17-08-14    प्रातः मुरली   ओम् शान्ति  “अव्यक्त-बापदादा”   रिवाइज:05-12-78   मधुबन
 


"मरजीवा जन्म का निजी संस्कार - पहली स्मृति और पहला बोल"


आज बापदादा विश्व की सर्वश्रेष्ठ आत्माओं को देख हर्षित हो रहे हैं । सर्व आत्माओं में से बहुत थोड़ी-सी आत्माओं का ऐसा श्रेष्ठ भाग्य है - जैसे बच्चे भाग्य विधाता बाप को देख हर्षित होते हैं वैसे बाप भी भाग्यवान बच्चों को पाकर बच्चों से भी ज्यादा खुश होते हैं क्योंकि इतने समय से और इतने सब बच्चे बिछुड़े हुए फिर से मिल जाए तो क्यों नहीं खुशी होगी । हर बच्चे की विशेषता या हर सितारे की चमक, हर रूह की लात, रूहानियत की ईश्वरीय झलक जितना बाप जानते हैं उतना बच्चे स्वयं भी कभी भूल जाते हैं । सर्व विघ्नों से, सर्वप्रकार की परिस्थितियों से या तमोगुणी प्रकृति की आपदाओं से सेकण्ड में विजयी बनने के लिए सिर्फ एक बात निश्चय और नशे में रहे - वह कौन सी? जो बार-बार जानते भी हो, संकल्प तक स्मृति में रहते हो लेकिन संस्कार रूप में नहीं रहते हो - सोचते भी हो, समझते भी हो, सुनते भी हो, फिर भी कभी- कभी भूल जाते हो । वह क्या? बहुत पुरानी बात है - वाह रे मैं - यह सुनते खुश भी होते हो, फिर भी भूल जाते हो । इस मरजीवा जीवन के संस्कार - वाह रे मैं - ही हैं । तो अपने जन्म के निजी संस्कार जन्म की पहली स्मृति, जन्म का पहला बोल - मैं श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा हूँ, इसको भी भूल जाते हैं । भूलने का खेल अच्छा लगता है । आधा कल्प भूलने के खेल में खेला - अब भी यही खेल अच्छा लगता है क्या? ब्राह्मण अर्थात् समर्थी स्वरूप । स्वरूप को भूलना, इसको क्या कहेंगे? बापदादा को बच्चों के इस खेल को देख तरस आता है, हँसी भी आती है । इतनी महान आत्मायें और करती क्या हैं? और भी एक बहुत वण्डरफुल खेल करते हो । कौनसा? जानते भी हो अच्छी तरह से आप लोग ही बताओ कि क्या करते हो? कोई ऑख मिचौनी करते । कभी वाह कहते हो, कभी हाय करते हो अच्छा यह तो सब जानते हैं कि करते हैं, इससे भी वण्डरफुल और खेल हैं जब बाप के बच्चे बने, मरजीवा बने तो पहली प्रतिज्ञा कौनसी की? यह भी अच्छी तरह से जानते हो - वायदा क्या किया, उसको भी जानते हो । बाप ने वायदा कराया और आपने स्वीकार भी किया । स्वीकार करने के बाद फिर क्या करते हो? बाप ने कहा शुद्रपन के विकारी संस्कार छोड़ो आत्मा के विकारी संस्कार रूपी चोला परिवर्तन किया और ईश्वरीय संस्कार का दिव्य चोला पहना, शूद्रपन की निशानियाँ अशुद्ध वृत्ति और दृष्टि परिवर्तन कर पवित्र दृष्टि और वृत्ति विशेष निशानियॉ धारण की, सर्वश्रेष्ठ ते श्रेष्ठ सम्बन्ध और सम्पत्ति के अधिकारी बने - यह भी अच्छी तरह से याद है, लेकिन फिर क्या करते? जो श्रेष्ठ आत्मायें होती हैं वह संकल्प से भी छोड़ी हुई अर्थात् त्याग की हुई बात फिर से धारण नहीं करती हैं । जैसे धरनी पर गिरी हुई वा फेकी हुई चीज रॉयल बच्चे कभी नहीं उठायेंगे । आप सबने संकल्प धारण किया और यह विकार बुद्धि से फेंके । बेकार समझ, बिगड़ी हुई वस्तु समझ प्रतिज्ञा की और त्याग किया, वचन लिया कि फिर से यह विष सेवन नहीं करेंगे, फिर क्या करते हो? फेंकी हुई चीज, गन्दी चीज, बेकार चीज, जली सड़ी हुई वस्तु फिर से उठाकर यूज क्यों करते हो? समझा क्या खेल करते हो? अनजाने का खेल करते हो । खेल देखकर तरस भी पड़ता और हँसी भी आती । जानी जाननहार तो बने हो लेकिन बनना है करनहार । अब क्या करेंगे करनहार बनने का विशेष कार्यक्रम करके दिखाओ । संकल्प द्वारा त्याग की हुई बेकार वस्तुओं को संकल्प में भी स्वीकार नहीं करो । सोचो और स्वयं से पूछो - कौन हूँ और क्या कर रहा हूँ? वचन क्या किया और कर्म क्या कर रहे हैं? वायदा क्या किया और निभा क्या रहे हैं? अपने स्वमान, श्रेष्ठ स्मृति, श्रेष्ठ जीवन के समर्थी स्वरूप बनो । कहना क्या और किया क्या? ऐसे वण्डरफुल खेल अब बन्द करो । श्रेष्ठ स्वरूप, श्रेष्ठ पार्टधारी बन श्रेष्ठता का खेल करो । ऐसी सम्पूर्ण आहुति का संकल्प करो तब परिवर्तन समारोह होगा । इस समारोह की डेट संगठित रूप में निश्चित करो । अच्छा ।

ऐसे दृढ़ संकल्पधारी, संकल्प और स्वरूप में समान मूर्त, जाननहार और करनहार, हर कर्म द्वारा स्वयं की श्रेष्ठता और बाप की प्रत्यक्षता करने वाली सर्वश्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते । 

दादियों से -

बाप तो बच्चों के बुलाने पर आ जाते हैं । बच्चे जो आज्ञा करें वह मानते हैं लेकिन इस बार कुछ साथ में ले भी जाना है । बच्चे तो साथ हैं ही । लेकिन साथ ले क्या जायेंगे? हर बच्चे के दृढ़ संकल्प की अन्तिम आहुति ले जायेंगे । यज्ञ का प्रसाद अन्तिम आहुति होती है । यज्ञ की रचना साकार सृष्टि में साकार द्वारा हुई - ब्रह्मा ने अपना पार्ट बजाकर ब्राह्मणों को यज्ञ की जिम्मेवारी तो दी, यज्ञ की विशेष प्रसादी बापदादा लेंगे । कोई भी मिलने आते हैं तो उनको प्रसाद देते हो ना । बापदादा भी प्रसादी ले जायेंगे । यह प्रसाद देना अर्थात् विश्व परिवर्तन होना है । इस शिवरात्रि पर सेवा के साथ, जिससे अन्य अनेक आत्माओं को परिचय मिले वह तो करेंगे ही, लेकिन साथ- साथ ऐसा संकल्प करो कि परिचय के साथ बाप की झलक देखने या अनुभव करने का प्रसाद भी लेंवे । जैसे कोई फक्शन आदि होता है तो जहाँ प्रसाद मिलता है वहाँ सभी को आकर्षण होती है । न चाहते हुए भी स्वत : ही लोग आ जाते हैं प्रसादी की आकर्षण से । तो ऐसा लक्ष्य रखो - वायुमण्डल बनाओ । अपनी समर्थी के आधार पर असमर्थ आत्माओं को विशेष रहम के संकल्प की आकर्षण से प्राप्ति या अनुभूति का प्रसाद बाँटो । साथ-साथ अपने महावीरों का ऐसा विशेष ग्रुप बनाओ जो दृढ संकल्प द्वारा जाननहार और करनहार का साक्षात स्वरूप बन करके दिखाएँ । जैसे कहावत है धरत परिये धर्म न छोड़िये । ऐसी धारणा हो, कुछ भी सरकमस्टान्सेज आ जाएँ, माया के महावीर रूप सामने आ जाएँ लेकिन धारणा न छूटे - जैसे शुरू में आपस में पुरुषार्थ के ग्रुप बनाये थे ना । डिवाईन यूनिटी भी बनाई, अभी कौन सी पार्टी बनायेंगे

इस शिवरात्रि पर पाण्डव और शक्तियाँ दोनों विशेष ग्रुप बनावें जो विघ्न विनाशक ग्रुप हो । यह प्रसाद बापदादा ले जायेंगे । यज्ञ की आहुति की खुशबू दूर तक फैलती है । तो बापदादा भी साकार वतन से सूक्ष्मवतन तक यज्ञ की विशेष खूशबू की खुशखबरी ले जायें, ऐसा प्रसाद तैयार करो । साथ में कुछ ले ही जायेंगे । यही आहुति जाने का गेट खोलेगी । अभी इतनी संख्या वृद्धि को पा रही है तो जाने के गेट भी खुलने चाहिए । तो गेट खोलने वाले कौन हैं? बाप अकेला कुछ नहीं करेगा । कभी कुछ किया है क्या? अभी भी अकेले नहीं हैं, (बच्चों की चिटचेट चल रही है कि बाबा आप अकेले चले गये) पहले तो बाप-दादा दो साथी हैं । अकेला तो हो नहीं सकता । बच्चे भी हैं - आप साथ नहीं रहते हो? वायदा क्या किया है? साथ रहेंगे साथ चलेंगे, साथ खायेंगे, पियेंगे । यह वायदा है ना । अभी वायदा बदल गया है क्या? अभी भी वही वायदा है बदला नहीं है । चले गये, ऐसा नहीं है । साकार में तो और भी थोड़े समय का साकार साथ था और थोड़ो के लिए साकार का साथ था । अभी तो सभी के साथ हैं । साकार में तो फिर भी कई प्रकार के बन्धन थे, अभी तो निर्बन्धन हैं । अभी तो और ही तीव्रगति है बाप को बुलाया और हाजिरा-हजूर । 

मोह से भी ऊपर - बलिहार होना है । जब बलिहार हो गये तो मोह तो उसमें एक अंचली है । अभी साथ रहेंगे साथ चलेंगे । सिर्फ आज क्यों, सदा ही साथ चलेंगे । अच्छा तो अब प्रसादी तैयार करना । पाण्डव क्या करेंगे? (बकरी ईद) कुछ भी करो लेकिन कुछ करके दिखाओ । देखेंगे पांडवों का ग्रुप रेस करता है या शक्तियो का । बकरी ईद मनाओ या कोई भी ईद मनाओ । मैं मैं का त्याग करना उसको कहा जाता है ईद मनाना । अब देखेंगे क्या प्रसाद तैयार कर देते हैं । पाण्डव तैयार करते हैं या शक्तियाँ तैयार करती हैं या दोनों ही तैयार करते हैं? अच्छा । 

यू.पी. जोन से मुलाकात

यू. पी. जोन विशेष भाग्यशाली रहा - यू पी. की विशेषता है ' ' भावना' ' वाली धरनी है । भक्ति की भावना ज्यादा है । ऐसी भावना वाली धरनी को भक्ति का फल देने के निमित्त बने हुए हैं । सभी जोन में से यादगार भी ज्यादा यू पी में हैं - तो यू .पी. की यादगार धरनी को फिर से विशेष याद दिलाओ । यू .पी का विस्तार बहुत है । विस्तार में अपने ज्ञान का बीज डाल बाप की कल्प पहले वाली फुलवाड़ी और अधिक तैयार करो । वैसे भी यू .पी. की धरनी फलीभूत धरनी है इसलिए और भी ज्यादा फुलवाड़ी बढ़ा सकते हो - हर स्थान से ज्ञान गंगा बहती जाए । नदी का महत्व भी यू. पी. में है - नहाने का महत्व भी यू. पी. में है । जैसे स्थूल नहान का महत्व है वैसे चारों ओर ज्ञान-नहान का महत्व बढ़ाओ । यू. पी. का महत्व है महान है ना । नियम-पूर्वक ज्ञान के तीर्थस्थान की आदि भी यू. पी. से हुई है । नियम-पूर्वक निमन्त्रण अर्थ कानपुर और लखनऊ की आत्मायें निमित्त बनी । देहली में सिर्फ माताओं का निमन्त्रण था, नियम-पूर्वक निमंत्रण कानपुर, लखनऊ का था । देहली की महिमा अपनी यू. पी. की महिमा अपनी है । महानता तो बहुत है, अब जितनी महानता गाई गई है उसी प्रमाण महान कार्य करके दिखाओ । ऐसा विशेष कार्य करो जो अभी तक कोई जोन ने नहीं किया हो - हरेक जोन को अभी कोई नई इन्वेंशन निकालनी चाहिए । मेले भी हुए, सम्मेलन भी हुए - अभी कोई नई रूपरेखा बनाओ जिसको देख- सुनकर समझे कि ऐसा कभी न सुना और न देखा | 

आगरा जोन से मुलाकात: -

सदा अपने भाग्य का सुमिरण करते खुशी में रहते हो? वाह मेरा भाग्य! यह गीत सदा मन में बजता रहता है? वाह बाप, वाह ड्रामा और वाह मेरा पार्ट - सदा इसी स्मृति में हर कार्य करते ऐसे अनुभव होता है - जैसे कर्म करते हुए भी कर्म के बन्धन से मुक्त, सदा जीवन मुक्त है । सतयुग की जीवनमुक्ति का वर्सा तो प्राप्त होगा ही लेकिन अभी के जीवनबन्ध से जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव सतयुग से भी ज्यादा है । तो अभी भी अपने ज्ञान और योग की शक्ति से जीवनमुक्त अवस्था का अनुभव करते हैं कि अभी भी बन्धन हैं? बन्धन सब समाप्त हो गये और जीवनमुक्त हो गए । कुछ भी हो जाये लेकिन जीवन मुक्त होने के कारण ऐसे अनुभव होता है जैसे एक खेल कर रहे हैं, परीक्षा नहीं लेकिन खेल है । तन का रोग हो जाए - माया के अनेक प्रकार के वार भी हो लेकिन खेल अनुभव हो । खेल में दुःख नहीं होता, खेल किया ही जाता है मनोरंजन के लिए, दुःख के लिए नहीं । तो खेल समझने से जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव करेंगे । जीवनमुक्त हो या जीवन बन्ध हो? शरीर का, सम्बन्ध का कोई भी बन्धन न हो । यह तो खेल-खेल में फर्ज- अदाई निभा रहे हैं । फर्ज- अदाई का भी खेल कर रहे हैं । निर्बन्धन आत्मा ही ऊँची स्थिति का अनुभव कर सकेगी । बन्धन वाला तो नीचे ही बंधा रहेगा, निर्बन्धन ऊपर उड़ेगा । सभी ने अपना पिंजड़ा तोड दिया है, बन्धन ही पिंजड़ा है । तो बन्धनों का पिंजड़ा तोड़ दिया । फर्ज- अदाई भी निमित्तमात्र निभानी है, लगाव से नहीं । फिर कहेंगे निर्बन्धन । ट्रस्टी बनकर चलते हो तो निर्बन्धन हो । कोई भी मेरापन है तो पिंजड़े में बन्द हो । अभी पिंजड़े की मैना नहीं, स्वर्ग की मैना हो गई । शुरू-शुरू का गीत है ना पिंजड़े की मैना अभी तो स्वर्ग की परियाँ हो गई, सभी स्वर्ग में उड़ने वाली हो । पिंजड़े की मैना से फरिश्ते बन गई । अभी कहाँ जरा भी बन्धन न हो । मन का भी बन्धन नहीं । क्या करूँ, कैसे करुँ, चाहता हूँ, होता नहीं यह भी मन का बन्धन है । चाहता हूँ कर नहीं पाता तो कमजोर हुआ ना । इस बन्धन से भी मुक्त, उसको कहा जाता है निर्बन्धन । जब बाप के बच्चे बने तो बच्चा अर्थात् स्वतन्त्र, इसीलिए कहा जाता है स्टूडेंट लाइफ इज दी बेस्ट लाइफ । तो आप कौन हो? बच्चे हो या बूढ़े हो? बच्चा अर्थात् निर्बन्धन | अगर अपने को पास्ट जीवन वाले समझेंगे तो बन्धन है, मरजीवा हो गये तो निर्बन्धन । चाहे कुमार हो चाहे वानप्रस्थी हो लेकिन सब बच्चे हैं । सिर्फ एक कार्य जो बाप ने दिया है "याद करो और सेवा में रहो", इसी में सदा बिजी रहो । 

स्थापना के कार्य में आदि से जो आत्मायें सहयोगी हैं, उन्हों को विशेष सहयोग ड्रामा अनुसार किसी न किसी रूप से प्राप्त जरूर होता है । गैरन्टी है । बाप-दादा यहाँ का यहाँ रिटर्न भी करते हैं और भविष्य के लिए भी जमा होता है । अच्छा ।

 

वरदान:-

अविनाशी और बेहद के अधिकार की खुशी वा नशे द्वारा सदा निश्चिंत भव !     

दुनिया में बहुत मेहनत करके अधिकार लेते हैं, आपको बिना मेहनत के अधिकार मिल गया । बच्चा बनना अर्थात् अधिकार लेना । वाह मैं श्रेष्ठ अधिकारी आत्मा”', इस बेहद के अधिकार के नशे और खुशी में रहो तो सदा निश्चिंत रहेंगे । यह अविनाशी अधिकार निश्चित ही है । जहाँ निश्चित होता है वहाँ निश्चिंत होते हैं । अपनी सर्व जिम्मेवारियां बाप हवाले कर दो तो सब चिंताओं से मुक्त हो जायेंगे ।

 

स्लोगन:- 

जो उदारचित, विशालदिल वाले हैं वही एकता की नींव हैं ।     

 

ओम् शान्ति |