10-12-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - माया बड़ी जबरदस्त है,
इससे खबरदार रहना,
कभी यह ख्याल न आये कि हम ब्रह्मा को नहीं मानते,
हमारा तो डायरेक्ट शिवबाबा से कनेक्शन है |” 
प्रश्न:-
किन
बच्चों पर सभी का प्यार स्वतः जाता है?
उत्तर:-
जो
पहले हर बात को स्वयं प्रैक्टिकल में लाते फिर दूसरों को कहते
हैं - उन पर सबका प्यार स्वत: जाता है । ज्ञान को स्वयं में
धारण कर फिर बहुतों की सेवा करनी है,
तब
सबका प्यार मिलेगा । अगर खुद नहीं करते सिर्फ दूसरों को कहते
तो उन्हें कौन मानेगा?
वह तो
जैसे पण्डित हो जाते ।
ओम्
शान्ति |
बच्चों से बाप पूछते हैं,
आत्माओं से परमात्मा पूछते हैं-यह तो जानते हो कि हम परमपिता
परमात्मा के सामने बैठे हैं । बाबा को अपना रथ नहीं है,
यह
तो निश्चय है ना?
इस
भ्रकुटी के बीच में बाप का निवास स्थान है । बाप ने खुद कहा
है-मैं इनकी भ्रकुटी के बीच में बैठता हूँ । इनका शरीर लोन पर
लेता हूँ । आत्मा भ्रकुटी के बीच में बैठती है तो बाप भी यहाँ
ही आकर बैठते हैं । ब्रह्मा भी है तो शिवबाबा भी है । अगर यह
ब्रह्मा नहीं होता तो शिवबाबा भी नहीं होता । अगर कोई कहे कि
हम तो शिवबाबा को ही याद करते हैं,
ब्रह्मा को नहीं,
परन्तु शिवबाबा बोलेंगे कैसे?
ऊपर
में तो सदैव शिवबाबा को याद करते आये । अभी तुम बच्चों को पता
है हम बाप के पास यहाँ बैठे हैं । ऐसे तो नहीं समझेंगे कि
शिवबाबा ऊपर में हैं । जैसे भक्तिमार्ग में कहते थे शिवबाबा
ऊपर में है,
उनकी
प्रतिमा यहाँ पूजी जाती हैं । यह बातें बहुत समझने की हैं ।
जानते हो बाप ज्ञान का सागर,
नॉलेजफुल है तो कहाँ से नॉलेज सुनाते हैं?
ब्रह्मा के तन से सुनाते हैं । कई कहते हैं हम ब्रह्मा को नहीं
मानते,
परन्तु शिवबाबा कहते हैं मैं इस मुख द्वारा ही तुम्हें कहता
हूँ,
मुझे
याद करो । यह समझ की बात है ना । ब्रह्मा तो खुद कहते
हैं-शिवबाबा को याद करो । यह कहाँ कहते मुझे याद करो?
इनके
द्वारा शिवबाबा कहते हैं मुझे याद करो । यह मन्त्र मैं इनके
मुख से देता हूँ । ब्रह्मा नहीं होता तो मैं मन्त्र कैसे देता?
ब्रह्मा नहीं होता तो तुम शिवबाबा से कैसे मिलते?
कैसे
मेरे पास बैठते?
अच्छे- अच्छे महारथियों को भी ऐसे-ऐसे ख्यालात आ जाते हैं जो
माया मेरे से मुख मोड़ देती है । कहते हैं हम ब्रह्मा को नहीं
मानते तो उनकी क्या गति होगी?
माया
कितनी बड़ी जबरदस्त है जो एकदम मुँह ही फिरा देती है । अभी
तुम्हारा मुँह शिवबाबा ने सामने किया है । तुम सम्मुख बैठे हो
। फिर जो ऐसे समझते हैं ब्रह्मा तो कुछ नहीं,
तो
उनकी क्या गति होगी?
दुर्गति को पा लेते हैं । मनुष्य तो पुकारते हैं- ओ गॉड फादर!
फिर गॉड फादर सुनता है क्या?
कहते
हैं- ओ लिबरेटर आओ । क्या वहाँ से ही लिबरेट करेंगे?
कल्प-कल्प के पुरूषोत्तम संगमयुग पर ही बाप आते हैं । जिसमें
आते हैं उनको ही उड़ा दें तो क्या कहेंगे? माया में इतना बल है
जो नम्बरवन वर्थ नाट ए पेनी बना देती है । ऐसे-ऐसे भी कोई-कोई
सेंटर्स पर हैं,
तब
तो बाप कहते हैं खबरदार रहना । भल बाबा के सुनाये हुए ज्ञान को
दूसरों को सुनाते भी रहते हैं परन्तु जैसे पण्डित मिसल । जैसे
बाबा पण्डित की कहानी सुनाते हैं. इस समय तुम बाप की याद से
विषय सागर को पार कर क्षीरसागर में जाते हो ना! भक्ति मार्ग
में ढेर कथायें बना दी हैं । पण्डित औरों को कहता था राम नाम
कहने से पार हो जाएंगे,
लेकिन खुद बिल्कुल चट खाते में था । खुद विकारों में जाते रहना
और दूसरों को कहना निर्विकारी बनो । उनका क्या असर होगा?
यहाँ
भी कहाँ-कहाँ सुनाने वालों से सुनने वाले तीखे चले जाते हैं ।
जो बहुतों की सेवा करते हैं वह जरूर सबको प्यारे लगते हैं ।
पण्डित झूठा निकल पड़ा तो उसे कौन प्यार करेगा?
फिर
प्यार उन पर चला जायेगा जो प्रैक्टिकल में याद करते हैं ।
अच्छे- अच्छे महारथियों को भी माया हप कर जाती है ।
बाबा
समझाते हैं- अभी तो कर्मातीत अवस्था नहीं बनी है,
जब
तक लड़ाई की तैयारी न हो । एक तरफ लड़ाई की तैयारी होगी,
दूसरे तरफ कर्मातीत अवस्था होगी । पूरा कनेक्शन है फिर लड़ाई
पूरी हो जाती है,
ट्रासफर हो जाएंगे । पहले रूद्र माला बनती है । यह बातें और
कोई नहीं जानते । तुम समझते हो इस दुनिया को बदलना है । वह
समझते हैं दुनिया के अजुन 40
हजार वर्ष पड़े हैं । तुम समझते हो विनाश तो सामने खड़ा है । तुम
हो मैनारिटी,
वह
हैं मैजारिटी । तो तुम्हारा कौन मानेगा?
जब
तुम्हारी वृद्धि हो जायेगी फिर तुम्हारे योगबल से बहुत खींचकर
आएंगे,
जितना तुम्हारे से कट निकलती जायेगी,
उतना
बल भरता जायेगा । ऐसे नहीं कि बाबा जानी-जाननहार है । नहीं,
सभी
की अवस्थाओं को जानते हैं । बाप बच्चों की अवस्था को नहीं
जानेंगे?
सब
कुछ मालूम रहता है । अभी तो कर्मातीत अवस्था हो न सके । कड़ी-
कड़ी भूले होना भी सम्भव है,
महारथियों से भी होती हैं । बातचीत,
चाल-चलन आदि सभी प्रसिद्ध हो जाती हैं । अभी तो दैवी चलन बनानी
है । देवता,
सर्वगुण सम्पन्न हैं ना । अभी तुमको ऐसा बनना है । परन्तु माया
किसको भी नहीं छोड़ती । छुईमुई बना देती है । 5 सीढ़ी हैं ना ।
देह- अभिमान आने से ऊपर से एकदम गिरते हैं । गिरा और मरा ।
आजकल अपने को मारने लिए कैसे-कैसे उपाय करते हैं! 20
मंजिल से गिरकर एकदम खत्म हो जाते हैं । ऐसे भी न हो कि
हॉस्पिटल में पड़े रहें,
दु:ख
भोगें । फिर कोई अपने को आग लगा देते हैं,
किसने बचा लिया तो कितना दु:ख भोगते हैं । जल जायें तो आत्मा
भाग जाए इसलिए जीवघात करते हैं । समझते हैं जीवघात करने से
दुःख से छूट जायेंगे । जोश आता है तो बस । कई तो हॉस्पिटल में
कितना दु:ख भोगते हैं । डॉक्टर समझते हैं कि यह दु:ख से छूट
नहीं सकता,
इनसे
तो अच्छा गोली दे दें तो यह खत्म हो जाए । परन्तु वह समझते हैं
ऐसे गोली देना महापाप है । आत्मा खुद कहती है इस पीड़ा भोगने से
अच्छा है शरीर छोड़ दें । अभी शरीर कौन छुड़ावे?
यह
हैं अपार दुखों की दुनिया । वहाँ हैं अपार सुख ।
तुम
बच्चे समझते हो-हम अभी रिटर्न होते हैं,
दुःखधाम से सुखधाम जाते हैं तो उनको याद करना है । बाप भी
संगमयुग पर आते हैं जबकि दुनिया को बदलना होता है । बाप कहते
हैं मैं आया हूँ तुम बच्चों को सर्व दुःखों से छुड़ाकर नई पावन
दुनिया में ले जाने । पावन दुनिया में थोड़े रहते हैं । यहाँ तो
बहुत हैं,
पतित
बने हैं इसलिए बुलाते हैं हे पतित-पावन..... यह थोड़ेही समझते
हैं कि हम महाकाल को बुलाते हैं कि हमें इस छी-छी दुनिया से घर
ले चलो । जरूर बाबा आयेगा,
सब
मरेंगे तब तो पीस होगी ना । शान्ति-शान्ति करते रहते हैं ।
शान्ति तो शान्तिधाम में होगी । परन्तु इस दुनिया में शान्ति
कैसे हो?
जब
तक कि इतने ढेर मनुष्य हैं । सतयुग में तो सुख-शान्ति थी । अभी
तो कलियुग में अनेक धर्म हैं । वह जब खत्म हो,
एक
धर्म की स्थापना हो,
तब
तो सुख-शान्ति हो । हाहाकार के बाद फिर जयजयकार होती है । आगे
चल देखना मौत का बाजार कितना गर्म होता है! कैसे मरते हैं!
बॉम्बस से भी आग लगती है । आगे चल देखेंगे तो बहुत कहेंगे कि
बरोबर विनाश तो होगा ही ।
तुम
बच्चे जानते हो कि यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है?
विनाश तो होना ही है । एक धर्म की स्थापना बाप कराते हैं,
राजयोग भी सिखलाते हैं । बाकी सभी अनेक धर्म खलास हो जाएंगे ।
गीता में कुछ दिखाया नहीं है । फिर गीता पढ़ने की रिजल्ट क्या?
दिखाते हैं प्रलय हो गई । भल जलमई होती है परन्तु सारी दुनिया
जलमई नहीं होती । भारत तो अविनाशी पवित्र खण्ड है । उसमें भी
आबू सबसे पवित्र तीर्थ स्थान हैं,
जहाँ
बाप आकर सर्व की सद्गति करते हैं । देलवाड़ा मन्दिर कैसा अच्छा
यादगार है । कितना अर्थ सहित है । परन्तु जिन्होंने बनवाया है,
वह
यह नहीं जानते । फिर भी अच्छे समझदार तो थे ना । द्वापर में
जरूर अच्छे समझदार होंगे । कलियुग में तो हैं सभी तमोप्रधान ।
सभी मन्दिरों से यह ऊंच है,
जहाँ
तुम बैठे हो । तुम जानते हो हम हैं चैतन्य,
वह
हमारा ही जड़ यादगार है । बाकी कुछ समय यह मन्दिर आदि और भी
बनते रहेंगे । फिर तो टूटने का समय आयेगा । सब मन्दिर आदि
टूट-फूट जायेंगे । होलसेल मौत होगा । महाभारी महाभारत लड़ाई गाई
हुई है ना,
जिसमें सब खलास हो जाते हैं । यह भी तुम समझते हो-बाप संगम पर
ही आते हैं । बाप को रथ तो चाहिए ना । आत्मा जब शरीर में आती
है तब ही चुरपुर होती है । आत्मा शरीर से निकलती है तो शरीर जड़
हो जाता है । तो बाप समझाते हैं अभी तुम घर जाते हो । तुम्हें
लक्ष्मी-नारायण जैसा बनना है । तो ऐसे गुण भी चाहिए ना । तुम
बच्चे इस खेल को भी जानते हो । यह खेल कितना वन्डरफुल बना हुआ
है । इस खेल का राज बाप बैठ समझाते हैं । बाप नॉलेजफुल,
बीजरूप है ना । बाप ही आकर सारे वृक्ष की नॉलेज देते हैं-इसमें
क्या-क्या होता है,
तुमने इसमें कितना पार्ट बजाया?
आधाकल्प है दैवी राज्य,
आधा
कल्प है आसुरी राज्य । जो अच्छे- अच्छे बच्चे हैं उनकी बुद्धि
में सारी नॉलेज रहती है । बाप आप समान टीचर बनाते हैं । टीचर
भी नम्बरवार तो होते हैं । कई तो टीचर होकर फिर बिगड़ पड़ते हैं
। बहुतों को सिखलाकर खुद खत्म हो जाते हैं । छोटे-छोटे बच्चों
में भिन्न-भिन्न संस्कार होते हैं । बाप समझाते हैं यहाँ भी जो
ज्ञान ठीक रीति नहीं उठाते हैं,
चलन
नहीं सुधारते हैं वो बहुतों को दु:ख देने के निमित्त बन जाते
हैं । यह भी शास्त्रों में दिखाया है- असुर छिपकर बैठते थे फिर
बाहर जाकर ट्रेटर बन कितना तंग करते थे । यह तो सभी होता ही
रहता है । ऊंच ते ऊँच बाप जो स्वर्ग की स्थापना करते हैं तो
कितने विघ्न रूप बन पड़ते हैं ।
बाप
समझाते हैं तुम बच्चे सुख-शान्ति के टॉवर हो । तुम बहुत रॉयल
हो । तुमसे रॉयल इस समय कोई होता नहीं । बेहद के बाप के बच्चे
हो तो कितना मीठा होकर चलना चाहिए । किसको दु:ख नहीं देना है ।
नहीं तो वह अन्त में याद आयेगा । फिर सजायें खानी होंगी । बाप
कहते हैं अभी तो घर चलना है । सूक्ष्मवतन में बच्चों को
ब्रह्मा का साक्षात्कार होता है इसलिए तुम भी ऐसे
सूक्ष्मवतनवासी बनो । मूवी की प्रेक्टिस करनी है बहुत कम बोलना
है,
मीठा
बोलना है । ऐसा पुरुषार्थ करते- करते तुम शान्ति के टॉवर बन
जायेंगे । तुमका सिखलाने वाला बाप है । फिर तुम्हें औरों को
सिखलाना है । भक्ति मार्ग टॉकी मार्ग है । अभी तुमको बनना है
साइलेन्स । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
बहुत
रॉयल्टी से मीठा होकर चलना है । शान्ति और सुख का टॉवर बनने के
लिए बहुत कम और मीठा बोलना हैं 1 मूवी की प्रैक्टिस करनी हैं ।
टॉकी में नहीं आना है ।
2.
स्वयं
की दैवी चलन बनानी है । छुईमुई नहीं बनना है । लड़ाई के पहले
कर्मातीत अवस्था तक पहुँचना है । निर्विकारी बन निर्विकारी
बनाने की सेवा करनी है ।
वरदान:-
नष्टोमोहा बन दुःख अशान्ति के नाम-निशान को समाप्त करने वाले
स्मृति स्वरूप
भव ! 
जो
सदा एक की स्मृति में रहते हैं,
उनकी स्थिति एकरस हो जाती है । एकरस स्थिति
का अर्थ है एक द्वारा सर्व सम्बन्ध,
सर्व
प्राप्तियों के रस का अनुभव करना । जो बाप को सर्व सम्बन्ध से
अपना बनाकर स्मृति स्वरूप रहते हैं वह सहज ही नष्टोमाहा बन
जाते हैं । जो नष्टोमोहा हैं उन्हें कभी कमाने में,
धन
सम्भालने में,
किसी
के बीमार होने में.... दुःख की लहर नहीं आ सकती । नष्टोमोहा
अर्थात् दुख अशान्ति का नाम निशान न हो । सदा बेफ़िक्र ।
स्लोगन:-
क्षमाशील
वह हैं जो रहमदिल बन सर्व को दुआयें देते रहें । 
ओम्
शान्ति |