03-02-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
शिव जयन्ती पर तुम खूब धूमधाम से निराकार बाप की बायोग्राफी
सबको सुनाओ, यह शिव जयन्ती ही हीरे तुल्य है
| 
प्रश्न:-
तुम ब्राह्मणों की सच्ची दीवाली कब है और कैसे?
उत्तर:-
वास्तव में शिव जयन्ती ही तुम्हारे लिए सच्ची-सच्ची दीवाली है
क्योंकि शिवबाबा आकर तुम आत्मा रूपी दीपक को जगाते हैं | हरेक
के घर का दीप जलता है अर्थात् आत्मा की ज्योति जगती है | वह
स्थूल दीपक जगाते लेकिन तुम्हारा सच्चा दीपक शिव बाप के आने से
जगता है इसलिए तुम खूब धूमधाम से शिव जयन्ती मनाओ |
ओम्
शान्ति
|
मीठे-मीठे रूहानी बच्चे शिव की जयन्ती मनाते हैं और भारत में
तो शिव जयन्ती मनाते ही हैं | जयंती एक की मनाई जाती है | उसको
फिर सर्वव्यापी कह देते हैं | अब सर्व की जयन्ती तो हो न सके |
जयन्ती कब मनाई जाती है? जब गर्भ से बाहर आते हैं | शिवजयन्ती
मनाते तो ज़रूर हैं | आर्य समाजी भी मनाते हैं | अब तुम मनाते
हो 78 वीं जयन्ती, गोया 78 वर्ष हुआ जयन्ती को | जन्म दिन तो
सबको याद रहता है, फ़लाने दिन यह गर्भ से बाहर आया | अब शिवबाबा
की तुम 78 वीं जयन्ती मनाते हो | वह तो है निराकार, उनकी
जयन्ती कैसे हो सकती है? इतने बड़े-बड़े मनुष्यों को निमन्त्रण
कार्ड जाते हैं | कोई को पूछना तो चाहिए – जयन्ती कैसे मनाते
हो? उसने जन्म कब और कैसे लिया? फिर उसके शरीर का नाम क्या
रखा? परन्तु ऐसे पत्थरबुद्धि हैं जो कभी पूछते नहीं हैं | तुम
उनको बता सकते हो – वह है निराकार, उनका नाम है शिव | तुम
सालिग्राम बच्चे हो | जानते हो इस शरीर में सालिग्राम हैं |
नाम शरीर का पड़ता है | वह है परम आत्मा शिव | अब तुम कितना
धूमधाम से प्रोग्राम रखते हो | दिन-प्रतिदिन तुम धूमधाम से
समझाते रहते हो कि जब शिवबाबा की ब्रह्मा के तन में प्रवेष्ट
होती है, वही उनकी जयन्ती गाई जाती है | उनकी तिथि तारीख़, दिन
आदि बतायें तो कहें कि फलानी तारीख़ | जन्म पत्री आदि तो इनकी
होती नहीं | वास्तव में जन्म पत्री तो सबसे ऊँची इनकी है |
कर्तव्य भी इनका सबसे ऊँचा है | कहते हैं प्रभू तेरी महिमा
अपरमपार है | तो ज़रूर कुछ करते होंगे | महिमा तो बहुतों की गाई
जाती है | नेहरु, गाँधी आदि की महिमा गाते हैं | इनकी महिमा
कोई बता न सके | तुम समझाते हो वह ज्ञान का सागर, शान्ति का
सागर है | वह तो ठहरा ना | फिर उनको सर्वव्यापी कैसे कह सकते |
परन्तु कुछ भी समझते नहीं हैं | और तुम मनाते हो तो कोई पूछने
का साहस भी नहीं करते हैं | नहीं तो पूछना चाहिए शिव जयन्ती
मनाई जाती है, महिमा गाई जाती है तो ज़रूर कोई होकर गये हैं |
बहुत भक्त लोग हैं | अगर गवर्मेन्ट न माने तो भक्तों, साधुओं,
गुरुओं की स्टैम्प भी न बनाये | जैसी है गवर्मेन्ट, ऐसी है
रैयत (प्रजा) | अभी तुम बच्चों को बाप की बायोग्राफी का भी
अच्छी तरह मालूम पड़ा है | तुमको जितना फ़खुर रहता है उतना और
कोई को नहीं रह सकता | तुम ही कहते हो शिव जयन्ती हीरे तुल्य
है, बाकी सब जयन्तियाँ कौड़ी मिसल हैं | बाप ही आकर कौड़ी को
हीरे तुल्य बनाते हैं | श्रीकृष्ण भी बाप द्वारा इतना ऊँच बना
| इसलिए उनका जन्म हीरे तुल्य गाया जाता है | पहले कौड़ी तुल्य
होगा फिर हीरे तुल्य बाबा ने बनाया | यह बातें मनुष्य नहीं
जानते | उनको ऐसा वर्ल्ड का प्रिन्स किसने बनाया? तो यह भी
समझाना चाहिए – कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं | बच्चा तो माता के
गर्भ से ही बाहर निकला | उनको टोकरी में ले गये | अब कृष्ण तो
वर्ल्ड प्रिन्स था फिर उनको डर काहे का? वहाँ कंस आदि कहाँ से
आया? यह सब बातें शास्त्रों में लिख दी हैं | अब तुमको अच्छी
रीति समझाना चाहिए |
समझाने की युक्तियाँ बहुत अच्छी चाहिए | सब एक जैसा नहीं पढ़ा
सकते | युक्तियुक्त न समझाने से और ही डिससर्विस होती है |
अब
शिव जयन्ती मनाई जाती है तो ज़रूर शिव की ही महिमा करेंगे |
गाँधी जयन्ती पर गाँधी की ही महिमा करेंगे | और कुछ सूझेगा
नहीं | अब शिवजयन्ती तुम मनाते हो तो ज़रूर उनकी महिमा, उनकी
बायोग्राफी वा जीवन चरित्र भी होगा | तुम उस दिन उनका ही जीवन
चरित्र बैठ सुनाओ | जैसे बाप कहते हैं मनुष्य कोई पूछते भी
नहीं हैं कि शिव जयन्ती कैसे शुरू हुई | उसका कुछ भी वर्णन है
नहीं | वह लोग शिव-शंकर कह देते हैं | शंकर को भोलानाथ समझ
लेते हैं | वास्तव में भोलानाथ शंकर तो नहीं लगता | उनके लिए
तो कहते हैं आँख खोली तो विनाश हुआ, धतूरा खाते उनको फिर
भोलानाथ कैसे कह सकते हैं | महिमा तो एक की ही होती है | तुमको
शिव के मन्दिर में जाकर समझाना चाहिए | वहाँ बहुत लोग आते हैं
तो शिव का चरित्र सुनाना है | कहते हैं भोला भण्डारी शिवबाबा |
अब शिव और शंकर का भेद भी तुमने ही बताया है | शिव की पूजा
होती है शिव के मन्दिर में | तो वहाँ जाकर तुमको शिव की जीवन
कहानी बतानी है | जीवन कहानी अक्षर सुनकर कोई का माथा ही
चक्रित हो जायेगा कि शिव की जीवन कहानी कैसे सुनायेंगे? तो
मनुष्य वन्डरफुल बात समझ बहुत आयेंगे | बोलो, निमन्त्रण पर जो
आयेंगे उनको हम निराकार परमपिता परमात्मा की जीवन कहानी
बतायेंगे | गाँधी आदि की भी बायोग्राफी सुनते हैं ना | अभी तुम
महिमा करेंगे शिव की तो मनुष्यों की बुद्धि से सर्वव्यापी की
बात उड़ जायेगी | एक की महिमा फिर दूसरे से मिल न सके | यह जो
मण्डप बनाते हैं वा प्रदर्शनी करते हैं, वह कोई शिव का मन्दिर
तो है नहीं | तुम जानते हो सच्चा-सच्चा शिव का मन्दिर वास्तव
में यह है, जहाँ रचता खुद बैठ रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त
का राज़ समझाते हैं | तुम लिख सकते हो रचता की जीवन कहानी और
रचना के आदि-मध्य-अन्त का राज़ अथवा हिस्ट्री सुनायेंगे |
हिन्दी-अंग्रेज़ी में लिखत हो | बड़े-बड़े के पास जायेंगे तो
वन्डर खायेंगे कि यह कौन हैं जो परमपिता परमात्मा की
बायोग्राफी बताते हैं | सिर्फ़ रचना के लिए तुम कहेंगे तो
समझेंगे प्रलय हुई फिर नई रचना रची | परन्तु नहीं, तुमको तो
समझाना है बाप पतितों को आकर पावन बनाते हैं तो मनुष्य वन्डर
खायेंगे | शिव के मन्दिर में भी बहुत आयेंगे | हाल वा मण्डप
बड़ा होना चाहिए | भल तुम प्रभात फेरी निकालते हो, उसमें भी यह
लक्ष्मी-नारायण का राज्य किसने स्थापन किया, उन्हों को यह
समझाना है | निराकार शिवबाबा जो सभी आत्माओं का बाप है वो ही
आकर राजयोग सिखाते हैं | ऐसे-ऐसे विचार सागर मंथन करना चाहिए
कि कैसे शिव के मन्दिर में जाकर सर्विस करनी चाहिए | शिव के
मन्दिर में सवेरे पूजा करते हैं, घण्टे आदि भी सवेरे बजते हैं
| शिवबाबा भी प्रभात के समय आते हैं | आधी रात नहीं कहेंगे |
उस समय तुम ज्ञान भी नहीं सुना सकते हो क्योंकि मनुष्य सोये
रहते हैं | रात को फिर भी मनुष्यों को फ़ुर्सत होती है |
बत्तियाँ आदि भी जलती हैं | रोशनी भी अच्छी करनी चाहिए |
शिवबाबा आकर तुम आत्माओं को जगाते हैं | सच्ची दीपावली तो यह
है, हरेक के घर का दीप जलता है यानि आत्मा की ज्योति जगती है |
वह तो घर में स्थूल दीपक जलाते हैं | परन्तु दीपावली का वास्तव
में अर्थ यह है | कोई-कोई का दीपक तो बिल्कुल जगता नहीं | तुम
जानते हो हमारा दीपक कैसे जगता है? कोई मरता है तो दीवा जलाते
हैं कि अन्धियारा न हो | परन्तु पहले तो आत्मा का दीपक जगे तब
अन्धियारा न हो | नहीं तो मनुष्य घोर अन्धियारे में हैं |
आत्मा तो सेकेण्ड में एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है | अन्धियारे
आदि की इसमें बात ही नहीं | यह भक्ति मार्ग की रस्म है | घृत
ख़लास होने से दीवा बुझ जाता है | अन्धियारे का भी अर्थ कुछ
समझते नहीं | पित्र आदि खिलाने का भी अर्थ नहीं समझते हैं |
आगे आत्माओं को बुलाते थे, कुछ पूछते थे | अभी इतना नहीं चलता
है | यहाँ भी आते हैं | कोई-कोई समय कुछ बोल देते हैं | बोलो
तुम सुखी हो? तो कहेंगे हाँ जी | सो तो ज़रूर यहाँ से जो
जायेंगे अच्छे घर में ही जन्म लेंगे | जन्म ज़रूर अज्ञानी के घर
में लेंगे | ज्ञानी के घर में तो जन्म ले नहीं सकते क्योंकि
ज्ञानी ब्राह्मण तो विकार में जा नहीं सकता | वह तो पवित्र है
| बाकी हाँ, अच्छे सुखी घर में जाकर जन्म लेंगे | विवेक भी
कहते हैं – जैसी अवस्था, वैसा जन्म | फिर वहाँ अपना जलवा
दिखाते हैं | भल शरीर छोटा है इसलिए बोल न सकें | थोड़ा बड़ा
होने से ज्ञान का जलवा दिखायेंगे ज़रूर | जैसे कोई-कोई
शास्त्रों के संस्कार ले जाते हैं तो छोटेपन में ही उसमें लग
जाते हैं, यहाँ से भी नॉलेज ले जाते हैं तो ज़रूर महिमा निकलेगी
|
तुम शिव जयन्ती मनाते हो | वह लोग कुछ अर्थ नहीं समझ सकते हैं
| पूछना चाहिए – अगर वह सर्वव्यापी हैं तो जयन्ती कैसे
मनायेंगे? अब तुम बच्चे पढ़ रहे हो | तुम जानते हो वह बाप भी
है, टीचर भी है, सतगुरु भी है | बाबा ने समझाया है सिक्ख लोग
भी कहते हैं सत श्री अकाल है | अब वास्तव में अकाल मूर्त तो सब
आत्मायें हैं परन्तु एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं इसलिए
जन्म-मरण कहा जाता है | आत्मा तो वही है | आत्मा 84 जन्म लेती
है | कल्प जब पूरा होता है तो खुद ही आकर बताते हैं कि मैं कौन
हूँ? मैं कैसे इनमें प्रवेश करता हूँ? जिससे तुम आपेही समझ
जाते हो | पहले नहीं समझते थे | हाँ, परमात्मा की प्रवेशता है
परन्तु कैसे, कब हुई, कुछ भी समझते थोड़ेही थे | दिन-प्रतिदिन
तुम्हारी बुद्धि में यह बातें आती रहती हैं | नई-नई बातें तुम
सुनते रहते हो | आगे थोड़ेही दो बाप का राज़ समझाते थे | आगे तो
जैसे बेबियाँ थी | अभी भी बहुत कहते हैं – बाबा, हम दो दिन का
आपका बच्चा हूँ | इतने दिन का बच्चा हूँ | समझते हैं जो कुछ
होता है कल्प पहले मिसल | इसमें बड़ी नॉलेज है | समझने में भी
समय लगता है | जन्म ले फिर मर भी पड़ते हैं | दो मास, 8 मास का
हो मर भी पड़ते हैं | तुम्हारे पास आते हैं कहते हैं यह राइट है
| वह हमारा बाप है, हम उनकी सन्तान हैं | हाँ-हाँ कहते हैं |
बच्चे लिखते भी हैं – बहुत प्रभावित हो जाते हैं | फिर बाहर
गया ख़लास, मर पड़ा | फिर आते ही नहीं हैं तो क्या होगा? या तो
पिछाड़ी में आकर रिफ्रेश होगा या तो प्रजा में आ जायेगा | यह सब
बातें समझानी हैं | हम शिव जयन्ती कैसे मनाते हैं? शिवबाबा
कैसे सद्गति करते हैं? शिवबाबा स्वर्ग की सौगात ले आते हैं |
खुद कहते हैं मैं तुमको राजयोग सिखाता हूँ | विश्व का मालिक
बनाता हूँ | बाप तो है ही हेविन का रचयिता तो ज़रूर हेविन का ही
मालिक बनायेंगे | हम उनकी बायोग्राफी बताते हैं | कैसे स्वर्ग
की स्थापना करते हैं, कैसे राजयोग सिखाते हैं, आकर सीखो | जैसे
बाप समझाते हैं, वैसे बच्चे नहीं समझा सकते हैं क्या? इसमें
बहुत अच्छा समझाने वाला चाहिए | शिव के मन्दिर में बहुत अच्छा
मनाते होंगे, वहाँ जाकर समझाना चाहिए | लक्ष्मी-नारायण के
मन्दिर में अगर शिव की जीवन कहानी सुनायेंगे तो किसको जंचेगी
नहीं | ख्याल में नहीं आयेगा | फिर उन्हों को अच्छी रीति
बुद्धि में बिठाना पड़े | लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में बहुत
आते हैं | उन्हों को लक्ष्मी-नारायण, राधे कृष्ण का राज़ समझा
सकते हो | उनका अलग-अलग मन्दिर होना नहीं चाहिए | कृष्ण जयन्ती
पर तुम कृष्ण के मन्दिर में जाकर समझायेंगे – कृष्ण ही गोरा,
कृष्ण ही सांवरा क्यों गया जाता है? कहते हैं गांवड़े का छोरा |
गांवड़े में तो गायें-बकरियां चराते होंगे ना | बाबा फ़ील करता
है हम भी गांवड़े के थे | न टोपी, न जुत्ती | अब स्मृति आती है
हम क्या थे फिर बाबा ने आकर प्रवेश किया है | तो यह बाप का
लक्ष्य सबको मिले कि शिवबाबा को याद करो वो ही सद्गति दाता है
| तुम रामचन्द्र जी की भी जीवन कहानी बता सकते हो | कब से उनका
राज्य शुरू हुआ, कितना वर्ष हुआ | ऐसे-ऐसे ख़्यालात आने चाहिए |
शिव के मन्दिर में शिव की बायोग्राफी सुनानी पड़े |
लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में लक्ष्मी-नारायण की महिमा करनी
पड़े | राम के मन्दिर में जायेंगे तो राम की जीवन कहानी
सुनायेंगे | अब तुम पुरुषार्थ कर रहे हो देवी-देवता धर्म
स्थापन करने का | हिन्दू धर्म तो कोई ने स्थापन नहीं किया है |
बाकी हिन्दू कोई धर्म नहीं है – यह सीधा कहने से बिगड़ेंगे |
समझते हैं यह कोई ईसाई हैं | तुम बोलो हम आदि सनातन देवी-देवता
धर्म के हैं जिसको आजकल हिन्दू कह दिया है | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
शिवजयन्ती धूमधाम से मनाओ | शिवबाबा के मन्दिर में शिव की और
लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में लक्ष्मी-नारायण वा राधे-कृष्ण की
बायोग्राफी सुनाओ | सबको युक्तियुक्त समझानी दो |
2.
अज्ञान अन्धियारे से बचने के लिए आत्मा रूपी दीपक को ज्ञान घृत
से सदा प्रज्जवलित रखना है | दूसरों को भी अज्ञान अन्धियारे से
निकालना है |
वरदान:-
हर
कदम में वरदाता से वरदान प्राप्त कर मेहनत से मुक्त रहने वाले
अधिकारी आत्मा भव
! 
जो
हैं ही वरदाता के बच्चे उन्हों को हर कदम में वरदाता से वरदान
स्वतः ही मिलते हैं | वरदान ही उनकी पालना है | वरदानों की
पालना से ही पलते हैं | बिना मेहनत के इतनी श्रेष्ठ
प्राप्तियाँ होना इसे ही वरदान कहा जाता है | तो जन्म-जन्म
प्राप्ति के अधिकारी बन गये | हर कदम में वरदाता का वरदान मिल
रहा है और सदा ही मिलता रहेगा | अधिकारी आत्मा के लिए दृष्टि
से, बोल से, सम्बन्ध से वरदान ही वरदान है |
स्लोगन:-
समय की
रफ़्तार के प्रमाण पुरुषार्थ की रफ़्तार तीव्र करो |
ओम्
शान्ति
|