20-05-14
प्रातः मुरली ओम् शान्ति
“बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे –
तुम्हें अभी अल्लाह मिला है तो सुल्टे बनो अर्थात् अपने को
आत्मा समझो, देह समझना ही उल्टा बनना है |
प्रश्न:-
किस
एक बात को समझने वाले बेहद के वैरागी बन सकते हैं?
उत्तर:-
पुरानी दुनिया अब होपलेस है, कब्रिस्तान बनना है, यह बात समझ
ली तो बेहद के वैरागी बन सकते हैं | तुम जानते हो अब नई दुनिया
स्थापन हो रही है | इस रूद्र ज्ञान यज्ञ में सारी पुरानी
दुनिया स्वाहा होनी है | यही एक बात तुम्हें बेहद का वैरागी
बना देगी | तुम्हारी दिल इस कब्रिस्तान से निकल गई है |
ओम्
शान्ति |
यूँ
तो है डबल ओम् शान्ति क्योंकि दो आत्मायें हैं | दोनों आत्माओं
का स्वधर्म है शान्त | बाप का भी स्वधर्म है शान्त | बच्चे
वहाँ शान्ति में रहते हैं, उसको कहा ही जाता है शान्तिधाम |
बाप भी वहाँ रहते हैं | बाप तो सदैव पावन है | बाकी जो भी
मनुष्य मात्र हैं, वह पुनर्जन्म ले अपवित्र बनते हैं | बाप
बच्चों को कहते हैं – बच्चे, अपने को आत्मा समझो | आत्मा जानती
है परमपिता परमात्मा ज्ञान का सागर है, शान्ति का सागर है,
उनकी महिमा है ना | वह सर्व का बाप है और सर्व का सद्गति दाता
भी है | तो सभी का बाप के वर्से पर हक ज़रूर लगता है | बाप से
वर्सा क्या मिलता है? बच्चे जानते हैं बाप है ही स्वर्ग का
रचयिता तो ज़रूर स्वर्ग का वर्सा ही देंगे और देंगे भी ज़रूर
नर्क में | नर्क का वर्सा दिया है रावण ने | इस समय सब
नर्कवासी हैं ना | तो ज़रूर वर्सा रावण से मिला है | नर्क और
स्वर्ग दोनों हैं | यह कौन सुनते हैं? आत्मा | अज्ञान काल में
भी सब कुछ आत्मा करती है, परन्तु देह-अभिमान के कारण समझते हैं
– शरीर सब कुछ करता है | हमारा स्वधर्म है शान्त | यह भूल जाते
हैं | हम रहने वाले शान्तिधाम के हैं | यह भी समझाना चाहिए कि
सचखण्ड ही फिर झूठखण्ड बनता है | भारत सचखण्ड था फिर रावण
राज्य झूठ खण्ड भी बनता है | यह तो कॉमन बात है | मनुष्य क्यों
नहीं समझ सकते हैं! क्योंकि आत्मा तमोप्रधान हो गई है, जिसको
पत्थरबुद्धि कहते हैं | जिसने भारत को स्वर्ग बनाया, पूज्य
बनाया उनको ही फिर पुजारी बन गाली देते हैं | इसमें भी कोई का
दोष नहीं | बाप बच्चों को समझाते हैं यह ड्रामा कैसे बना हुआ
है | कैसे पूज्य से पुजारी बनें | बाप समझाते हैं आज से 5 हज़ार
वर्ष पहले भारत में आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, कल की बात
है | परन्तु मनुष्य बिल्कुल भूले हुए हैं | यह शास्त्र आदि सब
भक्ति मार्ग के लिए बैठ बनाये हैं | शास्त्र हैं ही भक्ति
मार्ग के लिए, न कि ज्ञान मार्ग के लिए | ज्ञान मार्ग का
शास्त्र बनता ही नहीं | बाप ही कल्प-कल्प आकर बच्चों को नॉलेज
देते हैं, देवता पद के लिए | बाप पढ़ाई पढ़ाते हैं फिर यह ज्ञान
प्रायः लोप हो जाता है | सतयुग में कोई शास्त्र होता नहीं
क्योंकि वह तो है ज्ञान मार्ग की प्रालब्ध | 21 जन्मों के लिए
बेहद के बाप से बेहद का वर्सा मिलता है, पीछे फिर रावण का
वर्सा मिलता है अल्पकाल के लिए | जिसको सन्यासी लोग काग विष्टा
समान सुख कहते हैं | दुःख ही दुःख है, इनका नाम ही दुःखधाम है
| कलियुग के पहले है द्वापर, उसको कहेंगे सेमी दुःखधाम | यह है
फाइनल दुःखधाम | आत्मा ही 84 जन्म लेती है, नीचे उतरती है |
बाप सीढ़ी चढ़ा देते हैं क्योंकि चक्र को फिरना ज़रूर है | नई
दुनिया थी, देवी देवताओं का राज्य था | दुःख का नाम निशान नहीं
था इसलिए दिखाते हैं शेर-बकरी इकट्ठे जल पीते हैं | वहाँ हिंसा
की कोई बात ही नहीं | अहिंसा परमो देवी-देवता धर्म कहा जाता है
| यहाँ है हिंसा | पहली-पहली हिंसा है काम कटारी चलाना | सतयुग
में विकारी कोई होता नहीं | उन्हों की तो महिमा गाते हैं |
लक्ष्मी-नारायण की महिमा गाते हैं ना – आप सम्पूर्ण
निर्विकारी........ | यह कलियुग है आयरन एजड वर्ल्ड | इनको कोई
गोल्डन एज तो कह न सके | ड्रामा ही ऐसा बना हुआ है | सतयुग है
शिवालय | वहाँ सब हैं पावन, जिन्हों के चित्र भी हैं | शिवालय
बनाने वाले शिवबाबा का भी चित्र है | भक्ति मार्ग में उनको
अनेक नाम दे दिये हैं | वास्तव में नाम है एक | बाप को अपना
शरीर तो है नहीं | ख़ुद कहते हैं मुझे अपना परिचय देने वा रचना
के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सुनाने आना पड़ता है | मुझे आकर
तुम्हारी सर्विस करनी होती है | तुम ही मुझे बुलाते हो हे
पतित-पावन आओ | सतयुग में नहीं बुलाते हो | इस समय सब बुलाते
हैं क्योंकि विनाश सामने खड़ा है | भारतवासी जानते हैं यह वही
महाभारत लड़ाई है | फिर आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना
होती है | बाप भी कहते हैं मैं राजाओं का राजा बनाने आया हूँ |
आजकल तो महाराजा, बादशाह आदि हैं नहीं | अभी तो प्रजा का प्रजा
पर राज्य है | बच्चे समझते हैं हम भारतवासी सालवेन्ट थे |
हीरे-जवाहरातों के महल में थे | नई दुनिया थी फिर नई ही पुरानी
बनी है | हर चीज़ पुरानी तो होती ही है | जैसे मकान नया बनाते
हैं फिर आखरीन तो आयु कम होती जायेगी | कहा जायेगा यह नया है,
यह आधा पुराना है, यह मध्यम है | हर एक चीज़ सतो, रजो, तमो होती
है | भगवानुवाच है ना | भगवान् कहा माना भगवान् | भगवान् किसको
कहा जाता है, यह भी नहीं जानते हैं | राजा रानी हैं नहीं |
यहाँ हैं प्रेजीडेंट, प्राइम मिनिस्टर और उनके ढेर
मिनिस्टर.....सतयुग में हैं यथा राजा रानी......फ़र्क तो बाप ने
बताया है | सतयुग के जो मालिक हैं उन्हों के मिनिस्टर, एडवाइज़र
होते नहीं | दरकार नहीं | इस समय ही शिवबाबा से ताक़त प्राप्त
कर वह पद पाते हैं | इस समय बाप से ऊँच राय मिलती है, जिससे
ऊँच पद पाते हैं | फिर कोई से राय लेंगे नहीं | वहाँ वज़ीर होते
नहीं | वज़ीर तब होते हैं जब वाम मार्ग में जाते हैं | अक्ल चट
हो जाती है |
मूल
बात है विकार की | देह-अभिमान से ही विकार पैदा होते हैं |
उनमें काम है नम्बरवन | बाप कहते हैं यह काम महाशत्रु है, उन
पर जीत पानी है | बाप ने बहुत बार समझाया है अपने को आत्मा
समझो | अच्छे वा बुरे संस्कार आत्मा में ही होते हैं | यहाँ ही
कर्मों को कूटना होता है, सतयुग में नहीं | वह है सुखधाम | बाप
आकर तुम बच्चों को सुखधाम, शान्तिधाम का वासी बनाते हैं | बाप
डायरेक्ट आत्माओं से बात करते हैं | सबको कहते हैं आत्मा
निश्चय बुद्धि हो बैठो, देह-अभिमान छोड़ो | यह देह विनाशी है,
तुम अविनाशी आत्मा हो | यह ज्ञान और कोई में है नहीं | ज्ञान
का पता न होने कारण भक्ति को ही ज्ञान समझ लिया है | अब तुम
बच्चे समझते हो – भक्ति अलग है, ज्ञान से तो सद्गति होती है |
भक्ति का सुख है अल्पकाल के लिए क्योंकि पाप आत्मा बन जाते
हैं, विकार में चले जाते हैं | आधाकल्प के लिए बेहद का वर्सा
मिला, वह पूरा हो गया | अब फिर बाप वर्सा देने आये हैं, जिसमें
पवित्रता, सुख, शान्ति सब मिल जाती है | बच्चे, तुम जानते हो
यह पुरानी दुनिया तो कब्रिस्तान बननी ही है | अब इस कब्रिस्तान
से दिल हटाए परिस्तान नई दुनिया से ममत्व लगाओ | जैसे लौकिक
बाप नया मकान बनाते हैं तो बच्चों का बुद्धियोग पुराने मकान से
निकल नये मकान से लग जाता है | ऑफिस में बैठा होगा तो भी
बुद्धि नये मकान में ही होगी | वह है हद की बात | बेहद का बाप
तो नई दुनिया स्वर्ग रच रहे हैं | कहते हैं अब पुरानी दुनिया
से सम्बन्ध तोड़ एक मुझ बाप से जोड़ो | तुम्हारे लिए नई दुनिया
स्वर्ग स्थापन करने आया हूँ | अब यह सारी पुरानी दुनिया इस
रूद्र ज्ञान यज्ञ में स्वाहा होनी है | यह सारा झाड़ तमोप्रधान
जड़जड़ीभूत हो गया है | अब फिर नया बनता है | तो बाप समझाते हैं
यह है नई दुनिया की बातें | जैसे मनुष्य बीमारी में भी होपलेस
हो जाते हैं ना | समझते हैं इनका बचना मुश्किल है | वैसे
दुनिया भी अब होपलेस है | कब्रिस्तान बनना है फिर इनको याद
क्यों करना चाहिए | यह है बेहद का सन्यास | वह हठयोगी सन्यासी
सिर्फ़ घरबार छोड़ जाते हैं | तुम पुरानी दुनिया का ही सन्यास
करते हो | पुरानी दुनिया से नई दुनिया हो जाती है |
बाप कहते हैं हम तो ओबीडियन्ट सर्वेन्ट हूँ | मैं बच्चों की
सर्विस में आया हूँ | मुझे बुलाया है – बाबा हम पतित बन गये
हैं, आप पतित दुनिया और पतित शरीर में आओ | निमन्त्रण देखो
कैसा देते हैं! पतित बनाने वाला रावण है, जिसको जलाते रहते हैं
| यह बहुत कड़ा दुश्मन है | जब से यह रावण आया है तुमको
आदि-मध्य-अन्त दुःख मिला है | विषय सागर में गोते खाते रहते हो
| अब बाप कहते हैं विष छोड़ ज्ञान अमृत पियो | आधाक्ल्प रावण
राज्य में तुम विकारों के कारण कितने दुःखी बन गये हो | इतने
मतवाले बन जाते हो जो गाली बैठ देते हो | गाली भी इतनी देते हो
– कमाल करते हो जो तुमको पावन विश्व का मालिक बनाते हैं, उनको
सबसे जास्ती गाली देते हो | मनुष्यों के लिए तो कहते हो 84 लाख
योनियाँ और मुझे सर्वव्यापी कह देते हो | यह भी ड्रामा है |
तुमको हंसी में समझाते हैं | अच्छे अथवा बुरे संस्कार-स्वभाव
आत्मा के ही होते हैं | आत्मा कहती है हम 84 जन्म भोगते हैं |
आत्मा ही एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है | यह भी अभी बाप ने समझाया
है | ड्रामा के प्लैन अनुसार फिर बाप ही आकर जो उल्टे हो गये
हैं उनको सुल्टा बनाते हैं | मीठे-मीठे बच्चों को बाप कहते हैं
कि यहाँ तुम उल्टे होकर नहीं बैठो | अपने को आत्मा समझो | अब
तुमको अल्लाह बाप मिला है जो सुल्टा बनाते हैं | रावण उल्टा
बनाते हैं | फिर सुल्टा बनने से तुम सीधे खड़े हो जाते हो | यह
एक नाटक है | यह ज्ञान बाप ही बैठ बताते हैं | भक्ति, भक्ति है
| ज्ञान, ज्ञान है | भक्ति बिल्कुल अलग है | कहते हैं एक तालाब
है, जहाँ स्नान करने से परियां बन जाती हैं | फिर कह देते हैं
पार्वती को अमरकथा सुनाई | अभी तुम अमरकथा सुन रहे हो ना |
सिर्फ़ एक पार्वती को अमरकथा सुनाई क्या! यह तो बेहद की बात है
| अमरलोक है सतयुग, मृत्युलोक है कलियुग | इनको काँटों का जंगल
कहा जाता है | बाप को जानते ही नहीं | कहते भी हैं परमपिता
परमात्मा, हे भगवान् | परन्तु जानते नहीं | तुम भी नहीं जानते
थे | तुमको बाप ने आकर सुल्टा बनाया है | भगवान् को अल्लाह कहा
जाता है | अल्लाह पढ़ाकर अल्लाह पद देंगे ना | परन्तु भगवान् एक
है | इनको (लक्ष्मी-नारायण को) भगवान्-भगवती नहीं कहेंगे | यह
तो पुनर्जन्म में आते हैं ना | मैंने ही इन्हों को पढ़ाकर
दैवीगुणों वाला बनाया है |
तुम सब ब्रदर्स हो | बाप के वर्से के हक़दार हो | मनुष्य तो घोर
अन्धियारे में हैं | आसुरी सम्प्रदाय हैं ना | कहते हैं कलियुग
तो अभी रेगड़ी पहनते हैं, (छोटे बच्चे जैसा घुटने के बल पर
चलना), समझते हैं अभी बहुत वर्ष पड़े हैं | कितना अज्ञान
अन्धेरे में सोये पड़े हैं | यह भी खेल है | सोझरे में दुःख
नहीं होता, अन्धियारे में रात को दुःख होता है | यह भी तुम ही
समझते हो और समझा सकते हो | पहले-पहले तो हर एक मनुष्य को बाप
का परिचय देना है | दो बाप तो हर एक को होते हैं | हद का बाप
हद का सुख देते हैं, बेहद का बाप बेहद का ही सुख देते हैं |
शिवरात्रि मनाते हैं तो ज़रूर बाप आते हैं स्वर्ग स्थापन करने |
जो स्वर्ग पास्ट हो गया है फिर से स्थापना कर रहे हैं | अभी है
तमोप्रधान दुनिया नर्क | ड्रामा प्लैन अनुसार जब एक्यूरेट समय
होता है तब फिर मैं आकर अपना पार्ट बजाता हूँ | मैं तो हूँ
निराकार | मुझे मुख तो ज़रूर चाहिए | बैल का मुख थोड़ेही होगा |
मैं मुख इनका लेता हूँ, जो बहुत जन्म के अन्त के जन्म में
वानप्रस्थ अवस्था में हैं | इनमें प्रवेश करता हूँ, यह अपने
जन्मों को नहीं जानते | अच्छा!
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
जैसे
बाप डायरेक्ट आत्माओं से बात करते हैं, ऐसे स्वयं को आत्मा
निश्चय करना है | इस कब्रिस्तान से ममत्व निकाल देना है | ऐसे
संस्कार धारण करने हैं जो कभी कर्म कूटने न पड़े |
2.
जैसे
बाप ड्रामा पर अटल होने कारण किसी को भी दोष नहीं देते, गाली
देने वाले अपकारियों पर भी उपकार करते, ऐसे बाप समान बनना है |
इस ड्रामा में किसी का दोष नहीं, यह एक्यूरेट बना हुआ है |
वरदान:-
मालिकपन की स्मृति द्वारा मन्मनाभव की स्थिति बनाने वाले
मास्टर सर्वशक्तिमान भव
!
सदा
यह स्मृति इमर्ज रूप में रहे कि मैं आत्मा “करावनहार” हूँ,
मालिक हूँ, विशेष आत्मा, मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ – तो इस
मालिकपन की स्मृति से मन-बुद्धि और संस्कार अपने कन्ट्रोल में
रहेंगे | मैं अलग हूँ और मालिक हूँ – इस स्मृति से मनमनाभव की
स्थिति सहज बन जायेगी | यही न्यारेपन का अभ्यास कर्मातीत बना
देगा |
स्लोगन:-
ग्लानि
वा डिस्ट्रबेन्श को सहन करना और समाना अर्थात् अपनी राजधानी
निश्चित करना | 
ओम्
शान्ति |