━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

   09 / 07 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ आत्म अभिमानी बन पूरा °पवित्र° बनने पर पूरा अटेंशन रहा ?

 

‖✓‖ °शमा° जो है जैसी है उसे यथार्थ रूप से जान याद किया ?

 

‖✓‖ बेहद के बाप के साथ खाते, पीते....... °सर्व सम्बन्धों की अनुभूति° की ?

 

‖✓‖ पुराने स्वभाव संस्कार के वंश का भी त्याग कर °सर्वंश त्यागी° बनकर रहे ?

 

‖✓‖ °खूबसूरत देवी-देवता° बनने के लिए अच्छे से पढाई पडी ?

 

‖✗‖ कोई भी ऐसा कर्म तो नहीं किया जिससे ब्राह्मण परिवार की वा °बाप की इज्॰जत गयी° ?

──────────────────────────

 

∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ अपवित्रता के नाम निशान को भी समाप्त कर °हि॰ज होलीनेस का टाइटल° प्राप्त किया ?

──────────────────────────

 

आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  जो निरन्तर तपस्वी हैं उनके मस्तक अर्थात् बुद्धि की स्मृति वा दृष्टि से सिवाए आत्मिक स्वरूप के और कुछ भी दिखाई नहीं देगा। किसी भी संस्कार वा स्वभाव वाली आत्मा, उनके पुरुषार्थ में परीक्षा के निमित्त बनी हुई हो लेकिन हर आत्मा के प्रति सेवा अर्थात् कल्याण का संकल्प वा भावना ही रहेगी। दूसरी भावनायें उत्पन्न नहीं हो सकती।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ हर आत्मा के प्रति सेवा अर्थात् °कल्याण का संकल्प° वा भावना ही रही ?

──────────────────────────

 

∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं होलीहंस आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   अपवित्रता के अंश को भी समाप्त कर हिज़ होलीनेस का टाइटल प्राप्त करने वाली मैं होली हंस आत्मा हूँ ।

 

 ❉   जैसे हंस कभी भी कंकड़ नही चुगते, रत्न धारण करते हैं ऐसे ही होलीहंस बन मैं आत्मा भी दूसरों के अवगुण रूपी कंकड़ को छोड़ उनके गुण रूपी रत्न धारण करती हूँ ।

 

 ❉   मैं व्यर्थ और समर्थ में से व्यर्थ को छोड़ समर्थ को धारण करने वाली हूँ ।

 

 ❉   अपने आहार , व्यवहार और विचारों में अपवित्रता के अंश मात्र को भी समाप्त करने वाली मैं सम्पूर्ण पवित्र आत्मा हूँ ।

 

 ❉   सम्पूर्ण पवित्रता के कारण मेरे हर कर्म से दिव्यता और अलौकिकता की झलक सपष्ट दिखाई देती है ।

 

 ❉   अपनी पवित्र वृति से मैं वायुमण्डल को भी शुद्ध और शक्तिशाली बना देती हूँ ।

 

 ❉   मैं दूसरों के अवगुण अपने चित पर ना रख, उन्हें क्षमा करने वाली क्षमाशील आत्मा हूँ ।

──────────────────────────

 

∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - बाप तुम्हे पढ़ा रहे हैं खूबसूरत देवी - देवता बनाने, खूबसूरती का आधार है पवित्रता"

 

 ❉   किसी भी चीज की खूबसूरती उसके वास्तविक स्वरूप में ही होती है क्योकि अपने वास्तविक स्वरूप में वो सम्पूर्ण प्योर होती है ।

 

 ❉   जब उसमे अपवित्रता की मिलावट होती है तो उसका वास्तविक स्वरूप बदलने से उसकी खूबसूरती खत्म हो जाती है ।

 

 ❉   यही हाल हम ब्राह्मण आत्माओं का हुआ । सतयुग में जब हम पवित्र देवी देवता थे तो कितने खूबसूरत थे ।

 

 ❉   किन्तु द्वापर से जब विकारों की प्रवेशता हुई तो आत्मा भी काली पतित बन गई ।

 

 ❉   अब संगम युग पर भगवान आये है हमे फिर से खूबसूरत देवी - देवता बनाने ।

 

 ❉   इस खूबसूरती को प्राप्त करने का मुख्य आधार है पवित्रता ।  सम्पूर्ण पवित्र बन कर ही हम खूबसूरत देवी - देवता बन सकेंगे ।

──────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ यह अंतिम जन्म पुरूषार्थी शरीर वैल्यूबल है, इसमें बहुत कमाई करनी है

 

 ❉   क्योंकि इस समय स्वयं भगवान ने हम ब्राह्मण बच्चों को चोटी से खींच कर कलयुग के घोर अँधियारे से निकाला है व सर्वशक्तिमान परमात्मा ने अपना बच्चा बनाया है तो उसके ज्ञान रूपी प्रकाश से उजियारा करना है ।

 

 ❉   यह हमारा अंतिम जन्म है व इस अंतिम जन्म में संगमयुग जिसके महत्व को हम ब्राह्मण बच्चों ने जाना है । इस संगमयुग में अपने को आत्मा समझ बाप को याद कर कमाई जमा करनी है ।

 

 ❉   इस कल्याणकारी संगमयुग में स्वयं भगवान टीचर बनकर पढ़ाते हैं व पढ़ाई को अच्छी रीति पढ़कर अविनाशी कमाई से हम 21 जन्मों के लिए राजाई पद प्राप्त करते हैं ।

 

 ❉   इस अंतिम पुरूषार्थी शरीर से इसी संगमयुग में जितना ज्ञान दान व सेवा करते है तो उसका पद्म गुणा प्रालब्ध अगले 21 जन्मों के लिए प्राप्त करते हैं व जमा का खाता दुआओं का खाता बढ़ाते हैं ।

 

 ❉   हद के देह व देह के सब सम्बंधों के छोड़ बस एक बाप की याद में ही रहना है व सारे सम्बंध बाप से ही निभाने हैं ।

──────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ होलीहंस अपवित्रता के नाम निशान को भी समाप्त कर हिज होलीनेस का टाइटल प्राप्त करते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   जो आत्माओ की पवित्रता अखंड होती है, ब्राह्मण जन्म से ही जो पवित्र है उनको राज्य भी अखंड मिलता है वही डबल ताज धारी विश्व महाराजा महारानी बनते है।

 

 ❉   होलीहंस कभी अपवित्रता के कंकड़ को नहीं चुगते, उनके संकल्प मात्र भी अपवित्रता नहीं आती अतः वह हिज होलीनेस का टाइटल प्राप्त कर लेते है।

 

 ❉   प्यूरिटी ही रोयल्टी है, प्यूरिटी ब्राह्मण जीवन का श्रृंगार है, बाबा हम बच्चो का रोज श्रृंगार करते है हमें सद बुद्धि देते है जिससे हम सुकर्म व विकर्म को परख सके।

 

 ❉   हिज होलीनेस का टाइटल प्राप्त करना है तो निरंतर एक बाप की याद से स्वयं को पवित्रता का फ़रिश्ता बनाये और दैवी गुण धारण करे।

 

 ❉   हमारे कर्म, दृष्टि, वृत्ति यहाँ तक की संकल्प में भी अपवित्रता न आये, जब सम्पूर्ण कर्मेन्द्रियजीत विकर्माजीत बनेंगे तब ही हिज होलीनेस का टाइटल प्राप्त होगा और हमारी पवित्रता के आगे सारी दुनिया सलाम करेगी।

──────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ सर्वंश त्यागी वह है जो पुराने स्वभाव संस्कार के वंश का भी त्याग करता है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   सर्वंश त्यागी अर्थात देह के भान का भी त्याग । जब देह के भान का भी त्याग होगा तो हर चीज का त्याग सहज ही हो जायेगा ।

 

 ❉   निरहंकारी का अर्थ ही है - सर्वंश त्यागी । निरहंकारी होने से सहज ही गुणग्राही बन जायेगे और दूसरों के अवगुण देखते हुए नही दिखाई देंगे । यह भी त्याग ही है ।

 

 ❉   सर्वंश त्यागी होंगे तो संस्कारो का टकराव समाप्त हो जायेगा और सरलता और सहनशीलता आ जायेगी ।

 

 ❉   सर्वंश त्यागी बन संस्कारो का भी त्याग करेंगे तो हर प्रकार की निंदा, स्तुति, मान, अपमान के प्रभाव से मुक्त हो जायेंगे ।

 

 ❉   सर्वंश त्यागी बनने से बालक सो मालिकपन की सीट पर सेट रह सही निर्णय ले सकेंगे ।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━