03-06-14
प्रातः मुरली ओम् शान्ति
“बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे – सबसे मूल सेवा है बाप की याद
में रहना और दूसरों को याद दिलाना, तुम किसी को भी बाप का
परिचय दे उनका कल्याण कर सकते हो”
प्रश्न:-
कौन-सी एक छोटी-सी आदत भी बहुत बड़ी अवज्ञा करा देती है? उससे
बचने की युक्ति क्या है?
उत्तर:-
अगर
किसी में कुछ छिपाने की वा चोरी करने की आदत है तो भी बहुत बड़ी
अवज्ञा हो जाती है | कहा जाता है – कख का चोर सो लख का चोर |
लोभ के वश भूख लगी तो छिपाकर बिना पूछे खा लेना, चोरी कर लेना
– यह बहुत खराब आदत है | इस आदत से बचने के लिए ब्रह्मा बाप
समान ट्रस्टी बनो | जो भी ऐसी आदते हैं, वह बाप को सच-सच सुना
दो |
ओम्
शान्ति |
रूहानी बाप बैठ
रूहानी बच्चों को समझाते हैं | बच्चे जानते हैं हम बेहद के बाप
के सामने बैठे हैं | हम ईश्वरीय परिवार के हैं | ईश्वर निराकार
है | यह भी जानते हैं, तुम आत्म-अभिमानी होकर बैठे हो | अब
इसमें कोई साइन्स घमण्ड वा हठयोग आदि करने की बात नहीं है | यह
है बुद्धि का काम | इस शरीर का कुछ भी काम नहीं | हठयोग में
शरीर का काम रहता है | यहाँ बच्चे समझ बाप के सामने हम बैठे
हैं | जानते हैं कि बाप हमको पढ़ा रहे हैं | एक तो कहते हैं
अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो मीठे बच्चों तुम्हारे सब
पाप कट जायेंगे | और चक्र फिराओ, औरों की सर्विस कर आप-समान
बनाओ | बाप एक-एक को बैठ देखते हैं कि यह क्या सर्विस कर रहे
हैं | स्थूल सेवा करते हैं, सूक्ष्म सेवा करते हैं या मूल सेवा
करते हैं | एक-एक को बाप देखते हैं | यह सबको बाप का परिचय
देते हैं? मूल बात है यह | हर एक बच्चे को बाप का परिचय देते
हैं, औरों को समझाते हैं कि बाप कहते हैं मुझे याद करो तो
तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप मिट जायें | कहाँ तक इस सर्विस
में रहते हैं? अपने से भेंट करते हैं, सबसे जास्ती सर्विस कौन
करते हैं? क्यों नहीं मैं इनसे भी जास्ती याद की यात्रा में
दौड़ी पहन सकते हैं वा नहीं? हर एक को बाबा देखता है | बाबा हर
एक से समाचार पूछते हैं – क्या-क्या सेवा करते हैं? कोई को बाप
का परिचय दे उनका कल्याण करते हैं? टाइम वेस्ट तो नहीं करते
हैं? मूल बात है ही यह, इस समय सब आरफन हैं | बेहद के बाप को
कोई भी नहीं जानते | बाप से वर्सा तो ज़रूर मिलता है | तुम
बच्चों को मुक्ति-जीवनमुक्ति धाम दोनों बुद्धि में हैं |
बच्चों को यह भी समझना है कि हम अब पढ़ रहे हैं | फिर स्वर्ग
में आकर जीवन-मुक्ति का राज्य-भाग्य लेंगे | बाकी ढेर आत्मायें
जो भी दूसरे धर्म वाली हैं, वह तो कोई भी नहीं रहेंगी | सिर्फ़
हम ही भारत में रहेंगे | बाप बच्चों को बैठ सिखलाते हैं –
बुद्धि में क्या-क्या रहना चाहिए! यहाँ तुम संगमयुग पर बैठे हो
तो खान-पान भी शुद्ध पवित्र ज़रूर चाहिए | जानते हो हम भविष्य
में सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी
बनते हैं | यह महिमा शरीरधारी आत्माओं की है, सिर्फ़ आत्मा की
महिमा तो नहीं है | हर एक आत्मा का पार्ट अपना-अपना है, जो
यहाँ आकर बजाती है | तुम्हारी बुद्धि में एम-ऑब्जेक्ट है, हमको
इन जैसा बनना है | बाप का फ़रमान है – बच्चे पवित्र बनो |
पूछेंगे कैसे पवित्र रहें? क्योंकि माया के तूफ़ान बहुत आते है
| बुद्धि कहाँ-कहाँ चली जाती है | उनको कैसे छोड़ें? बच्चों की
बुद्धि तो चलती है ना | और कोई की बुद्धि नहीं चलती | बाप,
टीचर, गुरु भी तुमको मिला है | यह भी तुम जानते हो – ऊँच ते
ऊँच भगवान् है | वह बाप, टीचर, ज्ञान का सागर भी है | बाप आये
हैं हम आत्माओं को साथ ले जाने लिए | सतयुग में बहुत थोड़े
देवी-देवता रहते हैं | यह बातें तुम्हारे सिवाए और कोई की
बुद्धि में नहीं होगी | तुम्हारी बुद्धि में है कि विनाश के
बाद हम ही थोड़े होंगे | और इतने सब धर्म, खण्ड आदि नहीं होंगे
| हम ही विश्व के मालिक होंगे | हमारा ही एक राज्य होगा | बहुत
सुख का राज्य होगा | बाकी उसमें वैराइटी पद वाले होंगे | हमारा
क्या पद होगा? हम कितनी रूहानी सेवा करते हैं? बाप भी पूछते
हैं | ऐसे नहीं, बाबा अन्तर्यामी है | बच्चे हर एक ख़ुद समझ
सकते हैं – हम क्या कर रहे हैं? ज़रूर समझते होंगे पहले नम्बर
में सेवा तो यह दादा ही कर रहे हैं श्रीमत पर | घड़ी-घड़ी बाप
समझाते हैं – मीठे-मीठे बच्चे, अपने को आत्मा समझो, देह-अभिमान
छोड़ो | आत्मा कितना समय समझते हैं? यह पक्का करना है – हम
आत्मा हैं | बाप को याद करना है | इनसे ही बेड़ा पार होता है |
याद करते-करते पुरानी दुनिया से नई दुनिया में चले जायेंगे |
अभी बाकी थोड़ा समय है | फिर हम अपने सुखधाम में चले जायेंगे |
मुख्य रूहानी सेवा है – सबको बाप का परिचय देना, यह है सबसे
सहज बात | स्थूल सर्विस करने में, भोजन बनाने में, भोजन खाने
में भी मेहनत लगती है | इसमें तो मेहनत की कोई बात नहीं |
सिर्फ़ अपने को आत्मा समझना है | आत्मा अविनाशी, शरीर विनाशी है
| आत्मा ही सारा पार्ट बजाती है | यह शिक्षा बाप एक ही बार आकर
देते हैं जबकि विनाश का समय होता है | नई दुनिया है ही
देवी-देवताओं की | उसमें ज़रूर जाना है | बाकी सारी दुनिया को
शान्तिधाम जाना है, यह पुरानी दुनिया रहेगी नहीं | तुम नई
दुनिया में होंगे तो पुरानी दुनिया की याद होगी? कुछ भी नहीं |
तुम स्वर्ग में ही होंगे, राज्य करते होंगे | यह बुद्धि में
रहने से ख़ुशी होती है | स्वर्ग को अनेक नाम दिये जाते हैं |
नर्क को भी अनेक नाम दिये हुए हैं – पाप आत्माओं की दुनिया,
हेल, दुःखधाम | अभी तुम बच्चे जानते हो बेहद का बाप एक ही है |
हम उनके सिकीलधे बच्चे हैं, तो ऐसे बाप से लव भी बहुत होना
चाहिए | बाप का भी बहुत लव है बच्चों में, जो बहुत सेवा करते
हैं, काँटों को फूल बनाते हैं | मनुष्य से देवता बनना है ना |
बाप ख़ुद नहीं बनते हैं, हमको बनाने आये हैं | तो अन्दर में
बहुत ख़ुशी होनी चाहिए | स्वर्ग में हम कौन-सा पद पायेंगे? हम
क्या सेवा करते हैं? घर में नौकर चाकर हैं, उनको भी पहचान देनी
चाहिए | जो ख़ुद कनेक्शन में आते हैं, उनको शिक्षा देनी चाहिए |
सबकी सेवा करनी है ना – अबलाओं की, गरीबों की, भीलनियों की |
गरीब तो बहुत हैं, वह सुधर जायेंगे, कोई पाप आदि नहीं करेंगे |
नहीं तो पाप कर्म करते रहेंगे | देखते हो झूठ, चोरी भी कितनी
है | नौकर लोग भी चोरी कर लेते हैं | नहीं तो घर में बच्चे
हैं, ताला क्यों लगायें | परन्तु आजकल के बच्चे भी चोर बन पड़ते
हैं | कुछ न कुछ छिपाकर उठा लेते हैं | किसको भूख लगती है तो
लालच के कारण खा लेते हैं | लोभ वाला ज़रूर कुछ चोरी कर खाता
होगा | यह तो शिवबाबा का भण्डारा है, इसमें तो पाई की भी चोरी
नहीं करनी चाहिए | ब्रह्मा तो ट्रस्टी है | बेहद का बाप भगवान्
तुम्हारे पास आया है | भगवान् के घर में कभी कोई चोरी करता
होगा? स्वप्न में भी नहीं | तुम जानते हो ऊँच ते ऊँच है शिव
भगवान् | उनके हम बच्चे हैं | तो हमको दैवी कर्म करने चाहिए |
तुम चोरी करने
वालों को भी जेल में जाकर ज्ञान देते हो | यहाँ क्या चोरी
करेंगे? कभी आम उठाया, कोई चीज़ उठाकर खाई – यह भी चोरी है ना |
कोई भी चीज़ बिगर पूछे उठानी नहीं चाहिए | हाथ भी नहीं लगाना
चाहिए | शिवबाबा हमारा बाप है, वह सुनते हैं, देखते हैं |
पूछते हैं बच्चों में कोई अवगुण तो नहीं है? अगर कोई अवगुण है
तो सुना दो | दान में दे दो | दान में देकर फिर कोई अवज्ञा
करेंगे तो बहुत सजायें खायेंगे | चोरी की आदत बहुत बुरी होती
है | समझो, कोई साइकिल उठाते हैं, पकड़े जाते हैं | कोई दूकान
में गये, बिस्कुट का डिब्बा छिपा लिया या कोई छोटी-छोटी चीज़ें
छिपा लेते हैं | दूकान वाले बड़ी सम्भाल रखते हैं | तो यह भी
बहुत बड़ी गवर्मेन्ट है, पाण्डव गवर्मेन्ट अपना दैवी राज्य
स्थापन कर रही है | बाप कहते हैं मैं तो राज्य नहीं करता | तुम
पाण्डव ही राज्य करते हो | उन्होंने फिर पाण्डवपति कृष्ण को कह
दिया है | पाण्डव पिता कौन है? तुम जानते हो – सामने बैठे हैं
| हर एक अन्दर में समझ सकते हैं – हम बाबा की क्या सेवा करते
है | बाबा हमको विश्व की बादशाही दे ख़ुद वानप्रस्थ में चले
जाते हैं | कितनी निष्काम सेवा करते हैं | सब सुखी और शान्त हो
जाते हैं | वह तो सिर्फ़ कहते हैं विश्व में शान्ति हो | शान्ति
की प्राइज़ देते रहते हैं | यहाँ तुम बच्चे जानते हो, हमको तो
बहुत भारी प्राइज़ मिलती है | जो अच्छी सर्विस करते हैं, उनको
बड़ी प्राइज़ मिलती है | ऊँच ते ऊँच सेवा है – बाप का परिचय
देना, यह तो कोई भी कर सकते हैं | बच्चों को यह (देवता) बनना
है तो सेवा भी करनी चाहिए ना | उनको देखो, यह भी लौकिक परिवार
वाला था ना | इनसे बाबा ने कराया | इनमें प्रवेश कर इनको भी
कहते हैं, तो तुमको भी यही कहते हैं कि यह करो | हमको कैसे
कहेंगे? हमारे में प्रवेश होकर कराते हैं | करन-करावनहार है ना
| बैठे-बैठे कहा यह छोड़ो, यह तो छी-छी दुनिया है, चलो वैकुण्ठ
| अब वैकुण्ठ का मालिक बनना है | बस, वैराग्य आ गया | सब समझते
थे – इनको क्या हुआ है | इतना अच्छा ज़बरदस्त फ़ायदे वाला
व्यापारी यह क्या करते हैं! पता थोड़ेही था कि यह क्या जाकर
करेंगे | छोड़ना कोई बड़ी बात थोड़ेही है | बस, सब कुछ त्याग दिया
| और सबको भी त्याग कराया | बच्ची को भी त्याग कराया | अब यह
रूहानी सेवा करनी है, सबको पवित्र बनाना है | सब कहते थे – हम
ज्ञान अमृत पीने जाते हैं | नाम माता का लेते थे | ओम राधे के
पास ज्ञान अमृत पीने जाते हैं | किसने यह युक्ति रची? शिवबाबा
ने इनमें प्रवेश कर कितनी अच्छी युक्ति रची | जो कोई आयेगा,
ज्ञान अमृत पियेगा | यह भी गायन है अमृत छोड़ विष काहे को खाये
| विष छोड़ ज्ञान अमृत पीकर पावन देवता बनना है | शुरू में यह
बात थी | कोई भी आता था तो उनको कहते थे पावन बनो | अमृत पीना
है तो विष को छोड़ देना है | पावन वैकुण्ठ का मालिक बनना है तो
एक को ही याद करना है | तो ज़रूर झगड़ा चलेगा ना | शुरू की
खिटपिट अभी तक चलती आई है | अबलाओं पर कितने अत्याचार होते हैं
| जितना तुम बहुत पक्के होते जायेंगे फिर समझेंगे पवित्रता तो
अच्छी है | उनके लिए ही पुकारते हैं – बाबा, आकर हमको पावन
बनाओ | पहले तुम्हारे भी कैरेक्टर क्या थे? अभी क्या बन रहे
हैं? आगे तो देवताओं के आगे जाकर कहते थे हम पापी हैं | अब ऐसे
नहीं कहेंगे क्योंकि तुम जानते हो हम अभी यह बन रहे हैं |
बच्चों को अपने
से पूछना चाहिए – हम कहाँ तक सेवा करते हैं? जैसे भण्डारी है,
तुम्हारे लिए कितनी सेवा करती है! कितना उनका पुण्य बनता है!
बहुतों की सेवा करती है, तो सबकी आशीर्वाद उन पर आती है | बहुत
महिमा लिखते हैं | भण्डारी की तो कमाल है, कितना प्रबन्ध रखती
है | यह तो हुई स्थूल सर्विस | सूक्ष्म भी करनी चाहिए | बच्चे
कहते हैं – बाबा, यह 5 भूत बड़े तीखे हैं, जो याद में रहने नहीं
देते हैं | बाबा कहते हैं बच्चे शिवबाबा को याद कर भोजन बनाओ |
एक शिवबाबा के सिवाए और कोई है नहीं | वही सहायता करते हैं |
गायन भी है ना शरण पड़ी मैं तेरे...... | सतयुग में थोड़ेही ऐसे
कहेंगे | अभी तुम शरण में आये हो | कोई को भूत लगते हैं, तो
बहुत पीड़ित करते हैं | वह अशुद्ध सोल आती है | तुम्हारे को
कितने भूत लगे हुए हैं | काम, क्रोध, लोभ, मोह.......यह भूत
तुम्हारे को बहुत पीड़ित करते हैं | वह अशुद्ध सोल तो कोई-कोई
को तंग करती है | तुमको पता है – यह 5 भूत तो 2500 वर्ष से चलते
आ रहे हैं | तुम कितने तंग हो पड़े हो | इन 5 भूतों ने कंगाल बना
दिया है | देह-अभिमान का भूत है नम्बरवन | काम का भी बड़ा भूत
है | उन्होंने तुमको कितना सताया है, यह भी बाप ने बतलाया है |
कल्प-कल्प तुमको यह भूत लगते हैं | यथा राजा-रानी तथा प्रजा,
सबको भूत लगा हुआ है | तो इसे भूतों की दुनिया कहेंगे | रावण
राज्य माना आसुरी राज्य | सतयुग-त्रेता में भूत होते नहीं | एक
भूत भी कितना तंग कर देता है | इनका किसको पता नहीं है | 5
विकारों रूपी रावण का भूत है, जिससे बाप आकर छुड़ाते हैं |
तुम्हारे में भी कोई-कोई सेन्सीबुल हैं, जिनकी बुद्धि में बैठता
है | इस जन्म में तो ऐसा कोई काम नहीं करना है | चोरी की,
देह-अभिमान आया तो रिज़ल्ट क्या होगी? पद भ्रष्ट हो जायेगा |
कुछ न कुछ उठा लेते हैं | कहते हैं कख का चोर सो लख का चोर |
यज्ञ में तो ऐसा काम कभी नहीं करना है | आदत पड़ जाती है तो फिर
कभी छूटती नहीं है | कितना माथा मारते हैं | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
स्थूल सेवा के साथ-साथ सूक्ष्म और मूल सेवा भी करनी है | सबको
बाप का परिचय देना, आत्माओं का कल्याण करना, याद की यात्रा में
रहना यह है सच्ची सेवा | इसी सेवा में बिज़ी रहना है, अपना समय
वेस्ट नहीं करना है |
2.
सेन्सीबुल बन 5 विकारों रूपी भूतों पर विजय प्राप्त करनी है |
चोरी वा झूठ बोलने की आदत निकाल देनी है | दान में दी हुई चीज़
वापस नहीं लेनी है |
वरदान:-
ज्ञान अमृत से प्यासी आत्माओं की प्यास बुझाकर तृप्त करने वाली
महान पुण्य आत्मा भव
! 
किसी
प्यासे की प्यास बुझाना यह महान पुण्य है | जैसे पानी न मिले
तो प्यास से तड़फते हैं ऐसे ज्ञान अमृत न मिलने से आत्मायें
दुःख अशान्ति में तड़फ रही हैं तो उनको ज्ञान अमृत देकर प्यास
बुझाने वाले बनो | जैसे भोजन खाने के लिए फुर्सत निकालते हो
क्योंकि आवश्यक है, ऐसे यह पुण्य का कार्य करना भी आवश्यक है
इसलिए यह चान्स लेना है, समय निकालना है – तब कहेंगे महान
पुण्य आत्मा |
स्लोगन:-
बीती को बिन्दी लगाकर हिम्मत से आगे बढ़ो तो बाप की मदद मिलती
रहेगी | 
ओम्
शान्ति |