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   30 / 10 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ अपना, भारत का और सारे विश्व का °कल्याण° बहुत बहुत रुचि से किया ?

 

‖✓‖ शुभ व श्रेष्ठ भावना से समाये हुए °समर्थ बोल° बोले ?

 

‖✓‖ ड्रामा की °अनादी, अविनाशी नूंध° को यथार्थ समझने का अभ्यास किया ?

 

‖✓‖ "हमको °पढाने वाला स्वयं भगवान° है" - यह नशा रहा ?

 

‖✓‖ रुचि से °पढाई° पडी ?

 

‖✗‖ °व्यर्थ खयालात° तो नहीं चलाये ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ °स्वदर्शन चक्र° की स्मृति से सदा संपन्न स्थिति का अनुभव किया ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  सेवा में स्वयं को निमित्त समझकर डबल लाइट रहना यह भी भाग्य है क्योंकि किसी भी प्रकार का बोझ खुशी की अनुभूति सदा नहीं करायेगा। जितना अपने को डबल लाइट अनुभव करेंगे उतना भाग्य पदमगुणा बढ़ता जायेगा।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ सेवा में स्वयं को °निमित्त° समझकर डबल लाइट रहे ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं आत्मा मालामाल हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   स्वदर्शनचक्र की स्मृति से सदा संपन्न स्थिति का अनुभव करने वाली मैं आत्मा मालामाल हूं ।

 

 ❉   स्वदर्शन चक्रधारी बन मैं माया के अनेक प्रकार के चक्रो से सदा मुक्त रहती हूं ।

 

 ❉   मुझ स्वदर्शन चक्रधारी आत्मा के सामने अनेक प्रकार के व्यर्थ चक्र समाप्त हो जाते है । और माया भाग जाती है ।

 

 ❉   सर्व प्राप्तियों से सदा सम्पन्न होने के कारण मैं सदा अचल अडोल रहती हूं । और स्वयं को मालामाल अनुभव करती हूं ।

 

 ❉   परमात्मा बाप के सानिध्य में मुझ आत्मा की ज्योति सदा जगी रहती है इसलिए मैं सदा खबरदार और सुजाग रहती हूं ।

 

 ❉   अटेंशन रुपी चौकीदार सदा सुजाग रहने के कारण मैं हर परिस्थिति में सदा सेफ रहती हूं ।

 

 ❉   सर्वशक्तिमान परमपिता परमात्मा बाप ने मुझे अपनी सर्व शक्तियों का अधिकारी बना दिया है ।

 

 ❉   बाबा से मिली सर्वशक्तियों की अथॉरिटी से मैं आत्मा सिद्धि स्वरूप बन हर कार्य में सफलता प्राप्त करती जाती हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - बाबा आयें हैं तुम्हे बहुत रूचि से पढ़ाने, तुम भी रूचि से पढ़ो - नशा रहे हमको पढ़ाने वाला स्वयं भगवान है"

 

 ❉   लौकिक पढ़ाई पढ़ने वाले जो होशियार स्टूडेंट होते हैं, उन्हें कितना नशा रहता है कि यह पढ़ाई पढ़ कर हम ऊँच पद पायेंगे ।

 

 ❉   लेकिन हम ब्राह्मण बच्चों की पढ़ाई तो इस जिस्मानी पढ़ाई से कितनी ऊँची और श्रेष्ठ प्राप्ति कराने वाली है ।

 

 ❉   क्योकि हमे कोई जिस्मानी टीचर या गुरु नही पढ़ाते बल्कि स्वयं परम पिता परमात्मा शिव बाबा ब्रह्मा मुख द्वारा हम बच्चों को रूहानी पढ़ाई पढ़ाते हैं ।

 

 ❉   जिसे पढ़ कर हम मनुष्य से देवता बन जाते हैं । भविष्य 21 जन्मों के लिए विश्व महाराजन बन सुखी, और सम्पन्न जीवन व्यतीत करते हैं ।

 

 ❉   तो हमे इस बात का कितना नशा रहना चाहिए कि हमे पढ़ाने वाला स्वयं भगवान है ।

 

 ❉   वो हमे कितनी रूचि से पढ़ाने के लिए आये हैं तो हमे भी पूरी रूचि से पढ़ कर ऊंच पद पाना है ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ दैवीगुण धारण कर श्रीमत पर भारत की सच्ची सेवा करनी है । अपना, भारत का और सारे विश्व का कल्याण बहुत बहुत रूचि से करना है ।

 

 ❉   भगवान जब स्वयं इस पतित दुनिया में ज्ञान रत्नों से हमारी झोली भरकर हमें पावन बनाने आते हैं तो हमें ऊंच ते ऊंच बाप की श्रीमत पर चलकर ज्ञान रत्नों को धारण कर दैवीय गुण धारण करने हैं ।

 

 ❉   जब बाप स्वयं हमारे सेवाधारी बन मददगार बनते हैं व पुरानी दुनिया का विनाश कर नयी दुनिया की स्थापना के लिए आते हैं तो हमें ईश्वरीय सेवा में स्वयं को निमित्त समझ सच्ची सेवा करनी है ।

 

 ❉   एक बाप की याद में रहकर अपने पुराने संस्कारों व विकर्मों का विनाश कर आत्मा में बल भरना है व दैवीय गुणों को धारण करना है । बाप की श्रेष्ठ मत पर चल नयी दुनिया की स्थापना का गुप्त कार्य कर सच्ची सेवा करनी है ।

 

 ❉   बाप पूरे कल्प में एक बार आकर हमें सत का ज्ञान देते हैं व पढ़ाकर मनुष्य से देवता बनाकर आधे कल्प के लिए राजाई देते हैं तो हमें देवताई पद को पाने के लिए दैवी गुण धारण कर आप समान बनाने की सेवा करनी है ।

 

 ❉   बाबा की श्री मत ले दैवी गुण धारण कर देवी देवता स्वरूप बनना है क्योंकि स्वरूप देख कर ही सर्व का परिवर्तन होता है । हम ब्राह्मणों का स्वरूप बदला देख भारत बदलेगा और फिर भारत को देख विश्व इसतरह स्व के साथ भारत और विश्व का कल्याण हो जायेगा ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ स्वदर्शन चक्र की स्मृति से सदा संपन्न स्थिति का अनुभव करने वाले मालामाल होते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   स्वदर्शन चक्र अर्थात आत्मा के पांचो स्वरुपो की स्मृति, सृष्टि के आदि, मध्य, अंत का ज्ञान अपनी बुद्धि में फिराना।

 

 ❉   जितना जितना बुद्धि में स्वदर्शन चक्र फिराते है उतना ही आत्मा को स्वयं के श्रेष्ठ स्वरुप की स्मृति आती है और आत्मा स्वयं को शक्तिशाली बनती है।

 

 ❉   जितना स्वदर्शन चक्र फिरायेंगे उतना ही विकर्म विनाश होते है और स्व दर्शन चक्र फिराने से ही आत्मा चक्रवर्ती राजा-रानी बनते है।

 

 ❉   जितना बुद्धि में स्वदर्शन चक्र फिराते है उतना ही मन बुद्धि व्यर्थ के चक्र में फसती नहीं है। मन को जितना बीजी रखते है उतना ही मन व्यर्थ के झंझटो में फसता नहीं है।

 

 ❉   जितना स्वदर्शन चक्र फिराते है उतना आत्मा स्वयं के भरपूर संपन्न स्थिति का अनुभव करती है। आदि का पवित्र स्वरुप, अनादी आत्मिक स्वरुप, ब्राह्मण चोटि स्वरुप, फ़रिश्ता स्वरुप आत्मा को अपने गुणों और शक्तियों से मालामाल होने की महसूसता कराती है।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ आपके बोल ऐसे समर्थ हों जिसमे शुभ व श्रेष्ठ भावना समाई हुई हो... क्यों ?

 

 ❉   बोल समर्थ होंगे और मन में सर्व के प्रति शुभ व श्रेष्ठ भावना होगी तो व्यवहार में नम्रता स्पष्ट दिखाई देगी जो लोगो को सहज ही अपनी और आकर्षित करेगी ।

 

 ❉   सर्व के प्रति शुभभावना , शुभ कामना तथा समर्थ बोल, सुनने वाले को आत्मिक प्रेम और आत्मीयता की अनुभूति कराएंगे ।

 

 ❉   वाणी में समर्थता तथा मन में सर्व के प्रति शुभभाव सर्व आत्माओं को संतुष्ट कर दुआयों का खाता जमा करने में विशेष रूप से सहयोगी बन जाएंगे ।

 

 ❉   मिठास से भरे समर्थ बोल और सर्व के प्रति शुभभावना ही तड़फती हुई आत्माओं को शान्ति का अनुभव करायेगी ।

 

 ❉   सर्व के प्रति शुभ और श्रेष्ठ वृति तथा समर्थ बोल आत्मा को चढ़ती कला का अनुभवी बना कर सर्व आत्माओं को चढ़ती कला में ले जाएंगे ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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