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❍ 19 / 11 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ अपना टाइम °रूहानी धंधे° में सफल किया ?
‖✓‖ °खुशमिजाज़ चेहरे° से सबको बाप की याद दिलाते रहे ?
‖✓‖ "हम °बेगर से प्रिंस° बन रहे हैं" - यह ख़ुशी रही ?
‖✓‖ "मैं °आत्मा° हूँ" - अन्दर में बैठ यह जाप जपा ?
‖✓‖ अपने को °सावधान° करते रहे ?
‖✗‖ कर्म के फल की °सूक्षम कामना° तो नहीं रखी ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ हद की सर्व इच्छाओं का °त्याग° किया ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ बाप के समीप और समान बनने के लिए देह में रहते विदेही बनने का अभ्यास करो। जैसे कर्मातीत बनने का एग्जैम्पल साकार में ब्रह्मा बाप को देखा, ऐसे फॉलो फादर करो। जब तक यह देह है, कर्मेन्द्रियों के साथ इस कर्मक्षेत्र पर पार्ट बजा रहे हो, तब तक कर्म करते कर्मेन्द्रियों का आधार लो और न्यारे बन जाओ।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ देह में रहते °विदेही° बनने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं तपस्वी मूर्त आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ हद की सर्व इच्छाओं का त्याग करने वाली मैं सच्ची तपस्वी मूर्त आत्मा हूँ ।
❉ हद के मान शान के लेवता पन का त्याग कर मैं मास्टर विधाता बन निमित और निर्मान भाव से सर्व आत्माओं को सर्व गुणों और शक्तियों से सम्पन्न करती जाती हूँ ।
❉ नए दैवी संस्कारो को इमर्ज कर, मैं आत्मा पुराने आसुरी संस्कार, स्वभाव और स्मृतियों को मर्ज करती जा रही हूँ ।
❉ मुझ आत्मा के संग से कड़े से कड़े संस्कारों वाली आत्मा भी परिवर्तित हो जाती है ।
❉ इस पुरानी विनाशी दुनिया और दुनियावी पदार्थो से मैं सम्पूर्ण नष्टोमोहा बनती जा रही हूँ ।
❉ हर कार्य और संकल्प में सदा औरों को आगे रखने की भावना द्वारा मैं सहज ही स्वयं को मेरे पन की भावना से मुक्त करती जाती हूँ ।
❉ बिना कोई हद का आधार लिए मैं सदा आंतरिक ख़ुशी के झूले में झूलती रहती हूँ ।
❉ हद की प्राप्तियों से किनारा कर, मैं सदा उपराम स्थिति द्वारा हल्की हो उड़ती रहती हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - अपने कैरेक्टर्स सुधारने के लिए याद की यात्रा में रहना है, बाप की याद ही तुम्हे सदा सौभाग्यशाली बनायेगी"
❉ सतयुग में जब सभी दैवी कैरेक्टर्स वाले पवित्र देवी देवता थे तो सभी सुख, शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर थे ।
❉ लेकिन अनेक जन्म लेते, विकारों में गिरते जब पतित बन गए तो सभी दुखी और अशांत हो गए ।
❉ और आज तो पूरी दुनिया ही विकारों के कारण पतित तमोप्रधान बन गई है । सभी के कैरेक्टर्स बिगड़ गए हैं इसलिए सभी अपरमअपार दुखो से पीड़ित हैं ।
❉ दुनिया में फिर से सुख शान्ति लाने का एक ही उपाय है और वह है याद की यात्रा से अपने कैरेक्टर्स सुधारना ।
❉ क्योकि केवल परमात्मा बाप की याद से ही आत्मा पर चड़ी विकारों की कट उतार सकती है और हमें सौभाग्यशाली बना सकती है ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ कभी भी माया का दास नहीं बनना , अंदर में जाप जपना है कि हम आत्मा हैं । खुशी रहे हम बेगर टू प्रिंस बन रहे हैं ।
❉ कभी भी कोई परिस्थिति आयी तो उसको अपने ऊपर हावी नही करना । हावी किया यानि देहभान मे हैं व बाबा की याद में नही है । जब बाबा की याद में नही रहते तभी माया वार करती है ।
❉ अंदर में पहला पाठ ही पक्का करना है व ब्रह्मा बाबा की तरह घोट घोट कर पक्का करना है कि मैं आत्मा हूं और जिसको भी देखे यही आए कि ये भी आत्मा है ।स्वयम को चमकता हुआ सितारा ही देखना है ।
❉ जब पहला पाठ पक्का हो जाता है तो बाप की याद स्वत: बनी रहती है । जहां बाबा की याद है वहां बातें नहीं होती व माया बिजी देखकर भाग जाती है । माया का दास बनने के बजय अपनी कर्मेन्द्रियों पर जीत पाकर मायाजीत बनना है ।
❉. हमें ये खुशी होनी चाहिए कि हम पहले क्या थे व अब बाबा ने हमें अपना बनाकर नीचे से उठाकर अपने दिलतख्त पर बिठाकर पदमापदम भाग्यशाली बना दिया ।
❉ पहले हम हर चीज के लिए जड मूर्तियों के आगे हाथ फैलाकर. मांगतेरहते थे व अब बाबा ने अपना बच्चा बनाकर हमें वरसे का अधिकारी बना दिया । पतित से पावन बनाकर कौडी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बनाकर बेगर टू प्रिंस बना दिया ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ हद की सर्व इच्छाओ का त्याग करने वाले सच्चे तपस्वी मूर्त होते हैं... क्यों और कैसे ?
❉ "इच्छा मात्रम अविद्या" बनना है, इस पुरानी छी छी दुनिया की किसी भी चीज़ की इच्छा नहीं रखनी है, जहाँ इच्छा होगी वहाँ अच्छा नहीं बन सकेंगे।
❉ हद की इच्छाए अर्थात अल्पकाल की प्राप्ति, अल्पकाल के सुख की इच्छा। यहाँ लेना अर्थात सदा काल के लिए गवाना फिर हमेशा भक्त बन मांगते ही रह जायेंगे।
❉ बाबा हम बच्चो को देवता बनाने आये है तो अब सबको देना है किसी से लेने की इच्छा रख लेवता नहीं बनना है। हमें बाप समान मास्टर विधाता बनना है। और सबको बाप से मुक्ति जीवनमुक्ति की प्राप्ति करानी है।
❉ जिसने हद की सर्व इच्छाओ का त्याग किया है उसकी ही मन बुद्धि एकाग्र हो सकती है, एकाग्र मन से की गयी तपस्या का ही फल प्राप्त होता है। नहीं तो भक्ति जैसे मुख से नाम जपते रहते है पर मन कही और भागता रहता है। इसलिए जितना हो हद की चीजो से दूर रहना है।
❉ हद के सन्यासी हद का त्याग करते है, बाबा अब हमारा बेहद का भाग्य बनाने के लिए आये है तो हमें बेहद के त्यागी बनना है क्युकी बाबा द्वारा प्राप्ति भी बेहद की ही होनी है। अपने आदि अनादी संस्कार अब इमर्ज करना है और बेहद की सेवा करनी है।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ कर्म के फल की सूक्ष्म कामना रखना भी फल को पकने से पहले ही खा लेना है... क्यों और कैसे ?
❉ जैसे फल को पकने से पहले ही खा लेना फल के स्वाद को नष्ट कर देता है उसी तरह कर्म के फल की सूक्ष्म कामना आत्मा को उस कर्म से प्राप्त होने वाले श्रेष्ठ फल से वंचित कर देती है ।
❉ कर्म से पहले फल की इच्छा आत्मा को सर्व प्राप्ति सम्पन्न नही बनने देती और उसे सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों से वंचित कर कर्म के फल को समाप्त कर देती है ।
❉ कर्म के फल की सूक्ष्म कामना रखना आत्मा को बार - बार कर्म बन्धन के चक्र में ले आता है और कर्म बन्धन के चक्र में फंसी आत्मा कर्मो को कूटती रहती है ।
❉ जैसे पक्का हुआ फल ही स्वादिष्टता का अनुभव कराता है उसी तरह उपराम भाव से किया हुआ अर्थात फल की इच्छा से रहित कर्म जीवन को सन्तुष्टता से भरपूर कर देता है ।
❉ कर्म फल की इच्छा आत्मा को कर्म फल में आसक्त कर देती है और कर्म फल मे आसक्ति, आत्मा को पुनः बंधन में ले आती है और उसे कर्मातीत बनने नही देती ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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