━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 18 / 09 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °कर्म-अकर्म-विकर्म° की गुह्य गति को स्मृति में रखा ?
‖✓‖ कोई भी कर्म अपने °स्वधर्म में स्थित° होकर बाप की याद में किया ?
‖✓‖ योग की अग्नि से °विकारों की कट उतारने° पर विशेष अटेंशन रहा ?
‖✓‖ आत्मा रुपी दीपक में °ज्ञान का घृत° डाल ख़ुशी को कायम रखा ?
‖✓‖ अपनी °जांच° की मेरी बुधी क्रिमिनल तरफ तो नहीं जाती ?
‖✗‖ किसी भी बात में °संशय° तो नहीं उठाया ?
──────────────────────────
∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ प्रवृति के विस्तार में रहते °फरिश्तेपन का साक्षात्कार° कराया ?
──────────────────────────
✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ अभी समय प्रमाण बेहद के वैराग्य वृत्ति को इमर्ज करो। बिना बेहद के वैराग्य वृत्ति के सकाश की सेवा हो नहीं सकती। वर्तमान समय जबकि चारों ओर मन का दु:ख और अशान्ति, मन की परेशानियां बहुत तीव्रगति से बढ़ रही हैं। तो जितना तीव्रगति से दुःख ही लहर बढ़ रही हैं उतना ही आप सुख दाता के बच्चे अपने मन्सा शक्ति से, सकाश की सेवा से, वृत्ति से चारों ओर सुख की अंचली का अनुभव कराओ।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ मन्सा शक्ति से, सकाश की सेवा से, वृत्ति से चारों ओर °सुख की अंचली° का अनुभव कराया ?
──────────────────────────
∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं साक्षात्कार मूर्त आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ प्रवृति के विस्तार में रहते सर्व आत्माओं को अपने फ़रिश्ते पन का साक्षात्कार कराने वाली मैं साक्षात्कार मूर्त आत्मा हूँ ।
❉ प्रवृति का विस्तार होते हुए भी विस्तार को सार में समा कर मैं सर्व बातो से किनारा कर सदा उपराम रहती हूँ ।
❉ एक सेकण्ड में साकारी और एक सेकण्ड में आकारी स्वरूप में स्थित हो कर मैं सबको फरिश्ता स्वरूप का साक्षात्कार कराती हूँ ।
❉ मुझ फ़रिश्ते के पावरफुल वाइब्रेशनस के प्रभाव में आ रही हर आत्मा व्यक्त भाव और व्यर्थ से परे हो रही है ।
❉ हर आत्मा के भीतर ये वायब्रेशन गहराई तक जाकर उनकी चेतना में जागरूकता ला रहें हैं ।
❉ सदा ऊँची स्टेज पर रहने के कारण नीचे के आकर्षणों से मुक्त रह, मैं हर प्रकार की मेहनत से छूटती जाती हूँ ।
❉ समय की बचत और सेवा की फ़ास्ट गति मेरे पुरषार्थ की गति को तीव्र करती जाती है ।
❉ अपनी विशाल बुद्धि द्वारा, एक समय में अनेक कार्य कर, मैं संगम युग के अमूल्य समय को सफल करती जाती हूँ ।
──────────────────────────
∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम्हे कर्म - अकर्म - विकर्म की गुह्य गति सुनाने, जब आत्मा और शरीर दोनों पवित्र हैं तो कर्म अकर्म होते हैं, पतित होने से विकर्म होते है"
❉ परमधाम से जब आत्मा इस सृष्टि रंग मंच पर पार्ट बजाने के लिए आती है तो उसे शरीर रूपी वस्त्र धारण करना पड़ता है ।
❉ और क्योकि यह सृष्टि रंग मंच एक बहुत बड़ा कर्म क्षेत्र है इसलिए आत्मा को शरीर द्वारा अनेक प्रकार के कर्म करने पड़ते हैं ।
❉ कर्मो की इस गुह्य गति को समझाने के लिए ही संगमयुग पर परम पिता परमात्मा शिव बाबा आते हैं सारा राज बताते है ।
❉ कि सतयुग में क्योकि सभी पवित्र देवी देवता होते हैं । आत्मा और शरीर दोनों पवित्र होते हैं इसलिए वहां हर कर्म अकर्म होता है ।
❉ किन्तु जब रावण राज्य शुरू होता है तो विकारो की उत्पत्ति होती है और विकारो के वशीभूत हो कर आत्मा जो भी कर्म करती है, वह विकर्म बन जाता है ।
❉ फिर संगम युग पर परम पिता परमात्मा बाप आकर कर्म - अकर्म - विकर्म की गुह्य गति सुना कर हमे श्रेष्ठ कर्म करना सिखलाते हैं ।
──────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ योग की अग्नि से विकारों की कट (जंक) को उतारना है ।
❉ अभी तक अज्ञानता के कारण देह-अभिमान में रहकर विकर्म करते रहे हैं व देहधारियों में ही कशिश रही । अब बाप द्वारा ज्ञान का तीसरा नेत्र मिलने पर ये पाठ पक्का करना है कि मैं देह नहीं देही हूँ ।
❉ जब अपने को आत्मा समझते हैं तो आत्मा के पिता परमात्मा की याद स्वत: आती है तो इस योग अग्नि से विकर्म विनाश होते हैं ।
❉ जितना याद में रहते है उतनी विकारों की कट उतरती जाती है व आत्मा पवित्र बनती जाती है । आत्मा आत्मा भाई-भाई की दृष्टि रहने से बुद्धि क्रिमिनल नहीं होती
❉ जैसे सोने को शुद्ध बनाने के लिए उसे आग में तपाते हैं उसी प्रकार अपने विकारों की कट को उतारने के लिए एक बाप की ही लगन में मगन रहना है ।
❉ जितना हम आत्माभिमानी स्थिति में रहते है तो कड़े पुराने संस्कारों की कट उतरती जाती है व विचारों में शुद्धता आती है व दैवीय गुण धारण करते जायेंगे ।
❉ बाबा कहते है कोई भी बुरी चीज या आदत को काट कर नही फेकना क्यों कि कटी हुई चीज वापिस उग आती है उसे जलाना है । छोडी हुई चीज वापस पैदा होजाती है लेकिन जला हुआ अन्न कभी फल नही देता इसलिए कोई भी विकार छोडना नही योग अग्नि से जलाना है ।
──────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ प्रवृत्ति के विस्तार में रहते फ़रिश्ते पन का साक्षात्कार कराने वाले साक्षात्कार मूर्त होते है... क्यों और कैसे ?
❉ प्रवृति में रहते पवित्र रहना, इसमें बड़ी हिम्मत चाहिए। अंत में सन्यासी भी प्रवृत्ति वालो के आगे ही झुकेंगे क्युकी वह समझते है आग और कापूस कभी साथ नहीं रह सकते।
❉ प्रवृति में रहते हमें बहुत क्षीरखण्ड होकर रहना है ताकि जो भी देखे यही अनुभव करे की इन्हों के साथ कोई परम सत्ता है, हमारा घर उन्हें शो केस अनुभव होना चाहिए।
❉ हमें ब्रह्मा बाप के कदमो पर कदम रख अपने पिता का शो करना है, हमारा हर कर्म एक कला जैसा अनुभव हो, जैसे स्वयं परमात्मा ने हमें अपने समान बनाया हो तभी बाप महिमा में लिखा जाता है "जिसकी रचना इतनी सुन्दर वो कितना सुन्दर होगा।"
❉ प्रवृति में रहने वालो के हर कर्म पर सबकी नजरे रहती है, वही दुनिया के आगे जैसे सैंपल मॉडल है। हमें कभी एस उल्टा कर्म नहीं करना है जिससे बाप का नाम बदनाम हो। क्युकी लोग सैंपल को देखकर ही पुरे मांडवे का अनुमान लगाते है।
❉ परिवार के सदस्य का भी कल्याण करना है क्युकी कहा जाता है "चैरिटी बिगिन्स ऐट होम"। वह भी कभी कभी हमारे समझाने से नहीं समझते है, उनको हमें अपने आचरण से, व्यवहार से, अपने गुणों से समझाना होगा। जब वह देखेंगे की इनका जीवन कैसे अच्छा बनता जा रहा है तब वह आएंगे। उन्हें युक्ति युक्त होकर समझाना होगा।
──────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ ख़ुशी को कायम रखने के लिए आत्मा रूपी दीपक में ज्ञान का घृत रोज डालते रहो... क्यों ?
❉ आत्मा रूपी दीपक में ज्ञान का घृत रोज डालने से आत्मिक उन्नति होती जायेगी और आत्मा में बल भरता जाएगा, जिससे स्व स्तिथि शक्तिशाली बनती जायेगी और ख़ुशी सदा कायम रहेगी ।
❉ जितना ज्ञान का घृत आत्मा रूपी दीपक में डालते जायेंगे उतना व्यर्थ संकल्पों के प्रभाव से बचे रहेंगे और समर्थ चिंतन से सदा प्रसन्नचित रहेंगे ।
❉ ज्ञान का घृत आत्मा रूपी दीपक को प्रज्ज्वलित कर बुद्धि की लाइन को सदा क्लियर रखेगा और योग की गहन अनुभूति आत्मा को सदा ख़ुशी का अनुभव कराएगी ।
❉ आत्मा रूपी दीपक में ज्ञान का घृत रोज डालने से बुद्धि शुद्ध और सुजाग रहती है तथा सफलतामूर्त बना देती है । और सेवा में सफलता मन को अलौकिक ख़ुशी से भरपूर कर देती है ।
❉ ज्ञान का घृत रोज आत्मा रूपी दीपक में डालने से आत्मा सदैव उड़ती कला में रहती है और उड़ती कला का अनुभव मन को तृप्त कर ख़ुशी को सदा कायम रखता है ।
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━