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❍ 29 / 12 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °आँखों° की बड़ी संभाल रखी ?
‖✓‖ °आत्मा° को ही देखा ? आत्मा होकर ही बात की ?
‖✓‖ स्तुति निंदा सभी में °धीरज° से काम लिया ?
‖✓‖ जो बात काम की नहीं... उसे एक कान से सुन °दुसरे कान से निकाला° ?
‖✓‖ °ख़ुशी° से भरपूर रहे ?
‖✗‖ कोई भी °हद की तमन्नायें° तो नहीं रखी ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ लक्ष्य के प्रमाण °लक्षण के बैलेंस° की कला द्वारा चढ़ती कला का अनुभव किया ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ अन्त:वाहक स्थिति अर्थात् कर्मबन्धन मुक्त कर्मातीत स्थिति का वाहन अर्थात् अन्तिम वाहन, जिस द्वारा ही सेकण्ड में साथ में उड़ेंगे। इसके लिए सर्व हदों से पार बेहद स्वरूप में, बेहद के सेवाधारी, सर्व हदों के ऊपर विजय प्राप्त करने वाले विजयी रत्न बनो तब ही अन्तिम कर्मातीत स्वरूप के अनुभवी स्वरूप बनेंगे।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ सर्व हदों से पार बेहद स्वरूप में, बेहद के सेवाधारी, °सर्व हदों के ऊपर विजय° प्राप्त करने वाले विजयी रत्न बनकर रहे ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं बाप समान सम्पन्न आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ लक्ष्य के प्रमाण लक्षण के बैलेंस की कला द्वारा चढ़ती कला का अनुभव करने वाली मैं बाप समान सम्पन्न आत्मा हूँ ।
❉ दृढ़ता की शक्ति द्वारा मैं बाप से बाप समान सम्पन्न बनने का वरदान प्राप्त कर निरन्तर आगे बढ़ती जाती हूँ ।
❉ व्यर्थ चिंतन और पर चिंतन से किनारा कर स्व चिंतन द्वारा मैं सहज ही दूसरों को परिवर्तन कर देती हूँ ।
❉ स्व - चिंतक स्वदर्शन चक्रधारी बन सर्व आत्माओं के प्रति शुभ - भावना, शुभ - कामना रखते हुए मैं सर्व का कल्याण कर रही हूँ ।
❉ अपनी शुभ चिंतन वृति द्वारा मैं सर्व आत्माओं की ग्रहण शक्ति को बढ़ाती हूँ ।
❉ सर्व प्रकार के आकर्षणों से मुक्त मैं प्रत्यक्षता के समय को समीप लाने वाली हूँ ।
❉ अशुद्ध और व्यर्थ चिंतन के प्रभाव से मुक्त मैं देह के सूक्ष्म लगाव से भी न्यारी हूँ ।
❉ बाप समान सम्पन्न बनने की स्मृति मुझे माया के तूफानों में भी सहज ही मेहनत मुक्त, जीवन मुक्त स्तिथि का अनुभव कराती है ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - मधुबन होलीएस्ट ऑफ़ दी होली बाप का घर है, यहां तुम किसी भी पतित को नही ला सकते"
❉ शास्त्रों में यह गायन है कि इंद्र सभा में कोई भी पतित आत्मा कभी आ नही सकती ।
❉ वास्तव में इंद्र है होलीएस्ट ऑफ़ दी होली परम पिता परमात्मा शिव बाबा ।
❉ और जिस सभा में बैठ कर परमात्मा बाप ज्ञान की वर्षा करते हैं उसे ही सच्ची इंद्र सभा कहेंगे ।
❉ और वह सभा है होलीएस्ट ऑफ़ दी होली बाप का घर मधुबन । जहां एवर होलीएस्ट बाप आ कर अविनाशी ज्ञान रत्नों से स्वयं हमारा श्रृंगार करते हैं ।
❉ ऐसे होलीएस्ट प्लेस पर किसी भी पतित आत्मा को ले जाने की परमिशन नही है । इसलिए बाप चेतावनी देते हैं कि यहां तुम किसी भी पतित आत्मा को नही ला सकते ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ कोई भी हद की तमन्ना नहीं रखनी है । आंखो की बड़ी सम्भाल रखनी है । क्रिमिनल दृष्टि न जाए ।
❉ इस पुरुषोत्तम संगमयुग पर हमें सत का ज्ञान व दिव्य दृष्टि मिलने पर अपनी बुद्धि हद की इच्छाओं मे नही रखनी । यहां तो सब विनाशी है व सब कब्रदाखिल ही होना है । हमें तो बेहद का बाप मिला है व बेहद के बाप से बेहद का वर्सा मिलता है फिर अपनी बुद्धि को हद मे क्यूं रखना ।
❉ हम दाता के बच्चे मास्टर दाता है व हमें बाप ने अपनी शक्तियों , गुणो व खजानों से भरपूर किया है तो हमे तो सब को देना ही देना हैं व हद के रिश्तों से, वैभव से लगाव नहीं रखना न ही कोई इच्छा रखनी है ।
❉ हमें देहधारियों मेंअपनी बुद्धि नही फंसानी है । अपने को आत्मा समझ आत्मा से ही बात करनी है व आत्मा के पिता परमात्मा को याद कर देही-अभिमानी बनना है ।
❉ इन आंखों से देखते हुए भी नही देखना । आंखों की बडी सम्भाल रखनी है क्योंकि जो देखते हैं फिर वही मनसा मे आता है ल फिर वैसे कर्म करते है ।
❉ आत्मिक दृष्टि रखने से आत्मा आत्मा भाई भाई का भान रहता है व देहभान नहीं रहता । आंखे धोखा नही खाती व दृष्टि शुद्ध व पवित्र रहती है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ लक्ष्य के प्रमाण लक्षण के बैलेंस की कला द्वारा चढती कला का अनुभव करने वाले बाप समान संपन्न अनुभव करते है... क्यों और कैसे ?
❉ " जैसा लक्ष्य वैसे लक्षण", जैसा हमारा लक्ष्य होगा वैसे लक्षण स्वतः आते जाते है। जितना उचा लक्ष्य रखेंगे उतना ही उसको प्राप्त करने के लिए उस अनुसार लक्षण भी आते जायेंगे।
❉ हमारा सोचना और करना समान होना चाहिए, सोचते बहुत अच्छा अच्छा है परन्तु करने में अंतर पड़ जाता है, कथनी और करनी में अंतर होने से ही जैसा लक्ष्य है वैसा नहीं बन पाते है।
❉ जब दृढ संकल्प धारी बनेंगे तभी अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे, बिच बिच में अपने को चेक भी करते रहना और अपने लक्ष्य की स्मृति भी दिलाते रहना पड़ेगा नहीं तो ढीले पड जाते है।
❉ बाप समान संपन्न बनना बहुत उची मंजिल है, कोई मासी का घर नहीं है। हर सेकंड, हर संकल्प, हर कर्म की सूक्ष्म चेकिंग करना होगा। हमेशा स्वदर्शन चक्र फिराते रहने से ही विकार्मो से बच सकेंगे।
❉ बैलेंस हमेशा बनाकर चलना है, स्व पुरुषार्थ और सेवा दोनों का बैलेंस जैसे जरुरी है, वैसे ही अपने लक्ष्य और उसको प्राप्त करने के लक्षण में भी बैलेंस हो। सिर्फ सोचने से कुछ प्राप्त नहीं होगा करके दिखाना होगा।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ सेवा का भाग्य प्राप्त होना ही सबसे बड़ा भाग्य है... क्यों और कैसे ?
❉ जो स्वयं को ईश्वरीय सेवा में समर्पित कर देते हैं, वे निर्माण और निर्मानचित बन सर्व आत्माओं को संतुष्ट रख उनकी दुआयें प्राप्त कर अपना श्रेष्ठ भाग्य जमा करते जाते हैं ।
❉ ईश्वरीय सेवा में स्वयं को बिज़ी रखने वाले सदा उमंग उत्साह से भरपूर रहते हैं तथा अपने उमंग उत्साह से अन्य आत्माओं को भी उमंग - उत्साह दिलाने के निमित बन अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध जमा कर लेते हैं ।
❉ जो तन - मन - धन से ईश्वरीय सेवा में सदा तत्पर रहते हैं, वे अपने शुभ और श्रेष्ठ वायब्रेशन्स से सर्व आत्माओं के कल्याण के निमित बन भविष्य ऊंच प्रालब्ध के अधिकारी बनते हैं ।
❉ ब्राह्मण जीवन का मुख्य कर्तव्य है ही आगे बढ़ना और बढ़ाना इसलिए जो स्वयं को ईश्वरीय सेवा में लगा कर स्वयं आगे बढ़ औरों को आगे बढ़ाते हैं,उनके भाग्य का सितारा स्वत: जगमगाने लगता है ।
❉ याद और सेवा का बैलेंस रख, ईश्वरीय सेवा में जो स्वयं को आफर करते हैं वे परमात्म शक्ति द्वारा सर्व आत्माओं का कल्याण कर, अपने श्रेष्ठ भाग्य का निर्माण करते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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