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    17 / 04 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

         TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ अगर कोई अच्छा नहीं बोलता है तो °एक कान से सुन दुसरे कान से निकाला° ?

‖✓‖ अपनी नेचर को °शक्तिशाली° बनाया ?

‖✓‖ स्वयं के चिंतन और पढाई में °मस्त° रहे ?

‖✓‖ "अब यह नाटक पूरा होता है... °वापिस घर° जाना है" - यह स्मृति में रहा ?

‖✓‖ °ट्रस्टी° बन हलके होकर रहे ?

‖✗‖ दान की हुई चीज़ में °ममत्व° तो नहीं आया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

‖✓‖ °बाप और सेवा° की स्मृति से एकरस स्थिति का अनुभव किया ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

➳ _ ➳  कोई भी यह नहीं कह सकता कि हमको तो सेवा का चान्स नहीं है । कोई बोल नहीं सकते तो मन्सा वायुमण्डल से सुख की वृत्ति, सुखमय स्थिति से सेवा करो । तबियत ठीक नहीं है तो घर बैठे भी सहयोगी बनो, सिर्फ मन्सा में शुद्ध संकल्पों का स्टॉक जमा करो, शुभ भावनाओं से सम्पन्न बनो ।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

‖✓‖ मन्सा वायुमण्डल से सुख की वृत्ति, °सुखमय स्थिति से सेव° की ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं सर्व आकर्षण मुक्त आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 ❉   मैं ईश्वरीय नशे में रहने वाली सर्व आकर्षणों से मुक्त आत्मा हूँ ।

 ❉   इस नश्वर संसार की किसी भी चीज में मुझे कोई आकर्षण और कोई आसक्ति नही है ।

 ❉   मैं सम्पूर्ण निरहंकारी, मैं पन से सम्पूर्ण त्यागी आत्मा हूँ ।

 ❉   मुझ वर्ल्ड सर्वेंट को सिवाए बाप और सेवा के और कुछ भी याद नहीं रहता जिससे मैं सदा एकरस स्थिति का अनुभव करती हूँ ।

 ❉   मुझे एक बाप के रस के सिवाए सब रस नीरस लगते हैं... मुझे और कहीं भी आकर्षण नहीं होता ।

 ❉   मेरा चित सदैव निर्मल रहता है, क्योंकि अहम की सब बुराइयों को मैंने मिटा दिया है ।

 ❉   यही एकरस स्थिति का तीव्र पुरुषार्थ मुझे अपनी श्रेष्ठ मंजिल की और तीव्रता से आगे बढाता है ।

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∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - अब यह नाटक पूरा होता है, तुम्हे वापिस घर जाना है, इसलिए इस दुनिया से ममत्व मिटा दो, घर को और नये राज्य को याद करो"

 

 ❉   यह सृष्टि एक बहुत बड़ा अनादि नाटक है, जिस पर हम सभी आत्मायें पार्ट बजाने के लिए शरीर धारण करके आई ।

 ❉   किन्तु विडंबना यह हुई कि अपने वास्तविक आत्मिक स्वरूप को ही भूल गए और स्वयं को देह समझने की सबसे बड़ी भूल कर बैठे ।

 ❉   जब देह को अपना समझा तो देह के सबंधो में ही उलझ कर रह गए । देह अभिमान में आ कर हर कर्म करते रहे, देह की दुनिया और पदार्थो से ही ममत्व रख दुखी होते रहे ।

 ❉   जब दुःख की अति होने लगी तो ड्रामा प्लान अनुसार भगवान को आना पड़ा । और अब भगवान ने आ कर इस सृष्टि नाटक की वास्तविकता का बोध करवाया ।

 ❉   इस सृष्टि ड्रामा को समझने का तीसरा नेत्र अर्थात ज्ञान दे कर बताया कि अब यह नाटक पूरा हुआ। अब वापिस घर जाना है । इसलिए देह की इस पुरानी दुनिया से ममत्व मिटा कर अपने असली घर परमधाम और नये राज्य सुखधाम को याद करो ।

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∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा)(Marks:-10)

 

➢➢ जीते जी सब कुछ दान करके ममत्व मिटा देना है। पूरा विल कर ट्रस्टी बन हल्का रहना है।

 

 ❉   जब कोई व्यक्ति शरीर छोड़ता है तो अपने साथ कुछ नहीं लेकर जाता है। ख़ाली हाथ इस दुनिया में आए हैं व ख़ाली हाथ ही जाना है तो फिर इस विनाशी दुनिया से लगाव क्यूँ ??

 ❉   जीते जी अपना तन मन धन सब दान देकर इस जीवन को सफल करना है। बस एक की याद में समाना हैं। अगर किसी देहधारी से या चीज़ से ममत्व रखेंगे तो अंत समय के पेपर में पास नहीं होंगे।

 ❉   इन आँखों से जो देखते हैं चाहे मित्र, सम्बंधी, बड़े बड़े कालेज, हास्पिटल सब का विनाश हो जायेगा व इन सब से ममत्व हटाकर बस एक शिव बाबा की याद में रहना है । यही अविनाशी कमाई ही 21 जन्मों के लिए साथ जायेगी।

 ❉   ये शौहरत ये दौलत सब बाप की बदौलत ही मिला है तो उसे ही विल कर दो तो बाप कहते है अगले जन्म तुम्हें कई गुणा दूँगा । जैसे ब्रह्मा बाबा ने सब एक ही बार दे दिया तो वह सतयुग का पहला प्रिंस बनेगा।

 ❉   जब अपना सब कुछ उसे सौंपकर अपने को ट्रस्टी समझकर करते है तो कुछ गल्त होता भी है तो ज़िम्मेवारी उसकी है । बेफिकर बादशाह बनकर सदा हल्के होकर रहना है।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-10)

 

➢➢ बाप और सेवा की स्मृति से एकरस स्थिति का अनुभव करने वाले सर्व आकर्षणमुक्त बन जाते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   बाप की याद और यज्ञ की सेवा यही दो कर्मो का शौक व फुर्ना रहेगा तो व्यर्थ के लिए समय ही नहीं बचेगा।

 ❉   सदेव याद और सेवा में ही मन बुद्धि बिजी रहने से जो प्रत्यक्ष फल प्राप्तियो के रूप में मिलेगा उससे आत्मा को सदेव आनंद का अनुभव होगा और कोई दूसरी चीज़ भाएगी ही नहीं।

 ❉   स्वयं को सदेव सेवाधारी समझने से हमें कभी अभिमान या अहंकार नहीं आयेगा की मैंने किया या में ही कर सकता हु, जिसके फल स्वरुप हमारी स्थिति एकरस होगी और बाप की याद सहज बनी रहेगी।

 ❉   याद द्वारा पुराना खाता चुक्त करना है और सेवा द्वारा नयी प्रालब्ध जमा करनी है, जब यही एक लक्ष्य रहेगा तो स्वयं पर पूरा अटेंशन देंगे और दुनियावी आकर्षणों से स्वयं को मुक्त रखेंगे।

 ❉   बाप की याद से अखूट अमुल्य खजाने और पाई पैसे की  सेवा द्वारा पद्मो की प्राप्ति होती है, यह व्यापार करना जो विरला सिख ले उसे अनुभव होगा की कितना सच्चा सौदा है यह, फिर वो दुनिया के घाटे वाले सौदे करना छोड़ देगा।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-10)

 

➢➢ नाजुक परिस्तिथियों के पेपर में पास होना है तो अपनी नेचर को शक्तिशाली बनाओ... क्यों ?

 

 ❉   जितना हम अपनी नेचर को शक्तिशाली बनायेंगे उतना जीवन में आने वाली नाजुक परिस्तिथियाँ हल्की नजर आएँगी और नाजुक परिस्तिथियों के पेपर में पास होना सरल हो जाएगा ।

 ❉   शक्तिशाली नेचर स्तिथि को अचल, अडोल बना देगी जिससे नाजुक परिस्तिथियों के पेपर में पास होना सहज और सरल हो जाएगा ।

 ❉   शक्तिशाली नेचर स्वमान की सीट पर सदा सेट रख कर और स्व-स्तिथि में मजबूती ला कर नाजुक परिस्तिथियों के पेपर में सफलता दिला देगी ।

 ❉   शक्तिशाली नेचर मन बुद्धि को व्यर्थ से मुक्त करके, मन को एकाग्र और शांतचित बना कर,  हर नाजुक परिस्तिथि का सामना करने का बल भर देगी जिससे हर परिस्तिथि के पेपर में सफलता प्राप्ति सहज हो जायेगी ।

 ❉   शक्तिशाली नेचर मन बुद्धि को सर्व चिंताओं से मुक्त कर, प्रभु चिंतन में व्यस्त कर, हर नाजुक परिस्तिथि के पेपर में सफलता मूर्त बना देगी ।

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_  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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