21-04-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
गृहस्थ व्यवहार में रहते पारलौकिक बाप से पूरा वर्सा लेना है,
तो अपना सब कुछ एक्सचेंज कर दो, यह बहुत बड़ा व्यापार है
| 
प्रश्न:-
ड्रामा का ज्ञान किस बात में तुम बच्चों को बहुत मदद करता है?
उत्तर:-
जब
शरीर की कोई बीमारी आती है तो ड्रामा का ज्ञान बहुत मदद करता
है क्योंकि तुम जानते हो यह ड्रामा हुबहू रिपीट होता है |
इसमें रोने पीटने की कोई बात नहीं | कर्मों का हिसाब-किताब
चुक्तू होना है | 21 जन्मों के सुख की भेंट में यह दुःख कुछ भी
भासता नहीं | ज्ञान पूरा नहीं तो तड़फते हैं |
ओम्
शान्ति
|
भगवानुवाच | भगवान् उनको कहा जाता है जिसको अपना शरीर नहीं है
| ऐसे नहीं कि भगवान् का नाम, रूप, देश, काल नहीं है | नहीं,
भगवान् को शरीर नहीं है | बाकी सब आत्माओं को अपना-अपना शरीर
है | अब बाप कहते हैं मीठे-मीठे रूहानी बच्चे, अपने को आत्मा
समझकर बैठो | वैसे भी आत्मा ही सुनती है, पार्ट बजाती है, शरीर
द्वारा कर्म करती है | संस्कार आत्मा ले जाती है | अच्छे बुरे
कर्मों का फल भी आत्मा ही भोगती है, शरीर के साथ | बिगर शरीर
के तो कोई भोगना भोग नहीं सकती इसलिए बाप कहते हैं अपने को
आत्मा समझ बैठो | बाबा हमको सुनाते हैं | हम आत्मा सुन रही हैं
इस शरीर द्वारा | भगवानुवाच मन्मनाभव | देह सहित देह के सब
धर्मों को त्याग अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो | यह एक ही
बाप कहते हैं, जो गीता का भगवान हैं | भगवान् माना ही जन्म-मरण
रहित | बाप समझाते हैं – मेरा जन्म अलौकिक है | और कोई ऐसे
जन्म नहीं लेते हैं, जैसे मैं इनमें प्रवेश करता हूँ | यह तो
अच्छी रीति याद करना चाहिए | ऐसे नहीं, सब कुछ भगवान् करता है,
पूज्य-पुजारी, ठिक्कर-भित्तर परमात्मा है | 24 अवतार,
कच्छ-मच्छ अवतार, परशुराम अवतार दिखाते हैं | अभी समझ में आता
है कि क्या भगवान् बैठ परशुराम अवतार लेंगे और कुल्हाड़ा लेकर
हिंसा करेंगे! यह रांग है | जैसे परमात्मा को सर्वव्यापी कह
दिया है, ऐसे कल्प की आयु लाखों वर्ष लिख दी है, इसको कहा जाता
है घोर अन्धियारा अर्थात् ज्ञान नहीं है | ज्ञान से होता है
सोझरा | अब अज्ञान का घोर अन्धियारा है | अब तुम बच्चे घोर
सोझरे में हो | तुम सबको अच्छी रीति जानते हो | जो नहीं जानते
हैं वह पूजा आदि करते रहते हैं | तुम सबको जान गये हो इसलिए
तुमको पूजा करने की दरकार नहीं | तुम अभी पुजारीपन से मुक्त
हुए | पूज्य देवी-देवता बनने के लिए तुम पुरुषार्थ कर रहे हो |
तुम ही पूज्य देवी-देवता थे फिर पुजारी मनुष्य बने हो | मनुष्य
में हैं आसुरी गुण इसलिए गायन है – मनुष्य को देवता बनाया |
मनुष्य को देवता किये करत न लागी वार......एक सेकेण्ड में
देवता बना देते हैं | बाप को पहचाना और शिवबाबा कहने लगा |
बाबा कहने से दिल में आता है कि हम विश्व के, स्वर्ग के मालिक
बनते हैं | यह है बेहद का बाप | अभी तुम फट से आकर पारलौकिक
बाप के बने हो | बाप फिर कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए
अब पारलौकिक बाप से वर्सा ले लो | लौकिक वर्सा तो तुम लेते आये
हो, अब लौकिक वर्से को पारलौकिक वर्से के साथ एक्सचेंज करो |
कितना अच्छा व्यापार है! लौकिक वर्सा क्या होगा? यह है बेहद का
वर्सा, सो भी गरीब झट ले लेते हैं | गरीबों को एडाप्ट करते हैं
| बाप भी गरीब निवाज़ है ना | गायन है मैं गरीब निवाज़ हूँ |
भारत सबसे गरीब है | मैं आता भी भारत में हूँ, इनको आकर
साहूकार बनाता हूँ | भारत की महिमा बहुत भारी है
|
यह सबसे बड़ा तीर्थ है | परन्तु कल्प की
आयु लंबी कर देने से बिलकुल भूल गए हैं |
समझते हैं भारत बहुत साहूकार था, अब गरीब बना है | आगे अनाज़
आदि सब यहाँ से विलायत में जाता था | अभी समझते हैं भारत बहुत
गरीब है इसलिए मदद देते हैं | ऐसे होता है – जब कोई बड़ी आसामी
फेल हो जाती है तो आपस में फैंसला कर उनको मदद देते हैं | यह
भारत है सबसे प्राचीन | भारत ही हेविन था | पहले-पहले आदि
सनातन देवी-देवता धर्म था सिर्फ़ टाइम लम्बा कर दिया है इसलिए
मूँझते हैं | भारत को मदद भी कितनी देते हैं | बाप को भी भारत
में ही आना है |
तुम
बच्चे जानते हो हम बाप से वर्सा ले रहे हैं | लौकिक बाप का
वर्सा एक्सचेंज करते हैं पारलौकिक से | जैसे इसने (ब्रह्मा ने)
किया | देखा, पारलौकिक बाप से तो ताज़-तख़्त मिलता है – कहाँ वह
बादशाही, कहाँ यह गदाई | कहा भी जाता है फ़ालो फादर | भूख मरने
की तो बात ही नहीं | बाप कहते हैं ट्रस्टी होकर सम्भालो | बाप
आकर सहज रास्ता बताते हैं | बच्चों ने बहुत तकलीफ़ देखी है तब
तो बाप को बुलाते हैं – हे परमपिता परमात्मा, रहम करो | सुख
में कोई भी बाप को याद नहीं करते, दुःख में सिमरण सब करते हैं
| अब बाप बतलाते हैं कि कैसे सिमरण करो | तुमको तो सिमरण करना
भी आता नहीं है | मैं ही आकर तुमको बतलाता हूँ | बच्चे अपने को
आत्मा समझो और पारलौकिक बाप को याद करो तो तुम्हारे पाप कट
जायेंगे | सिमर-सिमर सुख पाओ, कलह क्लेष मिटे तन के | जो भी
शरीर के दुःख हैं, सब मिट जायेंगे | तुम्हारी आत्मा और शरीर
दोनों पवित्र बन जायेंगे | तुम ऐसे कंचन थे | फिर पुनर्जन्म
लेते-लेते आत्मा पर जंक चढ़ जाती है, फिर शरीर भी पुराना मिलता
है | जैसे सोने में अलाए डाला जाता है | पवित्र सोने का जेवर
भी पवित्र होगा | उसमें चमक होती है | अलाए वाला जेवर काला हो
जायेगा | बाप कहते हैं तुम्हारे में भी खाद पड़ी है, उसको अब
निकालना है | कैसे निकलेगी? बाप से योग लगाओ | पढ़ाने वाले के
साथ योग लगाना होता है ना | यह तो बाप, टीचर, गुरु सब कुछ है |
उनको याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और वह तुमको
पढ़ाते भी हैं | पतित-पावन सर्वशक्तिमान् तुम मुझे ही कहते हो |
कल्प-कल्प बाप ऐसे ही समझाते हैं | मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे, 5
हज़ार वर्ष के बाद आकर तुम मिले हो | इसलिए तुमको सिकीलधे कहा
जाता है | अब इस देह का अहंकार छोड़ आत्म-अभिमानी बनो | आत्मा
का भी ज्ञान दे दिया, जो बाप बिगर कोई दे न सके | कोई मनुष्य
नहीं, जिसको आत्मा का ज्ञान हो | सन्यासी उदासी गुरु गोसाई कोई
भी नहीं जानते | अब वह ताक़त नहीं रही है | सबकी ताक़त कम हो गई
है | सारा झाड़ जड़जड़ीभूत अवस्था को पाया हुआ है | अब फिर नई
स्थापना होती है | बाप आकर वैराइटी झाड़ का राज़ समझाते हैं |
कहते हैं पहले तुम राम राज्य में थे, फिर अब तुम वाम मार्ग में
जाते हो तो रावण राज्य शुरू होता है फिर और-और धर्म आते हैं |
भक्ति मार्ग शुरू होता है | आगे तुम नहीं जानते थे | कोई से भी
जाकर पूछो – तुम रचयिता और रचना के आदि, मध्य, अन्त को जानते
हो? तो कोई भी नहीं बतायेंगे | बाप भक्तों को कहते हैं अब तुम
जज करो | बोर्ड पर भी लिख दो – एक्टर होकर ड्रामा के
डायरेक्टर, क्रियेटर, प्रिन्सिपल एक्टर को नहीं जानते तो ऐसे
एक्टर को क्या कहेंगे? हम आत्मा यहाँ भिन्न-भिन्न शरीर लेकर
पार्ट बजाने आते हैं तो ज़रूर यह नाटक है ना |
गीता
है माता, बाप है शिव | बाकी सब हैं रचना | गीता नई दुनिया को
क्रियेट करती है | यह भी किसको मालूम नहीं कि नई दुनिया को
कैसे क्रियेट करते हैं | नई दुनिया में पहले-पहले तुम ही हो |
अभी यह है पुरुषोत्तम संगमयुगी दुनिया | यह पुरानी दुनिया भी
नहीं है तो नई दुनिया भी नहीं है | यह है ही संगम | ब्राह्मणों
की चोटी है | विराट रूप में भी न शिवबाबा को दिखाते हैं, न
ब्राह्मण चोटी दिखाते हैं | तुमने तो चोटी भी दिखाई है ऊपर में
| तुम ब्राह्मण बैठे हो | देवताओं के पीछे हैं क्षत्रिय |
द्वापर में पेट के पुजारी, फिर शूद्र बनते हैं | यह बाजोली है
| तुम सिर्फ़ बाजोली को याद करो | यही तुम्हारे लिए 84 जन्मों
की यात्रा है | सेकण्ड में सब याद आ जाता है | हम ऐसे चक्र
लगाते हैं | यह राइट चित्र है,
वह रांग है | बाप बिगर राइट चित्र कोई
बनवा न सके |
इन द्वारा बाप समझाते हैं | तुम ऐसे-ऐसे बाजोली खेलते हो |
सेकण्ड में तुम्हारी यात्रा होती है | कोई तकलीफ़ की बात नहीं |
रूहानी बच्चे समझते हैं बाप हमको पढ़ाते हैं | यह सतसंग है सत
बाप के साथ | वह है झूठ संग | सचखण्ड बाप स्थापन करते हैं |
मनुष्य की ताक़त नहीं है | भगवान् ही कर सकते हैं | भगवान् को
ही ज्ञान का सागर कहा जाता है | साधू-सन्यासी यह नहीं जानते कि
यह परमात्मा की महिमा है | वह शान्ति का सागर तुमको शांति दे
रहा है | सुबह को भी तुम ड्रिल करते हो | शरीर से न्यारा हो
बाप की याद में रहते हो | यहाँ तुम आये हो जीते जी मरने | बाप
पर न्योछावर होते हो | यह तो पुरानी दुनिया, पुराना चोला है,
इनसे जैसे नफ़रत आती है, इनको छोड़कर जायें | कुछ भी याद न आये |
सब-कुछ भूला हुआ है | तुम कहते भी हो भगवान् ने सब कुछ दिया है
तो अब उनको दे दो | भगवान् फिर तुमको कहते हैं तुम ट्रस्टी बनो
| भगवान् ट्रस्टी नहीं बनेगा | ट्रस्टी तुम बनते हो | फिर पाप
तो करेंगे नहीं | आगे पाप आत्माओं की पाप आत्माओं से लेन-देन
होती आई है | अब संगमयुग पर तुम्हारी पाप आत्माओं से लेन-देन
नहीं है | पाप आत्माओं को दान किया तो पाप सिर पर चढ़ जायेगा |
करते हो ईश्वर अर्थ और देते हो पाप आत्मा को | बाप कुछ लेते
थोड़ेही हैं | बाप कहेंगे जाकर सेन्टर खोलो तो बहुतों का कल्याण
होगा |
बाप
समझाते हैं जो कुछ होता है हुबहू ड्रामा अनुसार रिपीट होता ही
रहता है | फिर इसमें रोने पीटने दुःख करने की बात ही नहीं |
कर्मों का हिसाब-किताब चुक्तू होना तो अच्छा ही है | वैद्य लोग
कहते हैं – बीमारी सारी उथल खायेगी | बाप भी कहते हैं रहा हुआ
हिसाब-किताब चुक्तू करना है | या तो योग से या फिर सजाओं से
चुक्तू करना पड़े | सजायें तो बहुत कड़ी हैं | उनसे बीमारी आदि
में चुक्तू होता तो बहुत अच्छा | वह दुःख 21 जन्मों के सुख की
भेंट में भासता नहीं है क्योंकि सुख बहुत है | ज्ञान पूरा नहीं
है तो बीमारी में कुड़कते (तड़फते) रहते हैं | बीमार पड़ते हैं तो
भगवान् को बहुत याद करते हैं | वह भी अच्छा है | एक को ही याद
करना है | वह भी समझाते रहते हैं | वो लोग गुरुओं को याद करते
हैं, अनेक गुरु हैं | एक सतगुरु को तो तुम ही जानते हो | वह
ऑलमाइटी अथॉरिटी है | बाप कहते हैं – मैं इन वेदों ग्रन्थों
आदि को जानता हूँ | यह भक्ति की सामग्री है, इनसे कोई मुझे
प्राप्त नहीं करता है | बाप आते ही हैं पाप आत्माओं की दुनिया
में | यहाँ पुण्य आत्मा कहाँ से आई | जिसने पूरे 84 जन्म लिए
हैं, उनके शरीर में आता हूँ | सबसे पहले यह सुनते हैं | बाबा
कहते हैं यहाँ तुम्हारी याद की यात्रा अच्छी होती है | यहाँ भल
तूफ़ान भी आयेंगे परन्तु बाप समझाते रहते हैं कि अपने को आत्मा
समझ बाप को याद करो | कल्प पहले भी तुमने ऐसे ही ज्ञान सुना था
| दिन-प्रतिदिन तुम सुनते रहते हो | राजधानी स्थापन होती रहती
है | पुरानी दुनिया का विनाश भी होना ही है | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
सवेरे-सवेरे उठ शरीर से न्यारा होने की ड्रिल करनी है | पुरानी
दुनिया, पुराना चोला कुछ भी याद न आये | सब कुछ भूला हुआ हो |
2.
संगमयुग पर पाप आत्माओं से लेन-देन नहीं करनी है | कर्मों का
हिसाब-किताब ख़ुशी-ख़ुशी से चुक्तू करना है | रोना पीटना नहीं है
| सब कुछ बाप पर न्योछावर कर फिर ट्रस्टी बन सम्भालना है |
वरदान:-
ईश्वरीय सेवा के बन्धन द्वारा समीप सम्बन्ध में आने वाले रॉयल
फैमिली के अधिकारी भव
!
ईश्वरीय सेवा का बन्धन नज़दीक सम्बन्ध में लाने वाला है | जितनी
जो सेवा करता है उतना सेवा का फल समीप सम्बन्ध में आता है |
यहाँ के सेवाधारी वहाँ की रॉयल फैमिली के अधिकारी बनेंगे |
जितनी यहाँ हार्ड सेवा करते उतना वहाँ आराम से सिंहासन पर
बैठेंगे और यहाँ जो आराम करते हैं वह वहाँ काम करेंगे | एक-एक
सेकण्ड का, एक एक काम का हिसाब-किताब बाप के पास है |
स्लोगन:-
स्व
परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन का वायब्रेशन तीव्रगति से
फैलाओ | 
ओम् शान्ति
|