29-08-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - चैतन्य अवस्था में रह बाप को याद करना है, सुन्न अवस्था में चले जाना या नींद करना - यह कोई योग नहीं”   

                            
प्रश्न:-   
तुम्हें आँखें बन्द करके बैठने की मना क्यों की जाती है?


उत्तर:-
अगर तुम आँख बन्द करके बैठेंगे तो दुकान का सारा सामान ही चोर चोरी करके ले जायेंगे । माया चोर बुद्धि में कुछ भी धारणा होने नहीं देगी । आँख बन्द करके योग में बैठेंगे तो नींद आ जायेगी । पता ही नहीं चलेगा इसलिए आँखें खोलकर बैठना है । कामकाज करते बुद्धि से बाप को याद करना है । इसमें हठयोग की बात नहीं है ।

 

ओम् शान्ति |

रूहानी बाप कहते हैं बच्चों को, यह भी बच्चा है ना । देहधारी सब बच्चे हैं । तो रूहानी बाप आत्माओं को कहते हैं, आत्मा ही मुख्य है । यह तो अच्छी रीति समझो । यहाँ जब सामने बैठते हो तो ऐसे नहीं शरीर से न्यारा हो गुम हो जाना है । शरीर से न्यारा हो गुम हो जाना, यह कोई याद के यात्रा की अवस्था नहीं है । यहाँ तो सुजाग हो बैठना है । चलते फिरते, उठते बैठते अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है । बाप ऐसे नहीं कहते यहाँ बैठे बेहोश हो जाओ । ऐसे बहुत बैठे-बैठे गुम हो जाते हैं । तुम्हें तो सुजाग होकर बैठना है और फिर पवित्र भी बनना है । पवित्रता बिगर धारणा नहीं होगी, किसका कल्याण नहीं कर सकेंगे, किसको कह नहीं सकेंगे । खुद पवित्र रहते नहीं और दूसरे को कहते हैं, वह तो पण्डित हो गया । मियाँ मिटठू भी नहीं बनना है, फिर वह दिल अन्दर खाता रहेगा । ऐसे मत समझो हम सुन्न में चले जाते हैं । आँखें बन्द हो जाती है, यह कोई याद की अवस्था नहीं है, इसमें चैतन्य अवस्था में रह बाप को याद करना है । नींद करना कोई याद करना नहीं है । बच्चों को कई पॉइंट्स समझाई जाती है । शास्त्रों में दिखाया गया है - सातवीं भूमिका में चले जाते हैं, उनको दुनिया का पता नहीं पड़ता है । तुमको तो दुनिया का पता है ना । यह छी-छी दुनिया है । बाप को कोई जानते नहीं हैं’ । अगर बाप को जानते तो सृष्टि चक्र को भी जान जाएं । बाप बतलाते हैं यह चक्र कैसे फिरता है । मनुष्य पुनर्जन्म कैसे लेते हैं । सतयुग में भल बड़ी आयु हो जाती तो भी बदसूरत नहीं होंगे । बाकी संन्यासियों का तो है हठयोग । आँखें बन्द करना, गुफाओं में बैठे-बैठे बेसूरत बन जाना... । तुमको तो बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते सुजाग रहना है । सुन्न में चले जाना, यह कोई अवस्था नहीं है । धन्धा आदि भी करना है, गृहस्थ व्यवहार भी सम्भालना है । सुन्न में नहीं जाना है । काम- काज करते बुद्धि से बाप को याद करना है । जरूर काम करेंगे, आँखें खोलकर करेंगे ना । धन्धा आदि सब कुछ करते रहो । बुद्धि योग बाप के साथ हो । इसमें गफलत नहीं करनी है । दुकान पर बैठे आँखें बन्द हो जायेगी तो कोई सामान ही ले जायेंगे और पता भी नहीं पड़ेगा । यह कोई अवस्था नहीं । हम देह से न्यारे हो जाते हैं, यह सब हठयोगियो की बातें हैं । रिद्धि सिद्धि वाले करते हैं । बाप तो अच्छी रीति बैठ समझाते हैं, इसमें आँखें नहीं बन्द करनी है । 

बाप कहते हैं मित्र सम्बन्धियों को जो बैठ याद करते हो, वह सब भूल जाओ । एक बाप को याद करना है । सिवाए याद की यात्रा के पाप कट नहीं सकते । भोग ले जाते हैं, गुम हो जाते हैं सूक्ष्मवतन में । इसमें क्या होता है? जितना समय वहाँ हैं विकर्म विनाश हो न सकें । शिवबाबा को याद कर न सकें । न बाबा की वाणी सुन सकेंगें । तो घाटा पड़ जाता है । परन्तु यह ड्रामा में नूंध है इसलिए जाते हैं । फिर आकर मुरली सुनते हैं इसलिए बाबा कहते हैं जाओ, फौरन आओ, बैठो नहीं । खेलपाल करना बाबा ने बन्द कर दिया है । यह भी घूमना फिरना रुलना हुआ ना । भक्ति मार्ग में रुलना पिटना बहुत होता है क्योंकि अन्धियारा मार्ग है ना । मीरा ध्यान में वैकुण्ठ में चली जाती थी । वह योग व पढ़ाई थोड़े ही थी । क्या उसने सद्गति को पाया? स्वर्ग जाने लायक बनी? जन्म-जन्मान्तर के पाप कटे? बिल्कुल नहीं । जन्म-जन्मान्तर के पाप तो बाप की याद से ही कटते हैं । बाकी साक्षात्कार आदि से कोई फायदा नहीं होता । यह तो सिर्फ भक्ति है । न याद है, न ज्ञान है । भक्ति मार्ग में यह सिखलाने वाला कोई होता ही नहीं तो सद्गति को भी पाते नहीं । भल कितना भी साक्षात्कार हो, शुरू में तो बच्चियाँ आपेही चली जाती थी । मम्मा-बाबा थोड़ेही ही जाते थे । यह तो शुरू में बाबा को सिर्फ स्थापना और विनाश का साक्षात्कार हुआ । पीछे तो कुछ नहीं हुआ । हम किसको भी भेजते नहीं हैं । हाँ, बिठाकर कह देते बाबा इनकी रस्सी खींचों । वह भी ड्रामा में होगा तो रस्सी खींचेंगे, नहीं तो नहीं । साक्षात्कार तो ढेर होते हैं । जैसे शुरू में बहुत साक्षात्कार करते थे, पिछाड़ी में भी बहुत साक्षात्कार करेंगे, मिरूआ मौत मलूका शिकार..... इतने ढेर मनुष्य हैं, वह सब शरीर छोड़ देंगे । शरीर सहित कोई सतयुग में वा शान्तिधाम में नहीं जायेंगे । कितने ढेर मनुष्य हैं, सब विनाश को प्राप्त करेंगे। बाकी एक आदि सनातन देवी- देवता धर्म की स्थापना हो रही है ब्रह्मा द्वारा । तुम बच्चियाँ गाँव-गाँव में जाकर कितनी सर्विस करती हो । यही कहती हो कि अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो । संन्यासी तो राजयोग सिखलाना जानते नहीं । बाप बिगर राजयोग सिखलावे कौन? तुम बच्चों को बाप अभी राजयोग सिखला रहे हैं । फिर राजाई मिल जाती है । तुम अपार सुखों में रहते हो । वहाँ तो फिर याद करने की दरकार ही नहीं । रिंचक भी दु :ख नहीं होता है । आयु भी बड़ी, काया भी निरोगी होती है । यहाँ कितने दु :ख हैं । ऐसे तो नहीं बाप ने दु :ख के लिए खेल रचा है । यह तो खेल सुख-दुख, हार-जीत का आदि अनादि है । इन सब बातों को संन्यासी जानते ही नहीं तो समझा कैसे सकते । वह तो भक्ति मार्ग के शास्त्र आदि पढ़ने वाले हैं । तुमको कहा जाता है - अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो । वह संन्यासी फिर आत्मा समझ ब्रह्म को याद करते हैं । बह्म को परमात्मा समझते हैं, ब्रह्म ज्ञानी हैं । वास्तव में ब्रह्म है रहने का स्थान । जहाँ तुम आत्माएं रहती हो वह फिर कहते हम उनमें लीन होंगे । उनका ज्ञान ही सारा उल्टा है । यहाँ तो बेहद का बाप तुम बच्चों को पढ़ाते हैं । वह कहते भगवान 40 हजार वर्ष बाद आयेगा, इसको कहा जाता है अज्ञान अन्धियारा । बाप कहते हैं नई दुनिया की स्थापना और पुरानी दुनिया का विनाश करने वाला तो मैं हूँ । मैं स्थापना कर रहा हूँ, विनाश भी सामने खड़ा है । अब जल्दी करो । पावन बनो तब ही पावन दुनिया में जायेंगे । यह तो पुरानी तमोप्रधान दुनिया है ।  

लक्ष्मी-नारायण का राज्य थोड़े ही है । इनका राज्य नई दुनिया में था, अब नहीं है । यह पुनर्जन्म लेते आये हैं । शास्त्रों में तो क्या-क्या लिख दिया है । कृष्ण को दिखाया है अर्जुन के घोड़े गाड़ी में बैठा है । ऐसे नहीं कि अर्जुन के अन्दर कृष्ण बैठा है । कृष्ण तो देहधारी था ना, न कोई लड़ाई आदि की बात है । उन्होंने तो पाण्डवों और कौरवों का लश्कर अलग- अलग कर दिया है । यहाँ तो वह बात नहीं । यह भक्ति मार्ग के अथाह शास्त्र हैं । सतयुग में यह होते नहीं । वहाँ तो ज्ञान की प्रालब्ध राजधानी है । वहाँ सुख ही सुख है । बाप नई दुनिया स्थापन करते हैं तो जरूर नई दुनिया में सुख होगा ना । बाप कभी पुराना मकान बनाते हैं क्या | बाप तो नया मकान बनाते हैं । वह हैं हद के मकान । यह है नई दुनिया बनाने वाला, जिसको सतोप्रधान कहा जाता है । अभी तमोप्रधान अपवित्र हैं । अभी तुम पराये रावण राज्य में बैठे हो । राम तो कहा जाता है शिवबाबा को, राम-राम कह राम नाम का दान देते हैं । अब कहाँ राम, कहाँ शिवबाबा । अब शिवबाबा तुम बच्चों को कहते हैं मामेकम् याद करो । जहाँ से आये हो वहाँ ही फिर जाना है, जब तक बाप को याद कर पवित्र नहीं बनेंगे तो वापिस भी जा नहीं सकेंगे । तुम्हारे में भी कोई विरले हैं जो अच्छी रीति बाप को याद करते हैं । मुख से तो कहने की बात नहीं । भक्ति में राम-राम मुख से कहते हैं । कोई नहीं कहेंगे तो समझेंगे यह नास्तिक है । कितना आवाज करके गाते हैं । जितना झाड़ बड़ा होता है, उतनी भक्ति की सामग्री बड़ी होती जाती है । बीज कितना छोटा होता है । तुम तो कोई चीज़ नहीं, कोई आवाज नहीं । सिर्फ कहते हैं- अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो । मुख से कहना भी नहीं है । लौकिक बाप को भी बच्चे बुद्धि से याद करते हैं । बाबा-बाबा बैठकर कहते थोड़े ही हैं । तुम अभी जानते हो आत्माओं का बाप कौन है । आत्माएं तो सब भाई- भाई हैं । आत्मा को और कोई नाम नहीं । बाकी शरीर का नाम बदलता है । आत्मा तो आत्मा ही है । वह भी परम आत्मा । उनका नाम है शिव । उनको अपना शरीर है नहीं । बाप कहते हैं मुझे भी अगर शरीर होता तो पुनर्जन्म में आना पड़ता । तुमको फिर सद्गति कौन देते? भक्ति मार्ग में मुझे याद करते हैं । अनेक चित्र हैं । अभी तुम नर्कवासी से स्वर्गवासी बनते हो ना । जन्म तो नर्क में लिया है । भले स्वर्ग के लिए । यहाँ तुम आये ही हो स्वर्ग में जाने के लिए । जैसे कोई ब्रिज आदि बनाते हैं, तो पहले फाउण्डेशन सेरीमनी कर लेते हैं फिर ब्रिज बनती रहती है । स्वर्ग की स्थापना का उद्घाटन (फाउण्डेशन सेरीमनी) बाप ने कर लिया है, अब तैयारी होती रहती है । मकान बनने में टाइम लगता है क्या? गवर्नमेंट करने पर आये तो एक मास में मकान खड़ा कर ले । विलायत में तो मकान तैयार मिलते हैं । स्वर्ग में तो बहुत विशाल बुद्धि सतोप्रधान होते हैं । साइंस की बुद्धि तीखी होती है । झट बनाते जायेंगे, मकानों में जड़ित भी लगती जायेगी । आजकल इमीटेशन देखो कितना जल्दी बनाते रहते हैं । वह तो फिर रीयल से भी जास्ती चमकता है । और आजकल की मशीनरी से झट बना लेते हैं । वहाँ मकान बनने में देरी नहीं लगती, सफाई आदि होने में टाइम लगता है । ऐसे नहीं कि सोने की द्वारिका समुद्र से निकल आयेगी । तो बाप कहते हैं खाओ पिओ भल, सिर्फ बाप को याद करो तो विकर्म विनाश हो, और कोई उपाय नहीं । जन्म-जन्मान्तर यह गंगा स्नान आदि करते आये हो परन्तु कोई भी मुक्ति-जीवनमुक्ति को तो पाते ही नहीं । यहाँ तो बाप पावन बनने की युक्ति बताते हैं । बाप कहते हैं मैं ही पतित-पावन हूँ । तुमने बुलाया है हे पतित-पावन बाबा आओ, आकर के हमको पावन बनाओ । ड्रामा पूरा हुआ तो फिर सब एक्टर्स स्टेज पर होने चाहिए । क्रियेटर भी होना चाहिए । सब खड़े हो जाते है ना । यह भी ऐसे है । सभी आत्माएं आ जायेगी फिर वापिस जाना होगा । अभी तुम तैयार नहीं हुए हो । कर्मातीत अवस्था ही नहीं हुई है तो विनाश कैसे होगा । बाप आते ही हैं तुमको नई दुनिया के लिए पढ़ाने, वहाँ काल होता ही नहीं । तुम काल पर जीत पाते हो । कौन जीत पहनाते हैं?कालों का काल । वह कितनों को साथ ले जाते हैं’ | तुम खुशी से जाते हो । अब बाप आये हैं सबका दु :ख दूर करने इसलिए उनकी महिमा गाते हैं, गॉड फादर लिबरेट करो, दुःख से । शान्तिधाम-सुखधाम में ले चलो । परन्तु यह तो मनुष्यों को पता नहीं कि अभी बाप स्वर्ग की रचना रच रहे हैं । तुम स्वर्ग में जायेंगे वहाँ झाड़ बहुत छोटा होगा फिर वृद्धि को पाएगा । अभी और सब धर्म हैं, वह एक धर्म है नहीं । नाम, रूप, राजाई आदि बदल जाती है । पहले डबल ताज, फिर सिंगल ताज वाले होते हैं । सोमनाथ का मन्दिर बनाया है, कितना धन था । सबसे बड़ा मन्दिर एक है जिसको लूटकर ले गये । बाप कहते हैं तुम पदमापदम् भाग्यशाली बनते हो । कदम-कदम पर बाप को याद करते रहो तो पदम् इकट्ठे होंगे । इतनी कमाई बाप को याद करने से होती है । फिर ऐसे बाप को याद करना तुम भूलते क्यों हो? जितना बाप को याद करेंगे, सर्विस करेंगे उतना ऊंच पद पाएंगे । अच्छे- अच्छे बच्चे चलते-चलते गिर पड़ते हैं । काला मुँह किया तो की कमाई चट हो जाती है । जबरदस्त लाटरी गँवा देते हैं । अच्छा

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. गृहस्थ व्यवहार सम्भालते हुए बुद्धियोग बाप के साथ रखना है । गफलत नहीं करनी है । पवित्रता की धारणा से अपना और सर्व का कल्याण करना है ।

2. याद की यात्रा और पढ़ाई में ही कमाई है, ध्यान दीदार तो घूमना है इसलिए उससे कोई फायदा नहीं । जितना हो सकें सुजाग हो, बाप को याद कर अपने विकर्म विनाश करने है ।

 

वरदान:-

बाप के संस्कारों को अपने ओरिजिनल संस्कार बनाने वाले शुभभावना, शुभकामनाधारी भव !    

अभी तक कई बच्चों में फीलिंग के, किनारा करने के, परचिंतन करने वा सुनने के भिन्न-भिन्न संस्कार हैं, जिन्हें कह देते हो कि क्या करें मेरे ये संस्कार हैं.... ये मेरा शब्द ही पुरुषार्थ में ढीला करता है । यह रावण की चीज़ है, मेरी नहीं । लेकिन जो बाप के संस्कार हैं वही ब्राह्मणों के ओरिजिनल संस्कार हैं । वह संस्कार हैं विश्वकल्याणकारी, शुभ चिंतनधारी । सबके प्रति शुभ भावना, शुभकामनाधारी ।

 

स्लोगन:- 

जिनमें समर्थी है वही सर्व शक्तियों के खजाने का अधिकारी है ।   

 

ओम् शान्ति |