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❍ 11 / 04 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °सर्विस° में हड्डियां दी ?
‖✓‖ किसी भी परिस्थिति में °उमंग उत्साह° का प्रेशर कम तो नहीं हुआ ?
‖✓‖ °ज्ञान की मस्ती° में रहे ?
‖✓‖ °बहुत मीठा और शीतल° बनने का पुरुषार्थ किया ?
‖✗‖ आपस में °लून पानी° तो नहीं हुए ?
‖✗‖ °नाम रूप° की बीमारी से बचकर रहे ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ °मनमनाभव° की विधि द्वारा बन्धनों के बीज को समाप्त किया ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ देह- भान से परे होना है तो यह रूहानी एक्सरसाइज कर्म करते भी अपनी ड्यूटी बजाते हुए भी एक सेकण्ड में अभ्यास कर सकते हो । यह एक नेचुरल अभ्यास हो जाए - अभी- अभी निराकारी, अभी- अभी फरिश्ता । यह मन की ड्रिल जितना बार करेंगे उतना ही सहज योगी, सरल योगी बनेंगे ।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ "अभी- अभी °निराकारी°, अभी- अभी °फरिश्ता°" - यह रूहानी एक्सरसाइज बार-बार करते रहे ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं नष्टोमोहा स्मृति स्वरुप आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ मैं आत्मा इस शरीर रूपी वस्त्र के मोह से भी मुक्त, नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप् आत्मा हूँ ।
❉ इस शरीर और शरीर के सम्बंधों में मेरी कोई आसक्ति नही, कोई लगाव नही ।
❉ किसी भी देहधारी से मुझ आत्मा का कोई सम्बन्ध नहीं... सम्बन्ध नहीं तो मोह भी नहीं... और मोह नहीं तो बंधन भी नहीं ।
❉ मुझ आत्मा के सर्व सम्बन्ध सिर्फ एक बाप से हैं ।
❉ मेरा पवित्र और गहरा स्नेह केवल एक बाप के साथ है ।
❉ मैं आत्मा सदा मनमनाभव की विधि से मन के बन्धनों से मुक्त स्मृति स्वरुप अवस्था का अनुभव करती हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - तुम्हे अभी नाम रूप की बीमारी से बचना है, उल्टा खाता नही बनाना है, एक बाप की याद में रहना है"
❉ 63 जन्म हम स्वयं को देह मान देह और देह धारियों के नाम रूप में फंसते आये ।
❉ नाम रूप की इस बीमारी में फंसने से ही हमसे अनेक प्रकार के विकर्म होते रहे और हम पतित विकारी बनते गए ।
❉ किन्तु अब परम् पिता परमात्मा शिव बाबा ने आ कर हमे वास्तविकता से परिचित कराया है । और निर्देश दिया है कि नाम रूप की बीमारी में फंसने से ही हम दुखी और कंगाल हुए है ।
❉ इसलिए अब हमे नाम रूप की इस बीमारी से बचना है । देह अभिमान में आ कर ऐसा कोई विकर्म नही करना जो उल्टा खाता बनाये ।
❉ हमे तो केवल एक बाप की याद में रह, विकर्म विनाश कर, भविषय ऊँच पद पाना है ।
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∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा)(Marks:-10)
➢➢ आत्म-अभिमानी बन बहुत मीठा और शीतल बनने का पुरूषार्थ करना है।
❉ अपने को आत्मा समझ यानि बिंदु बन बिंदु को ही याद करना है ।देहभान से परे रहना है।
❉ आत्मिक स्वरूप में रहने से सब आत्माएँ भाई-भाई हैं ऐसी अनुभूति होती है व सबके साथ प्रेम से मीठा बनकर रहते हैं।
❉ ज्ञान मिलने के बाद अपने असली स्वरूप को जान अपने पिता के समान सबके साथ मीठा रहना है जैसे बाबा अपने बच्चों के साथ कितनी गल्तियां करने पर भी हमेशा मीठे बच्चे ही कहते हैं।
❉ जैसे राजा का बेटे को अपने बाप के पद का ग़रूर होता है व उसकी चाल चलन में पद का ग़रूर होता है फिर हम तो ऊंच ते ऊंच बाप के बच्चे है तो हमें भी अपने बाप का नाम अपनी चाल चलन से प्रत्यक्ष करना है।
❉ मनसा वाचा कर्मणा से किसी को दुख नहीं देना है व हमारा व्यवहार ऐसा हो कि ख़ुद शीतल बन दूसरों को भी शीतलता का आभास कराए।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-10)
➢➢ मनमनाभव की विधि द्वारा बन्धनों के ब़ीज को समाप्त करने वाले नष्टोमोहा स्मृति स्वरुप होते है... क्यों और कैसे ?
❉ मनमनाभव अर्थात स्वयं को आत्मा समझ बाप को याद करना, इससे देहधारियो की याद छुट्टी जाएगी।
❉ जब स्वयं को आत्मा समझेंगे तो सभी को आत्मिक दृष्टि से देखना सहज होगा और सभी से आत्मिक प्रेम रहेगा, किसी में बुद्धि फसेगी नहीं।
❉ मनमनाभव रह शांतिधाम व सृष्टि चक्र को याद करने से यह पक्का हो जायेगा की सभी आत्माये है और ड्रामा अनुसार अपना-अपना पार्ट बजा रही है।
❉ देह के बन्धनों में हम तब फसते है जब हमें स्वयं को देहधारी समझते है, मनमनाभव रहने से आत्म अभिमानी स्तिथि रहती है, सर्व सम्बन्ध एक बाप से जुड़ते है।
❉ बाप को याद करने से आत्मा को इतना अतीन्द्रिय सुख, शांति, शक्तियों की प्राप्ति होती है जो वो इस दुनिया के सभी झूटे बन्धनों को समाप्त कर नष्टोमोहा स्मृति स्वरुप बन जाता है।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-10)
➢➢ ब्राह्मण जीवन का सांस उमंग - उत्साह है इसलिए किसी भी परिस्तिथि में उमंग - उत्साह का प्रेशर कम न हो... क्यों ?
❉ ब्राह्मण जीवन है ही पुरुषार्थी जीवन । पुरुषार्थ को तीव्र करने के लिए ब्राह्मण जीवन में उमंग उत्साह का होना बहुत जरूरी है ।
❉ ब्राह्मण जीवन का मुख्य कर्तव्य है आगे बढ़ना और बढ़ाना।इसलिए किसी भी परिस्तिथि में उमंग उत्साह का प्रेशर कम न हो । इस बात पर पूरा ध्यान देना है ।
❉ माया के तुफानो का सामना करने के लिए ब्राह्मण जीवन में उमंग उत्साह का होना बहुत जरूरी है ।
❉ ब्राह्मणों का स्लोगन ही है "जीवन चला जाए लेकिन ख़ुशी नही जाए"।जीवन में सदा ख़ुशी तभी बनी रहेगी जब किसी भी परिस्तिथि में उमंग उत्साह का प्रेशर कम नही होगा ।
❉ ब्राह्मणों का हर कर्म दिव्य और अलौकिक हो ताकि सभी के लिए आदर्श बन सकें और इसके लिए हर परिस्तिथि में उमंग उत्साह का होना आवश्यक है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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