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❍ 25 / 03 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °स्वयं के परिवर्तन° की घड़ी निश्चित की ?
‖✓‖ बाप को याद करते रहे और °सृष्टि चक्र° फिराते रहे ?
‖✓‖ अविनाशी °ज्ञान रत्नों का दान° कर पद्मों की कमाई जमा की ?
‖✓‖ °अहम भाव और वहम भाव° को °समाप्त° किया ?
‖✓‖ मनसा में °बुरे संकल्प° आये तो उन्हें °रोका° ?
‖✗‖ कर्मेन्द्रियों से कोई °उल्टा कर्म° तो नहीं किया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ बाप द्वारा °सफलता का तिलक° प्राप्त किया ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ वर्तमान समय विश्व कल्याण करने का सहज साधन अपने श्रेष्ठ संकल्पों की एकाग्रता द्वारा, सर्व आत्माओं की भटकती हुई बुद्धि को एकाग्र करना है । सारे विश्व की सर्व आत्मायें विशेष यही चाहना रखती हैं कि भटकी हुई बुद्धि एकाग्र हो जाए वा मन चंचलता से एकाग्र हो जाए । यह विश्व की मांग वा चाहना तब पूरी कर सकेंगे जब एकाग्र होने का अभ्यास होगा ।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ श्रेष्ठ संकल्पों की एकाग्रता द्वारा, सर्व आत्माओं की °भटकती हुई बुद्धि को एकाग्र° किया ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं सदा आज्ञाकारी, दिल्तख्त्नशीन आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ भाग्यविधाता बाप मुझ आज्ञाकारी बच्चे को सफलता का तिलक लगा रहे हैं ।
❉ सफलता का सितारा सदा मेरे मस्तक पर चमकता रहता है ।
❉ मैं सफलतामूर्त आत्मा सदा बाप दादा के दिल रूपी तख़्त पर विराजमान रहती हूँ ।
❉ दिलाराम बाप की छत्रछाया के अंदर मैं आत्मा सदा सुरक्षित अनुभव करती हूँ ।
❉ मेहनत व मुश्किल जैसे शब्द मैं आत्मा मुख से तो क्या संकल्प में भी ना लाकर सदैव सहजयोगी रहती हूँ ।
❉ अहम भाव और वहम भाव को समाप्त कर मैं आत्मा सदा रहमदिल रहती हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - अब वापिस घर जाना है इसलिए देह सहित देह के सब सम्बंधों को भूल एक बाप को याद करो, यही है सच्ची गीता का सार"
❉ दुनिया वाले गीता शास्त्र को सच्ची गीता और कृष्ण को गीता का भगवान मान पूरी गीता कंठस्थ कर लेते हैं ।
❉ उसे ही बार बार पढ़ते रहते हैं, समझते कुछ भी नही ।
❉ वास्तव में सच्चा गीता ज्ञान तो इस समय संगम युग पर स्वयं परम पिता परमात्मा आ कर हम ब्राह्मण बच्चों को दे रहें हैं ।
❉ इसलिए गीता का भगवान, कृष्ण नही बल्कि परम पिता परमात्मा शिव हैं ।
❉ और इस गीता का मुख्य सार है देह सहित देह के सब सम्बंधों को भूल एक परम पिता बाप को याद करना । क्योकि अब हमे वापिस घर जाना है ।
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∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा) (Marks:-10)
➢➢ यह एक-एक अविनाशी ज्ञान का रत्न लाखों-करोड़ों रूपयों का है, इन्हें दान कर क़दम-क़दम पर पदमों की कमाई करनी है।
❉ परमपिता परमात्मा़ इस पतित दुनिया में दूर देश से आकर जो सच्चा-सच्चा ज्ञान सुनाते है व हम अपने को ज्ञान रत्नों से भरते हैं। उन ज्ञान रत्नों से जो सुख, शांति व ख़ुशी मिलती है वो बाहर किसी भी दुकान पर लाखों करोड़ों में भी नहीं ख़रीद सकते।
❉ जितना अच्छी रीति पढ़ेंगे उतनी ही ज़्यादा ज्ञान रत्नों से अपनी झोलियाँ भरेंगे। ज्ञान की एक-एक प्वाइंट लाखों करोड़ों की है व इससे ही पदमों की कमाई है।
❉ अविनाशी ज्ञान रत्नों की कमाई जमा करने के लिए बुद्धि रूपी कलश साफ़ होना चाहिए तभी जमा कर सकेंगे।
❉ लौकिक में जो कमाई करते है वह विनाशी होती है। बाप जो पढ़ाते है वह अविनाशी कमाई है व यही साथ जानी है। इसी पढ़ाई से हमें 21 जन्मों की राजाई को प्राप्त करते हैं।
❉ इन ज्ञान रत्नों को धारण करके जितना गहराई में जाते हैं व यूज करते हैं, जितना बाँटते हैं वे बढ़ते जाते हैं।ज्ञान रत्नों का दान कर औरों को भी आप समान बनाते है तो उतने ही ख़ज़ाने भरते है व ऊंच पद पाते हैं।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-10)
➢➢ बाप द्वारा सफलता का तिलक प्राप्त करने वाले सदा आज्ञाकारी, दिलतख्तनशीन स्थिति का अनुभव करते है... क्यों और कैसे ?
❉ आज्ञाकारी बच्चे सदा बाप के दिल में बसते है और उन्हें सफलतामूर्त भव का वरदान सहज प्राप्त रहता है।
❉ सदा बाप की श्रीमत पर चलना ही आज्ञाकारी बनना है।
❉ बाप से सफलतामूर्त भव का वरदान हमें सदेव हर परिस्थिति में विजय होने का आत्म विश्वास जगा देता है और हम बाप के प्रति पूर्ण रूप से आज्ञाकारी हो रहते है।
❉ हम भगवान के दिल में बसते है यह संकल्प ही हमें अतीन्द्रिय सुख से भर जाता है।
❉ "सफलता हम बच्चो का जन्म सिद्ध अधिकार है" यह स्मृति रखने से हम दुनिया की कोई भी परिस्थिति का सामना करते हुए भी बाप की सभी आज्ञाओ का पालन कर सकते है।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-10)
➢➢ विश्व परिवर्तन की डेट नही सोचो, स्वयं के परिवर्तन की घड़ी निश्चित करो... क्यों ?
❉ स्वयं का परिवर्तन ही विश्व परिवर्तन का आधार है । इसलिए विश्व परिवर्तन की डेट सोचने की बजाए स्वयं के परिवर्तन की घड़ी निश्चित करें तो परिवर्तन होगा ।
❉ दूसरों के स्वभाव, संस्कारों का परिवर्तन तभी होगा जब हमारे संकल्प, संस्कार, बोल समर्थ होंगे । इसलिए अपने स्वभाव, संस्कारों का परिवर्तन ही विश्व में परिवर्तन लाएगा ना कि विश्व परिवर्तन की डेट सोचने से परिवर्तन होगा ।
❉ आने वाले समय प्रमाण स्वयं के परिवर्तन की मशीनरी फास्ट होगी तभी विश्व परिवर्तन की मशीन तेज होगी । इसलिए विश्व परिवर्तन के लिए डेट सोचने की नही बल्कि स्वयं के परिवर्तन की घड़ी निश्चित करने की आवश्यकता है।
❉ जब स्थापना के निमित बनी हुई आत्माओं का सोचना और करना एक समान होगा तभी अपनी कथनी और करनी से अन्य आत्माओं का परिवर्तन सम्भव है । इसलिए विश्व परिवर्तन के लिए डेट सोचने की नही बल्कि स्वयं के परिवर्तन की आवश्यकता है ।
❉ जैसा मैं करूँगा, मुझे देख और करेंगे । जब इस दृढ संकल्प के साथ एक दूसरे को सहयोग देते हुए आगे बढ़ेंगे तभी विश्व का परिवर्तन सहज होगा, परिवर्तन की डेट सोचने से परिवर्तन नही होगा ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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