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   21 / 11 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ ज्ञान का °विचार सागर मंथन° किया ?

 

‖✓‖ दिल से °बाबा-बाबा° कह खुश रहे ?

 

‖✓‖ °आत्म-अभिमानी° बनने की मेहनत की ?

 

‖✓‖ विघनो रुपी पत्थर को तोड़ने में समय न गंवाकर उसे °हाई जम्प° देकर पार किया ?

 

‖✗‖ माया के तूफानों से °डरे व मूंझे° तो नहीं ?

 

‖✗‖ "कर्मेन्द्रियों से कोई °विकर्म° न हो" - यह ध्यान रखा ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ °संतुष्टता° की विशेषता द्वारा सेवा में सफलतामूरत बनकर रहे ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  जो भी परिस्थितियां आ रही हैं और आने वाली हैं, उसमें विदेही स्थिति का अभ्यास बहुत चाहिए इसलिए और सभी बातों को छोड़ यह तो नहीं होगा, यह तो नहीं होगा..... क्या होगा..., इस क्वेश्चन को छोड़ दो, अभी विदेही स्थिति का अभ्यास बढ़ाओ। विदेही बच्चों को कोई भी परिस्थिति वा कोई भी हलचल प्रभाव नहीं डाल सकती।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ सभी क्वेश्चन को छोड़ अभी °विदेही स्थिति° का अभ्यास बढाया ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं आत्मा संतुष्टमणी हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   सन्तुष्टता की विशेषता द्वारा सेवा में सफलतामूर्त बनने वाली मैं संतुष्टमणी आत्मा हूँ ।

 

 ❉   सदा उमंग - उत्साह के पंखो पर सवार हो कर स्वयं संतुष्ट रह, मैं अपने सम्बन्ध - संपर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को संतुष्ट करती हूँ ।

 

 ❉   एकांतवासी बन स्व परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन के निमित बनने वाली मैं विश्व परिवर्तक आत्मा हूँ ।

 

 ❉   साइलेन्स की शक्ति द्वारा मैं सर्व आत्माओं को सेकण्ड में मुक्ति, जीवनमुक्ति का अनुभव कराती हूँ ।

 

 ❉   ईश्वरीय प्राप्तियों से सम्पन्न सदा तृप्त रहने वाली और सबको तृप्त करने वाली मैं तक़दीरवान आत्मा हूँ ।

 

 ❉   बाबा द्वारा मिले वरदानों को अपने शुभ संकल्पों द्वारा, वरदाता बन, पूरे विश्व को दान दे, असीम तृप्ति का अनुभव करती रहती हूँ ।

 

 ❉   बाप समान रहमदिल, मास्टर दाता बन मैं सर्व आत्माओं को उंमग उत्साह से आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रही हूँ ।

 

 ❉   अपने सम्बन्ध संपर्क में आने वाली हर आत्मा को मैं बाप के स्नेह का अनुभव करवा कर, सहज ही सर्व का स्नेह प्राप्त कर लेती हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - तुम दिल से बाबा - बाबा कहो तो ख़ुशी में रोमांच खड़े हो जायेंगे, ख़ुशी में रहो तो मायाजीत बन जायेंगे"

 

 ❉   आज हम सभी आत्माएं माया की कैद में छटपटा रही हैं । माया ने सबको दुखी बना दिया है ।

 

 ❉   इस लिए स्थाई रूप से आज एक भी आत्मा को ख़ुशी नही है । इसलिए ख़ुशी की तलाश में सभी बाहर भटक रहे हैं ।

 

 ❉   दुनियावी पदार्थो में सभी खुशियाँ तलाश कर रहें हैं । किन्तु विनाशी दुनियावी पदार्थ अविनाशी ख़ुशी का अनुभव कभी नही करा सकते ।

 

 ❉   आत्मा को ख़ुशी का अनुभव तभी हो सकता है जब उसका सच्चा रूहानी मिलन अपने पिता परमात्मा से हो ।

 

 ❉   अब संगमयुग पर उन्ही परमात्मा बाप से हम आत्माओं का सच्चा रूहानी मिलन हो रहा है ।

 

 ❉   वही बाप अब हमे कहतें हैं कि तुम दिल से बाबा - बाबा कहते रहो तो ख़ुशी में रोमांच खड़े हो जायेंगे । और ख़ुशी में रहेंगे तो मायाजीत बन जाएंगे ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ सतोप्रधान बनने के लिए आत्म अभिमानी बनने की मेहनत करनी है , ज्ञान का विचार सागर मंथन करना है , याद की यात्रा मे रहना है ।

 

  ❉   अभी तक तो ज्ञान न होने के कारण यह भूल गए थे कि मैं कौन व मेरा कौन । संगमयुग पर जब बाबा ने अपना बनाया व असली स्वरूप की पहचान दी है तो ये पाठ पक्का करना है कि मैं शरीर नही आत्मा हूं ।

 

  ❉   अपने को आत्मा समझ आत्मा के पिता परमात्मा को याद करना है । याद से ही विकर्म विनाश होते हैं व आत्मा पर लगी कट उतरती जाती है । आत्मा सतोप्रधान होती जाती है ।

 

  ❉   बाबा रोज पहला पाठ पक्का कराते हैं व हम अपने 63 जन्मों से देह अभिमान में रहने के कारण बार बार भूल जाते हैं व अब बाप को याद करना है । जितना ज्यादा याद की यात्रा में रहेंगे उतने ज्यादा विकर्म विनाश होंगे व पवित्र बनेंगे ।

 

  ❉  ज्ञान का मंथन कर जितना सागर की गहराई में जाते हैं उतने ही अनमोल अखूट खजानों से भरपूर होकर धारणाओं मे पक्के होकर याद से आत्मा की लाइट को तेज करते हुए पावन बनते जाते है ।

  

  ❉   आत्मा के सातो गुणों को अपने अंदर इमर्ज करके बाप को याद करते आत्म-अभिमानी बनना है । ज्ञानसागर बाप से मिले ज्ञान का मंथन करते रहना है इससे बाप की याद बनी रहेगी ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ संतुष्टता की विशेषता द्वारा सेवा में सफलतामूर्त बनने वाले संतुष्टमणी कहलाते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   हमें चेकिंग करनी है, क्या मै- स्वयं से संतुष्ट हु? जब स्वयं से संतुष्ट होंगे तभी निस्वार्थ व खुश मन से सेवा कर सकेंगे।

 

 ❉   यदि स्वयं का ही मन उदास, विचलित होगा तो हमारे से वाइब्रेशन भी ऐसे ही जायेंगे जिससे दुसरो की सेवा का कोई डफल प्राप्त नहीं होगा।

 

 ❉   जो संतुष्टमणी होंगे उनके चेहरे पर एक अलोकिक आभा होगी, स्वयं संतुष्ट होने के कारण उनका रूहानी आकर्षण सबको स्वतः संतुष्ट करेगा।

 

 ❉   जहाँ संतुष्टता होगी वहा छोटी छोटी बातो में डिस्टर्ब नहीं होंगे, अल्पकाल की वस्तुए व सुख की इच्छा नहीं होगी, भगवान का करून का खजाना मिलने के बाद यह विनाशी दुनिया का कोडी तुल्य सुख बहुत फिखा लगेगा।

 

 ❉   जितना स्वयं संतुष्ट होंगे उतना ही औरो को भी संतुष्ट कर सकेंगे, सबको संतुष्ट करना ही सबसे बड़ी सेवा है। जहा सब संतुष्ट है वही सफलता का झंडा लहराता है।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ विघ्नों रूपी पत्थर को तोड़ने में समय न गंवाकर उसे हाई जम्प दे कर पार करो... कैसे ?

 

 ❉   अंतर्मुखता में रह, रियलाइजेशन की शक्ति से जब मायाजीत, प्रकृतिजीत बनेंगे तो विघ्नों रूपी पत्थर को तोड़ने में समय वेस्ट करने की बजाय उसे हाई जम्प दे कर पार कर लेंगे ।

 

 ❉   निरन्तर एक बाप की याद में रहेंगे तो बाप की हजारों भुजाओं की छत्रछाया के नीचे निर्विघ्न बन हर विघ्न को हाई जम्प दे कर सहजता से पार कर लेंगे ।

 

 ❉   साधना द्वारा जब ज्ञान, योग और धारणा को अपना बना कर सिद्धियां प्राप्त कर लेंगे तो सिद्धि स्वरूप बन हर

विघ्न को पार करते हुए सफलतामूर्त बन जायेंगे ।

 

 ❉   पुराने स्वभाव संस्कारों के प्रभाव से स्वयं को मुक्त कर जितना स्व - स्थिति में टिकेंगे उतना माया प्रूफ बन विघ्नों रूपी पत्थर को तोड़ने में समय ना गंवाकर उसे ऊंची उड़ान भर कर पार कर लेंगे ।

 

 ❉   मास्टर सर्व शक्तिवान की सीट पर जब सदा सेट रहेंगे तो सभी शक्तियां समय और ऑर्डर प्रमाण हाजिर हो जायेंगी । और हर विघ्न को पार करने में सहायक बन समय को वेस्ट नही होने देंगी ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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