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   22 / 10 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ "°मैं आत्मा हूँ°... शरीर नहीं" - यह स्वचिन्तन किया ?

 

‖✓‖ °रूप बसंत° बन मुख से सदैव ज्ञान रतन ही निकाले ?

 

‖✓‖ "हम परवानो का शमा पर फ़िदा होने का यादगार ही °दीपावली° है" - यह स्मृति रही ?

 

‖✓‖ °सच्चा सच्चा आशिक° बन एक माशूक पर फ़िदा रहे ?

 

‖✓‖ सबको °बाप की याद° दिलाने का दिव्य अलोकिक कार्य किया ?

 

‖✓‖ सर्विस के °उमंग° में रहे ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ पवित्रता की शक्ति द्वारा सदा °सुख के सागर° में रहने का अनुभव किया ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  जैसे लाइट के कनेक्शन से बड़ी-बड़ी मशीनरी चलती है। आप सभी हर कर्म करते कनेक्शन के आधार से स्वयं भी डबल लाइट बन चलते रहो। जहाँ डबल लाइट की स्थिति है वहाँ मेहनत और मुश्किल शब्द समाप्त हो जाता है। अपनेपन को समाप्त कर ट्रस्टीपन का भाव और ईश्वरीय सेवा की भावना हो तो डबल लाइट बन जायेंगे।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ अपनेपन को समाप्त कर °ट्रस्टीपन का भाव° और ईश्वरीय सेवा की भावना धारण कर डबल लाइट स्थिति का अनुभव किया ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं आत्मा बेगमपुर की बादशाह हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   पवित्रता की शक्ति द्वारा सदा सुख के संसार में रहने वाली मैं आत्मा बेगमपुर की बादशाह हूँ ।

 

 ❉   मन, वचन और कर्म तीनो से पवित्र बनने वाली मैं हाइनेस और होलीनेस आत्मा हूँ ।

 

 ❉   अपनी पवित्रता के बल पर मैं सुख, शांति और सम्पन्नता का अनुभव करती हूँ ।

 

 ❉   एक बाप की लगन में मगन रह, श्रेष्ठ योगी बन मैं सर्व आत्माओं को पवित्रता और शान्ति की अनुभूति कराती हूँ ।

 

 ❉   मैं आत्मा वाइसलेस बन दुखी आत्माओ  के दुःख और अशांति की स्थिति को जान उन्हें सुख और शान्ति के वायब्रेशन्स द्वारा शीतल करती जाती हूँ ।

 

 ❉   हर गम से मुक्त हो, प्रसन्नता और निश्चिंतता का ताज पहनने वाली मैं आत्मा बेफिक्र बादशाह हूँ ।

 

 ❉   लाइट का ताज पहने अपनी पवित्रता की चमक मैं सारे विश्व में फैला रही हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - तुम हो सच्चे - सच्चे परवाने जो अभी शमा पर फ़िदा होते हो, इस फ़िदा होने का यादगार ही यह दीपावली है"

 

 ❉   सच्चे परवाने वही होते हैं जो शमा पर पूरी तरह फ़िदा हो जाते हैं । स्वयं को शमा पर कुर्बान कर देते हैं ।

 

 ❉   किन्तु वास्तव में सच्चे - सच्चे परवाने तो हम ब्राह्मण बच्चे हैं जो इस समय संगम युग पर शमा अर्थात परम पिता परमात्मा बाप पर फ़िदा होते हैं ।

 

 ❉   क्योकि वही परम पिता पत्मात्मा बाप संगम युग पर आ कर ज्ञान और योगबल द्वारा हम आत्माओं की उझाई हुई ज्योति को फिर से जगाते हैं ।

 

 ❉   और हम सच्चे परवाने बन ऐसे बाप पर पूरी तरह फ़िदा हो जाते है । तन - मन - धन सब बाप पर समर्पित कर देते हैं ।

 

 ❉   इसी फ़िदा होने का यादगार फिर भक्ति मार्ग में दीपावली के रूप में मनाया जाता है ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ सच्चा-सच्चा आशिक बन एक माशूक पर फ़िदा होना है अर्थात बलि चढ़ना है , तभी सच्ची दीपावली होगी ।

 

 ❉   जैसे लड़की की सगाई होती है व अपने माशूक़ से भल कितनी दूर रहती है बस उसकी सूरत उसके नयनों में बसी रहती है व उसकी याद में खोई है । फिर हमारी भी शिव बाबा से सगाई हुई है व हमारा माशूक़ है । हम सब उसके सच्चे सच्चे आशिक हैं । हमारे नयनों में बस शिव बाबा होने चाहिए बस उनकी याद में मगन होना है ।

 

 ❉   भक्ति मार्ग में भी मीरा कृष्ण की दीवानी थी व अपनी सुध बुध खो उसी के प्यार में इतनी लीन रहती थी कि जहाँ अभी देखती वहीं श्रीकृष्ण को देखती थी तो हमें अपने माशूक शिवबाबा पर ऐसे ही फ़िदा होना है कि कोई ओर याद ही न आए ।

 

 ❉   अभी तक तो नीचे गिरते गिरते विकारों में आकर काले हो गए । अब माशूक़ शिव बाबा ने आकर विकारों से निकाल पढ़ाकर काले से गोरा बना रहे हैं व 21 जन्मों के लिए राजाई पद दे रहे हैं तो ऐसे आधा कल्प के माशूक़ पर फ़िदा होना है ।

 

 ❉   अपने को आत्मा समझ दूसरे को भी आत्मा के रूप में देखेंगे व आत्मिक स्थिति में रहेंगे तो तभी आत्माओं के दीपक को जलता हुआ देंखेगे तो सच्ची दीपावली होगी ।

 

 ❉   बाबा हमें ज्ञान की राह दिखा कर आत्मा दीपक को जलाता है ऐसे हमें बाबा से मिले ज्ञान को सुना कर अन्य आत्म दीपकों को जलाना है जब सर्व में ज्ञान दीपक की रोशनी से आत्म प्रकाश से जगमगा उठेगी तभी सच्ची दीपावली होगी।

 

 ❉ जैसे रांझा हीर पर और परवाना शमा पर फ़िदा होकर बलि चढ़ गए वैसे ही  हम आत्मा को अपने माशूक़ शिवबाबा पर फ़िदा होते अपने प्यार की पवित्रता से दीपावली मनानी है।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ पवित्रता की शक्ति द्वारा सदा सुख के संसार में रहने वाले बेगमपुर के बादशाह कहलाते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   पवित्रता ही सुख, शांति, समृद्धि की जननी है। जहाँ पवित्रता है वहाँ दुःख, अशांति हो ही नही सकती। पवित्रता के वाइब्रेशन चारो और के वायुमंडल व प्रकृति को भी प्योर बनाते जिससे वह भी बहुत सुख दाई बन जाते है।

 

 ❉   पवित्र के आगे ही सब नमन करते है, फिर चाहे वह मनुष्य हो, या प्रकृति के तत्व सभी उनको दिल से नमन करते है, जैसे की उनके दास दासी बन जाते है। अंत में यह साधू सन्यासी भी पवित्रता की बात मानेंगे, पवित्रता के आगे वह भी झुकेंगे।

 

 ❉   पवित्रता की शक्ति जितनी स्वयं में धारण की होगी उतनी ही आत्मा बाप के साथ सजनी बनकर जाएगी, पास विथ ऑनर होगी। और सतयुग में विश्व महाराजा महारानी बनेंगे। सतयुग है ही पवित्र आत्माओ की दुनिया जहाँ सदा सुख ही सुख है दुःख का तो नाम निशान ही नहीं रहेगा। सब भंडारे बाबा इतने भरपूर कर देंगे की चिंता किस चिड़िया का नाम है पता ही नहीं रहेगा।

 

 ❉   पवित्रता की ही प्रतिज्ञा बाप अभी आकर कराते है, ईश्वरीय ज्ञान की नवीनता ही पवित्रता है, सिर्फ ब्रह्मचर्य की पवित्रता नहीं परंतु मन, वचन, कर्म सबमे पवित्रता जिसको कहते है सम्पूर्ण पवित्र जब एस बनेंगे तब ही सुख के संसार में जाने लायक बन सकेंगे।

 

 ❉   पवित्रता की शक्ति ही रूहानी आकर्षण है, जितना बाप को याद करेंगे उतना ही हमारे विकर्म विनाश होंगे और आत्मा प्योर बनती जाएगी, आत्मा पर जो जन्मो की कट चडी हुई है वह सिर्फ बाप की याद से ही निकलेगी।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ मैं आत्मा हूँ, शरीर नही - यह चिंतन करना ही स्वचिंतन है... कैसे ?

 

 ❉   जितना स्वयं को आत्मा समझने का चिंतन मन में चलता रहेगा उतना सभी बातों से सहज ही किनारा होता जायेगा और यही स्व - चिंतन आत्मा को शक्तिशाली बनाकर आत्मिक उन्नति में सहायक बन जायेगा ।

 

 ❉   देह अभिमान के कारण मर्ज हुई आत्मिक शक्तियो को इमर्ज करने के लिए स्व - चिंतक बन स्वयं को आत्मिक स्मृति में स्थित करने का अभ्यास बहुत जरूरी है ।

 

 ❉   चिंतन को जब शुद्ध और श्रेष्ठ बना कर प्रभु प्रेम में मग्न रहेंगे तो परमात्म बल आत्मिक शक्तियों को उजागर कर तन और मन दोनों को स्वस्थ अनुभव करायेगा और यह अनुभव तभी होगा जब स्व - चिंतक बन आत्मिक अभ्यास पक्का करेंगे ।

 

 ❉   मैं आत्मा हूँ शरीर नही - यह चिंतन आत्मा को स्वमान की सीट पर सदा सेट रखता है और यही स्व - चिंतन स्व स्थिति को श्रेष्ठ बनाता है ।

 

 ❉   निर्संकल्प अवस्था में स्थित हो अतीन्द्रिय सुख की गहन अनुभूति करने के लिए जरूरी है आत्मा को शरीर के भान से मुक्त कर आत्मिक स्मृति में स्थित करना । यह अभ्यास तब होगा जब स्वयं को आत्मा समझेंगे शरीर नही ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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