20-02-15      प्रातः मुरली      ओम् शान्ति      “बापदादा”      मधुबन
 


मीठे बच्चे - बाप तुम्हारा मेहमान बनकर आया है तो तुम्हें आदर करना है, जैसे प्रेम से बुलाया है ऐसे आदर भी करना है, निरादर न हो”   

प्रश्न:-   
कौन-सा नशा तुम बच्चों को सदा चढ़ा रहना चाहिए? यदि नशा नहीं चढ़ता है तो क्या कहेंगे?

उत्तर:-

ऊंचे ते ऊँची आसामी इस पतित दुनिया में हमारा मेहमान बनकर आया है, यह नशा सदा चढ़ा रहना चाहिए । परन्तु नम्बरवार यह नशा चढ़ता है । कई तो बाप का बनकर भी संशयबुद्धि बन हाथ छोड़ जाते तो कहेंगे इनकी तकदीर ।

ओम् शान्ति |

ओन् शान्ति, दो बारी कहना पड़े । यह तो बच्चे जानते हैं कि एक है बाबा, दूसरा है दादा । दोनों इकट्ठे हैं ना । भगवान की महिमा भी कितनी ऊंची करते हैं परन्तु अक्षर कितना सिम्पुल है - गॉड फादर । सिर्फ फादर नहीं कहेंगे, गॉड फादर वह हैं ऊंच ते ऊंच । उनकी महिमा भी बहुत ऊँच है । उनको बुलाते भी पतित दुनिया में हैं । खुद आकर बतलाते हैं कि मुझे पतित दुनिया में ही बुलाते हैं परन्तु पतित-पावन वह कैसे हैं, कब आते हैं, यह किसको भी पता नहीं । आधाकल्प सतयुग-त्रेता में किसका राज्य था, कैसे हुआ, किसको यह पता नहीं है । पतित-पावन बाप आते भी जरूर हैं, उनको कोई पतित-पावन कहते, कोई लिबरेटर कहते हैं । पुकारते हैं कि स्वर्ग में ले चलो । सबसे ऊँच ते ऊँच है ना । उनको पतित दुनिया में बुलाते हैं कि आकर हम भारतवासियों को श्रेष्ठ बनाओ । उनका पोजीशन कितना बड़ा है । हाइएस्ट अथॉरिटी है । उनको बुलाते हैं, जबकि रावण राज्य है । नहीं तो इस रावण राज्य से कौन छुड़ावे? यह सब बातें तुम बच्चे सुनते हो तो नशा भी चढ़ा रहना चाहिए । परन्तु इतना नशा चढ़ता नहीं है । शराब का नशा सभी को चढ़ जाता है, यह नहीं चढ़ता है । इसमें हैं धारणा की बात, तकदीर की बात है । तो बाप हैं बहुत बड़ी आसामी । तुम्हारे में भी कोई-कोई को पूरा निश्चय रहता है । निश्चय अगर सबको होता तो संशय में आकर भागते क्यों? बाप को भूल जाते हैं । बाप के बने, फिर बाप के लिए कोई संशय बुद्धि नहीं हो सकता । परन्तु यह बाप हैं वंडरफुल । गायन भी है आश्चर्यवत् बाबा को जानन्ती, बाबा कहन्ती, ज्ञान सुनन्ती, सुनावन्ती, अहो माया फिर भी संशयबुद्धि बनावन्ती । बाप समझाते हैं इन भक्ति मार्ग के शास्त्रों में कोई सार नहीं है । बाप कहते हैं मुझे कोई भी जानते नहीं । तुम बच्चों में भी मुश्किल कोई ठहर सकते हैं । तुम भी फील करते हो कि वह याद स्थाई ठहरती नहीं है । हम आत्मा बिन्दी हैं, बाबा भी बिन्दी है, वह हमारा बाप है, उनको अपना शरीर तो है नहीं । कहते हैं मैं इस तन का आधार लेता हूँ । मेंरा नाम शिव हैं । मुझ आत्मा का नाम कभी बदलता नहीं हैं । तुम्हारे शरीर के नाम बदलते हैं । शरीर पर ही नाम पड़ते हैं । शादी होती है तो नाम बदल जाता है । फिर वह नाम पक्का कर लेते हैं । तो अब बाप कहते हैं तुम यह पक्का कर लो कि हम आत्मा हैं । यह बाप ने ही परिचय दिया है कि जब-जब अत्याचार और ग्लानि होती है तब मैं आता हूँ । कोई अक्षरों को भी पकड़ना नहीं हैं । बाप खुद कहते हैं मुझे पत्थर भित्तर में ठोक कितनी ग्लानि करते हैं, यह भी नई बात नहीं । कल्प-कल्प ऐसे पतित बन और ग्लानि करते हैं, तब ही मैं आता हूँ । कल्प-कल्प का मेरा पार्ट है । इसमें अदली-बदली हो नहीं सकती । ड्रामा में नूंध है ना । तुमको कई कहते हैं सिर्फ भारत में ही आता है! क्या भारत ही सिर्फ स्वर्ग बनेगा? हाँ । यह तो अनादि- अविनाशी पार्ट हो गया ना । बाप कितना ऊँच ते ऊंच है । पतितों को पावन बनाने वाला बाप कहते हैं मुझे बुलाते ही इस पतित दुनिया में है । मैं तो सदा पावन हूँ । मुझे पावन दुनिया में बुलाना चाहिए ना! परन्तु नहीं, पावन दुनिया में बुलाने की दरकार ही नहीं । पतित दुनिया में ही बुलाते हैं कि आकर पावन बनाओ । मैं कितना बड़ा मेहमान हूँ । आधाकल्प से मुझे याद करते आये हो । यहाँ कोई बड़े आदमी को बुलायेंगे, करके एक-दो वर्ष बुलायेंगे । फलाना इस वर्ष नहीं तो दूसरे वर्ष आयेगा । इनको तो आधाकल्प से याद करते आये हो । इनके आने का पार्ट तो फिक्स हुआ पड़ा है । यह किसको भी पता नहीं है । बहुत ऊँच ते ऊंच बाप है । मनुष्य बाप को एक ओर तो प्रेम से बुलाते हैं, दूसरी ओर महिमा में दल लगा देते हैं । वास्तव में यह बड़े ते बड़ा गेस्ट ऑफ ऑनर (बड़ी महिमा वाला मेहमान) है, जिसकी ऑनर (महिमा) को दल लगा दिया है, कह देते हैं वह पत्थर ठिक्कर सबमें हैं । कितनी हाइएस्ट अथॉरिटी है, बुलाते भी बहुत प्रेम से हैं, परन्तु हैं बिल्कुल बुद्दू । मैं ही आकर अपना परिचय देता हूँ कि मैं तुम्हारा फादर हूँ । मुझे गॉड फादर कहते हैं । जब सब रावण की कैद में हो जाते हैं तब ही बाप को आना होता है क्योंकि सब हैं भक्तियां अथवा ब्राइड्स-सीतायें । बाप है ब्राइडगुम-राम । एक सीता की बात नहीं है, सब सीताओं को रावण की जेल से हैं । यह है बेहद की बात । यह है पुरानी पतित दुनिया । इसका पुराना होना फिर नया होना एक्यूरेट है, यह शरीर आदि तो कोई जल्दी पुराने हो जाते, कोई जास्ती टाइम चलते हैं । यह ड्रामा में एक्यूरेट नूंध है । पूरे 5 हजार वर्ष बाद फिर मुझे आना पड़ता है । मैं ही आकर अपना परिचय देता हूँ और सृष्टि चक्र का राज समझाता हूँ । किसको भी न मेरी पहचान है, न ब्रह्मा, विष्णु, शंकर की, न लक्ष्मी-नारायण की, न राम-सीता की पहचान है । ऊंच ते ऊंच एक्टर्स ड्रामा के अन्दर तो यही है । है तो मनुष्य की बात । कोई 8 - 10 भुजा वाले मनुष्य नहीं हैं । विष्णु को 4 भुजा क्यों दिखाते हैं? रावण के 10 शीश क्या हैं? यह किसको भी पता नहीं है । बाप ही आकर सारे वर्ल्ड के आदि-मध्य- अन्त का नॉलेज बताते हैं । कहते हैं मैं हूँ बड़े ते बड़ा गेस्ट, परन्तु गुप्त । यह भी सिर्फ तुम ही जानते हो । परन्तु जानते हुए भी फिर भूल जाते हो | उनका कितना रिगार्ड रखना चाहिए, उन्हें याद करना चाहिए । आत्मा भी निराकार, परमात्मा भी निराकार, इसमें फोटो की भी बात नहीं । तुमको तो आत्मा निश्चय कर बाप को याद करना है, देह- अभिमान छोड़ना है । तुम्हें सदैव अविनाशी चीज़ को देखना चाहिए । तुम विनाशी देह को क्यों देखते हो! देही- अभिमानी बनो, इसमें ही मेहनत है । जितना याद में रहेंगे उतना कर्मातीत अवस्था को पाए ऊंच पद पायेंगे । बाप बहुत ही सहज योग अर्थात् याद सिखलाते हैं । योग तो अनेक प्रकार के हैं । याद अक्षर ही यथार्थ है । परमात्मा बाप को याद करने में ही मेहनत है । कोई विरला सच बताते हैं कि हम इतना समय याद में रहा । याद करते ही नहीं हैं तो सुनाने में लज्जा आती है । लिखते हैं सारे दिन में एक घण्टा याद में रहे, तो लज्जा आनी चाहिए ना । ऐसा बाप जिसको दिन-रात याद करना चाहिए और हम सिर्फ एक घण्टा याद करते हैं! इसमें बड़ी गुप्त मेहनत है । बाप को बुलाते हैं तो दूर से आने वाला गेस्ट हुआ ना । बाप कहते हैं मैं नई दुनिया का गेस्ट नहीं बनता हूँ । आता ही पुरानी दुनिया में हूँ । नई दुनिया की स्थापना आकर करता हूँ । यह पुरानी दुनिया है, यह भी कोई यथार्थ नहीं जानते हैं । नई दुनिया की आयु ही नहीं जानते । बाप कहते हैं यह नॉलेज मैं ही आकर देता हूँ फिर ड्रामा अनुसार यह नॉलेज गुम हो जाती है । फिर कल्प बाद यह पार्ट रिपीट होगा । मुझे बुलाते हैं, वर्ष-वर्ष शिव जयन्ती मनाते हैं । जो होकर जाते हैं तो उनकी वर्ष- वर्ष वर्षी मनाते हैं । शिवबाबा की भी 12 मास बाद जयन्ती मनाते हैं परन्तु कब से मनाते आये हैं, यह किसको भी पता नहीं है । सिर्फ कह देते हैं कि लाखों वर्ष हुए । कलियुग की आयु ही लाखों वर्ष लिख दी है । बाप कहते हैं-यह है 5 हजार वर्ष की बात । बरोबर इन देवताओं का भारत में राज्य था ना । तो बाप कहते हैं-मैं भारत का बहुत बड़ा मेहमान हूँ, मुझे आधाकल्प से बहुत निमन्त्रण देते आये हो । जब बहुत दु :खी होते हैं, तो कहते हैं हे पतित-पावन आओ । मैं आया भी हूँ पतित दुनिया में । रथ तो हमको चाहिए ना । आत्मा है अकालमूर्त, उनका यह तख्त है । बाप भी अकालमूर्त हैं, इस तख्त पर आकर विराजमान होते हैं । यह बड़ी रमणीक बातें हैं । और कोई सुनें तो चक्रित हो जाए । अब बाप कहते हैं-बच्चे, मेरी मत पर चलो । समझो शिवबाबा मत देते हैं...... शिवबाबा मुरली चलाते हैं । यह कहते हैं मैं भी उनकी मुरली सुनकर बजाऊंगा । सुनाने वाला तो वह है ना । यह नम्बरवन पूज्य सो फिर नम्बरवन पुजारी बना । अभी यह पुरूषार्थी है । बच्चों को हमेशा समझना चाहिए-हमको शिवबाबा की श्रीमत मिली है । अगर कोई उल्टी बात भी हुई तो वह सुल्टी कर देंगे । यह अटूट निश्चय है तो रेसपॉन्सिबुल शिवबाबा है । यह ड्रामा में नूँध है । विघ्न तो पड़ने ही हैं, बहुत कड़े-कड़े विघ्न पड़ते हैं । अपने बच्चों के भी विघ्न पड़ते हैं । तो हमेशा समझो कि शिवबाबा समझाते हैं, तो याद रहेगी । कई बच्चे समझते हैं यह ब्रह्मा बाबा मत देते हैं, परन्तु नहीं । शिवबाबा ही रेसपॉन्सिबुल है । परन्तु देह- अभिमान है तो घड़ी-घड़ी इनको ही देखते रहते हैं । शिवबाबा कितना बड़ा मेहमान है तो भी रेलवे आदि वाले थोड़ेही जानते हैं, निराकार को कैसे पहचाने वा समझें । वह तो बीमार हो न सके । तो बीमारी आदि का इनका कारण बताते हैं । वह क्या जाने इनमें कौन हैं? तुम बच्चे भी नम्बरवार जानते हो । वह सभी आत्माओं का बाप और यह फिर प्रजापिता मनुष्यों का बाप । तो यह दोनों (बापदादा) कितने बड़े गेस्ट हो गये ।

बाप कहते हैं जो कुछ होता है ड्रामा में नूँध है, मैं भी ड्रामा के बंधन में बांधा हुआ हूँ । नूँध बिगर कुछ कर नहीं सकता हूँ । माया भी बड़ी दुश्तर है । राम और रावण दोनों का पार्ट है । ड्रामा में रावण चैतन्य होता तो कहता-मैं भी ड्रामा अनुसार आता हूँ । यह दु :ख और सुख का खेल है । सुख है नई दुनिया में, दु :ख है पुरानी दुनिया में । नई दुनिया में थोड़े मनुष्य, पुरानी दुनिया में कितने ढेर मनुष्य हैं । पतित-पावन बाप को ही बुलाते हैं कि आकर पावन दुनिया बनाओ क्योंकि पावन दुनिया में बहुत सुख था इसलिए ही कल्प-कल्प पुकारते हैं । बाप सबको सुख देकर जाते हैं । अभी फिर पार्ट रिपीट होता है । दुनिया कभी खलास नहीं होती । खलास होना इम्पॉसिबुल है । समुद्र भी दुनिया में है ना । यह थर्ड फ्लोर तो है ना । कहते हैं जलमई, पानी-पानी हो जाता है फिर भी पृथ्वी फ्लोर तो है ना । पानी भी तो है ना । पृथ्वी फ्लोर कोई विनाश नहीं हो सकता । जल भी इस फ्लोर में होता है । सेकण्ड और फर्स्ट फ्लोर, सूक्ष्मवतन और मूलवतन में तो जल होता नहीं । यह बेहद सृष्टि के 3 फ्लोर हैं, जिसको तुम बच्चों के सिवाए कोई भी नहीं जानते । यह खुशी की बात सबको खुशी से सुनानी है । जो पूरे पास होते हैं, उनका ही अतीन्द्रिय सुख गाया हुआ है । जो रात-दिन सर्विस पर तत्पर हैं, सर्विस ही करते रहते हैं उन्हें बहुत खुशी रहती है । कोई-कोई ऐसे दिन भी आते हैं जो मनुष्य रात को भी जागते हैं परन्तु आत्मा थक जाती है तो सोना होता है । आत्मा के सोने से शरीर भी सो जाता है । आत्मा न सोये तो शरीर भी न सोये । थकती आत्मा है । आज मैं थका पड़ा हूँ-किसने कहाँ? आत्मा ने । तुम बच्चों को आत्म- अभिमानी हो रहना है, इसमें ही मेहनत है । बाप को याद नहीं करते, देही- अभिमानी नहीं रहते, तो देह के सम्बन्धी आदि याद आ जाते हैं । बाप कहते हैं तुम नंगे आये थे फिर नंगे जाना है । यह देह के सम्बन्ध आदि भूल जाओ । इस शरीर में रहते मुझे याद करो तो सतोप्रधान बनेंगे । बाप कितनी बड़ी अथॉरिटी है । बच्चों के सिवाए कोई जानते ही नहीं । बाप कहते हैं मैं हूँ गरीब निवाज, सभी साधारण हैं । पतित-पावन बाप आया है, यह जान लें तो पता नहीं कितनी भीड़ हो जाए । बड़े-बड़े आदमी आते हैं तो कितनी भीड़ हो जाती है । तो ड्रामा में इनका पार्ट ही गुप्त रहने का है । आगे चल आहिस्ते- आहिस्ते प्रभाव निकलेगा और विनाश हो जायेगा । सब थोड़ेही मिल सकते हैं । याद करते हैं ना तो उनको बाप का परिचय मिल जायेगा । बाकी पहुँच नहीं पायेंगे । जैसे बांधेली बच्चियां मिल नहीं पाती हैं, कितने अत्याचार सहन करती हैं । विकार को छोड़ नहीं सकते हैं । कहते हैं सृष्टि कैसे चलेगी? अरे, सृष्टि का बोझ बाप पर है कि तुम पर? बाप को जान लेवें तो फिर ऐसे प्रश्न न पूछें । बोलो, पहले बाप को तो जानो फिर तुम सब कुछ जान जायेंगे । समझाने की भी युक्ति चाहिए । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. सदा ही हाइएस्ट अथॉरिटी बाप की याद में रहना है । विनाशी देह को न देख देही- अभिमानी बनने की मेहनत करनी है । याद का सच्चा-सच्चा चार्ट रखना है ।

2. दिन-रात सर्विस में तत्पर रह अपार खुशी में रहना है । तीनों लोकों का राज सबको खुशी से समझाना है । शिवबाबा जो श्रीमत देते हैं उसमें अटूट निश्चय रखकर चलना है, कोई भी विघ्न आये तो घबराना नहीं है, रेसपॉन्सिबुल शिवबाबा है, इसलिए संशय न आये ।

वरदान:-

निरन्तर याद द्वारा अविनाशी कमाई जमा करने वाले सर्व खजानों के अधिकारी भव !   

निरन्तर याद द्वारा हर कदम में कमाई जमा करते रहो तो सुख, शान्ति, आनंद, प्रेम... इन सब खजानों के अधिकार का अनुभव करते रहेंगे । कोई कष्ट, कष्ट अनुभव नहीं होंगे । संगम पर ब्राह्मणों को कोई कष्ट हो नहीं सकता । यदि कोई कष्ट आता भी है तो बाप की याद दिलाने के लिए, जैसे गुलाब के पुष्प के साथ कांटा उनके बचाव का साधन होता है । वैसे यह तकलीफें और ही बाप की याद दिलाने के निमित्त बनती हैं ।

स्लोगन:- 

स्नेह रूप का अनुभव तो सुनाते हो अब शक्ति रूप का अनुभव सुनाओ ।   

 

ओम् शान्ति |