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❍ 22 / 04 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °सिर्फ एक बाप° से ही दिल लगी रही ?
‖✓‖ "°योग और चलन°" का पोतामैल देखा ?
‖✓‖ "हम यहाँ सेवा अर्थ °अवतरित° हुए हैं" - यह स्मृति रही ?
‖✓‖ °शुधि और विधि° पूर्वक हर कार्य किया ?
‖✓‖ मुख से सदैव °रतन° निकाले ?
‖✗‖ कोई भी ऐसा कर्त्तव्य तो नहीं किया जिससे यज्ञ पिता की °निंदा° हो ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ सदा °निजधाम और निजस्वरूप° की स्मृति में रहे ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ हर समय, हर आत्मा के प्रति मन्सा स्वत: शुभभावना और शुभकामना के शुद्ध वायब्रेशन वाली स्वयं को और दूसरों को अनुभव हो । मन से हर समय सर्व आत्माओं प्रति दुआयें निकलती रहें । मन्सा सदा इसी सेवा में बिजी रहे । जैसे वाचा की सेवा में बिजी रहने के अनुभवी हो गये हो । अगर सेवा नहीं मिलती तो अपने को खाली अनुभव करते हो । ऐसे हर समय वाणी के साथ- साथ मन्सा सेवा स्वत: होती रहे ।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ मन से हर समय सर्व आत्माओं प्रति °दुआयें° निकलती रही ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं उपराम और न्यारी आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ मैं निराकारी दुनिया की निवासी, इस धरा पर सेवा अर्थ अवतरित हुई हूँ ।
❉ इस मृत्यु लोक में पार्ट बजाते हुए भी मैं इससे न्यारी हूँ ।
❉ स्वयं को अवतार समझ, मैं सर्व प्रकार के बोझ से मुक्त, स्वयं को एक दम हल्का अनुभव करती हूँ ।
❉ मैं अपने निज धाम और अपने निजी स्वरूप् की स्मृति में रहते हुए इस दुनिया से सदा उपराम रहती हूँ ।
❉ एक सेकण्ड में मैं अपने वास्तविक ओरिजनल स्वरूप में स्तिथ हो कर, इस कांटो के जंगल से उपराम हो, अपने वास्तविक घर में पहुँच जाती हूँ ।
❉ अपनी लौकिक जिम्मेवारियों को पूरा करते हुए उनसे न्यारी और बाप की प्यारी बन, मैं अपना हर संकल्प और समय सफल करती जाती हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - अपनी अवस्था देखो मेरी एक बाप से ही दिल लगती है या किसी कर्म सम्बंधों से दिल लगी हुई है"
❉ पूरे 63 जन्म हम देह और देहधारियों से दिल लगाते आये और दुखी होते आये ।
❉ एक दो के नाम रूप में फँस विकर्म ही करते आये और विकर्म करते करते बिलकुल ही पतित तमोप्रधान बन गए ।
❉ लेकिन अब परम पिता परमात्मा बाप आएं हैं हमे तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाने ।
❉ इसलिए बाप कहते हैं कि इस देह और कर्म सम्बन्धो से दिल हटा कर मुझ से लगाओ ।
❉ अपनी अवस्था देखो कि मेरी दिल एक बाप से ही लगती है ? क्योकि सिवाय बाप की याद के और कोई उपाय नही विकर्म विनाश करने का ।
❉ बाप से दिल लगांने अर्थात बाप की याद से ही आत्मा पावन बन पावन दुनिया की मालिक बनेगी ।
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∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा)(Marks:-10)
➢➢ कोई भी कर्त्तव्य ऐसा नहीं करना है जिससे यज्ञ पिता की निंदा हो। बाप द्वारा जो राइटियस बुद्धि मिली है उस बुद्धि से अच्छे कर्म करने हैं।
❉ अपने को आत्मा समझ अपने निराकारी परमपिता परम आत्मा को याद करना है व किसी देहधारी को नहीं। देहभान में रहेंगे तो देहधारियों को ही याद करेंगें व कोई न कोई विकर्म करेंगे व यज्ञ पिता की अवज्ञा करेंगें। इसीलिए सिर्फ़ एक शिव बाबा को ही याद करना है।
❉ देह व देह के सर्व सम्बंध निभाते हुएँ कमल पुष्प समान न्यारा और प्यारा रहना है।
❉ यज्ञ पिता ने ही इस संगमयुग में हीरे तुल्य जीवन में दिव्य बुद्धि दी है तो उससे हमें श्रेष्ठ कर्म करने हैं किसी को दुख नहीं देना है। बाबा का बनने के बाद सम्पूर्र्ण श्रीमत पर चलना है।
❉ देह से प्रीत नहीं रखनी है नहीं तो नामरूप में फँसते जायेंगे व माया बड़ी तेज़ी से गिरा देगी। इसलिए हमेशा ज्ञान के नए नए प्वाइंटस में मनन चिंतन करते हुए अपने को बिजी रखना है।
❉ निराकारी दुनिया के निवासी है व यहाँ सेवार्थ अवतरित हुए हैं व सेवा निमित्त भाव से करते हुए याद में रहते हुए करनी है । किसी प्रकार का अंहकार नहीं करना । अपने पिता समान निरंहकारी होकर ट्रस्टी भाव से सब करना है ताकि यज्ञ पिता की कोई अवेहलना न हो ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-10)
➢➢ सदा निजधाम और निज स्वरुप की स्मृति से उपराम, न्यारे प्यारे बन जाते है... क्यों और कैसे ?
❉ हमारा प्यारा स्वीट होम आत्माओ का घर है, उस घर में टिकने से हमें यह देह और देह का भान छूटता जाता है।
❉ हम सभी आत्माये परमधाम से अकेले आये थे और अब फिर अकेले जाना है, यहाँ सिर्फ सबके साथ बना बनाया ड्रामा प्ले कर रहे है,, यह स्मृति हमें लगावमुक्त बना देती है।
❉ सभी आम्त्माये परमधाम की निवासी और एक परमात्मा की संतान है, हम सब भाई-भाई है यह दृष्टि और वृत्ति हमारा सभी आत्माओ से आत्मिक प्यार और स्नेह का सम्बन्ध जोड़ती है।
❉ अपने ओरिजिनल स्वरुप में टिक एक बाप और अपने घर की याद से आत्मा को अतीन्द्रिय सुख, शांति, प्रेम, आनन्द की अनुभूति होती है जिससे इसलिए आत्मा को देह की दुनिया से उपराम रहना अच्छा लगता है।
❉ निजस्वरूप में आत्मा बहुत शान्त, पवित्र, शक्तियों व गुणों से भरपूर है, निजस्वरूप की स्मृति से आत्मा स्वयं को भरपूर अनुभव करती है और सबके साथ प्रेम पूर्वक व्यवहार में आती है, जिससे वह सबकी प्यारी बन जाती है।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-10)
➢➢ ब्राह्मण वह है जो शुद्धि और विधि पूर्वक कार्य करे... क्यों ?
❉ जो कार्य शुद्धता और विधि पूर्वक किया जाता है उसमे सहज ही सफलता समाई होती है इसलिए ब्राह्मण वही है जो कार्य को पूरी शुद्धता के साथ और उचित विधि के साथ करे ।
❉ शुद्धि और विधि पूर्वक किया गया कार्य मर्यादाओं को ध्यान में रख कर किया जाता है और मर्यादायें ब्राह्मण जीवन का आधार हैं जो उसे विकर्माजीत बना कर हर कार्य को सफल बना देती है ।
❉ शुद्धि और विधि पूर्वक किये गए कार्य में पवित्रता और सच्चाई की शक्ति निहित होती है और जिसके पास सच्चाई और पवित्रता का बल है वही सच्चा ब्राह्मण है ।
❉ जो कार्य शुद्धि और विधि पूर्वक किया जाता है उसमें श्रेष्ठ और शुद्ध संकल्पों की पूँजी लगी होती है जिससे कार्य में सफलता की प्राप्ति अवश्य होती है ।
❉ जब कोई कार्य पुरी शुद्धि और उचित विधि से किया जाता है तो वह कार्य अनेको के कल्याण के निमित बनता है और बाप समान कल्याणकारी बन सबका कल्याण करने वाला ब्राह्मण ही सच्चा ब्राह्मण है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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