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❍ 22 / 03 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 7*5=35)
‖✓‖ मेहनत से निकल स्नेह की °मोहब्बत की गोदी° में रहे ?
‖✓‖ सदा ख़ुशी में, आंतरिक सुख में, सर्व प्राप्तियों से °उड़ते रहे° ?
‖✓‖ "हम °बहुत बड़े लोग° हैं" - ऐसा नशा रहा ?
‖✓‖ त्याग की महसूसता ना कर अपने °भाग्य की महसूसता° की ?
‖✓‖ °सदा अथक, सदा सफलतामूर्त° बनकर रहे ?
‖✓‖ "मैं आत्मा ऊपर से °अवतरित° होकर साकार सृष्टि में सेवा के लिए आई हूँ" - यह स्मृति रही ?
‖✓‖ याद और सेवा का °डबल लॉक° लगाकर रखा ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
‖✓‖ श्रीमत से मनमत और जनमत की °मिलावट को समाप्त° किया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-15)
‖✓‖ आज दिन भर मुरली के पॉइंट्स को बार बार °दोहराया° (रीवाइज) किया ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-15)
➢➢ मैं सच्ची स्व कल्याणी आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ मुझ आत्मा को बाबा के दिए गए सभी खजाने स्व कल्याण और विश्व कल्याण के प्रति हैं ।
❉ मैं आत्मा बाबा के द्वारा दिए गए खजानों में खयानत और मिलावट को समाप्त कर अपने ऊपर और सर्व के ऊपर रहम भाव धारण कर रहती हूँ ।
❉ स्व कल्याण और विश्व कल्याण के संकल्प रूपी बीज को ज्ञान और योग के पानी से सींच कर उसे फलीभूत करती हूँ ।
❉ प्रत्यक्ष फल की प्राप्ति द्वारा मैं आत्मा उमंग उत्साह में रह सर्व आत्माओं को उमंग उत्साह से भरपूर कर देती हूँ ।
❉ मैं आत्मा कभी भी दूसरों को न देख सदैव स्व और बाप को देखती हूँ ।
❉ स्व कल्याण के प्रेक्टिकल स्वरूप द्वारा मैं विश्वकल्याणी आत्मा बन सर्व का कल्याण करती हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-5)
➢➢ "ब्राह्मण जीवन की निशानी है - सदा ख़ुशी की झलक"
❉ हर एक मनुष्य चाहता है कि वह सदा खुश रहे । उसके जीवन में कभी कोई दुःख ना आये ।
❉ हम ब्राह्मण बच्चों का तो गहना है ही ख़ुशी जिसके बिना ब्राह्मण जीवन सम्पूर्ण हो ही नही सकता ।
❉ सच्चे ब्राह्मण की निशानी ही यही है कि उसके चेहरे पर हमेशा ख़ुशी की झलक दिखाई देगी ।
❉ क्योकि खुशियाँ लुटाने वाला वरदाता परम पितापरमात्मा बाप स्वयं हमारा हो गया है।एक संकल्प करते ही हम सर्व प्राप्तियों के अधिकारी बन जाते हैं ।
❉ इसलिए सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न हम ब्राह्मण बच्चों के चेहरे पर कभी दुःख की लहर आ ही नही सकती ।
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∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा) (Marks:-5)
➢➢ "सदा ख़ुशी में, आंतरिक सुख में, सर्व प्राप्तियों से उड़ते रहना है।"
❉ सदा ख़ुशी से उड़ते रहना है- हमें कौन मिला है! हमारे परमपिता परमात्मा स्वयं भगवान, जिससे हम 5000 वर्ष से बिछुड़े हुए थे। इतने समय बाद मिले तो ख़ुशी होनी चाहिए।
❉ वह हमारा परमपिता है। सर्व शक्तियों का, गुणों का, सुखों का सागर है तो वो सब शक्तियाँ, गुण, सुख हमारेअपने हैं अधिकारी हैं हम उन सबके। ऐसा स्मृति में सदा रहे तो उड़ते रहेंगे।
❉ सत का परिचय मिलने पर व अपना परिचय मिलने पर अज्ञान रूपी अंधेरा दूर होने से आंतरिक सुख की अनुभूति करने से सदा ख़ुशी रहती है।
❉ हमें बस उसे अपना बनाना है। जिसको अपना बनाते है तो कितना प्यार होता है व सदा उसकी याद रहती है। इसीप्रकार उसे अपना बनाते ही जी हजूर कर हमारी मदद को हमेशा तैयार रहता है लेकिन उतना प्यार होना चाहिए। परमपिता परमात्मा मेरे एक बार सच्चे दिल से बुलाने पर ही सामने आ जाता है- बहुत ख़ुशी होनी चाहिए।
❉ भगवान हमारा साथी है, ख़ुदा दोस्त है व सदा यही लगता है कि वो हमें चला रहा है व उसके स्नेह की गोदी ( याद) में रहते है तो सदा ख़ुशी में, आंतरिक सुखमें, सर्व शक्तियों की प्राप्तियों से उड़ते रहते हैं।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-5)
➢➢ श्रीमत से मनमत और जनमत की मिलावट को समाप्त करने वाले ही सच्चे स्व कल्याणी बनते है... क्यों और कैसे ?
❉ श्रीमत अर्थात उच्च ते उच्च बाप की मत से ही हम स्व कल्याण कर सकते है।
❉ मनमत या जनमत आसुरी मत है जिसपर चलने से आज तक हमारा पतन ही हुआ है।
❉ जब हम सम्पूर्ण रूप से बाप की श्रीमत का पालन करेंगे तो कर्मातित अवस्था प्राप्त करना अति सहज हो जायेगा।
❉ अगर बाप की आज्ञाओ में हम जब मनमत या जनमत की मिलावट करते है तो पूर्ण रूप से हमारे विकर्म विनाश नहीं कर पाएंगे।
❉ ब्राह्मण जीवन की नीव ही है बाप की श्रीमत, सारे दिन के लिए बाबा की दी हुई श्रीमत का पालन करने से पुरुषार्थ सहज हो जायेगा।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-5)
➢➢ सदा हर्षित वही रह सकतें हैं जो कहीं भी आकर्षित नही होते हैं... कैसे ?
❉ जहाँ आकर्षण है वहाँ बन्धन है और बन्धन में दुःख ही दुःख है । इसलिए जो सर्व आकर्षणों से मुक्त हैं वही सदा हर्षित रह सकते हैं ।
❉ किसी भी प्रकार का आकर्षण देह अभिमान से मुक्त नही होने देगा और देह अभिमान में विकर्म अवश्य होंगे जो मनुष्य को हर्षित नही रहने देंगे ।
❉ आकर्षण व्यक्ति को इच्छा मात्रम अविद्या बनने नही देते और इच्छाए मनुष्य को कभी खुश नही रहने देती ।
❉ आकर्षणों में फंसा व्यक्ति कभी संतुष्ट नही रह सकता और जीवन में हर्षित वही रह सकते हैं जो सदा संतुष्ट हैं ।
❉ किसी भी चीज के प्रति आकर्षण उस चीज के प्रति आसक्ति उत्पन्न करता है और किसी भी चीज में आसक्ति दुःख की फीलिंग का कारण बन व्यक्ति को हर्षित नही रहने देता ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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