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❍ 18 / 05 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °वाणी से परे° जाने का अभ्यास किया ?
‖✓‖ परमात्म प्यार की पालना का स्वरुप '°सहजयोगी जीवन°' जिया ?
‖✓‖ जो कुछ पडा व सुना है... °सब कुछ भूल° बाप को याद किया ?
‖✓‖ श्रीमत पर सदा °श्रेष्ठ कर्म° किये ?
‖✓‖ गृहस्थ में रहते °पवित्र° रहे ?
‖✓‖ °बहादुर° बनकर रहे ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ °याद और सेवा के बैलेंस° द्वारा चढ़ती का अनुभव किया ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ किसी भी बात के विस्तार में न जाकर, विस्तार को बिन्दी लगाए बिन्दी में समा दो, बिन्दी बन जाओ, बिन्दी लगा दो, बिन्दी में समा जाओ तो सारा विस्तार, सारी जाल सेकण्ड में समा जायेगी और समय बच जायेगा, मेहनत से छूट जायेंगे । बिन्दी बन बिन्दी में लवलीन हो जायेंगे । कोई भी कार्य करते बाप की याद में लवलीन रहो ।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ किसी भी बात के विस्तार में न जाकर °बिन्दी° बन, बिन्दी लगा, बिन्दी में समाये रहे ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं राज्य अधिकारी हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ याद और सेवा के बैलेंस द्वारा सदा चढ़ती कला का अनुभव करने वाली मैं राज्य अधिकारी आत्मा हूँ ।
❉ मेरा हर संकल्प केवल और केवल सेवा के प्रति है । सेवा मेरे जीवन का एक जरूरी अंग है ।
❉ हर संकल्प में सेवा की भावना मुझे बाबा के असीम रूहानी स्नेह का अनुभव कराती है ।
❉ बाबा से मिलने वाला रूहानी स्नेह मुझे सहज ही व्यर्थ से मुक्त कर समर्थ आत्मा बना देता है ।
❉ सेवा का गोल्डन चांस लेने वाली मैं पदमा पदम भाग्यशाली आत्मा हूँ ।
❉ जैसे ब्रह्मा बाप ने अपना तन, मन और धन सब कुछ सेवा अर्थ शिव बाबा को अर्पित कर दिया
❉ वैसे ही मैं आत्मा भी तन, मन और धन से सदा बाप के आगे समर्पित हूँ ।
❉ समर्पण की यह भावना ही मुझे भविष्य राज्य अधिकारी का श्रेष्ठ पद प्राप्त कराएगी ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - निश्चय ज्ञान योग से बैठता, साक्षात्कार से नही। साक्षात्कार की ड्रामा में नूँध है, बाकी उससे किसी का कल्याण नही होता"
❉ कई मनुष्य समझते है कि साक्षात्कार हो तो ही निश्च्य हो ।कई मनुष्य है जिन्हें ब्रह्मा का साक्षात्कार होता भी है ।
❉ परन्तु भगवान कहते हैं कि साक्षात्कार का फायदा भी क्या ? क्योकि साक्षात्कार से निश्चय पक्का नही होता ।
❉ निश्चय तो पक्का होता है ज्ञान और योग की धारणा से। क्योकि जितनी ज्ञान की धारणा होगी और एक बाप के साथ योग होगा तो निश्चय भी पक्का होता जाएगा ।
❉ बाकी कोई को साक्षात्कार होना यह तो ड्रामा की नूँध है, इससे किसी का कल्याण तो हो नही सकता ।
❉ अत:साक्षात्कार की इच्छा रखना भी रॉंग है । मुख्य बात तो ज्ञान और योग की धारणा की है । क्योकि निश्चय ज्ञान और योग से बैठेगा साक्षात्कार से नही ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा - ज्ञान मंथन(Marks:-10)
➢➢ श्रीमत पर सदा श्रेष्ठ कर्म करने हैं। वाणी से परे जाना है, जो कुछ पढ़ा वा सुना है उसे भूल बाप को याद करना है।
❉ सबसे पहली श्रीमत है कि अपने को आत्मा समझो शरीर नहीं व अपने को आत्मा समझ बिंदु समझ आत्मा के पिता को परमात्मा को बिंदु रूप में ही याद करना है।
❉ जब आत्मिक स्थिति में रहते हैं तो देहभान से न्यारे रहते है तो श्रेष्ठ कर्म करते हैं। जब देह में नहीं रहते तो वाणी में भी नहीं जाते।
❉ पहले जो भक्ति की अंधश्रद्धा थी वह ज्ञान में आने के बाद आपेही छूट जाती है। बाप हमें पढाई से विश्व का मालिक बनाते है। कहा भी गया है- ज्ञान प्रकाश प्रगटा अज्ञान अंधकार विनाश ।
❉ बाप कहते है तुम्हें आवाज़ से परे यानि डेड साइलेंस में जाना है चुप रहना है व पहले का सब भूल जाओ। जो अपनी मत देता हूँ उस पर चलो।
❉ बाप ही हमारा बाप बन वरदानों से हमारी झोलियाँ भरता है, टीचर बन शिक्षाएँ देता है, सतगुरू बन सदगति करता है। ऐसे कर्म सिखलाता है कि 21 जन्मों के लिए सुखी बन जाते हैं तो ऐसे बाप को सदा याद करना है।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ याद और सेवा के बैलेंस द्वारा चढ़ती कला का अनुभव करने वाले राज्य अधिकारी होते है... क्यों और कैसे ?
❉ याद और सेवा के बैलेंस द्वारा हमारी मन बुद्धि सदेव शुभ कर्त्तव्य में बिजी रहती है, जब चाहे जहा चाहे जैसे चाहे लगा सकते है।
❉ याद से हमारी आत्म अभिमानी स्थिति पक्की होती जाती है, हम आत्मा राजा है और यह कर्मेन्द्रिया हमारी कार्यकर्ता। भ्रकुटी सिंघासन पर विराजमान हो यदि कर्मेन्द्रियो को आर्डर करू और वह बात न मने हो नहीं सकता।
❉ जैसे जैसे हम आत्माये याद और सेवा करती जाती है, हमारी आत्मा की खाद निकलती जाती है और हमारी दबी हुई शक्तिया व गुण इमर्ज होने लगते है जिससे हमारा स्वयं पर राज्य होता जाता है।
❉ जितना परमात्मा की याद और यज्ञ की सेवा करते है उतना उमंग उत्साह और रूहानी नशा चढ़ता है, यह देह का भान छूटता जाता है और आत्मा स्वयं को बंधनमुक्त अनुभव करती है।
❉ योग द्वारा स्व परिवर्तन और सेवा द्वारा विश्व परिवर्तन यही हमारे जीवन का उद्देश्य है। इसी से ही आत्मा को सच्चा सुख व शांति की प्राप्ति हो सकती है।इन्ही धंधो में बिजी रहने से कर्मेन्द्रिया शान्त होती जाएगी।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ परमात्म प्यार की पालना का स्वरूप है - सहजयोगी जीवन... कैसे ?
❉ परमात्म प्यार की पालना आत्मा को चढ़ती कला में ले आती है जिससे आत्मा सहजयोगी जीवन का अनुभव करती है ।
❉ परमात्म प्यार में पलने वाली आत्मा स्वयं को प्रभु हवाले कर, सर्व चिंताओं से मुक्त अनुभव करती है इसलिये सदा सहज योगी जीवन की अनुभूति में रहती है ।
❉ परमात्म प्यार की पालना आत्मा को परमात्म छत्रछाया के भीतर सदा सुरक्षा का अनुभव करा कर उसे सहजयोगी बना देती है ।
❉ परमात्म प्यार की पालना आत्मा को सर्वशक्तियों से सम्पन्न कर, शक्तिस्वरूप बना देती है, जिसके आगे कोई भी विघ्न ठहर नही सकता इसलिए आत्मा स्वयं को सदा सहजयोगी अनुभव करती है ।
❉ परमात्म प्यार की पालना बुद्धि को दिव्य और आलौकिक बना देती है जिससे आत्मा दैवी गुणों की धारणा कर सहज योगी स्तिथि का अनुभव करती है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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