09-03-14     प्रातः मुरली   ओम् शान्ति    “अव्यक्त-बापदादा    रिवाइज: 14-06-77 मधुबन   


“देश और विदेश का सैर-समाचार”

 

विदेश की विशेषता – एक तरफ़ सृष्टि के परिवर्तन करने के स्थूल साधन इन्वेन्ट करने के निमित्त बनी हुई आत्माएं विज्ञानी लोग अपनी इनवेन्शन की रिफ़ाईनेस में लगे हुए थे | वैज्ञानियों की लग्न, समय और प्रकृति के तत्वों के ऊपर विजय प्राप्त करने की, सर्व तत्वों को अपने वशीभूत करने की इच्छा में लगे हुए हैं | हर वस्तु को रिफ़ाइन करने में वह अपनी विजय समझते हैं | जैसे कल्प पहले की यादगार में भी रावण राज्य की विशेषता सर्व तत्वों को अपने वशीभूत करना गाया हुआ है – कल्प पहले माफ़िक इसी कार्य में विदेशी आत्माएं लगी हुई हैं | साथ-साथ विज्ञानी आत्माएं आप योगी आत्माओं के लिए, आपके श्रेष्ठ योग की जो प्रारब्ध स्वर्ग के राज-भाग की प्राप्ति होनी है; उस आने वाले राज्य में सर्व सुखों के साधन आप राजयोगी आत्माओं को प्राप्त हों, ऐसे साधन न जानते हुए भी बनाने में खूब व्यस्त हैं अर्थात् आप होवनहार देवताओं के लिए प्रकृति के सतोप्रधान श्रेष्ठ साधनों की इनवेन्शन करने में आपकी सेवा में लगे हुए हैं | जैसे आप बाप द्वारा सर्व प्राप्तियों की लग्न में रहते, वैसे विदेशी आत्माएं भी अपने साइन्स बल द्वारा सृष्टि को स्वर्ग बनाने के इच्छुक हैं | स्वर्ग अर्थात जहाँ अप्राप्त कोई वस्तु न हो | इसी कार्य के लग्न में लगी हुई आत्माएं ड्रामानुसार निमित्त बन अपना कार्य बहुत अच्छी तरह से कर रही हैं, लेकिन आपके लिए ही कर रही हैं | ऐसे आप सबको अनुभव होता है कि यह सब हमारी तैयारियों में लगे हुए हैं? कितनी सच्चाई, सफ़ाई से सेवा करने वाले हैं | अगर उन्हों का कार्य देखो और लग्न देखो तो अनुभव करेंगे | सेवा के कार्य में अच्छे ही वफ़ादारी से दिन रात लगे हुए हैं | सेवाधारी तो एक ही लग्न में मगन हैं | लेकिन आप आत्माएं जो सर्व सुखों के साधन प्राप्त करने वाली हैं, विश्व के राज्य के अधिकारी बनने वाली हैं, वह इसी लग्न में मग्न रहती हो या विघ्न लगन को अविनाशी बनाने नहीं देते? लग्न की अग्नि अविनाशी प्रज्वलित रहती है वा अभी लगन और अभी विघ्न? 

विदेश के विज्ञानी आत्माओं में निरन्तर अपने कार्य के लगन की विशेषता देखी, तो जो आपके सेवाधारियों में गुण हैं – वह विश्व का मालिक बनने वाली आत्माओं में भी गुण हैं ना! अपने आपको चेक करो | दूसरी तरफ़ विदेश में परमात्म-ज्ञानी बच्चों को देख उन्हों में भी वर्तमान समय एक ही दृढ़ संकल्प वा लगन है, उमंग, उत्साह है कि अब जल्दी से जल्दी बाप का सन्देश देवें | विदेश द्वारा निमित्त बनी हुई विशेष आत्माएं जिन आत्माओं के अनुभव के आवाज़ से भारतवासी कुम्भकरण जागेंगे | ऐसे निमित्त बनी हुई आत्माओं को बाप के सम्मुख प्रत्यक्ष करें अर्थात् सम्बन्ध व सम्पर्क में लावें | समीप समय की सूचना विदेश द्वारा भारत में फैलावें | इसी एक लगन में दृढ़ संकल्प के कंगन में बंधे हुए परमात्म-ज्ञानी बच्चों को देखा | उन्हों को भी न दिन, न रात दोनों समान हैं | इस लगन में मगन हैं |

वर्तमान समय की लगन में मैजारिटी विघ्न-मुक्त आत्माएं एक दो के स्नेह और सहयोग के धागे में पिरोये हुए माला के मणके अच्छे चमकते हुए नज़र आ रहे थे | नए वा पुराने हर आत्मा में एक ही उमंग है कि इस श्रेष्ठ कार्य में हम भी अंगुली दें | कुछ करके दिखावें और क्या देखा? सन्देश पाने वाली आत्मायें, इच्छुक आत्मायें अर्थात् जिज्ञासा वाली आत्माएं थोड़े से समय में शान्ति और शक्ति की अंचली प्राप्त कर बहुत खुश होती हैं | निमित्त बनी हुई आत्माओं को परमात्मा द्वारा वा गॉड फादर दवारा भेजे हुए अलौकिक फ़रिश्ते अनुभव करते हैं | थोड़ी सी ली हुई सेवा का भी रिटर्न देने में अपनी ख़ुशी अनुभव करते हैं और फ़ौरन रिटर्न करते हैं | थोड़ी सी सेवा का शुक्रिया बहुत मानते हैं | यह वर्तमान समय के परमात्म-ज्ञानियों की वा निमित्त बनी हुई श्रेष्ठ आत्माओं की, इस सेवा के चक्र में चक्रवर्ती बनने की जो ड्रामा की नूँध है, इसी नूँध में स्थापना और विनाश के रहस्य का बहुत कनेक्शन है | यह थोड़े समय की सेवा देना वा चक्रवर्ती बन अपने दृष्टि द्वारा, वाणी द्वारा वा सम्पर्क द्वारा वा सूक्ष्म शुभभावना और शुभकामना के वृत्ति द्वारा, अनेक प्रकार के आपकी राजधानी के तैयारी के निमित्त बने हुए ज्ञानी वा विज्ञानी आत्मायें प्रसिध्द होंगी | आप सर्व श्रेष्ठ आत्मा की नज़र द्वारा निमित्त बनने वाली सेवाधारी आत्माओं को सेवा का फल मिलेगा अथवा सेवाधारी बनने के कार्य में मदद मिलेगी | समझा रहस्य को? 

भारत में तो आपकी भक्त आत्माएं मिलेंगी | लेकिन तीन प्रकार की आत्माएं चाहिए – एक ‘ब्राह्मण सो देवता’ बनने वाली और प्रजा बनने वाली आत्माएं; दूसरी भक्त आत्माएं; और तीसरी आपकी राजधानी तैयार कर देने वाली आत्माएं | सेवाधारी सर्व सुखों के साधन और सामग्री तैयार करने के निमित्त बनते हैं और आप प्रारब्ध भोगते हो | यह पाँच तत्व और पाँच तत्वों द्वारा बनी हुई रिफ़ाइन चीज़ें सब आपके सेवा के निमित्त बनेंगी | इतना श्रेष्ठ स्वमान, स्मृति में रहता है वा अब तक भी स्मृति-विस्मृति के खेल में ही चल रहे हो? ‘स्मृति स्वरूप सो समर्थी स्वरूप’ बनो | सुना, विदेश का समाचार? और वर्तमान चक्रवर्ती आत्माओं के चक्र लगाने का रहस्य है | जहाँ-जहाँ परमात्म-ज्ञानी आत्माएं ईश्वरीय सेवा-स्थान खोलने के निमित्त बनी हैं और आगे भी बननी हैं | तो अब के विदेश सेवा-स्थान भविष्य में आपके सैर स्थान बनेंगे | जैसे भारत में यादगार स्थान मन्दिर हैं लेकिन यह द्वापर के बाद बनते हैं इसलिए विदेशी आत्माओं का भी भविष्य स्थापना में कनेक्शन है, समझा | आज विदेश समाचार सुनाया, फिर भारत का सुनायेंगे | यह सब समाचार सुनने के बाद करना क्या है? सिर्फ़ सुनाना है वा कुछ करना भी है? ऐसे सर्व साधनों को प्राप्त करने के लिए स्वयं को सदैव विश्व के मालिक बनने योग्य बनाओ | निरन्तर ‘योगी बनना ही योग्य आत्मा’ बनना है | ऐसे अपने को समझते हो? तीव्र पुरुषार्थी बन स्वयं को भी सम्पन्न बनाओ और निमित्त बने हुए सेवाधारी आत्माओं को भी कार्य में सम्पन्न बनने की प्रेरणा दो तब विश्व परिवर्तन होगा | 

सदा लग्न द्वारा विघ्न विनाश करने वाले विघ्न-विनाशक आत्माओं को सदा अपने दृष्टि और वृत्ति द्वारा भी विश्व सेवा में तत्पर रहने वाली आत्माओं को, सदा बाप समान गुणों का, ज्ञान का, शक्तियों का दान करने वाली महादानी, रूहानी नज़र से वरदान देने वाली आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते | 

पार्टियों से : -  

विश्व की सर्व आत्माओं प्रति सदा रहम व कल्याण की भावना रहती है? हद के प्रति कल्याण की भावना रहती है वा बेहद के प्रति? अब विश्व के प्रति कल्याण की भावना रहेगी तो ऑटोमेटीकली स्वयं प्रति रहेगी | संगमयुगी ब्राह्मणों की विशेष ड्यूटी व धर्म और कर्म ही है विश्व कल्याण करना | अपने जन्म का काम करना मुश्किल नहीं होता | तो सदा अमृतवेले अपने पोजीशन को स्मृति में लाओ कि हमारा पोजीशन विश्व कल्याणकारी का है | अपने पोजीशन पर सेट होने से अपोजीशन से बच जायेंगे | 

सदैव साक्षीपन की सीट पर स्थिति रहते हुए हर एक्ट अपनी और दूसरों की देखते हो? कोई ड्रामा की सीन सीट पर स्थित हो देखने में मज़ा आता है | कोई भी सीन सीट के बिना नहीं देखी जाती | तो साक्षीपन की सीट पर सदा स्थित रहते हो? यह बेहद का ड्रामा सदा चलता रहता है | यह दो-तीन घण्टे का नहीं, अविनाशी है, तो सदा देखने के लिए सीट भी सदा चाहिए | ऐसे नहीं दो घण्टे सीट पर बैठो फिर उतर जाओ | जो सदा साक्षी हो देखेंगे वह कभी हार और जीत के दृश्य को देखकर डगमग नहीं होंगे | सदा एक रस रहेंगे, ड्रामा याद रहे तो सदा एकरस रहेंगे | ड्रामा को भूले तो डगमग रहेंगे | अगर ड्रामा कभी-कभी याद रहता तो राज्य भी कभी-कभी करेंगे? अगर साक्षी कभी-कभी रहते तो स्वर्ग में साथी भी कभी-कभी होंगे | नॉलेजफुल तो हो ना? सब जानते हो लेकिन जानते हुए भी साक्षीपन की स्टेज पर न रहने का कारण अटेन्शन से अलबेलापन, स्वचिन्तन की बजाए, व्यर्थ बातों में स्वचिन्तन को गँवा देते | स्वचिन्तन में न रहने वाला साक्षी नहीं रह सकता | परचिन्तन को समाप्त करने का आधार क्या है? अगर हर आत्मा के प्रति शुभ-चिन्तक होंगे तो परचिन्तन कभी नहीं करेंगे | तो सदा शुभचिन्तन और शुभचिन्तक रहने से सदा साक्षी रहेंगे | साक्षी अर्थात् अभी भी साथी और भविष्य में भी साथी | 

विशेष आत्माओं ने अपनी विशेषता क्या दिखाई है? विशेष आत्माओं की लास्ट विशेषता कौन सी होगी? जिसका इन-एडवान्स बापदादा दृश्य देख रहे हैं | वह क्या विशेषता होगी? जैसे साइन्स वाले हर चीज़ रिफ़ाइन भी कर रहे हैं और अपनी स्पीड क्विक भी कर रहे हैं | जैसे कहने में आता है मिनट-मोटर वैसे विशेष आत्माओं के लास्ट विशेषता यही रहेगी – सेकेण्ड में किसी भी आत्मा को मुक्ति और जीवनमुक्ति के अनुभवी बना देंगे | सिर्फ़ रास्ता नहीं बतलायेंगे लेकिन एक सेकेण्ड में शान्ति वा अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करायेंगे | जीवनमुक्ति का अनुभव है सुख और मुक्ति का अनुभव है शान्ति | सामने आया और अनुभव किया | ऐसी स्पीड जब होगी तब साइन्स के ऊपर सायलेंस की विजय देखते हुए सबके मुख से वाह-वाह का आवाज़ निकलेगा कि साइन्स के ऊपर भी इनकी विजय हो गई | जो साइन्स नहीं कर सके वह साइलेन्स करके दिखावे | साइन्स का लक्ष्य भी है सबको शान्तिमय, सुखमय जीवन व्यतीत करना | तो जो साइन्स नहीं कर सके वह करो तब कहेंगे साइन्स के ऊपर विजय | शान्ति वालों को शान्ति और सुख वालों को सुख मिले, तब गायन करेंगे, आपको पूर्वज मानेंगे, इष्टदेव समझेंगे और बारम्बार बाप की महिमा करेंगे | इसी आधार पर फिर द्वापर में भक्त और धर्म पिता के संस्कार इमर्ज होंगे | यह विशेष कार्य अब होने वाला है तब समझो लास्ट विजय का समय आ गया | सबको कुछ न कुछ मिलेगा, सिर्फ़ भारतवासी ही नहीं समझेंगे कि हमारा बाबा है, सभी समझेंगे हमारा है तब तो ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर कहा जायेगा ना! दूसरे देश वाले अभी समझते हैं भारत के पिता का परिचय देते हैं, लेकिन जब कहा जाता गॉड इज़ वन तो सभी वन का अनुभव तो करें ना | जब ऐसे वन का अनुभव करें तब समझो विन होगी | सबके मुख से एक आवाज़ निकले – हमारा बाबा; तब फिर द्वापर में सभी ‘ओ गॉड फ़ादर’ कह पुकारेंगे | अच्छा | 

वरदान:-   

सदा एक बाप के स्नेह में समाई हुई सहयोगी सो सहजयोग आत्मा भव !    

जिन बच्चों का बाप से अति स्नेह है, वह स्नेही आत्मा सदा बाप के श्रेष्ठ कार्य में सहयोगी होगी और जो जितना सहयोगी उतना सहजयोगी बन जाता है | बाप के स्नेह में समाई हुई सहयोगी आत्मा कभी माया की सहयोगी नहीं हो सकती | उनके हर संकल्प में बाबा और सेवा रहती इसलिए नींद भी करेंगे तो उसमें बड़ा आराम मिलेगा, शान्ति और शक्ति मिलेगी | नींद, नींद नहीं होगी, जैसे कमाई करके ख़ुशी में लेटे हैं, इतना परिवर्तन हो जाता है | 

स्लोगन:- 
प्रेम के आँसू दिल की डिब्बी में मोती बन जाते हैं |     

 

ओम् शान्ति |