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   04 / 08 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ °साइलेन्स का बल° जमा किया ?

 

‖✓‖ सदा °प्रसन्नचित° रहे ?

 

‖✓‖ "हम °डबल सिरताज° राजाओं का राजा बनेंगे" - यह निश्चय रहा ?

 

‖✓‖ सिर्फ एक °सुप्रीम टीचर की मत° पर ही चले ?

 

‖✓‖ "हमें °कौन पढ़ाने आया° है" - यह विचार कर खुशी में रोमांच खड़े हुए ?

 

‖✗‖ सिर्फ एक बेहद का बाप के सिवाए °कोई भी पसन्द तो नहीं° आया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ °बालक सो मालिक° के पाठ द्वारा निरंहकारी और निराकारी बनकर रहे ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  योग को ज्वाला रूप बनाने के लिए सेकण्ड में बिन्दी स्वरूप बन मन-बुद्धि को एकाग्र करने का अभ्यास बार-बार करो। स्टॉप कहा और सेकण्ड में व्यर्थ देह-भान से मन-बुद्धि एकाग्र हो जाए। ऐसी कंट्रोलिंग पावर सारे दिन में यूज करो। पावरफुल ब्रेक द्वारा मन-बुद्धि को कण्ट्रोल करो, जहाँ मन-बुद्धि को लगाना चाहो वहाँ सेकण्ड में लग जाए।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ °पावरफुल ब्रेक° द्वारा मन-बुद्धि को कण्ट्रोल किया ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं निरहंकारी और निराकारी आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   बालक सो मालिक के पाठ द्वारा जीवन को परिवर्तन करने वाली मैं निरहंकारी और निराकारी आत्मा हूँ ।

 

 ❉   इस संगम युग पर परमात्म गोद में खेलने का सौभाग्य प्राप्त करने वाली मैं खुशनसीब आत्मा हूँ ।

 

 ❉   सदा सम्पन्न होने के कारण हर विघ्न मुझे खेल अनुभव होता है और मैं बेफिक्र बादशाह बन सब चिन्ताओ से मुक्त होती जाती हूँ ।

 

 ❉   बाप के गुणों को स्वयं में धारण कर, सुखदाई बन, मैं सर्व आत्माओ को सुख की अनुभूति करवाती हूँ ।

 

 ❉   निराकारी दुनिया की निवासी मैं आत्मा इस धरा पर सेवा अर्थ अवतरित हुई हूँ ।  

 

 ❉   मैं सम्पूर्ण निरहंकारी, मैं पन से सम्पूर्ण त्यागी आत्मा हूँ ।

 

 ❉   इस मृत्यु लोक में पार्ट बजाते हुए भी मैं देह के सर्व आकर्षणों से मुक्त सदा अपने निराकारी स्वरूप में स्थित रहती हूँ ।

 

 ❉   फ़रिश्ता बन कर मैं सदा वाणी से परे, इस साकारी दुनिया से उपराम रहती हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ “मीठे बच्चे – तुम्हे कौन पढ़ाने आया है, विचार करो तो ख़ुशी में रोमांच खड़े हो जायेंगे, ऊंचे ते ऊंचा बाप पढ़ाते है, ऐसी पढाई कभी छोडनी नहीं है”

 

 ❉   लौकिक में जो पढने वाले स्टूडेंट होते हैं उनकी बुद्धि में रहता है कि कौन टीचर उन्हें पढाता है और पढाई पढ़ कर वे क्या पद पायेंगे ।

 

 ❉   हम भी रूहानी पढाई पढने वाले रूहानी स्टूडेंट हैं, लेकिन हमे कोई जिस्मानी टीचर या गुरु नही पढ़ाता ।

 

 ❉   स्वयं परमपिता परमात्मा शिव बाबा ऊंचे ते ऊंचा बाप, ब्रह्मा मुख द्वारा हम बच्चों को रूहानी पढाई पढ़ाते हैं ।

 

 ❉   हमारी यह रूहानी पढाई इस जिस्मानी पढाई से कितनी ऊंची और श्रेष्ठ प्राप्ति करवाने वाली है, इसलिए ऐसी पढाई कभी छोडनी नही है ।

 

 ❉   बल्कि यह विचार कर ख़ुशी में हमारे रोमांच खड़े हो जाने चाहिए कि हमे कौन पढ़ाने आया है ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ बाप के साथ ऐसा योग रखना है कि साइलेंस का बल जमा हो ।

 

 ❉   बाप के साथ ऐसा योग रखना है कि उस समय देह और देह की दुनिया का भान ही न रहे व हद की दुनिया से पार बेहद की दुनिया में जाने से साइलेंस का बल जमा हो ।

 

 ❉   क्रोध अग्नि को बाप के साथ योग बल से शीतल बनाकर साइलेंस का बल जमा करना है ।

 

 ❉   बाप की याद में ऐसे बैठना है कि मन बुद्धि बस बाप पर ही एकाग्रचित हो जाए व एकाग्रता से ही साइलेंस का बल जमा होता है ।

 

 ❉   जितना ज़्यादा बाप की याद में रहते है व योगयुक्त होते है तो उतनी ही स्थिति अच्छी होने के साथ संकल्प भी श्रेष्ठ होते हैं जिससे साइलेन्स का बल भी जमा होता है ।

 

 ❉   'मेरा तो शिव बाबा दूसरा न कोई' ऐसा अविनाशी निश्चय होने से साइलेंस का बल जमा होता है ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ निरहंकारी और निराकारी स्थिति के लिए बालक सो मालिक का पाठ पक्का करना है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   बालक और मालिक का बैलेंस बनाकर रखने से कभी फीलिंग का फ्लू नहीं लगेगा और समय व संकल्प व्यर्थ से बच जायेंगे तथा स्थिति एकरस बना सकेंगे।

 

 ❉   "बाबा कहते बच्चे - जब संगठन में जब राय देनी हो तो मालिक बनकर दो, परन्तु जब उसका निर्णय आये तो बालक बनकर उसको स्वीकार करो" इससे संगठन में मिल कर चल सकेंगे। जितना रेगार्ड देंगे उतना मिलेगा।

 

 ❉   अहंकार तब आता है जब हम समझते है " मै बड़ी हु, मै ही सही हु, मेरी ही बात हमेशा मानी जाये," बालक सो मालिक स्थिति से यह सूक्ष्म अहंकार निकल जायेगा और मन शांत रहेगा।

 

 ❉   बाबा के सामने सच्चे साफ़ दिल वाले छोटे बालक बन जाओ और माया के व परिस्थितियों के आगे सर्व शक्ति, कर्मेन्द्रिय, प्रकृति के मालिक बन आर्डर करो तब स्थिति अचल अडोल रहेगा।

 

 ❉ यह रूहानी नशा व खुमारी की भगवान् का बच्चा हु और भविष्य में विश्व का मालिक बनने वाला हु हमें हमारे आदि और अनादी स्वरुप की स्मृति दिलाते रहेंगे जिससे निराकारी और निरहंकारी स्थिति भी सहज बन जाएगी।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ प्रसन्नता ही ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी है - तो सदा प्रसन्नचित रहो... क्यो ?

 

 ❉   सदा प्रसन्न रहने वाला हर परिस्थिति में अचल और अडोल बन सदैव उडती कला का अनुभव करता रहता है ।

 

 ❉   प्रसन्नता से परिपूर्ण व्यक्ति ही स्वयं प्रसन्न और संतुष्ट रह कर औरों को भी प्रसन्नता का अनुभव करवा सकता है ।

 

 ❉   परमात्म प्यार और सर्व की दुआयें प्राप्त करने का सहज साधन है, स्वयं भी प्रसन्न रहना और दूसरों को भी ख़ुशी प्रदान करना ।

 

 ❉   जीवन में सच्चे सुख और शांति की अनुभूति करने के लिए इच्छा मात्रम अविद्या बनना जरूरी है और जो सदा प्रसन्न है, वही इच्छा मात्रम अविद्या स्थिति का अनुभव कर सकता है ।

 

 ❉   प्रसन्नचित व्यकित होली हंस बन सदैव सबकी अच्छाइयों को ही देखता है, इसलिए सभी को प्रसन्नता और संतुष्टता की अनुभूति करवाता है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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