16-04-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
अपना पोतामेल चेक करो कि सारे दिन में बाप को कितना समय याद
किया, कोई भूल तो नहीं की? क्योंकि तुम हर एक व्यापारी हो
| 
प्रश्न:-
कौन-सी एक मेहनत अन्तर्मुखी बन करते रहो तो अपार ख़ुशी रहेगी?
उत्तर:-
जन्म-जन्मान्तर जो कुछ किया है, जो सामने आता रहता है, उन सबसे
बुद्धियोग निकाल सतोप्रधान बनने के लिए बाप को याद करने की
मेहनत करते रहो | चारों तरफ़ से बुद्धि हटाए अन्तर्मुखी बन बाप
को याद करो | सर्विस का सबूत दो तो अपार ख़ुशी रहेगी |
ओम्
शान्ति
|
बाप
बैठ बच्चों को समझाते हैं, यह तो बच्चे जानते हैं कि रूहानी
बाप रूहानी बच्चों को बैठ समझाते हैं | रूहानी बाप हुआ बेहद का
बाप | रूहानी बच्चे भी हुए बेहद के बच्चे | बाप को तो सब
बच्चों की सद्गति करनी है | किस द्वारा? इन बच्चों द्वारा
विश्व की सद्गति करनी है | सारे विश्व के बच्चे तो यहाँ आकर
नहीं पढ़ते हैं | नाम ही है ईश्वरीय विश्व-विद्यालय | मुक्ति तो
सबकी होती ही है | मुक्ति कहो, जीवनमुक्ति कहो | मुक्ति में
जाकर फिर भी सबको जीवनमुक्ति में आना ही है | तो ऐसे कहेंगे
सभी जीवनमुक्ति में आते हैं वाया मुक्तिधाम | एक-दो के पीछे
आना ही है पार्ट बजाने | तब तक मुक्तिधाम में ठहरना पड़ता है |
बच्चों को अब रचयिता और रचना का मालूम पड़ गया है | यह सारी
रचना अनादि है | रचयिता तो एक ही बाप है | यह जो भी सभी
आत्मायें हैं, सब बेहद के बाप के बच्चे हैं | जब बच्चों को
मालूम पड़ता है तो वही आकर योग सीखते हैं | यह भारत के लिए ही
योग है | बाप आते भी भारत में हैं | भारतवासियों को ही याद की
यात्रा सिखलाकर पावन बनाते हैं और नॉलेज भी देते हैं कि यह
सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है, यह भी बच्चे जानते हैं | रूद्र
माला भी है जो गाई और पूजी जाती है, सिमरण की जाती है | भक्त
माला भी है | ऊँचे ते ऊँचे भक्तों की माला है | भक्त माला के
बाद होनी चाहिए ज्ञान माला | भक्ति और ज्ञान है ना | भक्त माला
भी है तो रूद्र माला भी है | पीछे फिर रुण्ड माला कहा जाता है
क्योंकि ऊँच ते ऊँच मनुष्य सृष्टि में है विष्णु, जिसको
सूक्ष्मवतन में दिखाते हैं | प्रजापिता ब्रह्मा तो यह है, इनकी
माला भी है | आखरीन यह माला बन जायेगी तब ही वह रूद्र माला और
विष्णु की वैजयन्ती माला बनेगी | ऊँचे ते ऊँचा है शिवबाबा फिर
ऊँचे ते ऊँच है विष्णु का राज्य | शोभा के लिए भक्ति में कितने
चित्र बनाये हैं | परन्तु ज्ञान कुछ भी नहीं है | तुम जो चित्र
बनाते हो उनकी पहचान देनी है तो मनुष्य समझ जाएं | नहीं तो शिव
और शंकर को मिला देते हैं |
बाबा
ने समझाया है सूक्ष्मवतन में भी सारी साक्षात्कार की बात है |
हड्डी मांस वहाँ होता नहीं | साक्षात्कार करते हैं | सम्पूर्ण
ब्रह्मा भी है परन्तु वह है सम्पूर्ण, अव्यक्त | अभी व्यक्त
ब्रह्मा जो है उनको अव्यक्त बनना है | व्यक्त ही अव्यक्त होता
है जिसको फ़रिश्ता भी कहते हैं | उनका सूक्ष्मवतन में चित्र रख
दिया है | सूक्ष्मवतन में जाते हैं, कहते हैं बाबा ने शूबीरस
पिलाया | अब वहाँ झाड़ आदि तो होता नहीं | बैकुण्ठ में हैं,
लेकिन ऐसे नहीं कि बैकुण्ठ से ले आकर पिलाते होंगे | यह सब
सूक्ष्मवतन में साक्षात्कार की बातें हैं | अब तुम बच्चे जानते
हो कि वापिस घर जाना है और आत्म-अभिमानी बनना है | मैं आत्मा
अविनाशी हूँ, यह शरीर विनाशी है | आत्मा का ज्ञान भी तुम
बच्चों में है | वे तो आत्मा क्या है, यह भी नहीं जानते | उन
लोगों को यह भी मालूम नहीं कि कैसे उनमें 84 जन्मों का पार्ट
भरा हुआ है | यह नॉलेज सिर्फ़ बाप ही देते हैं | अपनी भी नॉलेज
देते हैं | तमोप्रधान से सतोप्रधान भी बनाते हैं | बस, यही
पुरुषार्थ करते रहो – हम आत्मा हैं, अब परमात्मा के साथ योग
लगाना है | सर्वशक्तिमान् पतित-पावन एक बाप को ही कहते हैं |
सन्यासी कहते हैं पतित-पावन आओ | कोई तो ब्रह्म को भी
पतित-पावन कह देते हैं | अब तुम बच्चों को भक्ति का भी ज्ञान
मिलता है कि भक्ति कितना समय चलती है, ज्ञान कितना समय चलता
है? यह बाप बैठ समझाते हैं | पहले कुछ नहीं जानते थे | मनुष्य
होकर तुच्छ बुद्धि बन पड़े हैं | सतयुग में बिल्कुल स्वच्छ
बुद्धि थे | कितने उन्हों में दैवीगुण थे | तुम बच्चों को दैवी
गुण भी ज़रूर धारण करने हैं | कहते हैं ना यह तो जैसे देवता है
| भल साधू, सन्त, महात्मा को लोग मानते हैं परन्तु वह दैवी
बुद्धि तो नहीं है | रजोगुणी बुद्धि हो जाते हैं | राजा, रानी,
प्रजा है ना | राजधानी कब और कैसे स्थापन होती है – यह दुनिया
नहीं जानती | यहाँ तुम सब नई बातें सुनते हो | तो माला का भी
राज़ समझाया है | ऊँचे ते ऊँच है बाप | उनकी माला ऊपर में है,
रूद्र वह है निराकार फिर साकार लक्ष्मी-नारायण उनकी भी माला है
| ब्राह्मणों की माला अभी नहीं बनती | अन्त में तुम ब्राह्मणों
की माला भी बन जाती है | इन बातों में जास्ती प्रश्न-उत्तर
करने की ज़रूरत नहीं | मूल बात है अपने को आत्मा समझ परमपिता
परमात्मा को याद करो | यह निश्चय पक्का चाहिए | मूल बात है
पतितों को पावन बनाना | सारी दुनिया पतित है फिर पावन बनना है
| मूलवतन में भी सभी पावन हैं तो सुखधाम में भी सब पावन हैं |
तुम पावन बनकर पावन दुनिया में जाते हो | गोया अब पावन दुनिया
स्थापन हो रही है | यह सब ड्रामा में नूँध है |
बाप
कहते हैं, सारे दिन का पोतामेल देखो – कोई भूल तो नहीं हुई?
व्यापारी लोग मुरादी सम्भालते हैं, यह भी कमाई है | तुम हर एक
व्यापारी हो | बाबा से व्यापार करते हो | अपनी जाँच करनी है –
हमारे में कितने दैवीगुण हैं? कितना बाप को याद करते हैं?
कितना हम अशरीरी बनते जाते हैं? हम अशरीरी आये थे फिर अशरीरी
बनकर जाना है | अभी तक सब आते ही रहते हैं | बीच में जाना तो
एक को भी नहीं है | जाना तो सबको इकठ्ठा है | भल सृष्टि खाली
नहीं रहती, गायन है राम गयो, रावण गयो.....परन्तु रहते दोनों
हैं | रावण सम्प्रदाय जाता है तो फिर लौटकर नहीं आता | बाकी यह
बच जाते हैं | यह भी आगे चलकर सब साक्षात्कार होना है | यह
जानना है कि नई दुनिया की कैसे स्थापना हो रही है, पिछाड़ी में
क्या होगा? फिर सिर्फ़ हमारा ही धर्म रह जायेगा | सतयुग में
तुम राज्य करेंगे | कलियुग ख़त्म हो जायेगा, फिर सतयुग को आना
है | अभी रावण सम्प्रदाय और राम सम्प्रदाय दोनों हैं | संगमयुग
पर ही यह सब होता है | अभी तुम यह सब कुछ जानते हो | बाप कहते
हैं बाकी जो कुछ राज़ है, वह आगे चलकर धीरे-धीरे समझाते रहेंगे
| जो रिकॉर्ड में नूँध है, वह खुलते जायेंगे | तुम समझते
जायेंगे | इनएडवान्स कुछ भी नहीं बतायेंगे | यह भी ड्रामा का
प्लैन है, रिकॉर्ड खुलता जाता है | बाबा बोलता जाता है |
तुम्हारी बुद्धि में यह सब बातों की समझ बढती जाती है |
जैसे-जैसे रिकॉर्ड बजता जायेगा वैसे-वैसे बाबा की मुरली चलती
जायेगी | ड्रामा का राज़ सारा भरा पड़ा है | ऐसे नहीं, रिकॉर्ड
से सुई उठाकर बीच में रख सकते हैं तो वह रिपीट हो | नहीं, वह
भी फिर वही रिपीट होगा | नई बात नहीं | बाप के पास जो नई बात
होगी वह रिपीट होगी | तुम सुनते और सुनाते जायेंगे | बाकी सब
गुप्त है | यह राजधानी स्थापन हो रही है | सारी माला बन रही है
| अलग-अलग जाकर राजाई में तुम जन्म लेंगे | राजा, रानी, प्रजा
सब चाहिए | यह सब बुद्धि से काम लेना पड़ता है | प्रैक्टिकल में
जो होगा सो देखा जायेगा | जो यहाँ से जाते हैं वह अच्छे
साहूकार के घर में जाकर जन्म लेते हैं | अभी भी तुम्हारी वहाँ
बहुत खातिरी होती है | इस समय भी रत्न जड़ित चीज़ें सबके पास
होती हैं | परन्तु उन्हों में इतनी पॉवर नहीं है | पॉवर
तुम्हारे में है | तुम जहाँ जायेंगे वहाँ अपना शो करेंगे | तुम
तो ऊँच बनते हो तो तुम जाकर वहाँ दैवी चरित्र दिखायेंगे |
आसुरी बच्चे जन्मते ही रोते रहेंगे | गन्दे भी होते हैं | तुम
तो बड़े कायदेसिर पलेंगे | गंद आदि की बात नहीं
|
आजकल के बच्चे तो गंदे हो पड़ते हैं |
सतयुग में ऐसी बात हो न सके | फिर भी
हेविन है ना | वहाँ बास आती नहीं जो
कहना पड़े अगरबत्ती जलाओ | बगीचों में बहुत खुशबूदार फूल होंगे
| यहाँ के फूलों में इतनी खुशबू नहीं | वहाँ तो हर एक चीज़ में
100 परसेन्ट खुशबू रहती है | यहाँ तो 1 परसेन्ट भी नहीं है |
वहाँ तो फूल भी फर्स्टक्लास होंगे | यहाँ भल कोई कितना भी
साहूकार हो तो भी इतना नहीं | वहाँ तो किस्म-किस्म की चीज़ें
होंगी | बर्तन आदि सब सोने के होंगे | जैसे यहाँ के पत्थर,
वहाँ फिर सोना ही सोना | रेती में भी सोना होता है | विचार करो
– कितना सोना होगा! जिससे मकान आदि बनेंगे | वहाँ ऐसी मौसम
होगी – न सर्दी, न गर्मी | वहाँ गर्मी का दुःख नहीं जो पंखे
चलाने पड़े | उसका नाम ही है स्वर्ग | वहाँ अपार सुख होता है |
तुम्हारे जैसा पदमापदम भाग्यशाली कोई बनते ही नहीं |
लक्ष्मी-नारायण की कितनी महिमा गाते हैं | उनको जो ऐसा बनाते
हैं, उनकी कितनी महिमा चाहिए | पहले होती है अव्यभिचारी भक्ति,
फिर देवताओं की भक्ति शुरू होती है | वह भी भूत पूजा कहेंगे |
शरीर तो वह है नहीं | 5 तत्वों की पूजा होती है | शिवबाबा के
लिए तो ऐसे नहीं कहेंगे | पूजा करने के लिए कोई चीज़ का वा सोने
आदि का बनाते हैं | आत्मा को थोड़ेही सोना कहेंगे | आत्मा किस
चीज़ की बनी हुई है? शिव का चित्र किस चीज़ का बनाया हुआ है, वह
झट बतायेंगे | परन्तु आत्मा-परमात्मा किस चीज़ का बना हुआ है,
यह कोई बता न सके | सतयुग में 5 तत्व भी शुद्ध होते हैं | यहाँ
हैं अशुद्ध | तो पुरुषार्थी बच्चे ऐसी-ऐसी ख्यालात करते रहेंगे
| बाप कहते हैं इन सब बातों को भी छोड़ दो | जो होना है वह होगा
| पहले बाप को याद करो | चारों तरफ़ से बुद्धि हटाकर मामेकम्
याद करो तो विकर्म विनाश होंगे | जो कुछ सुनते हो उन सब को छोड़
एक बात पक्की करो कि हमको सतोप्रधान बनना है |
फिर सतयुग में जो कल्प-कल्प हुआ होगा, वही होगा | उसमें फ़र्क
नहीं पड़ सकता | मूल बात है, बाप को याद करो | यह है मेहनत | वह
पूरी करो | तूफ़ान तो बहुत आते हैं | जन्म-जन्मान्तर जो कुछ
किया है वह सब सामने आता है | तो सब तरफ़ से बुद्धि को हटाकर
मेरे को याद करो करने का पुरुषार्थ करो, अन्तर्मुखी होकर | तुम
बच्चों को स्मृति तो आई, सो भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार |
सर्विस से भी मालूम पड़ जाता है | सर्विस करने वालों को सर्विस
की ख़ुशी रहती है | जो अच्छी सर्विस करते हैं, उनकी सर्विस का
सबूत भी मिलता है | पण्डे बनकर आते हैं | कौन महारथी,
घोड़ेसवार, प्यादे हैं, वह झट पता पड़ जाता है | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
दूसरी सब बातों को छोड़, बुद्धि को चारों तरफ़ से हटाकर
सतोप्रधान बनने के लिए अशरीरी बनने का अभ्यास करना है |
दैवीगुण धारण करने हैं |
2.
बुद्धि में अच्छे-अच्छे ख्यालात लाने हैं, हमारे राज्य
(स्वर्ग) में क्या-क्या होगा, उस पर विचार कर अपने को जैसे
लायक चरित्रवान बनाना है | यहाँ से बुद्धि निकाल देनी है |
वरदान:-
अविनाशी प्राप्तियों की स्मृति से अपने श्रेष्ठ भाग्य की ख़ुशी
में रहने वाले इच्छा मात्रम् अविद्या भव
!
जिसका बाप ही भाग्य विधाता हो उसका भाग्य क्या होगा! सदा यही
ख़ुशी रहे कि भाग्य तो हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है | “वाह मेरा
श्रेष्ठ भाग्य और भाग्य विधाता बाप” यही गीत गाते ख़ुशी में
उड़ते रहो | ऐसा अविनाशी ख़ज़ाना मिला है जो अनेक जन्म साथ रहगा,
कोई छीन नहीं सकता, लूट नहीं सकता | कितना बड़ा भाग्य है जिसमें
कोई इच्छा नहीं, मन की ख़ुशी मिल गई तो सर्व प्राप्तियाँ हो गई
| कोई अप्राप्त वस्तु है नहीं इसलिए इच्छा मात्रम् अविद्या बन
गये |
स्लोगन:-
विकर्म
करने का टाइम बीत गया, अभी व्यर्थ संकल्प, बोल भी बहुत धोखा
देते हैं
|
ओम् शान्ति
|