30-09-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - तुम बेहद के बाप पास आये हो विकारी से निर्विकारी बनने, इसलिए तुम्हारे में कोई भी भूत नहीं होना चाहिए”   

                            
प्रश्न:-   
बाप अभी तुम्हें ऐसी कौन-सी पढ़ाई पढ़ाते हैं जो सारे कल्प में नहीं पढ़ाई जाती?


उत्तर:-
नई राजधानी स्थापन करने की पढ़ाई, मनुष्य को राजाई पद देने की पढ़ाई इस समय सुप्रीम बाप ही पढ़ाते हैं । यह नई पढ़ाई सारे कल्प में नहीं पढ़ाई जाती । इसी पढ़ाई से सतयुगी राजधानी स्थापन हो रही है ।

 

ओम् शान्ति |

यह तो बच्चे जानते हैं हम आत्मा हैं, न कि शरीर । इनको कहा जाता है देही- अभिमानी । मनुष्य सब हैं देह- अभिमानी । यह है ही पाप आत्माओं की दुनिया अथवा विकारी दुनिया । रावण राज्य है । सतयुग पास्ट हो गया है । वहाँ सब निर्विकारी रहते थे । बच्चे जानते हैं-हम ही पवित्र देवी-देवता थे, जो 84 जन्मों के बाद फिर पतित बने हैं । सब तो 84 जन्म नहीं लेते हैं । भारतवासी ही देवी-देवता थे, जिन्हों ने 82, 83, 84 जन्म लिए हैं । वही पतित बने हैं । भारत ही अविनाशी खण्ड गाया हुआ है । जब भारत में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तब इसे नई दुनिया, नया भारत कहा जाता था । अभी है पुरानी दुनिया, पुराना भारत । वह तो समूर्ण निर्विकारी थे, कोई विकार नहीं थे । वह देवतायें ही 84 जन्म ले अभी पतित बने हैं । काम का भूत, क्रोध का भूत, लोभ का भूत-यह सब कड़े भूत हैं । इनमें मुख्य है देह- अभिमान का भूत । रावण का राज्य है ना । यह रावण है भारत का आधाकल्प का दुश्मन, जब मनुष्य में 5 विकार प्रवेश करते हैं । इन देवताओं में यह भूत नहीं थे । फिर पुनर्जन्म लेते-लेते इनकी आत्मा भी विकारों में आ गई । तुम जानते हो हम जब देवी-देवता थे तो कोई भी विकार का भूत नहीं था । सतयुग-त्रेता को कहा ही जाता है राम राज्य, द्वापर-कलियुग को कहा जाता है रावण राज्य । यहाँ हर एक नर-नारी में 5 विकार हैं । द्वापर से कलियुग तक 5 विकार चलते हैं । अब तुम पुरूषोत्तम संगमयुग पर बैठे हो । बेहद के बाप के पास आये हो विकारी से निर्विकारी बनने के लिए । निर्विकारी बन अगर कोई विकार में गिरते हैं तो बाबा लिखते हैं तुमने काला मुँह किया, अब गोरा मुँह होना मुश्किल है । 5 मंजिल से गिरने जैसा हैं । हड्डियाँ टूट जाती हैं । गीता में भी है भगवानुवाच- काम महाशत्रु है । भारत का वास्तविक धर्मशास्त्र है ही गीता । हर एक धर्म का एक ही शास्त्र है । भारतवासियों के तो ढेर शास्त्र हैं । उसको कहा जाता है भक्ति । नई दुनिया सतोप्रधान गोल्डन एज है, वहाँ कोई लड़ाई-झगड़ा नहीं था । बड़ी आयु थी, एवरहेल्दी-वेल्दी थे । तुमको स्मृति आई हम देवतायें बहुत सुखी थे । वहाँ अकाले मृत्यु होती नहीं । काल का डर रहता नहीं । वहाँ हेल्थ, वेल्थ, हैप्पीनेस सब रहती है । नर्क में हैपीनेस होती नहीं । कुछ न कुछ शरीर का रोग लगा रहता है । यह है अपार दुःखों की दुनिया । वह है अपार सुखों की दुनिया । बेहद का बाप दु:खों की दुनिया थोड़े ही रचेंगे । बाप ने तो सुख की दुनिया रची । फिर रावण राज्य आया तो उनसे दुःख- अशान्ति मिली । सतयुग है सुखधाम, कलियुग है दुःखधाम । विकार में जाना गोया एक-दो पर काम कटारी चलाना । मनुष्य कहते हैं यह तो भगवान की रचना है ना । परन्तु नहीं, भगवान की रचना नहीं, यह रावण की रचना है । भगवान ने तो स्वर्ग रचा । वहाँ काम कटारी होती नहीं । ऐसे नहीं दुःख-सुख भगवान देता है । अरे, भगवान बेहद का बाप बच्चों को दुःख कैसे देगा । वह तो कहते हैं मैं सुख का वर्सा देता हूँ फिर आधाकल्प के बाद रावण श्रापित करते हैं । सतयुग में तो अथाह सुख थे, मालामाल थे । एक ही सोमनाथ के मन्दिर में कितने हीरे-जवाहरात थे । भारत कितना सालवेन्ट था । अभी तो इनसालवेट है । सतयुग में 100 प्रतिशत सालवेन्ट, कलियुग में 100 प्रतिशत इनसालवेट-यह खेल बना हुआ है । अभी है आइरन एज, खाद पड़ते-पड़ते बिल्कुल तमोप्रधान बन गये हैं । कितना दु:ख है । यह एरोप्लेन आदि भी 100 वर्ष में बने हैं । इनको कहा जाता है माया का पाम्प । तो मनुष्य समझते साइंस ने तो स्वर्ग बना दिया है । परन्तु यह है रावण का स्वर्ग । कलियुग में माया का पाम्प देख तुम्हारे पास मुश्किल आते हैं । समझते हैं हमारे पास तो महल मोटरें आदि हैं । बाप कहते हैं स्वर्ग तो सतयुग को कहा जाता हैं, जब इन लक्ष्मी- नारायण का राज्य था । अब इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य थोड़ेही है । अब कलियुग के बाद फिर इनका राज्य आयेगा । पहले भारत बहुत छोटा था । नई दुनिया में होते ही हैं 9 लाख देवतायें । बस । पीछे वृद्धि को पाते रहते हैं । सारी सृष्टि वृद्धि को पाती है ना । पहले-पहले सिर्फ देवी-देवता थे । तो बेहद का बाप वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी बैठ समझाते है । बाप बिगर और कोई बतला न सके । उनको कहा जाता है नॉलेजफुल गॉड फादर । सब आत्माओं का फादर । आत्मायें सब भाई- भाई हैं फिर भाई और बहन बनती हैं । तुम सब हो एक प्रजापिता ब्रह्मा के एडाप्टेड चिल्ड्रेन । सभी आत्मायें उनकी सन्तान तो हैं ही । उनको कहा जाता है परमपिता, उनका नाम है शिव । बस । बाप समझाते हैं-मेरा नाम एक ही शिव है । फिर भक्ति मार्ग में मनुष्यों ने बहुत मन्दिर बनायें हैं तो बहुत नाम रख दिये हैं । भक्ति की सामग्री कितनी ढेर है । उसको पढ़ाई नहीं कहेंगे । उसमें एम ऑबजेक्ट कुछ भी नहीं । है ही नीचे उतरने की । नीचे उतरते-उतरते तमोप्रधान बन जाते हैं फिर सतोप्रधान बनना है सबको । तुम सतोप्रधान बनकर स्वर्ग में आयेंगे, बाकी सब सतोप्रधान बन शान्तिधाम में रहेंगे । यह अच्छी रीति याद करो । बाबा कहते हैं तुमने हमको बुलाया है-बाबा, हम पतितों को आकर पावन बनाओ तो अब मैं सारी दुनिया को पावन बनाने आया हूँ । मनुष्य समझते हैं गंगा स्नान करने से पावन बन जायेंगे । गंगा को पतित-पावनी समझते हैं । कुएं से पानी निकला, उसको भी गंगा का पानी समझ स्नान करते हैं । गुप्त गंगा समझते हैं । तीर्थ यात्रा पर वा कोई पहाड़ी पर जायेंगे, उसको भी गुप्त गंगा कहेंगे । इसको कहा जाता है झूठ । गॉड इज ट्रुथ कहा जाता है । बाकी रावण राज्य में सब हैं झूठ बोलने वाले । गॉड फादर ही सचखण्ड स्थापन करते हैं । वहाँ झूठ की बात नहीं होती । देवताओं को भोग भी शुद्ध लगाते हैं । अभी तो है आसुरी राज्य, सतयुग-त्रेता में है ईश्वरीय राज्य, जो अब स्थापन हो रहा है । ईश्वर ही आकर सबको पावन बनाते हैं । देवताओं में कोई विकार होता नहीं । यथा राजा रानी तथा प्रजा सब पवित्र होते हैं । यहाँ सब हैं पापी, कामी, क्रोधी । नई दुनिया को स्वर्ग और इसको नर्क कहा जाता है । नर्क को स्वर्ग बाप के सिवाए कोई बना न सके । यहाँ सब हैं नर्कवासी पतित । सतयुग में हैं पावन । वहाँ ऐसे नहीं कहेंगे कि हम पतित से पावन होने के लिए स्नान करने जाते हैं ।

यह वैराइटी मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ हैं । बीजरूप है भगवान । वही रचना रचते हैं । पहले-पहले रचते हैं देवी-देवताओं को । फिर वृद्धि को पाते-पाते इतने धर्म हो जाते हैं । पहले एक धर्म, एक राज्य था । सुख ही सुख था । मनुष्य चाहते भी हैं विश्व में शान्ति हो । वह अभी तुम स्थापन कर रहे हो । बाकी सब खत्म हो जायेंगे । बाकी थोड़े रहेंगे । यह चक्र फिरता रहता है । अभी है कलियुग अन्त और सतयुग आदि का पुरूषोत्तम संगमयुग । इसको कहा जाता है कल्याणकारी पुरूषोत्तम संगमयुग । कलियुग के बाद सतयुग स्थापन हो रहा है । तुम संगम पर पढ़ते हो इसका फल सतयुग में मिलेगा । यहाँ जितना पवित्र बनेंगे और पढ़ेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे । ऐसी पढ़ाई कहाँ होती नहीं । तुमको इस पढ़ाई का सुख नई दुनिया में मिलेगा । अगर कोई भी भूत होगा तो एक तो सजा खानी पड़ेगी, दूसरा फिर वहाँ कम पद पायेंगे । जो सम्पूर्ण बन औरों को भी पढ़ायेंगे तो ऊंच पद भी पायेंगे । कितने सेन्टर्स हैं, लाखों सेन्टर्स हो जायेंगे । सारे विश्व में सेन्टर्स खुल जायेंगे । पाप आत्मा से पुण्य आत्मा बनना ही है । तुम्हारी एम ऑबजेक्ट भी है । पढ़ाने वाला एक शिवबाबा है । वह है ज्ञान का सागर, सुख का सागर । बाप ही आकर पढ़ाते हैं । यह नहीं पढ़ाते, इनके द्वारा वह पढ़ाते हैं । इनको गाया जाता है भगवान का रथ, भाग्यशाली रथ । तुमको कितना पद्मापद्म भाग्यशाली बनाते हैं । तुम बहुत साहूकार बनते हो । कभी भी बीमार नहीं पड़ते । हेल्थ, वेल्थ, हैप्पीनेस सब मिल जाता है । यहाँ भल धन है परन्तु बीमारियां आदि हैं । वह हैपीनेस रह न सके । कुछ न कुछ दुःख रहता हैं । उनका तो नाम ही हैं सुखधाम, स्वर्ग, पैराडाइज़ । इन लक्ष्मी-नारायण को यह राज्य किसने दिया? यह कोई भी नहीं जानते । यह भारत में रहते थे । विश्व के मालिक थे । कोई पार्टीशन आदि नहीं था । अभी तो कितने पार्टीशन हैं । रावण राज्य है । कितने टुकड़े-टुकड़े हो गये हैं । लड़ते रहते हैं । वहाँ तो सारे भारत में इन देवी-देवताओं का राज्य था । वहाँ वजीर आदि होते नहीं । यहाँ तो वजीर देखो कितने हैं क्यों कि बेअक्ल हैं । तो वजीर भी ऐसे ही तमोप्रधान पतित हैं । पतित को पतित मिले, कर-कर लम्बे हाथ..... । कंगाल बनते जाते हैं, कर्जा उठाते जाते हैं । सतयुग में तो अनाज फल आदि बहुत स्वादिष्ट होते हैं । तुम वहाँ जाकर सब अनुभव करके आते हो । सूक्ष्मवतन में भी जाते हो तो स्वर्ग में भी जाते हो । बाप कहते हैं सृष्टि चक्र कैसे फिरता है । पहले भारत में एक ही देवी-देवता धर्म था । दूसरा कोई धर्म नहीं था । फिर द्वापर में रावण राज्य शुरू होता है । अभी है विकारी दुनिया फिर तुम पवित्र बन निर्विकारी देवता बनते हो । यह स्कूल है । भगवानुवाच मैं तुम बच्चों को राजयोग सिखलाता हूँ । तुम भविष्य में यह बनेंगे । राजाई की पढ़ाई और कहीं नहीं मिलती । बाप ही पढ़ाकर नई दुनिया की राजधानी देते हैं । सुप्रीम फादर, टीचर, सतगुरू एक ही शिवबाबा हैं । बाबा माना जरूर वर्सा मिलना चाहिए । भगवान जरूर स्वर्ग का वर्सा ही देंगे । रावण जिसको हर वर्ष जलाते हैं, यह है भारत का नम्बरवन दुश्मन । रावण ने कैसा असुर बना दिया है । इनका राज्य 2500 वर्ष चलता है । तुमको बाप कहते हैं मैं तुमको सुखधाम का मालिक बनाता हूँ । रावण तुमको दु :खधाम में ले जाते हैं । तुम्हारी आयु भी कम हो जाती है । अचानक अकाले मृत्यु हो जाती है । अनेक बीमारियां होती रहती हैं । वहाँ ऐसी कोई बात नहीं होती । नाम ही है स्वर्ग । अभी अपने को हिन्दू कहलाते हैं क्योंकि पतित हैं । तो देवता कहलाने लायक नहीं हैं । बाप इस रथ द्वारा बैठ समझाते हैं, इनके बाज में आकर बैठते हैं तुमको पढ़ाने । तो यह भी पढ़ते हैं । हम सब स्टूडेंट हैं । एक बाप ही टीचर है । अभी बाप पढ़ाते हैं । फिर आकर 5000 वर्ष के बाद पढ़ायेंगे । यह ज्ञान, यह पढ़ाई फिर गुम हो जायेगी । पढ़कर तुम देवता बनें, 2500 वर्ष सुख का वर्सा लिया फिर हैं दुःख, रावण का श्राप । अभी भारत बहुत दुःखी है । यह है दुःखधाम । पुकारते भी हैं ना - पतित-पावन आओ, आकर पावन बनाओ । अभी तुम्हारे में कोई भी विकार नहीं होना चाहिए परन्तु आधाकल्प की बीमारी कोई जल्दी थोड़ेही निकलती है । उस पढ़ाई में भी जो अच्छी रीति नहीं पढ़ते हैं वह फेल होते हैं । जो पास विद् ऑनर होते हैं वह तो स्कॉलरशिप लेते हैं । तुम्हारे में भी जो अच्छी रीति पवित्र बन और फिर दूसरों को बनाते हैं, तो यह प्राइज लेते हैं । माला होती है 8 की । वह है पास विद् ऑनर । फिर 108 की माला भी होती है, वह माला भी सिमरी जाती हैं । मनुष्य इसका रहस्य थोड़ेही समझते हैं । माला में ऊपर है फूल फिर होता है डबल दाना मेरू । स्त्री और पुरूष दोनों पवित्र बनते हैं । यह पवित्र थे ना । स्वर्गवासी कहलाते थे । यही आत्मा फिर पुनर्जन्म लेते-लेते अब पतित बन गई है । फिर यहाँ से पवित्र बन पावन दुनिया में जायेंगे । वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है ना । विकारी राजायें निर्विकारी राजाओं के मन्दिर आदि बनाकर उन्हों को पूजते हैं । वही फिर पूज्य से पुजारी बन जाते हैं । विकारी बनने से फिर वह लाइट का ताज भी नहीं रहता है । यह खेल बना हुआ है । यह है बेहद का वन्डरफुल ड्रामा । पहले एक ही धर्म होता हैं, जिसको राम राज्य कहा जाता है फिर और- और धर्म वाले आते हैं । यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता रहता है सो एक बाप ही समझा सकते हैं । भगवान तो एक ही है । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. स्वयं भगवान टीचर बनकर पढ़ाते हैं इसलिए अच्छी रीति पढ़ना है । स्कॉलरशिप लेने के लिए पवित्र बनकर दूसरों को पवित्र बनाने की सेवा करनी है ।  

2. अन्दर में काम, क्रोध आदि के जो भी भूत प्रवेश हैं, उन्हें निकालना है । एम ऑबजेक्ट को सामने रखकर पुरूषार्थ करना है ।

 

वरदान:-

सर्व वरदानों को समय पर कार्य में लगाकर फलीभूत बनाने वाले फल स्वरूप भव !    

बापदादा द्वारा समय प्रति समय जो भी वरदान मिले हैं, उन्हें समय पर कार्य में लगाओ । सिर्फ वरदान सुनकर खुश नहीं हो कि आज बहुत अच्छा वरदान मिला । वरदान को काम में लगाने से वरदान कायम रहते हैं । वरदान तो अविनाशी बाप के हैं लेकिन उसे फलीभूत करना है । इसके लिए वरदान को बार- बार स्मृति का पानी दो, वरदान के स्वरूप में स्थित होने की धूप दो तो वरदानों के फल स्वरूप बन जायेंगे ।

 

स्लोगन:- 

जिनकी नज़रों में बाप है उन्हें माया की नज़र लग नहीं सकती ।   

 

ओम् शान्ति |