22-03-14
प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा”
मधुबन
मीठे बच्चे
–
बाप और बच्चों की एक्टिविटी में जो अन्तर है उसे पहचानो, बाप
तुम बच्चों के साथ खेल सकता, खा नहीं सकता
| 
प्रश्न:-
सत का संग तारे, कुसंग बोरे – इसका भावार्थ क्या है?
उत्तर:-
तुम अभी सत का संग करते हो अर्थात् बाप से बुद्धियोग लगाते हो
तो पार हो जाते हो | फिर धीरे-धीरे कुसंग अर्थात् देह के संग
में आते हो तो उतरते जाते हो क्योंकि संग का रंग लगता है इसलिए
कहा जाता – सत का संग तारे, कुसंग बोरे | तुम देह सहित देह के
सब सम्बन्धों को भूल बाप का संग करो अर्थात् बाप को याद करो तो
बाप समान पावन बन जायेंगे |
ओम्
शान्ति |
अब
बच्चों की दो क्लास हो गई | यह अच्छा है, एक याद की यात्रा,
जिससे पाप कटते जाते हैं, आत्मा पवित्र बनती जाती है और दूसरा
क्लास होता है ज्ञान का | ज्ञान भी सहज है | कोई डिफ़िकल्टी
नहीं | तुम्हारे सेन्टर और यहाँ में फ़र्क रहता है | यहाँ तो
बाप बैठे हैं और बच्चे हैं | यह मेला है बाप और बच्चों का | और
तुम्हारे सेन्टर्स में मेला लगता है बच्चों का आपस में, इसलिए
बच्चे सम्मुख आते हैं | भल याद करते हैं परन्तु तुम सम्मुख
देखते हो – तुम्हीं से बैठूँ, तुम्हीं से बातचीत करूँ......|
बाप ने समझाया है बाप और बच्चों की एक्टिविटी में फ़र्क है |
ख्याल करो, इसमें बाबा का पार्ट क्या है और रथ का पार्ट क्या
है? क्या बाप रथ द्वारा खेल सकते हैं? हाँ खेल सकते हैं | जब
कहते हैं तुम्हीं से बैठूँ, ऐसे ही तुम्हीं से
खाऊं.....क्योंकि खुद तो वह खाते नहीं | बच्चों साथ खेलना
कूदना वह तो बाप खुद समझते हैं, दोनों खेलते हैं | करते तो सब
कुछ यहाँ ही तुम्हारे साथ हैं क्योंकि वह सुप्रीम टीचर भी है |
टीचर का तो काम है बच्चों को
बहलाना | इनडोर गेम होती है ना | आजकल तो गेम्स भी बहुत निकल
गई हैं भिन्न-भिन्न प्रकार की | सबसे नामीग्रामी है चौपड़ का
खेल, जिसका महाभारत में वर्णन है | परन्तु वह जुआ के रूप में
है | जुआ वालों को पकड़ते हैं | यह सब भक्ति मार्ग की पुस्तकों
से बातें निकाली हैं |
तुम
जानते हो कि यह व्रत नेम आदि सब भक्तिमार्ग की बातें हैं |
निर्जल रखते, खाना भी नहीं खाते तो पानी भी नहीं पीते | अगर
भक्ति मार्ग में प्राप्ति होती भी है तो अल्पकाल की | यहाँ तो
तुम बच्चों को अब समझाया जाता है | भक्ति मार्ग में धक्के बहुत
खाते हैं | ज्ञान मार्ग है सुख का मार्ग | तुम जान गये हो हम
सुख का वर्सा बाप से ले रहे हैं | भक्ति मार्ग में भी याद करना
होता है एक को | एक की पूजा भी अव्यभिचारी पूजा है, वह भी
अच्छी है | भक्ति भी सतो-रजो-तमो होती है | सबसे ऊँच ते ऊँच
सतोगुणी है शिवबाबा की भक्ति | शिवबाबा ही आकर सब बच्चों को
सुखधाम में ले जाते हैं | जो सबसे जास्ती बच्चों की सेवा करते,
पावन बनाते उनको पुकारते भी हैं | फिर कहते ठिक्कर भित्तर में
है, यह ग्लानि हुई ना | तुम बच्चों को बेहद के बाप द्वारा
राज्य भाग्य मिला था, फिर मिलना है ज़रूर | तुम ज्ञान को अलग,
भक्ति को अलग समझते हो | राम राज्य और रावण राज्य कैसे चलता है
– यह भी तुम नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार जानते हो इसलिए पर्चे
आदि भी छपाते रहते हैं क्योंकि मनुष्यों को सच्ची समझानी भी
चाहिए ना | तुम्हारा सब कुछ है सच |
बच्चों को सर्विस करनी चाहिए | सर्विस तो बहुत है | यह बैज ही
कितना अच्छा है सर्विस के लिए | सबसे बड़ा शास्त्र है यह बैज |
अब यह है ज्ञान की बातें, इसमें समझाना पड़ता है, यह याद की
यात्रा अलग है | इसको कहा जाता है अजपाजाप | जपना कुछ नहीं है
| अन्दर में भी शिव-शिव नहीं कहना चाहिए | सिर्फ़ बाप को याद
करना है | यह तो जानते हो शिवबाबा बाप है, हम आत्मायें उनकी
सन्तान हैं | वही सम्मुख आकर कहते हैं – मैं पतित-पावन हूँ,
मैं कल्प-कल्प आता हूँ पावन बनाने | देह सहित देह के सब
सम्बन्ध छोड़ अपने को आत्मा समझो | मुझ अपने बाप को याद करो तो
तुम पावन बन जायेंगे | मेरा पार्ट ही है पतितों को पावन बनाने
का | यह है बुद्धि का योग अथवा संग बाप के साथ | संग से रंग
लगता है कहा जाता है संग तारे कुसंग बोरे......बाप से
बुद्धियोग लगाने से तुम पार हो जाते हो | फिर उतरने शुरू कर
देते हो | उनके लिए गाया जाता है सत का संग तारे......उसका
अर्थ भी भक्ति मार्ग वाले नहीं जानते | तुम समझते हो हमारी
आत्मा पतित है, वह पावन के साथ बुद्धि का योग लगाने से पावन
बनती है | आत्मा को परमात्मा बाप को याद करना पड़ता है | जब
आत्मा प्योर बने तब शरीर भी पवित्र बने, सच्चा सोना बने | यह
है याद की यात्रा | योग अग्नि से विकर्म भस्म होते हैं, खाद
निकल जाती है | तुम जानते हो सतयुगी नई दुनिया में हम पवित्र
सम्पूर्ण निर्विकारी थे, 16 कला सम्पूर्ण भी थे | अभी कोई कला
नहीं रही है, इसको कहा जाता है राहू का ग्रहण | सारी दुनिया,
खास भारत पर राहू का ग्रहण लगा हुआ है | तन भी काले हैं, जो
कुछ तुम इन आँखों से देखते हो सब काले हैं | यथा राजा रानी तथा
प्रजा | श्याम सुन्दर का अर्थ भी कोई नहीं जानते हैं | कितने
नाम मनुष्यों के रख दिये हैं | अब बाप ने आकर अर्थ समझाया है |
तुम ही पहले सुन्दर फिर श्याम बनते हो | ज्ञान चिता पर बैठने
से तुम सुन्दर बन जाते हो फिर भी यह बनना है – श्याम से
सुन्दर, सुन्दर से श्याम | उनका अर्थ बाप ने आत्माओं को समझाया
है | हम आत्मायें एक बाप को ही याद करती हैं | बुद्धि में आ
गया है हम बिन्दी हैं | इसको कहा जाता है आत्मा की रियलाइज़ेशन
| फिर देखने के लिए इनसाईट | यह तो हैं समझने की बातें | आत्मा
को समझना है | मैं आत्मा हूँ, यह मेरा शरीर है | हम यहाँ शरीर
में आकर पार्ट बजाते हैं | पहले-पहले हम आते हैं, ड्रामा प्लैन
अनुसार | आत्मायें तो सब हैं – कोई में पार्ट कितना है, कोई
में कितना | यह बड़ा भारी बेहद का नाटक है | इसमें नम्बरवार
कैसे आते हैं, कैसे पार्ट बजाते हैं – यह तुम जानते हो |
पहले-पहले देवी-देवता घराना है | यह नॉलेज भी तुमको अभी है इस
पुरुषोत्तम संगमयुग पर | बाद में फिर यह कुछ भी याद नहीं रहेगा
| बाप खुद कहते हैं यह ज्ञान प्रायः लोप हो जाता है | किसको भी
यह पता नहीं है कि देवी-देवता धर्म की स्थापना कैसे हुई |
चित्र तो हैं परन्तु वह कैसे स्थापन हुआ, किसको भी पता नहीं |
तुम बच्चों को पता है फिर तुम औरों को आप समान बनाते हो | बहुत
हो जायेंगे तो ज़रूर फिर लाउड-स्पीकर भी रखना पड़ेगा | कोई ज़रूर
युक्ति निकलेगी | बहुत बड़े हाल की भी दरकार पड़ेगी | जैसे कल्प
पहले जो कुछ एक्ट की थी वही फिर होगी | यह समझ में आता है |
बच्चे वृद्धि को पाते रहेंगे | बाबा ने समझाया था शादी के लिए
जो हाल बनाते हैं उनको भी समझाओ | यहाँ भी शादी के लिए
धर्मशाला आदि बना रहे हैं ना | कोई अपने कुल के हैं तो झट समझ
जाते हैं, जो इस कुल के नहीं होंगे वह विघ्न डालेंगे | जो इस
कुल के होंगे वह मानेंगे कि यह सत्य कहते हैं, जो इस धर्म के
नहीं होंगे वह लड़ेंगे, कहेंगे यह तो रसम चली आ रही है | अभी
अपवित्र प्रवृत्ति मार्ग है, फिर बाप आये हैं पावन बनाने | तुम
पवित्रता पर जोर देते हो इसलिए कितने विघ्न पड़ते हैं | आगाखाँ
है, उनका कितना मान है | पोप का भी मान है | तुम जानते हो पोप
क्या आकर करते हैं | लाखों-करोड़ों शादियाँ कराते हैं, बहुत
शादियाँ होती हैं | पोप आकर हथियाला बँधवाते हैं | इसमें वो
लोग इज्ज़त समझते हैं | महात्माओं को भी शादी पर बुलाते हैं |
आजकल सगाई भी कराते हैं | बाप कहते हैं काम महाशत्रु है | यह
आर्डिनेन्स निकालना मासी का घर नहीं है, इसमें समझाने की बड़ी
युक्ति चाहिए | आगे चलकर धीरे-धीरे समझते जायेंगे | आदि सनातन
हिन्दू धर्म वाले जो हैं उनको समझाओ | वह झट समझ सकते हैं कि
बरोबर आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, न कि हिन्दू | जैसे तुम
बाप द्वारा जान गये हो वैसे और भी समझ कर वृद्धि को पाते
रहेंगे | यह भी पक्का निश्चय है, यह कलम लगता जायेगा | तुम बाप
की श्रीमत पर यह देवता बनते हो | यह हैं नई दुनिया में रहने
वाले | पहले तुमको यह थोड़ेही मालूम था कि बाप संगमयुग पर आकर
हमको ट्रान्सफर करेंगे | ज़रा भी पता नहीं था | अभी तुम समझते
हो सच्चा-सच्चा पुरुषोत्तम संगमयुग इसको कहा जाता है | हम
पुरुषोत्तम बन रहे हैं | अब जितना पुरुषार्थ करेंगे उतना
बनेंगे |
हर
एक को अपने दिल से पूछना है | स्कूल में तो जिस सब्जेक्ट में
कच्चे होते हैं तो समझ जाते हैं हम नापास होंगे | यह भी
पाठशाला है, स्कूल है | गीता पाठशाला तो मशहूर है | फिर उनका
नाम थोड़ा-थोड़ा फिरा दिया है | तुम लिखते हो ‘सच्ची गीता, झूठी
गीता’ तो भी बिगड़ते हैं | ज़रूर खिटखिट होगी, इसमें डरने की बात
नहीं | आजकल तो यह फैशन पड़ गया है, बसों आदि को जलाते, आग
लगाते रहते हैं | जिसने जो सिखाया, वही सीखे हैं | आगे से भी
जास्ती सब सीख गये हैं | सब पिकेटिंग आदि करते रहते हैं |
गवर्मेन्ट को भी हर वर्ष खोट (घाटा) पड़ती है तो फिर टैक्स
बढ़ाये जाते हैं | एक दिन बैंक आदि सबके खाने खोल देगी | अनाज
आदि के लिए भी जाँच करते हैं – कहाँ जास्ती तो नहीं रखा है |
इन सब बातों से तुम छूटे हुए हो | तुम्हारे लिए मुख्य है ही
याद की यात्रा | बाप कहते हैं मेरा इन बातों से कोई वास्ता
नहीं | मेरा तो सिर्फ़ काम है रास्ता बताना | तो तुम्हारे दुःख
सब दूर हो जायेंगे | इस समय तुम्हारे कर्मों का हिसाब-किताब
चुक्तू होता है | रही-खुही (बची हुई) बीमारी आदि सब बाहर
निकलेगी | पिछाड़ी के रहे हुए कर्मों का हिसाब-किताब चुक्तू
होना है | डरना नहीं है | बीमारी में मनुष्यों को भगवान् की
याद दिलाई जाती है ना | तुम हॉस्पिटल में भी जाकर नॉलेज दो कि
बाप को याद करो तो विकर्म विनाश हों जायेंगे | सिर्फ़ इस जन्म
की बात नहीं, भविष्य 21 जन्म के लिए हम गैरन्टी करते हैं, कभी
बीमार नहीं होंगे | एक बाप को याद करने से तुम्हारी आयु भी बड़ी
होगी | भारतवासियों की आयु बड़ी थी, निरोगी थे | अब बाप तुम
बच्चों को श्रीमत देते हैं श्रेष्ठ बनने के लिए | पुरुषोत्तम
अक्षर तो कभी भी भूलो नहीं | कल्प-कल्प तुम ही बनते हो | ऐसे
और कोई कह न सके | तो ऐसी-ऐसी सर्विस बहुत कर सकते हो |
डॉक्टर्स से तो कोई भी समय टाइम ले सकते हो | नौकरी करने वाले
भी बहुत सर्विस कर सकते हैं | मरीजों को बोलो – हमारा भी बड़ा
डॉक्टर है, अविनाशी बेहद का सर्जन है | हम उनके बने हैं जिससे
हम 21 जन्म निरोगी बनते हैं | हेल्थ मिनिस्टर को समझाओ कि
हेल्थ के लिए इतना माथा क्यों मारते हो | सतयुग में मनुष्य
बहुत कम थे | शान्ति, सुख, पवित्रता सब थी |
सारी
दुनिया में तुम ही सबका कल्याण करने वाले हो | तुम पण्डे हो ना
| पाण्डव सम्प्रदाय हो | यह किसकी बुद्धि में नहीं होगा | फ़ूड
मिनिस्टर को समझाओ – पहले-पहले सबसे बड़ा फ़ूड मिनिस्टर तो
शिवबाबा है | इतना अनाज़ देते जो स्वर्ग में कभी खोट नहीं होगी
| अभी तुम हो संगमयुग पर | सारा चक्र तुम्हारी बुद्धि में है
इसलिए तुमको स्वदर्शन चक्रधारी कहा जाता है | बाकी भारत
इनसालवेन्ट बन गया है | अक्ल वाले आकर अक्ल सिखलाते रहते हैं,
यह भी तुम बच्चे जानते हो | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1. एक बाप को साथी बनाकर तुम्हीं से बैठूँ, तुम्हीं से सुनूँ
तुम्हीं से खाऊं.....यह अनुभव करना है | कुसंग छोड़ सत के संग
में रहना है |
2. कर्मों का हिसाब-किताब याद की यात्रा और कर्मभोग से चुक्तू कर
सम्पूर्ण पावन बनना है | संगमयुग पर स्वयं को पूरा ट्रान्सफर
करना है |
वरदान:-
रूहानी माशूक की आकर्षण में आकर्षित हो मेहनत से मुक्त होने
वाले रूहानी आशिक भव
! 
माशूक अपने खोये हुए आशिकों को देख ख़ुश होते हैं | रूहानी
आकर्षण से आकर्षित हो अपने सच्चे माशूक को जान लिया, पा लिया,
यथार्थ ठिकाने पर पहुँच गये | जब ऐसी आशिक आत्मायें इस मोहब्बत
की लकीर के अन्दर पहुँचती है तो अनेक प्रकार की मेहनत से छूट
जाती हैं क्योंकि यहाँ ज्ञान सागर के स्नेह की लहरें, शक्ति की
लहरें......सदा के लिए रिफ्रेश कर देती हैं | यह मनोरजंन का
विशेष स्थान, मिलने का स्थान आप आशिकों के लिए माशूक ने बनाया
है |
स्लोगन:-
एकान्तवासी बनने के साथ-साथ एकनामी और एकॉनामी वाले बनो
|
ओम्
शान्ति |