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❍ 25 / 12 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ संतुष्टता की सीट पर रह °परिस्थितियों का खेल° देखा ?
‖✓‖ "जो सेकंड पास हुआ °ड्रामा°" - सदा यह याद रखा ?
‖✓‖ "हमको °शिव बाबा पढाते° हैं" - यह बुधी में रहा ?
‖✓‖ उस °एक की ही महिमा° की ?
‖✓‖ बहुत बहुत °क्षीरखंड° होकर रहे ?
‖✗‖ किसी भी °देहधारी की स्तुति° तो नहीं की ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ अनुभवों की गुहयता की °प्रयोगशाला° में रह नयी नयी रिसर्च की ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ जैसे बाप के लिए सबके मुख से एक ही आवाज निकलती है- 'मेरा बाबा'। ऐसे आप हर श्रेष्ठ आत्मा के प्रति यह भावना हो, महसूसता हो। हरेक से मेरे-पन की भासना आये। हरेक समझे कि यह मेरे शुभचिन्तक सहयोगी सेवा के साथी हैं, इसको कहा जाता है-बाप सामान। इसको ही कहा जाता है कर्मातीत स्टेज के तख्तनशीन।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ हर एक आत्मा को °अपनेपन की भासना° का एहसास करवाया ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं अन्तर्मुखी आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ अनुभवों के गुह्यता की प्रयोगशाला में रह नई रिसर्च करने वाली मैं अन्तर्मुखी आत्मा हूँ ।
❉ स्वयं में सर्व अनुभवों को प्रत्यक्ष कर मैं बाप दादा की प्रत्यक्षता में मददगार बनने वाली हूँ ।
❉ दृढ़ता की शक्ति द्वारा संकल्पों को सिद्ध करने वाली मैं सिद्धि स्वरूप आत्मा हूँ ।
❉ अनुभवों के गुह्यता की प्रयोगशाला में रह एक बाप की लग्न में मगन हो कर मैं इस संसार से उपराम होती जाती हूँ ।
❉ कर्म करते योग की पावरफुल स्टेज में रहने के अभ्यास द्वारा मैं हर कर्म बंधन से मुक्त होती जाती हूँ ।
❉ मैं सेकण्ड में जब चाहे साकारी शरीर छोड़ आकारी फ़रिश्ता ड्रेस पहन और निराकार बिंदु स्वरूप में बाप से सहज मिलन मनाती हूँ ।
❉ मैं अंतर्मुखी बन ज्ञान सागर की लहरों में लहराने वाली ज्ञान गंगा बन सबको रास्ता दिखाती हूँ ।
❉ एकाग्रता की शक्ति द्वारा मैं सर्व आत्माओं को हलचल से मुक्त करा कर सुख शान्ति की अनुभूति कराती हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - तुम बहुत समय के बाद फिर से बाप से मिले हो इसलिए तुम बहुत - बहुत सिकीलधे हो"
❉ सिकीलधे उनको कहा जाता है जो गुम हो जाते हैं, फिर बहुत समय के बाद मिलते हैं ।
❉ हम आत्मायें भी 5000 वर्ष पहले शरीर धारण कर इस सृष्टि रंग मंच पर पार्ट बजाने के लिए आई ।
❉ और देह - भान में आने के कारण खुद को, अपने घर को और अपने पिता परमात्मा को भी भूल गई ।
❉ 5000 वर्ष के बाद अब परम पिता परमात्मा बाप ने आकर हमे हमारा और अपना वास्तविक परिचय दे कर फिर से स्मृति दिलाई है ।
❉ इस लिए बाप कहते हैं कि तुम बहुत समय अर्थात पूरे 5000 वर्ष के बाद बाप से मिले हो इसलिए तुम बहुत - बहुत सिकीलधे हो ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ कोई भी ऐसा कर्म नहीं करना है जिससे किसी को दु:ख हो । कडवे बोल नही बोलने हैं । बहुत बहुत क्षीरखंड होकर रहना है ।
❉ कोई भी ऐसा कर्म नहीं करना जिससे अपने कर्मों का खाता खराब हो व ओरों को भी कोई दुख हो । क्योंकि हम सुख सागर बाप के बच्चे हैं जिसके पास सुख का भंडार हो वह किसी को दु:ख दे नहीं सकता ।
❉ मधुर भाषी बन सबसे मीठा बोलना है । कहा भी जाता चाहे गुड न खिलाओ गुड जैसी मीठी बात कर लो तो सबको अच्छा लगता है । कडवी दवा खाई जाती है लेकिन कडवे बोल समाए नहीं जाते ।
❉ बोली ऐसी बोलिए सबके मन को भाए । ओरों को शीतल आप ही शीतल होए । कोयल की आवाज मीठी होने के कारण सबको अच्छी लगती है लेकिन कौए की आवाज कडवी व कर्कश होने के कारण कोई पसन्द नहीं करता ।
❉ परमपिता परमात्मा भी बिना भेदभाव के सभी को मीठे बच्चे कहकर बुलाते हैं ऐसे फालो फादर बन सब के साथ क्षीरखंड रहना है । किसी से झरमुई झगमुई नहीं करना है ।
❉ अब तो कर्मों की गुह्य ज्ञान को जान गये हैं कि कर्म कब विकर्म बनते है और उनका फल कहां तक ले जाता है । इसलिये ऐसा कोई कर्म करके अपने कर्मो के खाते को बढ़ाना नही है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ अनुभवो के गुह्यता की प्रयोगशाला में रह नयी रिसर्च करने वाले अंतर्मुखी होते है... क्यों और कैसे ?
❉ योग के प्रयोग द्वारा अनेक अनुभव कर सकते है, इन्ही अनुभवों से हमारी हिम्मत व उमंग उत्साह बढ़ता है। बाबा का ज्ञान सिर्फ सुनने और हाजी हाजी करने का नहीं है परन्तु हर बात के अनुभवी बनने का है।
❉ अनुभवीमूर्त ही बाप का बनकर चल सकते है। जो भी बच्चे बाप के बने है और चल रहे है सब किसी न किसी अनुभव के आधार से ही है।
❉ बाबा की याद से हम बच्चो को नित दिन नए-नए अनुभव होते रहते है, सर्व संबंधो से बाप अपने हर बच्चे की पालना अनुभवों द्वारा कर रहे है।
❉ जब हम किसी संकल्प को लेकर विशेष ज्वालामुखी योग करते है, कोई समय, स्थान व संकल्प पर भट्टी चलाते है तो उसकी सिद्धि के साथ साथ अनेक अलोकिक अनुभव होते है जो इस दुनिया के सुखो से परे है।
❉ जब हम अनुभवीमूर्त बन जायेंगे तब हम किसी को भी अपने अनुभव की अथॉरिटी द्वारा समझायेंगे तो उनको भी तीर लगेगा, हवा में बाते न कर पहले स्वयं अनुभवी बनना है फिर दुसरो को सुनना है।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ सन्तुष्टता की सीट पर बैठ कर परिस्थितियों का खेल देखने वाले ही संतुष्टमणि हैं... कैसे ?
❉ संतुष्टता की विशेषता व्यक्ति को प्रसन्न रखती है और प्रसन्नता व्यक्ति को हर परिस्थिति में अचल अडोल बना देती है जिससे वह सन्तुष्टमणि बन निर्भय हो कर परिस्थितियों का खेल देखता है ।
❉ संतुष्ट और प्रसन्न व्यक्ति परमात्म प्यार और सर्व की दुआओं का पात्र बन सदैव उड़ती कला का अनुभव करते हुए हर परिस्थिति को सरलता से पार कर संतुष्टमणि बन जाता जाता है ।
❉ सन्तुष्टता और प्रसन्नता की विशेषता व्यक्ति को इच्छा मात्रम अविद्या बना देती है और इच्छा मुक्त व्यक्ति के सामने प्रश्नों की क्यू समाप्त हो जाती है जिससे परिस्थितियां उसे खेल अनुभव होती है ।
❉ जो स्वयं संतुष्ट रह, सर्व को संतुष्ट करते हैं उन्हें बाप की एक्स्ट्रा मदद मिलती है जिससे उनके पुरुषार्थ में स्वत: ही हाई जम्प लग जाता है और कठिन परिस्थितियां भी उन्हें खेल की भाँति हल्की दिखाई देती हैं ।
❉ जो संतुष्टता की सीट पर सदा सेट रहते हैं उनमें सहनशीलता और समायोजनशीलता का गुण सहज ही विकसित हो जाता है और सहनशील तथा समायोजनशील आत्मा संतुष्टमणि बन परिस्थितियों को खेल की भांति देखती है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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