21-07-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
"मीठे
बच्चे - अब सतोप्रधान बन घर जाना है इसलिए अपने को आत्मा समझ
निरन्तर बाप को याद करने का अभ्यास करो,
उन्नति का सदा ख्याल रखो" 
प्रश्न:-
पढ़ाई
में दिन-प्रतिदिन आगे बढ़ रहे हैं या पीछे हट रहे हैं उसकी
निशानी क्या है?
उत्तर:-
पढ़ाई
में अगर आगे बढ रहे हैं तो हल्केपन का अनुभव होगा । बुद्धि में
रहेगा यह शरीर तो छी-छी है,
इसको
छोड़ना है,
हमको
तो अब घर जाना है । दैवीगुण धारण करते जायेंगे । अगर पीछे हट
रहे हैं तो चलन से आसुरी गुण दिखाई देंगे । चलते-फिरते बाप की
याद नहीं रहेगी । वह फूल बन सबको सुख नहीं दे सकेंगे । ऐसे
बच्चों को आगे चल साक्षात्कार होंगे फिर बहुत सजायें खानी
पड़ेगी ।
ओम्
शान्ति
|
बुद्धि में यह ख्यालात रहे कि हम सतोप्रधान आये थे । रूहानी
बाप रूहानी बच्चों को समझाते हैं यहाँ सब बैठे हैं,
कोई
तो देह- अभिमानी हैं और कोई देही- अभिमानी होंगे । कोई सेकण्ड
में देह- अभिमानी और सेकण्ड में देही- अभिमानी होते रहेंगे ।
ऐसे तो कोई कह न सके कि हम सारा समय देही- अभिमानी हो बैठे हैं
। नहीं,
बाप
समझाते हैं कोई समय देही- अभिमानी,
कोई
समय देह- अभिमान में होंगे । अब बच्चे यह तो जानते हैं हम
आत्मा इस शरीर को छोड़ जायेंगे अपने घर । बहुत खुशी से जाना है
। सारा दिन चिंतन ही यह करते हैं-हम शान्तिधाम में जाये
क्योंकि बाप ने रास्ता तो बताया है । और लोग कभी इस विचार से
नहीं बैठते होंगे । यह शिक्षा किसको मिलती ही नहीं है । ख्याल
भी नहीं होगा । तुम समझते हो यह दु .खधाम है । अब बाप ने
सुखधाम में जाने का रास्ता बताया है । जितना बाप को याद करेंगे
उतना सम्पूर्ण बन यथा योग्य शान्तिधाम में जायेंगे,
उनको
ही मुक्ति कहा जाता है,
जिसके लिए ही मनुष्य गुरू करते हैं । परन्तु मनुष्यों को
बिल्कुल पता नहीं कि मुक्ति-जीवनमुक्ति चीज क्या है क्योंकि यह
है नई बात । तुम बच्चे ही समझते हो अब हमको घर जाना है । बाप
कहते हैं याद की यात्रा से पवित्र बनो । तुम पहले-पहले जब आये
श्रेष्ठाचारी दुनिया में तो सतोप्रधान थे । आत्मा सतोप्रधान थी
। कोई के साथ कनेक्शन भी पीछे होगा । जब गर्भ में जायेंगे तब
सम्बन्ध में आयेंगे । तुम जानते हो अभी यह हमारा अन्तिम जन्म
है । हमको वापिस घर जाना है । पवित्र बनने बिगर हम जा नहीं
सकेंगे । ऐसे-ऐसे अन्दर में बातें करनी चाहिए क्योंकि बाप का
फरमान है उठते-बैठते,
चलते-फिरते बुद्धि में यही ख्यालात रहे कि हम सतोप्रधान आये थे,
अब
सतोप्रधान बनकर घर जाना है । सतोप्रधान बनना है बाप की याद से
क्योंकि बाप ही पतित-पावन है । हम बच्चों को युक्ति बताते हैं
कि तुम ऐसे पावन हो सकेंगे । सारे सृष्टि के आदि- मध्य- अन्त
को तो बाप ही जानते हैं और कोई अथॉरिटी है नहीं । बाप ही
मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है । भक्ति कहाँ तक चलती है,
यह
भी बाप ने समझाया है । इतना समय ज्ञान मार्ग,
इतना
समय भक्ति । यह सारा ज्ञान अन्दर में टपकना चाहिए । जैसे बाप
की आत्मा में ज्ञान है,
तुम्हारी आत्मा में भी ज्ञान है । शरीर द्वारा सुनते और सुनाते
हैं । शरीर बिगर तो आत्मा बोल न सके,
इसमें प्रेरणा वा आकाशवाणी की बात होती नहीं । भगवानुवाच है तो
जरूर मुख चाहिए,
रथ
चाहिए । गधे-घोड़े का रथ तो नहीं चाहिए । तुम भी पहले समझते थे
कलियुग अभी
40
हजार वर्ष और चलना है । अज्ञान नींद में सोये पड़े थे,
अब
बाबा ने जगाया है । तुम भी अज्ञान में थे । अब ज्ञान मिला है ।
अज्ञान कहा जाता है भक्ति को ।
अब
तुम बच्चों को यह ख्याल करना है हम अपनी उन्नति कैसे करें,
ऊंच
पद कैसे पायें?
अपने
घर जाकर फिर नई राजधानी में आकर ऊंच मर्तबा पायें । उसके लिए
है याद की यात्रा । अपने को आत्मा तो जरूर समझना है । हम सब
आत्माओं का बाप परमात्मा है । यह तो बहुत सिम्पुल है । परन्तु
मनुष्य इतनी बात भी नहीं समझते । तुम समझा सकते हो कि यह है
रावण राज्य,
इसलिए तुम्हारी बुद्धि भ्रष्टाचारी बन गई है । मनुष्य समझते
हैं जो विकार में नहीं जाते हैं वह पावन हैं । जैसे सन्यासी
हैं । बाप कहते हैं वह तो अल्पकाल के लिए पावन बनते हैं ।
दुनिया तो फिर भी पतित है ना । पावन दुनिया है ही सतयुग । पतित
दुनिया में सतयुग जैसा पावन कोई हो नहीं सकता । वहाँ तो रावण
राज्य ही नहीं,
विकार की बात ही नहीं । तो चक्र लगाते घूमते-फिरते बुद्धि में
यह चिंतन रहना चाहिए । बाबा में यह ज्ञान है ना । ज्ञान सागर
है तो जरूर ज्ञान टपकता होगा । तुम भी ज्ञान सागर से निकली हुई
नदियाँ हो । वह तो एवर सागर ही है,
तुम
एवर सागर नहीं हो । तुम बच्चे समझते हो हम तो सब भाई- भाई हैं
। तुम बच्चे पढ़ते हो,
वास्तव में नदियों आदि की बात नहीं । नदी कहने से गंगा जमुना
आदि कह देते हैं । तुम अभी बेहद में खड़े हो । हम सब आत्मायें
एक बाप के बच्चे भाई- भाई हैं । अभी हमें वापिस घर जाना है ।
जहाँ से आकर शरीर रूपी तख्त पर विराजमान होते हैं । बहुत छोटी
आत्मा है,
साक्षात्कार होने से समझ न सके । आत्मा निकलती है तो कभी कहते
हैं माथे से निकली,
आँखों,
मुख
से निकली...... मुख खुल जाता है । आत्मा शरीर छोड़ चली जाती है
तो शरीर जड़ हो जाता है । यह ज्ञान है । स्टूडेंट की बुद्धि में
सारा दिन पढ़ाई रहती है । तुम्हारे भी सारा दिन पढ़ाई के ही
ख्यालात चलने चाहिए । अच्छे- अच्छे स्टूडेंट के हाथ में सदैव
कोई न कोई किताब रहती है । पढ़ते रहते हैं ।
बाप
कहते हैं तुम्हारा यह अन्तिम जन्म है,
सारा
चक्र लगाकर अन्त में आये हो तो बुद्धि में यही सिमरण रहना
चाहिए । धारणा कर ओरों को समझाना चाहिए । कोई को तो धारणा होती
ही नहीं । स्कूल में भी नम्बरवार स्टूडेंट होते हैं । सब्जेक्ट
भी बहुत होती हैं । यहाँ तो सब्जेक्ट एक ही है । देवता बनना है,
यही
पढ़ाई का चिन्तन चलता रहे । ऐसे नहीं,
पढ़ाई
भूल जाये बाकी और- और ख्यालात चलते रहे । धन्धे वाला होगा,
अपने
धन्धे के ही ख्यालात में लगा रहेगा । स्टूडेंट पढ़ाई में ही लगा
रहेगा । तुम बच्चों को भी अपनी पढ़ाई में रहना है ।
कल
एक निमन्त्रण पत्र आया था इंटरनेशनल योग कान्फ्रेंस का । तुम
उन्हों को लिख सकते हो तुम्हारा तो यह है हठयोग । इसकी एम
ऑबजेक्ट क्या है?
इससे
फायदा क्या होता है?
हम
तो राजयोग सीख रहे हैं । परमपिता परमात्मा जो ज्ञान सागर है,
वह
रचयिता हमको अपना और रचना का ज्ञान सुनाते हैं । अब हमको वापिस
घर जाना है । मनमनाभव-यह है हमारा मन्त्र । हम बाप को और बाप
द्वारा जो वर्सा मिलता है,
उसको
याद करते हैं । तुम यह हठयोग आदि करते आये हो,
इसकी
एम ऑज्जेवट क्या है?
हमने
अपना तो बताया कि हम यह सीख रहे हैं । तुम्हारे इस हठयोग से
क्या मिलता है?
ऐसा
रेसपान्ड नटशेल में लिखना है । ऐसे-ऐसे निमन्त्रण तो तुम्हारे
पास बहुत आते हैं । ऑल इन्डिया रिलीजस कान्फ्रेंस का तुमको
निमन्त्रण आये और तुमको बोले- आपका एम आबजेक्ट क्या है?
तो
बोलो हम यह सीख रहे हैं । अपना जरूर बताना चाहिए,
क्यों?
यह
राजयोग तुम सीख रहे हो । बोलो हम यह पढ़ रहे हैं । हमको पढ़ाने
वाला भगवान है,
हम
सब ब्रदर्स हैं । हम अपने को आत्मा समझते हैं । बेहद का बाप
कहते हैं अपने को आत्मा समझ मामेकम् याद करो तो तुम्हारे पाप
कट जायेंगे । ऐसी-ऐसी लिखत बहुत अच्छी रीति छपाकर रख दो । फिर
जहाँ-जहाँ कान्फ्रेंस आदि हो वहाँ भेज दो । कहेंगे यह तो बहुत
अच्छे कायदे की बात सीखते हैं’ । इस राजयोग से राजाओं का राजा
विश्व का मालिक बनते हैं । हर 5 हजार वर्ष बाद हम देवता बनते
हैं फिर मनुष्य बनते हैं । ऐसे-ऐसे विचार सागर मथन कर
फर्स्टक्लास लिखत बनानी चाहिए । उद्देश्य तुमसे पूछ सकते हैं ।
तो यह छपा हुआ रखा हो,
हमारी एम ऑबजेक्ट यह है । ऐसे लिखने से टैम्पटेशन होगी । इसमें
कोई हठयोग वा शास्त्रार्थ करने की बात नहीं । उनको शास्त्रार्थ
का भी कितना अहंकार रहता है । वे अपने को शास्त्रों की अथॉरिटी
समझते हैं । वास्तव में तो वह पुजारी हैं,
अथॉरिटी तो पूज्य को कहेंगे । पुजारी को क्या कहेंगे?
तो
यह क्लीयर कर लिखना चाहिए-हम क्या सीखते हैं । बी. के. का नाम
तो मशहूर हो गया है ।
योग
तो दो प्रकार का है-एक है हठयोग,
दूसरा है सहज योग । वह तो कोई मनुष्य सिखला न सके । राजयोग एक
परमात्मा ही सिखलाते हैं । बाकी यह अनेक प्रकार के योग हैं
मनुष्य मत पर । वहाँ देवताओं को तो किसके मत की दरकार नहीं
क्योंकि वर्सा लिया हुआ है । वह हैं देवतायें अर्थात् दैवीगुण
वाले,
जिनमें ऐसे गुण नहीं उनको असुर कहा जाता है । देवताओं का राज्य
था फिर वह कहाँ गये?
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जन्म कैसे लिए?
सीढ़ी
पर समझाना चाहिए । सीढ़ी बड़ी अच्छी है । जो तुम्हारी दिल में है
वह इस सीढ़ी में है । सारा मदार पढ़ाई पर है । पढ़ाई है सोर्स ऑफ
इनकम । यह है सबसे ऊंची पढ़ाई । दी बेस्ट । दुनिया नहीं जानती
कि दी बेस्ट कौन-सी पढ़ाई है । इस पढ़ाई से मनुष्य से देवता डबल
क्राउन बन जाते हैं । अभी तुम डबल सिरताज बनने का पुरूषार्थ कर
रहे हो । पढ़ाई एक ही है फिर कोई क्या बनते,
कोई
क्या! वन्डर है,
एक
ही पढ़ाई से राजधानी स्थापन हो जाती है,
राजा
भी बनते तो रक भी बनते । बाकी वहाँ दुख की बात होती नहीं ।
मर्तबे तो है ना । यहाँ अनेक प्रकार के दुःख हैं । फैमन,
बीमारियां,
अनाज
आदि नहीं मिलता,
फ्लड्स आती रहती । भल लखपति,
करोड़पति हैं,
जन्म
तो विकारों से ही होता है ना । धक्का खाया,
मच्छर ने काटा,
यह
सब दुःख है ना । नाम ही है रौरव नर्क । तो भी कहते रहते फलाना
स्वर्ग पधारा । अरे,
स्वर्ग तो आने वाला है फिर कोई स्वर्ग गया कैसे । किसको भी
समझाना तो बहुत सहज है । अब बाबा ने एसे (निबन्ध) दिया है,
लिखना बच्चों का काम है । धारणा होगी तो लिखेंगे भी । मुख्य
बात बच्चों को समझाते हैं अपने को आत्मा समझो,
अब
वापिस जाना है । हम सतोप्रधान थे तो खुशी का पारावार नहीं था ।
अभी तमोप्रधान बने हैं । कितना सहज है । प्याइंटस तो बाबा बहुत
सुनाते रहते हैं तो अच्छी रीति बैठ समझाना है । नहीं मानते हैं
तो समझा जाता है यह हमारे कुल का नहीं है । पढ़ाई में
दिन-प्रतिदिन आगे बढ़ना है । पीछे थोड़ेही हटना है । दैवीगुणों
के बदले आसुरी गुण धारण करना-यह तो पीछे हटना हुआ ना । बाप
कहते हैं विकारों को छोड़ते रहो,
दैवीगुण धारण करो । बहुत हल्का रहना है । यह शरीर छी-छी है,
इसको
छोड़ना है । हमको तो अब जाना है घर । बाप को याद नहीं करेंगे तो
गुल-गुल नहीं बनेंगे । बहुत सजायें खानी पड़ेगी । आगे चल तुमको
साक्षात्कार होंगे । पूछेंगे,
तुमने क्या सर्विस की है?
तुम
कभी कोर्ट में नहीं गये हो । बाबा ने सब कुछ देखा हुआ है,
कैसे
यह लोग चोरों को पकड़ते हैं,
फिर
केस चलते हैं तो वहाँ भी तुमको सब साक्षात्कार कराते रहेंगे ।
सजायें खाकर फिर पाई पैसे का पद पा लेंगे । टीचर को तो रहम आता
है ना । यह नापास हो जायेंगे । यह बाप को याद करने की सबजेक्ट
सबसे अच्छी है,
जिससे पाप कटते जाए । बाबा हमको पढ़ाते हैं । यही सिमरण करते
चक्र लगाते रहना चाहिए । स्टूडेंट टीचर को याद भी करते हैं और
बुद्धि में पढ़ाई रहती है । टीचर से योग तो जरूर होगा ना । यह
बुद्धि में रहना चाहिए-हम सब भाइयों का एक टीचर है,
वह
है सुप्रीम टीचर । आगे चल बहुतों को मालूम पड़ेगा- अहो प्रभू
तेरी लीला....... महिमा करके मरेंगे परन्तु पा तो कुछ नहीं
सकेंगे । देह- अभिमान में आने से ही उल्टे काम करते हैं ।
देही- अभिमानी होने से अच्छा काम करेंगे । बाप कहते हैं अब
तुम्हारी वानप्रस्थ अवस्था है । वापिस जाना ही पड़ेगा ।
हिसाब-किताब चुक्तू कर सबको जाना है । चाहे वा न चाहे,
जाना
जरूर है । एक दिन ऐसा भी आयेगा जो दुनिया बहुत खाली हो जायेगी
। सिर्फ भारत ही रहेगा । आधाकल्प सिर्फ भारत ही होगा तो कितनी
दुनिया खाली होगी । ऐसा ख्याल कोई की बुद्धि में नहीं होगा
सिवाए तुम्हारे । फिर तो तुम्हारा कोई दुश्मन भी नहीं होगा ।
दुश्मन आते हैं क्यों?
धन
के पिछाड़ी । भारत में इतने मुसलमान और अंग्रेज़ क्यों आये?
पैसा
देखा । पैसे बहुत थे,
अब
नहीं है तो अब और कोई है नहीं । पैसे ले खाली कर गये । मनुष्य
यह नहीं जानते । बाबा कहते हैं पैसा तो तुमने आपेही खत्म कर
दिया,
ड्रामा प्लैन अनुसार । तुम्हें निश्चय है हम बेहद के बाप पास
आये हैं । कभी किसके ख्याल में भी नहीं होगा कि यह ईश्वरीय
परिवार है । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात- पिता बापदादा का
याद-प्यार और गुडमॉनिग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को
नमस्ते ।
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
चलते
फिरते बुद्धि में पढ़ाई का चिंतन करना है । कोई भी कार्य करते
बुद्धि में सदा ज्ञान टपकता रहे । यह दी बेस्ट पढ़ाई है,
जिसे पढ़कर डबल क्राउन बनना है ।
2.
अभ्यास करना है हम आत्मा भाई- भाई हैं । देह- अभिमान में आने
से उल्टे काम होते हैं इसलिए जितना हो सके देही- अभिमानी रहना
है ।
वरदान:-
अपनी
श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा विश्व का वातावरण परिवर्तन करने वाले
आधारमूर्त भव
!
आप
बच्चे सिर्फ अपने जीवन के लिए आधार नहीं हो लेकिन विश्व की
सर्व आत्माओं के आधारमूर्त हो । आपकी श्रेष्ठ वृत्ति से विश्व
का वातावरण परिवर्तन हो रहा है । आपकी पवित्र दृष्टि से विश्व
की आत्मायें और प्रकृति दोनों पवित्र बन रही हैं । दृष्टि से
सृष्टि बदल रही है । आपके श्रेष्ठ कर्मों से श्रेष्ठाचारी
दुनिया बन रही है । अभी जब आप इतनी बड़ी जिम्मेवारी के ताजधारी
बनते हो तब भविष्य में ताज तख्त मिलता है ।
स्लोगन:-
सर्वशक्तिमान बाप को अपना साथी बना लो तो कोई भी विघ्न आपको
रोक नहीं सकता
|
ओम्
शान्ति
|