21-12-13
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
तुम सबको जीवनमुक्ति का मन्त्र देने वाले सतगुरु के बच्चे गुरु हो, तुम ईश्वर के बारे में कभी भी झूठ नहीं बोल सकते|
प्रश्न:-
सेकेण्ड में जीवनमुक्ति प्राप्त करने की विधि और उसका गायन क्या है?
उत्तर:-
सेकेण्ड में जीवनमुक्ति प्राप्त करने के लिए प्रवृत्ति में रहते कमल फूल समान पवित्र बनो | सिर्फ़ इस अन्तिम जन्म में पवित्रता की प्रतिज्ञा करो तो जीवनमुक्ति मिल जायेगी | इस पर ही राजा जनक का मिसाल गाया हुआ है कि गृहस्थ व्यवहार में रहते एक सेकेण्ड में प्रतिज्ञा के आधार पर जीवनमुक्ति प्राप्त की |
गीत:-
यह वक्त जा रहा है....
ओम् शान्ति |
बाप आते हैं सबको सेकेण्ड में जीवनमुक्ति देने | गायन भी है सबका सद्गति दाता, जीवनमुक्ति दाता एक है | एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति क्यों कहते हैं? जैसे राजा जनक का मिसाल है | उनका नाम जनक था परन्तु भविष्य में वही अनुजनक बनता है | जनक के लिए कहते हैं कि उन्हें एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिली, लेकिन जीवनमुक्ति तो सतयुग-त्रेता में कहेंगे | गुरु लोग कान में मन्त्र देते हैं, उसे वशीकरण मन्त्र भी कहते हैं | वे तो सब मन्त्र देते हैं लेकिन तुम्हें मिलता है महामन्त्र, जीवनमुक्ति का मन्त्र | यह मन्त्र कौन देते हैं? ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारियां | उन्हें यह मन्त्र कहाँ से मिला? उस सतगुरु से | सर्वोत्तम तो एक ही बाप है | फिर तुम बच्चे सर्वोत्तम बनते हो | उनमें सर्वोत्तम गुरु होते हैं | तुम भी सतगुरु के बच्चे गुरु हो | गीता सुनाने वाले को भी गुरु कहा जाता है | नम्बरवार तो होते ही हैं | तुम भी सत बोलने वाले गुरु हो | तुम कभी ईश्वर के बारे में झूठ नहीं बोलते हो | पहले-पहले तो तुम पवित्रता के ऊपर ही समझाते हो कि बाप से प्रतिज्ञा करो हम कभी भी विकार में नहीं जायेंगे | झूठ आदि न बोलना यह तो कॉमन बात है | झूठ तो बहुतों से निकलती रहती है | पर यहाँ वह बात नहीं है | यहाँ है पवित्रता की बात | गृहस्थ व्यवहार में रहते इस अन्तिम जन्म में हम बाप से प्रतिज्ञा करते हैं कि हम कमल पुष्प समान पवित्र रहेंगे | तो यहाँ पवित्र रहने की बात है | कहेंगे यह तो बहुत ऊँच मंज़िल है | यह तो हो नहीं सकता | तुम कहेंगे वाह, क्यों नहीं हो सकता | यह तो गाया हुआ है कमल फूल समान.....यह दृष्टान्त शास्त्रों में लिखा हुआ है | ज़रूर बाप ने ही ऐसी शिक्षा दी है | है भी भगवानुवाच या ब्राह्मणों वाच | भगवान् सबको नहीं सुनाते हैं | ब्राह्मण बच्चे ही सुनते हैं | यह बात तुम्हें सबको समझानी है | मूल बात है पवित्रता की | कमल फूल समान पवित्र बनना है, जनक मिसल | वही जनक फिर अनुजनक बना | जैसे राधे अनुराधे बनती है | कोई का नाम नारायण है तो भविष्य में अनु नारायण बनता है | यह एक्यूरेट बात है | तो जो भी आते हैं उनको समझाना पड़े | सुना तो है सेकेण्ड में जीवनमुक्ति | गृहस्थ व्यवहार में रहते ऊँच पद पाया जा सकता है | हम अनुभव से कहते हैं, गपोड़ा नहीं मारते हैं | भगवानुवाच – मुख्य बात समझानी है – भगवान् सबका बाप है | ज़रूर जीवनमुक्ति दाता भी वही है | यह है प्रवृत्ति मार्ग | सन्यासियों का तो है ही निवृत्ति मार्ग | वह कभी राजयोग सिखला नहीं सकते | वह तो घरबार छोड़ भागने वाले हैं | वो यह ज्ञान दे नहीं सकते, यह है राजयोग | गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र रहना है | सतयुग में भारत पवित्र प्रवृत्ति मार्ग था, वाइसलेस दुनिया थी | राजाई में स्त्री-पुरुष दोनों चाहिए | तो समझाना पड़ता है – हम अनुभवी हैं | गृहस्थ व्यवहार में कमल फूल समान पवित्र रह सकते हैं | हम जानते हैं कि पवित्र बन बाप द्वारा पवित्र दुनिया के मालिक बनते हैं | पवित्र प्रवृत्ति मार्ग था, अब तो अपवित्र प्रवृत्ति मार्ग है | यह दुनिया ही भ्रष्टाचारी है | वह श्रेष्ठाचारी दुनिया थी | रावण भ्रष्टाचारी बनाते हैं, राम श्रेष्ठाचारी बनाते हैं | आधाकल्प रावण राज्य चलता है | भ्रष्टाचारी दुनिया में भक्ति मार्ग है | दान-पुण्य आदि करते रहते हैं क्योंकि भ्रष्टाचार है | समझते हैं मनुष्य जितना भक्ति, दान-पुण्य करेंगे तो फिर भगवान् मिलेगा | भगवान् की भक्ति करते हैं | कहते हैं कि आकर हमको श्रेष्ठ बनाओ | भारत श्रेष्ठाचारी था | अभी नहीं है |
भ्रष्टाचारी ही श्रेष्ठाचारी बनते हैं | भारत की नई रचना की कहानी कोई जानते ही नहीं | चित्रों के द्वारा अच्छी तरह समझाया जा सकता है | ऐसे-ऐसे चित्र बनाने पड़ेंगे | हरेक सेन्टर पर प्रदर्शनी के चित्र होने चाहिए | बाबा डायरेक्शन देते हैं भल लिख दें कि चित्र हमारे पास नहीं हैं, तो बाबा डायरेक्शन देंगे यह बनाओ फिर सबको भेजो तो सबके पास प्रदर्शनी हो जायेगी | यह चित्र बहुत अर्थ सहित हैं | पहले-पहले यह बुद्धि में आना चाहिए कि हम बाप के बच्चे हैं | भगवान् है स्वर्ग रचने वाला | नर्क का रचयिता है रावण | गोले के ऊपर 10 सिर वाले रावण का चित्र बना दो | स्वर्ग के गोले पर चतुर्भुज | लिख भी सकते हैं – यह रामराज्य, यह रावण राज्य | इस समय रावण सर्वव्यापी है | वहाँ हम राम सर्वव्यापी तो नहीं कह सकेंगे | गाया भी जाता है – आत्मा-परमात्मा अलग रहे बहुकाल फिर सुन्दर मेला कर दिया जब सतगुरु मिला दलाल | तो ज़रूर वह आयेगा ना | यह हिसाब कोई भी जानते नहीं हैं | पहले-पहले अलग हुई हैं देवी-देवताओं के आत्मायें | यह नॉलेज है, कोई कोई को भी समझाना है | आत्माओं का बाप तो है ना | अब हे आत्मा, अपने परमपिता परमात्मा का आक्यूपेशन बताओ? क्या नहीं जानती हो? ऐसा बच्चा तो होता नहीं जो बाप के आक्यूपेशन को नहीं जानता हो | बाप बैठ समझाते हैं तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो, मैं समझाता हूँ | पहले-पहले जो देवी-देवता हैं वह इतने जन्म लेते हैं | तो हिसाब करो – दूसरे धर्म वाले कितने जन्म लेते होंगे? सिद्ध कर बताना पड़े – मैक्सीमम इतने हैं | झाड़ वृद्धि को पाता रहता है | पहले-पहले देवी-देवता थे | उन्हों के ही 84 जन्म कहे जाते हैं | भारत की नॉलेज है ना | प्राचीन भारत की नॉलेज किसने दी? कृष्ण को नहीं मानेंगे | यह भगवान् ने ही दी है | नॉलेजफुल गॉड फादर है ना | ब्रह्मा को भी नॉलेजफुल नहीं कहेंगे, कृष्ण को भी नहीं कहेंगे | कृष्ण की महिमा ही अलग है | यह समझने की बड़ी ही क्लीयर नॉलेज है | भगवान् तो सबका एक ही निराकार परमपिता परमात्मा है | वह है रचयिता | कृष्ण तो है रचना | ऊँच ते ऊँच भगवान् तो एक है ना | सर्वव्यापी उनको कह नहीं सकते | भारत में ऊँच ते ऊँच प्रेज़ीडेंट फिर नम्बरवार और हैं | सबका आक्यूपेशन बतायेंगे | ऐसे तो नहीं, सब एक ही हैं | हरेक आत्मा को अविनाशी पार्ट मिला हुआ है – यह सिद्ध करना है | आपस में राय कर सर्विस के प्लैन बनाने हैं | परन्तु जिसकी लाइन क्लीयर नहीं होगी, कोई विकार होगा वा नाम-रूप में फंसा होगा तो यह काम हो नहीं सकेगा | इसमें लाइन बड़ी क्लीयर चाहिए | रिज़ल्ट तो अन्त में ही निकलेगी | अभी सभी नम्बरवार हैं | मनुष्य कहते हैं यह व्यास भगवान् ने शास्त्र बनाये, अब व्यास तो भगवान् हो नहीं सकता | वास्तव में धर्म के शास्त्र हैं ही 4 | भारत का धर्म शास्त्र तो है ही एक माई बाप गीता | वर्सा उनसे ही मिलता है | माँ द्वारा बाप से वर्सा मिलता है | गीता माता का बाप है रचता | तो गीता द्वारा ही बाप ने सहज राजयोग की नॉलेज दी है | गीता तो भारतखण्ड का शास्त्र है | फिर इस्लामी का धर्म शास्त्र अपना है, बुद्ध का अपना है, क्रिश्चियन का अपना है | गीता तो है सबका माई बाप, बाकी शास्त्र हैं बाल-बच्चे | वह बाद में निकले हैं | बाकी इतने वेद-उपनिषद आदि यह सब किस धर्म के हैं? यह मालूम तो होना चाहिए कि यह किसने उच्चारे? उससे कौन-सा धर्म निकला? कोई धर्म तो है नहीं | पहले तो सिद्ध करना है कि गीता खण्डन की हुई है | बाप के बदले बच्चे का नाम दे दिया है | जीवन चरित्र तो सबका अलग-अलग है | बाप कहते हैं सर्व धर्मानि परित्ज्य......मामेकम् याद करो | परमात्मा आत्माओं को कहते हैं – तुम अशरीरी बनो, मेरे को याद करो | अशरीरी बाप ही यह कह सकते हैं | सन्यासी तो कह नहीं सकते | यह गीता के अक्षर हैं | सब धर्म वालों को कहते हैं – अशरीरी भव | अभी नाटक पूरा होता है | सबको मन्त्र मिलता है कि देह सहित देह के सब सम्बन्ध त्याग मामेकम् याद करो तो तुम मेरे पास आ जायेंगे | मुक्ति के बाद जीवनमुक्ति है ज़रूर | पद जीवनमुक्ति का है वाया मुक्ति | जो भी आते हैं सतो, रजो, तमो से पास करते हैं | समझानी कितनी अच्छी है | परन्तु बच्चे एक कान से सुन दूसरे कान से निकाल देते हैं | वैसे है बहुत सहज |
तुम जगह-जगह पर प्रदर्शनी करो, अख़बारों में भी पड़ जाए | खर्चा कर सकते हो | भल सब सुनें | अख़बार में तो ज़रूर डालना है | बच्चों को बड़ा नशा रहना चाहिए | बाकी टाइम बहुत थोड़ा बचा है | अतीन्द्रिय सुख की भासना गोप-गोपियों से पूछो | गाया हुआ है – यह गोपी वल्लभ के गोप-गोपियाँ न सतयुग में, न कलियुग में होते है | वहाँ लक्ष्मी देवी, राधे देवी हैं | गोप-गोपियाँ अभी हैं, गोपी वल्लभ के बच्चे पोत्रे-पोत्रियां हैं | ज़रूर दादा भी होगा | दादा, बाबा और मम्मा – यह नई रचना हुई है संगम पर | बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुगे आता हूँ नई दुनिया बनाने | आसुरी सन्तान से तुम ईश्वरीय सन्तान बने हो फिर बनेंगे दैवी सन्तान | फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र सन्तान बनेंगे – 84 जन्मों में | फिर साथ-साथ वृद्धि भी होती रहती है | झाड़ भी पूरा कम्पलीट चाहिए | प्रलय भी नहीं होती है | भारत तो अविनाशी खण्ड है | भारत की बहुत महिमा करनी है | भारत सब खण्डों में श्रेष्ठ है | विनाश कभी भी नहीं होता | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
रात्रि क्लास 16-4-68
तुम ब्राह्मण बच्चों बिगर किसको भी यह पता नहीं है कि संगम युग कब होता है | इस कल्प के संगम युग की महिमा बहुत है | बाप आकर राजयोग सिखलाते हैं | सतयुग के लिये तो ज़रूर संगमयुग ही आयेगा | हैं भी मनुष्य उनमें कोई कनिष्ट, कोई उत्तम हैं | उनके आगे महिमा गाते हैं आप पुरुषोत्तम हो, हम कनिष्ट हैं | आपेही बताते हैं – मैं ऐसे हूँ, ऐसे हूँ | अभी इस पुरुषोत्तम संगम युग को तुम ब्राह्मण बिगर कोई भी नहीं जानते | इनकी एडवरटाईज़ कैसे करें जो मनुष्यों को पता पड़े | संगमयुग पर भगवान ही आकर राजयोग सिखलाते हैं | तुम जानते हो हम राजयोग सीख रहे हैं | अभी ऐसी क्या युक्ति रचें जो मनुष्यों को मालूम पड़े | परन्तु होगा धीरे | अभी समय पड़ा है | बहुत गई थोड़ी रही...... | हम कहते हैं तो मनुष्य जल्दी पुरुषार्थ करें | नहीं तो ज्ञान सेकेण्ड में मिलता है, जिससे तुम उसी समय सेकेण्ड में जीवनमुक्ति पा लेंगे | परन्तु तुम्हारे सिर पर आधा कल्प के पाप हैं, वह थोड़ेही सेकेण्ड में कटेंगे | इसमें तो टाइम लगता है | मनुष्य समझते हैं अभी तो समय पड़ा है, अभी हम ब्रह्माकुमारियों पास क्यों जायें | लिटरेचर से उल्टा भी उठा लेते हैं | तक़दीर में नहीं है तो उल्टा उठा लेते हैं | तुम समझते हो यह पुरुषोत्तम बनने का युग है | हीरे जैसा गायन है ना | फिर कम हो जाता है | गोल्डन एज, सिल्वर एज | यह संगम युग है डायमण्ड एज | सतयुग है गोल्डन एज | यह तुम जानते हो स्वर्ग से भी यह संगम अच्छा है, हीरे जैसा जन्म है | अमरलोक का गायन है ना | फिर कम होता जाता है | तो यह भी लिख सकते हो पुरुषोत्तम संगम युग है डायमण्ड, सतयुग है गोल्ड, त्रेता है सिल्वर...... | यह भी तुम समझा सकते हो – संगम पर ही हम मनुष्य से देवता बनते हैं | आठ रत्न बनाते हैं ना | तो डायमण्ड को बीच में रखा जाता है | संगम का शो होता है | संगम युग है ही हीरे जैसा | हीरे का मान संगम युग पर है | योग आदि सिखलाते हैं, जिसको स्प्रीचुअल योग कहते हैं | परन्तु स्प्रीचुअल तो फादर ही है | रूहानी फादर और रूहानी नॉलेज सगंम पर ही मिलती है | मनुष्य जिनमें देह-अहंकार है, वह इतना ज़ल्दी कैसे मानेंगे | गरीब आदि को समझाया जाता है | तो यह भी लिखना है संगमयुग इज़ डायमण्ड | उनकी आयु इतनी | सतयुग गोल्डन एज तो उनकी भी आयु इतनी | शास्त्रों में भी स्वस्तिका निकालते हैं | तो तुम बच्चों को भी यह याद रहे तो कितनी ख़ुशी रहे! स्टूडेन्ट्स को ख़ुशी होती है ना | स्टूडेन्ट लाइफ़ इज़ दी बेस्ट लाइफ़ | यह तो सोर्स आफ इनकम है | यह है मनुष्य से देवता बनने की पाठशाला | देवतायें तो विश्व के मालिक थे | यह भी तुमको मालूम है | तो अथाह ख़ुशी होनी चाहिए, इसलिये गायन है अतीन्द्रिय सुख गोपी वल्लभ के गोप गोपियों से पूछो | टीचर अन्त तक पढ़ाते हैं तो उनको अन्त तक याद करना चाहिए | भगवान पढ़ाते हैं और फिर भगवान साथ भी ले जायेंगे | पुकारते भी हैं लिबरेटर गाइड | दुःख से छुड़ाओ | सतयुग में दुःख होता ही नहीं | कहते हैं विश्व में शान्ति हो | बोलो आगे कब थी? वह कौन सा युग था? किसको पता नहीं है | राम राज्य सतयुग, रावण राज्य कलियुग | यह तो जानते हो ना | बच्चों को अनुभव सुनाना चाहिए | बस क्या सुनाऊं दिल की बात | बेहद का बाप बेहद की बादशाही देने वाला मिला और क्या अनुभव सुनाऊं | और कोई बात ही नहीं | इस जैसी ख़ुशी और कोई होती ही नहीं | कोई को भी किसी से रूठकर वास्तव में घर में नहीं बैठना चाहिए | यह जैसे अपनी तक़दीर से रूठना है | पढ़ाई से रूठा तो क्या सीखेंगे | बाप को पढ़ाना ही है – ब्रह्मा द्वारा | तो एक दो से कभी रूठना नहीं चाहिए | यह है माया | यज्ञ में असुरों के विघ्न तो पड़ते हैं ना | अच्छा –
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप व दादा का याद प्यार गुडनाईट | रूहानी बच्चों को रूहानी बाप की नमस्ते |
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1.
बाप जो सुनाते हैं वह एक कान से सुन दूसरे से निकालना नहीं है | ज्ञान के नशे में रह अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करना है |
2.
सभी को सेकेण्ड में मुक्ति-जीवनमुक्ति का अधिकार देने के लिए यही महामन्त्र सुनाना है कि “देह सहित देह के सब सम्बन्धों को त्याग बाप को याद करो |”
वरदान:-
रियलाइज़ेशन द्वारा निर्बल से शक्तिशाली बनने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान भव!
मानव जीवन की मानवता का आधार आत्मा पर है, मैं कौन सी आत्मा हूँ, क्या हूँ – यदि यह रियलाइज़ कर लें तो शान्ति स्वधर्म हो जाये | मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, सर्वशक्तिमान की सन्तान हूँ – यह रियलाइज़ेशन निर्बल से शक्तिशाली बना देती है | ऐसी शक्तिशाली आत्मा वा मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा जो चाहे, जैसे चाहे वह प्रैक्टिकल कर सकती है |
स्लोगन:-
जो मन्सा महादानी हैं वह कभी भी संकल्पों के वश नहीं हो सकते |
ओम्
शान्ति
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