27-11-13
प्रातः मुरली ओम् शान्ति
“बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे
– दिन में शरीर
निर्वाह अर्थ कर्म करो, रात में बैठ ज्ञान का सिमरण करो, बाप को याद करो, बुद्धि
में स्वदर्शन चक्र फिराओ तो नशा चढ़ेगा”
प्रश्न:-
माया किन बच्चों को याद में बैठने नहीं देती है?
उत्तर:-
जिनकी बुद्धि किसी न किसी में फँसी हुई रहती है, जिनकी बुद्धि
को ताला लगा हुआ है, पढ़ाई अच्छी रीति नहीं पढ़ते हैं माया
उन्हें याद में बैठने नहीं देती | वह मनमनाभव रह नहीं सकते |
फिर सर्विस के लिए भी उनकी बुद्धि चलती नहीं | श्रीमत पर न
चलने के कारण नाम बदनाम करते हैं, धोखा देते हैं तो सजायें भी
खानी पड़ती हैं |
गीत:-
तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है...

ओम्
शान्ति | बच्चों
ने गीत सुना | गॉड फादर को ही बुलाते हैं, कृष्ण को नहीं | बाप
को कहेंगे – आओ, फिर से कंसपुरी के बदले कृष्णपुरी बनाओ |
कृष्ण को तो नहीं बुलायेंगे | कृष्णपुरी को तो स्वर्ग कहा जाता
है | यह कोई भी जानते नहीं, क्योंकि कृष्ण को द्वापर में ले
गये हैं | यह सब भूलें शास्त्रों से हुई हैं | अभी बाप यथार्थ
बात समझाते हैं | वास्तव में सारी दुनिया का बड़ा गॉड फादर है |
सबको उस एक गॉड को ही याद करना है | भल मनुष्य क्राइस्ट, बुद्ध
अथवा देवताओं आदि को याद करते हैं, हरेक धर्म स्थापक को याद
करते हैं | याद करना शुरू होता है द्वापर से | भारत में गाया
हुआ भी है दुःख में सिमरण सब करे, सुख में करे न कोई | बाद में
ही याद करने की रस्म पड़ती है, क्योंकि दुःख है | पहले-पहले
भारतवासियों ने याद शुरू किया | उन्हों को देखते दूसरे धर्म
वाले भी अपने धर्म स्थापक को याद करने लग पड़ते हैं | बाप भी
धर्म स्थापन करने वाला है | परन्तु मनुष्यों ने बाप को भूल
श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है | लक्ष्मी-नारायण के धर्म का
उन्हें पता नहीं है | याद तो न लक्ष्मी-नारायण को, न कृष्ण को
करना है | याद एक बाप को करना है जो आदि सनातन देवी-देवता धर्म
की स्थापना कर रहे हैं | फिर जब यह भक्ति मार्ग में शिव की
पूजा करने लगते हैं तो समझते हैं गीता का भगवान् कृष्ण है |
उनको याद करते हैं | उन्हों को देख वह भी अपने धर्म स्थापक को
याद करते हैं | यह भूल जाते हैं कि यह देवता धर्म भगवान् ने
स्थापन किया है | हम लिख सकते हैं कि गीता का सरमोनाइज़र कृष्ण
नहीं, शिवबाबा है | वह है निराकार – यह वन्डरफुल बात हुई ना |
किसी के पास भी शिवबाबा का परिचय नहीं है | वह स्टार है | सब
जगह शिव के मन्दिर हैं तो वह समझते हैं कि इतना बड़ा है, अखण्ड
ज्योति तत्व है | परन्तु वह तो महतत्व में रहते हैं, जहाँ
आत्मायें रहती हैं | आत्मा का रूप बरोबर स्टार मिसल है,
परमपिता परमात्मा भी स्टार है | परन्तु वह नॉलेजफुल, बीजरूप
होने कारण उनमें ताक़त है | आत्माओं का पिता (बीज) परमात्मा को
कहेंगे | है वह निराकार | मनुष्य को तो ओशन ऑफ़ नॉलेज, ओशन ऑफ़
लव कह न सकें
|
इसलिए समझाने वाले बच्चों में अथॉरिटी चाहिए, जिनकी बुद्धि
विशाल हो | तुम सबमें मुख्य है मम्मा, वन्दे मातरम् भी गाया
हुआ है | कन्याओं द्वारा बाण मरवाये | अधर कन्या, कुँवारी
कन्या का राज़ कहाँ है नहीं | सिर्फ़ मन्दिर से ही सिद्ध होता है
| जगदम्बा भी बरोबर है | परन्तु वे जानते नहीं कि वह कौन है?
बाप कहते हैं मैं ब्रह्मा मुख कमल द्वारा रचयिता और रचना के
आदि-मध्य-अन्त का राज़ बताता हूँ | ड्रामा में क्या है – यह
मनुष्यों की बुद्धि में आना चाहिए | यह बेहद का ड्रामा है |
इसके हम एक्टर हैं तो ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त का राज़ बुद्धि
में रहना चाहिए | जिनकी बुद्धि में यह रहता है उन्हें बहुत नशा
रहता है | सारा दिन शरीर निर्वाह किया, रात को बैठ स्मृति में
लाओ – यह ड्रामा कैसे चक्र लगाता है? यही मनमनाभव है | परन्तु
माया रात को भी बैठने नहीं देती है | एक्टर्स की बुद्धि में तो
ड्रामा का राज़ रहना चाहिए ना | परन्तु है बड़ा मुश्किल | कहाँ न
कहाँ फँस पड़ते हैं तो बाबा बुद्धि का ताला बन्द कर देते हैं |
बहुत बड़ी मंज़िल है | अच्छी पढ़ाई वाले फिर तनखाह भी अच्छी लेते
हैं ना | यह पढ़ाई है | परन्तु बाहर जाने से भूल जाते हैं फिर
अपनी मत पर चल पड़ते हैं | बाप कहते हैं – मीठे बच्चे, श्रीमत
पर चलने में ही तुम्हारा कल्याण है | यह है पतित दुनिया |
विकार को पॉइज़न कहा जाता है, जिसका सन्यासी लोग सन्यास करते
हैं | यह रावण राज्य शुरू ही होता है द्वापर से, यह
वेद-शास्त्र आदि सब भक्ति मार्ग की सामग्री हैं | सर्विस के
लिए बच्चों की बुद्धि चलनी चाहिए | श्रीमत पर चलें तो धारणा भी
हो | बच्चे जानते हैं विनाश सामने खड़ा है | सब दुःखी हो रड़ी
मारेंगे – हे भगवान्, रहम करो | त्राहि-त्राहि करते समय भगवान्
को याद करेंगे | पार्टीशन के समय कितना याद करते थे – हे
भगवान्, रहम करो, रक्षा करो | अब रक्षा क्या करेंगे? रक्षा
करने वाले को ही जानते नहीं तो रक्षा करेंगे कैसे? अभी बाप आया
है परन्तु मुश्किल कोई की बुद्धि में बैठता है | बाप समझाते
हैं ऐसे-ऐसे सर्विस करो | यह श्रीमत बाप की मिलती है | ऐसे बाप
को पहचान नहीं सकते, यह भी कैसा वन्डर है! कितनी समझने की
बातें हैं! सारा दिन शिवबाबा की याद बुद्धि में रहे | यह भी
उनका रथ साथी ठहरा ना |
बाबा देखते हैं – बच्चे आज बहुत अच्छे निश्चयबुद्धि हैं, कल
संशयबुद्धि बन जाते है | माया का तूफ़ान लगने से अवस्था गिरती
है तो बाबा इसमें क्या कर सकते हैं | तुम ज्ञान में आये,
सरेन्डर हुए तो तुम ट्रस्टी ठहरे | तुम क्यों फ़िक्र करते हो?
सरेन्डर किया है, फिर सर्विस भी करनी है तो रिटर्न में मिलेगा
| अगर सरेन्डर हुआ है, सर्विस नहीं करता तो भी उनको खिलाना तो
पड़े, तो उन पैसों से ही खाते-खाते अपना ख़त्म कर लेते हैं,
सर्विस करते नहीं हैं | तुम्हे सर्विस करनी है मनुष्य को हीरे
जैसा बनाने की | मुख्य बाबा की रूहानी सर्विस करनी है, जिससे
मनुष्य ऊँचे बने | सर्विस नहीं करते तो जाकर दास-दासी बनेंगे |
जो पढ़ाई अच्छी पढ़ते हैं, उनका मान भी ऊँचा होता है, जो नापास
होंगे वह जाकर दास-दासी बनेंगे |
बाबा कहते हैं – बच्चे, मुझे याद करो और वर्सा लो | बस, यह
मनमनाभव अक्षर ही राइट है | ओशन ऑफ़ नॉलेज कहते हैं कि मुझे याद
करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे | ऐसे कृष्ण कह न सके, बाप
ही कहते हैं – मामेकम् याद करो और भविष्य राज्य पद को याद करो
| यह राजयोग है ना | इससे प्रवृत्ति मार्ग सिद्ध होता है | यह
तुम ही समझा सकते हो | तुम्हारे में भी जो सर्विसएबुल तीखे
हैं, उन्हों को बुलाया जाता है | समझा जाता है यह होशियार
हैण्ड है | बच्चों को योगयुक्त बनना है | श्रीमत पर अगर नहीं
चलते तो नाम बदनाम करते हैं | धोखा देते हैं तो फिर सजायें
खानी पड़ती हैं | ट्रिब्युनल भी बैठती है ना | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
रात्रि क्लास
बच्चों को पहले-पहले समझानी देनी है बाप की | बेहद का बाप ही
हमको पढ़ाते हैं, गीता पढ़ने वाले कृष्ण को भगवान कहते हैं |
उन्हें समझाना है कि भगवान तो निराकार को कहा जाता है |
देहधारी तो बहुत हैं | बिगर देह है ही एक | वह है ऊँचे से ऊँचा
शिवबाबा | यह अच्छी रीति बुद्धि में बिठाओ | बेहद के बाप से
बेहद का वर्सा मिलता है, वही ऊँच ते ऊँच निराकार परमपिता
परमात्मा है | वह है बेहद का बाप और यह है हद का बाप | और कोई
21 जन्मों का वर्सा नहीं देते हैं | ऐसा भी कोई बाप नहीं जिससे
अमर पद मिले | अमरलोक है सतयुग | यह है मृत्युलोक | तो बाप का
परिचय देने से समझेंगे, बाप से वर्सा मिलता है जिसको दैवी
स्वराज्य कहा जाता है | वह बाप ही देते हैं | वही पतित-पावन
गाया जाता है वह कहते हैं अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद
करो तो पाप कट जायेंगे | पतित से पावन बन पावन दुनिया में चलने
लायक बन सकते हो | कल्प-कल्प बाप कहते हैं मामेकम् याद करो |
याद की यात्रा से ही पवित्र बनना है | अभी पावन दुनिया आ रही
है | पतित दुनिया विनाश होनी है | पहले-पहले बाप का परिचय दे
पक्का कराना है | जब पक्का बाप को समझ जायें तब बाप से वर्सा
मिले | इसमें माया भुलाती बहुत है | तुम कोशिश करते हो बाबा को
याद करने की फिर भूल जाते हो | शिवबाबा को याद करने से ही पाप
कटेंगे | वह बाबा इनके द्वारा बताते हैं बच्चे मुझे याद करो |
फिर भी धन्धे आदि में भूल जाते हैं | यह भूलना नहीं चाहिए |
यही मेहनत की बात है | बाप को याद करते-करते कर्मातीत अवस्था
तक पहुँचना है | कर्मातीत अवस्था वाले को कहा जाता है फ़रिश्ता
| तो यह पक्का याद करो कैसे किसको समझायें | पक्का निश्चय भी
हो कि हम भाइयों को (आत्माओं को) समझाते हैं | सबको बाप का
पैगाम देना है | कई कहते हैं बाबा पास चलूँ, दीदार करूँ |
परन्तु इसमें दीदार आदि की तो बात ही नहीं है | भगवान आकर
सिखलाते हैं और मुख से कहते हैं तुम मुझ अपने निराकार बाप को
याद करो | याद करने से सब पाप कट जाते हैं | कहाँ भी धन्धे आदि
में बैठे घड़ी-घड़ी बाप को याद करना है | बाप ने हुक्म दिया है
मुझे याद करो | निरन्तर याद करने वाले ही विन करेंगे | याद
नहीं करेंगे तो मार्क्स कम हो जायेंगे | यह पढ़ाई है ही मनुष्य
से देवता बनने की, जो एक बाप ही पढ़ाते हैं | तुम्हें चक्रवर्ती
राजा बनना है, तो 84 जन्मों को (चक्र को) भी याद करना है |
कर्मातीत अवस्था तक पहुँचने के लिए मेहनत करनी है | वह अन्त
में होनी है | अन्त कोई भी समय आ सकती है, इसलिए पुरुषार्थ
लगातार करना है | नित्य तुम्हारा पुरुषार्थ चलता रहे | लौकिक
बाप तुम्हें ऐसे नहीं कहेंगे कि देह के सभी सम्बन्ध छोड़ अपने
को आत्मा समझो | शरीर का भान छोड़ मुझे याद करो तो पाप कटेंगे |
यह तो बेहद का बाप ही कहते हैं बच्चे मुझ एक की याद में रहो तो
सब पाप कट जायेंगे | तुम सतोप्रधान बन जायेंगे | यह धन्धा तो
ख़ुशी से करना चाहिए ना | भोजन खाते समय भी बाप को याद करना है
| याद में रहने का गुप्त अभ्यास तुम बच्चों का चलता रहे तो
अच्छा है | तुम्हारा भी कल्याण है | अपने को देखना है बाबा को
कितना समय याद करता हूँ? अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति याद-प्यार और गुडनाईट | ओम्
शान्ति |
धारणा
के लिए मुख्य सार:-
1.
मनुष्यों को हीरे जैसा बनाने की रूहानी सर्विस करनी है | कभी
भी संशयबुद्धि बन पढ़ाई को नहीं छोड़ना है | ट्रस्टी होकर रहना
है |
2.
शरीर
निर्वाह अर्थ कर्म करते भी बाप को याद करना है | श्रीमत में
अपना कल्याण समझ चलते रहना है | अपनी मत नहीं चलानी है |
वरदान:-
हद
की दीवारों को पार कर मंज़िल के समीप पहुँचने वाले उपराम भव

किसी भी प्रकार की हद की दीवार को पार करने की निशानी है – पार
किया, उपराम बना | उपराम स्थिति अर्थात् उड़ती कला | ऐसी उड़ती
कला वाले कभी भी हद में लटकते वा अटकते नहीं, उन्हें मंज़िल सदा
समीप दिखाई देती है | वे उड़ता पंछी बन कर्म के इस कल्प वृक्ष
की डाली पर आयेंगे | बेहद के समर्थ स्वरूप से कर्म किया और उड़ा
| कर्म रूपी डाली के बन्धन में फंसेंगे नहीं | सदा स्वतंत्र
होंगे |
स्लोगन:-
अनुभवों की अथॉरिटी बनो तो माया के भिन्न-भिन्न रॉयल रूपों से
धोखा नहीं खायेंगे
|

ओम्
शान्ति
|