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   21 / 10 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ क्रिमिनल आई को समाप्त कर °सिविल आई° बनाने का पुरुषार्थ किया ?

 

‖✓‖ "°पहले सोचो पीछे करो°" - इस श्रीमत का पालन कर समय और शक्ति व्यर्थ जाने से बचाया ?

 

‖✓‖ एक बाप से मिली °अद्वेत मत° का पालन कर देवता बनने का पुरुषार्थ किया ?

 

‖✓‖ बुधी °पढाई° से सदा भरपूर रही ?

 

‖✓‖ °बाप और घर° सदा याद रखा और याद दिलाया ?

 

‖✓‖ °वाणी से परे स्वीट होम° में जाने का पुरुषार्थ किया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ दिल के °स्नेह और सहयोग° द्वारा पद्मों की कमाई जमा की ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  जैसे शुरु-शुरू में अभ्यास करते थे-चल रहे हैं लेकिन स्थिति ऐसी जो दूसरे समझते कि यह कोई लाइट जा रही है। उनको शरीर दिखाई नहीं देता था, इसी अभ्यास से हर प्रकार के पेपर में पास हुए। तो अभी जबकि समय बहुत खराब आ रहा है तो डबल लाइट रहने का अभ्यास बढ़ाओ। दूसरों को सदैव आपका लाइट रुप दिखाई दे-यही सेफ्टी है। अन्दर आवें और लाइट का किला देखें।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ दूसरों को सदैव आपका °लाइट रुप° ही दिखाई दिया ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं सहजयोगी आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   दिल के स्नेह और सहयोग द्वारा पदमो की कमाई जमा करने वाली मैं सहजयोगी आत्मा हूँ ।

 

 ❉   मुझ आत्मा को दिलवाले बाप के दिल का स्नेह और सहयोग ही प्रिय है ।

 

 ❉   बड़ी दिल वाले बेहद के सौदागर बाप से सौदा करने वाली मैं पदमा पदम सौभाग्यशाली आत्मा हूँ ।

 

 ❉   बाप के स्नेह में समाकर, सबको स्नेह देने वाली मैं बाप की अति स्नेही आत्मा हूँ ।

 

 ❉   दिल के सच्चे स्नेह द्वारा सर्व की स्नेही बन मैं जमा का खाता बढ़ाती जाती हूँ ।

 

 ❉   भले कैसी भी परिस्तिथि हो लेकिन सहज योगी बन बाप की मदद से मैं हर परिस्थिति पर सहज ही विजय प्राप्त कर लेती हूँ।

 

 ❉   मैं आत्मा सदा सर्व संबंधो की अनुभूति व प्राप्ति में मगन रहती हूँ जिससे पुरानी दुनिया के वातावरण से सहज ही उपराम रहती हूँ ।

 

 ❉   निरन्तर योगी बन बाप की छत्र छाया को निरन्तर अपने ऊपर अनुभव कर सदा अतेंद्रिय सुख के झूले में झूलती रहती हूँ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - तुम्हे एक बाप से एक मत मिलती है, जिसे अद्वेत मत कहते हैं, इसी अद्वेत मत से तुम्हे देवता बनना है"

 

 ❉   एक परम पिता परमात्मा की मत ही सर्वश्रेष्ठ मत हैं । परमात्मा की मत के अलावा ओर जो भी मतें हैं सब आसुरी मतें हैं ।

 

 ❉   क्योकि रावण का राज्य हैं और रावण राज्य में सभी के संस्कार आसुरी अर्थात विकारी हैं ।

 

 ❉   इन्ही आसुरी संस्कारों के कारण आज पूरी दुनिया दुःखी और अशांत हैं क्योकि विकारों के कारण एक दो को दुःख देते रहते हैं।

 

 ❉   इन सभी दुःखो से छूटने का  उपाय है एक परमात्मा बाप की अद्वेत मत पर चलना , बाप जो सुनाते हैं केवल वही सुनना और उसे धारण करना ।

 

 ❉  क्योकि केवल एक बाप की अद्वेत मत ही मनुष्य से देवता बनाने वाली हैं ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ बाप की याद से बुद्धि को रिफ़ाइन बनाना हैं । बुद्धि पढ़ाई से सदा भरपूर रहे, बाप और घर सदा याद रखना है और याद दिलाना है ।

 

 ❉   अभी तक तो हम भूले हुए थे कि मैं कौन व मेरा कौन तो सत बाप ने ही आकर हमें अपने असली स्वरूप की पहचान दी तो सबसे यही पक्का करना है कि मैं आत्मा हूँ शरीर नहीं । अपने को आत्मा समझ आत्मा के पिता परमात्मा को याद करना है । जितना याद में रहते है तो आत्मा पर लगी कट उतरती जाती है व बुद्धि की लाइन क्लीन व क्लीयर होती जाती है ।

 

 ❉   जैसे कोई अच्छी चीज देखते हैं तो आंखों के आगे व बुद्धि में उसी के विचार चलते रहते हैं फिर हमें इतना मीठा प्यारा बाबा पूरे कल्प के बाद मिला है तो हमेशा मीठे बाबा की याद रहनी चाहिए ।

 

 ❉   जब बाप की याद रहती है तो घर की याद स्वत: ही आती है व अब हमें दु:खधाम को छोड सुखधाम अपने घर वापिस जाना है ।

 

 ❉   हमें ऊँच ते ऊँच बाप मिला है व पतितों की दुनिया में स्वयं हमें पढ़ाता है । ज्ञान रत्नों से हमारी झोली भरता है तो इस रूहानी पढ़ाई को बुद्धि में धारण करना है। जितना ज़्यादा ज्ञान मंथन करते हैं उतने ही अनमोल ख़ज़ानों से बुद्धि भरपूर रहती है ।

 

 ❉   लौकिक की पढ़ाई से अल्पकाल की कमाई होती है व उस हद की टीचर को याद रखते हैं । संगमयुग पर हमें सत टीचर मिला है व हमें पढ़ाकर आधे कल्प का मालिक बनाता है तो बेहद के बाप व सत टीचर को याद रखना है व दूसरों को भी याद दिलाना है कि शिव बाबा याद है ??

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ दिल के स्नेह और सहयोग द्वारा पद्मो की कमाई जमा करने वाले सहजयोगी होते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   सर्व शक्तिमान बाप को हम बच्चे दी के स्नेह की डोर से ही बांध सकते है, यह स्नेह की डोर में बंधकर ही बाप आज भी हम बच्चो से मिलने आते है, जिसका दिल का स्नेह होगा वो ही बाप के साथ की अनुभूति भी कर सकेगा।

 

 ❉   स्नेह की निशानी है सहयोग। जिससे हमारा दिल का स्नेह हो उसके सहयोग में जान भी लगाने को तैयार हो जाते है। अगर बाप से स्नेह है तो बाप के कार्य में भी जैसे संभव हो सहयोगी जरुर बनेगा।

 

 ❉   बाबा को सच्चे बच्चे प्यारे है, भोले बाप के बच्चे भी भोले ही होना चाहिए जिन्हें भले कुछ और दुनिया की बाते आती न हो पर दिल के भोले हो, कोई मिलावट नहीं, सच्चा साफ़ दिल जिनका होगा वही बाप के सहयोगी भी बनेंगे और उनका योग अर्थात बाबा की याद हर समय सहज ही होगी बैठकर मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।

 

 ❉   बाबा हम बच्चो की दिल की आवाज़ भी जरुर सुनते है, कोई स्वार्थ या जरुरत से बाप को नहीं बुलाना परन्तु दिल से बाप को बुलाना तो बाबा भी आने के लिए बंधा हुआ है, कितना मिठा बाबा परमधाम छोड़ के आया ही हमारे लिए है।

 

 ❉   भावना का भाडा जब भगवान भक्ति वालो को भी देता है तो यहाँ तो डायरेक्ट बाबा ने भंडारा खुला किया है जितना चाहे अभी भाग्य बना लो। जितना दिल का स्नेह बाबा से होगा उतना सहयोग करेंगे और जितना अभी बाप के सहयोगी बनेंगे उतना एक का पदम गुणा होकर प्राप्त होगा फिर चाहे वो तन, मन, धन, समय, संकल्प कुछ भी क्यों न हो।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ समय और शक्ति व्यर्थ न जाये इसके लिए पहले सोचो पीछे करो... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   पहले सोचना, पीछे करना यह लक्ष्य समय और शक्ति को व्यर्थ नही जाने देता और हर कार्य में सफलता दिला कर सहज ही सफलतामूर्त बना देता है ।

 

 ❉   सोच समझ कर किया हुआ कार्य बुद्धि की लाइन को क्लियर कर चिंतन को समर्थ और श्रेष्ठ बना देता है । इसलिए कोई भी कार्य करने से पहले सोचो समझो तो समय और शक्ति व्यर्थ नही जायेंगे ।

 

 ❉   सोच समझ कर किया हुआ कार्य एकाग्रता की शक्ति को बढ़ा देता है और एकाग्रता विस्तार को सार में समा कर, मेहनत से मुक्त कर समय और शक्ति को बचाती है ।

 

 ❉   अच्छी तरह से सोच समझ कर किया हुआ कार्य मनुष्य को सन्तुष्टता प्रदान करता है और संतुष्टता व्यक्ति में सहनशीलता और समायोजनशीलता का गुण विकसित कर उसे प्रश्नों के घेरे से मुक्त कर समय और शक्ति को व्यर्थ होने से बचाती है ।

 

 ❉   व्यर्थ संकल्प और व्यर्थ चिंतन समय और शक्ति को व्यर्थ गंवाने में मुख्य भूमिका निभाते हैं जिसके कारण आत्मा कमजोर हो जाती है, इसलिए कोई भी कार्य करने से पहले सोचो, पीछे करो तो समय और शक्ति व्यर्थ नही जायेंगे ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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