18-10-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - बाप खिवैया बन आया है तुम सबकी नईया को विषय सागर से
निकाल क्षीर सागर में ले जाने,
अभी
तुमको इस पार से उस पार जाना है” 
प्रश्न:-
तुम
बच्चे हर एक का पार्ट देखते हुए किसकी भी निंदा नहीं कर सकते
हो - क्यों?
उत्तर:-
क्योंकि तुम जानते हो यह अनादि बना-बनाया ड्रामा है,
इसमें
हर एक एक्टर अपना- अपना पार्ट बजा रहे हैं । किसी का भी कोई
दोष नहीं है । यह भक्ति मार्ग भी फिर से पास होना है,
इसमें
जरा भी चेन्ज नहीं हो सकती ।
प्रश्न:-
किन
दो शब्दों में सारे चक्र का ज्ञान समाया हुआ है?
उत्तर:-
आज और
कल । कल हम सतयुग में थे,
आज 84
जन्मों का चक्र लगाकर नर्क में पहुँचे,
कल
फिर स्वर्ग में जायेंगे ।
ओम्
शान्ति |
अब
बच्चे सामने बैठे हैं,
जहाँ
से आते हैं वहाँ अपने सेन्टर्स पर जब रहते हैं तो वहाँ ऐसे
नहीं समझेंगे कि हम ऊंच ते ऊंच बाबा के सम्मुख बैठे हैं । वही
हमारा टीचर भी है,
वही
हमारी नईया को पार लगाने वाला है,
जिसको ही गुरू कहते हैं । यहाँ तुम समझते हो हम सम्मुख बैठे
हैं,
हमको
इस विषय सागर से निकाल क्षीर सागर में ले जाते हैं । पार ले
जाने वाला बाप भी सम्मुख बैठा है,
वह
एक ही शिव बाप की आत्मा है,
जिसको ही सुप्रीम अथवा ऊंच ते ऊंच भगवान् कहा जाता है । अभी
तुम बच्चे समझते हो हम ऊंच ते ऊंच भगवान् शिवबाबा के सामने
बैठे हैं । वह इसमें (ब्रह्मा तन में) बैठे हैं,
वह
तुमको पार भी पहुँचाते हैं । उनको रथ भी जरूर चाहिए ना । नहीं
तो श्रीमत कैसे दें । अभी तुम बच्चों को निश्चय हैं - बाबा
हमारा बाबा भी है,
टीचर
भी है,
पार
ले जाने वाला भी है । अभी हम आत्मायें अपने घर शान्तिधाम में
जाने वाली हैं । वह बाबा हमको रास्ता बता रहे हैं । वहाँ
सेन्टर्स पर बैठने और यहाँ सम्मुख बैठने में रात-दिन का फर्क
है । वहाँ ऐसे नहीं समझेंगे कि हम सम्मुख बैठे हैं । यहाँ यह
महसूसता आती है । अभी हम पुरूषार्थ कर रहे हैं । पुरूषार्थ
कराने वाले को खुशी रहेगी । अभी हम पावन बनकर घर जा रहे हैं ।
जैसे नाटक के एक्टर्स होते हैं तो समझते हैं अब नाटक पूरा हुआ
। अभी बाप आये हैं हम आत्माओं को ले जाने । यह भी समझाते हैं
तुम घर कैसे जा सकते हो,
वह
बाप भी है,
नईया
को पार करने वाला खिवैया भी है । वह लोग भल गाते हैं परन्तु
समझते कुछ भी नहीं हैं कि नईया किसको कहा जाता है,
क्या
वह शरीर को ले जायेगा?
अभी
तुम बच्चे जानते हो हमारी आत्मा को पार ले जाते हैं । अभी
आत्मा इस शरीर के साथ वेश्यालय में विषय वैतरणी नदी में पड़ी है
। हम असल रहवासी शान्तिधाम के थे,
हमको
पार ले जाने वाला अर्थात् घर ले जाने वाला बाप मिला है ।
तुम्हारी राजधानी थी जो माया रावण ने सारी छीन ली है । वह
राजधानी फिर जरूर लेनी है । बेहद का बाप कहते हैं-बच्चों,
अब
अपने घर को याद करो । वहां जाकर फिर क्षीरसागर में आना है ।
यहाँ है विष का सागर,
वहाँ
है क्षीर का सागर और मूलवतन है शान्ति का सागर । तीनों धाम हैं
। यह तो है दु :खधाम ।
बाप
समझाते हैं - मीठे-मीठे बच्चों,
अपने
को आत्मा समझ बाप को याद करो । कहने वाला कौन है,
किस
द्वारा कहते हैं?
सारा
दिन '
मीठे-मीठे बच्चे'
कहते
रहते हैं । अभी आत्मा पतित है,
जिस
कारण फिर शरीर भी ऐसा मिलेगा । अभी तुम समझते हो हम
पक्के-पक्के सोने के जेवर थे फिर खाद पड़ते-पड़ते झूठे बन गये
हैं । अब वह झूठ कैसे निकले,
इसलिए यह याद के यात्रा की भट्ठी है । अग्नि में सोना पक्का
होता है ना । बाप बार-बार समझाते हैं,
यह
समझानी जो तुमको देता हूँ,
हर
कल्प देता आया हूँ । हमारा पार्ट हैं फिर 5 हजार वर्ष के बाद
आकर कहता हूँ कि बच्चे पावन बनो । सतयुग में भी तुम्हारी आत्मा
पावन थी,
शान्तिधाम में भी पावन आत्मा रहती है । वह तो है हमारा घर ।
कितना स्वीट घर है । जहाँ जाने के लिए मनुष्य कितना माथा मारते
हैं । बाप समझाते हैं अभी सबको जाना है फिर पार्ट बजाने के लिए
आना है । यह तो बच्चों ने समझा है । बच्चे जब दु :खी होते हैं
तो कहते हैं-हे भगवान,
हमें
अपने पास बुलाओ । हमको यहाँ दु :ख में क्यों छोड़ा हैं । जानते
हैं बाप परमधाम में रहते हैं । तो कहते हैं-हे भगवान,
हमको
परमधाम में बुलाओ । सतयुग में ऐसे नहीं कहेगें । वहाँ तो सुख
ही सुख है । यहाँ अनेक दु :ख हैं तब पुकारते हैं-हे भगवान!
आत्मा को याद रहती है । परन्तु भगवान को जानते बिल्कुल नहीं
हैं । अभी तुम बच्चों को बाप का परिचय मिला है । बाप रहते ही
हैं परमधाम में । घर को ही याद करते हैं । ऐसे कभी नहीं कहेंगे
राजधानी में बुलाओ । राजधानी के लिए कभी नहीं कहेंगे । बाप तो
राजधानी में रहते भी नहीं । वह रहते ही हैं शान्तिधाम में । सब
शान्ति मांगते हैं । परमधाम में भगवान के पास तो जरूर शान्ति
ही होगी,
जिसको मुक्तिधाम कहा जाता है । वह है आत्माओं के रहने का स्थान,
जहाँ
से आत्मायें आती हैं । सतयुग को घर नहीं कहेंगे,
वह
है राजधानी । अब तुम कहाँ-कहाँ से आये हो । यहाँ आकर सम्मुख
बैठे हो । बाप
'बच्चे-बच्चे'
कह
बात करते हैं । बाप के रूप में बच्चे-बच्चे भी कहते हैं फिर
टीचर बन सृष्टि के आदि-मध्य- अन्त का राज अथवा
हिस्ट्री-जॉग्राफी समझाते हैं । यह बातें कोई शास्त्रों में
नहीं हैं । तुम बच्चे जानते हो मूलवतन है हम आत्माओं का घर ।
सूक्षवतन तो है ही दिव्य दृष्टि की बात । बाकी सतयुग,
त्रेता,
द्वापर,
कलियुग तो यहाँ ही होता है । पार्ट भी तुम यहाँ बजाते हो ।
सूक्ष्मवतन का कोई पार्ट नहीं । यह साक्षात्कार की बात है । कल
और आज,
यह
तो अच्छी रीति बुद्धि में होना चाहिए । कल हम सतयुग में थे फिर
84 जन्म लेते-लेते आज नर्क में आ गये हैं । बाप को बुलाते भी
नर्क में हैं । सतयुग में तो अथाह सुख है,
तो
कोई बुलाते ही नहीं । यहाँ तुम शरीर में हो तब बात करते हो ।
बाप भी कहते हैं मैं जानी जाननहार हूँ अर्थात् सृष्टि के
आदि-मध्य- अन्त को जानता हूँ । परन्तु सुनाऊं कैसे! विचार की
बात है ना इसलिए लिखा हुआ है-बाप रथ लेते हैं । कहते हैं मेरा
जन्म तुम्हारे सदृश्य नहीं है । मैं इसमें प्रवेश करता हूँ ।
रथ का भी परिचय देते हैं । यह आत्मा भी नाम-रूप धारण करते-करते
तमोप्रधान बनी है । इस समय सब छोरे हैं,
क्योंकि बाप को जानते नहीं हैं । तो सब छोरे और छोरियाँ हो गये
। आपस में लड़ते हैं तो कहते हैं ना-छोरे-छोरियां लड़ते क्यों
हो! तो बाप कहते हैं मुझे तो सब भूल गये हैं । आत्मा ही कहती
है छोरे-छोरियां । लौकिक बाप भी ऐसे कहते हैं,
बेहद
का बाप भी कहते हैं छोरे-छोरियां यह हाल क्यों हुआ है?
कोई
धनी धोणी है?
तुमको बेहद का बाप जो स्वर्ग का मालिक बनाते हैं,
जिसको तुम आधाकल्प से पुकारते आये हो,
उनके
लिए कहते हो ठिक्कर भित्तर में हैं । बाप अब सम्मुख बैठ समझाते
हैं । अभी तुम बच्चे समझते हो हम बाबा के पास आये हैं । यह
बाबा ही हमको पढ़ाते हैं । हमारी नईया पार करते हैं क्योंकि यह
नईया बहुत पुरानी हो गई है । तो कहते हैं इनको पार लगाओ फिर
हमको नई दो । पुरानी नईया खौफनाक होती है । कहाँ रास्ते में
टूट पड़े,
एक्सीडेंट हो जाए । तो तुम कहते हो हमारी नईया पुरानी हो गई है,
अब
हमें नई दो । इनको वस्त्र भी कहते हैं,
नईया
भी कहते हैं । बच्चे कहते बाबा हमको तो ऐसे (लक्ष्मी-नारायण
जैसे) वस्त्र चाहिए ।
बाप
कहते हैं - मीठे-मीठे बच्चों,
स्वर्गवासी बनने चाहते हो?
हर 5
हजार वर्ष बाद तुम्हारे यह कपड़े पुराने होते हैं फिर नया देता
हूँ । यह है आसुरी चोला । आत्मा भी आसुरी है । मनुष्य गरीब
होगा तो कपड़े भी गरीबी के पहनेंगे । साहूकार होगा तो कपड़े भी
साहूकारी के पहनेंगे । यह बातें अभी तुम जानते हो । यहाँ तुमको
नशा चढ़ता है हम किसके सामने बैठे हैं । सेन्टर्स पर बैठते हो
तो वहाँ तुमको यह भासना नहीं आयेगी । यहाँ सम्मुख होने से खुशी
होती है क्योंकि बाप डायरेक्ट बैठ समझाते हैं । वहाँ कोई
समझायेगा तो बुद्धियोग कहाँ-कहाँ भागता रहेगा । कहते हैं
ना-गोरखधन्धे में फंसे रहते हैं । फुर्सत कहाँ मिलती है । मैं
तुमको समझा रहा हूँ । तुम भी समझते हो-बाबा इस मुख द्वारा हमको
समझाते हैं । इस मुख की भी कितनी महिमा हैं । गऊमुख से अमृत
पीने के लिए कहाँ-कहाँ जाकर धक्के खाते हैं । कितनी मेहनत से
जाते हैं । मनुष्य समझते ही नहीं हैं कि यह गऊमुख क्या है?
कितने बड़े समझदार मनुष्य वहाँ जाते हैं,
इसमें फायदा क्या?
और
ही टाइम वेस्ट होता है । बाबा कहते हैं यह सूर्यास्त आदि क्या
देखेंगे । फायदा तो इनमें कुछ नहीं । फायदा होता ही है पढ़ाई
में । गीता में पढ़ाई हैं ना । गीता में कोई भी हठयोग आदि की
बात नहीं । उसमें तो राजयोग हैं । तुम आते भी हो राजाई लेने के
लिए । तुम जानते हो इस आसुरी दुनिया में तो कितने लड़ाई-झगड़े
आदि हैं । बाबा तो हमको योगबल से पावन बनाए विश्व का मालिक बना
देते हैं । देवियों को हथियार दे दिये हैं परन्तु वास्तव में
इसमें हथियारों आदि की कोई बात है नहीं । काली को देखो कितना
भयानक बनाया है । यह सब अपने- अपने मन की भ्रान्तियों से बैठ
बनाया है । देवियां कोई ऐसी 4 - 8 भुजाओं वाली थोड़ेही होंगी ।
यह सब भक्ति मार्ग है । सो बाप समझाते हैं - यह एक बेहद का
नाटक हैं । इसमें कोई की निंदा आदि की बात नहीं । अनादि ड्रामा
बना हुआ है । इसमें फर्क कुछ भी पड़ता नहीं है । ज्ञान किसको
कहा जाता,
भक्ति किसको कहा जाता,
यह
बाप समझाते हैं । भक्ति मार्ग से फिर भी तुमको पास करना पड़ेगा
। ऐसे ही तुम 84 का चक्र लगाते-लगाते नीचे आयेंगे । यह अनादि
बना-बनाया बड़ा अच्छा नाटक है जो बाप समझाते हैं । इस ड्रामा के
राज को समझने से तुम विश्व के मालिक बन जाते हो । वन्डर है ना!
भक्ति कैसे चलती है,
ज्ञान कैसे चलता है,
यह
खेल अनादि बना हुआ है । इसमें कुछ भी चेन्ज नहीं हो सकता । वह
तो कह देते ब्रह्म में लीन हो गया,
ज्योति ज्योत समाया,
यह
संकल्प की दुनिया है,
जिसको जो आता है वह कहते रहते हैं । यह तो बना-बनाया खेल है ।
मनुष्य बाइसकोप देखकर आते हैं । क्या उसको संकल्प का खेल
कहेंगे?
बाप
बैठ समझाते हैं-बच्चे,
यह
बेहद का नाटक है जो हूबहू रिपीट होगा । बाप ही आकर यह नॉलेज
देते हैं क्योंकि वह नॉलेजफुल है । मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है,
चैतन्य है,
उनको
ही सारी नॉलेज है । मनुष्यों ने तो लाखों वर्ष आयु दिखा दी है
। बाप कहते हैं इतनी आयु थोड़ेही हो सकती है । बाइसकोप लाखों
वर्ष का हो तो कोई की बुद्धि में नहीं बैठे । तुम तो सारा
वर्णन करते हो । लाखों वर्ष की बात कैसे वर्णन करेंगे । तो वह
सब है भक्ति मार्ग । तुमने ही भक्ति मार्ग का पार्ट बजाया ।
ऐसे-ऐसे दुःख भोगते- भोगते अब अन्त में आ गये हो । सारा झाड़
जड़जड़ीभूत अवस्था को पाया हुआ है । अब वहाँ जाना है । अपने को
हल्का कर दो । इसने भी हल्का कर दिया ना । तो सब बन्धन टूट
जायें । नहीं तो बच्चे,
धन,
कारखाने,
ग्राहक,
राजे,
रजवाड़े आदि याद आते रहेंगे । धन्धा ही छोड़ दिया तो फिर याद
क्यों आयेंगे । यहाँ तो सब कुछ भूलना है । इनको भूल अपने घर और
राजधानी को याद करना है । शान्तिधाम और सुखधाम को याद करना है
। शान्तिधाम से फिर हमको यहाँ आना पड़े । बाप कहते हैं मुझे याद
करो,
इनको
ही योग अग्नि कहा जाता हैं । यह राजयोग है ना । तुम राजऋषि हो
। ऋषि पवित्र को कहा जाता है । तुम पवित्र बनते हो राजाई के
लिए । बाप ही तुम्हें सब सत्य बताते हैं । तुम भी समझते हो यह
नाटक है । सब एक्टर्स यहाँ जरूर होने चाहिए । फिर बाप सबको ले
जायेंगे । यह ईश्वर की बरात है ना । वहाँ बाप और बच्चे रहते
हैं फिर यहाँ आते हैं पार्ट बजाने । बाप तो सदैव वहाँ रहते हैं
। मुझे याद ही दुःख में करते हैं । वहाँ फिर मैं क्या करूँगा ।
तुमको शान्तिधाम,
सुखधाम में भेजा बाकी क्या चाहिए! तुम सुखधाम में थे बाकी सब
आत्मायें शान्तिधाम में थी फिर नम्बरवार आते गये । नाटक आकर
पूरा हुआ । बाप कहते हैं-बच्चे,
अब
गफलत मत करो । पावन तो जरूर बनना है । बाप कहते हैं यह वही
ड्रामा अनुसार पार्ट बज रहा है । तुम्हारे लिए ड्रामा अनुसार
मैं कल्प-कल्प आता हूँ । नई दुनिया में अब चलना है ना । अच्छा
!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
अब यह झाड़ पुराना जड़जड़ीभूत हो गया है,
आत्मा को वापस घर जाना है इसलिए अपने को सब बन्धनों से मुक्त
कर हल्का बना लेना है । यहाँ का सब कुछ बुद्धि से भूल जाना है
।
2.
अनादि ड्रामा को बुद्धि में रख किसी भी
पार्टधारी की निंदा नहीं करनी है । ड्रामा के राज को समझ विश्व
का मालिक बनना है ।
वरदान:-
स्वार्थ से न्यारे और संबंधों में प्यारे बन सेवा करने वाले
सच्चे सेवाधारी भव
!
जो
सेवा स्वयं को वा दूसरों को डिस्टर्व करे वो सेवा नहीं है,
स्वार्थ है । निमित्त कोई न कोई स्वार्थ होता है तब नीचे ऊपर
होते हो । चाहे अपना चाहे दूसरे का स्वार्थ जब पूरा नहीं होता
है तब सेवा में डिस्ट्रबेन्स होती है इसलिए स्वार्थ से न्यारे
और सर्व के सम्बन्ध में प्यारे बनकर सेवा करो तब कहेंगे सच्चे
सेवाधारी । सेवा खूब उमंग-उत्साह से करो लेकिन सेवा का बोझ
स्थिति को कभी नीचे-ऊपर न करे,
यह
अटेंशन रखो ।
स्लोगन:-
शुभ वा
श्रेष्ठ वायब्रेशन द्वारा निगेटिव सीन को भी पॉजिटिव में बदल
दो । 
ओम्
शान्ति |