23-01-14  प्रातः मुरली  ओम् शान्ति   “बापदादा”   मधुबन


मीठे बच्चे बाप की याद में रह सदा हर्षित रहो | याद में रहने वाले बहुत रमणीक और मीठे होंगे | ख़ुशी में रह सर्विस करेंगे |   

प्रश्न:-   
ज्ञान की मस्ती के साथ-साथ कौन सी चेकिंग करना बहुत जरुरी है?

उत्तर:-
ज्ञान की मस्ती तो रहती है लेकिन चेक करो देही-अभिमानी कितना बने हैं? ज्ञान तो बहुत सहज है लेकिन योग में माया विघ्न डालती है | गृहस्थ व्यवहार में अनासक्त हो रहना है | ऐसा न हो माया चूही अन्दर ही अन्दर काटती रहे और पता भी न पड़े | अपनी नब्ज़ आपेही देखते रहो कि बाबा के साथ हमारा हड्डी प्यार है? कितना समय हम याद में रहते हैं?

गीत
:-
 
जले क्यों न परवाना....    
 

ओम् शान्ति |
मीठे-मीठे बच्चों ने गीत की लाइन सुनी | जबकि बाप इतना जलवा दिखाते हैं, तुम इतने हसीन बन जाते हो तो क्यों न ऐसे बाप का बन जाना चाहिए जो बाप श्याम से सुन्दर बनाते हैं | बच्चे समझते हैं हम सांवरे से गोरे बनते हैं | एक की बात नहीं है | वो लोग कृष्ण को श्याम-सुन्दर कह देते हैं | चित्र भी ऐसा बनाते हैं | कोई सुन्दर तो कोई श्याम | मनुष्य समझते नहीं कि यह हो कैसे सकता है | सतयुग का प्रिन्स कृष्ण सांवरा हो न सके | कृष्ण के लिए तो सब कहते हैं कृष्ण जैसा बच्चा मिले, पति मिले | फिर वह श्याम कैसे हो सकता है | कुछ भी समझते नहीं हैं | कृष्ण को सांवरा (श्याम) क्यों बनाया है, कारण चाहिए | यह जो दिखाते हैं सर्प पर डांस किया – ऐसी बात तो हो न सके | शास्त्रों में ऐसी-ऐसी बातें सुनकर कह देते हैं | वास्तव में ऐसी कोई बातें हैं नहीं | जैसे चित्रों में दिखाते हैं शेषनाग की शैया पर नारायण बैठा है, ऐसी कोई सर्प की शैया आदि होती नहीं | इतने सैकड़ों मुख होते हैं क्या? कैसे-कैसे चित्र बनाये हैं | बाप समझाते हैं इनमें कुछ भी रखा नहीं है, यह सब भक्ति मार्ग के चित्र हैं | परन्तु यह भी ड्रामा में नूँध है | शुरू से लेकर इस समय तक जो नाटक शूट हुआ है उनको फिर रिपीट करना है | यह सिर्फ़ समझाया जाता है कि भक्ति में क्या-क्या करते हैं | कितना खर्च करते हैं | कैसे कैसे चित्र आदि बनाते हैं | आगे जब यह सब देखते थे तो इतना वन्डर नहीं खाते थे | अब जब बाप ने समझाया है तो बुद्धि में आता है बरोबर यह सब भक्ति मार्ग की बातें हैं | भक्ति में जो कुछ होता है वह फिर भी ज़रूर होगा | सिवाए तुम्हारे और कोई भी यह समझ न सके | यह तो जानते हो ड्रामा में जो पहले से नूँध है, वही होता रहता है | अनेक धर्मों का विनाश एक धर्म की स्थापना होती है | इसमें बड़ा कल्याण है | अभी तुम यह प्रार्थना आदि कुछ नहीं करते हो | वह सब करते हैं भगवान से फल लेने के लिए | फल है जीवनमुक्ति, तो यह सब समझाया जाता है | यहाँ है प्रजा का प्रजा पर राज्य | गीता में है भारतवासी कौरव पाण्डव क्या करत भये | बरोबर यादवों ने मूसल निकाले | अपने कुल का विनाश किया | यह सब आपस में दुश्मन हैं | तुम न्यूज़ आदि सुनते नहीं हो, जो सुनते हैं वह अच्छी तरह से समझ सकते हैं | दिनप्रतिदिन अन्दर खिटपिट बहुत है | हैं तो सब क्रिश्चियन परन्तु अन्दर खिटपिट बहुत है, घर बैठे ही एक दो को उड़ा देंगे | तुम राजयोग सीख रहे हो तो राजाई करने के लिए पुरानी दुनिया की सफाई ज़रूर चाहिए | फिर नई दुनिया में सब कुछ नया होगा | 5 तत्व भी वहाँ सतोप्रधान होंगे | समुद्र की ताकत नहीं जो उछलकर नुकसान कर दे | अभी तो 5 तत्व कितना नुकसान करते हैं | वहाँ सारी प्रकृति दासी हो जायेगी इसलिए दुःख की कोई बात नहीं | यह भी बना बनाया ड्रामा का खेल है | स्वर्ग कहा जाता है सतयुग को, क्रिश्चियन लोग भी कहते हैं पहले-पहले हेविन था | भारत अविनाशी खण्ड है | सिर्फ़ उन्हों को पता नहीं कि हमको लिबरेट करने वाला बाप भारत में आता है | शिव जयन्ती भी मनाते हैं तो भी समझ नहीं सकते हैं | अभी तुम समझाते हो कि भारत में शिव जयन्ती मनाई जाती है, ज़रूर शिवबाबा ने भारत में आकर हेविन बनाया है, अब फिर बना रहे हैं | जो प्रजा बनने वाले होंगे उन्हों की बुद्धि में कुछ भी बैठेगा नहीं | जो राजधानी वाले होंगे वह समझेंगे बरोबर हम शिवबाबा के बच्चे हैं | प्रजापिता ब्रह्मा भी है | लिबरेटर, ज्ञान का सागर खुद बाबा है | ब्रह्मा को नहीं कहेंगे | ब्रह्मा भी उनसे लिबरेट होता है | लिबरेट सबको एक बाप ही करते हैं क्योंकि सब तमोप्रधान हैं | ऐसे अन्दर में विचार सागर मंथन चलना चाहिए | हम ऐसी मुरली चलायें जो मनुष्य झट समझ जायें | बच्चे नम्बरवार तो हैं ही | यह है नॉलेज, इनकी रोज़ स्टडी करनी चाहिए |
 डर के मारे पढ़ाई न पढ़ना यह तो ठीक नहीं है | फिर कहेंगे कर्मबन्धन है | देखो, शुरू में कितने छूटकर आये फिर कई चले भी गये | सिन्ध में बहुत बच्चियाँ आईं फिर हंगामे के कारण कितने दुश्मन बन पड़े | पहले उन्हों को ज्ञान बहुत अच्छा लगता है | समझते थे इनको डॉट (भगवान के देन) मिली हुई है | अब भी ऐसे समझते हैं कि कोई शक्ति है, यह नहीं समझते कि परमपिता की प्रवेशता है | आजकल रिद्धि सिद्धि की ताकत तो बहुतों में है | गीता उठाकर सुनाते रहते हैं | बाप कहते हैं यह सब भक्ति मार्ग की पुस्तके हैं | ज्ञान का सागर तो मैं हूँ | मुझे ही भक्ति मार्ग में सब याद करते हैं | ड्रामा प्लैन अनुसार यह भी ड्रामा में नूँध है | साक्षात्कार भी होते हैं | भक्ति मार्ग वालों को भी राज़ी करते हैं | ज्ञान नहीं उठाते तो उनके लिए भक्ति भी अच्छी फिर भी मनुष्य सुधरते तो हैं ना | चोरी आदि नहीं करेंगे | भगवान का भजन करने वालों के लिए कभी भी उल्टी बातें नहीं करेंगे | फिर भी भक्त हैं | आजकल तो भल भक्त हैं फिर भी बहुत देवाला मार देते हैं | ऐसे नहीं कि शिवबाबा का बच्चा बना तो देवाला नहीं मारेंगे | पास्ट का कर्म है तो देवाला मारते हैं | ज्ञान में आने से भी देवाला मार देते हैं, इसमें ज्ञान का कोई तैलुक नहीं | 

तुम बच्चे अब सर्विस पर लगे हुए हो | समझते हो श्रीमत पर सर्विस में लगने से फल पायेंगे | हमको सब कुछ वहाँ ट्रान्सफर करना है | बैग बैगेज सब कुछ ट्रान्सफर कर देना है | बाबा को शुरू में बहुत मज़ा आया था | वहाँ से जब निकला तो गीत बनाया – अल्फ को मिला अल्लाह, बे को मिली बादशाही....श्रीकृष्ण का, चतुर्भुज का साक्षात्कार हुआ समझा द्वारिका का बादशाह बनूँगा | ऐसा नशा चढ़ता था | अब यह विनाशी पैसा क्या करेंगे | तो तुम बच्चों को भी ख़ुशी होनी चाहिए | हमको बाबा स्वर्ग की बादशाही देते हैं | परन्तु बच्चे इतना पुरुषार्थ ही नहीं करते हैं | चलते-चलते गिर पड़ते हैं | अच्छे-अच्छे बच्चे, बाबा को निमन्त्रण देने वाले कभी बाबा को याद नहीं करते | बाबा के पास पत्र आना चाहिए कि बाबा हम बहुत खुश हैं | आपकी याद में मस्त रहते हैं | बहुत हैं जो कभी याद नहीं करते | याद की यात्रा से ही ख़ुशी ज़ोर से चढ़ेगी | ज्ञान में भल कितना भी मस्त रहते हैं परन्तु देह-अभिमान कितना है | देही-अभिमानी-पना कहाँ है? ज्ञान तो बड़ा इज़ी है | योग में ही माया विघ्न डालती है | गृहस्थ व्यवहार में भी अनासक्त हो रहना है | ऐसा न हो जो माया अंगूरी लगा दे | माया काटती ऐसे है जैसे चूहा | चूहा ऐसे काटता है जो भल खून निकल आये पर पता न पड़े | बच्चों को पता नहीं पड़ता कि देह-अभिमान आने से कितना नुकसान होता है | ऊँच पद पा नहीं सकेंगे | बाप से पूरा वर्सा लेना चाहिए | मम्मा बाबा मुआफ़िक हम भी तख़्तनशीन बनें | बाप है दिल लेने वाला | देलवाड़ा मन्दिर में भी पूरा यादगार है, अन्दर हाथियों पर महारथी बैठे हैं | तुम्हारे में भी महारथी, घोड़ेसवार, प्यादे हैं | हर एक को अपनी-अपनी नब्ज़ देखनी है | बाबा क्यों देखे | तुम अपने को देखो हम बाबा को याद करते हैं और बाबा मिसल सर्विस करते हैं! हमारा बाबा के साथ योग है! रात को जागकर बाबा को याद करते हैं? हम बहुतों की सर्विस करते हैं? चार्ट रखना चाहिए – बाबा को हड्डी (जिगरी) कितना याद करते हैं? कोई समझते हैं हम निरन्तर याद करते हैं, यह नहीं हो सकता | कई समझते हैं हम बाबा के बच्चे बन गये, बस | परन्तु अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है | बाबा की याद बिगर कुछ काम किया गोया बाबा को याद नहीं करते | बाबा की याद में सदैव हर्षित रहना चाहिए | याद में रहने वाला सदैव रमणीक रहेगा, हर्षितमुख रहेगा | किसको बहुत ख़ुशी से और रमणीकता से समझायेंगे | बहुत थोड़े हैं जिनको सर्विस का बहुत शौक है | चित्रों पर समझाना बहुत सहज है | यह है ऊँचे ते ऊँचा भगवान फिर उनकी रचना हम सब आत्मायें भाई-भाई हैं | ब्रदरहुड है, उन्होंने फादरहुड कह दिया है | पहले शिवबाबा के चित्र पर समझाना है कि यह है सब आत्माओं का बाप परमपिता परमात्मा निराकार | हम आत्मा भी निराकार हैं, भ्रकुटी के बीच में रहती हैं | शिवबाबा भी स्टार है परन्तु स्टार की पूजा कैसे हो इसलिए बड़ा बनाते हैं | बाकी आत्मा कभी 84 लाख जन्म नहीं लेती है | बाप समझाते हैं आत्मा पहले अशरीरी आती है फिर शरीर धारण कर पार्ट बजाती है | सतोप्रधान आत्मा पुनर्जन्म लेते-लेते आइरन एज में आ जाती है | बाद में आने वाले तो 84 जन्म नहीं लेंगे | सब तो 84 जन्म ले नहीं सकते | आत्मा ही एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है | नाम रूप देश काल सब बदल जाता है | ऐसे भाषण करना चाहिए | कहते हैं सेल्फ रियलाइज़ेशन | परन्तु कराये कौन? आत्मा सो परमात्मा कहना – यह कोई सेल्फ रियलाइज़ेशन हुआ क्या | यह नई नॉलेज है | बाप जो ज्ञान का सागर है, पतित-पावन है, सर्व के सद्गति दाता हैं, वही बैठ समझाते हैं | फिर उनकी खूब महिमा करो, उनकी महिमा सुनी | आत्मा का परिचय बताया, अब परमात्मा का भी बताते हैं | उनको कहा जाता है सभी आत्माओं का बाप | वह छोटा बड़ा हो न सके | परमपिता परमात्मा माना सुप्रीम सोल | सोल माना आत्मा | परमात्मा तो परे ते परे रहने वाला है | वह पुर्नजन्म में नहीं आते हैं इसलिए उनको परमपिता कहा जाता है | इतनी छोटी आत्मा में पार्ट भरा हुआ है | पतित-पावन भी उनको ही कहते हैं | उनका नाम हमेशा शिवबाबा है | रूद्र बाबा नहीं | भक्ति मार्ग में अनेक नाम रखे हैं, उनको सभी याद करते हैं कि पतित-पावन आकर पावन बनाओ | तो ज़रूर आना पड़े | वह आते तब हैं जब एक धर्म की स्थापना करनी होती है | आदि सनातन देवी-देवता धर्म | अभी है कलियुग, ढेर मनुष्य हैं | सतयुग में बहुत थोड़े मनुष्य हैं | गाया भी हुआ है ब्रह्मा द्वारा स्थापना, शंकर द्वारा विनाश.......गीता द्वारा ही आदि सनातन धर्म की स्थापना हुई थी | सिर्फ़ उसमें  भी भूल कर कृष्ण का नाम डाल दिया है | बाप कहते हैं  वह तो पुनर्जन्म में आने वाला है | मैं तो पुनर्जन्म रहित हूँ | तो अब जज करो कि परमपिता परमात्मा निराकार शिव या श्रीकृष्ण | गीता का भगवान कौन? भगवान तो एक को कहा जाता है फिर अगर इन बातों को कोई मानता नहीं है तो समझना चाहिए यह अपने धर्म का नहीं है | सतयुग में आने वाला झट मानेगा और पुरुषार्थ करने लग पड़ेगा | मूल बात ही यह है | इसमें तुम्हारी विजय है | परन्तु देही-अभिमानी अवस्था कहाँ है? एक दो के नाम रूप में फँसते हैं | भक्ति मार्ग में भी कहते थे परवाह थी पार ब्रह्म में रहने वाले परमात्मा की, बाकी डर किसका | बहुत हिम्मत चाहिए | भाषण करने वालों को आत्मा का ज्ञान बहुत मस्ती से देना चाहिए | फिर परमात्मा किसको कहा जाता है – इस पर भी समझाना चाहिए | बाप की महिमा है प्रेम का सार, ज्ञान का सागर......वैसे बच्चों की भी महिमा है | किसको गुस्सा करना माना लॉ हाथ में उठाना | बाबा कितना मीठा है | बच्चे कोई काम में नटाते (मना करते) हैं तो नटवर नहीं बनेंगे | बहुत मीठा बनना है | अच्छा! 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते | 

धारणा के लिए मुख्य सार:-  
1.   
अपना बैग बैगेज सब ट्रान्सफर कर बहुत ख़ुशी और मस्ती में रहना है | मम्मा बाबा समान तख़्तनशीन बनना है | जिगरी याद में रहना है | 

2.    किसी के डर से पढ़ाई कभी नहीं छोडनी है | याद से अपने कर्मबन्धन हल्के करने हैं | कभी क्रोध में आकर लॉ हाथ में नहीं उठाना है | किसी सेवा में ना नहीं करनी है |

वरदान:-
 

अलबेलेपन वा अटेन्शन के अभिमान को छोड़ बाप की मदद के पात्र बनने वाले सहज पुरुषार्थी भव
!   

कई बच्चे हिम्मत रखने के बजाए अलबेलेपन के कारण अभिमान में आ जाते हैं कि हम तो सदा पात्र हैं ही | बाप हमें मदद नहीं करेंगे तो किसको करेंगे! इस अभिमान के कारण हिम्मत की विधि को भूल जाते हैं | कईयों में फिर स्वयं पर अटेन्शन देने का भी अभिमान रहता है जो मदद से वंचित कर देता है | समझते हैं हमने तो बहुत योग लगा लिया, ज्ञानी-योगी तू आत्मा बन गये, सेवा की राजधानी बन गई....इस प्रकार के अभिमान को छोड़ हिम्मत के आधार पर मदद के पात्र बनो तो सहज पुरुषार्थी बन जायेंगे |


स्लोगन:- 
जो वेस्ट और निगेटिव संकल्प चलते हैं उन्हें परिवर्तन कर विश्व कल्याण के कार्य में लगाओ |      

ओम् शान्ति |