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   22 / 09 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ श्रीमत पर भारत को °पावन बनाने की सेवा° की ?

 

‖✓‖ इस बेहद नाटक में हर पार्ट °आत्म अभिमानी° होकर बजाया ?

 

‖✓‖ °साक्षी° होकर हर एक एक्टर का पार्ट देखा ?

 

‖✓‖ °चलन° बहुत मीठी और रॉयल रही ?

 

‖✓‖ "बाप आये हैं हमें °फूल बनाने°" - यह स्मृति रही ?

 

‖✓‖ °कमल फूल समान न्यारे° रह प्रभु का प्यार प्राप्त किया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ अनेक प्रकार की °प्रवृति से निवृत° रहे ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  अभी आप बच्चों को दो प्रकार के कार्य करने हैं-एक तो आत्माओं को योग्य और योगी बनाना है, दूसरा धरणी को भी तैयार करना है। इसके लिए विशेष वाणी के साथ-साथ वृत्ति को और तीव्र गति देनी पड़ेगी क्योंकि वृत्ति से वायुमण्डल बनेगा और वायुमण्डल का प्रभाव प्रकृति पर पड़ेगा, तब तैयार होंगे। वाणी और वृत्ति दोनों साथ-साथ सेवा में लगे रहें।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ °वाणी और वृत्ति° दोनों साथ-साथ सेवा में लगे रहे ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   अनेक प्रकार की प्रवृति से निवृत होने वाली मैं नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप आत्मा हूँ ।

 

 ❉   स्व की, दैवी परिवार की, सेवा की व हद के प्राप्तियों की प्रवृति से मैं न्यारी बनती जा रही हूँ ।

 

 ❉   बापदादा के स्नेह स्वरूप को सामने रख, एक बाप की लग्न में मगन हो कर, मैं सर्व दुनियावी सम्बन्धो से उपराम होती जाती हूँ ।

 

 ❉   मैं पन को समाप्त कर, सबसे नष्टोमोहा बन मैं प्रवृति में रहते भी निवृत हो सबसे न्यारी और बाप की प्यारी बनती जाती हूँ ।

 

 ❉   मैं बहुतकाल के पुरुषार्थ से बहुतकाल के प्रालब्ध की प्राप्ति की अधिकारी आत्मा बन रही हूँ ।

 

 ❉   पुराने संस्कारों का अग्नि संस्कार करने वाली मैं सच्ची मरजीवा आत्मा हूँ ।

 

 ❉   अपनी देह से, मित्र सम्बंधियो से मुझे अब किसी तरह का कोई लगाव नहीं है ।

 

 ❉   सर्व संबंधो का सुख एक बाप से अनुभव कर मैं सर्व सुखों की अधिकारी बनती जा रही हूँ ।

 

 ❉   परमात्म प्यार और स्नेह का बल मुझे कर्मो के आकर्षण और बन्धनों से परे ले जाता है और हर परिस्थिति में अचल अडोल बना देता है ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - जब तुम फूल बनेंगे, तब यह भारत काँटों के जंगल से सम्पूर्ण फूलों का बगीचा बनेगा, बाबा आया है तुम्हें फूल बनाने"

 

 ❉   भारत जब स्वर्ग था तो सभी मनुष्य फूल अर्थात निर्विकारी थे, इसलिए सुख, शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर थे ।

 

 ❉   किन्तु देह अभिमान में आने और पतित बनने के कारण अब वही भारत काँटो का जंगल अर्थात विकारी बन गया है, इसलिए सभी दुःखी और अशांत हैं ।

 

 ❉   इस पतित विकारी भारत को काँटो के जंगल से फूलों का बगीचा बनाने के लिए ही परमपिता परमात्मा शिव बाबा आये हैं ।

 

 ❉   राजयोग सिखला कर हमे कांटे अर्थात पतित विकारी मनुष्य से खुशबूदार फूल अर्थात निर्विकारी देवी - देवता बना रहें हैं ।

 

 ❉   क्योकि जब हम फूल बन जाएंगे तो भारत फिर से फूलों का बगीचा अर्थात स्वर्ग बन जायेगा ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ रूहानी मिलेट्री बन पाँच विकारों पर जीत पानी हैं, पवित्र ज़रूर बनना है ।

 

 ❉   "मैं आत्मा हूँ , देह नहीं" इसी पाठ का अभ्यास पक्का करना है । इसी अभ्यास को पक्का करने से ही कर्मेन्द्रियों पर पूरा कंट्रोल होता है व कोई विकर्म नहीं होता ।

 

 ❉  जब आत्मा-आत्मा भाई भाई की दृष्टि रहती है तो दृष्टि शुद्ध व पवित्र होती है व कोई विकर्म भी नहीं होता ।

 

 ❉   अपने को सदा ऐसे देखना है कि मैं रूहानी युद्ध के मैदान में हूँ व मुझे अपने पाँचों विकारों पर जीत पाकर जगतजीत बनना है । जब विकारों पर जीत पा लेते हैं तो विकर्म विनाश करते हुए पावन बनते जाते हैं ।

 

 ❉   अभी तक तो अज्ञानतावश अपने को शरीर समझ सँवारने में लगे रहे । अब ज्ञान का तीसरा नेत्र मिलने पर आत्मा को सँवार कर विकारों पर जीत पानी है ।  विकारों पर जीत पाकर अंतिम जन्म में पवित्र बनना है ।

 

 ❉   अपने को आत्मा समझ आत्मा के पिता परमात्मा को याद कर आत्मा पर कई जन्मों की लगी कट को उतारना है । याद से ही आत्मा की लाइट को तेज़ कर अपने विकारों को भस्म करना है व शक्ति भर मीठा बनना है ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ अनेक प्रकार की प्रवृत्ति से निवृत होने वाले नष्टोमोहा स्मृति स्वरुप दिखाई देते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   मै को मै आत्मा और मेरा को मेरा बाबा में परिवर्तन करदो तो नष्टोमोहा बनना सहज हो जायेगा, जब नष्टोमोहा बन गए तो एक बाप की ही हर समय स्मृति रहेगी।

 

 ❉   प्रवृत्ति में रहते स्वयं को निवृत करना अर्थात उसमे फसना नहीं, निमित्त होकर संभालना ओर कमल पुष्प समान न्यारे व प्यारे रहना इसी स्थिति को नष्टोमोहा कहा जाता है।

 

 ❉   अनेक तरफ से अपनी बुद्धि का लंगर उठाकर जो आत्माये एक परमात्मा को अपना साथी बनाकर सबकुछ उनपर न्योछावर कर देती है अर्थात बेहद का त्याग करती है उन्हें ही बेहद की प्राप्तियाँ होती है, वही सदा एक बाप की स्मृति में रहती है।

 

 ❉   "नष्टोमोहा स्मृति लब्धा" इस देह और देह की दुनिया को बुद्धि से भूल सब मेरे और एक बाप में समाकर ही हम एक बाप से सच्ची प्राप्तियाँ कर सकते है और सभी आत्माओ को हमारा स्मृति स्वरुप दिखाई देगा।

 

 ❉   अब समेटने की शक्ति द्वारा अपनी मन बुद्धि को समेटना है, अनेक प्रकार के विस्तार को सार में समाकर मास्टर बिज स्वरुप होकर रहना है, "अब घर जाना है" बस यही याद रहे।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ कमल फूल समान न्यारे रहो तो प्रभू का प्यार मिलता रहेगा... कैसे ?

 

 ❉   देह अभिमान को छोड़ जब हर कर्म आत्म अभिमानी स्थिति में स्थित हो कर करेंगे तो हर कर्म करते कमल पुष्प समान न्यारे रहेंगे जिससे प्रभू का प्यार सहज ही मिलता रहेगा ।

 

 ❉   आत्मा भाई - भाई की दृष्टि हर विकर्म से बचा कर कमल पुष्प समान न्यारा और बाप का प्यारा बना देगी ।

 

 ❉   कर्मयोगी बन जब हर कर्म करेंगे तो बाप की याद में किया हर कर्म श्रेष्ठ होता जायेगा । और कर्मबन्धन से मुक्त, कमल पुष्प समान न्यारे बन बाप के स्नेह के झूले में झूलते रहेंगे ।

 

 ❉   प्रवर्ति में रहते जब पर - वृति में रहेंगे तो अपनी शुभ और श्रेष्ठ वृति से सहज ही कमल पुष्प समान न्यारे और बाप के प्यारे बन जायेंगे ।

 

 ❉   हर संकल्प, बोल और कर्म में जब शुद्धता और स्पष्टता आती जायेगी कमल पुष्प समान न्यारी और प्यारी अवस्था स्वत: बनती जायेगी जो बाप का अति स्नेही बना देगी ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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