05-05-14         प्रातः मुरली      ओम् शान्ति    “बापदादा”        मधुबन
 


मीठे बच्चे देही-अभिमानी बाप तुम्हें देही-अभिमानी भव का पाठ पढ़ाते हैं, तुम्हारा पुरुषार्थ है – देह-अभिमान को छोड़ना |   

                                                        
प्रश्न:-   
देह-अभिमानी बनने से कौन-सी पहली बीमारी उत्पन्न होती है?


उत्तर:-
नाम-रूप की | यह बीमारी ही विकारी बना देती है इसलिए बाप कहते हैं आत्म-अभिमानी रहने की प्रैक्टिस करो | इस शरीर से तुम्हारा लगाव नहीं होना चाहिए | देह के लगाव को छोड़ एक बाप को याद करो तो पावन बन जायेंगे | बाप तुम्हें जीवनबन्ध से जीवनमुक्त बनने की युक्ति बताते हैं | यही पढ़ाई है |

 

ओम् शान्ति |

रूहानी बाप कह रहे हैं कि आत्म-अभिमानी अथवा देही-अभिमानी होकर बैठना है | किसको  याद करना है? बाप को | सिवाए बाप के और कोई को याद नहीं करना है | जब बाप से बेहद का वर्सा मिलता है तो उनको याद करना है | बेहद का बाप आकर समझाते हैं देही-अभिमानी भव, आत्म-अभिमानी भव | देह-अभिमान को छोड़ते जाओ | आधाकल्प तुम देह-अभिमानी होकर रहे हो, फिर आधाकल्प देही-अभिमानी होकर रहना है | सतयुग-त्रेता में तुम आत्म-अभिमानी थे | वहाँ मालूम रहता है कि हम आत्मा हैं, अब यह शरीर बूढ़ा हुआ, इसको अब छोड़ते हैं | यह चेन्ज करना है (सर्प का मिसाल) | तुम भी पुराना शरीर छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश करते हो इसलिए तुमको अभी आत्म-अभिमानी बनना है | कौन बनाते हैं? बाप | जो सदैव आत्म-अभिमानी है | वह कभी देह-अभिमानी बनते नहीं | भल एक बार आते हैं तो भी देह-अभिमानी नहीं बनते क्योंकि यह शरीर तो पराया लोन पर लिया हुआ है | इस शरीर से उनका लगाव नहीं रहता | लोन लेने वाले का लगाव नहीं रहता | जानते हैं यह तो शरीर छोड़ना है | बाप समझाते हैं मैं ही आकर तुम बच्चों को पावन बनाता हूँ | तुम सतोप्रधान थे सो फिर तमोप्रधान बने हो | अब फिर पावन बनने के लिए तुमको अपने साथ योग सिखलाता हूँ | योग अक्षर न कह याद अक्षर कहना ठीक है | याद सिखलाता हूँ | बच्चे बाप को याद करते हैं | अभी तुमको भी बाप को याद करना है | आत्मा ही याद करती है | जब रावण राज्य शुरू होता है तो तुम बच्चे देह-अभिमानी बन पड़ते हो | फिर बाप आकर आत्म-अभिमानी बनाते हैं | देह-अभिमानी बनने से नाम-रूप में फँस पड़ते हो | विकारी बन जाते हो | नहीं तो तुम सब निर्विकारी थे | फिर पुनर्जन्म लेते-लेते विकारी बन जाते हो | ज्ञान किसको, भक्ति किसको कहा जाता है – यह तो बाप ने ही समझाया है | भक्ति शुरू होती है द्वापर से | जबकि पांच विकार रूपी रावण की स्थापना होती है | भारत में ही राम राज्य और रावण राज्य कहा जाता है | परन्तु यह नहीं जानते कि कितना समय राम राज्य और कितना समय रावण राज्य चलता है | इस समय सभी तमोप्रधान, पत्थरबुद्धि हैं | पैदा ही भ्रष्टाचार से होते हैं इसलिए इसको विशष वर्ल्ड कहा जाता है | नई दुनिया और पुरानी दुनिया में रात-दिन का फ़र्क है | नई दुनिया में सिर्फ़ भारत ही था | भारत जैसा पवित्र खण्ड कोई बन न सके | फिर भारत जैसा अपवित्र भी कोई नहीं बनता | जो पवित्र, वही फिर अपवित्र बनता है फिर पवित्र बनता है | तुम जानते हो देवी-देवतायें पवित्र थे | फिर पुनर्जन्म लेते-लेते अपवित्र बन गये हैं | सबसे जास्ती जन्म भी यही लेते हैं | बाप समझाते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त के जन्म के भी अन्त में आता हूँ | यह पहला नम्बर ही 84 जन्म पूरे कर वानप्रस्थ में आता है तब मैं प्रवेश करता हूँ | त्रिमूर्ति ब्रह्मा-विष्णु-शंकर भी हैं, परन्तु किसको मालूम नहीं है क्योंकि तमोप्रधान हैं ना | किसकी बायोग्राफी का किसी मनुष्य मात्र को पता नहीं है | पूजा करते हैं परन्तु सब है अन्धश्रद्धा | भक्ति को कहा जाता है ब्राह्मणों की रात और सतयुग-त्रेता है ब्राह्मणों का दिन | अब ब्रह्मा प्रजापिता है तो ज़रूर बच्चे भी होंगे ना | यह भी समझाया है ब्राह्मणों का कुल होता है, डिनायस्टी नहीं | ब्राह्मण हैं चोटी | चोटी भी देखने में आती है | फिर ऊँच ते ऊँच पढ़ाने वाला है परमपिता परमात्मा शिव | उनका नाम एक ही है परन्तु भक्तिमार्ग में अथाह नाम लगा दिये हैं | भक्ति मार्ग में चहचटा (भभका) बहुत हो जाता है | कितने चित्र, कितने मन्दिर, यज्ञ, तप, दान पुण्य आदि करते हैं | कहते हैं भक्ति से फिर भगवान् मिलता है | किसको मिलता है? जो पहले-पहले आते हैं, वही पहले-पहले भक्ति शुरू करते हैं | जो ब्राह्मण सो देवता बनते हैं वही यथा राजा-रानी तथा प्रजा....सर्वगुण सम्पन्न 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, अहिंसा परमो देवी-देवता धर्म था | भारत में एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म था तब अथाह धन था | बाप याद दिलाते हैं – पहले-पहले तुम देवी-देवता धर्म वाले ही 84 जन्म लेते हो | सब नहीं लेते | हैं सिर्फ़ 84 जन्म, वह फिर कह देते 84 लाख जन्म | कल्प की आयु भी लाखों वर्ष कह दी है | बाप कहते हैं यह है 5 हज़ार वर्ष का ड्रामा | तो यह हुआ ज्ञान | ज्ञान सागर एक ही शिवबाबा गाया जाता है | वह हैं हद के बाप, यह है बेहद का बाबा | हद के बाबाओं के होते हुए भी बेहद के बाप को याद करते हैं, जबकि दुःखी होते हैं | पुनर्जन्म लेते-लेते दुनिया पुरानी तमोप्रधान बन जाती है तब फिर बाप आते हैं | सेकण्ड में जीवनमुक्ति मिलती है | किससे? बेहद के बाप से | तो ज़रूर जीवनबन्ध में हैं | पतित हैं फिर पावन बनना है | यह तो सेकण्ड की बात है | ज्ञान एक सेकण्ड का है क्योंकि पढ़ाई तो तुम बहुत पढ़ते हो | वह सब मनुष्य, मनुष्य को पढ़ाते हैं | पढ़ती तो आत्मा ही है | परन्तु देह-अभिमान के कारण अपने को आत्मा भूलकर कह देते हैं हम फ़लाना मिनिस्टर हैं, यह हैं | वास्तव में हैं आत्मा | आत्मा मिस्टर-मिसेज़ के तन से पार्ट बजाती है, यह भूल जाते हैं | नहीं तो आत्मा ही शरीर से पार्ट बजाती है | कोई क्या बनते, कोई क्या बनते हैं |

बाप समझाते हैं अभी यह पुरानी दुनिया बदल नई बनती है | वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी ज़रूर रिपीट होती है | नई दुनिया है सतोप्रधान | घर भी पहले नया होता है तो कहेंगे सतोप्रधान फिर पुराना जड़जड़ीभूत तमोप्रधान होता है | इस बेहद के नाटक वा सृष्टि चक्र की नॉलेज को समझना है क्योंकि यह पढ़ाई है | भक्ति नहीं है | भक्ति को पढ़ाई नहीं कहा जाता है क्योंकि भक्ति में एम ऑब्जेक्ट कुछ भी होती नहीं | जन्म-जन्मान्तर वेद-शास्त्र आदि पढ़ते रहो | यहाँ तो दुनिया को बदलना है, सतयुग-त्रेता में भक्ति नहीं | भक्ति शुरू होती है द्वापर से | तो यह बाप रूहानी बच्चों को बैठ समझाते हैं | इसको कहा जाता है रूहानी नॉलेज अथवा रूहानी ज्ञान | रूहानी नॉलेज कौन सिखलायेगा? सुप्रीम रूह यानी परमपिता ही सिखलायेगा | वह तो सभी का है ना | लौकिक बाप को कभी परमपिता नहीं कहेंगे | पारलौकिक को परमपिता कहा जाता है | वह हैं परमधाम में रहने वाले | बाप को याद भी ऐसे करते हैं – हे गॉड, हे ईश्वर | वास्तव में उनका नाम है एक | परन्तु भक्ति में अनेक नाम दे दिये हैं | भक्ति का फैलाव बहुत है | वह सब है मनुष्य मत | अब मनुष्यों को चाहिए ईश्वरीय मत | ईश्वरीय मत, श्रीमत | श्री श्री 108 की तो माला बनती है ना | यह प्रवृत्ति मार्ग की माला बनती है | फिर पुनर्जन्म लेते-लेते सीढ़ी उतरते इनसालवेन्ट बन जाते हो | बुद्धि इनसालवेन्ट बन जाती है तो मनुष्य देवाला मारते हैं | जो 100 परसेन्ट सालवेन्ट थे सो इस समय इनसालवेन्ट हैं | बुद्धि को ताला लगा हुआ है | वह लॉक किसने लगाया? गॉडरेज का ताला लग जाता है | भारत जितना नम्बरवन में था उतना और कोई खण्ड नहीं | भारत की बहुत महिमा है | भारत सब धर्म वालों का बहुत बड़े ते बड़ा तीर्थ है | परन्तु ड्रामा अनुसार गीता को खण्डन कर दिया है | भारत और सारी दुनिया की भूल है | भारत में ही गीता को खण्डन किया है, जिस गीता के ज्ञान से बाप नई दुनिया बनाते हैं और सर्व की सद्गति करते हैं |

भारत सबसे ऊँच और बहुत धनवान खण्ड था जो अभी फिर से बन रहा है | यह उल्टा झाड़ है, इनका बीज ऊपर में है | उसको वृक्षपति कहा जाता है | बृहस्पति की दशा बैठती है ना | बाप समझाते हैं मैं वृक्षपति आता हूँ तो भारत पर बृहस्पति की दशा बैठती है | ऊँच बन जाते हैं | फिर रावण आया है तो राहू की दशा बैठ जाती है | भारत का क्या हाल हो जाता है | वहाँ तो तुम्हारी आयु भी बड़ी रहती है क्योंकि पवित्र हो | आधाकल्प तुम 21 जन्म लेते हो | बाकी आधाकल्प में भोगी बनने से आयु भी छोटी हो जाती है तो फिर तुम 63 जन्म लेते हो | अभी बाप समझाते हैं सतोप्रधान बनना है इसलिए मामेकम् याद करो | सब धर्म वाले इस समय तमोप्रधान हैं | तुम सभी को यह ज्ञान दे सकते हो | आत्माओं का बाप तो एक ही है | सब ब्रदर्स हैं क्योंकि हम आत्मायें एक बाप के बच्चे हैं | भल कहते भी हैं हिन्दू-मुसलमान भाई-भाई हैं परन्तु अर्थ नहीं जानते हैं | आत्मा कहती राईट है | सब ब्रदर्स का बाप एक है | वर्सा देना ही है बड़े बाबा को | वह आते भी भारत में हैं | शिव जयन्ती मनाते हैं परन्तु वह कब आया था – यह किसको भी पता नहीं है | तुम्हारी युद्ध है 5 विकारों से | काम तो तुम्हारा नम्बरवन दुश्मन है | रावण को जलाते हैं | परन्तु वह है कौन? क्यों जलाते हैं? कुछ नहीं जानते | द्वापर से लेकर तुम नीचे उतरते इस समय पतित बन गये हो | एक तरफ़ शिव बाबा को याद कर पूजते हैं, दूसरी तरफ़ फिर कहते हैं कि वह सर्वव्यापी है | जिसने तुमको विश्व का मालिक बनाया उनको तुम माया के चक्र में आकर गाली देते हो | बाप कहते हैं – मीठे बच्चों, तुम मुझे अनगिनत जन्मों में ले गये हो | मुझे कण-कण में कह दिया है | यह भी ड्रामा बना हुआ है | बेहद के बाप की ग्लानि करते कितनी पाप आत्मायें बन गये हैं | रावण राज्य है ना |

यह भी तुम जानते हो – इस समय सब भक्तियाँ हैं | सबकी सद्गति करने वाला कौन है? सचखण्ड स्थापन करने वाला सबका बाबा है | रावण को बाबा नहीं कहा जाता है | 5 विकार हरेक में हैं | विकार से पैदा होते हैं इसलिए भ्रष्टाचारी कहा जाता है | देवताओं को कहा जाता है सम्पूर्ण निर्विकारी | अभी हैं सम्पूर्ण विकारी | देवतायें जो पूज्य हैं, वही फिर पुजारी बनते हैं | वह कह देते हैं आत्मा सो परमात्मा | बाप कहते हैं यह भूल है | पहले-पहले तो अपने को आत्मा निश्चय करना है | हम आत्मा इस समय ब्राह्मण कुल के हैं, फिर देवता कुल में जाते हैं | यह ब्राह्मण कुल है सर्वोत्तम कुल | ब्राह्मणों की डिनायस्टी नहीं है | चोटी है ब्राह्मणों की | तुम ब्राह्मण हो ना | सबसे ऊपर में है शिवबाबा | भारत में विराट रूप बनाते हैं | परन्तु उसमें न ब्राह्मणों की चोटी है, न चोटियों (ब्राह्मणों) का बाप है | अर्थ कुछ भी नहीं समझते | त्रिमूर्ति का अर्थ भी नहीं समझते | नहीं तो भारत का कोट ऑफ़ आर्मस त्रिमूर्ति शिव का होना चाहिए | अभी तो यह काँटों का जंगल है | तो जंगली जानवरों का कोट ऑफ़ आर्मस बना दिया है | उसमें फिर लिखा है सत्य मेव जयते | सतयुग में तो दिखाते हैं शेर-बकरी इकट्ठे जल पीते हैं | सत्य मेव जयते माना विजय | सब खीरखण्ड हो रहते हैं | लून-पानी नहीं होते हैं | रावण राज्य में लून-पानी, राम राज्य में क्षीरखण्ड हो जाते हैं | इनको कहा ही जाता है काँटों का जंगल | एक-दो को पहला नम्बर काँटा विकार का लगाते हैं | बाप कहते हैं काम महाशत्रु है | यह आदि, मध्य, अन्त दुःख देने वाला है | नाम ही है रावण राज्य | बाप कहते हैं इन 5 विकारों पर जीत पाकर जगतजीत बनो | यह अन्तिम जन्म निर्विकारी बनो | तुम तमोप्रधान पतित बने हो, फिर सतोप्रधान पावन बनो | गंगा कोई पतित-पावनी नहीं है | शरीर का मैल तो घर में भी पानी से उतार सकते हो | आत्मा सो साफ़ नहीं हो सकती | भक्ति मार्ग में कितने ढेर के ढेर गुरु लोग हैं | सतगुरु तो एक ही है सद्गति करने वाला | सुप्रीम बाप भी है, सुप्रीम टीचर भी है, सुप्रीम सतगुरु भी है | वही तुमको सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त का नॉलेज सुनाते हैं | अच्छा!

 मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 धारणा के लिए मुख्य सार:-

 1.  सतोप्रधान बनने के लिए सिवाए बाप के और किसी को भी याद नहीं करना है | देही-अभिमानी बनने की प्रैक्टिस करनी है |

 2.   सबसे क्षीरखण्ड होकर रहना है | इस अन्तिम जन्म में विकारों पर विजय प्राप्त कर जगतजीत बनना है |

 

वरदान:-

महसूसता की शक्ति द्वारा स्व परिवर्तन करने वाले तीव्र पुरुषार्थी भव !   

कोई भी परिवर्तन का सहज आधार महसूसता की शक्ति है | जब तक महसूसता की शक्ति नहीं आती तब तक अनुभूति नहीं होती और जब तब अनुभूति नहीं तब तक ब्राह्मण जीवन की विशेषता का फाउण्डेशन मज़बूत नहीं | उमंग-उत्साह की चाल नहीं | जब महसूसता की शक्ति हर बात का अनुभवी बनाती है तब तीव्र पुरुषार्थी बन जाते हो | महसूसता की शक्ति सदाकाल के लिए सहज परिवर्तन करा देती है |

 स्लोगन:- 

 स्नेह के स्वरूप को साकार में इमर्ज कर ब्रह्मा बाप समान बनो |     

 

ओम् शान्ति |