11-12-13
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
शुभ कार्य में देरी नहीं करनी है, अपने भाई बहिनों को ठोकर खाने से बचाना है, भूं-भूं कर आप समान बनाना है |
प्रश्न:-
किस बात का अनर्थ होने से भारत कौड़ी मिसल बन गया है ?
उत्तर:-
सबसे बड़ा अनर्थ हुआ है जो गीता के स्वामी को भूल, गीता ज्ञान से जन्म लेने वाले बच्चे को स्वामी
कह दिया है। इसी एक अनर्थ के कारण सभी बाप से बेमुख हो गये हैं। भारत कौड़ी तुल्य बन गया
है। अब तुम बच्चे बाप से सम्मुख में सच्ची गीता सुन रहे हो जिस गीता ज्ञान से ही देवी-देवता धर्म स्थापन
होता है, तुम श्रीकृष्ण के समान बनते हो।
गीत:-
किसने यह सब खेल रचाया ......

ओम् शान्ति |
ब्राह्मण कुल भूषण बच्चे समझ गये हैं कि बराबर हमको स्वर्ग में बहुत अपरमपार सुख थे, हम बहुत खुशी
में थे, हम जीव आत्मायें स्वर्ग में बहुत मस्ती में थे फिर क्या हुआ ? रंग रूप की माया आकर चटकी। विकारों के कारण
ही इसको नर्क कहा जाता है। नर्क तो सारा है। अब यह जो भ्रमरी का मिसाल देते हैं, भ्रमरी और ब्राह्मणी दोनों का काम
एक है। भ्रमरी का मिसाल तुम्हारे ऊपर है। भ्रमरी कीड़े ले जाती है। घर बनाकर उसमें कीड़े डाल देती है। यह भी नर्क
है । सब कीड़े हैं । परन्तु सब कीड़े देवी-देवता धर्म वाले नहीं हैं । जो भी धर्म वाले हैं सब नर्कवासी कीड़े हैं । अब देवी-
देवता धर्म के कीड़े कौन हैं, यह कैसे पता पड़े कि यह ब्रह्मा वंशी ब्राह्मणियाँ हैं जो बैठ भूं-भूं करती हैं। जो देवता धर्म के
होंगे वही ठहर सकेंगे । जो नहीं होंगे, ठहरेगे नहीं । नर्कवासी कीड़े तो सभी हैं । सन्यासी भी यही कहते हैं कि नर्क का यह
सुख काग विष्टा समान है । उनको यह पता नहीं कि स्वर्ग में अथाह सुख है । यहाँ पर 5 परसेंट सुख और 95 परसेंट
दु :ख है । तो इसको कोई स्वर्ग नहीं कहा जायेगा। स्वर्ग में तो दु :ख की बात नहीं रहती । यहाँ तो अनेक शास्त्र, अनेक धर्म
तथा अनेक मतें हो गई हैं । स्वर्ग में तो एक ही अद्वैत देवता मत है । एक ही धर्म है । तो तुम हो ब्राह्मणियां । तुम भूं-भूं करती
हो फिर जो इस धर्म के हैं वह ठहर जाते हैं । अनेक प्रकार के हैं । कोई नेचर को मानते, कोई साइन्स को, कोई कहते यह
सृष्टि कल्पना मात्र है । ऐसी वार्तालाप यहाँ ही चलती है, सतयुग में नहीं चलती । यह बेहद का बाप प्रजापिता ब्रह्मा के मुख
कमल से अपने बच्चों को बैठ समझाते हैं कि तुम मेरे पास थे, अब फिर मेरे पास आना है । इसमें शास्त्रों की तो बात नहीं
उठती । क्राइस्ट तथा बुद्ध आते हैं, वह भी आकर सुनाते हैं, उस समय तो शास्त्र का प्रश्र उठ न सके । क्राइस्ट बाइबिल
पढता था क्या? बाइबिल का प्रश्र ही नहीं उठता । बाप कहते हैं - बच्चे, तुम अपनी हालत तो देखो । माया रावण ने तुम्हारी
कैसी हालत कर दी है ! समझते भी हैं कि हम आसुरी रावण सम्प्रदाय हैं। रावण को जलाते हैं परन्तु जलता नहीं । रावण
का जलना बन्द कब होगा ? यह मनुष्यो को पता नहीं है । तुम हो ईश्वरीय दैवी सम्प्रदाय। तुम बच्चे हो हमारे, अब मैं फिर
आया हूँ तुम बच्चों को राजयोग सिखलाने । अनेक धर्म हैं । उनमें से निकालने में कितनी मेहनत लगती है । गीता भी कहाँ
से आई? आदि सनातन धर्म जो था उनकी निशानियां कहाँ से निकली ? जो फिर ऋषि-मुनियों ने बैठ बनाई, जो अब तक
सुनते आये हैं । वेद किसने गाये ? वेदों का बाप कौन है ? बाप कहते हैं कि गीता का भगवान् मैं हूँ । गीता माता रची
शिवबाबा ने, उससे जन्म लिया कृष्ण ने । उनके साथ राधे आदि सब आ जाते हैं । पहले हैं ही ब्राह्मण ।
तुम बच्चों को निश्चय है कि वह हमारा मोस्ट बिलवेड बाप है - जिसको सब कहते हैं ओ गॉड फादर रहम करो । भक्त
पुकारते हैं कि कैसे दु:ख से छूटें । अगर भगवान् सर्वव्यापी हो तो फिर पुकारने की बात ही नहीं । मुख्य है गीता की बात,
कितने यज्ञ आदि रचते हैं। अब तुम ऐसे पर्चे छपाओ । अब कितना अनर्थ हो गया है । जहाँ-तहाँ देखो गीता लिखते रहते हैं ।
गीता किसने रची, किसने गाई, कब गाई, किसने बनाई, कुछ भी पता नहीं है। श्रीकृष्ण का भी यथार्थ परिचय नहीं है ।
बस, कह देते जिधर देखो सर्वव्यापी कृष्ण ही कृष्ण है । राधे के भक्त राधे के लिए कहेंगे सर्वव्यापी राधे ही राधे है । एक
निराकार परमात्मा को ही कहे तो भी ठीक । सबको क्या सर्वव्यापी कर दिया है । गणेश के लिए भी कहेंगे सर्वव्यापी । एक
ही मथुरा शहर में कोई कहेंगे श्रीकृष्ण सर्वव्यापी है, कोई कहेंगे राधे सर्वव्यापी है । कितनी मूंझ हो गई है । एक की मत न
मिले दूसरे से । एक ही घर में बाप का गुरू अलग तो बच्चे का गुरू अलग । वास्तव में गुरू किया जाता है वानप्रस्थ में । बाप
कहते हैं मैं भी आया हूँ इनकी वानप्रस्थ अवस्था में । दुनिया में तो जितना जो बड़ा गुरू होता है उनको उतना नशा रहता है ।
आदि देव को महावीर भी नाम दिया है । हनूमान को भी महावीर कहते हैं । महावीर तो तुम शक्तियां हो । देलवाड़ा मन्दिर
में शक्तियों की शेर पर सवारी है और पाण्डवों की हाथियों पर । मन्दिर बड़ा युक्ति से बना हुआ है । हूबहू तुम्हारा यादगार
है । तुम तो उस समय होंगे नहीं जो तुम्हारा चित्र दें। मन्दिर तो द्वापर में बने हैं तो तुम्हारे चित्र कहाँ से आयेंगे । सर्विस तो तुम
अभी कर रहे हो । बातें सब अभी की हैं । उन्होंने बाद में शास्त्र बनाये हैं। हम अगर गीता का नाम न लें तो मनुष्य समझेंगे -
पता नहीं, यह कौन-सा नया धर्म है ? कितनी मेहनत लगती है । वह इस दुनिया में सिर्फ धर्म स्थापन करते हैं । तुमकी तो नई
दुनिया के लिए बाप तैयार करते हैं ।
बाप कहते हैं मेरे जैसा कर्तव्य कोई कर न सके । सब पतितों को पावन बनाना पड़ता है । अब तुम बच्चों को वार्निंग देनी
पड़े । भारत में कितना अनर्थ हो गया है जिस कारण ही भारत कौड़ी तुल्य बना है । बाप ने गीता माता द्वारा कृष्ण को जन्म
दिया, उन्होंने फिर कृष्ण को गीता का स्वामी बना दिया है । गीता का स्वामी तो शिव है, उसने गीता से कृष्ण को जन्म दिया।
तुम सब संजय हो, सुनाने वाला एक शिवबाबा है । प्राचीन देवी-देवता धर्म का रचने वाला कौन ? यह सब लिखने में बुद्धि
चाहिए । गीता से हम जन्म ले रहे हैं। मम्मा राधे और यह फिर कृष्ण बनेगा । यह गुप्त बातें हैं ना । ब्राह्मणों का जन्म कोई
समझ न सके । बात ही है कृष्ण और परमात्मा की । ब्रह्मा, कृष्ण और शिवबाबा - यह सब बातें गुह्य हैं ना । इन बातों को
समझने वाला बड़ा बुद्धिवान चाहिए । जिनका योग पूरा होगा, उनकी बुद्धि पारस बनती जायेगी । भटकने वाले की बुद्धि में
यह ठहर न सके । बाबा तुम बच्चों को कितनी ऊंची नॉलेज दे रहे हैं । विद्यार्थी अपनी बुद्धि भी चलाते हैं ना । तो अभी
बैठकर लिखो। शुभ कार्य में देरी नहीं करनी चाहिए । हम सागर के बच्चे अपने भाई-बहनों को बचायें । बिचारे ठोकर
खाते रहते हैं। कहेंगे बी.के. इतनी रड़ियां मारती हैं, कुछ तो बात होगी । लाखों पर्चे छपवाकर गीता पाठशालाओं आदि में
बाँटो । भारत अविनाशी खण्ड है और सर्वोत्तम तीर्थ है । जो बाप सबको सद्गति देते हैं उनके तीर्थ स्थान को गुम कर दिया
है तो फिर उनका नाम निकालना पड़े । फूल चढ़ाने लायक एक शिव ही है । बाकी तो सब व्यर्थ हैं। गीता पाठशालायें बहुत
हैं । तुम वेष बदलकर वहाँ जाओ। फिर भल समझें यह बी.के. होगी । ऐसे प्रश्र कोई पूछ न सके । अच्छा -
तुम समझते हो कि शिवबाबा ब्रह्मा तन से बैठ यह बातें समझाते हैं । जो बाबा स्वर्ग का मालिक बनाने वाला है, वह अभी
आया हुआ है । जब तक ब्राह्मण न बनें तब तक देवता बन न सकें । ब्राह्मण कुल देवताओं से भी ऊंच है । सबकी आत्मा
पावन हो रही है । तुम फिर नई दुनिया में पुनर्जन्म लेंगे। अच्छा !
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
रात्रिक्लास 12-1-69
तुम बच्चे एक बाप की याद में बैठे हो, एक की याद में रहना इसे कहेंगे अव्यभिचारी याद । अगर यहाँ बैठे भी दूसरे कोई
की याद आती है तो व्यभिचारी याद कहेंगे । खाना पीना, रहना एक घर में, याद दूसरे को करना यह तो ठगी हो गई । भक्ति
भी जब तक एक शिवबाबा की करते हैं तब तक अव्यभिचारी भक्ति हुई फिर औरों को याद करना यह व्यभिचारी भक्ति
हो जाता है । अभी तुम बच्चों को ज्ञान मिला है, एक बाप कितनी कमाल करते हैं ! हमको विश्व का मालिक बनाते हैं । तो
उस एक को ही याद करना चाहिए। मेरा तो एक। परन्तु बच्चे कहते हैं शिवबाबा की याद भूल जाती है। वाह ! भक्ति मार्ग
में तो तुम कहते थे हम एक की ही भक्ति करेंगे । वही पतित-पावन है, और तो कोई को पतित-पावन नहीं कहा जाता ।
एक को ही कहा जाता है । वही ऊंच ते ऊंच है । अभी तो भक्ति की बात ही नहीं । बच्चों को ज्ञान है । ज्ञान सागर को याद
करना है । भक्ति मार्ग में कहते हैं आप आयेंगे तो हम आपको ही याद करेंगे । तो यह बात याद करनी चाहिए । हरेक अपने
से पूछे हम एक बाप को याद करते हैं या अनेक मित्र, सम्बन्धियों आदि को याद करते हैं ? एक बाप से ही दिल लगानी है ।
अगर दिल और तरफ गई तो याद व्यभिचारी हो जाती है। बाप कहते हैं बच्चे मामेकम् याद करो । फिर वहाँ तुम्हे दैवी
सम्बन्धी मिलेंगे । नई दुनिया में सभी नये मिलेंगे । तो अपनी जाँच रखनी है कि हम किसको याद करते हैं ? बाप कहते हैं तुम
मुझ पारलौकिक बाप को याद करो । मैं ही पतित-पावन हूँ, कोशिश कर और तरफ से बुद्धियोग हटाकर बाप को याद
करना है । जितना याद करेंगे उतना ही पाप कटेंगे । ऐसा नहीं कि जितना हम याद करेंगे उतना बाबा भी याद करेंगे । बाप
को कोई पाप थोड़े ही काटने हैं। अभी तुम यहाँ बैठे हो पावन बनने लिए। शिवबाबा भी यहाँ है। उन्हें अपना शरीर तो है
नहीं, लोन लिया हुआ है। तुम्हारी बाप से प्रतिज्ञा की हुई है - बाबा आप आयेंगे तो हम आपके बन नई दुनिया के मालिक
बनेंगे। अपने दिल से पूछते रहो । यह तो जानते हो बुद्धियोग की लिंक घड़ी-घड़ी बाप से टूट जाती है। बाप जानते हैं लिंक
टूटेगी, फिर याद करेंगे, फिर टूटेगी। बच्चे नम्बरवार तो पुरूषार्थ करते ही हैं। अच्छी रीति याद में रहे तो इस डिनायस्टी
में आ जायेंगे । अपनी जांच करते रहो, डायरी रखो । सारे दिन में हमारा बुद्धियोग कहाँ-कहाँ गया? तो फिर बाप
समझायेंगे । आत्मा में जो मन, बुद्धि है वह भागती है । बाप कहते हैं भागने से घाटा पड़ जायेंगा । मुझे याद करने से बहुत
फायदा है, बाकी तो नुकसान ही नुकसान है। याद करना है मुख्य एक को। अपने ऊपर खबरदारी रखनी है, कदम-
कदम पर फायदा, कदम-कदम पर घाटा । 84 जन्म देहधारियों को याद कर घाटा ही पाया। एक-एक दिन होकर
5000 वर्ष बीत गये, घाटा ही हुआ, अभी बाप की याद में रह फायदा करना है।
ऐसे विचार सागर मंथन कर ज्ञान रत्न निकालने हैं, बाप की याद में एकाग्रचित हो लगना है। कई बच्चों को कौड़ियां
कमाने की चिंता रहती है। माया धंधे आदि के विचार ले आती है। धनवान को तो बहुत विचार आते हैं । बाबा क्या करे ।
बाबा का कितना अच्छा धंधा था, धक्के आदि खाने की दरकार ही नहीं थी । कोई व्यापारी आता था तो मैं पूछता था पहले
यह तो बताओ व्यापारी हो या एजेन्ट हो ? (हिस्ट्री) तुम्हें धन्धा आदि करते बुद्धि का योग बाप से रखना है । अभी कलियुग
पूरा हो सतयुग आता है । पतित तो सतयुग में जायेंगे ही नहीं । जितना याद करेंगे उतना ही पवित्र बनेंगे । प्युरिटी से धारणा
अच्छी होगी । पतित न याद कर सकेगा, न धारणा होगी । कोई को तकदीर अनुसार समय मिलता है, पुरूषार्थ करते हैं,
कोई को समय ही नहीं मिलता, याद ही नहीं करते । जिसने जितनी कोशिश कल्प पहले की है उतनी करते हैं । हरेक को
अपने से मेहनत करनी है । कमाई में घाटा पड़ता था तो आगे कहते थे ईश्वर की इच्छा । अभी कहते हैं ड्रामा। जो कल्प
पहले हुआ है वह होगा । ऐसे नहीं अभी 4 घण्टा याद करते हो तो दूसरे कल्प में जास्ती करेंगे । नहीं । शिक्षा दी जाती है ।
अभी पुरूषार्थ करेंगे तो कल्प-कल्प अच्छा पुरूषार्थ होगा । तो जांच करो बुद्धि कहाँ-कहाँ जाती है । मलयुद्ध में बड़ी
खबरदारी रखते हैं । अच्छा रूहानी बच्चों को रूहानी बापदादा का याद-प्यार गुडनाइट ।
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1.
बुद्धिवान बनने के लिए याद से अपनी बुद्धि को पारस बनाना है। बुद्धि इधर-उधर भटकानी नहीं है। बाप जो सुनाते हैं उस पर ही विचार करना है।
2. भ्रमरी बन
भूं-भूं कर नर्कवासी बने हुए कीड़ों को देवी-देवता बनाने की
सेवा करनी है। शुभ कार्य में देरी नहीं करनी है। अपने
भाई-बहिनों को बचाना है ।
वरदान:-
"मेरा बाबा" इस संकल्प द्वारा हर कदम में मदद का अनुभव करने
वाले निश्रयबुद्धि भव !

ड्रामानुसार जो पक्के निश्रयबुद्धि हैं, दिल में संकल्प कर लेते हैं कि बाप मेरा, मैं बाप का, तो ऐसे बच्चों
को स्वत: मदद मिलती है। सिर्फ सच्ची दिल से कहो "मेरा बाबा" तो हर कदम में मदद की अनुभूति
होती रहेगी। जिन बच्चों का एक बाप के साथ अटूट प्यार है उन्हें कोई भी बात रोक नहीं सकती।
बाप का प्यार सब बातोँ से पार करा देता है। वे उड़ते रहते हैं।
स्लोगन:-
सदा बाप की लाइट माइट के अन्दर रहो तो माया आपके आगे ठहर नहीं सकती।
ओम्
शान्ति