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❍ 18 / 11 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °रूहानी फांसी° पर लटके रहे ?
‖✓‖ पढाई के समय °बुधीयोग एक बाप से° लगा रहा ?
‖✓‖ बुधी से °सब कुछ भूलने° का पुरुषार्थ किया ?
‖✓‖ सर्व °कमजोरियों को विदाई° देने के पुरुषार्थ किया ?
‖✗‖ छोटी छोटी बातों में °नाराज़° तो नहीं हुए ?
‖✗‖ जिन बातों में °टाइम वेस्ट° होता है, उसे सुना या सुनाया तो नहीं ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ °मायाजीत, विजयी° बनने के साथ सर्व खजानों के अधिकारी और पर उपकारी बनकर रहे ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ विदेही बनने में 'हे अर्जुन बनो'। अर्जुन की विशेषता-सदा बिन्दी में स्मृति स्वरुप बन विजयी बनो। ऐसे नष्टोमोहा स्मृति स्वरुप बनने वाले अर्जुन। सदा गीता ज्ञान सुनने और मनन करने वाले अर्जुन। ऐसा विदेही, जीते जी सब मरे पड़े हैं, ऐसे बेहद की वैराग्य वृत्ति वाले अर्जुन बनो।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ बेहद की वैराग्य वृत्ति वाले °अर्जुन° बनकर रहे ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं पर उपकारी आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ सर्व खजानो के विधाता बन, हर खजाने को कार्य में लगा कर सब पर उपकार करने वाली मैं पर उपकारी आत्मा हूँ ।
❉ बाप द्वारा मिले सर्व खजानो को स्व के प्रति और सर्व आत्माओं के प्रति यूज़ करने वाली मैं महादानी आत्मा हूँ ।
❉ मास्टर स्नेह का सागर बन मैं सर्व आत्माओं को स्नेह भरी पालना के पवित्र धागे में बांधती जाती हूं ।
❉ अपनी नम्रता से चारों और रुहानी खुशियों का प्रकाश फैला कर सबको अविनाशी खुशियों की अनुभूति कराती हूँ ।
❉ अपनी शुभ और श्रेष्ठ वृति और दृष्टि से मैं आत्मा सर्व को सहयोग और कल्याण का साकाश देती हूँ ।
❉ मैं आत्मा सदैव अपकारी पर भी उपकार करने वाली, गाली देने वाले को भी गले लगाने वाली और निंदा करने वाले को भी मित्र बनाने वाली हूँ ।
❉ मास्टर विधाता बन सर्व आत्माओं को रहम की अंजली दे कर उन्हें सर्व समस्यायों से मुक्त करती जाती हूँ ।
❉ अपने नम्र और सहयोगी व्यवहार द्वारा सबको संतुष्ट करने वाली मैं सबके स्नेह की पात्र आत्मा बनती जाती हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - ऊंच ते ऊंच पद पाना है तो याद की यात्रा में मस्त रहो - यही है रूहानी फाँसी, बुद्धि अपने घर में लटकी रहे"
❉ ऊंच ते ऊंच कहा जाता है केवल एक परमपिता परमात्मा बाप को ।
❉ वही ऊंच ते ऊंच बाप आकर अब हम को ऊंच ते ऊंच घर ले चलते है और ऊंच ते ऊंच पद प्राप्त कराते है ।
❉ किंतु ऊंच ते ऊंच हम तभी बनेंगे जब याद की यात्रा में मस्त रहेंगे । क्योंकि याद से ही ऊंच पद की प्राप्ति होगी ।
❉ इसलिए बाप श्रीमत देते है कि ऊंच पद पाना है तो याद की यात्रा में मस्त रहो ।
❉ जैसे कोई फांसी पर चढ़ता है, ऐसे तुम भी अब रुहानी फांसी पर चढ़े हुए हो । इसलिए बुद्धि केवल अपने घर मे लटकी रहे अर्थात बुद्धि का योग इस देह और देह की दुनिया से निकल केवल बाप और अपने स्वीट होम में लगा रहे ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ पढ़ाई के समय बुद्धियोग एक बाप से लगा रहे , कहां भी बुद्धि नही भटकनी चाहिए निराकार बाप हमें पढ़ा रहे है , इस नशे में रहना है ।
❉ जब बाप दूर देश परमधाम से पतितो की दुनिया में अपने बच्चों को सुप्रीम टीचर बनकर पढ़ाने के लिए आते हैं तो मुझे भी ऐसी ऊंच पढ़ाई को अच्छी रीति पढ़ना है व पढ़ते हुए बस बाप की याद में रहना है ।
❉ जब बाप टीचर बन पढ़ाने के लिए आते हैं तो बस मेरे लिए आए हैं व मुझे ही पढ़ाने के लिए आए हैं , मेरे से ही बात कर रहे हैं इसी संकल्प से पढ़ते हुए बुद्धियोग बस बाप से ही लगा रहे तो बुद्धि ओर कहीं नही भटकती ।
❉ लौकिक में पढ़ते हैं तो ये लक्ष्य होता है कि अच्छे से पढ़ेगे तो ऊंचा पद पाकर अच्छी कमाई होगी । फिर ये तो बेहद की पढ़ाई है व इससे अविनाशी कमाई होती है तो जब इतना ऊंचा पद मिलता है तो हमें ध्यान से पढ़ना है । बुद्धि इधर उधर नहीं भटकनी चाहिए ।
❉ जब भगवान स्वयं हमें सुप्रीम टीचर बन पढ़ाते है तो कितनी खुशी व नशा होना चाहिए ! पढ़ाने वाले टीचर को कोई भूलता है क्या । फिर हमारा तो बेहद का टीचर है व अनमोल अखूट खजानों से भरपूर करता है जोकि बेशुमार कीमती है ।
❉. ये रुहानी पढ़ाई है व रुहे ही पढ़ती हैं । पढ़ाने वाला भी निराकार बाप है व गुप्त रुप से पढ़ाता है । आत्मा ही पढ़ती है । आत्मा की खुशी भी अतिन्द्रिय है । यह पढ़ाई इतनी ऊंच है व 21 जन्मों के लिए विश्व की बादशाही मिलती है तो पढ़ाने वाले सुप्रीम टीचर की याद तो रहती ही है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ मायाजीत, विजयी बनने के साथ सर्व खजानों के विधाता पर उपकारी भी बनना है... क्यों और कैसे ?
❉ स्वय का पुरुषार्थ तो सब बहुत समय से कर ही रहे है, परन्तु अब समय है देने का। स्वयं में जो भी स्टॉक जमा किये है उनसे अन्य आत्माओ को सेवा करने का।
❉ बाबा ने बहुत लम्बे समय से हम बच्चो की पलना की है। और अब हमारा फर्क है की बालक सो मालिक की स्थिति में स्थित हो बाप के मददगार राईट हैण्ड बने।
❉ अब बचपन के नाज नखरे समाप्त कर हमें स्वयं ले मास्टर भाग्य विधाता स्टेज पर स्थित होना है। स्वयं तो मायाजीत विजयी बनना ही है साथ साथ औरो को भी बनाना है।
❉ अब मास्टर ऑलमाइटी बन अनेक आत्माओ को मुक्ति जीवनमुक्ति का अविनाशी वर्सा दिलाने का कर्तव्य करना है।
❉ जितना अब दुसरो को मायाजीत विजयी बनने का वर्सा दिलाएंगे उतना ही स्वयं अपेही बनते जायेंगे क्युकी उसके अनुभवी स्वरुप होंगे।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ विश्व कल्याणकारी बनना है तो अपनी सर्व कमजोरियों को सदाकाल के लिए विदाई दो... क्यों और कैसे ?
❉ सर्व कमजोरियों को सदाकाल के लिए जब विदाई देंगे तभी निमित और निर्मान भाव धारण कर, हद की वृति को बेहद में बदल कर, सबको एकता के सूत्र में बाँध कर विश्व के नव - निर्माण में सहायक बन सकेंगे ।
❉ सर्व कमजोरियों और पुराने स्वभाव - संस्कार से जब स्वयं को मुक्त कर लेंगे तो श्रेष्ठ कर्मो में प्रवृत हो, विश्व के नव - निर्माण में सहायक बन जायेंगे ।
❉ गुण ग्राही बन जब सर्व कमजोरियों को विदाई देंगे तो किसी के भी अवगुण हमारे चित को प्रभावित नही कर सकेंगे और सर्व के प्रति शुभभावना शुभकामना रखते हुए सर्व का कल्याण कर सकेंगे ।
❉ आत्मा जब सर्व कमजोरियों से मुक्त होगी तो अपनी श्रेष्ठ और पावरफुल वृति द्वारा वायुमण्डल को पावरफुल बना कर विश्वकल्याण के निमित बन जायेगी ।
❉ आत्मिक स्मृति में रहेंगे तो सर्व कमजोरियां स्वत: विदाई ले लेंगी और हर कर्म करनकरावन हार बाप की श्री मत प्रमाण होगा जो विश्वकल्याण के निमित होगा ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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