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    28 / 02 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

         TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।

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∫∫ 1 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

➢➢ मैं समाधान स्वरूप आत्मा हूँ ।

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∫∫ 2 ∫∫ गुण / धारणा पर अटेंशन (Marks:-10)

➢➢  फरिश्तेपन की स्थिति द्वारा बाप के स्नेह का रिटर्न देना

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∫∫ 3 ∫∫ बाबा से संबंध का अनुभव(Marks:-10)

➢➢ टीचर

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∫∫ 4 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 7*5=35)

 

‖✓‖ "इस °बेहद ड़ामा में हम पार्टधारी° हैं" - यह स्मृति में रहा ?

‖✓‖ "°जो पास्ट हुआ वह फिर रिपीट होगा°" - यह स्मृति में रख हर बात में पास हुए ?

‖✓‖ बाबा को °बाप, टीचर और सतगुरू° तीनो संबंधो से याद किया ?

‖✓‖ "°हीयर नो इविल, सी नो इविल°" की धारणा को धारण किया ?

‖✓‖ इस °आसुरी छी-छी दुनिया से अपनी आखे बन्द° की ?

‖✓‖ इस °पुरानी दुनिया से कोई कनेक्शन° तो नही रखा ?

‖✗‖ °मर्यादाओं मे बेपरवाह° तो नहीं रहे ?

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अव्यक्त बापदादा (16/02/2015) :-

➳ _ ➳  लेकिन जैसे साकार में भी विश्व में से थोड़े से बच्चों को पहचानने का अधिकार और प्राप्ति मिली, ऐसे बच्चों को इस भाग्य के कारण बाप बच्चों का मिलन होता है, यह ड्रामा का पार्ट भी दिल को सुख देता है। बाप भी खुश बच्चे भी खुश। तो बापदादा ड्रामानुसार साकार में मिलते हुए बच्चों को देख बहुत खुश होते हैं। यह मिलन भी ड्रामा का अच्छे ते अच्छा पार्ट नूंधा हुआ है। आप लोग भी खुश हो जाते हैं ना! बाप फिर भी मिलने का पार्ट देख बच्चे भी खुश और बाप भी खुश।

 

∫∫ 5 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-15)

➢➢ “बाप को पहचानने का अधिकार और प्राप्ति मिली” – अपने इस भाग्य की स्मृति से दिल को सुख अनुभव हुआ ?

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∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-5)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - पास विद् ऑनर होना है तो बुद्धियोग थोडा भी कहीं ना भटके, एक बाप की याद रहे, देह को याद करने वाले ऊंच पद पा नही सकते"

 

 ❉   कर्म करते हुए भी हम मनुष्य आत्माओं का योग कहीं ना कहीं तो रहता ही है।मनुष्य की बुद्धि में हर समय घर-परिवार,लौकिक सम्बन्धियो, व्यवस्याय से सम्बंधित

संकल्प,विचार निरन्तर चलते ही रहते हैं।

 ❉   63 जन्मों से हम अपनी बुद्धि का योग देह और देह के सम्बन्धो से जुटाते आये और दुखी होते आए।किंतु अब परम पिता परमात्मा बाप आ कर हम आत्माओ को राजयोग द्वारा आत्मा का परमात्मा  के साथ योग सीखा रहे हैं।

 ❉   जिसके द्वारा आत्मा पर चढ़े विकर्म विनाश हो सकते हैं और आत्मा पावन बन पावन दुनिया स्वर्ग की मालिक बन सकती है।

 ❉   इसलिए अब बाप का यह फरमान है कि बुद्धि का योग थोडा भी कहीं ना भटके।

 ❉   अगर बुद्धि का योग देह और देह के सम्बन्धो में भटका अर्थात परमात्मा की याद भूल देह और देह में संबधियों की याद रही तो पास विद ऑनर नही हो सकेंगे यानि ऊंच पद पा नही सकेंगे।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा) (Marks:-5)

 

➢➢ इस बेहद ड्रामा में हम पार्टधारी है, यह सेकेण्ड बाय सेकेण्ड रिपीट होता है, जो पास्ट हुआ वह फिर रिपीट होगा - यह स्मृति में रख हर बात में पास होना है विशाल बुद्धि बनना है।

 

 ❉   सदा तीनों बिंदु को स्मृति में रखना है। आत्मा बिंदु, बाबा बिंदु व ड्रामा बिंदु। यानि कुछ हुआ तो उसी समय फुलस्टाप लगाना है। कोई विचार नहीं करना।

 ❉   ड्रामा कल्याणकारी है व इस ड्रामा में हर एक्टर अपना एक्यूरेट बजा रहा है ऐसा स्मृति में रखने से व्यर्थ संकल्प नहीं चलेंगे।

 ❉   अपने आप को सदा ट्रस्टी समझ कर कार्य करना है व करनकरावनहार को सदा साथ रखने से हर कार्य सहज हो जाता है।

 ❉   84 जन्मों के चक्र की नोलेज रखते हुए इस राज को अच्छी तरह समझते हुए ड्रामा पर सम्पूर्ण निश्चय रखते हैं तो हर बात में पास होते हैं व छोटी छोटी बातों में बुद्धि नहीं उलझती।

 ❉   इस ड्रामा में जो भी पेपर आते हैं वो हमेशा कुछ न कुछ सिखाने के लिए आते है व हमारे पुराने हिसाब किताब चुकतू होते है। उस परिस्थिति से अनुभवी बनते हुए पास होना है, घबराना नहीं है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-5)

 

➢➢ फ़रिश्तेपन की स्थिति द्वारा बाप के स्नेह का रिटर्न देना ही समाधान स्वरुप बनना है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   बाप दादा से प्राप्त शक्तिया व दिव्या बुद्धि का उपयोग अन्य आत्माओ प्रति उपयोग करना है।

 ❉   अपने संकल्पों की दिव्यता द्वारा हर आत्मा को सुख शांति का मार्ग बताना है।

 ❉   सभी आत्माये एक बाप के बच्चे है और हम सब भाई भाई है,यह दृष्टि रख सबको बाप से मिलाना है।

 ❉   जब स्वयं हलके,बंधनमुक्त,विघ्न विनाशक होंगे तभी दुसरो की समस्याओ का समाधान कर सकते है।

 ❉   हममे इतनी शक्ति व युक्ति आनी चाहिए की सभी की समस्याओ को समझ रहनदिल बन सबको दुःख अशांति से बहार निकाल सके।

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∫∫ 9 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-5)

 

➢➢ व्यर्थ से बेपरवाह बनो, मर्यादाओं में नही...क्यों और कैसे ?

 

 ❉   मर्यादाओं में रह कर जब व्यर्थ से बेपरवाह बनेंगे तो सोचना और करना दोनों समान हो जायेंगे।

 ❉   व्यर्थ से बेपरवाह बन, मर्यादाओं में रहने से सदा आत्मिक शक्ति और एनर्जी जमा होती रहेगी।

 ❉   व्यर्थ से बेपरवाह बन, मर्यादाओं में रहने से सर्व शक्तियों और सर्व गुणों के खजानो को सहज ही सफल कर पाएंगे।

 ❉   व्यर्थ से बेपरवाह बन, मर्यादाओं में रहना अनेक जन्मों की कमाई का आधार बन जाए गा।

 ❉   व्यर्थ से बेपरवाह बन, मर्यादाओं में रहने से सदा सफलतामूर्त बन जाएंगे।

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_  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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