━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 09 / 04 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ मन को °प्रभु की अमानत° समझकर उसे सदा श्रेष्ठ कार्य में लगाया ?
‖✓‖ सदा °शुभचिंतन° किया ?
‖✓‖ °रॉयल संस्कार° धारण करने पर विशेष अटेंशन रहा ?
‖✓‖ सबके साथ बहुत °प्यार से चले° ?
‖✓‖ अपने से जो सीनियर हैं.. उनका °रिगार्ड° जरूर रखा ?
‖✓‖ °खान-पान° शुद्ध और साधारण रखा ?
───────────────────────────
∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ °संतुष्टता° द्वारा सर्व से प्रशंसा प्राप्त की ?
───────────────────────────
✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ जैसे स्थूल एक्सरसाइज से तन तन्दरूस्त रहता है । ऐसे चलते-फिरते अपने 5 स्वरूपों में जाने की एक्सरसाइज करते रहो । जब ब्राह्मण शब्द याद आये तो ब्राह्मण जीवन के अनुभव में आ जाओ । फरिश्ता शब्द कहो तो फरिश्ता बन जाओ । तो सारे दिन में यह मन की ड्रिल करो । शरीर की ड्रिल तो शरीर के तन्दरूस्ती के लिए करते हो, करते रहो लेकिन साथ-साथ मन की एक्सरसाइज बार-बार करो ।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ चलते-फिरते अपने °5 स्वरूपों° में जाने की मन की एक्सरसाइज करते रहे ?
───────────────────────────
∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं आत्मा सदा प्रसन्नचित हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ मैं सर्व कर्मो के प्रभाव से मुक्त, हर परिस्तिथि में सदा प्रसन्न रहने वाली प्रसन्न चित आत्मा हूँ ।
❉ बाबा के साथ सर्व सम्बंधों के रस की मिठास का अनुभव कर, मैं सदा खुशियों के झूले में झूलती रहती हूँ ।
❉ संगम युग पर इस ब्राह्मण जीवन को पा कर मैं आत्मा स्वयं को बहुत ही सौभाग्यशाली अनुभव करती हूँ ।
❉ मैं आत्मा सदा संतुष्ट रहती हूँ... जिसकी निशानी प्रसन्नता के रूप में मुझमें प्रतक्ष्य दिखाई देती है ।
❉ मैं आत्मा सदा संतुष्ट व प्रसन्न रह सबकी प्रशंसा का पात्र बनती हूँ ।
❉ मैं आत्मा बाबा से सदा संतुष्ट व प्रसन्न रहने का वरदान लेकर दूसरों को भी दे रही हूँ क्योंकि इस यग्य की अंतिम आहूति है :- “सर्व ब्राह्मणों की सदा प्रसन्नता” ।
───────────────────────────
∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - अभी तुम पुरुषोत्तम बनने का पुरुषार्थ करते हो, पुरुषोत्तम हैं देवतायें, क्योकि वह हैं पावन, तुम पावन बन रहे हो"
❉ पुरुषोत्तम अर्थात सबसे उत्तम, सर्वश्रेष्ठ । इस दुनिया में तो कोई को पुरुषोत्तम कह ना सकें क्योकि सभी पतित, विकारी हैं ।
❉ पुरुषोत्तम कहा ही जाता है - देवताओं को । क्योकि देवतायें होते ही है सम्पूर्ण पावन, निर्विकारी ।
❉ हम ब्राह्मणों को भी पुरुषोत्तम नही कहा जा सकता, क्योकि हम अभी यहाँ इस पतित दुनिया में पुरुषोत्तम बनने का पुरुषार्थ कर रहें हैं।
❉ परम पिता परमात्मा स्वयं आ कर हमे पतित से पावन बनने की युक्ति अर्थात पुरुषोत्तम बनने की युक्ति राजयोग सिखला रहे हैं ।
❉ इस राजयोग से अभी हम ब्राह्मण बने हैं फिर ब्राह्मण से देवी देवता बन, विश्व राज्याधिकारी बनेंगे ।
───────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा)(Marks:-10)
➢➢ देवता बनने के लिए बहुत रॉयल संस्कार धारण करने हैं।
❉ हम क्या थे व अब क्या बन गये हैं और भगवान स्वयं हमें पढ़ाकर ब्राह्मण से देवता बना रहे हैं । कितनी ऊंच पढ़ाई व कितना ऊंच पद ! वाह मेरा भाग्य वाह !
❉ जब भगवान स्वयं मेरे पिता मुझे अपने से ऊँचे पद पर बैठाते हैं तो हमारे अंदर भी दैवी गुण होने चाहिए।
❉ हमारी चाल चलन ऐसी रायल होनी चाहिए कि दूसरा कोई हमें देखते ही पूछे बिना रूक न सके कि आप कहाँ जाते हो , क्योंकि हमेशा खुश रहते हो।
❉ पवित्रता की कशिश ही दूसरे को अपनी और आकर्षित करती है जैसे कोई भी देवी देवता की मूर्ति में कशिश होती है व भक्त दर्शन करने के लिए कितने धक्के खाकर दर्शन के लिए जाते हैं।
❉ जैसे देवताओं का हाथ हमेशा देते हुए ही दिखायें है व वरदाता है तो हमें भी हमेशा ज्ञान धन देना ही है क्योंकि देना ही लेना है।
❉ हमारा चेहरा हर परिस्थिति में हर्षितमुख होना चाहिए क्योंकि देवताओं के चेहरे कभी उदास नहीं होते । सबके साथ मीठा व रहमदिल बनना है।
───────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-10)
➢➢ संतुष्टता द्वारा सर्व से प्रसंशा प्राप्त करने वाले सदा प्रसन्नचित्त रहते है... क्यों ओर कैसे ?
❉ जो संतुष्ट रहते है उन्हें किसी से कोई इच्छा या आसक्ति नहीं होती इसलिए वह सबके प्रति शुभ भावना रख सबसे न्यारे रहते है।
❉ संतुष्ट व्यक्ति सदा प्रसन्नचित रहेगा, सबको उमंग उत्साह द्वारा हिम्मत दिलाये आगे बढाता रहेगा इसलिए सबका प्यारा होगा।
❉ यदी हमारा कोई व्यक्ति से लगाव या कोई वस्तु की इच्छा रहेगी तो हम कभी संतुष्ट नहीं रह सकेंगे, कोई न कोई इच्छा पूर्ति न होने से घुस्सा, रूठना, फीलिंग में आना लगा ही रहेगा।
❉ संतुष्ट आत्मा फ़रिश्ता सामान होती है, बहुत हल्की सदेव खुशियों में उढ़ती हुई, उनसे मिलकर हर आत्मा खुश हो जाती है।
❉ जिसके पास भले लाखो रुपये -जागीर सब कुछ हो परन्तु यदि मन से स्वयं से संतुष्ट नहीं है तो कभी सुखी नहीं रह सकता, सुख की इच्छा में भटकता ही रहेगा।
───────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-10)
➢➢ मन को प्रभु की अमानत समझकर उसे सदा श्रेष्ठ कार्य में लगाओ, शुभचिंतन करो... क्यों ?
❉ मन को प्रभु की अमानत समझ कर उसे सदा श्रेष्ठ कार्य में लगाने और शुभ चिंतन करने से बाप के दिलतख्तनशीन बन जायेंगे ।
❉ मन को प्रभु की अमानत समझ कर उसे सदा श्रेष्ठ कार्य में लगाने और शुभ चिंतन करने से सर्व की दुआओं के पात्र बन जायेंगे ।
❉ मन को प्रभु की अमानत समझ कर उसे सदा श्रेष्ठ कार्य में लगाने और शुभ चिंतन से हर कार्य में हल्केपन का अनुभव करेंगें ।
❉ मन को प्रभु की अमानत समझ उसे सदा श्रेष्ठ कार्य में लगाना और शुभ चिन्तन ही वैजयंती माला में आने का आधार है ।
❉ मन को प्रभु की अमानत समझने और श्रेष्ठ कार्य में लगाने और शुभ चिंतन से सदा सफलतामूर्त बन जायेंगे और हर कार्य में सहज ही सफलता प्राप्त कर सकेंगें ।
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━