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❍ 10 / 03 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 7*5=35)
‖✓‖ °सर्विसएबुल° बन अपना ऊंचा भविष्य बनाया ?
‖✓‖ देह के सूक्षम अभिमान के सम्बन्ध से भी °न्यारे° रहे ?
‖✓‖ मनन शक्ति द्वारा °शुद्ध संकल्पों का स्टॉक° जमा किया ?
‖✓‖ एक विदेही विचित्र बाप से दिल की °सच्ची प्रीत° रखी ?
‖✗‖ बाप से °रूठे° तो नहीं ?
‖✗‖ माया की °ग्रह्चारी° ने बुधी पर वार तो नहीं किया ?
‖✗‖ किसी की दी हुई °चीज़ अपने पास तो नहीं° राखी ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
‖✓‖ मास्टर ज्ञान सागर बन °ज्ञान की गहराई° में जाने का अभ्यास किया ?
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✺ अव्यक्त बापदादा (16/02/2015) :-
➳ _ ➳ आते रहते और सेवा को बढ़ाते रहते, इसकी मुबारक है, मुबारक है। कोई न कोई विधि से सारे वर्ल्ड में यह फैलाते रहो। अभी भी चारों ओर आपके परिवार के छिपे हुए हैं इसलिए सेवा का पार्ट चारों ओर का चलाते रहो। उल्हना नहीं मिले आपको। आपने भी हमको नहीं जाना। फैलाते रहो, अपने परिवार की आत्माओं को अपना बनाते रहो। बापदादा आप बच्चों को देख खुश होते हैं कि बेफिक्र होके चल रहे हो, चलते रहेंगे।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-15)
‖✓‖ अपने परिवार की छिपी हुई आत्माओं को अपना बनाने की °सेवा° की ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-15)
➢➢ मैं अनुभव रुपी रत्नों से संपन्न आत्मा हूँ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ मैं आत्मा ज्ञान की गहराई में जा हर गुण के अनुभव रुपी रत्नों से संपन्न बन रही हूँ।
❉ मुझ अनुभवीमूर्त आत्मा को माया की कोई भी कोशिश हिला नहीं सकती, धोखा नहीं दे सकती।
❉ मैं आत्मा मनन शक्ति द्वारा सदैव शुद्ध संकल्पों का स्टॉक जमा करती रहती हूँ।
❉ अपने शुद्ध और श्रेष्ठ संकल्पों द्वारा अब मैं आत्मा शिव पिता परमात्मा से अब तक बिछुड़ी हुई आत्माओं को यथार्थ मंजिल का रास्ता दिखा रही हूँ।
❉ अज्ञान अंधकार में भटकती हुई वो आत्माएं बहुत ही दुखी और अशांत हो गई हैं।
❉ इन्ही कल्याणकारी भावनाओं के साथ आपकी चमत्कारी किरणों का फोकस मैं निरन्तर उन आत्माओं पर कर रही हूँ।
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∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-5)
➢➢ "मीठे बच्चे - प्रीत और विपरीत यह प्रवृति मार्ग के अक्षर हैं, अभी तुम्हारी प्रीत एक बाप से हुई है, तुम बच्चे निरन्तर बाप की याद में रहते हो"
❉ प्रवृति मार्ग में दो अक्षर प्रीत बुद्धि और विपरीत बुद्धि गाए गए हैं।
❉ प्रीत बुद्धि का अर्थ है परमात्मा बाप के साथ प्रीत रखने वाले अर्थात याद की यात्रा पर चलने वाले।
❉ विपरीत बुद्धि का अर्थ है नाम रूप में फंसने वाले अर्थात परमात्मा बाप को भूल दुनियावी सम्बन्धो और पदार्थो से प्रीत रखने वाले।
❉ दुनिया वालो की तो विपरीत बुद्धि है क्योकि परमात्मा बाप को जानते ही नही इसलिए उनसे प्रीत भी नही रखते, उन्हें यथार्थ रीति याद ही नही करते।
❉ लेकिन अभी हम बच्चे प्रीत बुद्धि बने हैं क्योकि परमात्मा बाप को पहचान गए हैं।इसलिए अब हम निरन्तर बाप की याद में रहते हैं।
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∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा) (Marks:-5)
➢➢ एक विदेही विचित्र बाप से दिल की सच्ची प्रीत रखनी है।
❉ मैं आत्मा भृकुटि में विराजमान एक चमकता सितारा हूँ तो मुझ आत्मा का बाप भी मुझ जैसा ही होगा अर्थात वो भी सितारा मिसल है, बिना शरीर के , बिना चित्र के। इसलिए विचित्र बाप है।
❉ परमपिता परमात्मा अपने बच्चों की हज़ार गल्तियों के करने पर भी बहुत प्यार करता है उसी प्रकार हमें भी अपने बाप से दिल की सच्ची प्रीत रखनी है।
❉ जब किसी से दिल की सच्ची प्रीत होती है तो उसकी यादों में इतना खो जाते हैं कि कोई भी हमारे आगे से निकल जाएं तो पता ही नहीं चलता तो हमारी बाप से ऐसी प्रीत होनी चाहिए कि बस एक की याद में खो जाएं।
❉ बाप से सच्ची प्रीत होगी तभी ज्ञान व याद ठहरेगी। हर पल अपार ख़ुशी का, साथीपन, न्यारेपन का अनुभव होगा।
❉ विदेही विचित्र बाप से सच्ची प्रीत रखने से बेफिकर बादशाह बनते है।
❉ एक बाप से सच्ची प्रीत रखकर बाप से ही सर्व सम्बंध निभाने हैं। एक से प्रीत रखकर ही मंज़िल पर पहुँच सकते हैं।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-5)
➢➢ मास्टर ज्ञान सागर बन ज्ञान की गहराई में जाने वाले अनुभव रूपी रत्नों से संपन्न रहते है... क्यों और कैसे ?
❉ बाप जो ज्ञान देते है वह अति ग्हुय ते ग्हुय है, इस ज्ञान की जितनी गहराई में जाओ उतने अमुल्य रत्न हमें प्राप्त होते है।
❉ इस ज्ञान को सुनते जितना इसे एकाग्रता से सुना जाये उतना ही उसके रस का आनंद ले सकते है।
❉ जैसे ज्ञान सुनते जाये, उसके स्वरुप में स्थित होने का अभ्यास करेंगे तो अतीन्द्रिय सुख का अनुभव होगा।
❉ ज्ञान सागर द्वारा प्राप्त ज्ञान का जितना मनन चिंतन करेंगे उतनी ही उसकी गहराई में जा उसको धारण कर सकेंगे।
❉ यह सच्चा गीता ज्ञान समझकर ही हम स्वयं का व परमात्मा का अनुभव कर सकते है।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-5)
➢➢ फरिश्ता वह है जो देह के सूक्ष्म अभिमान के सम्बन्ध से भी न्यारा है... क्यों और कैसे ?
❉ अशुद्ध और व्यर्थ से इनोसेन्ट रहें तो देह के सूक्ष्म अभिमान के सम्बन्ध से भी न्यारे हो फरिश्ता बन जाएंगे।
❉ सभी प्रकार की चिंताओं से मुक्त हो, चिंतन करते रहें तो देह अभिमान से न्यारे हो फरिश्ता पन की स्तिथि में स्तिथ हो जाएंगे।
❉ बाप के प्रति सच्ची और साफ दिल रखें तो हल्के रह देह अभिमान के सम्बन्ध से न्यारे फरिश्ता बन जाएंगे।
❉ सर्व बोझ बाप को दे कर हल्के हो जाएँ तो फरिश्ता स्तिथि का अनुभव करते रहेंगे। और देह अभिमान से न्यारे हो जायेगे।
❉ सभी बातों में इजी रहें तो देह अभिमान की टाइटनेस समाप्त हो जायेगी और फरिश्ता स्वरूप् में स्तिथ हो जाएंगे।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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