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❍ 02 / 12 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °रग देखकर ज्ञान° दिया ?
‖✓‖ बुधी को °ज्ञान की पॉइंट्स से भरपूर° रख सर्विस की ?
‖✓‖ °शुरुड (तीक्षण) बुधी° बनने का पुरुषार्थ किया ?
‖✓‖ मन, बुधी और संस्कार पर संपूरण राज्य कर °स्वराज्य अधिकारी° बनकर रहे ?
‖✓‖ देह सहित देह के सब संबंधो को भूल °मामेकम याद° करते रहे ?
‖✓‖ °योगबल° से आत्मा रुपी सुई पर चडी जंक उतार सतोप्रधान बनने की मेहनत की ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ °शुभ चिंतन और शुभ चिन्तक° स्थिति का अनुभव किया ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ कर्मातीत का अर्थ यह नहीं है कि कर्म से अतीत हो जाओ। कर्म से न्यारे नहीं, कर्म के बन्धन में फँसने से न्यारे-इसको कहते हैं कर्मातीत। कर्मयोग की स्थिति कर्मातीत स्थिति का अनुभव कराती है। यह कर्मयोगी स्थिति अति प्यारी और न्यारी स्थिति है, इससे कोई कितना भी बड़ा कार्य, मेहनत का हो लेकिन ऐसे लगेगा जैसे काम नहीं कर रहे हैं लेकिन खेल कर रहे हैं|
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ °कर्मयोग° की स्थिति से कर्मातीत स्थिति का अनुभव किया ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं आत्मा मास्टर दाता हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ शुभचिंतन और शुभचिंतक स्थिति के अनुभव द्वारा ब्रह्मा बाप को फॉलो करने वाली मैं ब्रह्मा बाप समान मास्टर दाता हूँ ।
❉ ईर्ष्या, घृणा और क्रिटिसाइज - इन तीनो बातों से मुक्त रह, सर्व की शुभचिंतक बन मैं सबकी सहयोगी बनती जाती हूं ।
❉ उमंग - उत्साह के पंखों पर सवार होकर हिम्मतवान बन मैं दिलशिक्सत आत्माओं को हिम्मत दे कर आगे बढ़ा रही हूं ।
❉ सर्व खजानो और सर्वगुणों के सागर परम पिता परमात्मा शिव बाबा ने अनगिनत अविनाशी खजानों की सौगात मुझे गिफ्ट में दी है ।
❉ बाप द्वारा मिले उन सर्व खजानो को, सबको देने के निमित सहारा बन मैं सर्व आत्माओं को सर्व खजानो से सम्पन्न करती जाती हूँ ।
❉ मास्टर दाता बन अपने दाता - विधातापन के शक्तिशाली संस्कारों को इमर्ज कर, कमजोर आसुरी संस्कारों को सहज ही समाप्त करती जाती हूँ ।
❉ अपने रहम की वृति और सर्व के प्रति शुभ भावना, शुभकामना रखते हुए मैं हर प्रकार की आत्मा के व्यवहार को सहज ही परिवर्तन कर देती हूँ ।
❉ मास्टर दाता की स्मृति मुझे माया के तूफानों में भी सहज ही मेहनत मुक्त, जीवन मुक्त स्तिथि का अनुभव कराती है ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - अब घर जाना है इसलिए देह सहित देह के सब सम्बंधों को भूल मामेकम् याद करो और पावन बनो"
❉ आत्मा अपने मूल स्वरूप में सम्पूर्ण पावन सतोप्रधान है ।
❉ और जब शरीर धारण कर इस सृष्टि रंग मंच पर पार्ट बजाने के लिए आती है तो सतोप्रधान अवस्था में ही आती है ।
❉ किन्तु अपने मूल स्वरूप को भूल जाने और देह - अभिमान में आने के कारण विकारों में गिरने से पतित तमोप्रधान बन जाती है ।
❉ जिसे फिर से पावन सतोप्रधान बनाने के लिए ही परमपिता परमात्मा बाप को आना पड़ता है ।
❉ अब वही समय है, परमात्मा बाप आये हुए हैं और हमे समझा रहे हैं कि अब घर जाना है इसलिए देह सहित देह के सब सम्बंधों को भूल मामेकम् याद करो और पावन बनो ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ आत्मा रुपी सुई पर जंक चढ़ी है, उसे योगबल से उतार सतोप्रधान बनने की मेहनत करनी है ।
❉ अभी तक तो घोर अज्ञानता के अंधेरे मे थे व अपने शरीर को ही सब समझ संवारने में लगे रहे। शरीर के सम्बंधों में व तेरे मेरे में फंसे रहे । इस कल्याणकारी संगमयुग पर जब सत का संग मिला , ज्ञान मिला कि मैं शरीर नही आत्मा हूं व इस शरीर को चलाने वाली शक्ति हूं ।
❉ 63 जन्मों की विकारों की जंग आत्मा पर चढ़ी हुई है क्योंकि अभी तक तो देहभान मे ही रहे । अब अपने को आत्मा समझ आत्मा के पिता परमात्मा को याद कर पावन बनने की मेहनत करनी है ।
❉ जितना आत्मिक स्थिति में रहते है तो दृष्टि भी शुद्ध व पवित्र रहती है व आत्मा-आत्मा भाई भाई का भान रहता है । अफने को आत्मा समझ कर्म करने से परमात्मा की याद स्वत: रहती है ।
❉ जितना परमात्मा की याद में रहते हैं तो विकर्म विनाश होते हैं व आत्मा पर लगी जंक उतरती जाती है । आत्मा में बल भरता जाता है व आत्मा मीठी हो जाती है ।
❉ परमात्मा की याद में एकांत मे बैठ एक की ही लगन मे मगन होकर पुराने संस्कारों को योगबल से स्वाह कर सतोप्रधान बनने का पुरुषार्थ करना है ।
❉ जैसे सुई पर जंक लगी हो तो चुम्बक उसको नहीं खींच सकती ऐसे ही आत्मा पर विकारों की जंक है तो उसे परमात्मा से कशिश नही होगी । तो यथार्थ व ज्वालामुखी याद से व पावरफुल योगबल से सतोप्रधान बनने की मेहनत करनी है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ शुभ चिंतन और शुभ चिंतक स्थिति के अनुभव द्वारा ब्रह्मा बाप समान मास्टर दाता अनुभव करते है... क्यों और कैसे ?
❉ जब आत्मिक स्थिति श्रेष्ठ होगी तब हर आत्मा के प्रति शुभ भावना व श्रेष्ठ कामना रहेगी, सभी के प्रति कल्याण की भावना रख परोपकारी बनना ही मास्टर ब्रह्मा बनना है।
❉ शुभ चिंतन जितना होगा उतना मन बुद्धि शुद्ध बनती जाएगी। मन का मेल निकलता जायेगा, व्यर्थ से मुक्त रहेंगे तभी सर्विस कर सकेंगे।
❉ शुभ चिंतन व शुभ चिंतक स्थिति का जितना जितना अनुभव बढेगा उतना ही हमसे हर आत्मा को कुछ न कुछ प्राप्ति का अनुभव जरुर होगा क्युकी हमारा ओरा बहुत शक्तिशाली होगा।
❉ हम सब आत्माये एक पिता की संतान, भाई भाई है। सबका बाप आया है और बाबा ने हमें यह जिम्मेदारी दी है की सबको बाप का परिचय मिले ताकि अंत में कोई उल्लाहना न दे, तो बाप से सर्व प्राप्तियाँ कर सबको देते जाना है।
❉ शुभ चिंतन व शुभ चिंतक स्थिति वाला सदा लाइट रहता है, निर्मल, उदारचित्त, रहमदिल होने से वह सबके प्रिय होते है। उनके गुण शक्तियाँ सब इमर्ज रहती है। वह मास्टर ब्रह्मा बन सबकी झोली भरते है।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ मन - बुद्धि और संस्कारों पर सम्पूर्ण राज्य करने वाले स्वराज्य अधिकारी बनो... कैसे ?
❉ मन - बुद्धि और संस्कारों पर सम्पूर्ण राज्य करने वाले राजा तभी बन सकेंगे जब आत्मा में योग का बल होगा । क्योकि योग का बल ही आत्मा को कर्मेंद्रियजीत बना कर स्वराज्य अधिकारी बना सकता है ।
❉ नियम और मर्यादाओं का पालन ब्राह्मण जीवन की नींव है जितनी नींव मजबूत होगी उतना मन - बुद्धि और संस्कारों पर राज्य करना अर्थात स्वराज्य अधिकारी बन कर्मेन्द्रियों को अपनी इच्छानुसार चलाना सहज होगा ।
❉ सदा स्वदर्शनचक्रधारी की सीट पर सेट रह स्वदर्शन चक्र फिराते रहे तो माया रूपी विकार भाग जाएंगे और स्वराज्यधिकारी बन मन - बुद्धि और संस्कार के मालिक बन जायेंगे ।
❉ शुभ और श्रेष्ठ संकल्पों की पॉवर आत्मा को मायाजीत और कर्मेन्द्रिय जीत बना कर मन - बुद्धि और संस्कारों पर विजय दिला देगी ।
❉ अधिकारीपन के निश्चय और नशे में रह कर्म करने से कर्मेन्द्रियों की अधीनता समाप्त हो जायेगी और आत्मा मन - बुद्धि और संस्कार पर विजय प्राप्त कर स्वराज्य अधिकारी बन जायेगी ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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