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❍ 21 / 08 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °अविनाशी ज्ञान धन° स्वयं में धारण कर फिर दान किया ?
‖✓‖ °बेहद के वैरागी° बनकर रहे ?
‖✓‖ °अंतर्मुखी° रहने का पुरुषार्थ किया ?
‖✓‖ °खाने पीने° की पूरी परहेज़ रखी ?
‖✓‖ "कभी भी °आँखें° धोखा न दें" - यह पूरी संभाल की ?
‖✗‖ स्वयं में से विकारों की कोई भी °बदबू° तो नहीं आई ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ अपने सर्व खजानों को अन्य आत्माओं की सेवा में लगा °सहयोगी बन सहजयोगी° बनकर रहे ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ ज्वाला-रुप बनने के लिए यही धुन सदा रहे कि अब वापिस घर जाना है। जाना है अर्थात् उपराम। जब अपने निराकारी घर जाना है तो वैसा अपना वेष बनाना है। तो जाना है और सबको वापस ले जाना है-इस स्मृति से स्वत: ही सर्व-सम्बन्ध, सर्व प्रकृति के आकर्षण से उपराम अर्थात् साक्षी बन जायेंगे। साक्षी बनने से सहज ही बाप के साथी व बाप-समान बन जायेंगे।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ यही धुन सदा रही कि "अब वापिस घर जाना है°" ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं सहजयोगी आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ अपने सर्व खजानों को अन्य आत्माओं की सेवा में लगाकर सर्व की सहयोगी बनने वाली मैं सहजयोगी आत्मा हूँ ।
❉ स्वयं को सर्व आत्माओं के प्रति सेवाधारी समझ, अपने हर संकल्प, वाणी और कार्य द्वारा मैं सर्व आत्माओं की सेवा के लिए सदा तत्पर रहती हूँ ।
❉ बाप द्वारा मिली सर्व शक्तियों, गुणों और खजानों को सेवा में लगा कर मैं अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाती जाती हूँ ।
❉ संगम युग पर मिले समय और श्वांसों के अनमोल खजाने को प्रभुप्रेम में मगन हो कर, सेवा में लगा कर सफल करती जाती हूँ ।
❉ सर्वशक्तिवान, विश्व के रक्षक, भाग्यविधाता बाप की असीम स्नेह से भरी हुई दृष्टि निरन्तर मेरे ऊपर रहती है, जो मुझे सहजयोगी बना देती है ।
❉ बाप दादा के दिल रूपी तख़्त पर विराजमान हो कर मैं अखुट प्राप्तियों से सम्पन्न हो गई हूँ ।
❉ सर्व प्राप्ति सम्पन्न बनने से मैं निरन्तर बाप की याद के झूले में झूलती रहती हूँ और अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति में मगन रहती हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - बाबा आये हैं तुम्हे किंग ऑफ फ्लावर बनाने, इसलिए विकारों की कोई भी बदबू नही होनी चाहिए"
❉ कमल का फूल कीचड़ में खिलता है लेकिन कीचड़ में रहते हुए भी उससे न्यारा और प्यारा रहता है और अपनी सुंदरता से सबको आकर्षित करता है । इसलिए उसे किंग ऑफ़ फ्लावर कहा जाता है ।
❉ हम सब भी जब सतयुगी दुनिया में थे तो खुशबूदार फूल थे अर्थात सम्पूर्ण पवित्र थे ।
❉ किन्तु कलयुग अंत तक आते आते, विकारों में गिरते गिरते खुशबूदार फूल से कांटे अर्थात पतित विकारी बन गए ।
❉ अब इस समय संगमयुग पर परम पिता परमात्मा बाप आये हैं हमे फिर से किंग ऑफ़ फ्लावर बनाने अर्थात पतित से पावन बनाने ।
❉ इसलिए बाप समझाते हैं कि अब तुम्हारे अंदर विकारों की कोई बदबू नही आनी चाहिए ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ अविनाशी ज्ञान स्वयं में धारण कर फिर दान करना है । पढ़ाई से अपने आपको स्वयं ही राजतिलक करना है ।
❉ इस कल्याणकारी संगमयुग पर भगवान स्वयं टीचर बनकर पढ़ाते हैं व ज्ञान रत्नों से हमारी झोली भरते हैं । ये रूहानी पढ़ाई अच्छी रीति पढ़कर अविनाशी ज्ञान स्वयं में धारण करना है व फिर दूसरों को बाँटना है ।
❉ इस रूहानी पढ़ाई को पढ़कर जितना ज्ञान धन बाँटते है यह उतना ही बढ़ता है । जैसे लौकिक में किसी की मदद करते हैं तो वह बहुत आशीर्वाद देता है ,रूहानी ज्ञान से जब किसी रूह को अपने असली पिता से मिलने का रास्ता बताते है व उनका कल्याण करते है तो दुआओं का खाता बढ़ता है ।
❉ जो बाबा ने हमें ज्ञान , गुणों और शक्तियों के ख़ज़ानों से भरपूर किया है तो उन्हें स्वयं में धारण कर अज्ञानी आत्माओं को पहले जिस शक्ति व गुण की ज़रूरत हो उसका साकाश देकर आत्मिक स्थिति में रहते हुए युक्ति से ज्ञान सुनाकर दान देना है ।
❉ हम ब्राह्मण बच्चों को हाइएस्ट अथारिटी बाप मिला है जो ज्ञान का सागर है व हमें स्वयं आकर पढ़ाता है तो हमें मास्टर ज्ञानसागर बन ज्ञान रत्नों का दान करना है ।
❉ बाप ने ही हमें अपने अज्ञानता के घोर अँधियारे से निकालकर ज्ञान का तीसरा नेत्र दिया है । जैसे डाक्टरी की पढ़ाई पढ़कर डाक्टर बनते है तो पढ़ने से व मेहनत से बनते है कोई आशीर्वाद से नहीं । उसीप्रकार इस रूहानी पढ़ाई में हम पढ़ने से व बाप की याद की यात्रा से ही ऊंच पद पाते हैं इसी प्रकार अपने को आपेही राजतिलक देना है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ अपने सर्व खजानों को अन्य आत्माओ की सेवा में लगाकर सहयोगी बनने वाले ही सहजयोगी बन सकते है... क्यों और कैसे ?
❉ "एक देंगे तो पदम मिलेगा" बाप द्वारा प्राप्त ज्ञान, गुण, शक्तियों का जितना हम दान करेंगे उतना ही उससे पदम गुणा हमें मिलता है, बाप का भंडारा सदेव खुला रहता है, सो बच्चो का भी रहे।
❉ बाप ने हमें जो भी दिया वह सब विश्व सेवा प्रति मिला है, उनके द्वारा अनेक आत्माओ का कल्याण करना है, बाप का मददगार बन सच्चा सपूत बच्चा बनकर दिखाना है।
❉ जितना हम दुसरो को दान देंगे उतना ही हम उनसे प्राप्त करेंगे, सहयोग प्राप्त करने का आधार है पहले स्वयं सहयोगी बनकर दिखाओ, उन्हें जिस चीज़ की आवश्यकता है वह पूर्ति होगी तब वह हमारे सहयोगी बनेंगे।
❉ "दे दान तो छुटे ग्रहण" जितना एक दुसरे को आगे बढ़ने में सहयोग करेंगे, उतना ही एक दुसरे की दुवाओ व शुभ भावना का पात्र बनेंगे और दिल की दुवाओ में बड़ा असर है, यह हमारे लिए अनेक परिस्थितियों में सुरक्षा कवच की तरह कार्य करती है।
❉ स्वयं को सेवाधारी समझ यह स्मृति पक्की करे की यह बाप के बच्चे है और हमें बाप ने इनकी सेवा के लिए भेजा है, तो जिसने भेजा है उस मालिक को कभी नहीं भूल सकते यही सहजयोग है।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ बेहद के वैरागी बनो तो आकर्षण के सब संस्कार सहज ही खत्म हो जायेंगे... कैसे ?
❉ बेहद की वैराग्य वृति आत्मा को देह और देह के सर्व बंधनो से मुक्त कर देती है जिससे आकर्षण के सब संस्कार सहज ही समाप्त हो जाते हैं ।
❉ एक बाप के प्रभाव में रहने वाला सदैव परमात्म प्यार के रंग में रंगा रहता है और बेहद का वैरागी बन सर्व आकर्षणों से मुक्त रहता है ।
❉ हद के मान, शान और सम्मान की इच्छा से मुक्त और अभिमान से रहित हो कर जो निस्वार्थ भाव से सेवा करते हैं, वो बेहद की वैराग्य वृति द्वारा सर्व आकर्षणों से सहज ही मुक्त हो जाते हैं ।
❉ सदा एक बाप का श्रेष्ठ संग आत्मा को सर्व आकर्षणों से मुक्त कर देता है और बेहद का वैरागी बना देता है, जिससे किसी के भी संग का रंग आत्मा पर कोई प्रभाव नही डाल सकता ।
❉ बेहद की वैराग्य वृति आत्मा को निरन्तर योगी, सहजयोगी स्थिति द्वारा सर्व आकर्षणों से मुक्त कर न्यारा और प्यारा बना देती है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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