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❍ 13 / 07 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °मोहजीत°
बनकर रहे ?
‖✓‖
"°जो कथनी हो... वही करनी हो°"
- इसका पुरुषार्थ किया ?
‖✓‖
"हम °शांति के सागर के बच्चे°
हैं" - सदा यह याद रहा ?
‖✓‖
मुख में °मुह्लरा°
डाल कर रखा ?
‖✓‖
°रोने का फाइल समाप्त°
किया ?
‖✗‖
गफलत में अपना °टाइम वेस्ट°
तो नहीं किया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ एक बाप से °सर्व संबंधो और सर्व गुणों° की अनुभूति की ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ जैसे पहले-पहले नशा रहता था कि हम इस वृक्ष के ऊपर बैठकर सारे वृक्ष को देख रहे हैं, ऐसे अभी भी भिन्न-भिन्न प्रकार की सेवा करते हुए तपस्या का बल अपने में भरते रहो। जिससे तपस्या और सेवा दोनों कम्बाइन्ड और एक साथ रहे।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ °तपस्या और सेवा° दोनों कम्बाइन्ड और एक साथ रही ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं सम्पूर्ण मूर्त आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ सर्व
सम्बन्ध और सर्व गुणों की अनुभूति में सम्पन्न बनने वाली मैं सम्पूर्ण मूर्त
आत्मा हूँ ।
❉ परम पिता परमात्मा शिव बाबा ने मुझे सर्व खजाने, सर्व प्राप्तियों से
सम्पन्न बना दिया है ।
❉ बाबा से मिली सर्व खजानो और सर्व प्राप्तियों की अथॉरिटी से मैं आत्मा
सिद्धि स्वरूप बन हर कार्य में सफलता प्राप्त करती जाती हूँ ।
❉ नॉलेज की चाबी द्वारा मैं जितना चाहे उतना अपने श्रेष्ठ भाग्य का खजाना जमा
कर सकती हूँ ।
❉ सर्व सम्बन्ध, सर्व गुणों, और सर्व बातों का अनुभव प्राप्त करने वाली मैं
अनुभवीमूर्त आत्मा हूँ ।
❉ बाप के गुणों वा अपने आदि स्वरूप के गुणों का अनुभव कर मैं सम्पूर्ण मूर्त
आत्मा बन रही हूँ ।
❉ अपने दिव्य संकल्प, बोल और कर्म द्वारा मैं सबको अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन
कराने वाली दिव्य मूर्ति हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम्हे ज्ञान रत्न देने, बाप तुम्हे जो भी सुनाते वा समझाते हैं यह ज्ञान है, ज्ञान रत्न ज्ञान सागर के सिवाय कोई दे नही सकता"
❉ भक्ति
में अथवा शास्त्रों में जो कुछ भी आज तक सुनते व समझते आये, उसे ज्ञान नही
कहेंगे ।
❉ क्योकि ज्ञान तो केवल एक परम पिता परमात्मा शिव बाबा ही दे सकते हैं । वही
ज्ञान के सागर हैं ।
❉ सिवाय परम पिता परमात्मा बाप के और कोई मनुष्य अथवा साधू सन्यासी में ज्ञान
है ही नही ।
❉ वही ज्ञान सागर परम पिता परमात्मा शिव बाबा अभी इस समय संगम युग पर हम
बच्चों को ज्ञान रत्न देने के लिए आये हुए हैं ।
❉ इसलिये जो कुछ भी बाप सुनाते व समझाते हैं उन अविनाशी ज्ञान रत्नों को अच्छी
रीति धारण कर औरों को कराना है ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢
बाप
से पूरा वर्सा लेने के लिए जो कथनी हो वही करनी हो, इसका पुरूषार्थ करना है ।
मोहजीत बनना है ।
❉ बाप की कथनी है -देही-अभिमानी
बनो तो हमारी करनी यही होनी चाहिए लेकिन हम देह-अभिमान में आ जाते है । बाप से
वर्सा लेने के लिए जो कथनी हो वही करनी हो ऐसा पुरूषार्थ करना है ।
❉ बाप से पूरा वर्सा लेने के लिए हमें सम्पूर्ण रीति से श्रीमत पर चलना है व
अपनी मनमत नहीं मिलानी है।
❉ बाप कहते है कि वर्सा लेने के लिए मनसा-वाचा-कर्मणा पवित्र रहना है व पवित्र
बने बग़ैर तो वापिस घर जा नहीं सकते । तो हमें पवित्र रहने का पुरूषार्थ करना
है ।
❉ बाप हमें ऊंच ते ऊंच पढ़ाई पढ़ाता है व विश्व का मालिक बनाता है और हम बच्चे
गफ़लत में टाइम वेस्ट करते है व पढ़ाने वाले टीचर को ही भूल जाते हैं । बाप
कहते है भल काम धंधा करो फिर भी हथ कार डे दिल यार डे ।
❉ इस विनाशी में सब सम्बंध विनाशी इस पुरानी दुनिया से नष्टोमोहा बनना है ।
बाप की याद में ही पुराना शरीर छोड़कर जाना है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢
सर्व सम्बन्ध और सर्व गुणों की अनुभूति में संपन्न बनने वाले सम्पूर्ण मूर्त बन
जाते है....क्यों और कैसे ?
❉ बाप से सर्व संबंधो की अनुभूति
होने से अतीन्द्रिय सुख की प्राप्ति होती है, जिसके नशे में आत्मा हर पल बाप की
याद में मग्न रहती है और बाप की याद से अपने सब विकर्म विनाश करती है।
❉ देवी देवताये है तो मनुष्य ही परन्तु उनमे दैवी गुण होने के कारण वह पूज्य
है, उनकी महिमा ही है सर्व गुण संपन्न, 16 कला सम्पूर्ण।वह अभी इस पुरुषोत्तम
संगमयुग के समय ही परमात्मा से सर्व गुणों को स्वयं में धारण कर ऐसे बने है।
❉ सम्पूर्ण मूर्त बनाने वाला एक ही सर्व शक्तिमान बाप है, वह आते ही है पतितो
को पावन बनाने। उनको ही जब हम आत्म अभिमानी स्थिति में स्थित होकर याद करते है
तो हम बाप समान बनते जाते है।
❉ "फरिश्तो के पैर पृथ्वी पर नहीं टिकते" जितना जितना आत्मा अनुभवी मूर्त
बनती जाती है उतनी ही देही अभिमानी स्थिति पक्की होती जाती है, इस देह और देह
की दुनिया से उपराम होते जाते है, उसमे ज्ञान गुण शक्तियां भरती जाती है और वह
उनकी अथॉरिटी बनती जाती है।
❉ "चडे तो चाखे वैकुण्ठ रस, गिरे तो चकना चूर" जिसने सत्य बाप, सत्य टीचर,
सतगुरु से एक बार सर्व संबंधो व गुणों का अनुभव कर लिया वह कभी उन अनुभूतियों
को भूल नहीं सकता । उन अलौकिक अनुभूतियों का रस इस दुनिया के किसी भी सुख से
परे है ।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢
जोश
में आना भी मन का रोना है - अब रोने का फ़ाइल खत्म करो... कैसे ?
❉ देह अभिमान मन को रुलाने का
कारण है । इसलिए जितना देहि अभिमानी बनेंगे, जोश में आना और रोना समाप्त होता
जायेगा ।
❉ जब मन बुद्धि की लाइन क्लियर होगी और बुद्धि का योग बाप के साथ जुटा हुआ होगा
तो जोश मे आना और मन का रोना स्वत: समाप्त हो जाएगा ।
❉ अंतर्मुखी बन, रियलाइजेशन की शक्ति से स्वयं को मायाजीत और प्रकृतिजीत बना
ले तो सब प्रकार के रोने से छूट जायेंगे ।
❉ योग बल से अपनी स्थिति को अचल - अडोल बना ले तो रोने की सभी फाइल अपने आप
बन्द हो जायेंगी ।
❉ स्वयं को जब शुभ और श्रेष्ठ चिंतन में व्यस्त रखेंगे तो व्यर्थ से मुक्त हो
जायेंगे और मन के रोने से छूट जायेंगे ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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