21-01-14  प्रातः मुरली  ओम् शान्ति   “बापदादा”   मधुबन


 

मीठे बच्चे इस पुरुषोत्तम संगमयुग में पुरुषोत्तम बनने का पूरा-पूरा पुरुषार्थ करो, जितना हो सके याद और पढ़ाई पर अटेन्शन दो |   

प्रश्न:-   
तुम बच्चे बहुत बड़े व्यापारी हो, तुम्हें हमेशा किस बात पर ध्यान दे विचार करना चाहिए?

उत्तर:-
हमेशा घाटे और फ़ायदे पर विचार करो | अगर इस पर विचार नहीं किया तो प्रजा में दास दासी बनना पड़ेगा | बाप 21 जन्मों की राजाई का जो वर्सा देते हैं उसे गँवा देंगे इसलिए बाप से पूरा सौदा करना है | बाप है दाता, तुम बच्चे सुदामे मिसल चावल मुट्ठी देते हो और विश्व की बादशाही लेते हो |

ओम् शान्ति |  

बच्चे यहाँ बैठे हैं | यह स्कूल है | यह कोई सतसंग नहीं है | महन्त, ब्राह्मण वा कोई सन्यासी सामने नहीं बैठा है | डर की कोई बात नहीं कि स्वामी नाराज़ न हो जायें |  भक्ति मार्ग में जब कोई साधू सन्यासी को घर में बुलाते हैं तो उनके पाँव धोकर पीते हैं, यह तो बाप है ना | घर में बच्चे कभी बाप से डरते हैं क्या | तुम तो साथ में खाते-पीते, खेलते हो | सन्यासी-गुरु आदि के साथ ऐसे करते हैं क्या? वहाँ तो सारा दिन गुरु जी, गुरू जी करते रहते हैं | यहाँ तो ऐसे नहीं करना है | यह तो बाप है | गुरु से अपना वर्सा, टीचर से अपना वर्सा मिलता है | बाप से तो प्रॉपर्टी मिलती है | बच्चा पैदा हुआ और वारिस बना | यहाँ भी बाप के बच्चे बने, बाप को पहचाना, बस हम स्वर्ग के मालिक हैं | बाप है ही स्वर्ग का रचयिता | इन लक्ष्मी-नारायण ने स्वर्ग की राजाई कैसे और कहाँ से ली – यह कोई भी नहीं जानते | तुम समझते हो हम यह थे फिर बन रहे हैं | मनुष्य तो कुछ भी ख्याल नहीं करते कि यह कौन हैं, हम किसको पूजते हैं | शिव के मन्दिर में जाकर सिर्फ़ लोटी चढ़ाकर आते हैं, जानते कुछ भी नहीं | तुमको अब फीलिंग आती है कि हम यह मृत्युलोक का शरीर छोड़ अमरलोक में जायेंगे | प्राप्ति कितनी भारी है | भक्ति मार्ग में कुछ भी प्राप्ति नहीं | बाबा खुद भी कहते हैं हमने 12 गुरु किये | अब समझते हैं कि यह तो टाइम वेस्ट हो गया और ही नीचे उतरते गये | परन्तु यह भी ड्रामा में नूँध है | हमारी कोई से दुश्मनी नहीं है | हमारी एक बाप के साथ ही प्रीत है | तुम जब अन्दर क्लास में आते हो तो इन चित्रों को देख खुश होना चाहिए कि हम पढ़ करके यह बन रहे हैं | तुमको मालूम है यह राजधानी कैसे स्थापन होती है | बाप कहते हैं बच्चे मूँझो मत | बाप इतना अच्छी रीति समझाते हैं फिर भी आश्चर्यवत सुनन्ती, कथन्ती, भागन्ती हो जाते हैं | माया के बन जाते हैं, उनको कहा जाता है ट्रेटर, जो एक राजधानी से निकल दूसरे के जाकर बनते हैं | बाप कितना अच्छी रीति पुरुषार्थ कराते हैं | भक्ति मार्ग में कितना भटकते हैं | दान-पुण्य, तीर्थ, व्रत-नेम आदि बहुत करते हैं | अच्छा साक्षात्कार हुआ तो क्या हुआ | चढ़ती कला तो हुई नहीं और ही उतरती कला हुई | तुम्हारी दिन-प्रतिदिन चढ़ती कला है | बाकी सबकी है उतरती कला | गुरु लोग कहते भी हैं ज्ञान ब्रह्मा का दिन है, भक्ति ब्रह्मा की रात है | ज्ञान और भक्ति में रात दिन का फ़र्क है | ज्ञान से सुख मिलता है, बाप कितना सहज समझाते हैं कि तुम ही विश्व के मालिक थे फिर तुम ही नीचे उतरते आये हो | अब बाप कहते हैं सिर्फ़ अपने को आत्मा समझो | आत्मा अविनाशी है | आत्मा कहती है हे अविनाशी बाप हमको आकर पावन बनाओ, इसमें मुक्ति जीवनमुक्ति सब आ जाता है | तुम अभी समझते हो भक्ति में हम कुछ भी नहीं जानते थे | ढूँढ़ते रहते थे | गाते रहते थे हे भगवान रहम करो | भगवान कहने से इतनी टेस्ट नहीं आती, वर्सा याद नहीं आता | तुम कहेंगे ऊँचे ते ऊँचा शिवबाबा तो फ़ौरन वर्सा याद आयेगा | अभी तुम समझते हो कि यह रावण राज्य है | रामराज्य होता है सतयुग में | अभी तो कलियुग है | सतयुग में बहुत थोड़े मनुष्य थे | एक ही आदि सनातन धर्म था | सुख शान्ति थी | यहाँ मनुष्य शान्ति के लिए भटकते रहते हैं | कितना खर्चा करते हैं – कान्फ्रेन्स आदि में | तुम उन्हों को लिख सकते हो शान्ति का सागर, पवित्रता का सागर, सम्पत्ति का भी वह सागर है | सब कुछ उनसे मिलता है | 

अभी तुम जानते हो सतयुग में हम बहुत धनवान थे | विश्व में शान्ति तो वहाँ थी | बाकी आत्माओं को शान्ति होती है परमधाम घर में | विश्व में हम अकेले ही थे तो सुख-शान्ति सब था | तो बच्चों को बहुत ख़ुशी होनी चाहिए | ऐसे स्वर्ग के लिए शास्त्रों में क्या-क्या बातें लिख दी हैं | अब बाप कहते हैं मैं तुमको इतना समझाता हूँ जो तुमको कोई भी प्रश्न आदि पूछने की दरकार नहीं | पहले तो मामेकम् याद करो | तुम बुलाते हो पतितों को आकर पावन बनाओ अर्थात् पुरानी दुनिया को आकर नया बनाओ | परन्तु अर्थ कुछ भी नहीं समझते | सूत मूँझा हुआ है | अब सुलझाना पड़ता है | भक्ति में कितने चित्र बनाये हैं, कृष्ण को चक्र दे दिया है, जिससे अकासुर बकासुर को मारा | अरे वह कोई हिंसक था क्या? फिर कहते फलानी-फलानी को भगाया | डबल हिसंक बना दिया है | वन्डर है ना, जिन्होंने शास्त्र बनाये हैं उन्हों के बुद्धि की कमाल है | फिर उनको कहते व्यास भगवान | अब बाप कहते हैं मुझे याद करो और दैवीगुण धारण करो | और कोई बात नहीं | तुमको योग में बिठाया जाता है क्योंकि बहुत हैं जो बाबा को याद नहीं करते | अपने ही धन्धों में रहते हैं | उनको फ़ुर्सत ही नहीं | परन्तु इसमें तो काम आदि करते भी बुद्धि से याद करना है | तुम आशिक हो मुझ माशूक के | अब मैं तुमको कहता हूँ और संग तो मुझ एक संग जोड़ो | खाते पीते सिर्फ़ यह आदत डालो कि मैं आत्मा हूँ और बाप को याद करो | बाप तुमको कितना ऊँचा बनाते हैं, तुम यह पाई-पैसे की बात नहीं मानते, मुझे याद नहीं करते | अपने बाल बच्चों को करते हो, मुझे नहीं कर सकते हो | वास्तव में निष्ठा अक्षर कहना रांग है | बाबा डायरेक्ट आकर कहते हैं मामेकम् याद करो |  

कल्प पहले भी सम्मुख बाप ने समझाया था | अभी समझाते हैं मीठे-मीठे बच्चे कल्प के बाद मिले हुए लाडले बच्चे....अब तुम्हारे 84 जन्म पूरे हुए | अब वापस जाने के लिए तुमको पवित्र ज़रूर बनना पड़ेगा | विकार में जाने कारण ही तुम बहुत पतित बने हो | पावन नहीं बनेंगे तो पद भी कम मिलेगा | अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो और 84 के चक्र को भी याद करो, यही स्वदर्शन चक्र है | इसका अर्थ भी कोई नहीं जानता | मुख से ज्ञान शंख बजाना है | यह ज्ञान की बातें हैं | यह तुम्हारा बेहद का बाप है, स्वर्ग का रचयिता है, बाप को याद करो तो तुम्हारी चढ़ती कला हो जायेगी | कितनी सहज बात है | 

तुम बच्चे अब समझते हो कि यह बना बनाया ड्रामा है | हर 5 हज़ार वर्ष के बाद बाप आते हैं | अब अच्छी तरह पुरुषार्थ करो | तुम धन के पीछे क्यों मरते हो | अच्छा मास में लाख दो लाख कमायेंगे परन्तु यह सब ख़त्म हो जायेगा | बाल बच्चे खाने वाले ही नहीं रहेंगे | लोभ रहता है कि पुत्र पोत्रे, तर पोत्रे खायेंगे | ऐसे नहीं पुनर्जन्म सब उस कुल में ही लेंगे | पुनर्जन्म पता नहीं कहाँ-कहाँ लेते हैं | तुम तो 21 जन्म का वर्सा पाते हो | अगर कम पुरुषार्थ किया तो प्रजा में दास दासियाँ जाकर बनेंगे तो कितना घाटा हो जायेगा | तो घाटे और फ़ायदे का भी विचार करो | व्यापारी लोग पाप भी बहुत करते हैं तो कुछ न कुछ धर्माऊ निकालते हैं | यह तो है अविनाशी ज्ञान रत्नों का व्यापार, जो कोई विरला करते हैं | यह सौदा डायरेक्ट बाप से करना है | बाप देते हैं ज्ञान रत्न | वह तो दाता है | बच्चे चावल मुट्ठी देते हैं बाप तो देते हैं बेहद की बादशाही | उनकी भेंट में यह चावल मुट्ठी हुई ना | तुम सब सुदामे हो | क्या देते हो और क्या लेते हो? विश्व की बादशाही लेकर विश्व के मालिक बनते हो | बुद्धि कहती है एक ही भारत खण्ड होगा | प्रकृति भी नई होगी | आत्मा भी सतोप्रधान होगी | सतयुग में तुम देवतायें थे तो प्योर सोना थे | फिर त्रेता में थोड़ी चाँदी आत्मा में पड़ती है, उनको सिल्वर एज कहा जाता है | सीढी नीचे उतरते जाते हैं | इस समय तुम बहुत ऊँचे हो | विराट रूप का चित्र भी है | सिर्फ़ अर्थ नहीं समझते | कितने ढेर चित्र हैं | कोई क्राइस्ट का चित्र रखते हैं तो कोई सांई बाबा का रखते | मुसलमानों को भी गुरु करते हैं | फिर वहाँ जाकर शराब की महफ़िल करते हैं | बाप कहते कितना अज्ञान अन्धियारा है | यह सब है भक्ति का अन्धियारा | संग की बहुत सम्भाल रखनी है | कहा भी जाता है संग तारे कुसंग बोरे, कुसंग है माया के 5 विकारों का | अभी तुमको सत बाप का संग मिला है, जिससे तुम पार जा रहे हो | बाप ही सत बोलते हैं | कल्प-कल्प तुमको सत का संग मिलता है फिर आधाकल्प के बाद कुसंग मिलता है रावण का | यह भी समझते हो कल्प पहले मिसल राजधानी ज़रूर स्थापन होगी | तुम विश्व के मालिक ज़रूर बनेंगे | यहाँ तो पार्टीशन होने के कारण कितने झगड़े होते हैं | वहाँ तो है ही एक धर्म | विश्व में शान्ति थी जबकि अद्वेत देवताओं का राज्य था | एक ही धर्म था | वहाँ अशान्ति कहाँ से आई | वह है ही ईश्वरीय राज्य | स्प्रीचुअल नॉलेज से परमात्मा ने किंगडम स्थापन की है तो ज़रूर वहाँ सुख होगा | बाप का बच्चों पर प्यार होता है ना | बाप कहते हैं मैं जानता हूँ तुमको कितने धक्के खाने पड़ते हैं | समझते हैं भगवान कोई न कोई रूप में आ जायेगा | कब बैल पर सवारी भी दिखाते हैं | अब बैल पर कभी सवारी होती है क्या | कितना अन्धियारा है | तो तुम बच्चे अब सबको बताओ कि बाप सबको वर्सा देने आये हैं, ब्रह्मा द्वारा नई दुनिया की स्थापना हो रही है | बाबा हमेशा बड़ के झाड़ का मिसाल देते हैं | वैसे इनका जो फाउन्डेशन है वही फिर से स्थापन कर रहे हैं और कोई धर्म रहेगा नहीं | भारत है अविनाशी खण्ड और अविनाशी तीर्थ | बाप का बर्थ प्लेस है ना | बाबा मीठे-मीठे बच्चों को कितना प्यार से समझाते हैं | टीचर के रूप में पढ़ाते हैं | तुम बच्चे पढ़कर मेरे से भी ऊँच चले जाते हो | मैं तो राजाई लेता नहीं हूँ | तुमने मुझे कभी स्वर्ग में बुलाया है क्या कि आओ – मैं तुमको स्वर्ग में भेज देता हूँ | कितना मजे का खेल है | बाप कहते हैं अच्छा बच्चे जीते रहो | हम वानप्रस्थ अवस्था में जाकर रहता हूँ | 

बाप कहते हैं अब तो आफतें सिर पर खड़ी हैं, इसलिए पुरुषोत्तम बनने का इस पुरुषोत्तम संगमयुग पर पूरा-पूरा पुरुषार्थ करना है | बाप को याद करने का पुरुषार्थ करते रहो तो विकर्म विनाश होंगे और जितना जो पढ़ेंगे वह ऊँच कुल में जायेंगे | बाप कहते हैं अपनी घोट तो नशा चढ़े | सदा बच्चों को बाप से वर्सा मिलता है | लौकिक में तो बच्चे को मिलता है | बाकी कन्या दान होता है | यहाँ तो सब आत्माओं को वर्सा मिलता है सो भी बेहद का | तो इस पर पूरा ध्यान देना चाहिए | भगवान पढ़ाते हैं एक दिन भी मिस नहीं करना चाहिए | बाबा को कहे कि मुझे फ़ुर्सत नहीं है | अरे आत्मा को फ़ुर्सत नहीं है मेरे से पढ़ने लिए, यह कहने में शर्म नहीं आता | अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते | 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1.    संग से अपनी बहुत सम्भाल करनी है | एक सत बाप का संग करना है | माया 5 विकारों के संग से बहुत दूर रहना है | 

2.    पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना है | अपनी मस्ती में रहो | कहा जाता अपनी घोट तो नशा चढ़े | एक दिन भी पढ़ाई मिस मत करो | 

वरदान:-

सेवाओं की प्रवृत्ति में रहते बीच-बीच में एकान्तवासी बनने वाले अन्तर्मुखी भव !    

साइलेन्स की शक्ति का प्रयोग करने के लिए अन्तर्मुखी और एकान्तवासी बनने की आवश्यकता है | कई बच्चे कहते हैं अन्तर्मुखी स्थिति का अनुभव करने वा एकान्तवासी बनने के लिए समय ही नहीं मिलता क्योंकि सेवा की प्रवृत्ति, वाणी के शक्ति की प्रवृत्ति बहुत बढ़ गई है लेकिन इसके लिए इकठ्ठा आधा घण्टा वा एक घण्टा निकालने के बजाए बीच-बीच में थोड़ा समय भी निकालो तो शक्तिशाली स्थिति बन जायेगी |

स्लोगन:- 

ब्राह्मण जीवन में युद्ध करने के बजाए मौज मनाओ तो मुश्किल भी सहज हो जायेगा |     

 

ओम् शान्ति |