06-12-13
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे
–
दान सदा पात्र को देना है, फालतू समय वेस्ट नहीं करना है | हर
एक की नब्ज़ देखो कि सुनते समय उनकी वृत्ति कहाँ जाती है”
प्रश्न:-
पावन दुनिया में चलने के लिए तुम बच्चे बहुत भारी परहेज करते
हो, तुम्हारी परहेज क्या है?
उत्तर:-
गृहस्थ व्यवहार में कमलफूल के समान रहना ही सबसे भारी परहेज है
| हमारा त्याग है सारी बेहद की पुरानी दुनिया का | एक आँख में
है स्वीट होम, दूसरी आँख में है स्वीट राजधानी – इस पुरानी
दुनिया को देखते हुए भी नहीं देखना – यह है बहुत बड़ी परहेज,
इसी परहेज से पावन दुनिया में चले जाते हैं |
गीत:-
धीरज धर मनुआ.......
ओम् शान्ति
|
गीत सुनने से ही बच्चों को ख़ुशी का पारा चढ़ जाना चाहिए क्योंकि
दुनिया में दुःख तो है ही | मनुष्य मात्र हैं ही नास्तिक
अर्थात् बाप को नहीं जानते | अब तुम नास्तिक से आस्तिक बन रहे
हो | तुम बच्चे अब जानते हो कि हमारे सुख के दिन आ रहे हैं |
कभी भी तुम जाते हो तो पहले-पहले तुम अपना परिचय दो हम अपने को
ब्रह्माकुमार-कुमारी क्यों कहलाते हैं? ब्रह्मा है प्रजापिता,
शिव का बच्चा | ऊँच ते ऊँच उस निराकार को कहा जाता है |
ब्रह्मा, विष्णु, शंकर तो उनके बच्चे हैं | विष्णु और शंकर को
कभी प्रजापिता नहीं कहेंगे | प्रजापिता ब्रह्मा यहाँ है |
देखो, यह प्वाइन्ट अच्छी तरह धारण करो | लक्ष्मी-नारायण,
राधे-कृष्ण को प्रजापिता नहीं कहेंगे | प्रजापिता ब्रह्मा नाम
मशहूर है | यह है प्रजापिता साकार | अब स्वर्ग का रचयिता तो
परमपिता परमात्मा शिव है | स्वर्ग का रचयिता ब्रह्मा नहीं है,
निराकार परमात्मा ही आकर प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा स्वर्ग रचते
हैं | हम उनके बच्चे कितने ढेर हैं | आत्मायें तो हैं ही
परमपिता शिव की सन्तान | समझाने का बड़ा अच्छा तरीका चाहिए |
बोलो, हमको वह राजयोग सिखलाते हैं | ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की
आदि, मध्य, अन्त का राज़ समझाते हैं | तो पहले यह ब्रह्मा सुन
लेते हैं | जगत अम्बा भी सुन लेती हैं | हम हैं बी.के. | गाया
भी जाता है – कन्या वह जो 21 कुल का उद्धार करे, 21 जनम का सुख
दे | हम परमपिता परमात्मा से 21 जन्म सतयुग-त्रेता में सुख
पाने लिए वर्सा लेते हैं | बरोबर सतयुग-त्रेता में भारत सदा
सुखी था, पवित्रता भी थी, तो वह हमारा बाबा है, यह है दादा |
अब जिसके पास इतने बच्चे हैं, उनको तो कोई परवाह नहीं | कितने
उनके बच्चे हैं! हमको ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा राजयोग सिखलाते
हैं | उस बेहद के बाप से हमको वर्सा मिलता है | सारी दुनिया
पतित है, उनको पावन करने वाला एक बाप है | पुरानी दुनिया को
बदलने वाला स्वर्ग का रचयिता वह सतगुरु है, सर्व का सद्गति
दाता | नई दुनिया में है ही लक्ष्मी-नारायण का राज्य | भारत
में जो देवी-देवताओं का राज्य था, वह देवतायें ही 84 जन्म लेते
हैं फिर वर्ण भी बताने पड़े | समय पहले से ले लेना चाहिए |
बोलो, इन बातों को चित लगाकर अच्छी रीति सुनो | बुद्धि को
भटकाओ मत | भाई जी वा बहन जी, तुम सब वास्तव में शिव की सन्तान
हो | प्रजापिता ब्रह्मा तो सारे सिजरे का हेड हुआ | हम ब्रह्मा
मुख वंशावली ब्राह्मण उनसे वर्सा ले रहे हैं | योगबल से विश्व
का राज्य पाते हैं, न कि बाहुबल से | हम घरबार नहीं छोड़ते हैं,
हम तो अपने घर में रहते हैं | यह स्कूल है मनुष्य से देवता
बनने का | मानुष तो कोई देवता बना न सकें | यह दुनिया ही पतित
है | पानी की गंगा तो पतित-पावनी नहीं है | बार-बार उसमें
स्नान करने जाते हैं, पावन बनते ही नहीं | ऐसे ही रावण का भी
मिसाल है | बार-बार जलाते रहते हैं, रावण मरता नहीं है | यह
रावण वाला पोस्टर भी ले जाना चाहिए | कोई ऐसी बड़ी जगह जाओ तो
एलबम भी ले जाना चाहिए | देखो, यह सब बच्चे हैं | सभी की
प्रतिज्ञा की हुई है पवित्र रहने की | वास्तव में ब्रह्मा के
सभी बच्चे हैं | प्रजापिता ब्रह्मा सिजरे का हेड है | इस समय
प्रैक्टिकल हम ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं, हो तुम भी परन्तु
तुम पहचानते नहीं हो | अभी दुनिया में कोई सच्चा ब्राह्मण नहीं
है | सच्चे ब्राह्मण तो हम हैं | राज्य भी हम पाते हैं | फिर
यह है ब्राह्मणों का सिजरा | ब्राह्मण हैं चोटी | बच्चों को
समझाया है कृष्ण भगवान् नहीं है | वह तो पूरे 84 जन्म लेते हैं
| 84 जन्म पूरे होते ही फिर देवता बनना है | कौन बनाये? बाप
बनाते हैं | हम उनसे राजयोग सीख रहे हैं | उनकी ही महिमा है
एकोअंकार | वह है निराकार, निरहंकारी | उनको आकर सर्विस करनी
पड़ती है | पतित दुनिया, पतित शरीर में आते हैं | अभी वही गीता
एपिसोड रिपीट हो रहा है | महाभारी लड़ाई लगी थी | सब मच्छरों
सदृश गये थे | अब वही समय है | परमपिता परमात्मा शिव भगवानुवाच
है, वह है रचयिता | स्वर्ग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था |
सृष्टि को सतोप्रधान बनाना बाप का ही कर्तव्य है | हम उनको
बाबा-बाबा कहते हैं | वह आते जरुर हैं, शिवरात्रि भी है | इसका
अर्थ भी बताना चाहिए | प्वाइन्ट नोट कर फिर धारण करनी चाहिए |
प्वाइन्ट्स बुद्धि में रहनी चाहिए | कन्याओं की बुद्धि तो
अच्छी होती है | कुमारी के पैर धोते हैं | हैं तो कुमार और
कुमारियां दोनों पवित्र | फिर कुमारी का नाम क्यों गाया जाता
है? क्योंकि तुम्हारा अभी का जो नाम है कि कन्या वह जो 21 कुल
का उद्धार करे तो वह तुम्हारा मान चला आया है | हम भारत की
रूहानी सेवा करते हैं | हमारा उस्ताद मददगार परमपिता परमात्मा
शिव है | उनसे हम योगबल से शक्ति लेते हैं, जिससे हम 21 जन्म
एवरहेल्दी बनते हैं | यह गैरन्टी है | कलियुग में तो सब रोगी
हैं, आयु भी कम है | सतयुग में इतनी बड़ी आयु वाले कहाँ से आये?
इस राजयोग से इतनी बड़ी आयु वाले बनते हैं | वहाँ अकाले मृत्यु
होती नहीं | एक शरीर छोड़ दूसरा लिया जाता है | यह पुरानी खाल
है | शिवबाबा की याद में रह इस देह सहित देह के सब सम्बन्धों
को भूल जाना है | बुद्धि से हम बेहद का त्याग करते हैं | हमारी
बुद्धियोग की रूहानी यात्रा है | वह जिस्मानी यात्रा मनुष्य
सिखलाते हैं | बुद्धि की यात्रा बाप के सिवाए कोई सिखलाने वाला
नहीं है | यह राजयोग सीखने वाले ही स्वर्ग में आयेंगे | अब फिर
से सैपलिंग लग रहा है | हम सब उस बाप के बच्चे हैं, हम बच्चों
को शिवबाबा से वर्सा मिलता है | यह दादा भी शिवबाबा से वर्सा
लेते हैं | आप भी बेहद के बाप से वर्सा लो | यह बड़ी हॉस्पिटल
है | हम 21 जन्म के लिए फिर कभी रोगी नहीं बनेंगे | हम भारत की
सच्ची सेवा कर रहे हैं इसलिए गायन है शिव शक्ति सेना |
अब
बाप कहते हैं याद से अपने विकर्म विनाश करो तो आत्मा शुद्ध बन
जायेगी और ज्ञान को धारण करने से तुम चक्रवर्ती राजा बनेंगे |
हम पवित्र बनेंगे तो लक्ष्मी को अथवा नारायण को भी वरेंगे |
सर्वगुण सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी यहाँ नहीं बनेंगे तो
लक्ष्मी-नारायण को कैसे वरेंगे? इसलिए कहा जाता है आईने में
अपने को देखो – लक्ष्मी-नारायण को वरने लायक बने हो? पूरा
नष्टोमोहा नहीं बनेंगे तो लक्ष्मी को वर नहीं सकेंगे फिर प्रजा
में जायेंगे | शिवबाबा को भी परमधाम से आना पड़ता है | ज़रूर
पतित दुनिया में आयेँ तो पावन बनाकर ले जायेँ | यहाँ हम परहेज़
भी बहुत रखते हैं | हमारी एक आँख में स्वीट होम और दूसरी में
स्वीट राजधानी है | हमारा त्याग सारी दुनिया का है | घर गृहस्थ
में रहते कमल फूल समान पवित्र रहते हैं | बूढ़े समझते हैं –
वानप्रस्थ अवस्था है, चलो, मुक्तिधाम के लिए पुरुषार्थ करें |
इस समय तो सबकी वानप्रस्थ अवस्था है | हर एक को हक़ है बाप से
वर्सा लेने का | दुःखधाम को भूल जाना है | यह है बुद्धि से
त्याग | हम पुरानी दुनिया को बुद्धि से भूल नई दुनिया को याद
करते हैं | फिर अन्त मती सो गति हो जाती है | यह सबसे बड़ी गॉड
फादरली यूनिवर्सिटी है | भगवानुवाच – मैं राजयोग सिखलाकर
मनुष्य से देवता बनाता हूँ | ऐसे-ऐसे समझाना चाहिए | बोलो, हम
जो सुनाते हैं वह बैठकर सुनो | बीच में प्रश्न पूछने से वह
प्रवाह टूट पड़ता है | हम आपको सारे सृष्टि चक्र का राज़ बतलाते
हैं, शिवबाबा का ड्रामा में क्या पार्ट है, लक्ष्मी-नारायण कौन
हैं, हम सबकी जीवन कहानी बतायेंगे | हर एक की नब्ज़ देखनी चाहिए
| उस समय की वृत्ति देखनी चाहिए – ठीक सुनता है, तवाई होकर तो
नहीं बैठा है? यहाँ-वहाँ तो नहीं देखता है | यहाँ बाबा भी
देखते हैं कौन सामने सुनकर झूमते हैं, यह ज्ञान का डांस है |
वे स्कूल तो छोटे होते हैं जो टीचर अच्छी रीति देख सके और
नम्बरवार बिठाये, यहाँ तो बहुत हैं, नम्बरवार बिठा नहीं सकते |
तो देखना पड़ता है – किसकी बुद्धि कहीं भागती तो नहीं है?
मुस्कराते हैं? ख़ुशी का पारा चढ़ता है? ध्यान से सुनता है? दान
सदा पात्र को देना चाहिए | फालतू समय वेस्ट नहीं करना चाहिए |
नब्ज़ देखने की भी समझदारी चाहिए | मनुष्य तो डरते हैं – ख़ास
सिन्धी लोग समझते हैं कहीं बी.के. जादू न लगा दें इसलिए सामने
देखते भी नहीं हैं |
शिवबाबा समझाते हैं – तुम ब्राह्मण ही त्रिकालदर्शी बनते हो
फिर वर्णों का राज़ भी समझने का है | हम सो का अर्थ भी समझाना
है, हम आत्मा सो परमात्मा कहना रांग है | कोई फिर ब्रह्म को भी
मानने वाले हैं | कहते हैं अह्म ब्रह्मास्मि | माया तो 5 विकार
हैं | हम ब्रह्म को मानते हैं | अब ब्रह्म तो महतत्व है जो
हमारा निवास स्थान है | जैसे हिन्दुस्तान में रहने वाले अपना
धर्म हिन्दू कह देते हैं, वैसे वह भी ब्रह्म तत्व को कह देते
कि हम ब्रह्म हैं | बाप की महिमा अलग है
|
सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला
सम्पूर्ण.....यह महिमा देवताओं की हैं | आत्मा जब शरीर के साथ
है तब उसकी महिमा है | आत्मा ही पतित अथवा पावन बनती है |
आत्मा को निर्लेप नहीं कह सकते | इतनी छोटी सी आत्मा में 84
जन्मों का पार्ट है | उसको फिर निर्लेप कैसे कहेंगे? अभी बाबा
पीस स्थापन करते हैं तो तुम बच्चे बाबा को क्या प्राइज़ देते
हो? वह तुमको 21 जन्म स्वर्ग की राजधानी की प्राइज़ देते हैं |
तुम बाबा को क्या देते हो? जो जितनी प्राइज़ बाप को देते हैं
उतनी फिर बाप से लेते भी हैं | पहले-पहले इसने प्राइज़ दिया |
शिवबाबा तो दाता है | राजे लोग कभी हाथ में ऐसे लेते नहीं हैं
| उनको अन्न-दाता कहा जाता है | मनुष्य को दाता नहीं कह सकते |
भल तुम सन्यासियों आदि को देते हो परन्तु रिटर्न फल तो फिर भी
शिवबाबा दाता देता है | कहते हैं सब कुछ ईश्वर ने दिया है,
ईश्वर ही लेते हैं, फिर कोई मरता है तो रोते क्यों हो? परन्तु
न वह लेते हैं, न वह देते हैं | वह तो लौकिक माँ-बाप जन्म देते
हैं | फिर कोई मर जाता है तो उनको ही दुःख होता है | यदि ईश्वर
ने दिया, उसने ही लिया तो दुःख क्यों होना चाहिए | बाबा कहते
हैं मैं तो सुख-दुःख से न्यारा हूँ | तो इस दादा ने अपना सब
कुछ दिया है इसलिए फुल प्राइज़ भी ले रहे हैं | कन्याओं के पास
तो कुछ है नहीं | यदि उनको माँ-बाप देते हैं तो फिर शिवबाबा को
दे सकती हैं | जैसे मम्मा भी गरीब थी फिर देखो कितनी तीखी गई
है | तन-मन-धन से सेवा कर रही है |
तुम जानते हो हम सुखधाम जाते हैं वाया शान्तिधाम | जब तक हम
बाप के पास नहीं जायेंगे तो ससुर घर कैसे आयेंगे? पियरघर में
तो बैठे हैं | पहले बाप के पास जायेंगे फिर ससुरघर आयेंगे | यह
है शोक वाटिका, सतयुग है अशोक वाटिका | अच्छा !
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
इस वानप्रस्थ अवस्था में स्वीट होम और स्वीट राजधानी को याद
करने के सिवाए बुद्धि से सब कुछ भूल जाना है | पूरा नष्टोमोहा
बनना है |
2.
बुद्धियोग से बेहद का त्याग कर रूहानी यात्रा करनी है | श्रीमत
पर पवित्र बन भारत की सच्ची सेवा करनी है |
वरदान:-
सदा बिज़ी रह हर कदम में पदमों की कमाई जमा करने वाले मायाजीत
भव

आप
बच्चे ब्राह्मण बने हो सदा बिज़ी रहने के लिए, बिज़ी रहने वाले
ही बड़े से बड़े बिज़नेसमैन हैं जो हर कदम में पदमों की कमाई जमा
करते हैं | सारे कल्प में ऐसा बिज़नेस कोई कर नहीं सकता और जो
सदा बिज़ी रहता है उसके पास माया नहीं आती क्योंकि उसके पास
माया को रिसीव करने का टाइम ही नहीं है | तो सदा इसी रूहानी
नशे में रहो कि हमारे कदम-कदम में पदम हैं | लेकिन जितना नशा
उतना निर्माण |
स्लोगन:-
अपनी
सेवा को बाप के आगे अर्पण कर दो तो सफलता हुई पड़ी है
| 
ओम्
शान्ति
|