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    05 / 04 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

         TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ शांति व आनंद के इसेन्स के °वाइब्रेशन° पूरे वायुमंडल में फैलाए ?

‖✓‖ सेन्स(ज्ञान की पॉइंट्स) और इसेन्स(सर्व शक्ति स्वरुप, स्मृति स्वरुप और समर्थ स्वरुप) का °बैलेंस° रखा ?

‖✓‖ हर °संकल्प, बोल और कर्म° विश्व कल्याण प्रति स्वाहा किया ?

‖✓‖ °अखंड जागती ज्योत° बनकर रहे ?

‖✓‖ "बाप मिला सब कुछ मिला... कोई अप्राप्त वास्तु है ही नहीं..." - सदा इसी °ख़ुशी में नाचते° रहे ?

‖✓‖ सदा °डबल लाइट°... कर्मों के बंधन के बोझ से परे रहे ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

‖✓‖ व्यर्थ को भी °शुभ भाव और श्रेष्ठ भावना° द्वारा परिवर्तित किया ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

➳ _ ➳  जैसे वर्तमान समय के प्रमाण शरीर के लिए सर्व बीमारियों का इलाज एक्सरसाइज सिखाते हैं, तो इस समय आत्मा को शक्तिशाली बनाने के लिए यह रुहानी एक्सरसाइज का अभ्यास चाहिए । चारो ओर कितना भी हलचल का वातावरण हो, आवाज में रहते आवाज से परे स्थिति का अभ्यास, अशान्ति के बीच शान्त रहने का अभ्यास बहुतकाल का चाहिए ।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

‖✓‖ आवाज में रहते °आवाज से परे स्थिति का अभ्यास°, अशान्ति के बीच शान्त रहने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं सच्ची मरजीवा आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 ❉   मैं आत्मा अपनी देह से, मित्र सम्बंधियों से, और पुरानी दुनिया से मरजीवा हूँ ।

 ❉   इस विनाशी दुनिया और दुनियावी पदार्थो से मुझे कोई लगाव नही ।

 ❉   मैं आत्मा व्यर्थ बातें न सुनती हूँ... ना सुनाती हूँ.. ना सोचती हूँ ।

 ❉   मैं आत्मा सदा शुभ भावना से सोचती हूँ... और शुभ बोल ही बोलती हूँ ।

 ❉   मैं आत्मा व्यर्थ को भी शुभ भाव से सुन... शुभ चिन्तक बन बोल के भाव को सदैव परिवर्तन कर देती हूँ ।

 ❉   मैं आत्मा सदा भाव और भावना श्रेष्ठ रख... अन्य के परिवर्तन की न सोच स्वयं के परिवर्तन पर अटेंशन देती हूँ क्योंकि स्वयं का परिवर्तन ही अन्य का परिवर्तन है ।

 ❉   इन्ही सब धारणाओ का पालन कर मैं आत्मा सदा मरजीवा स्थिति का अनुभव करती हूँ ।

 ❉   इसी मरजीवा स्थिति में ही मैं अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करती हूँ.. महाबली की स्थिति का अनुभव करती हूँ ।

 ❉   मैं आत्मा इसी मरजीवा स्थिति में ही सच्चे सच्चे जीवन का अनुभव करती हूँ ... सच्चे सच्चे जीयदान का अनुभव करती हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-10)

 

➢➢ "विश्व परिवर्तन के लिए सर्व की एक ही वृति का होना आवश्यक"

 

 ❉   कोई भी कार्य तभी सफल होता है जब सभी एक मत हो कर उस कार्य को पूरा करने का प्रयास करते हैं ।

 ❉   तो जब हद के कार्य में सफलता का आधार संगठित प्रयास हैं, तो विश्व परिवर्तन का कार्य तो बेहद का कार्य है ।

 ❉   इसलिए विश्व परिवर्तन में सम्पूर्ण कार्य की समाप्ति के लिए भी सभी ब्राह्मण बच्चों की एक ही वृति, एक ही संकल्प चाहिए ।

 ❉   जैसे किसी सुगन्धित वस्तु की खुशबू एक सेकण्ड में सारे वायुमण्डल में फ़ैल कर, सबको आकर्षित करती है ।

 ❉   ऐसे ही जब शांति, आनन्द, प्रेम और शक्तियों की खुशबू संगठित रूप में सेकण्ड में विश्व में फैलाएं और सर्व आत्माएँ उस खुशबू को अनुभव करें तब विश्व परिवर्तन होगा ।

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∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा)(Marks:-10)

 

➢➢ सेन्स (ज्ञान की प्वाइंटस) और इसेन्स (सर्वशक्ति स्वरूप, स्मृति स्वरूप और समर्थ स्वरूप) का बैलेंस रखना है।

 

 ❉   जब स्वयं परमपिता परमात्मा  ने आकर हमें अपनी आत्मा के सातों गुणों शक्तियों का ज्ञान दिया है तो उस ज्ञान को हमें जिस समय जिस शक्ति की ज़रूरत हो तो उसे यूज करना है । स्वयं उदाहरण बन दूसरों का उद्धार करना है।

 ❉   ज्ञान की प्वाइंटस को जितना धारण करते जाऐंगे उतना स्मृति स्वरूप बनते जायेंगे व सेन्स और इसेन्स का बैलेंस रहेगा तो पुराने संस्कार समाप्त हो जायेंगे।

 ❉   ड्रामा का ज्ञान होने से गहस्थी में ट्रस्टी होकर रहने से न्यारे रहेंगे और अपना व अन्य का जीवन सफल बनाने के निमित्त बनेंगे।

 ❉   कार्य व्यवहार में ज्ञान की चर्चा होती है तो कभी-कभी ज़्यादा विस्तार में जाने से वाद-विवाद होने लगता है तो  उस समय शांत स्वरूप बन अपने समर्थ स्वरूप से बैलेंस रखना है।

 ❉   जैसे प्यासे व्यक्ति को पानी मिल जाएँ तो उसे चैन मिलता है उसी प्रकार अशांत व्यक्ति को शांति की वायब्रेशनस देकर उसे शांति देनी है, अनुभव करानी है व फिर उसे ज्ञान देना है कि हम शांति के सागर की संतान हैं व शांत स्वरूप आत्मायें है, शांति हम आत्माओं का निजी धर्म है।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-10)

 

➢➢ व्यर्थ को भी शुभ भाव और श्रेष्ठ भावना द्वारा परिवर्तन करने वाले ही सच्चे मरजीवा कहलाते है... क्यों और कैसे ???

 

 ❉   मरजीवा जन्म अर्थात ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण बनने के बाद पुराने स्वभाव, संस्कार, देहधारी सबकुछ भूल जाना।

 ❉   यदि कोई आत्मा आपके पास व्यर्थ की बाते या चिंतन लेकर आये तो उनके प्रति शुभ भावना रख उनसे किनारा करे या श्रेष्ठ भावना द्वारा उनके विचारो को भी परिवर्तन कर दे।

 ❉   बाप का परिचय मिलने के बाद सर्व के प्रति यही शुभ भावना और श्रेष्ठ कामना रखे की सबका कल्याण हो जाये, यह तभी संभव होगा जब हमारी बेहद की दृष्टि वृत्ति होगी।

 ❉   मरजीवा के लिए एक बाप ही सर्वस्व होता है और भाई बहनों का भी उद्धार हो जाये इसी सेवा का ही उनको सदेव फुर्ना लगा रहता है।

 ❉   बाप का बनने के बाद उन्हें व्यर्थ की बातो के लिए समय ही नहीं होगा। बाप को याद करना, श्रीमत का पालन करना, सेवा करना यही उनका धंधा होगा।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-10)

 

➢➢ संकल्पों की एकाग्रता श्रेष्ठ परिवर्तन में फ़ास्ट गति ले आती है... कैसे ?

 

 ❉   एकाग्रता की शक्ति संकल्पों को पावरफुल बना देती है और पॉवरफुल संकल्प श्रेष्ठ परिवर्तन की गति को फास्ट कर देते हैं ।

 ❉   संकल्प रूपी बीज को जब एकाग्रता रूपी जल से सींचा जाता है तो दृढ़ता की शक्ति श्रेष्ठ परिवर्तन में फ़ास्ट गति ले आती है ।

 ❉   संकल्पों की एकाग्रता संकल्पों को सिद्धि स्वरूप् बना कर श्रेष्ठ परिवर्तन के कार्य में तीव्रता ले आती है ।

 ❉   संकल्पों की एकाग्रता व्यर्थ को समाप्त कर उसे समर्थ में परिवर्तित कर श्रेष्ठ परिवर्तन में फास्ट गति ले आती है ।

 ❉   संकल्पों की एकाग्रता विस्तार को सार में समा कर, मेहनत से मुक्त कर देती है और श्रेष्ठ परिवर्तन की गति को फास्ट कर देती है ।

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_  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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