30-12-14        प्रातः मुरली       ओम् शान्ति      “बापदादा”       मधुबन
 


मीठे बच्चे - यह पावन बनने की पढ़ाई उन पढ़ाइयों से सहज है, इसे बच्चे, जवान, बूढ़े सब पढ़ सकते हैं, सिर्फ 84 जन्मों को जानना है |” 


प्रश्न:-   
हर एक छोटे वा बड़े को कौन-सी प्रैक्टिस जरूर करनी चाहिए ?


उत्तर:-

हर एक को मुरली चलाने की प्रैक्टिस जरूर करनी चाहिए क्योंकि तुम मुरलीधर के बच्चे हो । अगर मुरली नहीं चलाते हो तो ऊंच पद नहीं पा सकेंगे । किसी को सुनाते रहो तो मुख खुल जायेगा । तुम हर एक को बाप समान टीचर जरूर बनना है । जो पढ़ते हो वह पढ़ाना है । छोटे बच्चों को भी यह पढ़ाई पढ़ने का हक है । वह भी बेहद के बाप का वर्सा लेने के अधिकारी हैं ।

ओम् शान्ति |

अभी आती है शिवबाबा की जयन्ती । उस पर कैसे समझाना चाहिए? बाप ने तुमको समझाया है वैसे तुमको फिर औरों को समझाना है । ऐसे तो नहीं, बाबा जैसे तुमको पढ़ाता है वैसे बाबा को ही सबको पढ़ाना है । शिवबाबा ने तुमको पढ़ाया है, जानते हो इस शरीर द्वारा पढ़ाया है । बरोबर हम शिवबाबा की जयन्ती मनाते हैं । हम नाम भी शिव का लेते हैं, वह तो है ही निराकार । उनको शिव कहा जाता है । वो लोग कहते हैं-शिव तो जन्म-मरण रहित है । उनकी फिर जयन्ती कैसे होगी? यह तो तुम जानते हो कैसे नम्बरवार मनाते आते हैं । मनाते ही रहेंगे । तो उन्हों को समझाना पड़े । बाप आकर इस तन का आधार लेते हैं । मुख तो जरूर चाहिए, इसलिए गऊमुख की ही महिमा है । यह राज़ ज़रा पेंचीला है । शिवबाबा के आक्यूपेशन को समझना है । हमारा बेहद का बाप आया हुआ है, उनसे ही हमको बेहद का वर्सा मिलता है । बराबर भारत को बेहद का वर्सा था और किसको होता नहीं । भारत को ही सचखण्ड कहा जाता है और बाप को भी ट्रुथ कहा जाता है । तो यह बातें समझानी पड़ती हैं फिर कोई को जल्दी समझ में नहीं आता है । कोई झट समझ जाते । यह योग और एज्यूकेशन (पढ़ाई) दोनों खिसकने वाली चीजें हैं । उसमें भी योग जास्ती खिसकता है । नॉलेज तो बुद्धि में रहती ही है बाकी याद ही घड़ी-घड़ी भूलते हैं । नॉलेज तो तुम्हारी बुद्धि में हैं ही कि हम कैसे 84 जन्म लेते हैं, जिनको यह नॉलेज है वही बुद्धि से समझ सकते हैं कि जो पहले-पहले नम्बर में आते हैं वही 84 जन्म लेंगे । पहले ऊँच ते ऊँच लक्ष्मी-नारायण को कहेंगे । नर से नारायण बनने की कथा भी नामीग्रामी है । पूर्णमासी पर बहुत जगह सत्यनारायण की कथा चलती है । अभी तुम जानते हो हम सचमुच बाबा द्वारा नर से नारायण बनने की पढ़ाई पढ़ते हैं । यह है पावन बनने की पढ़ाई, और हैं भी सब पढ़ाईयों से बिल्कुल सहज । 84 जन्मों के चक्र को जानना है और फिर यह पढ़ाई सबके लिए एक ही है । बूढ़े, बच्चे, जवान जो भी हो सबके लिए एक ही पढ़ाई है । छोटे बच्चों को भी हक है । अगर माँ-बाप इन्हों को थोड़ा- थोड़ा सिखाते रहे तो टाइम तो बहुत पड़ा है । बच्चों को भी यह सिखाया जाता है कि शिवबाबा को याद करो । आत्मा और शरीर दोनों का बाप अलग- अलग है । आत्मा बच्चा भी निराकारी है तो बाप भी निराकारी है । यह भी तुम बच्चों की बुद्धि में है वह निराकार शिवबाबा हमारा बाप है, कितना छोटा है । यह अच्छी रीति याद रखना है । भूलना नहीं चाहिए । हम आत्मा भी बिन्दी मिसल छोटी हैं । ऐसे नहीं, ऊपर जायेंगे तो बड़ी दिखाई पड़ेगी, नीचे छोटी हो जायेगी । नहीं, वह तो है बिन्दी । ऊपर में जायेंगे तो तुमको जैसे देखने में भी नहीं आयेगी । बिन्दी है ना । बिन्दी क्या देखने में आयेगी । इन बातों पर बच्चों को अच्छी रीति विचार भी करना है । हम आत्मा ऊपर से आई हैं, शरीर से पार्ट बजाने । आत्मा घटती-बढ़ती नहीं है । आरगन्स पहले छोटे, पीछे बड़े होते हैं ।

अभी जैसे तुमने समझा है वैसे फिर औरों को समझाना है । यह तो जरूर है नम्बरवार जो जितना पढ़ा है उतना ही पढ़ाते हैं, सबको टीचर भी जरूर बनना है, सिखाने लिए । बाप में तो नॉलेज है, वह इतनी छोटी-सी परम आत्मा है, सदैव परमधाम में रहते हैं । यहाँ एक ही बार संगम पर आते हैं । बाप को पुकारते भी तब हैं जब बहुत दुःखी होते हैं । कहते हैं आकर हमको सुखी बनाओ । बच्चे अब जानते हैं हम पुकारते रहते हैं-बाबा, आकर हमको पतित दुनिया से नई सतयुगी सुखी पावन दुनिया में ले चलो अथवा वहॉ जाने का रास्ता बताओ । वह भी जब खुद आवे तब तो रास्ता बतावे । वह आयेंगे तब जब दुनिया को बदलना होगा । यह बड़ी सिम्पुल बातें हैं, नोट करना है । बाबा ने आज यह समझाया है, हम भी ऐसे समझाते हैं । ऐसी प्रैक्टिस करते-करते मुख खुल जायेगा । तुम मुरलीधर के बच्चे हो, तुम्हें मुरलीधर जरूर बनना है । जब औरों का कल्याण करेंगें तब तो नई दुनिया में ऊंच पद पायेंगे । वह पढ़ाई तो है यहाँ के लिए । यह है भविष्य नई दुनिया के लिए । वहाँ तो सदैव सुख ही सुख है । वहाँ 5 विकार तंग करने वाले होते ही नहीं । यहाँ रावण राज्य अर्थात् पराये राज्य में हम हैं । तुम ही पहले अपने राज्य में थे । तुम कहेंगे नई दुनिया, फिर भारत को ही पुरानी दुनिया कहा जाता है । गायन भी है नई दुनिया में भारत..... ऐसे नहीं कहेंगे कि नई दुनिया में इस्लामी, बौद्धी । नहीं । अभी तुम्हारी बुद्धि में है बाप आकर हम बच्चों को जगाते हैं । ड्रामा में पार्ट ही उनका ऐसा है । भारत को ही आकर स्वर्ग बनाते हैं । भारत ही पहला देश है । भारत पहले देश को ही स्वर्ग कहा जाता है । भारत की आयु भी लिमिटेड है । लाखों वर्ष कहना यह तो अनलिमिटेड हो जाता है । लाखों वर्ष की कोई बात स्मृति में आ ही न सके । नया भारत था, अब पुराना भारत ही कहेंगे । भारत ही नई दुनिया होगी । तुम जानते हो हम अभी नई दुनिया के मालिक बन रहे हैं । बाप ने राय बताई है मुझे याद करो तो तुम्हारी आत्मा नई प्योर बन जायेगी फिर शरीर भी नया मिलेगा । आत्मा और शरीर दोनों सतोप्रधान बनते हैं । तुमको राज्य मिलता ही है सुख के लिए । यह भी ड्रामा अनादि बना हुआ है । नई दुनिया में सुख और शान्ति है । वहाँ कोई तूफान आदि नहीं होते । बेहद की शान्ति में सब शान्त हो जाते हैं । यहाँ है अशान्ति तो सब अशान्त है । सतयुग में सब शान्त होते हैं । वन्डरफुल बातें हैं ना । यह अनादि बना- बनाया खेल है । यह हैं बेहद की बातें । वह हद की बैरिस्टरी, इन्जीनियरी आदि पढ़ते हैं । अभी तुम्हारी बुद्धि में बेहद की नॉलेज है । एक ही बार बाप आकर बेहद ड्रामा का राज समझाते हैं । आगे तो यह नाम भी नहीं सुना था कि बेहद का ड्रामा कैसे चलता है । अभी समझते हो सतयुग-त्रेता जरूर वह पास्ट हो गया, उसमें इनका राज्य था । त्रेता में राम राज्य था, पीछे फिर और- और धर्म आये हैं । इस्लामी, बौद्धी, क्रिस्चियन..... सब धर्मों का पूरा मालूम है । यह सब 2500 वर्ष के अन्दर आये हैं । उसमें 1250 वर्ष कलियुग है । सब हिसाब है ना । ऐसे तो नहीं, सृष्टि की आयु ही 2500 वर्ष है । नहीं । अच्छा, फिर और कौन था, विचार किया जाता है । इन्हों के आगे बरोबर देवी-देवता वह भी थे तो मनुष्य ही । परन्तु दैवीगुणों वाले थे । सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी 2500 वर्ष में । बाकी आधा में वह सब थे । इससे जास्ती का तो कोई हिसाब-किताब निकल न सके । फुल, पौना, आधा, चौथा । चार हिस्सा हैं । कायदेसिर टुकड़ा-टुकड़ा करेंगे ना । आधा में तो यह है । कहते भी हैं सतयुग में सूर्यवंशी राज्य, त्रेता में चन्द्रवंशी रामराज्य - यह तुम सिद्ध कर बतलाते हो । तो जरूर सबसे बड़ी आयु उनकी होगी, जो पहले-पहले सतयुग में आते हैं । कल्प ही 5 हजार वर्ष का है । वो लोग 84 लाख योनियां कह देते हैं तो कल्प की आयु भी लाखों वर्ष कह देते । कोई माने भी नहीं । इतनी बड़ी दुनिया हो भी न सके । तो बाप बैठ समझाते हैं-वह सब हैं अज्ञान और यह है ज्ञान । ज्ञान कहाँ से आया - यह भी किसको पता नहीं है । ज्ञान का सागर तो एक ही बाप है, वही ज्ञान देते हैं मुख से । कहते हैं गऊमुख । इस गऊ माता से तुम सबको एडाप्ट करते हैं । यह थोड़ी-सी बातें समझाने में तो बहुत सहज है । एक रोज समझाकर फिर छोड़ देंगे तो बुद्धि फिर और- और बातों में लग जायेगी । स्कूल में एक दिन पढ़ा जाता है या रेग्युलर पढ़ना होता है! नॉलेज एक दिन में नहीं समझी जा सकती है । बेहद का बाप हमको पढ़ाते हैं तो जरूर बेहद की पढ़ाई होगी । बेहद का राज्य देते हैं । भारत में बेहद का राज्य था ना । यह लक्ष्मी-नारायण बेहद का राज्य करते थे । किसको यह बातें स्वप्न में भी नहीं है, जो पूछे कि इन्होंने राज्य कैसे लिया? उन्हों में प्योरिटी जास्ती थी, योगी हैं ना इसलिए आयु भी बड़ी होती है । हम ही योगी थे । फिर 84 जन्म ले भोगी भी जरूर बनना है । मनुष्य नहीं जानते कि यह भी जरूर पुनर्जन्म में आये होंगे । इन्हों को भगवान- भगवती नहीं कहा जाता । इनसे पहले तो कोई है नहीं जिसने 84 जन्म लिया हो । पहले-पहले जो सतयुग में राज्य करते हैं वही 84 जन्म लेते हैं फिर नम्बरवार नीचे आते हैं । हम आत्मा सो देवता बनेंगे फिर हम सो क्षत्रिय डिग्री कम होगी । गाया भी जाता हैं पूज्य सो पुजारी । सतोप्रधान से फिर तमोप्रधान बनते हैं । ऐसे पुनर्जन्म लेते-लेते नीचे चले जायेंगे । यह कितना सहज है । परन्तु माया ऐसी है जो सब बातें भुला देती है । यह सब प्याइंटस इकट्ठी कर किताब आदि बनायें, लेकिन वह तो कुछ रहेंगी नहीं । यह टैम्प्रेरी हैं ' बाप ने कोई गीता नहीं सुनाई थी । बाप तो जैसे अब समझा रहे हैं, ऐसे समझाया था । यह वेद-शास्त्र आदि सब बाद में बनते हैं । यह सब होल लॉट जो हैं, विनाश होगा तो यह सब जल जायेंगे । सतयुग-त्रेता में कोई पुस्तक होता नहीं फिर भक्ति मार्ग में बनते हैं । कितनी चीजें बनती हैं । रावण को भी बनाते हैं परन्तु बेसमझी से । कुछ भी बता नहीं सकते । बाप समझाते हैं यह हर वर्ष बनाते हैं और जलाते हैं, जरूर यह बड़ा दुश्मन है । परन्तु दुश्मन कैसे है, यह कोई नहीं जानते । वह समझते सीता चुरा ले गये इसलिए शायद दुश्मन हैं । राम की सीता को चुरा ले जावे तो बड़ा डाकू हुआ ना! कभी चोरी की! त्रेता में कहें वा त्रेता के अन्त में । इन बातों पर भी विचार किया जाता है । कभी चोरी होनी चाहिए! कौन से राम की सीता चोरी हुई? राम-सीता की भी राजधानी चली है क्या? एक ही राम-सीता चले आये हैं क्या? यह तो शास्त्रों में जैसे एक कहानी लिखी हुई है । विचार किया जाता है - कौन-सी सीता? 12 नम्बर होते हैं ना राम-सीता । तो कौन-सी सीता को चुराया? जरूर पिछाड़ी का होगा । यह जो कहते हैं राम की सीता चुराई गई । अब राम के राज्य में सारा समय एक का ही राज्य तो नहीं होगा । जरूर डिनायस्टी होगी । तो कौन-से नम्बर की सीता चुराई? यह सब बहुत समझने की बातें हैं । तुम बच्चे बड़ी शीतलता से किसी को भी यह सब राज़ समझा सकते हो ।

बाप समझाते हैं भक्ति मार्ग में मनुष्य कितना धक्का खाते-खाते दु :खी हो गये हैं । जब अति दु :खी होते हैं तब रडियां मारते हैं-बाबा इस दुःख से छुड़ाओ । रावण तो कोई चीज नहीं है ना । अगर है तो अपने राजा को फिर हर वर्ष मारते क्यों हैं! रावण की जरूर स्त्री भी होगी । मदोदरी दिखाते हैं । मदोदरी का बुत बनाकर जलायें, ऐसा कभी देखा नहीं है । तो बाप बैठ समझाते हैं यह है ही झूठी माया, झूठी काया... अभी तुम झूठे मनुष्य से सच्चे देवता बनने बैठे हो । फर्क तो हुआ ना! वहाँ तो सदैव सच बोलेंगे । वह है सचखण्ड । यह है झूठ खण्ड । तो झूठ ही बोलते रहते हैं । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते । 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. ज्ञान सागर बाप जो रोज बेहद की पढ़ाई पढ़ाते हैं, उस पर विचार सागर मंथन करना है । जो पढ़ा है वह दूसरों को भी जरूर पढ़ाना है । 

2. यह बेहद का ड्रामा कैसे चल रहा है, यह अनादि बना-बनाया वन्डरफुल ड्रामा है, इस राज को अच्छी रीति समझकर फिर समझाना है । 

वरदान:-

हद की रॉयल इच्छाओं से मुक्त रह सेवा करने वाले निःस्वार्थ सेवाधारी भव !

जैसे ब्रह्मा बाप ने कर्म के बन्धन से मुक्त, न्यारे बनने का सबूत दिया । सिवाए सेवा के स्नेह के और कोई बन्धन नहीं । सेवा में जो हद की रायॅल इच्छायें होती हैं वह भी हिसाब-किताब के बन्धन में बांधती हैं, सच्चे सेवाधारी इस हिसाब-किताब से भी मुक्त रहते हैं । जैसे देह का बन्धन, देह के सम्बन्ध का बंधन है, ऐसे सेवा में स्वार्थ - यह भी बंधन है । इस बन्धन से वा रॉयल हिसाब-किताब से भी मुक्त निःस्वार्थ सेवाधारी बनो । 

स्लोगन:- 

वायदों को फाइल में नहीं रखो, फाइनल बनकर दिखाओ । 

ओम् शान्ति |