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❍ 06 / 08 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ "हम °भाई बहिन° हैं" - इस स्मृति से क्रिमिनल आई को खत्म किया ?
‖✓‖ °ज्ञान धन° से भरपूर रहे ?
‖✓‖ "कदम-कदम पर जो होता है वह °कल्याणकारी° है" - यह स्मृति रही ?
‖✓‖ "हमारी °राजधानी तो स्थापन° होनी ही है" - ड्रामा की इस नूँध को स्मृति में रख अपार खुशी में रहे ?
‖✓‖ "हम गोपी वल्लभ के °गोप-गोपियां° हैं" - सदा इसी स्मृति में रहे ?
‖✓‖ "सभी आत्माओं का बाप °भगवान हमको पढ़ा रहे° हैं" - इसी खुशी में रहे ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ °सच्चे आत्मिक स्नेह° की अनुभूति कराने वाले मास्टर स्नेह के सागर बनकर रहे ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ योग में जब और सब संकल्प शान्त हो जाते हैं, एक ही संकल्प रहता 'बाप और मैं' इसी को ही पावरफुल योग कहते हैं। बाप के मिलन की अनुभूति के सिवाए और सब संकल्प समा जायें तब कहेंगे ज्वाला रूप की याद, जिससे परिवर्तन होता है।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ '°बाप और मैं°' इसी एक ही संकल्प रह पावरफुल योग किया ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं आत्मा मास्टर स्नेह का सागर हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ सर्व आत्माओं को सच्चे आत्मिक स्नेह की अनुभूति कराने वाली मैं आत्मा मास्टर स्नेह का सागर हूँ ।
❉ मुझ आत्मा से निकल रही शीतलता की लहरे सर्व आत्माओं को शीतलता का अनुभव करा रही हैं ।
❉ सच्चे आत्मिक स्नेह द्वारा मैं सर्व आत्माओं को तृप्त कर रही हूँ ।
❉ मेरे आत्मिक स्नेह की अनुभूति आत्माओं को विनाशी सम्बन्धो के स्वार्थी प्रेम से उपराम बना रही है ।
❉ आत्मिक स्नेह की थोड़ी सी घड़ियों की अनुभूति को जीवन का सहारा समझ सर्व आत्मायें आनन्दित हो रही हैं ।
❉ मुझ आत्मा से निकल रहे भिन्न भिन्न श्रेष्ठ वायब्रेशन्स के फाउन्टेन के नीचे सर्व आत्माएं सुख की अनुभूति कर रही हैं ।
❉ मेरे श्रेष्ठ और शुद्ध संकल्पों की खुशबू विश्व में फैली अशुद्ध वृतियों की बदबू को समाप्त कर रही हैं ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - कदम - कदम पर जो होता है वह कल्याणकारी है, इस ड्रामा में सबसे अधिक कल्याण उनका होता है जो बाप की याद में रहते हैं"
❉ यह सृष्टि एक बेहद का विशाल ड्रामा है, जिसमे हम सभी आत्माए पार्टधारी हैं ।
❉ परम पिता परमात्मा शिव बाबा ने आ कर हम आत्माओ को इस सृष्टी चक्र के आदि, मध्य और अंत का राज बताया है ।
❉ अब हमारी बुद्धि में ड्रामा का यह सारा राज है । यह बेहद का नाटक यदि स्मृति में रहे तो हम सदा अपार ख़ुशी में रहेंगे ।
❉ क्योकि हम अच्छी रीति जान गए हैं कि कदम - कदम पर जो कुछ भी होता है वह कल्याणकारी है ।
❉ और इस ड्रामा में सबसे अधिक कल्याण उनका होता है जो बाप की याद में रहते हैं, अच्छी रीति पुरुषार्थ करते हैं, पूरी तरह से बाप की श्रीमत पर चल, बाप के और सर्व के प्रिय बनते हैं ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ सदा इसीस्मृति में रहना है कि हम गोपी वल्लभ के गोप-गोपियाँ है ।
❉ इस कल्याणकारी पुरूषोत्तम संगमयुग में हम गोप गोपियों का गोपी वल्लभ है प्रजापिता ब्रह्मा है हम सब का बाप व सब आत्माओं का बाप है निराकार शिव बाबा सदा इसी स्मृति में रहना है ।
❉ भक्ति मार्ग में गायन है कि गोपी वल्लभ के मुरली बजाते ही गोप गोपियाँ अपनी सुध बुध खो काम छोड़ भाग आती थी तो ये इसी समय का गायन है जब बाबा की मुरली का समय होता है तो हम बच्चे अपना सब छोड़ मुरली सुनने के लिए आ जाते हैं व मुरली सुनते ही ज्ञान रत्नों की वर्षा से हम आनन्दित हो जाते हैं ।
❉ गोपी वल्लभ की गोप गोपियों को अपने मुरलीधर बाप व मुरली से स्नेह है व अपने को देही समझ विदेही बाप से सुनते है ।
❉ जैसे-जैसे यह रूहानी नशा , गोपीवल्लभ की मुरली का नशा चढ़ जाता है तो अपने को धरनी और देह से ऊपर उड़ता महसूस करते हैं ।
❉ जैसे भक्ति में गोप गोपियां गोपी वल्लभ के सिवा किसी की भक्ति में निश्चय नहीं रखती इसी प्रकार हमें भी बाबा के बिना कहीं अतीन्द्रिय सुख अनुभव नहीं होता ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ मास्टर स्नेह के सागर सच्चे आत्मिक स्नेह की अनुभूति कराने वाले होते है... क्यों और कैसे ?
❉ देह अभिमान में आकर जो स्नेह हम दुसरो को देना चाहते है वह भी दुःख का कारण बन जाता है क्युकी देह भान में हर कर्म विकर्म ही होता है, उस स्नेह के पीछे की भाव और भावना कोई न कोई स्वार्थ या मोह वश होती है जिससे दुसरे को आत्मिक स्नेह की अनुभूति नहीं होती।
❉ जब हम स्वयं भी आत्मिक स्थिति में रहेंगे और दुसरे को भी आत्मा परमात्मा का बच्चा है मेरा भाई/बहन है यह भावना होगी तो उन्हें हमारे शुद्ध वाइब्रेशन की सुखद अनुभूति होगी।
❉ स्नेह के सागर परमपिता परमात्मा शिव बाबा की हम संतान भी मास्टर स्नेह के सागर है, कोई भी कैसी भी आत्मा हमारे संपर्क में आये परन्तु हमारे संपर्क में आते ही उसे आत्मिक स्नेह की अनुभूति हो, सच्चा निस्वार्थ रूहानी प्यार सभी आत्माओ को हमारी और खिचता है।
❉ हम बेहद के वैरागी है, वैरागी अर्थात न किसी से वैर (दुश्मनी) न किसी से राग (दोस्ती), सब हमारे है पर कोई हमारा नहीं। ऐसे जब स्वयं की स्थिति आत्मिक रहेगी तब सभी आत्माओ को रूहानी दृष्टि से देखेंगे और मास्टर प्रेम के सागर बन सबके प्रति आत्मिक प्यार रहेगा।
❉ एक गीत है "तू प्यार का सागर है, तेरी एक बूंद के प्यासे हम" यही आज की हर आत्मा का हाल है, सारी दुनिया देखली सब सुख सुविधा अपनाली परन्तु सच्चा सुख व स्नेह कही नहीं मिल रहा, भटक रहे है। अब हमें मास्टर स्नेह का सागर बन उन आत्माओ को अपनी शीतलता द्वारा सच्चे आत्मिक स्नेह की अनुभूति करानी है।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ ज्ञान धन से भरपूर रहो तो स्थूल धन की प्राप्ति स्वत: होती रहेगी... कैसे ?
❉ जितना ज्ञान धन से भरपूर हो कर औरों को दान करेंगे, उतना ही अपने संकल्प, श्वांस, समय और सम्पति को सफल कर पायेगे और स्थूल धन से भरपूर होते जायेंगे ।
❉ जितना ज्ञान धन से भरपूर रहेंगे उतने रॉयल्टी से सम्पन्न रहेंगे और यह रॉयल्टी स्थूल धन से भी भरपूर कर देगी ।
❉ ज्ञान धन से भरपूर आत्मा निष्काम सेवाधारी बन सर्व आत्माओं की दुआओ की पात्र बन जायेगी और दुआये उसे स्थूल धन से भी भरपूर कर देंगी ।
❉ ज्ञान के खजाने से सम्पन्न आत्मा का हर कर्म श्रेष्ठ होगा और अपने श्रेष्ठ कर्मो के बल पर वह स्थूल धन से भी सम्पन्न रहेगी ।
❉ ज्ञान धन से भरपूर आत्मा मास्टर ज्ञान सागर बन, सबको ज्ञान दान दे, सहज ही प्रभु प्रिय बन जायेगी और परमात्म पालना उसे सर्व स्थूल और दिव्य आलौकिक प्राप्तियों से सम्पन्न बना देगी ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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