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❍ 11 / 09 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °दूसरों के विचारों° को सम्मान दिया ?
‖✓‖ "बाबा °जो खिलाओ... जहां बिठाओ°" - सब आशाएं छोड़ यह पक्का किया ?
‖✓‖ °ज्ञान की धारणा° कर औरों को कराई ?
‖✓‖ °आलराउंडर° बनकर रहे ?
‖✓‖ कोई भी °कर्म याद में° रहकर किया ?
‖✓‖ देह को न देख सभी को °आत्मिक दृष्टि° से देखा ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ मेरेपन के सूक्षम स्वरुप का भी °त्याग° किया ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ अगर अभी से स्व कल्याण का श्रेष्ठ प्लैन नहीं बनायेंगे तो विश्व सेवा में सकाश नहीं मिल सकेगी। इसलिए अभी सेवा में सकाश दें, बुद्धियों को परिवर्तन करने की सेवा करो। फिर देखो सफलता आपके सामने स्वयं झुकेगी। मन्सा-वाचा की शक्ति से विघ्नों का पर्दा हटा दो तो अन्दर कल्याण का दृश्य दिखाई देगा।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ °बुद्धियों को परवर्तित° करने की सेवा की ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं आत्मा सदा निर्भय, बेफिक्र बादशाह हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ मेरेपन के सूक्ष्म स्वरूप का भी त्याग करने वाली मैं आत्मा सदा निर्भय, बेफिक्र बादशाह हूँ ।
❉ स्वयं परम पिता परमात्मा बाप ने मेरी सर्व चिंताए ले कर मुझे चिंतामुक्त और बेफिक्र बना दिया है ।
❉ हद के मेरेपन को समाप्त कर मैं सब प्रकार के भय से मुक्त होती जाती हूँ ।
❉ " मेरा तो एक शिव बाबा दूसरा ना कोई " इस स्मृति द्वारा मैं निर्भय बन स्वयं को सदा हल्का महसूस करती हूँ ।
❉ सभी बोझ बाप को दे कर, फरिश्ता स्वरूप् में स्थित हो मैं हल्केपन की अनुभूति में सदा उड़ती रहती हूँ ।
❉ सभी बातों में इजी रह, मैं देह अभिमान की टाइटनेस को समाप्त कर, सदा उपराम स्थिति में स्थित रहती हूँ ।
❉ दुनिया से उपराम हो कर मैं सबके पार्ट को साक्षी हो कर देखती रहती हूँ और सबको साकाश देती रहती हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - पुण्य आत्मा बनने के लिए जितना हो सके अच्छा कर्म करो, आलराउन्डर बनो, दैवी गुण धारण करो"
❉ इस पतित विकारी दुनिया में एक भी मनुष्य ऐसा नही जिसे पुण्य आत्मा कहा जा सके ।
❉ क्योकि विकारों में गिरने से सभी पाप आत्मा बन गए हैं । और दुखी हो गए हैं ।
❉ अभी संगम युग पर सभी पाप आत्माओं को पुण्य आत्मा बनाने के लिए स्वयं परम पिता परमात्मा शिव बाबा आये हैं ।
❉ और राजयोग सिखला कर हमे पाप आत्मा से पुण्य आत्मा बना रहे हैं ।
❉ इसलिए बाप समझाते हैं कि पुण्य आत्मा बनने के लिए जितना हो सके अच्छे कर्म करो, आलराउन्डर बनो और दैवी गुण धारण करो ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ ईश्वरीय लाटरी प्राप्त करने के लिए रूहानी सर्विस में लग जाना है ।
❉ जिसके एक क्षण के दर्शन पाने को तरसते रहे व कहाँ कहाँ यात्राएँ करते रहे उस भगवान ने हमें स्वयं अपना बनाया । इससे बड़ा भाग्य किसी का हो सकता है क्या !! भगवान हमारा हो गया हम उसके तो कितनी ऊंच ईश्वरीय लाटरी है हमारे लिए ।
❉ सत का संग मिला व हमने अपने असली स्वरूप को पहचाना तो अपने को आत्मा समझ आत्मा के पिता परम आत्मा को याद करना है । याद से ही विकर्म विनाश होंगे व ऊंच पद प्राप्त करेंगे ।
❉ याद का जौहर होता है तो रूहानी सर्विस कर सकते हैं । जैसे लौकिक में डाक्टर बैरिस्टर आदि बनते हैं तो बहुत पैसे कमाते हैं । ये रूहानी पढ़ाई अच्छी रीति पढ़कर 21 जन्मों के लिए राजाई प्राप्त करते हैं तो रूहानी सर्विस करनी है ।
❉ जो जितना ज़्यादा याद में रहते हैं तो उन्हें रूहानी सर्विस का नशा होता है । बाप भी अपने ऐसे बच्चों को दिलतख्त पर बिठाता है व बच्चे भी बाप के दिल पर राज करते हैं व सदा खुश रह सर्विस में लगे रहते है ।
❉ जैसे लौकिक में कोई सर्विस अच्छी करता हैं तो कमाई भी अच्छी करता है व वो विनाशी कमाई है । हमें तो बेहद का बाप मिला है व बेहद के बाप से बेहद का वर्सा मिलता है । जितना रूहानी सर्विस करेंगे उतना ज़्यादा बाप से लेंगे तो कल्प कल्पांतर चलेगा ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ मेरेपन के सूक्ष्म स्वरुप का भी त्याग करने वाले सदा निर्भय, बेफिक्र बादशाह दिखाई देते है... क्यों और कैसे ?
❉ "सब कुछ तेरा, मेरा कुछ है ही नहीं", तो सारी जिम्मेदारी किसकी हो गयी? बाप की। तो जब सर्व शक्तिमान बाप जिम्मेदार है तो हमें किस बात की चिंता।
❉ करन करावनहार बाप है, हम निमित्त है। यह अभ्यास हमें निश्चिंत कर देता है। भगवान हमारे साथ है हम सत्य के मार्ग पर है तो "साच को कोई आंच नही"।
❉ देह अभिमान तो है मोटा स्वरुप उसका त्याग सहज है परन्तु मेहनत है हमारे में सूक्ष्म ते सूक्ष्म स्वरुप में भी मेरापन न हो जैसे मोह न हो परन्तु अच्छा लगता है, क्रोध न हो परन्तु फीलिंग में आना यह है सूक्ष्म मेरापन।
❉ हमें "बेगर टू प्रिंस" बनना है। बाबा भी गरीब निवाज है। जितना-जितना यहाँ सब बाप पर न्योछावर करेंगे उतना-उतना हमारा भाग्य जमा होता जायेगा।
❉ जब मेरा कुछ है ही नहीं तो भय या चिंता किस बात की? कल्याणकारी बाप हमारा हो गया, बाप की छत्र छाया में हम पलते है तो अगर हमें ही भय व चिंता होगी तो सारे विश्व की आत्माओ का क्या होगा?
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ दूसरों के विचारों को सम्मान दो - तो आपको सम्मान स्वत: प्राप्त होगा... कैसे ?
❉ दूसरों के विचारों को सम्मान देने से, आत्मा ईश्वरीय प्रेम में मगन हो, सबको ईश्वरीय स्नेह से भरपूर कर, सर्व का सम्मान प्राप्त करने की अधिकारी बन जाती है ।
❉ दूसरों के विचारों को सम्मान देने वाली आत्मा की दृष्टि हद से निकल, बेहद में चली जाती है और बेहद विश्व की सेवा उसे सहज ही सर्व का माननीय बना देती है ।
❉ दूसरों के विचारों को सम्मान देने की भावना आत्मा को श्रेष्ठ कर्म करने के लिए प्रेरित करती है और आत्मा के श्रेष्ठ कर्मो के कारण उसे सर्व का सम्मान सहज ही प्राप्त हो जाता है ।
❉ दूसरों के विचारों का सम्मान आत्मा को हद के मान और शान तथा व्यक्ति, वस्तु व वैभवों के आकर्षण से मुक्त कर उसे स्नेह स्वरूप् बना कर सर्व का माननीय बना देता है ।
❉ जो दूसरों के विचारों को सम्मान देते हैं उनका स्वभाव सरल और बुद्धि विशाल होती है और अपने सरल स्वभाव से वे सबका सम्मान सहज ही प्राप्त कर लेते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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