25-04-15
प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - बेहद बाप के साथ व़फादार रहो तो पूरी माइट मिलेगी,
माया पर जीत होती जायेगी” 
प्रश्न:-
बाप
के पास मुख्य अथॉरिटी कौन-सी है?
उसकी
निशानी क्या है?
उत्तर:-
बाप
के पास मुख्य है ज्ञान की अथॉरिटी। ज्ञान सागर है इसलिए तुम
बच्चों को पढ़ाई पढ़ाते हैं। आप समान नॉलेजफुल बनाते हैं।
तुम्हारे पास पढ़ाई की एम ऑब्जेक्ट है। पढ़ाई से ही तुम ऊंच पद
पाते हो।
गीतः-
बदल जाए दुनिया........
ओम्
शान्ति।
भक्त
भगवान की महिमा करते हैं। अब तुम तो भक्त नहीं हो। तुम तो उस
भगवान के बच्चे बन गये हो। वह भी व़फादार बच्चे चाहिए। हर बात
में व़फादार रहना है। स्त्री की सिवाए पति के अथवा पति की
सिवाए स्त्री के और तरफ दृष्टि जाए तो उनको भी बेव़फा कहेंगे।
अब यहाँ भी है बेहद का बाप। उनके साथ बेव़फादार और व़फादार
दोनों रहते हैं। व़फादार बनकर फिर बेव़फादार बन जाते हैं। बाप
तो है हाइएस्ट अथॉरिटी। ऑलमाइटी है ना। तो उनके बच्चे भी ऐसे
होने चाहिए। बाप में ताकत है,
बच्चों को रावण पर जीत पाने की युक्ति बतलाते हैं इसलिए उनको
कहा भी जाता है सर्वशक्तिमान्। तुम भी शक्ति सेना हो ना। तुम
अपने को भी ऑलमाइटी कहेंगे। बाप में जो माइट है वह हमको देते
हैं,
बतलाते हैं कि तुम माया रावण पर जीत कैसे पा सकते हो,
तो
तुमको भी शक्तिवान बनना है। बाप है ज्ञान की अथॉरिटी। नॉलेजफुल
है ना। जैसे वो लोग अथॉरिटी हैं,
शास्त्रों की,
भक्तिमार्ग की,
ऐसे
अब तुम ऑलमाइटी अथॉरिटी नॉलेजफुल बनते हो। तुमको भी नॉलेज
मिलती है। यह पाठशाला है। इसमें जो नॉलेज तुम पढ़ते हो,
इससे
ऊंच पद पा सकते हो। यह एक ही पाठशाला है। तुमको तो यहाँ पढ़ना
है और कोई प्रार्थना आदि नहीं करनी है। तुम्हें पढ़ाई से वर्सा
मिलता है,
एम
ऑब्जेक्ट है। तुम बच्चे जानते हो बाप नॉलेजफुल है,
उनकी
पढ़ाई बिल्कुल डिफरेन्ट है। ज्ञान का सागर बाप है तो वही जाने।
वही हमको सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का नॉलेज देते हैं। दूसरा
कोई दे न सके। बाप सम्मुख आकर ज्ञान दे फिर चले जाते हैं। इस
पढ़ाई की प्रालब्ध क्या मिलती है,
वह
भी तुम जानते हो। बाकी जो भी सतसंग आदि हैं वा गुरू गोसाई हैं
वह सब हैं भक्ति मार्ग के। अब तुमको ज्ञान मिल रहा है। यह भी
जानते हैं कि उनमें भी कोई यहाँ के होंगे तो निकल आयेंगे। तुम
बच्चों को सर्विस की भिन्न-भिन्न युक्तियाँ निकालनी हैं। अपना
अनुभव सुनाकर अनेकों का भाग्य बनाना है। तुम सर्विसएबुल बच्चों
की अवस्था बड़ी निर्भय,
अडोल
और योगयुक्त चाहिए। योग में रहकर सर्विस करो तो सफलता मिल सकती
है।
बच्चे,
तुम्हें अपने को पूरा सम्भालना है। कभी आवेश आदि न आये,
योगयुक्त पक्का चाहिए। बाप ने समझाया है वास्तव में तुम सब
वानप्रस्थी हो,
वाणी
से परे अवस्था वाले। वानप्रस्थी अर्थात् वाणी से परे घर को और
बाप को याद करने वाले। इसके सिवाए और कोई तमन्ना नहीं। हमको
अच्छे कपड़े चाहिए,
यह
सब हैं छी-छी तमन्नायें। देह-अभिमान वाले सर्विस कर नहीं
सकेंगे। देही-अभिमानी बनना पड़े। भगवान के बच्चों को तो माइट
चाहिए। वह है योग की। बाबा तो सभी बच्चों को जान सकते हैं ना।
बाबा झट बता देंगे,
यह-यह खामियां निकालो। बाबा ने समझाया है शिव के मन्दिर में
जाओ,
वहाँ
बहुत तुमको मिलेंगे। बहुत हैं जो काशी में जाकर वास करते हैं।
समझते हैं काशीनाथ हमारा कल्याण करेगा। वहाँ तुमको बहुत ग्राहक
मिलेंगे,
परन्तु इसमें बड़ा शुरूड़ बुद्धि (होशियार बुद्धि) चाहिए। गंगा
स्नान करने वालों को भी जाकर समझा सकते हैं। मन्दिरों में भी
जाकर समझाओ। गुप्त वेष में जा सकते हो। हनूमान का मिसाल। हो तो
वास्तव में तुम ना। जुत्तियों में बैठने की बात नहीं है। इसमें
बड़ा समझू सयाना चाहिए। बाबा ने समझाया है अभी कोई भी कर्मातीत
नहीं बना है। कुछ न कुछ खामियां जरूर हैं।
तुम
बच्चों को नशा चाहिए कि यह एक ही हट्टी है,
जहाँ
सबको आना है। एक दिन यह सन्यासी आदि सब आयेंगे। एक ही हट्टी है
तो जायेंगे कहाँ। जो बहुत भटका हुआ होगा,
उनको
ही रास्ता मिलेगा। और समझेंगे यह एक ही हट्टी है। सबका सद्गति
दाता एक बाप है ना। ऐसा जब नशा चढ़े तब बात है। बाप को यही ओना
है ना-मैं आया हूँ पतितों को पावन बनाए शान्तिधाम-सुखधाम का
वर्सा देने। तुम्हारा भी यही धंधा है। सबका कल्याण करना है। यह
है पुरानी दुनिया। इनकी आयु कितनी है?
थोड़े टाइम में समझ जायेंगे,
यह
पुरानी दुनिया खत्म होनी है। सभी आत्माओं को यह बुद्धि में
आयेगा,
नई
दुनिया की स्थापना हो तब तो पुरानी दुनिया का विनाश हो। आगे चल
फिर कहेंगे बरोबर भगवान यहाँ है। रचयिता बाप को ही भूल गये
हैं। त्रिमूर्ति में शिव का चित्र उड़ा दिया है,
तो
कोई काम का नहीं रहा। रचयिता तो वह है ना। शिव का चित्र आने से
क्लीयर हो जाता है-ब्रह्मा द्वारा स्थापना। प्रजापिता ब्रह्मा
होगा तो जरूर बी.के. भी होने चाहिए। ब्राह्मण कुल सबसे ऊंचा
होता है। ब्रह्मा की औलाद हैं। ब्राह्मणों को रचते कैसे हैं,
यह
भी कोई नहीं जानते। बाप ही आकर तुमको शूद्र से ब्राह्मण बनाते
हैं। यह बड़ी पेचीली बातें हैं। बाप जब सम्मुख आकर समझाये तब
समझें। जो देवतायें थे वह शूद्र बने हैं। अब उन्हों को कैसे
ढूंढ़े उसके लिए युक्तियां निकालनी हैं। जो समझ जाएं यह बी.के.
का तो भारी कार्य है। कितने पर्चे आदि बांटते हैं। बाबा ने
एरोप्लेन से पर्चे गिराने लिए भी समझाया है। कम से कम अखबार
जितना एक कागज हो,
उसमें मुख्य प्वाइंट्स सीढ़ी आदि भी आ सकती है। मुख्य है
अंग्रेजी और हिन्दी भाषा। तो बच्चों को सारा दिन ख्यालात रखनी
चाहिए-सर्विस को कैसे बढ़ायें?
यह
भी जानते हैं ड्रामा अनुसार पुरूषार्थ होता रहता है। समझा जाता
है यह सर्विस अच्छी करते हैं,
इनका
पद भी ऊंच होगा। हर एक एक्टर का अपना पार्ट है,
यह
भी लाइन जरूर लिखनी है। बाप भी इस ड्रामा में निराकारी दुनिया
से आकर साकारी शरीर का आधार ले पार्ट बजाते हैं। अभी तुम्हारी
बुद्धि में है,
कौन-कौन कितना पार्ट बजाते हैं?
तो
यह लाइन भी मुख्य है। सिद्ध कर बतलाना है,
यह
सृष्टि चक्र को जानने से मनुष्य स्वदर्शन चक्रधारी बन
चक्रवर्ती राजा विश्व का मालिक बन सकते हैं। तुम्हारे पास तो
सारी नॉलेज है ना। बाप के पास नॉलेज है ही गीता की,
जिससे मनुष्य नर से नारायण बनते हैं। फुल नॉलेज बुद्धि में आ
गई तो फिर फुल बादशाही चाहिए। तो बच्चों को ऐसे-ऐसे ख्याल कर
और बाप की सर्विस में लग जाना चाहिए।
जयपुर में भी यह रूहानी म्युज़ियम स्थाई रहेगा। लिखा हुआ
है-इनको समझने से मनुष्य विश्व का मालिक बन सकते हैं। जो
देखेंगे एक-दो को सुनाते रहेंगे। बच्चों को सदा सर्विस पर रहना
है। मम्मा भी सर्विस पर है,
उनको
मुकरर किया था। यह कोई शास्त्रों में है नहीं कि सरस्वती कौन
है?
प्रजापिता ब्रह्मा की सिर्फ एक बेटी होगी क्या?
अनेक
बेटियाँ अनेक नाम वाली होंगी ना। वह फिर भी एडाप्ट थी। जैसे
तुम हो। एक हेड चला जाता है तो फिर दूसरा स्थापन किया जाता है।
प्राइम मिनिस्टर भी दूसरा स्थापन कर लेते हैं। एबुल समझा जाता
है,
तब
उनको पसन्द करते हैं फिर टाइम पूरा हो जाता है,
तो
फिर दूसरे को चुनना पड़ता है। बाप बच्चों को पहला मैनर्स यही
सिखलाते हैं कि तुम किसका रिगार्ड कैसे रखो! अनपढ़े जो होते
हैं उनको रिगार्ड रखना भी नहीं आता है। जो जास्ती तीखे हैं तो
उनका सबको रिगार्ड रखना ही है। बड़ों का रिगार्ड रखने से वह भी
सीख जायेंगे। अनपढ़े तो बुद्धू होते हैं। बाप ने भी अनपढ़ों को
आकर उठाया है। आजकल फीमेल को आगे रखते हैं। तुम बच्चे जानते हो
हम आत्माओं की सगाई परमात्मा के साथ हुई है। तुम बड़े खुश होते
हो-हम तो विष्णुपुरी के मालिक जाकर बनेंगे। कन्या का बिगर देखे
भी बुद्धियोग लग जाता है ना। यह भी आत्मा जानती है-यह आत्मा और
परमात्मा की सगाई वन्डरफुल है। एक बाप को ही याद करना पड़े। वह
तो कहेंगे गुरू को याद करो,
फलाना मत्र याद करो। यह तो बाप ही सब कुछ है। इन द्वारा आकर
सगाई कराते हैं। कहते हैं मैं तुम्हारा बाप भी हूँ,
मेरे
से वर्सा मिलता है। कन्या की सगाई होती है तो फिर भूलती नहीं
है। तुम फिर भूल क्यों जाते हो?
कर्मातीत अवस्था को पाने में टाइम लगता है। कर्मातीत अवस्था को
पाकर वापिस तो कोई जा न सके। जब साजन पहले चले फिर बरात जाये।
शंकर की बात नहीं,
शिव
की बरात है। एक है साजन बाकी सब हैं सजनियां। तो यह है शिवबाबा
की बरात। नाम रख दिया है बच्चे का। दृष्टान्त दे समझाया जाता
है। बाप आकर गुल-गुल बनाए सबको ले जाते हैं। बच्चे जो काम चिता
पर बैठ पतित बन गये हैं उनको ज्ञान चिता पर बिठाए गुल-गुल
बनाकर सभी को ले जाते हैं। यह तो पुरानी दुनिया है ना।
कल्प-कल्प बाप आते हैं। हम छी-छी को आकर गुल-गुल बनाए ले जाते
हैं। रावण छी-छी बनाते हैं और शिवबाबा गुल-गुल बनाते हैं। तो
बाबा बहुत युक्तियां समझाते रहते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के
लिए मुख्य सार :-
1)
खाने
पीने की छी-छी तमन्नाओं को छोड़ देही-अभिमानी बन सर्विस करनी
है। याद से माइट (शक्ति) ले निर्भय और अडोल अवस्था बनानी है।
2)
जो
पढ़ाई में तीखे होशियार हैं,
उनका रिगार्ड रखना है। जो भटक रहे हैं,
उनको रास्ता बताने की युक्ति रचनी है। सबका कल्याण करना है।
वरदान:-
श्रेष्ठ वेला के आधार पर सर्व प्राप्तियों के अधिकार का अनुभव
करने वाले पदमापदम भाग्यशाली भव! 
जो
श्रेष्ठ वेला में जन्म लेने वाले भाग्यशाली बच्चे हैं,
वह
कल्प पहले की टचिंग के आधार पर जन्मते ही अपने पन का अनुभव
करते हैं। वह जन्मते ही सर्व प्रापर्टी के अधिकारी होते हैं।
जैसे बीज में सारे वृक्ष का सार समाया हुआ है ऐसे नम्बरवन वेला
वाली आत्मायें सर्व स्वरूप की प्राप्ति के खजाने के आते ही
अनुभवी बन जाते हैं। वे कभी ऐसे नहीं कहेंगे कि सुख का अनुभव
होता,
शान्ति का नहीं,
शान्ति का होता सुख का व शक्ति का नहीं। सर्व अनुभवों से
सम्पन्न होते हैं।
स्लोगन:-
अपने
प्रसन्नता की छाया से शीतलता का अनुभव कराने के लिए निर्मल और
निर्मान बनो। 