10-09-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - जैसे तुम्हें निश्चय है कि ईश्वर सर्वव्यापी नहीं,
वह हमारा बाप है,
ऐसे दूसरों को समझाकर निश्चय कराओ फिर उनसे ओपीनियन लो” 
प्रश्न:-
बाप
अपने बच्चों से कौन सी बात पूछते हैं,
जो
दूसरा कोई नहीं पूछ सकता है?
उत्तर:-
बाबा
जब बच्चों से मिलते हैं तो पूछते हैं-बच्चे,
पहले
तुम कब मिले हो?
जो
बच्चे समझे हुए हैं वह झट कहते हैं-हाँ बाबा,
हम 5
हजार वर्ष पहले आपसे मिले थे । जो नहीं समझते हैं,
वह
मूँझ जाते हैं । ऐसा प्रश्न पूछने का अक्ल दूसरे किसी को आयेगा
भी नहीं । बाप ही तुम्हें सारे कल्प का राज समझाते हैं ।
ओम्
शान्ति |
रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बेहद का बाप समझाते हैं-यहाँ तुम
बाप के सामने बैठे हो । घर से निकलते ही इस विचार से हो कि हम
जाते हैं शिवबाबा के पास,
जो
ब्रह्मा के रथ में आकर हमको स्वर्ग का वर्सा दे रहे हैं । हम
स्वर्ग में थे फिर 84 का चक्र लगाकर अभी नर्क में आकर पड़े हैं
। और कोई भी सतसंग में किसकी बुद्धि में यह बातें नहीं होंगी ।
तुम जानते हो हम शिवबाबा के पास जाते हैं जो इस रथ में आकर
पढ़ाते भी हैं । वो हम आत्माओं को साथ ले जाने आये हैं । बेहद
के बाप से जरूर बेहद का वर्सा मिलना है । यह तो बाप ने समझाया
है कि मैं सर्वव्यापी नहीं हूँ । सर्वव्यापक तो 5 विकार हैं ।
तुम्हारे में भी 5 विकार हैं इसलिए तुम महान दु :खी हुए हो ।
अब ईश्वर सर्वव्यापी नहीं है,
यह
ओपीनियन जरूर लिखवाना है । तुम बच्चों को तो पक्का निश्चय है
कि ईश्वर बाप सर्वव्यापी नहीं है । बाप सुप्रीम बाप है,
सुप्रीम टीचर,
गुरू
भी है । बेहद का सद्गति दाता है । वही शान्ति देने वाला है ।
और कोई जगह ऐसे ख्याल कोई नहीं करता है कि क्या मिलना है ।
सिर्फ कनरस-रामायण,
गीता
आदि जाकर सुनते हैं । बुद्धि में अर्थ कुछ नहीं । आगे हम
परमात्मा सर्वव्यापी कहते थे । अब बाप समझाते हैं यह तो झूठ है
। बड़ी ग्लानि की बात है । तो यह ओपीनियन भी बहुत जरूरी है ।
आजकल जिनसे तुम ओपनिंग आदि कराते हो,
वह
लिखते हैं ब्रह्माकुमारियां अच्छा काम करती हैं । बहुत अच्छी
समझानी देती हैं । ईश्वर को प्राप्त करने का रास्ता बताती हैं,
इससे
लोगों के दिल पर सिर्फ अच्छा असर पड़ता है । बाकी यह ओपीनियन
कोई भी नहीं लिखकर देते कि दुनिया भर में जो मनुष्य कहते हैं
ईश्वर सर्वव्यापी है,
यह
बड़ी भूल है । ईश्वर तो बाप,
टीचर,
गुरू
है | एक तो मुख्य बात है यह,
दूसरा फिर ओपीनियन चाहिए कि इस समझानी से हम समझते हैं गीता का
भगवान कृष्ण नहीं है । भगवान कोई मनुष्य या देवता को नहीं कहा
जाता है । भगवान एक है,
वह
बाप है । उस बाप से ही शान्ति और सुख का वर्सा मिलता है ।
ऐसी-ऐसी ओपीनियन लेना है । अभी जो तुम ओपीनियन लेते हो वह कोई
काम की नहीं लिखते हैं । हाँ,
इतना
लिखते हैं कि यहाँ शिक्षा बहुत अच्छी देते हैं । बाकी मुख्य
बात जिसमें ही तुम्हारी विजय होनी है,
वह
लिखाओ कि यह ब्रह्माकुमारियां सत्य कहती हैं कि ईश्वर
सर्वव्यापी नहीं है । वह तो बाप है,
वही
गीता का भगवान है । बाप आकर भक्ति मार्ग से छुड़ाए ज्ञान देते
हैं । यह भी ओपीनियन जरूरी है कि पतित-पावनी पानी की गंगा नहीं,
परन्तु एक बाप है । ऐसी-ऐसी ओपीनियन जब लिखे तब ही तुम्हारी
विजय हो । अभी टाइम पड़ा है । अभी तुम्हारी जो सर्विस चलती है,
इतना
खर्चा होता है,
यह
तो तुम बच्चे ही एक-दो को मदद करते हो । बाहर वालों को तो कुछ
पता ही नहीं । तुम ही अपने तन-मन- धन से खर्चा कर अपने लिए
राजधानी स्थापन करते हो । जो करेगा वह पायेगा । जो नहीं करते
वह पाएंगे भी नहीं । कल्प-कल्प तुम ही करते हो । तुम ही निश्चय
बुद्धि होते हो । तुम समझते हो कि बाप,
बाप
भी है,
टीचर
भी है,
गीता
का ज्ञान भी यथार्थ रीति सुनाते हैं । भक्ति मार्ग में भल गीता
सुनते आये परन्तु राज्य थोड़ेही प्राप्त किया है । ईश्वरीय मत
से बदलकर आसुरी मत हो गई । कैरेक्टर बिगड़ते पतित बन पड़े ।
कुम्भ के मेले पर कितने मनुष्य करोड़ो की अन्दाज में जाते हैं ।
जहाँ-जहाँ पानी देखते,
वहाँ
जाते हैं । समझते हैं पानी से ही पावन होंगे । अब पानी तो जहॉ
तहाँ नदियों से आता रहता है । इनसे कोई पावन बन सकता है क्या!
क्या पानी में स्नान करने से हम पतित से पावन बन देवता बन
जायेंगे । अभी तुम समझते हो कोई भी पावन बन न सके । यह है भूल
। तो इन 3 बातों पर ओपीनियन लेना चाहिए । अभी सिर्फ कहते हैं
संस्था अच्छी है,
तो
बहुतों के अन्दर जो भ्रान्तियां भरी हुई हैं कि
ब्रह्माकुमारियों में जादू है,
भगाती हैं-वह ख्यालात दूर हो जाते हैं क्योंकि आवाज तो बहुत
फैला हुआ है ना । विलायत तक यह आवाज गया था कि इनको
16108
रानियां चाहिए,
उनसे
400
मिल गई हैं क्योंकि उस समय सतसंग में 400
आते थे । बहुतों ने विरोध किया,
पिकेटिंग आदि भी करते थे,
परन्तु बाप के आगे तो कोई की चल न सके । सब कहते थे यह जादूगर
फिर कहाँ से आया । फिर वन्डर देखो,
बाबा
तो कराची में था । आपेही सारा झुण्ड आपस में मिलकर भाग आया ।
कोई को पता नहीं पड़ा कि हमारे घर से कैसे भागे । यह भी ख्याल
नहीं किया इतने सब कहाँ जाकर रहेंगे । फिर फट से बंगला ले लिया
। तो जादू की बात हो गई ना । अभी भी कहते रहते हैं यह जादूगरनी
हैं । ब्रह्माकुमारियों के पास जायेंगे तो फिर लौटेंगे नहीं ।
यह स्त्री-पुरूष को भाई-बहिन बनाती हैं फिर कितने तो आते ही
नहीं हैं । अभी तुम्हारी प्रदर्शनी आदि देखकर वह जो बातें
बुद्धि में बैठी हुई हैं,
वह
दूर होती हैं । बाकी बाबा जो ओपीनियन चाहते हैं,
वह
कोई नहीं लिखते । बाबा को वह ओपीनियन चाहिए । यह लिखें कि गीता
का भगवान कृष्ण नहीं है । सारी दुनिया समझती है कृष्ण
भगवानुवाच । परनु कृष्ण तो पूरे 84 जन्म लेते हैं । शिवबाबा है
पुनर्जन्म रहित । तो इसमें बहुतों की ओपीनियन चाहिए । गीता
सुनने वाले तो ढेर के ढेर हैं फिर देखेंगे यह तो अखबार में भी
निकल पड़ा है गीता का भगवान परमपिता परमात्मा शिव है । वही बाप,
टीचर,
सर्व
का सद्गति दाता है । शान्ति और सुख का वर्सा सिर्फ उनसे मिलता
है । बाकी अभी तुम मेहनत करते हो,
उद्घाटन कराते हो,
सिर्फ मनुष्यों की भ्रान्तियां दूर होती हैं,
समझानी अच्छी मिलती है । बाकी बाबा जैसे कहते हैं वह ओपीनियन
लिखें । मुख्य ओपीनियन है यह । बाकी सिर्फ राय देते हैं-यह
संस्था बहुत अच्छी है । इससे क्या होगा । हाँ,
आगे
चल जब विनाश और स्थापना नजदीक होगी तो तुमको यह ओपीनियन भी
मिलेंगे । समझकर लिखेंगे । अभी तुम्हारे पास आने तो लगे हैं ना
। अभी तुमको ज्ञान मिला है-एक बाप के बच्चे हम सब भाई- भाई हैं
। यह किसी को भी समझाना तो बहुत सहज है । सब आत्माओं का बाप एक
सुप्रीम बाबा है । उनसे जरूर सुप्रीम बेहद का पद भी मिलना
चाहिए । सो 5 हजार वर्ष पहले तुमको मिला था । वो लोग कलियुग की
आयु लाखों वर्ष कह देते हैं । तुम 5 हजार वर्ष कहते हो,
कितना फर्क है ।
बाप
समझाते हैं 5 हजार वर्ष पहले विश्व में शान्ति थी । यह एम
ऑब्जेक्ट सामने खड़ी है । इनके राज्य में विश्व में शान्ति थी ।
यह राजधानी हम फिर स्थापन कर रहे हैं । सारे विश्व में
सुख-शान्ति थी । कोई दुःख का नाम नहीं था । अभी तो अपार दु :ख
हैं । हम यह सुख-शान्ति का राज्य स्थापन कर रहे हैं,
अपने
ही तन-मन- धन से गुप्त रीति । बाप भी गुप्त है,
नॉलेज भी गुप्त है,
तुम्हारा पुरूषार्थ भी गुप्त है,
इसलिए बाबा गीत-कविताएं आदि भी पसन्द नहीं करते हैं । वह है
भक्ति मार्ग । यहाँ तो चुप रहना है,
शान्ति से चलते-फिरते बाप को याद करना है और सृष्टि चक्र
बुद्धि में फिराना है । अभी हमारा यह अन्तिम जन्म है,
पुरानी दुनिया में । फिर हम नई दुनिया में पहला जन्म लेंगे ।
आत्मा पवित्र जरूर चाहिए । अभी तो सब आत्मायें पतित हैं । तुम
आत्मा को पवित्र बनाने के लिए बाप से योग लगाते हो । बाप खुद
कहते हैं-बच्चे,
देह
सहित देह के सब सम्बन्ध छोड़ो । बाप नई दुनिया तैयार कर रहे हैं,
उनको
याद करो तो तुम्हारे पाप कट जाएँ । अरे,
बाप
जो तुमको विश्व की बादशाही देते हैं,
ऐसे
बाप को तुम भूल कैसे जाते हो! वह कहते हैं-बच्चे,
यह
अन्तिम जन्म सिर्फ पवित्र बनो । अब इस मृत्युलोक का विनाश
सामने खड़ा है । यह विनाश भी हूबहू 5 हजार वर्ष पहले ऐसे ही हुआ
था । यह तो स्मृति में आता है ना । अपना राज्य था तो दूसरा कोई
धर्म नहीं था । बाबा के पास कोई भी आता है तो उससे पूछता हूँ-
आगे कब मिले हो?
कोई
तो जो समझे हुए हैं वह झट कह देते हैं 5 हजार वर्ष पहले । कोई
नये आते हैं तो मूँझ पड़ते हैं । बाबा समझ जाते हैं कि
ब्राह्मणी ने समझाया नहीं है । फिर कहता हूँ सोचो,
तो
स्मृति आती है । यह बात और तो कोई भी पूछ न सके । पूछने का
अक्ल आयेगा ही नहीं । वह क्या जाने इन बातों से । आगे चलकर
तुम्हारे पास बहुत आकर सुनेंगे,
जो
इस कुल के होंगे । दुनिया बदलनी तो जरूर है | चक्र का राज़ तो
समझा दिया है । अब नई दुनिया में जाना है । इस पुरानी दुनिया
को भूल जाओ । बाप नया मकान बनाते हैं तो बुद्धि उसमें चली जाती
है । पुराने मकान में फिर ममत्व नहीं रहता है । यह फिर है बेहद
की बात । बाप नई दुनिया स्वर्ग स्थापन कर रहे हैं इसलिए अब इस
पुरानी दुनिया को देखते हुए भी नहीं देखो । ममत्व नई दुनिया
में रहे । इस पुरानी टुनिया से वैराग्य । वह तो हठयोग से हद का
सन्यास कर जंगल में जाकर बैठते हैं । तुम्हारा तो है सारी
पुरानी दुनिया से वैराग्य,
इसमें तो अथाह दु :ख हैं । नई सतयुगी दुनिया में अपार सुख हैं
तो जरूर उनको याद करेंगे । यहॉ सब दु :ख देने वाले हैं ।
माँ-बाप आदि सब विकारों में फँसा देंगे । बाप कहते हैं काम
महाशत्रु है,
उनको
जीतने से ही तुम जगतजीत बनेंगे । यह राजयोग बाप सिखलाते हैं,
जिससे हम यह पद पाते हैं । बोलो,
हमको
स्वप्न में भगवान कहते हैं पावन बनो तो स्वर्ग की राजाई मिलेगी
। तो अब मैं एक जन्म अपवित्र बन अपनी राजाई गँवाऊंगी थोड़ेही ।
इस पवित्रता की बात पर ही झगड़ा चलता है । द्रोपदी ने भी पुकारा
है यह दुशासन हमको नंगन करते हैं । यह भी खेल दिखाते हैं कि
द्रोपदी को कृष्ण 21 साडियां देते हैं । अब बाप बैठ समझाते हैं
कितनी दुर्गति हो गई है । अपार दु :ख हैं ना । सतयुग में अपार
सुख था । अब मैं आया हूँ - अनेक अधर्म का विनाश और एक सत धर्म
की स्थापना करने । तुमको राज्य- भाग्य देकर वानप्रस्थ में चले
जाएंगे । आधाकल्प फिर मेरी दरकार ही नहीं पड़ेगी । तुम कभी याद
भी नहीं करेंगे । तो बाबा समझाते हैं-तुम्हारे लिए जो सबके मन
में उल्टा वायब्रेशन है वह निकलकर ठीक हो रहा है । बाकी मुख्य
बात है ओपीनियन लिखा लो ईश्वर सर्वव्यापी नहीं है । उसने तो
आकर राजयोग सिखाया है । पतित-पावन भी बाप है । पानी की नदियां
थोड़ेही पावन बना सकेगी । पानी तो सब जगह होता है । अब बेहद का
बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो । देह सहित देह के सब सम्बन्ध
छोड़ो । आत्मा ही एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है । वह फिर कह देते
आत्मा निर्लेप है । आत्मा सो परमात्मा यह है भक्ति मार्ग की
बातें । बच्चे कहते हैं-बाबा,
याद
कैसे करें?
अरे,
अपने
को आत्मा तो समझते हो ना । आत्मा कितनी छोटी बिन्दी है तो उनका
बाप भी इतना छोटा होगा । वह पुनर्जन्म में नहीं आता है । यह
बुद्धि में ज्ञान है । बाप याद क्यों नहीं आयेगा । चलते-फिरते
बाप को याद करो । अच्छा,
बड़ा
रूप ही समझो बाप का । परन्तु याद तो एक को करो ना,
तो
तुम्हारे पाप कट जाएं । और तो कोई उपाय है नहीं । जो समझते हैं
वह कहते हैं बाबा आपकी याद से हम पावन बन पावन दुनिया,
विश्व के मालिक बनते हैं तो हम क्यों नहीं याद करेंगे । एक-दो
को भी याद दिलाना है तो पाप कट जाएं । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
जैसे बाप और नॉलेज गुप्त है,
ऐसे
पुरूषार्थ भी गुप्त करना है । गीत-कविताओं आदि के बजाए चुप
रहना अच्छा है । शान्ति में चलते-फिरते बाप को याद करना है ।
2.
पुरानी दुनिया बदल रही है इर्सालए इससे ममत्व
निकाल देना है,
इसे
देखते हुए भी नहीं देखना है । बुद्धि नई दुनिया में लगानी है ।
वरदान:-
मन-बुद्धि को झमेलों से किनारे कर मिलन मेला मनाने वाले
झमेलामुक्त भव
!
कई
बच्चे सोचते हैं यह झमेला पूरा होगा तो हमारी अवस्था वा सेवा
अच्छी हो जायेगी लेकिन झमेले पहाड़ के समान हैं । पहाड़ नहीं
हटेगा,
लेकिन जहॉ झमेला हो वहाँ अपने मन-बुद्धि को किनारे कर लो या
उड़ती कला से झमेले के पहाड़ के भी ऊपर चले जाओ तो पहाड़ भी आपको
सहज अनुभव होगा । झमेलों की दुनिया में झमेले तो आयेंगे ही,
आप
मुक्त रहो तो मिलन मेला मना सकेंगे ।
स्लोगन:-
इस बेहद
नाटक में हीरो पार्ट बजाने वाले ही हीरो पार्टधारी हैं । 
ओम्
शान्ति |