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   27 / 06 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ °सच्ची कमाई° करने में ज़रा भी चांस तो नहीं गंवाया ?

 

‖✓‖ "मनसा - वाचा - कर्मणा" - ये °तीनो सेवाएं साथ साथ° की ?

 

‖✓‖ अपने को अर्पण कर °ट्रस्टी° हो संभाला ?

 

‖✓‖ °साकार बाप को फॉलो° किया ?

 

‖✓‖ °नष्टोमोहा° बनकर रहे ?

 

‖✓‖ "°अब घर चलना है°" - यह स्मृति रही ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ स्व अभ्यासी बन अपनी पावरफुल स्थिति द्वारा °मनसा सेवा° का सर्टिफिकेट प्राप्त किया ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  योगबल वाली शान्त स्वरूप आत्मा एकान्तवासी होने के कारण सदा एकाग्र रहती है और एकाग्रता के कारण विशेष दो शक्तियां सदा प्राप्त होती हैं-एक परखने की और दूसरी निर्णय करने की। यही दो विशेष शक्तियाँ व्यवहार वा परमार्थ दोनों की सर्व समस्याओं को हल करने का सहज साधन है।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ एकांतवासी बन °एकाग्रचित° रहे ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं स्व अभ्यासी हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   अपनी पॉवरफुल स्थिति द्वारा मनसा सेवा का सर्टिफिकेट प्राप्त करने वाली मैं स्व अभ्यासी आत्मा हूँ ।

 

 ❉   अमृतवेले सवेरे सवेरे उठ मनसा द्वारा वायुमण्डल को पॉवरफुल बना कर मैं पूरे विश्व को लाइट और माइट का वरदान देती हूँ ।

 

 ❉   भक्तो को नजर से निहाल करने वाली मैं चैतन्य मूर्ति हूँ ।

 

 ❉   अपनी पॉवरफुल वृति द्वारा मैं सारे विश्व की आत्माओं की वृतियों को बदलती जाती हूँ ।

 

 ❉   अपनी श्रेष्ठ स्मृति में मैं सर्व आत्माओं को समर्थ बनाती जाती हूँ ।

 

 ❉   लाइट माइट की अभ्यासी बन मैं निर्विघ्न वायुमण्डल का किला मजबूत करती जाती हूँ ।

 

 ❉   अपने दिव्य संकल्प, बोल और कर्म द्वारा मैं सबको अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन कराने वाली दिव्य मूर्ति हूँ ।

 

 ❉   अपनी दिव्य दृष्टि द्वारा मैं सर्व आत्माओं को दिव्य अनुभूतियाँ कराती जाती हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ मीठे बच्चे - यह रूद्र ज्ञान यज्ञ स्वयं भगवान ने रचा है, इसमें तुम अपना सब कुछ स्वाहा करो क्योकि अब घर चलना है ।

 

 ❉   शास्त्रो में रूद्र यज्ञ का गायन विशेष रूप से किया गया है । वास्तव में वह गायन इस समय अर्थात संगमयुग का है ।

 

 ❉   अभी संगमयुग पर हम बच्चों को ऊंच पढ़ाई पढ़ा कर स्वराज्य दिलाने के लिए स्वयं परम पिता परमात्मा ने राजस्व अश्वमेघ यज्ञ रचा है ।

 

 ❉   ड्रामा प्लैन अनुसार कल्प - कल्प संगम युग पर परमपिता परमात्मा शिव बाबा आ कर यह रुद्र ज्ञान यज्ञ रचते हैं ।

 

 ❉   जिस प्रकार किसी भी यज्ञ की समाप्ति तभी होती है जब उसमे सम्पूर्ण आहुति डलती है ।

 

 ❉   इसी प्रकार परम पिता परमात्मा शिव बाबा द्वारा रचे इस रूद्र ज्ञान यज्ञ की भी अब समाप्ति होनी है । इसलिए इसमें अपना सब कुछ स्वाहा कर अब वापिस घर जाना है ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ सच्ची कमाई कर 21 जन्मों के लिए अपनी तक़दीर बनानी है ।

 

 ❉   इस संगमयुग पर भगवान स्वयं आकर पढ़ाते हैं व हमें ऊंच ते ऊंच पढ़ाई को अच्छी रीति पढ़कर कमाई जमा करनी है व अपनी तक़दीर बनानी है ।

 

 ❉   लौकिक पढ़ाई से तो अल्पकाल का सुख मिलता है व बेहद के बाप से बेहद की पढ़ाई अविनाशी कमाई है जो 21 जन्मों के लिए है ।

 

 ❉   जितना समय बाप की याद में रहेंगे उतना ही कमाई करते जायेंगे व बाप के नज़दीक़ आते जायेंगे । अपनी तक़दीर बनाने के लिए डायरेक्ट ईश्वरीय सेवा में सब कुछ सफल करना व ट्रस्टी बन निमित्त भाव से सेवा करनी है ।

 

 ❉   जब सब कुछ विनाश ही होना है तो अपना सब कुछ यज्ञ में अर्पण कर एक बाप के ही क्यूँ न बन जाए व बाप से वर्सा लेकर अपना भाग्य बनाएँ ।

 

 ❉   बाप हमें काँटों से फूल बनाने , पतित से पावन बनाने के लिए, नयी दुनिया की राजाई देने के लिए इस पतित दुनिया में हमें पढ़ाने के लिए आते है तो हमें ऐसे बाप पर बलिहारी होकर ख़ुशी से पढ़ कर अपना भाग्य बनाना है ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ स्व अभ्यासी ही अपनी पावरफुल स्थिति द्वारा मनसा सेवा का सर्टिफिकेट प्राप्त करते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   स्वयं को आत्मा समझ बिज रूप स्थिति में स्थित रखना इसमें ही सबसे ज्यादा अटेंशन व मेहनत की आवश्यकता है है।

 

 ❉   जितना हम स्व पुरुषार्थ करेंगे, स्वयं को बार बार अटेंशन दिलाएंगे की हम आत्मा है तभी हम अपनी स्थिति को एकरस बना सकते है और एकाग्रता द्वारा मनसा सेवा कर सकते है।

 

 ❉   जितना जितना हम स्व राज्य अधिकारी बनेंगे उतना हमारी कर्मेन्द्रिया हमारे कण्ट्रोल में रहेगी और हम विश्व की अनेक आत्माओ को मनसा सेवा द्वारा सुख शांति का दान देकर, बाप द्वारा दिए गए विश्व सेवाधारी का अपना टाइटल सार्थक कर सकते है।

 

 ❉   जिसने बहुत लम्बे समय का अभ्यास किया होगा, अपने मन बुद्धि को एकाग्र किया हो, कर्मेन्द्रियजीत बना हो वही आत्माये सेकंड में विश्व के ग्लोब पर स्थित हो अनेक आत्माओ की मनसा सेवा कर सकेंगे व बाप से विश्व की सर्विस का सर्टिफिकेट प्राप्त कर सकेंगे।

 

 ❉   यदि हमारा स्वयं पर ही कण्ट्रोल न हो, हम मन को लगाना चाहे विश्व की आत्माओ की सेवा में और वह भागे देह की दुनिया में तो स्वयं को आत्म अभिमानी स्थिति में स्थित करने में ही सारा समय चला जायेगा इसलिए हमें लम्बे समय के स्व अभ्यासी बनना ताकि समय आने पर एक सेकंड में हम रूहानी मिलिट्री सर्विस के लिए आत्म अभिमानी स्थिति में स्थित हो जाये।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ समझदार वह है जो मनसा - वाचा - कर्मणा तीनो सेवाएं साथ साथ करते हैं...क्यों और कैसे ?

 

 ❉   मनसा - वाचा - कर्मणा तीनो सेवाएं साथ साथ करने से दूसरों की वृतियों को बदलना सहज होता है ।

 

 ❉   मनसा - वाचा - कर्मणा तीनों रूपों से की गई सेवा से संस्कारों का परिवर्तन अति शीघ्र किया जा सकता है ।

 

 ❉   मन, वचन और कर्म तीनो रूपो से की गई सेवा एक साथ अनेक आत्माओं का कल्याण कर सकती है।

 

 ❉  मनसा - वाचा - कर्मणा तीनो रूप से की गई सेवा हद की प्रकृति अर्थात शरीर और बेहद की प्रकृति अर्थात पांचो तत्वों को शुद्ध बना देती है।

 

 ❉   मन , वचन और कर्म तीनो रूपों से की गई सेवा का स्वरूप सहज और शक्तिशाली होता है । जो जल्दी ही सर्व आत्माओं को प्रभावित करता है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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