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    02 / 06 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

         TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ सेवा से °दुआएं° प्राप्त कर तंदरुस्त रहे ?

 

‖✓‖ योगबल से °कर्मेन्द्रियों को वश° में रखा ?

 

‖✓‖ एक °वृक्षपति बाप° की याद में रहे ?

 

‖✓‖ "°मैं आत्मा हूँ°... शरीर नहीं" - यह पहला पाठ पक्का किया ?

 

‖✓‖ "यह °दुःख की दुनिया अब बदलनी° है" - यह स्मृति में रहा ?

 

‖✓‖ पढाई की °ख़ुशी° के गुप्त खजाने का अनुभव किया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ °न्यारे और प्यारे° बनने का राज़ स्मृति में रख राज़ी रहे ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  आप अपनी आत्मिक दृष्टि से अपने संकल्पों को सिद्ध कर सकते हो। वह रिद्धि सिद्धि है अल्पकाल, लेकिन याद की विधि से संकल्पों और कर्मों की सिद्धि है अविनाशी। वह रिद्धि सिद्धि यूज करते हैं और आप याद की विधि से संकल्पों और कर्मों की सिद्धि प्राप्त करो।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ याद की विधि से संकल्पों और कर्मों की °सिद्धि° प्राप्त की ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं राजयुक्त आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   न्यारे और प्यारे बनने का राज जानकर राज़ी रहने वाली मैं राजयुक्त आत्मा हूँ ।

 

 ❉   प्रवृति में रहने पर - वृति द्वारा मैं सर्व से न्यारी और बाप की प्यारी बन, सदा स्वयं भी स्वयं से राजी रहती हूँ और प्रवृति को भी राज़ी रखती हूँ ।

 

 ❉   अपने सच्चे दिल से दिलाराम बाप के दिल पर भी राज कर , बाप के दिल रूपी तख्त पर सदा विराजमान रहती हूँ ।

 

 ❉   सदा राजी रहने के इस राज द्वारा ही मैं दिलाराम बाप से टचिंग ले अपना हर फैसला अपने आप कर लेती हूँ ।

 

 ❉   अपनी राजयुक्त स्थिति में स्थित रह सदा सन्तुष्टता का अनुभव करते हुए मैं संतुष्टमणि बन सर्व आत्माओं को संतुष्ट रखती हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - तुम्हारा पहला - पहला (सबक) पाठ है - मैं आत्मा हूँ, शरीर नही, आत्म - अभिमानी हो कर रहो तो बाप की याद रहेगी"

 

 ❉   आज हमारे दुखों का मूल कारण ही यही है कि हम अपने वास्तविक स्वरूप को और अपने पिता परमात्मा को भूल गए ।

 

 ❉   इन आँखों से दिखाई देने वाले इस बाह्य आवरण अर्थात देह को सच मान लिया और देह अभिमान में आ कर अनेक विकर्म करते रहे ।

 

 ❉   किन्तु अब परम पिता परमात्मा शिव बाबा ने आ कर हमे यह स्मृति दिलाई है कि हम देह नही   बल्कि इस देह में विराजमान आत्मा है ।

 

 ❉   इसलिए हमारा पहला पाठ ही है खुद को शरीर नही आत्मा निश्चय करना और यह अभ्यास पक्का करना कि हम देह नही आत्मा है ।

 

 ❉   आत्मिक स्मृति में रहेंगे तो आत्मा के पिता अर्थात परम पिता परमात्मा बाप की याद स्वत: बनी रहेगी ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा - ज्ञान मंथन(Marks:-10)

 

➢➢ योगबल से अपनी सर्व कर्मेन्द्रियों को वश में करना है। एक वृक्षपति बाप की याद में रहना है।

 

 ❉   जितना दिल से किसी से जुड़ते है व दिल से किसी को याद करते है तो उस की याद बनी रहती है। इसलिए किसी देहधारी की याद को छोड एक विदेही बाप से जुड़ना है।

 

 ❉   योगबल व स्वचिंतन से ही आत्मचिंतन कर स्वयं का व औरों का कल्याण करते विश्व परिवर्तक बन एक विदेही बाप के न्यारे व प्यारे बने रहेंगे।

 

 ❉   देहधारियों से प्रीत निकाल एक बाप को याद करेंगे तो सब अंग शीतल हो जायेंगे व विकारों से छूट जायेंगे।अपने अंदर यथार्थ रीति से योग का बल जमा कर योगबल से अपनी कर्मेन्द्रियों कोँ शीतल करना है।

 

 ❉   योग करते समय सिर्फ़ एक विदेही बाप की याद में रहते सारी दुनिया से उपराम बन रहना है क्योंकि जितना लौकिक से दूर एक बाप की याद में रहेंगे तब कर्मेन्द्रियां किसी विकार में फँसने की बजाय केवल पवित्रता की धारणा करेंगी।

 

 ❉   वृक्षपति ंमनुष्य सृष्टि का बीजरूप है बाप। बीज है अंदर मे, उनको याद भी ऊपर में करते है। आत्मा अपने बाप परम आत्मा को याद करती है।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ न्यारे और प्यारे का राज जानकर राजी रहने वाले राजयुक्त होते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   ड्रामा के ज्ञान को बुद्धि में रख न्यारे प्यारे रहने वाले ही सदा राजी राजयुक्त आत्मा है, उन्हें कोई भी प्रकार की हलचल हिला नहीं सकती।

 

 ❉   वह आत्माये ड्रामा की कोई सिन देख घबराएंगे नहीं, सदा अचल अडोल एकरस अवस्था रहेगी।

 

 ❉   राजयुक्त आत्माये एक बाप की लगन में मगन हर परिस्थिति में हर हाल में राजी रहती है, जो हो रहा है सब अच्छा।

 

 ❉   राजयुक्त आत्माये राजयोग द्वारा स्वयं को, परमात्मा को व ड्रामा को जान सदा न्यारी व सबकी प्यारी रहती है।

 

 ❉   राजयुक्त आत्माओ को यह स्मृति पक्की रहती है की जो बाबा खिलाये, जहा बिठाये, जो सेवा दे हर बात में राजी, क्या क्यों या में नहीं कर सकती जैसे कमजोरी के संकल्प उनके नहीं होते।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ सेवा से जो दुआये मिलती हैं - वह दुआये ही तंदरुस्ती का आधार हैं... कैसे ?

 

 ❉   सेवा से जो दुआये मिलती है वह लिफ्ट का काम करती है और पुरुषार्थ की गति को तीव्र कर देती हैं ।

 

 ❉   सेवा से मिलने वाली दुआये मन बुद्धि को शांत बना कर एकाग्रता की शक्ति को बढ़ा देती हैं ।

 

 ❉   सेवा से जो दुआयें मिलती है वो जमा का खाता बढ़ाती हैं और मन को हर्षित कर देती है ।

 

 ❉   निस्वार्थ भाव से की गई सेवा अनेक आत्माओं का कल्याण करती है जिससे उनके मन से निकली हुई दुआये उसे सहज ही उड़ती कला में ले जाती हैं ।

 

 ❉   सेवा से मिलने वाली दुआये कर्म भोग को चुक्तू करने में भी सहायक बनती है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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