20-03-14        प्रातः मुरली       ओम् शान्ति   “बापदादा”     मधुबन
 


मीठे बच्चे – तुम्हें शरीर सहित सब चीजों से ममत्व निकालना है, जब तुम आत्मा पावन कर्मातीत बन जायेंगी तब घर में जा सकेंगी |   

प्रश्न:-    
आत्मा को किस बात से बहुत डर लगता है और वह डर क्यों?

उत्तर:-
आत्मा को शरीर छोड़ने से बहुत डर लगता है क्योंकि उसका शरीर में ममत्व हो गया है | अगर कोई दुःख के कारण शरीर छोड़ना भी चाहता है तो भी उसे पाप-कर्मों की सज़ा तो भोगनी ही पड़ती है | संगम पर तुम बच्चों को कोई भी डर नहीं | तुम्हें और ही ख़ुशी है कि हम पुराना शरीर छोड़ बाबा के पास जायेंगे |

ओम् शान्ति |

मीठे-मीठे बच्चों को समझाया गया है एक है ज्ञान, दूसरा है भक्ति | ड्रामा में यह नूँध है | ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को और कोई भी नहीं जानते | तुम बच्चे तो जानते हो | सतयुग में मरने का डर नहीं रहता है | जानते हैं हमको एक शरीर छोड़ दूसरा शरीर लेना है | दुःख की, रोने आदि की बात नहीं | यहाँ मरने से डर लगता है | आत्मा को शरीर छोड़ने से दुःख होता है | डरती है, क्योंकि फिर भी दूसरा जन्म ले दुःख ही भोगना है | तुम तो हो संगमयुगी | तुम बच्चों को बाप ने समझाया है अब वापिस चलना है | कहाँ? घर | वह भगवान् का घर है ना | यह कोई घर नहीं है, जहाँ भगवान् और तुम बच्चे आत्मायें रहते हो उसको ही घर कहा जाता है | वहाँ यह शरीर नहीं हैं | जैसे मनुष्य कहते हैं हम लोग भारत में रहते हैं, घर में रहते हैं, वैसे तुम कहेंगे हम लोग अर्थात् हम आत्मायें वहाँ अपने घर में रहती हैं | वह है आत्माओं का घर, यह है जीव आत्माओं का घर | उसको कहा जाता है मुक्तिधाम | मनुष्य पुरुषार्थ तो करते हैं वहाँ जाने के लिए कि हम भगवान् से जाकर मिलें | भगवान् से मिलने के लिए बहुत ख़ुशी होनी चाहिए | यह जो आत्मा का शरीर है, इसमें आत्मा का बहुत मोह पड़ गया है, इसलिए थोड़ी भी बीमारी आदि होती है तो डर लगता है – कहाँ शरीर न छूट जाए | ज्ञान काल में भी डर रहता है | इस समय जबकि संगमयुग है, तुम जानते हो अब वापिस जाना है बाप के पास, तो डर की बात नहीं | बाप ने युक्ति बहुत अच्छी बताई है | पतित आत्मायें तो मेरे पास मुक्तिधाम में आ न सकें | वह है ही पवित्र आत्माओं का घर | यह है मनुष्यों का घर | यह शरीर बनते हैं 5 तत्वों से, तो 5 तत्व यहाँ रहने लिए खींचते हैं | आकाश, जल, वायु......वहाँ (मूलवतन) यह तत्व नहीं हैं | यह विचार सागर मंथन करने की युक्तियाँ हैं | आत्मा ने यह प्रॉपर्टी ली हुई है इसलिए शरीर में ममत्व हो गया है | नहीं तो हम आत्मायें वहाँ की रहने वाली हैं | अब फिर पुरुषार्थ करते हैं वहाँ जाने के लिए | जब तुम पवित्र आत्मायें बन जाती हो तो फिर तुमको सुख मिलता है, दुःख की बात ही नहीं | इस समय है ही दुःखधाम | तो यह 5 तत्व भी खींचते हैं ऊपर से नीचे आकर पार्ट बजाने के लिए | प्रकृति का आधार तो ज़रूर लेना पड़ता है | नहीं तो खेल चल न सके | यह खेल दुःख और सुख का बना हुआ है | जब तुम सुख में हो तो 5 तत्वों के शरीर से ममत्व नहीं रहता है | वहाँ तो पवित्र रहते हैं | इतना ममत्व नहीं रहता है शरीर में | इन 5 तत्वों का ममत्व भी छोड़ देते हैं | हम पवित्र बनें फिर वहाँ शरीर भी योगबल से बनते हैं इसलिए माया खींचती नहीं है | हमारा वह शरीर योगबल का है इसलिए दुःख ही नहीं | ड्रामा कैसा वन्डरफुल बना हुआ है | यह भी बड़ी महीन समझने की बातें हैं | जो अच्छे बुद्धिवान हैं और सर्विस में तत्पर रहते हैं वही अच्छी रीति समझा सकते हैं | बाप ने कहा है धन दिये धन ना खुटे | दान करते रहेंगे तो धारणा भी होगी | नहीं तो धारणा होना मुश्किल है | ऐसे मत समझो लिखने से धारणा हो जायेगी | हाँ, लिखकर किसको कल्याण के लिए प्वाइन्ट्स भेज देते हैं वह और बात है | खुद को तो काम में नहीं आती हैं | कोई तो कागज़ लिखकर फ़ालतू फेंक देते हैं | यह भी अन्दर में समझ होनी चाहिए कि मैं लिखता हूँ फिर वह काम में आता है | लिखकर फेंक दिया तो उससे क्या फ़ायदा | यह भी आत्मा जैसे अपने को ठगती है | यह तो धारणा करने की चीज़ है | बाबा ने कोई लिखा हुआ थोड़ेही कण्ठ किया है | बाप तो रोज़ समझाते रहते हैं | पहले-पहले तुम्हारा बाप से कनेक्शन हो | बाप की याद से ही तुम्हारी आत्मा पवित्र बन जायेगी | फिर वहाँ भी तुम पवित्र रहते हो | आत्मा और शरीर दोनों पवित्र रहते हैं | फिर वह बल ख़लास हो जाता है तो 5 तत्वों का बल आत्मा को खींचता है | आत्मा को घर जाने के लिए शरीर छोड़ने की दिल होती है | तुम पावन बनकर शरीर ऐसे छोड़ेंगे जैसे मक्खन से बाल |

तुम बच्चों को शरीर सहित सब चीजों से ममत्व मिटा देना है | हम आत्माएं बिगर शरीर आई थी, हम प्योर थी | इस दुनिया से ममत्व नहीं था | वहाँ शरीर छूटे तो कोई रोते नहीं | कोई तकलीफ़ नहीं, बीमारी नहीं | शरीर में ममत्व नहीं | जैसे आत्मा पार्ट बजाती है, एक शरीर बूढ़ा हुआ तो फिर दूसरा ले लेती है पार्ट बजाने के लिए | वहाँ तो रावण राज्य ही नहीं है | तो इस समय दिल होती है जायें बाबा के पास | बाबा कहते हैं मुझे याद करो | यह ज्ञान बुद्धि में है | बाप कहते हैं पवित्र बनकर आना है | अभी तो सब पतित हैं इसलिए 5 तत्वों के पुतले से मोह हो गया है, इनको छोड़ने की दिल नहीं होती है | नहीं तो विवेक कहता है – शरीर छूट जाए और हम बाबा के पास चले जायें | अभी पुरुषार्थ करते हो हमको पावन बनकर बाबा के पास जाना है | बाबा ने कहा है तुम तो मेरे थे, अब फिर मुझे याद करो तो आत्मा पवित्र बन जायेगी फिर यह शरीर धारण करने में भी कोई तकलीफ़ नहीं होगी | अभी शरीर में मोह है तो डॉक्टर आदि को बुलाते हैं | तुमको तो ख़ुशी रहनी चाहिए हम जाते हैं बाबा के पास | इस शरीर से अब हमारा कनेक्शन नहीं है | यह शरीर तो पार्ट बजाने के लिए मिला है | वहाँ तो आत्मा और शरीर दोनी ही बड़े तन्दुरुस्त होते हैं | दुःख का नाम नहीं रहता | तो बच्चों को कितना पुरुषार्थ करना चाहिए | अभी हम बाबा के पास जाते हैं | क्यों नहीं इस शरीर को छोड़कर जायें | परन्तु जब तक योग लगाकर पवित्र नहीं बने हैं, कर्मातीत अवस्था नहीं बनी है तो जा नहीं सकते है | यह ख्यालात अज्ञानी मनुष्यों को नहीं आ सकते | तुम बच्चों को आयेंगे | अब हमको जाना है | पहले तो आत्मा में ताकत होती है, ख़ुशी होती है | कभी डर नहीं रहता | यहाँ दुःख है इसलिए मनुष्य भक्ति आदि करते हैं | परन्तु वापिस जाने का रास्ता तो एक बाप ही बताते हैं | हम बाबा के पास जायें – उसकी ख़ुशी होती है | बाप समझाते हैं यहाँ तुम्हारा शरीर में मोह है | यह मोह निकाल दो | यह तो 5 तत्वों का शरीर है, यह सब माया ही है | इन आँखों से जो कुछ आत्मा देखती है सब माया ही माया है | यहाँ हर चीज़ में दुःख है | कितना गंद है | स्वर्ग में तो शरीर भी फर्स्टक्लास, महल भी फर्स्टक्लास मिलेंगे | दुःख की बात ही नहीं | कैसा बना हुआ खेल है | यह तो चिन्तन में आना चाहिए ना | बाप कहते हैं और कुछ नहीं समझते हो, अच्छा बोलो बाप को याद करो तो विकर्म विनाश हो जायेंगे, स्वर्ग में चले जायेंगे | हम तो आत्मा हैं | यह शरीर रूपी दुम बाद में मिला है, इनमें हम क्यों फँसे हैं? बाप समझाते हैं इसको रावण राज्य कहा जाता है | रावण राज्य में दुःख ही दुःख है | सतयुग में दुःख की बात नहीं | अब बाबा की याद से हम शक्ति लेते हैं क्योंकि कमज़ोर बन गये हैं | देह-अभिमान है सबसे कमज़ोर बनाने वाला | तो बाप समझाते हैं यह ड्रामा बना हुआ है | यह बन्द नहीं हो सकता है | मोक्ष आदि की बात ही नहीं है | यह तो बना-बनाया ड्रामा है | कहते भी हैं चिन्ता ताकी कीजिये ......जो पास्ट हो गया वह फिर होना ही है | चिन्ता की बात ही नहीं | सतयुग में ख़राब कुछ होता नहीं | यहाँ चिन्ता लगी है | बाप कहते हैं यह तो ड्रामा है | बाप ने रास्ता तो बताया ही है | ऐसे तुम मेरे पास पहुँच जायेंगे | मक्खन से बाल निकल जायेगा | सिर्फ़ तुम मुझे याद करो तो आत्मा पवित्र हो जाये | पावन बनने की और कोई युक्ति नहीं | अभी तुम समझते हो हम रावण राज्य में बैठे हैं | वह है ईश्वरीय राज्य | ईश्वरीय राज्य और आसुरी राज्य का खेल है | ईश्वर कैसे आकर स्थापना करते हैं, यह किसको पता नहीं है | बाप को ही ज्ञान का सागर कहा जाता है | वही आकर सब समझाते हैं | अभी तुम सारा ज्ञान समझ रहे हो फिर यह सारा ज्ञान भूल जायेगा | जिस पढ़ाई से हम यह पद पाते हैं, यह सब भूल जाता है | स्वर्ग में गये और यह नॉलेज गुम हो जाती है | भगवान् ने डबल सिरताज कैसे बनाया, वह कुछ भी नहीं जानते | यह भी नहीं जानता था तो दूसरे शास्त्र आदि पढने वाले क्या जानें | उनको टच भी नहीं होगा | तुम आकर सुनते हो तो तुमको झट टच होता है | है सारा गुप्त | बाप सुनाते हैं, देखने में आता है क्या? समझ में आता है, आत्मा को देखा है क्या? समझते हैं आत्मा है | दिव्य दृष्टि से देखा जा सकता है | बाबा कहते हैं देखने से क्या समझेंगे | आत्मा तो छोटी बिन्दी है | आत्मायें अनेक हैं | 10-20 का भी तुम साक्षात्कार करेंगे | एक से तो कुछ पता न पड़े | समझ भी न सकें | बहुतों को साक्षात्कार होता है | मालूम कैसे पड़े – आत्मा है या परमात्मा है? फ़र्क का मालूम नहीं पड़ता | बैठे-बैठे छोटी-छोटी आत्मायें देखने में आती है | यह थोड़ेही पता पड़ता है कि आत्मा है वा परमात्मा है |

अभी तुम जानते हो इतनी छोटी आत्मा में ताकत कितनी है | आत्मा तो मालिक है, एक शरीर छोड़ दूसरे में प्रवेश करती है पार्ट बजाने के लिए | कितनी क़ुदरत है! शरीर बीमार हो पड़ता है या कोई देवाला आदि निकालते हैं तो समझते हैं इससे तो शरीर ही छोड़ दें | आत्मा निकल जायेगी, दुःख से छूट भागेगी | परन्तु पापों का बोझा जो सिर पर है वह कैसे छूटे? तुम पुरुषार्थ ही करते हो कि याद से पाप विनाश हो जाएं | रावण के कारण बहुत पाप हुआ है, जिससे छूटने का रास्ता बाप बतलाते हैं | सिर्फ़ कहते हैं मुझे याद करते रहो | याद करते-करते शरीर छूट जाए | तुम्हारे पाप आदि सब ख़त्म हो जायेंगे | याद करना भी मासी का घर नहीं है | मुझे याद करने लिए माया तुमको बहुत हैरान करती है | घड़ी-घड़ी भुला देती है | बाबा अनुभव भी सुनाते हैं | मैं बहुत कोशिश करता हूँ | परन्तु फिर भी माया अटक डालती है | हैं भी दोनों साथ, इकट्ठे | इकठ्ठा होते भी घड़ी-घड़ी भूल जाता हूँ | बड़ा कठिन है | घड़ी-घड़ी यह याद पड़ा, फ़लाना याद पड़ा | तुम तो बहुत अच्छा पुरुषार्थ करते हो | कोई तो गपोड़े भी मारते हैं | 10-15 दिन चार्ट लिखकर छोड़ देते हैं, इसमें बहुत खबरदारी रखनी पड़ती है | समझते तो हैं जब प्योर हो जाएं, कर्मातीत अवस्था को पहुँचे, तब विन करें | यह ईश्वरीय लॉटरी है ना | बाबा को याद करना – यह है याद की डोरी | बुद्धि से समझने की बात है | भल कहते हैं हम बाबा को याद करते हैं परन्तु बाबा कहता है याद करना आता ही नहीं है | पद में भी फ़र्क तो पड़ता है ना | कैसे राजाई स्थापन हुई है | तुमने अनेक बार राजाई की है, फिर गँवाई है | बाबा हर 5 हज़ार वर्ष बाद पढ़ाते हैं | फिर रावण राज्य में तुम वाम मार्ग में चले जाते हो | जो देवता थे वही फिर वाम मार्ग में गिरते हैं तो बाप बहुत गुह्य बातें समझाते हैं – बाप को याद करने की | है तो बहुत सहज | शरीर छोड़ बाप के पास चले जायें | मुझे जानें तब योगबल से विकर्म विनाश हों | वह तो पिछाड़ी में ही हो सकता है | परन्तु वापिस तो कोई आता नहीं | भल कोई कुछ भी करे, यथार्थ योग तो मैं ही आकर सिखलाता हूँ | फिर आधाकल्प योगबल चलता है | वहाँ तो अथाह सुख भोगते हो | फिर भक्ति मार्ग में मनुष्य क्या-क्या करते रहते हैं | बाप जब आकर ज्ञान देते हैं तो फिर भक्ति होती नहीं | ज्ञान से दिन हो गया फिर कोई भी तकलीफ़ नहीं | भक्ति है रात धक्का खाने की | वहाँ तो दुःख की बात ही नहीं | यह सब बातें जो यहाँ का सैम्पलिंग होगा उनकी बुद्धि में बैठेंगी | यह बड़ी महीन बातें हैं, वन्डरफुल ज्ञान है, जो सिवाए बाप के और कोई समझा न सके | बहुत थोड़े समझने वाले होते हैं | ड्रामा में नूँध है | उसमें कुछ भी फ़र्क नहीं पड़ सकता | मनुष्य तो समझते हैं परमात्मा क्या नहीं कर सकता | परन्तु भगवान् तो आते ही एक बार हैं, आकर तुम्हें स्वर्ग का रास्ता बताते हैं |

अभी तुम बच्चों की कितनी विशाल बुद्धि हो गई है | यह दोनों ही इकट्ठे हैं | यह (ब्रह्मा) भी किसको देखेगा, समझता है शान्ति का दान देना है | देखने से मालूम पड़ता है कि यह हमारे घराने का है वा नहीं है? सर्विसएबुल बच्चों का भी काम है नब्ज़ देखना | अगर हमारे कुल का होगा तो शान्त हो जायेगा | अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 1.   पावन बन बाप के साथ घर जाने के लिए इस 5 तत्वों के पुतले से ममत्व नहीं रखना है | शरीर छोड़ने का डर निकाल देना है |

2.    याद की यात्रा का चार्ट बड़ी खबरदारी से बढाते रहना है | योगबल से आत्मा को पावन बनाए, कर्मातीत बन ईश्वरीय लॉटरी को विन करना है |

वरदान:-  

सेवा द्वारा ख़ुशी, शक्ति और सर्व की आशीर्वाद प्राप्त करने वाली पुण्य आत्मा भव !   

 सेवा का प्रत्यक्षफल – ख़ुशी और शक्ति मिलती है | सेवा करते आत्माओं को बाप के वर्से का अधिकारी बना देना – यह पुण्य का काम है | जो पुण्य करता है उसको आशीर्वाद ज़रूर मिलती है | सभी आत्माओं के दिल में जो ख़ुशी के संकल्प पैदा होते, वह शुभ संकल्प आशीर्वाद बन जाते हैं और भविष्य भी जमा हो जाता है इसलिए सदा अपने को सेवाधारी समझ सेवा का अविनाशी फल ख़ुशी और शक्ति सदा लेते रहो |

स्लोगन:- 

मन्सा-वाचा की शक्ति से विघ्न का पर्दा हटा दो तो अन्दर कल्याण का दृश्य दिखाई दे |     

 ओम् शान्ति |