21-05-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे
बच्चे
–
तुम यहाँ मनुष्य से देवता बनने की ट्यूशन लेने आये हो, कौड़ी से
हीरा बन रहे हो
| 
प्रश्न:-
तुम
बच्चों को इस पढ़ाई में कोई भी खर्चा नहीं लगता है - क्यों?
उत्तर:-
क्योंकि तुम्हारा बाप ही टीचर है | बाप बच्चों से खर्चा (फी)
कैसे लेगा | बाप का बच्चा बनें, गोद में आये तो वर्से के हक़दार
बनें | तुम बच्चे बिना खर्चे कौड़ी से हीरे जैसा देवता बनते हो
| भक्ति में तीर्थ करेंगे, दान-पुण्य करेंगे तो खर्चा ही खर्चा
| यहाँ तो बाप बच्चों को राजाई देते हैं | सारा वर्सा मुफ़्त
में देते हैं | पावन बनो और वर्सा लो |
ओम्
शान्ति
|
बच्चे समझते हैं कि हम स्टूडेन्ट हैं | बाप के स्टूडेन्ट क्या
पढ़ रहे हो? हम मनुष्य से देवता बनने की ट्यूशन ले रहे हैं | हम
आत्मायें परमपिता परमात्मा से ट्यूशन ले रहे हैं | अभी समझ गये
कि जन्म बाई जन्म अपने को देह समझते थे, न कि आत्मा | वह लौकिक
बाप फिर ट्यूशन के लिए और जगह भेज देते हैं, सद्गति के लिए और
जगह भेज देते हैं | बाप बूढ़ा हुआ तो फिर उनको वानप्रस्थ में
जाने की दिल होती है | परन्तु वानप्रस्थ के अर्थ को कोई जानते
नहीं हैं | वाणी से परे हम कैसे जा सकते हैं? बुद्धि में नहीं
बैठता है | अभी तो हम पतित हैं | जहाँ से हम आत्मायें आई हैं,
वहाँ तुम पावन थे | यहाँ आकर पार्ट बजाते-बजाते पतित बने हैं |
अब फिर पावन कौन बनाये? पुकारते भी हैं हे पतित-पावन | गुरु को
तो कोई पतित-पावन कह नहीं सकते | गुरु करते हैं फिर भी एक में
पूरा निश्चय नहीं बैठता है | इसलिए जाँच करते हैं, ऐसा कोई
गुरु मिले जो हमको अपने घर अथवा वानप्रस्थ अवस्था में
पहुँचाये, उसके लिए बहुत युक्तियाँ रचते हैं | जहाँ सुना फ़लाने
की बहुत महिमा है, वहाँ जायेंगे | जो इस झाड़ का सैपलिंग है,
उनको तुम्हारे ज्ञान का तीर लग जाता है | समझते हैं यह तो
क्लीयर बात है | बरोबर तुम वानप्रस्थ अवस्था में जाते हो ना |
कोई बड़ी बात नहीं है | टीचर के लिए स्कूल में पढ़ाना कोई बड़ी
बात नहीं है | भक्तों को क्या चाहिए? यह भी किसको पता नहीं है
| अभी तुम बच्चे इस ड्रामा के चक्र को अच्छी तरह से जान गये हो
| तुम समझते हो बरोबर बाप ने ही वर्सा दिया था, जो अब दे रहे
हैं फिर उसी अवस्था में आयेंगे, सो तो तुम बच्चे समझते हो |
पहली मुख्य बात है पावन बनने के लिए बाप को याद करना | लौकिक
बाप तो सबको याद है | पारलौकिक बाप को जानते ही नहीं हैं | अभी
तुम समझते हो अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना सहज ते सहज भी
है, डिफिकल्ट ते डिफिकल्ट भी है |
आत्मा इतना छोटा सितारा है | बाप भी सितारा है | वह सम्पूर्ण
पवित्र आत्मा और यह सम्पूर्ण अपवित्र | सम्पूर्ण पवित्र का संग
तारे.......सो तो एक का ही संग मिल सकता है | संग चाहिए ज़रूर |
फिर कुसंग भी मिलता है 5 विकार रूपी रावण का | उनको कहा ही
जाता है रावण सम्प्रदाय | तुम अभी बन रहे हो राम सम्प्रदाय |
तुम राम सम्प्रदाय बन जायेंगे फिर यह रावण सम्प्रदाय नहीं
रहेगा | यह बुद्धि में ज्ञान है | राम कहेंगे भगवान् को |
भगवान् ही आकर रामराज्य स्थापन करते हैं अर्थात् सूर्यवंशी
राज्य स्थापन करते हैं | रामराज्य भी नहीं कहेंगे, परन्तु
समझाने में सहज होता है – रामराज्य और रावण राज्य | वास्तव में
है सूर्यवंशी राज्य | तुम्हारा एक छोटा पुस्तक है – हीरे जैसा
जीवन कैसे बनें | अब हीरे जैसा जीवन किसको कहा जाता है –
मनुष्य क्या जानें, सिवाए तुम्हारे | लिखना चाहिए हीरे जैसा
देवताई जीवन कैसे बनें? देवता अक्षर एड होना चाहिए | तुम फील
करते हो हम हीरे जैसा जीवन यहाँ बना रहे हैं | सिवाए बाप के और
कोई बना न सके | किताब है अच्छा, उसमें यह अक्षर सिर्फ़ एड करो
| तुम आसुरी कौड़ी जैसे जन्म से देवताई हीरे जैसा जन्म सेकण्ड
में प्राप्त कर सकते हो, बिगर कौड़ी खर्चा | बच्चा बाप के पास
जन्म लेता है और वर्से का हक़दार बनता है | बच्चे को खर्चा लगता
है क्या? गोद में आया और वर्से का हक़दार बना | खर्चा तो बाप
करते हैं, न कि बच्चा | अभी तुमने क्या खर्चा किया है? बाप का
बनने में कोई खर्चा लगता है क्या? नहीं | जैसे लौकिक बाप का
बनने में खर्चा नहीं आता, वैसे पारलौकिक बाप का बनने में भी
कोई खर्चा नहीं लगता | यह तो बाप बैठ पढ़ाते हैं, पढ़ाकर तुमको
देवता बनाते हैं | तुम कोई छोटे बच्चे तो नहीं हो, बड़े हो |
बाप का बनने से बाप राय देते हैं, तुमको अपनी राजधानी स्थापन
करनी है | इसमें पवित्र ज़रूर बनना है | खर्चा तो कुछ भी नहीं
लगता | गंगा पर जाते हैं, तीर्थों पर स्नान करने जाते हैं,
खर्चा तो करेंगे ना | तुमको बाप पर निश्चय हुआ, खर्चा लगा
क्या? तुम्हारे पास सेन्टर्स पर आते हैं | तुम उनको कहते हो अब
बेहद के बाप का वर्सा लो, बाप को याद करो | बाप है ना | बाप
ख़ुद कहते हैं मेरा वर्सा तुमको चाहिए तो पतित से पावन बनो, तब
पावन विश्व के मालिक बन सकेंगे | यह भी जानते हो बाप बैकुण्ठ
स्थापन करते हैं | समझदार बच्चे अच्छी रीति समझते हैं | उस
पढ़ाई में खर्चा कितना होता है, यहाँ खर्चा कुछ भी नहीं | आत्मा
कहती है हम अविनाशी हैं, यह शरीर विनाश हो जायेगा | बाल बच्चे
आदि सब विनाश हो जायेंगे | अच्छा, फिर इतने पैसे जो इकट्ठे
किये हैं वह क्या करेंगे? ख्याल तो होगा ना | कोई साहूकार भी
होंगे, समझो उनको कोई है नहीं, ज्ञान मिलता है तो समझते हैं इस
हालत में पैसा क्या करेंगे? पढ़ाई तो है सोर्स ऑफ़ इनकम | बाबा
ने बताया था एक इब्राहम लिंकन था, बहुत गरीब था | रात को जागकर
पढ़ता था | पढ़-पढ़ कर इतना होशियार हो गया जो प्रेज़ीडेन्ट बन गया
| खर्चा लगता है क्या? कुछ भी नहीं | बहुत हैं जो गरीब होते
हैं, उनसे गवर्मेन्ट पैसे नहीं लेती है पढ़ने के | ऐसे बहुत
पढ़ते हैं, तो वह भी बिगर फी प्रेज़ीडेन्ट बन गया | कितना बड़ा पद
पा लिया | यह गवर्मेन्ट भी कुछ खर्चा नहीं लेती | समझती है
दुनिया में सब गरीब हैं | भल कितने भी साहूकार, लखपति, करोड़पति
हैं, वह भी कहेंगे गरीब हैं | हम उनको साहूकार बनाते हैं | भल
धन कितना भी हो, तुम जानते हो, बाकी थोड़े दिन के लिए है | यह
सब मिट्टी में मिल जायेगा | तो गरीब ठहरे ना | सारा मदार है
पढ़ाई पर | बाप बच्चों से पढ़ाई का क्या लेंगे? बाप तो विश्व का
मालिक है, बच्चे जानते हैं हम भविष्य में यह बनेंगे | मैं आया
हूँ, यह स्थापना करने | बैज में भी यह समझानी है | नई-नई
इनवेन्शन निकलती रहती हैं | शिवबाबा कहते हैं हमारी जो आत्मा
है उनमें सारा पार्ट नूँधा हुआ है | जो विकारी पतित बने हैं,
उनको बाप आकर पावन बनाते हैं | यह तो जानते हो 5 हज़ार वर्ष
पहले बाप से विश्व की बादशाही ली थी | मुख्य बात, बाप कहते हैं
मामेकम् याद करो | सम्मुख कहते हैं | रथ मिल गया तो बाप भी आ
गये | रथ तो ज़रूर एक फिक्स होगा ना | यह बना-बनाया ड्रामा है |
चेन्ज हो नहीं सकता | कहते हैं यह जौहरी कैसे प्रजापिता
ब्रह्मा बनेगा | समझते हैं यह जौहरी था | जवाहरात एक होती है
इमिटेशन, एक रीयल | इसमें भी रीयल जवाहरात बाप देते हैं तो फिर
वह क्या काम आयेगी | यह हैं ज्ञान रत्न | इनके सामने उस
जवाहरात की कोई कीमत नहीं | जब यह रत्न मिले तो समझा यह
जवाहरात का धंधा तो कोई काम का नहीं | यह अविनाशी ज्ञान रत्न
एक-एक लाखों रुपयों का है | कितने तुमको रत्न मिलते हैं | यह
ज्ञान रत्न ही सच्चे बन जाते हैं | तुम जानते हो बाप यह रत्न
देते हैं झोली भरने के लिए | यह मुफ़्त में मिलते हैं | खर्चा
कुछ भी नहीं | वहाँ तो दीवारों, छतों में भी हीरे जवाहर लगे
रहते हैं | उनकी वैल्यु क्या होगी | वैल्यु बाद में होती है |
वहाँ तो हीरे जवाहर भी तुम्हारे लिए कुछ नहीं हैं | यह तो
बच्चों को निश्चय होना चाहिए |
बाप
ने समझाया है यह रूप भी है, बसन्त भी है | बाबा का छोटा-सा रूप
है | उनको ज्ञान सागर कहा जाता है | यह ज्ञान रत्न हैं जिससे
तुम बहुत धनवान बनेंगे | बाकी कोई अमृत वा पानी की बरसात नहीं
है | पढ़ाई में पानी की बात नहीं होती | पावन बनने में खर्चे की
बात ही नहीं | तुमको अब विवेक मिला है | समझते हो पतित-पावन तो
एक ही बाप है | तुम अपने योगबल से पावन बन रहे हो | जानते हो
पावन बन पावन दुनिया में चले जायेंगे | अब राइट यह है या वह?
इन सब बातों में बुद्धि चलनी चाहिए | ड्रामा में यह भक्ति का
पार्ट भी होने का ही है | बाप कहते हैं अब तुमको पावन बन पावन
दुनिया में चलना है | जो पावन बनेगा वह जायेगा | जो यहाँ की
सैपलिंग होंगे वह निकल आयेंगे | बाकी थोड़ेही समझेंगे | वह तो
दुबन में फँसे ही रहेंगे | जब सुनेंगे तब पिछाड़ी में कहेंगे –
अहो प्रभू, तेरी लीला.......आप पुरानी दुनिया को नई कैसे बनाते
हो | तुम्हारा यह ज्ञान अख़बारों में बहुत-बहुत पड़ जायेगा | खास
यह चित्र अख़बार में रंगीन डाल दो | और लिख दो – शिवबाबा
प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा पढ़ाकर स्वर्ग का मालिक यह
(लक्ष्मी-नारायण) बनाते हैं | कैसे? याद की यात्रा से | याद
करते-करते तुम्हारी कट उतर जायेगी | तुम खड़े-खड़े सबको यह
रास्ता बता सकते हो कि बाप कहते हैं मामेकम् याद करो, अपने को
आत्मा समझो | घड़ी-घड़ी यह याद दिलाकर फिर देखो उनका चेहरा कुछ
बदलता है? नैन पानी से भीगते हैं? तब समझो कुछ बुद्धि में
बैठता है | पहले-पहले यह एक बात ही समझानी है | 5 हज़ार वर्ष
पहले भी बाप ने कहा है मामेकम् याद करो | शिवबाबा आया था तब तो
शिव जयन्ती मनाते हैं ना | भारत को स्वर्ग बनाने के लिए यही
समझाया था कि मामेकम् याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे |
छोटी-छोटी बच्चियां भी ऐसे बैठ समझायें | बेहद का बाप शिवबाबा
ऐसे समझाते हैं | ‘बाबा’ अक्षर बहुत मीठा है | बाबा और वर्सा |
इतना निश्चय में बच्चों को रहना है | यह है ही मनुष्य से देवता
बनने का विद्यालय | देवतायें होते ही हैं पावन | अब बाप कहते
हैं अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो, मनमनाभव | अक्षर सुने
हैं, न सुने हो तो बाप सुनाते हैं | बाप कहते हैं मैं ही
पतित-पावन हूँ, मुझे याद करो तो तुम्हारी खाद निकल जाये और
सतोप्रधान बन जायेंगे | मेहतन ही यह है | ज्ञान के लिए तो सब
कह देते हैं, बहुत अच्छा है, फर्स्टक्लास ज्ञान है परन्तु
प्राचीन योग की बात कोई जानते ही नहीं हैं | पावन होने की बात
तुम सुनाते हो तो भी समझते नहीं | बाप कहते हैं तुम सब पतित
तमोप्रधान बन गये हो | अब अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो |
असुल तुम आत्मायें मेरे साथ थी ना | मुझे तुम बुलाते भी हो ओ
गॉड फादर आओ | अब मैं आया हूँ, तुम मेरी मत पर चलो | यह है ही
पतित से पावन होने की मत | मैं हूँ सर्वशक्तिमान्, एवर पावन |
अब तुम मुझे याद करो | इनको ही प्राचीन राजयोग कहा जाता है |
तुम धन्धे आदि में भी भल रहो, बाल बच्चे आदि भी भल सम्भालो,
सिर्फ़ बुद्धियोग और सबसे हटाकर मेरे साथ लगाओ | यह है सबसे
मुख्य बात | यह न समझा तो गोया कुछ भी नहीं समझा | ज्ञान के
लिए तो कहते हैं बहुत अच्छा ज्ञान देते हो, पवित्रता भी अच्छी
है, परन्तु हम पवित्र कैसे बनें? हमेशा के लिए यह बात समझते
नहीं | देवतायें हमेशा पवित्र थे ना, वह कैसे बनें? यह बात
पहले-पहले समझानी है | बाप कहते हैं मुझे याद करो | याद से ही
पाप मिट जायेंगे और तुम देवता बन जायेंगे | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
स्वयं को गरीब से साहूकार बनाने के लिए बाप से अविनाशी ज्ञान
रत्न लेने हैं, यह एक-एक रत्न लाखों रुपयों का है, इनकी वैल्यु
जानकार पढ़ाई पढ़नी है | यह पढ़ाई ही सोर्स ऑफ़ इनकम है, इसी से
ऊँच पद पाना है |
2.
राम सम्प्रदाय में आने के लिए सम्पूर्ण पवित्र जो एक बाप है,
उसका ही संग करना है | कुसंग से सदा दूर रहना है | सबसे
बुद्धियोग हटाकर एक बाप में लगाना है |
वरदान:-
सेवा
में रहते कर्मातीत स्थिति का अनुभव करने वाले तपस्वीमूर्त भव
!
समय
कम है और सेवा अभी भी बहुत है | सेवा में ही माया के आने की
मार्जिन रहती है | सेवा में ही स्वभाव, सम्बन्ध का विस्तार
होता है, स्वार्थ भी समाया होता है, उसमें थोड़ा सा बैलेन्स कम
हुआ तो माया नया-नया रूप धारण कर आयेगी इसलिए सेवा और
स्व-स्थिति के बैलेन्स का अभ्यास करो | मालिक हो
कर्मेन्द्रियों रूपी कर्मचारियों से सेवा लो, मन में बस एक
बाबा दूसरा न कोई – यह स्मृति इमर्ज हो तब कहेंगे कर्मातीत
स्थिति के अनुभवी, तपस्वीमूर्त |
स्लोगन:-
कारण
रूपी निगेटिव को समाधान रूपी पॉजिटिव बनाओ |
ओम्
शान्ति
|