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    27 / 03 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

         TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ °आत्मा भाई-भाई° की दृष्टि पक्की की ?

‖✓‖ स्वयं को चेक किया की °एवररेडी° बने हो या अभी तक कुछ रस्सियाँ बंधी हुई हैं ?

‖✓‖ °मास्टर नॉलेजफुल° बन आत्माओ को रचता और रचना का ज्ञान सुनाकर घोर अंधियारे से निकालने की सेवा की ?

‖✓‖ "हम इस °जगत का कल्याण° करने वाले हैं" - यह स्मृति रही ?

‖✓‖ "अब °घर जाने का समय° है" - यह स्मृति में रहा ?

‖✗‖ °व्यर्थ संकल्प° रुपी एक्स्ट्रा भोजन तो नहीं किया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

‖✓‖ "°एक बाप दूसरा ना कोई°" - यह स्मृति रही ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

➳ _ ➳  बुद्धि को एकाग्र करने के लिए मनमनाभव के मंत्र को सदा स्मृति में रखो । मनमनाभव के मंत्र की प्रैक्टिकल धारणा से पहला नम्बर आ सकते हो । मन की एकाग्रता अर्थात् एक की याद में रहना, एकाग्र होना यही एकान्त है । अभी अपने को एकान्तवासी बनाओ अर्थात् सर्व आकर्षणों के वायब्रेशन से अन्तर्मुख बनो । अब यही अभ्यास काम में आयेगा ।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

‖✓‖ °मनमनाभव° के मंत्र की प्रैक्टिकल धारणा की ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं बंधनमुक्त , योगयुक्त आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 ❉   मैं सर्व प्रकार के बन्धनों से मुक्त निर्बन्धन आत्मा हूँ ।

 ❉   “एक बाप दूसरा ना कोई” की धारणा को धारण कर मैं आत्मा सदैव देह के सब संबंधो से अनासक्त रहती हूँ ।

 ❉   मेरे सर्व सम्बन्ध केवल परम पिता परमात्मा बाप के साथ है ।

 ❉   मेरे हर संकल्प में केवल एक बाप की याद समाई हुई है ।

 ❉   “अब घर जाना है” – बस यही धुन मुझ आत्मा को लगी रहती है ।

 ❉   इस पुराने शरीर को छोड़ घर जाने के लिए मैं आत्मा सदैव एवररेडी हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - इस समय तुम्हारी यह जीवन बहुत - बहुत अमूल्य है क्योकि तुम हद से निकल कर बेहद में आये हो, तुम जानते हो हम इस जगत का कल्याण करने वाले हैं"

 

 ❉   आज सारी दुनिया के मनुष्य मात्र देह अभिमान की हदों में कैद हैं ।

 ❉   इसलिए सबकी सोच भी हद अर्थात देह और देह के सम्बंन्धियो तक ही सिमित है ।

 ❉   लेकिन हम ब्राह्मण बच्चे अब इस हद से निकल कर बेहद में आ गए हैं । इसलिए हमारा यह जीवन बहुत ही अमूल्य है ।

 ❉   हमारी वृति, दृष्टि अब हद से निकल बेहद की हो गई है अर्थात हम सबको आत्मा भाई भाई की दृष्टि से देखते हैं । इसलिए हम केवल अपने लौकिक परिवार के बारे में नही सोचते बल्कि सारे विश्व को अपना परिवार मानते हैं ।

 ❉   क्योकि हम जानते हैं कि हम ही इस विश्व का कल्याण करने वाले हैं ।कल्याणकारी परम पिता परमात्मा ने स्वयं हमे विश्व कल्याण के महान कार्य के लिए चुना है ।

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∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा) (Marks:-10)

 

➢➢ पावन बनने के लिए हम आत्मा भाई-भाई हैं, फिर ब्रह्मा बाप की संतान भाई-बहन हैं, यह दृष्टि पक्की करनी है।

 

 ❉   परमपिता परम आत्मा के हम सब बच्चे हैं आत्मा के रूप में, तो सब आपस में भाई-भाई हुए। फिर जब संगम पर ब्रह्मा बाप हमें एडाप्ट करते है तो भाई-बहन हैं। ये दृष््टि पक्की करनी है।

 ❉   जब आत्मिक दृष्टि पक्की होगी व अपने को आत्मा समझ परमपिता परमात्मा को याद करेंगे तो पावन बनेंगे।

 ❉   जब अपने को आत्मा समझेंगे तो देहभान में नहीं आयेंगे व विकारों में नहीं जायेंगे। आत्मिक दृष्टि रखने से पावन बन जायेंगे।

 ❉   सत का संग करने पर ही ज्ञान का तीसरा नेत्र खुला है व स्वयं को पहचाना है। स्वयं को पहचानकर ही भाई-भाई की दृष्टि रहने से पावन बनते जायेंगे।

 ❉   स्वयं को अकालमूर्त आत्मा समझ बाप को याद करने से सबके प्रति आत्मिक भाव रहेगा व पावन बन जायेंगे।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-10)

 

➢➢ "एक बाप दूसरा न कोई" यह स्मृति बंधनमुक्त, योगयुक्त स्थिति का अनुभव करवाती है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   जब सर्व सम्बन्ध एक बाप से हो तो इस देह के सभी सम्बन्ध निमित्त मात्र रह जाते है।

 ❉   बाप को अपना सर्वस्व बनाने से बुद्धि कही भी लटकेगी, फसेगी नहीं इससे एकाग्रता बढ़ेगी।

 ❉   एक बाप को अपना सब कुछ बनाने से मन की लगन और प्यार सिर्फ एक बाप से रहेगा और जिससे प्यार होता है उसकी याद सहज बनी रहती है।

 ❉   एक बाप को अपना मानने से जो वो कहे जैसा कहे वैसे ही उसकी हर बात सही लगेगी और वैसा ही कर्म हम करेंगे, कभी संशय नहीं आयेगा, हर श्रीमत का पालन करेंगे।

 ❉   एक बाप दूसरा ना कोई ही है सम्पूर्ण समर्पण स्थिति और तभी हम अपना तन, मन, धन, समय, स्वास, संकल्प सब कुछ सफल कर सकते है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-10)

 

➢➢ व्यर्थ संकल्प रूपी एक्स्ट्रा भोजन नही करो तो मोटेपन की बीमारियों से बच जायेंगे... कैसे ?

 

 ❉   मन बुद्धि को रेस्ट दे तो व्यर्थ संकल्प रूपी एक्स्ट्रा भोजन नही खायेंगे और मोटेपन की बिमारियों से बच जाएंगे ।

 ❉   बुद्धि को शांत और एकाग्रचित बना ले तो व्यर्थ संकल्प रूपी एक्स्ट्रा भोजन नही मिल पायेगा जिससे मोटे पन की बीमारियाँ भी दूर रहेंगी ।

 ❉   निराकारी स्तिथि में स्तिथ हो जाएँ तो निर्संकल्प अवस्था बन जायेगी जिससे व्यर्थ संकल्प रूपी एक्स्ट्रा भोजन और उससे होने वाली मोटे पन की बीमारियों से बच जायेंगे ।

 ❉   जितना योग का बल जमा करते जाएंगे उतने समर्थ बनते जायेंगे और व्यर्थ संकल्प रूपी  एक्स्ट्रा भोजन की मार्जिन ही नही रहेगी फलस्वरूप् उससे होने वाली मोटे पन की बीमारियाँ भी नही होंगी ।

 ❉   सदा रूहानियत के नशे में रह, सेवा में बिजी रहें तो व्यर्थ संकल्प रूपी एक्स्ट्रा भोजन करने का समय ही नही मिलेगा । जिससे मोटे पन की बीमारियां भी दूर रहेंगी ।

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_  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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