मीठे
बच्चे
–
विश्व की सभी आत्मायें अनजान और दुःखी हैं, आप उन पर उपकार
करो, बाप का परिचय देकर ख़ुशी में लाओ, उनकी आँखें खोलो
| 
प्रश्न:-
किसी
भी सेन्टर की वृद्धि का आधार क्या है?
उत्तर:-
निःस्वार्थ सच्चे दिल की सेवा | तुम्हें सर्विस का सदा शौक रह
तो हुण्डी भरती रहेगी | जहाँ पर सर्विस हो सकती है वहाँ
प्रबन्ध करना चाहिए | माँगना किसी से भी नहीं है | मांगने से
मरना भला | आपेही सब कुछ आयेगा | तुम बाहर वालों की तरह चन्दा
इकठ्ठा नहीं कर सकते | मांगने से सेन्टर ज़ोर नहीं भरेगा इसलिए
बिगर मांगे सेन्टर को जमाओ |
ओम्
शान्ति
|
रूहानी बच्चे यहाँ बैठे हैं, बुद्धि में यह ज्ञान है, कैसे
शुरू में हम ऊपर से आते हैं | जैसे विष्णु अवतरण का एक खेल
दिखलाते हैं | विमान पर बैठकर फिर नीचे आते हैं | अभी तुम
बच्चे समझते हो अवतार आदि जो कुछ दिखलाते हैं वह सब रांग हैं |
अभी तुम समझते हो – हम आत्मायें असुल में कहाँ के रहने वाले
हैं, कैसे ऊपर से फिर यहाँ आते हैं, कैसे 84 जन्मों का पार्ट
बजाते पतित बनते हैं? अभी फिर बाप पवित्र बनाते हैं | यह तो
ज़रूर तुम स्टूडेन्ट्स की बुद्धि में होना चाहिए, 84 का चक्र हम
कैसे लगाते हैं? यह स्मृति में रहना चाहिए | बाप ही समझाते हैं
– तुम कैसे 84 जन्म लेते हो | कल्प की आयु को लम्बा-चौड़ा टाइम
देने कारण इतनी सहज बात भी मनुष्य समझते नहीं, इसलिए
ब्लाइन्डफेथ कहा जाता है | जो भी और धर्म हैं वह कैसे स्थापन
होते हैं, यह भी तुम्हारी बुद्धि में है | तुम जानते हो
पुनर्जन्म लेते-लेते, पार्ट बजाते-बजाते अभी अन्त में आकर
पहुँचे हैं | अब फिर वापिस जाते हैं | यह नॉलेज तुम बच्चों को
ही है | दुनिया में और कोई भी यह नॉलेज नहीं जानते हैं | कहते
भी हैं 5 हज़ार वर्ष पहले पैराडाइज़ था | परन्तु वह क्या था, यह
नहीं जानते हैं | ज़रूर आदि सनातन देवी-देवताओं का राज्य था |
परन्तु यह बिल्कुल नहीं जानते | तुम समझते हो हम भी पहले कुछ
नहीं जानते थे | और धर्म वाले ऐसे थोड़ेही हैं कि अपने धर्म
स्थापक को नहीं जानते | तुम अभी जानकार, नॉलेजफुल बने हो |
बाकी सारी दुनिया अनजान है | हम कितने समझदार बने थे, फिर अब
बेसमझ अनजान हो गये हैं | मनुष्य होकर अथवा एक्टर्स होकर हम
नहीं जानते थे | नॉलेज का प्रभाव देखो कैसा है! यह तुम ही
जानते हो | तो बच्चों के अन्दर में कितना गद्गद् होना चाहिए |
जब धारणा हो तब ही अन्दर में वह ख़ुशी आये | तुम जानते हो हम
शुरू-शुरू में कैसे आये फिर कैसे शूद्र कुल से ब्राह्मण कुल
में ट्रान्सफर हुए | यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है, सो
तुम्हारे सिवाए दुनिया में कोई भी जानता नहीं है | अन्दर में
यह ज्ञान डांस होना चाहिए | बाबा हमको कितनी वन्डरफुल नॉलेज
देते हैं, जिस नॉलेज से हम अपना वर्सा पाते हैं | लिखा हुआ भी
है इस राजयोग से मैं तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ | परन्तु
कुछ समझ में नहीं आता था | अभी बुद्धि में सारा राज़ आ गया है |
हम शूद्र से अब सो ब्राह्मण बनते हैं | यह मन्त्र भी बुद्धि
में है | हम सो ब्राह्मण फिर देवता बनेंगे फिर हम उतरते-उतरते
नीचे आते हैं | कितना पुनर्जन्म लेते चक्र लगाते हैं | यह
नॉलेज बुद्धि में रहने कारण ख़ुशी भी रहनी चाहिए | औरों को भी
यह नॉलेज कैसे मिले? कितने ख्यालात चलते रहते हैं | कैसे सबको
बाप का परिचय दें? तुम ब्राह्मण कितना उपकार करते हो | बाप भी
उपकार करते हैं ना | जो बिल्कुल ही अनजान हैं, उन्हों को सदा
सुखी बनायें | आँखें खोलें | ख़ुशी होती है ना | जिनको सर्विस
का शौक रहता है उन्हों को अन्दर में आना चाहिए, बहुत ख़ुशी होनी
चाहिए | हम आत्मायें कहाँ की रहने वाली हैं, फिर कैसे आती हैं
पार्ट बजाने? कितने ऊँच बनते हैं फिर कैसे नीचे आते हैं फिर
रावण राज्य कब शुरू होता है? यह अभी बुद्धि में आया है |
भक्ति और ज्ञान में रात-दिन का फ़र्क है | शुरू से भक्ति किसने
की है? तुम कहेंगे पहले-पहले हम आये तो बहुत सुख देखा फिर हम
भक्ति करने लगे | पूज्य और पुजारी में कितना रात-दिन का फ़र्क
है | तुम्हारे पास अभी कितना ज्ञान है | ख़ुशी होनी चाहिए ना |
कैसे हमने 84 का चक्र लगाया है | कहाँ 84 जन्म, कहाँ 84 लाख!
इतनी छोटी–सी बात भी किसके ध्यान में नहीं आती है | लाखों वर्ष
की भेंट में तो यह एक-दो रोज़ के बराबर हो जाता है |
अच्छे-अच्छे बच्चों की बुद्धि में यह चक्र फिरता रहता है, तब
ही कहा जाता है स्वदर्शन चक्रधारी | सतयुग में यह नॉलेज होती
नहीं | स्वर्ग का कितना गायन है | वहाँ सिर्फ़ भारत ही था | जो
था वह फिर बनना ही है | बाहर से तो देखने में कुछ नहीं आता है
| साक्षात्कार होता है | तुम जानते हो यह पुरानी दुनिया अब
ख़त्म होनी है फिर नम्बरवार हम नई दुनिया में आयेंगे | आत्मायें
कैसे आती हैं पार्ट बजाने, वह भी तुम समझ गये हो | आत्मायें
ऐसे कोई ऊपर से उतरती नहीं हैं, जैसे नाटक में दिखाते हैं |
आत्मा को तो इन आँखों से कोई देख भी न सके | आत्मा कैसे आती
है, छोटे शरीर में कैसे प्रवेश करती है, बड़ा ही वन्डरफुल खेल
है | यह पढ़ाई ईश्वरीय है | इसमें दिन-रात ख्यालात चलने चाहिए |
हम एक बार समझ लेते हैं, जैसे कि देख लेते हैं फिर वर्णन करते
हैं | आगे जादू वाले लोग बहुत चीजें निकाल दिखाते थे | बाप को
भी जादूगर, सौदागर, रत्नागर कहते हैं ना | आत्मा में ही सारा
ज्ञान ठहरता है | आत्मा ही ज्ञान सागर है | भल कहते हैं
परमात्मा ज्ञान का सागर है, परन्तु वह कौन है, कैसे वह जादूगर
है, यह किसको भी पता नहीं है | आगे तुम भी नहीं समझते थे | अभी
बाप आकर देवता बनाते हैं | अन्दर में कितनी ख़ुशी होनी चाहिए |
एक बाप ही नॉलेजफुल है, हमको पढ़ाते भी हैं | यह सिर्फ़ तुम
बच्चे ही जानते हो | यह दिन-रात अन्दर में सिमरण चलना चाहिए |
यह बेहद के नाटक का नॉलेज सिर्फ़ एक बाप ही सुना सकते हैं, और
कोई सुना न सके | बाबा ने देखा थोड़ेही है, परन्तु उनमें सारी
नॉलेज है | बाप कहते हैं मैं सतयुग-त्रेता में तो नहीं आता हूँ
परन्तु नॉलेज सारी सुनाता हूँ | वन्डर लगता है ना | जिसने कभी
पार्ट ही नहीं लिया, वह कैसे बतलाते हैं! बाप कहते हैं मैं कुछ
भी देखता नहीं हूँ | न मैं सतयुग-त्रेता में आता हूँ परन्तु
मेरे में नॉलेज कितनी अच्छी है जो मैं एक ही बार आकर तुमको
सुनाता हूँ | तुमने पार्ट बजाया, तुम जानते नहीं हो और जिसने
पार्ट ही नहीं बजाया है वह सब सुनाते हैं – वन्डर है ना | हम
जो पार्टधारी हैं, हम कुछ नहीं जानते और बाप में कितनी सारी
नॉलेज है | बाप कहते हैं मैं थोड़ेही सतयुग-त्रेता में आता हूँ
जो तुमको अनुभव सुनाऊं | ड्रामा अनुसार बिगर देखे, अनुभव किये
सारी नॉलेज देते हैं | कितना वन्डर है – मैं पार्ट बजाने आता
ही नहीं और तुमको सारा पार्ट समझाता हूँ, इसलिए ही मुझे
नॉलेजफुल कहते हैं |
तो
बाप कहते हैं अब मीठे-मीठे बच्चों अपनी उन्नति करनी है तो अपने
को आत्मा समझो | यह है खेल | तुम फिर भी ऐसे ही खेल करेंगे |
देवी-देवता बनेंगे | फिर अन्त में चक्र लगाए मनुष्य बनेंगे |
वन्डर खाना चाहिए ना | बाबा में यह नॉलेज कहाँ से आई? उनका तो
कोई गुरु भी नहीं | ड्रामानुसार पहले से ही उनमें पार्ट बजाने
की नूँध है | इसको कुदरत कहेंगे ना | हर एक बात वन्डरफुल है |
तो बाप बैठ नई-नई बातें समझाते हैं | ऐसे बाप को कितना याद
करना चाहिए | 84 के चक्र को भी याद करना है | यह राज़ भी बाबा
ने ही समझाया है | विराट रूप का चित्र कितना अच्छा है | जो
लक्ष्मी-नारायण अथवा विष्णु का चित्र बनाते हैं, वही दिखाते
हैं – हम कैसे 84 जन्मों में आते हैं | हम सो देवता फिर
क्षत्रिय, वैश्य फिर शूद्र | यह सिमरण करने में क्या कोई तकलीफ़
है? बाप है नॉलेजफुल | कोई से पढ़ा थोड़ेही है, न शास्त्र आदि ही
पढ़ा है | बिगर कुछ भी पढ़े, बिगर गुरु किये इतनी सारी नॉलेज बैठ
सुनाये – ऐसा तो कभी देखा नहीं | बाप कितना मीठा है | भक्ति
मार्ग में कोई किसको, कोई किसको मीठा समझेंगे | जिसको जो आता
है उनकी पूजा करने लग पड़ते हैं | बाबा बैठ सब राज़ समझाते हैं |
आत्मा ही आनन्द स्वरूप है, फिर आत्मा ही दुःख रूप छी-छी बन
जाती है | भक्ति मार्ग में तो कुछ भी तुम नहीं जानते थे | मेरी
कितनी महिमा करते हैं परन्तु जानते कुछ भी नहीं | यह भी कितना
वन्डरफुल खेल है | यह सारा खेल बाबा ने समझाया है | इतने चित्र
सीढ़ी आदि के कभी देखे भी नहीं थे | अब देखते हैं, सुनते हैं तो
कहते भी हैं यह ज्ञान तो यथार्थ रीति है | परन्तु काम महाशत्रु
है, इस पर जीत पानी है, तो यह सुनकर ढीले पड़ जाते हैं | तुम
कितना समझाते हो, समझते ही नहीं | कितनी मेहनत लगती है | यह भी
जानते हैं कल्प पहले जिन्होंने समझा था वही समझेंगे | दैवी
परिवार वाले जितने बनने वाले होंगे उन्हों को ही धारणा होगी |
तुम जानते हो हम श्रीमत पर राजधानी स्थापन करते हैं | बाप का
डायरेक्शन है औरों को भी आपसमान बनाओ | बाप सब ज्ञान सुना रहे
हैं | तुम भी सुना रहे हो | तो ज़रूर यह शिवबाबा का रथ भी सुना
सकता होगा | परन्तु अपने को गुप्त कर देते हैं | तुम शिवबाबा
को ही याद करते रहो | इनकी तो उपमा (महिमा) भी नहीं करनी है |
सर्व का सद्गति दाता, माया की जंज़ीरों से छुड़ाने वाला एक ही है
| बाप कैसे बैठ तुमको समझाते हैं – यह तुम बच्चों के सिवाए और
कोई को पता ही नहीं है | मनुष्य यह भी नहीं जानते कि रावण क्या
चीज़ है | हर वर्ष जलाते ही आते हैं | एफीजी तो दुश्मन का बनाया
जाता है ना | तुमको अभी पता पड़ा है कि रावण भारत का दुश्मन है,
जिसने भारत को कितना दुःखी, कंगाल बना दिया है | सभी 5 विकारों
रूपी रावण के पंजे में फँसे हुए हैं | बच्चों को अन्दर में यह
आना चाहिए – कैसे औरों को भी रावण से छुड़ायें | सर्विस हो सकती
है तो प्रबन्ध करना है | सच्चे दिल से, निःस्वार्थ भाव से सेवा
करनी है | बाबा कहते हैं ऐसे बच्चों की हुण्डी मैं सकारता
(भरता) हूँ | ड्रामा में नूँध है | सर्विस का अच्छा चान्स है
तो इसमें पूछने का भी नहीं रहता | बाप ने कह दिया है सर्विस
करते रहो | मांगो कोई से भी नहीं | मांगने से मरना भला | आपेही
तुम्हारे पास आ जायेगा | मांगने से सेन्टर इतना ज़ोर नहीं भरेगा
| बिगर मांगे तुम सेन्टर जमाओ, आपेही सब आता रहेगा | उसमें
ताक़त रहेगी | जैसे बाहर वाले चन्दा इकठ्ठा करते हैं, ऐसे तुमको
नहीं करना है |
मनुष्य को तो कभी भगवान नहीं कहा जाता | ज्ञान तो है बीज | बीज
रूप बाप बैठ तुमको ज्ञान देते हैं | बीज ही नॉलेजफुल है ना |
वह जड़ बीज तो वर्णन कर नहीं सकेंगे | तुम वर्णन करते हो | सब
बातों को समझ सकते हो | इस बेहद के झाड़ को कोई भी समझते नहीं
हैं | तुम अनन्य बच्चे जानते हो नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार |
बाप समझाते हैं – माया भी प्रबल है | कुछ सहन भी करना पड़ता है
| कितने कड़े-कड़े विकार हैं | अच्छे-अच्छे सर्विस करने वालों को
चलते-चलते ऐसी माया की चमाट लग जाती है, कहते हैं हम तो गिर
गये | सीढ़ी ऊपर चढ़ते-चढ़ते नीचे गिर पड़ते हैं | तो की कमाई सारी
चट हो पड़ती है | दण्ड तो ज़रूर मिलना चाहिए | बाप से प्रतिज्ञा
करते हैं, ब्लड से भी लिखकर दिया फिर भी गुम हो गये | बाबा
पक्का करने लिए देखते भी हैं, इतनी युक्तियाँ करते हुए भी फिर
दुनिया की तरफ़ चले जाते हैं | कितना सहज समझाते हैं, पार्टधारी
को अपने पार्ट का ही सिमरण करना चाहिए | अपना पार्ट कोई भूल
थोड़ेही सकता है | बाप तो रोज़-रोज़ भिन्न-भिन्न प्रकार से समझाते
रहते हैं | तुम भी बहुतों को समझाते हो फिर भी कहते हैं हम
बाबा के सम्मुख जायें | बाप का तो वन्डर है | रोज़ मुरली चलाते
हैं | वह है निराकार | नाम, रूप, देश, काल तो है नहीं | फिर
मुरली कैसे सुनायेंगे | वन्डर खाते हैं, फिर पक्के होकर आते
हैं | दिल होता है ऐसा बाप वर्सा देने आये हैं, उनसे मिलें |
इस पहचान से आकर मिलें तो बाप से ज्ञान रत्न धारण कर सकें |
श्रीमत को पालन कर सकें | अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
ज्ञान को जीवन में धारण कर ख़ुशी में गद्गद् होना है | वन्डरफुल
ज्ञान और ज्ञान दाता का सिमरण कर ज्ञान डांस करना है |
2.
अपने पार्ट का ही सिमरण करना है, दूसरों के पार्ट को नहीं
देखना है | माया बड़ी प्रबल है इसलिए ख़बरदार रहना है | अपनी
उन्नति में लगे रहो | सर्विस का शौक रखो |
वरदान:-
परखने की शक्ति द्वारा बाप को पहचानकर अधिकारी बनने वाले विशेष
आत्मा भव
बापदादा हर बच्चे की विशेषता देखते हैं, चाहे सम्पूर्ण नहीं
बने हैं, पुरुषार्थी हैं लेकिन ऐसा एक भी बच्चा नहीं जिसमें
कोई विशेषता न हो | सबसे पहली विशेषता तो कोटों में कोई की
लिस्ट में हो | बाप को पहचानकर मेरा बाबा कहना और अधिकारी बनना
ये भी बुद्धि की विशेषता है, परखने की शक्ति है | इस श्रेष्ठ
शक्ति ने ही विशेष आत्मा बना दिया |
स्लोगन:-
श्रेष्ठ
भाग्य की रेखा खींचने का कलम है श्रेष्ठ कर्म,
इसलिए जितना
चाहे उतना भाग्य बना लो |
ओम् शान्ति
|