21-12-14
प्रातः मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त
बापदादा”
रिवाइज
14-01-79
मधुबन
“ब्राह्मण
जीवन का विशेष आधार - पवित्रता”
आज
अमृतवेले बापदादा बच्चों के मस्तक द्वारा हरेक की प्युरिटी की
पर्सनैलिटी देख रहे थे । हरेक में नम्बरवार पुरुषार्थ प्रमाण
प्युरिटी की झलक चमक रही थी । इस ब्राह्मण जीवन का विशेष आधार
प्युरिटी ही है । आप सभी श्रेष्ठ आत्माओं की श्रेष्ठता
प्युरिटी ही है,
प्युरिटी ही इस भारत देश की महानता है,
प्युरिटी ही आप ब्राह्मण आत्माओं की प्रासपर्टी है जो इस जन्म
में प्राप्त करते हो वही अनेक जन्मों के लिए प्राप्त करते हो ।
प्युरिटी ही विश्व परिवर्तन का आधार है,
प्युरिटी के कारण ही आज तक भी विश्व आपके जड़ चित्रों को चैतन्य
से भी श्रेष्ठ समझता है । आजकल की नामीग्रामी आत्मायें भी
प्युरिटी के आगे सिर झुकाती रहती है । ऐसी प्युरिटी तुम बच्चों
को बाप द्वारा जन्म-सिद्ध अधिकार में प्राप्त होती है । लोग
प्युरिटी को मुश्किल समझते हैं लेकिन आप सब अति सहज अनुभव करते
हो । प्युरिटी की परिभाषा तुम बच्चों के लिए अति साधारण है
क्योंकि स्मृति आई कि वास्तविक आत्म स्वरूप है ही सदा प्योर ।
अनादि स्वरूप भी पवित्र आत्मा है और आदि स्वरूप भी पवित्र
देवता है,
और
अब का अन्तिम जन्म भी पवित्र ब्राह्मण जीवन है । इस स्मृति के
आधार पर पवित्र जीवन बनाना अति सहज अनुभव करते हो,
अपवित्रता परधर्म है,
पवित्रता स्वधर्म है । स्वधर्म को अपनाना सहज लगता है ।
आज्ञाकारी बच्चों को बाप की पहली आज्ञा है - पवित्र बनो तब ही
योगी बन सकेंगे । इस आज्ञा का पालन करने वाले आज्ञाकारी बच्चों
को बापदादा देख हर्षित होते हैं । उसमें भी विशेष आज विदेशी
बच्चों को,
जिन्होंने बाप की इस श्रेष्ठ मत को धारण कर जीवन को पवित्र
बनाया है,
ऐसे
पवित्र आज्ञाकारी आत्माओं को देख बच्चों के गुणगान करते हैं ।
बच्चे ज्यादा बाप के गुणगान करते हैं वा बाप बच्चों के ज्यादा
गुणगान करते हैं?
बाप
के सामने वतन में विशेष श्रृंगार कौनसा है?
जैसे
आप लोग यहाँ कोई स्थान का श्रृंगार मालाओं से करते हो ।
बापदादा के पास भी हर बच्चे के गुणों की माला की सजावट है ।
कितनी अच्छी सजावट होगी! दूर से ही देख सकते हो ना! हरेक अपनी
माला का नम्बर भी जान सकते हैं कि हमारी गुण माला बड़ी है वा
छोटी है! बापदादा के अति समीप हैं,
सन्मुख हैं वा थोड़ा सा किनारे हैं?
समीप
किन्हों की माला होती,
यह
तो जानते हो ना । जो बाप के गुणों और कर्तव्य के समीप है वही
सदा समीप हैं - हर गुण से बाप का गुण प्रत्यक्ष करने वाले हैं,
हर
कर्म से बाप के कर्तव्य को सिद्ध करने वाले समीप रत्न हैं ।
आज
बापदादा प्युरिटी की सबजेक्ट में मार्क्स दे रहे थे,
मार्क्स देने में विशेषता क्या देखी?
पहली
विशेषता मन्सा की पवित्रता - जब से जन्म लिया तब से अभी तक
संकल्प में भी अपवित्रता के संस्कार इमर्ज न हों । अपवित्रता
का त्याग और पवित्रता का श्रेष्ठ भाग्य । ब्राह्मण जीवन में
संस्कार ही परिवर्तन हो जाते हैं । मन्सा में सदा श्रेष्ठ
स्मृति - आत्मिक स्वरूप अर्थात् भाई- भाई की रहती है । इस
स्मृति के आधार पर मन्सा प्युरिटी के मार्क्स मिलते हैं । वाचा
में सदा सत्यता और मधुरता - विशेष इस आधार पर वाणी की मार्क्स
मिलती है । कर्मणा में सदा नम्रता और सन्तुष्टता इसका
प्रत्यक्ष फल सदा हर्षितमुखता होगी,
इस
विशेषता के आधार पर कर्मणा में मार्क्स मिलती है । अब तीनों को
सामने रखते हुए अपने आपको चेक करो कि हमारा नम्बर कौनसा होगा?
विदेशी आत्माओं का नम्बर कौनसा है?
आज
विशेष मिलने के लिए आए हैं,
कोई
आत्माओं के कारण बाप को भी विदेशी से देशी बनना पड़ता है । सबसे
दूर देश का विदेशी तो बाप है,
विदेशी बाप इस लोक के विदेशियों से मिलने आये हैं । भारतवासी
भी कम नहीं हैं । भारतवासी बच्चों का विदेशियों को चान्स देना
भी भारत की महानता है । चान्स देने वाले भारतवासी सब चान्सलर
हो गये । विदेशियों की विशेषता को जानते हो?
जिस
विशेषता के कारण नम्बर आगे ले रहे हैं,
विशेष बात यह है कि कई विदेशी बच्चे आने से ही अपने को इसी
परिवार के,
इसी
धर्म की बहुत पुरानी आत्मायें अनुभव करते हैं,
इसी
को कहा जाता है आने से ही अधिकारी आत्मायें अनुभव होते । मेहनत
ज्यादा नहीं लेते,
सहज
ही कल्प पहले की स्मृति जागृत हो जाती है । इसलिए
'हमारा
बाबा'
यह
बोल अनुभव के आधार से बहुत जल्दी कईयों के मुख से दिल से
निकलता है । दूसरी बात गाडली स्टडी की विशेष सबजेक्ट सहज
राजयोग - इस सबजेक्ट में मैजारटी विदेशी आत्माओं को अनुभव भी
बहुत अच्छे और सहज होने लगते हैं । इस मुख्य सबजेक्ट की तरफ
विशेष आकर्षण होने के कारण निश्चय का फाउन्डेशन मजबूत हो जाता
है । यह है दूसरी विशेषता । अंगद के समान मजबूत हो ना?
माया
हिलाती तो नहीं है?
आज
विशेष विदेशियों का टर्न है इसलिए भारत के बच्चे साक्षी हैं ।
भारतवासी बच्चे अपने भाग्य को तो अच्छी रीति जानते हैं ।
विदेशियों को भी राज्य तो यहाँ ही करना है ना! अपने भाग्य को
जानते हो?
आगे
चल सेवा के निमित्त बनने का अच्छा पार्ट है । प्राप्त हुआ
भाग्य देख सभी को खुशी होती है । (दादाराम सावित्री का परिवार
मधुबन आया है,
उन्हों को देख बाबा बोले) किसी विशेष भाग्यशाली आत्माओं (राम
सावित्री) के कारण परिवार का भी भाग्य है । जब कोई संकल्प
सिद्ध होता है तो खुशी जरूर होती है । अच्छा ।
ऐसे
सदा खुशी में झूमने वाले,
सदा
अपने भाग्य के सितारे को चमकता हुआ देख चढ़ती कला की ओर जाने
वाले,
सदा
प्युरिटी की पर्सनैलिटी वाले,
प्युरिटी की महानता के आधार पर विश्व को परिवर्तन करने वाले,
विश्व कल्याणकारी बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते ।
पार्टियों से मुलाकात
लन्दनपार्टी- सभी अपने को सदा बाप के साथी अनुभव करते हो?
कम्बाइन्ड रूप अपना देखते हो ना?
अकेले नहीं,
जहाँ
बच्चे हैं वहाँ बाप हर बच्चे के साथ है । सदैव बाप की याद के
छत्रछाया के अन्दर हो । किसी भी प्रकार के माया के विघ्न
छत्रछाया के अन्दर आ नहीं सकते । तो जहाँ भी रहते हो,
जो
भी कार्य करते हो,
सदा
ऐसे अनुभव करो कि हम सेफ्टी के स्थान पर हैं,
ऐसे
अनुभव करते हो?
खास
विदेशियों के ऊपर बापदादा का विशेष स्नेह और सहयोग है । विदेशी
आत्मायें सेवा के क्षेत्र में भी अपना अच्छा पार्ट आगे चलकरके
बजायेंगी । सेवा का भविष्य बहुत अच्छा है । सेवा का नया प्लैन
क्या बनाना है?
जनरल
प्रोग्राम के साथ-साथ विशेष आत्माओं की सेवा करो,
उसके
लिए मेहनत जरूर लगेगी लेकिन सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है,
यह
नहीं सोचो बहुत किया है फल नहीं दिखाई देता । फल तैयार हो रहे
हैं । कोई भी कर्म का फल निष्फल हो ही नहीं सकता,
क्योंकि बाप की याद में करते हो ना । याद में किये हुए का फल
सदा श्रेष्ठ रहता है इसलिए कभी भी दिलशिकस्त नहीं बनना । जैसे
बाप को निश्चय है कि फल निकलना ही है वैसे स्वयं भी
निश्चयबुद्धि रहो । कोई फल जल्दी निकलता,
कोई
थोड़ा देरी से इसलिए इसका भी सोचो नहीं,
करते चलो,
अभी
जल्दी ही ऐसा समय आयेगा जो स्वत: आपके पास इनक्यायरी करने
आयेंगे कि यह सन्देश वा सूचना कहाँ से मिली थी । सिर्फ थोड़ा सा
विनाश का ठका होने दो तो फिर देखो कितनी लम्बी क्यू लग जाती है
फिर आप लोग कहेंगे हमको समय नहीं है,
अभी
वह लोग कहते हैं हमें टाइम नहीं,
फिर
आप कहेंगे टू लेट ।
जिस
बात में मुश्किल अनुभव करो वह मुश्किल की बात बाप पर छोड़ दो,
स्वयं सदा सहजयोगी रहो । सहजयोगी रहना ही सदा सर्विस करना है ।
आपकी सूक्ष्म योग की शक्ति स्वत: ही आत्माओं को आपके तरफ
आकर्षित करेगी तो यही सहज सेवा है,
यह
तो सभी करते हो ना । लण्डन निवासियों ने सेवा का विस्तार अच्छा
किया है । हमजिन्स अच्छी तैयार की है?
माला
तैयार हो गई है?
108
रत्न तैयार किये हैं?
अब
लण्डन वाले ऐसा ग्रुप तैयार करें जिसमें सब वैरायटी हों,
वैज्ञानिक भी हों,
धार्मिक भी हों,
नेताये भी हों,
और
जो भिन्न-भिन्न ऐसोसियेशन्स हैं उनकी भी विशेष आत्मायें हों ।
जब तक स्थापना के लिए सब प्रकार की वैरायटी आत्मायें स्थापना
के कार्य में बीज नहीं डालेगी तो विनाश कैसे होगा! क्योंकि
सतयुग में सब प्रकार के कार्य वाले काम में आयेंगे । सेवाधारी
बनकर आपकी सेवा करेगे । अभी एक जन्म थोड़े समय की आप सेवा कर
ऐसे सेवाधारी तैयार करो जो अनेक जन्म आपकी सेवा करे । साइन्स
वालों का भी वहाँ पार्ट है,
जो
वहाँ के सुख के साधनों की विशेषता है वह यहाँ आयेगा । तो विदेश
में यह सेवा अभी तीव्रगति से होनी चाहिए । राजधानी तैयार करो,
प्रजा भी तैयार करो,
रायल
फैमली भी तैयार करो,
सेवाधारी भी तैयार करो । कोई भी ऐसा वर्ग न रह जाए जो उल्हना
दे कि हमें सन्देश नहीं मिला है ।
2
.ईश्वरीय सेवा का श्रेष्ठ और नया तरीका:
संकल्पों द्वारा ईश्वरीय सेवा करना यह भी सेवा का श्रेष्ठ और
नया तरीका है,
जैसे
जवाहरी होता है तो रोज सुबह को दुकान खोलते अपने हर रत्न को
चेक करता है कि साफ है,
चमक
ठीक है,
ठीक
जगह पर रखे हुए हैं?
वैसे
रोज अमृतवेले अपने सम्पर्क में आने वाली आत्माओं पर संकल्प
द्वारा नजर दौड़ाओ,
जितना आप उन्हों को संकल्प से याद करेंगे उतना वह संकल्प
उन्हों के पास पहुँचेगा और वह कहेंगे कि हमने भी बहुत वारी
आपको याद किया था । इस प्रकार सेवा के नये-नये तरीके अपनाते
आगे बढ़ते जाओ - हर मास सम्पर्क वाली आत्माओं का विशेष कोई
प्रोग्राम रखो,
स्नेह मिलन रखो,
अनुभव की लेन-देन वा मनोरंजन का प्रोग्राम रखो,
किसी
न किसी तरह से बुलाकर सम्पर्क बढ़ाओ,
यह
नहीं सोचो दो निकले या तीन निकले,
एक
भी निकले तो भी अच्छा,
एक
ही दीपक दीपमाला तैयार कर देगा ।
जर्मनी: - जर्मनी वालें ने अपने देश में बाप का परिचय देने का
साधन अच्छा बनाया है,
अभी
जर्मनी के आसपास हैंन्डस तैयार करके सेवा के फील्ड को और बढ़ाओ,
जो
भी आये हैं वह सब एक-एक सेवाकेन्द्र सम्भालों क्योंकि समय कम
है और राजधानी बनानी है । जर्मनी का ग्रुप फालो फादर करने वाला
है ना! सर्विस करो लेकिन सम्पर्क के आधार से,
इन्डिपिन्डेट नहीं । जैसे हर डाली का तने से कनेक्शन होता है
इसी रीति से विशेष निमित्त आत्माओं से सम्पर्क अच्छा हो फिर
सफलता अच्छी मिलती है,
ऐसा
प्लैन बनाना । अच्छा ।
विदाई के समय:- संगमयुग के यह दिन भी बहुत अमूल्य हैं! बापदादा
भी बच्चों का मेला संगम पर ही साकार रूप में देखते हैं ।
संगमयुग अच्छा लगता है ना?
विश्व परिवर्तन नहीं करेंगे?
संगमयुग की विशेषता अपनी है और नई दुनिया की विशेषता अपनी है ।
जब नई दुनिया में जायेंगे तो बाप को भी भूल जायेंगे उस समय याद
होगा?
बाप
को भी खुशी है कि बच्चे इतने श्रेष्ठ पद को प्राप्त कर लेते
हैं । सदैव बाप यही चाहते हैं कि बच्चे बाप से भी आगे रहें ।
बच्चों का श्रेष्ठ भाग्य देख बाप खुश होते हैं । थोड़े ही टाइम
में भाग्य कितना बना लेते हो?
संगमयुग की यही विशेषता है जो हर घड़ी हर संकल्प अपना भाग्य बना
सकते हो! जितना चाहो भाग्य बनाने का चान्स है,
उतना
ही पूरा चान्स ले रहे हो?
प्राप्ति का समय अभी ज्यादा नहीं है इसलिए जितना चाहो उतना अभी
कर लो,
नहीं
तो यह प्राप्ति का समय याद आयेगा कि करना चाहिए था लेकिन किया
नहीं! अपने याद की यात्रा को पावरफुल बनाते जाओ । संकल्प में
सर्व शक्तियों का सार भरते जाओ । हर संकल्प में शक्ति भरते रहो
। संकल्प की शक्ति से भी बहुत सेवा कर सकते हो । अच्छा - ओम
शान्ति ।
वरदान:-
सम्पन्नता द्वारा सदा सन्तुष्टता का अनुभव करने वाले
सम्पत्तिवान
भव ! 
स्वराज्य की सम्पत्ति है ज्ञान,
गुण
और शक्तियां । जो इन सर्व सम्पत्तियों से सम्पन्न स्वराज्य
अधिकारी हैं वह सदा सन्तुष्ट हैं । उनके पास अप्राप्ति का नाम
निशान नहीं । हद के इच्छाओं की अविद्या -इसको कहा जाता है
सम्पत्तिवान । वह सदा दाता होंगे,
मंगता नहीं । वे अखण्ड सुख-शान्तिमय स्वराज्य के अधिकारी होते
हैं । किसी भी प्रकार की परिस्थिति उनके अखण्ड शान्ति को
खण्डित नहीं कर सकती ।
स्लोगन:-
ज्ञान नेत्र से तीनों कालों और तीनों लोकों को जानने वाले
मास्टर नॉलेजफुल हैं । 
ओम्
शान्ति |