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❍ 13 / 10 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ मुख से °ज्ञान रतन° निकालने की प्रैक्टिस की ?
‖✓‖ °आत्मिक दृष्टि वृति° का अभ्यास किया ?
‖✓‖ °बाप से आशीर्वाद° मांगने की बजाये उनकी श्रेष्ठ मत पर चले ?
‖✓‖ °सिर्फ एक शिवबाबा° को ही याद किया ?
‖✗‖ यह °अभिमान° तो नहीं आया की हमने बाबा को इतना दिया ?
‖✗‖ कभी कोई बात में °रूठे° तो नहीं ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ साधारण कर्म करते भी °ऊंची स्थिति° में स्थित रहे ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ जैसे साकार रूप में एक ड्रेस चेन्ज कर दूसरी ड्रेस धारण करते हो, ऐसे साकार स्वरूप की स्मृति को छोड़ आकारी फरिश्ता स्वरूप बन जाओ। फरिश्तेपन की ड्रेस सेकेण्ड में धारण कर लो। यह अभ्यास बहुत समय से चाहिए तब अन्त समय में पास हो सकेंगे।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ साकार स्वरूप की स्मृति को छोड़ °आकारी फरिश्ता स्वरूप° की ड्रेस धारण करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं आत्मा सदा डबल लाइट हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ साधारण कर्म करते भी ऊँची स्थिति में स्थित रहने वाली मैं सदा डबल लाइट आत्मा हूँ ।
❉ कर्मयोगी बन हर कर्म बाप की याद में करते, हल्केपन के अनुभव द्वारा मैं सदा ऊँची स्थिति में स्थित रहती हूँ ।
❉ डबल लाइट रहते, हर कर्म में विशेषता का अनुभव करते मैं विशेष आत्मा बन रही हूँ ।
❉ महान और श्रेष्ठ कर्म करने के लिए ही मैं परमधाम से इस धरा पर अवतरित हुई हूँ, इस स्मृति से मैं हर कर्म में श्रेष्ठता का अनुभव करती हूँ ।
❉ दिव्य और आलौकिक बुद्धि द्वारा मैं हर साधारण कर्म को आलौकिक बना कर सहज ही न्यारेपन की स्थिति में स्थित हो कर आनन्द से सदा भरपूर रहती हूँ ।
❉ सम्पूर्णता की रोशनी द्वारा अज्ञान का पर्दा हटाने वाली मैं आत्मा सर्च लाइट हूँ ।
❉ लाइट हाउस बन मैं सारे विश्व की आत्माओं को अज्ञान अन्धकार से निकलने का रास्ता बता रही हूँ ।
❉ सारे विश्व को हलचल से बचा कर, स्वर्णिम संसार बनाने वाली मैं आत्मा इस धरती का चैतन्य सितारा हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनने के लिए स्वयं भगवान तुम्हे श्रेष्ठ मत दे रहें हैं, जिससे तुम नर्कवासी से स्वर्गवासी बन जाते हो"
❉ श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत सिवाय एक परम पिता परमात्मा बाप के और कोई की हो ही नही सकती ।
❉ परमात्मा की मत के अलावा ओर जो भी मतें हैं सब आसुरी मतें हैं ।
❉ क्योकि रावण का राज्य हैं और रावण राज्य में सभी के संस्कार आसुरी अर्थात विकारी हैं।
❉ इन्ही आसुरी संस्कारों के कारण आज सभी मनुष्य नर्कवासी बन, दुःखी और अशांत हो गए हैं क्योकि विकारों के कारण सभी एक दो को दुःख देते रहते हैं ।
❉ इन दुखो से छुड़ाने और श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाने के लिए अब इस समय संगम युग पर स्वयं परम पिता परमात्मा बाप हमे श्रेष्ठ मत दे रहें हैं । जिस मत पर चल कर हम नर्कवासी से स्वर्गवासी बन जाते हैं ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ मुख से ज्ञान रत्न निकालने की प्रेक्टिस करनी है । कभी मुख से काँटे वा पत्थर नहीं निकालने हैं ।
❉ ज्ञान सागर के बच्चे हम मास्टर ज्ञान सागर हैं तो जैसे बाप हमें ज्ञान रत्नों से भरपूर करते हैं वैसे हमें भी मुख से ज्ञान रत्न ही निकालने हैं ।
❉ इस कल्याणकारी संगमयुग पर बाप हमें रोज़ एक ही पाठ पक्का कराते हैं कि अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो पर बच्चों के बार बार न मानने पर भी बाप हमेशा रोज़ मीठे बच्चे ही कहते हैं कभी कड़वे बच्चे तो नहीं कहते ।
❉ जैसे सागर की गहराई में जाकर हंस सिर्फ़ मोती ही चुगता है । ऐसे हमें भी किसी में कितनी बुराईँ क्यूँ न हो उसकी अच्छाई को देखना है व उसकी अच्छाई का वर्णन करते हुए मीठा बनना है ।
❉ कभी मुख से ऐसे शब्द नहीं बोलने जिससे किसी को दुख पहुँचे । अपकार करने वाले पर उपकार करना है । मुख से हमेशा मधुर वचन बोलने है । कोई बात ऊपर नीचे हो भी जाती है तो युक्ति से व प्यार से समझानी है ।
❉ जैसे बाप ने हमें ज्ञान देकर घोर अँधियारे से निकाल अपने असली स्वरूप की पहचान दी है हमें भी ऐसे ज्ञान रत्नों से दूसरों को दान देना है व ज्ञान सुनाने का प्रेक्टिस कर दूसरों का कल्याण करना है ।
❉ कहा भी गया है कि वाणी ऐसी बोलिए जो सबके मन को भाए औरो को शीतल करे आपहु शीतल होए । तो हमें भी ऐसे मीठे बोल बोलने है ताकि बाबा का मीठे बच्चे कहना भी सार्थक हो जाये ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ साधारण कर्म करते भी उची स्थिति में स्थित रहने वाले सदा डबल लाइट अनुभव करते है... क्यों और कैसे ?
❉ बाबा हमें कर्मयोगी बनाने आये है, हाथो से कम करते हुए भी दिल में बाप की याद समाई रहे तो स्थिति बहुत अच्छी रहेगी और लाइट रहेगे।
❉ बाबा की याद में चाहे कितना भी कर्मेन्द्रियो द्वारा कर्म करो परन्तु थकान कभी महसुस नहीं होगी। और ही जैसे रिफ्रेश अनिभव करेंगे क्युकी सेवा का प्रत्यक्ष फल है ख़ुशी व शक्ति।
❉ कर्म बड़ा छोटा नहीं होता परन्तु कोई कर्म करते हमारी स्थिति कैसी रही वह यह ज्यादा महत्वपूर्ण है जैसी स्मृति वैसी स्थिति होगी और जैसी स्थिति वैसी प्राप्ति एवं सफलता।
❉ हम कोई भी कर्म करे बस यही स्मृति रहे की बाबा करवा रहा है और बाबा के यज्ञ की सेवा कर रही हु। तो हमारे साधारण कम भी विशेष दिखाई देंगे और प्राप्ति भी विशेष होगी।
❉ हम सदेव सर पर व्यर्थ की गोठरी लेकर चलते है, क्या क्यों कैसे.. यह प्रश्न अकसर सोच सोच कर माथा भारी कर लेते है, परन्तु इसकी जगह हम सब बोझ बाप को देकर स्वयं निमित्त ट्रस्टी बनकर रहे तो स्थिति भी उची रहेगी और हलके भी रहेंगे।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ आत्मिक दृष्टि - वृति का अभ्यास करने वाले ही पवित्रता को सहज धारण कर सकते हैं... कैसे ?
❉ आत्मिक दृष्टि - वृति का अभ्यास देह के आकर्षण से मुक्त कर देता है, जिससे पवित्रता का धारणा सहज हो जाती है ।
❉ आत्मिक स्मृति में रह, सबको आत्मा भाई भाई की दृष्टि से देखना, पवित्रता की धारणा को मजबूत बनाता है ।
❉ स्वयं को आत्मा निश्चय करने और आत्मिक दृष्टि - वृति का अभ्यास आत्मा को कर्मेन्द्रियजीत बनाता है, जिससे पवित्रता की धारणा सहज हो जाती है ।
❉ शुद्ध संकल्प और श्रेष्ठ विचार आध्यात्मिक उन्नति के लिए बहुत जरूरी है । आत्मिक दृष्टि - वृति का अभ्यास विचारों को शुद्ध और श्रेष्ठ बना कर पवित्रता की नींव को बल प्रदान करता है ।
❉ सांसारिक आकर्षणों का लगाव आत्मा को देह अभिमान में लाता है तथा दृष्टि और वृति को दूषित कर पवित्रता को खण्डित करता है । इन सांसारिक आकर्षणों से मुक्त होने के लिए आत्मिक दृष्टि - वृति का अभ्यास बहुत जरूरी है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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