━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

    24 / 03 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

         TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ "अपने व दूसरों के नाम रूप को भूल °'मैं आत्मा हूँ'°" - इसी स्मृति में रहे ?

‖✓‖ ज्ञान और योग में मस्त रह °अंतिम सीन सीनरी° देखी ?

‖✓‖ °मनसा-वाचा-कर्मणा° इन तीनो खिडकियों पर बहुत ध्यान रखा ?

‖✓‖ तन-मन-धन , मन-वाणी-कर्म किसी भी प्रकार से बाप के कर्तव्य में °सहयोगी° बने ?

‖✓‖ भक्तों और दुखी आत्माओं की °पुकार सुनी° ?

‖✗‖ °वाचा अधिक° तो नहीं चलाई ?

───────────────────────────

 

∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

‖✓‖ °अल्बेलेपन की नींद° को तलाक दिया ?

───────────────────────────

 

आज की अव्यक्त पालना :-

➳ _ ➳  बुद्धि की एकाग्रता से परखने की शक्ति आयेगी । इसके लिए व्यर्थ वा अशुद्ध संकल्पों की हलचल से परे एक में सर्व रस लेने वाली एकरस स्थिति चाहिए । अगर अनेक रसों में बुद्धि और स्थिति डगमग होती है तो परखने की शक्ति कम हो जाती है और न परखने के कारण माया अपना ग्राहक बना देती है । यह माया है, यह भी पहचान नहीं सकते । यह रांग है, यह भी जान नहीं सकते ।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

‖✓‖ बुद्धि की एकाग्रता से °परखने की शक्ति° को बढाया ?

───────────────────────────

 

∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं निंद्राजीत चक्रवर्ती आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 ❉   सृष्टि चक्र को जानने वाली मैं चक्रवर्ती आत्मा हूँ ।

 ❉   स्व के चक्र को जान, स्वदर्शन चक्रधारी बन मैं आत्मा सर्व बुराइओं पर विजय पाती हूँ ।

 ❉   विनाशकाल के इस समय में मैं आत्मा अल्बेलेपन की नींद को त्याग भक्तों की पुकार सुन रही हूँ.. दुखी आत्माओं का दुःख सुन रही हूँ... प्यासी आत्माओं की प्रार्थना सुन रही हूँ ।

 ❉   मैं आत्मा साक्षात्कार मूर्त बन अपने भक्तों को साक्षात्कार करा रही हूँ ।

 ❉   मैं आत्मा अल्बेलेपन की नींद को त्याग दे सदा जागती ज्योत हूँ ।

 ❉   अपनी जगती हुई ज्योति से मैं सर्व आत्माओं की ज्योति जगा कर सबका कल्याण कर रही हूँ ।

───────────────────────────

 

∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - तुम अभी पुरानी दुनिया के गेट से निकलकर शान्तिधाम और सुखधाम में जा रहे हो, बाप ही मुक्ति - जीवनमुक्ति का रास्ता बताते हैं"

 

 ❉   घर के अंदर आने और घर से बाहर जाने के लिए हम गेट से ही आते और जाते हैं।हमेशा दो गेट होते हैं इन और आउट ।

 ❉   इसी प्रकार मुक्ति और जीवन मुक्ति का भी गेट है जो परम पिता परमात्मा बाप आ कर खोलते है  ।

 ❉   अभी हम पुरानी दुनिया दुःख धाम में हैं और सभी दुखी हैं ।

 ❉   सभी दुखो से छुड़ाने के लिए ही परम पिता परमात्मा बाप आएं हैं और हमारे लिए नई दुनिया सुखधाम का गेट खोल रहे हैं ।

 ❉   इसलिए अब हम पुरानी दुनिया के गेट से निकल कर शांतिधाम और नई दुनिया सुख धाम में जा रहें हैं ।

───────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा) (Marks:-10)

 

➢➢ मन्सा-वाचा-कर्मणा कभी भी क्रोध नहीं करना है। इन तीनों खिड़कियों पर बहुत ध्यान रखना है।

 

 ❉   हमें अपने आत्मिक स्वरूप में रहकर कर्म करना है। अपने आत्मिक स्वरूप में रहेंगें तो ये भी याद रहेगा कि आत्मा आत्मा भाई-भाई हैं ।

 ❉   सबसे पहले मन्सा से क्रोध आता है व स्वयं को जलाते हैं व अवज्ञा भी करते हैं। देहभान में आकर क्रोध में उल्टा-सुल्टा बोल देते है। हमें अपने इस विकार पर क़ाबू रखना है व स्मृति में रखना है कि हम शांति के सागर के बच्चे शांत स्वरूप आत्मा हैं। साइलेंस में रहना अच्छा है।

 ❉   मन्सा में जैसा आता है वैसा ही हमारा वाचा होता है। अगर मनसा से किसी के लिए शुभ भावना होती है तो हम उससे मीठा बोलते हैं । अगर किसी के प्रति सम्बंध अच्छे नहीं होते तो उसके प्रति हमारे बोल भी वैसे होते हैं। इसलिए मनसा वाचा पर ध्यान देना चाहिए।

 ❉   जो बात पहले मन्सा वाचा में आती है फिर वही कर्मणा में आती है। हम परमात्मा के बच्चे है ये स्मृति में रहे तो हमारे कर्म श्रेष्ठ होने चाहिए। क्योंकि जैसा हम करेंगे तो दूसरे भी हमें देख वैसा कर्म करेंगे।

 ❉   मन्सा-वाचा-कर्मणा तीनों खिड़कियों पर ध्यान देना है। अगर एक में से भी कुछ निकलेगा तो तीनों में से निकलेगा। बाबा ने हमें ज्ञान का तीसरा नेत्र दिया है उसे यूज करना है।

 ❉   जैसे लौकिक में घर में कोई खिड़की खुली रह जाए तो घर गंदा हो जाता है इसीप्रकार इन तीनों खिड़कियों पर ध्यान देना है वरना कोई भूत या माया अंदर आ जायेगी।

───────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-10)

 

➢➢ अलबेलेपन की नींद को तलाक देने वाले ही निन्द्रजीत, चक्रवर्ती कहलाते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   अलबेलापन हमारा बहुत समय, संकल्प व्यर्थ नष्ट कर देता है।

 ❉   अलबेलेपन में आकर हम बहुत से ऐसे कर्म कर लेते है जो हमें नहीं करना चाहिए।

 ❉   अलबेलेपन में हमें यह आभास नहीं होता की जो हम कर रहे है वह सही है या गलत, जैसे की हमारी बुद्धि पर पट्टी लग जाती है।

 ❉   जिसने अलबेलेपन के रॉयल रूप को पहचान लिया वो सदेव डबल अटेंशन में रहता है, हर कर्म करने से पहले उससे बुद्धि रूपी तराजू में तोल कर फिर करता है।

 ❉   जिसके पास अलेबेलापन का अंश मात्र भी नहीं होगा वही सदा अलर्ट रह तीव्र पुरुषार्थी होगा।

───────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-10)

 

➢➢ तन-मन-धन, मन-वाणी-कर्म - किसी भी प्रकार से बाप के कर्तव्य में सहयोगी बनो तो सहजयोगी बन जायेंगे... कैसे ?

 

 ❉   तन-मन-धन, मन-वाणी-कर्म - किसी भी प्रकार से जब बाप के कर्तव्य में सहयोगी बनेगे तो बुद्धि योग निरन्तर बाप के साथ जुटा रहेगा जो स्वत: ही सहजयोगी बना देगा ।

 ❉   तन-मन-धन और मन-वाणी-कर्म से बाप के सहयोगी बनने से सर्व सम्बन्धो और सर्व प्राप्तियों का अनुभव एक बाप से ही होगा जिससे सहजयोगी और स्वत:योगी बने रहेंगे ।

 ❉   तन-मन-धन और मन-वाणी-कर्म से जब बाप के सहयोगी बन सेवा करेंगे तो हमारा हर कर्म योगयुक्त, युक्तियुक्त होगा जो स्वत: ही सहजयोगी बना देगा ।

 ❉   जब तन-मन-धन और मन-वाणी-कर्म से  बाप के सहयोगी बनेगे तो ख़ुशी और शक्ति की प्राप्ति प्रत्यक्ष फल के रूप में सहज ही प्राप्त होगी जो सहजयोग की स्तिथि में स्तिथ रखेगी ।

 ❉   तन-मन-धन, मन-वाणी-कर्म - किसी भी प्रकार से जब बाप के कर्तव्य में सहयोगी बनेगे तो सदा बिजी रहेगे और व्यर्थ की शिकायते समाप्त हो जाएंगी और सदा सफलतामूर्त सहजयोगी स्तिथि की अनुभूति करेंगे ।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━