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❍ 11 / 03 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 7*5=35)
‖✓‖ "बेहद का बाप बेहद का वर्सा देने के लिए पडा रहे हैं" - इसी °गुप्त ख़ुशी° में रहे ?
‖✓‖ बाप समान °रहमदिल° बनकर रहे ?
‖✓‖ स्वयं को °ट्रस्टी° समझकर हर कार्य किया ?
‖✗‖ °पतितों को दान° तो नहीं किया ?
‖✗‖ सिवाए ब्राह्मणों के °और कोई से कनेक्शन° तो नहीं रखा ?
‖✗‖ किसी भी बात का °अभिमान° तो नहीं किया ?
‖✗‖ बुधी रुपी झोली में ऐसा कोई °छेद° तो नहीं रहा जिससे ज्ञान बहता रहे ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
‖✓‖ प्रवृति में रहते °मेरेपन का त्याग° किया ?
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✺ अव्यक्त बापदादा (16/02/2015) :-
➳ _ ➳ तो जैसे अभी सेवा चलाते रहते हो, वैसे सेवा में आगे बढ़ते रहो। अभी बहुत ऐसे रहे हुए हैं जो रह गये हैं, चाहते हैं लेकिन पहुंच नहीं पाये हैं, सेवा अपनी बढ़ाते रहो, सन्देश देते रहो। प्रोग्राम करते रहो और जितनी सेवा बढ़ायेंगे उतना आपका उल्हना खत्म हो जायेगा इसलिए सेवा आगे बढ़ाते चलो। अभी भी ऐसी बहुत आत्मायें हैं जिनको सन्देश नहीं मिला है। ऐसी आत्माओं को सेवा द्वारा जगाते रहो।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-15)
‖✓‖ ऐसी आत्मायें जिनको सन्देश नहीं मिला है, ऐसी आत्माओं को °सेवा द्वारा जगाया° ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-15)
➢➢ मैं सच्ची ट्रस्टी, मायाजीत आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ मैं आत्मा प्रवृति में रहते सदैव मेरेपन का त्याग कर सच्ची ट्रस्टी बनकर रहती हूँ।
❉ मैं आत्मा न्यारी होकर प्रवृति के हर कार्य में आती हूँ और इससे सदैव मायाप्रूफ़ रहती हूँ।
❉ मुझे किसी भी देह के सम्बन्ध या पदार्थ से अटैचमेंट नहीं है, किसी में भी मेरापन नहीं है। मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा ना कोई।
❉ मीठे बाबा, यह तन, मन, धन सब आपका हैं। ये सब मैं आप पर समर्पण करती हूँ।
❉ मैं सच्ची ट्रस्टी बन, आपकी आज्ञाप्रमाण इनका प्रयोग करुँगी।
❉ अपना हर एक संकल्प, समय और श्वांस आपकी याद में रह, निमित बन सेवा करते हुए सफल करूँगी।
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∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-5)
➢➢ "मीठे बच्चे - इस बेहद नाटक को स्मृति में रखो तो अपार ख़ुशी रहेगी, इस नाटक में जो अच्छे पुरुषार्थी और अनन्य हैं, उनकी पूजा भी अधिक होती है"
❉ यह सृष्टि एक बेहद का नाटक है, जिसमे हम सभी आत्माए पार्टधारी हैं।
❉ परम पिता परमात्मा शिव बाबा ने आ कर हम आत्माओ को इस सृष्टी चक्र के आदि, मध्य और अंत का राज बताया है।
❉ अब हमारी बुद्धि में ड्रामा का यह सारा राज है।यह बेहद का नाटक यदि स्मृति में रहे तो हम सदा अपार ख़ुशी में रहेंगे।क्योकि हम जानते हैं कि बाकी थोडा समय है।हम नई दुनिया में जा रहें हैं।
❉ इस ड्रामा में जो अच्छी रीति पुरुषार्थ करते हैं, पूरी तरह से बाप की श्रीमत पर चल, बाप के और सर्व के प्रिय बनते हैं।
❉ वे ही भविष्य ऊंच पद को प्राप्त करते हैं और द्वापर में जब भक्ति शुरू होती है तो वही अधिक पूज्य भी बनते हैं।
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∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा) (Marks:-5)
➢➢ बेहद का बाप बेहद का वर्सा देने के लिए पढ़ा रहे हैं, इस गुप्त ख़ुशी में रहना है।
❉ जैसे लौकिक में डाक्टर,इंजीनियर की पढ़ाई पढ़ते हैं तो डाक्टर,इंजीनियर ही बनते हैं ऐसे बेहद का बाप स्वयं भगवान हमें पढ़ा रहे हैं। इस पढ़ाई से हम देवी देवता बनते हैं। इस ख़ुशी में रहना है।
❉ बेहद का बाप स्वयं इस पतित दुनिया में आकर पढ़ाते है व इस पढ़ाई को हम पढ़कर विश्व का मालिक बनते है। दुनिया वाले तो ये नहीं जानते।
❉ बेहद का बाप बेहद का वर्सा प्राप्त करने के लिए बाप जो गुहीय ज्ञान सुनाते है उसे अच्छी रीति धारण करना है। किसी बात में मूंझना नहीं है।
❉ भगवान गुप्त रीति से आकर हमें पढ़ाते है व हमारी ख़ुशी भी गुप्त होनी चाहिए। हमारी ख़ुशी देख दुनिया वाले पूछे कि तुम्हें क्या मिला है जो इतना खुश रहते हो ।
❉ बेहद का बाप हमें बेहद का वर्सा देने के लिए पतित से पावन बनाने के लिए, नर से नारायण और नारी से लक्ष्मी बनाने के लिए स्वयं पढाने आते हैं। कितनी ऊंच पढ़ाई है! कितना नशा होना चाहिए!!
❉ लौकिक पढ़ाई से तो कमाई थोड़े समय के लिए है व मिट्टी में मिल जाएगी एक दिन। बेहद के बाप से बेहद की पढ़ाई की कमाई अविनाशी है जो 21 जन्मों के लिए है व साथ जायेगी। ये स्मृति में रख सदा ख़ुशी में रहना है।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-5)
➢➢ प्रवृत्ति में रहते मेरे पन का त्याग करने वाले ही सच्चे ट्रस्टी, मायाजीत है... क्यों और कैसे ?
❉ प्रवृत्ति में रहते अनेक मेरे को एक तेरे में परिवर्तन करना ही लगाव मुक्त बनाता है।
❉ मै और मेरे पन का सम्पूर्ण त्याग ही बंधनमुक्त बनना है।
❉ मन बुद्धि से सब कुछ एक बाप के हवाले कर ट्रस्टी हो सँभालने से ही चिंता मुक्त बन सकते है।
❉ मेरे पन का त्याग करने से देह भान व अभिमान नहीं आयेगा।
❉ अभी से ट्रस्टी हो सँभालने से अंत में बुद्धि कही देह, देहधारी या साधनों में अटकेगी नहीं।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-5)
➢➢ जहाँ अभिमान होता है वहाँ अपमान की फीलिंग जरूर आती है... क्यों ?
❉ अभिमानी व्यक्ति हमेशा दूसरों की प्रशंसा का पात्र बनना चाहता है।प्रंशसा ना मिलने पर उसे अपमान की फीलिंग जरूर आती है।
❉ अभिमानी व्यक्ति सदैव अपने आप को श्रेष्ठ और दूसरे को हीन समझता है।दूसरों के प्रति हीनता की भावना उसे अपमान की फीलिंग कराती है।
❉ अभिमानी व्यक्ति कभी संतुष्ट नही रह सकता।असन्तुष्टता के कारण उसे अनुभव होता है कि उसका अपमान हो रहा है।
❉ अभिमानी व्यक्ति स्वयं को निमित समझ कर कार्य करने की बजाए करनकरावन हार समझता है इसलिए अहंकार के कारण जल्दी अपमान की फीलिंग का शिकार हो जाता है।
❉ अभिमानी व्यक्ति का हर कर्म और कर्तव्य अभिमान वश होता है इसलिए वह अपने आप को अपमानित अनुभव करता है।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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