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    03 / 04 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

         TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ एक के अंत में खोये रहे अर्थात °एकांतवासी° बनकर रहे ?

‖✓‖ °एकरस स्थिति° जमाने के लिए टाइम दिया ?

‖✓‖ "हम सब °आत्माएं भाई-भाई° हैं" - यह अभ्यास किया ?

‖✓‖ चेक किया की हमने °दैवी गुण° कहाँ तक धारण किये हैं ?

‖✓‖ आपस में बहुत बहुत °शीरखंड° होकर रहे ?

‖✗‖ चेक किया की हम °फालतू बातें° तो नहीं करते ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

‖✓‖ °विजयीपन के नशे° द्वारा सदा हर्षित रहे ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

➳ _ ➳  जैसे शारीरिक हल्केपन का साधन एक्सरसाइज है वैसे आत्मिक एक्सरसाइज़ योग अभ्यास द्वारा अभी अभी कर्मयोगी अर्थात् साकारी स्वरूपधारी बन साकार सृष्टि का पार्ट बजा, अभी आकारी फरिश्ता बन आकारी वतनवासी अव्यक्त रूप का अनुभव करना, अभी अभी निराकारी बन मूल वतनवासी का अनुभव करना, अभी- अभी अपने राज्य स्वर्ग अर्थात् वैकुण्ठवासी बन देवता रूप का अनुभव करना, ऐसे बुद्धि की एक्सरसाइज करो तो सदा हल्के हो जायेंगे । पुरूषार्थ की गति तीव्र हो जायेगी ।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

‖✓‖ दिन भर बार बा साकारी स्वरूपधारी, आकारी फरिश्ता, निराकारी स्वरुप, देवता रूप की °एक्सरसाइज° करते रहे ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं सर्व आकर्षणों से मुक्त आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 ❉   मैं उपराम वृति द्वारा साक्षी वा न्यारी स्तिथि में स्तिथ रहने वाली सर्व आकर्षणों से मुक्त आत्मा हूँ ।

 ❉   मैं आत्मा केवल एक बाप की याद के आकर्षण में ही आकर्षित हूँ ।

 ❉   बाप का श्रेष्ठ संग मुझे सर्व प्रकार के संग के रंग से सदा प्रभावहीन और मुक्त रखता है ।

 ❉   दिव्यता और अलौकिकता से सम्पन्न मैं आत्मा आलौकिक दिव्य दर्शनीय मूर्त हूँ ।

 ❉   मैं आत्मा सदा विजयी हूँ ... इसलिए सदा हर्षित भी हूँ ।

 ❉   मैं आत्मा बाप की गले की हार विजयी रतन हूँ... मैं विश्व के मालिक की बालक हूँ ।

 ❉   “मुझे जो मिला है.. वह किसी को भी नहीं मिल सकता” – इसी स्थायी नशे और ख़ुशी के आधार से मैं आत्मा माया के सर्व आकर्षणों से मुक्त रहती हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - यह तुम्हारा बहुत अमूल्य जन्म है, इसी जन्म में तुम्हे मनुष्य से देवता बनने के लिए पावन बनने का पुरुषार्थ करना है"

 

 ❉   हमारे जिस जीवन को रावण ने कौड़ी तुल्य बना दिया था, उसे अब परम पिता परमात्मा शिव बाबा ने आ कर हीरे तुल्य बना दिया है ।

 ❉   इसलिए हमारा यह जन्म बहुत ही अमूल्य है जिसकी कोई कीमत नही ।

 ❉   क्योकि सभी युगों में केवल यही एक मात्र ऐसा युग है जब स्वयं भगवान आ कर हमे ईश्वरीय पालना देते हैं, मनुष्य से देवता बनने की युक्ति बताते हैं ।

 ❉   और वह युक्ति है, परमात्मा बाप की यथार्थ याद से आत्मा को पावन बनाना ।

 ❉   इसलिए मनुष्य से देवता बनने के लिए हमे अपने इस अमूल्य जन्म को गवाना नही है बल्कि परमात्मा की याद से आत्मा को पावन बनाने का पुरुषार्थ करना है ।

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∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा)(Marks:-10)

 

➢➢ अंदर अपनी जाँच करनी है- हम बाप की याद में कितना समय रहते हैं? दैवीगुण कहाँ तक धारण किये हैं?

 

 ❉   जब अपने को आत्मा समझेंगे तो आत्मा के पिता परम आत्मा की याद स्वत: ही आयेगी। जैसे लौकिक में बच्चे को अपने पिता को याद स्वत: ही आती है उसे याद नहीं दिलाना पड़ता कि अपने पिता को याद करो।

 ❉   ये जाँच इसीलिए करते रहना है कि हम बाप की याद में कितना समय रहे क्योंकि पुराने जन्मों के कड़े संस्कारों से देहभान में आकर भूल जाते हैं। इसीलिए अपने को आत्मा समझ बाप को याद करने की प्रेक्टिस करनी है तभी विकर्म विनाश होगें।

 ❉   जब बाप ने हमें इस कल्याणकारी पुरूषोत्तम संगमयुग में स्वयं का व सत का ज्ञान दिया है व हमारे कौड़ी तुल्य जन्म को अमूल्य हीरे तुल्य बनाया है तो हमें सदा बाप की याद में रहना है देही-अभिमानी रहना है। क्योंकि इसके बिना याद स्थाई ठहर नहीं सकती।

 ❉   बाप हमें मनुष्य से देवता बनाते है तो हमारे अंदर दैवी गुण होने चाहिए । वैसे भी जो बाप के गुण वही बच्चों के गुण । तो हमें अपने अंदर चेकिंग करनी है कि हमारे अंदर जो दैवी गुण नहीं है उन्हें धारण करना है व बाप का नाम बाला करना है।

 ❉   बाप हमें कितना ऊंच पद देते है लक्ष्मी नारायण का पद ! तो हमें हमेशा सब की विशेषता को देखते हुए विशेष आत्मा बन ऊंच पद प्राप्त करना है। कभी लडाई-झगड़ा, झूठ बोलना ऐसा चलन रख बाप का नाम बदनाम नहीं करना क्योंकि "सतगुरू का निंदक ठोर न पाये"।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-10)

 

➢➢ विजयपन के नशे द्वारा सदा हर्षित रहने वाले सर्व आकर्षणों से मुक्त होते है... क्यों और कैसे ???

 

 ❉   हमारी विजय निश्चित है, हम स्वर्ग के मालिक बनने वाले है, यह नशा हमें इस दुःख की दुनिया से उपराम कर देता है।

 ❉   हमारी विजय निश्चित है, तो  हमारा सारा ध्यान अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में लग जाता है, इस दुनिया के अल्पकाल के सुखो में समय नष्ट नहीं करते।

 ❉   जो भी परिस्थितया या पेपर आये है परन्तु अंतिम रिजल्ट "हमारी ही विजय होनी है" पता होने से हम निश्चिंत व सदा हर्षित रहते है।

 ❉   हम आत्मा का 84 का चक्र पूरा हुआ अब फिर दैवी राज्य में जायेंगे यह नशा इस झूटी दुनिया के आकर्षणो से मुक्त कर देता है।

 ❉   श्रेष्ठ लक्ष्य स्पष्ट सामने दिखाई देने से बेहद ख़ुशी होती होती है, और उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लक्षण धारण करने का फुर्ना रहता जाते है; समय, स्वास, संकल्प व्यर्थ नहीं गवाते।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-10)

 

➢➢ एक के अंत में खो जाना अर्थात एकांतवासी बनना... कैसे ?

 

 ❉   एकाग्रता की शक्ति द्वारा मलिकपन की सीट पर सेट रहें तो एकांतवासी बन एक के अंत में खो जाना सहज हो जाएगा।

 ❉   रूलिंग पॉवर और कंट्रोलिंग पॉवर द्वारा मन बुद्धि को जब चाहे बाहरी दुनिया से समेट कर एक बिंदु पर एकाग्र करने का अभ्यास जितना बढ़ाएंगे उतना एकांतवासी बन एक के अंत में खोना सहज होगा ।

 ❉   बाहर के आकर्षणों के वशीभूत होने की बजाए जितना अंतर्मुखी रहने का अभ्यास होगा उतना एकांतवासी बन एक के अंत में खो जाने में आसानी होगी ।

 ❉  " एक बाप दूसरा ना कोई "ऐसी निरन्तर एक रस स्तिथि में रहने की अनुभूति सहज ही एकांतवासी बना देगी और एक के अंत में खो जाना सहज हो जायेगा ।

 ❉   किसी भी शक्तिशाली स्तिथि जैसे बीज रूप स्तिथि, फरिश्ता पन की स्तिथि अथवा अव्यक्त स्तिथि में स्तिथ रहने का निरन्तर अभ्यास एकांतवासी बनने और एक के अंत में खो जाने में सहज ही सफलता का आधार बन सकता है ।

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_  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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