27-03-14           प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे ज्ञान सागर बाप तुम्हें रत्नों की थालियाँ भर-भर कर देते हैं, जितना चाहे अपनी झोली भरो, सब फ़िकरातों से फ़ारिग हो जाओ |   
प्रश्न:-   
ज्ञान मार्ग की कौन-सी बात भक्ति मार्ग में भी पसन्द करते हैं?
उत्तर:-
स्वच्छता | ज्ञान मार्ग में तुम बच्चे स्वच्छ बनते हो | बाप तुम्हारे मैले कपड़ों को स्वच्छ बनाने आये हैं, आत्मा जब स्वच्छ अर्थात् पावन बन जाती है तब घर में जाने के, उड़ने के पंख लग जाते हैं | भक्ति में भी स्वच्छता को बहुत पसन्द करते हैं | स्वच्छ बनने के लिए गंगा में जाकर स्नान करते, लेकिन पानी से आत्मा स्वच्छ नहीं बन सकती |

ओम् शान्ति |

मीठे-मीठे बच्चे, तुम्हें याद की यात्रा को भूलना नहीं है | सुबह को जैसे यह प्रैक्टिस करते हो, उसमें वाणी नहीं चलती है क्योंकि वह है निर्वाणधाम में जाने की युक्ति | पावन बनने के सिवाए तुम बच्चे जा नहीं सकते, उड़ नहीं सकते | यह भी समझते हो सतयुग जब होता है तो कितनी ढेर आत्मायें उड़कर जाती हैं | अभी तो कितनी करोड़ आत्मायें हैं | वहाँ सतयुग में जाकर कुछ लाख बचेंगे | बाकी सब उड़ जाते हैं | ज़रूर कोई तो आकर पंख देते हैं ना | इस याद की यात्रा से ही आत्मा पवित्र हो जाती है | इनके सिवाए और कोई उपाय है नहीं पावन होने का | पतित-पावन भी एक बाप को ही कहते हैं फिर कोई ईश्वर कहते, परमात्मा कहते वा भगवान् कहते हैं | है तो एक | अनेक नहीं हैं | बाप सबका एक है | लौकिक बाप सबका अपना-अपना होता है | बाकी पारलौकिक तो सबका एक ही है | वह एक जब आते हैं तो सबको सुख देकर जाते हैं | फिर सुख में उनको याद करने की दरकार नहीं | वह भी पास्ट हो गया ना | अब बाप बैठ पास्ट, प्रेजन्ट, फ्युचर का राज़ समझाते हैं | झाड़ का पास्ट, प्रेजन्ट, फ्युचर बहुत इज़ी है | तुम जानते हो कि कैसे बीज से झाड़ होता है | फिर वृद्धि को पाते-पाते आखरीन अन्त आ जाता है | उसको कहा जाता है आदि, मध्य, अन्त | यह है वैराइटी धर्मों का झाड़, वैराइटी फीचर का झाड़ | सबके फीचर अपने-अपने हैं | फूलों में तुम देखेंगे जैसा-जैसा झाड़ वैसे-वैसे उनके फूल निकलते हैं | उन सब फूलों के फीचर्स एक रहेंगे | परन्तु इस मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ में वैराइटी है | उसमें हर एक झाड़ की शोभा अपनी-अपनी होती है | इस झाड़ में अनेक प्रकार की शोभा है | जैसे बाप समझाते हैं – श्याम सुन्दर, यह देवी-देवताओं के लिए है | जब वह सतोप्रधान से तमोप्रधान बनते हैं तो वही सुन्दर से श्याम बनते हैं | ऐसे श्याम-सुन्दर और कोई धर्म में नहीं बनते हैं | उन्हों के फीचर्स भी देखो | जापानियों के फीचर्स, यूरोपियन्स के फीचर्स, चीनियों के फीचर्स देखो | इण्डिया वालों के फीचर्स बदली होते जाते हैं | उन्हों के लिए ही श्याम-सुन्दर का गायन है, और कोई धर्म के लिए नहीं | यह मनुष्य सृष्टि का झाड़ है | वैराइटी धर्म हैं | वह सब नम्बरवार कैसे आते हैं, यह नॉलेज तुम बच्चों को अभी मिलती है | और कोई यह बात समझा न सके | यह कल्प है 5 हज़ार वर्ष का | इसको वृक्ष कहो या दुनिया कहो, आधा में है भक्ति, जिसको रावण राज्य कहा जाता है | 5 विकारों का राज्य चलता है, काम चिता पर चढ़कर पतित सांवरे बन जाते हैं | रावण सम्प्रदाय वालों की चलन और दैवी सम्प्रदाय वालों की चलन में रात-दिन का फ़र्क है | मनुष्य उन्हों की महिमा गाते हैं, अपने को नीच पापी कहते हैं | अनेक प्रकार के मनुष्य हैं | भक्ति तो तुमने बहुत की है | पुनर्जन्म लेते-लेते भक्ति करते आये हो | पहले होती है अव्यभिचारी भक्ति | एक की भक्ति पहले-पहले शुरू करते हैं फिर व्यभिचारी हो जाती है | अन्त में बिल्कुल ही व्यभिचारी बन जाते हैं, तब बाप आकर अव्यभिचारी ज्ञान देते हैं | जिस ज्ञान से सद्गति होती है, इसका जब तक पता नहीं है तो भक्ति के ही घमण्ड में रहते हैं | यह पता नहीं है कि ज्ञान का सागर एक ही परमात्मा है | भक्ति में कितने वेद शास्त्र याद कर जबानी भी सुनाते हैं | यह सब है भक्ति का विस्तार | भक्ति की शोभा है | बाप कहते हैं यह मृगतृष्णा के समान शोभा है | वो रेत पानी जैसी दूर से ऐसी चमकती है जैसे चाँदी | हिरण को प्यास लगती है तो वह उस रेत में भागते-भागते फँस जाता है | भक्ति भी ऐसे है, उसमें सब फँस पड़े हैं, उससे निकलने में बच्चों को मेहनत लगती है | विघ्न भी इसमें पड़ते हैं क्योंकि बाप पवित्र बनाते हैं | द्रोपदी ने भी पुकारा | सारी दुनिया में द्रोपदियाँ और दुर्योधन हैं | और फिर ऐसे भी कहेंगे कि तुम सब पार्वतियाँ हो जो अमरकथा सुन रही हो | बाप तुमको अमरलोक के लिए अमर कथा सुना रहे हैं | यह है मृत्युलोक | यहाँ अकाले मृत्यु होती रहती है | बैठे-बैठे हार्टफेल हो जाते हैं | तुम हॉस्पिटल में जाकर समझा सकते हो | यहाँ तुम्हारी आयु कितनी कम है, बीमार हो पड़ते हो | वहाँ बीमारी होगी नहीं | भगवानुवाच – अपने को आत्मा समझो, मुझ बाप को याद करो | औरों से ममत्व मिटा दो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे | फिर कभी बीमार होंगे नहीं | काल खायेगा नहीं | आयु भी बड़ी होगी | इन देवताओं की आयु बड़ी थी ना | फिर बड़ी आयु वाले कहाँ गये? पुनर्जन्म लेते-लेते आयु कम हो जाती है | यह दुःख-सुख का खेल है, उसको कोई जानते नहीं | मेले-मलाखड़े आदि कितने होते हैं | कुम्भ के मेले में कितने लोग स्नान करने के लिए जाकर इकट्ठे होते हैं परन्तु फ़ायदा कुछ भी नहीं | रोज़ तुम स्नान करते हो, पानी तो सब जगह सागर से ही आता है | सबसे अच्छा पानी तो कुँए का होता है | नदियों में तो किचड़ा पड़ता रहता है | कुँए का पानी तो नेचुरल शुद्ध होता है | तो उनसे स्नान करना बहुत अच्छा होता | पहले यह रिवाज़ था, अब नदियों का रिवाज़ पड़ा है | भक्ति मार्ग में भी स्वच्छता को पसन्द करते हैं | अब परमात्मा को पुकारते हैं कि आकर हमको स्वच्छ बनाओ | गुरुनानक ने भी परमात्मा की महिमा गाई है कि मूत पलीती कपड़ धोये......बाप आकर मूत पलीती कपड़ों को स्वच्छ बनाते हैं | यहाँ बाप आत्मा को स्वच्छ बनाते हैं | वो लोग आत्मा को निर्लेप समझते हैं | बाप कहते हैं – यह है ही रावण राज्य | सृष्टि की उतरती कला है | गायन भी है चढ़ती कला तेरे भाने सर्व का भला | सर्व की सद्गति हो जाती है | हे बाबा, आपके द्वारा सबका भला जो जाता है | सतयुग में सबका भला होता है | वहाँ सब शान्ति में हैं, एक ही राज्य है | उस समय और सब शान्तिधाम में रहते हैं | अब यह लोग माथा मारते हैं कि विश्व में शान्ति हो | उनसे पूछो – आगे कभी विश्व में शान्ति थी, जो अब फिर मांग रहे हो? वो फिर कह देते हैं अभी कलियुग में 40 हज़ार वर्ष और पड़े हैं | मनुष्य घोर अन्धियारे में हैं | कहाँ 5 हज़ार वर्ष का सारा कल्प, कहाँ एक कलियुग के ही 40 हज़ार वर्ष बचे हुए बताते हैं! अनेक मतें हैं | बाप आकर सच बताते हैं कि जन्म भी 84 ही हैं | लाखों वर्ष हों फिर तो मनुष्य जानवर आदि भी बन सकते हैं, परन्तु क़ायदा ही नहीं है | 84 जन्म मनुष्य का ही लेते हैं | उसका हिसाब-किताब भी बाप बतलाते हैं | यह नॉलेज तुम बच्चों को धारण करनी है | ऋषि-मुनि तो नेती-नेती करके गये हैं अर्थात् हम नहीं जानते हैं तो नास्तिक ठहरे | ज़रूर कोई आस्तिक होंगे | आस्तिक हैं देवतायें, नास्तिक हैं रावण राज्य में | ज्ञान से तुम आस्तिक बनते हो फिर 21 जन्मों का वर्सा मिल जाता है | फिर ज्ञान की दरकार नहीं रहती है | अब पुरुषोत्तम संगमयुग है जबकि हम उत्तम ते उत्तम पुरुष स्वर्ग के मालिक बन रहे हैं | इसमें जितना जो पढ़ेंगे उतना ऊँच पद पायेंगे | पढ़ेंगे-लिखेंगे होंगे विश्व के मालिक, नहीं तो कम पद | परन्तु वह राजाई है सुख की | यहाँ है दुःख की | आस्तिक बने हैं तो सुख की राजाई करते हैं | फिर रावण आने से नास्तिक बनते हैं, तो दुःख होता है | भारत जब सालवेन्ट था तो अथाह धन था, सोमनाथ का मन्दिर कितना भारी बनाया हुआ है | मन्दिर बनाने के लिए इतने पैसे थे तो खुद के पास कितने पैसे होंगे! यह इतने पैसे कहाँ से मिले? शास्त्रों में लिखा है – सागर ने थालियाँ भर-भर कर दी | अब ज्ञान सागर तुमको रत्नों की थालियाँ भरकर देते हैं | अब तुम्हारी झोली भर रही है | वो शंकर के आगे जाकर कहते हैं भर दो झोली, बाप को जानते नहीं | अब तुम जानते हो – बाप हमारी झोली भर रहे हैं | जितना जिसको चाहिए सो भरे | जितना अच्छी रीति पढ़ेंगे उतना स्कॉलरशिप मिलेगी | चाहे तो ऊँच ते ऊँच डबल सिरताज बनो, चाहे गरीब प्रजा वा दास-दासी | बहुत हैं जो फ़ारकती भी दे देते हैं, यह भी ड्रामा में नूँध है | बाप कहते हैं मुझे कोई फ़िक्र नहीं | मैं तो फ़िक्र से फ़ारिग हूँ | तुमको भी बना रहा हूँ | फ़िक्र से फ़ारिग स्वामी कींदा सतगुरु......स्वामी जो सबका बाप है, उनको मालिक भी कहते हैं | बाप कहते हैं मैं तुम्हारा बेहद का टीचर भी हूँ | भक्ति मार्ग में तुम अनेक टीचर्स से अनेक विद्यायें पढ़ते हो | बाप जो तुमको पढ़ाते हैं यह सबसे न्यारी नॉलेज है | वह है ज्ञान का सागर, जानी जाननहार नहीं कहना | ऐसे बहुत कहते हैं – आप तो हमारे अन्दर को जानते हो | बाप कहते हैं – मैं कुछ नहीं जानता हूँ | मैं तो तुम बच्चों को पढ़ाने के लिए आता हूँ, तुम आत्मा अपने इस तख़्त पर विराजमान हो | मैं भी इस तख़्त पर बैठा हूँ | आत्मा कितनी छोटी बिन्दी है – यह कोई जानता ही नहीं | तब बाप कहते हैं – पहले आत्मा को समझो फिर बाप को समझेंगे | बाप पहले-पहले आत्मा का ज्ञान समझाते हैं | फिर बाप का परिचय देते हैं | भक्ति में सालिग्राम बनाए पूजा कर फिर ख़लास कर देते हैं | बाप कहते हैं यह सब है गुड़ियों की पूजा | जो इन सब बातों को अच्छी रीति समझते हैं वह औरों का भी कल्याण करते हैं | बाप भी कल्याणकारी है तो बच्चों को भी बनना है | कोई तो औरों को दलदल से निकालते-निकालते खुद फँस मरते हैं | अपवित्र बन पड़ते हैं | की कमाई चट कर देते हैं, इसलिए बाप कहते हैं ख़बरदार रहना | काम चिता पर बैठने से ही तुम काले बन पड़े हो | तुम कहेंगे हम ही गोरे थे, हम ही काले बने | हम ही देवता थे, हम ही नीचे उतरे | नहीं तो 84 जन्म कौन लेते हैं | यह हिसाब बाप समझाते हैं | बच्चों को बहुत मेहनत करनी पड़ती है | आधाकल्प से जो विषय सागर में पड़े हैं उनसे निकालना मासी का घर नहीं है | अगर कोई थोड़ा भी ज्ञान लेते हैं तो उनका विनाश नहीं होता है | यह कथा है ही सत्य नारायण बनने की, फिर प्रजा भी बनती है | थोड़ा समझकर चले जाते हैं, हो सकता है फिर आकर समझें | आगे चलकर मनुष्यों में वैराग्य भी होगा | जैसे शमशान में वैराग्य आता है, बाहर निकले तो ख़लास | तुम भी जब समझाते हो, अच्छा-अच्छा करते हैं, बाहर गये ख़लास | कहते हैं यह काम उतारकर आयेंगे | बाहर जाने से माया माथा मूड़ लेती है | कोटों में कोई निकलता है | राजाई पद पाना – इसमें मेहनत लगती है | हर के दिल से पूछे – बेहद के बाप को हम कितना याद करते हैं? कहते हैं बाप की याद भूल जाती है | अरे, अज्ञान काल में कभी ऐसे कहते हैं कि हमको बाप भूल जाता है |

बाबा कहते हैं भल कितने भी तूफ़ान आयें तुमको हिलना नहीं है | तूफ़ान आयेगा, सिर्फ़ कर्मेन्द्रियों से कर्म नहीं करना | कहते हैं – बाबा, माया ने जादू लगा दिया | बाबा कहते हैं – मीठे-मीठे बच्चे, याद करो तो कट निकल जायेगी | आत्मा पर कट (जंक) चढ़ती है, वह निकलेगी याद से | बाप भी बिन्दी है | सिवाए बाप की याद के और कोई उपाय नहीं कट उतरने का | अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1.     कल्याणकारी बाप के हम बच्चे हैं इसलिए अपना और सर्व का कल्याण करना है | कोई ऐसा कर्म न हो जो की कमाई ख़त्म हो जाए इसमें ख़बरदार रहना है |

2.     पढ़ाई अच्छी तरह से पढकर ज्ञान रत्नों से अपनी झोली भरपूर करनी है | स्कॉलरशिप लेने का पुरुषार्थ करना है | बाप समान फ़िक्र से फ़ारिग, निश्चिन्त रहना है |

वरदान:-  

बुद्धि के साथ और सहयोग के हाथ द्वारा मौज का अनुभव करने वाले ख़ुशनसीब आत्मा भव !   

जैसे सहयोग की निशानी हाथ में हाथ दिखाते हैं | ऐसे बाप के सदा सहयोगी बनना – यह है हाथ में हाथ और सदा बुद्धि से साथ रहना अर्थात् मन के लग्न एक में हो | सदा यही स्मृति रहे कि गॉडली गार्डन में हाथ में हाथ देकर साथ-साथ चल रहे हैं | इससे सदा मनोरंजन में रहेंगे, सदा खुश और सम्पन्न रहेंगे | ऐसी ख़ुशनसीब आत्मायें सदा ही मौज का अनुभव करती रहती हैं |

स्लोगन:- 

दुआओं का खाता जमा करने का साधन है – सन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करना |     

ओम् शान्ति |