18-08-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - यह ब्रह्मा है सतगुरू की दरबार,
इस भ्रकुटी में सतगुरू विराजमान हैं,
वही तुम बच्चों की सद्गति करते हैं” 
प्रश्न:-
बाप
अपने बच्चों को किस गुलामी से छुड़ाने आये हैं?
उत्तर:-
इस
समय सभी बच्चे प्रकृति और माया के गुलाम बन गये हैं । बाप अभी
इस गुलामी से छुड़ाते हैं । अभी माया और प्रकृति दोनों ही तंग
करते हैं । कभी तूफान,
कभी
फैमन हैं । फिर तुम ऐसे मालिक बन जाते हो जो सारी प्रकृति
तुम्हारी गुलाम रहती है । माया का वार भी नहीं होता ।
ओम्
शान्ति |
मीठे-मीठे रूहानी बच्चे समझते हैं कि सुप्रीम बाप भी है,
सुप्रीम शिक्षक भी हैं । वह विश्व के आदि-मध्य-अन्त का राज
समझाते हैं फिर सुप्रीम गुरू भी है । तो यह हो गई सतगुरू की
दरबार । दरबार होती है ना । गुरू की दरबार । वह है सिर्फ गुरू
की,
सतगुरू है नहीं । श्री श्री 108 कहलायेंगे,
सतगुरू लिखा हुआ नहीं होगा । वो लोग सिर्फ गुरू ही कहते हैं ।
यह है सतगुरू । पहले बाप फिर टीचर फिर सतगुरू । सतगुरू ही
सद्गति देते हैं । सतयुग-त्रेता में तो फिर गुरू होते नहीं
क्योंकि सब सद्गति में हैं । एक सतगुरू मिलता है तो बाकी सब
गुरुओं का नाम खलास हो जाता है । सुप्रीम हुआ सब गुरूओं का
गुरू । जैसे पतियों का पति कहते हैं ना । सबसे ऊंच होने के
कारण ऐसे कहते हैं । तुम सुप्रीम बाप के पास बैठे हो-किसलिए?
बेहद
का वर्सा लेने । यह है बेहद का वर्सा । बाप भी है तो शिक्षक भी
है । और यह वर्सा है नई दुनिया अमरलोक के लिए,
वाइसलेस वर्ल्ड के लिए । वाइसलेस वर्ल्ड नई दुनिया को,
विशश
वर्ल्ड पुरानी दुनिया को कहा जाता है । सतयुग को शिवालय कहा
जाता है क्योंकि शिवबाबा का स्थापन किया हुआ है । विशश वर्ल्ड
रावण की स्थापना है । अभी तुम बैठे हो सतगुरू की दरबार में ।
यह सिर्फ तुम बच्चे ही जानते हो । बाप ही शान्ति का सागर है ।
वह बाप जब आये तब तो शान्ति का वर्सा दे,
रास्ता बताये । बाकी जंगल में शान्ति कहाँ से मिलेगी इसलिए हार
का मिसाल देते हैं । शान्ति तो आत्मा के गले का हार हैं । फिर
जब रावणराज्य होता ह तब अशान्ति होती है । उनको तो कहा जाता है
सुखधाम-शान्तिधाम । वहाँ दु:ख की कोई बात नहीं । महिमा भी सदैव
सतगुरू की करते हैं । गुरू की महिमा कभी सुनी नहीं होगी ।
ज्ञान का सागर,
वह
एक ही बाप है । ऐसे कभी गुरू की महिमा सुनी है?
नहीं
। वह गुरू लोग जगत के पतित-पावन हो नहीं सकते । वह तो एक ही
निराकार बेहद के बड़े बाबा को कहा जाता है ।
तुम
अभी संगमयुग पर खड़े हो । एक तरफ है पतित पुरानी दुनिया,
दूसरे तरफ है पावन नई दुनिया । पतित दुनिया में गुरू तो ढेर
हैं । आगे तुमको इस संगमयुग का पता नहीं था । अब बाप ने समझाया
है-यह है पुरूषोत्तम संगमयुग । इसके बाद फिर सतयुग आना है,
चक्र
फिरता रहता है । यह बुद्धि में याद रहना चाहिए । हम सब भाई-भाई
हैं,
तो
बेहद के बाप से वर्सा जरूर मिलता है । यह कोई को पता नहीं ।
कितने बड़े-बड़े पोजीशन वाले मनुष्य हैं परन्तु जानते कुछ नहीं ।
बाप कहते हैं मैं तो तुम सबकी सद्गति करता हूँ । अभी तुम
सेन्सीबुल बने हो । पहले तो कुछ भी पता नहीं था । इन देवताओं
के आगे जाकर तुम कहते थे - हम सेन्सलेस हैं । हमारे में कोई
गुण नहीं हैं,
आप
तरस करो । अब यह देवताओं के चित्र तरस करेंगे क्या?
यह
जानते ही नहीं । रहमदिल कौन है?
कहते
भी हैं ओ गॉड फादर,
रहम
करो । कोई भी दु:ख की बात आती है तो बाप को जरूर याद करते हैं
। अभी तुम ऐसे नहीं कहेंगे । बाप तो विचित्र है । वह सामने
बैठे हैं,
तब
तो नमस्ते करते हैं । तुम सब हो चित्रधारी । मैं हूँ विचित्र ।
मैं कभी चित्र धारण नहीं करता । मेरे चित्र का कोई नाम बताओ ।
बस,
शिवबाबा ही कहेंगे । मैंने यह लोन लिया है । सो भी पुराने ते
पुरानी जुत्ती । उसमे ही मैं आकर प्रवेश करता हूँ । इस शरीर की
महिमा कहाँ करते हैं । यह तो पुराना शरीर है । एडोप्ट किया है
तो महिमा करते हैं क्या?
नहीं
। यह तो समझाते हैं-ऐसे था,
अब
फिर मेरे द्वारा गोरा बन जायेगा । अब बाप कहते हैं मैं जो
सुनाता हूँ,
उस
पर जज करो,
अगर मैं राइट हूँ,
तो
राइट को याद करो । उनका ही सुनो,
अनराइटियस सुनो ही नहीं । उनको इविल कहा जाता है । टॉक नो ईविल
सी नो ईविल.. इन आँखों से जो कुछ देखते हो इनको भूल जाओ । अभी
तो जाना है अपने घर,
फिर
वापिस अपने सुखधाम में आयेंगे । बाकी तो यह सब जैसेकि मरे पड़े
हैं,
टेम्पररी हैं । न यह पुराने शरीर होंगे,
न यह
दुनिया होगी । हम पुरूषार्थ कर रहे हैं नई दुनिया के लिए । फिर
वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है । तुम अपना
राज्य-भाग्य ले रहे हो । जानते हो कल्प-कल्प बाप आते हैं,
राज्य-भाग्य देने । तुम भी कहते हो बाबा कल्प पहले भी मिले थे,
वर्सा लिया था,
नर
से नारायण बने थे । बाकी सब एक जैसा मर्तबा तो पा नहीं सकते
हैं । नम्बरवार तो होते हैं । यह है स्प्रीचुअल युनिवर्सिटी ।
स्प्रीचुअल फादर पढ़ाने वाला है,
बच्चे भी पढ़ाते हैं । कोई प्रिन्सीपल का बच्चा होता है तो वह
भी सर्विस में लग जाता है । स्त्री भी पढ़ाने लग जाती है ।
बच्ची भी अच्छी रीति पढ़े तो पढ़ा सकती है । परन्तु वह दूसरे घर
में चली जाती है । यहाँ तो कायदा नहीं है बच्चियों को नौकरी
करने का । नई दुनिया में पद पाने का सारा मदार है इस पढ़ाई पर ।
इन बातों को दुनिया नहीं जानती । लिखा हुआ है- भगवानुवाच,
हे
बच्चों,
मैं
तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ । कोई मॉडल थोड़ेही बनाता हूँ ।
जैसे देवियों के चित्र बनाते हैं । तुम तो पढ़कर वह पद पाते हो
। वह तो मिट्टी के चित्र बनाते हैं पूजा के लिए । यहाँ तो
आत्मा पढ़ती है । फिर तुम संस्कार ले जायेंगे,
जाकर
नई दुनिया में शरीर लेंगे । दुनिया खत्म नहीं होती है । सिर्फ
एज बदलती है-गोल्डन एज,
सिल्वर एज,
कॉपर
एज,
आइरन
एज । 16 कला से 14 कला । दुनिया तो वही चलती रहती है,
नई
से पुरानी होती है । बाप तुमको राजाओं का राजा बनाते हैं इस
पढ़ाई से । और कोई की ताकत नहीं जो ऐसा पढ़ा सके । कितना अच्छी
रीति समझाते हैं । फिर पढ़ते-पढ़ते माया अपना बना लेती है । फिर
भी जितना-जितना जो पढ़ा है उस अनुसार वह स्वर्ग में जरूर आयेंगे
। कमाई जायेगी नहीं । अविनाशी ज्ञान का विनाश नहीं हो सकता ।
आगे चल आयेंगे,
जायेंगे कहाँ । एक ही हट्टी है ना । आते रहेंगे । शमशान में जब
मनुष्य जाते हैं तो फिर बड़ा वैराग्य आता है । बस,
यह
शरीर ऐसे छोड़ने का है,
फिर
हम पाप क्यों करें । पाप करते-करते हम ऐसे मर जायेंगे! ऐसे
ख्यालात आते हैं । उसको कहा जाता है शमशानी वैराग्य । समझते भी
हैं जाकर दूसरा शरीर लेंगे । परन्तु ज्ञान तो नहीं है ना ।
यहाँ तो तुम बच्चों को समझाया जाता है,
इस
समय तुम खास मरने के लिए तैयारी कर रहे हो क्योंकि यहाँ तो तुम
टेम्पररी हो,
पुराना शरीर छोड़ फिर नई दुनिया में जायेंगे ।
बाप
कहते हैं - बच्चे,
जितना तुम मुझे याद करेंगे उतना पाप कटते जायेंगे । सहज ते सहज
भी है तो डिफीकल्ट भी है । बच्चे जब पुरूषार्थ करने लग पड़ते
हैं तब समझते हैं माया की बड़ी युद्ध है । बाप कहते हैं सहज है
परन्तु माया दीवा ही बुझा देती है । गुलबकावली की कहानी भी है
ना । माया बिल्ली दीवा बुझा देती है । यहाँ सब माया के गुलाम
हैं फिर तुम माया को गुलाम बनाते हो । सारी प्रकृति तुम्हारी
अदब में रहती है । कोई तूफान नहीं,
फैमन
नहीं । प्रकृति को गुलाम बनाना है । वहाँ कभी भी माया का वार
नहीं होगा । अभी तो कितना तंग करती है । गायन है ना मैं गुलाम
तेरा.. वह फिर कहते तू गुलाम मेरा । बाप कहते हैं अब मैं तुमको
गुलामपने से छुड़ाने आया हूँ । तुम मालिक बन जायेंगे,
वह
गुलाम बन जायेंगे । जरा भी चूँ-चाँ होगी नहीं । यह भी ड्रामा
में नूंध है । तुम कहते हो-बाबा,
माया
बड़ा तंग करती है । सो क्यों नहीं करेगी । इसको कहा ही जाता है
युद्ध का मैदान । माया को गुलाम बनाने लिए तुम कोशिश करते हो
तो माया भी पछाड़ती है । कितना तंग करती है । कितने को हराती है
। कइयों को एकदम खा जाती है,
हप
कर लेती है । भल स्वर्ग का मालिक बनते हैं परन्तु माया तो खाती
रहती है । उनके जैसे पेट में पड़े हैं । सिर्फ पुछड़ी निकली हैं
बाकी सारा उनके अन्दर हैं,
जिसको दुबन,
दलदल
भी कहते हैं । कितने बच्चे दुबन में पड़े हुए हैं । जरा भी याद
नहीं कर सकते हैं! जैसे कछुए का,
भ्रमरी का मिसाल है,
ऐसे
तुम भी कीड़ों को भूं-भूं कर क्या से क्या बना सकते हो । एकदम
स्वर्ग का परीजादा । सन्यासी भल भ्रमरी का मिसाल देते हैं
परन्तु वह कोई भूं-भूं कर बदलते थोड़ेही हैं । बदली होती हैं
संगम पर । अभी यह हैं संगमयुग । तुम शूद्र से ब्राह्मण बने हो
तो जो विकारी मनुष्य हैं उन्हों को तुम ले आते हो । कीड़े में
भी कोई भ्रमरी बन जाते हैं,
कोई
सड़ जाते हैं,
तो
कोई फिर अधूरे रह जाते हैं । बाबा ने यह बहुत देखे हैं । यहाँ
भी कोई अच्छी रीति पढ़ते हैं,
ज्ञान के पंख जम जाते हैं । कोई को आधा में ही माया पकड़ लेती
है तो कच्चे ही रह जाते हैं । तो यह मिसाल भी अभी के हैं ।
वन्डर हैं ना-भ्रमरी कीड़े को ले आकर आप समान बनाये । यह एक ही
हैं जो आप समान बनाते हैं । दूसरा सर्प का मिसाल देते हैं ।
सतयुग में बस एक खाल छोड़ दूसरी ले लेते हैं । झट साक्षात्कार
होता है अब शरीर छोड़ने वाले हैं । आत्मा निकल दूसरे गर्भ महल
में बैठती है । यह भी एक मिसाल देते हैं गर्भ महल में बैठा था,
उनको
बाहर निकलने दिल नहीं होती थी । फिर भी बाहर आना तो है ही जरूर
। अभी तुम बच्चे हो संगमयुग पर । ज्ञान से ऐसे पुरूषोत्तम बनते
हो । भक्ति तो जन्म-जन्मान्तर की । तो जिन्होंने जास्ती भक्ति
की है,
वही
आकर नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार पद पायेंगे । अभी तुम्हारी
बुद्धि में सारा ज्ञान हैं । बाकी शास्त्रों का ज्ञान कोई
ज्ञान नहीं है । वह तो है भक्ति,
उनसे
कोई सद्गति नहीं होती है । सद्गति माना वापिस घर जाना । घर में
कोई जाता नहीं । बाप खुद कहते हैं मेरे साथ कोई मिलता नहीं ।
पढ़ाने वाला,
साथ
ले जाने वाला भी चाहिए ना । बाप को कितना ख्याल रहता है । 5
हजार वर्ष में बाप एक ही बार आकर पढ़ाते हैं । तुम घड़ी-घड़ी भूल
जाते हो कि हम आत्मा हैं । यह एकदम पक्का कर लो-हम आत्माओं को
बाप पढ़ाने आये हैं । इसको कहा जाता है स्प्रिचुअल नॉलेज ।
सुप्रीम रूह हम रूहों को नॉलेज देते हैं । सस्कार भी आत्मा में
रहते हैं । शरीर तो खत्म हो जाता है । आत्मा अविनाशी है ।
तो
यह ब्रह्मा की प्रकुटी है सतगुरू का दरबार । यह इस आत्मा का भी
दरबार है । फिर सतगुरू ने भी आकर इनमें प्रवेश किया है,
इसको
रथ भी कहते हैं,
दरबार भी कहते हैं । तुम बच्चे स्वर्ग के गेट खोल रहे हो
श्रीमत पर । जितना अच्छी रीति पढ़ेंगे उतना सतयुग में ऊंच पद
पायेंगे । तो पढ़ना चाहिए । टीचर के बच्चे तो बहुत होशियार होते
हैं । परन्तु कहते हैं ना घर की गंगा का रिगार्ड नहीं । बाबा
का देखा हुआ है-सारे शहर का किचड़ा गंगा में पड़ता है,
फिर
उनको पतित-पावनी कहेंगे?
मनुष्यों की बुद्धि देखो कैसी हो गई है । देवियों को सजाकर
पूजा आदि कर फिर डुबो देते हैं । कृष्ण को भी डुबोते हैं ना ।
सो भी बहुत बेइज्जती से डुबोते हैं । बंगाल की तरफ डुबोते हैं
तो ऊपर में पाँव रखकर भी डुबोते हैं । बंगाल में पहले रिवाज था
किसका प्राण निकलने पर होता था तो उनको झट गंगा पर ले जाते थे
। वहाँ पानी में डाल हरी बोल,
हरी
बोल कर मुख में पानी डालते रहते थे,
ऐसे
प्राण निकाल देते थे,
वन्डर है ना । अभी तुम बच्चों की बुद्धि में चढ़ाई-उतराई का
पूरा ज्ञान है,
नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1.
बाप जो सुनाते हैं,
वही
सुनना है और जज करना है कि राइट क्या है । राइट को ही याद करना
है । अनराइटियस बात को न सुनना है,
न बोलना है,
न देखना है ।
2.
पढ़ाई अच्छी रीति पढ़कर अपने को राजाओं का राजा
बनाना है । इस पुराने शरीर और पुरानी दुनिया में अपने को
टैम्प्रेरी समझना है ।
वरदान:-
विस्मृति की दुनिया से निकल स्मृति स्वरूप रह हीरो पार्ट बजाने
वाले विशेष आत्मा भव
!
यह
संगमयुग स्मृति का युग है और कलियुग विस्मृति का युग है । आप
सब विस्मृति की दुनिया से निकल आये । जो स्मृति स्वरूप हैं वही
हीरो पार्ट बजाने वाली विशेष आत्मा हैं । इस समय डबल हीरो हो,
एक
हीरे समान वैल्युबुल बने हो दूसरा हीरो पार्ट है । तो यही दिल
का गीत सदा बजता रहे कि वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य । जैसे देह का
आक्यूपेशन याद रहता है,
ऐसे
ये अविनाशी आक्यूपेशन कि “मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ” याद रहे तब
कहेंगे विशेष आत्मा ।
स्लोगन:-
हिम्मत का पहला कदम आगे बढ़ाओ तो बाप की सम्पूर्ण मदद मिलेगी । 
ओम्
शान्ति |