25-07-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


"मीठे बच्चे - देह- अभिमान आसुरी कैरेक्टर है, उसे बदल दैवी कैरेक्टर्स धारण करो तो रावण की जेल से छूट जायेंगे"   

                                                        
प्रश्न:-   
हर एक आत्मा अपने पाप कर्मों की सजा कैसे भोगती है, उससे बचने का साधन क्या है?


उत्तर:-
हर एक अपने पापों की सजा एक तो गर्भ जेल में भोगते हैं, दूसरा रावण की जेल में अनेक प्रकार के दु:ख उठाते हैं । बाबा आया है तुम बच्चों को इन जेलों से छुड़ाने । इनसे बचने के लिए सिविलाइज्ड बनो ।

 

ओम् शान्ति |

ड्रामा के प्लैन अनुसार बाप बैठ समझाते हैं । बाप ही आकर रावण की जेल से छुड़ाते हैं क्योंकि सब क्रिमिनल, पाप आत्मायें हैं । सारी दुनिया के मनुष्य मात्र क्रिमिनल होने के कारण रावण की जेल में हैं । फिर जब शरीर छोड़ते हैं तो भी गर्भ जेल में जाते हैं । बाप आकर दोनों जेल से छुड़ाते हैं फिर तुम आधाकल्प रावण की जेल में भी नहीं और गर्भ जेल में भी नहीं जायेंगे । तुम जानते हो बाप धीरे- धीरे पुरुषार्थ अनुसार हमें रावण की जेल से और गर्भ जेल से छुड़ाते रहते हैं । बाप बताते हैं तुम सब क्रिमिनल हो रावण राज्य में । फिर राम राज्य में सब सिविलाइज्ड होते हैं । कोई भी भूत की प्रवेशता नहीं होती है । देह का अहंकार आने से ही फिर और भूतों की प्रवेशता होती है । अब तुम बच्चों को पुरुषार्थ कर देही- अभिमानी बनना है । जब ऐसे (लक्ष्मी-नारायण) बन जायेंगे तब ही देवता कहलायेंगे । अभी तो तुम ब्राह्मण कहलाते हो । रावण की जेल से छुड़ाने लिए बाप आकर पढ़ाते भी हैं और जो सबके कैरेक्टर्स बिगड़े हुए हैं वह सुधारते भी हैं । आधाकल्प से कैरेक्टर्स बिगड़ते-बिगड़ते बहुत बिगड़ गये है । इस समय है तमोप्रधान कैरेक्टर्स । दैवी और आसुरी कैरेक्टर्स में बरोबर रात-दिन का फर्क है । बाप समझाते हैं अब पुरुषार्थ कर अपना दैवी कैरेक्टर्स बनाना है, तब ही आसुरी कैरेक्टर्स से छूटते जायेंगे । आसुरी कैरेक्टर्स में देह- अभिमान है नम्बरवन । देही- अभिमानी के कैरेक्टर्स कभी बिगड़ते नहीं हैं । सारा मदार कैरेक्टर्स पर है । देवताओं का कैरेक्टर कैसे बिगड़ता है । जब वे वाम मार्ग में जाते हैं अर्थात्( विकारी बनते हैं तब कैरेक्टर्स बिगड़ते हैं । जगन्नाथ के मन्दिर में ऐसे चित्र दिखाये हैं वाम मार्ग के । यह तो बहुत वर्षों का पुराना मन्दिर है, ड्रेस आदि देवताओं की ही है । दिखाते हैं देवता वाम मार्ग में कैसे जाते हैं । पहली-पहली क्रिमिनलिटी है ही यह । काम चिता पर चढ़ते हैं, फिर रंग बदलते-बदलते बिल्कुल काले हो जाते हैं ।  

पहले-पहले गोल्डन एज़ में हैं सम्पूर्ण गोरे, फिर दो कला कम हो जाती हैं । त्रेता को स्वर्ग नहीं कहेंगे, वह है सेमी स्वर्ग । बाप ने समझाया है रावण के आने से ही तुम्हारे ऊपर कट चढ़ना शुरू हुई है । पूरे क्रिमिनल अन्त में बनते हो । अभी 100 परसेन्ट क्रिमिनल कहेंगे । 100 परसेन्ट वाइसलेस थे फिर 100 परसेन्ट विशश बने । अब बाप कहते हैं सुधरते जाओ, यह रावण का जेल बहुत बड़ा है । सबको क्रिमिनल ही कहेंगे क्योंकि रावण के राज्य में हैं ना । राम राज्य और रावण राज्य का तो उनको पता ही नहीं है । अभी तुम पुरुषार्थ कर रहे हो रामराज्य में जाने का । सम्पूर्ण तो कोई बना नहीं है । कोई फर्स्ट, कोई सेकण्ड, कोई थर्ड में है । अब बाप पढ़ाते हैं, दैवीगुण धारण कराते हैं । देह- अभिमान तो सबमें है । जितना-जितना तुम सर्विस में लगे रहेंगे उतना देह- अभिमान कम होता जायेगा । सर्विस करने से ही देह- अभिमान कम होगा । देही- अभिमानी बड़ी-बड़ी सर्विस करेंगे । बाबा देही- अभिमानी है तो कितनी अच्छी सर्विस करते हैं । सभी को क्रिमिनल रावण की जेल से छुड़ाए सद्गति प्राप्त करा देते हैं, वहाँ फिर दोनों जेल नहीं होगी । यहाँ डबल जेल है, सतयुग में न कोर्ट है, न पाप आत्मायें हैं, न तो रावण की जेल ही है । रावण की है बेहद की जेल । सभी 5 विकारों की रस्सियों में बंधे हुए हैं । अपरमअपार दुःख हैं । दिन-प्रतिदिन दु :ख वृद्धि को पाता रहता है । सतयुग को कहा जाता है गोल्डन एज, त्रेता को सिलवर एज । सतयुग वाला सुख त्रेता में नहीं हो सकता क्योंकि आत्मा की दो कला कम हो जाती है । आत्मा की कला कम होने से शरीर भी ऐसे हो जाते हैं, तो यह समझना चाहिए कि बरोबर हम रावण के राज्य में देह- अभिमानी बन पड़े हैं । अब बाप आया है रावण की जेल से छुड़ाने के लिए । आधाकल्प का देह- अभिमान निकलने में देरी तो लगती है । बहुत मेहनत करनी पड़ती है । जल्दी में जो शरीर छोड़ गये वह फिर भी बड़े होकर आए कुछ ज्ञान उठा सकते हैं । जितना देरी होती जाती है तो फिर पुरुषार्थ तो कर न सकें । कोई मरे फिर आकर पुरुषार्थ करे सो तो जब आरगन्स बड़े हों, समझदार हों तब कुछ कर भी सकें । देरी से जाने वाले तो कुछ सीख नहीं सकेंगे । जितना सीखे उतना सीखे इसलिए मरने से पहले पुरुषार्थ करना चाहिए, जितना हो सके इस तरफ आने की कोशिश जरूर करेंगे । इस हालत में बहुत आयेंगे । झाड़ वृद्धि को पायेगा । समझानी तो बहुत सहज है । बाम्बे में बाप का परिचय देने के लिए चांस बहुत अच्छा है - यह हम सबका बाप है, बाप से वर्सा तो जरूर स्वर्ग का ही चाहिए । कितना सहज है । दिल अन्दर गद्गद् होना चाहिए, यह हमको पढ़ाने वाला है । यह हमारी एम ऑबजेक्ट है । हम पहले सद्गति में थे फिर दुर्गति में आये अब फिर दुर्गति से सद्गति में जाना है । शिवबाबा कहते हैं मामेकम् याद करो तो तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप कट जायेंगे । तुम बच्चे जानते हो - जब द्वापर में रावण राज्य होता है तो 5 विकार रूपी रावण सर्वव्यापी हो जाता है । जहाँ विकार सर्वव्यापी है वहाँ बाप सर्वव्यापी कैसे हो सकता है । सभी मनुष्य पाप आत्मायें हैं ना । बाप सम्मुख है तब तो ऐसे कहते हैं कि मैंने कहा ही नहीं है, उल्टा समझ गये हैं । उल्टा समझते, विकारों में गिरते-गिरते, गालियां देते-देते भारत का यह हाल हुआ है । क्रिस्चियन लोग भी जानते हैं कि 5 हजार वर्ष पहले भारत स्वर्ग था, सभी सतोप्रधान थे । भारतवासी तो लाखों वर्ष कह देते हैं क्योंकि तमोप्रधान बुद्धि बन पड़े है । वह फिर न इतना ऊंच बने, न इतना नींच बने हैं । वह तो समझते हैं बरोबर स्वर्ग था । बाप कहते हैं यह ठीक कहते हैं- 5 हजार वर्ष पहले भी मैं तुम बच्चों को रावण की जेल से छुड़ाने आया था, अब फिर छुड़ाने आया हूँ । आधाकल्प है राम राज्य, आधाकल्प है रावण राज्य । बच्चों को चांस मिलता है तो समझाना चाहिए । 

बाबा भी तुम बच्चों को समझाते हैं - बच्चे, ऐसे-ऐसे समझाओ । इतने अपरमअपार दुःख क्यों हुए हैं? पहले तो अपरमअपार सुख थे जब इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था । यह सर्वगुण सम्पन्न थे, अब यह नॉलेज है ही नर से नारायण बनने की । पढ़ाई है, इनसे दैवी कैरेक्टर्स बनते हैं । इस समय रावण के राज्य में सभी के कैरेक्टर्स बिगड़े हुए हैं । सबके कैरेक्टर्स सुधारने वाला तो एक ही राम है । इस समय कितने धर्म हैं, मनुष्यों की कितनी वृद्धि होती रहती है, ऐसे ही वृद्धि होती रहेगी तो फिर खाना भी कहाँ से मिलेगा! सतयुग में तो ऐसी बातें होती नहीं हैं । वहाँ दुःख की कोई बात ही नहीं । यह कलियुग है दुःखधाम, सब विकारी हैं । वह है सुखधाम, सभी सम्पूर्ण निर्विकारी हैं । घड़ी-घड़ी उन्हों को यह बतलाना चाहिए तो कुछ समझ जाएं । बाप कहते हैं मैं पतित-पावन हूँ, मुझे याद करने से तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप कट जायेंगे । अब बाप कैसे कहेंगे! जरूर शरीर धारण कर बोलेंगे ना । पतित-पावन सर्व का सद्गति दाता एक बाप है, जरूर वह किसी रथ में आया होगा । बाप कहते हैं मैं इस रथ में आता हूँ, जो अपने जन्मों को नहीं जानते हैं । बाप समझाते हैं यह 84 जन्मों का खेल है, जो पहले- पहले आये होंगे वही आयेंगे, उनके ही बहुत जन्म होंगे फिर कम होते जायेंगे । सबसे पहले देवताये आये । बाबा बच्चों को भाषण करना सिखलाते हैं-ऐसे-ऐसे समझाना चाहिए । अच्छी रीति याद में रहेंगे, देह- अभिमान नहीं होगा तो भाषण अच्छा करेंगे । शिवबाबा देही- अभिमानी है ना । कहते रहते हैं-बच्चे, देही- अभिमानी भव । कोई विकार न रहे, अन्दर में कोई शैतानी न रहे । तुम्हें किसको भी दु :ख नहीं देना है, किसकी निंदा नहीं करनी है । तुम बच्चों को कभी भी सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए । बाप से पूछो-यह ऐसे कहते हैं, क्या सत्य है? बाबा बता देंगे । नहीं तो बहुत हैं जो झूठी बातें बनाने में देरी नहीं करते हैं-फलाने ने तुम्हारे लिए ऐसे-ऐसे कहा, सुनाकर उनको ही खाक कर देंगे । बाबा जानते हैं, ऐसे बहुत होता है । उल्टी-सुल्टी बातें सुनाकर दिल को खराब कर देते हैं इसलिए कभी भी झूठी बातें सुनकर अन्दर में जलना नहीं चाहिए । पूछो फलाने ने मेरे लिए ऐसे कहा है? अन्दर सफाई होनी चाहिए । कई बच्चे सुनी-सुनाई बातों पर भी आपस में दुश्मनी रख देते हैं । बाप मिला है तो बाप से पूछना चाहिए ना । ब्रह्मा बाबा पर भी बहुतों को विश्वास नहीं होता है । शिवबाबा को भी भूल जाते हैं । बाप तो आये हैं सबको ऊंच बनाने । प्यार से उठाते रहते हैं । ईश्वरीय मत लेनी चाहिए । निश्चय ही नहीं होगा तो पूछेंगे ही नहीं तो रेसपान्ड भी नहीं मिलेगा । बाप जो समझाते हैं उसको धारण करना चाहिए । 

तुम बच्चे श्रीमत पर विश्व में शान्ति स्थापन करने के निमित्त बने हो । एक बाप के सिवाए और कोई की मत ऊँच ते ऊँच हो नहीं सकती । ऊँच ते ऊँच मत है ही भगवान् की । जिससे मर्तबा भी कितना ऊँचा मिलता है । बाप कहते हैं अपना कल्याण कर ऊँच पद पाओ, महारथी बनो । पढ़ेंगे ही नहीं तो क्या पद पायेंगे । यह है कल्प-कल्पान्तर की बात । सतयुग में दास- दासियां भी नम्बरवार होते हैं । बाप तो आये है ऊँच बनाने परन्तु पढ़ते ही नहीं हैं तो क्या पद पायेंगे । प्रजा में भी तो ऊँच-नीच पद होते हैं ना, यह बुद्धि से समझना है । मनुष्यों को पता नहीं पड़ता है कि हम कहाँ जाते हैं । ऊपर जाते हैं या नीचे उतरते जाते हैं । बाप आकर तुम बच्चों को समझाते हैं कहाँ तुम गोल्डन, सिलवर एज में थे, कहाँ आइरन एज में आये हो । इस समय तो मनुष्य, मनुष्य को खा लेते हैं । अब यह सभी बातें जब समझें तब कहें कि ज्ञान किसको कहा जाता है । कई बच्चे एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देते हैं । अच्छे- अच्छे सेंटर्स के अच्छे- अच्छे बच्चों की क्रिमिनल आई रहती है । फायदा, नुकसान, इज्जत की परवाह थोड़ेही रखते हैं । मूल बात है ही क्रिमिनल आई की । बाप समझाते हैं काम महाशत्रु है, इनको जीतने के लिए कितना माथा मारते हैं । मूल बात है ही पवित्रता की । इस पर ही कितने झगड़े होते हैं । बाप कहते हैं यह काम महाशत्रु है, इन पर जीत पहनो तब ही जगत जीत बनेंगे । देवतायें सम्पूर्ण निर्विकारी हैं ना । आगे चल समझ ही जायेंगे । स्थापना हो ही जायेगी । अच्छा! 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. कभी भी सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास करके अपनी स्थिति खराब नहीं करनी है । अन्दर में सफाई रखनी है । झूठी बातें सुनकर अन्दर में जलना नहीं है, ईश्वरीय मत ले लेनी है । 

2. देही- अभिमानी बनने का पूरा पुरुषार्थ करना है, किसी की भी निंदा नहीं करनी है । फायदा, नुकसान और इज्जत को ध्यान में रखते हुए क्रिमिनल आई को खत्म करना है । बाप जो सुनाते हैं उसे एक कान से सुनकर दूसरे से निकालना नहीं है ।

 

वरदान:-

श्रेष्ठ स्मृति द्वारा श्रेष्ठ स्थिति और श्रेष्ठ वायुमण्डल बनाने वाले सर्व के सहयोगी भव !   

योग का अर्थ है श्रेष्ठ स्मृति में रहना । मैं श्रेष्ठ आत्मा श्रेष्ठ बाप की सन्तान हूँ, जब ऐसी स्मृति रहती है तो स्थिति श्रेष्ठ हो जाती है । श्रेष्ठ स्थिति से श्रेष्ठ वायुमण्डल स्वत: बनता है जो अनेक आत्माओं को अपनी ओर आकर्षित करता है । जहाँ भी आप आत्मायें योग में रहकर कर्म करती हो वहाँ का वातावरण, वायुमण्डल औरों को भी सहयोग देता है । ऐसी सहयोगी आत्मायें बाप को और विश्व को प्रिय हो जाती हैं ।

 

स्लोगन:- 

अचल स्थिति के आसन पर बैठने से ही राज्य का सिंहासन मिलेगा ।     

 

ओम् शान्ति |