04-01-15    प्रातः मुरली   ओम् शान्ति “अव्यक्त  बापदादा”  रिवाइज 16-01-79 मधुबन
 


तिलक, ताज और तख्तधारी बनने की युक्तियां

बापदादा सर्व बच्चों के वर्तमान और भविष्य दोनों के अन्तर को देख रहे थे । आज बापदादा बच्चों के वर्तमान को देखते हुए हर्षित भी हो रहे थे और साथ-साथ कई बच्चों के विचित्र चलन को देख रहम भी आ रहा था - बाप कितना श्रेष्ठ बनाते हैं और बच्चे अपनी ही थोड़ी सी गफलत करने के कारण वा अलबेलेपन के कारण श्रेष्ठ स्थिति से नीचे आ जाते हैं । आज बापदादा विशेष रूप से बच्चों के भिन्न-भिन्न प्रकार के हंसी के रूप देख रहे थे - ब्राह्मण जन्म होते ही बापदादा संगमयुगी विश्व सेवा की जिम्मेदारी का ताजधारी बनाता । लेकिन आज रमणीक खेल देखा - कोई-कोई तो ताज और तिलकधारी भी थे लेकिन कोई-कोई ताजधारी के बदले किए हुए पिछले वा अबके भी छोटे सो बड़े पाप वा चलते-चलते की हुई अवज्ञाओं की गठरी सिर पर थी । कोई ताजधारी तो कोई सिर पर गठरी लिए हुए थे । उसमें भी नम्बरवार छोटी बड़ी गठरी थी और कोई के सिर पर डबल लाइट के बजाए, अपने ब्राह्मण जीवन के सदा ट्रस्टी स्वरूप के बजाय गृहस्थीपन के भिन्न-भिन्न प्रकार के बोझ की टोकरी भी सिर पर थी । जिसको देख बापदादा को रहम भी आ रहा था - और क्या देखा! कई बच्चे अनेक प्रकार के सहज साधन बाप द्वारा प्राप्त होते हुए भी निरन्तर बुद्धि का कनेक्शन जुटा हुआ न होने के कारण सहज को मुश्किल बनाने के कारण, अनेक प्रकार के मुश्किल साधन अपनाने में थके हुए रूप में दिखाई दे रहे थे । सहज मार्ग के बजाए पुरूषार्थ के साधन, हठ के प्रमाण यूज कर रहे थे । और क्या देखा!

जैसे सूर्य के आगे बादल आने से सूर्य छिप जाता है ऐसे बार-बार माया के बादलों के कारण कई बच्चे ज्ञान सूर्य से किनारे हो सूर्य को पाने के लिए प्रयत्न करते रहते । कब सन्मुख कब किनारे, इसी खेल में लगे हुए हैं । साथ-साथ बच्चे नटखट होने के कारण बाप के याद की गोदी से निकल माया की धूल में देह- अभिमान की स्मृति रूपी मिट्टी में खेलते हैं । ज्ञान रत्नों से खेलने के बजाए मिट्टी में खेलते हैं । बाप बार-बार मिट्टी से किनारा कराते लेकिन नटखट संस्कारों के कारण फिर भी मैले बन जाते । कोई-कोई बच्चे अल्पकाल के सुखों के आकर्षणमय वस्तुओं की आकर्षण में आकर उन ही वस्तुओं में इतने बिजी हो जाते जो समय और अविनाशी प्राप्ति उतना समय भूल जाती है । फिर होश में आते हैं - ऐसे अनेक प्रकार के विचित्र रूप बच्चों के देखे । अब अपने आपको देखो मेरा रूप कौनसा है? बापदादा तो हर बच्चे को सदा श्रेष्ठ स्वरूप में देखना चाहते हैं । ताज को, दिलतख्त को छोड़ गठरी क्यों उठाते हो? ताज अच्छा वा टोकरी, गठरी अच्छी लगती है? तीनों के फोटो सामने रखो तो कौनसा चित्र पसन्द आयेगा? 63 जन्म यह सब वन्डरफुल खेल खेले - अब संगमयुग पर कौनसा खेल खेलना है? सबसे अच्छे ते अच्छा खेल है बाप और बच्चों के मेले का खेला । बाप द्वारा मिले हुए ज्ञान रत्नों से खेला । कहाँ रत्न और कहाँ मिट्टी । अब क्या करना है? बचपन के अलबेलेपन के व नटखट के खेल बहुत समय खेले अब तो वानप्रस्थ में जाने का समय समीप आ रहा है इसलिए अब इन सब बातों की समाप्ति का दृढ़ सकल्प करो - सदा ताज, तख्त और तिलकधारी बनो । इन तीनों का आपस में सम्बन्ध है । तिलक होगा तो ताज तख्त जरूर होगा । अपने श्रेष्ठ भाग्य, श्रेष्ठ प्राप्तियों को बार-बार सामने लाओ - जब सर्व प्राप्तियों को और प्राप्त कराने वाले को सदा सामने रखेंगे तो कभी भी माया से सामना करने में कमजोर नहीं बनेंगे । सिर्फ एक बात याद रखो - सर्व सम्बन्धों से हर कार्य में बापदादा सदा साथ हैं । साथ छोड़ने के कारण ही यह विचित्र खेल खेलने पड़ते हैं । विश्व की जिम्मेवारी उठाने वाले बाप का साथ होते भी अपने हद की जिम्मेवारी के बोझ की टोकरी क्यों उठाते हो? क्या विश्व का बोझ उठाने वाले आपका यह छोटा सा बोझ नहीं उठा सकते हैं क्या? फिर भी पुराने संस्कार के वश बार-बार बोझ भी उठाते और फिर थक कर चिल्लाते भी हैं कि अब हमको छुड़ाओ । एक तरफ पकड़ते हैं दूसरे तरफ पुकारते हैं - छोड़ो तो छूटे - यह एक सेकेण्ड की हिम्मत अनेक जन्मों के लिए अनेक प्रकार के बोझ से छुड़ा देगी । पहला-पहला वायदा बाप से क्या किया - याद है? मेरा तो एक दूसरा न कोई । जब मेरापन ही समाप्त हो गया, एक मेरा रह गया तो फिर हद की जिम्मेवारियों का मेरापन कहाँ से आया? देह का मेंरापन कहाँ से आया? कमजोरियों के संस्कारों का मेरापन कहाँ से आया? स्वयं को ज्ञानी तू आत्मा कहलाते हो - ज्ञान स्वरूप अर्थात् कहना, सोचना और करना समान हो, सदा समर्थ हो । ज्ञानी तू आत्मा का हर कर्म समर्थ बाप समान, संस्कार गुण और कर्तव्य समर्थ बाप के समान हो । तो समर्थ स्टेज पर स्थित होने वाले यह व्यर्थ के विचित्र खेल नहीं खेल सकते । सदा मिलन के खेल में बिजी रहते, बाप से मिलन मनाना और औरों को बाप समान बनाना । तो इस वर्ष क्या करेंगे? यह अभी का तो एकस्ट्रा टाइम मिला है - किसलिए? (स्वयं के प्रति मिला है) इस एकस्ट्रा समय का भी रहस्य है - पीछे आने वाले उल्हना न दें कि हमें बहुत थोड़ा समय मिला । जैसे सौदे के पीछे एकस्ट्रा रूंग (घात) दी जाती है - वैसे ड्रामा अनुसार यह समय भी सेवा के प्रति अमानत रूप में मिला हुआ है इसी अमानत को बापदादा की श्रेष्ठ मत प्रमाण यूज करो । समझा - अब क्या करना है?

हर समय और संकल्प में स्वयं को विश्व सेवा में इतना बिजी रखो जो यह सब व्यर्थ के खेल स्वत: समाप्त हो जाएं - यह रिजल्ट बापदादा देखने चाहते हैं । अच्छा -

सदा संकल्प और सेकेण्ड के भी ट्रस्टी समझने वाले, 'एक बाप मेरा और नहीं कोई मेरा' ऐसे बेहद के समर्थ संकल्प वाले, सदा विश्व कल्याण के संकल्प में बिजी रहने वाले, बाप समान समर्थ संस्कार वाले, व्यर्थ को बाप के साथ से सदा के लिए विदाई देने वाले, ऐसे ज्ञानी तू आत्मा बच्चों को बाप की बार-बार बधाई हो - साथ-साथ ऐसे तख्तनशीन बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते ।

टीचर्स का आक्यूपेशन है सदा सन्तुष्टता की खान होकर रहना और सर्व को संतुष्ट बनाना: -

टीचर्स तो हैं ही सदा सन्तुष्ट । टीचर्स अर्थात् सर्व को सन्तुष्ट बनाने की सेवा पर उपस्थित । जितना स्वयं सम्पन्न होंगे उतना औरों को भी बना सकेंगे । टीचर्स की विशेषता ही है - हर बात में सन्तुष्ट । सन्तुष्ट भी तब रह सकेंगे जब सदा बाप के गुणों और कर्तव्य में समान बनेंगे । सदा यह चेक करो कि जो बाप का गुण वही मेरा है, जो बाप का कर्तव्य वही मेरा कर्तव्य है । ऐसे चेक कर चलने वाले सदा सन्तुष्ट रहते भी हैं और सर्व को भी बनाते हैं । टीचर्स अर्थात् सन्तुष्टता की खान, सदा सम्पन्न, खान के समान अखुट हो, यही टीचर्स का आक्यूपेशन है ।

पार्टियों से मुलाकात

1. सर्व का आकर्षण बाप की तरफ आकर्षित कराने का साधन - चमकता हुआ दिव्य सितारा: - आपका दिव्य सितारा सदा चमकता दिखाई दे तो सितारे की चमक सर्व को अपनी तरफ स्वत : ही आकर्षण करेगी । कोई भी लाइट की वस्तु चलती हुई आत्माओं को अपने तरफ आकर्षित जरूर करती है । यह तो अविनाशी सितारा है, तो चमकते हुए सितारों की तरफ सर्व की आकर्षण स्वत : होगी । सितारों की तरफ आकर्षित होना अर्थात् बाप की तरफ आकर्षित होना । तो सदा अनुभव करते हो कि हमारा आत्मिक स्वरूप का सितारा चमक रहा है! सदा चमकता है वा कभी-कभी चमकता है? जब बाप द्वारा, नॉलेज द्वारा सितारा चमक गया तो अभी बुझ तो सकता नहीं लेकिन चमक की परसेंटेज कम और ज्यादा हो सकती है, उसका कारण क्या? अटेंशन की कमी । जैसे दीपक में अगर सदा घृत डालते रहें तो वह एकरस जलता रहेगा । घृत कम हुआ तो हलचल करेगा । ऐसे अटेंशन कम हो जाता है तो परसेंटेज की चमक भी कम हो जाती है इसलिए बापदादा की श्रेष्ठ मत है रोज अमृतवेले सारे दिन के लिए अटेंशन रखो । रोज अमृतवेले अपनी दिनचर्या को सेट करो । अगर कोई भी प्रोग्राम सेट नहीं होता है तो उसकी रिजल्ट क्या निकलती? सफल नहीं होता, तो यहाँ भी अगर रोज अपनी दिनचर्या सेट नहीं करेंगे तो सफलता मूर्त अनुभव नहीं कर सकेंगे । अटेंशन रहता भी है लेकिन और अण्डर लाइन करो । जहाँ अटेंशन होगा वहाँ किसी भी प्रकार का टेंशन नहीं हो सकता । जैसे रात होगी तो दिन नहीं हो सकता, टेंशन है रात, अटेंशन है दिन । तो दिन और रात दोनों इकट्ठे नहीं रह सकते । अगर किसी भी प्रकार का टेंशन है तो सिद्ध है अटेंशन नहीं है । साधारण अटेंशन और सम्पूर्ण अटेंशन में भी अन्तर है । सम्पूर्ण अटेंशन अर्थात् जो बाप के गुण व शक्तियाँ हैं वह अपने में हो । बाप के बच्चे बने तो उसका प्रुफ भी तो चाहिए ना । साधारण अटेंशन अर्थात् हम हैं ही बाप के बच्चे । अगर इतने श्रेष्ठ बाप के बच्चे और श्रेष्ठता न हो तो कौन मानेगा कि यह श्रेष्ठ बाप के बच्चे हैं । तो जो बाप में विशेषता वही बच्चों में दिखाई दे - इसको कहा जाता है तीव्र पुरुषार्थी । तीव्र पुरुषार्थी अर्थात् सोचना और करना समान । प्लैन और प्रैक्टिकल समान ।

2. आपका स्वधर्म है याद और कर्तव्य है सेवा: - सभी सदा याद और सेवा इसी में तत्पर रहते हो? जो सदा याद और सेवा में लगे हुए हैं उन्हों से माया भी सदा के लिए नमस्कार करके किनारा कर लेती है । माया भी जानती है कि यह सदा बिजी रहने वाले हैं तो डिस्टर्ब नहीं करती । खाली रहने वालों को डिस्टर्ब करती है । तो सदा बिजी रहो फिर माया आ नहीं सकती । याद से अपना भविष्य बनाते, सेवा से औरों का भी और अपना भी । तो याद ही आपका स्वधर्म है और सेवा करना ही आपका कर्तव्य है ।

3. चढ़ती कला की निशानी - सम्पूर्ण मंजिल समीप दिखाई दे: - सदा हर कर्म में चढ़ती कला का अनुभव करते हो? कदम आगे बढ़ाया अर्थात् चढ़ती कला हुई । हर कदम में चढ़ती कला होने से सम्पूर्ण स्टेज तक बहुत जल्दी पहुँच जायेंगे । चढ़ती कला वाले को सदा अपनी संपूर्ण स्टेज अर्थात् मंजिल स्पष्ट दिखाई देगी । जितना जिस वस्तु के नजदीक जाते हैं उतना ही वह वस्तु स्पष्ट दिखाई देती है, स्पष्टता ही समीपता की निशानी है । अभी समय है तीव्र पुरुषार्थ का, दौड़ लगाने का समय अब गया, अब हाई जम्प लगाओ । समय कम है और मंजिल ऊँची है । हाई जम्प देने के लिए डबल लाइट चाहिए । बिना डबल लाइट बने जम्प नहीं दे सकते ।

4. हर कर्म को श्रेष्ठ बनाने का साधन - फालो फादर: - जैसे साकार बाप के ऊपर इतनी जिम्मेवारी होते हुए भी सदा डबल लाइट देखा - उनके अन्तर में आपके पास तो कुछ भी जिम्मेवारी नहीं है, अपने को सदा निमित्त समझकर चलो, जिम्मेवार बापदादा है आप निमित्त हैं, निमित्त समझकर चलने से डबल लाइट हो जायेंगे । बाप भी इतनी बड़ी जवाबदारी सम्भालते हुए निमित्त समझकर चले, तो फॉलो फादर । हर कर्म करने से पहले चेक करो कि फॉलो फादर हैं? इससे हर कर्म अति श्रेष्ठ होगा । श्रेष्ठ कर्म की प्रालब्ध ऑटोमेंटिकली श्रेष्ठ होगी । बाप को कॉपी करो तो भी बाप समान बन जायेंगे । समान बनने वाले ही समीप रत्न बनते हैं ।

विदाई के समय

कितनी 18 जनवरी आ गई? इतने वर्ष समाप्त हो गए उसकी रिजल्ट क्या? रिजल्ट चाहिए - परिवर्तन । जो पिछले वर्ष की बातें हैं वह इस वर्ष में नहीं होनी चाहिए । तो नवीनता क्या आई? जैसे मधुबन में जो आते हैं उन्हों से पूछते हैं क्या छोड़ा, क्या पाया । तो इस वर्ष की रिजल्ट में भी देखो क्या-क्या छोड़ा, क्या पाया? न्यु इयर मनाते हैं, जब वर्ष नया हुआ, नया वर्ष अर्थात् नवीनता भरा हुआ । इसकी आपस में रिजल्ट निकालना । टोटल मैजारटी भी कहाँ तक अपने में परिवर्तन समझते हैं इसलिए बाप-दादा ने पहले भी कहा कि रिजल्ट लेने के लिए आयेंगे तो रिजल्ट क्या हुई? सेवा वृद्धि को पा रही है, सेवाधारी आत्मायें स्वयं के पुरूषार्थ में क्या वृद्धि पा रही हैं, दोनों का बैलेन्स जब समान होगा तब समाप्ति होगी ।

सभी सदा संगमयुग के श्रेष्ठ भाग्य को सुमिरण कर हर्षित रहते हो? संगमयुग का भाग्य और कोई भी युग में पा नहीं सकते । संगमयुग का एक-एक सेकेण्ड अति भाग्यशाली है । एक सेकेण्ड कई जन्मों का भाग्य बनाने के निमित्त बनता है । तो ऐसे श्रेष्ठ भाग्य को सदा याद रखते, अन्दर में भाग्य को देख करके सदा खुशी में नाचते रहो । वाह मेरा भाग्य - ऐसे अन्दर की खुशी बाहर दिखाई देती है जो दूसरे भी देखने वाले अनुभव करें कि इन्हों को कुछ मिला है, कुछ पाया है । ऐसे सदा खुश रहो । सदा अटेंशन रखो तो माया खुशी का खजाना छीन नहीं सकती । अच्छा - ओम् शान्ति ।

 

वरदान:-

बेगर टू प्रिन्स का पार्ट प्रैक्टिकल में बजाने वाले त्यागी वा श्रेष्ठ भाग्यशाली आत्मा भव !   

जैसे भविष्य में विश्व महाराजन दाता होंगे । ऐसे अभी से दातापन के संस्कार इमर्ज करो । किसी से कोई सैलवेशन लेकरके फिर सैलवेशन दें-ऐसा संकल्प में भी न हो-इसे ही कहा जाता है बेगर टू प्रिन्स । स्वयं लेने की इच्छा वाले नहीं । इस अल्पकाल की इच्छा से बेगर । ऐसा बेगर ही सम्पन्न मूर्त है । जो अभी बेगर टू प्रिन्स का पार्ट प्रैक्टिकल में बजाते हैं उन्हें कहा जाता है सदा त्यागी वा श्रेष्ठ भाग्यशाली । त्याग से सदाकाल का भाग्य स्वत:बन जाता है ।

 

स्लोगन:- 

सदा हर्षित रहने के लिए साक्षीपन की सीट पर दृष्टा बनकर हर खेल देखो ।   

 

अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए विशेष होमवर्क

ब्रह्मा बाप से प्यार है तो प्यार की निशानियाँ प्रैक्टिकल में दिखानी है | जैसे ब्रह्मा बाप का नंबरवन प्यार मुरली से रहा जिससे मुरलीधर बना | तो जिससे ब्रह्मा बाप का प्यार था और अभी भी है उससे सदा प्यार दिखाई दे | हर मुरली को बहुत प्यार से पढ़कर उसका स्वरुप बनना है | 

ओम् शान्ति |