21-03-14          प्रातः मुरली       ओम् शान्ति       “बापदादा”        मधुबन
 


“मीठे बच्चे – अब वापिस जाना है इसलिए पुरानी देह और पुरानी दुनिया से उपराम बनो, अपनी बैटरी चार्ज करने के लिए योग की भट्ठी में बैठो |”        

प्रश्न:-   
योग में बाप की पूरी करेन्ट किन बच्चों को मिलती है?

उत्तर:-
जिनकी बुद्धि बाहर में नहीं भटकती | अपने को आत्मा समझ बाप की याद में रहते हैं, उन्हें बाप की करेन्ट मिलती है | बाबा बच्चों को सकाश देते हैं | बच्चों का काम है बाप की करेन्ट को कैच करना क्योंकि उस करेन्ट से ही आत्मा रूपी बैटरी चार्ज होगी, ताक़त आयेगी, विकर्म विनाश होंगे | इसे ही योग की अग्नि कहा जाता है, इसका अभ्यास करना है |

ओम् शान्ति |

भगवानुवाच | अब बच्चों को घर भी याद पड़ता है | बाप तो घर की और राजधानी की बात ही सुनायेंगे और बच्चे भी इन बातों को समझते हैं कि हम आत्मोँ का घर कौन-सा है? आत्मा क्या है? यह भी अच्छी रीति समझ गये हैं कि बाबा हमको आकरके पढ़ाते हैं | बाप कहाँ से आते हैं? परमधाम से | ऐसे नहीं कहेंगे पावन दुनिया बनाने कोई पावन दुनिया से आते हैं | नहीं, बाप कहते हैं मैं सतयुगी पावन दुनिया से नहीं आया हूँ, मैं तो घर से आया हूँ, जिस घर से तुम बच्चे आये हो पार्ट बजाने | मैं भी ड्रामा प्लैन अनुसार हर 5 हज़ार वर्ष बाद घर से आता हूँ | मैं रहता ही घर में, परमधाम में हूँ | बाप समझाते भी ऐसे सहज हैं जैसे बाप शहर से आये हों | कहते हैं जैसे तुम आये हो पार्ट बजाने, हम भी वहाँ से आये हैं पार्ट बजाने, ड्रामा प्लैन अनुसार | मैं नॉलेजफुल हूँ | सब बातों को मैं जानता हूँ – ड्रामा प्लैन अनुसार |

 कल्प-कल्प मैं यही बात तुमको सुनाता हूँ | जब तुम काम चिता पर चढ़कर काले हो भस्म हो जाते हो | आग में मनुष्य काले हो जाते हैं | तुम भी सांवरे हो गये हो | सतोप्रधान वाली ताक़त सारी निकल गई है | आत्मा की बैटरी ऐसी न हो जो एकदम डिस्चार्ज हो जाये और मोटर खड़ी जो जाए | इस समय सभी के डिस्चार्ज होने का समय आ गया है, तब बाप कहते हैं ड्रामा अनुसार मैं आता हूँ जो आदि सनातन देवी-देवता धर्म के हैं उन्हों की बैटरी चार्ज होती है | तुम्हारी बैटरी अभी चार्ज होनी है ज़रूर | ऐसे भी नहीं सिर्फ़ सुबह को यहाँ आकर बैठने से बैटरी चार्ज हो सकेगी | नहीं, बैटरी चार्ज तो उठते, बैठते, चलते भी हो सकती है – याद में रहने से | तुम पहले पवित्र आत्मा सतोप्रधान थी | सच्चा सोना, सच्चा जेवर थी | अभी तमोप्रधान हो गये हैं | अब फिर आत्मा सतोप्रधान बनती है तो शरीर भी प्योर मिलेगा | यह बड़ी सहज प्योर होने लिए भट्ठी है, इसको योग की भट्ठी भी कह सकते हैं | सोने को भी भट्ठी में डालते हैं | यह है सोने को शुद्ध बनाने की भट्ठी, बाप को याद करने की भट्ठी | प्योर तो ज़रूर बनना है | याद नहीं करेंगे तो इतना प्योर नहीं होंगे | फिर हिसाब-किताब चुक्तू करना ही है क्योंकि कयामत का समय है | सबको घर जाना है | बुद्धि में घर की याद बैठी हुई है | और किसकी भी बुद्धि में नहीं होगा | वह ब्रह्म को ईश्वर कह देते हैं, उसको घर नहीं समझते | तुम इस बेहद ड्रामा के एक्टर हो, ड्रामा को तो तुम अच्छी रीति जान गये हो | बाप ने समझाया है अभी 84 का चक्र पूरा होता है, अब घर जाना है | आत्मा अब पतित है, इसलिए घर जाने के लिए पुकारती है – बाबा आकर पावन बनाओ | नहीं तो हम जा नहीं सकते हैं | बाप ही बैठ यह बातें बच्चों को समझाते हैं | यह भी बच्चे समझ गये हैं, तब उनको मात-पिता कहते हैं | टीचर भी कहते हैं | मनुष्य तो कृष्ण को टीचर समझते हैं | तुम बच्चे समझते हो कृष्ण तो खुद पढ़ता था, सतयुग में | कृष्ण कभी किसका टीचर बना नहीं है | ऐसे भी नहीं – पढ़कर फिर टीचर बना | कृष्ण की बचपन से लेकर बड़ेपन तक की कहानी तुम बच्चे ही जानते हो | मनुष्य तो कृष्ण को भगवान् समझकर कह देते हैं जिधर देखो कृष्ण ही कृष्ण है | राम के भक्त कहेंगे जिधर देखो राम ही राम है | धागा (सूत) मूँझ गया है | तुम अब जानते हो भारत का प्राचीन योग और ज्ञान मशहूर है | मनुष्य कुछ नहीं जानते | ज्ञान सागर एक बाप है वह तुम बच्चों को ज्ञान देते हैं | तो तुमको भी मास्टर ज्ञान सागर कहेंगे | परन्तु नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार | सागर कहें या नदी कहें? तुम हो ज्ञान गंगायें, इसमें भी मनुष्य मूँझते हैं | मास्टर ज्ञान सागर कहना बिल्कुल ठीक है |

बाप बच्चों को पढ़ाते हैं, मेल-फ़ीमेल की बात नहीं | वर्सा भी तुम सब आत्मायें लेती हो इसलिए बाप कहते हैं देही-अभिमानी बनो | जैसे मैं परम आत्मा ज्ञान सागर वैसे तुम भी ज्ञान सागर हो | मुझे परमपिता परमात्मा कहा जाता है, मेरी ड्यूटी सबसे ऊँची है | राजा-रानी की ड्यूटी भी सबसे ऊँची होती है ना | तुम्हारी भी ऊँची रखी गई है | यहाँ तुम जानते हो हम आत्मायें पढ़ती हैं, परमात्मा पढ़ाते हैं इसलिए देही-अभिमानी भव | सब ब्रदर्स हो जाते हैं | बाप कितनी मेहनत करते हैं | अभी तुम आत्मायें ज्ञान ले रही हो | फिर वहाँ जायेंगी तो प्रालब्ध चलती है | वहाँ सबका ब्रदरली प्रेम रहता है | ब्रदरली प्रेम बहुत अच्छा चाहिए | किसको रिगार्ड देना, किसको न देना.....ऐसा नहीं | वो लोग कहते हैं – हिन्दू-मुसलमान भाई-भाई परन्तु एक-दो को वह रिगार्ड नहीं देते हैं | बहन-भाई नहीं, भाई-भाई कहना ठीक है | ब्रदरहुड | आत्मा यहाँ पार्ट बजाने आई है | वहाँ भी भाई-भाई होकर रहती है | घर में ज़रूर सब भाई-भाई होकर रहेंगे | बहन-भाई, यह चोला तो यहाँ छोड़ना पड़ता है | भाई-भाई का ज्ञान बाप ही देते हैं | आत्मा भ्रकुटी के बीच रहती है | तुमको भी नज़र यहाँ डालनी है | हम आत्मा शरीर रूपी तख़्त पर बैठे हैं | यह आत्मा का सिंहासन वा अकाल तख़्त है | आत्मा को कभी काल खाता नहीं | सबका तख़्त यह है – भ्रकुटी के बीच | इस पर वह अकाल आत्मा बैठी है | कितनी समझने की बातें हैं | बच्चे में भी आत्मा जाती है तो भ्रकुटी के बीच में बैठती है | वो छोटा तख़्त फिर बड़ा होता जाता है | यहाँ गर्भ में आत्मा को भोगना भोगनी पड़ती है तब पश्चाताप् करते हैं – हम कभी पाप आत्मा नहीं बनेंगे | आधाकल्प पाप आत्मा बनते हैं | अब बाप द्वारा पावन आत्मा बनते हैं | तुम तन-मन-धन सब कुछ बाप को देते हो, इतना दान कोई जानते नहीं | दान लेने और देने वाला भी भारत में ही आता है | यह सब महीन बातें हैं समझने की | भारत कितना अविनाशी खण्ड बना है और सब खण्ड ख़त्म होने वाले हैं | यह बना-बनाया ड्रामा है | यह तुम्हारी बुद्धि में है | दुनिया नहीं जानती, इनको नॉलेज कहना अच्छा है | नॉलेज इज सोर्स ऑफ़ इनकम, इनसे इनकम बहुत होती है | बाप को याद करो, यह भी नॉलेज देते हैं फिर सृष्टि चक्र की भी नॉलेज देते हैं | इसमें मेहनत है | हम आत्माओं को अब वापिस जाना है इसलिए इस पुरानी दुनिया और पुराने शरीर से उपराम रहना है | देह सहित जो कुछ देखते हो सब ख़लास हो जाना है | अभी हम ट्रान्सफर होते हैं | यह तो बाप ही बता सकेंगे | यह बहुत बड़ा इम्तहान है, जो बाप ही पढ़ाते हैं | इसमें किताब आदि की दरकार नहीं | बाप को याद करना है | बाप 84 का चक्र समझा देते हैं | ड्रामा की ड्यूरेशन को तो कोई जानते नहीं | घोर अन्धियारे में हैं | तुम अभी जगे हो, मनुष्य तो जगते नहीं हैं | कितनी तुम मेहनत करते हो, विश्वास नहीं करते कि भगवान् आकर इन्हों को पढ़ाते हैं | ज़रूर कोई में तो आयेंगे ना | अब बाप आत्माओं को राय देते हैं – ऐसे-ऐसे करो जो मनुष्य समझ जायें | तुम्हारे लिए तो सहज है, नम्बरवार तो हैं ही | स्कूल में भी नम्बरवार होते हैं | पढ़ाई में भी नम्बरवार होते हैं | इस पढ़ाई से बड़ी राजाई स्थापन हो रही है | पुरुषार्थ ऐसा करना है जो हम राजा बने | इस समय जो तुम पुरुषार्थ करेंगे वह कल्प-कल्पान्तर करते रहेंगे | इसको ईश्वरीय लॉटरी कहा जाता है | किसको थोड़ी, किसको बड़ी लॉटरी होती है | राजाई की भी लॉटरी है | आत्मा जैसा कर्म करती है, ऐसी लॉटरी मिलती है | कोई गरीब बनते हैं, कोई साहूकार बनते हैं | इस समय तुम बच्चों को सारी लॉटरी बाप से मिलती है | इस समय के पुरुषार्थ पर बहुत मदार है | नम्बरवन पुरुषार्थ है याद का | तो पहले योगबल से स्वच्छ तो बनें | तुम जानते हो जितना हम बाप को याद करेंगे उतनी नॉलेज धारण होगी और बहुतों को समझाकर अपनी प्रजा बनायेंगे | भल कोई भी धर्म वाला हो, जब आपस में मिलते हो तो बाप का परिचय दो | आगे चल वह देखेंगे कि विनाश सामने खड़ा है | विनाश के समय मनुष्यों को वैराग्य आता है | हमको सिर्फ़ कहना है – तुम आत्मा हो | हे गॉड फादर! किसने कहा? आत्मा ने | अब बाप आत्माओं को कहते हैं कि मैं तुम्हारा गाइड बनकर तुमको ले जाऊँगा, मुक्तिधाम में | बाकी आत्मा का कभी विनाश नहीं होता तो मोक्ष का भी क्वेश्चन नहीं | हर एक को अपना-अपना पार्ट बजाना है | आत्मायें सब हैं इमार्टल, कभी भी विनाश नहीं होंगी | बाकी वहाँ जाने के लिए बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे | घर चले जायेंगे | आखरीन बड़े-बड़े सन्यासी भी समझेंगे, वापिस तो सबको जाना है | तुम्हारा पैगाम सबकी बुद्धियों में ठका करेगा, तब तो गायन है – अहो प्रभू.......तुम्हरी गत मत, तो ज़रूर किसको मत देंगे या अपने पास रखेंगे? उनकी मत से सद्गति कैसे होती है, सो ज़रूर बतायेगा ना | फिर वह कहते हैं तुम्हारी गति-मत तुम जानो, हम नहीं जानते हैं | यह भी कोई बात है! बाप कहते हैं इस श्रीमत से तुम्हारी गति हो जाती है |

अभी तुम जानते हो बाबा जो जानते हैं वह हमको सिखलाते हैं | तुम कहेंगे हम बाबा को जानते हैं | वो गाते हैं तुम्हरी गति-मत तुम जानो | परन्तु तुम ऐसे नहीं कहेंगे | बुद्धि में सारा ज्ञान बैठ जाये, इसमें भी टाइम लगता है | सम्पूर्ण तो अभी कोई बना नहीं है | सम्पूर्ण बन जाये तो यहाँ से चले जायें | जाना तो है नहीं | अब सब पुरुषार्थ कर रहे हैं | बाबा को भल पहले जोर से वैराग्य आया, देखा डबल सिरताज बनता हूँ – यह भी ड्रामा अनुसार बाबा ने दिखाया | मैं तो झट खुश हो गया | ख़ुशी के मारे सब कुछ छोड़ दिया | विनाश भी देखा तो चतुर्भुज भी देखा | समझा अभी राजाई मिलती है | थोड़े रोज़ में विनाश हो जायेगा | ऐसा नशा चढ़ गया | अभी तो समझते हैं यह तो ठीक है, राजधानी बनेंगी | यह बहुतों को राजाई मिलनी है | एक हम जाकर क्या करेंगे | यह ज्ञान अभी मिलता है | पहले ख़ुशी का पारा चढ़ गया | पुरुषार्थ तो सबको करना है | तुम पुरुषार्थ के लिए बैठे हो | सुबह को याद में बैठते हो | यह बैठना भी अच्छा है | जानते हो बाबा आया है | बाप आया या दादा आया, यह तो गुड़ जाने गुड़ की गोथरी जाने | एक-एक बच्चे को देखते रहेंगे | एक-एक को बैठ सकाश देते हैं | योग की अग्नि है ना | योग अग्नि से उनके विकर्म भस्म हो जाएं | जैसे कि बैठकर लाइट देते हैं | एक-एक आत्मा को सर्चलाइट देते हैं | जैसे बाप कहते हैं मैं हर एक आत्मा को बैठ करेन्ट देता हूँ जो ताक़त भरती जाए | अगर किसकी बुद्धि बाहर में होगी तो फिर करेन्ट को कैच नहीं कर सकेंगे | बुद्धि कहाँ न कहाँ भटकती रहेगी | उनको मिलेगा फिर क्या? कहते हैं मिठरा घुर त घुराय तुम प्यार करेंगे तो प्यार पायेंगे | बुद्धि बाहर भटकती रहेगी तो बैटरी चार्ज नहीं होगी | बाप बैटरी चार्ज करने आता है, उनका फ़र्ज़ है सर्विस करना | बच्चे सर्विस स्वीकार करते हैं वा नहीं यह तो उनकी आत्मा जाने | किस ख्यालात में बैठे हैं, यह सब बातें बाप समझाते हैं | मैं भी परम आत्मा हूँ | मुझ बैटरी के साथ योग लगाते हो | मैं भी सकाश दूंगा | बहुत प्यार से एक-एक को सकाश देता हूँ | तुम तो बैठेंगे बाप को याद करने | बाबा कहते हैं मैं एक-एक आत्मा को सकाश देता हूँ | सामने बैठ लाइट देता हूँ | तुम तो ऐसे नहीं करेंगे | जो पकड़ने वाले होंगे वह पकड़ेंगे और उनकी बैटरी चार्ज होगी | बाबा दिन-प्रतिदिन युक्तियाँ तो बताते रहते हैं | बाकी समझा, न समझा – यह तो नम्बरवार स्टूडेन्ट पर मदार है | तुम्हें बहुत तरावटी माल मिल रहा है | कोई हजम भी करे ना | बड़ी लॉटरी है | जन्म-जन्मान्तर, कल्प-कल्पान्तर की लॉटरी है | इस पर पूरा अटेन्शन देना है | बाबा से हम करेन्ट ले रहे हैं | बाप भी भ्रकुटी के बीच में बैठा है, बाजू में | तुमको भी अपने को आत्मा समझ बाबा को याद करना है, न कि ब्रह्मा को | हम उनसे योग लगा कर बैठे हैं, इनको देखते भी हम उनको देखते हैं | आत्मा की ही बात है ना | अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग | रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1.    आत्मा को स्वच्छ बनाने के लिए सवेरे-सवेरे बाप से सर्च लाइट लेनी है, बुद्धियोग बाहर से निकाल एक बाप में लगाना है | बाप की करेन्ट को कैच करना है |

2.    आपस में भाई-भाई के सच्चे लव से रहना है | सबको रिगार्ड देना है | आत्मा भाई अकाल तख़्त पर विराजमान है, इसलिए भ्रकुटी में ही देखकर बात करनी है |

वरदान:-  
परमात्म लव में लीन होने वा मिलन में मग्न होने वाले सच्चे स्नेही भव !  

स्नेह की निशानी गाई जाती है – कि दो होते भी दो न रहें लेकिन मिलकर एक हो जाएं, इसको ही समा जाना कहते हैं | भक्तों ने इसी स्नेह की स्थिति को समा जाना वा लीन होना कह दिया है | लव में लीन होना – यह स्थिति है लेकिन स्थिति के बदले उन्होंने आत्मा के अस्तित्व को सदा के लिए समाप्त होना समझ लिया है | आप बच्चे जब बाप के वा रूहानी माशूक के मिलन में मग्न हो जाते हो तो समान बन जाते हो |
स्लोगन:-   

अन्तर्मुखी वह है जो व्यर्थ संकल्पों से मन का मौन रखता है |  

ओम् शान्ति |