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   19 / 06 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ °चैतन्य लाइट हाउस° बनकर रहे ?

 

‖✓‖ ज्ञानवान बन सबको °रास्ता बताया° ?

 

‖✓‖ एक आँख में °शांतिधाम°, दूसरी आँख में °सुखधाम° रहा ?

 

‖✓‖ °बेहद की पवित्रता° को धारण किये रखा ?

 

‖✗‖ किसी से भी °नया सम्बन्ध° तो नहीं जोड़ा ?

 

‖✗‖ किसी व्यक्ति, वस्तु व वैभव के प्रति °आकर्षित° तो नहीं हुए ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ वाईसलेस की शक्ति द्वारा सूक्षम वतन व °तीनो लोको का अनुभव° किया ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  अब कोई भी आधार पर जीवन का आधार नहीं होना चाहिए अथवा पुरुषार्थ भी कोई आधार पर नहीं होना चाहिए, इससे योगबल की शक्ति के प्रयोग में कमी हो जाती है। जितना जो योगबल की शक्ति का प्रयोग करते हैं उतना उनमें वह शक्ति बढ़ती है। योगबल अभ्यास से बढ़ता है।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ °बिना किसी आधार° के पुरुषार्थ किया ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   भाग्यविधाता परमपिता परमात्मा बाप की श्रेष्ठ मत पर चल अपना श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाली मैं श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ ।

 

 ❉   करनकरावन हार बाप की छत्रछाया में निश्चय बुद्धि बन विजय का तिलक लगाये मैं निरन्तर सफलतामूर्त बनती जाती हूँ ।

 

 ❉   स्वयं भगवान मेरा मददगार है । उसकी हजार भुजाएं के नीचे मैं स्वयं को सुरक्षित अनुभव कर आगे बढ़ती जाती हूँ ।

 

 ❉   वाइसलेस की शक्ति द्वारा सूक्ष्म वतन और तीनो लोको का अनुभव करने वाली मैं पदमा पदम सौभायशाली आत्मा हूँ ।

 

 ❉   बाप से सर्व सम्बंधों के सार की महीन याद द्वारा मैं सूक्ष्म लोक में अपने संकल्प पहुंचा कर बापदादा की टचिंग कैच कर अपार ख़ुशी का अनुभव करती हूँ ।

 

 ❉   साइलेन्स की शक्ति द्वारा फरिश्ता बन सूक्ष्म वतन की सैर कर आनन्द के झूले में झूलती रहती हूँ ।

 

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - अभी तुम्हे बेहद की पवित्रता को धारण करना है, बेहद की पवित्रता अर्थात एक बाप के सिवाय और कोई याद ना आये"

 

 ❉   आत्मा अपने घर परमधाम में अपने वास्तविक स्वरूप में सम्पूर्ण पवित्र है और जब इस सृष्टि रंग मंच पर पार्ट बजाने के लिए आती है तो सम्पूर्ण पवित्र अवस्था में ही आती है ।

 

 ❉   पार्ट बजाते बजाते अनेक जन्म लेते लेते आत्मा पर विकारों की कट चड़ने से आत्मा पतित बनती जाती है ।

 

 ❉   पतित आत्मा को फिर से पावन बना कर वापिस अपने घर परमधाम ले जाने के लिए ड्रामा प्लान अनुसार परम पिता परमात्मा बाप आते है और आ कर हम आत्माओं को राजयोग सिखलाते हैं ।

 

 ❉   क्योकि आत्मा को पावन बनाने का एक ही उपाय है और वह उपाय है परम पिता परमात्मा बाप की यथार्थ याद ।

 

 ❉   इसलिए बाप समझाते है कि अभी तुम बेहद की पवित्रता धारण करो अर्थात एक बाप के सिवाय और कोई को याद नही करो ।

 

❉   बाप की याद में रहने की मेहनत करेंगे तो तुम पावन बनते जायेंगे और पावन बन बाप के साथ वापिस अपने घर चलें जायेंगे ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ एक आँख से शांतिधाम, दूसरी आँख में सुखधाम रहे । इस दु:खधाम को भूल जाना है ।

 

 ❉   कल्याणकारी संगमयुग पर भगवान ने स्वयं दिव्य दृष्टि दी है व रूहानी ज्ञान दिया है । उस ज्ञान से ही गति सदगति होती है व वाया शांतिधाम सुखधाम जाते हैं ।

 

 ❉  बाप कहते है-सब भूलकर बस एक बाप की याद में रहो व 21 जन्मों के लिए स्वर्गवासी बनने के लिए पुरूषार्थ करना है ।इतना ऊंच पद पाने की ख़ुशी होनी चाहिए व एक आँख से शांतिधाम व दूसरी आँख में सुखधाम रहे।

 

 ❉   शांतिधाम तो वाइसलेस वर्ल्ड है व वहाँ शांति ही है। सुखधाम में ही मुक्ति व जीवनमुक्ति का अनुभव होता है ।

 

 ❉   बाबा कहते हैं कि अपने ताज व तख़्त का फ़ोटो अपने पाकेट में रखो तो हमेशा याद बनी रहेगी कि हम वाय शांतिधाम सुखधाम जायेंगे ।

 

 ❉   जैसे नया घर बनाना शुरू करते हैं तो सारा ध्यान नये घर पर होता है व पुराना भूलने लगते हैं इसी तरह हमें बाबा पढ़ाकर नयी दुनिया का मालिक बना रहे हैं तो पुरानी दुनिया को भूल जाना है ।

 

 ❉   देहभान विकार व नामरूप में न फँसते इस पुरानी दुनिया से ममत्व मिटाकर दु:ख देने वाले दु:खधाम को भूल सदा सुखधाम को याद रखना है ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ श्रेष्ठ भाग्यवान, वाइसलेस की शक्ति द्वारा सूक्ष्मवतन वा तीनो लोको का अनुभव करते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   स्वयं को आत्मा समझ इस देह के भान से परे होकर ही हम आत्माये अपने मुलवतन व सूक्ष्म वतन की सैर कर सकते है क्युकी सूक्ष्मवतन व मूलवतन में हुम् इस भारी भरकम शरीर के साथ नहीं जा सकते, वह जाने के लिए हमें इस देह के भान का त्याग कर सूक्ष्म शरीर व आत्मा रूप बनना ही होगा।

 

 ❉   अपना सूक्ष्म शरीर धारण कर फ़रिश्ता रूप बनकर हम मन बुद्धि द्वारा जहा चाहे वहा का अनुभव कर सकते है।

 

 ❉   त्रिलोकीनाथ बाप ने हम श्रेष्ठ भाग्यवान आत्माओ को भी दिव्य बुद्धि व दिव्य नेत्र दिए जिन द्वारा हम परमात्मा, अपने घर को जान सके तथा जब चाहे तीनो लोको की सैर कर सके।

 

 ❉   स्वयं को वाइसलेस अर्थात साइलेंस में स्थित करे,तथा संकल्प करे की में आत्मा अब इस शारीर को छोड़ अपने सूक्ष्म शरीर में विराजमान हु, और उस सूक्ष्म शरीर में बेठकर सूक्ष्मवतन का अनुभव करे, फिर आत्मा रूप बनकर परमधाम जाये और वहां पर स्वयं को अनुभव करे।

 

 ❉   साइलेंस की शक्ति सबसे महान शक्ति है। साइलेंस की स्थिति में हमारा मन एकाग्र होता है व इस स्थिति में हम जो संकल्प करे उस स्वरुप का अनुभव सहज कर सकते है, साइलेंस पॉवर द्वारा हमें कोई भी जगह ऐसे स्पष्ट दिखाई व अनुभव होगी जैसे हम प्रत्यक्ष में वही खड़े हो या जैसे दूर की चीज़ टीवी में सामने साफ दिखाई देती है।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ किसी व्यक्ति,वस्तु व वैभव के प्रति आकर्षित होना ही कम्पैनियन बाप को संकल्प से तलाक देना है... कैसे ?

 

 ❉   व्यक्ति,वस्तु व वैभव का आकर्षण देह अभिमान में ले आता है । जहां देह अभिमान है वहां बाप की याद ठहर नही सकती ।

 

 ❉   व्यक्ति,वस्तु व वैभव में आकर्षित हो कर आत्मा अनेक प्रकार के व्यर्थ संकल्पों में उलझ जाती है जिससे बाप की याद भूल जाती है ।

 

 ❉   हद की चीजो के आकर्षण में फंसी बुद्धि हद में रहने के कारण बेहद परम पिता परमात्मा बाप के प्यार का अनुभव नही कर पाती ।

 

 ❉   व्यक्ति, वस्तु व वैभव के आकर्षण में फंस कर आत्मा बुरे कर्मो में प्रवृत हो जाती है और पतित बन जाती है जिसके कारण कम्पैनियन बाप के साथ सम्बन्ध जुटना कठिन हो जाता है ।

 

 ❉   हद की ये सब चीजे आत्मा को इन्द्रिय भोगो के क्षणिक सुखों में लिप्त कर, अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति नही होने देते । जिससे आत्मा कम्पैनियन बाप से दूर हो जाती है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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