02-12-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - सर्वशक्तिमान् बाप से बुद्धियोग लगाने से शक्ति मिलेगी,
याद से ही आत्मा रूपी बैटरी चार्ज होती है,
आत्मा पवित्र सतोप्रधान बन जाती है” 
प्रश्न:-
संगमयुग पर तुम बच्चे कौन-सा पुरूषार्थ करते हो जिसकी प्रालब्ध
में देवता पद मिलता है?
उत्तर:-
संगम
पर हम शीतल बनने का पुरूषार्थ करते हैं । शीतल अर्थात् पवित्र
बनने से हम देवता बन जाते हैं । जब तक शीतल न बनें तब तक देवता
भी बन नहीं सकते । संगम पर शीतल देवियां बन सब पर ज्ञान के
ठण्डे छीटे डाल सबको शीतल करना है । सबकी तपत बुझानी है । खुद
भी शीतल बनना है और सबको भी बनाना है ।
ओम्
शान्ति |
बच्चों को पहले-पहले एक ही बात समझने की है कि हम सब भाई- भाई
हैं और शिवबाबा सभी का बाप है । उन्हें सर्वशक्तिमान् कहा जाता
है । तुम्हारे में सर्वशक्तियां थी । तुम सारे विश्व पर राज्य
करते थे । भारत में इन देवी- देवताओं का राज्य था,
तुम
ही पवित्र देवी-देवता थे । तुम्हारे कुल वा डिनायस्टी में सभी
निर्विकारी थे । कौन निर्विकारी थे?
आत्मायें । अभी फिर से तुम निर्विकारी बन रहे हो |
सर्वशक्तिमान बाप की याद से शक्ति ले रहे हो । बाप ने समझाया
है आत्मा ही 84 का पार्ट बजाती है । आत्मा में ही सतोप्रधानता
की ताकत थी,
वह
फिर दिन-प्रतिदिन कम होती जाती है । सतोप्रधान से तमोप्रधान तो
बनना ही है । जैसे बैटरी की ताकत कम होती जाती है तो मोटर खड़ी
हो जाती है । बैटरी डिस्चार्ज हो जाती है । आत्मा की बैटरी फुल
डिस्चार्ज नहीं होती,
कुछ
न कुछ ताकत रहती है । जैसे कोई मरता है तो दीवा जलाते हैं,
उसमें पूत डालते ही रहते हैं कि कहाँ ज्योत बुझ न जाए । अभी
तुम बच्चे समझते हो तुम्हारी आत्मा में पूरी शक्ति थी,
अभी
नहीं है । अभी फिर तुम सर्वशक्तिमान बाप से अपना बुद्धियोग
लगाते हो,
अपने
में शक्ति भरते हो क्योंकि शक्ति कम हो गई है । शक्ति एकदम
खत्म हो जाए तो शरीर ही न रहे । आत्मा बाप को याद करते-करते
एकदम प्योर हो जाती है । सतयुग में तुम्हारी बैटरी फुल चार्ज
रहती है । फिर धीरे- धीरे कला अर्थात् बैटरी कम होती जाती है ।
कलियुग अन्त तक आत्मा की ताकत एकदम थोड़ी रह जाती है । जैसे
ताकत का देवाला निकल जाता है । बाप को याद करने से आत्मा फिर
से भरपूर हो जाती है । तो अभी बाप समझाते हैं एक को ही याद
करना है । ऊँच ते ऊंच है भगवंत । बाकी स