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   18 / 12 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ °कर्मेन्द्रियों° को वश में रखा ?

 

‖✓‖ आत्माओं को °ईश्वर से मिलाकर° उन्हें बेहद का वर्सा दिलाया ?

 

‖✓‖ °एक बाप° से ही सुना ?

 

‖✗‖ कोई भी ऐसा कर्म तो नहीं किया जिससे °बाप की ग्लानी° हुई ?

 

‖✗‖ °व्यर्थ बातों° में समय और संकल्प तो नहीं गंवाया ?

 

‖✗‖ शरीर की संभाल रखी ? पर शरीर में °ममत्व° तो नहीं रखा ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ अपनी रूहानी लाइट्स द्वारा °वायुमंडल को परिवर्तित° करने की सेवा की ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  जैसे आपकी रचना कछुआ सेकेण्ड में सब अंग समेट लेता है। समेटने की शक्ति रचना में भी है। आप मास्टर रचता समेटने की शक्ति के आधार से सेकेण्ड में सर्व संकल्पों को समाकर एक संकल्प में सेकेण्ड में स्थित हो जाओ। जब सर्व कर्मेन्द्रियों के कर्म की स्मृति से परे एक ही आत्मिक स्वरूप में स्थित हो जायेंगे तब कर्मातीत अवस्था का अनुभव होगा।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ समेटने की शक्ति के आधार से सेकेण्ड में सर्व संकल्पों को समाकर °एक संकल्प में सेकेण्ड में स्थित° होने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं सहज सफलतामूर्त आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   अपनी रूहानी लाइटस द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन करने की सेवा करने वाली मैं सहज सफलतामूर्त आत्मा हूँ ।

 

 ❉   लाइट हॉउस बन अपनी पवित्रता और सुख की लाइट से मैं सर्व आत्माओं को पवित्रता और सुख की शक्ति से सम्पन्न करती जाती हूँ ।

 

 ❉   शुद्ध संकल्पों की शक्ति मुझे माया के तूफानों में भी डबल लाइट स्थिति द्वारा सहज ही मेहनत मुक्त, जीवन मुक्त स्तिथि का अनुभव कराती है ।

 

 ❉   अपने डबल लाइट फरिश्ता स्वरूप् को स्मृति में रख मैं सदा दिव्यता की रॉयल्टी से चमकती रहती हूँ ।

 

 ❉   दिव्य और आलौकिक बुद्धि द्वारा मैं हर साधारण कर्म को आलौकिक बना कर सहज ही न्यारेपन की स्थिति में स्थित हो कर आनन्द से सदा भरपूर रहती हूँ ।

 

 ❉   सम्पूर्णता की रोशनी द्वारा अज्ञान का पर्दा हटाने वाली मैं आत्मा सर्च लाइट हूँ ।

 

 ❉   लाइट हाउस बन मैं सारे विश्व की आत्माओं को अज्ञान अन्धकार से निकलने का रास्ता बता रही हूँ ।

 

 ❉   सारे विश्व को हलचल से बचा कर, स्वर्णिम संसार बनाने वाली मैं आत्मा इस धरती का चैतन्य सितारा हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - तुम्हारी यह ईश्वरीय मिशन है, तुम सबको ईश्वर का बनाकर उन्हें बेहद का वर्सा दिलाते हो"

 

 ❉   किसी भी कार्य को सफल बनाने के लिए मिशन बनाई जाती है ताकि एक दो के सहयोग से कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न हो सके ।

 

 ❉   राजनीति में भी ऐसे मिशन बना कर कार्य किये जाते हैं क्योकि सब जगह नेता नही जा सकता । इसलिए उसके सहयोगी ही जगह जगह जा कर लोगो को सन्देश देते हैं ।

 

 ❉   ठीक इसी प्रकार हमारी भी यह ईश्वरीय मिशन है, जिसे स्वयं परम पिता परमात्मा बाप आ कर स्थापन करते हैं ।

 

 ❉   इस ईश्वरीय मिशन का उद्देश्य है परम पिता परमात्मा बाप का मददगार बन सबको परम पिता परमात्मा बाप का परिचय देना ।

 

 ❉   और सबको ईश्वर बाप से मिला कर उन्हें बेहद का वर्सा दिलाना ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ बाप ने जो परहेज बताई है उसे पूरा पालन करना है । कोई भी ऐसा कर्म  नहीं करना जो बाप की ग्लानि हो, पाप का खाता बने ।

 

  ❉   बाप ने जो सत का ज्ञान दिया कि अपने को आत्मा समझो देह नहीं ।क्योकि देहभान मे आने से ही विकारों मे गिरते गए इसलिए अब ज्ञान मिलने पर देही-अभिमानी बनना है ।

 

  ❉   बाप अपने बच्चों को दुखी देखकर इस पतित दुनिया में हमे पावन बनाने के लिए आते हैं व कहते है कि इस अंतिम जन्म जरुर पावन बनो तो हमें मनसा वाचा कर्मणा पवित्रता धारण करनी है ।

 

  ❉   बाप कहते है कि क्रोध एक तरह का भूत है । अगर कोई क्रोध करता है तो हमे शांत रहना है । उसका गुस्सा अपने आप शांत हो जायेगा । कर्मेन्द्रियों पर जीत पाकर जगतजीत बनना है ।

 

  ❉   देह से प्रीत नहीं रखनी है नहीं तो नामरुप में फंसते जाऐंगे व माया बडी तेजी से वार कर विकारों में गिरा देगी । इसलिए देह व देह के सम्बंध निभाते हुए कमल पुष्प समान न्यारा व प्यारा रहना है ।

 

  ❉   कोई भी ऐसा कर्म नहीं करना है जिससे बाप की ग्लानि हो । कोई गल्ती हो भी जाए तो सच-सच बाप से बताना है । बाबा का बनने के बाद भी पाप कर्म किए तो उसकी सजा भी 100 गुना मिलती है । कहा भी गया है ' सतगुरु का निंदक ठोर न पाए'

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ अपनी रुहानी लाइटस द्वारा वायुमंडल को परिवर्तन करने की सेवा करने वाले सहज सफलतामूर्त बन जाते हैं .....क्यों और कैसे ?

 

  ❉   जैसे स्थूल सृष्टि में जिस रंग की लाइट जलाते है वैसा ही वातावरण अनुभव करते है उसी प्रकार हमें लाइट हाउस से पवित्रता की किरणें लेकर उसे चारों ओर फैलाते हुए सेवा कर सफलतामूर्त बनना है ।

 

  ❉   जैसे सूरज निकलता है तो उसका प्रकाश स्वयं ही अनुभव होता है । हमें अपना कनेक्शन परमात्मा से उसी प्रकार जोडे रखना है कि अपनी रुहानियत की चमक से वायुमंडल को परिवर्तन करने की सेवा सहज ही हो व दूसरी आत्माओं को हमारी वायब्रेशनस से सुख शांति का अनुभव हो ।

 

  ❉   जैसे स्थूल में लाइट की दो तारों का कनेक्शन सही जुडता है तो लाइट आती है  ऐसे ही सच्चे सच्चे रुहानी लाइट से कनेक्शन जोड़ रुहानियत का प्रकाश फैलाना है ।

 

  ❉   किसी अंधेरे से भरे कमरे में छोटा सा दीया जलाने से प्रकाश हो जाता है ऐसे अज्ञानता रुपी अंधकार में परमात्म ज्ञान रुपी उजाले से दूर करना है व विश्व में ज्ञान का उजाला फैलाकर वायुमंडल को परिवर्तन कर सफलतामूर्त बनना है ।

 

  ❉   मनसा वाचा कर्मणा द्वारा शुभ भावना और पवित्रता से अपने चेहरे और चलन से रुहानियत की चमक फैला वातावरण को शुद्ध कर सफलतामूर्त बनना है ।

 

  ❉    जैसे गुलाब का फूल कांटों मे रहते हुए भी अपने गुण को नही छोड़ता व अपनी खुशबू फैलाता है ऐसे ही हमें पुरानी दुनिया में रहते हुए पुराने स्वभाव संस्कारों को छोड़ अपने  गुणों द्वारा वातावरण को महकाना है ।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ व्यर्थ बातों में समय और संकल्प गंवाना - यह भी अपवित्रता है... कैसे ?

 

 ❉   व्यर्थ बातों में समय और संकल्प गंवाना आत्मा को संगम युग के बहुमूल्य खजानो और प्राप्तियों से वंचित कर, पुरुषार्थ में रुकावट डालता हैं ।

 

 ❉   व्यर्थ चिंतन में समय और संकल्प गंवाने से  आत्मा शक्तिहीन बन जाती है और आत्मा की शक्ति कम होने से मन, बुद्धि माया के दास बन जाते हैं और आगे बढ़ नही पाते ।

 

 ❉   चड़ती कला के अनुभव के लिए स्व स्थिति का मजबूत होना बहुत आवश्यक है किन्तु साधारण और व्यर्थ संकल्प स्वस्थिति को कमजोर बनाते हैं  जिससे विकर्म होते हैं और आत्मा असन्तुष्टता का अनुभव करती है ।

 

 ❉   व्यर्थ बातों में समय और संकल्प खर्च करना बुद्धि को कमजोर बना देता हैं जिससे निर्णय शक्ति प्रभावित होती है और व्यर्थ का खाता बढ़ने से जमा का खाता घटता जाता है जिससे आत्मा पर विकर्मो का बोझ कम होने की बजाय बढ़ता जाता है ।

 

 ❉   व्यर्थ संकल्प और व्यर्थ बातों का चिंतन बुद्धि का कनेक्शन बाप से जुड़ने नही देते, योग का बल ना मिलने से आत्मा निर्बल हो जाती है और सम्पूर्ण पावन नही बन पाती ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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