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    07 / 04 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

         TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ °सर्विस° कर बहुतों का जीवन श्रेष्ठ बनाया ?

‖✓‖ इस पतित दुनिया से °बेहद का वैराग्य° रहा ?

‖✓‖ °पक्के वैष्णव° बनकर रहे ?

‖✓‖ अपने साथ °मित्रता° करके रहे ?

‖✓‖ °सत्यता° की विशेषता से डायमंड की चमक को बढाया ?

‖✗‖ कोई भी °विकर्म° कर लाइट कम तो नहीं की ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

‖✓‖ माया के संबंधो से डाइवोर्स दे °बाप के सम्बन्ध से सौदा° किया ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

➳ _ ➳  अभी- अभी आवाज में आना और अभी- अभी आवाज से परे हो जाना - जैसे आवाज में आना सहज लगता है वैसे यह भी सहज अनुभव हो क्योंकि आत्मा मालिक है । रुहानी एक्सरसाइज में सिर्फ मुख की आवाज से परे नहीं होना है । मन से भी आवाज में आने के संकल्प से परे होना है । ऐसे नहीं मुख से चुप हो जाओ और मन में बातें करते रहो । आवाज से परे अर्थात मुख और मन दोनों की आवाज से परे,शान्ति के सागर में समा जायें ।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

‖✓‖ "अभी- अभी आवाज में आना और अभी- अभी °आवाज से पर° हो जाना" - इस रुहानी एक्सरसाइज का बार अभ्यास किया ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं मायाजीत, मोह्जीत आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 ❉   मैं भगवान की पालना में पलने वाली, माया के तूफानों में भी सदा अचल रहने वाली मायाजीत, मोहजीत आत्मा हूँ

 ❉   माया का रूप चाहे कितना भी विकराल हो किन्तु प्यार के सागर के प्रेम में समाई हुई मुझ आत्मा के सामने माया शेरनी भी बिल्ली बन जाती है

 ❉   इस नशवर संसार की किसी भी वस्तु में मुझे कोई मोह नही है, कोई आकर्षण नही है

 ❉   मुझ आत्मा ने स्मृति से अपना सारा पुराना सौदा कैंसिल कर दिया है

 ❉   मैं आत्मा सभी के साथ सहयोगी बनकर रहती हूँ

 ❉   पर मेरा कम्पैनियन सिर्फ एक बाबा ही है

 ❉   मुझ आत्मा का माया के सब संबंधो से डाइवोर्स हो चूका है

 ❉   मैं नाष्टोमोहा आत्मा कल्प कल्प की विजयी रतन हूँ

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∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - इस पुरानी पतित दुनिया से तुम्हारा बेहद का वैराग्य चाहिए क्योकि तुम्हे पावन बनना है, तुम्हारी चढ़ती कला से सबका भला होता है ।

 

❉   शास्त्रों में चढ़ती कला के बारे में गायन है - चढ़ती कला सर्व का भला लेकिन चढ़ती कला कब और कैसे होती है यह कोई नही जानता

 ❉   वास्तव में चढ़ती कला होती है इस समय यानि संगम युग पर, जब परम पिता परमात्मा कर सत्य ज्ञान देते हैं

 ❉   इस ज्ञान को धारण करने से हम मनुष्य से देवता बन जाते हैं अर्थात हमारी चढ़ती कला आरम्भ हो जाती है और हम मुक्ति, जीवन मुक्ति में चले जाते हैं

 ❉   21 जन्म सुख भोगते, फिर हमारी उतरती कला होती है और हम पतित, विकारी बन पड़ते हैं ।अथाह दुखी हो पड़ते हैं

 ❉   इन्ही दुखों से छूटने के लिए अब परमात्मा बाप हमे रास्ता बता रहे हैं बाप कहतें है पावन बनो और इस पुरानी पतित दुनिया से बेहद के वैरागी बनो तो तुम्हारी चढ़ती कला से तुम्हारा और सर्व का भला हो जायेगा

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∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा)(Marks:-10)

 

➢➢ बाप के साथ ऐसा योग रखना है जो आत्मा की लाइट बढ़ती जाए कोई भी विकर्म कर लाइट कम नहीं करना है।

 

❉   एक बाप की याद में रहना है। याद से ही आत्मा में बल भरता है जन्मान्तर की चढ़ी कट उतरती है। याद में रहेंगें तो लाइट बढ़ती जायेगी।

 ❉   योग का अर्थ है किसी के साथ जुड़ना याद में रहना ही योग है। याद में रहने से आत्मा पवित्र होती है पवित्रता की झलक चमक चेहरे से साफ़ झलकती है।

 ❉   जैसे जैसे आत्मा को बाबा के इतने ऊँचे ज्ञान का घृत मिलता जाता है तो उसकी रोँशनी तेज़ होती जाती है अपने परमपिता की याद में मग्न रहता है आत्मा की उन्नति होती जाती है।

 ❉.  63 जन्मों तक विकर्म करते करते अपने असली स्वरूप अपने पिता को भूल गए तो आत्मा की लाइट कम होती गई लेकिन इस समय सत का ज्ञान मिलने पर हमें अपने को आत्मा समझ बाप को याद कर अपनी आत्मा की लाइट को तेज़ रखना है योगयुक्त रहना है।

 ❉   सत्य के साथ कनेक्शन होने पर सत्संग कल्प में एक बार होता है हमारे अज्ञान रूपी अंधेरे को दूर कर दिव्य बुद्धि देकर आत्मा की जोत को जगाया है तो इस संगमयुगी जन्म में 'मेरा तो शिव बाबा दूसरा कोई' बस एक ही की याद में खो जाओ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-10)

 

➢➢ माया के संबंधो को डाइवोर्स दे बाप के सम्बन्ध से सौदा करने वाले मायाजीत, मोहजीत बन जाते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   जिनका बुद्धियोग एक बाप के साथ हो वह इस देह, देह की दुनिया देह के संबंधो के बंधनमुक्त हो जाते है, इन्हें निमित्त समझ निभाते है साक्षी दृष्टा हो रहते है।

 ❉   स्वयं को आत्मा समझने से इस दुनिया के सभी संबंधियो से भी आत्मा भाई-भाई की दृष्टि पक्की होती जाएगी और कभी क्रिमिनल दृष्टि नहीं जाएगी, हमारे से कोई उल्टा कर्म नहीं होगा विकार्मो का खाता नही बनेगा।

 ❉   सभी आत्माये यहाँ पार्ट बजा रही है और अब सबके घर जाने का समय गया है, यह स्मृति रहने से अंत के समय आत्मा पिंजड़े से एक सेकंड में उड़ जाएगी।

 ❉   शरीर के रिश्ते समझने से मोह और अटैचमेंट होता, आत्मा समझने से उनके प्रति शुभ भावना होगी परन्तु लगावमुक्त रहेंगे, मोह की रस्सियाँ खुली होगी।

 ❉   जब हम शरीर के सम्बन्ध छोड़ आत्मिक दृष्टि से व्यवहार करेंगे की यह भी प्रभु की संतान है, तो सबके प्रति शुभ भावना रहेगी कभी किसी के प्रति नेगेटिव संकल्प नहीं चलेंगे।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-10)

 

➢➢ सत्यता की विशेषता से डायमण्ड की चमक को बढ़ाओ... कैसे ?

 

 ❉   सत्यता की विशेषता आत्मा में दिव्यता और अलौकिकता ला कर डायमण्ड अर्थात आत्मा की चमक को बढ़ा देती है

 ❉   सत्यता की विशेषता आत्मा को व्यर्थ से मुक्त कर जमा का खाता बढ़ा कर डायमण्ड की चमक को बढ़ा देती है

 ❉   सत्यता की विशेषता सब बुराइओं को निकाल आत्मा को शुद्ध और हल्का बना कर डायमण्ड की चमक को बढ़ा देती है

 ❉   सत्यता की विशेषता बुद्धि को स्वच्छ और निर्मल बना कर डायमण्ड की चमक को बढ़ा देती है

 ❉   सत्यता की विशेषता सोच और व्यवहार स्वच्छ्ता स्पष्टता ला कर डायमण्ड की चमक को बढ़ा देती है

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_  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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