29-03-14           प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे विचार सागर मंथन कर एक ऐसी टॉपिक निकालो जो सब जगह एक ही टॉपिक पर भाषण चले, यही है तुम्हारी यूनिटी |   


प्रश्न:-   
कौन-सी मेहनत करते-करते तुम बच्चे पास विद् ऑनर हो सकते हो?


उत्तर:-
कर्म-बन्धन से अतीत बनो | जब किसी से बात करते हो तो आत्मा भाई समझ भाई को देखो | बाप से सुनते हो तो भी बाप को भृकुटी में देखो | भाई-भाई की दृष्टि से वह स्नेह और सम्बन्ध पक्का हो जायेगा | यही मेहनत का काम है, इससे ही पास विद् आनर बनेंगे | ऊँच पद पाने वाले बच्चे यह पुरुषार्थ अवश्य करेंगे |

 

ओम् शान्ति |

 

मीठे-मीठे बच्चों को समझाया गया है – यह है मृत्युलोक, उसकी भेंट में अमरलोक भी है | भक्ति मार्ग में दिखाते हैं शंकर ने पार्वती को अमरकथा सुनाई | अब अमरलोक में तो तुम जाते हो | शंकर तो कथा सुनाते नहीं | कथा सुनाने वाला ज्ञान सागर एक ही बाप है | शंकर कोई ज्ञान सागर नहीं, जो कथा सुनायेंगे | ऐसी-ऐसी बातों पर तुम बच्चों को समझाना है | काल पर जीत कैसे पाई जाती है, यह जो नॉलेज है वह अमर बनाती है, इससे आयु बड़ी होती है, वहाँ काल होता नहीं | यहाँ तुम 5 विकारों अथवा रावण पर जीत पाने से राम राज्य अथवा अमरलोक के मालिक बनते हो | मृत्युलोक में है रावण राज्य, अमरलोक में है राम राज्य | देवताओं को कभी काल नहीं खाता | वहाँ काल के जमघट होते नहीं | तो यह टॉपिक भी बहुत अच्छी है – मनुष्य काल पर विजय कैसे पा सकते हैं | यह सारी ज्ञान की बातें हैं | भारत अमरलोक था, कितनी बड़ी आयु थी | सर्प का मिसाल भी सतयुग के लिए है | एक खाल छोड़ दूसरी लेते हैं, उसको कहा जाता है बेहद का वैराग्य | जानते हैं सारी दुनिया का विनाश होने वाला है | यह पुराना शरीर भी छोड़ना है | यह 84 जन्मों की पुरानी खाल है | अमरलोक में ऐसे नहीं होता | वहाँ फिर समझते हैं अब शरीर बड़ा, जड़जड़ीभूत हो गया है, इसे छोड़ नया शरीर लेंगे | फिर साक्षात्कार भी होता है, समझ को ही साक्षात्कार कहा जाता है | हमारी अब नई खाल तैयार हुई है | पुरानी को अब छोड़ना है | वहाँ भी ऐसे ही होता है | उनको कहा ही जाता है अमरलोक, जहाँ काल आता नहीं | आपेही समय पर शरीर छोड़ देते हैं | कछुए का मिसाल भी यहाँ का है | काम करके फिर अन्तर्मुखी हो जाता है | इस समय के मिसाल फिर भक्ति मार्ग में कॉपी करते हैं, परन्तु सिर्फ़ कहने मात्र | समझते कुछ भी नहीं | अभी तुम समझते हो राखी उत्सव, दशहरा, दीपमाला, होली आदि सब इस समय के हैं | जो भक्ति मार्ग में चले हैं | तो यह बातें सतयुग में होती नहीं | यह ऐसी-ऐसी टॉपिक लिखो | मनुष्य काल पर जीत कैसे पहन सकते हैं? मृत्युलोक से अमरलोक में कैसे जा सकते हैं? ऐसी बातों पर समझाने के लिए पहले लिखना पड़ता है | जैसे नाटक की स्टोरी लिखते हैं – आज फ़लाना नाटक है | तुम्हारी भी प्वाइन्ट्स की लिस्ट हो, आज इस टॉपिक पर समझाया जायेगा | रावण राज्य से दैवी राज्य में कैसे जा सकते हैं? समझानी तो भल एक ही है | परन्तु भिन्न-भिन्न टॉपिक सुनने से ख़ुशी होगी कि बेहद के बाप से बेहद का वर्सा कैसे मिलता है | जैसे सन्यासियों का अख़बार में पड़ता है – आज 125वाँ यज्ञ रचा है, उसमें यह-यह सुनायेंगे | यहाँ तो बाप कहते हैं – मैं एक ही बार यज्ञ रचता हूँ, जिसमें सारी पुरानी दुनिया स्वाहा हो जाती है | वह तो बहुत यज्ञ रचते हैं | जुलूस आदि करते हैं | यहाँ तो तुम जानते हो – यह रूद्र शिवबाबा का एक ही यज्ञ है, जिसमें सारी पुरानी दुनिया स्वाहा हो जाती है, नई दुनिया की स्थापना हो जाती है और तुम जाकर देवता बन जाते हो | यह भी बाप तुमको समझाते हैं | रचयिता बाप ही आकर अपना और रचना के आदि-मध्य-अन्त का सारा नॉलेज देते हैं और राजयोग भी सिखाते हैं | सतयुग में हैं ही पवित्र देवतायें | वह राजाई भी करते हैं | उसको कहा जाता है आदि सनातन देवी-देवता धर्म | यह भी टॉपिक रख सकते कि आदि सनातन सतयुगी देवी-देवता धर्म की स्थापना कैसे हो रही है, विश्व में शान्ति कैसे स्थापन होती है – आकर समझो | परमपिता परमात्मा के सिवाए विश्व में शान्ति स्थापन करने की राय और कोई दे नहीं सकते | राय देने वाले को भी प्राइज़ मिलती है | विश्व में शान्ति स्थापन करने की प्राइज़ कैसे और कौन देते हैं, यह भी टॉपिक है | ऐसे विचार सागर मंथन कर टॉपिक निकालनी चाहिए | ऐसा प्रबन्ध हो जो सब जगह एक ही टॉपिक हो, सबका कनेक्शन रहेगा | ऐसी लिस्ट बनाकर पहले इशारा देना चाहिए | फिर समाचार देहली में आना चाहिए | सबको मालूम पड़ जाए कि सब जगह ऐसा भाषण चला, इसको कहा जाता है यूनिटी | सारी दुनिया में डिसयूनिटी है | रामराज्य का गायन है – शेर गऊ इकठ्ठा जल पीते हैं | त्रेता में ऐसा गायन है, तो सतयुग में क्या नहीं होगा! बाकी शास्त्रों में तो अनेक कथायें लिख दी हैं | तुम तो बाप से एक ही कथा सुनते हो | दुनिया में ढेर कथाएं बनाते रहते हैं | द्वापर से लेकर कलियुग तक जो भी शास्त्र आदि चलते हैं, वहाँ तो वह होते नहीं | भक्ति मार्ग की सब बातें पूरी हो जाती हैं | यहाँ तुम जो कुछ भी देखते हो, वह सब है ईविल | उनको देखते हुए न देखो, सुनते हुए न सुनो | अब जो बाप समझाते हैं वही बुद्धि में रखो |

 

हम संगमयुगी ब्राह्मण कितने ऊँच हैं! देवताओं से भी ऊँच हैं | इस समय हम ईश्वरीय औलाद हैं | धीरे-धीरे वृद्धि को पाते रहते हैं | इतनी सहज बात भी किसकी बुद्धि में नहीं आती है | हम ईश्वरीय सन्तान हैं तो ज़रूर स्वर्ग के मालिक होने चाहिए क्योंकि वह बाप स्वर्ग की स्थापना करते हैं | करोड़ों वर्ष कह देने कारण कोई बात याद नहीं रहती है | बाप आकर याद दिलाते हैं, यह तो 5 हज़ार वर्ष की बात है | तुम देवी-देवता थे | अब फिर तुमको वही बनाते हैं | सम्मुख सुनने से कितनी ख़ुशी और रिफ्रेशमेंट आ जाती है | बच्चे जो सयाने हैं, समझू हैं, उनकी बुद्धि में आता है – हमको बाप से वर्सा तो ज़रूर लेना है | बाप नई दुनिया रचते हैं तो ज़रूर हम भी नई दुनिया में होने चाहिए | एक बाप के तो सब बच्चे हैं | सबका धर्म, सबके रहने का स्थान, आना-जाना सब भिन्न-भिन्न प्रकार का है | कैसे जाकर मूलवतन में निवास करते हैं, यह भी बुद्धि में है | मूलवतन में सिजरा है | सूक्ष्मवतन में सिजरा नहीं दिखा सकते | वहाँ जो कुछ दिखाते हैं वह सब हैं साक्षात्कार की बातें | यह सब ड्रामा में नूँध है | फिर सूक्ष्मवतन में भी जाते हैं | वहाँ मूवी चलती है | बीच में मूवी का भी ड्रामा बनाया था | फिर टॉकी बना है | साइलेन्स का तो ड्रामा बन न सके | बच्चे जानते हैं हम साइलेन्स में कैसे रहते हैं | जैसे वहाँ आत्माओं का सिजरा है, वैसे यहाँ मनुष्यों का है | तो ऐसी-ऐसी बातें बुद्धि में रख तुम भाषण कर सकते हो | फिर भी पढ़ाई में टाइम लगता है | करके यह भी समझ जाएं परन्तु याद की यात्रा कहाँ, जिससे धारणा और ख़ुशी हो | अभी तुम यथार्थ रीति योग सीख रहे हो | बच्चों को समझाया है – सबको भाई-भाई देखो | आत्मा का तख़्त तो यह है इसलिए भागीरथ बाबा का सिंहासन भी मशहूर है | जब किसी को समझाते हो तो भी ऐसे समझो – हम भाइयों को समझाते हैं | यही दृष्टि रहे – इसमें ही भारी मेहनत है | मेहनत से ही ऊँच पद मिलता है | बाप भी ऐसे देखेंगे, बाप की नज़र भी भृकुटी के बीच में जायेगी | आत्मा तो छोटी बिन्दी है | सुनती भी वही है | तुम बाप को भी भृकुटी के बीच में देखेंगे | बाबा भी यहाँ है तो भाई (ब्रह्मा की आत्मा) भी यहाँ है | ऐसे बुद्धि में रहने से तुम भी जैसे ज्ञान सागर के बच्चे ज्ञान सागर बन जाते हो | तुम्हारे लिए तो बहुत सहज है | गृहस्थ व्यवहार में रहने वालों के लिए यह अवस्था ज़रा मुश्किल है | सुनकर घर चले जाते हैं | वहाँ का वातावरण ही और है | यहाँ सहज है | बाबा युक्ति बहुत सहज बताते हैं – अपने को आत्मा समझो, बाप को याद करो | यह भी भाई है, इस दृष्टि से कर्मबन्धन से अतीत हो जायेंगे | शरीर भी भूल जाता है, सिर्फ़ बाप ही याद रहता है | इसमें मेहनत करते रहेंगे तब पास विद् ऑनर होंगे | ऐसी अवस्था में बिरला ही कोई रहता है | विश्व का मालिक भी वही बनते हैं | 8 रत्नों की माला है ना | तो पुरुषार्थ करना है | ऊँच पद पाने वाले कैसे भी करके पुरुषार्थ ज़रूर करते होंगे | इसमें दूसरी कुछ भी बातें निकलती नहीं हैं | भाई-भाई की दृष्टि, स्नेह और सम्बन्ध हो जाता है | दृष्टि वह जम जाती है इसलिए बाप कहते हैं तुमको बहुत गुह्य-गुह्य बातें सुनाता हूँ | इसमें अभ्यास करना मेहनत का काम है | यहाँ भी बैठे हो तो अपने को आत्मा समझो | आत्मा ही सुनती है | सुनने वाली आत्मा को तुम देखते हो | मनुष्य तो कह देते आत्मा निर्लेप है | बाकी क्या शरीर सुनता है? यह तो रांग है | बाप तुमको गुह्य-गुह्य बातें सुनाते हैं | मेहनत तो बच्चों को करनी है | जो कल्प पहले बने थे वह मेहनत ज़रूर करेंगे | अपना अनुभव भी सुनायेंगे – ऐसे हम सुनता-सुनाता हूँ | टेव (आदत) पड़ गई है | आत्मा को ही सुनाते हैं – मनमनाभव | फिर वह उनको, वह उनको कहते हैं – मनमनाभव अर्थात् बाप को याद करो | यह गुप्त मेहनत है | जैसे पढ़ाई भी एकान्त में झाड़ के नीचे जाकर पढ़ते हैं, वह है स्थूल बात | यह तो प्रैक्टिस करने की बात है | दिन-प्रतिदिन तुम्हारी यह प्रैक्टिस बढती जायेगी | तुम नई-नई बातें सुनते हो ना | जो तुम अभी सुनते हो वह फिर नये-नये आकर सुनेंगे | कोई कहते हैं हम देरी से आये हैं | अरे, तुम तो और ही फर्स्टक्लास गुह्य-गुह्य बातें सुनते हो, जो पुरुषार्थ करने से ही ऊँच पद मिलता है | और ही अच्छा | माया तो पिछाड़ी तक छोड़ती नहीं है | माया की लड़ाई चलती रहेगी | जब तक तुम जीत पहनो | फिर अनायास ही तुम चले जायेंगे | जो जितना याद करेंगे, समझेंगे हम जाते हैं बाप के पास, शरीर छोड़ देते हैं | बाबा ने देखा है – ऐसे ब्रह्म में लीन होने का लक्ष्य रखने वाले जब शरीर छोड़ते हैं तो सन्नाटा हो जाता है | बाकी मोक्ष तो कोई पाता नहीं है, न वापिस ही जाते हैं | नाटक में तो सब एक्टर्स चाहिए ना | अन्त में सब आ जाते हैं | जब एक भी नहीं रहेगा तब वापिस जायेंगे | जो भी मनुष्य मात्र हैं, सब चले जायेंगे | बाकी थोड़े बचेंगे | वह कहेंगे सबको सी ऑफ़ किया | इस समय सतयुग की स्थापना हो रही है | कितने करोड़ों मनुष्य हैं | सबको हम सी ऑफ़ कर फिर अपनी राजधानी में चले जायेंगे | वो लोग तो करके 40-50 को सी ऑफ़ करते होंगे | तुम कितनों को सी ऑफ़ करते हो | सभी आत्मायें मच्छरों सदृश्य चली जायेंगी शान्तिधाम | तुम आये हो साथ ले जाने और सबको भेजने के लिए | तुम्हारी बातें वन्डरफुल हैं | इतने करोड़ों मनुष्य जायेंगे | उनको सी ऑफ़ करेंगे | सब वापिस मूलवतन में चले जायेंगे | यह भी तुम्हारी बुद्धि ही काम करती है | धीरे-धीरे सिजरा बड़ा हो जायेगा | फिर रुण्ड माला रूद्र माला बन जायेगी | यह बात तुम्हारी बुद्धि में है कि रूद्र माला रुण्ड माला कैसे बनती है | तुम्हारे में भी जो विशालबुद्धि हैं वही इस बात को समझ सकते हैं | अनेक प्रकार से बाप समझाते रहते हैं – याद करने लिए | हम रूद्र माला में जाकर रुण्ड माला में आयेंगे | फिर नम्बरवार आते रहेंगे | कितनी बड़ी रूद्र माला बनती है | इस ज्ञान को कोई भी नहीं जानते हैं | शुरू से लेकर इस ज्ञान को कोई जानते नहीं | तुम संगमयुगी ब्राह्मण ही जानते हो | इस संगमयुग को याद करो तो सारी नॉलेज बुद्धि में आ जायेगी |

 

तुम हो लाइट हाउस | सबको ठिकाने पर लगाने वाले | तुम कैसे अच्छे लाइट हाउस बनते हो | ऐसी कोई बात नहीं जो तुमसे लागू न होती हो | तुम सर्जन भी हो, सर्राफ भी हो, धोबी भी हो | सभी खूबियाँ (विशेषतायें) तुम्हारे में आ जाती हैं | महिमा तुम्हारी भी हो जाती है, परन्तु नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार | जैसे-जैसे कर्तव्य करते हो ऐसा-ऐसा गायन होता है | बाप तो डायरेक्शन देते हैं उस पर विचार करना, सेमिनार करना तुम बच्चों का काम है | बाबा कोई मना नहीं करते हैं | अच्छा, बहुत सुनाने से क्या फ़ायदा | बाप कहते हैं मनमनाभव | बाबा तुम्हें कितना तरावटी माल खिलाते हैं | अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1.    सदा नशा रहे कि हम संगमयुगी ब्राह्मण देवताओं से भी ऊँच हैं क्योंकि अभी हम ईश्वरीय औलाद हैं, हम मास्टर ज्ञान सागर हैं | सभी खूबियाँ इस समय हमारे में भर रही हैं |

 

2.    जो बाप समझाते हैं वही बुद्धि में रखना है, बाकी कुछ भी सुनते हुए न सुनो, देखते हुए न देखो | हियर नो ईविल, सी नो ईविल.....

 

वरदान:-   

ईश्वरीय रस का अनुभव कर एकरस स्थिति में स्थित रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा भव !    

जो बच्चे ईश्वरीय रस का अनुभव कर लेते हैं उनको दुनिया के सब रस फीके लगते हैं | जब है ही एक रस मीठा तो एक ही तरफ अटेन्शन जायेगा ना | सहज ही एक तरफ मन लग जाता है, मेहनत नहीं लगती है | बाप का स्नेह, बाप की मदद, बाप का साथ, बाप द्वारा सर्व प्राप्ति सहज एकरस स्थिति बना देती हैं | ऐसी एकरस स्थिति में स्थित रहने वाली आत्मायें ही श्रेष्ठ हैं |


स्लोगन:-   

किचड़े को समाकर रत्न देना ही मास्टर सागर बनना है |     

 

ओम् शान्ति |