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   14 / 07 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

‖✓‖ °एम ऑब्जेक्ट° को सामने रखकर पुरुषार्थ किया ?

‖✓‖ सत्य बाप से °सत्य नारायण की सच्ची कथा° सुनी ?

‖✓‖ सिर्फ °एक बाप की सुमत° पर चले ?

‖✓‖ "हम °ईश्वरीय सम्प्रदाय° के हैं" - उएह स्मृति रही ?

‖✓‖ पतित बुधी को °पावन बुधी° बनाने पर विशेष अटेंशन रहा ?

‖✓‖ °याद और सेवा° दोनों के बैलेंस से डबल लॉक लगाकर रखा ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ तन की तंदरुस्ती , मन की ख़ुशी और धन की समृधि द्वारा °श्रेष्ठ भाग्यवान स्थिति° का अनुभव किया ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  देह-अभिमान को छोड़ना-यह बड़े ते बड़ा त्याग है। इसके लिए हर सेकेण्ड अपने आपको चेक करना पड़ता है। इस त्याग से ही तपस्वी बनेंगे और एक बाप से ही सर्व सम्बन्धों का अनुभव करेंगे।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ निरंतर अपने आपको °चेक° करते रहे ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ ।

 

✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

❉  तन की तंदरूस्ती, मन की ख़ुशी और धन से समृद्ध मैं श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ ।

❉  स्व – स्थिति में स्थित रहने से मेरा कर्म भोग भी सूली से काँटा हो जाता है ।

❉  तन के रोग को योग बल द्वारा समाप्त कर मैं सदा स्वस्थ रहती हूँ ।

❉  मनमनाभव रहने के कारण मै सदा खुशियों की खान से संपन्न रहती हूँ ।

❉  स्वयं परम पिता परमात्मा शिव बाबा ने मुझे ज्ञान धन के अखुट खजाने से भरपूर कर दिया है ।

❉  मेरे सर्व सम्बन्ध केवल एक बाप के साथ तथा संपर्क होली हंसो के साथ होने से प्रकृति भी मेरी दासी बन जाती है ।

❉  मैं आत्मा सर्व प्राप्तियों की अनुभवी सदा सफलतामूर्त, पदमापदम भाग्यशाली हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ “मीठे बच्चे देह अभिमान छोड़ देही - अभिमानी बनो, देही अभिमानियो को ही ईश्वरीय सम्प्रदाय कहा जाता है”

❉  अपने वास्तविक स्वरूप को भूल स्वयं को देह समझने के कारण आज सभी मनुष्य दुखी है ।

❉  क्योकि देह अभिमान में आने के कारण सभी आसुरी सम्प्रदाय के बन एक दो को दुःख ही देते रहते हैं ।

❉  इस देह अभिमान से छुड़ाने और फिर से सुखी बनाने के लिए ही ऊँचे ते ऊँचे परम पिता परम आत्मा बाप आयें हैं ।

❉  और आकर हम बच्चो को देही – अभिमानी बनना सिखला रहे हैं । इसलिए अब हमे देह – अभिमान छोड़ देही – अभिमानी बनना है ।

❉  देही अभिमानियो को ही ईश्वरीय सम्प्रदाय कहा जाता है ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ एक बाप की सुमत पर चलकर मनुष्य से देवता बनना है ।

❉  एक बाप ही है जिसने हमें सच्चा सच्चा ज्ञान देकर हमें अपनी सच्ची पहचान दी है कि मैं शरीर नहीं आत्मा हूँ व बाप परम आत्मा है जो हम सब आत्माओं का पिता है । बाप ही हमें आत्म-अभिमानी बनाते हैं ।

❉  जब अपने को आत्मा समझते है तो आत्मा के पिता की याद स्वत: आती है । जितना ज़्यादा याद में रहते हैं तो विकर्म विनाश होते है व आत्मा सतोप्रधान बनती जाती है ।

❉  कलयुग के घोर अँधियारे में पतित दुनिया में स्वयं बाप आकर हमें पतित से पावन बनाने के लिए आये है तो हमें उनकी श्रीमत  पर चल पावन बनना है क्योंकि पावन बने बग़ैर तो नयी दुनिया में नहीं जा सकते ।

❉  बाप सतगुरू भी है व टीचर भी । टीचर बनकर पढ़ाकर हमे मनुष्य से देवता बना रहे हैं तो हमें अच्छी रीति से पढ़कर देवता बनना है ।

❉  बाप ऊंच ते ऊंच है व श्रेष्ठ मत देता है व जिस पर चल कर हम पुरूषोत्तम बनते है । बाप समझाते है कि श्रेष्ठ कर्म व पुरूषार्थ करते हुए मनुष्य से देवता बनना है ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ तन की तंदरुस्ती, मन की ख़ुशी और धन की समृद्धि वाले ही श्रेष्ठ भाग्यवान है... क्यों और कैसे ?

  पवित्रता ही सुख, शांति, समृद्धि की जननी है, आत्मा पावन है तो शरीर भी पावन मिलता है, मन तन का न मन का न धन का किसी प्रकार का कोई दुःख नहीं होता है।

❉  बाबा हम बच्चो को पढाई पढ़ा रहे है जिसे पढ़ कर और बाप को याद करने से हम एवर हेलथी और एवर वेलथी बन जायेंगे।

❉  जिस आत्मा के पास स्वस्थ तन हो, सुन्दर विचारो वाला व खुश मन हो तथा धन की समृद्धि हो वह आत्मा भाग्यवान है, वह होता है स्वर्ग में जब राम राज्य होता है, एसी ही दुनिया स्थापन करने बाप आये है।

❉  जब हम बाप की याद से अपने सारे विकर्मों का नाश करेंगे व पढाई में डिस्टिंक्शन से पास होंगे तब हमारे भाग्य का सितारा चमकेगा।

❉  जो तन, मन, धन तीनो में ही संपन्न हो वही आत्मा सच्चे रूप में सम्पूर्ण सुखी है, यदि एक की भी कमी हो तो सम्पूर्ण सुखी नहीं कहेंगे, और यह इस नर्क में इम्पॉसिबल है। एेसी दुनिया सिर्फ परमात्मा ही बना सकते है और हम वह भाग्यवान आत्मायें है जिनको बाप ने एेसी दुनिया में ले चलने के लिए चुना है, "वाह हमारा भाग्य वाह।"

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ याद और सेवा दोनों का बैलंस ही डबल लॉक है... कैसे ?

❉  जहाँ याद और सेवा साथ - साथ हैं वहां माया के तूफान भी तोहफा बन जाते हैं । इसलिए माया के तूफानो से बचने के लिए याद और सेवा दोनों का बैलंस जरूरी है ।

❉  याद और सेवा के बैलंस का डबल लॉक बुद्धि को व्यर्थ चिंतन से मुक्त कर एकाग्र और शांतचित बना देता है ।

❉  सेवा में याद का बैलंस निमित पन की स्मृति द्वारा हल्के पन की अनुभूति करवाता है जिससे सेवा में थकावट का अनुभव नही होता ।

❉  याद और सेवा के बैलंस का डबल लॉक वाणीं में योग का जौहर भर सेवा को प्रभावशाली बनाता है ।

❉  याद में रह कर की गई सेवा किसी भी प्रकार के मान और शान की इच्छा से रहित होती है, इसलिए सेवा में सफलता सहज समाई होती है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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