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❍ 23 / 12 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °सर्विस° के लिए एवररेडी रहे ?
‖✓‖ °स्वदर्शन चक्र° फिराते पापों को भस्म किया ?
‖✓‖ वनवाह में रहते बहुत °साधारण° होकर रहे ?
‖✓‖ सदा खुद को °श्रृंगारे° हुए रहे ?
‖✓‖ °अंतर्मुखता° से मुख को बंद कर क्रोध से दूर रहे ?
‖✗‖ किसी भी परिस्थिति में °आंसू° तो नहीं बहाए ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ स्वयं को °विश्व सेवा प्रति अर्पित° कर माया को दासी बनाया ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ जैसे कर्म में आना स्वाभाविक हो गया है वैसे कर्मातीत होना भी स्वाभाविक हो जाए। कर्म भी करो और याद में भी रहो। जो सदा कर्मयोगी की स्टेज पर रहते हैं वह सहज ही कर्मातीत हो सकते हैं। जब चाहे कर्म में आये और जब चाहे न्यारे बन जायें।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ सदा °कर्मयोगी° की स्टेज पर रहे ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं सहज सम्पन्न आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ स्वयं को विश्व सेवा प्रति अर्पित कर माया को दासी बनाने वाली मैं सहज सम्पन्न आत्मा हूँ ।
❉ अपना हर संकल्प, समय, सर्व प्राप्तियां, ज्ञान, गुण और शक्तियों को मैं बेहद विश्व की सेवा अर्थ समर्पित कर रही हूँ ।
❉ जीवन में आने वाली परीक्षायें और पेपर्स मेरी सेवा की लग्न में स्वत: समर्पण होते जाते हैं ।
❉ माया के विघ्नों से घबराने की बजाए मायाजीत बन मैं सदा विजयी बनने की ख़ुशी में नाचती रहती हूँ ।
❉ मेरी आलौकिक ख़ुशी के आगे माया भी दासी बन मेरी सेवा में सदा तत्पर रहती है ।
❉ स्वयं को सेवा में समर्पित करने के कारण सभी परिस्थितियां रूपी तूफान मेरी स्व - स्थिति के आगे स्वत: समर्पण हो जाते हैं ।
❉ बाबा ने मुझे सर्व प्राप्तियो का अनुभवी बना कर सम्पूर्ण विजयी भव के वरदान से सम्पन्न कर दिया है ।
❉ त्रिमूर्ति स्वरूप का तिलक धारण कर मैं हर परिस्थिति पर सहज ही विजय प्राप्त करती जाती हूँ ।
❉ अपने श्रेष्ठ पुरुषार्थ द्वारा भविष्य श्रेष्ठ प्रालब्ध प्राप्त कर, विजय का तिलक लेने वाली मैं विश्व अधिकारी आत्मा हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - बेहद का बाबा आया है तुम बच्चों का ज्ञान से श्रृंगार करने, उंच पद पाना है तो सदा श्रृंगारे हुए रहो"
❉ पूरे 63 जन्म हम स्वयं को शरीर समझ इस शरीर को ही सजाते और संवारते आये ।
❉ और अनेक प्रकार की सौंदर्य सामग्री से इस शरीर का श्रृंगार करते आये ।
❉ किन्तु इस बात को भूल गए कि ये शरीर तो विनाशी है, आत्मा अविनाशी है । इसलिए श्रृंगार तो आत्मा का करना चाहिए ।
❉ और अब संगम युग पर आत्मा का श्रृंगार करने के लिए ही परम पिता परमात्मा बेहद का बाप आये है और आ कर ज्ञान रत्नों से हम आत्माओं का श्रृंगार कर रहें हैं ।
❉ जितना हम इन ज्ञान रत्नों से सजे हुए रहेंगे उतना भविष्य में उंच पद पाएंगे । इस लिए बाप समझाते हैं कि उंच पद पाना है तो सदा श्रृंगारे हुए रहो ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ स्वदर्शन चक्र फिराते पापों को भस्म करना है, रुहानी पढ़ाई से अपना पद श्रेष्ठ बनाना है ।
❉ स्वदर्शन चक्र चलाना माना कोई हिंसा करना नही हैं , अपने विकारों पर विजय पानी है व काम कटारी नही चलानी है । अपने को आत्मा समझ बाप की याद में रहकर विकर्म विनाश करने है ।
❉ सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान बाबा ने हमें देकर त्रिकालदर्शी बना दिया है व बुद्धि मे ये चक्र फिराते रहने से अपने विकर्मों का विनाश करना है । चक्र फिराते फिराते चक्रवर्ती राजा बनना है ।
❉ हम कितने भाग्यवान है जो स्वयं भगवान हम रुहों को पतितों की दुनिया में पढ़ाने के लिए आते हैं व हमें पावन बनाते हैं। मनुष्य से देवता बनाने के लिए रुहानी व ऊंच पढ़ाई पढ़ाते है तो हमें भी अच्छी रीति पढ़कर ऊंच पद प्राप्त करना है ।
❉ यह रुहानी पढ़ाई वंडरफुल है जो बच्चे बूढ़े सब एक ही पढ़ाई पढ़ते हैं । हमें पढ़ाई को व एम आब्जेक्ट को हमेशा याद रखना है । जब लक्ष्य याद रहता है तो लक्षण भी आने लगते हैं ।
❉ ये रुहानी पढ़ाई जिससे हमें 21 जन्मों के लिए राजाई पद प्राप्त होता है उससे अनमोल रत्नों की झोली भरकर उसे दान करते हुए अपना पद श्रेष्ठ बनाना है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ स्वयं को विश्व सेवा प्रति अर्पित कर माया को दासी बनाने वाले सहज संपन्न अनुभव करते है... क्यों और कैसे ?
❉ "देना ही लेना है" जितना जो चीज दुसरो को देते है उतना ही वह पदम गुणा होकर हमें प्राप्त होती है।
❉ "दे दान तो छुटे ग्रहण" विकारो का दान देने से आत्मा पर जो तमोप्रधानता का ग्रहण है वो छुट जायेगा। श्रीमत पकर विश्व सेवा करते जायेंगे तो अवगुण छुटते जायेंगे।
❉ "धन दिए धन न खूटे" ज्ञान रूपी धन कितना भी दान करने से कभी कम नहीं होता है। ईश्वरीय प्राप्तियो को दान करने से ईश्वरीय नियम प्रमाण, जितना दान करेंगे उतनी वृद्धि होगी अर्थात देना ही बढ़ाना है।
❉ स्वयं को विश्व सेवामे अर्पित करने से हमारा जो भी संकल्प, समय, बोल, कर्म होगा वह विश्व के कल्याण प्रति होगा, जब हम परमात्म कार्य में बीजी रहेंगे तो माया की हिम्मत नहीं जो प्रवेश कर सके।
❉ स्वयं को ज्ञान, सेवा में इतना बीजी करदो की व्यर्थ के लिए समय ही न बचे। जब सर्व कार्य समर्थ होंगे तो सदा स्वयं को परमात्म प्राप्तियो से भरपूर अनुभव करेंगे। अनेको की दुवाये हमारे साथ होंगी।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ अंतर्मुखता से मुख को बन्द कर दो तो क्रोध समाप्त हो जायेगा... कैसे ?
❉ जितना अंतर्मुखता की गुफा में रहेंगे उतना आत्मा में साइलेन्स का बल जमा होता जायेगा और आत्मा कर्मेन्द्रिय जीत, मायाजीत बनती जायेगी तथा शांत स्थिति में स्थित होती जायेगी जिससे क्रोध रूपी विकार पर सहज ही विजय प्राप्त हो जायेगी ।
❉ जितना अंतर्मुखी बन बाप की याद में रहेंगे उतना नॉलेजफुल की सीट पर सेट रहेंगे और किसी भी परिस्तिथि के आने से पहले उसे परख कर उस परिस्तिथि में अपसेट होने या क्रोध करने की बजाये उसे सहज ही पार कर लेंगे ।
❉ अंतर्मुखता की सीट पर जितना स्वयं को सेट रखेंगे उतना व्यर्थ चिंतन से मुक्त रहेंगे और मन बुद्धि समर्थ चिंतन में बिज़ी रहेगी जिससे सदा आत्मिक शक्ति और एनर्जी जमा होती रहेगी जो हर परिस्थिति को सहज बना कर क्रोध से मुक्त कर देगी ।
❉ जब अंतर्मुखी बन मुख को बंद कर लेंगे तो रूलिंग पॉवर और कंट्रोलिंग पॉवर बढ़ती जायेगी जिससे मन बुद्धि को जब चाहे बाहरी दुनिया से समेट कर एक बिंदु पर एकाग्र करने का अभ्यास बढ़ता जायेगा जो शांत चित बना कर विकारों पर विजय दिला देगा ।
❉ जितना अंतर्मुखता में रह, एकांतवासी बन एक के अंत में खोये रहेंगे उतना एकाग्रता की शक्ति बढ़ती जायेगी और एकाग्र मन आत्मा को शक्तिशाली बना देगा जिससे क्रोध जैसी परिस्थिति में भी आत्मा शांत अवस्था का अनुभव करेगी ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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