01-04-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
यह संगमयुग उत्तम से उत्तम बनने का युग है, इसमें ही तुम्हें
पतित से पावन बन पावन दुनिया बनानी है
| 
प्रश्न:-
अन्तिम दर्दनाक सीन को देखने के लिए मजबूती किस आधार पर आयेगी?
उत्तर:-
शरीर
का भान निकालते जाओ | अन्तिम सीन बहुत कड़ी है | बाप बच्चों को
मज़बूत बनाने के लिए अशरीरी बनने का इशारा देते हैं | जैसे बाप
इस शरीर से अलग हो तुम्हें सिखलाते हैं, ऐसे तुम बच्चे भी अपने
को शरीर से अलग समझो, अशरीरी बनने का अभ्यास करो | बुद्धि में
रहे कि अब घर जाना है |
ओम्
शान्ति
|
मीठे-मीठे रूहानी बच्चे हैं तो जिस्म के साथ | बाप भी अभी
जिस्म के साथ हैं | इस घोड़े वा गाड़ी पर सवार हैं और बच्चों को
क्या सिखलाते हैं? जीते जी मरना कैसे होता है और कोई यह सिखला
न सके सिवाए बाप के | बाप का परिचय सब बच्चों को मिला है, वह
ज्ञान सागर पतित-पावन है | ज्ञान से ही तुम पतित से पावन बनते
हो और पावन दुनिया भी बनानी है | इस पतित दुनिया का ड्रामा
प्लैन अनुसार विनाश होना है | सिर्फ़ जो बाप को पहचानते हैं और
ब्राह्मण भी बनते हैं, वही फिर पावन दुनिया में आकर राज्य करते
हैं | पवित्र बनने के लिए ब्राह्मण भी ज़रूर बनना है | यह
संगमयुग है ही पुरुषोत्तम अर्थात् उत्तम से उत्तम पुरुष बनने
का युग | कहेंगे उत्तम तो बहुत साधू, सन्त, महात्मा, वजीर,
अमीर, प्रेजीडेन्ट आदि हैं | परन्तु नहीं, यह तो कलियुगी
भ्रष्टाचारी दुनिया पुरानी दुनिया है, पतित दुनिया में पावन एक
भी नहीं | अभी तुम संगमयुगी बनते हो | वो लोग पतित-पावनी पानी
को समझते हैं | सिर्फ़ गंगा नहीं, जो भी नदियाँ हैं, जहाँ भी
पानी देखते हैं, जाते हैं | परन्तु पानी से तो कोई पावन हो न
सके | अगर पानी में स्नान करने से पावन हो जाते फिर तो इस समय
सारी सृष्टि पावन होती | इतने सब पावन दुनिया में होने चाहिए |
यह तो पुरानी रस्म चली आती है | सागर में भी सारा किचड़ा आदि
जाकर पड़ता है, फिर वह पावन कैसे बनायेंगे? पावन तो बनना है
आत्मा को | इसके लिए तो परमपिता चाहिए जो आत्माओं को पावन
बनाये | तो तुमको समझाना है – पावन होते ही सतयुग में हैं,
पतित होते हैं कलियुग में | अभी तुम संगमयुग पर हो | पतित से
पावन होने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो | तुम जानते हो हम शुद्र
वर्ण के थे, अब ब्राह्मण वर्ण के बने हैं | शिवबाबा प्रजापिता
ब्रह्मा द्वारा बनाते हैं | हम हैं सच्चे-सच्चे मुख वंशावली
ब्राह्मण | वह हैं कुख वंशावली | प्रजापिता, तो प्रजा सारी हो
गई | प्रजा का पिता है ब्रह्मा | वो तो ग्रेट ग्रेट ग्रैन्ड
फादर हो गया | ज़रूर वह था फिर कहाँ गया? पुनर्जन्म तो लेते हैं
ना | यह तो बच्चों को बताया है, ब्रह्मा भी पुनर्जन्म लेते हैं
| ब्रह्मा और सरस्वती, माँ और बाप | वही फिर महाराजा-महारानी
लक्ष्मी-नारायण बनते हैं, जिसको विष्णु कहा जाता है | वही फिर
84 जन्मों के बाद आकर ब्रह्मा-सरस्वती बनते हैं | यह राज़ तो
समझाया है | कहते भी हैं जगत अम्बा तो सारे जगत की माँ हो गई |
लौकिक माँ तो हर एक की अपने-अपने घर में बैठी है | परन्तु जगत
अम्बा को कोई जानते ही नहीं | ऐसे ही अन्धश्रद्धा से कह देते
हैं | जानते कोई को भी नहीं | जिसकी पूजा करते हैं उनके
आक्यूपेशन को नहीं जानते | अभी तुम बच्चे जानते हो रचयिता है
ऊँचे ते ऊँच | यह उल्टा झाड़ है, इनका बीजरूप ऊपर में हैं | बाप
को ऊपर से नीचे आना पड़े, तुमको पावन बनाने | तुम बच्चे जानते
हो बाबा आया हुआ है हमको इस सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान
देकर फिर उस नई सृष्टि का चक्रवर्ती राजा-रानी बनाते हैं | इस
चक्र के राज़ को दुनिया में तुम्हारे सिवाए और कोई नहीं जानते
हैं | बाप कहते हैं फिर 5 हज़ार वर्ष बाद आकर तुमको सुनाऊंगा |
यह ड्रामा बना बनाया है | ड्रामा के क्रियेटर, डायरेक्टर,
मुख्य एक्टर्स और ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को न जानें तो उनको
बेअक्ल कहेंगे ना | बाप कहते हैं 5 हज़ार वर्ष पहले भी हमने
तुमको समझाया था | तुमको अपना परिचय दिया था | जैसे अब दे रहे
हैं | तुमको पवित्र भी बनाया था, जैसे अब बना रहा हूँ | अपने
को आत्मा समझ बाप को याद करो | वही सर्वशक्तिमान् पतित-पावन है
| गायन भी है अन्तकाल जो फ़लाना सिमरे....वल वल अर्थात् घड़ी-घड़ी
ऐसी योनि में जाये | अब इस समय तुम जन्म तो लेते हो परन्तु
सूकर, कूकर, कुत्ते, बिल्ली नहीं बनते हो | अभी बेहद का बाप
आया हुआ है | कहते हैं मैं तुम सभी आत्माओं का बाप हूँ | यह सब
काम चिता पर बैठ काले हो गये हैं, इन्हों को फिर ज्ञान चिता पर
चढ़ाना है | तुम अब ज्ञान चिता पर चढ़े हो | ज्ञान चिता पर चढ़
फिर विकारों में जा न सकें | प्रतिज्ञा करते हैं हम पवित्र
रहेंगे | बाबा कोई वह राखी नहीं बँधवाते हैं | यह तो
भक्तिमार्ग का रिवाज़ चला आता है | वास्तव में यह है इस समय की
बात | तुम समझते हो पवित्र बनने बिगर पावन दुनिया का मालिक
कैसे बनेंगे? | फिर भी पक्का कराने के लिए बच्चों से प्रतिज्ञा
कराई जाती है | कोई ब्लड से लिखकर देते हैं, कोई कैसे लिखते
हैं | बाबा आप आये हैं, हम आप से वर्सा ज़रूर लेंगे | निराकार
साकार में आते हैं ना | जैसे बाप परमधाम से उतरते हैं, वैसे
तुम आत्मायें भी उतरती हो | ऊपर से नीचे आती हो पार्ट बजाने |
यह तुम समझते हो यह सुख और दुःख का खेल है | आधाकल्प सुख,
आधाकल्प दुःख है | बाप समझाते हैं
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से भी तुम जास्ती सुख भोगते हो | आधाकल्प के बाद भी तुम धनवान
थे | कितने बड़े मन्दिर आदि बनवाते हैं | दुःख तो पीछे होता है,
जब बिल्कुल तमोप्रधान भक्ति बन जाती है | बाप ने समझाया है तुम
पहले-पहले अव्यभिचारी भक्त थे, सिर्फ़ एक की भक्ति करते थे | जो
बाप तुमको देवता बनाते हैं, सुखधाम में ले जाते हैं, उनकी ही
तुम पूजा करते थे फिर बाद में व्यभिचारी भक्ति शुरु होती है |
पहले एक की पूजा फिर देवताओं की पूजा करते थे | अभी तो 5 भूतों
के बने हुए शरीरों की पूजा करते हैं | चैतन्य की भी, तो जड़ की
भी पूजा करते हैं | 5 तत्वों के बने हुए शरीर को देवताओं से भी
ऊँच समझते हैं | देवताओं को तो सिर्फ़ ब्राह्मण हाथ लगाते हैं |
तुम्हारे तो ढेर के ढेर गुरु लोग हैं | यह बाप बैठ बताते हैं |
यह (दादा) भी कहते हैं हमने भी सब कुछ किया | भिन्न-भिन्न
हठयोग आदि, कान, नाक मोड़ना आदि सब कुछ किया | आखरीन सब कुछ छोड़
देना पड़े | वह धन्धा करें यह याद धन्धा करें? पिनकी (सुस्ती)
आती रहती थी, तंग हो जाता था | प्राणायाम आदि सीखने में बड़ी
तकलीफ़ होती है | आधाकल्प भक्ति मार्ग में थे, अभी मालूम पड़ता
है | बाप बिल्कुल एक्यूरेट बताते हैं | वह कहते हैं भक्ति
परम्परा से चली आती है | अब सतयुग में भक्ति कहाँ से आई |
मनुष्य भी बिल्कुल समझते नहीं | मूढ़ बुद्धि हैं ना | सतयुग में
तो ऐसे नहीं कहेंगे | बाप कहते हैं मैं हर 5 हज़ार वर्ष बाद आता
हूँ | शरीर भी उनका लेता हूँ जो अपने जन्मों को नहीं जानते हैं
| यही नम्बरवन जो सुन्दर था, वही अब श्याम बन गया है | आत्मा
भिन्न-भिन्न शरीर धारण करती है | तो बाप कहते हैं जिसमें मैं
प्रवेश करता हूँ, उसमें अभी बैठा हूँ | क्या सिखलाने? जीते जी
मरना | इस दुनिया से तो मरना है ना | अभी तुमको पवित्र होकर
मरना है | मेरा पार्ट ही पावन बनाने का है | तुम भारतवासी
बुलाते ही हो – हे पतित-पावन | और कोई ऐसे नहीं कहते – हे
लिबरेटर, दुःख की दुनिया से छुड़ाने के लिए आओ | सब मुक्तिधाम
में जाने के लिए ही मेहनत करते हैं | तुम बच्चे फिर पुरुषार्थ
करते हो – सुखधाम के लिए | वह है प्रवृत्ति मार्ग वालों के लिए
| तुम जानते हो हम प्रवृत्ति मार्ग वाले पवित्र थे | फिर
अपवित्र बने | प्रवृत्ति मार्ग वालों का काम निवृत्ति मार्ग
वाले कर न सकें | यज्ञ, तप, दान आदि सब प्रवृत्ति मार्ग वाले
करते हैं | तुम अभी फ़ील करते हो कि अभी हम सबको जानते हैं |
शिवबाबा हम सबको घर बैठे पढ़ा रहे हैं | बेहद का बाप बेहद का
सुख देने वाला है | उनसे तुम बहुत समय के बाद मिलते हो तो
प्रेम के आँसू आते हैं | बाबा कहने से ही रोमांच खड़े हो जाते
हैं – ओहो! बाबा आया है हम बच्चों की सर्विस में | बाबा हमको
इस पढ़ाई से गुल-गुल बनाकर ले जाते हैं | इस गन्दी छी-छी दुनिया
से हमको ले जायेंगे अपने साथ | भक्ति मार्ग में तुम्हारी आत्मा
कहती थी बाबा आप आयेंगे तो हम वारी जायेगें | हम आपके ही
बनेंगे, दूसरा कोई नहीं | नम्बरवार तो हैं ही | सबका अपना-अपना
पार्ट है | कोई तो बाप को बहुत प्यार करते हैं, जो स्वर्ग का
वर्सा देते हैं | सतयुग में रोने का नहीं होता | यहाँ तो कितना
रोते हैं | जब स्वर्ग में गया तो फिर रोना क्यों चाहिए और ही
बाजा बजाना चाहिए | वहाँ तो बाजा बजाते हैं | तमोप्रधान शरीर
ख़ुशी से छोड़ देते हैं | यह रस्म भी शुरू यहाँ से होती है |
यहाँ तुम कहेंगे हमको अपने घर जाना है | वहाँ तो समझते हो
पुनर्जन्म लेना है | तो बाप सब बातें समझा देते हैं | भ्रमरी
का मिसाल भी तुम्हारा है | तुम ब्राह्मणियाँ हो, विष्टा के
कीड़ों को तुम भूँ-भूँ करती हो | तुमको तो बाप कहते हैं इस शरीर
को भी छोड़ देना है | जीते जी मरना है | बाप कहते हैं अपने को
आत्मा समझो, अब हमको वापिस जाना है | अपने को आत्मा समझ बाप को
याद करना है | देह को भूल जाओ | बाप तो बहुत मीठा है | कहते
हैं मैं तुम बच्चों को विश्व का मालिक बनाने आया हूँ | अब
शान्तिधाम और सुखधाम को याद करो | अल्फ और बे | यह है दुःखधाम
| शान्तिधाम हम आत्माओं का घर है | हमने पार्ट बजाया, अब हमें
घर जाना है | वहाँ यह छी-छी शरीर नहीं रहता है | अभी तो यह
बिल्कुल ही जड़जड़ीभूत हो गया है | अब हमको बाप सम्मुख बैठ
सिखलाते हैं, इशारे में | मैं भी आत्मा हूँ, तुम भी आत्मा हो |
मैं शरीर से अलग होकर तुमको भी वही सिखलाता हूँ | तुम भी अपने
को शरीर से अलग समझो | अभी घर जाना है | यहाँ तो रहने का अभी
नहीं है | यह भी जानते हो अभी विनाश होना है | भारत में रक्त
की नदियाँ बहेंगी | फिर भारत में ही दूध की नदियाँ बहेंगी |
यहाँ सब धर्म वाले इकट्ठे हैं | सब आपस में लड़ मरेंगे | यह
पिछाड़ी का मौत है | पाकिस्तान में क्या-क्या होता था | बड़ी कड़ी
सीन थी | कोई देखे तो बेहोश हो जाए | अभी बाबा तुमको मज़बूत
बनाते हैं | शरीर का भान भी निकाल देते हैं |
बाबा
ने देखा, बच्चे याद में नहीं रहते हैं, बहुत कमज़ोर हैं इसलिए
सर्विस भी नहीं बढती है | घड़ी-घड़ी लिखते हैं – बाबा, याद भूल
जाती है, बुद्धि लगती नहीं है | बाबा कहते हैं योग अक्षर छोड़
दो | विश्व की बादशाही देने वाले बाप को तुम भूल जाते हो! आगे
भक्ति में बुद्धि कहीं और तरफ़ चली जाती थी तो अपने को चुटकी
काटते थे | बाबा कहते तुम आत्मा अविनाशी हो | सिर्फ़ तुम पावन
और पतित बनते हो | बाकी आत्मा कोई छोटी-बड़ी नहीं होती है |
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
अपने आपसे बातें करो – ओहो! बाबा आया है हमारी सर्विस में | वह
हमें घर बैठे पढ़ा रहे हैं! बेहद का बाबा बेहद का सुख देने वाला
है, उनसे हम अभी मिले हैं | ऐसे प्यार से बाबा कहो और ख़ुशी में
प्रेम के आँसू आ जाएं | रोमांच खड़े हो जाएं |
2.
अब वापस घर जाना है इसलिए सबसे ममत्व निकाल जीते जी मरना है |
इस देह को भी भूलना है | इससे अलग होने का अभ्यास करना है |
वरदान:-
सत्यता की शक्ति द्वारा सदा ख़ुशी में नाचने वाले शक्तिशाली
महान आत्मा भव
!
कहा
जाता है “सच तो बिठो नच” | सच्चा अर्थात् सत्यता की शक्ति वाला
सदा नाचता रहेगा, कभी मुरझायेगा नहीं, उलझेगा नहीं, घबरायेगा
नहीं, कमज़ोर नहीं होगा | वह ख़ुशी में सदा नाचता रहेगा |
शक्तिशाली होगा | उसमें सामना करने की शक्ति होगी, सत्यता कभी
हिलती नहीं है, अचल होती है | सत्य की नांव डोलती है लेकिन
डूबती नहीं | तो सत्यता की शक्ति को धारण करने वाली आत्मा ही
महान है |
स्लोगन:-
व्यस्त
मन-बुद्धि को सेकण्ड में स्टॉप कर लेना ही सर्वश्रेष्ठ अभ्यास
है
|
ओम्
शान्ति
|