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    23 / 04 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

         TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ बहुत-बहुत °मीठा° बनकर रहे ?

‖✓‖ °रूप-बसंत° बन मुख से सदैव रतन निकाले ?

‖✓‖ °ज्ञान और योग में तीखा° बन अपना और दूसरों का कल्याण किया ?

‖✓‖ सब कर्म करते हुए °एक बाप की याद° में रहे ?

‖✓‖ °त्रिकालदर्शी° बनकर रहे ?

‖✓‖ °संतुष्ट° रहे और सबको संतुष्ट किया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

‖✓‖ °निरंतर याद और सेवा° के बैलेंस से बचपन के नाज-नखरे समाप्त किये ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

➳ _ ➳  जैसे वाचा सेवा नेचुरल हो गई है, ऐसे मन्सा सेवा भी साथ-साथ और नेचुरल हो । वाणी के साथ मन्सा सेवा भी करते रहो तो आपको बोलना कम पड़ेगा । बोलने में जो एनर्जी लगाते हो वह मन्सा सेवा के सहयोग कारण वाणी की एनर्जी जमा होगी और मन्सा की शक्तिशाली सेवा सफलता ज्यादा अनुभव करायेगी ।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

‖✓‖ वाणी के साथ °मन्सा सेवा° भी करते रहे ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं वानप्रस्थी हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 ❉   मैं केवल एक बाप की याद और सेवा में संगम युग का अमूल्य समय बिताने वाली वानप्रस्थि आत्मा हूँ ।

 ❉   चलते - फिरते, सोते - उठते, बाप और सेवा के अलावा ओर कुछ भी मुझे याद नही आता ।

 ❉   मैं त्रिकालदर्शी बन बचपन की बातों और बचपन के संस्कारों को सदा के लिए समाप्त कर रही हूँ ।

 ❉   बाबा से मिले ज्ञान और योग के पंखो द्वारा मैं पुरानी दुनिया व देह के सम्बंधियों के बंधनो से मुक्त होती जा रही हूँ ।

 ❉   सर्व लगावों से किनारा कर मैंने अपना दिल केवल एक बाप से ही लगा लिया है ।

 ❉   मैं तो बस एक ट्रस्टी हूँ । मेरा कुछ भी नही । ये तन, मन, धन व समय बाबा ने सेवा अर्थ मुझे लोन पर दिया है ।

 ❉   फरिश्ता बन कर मैं सदा वाणी से परे की स्टेज में रहती हूँ । जहाँ दुनिया का कोई भी आकर्षण मुझे आकर्षित नही कर पाता ।

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∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - यह रूहानी हॉस्पिटल तुम्हे आधाकल्प के लिए एवरहेल्दी बनाने वाली है, यहाँ तुम देही - अभिमानी हो कर बैठो"

 

 ❉   मनुष्य जब बीमार पड़ते है तो अपना ईलाज करवाने के लिए हॉस्पिटल जाते हैं किन्तु वे सब है हद के अर्थात तन की बीमारियों को ठीक करने वाले हॉस्पिटल ।

 ❉   किन्तु हमारा है रूहानी हॉस्पिटल जहाँ रूहों का इलाज किया जाता है । क्योकि आज सभी रूहें 5 विकारों रूपी रोगों से ग्रस्त है इसलिए शरीर में भी कोई ना कोई रोग लगे रहते हैं ।

 ❉   तन को बीमारियों को ठीक करने वाले उन  हद के हॉस्पिटल में तो डॉक्टर भी देहधारी है ।

 ❉   किन्तु हमारी इस रूहानी हॉस्पिटल को चलाने वाला कोई देहधारी नही अपितु स्वयं भगवान हैं जो स्वयं रूहानी सर्जन बन हम रूहों को 5 विकारों रूपी रोगों से छुड़ाये आधाकल्प के लिए एवरहेल्दी बना देते हैं ।

 ❉   इसलिए यहाँ हमे देही - अभिमानी हो कर बैठना है । स्वयं को आत्मा समझ केवल एक रूहानी सर्जन को याद करना है ।

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∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा)(Marks:-10)

 

➢➢ ज्ञान और योग में तीखा बन अपना और दूसरों का कल्याण करना है।

 

 ❉   बाप ने हमें कचरे के डिब्बे से निकाल कर हमें गुल गुल बनाते हैं व सुप्रीम टीचर बन हमें पढ़ाकर नया जीवन देते हैं व कल्याण करते हैं । हमें भी दूसरों को सत का रास्ता दिखाकर कल्याण करना है।

 ❉   अभी तक हम स्वयं को भूल गये व पतित बनते चले गये।इस क्याणकारी संगमयुग पर हमें अपना बनाकर व हमें स्वं का व पिता का परिचय मिलने के बाद ही स्वयं को मान देना सिखाया।

 ❉   हमें फुरना होना चाहिए कि हमें दूसरों को ज्ञान के नए नए प्वाइंटस बताकर उन्हें अज्ञान रूपी अंधेरे से निकाल ज्ञान के रास्ते पर लाएँ व अपने ज्ञान सूर्य बाप से मिलवायें ।

 ❉   जैसे ज्ञान की गहराई में जाते हैं व धारणाएं पक्की होगी तो योग में भी बल भरेगा। योग माना किसी के साथ जुड़ना (याद)। जितना सच्चे दिल से बाप को याद करेंगे उतना ही परमात्म प्यार की डोरी में खींचते चले जायेंगे ।

 ❉   जितना ज्ञान धन बाँटते जायेंगे उतना ही बढ़ता जायेगा व कल्याण होगा। ज्ञान और योग दोनों में बैलेंस होना ज़रूरी है । अगर ज्ञान में तीखे है व योग नहीं है तो विकर्म विनाश नहीं होगे। अगर योग मे ं अच्छे है ज्ञान में नहीं है तो किसी को ज्ञान  सुना नहीं पायेंगे ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-10)

 

➢➢ निरंतर याद और सेवा के बैलेंस से बचपन के नाज नखरे समाप्त करने वाले वानप्रस्थी बनना है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   याद और सेवा के बैलेंस द्वारा ही हम स्व स्थिति मजबूत बनाये अनुभवी मूर्त बन विश्व सेवा का कार्य कर सकते है।

 ❉   बचपन के नाज नखरे है - आलस्य, अलबेलापन, गे-गे करना (कर लेंगे, हो जायेगा, कर तो रहे है,), स्व पर अटेंशन नहीं देना। निरंतर याद और सेवा के बैलेंस द्वारा बालक सो मालिक बनना है।

 ❉   अब समय बहुत कम बचा है अंतिम दृश्य सामने दिखाई देने लगे है, अब नाज नखरो में व्यर्थ गवाने के लिए समय नहीं बचा है अब सभी के घर जाने का समय आ गया है तो वानप्रस्थी बन याद और सेवा का खाता जमा करलो।

 ❉   याद और सेवा का बैलेंस बना अब स्वयं को वानप्रस्थी समझ समेटने के शक्ति द्वारा मन बुद्धि द्वारा अपना बोरिया बिस्तर बांध लो, इस डूबने वाली दुनिया से लंगर उठा लो।

 ❉   अब एक सतगुरु की याद में उनके बताये के मार्ग पर ही चलना है वही हमारी जीवन नय्या पार लगायेंगे। एक राम नाम की धुन और अपना घर ही याद आये।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-10)

 

➢➢ सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न आत्मा की निशानी है सन्तुष्टता, संतुष्ट रहो और संतुष्ट करो... कैसे ?

 

 ❉   सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न आत्मा तभी बन पाएंगे जब बुद्धि योग केवल एक सर्वशक्तिवान बाप के साथ होगा और तभी स्वयं संतुष्ट रह औरों को संतुष्ट कर पायेंगे ।

 ❉   जितना योग का बल स्वयं में भरते जायेंगे, उतना सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न बनते जायेंगे और  संतुष्टमणि बन सबको संतुष्ट कर पायेंगे ।

 ❉   जितना बाप के साथ सच्चाई से रहेंगे उतना बाप से मिलने वाली प्राप्तियों का अनुभव कर पाएंगे और स्वयं संतुष्ट रह औरों को भी संतुष्ट कर पाएंगे ।

 ❉   हमारे हर कार्य में जितनी दिव्यता और अलौकिकता होगी उतना ही बाप से मिलने वाली प्राप्तियों की झलक सबको दिखाई देगी और अपनी सन्तुष्टता की अनुभूति से सबको संतुष्ट कर देगी ।

 ❉   समर्थ और शुद्ध चिंतन द्वारा जैसे जैसे जमा का खाता बढ़ाते जाएंगे सन्तुष्टता जीवन में स्वत: ही आती जायेगी जो सबको सन्तुष्टता की अनुभूति करायेगी ।

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_  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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