15-06-14     प्रातः मुरली   ओम् शान्ति    “अव्यक्त-बापदादा    रिवाइज: 24-01-78 मधुबन
 


“निरन्तर सेवाधारी”

बापदादा हरेक बच्चे के मस्तक बीच चमकता हुआ सितारा कहो या हीरा कहो, देखते हुए हर्षित हो रहे हैं | हरेक की चमक न्यारी और प्यारी थी | इन चमकते हुए सितारों से हर आत्मा की तक़दीर की लकीरें स्पष्ट दिखाई देती हैं | बापदादा को नाज़ है, कैसे-कैसे बिछुड़े हुए बच्चे अपना भाग्य बनाने के लिए कितना गुप्त और प्रत्यक्ष पुरुषार्थ कर रहे हैं | बच्चों का नशा और तीव्र पुरुषार्थ देख बाप भी बच्चों पर बलिहार जाते हैं अर्थात् बच्चों के गले का हार बन जाते हैं | जैसे हार सदा गले में पिरोया हुआ होता है, वैसे बच्चों के मुख में, नयनों में, बुद्धि में बाप ही समाया हुआ है अर्थात् बाप को अपने गले का हार बनाया है | आज बापदादा बच्चों के गीत गा रहे थे | आज कौन-सा गीत गाया? बच्चों की महिमा का | हर बच्चे में बाप को प्रत्यक्ष करने का उमंग देखा | सिवाय बच्चों के बाप प्रत्यक्ष हो भी नहीं सकता | तो बाप को भी प्रत्यक्ष करने वले कितने श्रेष्ठ ठहरे? इतना नशा या सेवा की स्मृति सदा रहे | जैसे बाप अविनाशी है, आत्मा अविनाशी है, सर्व प्राप्ति संगमयुग की अविनाशी है, ऐसे ही स्मृति या नशा भी अविनाशी रहे? अन्तर नहीं होना चाहिए | अन्तर आना अर्थात् मन्त्र को भूलना | अगर मन्त्र याद है तो नशे में अन्तर नहीं हो सकता |

आज तो बापदादा मिलने आये हैं, सुनाया तो बहुत है लेकिन आज सुनाये हुए का स्वरूप देखने आये हैं, स्वरूप में क्या देख रहे हैं? सर्विस बहुत अच्छी की, अनेक अज्ञानी आत्माओं को स्मृति अर्थात् जाग्रता दिलाई | देहली की धरनी ने सर्व ब्राह्मण आत्माओं को हलचल में लाया | (बाबा दिल्ली में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय कान्फ्रेन्स के विषय में कह रह हैं) अभी क्वेश्चन उठा है कि यह कौन हैं और यह कर्तव्य क्या है? जैसे सोये हुए मनुष्य को जगाया जाता है, आँख खोलते थोड़ा सा नींद का नशा होने कारण क्वेश्चन करता है, कौन है? क्या है? ऐसे देहली निवासी अज्ञानी आत्माओं को भी क्वेश्चन ज़रूर उठा है कि यह क्या है, कौन हैं? सुनने और देखने में अन्तर अनुभव किया | इतने सब ब्राह्मणों को देख यह ज़रूर अनुभव करते हैं कि कमाल है? साधारण कन्याओं, माताओं ने गुप्त में ही इतनी सेना तैयार कर ली है! ऐसा कब सोचा नहीं था, समझा नहीं था | सबकी दिव्य सूरतों ने बापदादा की मूर्त को कर्तव्य द्वारा लोगों के सामने प्रत्यक्ष ज़रूर किया है | अभी सिर्फ़ हलचल मचाई है | जैसे धरनी में पहले हल चलते हैं ना और हल चलते हुए बीज डाला जाता है ऐसे अपने भविष्य राजधानी में या अपनी आदि धरनी में हलचल रूपी हल चला.....कोई ताकत है, कोई शक्ति है, साधारण शक्तियाँ नहीं हैं, हलचल के साथ यह बीज डाला है | सम्मुख न देखते हुए भी चारों और यह धूम मचाई है कि यह कौन है और क्या है? गवर्मेन्ट के कानों तक यह आवाज़ पहुँची है | अभी इस बीज को वाणी द्वारा और याद की शक्ति द्वारा फलीभूत करना है | लेकिन अब तक जो किया वह बहुत अच्छा किया |

बापदादा विदेश से आये हुए बच्चों को या भारत से आये हुए बच्चों, जिन्होंने भी सेवा में अंगुली दी अर्थात् अपने राज्य का फ़ाउन्डेशन डाला उन्हें देख हर्षित होते हैं | यह कान्फ्रेन्स ब्राह्मणों की अपनी-अपनी राजधानी के अधिकारी बनने का फ़ाउन्डेशन स्टोन सेरीमनी थी इसलिए कोई भी विदेश के सेन्टर्स की आत्मायें या भारत में भी कोई ज़ोन रहा नहीं, यह की हुई गुप्त सेवा थोड़े समय में प्रत्यक्ष रूप दिखायेगी | अभी तो गुप्त वेश में अपना फ़ाउन्डेशन स्टोन डाला है अर्थात् बीज डाला है | लेकिन समय प्रमाण यही बीज फल के रूप में आप सब देखेंगे | यही दुनिया के लोग आपका आह्वान करेंगे, आजयान करेंगे |

(सभी की खाँसी का आवाज़ था) बहुत मेहनत की है क्या? प्रकृति का प्रभाव ज़्यादा हो गया है, इसका फल भी मिल जायेगा | विदेशी आत्माओं को यह भी अनुभव करना बहुत ज़रुरी है कि जैसा मौसम वैसा स्वयं को चला सकें | यह भी अनुभव चाहिए | हरेक छोटे बड़े का इस सेवा में महत्व रहा | मेहनत भी अच्छी की है, पहला फ़ाउन्डेशन यह क्वेश्चन उठा है, अब दुबारा फिर क्वेश्चन का उत्तर मिलेगा |

आज बापदादा यह रूहरिहान कर रहे थे | आगे के लिए भी जैसे निरन्तर योगी का वरदान बाप द्वारा प्राप्त हुआ है, वैसे ही निरन्तर सेवाधारी | सोते हुए भी सेवा हो | सोते हुए भी कोई देखे तो आपके चेहरे से शान्ति, आनन्द के वायब्रेशन अनुभव करे, इसलिए कहा जाता है कि बड़ी मीठी नींद थी | नींद में भी अन्तर होता है | हर संकल्प में हर कर्म में सदा सर्विस समाई हुई हो, इसको कहा जाता है निरन्तर सेवाधारी | बाप और सेवा | जैसे बाप अति प्यारा लगता है | बाप के बिना जीवन नहीं, ऐसे ही सेवा के बिना जीवन नहीं | ऐसे निरन्तर योगी और निरन्तर सेवाधारी विघ्न-विनाशक होते है | बाप की याद और सेवा – यह डबल लॉक लग जाता है, इसलिए माया आ नहीं सकती | चेक करो कि सदा डबल लॉक रहा है? अगर सिंगल लॉक है तो माया के आने की मार्जिन रह जाती है, इसलिए बार-बार अटेन्शन दो कि बाप की याद और सेवा में तत्पर हैं? सदा यह याद रखो कि हर कर्मेन्द्रियों द्वारा बाप के याद की स्मृति दिलाने की सेवा करनी है | हर संकल्प द्वारा विश्व कल्याणकारी बन लाईट हाउस का कर्तव्य करना है | हर सेकेण्ड की पॉवरफुल वृत्ति द्वारा चारों और पॉवरफुल वायब्रेशन फ़ैलाने हैं अर्थात् वायुमण्डल परिवर्तित करना है | हर कर्म द्वारा हर आत्मा को कर्मयोगी भव का वरदान देना है | हर क़दम में स्वयं प्रति पदमों की कमाई जमा करनी है | तो संकल्प, समय, वृत्ति और कर्म चारों को सेवा प्रति लगाओ, इसको कहा जाता है निरन्तर सेवाधारी अर्थात् सर्विसएबुल | अच्छा |

जैसे मधुबन में मेला है वैसे अन्त में आत्माओं का मेला भी होने वाला है | मधुबन अच्छा लगता है या विदेश अच्छा लगता है? मधुबन किसको कहा जाता है? जहाँ ब्राह्मणों का संगठन है, वहाँ मधुबन है | तो हरेक विदेश के स्थान को मधुबन बनाओ | मधुबन बनायेंगे तो बापदादा भी आयेंगे क्योंकि बाप का वायदा है कि मधुबन में आना है | आगे चल कर बहुत वन्डर्स देखेंगे | अभी जैसे भारत की संख्या बढ़ती जा रही है वैसे थोड़े समय में विदेश की संख्या बढ़ाओ | जहाँ रहते हो वहाँ चारों और आवाज़ फ़ैल जाए | क्वेश्चन उत्पन्न हो कि यह कौन हैं और क्या हैं! जब ऐसे संगठन तैयार करेंगे तो जहाँ संगठन है वहाँ बापदादा भी हाज़िर-नाज़िर है |

वहाँ ख़ुशी होती या यहाँ आने में ख़ुशी होती, कितना भी कहो फिर भी बड़ा-बड़ा है, छोटा-छोटा है, क्योंकि डायरेक्ट साकार तन की जन्मभूमि और कर्मभूमि, चरित्र भूमि का विशेष महत्व तो है ही | तब तो भक्ति में भी स्थान का महत्व रखते हैं, मन्दिर में मूर्ति पुरानी होगी और घर में बहुत कची सुन्दर मूर्ति होगी, लेकिन भक्त फिर भी स्थान को महत्व देते हैं | तो स्थान का महत्व है लेकिन अपनी फुलवाड़ी को बढ़ाओ | मधुबन जैसा नक्शा बनाओ | जब मिनी मधुबन भी होगा तो सभी को आकर्षण होगी देखने की | अच्छा – बापदादा वर्तमान सेवा का थैंक्स देते हैं और भविष्य सेवा के लिए फिर स्मृति दिलाते हैं | बापदादा को बच्चों से ज़्यादा स्नेह कहो या  शुभ ममता कहो, माँ की बच्चों में ममता होती है ना, तड़फते नहीं हैं लेकिन समा जाते हैं | उदास नहीं होते लेकिन बच्चों को सम्मुख इमर्ज कर स्नेह के सागर में समा जाते हैं | बाप का स्नेह है तब तो आपको भी स्नेह उत्पन्न होता है ना | स्नेह है तब तो अव्यक्त से भी व्यक्त में आते हैं |

ऐसे स्नेह के बन्धन में बाँधने वाले, स्नेह से बाप को प्रत्यक्ष करने वाले, सेवा द्वारा विश्व के कल्याण अर्थ निमित्त बने हुए, सदा महादानी और वरदानी ऐसे निरन्तर, योगी, निरन्तर सेवाधारी बच्चों को बापदादा का याद, प्यार और नमस्ते |

महाराष्ट्र की पार्टियों के साथ:-

सदैव स्वयं को सर्वश्रेष्ठ महान आत्मा समझते हो | महान आत्मा जिसकी स्मृति से ही स्वतः

हर संकल्प और हर कर्म महान अथवा सर्वश्रेष्ठ होते हैं | जैसे आजकल की दुनिया में अल्पकाल की पोज़ीशन वाली आत्मायें अपने पोज़ीशन की स्मृति में रहने के कारण दिन-रात स्वतः ही उसी नशे में रहती हैं | वैसे बाप द्वारा मिली हुई पोज़ीशन को स्मृति में रखना सहज और स्वतः है | जैसी पोज़ीशन है वैसा ही कर्म, जैसा नाम वैसा ही श्रेष्ठ कर्म भी है इसलिए वर्तमान समय सहजयोगी के साथ कर्मयोगी भी कहलायेंगे | कर्मयोगी अर्थात् हर कर्म द्वारा बाप से स्नेह और सम्बन्ध का हर आत्मा को साक्षात्कार होगा | जैसे हद की आत्माओं से स्नेह रखने वाली आत्मा का उनके चेहरे और झलक से दिखाई देता है कि कोई से स्नेह में लवलीन हैं | ऐसे अपने आप से पूछो कि हर कर्म बाप के साथ स्नेही आत्मा का अनुभव कराता है | इसको ही कहा जाता है कर्मयोगी | कर्मयोगी की या सहज राजयोगी की परिभाषा बड़ी गुह्य है | कर्मयोगी या सहज राजयोगी का हर संकल्प बाप के स्नेह के वायब्रेशन फ़ैलाने वाले होंगे | जैसे जड़ चित्र भी शान्ति के अल्पकाल के सुख के वायब्रेशन अब तक भी आत्माओं को देने का कार्य कर रहे हैं तो अवश्य चैतन्य रूप में संकल्प द्वारा, वाणी द्वारा, कर्म द्वारा विश्व में सदा सुख-शान्ति, बाप के स्नहे के वायब्रेशन फ़ैलाने का कर्तव्य किया है | तब जड़ चित्रों में भी शान्ति है | जब साइन्स का यन्त्र गर्मी का या सर्दी का वायब्रेशन वायुमण्डल बना सकते हैं तो मास्टर सर्वशक्तिमान अपने साइलेन्स अर्थात् याद की शक्ति से, अपने लगन की स्थिति द्वारा जो वायुमण्डल अथवा वायब्रेशन फैलाना चाहें वह सब बना सकते हैं | ऐसी प्रैक्टिस करो | अभी-अभी सुख का या शान्ति का वायुमण्डल या शक्ति रूप का वायुमण्डल बना सकते हो | जिस वायुमण्डल के अन्दर जो भी आत्मायें हों वह अनुभव करें कि यहाँ दुःख से सुख के वायुमण्डल में आ गये हैं | महसूस करें कि यहाँ बहुत सुख प्राप्त हो रहा है | जैसे एयरकन्डीशन में सर्दी व गर्मी का अनुभव करते हैं कि सचमुच गर्मी से ठण्डी हवा में आ गये हैं | ठण्डी से गर्मी में आ गये हैं | ऐसे आपकी चलन और चेहरे द्वारा आपके संकल्प शक्ति द्वारा सुख-शान्ति और शक्ति का अनुभव करें | जैसे एक सेकेण्ड में अन्धकार से रोशनी का अनुभव किया ना | ऐसे आजकल के मनुष्य अपनी शक्ति से अनुभव नहीं कर सकेंगे, लेकिन आप सबको अपनी प्राप्ति के आधार से, याद के आधार से उनको अनुभवी बनाना पड़ेगा | यह है वास्तविक सहज राजयोग या कर्मयोग की परिभाषा | स्वयं प्रति शान्ति का या शक्ति का अनुभव किया यह कोई बड़ी बात नहीं लेकिन अपने याद की शक्ति द्वारा अब विश्व में वायब्रेशन द्वारा वायुमण्डल बनाओ तब कहेंगे नम्बरवार सहज राजयोगी | सिर्फ़ स्वयं सन्तुष्ट न रह जाओ | सन्तुष्ट रहना और सर्व को सन्तुष्ट करना है | यह है योगी का कर्तव्य | अच्छा |

बाप द्वारा सदा खुश रहने का साधन मिला हुआ है ना | कैसी भी परिस्थिति हो लेकिन अपने पास साधन हैं तो सदा खुश रहेंगे | सिर्फ़ बाप को याद करने का साधन ही बहुत बड़ा है | बाबा कहना और ख़ुशी प्राप्त होना | ऐसा साधन सदा यूज़ करते रहो | बाबा शब्द याद करना अर्थात् स्विच ऑन होना | जैसे स्विच ऑन करने से सेकेण्ड में अन्धकार भाग जाता है | ऐसे ही बाबा कहना अर्थात् अन्धकार या दुःख-अशान्ति, उलझन, उदासी, टेन्शन सबकी सेकेण्ड में समाप्ति हो जाती है, ऐसा मन्त्र बाप ने दिया है | एक शब्द का तो मन्त्र है, सिर्फ़ बाबा | कैसा भी समय हो यह मन्त्र एक सेकेण्ड में पार कर लेने वाला है | सिर्फ़ इस मन्त्र को विधिपूर्वक समय पर कार्य में लगाओ | यह एक शब्द का मन्त्र वन्डरफुल जादू करने वाला है | इस एक शब्द के मन्त्र द्वारा जो चाहो वह ले सकते हो | चाहे सुख-शान्ति, चाहे शक्ति, आनन्द जो चाहो सब प्राप्ति कराने वाला मन्त्र है इसलिए जादू-मन्त्र कहते हैं | बाप तो सदा यही बच्चों के प्रति कामना करते हैं कि बाप समान बेहद के सेवाधारी बनना है | वह सब हैं हद की जिम्मेवारियाँ लेकिन बाप की जिम्मेवारी है बेहद की | तो बेहद की शक्ति देनी पड़ती है ना | तो बाप की यह शुभ कामना भी पूरी करनी ही है | अब राजयोगी बनना है | राजयोगी राज-राजेश्वर बनेंगे | तो पहली स्टेज है राजयोगी की | राजयोगी बनना कठिन नहीं है | घरबार छोड़ने वाला योगी बनना कठिन होता है | अच्छा |

 

वरदान:-   

प्राप्ति स्वरूप बन क्यों, क्या के प्रश्नों से पार रहने वाले सदा प्रसन्नचित भव !    

जो प्राप्ति स्वरूप सम्पन्न आत्मायें हैं उन्हें कभी भी किसी भी बात में प्रश्न नहीं होगा | उसके चेहरे और चलन में प्रसन्नता की पर्सनैलिटी दिखाई देगी, इसको ही सन्तुष्टता कहते हैं | प्रसन्नता अगर कम होती है तो उसका कारण है प्राप्ति कम और प्राप्ति कम का कारण है कोई न कोई इच्छा | बहुत सूक्ष्म इच्छायें अप्राप्ति के तरफ़ खींच लेती हैं, इसलिए अल्पकाल की इच्छाओं को छोड़ प्राप्ति स्वरूप बनो तो सदा प्रसन्नचित रहेंगे |

 

स्लोगन:- 

परमात्म प्यार में लवलीन रहो तो माया की आकर्षण समाप्त हो जायेगी |     

 

ओम् शान्ति |