05-02-15
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा”
मधुबन
“मीठे
बच्चे - शान्ति चाहिए तो अशरीरी बनो,
इस देह- भान में आने से ही अशान्ति होती है,
इसलिए अपने स्वधर्म में स्थित रहो” 
प्रश्न:-
यथार्थ याद क्या है?
याद
के समय किस बात का विशेष ध्यान चाहिए?
उत्तर:-
अपने
को इस देह से न्यारी आत्मा समझकर बाप को याद करना - यही यथार्थ
याद है । कोई भी देह याद न आये,
यह
ध्यान रखना जरूरी है । याद में रहने के लिए ज्ञान का नशा चढ़ा
हुआ हो,
बुद्धि में रहे बाबा हमें सारे विश्व का मालिक बनाते हैं,
हम
सारे समुद्र,
सारी
धरनी के मालिक बनते हैं ।
गीत:-
तुम्हें पाके हमने.. 
ओम्
शान्ति |
ओम्
का अर्थ ही है अहम्, मैं आत्मा । मनुष्य फिर समझते ओम् माना
भगवान,
परन्तु ऐसे है नहीं । ओम् माना मैं आत्मा,
मेरा
यह शरीर है । कहते हैं ना - ओम् शान्ति । अहम् आत्मा का
स्वधर्म है शान्त । आत्मा अपना परिचय देती है । मनुष्य भल ओम्
शान्ति कहते हैं परन्तु ओम् का अर्थ कोई भी नहीं समझते हैं ।
ओम् शान्ति अक्षर अच्छा है । हम आत्मा हैं,
हमारा स्वधर्म शान्त है । हम आत्मा शान्तिधाम की रहने वाली हैं
। कितना सिम्पुल अर्थ है । लम्बा-चौड़ा कोई गपोड़ा नहीं है । इस
समय के मनुष्य मात्र तो यह भी नहीं जानते कि अभी नई दुनिया है
वा पुरानी दुनिया है । नई दुनिया फिर पुरानी कब होती है,
पुरानी से फिर नई दुनिया कब होती है-यह कोई भी नहीं जानते ।
कोई से भी पूछा जाए दुनिया नई कब होती है और फिर पुरानी कैसे
होती है?
तो
कोई भी बता नहीं सकेंगे । अभी तो कलियुग पुरानी दुनिया है । नई
दुनिया सतयुग को कहा जाता है । अच्छा,
नई
को फिर पुराना होने में कितने वर्ष लगते हैं?
यह
भी कोई नहीं जानते । मनुष्य होकर यह नहीं जानते इसलिए इनको कहा
जाता है जानवर से भी बदतर । जानवर तो अपने को कुछ कहते नहीं,
मनुष्य कहते हैं हम पतित हैं,
हे
पतित-पावन आओ । परन्तु उनको जानते बिल्कुल ही नहीं । पावन
अक्षर कितना अच्छा है । पावन दुनिया स्वर्ग नई दुनिया ही होगी
। चित्र भी देवताओं के हैं परन्तु कोई भी समझते नहीं,
यह
लक्ष्मी-नारायण नई पावन दुनिया के मालिक हैं । यह सब बातें
बेहद का बाप ही बैठ बच्चों को समझाते हैं । नई दुनिया स्वर्ग
को कहा जाता है । देवताओं को कहेंगे स्वर्गवासी । अभी तो है
पुरानी दुनिया नर्क । यहाँ मनुष्य हैं नर्कवासी । कोई मरता है
तो भी कहते हैं स्वर्गवासी हुआ तो गोया यहाँ नर्कवासी हैं ना ।
हिसाब से कह भी देंगे । बराबर यह नर्क ठहरा परन्तु बोलो तुम
नर्कवासी हो तो बिगड़ पडेंगे । बाप समझाते हैं देखने में तो भल
मनुष्य हैं,
सूरत
मनुष्य की है परन्तु सीरत बन्दर जैसी है । यह भी गाया हुआ है
ना । खुद भी मन्दिरों में जाकर देवताओं के आगे गाते हैं-आप
सर्वगुण सम्पन्न.... अपने लिए क्या कहेंगे?
हम
पापी नीच हैं । परन्तु सीधा कहो कि तुम विकारी हो तो बिगड़
पड़ेंगे इसलिए बाप सिर्फ बच्चों से ही बात करते हैं,
समझाते हैं । बाहर वालों से बात नहीं करते क्योंकि कलियुगी
मनुष्य हैं नर्कवासी । अभी तुम हो संगमयुग वासी । तुम पवित्र
बन रहे हो । जानते हो हम ब्राह्मणों को शिवबाबा पढ़ाते हैं । वह
पतित-पावन है । हम सभी आत्माओं को ले जाने के लिए बाप आये हैं
। कितनी सिम्पुल बातें हैं । बाप कहते हें-बच्चे,
तुम
आत्मायें शान्तिधाम से आती हो पार्ट बजाने । इस दु:खधाम में
सभी दु :खी हैं इसलिए कहते हैं मन को शान्ति कैसे हो?
ऐसे
नहीं कहते- आत्मा को शान्ति कैसे हो?
अरे
तुम कहते हो ना ओम् शान्ति । मेरा स्वधर्म है शान्ति । फिर
शान्ति मांगते क्यों हो?
अपने
को आत्मा भूल देह- अभिमान में आ जाते हो । आत्मायें तो
शान्तिधाम की रहने वाली हैं । यहाँ फिर शान्ति कहाँ से मिलेगी?
अशरीरी होने से ही शान्ति होगी । शरीर के साथ आत्मा है,
तो
उनको बोलना चलना तो जरूर पड़ता है । हम आत्मा शान्तिधाम से यहाँ
पार्ट बजाने आई हैं | यह भी कोई नहीं समझते कि रावण ही हमारा
दुश्मन है । कब से यह रावण दुश्मन बना है?
यह
भी कोई नहीं जानते । बड़े-बड़े विद्वान,
पण्डित आदि एक भी नहीं जानते कि रावण है कौन,
जिसका हम एफीजी बनाकर जलाते हैं । जन्म-जन्मान्तर जलाते आये
हैं,
कुछ
भी पता नहीं । कोई से भी पूछो-रावण कौन है?
कह
देंगे यह सब तो कल्पना है । जानते ही नहीं तो और क्या रेसपान्ड
देंगे । शास्त्रों में भी है ना-हे राम जी संसार बना ही नहीं
है । यह सब कल्पना है । ऐसे बहुत कहते हैं । अब कल्पना का अर्थ
क्या है?
कहते
हैं यह संकल्पों की दुनिया है । जो जैसा संकल्प करता है वह हो
जाता है,
अर्थ
नहीं समझते । बाप बच्चों को बैठ समझाते हैं । कोई तो अच्छी
रीति समझ जाते हैं,
कोई
समझते ही नहीं हैं । जो अच्छी रीति समझते हैं उनको सगे कहेंगे
और जो नहीं समझते हैं वह लगे अर्थात् सौतेले हुए । अब सौतेले
वारिस थोड़ेही बनेंगे । बाबा के पास मातेले भी हैं तो सौतेले भी
हैं । मातेले बच्चे तो बाप की श्रीमत पर पूरा चलते हैं ।
सौतेले नहीं चलेंगे । बाप कह देते हैं यह मेरी मत पर नहीं चलते
हैं,
रावण
की मत पर हैं । राम और रावण दो अक्षर हैं । राम राज्य और रावण
राज्य । अभी है संगम । बाप समझाते हैं-यह सब
ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारियाँ शिवबाबा से वर्सा ले रहे हैं,
तुम
लेंगे?
श्रीमत पर चलेंगे?
तो
कहते हैं कौन-सी मत?
बाप
श्रीमत देते हैं कि पवित्र बनो । कहते हैं हम पवित्र रहें फिर
पति न माने तो मैं किसकी मानूँ?
वह
तो हमारा पति परमेश्वर है क्योंकि भारत में यह सिखलाया जाता है
कि पति तुम्हारा गुरू,
ईश्वर आदि सब कुछ है । परन्तु ऐसा कोई समझते नहीं हैं । उस समय
हाँ कर देते हैं,
मानते कुछ भी नहीं हैं । फिर भी गुरूओं के पास मन्दिरों में
जाते रहते हैं । पति कहते हैं तुम बाहर मत जाओ,
हम
राम की मूर्ति तुमको घर में रखकर देते हैं फिर तुम अयोध्या आदि
में क्यों भटकती हो?
तो
मानती नहीं । यह हैं भक्ति मार्ग के धक्के । वह जरूर खायेंगे,
कभी
मानेंगे नहीं । समझते हैं वह तो उनका मन्दिर है । अरे तुमको
याद राम को करना है कि मन्दिर को?
परन्तु समझते नहीं । तो बाप समझाते हैं भक्ति मार्ग में कहते
भी हो हे भगवान आकर हमारी सद्गति करो क्योंकि वह एक ही सर्व का
सद्गति दाता है । अच्छा वह कब आते हैं-यह भी कोई नहीं जानते ।
बाप
समझाते हैं रावण ही तुम्हारा दुश्मन है । रावण का तो वंडर है,
जो
जलाते ही आते हैं लेकिन मरता ही नहीं है । रावण क्या चीज है,
यह
कोई भी नहीं जानते । अभी तुम बच्चे जानते हो हमको बेहद के बाप
से वर्सा मिलता है । शिव जयन्ती भी मनाते हैं परन्तु शिव को
कोई भी जानते नहीं हैं । गवर्मेंट को भी तुम समझाते हो । शिव
तो भगवान है वही कल्प-कल्प आकर भारत को नर्कवासी से स्वर्गवासी,
बेगर
से प्रिन्स बनाते हैं । पतित को पावन बनाते हैं । वही सर्व के
सद्गति दाता है । इस समय सभी मनुष्य मात्र यहाँ हैं । क्राइस्ट
की आत्मा भी कोई न कोई जन्म में यहाँ हैं । वापिस कोई भी जा
नहीं सकते । इन सबकी सद्गति करने वाला एक ही बड़ा बाप है । वह
आते भी भारत में हैं । वास्तव में भक्ति भी उनकी करनी चाहिए जो
सद्गति देते हैं । वह निराकार बाप यहाँ तो हैं नहीं । उनको
हमेशा ऊपर समझकर याद करते हैं । कृष्ण को ऊपर नहीं समझेंगे ।
और सभी को यहॉ नीचे याद करेंगे । कृष्ण को भी यहाँ याद करेंगे
। तुम बच्चों की है यथार्थ याद । तुम अपने को इस देह से न्यारा,
आत्मा समझकर बाप को याद करते हो । बाप कहते हैं तुमको कोई भी
देह याद नहीं आनी चाहिए । यह ध्यान जरूरी है । तुम अपने को
आत्मा समझ बाप को याद करो । बाबा हमको सारे विश्व का मालिक
बनाते हैं । सारा समुद्र,
सारी
धरनी,
सारे
आकाश का मालिक बनाते हैं । अभी तो कितने टुकड़े-टुकड़े हैं ।
एक-दो की हद में आने नहीं देते । वहाँ यह बातें होती नहीं ।
भगवान तो एक बाप ही है । ऐसे नहीं कि सभी बाप ही बाप हैं ।
कहते भी हैं हिन्दू-चीनी भाई- भाई,
हिन्दू-मुस्लिम भाई- भाई परन्तु अर्थ नहीं समझते हैं । ऐसे कभी
नहीं कहेंगे हिन्दू-मुस्लिम बहन- भाई । नहीं,
आत्मायें आपस में सब भाई- भाई हैं । परन्तु इस बात को जानते
नहीं हैं । शास्त्र आदि सुनते सत-सत करते रहते हैं,
अर्थ
कुछ नहीं । वास्तव में हैं असत्य,
झूठ
। सचखण्ड में सच ही सच बोलते हैं । यहाँ झूठ ही झूठ है । कोई
को बोलो कि तुमने झूठ बोला तो बिगड़ पड़ेंगे । तुम सच बताते हो
तो भी कोई तो गाली देने लग पड़ेंगे । अब बाप को तो तुम ब्राह्मण
ही जानते हो । तुम बच्चे अभी दैवीगुण धारण करते हो । तुम जानते
हो अभी 5 तत्व भी तमोप्रधान हैं । आजकल मनुष्य भूतों की पूजा
भी करते हैं । भूतों की ही याद रहती है । बाप कहते हैं अपने को
आत्मा समझ मामेकम याद करो । भूतों को मत याद करो । गृहस्थ
व्यवहार में रहते हुए बुद्धि का योग बाप के साथ लगाओ । अब
देही- अभिमानी बनना है । जितना बाप को याद करेंगे तो विकर्म
विनाश होंगे । ज्ञान का तीसरा नेत्र तुमको मिलता है ।
अभी
तुमको विकर्माजीत बनना है । वह है विकर्माजीत संवत । यह है
विकर्मी संवत । तुम योगबल से विकर्मों पर जीत पाते हो । भारत
का योग तो मशहूर है । मनुष्य जानते नहीं हैं । सन्यासी लोग
बाहर में जाकर कहते हैं कि हम भारत का योग सिखलाने आये हैं,
उनको
तो पता नहीं यह तो हठयोगी हैं । वह राजयोग सिखला न सके । तुम
राजऋषि हो । वह हैं हद के सन्यासी,
तुम
हो बेहद के सन्यासी । रात-दिन का फर्क है । तुम ब्राह्मणों के
सिवाए और कोई भी राजयोग सिखला न सके । यह है नई बातें । नया
कोई समझ न सके,
इसलिए नये को कभी एलाउ नहीं किया जाता है । यह इन्द्रसभा है ना
। इस समय हैं सब पत्थर बुद्धि । सतयुग में तुम बनते हो पारस
बुद्धि । अभी है संगम । पत्थर से पारस सिवाए बाप के कोई बना न
सके । तुम यहाँ आये हो पारसबुद्धि बनने के लिए । बराबर भारत
सोने की चिड़िया था ना । यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक थे
ना । यह कभी राज्य करते थे,
यह
भी किसको पता थोड़ेही है । आज से 5 हजार वर्ष पहले इन्हों का
राज्य था । फिर यह कहाँ गये । तुम बता सकते हो 84 जन्म भोगे ।
अभी तमोप्रधान हैं फिर बाप द्वारा सतोप्रधान बन रहे हैं,
ततत्वम । यह नॉलेज सिवाए बाप के साधू-सन्त आदि कोई भी दे न सके
। वह है भक्ति मार्ग,
यह
है ज्ञान मार्ग । तुम बच्चों के पास जो अच्छे- अच्छे गीत हैं
उन्हें सुनो तो तुम्हारे रोमांच खड़े हो जायेंगे । खुशी का पारा
एकदम चढ़ जायेगा । फिर वह नशा स्थाई भी रहना चाहिए । यह है
ज्ञान अमृत । वह शराब पीते हैं तो नशा चढ़ जाता है । यहाँ यह तो
है ज्ञान अमृत । तुम्हारा नशा उतरना नहीं चाहिए,
सदैव
चढ़ा रहना चाहिए । तुम इन लक्ष्मी-नारायण को देख कितने खुश होते
हो । जानते हो हम श्रीमत से फिर श्रेष्ठाचारी बन रहे हैं ।
यहाँ देखते हुए भी बुद्धियोग बाप और वर्से में लगा रहे ।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
विकर्माजीत बनने के लिए योगबल से विकर्मों पर जीत प्राप्त करनी
है । यहाँ देखते हुए बुद्धियोग बाप और वर्से में लगा रहे ।
2.
बाप के
वर्से का पूरा अधिकार प्राप्त करने के लिए मातेला बनना है । एक
बाप की ही श्रीमत पर चलना है । बाप जो समझाते हैं वह समझकर
दूसरों को समझाना है ।
वरदान:-
अपने
फरिश्ते रूप द्वारा गति-सद्गति का प्रसाद बांटने वाले मास्टर
गति-सद्गति दाता
भव ! 
वर्तमान समय विश्व की अनेक आत्मायें परिस्थितियों के वश चिल्ला
रही हैं,
कोई
मंहगाई से,
कोई
भूख से,
कोई
तन के रोग से,
कोई
मन की अशान्ति से...... सबकी नजर टॉवर ऑफ पीस की तरफ जा रही है
। सब देख रहे हैं हा-हाकार के बाद जय-जयकार कब होती है । तो अब
अपने साकारी फरिश्ते रूप द्वारा विश्व के दुख दूर करो,
मास्टर गति सद्गति दाता बन भक्तों को गति और सद्गति का प्रसाद
बांटो ।
स्लोगन:-
आप
हिम्मत का एक कदम बढ़ाओ तो बाप मदद के हजार कदम बढ़ायेंगे ।
ओम्
शान्ति |