25-12-13       प्रातः मुरली       ओम् शान्ति   “बापदादा”     मधुबन


मीठे बच्चे यह बना-बनाया अनादि ड्रामा है, इस ड्रामा में हर एक एक्टर की एक्ट फिक्स है, मोक्ष किसको भी नहीं मिल सकता |    

प्रश्न:-   
शिवबाबा अशरीरी है, वह शरीर में किसलिए आते हैं? कौनसा काम करते हैं और कौनसा नहीं?

उत्तर:-

बाबा कहते – बच्चे, मैं इस शरीर में तुम्हें सिर्फ़ मुरली सुनाने आता हूँ | मैं मुरली सुनाने का ही काम करता हूँ | मैं खाने पीने के लिए नहीं आता हूँ | मैं आया हूँ तुम्हें नई राजधानी देने | बाकी स्वाद तो इनकी आत्मा लेती है |

गीत:-
 
छोड़ भी दे आकाश सिंहासन....    

ओम् शान्ति |
गीत बजाये ही वह जाता है जिसमें अपना तैलुक है | आकाश में कोई तख़्त नहीं है | आकाश इस पोलर को कहा जाता है | बाकी आकाश तत्व में तो तख़्त नहीं है | न परमपिता परमात्मा इस आकाश में तख़्त पर रहता है | बाप बच्चों को समझाते हैं – हम परमपिता परमात्मा और तुम बच्चे जो आत्मायें हो, दोनों इस सूर्य, चाँद, सितारों से उस पार रहते हैं, उसको मूलवतन कहा जाता है | जैसे यहाँ आकाश में सूर्य, चाँद, सितारे हैं वैसे हुबहू झाड़ के मुआफ़िक महतत्व में भी आत्मायें रहती हैं | जैसे सितारे आकाश पर खड़े हैं, कोई चीज़ पर आधार नहीं है | अहम् आत्मायें और परमात्मा बाप, हम सब रहने वाले महतत्व में हैं | स्टार मुआफ़िक ही हैं | ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा, ज्ञान सितारे | अब यह तो समझाया है जब-जब भीड़ पड़ती है (दुःख होता है) तब आता हूँ | पुराने को नया बनाना है ज़रूर | पुराने में ही भीड़ होती है, कलियुग में है दुःख की भीड़ | स्वर्ग में तो सुख ही सुख है | फिर से मुझे आकर सहज ज्ञान और सहज राजयोग सिखलाना होता है | सब बुलाते हैं कि आओ | कृष्ण के लिए नहीं कहते कि सिंहासन छोड़कर आ जाओ | कृष्ण के लिए सिंहासन अक्षर शोभता नहीं | वह तो प्रिन्स था ना | सिंहासन तब कहें जबकि राजगद्दी मिले | हाँ, छोटे बच्चे को बाप गोद में वा बाजू में बिठा सकते हैं | तो बाप समझाते हैं आत्मायें मूलवतन में स्टार मुआफ़िक हैं | फिर वहाँ से नम्बरवार आती रहती हैं | दिखाते हैं ना स्टार्स कैसे गिरते हैं | वहाँ से भी आत्मायें आकर सीधा गर्भ में जाती हैं | यह अच्छी रीति नोट करो – हर एक आत्मा को सतो, रजो, तमो से पास करना है | जैसे पहले लक्ष्मी-नारायण आयेंगे तो उनको सतो-रजो अवस्था से पास होते, पुर्नजन्म लेते-लेते फिर सतोप्रधान अवस्था को पाना ही है | हर एक का ऐसे है | वापिस जा नहीं सकते | इब्राहम, बुद्ध आते हैं, उनको भी सतो, रजो, तमो से पास करना है, पुनर्जन्म लेना पड़ता है | द्वापर में धर्म स्थापक आते हैं | वहाँ से पुर्नजन्म शुरू होता है फिर सतोप्रधान बनना है | अब उनकी सद्गति कौन करे? सद्गति दाता तो एक ही शिव है | कहते हैं सबकी सद्गति करने मुझे आना पड़ता है | मेरे जैसा काम और कोई कर नहीं सकता | मैं दैवी-देवता धर्म की स्थापना करता हूँ | तुमको राजयोग सिखा रहा हूँ | गति और सद्गति दाता तो मैं हूँ | जब तुम प्योर बन जाते हो तो फिर मैं तुमको वापिस ले जाता हूँ | तुम्हारी भी सद्गति करता हूँ | तुम्हारे साथ जो अनेक धर्म वाले हैं उन धर्म स्थापकों सहित सबको उद्धार करता हूँ | तुमको ज्ञान से श्रृंगार कर स्वर्ग के मालिक लक्ष्मी अथवा नारायण को वरने लायक बनाता हूँ | फिर तुनको वापिस ले जाता हूँ | सबको पहले मुक्तिधाम भेज देता हूँ, सबका सद्गति दाता भी हूँ | दूसरे धर्म स्थापक जो आते हैं वह सद्गति नहीं करते | वह सिर्फ़ अपना धर्म स्थापन कर उनकी वृद्धि करने लग पड़ेंगे | अपने धर्म में पुनर्जन्म लेते सतो, रजो, तमो से पास करेंगे | अभी सब तमोप्रधान हैं | अब इनको पावन सतोप्रधान कौन बनाये? बाप खुद बैठ बच्चों को समझाते हैं | भगवान् आकर सबकी सद्गति भी करते हैं, भारत को स्वर्ग भी बनाते हैं | जीवनमुक्ति के लिये राजयोग सिखाते हैं इसलिए बाप की इतनी महिमा है | गीता है सर्वशास्त्रमई शिरोमणी | परन्तु कृष्ण का नाम लिख देने से भगवान् को भूल गये हैं | भगवान् तो सबका सद्गति दाता है इसलिए गीता सब धर्म वालों के लिए धर्म-शास्त्र है, सबको इसे मानना पड़े | सद्गति का शास्त्र और कोई है नहीं | सद्गति देने वाला है ही एक | उनकी ही गीता है | तुम बच्चों को सद्गति का ज्ञान दे रहे हैं | गीता में शिव का नाम होता तो सब धर्म वालों का यह शास्त्र होता | बाप सबको कहते हैं – अपने को आत्मा समझ मेरे साथ योग लगाओ तो विकर्म विनाश होंगे और तुम मेरे धाम आ जायेंगे | सब धर्म वालों की सद्गति करने वाला भी मैं हूँ | बाकी तो आते ही हैं अपना धर्म स्थापन करने | मनुष्य कहते हैं क्या मोक्ष नहीं मिलेगा? बाप कहते हैं नहीं | जो भी सब आत्मायें हैं, सबका पार्ट ड्रामा में फिक्स है | किसकी एक्ट बदल नहीं सकती | हर एक की पूरी एक्ट का अनादि ड्रामा बना हुआ है | ड्रामा अनादि है, उसका आदि, मध्य, अन्त नहीं है | सृष्टि की आदि सतयुग को कहा जाता और अन्त कलियुग को कहा जाता है | बाकी ड्रामा का आदि अन्त नहीं है | ड्रामा कब बना, यह नहीं कह सकते | यह प्रश्न नहीं उठता |

बाबा ने समझाया है कि और जो भी शास्त्र हैं, उनसे हर एक ने आकर अपना धर्म स्थापन किया है | सद्गति नहीं की है | उन्होंने तो धर्म स्थापन किया, उनके पीछे वृद्धि होती गई | कितनी-कितनी गुह्य प्वाइन्ट्स हैं | एसे (निबन्ध) लिखने जैसी हैं | यहाँ गपोड़े की बात नहीं | हार-जीत का यह ड्रामा है | सतयुग में परमात्मा को याद करने की दरकार नहीं | परमात्मा को याद करें तो फिर यह बातें भी समझें कि हम ब्राह्मणों को उसने रचा है | तुमको तो सम्मुख बतलाते हैं कि मैं रचता हूँ | यह ब्राह्मणों की नई दुनिया है संगम की | चोटी को तो कोई नहीं जानते | विराट रूप बनाते हैं | उसमें देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र दिखाते हैं | ब्राह्मणों को भूल गये हैं | सतयुग में देवतायें, कलियुग में शूद्र | संगमयुगी ब्राह्मणों को जानते नहीं | यह राज़ बाप आकर समझाते हैं | बाबा कहते हैं – पवित्रता बिगर कभी धारणा नहीं हो सकती है | बाबा समझाते हैं – कितने ढेर वेद-शास्त्र हैं | परिक्रमा दिलाते हैं | मन्दिरों से चित्र निकाल परिक्रमा दिलाए फिर वापिस मन्दिर में ले आते हैं | बाबा अनुभवी हैं | शास्त्रों से गाड़ी भरकर परिक्रमा देते हैं, ऐसे ही फिर देवताओं के चित्र भी गाड़ी में रख परिक्रमा दिलाते हैं | यह सब है भक्ति मार्ग |

तुम हो शिव शक्तियां | तुम सारे विश्व की सद्गति करती हो | परन्तु यह कोई जानते नहीं कि देलवाड़ा मन्दिर हुबहू इन्हों का यादगार है | ऐसा मन्दिर कहीं नहीं है | जगदम्बा है, शिवबाबा भी है | शक्तियों का चबूतरा भी बना हुआ है | भक्ति मार्ग में फिर से ऐसे मन्दिर बनेंगे | फिर विनाश होगा | तो यह सब ख़त्म हो जायेगा | सतयुग में कोई मन्दिर होता नहीं | यह सब भक्ति मार्ग का विस्तार है | ज्ञान में तो चुप रहना है | एक शिवबाबा को याद करना है | शिवबाबा को भूल औरों को याद करेंगे तो अन्त में फेल हो जायेंगे | फेल नहीं होना है | मनुष्य मरते हैं तो उनको कहते हैं राम-राम कहो, परन्तु ऐसे याद आता नहीं है | फिर भी गाया जाता है अन्तकाल जो नारायण सिमरे.....बात अभी की है | भंभोर को आग तो लगनी है | अन्तकाल जो नारायण सिमरे | बरोबर अब तुम समझते हो हम नारायण वा लक्ष्मी को वरेंगे | स्वर्ग के लिए तैयार हो रहे हो | बाबा बिगर यह ज्ञान कोई दे नहीं सकते | यह बाबा भी कहते हैं कि अब हमको शिवबाबा ने बताया है | इनको शक्ति सेना वा पाण्डव सेना कहा जाता है | पाण्डव नाम है महारथियों पर | शक्तियों की फिर शेर पर सवारी दिखाते हैं | तो बाप कहते हैं जैसे कल्प पहले सहज राजयोग सिखाया था, हुबहू इसी प्रकार सिखा रहा हूँ | जो भी एक्ट चलती है वही चलेगी | इनमें फ़र्क नहीं पड़ सकता | फिर कल्प-कल्प यह पार्ट चलेगा | बाबा कहते हैं तुमको गुह्य-गुह्य बातें सुनाता हूँ | पीछे क्या होने वाला है सो तो फिर पीछे सुनायेंगे ना | अभी सब सुना दूँ तो क्या बस वापिस चला जाऊं? अन्त तक नई पाइंट्स सुनाते रहेंगे | हम गीता की महिमा बहुत करते हैं | परन्तु उस गीता वा महाभारत में तो हिंसक लड़ाई आदि दिखा दी है | अब लड़ाई तो है नहीं | तुन्हारी तो है योगबल की बात | अहिंसा का अर्थ कोई भी नहीं जानते | सिर्फ़ स्त्री को नर्क का द्वार कह दिया है | वास्तव में नर्क का द्वार तो दोनों हैं | अब उनको फिर स्वर्ग का द्वार कौन बनाये? वह तो भगवान् की ही ताकत है | यह गीत बाबा ने बनवाये हैं फिर बनाने वालों ने कोई ने ठीक बनाया है, कोई ने रांग बनाया है | मिक्स कर दिया है | रात के राही थक मत जाना.....ऐसे-ऐसे गीत मैंने बनवाये हैं | तो यहाँ की बातें और हैं | गऊशाला भी है, वनवास भी है परन्तु अर्थ नहीं समझते | हमने किसको भगाया क्या? किसको कभी कहा था कि कराची में चले आना? पूछो इन शक्तियों से? यह ड्रामा में पार्ट था | जिन पर सितम हुए तो चले आये | तो राइट क्या है वह बाप बैठ बतलाते हैं | शास्त्रों में तो जो लिखा है वह है भक्ति मार्ग | उनसे तो मेरे से मिल नहीं सकते, मेरे पास आ नहीं सकते | मुझे तो गाइड बन यहाँ आना पड़ता है | कहते हैं ऐसा तन क्यों नहीं लिया जो गृहस्थी न हो | अरे, मुझे तो गृहस्थी के तन में ही आकर उनको ज्ञान देना है | उनके ही 84 जन्म बताता हूँ | तो कितनी गुह्य बातें हैं | यह नए धर्म के लिए नई बातें, ज्ञान भी नया है | बाप कहते हैं कल्प-कल्प मैं यह ज्ञान सुनाता हूँ | और कोई ऐसे कभी नहीं कहेंगे कि मैं कल्प-कल्प धर्म स्थापन करने आता हूँ | लक्ष्मी-नारायण दोनों नहीं कहेंगे कि हम फिर से राजाई करने आये हैं | वहाँ यह ज्ञान ही प्रायः लोप हो जाता है | शास्त्र तो बाद में अनेक बना दिये हैं | हम ब्राह्मणों के लिए एक ही गीता है | धर्म भी स्थापन करता हूँ और सद्गति भी सबकी करता हूँ | डबल काम हुआ ना | अब हम जो सुनाते हैं वह राइट है या उन्हों का राइट है | सो तो तुम जानते हो | मैं कौन हूँ? मैं ट्रुथ हूँ | मैं कोई वेद शास्त्र नहीं सुनाता हूँ | भल इसने पढ़े तो बहुत हैं परन्तु वह सुनाते थोड़ेही हैं | यह तो शिवबाबा नई-नई बातें सुनाते हैं, वह तो अशरीरी है | सिर्फ़ यह मुरली सुनाने का काम करने आते हैं, न कि खाने-पीने आते हैं | मैं तो आया ही हूँ तुम बच्चों को फिर से राजधानी देने | स्वाद इनकी आत्मा लेती है |

हर एक का धर्म अलग है, उन्हें अपना धर्म शास्त्र पढ़ना है | यहाँ तो ढेर शास्त्र पढ़ते रहते हैं, सार कुछ भी नहीं है | जितना पढ़ते रहते, असार संसार होता जाता है | तमोप्रधान बनना ही है | पहले-पहले सृष्टि में तुम आये हो | तुम ब्राह्मणों ने मात-पिता से जन्म लिया है | उस तरफ़ है आसुरी कुटुम्ब, यहाँ है ईश्वरीय कुटुम्ब | फिर जाकर दैवी गोद लेंगे, स्वर्ग के मालिक बनेंगे | मात-पिता की मत पर चलेंगे तो स्वर्ग के सुख घनेरे मिलेंगे | बाकी रूद्र ज्ञान यज्ञ में विघ्न तो ज़रूर पड़ेंगे | बाप कहते हैं – बच्चे, विकारों पर जीत पाने से ही तुम जगतजीत बन सकते हो | ऐसे थोड़ेही शादी नहीं करेंगे तो कमज़ोर रह जायेंगे | सन्यासी पवित्र बनते हैं फिर वह कितने मोटे तन्दरुस्त रहते हैं | यहाँ तो ब्रेन का काम है, मेहनत है, दधीचि ऋषि का मिसाल है ना | सन्यासियों को तो बहुत माल मिलता है | बाबा खुद बहुत माल खिलाते थे | यहाँ तो बहुत परहेज रखनी पड़ती है | अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1.  ज्ञान की अच्छी धारणा के लिए पवित्रता के व्रत को अपनाना है | अन्तकाल है इसलिए ऐसा अभ्यास करना है जो एक बाप के सिवाए और कोई या न आये |


2. 
दधीचि ऋषि मिसल सेवा करते विकारों पर विजय प्राप्त कर जगतजीत बनना है |


वरदान:-
 
अनुभवों की सम्पन्नता द्वारा सदा उमंग-उल्लास में रहने वाले मा. आलमाइटी अथॉरिटी भव !    

अनुभव् बड़े से बड़ी अथॉरिटी है, हर गुण, हर शक्ति, हर ज्ञान के प्वाइंट के अनुभवों में सम्पन्न बनो तो चेहरे पर सदा उमंग-उल्लास की चमक दिखाई देगी | अब सुनने सुनाने के साथ-साथ अनुभवी मूर्त बनने का विशेष पार्ट बजाओ | अनुभव की अथॉरिटी वाले स्वयं को सदा भरपूर आत्मा अनुभव करेंगे | जैसे बीज भरपूर होता है ऐसे ज्ञान, गुण, शक्तियां सबमें भरपूर होने के कारण मा. आलमाइटी अथॉरिटी बन जाते हैं |


स्लोगन:-
 
अमृतवेला विशेष प्रभु पालना की वेला है, इसका महत्व जान पूरा लाभ लो |       


ओम् शान्ति
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