17-02-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे
–
पावन बनने के लिए एक है याद का बल, दूसरा है सजाओं का बल,
तुम्हें याद के बल से पावन बन ऊँच पद पाना है” 
प्रश्न:-
बाप रूहानी सर्जन है, वह तुम्हें कौन–सा धीरज देने आये हैं?
उत्तर:-
जैसे वह सर्जन रोगी को धीरज देते हैं कि अभी बीमारी ठीक हो
जायेगी, ऐसे रूहानी सर्जन भी तुम बच्चों को धीरज देते हैं –
बच्चे, तुम माया की बीमारी से घबराओ नहीं, सर्जन दवा देते हैं
तो यह बीमारियाँ सब बाहर निकलेंगी, जो ख्यालात अज्ञान में भी
नहीं आये होंगे, आयेंगे | लेकिन तुम्हें सब सहन करना है | थोड़ा
मेहनत करो, तुम्हारे अब सुख के दिन आये कि आये |
ओम्
शान्ति
|
बेहद का बाप सभी बच्चों को समझाते हैं – तुम सबको पैगाम
पहुँचाना है कि अब बाप आये हैं | बाप धीरज दे रहे हैं क्योंकि
भक्ति मार्ग में बुलाते हैं – बाबा आओ, लिबरेट करो, दुःख से
छुड़ाओ | तो बाप धीरज देते हैं, बाकी थोड़े रोज़ हैं | कोई की
बीमारी छूटने पर होती है तो कहते हैं अब ठीक हो जायेगी | बच्चे
भी समझाते हैं कि इस छी-छी दुनिया में बाकी थोड़ा रोज़ हैं फिर
हम नई दुनिया में जायेंगे | उसके लिए हमको लायक बनना है फिर
कोई भी रोग आदि तुमको नहीं सतायेंगे | बाप धैर्य देकर कहते हैं
– थोड़ी मेहनत करो | और कोई नहीं जो ऐसे धीरज दे | तुम ही
तमोप्रधान हो गये हो | अब बाप आये हैं तुमको फिर से सतोप्रधान
बनाने के लिए | अभी सभी आत्मायें पवित्र बन जायेंगी – कोई
योगबल से, कोई सजाओं के बल से | सजाओं का भी बल है ना | सजाओं
से जो पवित्र बनेंगे उनका पद कम हो जायेगा | तुम बच्चों को
श्रीमत मिलती रहती है | बाप कहते हैं मामेकम् याद करो,
तुम्हारे सब पाप भस्म हो जायेंगे | अगर याद नहीं करेंगे तो पाप
सौ गुणा बन जायेगा क्योंकि पाप आत्मा बन तुम मेरी निन्दा कराते
हो | मनुष्य कहेंगे इनको ईश्वर ऐसी मत देते हैं जो आसुरी चलन
दिखाते हैं! लाही-चाढ़ी (उतराव-चढ़ाव) भी होता है ना | बच्चे हार
भी खाते हैं | अच्छे-अच्छे बच्चे भी हार खाते हैं | तो पाप
कटते ही नहीं हैं | फिर भोगना भी पड़ता है | यह बहुत छी-छी
दुनिया है, इसमें सब कुछ होता रहता है | बाप को बुलाते ही हैं
कि बाबा आकर हमको भविष्य नई दुनिया के लिए रास्ता बताओ | बाबा
जानते हैं – उस तरफ़ है पुरानी दुनिया, इस तरफ़ है नई दुनिया |
तुम हो नैया | अब तुम पुरुषोत्तम बनने के लिए चल रहे हो |
तुम्हारा इस पुरानी दुनिया से लंगर उठ गया है | तो जहाँ जा रहे
हो उस घर को याद करना है | बाप ने कहा है मेरे को याद करने से
तुम्हारी कट उतरेगी | यह तो है योगबल या सजायें | हरेक आत्मा
पवित्र तो ज़रूर बननी है | पवित्र बनने बिगर वापिस तो कोई जा
नहीं सकते | सबको अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है | बाप कहते हैं
यह है तुम्हारा अन्तिम जन्म | मनुष्य कहते हैं कलियुग अजुन
छोटा बच्चा है | गोया मनुष्य अभी इससे भी और दुःखी होंगे | तुम
संगमयुगी ब्राह्मण समझते हो यह दुःखधाम तो अभी ख़त्म होना है |
बाप धीरज देते हैं | कल्प पहले बाप ने कहा था मामेकम्, मुझे
याद करो तो पापों की कट उतर जायेगी | यह मैं गैरन्टी करता हूँ
| यह भी समझाते हैं कलियुग का विनाश ज़रूर होना है और सतयुग भी
ज़रूर आना है | ख़ातिरी मिलती है, बच्चों को निश्चय भी है |
परन्तु याद न ठहरने के कारण कोई न कोई विकर्म कर लेते हैं |
कहते हैं बाबा क्रोध आ जाता है, इसको ही भूत कहा जाता है | 5
भूत दुःख देते हैं इस रावण राज्य में | यह पिछाड़ी का
हिसाब-किताब भी चुक्तू करना है, जिनको आगे कभी काम विकार नहीं
सताता था, उनको भी बीमारी इमर्ज हो जाती है | कहते हैं आगे तो
ऐसा विकल्प कभी नहीं आया, अब क्यों सताता है? यह ज्ञान है ना |
ज्ञान सारी बीमारी को बाहर निकालता है | भक्ति सारी बीमारी को
नहीं निकालती | यह है ही अशुद्ध विकारी दुनिया, 100 परसेन्ट
अशुद्धता है | 100 परसेन्ट पतित से फिर 100 परसेन्ट पावन होना
ही है | 100 परसेन्ट भ्रष्टाचारी से 100 परसेन्ट पावन होना है
| 100 परसेन्ट भ्रष्टाचारी से 100 परसेन्ट पावन श्रेष्ठाचारी
दुनिया बननी है |
बाप कहते हैं मैं आया हूँ तुम बच्चों को शान्तिधाम-सुखधाम ले
चलने के लिए | तुम मुझे याद करो और सृष्टि चक्र को फिराओ | कोई
भी विकर्म नहीं करो | जो गुण इन देवताओ में हैं ऐसे गुण धारण
करने हैं | बाबा कोई तकलीफ़ नहीं देते हैं | कोई-कोई घरों में
भी ईविल सोल होती है तो आग लगा देती है, नुकसान करती है | इस
समय मनुष्य ही सब ईविल हैं ना | स्थूल में भी कर्मभोग होता है
| आत्मा एक-दो को दुःख देती है शरीर द्वारा, शरीर नहीं है तो
भी दुःख देती है | बच्चों ने देखा है जिसको घोस्ट कहते हैं वह
सफ़ेद छाया मुआफ़िक देखने में आते हैं | परन्तु उनका कुछ ख्याल
नहीं करना होता है | तुम जितना बाप को याद करेंगे उतना यह सब
ख़त्म होते जायेंगे | यह भी हिसाब-किताब है ना | घर में
बच्चियाँ कहते हैं – हम पवित्र रहना चाहती हैं | यह आत्मा कहती
है | और जिनमें ज्ञान नहीं है, वह कहते हैं पवित्र नहीं बनो |
फिर झगड़ा हो पड़ता है | इतना हंगामा होता है | अब तुम पवित्र
आत्मा बन रहे हो | वह है अपवित्र, तो दुःख देते हैं | हैं तो
आत्मा ना | उनको कहा जाता है ईविल आत्मा | शरीर से भी, तो बिगर
शरीर भी दुःख देते हैं | ज्ञान तो सहज है | स्वदर्शन चक्रधारी
बनना है | बाकी मुख्य है पवित्रता की बात | इसके लिए बाप को
ख़ुशी से याद करना है | रावण को ईविल कहेंगे ना | इस समय यह
दुनिया है ही ईविल | एक-दो से अनेक प्रकार के दुःख पाते रहते
हैं | ईविल पतित को कहा जाता है | पतित आत्मा में भी 5 विकार
अनेक प्रकार के होते हैं | कोई में विकार की आदत, कोई में
क्रोध की आदत, कोई में तंग करने की आदत, कोई में नुकसान करने
की आदत होती है | कोई में विकार की आदत होगी तो विकार न मिलने
कारण क्रोध में आकर बहुत मारते भी हैं | यह दुनिया ही ऐसी है |
तो बाप आकर धीरज देते हैं – हे आत्मायें, बच्चों धीरज धरो,
मुझे याद करते रहो और दैवीगुण भी धारण करो | ऐसे भी नहीं कहते
हैं कि धन्धा आदि नहीं करो | जैसे मिलेट्री वालों को लड़ाई में
जाना पड़ता है तो उन्हों को भी कहा जाता है शिवबाबा की याद में
रहो | गीता के अक्षरों को उठाए वह समझते हैं हम युद्ध के मैदान
में मरेंगे तो स्वर्ग में जायेंगे इसलिए ख़ुशी से लड़ाई में जाते
हैं | परन्तु वह तो बात ही नहीं | अब बाबा कहते हैं तुम स्वर्ग
में जा सकते हो सिर्फ़ शिवबाबा को याद करो | याद तो एक शिवबाबा
को ही करना है तो स्वर्ग में ज़रूर जायेंगे | जो भी आते हैं भल
फिर जाकर पतित बनते हैं तो भी स्वर्ग में ज़रूर आयेंगे | सजायें
खाकर, पावन बनकर फिर भी आयेंगे ज़रूर | बाप रहमदिल है ना | बाप
समझाते हैं कोई विकर्म न करो तो विकर्माजीत बनेंगे | यह
लक्ष्मी-नारायण विकर्माजीत हैं ना | फिर रावण राज्य में
विकर्मी बन जाते हैं | विक्रम संवत शुरू होता है ना | मनुष्यों
को तो कुछ भी पता नहीं है | तुम बच्चे अभी जानते हो यह
लक्ष्मी-नारायण विकर्माजीत बने हैं | कहेंगे विकर्माजीत
नम्बरवन फिर 2500 वर्ष के बाद विक्रम संवत शुरू होता है |
मोहजीत राजा की कहानी है ना | बाप कहते हैं नष्टोमोहा बनो |
मामेकम् याद करो तो पाप कटेंगे | जो 2500 वर्ष में पाप हुए हैं
वह 50-60 वर्ष में तुम स्वयं को सतोप्रधान बना सकते हो | अगर
योगबल नहीं होगा तो फिर नम्बर पीछे हो जायेंगे | माला तो बहुत
बड़ी है | भारत की माला तो ख़ास है | जिस पर ही सारा खेल बना हुआ
है | इसमें मुख्य है याद की यात्रा, और कोई तकलीफ़ नहीं है |
भक्ति में तो अनेकों से बुद्धियोग लगाते हैं | यह सब है रचना |
उनकी याद से किसका भी कल्याण नहीं होगा | बाप कहते हैं किसको
भी याद नहीं करो | जैसे भक्ति मार्ग में पहले सिर्फ़ तुम भक्ति
करते थे अब फिर पिछाड़ी में भी मुझे याद करो | बाप कितना क्लीयर
समझाते हैं | आगे थोड़ेही जानते थे | अभी तुमको ज्ञान मिला है |
बाप कहते हैं और संग तोड़ एक संग जोड़ो तो योग अग्नि से तुम्हारे
पाप भस्म हो जायेंगे | पाप तो बहुत करते आये हो | काम कटारी
चलाते हो | एक-दो को आदि-मध्य-अन्त दुःख देते आये हो | मूल बात
है काम कटारी की | यह भी ड्रामा है ना | ऐसे भी नहीं कहेंगे
ऐसा ड्रामा क्यों बना? यह तो अनादि खेल है | इसमें मेरा भी
पार्ट है | ड्रामा कब बना, कब पूरा होगा – यह भी नहीं कह सकते
| यह तो आत्मा में पार्ट भरा हुआ है | आत्मा की जो प्लेट है वह
कब घिसती नहीं है | आत्मा अविनाशी है, उसमें पार्ट भी अविनाशी
है | ड्रामा भी अविनाशी कहा जाता है | बाप जो पुनर्जन्म में
नहीं आते हैं वो ही आकर सब राज़ समझाते हैं | सृष्टि के
आदि-मध्य-अन्त का राज़ कोई भी नहीं समझा सकते | न बाप का
आक्यूपेशन, न आत्मा का, कुछ भी जानते नहीं | यह सृष्टि का चक्र
फिरता ही रहता है |
अब
पुरुषोत्तम संगमयुग है, जब सब मनुष्यमात्र उत्तम पुरुष बन जाते
हैं | शान्तिधाम में सब आत्मायें पवित्र उत्तम बन जाती हैं |
शान्तिधाम पावन है ना | नई दुनिया भी पवित्र है | वहाँ शान्ति
तो है ही, फिर शरीर मिलने से पार्ट बजाते हैं | यह हम जानते
हैं, हरेक को पार्ट मिला हुआ है | वह हमारा घर है, शान्ति में
रहते हैं | यहाँ तो पार्ट बजाना है | अब बाप कहते हैं भक्ति
मार्ग में तुमने मेरी अव्यभिचारी पूजा की | दुःखी नहीं थे |
अभी व्यभिचारी भक्ति में आने से तुम दुःखी बन पड़े हो | अब बाप
कहते हैं दैवी गुण धारण करो फिर भी आसुरी गुण क्यों? बाप को
बुलाया कि हमको आकर पावन बनाओ | फिर पतित क्यों बनते हो? उसमें
भी ख़ास काम को ज़रूर जीतना है तो तुम जगतजीत बनेंगे | मनुष्य तो
भगवान् के लिए कह देते हैं आपेही पूज्य आपेही पुजारी | गोया
उनको नीचे ले आते हैं | ऐसे पाप करते-करते महा-विकारी दुनिया
बन जाती है | गरुड़ पुराण में भी रौरव नर्क कहते हैं, जहाँ
बिच्छू टिण्डन सब काटते रहते हैं | शास्त्रों में क्या-क्या
बैठ दिखाया है | यह भी बाप ने समझाया है यह शास्त्र आदि सब
भक्ति मार्ग के हैं | इनसे कोई भी मेरे साथ नहीं मिलते हैं |
और ही तमोप्रधान बन पड़े हैं इसलिए मुझे बुलाते हैं कि आकर पावन
बनाओ तो पतित ठहरे ना | मनुष्य तो कुछ समझते नहीं हैं | जो
निश्चय बुद्धि हैं, वह तो विजयी हो जाते हैं | रावण पर विजय
पाकर रामराज्य में आ जाते हैं | बाप कहते हैं काम पर जीत पाओ,
इस पर ही हंगामा होता है | गाते हैं अमृत छोड़ विष क्यों खाते
हो? अमृत नाम सुनकर समझाते हैं गऊमुख से अमृत निकलता है | अरे,
गंगा जल को थोड़ेही अमृत कहा जाता है | यह तो ज्ञान अमृत की बात
है | स्त्री पति के चरण धोकर पीती है, उनको भी अमृत समझते हैं
| अगर अमृत है तो फिर हीरे समान बनें ना | यह तो बाप ज्ञान
देते हैं जिससे तुम हीरे जैसा बनते हो | पानी का नाम कितना
बाला कर दिया है | तुम ज्ञान अमृत पिलाते वह पानी पिलाते हैं |
तुम ब्राह्मणों का किसको भी पता नहीं है | वह कौरव-पाण्डव कहते
हैं परन्तु पाण्डवों को ब्राह्मण थोड़ेही समझते हैं | गीता में
ऐसे अक्षर हैं नहीं, जो पाण्डवों को ब्राह्मण समझें | बाप बैठ
सब शास्त्रों का सार समझाते हैं | बच्चों को कहते हैं
शास्त्रों में जो कुछ पढ़ा है और जो कुछ मैं सुनाता हूँ उसको जज
करो | तुम जानते हो आगे हम जो सुनते थे वह रांग था, अब राइट
सुनते हैं |
बाप ने समझाया है तुम सब सीतायें अथवा भक्तियाँ हो | भक्ति का
फल देने वाला है राम भगवान् | कहते हैं मैं आता हूँ फल देने |
तुम जानते हो हम स्वर्ग में अपार सुख भोगते हैं | उस समय बाकी
सब शान्तिधाम में रहते हैं | शान्ति तो मिलती है ना | वहाँ
विश्व में सुख-शान्ति-पवित्रता सब-कुछ है | तुम समझाते हो जबकि
विश्व में एक धर्म था तब ही शान्ति थी | फिर भी समझते नहीं हैं
| ठहरता कोई मुश्किल है | पिछाड़ी में बहुत आयेंगे | जायेंगे
कहाँ! यह एक ही हट्टी है | जैसे दुकानदार की चीज़ अच्छी होती है
तो दाम एक होता है | यह तो शिवाबाबा की हट्टी है, वह है
निराकार | ब्रह्मा भी ज़रूर चाहिए | तुम कहलाते हो
ब्रह्माकुमार-कुमारियां | शिव कुमारियां तो नहीं कहला सकते हो
| ब्राह्मण भी जरुर चाहिए | ब्राह्मण बनने बिगर देवता कैसे
बनेंगे | अच्छा!
मीठे-मीठे
सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और
गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
देवताओं जैसे गुण स्वयं में धारण करने हैं, अन्दर में जो भी
ईविल संस्कार हैं, क्रोध आदि की आदत है, उसे छोड़ना है |
विकर्माजीत बनना है इसलिए अब कोई भी विकर्म नहीं करना है |
2.
हीरे समान श्रेष्ठ बनने के लिए ज्ञान अमृत पीना और पिलाना है |
काम विकार पर सम्पूर्ण विजय पानी है | स्वयं को सतोप्रधान
बनाना है | याद के बल से सब पुराने हिसाब-किताब चुक्तू करने
हैं |
वरदान:-
ब्राह्मण जीवन में एकव्रता के पाठ द्वारा रूहानी रॉयल्टी में
रहने वाले सम्पूर्ण पवित्र भव
! 
इस ब्राह्मण जीवन में एकव्रता का पाठ पक्का कर प्यूरिटी की
रॉयल्टी को धारण कर लो तो सारे कल्प में यह रूहानी रॉयल्टी
चलती रहेगी | आपके रूहानी रॉयल्टी और प्यूरिटी की चमक परमधाम
में सर्व आत्माओं में श्रेष्ठ है | आदिकाल देवता स्वरूप में भी
यह पर्सनैलिटी विशेष रही है, फिर मध्यकाल में भी आपके चित्रों
की विधिपूर्वक पूजा होती है | इस संगमयुग पर ब्राह्मण जीवन का
आधार प्यूरिटी की रॉयल्टी है इसलिए जब तक ब्राह्मण जीवन में
जीना है तब तक सम्पूर्ण पवित्र रहना ही है |
स्लोगन:-
आप
सहनशीलता के देव और देवी बनो तो गाली देने वाले भी गले
लगायेंगे | 
ओम्
शान्ति
|