02-04-14           प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे तुम्हें सतोप्रधान बनना है तो बाप को प्यार से याद करो, पारसनाथ शिवबाबा तुम्हें पारसपुरी का मालिक बनाने आये हैं |   


प्रश्न:-   
तुम बच्चे किस एक बात की धारणा से ही महिमा योग्य बन जायेंगे?


उत्तर:-
बहुत-बहुत निर्माण-चित बनो | किसी भी बात का अहंकार नहीं होना चाहिए | बहुत मीठा बनना है | अहंकार आया तो दुश्मन बन जाते हैं | ऊँच अथवा नीच, पवित्रता की बात पर बनते हैं | जब पवित्र हैं तो मान है, अपवित्र हैं तो सबको माथा टेकते हैं |


ओम् शान्ति |

रूहानी बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं | बाप भी समझते हैं कि हम इन बच्चों को समझाते हैं | यह भी बच्चों को समझाया गया है कि भक्ति मार्ग में भिन्न-भिन्न नाम से अनेकानेक चित्र बना देते हैं | जैसे कि नेपाल में पारसनाथ को मानते हैं | उनका बहुत बड़ा मन्दिर है | परन्तु है कुछ भी नहीं | 4 दरवाज़े हैं, 4 मूर्तियाँ हैं | चौथे में कृष्ण को रखा है | अब शायद कुछ बदली कर दिया हो | अब पारसनाथ तो ज़रूर शिवबाबा को ही कहेंगे | मनुष्यों को पारसबुद्धि भी वही बनाते हैं | तो पहले-पहले उनको यह समझाना है – ऊँच ते ऊँच है भगवान्, पीछे है सारी दुनिया | सूक्ष्मवतन की सृष्टि तो है नहीं | पीछे होते हैं लक्ष्मी-नारायण वा विष्णु | वास्तव में विष्णु का मन्दिर भी रांग है | विष्णु चतुर्भुज, चार भुजाओं वाला कोई मनुष्य तो होता नहीं | बाप समझाते है यह लक्ष्मी-नारायण हैं, जिनको इकठ्ठा विष्णु के रूप में दिखाया है | लक्ष्मी-नारायण तो दोनों अलग-अलग हैं | सूक्ष्मवतन में विष्णु को 4 भुजायें दे दी हैं अर्थात् दोनों को मिलाकर चतुर्भुज कर दिया है, बाकी ऐसा कोई होता नहीं है | मन्दिर में जो चतुर्भुज दिखाते हैं – वह है सूक्ष्मवतन का | चतुर्भुज को शंख, चक्र, गदा, पदम आदि देते हैं | ऐसा कुछ है नहीं | चक्र भी तुम बच्चों को है | नेपाल में विष्णु का बड़ा चित्र क्षीर सागर में दिखाते हैं | पूजा के दिनों में थोड़ा दूध डाल देते हैं | बाप एक-एक बात अच्छी तरह समझाते हैं | ऐसे कोई भी विष्णु का अर्थ समझा न सके | जानते ही नहीं | यह तो भगवान् खुद समझाते हैं | भगवान् कहा जाता है शिवबाबा को | है तो एक ही परन्तु भक्ति मार्ग वालों ने नाम अनेक रख दिये हैं | तुम अभी अनेक नाम नहीं लेंगे | भक्ति मार्ग में बहुत धक्के खाते हैं | तुमने भी खाये | अभी अगर तुम मन्दिर आदि देखेंगे तो उस पर समझायेंगे कि ऊँचे ते ऊँच है भगवान्, सुप्रीम सोल, निराकार परमपिता परमात्मा | आत्मा शरीर द्वारा कहती है – ओ परमपिता | उनकी फिर महिमा भी है ज्ञान का सागर, सुख का सागर | भक्ति मार्ग में एक के अनेक चित्र हैं | ज्ञान मार्ग में तो ज्ञान सागर एक ही है | वही पतित-पावन, सर्व के सद्गति दाता हैं | तुम्हारी बुद्धि में सारा चक्र है | ऊँच ते ऊँच परमात्मा है, उनके लिए ही गायन है सिमर-सिमर सुख पाओ अर्थात् एक बाप को ही याद करो अथवा सिमरण करते रहो, तो कलह क्लेष सब मिटे तन के, फिर जीवनमुक्ति पद पाओ | यह जीवनमुक्ति है ना | बाप से यह सुख का वर्सा मिलता है | अकेले यह तो नहीं पायेंगे | ज़रूर राजधानी होगी ना | गोया बाप राजधानी स्थापन कर रहे हैं | सतयुग में राजा रानी, प्रजा सब होते हैं | तुम ज्ञान प्राप्त कर रहे हो, तो जाकर बड़े कुल में जन्म लेंगे | बहुत सुख मिलता है | जब वह स्थापना हो जाती है तो छी-छी आत्मायें सजायें खाकर वापिस चली जाती हैं | अपने-अपने सेक्शन में जाकर ठहरेंगी | इतनी सब आत्मायें आयेंगी फिर वृद्धि को पाती रहेंगी | यह बुद्धि में रहना चाहिए कि ऊपर से कैसे आते हैं | ऐसे तो नहीं दो पत्ते के बदले 10 पत्ते इकट्ठे आना चाहिए | नहीं, कायदेसिर पत्ते निकलते हैं | यह बहुत बड़ा झाड़ है | दिखाते हैं एक दिन में लाखों की वृद्धि हो जाती है | पहले समझाना है – ऊँच ते ऊँच है भगवान्, पतित-पावन, दुःख हर्ता सुख कर्ता भी वही है | जो भी पार्टधारी दुःखी होते हैं, उन सबको आकर सुख देते हैं | दुःख देने वाला है रावण | मनुष्यों को यह मालूम ही नहीं कि बाप आये हैं जो आकर समझें | बहुत तो समझते-समझते फिर थिरक जाते हैं (बाहर निकल जाते हैं) | जैसे स्नान करते-करते पाँव फिसल जाता है तो पानी अन्दर घुस जाता है | बाबा तो अनुभवी है ना | यह तो विषय सागर है | बाबा तुमको क्षीर सागर तरफ़ ले जाते हैं | परन्तु माया रूपी ग्राह अच्छे-अच्छे महारथियों को भी हप कर लेती है | जीते जी बाप की गोद से मरकर रावण की गोद में चले जाते हैं अर्थात् मर पड़ते हैं | तुम बच्चों की बुद्धि में है ऊँचे ते ऊँच बाप फिर रचना रचते हैं | हिस्ट्री-जॉग्राफी सूक्ष्मवतन की तो है नहीं | भल तुम सूक्ष्मवतन में जाते हो, साक्षात्कार करते हो | वहाँ चतुर्भुज देखते हो | चित्रों में है ना | तो वह बुद्धि में बैठा हुआ है तो ज़रूर साक्षात्कार होगा | परन्तु ऐसी कोई चीज़ है नहीं | यह भक्ति मार्ग के चित्र हैं | अभी तक भक्ति मार्ग चल रहा है | भक्ति मार्ग पूरा होगा तो फिर यह चित्र रहेंगे नहीं | स्वर्ग में यह सब बातें भूल जायेंगी | अब बुद्धि में है कि यह लक्ष्मी-नारायण दो रूप हैं चतुर्भुज के | लक्ष्मी-नारायण की पूजा सो चतुर्भुज की पूजा | लक्ष्मी-नारायण का मन्दिर या चतुर्भुज का मन्दिर, बात एक ही है | उन दोनों का ज्ञान और किसको भी नहीं है | तुम जानते हो इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य है | विष्णु का राज्य तो नहीं कहेंगे | यह पालना भी करते हैं | सारे विश्व के मालिक हैं तो विश्व की पालना करते हैं |

 

शिव भगवानुवाच – मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ | अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो इस योग अग्नि से विकर्म विनाश होंगे | डीटेल में समझाना पड़े | बोलो, यह भी है गीता | सिर्फ़ गीता में कृष्ण का नाम डाल दिया है | यह तो रांग है, सबकी ग्लानि कर दी है, इसलिए भारत तमोप्रधान बन पड़ा है | अब है कलियुगी दुनिया का अन्त, उनको कहा जाता है तमोप्रधान आइरन एज | जो सतोप्रधान थे, उन्होंने ही 4 जन्म लिए हैं | जन्म-मरण में तो ज़रूर आना है | जब पूरे 84 जन्म लेते हैं तब फिर बाप को आना पड़ता है – पहले नम्बर में | एक की बात नहीं है | इनकी तो सारी राजधानी थी ना, फिर ज़रूर होनी चाहिए | बाप सबके लिए कहते हैं अपने को आत्मा समझो, बाप को याद करो तो योग अग्नि से पाप कट जायेंगे | काम चिता पर बैठ सब सांवरे हो गये हैं | अब सांवरे से गोरा कैसे बनें? सो तो बाप ही सिखलाते हैं | कृष्ण की आत्मा ज़रूर भिन्न-भिन्न नाम रूप लेकर आती होगी | जो लक्ष्मी-नारायण थे, उनको ही 84 जन्मों के बाद फिर वह बनना है | तो उनके बहुत जन्मों के अन्त में बाप आकर प्रवेश करते हैं फिर वह सतोप्रधान विश्व के मालिक बनते हैं | तुम्हारे में पारसनाथ को पूजते हैं, शिव को भी पूजते हैं | ज़रूर उन्हों को शिव ने ही ऐसा पारसनाथ बनाया होगा | टीचर तो चाहिए ना | वह है ज्ञान सागर | अब सतोप्रधान पारसनाथ बनना है तो बाप को बहुत प्यार से याद करो | वही सबके दुःख हरने वाला है | बाप तो सुख देने वाला है | यह है काँटों का जंगल | बाप आये हैं फूलों का बगीचा बनाने | बाप अपना परिचय देते हैं | मैं इस साधारण बूढ़े तन में प्रवेश करता हूँ, जो अपने जन्मों को नहीं जानते हैं | भगवानुवाच – मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ | तो यह ईश्वरीय यूनिवर्सिटी ठहरी | एम ऑब्जेक्ट है ही राजा-रानी बनने की तो ज़रूर प्रजा भी बनेगी | मनुष्य योग-योग बहुत करते हैं | निवृत्ति मार्ग वाले तो अनेक हठयोग करते हैं | वह राजयोग सिखला न सकें | बाप का है ही एक प्रकार का योग | सिर्फ़ कहते हैं अपने को आत्मा समझकर मुझ बाप को याद करो | 84 जन्म पूरे हुए, अब अब वापिस घर जाना है | अब पावन बनना है | एक बाप को याद करो, बाकी सबको छोड़ो | भक्ति मार्ग में तुम गाते थे कि आप आयेंगे तो हम एक संग जोड़ेंगे | तो ज़रूर उनसे वर्सा मिला था ना | आधाकल्प है स्वर्ग, फिर है नर्क | रावण का राज्य शुरू होता है | ऐसे-ऐसे समझाना है | अपने को देह न समझो | आत्मा अविनाशी है | आत्मा में ही सारा पार्ट नूँधा हुआ है, जो तुम बजाते हो | अब शिवबाबा को याद करो तो बेड़ा पार हो जायेगा | सन्यासी पवित्र बनते हैं तो उनका कितना मान होता है | सब माथा झुकाते हैं | पवित्रता की बात पर ही ऊँच-नीच बनते हैं | देवतायें हैं बिल्कुल ऊँच | सन्यासी फिर एक जन्म पवित्र बनते हैं, फिर दूसरा जन्म तो विकार से ही लेते हैं | देवतायें होते ही हैं सतयुग में | अब तुम पढ़ते हो फिर पढ़ाते भी हो | कोई पढ़ते हैं लेकिन दूसरों को समझा नहीं सकते हैं क्योंकि धारणा नहीं होती है | बाबा कहेंगे तुम्हारी तक़दीर में नहीं है तो बाप क्या करे | बाप यदि सबको आशीर्वाद बैठ करें तो सब स्कॉलरशिप ले लेवें | वह तो भक्ति मार्ग में आशीर्वाद करते हैं | सन्यासी भी ऐसे करते हैं | उनको जाकर कहेंगे मुझे बच्चा हो, आशीर्वाद करो | अच्छा, तुमको बच्चा होगा | बच्ची हुई तो कहेंगे भावी | बच्चा हुआ तो वाह-वाह कर चरणों में गिरते रहेंगे | अच्छा, अगर फिर मरा तो रोने-पीटने, गुरु को गाली देने लग पड़ेंगे | गुरु कहेगा यह भावी थी | कहेंगे, पहले क्यों नहीं बताया | कोई मरे हुए से जिन्दा हो जाता है तो यह भी भावी कहेंगे | वह भी ड्रामा में नूँध है | आत्मा कहाँ छिप जाती है | डॉक्टर लोग भी समझते हैं यह मर पड़ा है, फिर जिन्दा हो जाता है | चिता पर चढ़े हुए भी उठ पड़ते हैं | कोई एक ने किसको माना तो उनके पीछे ढेर पड़ जाते हैं |

 

तुम बच्चों को तो बहुत निर्माणचित होकर चलना है | अहंकार ज़रा भी न रहे | आजकल किसको ज़रा भी अहंकार दिखाया तो दुश्मनी बढ़ी | बहुत मीठा होकर चलना है | नेपाल में भी आवाज़ निकलेगा | अभी तुम बच्चों की महिमा का समय है नहीं | नहीं तो उनके अखाड़े उड़ जायें | बड़े-बड़े जग जायें और सभा में बैठ सुनायें, तो उनके पिछाड़ी ढेर आ जायें | कोई भी एम.पी. बैठ तुम्हारी महिमा करे कि भारत का राजयोग इन ब्रह्माकुमार-कुमारियों के सिवाए कोई सिखला नहीं सकते, ऐसा अभी तक कोई निकला नहीं है | बच्चों को बहुत होशियार, चमत्कारी बनना है | फ़लाने-फ़लाने भाषण कैसे करते हैं, सीखना चाहिए | सर्विस करने की युक्ति बाप सिखलाते हैं | बाबा ने मुरली जो चलाई, एक्यूरेट कल्प-कल्प ऐसे चलाई होगी | ड्रामा में नूँध है | प्रश्न नहीं उठ सकता है – ऐसे क्यों? ड्रामा अनुसार जो समझाना था वह समझाया | समझता रहता हूँ | बाकी लोग तो अथाह प्रश्न करेंगे | बोलो, पहले मनमनाभव हो जाओ | बाप को जानने से तुम सब कुछ जान जायेंगे | अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-  

1.    सर्विस की युक्ति सीखकर बहुत-बहुत होशियार और चमत्कारी बनना है | धारणा कर फिर दूसरों को करानी है | पढ़ाई से अपनी तक़दीर आपेही बनानी है |

 

2.    किसी भी बात में ज़रा भी अहंकार नहीं दिखाना है, बहुत-बहुत मीठा और निर्माणचित बनना है | माया रूपी ग्राह से अपनी सम्भाल करनी है |

 

वरदान:-  
सत्यता की अथॉरिटी को धारण कर सर्व को आकर्षित करने वाले निर्भय और विजयी भव !    

आप बच्चे सत्यता की शक्तिशाली श्रेष्ठ आत्मायें हो | सत्य ज्ञान, सत्य बाप, सत्य प्राप्ति, सत्य याद, सत्य गुण, सत्य शक्तियाँ सब प्राप्त हैं | इतनी बड़ी अथॉरिटी का नशा रहे तो यह सत्यता की अथॉरिटी हर आत्मा को आकर्षित करती रहेगी | झूठखण्ड में भी ऐसी सत्यता की शक्ति वाले विजयी बनते हैं | सत्यता की प्राप्ति ख़ुशी और निर्भयता है | सत्य बोलने वाला निर्भय होगा | उनको कभी भय नहीं हो सकता |


स्लोगन:- 
वायुमण्डल को परिवर्तन करने का साधन है – पॉजिटिव संकल्प और शक्तिशाली वृत्ति |     

 

ओम् शान्ति |