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    26 / 04 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

         TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ शुद्ध संकल्पों का °स्वरुप° बनने का अभ्यास किया ?

‖✓‖ °जब चाहो° कर्मयोगी, जब चाहो परमधाम निवासी, जब चाहो सूक्षमवतन वासी बनकर रहे ?

‖✓‖ "°तन-मन-धन तेरा°" - यह वायदा स्मृति में रहा ?

‖✓‖ कर्म, संस्कार और संगठन से °निर्बन्धन° अनुभव किया ?

‖✓‖ "°हुकमी हुकम चला रहा है°" - यह धारणा रही ?

‖✓‖ °योगयुक्त, युक्तियुक्त° सेवा की ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

‖✓‖ पुरानी देह और दुनिया को °भूलने का अभ्यास° किया ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

➳ _ ➳  अभी मन्सा की क्वालिटी को बढ़ाओ तो क्वालिटी वाली आत्मायें समीप आयेंगी । इसमें डबल सेवा है - स्व की भी और दूसरों की भी । स्व के लिए अलग मेहनत नहीं करनी पड़ेगी । प्रालब्ध प्राप्त है, ऐसी स्थिति अनुभव होगी । इस समय की श्रेष्ठ प्रालब्ध है '' सदा स्वयं सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न रहना और सम्पन्न बनाना '' ।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

‖✓‖ °मन्सा की क्वालिटी° को बढ़ा स्व की और दूसरों की डबल सेवा की ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं बाप दादा के दिलतख़्तनशीन आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 ❉   बाप दादा के दिल रूपी तख़्त पर सदा विराजमान रहने वाली, मैं बापदादा के दिलतख्त नशीन आत्मा हूँ ।

 ❉   बाप का दिल तख्त ही मेरा घर है । इसी लिए इस पुरानी देह और देह की दुनिया से मैं सदा विस्मृत रहती हूँ ।

 ❉   अपने दिलतख्त पर बिठा कर बाबा ने मुझे अविनाशी खुशियों के खजाने से भरपूर कर दिया है ।

 ❉   यह दिल तख्त मुझे स्वराज्य अधिकारी बना रहा है ।

 ❉   बाबा की सम्पूर्ण सम्पति की मैं अधिकारी अर्थात वारिस  बन गई हूँ ।

 ❉   इस श्रेष्ट भाग्य की स्मृति से मेरे अंदर सदैव वाह वाह के गीत बजते रहते हैं ।

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∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-10)

 

➢➢ "प्रीत की रीति"

 

 ❉   प्रीत की रीति निभाना अर्थात स्नेह का रिटर्न देना ।

 ❉   जैसे बाप दादा हम बच्चों के स्नेह का रिटर्न देने के लिए हमारे समान साकार रूप धारण कर अर्थात पर काया प्रवेश कर के भी हमसे मिलने आते है और आ कर प्रीत की रीत निभाते हैं ।

 ❉   उसी तरह हमे भी अब, जो बाप का संकल्प है कि मेरे सब बच्चे समान बन जायें, उसे पूरा कर बाप के सम्पूर्ण स्नेह का रिटर्न देना है ।

 ❉   जैसे बाप हम बच्चों के स्नेह के कारण हमारे जैसा ही साकार रूप धारण कर साकार रूपधारी बन जाते है  ।

 ❉   वैसे ही अब हमे भी बाप समान अव्यक्त वतनवासी या निराकारी बाप के सर्व गुणों में बाप के समान बन सम्पूर्ण स्नेह का रिटर्न देना है और प्रीत की रीति निभानी है ।

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∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा)(Marks:-10)

 

➢➢ जब चाहो कर्मयोगी बनो ---जब चाहो परमधाम निवासी बनो---जब चाहो सूक्ष्मवतन वासी योगी बनो।

 

 ❉   भगवान जब हमें स्वयं इस धरा पर अवतरित होकर अपने बच्चों को सुप्रीम टीचर बन पढ़ाते हैं व विश्व का मालिक बनाते हैं । त्रिलोकीनाथ बच्चे है बाप के इसलिए जिस लोक में जाना चाहे जा सकते हैं।

 ❉   बाप अपने बच्चों को बहुत स्नेह देते हैं व बच्चे भी बाप को ।बाप बच्चों के बिना व बच्चे बाप के बिना रह नहीं सकते। इसलिए दूर देश से आकर परकाया में प्रवेश कर अपनी प्रीत निभाते हैं तो बच्चों को भी सिर्फ़ एक की ही याद में रहते हुए कर्मयोगी बनना है।

 ❉   बाबा ने हमें दिव्य बुद्धि रूपी लिफ़्ट गिफ़्ट में दी है व जादू का मंत्र दिया है मनमनाभव तो उस मंत्र से एक सेकेंड में लिफ़्ट द्वारा उड़ान भर कर ब्रह्मा बाप समान सूक्ष्म वतन वासी फ़रिश्ता बन जाओ।

 ❉   जैसे बाप आप समान स्नेह के कारण साकार वतन निवासी, साकार रूपधारी बन जाते हैं तो हमें भी बाप के स्नेह का रिटर्न देने के लिए बाप समान सर्वगुणों में मास्टर बनना है।

 ❉   अपने को अनेक बंधनों से मुक्त एक बाप से सर्व बंधन रखेंगे तो सदा एवर-रेडी रहेंगे । अशरीरी बनने का अभ्यास करते रहेंगे तो एक सेकेंड में सूक्ष्म वतन वासी या परमधाम वासी योगी बन जायेंगे।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-10)

 

➢➢ पुरानी देह और पुरानी दुनिया को भूलने वाले बापदादा के दिलतख्तनशीन बन जाते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   यह हमारा मरजीवा जन्म है, बाबा ने ब्रह्मामुख द्वारा ज्ञान दे हमें अडॉप्ट किया है, अब हमें पुरानी देह और सम्बन्ध भूल ईश्वरीय सम्बन्ध एक बाप से जोड़ने है।

 ❉   जो आत्माये इस एक जन्म में अपना सबकुछ बाप को अर्पण कर सच्चे दिल से उनका बन जाती है, उन महान आत्माओ का राज्य बाप के दिल पर होता है।

 ❉   जब हम यह देह और सभी पुराने संबंधो को भूल एक बाप से सर्व सम्बन्ध जोड़ेंगे तभी हमें सदेव एक बाप की याद रहेगी और हम हम एकरस स्थिति बना सकेंगे

 ❉   जितना रिश्ता हम बाप से निभाते है उससे दुगना बाप हम बच्चो से निभाते है, सच्चे दिल पर बाप हमेशा राजी रहते है- "मेरा बाबा" यही महामंत्र है बाप से सम्बन्ध जोड़ने का।

 ❉   "मै बाबा की और बाबा मेरा" यही उनका जीवन आधार बन जाता है। तन, मन, धन, बुद्धि, संकल्प, हर स्वास में एक बाबा की ही याद रहती है। हर श्रीमत को सर माथे रख उसका पूर्ण रूप से पालन करते है, बाबा का सपुत बच्चा बन रहते है, जो बाप को भी बहुत प्रिय होते है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-10)

 

➢➢ हद के नाम, मान और शान के पीछे दौड़ लगाना अर्थात परछाई के पीछे पड़ना... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   जैसे परछाई को कभी पकड़ा नही जा सकता उसी प्रकार हद के नाम, मान और शान के पीछे दौड़ लगाने वाला कभी तृप्त नही रह सकता । और ही उसे प्राप्त करने के लिए उसके पीछे भागता रहता है ।

 ❉   हद के नाम, मान और शान की प्राप्ति की इच्छा आत्मा को इच्छा मात्रम अविद्या बनने नही देती । और उन्हें पूरा करने के लिए वह परछाई की तरह उसके पीछे भागता रहता है ।

 ❉   हद के नाम, मान और शान के पीछे दौड़ लगाने वाला सदा देह के अभिमान में रहता है और अभिमान वश स्वयं को ऊँचा दिखाने के लिए वह इन नश्वर चीजो के प्रति परछाई की भांति दौड़ लगाता रहता है ।

 ❉   हद के नाम, मान और शान की इच्छा वाला कभी भी संतुष्ट नही रह पाता और सन्तुष्टता पाने के लिए परछाई की भाँती इनके पीछे दौड़ लगाता रहता है ।

 ❉   हद के नाम, मान और शान में फंसा व्यक्ति बेहद के इश्वरिये सुख से सदा वंचित रहता है और इनमें ही सुख तलाश करता रहता है । इन भौतिक वस्तुओ में अल्पकाल का सुख होने के कारण वह परछाई की भांति इनके पीछे भागता रहता है ।

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_  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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