09-11-14
प्रातः मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त
बापदादा”
रिवाइज
02-01-79
मधुबन
सम्पूर्णता
की
समीपता ही विश्व-परिवर्तन के
घड़ी की समीपता
है
आज बापदादा हरेक बच्चे के आदि से अब तक की संगमयुगी अलौकिक
जन्म की जन्मपत्री देख रहे थे । हरेक बच्चे ने दिव्य जन्म लेते
बापदादा से वा स्वयं से क्या-क्या वायदे किये
हैं
और अब तक कौन से वायदे और किस
परसेंट में
निभाए
हैं,
वायदा करना और निभाना इसमें
कितना अन्तर रहा
है
वा करना और निभाना समान
है
- यह जन्म पत्री देख रहे थे । हर वर्ष हरेक बच्चा यथा
शक्ति
बाप के सम्मुख वायदे करते
हैं
अर्थात् बाप से प्रतिज्ञा करते
हैं
- रिजल्ट में क्या देखा?
प्रतिज्ञा करते समय बहुत उमंग उत्साह से
हिम्मत
से
संकल्प
लेते
हैं
- कुछ समय
संकल्प
को साकार में लाने,
समस्याओं
का सामना करने की शुभ भावना से,
कल्याण की कामनाओं
से सम्पर्क
में
आते सफलता मूर्त बनते हैं । परन्तु चलते-चलते कुछ समय के बाद
फुल
अटेंशन
के बजाए सिर्फ
अटेंशन
रह जाता और
अटेंशन
के बीच-बीच
अटेंशन
बदल
टेंशन
का रूप भी हो जाता
है
।
विजय हमारा जन्म सिद्ध अधिकार
है
- यह समर्थ
संकल्प
धीरे- धीरे रूप परिवर्तन करता जाता
है
- जन्म सिद्ध अधिकार
है
के बजाए कब-कब बाप दादा के आगे यह बोल निकलते
हैं
कि अधिकार दो,
शक्ति दो ।
है
शब्द दो शब्द
में
बदल जाता
है
।
मास्टर दाता वरदाता
,
दाता के बजाए लेवता हो जाते
हैं
।
ऐसे पुरूषार्थ की स्टेज कब तीव्र पुरूषार्थ,
कब पुरूषार्थ,
कब हलचल, कब अचल । इस में चलते रहते
हैं और चलते-चलते रूक जाते हैं । अब तक की रिजल्ट
में
- रास्ते के नजारों में मंजिल की तरफ से किनारा कर लेते
हैं
।
अब तक भी ऐसे खेल दिखाते रहते
हैं
- लेकिन यह कब तक?
बापदादा भी अभी नया खेल देखना चाहते हैं । तो इस नये वर्ष में
अब ऐसा नया खेल दिखाओ - जिस खेल में हर दृश्य का
लक्ष्य
सदा विजय हो । हम विजयी हैं,
विजयी
रहेंगे
- ऐसा
संकल्प
सदा हर कर्म में प्रत्यक्ष दिखाई दे । जैसे कल्प पहले का चित्र
है
- हरेक शक्ति सेना के हाथ
में
विजय का झण्डा लहरा रहा
है
।
आज तक भी आप श्रेष्ठ
आत्माओं
को विजयी रत्न के रूप में दुनिया वाले सुमिरण करते और पूजते
रहते हैं । पुरूषार्थ करने का समय भी बहुत मिला नम्बरवार यथा
शक्ति पुरूषार्थ भी किया । अब क्या करना
है?
अब पुरूषार्थ के प्रत्यक्ष फलस्वरूप
अर्थात् सफलता स्वरूप बन स्वयं भी हर कार्य
में
सफल रहो और सर्व
आत्माओं
को भी प्रत्यक्षफल के अधिकारी बनाओ । अब भाषा भी परिवर्तन करो
। जैसे
विश्व
परिवर्तन की घड़ी समीप भाग रही
है
।
सम्पूर्णता की समीपता ही
विश्व
परिवर्तन के
घड़ी
की समीपता
है
- इसलिए अब बीती सो बीती कर व्यर्थ का खाता समाप्त करो । सदा
समर्थ का खाता हर
संकल्प में
जमा करो । अभी से सदाकाल के लिए अपने को ताज तिलक और तख्तधारी
अनुभव करो । तिलक का मिट जाना अर्थात् स्मृति से नीचे आना
है
।
अभी यह
बातें
स्वप्न से भी समाप्त करो । ऐसा समाप्ती समारोह मनाओ । विश्व
सेवा
में
संकल्प,
वाणी और कर्म से दिन-रात सच्चे सेवाधारी बन
संगठित रूप में सदा तत्पर हो जाओ तो विश्व सेवा में
स्वयं
की
चढ़ती
कला
स्वतः
होती जायेगी । पुण्य आत्मा बन,
पुण्य का फल प्राप्त कर रहे
हैं,
सदा ऐसे अनुभव करेंगे
क्योंकि
समय की समीपता प्रमाण हर श्रेष्ठ कर्म का फल सदा सन्तुष्टता के
रूप
में
वर्तमान और भविष्य दोनों ही काल में प्राप्त होगा । अभी
प्राप्ति की मशीनरी तीव्र गति से अनुभव करेंगे
।
व्यर्थ का भी और समर्थ का भी -
दोनों
कर्म का फल लाख गुणा प्राप्ति क्या होती
है,
यह सब अनुभव करेंगे
इसलिए लाख गुणा जमा करने का समय अब बाकी थोड़ा सा रह गया
है
।
अब का जमा होना,
जन्म-जन्मान्तर की प्रालब्ध बनाना
है
।
इसके लिए विशेष क्या करना
है?
सिर्फ दो
बातें
याद रखो - एक सदा अपने को विशेष आत्मा समझ संकल्प वा कर्म करो
। दूसरी बात - सदा हरेक
में
विशेषताओं
को देखो । हर आत्मा
में
विशेष आत्मा की भावना रखो । साथ-साथ विशेष बनाने की,
शुभकल्याण की कामना रखो । सदा एक बात का
अटेंशन
रखो - जिस अवगुण वा कमजोरी को हर आत्मा छोड़ने का पुरूषार्थ कर
रही
है,
ऐसी दूसरे द्वारा छोड़ने वाली चीज को स्वयं
कभी धारण
नहीं
करना । दूसरे द्वारा
फेंकी
हुई चीज को लेना यह ईश्वरीय रॉयल्टी
नहीं
।
रॉयल आत्माएं दूसरे की
बढ़िया
चीज भी
फेंकी
हुई
नहीं
लेती । यह तो अवगुण गन्दगी
है
।
उसे संकल्प
में
भी धारण करना महापाप
है
- इसलिए इस बात का
अटेंशन
रखो । किसी की कमजोरी वा अवगुण को देखने का नेत्र सदा बन्द रखो
। न धारण करो,
न वर्णन करो । जब आपके चित्रों की भी भक्त
महिमा करते
हैं,
हर अंग की महिमा करते
हैं,
कीर्ति गाने का कीर्तन करते
हैं
।
आप चैतन्य रूप
में
एक दो के गुणगान करो,
विशेषताओं
का वर्णन करो । एक दो
में
सहयोग और स्नेह के
पुष्पों
की लेन-देन करो । हर कार्य
में
हाँ जी वा पहले आप का हाथ
बढ़ाओ
। सदा हरेक विशेष आत्मा के आगे रूहानी वृत्ति रूहानी वायब्रेशन
का धूप जगाओ । जो भी आत्मायें
सम्पर्क
में
आवे उन्हों को सदा अपने खजानों
से वैरायटी भोग लगाओ अर्थात् खजाना भेंट करो । जब प्रैक्टिकल
में
अभी से यह रूहानी रसम आरम्भ करेंगे
तब ही भक्ति
में
यह रसम चलती रहेगी । सुना - इस वर्ष क्या करना
है
।
आज स्वयं के परिवर्तन की बातें सुनाई । फिर सेवा की सुनाएंगे
कि सेवा के क्षेत्र में क्या करना
है
।
अच्छा ।
ऐसे सदा सम्पन्न मूर्तियाँ रॉयल्टी के निजी संस्कार वाली
आत्मायें,
सदा तिलक, ताज,
तख्तधारी आत्माओं को,
हर कर्म का प्रत्यक्ष फल खाने वाली आत्माओं
को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते |
पार्टियों से मुलाकात
1.
जादू मन्त्र की
स्मृति
से सफलता स्वरूप: -
जादू मन्त्र सदा याद रहता
है?
जादू का मन्त्र कौन सा
है?
बाप की याद ही जादू का
मन्त्र है,
इस जादू के
मन्त्र
द्वारा जो सिद्धि चाहो वो पा सकते हो । जैसे स्थूल
में
भी किसी कार्य की सिद्धि के लिए मन्त्र जपते हैं । तो यहाँ भी
अगर किसी कार्य
में
सिद्धि चाहते हो तो यह महामन्त्र ही विधि स्वरूप
है
।
ऐसा जादू मन्त्र जो सेकेण्ड में जादू मन्त्र कर दो अर्थात्
परिवर्तन कर दो । तो ऐसा जादू मंत्र सदा याद रहता
है
कि कभी भूलता
है?
सदा
स्मृति
सदा सिद्धि । कभी-कभी
स्मृति
होगी तो सफलता नहीं होगी,
कभी-कभी होगी । तो यह वर्ष '
सदा' को
अन्डरलाइन लगाने का वर्ष
है
।
याद रहना बड़ी बात
नहीं,
लेकिन सदा याद
में
रहना - यही
बड़ी
बात
हैं
।
अब सदा की बारी आई
है
।
सदा को एड करो तो सदा सफलता मूर्त रहेंगे ।
2.
माया के
वार
से
बचने
का साधन
है
- विश्व से न्यारा और
बाप
का प्यारा
बनो:
-
हरेक अपने को बाप के प्यारे और
विश्व
से न्यारे समझते हो?
जो बाप के प्यारे बनते हैं,
वह
विश्व
से न्यारे बन जाते
हैं
।
तो जितना न्यारापन होगा उतना ही प्यारा होगा - अगर न्यारा
नहीं
तो प्यारा भी
नहीं
।
जो बाप के प्यार
में
लवलीन रहते
हैं,
खोये हुए होते
हैं
उन्हें माया आकर्षित कर
नहीं
सकती । जैसे वाटरप्रूफ कपड़ा होता
है
तो एक बूँद भी टिकती
नहीं,
ऐसे जो लगन
में
रहते,
लवलीन रहते वह मायाप्रूफ
बन जाते
हैं
।
माया का कोई भी वार,
वार
नहीं
कर सकता । बाप का प्यार अविनाशी और नि :स्वार्थ
है,
इसके भी अनुभवी हो और अल्पकाल के प्यार के
भी अनुभवी हो । वह प्यार इस प्यार के आगे कुछ भी
नहीं
है |
बाप और
मैं
तीसरा न कोई,
ऐसी स्थिति रहती
है?
तीसरा बीच
में
आना अर्थात् बाप से अलग करना । तीसरा आता ही
नहीं
तो अलग हो
नहीं
सकते । जो सदा बाप की याद
में
लवलीन रहते
हैं,
वह सिद्धि को पा लेते
हैं
।
3.
ईश्वरीय नशे की मस्ती से कर्मातीत अवस्था
का निशाना अति समीप: -
आप श्रेष्ठ आत्मायें
ज्ञान सागर बाप द्वारा डायरेक्ट सर्व प्राप्ति करने वाली हो और
जो भी आत्मायें हैं वह श्रेष्ठ आत्माओं के द्वारा कुछ न कुछ
प्राप्ति करती
हैं,
लेकिन आप डायरेक्ट बाप द्वारा सर्व
प्राप्ति करने वाले हो, ऐसा श्रेष्ठ
नशा रहता
है?
जितना नशा होगा उतना अपना कर्मातीत अवस्था
का निशाना नजदीक दिखाई देगा । अगर नशा कम होगा तो निशाना भी
दूर दिखाई देगा । इस ईश्वरीय नशे
में
रहने से दु :खों की दुनिया को सहज ही भूल जाते हैं,
उस नशे
में
भी सबकुछ भूल जाता
है
ना । तो इस ईश्वरीय नशे
में
रहने से सदाकाल के लिए पुरानी दुनिया भूल जाती । इस नशे
में
कोई नुकसान
नहीं,
जितना नशा
चढ़ाओ
उतना अच्छा । उस नशे को ज्यादा पिया तो खत्म हो जाते । यहाँ इस
नशे से अविनाशी बन जाते । जो नशे
में
रहते
हैं
उनको देखने वाले भी अनुभव करते कि यह नशे
में
हैं,
ऐसे आपको भी देख यह अनुभव करें
कि यह नशे
में
हैं
।
अभी- अभी नशा
चढ़ा
अभी- अभी उतरा तो जो मजा आना चाहिए वह
नहीं
आयेगा,
इसलिए सदा नशे
में
मस्त रहे,
इस नशे
में
सर्व प्राप्ति
है
।
एक बाप दूसरा न कोई यह स्मृति ही नशा
चढ़ाती
है
।
इसी स्मृति से समर्थी आ जाती ।
सुना तो बहुत
है
अब जो सुना
है
उसका स्वरूप बन साक्षात कराओ । बापदादा सभी बच्चों को चैतन्य
साक्षात्कार कराने वाली साक्षात मूर्तियाँ देखने चाहते
हैं,
जब चैतन्य मूर्तियाँ तैयार हो जायेंगी तब
यह
जड़
मूर्तियाँ
समाप्त हो जायेंगी
और यही भारत बेहद का मन्दिर बन जायेगा,
अनेक समाप्त होकर एक ही
बड़ा
मन्दिर हो जायेगा । अच्छा!
4. संगमयुग के समय को हर कदम में पदमों की कमाई का वरदान: -
सदा स्वयं को हर कदम
में
पदमों
की कमाई करने वाले पदमापदम भाग्यशाली आत्मायें
समझते हो । चेक करते हो कि हर कदम
में
जमा होता जा रहा
है!
संगमयुग
को यही वरदान मिला हुआ
हैं,
हर कदम
में
पदम जमा । तो एक सेकेण्ड भी वा एक कदम भी जमा
नहीं
किया तो कितना नुकसान हो गया,
लौकिक
में
भी अगर कोई दिन कमाई नहीं होती
है
तो चिन्ता लग जाती
है,
वह तो हद की कमाई
है
यह बेहद की कमाई
है,
अभी का एक कदम पदमों
की कमाई जमा करने वाला
है
तो यहाँ कितना
अटेंशन
चाहिए । इतना
अटेंशन है
कि साधारण कदम उठाते हो?
अभी अलौकिक जन्म हुआ तो हर कदम अलौकिक होना
चाहिए, साधारण
नहीं
।
जो हर कदम
में
पदमों की कमाई जमा करने वाले होंगे उनकी निशानी क्या दिखाई
देगी?
उनके चेहरे से सदा प्राप्ति की झलक दिखाई
देगी, जैसे स्थूल कोई चीज़ की चमक
दिखाई देती
है
ना,
वैसे प्राप्ति की झलक चेहरे से दिखाई देगी
।
सम्पर्क
में
आने वाले भी
समझेंगे
कि इनको कुछ प्राप्त हुआ
है
।
वह स्वयं ही आकर्षित हो करके आपके सामने आयेंगे,
तो आपका सम्पन्न चेहरा सेवा के निमित्त बन
जायेगा । सभी सदा खुश रहते हो कि कभी-कभी खुशी का खजाना माया
छीन ले जाती
है,
माया का गेट बन्द
है
या खुला हुआ
है!
अब गेट
में
अच्छी तरह से डबल लॉक लगाओ - सिंगल लॉक भी माया खोल कर अन्दर आ
जायेगी । डबल लॉक अर्थात् याद और सेवा
में
बिजी रहो,
अगर सिर्फ याद
में
होंगे
सेवा
में
नहीं
तो भी माया आ जायेगी । डबल लॉक में माया अन्दर नहीं आयेगी ।
खटकायेगी अन्दर नहीं आयेगी अर्थात् वार नहीं करेगी । मन्सा
सेवा भी बहुत
है,
अपनी वृत्ति से वातावरण को शक्तिशाली बनाओ
। सारे विश्व का परिवर्तन
है
ना,
तो वृत्ति से वातावरण परिवर्तन होगा ।
अच्छा ।
वरदान:-
मन-बुद्धि की एकाग्रता द्वारा सर्व सिद्धियां प्राप्त करने
वाले सदा समर्थ आत्मा
भव ! 
सर्व सिद्धियों
को प्राप्त करने के लिए एकाग्रता की शक्ति को
बढ़ाओ
। यह एकाग्रता की शक्ति सहज
निर्विघ्न
बना देती
है,
मेहनत
करने की आवश्यकता
नहीं
रहती । एक बाप दूसरा न कोई - इसका सहज अनुभव होता
है,
सहज एकरस स्थिति बन जाती
है
।
सर्व के प्रति कल्याण की वृत्ति,
भाई- भाई की दृष्टि रहती
है
।
लेकिन एकाग्र होने के लिए इतना समर्थ बनो जो मन-बुद्धि सदा
आपके आर्डर अनुसार चलें
।
स्वप्न
में
भी सेकण्ड मात्र भी हलचल न हो ।
स्लोगन:-
कमल
पुष्प
के
समान न्यारे रहो तो प्रभू के प्यार का पात्र बन जायेंगे
| 
ओम्
शान्ति |