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    21 / 03 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

         TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 7*5=35)

 

‖✓‖ °संतुष्टमणि° बनकर रहे ?

‖✓‖ °प्रभु प्रिय लोक प्रिय और स्वयं प्रिय° बनकर रहे ?

‖✓‖ °ड्रामा° को अच्छी रीति समझकर हर्षित रहे ?

‖✓‖ अपने सब कुछ नयी दुनिया के लिए °ट्रान्सफर° करने का अभ्यास किया ?

‖✓‖ °साइलेंस बल° से इस सृष्टि को पावन बनाने की सेवा की ?

‖✓‖ संगदोष से अपनी बहुत बहुत °संभाल° की ?

‖✗‖ °व्यर्थ चिंतन° या कमजोरी की बातें तो आपस में नहीं की ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

‖✓‖ बीती हुई बातों को °रहमदिल° बन समाया ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-15)

‖✓‖ आज दिन भर मुरली के पॉइंट्स को बार बार °दोहराया° (रीवाइज) किया ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-15)

 

➢➢ मैं शुभ चिन्तक आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 ❉   मैं आत्मा व्यर्थ चिंतन या कमजोरी की बातों से किनारा कर रहती हूँ ।

 ❉   मैं आत्मा बीती हुई बातों को स्वयं में समाकर रहमदिल बन सर्व आत्माओं के प्रति शुभ भावना रखती हूँ ।

 ❉   शुभ भावना और शुभकामना की वृति द्वारा मैं आत्मा सर्व आत्माओं को शुभ वाइब्रेशन पहुंचाती हूँ ।

 ❉   अपने हर संकल्प में सर्व आत्माओं के प्रति शुभ भावना और शुभ कामना रखते हुए मैं सर्व आत्माओं को प्रत्यक्ष फल की प्राप्ति करवाती हूँ ।

 ❉   मैं आत्मा नेगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तित करने का पूरा अटेंशन रख कर चलती हूँ ।

 ❉   अपनी रहम की वृति और शुभभावना से मैं हर प्रकार के संस्कारो वाली आत्मा को सहज ही परिवर्तित कर देती हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-5)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - यह ज्ञान तुम्हें शीतल बनाता है, इस ज्ञान से काम - क्रोध की आग खत्म हो जाती है, भक्ति से वह आग खत्म नही होती"

 

 ❉   आज मनुष्य के दुखों का सबसे मुख्य कारण है काम - क्रोध रूपी विकारों की आग, जिसमे प्रत्येक मनुष्य जल रहा है ।

 ❉   भल कितनी भक्ति करते हैं । कहाँ - कहाँ तीर्थो पर जाते हैं किन्तु विकारों की आग उन्हें शांत नही होने देती ।

 ❉   क्योकि भक्ति होती है शरीर के साथ । इसलिए भक्ति में देह अभिमान होता है।और विकारों की प्रवेशता का कारण है ही देह - अभिमान ।

 ❉   यह देह - अभिमान टूटता ही तब है जब परमात्मा आ कर आत्म - अभिमानी बनने का ज्ञान देते हैं ।

 ❉   आत्म - अभिमानी बनने का यह ज्ञान ही हमे शीतल बनाता है और काम - क्रोध रूपी विकारों की अग्नि को समाप्त कर देता है ।

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∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा) (Marks:-5)

 

➢➢ ड्रामा को अच्छी तरह समझकर हर्षित रहना है।

 

 ❉   ड्रामा में हरेक का अपना-अपना पार्ट है व एक्यूरेट है इसलिए किसी को देखकर ऐसा नहीं सोचना कि ये ऐसा क्यूँ नहीं करता या मेरी बात क्यूँ नहीं मानता। बस आप अपने काम को एक्यूरेट करो।

 ❉   ड्रामा कल्याणकारी है। जो हो रहा है अच्छा हो रहा है, जो होगा वो भी अच्छा ही होगा।

 ❉   कल्प पहले भी 5000 वर्ष पहले बाबा से मिले व बाबा ने हमें पहले भी ज्ञान दिया जिसको हम भूल गए व नीचे गिरते आए। अब बाबा ने हमें ढूँढा व अपना बच्चा बनाया। वाह ड्रामा वाह!

 ❉   ड्रामा के ज्ञान को अच्छी तरह समझकर सम्पूर्ण निश्चय कर कोई बात आने पर बिंदी लगानी है क्यूँ , क्या और क्यों में नहीं उलझना।

 ❉   अगर कोई परिस्थिति आती है तो ये स्मृति लानी है कल्प पहले भी ऐसा हुआ व विजय मेरी ही हुई या तब भी मैंने ही किया तो अब भी मेरी ही जीत निश्चित है या अब  हो जायेगा।

 ❉   हर पेपर से अनुभवी बन आगे बढ़ना है व हर्षित रहना है।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-5)

 

➢➢ बीती हुई बातो को रहमदिल बन समाने वाले ही शुभ चिन्तक है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   बीती हुई बातो को ड्रामा समझ भूलना ही स्व स्थिति बनाये रखने का मार्ग है।

 ❉   याद रहे- बीती हुई बाते सोच सोच कर परेशान होने से हम हमारा आज का समय भी नष्ट कर रहे है।

 ❉   हम कल्याणकारी बाप के बच्चे है, बीती को बिंदी लगा हमें अपकारियो पर भी उपकार करना है।

 ❉   बीती हुई बातो को रहमदिल बन सामने से हम स्व का भी व दुसरो का भी उद्धार कर सकते है।

 ❉   जब तक हम पुरानी बातो को भूलेंगे नहीं, हम हिम्मत व उमंग का अगला कदम नहीं रख सकेंगे।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-5)

 

➢➢ संतुष्टमणि बनो तो प्रभु प्रिय, लोक प्रिय और स्वयं प्रिय बन जायेंगे... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   सन्तुष्टमणि बनने वाला स्वयं भी संतुष्ट रहेगा तथा औरो को भी संतुष्ट रखेगा इसलिये सहज ही सर्व की दुआओं का पात्र बन प्रभु प्रिय, लोक प्रिय और स्वयं प्रिय बन जाएगा ।

 ❉   संतुष्टमणि कठिन से कठिन परिस्तिथि में भी कभी निराश नही होगा । हर परिस्तिथि में सन्तुष्टता का अनुभव ही उसे प्रभु प्रिय, लोक प्रिय और स्वयं प्रिय बना देगा ।

 ❉   संतुष्टमणि सदा स्नेही बन सर्व को स्नेह दे सर्व का स्नेह प्राप्त करने वाले प्रभु प्रिय, लोक प्रिय और स्वयं प्रिय होंगे ।

 ❉   संतुष्टमणि अभिमान और अपमान की फीलिंग से सदा परे रह, निस्वार्थ भाव से निष्काम सेवाधारी बन चलेंगे और सहज ही प्रभु प्रिय, लोक प्रिय और स्वयं प्रिय बन जाएंगे ।

 ❉   संतुष्ट मणि अपने चेहरे और चलन से दूसरों को भी संतुष्टता और शीतलता का अनुभव करवा कर प्रभु प्रिय, लोक प्रिय और स्वयं प्रिय बन जाएंगे ।

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_  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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