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❍ 02 / 10 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ हर बात को °प्रभु अर्पण° किया ?
‖✓‖ सदा संतुष्ट रह °संतोषी देवी° बनकर रहे ?
‖✓‖ अधिक से अधिक °आत्म अभिमानी° होकर रहने का अभ्यास किया ?
‖✓‖ "यह °अविनाशी बना बनाया ड्रामा° है" - यह स्मृति रही ?
‖✓‖ "संगम पर बाप आकर हमें °अमरकथा° सुना रहे हैं" - यह स्मृति रही ?
‖✓‖ हद और °बेहद के बाईस्कोप° का राज समझकर दूसरों को समझाया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ अपना सब कुछ °सेवा में अर्पित° कर गुप्त दानी पुण्य आत्मा बनकर रहे ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ जैसे ब्रह्मा बाप को चलता-फिरता फरिश्ता, देहभान रहित अनुभव किया। कर्म करते, बातचीत करते, डायरेक्शन देते, उमंग-उत्साह बढ़ाते भी देह से न्यारा, सूक्ष्म प्रकाश रूप की अनुभूति कराई, ऐसे फालो फादर करो। सदा देह-भान से न्यारे रहो, हर एक को न्यारा रूप दिखाई दे, इसको कहा जाता है देह में रहते फरिश्ता स्थिति।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ कर्म करते, बातचीत करते सर्व को देह से न्यारा, °सूक्ष्म प्रकाश रूप की अनुभूति° कराई ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं गुप्त दानी पुण्य आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ अपना सब कुछ सेवा में अर्पित करने वाली मैं गुप्त दानी पुण्य आत्मा हूँ ।
❉ मेरा हर संकल्प और बोल विश्व कल्याण के लिए है ।
❉ अपने शुभ और श्रेष्ठ संकल्पों की पॉवर द्वारा मैं सबका भला करती जाती हूँ ।
❉ हद के नाम, मान और शान की इच्छा से मुक्त, निष्काम भाव से मैं सर्व का कल्याण कर रही हूँ ।
❉ गुप्त और सच्ची सेवाधारी बन विश्व कल्याण के कार्य में मैं सहज ही सफलता प्राप्त करती जाती हूँ ।
❉ अपने रहम की वृति और सर्व के प्रति शुभ भावना, शुभकामना रखते हुए मैं हर प्रकार की आत्मा के व्यवहार को सहज ही परिवर्तन कर देती हूँ ।
❉ मास्टर रचता बन, समेटने की शक्ति द्वारा मैं सेकण्ड में सर्व संकल्पों को समेट कर एक संकल्प में स्थित होती जाती हूँ ।
❉ स्व परिवर्तन के द्वारा विश्व का परिवर्तन करने वाली मैं विश्व की आधारमूर्त आत्मा हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - बाबा आये हैं तुम्हे घर की राह बताने, तुम आत्म - अभिमानी हो कर रहो तो यह राह सहज देखने में आयेगी"
❉ यह सृष्टि रंग मंच एक बेहद का विशाल नाटक है, जहाँ हम सभी शरीर धारण कर पार्ट बजा रहें हैं ।
❉ वास्तव में हमारा असली स्वरूप यह देह नही बल्कि इस देह में विराजमान आत्मा है, जो इस देह को चला रही है ।
❉ और हम सभी आत्माओं का मूल निवास स्थान परमधाम है, जिसे देह भान में आने के कारण हम भूल गए हैं और भटक गए हैं ।
❉ इस भटकन से छुड़ाने और हमे हमारे घर का रास्ता बताने के लिए परम पिता परमात्मा बाप आये हैं ।
❉ किन्तु घर का यह रास्ता तभी सहज दिखाई देगा जब आत्म अभिमानी हो कर रहेंगे और यह पाठ पक्का करेंगे कि हम देह नही आत्मा हैं ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ एक बाप की श्रीमत पर चल सदा संतुष्ट रह संतोषी देवी बनना है ।
❉ जब भगवान ने हमें अपना बना लिया व हम उसके हो गए तो इससे ज़्यादा हमें क्या चाहिए ! जो पूरी सृष्टि का मालिक है वो मेरा पिता है तो ऐसे ऊंच ते ऊंच पिता की श्रेष्ठ मत पर चलकर हमें संतुष्टमणि बनना है ।
❉ ऊँच ते ऊँच बाप की श्रेष्ठ मत पर चलेंगे तो अपनी असली स्वरूप की पहचान होती जायेगी व देही अभिमानी स्थिति में स्थित होंगे जिससे इच्छाओं से मुक्त होकर संतुष्ट हो जायेंगे ।
❉ बाप स्वयं हमें अमरकथा सुनाकर अमरपुरी का मालिक बनाते हैं । 21 जन्मों के लिए राजाई पद देकर पद्मापदमपति बनाते हैं तो देवता जैसे सदैव संतुष्ट होते हैं वैसे हमें भी देवता बनना है तो कोई आश न रखते व संतुष्ट रहते संतोषी देवी बनना है ।
❉ जब हम सिर्फ व सिर्फ़ एक बाप की ही सुनते हैं व श्रीमत पर चलते है तो निश्चय होता है कि सर्वशक्तिमान बाप मेरा साथी है और हर कर्म निश्चिंतता से करते है जिससे संतुष्टता रहती है ।
❉ आदिकाल में देहभान नहीं था तो सर्वगुण और सर्वशक्तियों की भरपूरता थी लेकिन जैसे -जैसे देहभान में आते गए तो गुण व शक्तियाँ कम होती गई व सतोप्रधान से तमोप्रधान होते गए तो इस समय संगमयुग पर परमपिता का साथ मिला व श्रीमत पर चलकर दैवीय गुणों को धारण करे तो फिरसे देवता बनेंगें ।
❉ जो हो रहा है अच्छा ही हो रहा है व जो होगा वह अच्छा ही होगा । बाप पर , ड्रामा पर , स्वयं पर निश्चय रख संतुष्टमणि बनना है । दूसरे हमें देख कहें कि कितनी भी परिस्थिति आती है तो ये संतुष्ट व खुश रहते हैं ऐसे बनना हैं ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ अपना सबकुछ सेवा में अर्पित करने वाले गुप्त दानी पुण्य आत्मा बन जाते है... क्यों और कैसे ?
❉ गुप्त दान महादान है, गुप्त दान का एक का पदम गुणा होकर मिलता है। यदि हमने दान किया और सबको बताया तो उसका भाग्य भी उतना ही कम होता जाता है।
❉ तन की सेवा, वाचा की सेवा, धन की सेवा तो फिर भी पता चल जाती है परन्तु संकल्पों द्वारा सेवा अर्थात मनसा सेवा सबसे गुप्त सेवा है, मनसा सेवा बहुत करनी चाहिए अंतिम समय में भी सिर्फ यही सेवा काम करेगी।
❉ बाबा गुप्त रूप में आकर, गुप्त रीती से गुप्त ज्ञान दे रहे है। जिसको यह दुनिया वाले देख नहीं पा रहे, और हम भी गुप्त सेना (अननोन वारियर्स) है।
❉ "सफल करो और सफलता पाओ" जो जितना अपना तन, मन, धन सफल करेगा उतना ही उचा उसका भाग्य बनेगा क्युकी सारे कल्प में यही एक समय है जब एक के बदले हम पदम पाते है।
❉ भाग्य विधाता बाप स्वयं अभी इस धरा पर आये है और हमें अपने भाग्य की रेखा खीचने की कलम दे दी है।जितना चाहो अपना भाग्य बना लो
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ हर बात प्रभू अर्पण कर दो तो आने वाली मुश्किलातें सहज अनुभव होंगी... कैसे ?
❉ हर बात प्रभू अर्पण कर देंगे तो करनकरावनहार बाप की छत्रछाया के नीचे स्वयं को सुरक्षित अनुभव करेंगे जिससे हर मुश्किल सहज अनुभव होगी ।
❉ प्रभू को हर बात अर्पण कर देंगे तो कदम - कदम पर परमात्म मदद का अनुभव हर मुश्किल को सहज बना देगा ।
❉ हर बात प्रभू अर्पण कर जब सर्व सम्बंधों का सुख प्रभु से लेंगे तो हर सम्बन्ध निभाने के लिए प्रभू स्वयं आयेंगे और हमे हर मुश्किल से छुड़ा कर जीवन को सहज बना देंगे ।
❉ सदा हल्केपन द्वारा, हर मुश्किलात को सहज अनुभव कर उड़ती कला में वही रह सकेंगे जो हर बात प्रभु अर्पण कर निश्चिन्त रहेंगें ।
❉ बुद्धि की लाइन जितनी क्लियर होगी, हर मुश्किल उतनी ही सहज अनुभव होगी और वह तब होगा जब हर बात प्रभू अर्पण कर व्यर्थ संकल्पों से मुक्त रहेंगे ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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