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❍ 16 / 11 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ रात को सोने से पहले बाबा से °मीठी मीठी बातें° की ?
‖✓‖ °आत्म स्थिति° में स्थित होकर अनेक आत्माओं को जीयदान दिया ?
‖✓‖ °देहि अभिमानी° रहने का पुरुषार्थ किया ?
‖✓‖ °अथाह ख़ुशी° में रहे ?
‖✓‖ °ज्ञान डांस° किया ?
‖✗‖ क्लास में °सुस्ती° तो नहीं फैलाई ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ °एकता और संतुष्टता° के सर्टिफिकेट द्वारा सेवाओं में सफलतामूरत बनकर रहे ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ जैसे बाप को सर्व स्वरुपों से वा सर्व सम्बन्धों से जानना आवश्यक है, ऐसे ही बाप द्वारा स्वयं को भी जानना आवश्यक है। जानना अर्थात् मानना। मैं जो हूँ, जैसा हूँ, ऐसे मानकर चलेंगे तो देह में विदेही, व्यक्त में होते अव्यक्त, चलते-फिरते फरिश्ता वा कर्म करते हुए कर्मातीत स्थिति बन जायेगी।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ देह में विदेही, °व्यक्त में होते अव्यक्त° स्थिति का अनुभव किया ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं सदा सफलतामूर्त आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ एकता और सन्तुष्टता के सर्टिफिकेट द्वारा सेवाओं में सफलता प्राप्त करने वाली मैं सदा सफलतामूर्त आत्मा हूँ ।
❉ सर्व के प्रति स्नेह और श्रेष्ठता की भावना से मैं अपने सम्बन्ध संपर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को उमंग उल्लास से भरपूर करती जाती हूँ ।
❉ बाप समान सम्पूर्ण बनने का लक्ष्य रख, निरन्तर आगे बढ़ते हुए बाप को प्रत्यक्ष करने का दिव्य दर्पण बन रही हूँ ।
❉ बाप से सहयोग ले स्वयं आगे बढ़, मैं औरो को सहयोग दे आगे बढ़ा रही हूँ ।
❉ ज्ञान के मुख्य पॉइंट्स के अभ्यास द्वारा और योग की विशेषता द्वारा मैं सिद्धि स्वरूप बनती जाती हूँ ।
❉ बाबा से मिली सर्व खजानो और सर्व प्राप्तियों की अथॉरिटी से मैं आत्मा सिद्धि स्वरूप बन हर कार्य में सफलता प्राप्त करती जाती हूँ ।
❉ अपने रहम की वृति और सर्व के प्रति शुभ भावना, शुभकामना रखते हुए मैं हर प्रकार की आत्मा के व्यवहार को सहज ही परिवर्तन कर देती हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - तुम देही - अभिमानी बनो तो सब बीमारियां खत्म हो जायेंगी और तुम डबल सिरताज विश्व के मालिक बन जायेंगे"
❉ अपने वास्तविक स्वरूप को भूल स्वयं को देह समझने के कारण आज सभी मनुष्य दुखी है ।
❉ क्योकि देह अभिमान में आने के कारण सभी को पांच विकारों का रोग लगा हुआ है । इसलिए सभी आसुरी सम्प्रदाय के बन एक दूसरे को दुःख देते रहते हैं ।
❉ इस देह अभिमान की बीमारी से सबको छुड़ाने और फिर से सुखी बनाने के लिए ही ऊंच ते उंच परम पिता परम आत्मा बाप आयें हैं ।
❉ और आकर हम बच्चो को देही – अभिमानी बनना सिखला रहे हैं । क्योकि देही - अभिमानी बनेंगे तो सब बीमारियां खत्म हो जायेंगी ।
❉ और राजयोग की पढ़ाई से हम डबल सिरताज विश्व के मालिक बन जायेंगे ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ 5 विकारों की बीमारी से बचने के लिए देही-अभिमानी रहने का पुरूषार्थ करना है ।
❉ अभी तक तो अज्ञानता के कारण व दुनियावी झमेलों मे फंसे रहने के कारण विकारों मे आकर स्वयं को व अपने पिता को भूल गए । अब सत का संग मिलने पर अपने को आत्मा समझ आत्मा के पिता परमात्मा को याद करना है । याद से ही आत्मा पर लगी कट उतरती जायेगी ।
❉ जब आत्मिक दृष्टि रहती है तो भाई-भाई का भान रहता है व दृष्टि भी शुद्ध , पवित्र रहती है तो विकर्म नही होते ।
❉ देही अभिमानी बनने से एक ईश्वरीय नशा आता है इसी नशे से अपने को भाग्यवान समझते है और इसी भाग्य का आज तक गायन हो रहा है तभी बाबा कहते एक जन्म पवित्र बनो डबल ताजधारी बनेगें
❉ ज्यों ज्यों हम आत्मिक स्वरुप का अभ्यास करते हैं व आत्मा के पिता परमात्मा से अन्तर्मन की गहराईयों से जुडते जाते हैं त्यों त्यों हमारे विकार स्वत: गायब होने लगते हैं जैसे दीपक के जलाते ही अंधेरा अपने आप दूर हो जाता है ।
❉ देह व देह के सर्व सम्बंधों को छोड़ बस आत्मा के पिता परमात्मा को याद करना है । अशरीरी आए थे व अशरीरी ही जाना है तो इस विनाशी शरीर से मोह नही रखना । देही अभिमानी स्थिति में रहने का पुरुषार्थ करना है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ एकता और संतुष्टता के सर्टिफिकेट द्वारा सेवाओ में सदा सफलतामूर्त बन जाते है... क्यों और कैसे ?
❉ सेवा में सफलता प्राप्त करने का सहज साधन है अनेकता में एकता हो। सबके दिल में एक बाप और एक बाप की सेवा यही भाव और भावना हो तो बाप की याद और साथ से सफलता हुई ही पड़ी है।
❉ एक दो से संतुष्ट रहना और सबको संतुष्ट करना यही सर्टिफिकेट सबसे लेना है। अंतिम समय यही सर्टिफिकेट हमें धर्मराज की सजाओ से पार कराएँगे।
❉ जहाँ एकता हो और सर्व संतुस्थ हो वहाँ माया भी आ नहीं सकती। वह किला इतना मजबूत हो जाता की कोई उसकी तरफ आँख उठाकर भी देखने की हिम्मत नहीं कर सकता।
❉ एक दो से संस्कार मिलकर चलना, इसमें चाहे जितना भी सहन करना पड़े या समाना पड़े पर वह अति सहज हो। स्नेह की भावना से एक दो की बातो को समाना सहज हो जाता है।
❉ हमारी यही एकता और संतुष्ट चेहरे दुनिया को दिखायेंगे की इनका साथी कोन है जो सब एक जैसे दिखते है और कैसी भी परिस्थिति में सदा संतुष्ट रहते है।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ आत्म स्थिति में स्थित हो कर अनेक आत्माओं को जीयदान दो तो दुआयें मिलेंगी... क्यों और कैसे ?
❉ आत्म स्थिति में स्थित हो कर रहने से आत्मा भाई भाई की दृष्टि पक्की होती जायेगी और सबके प्रति समदृष्टि सबको रूहानी स्नेह से भरपूर कर दुआयों की पात्र बना देगी ।
❉ स्वयं को आत्मा निश्चय करने का अभ्यास आत्मा को मैं और मेरे पन की हदों से दूर बेहद में ले जायेगा और बेहद की दृष्टि वृति आत्माओं को अविनाशी ख़ुशी की अनुभूति करवा कर उनकी दुआयों से भरपूर कर देगी ।
❉ आत्म अभिमानी हो कर रहने से आत्मा में प्रेम, नम्रता , हर्षितमुखता, जैसे दैवी गुण स्वत: आते जाएंगे जो अनेक आत्माओं को जीयदान दे उनकी दुआओं का अधिकारी बना देंगे ।
❉ आत्म स्थिति में स्थित व्यक्ति अपनी सहनशीलता और समायोजनशीलता से सहज ही हर प्रकार के स्वभाव संस्कार वाले व्यक्तियों के साथ समाजस्य स्थापित कर उन्हें संतुष्ट रखता है और उनकी दुआये प्राप्त कर लेता है ।
❉ आत्म अभिमानी स्थिति में जो स्थित रहते हैं वे परमात्म प्यार की पालना में पलते हुए शक्तिस्वरूप बन स्व कल्याण द्वारा विश्व कल्याण के निमित बन अनेक आत्माओं को जीयदान दे बाप की आशीर्वाद और सर्व की दुआयों के अधिकारी स्वत: ही बन जाते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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