04-12-13           प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन


मीठे बच्चे अपना सरनेम सदा याद रखो, तुम हो गॉडली चिल्ड्रेन, तुम्हारा ईश्वरीय कुल है, तुम देवताओं से भी ऊँच हो, तुम्हारे मैनर्स बड़े रॉयल चाहिए

प्रश्न:-   
बाप ने बच्चों को आप समान प्यार का सागर बनाया है, उसकी निशानी क्या है?

उत्तर:-
तुम बच्चे बाप समान प्यारे बने हो इसलिए तो तुम्हारे यादगार चित्रों को सभी प्यार करते हैं | प्यार से देखते हैं |  लक्ष्मी-नारायण सदा हर्षितमुख, रमणीक हैं | अभी तुम जानते हो कि बाबा हमें ज्ञान-योग से बहुत-बहुत मीठा बना रहे हैं | तुम्हें मुख से सदा ज्ञान रत्न ही निकालने हैं |

गीत:-  
तू प्यार का सागर है.........

ओम् शान्ति |
यह किसकी महिमा में गाते हैं कि तू प्यार का सागर है | यह किसी मनुष्य की महिमा नहीं | कहा जाता है कि तू प्यार, शान्ति व पवित्रता का सागर है | अभी तुम पवित्र बनते हो | ऐसे बहुत हैं जो शादी नहीं करते, बहुत हैं जो बिगर सन्यास लिए भी पवित्र रहते हैं | गाया हुआ भी है – गृहस्थ व्यवहार में जनक मिसल ज्ञान | उसकी हिस्ट्री है | कहा हमको कोई ब्रह्म ज्ञान सुनाओ | वास्तव में कहना चाहिए ब्रह्मा ज्ञान | परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा आकर ज्ञान देते हैं ब्रह्माकुमार कुमारियों को |

तुम जानते हो कि इस समय हमारा सरनेम है ब्रह्माकुमार-कुमारी, हम हैं गॉडली चिल्ड्रेन | ऐसे तो सब कहते हैं हम ईश्वर की सन्तान हैं | तो ज़रूर भाई-भाई ठहरे तो फिर अपने को बाप कह न सकें | फादरहुड नहीं फिर तो ब्रदरहुड कहा जाए | एक तो तुम ब्रह्माकुमार-कुमारी कहलाते हो, दूसरा जिसके कुमार-कुमारियां हो उनको मम्मा-बाबा कहते हो | बच्चे जानते हैं हम शिवबाबा के पोत्रे-पोत्रियां ब्रह्माकुमार-कुमारियां है | भारत में अनेक शास्त्र, वेद, पुराण आदि तो सब पढ़ते हैं | सर्व शास्त्रमई शिरोमणी श्रीमद् भगवत गीता है | गीता से सतयुग स्थापन होता है | गीता का ज्ञान दिया ज्ञान सागर परमात्मा ने | यह सब ज्ञान नदियाँ ज्ञान सागर से निकलती हैं | पानी की गंगा से थोड़ेही ज्ञान मिलता है जो पावन बनेंगे | सद्गति अर्थात् पावन बनना | यह तो है ही तमोप्रधान पतित दुनिया | अगर पावन बनें तो कहाँ रहें | वापिस तो जा न सकें | कायदा नहीं है | सबको पुनर्जन्म ले तमोप्रधान बनना ही है | बाप है ज्ञान का सागर | तुम प्रैक्टिकल रूप से सुन रहे हो | यह कोई कॉपी कर न सके | भल ऐसे बहुत हैं जो कहते हैं हम भी वही ज्ञान देते हैं, परन्तु नहीं | यहाँ जिसको भी ज्ञान मिलता है वह ब्रह्माकुमार-कुमारियां कहलाते हैं और कोई ऐसी संस्था नहीं जहाँ ब्रह्माकुमार-कुमारी कहलायें | भल ड्रेस भी यह पहनें परन्तु यह कैसे कहें कि हम ब्रह्मा के बच्चे हैं | इनको मैंने नाम दिया है ब्रह्मा | इनको बैठ समझाते हैं | तुमको भी कहते हैं तुम ब्रह्माकुमार-कुमारियां अपने जन्मों को नहीं जानते, मैं जानता हूँ | अब संगमयुग पर पैर और चोटी हैं इस पुरानी दुनिया बदल नई बनती है | सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग....सृष्टि वृध्दि को पाती रहती है | अब अन्त है, दुनिया बदल नई बननी है | बाप आकर त्रिकालदर्शी बनाते हैं | वह है प्यार का सागर, तो ज़रूर ऐसा प्यारा बनाएगा | लक्ष्मी-नारायण में देखो कितनी आकर्षण है | जितना लक्ष्मी-नारायण का रमणीक हर्षितमुख चित्र देखेंगे उतना राम-सीता का नहीं | लक्ष्मी-नारायण को देखने में भी ख़ुशी आ जाती है | राधे-कृष्ण के मन्दिर में जाने से इतनी ख़ुशी नहीं होगी | लक्ष्मी-नारायण को तो राज्य-भाग्य है | अब दुनिया तो इन बातों को जानती नहीं | तुम जानते हो बाबा हमको बहुत मीठा बनाते हैं | लक्ष्मी-नारायण को ज्ञान का सागर नहीं कहेंगे | वह इस ज्ञान-योग से ऐसे बने | अब तुम भी बनते हो | मनुष्य चाहते हैं कि दुनिया एक हो जाए, एक राज्य हो | याद दिलाते हैं कि कभी एक राज्य ज़रूर था | परन्तु ऐसे नहीं सब मिलकर एक हो जायेंगे | नहीं, वहाँ तो बहुत थोड़े मनुष्य थे | तुम समझते हो हम ईश्वरीय सन्तान हैं | कहते हैं ईश्वर हाज़िराहज़ूर है | परन्तु हाज़िर-नाज़िर आत्मा को कहेंगे | आत्मा सर्वव्यापी है, सबमें आत्मा है | ऐसे नहीं सबमें परमात्मा है | तो कसम उठाने की क्या बात है? अगर हमारे में परमात्मा है तो कसम किसकी उठाते हैं? हम अगर उल्टा कार्य करेंगे तो परमात्मा सज़ा देंगे | अगर परमात्मा सबमें है तो कसम आदि की बात नहीं | अब तुम साकार में हो, जैसे आत्मा इन आँखों से देखी नहीं जाती तो परमात्मा को कैसे देखेंगे? फ़ील करते हैं हमारे में आत्मा है | कहेंगे परमात्मा का साक्षात्कार हो लेकिन जब आत्मा को ही नहीं देख सकते तो परमात्मा को कैसे देख सकेंगे? आत्मा ही पुण्य आत्मा, पाप आत्मा बनती है | इस समय पाप आत्मा है | तुमने बहुत पुण्य किया था, बाप के आगे तन-मन-धन समर्पण किया था | अब पापा आत्मा से पुण्य आत्मा बन रहे हो | शिवबाबा को तन-मन-धन बलि देते हो | इसने भी अर्पण किया ना | तन भी सच्ची सेवा में दिया | माताओं के आगे अर्पण कर उन्हें ट्रस्टी बना दिया | माताओं को आगे बढ़ाना है | माताओं ने ही आकर शरण ली तो उनकी सम्भाल कैसे हो? माताओं पर बलि चढ़ना पड़े | बाप कहते हैं वन्दे मातरम् | हाज़िर-नाज़िर का भी राज़ समझाया है | आत्मा पुकारती है ओ गॉड फादर | किस फादर को बुलाते हैं? समझते नहीं | तुम लक्ष्मी-नारायण बनते हो | मनुष्य कितना प्यार करते हैं | हर होलीनेस और हिज़ होलीनेस उनको कहा जाता है | अब तुम कहेंगे हम ईश्वरीय कुल के हैं, पहले आसुरी कुल के थे | ब्राह्मणों का तो सरनेम ही है ईश्वरीय सन्तान | बापू गांधी भी चाहते थे कि रामराज्य हो | नये भारत में नया राज्य हो | वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी गवर्मेन्ट हो जो कि बेहद का बाप ही बना सकते हैं | बाप कहते हैं मैं वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी हूँ | ऊँच ते ऊँच निराकार हूँ | ब्रह्मा, विष्णु, शंकर तो हमारी रचना हैं | भारत शिवालय, सम्पूर्ण निर्विकारी था, अब सम्पूर्ण विकारी है | यह भी नहीं जानते कि सम्पूर्ण निर्विकारी यहाँ होते हैं | चाहते हैं वन वर्ल्ड हो, वन आलमाइटी अथॉरिटी राज्य हो | सो तो परमात्मा वन वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी डीटी, लक्ष्मी-नारायण का राज्य स्थापन कर रहे हैं और सबका विनाश सामने खड़ा है | इतना नशा रहना चाहिए ! यहाँ से घर जाते हैं तो मूर्छित हो जाते हैं | संजीवनी बूटी की कहानी है ना | लेकिन यह तो ज्ञान की बूटी है, मनमनाभव की | देह-अभिमान में आने से माया का थप्पड़ लगता है | देही-अभिमानी बनने से थप्पड़ नहीं लगेगा | हम शिवबाबा से वर्सा लेते हैं | ब्रह्मा का यह अन्तिम जन्म है, वह भी वर्सा लेते हैं | डीटी वर्ल्ड सावरन्टी इज़ योर गॉड फादरली बर्थ राइट | तुम बच्चों में दैवी मैनर्स होने चाहिए | तुम ब्राह्मण देवताओं से भी ऊँच हो | तुमको बहुत मीठा बोलना चाहिए | भाषण आदि में तो बोलना पड़ता है, बाकी व्यर्थ बातों में नहीं जाना चाहिए | मुख से सदैव रत्न निकालो | भल यह आँखें हैं लेकिन स्वर्ग को और मूलवतन को देखो | ज्ञान का नेत्र आत्मा को प्राप्त होता है | आत्मा आरगन्स द्वारा पढ़ती है | तुमको ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है, जैसे अक्ल की दाढ़ निकलती है | बाप वर्सा ब्राह्मणों को देगा, शूद्रों को थोड़ेही देगा | तीसरा नेत्र आत्मा को मिलता है | ज्ञान नेत्र बिना राइट-रांग को समझ नहीं सकते | रावण रांग रास्ते पर ही चलायेगा, बाबा राइट रास्ते पर चलाते हैं | हमेशा एक-दूसरे से गुण उठाना चाहिए | गुण के बदले अवगुण नहीं उठाना चाहिए | देखो डॉ. निर्मला आती है, उनका स्वभाव बहुत मीठा है | शान्तचित, थोड़ा बोलना उनसे सीखना चाहिए | बड़ी सयानी और मीठी बच्ची है | शान्त में भी बैठने की रॉयल्टी चाहिए | ऐसे नहीं कुछ समय याद किया फिर सारा दिन ख़लास | यह भी अभ्यास करना है | बाप को याद करने से ताकत आती है | तो बाप भी खुश होता है | ऐसी अवस्था वाला जिसको भी देखेगा तो झट उनको भी अशरीरी बना देगा | अशरीरी बन जाते हैं, शान्त हो जाते हैं | सिर्फ़ शान्ति में बैठना कोई सुख नहीं है, वह है अल्पकाल का सुख | शान्त हो बैठ जायेगा तो फिर कर्म कैसे करेगा? योग से विकर्म विनाश होंगे | सच्ची सुख-शान्ति तो यहाँ हो न सके | यहाँ हर चीज़ अल्पकाल की है | अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

रात्रि क्लास 9-4-68

आजकल बहुत करके यही कान्फ्रेन्स करते रहते हैं कि विश्व में शान्ति कैसे हो! उन्हों को बताना चाहिए देखो सतयुग में एक ही धर्म, एक ही राज्य, अद्वैत धर्म था | दूसरा कोई धर्म ही नहीं जो ताली बजे | था ही रामराज्य, तब ही विश्व में शान्ति थी | तुम चाहते हो विश्व में शान्ति हो | वह तो सतयुग में थी | पीछे अनेक धर्म होने से अशांति हुई है | परन्तु जब तक कोई समझे तब तक माथा मारना पड़ता है | आगे चलकर अख़बारों में पड़ेगा फिर इन सन्यासियों आदि के भी कान खुलेंगे | यह तो तुम बच्चों की खातिरी है कि हमारी राजधानी स्थापन हो रही है | यही नशा है | म्यूज़ियम का भभका देख बहुत आयेंगे | अन्दर आकर वन्डर खायेंगे | नये नये चित्रों पर नई नई समझनी सुनेंगे |

यह तो बच्चों को मालूम है – योग है मुक्ति जीवनमुक्ति के लिये | सो तो मनुष्य मात्र कोई सिखला न सके | यह भी लिखना है सिवाय परमपिता परमात्मा के कोई भी मुक्ति-जीवनमुक्ति के लिये योग सिखला नहीं सकते | सर्व का सद्गति दाता है ही एक | यह क्लीयर लिख देना चाहिए, जो भल मनुष्य पढ़ें | सन्यासी लोग क्या सिखाते होंगे | योग-योग जो करते हैं, वास्तव में योग कोई भी सिखला नहीं सकते हैं | महिमा है ही एक की | विश्व में शान्ति स्थापन करना वा मुक्ति जीवनमुक्ति देना बाप का ही काम है | ऐसे-ऐसे विचार सागर मंथन कर प्वाइन्ट्स समझानी है | ऐसा लिखना चाहिए जो मनुष्यों को बात ठीक जंच जाये | इस दुनिया को तो बदलना ही है | यह है मृत्युलोक | नई दुनिया को कहा जाता है अमरलोक | अमरलोक में मनुष्य कैसे अमर रहते हैं यह भी वन्डर है ना | वहाँ आयु भी बड़ी रहती है और समय पर आपे ही शरीर बदली कर देते हैं जैसे कपड़ा चेंज किया जाता है | यह भी समझाने की बातें हैं | अच्छा!

मीठे-मीठे रूहानी बच्चों को रूहानी बाप व दादा का याद प्यार गुडनाईट और नमस्ते | 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1.    अपना स्वभाव बहुत मीठा, शान्तचित बनाना है | बहुत कम और रॉयल्टी से बात करनी है |
2.   
तन-मन-धन से ब्रह्मा बाप समान ट्रस्टी होकर रहना है |

वरदान:-  
नथिंगन्यु की स्मृति से सब प्रश्नों को समाप्त कर बिन्दी लगाने वाले अचल अडोल भव  

कोई भी बात होती है तो आप बच्चों को यह ज्ञान है कि नथिंगन्यु, हर सीन अनेक बार रिपीट की है | नथिंगन्यु की स्मृति से कभी भी हलचल में नहीं आ सकते, सदा ही अचल अडोल रहेंगे | कोई नई बात होती है तो आश्चर्य से निकलता है यह क्या, ऐसे होता है क्या? लेकिन नथिंगन्यु तो क्या, क्यों का क्वेश्चन नहीं, फुलस्टॉप आ जाता है | ऐसे हर दृश्य को देखते बिन्दी लगाते चलो तो हाय-हाय में भी वाह-वाह के गीत गाते रहेंगे |

स्लोगन:- 
सुखदाता बाप के सुख स्वरूप बच्चे बनकर रहो तो दुःख की लहर आ नहीं सकती  |  

ओम् शान्ति |