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   25 / 10 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ एक बाबा की °सच्ची प्रीत° में ही खोये रहे ?

 

‖✓‖ सदा °अविनाशी मीत° के साथ रहे ?

 

‖✓‖ बापदादा द्वारा प्राप्त हुई सर्व प्राप्तियों के °गुणों के गीत° गाते रहे ?

 

‖✓‖ °यथार्थ रीत से सेकंड में अशरीरी° होने का अभ्यास किया ?

 

‖✓‖ "'मेहनत है.. व मुश्किल है..' ऐसे शब्द मुख से न निकाल °सदा सहज योगी° बनकर रहे ?

 

‖✓‖ स्वयं पर भी रहम किया और सर्व प्रति भी °रहमदिल° बनकर रहे ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ °निर्विघन स्थिति° द्वारा स्वयं के फाउंडेशन को मजबूत बनाने का पुरुषार्थ किया ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  सदा अपने को डबल लाइट समझकर सेवा करते चलो। जितना सेवा में हल्कापन होगा उतना सहज उड़ेगे उड़ायेंगे। डबल लाइट बन सेवा करना, याद में रहकर सेवा करना-यही सफलता का आधार है।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ डबल लाइट बन सेवा कर सफलता को प्राप्त किया ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं पास विद ऑनर आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   निर्विघ्न स्थिति द्वारा स्वयं के फाउंडेशन को मजबूत बनाने वाली मैं पास विद ऑनर आत्मा हूँ ।

 

 ❉   हर बात में निर्विघ्न रह अपनी शक्तिशाली स्थिति द्वारा मैं सबको शक्ति सम्पन्न बना देती हूँ ।

 

 ❉   निर्विघ्न स्थिति का यह अनुभव मेरे लक्ष्य प्राप्ति में सहायक बन मुझे निरन्तर सफलता का अनुभव कराता रहता है ।

 

 ❉   परम पिता परमात्मा शिव बाबा ने मुझे अखुट प्राप्तियों से भरपूर कर दिया है ।

 

 ❉   इन प्राप्तियों की स्मृति मुझमें सदैव हिम्मत और हुल्लास जगाये रखती है ।

 

 ❉   ये प्राप्तियां मुझे हर परिस्तिथि में निर्विघ्न स्तिथि का अनुभव कराती हैं ।

 

 ❉   बाप को और बाप से मिलने वाली प्राप्तियों को याद कर मैं सदा अचल और एक रस स्तिथि में स्तिथ रहती हूँ ।

 

 ❉   परमात्म प्यार और स्नेह का बल, मुझे कर्मो के आकर्षण और बंधनो से परे ले जाता है और हर परिस्तिथि में अचल अडोल बना देता है ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "अशरीरी बनने की सहज विधि"

 

 ❉   आत्मा को सच्चे सुख की प्राप्ति तभी होती है जब आत्मा का परमात्मा बाप के साथ मिलन होता है क्योकि सभी आत्मायें एक ही परमात्मा बाप के बच्चे हैं ।

 

 ❉   लेकिन आत्मा का परमात्मा बाप के साथ सच्चा मिलन तभी हो सकता है जब आत्मा शरीर के भान से मुक्त हो अशरीरी बने ।

 

 ❉   क्योकि हम आत्माओं के पिता, परम पिता परमात्मा शिव निराकार ज्योति बिंदु है, जिनका कोई शरीर नही है । इसलिए परमात्म मिलन का सच्चा सुख पाने के लिए उनके जैसा बनना जरूरी है ।

 

 ❉   किन्तु बच्चों को अशरीरी बनने में ही मेहनत लगती है । इसलिए परमात्मा बाप बच्चों को अशरीरी बनने की सहज युक्ति बताते हैं ।

 

 ❉   एक तो परमात्मा बाप के साथ सच्ची प्रीत हो, दूसरा केवल एक बाप को मीत बना लो, तीसरा दिल से बाप के लिए गीत गाओ और चौथा प्रीत की रीत निभाओ तो अशरीरी बनने की मेहनत समाप्त हो जायेगी ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ प्रीत, मीत, गीत और रीत पर अटेंशन दे सदा सहज योगी बनकर रहना है ।

 

 ❉   63 जन्म इस चोले से पार्ट बजाते बजाते शरीरधारी बन जाते है व अपनी पहचान को भूल जाते हैं । इस संगमयुग पर जब स्वयं भगवान ने हमें अपना बनाया व अपने असली स्वरूप की स्मृति दिलाई । आत्मिक पहचान पाते ही देह के सभी सम्बंधों को छोड़ मनुष्य से देवता बनने के पुरूषार्थ में लग सहज योगी बनकर रहना है ।

 

 ❉   जैसे हीर रांझा शमा परवाना अपनी प्रीत में मर मिटते है व दुनिया की कोई परवाह नही करते तो ये हद की प्रीत है । फिर हमें तो सच्चा शिव साजन मिला है पूरे 5000 वर्ष के बाद जिसकी सजनियाँ हम पार्वतियाँ बनी हैं ।जिसने सच्ची प्रीत निभाई उसने ही सब पा लिया । इस सच्ची प्रीत के आगे कोई ओर याद ही न आए ऐसा योगी बनना है ।

 

 ❉   जब दो मीत आपस में मिलते हैं तो उन्हें न स्वयं, न समय की स्मृति रहती है तो हमारी प्रीत सच्चे मीत के साथ है । एक जन्म रूहानी मीत से प्रीत लगानी है फिर कल्प बाद ही यह सच्चा मीत मिलेगा । सदा अविनाशी मीत के साथ रहो तो मोहब्बत में मेहनत ही खत्म हो जायेगी व सहज योगी बन जायेंगे ।

 

 ❉   बाबा कहते है अमृतवेले से ही गीत सुनते और गाते हो । तुम्हारी दिनचर्या ही गीत से शुरू होती है कि उठो मेरे लाड़लों ... तो बाप की महिमा के गीत , अपने श्रेष्ठ जीवन के गीत , सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों के गीत गाओ और प्रीत की रीत निभाकर सहज योगी बनना है ।

 

 ❉   हम आत्माएं ब्रह्मचारी से ब्रह्माचारी बन कर्मिन्द्रियों का दरबार लगाकर ब्रह्मबाप को फॉलो करते सतसंग श्रेष्ठ सेवाधारी शुभचिंतनधारी सर्व की शुभकामनाधारी ब्राह्मण बनने की श्रीमत की पालना की रीत से सहजयोगी बन रहना है।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ निर्विघ्न स्थिति द्वारा स्वयं के फाउंडेशन को मजबूत बनाने वाले पास विथ ऑनर होते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   निर्विघ्न अर्थात यह नहीं की कोई विघ्न आएंगे ही नहीं, वह तो जब तक पराये राज्य में है माया से युद्ध तो चलनी ही है, परन्तु सब आते भी हम उन विघ्नों के प्रभाव से मुक्त हो, वह हमारी स्थिति को हिला न सके, हम महारथी बन उनका सामना करे। हमारी स्थिति इतनी उची हो की परिस्थिति कागज का शेर समान दिखाई दे।

 

 ❉   जितना बाप पर निश्चय पक्का, अटूट होगा उतनी हमारी स्थिति निर्विघ्न होती जाएगी, साक्षी दृष्टा बन ड्रामा के हर पार्ट को देखेंगे उतना ही स्वयं को निर्विघ्न बना सकते है, त्रिकालदर्शी बन तीनो कालो का ज्ञान बुद्धि में रख कोई भी कर्म में आओ तो सदा निर्विघ्न स्थिति का अनुभव होगा। जो हुआ अच्छा, जो हो रहा है अच्छा और जो होगा वह बहुत अच्छा।

 

 ❉   निर्विघ्न रहेंगे तब ही स्थिति भी एक रस रहेगी और बहुत समय के अभ्यास द्वारा ही फाउंडेशन भी मजबूत बनेगा। यदि ऊपर निचे होते रहे हो फाउंडेशन कमजोर होने से लम्बे समय तक ज्ञान उठा नहीं सकेंगे।

 

 ❉   यह पक्का निश्चय करलो की भगवान हमारा साथी है, सब बोझ बाप को दे दो, वह सर्व शक्तिमान बाप बेठा है तो हमें किस बात की चिंता। बाप पर सम्पूर्ण निश्चय ही विजय प्राप्त करने का फाउंडेशन है, यही निश्चय हमें निश्चित विजयी बनाएगा।

 

 ❉   तो सदा निर्विघ्न रहना है और सबको निर्विघ्न बनाना है, गणेश जिनको विघ्न विनाशक कहते है वह हमारा अभी का ही यादगार है, सबके विघ्नों को विनाश कर हमें निश्चय बुद्धि बन पास विथ ऑनर होना है। "निश्चय बुद्धि विजयंती"।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ हर आत्मा के प्रति सदा उपकार अर्थात शुभ कामना रखो तो स्वत: दुआये प्राप्त होंगी... कैसे ?

 

 ❉   हर आत्मा के प्रति सदा उपकार अर्थात शुभ कामना रखने वाला सदा निर्मल और निर्मान रहता है । निर्मलता और निर्मानता का यह गुण उसे सर्व की दुआयों का अधिकारी बना देता है ।

 

 ❉   सर्व के प्रति सदा उपकारी भाव और शुभ कामना की वृति सर्व को सन्तुष्टता प्रदान कर सर्व की दुआयों का पात्र बनाती है ।

 

 ❉   शुभचिंतन और सर्व के प्रति शुभकामना आत्मा को गुण ग्राही बना देती है जिससे वह सर्व आत्माओं में गुणों को देख उनका सहयोगी बन उन्हें सहयोग दे निरन्तर आगे बढ़ाता है और उनकी दुआये एकत्रित करता है ।

 

 ❉   मास्टर क्षमा का सागर बन जो सर्व आत्माओं की कमी कमजोरियों को स्वयं में समा लेते हैं वही शुभचिंतन और सर्व के प्रति शुभकामना रख, सच्चे परोपकारी बन, सर्व की दुआयें प्राप्त करते हैं ।

 

 ❉   सर्व के प्रति शुभचिंतन और शुभकामना रखने वाला भटकती हुई आत्माओं को सही रास्ता दिखा कर उन्हें तृप्त कर , उनकी दुआयों का अधिकारी बनता है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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