25-11-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - बाबा की दृष्टि हद और बेहद से भी पार जाती है,
तुम्हें भी हद (सतयुग),
बेहद (कलियुग) से पार जाना है” 
प्रश्न:-
ऊंच
ते ऊंच ज्ञान रत्नों की धारणा किन बच्चों को अच्छी होती है?
उत्तर:-
जिनका
बुद्धियोग एक बाप के साथ है,
पवित्र बने हैं,
उन्हें इन रत्नों की धारणा अच्छी होगी । इस ज्ञान के लिए शुद्ध
बर्तन चाहिए । उल्टे-सुल्टे संकल्प भी बन्द हो जाने चाहिए ।
बाप के साथ योग लगाते- लगाते बर्तन सोना बने तब रत्न ठहर सकें
।
ओम्
शान्ति |
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों को रूहानी बाप बैठ रोज-राज समझाते हैं
। यह तो समझाया है बच्चों को-ज्ञान,
भक्ति और वैराग्य का यह सृष्टि चक्र बना हुआ है बुद्धि में यह
ज्ञान रहना चाहिए । तुम बच्चों को हद और बेहद से पार जाना है ।
बाप तो हद और बेहद से पार है । उनका भी अर्थ समझना चाहिए ना ।
रूहानी बाप बैठ समझाते हैं । वह भी टॉपिक समझानी है कि ज्ञान,
भक्ति,
पीछे
है वैराग्य । ज्ञान को कहा जाता है दिन,
जबकि
नई दुनिया है । उसमें यह भक्ति अज्ञान है नहीं । वह है हद की
दुनिया क्योंकि वहाँ बहुत थोड़े होते हैं । फिर आहिस्ते-
आहिस्ते वृद्धि होती है । आधा समय बाद भक्ति शुरू होती है ।
वहाँ सन्यास धर्म होता ही नहीं । सन्यास वा त्याग होता नहीं ।
फिर बाद में सृष्टि की वृद्धि होती है । ऊपर से आत्मायें आती
जाती हैं । यहाँ वृद्धि होती रहती । हद से शुरू होती है,
बेहद
में जाती है । बाप की तो हद और बेहद से पार दृष्टि जाती है ।
जानते हैं हद में कितने थोड़े बच्चे होते हैं फिर रावण राज्य
में कितनी वृद्धि हो जाती है । अब तुमको हद और बेहद से भी पार
जाना है । सतयुग में कितनी छोटी दुनिया है । वहाँ सन्यास वा
वैराग्य आदि होता नहीं । बाद में द्वापर से लेकर फिर और धर्म
शुरू होते हैं । सन्यास धर्म भी होता है जो घरबार का सन्यास
करते हैं । सबको जानना तो चाहिए ना । उनको कहा जाता हठयोग और
हद का सन्यास । सिर्फ घरबार छोड़ जंगल में जाते हैं । द्वापर से
भक्ति शुरू होती है । ज्ञान तो होता ही नहीं । ज्ञान माना
सतयुग-त्रेता सुख । भक्ति माना अज्ञान और दु :ख । यह अच्छी
रीति समझाना होता है फिर दु :ख और सुख से पार जाना है । हद
बेहद से पार । मनुष्य जाँच करते हैं ना । कहाँ तक समुद्र है,
आसमान है । बहुत कोशिश करते हैं परन्तु अन्त पा नहीं सकते हैं
। एरोप्लेन में जाते हैं । उसमें भी इतना तेल चाहिए ना जो फिर
वापिस भी लौट सकें । बहुत दूर तक जाते हैं परन्तु बेहद में जा
नहीं सकते । हद तक ही जायेंगे । तुम तो हद,
बेहद
से पार जाते हो । अभी तुम समझ सकते हो पहले नई दुनिया में हद
है । बहुत थोड़े मनुष्य होते हैं । उसको सतयुग कहा जाता है ।
तुम बच्चों को रचना के आदि,
मध्य,
अन्त
की नॉलेज होनी चाहिए ना । यह नॉलेज और कोई में है नहीं । तुमको
समझाने वाला बाप है जो बाप हद और बेहद से पार है और कोई समझा न
सके । रचना के आदि-मध्य- अन्त का राज समझाते हैं फिर कहते इससे
पार जाओ । वहाँ तो कुछ भी रहता नहीं । कितना भी दूर जाते हैं,
आसमान ही आसमान है । इनको कहा जाता है हद बेहद से पार । कोई
अन्त नहीं पा सकते । कहेंगे बेअन्त । बेअन्त कहना तो सहज है
परन्तु अन्त का अर्थ समझना चाहिए । अभी तुमको बाप समझ देते हैं
। बाप कहते हैं मैं हद को भी जानता हूँ,
बेहद
को भी जानता हूँ । फलाने-फलाने धर्म फलाने- फलाने समय स्थापन
हुए हैं! दृष्टि जाती है सतयुग की हद तरफ । फिर कलियुग के बेहद
तरफ । फिर हम पार चले जायेंगे,
जहाँ
कुछ नहीं । सूर्य चाँद के भी ऊपर हम जाते हैं,
जहाँ
हमारा शान्तिधाम,
स्वीटहोम है । यूँ सतयुग भी स्वीट होम है । वहाँ शान्ति भी है
तो राज्य- भाग्य सुख भी हैं-दोनों ही हैं । घर जायेंगे तो वहाँ
सिर्फ शान्ति होगी । सुख का नाम नहीं लेंगे । अभी तुम शान्ति
भी स्थापन कर रहे हो और सुख-शान्ति भी स्थापन कर रहे हो । वहाँ
तो शान्ति भी है,
सुख
का राज्य भी है । मूलवतन में तो सुख की बात नहीं ।
आधाकल्प तुम्हारा राज्य चलता है फिर आधाकल्प के बाद रावण का
राज्य आता है । अशान्ति है ही 5 विकारों से । 2500
वर्ष तुम राज्य करते हो फिर 2500 वर्ष
बाद रावण राज्य होता है । उन्हों ने तो लाखों वर्ष लिख दिया है
। एकदम जैसे बुद्धू बना दिया है । पांच हजार वर्ष के कल्प को
लाखों वर्ष कह देना बुद्धूपना कहेंगे ना । जरा भी सभ्यता नहीं
है । देवताओं में कितनी दैवी सभ्यता थी । वह अब असभ्यता हो पड़ी
है । कुछ नहीं जानते । आसुरी गुण आ गये हैं । आगे तुम भी कुछ
नहीं जानते थे । काम कटारी चलाए आदि-मध्य- अन्त दु :खी बना
देते हैं इसलिए उनको कहा ही जाता है रावण सम्प्रदाय । दिखाया
है राम ने बन्दर सेना ली । अब रामचन्द्र त्रेता का,
वहाँ
फिर बन्दर कहाँ से आये और फिर कहते राम की सीता चुराई गई । ऐसी
बातें तो वहाँ होती ही नहीं । जीव जानवर आदि 84 लाख योनियां
जितनी यहाँ हैं उतनी सतयुग- त्रेता में थोड़ेही होंगी । यह सारा
बेहद का ड्रामा बाप बैठ समझाते हैं । बच्चों को बहुत दूरादेशी
बनना है । आगे तुमको कुछ भी पता नहीं था । मनुष्य होकर और नाटक
को नहीं जानते हैं । अभी तुम समझते हो सबसे बड़ा कौन है?
ऊंच
ते ऊंच भगवान् । श्लोक भी गाते हैं ऊँचा तेरा नाम.. अब
तुम्हारे सिवाए और कोई की बुद्धि में नहीं है । तुम्हारे में
भी नम्बरवार हैं । बाप हद और बेहद का दोनों राज समझाते हैं ।
उनसे पार कुछ भी है नहीं । वह है तुम्हारे रहने का स्थान,
जिसको ब्रह्माण्ड भी कहते हैं । जैसे यहाँ तुम आकाश तत्व में
बैठे हो,
इनमें कुछ देखने में आता है क्या?
रेडियो में कहते हैं आकाशवाणी । अब यह आकाश तो बेअन्त है ।
अन्त पा नहीं सकते । तो आकाशवाणी कहने से मनुष्य क्या समझेंगे
। यह जो मुख है यह है पोलार । मुख से वाणी (आवाज) निकलती है ।
यह तो कॉमन बात है । मुख से आवाज निकलना जिसको आकाशवाणी कहा
जाता है । बाप को भी आकाश द्वारा वाणी चलानी पड़े । तुम बच्चों
को अपना भी राज सारा बताया है । तुमको निश्चय होता है । है
बहुत सहज । जैसे हम आत्मा हैं वैसे बाप भी परम आत्मा हैं । ऊंच
ते ऊंच आत्मा है ना । सबको अपना- अपना पार्ट मिला हुआ है ।
सबसे ऊंच ते ऊंच भगवान फिर प्रवृत्ति मार्ग का युगल मेरू । फिर
नम्बरवार माला देखो कितनी थोड़ी है फिर सृष्टि बढ़ते-बढ़ते कितनी
बड़ी हो जाती है । कितने करोड़ दानों अर्थात् आत्माओं की माला है
। यह सब है पढ़ाई । बाप जो समझाते हैं उनको अच्छी रीति बुद्धि
में धारण करो । झाड़ की डिटेल तो तुम सुनते रहते हो । बीज ऊपर
में है । यह वैराइटी झाड़ है । इनकी आयु कितनी है । झाड़ वृद्धि
को पाता रहता है तो सारा दिन बुद्धि में यही रहे । इस सृष्टि
रूपी कल्प वृक्ष की आयु बिल्कुल एक्यूरेट है । 5 हजार वर्ष से
एक सेकण्ड का भी फर्क नहीं हो सकता । तुम बच्चों की बुद्धि में
अब कितनी नॉलेज है,
जो
अच्छे मजबूत हैं । मजबूत तब होंगे जब पवित्र हो । इस नॉलेज की
धारणा करने के लिए सोने का बर्तन चाहिए । फिर ऐसा सहज हो
जायेगा जैसे बाबा के लिए सहज है । फिर तुमको भी कहेंगे मास्टर
नॉलेजफुल । फिर नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार माला का दाना बन
जायेंगे । ऐसी-ऐसी बातें बाबा बिगर कोई समझा न सके । यह आत्मा
भी समझा रही है । बाप भी इस तन द्वारा ही समझाते हैं,
न कि
देवताओं के शरीर से । बाप एक ही बार आकर गुरू बनते हैं फिर भी
बाप को ही पार्ट बजाना है । 5 हजार वर्ष बाद आकर पार्ट
बजायेंगे ।
बाप
समझाते हैं ऊंच ते ऊंच मैं हूँ । फिर है मेरू । जो आदि में
महाराजा-महारानी हैं,
वह
फिर जाकर अन्त में आदि देव,
आदि
देवी बनेंगे । यह सारा ज्ञान तुम्हारी बुद्धि में है । तुम
कहाँ भी समझाओ तो वंडर खायेंगे । यह तो ठीक बताते हैं । मनुष्य
सृष्टि का बीजरूप ही नॉलेजफुल है । उनके बिगर और कोई नॉलेज दे
नहीं सकते । यह सब बातें धारण करनी है परन्तु बच्चों को धारणा
होती नहीं हैं । है बहुत सिम्पुल । कोई मुश्किलात नहीं है । एक
तो याद की यात्रा चाहिए इसमें,
जो
फिर पवित्र बर्तन में रत्न ठहरे । यह ऊंच ते ऊंच रत्न हैं ।
बाबा तो जवाहरी था । बहुत अच्छा हीरा माणिक आदि आता था तो
चांदी की डिब्बी में कपूस आदि में अच्छी रीति रखते थे । जो कोई
भी देखे तो कहेंगे यह तो बड़ी फर्स्टक्लास चीज है । यह भी ऐसे
हैं । अच्छी चीज अच्छे बर्तन में शोभती है । तुम्हारे कान
सुनते हैं । उनमें धारणा होती है । पवित्र होगा,
बुद्धियोग बाप से होगा तो धारणा अच्छी होगी । नहीं तो सब निकल
जायेगा । आत्मा भी है कितनी छोटी । उनमें कितना ज्ञान भरा हुआ
है । कितना अच्छा शुद्ध बर्तन चाहिए । कोई संकल्प भी न उठे ।
उल्टे-सुल्टे संकल्प सब बन्द हो जाने चाहिए । सब तरफ से
बुद्धियोग हटाना है । मेरे साथ योग लगाते-लगाते बर्तन सोना बना
दो जो रत्न ठहर सकें । फिर दूसरों को दान करते रहेंगे । भारत
को महादानी माना जाता है,
वह
धन दान तो बहुत करते हैं । परन्तु यह है अविनाशी ज्ञान रत्नों
का दान । देह सहित जो कुछ है वह सब छोड़कर एक के साथ बुद्धि का
योग रहे । हम तो बाप के हैं,
इसमें ही मेहनत लगती है । एम ऑब्जेक्ट तो बाप बता देते हैं ।
पुरुषार्थ करना बच्चों का काम हैं । अब ही इतना ऊंच पद पा
सकेंगे । कोई भी उल्टा-सुल्टा संकल्प वा विकल्प न आये । बाप ही
नॉलेज का सागर,
हद
बेहद से पार है । सब बैठ समझाते हैं । तुम समझते हो बाबा हमको
देखते हैं परन्तु हम तो हद-बेहद से पार ऊपर चला जाता हूँ । मैं
रहने वाला भी वहाँ का हूँ | तुम भी हद बेहद से पार चले जाओ ।
संकल्प विकल्प कुछ भी न आये । इसमें मेहनत चाहिए । गृहस्थ
व्यवहार में रहते कमल फूल समान बनना है । हथ कार डे दिल यार डे
। गृहस्थी तो बहुत हैं । गृहस्थी जितना उठाते हैं उतना घर में
रहने वाले बच्चे नहीं । सेण्टर चलाने वाले,
मुरली चलाने वाले भी ना पास हो जाते हैं और पढ़ने वाले ऊंच चले
जाते हैं । आगे तुमको सब मालूम पड़ता जायेगा । बाबा बिल्कुल ठीक
बताते हैं । हमको जो पढ़ाते थे उनको माया खा गई । महारथी को
माया एकदम हप कर गई । हैं नहीं । मायावी ट्रेटर बन जाते हैं ।
विलायत में भी ट्रेटर बन पड़ते हैं ना । कहाँ-कहॉ जाकर शरण लेते
हैं । जो पॉवरफुल होते हैं उस तरफ चले जाते हैं । इस समय तो
मौत सामने है ना तो बहुत ताकत वाले पास जायेंगे । अभी तुम
समझते हो बाप ही पॉवरफुल है । बाप है सर्वशक्तिमान । हमको
सिखलाते-सिखलाते सारे विश्व का मालिक बना देते हैं । वहाँ सब
कुछ मिल जाता है । कोई अप्राप्त वस्तु नहीं होती,
जिसकी प्राप्ति के लिए हम पुरूषार्थ करें । वहां कोई ऐसी चीज
होती नहीं जो तुम्हारे पास न हो । सो भी नम्बरवार पुरूषार्थ
अनुसार पद पाते हैं । बाप बिगर ऐसी बातें कोई नहीं जानते । सब
हैं पुजारी । भल बड़े-बड़े शंकराचार्य आदि हैं,
बाबा
उन्हों की महिमा भी सुनाते हैं । पहले पवित्रता की ताकत से
भारत को बहुत अच्छा थमाने निमित्त बनते हैं । सो भी जब
सतोप्रधान होते हैं । अभी तो तमोप्रधान हैं । उनमें क्या ताकत
रखी है । अभी तुम जो पुजारी थे सो फिर पूज्य बनने का पुरुषार्थ
कर रहे हो । अभी तुम्हारी बुद्धि में सारा ज्ञान है । बुद्धि
में धारणा रहे और तुम समझाते रहो । बाप को भी याद करो । बाप ही
सारे झाड़ का राज समझाते हैं । बच्चों को मीठा भी ऐसा बनने का
है । युद्ध है ना । माया के तूफान भी बहुत आते हैं । सब सहन
करना पड़ता है । बाप की याद में रहने से तूफान सब चले जायेंगे ।
हातमताई का खेल बताते हैं ना । मुहलत डालते थे,
माया
चली जाती थी । मुहलरा निकालने से ही माया आ जाती थी । छुईमुई
होती है ना । हाथ लगाओ तो मुरझा जाते हैं । माया बड़ी तीखी है,
इतना
ऊंच पढ़ाई पढ़ते-पढ़ते बैठे-बैठे गिरा देती है इसलिए बाप समझाते
रहते हैं अपने को भाई- भाई समझो तो फिर हद बेहद से पार चले
जायेंगे । शरीर ही नहीं तो फिर दृष्टि कहाँ जायेगी । इतनी
मेहनत करनी है,
सुनकर फाँ नहीं हो जाना है । कल्प-कल्प तुम्हारा पुरुषार्थ
चलता है और तुम अपना भाग्य पाते हो । बाप कहते हैं पढ़ा हुआ सब
भूलो । बाकी जो कभी नहीं पढ़े हो वह सुनो और याद करो । उनको कहा
जाता है भक्ति मार्ग । तुम राजऋषि हो ना । जटायें खुली हो और
मुरली चलाओ । साधु-सन्त आदि जो सुनाते हैं वह सब हैं मनुष्यों
की मुरली । यह है बेहद के बाप की मुरली । सतयुग-त्रेता में तो
ज्ञान के मुरली की दरकार ही नहीं । वहाँ न ज्ञान की,
न
भक्ति की दरकार है । यह ज्ञान तुमको मिलता है इस संगमयुग पर और
बाप ही देने वाला है । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
बुद्धि
में ज्ञान रत्नों को धारण कर दान करना है । हद बेहद से पार ऐसी
स्थिति में रहना है जो कभी भी उल्टा-सुल्टा संकल्प वा विकल्प न
आये । हम आत्मा भाई- भाई हैं,
यही स्मृति रहे ।
2.
माया के
तूफानों से बचने के लिए मुख में बाप की याद का मुहलत डाल लेना
है । सब कुछ सहन करना है । छुईमुई नहीं बनना है । माया से हार
नहीं खानी है ।
वरदान:-
लौकिक अलौकिक जीवन में सदा न्यारे बन परमात्म साथ के अनुभब
द्वारा नष्टोमोहा
भव ! 
सदा
न्यारे रहने की निशानी है प्रभू प्यार की अनुभूति और जितना
प्यार होता है उतना साथ रहेंगे,
अलग
नहीं होंगे । प्यार उसको ही कहा जाता है जो साथ रहे । जब बाप
साथ है तो सर्व बोझ बाप को देकर खुद हल्के हो जाओ,
यही
विधि है नष्टामोहा बनने की । लेकिन पुरुषार्थ की सबजेक्ट में
सदा शब्द को अन्डरलाइन करो । लौकिक और अलौकिक जीवन में सदा
न्यारे रहो तब सदा साथ का अनुभव होगा ।
स्लोगन:-
विकारों
रूपी सांपों को अपनी शैया बना दो तो सहजयोगी बन जायेंगे । 
ओम्
शान्ति |