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❍ 30 / 12 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ स्वयं के °आसुरी गुणों की जांच° की ?
‖✓‖ जो भी °ज्ञान रतन° मिले हैं, उन्हें धारण कर दूसरों को कराया ?
‖✓‖ अपनी उन्नति के लिए °रूहानी सर्विस° में तत्पर रहे ?
‖✓‖ अपने चहरे को °चलता फिरता म्यूजियम° बनाया जिससे बाप बिंदु दिखाई दे ?
‖✓‖ कोई से भी बात करते, देखते °बुधीयोग एक बाप से° लगा रहा ?
‖✗‖ इस °पुरानी दुनिया से दिल° तो नहीं लगाया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ °शुभ चिंतन° द्वारा ज्ञान सागर में समाये रहे ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ आवाज से परे अपनी श्रेष्ठ स्थिति में स्थित हो जाओ तो सर्व व्यक्त आकर्षण से परे शक्तिशाली न्यारी और प्यारी स्थिति बन जायेगी। एक सेकण्ड भी इस श्रेष्ठ स्थिति में स्थित होंगे तो इसका प्रभाव सारा दिन कर्म करते हुए भी स्वयं में विशेष शान्ति की शक्ति अनुभव करेंगे। इसी स्थिति को कर्मातीत स्थिति, बाप समान सम्पूर्ण स्थिति कहा जाता है।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ आवाज से परे अपनी °श्रेष्ठ स्थिति° में स्थित होने का अभ्यास बार बार किया ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं अतीन्द्रिय सुख की अनुभवी आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ शुभ चिंतन द्वारा ज्ञान सागर में समाने वाली मैं अतीन्द्रिय सुख की अनुभवी आत्मा हूँ ।
❉ एकांतवासी बन प्रेम सागर बाप के प्रेम की लहरों में लहरा कर मैं प्रेम मग्न हो सदा आनन्दित होती रहती हूँ ।
❉ सर्व आकर्षणों के वायब्रेशन से अंतर्मुखी बन केवल एक बाप के लव में लवलीन हो कर मैं निरन्तर उड़ती कला का अनुभव करती रहती हूँ ।
❉ बाप दादा द्वारा मिले दिव्य बुद्धि और दिव्य नेत्र के गिफ्ट को सदा यथार्थ रीति यूज़ कर मैं सदा कमल आसन पर विराजमान रहती हूँ ।
❉ देह के सम्बन्ध, देह के पदार्थ और किसी भी कर्मेन्द्रिय का कोई भी आकर्षण मुझे अपनी ओर आकर्षित नही कर पाता ।
❉ इस कलयुगी पतित विकारी दुनिया की किसी भी चीज में मुझे कोई आकर्षण और कोई आसक्ति नही है ।
❉ उपराम वृति द्वारा साक्षी वा न्यारी स्तिथि में स्तिथ रह मैं ड्रामा की हर सीन को साक्षी हो कर देखती हूँ ।
❉ मैं आत्मा केवल एक बाप की याद के आकर्षण में ही आकर्षित हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - अपनी तकदीर ऊंच बनानी है तो कोई से भी बात करते, देखते बुद्धि का योग एक बाप से लगाओ"
❉ इस कलयुगी रावण राज्य में सभी की तक़दीर बिगड़ी हुई है । क्योकि तक़दीर बनाने वाले परमात्मा बाप को ही भूले हुए हैं ।
❉ इसलिए सभी देह - अभिमान में रहने के कारण कर्मेन्द्रियों के वश हो कोई ना कोई विकर्म कर अपनी तक़दीर को लकीर लगाते रहते हैं ।
❉ ऊंची तक़दीर बनाने का तो केवल एक ही उपाय हैं और वह है तक़दीर बनाने वाले परमात्मा बाप की याद ।
❉ इसलिए बाप समझाते हैं कि अपनी तक़दीर ऊंच बनानी है तो कोई से भी बात करते, देखते बुद्धि का योग एक बाप से लगा रहे ।
❉ क्योकि केवल एक बाप की याद से ही आत्मा सतोप्रधान बन ऊंच पद पाने की अधिकारी बनेगी ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ अपनी उन्नति के लिए रुहानी सर्विस में तत्पर रहना है । जो भी ज्ञान रत्न मिले हैं उन्हें धारण करके दूसरों को कराना है ।
❉ हम आत्माओं को संगमयुग पर सच्चा सच्चा बेहद का बाप मिला है व बच्चों को पढ़ाने के लिए पतित दुनिया में दूरदेश से आता है व बच्चों की सर्विस के लिए हमेशा तत्पर रहता है तो हमें भी रुहानी सर्विस में तत्पर रहना है ।
❉ ईश्वरीय सेवा करने का मौका मिलना एक बहुत बडी लाटरी है व अपने आप को सौभाग्यशाली समझ रुहानी सर्विस में तत्पर रहना है ।
❉ अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है व श्रेष्ठ मत पर चलते हुए दूसरी रुहों को बाप का परिचय देकर आप समान बनाते हुए अपनी उन्नति करते हुए सेवा में लगे रहना है ।
❉ बाबा ज्ञान रत्नों से हमारी झोली भरते हैं उन्हें धारण करने के लिए अपनी बुद्धि की लाइन क्लीयर रखनी है । बाबा जो ज्ञान रत्न देते हैं वे एक एक रत्न बेशुमार कीमती हैं तो हम कितनी लाखों की कमाई करते हैं ।
❉ जब ज्ञान रतन स्वयं धारण करेंगे व स्व का परिवर्तन करेंगे तो हमें देख दूसरों मे भी कशिश होगी कि ये कैसी भी परिस्थिति होती है तो सदा खुश रहते हैं । जैसा कर्म हम करेंगे हमे देख दूसरे भी वैसा ही करेंगे ।
❉ हम सब आत्माओं का परमपिता परमात्मा एक ही है व बाप की याद में रहते हुए औरों को भी ये समझाना है । देह-अभिमान के कारण ही विकारों मे आकर पतित हो गए व अब देही अभिमानी बनना है । स्वयं पुरुषार्थ करते हुए ओरों को भी कराना है । एक बाप की याद में रहना है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ शीभ चिंतन द्वारा ज्ञान सागर में समाने वाले अतीन्द्रिय सुख के अनुभवी होते है... क्यों और कैसे ?
❉ ज्ञान सागर बाप में जितना समाते जायेंगे उतना ही अमुल्य ज्ञान रत्नों की प्राप्तियाँ होती जाएगी। सागर की गहराई में जाने से ऐसे रत्न प्राप्त होते है जो न कभी देखे न सुने।
❉ जैसे सागर का पानी ऊपर से भले कितना हलचल का हो, कितनी बड़ी बड़ी डराने वाली लहरे आये परन्तु गहराई में उतना ही शान्त रहता है, वैसे ज्ञान सागर की गहराई में जितना रहेंगे उतना ही मन शान्त रहेगा, बाहरी दुनिया की हलचल की बाते मन पर असर नहीं कर पायेगी।
❉ जितना हम एकांत में रहेंगे और अंतर्मुखी होकर शुभ संकल्प करेंगे उतना ही ज्ञान सागर के समीप आते जायेंगे और सच्चे अतीन्द्रिय सुख, शान्ति, प्रेम, आनंद की अनुभूति कर सकेंगे।
❉ अन्तर्मुखता की गुफा में स्वयं को बिठाना है, सर्व व्यर्थ संकल्पों व आकर्षणो से परे रहना है। एकांतवासी बनना अर्थात एक के अंत में खो जाना, यही है जीवन की सच्ची प्राप्ति।
❉ जितना जितना शुभ चिंतन करेंगे उतना मन का मैल निकलता जायेगा और हमारा मन शुद्ध संकल्पों से भरता जायेगा, स्वच्छ साफ़ मन द्वारा ही हम परमात्मा से मिलन की अनुभूति कर सकते है, कहते भी है "शेरनी का दूध सोने के बर्तन में ही ठहर सकता है"।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ अपने चेहरे को ऐसा चलता फिरता म्यूज़ियम बनाओ जिसमे बाप बिंदु दिखाई दे... कैसे ?
❉ ज्ञान, योग, धारणा की साधना द्वारा जब सिद्धि स्वरूप बन जायेंगे तो चेहरा ऐसा चलता फिरता म्यूज़ियम बन जायेगा जिसमे बाप बिंदु स्पष्ट दिखाई देगा ।
❉ सदा अपने अलंकारी स्वरूप् में स्तिथ रहेंगे तो चेहरा रूहानियत से ऐसा चमकता रहेगा जिसमें बिंदु बाप की झलक सपष्ट दिखाई देगी ।
❉ ब्राह्मण जन्म की दिव्यता और अलौकिकता की झलक जब चेहरे से स्वत:झलकने लगेगी तो बाप को प्रत्यक्ष करना सरल हो जायेगा ।
❉ सदा अपने कम्बाइंड स्वरूप की स्मृति में रहेगें तो अपने चेहरे वा चलन से बिंदु बाप को प्रत्यक्ष कर सबको सुख शान्ति का सहज अनुभव करवा सकेंगे ।
❉ जब सब बुराइयों को निकाल फ़रिश्ते समान सूक्ष्म, शुद्ध और हल्के बनेंगे तो रीयल डायमंड बन अपने वायब्रेशन की चमक से बिंदु बाप को प्रत्यक्ष कर सकेंगे ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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