28-04-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
यह
बना-बनाया नाटक है, इस नाटक से एक भी आत्मा छूट नहीं सकती,
मोक्ष किसी को मिल नहीं सकता
| 
प्रश्न:-
ऊँचे
ते ऊँचा पतित-पावन बाप भोलानाथ कैसे है?
उत्तर:-
तुम
बच्चे उन्हें चावल मुट्ठी दे महल ले लेते हो, इसलिए ही बाप को
भोलानाथ कहा जाता है | तुम कहते हो शिवबाबा हमारा बेटा है, वह
बेटा ऐसा है जो कभी कुछ लेता नहीं, सदा ही देता है | भक्ति में
कहते हैं जो जैसा कर्म करता है वैसा फल पाता है | परन्तु भक्ति
में तो अल्पकाल का मिलता | ज्ञान में समझ से करते इसलिये
सदाकाल का मिलता है |
ओम्
शान्ति
|
रूहानी बच्चों से रूहानी बाप रूहरिहान कर रहे हैं वा ऐसे
कहेंगे रूहानी बाप बच्चों को राजयोग सिखला रहे हैं | तुम आये
हो बेहद के बाप से राजयोग सीखने इसलिये बुद्धि चली जानी चाहिए
बाप की तरफ़ | यह है परमात्म ज्ञान आत्माओं के प्रति |
भगवानुवाच सलिग्रामों प्रति | आत्माओं को ही सुनना है इसलिये
आत्म-अभिमानी बनना है | आगे तुम देह-अभिमानी थे | इस
पुरुषोत्तम संगमयुग पर ही बाप आकर तुम बच्चों को आत्म-अभिमानी
बनाते हैं | आत्म-अभिमानी और देह-अभिमानी का फ़र्क तुम समझ गये
हो | बाप ने ही समझाया है, आत्मा ही शरीर से पार्ट बजाती है |
पढ़ती आत्मा है, शरीर नहीं | परन्तु देह-अभिमान होने के कारण
समझते हैं फ़लाना पढ़ाते हैं | तुम बच्चों को जो पढ़ाने वाला है
वह है निराकार | उनका नाम है शिव | शिवबाबा को अपना शरीर नहीं
होता | और सब कहेंगे मेरा शरीर | यह किसने कहा? आत्मा ने कहा –
यह मेरा शरीर है | बाकी वह सब हैं जिस्मानी पढ़ाईयाँ | अनेक
प्रकार की उसमें सब्जेक्ट होती हैं | बी.ए. आदि कितने नाम हैं
| इसमें एक ही नाम है, पढ़ाई भी एक ही पढ़ाते हैं | एक ही बाप
आकर पढ़ाते हैं, तो बाप को ही याद करना पड़े | हमको बेहद का बाप
पढ़ाते हैं, उनका नाम क्या है? उनका नाम है शिव | ऐसे नहीं कि
नाम-रूप से न्यारा है | मनुष्यों का नाम शरीर पर पड़ता है |
कहेंगे फ़लाने का यह शरीर है | वैसे शिवबाबा का नाम नहीं है |
मनुष्यों के नाम शरीर पर हैं, एक ही निराकार बाप है जिसका नाम
है शिव | जब पढ़ाने आते हैं तो भी नाम शिव ही है | यह शरीर तो
उनका नहीं है | भगवान् एक ही होता है, 10-12 नहीं | वह है ही
एक फिर मनुष्य उनको 24 अवतार कहते हैं | बाप कहते हैं मुझे
बहुत भटकाया है | परमात्मा को ठिक्कर-भित्तर सबमें कह दिया है
| जैसे भक्ति मार्ग में ख़ुद भटके हैं वैसे मुझे भी भटकाया है |
ड्रामा अनुसार उनके बात करने का ढंग कितना शीतल है | समझाते
हैं मेरे ऊपर सबने कितना अपकार किया है, मेरी कितनी ग्लानि की
है | मनुष्य कहते हैं हम निष्काम सेवा करते हैं, बाप कहते हैं
मेरे सिवाए कोई निष्काम सेवा कर नहीं सकता | जो करता है उनको
फल ज़रूर मिलता है | अभी तुमको फल मिल रहा है | गायन है कि
भक्ति का फल भगवान् देंगे क्योंकि भगवान् है ज्ञान का सागर |
भक्ति में आधाकल्प तुम कर्मकाण्ड करते आये हो | अब यह ज्ञान है
पढ़ाई | पढ़ाई मिलती है एक बार और एक ही बाप से | बाप पुरुषोत्तम
संगमयुग पर एक ही बार आकर तुमको पुरुषोत्तम बनाकर जाते हैं |
यह है ज्ञान और वह है भक्ति | आधाकल्प तुम भक्ति करते थे, अब
जो भक्ति नहीं करते हैं, उनको वहम पड़ता है कि पता नहीं, भक्ति
नहीं की तब फ़लाना मर गया, बीमार हो गया | परन्तु ऐसे है नहीं |
बाप
कहते हैं – बच्चे, तुम पुकारते आये हो कि आप आकर पतितों को
पावन बनाए सबकी सद्गति करो | तो अब मैं आया हूँ | भक्ति अलग
है, ज्ञान अलग है | भक्ति से आधाकल्प होती है रात, ज्ञान से
आधाकल्प के लिये होता है दिन | राम राज्य और रावण राज्य दोनों
बेहद हैं | दोनों का टाइम बराबर है | इस समय भोगी होने कारण
दुनिया की वृद्धि जास्ती होती है, आयु भी कम होती है | वृद्धि
जास्ती न हो उसके लिये फिर प्रबन्ध रचते हैं | तुम बच्चे जानते
हो इतनी बड़ी दुनिया को कम करना तो बाप का ही काम है | बाप आते
ही हैं कम करने | पुकारते भी हैं बाबा आकर अधर्म विनाश करो
अर्थात् सृष्टि को कम करो | दुनिया तो जानती नहीं कि बाप कितना
कम कर देते हैं | थोड़े मनुष्य रह जाते हैं | बाकी सब आत्मायें
अपने घर चली जाती हैं फिर नम्बरवार पार्ट बजाने आती हैं | नाटक
में जितना पार्ट देरी से होता है, वह घर से भी देरी से आते हैं
| अपना धन्धा आदि पूरा कर बाद में आते हैं | नाटक वाले भी अपना
धन्धा करते हैं, फिर समय पर नाटक में आ जाते हैं पार्ट बजाने |
तुम्हारा भी ऐसे ही है, पिछाड़ी में जिनका पार्ट है वह पिछाड़ी
में आते हैं | जो पहले-पहले शुरू के पार्टधारी हैं वह सतयुग
आदि में आते हैं | पिछाड़ी वाले देखो तो अभी आते ही रहते हैं |
टाल-टालियाँ पिछाड़ी तक आती रहती हैं |
इस
समय तुम बच्चों को ज्ञान की बातें समझाई जाती हैं और सवेरे याद
में बैठते हो, वह है ड्रिल | आत्मा को अपने बाप को याद करना है
| योग अक्षर छोड़ दो | इसमें मूँझते हैं | कहते हैं हमारा योग
नहीं लगता है | बाप कहते हैं – अरे, बाप को तुम याद नहीं कर
सकते हो! क्या यह अच्छी बात है! याद नहीं करेंगे तो पावन कैसे
बनेंगे? बाप है ही पतित-पावन | बाप आकर ड्रामा के आदि-मध्य-अंत
का राज़ समझाते हैं | यह वैरायटी धर्म और वैरायटी मनुष्यों का
वृक्ष है | सारे सृष्टि के जो भी मनुष्य मात्र हैं सब
पार्टधारी हैं | कितने ढेर मनुष्य हैं, हिसाब निकलते हैं – एक
वर्ष में इतने करोड़ पैदा हो जायेंगे | फिर इतनी जगह ही कहाँ है
| तब बाप कहते हैं मैं आता हूँ लिमिटेड नम्बर करने | जब सभी
आत्मायें ऊपर से आ जाती हैं, हमारा घर खाली हो जाता है | बाकी
भी जो बचत है वह भी आ जाती है | झाड़ कभी सूखता नहीं, चलता आता
है | पिछाड़ी में जब वहाँ कोई रहता नहीं, फिर सभी जायेंगे | नई
दुनिया में कितने थोड़े थे, अब कितने ढेर हैं | शरीर तो सबका
बदलता जाता है | वह भी जन्म वही लेंगे जो कल्प-कल्प लेते हैं |
यह वर्ल्ड ड्रामा कैसे चलता है, सिवाए बाप के कोई समझा न सके |
बच्चों में भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार समझते हैं | बेहद का
नाटक कितना बड़ा है | कितनी समझने की बातें हैं | बेहद का बाप
तो ज्ञान का सागर है | बाकी तो सब लिमिटेड हैं | वेद शास्त्र
आदि कुछ बनाते हैं, जास्ती तो कुछ बनेगा नहीं | तुम लिखते जाओ
शुरू से लेकर तो कितनी लम्बी-चौड़ी गीता बन जाये | सब छपता जाये
तो मकान से भी बड़ी गीता बन जाये इसलिये बड़ाई दी है सागर को
स्याही बना दो.....फिर यह भी कह देते कि चिड़ियाओं ने सागर को
हप किया | तुम चिड़ियायें हो, सारे ज्ञान सागर को हप कर रही हो
| तुम अभी ब्राह्मण बने हो | तुमको अब ज्ञान मिला है | ज्ञान
से तुम सब कुछ जान गये हो | कल्प-कल्प तुम यहाँ पढ़ाई पढ़ते हो,
उसमें कुछ कम जास्ती नहीं होना है | जितना जो पुरुषार्थ करते
हैं, उनकी उतनी प्रालब्ध बनती है | हरेक समझ सकते हैं हम कितना
पुरुषार्थ कर, कितना पद पाने के लायक बन रहे हैं | स्कूल में
भी नम्बरवार इम्तहान पास करते हैं | सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी
दोनों बनते हैं | जो नापास होते हैं वह चन्द्रवंशी बनते हैं |
कोई जानते नहीं कि राम को बाण क्यों दिया है? मारामारी की
हिस्ट्री बना दी है | इस समय है ही मारामारी | तुम जानते हो जो
जैसा कर्म करते हैं उनको ऐसा फल मिलता है | जैसे कोई हॉस्पिटल
बनाते हैं तो दूसरे जन्म में उनकी आयु बड़ी और तन्दुरुस्त होंगे
| कोई धर्मशाला, स्कूल बनाते हैं तो उनको आधाकल्प का सुख मिलता
है | यहाँ बच्चे जब आते हैं तो बाबा पूछते हैं तुमको कितने
बच्चे हैं? तो कहते हैं 3 लौकिक और एक शिवबाबा क्योंकि वह
वर्सा देता भी है तो लेता भी है | हिसाब है | उनको लेने का
कुछ है नहीं, वह तो दाता है | चावल मुट्ठी देकर तुम महल ले
लेते हो, इसलिये भोलानाथ है | पतित-पावन ज्ञान सागर है | अब
बाप कहते हैं यह भक्ति के जो शास्त्र हैं उनका सार समझाता हूँ
| भक्ति का फल होता है आधाकल्प का | सन्यासी कहते हैं यह सुख
काग विष्टा के समान है, इसलिये घरबार छोड़ जंगल में चले जाते
हैं | कहते हैं हमको स्वर्ग के सुख नहीं चाहिए, जो फिर नर्क
में आना पड़े | हमको मोक्ष चाहिए | परन्तु यह याद रखो कि यह
बेहद का नाटक है | इस नाटक से एक भी आत्मा छूट नहीं सकती है,
बना बनाया है | तब गाते हैं बनी बनाई बन रही....परन्तु भक्ति
मार्ग में चिंता करनी पड़ती है | जो कुछ पास किया है वह फिर
होगा | 84 का चक्र तुम लगाते हो | यह कभी बन्द नहीं होता है,
बना बनाया है | इसमें तुम अपने पुरुषार्थ को उड़ा कैसे सकते हो?
तुम्हारे कहने से तुम निकल नहीं सकते हो | मोक्ष को पाना,
ज्योति ज्योत समाना, ब्रह्म में लीन होना – यह एक ही है | अनेक
मतें हैं, अनेक धर्म हैं | फिर कह देते हैं तुम्हारी गत-मत तुम
ही जानो | तुम्हारी श्रीमत से सद्गति मिलती है | सो तुम ही
जानते हो | तुम जब आओ तब हम भी ही जानें और हम भी पावन बनें |
पढ़ाई पढ़ें और हमारी सद्गति हो | जब सद्गति हो जाती है तो फिर
कोई बुलाते ही नहीं हैं | इस समय सबके ऊपर दुःखों के पहाड़
गिरने हैं | खूने नाहेक खेल दिखाते हैं और गोवर्धन पहाड़ भी
दिखाते हैं | अंगुली से पहाड़ उठाया | तुम इसका अर्थ जानते हो |
तुम थोड़े से बच्चे इस दुःखों के पहाड़ को हटाते हो | दुःख भी
सहन करते हो |
तुमको वशीकरण मन्त्र सभी को देना है | कहते हैं तुलसीदास चन्दन
घिसें.......तिलक राजाई का तुमको मिलता है, अपनी-अपनी मेहनत से
| तुम राजाई के लिये पढ़ रहे हो | राजयोग जिससे राजाई मिलती है
वह पढ़ाने वाला एक ही बाप है | अब तुम घर में बैठे हो, यह दरबार
नहीं है |
दरबार उसको कहा जाता है जहाँ राजायें-महाराजायें मिलते हैं |
यह पाठशाला है | समझाया जाता है कोई ब्राह्मणी विकारी को नहीं
ले आ सकती है | पतित वायुमण्डल को ख़राब करेंगे, इसलिये एलाउ
नहीं करते हैं | जब पवित्र बनें, तब एलाउ किया जाये | अभी
कोई-कोई को एलाउ करना पड़ता है | अगर यहाँ से जाकर पतित बनें तो
धारणा नहीं होगी | यह हुआ अपने आपको श्रापित करना | विकार है
ही रावण की मत | राम की मत छोड़ रावण की मत से विकारी बन पत्थर
बन पड़ते हैं | ऐसी गरुड़ पुराण में बहुत रोचक बातें लिख दी हैं
| बाप कहते हैं मनुष्य, मनुष्य ही बनता है, जानवर आदि नहीं
बनता | पढ़ाई में कोई अन्धश्रद्धा की बात नहीं होती | तुम्हारी
यह पढ़ाई है | स्टूडेन्ट पढ़कर पास होकर कमाते हैं | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1. वशीकरण
मन्त्र सबको देना है | पढ़ाई की मेहनत से राजाई का तिलक लेना है
| इन दुःखों के पहाड़ को हटाने में अपनी अंगुली देनी है |
2.
संगमयुग
पर पुरुषोत्तम बनने का पुरुषार्थ करना है | बाप को याद करने की
ड्रिल करनी है | बाकी योग-योग कह मूँझना नहीं है |
वरदान:-
आत्मिक शक्ति के आधार पर तन की शक्ति का अनुभव करने वाले सदा
स्वस्थ भव
!
इस
अलौकिक जीवन में आत्मा और प्रकृति दोनों की तन्दुरुस्ती आवश्यक
है | जब आत्मा स्वस्थ है तो तन का हिसाब-किताब वा तन का रोग
सूली से काँटा बनने के कारण, स्व-स्थिति के कारण स्वस्थ अनुभव
करते हैं | उनके मुख पर चेहरे पर बीमारी के कष्ट के चिन्ह नहीं
रहते | कर्मभोग के वर्णन के बदले कर्मयोग की स्थिति का वर्णन
करते हैं | वे परिवर्तन की शक्ति से कष्ट को सन्तुष्टता में
परिवर्तन कर सन्तुष्ट रहते और सन्तुष्टता की लहर फैलाते हैं |
स्लोगन:-
दिल से,
तन से, आपसी प्यार से सेवा करो तो सफ़लता निश्चित मिलेगी |
ओम् शान्ति
|