07-07-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे
–
बाप
समान रहमदिल और कल्याणकारी बनो, समझदार वह जो खुद भी पुरुषार्थ
करे और दूसरों को भी कराये” 
प्रश्न:-
तुम
बच्चे अपनी पढ़ाई से कौन-सी चेकिंग कर सकते हो, तुम्हारा
पुरुषार्थ क्या है?
उत्तर:-
पढ़ाई
से तुम चेकिंग कर सकते हो कि हम उत्तम पार्ट बजा रहे हैं या
मध्यम या कनिष्ट | सबसे उत्तम पार्ट उनका कहेंगे जो दूसरों को
भी उत्तम बनाते हैं अर्थात् सर्विस कर ब्राह्मणों की वृद्धि
करते हैं | तुम्हारा पुरुषार्थ है ही पुरानी जुत्ती उतार नई
जुत्ती लेने का | जब आत्मा पवित्र बनें तब उसे नई जुत्ती (शरीर
) मिले |
ओम्
शान्ति
|
बच्चे दो तरफ़ से कमाई कर रहे हैं | एक तरफ़ है याद की यात्रा से
कमाई और दूसरे तरफ़ है 84 के चक्र के ज्ञान का सिमरण करने से
कमाई | इसको कहा जाता है डबल आमदनी और अज्ञान काल में होती है
अल्पकाल क्षण भंगुर सिंगल आमदनी | यह तुम्हारी याद की यात्रा
की आमदनी बहुत बड़ी है | आयु भी बड़ी हो जाती है, पवित्र भी बनते
हो | सभी दुःखों से छूट जाते हो | बहुत बड़ी आमदनी है | सतयुग
में आयु भी बड़ी हो जाती है | दुःख का नाम नहीं क्योंकि वहाँ
रावण राज्य ही नहीं | अज्ञान काल में पढ़ाई का अल्पकाल का सुख
रहता है और दूसरा पढ़ाई का सुख, शास्त्र पढ़ने वालों को मिलता है
| उनसे फ़ालोअर्स को कुछ फ़ायदा नहीं | फ़ालोअर्स तो हैं भी नहीं
क्योंकि वह तो न ड्रेस आदि बदलते, न घरबार छोड़ते तो फ़ालोअर्स
कैसे कह सकते! वहाँ तो शान्ति, पवित्रता सब है | यहाँ
अपवित्रता के कारण घर-घर में कितनी अशान्ति होती है | तुमको मत
मिलती है ईश्वर की | अभी तुम अपने बाप को याद करो | अपने को
ईश्वरीय गवर्मेन्ट समझो | परन्तु तुम हो गुप्त | दिल में कितनी
ख़ुशी होनी चाहिए | अभी हम हैं श्रीमत पर | उनकी शक्ति से
सतोप्रधान बन रहे हैं | यहाँ तो कोई राज्य-भाग्य लेना नहीं है
| हमारा राज्य-भाग्य होता ही है नई दुनिया में | अभी उसका
मालूम पड़ा है | इन लक्ष्मी-नारायण के 84 जन्मों की कहानी तुम
बता सकते हो | भल कोई भी मनुष्य मात्र हो, कैसा भी कोई पढ़ाने
वाला हो परन्तु एक भी ऐसे कह नहीं सकेंगे कि आओ तो हम इन्हों
के 84 जन्म की कहानी बतायें | तुम्हारी बुद्धि में अब स्मृति
रहती है, विचार सागर मंथन भी करते हो |
अब
तुम हो ज्ञान सूर्यवंशी | फिर सतयुग में कहा जायेगा विष्णु
वंशी | ज्ञान सूर्य प्रगटा......... | इस समय तुम्हें ज्ञान
मिल रहा है ना | ज्ञान से ही सद्गति होती है | आधाकल्प ज्ञान
चलता है फिर आधाकल्प अज्ञान हो जाता है | यह भी ड्रामा की नूँध
है | तुम अभी समझदार बने हो | जितना-जितना तुम समझदार बनते हो
औरों को भी आपसमान बनाने का पुरुषार्थ करते हो | तुम्हारा बाप
रहमदिल, कल्याणकारी है तो बच्चों को बनना है | बच्चे
कल्याणकारी न बनें तो उनको क्या कहेंगे? गायन भी है ना –
“हिम्मते बच्चे, मददे बाप | यह भी ज़रूर चाहिए | नहीं तो वर्सा
कैसे पायेंगे | सर्विस अनुसार तो वर्सा पाते हो, ईश्वरीय मिशन
हो ना | जैसे क्रिश्चियन मिशन, इस्लामी मिशन होती है वह अपने
धर्म को बढ़ाते हैं | तुम अपने ब्राह्मण धर्म और दैवी धर्म को
बढ़ाते हो | ड्रामा अनुसार तुम बच्चे ज़रूर मददगार बनेंगे | कल्प
पहले जो पार्ट बजाया था वह ज़रूर बजायेंगे | तुम देख रहे हो हर
एक अपना उत्तम, मध्यम, कनिष्ट पार्ट बजा रहे हैं | सबसे उत्तम
पार्ट वह बजाते हैं, जो उत्तम बनाने वाला है | तो सभी को बाप
का परिचय देना है और आदि, मध्य, अन्त का राज़ समझाना है |
ऋषि-मुनि आदि भी नेती-नेती कहते गये | और फिर कह देते
सर्वव्यापी है, और कुछ नहीं जानते | ड्रामा-अनुसार आत्मा की
बुद्धि भी तमोप्रधान बन जाती है | शरीर की बुद्धि नहीं कहेंगे
| आत्मा में ही मन-बुद्धि है | यह अच्छी रीति समझकर और फिर
बच्चों को चिन्तन करना है | फिर समझाना होता है | वो लोग
शास्त्र आदि सुनाने के लिए कितने दुकान निकाल बैठे हैं |
तुम्हारी भी दुकान है | बड़े-बड़े शहरों में बड़े दुकान चाहिए |
बच्चे जो तीखे होते हैं, उनके पास ख़ज़ाना बहुत रहता है | इतना
ख़ज़ाना नहीं है तो कोई को दे भी नहीं सकते हैं! धारणा नम्बरवार
होती है | बच्चों को अच्छी रीति धारणा करनी है जो किसी को समझा
सकें | बात कोई बड़ी नहीं है, सेकण्ड की बात है – बाप से वर्सा
लेना | तुम आत्मायें बाप को पहचान गये हो तो बेहद के मालिक हो
गये | मालिक भी नम्बरवार होते हैं | राजा भी मालिक तो प्रजा भी
कहेगी हम भी मालिक हैं | यहाँ भी सब कहते हैं ना हमारा भारत |
तुम भी कहते हो श्रीमत पर हम अपना स्वर्ग स्थापन कर रहे हैं,
फिर स्वर्ग में भी राजधानी है | अनेक प्रकार के दर्जे हैं |
पुरुषार्थ करना चाहिए ऊँच पद पाने का | बाप कहते हैं जितना अभी
पुरुषार्थ कर पद पायेंगे, वही कल्प-कल्पान्तर के लिए होगा |
इम्तहान में कोई की कम मार्क्स हो जाती हैं तो फिर हार्टफेल भी
हो जाते हैं | यह तो है बेहद की बात | पूरा पुरुषार्थ नहीं
किया तो फिर दिलशिकस्त भी होंगे, सज़ा भी खानी पड़ेगी | उस समय
कर ही क्या सकेंगे | कुछ भी नहीं | आत्मा क्या करेगी! वो लोग
तो जीवघात करते, डूब मरते हैं | इसमें घात अदि की बात नहीं |
आत्मा का तो घात होता नहीं, वह तो अविनाशी है | बाकी शरीर का
घात होता है, जिससे तुम पार्ट बजाते हो | अभी तुम पुरुषार्थ
करते हो, यह पुरानी जुत्ती उतार हम नई दैवी जुत्ती ले लेवें |
यह कौन कहते हैं? आत्मा | जैसे बच्चे कहते हैं ना – हमको नया
कपड़ा दो | हम आत्माओं को भी नया कपड़ा चाहिए | बाप कहते हैं
तुम्हारी आत्मा नई बने तो शरीर भी नया चाहिए तब शोभा है |
आत्मा के पवित्र होने से 5 तत्व भी नये बन जाते हैं | 5 तत्वों
का ही शरीर बनता है | जब आत्मा सतोप्रधान है तो शरीर भी
सतोप्रधान मिलता है | आत्मा तमोप्रधान तो शरीर भी तमोप्रधान |
अब सारी दुनिया के पुतले तमोप्रधान हैं, दिन-प्रतिदिन दुनिया
पुरानी होती जाती, गिरती जाती है | नये से पुरानी तो हर एक चीज़
होती है | पुरानी हो फिर डिस्ट्रॉय होती है, यह तो सारी सृष्टि
का सवाल है | नई दुनिया को सतयुग, पुरानी को कलियुग कहा जाता
है | बाकी इस संगमयुग का तो किसको भी पता नहीं | तुम ही जानते
हो यह पुरानी दुनिया बदलनी है |
अब
बेहद का बाप जो बाप, टीचर, गुरु है, उनका फ़रमान है कि पावन बनो
| काम जो महाशत्रु है, उन पर जीत पहन जगतजीत बनो | जगत जीत
अर्थात् विष्णु वंशी बनो | बात एक ही है | इन अक्षरों का अर्थ
तुम जानते हो | बच्चे जानते हैं हमको पढ़ाने वाला है बाप | पहले
तो यह पक्का निश्चय चाहिए | बच्चा बड़ा होता है तो बाप को याद
करना पड़े | फिर टीचर को फिर गुरु को याद करना पड़े |
भिन्न-भिन्न समय पर तीनों को याद करेंगे | यहाँ तो तुमको तीनों
ही इकट्ठे एक ही टाइम मिले हैं | बाप, टीचर, गुरु एक ही है |
वो लोग तो वानप्रस्थ का भी अर्थ नहीं समझते | वानप्रस्थ में
जाना है इसलिए समझते हैं गुरु करना चाहिए | 60 वर्ष के बाद
गुरु करते हैं | यह कायदा अभी ही निकला है | बाप कहते हैं –
इनके बहुत जन्मों के अन्त में वानप्रस्थ अवस्था में मैं इनका
सतगुरु बनता हूँ | बाबा भी कहते हैं 60 वर्ष बाद सतगुरु किया
है जबकि निर्वाणधाम जाने का समय है | बाप आते ही हैं सबको
निर्वाणधाम में ले जाने | मुक्तिधाम जाकर फिर पार्ट बजाने लिए
आना है | वानप्रस्थ अवस्था तो बहुतों की होती है, फिर गुरु
करते हैं | आजकल तो छोटा बच्चा हुआ, उनको भी गुरु करा देते हैं
फिर गुरु को दक्षिणा मिल जायेगी | क्रिश्चियन लोग क्रिश्चिनाइज़
कराने गोद में जाकर देते हैं | परन्तु वह कोई निर्वाणधाम में
जाते नहीं | यह सब राज़ बाप समझाते हैं, ईश्वर का अन्त तो ईश्वर
ही बतायेंगे | शुरू से लेकर बतलाते आये हैं | अपना अन्त भी
देते हैं और सृष्टि का ज्ञान ही देते हैं | ईश्वर ख़ुद आकर आदि
सनातन देवी-देवता अर्थात् स्वर्ग की स्थापना करते हैं, इनका
नाम भारत ही चला आता है | गीता में सिर्फ़ कृष्ण का नाम डाल
कितना रोला कर दिया है | यह भी ड्रामा है, हार और जीत का खेल
है | इसमें हार-जीत कैसे होती है, यह बाप बिगर तो कोई बता न
सके | यह लक्ष्मी-नारायण भी नहीं जानते कि हमको फिर हार खानी
है | यह तो सिर्फ़ तुम ब्राह्मण ही जानते हो | शूद्र भी नहीं
जानते | बाप ही आकर तुमको ब्राह्मण सो देवता बनाते हैं | हम सो
का अर्थ बिल्कुल अलग है | ओम् का अर्थ अलग है | मनुष्य तो बिगर
अर्थ जो आया वह कह देते हैं | अभी तुम जानते हो कि कैसे नीचे
गिरते हैं फिर चढ़ते हैं | यह ज्ञान अभी तुम बच्चों को मिलता है
| ड्रामा अनुसार फिर कल्प बाद बाप ही आकर बतायेंगे | जो भी
धर्म स्थापक हैं, वह आकार फिर अपना धर्म अपने समय पर स्थापन
करेंगे | नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार नहीं कहेंगे | नम्बरवार
समय अनुसार आकर अपना-अपना धर्म स्थापन करते हैं | यह एक बाप ही
समझाते हैं, मैं कैसे ब्राह्मण फिर सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी
डिनायस्टी स्थापन करता हूँ? अभी तुम हो ज्ञान सूर्यवंशी जो फिर
विष्णुवंशी बनते हो | अक्षर बड़ी ख़बरदारी से लिखने होते हैं, जो
कोई भूल न निकाले |
तुम
जानते हो यह ज्ञान का एक-एक महावाक्य रत्न, हीरे हैं | बच्चों
में समझाने की बहुत रिफाइननेस चाहिए | कोई अक्षर भूल से निकल
जाए तो फट से राईट कर समझाना चाहिए | सबसे कड़ी भूल है बाप को
भूलना | बाप फ़रमान करते हैं मामेकम् याद करो | यह भूलना नहीं
चाहिए | बाप कहते हैं तुम बहुत पुराने आशिक हो | तुम सब आशिकों
का एक माशूक है | वह तो एक-दो की शक्ल पर आशिक-माशूक होते हैं
| यहाँ तो माशूक है एक | वह एक कितने आशिकों को याद करेंगे |
अनेकों को एक याद करना तो सहज है, एक कैसे अनेकों को याद
करेंगे! बाबा को कहते हैं बाबा हम आपको याद करते हैं | आप हमको
याद करते हैं? अरे, याद तुमको करना है, पतित से पावन होने के
लिए | मैं थोड़ेही पतित हूँ, जो याद करूँ | तुम्हारा काम है याद
करना क्योंकि पावन बनना है | जो जितना याद करते हैं और अच्छी
रीति सर्विस भी करते हैं, उनको धारणा होती है | याद की यात्रा
बहुत डिफिकल्ट है, इसमें ही युद्ध चलती है | बाकी ऐसे नहीं कि
84 का चक्र तुम भूल जायेंगे | यह कान सोने का बर्तन चाहिए |
जितना तुम याद करेंगे उतनी धारणा अच्छी होगी, इसमें ताक़त रहेगी
इसलिए कहते हैं याद का जौहर चाहिए | ज्ञान से कमाई है | याद से
सर्व शक्तियां मिलती हैं नम्बरवार | तलवारों में नम्बरवार जौहर
का फ़र्क होता है | वह तो हैं स्थूल बातें | मूल बात बाप एक ही
कहते हैं – अल्फ़ को याद करो | दुनिया के विनाश के लिए यह एक
एटॉमिक बाम जाकर रहेगा और कुछ नहीं, उसमें न सेना चाहिए न
कैप्टन | आजकल तो ऐसा बनाया है, जो वहाँ बैठे-बैठे बाम छोड़ेंगे
| तुम यहाँ बैठे-बैठे राज्य लेते हो, वह वहाँ बैठे सबका विनाश
करा देंगे | तुम्हारा ज्ञान और योग, उनका मौत का सामान इक्वल
हो जाता है | यह भी खेल है | एक्टर्स तो सब हैं ना | भक्ति
मार्ग पूरा हुआ है, बाप ही आकर अपना और रचना के आदि-मध्य-अन्त
का परिचय देते हैं | अब बाप कहते हैं व्यर्थ की बातें तुम नहीं
सुनो इसलिए हियर नो ईविल.......इसका चित्र बनाया है | आगे
बन्दर का बनाते थे, अब मनुष्य का बनाते हैं क्योंकि सूरत
मनुष्य
की है परन्तु सीरत बन्दर जैसी है, इसलिए भेंट करते हैं | अभी
तुम किसकी सेना हो? शिवबाबा की | बन्दर से तुमको मन्दिर लायक
बना रहे हैं | कहाँ की बात कहाँ ले गये हैं | बन्दर कोई पुल
आदि बाँध सकता है क्या? यह सब है दन्त कथायें | कभी भी कोई
पूछे शास्त्रों को तुम मानते हो? बोलो वाह! ऐसा कौन होगा जो
शास्त्रों को नहीं मानेगा | हम सबसे जास्ती मानते हैं | तुम भी
इतना नहीं पढ़ते हो जितना हम पढ़ते हैं | आधाकल्प हमने पढ़े हैं |
स्वर्ग में शास्त्र, भक्ति की कोई चीज़ नहीं होती | कितना सहज
बाप समझाते हैं | फिर भी आप समान बना नहीं सकते | बच्चों आदि
के बन्धन के कारण कहाँ निकल नहीं सकते | यह भी ड्रामा ही
कहेंगे | बाप कहते हैं हफ़्ता 15 दिन कोर्स ले फिर आपसमान बनाने
लग जाना चाहिए | जो बड़े-बड़े शहर हैं, कैपीटल में घेराव डालना
चाहिए तो फिर उनका आवाज़ निकलेगा | बड़े आदमी बिगर कोई का आवाज़
निकल न सके | ज़ोर से घेराव डालो तो फिर बहुत आयेंगे | बाप के
डायरेक्शन मिलते हैं ना | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
ज्ञान
और योग से अपनी बुद्धि को रिफाइन बनाना है | बाप को भूलने की
भूल कभी नहीं करनी है | आशिक बन माशूक को याद करना है |
2.
बन्धनमुक्त बन आप समान बनाने की सेवा करनी है | ऊँच पद पाने का
पुरुषार्थ करना है | पुरुषार्थ में कभी दिलशिकस्त नहीं बनना है
|
वरदान:-
विकारों रूपी जहरीले साँपों को गले की माला बनाने वाले शंकर
समान तपस्वीमूर्त भव
! 
यह
पाँच विकार जो लोगों के लिए जहरीले सांप है, यह सांप आप योगी
वा प्रयोगी आत्मा के गले की माला बन जाते हैं | यह आप
ब्राह्मणों वा ब्रह्मा बाप के अशरीरी तपस्वी शंकर स्वरूप का
यादगार आज तक भी पूजा जाता है | दूसरा – यह सांप ख़ुशी में
नाचने की स्टेज बन जाते हैं – यह स्थिति स्टेज के रूप में
दिखाते हैं | तो जब विकारों पर ऐसी विजय हो तब कहेंगे
तपस्वीमूर्त, प्रयोगी आत्मा |
स्लोगन:-
जिनका
स्वभाव मीठा, शान्तचित है उस पर क्रोध का भूत वार नहीं कर सकता
|
ओम्
शान्ति
|