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❍ 23 / 09 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ "°करनकरावनहार बाप है°" - यह स्मृति रही ?
‖✓‖ "°निमित और निर्मान°" - यह दो शब्द याद रहे ?
‖✓‖ "यह है बहुत °वैल्युएबल जीवन°" - यह स्मृति रही ?
‖✓‖ सब आसुरी मतों को छोड़ एक °ईश्वरीय मत° पर चले ?
‖✓‖ बाप की शिक्षाओं को धारण कर °देवता° बनने का पुरुषार्थ किया ?
‖✓‖ "अभी हमें यह शरीर रुपी कपडे उतार °घर जाना है°... फिर नए राज्य में आना है" - यह स्मृति रही ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ मान मांगने की बजाये °सदा मान दिया° ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ आपके बोल, कर्म और वृत्ति से हल्केपन का अनुभव हो। ऐसे नहीं, मैं तो हल्का हूँ लेकिन दूसरे मेरे को नहीं समझते, पहचानते नहीं। अगर नहीं पहचानते तो आप अपने विश्व पॉवर से उन्हों को भी पहचान दो। 95 परसेन्ट सबके दिलपसन्द बनो। आपके कर्म, वृत्ति उसको परिवर्तन करे। इसमें सिर्फ सहनशक्ति को धारण करने की आवश्यकता है।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ आपके °बोल, कर्म और वृत्ति° से आत्माओं को हल्केपन का अनुभव हुआ ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं सदा निष्काम योगी आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ दूसरों से मान मांगने की बजाए, सबको मान देने वाली मैं सदा निष्काम योगी आत्मा हूँ ।
❉ अपने आत्मिक स्नेह की दृष्टि और वृति से मैं सबको आत्मिक सम्मान दे निरन्तर आगे बढ़ाती जाती हूँ ।
❉ दूसरा मान दे तो मैं मान दूँ - इस रॉयल भिखारीपन को छोड़ सबको मान - सम्मान देने वाली मैं मास्टर दाता हूँ ।
❉ निष्काम योगी बन, अपने शुभ और श्रेष्ठ वायब्रेशन द्वारा मैं सबको सुख, शान्ति की अनुभूति करवा रही हूँ ।
❉ रूहानी स्नेह द्वारा मैं दुश्मन को भी अपना दोस्त बना लेती हूँ ।
❉ रत्नागर बाप की संतान मास्टर रत्नागर बन, मैं सर्व आत्माओं को रत्नों का दान करती जाती हूँ ।
❉ स्वयं लाइट हाउस, सर्वशक्तिवान, विश्व का रक्षक, भाग्यविधाता बाप मेरे साथ है ।
❉ उसकी असीम स्नेह से भरी हुई दृष्टि निरन्तर मेरे ऊपर रहती है और मुझे हर परिस्थिति से उपराम रखती है ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - इस बेहद के नाटक में तुम आत्माओं को अपना - अपना पार्ट मिला हुआ है, अभी तुम्हें यह शरीर रूपी कपड़े उतार घर जाना है, फिर नये राज्य में आना है"
❉ यह सृष्टि एक बहुत बड़ा विशाल नाटक हैं और हम सभी इस नाटक में पार्ट बजाने वाले पार्टधारी हैं ।
❉ इस सृष्टि नाटक में हर आत्मा का अपना अपना पार्ट नुंधा हुआ है । उसी पार्ट के अनुसार ही आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है ।
❉ असुल में तो हम सभी अशरीरी आत्माएं हैं जो शांतिधाम की रहने वाली हैं । केवल इस सृष्टि पर पार्ट बजाने के लिए ही हमने यह शरीर रूपी वस्त्र धारण किया है ।
❉ अब हमारा यह अंतिम जन्म है।इसलिए अब हम सभी को इस शरीर रूपी कपड़े को यहीं छोड़ अशरीरी बन वापिस अपने घर शांतिधाम लौटना है।
❉ और फिर दोबारा नयां दैवी शरीर धारण कर नये राज्य अर्थात सतयुग में आना है ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ 21 जन्म श्रेष्ठ पद का अधिकारी बनने के लिए सब आसुरी मतों को छोड़ एक ईश्वरीय मत पर चलना है ।
❉ जब ऊँच ते ऊँच भगवान ने हमें अपना बनाया है तो अब हम साधारण बच्चे नहीं है , ईश्वरीय संतान हैं । हमें अपने पुराने संस्कार स्वभाव को छोड़ ईश्वरीय मत पर चलना है ।
❉ लौकिक में भी जिस मनुष्य की चाल चलन अच्छी होती है व अपने कार्य को अच्छी तरह करता है तो उसे ऊंचा पद मिलता है । हमें तो स्वयं भगवान पढ़ाते हैं तो हमें अच्छी रीति पढ़ाई पढ़नी है व इस पढ़ाई से 21 जन्मों के लिए श्रेष्ठ पद के अधिकारी बनेंगे ।
❉ स्टूडेंट लाइफ़ में जब पढ़ते है तो टीचर जो सिखाते हैं वह भी याद रहता है व टीचर भी याद रहता है । तो बेहद का बाप दूरदेश से आकर रोज़ पढ़ाते हैं फिर हम उसे ही क्यूँ भूल जाते हैं ?? सुप्रीम टीचर की मत पर चलकर हम नई दुनिया में राजाई पद पायेंगे ।
❉ अभी तक तो देहधारियों की मत पर चलते रहे व देह अभिमान में रहे । अब देह व देह के सर्व सम्बंधों को छोड़ देही अभिमानी होने का पुरूषार्थ करना है व ईश्वरीय मत पर चलते हुए वर्से का अधिकारी बनना है ।
❉ बाप ने हमें ज्ञान का तीसरा नेत्र देकर कौड़ी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बनाया है व हमें आसुरी मतों को छोड़कर हर क़दम पर बाप के क़दम पर क़दम रखते हुए चलना है व सतयुग में राजाई पद का अधिकारी बनना है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ मान मांगने के बजाये सबको मान देने वाले, सदा निष्काम योगी बनना है... क्यों और कैसे ?
❉ "देना ही लेना है" जो चीज हमें चाहिए वह पहले हमें दुसरो को देनी होगी, जितना दुसरो को देंगे उससे डबल हमें मिलेगी, यह सिद्धांत है। कोई भी हमारे द्वार से कभी भी कोई खाली हाथ न जाये, सबको कुछ न कुछ प्राप्ति की अनुभूति करवाकर ही भेजना है।
❉ बड़ी दादी कहते थे -"give respect and take respect, give love and take love". उन्होंने सबको बहुत मान दिया, हमेशा सबको आगे राखा और आज देखिये उनके लिए सबके दिल में कितना मान है और कितना आगे वह स्वयं गयी।
❉ हम दाता के बच्चे है, भगवान हमारे भंडारे भरपूर करते है, भगवान हम बच्चो को नमस्ते करते है इससे बड़ा मान क्या होगा? हद के मान की तो कोई इच्छा ही होनी ही नहीं चाहिए।
❉ निष्काम भाव से की गयी सेवा में ही सफलता मिल सकती है । यदि सेवा में नाम, मान, शान की एलाय मिक्स करदी तो वह सेवा का कच्चा फल खाने समान होगा जिसकी भविष्य में फिर प्राप्ति नहीं होगी।
❉ हम राजयोग द्वारा राजा बनने का पुरुषार्थ कर रहे है, राजा सदा देने वाले होते है, लेने वाले नहीं। तो हमें सोचना है की हम देवता बनना चाहते है या लेवता?
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ विश्व का नव - निर्माण करने के लिए दो शब्द याद रखो - निमित और निर्मान... क्यों ?
❉ सबके प्रति निमित पन का भाव रखेंगे और निर्मान रहेंगे तो किसी का थोड़ा सा भी अवगुण हमारे चित को प्रभावित नही कर सकेगा ।
❉ निमित और निर्मान भाव आत्मा को मैं पन से मुक्त कर देगा और हद की वृति को बेहद में बदल कर, सबको एकता के सूत्र में बांध कर, विश्व के नव - निर्माण में सहायक बन जायेगा ।
❉ कार्यव्यवाहर में निमित और निर्मान रहेंगे तो हर कर्म करनकरावनहार बाप की श्रीमत के अनुसार होगा जो विश्व के नव निर्माण के निमित होगा ।
❉ जब हर कार्य स्वयं को निमित समझ कर करेंगे और निर्मान रहेंगे तो मन पर कोई बोझ नही होगा । आत्मा हल्की रह, श्रेष्ठ कर्मो में प्रवृत हो, विश्व के नव - निर्माण में सहायक बन जायेगी ।
❉ निमित और निर्मान भाव आत्मा को हर जिम्मेवारी उठाने के लिए एक्स्ट्रा बल प्रदान करेगा जो श्रेष्ठ विश्व की स्थापना के निमित बन जायेगा ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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