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    05 / 03 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

         TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 7*5=35)

 

‖✓‖ °काँटों को फूल° बनाने की सेवा की ?

‖✓‖ सदा °स्नेही° बनकर रहे ?

‖✓‖ "ज्ञान सागर बाप हमें रोज़ °ज्ञान रत्नों की थालियाँ° भर भर देते हैं" - यह उल्लास रहा ?

‖✓‖ °माता-पिता° को पूरा फॉलो किया ?

‖✓‖ "माया का थप्पड़ ना लगे" - यह °संभाल° की ?

‖✗‖ जो ज्ञान की बातों के सिवाए दूसरा कुछ भी सुनाये उसका °संग° तो नहीं किया ?

‖✗‖ किसी भी °देहधारी के नाम रूप° में बुधी तो नहीं फंसी ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

➢➢ स्वमान द्वारा °अभिमान को समाप्त° किया ?

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अव्यक्त बापदादा (16/02/2015) :-

➳ _ ➳  अभी आगे के लिए आवाज फैलाने का कोई नया नया प्रोग्राम बनाओ, जिससे दुनिया वाले जागे रहें, सो नहीं जायें। जगाते रहो, आगे बढ़ते रहो।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-15)

➢➢ आगे के लिए आवाज फैलाने का कोई °नया नया प्रोग्राम° बनाया ? आत्माओं को जगाया ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-15)

➢➢ मैं सदा निर्माणचित आत्मा हूँ

 

 ✺   श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 ❉   मैं आत्मा सदा स्वमान में स्थित रह हाँ जी का पार्ट बजाती हूँ ।

 ❉   अभिमान और अपमान की महसूसता से परे, निर्मान और निर्माण के बैलेंस द्वारा मैं सर्व की दुयाएं प्राप्त कर निरन्तर आगे बढ़ती जाती हूँ।

 ❉   मेरे हर कर्म द्वारा ,दृष्टि,वृति और चलन द्वारा निर्माणता की झलक स्पष्ट दिखाई देती है।

 ❉   मैं आत्मा सदा छोटे-बड़े, ग्यानी-अज्ञानी, मायाजीत या मायावश, गुणवान या अगुणवान आत्मा को मान दे सदा दाता की सीट पर सेट रहती हूँ ।

 ❉   दाता पन की स्मृति मुझ्र सहज ही मेहनत मुक्त,जीवन मुक्त स्तिथि का अनुभव कराती है

 ❉   मैं आत्मा सम्पन अवस्था का अनुभव कर सदैव रहमदिल रहती हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-5)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - तुमने बाप का हाथ पकड़ा है, तुम गृहस्थ व्यवहार में रहते भी बाप को याद करते-करते तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे"

 

 ❉   आत्मा जब सतोप्रधान थी तो अपरमअपार सुखो से भरपूर थी।कोई दुःख नही था।

 ❉   किन्तु जैसे जैसे आत्मा में खाद पड़ती गई।अर्थात आत्मा अपनी सम्पूर्ण पावन सतोप्रधान स्टेज से पतित तमोप्रधान बनती गई।वैसे वैसे आत्मा दुःखी, अशांत होती गई।

 ❉   हमारे दुखो को दूर करने के लिए ही अब परम पिता परमात्मा बाप आये हैं।दुखों से छूटने के लिए अब हमने परमात्मा बाप का हाथ पकड़ा है।

 ❉   इसलिए अब हमे गृहस्थ व्यवहार में रहते अर्थात अपनी लौकिक जिम्मेवारियों को निभाते हुए  बुद्धि का योग परमात्मा बाप के साथ जोड़ना है।

 ❉   परम पिता परमात्मा बाप की याद से ही आत्मा तमोप्रधान से सतोप्रधान बन सकती है और सुख, शांति से सम्पन्न हो सकती है।

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∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा) (Marks:-5)

 

➢➢ "जो ज्ञान की बातों के सिवाय दूसरा कुछ भी सुनाए उसका संग नहीं करना है"।

 

 ❉   बाबा हमें जो ज्ञान की बातें सुनाते हैं, ज्ञान रत्न देते हैं उनका मूल्य नहीं आंक सकते। एक एक ज्ञान का शब्द लाखों रूपये का है। उस ज्ञान को धारण करना है व दूसरों को भी अपने रंगमें रंगना है।

 ❉   जब ज्ञान की बातों का गहराई से विचार सागर मंथन करते है तो दूसरा कुछ भी सुनाए उसका असर नहीं होता।

 ❉   ज्ञान रत्नों की झोली स्वयं भरनी है व दूसरों को भी बाँटनी है।

 ❉   बुद्धि रूपी बर्तन को सोने का बनाने के लिए उस पर लगी जंग को ज्ञान की बातों को धारण कर शुद्ध करना है। बुद्धि रूपी लाइन क्लीन व क्लीयर रखकर दूसरे के बातों को सुनते हुए भी नहीं सुनना।

 ❉   जब ज्ञान की बातों के सिवाय दूसरी बातें करते हैं तो संसारिक बातों में व्यर्थ ही उलझ जाते हैं व क्यूँ, क्या और क्यों में चले जाते हैं। संशय बुद्धि हो जाते हैं। जो ज्ञान में होशियार होते हैं वही बाबा के दिल पर चढ़ते हैं।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-5)

 

➢➢ स्वमान द्वारा अभिमान को समाप्त करने वाले सदा निर्मान रहते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   स्वमान में स्थित रहने से हम आत्मा सभी गुणों से भरपूर रहती है तो अभीमान आ न सके।

 ❉   स्वमान में स्थित रहना अर्थात देही अभिमानी स्थिति में स्थित रहना, जो देह़ी अभिमानी है उसे अभिमान आ नहीं सकता।

 ❉   स्वमान ने स्थित रहने से आत्मा अपनी ओरिजिनल स्टेज में रहती है, जो बहुत शुद्ध व निर्मल है।

 ❉   स्वमान में रहने से ये नॉलेज बुद्धि में क्लियर रहती है की करन करावनहार एक बाप है, हम सब निम्मित मात्र है।

 ❉   स्वमान द्वारा हम अपने में इतनी शक्ति व गुण भर लेते है की व्यर्थ के अभिमान रूपी गन्दगी की जगह ही नहीं रहती।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-5)

 

➢➢ स्नेह ही सहज याद का साधन है इसलिए सदा स्नेही रहना और स्नेही बनाना... क्यों ?

 

 ❉   जो स्नेही होगा वह समीप होगा और समीपता सहज याद का साधन बन जायेगी।

 ❉   जो स्नेही होगा उसके सर्व सम्बन्ध एक से होंगे इसलिये स्नेह सहज ही याद का साधन बन जाएगा।

 ❉   जितना अटूट स्नेह होगा उतना ही स्नेही का सहयोग स्वत: प्राप्त होगा और उसकी याद स्वत: बनी रहेगी।

 ❉   जिससे स्नेह होगा उसका स्वरूप्  हर चलन में दिखाई देगा और उसका स्नेही स्वरूप याद का आधार बन जाएगा।

 ❉   जो स्नेही होगा वो सदा प्राप्तियों की अनुभूति करते हुए सदैव ख़ुशी में रहेगा और सर्व प्राप्ति कराने वाले दाता की याद में रहेगा।

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_  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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