12-01-15          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन
 


मीठे बच्चे - तुम्हें विकर्मों की सजा से मुक्त होने का पुरूषार्थ करना है, इस अन्तिम जन्म में सब हिसाब-किताब चुक्तू कर पावन बनना है”   

प्रश्न:-   
धोखेबाज माया कौन-सी प्रतिज्ञा तुड़वाने की कोशिश करती है?

उत्तर:-

तुमने प्रतिज्ञा की है - कोई भी देहधारी से हम दिल नहीं लगायेंगे । आत्मा कहती है हम एक बाप को ही याद करेंगे, अपनी देह को भी याद नहीं करेंगे । बाप, देह सहित सबका सन्यास कराते हैं । परन्तु माया यही प्रतिज्ञा तुड़वाती है । देह में लगाव हो जाता है । जो प्रतिज्ञा तोड़ते हैं उन्हें सजायें भी बहुत खानी पड़ती है ।

गीत:-   
तुम्हीं हो माता-पिता तुम्हीं हो.. 

ओम् शान्ति |

ऊंच ते ऊंच भगवान की महिमा भी की है और फिर ग्लानि भी की है । अब ऊंच ते ऊंच बाप खुद आकर परिचय देते हैं और फिर जब रावण राज्य शुरू होता है तो अपनी ऊंचाई दिखाते हैं । भक्ति मार्ग में भक्ति का ही राज्य है इसलिए कहा जाता है रावण राज्य । वह राम राज्य, यह रावण राज्य । राम और रावण की ही भेंट की जाती है । बाकी वह राम तो त्रेता का राजा हुआ, उनके लिए नहीं कहा जाता । रावण है आधाकल्प का राजा । ऐसे नहीं कि राम आधाकल्प का राजा है । नहीं, यह डिटेल में समझने की बातें हैं । बाकी वह तो बिल्कुल सहज बात है समझने की । हम सब भाई- भाई हैं । हम सबका वह बाप एक निराकार है । बाप को मालूम है इस समय हमारे सब बच्चे रावण की जेल में हैं । काम चिता पर बैठ सब काले हो गये हैं । यह बाप जानते हैं । आत्मा में ही सारी नॉलेज है ना । इसमें भी सबसे जास्ती महत्व देना होता है आत्मा और परमात्मा को जानने का । छोटी-सी आत्मा में कितना पार्ट नूंधा हुआ है जो बजाती रहती है । देह- अभिमान में आकर पार्ट बजाते हैं तो स्वधर्म को भूल जाते हैं । अब बाप आकर आत्म अभिमानी बनाते हैं क्योंकि आत्मा ही कहती है कि हम पावन बनें । तो बाप कहते हैं मामेकम् याद करो । आत्मा पुकारती है हे परमपिता, हे पतित-पावन, हम आत्मायें पतित बन गये हैं, आकर हमें पावन बनाओ । संस्कार तो सब आत्मा में हैं ना । आत्मा साफ कहती है हम पतित बने हैं । पतित उनको कहा जाता है जो विकार में जाते हैं । पतित मनुष्य, पावन निर्विकारी देवताओं के आगे जाकर मन्दिर में उनकी महिमा गाते हैं । बाप समझाते हैं बच्चे तुम ही पूज्य देवता थे । 84 जन्म लेते-लेते नीचे जरूर उतरना पड़े । यह खेल ही पतित से पावन, पावन से पतित होने का है । सारा ज्ञान बाप आकर इशारे में समझाते हैं । अभी सबका अन्तिम जन्म है । सबको हिसाब-किताब चुक्तू कर जाना है । बाबा साक्षात्कार कराते हैं । पतित को अपने विकर्मों का दण्ड जरूर भोगना पड़ता है । पिछाड़ी का कोई जन्म देकर ही सजा देंगे । मनुष्य तन में ही सजा खायेंगे इसलिए शरीर जरूर धारण करना पड़ता है । आत्मा फील करती है, हम सजा भोग रहे हैं । जैसे काशी कलवट खाने समय दण्ड भोगते हैं, किये हुए पापों का साक्षात्कार होता है । तब तो कहते हैं क्षमा करो भगवान, हम फिर ऐसा नहीं करेंगे । यह सब साक्षात्कार में ही क्षमा मांगते हैं । फील करते हैं, दुःख भोगते हैं । सबसे जास्ती महत्व है आत्मा और परमात्मा का । आत्मा ही 84 जन्मों का पार्ट बजाती है । तो आत्मा सबसे पावरफुल हुई ना । सारे ड्रामा में महत्व है आत्मा और परमात्मा का । जिसको और कोई भी नहीं जानते । एक भी मनुष्य नहीं जानता कि आत्मा क्या, परमात्मा क्या है? ड्रामा अनुसार यह भी होना है । तुम बच्चों को भी ज्ञान है कि यह कोई नई बात नहीं, कल्प पहले भी यह चला था । कहते भी हैं ज्ञान, भक्ति, वैराग्य । परन्तु अर्थ नहीं समझते हैं । बाबा ने इन साधुओं आदि का संग बहुत किया हुआ है, सिर्फ नाम ले लेते हैं । अभी तुम बच्चे अच्छी रीति जानते हो कि हम पुरानी दुनिया से नई दुनिया में जाते हैं तो पुरानी दुनिया से जरूर वैराग्य करना पड़े । इनसे क्या दिल लगानी है । तुमने प्रतिज्ञा की है - कोई भी देहधारी से दिल नहीं लगायेंगे । आत्मा कहती है हम एक बाप को ही याद करेंगे । अपनी देह को भी याद नहीं करेंगे । बाप देह सहित सबका सन्यास कराते हैं । फिर औरों की देह से हम लगाव क्यों रखे । कोई से लगाव होगा तो उनकी याद आती रहेगी । फिर ईश्वर याद आ न सके । प्रतिज्ञा तोड़ते हैं तो सजा भी बहुत खानी पड़ती है, पद भी भ्रष्ट हो जाता है इसलिए जितना हो सके बाप को ही याद करना है । माया तो बड़ी धोखेबाज है । कोई भी हालत में माया से अपने को बचाना है । देह- अभिमान की बहुत कड़ी बीमारी है । बाप कहते हैं अब देही- अभिमानी बनो । बाप को याद करो तो देह- अभिमान की बीमारी छूट जाए । सारा दिन देह- अभिमान में रहते हैं । बाप को याद बड़ा मुश्किल करते हैं । बाबा ने समझाया है हथ कार डे दिल यार डे । जैसे आशिक माशूक धन्धा आदि करते भी अपने माशूक को ही याद करते रहते । अब तुम आत्माओं को परमात्मा से प्रीत रखनी है तो उनको ही याद करना चाहिए ना । तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट ही है कि हमको देवी-देवता बनना है, उसके लिए पुरूषार्थ करना है । माया धोखा तो जरूर देगी, अपने को उनसे छुड़ाना है । नहीं तो फँस मरेंगे फिर ग्लानि भी होगी, नुकसान भी बहुत होगा ।

तुम बच्चे जानते हो कि हम आत्मा बिन्दी है, हमारा बाप भी बीजरूप नॉलेजफुल है । यह बड़ी वन्डरफुल बातें हैं । आत्मा क्या है, उसमें कैसे अविनाशी पार्ट भरा हुआ है-इन गुह्य बातों को अच्छे- अच्छे बच्चे भी पूरी तरह नहीं समझते हैं । अपने को यथार्थ रीति आत्मा समझे और बाप को भी बिन्दी मिसल समझ याद करें, वह ज्ञान का सागर है, बीजरूप है..... ऐसा समझ बड़ा मुश्किल याद करते हैं । मोटे ख्यालात से नहीं, इसमें महीन बुद्धि से काम लेना होता है-हम आत्मा हैं, हमारा बाप आया हुआ है, वह बीजरूप नॉलेजफुल है । हमको नॉलेज सुना रहे हैं । धारणा भी मुझ छोटी-सी आत्मा में होती है । ऐसे बहुत हैं जो मोटी रीति सिर्फ कह देते हैं- आत्मा और परमात्मा.... लेकिन यथार्थ रीति बुद्धि में आता नहीं है । ना से तो मोटी रीति याद करना भी ठीक है । परन्तु वह यथार्थ याद जास्ती फलदायक है । वह इतना ऊंच पद पा नहीं सकेंगे । इसमें बड़ी मेहनत है । मैं आत्मा छोटी-सी बिन्दु हूँ, बाबा भी इतनी छोटी-सी बिन्दु हैं, उनमें सारा ज्ञान है, यह भी यहाँ तुम बैठे हो तो कुछ बुद्धि में आता है लेकिन चलते-फिरते वह चिंतन रहे, सो नहीं । भूल जाते हैं । सारा दिन वही चिंतन रहे-यह है सच्ची-सच्ची याद । कोई सच बताते नहीं हैं कि हम कैसे याद करते हैं । चार्ट भल भेजते हैं परन्तु यह नहीं लिखते कि ऐसे अपने को बिन्दी समझ और बाप को भी बिन्दी समझ याद करता हूँ । सच्चाई से पूरा लिखते नहीं हैं । भल बहुत अच्छी- अच्छी मुरली चलाते हैं परन्तु योग बहुत कम है । देह- अभिमान बहुत है, इस गुप्त बात को पूरा समझते नहीं, सिमरण नहीं करते हैं । याद से ही पावन बनना है । पहले तो कर्मातीत अवस्था चाहिए ना । वही ऊंच पद पा सकेंगे । बाकी मुरली बजाने वाले तो ढेर हैं । लेकिन बाबा जानते हैं योग में रह नहीं सकते । विश्व का मालिक बनना कोई मासी का घर थोड़ेही है । वह अल्पकाल के मर्तबे पाने के लिए भी कितना पढ़ते हैं । सोर्स ऑफ इनकम अब हुई है । आगे थोड़ेही बैरिस्टर आदि इतना कमाते थे । अभी कितनी कमाई हो गई है ।

बच्चों को अपने कल्याण के लिए एक तो अपने को आत्मा समझ यथार्थ रीति बाप को याद करना है और त्रिमूर्ति शिव का परिचय औरों को भी देना है । सिर्फ शिव कहने से समझेंगे नहीं । त्रिमूर्ति तो जरूर चाहिए । मुख्य है ही दो चित्र त्रिमूर्ति और झाड़ । सीढ़ी से भी झाड़ में जास्ती नॉलेज है । यह चित्र तो सबके पास होने चाहिए । एक तरफ त्रिमूर्ति गोला, दूसरे तरफ झाड़ । यह पाण्डव सेना का फ्लैग (झण्डा) होना चाहिए । ड्रामा और झाड़ की नॉलेज भी बाप देते हैं । लक्ष्मी-नारायण, विष्णु आदि कौन है? यह कोई समझते नहीं । महालक्ष्मी की पूजा करते हैं, समझते हैं लक्ष्मी आयेगी । अब लक्ष्मी को धन कहाँ से आयेगा? 4 भुजा वाले, 8 भुजा वाले कितने चित्र बना दिये हैं । समझते कुछ भी नहीं । 8 - 10 भुजा वाला कोई मनुष्य तो होता नहीं । जिसको जो आया सो बनाया, बस चल पड़ा । कोई ने मत दी कि हनुमान की पूजा करो बस चल पड़ा । दिखाते हैं संजीवनी बूटी ले आया.. उसका भी अर्थ तुम बच्चे समझते हो । संजीवनी बूटी तो है मन्मनाभव। विचार किया जाता है जब तक ब्राह्मण न बनें, बाप का परिचय न मिले तब तक वर्थ नाट ए पेनी है । मर्तबे का मनुष्यों को कितना अभिमान है । उन्हों को तो समझाने में बड़ी मुश्किलात है । राजाई स्थापन करने में कितनी मेहनत लगती है । वह है बाहुबल, यह है योगबल । यह बातें शास्त्रों में तो है नहीं । वास्तव में तुम कोई शास्त्र आदि रेफर नहीं कर सकते हो । अगर तुमको कहते हैं - तुम शास्त्रों को मानते हो? बोलो हाँ यह तो सब भक्ति मार्ग के हैं । अभी हम ज्ञान मार्ग पर चल रहे हैं । ज्ञान देने वाला ज्ञान का सागर एक ही बाप है, इनको रूहानी ज्ञान कहा जाता है । रूह बैठ रूहों को ज्ञान देते हैं । वह मनुष्य, मनुष्य को देते हैं । मनुष्य कभी स्प्रीचुअल नॉलेज दे न सकें । ज्ञान का सागर पतित-पावन, लिबरेटर, सद्गति दाता एक ही बाप है ।

बाप समझाते रहते हैं यह-यह करो । अब देखे शिवजयन्ती पर कितना धमचक्र मचाते हैं । ट्रांसलाइट के चित्र छोटे भी हों जो सबको मिल जाएं । तुम्हारी तो है बिल्कुल नई बात । कोई समझ न सके । खूब अखबारों में डालना चाहिए । आवाज करना चाहिए । सेंटर्स खोलने वाले भी ऐसे चाहिए । अभी तुम बच्चों को ही इतना नशा नहीं चढ़ा हुआ है । नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार समझाते हैं । इतने ढेर ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ हैं । अच्छा, ब्रह्मा का नाम निकाल कोई का भी नाम डालो । राधे कृष्ण का नाम डालो । अच्छा फिर ब्रह्माकुमार- कुमारियाँ कहाँ से आयेंगे? कोई तो ब्रह्मा चाहिए ना, जो मुख वंशावली बी .के. हों । बच्चे आगे चलकर बहुत समझेंगे । खर्चा तो करना ही पड़ता है । चित्र तो बड़े क्लीयर हैं । लक्ष्मी- नारायण का चित्र बहुत अच्छा है । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे सर्विसएबुल, आज्ञाकारी, फरमानबरदार, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. कर्मातीत बनने के लिए बाप को महीन बुद्धि से पहचान कर यथार्थ याद करना है । पढ़ाई के साथ- साथ योग पर पूरा अटेंशन देना है । 

2. स्वयं को माया के धोखे से बचाना है । कोई की भी देह में लगाव नहीं रखना है । सच्ची प्रीत एक बाप से रखनी है । देह- अभिमान में नहीं आना है ।

वरदान:-

बन्धनों के पिंजड़े को तोड़कर जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव करने वाले सच्चे ट्रस्टी भव !   

शरीर का वा सम्बन्ध का बन्धन ही पिंजड़ा है । फर्जअदाई भी निमित्त मात्र निभानी है, लगाव से नहीं तब कहेंगे निर्बन्धन । जो ट्रस्टी बनकर चलते हैं वही निर्बन्धन हैं यदि कोई भी मेरापन है तो पिंजड़े में बंद हैं । अभी पिंजड़े की मैना से फरिश्ते बन गये इसलिए कहाँ जरा भी बंधन न हो । मन का भी बंधन नहीं । क्या करूं, कैसे करूं, चाहता हूँ होता नहीं-यह भी मन का बंधन है । जब मरजीवा बन गये तो सब प्रकार के बंधन समाप्त, सदा जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव होता रहे ।

स्लोगन:- 

संकल्पों को बचाओ तो समय, बोल सब स्वत: बच जायेंगे ।   

 

अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए विशेष होमवर्क

सम्पूर्ण फरिश्ता वा अव्यक्त फरिश्ता की डिग्री लेने के लिए सर्व गुणों में फुल बनो। नॉलेजकुल के साथ-साथ फेथफुल, पावरफुल, सक्सेसफुल बनो । अभी नाजुक समय में नाजों से चलना छोड़ विकर्मों और व्यर्थ कर्मों को अपने विकराल रूप (शक्ति रूप) से समाप्त करो।

 

ओम् शान्ति |