31-08-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “अव्यक्त-बापदादा”
रिवाइज:10-12-78
मधुबन
“विस्तार
को न देख सार अर्थात् बिन्दु को देखो”
मधुबन निवासी अर्थात् मधुरता के सागर में सदा लहराने वाले
बाप-दादा की विशेष कर्मभूमि,
चरित्र भूमि,
मधुर
मिलन- भूमि या महान पुण्य भूमि,
ऐसी
भूमि के सदा निवासी कितनी महान आत्माएं हैं?
निराकार बाप को भी इस साकार भूमि से विशेष स्नेह है,
ऐसे
भूमि के निवासी स्वयं को भी सदा ऐसे अनुभव करते हैं?
मधुबन अर्थात् मधुर भूमि । वृत्ति की भी मधुरता,
वाणी
की भी मधुरता और हर कर्म में भी सदा मधुरता । जैसी भूमि वैसी
ही भूमि में रहने वाली महान आत्मायें । मधुबन से जो आत्माएं
अनुभव करके जाती हैं,
वह
भी क्या कहती हैं?
मधुबन है संगमयुगी स्वर्ग अर्थात् स्वर्गभूमि में रहने वाले ।
अब भी स्वर्ग और भविष्य में भी स्वर्ग,
तो
डबल स्वर्ग के अधिकारी कितने विशेष हुए
|
बाप-दादा आज खास मधुबन निवासियों से मिलने आये हैं । बाबा
पूछते हैं स्वर्ग की विशेषता अथवा स्वर्ग का विशेष गायन क्या
है?
स्वर्ग का विशेष गायन है
''
सदा
सम्पन्न अर्थात् अप्राप्त नहीं कोई वस्तु स्वर्ग के खजाने में
।
''
चाहे
संगमयुगी स्वर्ग या भविष्य का स्वर्ग,
दोनों की यह एक ही विशेषता गाई हुई है । तो मधुबन निवासी
अर्थात् संगमयुगी स्वर्ग निवासी ऐसी सम्पन्न स्थिति का अनुभव
करते हो,
जिसमें महसूस हो कि हम सदा तृप्त आत्माएं हैं?
जैसे
इच्छा मात्रम् अविद्या के संस्कार भविष्य स्वर्ग में नेचुरल
होंगे वैसे मधुबन निवासियों के यह नेचुरल संस्कार हैं?
स्वर्गवासी अर्थात् इन सब बातों में नेचुरल संस्कार स्वरूप हो?
कोई
भी पूछते हैं आप कहाँ के रहवासी हो?
बड़ी
फलक से,
खुशी
से कहते हो ना हम मधुबन निवासी हैं?
मधुबन वासी की जैसे छाप लगी हुई है । साथ-साथ जैसा स्थान वैसी
स्थिति की छाप भी होगी ना । जैसे कोल्ड स्टोर में जायेंगे तो
जैसा स्थान वैसी स्थिति आटोमेटिकली होगी ना । तो मधुबन की जो
महिमा है ऐसे संस्कार बने हैं?
क्योंकि साकार रूप में लक्ष्य स्वरूप सबके आगे मधुबन है,
कापी
सब मधुबन को करते हैं । किसी की भी स्थिति में हलचल होती है तो
अचलघर मधुबन याद आता है कि मधुबन अचलघर में जाने से अचल हो
जायेंगे । ऐसी भावना से,
शुभ
कामना से इस पुण्य भूमि पर सभी आते हैं । जब अनेक आत्माओं की
हलचल का साधन मिलने का स्थान अचलघर मधुबन है तो मघुबन में रहने
वाले भी सदा अचल होंगे ना । ऐसी स्टेज अनेक आत्माओं के लिए
मार्ग-दर्शन करने वाली होगी क्योंकि मधुबन है लाईट हाउस । सर्व
सेवाकेन्द्रों को सहयोग देने वाले मधुबन निवासी है । सदा
संकल्प वाणी अथवा कर्म से एक-दो के सहयोगी हैं तो साथियों के
भी सहयोगी होंगे ना । सर्व बच्चों को एक वर्ष मिला है रिजल्ट
निकालने के लिए । तो एक वर्ष में अब क्या परिवर्तन लाया है?
जिसको दूसरे सुनने वाले स्वयं भी परिवर्तन हो जाएं,
जैसे
कई बार देखा होगा कोई-कोई आत्मायें जब अपना सच्ची दिल से,
उमंग
से,
बाप
के स्नेह से अनुभव सुनाती हैं तो अनुभव सुनते-सुनते भी अनेक
आत्माएं परिवर्तित हो जाती हैं । एक का परिवर्तन अनेक आत्माओं
के परिवर्तन का साधन बन जाता है । तो ऐसा परिवर्तन हुआ है,
जो
अनेकों को एक एग्जेम्पुल रूप में हो?
एक
वर्ष में ऐसे कोई वण्डरफुल अनुभव हुआ है?
किस-किसने हाईजम्प दिया?
किसने लिफ्ट की गिफ्ट ली?
जैसे
आजकल टी .वी. में चारों ओर एक स्थान का चित्र स्पष्ट दिखाई
देता है,
तो
मधुबन भी टीवी. स्टेशन है । चारों ओर टी .वी. के सेट लगे हुए
हैं । जैसे आजकल साइन्स के साधनों द्वारा संकल्पों की गति या
मन्सा स्थिति को चेक कर सकते हैं,
वैसे
मधुबन निवासियों के संकल्पों की गति या मानसिक स्थिति चारों ओर
फैलती है इसलिए हर संकल्प पर भी अटेंशन हो,
इसमें अलबेलापन न हो । मधुबन निवासी मधुबन में बैठे हुए भी
किसी प्रकार के विशेष संकल्प द्वारा वायब्रेशन फैलाने चाहे तो
इस एक स्थान पर बैठे हुए भी चारों ओर फैला सकते हैं । जैसे
स्थूल चीज़ की खुशबू चारों ओर आटोमेटिकली फैल जाती है वैसे यह
वायब्रेशन संकल्प के द्वारा चारों ओर स्वतः फैल जाएं । मधुबन
निवासियों की यह विशेष सेवा है । जैसे मधुबन में विशेष भट्ठी
करते हो तो वायब्रेशन चारों ओर पहुँचते हैं ना । चाहे पत्रों
द्वारा समाचार न भी जाए लेकिन सूक्ष्म वायब्रेशन मधुबन के बहुत
सहज चारों ओर फैल सकते हैं
|
कारोबार है कर्म द्वारा कर्मणा सेवा लेकिन उसके साथ-साथ मन्सा
सेवा की भी जिम्मेवारी है?
बाप-दादा तो वर्ष की रिजल्ट देखने आये हैं ना । जो सदा पास
रहते हैं वह पास विद आनर कहाँ तक बने हैं?
जो
महान आत्माओं के साथ रहते हैं,
साकार में भी समीप हैं और स्थान भी महान है,
ऐसी
आत्माओं की प्रालब्ध क्या बनती है?
शास्त्रों में भी मधुबन की महिमा विशेष गाई हुई है । तो मधुबन
निवासी हर बात में विशेष आत्माएं हर समय कोई विशेषता दिखाने
वाली हो,
जो
भी अतृप्त आवें वह यह अनुभव करें कि मधुबन निवासियों में यह
विशेषता थी । मधुबन स्वर्ग में हर आत्मा सदा तृप्त आत्मा
सम्पन्न मूर्त थी ।
इसका
आधार है कि सदा एक लक्ष्य हो कि हमें दाता का बच्चा बन सर्व
आत्माओं को देना है न कि लेना है । यह करें तो मैं करुँ,
नहीं
। हरेक दातापन की भावना रखे तो सब देने वाले अर्थात् सम्पन्न
आत्मा हो जायेंगे । सम्पन्न नहीं होंगे तो दे भी नहीं सकेंगे ।
तो जो सम्पन्न आत्मा होगी,
वह
सदा तृप्त आत्मा जरूर होगी । मैं देने वाले दाता का बच्चा हूँ,
देना
ही लेना है । जितना देना उतना लेना है । प्रैक्टिकल में लेने
वाला नहीं लेकिन देने वाला बनना है । दातापन की भावना सदा
निर्विघ्न इच्छा मात्रम् अविद्या की स्थिति का अनुभव कराती है
। सदा एक लक्ष्य की तरफ ही नजर रहे । वह लक्ष्य है बिन्दू । एक
लक्ष्य अर्थात् बिन्दी की तरफ सदा देखने वाले । अन्य कोई भी
बातों को देखते हुए भी नहीं देखें । नजर एक बिन्दू की तरफ ही
हो । जैसे यादगार रूप में भी दिखाया है कि मछली के तरफ नजर
नहीं थी लेकिन आंख के भी बिन्दू में थी । तो मछली है विस्तार
और सार है बिन्दू । तो विस्तार को नहीं देखा लेकिन सार अर्थात्
एक बिन्दू को देखा । इसी प्रकार अगर कोई भी बातों के विस्तार
को देखते तो विघ्नों में आते और सार अर्थात् एक बिन्दु रूप
स्थिति बन जाती तो फुलस्टाप अर्थात् बिन्दु लग जाती । कर्म में
भी फुलस्टाप अर्थात् बिन्दु । स्मृति में भी बिन्दु अर्थात्
बीजरूप स्टेज हो जाती । यह विशेष अभ्यास करना है । विस्तार को
देखते भी न देखें,
सुनते हुए भी न सुनें - यह प्रैक्टिस अभी से चाहिए,
तब
अन्त के समय में जब चारों ओर हलचल की बड़ी दु :खदायी आवाज होगी,
अति
भयानक दृश्य होंगे,
उस
में पास हो सकेंगे । अभी की बातें तो उसकी भेंट में कुछ नहीं
हैं । अगर अभी से ही देखते हुए न देखना,
सुनते हुए न सुनना - यह अभ्यास नहीं होगा तो अन्त में उस
विकराल दृश्य को देखते एक घड़ी के पेपर में सदा के लिए फेल
मार्क्स मिल जायेगी इसलिए यह भी विशेष अभ्यास चाहिए । ऐसी
स्टेज हो जिसमें साकार शरीर भी आकारी रूप में अनुभव हो । जैसे
आकार रूप में देखा,
साकार शरीर भी आकारी फरिश्ता रूप अनुभव किया ना । चलते-फिरते
कार्य करते आकारी फरिश्ता अनुभव करते थे । शरीर तो वही था ना,
लेकिन स्थूल शरीर का भान निकल जाने कारण स्थूल शरीर होते भी
आकारी रूप अनुभव करते थे । तो ऐसा अभ्यास आप सबका हो ।
कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म होता रहे लेकिन मन्सा शक्ति द्वारा
वायुमण्डल शक्तिशाली,
स्नेह सम्पन्न,
सर्व
के सहयोग के वायब्रेशन का फैला हुआ हो । जिस भी स्थान पर जाए
तो यह फरिश्ता रूप दिखाई दे । कर्म कर रहे हैं लेकिन एक ही समय
पर कर्म और मन्सा दोनों सेवा का बैलेन्स हो । जैसे शुरू-शुरू
में यह अभ्यास कराया था,
कर्म
भल बहुत साधारण हो लेकिन स्थिति ऐसी महान हो जो साधारण काम
होते हुए भी साक्षात्कार मूर्त दिखाई दे । कोई भी स्थूल कार्य
धोबीघाट या सफाई आदि का कर रहे हैं,
भण्डारे का कार्य कर रहे हैं लेकिन स्थिति ऐसी महान हो । ऐसा
भी समय प्रैक्टिकल में आयेगा जो देखने वाले यही वर्णन करेंगे
कि इतनी महान आत्मायें फरिश्ता रूप और कार्य क्या कर रही हैं
|
कार्य साधारण और स्थिति अति श्रेष्ठ । जैसे सतयुगी शहजादियों
की आत्माएं जब आती थी तो वह भविष्य के रूप प्रैक्टिकल में
देखते हुए आश्चर्य खाती थीं ना कि इतने बड़े महाराजे और कार्य
क्या कर रहे हैं । विश्व महाराजा और भोजन बना रहे हैं । वैसे
ही आने वाली आत्माएं यह वर्णन करेंगी कि हमारे इतने श्रेष्ठ
पूज्य ईष्ट देव और यह कार्य कर रहे हैं?
चलते-फिरते ईष्टदेव या देवी का साक्षात्कार स्पष्ट दिखाई दे ।
अन्त में पूज्य स्वरूप प्रत्यक्ष देखने लगेंगे,
फरिश्ता रूप प्रत्यक्ष दिखाई देने लगेगा । जैसे कल्प पहले का
भी गायन है अर्जुन का - साधारण सखा रूप भी देखा लेकिन वास्तविक
रूप का साक्षात्कार करने के बाद वर्णन किया कि आप क्या हो
|
इतना
श्रेष्ठ और वह साधारण सखा रूप
|
इसी
रीति आपके भी साक्षात्कार होंगे चलते-फिरते । दिव्य दृष्टि में
जाकर देखे वह बात और है । जैसे शुरू में चलते-फिरते देखते रहते
थे । यह ध्यान में जाकर देखने की बात नहीं । जैसे एक साकार बाप
का आदि में अनुभव किया वैसे अन्त में अभी सबका साक्षात्कार
होगा । यह साधारण रूप गायब हो जायेगा,
फरिश्ता रूप या पूज्य रूप देखेंगे । जैसे शुरू में आकारी
ब्रह्मा और श्रीकृष्ण का साथ-साथ साक्षात्कार होता था । वैसे
अभी भी यह साधारण रूप देखते हुए भी दिखाई न दे । आपका पूज्य
देवी या देवता रूप या फरिश्ता रूप देखें । लेकिन यह तब होगा जब
आप सबका पुरुषार्थ देखते हुए न देखने का हो,
तब
ही अनेक आत्माओं को भी आप महान आत्माओं का यह साधारण रूप देखते
हुए भी नहीं दिखाई देगा । आँख खुले-खुले एक सेकण्ड में
साक्षात्कार होगा । ऐसी स्टेज बनाने के लिए विशेष अभ्यास बताया
कि देखते हुए भी न देखो,
सुनते हुए भी न सुनो । एक ही बात सुनो और एक बिन्दू को ही देखो
। विस्तार को न देख एक सार को देखो । विस्तार को न सुनते हुए
सदा सार को ही सुनो,
तब
यह मधुबन जादू की नगरी बन जायेगा । तो सुना मधुबन का महत्व
अर्थात् मधुबन निवासियों का महत्त्व । अच्छा ।
मधुबन की बहिनों से : -
मधुबन की शक्ति सेना अर्थात् विशेष आत्माओं की सेना । हरेक
अपनी विशेषता को अच्छी तरह से जानते हो
?
विशेषता के कारण ही विशेष भूमि के निवासी बने हैं,
यह
खुशी रहती है
?
पिछला खाता तो हरेक का अपना- अपना है जो चुक्तू भी होता रहता
है लेकिन साथ-साथ ड्रामा अनुसार कोई न कोई विशेषता भी है । जिस
कारण विशेष पार्ट मिला है । सदा पुण्य भूमि और श्रेष्ठ आत्माओं
के संग का विशेष पार्ट,
यह
कम भाग्य नहीं है । जड़ चित्रों के मन्दिर के पुजारी भी अपने को
कितना महान समझते हैं । हैं पुजारी,
लेकिन नशा कितना रहता
|
क्योंकि समझते हैं मूर्ति के समीप सम्बन्ध वाले हैं । तो जड़
चित्रों के पुजारी भी इतना नशा रखते,
यहाँ
तो पुजारी की बात नहीं । यहाँ तो सम्पर्क में रहने वाले संग
में रहने वाले संगी-साथियों को कितना नशा और खुशी होनी चाहिए ।
ईश्वरीय परिवार में आई हुई आत्मा में कोई विशेषता न हो,
यह
हो नहीं सकता । तो अपनी विशेषता को जान उसको कर्म में लगाओ ।
जो भी गुण अथवा विशेषता हो चाहे कर्मणा का गुण हो,
चाहे
मधुरता का गुण हो,
स्नेह का हो उसको कार्य में लगाओ । जैसे लोहा पारस से लग पारस
बन जाता है वैसे एक गुण या विशेषता सेवा में लगाने से सेवा का
फल एक का लाख गुणा मिलने से वह एक विशेषता अनेक समय का फल देने
के लायक बन जाती । जैसे एक बीज डालने से कितने फल निकलते वैसे
एक भी विशेषता कर्म में लगाना अर्थात् धरनी में बीज डालना है ।
तो समझा कितने खुशनसीब हो?
ब्राह्मण परिवार में जन्म हुआ है तो जन्म के साथ कोई न कोई
विशेषता की तकदीर साथ लेकर ही आये हैं । सिर्फ अन्तर यह हो
जाता कि उसको कार्य में कहाँ तक लगाते हैं । जन्म का भाग्य है
लेकिन भाग्य को कर्म या सेवा में लगाने से अनेक समय के भाग्य
का फल निकालना,
बीज
बोने का यह तरीका आना चाहिए । फल तो अवश्य निकलेगा । बीज बोना
अर्थात् विशेषता रूपी बीज को सेवा में लगाना । यहाँ तो सब सदा
भाग्य के तख्तनशीन हैं । जिस भाग्य के लिये कल्प पहले की
यादगार में भी अब तक एक सेकण्ड भी समीप रहना महान भाग्य समझते
हैं । तो जो प्रैक्टिकल में हैं उन्हों की खुशी,
उन्हों का भाग्य कितना श्रेष्ठ है । श्रेष्ठता को सामने रखने
से व्यर्थ बातें समाप्त हो जाती हैं । अच्छा ।
वरदान:-
माया
के विकराल रूप के खेल को साक्षी होकर देखने वाले मायाजीत भव
!
माया
को वेलकम करने वाले उसके विकराल रूप को देखकर घबराते नहीं ।
साक्षी होकर खेल देखने से मजा आता है क्योंकि माया का बाहर से
शेर का रूप है लेकिन उसमें ताकत बिल्ली जितनी भी नहीं है ।
सिर्फ आप घबराकर उसे बड़ा बना देते हो - क्या करूं...
कैसे होगा…
लेकिन यही पाठ याद रखो जो हो रहा है वो अच्छा और जो होने वाला
है वो और अच्छा । साक्षी होकर खेल देखो तो मायाजीत बन जायेंगे
।
स्लोगन:-
जो
सहनशील हैं वह किसी के भाव-स्वभाव में जलते नहीं,
व्यर्थ
बातों को एक कान से सुन दूसरे से निकाल देते हैं ।
ओम्
शान्ति
|