26-10-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “अव्यक्त-बापदादा”
रिवाइज:01-01-79
मधुबन
“नए
वर्ष के लिए बाप द्वारा कराया गया दृढ़ संकल्प”
आज
बापदादा सर्व बच्चों के नई उमंगों,
नये
दृढ़ संकल्पों,
नई
दुनिया को समीप लाने के सुहावने संकल्पों को सुनते हुए अति
हर्षित हो रहे थे । हरेक बच्चे के अन्दर विशेष उमंग है - स्वयं
को सम्पन्न बनाकर विश्व का कल्याण करने का । आज अपने अन्दर रही
हुई कमजोरियों को सदाकाल के लिए विदाई देने के दृढ़ संकल्प पर,
बापदादा भी बधाई देते हैं । इसी विदाई की बधाई को हर रोज
अमृतवेले स्मृति के द्वारा समर्थ बनाते रहना । इस वर्ष स्वयं
के समर्थी स्वरूप के साथ-साथ सेवा में भी समर्थ स्वरूप लाना है
। जैसे विनाशकारी ग्रुप बहुत तीव्र गति से अपने कार्य को आगे
बढ़ाते जा रहे हैं । बहुत रिफाइन सेकेण्ड में शारीरिक बन्धन से
मुक्त होने अर्थात् शारीरिक दुःख से सहज मुक्त होने,
अनेक
आत्माओं को बचाने के सहज साधन बना रहे हैं । किस आधार से?
साइन्स की अथॉरिटी से । ऐसे स्थापना के कार्य में निमित्त बने
हुए मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी ग्रुप,
आत्माओं को जन्म-जन्मान्तर के लिए माया के बन्धन से,
माया
द्वारा प्राप्त हुए अनेक प्रकार के दु :खों से,
एक
सेकेण्ड में मुक्त करने वा सदाकाल के लिए सुख-शान्ति का वरदान
देने,
हरेक
आत्मा को ठिकाने लगाने के लिए तैयार हो?
विनाशकारी ग्रुप अब भी एवररेडी है सिर्फ आर्डर की देरी है ।
ऐसे स्थापना के निमित्त बने हुए ग्रुप एवररेडी हो?
क्योंकि स्थापना का कार्य सम्पन्न होना अर्थात् विनाशकारियों
को आर्डर मिलना है । जैसे समय समीप अर्थात् पूरा होने पर सुई
आती है और घण्टे स्वत : ही बजते हैं । ऐसे बेहद की घड़ी में
स्थापना की सम्पन्नता अर्थात् समय पर सुई (कांटा) का आना और
विनाश के घण्टे बजना । तो बताओ सम्पन्नता में एवररेडी हो?
आज
बच्चों के अमृतवेले से नये वर्ष के नये उमंग सुनते बापदादा की
भी एक नई टॉपिक पर रूहरिहान हुई ।
ब्रह्मा
बोले -
मुक्ति का गेट कब खोलना है?
जब
तक मुक्ति का गेट ब्रह्मा नहीं खोलते तब तक अन्य आत्माएं भी
मुक्ति में जा नहीं सकती ।
ब्रह्मा
बोले -
अब चाबी लगायें?
बाप बोले
-
उद्घाटन अकेला करना है या बच्चों के साथ?
ब्रह्मा
बोले -
सौतेले और मातेले बच्चों के दु :ख के आलाप,
तड़फने के आलाप सुनते-सुनते अब रहम आता है ।
बाप बोले
-
बच्चों में से सर्व श्रेष्ठ विजयी रत्न जो साथ-साथ भिन्न-भिन्न
सम्बन्ध और स्वरूप से ब्रह्मा की आत्मा के साथी बनने वाले हैं,
ऐसे
साथी विजयी रत्नों की माला तैयार है?
जिन्हों का आदि से यही संकल्प हैं कि साथ जियेंगे,
साथ
मरेंगे किसी भी भिन्न रूप वा सम्बन्ध में साथ रहेंगे,
उन्हों से किए हुए वायदे के प्रमाण साथियों के बिना चाबी कैसे
लगायेंगे!
तो
नये वर्ष का नया संकल्प ब्रह्मा का सुना?
बाप
के इस संकल्प को प्रैक्टिकल में लाने वाले विजयी ग्रुप अब क्या
करेंगे?
श्रेष्ठ विजयी रत्न ही बाप के इस संकल्प को पूरा करने वाले हैं,
इसलिए इस वर्ष में विशेष रूप से मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी के
स्वरूप से सेकेण्ड में मुक्त करने की मशीनरी तीव करो । अभी
मैजारटी आत्मायें प्रकृति के अल्पकाल के साधनों से वा आत्मिक
शान्ति प्राप्त करने के बने हुए अल्पज्ञ स्थानों से अर्थात्
परमात्म मिलन मनाने के ठेकेदारों से अब थक गए हैं,
निराश हो गए हैं - समझते हैं सत्य कुछ और है । सत्यता की मंजिल
की खोज में हैं । प्राप्ति के प्यासे हैं । ऐसी प्यासी आत्माओं
को आत्मिक परिचय,
परमात्म परिचय की यथार्थ बूँद भी तृप्त आत्मा बना देगी,
इसलिए ज्ञान कलष धारण कर प्यासों की प्यास बुझाओ । अमृत कलष
सदा साथ रहे । चलते फिरते सदा अमृत द्वारा अमर बनाते चलो,
तब
ही ब्रह्मा बाप के साथ-साथ मुक्ति के गेट का उद्घाटन कर सकेंगे
। अभी तो भवनों का उद्घाटन कर रहे हो - अभी विशाल गेट का
उद्घाटन करना है । उसके लिए सदा अमर बनो और अमर बनाओ । अमर भव
के वरदानी मूर्त बनो । अब पुरूषार्थ करने वाली आत्माएं जो
अन्तिम अति कमजोर आत्माएं हैं,
ऐसी
कमजोर आत्माओं में पुरुषार्थ करने की भी हिम्मत नहीं है,
ऐसी
आत्माओं को स्वयं की शक्तियों द्वारा समर्थ बनाकर प्राप्ति
कराओ इसलिए ज्ञान मूर्त से ज्यादा अभी वरदानी मूर्त का पार्ट
चाहिए । सुनने की शक्ति भी नहीं है । चलने की हिम्मत नहीं है ।
सिर्फ एक प्यास है कि कुछ मिल जाए - ऐसी अनेक आत्माएं विश्व
में भटक रही हैं,
चलने
के पाँव अर्थात् हिम्मत भी आपको देनी पड़ेगी । तो हिम्मत का
स्टाक जमा है?
अमृत
कलष सम्पन्न हैं?
अखुट
है?
अखण्ड है?
क्यू
लगायें?
स्वयं की क्यू समाप्त की है?
अगर
स्वयं की क्यू में बिजी होंगे तो अन्य आत्माओं को सम्पन्न कैसे
बनायेंगे?
इसलिए इस वर्ष में अपनी क्यू को समाप्त करो । क्यों,
क्या
की भाषा चेन्ज करो । एक ही भाषा हो,
सर्व
प्रति संकल्प से,
वाणी
से वरदानी भाषा हो,
वरदानी मूर्त हो,
वरदानों की वर्षा के भाषण हो । जो भी सुने वह अनुभव करे कि
भाषण नहीं लेकिन वरदानों के पुष्पों की वर्षा हो रही है - तब
उद्घाटन करेंगे । नये वर्ष की यही नवीनता करना । अच्छा ।
ऐसे
सदा अमृत कलषधारी,
हर
संकल्प से वरदानी अनेक आत्माओं की हिम्मत बढ़ाने वाले,
हिम्मते बच्चे मदद बाप,
ऐसे
एवररेडी ब्रह्मा बाप के साथ-साथ सदा साथ का पार्ट बजाने वाले
ऐसे विजयी रत्नों को,
सम्पन्न आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते ।
दादियों से:-
ब्रह्मा को यह संकल्प क्यों उठा?
इसका
रहस्य समझते हो?
ब्रह्मा के संकल्प से सृष्टि रची और ब्रह्मा के संकल्प से ही
गेट खुलेगा । अब शंकर कौन हुआ?
यह
भी गुह्य रहस्य है । जब ब्रह्मा ही विष्णु है तो शंकर कौन?
इस
पर भी रूहरिहान करना । अब तो वरदानी मूर्त ग्रुप,
जिन्हों के इन स्थूल हाथों में नहीं लेकिन सदा स्मृति में,
समर्थ स्वरूप में विजय का झण्डा हो - ऐसे विजय का झण्डा लहराने
वाला ग्रुप हो । जिसको कहा जाता है रूहानी सोशल वर्कर ग्रुप ।
ऐसा ग्रुप अब स्टेज पर चाहिए । स्टेज पर आने वालों के ऊपर सभी
की नजर आटोमेटिकली जाती है - अभी पर्दे के अन्दर है,
स्वयं के पुरुषार्थ का पर्दा है । अभी इसी पर्दे से निकल सेवा
की स्टेज पर आओ तो विश्व की आत्माएं - ऐसे हीरो पार्टधारियों
को देख नजर से निहाल हो जायेंगे । ऐसे प्लान बनाओ,
ऐसे
ग्रुप के मुख से सत्यता की अथॉरिटी स्वत: ही बाप की
प्रत्यक्षता करेगी । अभी तो बेबी बाम्ब फेंक रहे हैं,
अभी
परमात्म बाम्ब द्वारा धरनी को परिवर्तन करो । इसका सहज साधन है
सदा मुख पर वा संकल्प में बापदादा-बापदादा की निरन्तर माला के
समान स्मृति हो । सबकी एक ही धुन हो बापदादा । संकल्प,
कर्म
और वाणी में यही अखण्ड धुन हो । यही अजपाजाप हो । जब यह
अजपाजाप हो जायेगा तो और सब बातें स्वत: ही समाप्त हो जायेगा
क्योंकि इसमें ही बिजी रहेंगे । फुर्सत ही नहीं होती तो व्यर्थ
स्वत: ही समाप्त हो जायेगा । तो अब सुना कि इस वर्ष में क्या
करना है?
आज
के संकल्प से समय को जानना - सुई तो ब्रह्मा ही है ना । तो सुई
कहाँ तक पहुँची है?
सूक्ष्मवतन से आगे भी बढ़ेगी ना?
अच्छा ।
विदेशी भाई-बहनों से -
डबल
विदेशी बच्चों के तीव्र पुरुषार्थ की रफ्तार को देख बापदादा भी
हर्षित होते हैं । विदेशी बच्चों ने अपने असली बाप को,
अपने
असली देश को,
असली
धर्म को बहुत अच्छी तरह से पहचान लिया है । जैसे कल्प पहले की
बनी हुई धरनियों में सिर्फ बाप के परिचय का बीज पड़ने से फल
स्वरूप प्रत्यक्ष हो गए । बापदादा जानते हैं कि इस ग्रुप में
कई ऐसे रत्न हैं जो बापदादा के गले की माला के मणके हैं । ऐसे
मणकों को बाप भी सदा विश्व के आगे प्रत्यक्ष करने के वा विश्व
के आगे बच्चों द्वारा बाप प्रत्यक्ष होने के कई दृश्य देख भी
रहे हैं - अभी प्रत्यक्ष हो रहे हैं,
और
आगे चलकर भी होंगे । आप सभी अपने को ऐसे अमूल्य रत्न समझते हो?
जो
सबसे अमूल्य रत्न हैं,
उन्हों का निवास स्थान कहाँ हैं?
अमूल्य रत्नों का स्थान है ही दिल की डिब्बी । सदा दिल में
रहने वाले अर्थात् सदा बाप की याद में रहने वाले सभी अपने को
तीव्र पुरुषार्थी अनुभव करते हो?
किस
लाइन में हो?
हाई
जम्प लगाने वाले हो ना?
डबल
लाइट वाले सदा हाई जम्प देंगे । अगर किसी भी प्रकार का बोझ है
तो हाई जम्प नहीं दे सकते । सभी सिकीलधे हो क्योंकि बाप का
परिचय मिलते ही सहजयोग द्वारा बाप को सहज ही पहचान लिया ।
मुश्किल का अनुभव नहीं हुआ । मुश्किल को सहज करने का साधन है -
बाप के सामने बैठ जाओ तो सदा वरदान का हाथ अपने ऊपर अनुभव
करेंगे । सेकेण्ड में सर्व समस्याओं का हल मिल जायेगा । लेकिन
बाप के सामने कौन बैठ सकेंगे?
जिन्होंने बाप को जो है,
जैसे
है,
वैसे
दिव्य चक्षु द्वारा,
बुद्धि द्वारा जान लिया और देख लिया । बाप जानते हैं कि इन
आत्माओं ने विश्व के आगे एक एक़जेम्पुल बन अनेक आत्माओं के
कल्याण के लिए बहुत अच्छा कदम उठाया है । विश्व आपको फालो
करेगी । अच्छा ।
अव्यक्त बापदादा से पर्सनल मुलाकात
1 -
अन्तिम मंजिल के समीपता की निशानी - सर्व से किनारा
सदा
अपनी मंजिल अति समीप अनुभव करते हो?
ऐसे
समझते हो कि अपनी अन्तिम फरिश्ते जीवन की मंजिल पर अभी पहुँचने
वाले ही हैं । जितना-जितना इस अन्तिम मंजिल के नजदीक आते
जायेंगे उतना सब तरफ से न्यारे और बाप के प्यारे बनते जायेंगे
। जैसे जब कोई चीज बनाते हो जब वह तैयार हो जाती है तो किनारा
छोड़ देती है ना,
जितना सम्पन्न स्टेज के समीप आते जायेंगे उतना सर्व से किनारा
होता जायेगा । फरिश्ता अर्थात् एक के साथ सब रिश्ता । ऐसे
अनुभव करते हो कि किनारा होता जाता है?
जब
कोई चीज़ पूरी नहीं बनती तो तले में लगती जाती है,
जब
बन जाती है तो किनारा छोड़ देती,
किनारा नहीं छोड़ा माना अभी तैयार नहीं । तो सब बन्धनों से,
सब
तरफ से वृत्ति द्वारा किनारा होता जाता है कि अभी लगाव है?
अगर
स्पीड ढीली होगी तो समय पर पहुँच नहीं सकेंगे । समय के बाद
पहुँचे तो प्राप्ति की लिस्ट में नहीं आ सकेंगे इसलिए यह चेक
करो कि चारों ओर के बन्धन से मुक्त होते जाते हैं?
अगर
नहीं होते तो सिद्ध है फरिश्ता जीवन समीप नहीं । जब एक तरफ
सम्बन्ध का सुख प्राप्त हो सकता है तो भटकने की क्या जरूरत है,
ठिकाने लग जाना चाहिए ना । एक के साथ सर्व रिश्ते निभाना यह है
ठिकाना । सदा अपना अन्तिम फरिश्ता स्वरूप स्मृति में रखो तो
जैसी स्मृति होगी वैसी स्थिति बन जायेगी ।
2.
वाह ड्रामा वाह इसी मति से अनेकों की सेवा –
सभी
सदैव वाह ड्रामा वाह इसी स्मृति में ड्रामा को देखते हुए चलते
हो?
कोई
भी सीन को देखते हुए घबराते तो नहीं?
जब
ड्रामा का ज्ञान मिल गया तो वर्तमान समय कल्याणकारी युग है,
जो
भी दृश्य सामने आता है उसमें कल्याण भरा हुआ है । वर्तमान न भी
जान सको लेकिन भविष्य में समाया हुआ कल्याण प्रत्यक्ष हो
जायेगा । वाह ड्रामा वाह याद रहे तो सदा खुश रहेंगे,
पुरुषार्थ में कभी भी उदासी नहीं आयेगी,
स्वत: ही आप द्वारा अनेकों की सेवा हो जायेगी ।
3.
सहयोगी आत्माओं को सदा सम्पन्न रहने का वरदान –
जो
आत्माएं दिल व जान सिक व प्रेम से यज्ञ को सम्पन्न बनाती हैं,
जिन्होंने समय के अनुसार सहयोग की अंगुली दी उन्हों का एक से
अनेक गुणा बन गया,
समय
की भी वैल्यू होती,
आदि
में आवश्यकता के समय जिन आत्माओं का अमूल्य,
सहयोग स्थापना के कार्य में हुआ है,
उन्हों को रिटर्न में सदा सम्पन्न रहने का वरदान प्राप्त हो
गया । वह सदा भरपूर रहते आये हैं और रहेंगे । अच्छा - ओम्
शान्ति ।
वरदान:-
धरनी,
नब्ज
और समय को देख सत्य ज्ञान को प्रत्यक्ष करने वाले नॉलेजफुल भव
!
बाप
का यह नया ज्ञान,
सत्य
ज्ञान है,
इस
नये ज्ञान से ही नई दुनिया स्थापन होती है,
यह
अथॉरिटी और नशा स्वरूप में इमर्ज हो लेकिन इसका अर्थ यह नहीं
कि आते ही किसी को नये ज्ञान की नई बातें सुनाकर मुंझा दो ।
धरनी,
नब्ज
और समय सब देख करके ज्ञान देना - यह नॉलेजफुल की निशानी है ।
आत्मा की इच्छा देखो,
नब्ज
देखो,
धरनी
बनाओ लेकिन अन्दर सत्यता के निर्भयता की शक्ति जरूर हो,
तब
सत्य ज्ञान को प्रत्यक्ष कर सकेंगे ।
स्लोगन:-
मेरा
कहना माना छोटी बात को बड़ी बनाना,
तेरा
कहना माना पहाड़ जैसी बात को रूई बना देना ।
ओम्
शान्ति
|