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   08 / 07 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ °साक्षीपन° की स्थिति में स्थित हो यथार्थ निर्णय लिए ?

 

‖✓‖ °बन्धनमुक्त° बन सार्विस में तत्पर रहे ?

 

‖✓‖ °मुरली की प्वाइंट° एक दुसरे को समझायी ?

 

‖✓‖ °ईर्ष्या आदि छोड़° आपस में बहुत प्यार से मिलकर रहे ?

 

‖✓‖ इस पुराने सड़े हुए °शरीर का भान छोड़ने° का अभ्यास किया ?

 

‖✓‖ भ्रमरी की तरह ज्ञान की भूँ-भूँ कर कीड़ों को °आप समान° बनाने की सेवा की ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ सर्व के गुण देखते हुए स्वयं में बाप के गुणों को धारण करने वाले °गुणमूर्त°  बनकर रहे ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  जैसे स्थूल अग्नि वा प्रकाश अथवा गर्मी दूर से ही दिखाई देती वा अनुभव होती है। वैसे आपकी तपस्या और त्याग की झलक दूर से ही आकर्षण करे। हर कर्म में त्याग और तपस्या प्रत्यक्ष दिखाई दे तब ही सेवा में सफलता पा सकेंगे।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ हर कर्म में °त्याग और तपस्या प्रत्यक्ष° दिखाई दी ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं गुण मूर्त आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   सर्व के गुण देखते हुए स्वयं में बाप के गुणों को धारण करने वाली मैं गुणमूर्त आत्मा हूँ ।

 

 ❉   सर्व आत्माओं के गुणों और विशेषताओं रूपी मोती चुगने वाली मैं  होलीहंस आत्मा हूँ ।

 

 ❉   दूसरों के अवगुणों को देखते हुए भी मैं उनके चिंतन से सदा मुक्त रहती हूँ ।

 

 ❉   गुणों की माला अपने गले में धारण कर मैं दर्शनीय मूर्त बनती जाती हूँ ।

 

 ❉   अपने गुणग्राही स्वभाव और नम्रता द्वारा मैं सहज ही सबके दिल को जीत लेती हूँ ।

 

 ❉   संगम युग पर गुणों की माला धारण कर विजय माला में नम्बर वन आने वाली मैं सर्वश्रेष्ठ आत्मा हूँ ।

 

 ❉   गले में माला धारण किये हुए देवताओं और शक्तियों का स्वरूप मेरा ही यादगार है ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - बन्धनमुक्त बन सर्विस में तत्पर रहो, क्योकि इस सर्विस में बहुत ऊँच कमाई है, 21 जन्मों के लिए तुम वैकुण्ठ का मालिक बनते हो"

 

 ❉   जैसे परम पिता परमात्मा बाप हम बच्चों का भाग्य ऊंच, श्रेष्ठ बनाने के लिए हम बच्चों की सर्विस करते हैं ।

 

 ❉   विश्व की बादशाही प्राप्त करने का श्रेष्ठ ज्ञान हम बच्चों को आकर सुनाते हैं ।

 

 ❉   ऐसे ही हमे भी सर्विसएबुल बन औरों के भाग्य को श्रेष्ठ बनाने की सेवा करनी है ।

 

 ❉   बन्धनमुक्त बन इस ईश्वरीय सेवा में तत्पर रहना है । क्योकि इस सर्विस में बहुत ऊँची कमाई है ।

 

 ❉   इस सर्विस से हम 21 जन्मों के लिए वैकुण्ठ का मालिक बनते हैं ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ भ्रमरी की तरह ज्ञान की भूं-भूं कर कीड़ों को आप समान बनाने की सेवा करनी हैं ।

 

 ❉   जैसे भ्रमरी भूं-भूं कर किसी भी कीड़े को अपने जैसा बना देती है उसी प्रकार ज्ञान का सागर बाप ज्ञान देकर ज्ञान स्वरूप बनाता है । तो दूसरों को ज्ञान  देकर आप समान बनाना है ।

 

 ❉   स्वयं को आत्मा समझ दूसरों को आत्मिक दृष्टि रखते हुए समझाना है व ज्ञान को अच्छी रीति धारण कर दूसरों को कराना है ।

 

 ❉   जैसे कक्षा में कभी टीचर नहीं होता तो स्टूडेंट कक्षा को अच्छी रीति टीचर की तरह सम्भालते है उसी प्रकार कभी ब्राह्मणी नहीं है तो हमें भी मुरली के प्वाइंटस को अच्छी रीति धारण कर दूसरों के समझाने है ।

 

 ❉   ज्ञान का मनन चिंतन कर स्व का परिवर्तन कर दूसरों को भी ज्ञान देकर आगे बढ़ाने का पुरूषार्थ करना है ।

 

 ❉   सर्प के मिसल पुरानी खाल छोड़ नई लेने का पुरूषार्थ करना है क्योंकि ये पुराना शरीर सड़ा हुआ है इसे छोड़ कर नयी दुनिया में जाने के लिए पढ़ाई पढ़नी है व ज्ञान रत्नों का दान दे आप समान बनाना है ।

 

 ❉   अपने अंदर याद का जौहर भरना है  जितना याद का जौहर होगा उतना ही जल्दी दूसरे को तीर लगेगा ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ सर्व के गुण देखते हुए स्वयं में बाप के गुणों को धारण करने वाले गुणमूर्त कहलाते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   बाबा हम बच्चो को स्वर्ग का वर्सा देने आये है, हमें अब यह देश बदल परिवेश बदल नयी दुनिया में जाना है तो दैवी गुण धारण करने होंगे।

 

 ❉   इस पुरुषोत्तम संगमयुग पर ही परमात्मा हमें पढ़ा रहे है नयी दुनिया में ले जाने के लिए, आत्मा ही संस्कार ले जाती है तो यही पर ही हमें गुणमूर्त बनना है नयी दुनिया में तो सिर्फ प्रालब्ध होगी वहा बाप सिखाने थोड़ी आएंगे।

 

 ❉   बाबा ने हम बच्चो को दिव्य बुद्धि दी है, अब हमें होलीहंस बनकर गुण रूपी मोती ही चुगने है और अवगुण रूपी कंकडो का त्याग करना है।

 

 ❉   बाबा कहते बच्चे गुणग्राही बनो, किसी के अवगुणों को न देखो हियर नो ईविल, सी नो ईविल, स्पीक नो ईविल, थिंक नो ईविल। हर आत्मा में कोई न कोई गुण होता ही है हमें बस गुण देखने की ही दृष्टि खुली रखना है।

 

 ❉   हम ऐसे बाप के बच्चे है जो बाबा गुणों का सागर है तो हम आत्माओ को भी बाप से उन गुणों को स्वयं में धारण कर गुणों की नदिया बनना है। कहते है "सन शोज फादर"। हम आत्माओ को गुणों के सागर पिता को अपने चाल, चलन, व्यवहार, कर्म द्वारा प्रत्यक्ष करना है।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ साक्षीपन की स्थिति ही यथार्थ निर्णय का तख़्त है... कैसे ?

 

 ❉   साक्षीपन की स्थिति ही चिंतन को श्रेष्ठ बनाती है  और श्रेष्ठ चिंतन यथार्थ निर्णय लेने में विशेष रूप से सहायक होता है ।

 

 ❉   साक्षीपन की सीट पर सेट रहने से स्वस्थिति मजबूत बनती है । जिससे हम यथार्थ निर्णय ले कर हर परिस्थिति में अचल अडोल रह सकते हैं ।

 

 ❉   साक्षीपन की स्थिति ड्रामा को यथार्थ रीति समझने में और हर प्रकार के विघ्न में उचित निर्णय लेने के योग्य बनाती है ।

 

 ❉   हर सीन को साक्षी हो देखने से बुद्धि व्यर्थ चिंतन से मुक्त रहती है और बुद्धि की लाइन क्लियर होने के कारण लिया हुआ निर्णय यथार्थ होता है ।

 

 ❉   साक्षीपन  की स्थिति सब चिंताओं से मुक्त कर बुद्धि को शांत और शीतल बना देती है जिससे बुद्धि किसी भी प्रकार की हलचल में भी शांत रहते हुए यथार्थ निर्णय ले सकती है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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