13-02-14       प्रातः मुरली       ओम् शान्ति   “बापदादा”     मधुबन


मीठे बच्चे अन्तर्मुखी हो अपने कल्याण का ख्याल करो, घूमने-फिरने जाते हो तो एकान्त में विचार सागर मंथन करो, अपने से पूछो – हम सदा हर्षित रहते हैं |   


प्रश्न:-   
रहमदिल बाप के बच्चों को अपने पर कौन-सा रहम करना चाहिए?


उत्तर:-
जैसे बाप को रहम पड़ता है कि मेरे बच्चे काँटे से फूल बनें, बाप बच्चों को गुल-गुल बनाने की कितनी मेहनत करते हैं तो बच्चो को भी अपने ऊपर तरस आना चाहिए कि हम बाबा को बुलाते हैं – हे पतित-पावन आओ, फूल बनाओ, अब वह आये हैं तो क्या हम फूल नहीं बनेंगे! रहम पड़े तो देही-अभिमानी रहें | बाप जो सुनाते हैं उसको धारण करें |

 

ओम् शान्ति |

यह तो बच्चे समझते हैं – यह बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरु भी है | तो बाप बच्चों से पूछते हैं कि तुम यहाँ जब आते हो तो इन लक्ष्मी-नारायण के और सीढ़ी के चित्र को देखते हो? जब दोनों को देखा जाता है तो एम् आब्जेक्ट और सारा चक्र बुद्धि में आ जाता है कि हम देवता बनकर फिर ऐसे सीढ़ी उतरते आये हैं | यह ज्ञान तुम बच्चों को ही मिलता है | तुम हो स्टूडेन्ट | एम ऑब्जेक्ट सामने खड़ा है | कोई भी आये तो उनको समझाओ – यह एम ऑब्जेक्ट है | इस पढ़ाई से यह देवी-देवता जाकर बनते हैं | फिर 84 जन्म की सीढ़ी उतरते हैं, फिर रिपीट करना है | बहुत इज़ी नॉलेज है फिर भी पढ़ते-पढ़ते नापास क्यों हो पड़ते हैं? उस जिस्मानी पढ़ाई से भी यह ईश्वरीय पढ़ाई बिल्कुल सहज है | एम ऑब्जेक्ट और 84 जन्मों का चक्र बिल्कुल सामने खड़ा है | यह दोनों चित्र विज़िटिंग रूम में भी होने चाहिए | सर्विस करने के लिए सर्विस का हथियार भी चाहिए | सारा ज्ञान इसमें ही है | यह पुरुषार्थ ही हम अभी करते हैं | सतोप्रधान बनने के लिए बहुत मेहनत करनी है | इसमें अन्तर्मुखी हो विचार सागर मंथन करना है | घूमने-फिरने जाते हो तो भी बुद्धि में यही होना चाहिए | यह तो बाबा जानते हैं कि नम्बरवार हैं | कोई अच्छी तरह समझते है तो ज़रूर पुरुषार्थ करते होंगे, अपने कल्याण के लिए | हर एक स्टूडेन्ट समझते हैं यह अच्छा पढ़ते हैं | खुद नहीं पढ़ते हैं तो अपने को ही घाटा डालते हैं | अपने को तो कुछ लायक बनाना चाहिए | तुम भी स्टूडेन्ट हो, सो भी बेहद बाप के! यह ब्रह्मा भी पढ़ते हैं | यह लक्ष्मी-नारायण है मर्तबा और सीढ़ी है 84 जन्मों के चक्र की | यह पहले नम्बर का जन्म, यह लास्ट नम्बर का जन्म | तुम देवता बनते हो | अन्दर आने से ही सामने एम ऑब्जेक्ट और सीढ़ी पर समझाओ | रोज़ आकर इनके सामने बैठो तो स्मृति आये | तुम्हारी बुद्धि में है कि बेहद का बाप हमको समझा रहे हैं | सारे चक्र का ज्ञान तुम्हारी बुद्धि में भरपूर है तो कितना हर्षित रहना चाहिए | अपने से पूछना चाहिए कि हमारी वह अवस्था क्यों नहीं रहती? क्या कारण है जो हर्षित रहने में रोला पड़ता है? जो चित्र बनाते हैं उन्हों की बुद्धि में भी होगा कि यह हमारा भविष्य पद है, यह हमारी एम ऑब्जेक्ट है और यह 84 का चक्र है | गायन भी है सहज राजयोग | सो तो बाबा रोज़ समझाते रहते हैं कि तुम बेहद बाप के बच्चे हो तो स्वर्ग का वर्सा ज़रूर लेना चाहिए और सारे चक्र का भी राज़ समझाया है तो ज़रूर वह याद करना पड़े और फिर बातचीत करने के मैनर्स भी अच्छे चाहिए | चलन बहुत अच्छी चाहिए | चलते-फिरते काम-काज करते बुद्धि में सिर्फ़ यही रहे कि हम बाप के पास पढ़ने के लिए आये हैं | यह ज्ञान ही तुमको साथ ले जाना है | पढ़ाई तो सहज है | परन्तु अगर पूरी रीति नहीं पढ़ेंगे तो टीचर को जरूर यह ख्याल रहेगा कि अगर क्लास में बहुत डल बच्चे होंगे तो हमारा नाम बदनाम होगा | इज़ाफ़ा नहीं मिलेगा | गवर्मेन्ट कुछ नहीं देगी | यह भी स्कूल है ना | इसमें इज़ाफ़ा आदि के बात नहीं | फिर भी पुरुषार्थ तो कराया जाता है ना | चलन को सुधारो, दैवीगुण धारण करो | कैरेक्टर अच्छे चाहिए | बाप तो तुम्हारे कल्याण के लिए आये हैं | परन्तु बाप की श्रीमत पर चल नहीं सकते | श्रीमत कहे यहाँ जाओ तो जायेंगे नहीं | कहेंगे यहाँ गर्मी है, यहाँ ठण्डी है | बाप को पहचानते नहीं कि कौन हमको कहते हैं? यह साधारण रथ ही बुद्धि में आता है | वह बाप बुद्धि में आता ही नहीं है | बड़े राजाओं को कितना सबको डर रहता है | बड़ी अथॉरिटी होती है | यहाँ तो बाप कहते हैं मैं गरीब निवाज़ हूँ | मुझ रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को कोई नहीं जानते हैं | कितने ढेर मनुष्य हैं | कैसी-कैसी बातें करते हैं, क्या-क्या बोलते हैं | भगवान् क्या चीज़ होती है, यह भी जानते नहीं | वन्डर है ना | बाप कहते हैं मैं साधारण तन में आकर अपना और रचना के आदि-मध्य-अन्त का परिचय देता हूँ | 84 की यह सीढ़ी कितनी क्लीयर है | बाप कहते हैं मैंने तुमको यह बनाया था, अब फिर बना रहा हूँ | तुम पारसबुद्धि थे फिर तुमको पत्थरबुद्धि किसने बनाया? आधाकल्प रावण राज्य में तुम गिरते ही आते हो | अब तुमको तमोप्रधान से सतोप्रधान ज़रूर बनना है | विवेक भी कहता है बाप है ही सत्य | वह ज़रूर सत्य ही बतायेंगे | यह ब्रह्मा भी पढ़ते हैं, तुम भी पढ़ते हो | यह कहते हैं मैं भी स्टूडेन्ट हूँ | पढ़ाई पर अटेन्शन देता हूँ | एक्यूरेट कर्मातीत अवस्था तो अभी बनी नहीं है | ऐसा कौन होगा जो इतना ऊँच पद पाने के लिए पढ़ाई पर ध्यान नहीं देगा | सब कहेंगे ऐसा पद तो ज़रूर पाना चाहिए | बाप के हम बच्चे हैं तो ज़रूर मालिक होने चाहिए | बाकी पढ़ाई में उतराई-चढ़ाई तो होती ही है | अब तुमको एकदम ज्ञान का तन्त (सार) मिला है | शुरू में तो पुराना ही ज्ञान था | धीरे-धीरे तुम समझते ही आये हो | अभी समझते हैं ज्ञान तो सचमुच अभी हमको मिलता है | बाप भी कहते हैं आज मैं तुमको गुह्य-गुह्य बातें सुनाता हूँ | फट से तो कोई जीवनमुक्ति पा नहीं सकता | सारा ज्ञान उठा नहीं सकता | पहले यह सीढीला का चित्र थोड़ेही था | अब समझते हैं बरोबर हम ऐसे चक्र लगाते हैं | हम ही स्वदर्शन चक्रधारी हैं | बाबा ने हम आत्माओं को सारे चक्र का राज़ समझा दिया है | बाप कहते हैं तुम्हारा धर्म बहुत सुख देने वाला है | बाप ही आकर तुमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं | औरों के सुख का टाइम तो अभी आया है, जबकि मौत सामने खड़ा है | यह एरोप्लेन, बिजलियाँ आदि पहले नहीं थी | उन्हों के लिए तो अभी जैसे स्वर्ग है | कितने बड़े-बड़े महल बनाते हैं | समझते हैं अभी तो हमको बहुत सुख है | लन्दन में कितना जल्दी पहुँच जाते हैं | बस, यही स्वर्ग समझते हैं | अब उन्हों को जब कोई समझाये कि स्वर्ग तो सतयुग को कहा जाता है, कलियुग को थोड़ेही स्वर्ग कहेंगे | नर्क में शरीर छोड़ा तो ज़रूर पुर्नजन्म भी नर्क में ही लेंगे | आगे तुम भी यह बातें नहीं समझते थे | अब समझते हो | रावण राज्य आता है तो हम गिरने लग जाते हैं, सब विकार आ जाते हैं | अभी तुमको सारा ज्ञान मिला है तो चलन आदि भी बहुत रॉयल होनी चाहिए | अभी तुम सतयुग से भी जास्ती वैल्युबुल हो | बाप जो ज्ञान का सागर है वह सारा ज्ञान अभी देते हैं | और कोई भी मनुष्य ज्ञान और भक्ति को समझ न सकें | मिक्स कर दिया है | समझते हैं शास्त्र पढ़ना – यह ज्ञान है और पूजा करना भक्ति है | तो अब बाप गुल-गुल बनाने के लिए कितनी मेहनत करते हैं | बच्चों को भी तरस आना चाहिए कि हम बाबा को बुलाते हैं पतितों को आकर पावन बनाओ, फूल बनाओ | अब बाप आये हैं तो अपने पर भी रहम करना चाहिए | क्या हम ऐसे फूल नहीं बन सकते! अब तक हम बाबा के दिल तख़्त पर क्यों नहीं चढ़े हैं! अटेन्शन नहीं देते | बाप कितना रहम दिल है | बाप को बुलाते ही हैं पतित दुनिया में कि आकर पावन बनाओ | तो जैसे बाप को रहम पड़ता है, ऐसे बच्चों को भी रहम पड़ना चाहिए | नहीं तो सतगुरु के निन्दक ठौर न पायें | यह तो किसको स्वप्न में भी नहीं होगा कि सतगुरु कौन? लोग गुरुओं के लिए समझ लेते हैं कि कहाँ श्राप न दे देवें, अकृपा न हो जाए | बच्चा पैदा हुआ, समझेंगे गुरु की कृपा हुई | यह है अल्पकाल के सुख की बात | बाप कहते हैं – बच्चे, अपने पर रहम करो | देही-अभिमानी बनो तो धारणा भी होगी | सब-कुछ आत्मा ही करती है | मैं भी आत्मा को पढाता हूँ | अपने को आत्मा पक्का समझो और बाप को याद करो | बाप को याद नहीं करेंगे तो विकर्म विनाश कैसे होंगे | भक्ति मार्ग में भी याद करते हैं – हे भगवान् रहम करो | बाप लिबरेटर भी है तो गाइड भी है......यह भी उनकी गुप्त महिमा है, बाप आकर सब बतलाते हैं कि भक्ति मार्ग में तुम याद करते हो | मैं आऊँगा तो ज़रूर अपने समय पर | ऐसे जब चाहूँ तब आऊँ, यह नहीं | ड्रामा में जब नूँध है तब आता हूँ | बाकी ऐसे ख्यालात भी कभी नहीं आते हैं | तुमको पढ़ाने वाला वह बाप है | यह भी उनसे पढ़ते हैं | वह तो कभी भी कोई ख़ता (भूल) नहीं करते, किसको रंज नहीं करते | बाकी सब नम्बरवार टीचर हैं | वह सच्चा बाप तुमको सत्य ही सिखलाते हैं | सच्चे के बच्चे भी सच्चे | फिर झूठे के बच्चे बनने से आधाकल्प झूठे बन पड़ते हैं | सच्चे बाप को ही भूल जाते हैं |

 

पहले-पहले तो समझाओ कि यह सतयुगी नई दुनिया है या पुरानी दुनिया है?तो मनुष्य समझें यह प्रश्न बहुत अच्छा पूछते हैं | इस समय सभी में 5 विकार प्रवेश हैं | वहाँ 5 विकार होते नहीं | यह है तो बहुत सहज बात समझने की, परन्तु जो खुद ही नहीं समझते तो वह प्रदर्शनी में क्या समझायेंगे? सर्विस के बदले डिस सर्विस करके आयेंगे | बाहर में जाकर सर्विस करना मासी का घर नहीं है | बड़ी समझ चाहिए | बाबा हरेक की चलन से समझ जाते हैं | बाप तो बाप है फिर तो बाप ही कहेंगे यही ड्रामा में था | कोई भी आता है तो ब्रह्माकुमारी का समझाना ठीक है | नाम भी ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय है | नाम बाला भी ब्रह्माकुमारियों का होना है | इस समय सब 5 विकारों में हिरे हुए हैं | उन्हों को जाकर समझाना कितना मुश्किल होता है | कुछ भी समझते नहीं हैं सिर्फ़ इतना कहेंगे ज्ञान तो अच्छा है | खुद समझते नहीं हैं | विघ्न के पीछे विघ्न पड़ता रहता है | फिर युक्तियाँ भी रचनी पड़ती हैं | पुलिस का पहरा रखो, चित्र इन्श्योर करा दो | यह यज्ञ है इसमें विघ्न ज़रूर पड़ेंगे | सारी पुरानी दुनिया इनमें स्वाहा होनी है | नहीं तो यज्ञ नाम क्यों पड़े | यज्ञ में स्वाहा होना है | इसका रूद्र ज्ञान यज्ञ नाम पड़ा है | ज्ञान को पढ़ाई भी कहा जाता है | यह पाठशाला भी है तो यज्ञ भी है | तुम पाठशाला में पढकर देवता बनते हो फिर यह सब-कुछ इस यज्ञ में स्वाहा हो जाता है | समझा वही सकेंगे जो रोज़ प्रैक्टिस करते रहेंगे | अगर प्रैक्टिस नहीं होगी तो वह क्या बात कर सकेंगे | दुनिया के मनुष्यों के लिए स्वर्ग अभी है, अल्पकाल के लिए | तुम्हारे लिए स्वर्ग आधाकल्प के लिए होगा | यह भी ड्रामा बना हुआ है | विचार किया जाता है तो बड़ा वन्डर लगता है | अब रावण राज्य ख़त्म हो रामराज्य स्थापन होता है | इसमें लड़ाई आदि की कोई भी बात नहीं | यह सीढ़ी देख लोग बड़ा वन्डर खाते हैं | तो बाप ने क्या-क्या समझाया है, यह ब्रह्मा भी बाप से ही सीखा है जो समझाते रहते हैं | बच्चियाँ भी समझाती हैं | जो बहुतों का कल्याण करते हैं उन्हों को ज़रूर जास्ती फल मिलेगा | पढ़े हुए के आगे अनपढ़े ज़रूर भरी ढोयेंगे | बाप रोज़-रोज़ समझाते हैं – अपना कल्याण करो | इन चित्रों को सामने रखने से ही नशा चढ़ जाता है इसलिए बाबा ने कमरे में यह चित्र रख दिये हैं | एम ऑब्जेक्ट कितनी सहज है | इसमें कैरेक्टर्स भी बहुत अच्छे चाहिए | दिल साफ़ तो मुराद हासिल हो सकती है |

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1.    सदा स्मृति में रखना है कि हम बेहद बाप के स्टूडेन्ट हैं, भगवान् हमें पढ़ाते हैं, इसलिए अच्छी तरह पढकर बाप का नाम बाला करना है | अपनी चलन बड़ी रॉयल रखनी है |

 

2.    बाप समान रहमदिल बन काँटे से फूल बनना और दूसरों को फूल बनाना है | अन्तर्मुखी बन अपने वा दूसरों के कल्याण का चिन्तन करना है |

 

वरदान:-  


अच्छाई पर प्रभावित होने के बजाए उसे स्वयं में धारण करने वाले परमात्म स्नेही भव !   

 

अगर परमात्म स्नेही बनना है तो बॉडीकानसेस की रूकावटों को चेक करो | कई बच्चे कहते हैं यह बहुत अच्छा या अच्छी है इसलिए थोड़ा रहम आता है.....कोई का किसी के शरीर से लगाव होता तो कोई का किसी के गुणों वा विशेषताओं से | लेकिन वह विशेषता वा गुण देने वाला कौन? कोई अच्छा है तो अच्छाई को धारण भले करो लेकिन अच्छाई में प्रभावित नहीं हो जाओ | न्यारे और बाप के प्यारे बनो | ऐसे प्यारे अर्थात् परमात्म स्नेही बच्चे सदा सेफ़ रहते हैं |

 


स्लोगन:- 


साइलेन्स की शक्ति इमर्ज करो तो सेवा की गति फ़ास्ट हो जायेगी |    

 

ओम् शान्ति |