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❍ 02 / 04 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ चोट लगाने वाले से °स्वयं को बचाया° ?
‖✓‖ चेक किया की मेरी °बुधी किस तरफ जाती° है ?
‖✓‖ चेक किया की °कितना टाइम वेस्ट° करते हैं ?
‖✓‖ याद का °चार्ट शौंक से° रखा ?
‖✓‖ सिर्फ °एक विदेही बाप° से प्यार किया ?
‖✗‖ किसी भी °देहधारी को अपना आधार° तो नहीं बनाया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ मस्तक द्वारा °संतुष्टता की चमक° की झलक दिखाई ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ मन को एकरस बनाने के लिए हर घंटे 5 सेकंड वा 5 मिनट अपने पांचों ही रूप सामने लाओ और उस रूप का अनुभव करो । इस एक्सरसाइज से व्यर्थ वा अयथार्थ संकल्पों में मन नहीं जायेगा । मन में अलबेलापन भी नहीं आयेगा । मनमनाभव का मन्त्र मन के अनुभव से मायाजीत बनने में यन्त्र बन जायेगा ।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ हर घंटे 5 सेकंड या 5 मिनट अपने ही °पांचों रूपों का अनुभव° कर मन को एकरस बनाया ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं साक्षातकारमूर्त आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ अपनी सर्व शक्तियों की अथॉरिटी द्वारा, भक्त आत्माओं को अपने शक्तिस्वरूप का साक्षात्कार कराने वाली मैं साक्षात्कार मूर्त आत्मा हूँ ।
❉ मैं आत्मा सदा संतुष्ट रहती हूँ... मुझ आत्मा के मस्तक से संतुष्टता की झलक सदा चमकती रहती है ।
❉ कोई भी उदास आत्मा यदि मुझे देख लेती है तो वह भी खुश हो जाती है... उसकी उदासी मिट जाती है ।
❉ मुझ आत्मा का ख़ुशी का चेहरा चैतन्य बोर्ड है जो अनेक आत्माओं को बनाने वाले का परिचय देता है ।
❉ रोज अमृतवेले अपने विश्ववरदानी स्वरूप से विश्वकल्याणकारी बाप के साथ कम्बाइंड रूप बन मनसा संकल्प वा वृति द्वारा शुद्ध वायब्रेशन की खुशबू पूरे विश्व में फैलाती हूँ ।
❉ अपने ज्वाला स्वरूप के साक्षात्कार द्वारा अनेक तड़फती हुई, भटकती हुई और पुकार करती हुई आत्माओं को आनन्द, शांति और शक्ति की अनुभूति कराती हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - तुम्हारा प्यार विनाशी शरीरों से नही होना चाहिए, एक विदेही से प्यार करो, देह को देखते हुए नही देखो"
❉ आज तक हम स्वयं को शरीर समझते आये और शरीरों से ही प्यार करते आये ।
❉ विनाशी शरीरों से प्यार करके हमे सिवाय दुःख और तकलीफों के ओर कुछ भी नही मिला ।
❉ क्योकि जो चीज विनाशी अर्थात समाप्त होने वाली है, उससे कभी भी स्थाई सुख, शान्ति प्राप्त नही की जा सकती ।
❉ किन्तु अब परमात्मा ने आ कर हमे स्मृति दिलाई है कि हम विनाशी शरीर नही बल्कि विदेही परम पिता परमात्मा बाप की संतान अविनाशी आत्माएं हैं ।
❉ इसलिए अब हमारा प्यार विनाशी चीजों से नही होना चाहिए , केवल एक विदेही परम पिता परमात्मा बाप से ही होना चाहिए । देह को तो हमे देखते हुए भी नही देखना चाहिए ।
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∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा)(Marks:-10)
➢➢ दिल की प्रीत एक बाप से रखनी है। किसी के नाम-रूप में नहीं फँसना है ।
❉ उठते-बैठते, चलते-फिरते यह याद रहे कि सारी दुनिया जिसे ढ़ूंढ़ती या याद करती है, उसके साथ अब मेरा पिता पुत्र का सम्बंध है। कितने ऊँचे बाप का बेटा हूँ !कितना नशा होना चाहिए! तो उससे सच्ची प्रीत रखनी है।
❉ दुनिया में जो सम्बंध है वह सब झूठे हैं व उनमें मतलब का प्यार है। इस बाप का बच्चों से निस्वार्थ प्यार है। कितनी गल्तियां करते है फिर भी हमेशा मीठ्ठे बच्चे, प्यारे बच्चे , सिकीलधे बच्चे कहकर बहुत मीठा बोलता है। फिर उसे छोड़कर संसारिक सम्बंधों या किसी नामरूप में नहीं फँसना ।
❉ जैसे लौकिक में बच्चे को अपने बाप से प्यार होता है व उसे कभी नहीं भूलता चाहे वो कितनी दूर ही क्यूँ न रहता हो । फिर हमे अपने बेहद के बाप को जो ऊंच ते ऊंच है, मन का मीत है, कल्याणकारी है से बेहद की प्रीत रखनी है।
❉ ये बेहद का बाप ही सर्व सम्बंध निंभाते हैं। जिस समय जिस सम्बंध की कमी महसूस होती है वही रिश्ता बेखूबी से निभाता है।
❉ एक बाप दूसरा न कोई ऐसी सच्ची प्रीत रखनी है जैसे किसी लड़की की सगाई होती है तो उसे अपने साजन ही याद आता है और कोई नहीं। अब हमारी सगाई शिव बाबा से हुई है तो हमें शिव बाबा के सिवाय कोई दूसरा न याद आए ऐसी सच्ची प्रीत रखनी है।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-10)
➢➢ मस्तक पर संतुष्टता के चमक की झलक दिखाने वाले साक्षात्कारमूर्त बन जाते है... क्यों और कैसे ???
❉ संतुष्ट आत्मा सदेव हर्षित खुशनुमा होगी, उनका चेहरा मुस्कुराता हुआ होगा।
❉ "इच्छा मात्रम अविद्या" होने से वह आत्मा बहुत अच्छी सर्व की प्रिय होगी, उसकी किसी आत्मा से स्वार्थ नहीं रहेगा, निस्वार्थ हो सबकी सेवा करेगी।
❉ संतुष्ट आत्मा "बेफिक्र बादशाह" होगी, उसे किसी बात की फ़िकरात नहीं होगी, "मस्त मौला फ़क़ीर"।
❉ संतुष्ट रहने से उन्हें निंदा,स्तुति,लाभ,हानी किसी भी बात में दुःख की फीलिंग तक नहीं आयेगी।
❉ ऐसी आत्माओ को परमात्मा की याद सहज बनी रहती है और परमात्म प्यार के अधिकारी बन जाती है।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-10)
➢➢ चोट लगाने वाले का काम है चोट लगाना और आपका काम है अपने को बचा लेना... कैसे ?
❉ निरन्तर बाप दादा की छत्र छाया में रहेंगे तो चोट लगाने वालों की चोट से सहज ही स्वयं को बचा लेंगे ।
❉ योगबल से जब अपनी स्तिथि को अचल और अडोल बना लेंगे तो चाहे कैसी भी चोट लगाने वाली परिस्तिथि आये, हर परिस्तिथि की चोट से स्वयं को बचा सकेंगे ।
❉ नियम और मर्यादाओं के बल से जब मायाजीत और विकर्माजीत बनेगे तो चोट लगाने वालों की चोट से स्वयं को बचा सकेंगें ।
❉ उपराम वृति द्वारा जब साक्षी और न्यारी स्तिथि में स्तिथ रहेंगे तो हर चोट लगाने वाली परिस्तिथि से उपराम रहेंगे और हर चोट के वार से स्वयं को सहज ही बचा सकेंगे ।
❉ भाग्यविधाता बाप के हाथ और साथ का अनुभव, चोट लगाने वालों की चोट से स्वत: ही बचा कर सुरक्षित रखेगा ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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