05-06-14           प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


"मीठे बच्चे-देवता बनने के पहले तुम्हें ब्राह्मण ज़रूर बनना है, ब्रह्मा मुख सन्तान ही सच्चे ब्राह्मण हैं जो राजयोग की पढ़ाई से देवता बनते हैं"   


प्रश्न:-   
दूसरे सभी सत्संगो से तुम्हारा यह सत्संग किस बात में निराला है?


उत्तर:-
दूसरे सत्संगो में कोई भी एम ऑब्जेक्ट नहीं होती है, और ही धन-दौलत आदि सब कुछ गँवा कर भटकते रहते हैं | इस सत्संग में तुम भटकते नहीं हो | यह सत्संग के साथ-साथ स्कूल भी है | स्कूल में पढ़ना होता है, भटकना नहीं | पढ़ाई मना कमाई | जितना तुम पढ़कर धारण करते और कराते हो उतनी कमाई है | इस सत्संग में आना मना फायदा ही फायदा |


ओम् शान्ति
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रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं। रूहानी बच्चे ही इन कानों द्वारा सुनते हैं । बेहद का बाप बच्चो को कहते हैं - अपने को आत्मा समझो । यह घड़ी-घड़ी सुनने से बुद्धि भटकना बंद कर स्थिर हो जायेगी । अपने को आत्मा समझ बैठ जायेगे । बच्चे समझते हैं यहॉ हम आये हैं देवता बनने । हम एवररेडी बच्चे हैं। हम ब्राह्मण पढते हैं । क्या पढते हैं? ब्राह्मण से देवता बनते हैं । जैसे कोई बच्चे कॉलेज में जाते हैं तो समझते हैं कि हम अब पढकर इंजीनियर, डॉक्टर आदि बनते हैं । बैठने से ही झट समझेंगे । तुम भी ब्रह्मा के बच्चे ब्राह्मण बनते हो तो समझते हो हम ब्राह्मण सो देवता बनेंगे । गाया हुआ है - मनुष्य से देवता.... परन्तु कौन बनते हैं? हिन्दू तो सब देवता नहीं बनते । वास्तव में हिन्दू तो कोई धर्म है नहीं । आदि सनातन कोई हिन्दू धर्म नहीं है । कोई से भी पूछो कि हिन्दू धर्म किसने स्थापन किया? तो मूंझ जायेंगे । यह अज्ञान से नाम रख दिया है । हिन्दुस्तान में रहने वाले अपने को हिन्दू कहते हैं । वास्तव में इनका नाम भारत है, न कि हिन्दुस्तान । भारत खण्ड कहा जाता है, न कि हिन्दुस्तान खण्ड । है ही भारत । तो उन्हों को यह भी पता नहीं हैं कि यह कौन-सा खण्ड है । अपवित्र होने कारण अपने को देवता तो समझ नहीं सकते । देवी-देवता पवित्र थे । अभी वह धर्म है नहीं । और सब धर्म चले आते हैं - बुद्ध का बौद्ध धर्म, इब्राहम का इस्लाम, क्राइस्ट का क्रिश्चियन । बाकी हिन्दू धर्म का तो कोई है नहीं । यह हिंदुस्तान नाम तो फॉरनर्स ने रखा है । पतित होने कारण अपने को देवता धर्म का समझते नहीं हैं । बाप ने समझाया है आदि सनातन है देवी-देवता धर्म, पुराने ते पुराना । शुरू का धर्म कौन-सा है? देवी-देवता । हिन्दू नहीं कहेंगे । अब तुम ब्रह्मा के एवररेडी बच्चे ब्राह्मण हो गये । ब्राह्मण से देवता बनने के लिए पढ़ते हैं । ऐसे नहीं, हिन्दू से देवता बनने के लिए पढ़ते हैं । ब्राह्मण से देवता बनते हो । यह अच्छी रीति धारण करना है । अभी तो देखो ढेर धर्म हैं । एड होते ही जाते हैं । जब भी कहाँ भाषण आदि करते हो तो यह समझाना अच्छा है । अभी है कलियुग, सब धर्म अभी तमोप्रधान हैं । चित्र पर तुम समझायेंगे तो फिर वह घमन्ड टूट जायेगा - मैं फलाना हूँ, यह हूँ । समझेंगे, हम तो तमोप्रधान हैं । पहले-पहले बाप का परिचय दे दिया, फिर दिखाना है यह पुरानी दुनिया बदलनी है । दिन-प्रतिदिन चित्र भी शोभनिक होते जाते हैं । जैसे स्कूल में नक्शे बच्चों की बुद्धि में होते हैं । तुम्हारी बुद्धि में फिर यह रहना चाहिए । नम्बरवन मैप यह है, ऊपर में त्रिमूर्ति भी है, दोनों गोले भी हैं सतयुग और कलियुग । अभी हम पुरूषोत्तम संगमयुग पर हैं । यह पुरानी दुनिया विनाश को जायेगी । एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन हो रहा है । तुम हो आदि सनातन देवी-देवता धर्म के । हिन्दू धर्म तो है नहीं । जैसे सन्यासियों ने ब्रह्म, रहने के स्थान को ईश्वर समझ लिया है, वैसे हिन्दुस्तान में रहने वालों ने हिन्दु धर्म समझ लिया है । उनका भी फर्क है । तुम्हारा भी फर्क है । देवी-देवता नाम तो बहुत ऊंच है । कहते हैं यह तो जैसे देवता है । जिसमें अच्छे गुण होते हैं तो ऐसे कहते हैं - इसमें देवताई गुण हैं।


तुम समझते हो - यह राधे-कृष्ण ही स्वयंवर के बाद लक्ष्मी-नारायण बनते हैं, उनको विष्णु कहा जाता है । चित्र सबके हैं परन्तु कोई जानता नहीं । तुम बच्चों को अब बाप बैठ समझाते हैं, बाप को ही सब याद करते हैं । ऐसा कोई मनुष्य नहीं होगा जिसके मुख में भगवान् न हो । अब भगवान् को कहा जाता है निराकार । निराकार का भी अर्थ नहीं समझते हैं। अभी तुम सब कुछ जान जाते हो । पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बन जाते हो । यह नॉलेज भारतवासियों के लिए ही है, न कि और धर्म वालों के लिए । बाकी यह समझा सकते हो कि इतनी वृद्धि कैसे होती है और खण्ड आते गये हैं । वहाँ तो भारत खण्ड के सिवाए बाकी कोई खण्ड नहीं रहेगा । अभी वह एक धर्म नहीं है, बाकी सब खड़े हैं । बनेन ट्री का मिसाल एक्यूरेट है । आदि सनातन देवी-देवता धर्म का फाउन्डेशन है नहीं, बाकी सारा झाड़ खड़ा है । तो कहो आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, न कि हिन्दू धर्म । तुम अभी ब्राह्मण बने हो, देवता बनने के लिए पहले ब्राह्मण जरूर बनना पड़े । शूद्र वर्ण और ब्राह्मण वर्ण कहा जाता है । शूद्र डिनायस्टी नहीं कहेंगे । राजायें-रानियां हैं । पहले देवी-देवता महाराजा-महारानी थे । यहाँ हिन्दू महाराजा-महारानी । भारत तो एक ही है फिर वह अलग-अलग कैसे हो गये? उन्हों का नाम-निशान ही गुम कर दिया है, सिर्फ चित्र हैं । नम्बरवन है सूर्यवंशी । राम को सूर्यवंशी नहीं कहेंगे । अभी तुम आये हो सूर्यवंशी बनने के लिए, न कि चन्द्रवंशी बनने के लिए । यह राजयोग है ना । तुम्हारी बुद्धि में है हम यह लक्ष्मी-नारायण बनेंगे । दिल में खुशी रहती है - बाबा हमको पढ़ाते हैं, महाराजा-महारानी बनाने । सत्य नारायण की सच्ची-सच्ची कथा यह है । आगे जन्म-जन्मान्तर तुम सत्य नारायण की कथा सुनते हो । परन्तु वह कोई सच्ची कथायें नहीं हैं । भक्ति मार्ग में कभी मनुष्य से देवता बन नहीं सकते । मुक्ति-जीवनमुक्ति को पा नहीं सकते । सभी मनुष्य मुक्ति-जीवनमुक्ति पाते जरूर हैं । अभी सब बन्धन में हैं । ऊपर से आज भी आत्मा आयेंगी तो जीवनमुक्ति में आयेंगी, न कि जीवन बन्ध में । आधा समय जीवनमुक्ति, आधा समय जीवनबन्ध में जायेंगे । यह खेल बना हुआ है । इस बेहद के खेल के हम सभी एक्टर्स हैं, यहाँ आते हैं पार्ट बजाने । हम आत्मायें यहाँ के निवासी नहीं हैं । कैसे आते हैं-यह सब बातें समझाई जाती हैं । कई आत्मायें यहाँ ही पुनर्जन्म लेती रहती हैं । तुम बच्चों को शुरू से लेकर अन्त तक सारे वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी बुद्धि में है । बेहद का बाप ऊपर बैठ क्या करते हैं, कुछ नहीं जानते इसलिए उन्हों को कहा जाता है तुच्छ बुद्धि । तुम भी तुच्छ बुद्धि थे । अब बाप ने तुमको रचयिता और रचना के आदि, मध्य, अन्त का राज समझाया है । तुम गरीब, साधारण सब कुछ जानते हो । तुम हो स्वच्छ बुद्धि । स्वच्छ पवित्र को कहा जाता है । तुच्छ बुद्धि अपवित्र ठहरे । तुम अभी देखो क्या बन रहे हो! स्कूल में भी पढ़ाई से ऊंच पद पा सकते हैं । तुम्हारी पढाई है ऊंच ते ऊंच, जिससे तुम राजाई पद पाते हो । वह तो दान-पुण्य करने से राजा के पास जन्म लेते हैं, फिर राजा बनते हैं । परन्तु तुम इस पढाई से राजा बनते हो । बाप ही कहते हैं मैं तुम बच्चों को राजयोग सिखलाता हूँ । सिवाए बाप के राजयोग कोई सिखला नहीं सकते । बाप ही तुमको राजयोग की पढ़ाई पढ़ाते हैं । तुम फिर दूसरों को समझाते हो । बाप राजयोग सिखलाते हैं कि तुम पतित से पावन बन जाओ । अपने को आत्मा समझ निराकार बाप को याद करो तो तुम पवित्र बन जायेंगे और चक्र को जानने से चक्रवर्ती राजा सतयुग में बन जायेंगे । यह तो समझाना बहुत सहज है । अभी देवता धर्म का कोई भी नहीं है । सब कनवर्ट हो गये हैं और-और धर्मों में । तुम कोई को भी समझाओ तो पहले-पहले बाप का परिचय दो । बाप समझाते हैं और धर्मों में कितने चले गये हैं । बौद्धी, मुसलमान आदि ढेर हो गये हैं । तलवार की जोर से भी मुसलमान बने हैं । बौद्धी भी बहुत बने हैं । एक बार ही स्पीच की तो हजारो बौद्धी बन गये । क्रिक्षियन लोग भी ऐसे आकर स्पीच करते हैं । सबसे जास्ती आदमशुमारी इस समय उन्हों की है । तो अब तुम बच्चों की बुद्धि में सारा सृष्टि चक्र फिरता रहता है, तब बाप कहते हैं तुम स्वदर्शन चक्रधारी हो । स्वदर्शन चक्र विष्णु को दिखाते हैं । मनुष्य यह नहीं जानते कि विष्णु को क्यों दिया है? स्वदर्शन चक्रधारी कृष्ण या नारायण को कहते हैं । यह भी समझाना चाहिए कि उन्हों का क्या कनेक्शन है । यह तीनों ही एक हैं । वास्तव में यह स्वदर्शन चक्र तो तुम ब्राह्मणो के लिए है । स्वदर्शन चक्रधारी ज्ञान से बनते हो । बाकी स्वर्दशन चक्र कोई मारने काटने का नहीं है । यह ज्ञान की बातें हैं । जितना तुम्हारा यह ज्ञान का चक्र फिरेगा, उतने तुम्हारे पाप भस्म होंगे । बाकी सिर काटने की कोई बात नहीं । चक्र कोई हिंसा का नहीं है । यह चक्र तो तुमको अहिंसक बनाता है । कहाँ की बात कहाँ ले गये हैं । सिवाए बाप के कोई समझा न सके ।


तुम मीठे-मीठे बच्चों को अथाह खुशी होती है । अभी तुम समझते हो-हम आत्मा हैं । पहले तुम अपने को आत्मा भी भूल गये तो घर भी भूल गये । आत्मा को तो फिर भी आत्मा कहते हैं । परमात्मा को तो ठिक्कर-भित्तर में कह दिया है । आत्माओं के बाप की कितनी ग्लानि की है । बाप फिर आकर आत्माओं को ज्ञान देते हैं । आत्मा के लिए कभी नहीं कहते कि ठिक्कर-भित्तर, कण-कण में है । जानवर की तो बात ही अलग है । पढ़ाई आदि मनुष्यों की ही होती है । अभी तुम समझते हो, हम इतने जन्म यह-यह बने हैं । 84 जन्म पूरे किये । बाकी 84 लाख तो है नहीं । मनुष्य कितना अज्ञान अन्धेरे में हैं इसलिए कहा जाता है-ज्ञान सूर्य प्रगटा । आधाकल्प द्वापर-कलियुग में अन्धियारा, आधाकल्प सतयुग-त्रेता में प्रकाश । दिन और रात, प्रकाश और अन्धियारे का यह ज्ञान है । यह बेहद की बात है । आधाकल्प अन्धेरे में कितनी ठोकरें खाई, बहुत भटकना होता है । स्कूल में जो पढ़ते हैं, उनको भटकना नहीं कहा जाता है । सतसंगो मैं मनुष्य कितना भटकते हैं । आमदनी कुछ भी नहीं होती, और ही घाटा, इसलिए उसको भटकना कहा जाता है । भटकते-भटकते धन-दौलत आदि सब गवाए कंगाल बन पड़े हैं । अब इस पढ़ाई में जो जितना-जितना अच्छी तरह धारण करेंगे और करायेंगे, फायदा ही फायदा है । ब्राह्मण बन गया तो फायदा ही फायदा । तुम जानते हो हम ब्राह्मण ही स्वर्गवासी बनते हैं । स्वर्गवासी तो सब बनेंगे । परन्तु तुम उसमें ऊंच पद पाने का पुरूषार्थ करते हो ।


अभी तुम सबकी वानप्रस्थ अवस्था है । तुम खुद कहते हो - बाबा, हमको वानप्रस्थ या पवित्र दुनिया में ले जाओ, वह है आत्माओं की दुनिया । निराकारी दुनिया कितनी छोटी है । यहाँ तो घूमने-फिरने लिए कितनी बड़ी जमीन है । वहाँ यह बात नहीं, शरीर नहीं, पार्ट नहीं । स्टॉर मिसल आत्मायें खड़ी हैं । यह कुदरत है ना । सूर्य, चांद, सितारे कैसे खड़े हैं । आत्मायें भी ब्रह्म तत्व में अपने आधार पर नैचुरल खड़ी हैं । अच्छा!


मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात- पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 


धारणा
के लिए मुख्य सार:-  

1. ज्ञान का सिमरण कर स्वदर्शन चक्रधारी बनना है | स्वदर्शन चक्र फिराते पापों को काटना है | डबल अहिंसक बनना है | 

2. अपनी बुद्धि को स्वच्छ पवित्र बनाकर राजयोग की पढ़ाई पढ़नी है और ऊँच पद पाना है | दिल में सदा यही ख़ुशी रहे कि हम सत्य नारायण की सच्ची-सच्ची कथा सुनकर मनुष्य से देवता बनते हैं |

 

वरदान:-  

अटेंशन और चेकिंग द्वारा स्व सेवा करने वाले सम्पन्न और सम्पूर्ण भव !    

स्व की सेवा अर्थात स्व के ऊपर सम्पन्न और सम्पूर्ण बनने का सदा अटेंशन रखना | पढ़ाई की मुख्य सब्जेक्ट में अपने को पास विद ऑनर बनाना | ज्ञान स्वरुप, याद स्वरुप और धारणा स्वरुप बनना यह स्व सेवा सदा बुद्धि में रहे तो यह सेवा स्वतः आपके सम्पन्न स्वरुप द्वारा अनेकों की सेवा कराती रहेगी लेकिन इसकी विधि है – अटेंशन और चेकिंग | स्व की चेकिंग करना- दूसरों की नहीं |


स्लोगन:-   

ज्यादा बोलने से दिमाग की एनर्जी कम हो जाती है इसलिए शार्ट और स्वीट बोलो |   

  

ओम् शान्ति |