19-05-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
बाप
समान रहमदिल बनो, रहमदिल बच्चे सबको दुःखों से छुड़ाकर पतित से
पावन बनाने की सेवा करेंगे
| 
प्रश्न:-
सारी
दुनिया की मांग क्या है? जो बाप के सिवाए कोई पूरी नहीं कर
सकता?
उत्तर:-
सारी
दुनिया की मांग है शान्ति और सुख मिले | सभी बच्चों की पुकार
सुनकर बाप आते हैं | बाबा बेहद का है इसलिए उसे बहुत फुरना है
कि मेरे बच्चे कैसे दुःखी से सुखी बनें | बाबा कहते – बच्चे,
पुरानी दुनिया भी मेरी है, मेरे ही सब बच्चे हैं, मैं आया हूँ
सबको दुःखों से छुड़ाने | मैं सारी दुनिया का मालिक हूँ, इसे
मुझे ही पतित से पावन बनाना है |
ओम्
शान्ति
|
बाप
पावन बना रहे हैं बच्चों को | तो ज़रूर बाप से प्यार चाहिए | भल
भाइयों-भाइयों में आपस में प्यार तो ठीक है | एक बाप के सब
बच्चे आपस में भाई-भाई हैं | परन्तु पावन बनाने वाला एक बाप ही
है इसलिए सब बच्चों का लव एक बाप में ही चला जाता है | बाप
कहते हैं – बच्चों, मामेकम् याद करो | यह तो ठीक है तुम
भाई-भाई हो तो ज़रूर क्षीरखण्ड ही होंगे | एक बाप के बच्चे हो |
आत्मा में ही इतना प्यार है | जबकि देवताई पद प्राप्त करते हो
तो आपस में बहुत ही प्यार होना चाहिए | हम भाई-भाई बनते हैं |
बाप से वर्सा लेते हैं | बाप आकर सिखलाते हैं | जो समझने वाले
होते हैं वह समझते हैं यह स्कूल वा बड़ी यूनिवर्सिटी है | बाप
सबको दृष्टि देते हैं वा याद करते हैं | बेहद के बाप को सारी
दुनिया के मनुष्य मात्र सभी आत्मायें याद करती हैं | बाप की ही
सारी दुनिया है – नई वा पुरानी | नई दुनिया बाप की है तो
पुरानी नहीं है क्या? बाप ही सभी को पावन बनाते हैं | पुरानी
दुनिया भी मेरी है | सारी दुनिया का मालिक मैं ही हूँ | भल में
नई दुनिया में राज्य नहीं करता हूँ परन्तु है तो मेरी ना |
मेरे बच्चे मेरे इस बड़े घर में भी बहुत सुखी रहते हैं और फिर
दुःख भी पाते हैं | यह खेल है | यह सारी बेहद की दुनिया हमारा
घर है | यह बड़ा माण्डवा है ना | बाप जानते हैं सारे घर में
हमारे बच्चे हैं | सारी दुनिया को देखते हैं | सब चैतन्य हैं |
सभी बच्चे इस समय दुःखी हैं इसलिए पुकारते हैं बाबा हमको छी
छी, दुःखी दुनिया से शान्ति की दुनिया में ले चलो, शान्ति देवा
| बाप को ही पुकारते हैं | देवताओं को तो कह न सकें | सबका वह
एक बाप है | उनको सारे सृष्टि का फुरना रहता है | बेहद का घर
है | बाप जानते हैं इस बेहद घर में इस समय सब दुःखी हैं इसलिए
कहते हैं शान्ति देवा, सुख देवा | दो चीज़ें मांगते हैं ना |
अभी तो जानते हो हम बेहद के बाप से सुख का वर्सा ले रहे हैं |
बाप आकर हमको सुख भी देते हैं, शान्ति भी देते हैं | और कोई
सुख-शान्ति तो देने वाला है नहीं | बाप को ही तरस पड़ेगा | वह
है बेहद का बाप | तुम समझते हो हम बाबा के बच्चे बहुत सुखी थे
जबकि पवित्र थे | अब अपवित्र बनने से दुःखी हो जाते हैं | काम
चिता पर बैठ काले पतित बन जाते हैं | मूल बात है कि बाप को भूल
जाते हैं | जिस बाप ने इतना ऊँच पद दिया | गाते भी हैं ना तुम
मात पिता...सुख घनेरे थे | सो फिर तुम अभी ले रहे हो क्योंकि
अब दुःख घनेरे हैं | यह है तमोप्रधान दुनिया | विषय सागर में
गोते खाते रहते हैं | समझते कुछ नहीं है | तुमको अब समझ आई है
| तुम समझते हो कि यह रौरव नर्क है |
बाप
बच्चों से पूछते हैं – अभी तुम नर्कवासी हो या स्वर्गवासी हो?
जब कोई मरता है तो झट कह देते हैं स्वर्गवासी हुआ अर्थात् सब
दुःखों से दूर हुआ | फिर नर्क की चीज़ें उनको क्यों खिलाते हो?
यह भी समझते नहीं | बाप आकर स्वर्ग की स्थापना करते हैं | तुम
बच्चों को राजयोग सिखलाते हैं | बाप कहते हैं मीठे बच्चे, मैं
तुमको यह नॉलेज सुनाता हूँ | मेरे में ही यह नॉलेज है | ज्ञान
सागर मैं हूँ | कहते हैं यह शास्त्रों की अथॉरिटी है | लेकिन
वह भी आत्मायें हैं ना, यह भी समझते नहीं | बाप का ही पता नहीं
है | बाप जो विश्व का मालिक बनाते हैं उनके लिए कहते हैं
ठिक्कर भित्तर सबमें है | व्यास भगवान् ने क्या-क्या बातें लिख
दी हैं | मनुष्यों को कुछ भी पता नहीं है | बिल्कुल आरफ़न बन
आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैं | बाप रचता और रचना के
आदि-मध्य-अन्त को कोई नहीं जानते हैं | बाप अपना और रचना के
आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं | और तो कोई बता न सके | तुम
कोई से भी पूछो – जिसको ईश्वर, भगवान्, रचता कहते हैं तो उनको
तुम जानते हो? क्या ठिक्कर-भित्तर में ईश्वर कहना ही जानना है?
पहले अपने को तो समझो | मनुष्य तमोप्रधान हैं तो जानवर आदि सब
तमोप्रधान हैं | मनुष्य सतोप्रधान हैं तो सब सुखी बन जाते हैं
| जैसा मनुष्य, वैसा उनका फर्नीचर भी होता है | साहूकार लोगों
का फर्नीचर भी अच्छा होता है | तुम तो बिल्कुल सुखी विश्व के
मालिक बनते हो तो तुम्हारे पास हर चीज़ सुखदाई है | वहाँ
दुःखदाई कोई चीज़ होती नहीं | यह नर्क है ही गन्दी दुनिया |
बाप
आकर समझाते हैं भगवान् तो एक ही है, वही पतित-पावन है | स्वर्ग
की स्थापना करते हैं | देवताओं की महिमा भी गाते हैं सर्वगुण
सम्पन्न....... | मन्दिरों में जाकर देवताओं की उपमा, अपनी
निंदा करते हैं क्योंकि सभी भ्रष्टाचारी हैं | श्रेष्ठाचारी,
स्वर्गवासी तो यह लक्ष्मी-नारायण हैं, जिनकी सब पूजा करते हैं
| सन्यासी भी करते हैं | सतयुग में ऐसे नहीं होता | तुम्हारा
सन्यास है बेहद का | बेहद का बाप आकर बेहद का सन्यास कराते हैं
| वह है हठयोग, हद का सन्यास | वह धर्म ही दूसरा है | बाप कहते
हैं तुम अपने धर्म को भूल कितने धर्मों में घुस पड़े हो | अपने
भारत का नाम ही हिन्दुस्तान रख दिया है और फिर हिन्दू धर्म कह
दिया है | वास्तव में हिन्दू धर्म तो कोई ने स्थापन ही नहीं
किया है | मुख्य धर्म हैं ही चार – देवी देवता, इस्लामी,
बौद्धी और क्रिश्चियन | तुम जानते हो यह सारी दुनिया आइलैण्ड
है, इसमें रावण का राज्य है | रावण देखा है? जिनको घड़ी-घड़ी
जलाते हैं, यह सबसे पुराना दुश्मन है | यह भी समझते नहीं कि हम
क्यों जलाते हैं? समझ चाहिए ना – यह कौन है? कब से जलाते आये
हैं? समझते हैं परम्परा से | अरे, उनका कोई हिसाब तो चाहिए ना
| तुमको कोई जानते ही नहीं | तुम हो ब्रह्मा के बच्चे | तुमसे
कोई पूछे तुम किसके बच्चे हो? अरे, हम ब्रह्माकुमार, कुमारियाँ
हैं तो उनके बच्चे ठहरे ना | ब्रह्मा किसका बच्चा? शिवबाबा का
| हम उनके पौत्रे ठहरे | सभी आत्मायें उनके बच्चे हैं | फिर
शरीर में पहले ब्राह्मण बनते हैं | प्रजापिता ब्रह्मा है ना |
इतनी प्रजा कैसे रचते हैं, यह तुम जानते हो | यह एडाप्शन है |
शिवबाबा एडाप्ट करते हैं ब्रह्मा द्वारा | मेला भी लगता है |
वास्तव में मेला वहाँ लगना चाहिए जहाँ ब्रह्मपुत्राबड़ी नदी
सागर में जाकर मिलती है | उस संगम पर मेला लगना चाहिए | यह
मेला यहाँ है | ब्रह्मा बैठा है, तुम जानते हो बाप भी है और
बड़ी मम्मा भी तो यह है | परन्तु मेल है इसलिए मम्मा को मुकर्रर
किया जाता है कि तुम इन माताओं को सम्भालो | बाप कहते हैं मैं
तुमको सद्गति देता हूँ | तुम जानते हो यह देवतायें हैं डबल
अहिंसक क्योंकि वहाँ रावण होता ही नहीं | भक्ति से होती है
रात, ज्ञान से दिन | ज्ञान सागर एक बाप ही है, उनके लिए फिर कह
देते हैं सर्वव्यापी | बाप ही आकर यह समझाते हैं और बच्चों को
ही समझाते हैं | शिव भगवानुवाच है ना | शिव जयन्ती मनाते हैं
तो ज़रूर कोई में आते हैं | कहते हैं मुझे प्रकृति का आधार लेना
पड़ता है | मैं कोई छोटे बच्चे का आधार नहीं लेता हूँ | कृष्ण
तो बच्चा है ना | मैं तो उनके बहुत जन्मों के अन्त में सो भी
वानप्रस्थ अवस्था में प्रवेश करता हूँ | वानप्रस्थ अवस्था के
बाद ही मनुष्य भगवान् को सिमरण करते हैं | परन्तु भगवान् को
यथार्थ कोई भी जानते नहीं | तब बाप कहते हैं यदा यदाहि.....मैं
भारत में ही आता हूँ | भारत की महिमा अपरम्पार है |
मनुष्यों को देह का अहंकार देखो कितना है – मैं फलाना हूँ, यह
हूँ! अब बाप आकर तुमको देही-अभिमानी बनाते हैं | मीठे-मीठे
रूहानी बच्चों को रूहानी बाप बैठ ज्ञान के सब राज़ बताते हैं |
यह है पुरानी दुनिया | सतयुग है नई दुनिया | सतयुग में आदि
सनातन देवी-देवता धर्म ही था | 5 हज़ार वर्ष की बात है |
शास्त्रों में फिर व्यास ने लिख दिया है, कल्प की आयु लाखों
हज़ार वर्ष है | वास्तव में है 5 हज़ार वर्ष का कल्प | मनुष्य
बिल्कुल अज्ञान की, कुम्भकरण की नींद में सोये पड़े हैं | अभी
तुम्हारी यह बातें कोई नया सुनेगा तो समझ नहीं सकेगा इसलिए बाप
कहते हैं मैं अपने बच्चों से ही बात करता हूँ | भक्ति भी तुम
ही शुरू करते हो | अपने को ही चमाट मारी है | बाप ने तुमको
पूज्य बनाया, तुम फिर पुजारी बन जाते हो | यह भी खेल है |
कोई-कोई मनुष्य नर्म दिल होते हैं तो खेल देखकर भी रो पड़ते हैं
| बाप तो कहते हैं जिन रोया तिन खोया | सतयुग में रोने की बात
नहीं | यहाँ भी बाप कहते हैं रोना नहीं है | रोते हैं
द्वापर-कलियुग में | सतयुगी कभी रोते नहीं हैं | पिछाड़ी में तो
किसको रोने की फुर्सत ही नहीं रहेगी | अचानक मरते रहेंगे | हाय
राम भी नहीं कह सकेंगे | विनाश ऐसा होगा जो ज़रा भी दुःख नहीं
होगा क्योंकि हॉस्पिटल आदि तो रहेंगी नहीं इसलिए चीज़ें ही ऐसी
बनाते हैं | तो बाप समझाते हैं तुम बन्दरों की मैं सेना लेता
हूँ, रावण पर जीत पाने के लिए | अब बाप तुमको युक्ति बताते हैं
– रावण पर जीत कैसे पानी है? सब सीताओं को रावण की जंज़ीरों से
छुड़ाना है | यह सब समझने की बातें हैं | भगवानुवाच, बच्चों को
ही बाप कहते हैं हियर नो ईविल......जिन बातों से तुम्हें कोई
फ़ायदा नहीं, उनसे तुम अपने कान बन्द कर लो | अब तुमको श्रीमत
मिलती है | तुम ही श्रेष्ठ बनेंगे | यहाँ तो श्री श्री का
टाइटिल सबको दे दिया है | अच्छा, फिर भी बाप कहते हैं अपने को
आत्मा समझो और बाप को याद करो | कितना वन्डरफुल हार-जीत का यह
बेहद का खेल है जो बाप ही समझाते हैं | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
बाप
समान रहमदिल बनना है | सबको दुःखों से छुड़ा कर पतित से पावन
बनाने की सेवा करनी है | पावन बनने के लिए एक बाप से बहुत-बहुत
लव रखना है |
2. बाप
कहते हैं जिन रोया तिन खोया इसलिए कैसी भी परिस्थिति हो
तुम्हें रोना नहीं है |
वरदान:-
सेवा
और स्व पुरुषार्थ के बैलेन्स द्वारा ब्लैसिंग प्राप्त करने
वाले कर्मयोगी भव
!
कर्मयोगी अर्थात् कर्म के समय भी योग का बैलेन्स हो |
सेवा
अर्थात् कर्म और स्व पुरुषार्थ अर्थात् योगयुक्त – इन दोनों का
बैलेन्स रखने के लिए एक ही शब्द याद रखो कि बाप करावनहार है और
मैं आत्मा करनहार हूँ | यह एक शब्द बैलेन्स बहुत सहज बनायेगा
और सर्व की ब्लैसिंग मिलेगी | जब करनहार के बजाए अपने को
करावनहार समझ लेते हो तो बैलेन्स नहीं रहता और माया अपना चान्स
ले लेती है |
स्लोगन:-
नज़र से
निहाल करने की सेवा करनी है तो बापदादा को अपनी नज़रों में समा
लो |
ओम् शान्ति
|