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   29 / 06 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ "हम °ईश्वरीय सम्प्रदाय° के हैं" - यह निश्चय और नशा रहा ?

 

‖✓‖ बाप को अपनी खुश्खैराफत का °समाचार° दिया ?

 

‖✓‖ सदा °एक बाप° के श्रेष्ठ संग में रहे ?

 

‖✓‖ याद के बल से अपनी °कर्मेन्द्रियों को वश° में किया ?

 

‖✓‖ °अंतरमुखी° बन ज्ञान धारण किया ?

 

‖✗‖ पुरुषार्थ में °गफलत° तो नहीं की ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ निर्बल, दिल्शिकस्त, असमर्थ आत्मा को एक्स्ट्रा बल दे °रूहानी रहमदिल° आत्मा बनकर रहे ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  अब चारों ओर सेवाकेन्द्र वा प्रवृत्ति के स्थान को शान्ति कुण्ड बनाओ, इसके लिए योग का किला मजबूत करो। किले को मजबूत करने का साधन है-प्युरिटी। जहाँ पवित्र आत्माएं रहती हैं वहाँ के वायब्रेशन विश्व की आत्माओं को शान्ति की अनुभूति कराते हैं। पवित्रता की शक्ति महान शक्ति है, उसकी महानता को जानकर मास्टर शान्ति देवा बनो। कैसी भी अशान्त आत्मा को शान्त स्वरूप, पवित्र स्वरूप में स्थित होकर शान्ति की किरणें दो तो अशान्त भी शान्त हो जायेंगे।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ पवित्र स्वरूप में स्थित होकर °अशांत आत्माओं को शांति° की किरणें दी ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं रूहानी रहमदिल आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   मैं निर्बल, दिलशिकस्त, असमर्थ आत्माओं को एक्स्ट्रा बल देने वाली रूहानी रहमदिल आत्मा हूँ ।

 

 ❉   मैं हताश और निराश आत्माओं के मन में आशा का दीपक जलाने वाला चैतन्य दीपक हूँ ।

 

 ❉   मैं महादानी बन गरीब बेसहारा आत्माओं को सर्व शक्तियो और सर्व खजानो का दान कर सम्पन्न बनाती जाती हूँ ।

 

 ❉   ज्ञान, शक्तियों और गुणों के रूहानी खजाने को मैं स्वाभाविक रीति से सर्व आत्माओं पर लुटाती रहती हूँ ।

 

 ❉   सर्व आत्माओं को सच्चा स्नेह और सहयोग देने वाली मैं सहयोगी आत्मा हूँ ।

 

 ❉   अपने नम्र और सहयोगी व्यवहार से सबको सदा संतुष्ट करने वाली मैं सबके स्नेह की पात्र आत्मा बनती जाती हूँ ।

 

 ❉   दाता पन की सीट पर सेट हो कर सर्व आत्माओं को रहम की अंजली देकर उन्हें सर्व समस्याओं से मुक्त करती जाती हूँ ।

 

 ❉   विश्व सेवा के कार्य को सदा स्मृति में रख, रहमदिल और महादानी बन सर्व आत्माओं को बाप से मिला कर उनका भाग्य बनाती जाती हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - अभी तुम ईश्वरीय औलाद बने हो, तुम्हारे में कोई आसुरी गुण नही होने चाहिये, अपनी उन्नति करनी है, गफलत नही करनी है"

 

 ❉   हमारे जिस जीवन को रावण ने कौड़ी तुल्य बना दिया था, उसे अब परम पिता परमात्मा शिव बाबा आ कर हीरे तुल्य बना रहे हैं ।

 

 ❉   अब हम ईश्वरीय औलाद बने हैं, स्वयं भगवान आ कर हमे ईश्वरीय पालना दे रहे हैं, मनुष्य से देवता बनने की युक्ति बता रहे हैं ।

 

 ❉   तो सोचो कितने पदमा पदम भाग्यशाली है हम बच्चे जो पुरुषोत्तम संगम युगी ब्राह्मण बन, ईश्वरीय गोद में पल रहें हैं ।

 

 ❉   इसलिए अब हमे भगवान की मत पर चल अपने अंदर से आसुरी गुणों को निकाल , दैवी गुण धारण करने हैं

 

 ❉   अपनी उन्नति करने के लिए हमे अपने इस अमूल्य जीवन को गवाना नही है, कोई गफलत नही करनी है, बल्कि परमात्मा की याद से आत्मा को पावन बनाने का पुरुषार्थ करना है ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ याद के बल से अपनी कर्मेन्द्रियाँ ऐसी वश में करनी है जो कोई भी चंचलता न रहे ।

 

 ❉   अपने सबसे पहले पाठ को याद रखना है कि मैं आत्मा हूँ देह नहीं । जब ये याद रहेगा तो आत्मा को अपने पिता परमपिता की याद स्वत: ही आयेगी ।

 

 ❉   परमात्मा की याद में रहने से देहभान ही नहीं रहता तो कर्मेन्द्रियाँ भी वश में होती है ।

 

 ❉   जितना याद में रहते हैं तो आत्मा में बल भरता है व कर्मेन्द्रियाँ शीतल हो जाती हैं । कर्मेन्द्रियाँ आर्डरानुसार काम करती हैं ।

 

 ❉   इस संगमयुग पर आकर ही परमात्मा ने यह ज्ञान दिया कि ये समय बहुत क़ीमती है । इस समय परमात्मा की याद में जितना ज़्यादा रहेंगे उतना ही अधिक पुरूषार्थ कर प्राप्त करेंगे ।

 

 ❉   आत्मिक स्थिति में रहने से व याद के बल से ही देहभान नहीं रहता व स्त्री पुरूष का भी भान नहीं रहता । आत्मा भाई-भाई की दृष्टि पक्की होती है तो कर्मेन्द्रियाँ भी चलायमान नहीं होती ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ रूहानी रहमदिल बन निर्बल, दिलशिकस्त, असमर्थ आत्मा को एक्स्ट्रा बल देना है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   हमें बाबा ने ज्ञान दिया है  जिससे सिर्फ हमें ही आगे नहीं बडाना है परन्तु अपने साथ-साथ सभी को आगे बडाना भी है।

 

 ❉   बाबा दैवी राजधानी स्थापन करने आये है, तो राजधानी में अकेले तो राज्य करेंगे नहीं प्रजा भी जरुर होनी चाहिए।

 

 ❉   जब तक हमारा ब्राह्मण परिवार ही निर्विघ्न नहीं होगा, तब तक सारे विश्व को निर्विघ्न कैसे बनायेंगे इसलिए एक दो को सहयोग की ऊँगली दे आगे बड़ाना है।

 

 ❉   आज आत्माये इतनी कमजोर हो चुकी है की उनमे इतना बल ही नहीं है जो स्वयं को पुरुषार्थ कर उचा उठा सके, एसी आत्माओ में रहमदिल बन एक्स्ट्रा बल भरना हम महावीरो का फर्ज है।

 

 ❉   हम उन आत्माओ के प्रति शुभ भावना रखे, उनमे उमंगो के पंख लगाये, उनके लिए वायुमंडल तैयार करे, बहुत सारा निस्वार्थ प्यार दे, उनकी परेशानियों को सुन उनका समाधान दे, उन्हें आगे बढ़ने का प्रोत्साहन दे, जैसे बाबा अपने बच्चो की तारीफे कर के उमंग उत्साह में लाकर ऊचा उड़ा देते है ऐसे ही हम भी उमंग में लाये, योग का सहयोग दे।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ सदा एक बाप के श्रेष्ठ संग में रहो तो और किसी के संग का रंग प्रभाव नही डाल सकता... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   सदा एक बाप का श्रेष्ठ संग सर्व आकर्षणों से मुक्त कर देगा जिससे किसी के भी संग का रंग आत्मा पर कोई प्रभाव नही डाल सकेगा ।

 

 ❉   सदा एक बाप के श्रेष्ठ संग में रहने से आत्मा  स्वयं को सर्व प्राप्ति सम्पन्न अनुभव कर, किसी के भी संग के प्रभाव से मुक्त रहेगी ।

 

 ❉   सदा एक बाप का श्रेष्ठ संग आत्मा को सुख शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर कर सर्व प्रकार के संग के रंग से मुक्त कर देगा ।

 

 ❉   सदा एक बाप के श्रेष्ठ संग में रहने से आत्मा सर्व सम्बन्धो की अनुभूति एक बाप से ही करेगी इसलिए किसी के भी संग का रंग उस पर कोई प्रभाव नही डाल सकेगा ।

 

 ❉   जब आत्मा सदा एक बाप के श्रेष्ठ संग में रहेगी तो हद के मान, शान और सम्मान से मुक्त हो जायेगी और किसी के भी संग के रंग में नही आयेगी ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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