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❍ 01 / 10 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ देह सहित जो कुछ दिखाई देता है, उसे °भूलने का पुरुषार्थ° किया ?
‖✓‖ आकृति को न देखकर °निराकार° बाप को देखा ?
‖✓‖ "बाप आये हैं हम बच्चो को तैरना सीखने जिससे हम °इस दुनिया से पार° हो जाते है" - यह स्मृति रही ?
‖✓‖ बाप से पूरी पूरी प्रीत रख °बाप के मददगार° बनकर रहे ?
‖✓‖ बाप के लायक °सपूत बच्चे° बनकर रहे ?
‖✗‖ °माया से हार° खाकर नाम बदनाम तो नहीं किया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ सेवा द्वारा योगयुक्त स्थिति का अनुभव कर रूहानी सेवाधारी बनकर रहे ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ फ़रिश्ता स्थिति डबल लाइट स्थिति है, इस स्थिति में कोई भी कार्य का बोझ नहीं रहता, इसके लिए कर्म करते बीच-बीच में निराकारी और फरिश्ता स्वरूप यह मन की एक्सरसाइज करो। जैसे ब्रह्मा बाप को साकार रूप में देखा, सदा डबल लाइट रहे, सेवा का भी बोझ नहीं रहा, ऐसे फालो फादर करो तो सहज ही बाप समान बन जायेंगे।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ कर्म करते बीच-बीच में निराकारी और फरिश्ता स्वरूप की मन की एक्सरसाइज की ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं रूहानी सेवाधारी हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ सेवा द्वारा योगयुक्त स्थिति का अनुभव करने वाली मैं रूहानी सेवाधारी आत्मा हूँ ।
❉ ज्ञान, शक्तियों और गुणों के रूहानी खजाने को मैं स्वाभाविक रीति से सर्व आत्माओं पर लुटाती रहती हूँ ।
❉ सर्व आत्माओं को सच्चा स्नेह और सहयोग देने वाली मैं सहयोगी आत्मा हूँ ।
❉ मैं आत्मा संगठित रूप में सदैव एकमत, एकरस स्थिति का अनुभव करती हूँ ।
❉ अपने नम्र और सहयोगी व्यवहार से सबको सदा संतुष्ट करने वाली मैं सबके स्नेह की पात्र आत्मा बनती जाती हूँ ।
❉ मैं आत्मा सदा मनमनाभव की विधि से मन के बन्धनों से मुक्त स्मृति स्वरुप अवस्था का अनुभव करती हूँ ।
❉ मेरा सहज योगी रूप विश्व की समस्त आत्माओं को सहज ही परमात्म प्रेम का अनुभव कराता है ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम बच्चों को तैरना सिखलाने, जिससे तुम इस दुनिया से पार हो जाते हो, तुम्हारे लिए दुनिया ही बदल जाती है"
❉ आज दुनिया के सभी मनुष्य मात्र, विकारो रूपी विषय वैतरणी नदी में गोते खा रहे हैं और दुखी हो रहें हैं ।
❉ इस विषय वैतरणी नदी को तैर कर पार करने का रास्ता कोई भी नही जानता ।
❉ जब तक परम पिता परमात्मा शिव बाबा स्वयं आ कर हमे तैरना ना सिखलाये, तब तक इस विषय सागर को कोई पार कर ना सके ।
❉ ड्रामा अनुसार इस समय अर्थात संगम युग पर ही परम पिता परमात्मा बाप आते है और आ कर हमे तैरना ( ज्ञान, योग ) सिखलाते हैं ।
❉ जिससे हम इस विषय सागर को पार कर क्षीर सागर में चले जाते हैं, हमारे लिए यह दुनिया ही बदल जाती है ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ बाप से पूरी प्रीत रख मददगार बनना है । माया से हार खाकर कभी बाप का नाम बदनाम नहीं करना है ।
❉ बाप अपने बच्चों को दु:खी देखकर उन्हें दु:खों से छुड़ाने के लिए पतितों की दुनिया में आता है व बहुत प्यार करता है अपने बच्चों से । अपने बच्चों के बिना रह नहीं सकता तो हमें भी प्रीत की रीत निभा कर मददगार बनना है ।
❉ बाप अपने ब्राह्मण बच्चों को स्वयं टीचर बन पढ़ाकर दु:खधाम से निकाल सुखधाम में ले जाने के लिए आते हैं व नयी दुनिया की स्थापना का कार्य करवाते हैं तो हमेंँ श्रीमत पर चलकर बाप का मददगार बनना है ।
❉ हम सर्वशक्तिमान के बच्चे मास्टर सर्वशक्तिमान है तो हमें अपनी शक्तियों को यूज करके माया पर जीत पानी है । कभी माया से हार खाकर विकर्म नहीं करना है । बाप का बनने के बाद बाप की श्रेष्ठ मत पर चलते हुए बाप का नाम बाला करना है ।
❉ जब बाप को भूल जाते हैं तो माया वार करती है व देहभान में आकर विकर्म करते हैं तो सारी कमाई चट हो जाती है । इसलिए कहा भी गया है कि विनाश काले विपरीत बुद्धि । फिर हमारी तो प्रीत बुद्धि है तो माया से हार क्यूँ ।
❉ लौकिक में भी जिससे प्रीत होती है तो उसकी मदद के लिए हम कुछ भी करने को सदा तैयार रहते है तो हमें बेहद का बाप मिला है व बेहद के बाप से बेहद का वर्सा मिलता है तो हमें उससे सच्ची प्रीत रखते हुए स्व का परिवर्तन कर विश्व परिवर्तन के कार्य में मददगार बनना है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ रूहानी सेवाधारी सेवा द्वारा योगयुक्त स्थिति का अनुभव करने वाले होते है... क्यों और कैसे ?
❉ "हथ कार डे दिल यार डे" हमें कर्मयोगी बनना है, हाथो से अर्थात कर्मेन्द्रियो से भले कर्म करते हो परन्तु दिल में एक परमपिता परमात्मा की याद बसी हो।बाबा बाबा का ही अजपाजाप चलता रहे
❉ याद और सेवा का बैलेंस बनाकर चलना है।जितना याद और सेवा का बैलेंस होगा उतना ही सेवा में सफलता और उन्नति मिलती जाएगी।सेवा में योग युक्त स्थिति का बल भरना आवश्यक है तभी सहज सफलता मिलती है।
❉ करन करावनहार बाप है हम सिर्फ निमित्त है, सदेव यह स्मृति रहे की कराने वाला कोन है? किसी डायरेक्शन पर कर रही हु? किसका कार्य कर रही हु? तो बुद्धि में सदेव बाप की याद रहेगी।
❉ रूहानी सेवाधारी अर्थात रुहो की सेवा करने वाले। इस सेवा द्वारा स्वयं भी आत्म अभिमानी होकर सेवा करते है, बाप की याद और साथ अनुभव होता है जिससे योगयुक्त स्थिति का अनुभव होता है।
❉ कोई भी सेवा करने से पहले एक बार बाप का आव्हान करले - "मीठे बाबा, प्यारे बाबा आ जाओ" तो सेवा करते हुए भी बहुत अच्छी स्थिति बनी रहेगी और बहुत सुन्दर अनुभव भी होंगे।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ आकृति को न देखकर निराकार बाप को देखेंगे तो आकर्षण मूर्त बन जायेंगे... कैसे ?
❉ बाप को देखेंगे तो बाप के ही गुण स्वयं में धारण करते जायेंगे जिससे आत्मा आकर्षण मूर्त बन सहज ही सबको आकर्षित कर सकेगी ।
❉ आकर्षण मूर्त तब बनेंगे जब चेहरे और चलन में दिव्यता और अलौकिकता की झलक दिखाई देगी और वह तब होगा जब आकृति को ना देख केवल एक निराकार बाप को देखेंगे ।
❉ बाप को देखते हुए बाप समान रहमदिल बन जब सर्व आत्माओं का कल्याण करेंगे तो आकर्षणमूर्त आत्मा बन सबको आकर्षित कर सकेंगें ।
❉ आकृति को ना देख निराकार बाप को देखेंगे तो गुणग्राही बन गुणों को स्वयं में धारण कर , आकर्षण मूर्त बनते जायेंगे और सबको आकर्षित करते जायेंगे ।
❉ आकर्षणमूर्त आत्मा अपने संकल्प, बोल और श्रेष्ठ कर्म द्वारा सबको अपनी और आकर्षित करने की क्षमता रखती है और यह क्षमता आकृति को ना देख निराकार बाप को देखने से आती है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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