━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

   26 / 09 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ अपने °श्रेष्ठ भाग्य° के गुण गाते रहे ?

 

‖✓‖ बापों का बाप, पतियों का पति जो सबसे उंच है, उस पर °जीते जी न्योछावर° जाने का पुरुषार्थ किया ?

 

‖✓‖ जैसे बाबा बच्चों की सेवा करते हैं, कोई °अहंकार नहीं°, ऐसे फॉलो फादर किया ?

 

‖✓‖ °ज्ञान चिता° पर बैठे रहे ?

 

‖✓‖ हर बात में °योगबल° से काम लिया ?

 

‖✗‖ कभी भूल चुके भी बाप को भूल °उल्टा काम° तो नहीं किया ?

──────────────────────────

 

∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ स्वयं की सर्व °कमजोरियों को दान° की विधि से समाप्त करने का पुरुषार्थ किया ?

──────────────────────────

 

आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  जैसे आजकल साइन्स के साधनों द्वारा रफ माल को भी बहुत सुन्दर रूप में बदल देते हैं। तो आपकी श्रेष्ठ वृत्ति निगेटिव अथवा व्यर्थ को पॉजिटिव में बदल दे। आपका मन और बुद्धि ऐसा बन जाये जो निगेटिव टच नहीं करे, सेकण्ड में परिवर्तन हो जाये।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ श्रेष्ठ वृत्ति से निगेटिव अथवा °व्यर्थ को पॉजिटिव° में बदला ?

──────────────────────────

 

∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं आत्मा दाता, विधाता हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   स्वयं की सब कमजोरियों को दान की विधि से समाप्त करने वाली मैं आत्मा दाता, विधाता हूँ ।

 

 ❉   दाता, विधाता बन अपनी सर्व कमजोरियों को दान कर, श्रेष्ठ आत्मा बन रही हूँ ।

 

 ❉   सर्व खजानो और सर्वगुणों के सागर परम पिता परमात्मा शिव बाबा ने अनगिनत अविनाशी खजानों की सौगात मुझे गिफ्ट में दी है ।

 

 ❉   बाप द्वारा मिले उन सर्व खजानो को, सबको देने के निमित सहारा बन मैं सर्व आत्माओं को सर्व खजानो से सम्पन्न करती जाती हूँ ।

 

 ❉   अपने दाता - विधातापन के शक्तिशाली संस्कारों को इमर्ज कर, कमजोर आसुरी संस्कारों को सहज ही समाप्त करती जाती हूँ ।

 

 ❉   अपने रहम की वृति और सर्व के प्रति शुभ भावना, शुभकामना रखते हुए मैं हर प्रकार की आत्मा के व्यवहार को सहज ही परिवर्तन कर देती हूँ ।

 

 ❉   मास्टर रचता बन, समेटने की शक्ति द्वारा मैं सेकण्ड में सर्व संकल्पों को समेट कर एक संकल्प में स्थित होती जाती हूँ ।

 

 ❉   स्व परिवर्तन के द्वारा विश्व का परिवर्तन करने वाली मैं विश्व की आधारमूर्त आत्मा हूँ ।

──────────────────────────

 

∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे -हर बात में योग बल से काम लो, बाप से कुछ भी पूछने की बात नही है, तुम ईश्वरीय संतान हो, इसलिए कोई भी आसुरी काम न करो"

 

 ❉   मुरली के माध्यम से बाबा हर बात की समझानी हम बच्चों को देते रहते हैं ।

 

 ❉   लेकिन फिर भी कुछ ब्राह्मण बच्चे बात - बात में मूंझते रहते हैं और पूछते रहते हैं ।

 

 ❉   इसलिए बाप समझाते हैं कि हर बात में योग बल से काम लो, बाप से कुछ भी पूछने की बात नही है । सब कुछ बाप आप ही समझाते रहते हैं ।

 

 ❉   तुम ईश्वरीय संतान हो, इसलिए याद की यात्रा में रह, ऊंच पुरुषार्थ करते रहो ।

 

 ❉   ऐसा कोई भी आसुरी काम मत करो जिससे पद भ्रष्ट हो ।

──────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ जैसे बाबा बच्चों की सेवा करता है, कोई अंहकार नहीं, ऐसे फालो फादर करना है ।

 

 ❉   जैसे बाबा बच्चों की सेवा करते हैं कोई अंहकार नहीं करते कोई भेदभाव नहीं करते हैं । सबको एक जैसा प्यार , शक्तियों  और गुणों का ख़ज़ाना देते हैं ऐसे हमें भी बाबा को फालो करना है ।

 

 ❉   लौकिक बच्चे कोईँ भी कार्य करते हैं तो नाम बाप का ही होता है अच्छा हो या बुरा । तो हम बच्चों को अच्छे से अच्छे कार्य कर अपने बाप का नाम बाला करना है ।

 

 ❉   जब आत्मिक स्थिति का अभ्यास होगा तो देहभान नहीं होगा क्योकि देहभान के आने से अंहकार आता है तो अपने को आत्मा समझ भाई भाई दृष्टि रख निरहंकारी बनना है ।

 

 ❉.  बाबा अपने बच्चों को दुखी नहीं देख सकता व इसलिए पतितों की दुनिया में अपने बच्चों को रोज पढ़ाने के लिए आते हैं ताकि मेरे बच्चे नयी दुनिया के मालिक बने व सुखधाम में जायें तो हमें भी रोज़ अज्ञानी आत्मा को बाप का परिचय देना है और ये नहीं सोचना कि चलते तो नहीं है रोज़ ज्ञान क्यूँ सुनाना ।

 

 ❉  जब भी यज्ञ में कोई भी सेवा  मिले ये नहीं सोचना कि ये सेवा तो मेरे लायक नहीं है व मैंने नहीं करनी ऐसे देहभान में रहते हैं तो ये अहंकार आता है । ब्रह्मा बाप की तरह हर सेवा को बाबा के निमित्त समझ कर करना है ।

──────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ दाता, विधाता सदा स्वयं की सर्व कमजोरियों को दान की विधि से समाप्त करने वाले होते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   "दे दान तो छुटे ग्रहण" बाप को अपनी जितनी कमजोरियों का दान करेंगे उतना ही हमारी गृह्चारी उतरती जाएगी। वह पतित-पावन दुःखहर्ता -सुखकर्ता है।

 

 ❉   जैसे कहते है- बड़े बर्तन से गन्दा पानी निकलना हो तो अच्छे पानी का नल चालू करदो तो गन्दा अपने आप निकल जायेगा और धीरे-धीरे बर्तन स्वच्छ पानी से भर जायेगा वैसे ही जितना दान करते जायेंगे उतना गन्दा बहार निकलता जायेगा और स्वच्छ भरता जायेगा।

 

 ❉   जितना हम दुसरो को गुण, ज्ञान, शक्ति, शांति का दान करेंगे उतना ही उनकी दुवाये हमें प्राप्त होंगी और दुवाये बहुत काम आती है अच्छे से अच्छी परिस्थितियाँ दुवाओ के खजाने से कट जाती है।

 

 ❉   भक्ति में हम शिवलिंग पर धतुरा, अक के फूल चडाते आये यह सब इस समय की ही निशानी है की आत्मा अपनी बुराईया शिवबाबा को दान करे और उनके गुण, शक्तियाँ स्वयं में भरकर स्वयं भी मास्टर दाता, विधाता बन जाये।

 

 ❉   यदि स्वयं अपनी इच्छा से दान देकर स्वयं को अपनी कमजोरियों से मुक्त कर लेंगे तो विजय हमारी गायी जाएगी और यदि हमने नहीं किया और समय ने हमसे करवाया तो विजयी समय की गायी जाएगी।

──────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ अपने श्रेष्ठ भाग्य के गुण गाते रहो - कमजोरियो के नही... क्यों ?

 

 ❉   कमजोरियों की बजाए अपने श्रेष्ठ भाग्य के गुण गाते रहेंगे तो सर्व प्राप्तियों के नशे में रह, स्वयं भी उमंग - उत्साह में उड़ते रहेंगे तथा औरों को भी उमंग उत्साह दिलाते रहेंगे ।

 

 ❉   हमारे श्रेष्ठ भाग्य की स्मृति हमारी सर्व कमजोरियों को समाप्त कर, हमारे हर कर्म को दिव्य और आलौकिक बना देगी और बाप की प्रत्यक्षता का आधार बन जायेगी ।

 

 ❉   कमजोरियों को छोड़, अपने श्रेष्ठ भाग्य के गुण गाते रहेंगे तो अपनी स्व स्थिति से हर परिस्थिति पर विजय प्राप्त कर, सदा निर्विघ्न रह औरों के विघ्नों को समाप्त कर सकेंगे ।

 

 ❉   अपने श्रेष्ठ भाग्य की स्मृति में रहेंगे और अपने श्रेष्ठ भाग्य का गुणगान करते रहेंगे तो सिद्धि स्वरूप बन जायेंगे और सिद्धि स्वरूप आत्मा के हर संकल्प में सफलता समाई होती है जो सब प्रकार की कमजोरियों को समाप्त कर देती है ।

 

 ❉   स्वयं को कर्म बंधन से मुक्त करने के लिए जरूरी है कि हर कर्म करते कर्म के प्रभाव से आत्मा मुक्त रहे और यह तभी हो सकता है जब अपने श्रेष्ठ भाग्य की स्मृति में रह, हर कर्म बाप की याद में करेंगे ।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━