━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

    26 / 02 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

         TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

➢➢ मैं सदा निर्भय, मायाजीत आत्मा हूँ ।

───────────────────────────

 

∫∫ 2 ∫∫ गुण / धारणा पर अटेंशन (Marks:-10)

➢➢  माया के खेल को साक्षी होकर देखना

───────────────────────────

 

∫∫ 3 ∫∫ बाबा से संबंध का अनुभव(Marks:-10)

➢➢ सतगुरु

───────────────────────────

 

∫∫ 4 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 7*5=35)

 

‖✓‖ एक बाप की °अव्यभिचारी याद° मे रहे ?

‖✓‖ °अविनाशी कमाई° जमा की ?

‖✓‖ °स्नेह का सागर° बनकर रहे ?

‖✓‖ ज्ञानी तू आत्मा बन °औरों की सर्विस° की ?

‖✓‖ बाप से जो सुना है उसे °धारण कर दूसरो को सुनाया° ?

‖✓‖ माया का कैसा भी विकराल रूप हो उसे °खिलौना और खेल समझकर देखा° ?

‖✗‖ अपनी लाइफ (जीवन) से कभी भी °तंग तो नहीं हुए° ?

───────────────────────────

 

अव्यक्त बापदादा (16/02/2015) :-

➳ _ ➳  तो बापदादा आज हर एक बच्चे के दिल का प्यार देख रहे हैं और उसके लिए बहुत-बहुत-बहुत दिल की दुआयें, दिल की मुबारकें एक-एक बच्चे को दे रहे हैं। वाह ड्रामा वाह! यह मिलन भी कम नहीं है। बापदादा तो दिल में ही बच्चों से मिलन मनाते रहते हैं। बिना बच्चों के रह नहीं सकते। यह मिलन की कहानियां तो बहुत हैं लेकिन अभी तो सम्मुख बच्चों को देख बहुत खुशी हो रही है। बापदादा भी दिल में बच्चों के प्यार में गीत गा रहे हैं वाह बच्चे वाह!

आज का मिलन तो है ही मिलने के दिन का। बापदादा देख रहे हैं कि एक-एक बच्चा इस प्रकार का मिलन देख कितना खुश हो रहे हैं,पहले बापदादा फिर बच्चे। एक बच्चे को भी बापदादा देखने बिना रह नहीं सकता। भले पीछे भी बैठे हैं लेकिन साकार में बच्चों को देख बापदादा भी खुश, बच्चे भी खुश। 

 

∫∫ 5 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-15)

➢➢ बाबा से बहुत-बहुत-बहुत दिल की दुआयें प्राप्त की ? “वाह ड्रामा वाह” – दिल से यही निकलता रहा ?

───────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-5)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - अब विकारों का दान दो तो ग्रहण उतर जाये और यह तमोप्रधान दुनिया सतोप्रधान बने"

 

 ❉   भक्ति मार्ग में सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण की कहानी सुनाते हैं।सूर्य या चन्द्रमा को जब ग्रहण लगता है तो कहते हैं-दे दान तो छूटे ग्रहण।

 ❉   किन्तु वास्तव में ग्रहण तो लगा है सारी सृष्टि को,हम सभी आत्माओं को।5 विकारों का ग्रहण, जिससे सारी सृष्टि विकारी तमोप्रधान दुःख दायक बन गई है।

 ❉   इस दुखदायी तमोप्रधान दुनिया को सुख दाई सतोप्रधान दुनिया बनाने के लिए आवश्यकता है इन विकारों रूपी ग्रहण से छूटने की।

 ❉   इसलिए बाबा कहते हैं अब विकारों का दान दो तो ग्रहण उतर जाए।अर्थात विकारों को छोड़ पावन बनो तो यह दुःख रूपी जो ग्रहण लगा है यह उतर जाये।

 ❉   और यह तमोप्रधान कलयुगी दुनिया, सतोप्रधान सतयुगी दुनिया बन जाए।

───────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा) (Marks:-5)

 

➢➢ इस शरीर में रहते अविनाशी कमाई जमा करनी है।

 

 ❉   इस शरीर में रहते भल कुछ भी काम- काज करते रहो लेकिन अपने को आत्मा समझ याद की यात्रा में रहो तो विकर्म विनाश होंगे। याद से जमा का खाता भी बढ़ेगा ।

 ❉   इस शरीर में रहते चलते-फिरते बुद्धि में पढाई का चिंतन करना है। क्योंकि यही पढाई सार्स आफ इनकम है। यही पढ़ाई अविनाशी कमाई है।

 ❉   इस संगमयुग पर अपने समय को यज्ञ सेवा में सफल करने पर ही राज्य भाग्य के फ़ुल राज्याधिकारी होंगे।

 ❉   जो शरीर में रहते हुए सच्ची दिल से निस्वार्थ सेवा करते है वह अविनाशी कमाई जमा करते हैं।

 ❉   जो इस शरीर में रहते तन से यज्ञ के लिए सेवा करते हैं वह अनेक जन्म सदा स्वस्थ रहते है, मनसा सेवा करते है तो दुआओं का खाता जमा करते हैं, धन को यज्ञ में सफल करते है तो अनेक जन्मों तक पद्म गुणा प्राप्त करते है।

───────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-5)

 

➢➢ माया के खेल को साक्षी होकर देखने वाले ही सदा निर्भय मायाजीत स्थिति का अनुभव कर सकते है...क्यों और कैसे ?

 

 ❉   खेल समझेंगे तो माया से डरेंगे या दिल शिकस्त नहीं होंगे,सहज सब परिस्थितिया पार कर लेंगे।

 ❉   माया कागज के शेर जैसी है,जितना हम उससे डरते है उतना परेशान करती है,उसे खेल समझ लो तो स्वतः भाग जाएगी।

 ❉   साक्षीपन की सीट पर रहने से माया का प्रभाव कम हो जाता है,हमारी शक्तिया उसे कमजोर बना देती है।

 ❉   जब हम साक्षी होकर खेल समझ कर देखते है तो हमारी शुभ भावना के वाइब्रेशन शुद्ध औरा तैयार करता है।

 ❉   साक्षी होकर देखने से हमारी स्थिति विचलित नहीं होगी,अचल अडोल बन कर रह सकते है।

───────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-5)

 

➢➢ ऐसे स्नेह का सागर बनो जो क्रोध समीप भी ना आ सके...कैसे ?

 

 ❉   स्नेह का सागर बनेगे तो दूसरों की खामिया और कमियां उस स्नेह में समा जाएँगी जिससे क्रोध समीप भी नही आ सकेगा।

 ❉   स्नेह का सागर बनेगे तो प्यार,सच्चाई और स्नेह के संस्कार नेचुरल हो जायेगे और क्रोध के संस्कार समाप्त हो जाएंगे।

 ❉   स्नेह का सागर बनेंगे तो विचार शुद्ध और सात्विक बनते जायेगे जिससे मन प्रेम से भरपूर रहेगा और क्रोध दूर हो जाएगा।

 ❉   स्नेह का सागर बनेगे तो मन शांत रहेगा और अशांति अर्थात क्रोध स्वत: ही भाग जाएगा।

 ❉   स्नेह के सागर बनेगे तो परमात्म स्नेह में लवलीन रह सबको स्नेह बांटेगे।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━