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   26 / 08 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ कहाँ भी आसक्ति न रख अपना °शक्ति स्वरुप° प्रतक्ष्य किया ?

 

‖✓‖ एक बाप की °श्रेष्ठ मत° पर चलते रहे ?

 

‖✓‖ अपना °सच्चा सच्चा चार्ट° रखा ?

 

‖✓‖ जो भी विकर्म हुए हैं... वह °बाप को लिखकर दिए° ?

 

‖✓‖ "°आँखें° धोखा न दें" - इसकी संभाल की ?

 

‖✗‖ °काम क्रोध° के वश कोई पाप तो नहीं किया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ सर्व कर्मेन्द्रियों के आकर्षण से परे °कमल समान° बनकर रहे ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  अभी अच्छा-अच्छा कहते हैं, लेकिन अच्छा बनना है यह प्ररोगा नहीं मिल रही है। उसका एक ही साधन है-संगठित रुप में ज्वाला स्वरुप बनो। एक एक चैतन्य लाइट हाउस बनो। सेवाधारी हो, स्नेही हो, एक बल एक भरोसे वाले हो, यह तो सब ठीक है, लेकिन मास्टर सर्वशक्तिवान की स्टेज, स्टेज पर आ जाए तो सब आपके आगे परवाने के समान चक्र लगाने लगेंगे।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ °मास्टर सर्वशक्तिवान° की स्टेज पर सेट रहे ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं दिव्य बुद्धि और दिव्य नेत्र की वरदानी आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   सर्व कर्मेन्द्रियों की आकर्षण से परे कमल पुष्प समान रहने वाली, मैं दिव्य बुद्धि और दिव्य नेत्र की वरदानी आत्मा हूँ ।

 

 ❉   बाप दादा द्वारा मिले दिव्य बुद्धि और दिव्य नेत्र के इस गिफ्ट को सदा यथार्थ रीति यूज़ कर मैं सदा कमल आसन पर विराजमान रहती हूँ ।

 

 ❉   देह के सम्बन्ध, देह के पदार्थ और किसी भी कर्मेन्द्रिय का कोई भी आकर्षण मुझे अपनी ओर आकर्षित नही कर पाता ।

 

 ❉   इस कलयुगी पतित विकारी दुनिया की किसी भी चीज में मुझे कोई आकर्षण और कोई आसक्ति नही है ।

 

 ❉  उपराम वृति द्वारा साक्षी वा न्यारी स्तिथि में स्तिथ रह मैं ड्रामा की हर सीन को साक्षी हो कर देखती हूँ ।

 

 ❉   मैं आत्मा केवल एक बाप की याद के आकर्षण में ही आकर्षित हूँ ।

 

 ❉   बाप का श्रेष्ठ संग मुझे सर्व प्रकार के संग के रंग से सदा प्रभावहीन और मुक्त रखता है ।

 

 ❉   दिव्यता और अलौकिकता से सम्पन्न मैं आत्मा आलौकिक दिव्य दर्शनीय मूर्त हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - बाप से ऑनेस्ट रहो, अपना सच्चा - सच्चा चार्ट रखो, किसी को भी दुःख ना दो, एक बाप की श्रेष्ठ मत पर चलते रहो"

 

 ❉   ऑनेस्ट रहना, सबको सुख देना, सबके साथ प्रेम से रहना, यही हम आत्माओं का यथार्थ स्वरूप हैं ।

 

 ❉   किन्तु रावण राज्य में माया रूपी रावण की प्रवेशता के कारण हमारे वास्तविक संस्कार मर्ज हो गए हैं ।

 

 ❉   इन्ही दैवी संस्कारों को फिर से इमर्ज करने के लिए ही परमपिता परमात्मा शिव बाबा आये हैं ।

 

 ❉   राजयोग सिखला कर हमे आसुरी मनुष्य से दैवी गुण वाले देवी देवता बना रहे हैं ।

 

 ❉   इसलिए बाबा समझाते हैं कि मुझ बाप के साथ ऑनेस्ट रहो, अपना सच्चा - सच्चा चार्ट रखो, किसी को भी दुःख ना दो और मेरी श्रेष्ठ मत पर चलो ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ अपनी दृष्टि बहुत अच्छी बनानी है । आँखें धोखा न दें- इसकी सम्भाल करनी है ।

 

 ❉   ये पुरानी दुनिया तो विनाशी है व इसे देखकर इसमें दिल नहीं लगानी है। ये मन बहुत चंचल है व  ये आँखें ही सबसे जल्दी धोखा देती है बहुत सम्भाल रखनी है ।

 

 ❉   इस संगमयुग पर बाप हमें पतित से पावन बनाकर नयी दुनिया में ले जाने के लिए आए है तो हमें इन मन की आँखों से नयी दुनिया को देखना है व अपनी दृष्टि बहुत अच्छी बनानी है ।

 

 ❉   स्वीट बाप को याद कर देह-अभिमान के काँटे को जला देंगे तो दृष्टि अच्छी हो जाएगी व ये आँखे धोखा नहीं देंगी ।

 

 ❉   अभी तक विषय वितरणी नदी में गोता खाते रहे व देह-अभिमान में रहकर विकर्म करते रहे अब तो ज्ञान का तीसरा नेत्र खुलने पर अपनी कर्मेन्द्रियों पर कंट्रोल करना है । जैसा देखते है वैसा ही चिंतन चलता है व फिर वैसा करते है । इसलिए आँखों की सम्भाल रखनी है ।

 

 ❉   जब आत्मा आत्मा भाई-भाई की दृष्टि रहती है तो गल्त ख्यालात नहीं चलते व ये आँखें धोखा नहीं देती व दृष्टि पवित्र व शुद्ध रहती है ।

 

 ❉    ये आँखें ही धोखा देती है । सूरदस जी की तरह हमें अपनी आँखे नही निकालनी बल्कि बुद्धि रूपी आँख की सम्भाल रखनी है । हमारे नेत्रों में बस आँखों में बाबा ही बसे होने चाहिए ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ सर्व कर्मेन्द्रियो की आकर्षण से परे कमल समान रहने वाले दिव्य बुद्धि और दिव्य नेत्र के वरदानी बन जाते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   इस विशश दुनिया में रहते भी इसके आकर्षण व प्रभाव से दूर श्रेष्ठ स्वमान में स्थित रहना यही है कमल पुष्प समान बनना।

 

 ❉   गुण-अवगुण, सत्य-असत्य, सुकर्म-विकर्म को जानना, पहचानना और उस अनुसार कार्य में लाना। जो आत्मा जितना अपनी कर्मेन्द्रियो पर जीत पाती है उतनी ही दिव्य बुद्धि और दिव्य नेत्र का वरदान प्राप्त करती है।

 

 ❉   परमात्मा ने आकर हमें यह राज समझाया है की हम आत्मा राजा है और सर्व कर्मेन्द्रियाँ हमारी कर्मचारी है, जिसने कर्मेन्द्रियो को जित लिया उसके लिए कमल पुष्प समान रहना अति सहज है।

 

 ❉   जितना जितना हम कमल पुष्प समान रहेंगे उतना ही हमारी बुद्धि का ताला खुलता जायेगा, परमात्मा का यथार्थ ज्ञान हमारी बुद्धि में बेठता जायेगा। बाप जो है, जैसा है उसे उसी रूप में जान सकेंगे और याद कर सकेंगे।

 

 ❉   बाप ने हमें जो दिव्य बुद्धि दी है उस द्वारा हम तीनो लोको, तीनो कालो की यात्रा कर सकते है। दिव्य नेत्र द्वारा अपने आदि मध्य अंत को जान अथवा देख सकते है।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ जब कहाँ भी आसक्ति न हो तब शक्ति स्वरूप प्रत्यक्ष हो... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   किसी भी चीज में अगर आसक्ति होगी तो बुद्धि की लाईन क्लियर ना होने के कारण सर्वशक्तिवान बाप से सर्व शक्तियां प्राप्त नही कर पायेंगे जिससे अपने शक्ति स्वरूप को प्रत्यक्ष नही कर पायेंगे ।

 

 ❉   जब देह और देह के सबंधो, पदार्थो के प्रति अनासक्त होंगे तो अपनी पावरफुल वृति द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तित कर, अपने शक्ति स्वरूप को प्रत्यक्ष कर सकेंगे ।

 

 ❉   शक्तिसम्पन्न बन अपने शक्ति स्वरूप को तभी प्रत्यक्ष कर सकेंगे जब बुद्धि का योग निरन्तर एक बाप से जुटा रहेगा और बुद्धि योग बाप से तभी जुटेगा जब कहीं भी आसक्ति नही होगी ।

 

 ❉   एक बाप से सर्व सम्बन्धो का सुख आत्मा को सर्व आकर्षणों से मुक्त कर देगा और आकर्षणमुक्त आत्मा अनासक्त बन स्वत: ही शक्ति स्वरूप में प्रत्यक्ष हो जायेगी ।

 

 ❉   ज्ञान और योग का बल आत्मा को उपराम स्थिति द्वारा सबसे अनासक्त कर, शक्तिस्वरूप बना देगा ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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