30-01-15
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा”
मधुबन
“मीठे
बच्चे - मुख्य दो बातें सबको समझानी हैं - एक तो बाप को याद
करो,
दूसरा 84 के चक्र को जानो फिर सब प्रश्न समाप्त हो जायेंगे” 
प्रश्न:-
बाप
की महिमा में कौन-से शब्द आते हैं जो श्रीकृष्ण की महिमा में
नहीं?
उत्तर:-
वृक्षपति एक बाप है,
श्रीकृष्ण को वृक्षपति नहीं कहेंगे । पिताओं का पिता वा पतियों
का पति एक निराकार को कहा जाता,
श्रीकृष्ण को नहीं । दोनों की महिमा अलग- अलग स्पष्ट करो ।
प्रश्न:-
तुम
बच्चे गांव-गांव में कौन-सा ढिंढोरा पिटवा दो?
उत्तर:-
गांव-गांव में ढिंढोरा पिटवा दो कि मनुष्य से देवता,
नर्कवासी से स्वर्गवासी कैसे बन सकते हो,
आकर
समझो । स्थापना,
विनाश
कैसे होता है,
आकर
समझो ।
गीत:-
तुम्हीं हो माता,
पिता
तुम्हीं हो.... 
ओम्
शान्ति |
इस
गीत के पिछाड़ी की जो लाइन आती है - तुम्हीं नईया,
तुम्हीं खिवैया.... यह रांग है । जैसे आपेही पूज्य,
आपेही पुजारी कहते हैं - यह भी वैसे हो जाता है । ज्ञान की चमक
वाले जो होंगे वह झट गीत को बन्द कर देंगे क्योंकि बाप की
इनसल्ट हो जाती है । अभी तुम बच्चों को तो नॉलेज मिली है,
दूसरे मनुष्यों को यह नॉलेज होती नहीं है । तुमको भी अभी ही
मिलती है । फिर कभी होती ही नहीं । गीता के भगवान की नॉलेज
पुरूषोत्तम बनने की मिलती है,
इतना
समझते हैं । परन्तु कब मिलती है,
कैसे
मिलती है,
यह
भूल गये हैं । गीता है ही धर्म स्थापना का शास्त्र,
और
कोई शास्त्र धर्म स्थापन अर्थ नहीं होते हैं । शास्त्र अक्षर
भी भारत में ही काम आता है । सर्व शास्त्रमई शिरोमणी है ही
गीता । बाकी वह सब धर्म तो हैं ही पीछे आने वाले । उनको
शिरोमणी नहीं कहेंगे । बच्चे जानते हैं वृक्षपति एक ही बाप है
। वह हमारा बाप है,
पति
भी है तो सबका पिता भी है । उनको पतियों का पति,
पिताओं का पिता कहा जाता है । यह महिमा एक निराकार की गाई जाती
है । कृष्ण की और निराकार बाप के महिमा की भेंट की जाती है ।
श्रीकृष्ण तो है ही नई दुनिया का प्रिन्स । वह फिर पुरानी
दुनिया में संगमयुग पर राजयोग कैसे सिखलायेंगे। अब बच्चे समझते
हैं हमको भगवान पढ़ा रहे हैं । तुम पढ़कर यह (देवी-देवता) बनते
हो । पीछे फिर यह ज्ञान चलता नहीं । प्राय : लोप हो जाता है ।
बाकी आटे में लून पानी चित्र जाकर बचते हैं । वास्तव में कोई
का चित्र यथार्थ तो है नहीं । पहले-पहले बाप का परिचय मिल
जायेगा तो तुम कहेंगे यह तो भगवान समझाते हैं । वह तो स्वत: ही
बतायेंगे । तुम प्रश्न क्या पूछेंगे! पहले बाप को तो जानो ।
बाप
आत्माओं को कहते हैं - मुझे याद करो । बस,
दो
बातें याद कर लो । बाप कहते हैं मुझे याद करो और 84 के चक्र को
याद करो,
बस ।
यह दो मुख्य बातें ही समझानी है । बाप कहते हैं तुम अपने
जन्मों को नहीं जानते हो । ब्राह्मण बच्चों को ही कहते हैं,
और
तो कोई समझ भी न सके । प्रदर्शनी में देखो कितनी भीड़ लग जाती
है । समझते हैं,
इतने
मनुष्य जाते हैं तो जरूर कुछ देखने की चीज़ है । घुस पड़ते हैं ।
एक-एक को बैठ समझायें तो भी मुख थक जाये । तब क्या करना चाहिए?
प्रदर्शनी मास भर चलती रहे तो कह सकते हैं- आज भीड़ है,
कल,
परसो
आना । सो भी जिसको पढ़ाई की चाहना है अथवा मनुष्य से देवता बनना
चाहते हैं,
उनको
समझाना है । एक ही यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र अथवा बैज
दिखलाना चाहिए । बाप द्वारा यह विष्णुपुरी का मालिक बन सकते हो,
अभी
भीड़ है सेण्टर पर आना । एड्रेस तो लिखी हुई है । बाकी ऐसे ही
कह देंगे - यह स्वर्ग है,
यह
नर्क है,
इससे
मनुष्य क्या समझेंगे?
टाइम
वेस्ट हो जाता है । ऐसे तो पहचान भी नहीं सकते,
यह
बड़ा आदमी है,
साहूकार है या गरीब है?
आजकल
ड्रेस आदि ऐसी पहनते हैं जो कोई भी समझ न सके । पहले-पहले तो
बाप का परिचय देना है । बाप स्वर्ग की स्थापना करने वाला है ।
अब यह बनना है । एम ऑबजेक्ट खड़ी है । बाप कहते हैं ऊंच ते ऊंच
मैं हूँ । मुझे याद करो,
यह
वशीकरण मन्त्र है । बाप कहते हैं मामेकम याद करो तो तुम्हारे
विकर्म विनाश होंगे और विष्णुपुरी में आ जायेंगे - इतना तो
जरूर समझाना चाहिए । 8 - 10
रोज प्रदर्शनी को रखना चाहिए । तुम गाँव-गांव में ढिंढोरा
पिटवा दो कि मनुष्य से देवता,
नर्कवासी से स्वर्गवासी कैसे बन सकते हो,
आकर
समझो । स्थापना,
विनाश कैसे होता है,
आकर
समझो । युक्तियाँ बहुत हैं ।
तुम
बच्चे जानते हो सतयुग और कलियुग में रात-दिन का फर्क है ।
ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात कहा जाता है । ब्रह्मा का
दिन सो विष्णु का,
विष्णु का सो ब्रह्मा का । बात एक ही है । ब्रह्मा के भी 84
जन्म,
विष्णु के भी 84 जन्म । सिर्फ इस लीप जन्म का फर्क पड़ जाता है
। यह बातें बुद्धि में बिठानी होती हैं । धारणा नहीं होगी तो
किसको समझा कैसे सकेंगे?
यह
समझाना तो बहुत सहज है । सिर्फ लक्ष्मी-नारायण के चित्र के आगे
ही यह प्याइंटस सुनाओ । बाप द्वारा यह पद पाना है,
नर्क
का विनाश सामने खड़ा है । वो लोग तो अपनी मानव मत ही सुनायेंगे
। यहाँ तो है ईश्वरीय मत,
जो
हम आत्माओं को ईश्वर से मिली है । निराकार आत्माओं को निराकार
परमात्मा की मत मिलती है । बाकी सब हैं मानव मत | रात-दिन का
फर्क है ना । सन्यासी,
उदासी आदि कोई भी तो दे न सकें । ईश्वरीय मत एक ही बार मिलती
है । जब ईश्वर आते हैं तो उनकी मत से हम यह बनते हैं । वह आते
ही हैं देवी-देवता धर्म की स्थापना करने । यह भी प्याइंटस धारण
करनी चाहिए,
जो
समय पर काम आये । मुख्य बात थोड़े में ही समझाई तो भी काफी हैं
। एक लक्ष्मी-नारायण के चित्र पर समझाना भी काफी है । यह है एम
ऑबजेक्ट का चित्र,
भगवान ने यह नई दुनिया रची है । भगवान ने ही पुरूषोत्तम
संगमयुग पर इन्हों को पढ़ाया था | इस पुरूषोत्तम युग का किसको
पता नहीं है । तो बच्चों को यह सब बातें सुनकर कितना खुश होना
चाहिए । सुनकर फिर सुनाने में और ही खुशी होती हैं । सर्विस
करने वालों को ही ब्राह्मण कहेंगे । तुम्हारे कच्छ (बगल) में
सच्ची गीता है । ब्राह्मणों में भी नम्बरवार होते हैं ना । कोई
ब्राह्मण तो बहुत नामीग्रामी होते हैं,
बहुत
कमाई करते हैं । कोई को तो खाने के लिए भी मुश्किल मिलेगा ।
कोई ब्राह्मण तो लखपति होते हैं । बड़ी खुशी से,
नशे
से कहते हैं हम ब्राह्मण कुल के हैं । सच्चे- सच्चे ब्राह्मण
कुल का तो पता ही नहीं हैं । ब्राह्मण उत्तम माने जाते हैं,
तब
तो ब्राह्मणों को खिलाते हैं । देवता,
क्षत्रिय वा वैश्य,
शूद्र धर्म वालों को कभी खिलायेंगे नहीं । ब्राह्मणों को ही
खिलाते हैं इसलिए बाबा कहते हैं - तुम ब्राह्मणों को अच्छी
रीति समझाओ । ब्राह्मणों का भी संगठन होता है,
उसकी
जाँच कर चले जाना चाहिए । ब्राह्मण तो प्रजापिता ब्रह्मा की
सन्तान होने चाहिए,
हम
उनकी सन्तान हैं । ब्रह्मा किसका बच्चा है,
वह
भी समझाना चाहिए । जाँच करनी चाहिए कि कहाँ-कहाँ उन्हों के
संगठन होते हैं । तुम बहुतों का कल्याण कर सकते हो । वानप्रस्थ
स्त्रियों की भी सभायें होती हैं । बाबा को कोई समाचार थोड़ेही
देते हैं कि हम कहाँ-कहॉ गये?
सारा
जंगल भरा हुआ है,
तुम
जहाँ जाओ शिकार कर आयेंगे,
प्रजा बनाकर आयेंगे,
राजा
भी बना सकते हो । सर्विस तो ढेर हैं । शाम को 5 बजे छुट्टी
मिलती है,
लिस्ट में नोट कर देना चाहिए- आज यहाँ-यहाँ जाना है । बाबा
युक्तियाँ तो बहुत बताते हैं । बाप बच्चों से ही बात करते हैं
। यह पक्का निश्चय चाहिए कि मैं आत्मा हूँ । बाबा (परम आत्मा)
हमको सुनाते हैं,
धारण
हमको करना है । जैसे शास्त्र अध्ययन करते हैं तो फिर संस्कार
ले जाते हैं तो दूसरे जन्म में भी वह संस्कार इमर्ज हो जाते
हैं । कहा जाता है - संस्कार ले आये हैं । जो बहुत शास्त्र
पढ़ते हैं उनको अथारिटी कहा जाता है । वह अपने को ऑलमाइटी नहीं
समझेंगे । यह खेल है,
जो
बाप ही समझाते हैं,
नई
बात नहीं है । ड्रामा बना हुआ है,
जो
समझने का है । मनुष्य यह नहीं समझते कि पुरानी दुनिया है । बाप
कहते हैं मैं आ गया हूँ । महाभारत लड़ाई सामने खड़ी है । मनुष्य
अज्ञान अंधेरे में सोये पड़े हैं । अज्ञान भक्ति को कहा जाता है
। ज्ञान का सागर तो बाप ही है । जो बहुत भक्ति करते हैं,
वह
भक्ति के सागर हैं । भक्त माला भी है ना । भक्त माला के भी नाम
इकट्ठे करने चाहिए । भक्त माला द्वापर से कलियुग तक ही होगी ।
बच्चों को बहुत खुशी रहनी चाहिए । बहुत खुशी उनको होगी जो सारा
दिन सर्विस करते रहेंगे ।
बाबा
ने समझाया है माला तो बहुत लम्बी होती है,
हजारों की संख्या में । जिसको कोई कहाँ से,
कोई
कहाँ से खींचते हैं । कुछ तो होगा ना,
जो
इतनी बड़ी माला बनाई है । मुख से राम-राम कहते रहते हैं,
यह
भी पूछना पड़े - किसको राम-राम कह याद करते हो?
तुम
कहाँ भी सतसंग आदि में जाकर मिक्स हो बैठ सकते हो । हनुमान का
मिसाल है ना-जहाँ सतसंग होता था,
वहाँ
जुत्तियों में जाकर बैठता था । तुमको भी चांस लेना चाहिए । तुम
बहुत सर्विस कर सकते हो । सर्विस में सफलता तब होगी जब ज्ञान
की प्याइंटस बुद्धि में होगी,
ज्ञान में मस्त होंगे । सर्विस की अनेक युक्तियाँ हैं,
रामायण,
भागवत आदि की भी बहुत बातें हैं,
जिस
पर तुम दृष्टि दे सकते हो । सिर्फ अन्धश्रद्धा से बैठ सतसंग
थोड़ेही करना है । बोलो,
हम
तो आपका कल्याण करना चाहते हैं । वह भक्ति बिल्कुल अलग है,
यह
ज्ञान अलग है । ज्ञान एक ज्ञानेश्वर बाप ही देते हैं । सर्विस
तो बहुत है,
सिर्फ यह बताओ कि ऊँच ते ऊँच कौन है?
ऊँच
ते ऊँच एक ही भगवान होता है,
वर्सा भी उनसे मिलता है । बाकी तो है रचना । बच्चों को सर्विस
का शौक होना चाहिए । तुम्हें राजाई करनी है तो प्रजा भी बनानी
है । यह महामन्त्र कम थोड़ेही है- बाप को याद करो तो अन्त मती
सो गति हो जायेगी । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
बाप ने
जो वशीकरण मन्त्र दिया है,
वह सबको याद दिलाना है । सर्विस की भिन्न-भिन्न युक्तियाँ रचनी
है । भीड़ में अपना समय बरबाद नहीं करना है ।
2.
ज्ञान
की प्याइन्ट्स बुद्धि में रख ज्ञान में मस्त रहना है । हनूमान
की तरह सतसंगो में जाकर बैठना है और फिर उनकी सेवा करनी है ।
खुशी में रहने के लिए सारा दिन सेवा करनी है ।
वरदान:-
बाबा
शब्द की स्मृति से कारण को निवारण में परिवर्तन करने वाले सदा
अचल अडोल
भव ! 
कोई
भी परिस्थिति जो भल हलचल वाली हो लेकिन बाबा कहा और अचल बनें ।
जब परिस्थितियों के चिंतन में चले जाते हो तो मुश्किल का अनुभव
होता है । अगर कारण के बजाए निवारण में चले जाओ तो कारण ही
निवारण बन जाए क्योंकि मा. सर्वशक्तिमान् ब्राह्मणों के आगे
परिस्थितियां चींटी समान भी नहीं । सिर्फ क्या हुआ,
क्यों हुआ यह सोचने के बजाए,
जो
हुआ उसमें कल्याण भरा हुआ है,
सेवा
समाई हुई है... भल रूप सरकमस्टांश का हो लेकिन समाई सेवा है-इस
रूप से देखेंगे तो सदा अचल अडोल रहेंगे ।
स्लोगन:-
एक बाप
के प्रभाव में रहने वाले किसी भी आत्मा के प्रभाव में आ नहीं
सकते । 
अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए विशेष होमवर्क
हम
ब्राह्मण सो फरिश्ता हैं,
यह कम्बाइल्ड रुप की अनुभूति विश्व के आगे साक्षात्कार मूर्त
बनायेगी । ब्राह्मण सो फरिश्ता इस स्मृति द्वारा चलते-फिरते
अपने को व्यक्त शरीर,
व्यक्त देश में पार्ट बजाते हुए भी ब्रह्मा बाप के साथी
अव्यक्त वतन के फरिश्ते,
अव्यक्त रूपधारी अनुभव करेंगे ।
ओम्
शान्ति |