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❍ 16 / 06 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ रुचि से °पढाई° पडी ?
‖✓‖ एकांत में °अपने आप से बातें° कर अपने को उमंग में लाया ?
‖✓‖ अपनी दिल से पुछा की मैं कितनो को °आप समान° बनाता हूँ ?
‖✓‖ °साक्षी° होकर हर एक के पार्ट को देखने का अभ्यास किया ?
‖✓‖ हर बात में °सहनशील° होकर रहे ?
‖✓‖ मान शान और साधनों का °त्याग° किया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ °त्रिकालदर्शी° स्टेज द्वारा व्यर्थ का खाता समाप्त किया ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ जितना आप अपनी अव्यक्त स्थिति में स्थित होते जायेंगे उतना बोलना कम होता जायेगा। कम बोलने से ज्यादा लाभ होगा फिर इस योग की शक्ति से सर्विस स्वत: होगी। योगबल और ज्ञान-बल जब दोनों इकट्ठा होता है तो दोनों की समानता से सफलता मिलती है।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ °योगबल और ज्ञान-बल° दोनों को इकठा का सफलता प्राप्त की ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं सदा सफलतामूर्त आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ हर कार्य में सफलता की ऊंचाइयों को छूने वाली मैं सदा सफलतामूर्त आत्मा हूँ ।
❉ मैं आत्मा सर्व प्राप्तियों की अनुभवी हूँ ... सदा पावरफुल हूँ ।
❉ बाबा ने मुझे अपनी सर्वशक्तियों से भरपूर कर दिया है ।
❉ सर्वशक्तियों की अथॉरिटी से मैं सिद्धि स्वरूप बनती जाती हूँ ।
❉ त्रिकालदर्शी की स्टेज पर सदा स्थित रह, तीनो कालों को बुद्धि में रख मैं व्यर्थ का खाता समाप्त करती जाती हूँ ।
❉ जजमेंट और कंट्रोलिंग पॉवर द्वारा मैं अपने सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को परखकर उसकी चाहना पूरी कर, उसे तृप्त कर देती हूँ ।
❉ अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को श्रेष्ठ दिशा प्रदान कर हर कदम में पदम की कमाई जमा करती जाती हूँ ।
❉ मेरी अचल और अडोल स्तिथि मुझे हर कार्य में सहज ही सफलतामूर्त बना देती है ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - जब तक जीना है तब तक पढ़ना और पढ़ाना है, ख़ुशी और पद का आधार है पढ़ाई"
❉ किसी भी ऊंच पद की प्राप्ति का मुख्य आधार पढ़ाई ही है ।
❉ लौकिक में भी जो अच्छी रीति पढ़ने वाले विद्यार्थी होते हैं वही ऊँच पद प्राप्त करते हैं।
❉ यह भी ईश्वरीय पढ़ाई है जिसमे पढ़ने वाले हम सब रूहानी स्टूडेंट हैं और स्वयं परमपिता परमात्मा रूहानी टीचर बन हमे पढ़ा रहें हैं ।
❉ लौकिक पढ़ाई का तो समय निश्चित होता है किन्तु यह ईश्वरीय पढ़ाई कभी समाप्त नही होती, जब तक जीना है तब तक पढ़ना और पढ़ाना है ।
❉ क्योकि यह ईश्वरीय पढ़ाई अविनाशी ख़ुशी और हमारे भविष्य ऊँच पद पाने का मुख्य आधार है ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ बाप को याद करके अपने आप को सुधारना है ।
❉ सबसे पहले ये याद रखना है कि मैं कौन हूँ व कौन मेरा साथ निभा रहा है । जब स्वयं को आत्मा समझेंगेँ शरीर नहीं तो आत्मा के पिता की याद स्वत: ही आयेगी ।
❉ जब बाप की याद में रहते है तो आत्मा को बल मिलता है व विकार धीरे-धीरे खत्म हो जाते हैं ।
❉ लौकिक में बच्चा अपने पिता को अपना रोल माॅडल समझता है व बाप के लक्ष्य क़दमों पर चलता है इसीप्रकार हम आत्माओं का पिता एक ही है व हमें बाप को याद करते हुए बाप समान बनना है। जो कमज़ोरियाँ है उन्हें दूर करना है।
❉ पारलौकिक पिता से सर्व सम्बंध निभाते हुए बस एक बाप ही याद में रहना है व किसी दूसरे की याद न आए तो माया भी दूर से सलाम कर भाग जायेगी।
❉ बाप की याद से ही काँटों से बनते जायेंगे व हमारी चाल चलन भी राॅयल होती जायेगी ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ त्रिकालदर्शी स्टेज द्वारा व्यर्थ का खाता समाप्त करने वाले सदा सफलतामूर्त होते है... क्यों और कैसे ?
❉ बाबा ने हम बच्चो को तीनो लोको व तीनो कालो का ज्ञान दिया, अब समय बहुत कम है यही स्मृति में रख अब हमें व्यर्थ से मुक्त बनना है।
❉ तीनो कालो का ज्ञान होने से अब हमें यह पता चला है हम क्या थे और अब कितना कम समय बचा है हमारे पास तो व्यर्थ के लिए तो समय होगा ही नहीं।
❉ बाबा ने कर्मो की ग्हुय गति हम बच्चो को समझाई है और आपनी सभी शक्तिया भी हम बच्चो को दी है, हम बच्चो को हर कर्म करने से पहले उसे परख व सही निर्णय लेकर ही करना चाहिए।
❉ हम स्वयं ही स्वयं के मित्र व शत्रु है, यदि हम समय की पुकार न सुन अब भी व्यर्थ में फसे रहे तो हमारी विजय कभी नहीं हो पायेगी और हम अंत में बहुत पछतायेंगे।
❉ बाबा ने हमारे व ड्रामा के आदि, मध्य, अंत का ज्ञान हम बच्चो को दिया, हमारा लक्ष्य बहुत उच्च है तो हमारा पुरुषार्थ भी उतना तीव्र होना चाहिए तभी सफलता को अपने गले का हार बना सकेंगे।
❉ यह बहुत वैल्युएबल समय है इसका महत्त्व समझ, इस समय को सफल करने वाले ही सफलतामूर्त बन सकते है।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ मान ,शान और साधनो का त्याग ही महान त्याग है... क्यों और कैसे?
❉ मान,शान और साधनो का त्याग आत्मा को निर्मान और निर्माण बना देता है ।
❉ मान, शान और साधनो का त्याग करने से आत्मा इच्छा मात्रम अविद्या बन जाती है ।
❉ मान, शान और साधनो का त्याग करने से आत्मा हद से निकाल ,बेहद में चली जाती है ।
❉ मान, शान और साधनो का त्याग आत्मा को सांसारिक आकर्षणों से छुड़ा देता है ।
❉ मान, शान और साधनो का त्याग आत्मा को बेहद का वैरागी बना देता है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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