10-02-15
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा”
मधुबन
“मीठे
बच्चे - पुरानी दुनिया के कांटों को नई दुनिया के फूल बनाना -
यह तुम होशियार मालियों का काम है
|” 
प्रश्न:-
संगमयुग पर तुम बच्चे कौन-सी श्रेष्ठ तकदीर बनाते हो?
उत्तर:-
कांटे
से खुशबूदार फूल बनना - यह है सबसे श्रेष्ठ तकदीर । अगर एक भी
कोई विकार है तो कांटा है । जब कांटे से फूल बनो तब सतोप्रधान
देवी-देवता बनो । तुम बच्चे अभी 21 पीढ़ी के लिए अपनी सूर्यवंशी
तकदीर बनाने आये हो ।
गीत:-
तकदीर जगाकर आई हूँ
.. 
ओम्
शान्ति |
गीत
बच्चों ने सुना । यह तो कॉमन गीत है क्योंकि तुम हो माली,
बाप
है बागवान । अब मालियों को कांटो से फूल बनाना है । यह अक्षर
बहुत क्लीयर है । भक्त आये हैं भगवान के पास । यह सब भक्तियां
हैं ना । अब ज्ञान की पढ़ाई पढ़ने बाप के पास आये हैं । इस
राजयोग की पढ़ाई से ही नई दुनिया के मालिक बनते हो । तो
भक्तियां कहती हैं-हम तकदीर बनाकर आये हैं,
नई
दुनिया दिल में सजाकर आये हैं । बाबा भी रोज कहते हैं कि स्वीट
होम और स्वीट राजाई को याद करो । आत्मा को याद करना है । हर एक
सेन्टर पर कांटों से फूल बन रहे हैं । फूलों में भी नम्बरवार
होते हैं ना । शिव के ऊपर फूल चढ़ाते,
कोई
कैसा फूल चढाते,
कोई
कैसा । गुलाब के फूल और अक के फूल में रात-दिन का फर्क है । यह
भी बगीचा है । कोई मोतियें के फूल हैं,
कोई
चम्पा के,
कोई
रतन ज्योत हैं । कोई अक के भी हैं । बच्चे जानते हैं इस समय सब
हैं कांटे । यह दुनिया ही कांटों का जंगल है,
इनको
बनाना है नई दुनिया के फूल । इस पुरानी दुनिया में हैं कांटे,
तो
गीत में भी कहते हैं हम बाप के पास आये हैं पुरानी दुनिया के
कांटे से नई दुनिया का फूल बनने । जो बाप नई दुनिया स्थापन कर
रहे हैं । कांटे से फूल अर्थात् देवी-देवता बनना है । गीत का
अर्थ कितना सहज है । हम आये हैं-तकदीर जगाने नई दुनिया के लिए
। नई दुनिया है सतयुग । कोई की सतोप्रधान तकदीर है,
कोई
की रजो,
तमो
है । कोई सूर्यवंशी राजा बनते हैं,
कोई
प्रजा बनते हैं,
कोई
प्रजा के भी नौकर चाकर बनते हैं । यह नई दुनिया की राजाई
स्थापन हो रही है । स्कूल में तकदीर जगाने जाते हैं ना । यहाँ
तो है नई दुनिया की बात । इस पुरानी दुनिया में क्या तकदीर
बनायेंगे! तुम भविष्य नई दुनिया में देवता बनने की तकदीर बना
रहे हो,
जिन
देवताओं को सभी नमन करते आये हैं । हम ही सो देवता पूज्य थे
फिर हम ही पुजारी बने हैं । 21 जन्मों का वर्सा बाप से मिलता
है,
जिसे
21 पीढ़ी कहा जाता है । पीढ़ी वृद्ध अवस्था तक को कहा जाता है ।
बाप 21 पीढ़ी का वर्सा देते हैं क्योंकि युवा अवस्था में वा
बचपन में,
बीच
में अकाले मृत्यु कभी होता नहीं इसलिए उनको कहा जाता है अमरलोक
। यह है मृत्युलोक,
रावण
राज्य । यहाँ हर एक में विकारों की प्रवेशता है,
जिसमें कोई एक भी विकार हैं तो कांटे हुए ना । बाप समझेंगे
माली रॉयल खुशबूदार फूल बनाना नहीं जानते हैं । माली अच्छा
होगा तो अच्छे- अच्छे फूल तैयार करेंगे । विजय माला में पिरोने
लायक फूल चाहिए । देवताओं के पास अच्छे- अच्छे फूल ले जाते हैं
ना । समझो क्वीन एलिजाबेथ आती है तो एकदम फर्स्टक्लास फूलों की
माला बनाकर ले जायेंगे । यहाँ के मनुष्य तो हैं तमोप्रधान ।
शिव के मन्दिर में भी जाते हैं,
समझते हैं ये भगवान हैं । ब्रह्मा,
विष्णु,
शंकर
को तो देवता कहते हैं । शिव को भगवान कहेग । तो वह ऊच ते ऊचा
हुआ ना । अब शिव के लिए कहते धतूरा खाता था,
भाग
पीता था । कितनी ग्लानि करते हैं । फूल भी अक के ले जाते हैं ।
अब ऐसा परमपिता परमात्मा उनके पास ले क्या जाते हैं! तमोप्रधान
कांटों के पास तो फर्स्टक्लास फूल ले जाते हैं और शिव के
मन्दिर में क्या ले जाते! दूध भी कैसा चढ़ाते हैं?
5
परसेंट दूध बाकी 95 परसेन्ट पानी । भगवान के पास दूध कैसा
चढ़ाना चाहिए-जानते तो कुछ भी नहीं । अब तुम अच्छी रीति जानते
हो । तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं,
जो
अच्छा जानते हैं उनको सेन्टर का हेड बनाया जाता है । सब तो एक
जैसे नहीं होते । भल पढ़ाई एक ही है,
मनुष्य से देवता बनने की ही एम ऑब्जेक्ट है परन्तु टीचर तो
नम्बरवार हैं ना । विजय माला में आने का मुख्य आधार है पढ़ाई ।
पढ़ाई तो एक ही होती है,
उसमें पास तो नम्बरवार होते हैं ना । सारा मदार पढ़ाई पर है ।
कोई तो विजय माला के 8 दानों में आते हैं,
कोई
108
में,
कोई
16108
में । सिजरा बनाते हैं ना । जैसे झाड़ का भी सिजरा निकलता है,
पहले-पहले एक पत्ता,
दो
पत्ते फिर बढ़ते जाते हैं । यह भी झाड़ है । बिरादरी होती है,
जैसे
कृपलानी बिरादरी आदि- आदि,
वह
सब हैं हद की बिरादरिया । यह है बेहद की बिरादरी । इनका
पहले-पहले कौन है?
प्रजापिता ब्रह्मा । उनको कहेंगे ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर ।
परन्तु यह किसको पता नहीं है । मनुष्य-मात्र जरा भी नहीं जानते
कि सृष्टि का रचयिता कौन है?
बिल्कुल अहिल्या जैसे पत्थरबुद्धि हैं । ऐसे जब बन जाते हैं तब
ही बाप आते हैं ।
तुम
यहाँ आये हो अहिल्या बुद्धि से पारसबुद्धि बनने । तो नॉलेज भी
धारण करनी चाहिए ना । बाप को पहचानना चाहिए और पढ़ाई का ख्याल
करना चाहिए । समझो आज आये हैं,
कल
अचानक शरीर छूट जाता है फिर क्या पद पा सकेंगे । नॉलेज तो कुछ
भी उठाई नहीं,
कुछ
भी सीखे नहीं तो क्या पद पायेंगे! दिन-प्रतिदिन जो देरी से
शरीर छोड़ते हैं,
उनको
टाइम तो थोड़ा मिलता है क्योंकि टाइम तो कम होता जाता है,
उसमें जन्म ले क्या कर सकेंगे । हाँ,
तुम्हारे से जो जायेंगे तो कोई अच्छे घर में जन्म लेंगे ।
संस्कार ले जाते हैं तो वह आत्मा झट जाग जायेगी,
शिवबाबा को याद करने लगेगी । संस्कार ही नहीं पड़े हुए होंगे तो
कुछ भी नहीं होगा । इसको बहुत महीनता से समझना होता है । माली
अच्छे- अच्छे फूलों को ले आते हैं तो उनकी महिमा भी गाई जाती
है,
फूल
बनाना तो माली का काम है ना । ऐसे बहुत बच्चे हैं,
जिनको बाप को याद करना आता ही नहीं है । तकदीर के ऊपर है ना ।
तकदीर में नहीं है तो कुछ भी समझते नहीं । तकदीरवान बच्चे तो
बाप को यथार्थ रीति पहचान कर उन्हें पूरी रीति याद करेंगे |
बाप के साथ-साथ नई दुनिया को भी याद करते रहेंगे । गीत में भी
कहते हैं ना-हम नई दुनिया के लिए नई तकदीर बनाने के लिए आये
हैं । 21 जन्म लिए बाप से राज्य- भाग्य लेना है । इस नशे और
खुशी में रहे तो ऐसे-ऐसे गीत का अर्थ इशारे से समझ जायें ।
स्कूल में भी कोई की तकदीर में नहीं होता है तो फेल हो पड़ते
हैं । यह तो बहुत बड़ा इम्तहान है । भगवान खुद बैठ पढ़ाते हैं ।
यह नॉलेज सभी धर्म वालों के लिए है । बाप कहते हैं अपने को
आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो । तुम जानते हो किसी भी देहधारी
मनुष्य को भगवान कह नहीं सकते । ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को भी
भगवान नहीं कहेंगे । वह भी सूक्ष्मवतनवासी देवतायें हैं । यहाँ
हैं मनुष्य । यहाँ देवतायें नहीं हैं । यह है मनुष्य लोक । यह
लक्ष्मी-नारायण आदि दैवीगुण वाले मनुष्य हैं,
जिसको डिटीज्म कहा जाता है । सतयुग में सभी देवी-देवता हैं,
सूक्ष्मवतन में हैं ही ब्रह्मा-विष्णु-शंकर । गाते भी हैं
ब्रह्मा देवताए नम :,
विष्णु देवताए नम: फिर कहेंगे शिव परमात्माए नम: । शिव को
देवता नहीं कहेगे । और मनुष्य को फिर भगवान नहीं कह सकते । तीन
फ्लोर हैं ना । हम हैं थर्ड फ्लोर पर । सतयुग के जो दैवीगुण
वाले मनुष्य हैं वही फिर आसुरी गुण वाले बन जाते हैं । माया का
ग्रहण लगने से काले हो जाते हैं । जैसे चन्द्रमा को भी ग्रहण
लगता है ना । वह हैं हद की बातें,
यह
हैं बेहद की बात । बेहद का दिन और बेहद की रात है । गाते भी
हैं ब्रह्मा का दिन और रात । तुमको अभी एक बाप से ही पढ़ना है
बाकी सब कुछ भूल जाना है । बाप द्वारा पढ़ने से तुम नई दुनिया
के मालिक बनते हो । यह सच्ची-सच्ची गीता पाठशाला है । पाठशाला
में हमेशा नहीं रहते । मनुष्य समझते हैं भक्ति मार्ग भगवान से
मिलने का मार्ग है,
जितना बहुत भक्ति करेंगे तो भगवान राजी होगा और आकर फल देगा ।
यह सब बातें तुम ही अब समझते हो । भगवान एक है जो फल अभी दे
रहे हैं । जो पहले-पहले सूर्यवंशी पूज्य थे,
उन्हों ने ही सबसे जास्ती भक्ति की है,
वही
यहाँ आयेंगे । तुमने ही पहले-पहले शिवबाबा की अव्यभिचारी भक्ति
की है तो जरूर तुम ही पहले-पहले भक्त ठहरे । फिर गिरते-गिरते
तमोप्रधान बन जाते हो । आधाकल्प तुमने भक्ति की है,
इसलिए तुमको ही पहले ज्ञान देते हैं । तुम्हारे में भी
नम्बरवार हैं ।
तुम्हारी इस पढ़ाई में यह बहाना नहीं चल सकता कि हम दूर रहते
हैं इसलिए रोज नहीं पढ़ सकते । कोई कहते हैं हम 10
माइल दूर रहते हैं । अरे,
बाबा
की याद में तुम 10
माइल भी पैदल करके जाओ तो कभी थकावट नहीं होगी । कितना बड़ा
खजाना लेने जाते हो । तीर्थों पर मनुष्य दर्शन करने लिए पैदल
जाते हैं,
कितना धक्का खाते हैं । यह तो एक ही शहर की बात है । बाप कहते
हैं मैं इतना दूर से आया हूँ,
तुम
कहते हो घर 5 माइल दूर है.. वाह! खजाना लेने के लिए तो दौड़ते
आना चाहिए । अमरनाथ पर सिर्फ दर्शन करने के लिए कहाँ-कहाँ से
जाते हैं । यहाँ तो अमरनाथ बाबा स्वयं पढ़ाने आये हैं । तुमको
विश्व का मालिक बनाने आया हूँ । तुम बहाना करते रहते हो ।
सवेरे अमृतवेले तो कोई भी आ सकते हैं । उस समय कोई डर नहीं है
। कोई तुमको लूटेंगे भी नहीं । अगर कोई चीज जेवर आदि होंगे तो
छीनेंगे । चोरों को चाहिए ही धन,
पदार्थ । परन्तु किसकी तकदीर में नहीं है तो फिर बहाने बहुत
बनाते हैं । पढ़ते नहीं तो अपना पद गंवाते हैं । बाप आते भी
भारत में हैं । भारत को ही स्वर्ग बनाते हैं । सेकण्ड में
जीवनमुक्ति का रास्ता बताते हैं । परन्तु कोई पुरूषार्थ भी करे
ना । कदम ही नहीं उठायेंगे तो पहुँच कैसे सकेंगे ।
तुम
बच्चे समझते हो कि यह है आत्माओं और परमात्मा का मेला । बाप के
पास आये हैं स्वर्ग का वर्सा लेने,
नई
दुनिया की स्थापना हो रही है । स्थापना पूरी हुई और विनाश शुरू
हो जायेगा । यह वही महाभारत की लड़ाई है ना । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1.
बाप जो
ज्ञान का खजाना दे रहे हैं,
उसको लेने के लिए दौड़- दौड़ कर आना है,
इसमें किसी भी प्रकार का बहाना नहीं देना है । बाप की याद में
10
माइल भी पैदल चलने से थकावट नहीं होगी।
2. विजय
माला में आने का आधार पढ़ाई है । पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना है ।
काँटों को फुल बनाने की सेवा करनी है । स्वीट होम और स्वीट
राजाई को याद करना है ।
वरदान:-
कड़े
नियम और दृढ़ संकल्प द्वारा अलबेलेपन को समाप्त करने वाले
ब्रह्मा बाप समान अथक
भव
! 
ब्रह्मा बाप समान अथक बनने के लिए अलबेलेपन को समाप्त करो ।
इसके लिए कोई कड़ा नियम बनाओ । दृढ़ संकल्प करो,
अटेंशन रूपी चौकीदार सदा अलर्ट रहें तो अलबेलापन समाप्त हो
जायेगा । पहले स्व के ऊपर मेहनत करो फिर सेवा में,
तब
धरनी परिवर्तन होगी । अभी सिर्फ
''कर
लेंगे,
हो जायेगा'’
इस आराम के संकल्पों के डंलप को छोड़ो | करना ही है,
यह
स्लोगन मस्तक में याद रहे तो पारवर्तन हो जायेगा ।
स्लोगन:-
समर्थ
बोल की निशानी है-जिस बोल में आत्मिक भाव और शुभ भावना हो
|
ओम्
शान्ति |