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❍ 03 / 08 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °स्वदर्शन चक्रधारी° बन सदैव हार्षित रहे ?
‖✓‖ "हम बाप द्वारा पवित्र बन अपने °घर और घाट° (राजधानी) में जायेंगे" - यह स्मृति रही ?
‖✓‖ °सिर्फ एक बाप के डायरेक्शन° पर ही चले ?
‖✓‖ श्रीमत पर अब °हर कर्म श्रेष्ठ° किया ?
‖✓‖ बहुत-बहुत °मीठा° बनकर रहे ?
‖✓‖ आत्माओं को °बाप का परिचय° दिया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ °अन्तर्मुखता° के अभ्यास द्वारा अलौकिक भाषा को समझने वाले सदा सफलता सम्पन्न बनकर रहे ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ समय प्रमाण अब सर्व ब्राह्मण आत्माओं को समीप लाते हुए ज्वाला स्वरूप का वायुमण्डल बनाने की सेवा करो, उसके लिए चाहे भट्टियां करो या आपस में सगंठित होकर रूहरिहान करो लेकिन ज्वाला स्वरूप का अनुभव करो और कराओ, इस सेवा में लग जाओ तो छोटी-छोटी बाते सहज परिवर्तन हो जायेंगी।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ °ज्वाला स्वरूप° का वायुमण्डल बनाने की सेवा की ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं सदा सफलता सम्पन्न आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ अन्तर्मुखता के अभ्यास द्वारा आलौकिक भाषा को समझने वाली मैं सदा सफलता सम्पन्न आत्मा हूँ ।
❉ स्वीट साइलेन्स स्वरूप में स्थित रह, मैं नयनो की भाषा, भावना की भाषा और संकल्पों की भाषा को सहज ही समझ लेती हूँ ।
❉ यह तीनो प्रकार की रूहानी भाषा मुझे सहज योगी जीवन जीने का अद्भुत आनन्द प्रदान करती है ।
❉ सर्व प्राप्तियों की अनुभवी आत्मा बन मैं हर कार्य में सफलता प्राप्त करती जाती हूँ ।
❉ सर्वशक्तिवान परमपिता परमात्मा का वरदानी मूर्त हाथ सदा मेरे ऊपर है जो मुझे सदा सफलतामूर्त आत्मा बना देता है ।
❉ शुभ संकल्पों की शक्ति द्वारा मैं जीवन में आने वाले हर विघ्न को सहजता से पार करती चली जाती हूँ ।
❉ हर कार्य में सफलता की ऊँचाइयों को छूने वाली मैं सिद्धि स्वरूप आत्मा हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ “मीठे बच्चे – तुम आसुरी मत पर चलने से दरबदर हो गए, अब ईश्वरीय मत पर चलो तो सुखधाम चले जायेंगे”
❉ जन्म जन्मान्तर हम देहधारियों अर्थात गुरुओं, साधू सन्यासियों की मत पर चलते आये लेकिन निरंतर गिरते ही आये और दुखी होते आये ।
❉ क्योकि वे सभी आसुरी मत देने वाले थे और आसुरी मत पर चलने के कारण हम दरबदर हो गए ।
❉ सच्चे सुख और शांति की तलाश में जगह जगह धक्के खाते रहे ।
❉ किंतु अब परम पिता परमात्मा स्वय आ कर हमे श्रेष्ठ ते श्रेष्ट मत दे रहें हैं, जो हमें सदा सुखी बनाने वाली है ।
❉ इसलिए अब हमें देहधारियों की आसुरी मत पर चलना छोड़, केवल एक परमात्मा की श्रेष्ठ मत पर चलने का पुरुषार्थ कर स्वयं को श्रेष्ठ बनाना है ।
❉ ईश्वरीय मत पर चल कर ही हम सुखधाम जा सकेंगे और 21 जन्मो के लिए अपरम अपार सुखों से भरपूर जीवन का आनन्द ले सकेंगे ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ श्रीमत पर अब हर कर्म श्रेष्ठ करना है, किसी को भी दुख नहीं देना है, दैवीगुण धारण करने हैं ।
❉ सत्य बाप ने स्वयं आकर हमें सत की व अपने असली स्वरूप की पहचान दी है व संगमयुग पर बाप ही आकर श्रीमत देते है और कोई तो दे नहीं सका ।
❉ अपने को आत्मा समझ आत्मा के परमपिता परमात्मा को याद करना हैं व जब आत्मिक स्थिति में रहते है तो अच्छे कर्म ही करते हैं ।
❉ श्रीमत पर चलने से बुद्धि पर लगा गोडरेज का ताला खुल जाता है क्योंकि गाॅड की रेज पडती है व बाप की याद बनी रहती है तो कर्म भी अच्छे होते हैं ।
❉ दुनिया वालों के लिए रावण राज्य है व लौकिक बाप की मत भी आसुरी है । हम बच्चों के लिए जिन्हें भगवान ने अपना बनाया है व बेहद का बाप है उसकी श्रीमत पर चलना है व श्रीमत पर चलते हुए श्रेष्ठ कर्म करने हैं ।
❉ स्वयं भगवान हमें पतित दुनिया में पढ़ाने के लिए आते हैं व इस पढ़ाई से हमें नर से नारायण व नारी से श्री लक्ष्मी बनाते हैं तो ऐसे ऊँचे पद को पाने के लिए हमें दैवी गुण धारण करने हैं ।
❉ जैसे मीठे बाबा हमेशा अपने बच्चों से कितनी गल्ती करने पर भी मीठे बच्चे कहकर ही बात करते हैं । कभी किसी को बुरा कहकर दुख नहीं देते व दुखहर्त्ता सुखहर्त्ता हैं । हमें भी किसी के साथ बुरा नहीं बोलना व न ही दुख देना है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ अलोकिक भाषा को समझकर सदा सफलता संपन्न बनने के लिए अन्तर्मुखता के अभ्यास आवश्यक है... क्यों और कैसे ?
❉ अंतर्मुखता से हमारी आत्मिक स्थिति अच्छी बनती है। परमात्मा निराकार है, हम आत्माए भी जब तक इस देह के भान से निकल आत्मिक स्थिति में स्थित नहीं होंगे परमात्मा के डायरेक्शन को केच नहीं कर सकेंगे। बुद्धि की लाइन क्लियर होगी तभी परमात्मा के संकल्पों को हम केच कर सकेंगे।
❉ आत्मा में असीम शक्तिय समाई हुई है, अभी देह अभिमानी होने से वह सब मर्ज हो गयी है, वह सब तभी मर्ज होंगी जब हम अंतर्मुखी बन अपने मन की झाकेंगे। हमारा मन सदेव सही निर्णय देता है, जरुरत है उसे सुनना समझना और कार्य में लाना।
❉ अन्तर्मुखी हो जब हमारा चित्त एकाग्र होगा। तभ हम अपने मन को परमात्मा में लगाकर परमात्मा से शक्तिया लेकर उन्हें स्वयं में धारण कर सकेंगे और समय पर उन शक्तियों का उपयोग कर स्वयं को सफल बना सकेंगे।
❉ अन्तर्मुखी होने से हमारे अन्दर साइलेंस पॉवर बढती है, साइलेंस पॉवर द्वारा ही हम विश्व के किसी भी स्थान किसी भी आत्मा को कोई भी सन्देश भेज सकते है और वह आत्मा भी साइलेंस पॉवर द्वारा ही वह वाइब्रेशन को इतना साफ़ केच कर सकती है जैसे टेलीफ़ोन पर सुन रहा हो।
❉ अंतिम समय में जब सभी साइंस के साधन फ़ैल हो जायेंगे तब यह साइलेंस पॉवर ही कम आयेगी, जितना अभी अन्तर्मुखी होंगे उतना पॉवर ज्यादा होगी जिससे बाबा का इशारा साफ़ समझ समय रहते सेफ स्थान पर पहुच जायेंगे।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ आप इतने हल्के बन जाओ जो बाप आपको अपनी पलकों पर बिठा कर साथ ले जाए... कैसे ?
❉ देहभान से न्यारे और प्यारे, सदा अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित रहे तो सदैव हल्के रहेंगे और बाप अपनी पलकों पर बिठा कर साथ ले जायेंगे ।
❉ स्वयं को निमित समझ कारनकरावन हार बाप की छत्र छाया में रह कर जब हर कार्य करेंगे तो हर प्रकार के बोझ से मुक्त हो जायेगे और हल्के बन बाप की पलकों पर बैठ बाप के साथ चलें जायेंगे ।
❉ लाइट और माईट स्थिति के अनुभव द्वारा सदा अपने फरिश्ता स्वरूप में स्थित रहें तो बाप की पलकों पर बैठ सदा हलके हो उड़ते रहेंगे ।
❉ समर्थ और श्रेष्ठ चिन्तन बुद्धि को व्यर्थ के भारीपन से मुक्त कर हर परिस्थिति में हल्का रखेगा । हल्के रहेंगे तो बाप की पलकों पर बैठ बाप के साथ चलें जायेंगे ।
❉ बेहद की दृष्टि और वृति रखेंगे तो हद के संबंधो के भारीपन से उपराम रह हल्केपन का अनुभव करते हुए बाप की पलकों पर विराजमान रहेंगे ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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