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❍ 13 / 05 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °पावन° बनने की युक्तियाँ निकाली ?
‖✓‖ अंतर्मुखी बन °एकांत° में बैठ अपने आप से रूहरिहान की ?
‖✓‖ "हम °अविनाशी आत्मा° हैं.. बाप से सुनते हैं" - यह प्रकटिस की ?
‖✓‖ ज्ञान सुनाने के साथ साथ °योग° में भी रहे ?
‖✓‖ °सवेरे सवेरे° उठकर बाप को बड़े प्यार से याद किया ?
‖✓‖ °अच्छे मैनर्स° धारण करके रहे ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ पांचो तत्वों और पांचो विकारों को अपना °सेवाधारी° बनाया ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ बापदादा का बच्चों से इतना प्यार है जो समझते हैं हर एक बच्चा मेरे से भी आगे हो । दुनिया में भी जिससे ज्यादा प्यार होता है उसे अपने से भी आगे बढ़ाते हैं । यही प्यार की निशानी है । तो बापदादा भी कहते हैं मेरे बच्चों में अब कोई भी कमी नहीं रहे, सब सम्पूर्ण, सम्पन्न और समान बन जाये ।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ °सम्पूर्ण, सम्पन्न और समान° बनने की और तीव्रता से अपने कदम बढाये ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं मायाजीत स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ मैं प्रकर्ति के पांचो तत्वों को अपने ऑर्डर प्रमाण चलाने वाली और पांचो विकारों पर जीत पाने वाली मायाजीत स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूँ ।
❉ अपने दृढ संकल्प की बेल्ट से अपने भिन्न भिन्न टाइटल्स की ड्रेस को टाइट कर, श्रृंगार के सेट से सज - धज कर मैं आत्मा सदैव बाप के साथ रहती हूँ ।
❉ सदा प्रकृति पति बाप के साथ रहने से प्रकृति के ये पांचो तत्व और पांचो विकार मेरे सहयोगी सेवाधारी बन जाते हैं ।
❉ अपनी सूक्ष्म कर्मेन्द्रियों की मालिक बन अपनी हर कर्मेन्द्रिय को मैं आत्मा अपने अधिकार में रखती हूँ ।
❉ मुझ स्वराज्य अधिकारी आत्मा के खजाने सदा रूहानी ज्ञान, गुणों और शक्तियों से भरे रहते हैं ।
❉ अपने हर श्वांस, हर संकल्प और हर कर्म द्वारा अपने इन खजानो को स्वाभाविक रीति से सब पर लुटाते हुए मैं भविष्य राज्य अधिकारी बनती जाती हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - एकांत में बैठ अपने साथ बातें करो, हम अविनाशी आत्मा हैं, बाप से सुनते हैं, यह प्रेक्टिस करो"
❉ अपने वास्तविक स्वरूप को भूलने और स्वयं को देह समझने के कारण ही आज हम सब दुखी और अशांत हुए हैं ।
❉ सतयुग में जब देह अभिमान नही था तो हम कितने सुखी और सम्पन्न थे । क्योकि देह अभिमान नही था तो विकार भी नही थे । किन्तु जब देह अभिमान में आये तो विकारों की प्रवेशता ने हमे दुखी बना दिया ।
❉ अब इन सभी दुखों से छूटने और फिर से सुखी बनने का एक ही उपाय है, अपने वास्तविक स्वरूप में टिक कर परमात्मा को याद करना ।
❉ इसलिए अब हमे यह अभ्यास पक्का करना है कि हम शरीर नही, आत्मा है ।
❉ इसके लिए एकांत में बैठ अपने आप से बातें करनी हैं कि हम अविनाशी आत्मा हैं और हमे केवल अपने अविनाशी परम पिता परमात्मा बाप से ही सुनना है, और कोई की बात सुननी नही है ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा - ज्ञान मंथन(Marks:-10)
➢➢ ज्ञान सुनाने के साथ-साथ योग में भी रहना है। अच्छे मैनर्स धारण करने हैं। बहुत मीठा बनना है।
❉ बाबा कहते हैं कि ज्ञान तो सबके पास बहुत है लेकिन उस ज्ञान के साथ साथ उसे अच्छी रीति से धारण भी करना है। जब ज्ञान को बाबा की याद में व आत्मिक स्थिति में सुनाते है तो सुनने वाले को सीधा तीर लगता है।
❉ ज्ञान तो कोई पंडित भी सुना देगा। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो ये ज्ञान तो बाप के सिवाय और कोई सुना न सके। बाप को यथार्थ रीति याद करने से ही विकर्म विनाश होंगे व पावन बनेंगे। ज्ञान के साथ-साथ योग में जितना रहेंगे उतनी ही हमारी स्थिति अच्छी होगी।
❉ बाप हमारे लिए नयी दुनिया की स्थापना कर रहा है व हमें विश्व का मालिक बनाता है। इतने ऊँचे पद को पाने के लिए हमें निरंतर याद में रहना है व अपने को ऊंच पद पाने लायक बनाना है अच्छे मैनर्स धारण करने हैं।
❉ अच्छा ज्ञान सुनाने के साथ-साथ हमें देवी-देवता पद पाने के लिए दैवीय गुण धारण करने हैं व सबके साथ मीठा होकर रहना है। कभी लड़ाई झगड़ा नहीं करना है। बाप की याद में रहेंगे तो कभी मुख से उल्टा सुल्टा भी नहीं निकलेगा।
❉ जितना बाप की याद में रहेंगे उतना ही बाप से कनेक्शन जुड़ा रहेगा,याद रहेगी तो देहभान नहीं रहेगा । याद से शक्ति मिलती रहेगी व आत्मा रूपी बैटरी चार्ज रहेगी।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ पांचो तत्वों और पांचो विकारो को अपना सेवाधारी बनाने वाले मायाजीत स्वराज्य अधिकारी होते है... क्यों और कैसे ?
❉ स्वराज्य अधिकारी अर्थात स्व के मन, बुद्धि, कर्मेन्द्रियो पर राज्य करने वाला।
❉ स्वदर्शन चक्रधारी बन हमें स्वराज्य अधिकारी बनना है जिससे हम मायाजीत जगतजीत बन जायेंगे।
❉ जिस आत्मा का स्व पर राज्य हो वह कर्मेन्द्रियो को भी अपने अनुसार चलती है जिससे पांचो विकारो पर उसकी जीत होती है और पवित्रता का बल होने से पांचो तत्व भी उसके गुलाम बन जाते है।
❉ क्युकी उनके संकल्प विचार कर्म उनके अनुसार होते है, एक संकल्प भी व्यर्थ नहीं चल सकता उतना उनका स्वयं पर कंट्रोल होता है जिससे हर पल सफल करके वह सफलतामूर्त बन जाते है।
❉ जब हम स्वराज्य अधिकारी की सीट पर सेट रहते है तो अकालतख्तनशीन सो बापदादा के दिलतख्तनशीन बच्चे बन मास्टर सर्व शक्तिमान स्थिति में स्थित रहते है तो प्रक्रतिजीत बन जाते है।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ जिन गुणों वा शक्तियों का वर्णन करते हो उनके अनुभवों में खो जाओ । अनुभव ही सब से बड़ी अथॉरिटी है... कैसे ?
❉ गुणों और शक्तियों के अनुभवी होंगे तो सहज ही समाधान स्वरूप् बन, समस्या का समाधान कर सकेंगे ।
❉ गुणों और शक्तियों का अनुभव आत्मा को शक्ति स्वरूप् बना कर माया के विघ्नों से मुक्त कर देगा ।
❉ गुणों और शक्तियों के अनुभवी होंगे तो सर्व शक्तियां समय प्रमाण हाजिर हो जाएँगी । जिससे हर परिस्तिथि को साइड सीन समझ सहज ही उस पर विजय प्राप्त कर लेंगे ।
❉ गुणों और शक्तियों के अनुभवी बनने से आत्मा सिद्धि स्वरूप बन जायेगी और सिद्धि स्वरूप् आत्मा के हर संकल्प में सफलता समाई होती है ।
❉ गुणों और शक्तियों का अनुभव हमारे हर कर्म, हर बोल को शक्तिशाली बना देगा जो उसे हर कार्य में सफलता का अनुभव कराने में सहायक होगा ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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