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    17 / 05 / 15  की  मुरली  से  चार्ट  ❍ 

         TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ सदा मन, वाणी, कर्म, संपर्क में °महानता° दिखाई ?

 

‖✓‖ °मनसा की दिनचर्या° सेट कर पूरा दिन मनसा से बिजी रहे ?

 

‖✓‖ चाहे कोई भी काम करते हुए सदा °विश्व कल्याण की भावना° बनी रही ?

 

‖✓‖ एक बाप से कनेक्शन जोड़, श्रेष्ठ भावना और कामना का स्विच ओन कर °दूर की आत्माओं को भी समीप° अनुभव किया ?

 

‖✓‖ संकल्पों के विस्तार को समेटकर °सार रूप° में लाये ?

 

‖✓‖ जब चाहें, जहां चाहें, °जो शक्ति चाहें°, उससे कार्य किया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ अपने °अधिकार की शक्ति° द्वारा त्रिमूर्ति रचना को सहयोगी बनाया ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  सेवा में वा स्वंय की चढ़ती कला में सफलता का मुख्य आधार है - एक बाप से अटूट प्यार । बाप के सिवाए और कुछ दिखाई न दे । संकल्प में भी बाबा, बोल में भी बाबा, कर्म में भी बाप का साथ, ऐसी लवलीन स्थिति में रह एक शब्द भी बोलेंगे तो वह स्नेह के बोल दूसरी आत्मा को भी स्नेह में बाँध देंगे । ऐसी लवलीन आत्मा का एक बाबा शब्द ही जादू मंत्र का काम करेगा ।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ हर संकल्प, बोल और कर्म में बाबा का साथ अनुभव कर लवलीन स्थिति बनी रही ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं मास्टर रचता हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   त्रिमूर्ति शक्तियों अर्थात मन, बुद्धि और संस्कार की रचना करने वाली मैं मास्टर रचता आत्मा हूँ ।

 

 ❉   संकल्प शक्ति, निर्णय शक्ति और संस्कार की शक्ति तीनो मुझ आत्मा के आर्डर प्रमाण कार्य करती हैं ।

 

 ❉   अपने अधिकार की शक्ति द्वारा मैं इस त्रिमूर्ति रचना को अपनी सहयोगी बनाती जाती हूँ ।

 

 ❉   मैं आत्मा करावनहार बन इन विशेष त्रिमूर्ति शक्तियों को करनहार बना कर सहजता से हर कार्य को सम्पन्न कराती जाती हूँ ।

 

 ❉   कर्मेन्द्रियों की राजा बन,  अपनी हर कर्मेन्द्रिय को वश में कर मैं हर कर्मेन्द्रिय को सही रास्ते पर चलाती हूँ ।

 

 ❉   मास्टर रचियता के वरदान को स्मृति में रख अपनी परिवर्तन शक्ति से मैं प्रकर्ति को भी परिवर्तन करने की हिम्मत रखती हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "विश्व - कल्याणकारी ही विश्व का मालिक बन सकता है"

 

 ❉   जैसे बाप सर्व का कल्याण करने वाले बेहद के विश्व कल्याणकारी है ऐसा ही विश्व कल्याणकारी हमे बनना है ।

 

 ❉   विश्व कल्याणकारी बनेगे, तभी बेहद विश्व के मालिक बन सकेंगे ।

 

 ❉   इसके लिए जरूरी है कि हमारा हर कर्म कल्याणकारी हो। जैसे बाप के हर बोल,संकल्प व नयनो में सर्व के प्रति कल्याण की भावना भरी रहती है ।

 

 ❉   ऐसे ही हद की प्रवृति अथवा सेवा केंद्र के निमित होते हुए भी सारे विश्व की सर्व आत्माएं सदैव इमर्ज हों ।

 

 ❉   कितनी ही दूर रहने वाली आत्मा हो किन्तु अपनी श्रेष्ठ भावना और शुभ कामना से सेकण्ड में उस आत्मा को शांति वा शक्ति दे सकें । ऐसे मास्टर ज्ञान सूर्य बन पूरे विश्व को कल्याण की रोशनी दें तभी विश्व के मालिक बन सकेंगे ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा - ज्ञान मंथन(Marks:-10)

 

➢➢ एक बाप से कनेक्शन जोड़, श्रेष्ठ भावना और श्रेष्ठ कामना का स्विच आॅन कर दूर की आत्माओं को समीप अनुभव करना है

 

 ❉  जिस समय एक ही की लगन में मगन हो जाते है व एक बाप से ही कनेक्शन जुड़ा होता है तो एकाग्रता की शक्ति से किसी भी दूर बैठी आत्मा को सहयोग दे सकते हैं।

 

 ❉   जब देहभान से न्यारे होकर एक बाप से कनेक्शन जोड़ श्रेष्ठ भावना और श्रेष्ठ कामना का स्विच आॅन कर दूर बैठी अशांत व शक्तिहीन आत्माओं को पावरफुल योग द्वारा शांति व शक्ति की वायब्रेशनस देते है तो दूर बैठी आत्माओं को पास अनुभव करते हैं।

 

 ❉   एक बाप से जब कनेक्शन जुड़ जाता है तो सर्व के प्रति हर कर्म कल्याण कारी होता है व अनेकों आत्माओं की दुआओं का पात्र बनते हुए चाहे कितनी दूर आत्मा हो समीपता का अनुभव होता है।

 

 ❉  बाबा की निरंतर याद में रहने से  साइलेंस की शक्ति से दूर बैठी तड़पती हुई आत्माओं को जीयदान देकर शांति के सागर बाप से मिलन करा सकते हो व भटकती हुई आत्माओं को ठिकाने की अनुभूति करा सकते हो।

 

 ❉   जैसे साइंस के साधन से कितनी दूर बैठे व्यक्ति से बात करके ऐसे लगता है कि जैसे सम्मुख बात की है ऐसे ही साइलेंस की शक्ति से हर आत्मा के मन की आवाज़ संकल्पों के रूप में आयेगी व दूर की आत्मायें सामने आकर कहेंगी कि आपने मुझे सही रास्ता दिखाया।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ अपने अधिकार की शक्ति द्वारा त्रिमूर्ति रचना को सहयोगी बनाने वाले मास्टर रचता कहलाते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   हम आत्माये स्वराज्य अधिकारी आत्माये है, हम आत्माओ का अपने मन, बुद्धि, संस्कार पर पूरा-पूरा राज्य है

 

 ❉   में आत्मा भ्रकुटि में अकालतख्तनशीन हो अपनी रचना को जहा चाहे जब चाहे जैसे स्थित होना चाहे इन्हें आर्डर कर स्थित कर सकती हु। राजा की बात प्रजा न माने हो नहीं सकता।

 

 ❉   में आत्मा राजा हु और यह मन, बुद्धि, संस्कार मेरे कर्मचारी है। इन रचनाओ द्वारा हमें कर्म करवाने है इन्हें अपना सहयोगी बनाना है।

 

 ❉   जैसे ब्रह्मा बाबा रोज़ रातको अपनी रचनाओ की कहचरी लगाते थे और चेकिंग कर उन्हें अगले दिन के लिए ठीक करने के लिए कहते थे वैसे हम बच्चो को भी फॉलो फादर करना है।

 

 ❉   हम आत्माये अपनी त्रिमूर्ति रचनाओ की मालिक है, सदेव यह स्मृति रखे की में आत्मा मास्टर रचियता हु, करावनहार हु और यह मन, बुद्धि, संस्कार द्वारा कर्म करवा रही हु।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ अव्यक्त पालना के वरदान के अधिकार का अनुभव करने के लिए स्पष्टवादी बनो... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   जितना स्पष्टवादी होंगे, बुद्धि की लाइन उतनी ही क्लियर होगी और अव्यक्त पालना के अधिकार का अनुभव कर सकेंगे ।

 

 ❉   स्पष्टवादी बनेंगे तो मन बुद्धि से हल्के रहेंगे और अव्यक्त फरिश्ता बन, अव्यक्त पालना के वरदान के अधिकार को स्पष्ट अनुभव कर सकेंगे ।

 

 ❉   सोच और व्यवहार में स्वच्छता और स्पष्टता होगी तो सहजयोगी बन, अव्यक्त पालना के वरदान के सहज अनुभवी बन जाएंगे ।

 

 ❉   बुद्धि की स्पष्टता व्यर्थ संकल्पों से मुक्त रखेगी और शुभ चिंतन द्वारा अव्यक्त पालना के वरदान के अधिकार का अनुभव कराती रहेगी ।

 

 ❉   स्पष्टवादी बनेगे तो माया को दूर से ही परखकर भगा सकेंगे और मायाजीत बन अव्यक्त पालना के वरदान के अधिकार का अनुभव कर सकेंगे ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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