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❍ 18 / 06 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ "हम ईश्वरीय औलाद हैं" - सदा यह °निश्चय° रहा ?
‖✓‖ बाप सामान °निर्मान और निरहंकारी° बनकर रहे ?
‖✓‖ °बाप की हर कामना° पूरी की ?
‖✓‖ सबको °सुख का रास्ता° बताया ?
‖✓‖ °श्रेष्ठ मत° पर चल श्रेष्ठ बनने पर विशेष अटेंशन रहा ?
‖✓‖ व्यर्थ संकल्पों को °एक सेकंड में स्टॉप° करने की रीहर्सल की ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ बेहद की स्थिति में स्थित रह °सेवा के लगाव से न्यारे और प्यारे° बनकर रहे ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ अब योगबल द्वारा आत्माओं को जगाने का कर्तव्य करो और सर्व शक्तिवान बाप की पालना का प्रत्यक्ष स्वरुप दिखाओ। साकार रुप द्वारा भी बहुत पालना ली और अव्यक्त रुप द्वारा भी पालना ली, अब अन्य आत्माओं की ज्ञान-योग से पालना करके उनको भी बाप के सम्मुख और समीप लाओ।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ आत्माओं की °ज्ञान-योग से पालना° करके उनको बाप के सम्मुख और समीप लेकर आये ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं विश्व सेवाधारी आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ विहंग मार्ग की सेवा द्वारा विश्व परिवर्तन के कार्य को सम्पन्न करने वाली मैं विश्व सेवाधारी आत्मा हूँ ।
❉ सेवा करते हुए भी मैं सदा न्यारी और प्यारी स्थिति में स्थित रहती हूँ ।
❉ मैं बेहद की स्थिति में रह बेहद विश्व के प्रति कल्याण की भावना रखने वाली विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ ।
❉ सदा अपनी शक्तिशाली वृति से समस्त वायुमण्डल को परिवर्तन कर सारे विश्व की सेवा करने वाली हूँ ।
❉ मैं देह की स्मृति, ईश्वरीय सम्बन्धो और सेवा के साधनो के लगाव से मुक्त सम्पूर्ण बंधनमुक्त आत्मा हूँ ।
❉ बाप द्वारा विश्व सेवाधारी का वरदान प्राप्त कर मैं सदा सेवा में सफलतामूर्त बनती जाती हूँ ।
❉ दृढ संकल्प द्वारा संगठित रूप से पुराने संस्कार, स्वभाव को बाबा द्वारा रचे इस रुद्र ज्ञान यज्ञ में स्वाहा कर, विश्व परिवर्तन के कार्य में निमित बनने वाली मैं पदमापदम भाग्यशाली आत्मा हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - तुम्हे श्रीमत पर पर सबको सुख देना है, तुमको श्रेष्ठ मत मिलती है श्रेष्ठ बन कर दूसरों को बनाने के लिए"
❉ जन्म - जन्मातर हम देह धारियों अर्थात गुरुओं, साधू सन्यासियों की मत पर चलते आये लेकिन निरन्तर गिरते ही आये और दुखी होते आये ।
❉ किन्तु अब जबकि स्वयं भगवान आ कर हमको श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत दे रहें हैं, जो हमे सदा सुखी बनाने वाली है ।
❉ तो सच्चा सच्चा ज्ञान सुनाने वाले भगवान की श्रेष्ठ मत को छोड़ गुरुओं के पास जाना, गंगा स्नान करना ये सब व्यर्थ है ।
❉ इसलिए अब हमे देह धारियों की मत पर चलना छोड़, केवल एक परमात्मा की श्रेष्ठ मत पर ही चलने का पुरुषार्थ कर स्वयं को श्रेष्ठ बनाना है ।
❉ बाप की श्रीमत पर चल हमे श्रेष्ठ कर्म कर सबको सुख देना है ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ सपूत बच्चा बन बाप पर क़ुर्बान जाना है, बाप की हर कामना पूरी करनी है।
❉ जब स्वयं भगवान ने कचरे के डिब्बे से निकाल कर अपना बच्चा बनाया व निस्वार्थ प्यार दिया । मुझे नया जीवन दिया तो मुझे भी बाप का सपूत बच्चा बनकर बाप का मददगार बनना है ।
❉ ऊँचे ते ऊँचे बाप की श्रीमत का सम्पूर्ण रीति से पालन करना है। बाबा की श्रीमत हमको क्या से क्या बनाती है ! स्वर्ग का मालिक तो हमें भी अंतिम जन्म में बाप की शिक्षाओं पर चल बाप का नाम बाला करना है ।
❉ सबसे पहले तो अपने को आत्मा समझ हर पल बाप की याद में रहना है व सबको मनसा वाचा कर्मणा सुख देना है । सुखधाम का रास्ता बताना है ।
❉ जैसे बाप रहमदिल हैं ऐसे ही हमारी दिल हो कि हम भी बहुत सर्विस करें व हर आत्मा को बाप का परिचय देकर आप समान बनायें ।
❉ बाप सुख का सागर ,प्रेम का सागर है....ऐसे हम बच्चों को भी सब को सुख देना है, हरेक के साथ प्रेम के साथ रहना है ।
❉ स्वयं का परिवर्तन करना है , स्वयं में परिवर्तन देख दूसरे भी परिवर्तन करेंगे । इसप्रकार विश्व परिवर्तन कर विश्व कल्याण होगा व मोस्ट बिलवेड बाप की कामना पूरी होगी ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ विश्व सेवाधारी बेहद की स्थिति में स्थित रह, सेवा के लगाव से न्यारे और प्यारे दिखाई देते है... क्यों और कैसे ?
❉ विश्व सेवाधारी आत्माओ को यही फुर्ना लगा रहता है की कैसे सारे विश्व की आत्माओ का कल्याण हो जाये, वह सेवा की नित नयी नयी युक्तिया निकालते रहते है।
❉ विश्व सेवाधारी आत्माये बेहद की स्थिति में स्थित रह बेहद की सेवा में मग्न रहती है, वह कभी हद के नाम, मान, शान, मै-मेरा जैसी बातो में उलझते नहीं है।
❉ विश्व सेवाधारियो के दिल में हर आत्मा के प्रति बहुत रहम होगा, वह कही भी लगाव या टकराव या हद की परिस्थिति में न आकर एक जगह रुक नहीं जाते।
❉ विश्व सेवाधारी आत्माओ का एक ही लक्ष्य होता है, यज्ञ की सेवा, उन्हें यह भान नहीं होता की यह सेवा बड़ी है या छोटी, निरहंकारी बन सेवा में सदा तत्पर रहते है।
❉ विश्व सेवाधारी में समेटने की शक्ति होनी चाहिए, जहा गए जो सेवा मिली वो करी और फिर उसका फल बाबा को अर्पण कर स्वयं उस सेवा से न्यारे हो जाना चाहिए और स्वयं के पुरुषार्थ में लग जाना चाहिए, मैंने किया यह भान निकल जाना चाहिए।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ व्यर्थ संकल्पों को एक सेकण्ड में स्टॉप करने की रिहर्सल करो तो शक्तिशाली बन जाएंगे... कैसे ?
❉ मनबुद्धि को एकाग्र और शांत चित बना कर व्यर्थ संकल्पों को एक सेकण्ड में स्टॉप कर शक्तिशाली स्थिति में स्थित हो सकेंगे ।
❉ शुभ और समर्थ चिंतन द्वारा जमा का खाता बढ़ाते जाए तो व्यर्थ संकल्पो को सेकण्ड में रोकना सहज हो जायेगा ।
❉ यदि हम अपनी सोच और व्यवहार में स्वच्छता और स्पष्टता को धारण कर लें तो व्यर्थ संकल्पो से मुक्त होना सरल हो जाएगा ।
❉ श्रेष्ठ संकल्पों का खजाना जितना जमा करते जाएंगे, व्यर्थ संकल्पों को सेकण्ड में समाप्त कर शक्तिशाली स्थिति का अनुभव कर पाएंगे ।
❉ हर समय मुरली के एक एक महावाक्य पर मनन करते रहें तो समर्थ बुद्धि में व्यर्थ कभी नही आ सकता ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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