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❍ 25 / 05 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °निर्मल° स्वभाव से निर्मानता दिखाई ?
‖✓‖ "°भगवान हमको पढाते° हैं" - इसी निश्चय से अपार ख़ुशी में रहे ?
‖✓‖ बाप जो अविनाशी ज्ञान रत्नों का खजाना देते हैं.. उसका °कदर° किया ?
‖✓‖ "हम कितने °पुण्य आत्मा° बने हैं ?" - अपने अन्दर से पुछा ?
‖✓‖ अपनी मत को छोड़ °एक बाप की मत° पर चले ?
‖✗‖ °बेपरवाह° बन पाप कर्म तो नहीं किये ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ °जहान के नूर° बन भक्तों को नज़र से निहाल किया ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ एक तरफ बेहद का वैराग्य हो, दूसरी तरफ बाप के समान बाप के लव में लवलीन रहो, एक सेकेण्ड और एक संकल्प भी इस लवलीन अवस्था से नीचे नहीं आओ । ऐसे लवलीन बच्चों का संगठन ही बाप को प्रत्यक्ष करेगा ।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ °बेहद का वैराग्य और लवलीन अवस्था° दोनों बनी रही ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं दर्शनीय मूर्त आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ भक्तों को नजर से निहाल करने वाली मैं दर्शनीय मूर्त आत्मा हूँ ।
❉ मैं जहान की नूर हूँ । सारा जहान मेरी आँखों की दृष्टि लेने की इन्तजार में है ।
❉ विश्व के परिवर्तन का आधार मुझ आत्मा की सम्पूर्णता पर निर्भर है ।
❉ अपने दिव्य संकल्प, बोल और कर्म द्वारा मैं सबको अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन कराने वाली दिव्य मूर्ति हूँ ।
❉ अपनी दिव्य दृष्टि द्वारा मैं सर्व आत्माओं को दिव्य अनुभूतियाँ कराती जाती हूँ ।
❉ अपने शक्तिशाली स्वरूप में स्थित हो कर मैं सर्व आत्माओं के मन की हलचल को समाप्त करती जाती हूँ ।
❉ अपने स्नेही स्वरूप द्वारा मैं सर्व आत्माओं को परमात्म स्नेह की पालना का अनुभव करा कर उन्हें उमंग उत्साह से भरपूर करती जाती हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - श्रीमत ही तुमको श्रेष्ठ बनाने वाली है , इसलिए श्रीमत को भूलो मत, अपनी मत को छोड़ एक बाप की मत पर चलो"
❉ इस दुनिया में सिवाय एक परम पिता परमात्मा के कोई श्रेष्ठ मत दे नही सकता ।
❉ क्योकि आसुरी राज्य है, सभी रावण की मत पर चलने वाले हैं । इसलिए कोई मनुष्य तो किसी मनुष्य को श्रेष्ठ मत दे ना सके ।
❉ पूरे 63 जन्म इसी आसुरी मत पर चलने के कारण हम पतित बने और दुखी हुए ।
❉ किन्तु अब परम पिता परमात्मा बाप आये हैं हमे श्रेष्ठ मत देने के लिए ।
❉ इसलिए अब हमे सभी मतों को छोड़, केवल ईश्वरीय मत पर चल, पावन बन स्वयं को श्रेष्ठ बनाना है ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा - ज्ञान मंथन(Marks:-10)
➢➢ बाप जो अविनाशी ज्ञान रत्नों का ख़ज़ाना देते हैं उनका क़दर करना है। बेपरवाह बन पाप कर्म नहीं करने हैं।
❉ एक बाप ही है जो अविनाशी ज्ञान रत्नों का ख़ज़ाना देते व क्योंकि ये सत का ज्ञान ऊँच ते ऊंच बाप के सिवाय कोई दूसरा दे न सका। तो अविनाशी ज्ञान रत्नों को धारण कर पावन बनना है।
❉ बाप ही 5000 वर्ष बाद आकर श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत देते है व तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाते हैं। हमें बाप की श्रीमत पर सम्पूर्ण रीति से चलते हुए बाप की आज्ञा का पालन करना है।
❉ जैसे कोई क़ीमती चीज़ होती है तो उसे अच्छे डिब्बे में सम्भाल कर रखते है तो बाबा जो हमे अविनाशी ज्ञान रत्न देते है वो भी सोने के बर्तन रूपी बुद्धि में तभी ठहरेंगे जब बुद्धि रूपी बर्तन साफ व क्लीयर होगा।
❉ बाप हमें पढ़ाते है व ज्ञान रत्नों से सजाते हैं व नयी दुनिया के लिए प्रिंस-प्रिसेंज बनाते है तो हमें भी अपने बाप को सपूत बच्चा बनकर दिखाना है व बाप का नाम बाला करना है।
❉ बाप जो ज्ञान ख़ज़ाने हमें देते हैं वे अविनाशी एक-एक ज्ञान रत्न का मूल्य लाखों से भी ज़्यादा है व ये अविनाशी कमाई से ही हमें 21 जन्मों की राजाई मिलती है।
❉ बाप की श्रीमत पर चलते-चलते अपनी मनमत पर चलने लगते हैं व देहभान में आकर पाप कर्म कर बैठते हैं और फिर नीचे गिर पड़ते हैं। इसलिए अपनी बहुत सम्भाल करनी है।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ जहान के नूर बन भक्तो को नजर से निहाल करने वाले दर्शनीय मूर्त बन जाते है... क्यों और कैसे ?
❉ अंत समय में हम आत्माओ को अनेक आत्माओ को अपने चेहरे व नैनों द्वारा सुख शांति की अनुभूति करवानी है और फिर वही आत्माओ के हम इष्ट देवी देवता बन जायेंगे।
❉ नयनो से निहाल वही परमात्मा के बच्चे कर पाएंगे जिन्होंने अपने को आत्मा समझ स्वयं को सर्व गुण व शक्तियों से भरपूर कर लिया होगा।
❉ क्युकी उन आत्माओ के चेहरे से रूहानियत छलकेगी, उनके बोल, व्यवहार से आत्माओ को सुख, शांति, शक्ति की अनुभूति होगी, निस्वार्थ सच्चा प्यार मिलेगा, उनको देखते ही मन को सुकून मिलेगा।
❉ सारे जहान के लिए हम रहमदिल बन शुभ भावना और शुभ कामना करते है, तब हमारे द्वारा निकले पावरफुल पवित्र वाइब्रेशन से आत्माओ का कल्याण होता है।
❉ हमारी त्याग, तपस्या और सेवा भाव द्वारा हम रूहानियत से भरपूर होते जाते है, हममे दैवी गुण आते जाते है, हमारी दृष्टि, वृत्ति, बोल चाल, सोच सबकुछ बदल जाती है ऐसे लगता जैसे फ़रिश्ते चल रहे हो, न्यारे और प्यारे।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ निर्मल स्वभाव निर्मानता की निशानी है, निर्मल बनो तो सफलता मिलेगी... क्यों और कैसे ?
❉ निर्मल स्वभाव चिंतन को शुद्ध और श्रेष्ठ बनाता है और श्रेष्ठ चिंतन बुद्धि की एकाग्रता को बढ़ा देता है जिससे सफलता सहज ही प्राप्त हो जाती है ।
❉ निर्मल स्वभाव व्यक्ति को समाधान स्वरूप बना कर समस्या के कारण को निवारण में बदल कर सफलता का आधार बन जाता है ।
❉ निर्मल स्वभाव व्यक्ति की समायोजन शक्ति को बढ़ा कर उसे सर्व का सहयोगी बना देता है इसलिए सफलता सहज ही उसके गले का हार बन जाती है ।
❉ निर्मल स्वभाव व्यक्ति को निर्मान बना देता है और निर्मानता का गुण उसे सर्व की दुआओं का पात्र बना कर सफलता की सीढ़ी तक पहुंचा देता है ।
❉ निर्मल स्वभाव व्यक्ति को सदा शीतल और संतुष्ट रखता है और सन्तुष्टता सफलता प्राप्ति का मूल मन्त्र है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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