05-10-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “अव्यक्त-बापदादा”
रिवाइज:26-12-78
मधुबन
“इष्ट
देव की विशेषतायें”
आज
बापदादा हर बच्चे के एक ही समय पर चार रूपों का वंश देख रहे
हैं । पहला हरेक शिववंशी,
दूसरा ब्रहमा वंशी,
तीसरा देवता वंशी,
चौथा
इष्टदेव वंशी । हरेक के चार वंश का रूप बापदादा के आगे स्पष्ट
है - भक्ति मार्ग में आप ही श्रेष्ठ आत्मायें भिन्न भिन्न रूप
में भक्तों के इष्ट देव बनते हो । इस समय भी आप सबके भक्त आप
इष्ट देवों को वा देवियों को पुकारते रहते हैं । जैसे
प्रत्यक्षता का समय स्पष्ट और समीप आता जा रहा है वैसे आप सबके
देव वंश अर्थात् राजवंश और इष्ट वंश की प्रत्यक्षता होती
जायेगी । ऐसे अनुभव करते हो कि हम ही इष्ट देव बनकर अनेक भक्त
आत्माओं की मनोकामनायें पूर्ण करने वाले हैं?
जैसे
राजवंश में नम्बरवार हैं,
वैसे
ही पूज्य रूप में भी नम्बरवार इष्ट देव बनते हो । याद है हम
कौन से इष्ट है?
कौन-सी देवी के रूप में आपका पूजन हो रहा है?
अपनी
भक्तमाला को जानते हो?
जो
अब सेवा में सहयोगी साथी बनते हैं,
उनमें कोई राजवंश में आते हैं कोई प्रजा में आते हैं,
तो
इस समय के सेवा के सहयोगी वा नजदीक के साथी और भविष्य के रायल
फैमली वा प्रजा और भक्ति में इष्ट वंशी वा भक्त । इष्ट देवों
की वंशावली भी दिखाते हैं । अपने आप से पूछो - कि हम राजवंशी
सो इष्ट वंशी हैं?
किस
नम्बर के इष्ट हो?
कोई
इष्ट देव की रोज की पूजा होती है,
कोई-कोई की कभी-कभी होती है,
कोई
की नियम प्रमाण युक्तियुक्त रूप से होती है,
कोई
की जब आया जैसे आया वैसे होती है । कोई का बड़े धूमधाम से
वैरायटी वैभवों से पूजन होता है और कोई का पूजन कभी-कभी धूमधाम
से होता है,
कोई
की भक्त माला बहुत बड़ी होती है,
अनगिनत संख्या में भक्त होते हैं और कोई के बहुत थोड़े से भक्त
होते हैं । लेकिन ब्राहमण वंशी सो राजवंशी छोटा वा बड़ा इष्ट
देव जरूर बनते हैं तो आप सभी भक्तों के इष्ट हो ।
बापदादा आज सभी को इष्ट देव वा इष्ट देवी के रूप में देख रहे
हैं कि मेरे बच्चे कितने पूज्य हैं! अपना पूज्य स्वरूप भी सदा
सामने रखो । श्रेष्ठ इष्ट देव बनने वाले की विशेष आठ बातें याद
रखो । जैसे अष्ट शक्तियाँ याद हैं ना - इष्ट बनने की आठ
विशेषताएं हैं । उसको तो अच्छी तरह से जानते हो ना - अपने
यादगार चित्रों में देखने से भी वह विशेषताएं अनुभव होंगी ।
पहली
विशेषता
- इष्ट देव सदा रहमदिल होगा । कौन-सा रहम?
हर
आत्मा को भटकने वा भिखारीपन से बचाने का । हरेक के ऊपर रहम
करेगा । निष्काम रहमदिल होगा । किस पर रहम और किस पर नहीं -
ऐसे नहीं अर्थात् बेहद रूप में रहमदिल होंगे । उनके रहम के
संकल्प से अन्य आत्माओं को अपने रूहानी रूप या रूह की मंजिल
सेकेण्ड में स्मृति में आ जायेगी । उनके रहम के संकल्प से
भिखारी को सर्व खजानों की झलक दिखाई देगी । भटकती हुई आत्माओं
को मुक्ति वा जीवन मुक्ति का किनारा वा मंजिल सामने दिखाई देगी
- ऐसा रहमदिल होगा ।
दूसरी बात
- इष्ट देव आत्मा सदैव सर्व के दुःख हर्ता सुख कर्ता का पार्ट
बजायेगी । दूसरे का दुःख अपने दुःख के समान समझ सहन नहीं कर
सकेगी । दुःख को भूलाने की वा दुःखी को सुखी करने की युक्ति वा
साधन सदा उसके पास जादू की चाबी के मुआफ़िक होगा ।
तीसरी बात
- सदा संकल्प,
बोल
और कर्म से प्यूरिटी की परसनल्टी दिखाई देगी ।
चौथी
बात
- सदा स्वभाव में,
संस्कार में,
चलन
में सिम्पुल लेकिन श्रेष्ठ दिखाई देगा ।
पांचवी बात
- जैसे आपके जड़ चित्र सदा श्रृंगारे हुए दिखाये हैं वैसे सर्व
गुणों के श्रृंगार से सदा सजे सजाये नज़र आयेंगे । कोई एक गुण
रूपी श्रृंगार भी कम नहीं होगा ।
छठी
बात
- ऐसी इष्ट आत्मा के फीचर्स सदा स्वयं भी कमल समान होंगे और
दूसरे को भी कमल समान न्यारा और प्यारा बना देंगे ।
सातवीं बात
- ऐसी इष्ट आत्मा सदा स्थिति में अचल,
अडोल
होगी । जैसे मूर्ति को स्थापित करते हैं,
वैसे
वह चैतन्य मूर्ति सदा एकरस स्थिति में स्थित होगी ।
आंठवी बात
- वह सदा सर्व के प्रति संकल्प और बोल में वरदानी होंगे ।
ग्लानि वा शिकायत करने वाले के ऊपर भी वरदानी । ग्लानि करने
वाले के प्रति भी वाह-वाह के पुष्पों की वर्षा करने वाले होंगे
- इसके रिटर्न में इष्टदेव रूप में पुष्पों की वर्षा ज्यादा
होती है । महिमा करने वाले की महिमा करना - यह कामन बात है -
लेकिन ग्लानि करने वाले के गले में भी गुणमाला पहनाना,
जन्म-जन्म के लिए भक्त निमित कर देना है या साथ-साथ वर्तमान
समय के सदा सहयोगी बनाना - निश्चित हो जाते हैं । जैसे आजकल आप
विशेष आत्माओं के स्वागत के समय गले में स्थूल माला डालते हैं
तो फिर आप क्या करते हो?
डालने वाले के गले में रिटर्न कर देते हो ना - ऐसे ग्लानि करने
वाले को भी आप गुणमाला पहनाओ तो वह स्वत: ही आपकी गुण-माला
आपको रिटर्न करेंगे । जैसे बाप के हर कदम,
हरकर्म के गुण गाते हैं वैसे आप इष्टदेव,
महान
आत्माओं के सदागुण गाते रहेंगे अर्थात्(यह देना,
अनेक
बार का लेना हो जाता है - अब समझा इष्टदेव की विशेषताएं । तो
अब सभी अपने आपको चेक करो - इष्ट देव स्वरूप कहाँ तक तैयार हुए
है । जब मूर्ति तैयार हो जाती है तब पर्दा खुलता है । तो आप सब
तैयार हो वा कोई तैयारी कर रहे हैं?
आपके
भक्त अधूरे साक्षात्कार में राजी नहीं होंगे इसलिए अपने इष्ट
देव रूप को सदा सजा सजाया हुआ रखो । समझा अब क्या करना है?
देहली निवासियों को तैयार होना चाहिए क्योंकि समूर्णता
सम्पन्नता का झण्डा और राज्य का झण्डा दोनों देहली में होना है
तो देहली निवासी फ्लैग सेरीमनी की डेट फिक्स करें - अभी से
तीव्र तैयारियाँ करने लग जाना ह । विदेशी तो पहला कार्य
करेंगे- विदेशी विदेश से पावरफुल आवाज़ द्वारा विजय के झण्डे की
नींव डालेंगे । सब विदेश के भिन्न-भिन्न स्थानों से विशेष
आत्माओं के सहयोग के आधार से विजय का फाउन्डेशन पड़ेगा । जैसे
आजकल की दुनिया में भी हर स्थान की मिट्टी एक स्थान पर इकट्ठी
करते हैं - तो हर विदेश के स्थान के विशेष व्यक्तियों के आवाज़
द्वारा भारत में विजय के झण्डे का फाउन्डेशन मजबूत होगा । तो
विदेशी इस कार्य के फाउन्हर हैं । झण्डा लहराने के पहले
फाउन्हेशन चाहिए । हर स्थान के निकले हुए विशेष आत्माओं रूपी
फूलों का गुलदस्ता बापदादा और सर्व परिवार के आगे पहले विदेश
भेंट करेगा । गुलदस्ता बन रहा है ना । ऐसी विशेष खुशबू अर्थात
विशेषता हो जो फारेन से भारत तक पहुँचती रहे । ऐसे खुशबूदार
रूहानी रूहे-गुलाब,
सदा-गुलाब का गुलदस्ता तैयार हो रहा है । जैसे कोई बहुत अच्छी
मन को मोहित करने वाली खुशबू होती है तो न चाहते हुए भी उस तरफ
अटेंशन जाता ही है कि यह कहाँ से खुशबू आ रही है?
तो
रूहानी रूहे गुलाब फूलों की खुशबू जब भारत तक पहुँचेगी तो सबके
अटेंशन को अपने तरफ आकर्षित करेंगे । सब ढूढेंगे कि यह खुशबू
कहाँ से आई?
इस
खुशबू का केन्द्र कहाँ है । अच्छा ।
ऐसे
सदा सजे सजाये मूर्ति,
राजवंशी सो इष्ट वंशी सर्व आत्माओं को,
सदा
श्रेष्ठ संकल्पों द्वारा वरदान देने वाली,
सर्व
आत्माओं को रहमदिल बन मंजिल दिखाने वाली,
ऐसे
महादानी वरदानी इष्ट देव आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और
नमस्ते ।
दादियों जी से बातचीत -
बापदादा का एक प्रश्न है - कोई-कोई महारथियों के संस्कार
ब्रह्मा समान ज्यादा हैं और कोई-कोई के विष्णु समान संस्कार
हैं । कोई की जन्मपत्री में आदि से अन्त तक स्थापना के निमित्त
बनने के संस्कार हैं और कोई-कोई के पालना के संस्कार हैं -
इसका रहस्य क्या है?
इस
पर रूहरिहान करना । दोनों ही विशेष आत्मायें भी हैं लेकिन
अन्तर भी विशेष है । तो दोनों में नम्बरवन कौन हुए और इसका
भविष्य के साथ क्या सम्बन्ध है?
वर्तमान दोनों की विशेष प्राप्तियाँ क्या हैं और दोनों के पूजन
में भी अन्तर क्या है?
इस
पर रूहरिहान करना,
बड़ी
टापिक है ना । इस टापिक से अपना पूज्य रूप भी समझ सकेंगे कि
मेरा कौन-सा रूप होगा?
वह
भासना आयेगी । जैसे अभी आपको कोई आप के नाम से बुलाता है तो झट
फील होता है ना कि मुझे बुला रहे हैं - ऐसे स्पष्ट भासना आयेगी
। अच्छा ।
आज
तो देहली का टर्न है - देहली पर सबको चढ़ाई करनी है - देहली की
धरनी को प्रणाम जरूर करना हैं । देहली का विशेष पार्ट स्थापना
में है और बाम्बे का विशेष पार्ट विनाश में है । कलकत्ते का
पार्ट भी आवाज़ फैलाने में अच्छा सहयोगी रहेगा - अच्छा अब देहली
वाले क्या करेंगे?
देहली को दिल कहते हैं - तो दिल की धड़कन कैसी है?
बापदादा की दिल अर्थात् स्थापना की दिल - तो स्थापना की दिल का
क्या हाल है?
तीव्रगति है वा धीमी गति है?
देहली वाले जब विशेष वर्ग की वैरायटी सर्विस कर गुलदस्ता तैयार
करें तब कहेंगे स्थापना की तीव्रगति है । अभी सम्पर्क का धागा
नहीं बाँधा है ।
देहली की तरफ सबकी नज़र है । बाप की भी नज़र है तो सर्व की भी
नज़र है क्योंकि स्थापना की बिन्दी भी वहाँ ही और राज्य की
बिन्दी भी वही हैं । तो सबकी नज़र बिन्दू तरफ जानी है - देहली
की महावीर पाण्डव सेना तो बहुत हैं । पाण्डवों को मिलकर हर मास
कोई सबूत देना चाहिए क्योंकि देहली के सपूत मशहूर हैं । सपूत
अर्थात् सबूत देने वाले । देहली से सेवा की प्रेरणा मिलनी
चाहिए । जैसे सेन्ट्रल गवर्मेन्ट है तो सेण्टर द्वारा सर्व
स्टेशन को डायरेक्यान मिलते हैं वैसे सेवा के प्लैन्स या सेवा
को नवीनता में लाने के लिए पार्लियामेंट होनी चाहिए । यही
पाण्डव भवन,
पाण्डव गवर्मेन्ट की पार्लियामेंन्ट है । तो पार्लियामेन्ट में
सब तरफ के सर्व मेम्बर्स की राय से नये रूल तैयार होते हैं -
देहली से हर मास विशेष प्लैन्स आउट होने चाहिए तब समाप्ति समीप
आयेगी और इसी पार्लियामेन्ट हाउस में जय-जयकार होगी । पाण्डवों
ने अच्छी तरह सुना! शक्तियों के बिना पाण्डव कुछ कर ही नहीं
सकते । शक्तियाँ पाण्डवों को आगे रखें और पाण्डव शक्तियों को
आगे रखें तब विष्णुपुरी स्थापन होगी । विष्णुपुरी की स्थापना
में कम्बाइन्ड का पार्ट है - तो स्थापना के कार्य में भी
कम्बाइन्ड का कार्य चलने से ही सफलता होती है ।
देहली में प्लैनिंग बुद्धि है,
लेकिन अभी गुप्त है । अभी सब अपनी विशेषता रूपी अंगुली दो ।
सर्व के विशेषता की अंगुली से ही स्थापना का कार्य सम्पन्न
होगा । विशेषता को गुप्त नहीं रखो । कार्य में लगाओ लेकिन
निष्काम । तो जैसे स्थापना में नम्बरवन देहली रही वैसे
विशेषताओं के गुलदस्ते में भी नम्बरवन बनना है । देहली में सब
महारथियों के सहयोग के हाथ हैं,
सर्व
महारथियों के सहयोग का पानी देहली की धरनी में पड़ा हुआ है -
देहली के फाउन्डेशन में कोई महारथी रहा नहीं है,
सबने
पानी दिया है । अभी सिर्फ योग की धूप चाहिए फिर देखो कितनी
विशेष आत्माओं का प्रत्यक्ष फल निकलता है । स्वत: ही आपके पास
लेने के लिए आयेंगे । देहली की धरनी की विशेषताएं बहुत हैं ।
पहले तो प्लैनिंग बनाओ,
जिसमें चारों ओर के महारथी और शक्तियों का संगठन होना ही चाहिए
। धरनी पर महारथियों का इकट्ठा होना भी स्थापना के कार्य को
वृत्ति और वातावरण से समीप लाने का कार्य करता है । जैसे मधुबन
चरित्र भूमि है,
मिलन
भूमि है,
बाप
को साकार रूप में अनुभव कराने वाली भूमि है वैसे देहली की धरनी
सेवा को प्रत्यक्ष रूप देने के निमित्त है तब देहली से आवाज
निकलेगा । अभी सबकी बुद्धियों में यह संकल्प तक उत्पन्न हुआ है
कि जो कुछ कर रहे हैं,
जो
चल रहा है उससे कुछ होना नहीं है,
अभी
सब सहारे टूटने लगे हैं - इसलिए ऐसे समय पर यथार्थ सहारा अभी
जल्दी दूंढेंगे । माँग करेंगे । ऐसी नई बात कोई सुनावे और
आखरीन में चारों तरफ भटकने के बाद बाप के सहारे के आगे सब माथा
झुकायेंगे । समझा - अब देहली वालों को क्या करना है! अच्छा ।
वरदान:-
बातों रूपी बादलों को देख घबराने के बजाए सेकण्ड में क्रास
करने वाले सिद्धि स्परूप भव
!
कई
बच्चे शास्त्रवादियों की तरह बात बनाने में बहुत होशियार हैं ।
ऐसी बातें बनाते हैं जो सुनते ही बाप को भी हंसी आ जाती है
लेकिन दूसरे प्रभावित हो जाते हैं । यह अनेक प्रकार की व्यर्थ
बातें,
व्यर्थ रजिस्टर का रोल बनाती रहती हैं,
इसलिए इससे तीव्र उड़ान भरो,
इनोसेंट बनो । बाप को देखो बातों को नहीं । ये बातें ही बादल
हैं इन्हें सेकण्ड में क्रास करने की विधि से सिद्धि स्वरूप
बनो ।
स्लोगन:-
किसी भी
बात में क्वेश्चन मार्क उठाना अर्थात् व्यर्थ का खाता प्रारम्भ
होना ।
ओम्
शान्ति
|