06-01-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
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मुख्य है याद की यात्रा, याद से ही आयु बढ़ेगी, विकर्म विनाश होंगे, याद में रहने वालों की अवस्था बोल-चाल बहुत फर्स्टक्लास होगा |
प्रश्न:-
तुम बच्चों को देवताओं से भी जास्ती ख़ुशी होनी चाहिए - क्यों?
उत्तर:-
क्योंकि तुमको अभी बहुत बड़ी लाटरी मिली है | भगवान तुम्हें पढ़ाते हैं | सतयुग में देवता, देवताओं को पढ़ायेंगे | यहाँ मनुष्य, मनुष्यों को पढ़ाते हैं लेकिन तुम आत्माओं को स्वयं परमात्मा पढ़ा रहे हैं | तुम अभी स्वदर्शन चक्रधारी बन रहे हो | तुम्हारे में सारी नॉलेज है | देवताओं में यह नॉलेज भी नहीं |
गीत:-
जाग सजनियाँ जाग....
ओम् शान्ति |
नये युग में होते हैं देवी देवतायें | हैं वह भी मनुष्य परन्तु उन्हों के गुण देवताओं जैसे होते हैं | वह हैं वैष्णव डबल अहिंसक | अभी मनुष्य डबल हिंसक हैं, मारामारी भी करते, काम कटारी भी चलाते | इसको कहा जाता है मृत्युलोक, जिसमें विकारी मनुष्य रहते हैं | उसको कहा जाता है देव लोक जिसमें देवी-देवता रहते हैं | वह डबल अहिंसक थे | उन्हों का भी राज्य था | कल्प की आयु लाखों वर्ष की होती तो कोई बात का ख्याल भी नहीं आता | आजकल कल्प की आयु कम करते जाते हैं | कोई 7 हज़ार वर्ष कहते, कोई 10 हज़ार कहते | यह भी बच्चे जानते हैं कि बाप है ऊँचे ते ऊँचा भगवान और हम उनके बच्चे रहते हैं शान्तिधाम में | हम पण्डे हैं रास्ता बताने वाले | इस यात्रा का कोई वर्णन है नहीं | भल गीता में अक्षर है मनमनाभव | परन्तु उसका अर्थ क्या है? अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो, यह किसकी बुद्धि में नहीं आता | जब बाप आकर समझाये तब किसकी बुद्धि में आये | इस समय तुम मनुष्य से देवता बनते हो | मनुष्य यहाँ हैं, देवता सतयुग में होते हैं | बरोबर तुम अभी मनुष्य से देवता बनते हो | तुम्हारी यह ईश्वरीय मिशन है | निराकारी परमात्मा को कोई मनुष्य तो समझ न सके | निराकार को हाथ पाँव कहाँ से आया | कृष्ण को हाथ पाँव सब कुछ है | भक्ति मार्ग के कितने शास्त्र बनाये हैं | अब तुम बच्चों के पास चित्र आदि तो बहुत हैं | चित्र से याद आती है कि इस चित्र पर यह समझायें, और भी बहुत चित्र बनते जायेंगे | एकदम ऊपर आत्माओं का भी दिखाना है | आत्मायें ही आत्मायें दिखाई देंगी | फिर सूक्ष्मवतन, उनके नीचे मनुष्य लोक भी बनायेंगे | मनुष्य कैसे पिछाड़ी में आकर फिर ऊपर चढ़ते हैं, यह दिखायेंगे | दिन प्रतिदिन नई इनवेन्शन निकलती जायेंगी | अब जितने चित्र हैं, उतनी सर्विस भी करनी है | फिर ऐसे-ऐसे चित्र बनेंगे जिससे मनुष्य जल्दी समझ जायेंगे | झाड़ बहुत जल्दी बढ़ता जायेगा | कल्प पहले जिसने जो पद पाया होगा, जो रिज़ल्ट निकली होगी वही निकलेगी | ऐसे नहीं कि पिछाड़ी में आने वाले माला के दाने नहीं बन सकते हैं | वह भी बनेंगे | नौधा भक्ति वाले रात दिन भक्ति में लगे रहते हैं, तब उन्हों को साक्षात्कार होता है | यहाँ भी ऐसे निकलेंगे | रात दिन मेहनत कर पतित से पावन बनेंगे | चांस सबको है | ऐसे नहीं पिछाड़ी में कोई रह जाये | ड्रामा ही ऐसा बना हुआ है, जो कोई रह नहीं सकता | सब तरफ़ पैगाम देना है | शास्त्रों में है एक रह गया तो उल्ह्ना दिया | यह चित्र अख़बार आदि में भी पड़ेंगे | तुमको भी निमन्त्रण मिलते रहेंगे | सबको मालूम पड़ेगा कि बाप आया हुआ है | जब पूरा निश्चय होगा तब दौड़ेंगे | नामाचार निकलता ही रहेगा | नवयुग सतयुग को ही कहा जाता है | नवयुग अख़बार भी निकलती है | कहते हैं न्यु देहली परन्तु न्यु देहली में यह पुराना किला, किचड़ा आदि हो न सके | अभी तो हर चीज़ टेढ़ी बाँकी हो गई है | सतयुग में सब तत्व भी ऑर्डर में रहते हैं | यहाँ तो 5 तत्व भी तमोप्रधान हैं | वहाँ सब सतोप्रधान होते हैं तो हर एक तत्व से सुख मिलता है | दुःख का नाम भी नहीं | उसका नाम है स्वर्ग | यह सब बातें अब तुम समझते हो कि बरोबर अभी हम तमोप्रधान बन गये हैं | सतोप्रधान बनने के लिए पुरुषार्थ कर मंज़िल पर चढ़ रहे हैं और सब अन्धियारे में हैं | हम रोशनी में हैं | हम ऊपर जा रहे हैं और सब नीचे गिर रहे हैं | यह सब विचार सागर मंथन तुम बच्चों को करना है | शिवबाबा है सिखलाने वाला | वह तो मंथन नहीं करेंगे | ब्रह्मा को मंथन करना होता है | तुम सब विचार सागर मंथन कर समझाते हो | कोई का तो मंथन बिल्कुल नहीं चलता | पुरानी दुनिया ही याद पड़ती है | बाबा कहते हैं पुरानी दुनिया को एकदम भूल जाओ | परन्तु बाबा जानते हैं – नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार राजधानी स्थापन हो रही है | बाप कहते हैं मैं आकर राजधानी स्थापन कर बाकी सबको वापस ले जाता हूँ | वह लोग तो सिर्फ़ अपना-अपना धर्म स्थापन करते हैं | उनके पिछाड़ी उनके धर्म के आते रहते हैं | उनकी की महिमा करेंगे | महिमा तो तुम्हारी है | आदि सनातन देवी-देवता धर्म को ही हीरो हीरोइन कहा जाता है | हीरे जैसा जन्म और कौड़ी जैसा जन्म तुम्हारे लिए गाया हुआ है | फिर तुम एकदम चोटी से गिरकर एकदम नीचे आकर पड़ते हो | तो इस समय तुम बच्चों को देवताओं से भी ज़्यादा ख़ुशी होनी चाहे क्योंकि तुमको लॉटरी मिली है | तुम्हें अब भगवान पढ़ाते हैं | वहाँ तो देवता, देवताओं को पढ़ायेंगे | यहाँ मनुष्य, मनुष्य को पढ़ाते हैं और तुम आत्माओं को परमपिता परमात्मा पढ़ाते हैं | फ़र्क हो गया ना |
तुम ब्राह्मणों ने राम राज्य और रावण राज्य को भी समझा है | अब तुम जितना श्रीमत पर चलेंगे उतना ऊँच पद पायेंगे | अज्ञान काल में जो करते हैं वह उल्टा ही होता है | छोटे पन में सगीर बुद्धि होती है फिर बालिग बुद्धि होती है | 16-17 वर्ष के बाद सगाई होती है | आजकल तो गन्द बहुत है | गोद वाले बच्चे की भी सगाई करा लेते हैं | फिर लेना देना शुरू कर लेते हैं | वहाँ शादियाँ कितनी रॉयल होती हैं | तुमने सब साक्षात्कार किया है | जितना आगे बढ़ते जायेंगे तो तुम सब साक्षात्कार करेंगे | अच्छे फर्स्टक्लास योगी बच्चों की आयु बढ़ती जायेगी | बाप कहते हैं योग से अपनी आयु बढ़ाओ | बच्चे समझते हैं योग में हम ढीले हैं | याद में रहने लिए माथा मारते हैं परन्तु रह नहीं सकते | घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं | वास्तव में यहाँ वालों का चार्ट बहुत अच्छा होना चाहिए | बाहर तो गोरख़धन्धे में रहते हैं | बाप को याद करते-करते यहाँ ही तुमको सतोप्रधान बनना है | कम से कम भोजन बनाते, काम करते 8 घण्टा मुझे याद करो तब कर्मातीत अवस्था अन्त में होगी | कोई कहे मैं 6-8 घण्टा योग में रहता हूँ तो बाबा मानेगा नहीं | बहुतों को लज्जा आती है, चार्ट नहीं लिखते हैं | आधा घण्टा भी याद में नहीं रह सकते | मुरली सुनना कोई याद नहीं है, यह तो धन कमाते हो | याद में तो सुनना बन्द हो जाता है | कई बच्चे लिख देते हैं याद में मुरली सुनी, परन्तु यह याद थोड़ेही है | बाबा खुद कहते हैं मैं घड़ी-घड़ी भूल जाता हूँ | याद में भोजन करने बैठता हूँ, बाबा आप तो अभोक्ता हो, यह कैसे कहूँ बाबा आप भी खाते हो, हम भी खाते हैं | कोई-कोई बात में कहेंगे कि बाबा भी साथ है | मुख्य है याद की यात्रा | मुरली की सब्जेक्ट बिल्कुल अलग है | याद से पवित्र बनते हैं | आयु बढ़ती है | बाकी ऐसे नहीं कि मुरली सुनी तो बाबा इसमें था ना | मुरली सुनने से विकर्म विनाश नहीं होंगे | मेहनत है | बाबा जानते हैं बहुत बच्चे बिल्कुल याद नहीं कर सकते हैं | याद में रहने की अवस्था, बोल चाल बिल्कुल अलग रहेगा | याद से ही सतोप्रधान बनेंगे | परन्तु माया ऐसी है जो एकदम बुद्धू बना देती है | बहुतों की बीमारी उथल पड़ती है | मोह जो नहीं था वह उथल पड़ता है | फँस मरते हैं | बड़ी मेहनत का काम है | मुरली सुनना यह सब्जेक्ट अलग है | यह है धन कमाने की बात, इसमें आयु नहीं बढ़ेगी, पावन नहीं बनेंगे, विकर्म विनाश नहीं होंगे | मुरली तो बहुत सुनते हैं | फिर विकार में गिरते रहते हैं |
सच नहीं बताते | बाप कहते हैं पवित्र नहीं रह सकते तो यहाँ क्यों आते हो? कहते हैं बाबा मैं अजामिल हूँ | यहाँ आऊंगा तब तो पावन बनूँगा | यहाँ आने से कुछ सुधार होगा, नहीं तो कहाँ जायें | रास्ता तो यही है | ऐसे-ऐसे भी आते हैं | कोई न कोई समय तीर लग जायेगा | बाबा यहाँ के लिए भी कहते हैं – यहाँ कोई अपवित्र को नहीं आना चाहिए | यह तो इन्द्र सभा है | अभी तक तो आ जाते हैं | एक दिन यह भी आर्डीनेन्स निकलेगा, जब पक्की गैरन्टी करे तब एलाऊ करें | तो समझेंगे यह तो ऐसी संस्था है, कोई अपवित्र अन्दर जा नहीं सकता | तुम बच्चे समझते हो यह किसकी सभा है | हम भगवान, ईश्वर, सोमनाथ, बबुलनाथ के पास बैठे हैं | वही पावन बनाने वाला है | अभी आखरीन में बहुत आ जायेंगे तो फिर कोई हंगामा आदि कर न सके | इस धर्म के जो होंगे वह निकल आयेंगे | आर्य समाजी भी हैं हिन्दू | सिर्फ़ मठ पंथ अलग कर दिया है | देवतायें होते हैं सतयुग में | यहाँ सब हिन्दू हैं | वास्तव में हिन्दू धर्म है नहीं, यह हिन्दुस्तान तो देश का नाम है | तुम बच्चों को उठते बैठते, चलते स्वदर्शन चक्रधारी बनना है | स्टूडेन्ट को पढ़ाई की याद रहनी चाहिए ना | सारा चक्र बुद्धि में है | देवताओं और तुम्हारे में थोड़ा फ़र्क रहा है | पक्के स्वदर्शन चक्रधारी बन जायेंगे तो फिर विष्णु के कुल के बन जायेंगे | तुम समझते हो हम यह बन रहे हैं | वह देवतायें फाइनल हैं | तुम फाइनल तब होंगे जब कर्मातीत अवस्था हो | शिवबाबा तुमको स्वदर्शन चक्रधारी बनाते हैं | उनमें नॉलेज है ना | वह हैं तुमको बनाने वाले | तुम हो बनने वाले | ब्राह्मण बन फिर देवता बनेंगे | अब यह अलंकार तुमको कैसे दें | अब तुम पुरुषार्थी हो | फिर तुम विष्णु के कुल के बनते हो | सतयुग वैष्णव कुल है ना | तो ऐसा बनना है | तुमको तो मीठा बनना है | ऐसा वैसा अक्षर बोलने से न बोलना अच्छा है | एक दृष्टान्त है – दो लड़ते थे, सन्यासी ने कहा मुख में मुहलरा डाल लो | कभी निकालना नहीं | रेसपान्ड मिल न सके | 5 विकारों को जीतना कोई मासी का घर नहीं है | कोई तो अपना अनुभव भी बताते हैं – हमारे में बहुत क्रोध था, अब बहुत कम हो गया है | बहुत मीठा बनना है | कल तुम इन देवताओं के गुण गाते थे | आज तुम समझते हो हम यह बन रहे हैं | नम्बरवार ही बनेंगे | जो सर्विस करेंगे उनका नाम ज़रूर बाबा भी लेंगे | रास्ता बताना चाहिए | हम भी पहले कुछ नहीं जानते थे | अब कितनी नॉलेज मिली है | जो अच्छी रीति धारण नहीं करते तो उनकी रिपोर्ट आती है | बाबा इनमें तो बहुत क्रोध है | बाबा जानते हैं यह रूहानी सर्विस नहीं कर सकते तो फिर स्थूल सर्विस | बाबा की याद में रहकर सर्विस करें तो अहो भाग्य | एक दो को याद दिलाते रहो | याद से बहुत बल मिलेगा | याद करने वाले को फिर चार्ट रखना है | चार्ट से मालूम पड़ जाता है | हर एक को बाबा सावधान करते रहते हैं | विश्व में शान्ति बहुत माँगते हैं | ज़रूर कभी विश्व में शान्ति थी | सतयुग में अशांति की कोई बात भी नहीं | स्वीट बाप स्वीट बच्चे सारे विश्व को स्वीट बनाते हैं | अब स्वीट कहाँ हैं | मौत ही मौत लगा पड़ा है | यह खेल अनेक बार होता है और होता ही रहता है | इन्ड हो नहीं सकती | चक्र फिरता रहता है | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1.
विकर्म विनाश करने वा आयु को बढ़ाने के लिए याद की यात्रा में ज़रूर रहना है | याद से ही पावन बनेंगे इसलिए कम से कम 8 घण्टा याद का चार्ट बनाना है |
2.
देवताओं समान मीठा बनना है | ऐसा वैसा कोई शब्द बोलने के बजाए न बोलना अच्छा है | रूहानी वा स्थूल सर्विस करते बाप की याद रहे तो अहो भाग्य |
वरदान:-
कमल पुष्प का सिम्बल बुद्धि में रख, अपने को सैम्पुल समझने वाले न्यारे और प्यारे भव!
प्रवृत्ति में रहने वालों का सिम्बल है “कमल पुष्प” | तो कमल बनो और अमल करो | अगर अमल नहीं करते तो कमल नहीं बन सकते | तो कमल पुष्प का सिम्बल बुद्धि में रख स्वयं को सैम्पुल समझकर चलो | सेवा करते न्यारे और प्यारे बनो | सिर्फ़ प्यारे नहीं बनना लेकिन न्यारे बन प्यारे बनना क्योंकि प्यार कभी लगाव के रूप में बदल जाता है, इसलिए कोई भी सेवा करते न्यारे और प्यारे बनो |
स्लोगन:-
स्नेह की छत्रछाया के अन्दर माया आ नहीं सकती |
ओम्
शान्ति
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