02-12-13
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे
–
बाप हर बात में कल्याणकारी है इसलिए जो डायरेक्शन मिलते हैं
उसमें आनाकानी न कर श्रीमत पर सदा चलते रहो”
प्रश्न:-
नौधा भक्ति और नौधा पढ़ाई दोनों से जो प्राप्तियाँ होती हैं,
उसमें क्या अन्तर है?
उत्तर:-
नौधा भक्ति से सिर्फ़ साक्षात्कार होता है, जैसे श्रीकृष्ण के
भक्त होंगे तो उन्हें श्रीकृष्ण का साक्षात्कार होगा, रास आदि
करेंगे लेकिन वे कोई वैकुण्ठपुरी वा श्रीकृष्णपुरी में नहीं
जाते
| तुम
बच्चे नौधा पढ़ाई पढ़ते हो जिससे तुम्हारी सब मनोकामनाएँ पूरी हो
जाती हैं | इस पढ़ाई से तुम वैकुण्ठपुरी में चले जाते हो |
गीत:-
आज नहीं तो कल....

ओम्
शान्ति
|
यह किसने कहा कि घर चल?
|
किसका बच्चा रूठकर चला जाता है तो मित्र-सम्बन्धी आदि उनके
पिछाड़ी जाते हैं, कहते हैं रूठे क्यों हो? अब चलो घर | यह भी
बेहद का बाप आकर सब बच्चों को कहते हैं | बाप भी है, दादा भी
है | जिस्मानी भी है तो रूहानी भी है | कहते हैं – हे बच्चे,
अब घर चलो, रात पूरी हुई है, अब दिन होता है | यह हो गई ज्ञान
की बातें | ब्रह्मा की रात, ब्रह्मा का दिन –यह किसने समझाया?
बाप बैठ ब्रह्मा और ब्रह्माकुमार कुमारियों को समझाते हैं |
आधाकल्प है रात अर्थात् पतित रावण का राज्य अथवा भ्रष्टाचारी
राज्य क्योंकि आसुरी मत पर चलते हैं | अब तुम श्रीमत पर हो |
श्रीमत भी है इनकागनीटो | हम जानते हैं बाप खुद आते हैं | उनका
रूप अलग है | रावण का रूप अलग है | उनको 5 विकार रूपी रावण कहा
जाता है | अभी रावण राज्य ख़लास होगा फिर ईश्वरीय राज्य होगा |
राम राज्य कहते हैं ना | सीता के राम को नहीं जपते हैं | माला
में राम-राम जपते हैं ना | वह परमात्मा को याद करते हैं | जो
सर्व का सद्गति-दाता है, उनको ही जपते हैं | राम माना गॉड |
माला जब जपते हैं तो कभी कोई व्यक्ति को याद नहीं करेंगे, उनकी
बुद्धि में दूसरा कोई आयेगा नहीं | तो अब बाप समझाते हैं रात
पूरी हुई | यह है कर्मक्षेत्र, स्टेज, जहाँ हम आत्मायें शरीर
धारण कर पार्ट बजाती हैं | 84 जन्मों का पार्ट बजाना है | फिर
उसमें वर्ण भी दिखाते हैं क्योंकि 84 जन्मों का हिसाब भी चाहिए
ना | किस-किस जन्म में, किस कुल में, किस वर्ण में आते हैं,
इसलिए ही विराट रूप भी दिखाया है | पहले-पहले हैं ब्राह्मण |
सिर्फ़ सतयुगी सूर्यवंशी में 84 जन्म हो न सकें | ब्राह्मण कुल
में भी 84 जन्म नहीं होते | 84 जन्म तो भिन्न-भिन्न नाम, रूप,
देश, काल में होते हैं | सतयुग सतोप्रधान से फिर कलियुग
तमोप्रधान में ज़रूर आना है | उनका भी टाइम दिया जाता है |
मनुष्य 84 जन्म कैसे लेते हैं – यह भी समझने की बात है |
मनुष्य तो समझ नहीं सकते तब तो बाप कहते हैं तुम अपने जन्मों
को नहीं जानते हो, मैं बतलाता हूँ | बाप समझते हैं ड्रामा
अनुसार सब भूलना ज़रूर है | अभी यह संगमयुग है | दुनिया तो कहती
है कलियुग अभी छोटा बच्चा है | इसको कहा जाता है अज्ञान, घोर
अन्धियारा | जैसे ड्रामा के एक्टर्स को मालूम होता है कि अभी
नाटक पूरा होने में 10 मिनट हैं, यह भी चैतन्य ड्रामा है | यह
कब पूरा होता है, मनुष्य नहीं जानते | मनुष्य तो घोर अन्धियारे
में हैं | बाप कहते हैं गुरु-गोसांई वेद-शास्त्र जप-तप आदि से
मैं नहीं मिलता हूँ | यह है भक्ति मार्ग की सामग्री | मैं तो
अपने समय पर आता हूँ, जब रात से दिन बनाना है अथवा अनेक धर्मों
का विनाश कर एक धर्म की स्थापना करनी है | जब सृष्टि चक्र पूरा
हो तब तो मैं स्वर्ग की स्थापना करूँ | झट बादशाही शुरू होती
है | तुम जानते हो हम फिर कोई राजाओं के पास जन्म लेते हैं फिर
आहिस्ते-आहिस्ते नई दुनिया बन जाती है | सब कुछ नया बनाना पड़ता
है | बाबा ने समझाया है आत्मा में पढ़ाई के संस्कार वा कर्म
करने के संस्कार रहते हैं | अब तुम बच्चों को आत्म-अभिमानी
बनना चाहिए | मनुष्य हैं सब देह-अभिमानी, जब आत्म-अभिमानी बनें
तब परमात्मा को याद कर सकें | पहले-पहले है आत्म-अभिमानी बनने
की बात | कहते भी सब हैं कि हम जीव आत्मा हैं | यह भी कहते हैं
आत्मा अविनाशी है, यह शरीर विनाशी है | आत्मा एक शरीर छोड़
दूसरा लेती है | इतना भी कहते हैं परन्तु इस पर चलते नहीं |
अभी तुम जानते हो आत्मा निराकारी दुनिया से आती है, उसमें
अविनाशी पार्ट है | यह बाप बैठ समझाते हैं | पुनर्जन्म लेते
हैं | ड्रामा तो हुबहू रिपीट होता है | फिर क्राइस्ट आदि सबको
आना पड़ेगा, अपने-अपने समय पर आकर धर्म स्थापन करते हैं |
तुम्हारा अभी यह है संगमयुगी ब्राह्मणों का धर्म | वह हैं
पुजारी ब्राह्मण, तुम हो पूज्य | तुम कभी पूजा नहीं करेंगे |
मनुष्य तो पूजा करेंगे | तो बाप समझाते हैं यह कितनी बड़ी पढ़ाई
है | कितनी धारणा करनी पड़ती है | विस्तार से धारणा करने में
नम्बरवार हैं | नटशेल में तो समझते हैं – बाबा रचता और यह उनकी
रचना है | अच्छा, यह तो समझते हो ना बाप है | बाप को सब भक्त
याद करते हैं | भक्त भी हैं, बच्चे भी हैं | भक्त बाबा कह
पुकारते हैं | अगर भक्त भगवान् हैं तो फिर बाबा कह किसको
पुकारते हैं | यह भी समझते नहीं | अपने को भगवान् समझ बैठ जाते
हैं | बाबा कहते हैं ड्रामा अनुसार जब ऐसी हालत हो जाती है,
भारत बिल्कुल ही लास्ट खाते में चला जाता है तब बाप आते हैं |
भारत जब पुराना हो तब फिर नया बने | नया भारत जब था तो और कोई
धर्म नहीं था | उसको स्वर्ग कहा जाता है | अभी पुराना भारत है,
इसको नर्क कहेंगे | वहाँ पूज्य थे, अब पुजारी हैं | पूज्य और
पुजारी का फ़र्क तो बता दिया है | हम आत्मा सो पूज्य, फिर हम
आत्मा सो पुजारी | हम सो ज्ञानी तू आत्मा, हम आत्मा पुजारी तू
आत्मा | आप ही पूज्य, आप ही पुजारी भगवान् को नहीं कहेंगे,
लक्ष्मी-नारायण को कहेंगे | तो यह बुद्धि मैं आना चाहिए कि वह
कैसे पूज्य फिर पुजारी बनते हैं?
बाप कहते हैं कल्प पहले भी मैंने ऐसे ही ज्ञान दिया था,
कल्प-कल्प देता हूँ | मैं आता ही हूँ कल्प के संगमयुग पर |
मेरा नाम ही पतित-पावन है | जब सारी दुनिया पतित होती है तब
मैं आता हूँ | देखो, यह झाड़ है, इसमें ब्रह्मा ऊपर में खड़ा है
| पहले आदि में दिखाते हैं | अभी सब पिछाड़ी में हैं | जैसे
ब्रह्मा पिछाड़ी में प्रत्यक्ष हुआ है वैसे वह भी पिछाड़ी में
आयेंगे | जैसे क्राइस्ट है तो वह फिर अन्त में आयेगा | परन्तु
हम पिछाड़ी यानी डाल के अन्त में उनका चित्र नहीं दे सकते हैं,
समझा सकते हैं | जैसे यह देवी-देवता धर्म की स्थापना करने वाला
प्रजापिता ब्रह्मा है, अभी झाड़ की एन्ड (अन्त) में खड़ा है –
क्राइस्ट भी क्रिश्चियन धर्म का प्रजापिता है ना | जैसे यह
प्रजापिता ब्रह्मा वैसे वो प्रजापिता क्राइस्ट, प्रजापिता
बुद्ध......यह सब धर्म की स्थापना करने वाले हैं | सन्यासियों
का शंकराचार्य,
उनको भी पिता कहेंगे | वह गुरु कहते हैं | कहेंगे हमारा गुरु
शंकराचार्य था | तो यह जो डाल के आदि में खड़े हैं, यह फिर जन्म
लेते-लेते अन्त में आते हैं | अभी सब तमोप्रधान स्टेज में हैं
| यह भी आकर समझेंगे | पिछाड़ी में सलाम करने आयेंगे ज़रूर |
उन्हों को भी कहेंगे बेहद के बाप को याद करो | बेहद का बाप
सबके लिए कहते हैं देह सहित देह के सब सम्बन्धों को छोड़ो | यह
ज्ञान हर एक धर्म वाले के लिए है | सब देह के धर्म छोड़ अपने को
अशरीरी समझ, बाप को याद करो | जितना याद करेंगे, ज्ञान की
धारणा करेंगे उतना ऊँच पद पाएंगे | कल्प पहले जिसने जितना
ज्ञान लिया होगा, उतना ज़रूर आकर लेंगे |
तुम बच्चों को कितना फ़खुर रहना चाहिए – हम विश्व के रचयिता बाप
के बच्चे हैं, बाप हमको विश्व का मालिक बनाते हैं, राजयोग
सिखला रहे हैं ! कितनी सहज बात है | परन्तु चलते-चलते थोड़ी-सी
बात में संशय आ जाता है, इसको ही माया का तूफ़ान वा परीक्षा कहा
जाता है |
यह
तो बाप कहते ही हैं कि गृहस्थ व्यवहार में रहना है | सबको
घरबार छुड़ा दूँ तो सब यहाँ बैठ जायें | व्यवहार में भी पास
करना है | फिर समय पर सर्विस में लग जायेंगे | जिन्होंने धन्धे
आदि को छोड़ा है उन्हों को फिर सर्विस में लगाते हैं | तो कोई
बिगड़ पड़ते हैं | कोई तो समझते हैं श्रीमत में कल्याण है |
श्रीमत पर ज़रूर चलना ही है | डायरेक्शन मिला, उसमें फिर
आनाकानी नहीं करनी चाहिए | बाप हर बात में कल्याणकारी है |
माया बड़ी चंचल है | बहुत हैं जो समझते हैं ऐसे रहने से तो कोई
धन्धा आदि करें, कोई समझते हैं शादी करें | बुद्धि चक्र खाती
रहती है | फिर पढ़ाई को छोड़ देते हैं | कोई तो बाप से गारन्टी
करते हैं हम श्रीमत पर ज़रूर चलेंगे | वह है आसुरी मत, यह है
ईश्वरीय मत | आसुरी मत पर चलने से बहुत कड़ी सजायें खाते हैं |
उन्होंने फिर गरुड़ पुराण में डराने की रोचक बातें लिख दी हैं,
जिससे जास्ती पाप न करें | परन्तु फिर भी सुधरते थोड़ेही हैं |
यह सब बाप समझाते हैं | ज्ञान का सागर कोई मनुष्य नहीं हो सकता
| ज्ञान का सागर, नॉलेजफुल बाप समझा रहे हैं | जो समझते हैं वह
फिर समझाते हैं, कहते हैं यह ठीक बात है, हम फिर आयेंगे | बस,
प्रदर्शनी से बाहर निकले और ख़लास | हाँ, कोई 2-3 भी निकलें तो
भी अच्छा है, प्रजा तो बहुत बनती रहती है | वर्सा पाने लायक
कोई मुश्किल निकलते हैं | राजा-रानी के एक-दो बच्चे होंगे |
उनको राजकुल का कहेंगे | प्रजा तो कितनी ढेर होती है | प्रजा
तो झट बनती है | राजायें थोड़ेही बनते हैं | 16108 त्रेता के
अन्त में जाकर बनते हैं | प्रजा तो करोड़ों की अन्दाज़ में होगी
| यह समझने की बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए | हम पारलौकिक बाप से
वर्सा ले रहे हैं | बाप का फ़रमान है मुझे याद करो और वर्से को
याद करो | मनमनाभव और मध्याजी भव | स्वर्ग है विष्णुपुरी और यह
रावणपुरी | शान्तिधाम, सुखधाम और दुःखधाम – यह बाप समझाते हैं
| बाप को याद करने से अन्त मति सो गति हो जायेगी | भक्ति मार्ग
में समझो कृष्ण को याद करते हैं परन्तु ऐसे नहीं कि कृष्णपुरी
में पहुँच जायेंगे | नहीं, करके कृष्णपुरी में जाकर ध्यान में
रास आदि करके लौटेंगे | वह है नौधा भक्ति का प्रभाव, जिससे
उनको साक्षात्कार हो जाता है, मनोकामना पूरी हो जाती है | बाकी
सतयुग तो सतयुग है | वहाँ जाने के लिए फिर नौधा पढ़ाई चाहिए,
नौधा भक्ति नहीं | पढ़ते रहो, मुरली ज़रूर पढ़नी चाहिए | सेन्टर
ज़रूर जाना है | नहीं तो मुरली लेकर घर में ज़रूर पढ़ो | कोई को
कहा जाता है सेन्टर जाओ, हरेक के लिए अलग-अलग है | सबके लिए एक
बात नहीं हो सकती | ऐसे नहीं बाबा कहते हैं दृष्टि देकर खाओ तो
बस, परन्तु बाबा कहते हैं लाचारी हालत में और कुछ नहीं कर सकते
तो दृष्टि देकर खाओ | बाकी सबके लिए थोड़ेही बाबा कहेंगे | जैसे
बाबा कोई को कहते हैं बाइसकोप में भले जाओ | परन्तु यह सबके
लिए नहीं है | कोई के साथ जाना पड़ता है तो उन्हें भी नॉलेज
देनी है | यह हद का नाटक है, यह बेहद का नाटक है | तो सर्विस
करनी पड़े | ऐसे नहीं सिर्फ़ देखने के लिए जाना है | शमशान में
भी जाकर सर्विस करना है | अच्छा!
मीठे-मीठे
सिकिलधे लकी ज्ञान सितारों प्रति, मात-पिता बापदादा का
नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार याद-प्यार और गुडमॉर्निंग
|
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते
|
धारणा
के
लिए
मुख्य
सार:-
1.
बाप की हर बात में कल्याण है, यह समझ निश्चयबुद्धि होकर चलना
है, कभी भी संशय में नहीं आना है | श्रीमत को यथार्थ रीति
समझना है |
2.
आत्म-अभिमानी रहने का अभ्यास करना है
|
ड्रामा में हर एक्टर का अनादि पार्ट है इसलिए साक्षी हो देखने
का अभ्यास करना है |
वरदान:-
अपने फीचर द्वारा अनेकों का फ्युचर श्रेष्ठ बनाने वाले श्रेष्ठ
सेवाधारी भव
बोलने की सेवा तो यथाशक्ति समय प्रमाण करते ही हो लेकिन
संगमयुग का जो फ्युचर फरिश्ता स्वरूप है, वह आपके फीचर्स से
दिखाई दे तब सहज सेवा कर सकते हो
|
जैसे जड़ चित्र फ़ीचर्स द्वारा अन्तिम जन्म तक सेवा कर रहे हैं
ऐसे आपके फ़ीचर्स में सदा सुख की, शान्ति की, ख़ुशी की झलक हो तो
श्रेष्ठ सेवा कर सकेंगे | आपके फ़ीचर्स को देखकर कैसी भी दुःखी
अशान्त, परेशान आत्मा अपना श्रेष्ठ फ्युचर बना लेगी
|
स्लोगन:-
भाग्यविधाता बाप को अपना सर्व सम्बन्धी बना लो तो सर्व
प्राप्तियों से सम्पन्न बन जायेंगे
|
ओम्
शान्ति
|