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❍ 23 / 10 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °रूहानी सेवा° में तत्पर रहे ?
‖✓‖ बड़ों का °रीगार्ड° रखा ?
‖✓‖ "हम कभी भी °बुरा काम नहीं° करेंगे" - बाबा से यह प्रतिज्ञा की ?
‖✓‖ अपनी °वृति को श्रेष्ठ° बनाने पर अटेंशन दिया ?
‖✓‖ माया के °अवगुणों का त्याग° करने पर विशेष अटेंशन दिया ?
‖✓‖ °पोतामैल° रखने पर विशेष अटेंशन रहा ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ °कारण का निवारण° कर चिंता और भय से मुक्त रहे ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ कोई भी आपके समीप सम्पर्क में आये तो महसूस करे कि यह रुहानी हैं, अलौकिक हैं। उनको आपका फरिश्ता रुप ही दिखाई दे। फरिश्ते सदा ऊंचे रहते हैं। फरिश्तों को चित्र रुप में भी दिखायेंगे तो पख दिखायेंगे क्योंकि उड़ते पंछी हैं।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ कोई भी आपके समीप सम्पर्क में आया तो यही महसूस किया कि यह °रुहानी हैं°, अलौकिक हैं ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ कारण का निवारण कर चिंता और भय से मुक्त रहने वाली मैं मास्टर सर्व शक्तिमान आत्मा हूँ ।
❉ समस्या प्रूफ बन हर समस्या का समाधान करने वाली मैं आत्मा समाधान स्वरूप हूँ ।
❉ फुल स्टॉप के अभ्यास द्वारा मैं सेकण्ड में हर कारण को निवारण में बदल देती हूँ ।
❉ अपनी स्व - चिंतक और शुभ चिंतक वृति द्वारा मैं हर प्रकार की चिंता और भय की स्थिति से सहज ही मुक्त हो जाती हूँ ।
❉ जीवन में आने वाली हर समस्या मुझे खेल अनुभव होती है, इसलिए मैं हर परिस्थिति से सदा उपराम रहती हूँ ।
❉ मनन शक्ति द्वारा अपनी बुद्धि को दिव्य बना कर मैं माया को दूर से ही पहचान कर माया से अपना बचाव कर लेती हूँ ।
❉ अपनी दिव्य बुद्धि द्वारा मैं व्यर्थ संकल्पों रूपी बाणों को कमजोर बना कर उन पर जीत प्राप्त करती हूँ ।
❉ शुद्ध संकल्पों की शक्ति मुझे माया के तूफानों में भी डबल लाइट स्थिति द्वारा सहज ही मेहनत मुक्त, जीवन मुक्त स्तिथि का अनुभव कराती है ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - तुम्हे देवता बनना है इसलिए माया के अवगुणों का त्याग करो, गुस्सा करना, मारना, तंग करना, बुरा काम करना, चोरी - चकारी करना यह सब महापाप है"
❉ देवता उन्हें कहा जाता है जो दैवी गुणों से सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी,16 कला सम्पूर्ण होते हैं ।
❉ भक्ति मार्ग में भक्त लोग मन्दिरों में जा कर इन्ही देवी देवताओं के जड़ चित्रों के आगे माथा टेकते हैं और उनकी पूजा करते हैं ।
❉ वास्तव में वे पूज्य देवी देवता कोई और नही हम ब्राह्मण बच्चे हैं जो संगम युग पर श्रेष्ठ पुरुषार्थ कर ऐसा बनते हैं । फिर वाम मार्ग में जाने से पुजारी बन जाते हैं ।
❉ संगम युग पर परम पिता परमात्मा शिव बाबा आकर हम ब्राह्मण बच्चों को राजयोग सिखलाते हैं, और हम ज्ञान और योग की धारणा से पूज्य बन जाते हैं ।
❉ इसलिए अब संगमयुग पर परम पिता परमात्मा बाप समझाते हैं कि तुम्हे देवता बनना है, इसलिए अब माया के अवगुणों का त्याग करो ।
❉ गुस्सा करना, दूसरों को मारना, तंग करना, बुरा काम करना, चोरी - चकारी करना यह सब महापाप है । इसलिए अब इन्हे छोड़ दैवी गुण धारण करो ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ कर्मातीत अवस्था को प्राप्त करने के लिए याद की रेस करनी है । रूहानी सेवा करनी है ।
❉ याद की यात्रा ही तो मुख्य है । याद पारे मिसल खिसक जाती है । याद में ही मेहनत है । हर कर्म करते हुए बस एक बाप की याद में रहना है । याद की यात्रा से ही कर्मातीत अवस्था को प्राप्त करना है ।
❉ जैसे ट्रेन पकड़नी हो व समय कम हो तो जल्दी जल्दी चल कर पकड़ते है ऐसे ही अंतिम घड़ी नज़दीक़ है व समय बहुत कम है तो इस संगमयुग पर याद की रेस में बढ़ते हुए जो पाना चाहे पा सकते हैं । इसलिए ये स्लोगन याद रखना है कि "अभी नहीं तो कभी नहीं "।
❉ कितने सौभाग्यशाली है हम जो भगवान ने अपना बनाया व हमारी हर पल मदद कर रहा है । तो हमें भी हांजी का पार्ट पक्का करते हुए हमेशा रूहानी सेवा में तत्पर रहना है । बाप का परिचय देकर दूसरों का कल्याण करना है ।
❉ लौकिक कार्य करते हुए रीस से किये गये कार्य में कोई लगाव नहीं रहता इसलिए रीस नहीं करनी याद की यात्रा की रेस लगानी है ।
❉ याद के बल से रूहानी सेवा पर तत्पर रहेंगे तभी बाप समान कर्मातीत अवस्था को प्राप्त कर सकेंगे ।
❉. कर्मातीत अथार्त कर्म करते भी कर्म बन्धनों से अतीत कर्मों के वशीभूत नही रहना बल्कि कर्मेन्द्रियों द्वारा हर कर्म करते अधिकारी पन नशे में रह याद को बढाना है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ मा. सर्वशक्तिमान कारण का निवारण कर चिंता और भय से मुक्त रहने वाले होते है... क्यों और कैसे ?
❉ चिंता चिता के समान है, चिंता की आग में मनुष्य स्वयं भी जलता है और साथ साथ सम्बन्ध संपर्क वालो को भी दुखी करता है। वह सही व गलत का निर्णय करने में असक्षम हो जाता है जैसे बुद्धि काम करना बंद कर देती है
❉ जितना हम चिंता करते है उतना ही उस कार्य के प्रति जैसे नेगेटिव संकल्प चलाते है और हमारे संकल्पों में वह शक्ति है जो हम सोचते है वही होता है, इसलिए चिंता छोड़ अलर्ट रहना है, समस्या स्वरुप नहीं समाधान स्वरुप बनकर रहना है।
❉ दुनिया में कोई भी बात परमानेंट नहीं है, समय परिवर्तन शील है,सदा एक जैसा नहीं रहता, अगर आज कोई बात आई है तो उसे घबराने के वजाए उसका हल निकालना है, जैसे लोकीक में परीक्षा होती है तो क्वेश्चन पेपर देखकर घबराने की वजाए उसको हल करने की कोशिश करते है इसे जीवन में भी अनेक समस्याए आनी ही है तो घबराने के वजाए हल निकलना है।
❉ चिंता छोड़ कर प्रभू चिंतन में लग जाना है, जितना चिंता करते जायेंगे उतना माथा भरी होता जायेगा इसलिए चिंता को प्रभु अर्पण करदो। कोई बात आये बाबा को देकर आप हलके हो
जयो। हमें चलाने का निमित्त बाबा है तो जैसा बाप डायरेक्शन दे बस वैसे करते जाओ क्या होगा कैसे होगा इसकी चिंता छोड़ दो।
❉ बाबा ने अपनी सर्व शक्तिया हम बच्चो को जन्मते ही दे दी। जैसा समय हो उस प्रमाण शक्ति का यूज़ करो। जब बाप की सब शक्तियाँ हमारे पास है तो हमें चिंता व भय हो नहीं सकता, बस शक्तियों का यूज़ करना आना चाहिए। एक सेकंड शांति में बेठ बाबा से निवारण लो और शक्ति का आव्हान कर हर समस्या का समाधान कर सकते है।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ अपनी वृति को श्रेष्ठ बनाओ तो आपकी प्रवृति स्वत: श्रेष्ठ हो जायेगी... क्यों और कैसे ?
❉ अपनी वृति को श्रेष्ठ बना लेंगे तो समाधान स्वरूप बन प्रवृति में आने वाली सभी समस्याओ का समाधान सहज कर सकेंगे और प्रवृति को श्रेष्ठ बना सकेंगे ।
❉ वृति श्रेष्ठ होगी तो सर्वशक्तियों को अथॉरिटी से यूज़ कर सकेंगे और उचित समय पर उचित शक्ति के प्रयोग से प्रवृति में आने वाली परिस्थितियों पर नियंत्रण कर प्रवृति को श्रेष्ठ बना सकेंगे ।
❉ प्रवृति को श्रेष्ठ बनाने का मुख्य आधार है हर संकल्प, बोल और कर्म का शक्तिशाली और श्रेष्ठ होना और यह तभी होगा जब वृति श्रेष्ठ होगी ।
❉ प्रवृति में रहने वालों के स्वभाव संस्कारों में जितनी समानता होगी उतनी प्रवृति श्रेष्ठ होगी और स्वभाव संस्कारों की रास मिलाने के लिए संकल्पों और वृति का श्रेष्ठ होना बहुत जरूरी है ।
❉ वृति श्रेष्ठ होगी तो मैं और मेरापन समाप्त हो जायेगा और निमित पन का भाव हर कर्म को श्रेष्ठ बना कर प्रवृति को श्रेष्ठ बना देगा ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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