11-01-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
जैसे बाप तुम्हारा श्रृंगार करते हैं ऐसे तुम्हें भी दूसरों का करना है, सारा दिन सर्विस करो, जो आये उसे समझाओ, फिकरात की कोई बात नहीं |
प्रश्न:-
यह नॉलेज कोटों में कोई ही समझते वा धारण करते हैं – ऐसा क्यों?
उत्तर:-
क्योंकि तुम सब नई बातें सुनाते हो | तुम कहते हो परमात्मा बिन्दी मिसल है तो सुनकर ही मूंझ जाते हैं | शास्त्रों में तो यह सब बातें सुनी ही नहीं हैं | इतना समय जो भक्ति की है वह खींचती है इसलिए जल्दी समझते नहीं | कोई-कोई फिर ऐसे परवाने भी निकलते हैं जो कहते हैं बाबा हम तो विश्व का मालिक ज़रूर बनेंगे | हमें ऐसा बाबा मिला हम छोड़ कैसे सकते | सब कुछ न्योछावर करने की उछल आ जाती है |
गीत:-
दूर देश के रहने वाले....
ओम् शान्ति |
मीठे-मीठे रूहानी बच्चे अच्छी तरह से जानते हैं कि हम मुसफ़िर हैं | यह हमारा देश नहीं है | यह बेहद का नाटक बहुत बड़ा माण्डवा है | कितनी बड़ी-बड़ी बत्तियां हैं, यह सदैव जलती रहती हैं | आत्मा जानती है हम सब एक्टर्स हैं और नम्बरवार अपने पार्ट अनुसार टाइम पर आते हैं – यहाँ पार्ट बजाने | पहले-पहले तुम वापिस घर जाकर फिर यहाँ आते हो | यह अच्छी तरह से समझने और धारण करने की बात है | नाटक के एक्टर होते हैं, अगर एक दो के आक्यूपेशन को न जानें तो उनको क्या कहेंगे? ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को जानने से तुम यह बनते हो | तो यह पढ़ाई सबसे न्यारी हुई | बाप बीजरूप है, नॉलेजफुल है | जैसे वह कामन बीज और झाड़ होते हैं उनको जानते हो ना | पहले-पहले छोटे-छोटे पत्ते निकलते हैं फिर बड़े होते-होते झाड़ कितना वृद्धि को पाता है, कितना समय लगता है | तुम्हारी बुद्धि में यह ज्ञान है | बाप तो एक ही बार आते हैं | मीठे-मीठे बच्चे यह अनादि अविनाशी ड्रामा है | बाप है स्वर्ग का रचयिता, हेविनली गॉड फादर | हेविन स्थापन करने बाप को आना पड़ता है | गायन भी है दूर देश का रहने वाला.....यह रावण राज्य पराया है | रावण राज्य में राम को आना है | तुम्हारी बुद्धि में ही ज्ञान है | तो बाप समझाते हैं, आत्माओं को कि तुम सब मुसफ़िर हो, इकट्ठे तो पार्ट बजाने नहीं आयेंगे | तुमको मालूम है सबसे पहले होते हैं देवतायें, उस समय और कोई नहीं थे | बहुत थोड़े होते हैं फिर वृद्धि को पाते हैं | तुम आत्मायें शरीर छोड़ सब वहाँ आती हो | यह बाप ने ही बुद्धि दी है | तुम आत्माओं को अब नॉलेज मिली है | हम बीज और झाड़ के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं | बीज ऊपर है नीचे सारा झाड़ फैला हुआ है | अभी झाड़ पूरा ही जड़जड़ीभूत है | तुम बच्चे इस झाड़ के आदि-मध्य-अन्त को जान गये हो | आगे ऋषि मुनियों से पूछते थे कि रचता और रचना के आदि मध्य अन्त को जानते हो तो नेती-नेती कह देते थे | जबकि वह भी नहीं जानते तो परम्परा से कैसे हो सकता | यह सब बातें अच्छी तरह से धारण करनी है | भूलना नहीं है | पढ़ाई तो पढ़नी है | पढ़ाई और योगबल से ही तुम पद पाते हो | पवित्र भी ज़रूर बनना है | सिवाए बाप के और कोई पवित्र बना न सके | विनाशी धन दान करते तो राजाई कुल में अथवा अच्छे कुल में जन्म लेते हैं | तुम बच्चों को बहुत बड़े घर में जन्म मिलता है | नई दुनिया तो बहुत छोटी होती है | सतयुग में देवताओं का जैसे एक गाँव है | शुरू में बाम्बे कितनी छोटी थी | अब देखो कितनी वृद्धि को पाया है | आत्मायें सब अपना पार्ट बजाती हैं, सब मुसफ़िर हैं | बाप एक ही बार का मुसफ़िर है | हो तुम भी एक ही बार के मुसफ़िर | तुम भी एक ही बार आते हो | फिर पुनर्जन्म लेते पार्ट बजाते ही रहते हो | अभी तुम अमरलोक में जाने के लिए अमरकथा सुनते हो, जिससे 21 जन्म ऊँच पद पाते हो | 21 पीढ़ी कहते हैं ना, पीढ़ी अर्थात् बुढ़ापे तक | फिर दूसरा शरीर आपेही लेंगे | अकाले मृत्यु नहीं होगा | वह है ही अमरलोक | काल का नाम नहीं | अचानक मृत्यु होती नहीं | तुम एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हो | दुःख की कोई बात नहीं | सर्प को दुःख होता होगा क्या? और ही ख़ुशी होती होगी | अभी तुमको आत्मा का ज्ञान मिलता है | आत्मा ही सब कुछ करती है | आत्मा में ही बुद्धि है | शरीर तो बिल्कुल अलग है | उनमें आत्मा न होती तो शरीर चल न सके | कैसे शरीर बनता है, आत्मा कैसे प्रवेश करती है | हर चीज़ वन्डरफुल है |
बाप कहते हैं मीठे-मीठे बच्चे तुम्हारा स्वर्ग है वन्डरफुल वर्ल्ड | रावण राज्य में 7 वन्डर्स दिखाते हैं | राम राज्य में बाप का एक ही वन्डर है स्वर्ग, जो आधाकल्प कायम रहता है | मनुष्यों ने देखा भी नहीं है, तो भी सबके मुख से स्वर्ग का नाम ज़रूर निकलता है | अभी तुम बुद्धि से जानते हो कोई-कोई ने साक्षात्कार भी किया है | बाबा ने भी विनाश और अपनी राजधानी देखी | अर्जुन को भी साक्षात्कार में दिखाया है | अब बरोबर यह है गीता एपिसोड | बाबा बतलाते हैं कि बच्चे यह है पुरुषोत्तम संगमयुग जबकि मैं आकर तुम बच्चों को राजयोग सिखाता हूँ और इतना ऊँच बनाता हूँ | दुनिया में इन बातों को कोई नहीं जानते | तुम बहुत मौज से रहते हो | यहाँ मनुष्य मरते हैं तो दीपक जगाते हैं कि आत्मा को अन्धियारा न हो | सतयुग में ऐसी बातें नहीं होती | सतयुग में सब आत्माओं का दीपक जगा रहता है | घर-घर में सोझरा होता है | यहाँ फिर मनुष्य घर-घर में बत्तियाँ जलाते हैं | बाप कहते हैं इन सब बातों को अच्छी तरह बुद्धि में धारण करना है | बाप और राजधानी को याद करते रहो | तुम जानते हो इतना समय हमने राजाई की | जो बहुत समय के बिछुड़े हुए हैं उन्हों से ही बाप बात करते हैं, पढ़ाते हैं | बच्चे जानते हैं इस समय की बातों के ही त्यौहार मनाते हैं | शिवजयन्ती भारत में ही मनाते हैं | शिव है ऊँचे ते ऊँच भगवान | वह भारत में कैसे आते हैं, उसने खुद बताया है कि मुझे प्रकृति का आधार लेकर आना पड़ता है, तब तो बोलते हैं | नहीं तो बच्चों को ज्ञान श्रृंगार कैसे करायें | अब तुम्हारा श्रृंगार हो रहा है | तुम फिर दूसरों का करा रहे हो – मनुष्य से देवता बनाने का | यह है बहुत सहज | परन्तु मनुष्यों की बुद्धि ऐसी डल हो गई है जो कुछ भी समझते नहीं | टाइम लेते हैं | तुम प्रदर्शनी में सब बातें समझाते हो | जो आया जैसे समझाया सब ड्रामा | फिकरात की कोई बात नहीं | बच्चे कहते हैं बाबा, माथा बहुत मारते हैं निकलता कोटों में कोई है | सो तो होगा | तुम कहते हो परमात्मा बिन्दी है | शास्त्रों में ऐसी बात है नहीं इसलिए मूंझ पड़ते हैं | तुम भी पहले नहीं मानते थे | कोई-कोई को दो वर्ष भी समझने में लगे | चले जाते हैं फिर आते हैं | इतना सहज भक्ति छूटती नहीं है, वह अपनी ओर खींचती है | यह भी ड्रामा में पार्ट है | सिवाए तुम ब्राह्मणों के और कोई नहीं जानते | विराट रूप का भी अर्थ समझा है, यह है तुम्हारी बाजोली | तुम चक्र लगाते हो | इनको विराट नाटक कहा जाता है | इनका भी तुमको ज्ञान है | उन कालेजों में तो क्या-क्या पढ़ते रहते हैं | यहाँ वह बात नहीं | साइन्स वृद्धि को पाती रहती है, उनसे विनाश होना है | अभी भल तुम समझायेंगे परन्तु विरला कोई मिलेगा जो कहेगा यह तो बहुत अच्छी बात है | यह तो रोज़ समझाना चाहिए | कितना भी काम हो परन्तु कहेंगे हमको तो बाबा से वर्सा ज़रूर लेना है | यह तो अथाह, अनगिनत कमाई है |
बाबा कहते हैं – बच्चे मेरी बुद्धि में सारे झाड़ की नॉलेज है, सो अभी तुम भी समझ रहे हो | बाप जो समझाते हैं वह बहुत एक्यूरेट है | एक सेकेण्ड न मिले दूसरे से | कितनी महीनता है | तुमने कितने चक्र लगाये हैं | यह ड्रामा जूँ मिसल चलता है | एक ही चक्र को 5 हज़ार वर्ष लगते हैं | उसमें सारा खेल चलता है | उनको ही जानना है | वहाँ गायें भी फर्स्टक्लास होंगी | जैसा आपका पद वैसा फर्नीचर, वैसा मकान | भभका होता है | ख़ुशी भी आत्मा को ही होती है | हमारी आत्मा तृप्त हुई | तृप्त परमात्मा तो नहीं कहा जाता है | कहेंगे तुम्हारी आत्मा तृप्त हुई? हाँ बाबा तृप्त हुई | तो यह सब खेल चलता आया है | बाप जो समझाते हैं यह भी ड्रामा का खेल है | अब बाप तुमको रिज्युवनेट करते हैं | तुम्हारी काया कल्प वृक्ष समान बन जाती है | नाम ही है अमरलोक | आत्मा भी अमर है, काल खा न सके | बाबा तुम्हारी आत्माओं से बात करते हैं | अकाल आत्मा जो इस तख़्त पर बैठी है, उनसे बात करते हैं | आत्मा इन कानों से सुनती है | हम आत्माओं को ही बाप पढ़ाने आये हैं | बाप की दृष्टि हमेशा आत्माओं पर रहती है | तुमको भी बाप समझाते हैं हमेशा भाई-भाई की दृष्टि रखो | भाई से हम बात करते हैं फिर क्रिमिनल दृष्टि न जाये | यह प्रैक्टिस बहुत अच्छी चाहिए | हम आत्मा हैं, हमने इतने जन्म ले पार्ट बजाया है | हम पुण्य आत्मा थे | हम ही पवित्र आत्मा बने हैं | सोने में ही खाद पड़ती है | जो आत्मायें पिछाड़ी को आयेंगी उनको क्या कहेंगे | कुछ परसेन्ट सोने का होगा | भल पवित्र होकर जाते हैं, परन्तु पावर तो कम है ना | एक दो जन्म करके लिया, इससे क्या हुआ |
बाबा जो मुरली चलाते हैं, वह है ख़ज़ाना | जब तक बाप दे तब तक तुम बाप को याद करते रहो | याद से ही तुम एवर हेल्दी बनते हो | चुप होकर बैठने से भी बहुत फ़ायदा है, मनमनाभव | इसका अर्थ भी कोई नहीं जानते | बाप ही हर बात का अर्थ समझाते हैं | यहाँ तो है अनर्थ | सबसे बड़ा अनर्थ है एक दो पर काम कटारी चलाना, जिससे आदि-मध्य-अन्त दुःख पाते हैं | सबसे छी-छी हिंसा यह है, इसलिए इनको नर्क कहा जाता है | स्वर्ग और नर्क का भी कोई अर्थ नहीं समझते | वह है नम्बरवन, नर्क है नम्बर लास्ट | तुम जानते हो हम इस विश्व नाटक के एक्टर्स हैं | तुम नेती-नेती नहीं कहेंगे | तुम श्रीमत से कितने अच्छे चित्र बनाते हो जो मनुष्य देखते ही खुश हो जायें और सहज ही समझ जायें | यह चित्र बनाना भी ड्रामा में नूंध है | पिछाड़ी को तुम याद में ही रहेंगे | सृष्टि चक्र भी बुद्धि में आ जायेगा | नई दुनिया कौन बनाता और पुरानी दुनिया कौन बनाते हैं, यह सब तुम ही जानते हो | सतो रजो तमो में सबको आना ही है | अभी है कलियुग | यह किसको पता नहीं कि बाप आकर हमको स्वर्ग का मालिक बनायेंगे | किसके ख्याल में भी नहीं आता | तुमको तो अभी सारे सृष्टि के आदि मध्य अन्त की नॉलेज है | रचयिता बाप इसमें बैठ समझाते हैं कि मैं तुम आत्माओं का बाप हूँ | बेहद का टीचर हूँ | यह संगमयुग है पुरुषोत्तम युग | सतयुग और कलियुग को पुरुषोत्तम नहीं कहेंगे | संगम पर ही तुम पुरुषोत्तम बनते हो, जब बाप आकर राजयोग सिखलाते हैं | दिन प्रतिदिन तुम बच्चों को समझाने में बहुत सहज होगा | झाड़ वृद्धि को पाता रहेगा | शमा पर बहुत परवाने आते हैं – फ़िदा होने | ऐसे बाप को कौन छोड़ेगा | कहेगा बाबा बस हम तो आपके पास ही बैठे रहें | यह सब कुछ आपका है | ऐसे ऊँच बाप को हम छोड़ें क्यों? जोश बहुतों में आता है | बाबा से विश्व की बादशाही मिलती है तो हम छोड़कर क्यों जायें | यहाँ तो हम स्वर्ग में बैठे हैं | यहाँ कोई काल भी नहीं आ सकता, परन्तु बाप की श्रीमत लेनी पड़े | बाप कहेंगे ऐसे नहीं करना है | उछल तो आयेगी परन्तु ड्रामा में ऐसा नहीं है जो सब यहाँ बैठ जायें | जोश आता है क्योंकि जानते हैं यह सब कुछ ख़त्म होने वाला है | जिनका पार्ट है वह सुनते रहते हैं | बाप कहते हैं तुम एल.एल.बी., आई.सी.एस. पढ़ते हो इसने क्या मिलेगा? कल शरीर छूट जाए तो क्या मिलेगा? कुछ भी नहीं | वह है विनाशी विद्या, यह है अविनाशी विद्या, जो अविनाशी बाप देते हैं | टाइम बहुत थोड़ा है | तमोप्रधान से सतोप्रधान इस जन्म में ही बनना है | वह तो याद से ही बनेंगे | और सब देह के धर्म छोड़ मामेकम् याद करो | शरीर पर भरोसा नहीं है | पढ़ते-पढ़ते मर जाते हैं | तो बाप का काम है समझाना | उस पढ़ाई में क्या कमाई है और इस पढ़ाई में क्या कमाई है | यह तो तुम जानते हो | शिवबाबा का भण्डारा सदैव भरपूर है | इतने सब बच्चे पलते रहते हैं, फिकर की कोई बात नहीं | भूख मर नहीं सकते | लौकिक बाप भी देखते हैं बच्चों को खाना नहीं मिलता है तो खुद भी नहीं खाते | बच्चों का दुःख बाप सहन नहीं कर सकते | पहले बच्चे पीछे बाप | माँ सबसे पीछे खाती है, रुखा सूखा बचता है वह खा लेती है | हमारी भण्डारी भी ऐसी है | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1.
भाई-भाई की दृष्टि पक्की करनी है | हम आत्मा, आत्मा भाई से बात करते हैं यह अभ्यास कर क्रिमिनल दृष्टि को परिवर्तन करना है |
2.
बाप जब ज्ञान ख़ज़ाना देते हैं तो याद में बैठ बुद्धि रूपी झोली से ख़ज़ाना भरना है | चुप बैठकर अविनाशी कमाई जमा करनी है |
वरदान:-
श्वांसो श्वांस याद और सेवा के बैलेन्स द्वारा ब्लैसिंग प्राप्त करने वाले सदा प्रसन्नचित भव !
जैसे अटेन्शन रखते हो कि याद का लिंक सदा जुटा रहे वैसे सेवा में भी सदा लिंक जुटा रहे | श्वासों श्वांस याद और श्वांसों श्वांस सेवा हो – इसको कहते हैं बैलेन्स, इस बैलेन्स से सदा ब्लैसिंग का अनुभव करते रहेंगे और यही आवाज़ दिल से निकलेगा कि आशीर्वादों से पल रहे हैं | मेहनत से, युद्ध से छूट जायेंगे | क्या, क्यों, कैसे इन प्रश्नों से मुक्त हो सदा प्रसन्नचित रहेंगे | फिर सफलता जन्म सिद्ध अधिकार के रूप में अनुभव होगी |
स्लोगन:-
बाप से इनाम लेना है तो स्वयं से और साथियों से निर्विघ्न रहने का सर्टिफिकेट साथ हो |
ओम्
शान्ति
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