02-06-14
प्रातःमुरली
ओम्
शान्ति
“बापदादा”
मधुबन
“मीठे
बच्चे
–
अवगुणों
को निकालने का पूरा पुरुषार्थ करो, जिस गुण की कमी है उसका
पोतामेल रखो, गुणों का दान करो तो गुणवान बन जायेंगे” 
प्रश्न:-
गुणवान बनने के लिए कौन-सी पहली-पहली श्रीमत मिली हुई है?
उत्तर:-
मीठे
बच्चे - गुणवान बनना है तो – 1. किसी की भी देह को मत देखो |
अपने को आत्मा समझो | एक बाप से सुनो, एक बाप को देखो | मनुष्य
मत को नहीं देखो | 2. देह-अभिमान के वश ऐसी कोई एक्टिविटी न हो
जिससे बाप का वा ब्राह्मण कुल का नाम बदनाम हो | उल्टी चलन
वाले गुणवान नहीं बन सकते | उन्हें कुल कलंकित कहा जाता है |
ओम्
शान्ति
|
(बापदादा के हाथ में मोतिये के फूल थे) बाबा साक्षात्कार कराते
हैं, ऐसा खुशबूदार फूल बनने का है | बच्चे जानते हैं, हम फूल
बने थे ज़रूर | गुलाब के फूल, मोतिये के फूल भी बने थे अथवा
हीरे भी बने थे, अब फिर बन रहे हैं | यह हैं सच्चे, आगे तो थे
झूठे | झूठ ही झूठ, सच की रत्ती भी नहीं | अभी तुम सच्चे बनते
हो तो फिर सच्चे में सब गुण भी चाहिए | जितने जिसमें गुण हैं,
उतना औरों को भी दान दे आपसमान बना सकते हैं इसलिए बाप बच्चों
को कहते रहते हैं – बच्चे, पोतामेल रखो, अपने गुणों का | हमारे
में कोई अवगुण तो नहीं हैं? दैवी गुणों में क्या कमी है? रात
को रोज़ अपना पोतामेल निकालो | दुनिया के मनुष्यों की तो बात ही
अलग है | तुम अभी मनुष्य तो नहीं हो ना | तुम हो ब्राह्मण | भल
मनुष्य तो सब मनुष्य ही हैं | परन्तु हर एक के गुणों में, चलन
में फ़र्क पड़ता है | माया के राज्य में भी कोई-कोई मनुष्य बहुत
अच्छे गुणवान होते हैं परन्तु बाप को नहीं जानते | बड़े रिलीजस
माइन्डेड, नर्म दिल होते हैं | दुनिया में तो मनुष्यों के
गुणों की वैराइटी है | और जब देवता बनते हैं तो दैवी गुण तो
सबमें हैं | बाकी पढ़ाई के कारण मर्तबे कम हो पड़ते हैं | एक तो
पढ़ना है, दूसरा अवगुणों को निकालना है | यह तो बच्चे जानते हैं
हम सारी दुनिया से न्यारे हैं | यहाँ एक जैसे एक ही ब्राह्मण
कुल बैठा हुआ है | शुद्र कुल में है मनुष्य मत | ब्राह्मण कुल
में है ईश्वरीय मत | पहले-पहले तुमको बाप का परिचय देना है,
तुम बताते हो फलाना आरग्यु करते हैं | बाबा ने समझाया था, लिख
दो हम ब्राह्मण अथवा बी.के. हैं ईश्वरीय मत पर तो समझ जायेंगे
इनसे ऊँचा तो कोई है नहीं | ऊँच ते ऊँच है भगवान्, तो हम उनके
बच्चे भी उनकी मत पर हैं | मनुष्य मत पर हम चलते नहीं, ईश्वरीय
मत पर चल हम देवता बनते हैं | मनुष्य मत बिल्कुल छोड़ दी है |
फिर तुमसे कोई आरग्यु कर न सके | कोई कहे यह कहाँ से सुना,
किसने सिखाया है? तुम कहेंगे हम हैं ईश्वरीय मत पर | प्रेरणा
की बात नहीं | बेहद के बाप ईश्वर से हम समझे हुए हैं | बोलो,
भक्ति मार्ग के शास्त्र मत पर तो हम बहुत समय चले | अब हमको
मिली है ईश्वरीय मत | तुम बच्चों को बाप की ही महिमा करनी है |
पहले-पहले बुद्धि में बिठाना है, हम ईश्वरीय मत पर हैं |
मनुष्य मत पर हम चलते नहीं, सुनते नहीं | ईश्वर ने कहा है हियर
नो ईविल, सी नो ईविल.....मनुष्य मत | आत्मा को देखो, शरीरी को
नहीं देखो | यह तो पतित शरीर है | उनको क्या देखने का है, इन
आँखों से यह नहीं देखो | यह शरीर तो पतित का पतित ही है | यहाँ
के यह शरीर तो सुधरने नहीं हैं और ही पुराने होने हैं |
दिन-प्रतिदिन सुधरती है आत्मा | आत्मा ही अविनाशी है, इसलिए
बाप कहते हैं सी नो ईविल | शरीर को भी नहीं देखना है | देह
सहित देह के जो भी सम्बन्ध हैं, उनको भूल जाना है | आत्मा को
देखो, एक परमात्मा बाप से सुनो, इसमें ही मेहनत है | तुम फील
करते हो यह बड़ी सब्जेक्ट है | जो होशियार होंगे, उनको पद भी
इतना ऊँच मिलेगा | सेकण्ड में जीवनमुक्ति मिल सकती है | परन्तु
अगर पूरा पुरुषार्थ नहीं किया तो फिर सजायें ही बहुत खानी
पड़ेंगी |
तुम
बच्चे अन्धों की लाठी बनते हो बाप का परिचय देने के लिए |
आत्मा को देखा नहीं जाता, जाना जाता है | आत्मा कितनी छोटी है
| इस आकाश तत्व में देखो मनुष्य कितनी जगह लेते हैं | मनुष्य
तो आते जाते रहते हैं ना | आत्मा कहाँ आती जाती है क्या? आत्मा
की कितनी छोटी-सी जगह होगी! विचार की बात है | आत्माओं का
झुण्ड होगा | शरीर के भेंट में आत्मा कितनी छोटी है, वह कितनी
थोड़ी जगह लेगी | तुमको तो रहने के लिए बहुत जगह चाहिए | अभी
तुम बच्चे विशाल बुद्धि बने हो | बाप नई बातें समझाते हैं नई
दुनिया के लिए और फिर बताने वाला भी नया है | मनुष्य तो सबसे
रहम मांगते रहते हैं | अपने में ताक़त नहीं है, जो अपने पर रहम
करें | तुमको ताक़त मिलती है | तुमने बाप से वर्सा लिया है और
कोई को रहमदिल नहीं कहा जाता है | मनुष्य को कभी देवता नहीं कह
सकते हैं | रहमदिल एक ही बाप है, जो मनुष्य को देवता बनाते हैं
इसलिए परमपिता परमात्मा की महिमा अपरमपार है, उसका पारावार
नहीं | अभी तुम जानते हो, उनके रहम का पारावार नहीं है | बाबा
जो नई दुनिया बनाते हैं, उसमें सब कुछ नया होता है | मनुष्य,
पशु, पक्षी सब सतोप्रधान होते हैं | बाप ने समझाया है तुम ऊँच
बनते हो तो तुम्हारा फर्नीचर भी ऐसा ऊँच ते ऊँच गाया हुआ है |
बाप को भी कहते हैं ऊँचे ते ऊँचा, जिससे विश्व की बादशाही
मिलती है | बाप साफ़ कहते हैं हम हथेली पर बहिश्त ले आता हूँ |
वो लोग हथेली से केसर आदि निकालते हैं, यहाँ तो पढ़ाई की बात है
| यह है सच्ची पढ़ाई | तुम समझते हो हम पढ़ रहे हैं | पाठशाला
में आये हैं, पाठशालायें तुम बहुत खोलो तो तुम्हारी एक्टिविटी
को देखें | कोई फिर उल्टी चलन चलते हैं तो नाम बदनाम करते हैं
| देह-अभिमान वाले की एक्टिविटी ही अलग होगी | देखेंगे ऐसी
एक्टिविटी है तो फिर जैसे सब पर कलंक लग जाता है | समझते हैं
इनकी एक्टिविटी में तो कोई फ़र्क नहीं है तो गोया बाप की निंदा
कराई ना | टाइम लगता है | सारा दोष उस पर आ जाता है | मैनर्स
बहुत अच्छे चाहिए | तुम्हारे कैरेक्टर्स बदलने में कितना टाइम
लगता है | तुम समझते हो कोई-कोई के कैरेक्टर्स बहुत अच्छे
फर्स्टक्लास होते हैं | वह दिखाई भी पड़ेंगे | बाबा एक-एक बच्चे
को बैठ देखते हैं, इनमें क्या खामी है जो निकलनी चाहिए | एक-एक
की जाँच करते हैं | खामियाँ तो सबमें हैं | तो बाप सबको देखते
रहते हैं | रिज़ल्ट देखते रहते हैं | बाप का तो बच्चों पर लव
रहता है ना | जानते हैं इनमें यह खामी है, इस कारण यह इतना ऊँच
पद पा नहीं सकेंगे | अगर खामियाँ नहीं निकली तो बड़ा मुश्किल है
| देखने से ही मालूम पड़ जाता है | यह तो जानते हैं अभी टाइम
पड़ा है | एक-एक की जाँच करते, बाप की नज़र एक-एक के गुणों पर
पड़ेगी | पूछेंगे तुम्हारे में कोई अवगुण तो नहीं हैं? बाबा के
आगे तो सच बता देते हैं | कोई-कोई को देह-अभिमान रहता है तो
नहीं बताते हैं | बाप तो कहते रहते हैं – आपेही जो करे सो
देवता | कहने से करे वह मनुष्य, जो कहने से भी न करे........ |
बाबा कहते रहते हैं जो भी खामियाँ हैं इस जन्म की वह बाप के
आगे आपेही बताओ | बाबा तो सबको कह देते हैं खामियाँ सर्जन को
बतानी चाहिए | शरीर की बीमारी नहीं, अन्दर की बीमारी बतानी है
| तुम्हारे पास अन्दर में क्या-क्या आसुरी ख्यालात रहते हैं?
तो इस पर बाबा समझायेंगे | इस हालत में तुम इतना ऊँच पद नहीं
पा सकेंगे, जब तक अवगुण निकलें, अवगुण बहुत निंदा कराते हैं |
मनुष्यों को वहम पड़ता है – भगवान् इनको पढ़ाते हैं! भगवान् तो
नाम-रूप से न्यारा है, सर्वव्यापी है, वह कैसे इनको पढ़ायेंगे,
इनकी चलन कैसी है | यह तो बाप जानते हैं – तुम्हारे गुण कैसे
फर्स्टक्लास होने चाहिए | अवगुण छिपा देंगे तो कोई को इतना तीर
नहीं लगेगा इसलिए जितना हो सके अपने में अवगुण जो हैं उनको
निकालते जाओ | नोट करो, हमारे में यह-यह खामी है तो दिल अन्दर
में खायेगी | घाटा पड़ता है तो दिल खाती है | व्यापारी लोग अपना
खाता रोज़ निकालते हैं – आज कितना फ़ायदा हुआ, रोज़ का खाता देखते
हैं | यह बाप भी कहते हैं रोज़ अपनी चाल देखो | नहीं तो अपना
नुकसान कर देंगे | बाप की पत (इज्ज़त) गंवा देंगे |
गुरु
की निंदा कराने वाले ठौर न पायें | देह-अभिमानी ठौर नहीं पा
सकेंगे | देही-अहिमानी अच्छी ठौर पायेंगे | देही-अभिमानी बनने
के लिए ही सब पुरुषार्थ करते हैं | दिन-प्रतिदिन सुधरते जाते
हैं | देह-अभिमान से जो कर्तव्य होते हैं, उनको काटते रहना है
| देह-अभिमान से पाप ज़रूर होता है इसलिए देही-अभिमानी बनते रहो
| यह तो समझ सकते हो जन्मते ही राजा कोई होता नहीं |
देही-अभिमानी बनने में टाइम तो लगता है ना | यह भी तुम समझते
हो, अभी हमको वापिस जाना है | बाबा के पास बच्चे आते हैं | कोई
6 मास बाद आते, कोई 8 मास बाद भी आते हैं तो बाबा देखते हैं
इतने समय में क्या उन्नति हुई है? दिन-प्रतिदिन कुछ सुधरते
रहते हैं या कुछ दाल में काला है? कोई चलते-चलते पढ़ाई छोड़ देते
हैं | बाबा कहते हैं यह क्या, भगवान् तुमको पढ़ाते हैं भगवान
भगवती बनाने, ऐसी पढ़ाई तुम छोड़ देते हो! अरे! वर्ल्ड गॉड फादर
पढ़ाते हैं, इसमें अबसेन्ट! माया कितनी प्रबल है | फर्स्टक्लास
पढ़ाई से तुम्हारा मुख मोड़ देती है | बहुत हैं जो चलते रहते
हैं, फिर पढ़ाई को लात मार देते हैं | यह तो तुम समझते हो अब
हमारा मुँह है स्वर्ग तरफ़, लात है नर्क तरफ़ | तुम हो संगमयुगी
ब्राह्मण | यह पुरानी रावण की दुनिया है | हम वाया शान्तिधाम,
सुखधाम तरफ़ जायेंगे | बच्चों को यही याद रखना पड़े | टाइम बहुत
कम है, कल भी शरीर छूट सकता है | बाप की याद नहीं होगी तो फिर
अन्तकाल.....बाप समझाते तो बहुत हैं | यह सब गुप्त बातें हैं |
नॉलेज भी गुप्त है | यह भी जानते हैं कल्प पहले जिसने जितना
पुरुषार्थ किया है, वही कर रहे हैं | ड्रामा अनुसार बाप भी
कल्प पहले मुआफ़िक समझाते रहते हैं, इसमें फ़र्क नहीं पड़ सकता है
| बाप को याद करते रहो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होते जायें |
सजा नहीं खानी चाहिए | बाप के सामने सजायें बैठ खायेंगे तो बाप
क्या कहेंगे! तुमने साक्षात्कार भी किये हैं, उस समय माफ़ नहीं
कर सकते | इन द्वारा बाप पढ़ाते हैं तो उनका ही साक्षात्कार
होगा | इन द्वारा वहाँ भी समझाते रहेंगे – तुमने यह-यह किया
फिर उस समय बहुत रोयेंगे, चिल्लायेंगे, अफ़सोस भी करेंगे | बिगर
साक्षात्कार सज़ा दे न सकें | कहेंगे तुमको इतना पढ़ाते थे फिर
ऐसे-ऐसे काम किये | तुम भी समझते हो रावण की मत पर हमने कितने
पाप किये हैं |
पूज्य
से पुजारी बन पड़े हैं | बाप को सर्वव्यापी कहते आये | यह तो
पहले नम्बर की इन्सल्ट है | इसका हिसाब-किताब भी बहुत है | बाप
उल्ह्ना देते हैं, तुमने अपने को कैसे चमाट मारी है | भारतवासी
ही कितना गिरे हैं | बाप आकर समझाते हैं | अभी तुमको कितनी समझ
मिली है | सो भी नम्बरवार समझते हैं, ड्रामा अनुसार | आगे भी
ऐसे ही इस समय तक के क्लास की यह रिज़ल्ट थी | बाप बतायेंगे तो
सही ना | तो बच्चे अपनी उन्नति करते रहें | माया ऐसी है जो
देही-अभिमानी रहने नहीं देती है | यही बड़ी सब्जेक्ट है | अपने
को आत्मा समझ बाप को याद करो तो पाप भस्म हो जायें | अच्छा!
मीठे-मीठे
सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और
गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
देह-अभिमान में आने से पाप ज़रूर होते हैं, देह-अभिमानी को ठौर
नहीं मिल सकती, इसलिए देही-अभिमानी बनने का पूरा पुरुषार्थ
करना है | कोई भी कर्म बाप की निंदा कराने वाला न हो |
2.
अन्दर
की बीमारियाँ बाप को सच-सच बतानी हैं, अवगुण छिपाने नहीं हैं |
अपनी जाँच करनी है कि
मेरे में क्या-क्या अवगुण हैं? पढ़ाई से स्वयं को गुणवान बनाना
है |
वरदान:-
नॉलेजफुल बन सर्व व्यर्थ के प्रश्नों को यज्ञ में स्वाहा करने
वाले निर्विघ्न भव
! 
जब
कोई विघ्न आते हैं तो क्या-क्यों के अनेक प्रश्नों में चले
जाते हो, प्रश्नचित बनना अर्थात् परेशान होना | नॉलेजफुल बन
यज्ञ में सर्व व्यर्थ प्रश्नों को स्वाहा कर दो तो आपका भी
टाइम बचेगा और दूसरों का भी टाइम बच जायेगा | इससे सहज ही
निर्विघ्न बन जायेंगे | निश्चय और विजय जन्म सिद्ध अधिकार है –
इस शान में रहो तो कभी भी परेशान नहीं होंगे |
स्लोगन:-
सदा
उत्साह में रहना और दूसरों को उत्साह दिलाना – यही आपका
आक्यूपेशन है |
ओम् शान्ति
|