━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

    07 / 06 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

         TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ °स्वदर्शन चक्र° फिराते रहे ?

 

‖✓‖ शुद्ध संकल्प रुपी व °द्रिड संकल्प रुपी व्रत° रखा ?

 

‖✗‖ बेहद की °याद को हद में तो नहीं° लाये ?

 

‖✗‖ समय निश्चित कर अविनाशी °सम्बन्ध को विनाशी तो नहीं° बनाया ?

 

‖✗‖ °पश्चाताप की स्थिति° या महसूसता की स्टेज तो अनुभव नहीं की ?

 

‖✗‖ अविनाशी वर्सा लेने के लिए °विनाशी वर्सा देने से किनारा° तो नहीं किया ?

───────────────────────────

 

∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ सर्व खजानों की °इकॉनमी का बजट° बनाया ?

───────────────────────────

 

आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  योग का प्रयोग अर्थात् अपने शुद्ध संकल्पों का प्रयोग तन पर, मन पर, संस्कारों पर अनुभव करते आगे बढ़ते जाओ, इसमें एक दो को नहीं देखो। यह क्या करते, यह नहीं करते, पुराने करते वा नहीं करते, यह नहीं देखो। पहले मैं इस अनुभव में आगे जाऊं क्योंकि यह अपने आन्तरिक पुरूषार्थ की बात है। जब ऐसे व्यक्तिगत रूप में इसी प्रयोग में लग जायेंगे, वृद्धि को पाते रहेंगे तक एक एक के शान्ति की शक्ति का संगठित रूप में विश्व के सामने प्रभाव पड़ेगा।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ °शुद्ध संकल्पों का प्रयोग° तन पर, मन पर, संस्कारों पर अनुभव करते आगे बढ़ते गए ?

───────────────────────────

 

∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं महीन पुरुषार्थी हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   अपने तीव्र पुरुषार्थ के आधार पर भविष्य श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने वाली मैं महीन पुरुषार्थी आत्मा हूँ ।

 

 ❉   कर्मयोगी आत्मा बन, अपने हर कर्म को रूहानियत से भरपूर कर, मैं आत्मा अपने पुरुषार्थ में दिन - प्रतिदिन महीनता लाती जाती हूँ ।

 

 ❉   सर्व खजानों की इकॉनामी का बजट बना कर मैं हर खजाने को उचित समय पर उचित तरीके से इस्तेमाल करके हर खजाने को वेस्ट होने से बचाती हूँ ।

 

 ❉   अपने हर संकल्प, बोल और शक्तियों की सूक्ष्म चेकिंग कर,  इनके एक्स्ट्रा खर्च को रोक कर इनकी बचत करती जाती हूँ ।

 

 ❉   मैं " कम खर्च बाला नशीन " बन हर सेकण्ड वा संकल्प को स्वयं के प्रति शक्तिशाली बनाने अर्थ वा सर्व आत्माओं की सेवा अर्थ कार्य में लगाती जाती हूँ ।

 

 ❉   तन - मन - धन से बाप पर अर्पित हो, स्वयं को ईश्वरीय सेवा में बिज़ी रख अपने पुरुषार्थ की रफ़्तार को तीव्र करती जाती हूँ ।

───────────────────────────

 

∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ रूहानी अलंकार और उनसे सजी हुई मूर्तियां

 

 ❉   भक्ति मार्ग में देवी - देवताओं को जो अलंकार दिखाये गये हैं वह अलंकार वास्तव में ब्राह्मण जीवन का श्रृंगार है ।

 

 ❉   इसलिए ब्राह्मण कुल की श्रेष्ठ आत्माएं सदा अलंकारों से सजे सजाये होने चाहिए ।

 

 ❉   अपने अलंकार के श्रृंगार को सदा कायम रखने वाले ब्राह्मण बच्चे ही प्रकृति और माया के वार का सामना कर प्रकृतिजीत, मायाजीत बन सकते हैं ।

 

 ❉   ये अलंकार ना केवल बाप के दिल रूपी तख्त पर सदा विराजमान रहने का साधन है, बल्कि इस समय जो जितने अलंकारी मूर्त बनते है भविष्य में उतने दर्शनीय मूर्त बनते हैं ।

 

 ❉   सदा अलंकारी स्वरूप में स्थित होने वाले ही स्वयं का और बाप का साक्षात्कार करा सकते हैं । इसलिए अपने शक्ति रूपी भुजाओं को मजबूत बनाओं  तो अलंकारों की अच्छी धारणा कर सजी हुई मूर्तियां बन सकेंगे ।

───────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा - ज्ञान मंथन(Marks:-10)

 

➢➢ बेहद की याद को हद में नहीं लाना है।

 

 ❉   लौकिक हो या अलौकिक कोई भी कर्म करते बापदादा को साथ ईमर्ज कर काम करना है।

 

 ❉   नष्टोमोहा बन लौकिक से सर्व सम्बंध से किनारा कर केवल एक बाप को ही अपना सर्वस्व मानकर चलना है व कर्म करने हैं।

 

 ❉   लौकिक में रहते व सर्व लौकिक सम्बंध निभाते हुए भी एक ही स्लोगन स्मृति में रखना है कि"मेरा तो एक बाप दूसरा न कोई"

 

 ❉   बेहद के बाप की याद को निरंतर रखते हैं तो सदा छत्रछाया के अंदर सेफ़ रहते हैं व हद के किसी सहारे की ज़रूरत महसूस नहीं होती।

 

 ❉   बेहद का बाप है हमारा व लेने के लिए तो अविनाशी अधिकार है, अविनाशी वर्सा है और जब देने की बात आती है तो विनाशी हदों को भी नहीं छोड़ते ।

───────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ सर्व खजानों की इकॉनमी का बजट बनाने वाले महीन पुरुषार्थी होते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   हमारे एक एक संकल्प का बहुत महत्त्व है, हमारे संकल्पों के आधार से ही सृष्टि की रचना होती है, तो चेक करे की संकल्प व्यर्थ तो नहीं जाते।

 

 ❉   सरे कल्प में यह संगमयुग का थोडा सा अमुल्य समय अपना भाग्य बनाने के लिए मिला है, इसका पूरा सदुपयोग कर पुरुषोत्तम बनने का पुरुषार्थ करना है।

 

 ❉   जो आत्माये अपने हर संकल्प, स्वास, हर सेकंड की अटेंशन रखते है, रोज़ रातको अपना पोतामेल देखते है वही तीव्र पुरुषार्थी कहलाते है।

 

 ❉   जैसे बड़े लोग अपना स्थूल का टाइम टेबल सेट करते है और उसी अनुसार सारे दिन की दिनचर्या होती है उसी अनुसार हमें अपना स्थूल के साथ सूक्ष्म टाइम टेबल भी सेट करना है।

 

 ❉   मन बुद्धि और संस्कारो को परिवर्तन करने के लिए व दैवी गुण धारण करने के लिए अब हमें महीन पुरुषार्थी बनना होगा जिससे हम स्व परिवर्तन सो विश्व परिवर्तन कर सके।

───────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ स्नेह के खजाने से मालामाल बन सबको स्नेह दो और स्नेह लो... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   स्नेह के खजाने से मालामाल बन सबको स्नेह देंगे तो स्नेही बाप के स्नेह के अधिकारी बन अतीन्द्रिय सुख के झूले में सदैव झूलते रहेंगे ।

 

 ❉   जितना दूसरों को स्नेह देंगे उतना ही सर्व आत्माओं के स्नेह का सहयोग सहज ही प्राप्त करते रहेंगे ।

 

 ❉   स्नेही बन जितना दूसरों को स्नेह देंगे, उतना स्नेह के खजाने और सर्व प्राप्तियों की अनुभूति करते हुए सदा ख़ुशी में रहेंगें ।

 

 ❉   स्नेह के खजाने से सम्पन्न बन सर्व आत्माओं को स्नेह देने से सहज ही सर्व की दुआओं के पात्र बन उड़ती कला का अनुभव करते रहेंगे ।

 

 ❉   स्नेह के खजाने से भरपूर हो, सबको स्नेह देने से हर परिस्थिति में परमात्म मदद का अनुभव करते हुए सदा मौज में रहेंगे।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━