━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 28 / 05 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ "निराकार बाप इस भागीरथ पर विराजमान हैं" - यह °अटूट निश्चय° रहा ?
‖✓‖ बेहद की °वैराग्य° वृति रही ?
‖✓‖ °फूल° बनने का पूरा पुरुषार्थ किया ?
‖✓‖ °अशरीरी° बनने का अभ्यास किया ?
‖✓‖ °अमृत वेले° उठकर बाप से मीठी मीठी बातें की ?
‖✗‖ बाप की याद के सिवाए °दूसरा कुछ याद° तो नहीं आया ?
───────────────────────────
∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ °मरजीवा जन्म° की स्मृति से सर्व कर्म बन्धनों को समाप्त किया ?
───────────────────────────
✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ जैसे कोई सागर में समा जाए तो उस समय सिवाय सागर के और कुछ नज़र नहीं आयेगा । तो बाप अर्थात् सर्वगुणों के सागर में समा जाना, इसको कहा जाता है लवलीन स्थिति । तो बाप में नहीं समाना है, लेकिन बाप की याद में, स्नेह में समा जाना है ।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ °सर्वगुणों के सागर° में समाये रहे ?
───────────────────────────
∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं कर्मयोगी हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ हर कर्म करते बुद्धि का योग एक बाप के साथ लगाने वाली मैं कर्मयोगी आत्मा हूँ ।
❉ अपने मरजीवा जन्म की स्मृति से मैं आत्मा सर्व कर्मबंधनो को समाप्त करती जाती हूँ ।
❉ मैं देह और देह के सर्व सम्बन्धो के बंधन से परे हूँ । किसी भी प्रकार के कर्म का बंधन मुझे बाँध नही सकता ।
❉ निमित पन की स्मृति द्वारा, करनकरावन हार बाप की मदद से मैं सर्व कर्मबंधनो से मुक्त होती जाती हूँ ।
❉ कदम कदम पर बाप से डायरेक्शन ले स्वतन्त्र होकर, बिना किसी फल की इच्छा के मैं हर कर्म करती जाती हूँ ।
❉ स्वयं को विश्व कल्याण के निमित समझ, कर्मयोगी बन हर कर्म करने वाली और मालिक बन अपनी कर्मेन्द्रियों से श्रेष्ठ कर्म कराने वाली मैं कर्मबन्धन मुक्त आत्मा हूँ ।
───────────────────────────
∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - अपने आप को देखो मैं फूल बना हूँ , देह - अहंकार में आ कर कांटा तो नही बनता हूँ ? बाप आया है तुम्हे कांटे से फूल बनाने"
❉ कांटा बनना अर्थात एक दो को दुःख देना और दुःख का मूल आधार है आसुरी गुण जो देह - अहंकार के कारण उत्तपन्न होते हैं ।
❉ सतयुग में देह - अहंकार नही होता इसलिए सब फूल अर्थात दैवी गुणों से युक्त होते हैं इसलिए विकार रूपी कांटे भी नही होते ।
❉ किन्तु द्वापर युग से जब देह अहंकार शुरू होता है तो विकारों रूपी कांटो की प्रवेशता होने से सभी एक दो को दुःख देते रहते हैं ।
❉ इन्ही दुखो से छुड़ाने अर्थात कांटो से फूल बनाने के लिए अब परम पिता परमात्मा बाप आये हैं और ज्ञान - योग द्वारा हमे दैवी गुण धारण करना सिखा रहें हैं ।
❉ इसलिए बाप कहते हैं, अपने आपको देखो कि मैं फूल बना हूँ, देह - अहंकार में आकर कांटा तो नही बनता हूँ ।
───────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा - ज्ञान मंथन(Marks:-10)
➢➢ सवेरे अमृतवेले उठकर बाप से मीठी बातें करनी हैं। अशरीरी बनने का अभ्यास करना है।
❉ जैसे माँ- बाप बच्चे को सवेरे तैयार करते हैं, साफ़ सुथरा करके फिर कहते- अब सारा दिन खाओ-पियो, पढ़ो। बाप भी अमृतवेले बाप सारे दिन के लिए शक्ति भर देते हैं व आत्मा रूपी बैटरी को चार्ज करते हैं। जितना जो सच्ची दिल से वरदान लेना चाहे ले सकता है।
❉ जैसे किसी वी.आई.पी. से मिलना होता है तो स्पेशल समय लेना पड़ता है तो अमृतवेले का समय हम ब्राह्मण बच्चों के लिए स्पेशल समय होता है जब बाप भी अपने बच्चों का इंतज़ार करता है कि कब आयेंगे व मुझ से रूह रिहान करेंगे।
❉ अमृतवेले बाप हरेक बच्चे से जी भर कर बातें करने के लिए, फ़रियाद सुनने के लिए, कमज़ोरी मिटाने के लिए, लाड़-प्यार देने के लिए सब बातों के लिए फ़्री है क्योंकि यह समय आफिशियल नहीं है ख़ास हम बच्चों के लिए है।
❉ जैसे लौकिक में भी बच्चा अपनी मीठी मीठी बातों से बाप को रिझा लेता है व बाप को अपने बच्चे की उन मीठी बातों से याद आती रहती है तो हमें भी सुबह सुबह बाप से मीठी मीठी बातें कर रिझा लेना हैं कि बाप को भी बच्चों की याद आती रहे।
❉ जितना अपने को आत्मा समझ आत्मा के पिता परमात्मा को याद करेंगे तो धीरे-धीरे देह का भान नहीं रहेगा। जितना देही-अभिमानी रहेंगे उतनी खुशी रहेगी।
───────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ मरजीवा जन्म की स्मृति से सर्व कर्मबन्धनों को समाप्त करने वाले कर्मयोगी कहलाते है... क्यों और कैसे ?
❉ कर्म करते हुए योग में रहना ही कर्मयोगी बनना है।
❉ हम अब कलयुगी मनुष्य नहीं, संगमयुगी ब्राह्मण है, तो कर्म करते मन बुद्धि बाप की याद में लगी रहे।
❉ हमारा नया जन्म हुआ है, अब बाप के हम बच्चे बने है तो पुराने सम्बन्ध, संस्कार, बोल, व्यवहार सब परिवर्तन होना चाहिए।
❉ इस रूद्र ज्ञान यज्ञ में अपना पुराना सब स्वाहा कर, बस एक बाप और में याद रखना है, दूसरा न कोई।
❉ अब सर्व सम्बन्ध एक बाप के साथ अनुभव कर इस देह के बन्धन छुटते जायेंगे और हम न्यारा व प्यारा बन जायेंगे
───────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ समय की समीपता का फाउंडेशन है - बेहद की वैराग्य वृति... कैसे ?
❉ नष्टोमोहा स्मृतिलब्धा स्थिति बनाने में बेहद की वैराग्य वृति ही सहायक बनेगी इसलिए यही समय की समीपता का फाउंडेशन है ।
❉ अंतिम स्थिति अर्थात कर्मातीत स्थिति का अनुभव तभी कर सकेंगे जब बेहद की वैराग्य वृति होगी । इसलिए बेहद की वैराग्य वृति ही समय की समीपता का फाउंडेशन है ।
❉ देह से न्यारे होने का निरन्तर अभ्यास बेहद की वैराग्य वृति द्वारा ही सम्भव है जो अंतिम पेपर में पास विद ऑनर होने का मुख्य आधार है इसलिए बेहद की वैराग्य वृति ही समय की समीपता का फाउंडेशन है ।
❉ ब्राह्मणों की एकरस स्थिति ही समय को समीप लाने वाली है । किन्तु सर्व आकर्षणों से मुक्त एकरस स्थिति का अनुभव आत्मा तभी कर सकेगी जब बेहद की वैराग्य वृति होगी इसलिए बेहद की वैराग्य वृति ही समय की समीपता का फाउंडेशन है ।
❉ बेहद की वैराग्य वृति अचल अडोल स्थिति बनाने के लिए बहुत आवश्यक है क्योकि अचल अडोल स्थिति का अनुभव ही अंत समय में सहायक होगा इसलिए बेहद की वैराग्य वृति समय की समीपता का फाउंडेशन है ।
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━