13-01-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
"मीठे बच्चे - ब्रह्मा बाबा शिवबाबा का रथ है, दोनों का इकट्ठा पार्ट चलता है, इसमें जरा भी संशय नहीं आना चाहिए" 
प्रश्न:
मनुष्य दु:खों से छूटने के लिए कौन सी युक्ति रचते हैं, जिसको महापाप कहा जाता है?
उत्तर:
मनुष्य जब दु:खी होते हैं तो स्वयं को मारने के (खत्म करने के) अनेक उपाय रचते हैं। जीव घात करने की सोचते हैं, समझते हैं इससे हम दु:खों से छूट जायेंगे। परन्तु इन जैसा महापाप और कोई नहीं। वह और ही दु:खों में फँस जाते हैं क्योंकि यह है ही अपार दु:खों की दुनिया।
ओम् शान्ति।
बच्चों से बाप पूछते हैं, आत्माओं से परमात्मा पूछते हैं-यह तो जानते हो हम परमपिता परमात्मा के सामने बैठे हैं। उनको अपना रथ तो है नहीं। यह तो निश्चय है ना-इस भृकुटी के बीच में बाप का निवास स्थान है। बाप खुद कहते हैं मैं इनकी भृकुटी के बीच में बैठता हूँ। इनका शरीर लोन पर लेता हूँ। आत्मा भृकुटी के बीच है तो बाप भी वहीं बैठते हैं। ब्रह्मा है तो शिवबाबा भी है। ब्रह्मा नहीं हो तो शिवबाबा बोलेंगे कैसे? ऊपर में शिवबाबा को तो सदैव याद करते आये। अब तुम बच्चों को पता है हम बाप के पास यहाँ बैठे हैं। ऐसे नहीं कि शिवबाबा ऊपर में है। उनकी प्रतिमा यहाँ पूजी जाती है। यह बातें बहुत समझने की हैं। तुम तो जानते हो बाप ज्ञान का सागर है। ज्ञान कहाँ से सुनाते हैं? क्या ऊपर से सुनाते हैं? यहाँ नीचे आया है। ब्रह्मा तन से सुनाते हैं। कई कहते हैं हम ब्रह्मा को नहीं मानते। परन्तु शिवबाबा खुद कहते हैं ब्रह्मा तन द्वारा कि मुझे याद करो। यह समझ की बात है ना। लेकिन माया बड़ी जबरदस्त है। एकदम मुँह फिराकर पिछाड़ी कर देती है। अब तुम्हारा कांध शिवबाबा ने सामने किया है। सम्मुख बैठे हो फिर जो ऐसे समझते हैं ब्रह्मा तो कुछ नहीं, उनकी क्या गति होगी! दुर्गति को पा लेते हैं। कुछ भी ज्ञान नहीं। मनुष्य पुकारते भी हैं ओ गाड फादर। फिर वह गाड फादर सुनता है क्या? उनको कहते हैं ना लिबरेटर आओ या वहाँ बैठे लिबरेट करेंगे? कल्प-कल्प पुरूषोत्तम संगमयुग पर ही बाप आते हैं, जिसमें आते हैं उनको ही अगर उड़ा दें तो क्या कहेंगे! नम्बरवन तमोप्रधान। निश्चय होते हुए भी माया एकदम मुँह फेर देती है। इतना उसमें बल है जो एकदम वर्थ नाट ए पेनी बना देती है। ऐसे भी कोई न कोई सेन्टर्स पर हैं इसलिए बाप कहते हैं खबरदार रहना। भल किसको सुनाते भी रहें सुनी हुई बातें, परन्तु वह जैसे पंडित मिसल हो जाते। जैसे बाबा पंडित की कहानी बताते हैं ना। उसने कहा राम-राम कहने से सागर पार हो जायेंगे। यह भी एक कहानी बनाई हुई है। इस समय तुम बाप की याद से विषय सागर से क्षीरसागर में जाते हो ना। उन्होंने भक्तिमार्ग में ढेर कथायें बना दी हैं। ऐसी बातें तो होती नहीं। यह एक कहानी बनी हुई है। पंडित औरों को कहता था, खुद बिल्कुल चट खाते में। खुद विकारों में जाते रहना और दूसरों को कहना निर्विकारी बनो, उनका क्या असर होगा। ऐसे भी ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ हैं-खुद निश्चय में नहीं, दूसरों को सुनाते रहते हैं इसलिए कहाँ-कहाँ सुनाने वाले से भी सुनने वाले तीखे चले जाते हैं। जो बहुतों की सेवा करते हैं वह जरूर प्यारे तो लगते हैं ना। पंडित झूठा निकल पड़े तो उनको कौन प्यार करेंगे! फिर प्यार उन पर चला जायेगा जो प्रैक्टिकल में याद करते हैं। अच्छे-अच्छे महारथियों को भी माया हप कर लेती है। बहुत हप हो गये। बाबा भी समझाते हैं अभी कर्मातीत अवस्था नहीं हुई है। एक तरफ लड़ाई होगी, दूसरे तरफ कर्मातीत अवस्था होगी। पूरा कनेक्शन है। फिर लड़ाई पूरी हो जाने से ट्रांसफर हो जायेंगे। पहले रूद्र माला बनती है। यह बातें और कोई नहीं जानते। तुम समझते हो विनाश सामने खड़ा है। अब तुम हो मैनारिटी, वह है मैजारिटी। तो तुमको कौन मानेगा। जब तुम्हारी वृद्धि हो जायेगी फिर तुम्हारे योगबल से बहुत खींचकर आयेंगे। जितना तुमसे कट (जंक) निकलती जायेगी उतना बल भरता जायेगा। ऐसे नहीं बाबा जानी जाननहार है। यहाँ आकर सबको देखते हैं, सबकी अवस्थाओं को जानते हैं। बाप बच्चों की अवस्था को नहीं जानेंगे क्या? सब कुछ मालूम पड़ता है। इसमें अन्तर्यामी की कोई बात नहीं। अभी तो कर्मातीत अवस्था हुई नहीं है। आसुरी बातचीत, चलन आदि सब प्रसिद्ध हो जाते हैं। तुम्हें तो दैवी चलन बनानी है। देवतायें सर्वगुण सम्पन्न हैं ना। अब तुमको ऐसा बनना है। कहाँ वह असुर, कहाँ देवतायें! परन्तु माया किसको भी छोड़ती नहीं है, छुई-मुई बना देती है। एकदम मार डालती है। 5 सीढ़ी हैं ना। देह-अभिमान आने से ही ऊपर से एकदम नीचे गिरते हैं। गिरा और मरा। आजकल अपने को मारने लिए कैसे-कैसे उपाय रचते हैं। 21 मार से कूदते हैं, तो एकदम खत्म हो जायें। ऐसा न हो फिर हॉस्पिटल में पड़े रहें। दु:ख भोगते रहें। 5 मंजिल से गिरे और न मरे तो कितना दु:ख भोगते रहेंगे। कोई अपने को आग लगाते हैं। अगर कोई उनको बचा लेते हैं तो उनको कितना दु:ख सहन करना पड़ता है। जल जाए तो आत्मा तो भाग जायेगी ना! इसलिए जीवघात करते हैं, शरीर को खत्म कर देते हैं। समझते हैं शरीर छोड़ने से दु:खों से छूट जायेंगे। परन्तु यह भी महापाप है, और भी अधिक दु:ख भोगने पड़ते हैं क्योंकि यह है ही अपार दु:खों की दुनिया, वहाँ हैं अपार सुख। तुम बच्चे समझते हो अभी हम रिटर्न होते हैं, दु:खधाम से सुखधाम में जाते हैं। अब बाप जो सुखधाम का मालिक बनाते हैं उनको याद करना है। इन द्वारा बाप समझाते हैं, चित्र भी हैं ना। ब्रह्मा द्वारा स्वर्ग की स्थापना। तुम कहते हो बाबा हम अनेक बार आपसे स्वर्ग का वर्सा लेने आये हैं। बाप भी संगम पर ही आते हैं जबकि दुनिया को बदलना है। तो बाप कहते हैं मैं आया हूँ तुम बच्चों को दु:ख से छुड़ाकर सुख की पावन दुनिया में ले जाने। बुलाते भी हैं - हे पतित-पावन.... यह थोड़ेही समझते हैं कि हम महाकाल को बुलाते हैं कि हमको इस छी-छी दुनिया से घर ले चलो। जरूर बाबा आयेगा। हम मरेंगे तब तो पीस होगी ना। शान्ति-शान्ति करते रहते हैं। शान्ति तो है परमधाम में। परन्तु इस दुनिया में शान्ति कैसे हो-जब तक इतने ढेर मनुष्य हैं! सतयुग में सुख-शान्ति थी। अभी कलियुग में अनेक धर्म हैं। वह जब खत्म हों तब एक धर्म की स्थापना हो, तब तो सुख-शान्ति हो ना! हाहाकार के बाद ही फिर जय-जयकार होगी। आगे चल देखना मौत का बाजार कितना गर्म होता है! विनाश जरूर होना है। एक धर्म की स्थापना बाप आकर कराते हैं। राजयोग भी सिखाते हैं। बाकी सब अनेक धर्म खलास हो जायेंगे। गीता में कुछ दिखाया नहीं है। 5 पाण्डव और कुत्ता हिमालय पर गल गये। फिर रिजल्ट क्या? प्रलय दिखा दी है। जलमई भल होती है परन्तु सारी दुनिया जलमई हो नहीं सकती। भारत तो अविनाशी पवित्र खण्ड है। उसमें भी आबू सबसे पवित्र तीर्थ स्थान है, जहाँ बाप आकर तुम बच्चों के द्वारा सर्व की सद्गति करते हैं। दिलवाला मन्दिर में कितना अच्छा यादगार है। कितना अर्थ सहित है। परन्तु जिन्होंने बनाया है वह नहीं जानते हैं। फिर भी अच्छे समझू तो थे ना। द्वापर में जरूर अच्छे समझदार होंगे। कलियुग में होते हैं तमोप्रधान। द्वापर में फिर भी तमो बुद्धि होंगे। सब मन्दिरों से यह ऊंच है, जहाँ तुम बैठे हो।
अभी तुम देखते रहेंगे विनाश में होलसेल मौत होगा। होलसेल महाभारी लड़ाई लगेगी। सब खत्म हो जायेंगे। बाकी एक खण्ड रहेगा। भारत बहुत छोटा होगा, बाकी सब खलास हो जायेंगे। स्वर्ग कितना छोटा होगा। अभी यह ज्ञान तुम्हारी बुद्धि में है। कोई को समझाने में भी देरी लगती है। यह है पुरूषोत्तम संगमयुग। यहाँ कितने ढेर मनुष्य हैं और वहाँ कितने थोड़े मनुष्य होंगे, यह सब खत्म हो जायेंगे। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होगी शुरू से। जरूर स्वर्ग से रिपीट करेंगे। पिछाड़ी में तो नहीं आयेंगे। यह ड्रामा का चक्र अनादि है, जो फिरता ही रहता है। इस तरफ कलियुग, उस तरफ है सतयुग। हम संगम पर हैं। यह भी तुम समझते हो। बाप आते हैं, बाप को रथ तो जरूर चाहिए ना। तो बाप समझाते हैं, अभी तुम घर जाते हो। फिर यह लक्ष्मी-नारायण बनना है, तो दैवीगुण भी धारण करने चाहिए। माया ऐसी है जो एकदम चुहरा (जमादार) बना देती है। तब लिखते हैं - बाबा हमने काला मुँह कर लिया है।
यह भी तुम बच्चों को समझाया जाता है रावण राज्य और राम राज्य किसको कहा जाता है। पतित से पावन, फिर पावन से पतित कैसे बनते हैं! यह खेल का राज़ बाप बैठ समझाते हैं। बाप नॉलेजफुल, बीजरूप है ना! चैतन्य है। वही आकर समझाते हैं। बाप ही कहेंगे सारे कल्प वृक्ष का राज़ समझा? इनमें क्या-क्या होता है? तुमने इसमें कितना पार्ट बजाया है? आधाकल्प है दैवी स्वराज्य। आधाकल्प है आसुरी राज्य। अच्छे-अच्छे जो बच्चे हैं उन्हों को बुद्धि में नॉलेज रहती है। बाप आपसमान बनाते हैं ना! टीचर्स में भी नम्बरवार होते हैं। कई तो टीचर होकर भी फिर बिगड़ पड़ते हैं। बहुतों को सिखाकर फिर खुद खत्म हो गये। छोटे-छोटे बच्चों में भिन्न-भिन्न संस्कार वाले होते हैं। कोई तो देखो नम्बरवन शैतान, कोई फिर परिस्तान में जाने लायक। कई हैं जो ज्ञान न उठाते, न अपनी चलन सुधारते, सबको दु:ख ही देते रहते हैं। यह भी शास्त्रों में दिखाया है कि असुर आकर छिपकर बैठते थे। असुर बन कितनी तकलीफ देते हैं। यह तो सब होता रहता है। ऊंच ते ऊंच बाप को ही स्वर्ग की स्थापना करने आना पड़ता है। माया भी बड़ी जबरदस्त है। दान देते हैं फिर भी माया बुद्धि फिरा देती है। आधा को जरूर माया खायेगी। तब तो कहते हैं माया बड़ी दुस्तर है। आधाकल्प माया राज्य करती है तो जरूर इतनी पहलवान होगी ना। माया से हारने वाले की क्या हालत हो जाती है! अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) कभी भी छुई-मुई नहीं बनना है। दैवीगुण धारण कर अपनी चलन सुधारनी है।
2) बाप का प्यार पाने के लिए सेवा करनी है, लेकिन जो दूसरों को सुनाते, वह स्वयं धारण करना है। कर्मातीत अवस्था में जाने का पूरा-पूरा पुरूषार्थ करना है।
वरदान:
बाप-दादा के साथ द्वारा माया को दूर से ही मूर्छित करने वाले मायाजीत, जगतजीत भव! 
जैसे बाप के स्नेही बने हो ऐसे बाप को साथी बनाओ तो माया दूर से ही मूर्छित हो जायेगी। शुरू-शुरू का जो वायदा है तुम्हीं से खाऊं, तुम्हीं से बैठूं, तुम्हीं से रूह को रिझाऊं...इसी वायदे प्रमाण सारी दिनचर्या में हर कार्य बाप के साथ करो तो माया डिस्टर्ब कर नहीं सकती, उसका डिस्ट्रक्शन हो जायेगा। तो साथी को सदा साथ रखो, साथ की शक्ति से वा मिलन में मगन रहने से मायाजीत, जगतजीत बन जायेंगे।
स्लोगन:
अपनी ऊंची वृत्ति से प्रवृत्ति की परिस्थितियों को चेंज करो। 