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    22 / 05 / 15  की  मुरली  से  चार्ट  ❍ 

         TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ °मेरेपन से दूर° रहे ?

 

‖✓‖ पुरानी दुनिया से सहज ही °वैराग्य° रहा ?

 

‖✓‖ अनेक देहधारियों से प्रीत निकाल °एक विदेही बाप को याद° किया ?

 

‖✓‖ कोई भूल हो तो °बाप से क्षमा° लेकर स्वयं ही स्वयं को सुधारा ?

 

‖✓‖ °क्षीरखंड° होकर रहे ?

 

‖✓‖ भारत को °स्वर्ग बनाने के धंधे° में लगे रहे ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ 5 विकार रुपी दुश्मन को °परिवर्तित कर सहयोगी° बनाया ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  कर्म में, वाणी में, सम्पर्क व सम्बन्ध में लव और स्मृति व स्थिति में लवलीन रहना है, जो जितना लवली होगा, वह उतना ही लवलीन रह सकता है । इस लवलीन स्थिति को मनुष्यात्माओं ने लीन की अवस्था कह दिया है । बाप में लव खत्म करके सिर्फ लीन शब्द को पकड़ लिया है । आप बच्चे बाप के लव में लवलीन रहेंगे तो औरों को भी सहज आप-समान व बाप-समान बना सकेंगे ।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ कर्म में, वाणी में, सम्पर्क व सम्बन्ध में लव और स्मृति व स्थिति में °लवलीन° रहे ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं मायाजीत जगतजीत आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   भगवान की पालना में पलने वाली, माया के तूफानों में भी सदा अचल रहने वाली मैं मायाजीत, जगतजीत आत्मा हूँ ।

 

 ❉   परमात्म शक्ति द्वारा मैं आत्मा 5 विकारों रूपी माया दुश्मन को परिवर्तित कर उन्हें अपना सहयोगी बना लेती हूँ ।

 

 ❉   अपने अंदर योग का बल जमा कर योग बल से अपनी कर्मेन्द्रियों को शीतल करती जाती हूँ ।

 

 ❉   काम विकार को शुभ कामना द्वारा, क्रोध को रूहानी खुमारी द्वारा, लोभ को अनासक्त वृति द्वारा, मोह को स्नेह द्वारा और देह अभिमान को स्वाभिमान द्वारा परिवर्तित करती जाती हूँ ।

 

 ❉   सर्वशक्तिमान बाप के साथ का अनुभव प्रकृति के पांचो तत्वों और पांचो विकारों को मेरा  सहयोगी बना देता है ।

 

 ❉   मैं तन मन धन से एक बाप पर सम्पूर्ण समर्पित हूँ । और यह अव्यभिचारी समर्पण ही मुझे मायाजीत बनाता है ।

 

 ❉   बाबा के प्रति मेरे अविनाशी और निस्वार्थ प्रेम के आगे माया का कोई भी आकर्षण टिक नही कर सकता ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - अनेक देहधारियों से प्रीत निकाल कर एक विदेही बाप को याद करो तो तुम्हारे सब अंग शीतल हो जाएंगे"

 

 ❉   अपने वास्तविक स्वरूप को भूलने और स्वयं को देह समझने के कारण पूरे 63 जन्म देह और देहधारियों से प्रीत रखते आये ।

 

 ❉   देहधारियों से प्रीत ही विकारों में गिरने और आत्मा के पतित बनने का कारण बनी ।

 

 ❉   आत्मा के पतित बनने से आत्मा के वास्तविक गुण सुख, शान्ति और पवित्रता समाप्त हो गये और आत्मा दुखी और अशांत हो गई ।

 

 ❉   आत्मा को इन दुखो से छुड़ाने के लिए ही संगम युग पर स्वयं परमात्मा ने आ कर हमे हमारा वास्तविक परिचय दे कर यह राज बताया कि देहधारियों से प्रीत ही हमारे दुखों का कारण है ।

 

 ❉   इसलिए अब बाप समझाते हैं कि देहधारियों से प्रीत निकाल एक बाप को याद करो तो तुम्हारे सब अंग शीतल हो जाएंगे और तुम विकारों से छूट जाएंगे ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा - ज्ञान मंथन(Marks:-10)

 

➢➢ कोई भूल हो तो बाप से क्षमा लेकर स्वयं को सुधारना है। बाप कुछ नहीं करते, बाप की याद से विकर्म काटने हैं, निंदा कराने वाला कोई कर्म नहीं करना है।

 

 ❉   63 जन्मों के पुराने संस्कार आत्मा में हैं तो देहभान में आ जाते हैं व कोई न कोई गल्ती कर बैठते हैं इसलिए अपनी सम्भाल करनी है। अभिमान में नहीं आना हैं।अपने को सुधारने पर ध्यान देना है।

 

 ❉   बाप रूहानी सर्जन है। अगर कोई भूल हो भी जाती है तो रूहानी सर्जन को सब सच सच बता बाप के साथ सच्चा रहना है। उस गल्ती को दोबारा नहीं करना है। अविनाशी सर्जन को बता देने से आधा माफ हो जायेगा।

 

 ❉   बाप कहते हैं कि मैं कुछ नहीं करता ।जैसा कर्म आप कर्म करोगे तो उसका फल या हिसाब किताब तो तुम्हें ही चुकतू 

करना होगा और मैं ऐसे कृपा करने लगा तो मेरे ही सारे बच्चे हैं।

 

 ❉   जितना जास्ती याद में रहेंगे उतने ही विकर्म विनाश होंगे। एक ही बाप की याद के सिवाए ओर कोई बात याद न आए।

 

 ❉   बाप का बनने के बाद ऐसा कोईँ कर्म नहीं करना जिससे बाप की निंदा हो । कहा भी गया- "सतगुरू के निंदक ठौर न पाये"। क्योंकि सतगुरू की निंदा कराने वाले को कहीं पर भी ठिकाने नहीं मिलता।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ 5 विकार रूपी दुश्मन को परिवर्तित कर सहयोगी बनाने वाले मायाजीत जगतजीत बन जाते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   माया को अपना दुश्मन न समझ यह सोचना है की ये हमारा अगली क्लास में जाने की परीक्षा है, परीक्षा तो देना जरुरी है नहीं तो अगली क्लास में जायेंगे कैसे।

 

 ❉   सतयुग से लेकर कलयुग तक इस सृष्टि चक्र में हम आत्माये दिन प्रति दिन निचे गिरती ही आई है, परन्तु यह ड्रामा की नुंध समझकर चलना चाहिए की गिरते नहीं तो परमात्मा से कैसे मिलते।

 

 ❉   जो भी गलतिय हमने की उनसे हम सीखकर ही आगे बड सकते है, जब तक दुःख न हो सुख का अनुभव नहीं कर सकते।

 

 ❉   हमारे अन्दर जो भी विकार है हमें अब उनका रूप परिवर्तित कर आत्म अभिमानी बन हमारे मर्ज हो चुके सतगुणो को इमर्ज करने है।

 

 ❉   मन को अपना मीत बना हो, जिसने मन को जीत लिया उसके सामने माया आ नहीं सकती और वह सत्मार्ग पर चल मायाजीत जगतजीत बन जाते है।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ आत्मा रूपी रीयल गोल्ड में मेरापन आना ही अलाय है, जो वैल्यु को कम कर देता है, इसलिये मेरेपन को समाप्त करो... कैसे ?

 

 ❉   मैं और मेरापन देह अभिमान में ले आता है । देह अभिमान में आने से ही आत्मा से विकर्म होते है जो आत्मा रूपी रीयल गोल्ड में अलाय पैदा कर उसकी वैल्यु को कम कर देते हैं ।

 

 ❉   मैं और मेरापन चिंतन को अशुद्ध बना देता है, विचार अशुद्ध होने से कर्म भी दुषित हो जाते हैं और आत्मा में अलाय पड़ने से आत्मा की वैल्यु कम हो जाती है ।

 

 ❉   मैं और मेरापन बुद्धि का योग परम पिता परमात्मा बाप के साथ जुटने नही देता । योग बल जमा ना होने से आत्मा पर चड़े विकारों की कट उतर नही पाती और विकारों की अलाय आत्मा की वैल्यू को कम कर देती है ।

 

 ❉   मैं और मेरा पन आत्मा को मलीन और अस्वच्छ बना देता है और बुद्धि अस्वच्छ होने के कारण आत्मा बुरे कामों में प्रवृत हो जाती है जिससे आत्मा में विकारों की अलाय पड़ने से आत्मा की वैल्यू कम हो जाती है ।

 

 ❉   मैं और मेरापन निमितपन को समाप्त कर देता है जिसके कारण आत्मा स्वयं को निमित समझने की बजाए करावनहार समझने लगती है और बोझ का अनुभव करती है । यह बोझ ही आत्मा में अलाय पैदा कर आत्मा की वैल्यु को कम कर देता है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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