━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

    21 / 04 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

         TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ °रूहानी सर्विस° का शौंक रखा ?

‖✓‖ किसी भी प्रकार की सेवा में सदा °संतुष्ट° रहे ?

‖✓‖ "°मैं आत्मा हूँ°" - यह अभ्यास किया ?

‖✓‖ °अनतर्मुखी° होकर अपनी अवस्था को जमाया ?

‖✓‖ °संगदोष से अपनी संभाल° की ?

‖✓‖ "अब हम अपनी °लाइफ इंश्योर° कर देते हैं, फिर कभी मरेंगे नहीं" - यह ख़ुशी रही ?

───────────────────────────

 

∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

‖✓‖ °बाप और प्राप्ति की स्मृति° से सदा हिम्मत हुल्लास में रहे ?

───────────────────────────

 

आज की अव्यक्त पालना :-

➳ _ ➳  जैसे अपने स्थूल कार्य के प्रोग्राम को दिनचर्या प्रमाण सेट करते हो, ऐसे अपनी मन्सा समर्थ स्थिति का प्रोग्राम सेट करो तो कभी अपसेट नहीं होंगे । जितना अपने मन को समर्थ संकल्पों में बिजी रखेंगे तो मन को अपसेट होने का समय ही नहीं मिलेगा । मन सदा सेट अर्थात् एकाग्र है तो स्वत: अच्छे वायब्रेशन फैलते हैं । सेवा होती है ।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

‖✓‖ मन्सा समर्थ स्थिति का प्रोग्राम सेट कर मन को °समर्थ संकल्पों में बिज° रखा ?

───────────────────────────

 

∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं एकरस, अचल आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 ❉   परम पिता परमात्मा शिव बाबा ने मुझे अखुट प्राप्तियों से भरपूर कर दिया है ।

 ❉   इन प्राप्तियों की स्मृति मुझमें सदैव हिम्मत और हुल्लास जगाये रखती है ।

 ❉   ये प्राप्तियां मुझे हर परिस्तिथि में निर्विघ्न स्तिथि का अनुभव कराती हैं ।

 ❉   बाप को और बाप से मिलने वाली प्राप्तियों को याद कर मैं सदा अचल और एक रस स्तिथि में स्तिथ रहती हूँ ।

 ❉   बाबा के साथ सर्व सम्बंधों के रस की मिठास का अनुभव मुझे नष्टोमोहा बना देता है ।

 ❉   परमात्म प्यार और स्नेह का बल, मुझे कर्मो के आकर्षण और बंधनो से परे ले जाता है और हर परिस्तिथि में अचल अडोल बना देता है ।

───────────────────────────

 

∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - बाप तुम रूहों से रूहरिहान करते हैं, तुम आये हो बाप के पास 21 जन्मों के लिए अपनी लाइफ इनश्योर करने, तुम्हारी लाइफ ऐसी इनश्योर होती है जो तुम अमर बन जाते हो"

 

 ❉   मनुष्य अपनी लाइफ इस लिए इनश्योर कराते हैं ताकि उनके मरने के बाद उनके परिवार वालों को पैसा मिले और वो अपनी जीविका चला सकें ।

 ❉   लेकिन हम ब्राह्मण बच्चे किसी देह धारी के पास अपनी लाइफ इनश्योर नही करते ।

 ❉   हम तो डायरेक्ट भगवान के पास 21 जन्मों के लिए लाइफ इनश्योर करते हैं ।

 ❉   इस लाइफ इनश्योरन्स से हम 21 जन्मों के लिए ऐसे अमर हो जाते हैं कि 21 जन्मों के लिए मरते ही नही ।

 ❉   हमारी लाइफ ऐसी इनश्योर हो जाती है कि  21 जन्म दुःख का नाम निशान नही होता, कोई अकाले मृत्यु नही होती ।

───────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा)(Marks:-10)

 

➢➢ रूहानी सर्विस का शौक़ रखना है। आप समान बनाने की मेहनत करनी है।

 

 ❉   मैं शरीर नहीं आत्मा हूँ ये ज्ञान तो परमात्मा ने ही इस कल्याणकारी संगमयुग में ही दिया तो स्वयं को रूह जानकर जो स्व पर अटेंशन देती है उस रूह को रूहानी सर्विस का शौक़ रहता है।

 ❉   अपने को आत्मा समझ अपने मोस्ट बिलेवड बाप को याद करना है। याद से ही आत्मा की लाइट तेज़ होती है व पावन बनते है। उठते बैठते खुशी रहती है। जिनमें याद का बल होता है वही बच्चे रुहानी सर्विस करते हैं।

 ❉   लौकिक सर्विस से तो विनाशी धन व थोड़े समय की खुशी मिलती है व इस रूहानी सर्विस से अविनाशी कमाई होती है व विश्व के मालिक बनते हैं। ऐसे सर्विसएबुल बच्चों को बाप स्वयं याद करते हैं व बाप के दिल पर राज करते हैं।

 ❉   सदा अंदर में ये चलता रहे कि मैं ईश्वरीय संतान हूँ व मुझे जो सत ज्ञान मिला है वो मुझे भी दूसरों को बाँटना है। निराकार बाप ही हम आत्माओं का पिता है व मन की शांति तो सिर्फँ और सिर्फ परमपिता से ही मिल सकती है व उन्हें आप समान बनाने की मेहनत करनी है।

 ❉   जैसे बर्तन में पानी ज़्यादा भर दो तो बाहर छलकने लगता है इसीप्रकार जब हम अंदर से भरपूर हो जाते हैं तो ज्ञान अपने आप ही छलकने लगता है व ज्ञानी व्यक्ति कहीं पर भी अपना ज्ञान सुनाकर रूहानी सेवा करता है व आप समान बनाने की मेहनत करता है।

───────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-10)

 

➢➢ बाप और प्राप्ति की स्मृति से सदा हिम्मत-हुल्लास में रहने वाले एकरस, अचल रहते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   सदेव यही गीत गाते रहो- "पाना था सो पा लिया" तो सदेव श्रेष्ठ भाग्य की स्मृति रहेगी।

 ❉   "वाह हमारा भाग्य वाह", जो भगवान हमें मिला, सम्मुख पढ़ाते है, हमने इन आँखों से उन्हें देखा, उनकी दृष्टि हम पर पड़ी, एसी श्रेष्ठ स्मृतिया याद रहे तो सदेव अपने भाग्य के गुणगान करते रहेंगे।

 ❉   हमें क्या-क्या प्राप्त हुआ है उसकी एक लिस्ट बनाये, संगम के इस सुहाने समय में हमें बाप से क्या क्या मिला है, उसका थोडा विचार करे तो जब अखूट प्राप्तियो का नशा चढ़ेगा तो इस दुनिया की बाते बहुत छोटी, खेल समान लगेगी।

 ❉   हम देवता बनने वाले है, जिनकी पूजा भक्त लोग आज भी इतने उमंग से करते है, अनेको आशाये लेकर उनके द्वार पर जाते है, जड़ मूर्तियों से भी अल्पकाल की प्राप्ति करके जाते है. ऐसे देवी देवता हम आत्माये बन रहे है तो हमें कितना उच्च स्थिति में रहना चाहिए।

 ❉   हम पद्मा पदम भाग्यशाली है जो परमात्मा स्वयं हमारे गुणगान करते है, अपने से उच्च हमें कहते है, स्वयं को हमारा आज्ञाकारी सर्वेंट कहते है, हमें विश्व का महाराजी-महारानी बनाने के लिए इस पतित दुनिया में आये, तो सदेव उस एक बाप की याद मे एकरस स्थिति में निश्चयबुद्धि बन रहना है।

───────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-10)

 

➢➢ किसी भी प्रकार की सेवा में सदा संतुष्ट रहना ही अच्छे मार्क्स लेना है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   संतुष्ट भाव से की गई सेवा दूसरों को भी सन्तुष्टता का अनुभव करवा कर, हमारे मार्क्स में वृद्धि कर देती है ।

 ❉   संतुष्ट भाव से की गई सेवा सहज ही सबको उमंग उत्साह में लाकर, अच्छे मार्क्स का आधार बन जाती है ।

 ❉   सन्तुष्टता की शक्ति इच्छा मात्रम अविद्या बना कर, दूसरों को भी इच्छा मात्रम अविद्या की स्तिथि का अनुभव करवा कर हमारे मार्क्स बढ़ा देती है ।

 ❉   संतुष्ट भाव से की गई सेवा सबके जीवन को सुख, शान्ति और आनन्द से भरपूर कर, हमे सबकी दुआओं का पात्र बना कर मार्क्स में वृद्धि कर देती है ।

 ❉   सन्तुष्टता की शक्ति बुद्धि की लाइन को क्लियर रखती है जिससे बाप की टचिंग सहज अनुभव होती है और सेवा में सफलता अच्छे मार्क्स का आधार बन जाती है ।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━