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❍ 15 / 04 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °त्रिकालदर्शी और त्रिनेत्री° बनकर रहे ?
‖✓‖ °खान-पान° की बहुत परहेज़ रखी ?
‖✓‖ तेरी मेरी की चिन्ताओ को छोड़ °आप समान° बनाने की सेवा की ?
‖✓‖ बाप में पूरा °निश्चय° रहा ?
‖✓‖ एक बाप से ही सुना, °एक बाप को ही याद° किया ?
‖✗‖ किसी भी तरफ °लगाव° अर्थात झुकाव तो नहीं रहा ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ °सच्चे साथी° का साथ लिया ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ मन को शक्तिशाली बनाने के लिए, सदा खुशी वा उमंग-उत्साह में रहने के लिए, उड़ती कला का अनुभव करने के लिए रोज यह मन की ड्रिल, एक्सरसाइज करते रहो ।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ दिन भर बार बार °मन की ड्रिल°, एक्सरसाइज कर मन को शक्तिशाली बनाया ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं सर्व से न्यारी, प्यारी निर्मोही आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ मैं आत्मा इस देह से बिल्कुल न्यारी हूँ । यह देह अलग और मैं आत्मा अलग हूँ ।
❉ अब कल्प का अंत है । इस विनाशी देह और देह के सम्बंधियों को छोड़ कर अब मुझे वापिस जाना है ।
❉ मेरे सर्व सम्बन्ध अब केवल बाबा के साथ है ।
❉ इन सर्व संबंधो का सुख बापदादा से लेकर औरों को दान कर रही हूँ... मैं आत्मा सर्व सुखों की अधिकारी बन औरों को भी बना रही हूँ ।
❉ किसी भी कार्य में मैं अपने साकार साथी को याद न कर सिर्फ बाप को याद करती हूँ क्योंकि बाप ही मेरा सच्चा मित्र है ।
❉ मैं आत्मा अपने सच्चे साथी के संग में सहज ही सर्व से न्यारी और प्यारी बनकर रहती हूँ ।
❉ मुझ आत्मा का किसी भी तरफ लगाव व झुकाव नहीं रहता इसलिए सदा मायाजीत बनकर रहती हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - बाप की श्रीमत तुम्हे सदा सुखी बनाने वाली है, इसलिए देहधारियों की मत छोड़ एक बाप की श्रीमत पर चलो"
❉ 63 जन्म हम देह धारियों अर्थात गुरुओं, साधू सन्यासियों की मत पर चलते आये लेकिन निरन्तर गिरते ही आये और दुखी होते आये ।
❉ किन्तु अब जबकि स्वयं भगवान आ कर हमको श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत दे रहें हैं, जो हमे सदा सुखी बनाने वाली है ।
❉ तो ऐसे भगवान की श्रेष्ठ मत को छोड़ कर देहधारियों की मत पर चलना गोया अपने भाग्य को लकीर लगाना है ।
❉ सच्चा सच्चा ज्ञान सुनाने वाला भगवान स्वयं मिल गया तो उनकी श्रेष्ठ मत को छोड़ गुरुओं के पास जाना, गंगा स्नान करना ये सब व्यर्थ है ।
❉ इसलिए अब हमे सभी देह धारियों की मत पर चलना छोड़, केवल एक परमात्मा की श्रेष्ठ मत पर ही चलने का पुरुषार्थ कर श्रेष्ठ भाग्य बनाना है ।
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∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा)(Marks:-10)
➢➢ एक बाप से ही सुनना है, बाप को ही याद करना है, व्यभिचारी नहीं बनना है।
❉ अपने असली स्वरूप आत्मा का व आत्मा के पिता परमपिता परमात्मा का परिचय मिलने पर सिर्फ़ परमात्मा के ही महावाक्यों को सुनना है और धर्मगुरु की सुनेंगे तो बुद्धि देहधारी में ही अटकी रहेगी व तमोप्रधान ही रहेंगे।
❉ इस संगमयुगी पुरुषोत्तम समय में हमें ऊंच ते ऊंच बाप मिला है जो हमारा टीचर भी है, सतगुरू भी है उस पढाई को पढ़कर ज्ञान रत्नों से अपनी झोलियाँ भरनी है।
❉ बस एक बाप की याद में रहना है। एक बाबा की याद छोड़ दूसरों को याद करेंगें तो आसुरी मत पर चले जायेंगे । अभी हमारा हीरे तुल्य जन्म है क्योंकि ईश्वरीय संतान हैं।
❉ जितना देही-अभिमानी रहेंगे तो उतना बाप की याद रहेगी। याद रहेगी तो योगबल बढ़ेगा। इस योगबल से ही 21 जन्मों की राजाई में पुरूषार्थ अनुसार पद पायेंगे।
❉ एक मैं दूसरा बाप तीसरा न कोई। बस सारा दिन यही धुन हो अनाहद गीत बजता रहे अंदर में 'मैं बाबा की बाबा मेरा'।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-10)
➢➢ सच्चे साथी का साथ लेने वाले सर्व से न्यारे, प्यारे निर्मोही बन जाते है... क्यों और कैसे ?
❉ एक बाप ही हमारा सच्चा साथी है उनका साथ होने से हमें सब प्राप्तिया सहज होती है जिससे हमें किसी देहधारी से कोई आस नहीं रहती।
❉ जिससे हमारा प्रेम होता है जिसको हम अपना साथी बनाते है उसके गुण हममे स्वतः आते है। परमात्मा को अपना सच्चा साथी बनाने से हम भी उन समान प्यार के सागर, रहमदिल बन जायेंगे।
❉ "भगवान हमारा साथी है" यह शुद्ध नशा ही हमें इस दुनिया की निंदा-स्तुति, लाभ-हानी से उपराम बना देता है और हम मौलाई मस्ती में झूमते रहते है।
❉ परमात्मा को साथी बनाने से अपने आत्मिक स्वरुप की स्मृति सहज आती है और हम सभी आत्माये आपस में भाई-भाई है यह पक्का रहता है जिससे आत्मिक प्यार बना रहता है साथ ही किसी में बुद्धि फसती नहीं है।
❉ "एक बाप दूसरा ना कोई" उनका मन सारे दिन परमात्मा की याद में ही बित जाता है, परमात्मा से प्राप्त सच्चे प्यार से भरपूर होने से सबके साथ वह सदव्यवहार करते है और सबके प्रिय बन जाते है।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-10)
➢➢ माया को देखने वा जानने के लिए त्रिकालदर्शी और त्रिनेत्री बनो तब विजयी बनेंगे... क्यों और कैसे ?
❉ त्रिनेत्री और त्रिकालदर्शी बन हर कर्म करने से व्यर्थ कर्म समाप्त हो जाएंगे और मायाजीत बन विजयी बन जाएंगे ।
❉ त्रिनेत्री और त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट रहने से देह और देह के आकर्षणों से मुक्त रहेंगे और माया की प्रवेशता से सावधान रह विजय का अनुभव करेंगे ।
❉ त्रिलोकी और त्रिकालदर्शी बनने से ड्रामा की स्मृति सदैव बुद्धि में रहेगी और साक्षी पन की सीट पर सेट कर हर परिस्तिथि में विजयी बना देगी ।
❉ त्रिलोकी और त्रिकालदर्शी बन हर कर्म करने से हर कर्म दिव्यता और अलौकिकता से भरपूर होगा और माया के तूफ़ानों का सामना करने का बल प्रदान कर विजयी बना देगा ।
❉ त्रिनेत्री और त्रिकालदर्शी की स्मृति हर परिस्तिथि में अचल, अडोल बना कर माया पर जीत पहना कर विजयमाला में ले आएगी ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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