21-11-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - संगमयुग तकदीरवान बनने का युग है, इसमें तुम जितना चाहो उतना अपने भाग्य का सितारा चमका सकते हो”   


प्रश्न:-   
अपने पुरूषार्थ को तीव करने का सहज साधन क्या है?


उत्तर:-

फालो फादर करते चलो तो पुरूषार्थ तीव्र हो जायेगा । बाप को ही देखो, मदर तो गुप्त है । फालो फादर करने से बाप समान ऊंच बनेंगे इसलिए एक्यूरेट फालो करते रहो ।


प्रश्न:-   
बाप किन बच्चों को बुद्ध समझते हैं?


उत्तर:-

जिन्हें बाप के मिलने की भी खुशी नहीं - वह बुद्धू हुए ना । ऐसा बाप जो विश्व का मालिक बनाता, उसका बच्चा बनने के बाद भी खुशी न रहे तो बुढ़ ही कहेंगे ना ।

 

ओम् शान्ति |

मीठे-मीठे तुम बच्चे हो लकी सितारे । तुम जानते हो हम शान्तिधाम को भी याद करते हैं, बाप को भी याद करते हैं । बाप को याद करने से हम पवित्र बन करके घर जायेंगे । यहाँ बैठे यह ख्याल करते हो ना । बाप और कोई तकलीफ नहीं देते हैं । जीवनमुक्ति को तो कोई जानते ही नहीं । वे सब पुरूषार्थ करते हैं मुक्ति के लिए, परन्तु मुक्ति का अर्थ नहीं समझते । कोई कहते हैं हम ब्रह्म में लीन हो जाएं फिर आयें ही नहीं । उनको यह पता ही नहीं है कि हमको इस चक्र में जरूर आना ही है । अब तुम बच्चे इन बातों को समझते हो । तुम बच्चों को मालूम है हम स्वदर्शन चक्रधारी लकी सितारे हैं । लकी कहा जाता है तकदीरवान को । अब तुम बच्चों को तकदीरवान बाप ही बनाते हैं । जैसा बाप वैसे बच्चे होते हैं । कोई बाप साहूकार होते, कोई बाप गरीब भी होते हैं । तुम बच्चे जानते हो हमको तो बेहद का बाप मिला है, जो जितना लकी बनने चाहे वह बन सकते हैं, जितना साहूकार जो बनना चाहे बन सकते हैं । बाप कहते हैं जो चाहे सो पुरूषार्थ से लो । सारा मदार पुरूषार्थ पर है । पुरूषार्थ कर जितना ऊंच पद लेना हो ले सकते हो । ऊंच ते ऊंच पद है यह लक्ष्मी-नारायण । याद का चार्ट भी जरूर रखना है क्योंकि तमोप्रधान से सतोप्रधान जरूर बनना ही है ।  बुद्धू बनकर ऐसे ही नहीं बैठना है । बाप ने समझाया है पुरानी दुनिया अब नई होनी है । बाप आते ही हैं नई सतोप्रधान दुनिया में ले जाने । वह है बेहद का बाप, बेहद सुख देने वाला । समझाते हैं सतोप्रधान बनने से ही तुम बेहद का सुख पा सकेंगे । सतो बनेंगे तो कम सुख । रजो बनेंगे तो उससे कम सुख । हिसाब सारा बाप बतला देते हैं । अथाह धन तुमको मिलता है, अथाह सुख मिलते हैं । बेहद के बाप से वर्सा पाने का और कोई उपाय नहीं, सिवाए याद के । जितना बाप को याद करेंगे, याद से ऑटोमेटिकली दैवीगुण भी आयेंगे । सतोप्रधान बनना है तो दैवीगुण भी जरूर चाहिए । अपनी जांच आपेही करनी है । जितना ऊंच मर्तबा लेना चाहो ले सकते हो, अपने पुरूषार्थ से । पढ़ाने वाला टीचर तो बैठा हुआ है । बाप कहते हैं कल्प-कल्प तुमको ऐसे ही समझाता हूँ । अक्षर ही दो हैं मनमनाभव, मध्याजी भव । बेहद बाप को पहचान जाते हो । वह बेहद का बाप ही बेहद की नॉलेज देने वाला है । पतित से पावन बनने का रास्ता भी वह बेहद का बाप ही समझाते हैं । तो बाप जो समझाते हैं वह कोई नई बात नहीं । गीता में भी लिखा हुआ है आटे में नमक मिसल है । अपने को आत्मा समझो । देह के सब धर्म भूल जाओ । तुम शुरू में अशरीरी थे, अभी अनेक मित्र-सम्बन्धियों के बन्धन में आये हो । सब हैं तमोप्रधान अब फिर सतोप्रधान बनना है । तुम जानते हो तमोप्रधान से फिर हम सतोप्रधान बनते हैं फिर मित्र-सम्बन्धी आदि सब पवित्र बनेंगे । जितना जो कल्प पहले सतोप्रधान बना है, उतना ही फिर बनेंगे । उनका पुरूषार्थ ही ऐसा होगा । अब फालो किसको करना चाहिए । गायन है फालो फादर । जैसे यह बाप को याद करते हैं, पुरूषार्थ करते हैं, इनको फालो करो । पुरूषार्थ कराने वाला तो बाप है । वह तो पुरूषार्थ करते नहीं, वह पुरूषार्थ कराते हैं । फिर कहते हैं मीठे-मीठे बच्चों फालो फादर । गुप्त मदर फादर है ना । मदर गुप्त है, फादर तो देखने में आते हैं । यह अच्छी रीति समझने का है । ऐसा ऊंच पद पाना है तो बाप को अच्छी रीति याद करो, जैसे यह फादर याद करते हैं । यह फादर ही सबसे ऊंच पद पाते हैं । यह बहुत ऊंच था फिर इनके ही बहुत जन्मों के अन्त के भी अन्त में मैंने प्रवेश किया है । यह अच्छी रीति याद करो, भूलो नहीं । माया भुलाती बहुतों को है । तुम कहते हो हम नर से नारायण बनते हैं, वह भी बाप युक्ति बताते हैं । कैसे तुम बन सकते हो । यह भी जानते हो सब तो एक्यूरेट फालो नहीं करेंगे । एम- ऑबजेक्ट बाप बतलाते हैं-फालो फादर । अभी का ही गायन है । बाप भी अभी तुम बच्चों को ज्ञान देते हैं । सन्यासियों के फालोअर्स कहलाते हैं परन्तु वह तो रांग है ना, फालो करते ही नहीं । वह सब हैं ब्रह्म ज्ञानी, तत्व ज्ञानी । उनको ईश्वर ज्ञान नहीं देते । तत्व अथवा ब्रह्म ज्ञानी कहलाते हैं । परन्तु तत्व अथवा ब्रह्म उन्हों को ज्ञान नहीं देते, वह सब हैं शास्त्रों का ज्ञान । यहाँ तुमको बाप ज्ञान देते हैं, जिसको ज्ञान का सागर कहा जाता है । यह अच्छी रीति नोट करो । तुम भूल जाते हो यह दिल अन्दर अच्छी रीति धारण करने की बात है । बाप रोज-रोज कहते हैं-मीठे-मीठे बच्चे, अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो, अभी वापस जाना है । पतित तो जा नहीं सकेंगे । पवित्र या तो योगबल से होना है या फिर सजायें खाकर जायेंगे । सबका हिसाब-किताब चुक्तू जरूर होना है । बाप ने समझाया है तुम आत्मायें असुल परमधाम में रहने वाली हो फिर यहाँ सुख और दुःख का पार्ट बजाया है । सुख का पार्ट है राम राज्य और दु :ख का पार्ट है रावण राज्य में । राम राज्य स्वर्ग को कहा जाता है, वहाँ कम्पलीट सुख है । गाते भी हैं स्वर्गवासी और नर्कवासी । तो यह अच्छी रीति धारण करना है । जितना-जितना तमोप्रधान से सतोप्रधान बनते जायेंगे, उतना अन्दर में तुमको खुशी भी होगी । जब रजो में द्वापर में थे तो भी तुमको खुशी थी । तुम इतना दु :खी विकारी नहीं थे । यहाँ तो अभी कितने विकारी दु :खी हैं । तुम अपने बड़ों को देखो, कितने विकारी शराबी हैं । शराब बहुत खराब चीज है । सतयुग में तो है ही शुद्ध आत्मायें फिर नीचे उतरते-उतरते बिल्कुल छी-छी हो जाते हैं इसलिए इनको रौरव नर्क कहा जाता है । शराब ऐसी चीज है जो झगड़ा, मारामारी, नुकसान करने देरी नहीं करते । इस समय मनुष्य की बुद्धि जैसे भ्रष्ट हो गई है । माया बड़ी दुश्तर है । बाप सर्वशक्तिमान है, सुख देने वाला । वैसे फिर माया बहुत दुःख देने वाली है । कलियुग में मनुष्य की हालत क्या हो जाती है, एकदम जड़जड़ीभूत । कुछ भी समझते नहीं हैं, जैसे पत्थरबुद्धि । यह भी ड्रामा है ना । किसकी तकदीर में नहीं है तो फिर ऐसी वुद्धि बन जाती है । बाप ज्ञान तो बड़ा सहज देते हैं । बच्चे-बच्चे कह समझाते रहते हैं । मातायें भी कहती हैं हमको 5 लौकिक बच्चे हैं और एक है पारलौकिक बच्चा । जो हमको सुखधाम में ले जाने आये हैं । बाप भी समझते हैं तो बच्चा भी समझते हैं । जादूगर ठहरे ना । बाप जादूगर तो बच्चे भी जादूगर बन जाते हैं । कहते हैं बाबा हमारा बच्चा भी है । तो बाप को फालो कर ऐसा बनना चाहिए । स्वर्ग में इनका राज्य था ना । शास्त्रों में यह बाते हैं नहीं । यह भक्ति मार्ग के शास्त्रों की भी ड्रामा में नूंध है । फिर भी होंगे । यह भी बाप समझाते हैं पढ़ाने वाला टीचर तो चाहिए ना । किताब थोड़ेही टीचर बन सकती । तो फिर टीचर की दरकार न रहे । यह किताब आदि सतयुग में होती नहीं ।

बाप समझाते हैं तुम आत्मा को तो समझते हो ना । आत्माओं का बाप भी जरूर है । जब कोई आते हैं तो सब कहते हैं हिन्दू- मुस्लिम भाई- भाई, अर्थ कुछ नहीं समझते । भाई- भाई का अर्थ समझना चाहिए ना । जरूर उनका बाप भी होगा । इतनी पाई-पैसे की समझ भी नहीं रही है । भगवानुवाच यह बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है । अर्थ कितना साफ है । कोई ग्लानि नहीं करते । बाप तो रास्ता बताते हैं । नम्बरवन सो लास्ट । गोरा सो सावरा बनते हैं । तुम भी समझते हो-हम गोरे थे फिर ऐसे बनेंगे । बाप को याद करने से ही यह बनेंगे । यह है रावण राज्य । राम राज्य को कहा जाता है शिवालय । सीता का राम, उसने तो त्रेता में राज्य किया है, इसमें भी समझ की बात है । दो कला कम कही जाती हैं । सतयुग है ऊंच, उनको याद करते हैं त्रेता और द्वापर को इतना याद नहीं करते हैं । सतयुग है नई दुनिया और कलियुग है पुरानी दुनिया । 100 परसेन्ट सुख और 100 परसेन्ट दुःख । वह त्रेता और द्वापर हैं सेमी । इसलिए मुख्य सतयुग और कलियुग गाया जाता है । बाप सतयुग स्थापन कर रहे हैं । अब तुम्हारा काम है पुरूषार्थ करना । सतयुग निवासी बनेंगे या त्रेता निवासी बनेंगे? द्वापर में फिर नीचे उतरते हो । फिर भी हो तो देवी-देवता धर्म के । परन्तु पतित होने कारण अपने को देवी-देवता कहला नहीं सकते । तो बाप मीठे-मीठे बच्चों को रोज-रोज समझाते हैं । मुख्य बात है ही मनमनाभव की । तुम ही नम्बरवन बनते हो । 84 का चक्र लगाकर लास्ट में आते हो फिर नम्बरवन में जाते हो तो अब बेहद के बाप को याद करना है । वह है बेहद का बाप । पुरूषोत्तम संगमयुग पर ही बेहद का बाप आकर 21 पीढ़ी स्वर्ग का सुख तुमको देते हैं । पीढ़ी जब पूरी होती है तब तुम आपेही शरीर छोड़ते हो । योगबल है ना । कायदा ही ऐसा रचा हुआ है, इसको कहा जाता है योगबल । वहाँ ज्ञान की बात नहीं रहती । ऑटोमेटिकली तुम बूढ़े होते हो । वहाँ कोई बीमारी आदि होती नहीं । लंगड़े वा टेढ़े बांके नहीं होते । एवरहेल्दी रहते हैं । वहाँ दुःख का नाम-निशान नहीं रहता । फिर थोड़ी- थोड़ी कला कम होती है । अब बच्चों को पुरूषार्थ करना है । बेहद के बाप से ऊंच वर्सा पाने का । पास विद् ऑनर होना चाहिए ना । सब तो ऊंच पद नहीं पा सकते हैं । जो सर्विस ही नहीं करते वह क्या पद पायेंगे । म्युजियम में बच्चे कितनी सर्विस करते हैं, बिगर बुलाये लोग आ जाते हैं । इसको विहंग मार्ग की सर्विस कहा जाता है । पता नहीं, इससे भी और कोई विहंग मार्ग की सर्विस निकले । दो-चार मुख्य चित्र जरूर साथ में हो । बड़े-बड़े त्रिमूर्ति, झाड़, गोला, सीढ़ी-यह तो हर जगह बहुत बड़े-बड़े हों । जब बच्चे होशियार होंगे तब तो सर्विस होगी ना । सर्विस तो होनी ही है । गाँव में भी सर्विस करनी है । मातायें भल पढ़ी-लिखी नहीं हैं परन्तु बाप का परिचय देना तो बहुत सहज है । आगे फीमेल पड़ती नहीं थी । मुसलमानों के राज्य में एक आंख खोलकर बाहर निकलती थी । यह बाबा बहुत अनुभवी है । बाप कहते हैं मैं यह सब नहीं जानता । मैं तो ऊपर में रहता हूँ । यह सब बातें यह ब्रह्मा तुमको सुनाते हैं । यह अनुभवी हैं, मैं तो मनमनाभव की बातें ही सुनाता हूँ और सृष्टि चक्र का राज समझाता हूँ, जो यह नहीं जानते । यह अपना अनुभव अलग समझाते हैं, मैं इन बातों में नहीं जाता । मेरा पार्ट है सिर्फ तुमको रास्ता बताना । मैं बाप, टीचर, गुरू हूँ । टीचर बन तुमको पढ़ाता हूँ, बाकी इसमें कृपा आदि की कोई बात नहीं । पढ़ाता हूँ फिर साथ में ले जाने वाला हूँ । इस पढ़ाई से ही सद्गति होती है । मैं आया ही हूँ तुमको ले जाने । शिव की बरात गाई हुई है । शंकर की बरात नहीं होती । शिव की बरात है, सब आत्मायें दुल्हा के पिछाड़ी जाती है ना । यह सब हैं भक्तियां, मैं हूँ भगवान । तुमने हमको बुलाया ही है पावन बनाकर साथ ले जाने । तो हम तुम बच्चों को साथ ले ही जाऊंगा । हिसाब-किताब चुक्तू कराकर ले ही जाना है ।

बाप घड़ी-घड़ी कहते हैं मनमनाभव । बाप को याद करो तो वर्सा भी जरूर याद पड़ेगा । विश्व की बादशाही मिलती है ना । उसके लिए पुरूषार्थ भी ऐसा करना है । तुम बच्चों को कोई तकलीफ नहीं देता हूँ । जानता हूँ तुमने बहुत दु :ख देखे हैं । अब तुमको कोई तकलीफ नहीं देता हूँ । भक्ति मार्ग में आयु भी छोटी होती है । अकाले मृत्यु हो जाती हैं, कितना याहुसैन मचाते हैं । कितना दु :ख उठाते हैं । दिमाग ही खराब हो जाता है । अब बाप कहते हैं सिर्फ मुझे याद करते रहो । स्वर्ग का मालिक बनना है तो दैवीगुण भी धारण करने हैं । पुरूषार्थ हमेशा ऊंच बनने का किया जाता है-हम लक्ष्मी-नारायण बनें । बाप कहते हैं मैं सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी, दोनों धर्म स्थापन करता हूँ । वह नापास होते हैं इसलिए क्षत्रिय कहा जाता है । युद्ध का मैदान है ना । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. सुखधाम के वर्से का पूरा अधिकार लेने के लिए संगम पर रूहानी जादूगर बन बाप को भी अपना बच्चा बना लेना है । पूरा-पूरा बलिहार जाना है । 

2. स्वदर्शन चक्रधारी बन स्वयं को लकी सितारा बनाना है । विहंग मार्ग की सर्विस के निमित्त बन ऊंच पद लेना है । गांव-गांव में सर्विस करनी है । साथ-साथ याद का चार्ट भी जरूर रखना है ।

 

वरदान:-

सर्व प्राप्तियों को स्मृति में इमर्ज रख सदा सम्पन्न रहने वाली सन्तुष्ट आत्मा भव !   

संगमयुग पर बापदादा द्वारा जो भी प्राप्तियां हुई हैं उनकी स्मृति इमर्ज रूप में रहे । तो प्राप्तियों की खुशी कभी नीचे हलचल में नहीं लायेगी । सदा अचल रहेंगे । सम्पन्नता अचल बनाती है, हलचल से छुड़ा देती है । जो सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न हैं वे सदा राज़ी, सदा सन्तुष्ट रहते हैं । सन्तुष्टता सबसे बड़ा खजाना है । जिसके पास सन्तुष्टता है उसके पास सब कुछ है । वह यही गीत गाते रहते कि पाना था वो पा लिया ।

 

स्लोगन:- 

मुहब्बत के झूले में बैठ जाओ तो मेहनत आपेही छूट जायेगी ।   

 

ओम् शान्ति |