21-11-13 प्रातःमुरली
ओम् शान्ति “बापदादा”
मधुबन
“मीठे
बच्चे
–
भारत जो हीरे जैसा था, पतित बनने से कंगाल बना है, इसे फिर
पावन हीरे जैसा बनाना है, मीठे दैवी झाड़ का सैपलिंग लगाना है |”
प्रश्न:-
बाप का कर्तव्य कौन-सा है, जिसमें बच्चों को मददगार बनना है?
उत्तर:-सारे
विश्व पर एक डीटी गवर्मेन्ट स्थापन करना, अनेक धर्मों का विनाश
और एक सत धर्म की स्थापना करना – यही बाप का कर्तव्य है | तुम
बच्चों को इस कार्य में मददगार बनना है | ऊँच मर्तबा लेने का
पुरुषार्थ
करना है, ऐसे नहीं सोचना है कि हम स्वर्ग में तो जायेंगे ही |
गीत:-
तुम्हीं हो माता, पिता......

ओम्
शान्ति
|
दुनिया
में मनुष्य गाते हैं तुम मात-पिता......परन्तु किसके लिए गाते
हैं, यह नहीं जानते | यह भी वन्डरफुल बात है | सिर्फ़ कहने
मात्र कह देते हैं | तुम बच्चों की बुद्धि में है कि बरोबर यह
मात-पिता कौन हैं | यह परमधाम का रहवासी है | परमधाम एक ही है,
सतयुग को परमधाम नहीं कहा जाता | सतयुग तो यहाँ होता है ना,
परमधाम में रहने वाले तो हम सब हैं | तुम जानते हो हम आत्मायें
परमधाम, निर्वाण देश से आती हैं इस साकार सृष्टि में | स्वर्ग
कोई ऊपर नहीं है | आते तो तुम भी परमधाम से हो | तुम बच्चे अब
जानते हो हम आत्मायें शरीर द्वारा पार्ट बजा रहे हैं | कितने
जन्म लेते हैं, कैसे पार्ट बजाते हैं, यह अब जानते हैं | वह है
दूर देश का रहने वाला, आया देश पराये | अब पराया देश क्यों कहा
जाता है? तुम भारत में आते हो ना | परन्तु पहले-पहले तुम बाप
के स्थापन किये हुए स्वर्ग में आते हो फिर वह नर्क रावण राज्य
हो जाता है, अनेक धर्म, अनेक गवर्मेन्ट हो जाती हैं | फिर बाप
आकर एक राज्य बनाते हैं | अभी तो बहुत गवर्मेन्ट हैं | कहते
रहते हैं सब मिलकर एक हों | अब सब मिलकर एक हों – यह कैसे हो
सकता? 5 हज़ार वर्ष पहले भर में एक गवर्मेन्ट थी, वर्ल्ड आलमाइटी
अथॉरिटी लक्ष्मी-नारायण थे | विश्व में राज्य करने वाली और कोई
अथॉरिटी है नहीं | सब धर्म एक धर्म में आ नहीं सकते | स्वर्ग
में एक ही गवर्मेन्ट थी इसलिए कहते हैं कि सब एक हो जाएं | अब
बाप कहते हैं हम इन अनेक गवर्मेन्ट का विनाश कराए एक आदि सनातन
डीटी गवर्मेन्ट स्थापन कर रहे हैं | तुम भी ऐसे कहते हो ना
सर्वशक्तिमान् वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी के डायरेक्शन अनुसार हम
भारत में एक डीटी गवर्मेन्ट का राज्य स्थापन कर रहे हैं | डीटी
गवर्मेन्ट के सिवाए और कोई एक गवर्मेन्ट होती नहीं | 5 हज़ार
वर्ष पहले भारत में अथवा सारे विश्व में एक डीटी गवर्मेन्ट थी,
अब बाप आया है विश्व की डीटी गवर्मेन्ट फिर से स्थापन करने |
हम बच्चे उनके मददगार हैं | यह राज़ गीता में है | यह है रूद्र
ज्ञान यज्ञ | रूद्र निराकार को कहा जाता है, कृष्ण को नहीं
कहेंगे | रूद्र नाम ही है निराकार का | बहुत नाम सुन मनुष्य
समझते हैं रूद्र अलग है और सोमनाथ अलग है | तो अब एक डीटी
गवर्मेन्ट स्थापन होनी है | सिर्फ़ इसमें ख़ुश नहीं होना है कि
स्वर्ग में तो जायेंगे ही | देखो नर्क में मर्तबे के लिए कितना
माथा मारते हैं | एक तो मर्तबा मिलता दूसरा फिर कमाते बहुत हैं
| भक्तों के लिए तो एक भगवान् होना चाहिए, नहीं तो भटकेंगे |
यहाँ तो सबको भगवान् कह देते हैं, अनेकों अवतार मानते हैं |
बाप कहते हैं मैं तो एक ही बार आता हूँ | गाते भी हैं
पतित-पावन आओ | सारी दुनिया पतित है, उसमें भी भारत ज़्यादा
पतित है | भारत ही कंगाल है, भारत ही हीरे जैसा था | तुमको नई
दुनिया में राजाई मिलनी है | तो बाप समझाते हैं कृष्ण को भगवान्
कह नहीं सकते | भगवान् तो एक निराकार परमपिता परमात्मा को ही
कहा जाता है, जो जन्म-मरण रहित है | मनुष्य तो फिर कह देते हैं
वह भी भगवान्, हम भी भगवान्, बस यहाँ आये हैं मौज करने | बड़े
मस्त रहते हैं | बस, जिधर देखता हूँ तू ही तू है, तेरी ही रंगत
है | हम भी तुम, तुम भी हम, बस डांस करते रहते हैं | बाबा कहते
हैं मैं उन्हें साक्षात्कार करा देता हूँ | परन्तु वो मेरे से
मिलते नहीं, मैं तो स्वर्ग का रचयिता हूँ | ऐसे नहीं कि उन्हों
को स्वर्ग का वर्सा देता हूँ | भगवान् तो है ही एक | बाप कहते
हैं सब पुनर्जन्म लेते-लेते अबला हो गये हैं | अब मैं परमधाम
से आया हूँ | मैं जो स्वर्ग स्थापन करता हूँ उसमें फिर मैं नहीं
जाता | बहुत मनुष्य कहते हम निष्काम सेवा करते हैं | परन्तु
चाहें न चाहें फल तो ज़रूर मिलता है | दान करते हैं तो फल ज़रूर
मिलेगा ना | तुम साहूकार बने हो, क्योंकि पास्ट में दान-पुण्य
किया है, अब तुम पुरुषार्थ करते हो, जितना पुरुषार्थ करेंगे
उतना भविष्य में ऊँच पद पायेंगे | अभी तुम्हें अच्छे कर्म
सिखलाये जाते हैं – भविष्य जन्म-जन्मान्तर के लिए | मनुष्य करते
हैं दूसरे जन्म के लिए | फिर कहेंगे कर्मों का फल है |
सतयुग-त्रेता में ऐसे नहीं कहेंगे | कर्मों का फल 21 जन्मों के
लिए अभी तैयार कराया जाता है | संगमयुग के पुरुषार्थ की
प्रालब्ध 21 पीढ़ी चलती है | सन्यासी ऐसे नहीं कह सकें कि हम
तुम्हारी ऐसी प्रालब्ध बनाते हैं जो तुम 21 जन्म सुखी रहेंगे |
अच्छा वा बुरा फल तो भगवान् को देना है ना | तो एक ही भूल हुई
है जो कल्प की आयु लम्बी कर दी है | बहुत हैं जो कहते हैं 5
हज़ार वर्ष का कल्प है | तुम्हारे पास मुसलमान आये थे, बोले
कल्प की आयु बरोबर 5 हज़ार वर्ष है | यहाँ की बातें सुनी होंगी
| चित्र तो सबके पास जाते हैं, सो भी सब थोड़ेही मानेंगे | तुम
जानते हो यह रूद्र ज्ञान यज्ञ है, जिससे यह विनाश ज्वाला निकली
है | इसमें सहज राजयोग सिखलाया जाता है | कृष्ण की आत्मा अब
अन्तिम जन्म में शिव (रूद्र) से वर्सा ले रही है, यहाँ बैठी है
| बाबा अलग और यह अलग है | ब्राह्मण खिलाते हैं तो आत्मा को
बुलाते हैं ना | फिर वह आत्मा ब्राह्मण में आकर बोलती है |
तीर्थों पर भी खास जाकर बुलाते हैं | अब आत्मा को कितना समय हो
गया फिर वह आत्मा कैसे आती है, क्या होता है? बोलती है मैं
बहुत सुखी हूँ, फ़लाने घर जन्म लिया है | यह क्या होता है? क्या
आत्मा निकलकर आई? बाप समझाते हैं मैं भावना का भाड़ा देता हूँ
और वो खुश हो जाते हैं | यह भी ड्रामा में राज़ है | बोलते हैं
तो पार्ट चलता है | कोई ने नहीं बोला तो नूंध नहीं है | बाप की
याद में रहो तो विकर्म विनाश होंगे, अन्य कोई उपाय नहीं | हर
एक को सतो-रजो-तमो में आना ही है | बाप कहते हैं तुमको नई
दुनिया का मालिक बनाता हूँ | फिर से मैं परमधाम से पुरानी
दुनिया, पुराने तन में आता हूँ | यह पूज्य था, पुजारी बना फिर
पूज्य बनता है | तत त्वम् | तुमको भी बनाता हूँ | पहला नम्बर
पुरुषार्थी यह है | तब तो मातेश्वरी, पिताश्री कहते हो | बाप
भी कहते हैं तुम तख़्तनशीन होने का पुरुषार्थ करो | यह जगत अम्बा
सबकी कामना पूर्ण करती है | माता है तो पिता भी होगा और बच्चे
भी होंगे | तुम सबको रास्ता बताते हो, सब कामनायें तुम्हारी
पूरी होती है सतयुग में | बाबा कहते हैं घर में रहते भी यदि
पूरा योग लगायें तो भी यहाँ वालों से ऊँच पद पा सकते हैं |
बांधेलियाँ
तो बहुत हैं | रात को भी होम मिनिस्टर को समझा रहे थे ना कि
इसके लिए कोई उपाय निकलना चाहिए जो इन अबलाओं पर अत्याचार न
हों | परन्तु जब दो-चार बार सुनें तब ख्याल में आये | तक़दीर
में होगा तो मानेंगे | पेंचीला ज्ञान है ना | सिक्ख धर्म वालों
को भी पता पड़े तो समझें – मनुष्य से देवता किये.......किसने?
एकोअंकार सतनाम, यह उनकी महिमा है ना | अकाल मूर्त | ब्रह्म
तत्व उनका तख़्त है | कहते हैं ना सिंहासन छोड़कर आओ | बाप बैठ
समझाते हैं, सारी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं, ऐसे
नहीं सबकी दिल को जानते हैं | भगवान् को याद करते हैं कि सद्गति
में ले जाओ | बाबा कहते हैं मैं वर्ल्ड आलमाइटी डीटी गवर्मेन्ट
की स्थापना कर रहा हूँ | यह जो पार्टीशन हुए हैं, यह सब निकल
जायेंगे | हमारे देवी-देवता धर्म के जो हैं उनका ही कलम लगाना
है | झाड़ तो बहुत बड़ा है | उनमें मीठे ते मीठे हैं देवी-देवतायें
| उनका फिर सैपलिंग लगाना है | अन्य धर्म वाले जो आते हैं वह
कोई सैपलिंग थोड़ेही लगाते हैं |
अच्छा, आज
सतगुरुवार है | बाप कहते हैं – बच्चे, श्रीमत पर चलकर पवित्र
बनो तो साथ ले चलूँ | फिर चाहे मखमल की रानी बनो, चाहे रेशम की
रानी बनो | वर्सा लेना है तो मेरी मत पर चलो | याद से ही तुम
अपवित्र से पवित्र बन जायेंगे | अच्छा, बापदादा और मीठी मम्मा
के सिकीलधे बच्चों को याद-प्यार और सलाम-मालेकम् |
अव्यक्त-महावाक्य
:-
विशेष पार्टधारी अर्थात् हर क़दम, हर सेकेण्ड सदा अलर्ट, अलबेले
नहीं
सदा अपने को
चलते-फिरते, खाते-पीते बेहद वर्ल्ड ड्रामा की स्टेज पर विशेष
पार्टधारी आत्मा अनुभव करते हो? जो विशेष पार्टधारी होता है
उसको सदा हर समय अपने कर्म अर्थात् पार्ट के ऊपर अटेन्शन रहता
है क्योंकि सारे ड्रामा का आधार हीरो पार्टधारी होता है | तो
इस सारे ड्रामा का आधार आप हो ना | तो विशेष आत्माओं को वा
विशेष पार्टधारियों को सदा इतना ही अटेन्शन रहता है? विशेष
पार्टधारी कभी भी अलबेले नहीं होते, अलर्ट होते हैं | तो कभी
अलबेलापन तो नहीं आ जाता? कर तो रहे हैं, पहुँच ही
जायेंगे.....ऐसे तो नहीं सोचते? कर रहे हैं लेकिन किस गति से
कर रहे हैं? चल रहे हैं लेकिन किस गति से चल रहे हैं? गति में
तो अन्तर होता है ना | कहाँ पैदल चलने वाला और कहाँ प्लेन में
चलने वाला! कहने में तो आयेगा कि पैदल वाला भी चल रहा है और
प्लेन वाला भी चल रहा है लेकिन फ़र्क कितना है? तो सिर्फ़ चल रहे
हैं, ब्रह्माकुमार बन गये माना चल रहे हैं लेकिन किस गति से?
तीव्रगति वाला ही समय पर मंज़िल पर पहुँचेगा, नहीं तो पीछे रह
जायेगा | यहाँ भी प्राप्ति तो होती है लेकिन सूर्यवंशी की होती
है या चन्द्रवंशी की होती है, अन्तर तो होता है ना | तो
सूर्यवंशी में आने के लिए हर संकल्प, हर बोल से साधारणता
समाप्त हो | अगर कोई हीरो एक्टर साधारण एक्ट करे तो सभी उस पर
हसेंगे ना | तो यह सदा स्मृति में रहे कि मैं विशेष पार्टधारी
हूँ इसलिए हर कर्म विशेष हो, हर क़दम विशेष हो, हर सेकेण्ड, हर
समय, हर संकल्प श्रेष्ठ हो | ऐसे नहीं कि ये तो 5 मिनट साधारण
हुआ | पांच मिनट, पांच मिनट नहीं है, संगमयुग के पांच मिनट
बहुत महत्व वाले हैं, पांच मिनट पांच साल से भी ज़्यादा हैं
इसलिए इतना अटेन्शन रहे | इसको कहते हैं तीव्र पुरुषार्थी |
तीव्र पुरुषार्थियों का स्लोगन कौन-सा है? “अभी नहीं तो कभी
नहीं |” तो यह सदा याद रहता है? क्योंकि सदा का राज्य-भाग्य
प्राप्त करना चाहते हो तो अटेन्शन भी सदा हो | अब थोड़ा समय सदा
का अटेन्शन बहुतकाल, सदा की प्राप्ति कराने वाला है | तो हर
समय यह स्मृति रहे और चेकिंग हो कि चलते-चलते कभी साधारणता तो
नहीं आ जाती? जैसे बाप को परम आत्मा कहा जाता है, तो परम है ना
| तो जैसे बाप वैसे बच्चे भी हर बात में परम यानी श्रेष्ठ हो |
तो अभी स्वयं
का पुरुषार्थ भी तीव्र हो और सेवा में भी कम समय, कम मेहनत लगे
और सफलता ज़्यादा हो | एक अनेकों जितना काम करे | तो ऐसा प्लैन
बनाओ | पंजाब है तो बहुत पुराना | सेवा के आदि से हो तो आदि
स्थान वाले कोई आदि रत्न निकालो | वैसे भी पंजाब को शेर कहते
हैं ना | तो शेर गजघोर करता है | तो गजघोर अर्थात् बुलन्द आवाज़
| अब देखेंगे, क्या करते हैं और कौन करते हैं?
मीठे-मीठे
सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और
गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा के लिए
मुख्य सार:-
1. संगमयुग
के पुरुषार्थ की प्रालब्ध 21 जन्म चलनी है – यह बात स्मृति में
रख श्रेष्ठ कर्म करते
हैं | ज्ञान दान से अपनी प्रालब्ध बनानी है
|
2. मीठे
दैवी झाड़ का सैपलिंग लग रहा है इसलिए अति मीठा बनना है |
वरदान:-
स्नेह
की लिफ्ट द्वारा उड़ती कला का अनुभव करने वाले अविनाशी स्नेही
भव
