10-10-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - तुम जितना-जितना बाप को प्यार से याद करेंगे उतना
आशीर्वाद मिलेगी,
पाप
कटते जायेंगे” 
प्रश्न:-
बाप
बच्चों को किस धर्म में टिकने की मत देते हैं?
उत्तर:-
बाबा
कहते बच्चे - तुम अपने विचित्रता के धर्म में टिको चित्र के
धर्म में नहीं । जैसे बाप विदेही,
विचित्र है ऐसे बच्चे भी विचित्र हैं फिर यहाँ चित्र (शरीर)
में आते हैं । अभी बाप बच्चों को कहते हैं बच्चे विचित्र बनो,
अपने
स्वधर्म में टिको । देह-अभिमान में नहीं आओ ।
प्रश्न:-
भगवान भी ड्रामा अनुसार किस बात के लिए बंधायमान है?
उत्तर:-
ड्रामानुसार बच्चों को पतित से पावन बनाने के लिए भगवान भी
बंधायमान है । उनको आना ही है पुरुषोत्तम संगमयुग पर ।
ओम्
शान्ति |
बाप
बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं जब ओम शान्ति कहा जाता है तो
गोया अपनी आत्मा को स्वधर्म का परिचय दिया जाता है । तो जरूर
बाप भी ऑटोमेटिकली याद आता है क्योंकि याद तो हरेक मनुष्य
भगवान को ही करते हैं । सिर्फ भगवान का पूरा परिचय नहीं है ।
भगवान अपना और आत्मा का परिचय देने ही आते हैं । पतित-पावन कहा
ही जाता है भगवान को । पतित से पावन बनाने के लिए भगवान भी
ड्रामा अनुसार बंधायमान है । उनको भी आना है पुरूषोत्तम
संगमयुग पर । संगमयुग की समझानी भी देते हैं । पुरानी दुनिया
और नई दुनिया के बीच में ही बाप आते हैं । पुरानी दुनिया को
मृत्युलोक,
नई
दुनिया को अमरलोक कहा जाता है । यह भी तुम समझते हो,
मृत्युलोक में आयु कम होती है । अकाले मृत्यु होती रहती है ।
वह फिर है अमरलोक,
जहाँ
अकाले मृत्यु नहीं होती क्योंकि पवित्र हैं । अपवित्रता से
व्यभिचारी बनते हैं और आयु भी कम होती है । बल भी कम हो जाता
है । सतयुग में पवित्र होने कारण अव्यभिचारी हैं । बल भी
जास्ती रहता है । बल बिगर सजाई कैसे प्राप्त की?
जरूर
बाप से उन्होंने आर्शीवाद ली होगी । बाप है सर्वशक्तिमान् ।
आर्शीवाद कैसे ली होगी?
बाप
कहते हैं मुझे याद करो । तो जिन्होंने जास्ती याद किया होगा
उन्होंने ही आर्शीवाद ली होगी । आर्शीवाद कोई मांगने की चीज
नहीं है । यह तो मेहनत करने की चीज़ है । जितना जास्ती याद
करेंगे उतना जास्ती आर्शीवाद मिलेगी अर्थात् ऊंच पद मिलेगा ।
याद ही नहीं करेंगे तो आर्शीवाद भी नहीं मिलेगी । लौकिक बाप
बच्चों को कभी यह नहीं कहते हैं कि मुझे याद करो । वह छोटेपन
से आपेही मम्मा-बाबा करते रहते हैं । आरगन्स छोटे हैं,
बड़े
बच्चे कब ऐसे बाबा-बाबा,
मम्मा-मम्मा नहीं कहेंगे । उन्हों की बुद्धि में रहता है - यह
हमारे माँ-बाप हैं,
जिनसे यह वर्सा मिलना है । कहने की वा याद करने की बात नहीं
रहती है । यहाँ तो बाप कहते हैं मुझे और वर्से को याद करो । हद
के सम्बन्ध को छोड़ अब बेहद के सम्बन्ध को याद करना है । सब
मनुष्य चाहते हैं हमारी गति हो । गति कहा जाता है मुक्तिधाम को
। सद्गति कहा जाता है फिर से सुखधाम में आने को । कोई भी पहले
आयेगा तो जरूर सुख ही पायेगा । बाप सुख के लिए ही आते हैं ।
जरूर कोई बात डिफीकल्ट है इसलिए इनको ऊंच पढ़ाई कहा जाता है ।
जितनी ऊंच पढ़ाई उतनी डिफीकल्ट भी होगी । सभी तो पास कर न सकें
। बड़े ते बड़ा इप्तहान बहुत थोड़े स्टूडेंट पास करते हैं क्योंकि
बड़ा इम्तहान पास होने से फिर सरकार को पघार (नौकरी) भी बहुत
देना पड़े ना । कई स्टूडेंट बड़ा इम्तहान पास करके भी ऐसे ही
बैठे रहते हैं । सरकार के पास इतना पैसा नहीं है जो बड़ा पघार
दे । यहाँ तो बाप कहते हैं जितना ऊंच पढ़ेंगे उतना ऊंच पद
पायेंगे । ऐसे भी नहीं सब कोई राजायें वा साहूकार बनेंगे ।
सारा मदार पढ़ाई पर है । भक्ति को पढ़ाई नहीं कहा जाता । यह तो
है रूहानी ज्ञान जो रूहानी बाप पढ़ाते हैं । कितनी ऊंच पढ़ाई है
। बच्चों को डिफीकल्ट लगता है क्योंकि बाप को याद नहीं करते तो
कैरेक्टर्स भी सुधरते नहीं हैं । जो अच्छा याद करते हैं उनके
कैरेक्टर्स भी अच्छे होते जाते हैं । बहुत-बहुत मीठे
सर्विसेबुल बनते जाते हैं । कैरेक्टर्स अच्छे नहीं है तो कोई
को पसन्द भी नहीं आते हैं । जो नापास होते हैं तो जरूर
कैरेक्टर्स में रोला है । श्री लक्ष्मी-नारायण के कैरेक्टर्स
बहुत अच्छे हैं । राम को दो कला कम कहेंगे । भारत रावण राज्य
में झूठ खण्ड हो पड़ता है । सचखण्ड में तो जरा भी झूठ हो न सके
। रावण राज्य में है झूठ ही झूठ । झूठे मनुष्यों को दैवी गुणों
वाला कह नहीं सकते । यह बेहद की बात है । अभी बाप कहते हैं ऐसी
झूठी बातें किसी की न सुनो,
न
सुनाओ । एक ईश्वर की मत को ही लीगल मत कहा जाता है । मनुष्य मत
को इलीगल मत कहा जाता ।लीगल मत से तुम ऊंच बनते हो । परन्तु सब
नहीं चल सकते हैं तो इलीगल बन पड़ते हैं । कई बाप के साथ
प्रतिज्ञा भी करते हें-बाबा इतनी आयु हमने इलीगल काम किये हैं,
अभी
नहीं करेंगे । सबसे इलीगल काम है विकार का भूत । देह-अभिमान का
भूत तो सबमें है ही । मायावी पुरूष में देह-अभिमान ही होता है
। बाप तो है ही विदेही,
विचित्र । तो बच्चे भी विचित्र हैं । यह समझ की बात है । हम
आत्मा विचित्र हैं फिर यहाँ चित्र (शरीर) में आते हैं । अभी
बाप फिर कहते हैं विचित्र बनो । अपने स्वधर्म में टिको । चित्र
के धर्म में नहीं टिको । विचित्रता के धर्म में टिको ।
देह-अभिमान में न आओ । बाप कितना समझाते हैं - इसमें याद की
बहुत जरूरत है । बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो
तो तुम सतोप्रधान,
प्योर बनेंगे । इमप्योरिटी में जाने से बहुत दण्ड मिल जाता है
। बाप का बनने के बाद अगर कोई भूल होती है तो फिर गायन है
सतगुरू के निदक ठौर न पाये । अगर तुम मेरी मत पर चल पवित्र
नहीं बनेंगे तो सौ गुणा दण्ड भोगना पड़ेगा । विवेक चलाना है ।
अगर हम याद नहीं कर सकते तो इतना ऊंच पद भी नहीं पा सकेंगे ।
पुरूषार्थ के लिए टाइम भी देते हैं । तुमको कहते हैं क्या सबूत
है?
बोलो,
जिस
तन में आते हैं वह प्रजापिता ब्रह्मा तो मनुष्य है ना । मनुष्य
का नाम शरीर पर पड़ता है । शिवबाबा तो न मनुष्य है,
न
देवता है । उनको सुप्रीम आत्मा कहा जाता है । वह तो पतित वा
पावन नहीं होता,
वह
समझाते हैं मुझे याद करने से तुम्हारे पाप कट जायेंगे । बाप ही
बैठ समझाते हैं तुम सतोप्रधान थे,
अभी
तमोप्रधान बने हो । फिर सतोप्रधान बनने के लिए मुझे याद करो ।
इन देवताओं की क्वालिफिकेशन देखो कैसी है और उन्हों से रहम
मांगने वालों को भी देखो वन्डर लगता है - हम क्या थे! फिर 84
जन्मो में कितना गिरकर एकदम चट हो पड़े हैं ।
बाप
कहते हैं - मीठे-मीठे बच्चे,
तुम
दैवी घराने के थे । अभी अपनी चाल को देखो यह (देवी-देवता) बन
सकते हो?
ऐसे
नहीं,
सब
लक्ष्मी-नारायण बनेंगे । फिर तो सारा फूलों का बगीचा हो जाए ।
शिवबाबा को सिर्फ गुलाब के फूल ही चढ़ायें । परन्तु नहीं,
फूल
भी चढ़ाते हैं,
अक
भी चढ़ाते हैं । बाप के बच्चे कोई फूल भी बनते हैं,
कोई
अक भी बनते हैं । पास नापास तो होते ही हैं । खुद भी समझते हैं
यह राजा तो बन नहीं सकेंगे । आप समान ही नहीं बनाते हैं,
साहूकार कैसे,
कौन
बनेंगे वह तो बाप जाने । आगे चल तुम बच्चे भी समझ जायेंगे कि
यह फलाना बाप का कैसा मददगार है । कल्प-कल्प जिन्होंने जो कुछ
किया है वही करेंगे । इसमें फर्क नहीं पड़ सकता । बाप पॉइंट्स
तो देते रहते हैं । ऐसे-ऐसे बाप को याद करना है और ट्रांसफर भी
करना है । भक्ति मार्ग में तुम ईश्वर अर्थ करते हो । परन्तु
ईश्वर को जानते नहीं हो । इतना समझते हो ऊंच ते ऊंच भगवान है ।
ऐसे नहीं कि ऊंच ते ऊंच नाम रूप वाला है । वह है ही निराकार ।
फिर ऊंच ते ऊंच साकार यहाँ होते हैं । ब्रह्मा,
विष्णु,
शंकर
को देवता कहा जाता है । ब्रह्मा देवताए नम:,
विष्णु देवताए नम: फिर कहते हैं शिव परमात्माए नम: । तो
परमात्मा बड़ा ठहरा ना । ब्रह्मा,
विष्णु,
शंकर
को परमात्मा नहीं कहेंगे । मुख से कहते भी हैं शिव परमात्माए
नम: तो जरूर परमात्मा एक हुआ ना । देवताओं को नमन करते हैं ।
मनुष्य लोक में मनुष्य को मनुष्य कहेंगे । उनको फिर परमात्माए
नम: कहना-यह तो पूरा अज्ञान है । सबकी बुद्धि में यह है कि
ईश्वर सर्वव्यापी है । अभी तुम बच्चे समझते हो भगवान तो एक है,
उनको
ही पतित-पावन कहा जाता है । सबको पावन बनाना यह भगवान का ही
काम है । जगत का गुरू कोई मनुष्य हो न सके । गुरू पावन होते
हैं ना । यहाँ तो सब हैं विकार से पैदा होने वाले । ज्ञान को
अमृत कहा जाता है । भक्ति को अमृत नहीं कहा जाता । भक्ति मार्ग
में भक्ति ही चलती है । सब मनुष्य भक्ति में हैं । ज्ञान सागर,
जगत
का गुरू एक को कहा जाता है । अभी तुम जानते हो बाप क्या आकर
करते हैं । तत्वों को भी पवित्र बनाते हैं । ड्रामा में उनका
पार्ट है । बाप निमित्त बनते हैं सर्व का सद्गति दाता है । अब
यह समझावें कैसे । आते तो बहुत हैं । उद्घाटन करने आते हैं तो
तार दी जाती है कि होवनहार विनाश के पहले बेहद के बाप को जानकर
उनसे ही वर्सा लो । यह है रूहानी बाप । जो भी मनुष्य मात्र हैं
सब फादर कहते हैं । क्रियेटर है तो जरूर क्रियेशन को वर्सा
मिलेगा । बेहद के बाप को कोई भी जानते नहीं । बाप को भूलना -
यह भी ड्रामा में नूँध है । बेहद का बाप ऊंच ते ऊंच है,
वह
कोई हद का वर्सा तो नहीं देगा ना । लौकिक बाप होते भी बेहद के
बाप को सब याद करते हैं । सतयुग में उनको कोई याद नहीं करते
क्योंकि बेहद सुख का वर्सा मिला हुआ है । अभी तुम बाप को याद
करते हो । आत्मा ही याद करती है फिर आत्मायें अपने को और अपने
बाप को,
ड्रामा को भूल जाती हैं । माया का परछाया पड़ जाता है ।
सतोप्रधान बुद्धि को फिर तमोप्रधान जरूर होना है । स्मृति में
आता है,
नई
दुनिया में देवी-देवतायें सतोप्रधान थे,
यह
कोई भी नहीं जानते हैं । दुनिया ही सतोप्रधान गोल्डन एजड बनती
है । उसको कहा जाता है न्यू वर्ल्ड । यह है आइरन एजड वर्ल्ड ।
यह सब बातें बाप ही आकर बच्चों को समझाते हैं । कल्प-कल्प जो
वर्सा तुम लेते हो,
पुरूषार्थ अनुसार वही मिलने का है । तुमकी भी अभी मालूम पड़ा है
हम यह थे फिर ऐसे नीचे आ गये हैं । बाप ही बताते हैं कि
ऐसे-ऐसे होगा । कोई कहते हैं कोशिश बहुत करते हैं परन्तु याद
ठहरती नहीं है । इसमें बाप अथवा टीचर क्या करे,
कोई
पढ़ेंगे नहीं तो टीचर क्या करे । टीचर आर्शीवाद करे फिर सब पास
हो जायें । पढ़ाई का फर्क तो बहुत रहता है । यह है बिल्कुल नई
पढ़ाई । यहाँ तुम्हारे पास अक्सर करके गरीब दु:खी ही आयेंगे
साहूकार नहीं आयेंगे । दु:खी हैं तब आते हैं । साहूकार समझते
हैं हम तो स्वर्ग में बैठे हैं । तकदीर में नहीं है,
जिनकी तकदीर में है,
उनको
झट निश्चय बैठ जाता है । निश्चय और संशय में देरी नहीं लगती है
। माया झट भुला देती है । टाइम तो लगता है ना । इसमें मूँझने
की दरकार नहीं है । अपने ऊपर रहम करना है । श्रीमत तो मिलती
रहती है । कितना सहज बाप कहते हैं सिर्फ अपने को आत्मा समझ
मुझे याद करो ।
तुम
जानते हो यह है ही मृत्युलोक । वह है अमरलोक । वहां अकाले
मृत्यु नहीं होता । क्लास में स्टूडेंट नम्बरवार बैठते हैं ना
। यह भी स्कूल है ना । ब्राह्मणी से पूछा जाता है तुम्हारे पास
नम्बरवार होशियार बच्चे कौन से हैं?
जो
अच्छा पढ़ते हैं,
वे
राइट साइड में होने चाहिए । राइट हैण्ड का महत्व होता है ना ।
पूजा आदि भी राइट हैण्ड से की जाती है । बच्चे ख्याल करते रहें
- सतयुग में क्या होगा । सतयुग याद पड़ेगा तो सत बाबा भी याद
पड़ेगा । बाबा हमको सतयुग का मालिक बनाते हैं | वहाँ यह पता
नहीं है कि हमको यह बादशाही कैसे मिली है । इसलिए बाबा कहते है
हैं इन लक्ष्मी-नारायण में भी यह ज्ञान नहीं है । बाप हरेक बात
अच्छी रीति समझाते रहते हैं जो कल्प पहले वाले समझे हैं वही
जरूर समझेंगे । फिर भी पुरूषार्थ करना पड़ता है ना । बाप आते ही
हैं पढ़ाने । यह पढ़ाई है,
इसमें बड़ी समझ चाहिए । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
यह रूहानी पढ़ाई बहुत ऊंची और डिफीकल्ट है,
इसमें पास होने के लिए बाप की याद से आशीर्वाद लेनी है । अपने
कैरेक्टर्स सुधारने हैं ।
2.
अभी कोई भी इलीगल काम नहीं करना है । विचित्र
बन अपने स्वधर्म में टिकना है और विचित्र बाप की लीगल मत पर
चलना है ।
वरदान:-
दृढ़
निश्चय के आधार पर सदा विजयी बनने वाले ब्रह्मा बाप के स्नेही
भव !
जो
दृढ़ निश्चय रखते हैं,
तो
निश्चय की विजय कभी टल नहीं सकती । चाहे पांच ही तत्व या
आत्मायें कितना भी सामना करें लेकिन वो सामना करेंगे और आप अटल
निश्चय के आधार पर समाने की शक्ति से उस सामना को समा लेंगे ।
कभी निश्चय में हलचल नहीं हो सकती । ऐसे अचल रहने वाले विजयी
बच्चे ही बाप के स्नेही हैं । स्नेही बच्चे सदा ब्रह्मा बाप की
भुजाओं में समाये रहते हैं ।
स्लोगन:-
सर्व
खजानों की चाबी प्राप्त करनी है तो परमात्म प्यार के अनुभवी
बनो । 
ओम्
शान्ति |