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❍ 10 / 11 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °आत्म अभिमानी° रहने का पूरा पूरा पुरुषार्थ किया ?
‖✓‖ "अभी हम इस पुरानी दुनिया, पुराने शरीर को छोड़ घर में जायेंगे... फिर °नयी दुनिया में पुनर्जन्म° लेंगे" - यह स्मृति रही ?
‖✓‖ °परमात्म श्रीमत रुपी जल° के आधार से कर्म रुपी बीज को शक्तिशाली बनाया ?
‖✓‖ °अच्छी रीति पढाई° पडी ?
‖✓‖ °बेहद के बाप° का पूरा पूरा रिगार्ड रखा ?
‖✓‖ °एक बाप° को °दिल से प्यार° किया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ °देह अभिमान के रॉयल रूप° को भी समाप्त करने का पुरुषार्थ किया ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ एकान्तवासी अर्थात् कोई भी एक शक्तिशाली स्थिति में स्थित होना। चाहे बीजरूप स्थिति में स्थित हो जाओ, चाहे लाइट-हाउस, माइट-हाउस स्थिति में स्थित हो जाओ अर्थात् विश्व को लाइट-माइट देने वाले-इस अनुभूति में स्थित हो जाओ। तो यह एक मिनट की स्थिति भी स्वयं को और औरों को भी बहुत लाभ दे सकती है।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ दिन में बार बार °एकान्तवासी° अर्थात् कोई भी एक शक्तिशाली स्थिति में स्थित होने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं आत्मा साक्षी दृष्टा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ देह अभिमान के रॉयल रूप को भी समाप्त करने वाली मैं साक्षी दृष्टा आत्मा हूँ ।
❉ अभिमान और अपमान की फीलिंग से सदा मुक्त रह, मैं सबको रिगार्ड दे, सबकी स्नेही बन जाती हूँ ।
❉ ड्रामा के राज को बुद्धि में अच्छी रीति धारण कर, मैं सबके पार्ट को साक्षी हो कर देखती हूँ और सदा प्रसन्न रहती हूँ ।
❉ साक्षी दृष्टा के वरदान को स्मृति में रख अपने हर संकल्प और कर्म को श्रेष्ठ बनाती जाती हूँ ।
❉ हर एक को सम्मान और स्नेह दे कर मैं सबकी सहयोगी बन सबका सहयोग सहज ही प्राप्त कर लेती हूँ ।
❉ सदा साक्षी दृष्टा की सीट पर सेट रहने के कारण इस विनाशी दुनिया का कोई भी सम्बन्ध, पदार्थ, संस्कार और प्रकृति की हलचल मुझ पर कोई प्रभाव नही डालते ।
❉ हलचल के हर सीन में भी मैं आत्मा कल्याण का अनुभव करती हूँ । वातावरण चाहे कितना भी हिलाने वाला हो, समस्या चाहे कितनी भी विकराल हो, लेकिन मैं साक्षी दृष्टा की सीट पर सेट रह विकराल समस्या को भी हल्का अनुभव करती हूँ ।
❉ कोई भी सर्कमस्टांश आ जाए, माया के महावीर रूप सामने आ जाएँ, लेकिन मैं आत्मा सदैव साक्षी हो हर परिस्तिथि को सहजता से पार कर लेती हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - यह सारी दुनिया रोगियों की बड़ी हॉस्पिटल है, बाबा आये हैं सारी दुनिया को निरोगी बनाने"
❉ इस कलयुगी रावण राज्य में एक भी मनुष्य ऐसा नहीं है जो निरोगी हो ।
❉ यह सारी दुनिया ही रोगियों की बड़ी हॉस्पिटल है, जहां सभी को पांच विकारों का रोग लगा हुआ है ।
❉ दुनिया के सभी मनुष्य मात्र पांच विकारों के जाल में फंस अपरमपार दुखी हो गए हैं ।
❉ पांच विचारों की कैद से आत्मा को छुड़ाकर सुखी बनाने के लिए ही परमपिता परमात्मा बाप आए है ।
❉ और आ कर हमे समझा रहें हैं कि आत्म अभिमानी बन मुझ बाप को याद करो तो विकारों की कट निकल जायेगी और तुम निरोगी बन जायेंगे ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ जैसे बाप सदैव आत्म अभिमानी हैं , ऐसे आत्म अभिमानी रहने का पूरा-पूरा पुरूषार्थ करना है । एक बाप को दिल से प्यार करते-करते बाप के साथ घर जाना है ।
❉ बाप तो सदैव आत्म अभिमानी हैं व इसलिए ही उन्हें सुप्रीम बाप , सुप्रीम टीचर , सुप्रीम सतगुरू कहते हैं तो ऐसे अपने को आत्मा समझ आत्मा के पिता परमात्मा को यथार्थ रीति से याद करना है ।
❉ 63 जन्मों से देहभान मे रहते स्वयं को व बाप को भूल गए । खेलने के लिए नीचे आए व वापिस जाने का रास्ता भूल गए । अब स्वयं बाप ने आकर हमें अपने असली स्वरुप की पहचान दी है तो आत्माभिमानी रहने का पुरूषार्थ करना है ।
❉ याद में रहने मे ही मेहनत है । अपने स्वधर्म में रहना है कि मैं आत्मा हूं व शांति, पवित्रता , प्रेम ,आनन्द मुझ आत्मा के गुण हैं । याद मे रहकर ही आत्मा की ज्योति को जगाकर सतोप्रधान बनाने का पुरूषार्थ करना है ।
❉ हम सब आत्माओं का पिता एक ही है - सदा शिव । बस एक बाप से ही सर्व सम्बंध निभाते हुए एक की ही याद मे रहना है । बाप भी अपने बच्चों को पतित से पावन बनाकर अपने साथ घर वापिस ले जाने के लिए आया है तो हमें भी बाप को प्यार से याद कर विकर्म विनाश कर बाप के साथ घर जाना है ।
❉ जैसे आशिक को माशूक से प्यार होता है तो वो हमेशा उसे अपने दिल पर बैठाकर राज कराता है । फिर हमें तो सच्चा सच्चा आशिक मिला है व हम है उसके सच्चे माशूक । तो उसे याद कर उसके दिलतख्तनशीं बन उसके साथ घर वापिस जाना है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ देह अभिमान के रॉयल रूप को भी समाप्त करने के लिए साक्षी और दृष्टा होना आवश्यक है... क्यों और कैसे ?
❉ "अपने मिया मिट्ठू नहीं बनना है, खुशफैमी में नहीं रहना है" की मै तो बहुत अच्छा चल रही/रहा हु, बहुत आगे बढ़ रही/रहा हु। यथार्थ चेकिंग करना है।
❉ किसी की भी बात को एक दम से कट नहीं करना है। पहले उसकी बात पूरी तरह समझो, फिर प्यार से पलना देकर अपनी बात रखो। एक दम से कट करना जैसे स्वयं को उच्च और सामने वाले को छोटा अनुभव करवाना है।
❉ जितना साक्षी दृष्टा होंगे उतना ही हर एक की बात को सम्मान देंगे, सबके विचारो को महत्त्व व रिगार्ड देकर चलना है, जो मेजोरिटी की बात हो उसे सहर्ष स्वीकार करना है।
❉ कभी भी इस सूक्ष्म मै पन में नहीं आना है की मैंने जो किया वही अच्छा, में जो सोचता हु वही बेहतर है..... ऐसे संकल्प भी मै पन के रॉयल देह अभिमान में ले आता है।
❉ सदेव कल्याणकारी ड्रामा का ज्ञान बुद्धि में रख चलना है, जो ड्रामा में नुन्ध है वह बहुत अच्छा है, जो हो रहा है ड्रामा अनुसार कल्प पहले मुवाफिक हो रहा है यही सबसे बड़ी ढाल है।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ परमात्म श्रीमत रूपी जल के आधार से कर्म रूपी बीज को शक्तिशाली बनाओ... क्यों और कैसे ?
❉ जब हर कर्म परमात्म श्रीमत पर चल कर करेंगे तो परमात्म प्यार कर्म रूपी बीज को शक्तिशाली बना कर आत्मा को सर्व बंधनो से मुक्त कर देगा और उसे सर्व सुखों से भरपूर कर देगा ।
❉ परमात्म श्रीमत के आधार पर जब हर कर्म किया जाता है तो वह कर्म शक्तिशाली बन जाता है और आत्मा को अतीन्द्रिय सुखों की अनुभूति करवा कर दुःखो की दुनिया से दूर ले जाता है ।
❉ श्रीमत का पालन संस्कारो की टाइटनेस को समाप्त कर देता है जिससे आत्मा उड़ती कला के अनुभव द्वारा हर समस्या का समाधान सहज ही कर लेती है ।
❉ परमात्म श्रीमत रूपी जल कर्म रूपी बीज को शक्तिशाली बना कर आत्मा को लाइट और माइट से भरपूर कर देता है जिससे आत्मा स्वयं को हर परिस्थिति में उपराम अनुभव करती है ।
❉ परमात्म श्रीमत का पालन कर्म को शक्तिशाली बना कर आत्मा को सर्व चिन्ताओ से मुक्त कर देता है और आत्मा स्वयं को प्रभु हवाले कर, प्रभु के सहयोग का अनुभव करते विजयी बन जाती है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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