━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 10 / 06 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ "°हम सो, सो हम°" की छोटी सी कहानी बहुत युक्ति से समझी और समझाई ?
‖✓‖ °तमोप्रधान से सतोप्रधान° बनने का ही चिंतन किया ?
‖✓‖ अपने आपसे प्रतिज्ञा की , "हम °भाई-बहन° होकर रहेंगे" ?
‖✓‖ मेरेपन की अनेक हद की भावनाएं एक "°मेरे बाबा°" में समा दी ?
‖✓‖ कितने भी तूफ़ान आयें, घटा पड़े लेकिन °बाप की याद° में रहे ?
‖✗‖ °फालतू बातों° में समय तो नहीं गंवाया ?
──────────────────────────
∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ °नम्रता° रुपी कवच द्वारा व्यर्थ के रावण को जलाया ?
──────────────────────────
✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ कोई भी खजाना कम खर्च करके अधिक प्राप्ति कर लेना, यही योग का प्रयोग है। मेहनत कम सफलता ज्यादा इस विधि से प्रयोग करो। जैसे समय वा संकल्प श्रेष्ठ खजाने हैं, तो संकल्प का खर्च कम हो लेकिन प्राप्ति ज्यादा हो। जो साधारण व्यक्ति दो चार मिनट संकल्प चलाने के बाद, सोचने के बाद सफलता या प्राप्ति कर सकता है वह आप एक दो सेकेण्ड में कर सकते हो, इसको कहते हैं कम खर्चा बाला नशीन। खर्च कम करो लेकिन प्राप्ति 100 गुणा हो इससे समय की वा संकल्प की जो बचत होगी वह औरों की सेवा में लगा सकेंगे, दान पुण्य कर सकेंगे, यही योग का प्रयोग है।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ °कम खर्चा बाला नशीन° बनकर रहे ?
──────────────────────────
∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं सच्ची स्नेही, सहयोगी आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ सर्व आत्माओं को सच्चा स्नेह और सहयोग देने वाली मैं सच्ची स्नेही और सहयोगी आत्मा हूँ ।
❉ नम्रता रूपी कवच धारण कर, मैं व्यर्थ के रावण को सहज ही जला कर भस्म करने वाली हूँ ।
❉ सबके साथ संस्कारों की रास मिला कर मैं अपने सम्बन्ध, संपर्क में आने वाली सर्व आत्माओं के संस्कारों के टकराव से मुक्त हूँ ।
❉ अभिमान और अपमान की महसूसता से परे, निर्मान और निर्माण के बैलेंस द्वारा मैं सर्व की दुयाएं प्राप्त कर निरन्तर आगे बढ़ती जाती हूँ ।
❉ क्यों, क्या और कैसे के व्यर्थ संकल्पों की क्यू को मैं सेकण्ड में फुल स्टॉप लगा कर समाप्त कर देती हूँ ।
❉ अपने नम्र और सहयोगी व्यवहार से सबको सदा संतुष्ट करने वाली मैं सबके स्नेह की पात्र आत्मा बनती जाती हूँ ।
──────────────────────────
∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - तुम अभी श्रीमत पर साइलेन्स की अति में जाते हो, तुम्हे बाप से शान्ति का वर्सा मिलता है, शान्ति में सब कुछ आ जाता है"
❉ आज सारी दुनिया में सभी मनुष्य मात्र सुख और शान्ति की तलाश में भटक रहे हैं
❉ सच्ची शान्ति कैसे मिल सकती है, यह कोई भी नही जानता इसलिए सभी भौतिक सुख सुविधाओं में सुख शान्ति को तलाश करने में लगे हुए हैं ।
❉ सिवाय हम ब्राह्मण बच्चों के यह बात कोई की बुद्धि में नही है कि सच्चा सुख और शान्ति भौतिक सुख अर्थात ऐशो - आराम के साधनो से प्राप्त नही किया जा सकता ।
❉ सच्चा सुख और शान्ति तो केवल सुखदाता, शांतिदाता परम पिता परमात्मा बाप ही आ कर दे सकते हैं ।
❉ अब वही परमपिता परमात्मा बाप इस समय संगमयुग पर आ कर हम आत्माओं को सुख शान्ति का वर्सा दे रहे हैं, उनकी श्रीमत पर चल हम साइलेन्स की अति में जा रहे हैं अर्थात गहन शान्ति की अनुभूति कर रहे हैं ।
──────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने का ही चिंतन करना है, और कोई चिंतन न चले
❉ अभी तक अपने को देह समझते रहे व देहभान में आकर विकारों में गिरते गए लेकिन अब सत का ज्ञान मिलने पर अपने को देह नहीं आत्मा समझना है।
❉ आत्मा समझने से ही आत्मा के पिता परम आत्मा की याद स्वत: ही आती है। बाप को याद करने से विकर्म विनाश होते हैं व आत्मा की खाद निकलती जाती है । आत्मा सतोप्रधान होती जाती है।
❉ हम सब आत्माओं का बाप एक है तो हम सब बच्चे आपस में भाई-भाई हुए। जब आत्मिक दृष्टि रहती है तो स्त्री पुरूष का भान निकल जाता है। पवित्र बन पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे।
❉ बाप कहते है कि पहले तुम पवित्र थे सतोप्रधान थे व विकारों में आते-आते गिर पड़े हो । मैं तुम्हें पतित से पावन बनाने आया हूँ । श्रीमत पर चलते हुए बहुत पुरूषार्थ करना है कि हम आत्मयें सतोप्रधान बन जायें।
❉ उठते-बैठते, चलते-फिरते बुद्धि में यही रहे चिंतन करना है कि हम सुखधाम वाया शांतिधाम जाएँ क्योंकि बाप ने रास्ता बताया है। हम सतोप्रधान आएँ थे अब सतोप्रधान बनकर घर जाना है।
──────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ नम्रता रूपी कवच द्वारा व्यर्थ के रावण को जलाने वाले सच्चे स्नेही, सहयोगी बनकर रहते है... क्यों और कैसे ?
❉ हमें अपने अहंकार व अभिमान को मिटा दैविगुण धारण करने है व नयी दुनिया स्थापन करने में बाप का मददगार बनना है।
❉ नम्रता से निर्मलता व निर्माणता का गुण आता है, वह हमेशा हर्षित मुख हो रहता है।
❉ नम्र स्वाभाव वाले व्यक्ति किसी की तेरी मेरी के व्यर्थ झंझटो में न फस उन्हें समाकर अपनी मस्ती में मस्त रहते है।
❉ नम्रता के गुण वाला व्यक्ति सबको प्रेम के सम्बन्ध में बांध साथ लेकर चलता है, वह सभी का हितेषी व सहयोगी होगा।
❉ नम्रता का गुण जिनमे हो उसके आसपास क्रोध व अहंकार रूपी रावण भटक नहीं सकता, वह सबसे न्यारे व प्यारे होते है।
──────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ मेरेपन की अनेक हद की भावनायें एक "मेरे बाबा" में समा दो... कैसे ?
❉ स्वयं को ट्रस्टी समझ हर कर्म करें और विदेही बन विदेही बाप को याद करें तो मेरेपन की हद की भावनाएं समाप्त हो एक " मेरे बाबा " में समा जाएंगी ।
❉ करन करावन हार बाप की याद में रह स्वयं को सदा विश्व कल्याणकारी की सीट पर सेट रख, बेहद विश्व की सेवा में बिज़ी रहें तो हद से निकल बेहद में आ जायेंगे ।
❉ आत्म अभिमानी बन सर्व आत्माओं के प्रति आत्मा भाई भाई की दृष्टि रखें तो मेरे पन की अनेक हद की भावनाएं एक " मेरे बाबा " में समा जायेंगी ।
❉ सदा स्वयं को भाग्यविधाता बाप की छत्रछाया के अंदर सुरक्षित अनुभव करते हुए सर्व आत्माओं के प्रति शुभभावना शुभकामना रखें तो हद की सभी बातों से सहज ही किनारा हो जाएगा और बुद्धि योग एक बाप के साथ जुटा रहेगा ।
❉ सबका भला करते चलें तो चढ़ती कला के अनुभव द्वारा अनेक हद की भावनाओं को समाप्त कर एक बाप के स्नेह में समाये रहेंगे ।
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━