01-12-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - तुम बाप के पास आये हो अपना सौभाग्य बनाने, परम सौभाग्य उन बच्चों का है जिनका ईश्वर सब-कुछ स्वीकार करता है”   


प्रश्न:-   
बच्चों की किस एक भूल से माया बहुत बलवान बन जाती है?


उत्तर:-

बच्चे भोजन के समय बाबा को भूल जाते हैं, बाबा को न खिलाने से माया भोजन खा जाती, जिससे वह बलवान बन जाती है, फिर बच्चों को ही हैरान करती है । यह छोटी-सी भूल माया से हार खिला देती है इसलिए बाप की आज्ञा है-बच्चे, याद में खाओ । पक्का प्रण करो-तुम्हीं से खाऊँ.... जब याद करेंगे तब वह राजी होगा ।

 

गीत:-

आज नहीं तो कल बिखरेंगे यह बादल...

 

ओम् शान्ति |

बच्चे समझते हैं कि हमारे दुर्भाग्य के दिन बदलकर अब सदा के लिए सौभाग्य के दिन आ रहे हैं । नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार भाग्य बदलते ही रहते हैं । स्कूल में भी भाग्य बदलते रहते हैं ना अर्थात् ऊँच होते जाते हैं । तुम अच्छी रीति जानते हो- अब यह रात खत्म होने वाली है, अब भाग्य बदल रहा है । ज्ञान की वर्षा होती रहती है । सेन्सीबुल बच्चे समझते हैं बरोबर दुर्भाग्य से हम सौभाग्यशाली बन रहे हैं अर्थात् स्वर्ग के मालिक बन रहे हैं । नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार हम अपना दुर्भाग्य से सौभाग्य बना रहे हैं । अब रात से दिन हो रहा है । यह तुम बच्चों बिगर कोई को पता नहीं है । बाबा गुप्त है तो उनकी बातें भी गुप्त हैं । भल मनुष्यों ने बैठकर सहज राजयोग और सहज ज्ञान की बातें शास्त्रों में लिखी हैं परन्तु जिन्होंने लिखा वह तो मर गये । बाकी जो पढ़ते हैं वह कुछ समझ नहीं सकते हैं क्योंकि बेसमझ हैं । कितना फर्क है । तुम भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार समझते हो । सभी एकरस पुरूषार्थ नहीं करते हैं । दुर्भाग्य किसको, सौभाग्य किसको कहा जाता है-यह सिर्फ तुम ब्राह्मण ही जानते हो । और तो सभी घोर अन्धियारे में हैं । उनको जगाना है समझाकर । सौभाग्यशाली कहा जाता है सूर्यवंशियों को, 16 कला सम्पूर्ण वही हैं । हम बाप से स्वर्ग के लिए सौभाग्य बना रहे हैं, जो बाप स्वर्ग रचने वाला है । अंग्रेजी जानने वाली को भी तुम समझा सकते हो हम हेविनली गॉड फादर द्वारा हेविन का सौभाग्य बना रहे हैं । हेविन में हैं सुख, हेल में हैं दु .ख । गोल्डन एज माना सतयुग सुख, आइरन एज माना कलियुग दु :ख । बिल्कुल सहज बात है । हम अभी पुरूषार्थ कर रहे हैं । अंग्रेज, क्रिस्चियन आदि बहुत आयेंगे । बोलो, हम अब सिर्फ एक ही हेविनली गॉड फादर को याद करते हैं क्योंकि मौत सामने खड़ा है । बाप कहते हैं तुमको मेरे पास आना है । जैसे तीर्थों पर जाते हैं ना । बौद्धियों का अपना तीर्थ स्थान है, क्रिस्चियन का अपना । हर एक की रस्म-रिवाज अपनी होती है । हमारी है बुद्धियोग की बात । जहाँ से पार्ट बजाने आए हैं, वहाँ फिर जाना है । वह हैं हेविन स्थापन करने वाला गॉड फादर । उसने हमको बताया है हम आपको भी सच्चा पथ (रास्ता) बतलाते हैं । बाप गॉड फादर को याद करो तो अन्त मती सो गति हो जायेगी । जब कोई बीमार पड़ते हैं तो उनको सभी जाकर सावधान करते हैं कि राम कहो । बंगाल में जब कोई मरने पर होता है तो गंगा पर ले जाते हैं फिर कहते हैं हरी बोल, हरी बोल... तो हरी के पास चले जाएंगे । परन्तु कोई जाता नहीं हैं । सतयुग में तो कहेंगे नहीं कि राम-राम कहो या हरी बोल कहो । द्वापर से फिर यह भक्ति मार्ग शुरू होता हैं । ऐसै नहीं, सतयुग में कोई भगवान या गुरू को याद किया जाता है । वहाँ तो सिर्फ अपनी आत्मा को याद किया जाता है, हम आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेगी । अपनी बादशाही याद पड़ती है । समझते हैं हम बादशाही में जाकर जन्म लेंगे । यह अब पक्का निश्चय है, बादशाही तो मिलनी ही हैं ना । बाकी किसको याद करेंगे अथवा दान-पुण्य करेंगे? वहां कोई गरीब होता ही नहीं जिसको बैठ दान-पुण्य करें । भक्ति मार्ग की रस्म-रिवाज अलग, ज्ञान मार्ग की रस्म-रिवाज अलग है । अभी बाप को सब-कुछ दे 21 जन्म का वर्सा ले लिया । बस, फिर दान-पुण्य करने की दरकार नहीं । ईश्वर बाप को हम सब-कुछ दे देते हैं । ईश्वर ही स्वीकार करते हैं । स्वीकार न करें तो फिर देवे कैसे? न स्वीकार करें तो वह भी दुर्भाग्य । स्वीकार करना पड़ता है ताकि उनका ममत्व मिटे । यह भी राज़ तुम बच्चे जानते हो । जब जरूरत ही नहीं होगी तो स्वीकार क्या करेंगे? यहाँ तो कुछ इकट्ठा नहीं करना है । यहाँ से तो ममत्व मिटा देना पड़ता है ।

बाबा ने समझाया है-बाहर कहाँ जाते हो तो अपने को बहुत हल्का समझो । हम बाप के बच्चे हैं, हम आत्मा रॉकेट से भी तीखी हैं । ऐसे देही- अभिमानी हो पैदल करेंगे तो कभी थकेंगे नहीं । देह का भान नहीं आयेगा । जैसेकि यह टांगे चलती नहीं । हम उड़ते जा रहे हैं । देही- अभिमानी हो तुम कहाँ भी जाओ । आगे तो मनुष्य तीर्थ आदि पर पैदल ही जाते थे । उस समय मनुष्यों की बुद्धि तमोप्रधान नहीं थी । बहुत श्रद्धा से जाते थे, थकते नहीं थे । बाबा को याद करने से मदद तो मिलेगी ना । भल वह पत्थर की मूर्ति है परन्तु बाबा उस समय अल्पकाल के लिए मनोकामना पूरी कर देते हैं । उस समय रजोप्रधान याद थी तो उससे भी बल मिलता था, थकावट नहीं होती थी । अभी तो बड़े आदमी झट थक जाते हैं । गरीब लोग बहुत तीर्थों पर जाते हैं । साहूकार लोग बड़े भभके से घोड़े आदि पर जायेंगे । वह गरीब तो पैदल चले जायेंगे । भावना का भाड़ा जितना गरीबों को मिलता है उतना साहूकारों को नहीं मिलता । इस समय भी तुम जानते हो-बाबा गरीब निवाज हैं फिर मूँझते क्यों हो? भूल क्यों जाते हो? बाबा कहते हैं तुमको कोई तकलीफ नहीं करनी है । सिर्फ एक साजन को याद करना हैं | तुम सभी सजनियाँ हो तो साजन को याद करना पड़े । उस साजन को भोग लगाने के बिना खाने में लज्जा नहीं आती? वह साजन भी है, बाप भी है । कहते हैं मुझे तुम नहीं खिलायेंगे | तुमको तो हमें खिलाना चाहिए ना! देखो, बाबा युक्तियाँ बतलाते हैं । तुम बाप अथवा साजन मानते हो ना । जो खिलाता है, पहले तो उनको खिलाना चाहिए । बाबा कहते हमको भोग लगाकर, हमारी याद में खाओ । इसमें बड़ी मेहनत है । बाबा बार-बार समझाते हैं, बाबा को याद जरूर करना है । बाबा खुद भी बार-बार पुरूषार्थ करते रहते हैं । तुम कुमारियों के लिए तो बहुत सहज है । तुम सीढ़ी चढ़ी ही नहीं हो । कन्या की तो साजन के साथ सगाई होती ही है । तो ऐसे साजन को याद कर भोजन खाना चाहिए । उनको हम याद करते हैं और वह हमारे पास आ जाते हैं । याद करेंगे तो भासना लेंगे । तो ऐसी-ऐसी बातें करनी चाहिए बाबा के साथ । तुम्हारी यह प्रैक्टिस ह&