14-12-14
प्रातः मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त
बापदादा”
रिवाइज
12-01-79
मधुबन
“वरदाता
बाप द्वारा मिले हुए खुशी के खजानों का भण्डार”
बापदादा बच्चों के राज्य- भाग्य को देख कर हर्षित हो रहे हैं ।
सारी सृष्टि की सर्व आत्माओं से कितनी श्रेष्ठ आत्मायें हैं ।
कितनी सर्व खजानों से सम्पन आत्मायें हैं । इस समय की
सम्पन्नता का गायन आप श्रेष्ठ आत्माओं के कारण स्थान का गायन
सदा चलता आ रहा है । अब अन्त तक भी भारत भूमि का गायन विदेश
में भी महान है । स्थान का महत्व आप चैतन्य महान आत्माओं के
कारण है । आज तक भी आध्यात्मिक खजाने के लिए सबकी नजर भारत के
तरफ ही जाती है । स्थूल धन में गरीब माना जाता है लेकिन
आध्यात्मिक खजाने अविनाशी सुख और शान्ति,
शक्ति इन खजानों में भारत ही सबसे सम्पत्तिवान गाया जाता है -
तो आपकी इस संगमयुग की सम्पन्न स्थिति के कारण ही स्थान का
गायन है । इतने खजानों से सम्पन्न होते हो जो- आधा कल्प वही
प्राप्त खजाने चलते रहते हैं । इतना खजाना जमा होता जो अनेक
जन्म खाते रहते । ऐसा कभी कोई सारे कल्प में नहीं बन सकता ।
संगमयुग सर्व युगों में से छोटा युग होने के कारण इनकी बहुत
थोड़ी-सी आयु है । जितनी छोटी-सी जीवन है,
छोटा-सा युग है इतनी कमाई सब युगों से श्रेष्ठ है । सदा अपने
खजानों को स्मृति में रखते हो ? क्या-क्या खजाने मिले हैं,
किस
द्वारा मिले हैं और कितने समय तक चलने वाले हैं?
बाप
ने खजाने तो सबको एक समान दिये हैं किसको एक लाख,
किसको हजार नहीं दिया है । सब बच्चों को बेहद का अखुट खजाना
बाप द्वारा मिला है । ऐसे अखुट खजाने से स्वयं को सदा भरपूर
तृप्त आत्मा समझते हो ? तृप्त आत्मा को सदा बाप और खजाना ही
सामने रहता है । सदा इसी नशे में झूमते रहते हैं - सबसे बड़े ते
बड़ा खजाना,
जिस
खजाने के लिए अनेक आत्मायें अनेक प्रकार के साधनों को अपनाती
है फिर भी वंचित है । वह कौन-सा खजाना आपको मिल गया है?
आज
दुनिया में किस खजाने की इच्छा है जिस इच्छा के कारण आत्मायें
जगह-जगह भटक रही हैं?
आप
सबके पास सिर्फ अब के लिए नहीं लेकिन अनेक जन्मों के लिए भी
जमा है - वह कौन-सा खजाना मिला है?
सबसे
बड़े से बड़ा खजाना है खुशी का खजाना । इसी खुशी के लिए लोग
तड़पते हैं और आप सब सदा खुशी में नाचने वाले हो । आप सबके
यादगार चित्र में भी खुशी का पोज दिखाया हुआ है - अपना चित्र
याद है ना?
अमृतवेले से लेकर इस खुशी के खजाने को यूज करो,
सोचो
वा अपने आप से बातें करो । ऑख खुलते कौन सामने आता है?
पहले-पहले संकल्प में किससे मिलन होता है?
विश्व के रचता,
सर्व
खजानों के दाता,
सर्व
वरदानों के दाता बीज से मिलन होता है,
जिसमें सारा वृक्ष समाया हुआ है । सर्व आत्मायें भिखारी बन बाप
की एक सेकेण्ड की झलक देखने की इच्छा से कितने कठिन मार्ग
अपनाते हैं और आप श्रेष्ठ आत्मायें सर्व सम्बन्धों से मिलन
मनाने के अनुभवों के श्रेष्ठ खजाने के अधिकारी हो । तो सबसे
पहली खुशी की बात है अमृतवेले सर्व सम्बन्ध से बाप से मिलन
मनाना । दुनिया भिखारी है और आप हो बच्चे,
इससे
बड़ी खुशी और कोई हो सकती है क्या?
तो
अमृतवेले से इस खुशी के खजाने को यूज करो । यूज करना ही खजानों
की चाबी है ।
दूसरा खुशी का खजाना - इतनी सिकीलधे श्रेष्ठ आत्मायें हो जो
स्वयं भगवान आपको पढ़ाने के लिए परमधाम से आते हैं । लण्डन
अमेरिका से नहीं आते हैं - इस लोक से भी पार जहाँ तक साइन्स
वाले स्वयं में भी पहुँच नहीं सकते ऐसे परमधाम से स्पेशल आपको
पढ़ाने के लिए आते हैं । और फिर पढ़ाने की फी नहीं लेते । और ही
पढ़ाई की प्रालब्ध स्वर्ग का स्वराज्य स्वयं नहीं लेते,
आपको
देते हैं । तो इससे बड़ी खुशी और क्या होती है?
इस
स्मृति से खजाने को यूज करो - इससे आगे चलो ।
कार्य करते हुए कर्मयोगी का पार्ट बजाते कर्मयोगी अर्थात् सदा
बाप के साथ रहते हुए हर कार्य करने वाला । कर्मयोगी के समय भी
चाहे कोई भी कर्म कर रहे हो । लौकिक वा अलौकिक लेकिन आलमाइटी
अथॉरिटी आपका साथी अर्थात् फ्रैन्ड बनकर हर समय साथ निभाते हैं
। ऐसा फ्रैन्ड फिर कभी मिल नहीं सकता । कभी फ्रैन्डशिप निभाते
हैं,
कभी
कम्बाइन्ड युगल रूप निभाते हैं । ऐसा कम्बाइन्ड स्वरूप विचित्र
युगल रूप जो सदा आपको कहते हैं - सारा बोझ हमें दे दो और तुम
सदा हल्के रहो । जहाँ भी कोई मुश्किल कार्य आये तो वह मुझे
अर्पण कर दो तो मुश्किल सहज हो जायेगा । ऐसे कर्मयोग के पार्ट
में सदा साथी पन के खजाने को वा सदा साथ के खुशी को यूज करो -
और आगे चलो । जब कार्य से खाली हो जाओ तो सबसे बड़े ते बड़ा
मनोरंजन का साधन प्राप्त है,
अगर
आपको सैर करने की रूचि है वा देखने की रूचि है,
पढ़ने
की रूचि है,
श्रृंगार की रूचि है,
डान्स की रूचि है,
रूह-रूहाण करने की रूचि है जो भी रूचि हो वह सब मनोरंजन के
साधन आप के साथ हैं । देखने चाहते हो तो स्वर्ग को देखो -
संगमयुग की श्रेष्ठता को देखो । अपने और बाप के कर्तव्य की
अलौकिक कहानी का ड्रामा देखो । सैर करना चाहते हो तो तीन लोकों
का सैर करो । श्रृंगार करना चाहते हो तो हर गुण के विस्तार से
स्वयं को सजा लो । ड्रामा देखने चाहते हो तो पांच हजार वर्ष का
ड्रामा देखो । हिस्ट्री पढ़ने चाहते हो तो अपने 84 जन्मों की
हिस्ट्री पढ़ो । रूह-रूहाण करना चाहते हो तो रूह बन रूहों के
रचता से रूह-रूहान करो । और क्या चाहिए?
इन
सब साधनों से सदा अपने को खुश रखो अर्थात् खजाने को यूज करो ।
भोजन बनाते हो,
भोजन
बनाने के समय पहले भोग लगाना है अर्थात् प्यारे ते प्यारे बाप
को स्वीकार कराना है - इस स्मृति से भोजन बनाओ कि किसको खिलाना
है! आजकल की दुनिया में अगर कोई प्राईमिनिस्टर वा प्रेसिडेंट
आपके पास खाने आते हैं,
कितनी खुशी होती है लेकिन बाप के आगे यह सब क्या है! तो सदा
बाप आपके साथ भोजन खाते हैं - भक्त बिचारे बार-बार घण्टियां
बजा-बजा कर थक जाते हैं,
बुलाते-बुलाते भूल भी जाते हैं - लेकिन बच्चों के साथ बाप का
वायदा है - सदा साथ रहेंगे । तुम्हीं से खायें,
तुम्हीं से बैठें,
तो
इससे बड़ी खुशी और क्या चाहिए! तो भोजन के समय भी तुम्हीं से
खाऊं यह स्लोगन याद रखो । ऐसे खुशी के खजाने को यूज करो । और
आगे चलो ।
अभी
दिन का अन्त समय आ गया अर्थात् रात का समय आया । अब रात को
क्या करेंगे?
सोने
के पहले सारे दिन के समाचार की लेन-देन चाहे कम्बाइन्ड रूप में
करो,
चाहे
बाप के रूप में करो । एक दिन का समाचार दो और दूसरे दिन का
श्रेष्ठ संकल्प और कर्म की प्रेरणा लो । सब समाचार की लेन-देन
करना अर्थात् हल्के बन जाना । जैसे रात को हल्की ड्रेस से सोते
हैं ना,
ऐसे
बुद्धि को हल्का करना अर्थात् हल्की ड्रेस पहनना है । ऐसे
तैयार हो साथ में सो जाओ,
अकेले नहीं सोओ । अकेले होंगे तो माया चान्स लेगी,
इसलिए सदा साथ रहो । अकेले रहने से डर भी लगता हैं,
निर्भय भी हो जायेगें । आप निर्भय रहेगें और
माया डरेगी । तो ऐसे सदा साथ के खुशी के खजाने को सारी रात के
लिए यूज करो । अब बताओ सारे दिन में श्रेष्ठ खुशी के खजाने
प्राप्त होते हुए भी श्रेष्ठ आत्मा कभी उदास हो सकती है! वा
अन्य कोई मनोरंजन की तरफ वा अल्पकाल के खजानों की तरफ आकर्षित
हो सकती है?
ऐसी
श्रेष्ठ अर्थात् सम्पन्न आत्मायें हो?आपके नाम से भी अब अनेक
भक्त अल्पकाल की खुशी में आ जाते हैं । आपके जड़ चित्रों को देख
खुशी में नाचने लगते हैं । ऐसे खुशनसीब आप सब हो । खजाने बहुत
मिले हैं,
अब
सिर्फ यूज करो अर्थात् चाबी लगाओ । चाबी होते हुए भी समय पर
नहीं मिलती है - समय पर खो जाती है इसलिए सदा सामने रखो
अर्थात् सदा स्मृति में रखो । बार-बार अपने स्मृति स्वरूप को
रिफ्रेश करो । खजाना क्या और चाबी क्या! हर कर्म में जैसे
सुनाया वैसे प्रैक्टिकल में लाओ अर्थात् स्मृति को स्वरूप में
लाओ । समझा - क्या करना है?
अच्छा ।
ऐसे
सदा सर्व खजानों से सम्पन्न आत्मायें हर कर्म में बाप के साथ
सर्व सम्बन्ध निभाने वाले,
सदा
बाप को अपना साथी अनुभव करने वाले सदा माया के भय से निर्भय
रहने वाले,
ऐसी
तृप्त आत्माओं को,
खजाने के मालिक आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते ।
ओम शान्ति ।
पार्टियों के साथ मुलाकात कर्नाटक जोन)
1)
सदा अपना कल्प पहले वाला सम्पन्न फरिश्ता स्वरूप सामने रहता है?
कल्प
पहले भी हम ही फरिश्ते थे और अब भी हम ही फरिश्ते हैं । ऐसे
अनुभव होता है?
फरिश्ता अर्थात् जिसका एक बाप के साथ सर्व रिश्ता हो अर्थात्
सर्व सम्बन्ध हो । एक बाप दूसरा न कोई ऐसे अनुभव होता है कि और
भी सम्बन्ध स्मृति में आते हैं?
जिसके सर्व सम्बन्ध एक बाप के साथ होंगे उसको और सब सम्बन्ध
निमित्तमात्र अनुभव होगें । वह सदा खुशी में नाचने वाले होगें
। कभी भी थकावट का अनुभव नहीं करेंगे,
बाप
समान स्टेज वाले सदा अथक होंगे,
थकेगें नहीं । सदा बाप और सेवा इसी लगन में मगन होंगे । तो
हरेक विघ्न विनाशक हो या लगन और विघ्न दोनों साथ-साथ चलते हैं?
विघ्नों के आने से रूकने वाले तो नहीं हो?
हर
कल्प विघ्न आये हैं और हर कल्प विघ्न-विनाशक बने हो । जो हर
कल्प के अनुभवी हैं,
उनको
रिपीट करने में क्या मुश्किल । सदा यह स्मृति रहे कि हम
कल्प-कल्प के विजयी हैं । अनेक बार कर चुके हैं,
अब
सिर्फ रिपीट कर रहे हैं,
तो
सहज योगी होना चाहिए ना - क्या करें,
कैसे
करें,
इन
सब कम्पलेन से कम्पलीट । ऐसी कम्पलीट आत्माओं की सब कम्पलेन
खत्म हो जाती है । सम्पन्न होना अर्थात् सन्तुष्ट,
असन्तुष्ट होने का कारण है अप्राप्ति,
अप्राप्ति ही असन्तुष्टता को जन्म देती है । अप्राप्त नहीं कोई
वस्तु.... यह देवताओं का गायन नहीं,
आप
ब्राह्मणों का गायन है,
मास्टर सर्वशक्तिवान का अर्थ ही है सम्पन्न स्वरूप । जैसा
लक्ष्य होता वैसे लक्षण भी होते हैं,
लक्ष्य एक हो और लक्षण दूसरे हो,
लक्ष्य है सम्पूर्ण बनने का और धारणा अर्थात् प्रैक्टिकल रूप
में कमी है तो अन्तर हुआ ना । अच्छा - सभी सदा हंसते रहते हो,
रोते
तो नहीं हो?
रोने
वाले बाप के युगल नहीं बन सकते । क्या करुँ,
चाहता हूँ यह होने नहीं देते,
मदद
करो,
कृपा
करो यह भी रोना है । ऐसे रोने वालों को बाप अपने साथ कैसे ले
जायेंगे! साथ चलने के लिए जैसा बाप वैसे बच्चे बनो,
बाप
समान बनो,
जो
भी कर्म करो पहले चेक करो यह बाप समान है?
बाप
समान नहीं है तो कट कर दो,
आगे
नहीं बढ़ो । कोई भी कर्म अगर श्रेष्ठ नहीं साधारण है तो उसे
परिवर्तन कर श्रेष्ठ बनाओ,
इससे
सदा सम्पन्न अर्थात् बाप समान हो जाएंगे ।
2)
अनेक आत्माओं की दुआयें प्राप्त करने का साधन सेवा -
सभी बाप के सहयोगी विश्व कल्याणकारी समझकर हर कार्य करते हो?
जब
यह लक्ष्य रहता है कि हम विश्व कल्याणकारी हैं तो अकल्याण का
कर्तव्य हो नहीं सकता । जैसा कार्य होता है वैसी अपनी धारणायें
होती हैं,
अगर
कार्य याद रहे तो सदा रहमदिल रहेंगे,
सदा
महादानी रहेगें । विश्व कल्याणकारी की स्मृति से स्वयं भी हर
कदम में कल्याणकारी वृत्ति से चलेंगे और चलायेंगे,
जब
स्वयं प्रति हर कदम कल्याणकारी हो तब विश्व का कल्याण हो सकता
है,
सदा
यह याद रहे कि निमित्त मात्र यह कार्य कर रहे हैं,
मैं
पन समाप्त हो जाये और निमित्त मात्र याद रहे,
ऐसे
सदा सेवा करने से बाप की याद स्वत: रहती है । जितनी सेवा करते
उतनी विश्व की अनेक आत्माओं द्वारा दुआयें मिलती हैं ।
आशीर्वाद मिलती है । अच्छा ।
वरदान:-
एक
बाप को अपना संसार बनाकर सदा एक की आकर्षण में रहने वाले
कर्मबन्धन मुक्त
भव ! 
सदा
इसी अनुभव में रहो कि एक बाप दूसरा न कोई । बस एक बाबा ही
संसार है और कोई आकर्षण नहीं,
कोई
कर्मबंधन नहीं । अपने किसी कमजोर संस्कार का भी बंधन न हो । जो
किसी पर मेरे पन का अधिकार रखते हैं उन्हें क्रोध या अभिमान
आता है - यह भी कर्मबन्धन है । लेकिन जब बाबा ही मेरा संसार है,
यह
स्मृति रहती है तो सब मेरा-मेरा एक मेरे बाबा में समा जाता है
और कर्मबन्धनों से सहज ही मुक्त हो जाते हैं ।
स्लोगन:-
महान
आत्मा वह है जिसकी दृष्टि और वृत्ति बेहद की है । 
ओम्
शान्ति |