━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 28 / 03 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ बाप से °आशीर्वाद मांगने की बजाये याद की यात्रा° से अपना सब हिसाब किताब चुक्तु करने का अभ्यास किया ?
‖✓‖ सदा °हर्षित° रहने का अभ्यास किया ?
‖✓‖ इस °ड्रामा° को यथार्थ रीति समझने का अभ्यास किया ?
‖✓‖ निरंतर °बाप और 84 के चक्र° को याद किया ?
‖✓‖ पुराने शरीर से °जीते जी मरकर घर जाने° का अभ्यास किया ?
‖✗‖ इस °पुरानी दुनिया° को देखते हुए भी याद तो नहीं किया ?
───────────────────────────
∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ °प्रवृति में रहते पर - वृति° में रहने का अभ्यास किया ?
───────────────────────────
✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ मन्सा सेवा करने के लिए सदा एकाग्रता का अभ्यास चाहिए । इसके लिए व्यर्थ समाप्त हो, सर्व शक्तियों का अनुभव जीवन का अंग बन जाये । जैसे बाप परफेक्ट है ऐसे बच्चे भी बाप समान हों, कोई डिफेवट न हो ।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ °एकाग्रता° के अभ्यास को बढाया ?
───────────────────────────
∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं निरंतर योगी आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ मैं आत्मा निरन्तर अपनी बुद्धि का योग परमात्मा के साथ लगाने वाली निरन्तर योगी आत्मा हूँ ।
❉ सहजयोगी बन मैं आत्मा सदैव स्वयं को बाप के समीप अनुभव करती हूँ ।
❉ मैं आत्मा प्रवृति में रहते पर-वृति(आत्मिक स्वरुप) में स्थित रह सदा न्यारी और बाप की प्यारी बनकर रहती हूँ ।
❉ मुझे हर कार्य एक खेल की तरह सहज अनुभव होता है ।
❉ मैं आत्मा स्नेह और सहयोग की शक्ति से सदा हाई जम्प लगाती हूँ ।
❉ योग के बल से मैं आत्मा सदा उड़ती कला का अनुभव करते हुए डबल लाइट फरिश्ता बन उड़ती रहती हूँ ।
───────────────────────────
∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - तुम्हे इस पुरानी दुनिया, पुराने शरीर से जीते जी मर कर घर जाना है, इसलिए देह - अभिमान छोड़ देहि - अभिमानी बनो"
❉ कोई भी वस्तु जब काफी पुरानी हो जाती है तो महत्व हीन हो जाती है । क्योकि वो हमारे किसी काम की नही रहती ।
❉ ठीक यही हालत आज इस पुरानी दुनिया और इस पुराने शरीर की है ।अनेक जन्म ले विकारों में गिरते गिरते आत्मा एक दम पतित तमोप्रधान बन गई है ।
❉ यह शरीर और यह पुरानी दुनिया भी इतनी पतित , तमोप्रधान और दुःख दाई बन गई है कि रहने लायक रही ही नही ।
❉ इसलिए अब हमे इस पुरानी दुनिया और इस पुराने शरीर से जीते जी मरना है अर्थात इनसे ममत्व मिटा देना है ।
❉ देह अभिमान छोड़ देहि अभिमानी बनना है । क्योकि अब हमे अशरीरी बन वापिस घर जाना है ।
───────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा) (Marks:-10)
➢➢ बाप से आशीर्वाद माँगने की बजाय याद की यात्रा से अपना हिसाब किताब चुकतू करना है।
❉ बाप से आशीर्वाद नहीं माँगना है क्योंकि माँगना तो भक्ति मार्ग में करते आयें है। अब परमपिता परमात्मा के बच्चे हैं, बेहद के बाप के बच्चे हैं, ज्ञान सागर के बच्चे हैं तो उसके ख़ज़ानों, गुणों पर हमारा पूरा अधिकार है।
❉ वो सब अधिकार तभी प्राप्त करेंगे जब दिल से उसे अपना बनायेंगे व उसके दिल पर राज करेंगे। ये तभी होगा जब याद का यात्रा पर रहेंगे व उसके स्नेह की गोद में झूलते रहेंगे।
❉ अपने को आत्मा समझ अपने परमपिता परम आत्मा को याद करने से पावन बन जायेंगे। सारा मदार ही याद की यात्रा पर है।
❉ बाप कहते हैं कि मैं किसी को दु:ख नहीं देता। मैं तो दु:खहर्ता सुखकर्ता हूँ । ये तो तुम्हारे कर्मों का हिसाब किताब है व तुम्हें ही चुकतू करना है। इसमें आशीर्वाद की कोई बात नहीं है व मेरे ही सारे बच्चे हैं।
❉ योगबल से ही विकर्म विनाश होते है जितना योगाग्नि तेज़ होगी उतने ही जल्दी विकर्म विनाश होंगें। योग माना किसी के साथ जुड़ना तो बस एक बाप के साथ जुड़ जाओ व बस एक की ही याद में रहो।
───────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-10)
➢➢ प्रवृत्ति में रहते पर-वृत्ति में रहने वाले ही निरंतर योगी होते है... क्यों और कैसे ?
❉ वह बहुत प्यार से मिल जुल कर रहते है, कभी लूनपानी नहीं होंगे।
❉ एक दुसरे को आत्मिक स्वरुप में देखते है जिससे पवित्रता रहती है, जहा पवित्रता है वहा सुख शांति है ही।
❉ वह सबकुछ बाप को सौप स्वयं निमित्त बन सँभालते है जिससे बुद्धि कही फसती नहीं।
❉ प्रवृत्ति में रहते सर्व सम्बन्ध एक बाप से रखने से बंधनमुक्त अनुभव होता है।
❉ वह आपस में भाई भाई हो कर रहेंगे, बाप को अपने घर का मुखिया व बच्चा बना लेंगे।
───────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-10)
➢➢ बुद्धि की महीनता अथवा आत्मा का हल्कापन ही ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी है... कैसे ?
❉ सच्चाई और पवित्रता ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी है, और वो तभी आएगी जब बुद्धि महीन होगी अथवा आत्मा में हलकापन होगा ।
❉ अपनी उड़ती कला द्वारा औरों को भी उड़ती कला का अनुभव कराना सच्चे ब्राह्मणों का विशेष गुण है।यह अनुभव औरो को कराने के लिए बुद्धि का महीन होना अथवा आत्मा में हल्कापन होना बहुत जरुरी है ।
❉ सेवा में सफलता प्राप्त करने के लिए स्व स्तिथि का मजबूत होना ब्राह्मण जीवन में बहुत आवश्यक है । अगर बुद्धि में थोड़ी भी हलचल होगी तो सफलता नही मिलेगी । इसलिए बुद्धि की महीनता अथवा आत्मा में हल्का पन बहुत जरुरी है ।
❉ संगम युग का हर एक सेकण्ड बहुमूल्य है और इसे सफल बनाना ब्राह्मण जीवन का मुख्य कर्तव्य है । हर सेकण्ड तभी सफल होगा जब एक भी संकल्प व्यर्थ ना चले । इससे मुक्त होने के लिए जरूरी है कि बुद्धि बहुत महीन हो ।
❉ निश्च्यबुद्धि और निश्चिंतता का गुण ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी है और यह गुण तभी आयेंगे जब बेफिक्र होंगे और बेफिक्र बनने के लिए महीन बुद्धि होना अथवा आत्मा में हल्का पन होना बहुत जरुरी है ।
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━