20-09-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - बाप की श्रीमत पर चलकर अपना श्रृंगार करो, परचिन्तन से अपना श्रृंगार मत बिगाड़ो, टाइम वेस्ट न करो”   

                            
प्रश्न:-   
तुम बच्चे बाप से भी तीखे जादूगर हो - कैसे?


उत्तर:-
यहाँ बैठे-बैठे तुम इन लक्ष्मी-नारायण जैसा अपना श्रृंगार कर रहे हो । यहाँ बैठे अपने आपको चेन्ज कर रहे हो, यह भी जादूगरी है । सिर्फ अल्फ को याद करने से तुम्हारा श्रृंगार हो जाता है । कोई हाथ-पांव चलाने की भी बात नहीं सिर्फ विचार की बात है । योग से तुम साफ, स्वच्छ और शोभनिक बन जाते हो, तुम्हारी आत्मा और शरीर कंचन बन जाता है, यह भी कमाल है ना ।

 

ओम् शान्ति |

रूहानी जादूगर बैठ रूहानी बच्चों को, जो बाप से भी तीखे जादूगर हैं, उन्हों को समझाते हैं - तुम यहाँ क्या कर रहे हो? यहाँ बैठे-बैठे कोई चुरपुर नहीं । बाप अथवा साजन, सजनियों को युक्ति बता रहे हैं । साजन कहते हैं - यहाँ बैठे तुम क्या करते हो? अपने को तुम ऐसे लक्ष्मी-नारायण मिसल श्रृंगार रहे हो । कोई समझेंगे? तुम यहाँ सब बैठे हो फिर नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार तो हो ही ना । बाप कहते हैं ऐसे श्रृंगारे हुए बनना है । तुम्हारी एम ऑबजेक्ट ही यह है भविष्य अमरपुरी के लिए । यहाँ बैठे हुए तुम क्या कर रहे हो? पैराडाइज़ के श्रृंगार के लिए पुरूषार्थ कर रहे हो । इसको क्या कहें? यहाँ बैठे हुए अपने को चेन्ज़ कर रहे हो । उठते, बैठते, चलते बाप ने एक मनमनाभव की चाबी दे दी है । बस एक सिवाए इसके और कोई भी फालतू बातें सुन-सुनाकर टाइम वेस्ट मत करो । तुम अपने ही श्रृंगार में लगे रहो । दूसरा करता है वा नहीं, इसमें तुम्हारा क्या जाता है! तुम अपने पुरूषार्थ में रहो । कितनी समझ की बातें हैं । कोई नया सुनेगा तो जरूर वन्डर खायेगा । तुम्हारे में कोई तो अपना श्रृंगार कर रहे हैं, कोई तो और ही बिगाड़ रहे हैं । परचिन्तन आदि में टाइम वेस्ट करते रहते हैं । बाप बच्चों को समझाते हैं तुम सिर्फ अपने को देखो कि हम क्या कर रहे हैं । बहुत छोटी युक्ति बताई है, बस एक ही अक्षर है - मनमनाभव । तुम यहाँ बैठे हो परन्तु बुद्धि में है कि सारी सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है । अभी फिर से हम विश्व का श्रृंगार कर रहे हैं । तुम कितने पद्मापद्म भाग्यशाली हो । यहाँ बैठे-बैठे तुम कितना कार्य करते हो । कोई हाथ-पांव तो चलाने की बात ही नहीं है । सिर्फ विचार की बात है । तुम कहेंगे हम यहाँ बैठे ऊँच ते ऊँच विश्व का श्रृंगार कर रहे हैं । मनमनाभव का मन्त्र कितना ऊँच है । इस योग से ही तुम्हारे पाप भस्म होते जायेंगे और तुम साफ बनते-बनते फिर कितने शोभनिक हो जायेंगे । अभी आत्मा पतित है तो शरीर की भी हालत देखो क्या हो गई है । अब तुम्हारी आत्मा और काया कंचन बन जायेगी । यह कमाल है ना । तो ऐसा अपना श्रृंगार करना है । दैवीगुण भी धारण करने हैं । बाप सभी को एक ही रास्ता बताते हैं- अल्फ बे । सिर्फ अल्फ की बात है । बाप को याद करते रहो तो तुम्हारा श्रृंगार सारा बदल जायेगा ।

बाप से भी तुम बड़े जादूगर हो । तुमको युक्ति बताते हैं कि ऐसा-ऐसा करने से तुम्हारा श्रृंगार बन जायेगा । अपना श्रृंगार न करने से तुम मुफ्त अपने को नुकसान पहुएचाते हो । इतना तो समझते हो हम भक्ति मार्ग में क्या-क्या करते थे । सारा श्रृंगार ही बिगाड़ कर क्या बन गये हो! अब एक ही अक्षर से, बाप की याद से तुम्हारा श्रृंगार होता है । बच्चों को कितना अच्छी रीति समझाकर फ्रेश करते हैं । यहाँ बैठे तुम क्या करते हो? याद की यात्रा में बैठे हो । अगर कोई का ख्याल और और तरफ होगा तो श्रृंगार थोड़ेही होगा । तुम श्रृंगारे हो तो फिर औरों को भी रास्ता बताना है । बाप आते ही हैं ऐसा श्रृंगार बनाने । कमाल शिवबाबा आपकी, आप हमारा कितना श्रृंगार करते हो । उठते, बैठते, चलते हमको अपना श्रृंगार करना है । कोई तो अपना श्रृंगार कर फिर दूसरों का भी करते हैं । कोई तो अपना भी श्रृंगार नहीं करते तो दूसरे का भी श्रृंगार बिगाड़ते रहते हैं । फालतू बातें सुनाकर उनकी अवस्था को भी नीचे गिरा देते हैं । खुद भी श्रृंगार से रह जाते हैं, तो दूसरे को भी रहा देते हैं । तो अच्छी रीति सोच विचार करो-बाबा कैसे-कैसे युक्ति बताते हैं । भक्ति मार्ग के शास्त्र पढ़ने से यह युक्तियां नहीं आती हैं । शास्त्र तो हैं भक्ति मार्ग के । तुमको कहते हैं तुम क्यों शास्त्रों को नहीं मानते हो? बोलो, हम तो सब मानते हैं । आधाकल्प भक्ति की है । शास्त्र पढ़ते हैं तो कौन नहीं मानेंगे । रात और दिन होते हैं तो जरूर दोनों को मानेंगे ना । यह है बेहद का दिन और रात । बाप कहते हैं - मीठे बच्चों, तुम अपना श्रृंगार करो । टाइम वेस्ट मत करो । टाइम बहुत थोड़ा है । तुम्हारी बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए । आपस में बहुत प्रेम होना चाहिए । टाइम वेस्ट नहीं करना चाहिए क्योंकि तुम्हारा टाइम तो बहुत वैल्यूबुल है । कौड़ी से हीरे जैसा तुम बनते हो । मुफ्त में इतना थोड़ेही सुन रहे हो । कोई कथा है क्या । बाप अक्षर ही एक सुनाते हैं । बड़े-बड़े आदमियों को जास्ती बात थोड़ेही करनी चाहिए । बाप तो सेकण्ड में जीवनमुक्ति का रास्ता बताते हैं । यह है ही ऊँच श्रृंगार वाले, तब तो उन्हों के ही चित्र हैं जिनको बहुत पूजते रहते हैं । जितना बड़ा आदमी होगा, उतना बड़ा मन्दिर बनायेंगे, बड़ा श्रृंगार करेंगे । आगे तो देवताओं के चित्र पर हीरे का हार पहनाते थे । बाबा को तो अनुभव है ना । बाबा ने खुद हीरे का हार बनाया था लक्ष्मी-नारायण के लिए । वास्तव में तो उन्हों जैसी यहाँ पहरवाइस कोई बना न सके । अभी तुम बना रहे हो नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार । तो बाप समझाते हैं-बच्चे, टाइम वेस्ट न अपना करो, न औरों का करो । बाप युक्ति बहुत सहज बताते हैं । मुझे याद करो तो पाप मिट जायें । याद बिगर इतना श्रृंगार हो न सके । तुम यह बनने वाले हो ना । दैवी स्वभाव धारण करना है । इसमें कहने की भी दरकार नहीं । परन्तु पत्थरबुद्धि होने कारण सब समझाना पड़ता है । एक सेकेण्ड की बात है । बाप कहते हैं-मीठे-मीठे बच्चों, तुमने अपने बाप को भूलने से कितना श्रृंगार बिगाड़ दिया है । बाप तो कहते हैं चलते-फिरते श्रृंगार करते रहो । परन्तु माया भी कम नहीं है । कोई-कोई लिखते हैं-बाबा, आपकी माया बहुत तंग करती है । अरे हमारी माया कहाँ है, यह तो खेल है ना! मैं तो तुमको माया से छुड़ाने आया हूँ । मेरी माया फिर काहे की । इस समय पूरा ही इनका राज्य है । जैसे इस रात और दिन में फर्क नहीं हो सकता । यह फिर है बेहद की रात और दिन । इनमें एक सेकेण्ड का भी फर्क नहीं हो सकता है । अभी तुम बच्चे नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार ऐसा श्रृंगार कर रहे हो । बाप कहते हैं-चक्रवर्ती राजा बनना है तो चक्र फिराते रहो । भल गृहस्थ व्यवहार में रहो, इसमें सारा बुद्धि से काम लेना है । आत्मा में ही मन-बुद्धि है । यहाँ तुमको बाहर का गोरख धन्धा कुछ भी नहीं है । यहाँ आते ही हो तुम अपने को श्रृंगारने, रिफ्रेश होने । बाप पढ़ाते तो सबको एक ही जैसा है । यहाँ बाबा पास आते हैं नई-नई प्याइंटस सम्मुख सुनने, फिर घर में जाते हैं तो जो कुछ सुना है वह बाहर निकल जाता है । यहाँ से बाहर निकलने से ही झोली छांट लेते हैं । जो सुना उस पर मनन-चितन नहीं करते हैं । तुम्हारे लिए तो यहाँ एकान्त की जगह बहुत है । बाहर में तो खटमल फिरते रहते हैं । एक-दो का खून करते, पीते रहते हैं ।

तो बाप बच्चों को समझाते हैं-यह तुम्हारा टाइम मोस्ट वैल्युबुल है, इसको तुम वेस्ट मत करो । अपने को श्रृंगारने की बहुत युक्तियां मिली हैं । मैं सबका उद्धार करने आता हूँ । मैं आया हूँ तुमको विश्व की बादशाही देने । तो अब मुझे याद करो, टाइम वेस्ट मत करो । काम-काज करते भी बाप को याद करते रहो । इतनी ढेर सब आत्मायें आशिक हैं एक परमपिता परमात्मा माशूक की । वह सब जिस्मानी कथायें आदि तो तुम बहुत सुनते हो । अब बाप कहते हैं वह सब भूल जाओ । भक्ति मार्ग में तुमने मुझे याद किया और वायदा भी किया है, हम आपके ही बनेंगे । ढेर के ढेर आशिकों का एक माशूक । भक्ति मार्ग में कहते हैं - ब्रह्म में लीन होंगे, यह सब है फालतू बातें । एक भी मनुष्य मोक्ष को नहीं पा सकता है । यह तो अनादि ड्रामा है, इतने सब एक्टर्स हैं, इसमें जरा भी फर्क नहीं हो सकता है । बाप कहते हैं सिर्फ एक अल्फ को याद करो तो तुम्हारा यह श्रृंगार हो जायेगा । अभी तुम यह बन रहे हो । स्मृति में आता है - अनेक बार हमने यह श्रृंगार किया है । कल्प-कल्प बाबा आप आयेंगे, हम आपसे ही सुनेंगे । कितनी गुह्य-गुह्य प्याइंटस हैं । बाबा ने युक्ति बहुत अच्छी बताई है । वारी जाऊं, ऐसे बाप पर । आशिक-माशूक भी सब एक जैसे नहीं होते । यह तो सभी आत्माओं का एक ही माशक है । जिस्मानी कोई बात नहीं । परन्तु तुम्हें संगमयुग पर ही बाप से यह युक्ति मिलती है । कहाँ भी तुम जाओ, खाओ-पियो, घूमो फिरो, नौकरी करो, अपना श्रृंगार करते रहो । आत्मायें सब एक माशक की आशिक हैं । बस, उनको ही याद करते रहो । कोई-कोई बच्चे कहते हैं हम तो 24 घण्टे याद करते रहते हैं । परन्तु सदैव तो कोई कर नहीं सकते । बहुत में बहुत दो अढ़ाई घण्टे तक । जास्ती अगर लिखें तो बाबा मानता नहीं । दूसरे को स्मृति दिलाते नहीं तो कैसे समझे तुम याद करते हो? क्या कोई डिफीकल्ट बात है? कोई इसमें खर्चा है? कुछ भी नहीं । बस, बाबा को याद करते रहो तो तुम्हारे पाप कट जायें । दैवीगुण भी धारण करने हैं । पतित कोई शान्तिधाम वा सुखधाम में जा न सके । बाप बच्चों को कहते हैं अपने को आत्मा भाई- भाई समझो । 84 जन्मों का पार्ट अभी पूरा होता है । यह पुराना चोला छोड़ने का है । ड्रामा देखो कैसा बना हुआ है । तुम जानते हो नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार । दुनिया में तो कोई कुछ भी नहीं समझते । हरेक अपने से पूछे कि हम बाप की मत पर चलते हैं? चलेंगे तो श्रृंगार भी अच्छा होगा । एक-दो को उल्टी बातें सुनाकर अथवा सुनकर अपना श्रृंगार भी बिगाड़ देते हैं तो दूसरे का भी बिगाड़ देते हैं । बच्चों को तो इसी धुन में लगा रहना है कि हम ऐसे श्रृंगारधारी कैसे बनें । बाकी तो जो कुछ है वह ठीक है । सिर्फ पेट के लिए रोटी आराम से मिले | वास्तव में पेट जास्ती नहीं खाता । भल तुम सन्यासी हो परन्तु राजयोगी हो । न बहुत ऊंचा, न नीचा । खाओ भल परन्तु ज्यादा हिर न जाओ (आदत न पड़ जाए) । यही एक-दो को याद दिलाओ-शिवबाबा याद है? वर्सा याद है? विश्व की बादशाही का श्रृंगार याद है? विचार करो - यहाँ बैठे-बैठे तुम्हारी क्या कमाई है! इस कमाई से अपार सुख मिलना है, सिर्फ याद की यात्रा से और कोई तकलीफ नहीं । भक्ति मार्ग में मनुष्य कितने धक्के खाते हैं । अभी बाप आये हैं श्रृंगारने । तो अपना अच्छी रीति ख्याल करो । भूलो मत । माया भुला देती है फिर टाइम बहुत वेस्ट करते हैं । तुम्हारा तो यह बहुत वैल्युबुल टाइम है । पढाई की मेहनत से मनुष्य क्या से क्या बन जाते हैं । बाबा तुमको और कोई तकलीफ नहीं देते हैं । सिर्फ कहते हैं-मुझे याद करो । कोई भी किताब आदि उठाने की दरकार नहीं । बाबा कोई किताब उठाता है क्या? बाप कहते हैं मैं आकर इस प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट करता हूँ ।

प्रजापिता है ना । तो इतनी कुख वंशावली प्रजा कैसे होगी? बच्चे एडाप्ट होते हैं । वर्सा बाप से मिलना है । बाप ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट करते हैं, इसलिए उनको मात-पिता कहा जाता है । यह भी तुम जानते हो । बाप का आना बड़ा एक्यूरेट है । एक्यूरेट टाइम पर आते हैं, एक्यूरेट टाइम पर जाएंगे । दुनिया की बदली तो होनी ही है । अभी बाप तुम बच्चों को कितनी अक्ल देते हैं । बाप की मत पर चलना है । स्टूडेंट जो पढ़ते हैं वही बुद्धि में चलना है । तुम भी यह संस्कार ले जाते हो । जैसे बाप में संस्कार हैं वैसे तुम्हारी आत्मा में भी यह संस्कार भरते हैं । फिर जब यहाँ आयेंगे तो वही पार्ट रिपीट होगा । नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार आएंगे । अपने दिल से पूछो-कितना पुरूषार्थ किया है, अपने को श्रृंगारने का । टाइम कहाँ वेस्ट तो नहीं किया है? बाप सावधान करते हैं-वाहयात बातो में कहाँ भी टाइम न गँवाओ । बाप की श्रीमत याद रखो । मनुष्य मत पर न चलो । तुमको यह पता थोड़ेही था कि हम पुरानी दुनिया में हैं । बाप ने बताया है कि तुम क्या थे । इस पुरानी दुनिया में कितने अपार दु :ख हैं । यह भी ड्रामा अनुसार पार्ट मिला हुआ है । ड्रामा अनुसार अनेकानेक विघ्न भी पड़ते हैं । बाप समझाते हैं-बच्चे, यह ज्ञान और भक्ति का खेल है । वन्डरफुल ड्रामा है । इतनी छोटी आत्मा में सारा पार्ट अविनाशी भरा हुआ है, जो बजाती ही रहती है । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. दूसरी सब बातों को छोड़ इसी धुन में रहना है कि हम लक्ष्मी-नारायण जैसा श्रृंगारधारी कैसे बने?  

2. अपने से पूछना है कि:

     (1) हम श्रीमत पर चलकर मनमनाभव की चाबी से अपना श्रृंगार ठीक कर रहे हैं?

     (2) उल्टी सुल्टी बातें सुनकर वा सुनाकर श्रृंगार बिगाड़ते तो नहीं हैं?

     (3) आपस में प्रेम से रहते हैं? अपना वैल्युबुल टाइम कहीं पर वेस्ट तो नहीं करते हैं?

     (4) दैवी स्वभाव धारण किया है?

 

वरदान:-

शान्ति की शक्ति द्वारा असम्भव को सम्भव करने वाले सहजयोगी भव !    

शान्ति की शक्ति सर्वश्रेष्ठ शक्ति है । शान्ति की शक्ति से ही और सब शक्तियां निकली हैं । साइन्स की शक्ति का भी जो प्रभाव है वह साइंस भी साइलेन्स से निकली है । तो शान्ति की शक्ति से जो चाहो वह कर सकते हो । असम्भव को भी सम्भव कर सकते हो । जिसे दुनिया वाले असम्भव कहते हैं वह आपके लिए सम्भव है और सम्भव होने के कारण सहज है । शान्ति की शक्ति को धारण कर सहजयोगी बनो ।

 

स्लोगन:- 

वाणी द्वारा सबको सुख और शान्ति दो तो गायन योग्य बनेंगे ।   

 

ओम् शान्ति |