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❍ 25 / 08 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °रूहानी सेवाधारी° बन आत्माओं को जगाने की सेवा की ?
‖✓‖ °स्वदर्शन चक्रधारी° बन 84 का चक्र बुधी में फिराते रहे ?
‖✓‖ °सिर्फ एक बाप° को ही याद किया ?
‖✓‖ स्वयं के प्रति °शुभ भावना° रख सतोप्रधान बनने का पुरुषार्थ किया ?
‖✓‖ अविनाशी ज्ञान रतन धारण कर °फ़कीर से अमीर° बनने पर विशेष अटेंशन रहा ?
‖✗‖ °सिद्धि को स्वीकार° कर भविष्य की प्रालब्ध को स्वीकार तो नहीं किया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ सेवा करते हुए °याद के अनुभवों° की रेस की ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ जैसे अग्नि में कोई भी चीज डालो तो नाम, रूप, गुण सब बदल जाता है, ऐसे जब बाप के याद के लगन की अग्नि में पड़ते हो तो परिवर्तन हो जाते हो। मनुष्य से ब्राह्मण बन जाते, फिर ब्राह्मण से फरिश्ता सो देवता बन जाते। लग्न की अग्नि से ऐसा परिवर्तन होता है जो अपनापन कुछ भी नहीं रहता, इसलिए याद को ही ज्वाला रूप कहा है।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ बाप की याद के °लगन की अग्नि° से स्वयं को परिवर्तित किया ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं लवलीन आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ सेवा करते हुए याद के अनुभवों की रेस करने वाली मैं सदा बाप के लव में लीन आत्मा हूँ ।
❉ बाप की याद से सर्व प्राप्ति सम्पन्न बन, उन प्राप्तियों की अनुभूति को आगे बढ़ाती जाती हूँ ।
❉ मैं आत्मा ज्ञान की गहराई में जा कर, हर गुण के अनुभव रुपी रत्नों से संपन्न बन रही हूँ ।
❉ नॉलेज के प्रभाव के साथ साथ मैं अपने योग के सिद्धि स्वरूप का प्रभाव भी सर्व आत्माओं को अनुभव कराती हूँ ।
❉ याद के अनुभवों में डूब कर, सेवा करते हुए मैं सहज ही सेवा में सफलता प्राप्त करती जाती हूँ ।
❉ एक बाप की लगन में मगन रह, श्रेष्ठ योगी बन मैं सर्व आत्माओं को पवित्रता और शान्ति की अनुभूति कराती हूँ ।
❉ मैं आत्मा वाइसलेस बन दुखी आत्माओ के दुःख और अशांति की स्थिति को जान उन्हें सुख और शान्ति के वायब्रेशन्स द्वारा शीतल करती जाती हूँ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - अविनाशी ज्ञान रत्न धारण कर अब तुम्हे फकीर से अमीर बनना है, तुम आत्मा हो रूप - बसन्त"
❉ नॉलेज को कहा जाता है " सोर्स ऑफ़ इनकम" । इसलिए लौकिक पढ़ाई में भी जो विद्यार्थी अच्छी रीति ज्ञान को धारण करते हैं, वो ऊंच पद प्राप्त करते हैं ।
❉ हमारी भी यह रूहानी पढाई हैं जिसमे हम अविनाशी ज्ञान रत्नों को धारण करते हैं ।
❉ यह अविनाशी ज्ञान रत्न कोई साधारण मनुष्य नही, बल्कि ज्ञान के सागर स्वयं परम पिता परमात्मा आ कर हम बच्चों को देते है ।
❉ इन अविनाशी ज्ञान रत्नों को धारण कर हम फकीर से अमीर बनते हैं अर्थात भविष्य 21 जन्मों के लिए विश्व की राजाई प्राप्त करते है ।
❉ इस लिए अब हमारा पूरा ध्यान केवल इन अविनाशी ज्ञान रत्नों की कमाई पर होना चाहिए, क्योकि हम आत्मायें है रूप - बसन्त और हमे ज्ञानी और योगी बन ऊँच कमाई करके ऊँच पद प्राप्त करना है ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ स्वदर्शन चक्रधारी बन 84 का चक्र बुद्धि में फिराना है । एक बाप को ही याद करना है ।
❉ सदा ये याद रखना है कि मैं कौन हूँ ? ये शरीर नहीं हूँ देही हूँ व इस देह को चलाने वाली चैतन्य शक्ति हूँ । जब अपने को आत्मा समझते है तो दूसरे की तरफ़ दृष्टि शुद्ध रहती है । आत्म-अभिमानी बन 84 के चक्र को याद रखना है ।
❉ मैं कौन व मेरा कौन ये सदा याद रखना है । अपने को आत्मा समझ बाप को याद रखना है । 84 के चक्र को याद रखने से चक्रधारी राजा बन जायेंगे ।
❉ बाप ने हमें ज्ञान का तीसरा नेत्र दिया है व सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान दिया है कि हम पहले सतोप्रधान थे व नीचे आते आते तमोप्रधान हो गये व फिर इस संगमयुग पर बाप को याद करके फिर सतोप्रधान बन रहे हैं ।
❉ ड्रामा के ज्ञान को जान कर हमें क्यूँ , क्या , कैसे में नहीं जाना । नथिंग न्यू इस पाठ को पक्का कर बस बिंदी लगानी है व कल्प पहले भी ऐसे ही हुआ था । हर बात में ही कल्याण है ।
❉ हम ब्राह्मण आत्मायें स्वदर्शन चक्रधारी बन 84 का चक्र फिराते सेकंड में जीवन मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि बेहद बाप के बच्चे बनना और वर्से का अधिकारी बनना ही जीवनमुक्ति है ।
❉ 84 का चक्र फिराने से हमें याद रहता है कि हम ही पहले देवी देवता थे व फिर क्षत्रिय , वैश्य व शूद्र बन गए । बाप हमें पढ़ाकर फिर से पतित से पावन बना रहे हैं व फिर से देवी देवता बना रहे हैं ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ सेवा करते याद के अनुभवों की रेस करने वाले सदा लवलीन आत्मा बनकर रहते है... क्यों और कैसे ?
❉ याद और सेवा का बैलेंस रखना यही कमाल है, जिसने यह सिख लिया वह सदेव लवलीन आत्मा बनकर रहते है।
❉ याद से विकर्म विनाश होते है और सेवा से भाग्य जमा होता है। सेवा में याद होने से डबल लोटरी लग जाती है।
❉ याद से मिलती है शांति, सुख प्रेम और सेवा का प्रत्यक्ष फल है ख़ुशी। दोनों का बैलेंस होने से जीवन में संतुष्टा का अनुभव होता है।
❉ सेवाधारी बच्चे बाप को अति प्यारे है, और सेवा में योग मिक्स होने से बाबा के साथ का हर पल अनुभव होता रहता है। जैसे बाबा का प्यार बरस रहा हो।
❉ सेवा करते मन बुद्धि में यही हो की बाप की आज्ञा पर कर रहे है, करनकरावनहार बाप करवा रहा है, अहो सौभाग्य जो भगवान ने इस सेवा के लिए हमें चुना। तो बाप के प्यार में लवलीन हो उढ़ते रहेंगे।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ सिद्धि को स्वीकार कर लेना अर्थात भविष्य प्रालब्ध को यहाँ ही समाप्त कर देना... क्यों ?
❉ सिद्धि को स्वीकार कर लेने से आत्मा हद के झूठे मान और शान की प्राप्ति में फंस जाती है और हद के मान, शान की इच्छा भविष्य प्रालब्ध को समाप्त कर देती है ।
❉ सिद्धि प्राप्त करने की इच्छा सेवा में स्वार्थ का भाव पैदा कर देती है और स्वार्थ भाव से की गई सेवा आत्मा को भविष्य प्राप्ति के फल से वंचित कर देती है ।
❉ भविष्य प्रालब्ध को पाने के लिए बेहद की वैराग्य वृति का होना बहुत जरूरी है और वो तभी होगी जब आत्मा सेवा से प्राप्त होने वाली सिद्धि के आकर्षण से भी मुक्त होगी ।
❉ सिद्धि को स्वीकार कर लेना अहंकार की भावना को उत्तपन्न करता है और अहंकार आत्मा को नीचे गिरा कर भविष्य प्रालब्ध को समाप्त कर देता है ।
❉ निर्मानता और निर्माणता वह गुण है जो भविष्य श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने का मुख्य आधार है । लेकिन सिद्धि को स्वीकार करने वाले कभी निर्मान और निर्माण नही बन पाते और भविष्य प्रालब्ध को समाप्त कर लेते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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