14-07-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - कलंगीधर बनने के लिए अपनी अवस्था अचल- अडोल बनाओ, जितना तुम पर कलंक लगते हैं, उतना तुम कलंगीधर बनते हो”   

                                                        
प्रश्न:-   
बाप की आज्ञा क्या है? किस मुख्य आज्ञा पर चलने वाले बच्चे दिल तख्तनशीन बनते हैं ?


उत्तर:-
बाप की आज्ञा है - मीठे बच्चे, तुम्हें कोई से भी खिट- खिट नहीं करनी है । शान्ति में रहना है । अगर कोई को तुम्हारी बात अच्छी नहीं लगती तो तुम चुप रहो । एक- दो को तंग नहीं करो । बापदादा के दिलतख्तनशीन तब बन सकते जब अन्दर कोई भी भूत न रहे, मुख से कभी कोई कडुवे बोल न निकले, मीठा बोलना जीवन की धारणा हो जाए ।

 

ओम् शान्ति |

भगवानुवाच, आत्म- अभिमानी भव - पहले- पहले जरूर कहना पड़े । यह है बच्चों के लिए सावधानी । बाप कहते हैं कि हम बच्चे-बच्चे कहते हैं तो आत्माओं को ही देखता हूँ, शरीर तो पुरानी जुत्ती है । यह सतोप्रधान बन नहीं सकता । सतोप्रधान शरीर तो सतयुग में ही मिलेगा । अभी तुम्हारी आत्मा सतोप्रधान बन रही है । शरीर तो वही पुराना है । अभी तुमको अपनी आत्मा को सुधारना है । पवित्र बनना है । सतयुग में शरीर भी पवित्र मिलेगा । आत्मा को शुद्ध करने के लिए एक बाप को याद करना होता है । बाप भी आत्मा को देखते हैं । सिर्फ देखने से आत्मा शुद्ध नहीं बनेगी । वह तो जितना बाप को याद करेंगे उतना शुद्ध होते जायेंगे । यह तो तुम्हारा काम है । बाप को याद करते-करते सतोप्रधान बनना है । बाप तो आया ही है रास्ता बताने । यह शरीर तो अन्त तक पुराना ही रहेगा । यह तो सिर्फ कर्मेन्द्रियां हैं, जिससे आत्मा का कनेक्शन है । आत्मा गुल-गुल बन जाती है फिर कर्तव्य भी अच्छे करती है । वहाँ पंछी जानवर भी अच्छे- अच्छे रहते हैं । यहाँ चिड़िया मनुष्यों को देख भागती है, वहाँ तो ऐसे अच्छे- अच्छे पंछी तुम्हारे आगे-पीछे घूमते फिरते रहेंगे वह भी कायदेसिर । ऐसे नहीं घर के अन्दर घुस आयेंगे, गंद करके जायेंगे । नहीं, बहुत कायदे की दुनिया होती है । आगे चल तुमको सब साक्षात्कार होते रहेंगे । अभी मार्जिन तो बहुत पड़ी है । स्वर्ग की महिमा तो अपरमअपार है । बाप की महिमा भी अपरमअपार है, तो बाप के प्रापर्टी की महिमा भी अपरमअपार है । बच्चों को कितना नशा चढ़ना चाहिए । बाप कहते हैं मैं उन आत्माओं को याद करता हूँ, जो सर्विस करते हैं वह ऑटोमेटिकली याद आते हैं । आत्मा में मन-बुद्धि है ना । समझते हैं कि हम फर्स्ट नम्बर की सर्विस करते या सेकण्ड नम्बर की करते हैं । यह सब नम्बरवार समझते हैं । कोई तो म्यूजियम बनाते हैं, प्रेजीडेण्ट, गवर्नर आदि के पास जाते हैं । जरूर अच्छी रीति समझाते होंगे । सबमें अपना- अपना गुण है । कोई में अच्छे गुण होते हैं तो कहा जाता है यह कितना गुणवान है । जो सर्विसएबुल होंगे वह सदैव मीठा बोलेंगे । कडुवा कभी बोल नहीं सकेंगे । जो कडुवा बोलने वाले हैं उनमें भूत है । देह- अभिमान है नम्बरवन, फिर उनके पीछे और भूत प्रवेश करते हैं । मनुष्य बद-चलन भी बहुत चलते हैं । बाप कहते हैं इन बिचारों का दोष नहीं है । तुमको मेहनत ऐसी करनी है जैसे कल्प पहले की है, अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो फिर आहिस्ते- आहिस्ते सारे विश्व की डोर तुम्हारें हाथों में आने वाली है । ड्रामा का चक्र है, टाइम भी ठीक बताते हैं । बाकी बहुत कम समय बचा है । वो लोग आजादी देते हैं तो दो टुकड़ा कर देते हैं, आपस में लड़ते रहें । नहीं तो उन्हों का बारूद आदि कौन लेगा । यह भी उन्हों का व्यापार है ना । ड्रामा अनुसार यह भी उन्हों की चालाकी है । यहाँ भी टुकड़े-टुकड़े कर दिया है । वह कहते यह टुकड़ा हमको मिले, पूरा बंटवारा नहीं किया गया है, इस तरफ पानी जास्ती जाता है, खेती बहुत होती है, इस तरफ पानी कम है । आपस में लड़ पड़ते हैं, फिर सिविलवार हो पड़ती है । झगड़े तो बहुत होते हैं । तुम जब बाप के बच्चे बने हो तो तुम भी गाली खाते हो । बाबा ने समझाया था- अभी तुम कलंगीधर बनते हो । जैसे बाबा गाली खाते हैं, तुम भी गाली खाते हो । यह तो जानते हो कि इन बिचारों को पता नहीं है कि यह विश्व के मालिक बनते हैं । 84 जन्मों की बात तो बहुत सहज है । आपेही पूज्य, आपेही पुजारी भी तुम बनते हो । कोई की बुद्धि में धारणा नहीं होती है, यह भी ड्रामा में उनका ऐसा पार्ट है । कर क्या सकते हैं । कितना भी माथा मारो परन्तु ऊपर चढ़ नहीं सकते हैं । तदबीर तो कराई जाती है । लेकिन उनकी तकदीर में नहीं है । राजधानी स्थापन होती है, उनमें सब चाहिए । ऐसा समझकर शान्त में रहना चाहिए । कोई से भी खिटपिट की बात नहीं । प्यार से समझाना पड़ता है-ऐसे न करो । यह आत्मा सुनती है, इससे और ही पद कम हो जायेगा । कोई-कोई को अच्छी बात समझाओ तो भी अशान्त हो पड़ते हैं, तो छोड़ देना चाहिए । खुद भी ऐसा होगा तो एक-दो को तंग करता रहेगा । यह पिछाड़ी तक रहेगा । माया भी दिन-प्रतिदिन कड़ी होती जाती है । महारथियों से माया भी महारथी होकर लड़ती है । माया के तूफान आते हैं फिर प्रैक्टिस हो जाती है बाप को याद करने की, एकदम जैसे अचल- अडोल रहते हैं । समझते हैं माया हैरान करेगी । डरना नहीं है । कलंगीधर बनने वालों पर कलक लगते हैं, इसमें नाराज़ नहीं होना चाहिए । अखबार वाले कुछ भी खिलाफ डालते हैं क्योंकि पवित्रता की बात है । अबलाओं पर अत्याचार होंगे । अकासुर-बकासुर नाम भी है । स्त्रियों का नाम भी पूतना, सूपनखा है । 

अब बच्चे पहले-पहले महिमा भी बाप की सुनाते हैं । बेहद का बाप कहते हैं तुम आत्मा हो । यह नॉलेज एक बाप के सिवाए कोई दे नहीं सकता । रचता और रचना का ज्ञान यह है पढ़ाई, जिससे तुम स्वदर्शन चक्रधारी बन चक्रवर्ती राजा बनते हो । अलंकार भी तुम्हारे हैं परन्तु तुम ब्राह्मण पुरूषार्थी हो इसलिए यह अलंकार विष्णु को दे दिया है । यह सब बातें - आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है, कोई भी बता नहीं सकते । आत्मा कहाँ से आई, निकल कैसे जाती, कभी कहते हैं आँखों से निकली, कभी कहते हैं भ्रकुटी से निकली, कभी कहते हैं माथे से निकल गई । यह तो कोई जान नहीं सकता । अभी तुम जानते हो- आत्मा शरीर ऐसे छोड़ेगी, बैठे-बैठे बाप की याद में देह का त्याग कर देंगे । बाप के पास तो खुशी से जाना है । पुराना शरीर खुशी से छोड़ना है । जैसे सर्प का मिसाल है । जानवरों में भी जो अक्ल है, वह मनुष्यों में नहीं है । वह सन्यासी आदि तो सिर्फ दृष्टांत देते हैं । बाप कहते हैं तुमको ऐसा बनना है जैसे भ्रमरी कीड़े को ट्रांसफर कर देती है, तुमको भी मनुष्य रूपी कीड़े को ट्रांसफर कर देना है । सिर्फ दृष्टान्त नहीं देना है लेकिन प्रैक्टिकल करना है । अब तुम बच्चों को वापिस घर जाना है । तुम बाप से वर्सा पा रहे हो तो अन्दर में खुशी होनी चाहिए । वह तो वर्से को जानते ही नहीं । शान्ति तो सबको मिलती है, सब शान्तिधाम में जाते हैं । सिवाए बाप के कोई भी सर्व की सद्गति नहीं करते । यह भी समझाना होता है, तुम्हारा निवृत्ति मार्ग है, तुम तो ब्रह्म में लीन होने का पुरूषार्थ करते हो । बाप तो प्रवृत्ति मार्ग बनाते हैं । तुम सतयुग में आ नहीं सकते हो । तुम यह ज्ञान किसको समझा नहीं सकेंगे । यह बहुत गुह्य बात है । पहले तो कोई को अलफ-बे ही पढ़ाना पड़ता है । बोलो तुमको दो बाप हैं-हद का और बेहद का । हद के बाप के पास जन्म लेते हो विकार से । कितन अपार  दु:ख मिलते हैं । सतयुग में तो अपार सुख हैं । वहाँ तो जन्म ही मक्खन मिसल होता है । कोई दु :ख की बात नहीं । नाम ही है स्वर्ग । बेहद के बाप से बेहद की बादशाही का वर्सा मिलता है । पहले है सुख, पीछे है दु :ख । पहले दु :ख फिर सुख कहना रांग है । पहले नई दुनिया स्थापन होती है, पुरानी थोड़ेही स्थापन होती है । पुराना मकान कभी कोई बनाते हैं क्या । नई दुनिया में तो रावण हो न सके । यह भी बाप समझाते हैं तो बुद्धि में युक्तियां हों । बेहद का बाप बेहद का सुख देते हैं । कैसे देते हैं आओ तो समझायें । कहने की भी युक्ति चाहिए । दुःखधाम के दुःखों का भी तुम साक्षात्कार कराओ । कितने अथाह दुःख हैं, अपरम्पार हैं । नाम ही है दु :खधाम । इनको सुखधाम कोई कह नहीं सकता । सुखधाम में श्रीकृष्ण रहते हैं । कृष्ण के मन्दिर को भी सुखधाम कहते हैं । वह सुखधाम का मालिक था, जिसकी मन्दिरों में अभी पूजा होती है । अभी यह बाबा लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जायेंगे तो कहेंगे ओहो! यह तो हम बनते हैं । इनकी पूजा थोड़ेही करेंगे । नम्बरवन बनते हैं तो फिर सेकण्ड थर्ड की पूजा क्यों करें । हम तो सूर्यवशी बनते हैं । मनुष्यों को थोड़ेही पता है । वह तो सबको भगवान् कहते रहते हैं । अंधकार कितना है । तुम कितना अच्छी रीति समझाते हो । टाइम लगता है । जो कल्प पहले लगा था, जल्दी कुछ भी कर नहीं सकते । हीरे जैसा जन्म तुम्हारा यह अभी का है । देवताओं का भी हीरे जैसा जन्म नहीं कहेंगे । वह कोई ईश्वरीय परिवार में थोड़ेही हैं । यह है तुम्हारा ईश्वरीय परिवार । वह है दैवी परिवार । कितनी नई-नई बातें हैं । गीता में तो आटे में नमक मिसल है । कितनी भूल कर दी है-कृष्ण का नाम डालकर । बोलो, तुम देवताओं को तो देवता कहते हो फिर कृष्ण को भगवान् क्यों कहते हो । विष्णु कौन है? यह भी तुम समझते हो । मनुष्य तो बिगर ज्ञान के ऐसे ही पूजा करते रहते हैं । प्राचीन भी देवी-देवता हैं जो स्वर्ग में होकर गये हैं । सता, रजो, तमो में सबको आना है । इस समय सब तमोप्रधान हैं । बच्चों को प्याइंटस तो बहुत समझाते हैं । बैज पर भी तुम अच्छा समझा सकते हो । बाप और पढ़ाने वाले टीचर को याद करना पड़े । परन्तु माया की भी कितनी कशमकशा चलती है । बहुत अच्छी- अच्छी प्याइंटस निकलती रहती हैं । अगर सुनेंगे नहीं तो सुना कैसे सकेंगे । अक्सर करके बाहर में बड़े महारथी इधर-उधर जाते हैं तो मुरली मिस कर देते हैं, फिर पढ़ते नहीं । पेट भरा हुआ है । बाप कहते हैं कितनी गुह्य-गुह्य बातें तुमको सुनाता हूँ, जो सुनकर धारण करना है । धारणा नहीं होगी तो कच्चे रह जायेंगे । बहुत बच्चे भी विचार सागर मंथन कर अच्छी- अच्छी प्याइंटस सुनाते हैं । बाबा देखते हैं, सुनते हैं जैसी-जैसी अवस्था ऐसी-ऐसी प्याइंटस निकाल सकते हैं । जो कभी इसने नहीं सुनाई है वह सर्विसएबुल बच्चे निकालते हैं । सर्विस पर ही लगे रहते हैं । मैगजीन में भी अच्छी प्याइंटस डालते हैं । 

तो तुम बच्चे विश्व का मालिक बनते हो । बाप कितना ऊंच बनाते हैं, गीत में भी है ना सारे विश्व की बागडोर तुम्हारे हाथ में होगी । कोई छीन न सके । यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक थे ना । उन्हों को पढ़ाने वाला जरूर बाप ही होगा । यह भी तुम समझा सकते हो । उन्होंने राज्य पद पाया कैसे? मन्दिर के पुजारी को पता नहीं । तुमको तो अथाह खुशी होनी चाहिए । यह भी तुम समझा सकते हो ईश्वर सर्वव्यापी नहीं । इस समय तो 5 भूत सर्वव्यापी हैं । एक-एक में यह विकार हैं । माया के 5 भूत हैं । माया सर्वव्यापी है । तुम फिर ईश्वर सर्वव्यापी कह देते हो । यह तो भूल है ना । ईश्वर सर्वव्यापी हो कैसे सकता । वह तो बेहद का वर्सा देते हैं । कांटों को फूल बनाते हैं । समझाने की प्रैक्टिस भी बच्चों को करनी चाहिए । अच्छा! 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. जब कोई अशान्ति फैलाते हैं या तंग करते हैं तो तुम्हें शान्त रहना है । अगर समझानी मिलते हुए भी कोई अपना सुधार नहीं कर सकते तो कहेंगे इनकी तकदीर क्योंकि राजधानी स्थापन हो रही है । 

2. विचार सागर मंथन कर ज्ञान की नई-नई प्याइंटस निकाल सर्विस करनी है । बाप मुरली में रोज जो गुह्य बातें सुनाते हैं, वह कभी मिस नहीं करनी है ।

 

वरदान:-

तीव्र पुरुषार्थ द्वारा सभी बंधनों को क्रास कर मनोरंजन का अनुभव करने वाले डबल लाइट भव !   

कई बच्चे कहते हैं वैसे तो मैं ठीक हूँ लेकिन यह कारण है ना - संस्कारों का, व्यक्तियों का, वायुमण्डल का बंधन है.. परन्तु कारण कैसा भी हो, क्या भी हो तीव पुरुषार्थी सभी बातों को ऐसे क्रॉस करते हैं जैसे कुछ है ही नहीं । वह सदा मनोरंजन का अनुभव करते हैं । ऐसी स्थिति को कहा जाता है उड़ती कला और उड़ती कला की निशानी है डबल लाइट । उन्हें किसी भी प्रकार का बोझ हलचल में ला नहीं सकता ।

 

स्लोगन:- 

हर गुण वा ज्ञान की बात को अपना निजी संस्कार बनाओ ।     

 

ओम् शान्ति |