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❍ 30 / 07 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ "हम इस पढ़ाई से अपने सुखधाम जाते हैं वाया शान्तिधाम" - अपनी यह °एम ऑब्जेक्ट° स्मृति में रही ?
‖✓‖ "सेकण्ड बाई सेकण्ड °बेहद सृष्टि का चक्र° फिरता रहता है, एक दिन न मिले दूसरे से" - यह स्मृति में रहा ?
‖✓‖ °समार्पित स्थिति° में रहते सर्व का सहयोग प्राप्त किया ?
‖✓‖ °साक्षी° हो अपने वा दूसरों के पुरूषार्थ को देखा ?
‖✓‖ जो भी भूलें होती हैं उनका दिल से °पश्चाताप् कर योगबल से माफ° किया ?
‖✓‖ °अन्तर्मुखी° बन अपनी जांच की ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ °मन के मौन° से सेवा की नई इन्वेन्शन निकालने वाले सिद्धि स्वरूप बनकर रहे ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ अभी चारों ओर साधना का वायुमण्डल बनाओ। समय समीप के प्रमाण अभी सच्ची तपस्या वा साधना है ही बेहद का वैराग्य। सेकंड में अपने को विदेही, अशरीरी वा आत्म-अभिमानी बना लो, एक सेकण्ड में मन-बुद्धि को जहाँ चाहो वहाँ स्थित कर लो, इसको कहा जाता है-साधना।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ एक सेकण्ड में मन-बुद्धि को जहाँ चाहो वहाँ °स्थित करने का अभ्यास° किया ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं सिद्धि स्वरूप आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ मन के मौन से सेवा की नई इन्वेंशन निकालने वाली मैं सिद्धि स्वरूप आत्मा हूँ ।
❉ साइलेंस के बल से व्यर्थ संकल्पों को समाप्त कर श्रेष्ठ चिन्तन द्वारा मैं समर्थ आत्मा बनती जाती हूँ ।
❉ एक ही श्रेष्ठ संकल्प में स्थित हो कर, एकाग्रता द्वारा मैं सर्व प्रकार की हलचल को समाप्त करती जाती हूँ ।
❉ सेवा की नई इन्वेंशन द्वारा साधनों के विस्तार को सार में समा कर, साधना द्वारा मैं सिद्धि स्वरूप बन रही हूँ ।
❉ मनामनाभव के मन्त्र को सदा स्मृति में रख मैं आत्मा सर्व सिद्धियाँ प्राप्त कर सिद्धि स्वरूप बनती जाती हूँ ।
❉ परमात्म प्यार और स्नेह का बल, मुझे कर्मो के बंधन से मुक्त कर हर परिस्थिति में अचल और अडोल बना देता है ।
❉ अपने निज धाम और निज स्वरूप को स्मृति में रख, मैं आत्मा इस दुनिया से सदा उपराम रहती हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ “मीठे बच्चे – तुम इस पढाई से अपने सुखधाम जाते हो वाया शांतिधाम, यही तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट है, यह कभी नहीं भूलनी चाहिए”
❉ हर पढाई का कोई न कोई लक्ष्य या उद्देश्य अवश्य होता है, जिसे प्राप्त करने के लिए विद्यार्थी खूब मेहनत करते हैं ।
❉ जैसे बैरिस्टरी की पढाई पढने वाले विद्यार्थियों का उद्देश्य बैरिस्टर बनना होता है ।
❉ इसी प्रकार हमारी इस रूहानी पढाई का मुख्य उद्देश्य देवी देवता बन, अपने धाम अर्थात सुख धाम में जाना है ।
❉ इसलिए अपनी एम ऑब्जेक्ट को सदा सामने रख, तीव्र पुरुषार्थी बन, अपने लक्ष्य को प्राप्त करना है ।
❉ पढाई को अच्छी रीति पढना है, क्योकि इस पढाई से ही हम वाया शांतिधाम होते हुए अपने सुखधाम में जायेगे ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ अंतर्मुखी बन अपनी जाँच करनी है , जो भी भूलें हुई होती हैं उनका दिल से पश्चाताप कर योगबल से माफ़ करना है ।
❉ अंतर्मुखी मन ही मन आत्मा के स्वरूप , उसके पिता परमात्मा का मनन करता रहता है । आंँखों द्वारा अन्य मनुष्यों को देखते हुए भी मन की आँखों से उन्हें आत्मा के रूप में ही देखता है ।
❉ अंतर्मुखी बन अपना पोतामेल चेक करके बाबा को देना है कि आज पूरा दिन में कितनी देर बाबा की याद रही व क्या क्या गल्ती हुई ? कहा भी गया है 'अंतर्मुखी सदा सुखी '
❉ जो भी भूल हुई उसे दिल में नहीं रखना व न ही छिपाना है सब साफ़ साफ व सच्चा होकर बाबा को बता देना है । बताने से आधी सज़ा बाबा माफ़ कर देते हैं व उस कर्म बंधन को योग द्वारा काटा जा सकता है ।
❉ अंतर्मुखी होकर ज्ञान मनन चिन्तन करते रहना है व जो गल्ती हो गई उसे बार बार नहीं करनी हैं व उसे सुधारने के लिए बाबा से दिल से माफ़ी माँग कर योग की अग्नि से भस्म करना है ।
❉ जितना ज़्यादा योगयुक्त रहते हैं उतने ही पुराने संस्कार व विकर्म विनाश होते हैं । अंतर्मुखता से बाह्य दुनिया से परे होते जाते हैं व भूल होने पर जल्दी ही एहसास होता है व उसे योगबल द्वारा उस भूल की सज़ा को कम कर सकते हैं ।
❉ अन्तर्मुखी बन अपनी भूल बापदादा से सच्चे दिलसे बता देंगे तो बाबा उसे माफ़ कर खुश होंगे क्योकि "सच्चे दिल पर साहेब राज़ी"
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ सिद्धि स्वरुप बनने के लिए मन के मौन से सेवा की नयी इन्वेंशन निकालने वाले बनना है... क्यों और कैसे ?
❉ "साइलेंस पॉवर" ही दुनिया की सबसे शक्तिशाली पॉवर है, जिस द्वारा विश्व का परिवर्तन होना है। साइलेंस पॉवर से ही नयी दुनिया की स्थापना होनी है।
❉ "मन का मौन" अर्थात मन में एक भी व्यर्थ, नेगेटिव, दुःख देने या लेने वाले संकल्प न हो, हर संकल्प परमात्मा की याद में शक्तिशाली हो, सरे विश्व में शक्ति भरने वाले हो।
❉ योग का प्रयोग कर हम कोई भी सिद्धि प्राप्त कर सकते है पर उसके लिए आवश्यक है मन का मौन।मन बुद्धि एक परमपिता परमात्मा की याद में स्थिर हो जाये तो आत्मा की असीम शक्तियाँ जाग्रत होंगी जिससे ऐसे-ऐसे इन्वेंशन निकाल सकते है जो आज तक नहीं हुए।
❉ मन के मौन द्वारा हमारी एकाग्रता की शक्ति बढती है, अंतर्मुखता की गुफा में बेठ कर एकाग्र मन से हमें बहुत अच्छी-अच्छी टचिंग्स होती है जिससे नए-नए प्लांस बना सकते है।
❉ हम शांति के सागर पिता के साथ शांति की दुनिया स्थापन कर रहे है, इसलिए मुख के साथ साथ मन का मौन भी आवश्यक है, मन शांत होगा तभी अच्छे विचार कर सकेगा।
❉ मन को व्यर्थ के क्या-क्यों, इसका-उसका से मुक्त रखे, बालक सो मालिक बन संगठन में सेवा की प्लानिंग करे तो सेवा के नए चांस मिलेंगे और संगठन की शक्ति से सिद्धि अवश्य मिलती है।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ जो स्वयं समर्पित स्थिति में रहते हैं – सर्व का सहयोग भी उनके आगे समर्पित होता है... क्यों और कैसे ?
❉ स्वयं समर्पित स्थिति में रहने वाले शीतल और संतुष्ट रह सर्व को संतुष्ट रखते हैं इसलिए उन्हें सर्व का सहयोग स्वत: ही प्राप्त होता है ।
❉ जो स्वयं समर्पित स्थिति में रहते हैं वो गुणग्राही बन सर्व में गुण ही देखते हैं इसलिए सभी उनके आगे समर्पित रहते हैं ।
❉ समर्पित स्थिति में रहने वाले सोच और व्यवहार में स्वच्छता और स्पष्टता को धारण कर सर्व के सहयोगी बन सबका सहयोग प्राप्त करते हैं ।
❉ मास्टर क्षमा का सागर बन दूसरों की गलतियों को जो क्षमा करते हैं वही सर्व के सहयोगी बनते हैं, इसलिए सभी उनके आगे समर्पण करते हैं ।
❉ सर्व के प्रति शुभभावना और शुभकामना रख चढ़ती कला के अनुभवी बन सर्व का सहयोग वही प्राप्त कर सकते हैं जो स्वयं समर्पित स्थिति में रहते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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