02-08-14
प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - विनाशी शरीरों से प्यार न करके अविनाशी बाप से प्यार
करो तो रोने से छूट जायेंगे” 
प्रश्न:-
अनराइटियस प्यार क्या है और उसका परिणाम क्या होता है?
उत्तर:-
विनाशी शरीरों में मोह रखना अनराइटियस प्यार है । जो विनाशी
चीज़ों में मोह रखते हैं,
वह
रोते हैं । देह- अभिमान के कारण रोना आता है । सतयुग में सब
आत्म- अभिमानी हैं,
इसलिए
रोने की बात ही नहीं रहती । जो रोते हैं वह खोते हैं । अविनाशी
बाप की अविनाशी बच्चों को अब शिक्षा मिलती है,
देही-
अभिमानी बनो तो रोने से छूट जायेंगे ।
ओम्
शान्ति |
यह
तो बच्चे ही जानते हैं कि आत्मा अविनाशी है और बाप भी अविनाशी
है,
तो
प्यार किसको करना चाहिए?
अविनाशी आत्मा को । अविनाशी को ही प्यार करना है,
विनाशी शरीर को थोड़ेही प्यार करना चाहिए । सारी दुनिया विनाशी
है,
हर
एक चीज़ विनाशी है,
यह
शरीर विनाशी है,
आत्मा अविनाशी है । आत्मा का प्यार अविनाशी होता है । आत्मा
कभी मरती नहीं,
उसको
कहा जाता है राइटियस । बाप कहते हैं तुम अनराइटियस बन गये हो ।
वास्तव में अविनाशी का अविनाशी के साथ प्यार होना चाहिए ।
तुम्हारा प्यार विनाशी शरीर के साथ हो गया है इसलिए रोना पड़ता
है । अविनाशी के साथ प्यार नहीं । विनाशी के साथ प्यार होने से
रोना पड़ता है । अभी तुम अपने को अविनाशी आत्मा समझते हो तो
रोने की बात नहीं क्योंकि आत्म- अभिमानी हैं । तो बाप अब तुम
बच्चों को आत्म- अभिमानी बनाते हैं । देह- अभिमानी होने से
रोना होता है । विनाशी शरीर पिछाड़ी रोते हैं । समझते भी हैं
आत्मा मरती नहीं है । बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो । तुम
अविनाशी बाप के बच्चे अविनाशी आत्मा हो,
तुमको रोने की दरकार नहीं । आत्मा एक शरीर छोड़ जाए दूसरा पार्ट
बजाती है । ये तो खेल है । तुम शरीर में ममत्व क्यों रखते हो ।
देह सहित देह के सब सम्बन्धों से बुद्धियोग तोड़ो । अपने को
अविनाशी आत्मा समझो । आत्मा कभी मरती नहीं । गायन भी है जो
रोया सो खोया । आत्म- अभिमानी बनने से ही लायक बन जायेंगे । तो
बाप आकर देह- अभिमानी से आत्म- अभिमानी बनाते हैं । कहते हैं
तुम कैसे भूले हुए हो । जन्म- जन्मान्तर तुमको रोना पड़ा है ।
अब फिर से तुमको आत्म- अभिमानी बनने की शिक्षा मिलती है । फिर
तुम कभी रोयेंगे ही नहीं । यह है रोने वाली दुनिया,
वह
है हँसने की दुनिया । यह दु :ख की दुनिया,
वह
सुख की दुनिया । बाप बहुत अच्छी रीति से शिक्षा देते हैं ।
अविनाशी बाप की अविनाशी बच्चों को शिक्षा मिलती है । वह देह-
अभिमानी हैं तो देह को ही देख शिक्षा देते हैं । तो देह की याद
आने से रोते हैं । देखते भी हैं शरीर खत्म हो गया फिर उनको याद
करने से क्या फायदा । मिट्टी को याद किया जाता है क्या?
अविनाशी चीज़ ने जाकर दूसरा शरीर लिया ।
यह
तो बच्चे जानते हैं - जो अच्छा कर्म करता है,
उनको
फिर शरीर भी अच्छा मिलता है । कोई को खराब रोगी शरीर मिलता है,
वह
भी कर्मो अनुसार है । ऐसा नहीं कि अच्छा कर्म किया है तो ऊपर
चले जायेंगे । नहीं,
ऊपर
तो कोई जा नहीं सकते । अच्छे कर्म किये हैं तो अच्छा कहलायेंगे
। जन्म अच्छा मिलेगा फिर भी नीचे तो उतरना ही है । तुम जानते
हो कि हम चढ़ते कैसे हैं । भल अच्छे कर्मों से कोई महात्मा
बनेगा फिर भी कला तो कम होती ही जायेगी । बाप कहते हैं फिर भी
ईश्वर को याद कर अच्छा कर्म करते हैं तो उनको अल्पकाल क्षण
भंगुर सुख देता हूँ । फिर भी सीढ़ी नीचे तो उतरना ही है । नाम
करके अच्छा हो । यहाँ तो मनुष्य अच्छे-बुरे कर्मो को भी नहीं
जानते हैं । रिद्धि-सिद्धि वालों को कितना मान देते हैं ।
उन्हों के पिछाड़ी मनुष्य जैसे हैरान होते हैं । है तो सारा
अज्ञान । समझो कोई इनडायरेक्ट दान-पुण्य करते हैं,
धर्मशाला,
हॉस्पिटल बनाते हैं । तो दूसरे जन्म में उसका एवजा जरूर मिलता
है । बाप को याद करते हैं,
भल
गालियाँ भी देते हैं तो भी मुख से भगवान् का नाम कहते हैं ।
बाकी अन्जान होने कारण जानते कुछ नहीं । भगवान को याद कर रूद्र
पूजा करते हैं,
रूद्र को भगवान समझते हैं । रूद्र यज्ञ रचते हैं । शिव वा
रूद्र की पूजा करते हैं । बाप कहते हैं मेरी पूजा करते हैं
परन्तु बेसमझी से क्या-क्या बनाते हैं,
क्या-क्या करते हैं । जितने मनुष्य उतने उन्हों के गुरू हैं ।
झाड़ में नये-नये पत्ते,
टाल-टालियां आदि निकलते हैं तो वह कितने शोभते हैं । सतोगुणी
होने के कारण उनकी महिमा होती है । बाप कहते हैं कि यह दुनिया
है ही विनाशी चीजों को प्यार करने वाली । कोई-कोई का बहुत
प्यार होता है तो मोह में जैसे पागल बन जाते हैं । बड़े-बड़े सेठ
लोग मोहवश पागल हो जाते हैं । माताओं को ज्ञान न होने कारण
विनाशी शरीर पिछाड़ी विधवा बन कितना रोती,
याद
करती रहती हैं । अभी तुम अपने को आत्मा समझ,
दूसरे को भी आत्मा देखते हो तो जरा भी दु :ख नहीं होता । पढ़ाई
को सोर्स ऑफ इनकम कहा जाता है । पढ़ाई में एम ऑबजेक्ट भी होती
है । परन्तु वह है एक जन्म के लिए । गवर्मेन्ट से पगार मिलता
है । पढ़कर धंधाधोरी करते हैं,
तब
पैसे आदि मिलते हैं । यहाँ तो फिर बात ही नई है । तुम अविनाशी
ज्ञान रत्नों से झोली कैसे भरते हो । आत्मा समझती है कि बाबा
हमको अविनाशी ज्ञान खजाना देते हैं । भगवान पढ़ाते हैं तो जरूर
भगवान भगवती ही बनायेंगे । परन्तु वास्तव में इन
लक्ष्मी-नारायण को भगवान- भगवती समझना रांग है । अभी तुम बच्चे
जानते हो - ओहो,
जब
हम देह- अभिमानी हो जाते हैं तो हमारी बुद्धि कितनी डिग्रेट हो
जाती है । जैसे जानवर बुद्धि बन जाते हैं । जानवरों की सेवा भी
बहुत अच्छी होती है । मनुष्यों की तो कुछ भी नहीं । रेस के
घोड़ों आदि की कितनी सम्भाल होती है । यहाँ के मनुष्यों की देखो
क्या हालत है । कुत्ते को कितने प्यार से सम्भालते हैं । चाटते
रहते हैं । साथ में सुलाते भी हैं । देखो दुनिया का क्या हाल
हो गया है । वहाँ सतयुग में यह धंधा होता नहीं ।
तो
बाप कहते हैं - बच्चों,
तुमको माया रावण ने अनराइटियस बना दिया है । अनराइटियस राज्य
है ना । मनुष्य अनराइटियस तो सारी दुनिया भी अनराइटियस हो जाती
है । राइटियस और अनराइटियस दुनिया में देखो फर्क कितना है!
कलियुग की हालत देखो क्या है! मैं स्वर्ग स्थापन कर रहा हूँ तो
माया भी अपना स्वर्ग दिखाती है,
टैम्पटेशन देती है । आर्टीफिशल धन कितना है । समझते हैं हम
यहाँ ही स्वर्ग में बैठे हैं । स्वर्ग में थोड़ेही इतने ऊंचे 100
मंजिल के मकान आदि होते हैं । कैसे- कैसे मकान सजाते हैं,
वहाँ
तो डबल स्टोरी के भी मकान नहीं होते । मनुष्य ही बहुत थोड़े
होते हैं । इतनी जमीन तुम क्या करेंगे । यहाँ जमीन के पिछाड़ी
कितना लड़ते-झगड़ते हैं । वहाँ सारी जमीन तुम्हारी रहती है ।
कितना रात दिन का फर्क है । वह लौकिक बाप,
यह
पारलौकिक बाप है । पारलौकिक बाप बच्चों को क्या नहीं देते हैं
। आधाकल्प तुम भक्ति करते हो । बाप साफ कहते हैं इनसे मुक्ति
नहीं मिलती है अर्थात् मेरे से नहीं मिलते । तुम मुक्तिधाम में
मेरे से मिलते हो । मैं भी मुक्तिधाम में रहता हूँ । तुम भी
मुक्तिधाम में रहते हो फिर वहाँ से तुम स्वर्ग में जाते हो ।
वहाँ स्वर्ग में मैं नहीं होता । यह भी ड्रामा है । फिर हूबहू
ऐसे रिपीट होगा फिर यह ज्ञान भूल जायेगा । प्राय : लोप हो
जायेगा । जब तक संगमयुग नहीं आया है तब तक गीता का ज्ञान हो
कैसे सकता । बाकी जो भी शास्त्र आदि हैं,
वह
है भक्ति मार्ग के शास्त्र ।
अब
तुम नॉलेज सुन रहे हो । मैं बीजरूप ज्ञान का सागर हूँ । तुमको
कुछ भी करने नहीं देता,
पाँव
भी पड़ने नहीं देता । पाँव किसका पड़ेगे । शिवबाबा के तो पांव है
नहीं । यह तो ब्रह्मा के पांव पड़ना हो जायेगा । मैं तो
तुम्हारा गुलाम हूँ । उनको कहते हैं निराकारी,
निरहंकारी,
सो भी जब वह एक्ट में आये तब तो निरहंकारी कहा
जाये । बाप तुमको अथाह ज्ञान देते हैं । यह है अविनाशी ज्ञान
रत्नों का दान । फिर जो जितना लेवे । अविनाशी ज्ञान रत्न लेकर
फिर औरों को दान करते जाओ । इन रत्नों के लिए ही कहा जाता है -
एक-एक रत्न लाखों का है । कदम-कदम पर पदम् देने वाला तो एक ही
बाप है । सर्विस पर बड़ा अटेंशन चाहिए । तुम्हारा कदम है याद की
यात्रा का,
उनसे
तुम अमर बन जाते हो । वहाँ मरने आदि का फिक्र होता नहीं । एक
शरीर छोड़ दूसरा लिया । मोहजीत राजा की कथा भी सुनी होगी । यह
तो बाप बैठ समझाते हैं । अब बाप तुमको ऐसा बनाते हैं,
अभी
की ही बातें हैं ।
रक्षाबंधन का पर्व भी मनाते हैं । यह कब की निशानी है?
कब
भगवान ने कहा कि पवित्र बनो?
यह
मनुष्यों को क्या पता कि नई दुनिया कब,
पुरानी दुनिया कब होती है?
यह
भी किसको पता नहीं । इतना कहते हैं कि अभी कलियुग है । सतयुग
था,
अभी
नहीं है । पुनर्जन्म को भी मानते हैं । 84 लाख कह देते हैं तो
जरूर पुनर्जन्म हुआ ना । निराकार बाप को सब याद करते हैं । वह
है सब आत्माओं का बाप,
वही
आकर समझाते हैं । देहधारी बापू तो बहुत हैं । जानवर भी अपने
बच्चों के बापू हैं । उनके लिए तो ऐसा नहीं कहेंगे कि जानवरों
का बाप । सतयुग में कोई कुछ कीचड़पट्टी होती नहीं । जैसा मनुष्य
वैसा फर्नीचर होता है । वहाँ पंछी आदि भी फर्स्टक्लास खूबसूरत
होते हैं । सब अच्छी- अच्छी चीज़ें होगी । वहाँ फल कितने स्वीट
बड़े होते हैं । फिर वह सब कहाँ चला जाता है! स्वीट से निकल
कडुवाहट आ जाती है । थर्ड क्लास बनते हैं तो चीज़े भी थर्ड
क्लास बन जाती हैं । सतयुग है फर्स्टक्लास तो सब चीज़ें
फर्स्टक्लास मिलती हैं । कलियुग में हैं थर्ड क्लास । सब चीज़ें
सतो,
रजो,
तमो........ से पास होती हैं । यहाँ तो कोई मज़ा नहीं है ।
आत्मा भी तमोप्रधान तो शरीर भी तमोप्रधान है । अभी तुम बच्चों
को ज्ञान है,
कहाँ
वह,
कहाँ
यह,
रात-दिन का फर्क है । बाप तुमको कितना ऊंच बनाते हैं । जितना
याद करेंगे,
हेल्थ-वेल्थ दोनों मिल जायेंगे । बाकी क्या चाहिए । दोनों
चीजों से एक नहीं होगी तो हैप्पीनेस नहीं होगी । समझो हेल्थ है,
वेल्थ नहीं तो क्या काम के । गाते भी हैं -
' '
पैसा
है तो लाडकाना घूमकर आओ ।
''
बच्चे समझते हैं - भारत सोने की चिड़िया था,
अभी
सोना कहाँ । सोना,
चांदी,
ताम्बा गया,
अभी
तो कागज ही कागज हैं । कागज पानी में बह जाये तो पैसे कहाँ से
मिलें । सोना तो बहुत भारी होता है,
वह
वहाँ ही पड़ा रहता है । आग भी सोने को जला न सकें । तो यहाँ सब
दुःख की बातें हैं । वहाँ यह सब बातें होती नहीं । यहाँ इस समय
अपार दुःख हैं । बाप आते ही तब हैं जब अपार दु :ख हैं,
कल
फिर अपार सुख होगा । बाबा तो कल्प-कल्प आकर पढ़ाते हैं,
यह
कोई नई बात थोड़ेही है । खुशी में रहना चाहिए । खुशी ही खुशी,
यह
अन्त की बात है । अतीन्द्रिय सुख गोप-गोपियों से पूछो । पिछाड़ी
में तुम बहुत अच्छी रीति समझ जाते हो ।
रीयल
शान्ति किसे कहा जाता है,
यह
बाप ही बतलाते हैं । तुम बाप से शान्ति का वर्सा लेते हो ।
उनको सब याद करते हैं । बाप शान्ति का सागर है । बाप समझाते
हैं मेरे पास आ कौन सकते हैं । फलाना-फलाना धर्म फलाने-फलाने
समय पर आते हैं । स्वर्ग में तो आ न सकें । अभी साधू सन्त ढेर
निकल पड़े हैं तो उन्हों की महिमा होती है । पवित्र हैं तो उनकी
महिमा जरूर होनी चाहिए । अभी नये उतरे हैं । पुरानों की तो
इतनी महिमा हो न सकें । वह तो सुख भोग तमोप्रधान में चले गये
हैं । कितने ढेर गुरू किस्म-किस्म के निकलते जाते हैं,
इस
बेहद के झाड़ को कोई जानते नहीं हैं । बाप समझाते हैं कि भक्ति
की सामग्री इतनी है,
जितना झाड़ फैला होता है । ज्ञान बीज कितना थोड़ा है । भक्ति को
आधाकल्प लगता है । यह ज्ञान तो सिर्फ इस एक अन्तिम जन्म के लिए
है । ज्ञान को प्राप्त कर तुम आधाकल्प के लिए मालिक बन जाते हो
। भक्ति बंद हो जाती है,
दिन
हो जाता है । अभी तुम सदाकाल के लिए हर्षित बनते हो,
इसको
कहा जाता है ईश्वर की अविनाशी लॉटरी । उसके लिए पुरूषार्थ करना
पड़ता है । ईश्वरीय लॉटरी और आसुरी लॉटरी में कितना फर्क होता
है । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार
और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1.
तुम्हारे याद के हर कदमों में पदम् हैं,
इससे ही अमर पद प्राप्त करना है । अविनाशी ज्ञान रत्न जो बाप
से मिलते हैं,
उनका दान करना है ।
2.
आत्म- अभिमानी बन अपार खुशी का अनुभव करना है
। शरीरों से मोह निकाल सदा हर्षित रहना है,
मोहजीत
बनना है ।
वरदान:-
महादानी बन फ्राकदिली से खुशी का खजाना बांटने वाले मास्टर
रहमदिल भव
!
लोग
अल्पकाल की खुशी प्राप्त करने के लिए कितना समय वा धन खर्च
करते हैं फिर भी सच्ची खुशी नहीं मिलती,
ऐसे
आवश्यकता के समय आप आत्माओं को महादानी बन फ्राकदिली से खुशी
का दान देना है । इसके लिए रहमदिल का गुण इमर्ज करो । आपके जड़
चित्र वरदान दे रहे हैं तो आप भी चैतन्य में रहमदिल बन बांटते
जाओ,
क्योंकि परवश आत्मायें हैं । कभी ये नहीं सोचो कि ये तो सुनने
वाले ही नहीं है,
आप
रहमदिल बन देते जाओ । आपकी शुभ भावना उन्हों को फल अवश्य देगी
।
स्लोगन:-
योग की शक्ति द्वारा हर कर्मेन्द्रिय को ऑर्डर में चलाने वाले
ही स्वराज्य अधिकारी हैं । 
ओम्
शान्ति |