19-11-13 प्रातःमुरली
ओम् शान्ति “बापदादा”
मधुबन
“मीठे बच्चे – ज्ञान है
मक्खन, भक्ति है छांछ, बाप तुम्हें ज्ञान रूपी मक्खन देकर
विश्व का मालिक बना देते हैं, इसलिए कृष्ण के मुख में मक्खन
दिखाते हैं”
प्रश्न:-
निश्चयबुद्धि की परख क्या है? निश्चय के आधार पर क्या प्राप्ति
होती है?
उत्तर:-
1. निश्चयबुद्धि बच्चे शमा पर फ़िदा होने वाले सच्चे परवाने
होंगे, फेरी लगाने वाले नहीं | जो शमा पर फ़िदा हो जाते हैं वही
राजाई में आते हैं, फेरी लगाने वाले प्रजा में चले जाते | 2.
धरत परिये धर्म न छोड़िये – यह प्रतिज्ञा निश्चयबुद्धि बच्चों
की है | वे सच्चे प्रीत बुद्धि बन देह सहित देह के सब धर्मों
को भूल बाप की याद में रहते हैं |
गीत:-
छोड़ भी दे आकाश सिंहासन......

ओम्
शान्ति
|
भगवानुवाच | भगवान् कहा जाता है निराकार परमपिता को |
भगवानुवाच किसने कहा? उस निराकार परमपिता परमात्मा ने |
निराकार बाप निराकार आत्माओं को बैठ समझाते हैं | निराकार
आत्मा इस शरीर रूपी कर्मेन्द्रियों से सुनती है | आत्मा को न
मेल, न फ़ीमेल कहा जाता है | उनको आत्मा ही कहा जाता है | आत्मा
स्वयं इन आरगन्स द्वारा कहती है – मैं एक शरीर छोड़ दूसरा लेती
हूँ | जो भी मनुष्य मात्र हैं वह सब ब्रदर्स हैं | जब निराकार
परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं तो आपस में सब भाई-भाई हैं, जब
प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान हैं भाई-बहन हैं | यह हमेशा सबको
समझाते रहो | भगवान् रक्षक है, भक्तों को भक्ति का फल देने
वाला है |
बाप समझाते
हैं सर्व का सद्गति दाता एक मैं हूँ | सर्व का शिक्षक बन
श्रीमत देता हूँ और फिर सर्व का सतगुरु भी हूँ | उनको कोई बाप,
टीचर, गुरु नहीं | वही बाप प्राचीन भारत का राजयोग सिखलाने
वाला है, कृष्ण नहीं | कृष्ण को बाप नहीं कह सकते | उनको
दैवीगुणधारी स्वर्ग का प्रिन्स कहा जाता है | पतित-पावन
सद्गति दाता एक को कहा जाता है | अभी सब दुःखी, पाप आत्मा,
भ्रष्टाचारी हैं | भारत ही सतयुग में दैवी श्रेष्ठाचारी था |
फिर वह भ्रष्टाचारी आसुरी राज्य होता है | सब कहते हैं
पतित-पावन आओ, आकर रामराज्य स्थापन करो | तो अब रावण राज्य है
| रावण को जलाते भी हैं लेकिन रावण को कोई भी विद्वान्,
आचार्य, पण्डित नहीं जानते | सतयुग से त्रेता तक रामराज्य,
द्वापर से कलियुग तक रावणराज्य | ब्रह्मा का दिन सो
ब्रह्माकुमार-कुमारियों का दिन | ब्रह्मा की रात सो बी.के. की
रात | अभी रात पूरी हो दिन आना है | गाया हुआ है विनाश काले
विपरीत बुद्धि | तीन सेनायें भी हैं | परमपिता को कहा जाता है
बिलवेड मोस्ट गॉड फादर, ओसन ऑफ़ नॉलेज | तो ज़रूर नॉलेज देते
होंगे ना | सृष्टि का चैतन्य बीजरूप है | सुप्रीम सोल है
अर्थात् ऊँच ते ऊँच भगवान् है | ऐसे नहीं कि सर्वव्यापी है |
सर्वव्यापी कहना यह तो बाप को डिफेम करना है | बाप कहते हैं
ग्लानि करते-करते धर्म ग्लानि हो गई है, भारत कंगाल,
भ्रष्टाचारी बन गया है | ऐसे समय पर ही मुझे आना पड़ता है |
भारत ही मेरा बर्थप्लेस है | सोमनाथ का मन्दिर, शिव का मन्दिर
भी यहाँ है | मैं अपने बर्थ प्लेस को ही स्वर्ग बनाता हूँ, फिर
रावण नर्क बनाता है अर्थात् रावण की मत पर चल नर्कवासी, आसुरी
सम्प्रदाय बन पड़ते हैं | फिर उन्हों को बदलकर मैं दैवी
सम्प्रदाय, श्रेष्ठाचारी बनाता हूँ | यह विषय सागर है | वह है
क्षीर सागर | वहाँ घी के नदियाँ बहती हैं | सतयुग-त्रेता में
भारत सदा सुखी सालवेन्ट था, हीरे जवाहरों के महल थे | अभी तो
भारत 100 परसेन्ट इनसालवेन्ट है | मैं ही आकर 100 परसेन्ट
सालवेन्ट, श्रेष्ठाचारी बनाता हूँ | अब तो ऐसे भ्रष्टाचारी बन
गये हैं जो अपने दैवी धर्म को भूल गये हैं |
बाप बैठ
समझाते हैं कि भक्ति मार्ग है छांछ, ज्ञान मार्ग है मक्खन |
कृष्ण के मुख में मक्खन दिखाते हैं यानि विश्व का राज्य था,
लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक थे | बाप ही आकर बेहद का वर्सा
देते हैं अर्थात् विश्व का मालिक बनाते हैं | कहते हैं मैं
विश्व का मालिक नहीं बनता हूँ | अगर मालिक बनूँ तो फिर माया से
हार भी खानी पड़े | माया से हार तुम खाते हो | फिर जीत भी
तुमको पानी है | यह 5 विकारों में फँसे हुए हैं | अभी मैं
तुमको मन्दिर में रहने लायक बनाता हूँ | सतयुग बड़ा मन्दिर है,
उसको शिवालय कहा जाता है, शिव का स्थापन किया हुआ | कलियुग को
वेश्यालय कहा जाता है, सब विकारी हैं | अब बाप कहते हैं देह के
धर्म छोड़ अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो | तुम बच्चों
की अब बाप से प्रीत है | तुम और कोई को याद नहीं करते हो | तुम
हो विनाश काले प्रीत बुद्धि | तुम जानते हो कि श्री श्री 108
परमपिता परमात्मा को ही कहा जाता है | 108 की माला फेरते हैं |
ऊपर में शिवबाबा फिर मात-पिता ब्रह्मा-सरस्वती, फिर उनके बच्चे
जो भारत को पावन बनाते हैं | रुद्राक्ष की माला गाई हुई है,
उसको रूद्र यज्ञ भी कहा जाता है | कितना बड़ा राजस्व अश्वमेध
अविनाशी ज्ञान यज्ञ है | कितने वर्षों से चला आता है | जो भी
अनेक धर्म आदि हैं, सब इस यज्ञ में ख़त्म हो जाने हैं तब यह
यज्ञ पूरा होगा | यह है अविनाशी बाबा का अविनाशी यज्ञ | सब
सामग्री इसमें स्वाहा हो जानी है | पूछते हैं विनाश कब होगा?
अरे, जो स्थापना करते हैं, उनको ही फिर पालना करनी होती है |
यह है शिवबाबा का रथ | शिवबाबा इसमें रथी हैं | बाकी कोई
घोड़े-गाड़ी आदि नहीं है | वह तो भक्तिमार्ग की सामग्री बैठ बनाई
है | बाबा कहते हैं मैं इस प्रकृति का आधार लेता हूँ |
बाप समझाते
हैं – पहले अव्यभिचारी भक्ति है फिर कलियुग अन्त में पूरी
व्यभिचारी बन जाती है | फिर बाप आकर भारत को मक्खन देते हैं |
ये सब समझने की बातें हैं | नये बच्चे तो इन बातों को समझ न
सकें | परमपिता परमात्मा को ही ज्ञान का सागर कहा जाता है |
बाप कहते हैं मैं इस भक्ति मार्ग से किसी को भी नहीं मिलता हूँ
| मैं जब आता हूँ तब ही आकर भक्तों को भक्ति का फल देता हूँ |
मैं लिबरेटर बनता हूँ, दुःख से छुड़ाकर सबको शान्तिधाम, सुखधाम
ले जाता हूँ | निश्चय बुद्धि विजयन्ति, संशय बद्धि विनशन्ति |
बाप शमा है |
उस पर परवाने कोई तो एकदम फ़िदा हो जाते हैं, कोई फेरी पहनकर
चले जाते हैं | समझते कुछ नहीं हैं | फ़िदा होने वाले बच्चे
जानते हैं बरोबर बेहद के बाप से हमको बेहद का वर्सा मिलता है |
जो सिर्फ़ फेरी पहनकर चले जाते हैं वह तो फिर प्रजा में ही
नम्बरवार आ जायेंगे | जो फ़िदा होते हैं वह वर्सा लेते हैं
नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार | पुरुषार्थ से ही प्रालब्ध मिलती
है | ज्ञान का सागर एक ही बाप है | फिर ज्ञान प्रायः लोप हो
जाता है | तुम सद्गति को पा लेते हो | सतयुग-त्रेता में कोई
गुरु-गोसाई आदि नहीं होते | अभी सब उस बाप को याद करते हैं
क्योंकि वह है ओसन ऑफ़ नॉलेज | सबकी सद्गति कर देते हैं | फिर
हाहाकार बन्द हो जयजयकार हो जाती है, तुम सृष्टि के
आदि-मध्य-अन्त को जानते हो | तुम अब त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री
बने हो | तुमको रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त की सारी नॉलेज
मिल रही है | यह कोई दन्त कथा नहीं है | गीता है भगवान् की गाई
हुई परन्तु कृष्ण का नाम डाल खण्डन कर दिया है | तुम बच्चों को
अब सबका कल्याण करना है | तुम हो शिव शक्ति सेना | वन्दे
मातरम् गाया हुआ है | वन्दना पवित्र की ही की जाती है | कन्या
पवित्र है तो सब उनकी वन्दना करते हैं | ससुर घर गई और विकारी
बनी तो सबको माथा टेकती रहती है | सारा मदार पवित्रता पर है |
भारत पवित्र गृहस्थ धर्म था | अभी अपवित्र गृहस्थ धर्म है |
दुःख ही दुःख है | सतयुग में ऐसे नहीं होता | बाप बच्चों के
लिए तिरी (हथेली) पर बहिश्त ले आते हैं | गृहस्थ व्यवहार में
रहते बाप से जीवन्मुक्ति का वर्सा ले सकते हो | घरबार छोड़ने की
कोई बात नहीं | सन्यासियों का निवृत्ति मार्ग अलग है | अब बाप
से प्रतिज्ञा करते हैं – बाबा, हम पवित्र बन, पवित्र दुनिया के
मालिक ज़रूर बनेंगे | फिर धरत परिये धर्म न छोड़िये | 5 विकारों
का दान दो तो माया का ग्रहण छूटे, तब 16 कला सम्पूर्ण बनेंगे |
सतयुग में हैं 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी.......,
अब श्रीमत पर चलकर फिर से ऐसा बनना है | भगवान् है ही गरीब
निवाज़ | साहूकार इस ज्ञान को उठा नहीं सकते क्योंकि वह तो
समझते हैं हमको धन आदि बहुत है, हम तो स्वर्ग में बैठे हैं
इसलिए अबलायें, अहिल्यायें ही ज्ञान लेती हैं | भारत तो गरीब
है | उनमें भी जो गरीब साधारण हैं, उन्हों को ही बाप अपना
बनाते हैं | उन्हों की ही तक़दीर में है | सुदामा का मिसाल गाया
हुआ है ना | साहूकारों को समझने की फुर्सत नहीं | राजेन्द्र
प्रसाद (भारत के प्रथम राष्ट्रपति) के पास बच्चियाँ जाती थी,
कहती थी बेहद के बाप को जानो तो तुम हीरे तुल्य बन जायेंगे | 7
रोज़ का कोर्स करो | कहता था – हाँ, बात तो बहुत अच्छी है,
रिटायर होने के बाद कोर्स उठाऊंगा | रिटायर हुआ तो बोले, बीमार
हूँ | बड़े-बड़े आदमियों को फुर्सत नहीं है | पहले जब 7 रोज़ का
कोर्स पूरा करे तब नारायणी नशा चढ़े | ऐसे थोड़ेही रंग चढ़ेगा | 7
रोज़ के बाद पता चलता है – यह लायक है वा नहीं है? लायक होगा तो
फिर पढ़ने के लिए पुरुषार्थ में लग जायेगा | जब तक भट्टी में
पक्का रंग नहीं लगा है तब तक बाहर जाने से रंग ही उड़ जाता है,
इसलिए पहले पक्का रंग चढ़ाना है | अच्छा!
मीठे-मीठे
सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और
गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा के लिए
मुख्य सार:-
1. शिव
शक्ति बन विश्व कल्याण करना है | पवित्रता के आधार पर कौड़ी
तुल्य मनुष्यों को हीरे
तुल्य बनाना है |
2. श्रीमत
पर विकारों का दान दे सम्पूर्ण निर्विकारी 16 कला सम्पूर्ण
बनना है | शमा पर फ़िदा
होने वाला परवाना बनना है |
वरदान:-
”यथार्थ
श्रेष्ठ हैन्डलिंग द्वारा सर्व की दुआयें प्राप्त करने वाले
सर्व के स्नेही भव
