26-05-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
गृहस्थ
व्यवहार में रहते हुए ऐसा बनो जो किसी भी चीज़ में आसक्ति न
रहे, हमारा कुछ भी नहीं, ऐसा बेगर बन जाओ
| 
प्रश्न:-
तुम
बच्चों के पुरुषार्थ की मंज़िल कौन-सी है?
उत्तर:-
आप
मरे मर गई दुनिया – यह है तुम्हारी मंज़िल | शरीर से ममत्व टूट
जाए | ऐसा बेगर बनो जो कुछ भी याद न आये | आत्मा अशरीरी बन
जाये | बस, हमको वापिस जाना है | ऐसा पुरुषार्थ करने वाले बेगर
टू प्रिन्स बनते हैं | तुम बच्चे ही फ़क़ीर से अमीर, अमीर से
फ़कीर बनते हो | जब तुम अमीर हो तो एक भी गरीब नहीं होता है |
ओम्
शान्ति
|
बाप
बच्चों से पूछते हैं कि आत्मा सुनती है या शरीर सुनता है?
(आत्मा) आत्मा सुनेगी ज़रूर शरीर द्वारा | बच्चे लिखते भी ऐसे
हैं फलाने की आत्मा बापदादा को याद करती है | फलाने की आत्मा
आज फलानी जगह जाती है | यह जैसे आदत पड़ जाती है, हम आत्मा हैं
क्योंकि बच्चों को आत्म-अभिमानी बनना है | जहाँ भी देखते हो,
जानते हो आत्मा और शरीर है और इनमें हैं दो आत्मायें | एक को
आत्मा और एक को परम आत्मा कहते हैं | परमात्मा ख़ुद कहते हैं
मैं इस शरीर में, जिसमें इनकी आत्मा भी प्रवेश रहती है, मैं
प्रवेश करता हूँ | शरीर बिगर तो आत्मा रह नहीं सकती |
अब
बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो | अपने को आत्मा समझेंगे तब
बाप को याद करेंगे और पवित्र बन शान्तिधाम में जायेंगे और फिर
दैवीगुण भी जितना धारण कर और करायेंगे, स्वदर्शन चक्रधारी बनकर
और बनायेंगे उतना ऊँच पद पायेंगे | इसमें कोई मूँझते हो तो पूछ
सकते हो | यह तो ज़रूर है मैं आत्मा हूँ, बाप बच्चों को ही कहते
हैं जो ब्राह्मण बने हैं | दूसरों को नहीं कहेंगे | बच्चे ही
प्रिय लगते हैं | हर एक बाप को बच्चे प्रिय लगते हैं | दूसरे
को भल बाहर से प्यार करेंगे परन्तु बुद्धि में है – यह हमारे
बच्चे नहीं हैं | मैं बच्चों से ही बात करता हूँ क्योंकि
बच्चों को ही पढ़ाना है | बाकी बाहर वालों को पढ़ाना तुम्हारा
काम है | कोई तो झट समझ जाते हैं, कोई थोड़ा समझकर चले जायेंगे
| फिर जब देखेंगे यहाँ तो बहुत वृद्धि हो रही है तब आयेंगे,
देखें तो सही | तुम यही समझायेंगे कि बाप सभी आत्माओं वा
बच्चों को कहते हैं मुझे याद करो | सभी आत्माओं को पावन बाप ही
बनाते हैं | वह कहते हैं मेरे सिवाए और कोई को याद न करो |
मेरी अव्यभिचारी याद रखो तो तुम्हारी आत्मा पावन बन जायेगी |
पतित-पावन मैं एक ही हूँ | मेरी याद से ही आत्मा पावन बनेगी
इसलिए कहते हैं – बच्चों, मामेकम् याद करो | बाप ही पतित राज्य
से पावन राज्य बनाते हैं, लिबरेट करते हैं | कहाँ ले जाते हैं?
शान्तिधाम फिर सुखधाम |
मूल
बात ही है पावन बनने की | 84 का चक्र समझाना भी सहज है | चित्र
देखने से ही निश्चय बैठ जाता है इसलिए बाबा हमेशा कहते रहते
हैं म्यूज़ियम खोलो – भभके से | तो मनुष्यों को भभका खींचेगा |
बहुत आयेंगे, तुम यही सुनायेंगे कि बाप की श्रीमत पर यह बन रहे
हैं | बाप कहते हैं मामेकम् याद करो और दैवीगुण धारण करो | बैज
तो ज़रूर साथ होना चाहिए | तुम जानते हो हम बेगर टू प्रिन्स
बनेंगे | पहले तो कृष्ण बनेंगे ना | जब तक कृष्ण न बनें तब तक
नारायण बन न सकें | बच्चे से बड़ा हो तब नारायण नाम मिले | तो
इनमें दोनों चित्र हैं | तुम यह बनते हो | अभी तुम सब बेगर बने
हुए हो | यह ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ भी बेगर्स हैं, इनके पास
कुछ भी नहीं है | बेगर अर्थात् जिनके पास कुछ भी न हो |
कोई-कोई को हम बेगर नहीं कहेंगे | यह बाबा तो है सबसे बड़ा बेगर
| इसमें पूरा बेगर बनना होता है | गृहस्थ व्यवहार में रहते
आसक्ति तोड़नी होती है | तुमने ड्रामा अनुसार आसक्ति तोड़ दी है
| निश्चयबुद्धि ही जानते हैं, हमारा जो कुछ है वह बाबा को दे
दिया | कहते भी हैं ना – हे भगवान्, आपने जो कुछ दिया है वह
आपका ही है, हमारा नहीं है | वह तो होता है भक्ति मार्ग | उस
समय तो बाबा दूर था | अब बाबा बहुत नज़दीक है | सामने उनका बनना
होता है |
तुम
कहते हो बाबा, बाबा के शरीर को नहीं देखना है | बुद्धि चली
जाती है ऊपर | भल यह लोन लिया हुआ शरीर है परन्तु तुम्हारी
बुद्धि में है हम शिवबाबा से बात करते हैं | यह तो किराये पर
लिया हुआ रथ है | उनका थोड़ेही है | यह तो ज़रूर है, जितना बड़ा
आदमी होगा तो किराया भी बहुत मिलेगा | मकान मालिक देखेगा –
राजा मकान लेते हैं तो एक हज़ार किराये का 4 हज़ार बोल देगा
क्योंकि समझते हैं यह तो धनवान है | राजे लोग कभी भी बोलेंगे
नहीं कि यह तो जास्ती लेते हो | नहीं, उन्हों को पैसे आदि की
परवाह ही नहीं रहती है | वह ख़ुद कोई से बात नहीं करते हैं |
प्राइवेट सेक्रेटरी ही बात करते हैं | आजकल तो रिश्वत बिगर काम
नहीं चलता | बाबा तो बहुत अनुभवी है | वो लोग बड़े रॉयल होते
हैं | चीज़ पसन्द की बस, फिर सेक्रेटरी को कहेंगे इनसे फैंसला
कर ले आओ | ऐसे माल खोल कर रखेंगे | महाराजा-महारानी दोनों
आयेंगे, जो चीज़ पसन्द होगी उन पर सिर्फ़ आँख से इशारा करेंगे |
सेक्रेटरी बात कर, बीच में अपना हिस्सा निकाल लेते हैं |
कोई-कोई राजायें साथ में पैसा ले आते, सेक्रेटरी को कहेंगे
इनको पैसा दे दो | बाबा तो सबके कनेक्शन में आये हैं | जानते
हैं कैसे-कैसे उन्हों की एक्ट चलती है | जैसे राजाओं के पास
खजांची रहते हैं, वैसे यहाँ भी शिवबाबा का खजांची है | यह तो
ट्रस्टी है | बाबा का इनमें कोई मोह नहीं है, इसने अपने पैसे
में ही मोह नहीं रखा, सब कुछ शिवबाबा को दे दिया तो फिर
शिवबाबा के धन में मोह कैसे रखेंगे | यह ट्रस्टी है | जिनके
पास धन रहता है, आजकल तो गवर्मेन्ट कितना जांच करती है |
विलायत से आते हैं तो एकदम अच्छी रीति जाँच करते हैं |
अब
तुम बच्चे जानते हो कैसे बेगर बनना है | कुछ भी याद न आये |
आत्मा अशरीरी बन जाये | इस शरीर को भी अपना न समझे | हमारा कुछ
भी न रहे | बाप समझाते हैं, अपने को आत्मा समझो, अभी तुमको
वापिस जाना है | तुम जानते हो बेगर कैसे बनना होता है | शरीर
से भी ममत्व टूट जाए | आप मुये मर गई दुनिया | यह मंज़िल है |
समझते हो बाबा ठीक कहते हैं | अब हमको वापिस जाना है | शिवबाबा
को तुम जो कुछ देते हो, उसका फिर रिटर्न में दूसरे जन्म में
मिल जाता है इसलिए कहते हैं यह सब कुछ ईश्वर ने ही दिया है |
आगे जन्म में ऐसा अच्छा कर्म किया है, जिसका फल मिला है |
शिवबाबा रखता किसका भी नहीं है | बड़े बड़े राजायें, ज़मीदार आदि
होते हैं तो उनको नज़राना भी देते हैं | फिर कोई नज़राना लेते,
कोई नहीं लेते | वहाँ तो तुम कुछ भी दान-पुण्य नहीं करते हो
क्योंकि वहाँ तो सबके पास पैसे बहुत हैं | दान किसको करेंगे |
गरीब तो वहाँ होते नहीं | तुम ही फ़क़ीर से अमीर और अमीर से फ़कीर
बनते हो | कहते हैं ना इनको तन्दुरुस्ती बख्शो | कृपा करो |
आगे शुरू में भी शिवबाबा से ही मांगते थे | फिर व्यभिचारी बन
गये हैं तो सबके आगे जाते रहते हैं | कहते हैं झोली भर दो |
कितने पत्थरबुद्धि हैं | कहते भी हैं पत्थरबुद्धि से
पारसबुद्धि बनाते हैं | तो तुम बच्चों को ख़ुशी बहुत रहनी चाहिए
| गायन भी है अतीन्द्रिय सुख पूछना हो तो गोपी वल्लभ के
गोप-गोपियों से पूछो | किसको बहुत फायदा होता है तो बहुत ख़ुशी
होती है | तो तुम बच्चों को भी बहुत ख़ुशी रहनी चाहिए | तुमको
100 परसेन्ट ख़ुशी थी फिर घटती गई | अब तो कुछ भी नहीं है |
पहले थी बेहद की बादशाही | फिर होती है हद की राजाई, अल्पकाल
के लिए | अब बिरला के पास कितनी ढेर मिलकियत है | मन्दिर बनाते
हैं, उससे कुछ भी नहीं मिलता | गरीबों को थोड़ेही कुछ देते हैं
| मन्दिर बनाया, जहाँ मनुष्य आकर माथा टेकेंगे | हाँ, गरीब को
दान में देते हैं तो उसका रिटर्न में मिल सकता है | धर्मशाला
बनाते हैं तो बहुत मनुष्य जाकर वहाँ विश्राम पाते हैं तो दूसरे
जन्म में अल्पकाल के लिए सुख मिल जाता है | कोई हॉस्पिटल बनाता
है तो भी अल्पकाल के लिए सुख मिलता है एक जन्म के लिए | तो
बेहद का बाप बच्चों को बैठ समझाते हैं | इस पुरुषोत्तम संगमयुग
की बहुत महिमा है | तुम्हारी भी बहुत महिमा है जो तुम
पुरुषोत्तम बनते हो | तुम ब्राह्मणों को ही भगवान् आकर पढ़ाते
हैं | वही ज्ञान का सागर है | इस सारे मनुष्य सृष्टि रूपी
वृक्ष का बीजरूप है | सारे ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त का राज़
समझाते हैं | तुमसे पूछेंगे क्या तुमको पढ़ाते हैं! बोलो, क्या
यह भूल गये हो – गीता में भगवानुवाच है ना, मैं तुमको राजाओं
का राजा बनाता हूँ | इसका अर्थ तुम अभी समझते हो | पतित
राजायें पावन राजाओं की पूजा करते हैं इसलिए बाप कहते हैं
तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ | यह लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग के
मालिक थे ना | स्वर्ग के देवताओं को द्वापर-कलियुग में सब
नमन-पूजन करते हैं | इन बातों को अभी तुम समझते हो | भक्त लोग
कुछ भी समझते थोड़ेही हैं | वह तो सिर्फ़ शास्त्रों की कहानियाँ
पढ़ते-सुनते रहते हैं | बाप कहते हैं – तुम जो गीता आधाकल्प से
पढ़ते सुनते आये हो, उससे कुछ प्राप्ति हुई? पेट तो कुछ भी भरा
नहीं | अभी तुम्हारा पेट भर रहा है | तुम जानते हो यह पार्ट एक
ही बार चलता है | ख़ुद भगवान् कहते हैं मैं इस तन में प्रवेश
करता हूँ | बाप इनके द्वारा बोलते हैं तो ज़रूर प्रवेश करेंगे |
ऊपर से डायरेक्शन देंगे क्या! कहते हैं मैं सम्मुख आता हूँ |
अभी तुम सुन रहे हो | यह ब्रह्मा भी कुछ नहीं जानते थे | अभी
जानते जाते हैं | बाकी गंगा का पानी पावन करने वाला नहीं है,
यह है ज्ञान की बात | तुम जानते हो बाप सम्मुख बैठे हैं,
तुम्हारी बुद्धि अब ऊपर में नहीं जायेगी, यह है उनका रथ, इनको
बाबा बूट भी कहते हैं, डिब्बी भी कहते हैं | इस डिब्बी में वह
हीरा है | कितनी फर्स्टक्लास चीज़ है | इनको तो रखना चाहिए सोने
की डिब्बी में | गोल्डन एजड डिब्बी बनाते हैं | बाबा कहते हैं
ना – धोबी के घर से गई छू | इनको कहते हैं छू मन्त्र | छू
मन्त्र से सेकण्ड में जीवनमुक्ति, इसलिए उनको जादूगर भी कहते
हैं | सेकण्ड में निश्चय हो जाता है – हम यह बनेंगे | यह बातें
अभी तुम प्रैक्टिकल में सुनते हो | पहले जब सत्य नारायण की कथा
सुनते थे तो यह समझते थे क्या? उस समय तो कथा सुनते समय
विलायत, स्टीमर आदि याद रहता है | सत्य नारायण की कथा सुनकर
फिर मुसाफ़िरी पर जाते थे | वह तो फिर लौट आते थे | बाप तो कहते
हैं तुमको फिर इस छी-छी दुनिया में लौटना नहीं है | भारत
अमरलोक, स्वर्ग देवी-देवताओं का राज्य था | यह लक्ष्मी-नारायण
विश्व के मालिक हैं ना | इनके राज्य में पवित्रता, सुख, शान्ति
थी | दुनिया भी यह मांगती है – विश्व में शान्ति हो, सब मिलकर
एक हो जाएँ | अब इतने सब धर्म मिलकर एक कैसे होंगे! हर एक का
धर्म अलग, फ़ीचर्स अलग-अलग सब एक कैसे होंगे! वह तो है ही
शान्तिधाम, सुखधाम | वहाँ एक धर्म, एक राज्य होता है | दूसरा
कोई धर्म ही नहीं, जो ताली बजे | उसको विश्व में शान्ति कहा
जाता है | अभी तुम बच्चों को बाप पढ़ा रहे हैं | यह भी जानते हो
सब बच्चे एकरस नहीं पढ़ते हैं | नम्बरवार तो होते ही हैं | यह
भी राजधानी स्थापन हो रही है | बच्चों को कितना समझदार बनाया
जाता है |
यह
है ईश्वरीय यूनिवर्सिटी | भक्त लोग समझते नहीं | अनेक बार सुना
भी है – भगवानुवाच क्योंकि गीता ही भारतवासियों का धर्मशास्त्र
है | गीता की तो अपरमपार महिमा है | सर्व शास्त्रमई शिरोमणी
भगवत गीता है | शिरोमणी अर्थात् श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ पतित-पावन
सद्गति दाता है ही एक भगवान्, जो सभी आत्माओं का बाप है |
भारतवासी अर्थ को समझते नहीं हैं | बेसमझी से सिर्फ़ कह देते
हैं सब भाई-भाई हैं | अभी तुमको बाप ने समझाया है हम भाई-भाई
हैं | हम शान्तिधाम के रहने वाले हैं | यहाँ पार्ट बजाते-बजाते
हम बाप को भी भूल जाते हैं, तो घर को भी भूल जाते हैं | जो बाप
भारत को सारे विश्व का राज्य देते हैं, उनको सब भूल जाते हैं |
यह सब राज़ बाप ही समझाते हैं | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करने के लिए स्मृति रहे कि यही
पुरुषोत्तम संगमयुग है जबकि हमें भगवान् पढ़ाते हैं, जिससे हम
राजाओं का राजा बनेंगे | अभी ही हमें ड्रामा के आदि, मध्य,
अन्त का ज्ञान है |
2.
अब वापस
घर जाना है इसलिए इस शरीर से भी पूरा बेगर बनना है | इसे भूल
अपने को अशरीरी आत्मा समझना है |
वरदान:-
मन्मनाभव के साथ मध्याजी भव के मन्त्र स्वरूप में स्थित रहने
वाले महान आत्मा भव
!
आप
बच्चों को मन्मनाभव के साथ मध्याजी भव का भी वरदान है | अपना
स्वर्ग का स्वरूप स्मृति में रहे इसको कहते हैं मध्याजी भव |
जो अपने श्रेष्ठ प्राप्तियों के नशे में रहते हैं वही मध्याजी
भव के मन्त्र स्वरूप में स्थित रह सकते हैं | जो मध्याजी भव
हैं वह मन्मनाभव तो होंगे ही | ऐसे बच्चों के हर संकल्प, हर
बोल और हर कर्म महान हो जाते हैं | स्मृति स्वरूप बनना माना
महान आत्मा बनना |
स्लोगन:-
ख़ुशी
आपका स्पेशल ख़ज़ाना है, इस खज़ाने को कभी नहीं छोड़ना |
ओम्
शान्ति
|