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❍ 28 / 11 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ "बाप आये हैं हम बच्चों को °सुख और शांति का वर्सा° देने" - यह स्मृति रही ?
‖✓‖ "हम बच्चे °21 जन्मो के लिए अखुट खजानों° के वज़न करने योग्य बनते हैं" - यह स्मृति रही ?
‖✓‖ "हमें °ब्रह्माण्ड व विश्व का मालिक° बनना है" - सदा अपने इस लक को स्मृति में रखा ?
‖✓‖ "इन आँखों से शरीर सहित जो दिखाई देता है, यह °सब भस्म हो जाना° है" - यह स्मृति रही ?
‖✓‖ °पढाई° पर पूरा अटेंशन रहा ?
‖✓‖ एक सेकंड में व्यर्थ संकल्पों पर °फुल स्टॉप° लगाने का पुरुषार्थ किया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ आपस में °स्नेह की लेन देन° द्वारा सर्व को सहयोगी बनाया ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ विदेही माना देह से न्यारा। स्वभाव, संस्कार, कमजोरियां सब देह के साथ है और देह से न्यारा हो गया तो सबसे न्यारा हो गया, इसलिए यह ड्रिल बहुत सहयोग देगी, इसमें कन्ट्रोलिंग पावर चाहिए।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ कन्ट्रोलिंग पावर से बार बार °विदेही स्थिति° का अभ्यास किया ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं सफलतामूर्त आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ आपस में स्नेह की लेन - देन द्वारा सर्व को सहयोगी बनाने वाली मैं सफलतामूर्त आत्मा हूँ ।
❉ अपने सम्बन्ध संपर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को स्नेह के शीतल जल से शीतलता का अनुभव कराती हूँ ।
❉ महादानी बन मैं सबको ज्ञान के अखुट अविनाशी खजानो से भरपूर करती जाती हूँ ।
❉ सबकी स्नेही बन, मैं सबको सहयोग दे आगे बढ़ाती जाती हूँ ।
❉ त्याग, तपस्या और सेवा द्वारा विश्व की आधारमूर्त आत्मा बन मैं सर्व आत्माओं का उद्धार कर रही हूँ ।
❉ हद के मैं और मेरेपन से मुक्त हो, बेहद की वृति द्वारा मैं सफलता स्वरूप बन हर कार्य में निर्विघ्न सफलता प्राप्त करती जाती हूँ ।
❉ सफलता का तिलक लगाये, मैं सदैव अपने चमकते हुए भाग्य और भविष्य की ऊँची उड़ान को अपने दिल रूपी आईने में देख, हर्षित होती रहती हूँ ।
❉ अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को फलदायक बनाने वाली मैं रूहानी प्रभावशाली आत्मा हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम बच्चों को शांति और सुख का वर्सा देने, तुम्हारा स्वधर्म ही शांत है, इसलिए तुम शान्ति के लिए भटकते नही हो"
❉ मनुष्य तभी भटकते हैं जब उन्हें यह ज्ञान नही होता कि क्या सही है और क्या गलत है ।
❉ पूरे 63 जन्म हम भी सुख शांति की तलाश में भटकते ही आये क्योकि यह ज्ञान नही था कि सुख शान्ति कैसे और कहाँ मिलेगी ।
❉ सुख शान्ति की तलाश में दर - दर ठोकरें खाते रहे । मन्दिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों और तीर्थ स्थानों पर भटकते रहे, परन्तु कोई प्राप्ति नही हुई ।
❉ किन्तु अब परम पिता परमात्मा शिव बाबा ने हमे ज्ञान की दृष्टि दे कर दर - दर भटकने और ठोकरें खाने से बचा लिया है ।
❉ हमें ज्ञान मिल गया है कि शांति कही बाहर ढूंढने से नही मिलती । हमारा स्वधर्म ही शांत है । इसलिए शान्ति की तलाश में हमें कहीं बाहर नही भटकना है ।
❉ केवल अपने स्वधर्म में टिक शांति दाता परम पिता परमात्मा बाप को याद करना है । बाप आये ही हैं हमे शान्ति और सुख का वर्सा देने ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ बाप से पूरा वर्सा लेने के लिए पढ़ाई पढ़नी है । सदा लक को स्मृति में रख ब्रह्माण्ड वा विश्व का मालिक बनना है ।
❉ इस कल्याणकारी संगमयुग पर जब भगवान स्वयं मुझे सुप्रीम टीचर बन पढ़ाने के लिए इस पतित दुनिया में दूरदेश से आते हैं तो मुझे भी अच्छी रीति पढ़ना है ।
❉ लौकिक में भी कोई टीचर प्यार से पढ़ाता है तो हम उसकी बात को अच्छे से सुनते है व मानते भी है फिर अच्छे नम्बर लेकर पास होते है । हमें तो बेहद का प्यारा व मीठा सुप्रीम टीचर मिला है तो अच्छी रीति पढ़ाई कर पूरा वर्सा लेना है ।
❉ जब बाप ने हमे अपना बना लिया तो वर्से के अधिकारी तो बन ही गये पर जो लायक बच्चा होता है व अच्छे से पढ़ता है वही राज्याधिकारी बनता है । इसीलिए पूरा वर्सा लेने के लिए पढ़ाई पढ़नी है व सम्पूर्ण रीति श्रीमत पर चलना है ।
❉ लौकिक पढ़ाई से तो अल्पकाल की कमाई व सुख मिलता है । इस रुहानी पढ़ाई से तो अविनाशी कमाई होती है । ये रुहानी पढ़ाई ही ऐसी है जिसकी प्रालब्ध अगले 21 जन्मों तक मिलती है तो हमें रोज व अच्छी रीति पढ़नी है ।
❉ सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य की स्मृति में रहना है कि वाह रे मैं आत्मा ! वाह रे मेरा भाग्य ! मैं भगवान का बच्चा हूं । कितनी भाग्यशाली हूं जो भगवान स्वयं मुझे रोज पढ़ाने आते हैं व विश्व का मालिक बना रहे हैं ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ आपस में स्नेह की लेन देन द्वारा सर्व को सहयोगी बनाने वाले ही सफलतामूर्त बन सकते है... क्यों और कैसे ?
❉ देना ही लेना है, जितना हम दुसरो को प्रेम, सहयोग, ख़ुशी देते जायेंगे उतना ही डबल उनका सहयोग हमें मिलता जायेगा।
❉ जहाँ स्नेह मिलता है वह इंसान कुर्बान जाता है, स्नेही के आगे वह कुछ भी कर जाने को तैयार होता है। जितना स्नेह देंगे उतना उनके सहयोग के अधिकारी बनते जायेंगे।
❉ हमारा ब्राह्मण परिवार है, हम ईश्वरीय कुल के है इसलिए आपस में बहुत प्यार से एक दो को सहयोग दे आगे बढाने की शुभ भावना रख क्षीरखंड होकर रहना है।
❉ आपस में स्नेह की लें देन करनी है, प्रेम के सागर बाप के बच्चे है तो हमें भी सबके प्रति स्नेह स्वरुप होकर ही रहना है, कोई कैसा भी हो लेकिन हमारी वृत्ति, हमारी भावना सदा कल्याण की हो।
❉ संगठन के सहयोग द्वारा ही कोई भी सेवा में सफलता प्राप्त हो सकती है। संगठन मजबूत तब होगा जब सबका दिल से एक दो के प्रति स्नेह की भावना हो। उमंग उत्साह द्वारा स्वयं के साथ सबको आगे बढ़ाये।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ एक सेकण्ड में व्यर्थ संकल्पों पर फुल स्टॉप लगा दो - यही तीव्र पुरुषार्थ है... क्यों और कैसे ?
❉ एक सेकण्ड में व्यर्थ संकल्पों पर फुल स्टॉप, क्या - क्यों की क्यू को समाप्त कर विस्तार को सार में समा देता है और पुरुषार्थ को तीव्र कर, आत्मा को चढ़ती कला के अनुभव द्वारा सदैव प्रसन्नचित रखता है ।
❉ सेकण्ड में व्यर्थ संकल्पों पर फुलस्टॉप लगाने से तीन स्मृतियों का तिलक सदैव बुद्धि में रहता है जो आत्मा को त्रिकालदर्शी बना कर पुरुषार्थ में तीव्रता ले आता है ।
❉ साक्षी दृष्टा बन व्यर्थ संकल्पों पर सेकण्ड में फुल स्टॉप लगाने के अभ्यास से व्यर्थ चिंतन से सहज किनारा होने लगता है और बुद्धि श्रेष्ठ और समर्थ चिंतन द्वारा प्रसन्नचित स्तिथि का अनुभव करने लगती है जिससे पुरुषार्थ में तीव्रता आती जाती है ।
❉ सेकण्ड में व्यर्थ संकल्पों पर फुल स्टॉप लगाने से बुद्धि की लाइन सदैव क्लियर रहती है और बाप से जुड़ी रहती है जिससे पुरुषार्थ में तीव्रता आती है और आत्मा सदैव हल्की हो उड़ती रहती है ।
❉ व्यर्थ चिंतन पर सेकण्ड में फुल स्टॉप लगाने का अभ्यास मन बुद्धि को शांत और एकाग्रचित बना देता है और एकाग्रता पुरुषार्थ में तीव्रता लाती है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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