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❍ 27 / 07 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ रहमदिल बन °सर्विस° पर तत्पर रहे ?
‖✓‖ "हम °दु:ख हर्ता सुख कर्ता° बाप के बच्चे हैं" - यह स्मृति रही ?
‖✓‖ °ख्यालात बड़े ऊंचे° और रॉयल रखे ?
‖✗‖ °साधनों की आकर्षण° से साधना को खण्डित तो नहीं किया ?
‖✗‖ °डिससर्विस° कर अपने आपको श्रापित तो नहीं किया ?
‖✗‖ °खाने-पीने की हबच (लालच)° तो नहीं रखी ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ कल्याणकारी वृत्ति द्वारा सेवा कर सर्व आत्माओं की °दुआओं के अधिकारी° बनकर रहे ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳
बापदादा
जानते हैं कि पुराने शरीर है तो पुराने शरीरों को साधन चाहिये। लेकिन ऐसा
अभ्यास जरूर करो कि कोई भी समय साधन नहीं हो तो साधना में विघ्न नहीं पड़ना
चाहिये। जो मिला वो अच्छा। अगर कुर्सी मिली तो भी अच्छा, धरनी मिली तो भी अच्छा।
जैसे आदि सेवा के समय साधन नहीं थे, लेकिन साधना कितनी श्रेष्ठ रही। तो यह साधना
है बीज, साधन है विस्तार। तो साधना का बीज छिपने नहीं दो, अभी फिर से बीज को
प्रत्यक्ष करो।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ °साधन नहीं तो साधना में विघ्न° तो नहीं पड़ा ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢
मैं दुआओं
की अधिकारी आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ कल्याणकारी
वृति द्वारा सर्व आत्माओं की सेवा कर, सबकी दुआयें जमा करने वाली, मैं दुआओं की
अधिकारी आत्मा हूँ ।
❉ मेरे हर संकल्प व बोल में सम्पूर्ण विश्व की समस्त आत्माओ के प्रति सदा
कल्याण की भावना व कामना समाई रहती है ।
❉ अपना हर संकल्प, समय और श्वांस बाबा की याद में रह, निमित बन सेवा करते हुए
सफल करती जाती हूँ ।
❉ बाबा से मिलने वाला रूहानी स्नेह मुझे सहज ही व्यर्थ से मुक्त कर समर्थ आत्मा
बना देता है ।
❉ समर्थ आत्मा बन, श्रेष्ठ संकल्पों की पूंजी जमा कर, शुभ चिंतन द्वारा मैं
सर्व आत्माओं का कल्याण कर सर्व की स्नेही आत्मा बनती जाती हूँ ।
❉ दातापन की सीट पर सेट रह, मास्टर दाता और रहमदिल बन मैं सर्व आत्माओं पर रहम
करती हूँ ।
❉ मास्टर दिलाराम बन सबको दिल से दुआये दे, दिलाराम बाप के स्नेह और सर्व की
दुआओं की पात्र बनती जाती हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢
“मीठे
बच्चे – पुरुषार्थ कर दैवी गुण अच्छी रीति धारण करने हैं, किसी को भी दुःख नहीं
देना है, तुम्हारी कोई भी आसुरी एक्टिविटी नहीं होनी चाहिए"
❉ किसी भी
पद की प्राप्ति का मूल आधार पुरुषार्थ ही है, बिना पुरुषार्थ अर्थात मेहनत के
कुछ भी प्राप्त नही किया जा सकता ।
❉ लौकिक में भी जो जैसा पुरुषार्थ करते हैं, वैसा ही पद वो प्राप्त करतें हैं ।
❉ हमारी भविष्य ऊंच परालब्ध की प्राप्ति का मूल आधार भी पुरुषार्थ ही हैं, अभी
के उच्च पुरुषार्थ के आधार पर ही हम भविष्य ऊँच देवी देवता पद पाएंगे ।
❉ इसलिए अभी हमे अपने पुरुषार्थ पर विशेष अटेंशन दे कर, दैवी गुण अच्छी रीति
धारण करने हैं ।
❉ हमे किसी को भी दुःख नहीं देना है और ना ही कोई आसुरी चलन चलनी है ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢
अपने
ख्यालात बड़े ऊँचे और राॅयल रखने हैं । रहमदिल बन सर्विस पर तत्पर रहना है ।
❉ हम ऊँच
ते ऊँच बाप के बच्चे हैं तो हमें अपने ख्यालात बड़े ऊँचे व राॅयल रखने हैं जैसे
राजा का बेटा होता है तो उसे अपने बाप के पद का नशा होता है व अलग से दिखता है
।
❉ हम तो सर्वशक्तिमान बाप के बच्चे मास्टर सर्वशक्तिमान है व बारहों विश्व पर
राज्य करने की शक्ति देते हैं व कितना ऊँचा पद है ! तो हमारे संकल्प भी श्रेष्ठ
होने चाहिए ।
❉ जब जड़ मूर्तियों का मंदिर में रखकर इतना पूजन है व फिर हमें तो स्वयं भगवान
मिले व स्वयं आकर पढ़ाते हैं । ज्ञान रत्नों से झोलियाँ भरते हैं, पत्थर बुद्धि
से पारस बुद्धि बनाते हैं तो हमें अपनी वृत्ति को श्रेष्ठ व राॅयल बनाना है ।
जैसी वृत्ति वैसी कृति ।
❉ हमें आत्माभिमानी होकर निरंतर ऊँच ते ऊँच बाप की याद में रहना है । हमें सत
का संग मिला है । जैसा संग वैसा रंग । तो हमें बाप समान रहमदिल बनना है ।
❉ जितना याद में रहते है तो समझाने पर तीर जल्दी लगता है । अपने साथ चित्र रखो
जब भी समय मिले समझाकर सर्विस करो। अंदर दिल में यही रहे कि जैसे हमें
सच्चे-सच्चे बाप का साथ मिला है ऐसे ही सब आत्माओं को मिले व सब का कल्याण हो ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢
कल्याणकारी
वृत्ति द्वारा सेवा करने वाले सर्व आत्माओ की दुआओं के अधिकारी होते है... क्यों
और कैसे ?
❉ जो
आत्मायें निस्वार्थ भाव से किसी भी आत्मा के प्रति शुभ भावना और शुभ कामना रखती
है वह दुआओं के अधिकारी बन जाती है, एेसी आत्माओं के संकल्प भी अनेकों का
कल्याण करने के लिए बहुत प्रभावशाली होते है।
❉ आज की दुनिया में सभी स्वार्थी है, किसी न किसी स्वार्थ के कारण ही एक दो से
जुड़े हुए है, सर्व आत्माओं का कल्याण एक पिता परमात्मा ही कर सकते है इसलिए कैसे
न कैसे सभी आत्माओ का कल्याण हो जाये इसकी युक्तियाँ रचनी चाहिए, जिन्हें सत्य
पिता का ज्ञान मिल जाये उनकी दिल की दुआओं के अधिकारी बन जायेंगे।
❉ कोई भी सेवा करते हमारे मन में एक ही भाव होना चाहिए, सबका कल्याण हो, जितना
दूसरों के कल्याण की भावना होगी उतना स्वयं का कल्याण स्वतः होगा, और साथ ही
परमात्मा की दुआओं के अधिकारी भी बन जायेंगे।
❉ "जैसी करनी वैसी भरनी" जैसा हमारे संकल्प होंगे वैसी ही हमारी वृत्ति बनेगी,
और जैसी वृत्ति होगी वैसे कर्म हम करेंगे। हमारे कर्मो के आधार पर ही हमें अच्छा
व बुरा फल मिलता है।
❉ आज की दुनिया में आत्मायें बहुत दुखी है, भटक रही है, ऐसे में एक तिनके का
सहारा भी उनके लिए बहुत है, हमारी शुभ भावना हमारे प्यार भरे दो बोल ही उन्हें
तृप्त अनुभव करवाएंगे। हम ही उनके इष्ट देव देवी बनकर उनके हर दुःख अशांति को
समाप्त करदे।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢
साधनों की
आकर्षण साधना को खंडित कर देती है... कैसे ?
❉ साधनों
की आकर्षण मन बुद्धि को एकाग्र नही रहने देती जिससे साधना खंडित होती है क्योकि
साधना के लिए एकाग्रता की शक्ति का होना बहुत जरूरी है ।
❉ साधनों की निर्भरता आत्मा को बंधनमुक्त स्थिति के अनुभव से वंचित कर साधना
में बाधा उत्पन्न कर देती है ।
❉ साधना में सिद्धि प्राप्त करने के लिए बेहद की वैराग्य वृति का होना बहुत
जरूरी है और साधनों की आकर्षण आत्मा को बेहद का वैरागी नही बनने देती ।
❉ साधनों का विस्तार बुद्धि को व्यर्थ में उलझा कर उसे समर्थ चिन्तन से दूर ले
जाता है और उसमे साधना को छिपा देता है ।
❉ साधनों के विस्तार में जाने वाली आत्मा साधनों पर आश्रित हो जाती है और यह
निर्भरता साधना में बाधक बन, योग युक्त स्थिति का अनुभव नही करने देती ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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