07-12-13
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे
–
मनुष्य से देवता बनने की यह पढ़ाई है, इस पढ़ाई में जरा भी गफ़लत
नहीं करनी है, सोया, खाया, पढ़ाई नहीं की तो बहुत पछताना पड़ेगा”
प्रश्न:-
किस बात में ब्रह्मा बाप को फ़ालो करो तो उन्नति होती रहेगी?
उत्तर:-
जैसे ब्रह्मा बाप ने अपनी पूरी आहुति दे दी अर्थात् सब कुछ
समर्पण किया, ऐसे फ़ालो फादर | उन्नति का साधन है – बाप के रचे
हुए इस रूद्र यज्ञ में अपनी आहुति देना अर्थात् बाप का मददगार
बनना
|
परन्तु यह ख्याल भी कभी नहीं आना चाहिए कि मैंने इतनी मदद की,
इतना दिया | बाप तो दाता है, उससे तुम लेते हो, देते नहीं |
गीत:-
तूने रात गंवाई सो के....
ओम्
शान्ति
|
बच्चों ने गीत सुना
|
इस पर भी बच्चों को समझाना है, बाप कहते हैं बच्चों से मैं बात
करता हूँ और कोई भी ऐसे कह नहीं सकेंगे | साधू सन्त महात्मा तो
ढेर हैं | कोई कहते हैं कि इनमें शक्ति है | यह तो सबका बाप
है, वह बैठ समझाते हैं | बहुत बच्चे हैं जो सारा दिन बस खाते,
पीते और सोते हैं, नींद बहुत करते हैं | इससे क्या होगा? हीरे
जैसा जन्म खो देंगे | माया गफ़लत बहुत कराती है | कुम्भकरण की
नींद में माया ने सुला दिया है | अब जगाने वाला आया है, अज्ञान
निद्रा से जागो | सारी सृष्टि, उसमें भी खास भारत में अज्ञान
ही अज्ञान है | तो बाप कहते हैं अब गफ़लत करेंगे तो बहुत-बहुत
पछताना पड़ेगा | फिर पछताने से तो काम नहीं होगा | यहाँ मनुष्य
से देवता बनने की पढ़ाई है | ऐसे और कोई कह न सके | ऐसे नहीं
यहाँ भी वही ज्ञान है | यह तो पढ़ाई ही नई है | आदि सनातन
देवी-देवता धर्म की स्थापना होती है | ऐसे तो यहाँ भी देवी
बहुतों को कहते हैं | स्त्री देवी तो पुरुष देवता हो गया |
परन्तु हम तो सतयुग में देवी-देवता पद पाने का पुरुषार्थ कर
रहे हैं, सो तो ज़रूर सतयुग स्थापन करने वाला ही प्राप्त
करायेगा | सब सतसंगों से यह बात न्यारी है | जो ईश्वर को
सर्वव्यापी कहते हैं और अनेक अवतार बताते हैं, उनसे पूछो – अगर
ईश्वर सर्वव्यापी है, तो अवतार कहने वाले भी ज़रूर ईश्वर का
अवतार होंगे | अच्छा, फिर रचना के आदि-मध्य-अन्त का राज़ तो
बताओ | तो कुछ भी बता नहीं सकेंगे | भिन्न-भिन्न प्रकार के
होते हैं | रिद्धि-सिद्धि वाले भी हैं | नई आत्मा आती है तो वह
भी ताकत दिखाती है | यह धर्म स्थापन करने नई आत्मा प्रवेश करती
है तो उनका नाम बाला हो जाता है | यहाँ शक्ति की बात नहीं |
तुम कहेंगे शिवबाबा हम आपसे स्वर्ग का वर्सा लेने के लिए आये
हैं | इसको ही ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार कहा जाता है | तुम
ईश्वरीय औलाद हो | कोई भी साधू, सन्त, महात्मा ऐसे नहीं कहेंगे
कि हम बापदादा के बच्चे हैं |
तुम तो जानते हो हम स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं | बाबा कहते
हैं पूरा वर्सा लेना है तो बाप की याद में रहो | बाप यहाँ ही
पढ़ाते हैं | राजाई स्थापन हो जायेगी तो यह पढ़ाई और पढ़ाने वाला
गुम हो जायेगा | यह ब्राह्मण कुल अभी है | कहते हैं हम ब्रह्मा
की औलाद हैं | तो ब्रह्मा कब आया? ब्रह्मा तो संगम पर आयेंगे
ना | प्रजापिता ब्रह्मा जिन ब्राह्मणों को रचते हैं वह तो
देवी-देवता बन जाते हैं फिर ब्राह्मण तो रहते नहीं हैं | हम
फिर देवता कुल में चले जायेंगे | फिर कर्मकाण्ड के लिए जो
पुजारी ब्राह्मण हैं वह कोई ऋषि-मुनि आदि ने शुरू किये होंगे |
द्वापर में जब शिव आदि के मन्दिर बनाकर पूजा शुरू करते हैं तो
जो पूज्य देवी-देवता थे वह पुजारी बन जाते हैं | उस समय
मन्दिरों में ब्राह्मण चाहिए | तो उसी समय ब्राह्मण भी शुरु
हुए होंगे जो पूज्य से पुजारी बने, उनको ब्राह्मण नहीं कहेंगे
| मन्दिर में मूर्ति के आगे ब्राह्मण ज़रूर होगा | तो उस समय वह
ब्राह्मण भी निकले होंगे | यह हुआ डीटेल समाचार | वास्तव में
इससे भी ज्ञान का सम्बन्ध नहीं | ज्ञान सिर्फ़ कहते है
‘मनमनाभव’ | तुम बच्चों को कहा जाए, शिवबाबा और वर्से को याद
करो तो क्या सिर्फ़ याद करने से सभी लक्ष्मी-नारायण बन जायेंगे?
नहीं | फिर पढ़ाई भी तो है | जितना ज्यादा सर्विस करेंगे उतना
ऊँच पद पायेंगे, उतना गोल्डन स्पून इन माउथ होगा | नई दुनिया
बनने में, अदली-बदली होने में टाइम तो लगता है ना | विनाश के
बाद स्थापना होगी | कलियुग के बाद सतयुग होगा | भल अर्थक्वेक
आदि होती रहती है परन्तु अनेक धर्मों का विनाश होना है |
ड्रामा पूरा होता है | अभी हम बाबा के पास जाकर फिर नई दुनिया
में आयेंगे | इस समय हम इस यज्ञ के ब्राह्मण हैं | शिवबाबा ने
5 हज़ार वर्ष पहले मुआफ़िक रूद्र यज्ञ रचा है | यह बहुत बड़े ते
बड़ा यज्ञ है | इस यज्ञ की सम्भाल करते हो तुम सच्चे ब्राह्मण |
वह ब्राह्मण तो मैटेरियल यज्ञ रचते हैं | कोई आपदा आदि आनी
होती है तो यज्ञ रचते हैं | सतयुग में गुरु आदि की दरकार नहीं
थी | गुरु वहाँ होगा जहाँ सद्गति की जरूरत हो | अब यहाँ तो
अथाह गुरु हैं | इतने वेद-शास्त्र होते हुए भी भारत की ऐसी गति
क्यों हुई है? तुम लिख सकते हो 5 हज़ार वर्ष पहले मुआफ़िक सब
मनुष्य कुम्भकरण की घोर निद्रा में सोये पड़े हैं | नींद तो सब
करते हैं, परन्तु यह अज्ञान निद्रा की बात है | कोई भी गुरु
नहीं जो सद्गति दे सके | अब सोझरा करने वाला कौन है? तुम
बच्चों को समझाया है परमपिता परमात्मा के बिना सोझरा हो नहीं
सकता | अभी तो अथाह गुरु हैं | फिर भी अन्धियारी रात, दुःख
क्यों? सतयुग में तो अथाह सुख था | अब जब भगवान् की श्रीमत
मिले तब सुख हो | रावण ने ही भारत को पतित दुःखी किया है | बाप
कहते हैं इस काम महाशत्रु को जीतो | पवित्रता की प्रतिज्ञा करो
तब नई दुनिया के मालिक बनेंगे | गुरु लोग कभी ऐसे नहीं कहेंगे
कि पवित्र बनो | अभी तुम सोझरे में आये हो तो तुम जाकर पूछो –
भारत जो इतना सुखी था, अब इतना दुःखी क्यों? तुम बच्चे जानते
हो हम सो देवता बनते हैं | सन्यासी तो झट घरबार छोड़ निकल पड़ते
हैं | उनके लिए कहते हैं सन्यासी पावन हैं | वो ऐसे नहीं
कहेंगे कि हम पावन बनने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं |
तुम्हारी बात ही न्यारी है | ऐसे मत समझो कि सब सन्यासी पवित्र
रहते हैं | बुद्धियोग मित्र-सम्बन्धियों में जाता रहता है, जब
तक अवस्था मज़बूत हो | तुमको कहा जाता है देह सहित देह के सर्व
सम्बन्धों को भूलो तो कितनी मेहनत लगती है | उनसे जब पूछा जाता
है तो सन्यास कब लिया? लौकिक नाम क्या है? तो कहेंगे यह बातें
मत पूछो | स्मृति क्यों दिलाते हो | कोई-कोई बतलाते भी हैं फिर
उनसे पूछते हैं कि तुम फौरन ही सबको भूल गये या याद आती है?
मालूम तो पड़े ना तुम कौन थे, कैसे छोड़ा, अकेले थे वा बाल बच्चे
भी थे? फिर वह तुमको याद पड़ते हैं? कहते हैं – हाँ, बहुत समय
याद पड़ते थे, मुश्किल से याद टूटती है | अपना जीवन याद तो रहता
है | भल हम शिवबाबा को याद करते हैं परन्तु ऐसे थोड़ेही अपना
जीवन या शास्त्र आदि जो पढ़े हैं, वह भूल जाते हैं | सिर्फ़ कहते
हैं जीते जी भूल जाओ, यह धारणा करो | याद करेंगे तो लटक पड़ेंगे
| पहले यह बातें सुनो फिर जज करो | जीते जी मरजीवा बनो और किसी
का मत सुनो | हम अपना सारा जीवन बता सकते हैं | हाँ, यह जानते
हैं कि अभी यह दुनिया ख़त्म होने वाली है | सेन्टर्स वृद्धि को
पाते रहेंगे | जो बाबा-मम्मा कहते हैं वे ब्राह्मण बन जाते हैं
| अब बाप कहते हैं – हे आत्मायें, आत्मा ही बोलती है | तुमसे
पूछेंगे तुम कौन हो? तो झट कहेंगे मैं आत्मा पढ़ती हूँ | यह
ज्ञान अब तुमको मिला है | तुम्हारी आत्मा इन आरगन्स से पढ़ती है
| आत्मा और शरीर दो हैं | अभी तुम जानते हो कि आत्मा ही शरीर
लेती और छोड़ती है | संस्कार धारण करती है | हम आत्मायें सतयुग
में पुण्य आत्मा थे, अब पाप आत्मा हैं | अब अन्तिम जन्म है |
परमात्मा में जो ज्ञान है वह अब हम आत्माओं को पढ़ा रहे हैं |
बाकी सब मनुष्य घोर अन्धियारे में हैं | शास्त्र आदि सब भक्ति
मार्ग के हैं | उनको ज्ञान नहीं कहा जाता | ज्ञान दिन और भक्ति
रात है | तुम पूछ सकते हो – गीता का रचयिता कौन है और कब आया?
गीता कब लिखी गई? बाबा भी लिखते रहते हैं फिर उस पर गौर करना
पड़ता है | ऐसे-ऐसे बुद्धि में धारण करने से फिर तुम्हारी
उन्नति होती जायेगी | बाप कहते हैं – मेरे को याद करो, बच्चों
को माला का राज़ भी समझाया है | परमपिता परमात्मा बेहद का फूल
है फिर हैं दो दाने ब्रह्मा सरस्वती | प्रजापिता ब्रह्मा
द्वारा रचना रही हुई है | यह हैं आदि देव और आदि देवी | यह
ब्राह्मण हैं जिन्होंने स्वर्ग बनाया है इसलिए इनकी पूजा होती
है | बीच में वह 8 दाने हैं, जो सूर्यवंशी बने हैं | बहुत मदद
की है | नॉलेज बुद्धि में रहनी चाहिए | यह भी जानते हो कि यज्ञ
में बरोबर आहुति दी जाती है | माताओं की उन्नति के लिए बाबा ने
युक्ति रची है | बलि चढ़ा ना, तो फ़ालो फादर | गांधी को भी
जिन्होंने मदद की तो अल्पकाल का सुख मिला | वह था हद का बाप,
यह है बेहद का बाप |
यहाँ बाबा ने सब कुछ माताओं के चरणों में दे दिया तो यह वन
नम्बर में गया | तुम बच्चों को पुरुषार्थ करना है, जो मदद
करेंगे वही स्वर्ग के मालिक बनेंगे | ऐसे कोई मत समझे कि हम
शिवबाबा को मदद करते हैं | नहीं | शिवबाबा ही तुमको मदद करते
हैं | अरे, वह तो दाता है, तुम अपने लिए करते हो | तुम याद में
रहो तो विकर्म विनाश होंगे | स्वर्ग को याद करो तो स्वर्ग में
चले जायेंगे | बाबा स्वयं कहते हैं – मनमनाभव | नहीं तो बाकी
ऊँच पद कैसे मिलेगा? हिसाब करना तुम्हारा काम है | कोई मत समझे
कि मैं देता हूँ | यह शिवबाबा का यज्ञ है, चलता है, चलता ही
रहेगा |
तुम सच्चे ब्राह्मणों के दिल में है कि हम सिर्फ़ भारत में ही
नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में बाप की मदद से अपना राज्य
स्थापन कर रहे हैं | हम फिर से पवित्र बन भारत को स्वर्ग बनाकर
राज्य करेंगे | शिवबाबा की मत पर चलने से भारत स्वर्ग बन जाता
है | तो यह याद रखो कि शिवबाबा पढ़ाते हैं | बाबा कहते हैं जब
ब्राह्मण बनेंगे तब ही देवता सम्प्रदाय में आयेंगे | विकार में
गिरने से एकदम सत्यानाश हो जाती है | आपेही अपने पर कृपा के
बदले अकृपा करते हैं फिर श्रापित हो जाते हैं | मैं वरदान देने
आया हूँ | परन्तु श्रीमत पर न चलने से अपने को श्रापित कर देते
हैं, पद भ्रष्ट करते हैं | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1. बुद्धि
से सब कुछ भूलने के लिए जीते जी मरना है
|
एक बाप की सुनना है | अपनी उन्नति के लिए पूरा बलिहार जाना है
|
2.
श्रीमत पर चल स्वयं पर कृपा करनी है | सच्चे ब्राह्मण बन यज्ञ
की सम्भाल करनी है
|
पढ़ाई अच्छी रीति पढकर ऊँच पद लेना है |
वरदान:-
स्वमान के साथ निर्माण बन सबको मान देने वाली पूज्यनीय आत्मा
भव

जो
बच्चे अविनाशी स्वमान में रहते हैं वही पूज्य आत्मा बनते हैं
|
लेकिन जितना स्वमान उतना निर्माण | स्वमान का अभिमान नहीं |
ऐसे नहीं हम तो ऊँच बन गये, दूसरे छोटे हैं या उनके प्रति घृणा
भाव हो, नहीं | कैसी भी आत्मायें हों लेकिन सबके प्रति रहम की
दृष्टि हो, अभिमान की नहीं | ऐसी निर्माण आत्मायें हर एक को
आत्मिक दृष्टि से, ऊँची दृष्टि से देखते हुए मान देंगी | अपमान
नहीं करेंगी |
स्लोगन:-
बापदादा के स्नेह की दुआओं में पलते, उड़ते चलो – यही श्रेष्ठ
पुरुषार्थ है
|
ओम्
शान्ति
|