13-04-14     प्रातः मुरली   ओम् शान्ति    “अव्यक्त-बापदादा    रिवाइज: 20-06-77 मधुबन
 


 “सदा सहजयोगी बनने का साधन है – महादानी बनना”

सभी ब्राह्मण आत्माएं स्वयं को सहजयोगी वा निरन्तर योगी की श्रेष्ठ स्टेज पर सदा स्थित रहने के पुरुषार्थ में, सभी का लक्ष्य सहजयोगी बनने का है | लेकिन अपनी कमज़ोरियों के कारण कभी सहज अनुभव करते, कभी मुश्किल | कमज़ोरी कहकर मुश्किल बना देते हैं | वास्तव में हरेक श्रेष्ठ आत्मा वा ब्राह्मण आत्मा, मास्टर सर्वशक्तिमान् आत्मा, त्रिकालदर्शी, मास्टर ज्ञान सागर आत्मा कोई भी कर्म में वा संकल्प में मुश्किल अनुभव नहीं कर सकती | सहजयोगी के साथ-साथ ऐसी श्रेष्ठ आत्मा स्वतः योगी होती है, क्योंकि ऐसी श्रेष्ठ आत्मा के लिए बाप और सेवा – यही संसार है | बाप की याद और सेवा ही ब्राह्मण जन्म के संस्कार हैं | बाप और सेवा के सिवाए न कुछ संसार में दिखाई देता है, न संस्कारों में और कोई संकल्प उत्पन्न हो सकता | किसी भी मनुष्यात्मा की बुद्धि संसार में सम्बन्ध और प्राप्ति की तरफ़ ही जाती है | ब्राह्मण आत्माओं के लिए सर्व सम्बन्धों का आधार और सर्व प्राप्ति का आधार एक बाप के सिवाए और कोई नहीं | तो स्वतः योगी बनना मुश्किल है वा सहज है? न चाहते भी बुद्धि वहाँ आयेगी जहाँ सर्व सम्बन्ध और सर्व प्राप्ति है | तो स्वतः योगी हुए न? अगर सहजयोगी और स्वतः योगी नहीं हैं; तो अवश्य बाप से सर्व सम्बन्धों का अनुभव नहीं है | सर्व सम्बन्धों से बाप को अपना नहीं बनाते हैं | सर्व प्राप्ति का आधार एक बाप है | इस अनुभव को अपनाया नहीं है |

अब सहजयोगी बनने के लिए कौन सा प्रयत्न करेंगे? सहजयोगी बनने चाहते हो न? सहजयोगी बनने का साधन – सदा अपने को संकल्प दवारा, वाणी द्वारा और हर कार्य द्वारा विश्व की सर्व आत्माओं के प्रति सेवाधारी समझ सेवा में ही सब कुछ लगाओ | जो भी ब्राह्मण जीवन के ख़ज़ाने बाप द्वारा प्राप्त हुए हैं वह सब आत्माओं की सेवा प्रति लगाओ | शक्तियों का ख़ज़ाना, गुणों का ख़ज़ाना, ज्ञान का ख़ज़ाना वा श्रेष्ठ कमाई के समय का ख़ज़ाना........सेवा में लगाओ अर्थात् सहयोगी बनो | अपनी वृत्ति द्वारा वायुमण्डल को श्रेष्ठ बनाने का सहयोग दो | स्मृति द्वारा सर्व को मास्टर समर्थ शक्तिवान स्वरूप की स्मृति दिलाओ | वाणी द्वारा आत्माओं को स्वदर्शन चक्रधारी मास्टर त्रिकालदर्शी बनने का सहयोगी, कर्म द्वारा सदा कमल पुष्प समान रहने का वा कर्मयोगी बनने का सन्देश हर कर्म द्वारा दो | अपने श्रेष्ठ बाप से सर्व सम्बन्धों की अनुभूति द्वारा सर्व आत्माओं को सर्व सम्बन्धों का अनुभव करने का सहयोग दो | अपने रूहानी सम्पर्क के महत्व को जानते हुए, श्रेष्ठ समय की सूचना देने का वा समय प्रमाण वर्तमान संगम का एक सेकेण्ड अनेक जन्मों की प्राप्ति के निमित्त बना हुआ है | एक कदम में पदमों की कमाई भरी हुई है | ऐसे समय के ख़ज़ाने को जानते हुए औरों को भी समय पर प्राप्ति होने का परिचय दो | हर बात द्वारा सहयोगी बनो तो सहजयोगी बन ही जायेंगे |

सहयोगी बनना आता है ना? सहयोगी वही बन सकेंगे जो स्वयं ख़ज़ानों से सम्पन्न होंगे | सम्पन्न आत्मा को अनेक आत्माओं के प्रति महादानी बनने का संकल्प स्वतः आयेगा | महादानी बनना अर्थात् सहयोगी बनना और सहयोगी बनना अर्थात् सहजयोगी बनना | महादानी सर्व ख़ज़ाने स्वयं प्रति कम यूज़ करेंगे, सेवा प्रति ज़्यादा यूज़ करेंगे क्योंकि अनेक आत्माओं के प्रति महादानी बन देना ही लेना है | सर्व प्रति कल्याणकारी बनना ही स्वयं कल्याणकारी बनना है | दान देना अर्थात् एक का सौगुणा जमा करना | तो वर्तमान समय स्वयं के प्रति छोटी-छोटी बातों में वा चींटी समान आने वाले विघ्नों में, अपने सर्व ख़ज़ाने स्वयं प्रति लगाने का समय नहीं है | बेहद के सेवाधारी बनो तो स्वयं की सेवा सहज हो जायेगी | फ़्राकदिल से उदारचित होकर प्राप्ति के ख़ज़ानों को बाँटते जाओ | उदारचित बनने से स्वयं का उद्धार सहज हो जायेगा | विघ्न मिटाने में समय लगाने के बजाए सेवा की लग्न में समय लगाओ | ऐसे महादानी बनो, जो हर संकल्प श्वांस में सेवा ही हो | तो सेवा की लग्न का फल, विघ्न सहज ही विनाश हो जायेंगे, क्योंकि वर्तमान प्रत्यक्षफल प्राप्त होने का समय है | अभी-अभी सेवा का फल स्वयं में ख़ुशी और शक्ति का अनुभव करेंगे | लेकिन सच्ची दिल की सेवा हो | सच्चे दिल पर साहब राज़ी होता है |

कई बच्चे कहते हैं, सेवा तो हम करते हैं, लेकिन मेवा नहीं मिलता अर्थात् सफलता नहीं मिलती | यह क्यों होता है? क्योंकि सेवा दो प्रकार से करते हैं | एक दिल से और दूसरी दिखावे से अर्थात् नाम प्राप्त करने के अल्पकाल की इच्छा से | जब बीज ही अल्पकाल का है – ऐसे बीज का अल्पकाल का फल नामीग्रामी बनने का तो लेते हैं फिर सफलता का फल कैसे मिलेगा | नाम की भावना का फल, नाम और शान के रूप में तो प्राप्त हो ही जाता है | दिखावा करने के संकल्प करने का बीज होने के कारण सर्व के सामने दिखावे में आ ही जाते हैं | सर्व के मुख से अल्पकाल के लिए महिमा का फल प्राप्त हो जाता है, कि सर्विस बहुत अच्छी करते हैं | जब अल्पकाल की महिमा का फल मिल गया अर्थात् कच्चा फल ही स्वीकार कर लिया, तो सम्पूर्ण फल की प्राप्ति अर्थात् पके हुए फल की प्राप्ति कैसे हो सकती | रिज़ल्ट क्या होगी? कच्चे फल को स्वीकार करने के कारण वा अल्पकाल की कामना की पूर्ति होने के कारण सदा शक्तिशाली नहीं बन सकते | अधिकारी नहीं बन सकते | और सेवा करते हुए भी कमज़ोर होने के कारण, न स्वयं से सदा सन्तुष्ट रहेंगे, न सर्व को सन्तुष्ट कर सकेंगे | सदैव क्वेश्चन मार्क रहेगा कि इतना करते हुए भी सफ़लता क्यों नहीं होती? ये ऐसे करता, यह ऐसे क्यों करता? ऐसा नहीं होना चाहिए, यह होना चाहिए | इसी क्वेश्चन में रहेगा इसलिए सेवाधारी भी दिल से बनो |

सच्ची दिल से सेवाधारी बनने वालों का विशेष लक्ष्य क्या होगा? दिलशिकस्त आत्मा को शक्तिशाली बनाने वाले, कैसे भी अवगुण वाली आत्मा हो, गरीब आत्मा हो, लेकिन सदा बाप द्वारा मिले हुए, गुणों के दान द्वारा, गुणों के ख़ज़ाने से गरीब को साहूकार बनाने का श्रेष्ठ संकल्प वा शुभ भावना रखेंगे | सच्ची दिल वाले सेवाधारी सदा प्रत्यक्ष फल प्राप्त होने के कारण स्वयं को सफ़लतामूर्त अनुभव करेंगे | तो ऐसे सदा सहयोगी बनो तो सहयोग का फल सहजयोगी बन जायेंगे | सदा सहयोगी बनने से सदा बिज़ी रहेंगे | संकल्प में भी बिज़ी रहेंगे तो व्यर्थ की शिकायतें जो स्वयं से वा बाप से करते हो वह सब सहज ही समाप्त हो जायेंगी |

सदा हर संकल्प से सेवा करने वाले, अल्पकाल के फल का त्याग करने वाले, सदा सफ़लता मूर्त बनने वाले, हर आत्मा के उद्धार अर्थ निमित्त बनने वाले, उदारचित आत्मायें, सदा बाप और सेवा में तत्पर रहने वाली समीप आत्मायें, सदा सर्व ख़ज़ानों की महादानी आत्मायें, ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद, प्यार और नमस्ते |

पार्टियों से

1. आत्मा के सर्व गुणों का अनुभव किया है? जो स्वयं के गुण हैं ज्ञान स्वरूप, प्रेम स्वरूप वा सुख, शक्ति, आनन्द स्वरूप इन सभी गुणों का अनुभव है? आनन्द स्वरूप वा ज्ञान स्वरूप की स्टेज क्या है, उस स्टेज पर स्थित होने का अनुभव है? यह अनुभव करना अर्थात् सर्व गुणों का अनुभव करना अथवा सिर्फ़ शान्ति को प्राप्त करना स्वयं पर है | अगर हर गुण का अनुभव होगा, तो परिस्थिति के समय भी अनुभव के आधार से परिस्थति को बदल देगा, इसलिए वर्तमान समय का पुरुषार्थ है हर गुण के अनुभवी बनना | ऐसा अभ्यास चाहिए जैसे स्थूल लिफ्ट होती है, तो जिस नम्बर का स्वीच दबाओ उसमें ही पहुँच जायेगी | तो यह बुद्धि की लिफ्ट है, स्मृति का स्वीच ऑन किया है और पहुँच जायेंगे | कई बार ऐसे भी होता है, लिफ्ट होते भी काम नहीं करती, स्वीच दबाते ऊपर का और आ नीचे जाते या स्वीच दबायेंगे 2 नम्बर का पहुँच जायेंगे 3-4 में | तो ऐसे तो नहीं है | लिफ्ट अपने कन्ट्रोल में होनी चाहिए | अगर न चाहते भी नीचे आ जाते तो ज़रूर कुछ लूज़ (ढीला) है | कन्ट्रोलिंग पॉवर नहीं | जो स्वयं का स्वयं कन्ट्रोल नहीं कर सकते वह राज्य का कन्ट्रोल कैसे करेंगे | वहाँ राज्य भी लॉफुल है, प्रकृति भी ऑर्डर पर चलती | यहाँ तो प्रकृति धोख़ा दे देती है | तो प्रकृति के अधिकारी कौन बनेंगे? जो स्वयं के अधिकारी हैं | किसी भी संकल्प, स्वभाव, व्यक्ति व वैभव के अधीन न हो – इसको कहा जाता है अधिकारी | अपने स्वभाव के भी अधीन नहीं, मेरा स्वभाव ऐसा है इसलिए कर लिया, तो अधीन हुए ना? अधिकारी सदा शक्तिशाली रहता |

वाह बाबा और वाह ड्रामा के गीत गाते रहो, तो सदा लग्न में मग्न रहेंगे, क्योंकि लग्न में मग्न वही रह सकता है जो साक्षी होकर हर पार्ट बजाता है | जब गीत कोई गाता है तो उसी में मग्न हो जाता है | ऐसे यह गीत गाने वाले सदा एक ही लग्न में मग्न रहते | एक बाप दूसरा न कोई, यही गीत गाते रहो | बहुत बड़ा लश्कर है | जितना बड़ा लश्कर होता है, उतना अपना राज्य सहज ही प्राप्त कर लेते हैं | इतने सब अपने दृढ़ संकल्प से जो चाहें सो कर सकते हैं | वह आत्म-ज्ञानी भी जिस्मानी तपस्या से, अल्पकाल की तपस्या से अल्पकाल की सिद्धि प्राप्त कर लेते हैं | आप रूहानी तपस्वी परमात्म-ज्ञानी हो, उन्हों का संकल्प क्या करेगा | सदैव विजयी रत्न की स्मृति रहने से माया के अनके प्रकार के विघ्न ऐसे समाप्त हो जायेंगे जैसे कुछ था नहीं | जैसे कहा जाता है ना – ऐसे विजयी बनो जो उनका नाम-निशान गुम कर दो | सदा विजयी का नशा व स्मृति रहेगी, तो माया के विघ्नों का नाम, निशान नहीं रहेगा | माया के विघ्न मरी हुई चींटी के समान हैं तो उनसे घबराने वाले तो नहीं हो ना? शूरवीर, महावीर विघ्नों से घबरायेंगे नहीं | विघ्नों को समझ गये हो ना? क्यों आते, कैसे समाप्त हों – इन सबका ज्ञान है ना | विघ्न आते हैं आगे बढ़ाने के लिए | विघ्न आने से अनुभवी और मज़बूत हो जायेंगे | जानने वाले ज्ञानी समझदार विघ्नों से लाभ उठायेंगे, न कि घबरायेंगे | विघ्न आया है आगे बढ़ाने के लिए, यह याद आने से महावीर हो जायेंगे व्यर्थ संकल्पों से घबराते तो नहीं? संकल्प के ऊपर विजय प्राप्त करने वाले घबराते नहीं; घबरायेंगे तो माया कमज़ोर देख और वार करेगी | देखेगी बहादुर हैं तो विदाई ले लेगी |

 

2. स्वदर्शन चक्रधारी हो ना | स्वदर्शन चक्रधारी सो भविष्य छत्रधारी | अगर स्वदर्शन चक्रधारी नहीं तो छत्रधारी भी नहीं | स्वदर्शन चक्र अनेक व्यर्थ चक्करों को समाप्त कर देता है | स्वदर्शन चक्र के आगे कोई चक्र ठहर नहीं सकता है | सेकेण्ड में समाप्त हो जायेगा | तो अपना अलंकार सदा कायम रखते हो कि कभी थक जाते हो? स्वदर्शन चक्र धारण करना अर्थात् हल्का रहना | हल्की चीज़ जो होती है उसको सदा धारण करना मुश्किल नहीं होगा | स्वदर्शन चक्रधारी बनना ही हल्का बनना है | तो निरन्तर यह चक्कर घूमता रहे | इसको छोड़ना नहीं क्योंकि प्राप्ति का अनुभव है ना |

 

3. जितना प्यासी आत्माओं की प्यास बुझाते उतना स्वयं भी तृप्त आत्मा रहते | दूसरों को ख़ुशी देना अर्थात् स्वयं खुश रहना | जैसे दान देने से धन बढ़ता, ऐसे अन्य आत्माओं को ख़ुशी, शान्ति, शक्ति देना नहीं लेकिन भरना है | जब लगन लग जाती है सेवा की, तो सोते हुए भी स्वप्न में भी सेवा करेंगे | स्वप्न में भी सेवा के अच्छे-अच्छे प्लैन आयेंगे, जैसे योग द्वारा टचिंग हुई है | लगन का रिटर्न स्वप्न में मिलता, इसको कहा जाता है लगन में मगन | आप बच्चों के लिए ब्राह्मणों का संसार, संसार है बाकी असार है | देखते हुए भी नहीं देखते, रहते हुए भी नहीं रहते इसलिए सेवाधारी के स्वप्न में क्या आयेगा? बाप और सेवा और कुछ है ही नहीं | अच्छा |

 

4. माया को एक शब्द से मूर्छित करो – वह कौन-सा शब्द? ‘बाबा’ जहाँ बाबा है वहाँ माया नहीं | अगर दिल से, सम्बन्ध से, स्नेह से बाबा कहा और माया भागी | जैसे कितना भी बड़ा डाकू हो लेकिन जब पकड़ा जाता है तो बड़ा डाकू भी बकरी बन जाता | तो बाबा शब्द निकलना और डाकू का पकड़ा जाना | माया जो सेकेण्ड के पहले शेर के रूप वाली होती वह सेकेण्ड बाद बकरी बन जाती | तो इस साधन को सदा साथ रखो | बाबा भूला माना सबकुछ भूला | साधन सहज है सिर्फ़ बार-बार यूज़ करने का तरीका आना चाहिए | सेकेण्ड में परिवर्तन हो इसको कहा जाता है यूज़ करने का तरीका आता है | सदा यह याद रखो मेरा बाबा, जब मेरा बाबा आ गया तो माया भाग गई |

 

5. सहजयोगी की स्टेज स्वतः बनी रहे उसकी विधि:- अमृतवेले के महत्व को जानो | अमृतवेला है दिन का आदि | जो अमृतवेले अर्थात् सारे दिन के आदि के समय पॉवरफुल स्टेज बनायेंगे तो सारा दिन मदद मिलेगी | सारी दिन की जीवन महान बन जायेगी क्योंकि जब अमृतवेले विशेष बाप से शक्ति भर ली तो शक्ति स्वरूप हो चलने से मुश्किल नहीं होगा, चाहे जैसा कार्य आये मुश्किल का अनुभव नहीं, लेकिन प्राप्त शक्ति के आधार से सहज हो जायेगा, इससे सहजयोगी की स्टेज स्वतः बनी रहेगी | अमृतवेले को मिस करना माना संगम की विशेष प्राप्ति को ख़त्म करना | जो भी ईश्वरीय मर्यादायें हैं उन मर्यादाओं पूर्वक जीवन बिताने से विश्व के आगे एग्ज़ाम्पल बन जायेंगे | विश्व आपके जीवन को देखते अपनी जीवन बनायेगी, तो मर्यादा की लकीर के अन्दर रहो तो माया आ नहीं सकती | कुछ भी लो लेकिन स्वयं का उमंग-उत्साह हर सेकण्ड नया होना चाहिए | स्वयं के उमंग-उत्साह का आधार स्वयं हैं, उसमें कोई दूसरा रोक नहीं सकता, उसमें सदा चढ़ती कला होनी चाहिए | रुकना काम है कमजोरों का | अच्छा |

 

वरदान:-  

अपने प्रैक्टिकल जीवन के प्रूफ़ द्वारा साइलेन्स की शक्ति का आवाज़ फ़ैलाने वाले विशेष सेवाधारी भव !   

हर एक को साइलेन्स की शक्ति का अनुभव कराना – यह विशेष सेवा है | जैसे साइन्स की पॉवर नामीग्रामी है ऐसे साइलेन्स पॉवर नामीग्रामी हो जी | सबके मुख से आवाज़ निकले कि साइलेन्स पॉवर साइन्स से भी ऊँची है | वह दिन भी आना है | साइलेन्स के पॉवर की प्रत्यक्षता अर्थात् बाप की प्रत्यक्षता | साइलेन्स पॉवर का प्रैक्टिकल प्रूफ़ है आप सबकी जीवन | हर एक चलते-फिरते पीस के मॉडल दिखाई दें तो साइन्स वालों की नज़र भी साइलेन्स वालों पर जायेगी | ऐसी सेवा करो तब कहेंगे विशेष सेवाधारी |

 

स्लोगन:- 

सेवा और स्थिति का बैलेन्स रखो तो सर्व की ब्लैंसिंग मिलती रहेंगी |     

 

ओम् शान्ति |