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   22 / 07 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ °सेवाओं का उमंग° से छोटी-छोटी बीमारियों को मर्ज किया ?

 

‖✓‖ कर्म-अकर्म-विकर्म की गति को समझ सदा °श्रेष्ठ कर्म° ही किये ?

 

‖✓‖ °दैवीगुण धारण° किये और कराये ?

 

‖✓‖ "मैं आत्मा °मास्टर सागर° हूँ" - इसी नशे में रहे ?

 

‖✓‖ "हम °आत्मा भाई- भाई° हैं, हम बाप से सुनते हैं" - यह अभ्यास किया ?

 

‖✗‖ °ड्रामा कह पुरूषार्थ° तो नहीं छोड़ा ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ °कहना, सोचना और करना° - इन तीनों को समान बनाया ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  समय प्रति समय वैभवों के साधनों की प्राप्ति बढ़ती जा रही है। आराम के सब साधन बढ़ते जा रहे हैं। लेकिन यह प्राप्तियां बाप के बनने का फल मिल रहा है। तो फल को खाते बीज को नहीं भूल जाना। आराम में आते राम को नहीं भूल जाना। सच्ची सीता रहना। मर्यादा की लकीर से संकल्प रूपी अंगूठा भी नहीं निकालना क्योंकि यह साधन बिना साधना के यूज करेंगे तो स्वर्ण-हिरण का काम कर लेगा।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ बिना साधना के साधन यूज तो नहीं किये ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं ज्ञानी तू आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   कहना, सोचना और करना इन तीनो को समान बनाने वाली मैं ज्ञानी तू आत्मा हूँ ।

 

 ❉   कमजोरियों के मेरे पन को समाप्त कर, केवल एक बाप की याद और सेवा में संगम युग का अमूल्य समय बिताने वाली वानप्रस्थी आत्मा हूँ ।

 

 ❉   मैं ज्ञान स्वरूप बन, व्यर्थ के खेल को समाप्त कर, कथनी और करनी को एक समान बनाने वाली हूँ ।

 

 ❉   त्रिकालदर्शी बन बचपन की बातो और पुराने स्वभाव संस्कारों को सदा के लिए समाप्त कर रही हूँ ।

 

 ❉   मेरा हर कर्म, संस्कार, गुण और कर्तव्य समर्थ बाप के समान समर्थता से भरपूर है ।

 

 ❉   सर्व लगावों से किनारा कर, सदा परमात्म मिलन के खेल में बिज़ी रहने वाली मैं श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ ।

 

 ❉   बाबा से मिले ज्ञान और योग के पंखो द्वारा मै पुरानी दुनिया व देह के सम्बन्धियों के बंधन से मुक्त होती जाती हूँ ।

 

 ❉   फ़रिश्ता बन मैं सदा वाणी से परे उपराम अवस्था में स्थित रहती हूँ, जहाँ दुनिया का कोई भी आकर्षण मुझे आकर्षित नहीं कर पाता।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ “मीठे बच्चे – तुम्हे अभी भविष्य 21 जन्मो के लिए यहाँ ही पढाई पढ़नी है, कांटे से खुशबूदार फूल बनना है, दैवी गुण धारण करने और कराने हैं”

 

 ❉   पढ़ाई की जाती है अच्छा पद पाने के लिए, ताकि कमाई करके अपने जीवन का निर्वाह कर सकें ।

 

 ❉   इसलिए पढाई को कहा ही जाता है सोर्स ऑफ़ इनकम ।

 

 ❉   भल पढाई सोर्स ऑफ़ इनकम है लेकिन लौकिक पढ़ाई से प्राप्त होने वाला पद विनाशी है इसलिए पढ़ाई से प्राप्त होने वाली इनकम भी विनाशी है ।

 

 ❉   लेकिन हम ब्राह्मण बच्चे कोई विनाशी पढाई नहीं पढ़ते बल्कि अविनाशी ज्ञान रत्नों की पढाई पढ़ते हैं, जो स्वयं भगवान पढ़ाते हैं ।

 

 ❉   इस पढाई से हम भविष्य 21 जन्मो के लिए कमाई जमा करते हैं ।

 

 ❉   इसलिए हमे पढ़ाई को अच्छी रीति यहाँ ही पढना है, कांटे से खुशबूदार फूल बनना है, दैवी गुण धारण करने और कराने हैं ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ बेहद बाप के प्रापर्टी की मैं आत्मा मालिक हूँ , जैसे बाप शांति, पवित्रता , आनन्द का सागर है ऐसे मैं आत्मा मास्टर सागर हूँ , इसी नशे में रहना है ।

 

 ❉   जैसे लौकिक में बच्चा अपने पिता की प्रापर्टी का मालिक होता है ऐसे ही मैं आत्मा अपने पिता परम आत्मा की प्रापर्टी की मालिक हूँ ।

 

 ❉   लौकिक की प्रापर्टी तो बाप से एक बार मिलती है व उससे तो विनाशी सुख मिलता है व बेहद के पारलौकिक बाप की प्रापर्टी तो 21 जन्मों के लिए मिलती है व अविनाशी सुख मिलता है तो नशा रहना चाहिए ।

 

 ❉   सदा पवित्रता शान्ति आनंद से भरपूर रहे ताकि दुनिया वाले देखे तो उन्हें भी इस शान्ति पवित्रता व् आनंद की अनुभूति हो जिससे बेहद के बाप का नाम बाला हो।

 

 ❉   हमें सदा इसी नशे में रहना है और सागर से भरकर पतित दुनिया को पावन बनाने में मददगार बनना है । शांति के सागर से शांति की किरणें लेकर पूरे विश्व को शांति का सकाश देना है ।

 

 ❉   हम बेहद के बाप की उच्च से उच्च संतान है तो पवित्रता के सागर की पालना आनंद व् शान्ति का भंडार मिला है जिसका अपार नशा होना चाहिए।

 

 ❉   बेहद का बाप सुख, शांति , आनन्द, पवित्रता का सागर है व हम आत्मायें उस बेहद के बाप के बच्चे है इसलिए मैं आत्मा मास्टर सुख, शांति , आनन्द और पवित्रता का सागर हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ ज्ञानी तू आत्मा वह है जिनका कहना, सोचना और करना- इन तीनो में समानता हो... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   "जैसा संकल्प वैसे बोल और जैसे बोल वैसे कर्म" हम ब्राह्मण आत्माओ को परमात्मा ने जो भी ईश्वरीय लॉ समझाए है उन सबका पूरा पालन करने वाले ही ज्ञानी तू आत्मा है।

 

 ❉   कथनी व करनी समान होना अर्थात मन की सच्चाई सफाई, हमारी कथनी व करनी में समानता होगी तब ही अन्य आत्माये भी हमारी बात सुनेंगी, यदि स्वयं में ही धारणा नहीं कर पाएंगे तो दुसरो को क्या कराएँगे।

 

 ❉   "पण्डित की कहानी" यदि हम सिर्फ सोचेंगे और कहेंगे परन्तु करेंगे नहीं तो सफलता भी हमारी हाथ नहीं आनी है, अंत में हमारे हाथ खाली ही पाएंगे।

 

 ❉   आज कल दुनिया में मनुष्य बहुत सुन चुके अब वह प्रेक्टिकल देखना चाहते है, हमें भी ब्रह्मा बाबा ने सिर्फ सुनाया नहीं है परन्तु प्रेक्टिकल में कर के दिखाया है तब दुसरो के आगे दृष्टान्त बने।

 

 ❉   जब स्वयं में इतना दृढ निश्चय होगा की परमात्मा कह रहे है तो करना इजी होगा और जितना श्रीमत पर यहाँ हमारे कर्म नेचुरल होंगे उतना ही सतयुग के लक्षण नजर आएंगे।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ सेवाओं का उमंग छोटी छोटी बीमारीयों को मर्ज कर देता है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   सेवाओं का उमंग मन बुद्धि को व्यस्त रखता है और बीमारी के रूप में आई कर्मभोगना को हल्का बना कर बीमारी को मर्ज कर देता है ।

 

 ❉   जब सेवाओ में बिज़ी रहते हैं तो दूसरी बातो से सहज ही किनारा हो जाता है और बीमारी आदि की तरफ ध्यान ही नही जाता ।

 

 ❉   सेवा करने का उमंग उत्साह आत्मा को सर्व चिंताओं से मुक्त कर, निश्चय बुद्धि बना कर, बीमारी की पीड़ा से मुक्त कर देता है ।

 

 ❉   ज्ञानी तू आत्मा बन निष्काम भाव से जब सेवा में बिज़ी रहते हैं तो सेवा के साथ योग का बल छोटी छोटी बीमारीयों के भोग की वेदना को समाप्त कर उन्हें मर्ज कर देता है ।

 

 ❉   सेवाओ का उमंग कर्मो को श्रेष्ठ बनाता है, श्रेष्ठ कर्म के बल से और सच्चे बाप की याद से बीमारी की भोगना को समाप्त करना सहज हो जाता है ।   

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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