07-06-14      प्रात:मुरली       ओम् शान्ति     “बापदादा” मधुबन
 


 

"मीठे बच्चे - अब इस छी-छी गंदी दुनिया को आग लगनी है इसलिए शरीर सहित जिसे तुम मेरा-मेरा कहते हो- इसे भूल जाना है, इससे दिल नहीं लगानी है"   

 

प्रश्न:-
बाप तुम्हें इस दु
:खधाम से नफरत क्यों दिलाते हैं?

 

उत्तर:-
क्योंकि तुम्हें शान्तिधाम
-सुखधाम जाना है । इस गंदी दुनिया में अब रहना ही नहीं है । तुम जानते हो आत्मा शरीर से अलग होकर घर जायेगी, इसलिए इस शरीर को क्या देखना । किसी के नाम-रूप तरफ भी बुद्धि न जाये । गन्दे ख्यालात भी आते हैं तो पद भ्रष्ट हो जायेगा ।

 

ओम् शान्ति ।

शिवबाबा अपने बच्चों
, आत्माओं से बात करते हैं । आत्मा ही सुनती है । अपने को आत्मा निश्चय करना है । निश्चय करके फिर यह समझाना है कि बेहद का बाप आया हुआ है, सबको ले जाने लिए । दु:ख के बन्धन से छुड़ाए सुख के सम्बन्ध में ले जाते हैं । सम्बन्ध सुख को, बंधन दु:ख को कहा जाता है । अब यहाँ के कोई भी नाम-रूप आदि में दिल नहीं लगाओ । अपने घर जाने लिए तैयारी करनी है । बेहद का बाबा आया हुआ है, सभी आत्माओं को ले जाने इसलिए यहाँ कोई से दिल नहीं लगानी है । यह सब यहाँ के छी-छी बंधन हैं । तुम समझते हो हम अब पवित्र बने हैं तो हमारे शरीर को कोई भी हाथ न लगाये, छी-छी ख्यालात से । वह ख्यालात ही निकल जाते हैं । पवित्र बनने सिवाए वापिस घर तो जा न सके । फिर सजायें खानी पड़ेंगी, अगर न सुधरे तो । इस समय सभी आत्मायें अनसुधरेली हैं । शरीर के साथ छी-छी काम करती हैं । छी-छी देहधारियों से दिल लगी हुई है । बाप आकर कहते हैं- यह सब गन्दे ख्याल छोड़ो । आत्मा को शरीर से अलग होकर घर जाना है । यह तो बहुत छी-छी गन्दी दुनिया है, इसमें तो अब हमको रहना नहीं है । कोई को देखने की भी दिल नहीं होती । अभी तो बाप आये हैं स्वर्ग में ले जाने । बाप कहते हैं- बच्चे, अपने को आत्मा समझो । पवित्र बनने लिए बाप को याद करो । कोई भी देहधारी से दिल नहीं लगाओ । बिल्कुल ममत्व मिट जाना चाहिए । स्री-पुरूष का बहुत प्यार होता है । एक-दो से अलग हो नहीं सकते । अब तो अपने को आत्मा भाई-भाई समझना है । गन्दे ख्याल नहीं रहने चाहिए । बाप समझाते हैं- अभी यह वेश्यालय है । विकारों के कारण ही तुमने आदि, मध्य, अन्त दुःख को पाया है । बाप बहुत ही नफरत दिलाते हैं । अभी तुम स्टीमर पर बैठे हो जाने के लिए । आत्मा समझती है अभी हम जा रहे हैं बाप के पास । इस सारी पुरानी दुनिया से वैराग्य है । इस छी-छी दुनिया, नर्क वेश्यालय में हमको रहना नहीं है । तो फिर विष के लिए गन्दे ख्यालात आना बहुत खराब है । पद भी भ्रष्ट हो जायेगा । बाप कहते हैं मैं तुमको गुल-गुल दुनिया में, सुखधाम में ले जाने आया हूँ । मैं तुमको इस वेश्यालय से निकाल शिवालय में ले जाऊंगा तो अब बुद्धि का योग रहना चाहिए नई दुनिया में । कितनी खुशी होनी चाहिए । बेहद का बाबा हमको पढ़ाते हैं, यह बेहद सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, वह तो बुद्धि में है । सृष्टि चक्र को जानने से अर्थात् स्वदर्शन चक्रधारी होने से तुम चक्रवर्ती राजा बनेंगे । अगर देहधारी से बुद्धियोग लगाया तो पद भ्रष्ट हो पड़ेगा । कोई भी देह के सम्बन्ध याद न आये । यह तो दु:ख की दुनिया है, इसमें सब दु:ख ही देने वाले हैं । 

बाप डर्टी दुनिया से सबको ले जाते हैं, इसलिए अब बुद्धियोग अपने घर से लगाना है । मनुष्य भक्ति करते हैं- मुक्ति में जाने लिए । तुम भी कहते हो- हम आत्माओं को यहाँ रहना नहीं है । हम यह छी-छी शरीर छोड़कर अपने घर जायेंगे, यह तो पुरानी जुत्ती है । बाप को याद करते-करते फिर यह शरीर छूट जायेगा । अन्तकाल बाप के सिवाए और कोई दूसरी चीज़ याद न रहे । यह शरीर भी यहाँ ही छोड़ना है । शरीर गया तो सब कुछ गया । देह सहित जो कुछ भी है, तुम जो मेरा-मेरा कहते हो यह सब भूल जाना है । इस छी-छी दुनिया को आग लगनी है, इसलिए इनसे अब दिल नहीं लगानी है | बाप कहते हैं मीठे-मीठे बच्चों, मैं तुम्हारे लिए स्वर्ग की स्थापना कर रहा हूँ । वहाँ तुम ही जाकर रहेंगे । अभी तुम्हारा मुँह उस तरफ है । बाप को, घर को, स्वर्ग को याद करना है । दु:खधाम से नफरत आती है । इन शरीरों से नफरत आती है । शादी करने की भी क्या दरकार है । शादी करने से फिर दिल लग जाती है शरीर से । बाप कहते हैं इस पुरानी जुत्तियों से कुछ भी स्नेह नहीं रखो । यह है ही वेश्यालय । सब पतित ही पतित हैं । रावण राज्य है । यहाँ कोई से भी दिल नहीं लगानी है, सिवाए बाप के । बाप को याद नहीं करेंगे तो जन्म-जन्मान्तर के पाप कटेंगे नहीं । फिर सजायें भी बहुत कड़ी हैं । पद भी भ्रष्ट हो जायेगा । तो क्यों न इस कलियुगी बन्धन को छोड़ दें । बाबा सबके लिए यह बेहद की बात समझाते हैं । जब रजोप्रधान सन्यासी थे तो दुनिया गन्दी नहीं थी । जंगल में रहते थे । सबको आकर्षण होती थी । मनुष्य वहाँ जाकर उन्हों को खाना पहुँचा आते थे । मनुष्य निडर हो रहते थे । तुमको भी निडर बनना है, इसमे बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए । बाप के पास आते हैं, तो बच्चों को खुशी रहती है । हम बेहद बाप से सुखधाम का वर्सा लेते हैं । यहाँ तो कितना दुःख है । कई गन्दी-गन्दी बीमारियां आदि होती हैं । बाप तो गैरन्टी करते हैं-तुमको वहाँ ले जाते हैं, जहाँ दुःख, बीमारी आदि का नाम नहीं । आधाकल्प के लिए तुमको हेल्दी बनाते हैं । यहाँ कोई से भी दिल लगाई तो बहुत सजायें खानी पड़ेंगी । 

तुम समझा सकते हो, वो लोग कहते हैं 3 मिनट साइलेन्स । बोलो, सिर्फ साइलेन्स से क्या होगा । यह तो बाप को याद करना है, जिससे विकर्म विनाश हो । साइलेन्स का वर देने वाला बाप है । उनको याद करने बिगर शान्ति मिलेगी कैसे? उनको याद करेंगे तब ही वर्सा मिलेगा । टीचर्स को भी बहुत शब्क (पाठ) पढ़ाना है । खड़ा हो जाना चाहिए, कोई कुछ भी कहेगा नहीं । बाप के बने हो तो पेट के लिए तो मिलेगा ही, शरीर निर्वाह के लिए बहुत मिलेगा । जैसे वेदान्ती बच्ची है, उसने इम्तहान दिया, उसमें एक पॉइंट थी- गीता का भगवान् कौन? उसने परमपिता परमात्मा शिव लिख दिया तो उनको नापास कर दिया । और जिन्होंने कृष्ण का नाम लिखा था, उनको पास कर दिया । बच्ची ने सच बताया तो उसको न जानने कारण नापास कर दिया । फिर लड़ना पड़े मैंने तो यह सच-सच लिखा । गीता का भगवान् है ही निराकार परमपिता परमात्मा । कृष्ण देहधारी तो हो न सके । परन्तु बच्ची की दिल थी इस रूहानी सर्विस करने की तो छोड़ दिया । 

तुम जानते हो अब बाप को याद करते-करते अपने इस शरीर को भी छोड़ साइलेन्स दुनिया में जाना है । याद करने से हेल्थ-वेत्थ दोनों ही मिलती हैं । भारत में पीस प्रासपर्टी थी ना । ऐसी-ऐसी बातें तुम कुमारियां बैठ समझाओ तो तुम्हारा कोई भी नाम नहीं लेंगे । अगर कोई सामना करे तो तुम कायदेसिर लड़ो, बड़े-बड़े ऑफीसर्स के पास जाओ । क्या करेंगे? ऐसे नहीं कि तुम भूख मरेंगी । केले से, दही से भी रोटी खा सकते हो । मनुष्य पेट के लिए कितने पाप करते हैं । बाप आकर सबको पाप आत्मा से पुण्य आत्मा बनाते है हैं । इसमें पाप करने, झूठ बोलने की कोई दरकार नहीं है । तुमको तो 3/4 सुख मिलता है, बाकी 1/4 दुःख भोगते हो । अब बाप कहते हैं- मीठे बच्चों, मुझे याद करो तो तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप भस्म हो जायेंगे । और कोई उपाय नहीं । भक्ति मार्ग में तो बहुत धक्के खाते हो । शिव की पूजा तो घर में भी कर सकते हैं परन्तु फिर भी बाहर मन्दिर में जरूर जाते हैं । यहाँ तो तुमको बाप मिला है । तुमको चित्र रखने की दरकार नहीं है । बाप को तुम जानते हो । वह हमारा बेहद का बाप है, बच्चों को स्वर्ग की बादशाही का वर्सा दे रहे हैं । तुम आते हो बाप से वर्सा लेने । यहाँ कोई शास्त्र आदि पढ़ने की बात नहीं । सिर्फ बाप को याद करना है । बाबा बस हम आये कि आये । तुमको घर छोड़े कितना समय हुआ है? सुखधाम को छोड़े 63 जन्म हुए हैं । अब बाप कहते हैं शान्तिधाम, सुखधाम में चलो । इस दु:खधाम को भूल जाओ । शान्तिधाम, सुखधाम को याद करो और कोई डिफीकल्ट बात नहीं है । शिवबाबा को कोई शास्त्र आदि पढ़ने की दरकार नहीं है । यह ब्रह्मा पढ़ा हुआ है । तुमको तो अभी शिवबाबा पढ़ाते हैं । यह ब्रह्मा भी पढ़ा सकते हैं । परन्तु तुम सदैव समझो शिवबाबा के लिए । उनको याद करने से विकर्म विनाश होंगे । बीच में यह भी है । 

अब बाप कहते हैं टाइम थोड़ा है, जास्ती नहीं है । ऐसा ख्याल मत करो कि जो नसीब में होगा, वह मिलेगा । स्कूल में पढाई का पुरूषार्थ करते हैं ना । ऐसे थोड़े ही कहेंगे जो नसीब में होगा..... यहाँ नहीं पढ़ते हैं तो वहाँ जन्म-जन्मान्तर नौकरी चाकरी करते रहेंगे । राजाई मिल न सके । करके पिछाड़ी में ताज रख देंगे, वह भी त्रेता में । मूल बात है- पवित्र बन औरों को बनाना । सत्य नारायण की सच्ची कथा सुनाना है बहुत सहज । दो बाप हैं, हद के बाप से हद का वर्सा मिलता है, बेहद के बाप से बेहद का । बेहद बाप को याद करो तो यह देवता बनेंगे । परन्तु फिर उसमें भी ऊंच पद पाना है । पद पाने के लिए ही कितना मारामारी करते हैं । पिछाड़ी में बॉम्बस की भी एक-दो को मदद देंगे । यह इतने सब धर्म थे थोड़े ही । फिर नहीं रहेंगे । तुम राज्य करने वाले हो तो अपने ऊपर रहम करो ना- कम से कम ऊंच पद तो पायें । बच्चियां 8 आना भी देती हैं- हमारी एक ईंट लगा देना । सुदामा का मिसाल सुना है ना । चावल मुट्ठी बदले महल मिल गया । गरीब के पास है ही 8 आने तो वही देंगे ना । कहते हैं बाबा हम गरीब हैं । अभी तुम बच्चे सच्ची कमाई करते हो । यहाँ सबकी है झूठी कमाई । दान-पुण्य आदि जो करते हैं, वह पाप आत्माओं को ही करते हैं । तो पुण्य के बदले पाप हो जाता है । पैसा देने वाले पर ही पाप हो जाता है । ऐसे-ऐसे करते सब पाप आत्मा बन जाते हैं । पुण्य आत्मा होते ही हैं सतयुग में । वह है पुण्य आत्माओं की दुनिया । वह तो बाप ही बनायेंगे । पाप आत्मा रावण बनाते, गन्दे बन पड़ते हैं । अब बाप कहते हैं गन्दे कर्म नहीं करो । नई दुनिया में गंद होता नहीं । नाम ही है स्वर्ग तो फिर क्या, स्वर्ग कहने से ही मुख में पानी आ जाता है । देवता होकर गये हैं तब तो यादगार है । आत्मा अविनाशी है । कितने ढेर एक्टर्स हैं । कहाँ तो बैठे होंगे, जहाँ से पार्ट बजाने आते हैं । अभी कलियुग में कितने ढेर मनुष्य हैं । देवी-देवताओं का राज्य है नहीं । कोई को समझाना तो बहुत सहज है । एक धर्म की अभी फिर स्थापना हो रही है, बाकी सब खत्म हो जायेंगे । तुम जब स्वर्ग में थे तो और कोई धर्म नहीं था । चित्र में राम को बाण दे दिया है । वहाँ बाण आदि की तो बात नहीं । यह भी समझते हैं । जिसने जो सर्विस की है कल्प पहले, वही अभी करते हैं । जो बहुत सर्विस करते हैं, बाप को भी बहुत प्यारे लगते हैं । लौकिक बाप के बच्चे भी जो अच्छी रीति पढ़ते हैं, उन पर बाप का प्यार जास्ती रहता है । जो लड़ते खाते रहेंगे तो उनको थोड़े ही प्यार करेंगे, सर्विस करने वाले बहुत प्यारे लगते हैं । 

एक कहानी है- दो बिल्ले लड़े, माखन कृष्ण खा गया । सारे विश्व की बादशाही रूपी माखन तुमको मिलता है । तो अब गफलत नहीं करनी है । छी-छी नहीं बनना है । इसके पीछे राजाई मत गंवाओ । बाप के डायरेक्शन मिलते हैं, याद नहीं करेंगे तो पाप का बोझा चढ़ता जायेगा, फिर बहुत सजायें खानी पड़ेंगी । जार-जार रोयेंगे । 21 जन्म की बादशाही मिलती है । इसमें फेल हुए तो बहुत रोयेंगे । बाप कहते हैं न पियरघर, न ससुरघर को याद करना है । भविष्य नये घर को ही याद करना है । 

बाप समझाते हैं कोई को देख लट्टू नहीं बन जाना है । फूल बनना है । देवतायें फूल थे, कलियुग में कांटे थे । अभी तुम संगम पर फूल बन रहे हो । किसको दु:ख नहीं देना है यहाँ ऐसे बनेंगे तब सतयुग में जायेंगे । अच्छा

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

 

धारणा के मुख्य सार : -

1. अन्तकाल में एक बाप के सिवाए दूसरा कोई याद न आये उसके लिए इस दुनिया में किसी से भी दिल नहीं लगानी है । छी-छी शरीरों से प्यार नहीं करना है । कलियुगी बन्धन तोड़ देने हैं । 

2. विशाल बुद्धि बन निडर बनना है । पुण्य आत्मा बनने के लिए कोई भी पाप अब नहीं करना है । पेट के लिए झूठ नहीं बोलना है । चावल मुट्ठी सफल कर सच्ची-सच्ची कमाई जमा करनी है, अपने ऊपर रहम करना है ।

 

वरदान:-
शुभचिंतक स्थिति द्वारा सर्व का सहयोग प्राप्त करने वाले सर्व के स्नेही भव !   
 

शुभचिंतक आत्माओं के प्रति हर एक को दिल का स्नेह उत्पन्न होता है और वह स्नेह ही सहयोगी बना देता है । जहाँ स्नेह होता है, वहाँ समय, सम्पत्ति, सहयोग सदा न्यौछावर करने के लिए तैयार हो जाते हैं । तो शुभचिंतक स्नेही बनायेगा और स्नेह सब प्रकार के सहयोग में न्यौछावर बनायेगा इसलिए सदा शुभचिंतन से सम्पन्न रहो और शुभचिंतक बन सर्व को स्नेही, सहयोगी बनाओ ।

 

स्लोगन:-
इस समय दाता बनो तो आपके राज्य में जन्म
-जन्म हर आत्मा भरपूर रहेगी ।   

 

ओम् शान्ति