20-02-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
ज्ञान
की तलवार में योग का जौहर चाहिए तब ही विजय होगी, ज्ञान में
योग का जौहर है तो उसका असर ज़रूर होगा
| 
प्रश्न:-
तुम खुद के पैगम्बर हो, तुम्हें सारी दुनिया को कौन-सा पैगाम
देना है?
उत्तर:-
सारी दुनिया को पैगाम दो कि खुदा ने कहा है – तुम सब अपने को
आत्मा समझो, देह-अभिमान छोड़ो, एक मुझ बाप को याद करो तो
तुम्हारे सिर से पापों का बोझा उतर जायेगा | एक बाप की याद से
तुम पावन बन जायेंगे | अन्तर्मुखी बच्चे ही ऐसा पैगाम सभी को
दे सकते हैं |
ओम्
शान्ति
|
बाप ने समझाया है कि कोई भी मनुष्य मात्र, फिर चाहे दैवी गुण
वाला हो या आसुरी गुण वाला हो, उनको भगवान नहीं कह सकते | यह
तो बच्चे जानते हैं – दैवीगुण वाले होते हैं सतयुग में, आसुरी
गुण वाले होते हैं कलियुग में इसलिए बाबा ने लिखत भी बनाई है
कि दैवीगुण वाले हो या आसुरी गुण वाले? सतयुगी हो या कलियुगी?
यह बातें बड़ी मुश्किल से मनुष्यों को समझ में आती हैं | तुम
सीढ़ी पर बहुत अच्छी रीति समझा सकते हो | तुम्हारे ज्ञान के बाण
बहुत अच्छे हैं, परन्तु उसमें जौहर चाहिए | जैसे तलवार में भी
जौहर होता है | कोई बहुत तीखे जौहर वाले होते हैं | जैसे गुरु
गोविन्दसिंह की तलवार विलायत चली गई | उस तलवार को लेकर
परिक्रमा देते हैं | बहुत साफ़ रखते हैं | कोई दो पैसे की तलवार
भी होती है, जिसमें जौहर होता है, वह बहुत तीखी होती है | उनका
दाम बहुत होता है | बच्चों में भी ऐसे हैं | कोई में ज्ञान
बहुत है, योग का जौहर कम है | जो बांधेले हैं, गरीब हैं वह
शिवबाबा को बहुत याद करते हैं | उनमें ज्ञान कम है, योग का
जौहर बहुत है | वह तमोप्रधान से सतोप्रधान बन रहे हैं | जैसे
एक अर्जुन-भील का भी मिसाल दिखाते हैं | अर्जुन से भी भील तीखा
हो गया – बाण मारने में | अर्जुन अर्थात् जो घर में रहते हैं,
रोज़ सुनते हैं | उनसे बाहर रहने वाले तीखे हो जाते हैं |
जिनमें ज्ञान का जौहर है उनके आगे वह भरी ढोते हैं | कहेंगे
भावी | कोई फेल होते हैं वा देवाला मारते हैं तो नसीब पर हाथ
रखते हैं | ज्ञान के साथ योग का जौहर भी ज़रूर चाहिए | जौहर
नहीं तो गोया कुक्कड़-ज्ञानी हैं | बच्चे भी फ़ील करते हैं | कोई
का पति में, कोई का किसमें प्यार होता है | ज्ञान में बहुत
तीखे होते लेकिन अन्दर खिटखिट रहती है | यहाँ तो बिल्कुल
साधारण रहना है |
सब-कुछ देखते हुए जैसे देखते ही नहीं | एक बाप से ही प्रीत है
| तब तो गाया जाता है कम कार डे.....आफिस आदि में काम करते भी
बुद्धि में याद रहे कि मैं आत्मा हूँ | बाबा ने फ़रमान किया है
कि मुझे याद करते रहो | भक्ति मार्ग में भी कामकाज करते कोई न
कोई इष्ट देवता को याद करते रहते हैं | वह तो है पत्थर का बुत
| उनमें आत्मा तो है नहीं | लक्ष्मी-नारायण भी पूजे जाते हैं |
वह भी पत्थर की मूर्ति है ना | बोलो इनकी आत्मा कहाँ है? अब
तुम समझते हो ज़रूर कोई नाम-रूप में है | अब तुम फिर योगबल से
पावन देवता बन रहे हो | एम ऑब्जेक्ट भी है | दूसरी बात, बाप
समझाते हैं ज्ञान सागर और ज्ञान गंगायें इस पुरुषोत्तम संगमयुग
पर ही होते हैं | बस, एक ही समय पर होते हैं | ज्ञान सागर आते
ही हैं कल्प के इस पुरुषोत्तम संगमयुग पर | ज्ञान सागर है
निराकार परमपिता परमात्मा शिव | उनको शरीर ज़रूर चाहिए, जो बात
भी कर सके | बाकी पानी की तो बात ही नहीं | यह तुमको ज्ञान
मिलता ही है संगमयुग पर | बाकी सबके पास है भक्ति | भक्ति
मार्ग वाले गंगा के पानी को भी पूजते रहते हैं | पतित-पावन तो
एक ही बाप है | वह आते ही एक बार हैं, जब पुरानी दुनिया बदलनी
है | अब यह किसको समझाने में बुद्धि भी चाहिए | एकान्त में
विचार सागर मंथन करना पड़े | क्या लिखें जो मनुष्य समझ जायें कि
ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा एक शिव ही हैं | वह जब आते हैं
उनके बच्चे जो ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ बनते हैं, वह ज्ञान धारण
कर ज्ञान गंगायें बनते हैं | अनेक ज्ञान गंगायें हैं जो ज्ञान
सुनाते रहते हैं | वो ही सद्गति कर सकते हैं | पानी में स्नान
करने से पावन नहीं बन सकते | ज्ञान होता ही है संगम पर | यह
समझाने की युक्ति चाहिए | बड़ा अन्तर्मुख चाहिए | शरीर का भान
छोड़ अपने को आत्मा समझना है | इस समय कहेंगे हम पुरुषार्थी
हैं, याद करते-करते जब पाप ख़त्म होंगे तब लड़ाई शुरू होगी, जब
तक सबको पैगाम मिल जाये | पैगाम अथवा मैसेज तो शिवबाबा ही देते
हैं | खुदा को पैगम्बर कहते हैं ना | तुम सबको यह पैगाम
पहुँचाते हो कि अपने को आत्मा समझ परमपिता परमात्मा के साथ योग
लगाओ तो बाप प्रतिज्ञा करते हैं कि तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के
पाप कट जायेंगे | यह तो बाप ब्रह्मा मुख से बैठ समझाते हैं |
पानी की गंगा क्या समझायेगी | बेहद का बाप बेहद के बच्चों को
समझाते हैं – तुम सतयुग में कितने सुखी सम्पत्तिवान थे, अभी
दुःखी कंगाल बन पड़े हो | यह है बेहद की बात | बाकी यह चित्र
आदि सब भक्ति मार्ग के हैं | यह भक्तिमार्ग की सामग्री भी बननी
है | शास्त्र पढ़ना, पूजा करना यह भक्ति है ना | मैं थोड़ेही
शास्त्र आदि पढ़ाता हूँ | मैं तो तुम पतितों को पावन बनाने के
लिए ज्ञान सुनाता हूँ कि अपने को आत्मा समझो | अभी आत्मा और
शरीर दोनों ही पतित हैं | अब बाप को याद करो तो तुम यह देवता
बन जायेंगे | देह के सर्व पुराने सम्बन्धियों से ममत्व मिट
जाये | गाते भी हैं आप आयेंगे तो हम और कोई की नहीं सुनेंगे,
एक आप से ही सब सम्बन्ध जोड़ेंगे और सब देहधारियों को भूल
जायेंगे | अब बाप तुमको अपना वायदा याद कराते हैं | बाप कहते
हैं मेरे साथ योग लगाने से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे |
तुम नई दुनिया के मालिक बन जायेंगे | यह है एम ऑब्जेक्ट |
राजाओं के साथ प्रजा भी ज़रूर बननी है | राजाओं को दास-दासियाँ
भी चाहिए | बाप सब बातें समझाते रहते हैं | अच्छी तरह योग में
नहीं रहेंगे, दैवी गुण धारण नहीं करेंगे तो ऊँच पद कैसे
पायेंगे? घर में कोई न कोई बात पर झगड़ा कलह होती है ना | बाप
लिख देते हैं तुम्हारे घर में कलह है इसलिए ज्ञान ठहरता नहीं |
बाबा पूछते हैं स्त्री पुरुष दोनों ठीक चलते हैं? चलन बड़ी
अच्छी चाहिए | क्रोध का अंश भी न रहे | अब तो दुनिया में कितना
हंगामा और अशान्ति है | तुम्हारे में बहुत ज्ञान-योग में तीखे
हो जायेंगे तो और भी बहुत याद करने लग पड़ेंगे | तुम्हारी
प्रैक्टिस भी अच्छी हो जायेगी और बुद्धि भी विशाल हो जायेगी |
बाबा को छोटे चित्र इतने पसन्द नहीं आते हैं | सब बड़े-बड़े
चित्र हों | बाहर मुख्य स्थानों पर रखो | जैसे नाटक के बड़े-बड़े
चित्र रखते हैं ना | अच्छे-अच्छे चित्र बनाओ जो बिल्कुल ख़राब न
हों | सीढ़ी भी बहुत बड़ी-बड़ी बनाकर ऐसी जगह रखो जो सबकी नज़र पड़े
| सीट पर ही रंग आदि ऐसा मज़बूत हो जो पानी वा धूप में ख़राब न
हो | मुख्य स्थानों पर रख दो या कहाँ एग्ज़ीवीशन होती है तो
मुख्य बड़े दो तीन चित्र ही काफी हैं | यह गोला भी वास्तव में
दीवार जितना बनना चाहिए | भल 8-10 आदमी उठाकर रखें | कोई भी
दूर से देखे तो एकदम क्लीयर मालूम पड़ जाये | सतयुग में तो और
सब इतने धर्म होते नहीं | वह तो आते ही बाद में हैं | पहले तो
स्वर्ग में बहुत थोड़े मनुष्य होते हैं | अब स्वर्ग है या नर्क
– तुम इस पर बहुत अच्छी तरह समझा सकते हो | जो आये उनको समझाते
रहो | बड़े-बड़े चित्र हों | कैसे पाण्डवों के बड़े-बड़े बुत बनाते
हैं | तुम भी पाण्डव हो ना |
शिवबाबा तो संगम पर पढ़ाते हैं | वह श्रीकृष्ण है सतयुग का
फर्स्ट प्रिन्स, तुम समझाते-समझाते अपनी राजाई स्थापन कर लेते
हो | कोई पढ़ते-पढ़ते छोड़ देते हैं | स्कूल में भी कोई नहीं पढ़
सकते हैं तो पढ़ाई छोड़ देते हैं | यहाँ भी बहुत हैं जिन्होंने
पढ़ाई को छोड़ दिया है फिर वह स्वर्ग में नहीं आयेंगे क्या? मैं
विश्व का मालिक, मेरे से कोई दो अक्षर भी सुनें तो भी स्वर्ग
में ज़रूर आयेंगे | आगे चलकर ढेर सुनेंगे | यह सारी राजधानी
स्थापन होती है, कल्प पहले मिसल | बच्चे समझते हैं हमने अनेक
बार राज्य लिया है, फिर गंवाया है | हीरे जैसा थे फिर कौड़ी
जैसा बने हैं | भारत हीरे मिसल था | अभी फिर क्या हुआ है? भारत
तो वो ही होगा ना | इस संगम को पुरुषोत्तम युग कहा जाता है |
उत्तम से उत्तम पुरुष भी हैं | बाकी सब हैं कनिष्ट | जो पूज्य
थे वही फिर पुजारी बने हैं | 84 जन्म लेते हैं | वह शरीर भी
ख़त्म हो गये, आत्मा भी तमोप्रधान हो गई | जब सतोप्रधान हैं तब
तो पूजते ही नहीं | चैतन्य में हैं | अब तुम शिवबाबा को चैतन्य
में याद करते हो | फिर पुजारी बनेंगे तो पत्थर को पूजेंगे | अब
बाबा चैतन्य है ना | फिर उनकी ही पत्थर की मूर्ति बनाकर पूजते
रहते हैं | रावण राज्य में भक्ति शुरू होती है | आत्मायें वो
ही हैं, भिन्न-भिन्न शरीर धारण करती आयी हैं | नीचे गिरने से
ही भक्ति शुरू होती है | बाबा फिर आकर ज्ञान देते हैं तो दिन
शुरू हो जाता है | ब्राह्मण सो देवता बन जाते हैं | अब तो
देवता नहीं कहेंगे | ब्रह्मा तो सतयुग में होता नहीं | यहाँ
ब्रह्मा तपस्या कर रहे हैं | मनुष्य है ना | शिवबाबा को शिव ही
कहा जाता है | इनमें है तो भी शिवबाबा कहेंगे | दूसरा कोई नाम
नहीं रखा जाता, इनमें शिवबाबा आते हैं | वह ज्ञान का सागर है,
इस ब्रह्मा तन द्वारा ज्ञान देते हैं | तो चित्र आदि भी बड़ी
समझ से बनाने हैं | इसमें लिखत ही काम में आती है | पतित-पावन
पानी का सागर या पानी की नदियाँ हैं? वा ज्ञान सागर और उनसे
निकली हुई ज्ञान गंगायें ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ हैं? इनको ही
बाप ज्ञान देते हैं | ब्रह्मा द्वारा जो ब्राह्मण बनते हैं वो
ही फिर देवता बनते हैं | विराट रूप का चित्र भी बहुत बड़ा
दिखाना है | यह है मुख्य चित्र |
बाबा समझाते हैं – मीठे बच्चे, तुम्हें अपनी सिविल बुद्धि
बनानी है | जब बाबा देखते हैं कि इनकी क्रिमिनल आई है तो समझ
जाते हैं यह चल नहीं सकेंगे | तुम्हारी आत्मा अब त्रिकालदर्शी
बनती है, यह कोई विरला समझते हैं | बहुत बुद्धू हैं | बाप को
फ़ारकती दे देते हैं | यह तो बच्चे समझते हैं कि राजधानी स्थापन
हो रही है | उसमें सब चाहिए | पिछाड़ी में सब साक्षात्कार होंगे
| फर्स्टक्लास दास-दासियाँ भी बनेंगी | फर्स्टक्लास दासी कृष्ण
की पालना करेगी | बर्तन साफ़ करने वाली, खाना खिलाने वाली, सफ़ाई
करने वाली सब होंगी | यहाँ से ही निकलेंगी | फर्स्ट नम्बर वाली
ज़रूर अच्छा पद पायेगी | वह भासना आती है | बाबा को बच्चों से
भासना आती है यह बहुत अच्छी मुरली चलाते हैं, परन्तु योग कम है
| कोई स्त्री, पुरुष से भी तीखी हो जाती है | एक गायन में है,
कहते हैं बाबा दूसरा पहिया ठीक नहीं है | एक-दो को सावधान करना
है | प्रवृत्ति मार्ग है ना | जोड़ी एक जैसी चाहिए | आप समान
बनाना है | पिछाड़ी में तुम दुनिया को ही भूल जायेंगे | समझते
हो ना कि हम हंस हैं, यह बगुला है | किसमें कोई अवगुण, किसमें
कोई | चटाभेटी भी चलती है | मेहनत बहुत है | है भी बहुत सहज |
सेकेण्ड में जीवनमुक्ति | बिगर कौड़ी खर्च ऊँच से ऊँच पद पा
सकते हैं | गरीब जो हैं वह अच्छी सर्विस करते रहते हैं | यह तो
पता है ना कि कौन-कौन खाली हाथ आये हैं | बहुत कुछ ले आने वाले
आज हैं नहीं और गरीब बहुत ऊँच मर्तबा पा रहे हैं | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
ज्ञान तलवार में याद का जौहर भरने के लिए कर्म करते अन्तर्मुखी
बन अभ्यास करना है कि मैं आत्मा हूँ | मुझ आत्मा को बाप का
फ़रमान है कि निरन्तर मुझे याद करो | एक बाप से अच्छी प्रीत रखो
| देह और देह के सम्बन्धियों से ममत्व निकाल दो |
2.
प्रवृत्ति में रहते एक-दो को सावधान कर हंस बन ऊँच पद लेना है
| क्रोध का अंश भी निकाल देना है, अपनी सिविल बुद्धि बनानी है
|
वरदान:-
देह और देह के दुनिया की स्मृति से ऊँचा रहने वाले सर्व
बन्धनों से मुक्त फ़रिश्ता भव
! 
जिसका कोई भी देह और देहधारियों से रिश्ता अर्थात् मन का लगाव
नहीं है वही फ़रिश्ता है | फ़रिश्तों के पाँव सदा ही धरनी से
ऊँचे रहते हैं | धरनी से ऊँचा अर्थात् देह-भान की स्मृति से
ऊँचा | जो देह और देह की दुनिया की स्मृति से ऊँचा रहते हैं
वही सर्व बन्धनों से मुक्त फ़रिश्ता बनते हैं | ऐसे फ़रिश्ते ही
डबल लाइट स्थिति का अनुभव करते हैं |
स्लोगन:-
वाणी
के साथ चलन और चेहरे से बाप समान गुण दिखाई दें तब प्रत्यक्षता
होगी
|
ओम् शान्ति
|