15-09-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन


मीठे बच्चे - ज्ञान का तीसरा नेत्र सदा खुला रहे तो खुशी में रोमांच खड़े हो जायेंगे, खुशी का पारा सदा चढ़ा रहेगा”

                 
प्रश्न:-   
इस समय मनुष्यों की नज़र बहुत कमजोर है इसलिए उनको समझाने की युक्ति क्या है?


उत्तर:-
बाबा कहते उनके लिए तुम ऐसे-ऐसे बड़े चित्र बनाओ जो वह दूर से ही देखकर समझ जायें । यह गोले का (सृष्टि चक्र का) चित्र तो बहुत बड़ा होना चाहिए । यह है अन्धों के आगे आइना ।

 

प्रश्न:-   
सारी दुनिया को स्वच्छ बनाने में तुम्हारा मददगार कौन बनता है?


उत्तर:-
यह नैचुरल कैलेमिटीज तुम्हारी मददगार बनती है । इस बेहद के दुनिया की सफाई के लिए जरूर कोई मददगार चाहिए ।

 

ओम् शान्ति |

गायन भी है बाप से एक सेकण्ड में वर्सा अर्थात् जीवनमुक्ति । और तो सब है जीवनबंध में । यह एक ही त्रिमूर्ति और गोले वाला चित्र जो है, बस यही मुख्य है । यह बहुत बड़ा-बड़ा होना चाहिए । अन्धों के लिए तो बड़ा आइना चाहिए, जो अच्छी तरह देख सके क्योंकि अभी सबकी नजर कमजोर है, बुद्धि कम है । बुद्धि कहा जाता है तीसरे नेत्र को । तुम्हारी बुद्धि में अब खुशी हुई है । खुशी में जिनके रोमांच खड़े नहीं होते हैं, गोया शिवबाबा को याद नहीं करते हैं तो कहेंगे ज्ञान का तीसरा नेत्र थोड़ा खुला है, झुंझार है । बाप समझाते हैं कोई को भी शॉर्ट में समझाना है । बड़े-बड़े मेले आदि लगते हैं, बच्चे जानते हैं सर्विस करने लिए वास्तव में एक चित्र ही बस है । भल गोले का चित्र हो तो भी हर्जा नहीं है । बाप, ड्रामा और झाड़ का अथवा कल्प वृक्ष का और 84 के चक्र का राज़ समझाते हैं । ब्रह्मा द्वारा बाप का यह वर्सा मिलता है । यह भी अच्छी रीति क्लीयर है । इस चित्र में सब आ जाता है और इतने सब चित्रों की दरकार ही नहीं है । यही दो चित्र बहुत बड़े- बड़े अक्षरों के हों । लिखत भी हो । जीवनमुक्ति गॉड फादर का बर्थ राइट है, होवनहार विनाश के पहले । विनाश भी जरूर होना ही है । ड्रामा के प्लैन अनुसार आपेही सब समझ जायेंगे । तुम्हारे समझाने की भी दरकार नहीं रहेगी । बेहद के बाप से बेहद का यह वर्सा मिलता है । यह तो बिल्कुल पक्का याद रहना चाहिए । परन्तु माया तुमसे भुला देती है । समय बीतता जाता है । गायन भी है ना-बहुत गई..... इनका अर्थ इस समय का ही है । बाकी थोड़ा समय ही रहा है । स्थापना तो हो ही रही है, विनाश में थोड़ा समय है । थोड़े में भी थोड़ी रहती जायेगी । विचार किया जाता है फिर क्या होगा? अभी तो जागते नहीं । पीछे जागते जाएंगे । आँखें बड़ी होती जायेंगी । यह आँखें नहीं, बुद्धि की आँख । छोटे-छोटे चित्रों से इतना मजा नहीं आता है । बड़े-बड़े बन जायेंगे । साइंस भी कितनी मदद देती है । विनाश में तत्व भी मदद करते हैं । बिगर कौडी खर्चे तुमको कितनी मदद देते हैं । तुम्हारे लिए बिल्कुल सफाया कर देते हैं । यह बिल्कुल छी-छी दुनिया है । अजमेर में स्वर्ग का यादगार है । यहाँ देलवाड़ा मन्दिर में स्थापना का यादगार है, परन्तु कुछ समझ थोड़ेही सकते हैं । अभी तुम समझदार बने हो । भल मनुष्य कहते हैं हम नहीं जानते कि विनाश हो जायेगा, समझ में नहीं आता । एक कहानी है ना-शेर आया, शेर आया । नहीं मानते थे । एक दिन सब गायें खा गया । तुम भी कहते रहते हो यह पुरानी दुनिया गई कि गई । बहुत गयी थोड़ी रही । यह सारी नॉलेज तुम बच्चों की बुद्धि में रहनी चाहिए । आत्मा ही धारणा करती है । बाप की भी आत्मा में ज्ञान है, वह जब शरीर धारण करते हैं तब ज्ञान देते हैं । जरूर उनमें नॉलेज है तब तो नॉलेजफुल गॉड फादर कहा जाता है । वह सारे सृष्टि के आदि-मध्य- अन्त को जानते हैं । अपने को तो जानते हैं ना । और सृष्टि चक्र कैसे फिरता है वह भी नॉलेज है इसलिए अंग्रेजी में नॉलेजफुल अक्षर बहुत अच्छा है । मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ का बीजरूप है तो उनको सारी नॉलेज है । तुम यह जानते हो नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार । शिवबाबा तो है ही नॉलेजफुल । यह अच्छी रीति बुद्धि में रहना चाहिए । ऐसे नहीं, सबकी बुद्धि में एकरस धारणा होती है । भल लिखते भी हैं परन्तु धारणा कुछ नहीं । नाम मात्र लिखते हैं, बता किसको भी नहीं सकेंगे । सिर्फ कागज को बताते हैं । कागज क्या करेंगे! कागज से तो कोई समझेंगे नहीं । इस चित्र से बहुत अच्छा समझेंगे । बड़े ते बड़ी नॉलेज है तो अक्षर भी बड़े-बड़े होने चाहिए । बड़े ते बड़े चित्र देख मनुष्य समझेंगे इनमें जरूर कुछ सार है । स्थापना और विनाश भी लिखा हुआ है । राजधानी की स्थापना, यह है गॉड फादरली बर्थ राइट । हर एक बच्चे का हक है जीवनमुक्ति । तो बच्चों की बुद्धि चलनी चाहिए कि सब जीवनबन्ध में हैं, इन्हें जीवनबन्ध से जीवनमुक्त में कैसे ले जायें? पहले शान्तिधाम में जाएंगे फिर सुखधाम में । सुखधाम को जीवनमुक्ति कहेंगे । यह चित्र खास बड़े-बड़े बनने चाहिए । मुख्य चित्र है ना । बहुत बड़े-बड़े अक्षर हों तो मनुष्य कहेंगे बी .के. ने इतने बड़े चित्र बनाये हैं, जरूर कुछ नॉलेज है । तो जहाँ-तहाँ तुम्हारे भी बड़े-बड़े चित्र लगे हुए हों तो पूछेंगे यह क्या है? बोलो, इतने बड़े चित्र तुम्हारे समझने के लिए बनाये हैं । इसमें क्लीयर लिखा हुआ है, बेहद का वर्सा इन्हों को था । कल की बात है, आज वह नहीं है क्योंकि 84 पुनर्जन्म लेते-लेते नीचे आ गये हैं । सतोप्रधान से तमोप्रधान तो बनना ही है । ज्ञान और भक्ति, पूज्य और पुजारी का खेल है ना । आधा- आधा में बिल्कुल पूरा खेल बना हुआ है । तो ऐसे बड़े-बड़े चित्र बनाने की हिम्मत चाहिए । सर्विस का भी शौक चाहिए । देहली के तो कोने-कोने में सर्विस करनी है । मेले मलाखड़े में तो बहुत लोग जाते हैं वहाँ तुमको यह चित्र ही काम में आएंगे । त्रिमूर्ति, गोला यह है मुख्य । यह बहुत अच्छी चीज है, अन्धे के आगे जैसे आइना है । अन्धों को पढ़ाया जाता है । पढ़ती तो आत्मा है ना । परन्तु आत्मा के आरगन्स छोटे हैं, तो उनको पढ़ाने के लिए चित्र आदि दिखाये जाते हैं । फिर थोड़े बड़े होते हैं तो दुनिया का नक्शा दिखाते हैं । फिर वह सारा नक्शा बुद्धि में रहता है । अभी तुम्हारी बुद्धि में सारा यह ड्रामा का चक्र है, इतने सब धर्म हैं, कैसे-कैसे नम्बरवार आते हैं, फिर चले जाएंगे । वहाँ तो एक ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म है, जिसको स्वर्ग हेविन कहते हैं । बाप के साथ योग लगाने से आत्मा पतित से पावन बन जायेगी । भारत का प्राचीन योग मशहूर है । योग अर्थात् याद । बाप भी कहते हैं मुझ बाप को याद करो । यह कहना पड़ता है । लौकिक बाप को कोई कहना नहीं पड़ता है कि मुझे याद करो । बच्चे आटोमेटिकली बाबा-मम्मा कहते रहते हैं । वह है लौकिक मात-पिता, यह है पारलौकिक, जिसका गायन है-तुम्हरी कृपा ते सुख घनेरे । जिनको दुःख है, वही गाते हैं । सुख में तो कहने की दरकार ही नहीं रहती । दु :ख में हैं तब पुकारते हैं । अभी तुम समझ गये हो यह मात-पिता है । बाप कहते हैं ना-दिन-प्रतिदिन तुमको गुह्य-गुह्य बातें सुनाता हूँ । आगे मालूम था क्या कि मात-पिता किसको कहा जाता है? अभी तुम जानते हो पिता तो उनको ही कहा जाता है । पिता से वर्सा मिलता है ब्रह्मा द्वारा । माता भी चाहिए ना क्योंकि बच्चों को एडाप्ट करना है । यह बात किसके भी ध्यान में नहीं आयेगी । तो बाबा घड़ी-घड़ी कहते हैं-मीठे-मीठे बच्चों, बाप को याद करते रहो । लक्ष्य मिल गया फिर भल कहाँ भी जाओ । विलायत में जाओ, 7 रोज कोर्स किया तो बहुत है । बाप से तो वर्सा लेना ही है । याद से ही आत्मा पावन बनेगी । स्वर्ग का मालिक बनेंगे । यह लक्ष्य तो बुद्धि में है फिर भल कहाँ भी जायें । सारा ज्ञान गीता का इस बैज में है । कोई को पूछने की भी दरकार नहीं रहेगी कि क्या करना है । बाप से वर्सा लेना है तो जरूर बाप को याद करना है । तुमने यह वर्सा बाप से अनेक बार लिया है । ड्रामा का चक्र रिपीट होता रहता है ना । अनेक बार तुम टीचर से पढ़ करके कोई न कोई पद प्राप्त करते हो । पढ़ाई में बुद्धियोग टीचर के साथ रहता है ना । इम्तहान चाहे छोटा हो, चाहे बड़ा हो, पढ़ती तो आत्मा है ना । इनकी भी आत्मा पढ़ती है । टीचर को और फिर एम ऑबजेक्ट को याद करना है । सृष्टि का चक्र भी बुद्धि में रखना है । बाप और वर्से को याद करना है । दैवीगुण भी धारण करने हैं । जितना धारणा करेंगे उतना ऊँच पद पाएंगे । अच्छी रीति याद करते रहते हैं फिर यहाँ आने की भी क्या दरकार है । परन्तु फिर भी आते हैं । ऐसा ऊँच बाप, जिससे इतना बेहद का वर्सा मिलता है, उनसे मिलकर तो आवें । मन्त्र लेकर सब आते हैं । तुमको तो बहुत भारी मन्त्र मिलता है । नॉलेज तो सारी अच्छी रीति बुद्धि में है ।

अभी तुम बच्चे समझते हो कि विनाशी कमाई के पीछे जास्ती टाइम वेस्ट नहीं करना है । वह तो सब मिट्टी में मिल जायेगा । बाप को कुछ चाहिए क्या? कुछ भी नहीं । कुछ भी खर्चा आदि करते हैं सो तो अपने लिए ही करते हैं । इसमें पाई का भी खर्चा नहीं है । कोई गोले वा टैंक्स आदि तो खरीद नहीं करने हैं लड़ाई के लिए । कुछ भी नहीं है । तुम लड़ते हुए भी सारी दुनिया से गुप्त हो । तुम्हारी लड़ाई देखो कैसी है । इसको कहा जाता है योगबल, सारी गुप्त बात है । इसमें कोई को मारने की दरकार नहीं है । तुमको सिर्फ बाप को याद करना है । इन सबका मौत ड्रामा में नूँधा हुआ है । हर 5 हजार वर्ष बाद तुम योगबल जमा करने के लिए पढ़ाई पढ़ते हो । पढ़ाई पूरी हुई फिर प्रालब्ध चाहिए नई दुनिया में । पुरानी दुनिया के लिए यह नैचुरल कैलेमिटीज है । गायन भी है ना- अपने कुल का विनाश कैसे करते हैं । कितना बड़ा कुल है । सारा यूरोप आ जाता है । यह भारत तो अलग कोने में है । बाकी सब खलास हो जाने हैं । योगबल से तुम सारे विश्व पर विजय पाते हो, पवित्र भी बनना है इन लक्ष्मी-नारायण जैसा । वहाँ क्रिमिनल आई ही नहीं । आगे चलकर तुमको बहुत साक्षात्कार होंगे । अपने देश के नजदीक आने से फिर झाड़ दिखाई पड़ते है ना । तो खुशी होती है- अब आकर पहुँचे हैं अपने घर के नजदीक । तुम भी घर चल पड़े हो फिर अपने सुखधाम आयेंगे । बाकी थोड़ा समय है, स्वर्ग से विदाई लिए कितना समय हो गया है । अब फिर स्वर्ग नजदीक आ रहा है । तुम्हारी बुद्धि चली जाती है ऊपर । वह है निराकारी दुनिया, जिसको ब्रह्माण्ड भी कहते हैं । हम वहाँ के रहने वाले हैं । यहाँ 84 का पार्ट बजाया । अभी हम जाते हैं । तुम बच्चे हो आलराउण्ड, शुरू से लेकर पूरे 84 जन्म लेने वाले हो । देरी से आने वाले को आलराउन्डर नहीं कहेंगे । बाप ने समझाया है-मैक्सीमम और मिनीमम कितने जन्म लेते हो? एक जन्म तक भी है । पिछाड़ी में सब चले जायेंगे वापिस । नाटक पूरा हुआ, खेल खलास । अब बाप समझाते हैं-मुझे याद करो, अन्त मती सो गति हो जायेगी । बाप के पास परमधाम में चले जायेंगे । उनको कहते हैं मुक्तिधाम, शान्तिधाम और फिर सुखधाम । यह है दु :खधाम । ऊपर से हर एक सतोप्रधान फिर सतो, रजो, तमो में आते हैं । एक जन्म होगा तो उसमें भी इन 4 स्टेजेस को पायेंगे । कितना अच्छा बच्चों को बैठ समझाते हैं, फिर भी याद नहीं करते । बाप को भूल जाते हैं, नम्बरवार तो है ना । बच्चे जानते हैं नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार रूद्र माला बनती है । कितने करोड़ की रूद्र माला है । बेहद के विश्व की यह माला है । ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा, दोनों का सरनेम देखो, यह प्रजापिता ब्रह्मा का नाम है । आधाकल्प फिर आता है रावण । डिटीज्म, फिर इसलामिज्म.... । आदम-बीबी को भी याद करते हैं, पैराडाइज़ को भी याद करते हैं । भारत पैराडाइज़ स्वर्ग था, बच्चों को खुशी तो बहुत होनी चाहिए । बेहद का बाप, ऊंचे ते ऊँच भगवान्? ऊँच ते ऊंच पढ़ाते हैं । ऊंच ते ऊंच पद मिलता है । सबसे ऊंच ते ऊँच टीचर है बाप । वह टीचर भी है फिर साथ ले जायेंगे तो सतगुरू भी है । ऐसा बाप क्यों नहीं याद रहेगा । खुशी का पारा चढ़ा रहना चाहिए । परन्तु युद्ध का मैदान है, माया ठहरने नहीं देती है । घड़ी-घड़ी गिर पड़ते हैं । बाप तो कहते हैं-बच्चे, याद से ही तुम मायाजीत बनेंगे । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. बाप जो सिखलाते हैं उसे अमल में लाना है, सिर्फ कागज पर नोट नहीं करना है । विनाश के पहले जीवनबन्ध से जीवनमुक्त पद प्राप्त करना है ।

2. अपना टाइम विनाशी कमाई के पीछे अधिक वेस्ट नहीं करना है क्योंकि यह तो सब मिट्टी में मिल जाना है इसलिए बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेना है और दैवीगुण भी धारण करने हैं ।

 

वरदान:-

अल्फ को जानने और पवित्रता के स्वधर्म को अपनाने वाले विशेष आत्मा भव !  

बापदादा को खुशी होती है कि मेरा एक-एक बच्चा विशेष आत्मा है - चाहे बुजुर्ग है, अनपढ़ है, छोटा बच्चा है, युवा है या प्रवृति वाला है लेकिन विश्व के आगे विशेष है । दुनिया में चाहे कोई कितने भी बड़े नेता हो, अभिनेता हो, वैज्ञानिक हों लेकिन अल्फ को नहीं जाना तो क्या जाना! आप निश्चयबुद्धि हो फलक से कहते हो कि तुम ढूंढ़ते रहो, हमने तो पा लिया । प्रवृत्ति में रहते पवित्रता के स्वधर्म को अपना लिया तो पवित्र आत्मा विशेष आत्मा बन गये ।

 

स्लोगन:- 

जो सदा खुशहाल रहते हैं वही स्वयं को और सर्व को प्रिय लगते हैं ।

 

ओम् शान्ति |