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    08 / 03 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

         TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 7*5=35)

 

‖✓‖ पुरुषार्थी जीवन में रहने से भी ऊपर °दातापन° की स्थिति में स्थित रहे ?

‖✓‖ अमृत वेला के समय °आत्माओं की पुकार° सुन उन पर उपकार किया ?

‖✓‖ ब्रह्म मुहूर्त के समय सारे दिन की °श्रेष्ठ स्थिति व कर्म का मुहूर्त° निकला ?

‖✓‖ वातावरण में हालचल भी ही लेकिन °स्मृति और वृति अचल° रहे ?

‖✓‖ माया के खेल का ड्रामा °साक्षी° होकर देखा ?

‖✓‖ "मैं बाप समान °मास्टर वर्ल्ड शिक्षक° हूँ" - यह स्मृति रही ?

‖✓‖ अन्य आत्माओं की समस्या के लिए °समाधान स्वरुप° बनकर रहे ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

➢➢ संकल्प और बोल के °विस्तार को सार° में लाये ?

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अव्यक्त बापदादा (16/02/2015) :-

➳ _ ➳  सेवा भी करो और उन्हों को उमंग उल्हास दे करके आगे बढ़ाओ और अपना कार्य सन्देश देने का वह खूब युक्तियुक्त करते रहो। कोई ऐसा इच्छुक कोने में रह नहीं जाए। सन्देश अभी भी चारों ओर भिन्न-भिन्न प्रकार से देते रहो।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-15)

➢➢ आत्माओं को °उमंग उल्लास° से करके आगे बढाया ? युक्तियुक्त सेवा की ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-15)

➢➢ मैं अंतर्मुखी आत्मा हूँ

 

 ✺   श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 ❉   मैं आत्मा संकल्प और बोल के विस्तार को सदैव सार में लाती हूँ ।

 ❉   मैं आत्मा व्यर्थ संकल्पों के विस्तार को समेट सदैव सार रूप में स्थित रहती हूँ, मुख के आवाज़ के व्यर्थ को समेट कर समर्थ स्वरुप में स्थित रहती हूँ ।

 ❉   मैं आत्मा साइलेंस की शक्ति से भटकती हुई आत्माओं को सही ठिकाना दिखाती हूँ ।

 ❉   मैं अंतर्मुखी बन ज्ञान सागर की लहरों में लहराने वाली ज्ञान गंगा बन सबको रास्ता दिखाती हूँ।

 ❉   एकाग्रता की शक्ति द्वारा मैं सर्व आत्माओं को हलचल से मुक्त करा कर सुख शान्ति की अनुभूति कराती हूँ।

 ❉   सदा उड़ती कला द्वारा, सर्व आत्माओं को उड़ती कला का अनुभव कराने वाली मैं एकांतप्रिय आत्मा हूँ।

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∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-5)

 

➢➢ "अमृतवेले के वरदानी समय में पुकार सुनो और उपकार करो"

 

  ❉   अमृतवेला अर्थात अमृतपान की वेला या समय।भक्ति में भी अमृतवेले को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है।सच्चे भक्त जो होते है वो सवेरे जल्दी उठ, स्नान आदि कर पूजा में बैठ जाते हैं।

 ❉   हम ब्राह्मण बच्चों के लिए तो अमृतवेला विशेष वरदानी समय है।क्योकि इस समय ब्रह्म लोक के रहने वाले परम पिता परमात्मा ज्ञान सूर्य बाप की लाइट और माईट की किरणे हम बच्चों को वरदान के रूप में सहज ही प्राप्त होती हैं।

 ❉   इसलिए इस समय को "ब्रह्म मुहूर्त" का समय भी कहते हैं।अमृत वेले का समय हमारे सारे दिन की श्रेष्ठ स्तिथि का आधार है।इस समय अव्यक्त वतन वासी ब्रह्मा बाबा भाग्य विधाता के रूप में भाग्य रूपी अमृत बांटते है।

 ❉   जो जितना अमृत पान करना चाहे अर्थात भाग्य बनाना चाहे बना सकता है।वरदानी और महादानी दोनों पार्ट इस समय साथ साथ चलते हैं।

 ❉   इस समय अगर हम अपनी स्व स्तिथि में अच्छी तरह स्तिथ हो जाएँ तो दुखी आत्माओं की पुकार स्पष्ट सुनाई देगी और उपकारी बन उनकी समसयाओं को सहज ही दूर कर महादानी बन सकेंगे।

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∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा) (Marks:-5)

 

➢➢ ब्रह्म मुहूर्त के समय सारे दिन की श्रेष्ठ स्थिति व कर्म का मुहूर्त निकालो

 

 ❉   जिस तरह कोई कार्य को करने के लिए मुहूर्त निकलवाते हैं तब उस कार्य का शुभ आरम्भ करते हैं और उस कार्य में सफलता प्राप्त करते है। उसीप्रकार यदि ब्रह्म मुहूर्त में सर्वशक्तिमान बाप से रूहरिहान कर सर्वशक्तियों को प्राप्त कर अपनी स्थिति श्रेष्ठ बना लेंगे तो हर कर्म शुभ मुहूर्त हो जायेगा।

 ❉   ब्रह्म मुहूर्त का समय बाप और बच्चों के मिलने का स्पेशल समय है क्योंकि यह मिलन मेला का समय है। जैसे लौकिक में भी पिता को जिस बच्चे से ज़्यादा प्यार होता है व उसे अलग से अपनी चीज़ में से भी देगा। तो बाप भी इस समय अपने बच्चों को देता है।

 ❉   ब्रह्म मुहूर्त के समय आत्मा परमात्मा से कनेक्शन जोड़ करंट प्राप्त करती है व इस करंट से आत्मा रूपी बैटरी जितना ज़्यादा चार्ज होगी उतनी ही उसकी स्थिति शक्तिशाली होगी।

 ❉   ब्रह्म मुहूर्त के समय में बाप से भाग्य विधाता के रूप में भाग्य बाँटते हैं जितना भाग्य रूपी अमृत लेना चाहो ले सकते हैं व वरदानों से अपनी झोलियाँ जितनी भरना चाहो भर सकते हैं।

 ❉   ब्रह्म मुहूर्त का समय ब्राह्मण जीवन का आधार होता है। इस समय अपने को सर्वशक्तिवान से जोड़ पावरफुल योग द्वारा भरपूर कर लेते है तो सारा दिन रूहानी नशे में रहते है। हर कर्म करते हुए सर्वशक्तिवान बाप का साथ व प्यार अपने साथ अनुभव होता है।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-5)

 

➢➢ संकल्प और बोल के विस्तार को सार में लाने वाले ही अंतर्मुखी कहलाते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   अंतर्मुखी होना मतलब मुख व मन का मौन रखना अर्थात न वाचा में न संकल्पों द्वारा व्यर्थ की बातो में जाना।

 ❉   विस्तार को सार में समा देना अर्थात जितना आवश्यक हो उतना ही बोलना या संकल्प चलाना यही अंतर्मुखी होना है।

 ❉   कोई भी बात पहले संकल्प में आती है फिर वाचा में, तो अति आवश्यक है की हमारा कण्ट्रोल अपने संकल्पों पर हो।

 ❉   व्यर्थ के संकल्पों और बोल पर ब्रेक लगाना या फुल स्टॉप लगाना, यह समझ की क्या संकल्प व बोल समर्थ है और क्या व्यर्थ ही अंतर्मुखी होना है।

 ❉   कछुवे का मिसाल, जब आवश्यकता हो कर्मेन्द्रियो द्वारा कार्य करवाना नहीं तो उन्हें समेट कर एकांतवासी हो जाना।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-5)

 

➢➢ स्वभाव, संस्कार, सम्बन्ध, सम्पर्क  में लाइट रहना अर्थात फरिश्ता बनना...कैसे ?

 

 ❉   कार्य व्यवहार में रहते किसी का भी स्वभाव संस्कार हमे स्पर्श ना करे, यह स्तिथि हमे सहज ही फरिश्ता बना देगी।

 ❉   अपने स्वधर्म में स्तिथ रहे तो कर्म और सम्बन्ध श्रेष्ठ बनेगे और स्वभाव, संस्कार, सम्बन्ध, संपर्क में लाइट रह फरिश्ता स्तिथि का अनुभव करेंगे।

 ❉   हर परिस्तिथि में खुश रहे।दूसरों के स्वभाव संस्कार मेल ना खाते हुए भी मन पर कोई भारीपन ना आये तो लाइट अर्थात फरिश्ता बन जाएंगे।

 ❉   सूक्ष्म  में भी कोई व्यर्थ संकल्प और विकल्प प्रवेश ना कर पाए तो यह निर्संकल्प स्तिथि हर सम्बन्ध और संपर्क में लाइट रख फरिश्ता पन की स्तिथि का अनुभव कराएगी।

 ❉   अंतर्मुखी बन स्वस्तिथि की सीट पर सेट रहें तो हर परिस्तिथि में हल्के पन अर्थात फरिश्ता स्तिथि की अनुभूति सहज अनुभव होगी।

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_  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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