02-03-15      प्रातः मुरली      ओम् शान्ति      “बापदादा”      मधुबन
 


मीठे बच्चे - तुम्हें नशा चाहिए कि हमारा पारलौकिक बाप वंडर ऑफ दी वर्ल्ड (स्वर्ग) बनाता, जिसके हम मालिक बनते हैं”   

प्रश्न:-   
बाप के संग से तुम्हें क्या-क्या प्राप्तियां होती हैं?

उत्तर:-

बाप के संग से हम मुक्ति, जीवन-मुक्ति के अधिकारी बन जाते हैं । बाप का संग तार देता है (पार ले जाता है) । बाबा हमें अपना बनाकर आस्तिक और त्रिकालदर्शी बना देते हैं । हम रचता और रचना के आदि-मध्य- अन्त को जान जाते हैं ।

गीत:-

धीरज धर मनुआ .. 

ओम् शान्ति |

यह कौन कहते हैं? बच्चों को बाप ही कहते हैं, सब बच्चों को कहना होता है क्योंकि सब दु:खी हैं, अधीर्य हैं । बाप को याद करते हैं कि आकर दुःख से लिबरेट करो, सुख का रास्ता बताओ । अब मनुष्यों को, उसमें भी खास भारतवासियों को यह याद नहीं है कि हम भारतवासी बहुत सुखी थे । भारत प्राचीन से प्राचीन वन्डरफुल लैण्ड था । वन्डर ऑफ दी वर्ल्ड कहते हैं ना । यहाँ माया के राज्य में 7 वन्डर्स गाये जाते हैं । वह है स्थूल वन्डर्स । बाप समझाते हैं यह माया के वन्डर्स हैं, जिसमें दु:ख है । राम, बाप का वन्डर है स्वर्ग । वही वन्डर ऑफ वर्ल्ड है । भारत स्वर्ग था, हीरे जैसा था । वहाँ देवी-देवताओं का राज्य था । यह भारतवासी सब भूल गये हैं । भल देवताओं के आगे माथा टेकते हैं, पूजा करते हैं परन्तु जिनकी पूजा करते हैं, उन्हों की बॉयोग्राफी को जानना चाहिए ना । यह बेहद का बाप बैठ समझाते हैं, यहाँ तुम आये हो पारलौकिक बाप के पास । पारलौकिक बाप है स्वर्ग स्थापन करने वाला । यह कार्य कोई मनुष्य नहीं कर सकते । इनको (ब्रह्मा को) भी बाप कहते हैं - हे कृष्ण की पुरानी तमोप्रधान आत्मा तुम अपने जन्मों को नहीं जानती हो । तुम कृष्ण थे तो सतोप्रधान थे फिर 84 जन्म लेते अभी तुम तमोप्रधान बने हो, भिन्न-भिन्न नाम तुम्हारे पड़े हैं । अभी तुम्हारा नाम ब्रह्मा रखा है । ब्रह्मा सो विष्णु वा श्रीकृष्ण बनेगा । बात एक ही है - ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा । ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण सो फिर देवता बनते हैं । फिर वही देवी-देवता फिर शूद्र बनते हैं । अभी तुम ब्राह्मण बने हो । अभी बाप बैठ तुम बच्चों को समझाते हैं, यह है भगवानुवाच । तुम तो हो गये स्टूडेंट । तो तुमको कितनी खुशी होनी चाहिए । परन्तु इतनी खुशी रहती नहीं है । धनवान धन के नशे में बहुत खुश रहते हैं ना । यहाँ भगवान के बच्चे बने हो तो भी इतना खुशी में नहीं रहते । समझते नहीं, पत्थरबुद्धि हैं ना । तकदीर में नहीं है तो ज्ञान की धारणा कर नहीं सकते । अब तुमको बाप मन्दिर लायक बना रहे हैं । परन्त माया का संग भी कम नहीं है । गाया हुआ हैं संग तारे, कुसंग बोरे । बाप का संग तमको मुक्ति-जीवनमुक्ति में ले जाता है फिर रावण का कुसंग तुमको दुर्गति में ले जाता है । 5 विकारों का संग हो जाता है ना । भक्ति में नाम कहते हैं सतसंग परन्तु सीढ़ी तो नीचे उतरते रहते हैं, सीढ़ी से कोई धक्का खायेगा तो जरूर नीचे ही गिरेगा ना! सर्व का सद्गति दाता एक बाप ही है । कोई भी होंगे भगवान का इशारा ऊपर में करेंगे । अब बाप बिगर बच्चों को परिचय कौन दे? बाप ही बच्चों को अपना परिचय देते हैं । उनको अपना बनाए सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त का नॉलेज देते हैं । बाप कहते हैं मैं आकर तमको आस्तिक भी बनाता हूँ, त्रिकालदर्शी भी बनाता हूँ । यह ड्रामा है, यह कोई साधू-सन्त आदि नहीं जानते । वह होतेँ हैं हद के ड्रामा, यह है बेहद का । इस बेहद के ड्रामा में हम सुख भी बहुत देखते हैं तो दुःख भी बहुत देखते हैं । इस ड्रामा में कृष्ण और क्रिस्चियन का भी कैसा हिसाब-किताब है । उन्होंने भारत को लड़ाए राजाई ली । अभी तुम लड़ते नहीं हो । वह आपस में लड़ते हैं, राजाई तुमको मिल जाती है । यह ड्रामा में नूंध है । यह बातें कोई भी जानते नहीं हैं । ज्ञान देने वाला ज्ञान का सागर एक ही बाप है, जो सर्व की सद्गति करते हैं । भारत में देवी-देवताओं का राज्य था तो सद्गति थी । बाकी सब आत्मायें मुक्तिधाम में थी । भारत सोने का था । तुम ही राज्य करते थे । सतयुग में सूर्यवंशी राज्य था । अभी तुम सत्य नारायण की कथा सुनते हो । नर से नारायण बनने की यह कथा है । यह भी बड़े अक्षरों में लिख दो-सच्ची गीता से भारत सचखण्ड, वर्थ पाउण्ड बनता है । बाप आकर सच्ची गीता सुनाते हैं । सहज राजयोग सिखलाते हैं तो वर्थ पाउण्ड बन जाते हैं । बाबा टोटके तो बहुत समझाते हैं, परन्तु बच्चे देह- अभिमान के कारण भूल जाते हैं । देही- अभिमानी बनें तो धारणा भी हो । देह- अभिमान के कारण धारणा होती नहीं ।

बाप समझाते हैं मैं थोड़ेही कहता हूँ कि मैं सर्वव्यापी हूँ । मुझे तो कहते भी हो तुम मात-पिता.... तो इसका अर्थ क्या? तुम्हरी कृपा से सुख घनेरे । अभी तो दुःख हैं । यह गायन किस समय का है - यह भी समझते नहीं हैं । जैसे पक्षी चूँ-चूँ करते रहते हैं, अर्थ कुछ नहीं । वैसे यह भी चूँ-चूँ करते रहते, अर्थ कुछ नहीं । बाप बैठ समझाते हैं, यह सब हैं अनराइटियस । किसने अनराइटियस बनाया है? रावण ने । भारत सचखण्ड था तो सब सच बोलते थे, चोरी ठगी आदि कुछ भी नहीं था । यहाँ कितनी चोरी आदि करते हैं । दुनिया में तो ठगी ही ठगी है । इसको कहा ही जाता है - पाप की दुनिया, दुःख की दुनिया । सतयुग को कहा जाता है सुख की दुनिया । यह है विशश, वेश्यालय, सतयुग है शिवालय । बाप कितना अच्छी रीति बैठ समझाते हैं । नाम भी कितना अच्छा है - ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व-विद्यालय । अब बाप आकर समझदार बनाते हैं । कहते हैं इन विकारों को जीतो तो तुम जगत जीत बनेंगे । यह काम ही महाशत्रु है । बच्चे बुलाते भी इसलिए हैं कि हमको आकर गॉड-गॉडेज (देवी देवता) बनाओ ।

बाप की यथार्थ महिमा तुम बच्चे ही जानते हो । मनुष्य तो न बाप को जानते, न बाप की महिमा को जानते हैं । तुम जानते हो वह प्यार का सागर है । बाप तुम बच्चों को इतना ज्ञान सुनाते हैं, यही उनका प्यार है । टीचर स्टूडेंट को पढ़ाते हैं तो स्टूडेंट क्या से क्या बन जाते हैं । तुम बच्चों को भी बाप जैसा प्यार का सागर बनना है, प्यार से कोई को भी समझाना है । बाप कहते हैं तुम भी एक-दो को प्यार करो । नम्बरवन प्यार है-बाप का परिचय दो । तुम गुप्त दान करते हो । एक-दो के लिए घृणा भी नहीं रहनी चाहिए । नहीं तो तुमको भी डंडे खाने पड़ेंगे । किसी का तिरस्कार करेंगे तो डन्डे खायेंगे । कभी भी किसी से नफरत नहीं रखो, तिरस्कार नहीं करो । देह- अभिमान में आने से ही पतित बने हो । बाप देही- अभिमानी बनाते हैं तो तुम पावन बनते हो । सबको यही समझाओ कि अब 84 का चक्र पूरा हुआ है । जो सूर्यवंशी महाराजा-महारानी थे वही फिर 84 जन्म लेते उतरते-उतरते अब आकर पट पड़े हैं । अब बाप फिर से महाराजा-महारानी बना रहे हैं । बाप सिर्फ कहते हैं मामेकम याद करो तो पावन बन जायेंगे । तुम बच्चों को रहमदिल बन सारा दिन सर्विस के ख्यालात चलाने चाहिए । बाप डायरेक्शन देते रहते हैं-मीठे बच्चे, रहमदिल बन जो बिचारी दु:खी आत्मायें हैं, उन दुःखी आत्माओं को सुखी बनाओ । उन्हें पत्र लिखना चाहिए बहुत शार्ट में । बाप कहते हैं मुझे याद करो और वर्से को याद करो । एक शिवबाबा की ही महिमा है । मनुष्यों को बाप की महिमा का भी पता नहीं है । हिन्दी में भी चिट्ठी लिख सकते हो । सर्विस करने का भी बच्चों को हौसला चाहिए । बहुत हैं जो आपघात करने बैठ जाते हैं, उन्हें भी तुम समझा सकते हो कि जीव-घात महापाप है । अभी तुम बच्चों को श्रीमत देने वाला है शिवबाबा । वह है श्री श्री शिवबाबा । तुमको बनाते हैं श्री लक्ष्मी, श्री नारायण । श्री श्री तो वह एक ही है । वह कभी चक्र में आते नहीं हैं । बाकी तुमको श्री का टाइटिल मिलता है । आजकल तो सबको श्री का टाइटिल देते रहते हैं । कहाँ वह निर्विकारी, कहाँ यह विकारी - रात-दिन का फर्क है । बाप रोज समझाते रहते हैं-एक तो देही- अभिमानी बनो और सबको पैगाम पहुँचाओ । पैगम्बर के बच्चे तुम भी हो । सर्व का सद्गति दाता एक ही है । बाकी धर्म स्थापक को गुरू थोड़ेही कहेंगे । सद्गति करने वाला है ही एक । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. किसी से भी घृणा वा नफरत नहीं करनी है । रहमदिल बन दुःखी आत्माओं को सुखी बनाने की सेवा करनी है । बाप समान मास्टर प्यार का सागर बनना है ।

2. भगवान के हम बच्चे हैंइसी नशे वा खुशी में रहना है । कभी माया के उल्टे संग में नहीं जाना है । देही- अभिमानी बनकर ज्ञान की धारणा करनी है ।

वरदान:-

सर्व प्राप्तियों के अनुभव द्वारा पावरफुल बनने वाले सदा सफलतामूर्त भव !   

जो सर्व प्राप्तियों के अनुभवी मूर्त हैं वही पावरफुल हैं, ऐसी पावरफुल सर्व प्राप्तियों की अनुभवी आत्मायें ही सफलतामूर्त बन सकती हैं क्योंकि अभी सर्व आत्मायें ढूंढेगी कि सुख-शान्ति के मास्टर दाता कहाँ हैं । तो जब आपके पास सर्वशक्तियों का स्टॉक होगा तब तो सबको सन्तुष्ट कर सकेंगे । जैसे विदेश में एक ही स्टोर से सब चीजें मिल जाती हैं ऐसे आपको भी बनना है । ऐसे नहीं सहनशक्ति हो, सामना करने की नहीं । सर्वशक्तियों का स्टॉक चाहिए तब सफलतामूर्त बन सकेंगे ।

स्लोगन:- 

मर्यादायें ही ब्राह्मण जीवन के कदम हैं, कदम पर कदम रखना माना मंजिल के समीप पहुँचना ।   

 

ओम् शान्ति |