19-10-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “अव्यक्त-बापदादा”
रिवाइज:28-12-78
मधुबन
“परमात्म
प्रत्यक्षता का आधार सत्यता और सत्यता का आधार स्वच्छता और
निर्भयता”
आज
बापदादा सर्व बच्चों को शक्ति सेना वा पाण्डव सेना के रूप में
देख रहे हैं । सेनापति अपनी सेना को देख हर्षित भी हो रहे हैं
और साथ-साथ अपनी सेना के महारथी वा घोड़े सवार दोनों के कर्तव्य
को देख रहे हैं - महारथी क्या कर रहे हैं,
घोड़े
सवार क्या कर रहे हैं! दोनों ही अपना- अपना पार्ट बजा रहे हैं
। अब तक ड्रामा अनुसार जो भी हरेक ने पार्ट बजाया वह नम्बरवार
अच्छा कहेंगे | लेकिन अब क्या करना है?
महारथियों को अब अपनी कौन-सी महावीरता दिखानी है?
बाप-दादा विशेष महावीरनियों और महावीरों की सेवा के पार्ट को
देख रहे थे । अब तक सेवा के क्षेत्र में कहाँ तक पहुँचे हैं?
जैसे
स्थूल सेना का सेनापति नक्शे के आधार पर सदा देखते रहते हैं कि
सेना कहाँ तक पहुँची है! कितनी एरिया के विजयी बने हैं?
अस्त्र शस्त्र,
बारुद अर्थात् सामग्री कहाँ तक स्टाक में जमा है?
आगे
क्या लक्ष्य है?
लक्ष्य की मंज़िल से कहाँ तक दूर है?
किस
स्पीड से बढ़ते जा रहे हैं?
वैसे
आज बाप-दादा भी आदि से अब तक के सेवा के नक्शे को देख रहे थे ।
रिजल्ट क्या देखा?
महावीर वा महावीरनियां सेवा के क्षेत्र में आगे बढ़ते जा रहे
हैं शस्त्र भी सब साथ में हैं,
एरिया भी बढ़ाते जा रहे हैं,
लेकिन अभी तक आत्मिक बाम्ब लगाया है,
अभी
परमात्म बाम्ब लगाना है । आत्मिक सुख वा आत्मिक शान्ति की
अनुभूति,
रुहानियत की अनुभूति के भिन्न-भिन्न शस्त्र नम्बरवार समय
प्रमाण कार्य में लगाया है लेकिन लास्ट बाम्ब अर्थात् परमात्म
बाम्ब है बाप की प्रत्यक्षता का । जो देखे,
जो
सम्पर्क में आ करके सुने,
उनके
द्वारा यह आवाज निकले कि बाप आ गये हैं । डायरेक्ट आलमाइटी
अथॉरिटी का कर्तव्य चल रहा है । यह अन्तिम बाम्ब है जिससे
चारों ओर से आवाज़ निकलेगा । अभी यह कार्य रहा हुआ है । यह कैसे
होगा और कब होगा?
परमात्म प्रत्यक्षता का आधार सत्यता है । सत्यता ही
प्रत्यक्षता है । एक स्वयं के स्थिति की सत्यता,
दूसरी सेवा की सत्यता । सत्यता का आधार है स्वच्छता और
निर्भयता । इन दोनों धारणाओं के आधार से सत्यता द्वारा ही
प्रत्यक्षता होगी । किसी भी प्रकार की अस्वच्छता अर्थात् ज़रा
भी सच्चाई-सफाई की कमी है तो कर्तव्य की सिद्धि,
प्रत्यक्षता हो नहीं सकती ।
सच्चाई और सफाई -
सच्चाई अर्थात् मैं जो हूँ
,
जैसा
हूँ - सदा उस ओरीजनल सतोप्रधान स्वरूप में स्थित रहना है । रजो
और तमो स्टेज सच्चाई की ओरीजनल स्टेज नहीं । यह संगदोष की
स्टेज है । किसका संग?
माया
अथवा रावण का । आत्मा की सत्यता सतोप्रधानता है । तो पहली यह
सच्चाई है । दूसरी बात - बोल और कर्म में भी सच्चाई अर्थात्
सत्यता की स्टेज सतोप्रधानता है वा अभी रजो और तमो मिक्स है?
सत्यता नेचुरल संस्कार रूप में है वा पुरुषार्थ से सत्यता की
स्टेज को लाना पड़ता है?
जैसे
बाप को ट्रुथ अर्थात् सत्य कहते हैं वैसे ही आत्मिक स्वरूप की
वास्तविकता भी सत्य अर्थात ट्रुथ है । तो सत्यता सतोप्रधानता
को कहा जाता है,
ऐसी
सच्चाई है?
सफाई
अर्थात् स्वच्छता । जरा भी संकल्प द्वारा भी अशुद्धि अर्थात्
बुराई को वा अवगुण को टच किया वा धारण किया तो सम्पूर्ण सफाई
नहीं कहेंगे । जैसे स्थूल में भी कोई प्रकार की गन्दगी को
देखना भी अच्छा नहीं लगता,
देखने से किनारा कर देंगे,
ऐसे
बुराई को सोचना भी बुराई को टच करना हुआ । सुनना और बोलना वा
करना यह तो स्वयं ही बुराई को धारण करते हैं । सफाई अर्थात्
स्वच्छता,
संकल्प मात्र भी अशुद्धि न हो । इसको कहा जाता है सच्चाई और
सफाई अर्थात् स्वच्छता । दूसरी बात है निर्भयता । निर्भयता की
परिभाषा भी बड़ी गुह्य है ।
पहली
बात - अपने पुराने तमोगुणी संस्कार पर विजयी बनने की निर्भयता
। क्या करुँ,
होता
नहीं,
संस्कार बहुत प्रबल हैं - यह भी निर्भयता नहीं । अन्य आत्माओं
के सम्पर्क और सम्बन्ध में स्वयं के संस्कार मिलाना और अन्य के
संस्कार परिवर्तन करना - इसमें भी निर्भयता हो । पता नहीं चल
सकेंगे,
निभा
सकेंगे,
मेरा
मानेंगे वा नहीं मानेंगे इसमें भी अगर भयता है तो इसको
सम्पूर्ण निर्भयता नहीं कहेंगे । तीसरी बात - विश्व की सेवा
में अर्थात् सेवा के क्षेत्र में वायुमण्डल वा अन्य आत्माओं के
सिद्धान्तों की परिपक्वता को देखते हुए संकल्प में भी उन्हों
की परिपक्वता का या वातावरण,
वायुमण्डल का प्रभाव पड़ना - यह भी भयता है । यह बिगड़ जायेंगे,
हंगामा हो जायेगा,
हलचल
हो जायेगी इससे भी निर्भयता हो । जब आत्म ज्ञानी,
आप
तना द्वारा निकली हुई शाखाएं वह भी अपने अल्पज्ञ मान्यता में
निर्भयता का प्रभाव डालती है,
अपनी
अल्प मत को प्रत्यक्ष करने में निर्भय होती है,
झूठ
को सच करके सिद्ध करने में अटल और अचल रहती है,
तो
सर्वज्ञ बाप के श्रेष्ठ मत वा अनादि आदि सत्य को प्रत्यक्ष
करने में संकोच करना भी भय है । शाखाएं हिलने वाली होती हैं,
तना
अचल होता है तो शाखायें निर्भय हो और तना में संकोच के भय की
हलचल हो तो इसको क्या कहेंगे?
इसलिए जो प्रत्यक्षता का आधार स्वच्छता और निर्भयता है उसको
चेक करो । इसी को ही सत्यता कहा जाता है । इस सत्यता के आधार
पर ही प्रत्यक्षता है इसलिए अन्तिम पावरफुल बाम्ब परमात्म
प्रत्यक्षता अब शुरु नहीं की है । अब तक की रिजल्ट में राजयोगी
आत्माएं श्रेष्ठ हैं,
राजयोग श्रेष्ठ है,
कर्तव्य श्रेष्ठ है,
परिवर्तन श्रेष्ठ है - यह प्रत्यक्ष हुआ है लेकिन सिखाने वाला
डायरेक्ट आलमाइटी है,
ज्ञान सूर्य साकार सृष्टि पर उदय हुआ है,
यह
अभी गुप्त है । परमात्म बाम्ब की रिजल्ट क्या होगी?
विश्व की सर्व आत्माओं के अल्पकाल के सब सहारे समाप्त हो एक
बाप का सहारा अनुभव होगा । जैसे साइन्स के बाम्ब द्वारा देश का
देश समाप्त हो पहला दृश्य कुछ भी नजर नहीं आता,
सब
समाप्त हो जाता है ऐसे इस अन्तिम बाम्ब द्वारा सर्व अल्पकाल के
साधना रूपी साधन समाप्त हो एक ही यथार्थ साधन राजयोग द्वारा
हरेक के बीच बाप प्रत्यक्ष होगा । विश्व में विश्व पिता स्पष्ट
दिखाई देगा । हर धर्म की आत्मा द्वारा एक ही बोल निकलेगा कि
हमारा बाप,
हिन्दुओं वा मुसलमानों का नहीं - सबका बाप । इसको कहा जाता है
परमात्म बाम्ब द्वारा अन्तिम प्रत्यक्षता । अब रिजल्ट सुनी कि
क्या कर रहे हैं और क्या करना है?
अब
के वर्ष परमात्म बाम्ब फेंको । स्वच्छता और निर्भयता के आधार
से सत्यता द्वारा प्रत्यक्षता करो । अच्छा ।
ऐसे
बाप को विश्व के आगे प्रत्यक्ष करने वाले,
सदा
निर्भय,
सदा
एक ही धुन में मस्त रहने वाले रमता सहज राजयोगी,
अन्तिम समय को समीप लाने वाले अर्थात् सर्व आत्माओं की
मनोकामनाएं पूर्ण करने वाले बाप समान दया वा रहम के सागर,
ऐसे
रहमदिल बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते ।
पार्टियों के साथ बातचीत: -
सभी
अपने श्रेष्ठ भाग्य के गुणगान करते हुए सदा खुशी में रहते हो?
ऐसा
श्रेष्ठ भाग्य जिसका गायन स्वयं भगवान करे,
ऐसा
भाग्य फिर कभी मिलेगा?
भविष्य में भी ऐसा भाग्य नहीं होगा,
अब
नहीं तो कब नहीं,
ऐसी
खुशी होती है?
भाग्य का सितारा सदैव चमकता रहे तो चमकती हुई चीज की तरफ स्वत:
ही सबका अटेंशन जाता है,
यह
क्या है?
ऐसे
हरेक के मस्तक बीच भाग्य का सितारा सदैव चमकता रहे तो विश्व की
नजर आटोमेटिकली जायेगी कि यह कौन से भाग्य का सितारा चमकता हुआ
दिखाई दे रहा है । जैसे कोई विशेष सितारा विशेष रूप से चमकता
है तो आटोमेटिक सबका अटेंशन जाता है,
ऐसे
भाग्य का सितारा सबको आकर्षित करे । ऐसा चमकता हुआ सितारा
स्वयं को भी दिखाई दे और विश्व को भी । चमकती हुई चीज न चाहते
भी,
नजर
घुमाते भी दिखाई देती है,
तो
भले चारों तरफ नजर घुमायें लेकिन आखिर में आपके तरफ ही नजर
आएगी,
ऐसा
चमकता हुआ भाग्य अनुभव होता है?
इस समय की ऊंची स्थिति की रिजल्ट सारे कल्प में ऊंचे
इस
समय की ऊंची स्थिति वाले उच्च पद पाने वाले होंगे,
विश्व में पूज्य के रूप में भी ऊंचे होंगे,
बाप
के बच्चे भी ऊंचे,
भक्ति में भी ऊंचे और ज्ञान में भी ऊंचा राज्य करने में भी ऊंच
होंगे । हर पार्ट ऊँचा बजाने कारण,
ऊंचे
ते ऊंची आत्मा अनुभव करेंगे ।
वरदान:-
रॉयल
और सिम्पल दोनों के बैलेन्स से कार्य करने वाले ब्रह्मा बाप
समान भव
!
जैसे
ब्रह्मा बाप साधारण रहे,
न
बहुत ऊंचा न बहुत नींचा । ब्राह्मणों का आदि से अब तक का नियम
है कि न बिल्कुल सादा हो,
न
बहुत रॉयल हो । बीच का होना चाहिए । अभी साधन बहुत हैं,
साधन
देने वाले भी हैं फिर भी कोई भी कार्य करो तो बीच का करो । ऐसा
कोई न कहे कि यहाँ तो राजाई ठाठ हो गया है । जितना सिम्पल उतना
रायॅल - दोनों का बैलेन्स हो ।
स्लोगन:-
दूसरों को देखने के बजाए स्वयं को देखो और याद रखो -
''जो
कर्म हम करेंगे हमें देख और करेंगे''
।
ओम्
शान्ति
|