भगवान साक्षात्कार कराते हैं । यह भी बाप समझाते हैं-जिसको याद करते हैं, समझो कोई कृष्ण की नौधा भक्ति करते हैं तो अल्पकाल के लिए उनकी मनोकामना पूरी होती है । यह भी ड्रामा में नूँध हैं । ऐसे नहीं कहेंगे कि भगवान ने साक्षात्कार कराया । जो जिस भावना से जिसकी पूजा करते हैं उनको वह साक्षात्कार होता है । यह ड्रामा में नूँध है । यह तो भगवान की बड़ाई की है कि वह साक्षात्कार कराते हैं । एक तरफ इतनी बड़ाई भी करते, दूसरी तरफ फिर कह देते पत्थर ठिक्कर में भगवान है । कितनी अन्धश्रद्धा की भक्ति करते हैं । समझते हैं-बस कृष्ण का साक्षात्कार हुआ, कृष्णपुरी में हम जरूर जायेंगे । परन्तु कृष्णपुरी आये कहाँ से? यह सब राज बाप तुम बच्चों को अब समझाते हैं । कृष्णपुरी की स्थापना हो रही है । यह है कंसपुरी । कंस, अकासुर, बकासुर, कुम्भकरण, रावण यह सब असुरों के नाम हैं । शास्त्रों में क्या-क्या बैठ लिखा है ।

यह भी समझाना है कि गुरू दो प्रकार के हैं । एक हैं भक्ति मार्ग के गुरू, वह भक्ति ही सिखलाते हैं । यह बाप तो है ज्ञान का सागर, इनको सतगुरू कहा जाता है । यह कभी भक्ति नहीं सिखलाते, ज्ञान ही सिखलाते हैं । मनुष्य तो भक्ति में कितना खुश होते हैं, झांझ बजाते हैं, बनारस में तुम देखेंगे सब देवताओं के मन्दिर बना दिये हैं । यह सब हैं भक्ति मार्ग की दुकानदारी, भक्ति का धंधा । तुम बच्चों का धंधा है ज्ञान रत्नों का, इनको भी व्यापार कहा जाता है । बाप भी रत्नों का व्यापारी है । तुम समझते हो यह रत्न कौन से हैं! इन बातों को समझेंगे वही जिन्होंने कल्प पहले समझा है, दूसरे समझेंगे ही नहीं । जो भी बड़े-बड़े हैं वह पिछाड़ी में आकर समझेंगे । कनवर्ट भी हुए हैं ना । एक राजा जनक की कथा सुनाते हैं । जनक फिर अनुजनक बना । जैसे कोई का नाम कृष्ण है तो कहेंगे तुम अनु दैवी कृष्ण बनेंगे । कहाँ वह सर्वगुण सम्पन्न कृष्ण, कहाँ यह! कोई का लक्ष्मी नाम है और इन लक्ष्मी-नारायण के आगे जाकर महिमा गाती है । यह थोड़ेही समझती कि इनमें और हमारे में फर्क क्यों हुआ है? अभी तुम बच्चों को नॉलेज मिली है, यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है? तुम ही 84 जन्म लेंगे । यह चक्र अनेक बार फिरता आया है । कभी बंद नहीं हो सकता । तुम इस नाटक के अन्दर एक्टर्स हो । मनुष्य इतना जरूर समझते हैं कि हम इस नाटक में पार्ट बजाने आये हैं । बाकी ड्रामा के आदि-मध्य- अन्त को नहीं जानते ।

तुम बच्चे जानते हो हम आत्माओं के रहने का स्थान परे ते परे हैं । वहाँ सूर्य-चांद की भी रोशनी नहीं हैं । यह सब समझने वाले बच्चे भी अक्सर करके साधारण गरीब ही बनते हैं क्योंकि भारत ही सबसे साहूकार था, अब भारत ही सबसे गरीब बना है । सारा खेल भारत पर है । भारत जैसा पावन खण्ड और कोई होता नहीं । पावन दुनिया में पावन खण्ड होता हैं, और कोई खण्ड वहाँ होता ही नहीं । बाबा ने समझाया है यह सारी दुनिया एक बेहद का आयलैण्ड है । जैसे लंका टापू है । दिखाते हैं रावण लंका में रहता था । अभी तुम समझते हो रावण का राज्य तो सारी बेहद की लंका पर है । यह सारी सृष्टि समुद्र पर खड़ी है । यह टापू है । इस पर रावण का राज्य है । यह सब सीतायें रावण की जेल में है । उन्होंने तो हद की कथायें बना दी हैं । है यह सारी बेहद की बात । बेहद का नाटक है, उसमें ही फिर छोटे-छोटे नाटक बैठ बनाये हैं । यह बाइसकोप आदि भी अभी बने हैं, तो बाप को भी समझाने में सहज होता है । बेहद का सारा ड्रामा तुम बच्चों की बुद्धि में है । मूलवतन, सूक्ष्मवतन और किसकी बुद्धि में हो न सके । तुम जानते हो हम आत्मायें मूलवतन की रहवासी हैं । देवतायें हैं सूक्ष्मवतन वासी, उनको फरिश्ता भी कहते हैं । वहाँ हड्डी मांस का पिंजड़ा होता नहीं । यह सूक्ष्मवतन का पार्ट भी थोड़े समय के लिए है । अभी तुम आते-जाते हो फिर कभी नहीं जायेंगे । तुम आत्मायें जब मूलवतन से आती हो तो वाया सूक्ष्मवतन नहीं आती हो, सीधी आती हो । अभी वाया सूक्ष्मवतन जाती हो । अभी सूक्ष्मवतन का पार्ट है । यह सब राज़ बच्चों को समझाते हैं । बाप जानते हैं कि हम आत्माओं को समझा रहे हैं । साधू-सन्त आदि कोई भी इन बातों को नहीं जानते हैं । वह कभी ऐसी बातें कर न सके । बाप ही बच्चों से बात करते हैं । आरगन्स बिगर तो बात कर न सके । कहते हैं मैं इस शरीर का आधार ले तुम बच्चों को पढ़ाता हूँ । तुम आत्माओं की दृष्टि भी बाप तरफ चली जाती है । यह है सब नई बातें । निराकार बाप, उनका नाम है शिवबाबा । तुम आत्माओं का नाम तो आत्मा ही है । तुम्हारे शरीर के नाम बदलते हैं । मनुष्य कहते हैं परमात्मा नाम-रूप से न्यारा है, परन्तु नाम तो शिव कहते हैं ना । शिव की पूजा भी करते हैं । समझते एक हैं, करते दूसरा हैं । अभी तुम बाप के नाम रूप देश काल को भी समझ गये हो । तुम जानते हो कोई भी चीज नाम-रूप के बिगर नहीं हो सकती है । यह भी बड़ी सूक्ष्म समझने की बात है । बाप समझाते हैं-गायन भी है सेकण्ड में जीवनमुक्ति अर्थात् मनुष्य नर से नारायण बन सकते हैं । जबकि बाप हेविनली गॉड फादर हैं, हम उनके बच्चे बने हैं तो भी स्वर्ग के मालिक ठहरे । परन्तु यह भी समझते नहीं हैं । बाप कहते हैं-बच्चे, तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट ही यह है, नर से नारायण बनना । राजयोग है ना । बहुतों को चतुर्भुज का साक्षात्कार होता है, इससे सिद्ध है विष्णुपुरी के हम मालिक बनने वाले हैं । तुमको मालूम है-स्वर्ग में भी लक्ष्मी-नारायण के तख्त के पिछाड़ी विष्णु का चित्र रखते हैं अर्थात् विष्णुपुरी में इन्हों का राज्य है । यह लक्ष्मी-नारायण विस्तरी के मालिक हैं । वह है कृष्णपुरी, यह है कंसपुरी । ड्रामानुसार यह भी नाम रखे हुए हैं । बाप समझाते हैं मेरा रूप बहुत सूक्ष्म है । कोई भी जान नहीं सकते । कहते हैं कि आत्मा एक स्टॉर है परन्तु फिर लिंग बना देते । नहीं तो पूजा कैसे हो । रूद्र यज्ञ रचते हैं तो अंगूठे मिसल सालिग्राम बनाते हैं । दूसरी तरफ उनको अजब सितारा कहते हैं । आत्मा को देखने की बहुत कोशिश करते हैं परन्तु कोई भी देख नहीं सकते । रामकृष्ण, विवेकानंद का भी दिखाते हैं ना, उसने देखा आत्मा उनसे निकल मेरे में समा गई । अब उनको किसका साक्षात्कार हुआ होगा? आत्मा और परमात्मा का रूप तो एक ही है । बिन्दी देखा, समझते कुछ नहीं । आत्मा का साक्षात्कार तो कोई चाहते नहीं । चाहना रखते हैं कि परमात्मा का साक्षात्कार करें । वह बैठा था कि गुरू से परमात्मा का साक्षात्कार करें । बस, कह दिया ज्योति थी वह मेरे में समा गई । इसमें ही वह बहुत खुश हो गया । समझा यही परमात्मा का रूप है । गुरू में भावना रहती है, भगवान के साक्षात्कार की । समझते कुछ नहीं । भला भक्ति मार्ग में समझाये कौन? अब बाप बैठ समझाते हैं-जिस-जिस रूप में जैसी भावना रखते हैं, जो शक्ल देखते हैं, वह साक्षात्कार हो जाता है । जैसे गणेश की बहुत पूजा करते हैं तो उनका चैतन्य रूप में साक्षात्कार हो जाता है । नहीं तो उनको निश्चय कैसे हो? तेजोमय रूप देख समझते हैं कि हमने भगवान का साक्षात्कार किया । उसमें ही खुश हो जाते हैं । यह सब हैं भक्ति मार्ग, उतरती कला । पहला जन्म अच्छा होता है फिर कमती होते- होते अन्त आ जाता है । बच्चे ही इन बातों को समझते हैं, जिनको कल्प पहले ज्ञान समझाया है उनको ही अब समझा रहे हैं । कल्प पहले वाले ही आयेंगे, बाकी औरों का तो धर्म ही अलग है । बाप समझाते हैं एक-एक चित्र में भगवानुवाच लिख दो । बड़ा युक्ति से समझाना होता है । भगवानुवाच है ना-यादव, कौरव और पाण्डव क्या करत भये, उसका यह चित्र है । पूछो-तुम बताओ अपने बाप को जानते हो? नहीं जानते हो तो गोया बाप से प्रीत नहीं है ना, तो विप्रीत बुद्धि ठहरे । बाप से प्रीत नहीं तो विनाश हो जायेंगे । प्रीत बुद्धि विजयन्ती, सत्यमेव जयते-इनका अर्थ भी ठीक है । बाप की याद ही नहीं तो विजय पा नहीं सकते ।

अभी तुम सिद्ध कर बतलाते हो - गीता शिव भगवान ने सुनाई है । उसने ही राजयोग सिखाया, ब्रह्मा द्वारा । यह तो कृणा भगवान की गीता समझकर कसम उठाते हैं । उनसे पूछना चाहिए-कृष्ण को हाजिर-नाजिर जानना चाहिए वा भगवान को? कहते हैं ईश्वर को हाजिर-नाजिर जान सच बोलो । रोला हो गया ना । तो कसम भी झूठा हो जाता । सर्विस करने वाले बच्चों को गुप्त नशा रहना चाहिए । नशे से समझायेंगे तो सफलता होगी । तुम्हारी यह पढ़ाई भी गुप्त है, पढ़ाने वाला भी गुप्त है । तुम जानते हो हम नई दुनिया में जाकर यह बनेंगे । नई दुनिया स्थापन होती है महाभारत लड़ाई के बाद । बच्चों को अब नॉलेज मिली है । वह भी नम्बरवार धारण करते हैं । योग में भी नम्बरवार रहते हैं । यह भी जांच रखनी चाहिए-हम कितना याद में रहते हैं? बाप कहते हैं यह अभी तुम्हारा पुरूषार्थ भविष्य 21 जन्मों के लिए हो जायेगा । अभी फेल हुए तो कल्प- कल्पान्तर फेल होते रहेंगे, ऊँच पद नहीं पा सकेंगे । पुरूषार्थ करना चाहिए ऊँच पद पाने का । ऐसे भी कई सेंटर्स पर आते हैं जो विकार में जाते रहते हैं और फिर सेंटर्स पर आते रहते हैं । समझते हैं ईश्वर तो सब देखता है, जानता है । अब बाप को क्या पड़ी है जो यह बैठ देखेगा । तुम झूठ बोलेंगे, विकर्म करेंगे तो अपना ही नुकसान करेंगे । यह तो तुम भी समझते हो, काला मुँह करता हूँ तो ऊंच पद पा नहीं सकूँगा । सो बाप ने जाना तो भी बात तो एक ही हुई । उनको क्या दरकार पड़ी है । अपनी दिल खानी चाहिए-मैं ऐसा कर्म करने से दुर्गति को पाऊंगा । बाबा क्यों बतावे? हाँ, ड्रामा में है तो बतलाते भी हैं । बाबा से छिपाना गोया अपनी सत्यानाश करना है । पावन बनने के लिए बाप को याद करना है, तुमको यही फुरना रहना चाहिए कि हम अच्छी रीति पढ़कर ऊंच पद पावें । कोई मरा वा जिया, उनका फुरना नहीं । फुरना (फिक्र) रखना है कि बाप से वर्सा कैसे लेवें? तो किसको भी थोड़े में समझाना है । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. गुप्त नशे में रहकर सर्विस करनी है । ऐसा कोई कर्म नहीं करना है जो दिल खाती रहे । अपनी जांच करनी है कि हम कितना याद में रहते हैं?

2. सदा यही फिक्र रहे कि हम अच्छी रीति पढ़कर ऊँच पद पायें । कोई भी विकर्म करके, झूठ बोलकर अपना नुकसान नहीं करना है ।

वरदान:-

कलियुगी दुनिया के दुःख अशान्ति का नजारा देखते हुए सदा साक्षी व बेहद के वैरागी भव !   

इस कलियुगी दुनिया में कुछ भी होता है लेकिन आपकी सदा चढ़ती कला है । दुनिया के लिए हाहाकार है और आपके लिए जयजयकार है । आप किसी भी परिस्थिति से घबराते नहीं क्योंकि आप पहले से ही तैयार हो । साक्षी होकर हर प्रकार का खेल देख रहे हो । कोई रोता है, चिल्लाता है, साक्षी होकर देखने में मजा आता है । जो कलियुगी दुनिया के दुख अशान्ति का नजारा साक्षी होकर देखते हैं वह सहज ही बेहद के वैरागी बन जाते हैं ।

स्लोगन:- 

कैसी भी धरनी तैयार करनी है तो वाणी के साथ वृत्ति से सेवा करो ।   

 

ओम् शान्ति |