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❍ 19 / 05 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °सवेरे सवेरे° प्रेम से बाप को याद किया ?
‖✓‖ अच्छी तरह से °पढाई° पडी ?
‖✓‖ "भगवान् हमें पडाकर पुरुषोत्तम बना रहे हैं... हम °संगमयुगी° हैं" - इसी नशे में रहे ?
‖✓‖ अपने आप को देखा की हम °श्री लक्ष्मी, श्री नारायण° सामान बन सकते हैं ?
‖✓‖ अपने °विकारों की जांच° की ?
‖✗‖ एक बार की हुई °गलती को बार बार° तो नहीं सोचा ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ °एकाग्रता° के अभ्यास द्वारा एकरस स्थिति का अनुभव किया ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ लवलीन स्थिति वाली समान आत्माएं सदा के योगी हैं । योग लगाने वाले नहीं लेकिन हैं ही लवलीन । अलग ही नहीं हैं तो याद क्या करेंगे! स्वत: याद है ही । जहाँ साथ होता है तो याद स्वत : रहती है । तो समान आत्माओं की स्टेज साथ रहने की है, समाये हुए रहने की है ।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ योग लगाने वाले नहीं लेकिन °लवलीन° स्थिति में स्थित रहे ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं सर्व सिद्धि स्वरूप आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ एकाग्रता के अभ्यास द्वारा एकरस स्थिती का अनुभव करने वाली मैं सर्व सिद्धि स्वरूप आत्मा हूँ
❉ एकाग्रता की शक्ति द्वारा मैं आत्मा अपने हर संकल्प, बोल और कर्म में व्यर्थ को समाप्त कर उसे समर्थ बनाती जाती हूँ ।
❉ जिस प्रकार एक बीज रूपी संकल्प में सारा वृक्ष रूपी विस्तार समाया हुआ है ऐसे ही एक श्रेष्ठ संकल्प में स्थित हो कर, एकाग्रता द्वारा मैं सर्व प्रकार की हलचल को समाप्त करती जाती हूँ ।
❉ एकांतवासी बन अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को सहज ही सिद्ध कर मैं आत्मा सिद्धि स्वरूप बनती जाती हूँ ।
❉ मनमनाभव के मन्त्र को सदा स्मृति में रख मैं आत्मा सर्व सिद्धियां प्राप्त करती जाती हूँ और सिद्धि स्वरूप बन सदा एकरस स्थिति में स्थित रहती हूँ ।
❉ सर्वशक्तिमान परमपिता परमात्मा बाप ने मुझे अपनी सर्व शक्तियों का अधिकारी बना दिया है ।
❉ सर्वशक्तियों की यह अथॉरिटी मुझे सिद्धि स्वरूप बना कर हर कार्य में सफलता का अनुभव कराती है ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - देही - अभिमानी बन बाप को याद करो तो याद का बल जमा होगा, याद के बल से तुम सारे विश्व का राज्य ले सकते हो"
❉ परम पिता परमात्मा बाप को याद तो आज तक हम सभी करते आये ।
❉ किन्तु आत्मा और परमात्मा का यथार्थ ज्ञान ना होने के कारण याद भी यथार्थ रीति कर नही पाये ।
❉ किन्तु अब परम पिता परमात्मा बाप ने स्वयं आ कर हमे हमारा और अपना यथार्थ परिचय दिया है और समझाया है कि स्वयं को देह समझने के कारण ही हम बाप को यथार्थ रीति याद नही कर पाये ।
❉ इसलिए अब देही - अभिमानी बनो अर्थात अपने वास्तविक आत्मिक स्वरूप में स्थित हो कर बाप को याद करो तो याद का बल जमा होगा ।
❉ और इस याद के बल से तुम सारे विश्व के मालिक बन जाएंगे ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा - ज्ञान मंथन(Marks:-10)
➢➢ अथाह ख़ुशी में रहने के लिए- सवेरे-सवेरे प्रेम से बाप को याद करना है और पढ़ाई पढ़नी है। भगवान हमें पढ़ाकर पुरूषोत्तम बना रहे हैं, हम संगमयुगी हैं, इस नशे में रहना है।
❉ सुबह का समय हम ब्राह्मण बच्चों के लिए बाप से मिलने का ख़ास समय होता है। सुबह सुबह अपने को आत्मा समझ आत्मा को पिता परमात्मा को प्रेम से याद करना चाहिए ।
❉ जितना जास्ती याद में रहते हैं उतना ही ज़्यादा आत्मा में बल भरता है व याद के पुरूषार्थ से नंबरवार पद प्राप्त करते हैं।
❉ लौकिक में तो जो पढ़ाई पढ़ते हैं उससे पाई पैसे का पद मिलता है व अच्छा पद मिलता भी है तो कुछ समय के लिए मिलता है। बाप जो पढ़ाते है उसी पढ़ाई को अच्छी रीति पढ़कर 21 जन्मों के लिए राजाई पद प्राप्त करते हैं।
❉ स्कूल में हम पढ़ाई एक स्टूडेंट की तरह पढ़ते है व पढ़ाने वाला एक काॅमन टीचर है। यहाँ तो हम ईश्वरीय स्टूडेंट हैं व भगवान स्वयं हमे ं पढ़ाता है व ये पढाई तो हमें एक घंटा ही पढनी होती है। इस पढ़ाई को पढ़कर हम कल्याणकारी संगमयुग में पुरूषों में उत्तम यानि मनुष्य से देवता बन रहे हैं।
❉ यह संगमयुगी समय वरदानी समय है व इस समय में जो चाहो प्राप्त कर ग सकते हो। क्योंकि इस समय स्वयं भगवान ने हमें अपना बच्चा बनाया है व जो शक्तियाँ ख़ज़ाने बाप के हैं वही सारे हम बच्चों के हैं। बाप स्वयं हमें स्वर्ग के प्रिंस प्रिंसेज बना रहा है तो कितना नशा रहना चाहिए !!
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ एकाग्रता के अभ्यास द्वारा एकरस स्थिति का अनुभव करने वाले सर्व सिद्धि स्वरुप बन जाते है... क्यों और कैसे ?
❉ एकाग्रता अर्थात मन बुद्धि दोनों एक साथ एक जगह लगी हुई हो, एसी स्थिति में हम जो भी कार्य करते है वह अवश्य सिद्ध होता है।
❉ जब मन बुद्धि एकाग्र होती है तो आत्मा की सर्व शक्तिया इमर्ज होती जाती है और आत्मा सिद्धि स्वरुप बनती जाती है।
❉ जितना हमारी मन बुद्धि एकाग्र होगी उतना ही हम एक परमात्मा की याद में एकरस रह सकते है और अपने को परमात्म गुणों एवं शक्तियों से भरपूर कर सकते है।
❉ जो आत्माये सदा एकरस स्थिति में रहती है उनका जैसे की हर समय परमात्मा से कनेक्शन जुडा हुआ ही रहता है, परमात्मा की याद और साथ से उन आत्माओ का सभी कार्य इतना सहज हो जाता है जैसे की हुआ ही पड़ा हो।
❉ जितना हमारे मन बुद्धि एकाग्र होगी उतनी ही हमारे में परखने की व निर्णय लेने की शक्ति अधिक होगी, जिससे हम पहले ही सही गलत का फैसला ले सकेंगे और सही राह पर चल सकेंगे।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ एक बार की हुई गलती को बार - बार सोचना अर्थात दाग पर दाग लगाना इसलिए बीती को बिंदी लगाओ...क्यों और कैसे ?
❉ एक बार की हुई गलती को बार - बार सोचना पुरुषार्थहीन बना देता है इसलिए बीती को बिंदी लगाना ही पुरुषार्थ को तीव्र बनाने का आधार है ।
❉ एक बार की हुई गलती को बार बार सोचने से मन बुद्धि भारी हो जाते है जिससे आत्मा उड़ती कला के अनुभव से वंचित रह जाती है इसलिए बीती को बिंदी लगा कर ही उड़ती कला का अनुभव किया जा सकता है ।
❉ एक बार की हुई गलती को बार बार सोचने से आत्मा व्यर्थ में उलझ जाती है और संगम युग की श्रेष्ठ प्राप्तियों का अनुभव नही कर पाती इसलिए संगम युग की श्रेष्ठ प्राप्तियों और परमात्मा प्यार की पालना का अनुभव करने के लिए बीती को बिंदी लगाना जरूरी है ।
❉ एक बार की हुई गलती को बार बार सोचने से आत्मा परमात्म मिलन से प्राप्त होने वाले अतीन्द्रिय सुख से स्वयं को दूर अनुभव करती है । इसलिये अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति के लिए बीती को बिंदी लगाना जरूरी है ।
❉ एक बार की हुई गलती को बार बार सोचने से आत्मा अपने अमूल्य समय, संकल्प और शक्ति को व्यर्थ ही गंवा कर, आलस्य और अलबेलेपन का अनुभव करती है जो कि पुरुषार्थ में सबसे बड़ी रुकावट है । आलस्य और अलबेलेपन से बचने के लिए बीती को बिंदी लगाना जरूरी है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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