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❍ 08 / 12 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °निस्वार्थ और निर्विकल्प° स्थिति से सेवा कर सफलतामूर्त बनकर रहे ?
‖✓‖ "अभी हम °होलिएस्ट ऑफ़ द होली बाप° की गोद में आये हैं" - यह स्मृति रही ?
‖✓‖ °मनसा में भी होली° (पवित्र) बनने का पुरुषार्थ किया ?
‖✓‖ °चलन रॉयल° रखी ?
‖✓‖ पूरा °खुशबूदार फूल° बनकर रहे ?
‖✗‖ ऐसा कोई काम तो नहीं किया जो °दिल खाता रहे° ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ निश्चय के आधार पर °व्यर्थ से किनारा° कर विजयी बनकर रहे ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ कर्मातीत स्थिति का अनुभव करने के लिए ज्ञान सुनने सुनाने के साथ अब ब्रह्मा बाप समान न्यारे अशरीरी बनने के अभ्यास पर विशेष अटेंशन दो। जैसे ब्रह्मा बाप ने साकार जीवन में कर्मातीत होने के पहले न्यारे और प्यारे रहने के अभ्यास का प्रत्यक्ष अनुभव कराया। सेवा को वा कोई कर्म को छोड़ा नहीं लेकिन न्यारे हो लास्ट दिन भी बच्चों की सेवा समाप्त की, ऐसे फालो फादर करो।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ ब्रह्मा बाप समान °न्यारे अशरीरी बनने के अभ्यास° पर विशेष अटेंशन दिया ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं आत्मा मास्टर सहारेदाता हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ निश्चय के आधार पर व्यर्थ से किनारा कर विजयी बनने वाली मैं आत्मा मास्टर सहारेदाता हूँ ।
❉ बाप पर सम्पूर्ण निश्चय मुझे हर कार्य में सहज ही सफलतामूर्त बना देता है ।
❉ सफलतामूर्त बन अपने मस्तक पर विजय का तिलक लगाये मैं सबको हिम्मत से आगे बढ़ाती जाती हूँ ।
❉ मास्टर सहारे दाता बन मैं दिलशिक्स्त आत्माओं को उमंग उत्साह दिला कर ऊपर उठाती हूँ ।
❉ व्यर्थ से किनारा कर समर्थ चिंतन द्वारा मैं सिद्धी स्वरूप बनती जाती हूँ ।
❉ गुणग्राही बन मैं सर्व आत्माओं में केवल गुणों को ही देखती और ग्रहण करती हूँ ।
❉ महसूसता शक्ति द्वारा मैं सूक्ष्म से सूक्ष्म बंधन को भी समाप्त करती जाती हूँ ।
❉ अपने रहम की वृति और सर्व के प्रति शुभ भावना, शुभकामना रखते हुए मैं हर प्रकार की आत्मा के व्यवहार को सहज ही परिवर्तन कर देती हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - तुम अभी होलीएस्ट ऑफ़ दी होली बाप की गोद में आये हो, तुम्हे मनसा में भी होली ( पवित्र ) बनना है"
❉ होलीएस्ट ऑफ़ दी होली कहा ही जाता है केवल एक ऊंच ते उंच परम पिता परमात्मा बाप को ।
❉ क्योकि केवल एक परम पिता परमात्मा बाप ही है जो एवर प्योर हैं, कभी जन्म मरण के चक्र में नही आते ।
❉ हम आत्माएं शरीर धारण कर सृष्टि रंग मंच पर पार्ट बजाती है और कभी पतित तो कभी पावन बनती हैं ।
❉ अभी पूरे 84 जन्मों का पार्ट बजाते बजाते, विकारों में गिरते गिरते हम आत्माएं पतित तमोप्रधान बन गई हैं ।
❉ आत्मा को फिर से पावन सतोप्रधान बनाने के लिए ही अभी संगम युग पर पतित पावन परम पिता परमात्मा बाप आये हैं ।
❉ अभी हमे होलीएस्ट ऑफ़ दी होली बाप की गोद मिली है इसलिए बाप कहते हैं कि तुम्हें मनसा में भी होली ( पवित्र ) बनना है ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ ऐसा कोई कर्म नहीं करना है जो दिल को खाता रहे । पूरा खुशबूदार फूल बनना है । देह-अभिमान की बदबू निकाल देनी है ।
❉ इस समय संगमयुग पर बाबा ने हमें दिव्य बुद्धि व ज्ञान का तीसरा नेत्र देकर घोर अज्ञानता के अंधियारे से निकाला है तो हमे सत के रास्ते पर चलते हुए व अपने असली स्वरुप में रहते हुए कर्म करना है ।
❉ जब हम अपने आत्मिक स्वरुप को व अपने आत्मा के पिता परमात्मा को भूलकर कर्म करते है तो देह अभिमान मे आ जाते हैं व दृष्टि भी नेगेटिव की तरफ जाती है । इसलिए बहुत.सम्भाल करनी है के कोई ऐसा कर्म नही करना जो दिल खाता रहे ।
❉ जैसे गुलाब कांटो में रहते हुए भी अपनी खुशबू फैलाता है ऐसे हमे भी इस दुनिया में रहते हुए बाबा से सर्व खजानों , गुणो व शक्तियों.से भरपूर होकर गुणों शक्तियों की वायब्रेशनस फैलाते हुए खुशबूदार फूल बनना है ।
❉ हमे मनसा वाचा कर्मणा में पवित्र बन देवीगुणो से संपन बनना है क्योकि स्वर्ग का मालिक जो फूलो का बगीचा है व हम उसके खुशबूदार फूल है तो बाप समान बनने का लक्ष्य रखना है।
❉ रुहानी बाप की प्रमुख व् रोज़ की शिक्षा है कि अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो हमें बाप की याद मे रहकर देह अभिमान की बदबू निकाल देते देही अभिमानी बनना है ।
❉ ये नशा रहे कि हमें कौन पढ़ाता है व हम क्या बनेंगे । ये लक्ष्य याद रखे तो बाप की याद स्वतः रहती और ऐसा कर्म नही होता जो दिल को खाता रहे ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ निश्चय के आधार पर व्यर्थ से किनारा कर विजयी बनने वाले मास्टर सहारे दाता कहलाते है... क्यों और कैसे ?
❉ एक परमात्मा पर निश्चय होने से दुनिया की बातो से किनारा करना सहज हो जाता है, जितना व्यर्थ से किनारा होगा उतना ही समर्थ में लगता जायेगा।
❉ बाबा ने ड्रामा का ज्ञान इतना युक्तियुक्त, यथार्थ और स्पष्ट समझाया है जो नॉलेजफुल रहने से हम कैसी भी परिस्थिति में एकरस, अचल अडोल स्थिति में रह सकते है।
❉ बाबा ने हमें कर्मो की ग्हुय गति बहुत गहराई से समझाई है, इसलिए अपने हर संकल्प कर्म पर अटेंशन देना है, एक संकल्प भी व्यर्थ का होने से जन्मो जनम का नुकसान हो सकता है।
❉ बाबा ने हमें अपना बच्चा बनाकर सर्व प्राप्तियो से भरपूर किया है, अब हमारा कर्त्तव्य है विश्व की सभी आत्माओ का सहारा बन उन्हें भी मुक्ति जीवनमुक्ति का वर्सा प्राप्त कराना।
❉ जितना बाप पर अटूट निश्चय होगा उतना ही मन बुद्धि होलीहंस की तरह व्यर्थ और समर्थ को सहज परख सकेगी, समर्थ होगा तो व्यर्थ से किनारा करते जायेंगे और विजयी बनेंगे तथा एसी आत्माये अन्य आत्माओ का भी सहारा बनेंगी।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ निःस्वार्थ और निर्विकल्प स्थिति से सेवा करने वाले ही सफलतामूर्त है... कैसे ?
❉ निस्वार्थ और निर्विकल्प स्थिति से की गई सेवा आत्मा को निर्मान और निर्माण बनाती है और निर्मानता का गुण सफलता की परसेंटेज को बढ़ा देता है ।
❉ निस्वार्थ भाव और निर्विकल्प स्थिति में स्थित हो कर की गई सेवा में बाप दादा की मदद स्वत: मिलती है इसलिए उसमे सफलता सहज समाई होती है ।
❉ निस्वार्थ भाव से की गई सेवा आत्मा को सर्व आत्माओं की दुआयों का पात्र बना देती है और दुआयें सफलता प्राप्ति में लिफ्ट का काम करती हैं ।
❉ सेवा में स्वार्थ की भावना आत्मा को असन्तुष्ट बना कर सफलता की प्राप्ति से वंचित कर देती है जबकि निस्वार्थ और निर्विकल्प स्थिति से की गई सेवा आत्मा को सन्तुष्टता प्रदान कर सफलतामूर्त बना देती है ।
❉ सेवा में निःस्वार्थ भाव आत्मा को हद के मान, शान और सम्मान की इच्छा से मुक्त कर देता है और बेहद की स्थिति में स्थित कर आत्मा को सफलतामूर्त बना देता है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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