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   05 / 08 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ कर्मभोग का वर्णन करने के बजाए, °कर्मयोग° की स्थिति का वर्णन करते रहे ?

 

‖✓‖ अपार खुशी में रहने के लिए °अपने आपसे बातें° की ?

 

‖✓‖ "°बाप आये हैं° हमारा ज्ञान रत्नों से श्रृंगार कर वापस घर ले जाने, फिर राजाई में भेज देंगे" - इसी आपार ख़ुशी में रहे ?

 

‖✓‖ °ड्रामा की स्मृति° में रह धारणाओं को मजबूत किया ?

 

‖✓‖ अभी °हर कर्म ज्ञानयुक्त° किया ?

 

‖✗‖ पाप आत्माओं से अब कोई °पैसे आदि की लेन-देन° तो नहीं की ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ पुराने संस्कारों का अग्नि संस्कार करने वाले °सच्चे मरजीवा° बनकर रहे ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  योग माना शान्ति की शक्ति। यह शान्ति की शक्ति बहुत सहज स्व को और दूसरों को परिवर्तन करती है, इससे व्यक्ति भी बदल जायेंगे तो प्रकृति भी बदल जायेगी। व्यक्तियों को तो मुख का कोर्स करा लेते हो लेकिन प्रकृति को बदलने के लिए शान्ति की शक्ति अर्थात् योगबल ही चाहिए।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ प्रकृति को बदलने के लिए °शान्ति की शक्ति° का प्रयोग किया ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं सच्ची मरजीवा आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   पुराने संस्कारों का अग्नि संस्कार करने वाली मैं सच्ची मरजीवा आत्मा हूँ ।

 

 ❉   नए दैवी संस्कारो को इमर्ज कर, मैं आत्मा पुराने आसुरी संस्कार, स्वभाव और स्मृतियों को मर्ज करती जा रही हूँ ।

 

 ❉   इस पुरानी विनाशी दुनिया और दुनियावी पदार्थो से मैं सम्पूर्ण नष्टोमोहा बनती जा रही हूँ ।

 

 ❉   अपनी देह से, मित्र सम्बंधियो से मुझे अब किसी तरह का कोई लगाव नहीं है ।

 

 ❉   सर्व संबंधो का सुख एक बाप से अनुभव कर मैं सर्व सुखों की अधिकारी बनती जा रही हूँ ।

 

 ❉   अपने सच्चे साथी के संग में मैं सहज ही सर्व से न्यारी और प्यारी बनती जा रही हूँ ।

 

 ❉   परमात्म प्यार और स्नेह का बल मुझे कर्मो के आकर्षण और बन्धनों से परे ले जाता है और हर परिस्थिति में अचल अडोल बना देता है ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ “मीठे बच्चे – बाप आयें है तुम्हारा ज्ञान रत्नों से श्रृंगार कर वापिस घर ले जाने, फिर राजाई में भेज देंगे तो अपार ख़ुशी में रहो, एक बाप से ही प्यार करो”  

 

 ❉   इस शरीर को सजाने सवारने के लिए हम अनेक प्रकार के श्रृंगार करते हैं और पिछले 63 जन्मो से करते आ रहे हैं ।

 

 ❉   ये नही जानते थे कि सच्चा श्रृंगार इस शरीर का नही बल्कि आत्मा का होना चाहिए, क्योकि शरीर तो विनाशी है ।

 

 ❉   वास्तव में श्रृंगार की आवश्यकता तो आत्मा को है । लेकिन स्थूल विनाशी वस्तुओं के श्रृंगार की नही बल्कि ज्ञान रत्नों रूपी श्रृंगार की ।

 

 ❉   अब इन्ही ज्ञान रत्नों से आत्मा का श्रृंगार कर, आत्मा को वापिस अपने घर परमधाम ले जाने के लिए ही परमपिता परमात्मा बाप आये हैं ।

 

 ❉   जहाँ से फिर हम वापिस सतयुगी सतयुगी राजधानी में आयेगे, तो इसलिए हमे अपार ख़ुशी में रह, बाप को बड़े प्यार से याद करना चाहिए ।   

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ अभी हर कर्म ज्ञानयुक्त करना है, पात्र को ही दान देना है ।

 

 ❉   पहले हम बेसमझ थे व अब बाप ने जो ज्ञान का सागर है हमें ज्ञान देकर अज्ञान रूपी अंधेरे को दूर कर दिया है तो हमें हर कर्म ज्ञान युक्त करना है ।

 

 ❉   अपने असली स्वरूप को पहचान कर अपनी आत्मा के पिता परमात्मा को याद करते हुए श्रेष्ठ कर्म करने हैं व याद में रहने से ही विकर्म विनाश होंगे ।

 

 ❉   इस कल्याणकारी पुरूषोत्तम संगमयुग पर स्वयं बाप सृष्टि चक्र का ज्ञान देते हैं व गुप्त रीति से पढ़ाई पढ़ाते हैं । मनुष्य से देवी देवता बनाते हैं तो हमें भी सारी नालेज को समझते हुए हर कर्म ज्ञानयुक्त करना है ।

 

 ❉   जितना ज्ञान की गहराई में जाते हैं तो धारणा भी पक्की होती जाती हैं व स्थिति भी अच्छी होती जाती है । स्थिति अच्छी होती है तो कर्म भी श्रेष्ठ व ज्ञानयुक्त होते हैं ।

 

 ❉   ज्ञानसागर बाप ने जब हमें अपना बच्चा बनाया है व उसके बच्चे मास्टर ज्ञान सागर हैं तो हमें कर्म भी ज्ञानयुक्त करने हैं ।

 

 ❉   बाबा कहते है कि दान भी हमेशा पात्र देखकर ही देना चाहिए चाहे वो ज्ञान रत्नों का दान हो या स्थूल दान । ज्ञान रत्नों में भी किसी को चाहिए शांति व हम उसे ज्ञान का दान तो वह उसे नही लेगा क्योंकि उसे उस समय शांति की वायब्रेशनस चाहिए ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ पुराने संस्कारो का अग्नि संस्कार करने वाले ही सच्चे मरजीवा है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   मोटे रूप में देह के संबंधियो को छोडना, हद के सुविधा साधनों का त्याग करना, यह फिर भी इजी है परन्तु अपने पुराने संस्कारो तक का परिवर्तन यह बड़ी मंजिल है।

 

 ❉   बाप ने हम बच्चो को अडॉप्ट किया है, हमें नया अलोकिक जीवन मिला है, हम शुद्र से ब्राह्मण बने है, ब्रह्मा के मुख से हमारा जन्म हुआ है। तो पुराने शुद्र स्वाभाव संस्कार का भी परिवर्तन होना चाहिए तभी कहेंगे मरजीवा।

 

 ❉   जैसे आत्मा जब एक शरीर छोड़ दूसरा नया जन्म लेती है तो पुराने जन्म का सब कुछ भूल जाती है, यह भी हमारा नया जन्म है, मन बुद्धि से सब कुछ परिवर्तन करने की बात है, सब कुछ पुराना भूल जाना है।

 

 ❉   शुद्रपने के संस्कार 63 जन्मो से पड़े हुए है, जब तक उनका पूरा अग्नि संस्कार नहीं करेंगे, कोई अंश मात्र भी रह गया तो अंश से वंश पैदा हो जायेंगे और किसी न किसी रूप में इमर्ज होते रहेंगे।

 

 ❉   सच्चे मरजीवा वह है जिन्होंने अपना पुराना स्वभाव संस्कार सबका अग्नि संस्कार कर एक परमात्मा की श्रीमत पर अपना नया जीवन बनाया हो। हर कर्म, बोल, संकल्प, चाल, चलन ईश्वरीय नियम तथा कायदे अनुसार हो।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ कर्मभोग का वर्णन करने के बजाए, कर्मयोग की स्थिति का वर्णन करते रहो...क्यों ?

 

 ❉   कर्मयोगी स्थिति में स्थित रहेंगे तो हर प्रकार की परिस्थिति, बीमारी आदि में भी अचल और अडोल रहेंगे ।

 

 ❉   कर्मभोग की बजाए कर्मयोग की स्थिति का वर्णन करते रहेंगे तो परमात्म बल मिलता रहेगा और एकरस अवस्था बनी रहेगी ।

 

 ❉   कर्मयोग की स्थिति आत्मा को मनमनाभव बना कर, व्यर्थ चिंतन से दूर रखेगी और अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति में कर्मभोग भूल जायेंगे ।

 

 ❉   कर्मयोगी बन हर कर्म करने से हर प्रकार के कर्मो के बंधन से उपराम रहेंगे और जीवन मुक्त स्थिति द्वारा कर्मभोग पर विजय प्राप्त कर लेंगे ।

 

 ❉   कर्मयोगी स्थिति में स्थित आत्मा देह भान से न्यारी और प्यारी बन देह के सभी रोगों से सहज ही छूट जायेगी ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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