01-09-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - तुमने सारे कल्प में आलराउंड पार्ट बजाया,
अब पार्ट पूरा हुआ,
घर चलना है” 
प्रश्न:-
तुम
बच्चे अपने भाग्य की महिमा किन शब्दों में करते हो
?
उत्तर:-
हम
हैं ब्राह्मण चोटी । हमें निराकार भगवान बैठ पढ़ाते हैं ।
दुनिया में मनुष्य,
मनुष्य को पढ़ाते लेकिन हमें स्वयं भगवान पढ़ाते हैं तो कितने
भाग्यशाली हुए ।
प्रश्न:-
इस
ड्रामा में सबसे बड़ा पोजीशन किसका है?
उत्तर:-
निराकार बाप का,
वह
तुम सब आत्माओं का बाप है । सब आत्मायें ड्रामा के सूत्र में
बांधी हुई हैं । सबसे बड़ा पोजीशन बाप का है ।
ओम्
शान्ति |
रूहानी बच्चों से रूहानी बाप पूछ रहे हैं - मीठे-मीठे बच्चों,
अपना
घर शान्तिधाम याद है?
भूल
तो नहीं गये हो?
अब
84 का चक्र पूरा हुआ,
कैसे
पूरा हुआ है यह भी तुम समझ गये हो । सतयुग से लेकर कलियुग अन्त
तक ऐसे और कोई भी पूछ न सके । मीठे-मीठे लाड़ले बच्चों से बाबा
पूछते हैं,
अब
घर चलना है ना?
घर
चलकर फिर सुखधाम में आना है । यह सुखधाम तो नहीं है । यह है
पुरानी दुनिया,
दु:खधाम । वह है शान्तिधाम,
सुखधाम । अब इस दु:ख से मुक्त हो जाना है मुक्तिधाम ।
मुक्तिधाम अथवा शान्तिधाम जैसेकि सामने खड़े हैं । वह है घर ।
फिर तुम नये विश्व में आयेंगे,
जहाँ
पवित्रता,
सुख,
शान्ति भी होगी । यह तो समझते हैं ना-गाते भी यह हैं । बाप को
भी पुकारते हैं-हे पतित- पावन,
इस
पतित दुनिया से हमको ले चलो,
इसमें बहुत दु:'ख
है । हमको सुख में ले चलो । स्मृति में आता है । स्वर्ग को सब
याद करते हैं । शरीर छोड़ा,
कहेंगे स्वर्ग पधारा । लेफ्ट फॉर हेविनली अबोड । किसने लेफ्ट
किया?
आत्मा ने । शरीर तो नहीं जाता है । आत्मा ही जाती है । अभी तुम
बच्चे ही शान्तिधाम सुखधाम को जानते हो और कोई नहीं जानते ।
तुम बच्चों की बुद्धि में नॉलेज है-शान्तिधाम क्या है और
सुखधाम क्या है । तुम सुखधाम में थे,
अब
फिर दु:खधाम में आये हो । सेकण्ड,
मिनट,
घण्टे,
दिन,
वर्ष
बीत गये । अब 5 हजार वर्ष में बाकी कुछ दिन रहते हैं । बाप
बच्चों को स्मृति दिलाते रहते हैं । बहुत सहज बात है,
इसमें मूँझने की तो दरकार ही नहीं । आत्मा 84 जन्म कैसे लेती
है,
यह
भी किसको पता नहीं है । लाखों वर्ष की बात तो किसको याद भी
रहना मुश्किल है । यह है ही 5 हजार वर्ष की बात । व्यापारी लोग
भी स्वास्तिका चौपड़े पर निकालते हैं,
उसको
गणेश कह देते हैं । गणेश को हाथी की सूंड दिखाते हैं । मनुष्य
पैसा खर्च करते हैं,
चित्र आदि बनाते,
इसको
कहा जाता है वेस्ट ऑफ टाइम । तुम्हारे में कितनी ताकत थी । वह
दिन प्रतिदिन कम होती गई है । जैसे मोटर से पेट्रोल कम होता
जाता है । अब तो तुम बहुत कमजोर हो गये हो । पाँच हजार वर्ष
पहले भारत क्या था,
अथाह
सुख थे । कितना जबरदस्त धन था । यह राज्य उन्होंने कैसे पाया?
राजयोग सीखे थे । इसमें लड़ाई आदि की बात ही नहीं । इनको कहा
जाता है ज्ञान के अस्त्र-शस्त्र । और कोई स्थूल बात नहीं है ।
ज्ञान के अस्त्र-शस्त्र हैं । ज्ञान,
विज्ञान,
याद
और ज्ञान के कितने बड़े जबरदस्त अस्त्र-शस्त्र हैं । सारे विश्व
पर तुम राज्य करते हो । देवताओं को कहा जाता है अहिंसक ।
अभी
तुम बच्चों को मनुष्य से देवता बनने की शिक्षा मिल रही है ।
तुम जानते हो हम हर 5 हजार वर्ष के बाद बेहद के बाप से यह बेहद
का वर्सा ले रहे हैं । यह आत्मा की बात है । इसमें स्थूल लड़ाई
आदि की कोई बात नहीं । आत्मा पतित बनी है इसलिए वह पावन होने
के लिए बाप को बुलाती है । अब बाप कहते हैं-मीठे-मीठे बच्चे,
अब
तो घर जाना है । यह है जीव आत्माओं की दुनिया । वह है आत्माओं
की दुनिया । उसको जीव आत्माओं की दुनिया नहीं कहेंगे । यह
घड़ी-घड़ी स्मृति में लाना चाहिए-हम दूर देश के रहने वाले हैं ।
हम आत्माओं का घर है ब्रह्माण्ड । यह भी बुद्धि में रहे हम
वहाँ रहते हैं,
इस
आकाश तत्व से पार,
जहाँ
सूर्य-चाँद भी नहीं होते । हम वहाँ के रहने वाले यहाँ पार्ट
बजाने आये हैं । 84 का पार्ट बजाते हैं । सब तो 84 जन्म ले
नहीं सकते । आहिस्ते-आहिस्ते ऊपर से उतरते आते हैं । हम
आलराउंडर हैं । सब काम करने वाले को आलराउन्डर कहा जाता है ।
तुम भी आलराउन्डर हो । आदि से अन्त तक तुम्हारा पार्ट है । अब
इस चक्र का एन्ड है,
तो
भी ऊपर से आते रहते हैं । बहुत बच्चे रहे हुए हैं जो ऊपर से
आते रहते हैं । वृद्धि को पाते रहते हैं । बाप ने तुम बच्चों
को 'हम
सो'
का
अर्थ भी समझाया है । वह लोग तो कहते हम आत्मा सो परमात्मा हैं
। उनको तो ड्रामा के आदि,
मध्य,
अन्त,
डूयूरेशन आदि का भी कुछ पता नहीं है । तुमको बाप ने समझाया है
इस शरीर में तुम अभी ब्राह्मण हो । प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा
शिवबाबा ने तुमको एडोप्ट किया है,
पढ़ाते हैं,
यह
तो याद रहना चाहिए ना । बाप हमको पढ़ा रहे हैं । वह ऊंच ते ऊंच
भगवान है । सभी आत्मायें इस ड्रामा के धागे में पिरोई हुई हैं
। अभी तुम जानते हो हम शुरू में देवता थे,
फिर
हम सो क्षत्रिय धर्म में आये अर्थात् सूर्यवंशी से चन्द्रवंशी
में आये,
इतने
जन्म लिए-यह सब पता होना चाहिए । यह नॉलेज पहले तुम्हारे में
बिल्कुल नहीं थी । अभी बाप ने समझाया है,
यह
वर्णों की बाजोली है । अभी फिर शूद्र से ब्राह्मण बने हो,
ब्राह्मण से फिर देवता बनेंगे । विराट रूप दिखाते हैं ना ।
तुम्हारी बुद्धि में सारा ज्ञान है-कैसे हम नीचे उतरे फिर
ब्राह्मण कुल में आये फिर डीटी डिनायस्टी में आये । अभी तुम
ब्राह्मण हो चोटी । चोटी सबसे ऊंच होती है । तुम्हारे जैसा ऊंच
कुल कौन कहलावे । भगवान बाप आकर तुमको पढ़ा रहे हैं । तुम कितने
भाग्यशाली हो । अपने भाग्य की कुछ महिमा तो करो । बाहर में तो
सब मनुष्य,
मनुष्य को पढ़ाते हैं । यह तो है निराकार बाप । यह बाप
कल्प-कल्प एक ही बार आकर नॉलेज देते हैं । पढ़ाई तो हर एक पढ़ते
हैं ना । बैरिस्टर की नॉलेज पढ़कर बैरिस्टर बनते हैं । वह सब
मनुष्य,
मनुष्य को पढ़ाते आते हैं । अभी यह है भगवानुवाच । मनुष्य को तो
कभी भगवान नहीं कहा जाता है । वह तो है निराकार । यहाँ आकर तुम
बच्चों को पढ़ाते हैं । पढ़ाई न सूक्ष्मवतन में,
न
मूलवतन में पढ़नी होती है । पढ़ाई होती ही यहाँ है । इसमें
मूँझने की तो कोई बात ही नहीं । स्कूल में कभी स्टूडेंट कहेंगे
क्या कि हम मूँझते हैं । हमको निश्चय नहीं होता । पढ़ाई को पढ़कर
अपना स्टेटस लेते हैं । यह लक्ष्मी-नारायण सतयुग आदि में विश्व
के मालिक कैसे बने?
जरूर
बाप द्वारा बने । बाप तो सच बतायेंगे । भगवान कोई रांग थोड़ेही
बता सकते हैं । बड़ा भारी इम्तिहान है । इस समय तो है प्रजा का
प्रजा पर राज्य । राजा-रानी हैं नहीं । सतयुग में थे,
अभी
कलियुग अन्त में हैं नहीं । इसको कहा जाता है पंचायती राज्य ।
गीता में लिख दिया है-कौरव और पाण्डव । रूहानी पण्डे तो तुम हो
ना । सबको रूहानी घर का रास्ता बताते हो । वह है तुम आत्माओं
का रूहानी घर । रूह जन्म लेकर पार्ट बजाती है । यह बातें
तुम्हारे सिवाए और कोई नहीं जानते । ऋषि-मुनि आदि कोई भी न
रचता को,
न रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं । लाखों
वर्ष कह देते हैं । परन्तु उनका भी कोई पूरा हिसाब-किताब नहीं
है । आधा-आधा भी हो न सके,
पूरा
आधा सुखधाम फिर पूरा आधा दुःखधाम । यह है पतित दुनिया विशश और
वह है वाइसलेस ।
बाप
कितना ऊंच ते ऊंच है,
परन्तु कितना साधारण है । कोई बड़े आदमी ऑफीसर्स आदि से मिलते
हैं तो उनको कितना रिगार्ड देते हैं । पतित दुनिया में पतित
मनुष्य ही पतितों का दीदार करते हैं । पावन तो हैं ही गुप्त ।
बाहर से दिखाई कुछ नहीं पड़ता है । बाप को कहा जाता है नॉलेजफुल,
ब्लिसफुल । सब बातें बाप में फुल हैं इसलिए उनको ज्ञान का सागर
कहा जाता है । हर एक मनुष्य के पोजीशन की महिमा अलग-अलग है ।
वजीर को वजीर,
प्राइम मिनिस्टर को प्राइम मिनिस्टर कहेंगे । यह फिर है ऊंच ते
ऊंच भगवान । सबसे बड़ा पोजीशन है निराकार बाप का,
जिसके हम सब बच्चे हैं । वहाँ हम सब बाप के साथ परमधाम में
रहते हैं । वह है घर । यहाँ सबको अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है
। कोई एक जन्म का भी पार्ट बजाकर वापस चले जाते हैं । बाप
समझाते हैं यह मनुष्य सृष्टि का वैराइटी झाड़ है । एक न मिले
दूसरे से । आत्मा तो एक जैसी है । बाकी शरीर एक न मिले दूसरे
से । नाटक भी दिखाते हैं,
जिसमें एक जैसी दो शक्ल बनाते हैं,
जिसमें मूंझ जाते हैं कि पता नहीं हमारा पति यह है या यह?
यह
तो बेहद का खेल है । इसमें एक न मिले दूसरे से । हर एक के
फीचर्स अलग-अलग हैं । आयु भल एक जैसी हो परन्तु फीचर्स एक जैसे
हो न सकें । हर जन्म में फीचर्स बदलते जाते हैं । कितना बड़ा
बेहद का नाटक है । तो उनको जानना चाहिए ना । सारे सृष्टि के
आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान तुम्हारी बुद्धि में है । हर एक का
ड्रामा में जो पार्ट है,
वही
बजायेंगे । ड्रामा में कोई रीप्लेस हो नहीं सकता । बेहद का
ड्रामा है ना । जन्म लेते रहते हैं । सबके फीचर्स अलग-अलग हैं
। कितने वैराइटी फीचर्स हैं । यह नॉलेज सारी बुद्धि से समझने
की है । कोई किताब आदि है नहीं । गीता का भगवान हाथ में गीता
ले आता है क्या?
वह
तो ज्ञान का सागर है,
पुस्तक थोड़ेही ले आया । पुस्तक तो भक्तिमार्ग में बनते हैं ।
तो यह सब ड्रामा में नूंध है । एक सेकण्ड न मिले दूसरे से ।
तुम बच्चों को तो सब समझा दिया है । चक्र पूरा हो फिर नये सिर
शुरू होगा । अभी तुम पढ़ रहे हो । बाप को भी तुम जान गये हो ।
रचना को भी जान गये हो । मूलवतन से यहाँ आते हो पार्ट बजाने ।
स्टेज कितनी बड़ी है,
इनका
कोई माप नहीं हो सकता । कोई भी पहुँच नहीं सकते । सागर और आकाश
का कोई अन्त नहीं पा सकते इसलिए बेअन्त गाया जाता है । आगे
इतनी कोशिश नहीं करते थे,
अभी
कोशिश करते हैं । साइन्स भी अभी है,
फिर
कब शुरू होगी?
जब
उन्हों का पार्ट होगा । तो इतनी यह सब बातें शास्त्रों में
थोड़ेही हैं । सुनाने वाले के बदले सुनने वाले का नाम डाल दिया
है । यह काली आत्मा,
वह
गोरी आत्मा । काली आत्मा इनके द्वारा सुनकर गोरी बनी है ।
नॉलेज से कितना ऊंच पद मिलता है ।
यह
है गीता पाठशाला । कौन पढ़ाते हैं?
भगवान राजयोग सिखाते हैं अमरपुरी के लिए इसलिए इसको अमरकथा भी
कहा जाता है । जरूर संगमयुग पर ही सुनाई होगी । जिन्होंने कल्प
पहले पढ़ा है,
वही
आकर फिर पढ़ेंगे और नम्बरवार पद पायेंगे । तुम यहाँ कितने बार
आये हो?
अनगिनत । कोई पूछे यह नाटक कब शुरू हुआ है?
तुम
कहेंगे यह तो अनादि चला आ रहा है । गिनती की बात हो नहीं सकती,
पूछने का ख्याल भी नहीं आता ।
शास्त्रों में सभी है भक्ति मार्ग की कहानियाँ,
जो
पढ़ते रहते हैं । यहाँ तो अनेक भाषायें हैं,
सतयुग में अनेक भाषायें आदि होती नहीं । एक धर्म,
एक
भाषा,
एक
राज्य की तुम स्थापना कर रहे हो । वे लोग तो शान्ति स्थापन
करने की राय देने वालों को प्राइज देते रहते हैं । शिवबाबा
तुमको सारे विश्व में शान्ति स्थापन करने की राय देते हैं ।
उनको तुम क्या प्राइज देंगे?
वह
तो और ही तुमको प्राइज देते हैं । लेते नहीं । यह समझने की
बातें हैं । कल की बात है,
जबकि
इन्हों का राज्य था । अभी तो रहने की जगह नहीं है । वहाँ तो
दो-तीन मंजिल बनाने की भी दरकार नहीं रहती । लकड़े आदि की दरकार
नहीं । वहाँ तो सोने-चांदी के मकान होते हैं । साइन्स के जोर
से झट मकान बन जाते हैं । यहाँ तो साइन्स से सुख भी है,
दु:ख
भी है । इससे सारी दुनिया खलास हो जायेगी,
इसको
कहा जाता है फॉल ऑफ पाम्पिया । माया का कितना पाम्प है ।
साहूकारों के लिए तो जैसे स्वर्ग है इसलिए वह तुम्हारी बात भी
नहीं सुनते । आगे तुम भी नहीं जानते थे । यहाँ तो बाप आकर
डायरेक्ट तुमको पढ़ाते है । बाहर में तो फिर भी बच्चे पढ़ाते हैं
। मित्र सम्बन्धी आदि भी याद आते रहते हैं । यहाँ तो बाप बैठ
समझाते हैं । दिन-प्रतिदिन तुम याद की यात्रा में पक्के होते
जायेंगे । फिर तुमको कुछ भी याद नहीं आयेगा । सिर्फ घर और
राजधानी याद आयेगी । फिर यह नौकरी आदि याद नहीं आयेगी । मरेंगे
ऐसे जैसे बैठे-बैठे हार्टफेल होते हैं । दु:ख की बात नहीं ।
हॉस्पिटल आदि तो कुछ भी नहीं होंगे । बाप को जान लिया और
स्वर्ग के मालिक बने । तुम्हारा तो हक है,
सबका
नहीं क्योंकि स्वर्ग में सब तो नहीं आयेंगे ना । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
रूहानी पण्डा बन सबको रूहानी घर का रास्ता
बताना है । ज्ञान और योग के अस्त्र-शस्त्र से सारे विश्व पर
राज्य करना है । डबल अहिंसक बनना है ।
2.
84 जन्मों का आलराउन्ड पार्ट बजाने वालों को
अभी आलराउन्डर बनना है । सब काम करने हैं । बेहद के वैराइटी
ड्रामा में हर एक एक्टर का पार्ट देखते हुए हर्षित रहना है ।
वरदान:-
परिस्थितियों को शिक्षक समझ उनसे पाठ पढ़ने वाले अनुभवी मूर्त
भव !
कोई
भी परिस्थिति में घबराने के बजाए थोड़े समय के लिए उसे शिक्षक
समझो । परिस्थिति आपको विशेष दो शक्तियों के अनुभवी बनाती है
एक सहनशक्ति और दूसरा सामना करने की शक्ति । यह दोनों पाठ पढ़
लो तो अनुभवी बन जायेंगे । जब कहते हो हम तो ट्रस्टी हैं,
मेरा
कुछ नहीं है तो फिर परिस्थितियों से घबराते क्यों हो । ट्रस्टी
माना सब कुछ बाप हवाले कर दिया इसलिए जो होगा वह अच्छा ही होगा
इस स्मृति से सदा निश्चिंत,
समर्थ स्वरूप में रहो ।
स्लोगन:-
जिनका
मिजाज मीठा है वह भूल से भी किसी को दु:ख नहीं दे सकते । 
ओम्
शान्ति |