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    02 / 03 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

         TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 7*5=35)

 

‖✓‖ रहमदिल बन दुखी आत्माओं को °सुखी बनाने की सेवा° की ?

‖✓‖ बाप समान °मास्टर प्यार का सागर° बनकर रहे ?

‖✓‖ "°भगवान् के हम बच्चे हैं°" - इसी ख़ुशी व नशे में रहे ?

‖✓‖ "हमारा पारलोकिक बाप °वंडर ऑफ़ द वर्ल्ड(स्वर्ग)° बनाता... जिसके हम मालिक बनते" - यह नशा रहा ?

‖✓‖ रचता और रचना के °आदि-मध्य-अंत का ज्ञान° स्मृति में रहा ?

‖✓‖ ब्राह्मण जीवन की °मर्यादाओं° के कदम पर कदम रखा ?

‖✗‖ किसी से °घृणा व नफरत° तो नहीं की ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

➢➢ °सर्व प्राप्तियों के अनुभव° द्वारा पावरफुल अनुभव किया ?

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अव्यक्त बापदादा (16/02/2015) :-

➳ _ ➳  तो यही गीत गाते वाह बच्चे वाह! सभी खुशराजी और कदम आगे बढ़ाने वाले निमित्त बने हुए हैं ना! भले फर्क है लेकिन मिलन तो होता है। बापदादा भी बच्चों को देख इतना खुश होता है, बहुत खुश होता है, एक-एक बच्चे को देख क्या करने चाहता है, वह बापदादा की दिल जाने। लेकिन बापदादा खुश है कि बच्चे चाहे नम्बरवार हों लेकिन बच्चे और बाप का मिलन तो होता है ना! बाप ने देखा कि बच्चे याद में तो रहते हैं, याद करते भी हैं लेकिन माया से सामना भी करते हैं तो बापदादा सूक्ष्म में एक-एक बच्चे को मुबारक भी देते कि वाह बच्चे वाह! यह बाप और बच्चों का मिलन अमर है और अमर रहेगा। 

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-15)

➢➢ बापदादा से सूक्षम में मुबारक स्वीकार की ? “बाप और बच्चों का मिलन °अमर है और अमर रहेग°” – यह स्मृति में रहा ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-15)

➢➢ मैं आत्मा सदा सफलतामूर्त हूँ

 

     श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 ❉   मैं आत्मा सर्व प्राप्तियों की अनुभवी हूँ ... सदा पावरफुल हूँ

 ❉   सर्वशक्तिवान परम पिता परमात्मा बाप का वरदानीमूर्त हाथ सदा मेरे ऊपर है।

 ❉   मैं सफलता स्वरूप हूँ ।सफलता तो मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है।

 ❉   मैं आत्मा सुख शांति की मास्टर दाता हूँ

 ❉   बाबा ने अपनी सर्व शक्तियों का स्टॉक मुझे दे दिया है सहनशक्ति, समाने की शक्ति इत्यादि सब शक्तियां बाबा ने मुझे विल कर दी हैं।

 ❉   सर्वशक्तियों की अथॉरिटी से मैं सिद्धि स्वरूप बन हर कार्य में सफलता प्राप्त करती जाती हूँ।

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∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-5)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - तुम्हें नशा चाहिए कि हमारा पारलौकिक बाप वन्डर ऑफ दी वर्ल्ड (स्वर्ग) बनाता, जिसके हम मालिक बनते हैं"

 

 ❉   भारत में सात वण्डर्स गाये गये हैं किन्तु वे सब है माया रावण के स्थूल वण्डर्स जिसमे अपरमअपार दुःख हैं।

 ❉   वास्तव में वन्डर ऑफ दी वर्ल्ड तो एक ही है जिसे स्वर्ग कहते हैं जिसकी स्थापना स्वयं परम पिता परमात्मा बाप ही आ कर करते हैं।

 ❉   भारत जब स्वर्ग था तो दुःख का नाम निशान नही था। सभी सुख, शांति और सम्पन्नता से भरपूर देवी देवता थे।फिर वही देवी देवता रावण राज्य में शुद्र बने तो दुखी हो गए।

 ❉   अब पारलौकिक परम पिता परमात्मा बाप आ कर फिर से वही वन्डर ऑफ दी वर्ल्ड अर्थात स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं और हमे शूद्र से ब्राह्मण बना कर फिर से देवी देवता बना रहे हैं।

 ❉   तो हमे इस बात का कितना नशा रहना चाहिए कि हम फिर से वन्डर ऑफ दी वर्ल्ड(स्वर्ग)के मालिक बनेगे।

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∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा) (Marks:-5)

 

➢➢ "भगवान के हम बच्चे हैं" - इसी नशे वा ख़ुशी में रहना है।

 

 ❉   जिस तरह राजा के बेटे को अपनी पावर का नशा होता है कि राजपुत्र हूँ।हमेशा रायल्टी में रहता है तो हम तो ऊँचे ते ऊँचे भगवान के बच्चे हैं। हमारा तो नशा ही निराला और अनोखा है - रूहानी नशा।

 ❉   जिस भगवान को दुनिया वाले कहाँ कहाँ ढूँढते है उसी परमपिता परमात्मा ने हमें स्वयं ढूँढ कर हमें अपना बच्चा बनाया। भगवान स्वयं मेरे पिता हैं व हर पल अपने बच्चों के साथ हैं। भगवान हमारा साथी है बहुत नशा व ख़ुशी रहती है।

 ❉   भगवान सर्वशक्तियों, सर्व गुणों का ख़ज़ाना है व हम उसके बच्चे है तो हम भगवान की उन सर्वशक्तियों, गुणों के अधिकारी है। तो सदा भगवान की शक्तियों को अपने साथ महसूस करो।ऐसा स्मृति में रखने से सदा नशा व ख़ुशी रहती है।

 ❉   "हम भगवान के बच्चे हैं" ये खुशी व नशा हमारे चाल चलन से झलके। कोई दूर से देखकर कहे कि इनको क्या मिला जो इतना खुश रहते हैं।

 ❉   हम कौन हैं - भगवान के बच्चे ! ये स्मृति में रखते हुए रूहानी नशे में कोई भी कार्य करते हैं तो वह सहज भी होगा।

 ❉   जैसे लौकिक में बच्चे का पिता से सिर्फ पिता का सम्बंध होता है। भगवान हमारे परमपिता, टीचर, सतगुरू बन सर्व सम्बंध निभाते हैं। सिवाय शिवबाबा के किसी ओर से अनकंडीशनल प्यार नहीं मिल सकता।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-5)

 

➢➢ सर्व प्राप्तियो के अनुभव द्वारा पावरफुल बनने वाले ही सदा सफलतामूर्त बन सकते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   परमात्मा द्वारा ही ज्ञान गुण शक्तियों की सच्ची प्राप्तिया होती है और इन्हें प्राप्त करने के बाद ही हम सफलतामूर्त बन सकते है।

 ❉   परमात्मा की याद में लीन रहने से आत्मा में सभी विघ्नों को विनाश करने की पॉवर आ जाती है।

 ❉   सर्व प्राप्तियो की अनुभूति होगी तो निश्चयबुद्धि बन हर कर्म करेंगे, निश्चय बुद्धि विजयन्ति।

 ❉   सर्व प्राप्ति संपन्न होंगे तो मन बुद्धि एकाग्र रहेंगे भटकेंगे नहीं, एकाग्रता से सफलता प्राप्त होती है।

 ❉   परमात्मा की छत्र छाया में रह बाप से सर्व खजाने लेना ही सर्व प्राप्तियो का अनुभव करना है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-5)

 

➢➢ मर्यादायें ही ब्राह्मण जीवन के कदम हैं, कदम पर कदम रखना माना मंजिल के समीप पहुंचना...कैसे ?

 

 ❉   मर्यादा में सेफ्टी है और सेफ्टी से कदम पर कदम रखना ही सफलता  अर्थात मंजिल तक पहुँचने का आधार है।

 ❉   मर्यादा में रहते हैं तो स्तिथि ऐसी मजबूत बनती है जिसे कोई हिला नही सकता।मजबूती से कदम पर कदम रखते हुए सहज ही मंजिल तक पहुँच जाते हैं।

 ❉   मर्यादा में चलने से परमात्म शक्ति मिलती है जो सहज ही मंजिल तक पहुंचा देती है।

 ❉   मर्यादाएं अर्थात नियम हमे सहज ही मायाजीत और विकर्माजीत बना कर मंजिल के समीप पहुंचा देती हैं।

 ❉   मर्यादाओं में रहने से आत्मा का परमात्मा के साथ ऐसा सम्बन्ध जुट जाता है जो सम्बन्ध की शक्ति कर्म में आ कर उसे सफलतामूर्त बनाये मंजिल तक पहुंचा देती है।

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_  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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