13-07-14
प्रातः मुरली
ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा”
रिवाइज:14-11-78
मधुबन
“वक्त
की पुकार”
सदा
स्वयं को ऊंचे से उंचे बाप के डायरेक्ट ईश्वरीय सन्तान समझते
हुए सदा समर्थ स्थिति में रहते हो?
जैसे
बाप सदा समर्थ है वैसे बाप समान समर्थ बने हो?
वर्तमान समय के प्रमाण जबकि आप सभी पहले से ही समय के चैलेन्ज
प्रमाण एवररेडी हो तो समय प्रमाण अब व्यर्थ का खाता नाम-मात्र
ही रहना चाहिए । जैसे कहावत है आटे में नमक के समान । ऐसे
समर्थ का खाता 99 परसेन्ट होना चाहिए,
तब
ही भविष्य नई दुनिया के लिए
100
परसेन्ट सतोप्रधान राज्य के आधकारी बन सकेंगे । अब तो भविष्य
राज्य या आपका अपना राज्य आप सबका आवाह्न कर रहा है,
किन्हों का आवाह्न कर रहा है?
सर्वगुण सम्पन्न,
16
कला सम्पूर्ण आत्माओं का । समय प्रमाण वर्तमान स्टेज का चार्ट
निकालो - समर्थ कितना और व्यर्थ कितना?
संकल्प और समय दोनों का चार्ट रखो । सारे दिन की दिनचर्या में
कौनसा खाता ज्यादा होता है! अगर अब तक भी व्यर्थ का खाता
50
या
60
परसेन्ट है तो ऐसे रिजल्ट वाले को कौन से समय के राज्य अधिकारी
कहेंगे?
क्या
सतयुग के पहले राज्य के या सतयुग के मध्यकाल के या त्रेता के
आदिकाल के?
आदिकाल के विश्व अधिकारी वही बन सकते जिन आत्माओं का वर्तमान
समय,
संकल्प और समय पर अधिकार है । ऐसी अधिकारी आत्माएं ही विश्व की
आत्माओं द्वारा सतोप्रधान आदिकाल में सर्व का सत्कार प्राप्त
कर सकती हैं ।
पहले
स्वराज्य फिर है विश्व का राज्य । जो स्वराज्य नहीं कर सकते वह
विश्व के राज्य के अधिकारी नहीं बन सकते इसलिए अभी अपने आप को
चेक करो । अर्न्तमुखी बन स्वचिन्तन में रहो । जो आदि में पहले
दिन की पहेली सुनाई जाती है
' '
मैं
कौन?
' '
अब
फिर इसी पहेली को अपने सम्पूर्ण स्टेज के प्रमाण,
श्रेष्ठ पोजीशन (स्थिति) के प्रमाण चेक करो,
व्हाट एम आई (मैं क्या हूँ) । यह पहेली अभी हल करनी है । अपने
सारे दिन की स्थिति द्वारा स्वयं को जान सकते हो कि आदिकाल के
अधिकारी हैं या सतयुग के या मध्यकाल के अधिकारी हैं?
जबकि
लक्ष्य है आदिकाल के अधिकारी बनने का तो उसी प्रमाण अपने
वर्तमान को सदा समर्थ बनाओ । ज्ञान के मनन के साथ अपने स्थिति
की चेकिंग भी बहुत जरूरी है । हर दिन के जमा हुए खाते में
स्वयं से सन्तुष्ट हैं?
या
अब तक भी यही कहेंगे कि जितना चाहते हैं उतना नहीं । अब तक ऐसी
रिजल्ट नहीं होनी चाहिए । जो स्वयं से सन्तुष्ट नहीं होगा वह
विश्व की आत्माओं को सन्तुष्ट करने वाला कैसे बन सकेगा । सतयुग
के आदिकाल में आत्मायें तो क्या प्रकृति भी सन्तुष्ट है,
क्योंकि सम्पूर्ण हैं । तो सन्तुष्टमणी बनो । समझा- अभी क्या
करना है?
सेवा
के साधन जो अब तक हैं उसी प्रमाण सेवा तो कर ही रहे हैं - लगन
से कर रहे हैं,
मेहनत भी बहुत करते हैं,
उमंग- उल्लास भी बहुत अच्छा है,
लेकिन सेवा के साथ विश्व की सेवा और स्वयं की सेवा हो । विश्व
के प्रति भी रहमदिल और स्वयं प्रति भी रहमदिल बनो । दोनों
साथ-साथ चाहिए । समय का इन्तजार नहीं करना है कि तब तक सम्पन्न
हो ही जायेंगे । जब आत्माओं को कहते हो कि कल नहीं लेकिन आज,
आज
नहीं अब करो,
ऐसे
पहले स्वयं से बात करो - ऐसे एवररेडी (समय से पहले तैयार) हैं?
सदा
यह स्मृति रहती है कि अब नहीं तो कब नहीं । ऐसे स्वयं से
रुहरिहान करो । अच्छा । सुनाया तो बहुत है - अब बाप क्या चाहते
हैं?
अब
सुनाने का समय नहीं लेकिन देखने का समय है । बाप एक- एक रत्न
को सम्पन्न और सम्पूर्ण देखना चाहते हैं । समझा ।
ऐसे
इशारे से समझने वाले,
सुनने और करने को समानता में लाने वाले सदा समर्थ बाप की समर्थ
याद में रहने वाले,
समर्थ स्थिति में रहने वाले सफलता मूर्त श्रेष्ठ आत्माओं को
बापदादा का यादप्यार और नमस्ते ।
दादियों के साथ मुलाकात:-
महारथियों को देख सब खुश होते हैं,
क्यों खुश होते हैं?
क्योंकि महारथी साकार बाप के समान सबके आगे साकार रूप में
सम्पन्न व श्रेष्ठ हैं इसलिए महारथियों को बाप भी देख हर्षित
होते हैं क्योंकि समान हैं । तो समान को देख हर्ष होता है ।
संगम पर ही बाप बच्चों को सेवा के तख्तनशीन बनाते हैं - यह
संगमयुग की रसम अपने हाथों से भविष्य में भी तख्तनशीन बनायेंगे
। स्वयं गुप्त रूप में तख्तनशीन बच्चों को देखते भी हैं,
सहयोगी भी हैं लेकिन प्रैक्टिकल तख्तनशीन बच्चों को ही बनाते
हैं । यह रसम अभी से आरम्भ होती है । करन करावनहार है - तो
करनहार का भी पार्ट बजाया और अभी करावनहार का भी पार्ट बजा रहे
हैं । बाप का तख्त होने के कारण तख्तनशीन होने में बोझ अनुभव
नहीं होता,
क्योंकि बाप का तख्त है ना । और बाप ने स्वयं तख्तनशीन बनाया ।
इस निमित्त बनने का तख्त कितना सहज है । तख्त की विशेषता है,
इस
तख्त में ही विशेष जादू भरा हुआ है,
जो
मुश्किल सेकण्ड में सहज हो जाती है । इस निमित्त बनने का तख्त
समय प्रमाण,
ड्रामा प्रमाण सर्व श्रेष्ठ तख्त और अति सफलता सम्पन्न तख्त
गाया हुआ है । जो भी तख्त पर बैठे सफलता मूर्त । यह अनादि आदि
वरदान है तख्त को । इस तख्त के तख्तनशीन भी बड़े गुह्य रहस्य और
राजयुक्त आत्माएं ही बनती हैं । बापदादा महारथियों को वर्तमान
समय भी डबल तख्तनशीन देखते हैं । दिलतख्त तो हैं’ ही लेकिन यह
निमित्त बनने का तख्त बहुत थोड़ों को प्राप्त होता है । यह भी
राज बड़े गुह्य है । अच्छा ।
मधुबन निवासी भाईयों से:-
मधुबन निवासियों ने बहुत सुना है बाकी सुनने को कुछ रहा है?
सन्मुख सुना,
रिवाइज कोर्स सुना अब बाकी क्या सुनने को रहा?
जितने तीर भरे हैं उतने छोड़े हैं?
मधुबन निवासियों को तीनप्रकार की सर्विस का चान्स है - किस
प्रकार की सर्विस का विशेष चान्स है?
विशेष मधुबन निवासियों को सहज सर्विस का साधन यह वरदान भूमि या
चरित्र भूमि का आधार है,
इस
भूमि के चरित्र की महिमा अगर किसी आत्मा को सुनाओ तो जैसे गीता
सुनने में इतना इंटरेस्ट नहीं लेते जितना भागवत सुनने में,
तो
ऐसे प्रैक्टिकल चरित्र सुनाने का साधन मधुबन वालों को है । इस
स्थान और चरित्र का भी परिचय दो तो आत्माएं खुशी में नाचने
लगेंगी । जब भी कोई आते हैं तो विशेष चरित्र भूमि को जानने और
अनुभव करने आते हैं तो मधुबन निवासी भागवत द्वारा सर्विस कर
सकते हैं कि यहाँ ऐसा होता है । तो आप लोग धरनी की विशेषता का
महत्व सुनाने के निमित्त हो । जिस नजर से सब आत्माएं एक-एक
रत्न को देखती हैं उसी तरह उन्हें बाप की तरफ आकर्षित करो तो
कितनी सेवा है?
यहाँ
बैठे हुए प्रजा बन सकती है या फैमिली बन सकती है । जैसे ताजमहल
में गाइड्स कितने रमणीक ढंग से ताजमहल की हिस्ट्री सुनाते हैं,
ऐसे
चरित्र सुनाओ तो उन्हें सहज ही याद रहेगी और उस सेवा का फल
आपको मिल जायेगा । जो भी आवे उसको खुशी-खुशी से,
उमंग
से,
लगन
से,
महत्व में स्थित हो करके अगर महत्व सुनाओ तो बहुत अधिक फल ले
सकते हो - ऐसी सेवा करने से बहुत खुशी रहेगी । तो सेवा भी रही,
याद
भी रही और प्राप्ति भी रही और क्या चाहिए?
ऐसे
लकी हो मधुबन निवासी ।
इस
वर्ष में विशेष स्वयं और सेवा का बैलेन्स (सन्तुलन) चाहिए ।
सेवा के साथ स्वयं की पर्सनेलिटी (व्यक्तित्व) और प्रभाव या
धारणामूर्त का प्रभाव सोने पर सुहागे का काम करेगा । कोई भी
देखे तो अनुभव करे ज्ञानमूर्त और गुणमूर्त । दोनों की समानता
दिखाई दे । अभी तक आवाज आती है कि ज्ञान ऊँचा है लेकिन चलन ऐसी
नहीं । तो दोनों के बैलेन्स का अटेंशन रखने से प्रजा व वारिस
दिखाई देंगे । सर्विस के साधन तो बहुत हैं - अभी धर्म नेताओं
तक नहीं पहुँचे हैं,
जो
लास्ट युद्ध है,
जिससे चारों ओर आवाज फैल जाए । यह होगा ज्ञान की बात से । जैसे
गीता के भगवान की बात से नाम बाला होना है । इसके लिए
छोटे-छोटे ग्रुप बनाकर चारों ओर पहले कुछ अपने सहयोगी बनाओ,
स्टूडेंट्स कम्पीटीशन (विद्यार्थियों की प्रतिस्पर्धा) रखी ना,
फिर
उसमें से एक चुना । ऐसे हर स्थान पर छोटे-छोटे ग्रुप बने और
फिर उन सबका एक स्थान पर संगठन हो फिर नाम बाला होगा । यह वर्ष
है ही नाम बाला करने का वर्ष । अच्छा ।
अव्यक्त महावाक्य - मास्टर दाता बनो
बापदादा अब बच्चों से यही चाहते हैं कि हर एक बच्चा मास्टर
दाता बनें । जो बाप से लिया है,
वह
औरों को दो । आत्माओं से लेने की भावना नहीं रखो । रहमदिल बन
अपने गुणों का,
शक्तियों का सबको सहयोग दो,
फ्राकदिल बनो । जितना दूसरों को देते जायेंगे उतना बढ़ता जायेगा
। विनाशी खजाना देने से कम होता है और अविनाशी खजाना देने से
बढ़ता है-एक दो,
हजार
पाओ । मास्टर दाना अर्थात् सदा भरपूर,
सम्पन्न । जिसके पास अनुभूतियों का खजाना सम्पन्न होगा,
वह
सम्पन्न मूर्तियां स्वत: ही मास्टर दाता बन जाती हैं । दाता
अर्थात् सेवाधारी । दाता देने के बिना रह नहीं सकते । वे अपने
रहमदिल के गुण से किसी को हिम्मत देंगे तो किसी निर्बल आत्मा
को बल देंगे । वह मास्टर सुखदाता होंगे । सदा यह स्मृति रहे कि
हम सुखदाता के बच्चे मास्टर सुखदाता हैं । जो दाता हैं,
उसके
पास है तभी तो देंगे । यदि किसके पास अपने खाने के लिए ही नहीं
हो,
तो
वह दाता कैसे बनेंगे । इसलिए जैसा बाप वैसे बच्चे । बाप को
सागर कहते हैं । सागर अर्थात् बेहद,
खुटता नहीं । ऐसे आप भी मास्टर सागर हो,
नदी-नाले नहीं । तो बाप समान निःस्वार्थ भावना से देते जाओ ।
अशान्ति के समय पर मास्टर शान्ति-दाता बन औरों को भी शान्ति दो,
घबराओ नहीं,
क्योंकि जानते हो कि जो हो रहा है वो भी अच्छा और जो होना है
वह और अच्छा । विकारों के वशीभूत मनुष्य तो लड़ते ही रहेंगे ।
उनका काम ही यह है । लेकिन आपका काम है-ऐसी आत्माओं को शान्ति
देना क्योंकि विश्व कल्याणकारी हो | विश्व-कल्याणकारी आत्मायें
सदा मास्टर दाता बन देती रहती हैं । दूसरा सहयोग दे तो मैं
सम्पन वा सम्पूर्ण बनूँ-नहीं । इस लेने के बजाए मास्टर दाता बन
सहयोग,
स्नेह,
सहानुभूति देना ही लेना है । याद रखो कि ब्राह्मण जीवन में
देने में ही लेना है ।
वर्तमान समय में सभी को अविनाशी खुशी की आवश्यकता है,
सब
खुशी के भिखारी हैं और आप दाता के बच्चे हो । दाता के बच्चों
का काम है-देना । जो भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आये-खुशी बांटते
जाओ,
देते
जाओ । कोई खाली नहीं जाये । इतना भरपूर बनो । अब सारे विश्व की
आत्मायें सुख-शान्ति की भीख मांगने के लिए आपके सामने आने वाली
हैं । आप दाता के बच्चे मास्टर दाता बन सबको मालामाल करेंगे ।
तो पहले से स्वयं के भण्डारे सर्व खजानों से भरपूर करते जाओ-जो
कोई भी आवे तो खाली हाथ नहीं जाये,
भरपूर होकर जाये । ये नजारा आगे चलकर अनुभव करेंगे । आप
श्रेष्ठ आत्मायें संगम पर अखुट और अखण्ड महादानी बनो । निरन्तर
स्मृति में रखो कि मैं दाता का बच्चा अखण्ड महादानी आत्मा हूँ
। कोई भी आत्मा आपके सामने आये चाहे अज्ञानी हो,
चाहे
ब्राह्मण हो लेकिन कुछ न कुछ सबको देना है ।
राजा
का अर्थ ही है दाता । अगर हद की इच्छा वा प्राप्ति की उत्पत्ति
है तो वो राजा के बजाय मंगता (मांगने वाला) बन जाते हैं । आप
दाता के बच्चे हो,
सर्व
खजानों से सम्पन्न श्रेष्ठ आत्मायें हो । सम्पन्न की निशानी है
- अखण्ड महादानी । तो एक सेकण्ड भी दान देने के बिना रह नहीं
सकते । ब्राह्मण आत्माओं के पास ज्ञान तो पहले ही है लेकिन
उनके प्रति दो प्रकार से दाता बनो : - 1 - जिस आत्मा को,
जिस
शक्ति की आवश्यकता हो,
उस
आत्मा को मन्सा द्वारा अर्थात् शुद्ध वृत्ति,
वायब्रेशन्स द्वारा शक्तियों का दान अर्थात् सहयोग दो । 2 -
कर्मद्वारा सदा स्वयं जीवन में गुण मूर्त बन,
प्रत्यक्ष सेम्पल बन औरों को सहज गुण धारण करने का सहयोग दो,
इसको
कहा जाता है गुण दान । दान का अर्थ है सहयोग देना । अच्छा ।
वरदान:-
एकाग्रता की शक्ति से परवश स्थिति को परिवर्तन करने वाले
अधिकारी आत्मा भव
!
ब्राह्मण अर्थात् अधिकारी आत्मा कभी किसी के परवश नहीं हो सकती
। अपने कमजोर स्वभाव संस्कार के वश भी नहीं क्योंकि स्वभाव
अर्थात् स्व प्रति और सर्व के प्रति आत्मिक भाव है तो कमजोर
स्वभाव के वश नहीं हो सकते और अनादि आदि संस्कारों की स्मृति
से कमजोर संस्कार भी सहज परिवर्तन हो जाते हैं । एकाग्रता की
शक्ति परवश स्थिति को परिवर्तन कर मालिकपन की स्थिति की सीट पर
सेट कर देती है ।
स्लोगन:-
ज्ञान मूर्त और गुणमूर्त दोनों के बैलेन्स से प्रजा और वारिस
तैयार करो ।
ओम्
शान्ति
|