09-06-14           प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


"मीठे बच्चे पक्का-पक्का निश्चय करो कि हम आत्मा हैं, आत्मा समझकर हर काम शुरू करो तो बाप याद आएगा, पाप नहीं होगा"   

                                                        
प्रश्न:-   
कर्मातीत स्थिति को प्राप्त करने के लिए कौन-सी मेहनत हर एक को करनी है? कर्मातीत स्थिति के समीपता की निशानी क्या है?


उत्तर:-
कर्मातीत बनने के लिए याद के बल से अपनी कर्मेन्द्रियों को वश में करने की मेहनत करो | अभ्यास करो मैं निराकार आत्मा निराकार बाप की सन्तान हूँ | सब कर्मेन्द्रियाँ निर्विकारी बन जायें – यह है ज़बरदस्त मेहनत | जितना कर्मातीत अवस्था के समीप आते जायेंगे उतना अंग-अंग शीतल, सुगन्धित होते जायेंगे | उनसे विकारी बांस निकल जायेगी | अतीन्द्रिय सुख का अनुभव होता रहेगा |

 

ओम् शान्ति |

शिव भगवानुवाच | यह तो बच्चों को नहीं बताना है कि किसके प्रति | बच्चे जानते हैं – शिवबाबा ज्ञान का सागर है | मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है | तो ज़रूर आत्माओं से बात करते हैं | बच्चे जानते हैं शिवबाबा पढ़ा रहे हैं | बाबा अक्षर से समझते हैं परम आत्मा को ही बाबा कहते हैं | सब मनुष्य मात्र उस परम आत्मा को ही फादर कहते हैं! बाबा परमधाम में रहते हैं | पहले-पहले यह बातें पक्की करनी है | अपने को आत्मा समझना है और यह पक्का निश्चय करना है | बाप जो सुनाते हैं, वह आत्मा ही धारण करती है, वह आत्मा ही पढ़ती है | आत्मा निकल जाये तो पढ़ाई आदि का कुछ भी मालूम न पड़े | आत्मा संस्कार ले गई, जाकर दूसरे शरीर में बैठी | तो पहले अपने को आत्मा पक्का-पक्का समझना पड़े | देह-अभिमान अब छोड़ना पड़े | आत्मा सुनती है, आत्मा धारण करती है | आत्मा इसमें नहीं होती तो शरीर हिल भी न सके | अब तुम बच्चों को यह पक्का-पक्का निश्चय करना है – परम आत्मा हम आत्माओं को ज्ञान दे रहे हैं | हम आत्मा भी शरीर द्वारा सुनती हैं और परमात्मा शरीर द्वारा सुना रहे हैं – यही घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं | देह याद आती है | यह भी जानते हो अच्छे वा बुरे संस्कार आत्मा में ही रहते हैं | शराब पीना, छी-छी बात करना.......यह भी आत्मा करती है आरगन्स द्वारा | आत्मा ही इन आरगन्स द्वारा इतना पार्ट बजाती है | पहले-पहले आत्म-अभिमानी ज़रूर बनना है | बाप आत्माओं को ही पढ़ाते हैं | आत्मा ही फिर यह नॉलेज साथ में ले जायेगी | जैसे वहाँ परम आत्मा ज्ञान सहित रहते हैं, वैसे तुम आत्मायें फिर यह नॉलेज साथ में ले जायेंगी | मैं तुम बच्चों को इस ज्ञान सहित ले जाता हूँ | फिर तुम आत्माओं को पार्ट में आना है, तुम्हारा पार्ट है नई दुनिया में प्रालब्ध भोगना | ज्ञान भूल जाता है | यह सब अच्छी रीति धारण करना है | पहले-पहले यह बहुत-बहुत पक्का करना है कि मैं आत्मा हूँ, बहुत हैं जो यह भूल जाते हैं | अपने साथ बहुत-बहुत मेहनत करनी है | विश्व का मालिक बनना है तो मेहनत बिगर थोड़ेही बनेंगे | घड़ी-घड़ी इस प्वाइंट को ही भूल जाते हैं क्योंकि यह नई नॉलेज है | जब अपने को आत्मा भूल देह-अभिमान में आते हैं तो कुछ न कुछ पाप होते हैं | देही-अभिमानी बनने से कभी पाप नहीं होंगे | पाप कट जायेंगे | फिर आधाकल्प कोई पाप नहीं होगा | तो यह निश्चय रखना चाहिए – हम आत्मा पढ़ती है, देह नहीं | आगे जिस्मानी मनुष्य मत मिलती थी, अब बाप श्रीमत दे रहे हैं | यह नई दुनिया की बिल्कुल नई नॉलेज है | तुम सब नये बन जायेंगे, इसमें मूँझने की बात ही नहीं | अनेकानेक बार तुम पुराने से नये, नये से पुराने बनते आये हो, इसलिए अच्छी रीति पुरुषार्थ करना है |

हम आत्मा कर्मेन्द्रियों द्वारा यह काम करते हैं | ऑफिस आदि में भी अपने को आत्मा समझकर कर्मेन्द्रियों से काम करते रहेंगे तो सिखलाने वाला बाप ज़रूर याद पड़ेगा | आत्मा ही बाप को याद करती है | भल आगे भी कहते थे हम भगवान् को याद करता हूँ | परन्तु अपने को साकार समझ निराकार को याद करते थे | अपने को निराकार समझ निराकार को याद कभी नहीं करते थे | अभी तुमको अपने को निराकार आत्मा समझ निराकार बाप को याद करना है | यह बड़ी विचार सागर मंथन करने की बात है | भल कोई-कोई लिखते हैं – हम 2 घण्टा याद में रहते हैं | कोई कहते हैं हम सदैव शिवबाबा को याद करते हैं | परन्तु सदैव कोई याद कर न सके | अगर याद करता हो तो पहले से ही कर्मातीत अवस्था हो जाये | कर्मातीत अवस्था तो बड़ी ज़बरदस्त मेहनत से होती है | इसमें सब विकारी कर्मेन्द्रियाँ वश हो जाती हैं | सतयुग में सब कर्मेन्द्रियाँ निर्विकारी बन जाती हैं | अंग-अंग सुगन्धित हो जाता है | अभी बांसी छी-छी अंग है | सतयुग की तो बहुत प्यारी महिमा है | उसको कहा जाता है हेविन नई दुनिया, वैकुण्ठ | वहाँ के फ़िचर्स, ताज़ आदि यहाँ पर कोई बना न सकें | भल तुम देखकर भी आते हो | परन्तु यहाँ वह बना न सके | वहाँ तो नैचुरल शोभा रहती है तो अब तुम बच्चों को याद से ही पावन बनना है | याद की यात्रा बहुत-बहुत करनी है | इसमें बड़ी मेहनत है | याद करते-करते कर्मातीत अवस्था को पा लें तो सब कर्मेन्द्रियाँ शीतल हो जायें | अंग-अंग बहुत सुगन्धित हो जायें, बदबू नहीं रहेगी | अभी तो सभी कर्मेन्द्रियों में बदबू है | यह शरीर कोई काम का नहीं है | तुम्हारी आत्मा भी पवित्र बन रही है | शरीर तो बन न सके | वह तब बनें जब तुमको नया शरीर मिले | अंग-अंग में सुगन्ध हो – यह महिमा देवताओं की है | तुम बच्चों को बहुत ख़ुशी होनी चाहिए | बाप आया है तो ख़ुशी का पारा चढ़ जाना चाहिए |

बाप कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे | गीता के अक्षर कितने क्लीयर हैं | बाबा ने कहा भी है – मेरे जो भक्त हैं, जो गीता-पाठी होंगे, वह कृष्ण के पुजारी ज़रूर होंगे | तब बाबा कहते हैं देवताओं के पुजारियों को सुनाना | मनुष्य शिव की पूजा करते हैं और फिर कह देते हैं सर्वव्यापी | ग्लानि करते हुए भी मन्दिरों में रोज़ जाते हैं | शिव के मन्दिर में ढेर के ढेर जाते हैं | बहुत ऊँची सीढ़ी चढ़कर जाते हैं ऊपर में, शिव का मन्दिर ऊपर बनाया जाता है | शिवबाबा भी आकर के सीढ़ी बताते हैं ना | उनका ऊँचा नाम, ऊँचा ठाँव है | कितना ऊपर जाते हैं | बद्रीनाथ, अमरनाथ वहाँ शिव के मन्दिर हैं | ऊँच चढ़ाने वाला है, तो उनका मन्दिर भी बहुत ऊँच बनाते हैं | यहाँ गुरु शिखर का मन्दिर भी ऊँची पहाड़ी पर बनाया हुआ है | ऊँच बाप बैठ तुमको पढ़ाते हैं | दुनिया में और कोई नहीं जानते कि शिवबाबा आकर पढ़ाते हैं | वह तो सर्वव्यापी कह देते हैं | अभी तुम्हारे सामने एम ऑब्जेक्ट भी खड़ी है | सिवाए बाप के और कौन कहेगा – यह तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट है | यह बाप ही तुम बच्चों को बतलाते हैं | तुम कथा भी सत्य नारायण की सुनते हो | वह तो जो पास्ट हो जाता है, उनकी कथायें बताते हैं कि आगे क्या-क्या हुआ | जिसको कहानी कहा जाता है | यह ऊँच ते ऊँच बाप बड़े ते बड़ी कहानी सुनाते हैं | यह कहानी तुमको बहुत ऊँच बनाने वाली है | यह सदैव याद रखनी चाहिए और बहुतों को सुनानी है | कहानी सुनाने के लिए ही तुम प्रदर्शनी वा म्यूज़ियम बनाते हो | 5 हज़ार वर्ष पहले भारत ही था, जिसमें देवतायें राज्य करते थे | यह है सच्ची-सच्ची कहानी, जो दूसरा कोई बता न सके | यह रीयल कहानी है जो चैतन्य वृक्षपति बाप बैठ समझाते हैं, जिससे तुम देवता बनते हो | इसमें पवित्रता मुख्य है | पवित्र नहीं बनेंगे तो धारणा नहीं होगी | शेरनी के दूध के लिए सोने का बर्तन चाहिए, तब ही धारणा हो सके |यह कान बर्तन मिसल है ना | यह सोने का बर्तन होना चाहिए| अभी पत्थर का है| सोने का बने तभी धारणा हो सके |  बड़ा अटेन्शन से सुनना और धारण करना है | कहानी तो इजी है, जो गीता में लिखी है | वह कहानियाँ सुनाकर कमाई करते हैं | सुनने वालों से उन्हों की कमाई हो जाती है | यहाँ तुम्हारी भी कमाई है | दोनों कमाई चलती रहती हैं | दोनों व्यापार हैं | पढ़ाते भी हैं | कहते हैं मनमनाभव, पवित्र बनो | ऐसे और कोई नहीं कहते, न मनमनाभव रहते हैं | कोई भी मनुष्य यहाँ पवित्र हो नहीं सकते क्योंकि भ्रष्टाचार से पैदाइस है | रावण राज्य कलियुग अन्त तक चलना है, उसमें पावन होना है | पावन कहा जाता है देवताओं को, न कि मनुष्यों को | सन्यासी भी मनुष्य हैं, उन्हों का है निवृत्ति मार्ग का धर्म | बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम पवित्र बन जायेंगे | भारत में प्रवृत्ति मार्ग का ही राज्य चला है | निवृत्ति मार्ग वालों से तुम्हारा कोई कनेक्शन नहीं है | यहाँ तो स्त्री-पुरुष दोनों को पवित्र बनना है | दोनों पहिये चलते हैं तो ठीक है, नहीं तो झगड़ा हो पड़ता है | पवित्रता पर ही झगड़ा चलता है | और कोई सतसंग में पवित्रता पर झगड़ा हो, ऐसा कभी सुना नहीं होगा | यह एक ही बार जब बाप आते हैं तब झगड़ा होता है | साधू सन्त आदि कभी कहते हैं क्या कि अबलाओं पर अत्याचार होंगे! यहाँ बच्चियां पुकारती हैं बाबा हमको बचाओ | बाप भी पूछते हैं नंगन तो नहीं होते हो? क्योंकि काम महाशत्रु है ना | एकदम गिर पड़ते हैं | इस काम विकार ने सबको वर्थ नाट ए पेनी बनाया है | बाप कहते हैं 63 जन्म तुम वेश्यालय में रहते हो, अभी पावन बन शिवालय में चलना है | यह एक जन्म पवित्र बनो | शिवबाबा को याद करो तो शिवालय स्वर्ग में चलेंगे | फिर भी काम विकार कितना ज़बरदस्त है | कितना हैरान करते हैं, कशिश होती है | कशिश को निकालना चाहिए | जबकि वापिस जाना है तो पवित्र ज़रूर बनना है | टीचर कोई बैठा थोड़ेही रहेगा | पढ़ाई थोड़ा समय चलेगी | बाबा बता देते हैं | हमारा यह रथ है ना | रथ की आयु कहेंगे | बाप कहते हम तो सदैव अमर हैं, हमारा नाम ही है अमरनाथ | पुनर्जन्म नहीं लेते इसलिए अमरनाथ कहा जाता है | तुमको आधा कल्प के लिए अमर बनाते हैं | फिर भी तुम पुनर्जन्म लेते हो | तो अब तुम बच्चों को जाना है ऊपर | मुँह उस तरफ़, टांगे इस तरफ़ करनी हैं | फिर इस तरफ़ मुँह क्यों फिराना चाहिए | कहते हैं बाबा भूल हो गई, मुँह इस तरफ़ हो गया | तो गोया उल्टे बन जाते हैं |

तुम बाप को भूल देह-अभिमानी बनते हो तो उल्टा बन जाते हो | बाप सब कुछ बतलाते हैं | बाप से कुछ भी मांगना नहीं है कि ताक़त दो, शक्ति दो | बाप तो रास्ता बतलाते हैं – योग बल से ऐसा बनना है | तुम योगबल से इतने साहूकार बनते हो जो 21 जन्म कभी कोई से मांगने की दरकार नहीं | इतना तुम बाप से लेते हो | समझते हो बाबा तो अथाह कमाई कराते हैं, कहते हैं जो चाहो सो ले लो | यह लक्ष्मी-नारायण हैं हाइएस्ट | फिर जो चाहे सो लो | पूरा पढ़ेंगे नहीं तो प्रजा में चले जायेंगे | प्रजा भी ज़रूर बननी है | तुम्हारे म्यूज़ियम आगे चलकर ढेर हो जायेंगे और तुमको बड़े-बड़े हाल मिलेंगे, कॉलेज मिलेंगे, जिसमें तुम सर्विस करेंगे | यह जो शादियों के लिए हाल बनाते हैं, यह भी तुमको ज़रूर मिलेंगे | तुम समझायेंगे – शिव भगवानुवाच, मैं तुमको ऐसा पवित्र बनाता हूँ, तो ट्रस्टी हाल दे देंगे | बोलो भगवानुवाच – काम महाशत्रु है, जिससे दुःख पाया है | अब पावन बन पावन दुनिया में चलना है | तुमको हाल मिलते रहेंगे | फिर कहेंगे टू लेट | बाप कहते हैं मैं ऐसे मुफ़्त में थोड़ेही लूँगा जो फिर भरकर देना पड़े | बच्चों के पाई-पाई से तलाव बनता है | बाकी तो सबका मिट्टी में मिल जाना है | बाप सबसे बड़ा सर्राफ भी है | सोनार, धोबी, कारीगर भी है | अच्छा! 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-  

1. बाप जो सच्ची-सच्ची कहानी सुनाते हैं, वह अटेन्शन से सुननी और धारण करनी है, बाप से कुछ भी मांगना नहीं है | २१ जन्मों के लिए अपनी कमाई जमा करनी है | 

2. वापस घर चलना है, इसलिए योगबल से शरीर की कशिश समाप्त करनी है | कर्मेन्द्रियों को शीतल बनाना है | इस देह का भान छोड़ने का पुरुषार्थ करना है |

 

वरदान:- 

ब्राह्मण जीवन की नेचरल नेचर द्वारा पत्थर को भी पानी बनाने वाले मास्टर प्रेम के सागर भव !   

जैसे दुनिया वाले कहते हैं कि प्यार पत्थर को भी पानी कर देता है, ऐसे आप ब्राह्मणों की नेचुरल नेचर मास्टर प्रेम का सागर है | आपके पास आत्मिक प्यार, परमात्म प्यार की ऐसी शक्ति है, जिससे भिन्न-भिन्न नेचर को परिवर्तन कर सकते हो | जैसे प्यार के सागर ने अपने प्यार स्वरूप की अनादि नेचर से आप बच्चों को अपना बना लिया | ऐसे आप भी मास्टर प्यार के सागर बन विश्व की आत्माओं को सच्चा, निःस्वार्थ आत्मिक प्यार दो तो उनकी नेचर परिवर्तन हो जायेगी |

 

स्लोगन:- 

अपनी विशेषताओं को स्मृति में रख उन्हें सेवा में लगाओ तो उड़ती कला में उड़ते रहेंगे |     

ओम् शान्ति |