05-09-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - अन्दर में दिन रात बाबा-बाबा चलता रहे तो अपार खुशी
रहेगी,
बुद्धि
में रहेगा बाबा हमें कुबेर का खजाना देने आये हैं” 
प्रश्न:-
बाबा
किन बच्चों को ऑनेस्ट (ईमानदार) फूल कहते हैं?
उनकी
निशानी सुनाओ?
उत्तर:-
ऑनेस्ट फूल वह है जो कभी भी माया के वश नहीं होते हैं । माया
की खिटपिट में नहीं आते हैं । ऐसे ऑनेस्ट फूल लास्ट में आते भी
फास्ट जाने का पुरुषार्थ करते हैं । वह पुरानों से भी आगे जाने
का लक्ष्य रखते हैं । अपने अवगुणों को निकालने के पुरुषार्थ
में रहते हैं । दूसरों के अवगुणों को नहीं देखते ।
ओम्
शान्ति |
शिव
भगवानुवाच । वह हुआ रूहानी बाप क्योंकि शिव तो सुप्रीम रूह है
ना,
आत्मा है ना । बाप तो रोज- रोज नई-नई बातें समझाते रहते हैं ।
गीता सुनाने वाले सन्यासी आदि बहुत हैं । वह बाप को याद कर न
सकें ।
'
बाबा'
अक्षर कभी उनके मुख से निकल न सके । यह अक्षर है ही गृहस्थ
मार्ग वालों के लिए । वह तो हैं निवृत्ति मार्ग वाले । वह
ब्रह्म को ही याद करते हैं । मुख से कभी शिवबाबा नहीं कहेंगे ।
भल तुम जांच करो । समझो बड़े-बड़े विद्वान सन्यासी चिन्मियानंद
आदि गीता सुनाते हैं,
ऐसे
नहीं कि वह गीता का भगवान कृष्ण को समझ उनसे योग लगा सकते हैं
। नहीं । वह तो फिर भी ब्रह्म के साथ योग लगाने वाले ब्रह्म
ज्ञानी वा तत्व ज्ञानी हैं । कृष्ण को कभी कोई बाबा कहे,
यह
हो नहीं सकता । तो कृष्ण गीता सुनाने वाला बाबा तो नहीं ठहरा
ना । शिव को सब बाबा कहते हैं क्योंकि वह सब आत्माओं का बाप है
। सब आत्मायें उनको पुकारती हैं - परमपिता परमात्मा । वह है
सुप्रीम,
परम
है क्योंकि परमधाम में रहने वाला है । तुम भी सब परमधाम में
रहते हो परन्तु उनको परम आत्मा कहते हैं । वह कभी पुनर्जन्म
में नहीं आते हैं । खुद कहते हैं मेरा जन्म दिव्य और अलौकिक है
। ऐसे कोई रथ में प्रवेश कर तुमको विश्व का मालिक बनने की
युक्ति बतायें,
यह
और कोई हो नहीं सकता । तब बाप कहते हैं-मैं जो हूँ,
जैसा
हूँ,
मुझे
कोई भी नहीं जानते । मैं जब अपना परिचय दूँ तब जान सकते हैं ।
यह ब्रह्म को अथवा तत्वों को मानने वाले,
कृष्ण को फिर अपना बाप कैसे मानेंगे । आत्मायें तो सब बच्चे
ठहरे ना । कृष्ण को सब पिता कैसे कहेंगे । ऐसे थोड़ेही कहेंगे
कि कृष्ण सबका बाप है । हम सब ब्रदर्स हैं । ऐसे भी नहीं कृष्ण
सर्वव्यापी है । सब कृष्ण थोड़ेही हो सकते हैं । अगर सब कृष्ण
हो तो उनका बाप भी चाहिए । मनुष्य बहुत भूले हुए हैं । नहीं
जानते हैं तब तो कहते हैं मुझे कोटों में कोई जानते हैं ।
कृष्ण को तो कोई भी जान लेंगे । सब विलायत वाले भी उनको जानते
हैं । लॉर्ड कृष्णा कहते हैं ना । चित्र भी हैं,
असली
चित्र तो हैं नहीं । भारतवासियों से सुनते हैं,
इनकी
पूजा बहुत होती है तो फिर गीता में यह लिख दिया है-कृष्ण भगवान
। अब भगवान को भला लॉर्ड कहा जाता है क्या । लॉर्ड कृष्णा कहते
हैं ना । लॉर्ड का टाइटिल वास्तव में बड़े आदमी को मिलता है ।
वह तो सबको देते रहते हैं,
इसको
कहा जाता है अन्धेर नगरी.... । कोई भी पतित मनुष्य को लॉर्ड कह
देते हैं । कहाँ यह आज के पतित मनुष्य,
कहाँ
शिव वा श्रीकृष्ण! बाप कहते हैं जो तुमको ज्ञान देता हूँ वह
फिर गुम हो जाता है । मैं ही आकर नई दुनिया स्थापन करता हूँ ।
ज्ञान भी मैं अभी ही देता हूँ । मैं जब ज्ञान दूँ तब ही बच्चे
सुने । मेरे बिगर कोई सुना न सके । जानते ही नहीं ।
क्या
सन्यासी शिवबाबा को याद कर सकते हैं?
वह
कह भी नहीं सकते कि निराकार गॉड को याद करो । कब सुना है?
बहुत
पढ़े-लिखे मनुष्य भी समझते नहीं हैं । अब बाप समझाते हैं कृष्ण
भगवान नहीं । मनुष्य तो उनको ही भगवान कहते रहते हैं । कितना
फर्क हो गया है । बाप तो बच्चों को बैठ पढ़ाते हैं । वह बाप,
टीचर,
गुरू
भी है । शिवबाबा सबको बैठ समझाते हैं । न समझने कारण
त्रिमूर्ति में शिव रखते ही नहीं । ब्रह्मा को रखते हैं,
जिसको प्रजापिता ब्रह्मा कहते हैं । प्रजा को रचने वाला ।
परन्तु उनको भगवान नहीं कहेंगे । भगवान प्रजा नहीं रचते हैं ।
भगवान के तो सब आत्मायें बच्चे हैं । फिर कोई द्वारा प्रजा
रचते हैं । तुमको किसने एडाप्ट किया?
ब्रह्मा द्वारा बाप ने एडाप्ट किया । ब्राह्मण जब बनेंगे तब ही
तो देवता बनेंगे । यह बात तो तुमने कभी सुनी नहीं है ।
प्रजापिता का भी जरूर पार्ट है । एक्ट चाहिए ना । इतनी प्रजा
कहाँ से आयेंगी । कुख वंशावली भी तो हो न सके । वह कुख वंशावली
ब्राह्मण कहेंगे-हमारा सरनेम है ब्राह्मण । नाम तो सबका अलग-
अलग है । प्रजापिता ब्रह्मा तो कहते ही तब हैं जब शिवबाबा
इनमें प्रवेश करें । यह नई बातें हैं । बाप खुद कहते हैं-मुझे
कोई जानते नहीं,
सृष्टि चक्र को भी नहीं जानते । तब तो ऋषि-मुनि सब नेती-नेती
कह गयें हैं । न परमात्मा को,
न
परमात्मा की रचना को जानते हैं । बाप कहते हैं जब मैं आकर अपना
परिचय दूँ तब ही जाने । इन देवताओं को वहाँ यह पता थोड़ेही पड़ता
है-हमने यह राज्य कैसे पाया?
इनमें ज्ञान होता ही नहीं । पद पा लिया फिर ज्ञान की दरकार
नहीं । ज्ञान चाहिए ही सद्गति के लिए । यह तो सद्गति को पायें
हुए हैं । यह बड़ी समझने की गुह्य बातें हैं । समझदार ही समझे ।
बाकी जो बूढ़ी-बुढ़ि मातायें हैं,
उनमें इतनी बुद्धि तो है नहीं,
वह
भी ड्रामा प्लैन अनुसार हर एक का अपना पार्ट है । ऐसे तो नहीं
कहेंगे-हे ईश्वर बुद्धि दो । सबको एक जैसी बुद्धि हम दे तो सब
नारायण बन जायेंगे । सब एक-दो के ऊपर गद्दी पर बैठेंगे क्या!
हाँ,
एम
ऑब्जेक्ट है यह बनने की । सब पुरुषार्थ कर रहे हैं नर से
नारायण बनने का । बनेंगे तो पुरुषार्थ अनुसार ना । अगर सब हाथ
उठायें-हम नारायण बनेंगे तो बाप को अन्दर में हंसी आयेंगी ना ।
सब एक जैसे बन कैसे सकते! नम्बरवार तो होते हैं ना । नारायण दी
फर्स्ट,
सेकण्ड,
थर्ड
। जैसे एडवर्ड दी फर्स्ट,
सेकण्ड,
थर्ड........ होते हैं ना । भल एम ऑब्जेक्ट यह है,
परन्तु खुद समझ सकते हैं ना-चलन ऐसी है तो क्या पद पायेंगे?
पुरुषार्थ तो जरूर करना है । बाबा नम्बरवार फूल ले आते हैं,
नम्बरवार फूल दे भी सकते हैं परन्तु ऐसे करते नहीं । फंक हो
जायेंगे । बाबा जानते हैं,
देखेंगे कौन जास्ती सर्विस कर रहे हैं,
यह
अच्छा फूल है । पीछे नम्बरवार तो होते ही हैं । बहुत पुराने भी
बैठे हैं परन्तु उनमें नये-नये,
बड़े-बड़े अच्छे फूल हैं । कहेंगे यह नम्बरवन ऑनेस्ट फूल है,
कोई
खिटपिट,
ईर्ष्या आदि इनमें नहीं हैं । बहुतों में कुछ न कुछ खामियां
जरूर हैं । सम्पूर्ण तो कोई को कह नहीं सकते । सोलह कला
सम्पूर्ण बनने के लिए बहुत मेहनत चाहिए । अभी कोई सम्पूर्ण बन
न सके । अभी तो अच्छे- अच्छे बच्चों में भी ईर्ष्या बहुत है ।
खामियां तो हैं ना । बाप जानते हैं सब किस-किस प्रकार का
पुरुषार्थ कर रहे हैं । दुनिया वाले क्या जाने । वह तो कुछ
समझते नहीं । बहुत थोड़े समझते हैं । गरीब झट समझ जाते हैं ।
बेहद का बाप आया हुआ है पढ़ाने । उस बाप को याद करने से हमारे
पाप कट जायेंगे । हम बाप के पास आये हैं,
बाबा
से नई दुनिया का वर्सा जरूर मिलेगा । नम्बरवार तो होते ही हैं-
100
से लेकर एक नम्बर तक परन्तु बाप को जान लिया,
थोड़ा
भी सुना तो स्वर्ग में जरूर आयेंगे । 21 जन्मों के लिए स्वर्ग
में आना कोई कम है क्या! ऐसे तो नहीं,
कोई
मरता है तो कहेंगे 21 जन्म के लिए स्वर्ग में गया । स्वर्ग है
ही कहाँ । कितनी मिसअन्डरस्टैंडिंग कर दी है । बड़े-बड़े अच्छे
लोग भी कहते हैं फलाना स्वर्ग पधारा । स्वर्ग कहते किसको हैं?
अर्थ
कुछ भी नहीं समझते । यह सिर्फ तुम ही जानते हो । हो तुम भी
मनुष्य,
परन्तु तुम ब्राह्मण बने हो । अपने को ब्राह्मण ही कहलाते हो ।
तुम ब्राह्मणों का एक बापदादा है । तो सन्यासियों से भी तुम
पूछ सकते हो कि यह जो महावाक्य वा भगवानुवाच है कि देह सहित
देह के सब धर्म छोड़ मामेकम् याद करो-क्या यह कृष्ण कहते हैं
मामेकम याद करो?
तुम
कृष्ण को याद करते हो क्या?
कभी
नहीं हाँ कहेंगे । वहाँ ही प्रसिद्ध हो जाए । परन्तु बिचारी
अबलायें जाती हैं,
वह
क्या जानें । वह अपने फालोआर्स के आगे क्रोधित हो जाते हैं ।
दुर्वाषा का नाम भी है ना । उनमें अहंकार बहुत रहता है ।
फालोआर्स हैं ढेर । भक्ति का राज्य है ना । उनसे पूछने की कोई
में ताकत नहीं रहती है । नहीं तो उनको कह सकते हैं तुम तो
शिवबाबा की पूजा करते हो । अब भगवान किसको कहेंगे?
क्या
ठिक्कर भित्तर में भगवान है?
आगे
चल इन सब बातों को समझेंगे । अभी नशा कितना है । हैं सभी
पुजारी । पूज्य नहीं कहेंगे ।
बाप
कहते हैं मेरे को विरला कोई जानते हैं । मैं जो हूँ,
जैसा
हूँ-तुम बच्चों में भी विरले कोई एक्यूरेट जानते हैं । उनको
अन्दर में बहुत खुशी रहती है । यह तो समझते हैं ना-बाबा ही
हमको स्वर्ग की बादशाही देते हैं । कुबेर के खजाने मिलते हैं ।
अल्लाह अवलदीन का भी खेल दिखाते हैं ना । ठका करने से खजाना
निकल आया । बहुत खेल दिखाते हैं-खुदा दोस्त बादशाह क्या करते
थे,
उस
पर भी कहानी है । पुल पर जो आता था उनको एक दिन की राजाई दे
रवाना कर देता था । यह सब हैं कहानियां । अभी बाप समझाते हैं
खुदा तुम बच्चों का दोस्त है,
इनमें प्रवेश कर तुम्हारे साथ खाते पीते हैं,
खेलते भी हैं । शिवबाबा का और ब्रह्मा बाबा का रथ एक ही है,
तो
जरूर शिवबाबा भी खेल तो सकते होंगे ना । बाप को याद कर खेलते
हैं तो दोनों इसमें हैं । हैं तो दो ना-बाप और दादा । परन्तु
कोई भी समझते नहीं हैं,
कहते
हैं रथ पर आये,
तो
वह फिर घोड़े-गाड़ी का रथ बना दिया है । ऐसे भी नहीं कहेंगे
कृष्ण में शिवबाबा बैठ ज्ञान देते हैं । वह फिर कह देते हैं
कृष्ण भगवानुवाच । ऐसे तो नहीं कहते ब्रह्मा भगवानुवाच । नहीं
। यह है रथ । शिव भगवानुवाच । बाप बैठ तुम बच्चों को अपना और
रचना के आदि-मध्य- अन्त का परिचय,
डयुरेशन बताते हैं । जो बात कोई भी नहीं जानते । सेन्सीबुल जो
होंगे वह बुद्धि से काम लेंगे । सन्यासियों को तो सन्यास करना
है । तुम भी शरीर सहित सब कुछ सन्यास करते हो,
जानते हो यह पुरानी खल है,
हमको
तो अब नई दुनिया में जाना है । हम आत्मा यहाँ की रहने वाली
नहीं हैं । यहाँ पार्ट बजाने आये हैं । हम रहवासी परमधाम के
हैं । यह भी तुम बच्चे जानते हो वहाँ निराकारी झाड़ कैसा है ।
सभी आत्मायें वहाँ रहती हैं,
यह
अनादि ड्रामा बना हुआ है । कितनी करोड़ों जीव आत्मायें हैं ।
इतने सब कहाँ रहते हैं?
निराकारी दुनिया में । बाकी यह सितारे तो आत्मा नहीं है ।
मनुष्यों ने तो इन सितारों को भी देवता कह दिया है । परन्तु वह
कोई देवता है नहीं । ज्ञान सूर्य तो हम शिवबाबा को कहेंगे । तो
उनको फिर देवता थोड़ेही कहेंगे । शास्त्रों में तो क्या-क्या
बातें लिख दी हैं । यह हैं सब भक्ति मार्ग की सामग्री । जिससे
तुम नीचे ही गिरते आये हो ।
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जन्म लेंगे तो जरूर नीचे उतरेंगे ना । अभी यह है आइरन एजड
दुनिया । सतयुग को कहा जाता है गोल्डन एजड दुनिया । वहाँ कौन
रहते थे?
देवतायें । वह कहाँ गये-यह किसको भी पता नहीं है । समझते भी
हैं पुनर्जन्म लेते हैं । बाप ने समझाया है पुनर्जन्म
लेते-लेते देवता से बदल हिन्दू बन गये हैं । पतित बने हैं ना ।
और किसका भी धर्म बदली नहीं होता । इन्हों का धर्म क्यों बदली
होता है-किसको पता नहीं । बाप कहते हैं धर्म भ्रष्ट,
कर्म
भ्रष्ट हो गये हैं । देवी-देवता थे तो पवित्र जोड़े थे । फिर
रावण राज्य में तुम अपवित्र बन गये हो । तो देवी-देवता कहला न
सके इसलिए नाम पड़ गया है हिन्दू । देवी-देवता धर्म कृष्ण भगवान
ने नहीं स्थापन किया । जरूर शिवबाबा ने ही आकर किया होगा । शिव
जयन्ती शिवरात्रि भी मनाई जाती है परन्तु उसने क्या आकर किया,
यह
किसको भी पता नहीं है । एक शिव पुराण भी है । वास्तव में शिव
की एक गीता ही है,
जो
शिवबाबा ने सुनाई है,
और
कोई शास्त्र है नहीं । तुम कोई भी हिंसा नहीं करते हो ।
तुम्हारा कोई शास्त्र तो बनता नहीं । तुम नई दुनिया में चले
जाते हो । सतयुग में कोई भी शास्त्र गीता आदि होता नहीं । वहाँ
कौन पढ़ेंगे । वह तो कह देते यह वेद-शास्त्र आदि परम्परा से चले
आते हैं । उन्हों को कुछ भी पता नहीं है । स्वर्ग में कोई
शास्त्र आदि होता नहीं | बाप ने तो देवता बना दिया,
सबकी
सद्गति हो गई फिर शास्त्र पढ़ने की क्या दरकार है । वहाँ
शास्त्र होते नहीं । अभी बाप ने तुम्हें ज्ञान की चाबी दी है,
जिससे बुद्धि का ताला खुल गया है । पहले ताला एकदम बन्द था,
कुछ
भी समझते नहीं थे । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
किसी से भी ईर्ष्या आदि नहीं करनी है ।
खामियां निकाल सम्पूर्ण बनने का पुरुषार्थ करना है । पढ़ाई से
ऊँच पद पाना है ।
2.
शरीर सहित सब कुछ सन्यास करना है । किसी भी
प्रकार की हिंसा नहीं करनी है । अहंकार नहीं रखना है ।
वरदान:-
स्वार्थ,
ईर्ष्या और
चिड़चिड़ेपन
से मुक्त रहने वाले क्रोधमुक्त भव
!
कोई
भी विचार भले दो,
सेवा
के लिए स्वयं को आफर करो । लेकिन विचार के पीछे उस विचार को
इच्छा के रूप में बदली नहीं करो । जब संकल्प इच्छा के रूप में
बदलता है तब
चिड़चिड़ापन
आता है । लेकिन निस्वार्थ होकर विचार दो,
स्वार्थ रखकर नहीं । मैंने कहा तो होना ही चाहिए यह नहीं सोचो,
आफर
करो,
क्यों क्या में नहीं आओ,
नहीं
तो ईर्ष्या-घृणा एक एक साथी आते हैं । स्वार्थ या ईर्ष्या के
कारण भी क्रोध पैदा होता है,
अब
इससे भी मुक्त बनो ।
स्लोगन:-
शान्ति
दूत बन सबको शान्ति देना - यही आपका आक्यूपेशन है । 
ओम्
शान्ति |