18-02-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
मैं सदा वाणी से परे हूँ, मैं आया हूँ तुम बच्चों को उपराम
बनाने, अभी तुम सबकी वानप्रस्थ अवस्था है, अब वाणी से परे घर
जाना है
| 
प्रश्न:-
अच्छा पुरुषार्थी स्टूडेन्ट किसको कहेंगे? उनकी मुख्य निशानी
सुनाओ?
उत्तर:-
अच्छा पुरुषार्थी स्टूडेन्ट वह, जो अपने आपसे बातें करना जानता
हो, सूक्ष्म स्टडी करता हो | पुरुषार्थी स्टूडेन्ट सदा अपनी
जाँच करते रहेंगे कि हमारे में कोई आसुरी स्वभाव तो नहीं हैं?
दैवीगुण कहाँ तक धारण किये हैं? वह अपना रजिस्टर रखते हैं कि
भाई-भाई की दृष्टि सदा रहती है? क्रिमिनल ख्यालात तो नहीं चलते
हैं?
ओम्
शान्ति
|
रूहानी बच्चों प्रति, जो भी वाणी से परे जाने लिए, गोया घर
जाने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं | वह सभी आत्माओं का घर है |
तुम समझते हो अभी हमको यह शरीर छोड़कर घर जाना है | बाप कहते
हैं मैं आया हूँ तुमको घर ले जाने अर्थ, इसीलिए इस देह और देह
के सम्बन्धों से उपराम होना है | यह तो छी-छी दुनिया है | यह
भी आत्मा जानती है हमको अब जाना है | बाप आया है पावन बनाने के
लिए | फिर से हमको पावन दुनिया में जाना है | यह अन्दर में
विचार सागर मंथन होना चाहिए | और कोई को ऐसे विचार नहीं आयेगा
| तुम समझते हो हम खुद अपनी दिल से यह शरीर छोड़ अपने घर जाकर
फिर नए पवित्र समबन्ध में, नई दुनिया में आयेंगे | यह स्मृति
भी बहुत थोड़ों को रहती है | बाप कहते हैं छोटे, बड़े, बूढ़े आदि
सबको वापिस चलना है | फिर नई दुनिया में पावन सम्बन्ध में आना
है | घड़ी-घड़ी बुद्धि में आना चाहिए कि हम अब घर जाने के लिए
तैयारी कर रहे हैं | जो करेंगे वो ही साथ चलेंगे | जो अभी
ईश्वर अर्थ करते हैं वह जाकर पदमापदमपति बनते हैं नई दुनिया
में | वह लोग इस पुरानी दुनिया में इनडायरेक्ट करते हैं |
समझते हैं ईश्वर इसका फल देंगे | अब बाप समझाते हैं वह तुमको
अल्पकाल क्षण भंगुर मिलता है | अब मैं आया हूँ, तुमको राय देता
हूँ – अभी जो देंगे वह तुमको 21 जन्म के लिए पदम होकर मिलेगा |
तुम समझते हो बड़े घर में जाकर जन्म लेंगे | हम तो नारायण अथवा
लक्ष्मी बनेंगे | तो फिर इतनी मेहनत करनी चाहिए | हम इस पुरानी
छी-छी दुनिया से जाने के लिए तैयारी कर रहे हैं | यह पुरानी
दुनिया, पुराना शरीर छोड़ना है | ऐसी तैयारी रहना चाहिए जो
पिछाड़ी के समय कोई भी याद न आये | अगर पुरानी दुनिया वा
मित्र-सम्बन्धी आदि याद आये तो क्या गति होगी? तुम कहते हो ना
अन्तकाल जो स्त्री सिमरे.....इसलिए बाप को फॉलो करना चाहिए |
ऐसे नहीं, बाबा बूढ़ा है तब समझते हैं यह शरीर छोड़ना ही है |
नहीं, तुम सब बूढ़े हो | सबकी वानप्रस्थ अवस्था है, सबको वापिस
जाना है इसलिए बाप कहते हैं इस पुरानी दुनिया से बुद्धियोग तोड़
दो | अब तो जाना है अपने घर | फिर जितना वहाँ ठहरना होगा उतना
वहाँ ठहरेंगे | जितना पीछे पार्ट होगा तो पीछे शरीर धारण कर
पार्ट बजायेंगे | कोई तो 100 वर्ष कम 5 हज़ार वर्ष भी शान्तिधाम
में रहेंगे | पिछाड़ी को आयेंगे | जैसे काशी कलवट खाते हैं, सब
पाप झट ख़लास हो जाते हैं | पिछाड़ी में आने वालों के पाप क्या
होंगे! आये और गये | बाकी मोक्ष कोई को मिल न सके | वहाँ रहकर
क्या करेंगे | पार्ट तो ज़रूर बजाना ही है | तुम्हारा पार्ट है
शुरु में आने का | तो बाप कहते हैं – बच्चे, इस पुरानी दुनिया
को भूलते जाओ | अब तो चलना है, 84 का पार्ट पूरा हुआ | तुम
पतित बन गये हो | अब फिर अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो |
दैवीगुण भी धारण करो |
बाप समझाते हैं – बच्चे, अपनी जाँच करते रहो – हमारे में कोई
आसुरी स्वभाव तो नहीं है? तुम्हारा दैवी स्वभाव होना चाहिए |
उसके लिए चार्ट रखो तो पक्के होते जायेंगे | परन्तु माया ऐसी
है जो चार्ट रखने नहीं देती | दो-चार दिन रखकर फिर छोड़ देते
हैं क्योंकि तक़दीर में नहीं है | तक़दीर में होगा तो बहुत अच्छी
रीति रजिस्टर रखेंगे | स्कूल में रजिस्टर ज़रूर रखते हैं | यहाँ
भी सभी सेन्टर्स में सबका चार्ट, रजिस्टर रखना है | फिर देखना
है हम रोज़ जाते हैं? दैवीगुण धारण करते हैं? भाई-बहन के
सम्बन्ध से भी ऊँच जाना है | सिर्फ़ रूहानी दृष्टि भाई-भाई की
चाहिए | हम आत्मा हैं | कोई की क्रिमिनल दृष्टि नहीं | भाई-बहन
का सम्बन्ध भी इसलिए है क्योंकि तुम ब्रह्माकुमार-कुमारियां हो
| एक बाप के बच्चे हो | इस संगमयुग पर ही भाई-बहन के सम्बन्ध
में रहते हैं | तो विकार की दृष्टि बन्द हो जाए | एक बाप को ही
याद करना है | वाणी से भी परे जाना है | ऐसे-ऐसे अपने से बातें
करना यह है सूक्ष्म स्टडी, इसमें आवाज़ करने की दरकार नहीं | यह
तो बच्चों को समझाने के लिए आवाज़ में आना पड़ता है | वाणी से
परे जाने लिए भी समझाना पड़ता है | अब वापिस जाना है | बाप को
बुलाया है कि आओ, हमको साथ ले जाओ | हम पतित हैं, वापिस जा
नहीं सकते | पतित दुनिया में अब पावन कौन बनाये! साधू-सन्त आदि
कोई पावन बना न सकें | खुद ही पावन होने के लिए गंगा स्नान
करते हैं | बाप को जानते नहीं | जिन्होंने कल्प पहले जाना है,
वही अब पुरुषार्थ कर रहे हैं | यह पुरुषार्थ भी बाप के बिना
कोई करा नहीं सकता | बाप ही सबसे ऊँच है | ऐसे बाप को पत्थर
ठिक्कर में कहने से मनुष्य का क्या हाल हो गया है! सीढी उतरते
ही आये हैं | कहाँ वह सम्पूर्ण निर्विकारी, कहाँ यह सम्पूर्ण
विकारी | इन बातों को मानेंगे भी वह जिन्होंने कल्प पहले माना
होगा | तुम्हारा फ़र्ज़ है जो भी आये उनको बाप का फ़रमान बताना |
सीढी के चित्र पर समझाओ | सभी की अब वानप्रस्थ अवस्था है | सभी
शान्तिधाम और सुखधाम में जायेंगे | सुखधाम में वह जायेंगे जो
आत्मा को बुद्धियोग बल से सम्पूर्ण पवित्र बनायेंगे | भारत का
प्राचीन योग भी गाया हुआ है | आत्मा को अब स्मृति आती है बरोबर
हम पहले-पहले आये हैं | अब फिर वापिस जाना है | तुमको अपना
पार्ट याद आता है | जो इस कुल में आने वाले नहीं हैं उनको याद
भी नहीं आता है कि हमको पवित्र बनना है | पवित्र बनने में ही
मेहनत करनी पड़ती है | बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ मुझे याद
करो तो विकर्माजीत बनेंगे और बहन-भाई समझो तो दृष्टि बदल
जायेगी | सतयुग में दृष्टि ख़राब नहीं होती | बाप तो समझाते
रहते हैं बच्चे अपने से पूछो – हम सतयुगी देवता हैं या कलियुगी
मनुष्य हैं? तुम बच्चों को बहुत अच्छे-अच्छे चित्र, स्लोगन आदि
बनाने चाहिए | एक कहे सतयुगी हो या कलियुगी? दूसरा फिर दूसरा
प्रश्न पूछे, ऐसे धूम मचा देनी चाहिए |
बाप तो श्रीमत देते हैं पतितों को पावन बनाने की | बाकी धन्धे
आदि से हम क्या जानें | बाप को बुलाया ही है कि आकर मनुष्य से
देवता बनने का रास्ता बताओ, वह मैं आकर बताता हूँ | कितनी
सिम्पुल बात है | इशारा ही बहुत सहज है – मनमनाभव | अपने को
आत्मा समझ बाप को याद करो | अर्थ न समझने कारण गंगा को
पतित-पावनी समझ लिया है | पतित-पावन तो बाप है | अभी सभी के
कयामत का समय है | हिसाब-किताब चुक्तू कराए वापिस ले जाते हैं
| बाप समझाते हैं तो समझते भी हैं परन्तु तक़दीर में नहीं है तो
गिर पड़ते हैं | बाप कहते हैं भाई-बहन समझो, कभी ख़राब दृष्टि न
जाये | किसको काम का भूत, लोभ का भूत आ जाता है, कभी अच्छा
खाना (भोजन) देखा तो आसक्ति जाती है | चने वाला देखेंगे, दिल
करेगी खाने की | फिर खा लिया तो कच्चे होने कारण जल्दी असर पड़
जाता है | बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है | माँ-बाप, अनन्य बच्चे
जिन्हों को सर्टिफिकेट देते हैं उनको फ़ालो करना चाहिए | यज्ञ
का जो मिले वह मीठा समझकर खाना चाहिए | जबान ललचायमान नहीं
करनी है | योग नहीं होगा तो कहेंगे फ़लानी चीज़ खानी चाहिए, नहीं
तो बीमार पड़ जायेंगे | बुद्धि में रहना चाहिए हम आए हैं देवता
बनने के लिए | अब हमको वापिस घर जाना है | फिर बच्चा बनकर माँ
की गोद में आयेंगे | माता का जो खान-पान होता है उसका असर
बच्चे पर भी पड़ता है | वहाँ यह कुछ भी बातें होती नहीं | वहाँ
सब कुछ फर्स्टक्लास होगा | हमारे लिए माता खाना आदि भी
फर्स्टक्लास खायेगी, जो हमारे पेट में आयेगा | वहाँ तो है ही
फर्स्टक्लास | जन्म लेने से ही खान-पान सब शुद्ध होता है | तो
ऐसे स्वर्ग में जाने की तैयारी करनी चाहिए | बाप को याद करना
है |
बाप आकर रिज्यूवनेट करते हैं | वह लोग तो बन्दर के ग्लान्स में
मनुष्य डालते हैं | समझते हैं हम जवान हो जायेंगे | जैसे हार्ट
नई डालते हैं | बाप कोई हार्ट नहीं डालते हैं | बाप तो आकर
चेन्ज करते हैं | बाकी यह सब है साइन्स | बाम्ब्स आदि बनाते
हैं | यह तो दुनिया को ही ख़लास करने की चीज़ें हैं | तमोप्रधान
बुद्धि है ना | वह तो खुश होते हैं कि यह भी भावी बनी हुई है |
बाम्ब्स ज़रूर बनने ही हैं | शास्त्रों में फिर लिखा हुआ है पेट
से मूसल निकले, फिर यह हुआ | अब बाप ने समझाया है यह सब भक्ति
मार्ग की बातें हैं | राजयोग तो मैंने ही सिखाया था | वह तो एक
कहानी हो गई, जो सुनते-सुनते यह हाल हो गया है | अब बाप सच्ची
सत्य-नारायण की कथा, तिजरी की कथा, अमरनाथ की कथा सुना रहे हैं
| इस पढ़ाई से तुम यह पद पाते हो | बाकी कृष्ण आदि तो हैं नहीं,
जो दिखाया है स्वदर्शन चक्र से सबको मारा | मैं तो सिर्फ़
राजयोग सिखलाकर पावन बनाता हूँ | हम तुमको स्वदर्शन चक्रधारी
बनाते हैं | उन्होंने फिर कृष्ण को चक्र आदि दिखाया है |
स्वदर्शन चक्र फिरायेंगे कैसे? जादू की थोड़ेही बात है | यह तो
सब ग्लानि है ना | सो भी आधाकल्प चलती है | कैसा वन्डरफुल
ड्रामा है | अभी छोटे-बड़े सबकी वानप्रस्थ अवस्था है | अब हमको
जाना है इसलिए बाप को याद करना है | दूसरा कुछ भी याद न आये |
ऐसी अवस्था हो तब ऊँच पद पा सको | अपनी दिल से पूछना चाहिए –
हमारा रजिस्टर कहाँ तक ठीक है? रजिस्टर से चलन का मालूम पड़ेगा
– रेग्युलर पढ़ते हैं वा नहीं? कोई तो झूठ भी बोल देते हैं |
बाप कहते हैं सच बताओ, नहीं बतायेंगे तो तुम्हारा ही रजिस्टर
ख़राब होगा | भगवान् से पवित्र बनने की प्रतिज्ञा कर फिर तोड़ते
हो तो तुम्हारा क्या हाल होगा | विकार में गिरे तो खेल ख़लास |
पहला नम्बर दुश्मन है देह-अभिमान, फिर काम, क्रोध | देह-अभिमान
में आने से ही वृत्ति ख़राब होती है इसलिए बाप कहते हैं –
देही-अभिमानी भव | अर्जुन भी यह है ना | कृष्ण की ही आत्मा थी
| अर्जुन नाम है थोड़ेही, नाम तो चेन्ज होता है, जिसमें प्रवेश
करते हैं | मनुष्य तो कह देते हैं यह झाड़ आदि तुम्हारी कल्पना
है | मनुष्य जो कल्पना करे वह देखने में आता है |
तुम बच्चों को बहुत ख़ुशी होनी चाहिए – अब हम जाकर स्वर्ग में
छोटे बच्चे बनते हैं | फिर नाम, रूप, देश, काल सब-कुछ नया होगा
| यह बेहद का ड्रामा है | बनी बनाई बन रही | होना ही है फिर हम
चिन्ता क्यों करें? ड्रामा का राज़ अब तुम बच्चों की बुद्धि में
है | और कोई नहीं जानते, सिवाए तुम ब्राह्मणों के | दुनिया में
इस समय सब पुजारी हैं | जहाँ पुजारी हैं वहाँ पूज्य एक भी हो
नहीं सकता | पूज्य होते ही हैं सतयुग-त्रेता में | कलियुग में
हैं पुजारी, फिर तुम अपने को पूज्य कैसे कहला सकते हो? पूज्य
तो देवी-देवतायें ही हैं | पुजारी हैं मनुष्य | मूल बात बाप
समझाते हैं – पावन बनना है तो मामेकम् याद करो | ड्रामा अनुसार
जिसने जितना पुरुषार्थ किया होगा उतना ही करेंगे | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
अपनी पढ़ाई का रजिस्टर रखना है | अपना चार्ट देखना है कि हमारी
भाई-भाई की दृष्टि कहाँ तक रहती है? हमारा दैवी स्वभाव बना है?
2.
अपनी ज़बान पर बहुत कन्ट्रोल रखना है | बुद्धि में रहे कि हम
देवता बन रहे हैं इसलिए खान-पान पर बहुत ध्यान देना है | ज़बान
चलायमान नहीं होनी चाहिए | माँ-बाप को फ़ालो करना है |
वरदान:-
साथी को सदा साथ रख सहयोग का अनुभव करने वाले कम्बाइन्ड
रूपधारी भव
! 
सदा “आप और बाप” ऐसे कम्बाइन्ड रहो जो कोई भी अलग न कर सके |
कभी अपने को अकेला नहीं समझो | बापदादा अविनाशी साथ निभाने
वाले आप सबके साथी हैं | बाबा कहा और बाबा हाज़िर है | हम बाबा
के, बाबा हमारा | बाबा आपकी हर सेवा में सहयोग देने वाले है
सिर्फ़ अपने कम्बाइन्ड स्वरूप के रूहानी नशे में रहो |
स्लोगन:-
सेवा
और स्व-उन्नति दोनों का बैलेन्स हो तो सदा सफ़लता मिलती रहेगी
|
ओम्
शान्ति
|