27-07-14    प्रातः मुरली   ओम् शान्ति  “अव्यक्त-बापदादा”   रिवाइज:29-11-78   मधुबन
 


सन्तुष्टता से प्रसन्नता और प्रशंसा की प्राप्ति

बापदादा आज अपने विश्व में चमकने वाली मणियों को देख रहे हैं । हरेक मणी की अपनी- अपनी चमक है । हरेक मणी अपने द्वारा बाप के गुणों और कर्तव्य को नम्बरवार प्रत्यक्ष कर रही है । हरेक मणी द्वारा बापदादा दिखाई देता है । इस विचित्र रंगत को भक्तों ने ' 'जहाँ देखें वहाँ तू ही तू' ' कह दिया है । महारथी में भी बापदादा दिखाई देता । हरेक के मुख से एक ही बाबा-बाबा शब्द का गीत सुनाई देता । सर्व ब्राह्मण आत्माओं के नयनों में एक बाप नूर के समान समाया हुआ है - इसीलिए ब्राह्मण संसार में जहाँ देखें वहाँ तू ही तू का प्रैक्टिकल अनुभव होता है । बच्चों के वर्तमान समय के अनुभव को भक्तों ने अपने शब्दों में सर्वव्यापी कहा है । परमधाम निवासी बाप है वा हर संकल्प और कर्म में सदा साथी बाप अनुभव होता है? क्या अनुभव होता है साक्षी वा साथी? सर्व का साथी है तो सर्वव्यापी नहीं हुआ? भक्तों ने शब्द कापी किया है लेकिन कब और कैसे का भावार्थ भूल जाने के कारण गायन बदल ग्लानि हो गई । 

बापदादा सर्व बच्चों के वर्तमान स्वरूप से धारणा स्वरूप को देखते विशेष एक बात देख रहे हैं । कौन सी? सर्व बच्चों में से सदा सन्तुष्ट मणियां कितनी हैं? सबसे विशेष गुण, जो चेहरे से चमके वह सन्तुष्टता है । सन्तुष्टता तीनों ही प्रकार की चाहिए । एक - बाप से सन्तुष्ट । दूसरा - सदा अपने आप से सन्तुष्ट । तीसरा - सर्व सम्बन्ध और सम्पर्क से सन्तुष्ट । इसमें चैतन्य आत्मायें और प्रकृति दोनों आ जाते हैं । सन्तुष्टता की निशानी प्रत्यक्ष रूप में प्रसन्नता दिखाई देगी । सदा प्रसन्नचित । इस प्रसन्नता के आधार पर प्रत्यक्ष फल ऐसी आत्मा की सदा स्वत: ही सर्व से प्रशन्सा होगी । विशेषता है सन्तुष्टता, उसकी निशानी प्रसन्नता, उसका प्रत्यक्षफल प्रशन्सा । अब अपने आपको देखो । प्रशन्सा को प्रसन्नता से ही प्राप्त कर सकते हो । जो सदा स्वयं सन्तुष्ट वा प्रसन्न रहते हैं, उसकी प्रशन्सा हरेक अवश्य करते हैं । चलते-चलते पुरुषार्थी जीवन में समस्यायें या परिस्थितियाँ तो ड्रामा अनुसार आनी ही है । जन्म लेते ही आगे बढ़ने का लक्ष्य रखना अर्थात् परीक्षाओं और समस्याओं का आवाहन करना । अपने किए हुए आवाहन को भूल जाते हो? जब रास्ता तय करना है तो रास्ते के नजारे न हो यह हो सकता है? नजारों को देखते रूक जाते हो इसलिए मंजिल दूर अनुभव करते हो । नजारे देखते हुए पार करते चलना है । लेकिन नजारों को देख यह क्यों, यह क्या, यह ऐसे नहीं - यह वैसे नहीं, इन बातों में रूक जाते हो । हर नजारे को करेक्शन करने लग जाते हो । पार करने के बजाए करेक्शन करने में बिजी हो जाते हो इसलिए बाप की याद का कनेक्शन लूज़ कर देते हो, मनोरंजन के बजाए मन को मुरझा देते हो । वाह नजारा वाह! वाह-वाह के बजाए अई बहुत कहते हो । अई अर्थात् आश्चर्यजनक इसलिए चलते-चलते रूक जाते हो । थकने के कारण कभी बाप से मीठे-मीठे उल्हनें देते हुए रॉयल रूप में बाप से भी असन्तुष्ट हो जाते हो । कई बच्चे कहते हैं इतना पहले क्यों नहीं बताया! सहज मार्ग कहा - सहन मार्ग तो कहा नहीं । सहज मार्ग के बजाए सहन करने का मार्ग अनुभव करते हैं । लेकिन सहन करना ही आगे बढ़ना है । वास्तव में सहन करना नहीं होता लेकिन अपनी कमजोरी के कारण सहन अनुभव होता है । जैसे आग का गुण है जलाना - लेकिन उसके गुण का ज्ञान न होने कारण उससे लाभ लेने के बजाए नुकसान कर देते तो सुख के बजाए सहन करना पड़ता है - क्योंकि वस्तु के बजाए स्वयं को जला देते । गुण का ज्ञान न होने के कारण सुख के बजाए सहन करना पड़ता । वैसे समस्यायें वा परिस्थिति आने के कारण का ज्ञान न होने के कारण आगे बढ़ने के सुख के अनुभव के बजाए सहन करने का अनुभव करते हैं इसलिए सहज मार्ग के बजाए सहन करने का मार्ग अनुभव करते हैं । ऐसे बच्चे बाप से अर्थात् बाप के ज्ञान से वा ज्ञान के धारणा मार्ग से असन्तुष्ट रहते हैं । साथ-साथ स्वयं से भी असन्तुष्ट रहते हैं - स्वयं से असन्तुष्ट तो सर्व के सम्बन्ध और सम्पर्क से भी असन्तुष्ट । इस कारण प्रसन्न अर्थात् सदा खुशी नहीं रहती । अभी- अभी सन्तुष्ट अर्थात् प्रसन्नचित । अभी- अभी असन्तुष्ट इसलिए संगमयुग का विशेष खजाना अतीन्द्रिय सुख का अनुभव नहीं कर पाते हो । 

तो आज से सदा सन्तुष्ट और प्रसन्नता का विशेष वरदान स्वयं भी लो और औरों को भी दो । ऐसे ही बाप की वा अपने आपकी प्रशन्सा कर सकेंगे । प्रशन्सा का श्रेष्ठ साधन भी हर ब्राह्मण की प्रसन्नता है । कोई भी कार्य की प्रशन्सा सर्व की प्रसन्नता पर आधार रखती है । इस यज्ञ की अन्तिम आहुति सर्व ब्राह्मणों की सदा प्रसन्नता । प्रत्यक्षता अर्थात् प्रशन्सा का आवाज गूँजेगा अर्थात् विजय का झण्डा लहरायेगा । समझा अब क्या करना है? सदा प्रसन्न रहो और सदा सर्व को प्रसन्न करो । अच्छा – 

ऐसे सदा बाप के आज्ञाकारी, सदा सन्तुष्ट और प्रसन्न रहने वाले, सर्व को सदा प्रसन्नता का वरदान देने वाले महादानी - वरदानी बच्चों को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते । 

बाम्बे निवासियों को विशेष रूप से बापदादा याद प्यार दे रहे हैं - बाम्बे निवासियों में हिम्मत और उमंग बहुत अच्छा है । बाम्बे निवासियों को देख बाप के साथ प्रकृति ने भी स्वागत किया है (क्योंकि ठण्डी बहुत हो गई है) प्रकृति ने अभ्यास कराया है । अन्त में आने वाले पेपर का पहले से ही अनुभव कराके पक्का मजबूत बनाया है इसलिए घबराना नहीं । बाम्बे निवासियों का बाप से प्यार है ना । बापदादा का भी बच्चों से विशेष प्यार है । बाम्बे निवासी अब सदा सन्तुष्टता औ प्रसन्नता का पेपर नम्बरवन में पास करेंगे - बहुत अच्छा है । आप साथ छोड़ो तो भी बापदादा नहीं छोड़ेंगे । विशेष बाम्बे और देहली में आदि रत्न ज्यादा है विश्व सेवा की स्थापना के कार्य में बाम्बे और देहली का विशेष सहयोग है । समय पर सहयोगी बनने वालों का महत्व होता है - इसलिए सहयोगी बच्चों से बाप का भी स्नेह है । अच्छा

पार्टियों से :-

1. सदा “विजयी भव” के वरदानी मूर्त हो? वरदाता ने जो वरदान दिया उसी वरदान को सदा जीवन में लाना यह हरेक का अपना काम है । इस वरदान को जीवन में समाना अर्थात् वरदानी स्वरूप बनना । ऐसे बने हो? महावीर को भी वरदानी कहते हैं और शक्तियों को भी वरदानी कहते हैं । अब आपके जड़ चित्रों द्वारा अनेक भक्त वरदान प्राप्त कर लेते हैं तो चैतन्य में तो वरदानों से झोली भरने वाले हो ना? महावीर हो ना? महावीर अर्थात् सदा विजयी । जब अविनाशी बाप है तो वरदान भी अविनाशी है । अल्पकाल के लिए नहीं । सिर्फ सम्भालना आता है ना कि चोरी हो जाती है? सिर्फ एक बात याद रखो कि लेवता नहीं हूँ, लेकिन दाता हूँ । अभी लेने के दिन समाप्त हो गए अभी दाता बन देने का समय है । माँगना तो बचपन में होता, वानप्रस्थी कहे छोटा सा खिलौना दे दो - यह अच्छा लगेगा? थोड़ी शक्ति दे दो, थोड़ी मदद करो - यह खिलौना माँगते हो । अब स्वयं तृप्त आत्मा बनो । दाता के बच्चे और मांगते हो तो देखने वाले क्या कहेंगे? सफलता का साधन है स्वयं सदा सफलता मूर्त बनो । स्वयं की वृत्ति वायब्रेशन फैलाती है और वायब्रेशन के आधार पर सर्व को अनुभूति होगी इसलिए कार्य करने के पहले विशेष स्वयं की वृत्ति के अटेंशन की भट्ठी चाहिए, इससे ही वायब्रेशन द्वारा अनेकों की वृत्ति को परिवर्तन कर सकेंगे । पहले यह अटेंशन रखना - सदा खुशी के झूले में झूलते रहो । हर्षितमुख अनेकों को अपने तरफ आकर्षित करता है । 

कुमारियों को देखते हुए :-

कुमारियों पर बहुत बड़ी जिम्मेवारी है । एक अनेकों के कल्याण प्रति निमित्त बन सकती है । ब्रह्माकुमारियां वह जो विश्व के कल्याण के निमित्त बने । बेहद विश्व के कल्याणकारी न कि हद के । लगन में कमी है तो विघ्न अपना काम करेगा । अगर आग तेज है तो किचड़ा भस्म हो जायेगा । लगन है तो विघ्न नहीं रह सकता, कर्मयोग से कर्मभोग भी परिवर्तन हो जाता, परिवर्तन करना अपनी हिम्मत का काम है । कुमारियों में तो सदैव बापदादा की उम्मीद है । अच्छा 

अव्यक्त महावाक्य - परमात्म प्यार में सदा लवलीन रहो 

परमात्म प्यार आनंदमय झूला है, इस सुखदाई झूले में झूलते सदा परमात्म प्यार में लवलीन रहो तो कभी कोई परिस्थितियां माया की हलचल आ नहीं सकती । यह परमात्म-प्यार अखुट है, अटल है, इतना है जो सर्व को प्राप्त हो सकता है । लेकिन परमात्म-प्यार प्राप्त करने की विधि है-न्यारा बनना । जो जितना न्यारा है उतना वह परमात्म प्यार का अधिकारी है । परमात्म प्यार में समाई हुई आत्मायें कभी भी हद के प्रभाव में नहीं आ सकती, सदा बेहद की प्राप्तियों में मगन रहती हैं । उनसे सदा रूहानियत की खुशबू आती है । प्यार की निशानी है-जिससे प्यार होता है उस पर सब न्यौछावर कर देते हैं । बाप का बच्चों से इतना प्यार है जो रोज प्यार का रेसपान्ड देने के लिए इतना बड़ा पत्र लिखते हैं । यादप्यार देते हैं और साथी बन सदा साथ निभाते हैं । तो इस प्यार में अपनी सब कमजोरियां कुर्बान कर दो । बच्चों से बाप का प्यार है इसलिए सदा कहते हैं बच्चे जो हो, जैसे हो-मेरे हो । ऐसे आप भी सदा प्यार में लवलीन रहो, दिल से कहो बाबा जो हो वह सब आप ही हो । कभी असत्य के राज्य के प्रभाव में नहीं आओ । जो प्यारा होता है उसे याद किया नहीं जाता, उसकी याद स्वत आती है । सिर्फ प्यार दिल का हो, सच्चा और नि:स्वार्थ हो । जब कहते हो मेरा बाबा, प्यारा बाबा-तो प्यारे को कभी भूल नहीं सकते । और नि:स्वार्थ प्यार सिवाए बाप के किसी आत्मा से मिल नहीं सकता इसलिए कभी मतलब से याद नहीं करो, नि:स्वार्थ प्यार में लवलीन रहो । परमात्म-प्यार के अनुभवी बनो तो इसी अनुभव से सहजयोगी बन उड़ते रहेंगे । परमात्म-प्यार उड़ाने का साधन है । उड़ने वाले कभी धरनी की आकर्षण में आ नहीं सकते । माया का कितना भी आकर्षित रूप हो लेकिन वह आकर्षण उड़ती कला वालों के पास पहुँच नहीं सकती । यह परमात्म प्यार की डोर दूर-दूर से खींच कर ले आती है । यह ऐसा सुखदाई प्यार है जो इस प्यार में एक सेकण्ड भी खो जाते हैं उनके अनेक दुःख भूल जाते हैं और सदा के लिए सुख के झूले में झूलने लगते हैं । जीवन में जो चाहिए अगर वह कोई दे देता है तो यही प्यार की निशानी होती है । तो बाप का आप बच्चों से इतना प्यार है जो जीवन के सुख-शान्ति की सब कामनायें पूर्ण कर देते हैं । बाप सुख ही नहीं देते लेकिन सुख के भण्डार का मालिक बना देते हैं । साथ-साथ श्रेष्ठ भाग्य की लकीर खींचने का कलम भी देते हैं, जितना चाहे उतना भाग्य बना सकते हो - यही परमात्म प्यार है । जो बच्चे परमात्म प्यार में सदा लवलीन, खोये हुए रहते हैं उनकी झलक और फलक, अनुभूति की किरणें इतनी शक्तिशाली होती हैं जो कोई भी समस्या समीप आना तो दूर लेकिन आंख उठाकर भी नहीं देख सकती । उन्हें कभी भी किसी भी प्रकार की मेहनत हो नहीं सकती । बाप का बच्चों से इतना प्यार है जो अमृतवेले से ही बच्चों की पालना करते हैं । दिन का आरम्भ ही कितना श्रेष्ठ होता है! स्वयं भगवन मिलन मनाने के लिये बुलाते हैं, रूहरिहान करते हैं, शक्तियाँ भरते हैं! बाप की मोहब्बत के गीत आपको उठाते हैं । कितना स्नेह से बुलाते हैं, उठाते हैं - मीठे बच्चे, प्यारे बच्चे, आओ...... । तो इस प्यार की पालना का प्रैक्टिकल स्वरूप है 'सहज योगी जीवन' । अच्छा ।

 

वरदान:-

ब्राह्मण जन्म की जन्मपत्री को जान सदा खुशी में रहने बाले श्रेष्ठ भाग्यवान भव !   

ब्राह्मण जीवन नया जीवन है, ब्राह्मण आदि में देवी-देवता हैं और अभी बी के. हैं । ब्राह्मणों की जन्म पत्री में तीनों ही काल अच्छे से अच्छा है । जो हुआ वह भी अच्छा और जो हो रहा है वो और अच्छा और जो होने वाला है वह बहुत-बहुत अच्छा । ब्राह्मण जीवन की जन्मपत्री सदा ही अच्छी है, गारन्टी है । तो सदा इसी खुशी में रहो कि स्वयं भाग्य विधाता बाप ने भाग्य की श्रेष्ठ रेखा खींच दी, अपना बना लिया ।

 

स्लोगन:- 

एकरस स्थिति का अनुभव करना है तो एक बाप से सर्व संबंधों का रस लो ।     
 

ओम् शान्ति |