22-09-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
"मीठे
बच्चे -
बेहद
की स्कॉलरशिप लेनी है तो अभ्यास करो-
एक
बाप
के सिवाए और कोई भी याद न आये" 
प्रश्न:-
बाप का बनने के बाद भी यदि खुशी
नहीं
रहती है तो उसका कारण क्या है?
उत्तर:-
1
- बुद्धि
में
पूरा ज्ञान
नहीं
रहता । 2 - बाप को यथार्थ रीति याद
नहीं
करते । याद न करने के कारण माया धोखा देती है इसलिए खुशी
नहीं
रहती । तुम
बच्चों
की
बुद्धि
में
नशा रहे-बाप हमें
विश्व का मालिक बनाते
हैं,
तो
सदा हुल्लास और खुशी रहे । बाप का जो वर्सा है-पवित्रता,
सुख और शान्ति,
इसमें
फुल बनो तो खुशी रहेगी ।
ओम्
शान्ति |
ओम्
शान्ति का अर्थ तो
बच्चों
को अच्छी रीति मालूम है-मैं
आत्मा,
यह
मेरा
शरीर । यह अच्छी रीति याद करो । भगवान माना आत्माओं
का बाप हमको
पढ़ाते
हैं
।
ऐसे कभी सुना है?
वह तो समझते
हैं
कृष्ण
पढ़ाते
हैं,
परन्तु उनका तो नाम-रूप है ना । यह तो
पढ़ाने
वाला है निराकार बाप । आत्मा सुनती है और परमात्मा सुनाते
हैं
।
यह नई बात है ना । विनाश तो होने का ही है ना । एक
हैं
विनाश काले विपरीत बुद्धि,
दूसरे
हैं
विनाश काले प्रीत बुद्धि । आगे तुम भी कहते थे ईश्वर
सर्वव्यापी है,
पत्थर भित्तर
में
है । इन सब बातों
को अच्छी रीति समझना है । यह तो समझाया है आत्मा अविनाशी है,
शरीर विनाशी है । आत्मा कभी घटती-बढ़ती
नहीं
।
वह है इतनी छोटी आत्मा,
इतनी छोटी आत्मा ही 84 जन्म लेकर सारा पार्ट बजाती है । आत्मा
शरीर को चलाती है । ऊँच ते
ऊँच
बाप
पढ़ाते
हैं
तो जरूर मर्तबा भी
ऊँच
मिलेगा । आत्मा ही
पढ़कर
मर्तबा पाती है । आत्मा कोई देखी
नहीं
जाती । बहुत कोशिश करते
हैं
कि देखें
आत्मा कैसे आती है,
कहाँ से निकलती है?
परन्तु मालूम
नहीं
पड़ता
है । करके कोई देखे भी तो भी समझ
नहीं
सकेंगे
।
यह तो तुम समझते हो आत्मा ही शरीर
में
निवास करती है । आत्मा अलग है,
जीव अलग है । आत्मा छोटी-बड़ी
नहीं
होती है । जीव छोटे से
बड़ा
होता है । आत्मा ही पतित और पावन बनती है । आत्मा ही बाप को
बुलाती
हे
पतित आत्माओं
को पावन बनाने वाले बाबा आओ । यह भी समझाया है-सभी आत्मायें
हैं
ब्राइड्स (सीतायें)
और वह है राम,
ब्राइडग्रूम एक । वो लोग फिर सभी को ब्राइडग्रूम कह देते
हैं
।
अब ब्राइडग्रूम सबमें
प्रवेश करे,
यह तो हो
नहीं
सकता । यह बुद्धि
में
उल्टा ज्ञान होने के कारण ही नीचे गिरते आये
हैं
क्योंकि
बहुत ग्लानि करते,
पाप करते,
डिफेम करते
हैं
।
बाप की बहुत भारी
निंदा
की है । बच्चे कभी बाप की ग्लानि करेंगे
क्या । परन्तु आजकल
बिगड़ते
हैं
तो बाप को भी गाली देने लगते हैं । यह तो है बेहद का बाप ।
आत्मा ही बेहद के बाप की ग्लानि करती है-बाबा आप कच्छ-मच्छ
अवतार हो । कृष्ण की भी ग्लानि की है-रानियों
को भगाया,
यह किया,
माखन चुराया । अब माखन आदि चुराने की उनको क्या दरकार
पड़ी
।
कितने तमोप्रधान बुद्धि बन
पड़े
हैं
।
बाप कहते
हैं
मैं
आकर तुमको पावन बनाने की बहुत सहज युक्ति बताता हूँ । बाप ही
पतित-पावन सर्वशक्तिमान अथॉरिटी है । जैसे साधू-सन्त आदि जो भी
हैं,
उनको
शास्त्रों
की अथॉरिटी कहते
हैं
।
शंकराचार्य
को भी
वेदों-शास्त्रों
आदि की अथॉरिटी
कहेंगे,
उनका कितना भभका होता है । शिवाचार्य का तो कोई भभका
नहीं,
इनके साथ कोई पलटन
नहीं
।
यह तो बैठ सभी
वेदों-शास्त्रों
का सार सुनाते
हैं
।
अगर शिवबाबा भभका दिखाये तो पहले इनका (ब्रह्मा का) भी भभका
चाहिए । परन्तु
नहीं
।
बाप कहते
हैं
मैं
तो तुम
बच्चों
का
सर्वेंट
हूँ । बाप इनमें
प्रवेश कर
बच्चों
को समझाते
हैं
कि बच्चे तुम पतित बने हो । तुम पावन बन फिर 84
जन्मों
के बाद पतित बन गये हो । इनकी ही हिस्ट्री-जॉग्राफी फिर से
रिपीट होगी ।
इन्होंने
ही 84 जन्म भोगे हैं । फिर
उन्हें
ही सतोप्रधान बनने की युक्ति बताते हैं । बाप ही सर्वशक्तिमान्
है । ब्रह्मा द्वारा सभी
वेदों-शास्त्रों
का सार समझाते हैं । चित्रों
में
ब्रह्मा को
शास्त्र
दिखाते हैं । परन्तु वास्तव
में
शास्त्रों
आदि की बात है नहीं । न बाबा के पास
शास्त्र हैं,
न
इनके पास,
न
तुम्हारे पास
शास्त्र हैं
।
यह तो तुमको नित्य नई-नई बातें
सुनाते
हैं
।
यह तो जानते हो कि सभी भक्ति मार्ग के
शास्त्र हैं
।
मैं
कोई
शास्त्र
थोड़ेही सुनाता हूँ ।
मैं
तो तुमको मुख से सुनाता
हूँ
।
तुमको राजयोग सिखाता हूँ । जिसका फिर भक्ति मार्ग
में
नाम गीता रख दिया है ।
मेरे
पास वा तुम्हारे पास कोई गीता आदि है क्या?
यह तो पढ़ाई है । पढ़ाई
में
अध्याय,
श्लोक
आदि
थोड़ेही
होते
हैं
।
मैं तुम
बच्चों
को पढ़ाता हूँ,
हूबहू कल्प-कल्प ऐसे ही पढ़ाता रहूँगा । कितनी सहज बात समझाता
हूँ- अपने को आत्मा समझो । यह शरीर तो मिट्टी हो जाता है ।
आत्मा अविनाशी है,
शरीर तो
घड़ी-घड़ी
जलता रहता है । आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है । बाप कहते
हैं
मैं
तो एक ही बार आता हूँ । शिव रात्रि मनाते भी
हैं
।
वास्तव
में
होना चाहिए शिव जयन्ती । परन्तु जयन्ती कहने से माता के गर्भ
से जन्म हो जाता है,
इसलिए शिव रात्रि कह देते
हैं
।
द्वापर-कलियुग की रात्रि
में
मेरे
को ढूँढते
हैं
।
कहते
हैं
सर्वव्यापी
हैं
।
तो तेरे
में
भी है ना,
फिर धक्के
क्यों
खाते हो! एकदम जैसे देवता से आसुरी
सम्प्रदाय
के बन जाते
हैं
।
देवतायें
कभी शराब पीते
हैं
क्या?
वही आत्मायें
फिर गिरी
हैं
तो शराब आदि पीने लग
पड़ी
हैं
।
बाप कहते हैं अब इस पुरानी दुनिया का विनाश भी जरूर होना है ।
पुरानी दुनिया
में
है अनेक धर्म,
नई दुनिया में है एक धर्म । एक से अनेक धर्म हुए
हैं
फिर एक जरूर होना है । मनुष्य तो कह देते कलियुग
में
अभी 40
हजार वर्ष
पड़
हैं,
इसको कहा जाता है घोर अन्धियारा । ज्ञान सूर्य
प्रगटा,
अज्ञान अन्धेर विनाश ।
मनुष्यों में
बहुत अज्ञान है । बाप ज्ञान सूर्य,
ज्ञान सागर आते
हैं
तो तुम्हारा भक्ति मार्ग का अज्ञान मिट जाता है । तुम बाप को
याद करते-करते पवित्र बन जाते हो,
खाद निकल जाती है । यह है योग अग्नि । काम अग्नि काला बना देती
है । योग अग्नि अर्थात् शिवबाबा की याद गोरा बनाती है । कृष्ण
का नाम भी रखा है-श्याम-सुन्दर । परन्तु अर्थ
थोड़ेही
समझते
हैं
।
बाप आकर अर्थ समझाते हैं । पहले-पहले सतयुग
में
कितने सुन्दर हैं । आत्मा पवित्र सुन्दर है तो शरीर भी पवित्र
सुन्दर लेती है । वहाँ कितना धन दौलत सब कुछ नया होता है । नई
धरनी फिर पुरानी होती है । अब इस पुरानी दुनिया का विनाश जरूर
होना है । खूब तैयारियां
हो रही
हैं
।
भारतवासी इतना
नहीं
समझते
हैं,
जितना वह समझते
हैं
कि हम अपने कुल का विनाश कर रहे
हैं
।
कोई प्रेरक है ।
साइंस
द्वारा हम अपना ही विनाश लाते
हैं
।
यह भी समझते
हैं
क्राइस्ट से
3
हजार वर्ष पहले पैराडाइज़
था । इन गॉड-गॉडेज
का राज्य था । भारत ही प्राचीन था । इस राजयोग से
लक्ष्मी-नारायण ऐसे बने थे । वह राजयोग फिर बाप ही सिखला सकते
हैं
।
सन्यासी सिखला न सकें
।
आजकल कितनी ठगी लगी
पड़ी
है । बाहर
में
जाकर कहते हैं-हम भारत का प्राचीन योग सिखलाते
हैं
।
और फिर कहते
हैं
अण्डा खाओ,
शराब आदि भल पियो,
कुछ भी करो । अब वह कैसे राजयोग सिखला सकेंगे । मनुष्य को
देवता कैसे बनाएंगे
।
बाप समझाते हैं आत्मा कितनी
ऊँच
है फिर पुनर्जन्म लेते-लेते सतोप्रधान से तमोप्रधान बन जाती है
। अब तुम फिर से स्वर्ग की स्थापना कर रहे हो । वहाँ दूसरा कोई
धर्म होता ही
नहीं
।
अब बाप कहते हैं नर्क का विनाश तो जरूर होना है । यहाँ तक जो
आये
हैं
वह फिर स्वर्ग
में
जरूर जाएंगे
।
शिवबाबा का थोडा भी ज्ञान सुना तो स्वर्ग
में
जायेगे जरूर । फिर जितना पढेगे,
बाप को याद करेगे उतना
ऊँच
पद पाएंगे
।
अभी विनाश काल तो सबके लिए है । विनाश काले प्रीत बुद्धि जो है,
सिवाए बाप के और कोई को याद
नहीं
करते
हैं,
वही
ऊँच
पद पाते
हैं
।
इसको कहा जाता है बेहद की स्कॉलरशिप,
इसमें
तो रेस करनी चाहिए । यह है ईश्वरीय लॉटरी । एक तो याद,
दूसरा दैवीगुण धारण करने
हैं
और राजा-रानी बनना है तो प्रजा भी बनानी है । कोई बहुत प्रजा
बनाते
हैं,
कोई कम । प्रजा बनती है सर्विस से । म्युजियम,
प्रदर्शनी आदि
में
ढेर प्रजा बनती है । इस समय तुम
पढ़
रहे हो फिर सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी
डिनायस्टी
में
चले जायेंगे । यह है तुम
ब्राह्मणों
का कुल । बाप ब्राह्मण कुल एडाप्ट कर
उन्हों
को
पढ़ाते
हैं
।
बाप कहते हैं मैं एक कुल और दो डिनायस्टी बनाता हूँ । सूर्यवंशी
महाराजा- महारानी,
चन्द्रवंशी
राजा-रानी ।
इन्हों
को कहेंगे डबल सिरताज फिर बाद
में
जब विकारी राजायें
होते
हैं
तो उनको लाइट का ताज
नहीं
होता । उन डबल ताज
वालों
के मन्दिर बनाकर उनको पूजते
हैं
।
पवित्र के आगे माथा टेकते
हैं
।
सतयुग
में
यह बातें
होती
नहीं
।
वह है ही पावन दुनिया,
वहाँ पतित होते
नहीं
।
उसको कहा जाता है सुखधाम,
वाइसलेस वर्ल्ड । इसको कहा जाता है विशश वर्ल्ड । एक भी पावन
नहीं
।
सन्यासी घरबार
छोड़
भागते
हैं,
राजा गोपीचन्द का भी मिसाल है ना । तुम जानते हो कोई भी मनुष्य
एक-दो को गति-सद्गति दे नहीं सकते हैं । सर्व का सद्गति दाता
मैं
ही हूँ ।
मैं
आकर सबको पावन बनाता हूँ । एक तो पवित्र बन शान्तिधाम चले जाएंगे
और दूसरे पवित्र बन सुखधाम
में
जाएंगे
।
यह है अपवित्र दुःखधाम । सतयुग
में
बीमारी आदि कुछ भी होती
नहीं
।
तुम उस सुखधाम के मालिक थे फिर रावणराज्य
में
दुखधाम के मालिक बने हो । बाप कहते
हैं
कल्प-कल्प तुम
मेरी
श्रीमत पर स्वर्ग स्थापन करते हो । नई दुनिया का राज्य लेते हो
। फिर पतित नर्कवासी बनते हो । देवतायें
ही फिर विकारी बन जाते
हैं
।
वाम मार्ग
में
गिरते
हैं
।
मीठे-मीठे
बच्चों
को बाप ने आकर परिचय दिया है कि
मैं
एक ही बार पुरूषोत्तम
संगमयुग
पर आता हूँ ।
मैं
युगे-युगे तो आता ही
नहीं
हूँ । कल्प के
संगमयुगे
आता हूँ,
न
कि युगे-युगे । कल्प के संगम पर
क्यों
आता हूँ?
क्योंकि
नर्क को स्वर्ग बनाता हूँ । हर 5 हजार वर्ष बाद आता हूँ । कई
बच्चे लिखते
हैं-बाबा,
हमको खुशी
नहीं
रहती है,
उल्लास
नहीं
रहता है । अरे,
बाप तुमको विश्व का मालिक बनाते
हैं,
ऐसे बाप को याद कर तुमको खुशी
नहीं
रहती है! तुम पूरा याद
नहीं
करते हो तब खुशी
नहीं
ठहरती है । पति को याद करते खुशी होती है,
जो पतित बनाते
हैं
और बाप जो डबल सिरताज बनाते
हैं,
उनको याद करके खुशी
नहीं
होती है । बाप के बच्चे बने हो फिर भी कहते हो खुशी
नहीं!
पूरा ज्ञान बुद्धि
में
नहीं
है । याद
नहीं
करते हो इसलिए माया धोखा देती है ।
बच्चों
को कितना अच्छी रीति समझाते
हैं
।
कल्प-कल्प समझाते हैं । आत्मायें
जो पत्थरबुद्धि बन
पड़ी
हैं,
उनको पारसबुद्धि बनाता हूँ । नॉलेजफुल बाप ही आकर नॉलेज देते
हैं
।
वह हर बात
में
फुल है ।
प्योरिटी
में
फुल,
प्यार
में
फुल । ज्ञान का सागर,
सुख का सागर,
प्यार का सागर है ना । ऐसे बाप से तुमको
यह वर्सा मिलता है । ऐसा बनने के लिए ही तुम आते हो । बाकी वह
सतसंग
आदि तो सब हैं भक्ति मार्ग के । उनमें
एम आब्जेक्ट कुछ भी है
नहीं
।
इसको तो गीता पाठशाला कहा जाता है,
वेद पाठशाला नहीं होती । गीता से नर से नारायण बनते हो । जरूर
बाप ही बनायेंगे
ना । मनुष्य,
मनुष्य को देवता बना न सकें
।
बाप बार-बार बच्चों को समझाते
हैं-बच्चे,
अपने को आत्मा समझो । तुम कोई देह
थोड़ेही
हो । आत्मा कहती है
मैं
एक देह छोड़ दूसरी लेती हूँ । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
जैसे
शिवबाबा का कोई भभका नहीं,
सर्वेंट
बन
बच्चों
को
पढ़ाने के लिए आये हैं,
ऐसे
बाप समान अथॉरिटी होते हुए भी
निरहंकारी
रहना
है । पावन बनकर पावन बनाने की सेवा करनी है ।
2.विनाश
काल के समय ईश्वरीय लॉटरी लेने के लिए प्रीत बुद्धि बन याद
में
रहने
वा दैवीगुणों
को
धारण करने की रेस करनी है
|
वरदान:-
एक
बल
एक भरोसे के आधार पर माया को सरेन्डर कराने वाले शक्तिशाली
आत्मा भव
!
एक बल एक भरोसा अर्थात् सदा शक्तिशाली । जहाँ एक बल एक भरोसा
है वहाँ कोई हिला
नहीं
सकता । उनके आगे माया मूर्छित हो जाती है,
सरेन्डर हो जाती है । माया सरेन्डर हो गई तो सदा विजयी
हैं
ही । तो यही नशा रहे कि विजय हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है । यह
अधिकार कोई छीन
नहीं
सकता । दिल
में
यह स्मृति इमर्ज रहे कि हम ही कल्प-कल्प की शक्तियां
और पाण्डव विजयी बने थे,
हैं
और फिर बनेंगे
।
स्लोगन:-
नई
दुनिया की स्मृति से सर्व
गुणों
का
आह्वान करो और
तीव्रगति
से आगे
बढ़ो
। 
ओम्
शान्ति |