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❍ 13 / 04 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ इस पुरानी दुःख देने वाली दुनिया को °भूलने का अभ्यास° किया ?
‖✓‖ °बेहद का वैराग्य° रहा ?
‖✓‖ "हम आत्माएं परमधाम से °एक्टर° बन पार्ट बजाने आये हैं" - यह स्मृति में रहा ?
‖✓‖ °देहि अभिमानी° बनने का पूरा पूरा पुरुषार्थ किया ?
‖✓‖ मन को सदा °मौज° में रखा ?
‖✗‖ कनिष्ट बनाने वाली जो °ईविल बातें° हैं... वह तो नहीं सुनी ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ दिव्य बुधी की लिफ्ट द्वारा °तीनो लोकों की सैर° की ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ आजकल के जमाने में डाक्टर्स कहते हैं दवाई छोड़ो, एक्सरसाइज करो, तो बापदादा भी कहते हैं कि युद्ध करना छोड़ो, मेहनत करना छोड़ो, सारे दिन में 5 - 5 मिनट मन की एक्सरसाइज करो । वन मिनट में निराकारी, वन मिनट में आकारी, वन मिनट में सब तरह के सेवाधारी, यह मन की एक्सरसाइज 5 मिनट की सारे दिन में भिन्न-भिन्न टाइम करो तो सदा तन्दरूस्त रहेंगे, मेहनत से बच जायेंगे ।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ सारे दिन में 5 - 5 मिनट मन की अलग अलग °एक्सरसाइज° की ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं सहजयोगी आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ मैं निरन्तर एक बाप की याद में रहने वाली सहजयोगी आत्मा हूँ ।
❉ स्वयं लाइट हाउस, सर्वशक्तिवान, विश्व का रक्षक, भाग्यविधाता बाप मेरे साथ है ।
❉ उसकी असीम स्नेह से भरी हुई दृष्टि निरन्तर मेरे ऊपर रहती है ।
❉ वो हजार भुजाओं सहित मेरे ऊपर है । उसकी शक्तियां निरन्तर मेरे ऊपर पड़ रही हैं ।
❉ उसने मुझ बच्चे को दिव्य बुधी की लिफ्ट दी है... इस लिफ्ट द्वारा मैं तीनो लोकों में जहां चाहूं वहाँ पहुँच सकती हूँ ।
❉ सिर्फ स्मृति का स्विच ओन कर मैं सेकंड में किसी भी लोक में पहुँच सकती हूँ और जिस लोक का जितना समय अनुभव करना चाहूं, उतना समय वहाँ स्थित रह सकती हूँ ।
❉ मैं अथॉरिटी से इस लिफ्ट को कार्य में लगाती हूँ इसलिए सहजयोगी बनकर रहती हूँ और मेहनत से मुक्त रहती हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - सर्वोत्तम युग यह संगम है, इसमें ही तुम आत्मायें परमात्मा बाप से मिलती हो, यही है सच्चा - सच्चा कुम्भ"
❉ सभी युगों में सबसे श्रेष्ठ युग संगम युग है क्योकि इसी युग में लम्बे समय से अपने पिता परमात्मा से बिछुड़ी हुई हम आत्मायें फिर से मिलती हैं ।
❉ सबसे उत्तम ते उत्तम यह समय है जबकि स्वयं परमात्मा आ कर हमे सर्वोत्तम अर्थात देवी देवता बनाते हैं ।
❉ संगम युग पर ही आ कर परमात्मा हमे श्रेष्ठ मत देते हैं, जिस पर चल कर हम स्वर्गवासी अर्थात स्वर्ग के मालिक बनने का पुरुषार्थ करते हैं ।
❉ भक्ति मार्ग में जिस कुम्भ के मेले का गायन है, जिसे सर्वोत्तम माना गया है, जिसकी इतनी महिमा की गई है ।
❉ वास्तव में वह सच्चा - सच्चा कुम्भ है आत्मा - परमात्मा का सच्चा - सच्चा मिलन जो पुरे कल्प में केवल एक बार इस संगम युग पर ही होता है ।
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∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा)(Marks:-10)
➢➢ पुरुषोत्तम बनने के लिये कनिष्ट बनाने वाली जो ईविल बातें हैं वह नहीं सुननी हैं। एक बाप से ही अव्यभिचारी ज्ञान सुनना है।
❉ यह संगमयुगी समय कल्याणकारी है व भगवान स्वयं हमें पुरुषों में उत्तम बनाने के लिए यानि मनुष्य से देवता बनाने के लिए इस पतित दुनिया में हमारे लिए ही आते हैं तो हमें बुरी बातें सुनते हुए भी नहीं सुननी अनसुना कर वहाँ से चले जाना है।
❉ सिर्फ़ 'एक शिव बाबा दूसरा न कोई' क्योंकि शिव बाबा ही इस संगमयुग पर ही पतित दुनिया में आकर हमें अविनाशी ज्ञान देते हैं ।
❉ जैसे किसी देहधारी से ज्ञान की बातें सुनते है तो हमारा ध्यान देहभान में ही रहता है व देही-अभिमानी नहीं बनाते व उनसे जो सुनेंगे झूठ ही सुनेंगें।
❉ परमपिता परम आत्मा ने ही अपना परिचय देकर व हमें अपने असली स्वरुप का परिचय देकर जो अविनाशी ज्ञान देते हैं व ये ज्ञान कोई दूसरा तो दे ही नहीं सकता क्योंकि परमात्मा स्वयं प्वाइंट आफ लाइट व सुप्रीम सोल है व हम आत्मायें उसके बच्चे भी प्वाइंट आफ लाइट हैं ।
❉ अनेक धर्म होने से बुद्धि अनेक जगह भटकती रही व सच्ची सुख शांति तो कोई भी गुरू न दे सके । एक परमपिता परमात्मा से ही अव्यभिचारी ज्ञान सुनकर सच्ची सुख शांति प्राप्त करते हैं।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-10)
➢➢ दिव्य बुद्धि की लिफ्ट द्वारा तीनो लोको की सैर करने वाले सहजयोगी होते है... क्यों और कैसे ?
❉ जब मन के विमान में बेठ हम शांतिधाम, शुक्ष्मलोक, सुखधाम का चक्कर लगाते है, आत्मा के आदि-मध्य-अंत का स्वदर्शन चक्कर लगाते है तो वह भी जैसे मनमनाभव स्थिति हो गयी।
❉ बाबा ने हम सभी बच्चो जन्म लेते ही दिव्य बुद्धि का वरदान दिया है, जिस द्वारा हम एक सेकंड में जहा चाहे जिस स्वरुप में चाहे टिक सकते है।
❉ जब चाहे स्वयं को आत्मा समझ परमधाम में जा कर अपने स्वधर्म में टिकना, सूक्ष्मवतन में बाबा से बाते करना, घूमना, सीन सिनरिया देखना, संगम के रूहानी मजे लेना सहजयोग है।
❉ बाबा ने हम बच्चो को चारधाम की यात्रा भी सिखाई है, जिससे हम बाबा के साथ रूह रिहान कर स्वयं को रिफ्रेश कर सकते है।
❉ हम हमारी दिव्य बुद्धि द्वारा दुनिया की कोई भी जगह एसी क्लियर देख सकते है जैसे स्वयं वहां प्रत्यक्ष में उपस्थित हो स्थूल आँखों से दिखाई देती है।
❉ सारे विश्व की आत्माओ को एक ही समय पर सकाश देने की सेवा, हम दिव्य बुद्धि द्वारा ग्लोब के ऊपर फ़रिश्ता स्वरुप में स्थित हो कर सकते है।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-10)
➢➢ मन को सदा मौज में रखना - यही जीवन जीने की कला है... कैसे ?
❉ मैं ब्राह्मण आत्मा कितनी पदमापदम भाग्यशाली हूँ । स्वयं भगवान मेरा साथी है । सदा इस स्मृति में रहे तो मन सदा परमात्म मौज की मस्ती में मस्त रहेगा ।
❉ संगम युग की अविनाशी प्राप्तियों को सदा याद रखे तो परमात्म मौज का अनुभव सदैव करते रहेंगे ।
❉ सदा बुद्धि में रहे कि मैं दैवी कुल की आत्मा हूँ । दुखी और अशांत रहना तो आसुरी संस्कार है । सदा हर्षित रहना, मन को सदा मौज में रखना यही मेरे संस्कार है और यही जीवन जीवन की कला है ।
❉ भगवान भाग्य बांटने आया है, वो हमे सर्व खजाने देने आया है, सर्व शक्तियों से भरपूर करने आया है । सदा इस परमात्म मौज का अनुभव करते रहें तो जीवन हीरे तुल्य बन जायेगा ।
❉ उपराम वृति द्वारा साक्षी और न्यारी स्तिथि में स्तिथ रह, अतेंद्रिय सुख के झूले में झूलते रहें तो मन परमात्म मौज में सदा आनन्दित रहेगा ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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