24-04-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
इन
आँखों से जो कुछ देखते हो – यह सब ख़त्म हो जाना है, इसलिए इससे
बेहद का वैराग्य, बाप तुम्हारे लिए नई दुनिया बना रहे हैं
| 
प्रश्न:-
तुम
बच्चों की साइलेन्स में कौन-सा रहस्य समाया हुआ है?
उत्तर:-
जब
तुम साइलेन्स में बैठते हो तो शान्तिधाम को याद करते हो | तुम
जानते हो साइलेन्स माना जीते जी मरना | यहाँ बाप तुम्हें
सद्गुरु के रूप में साइलेन्स रहना सिखलाते हैं | तुम साइलेन्स
में रह अपने विकर्मों को दग्ध करते हो | तुम्हें ज्ञान है कि
अब घर जाना है | दूसरे सतसंगों में शान्ति में बैठते हैं लेकिन
उन्हें शान्तिधाम का ज्ञान नहीं है |
ओम्
शान्ति
|
मीठे-मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों प्रति शिवबाबा बोल रहे हैं |
गीता में है श्रीकृष्ण बोले, लेकिन है शिवबाबा बोले, कृष्ण को
बाबा नहीं कह सकते | भारतवासियों को मालूम है कि पिता दो होते
हैं लौकिक और पारलौकिक | पारलौकिक को परमपिता कहा जाता है |
लौकिक को परमपिता कह नहीं सकते | तुमको कोई लौकिक पिता नहीं
समझाते हैं | पारलौकिक बाप पारलौकिक बच्चों को समझाते हैं |
पहले-पहले तुम जाते हो शान्तिधाम, जिसको तुम मुक्तिधाम,
निर्वाणधाम वा वानप्रस्थ भी कहते हो | अब बाप कहते हैं –
बच्चे, अब जाना है शान्तिधाम | सिर्फ़ उनको ही कहा जाता है टावर
ऑफ़ साइलेन्स | यहाँ बैठे हुए पहले-पहले शान्ति में बैठना है |
कोई भी सतसंग में पहले-पहले शान्ति में बैठते हैं | परन्तु
उन्हों को शान्तिधाम का ज्ञान नहीं है | बच्चे जानते हैं हम
आत्माओं को इस पुराने शरीर को छोड़ घर जाना है | कोई भी समय
शरीर छूट जाए इसलिए अब बाप जो पढ़ाते हैं, वह अच्छी रीति पढना
है | वह सुप्रीम टीचर भी है | सद्गति दाता गुरु भी है, उनसे
योग लगाना है | यह एक ही तीनों सर्विस करते हैं | ऐसे और कोई
एक तीनों ही सर्विस नहीं कर सकते | यह एक बाप साइलेन्स भी
सिखलाते हैं | जीते जी मरने को साइलेन्स कहा जाता है | तुम
जानते हो हमको अब शान्तिधाम घर में जाना है | जब तक पवित्र
आत्मायें नहीं बनी हैं, तब तक वापिस घर कोई जा न सके | जाना तो
सबको है इसलिए पाप कर्मों की पिछाड़ी में सजायें मिलती हैं, फिर
पद भ्रष्ट भी हो जाता है | मानी और मोचरा भी खाना पड़ता है
क्योंकि माया से हारते हैं | बाप आते ही हैं माया पर जीत
पहनाने | परन्तु गफ़लत से बाप को याद नहीं करते | यहाँ तो एक
बाप को ही याद करना है | भक्ति मार्ग में भी बहुत भटकते हैं,
जिसको माथा टेकते उनको जानते नहीं | बाप आकर भटकने से छुड़ा
देते हैं | समझाया जाता है ज्ञान है दिन, भक्ति है रात | रात
को ही धक्का खाया जाता है | ज्ञान से दिन अर्थात् सतयुग-त्रेता
| भक्ति माना रात, द्वापर-कलियुग | यह है सारी ड्रामा की
ड्यूरेशन | आधा समय दिन, आधा समय रात | प्रजापिता
ब्रह्माकुमार-कुमारियों का दिन और रात | यह बेहद की बात है |
बेहद का बाप बेहद के संगम पर आते हैं, इसलिए कहा जाता है
शिवरात्रि | मनुष्य यह नहीं समझते की शिवरात्रि किसको कहा जाता
है? तुम्हारे सिवाए एक भी शिवरात्रि के महत्व को नहीं जानता
क्योंकि यह है बीच | जब रात पूरी हो, दिन शुरू होता है, इसको
कहा जाता है पुरुषोत्तम संगमयुग | पुरानी दुनिया और नई दुनिया
का बीच | बाप आते ही हैं पुरुषोत्तम संगमयुगे-युगे | ऐसे नहीं
युगे-युगे | सतयुग-त्रेता का संगम उसे भी संगमयुग कह देते हैं
| बाप कहते हैं यह भूल है |
शिवबाबा कहते हैं मुझे याद करो तो पाप विनाश होंगे, इसको योग
अग्नि कहा जाता है | तुम सब ब्राह्मण हो | योग सिखाते हो
पवित्र होने लिए | वे ब्राह्मण लोग काम चिता पर चढ़ाते हैं | उन
ब्राह्मणों और तुम ब्राह्मणों में रात-दिन का फ़र्क है | वह हैं
कुख वंशावली, तुम हो मुख वंशावली | हर एक बात अच्छी रीति समझने
की है | यूं तो कोई भी आते हैं उसको समझाया जाता है, बेहद के
बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और बेहद के बाप का वर्सा
मिलेगा | फिर जितना-जितना दैवीगुण धारण करेंगे और करायेंगे
उतना ऊँच पायेंगे | बाप आते ही हैं पतितों को पावन बनाने | तो
तुमको भी यह सर्विस करनी है | पतित तो सभी हैं | गुरु लोग
किसको भी पावन कर न सकें | पतित-पावन नाम शिवबाबा का है | वह
आते भी यहाँ हैं | जब सभी पूरे पतित बन जाते हैं ड्रामा के
प्लैन अनुसार, तब बाप आते हैं | पहले-पहले तो बच्चों को अल्फ़
समझाते हैं | मुझे याद करो | तुम कहते हो ना वह पतित-पावन है |
रूहानी बाप को कहा जाता है पतित-पावन | कहते हैं – हे भगवान्
अथवा हे बाबा | परन्तु परिचय किसको भी नहीं | अभी तुम
संगमवासियों को परिचय मिला है | वह हैं नर्कवासी | तुम
नर्कवासी नहीं हो | हाँ, अगर कोई हार खाता है तो एकदम गिर पड़ते
हैं | की कमाई चट हो जाती है | मूल बात है पतित से पावन होने
की | यह है ही विशश दुनिया | वह है वाइसलेस दुनिया, नई दुनिया,
जहाँ देवतायें राज्य करते हैं | अभी तुम बच्चों को मालूम पड़ा
है | पहले-पहले देवता ही सबसे जास्ती जन्म लेते हैं | उसमें भी
जो पहले-पहले सूर्यवंशी हैं वह पहले आते हैं, 21 पीढ़ी वर्सा
पाते हैं | कितना बेहद का वर्सा है – पवित्रता-सुख-शान्ति का |
सतयुग को पूरा सुखधाम कहा जाता है | त्रेता है सेमी क्योंकि दो
कला कम हो जाती हैं | कला कम होने से रोशनी कम होती जाती है |
चन्द्रमा की भी कला कम होने से रोशनी कम हो जाती है | आखरीन
बाकी लकीर जाकर बचती है | निल नहीं होता है | तुम्हारा भी ऐसे
है – निल नहीं होते | इसको कहा जाता है आटे में नमक |
बाप
आत्माओं को बैठ समझाते हैं | यह है आत्माओं और परमात्मा का
मेला | यह बुद्धि से काम लिया जाता है | परमात्मा कब आते हैं?
जब बहुत आत्मायें अथवा बहुत मनुष्य हो जाते हैं तब परमात्मा
मेले में आते हैं | आत्माओं और परमात्मा का मेला किसलिए लगता
है? वह मेले तो मैले होने के लिए हैं | इस समय तुम बागवान
द्वारा कांटे से फूल बन रहे हो | कैसे बनते हो? याद के बल से |
बाप को कहा जाता है सर्व शक्तिमान् | जैसे बाप सर्वशक्तिमान्
है वैसे रावण भी कम शक्तिमान् नहीं है | बाप ख़ुद ही कहते हैं
माया बड़ी बलवान है, दुस्तर है | कहते हैं बाबा हम आपको याद
करते हैं, माया हमारी याद को भुला देती है | एक-दो के दुश्मन
हुए ना | बाप आकर माया पर जीत पहनाते हैं, माया फिर हरा देती
है | देवताओं और असुरों की युद्ध दिखाई है | परन्तु ऐसे कोई है
नहीं | युद्ध तो यह है | तुम बाप को याद करने से देवता बनते हो
| माया याद में विघ्न डालती है, पढाई में विघ्न नहीं डालती |
याद में ही विघ्न पड़ते हैं | घड़ी-घड़ी माया भुला देती है |
देह-अभिमानी बनने से माया का थप्पड़ लग जाता है | कामी जो होते
हैं उनके लिए बहुत कड़े अक्षर कहे जाते हैं | यह है ही रावण
राज्य | यहाँ भी समझाया जाता है पावन बनो फिर भी बनते नहीं |
बाप कहते हैं – बच्चे, काम विकार में मत जाओ, काला मुँह मत करो
| फिर भी लिखते हैं बाबा माया ने हार खिला दी अर्थात् काला
मुँह कर बैठे | गोरा और सांवरा है ना | विकारी काले और
निर्विकारी गोरे होते हैं | श्याम-सुन्दर का भी अर्थ सिवाए
तुम्हारे दुनिया में कोई नहीं जानते | कृष्ण को भी
श्याम-सुन्दर कहते हैं | बाप उनके ही नाम का अर्थ समझाते हैं |
स्वर्ग का फर्स्ट नम्बर प्रिन्स था | सुन्दरता में नम्बरवन यह
पास होता है | फिर पुनर्जन्म लेते-लेते नीचे उतरते-उतरते काले
बन जाते हैं | तो नाम रखा है श्याम-सुन्दर | यह अर्थ भी बाप
समझाते हैं | शिवबाबा तो है ही एवर सुन्दर | वह आकर तुम बच्चों
को सुन्दर बनाते हैं | पतित काले, पावन सुन्दर होते हैं |
नैचुरल ब्यूटी रहती है | तुम बच्चे आये हो कि हम स्वर्ग का
मालिक बनें | गायन भी है शिव भगवानुवाच, मातायें स्वर्ग का
द्वार खोलती हैं इसलिए वन्दे मातरम् गाया जाता है | वन्दे
मातरम् तो अन्डरस्टुड पिता भी है | बाप माताओं की महिमा को
बढ़ाते हैं | पहले लक्ष्मी, पीछे नारायण | यहाँ फिर पहले
मिस्टर, पीछे मिसेज | ड्रामा का राज़ ऐसा बना हुआ है | बाप
रचयिता पहले अपना परिचय देते हैं | एक है हद का लौकिक बाप,
दूसरा है बेहद का पारलौकिक बाप | बेहद के बाप को याद करते हैं
क्योंकि उनसे बेहद का वर्सा मिलता है | हद का वर्सा मिलते हुए
भी बेहद के बाप को याद करते हैं | बाबा आप आयेंगे तो हम और संग
तोड़ एक आपसे ही जोड़ेंगे | यह किसने कहा? आत्मा ने | आत्मा ही
इन आरगन्स द्वारा पार्ट बजाती है | हर एक आत्मा जैसे-जैसे कर्म
करती है ऐसे-ऐसे जन्म लेती है | साहूकार गरीब बनते हैं | कर्म
हैं ना | यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक हैं | इन्होंने
क्या किया, यह तो तुम जानते हो और तुम ही समझा सकते हो |
बाप
कहते हैं इन आँखों से तुम जो कुछ भी देखते हो, उससे वैराग्य |
यह तो सब ख़त्म हो जाना है | नया मकान बनाते हैं तो फिर पुराने
से वैराग्य हो जाता है | बच्चे कहेंगे बाबा ने नया मकान बनाया
है, हम उसमें जायेंगे | यह पुराना मकान तो टूट-फूट जायेगा | यह
है बेहद की बात | बच्चे जानते हैं बाप आया हुआ है स्वर्ग की
स्थापना करने | यह पुरानी छी-छी दुनिया है |
तुम
बच्चे अभी त्रिमूर्ति शिव के आगे बैठे हो | तुम विजय पहनते हो
| वास्तव में तुम्हारा यह त्रिमूर्ति कोट ऑफ़ आर्मस है | तुम
ब्राह्मणों का यह कुल सबसे ऊँचा है | चोटी है | यह राजाई
स्थापन हो रही है | इस कोट ऑफ़ आर्मस को तुम ब्राह्मण ही जानते
हो | शिवबाबा हमको ब्रह्मा द्वारा पढाते हैं, देवी-देवता बनाने
के लिए | विनाश तो होना ही है | दुनिया तमोप्रधान बनती है तो
नैचुरल कैलेमिटीज़ भी मदद करती हैं | बुद्धि से कितनी साइन्स
निकालते रहते हैं | पेट से कोई मूसल नहीं निकले हैं | यह
साइन्स निकली है, जिससे सारे कुल को ख़त्म कर देते हैं | बच्चों
को समझाया है ऊँच ते ऊँच है शिवबाबा | पूजा भी करनी चाहिए एक
शिवबाबा की और देवताओं की | ब्राह्मणों की पूजा हो नहीं सकती
क्योंकि तुम्हारी आत्मा भल पवित्र है लेकिन शरीर तो पवित्र
नहीं है, इसलिए पूजन लायक नहीं हो सकते | महिमा लायक हो | जब
फिर तुम देवता बनते हो तो आत्मा भी पवित्र, शरीर भी नया पवित्र
मिलता है | इस समय तुम महिमा लायक हो | वन्दे मातरम् गाया जाता
है | माताओं की सेना ने क्या किया? माताओं ने ही श्रीमत पर
ज्ञान दिया है | मातायें सबको श्रीमत पर ज्ञान देती हैं |
मातायें सबको ज्ञान अमृत पिलाती हैं | यथार्थ रीति तुम ही
समझते हो | शास्त्रों में तो बहुत कहानियाँ लिखी हुई हैं, वह
बैठकर सुनाते हैं | तुम सत-सत करते रहते हो | तुम यह बैठकर
सुनाओ तो सत-सत कहेंगे | अभी तो तुम सत-सत नहीं कहेंगे |
मनुष्य तो ऐसे पत्थरबुद्धि हैं जो सत-सत कहते रहते हैं | गायन
भी है पत्थरबुद्धि और पारसबुद्धि | पारस बुद्धि माना पारसनाथ |
नेपाल में कहते हैं पारसनाथ का चित्र है | पारसपुरी का नाथ यह
लक्ष्मी-नारायण हैं | उन्हों की डिनायस्टी है | अब मूल बात है
रचयिता और रचना के राज़ को जानना, जिनके लिए ऋषि-मुनि भी
नेती-नेती करते गये हैं | अभी तुम बाप द्वारा सब कुछ जानते हो
अर्थात् आस्तिक बनते हो | माया रावण नास्तिक बनाती है | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
सदा
स्मृति रहे कि हम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण हैं, हमारा
सबसे ऊँच कुल है | हमें पवित्र बनना और बनाना है | पतित-पावन
बाप का मददगार बनना है |
2.
याद में
कभी गफ़लत नहीं करना है | देह-अभिमान के कारण ही माया याद में
विघ्न डालती है इसलिए पहले देह-अभिमान को छोड़ना है | योग अग्नि
द्वारा पाप नाश करने हैं |
वरदान:-
सहज
योग की साधना द्वारा साधनों पर विजय प्राप्त करने वाले प्रयोगी
आत्मा भव
!
साधनों के होते, साधनों को प्रयोग में लाते योग की स्थिति डगमग
न हो | योगी बन प्रयोग करना इसको कहते हैं न्यारा | होते हुए
निमित्त मात्र, अनासक्त रूप से प्रयोग करो | अगर इच्छा होगी तो
वह इच्छा अच्छा बनने नहीं देगी | मेहनत करने में ही समय बीत
जायेगा | उस समय आप साधना में रहने का प्रयत्न करेंगे और साधन
अपनी तरफ़ आकर्षित करेंगे इसलिए प्रयोगी आत्मा बन सहजयोग की
साधना द्वारा साधनों के ऊपर अर्थात् प्रकृति पर विजयी बनो |
स्लोगन:-
मेरे पन
के अनेक रिश्तों को समाप्त करना ही फ़रिश्ता बनना है |
ओम् शान्ति
|