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❍ 20 / 09 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ "°हम सो, सो हम°" का मन्त्र स्मृति में रहा ?
‖✓‖ °स्व चिन्तक और शुभ चिन्तक° बनकर रहे ?
‖✓‖ त्याग में "°पहले मैं°" कहकर स्वयं को आगे किया ?
‖✓‖ अनेकों को देखने की बजाये °एक ब्रह्मा बाप° को ही देखा ?
‖✗‖ दूसरों की °कमजोरियों° की ग्रहण तो नहीं किया ?
‖✗‖ अपनी °गलती° को दूसरों पर तो नहीं डाला ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ अटल भावी को जानते हुए भी °श्रेष्ठ कार्य° को प्रतक्ष्य रूप दिया ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ जैसे स्थापना के आदि में साधन कम नहीं थे, लेकिन बेहद के वैराग्य वृत्ति की भट्ठी में पड़े हुए थे। यह 14 वर्ष जो तपस्या की, यह बेहद के वैराग्य वृत्ति का वायुमण्डल था। बापदादा ने अभी साधन बहुत दिये हैं, साधनों की कोई कमी नहीं हैं लेकिन होते हुए बेहद का वैराग्य हो। आपके वैराग्य वृत्ति के वायुमण्डल के बिना आत्मायें सुखी, शान्त बन नहीं सकती, परेशानी से छूट नहीं सकती।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ °बेहद की वैराग्य वृत्ति° का वायुमण्डल बनाए रखा ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं सदा समर्थ आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ अटल भावी को जानते हुए भी श्रेष्ठ कार्य को प्रत्यक्ष रूप देने वाली मैं सदा समर्थ आत्मा हूँ ।
❉ नया श्रेष्ठ विश्व बनने की भावी अटल होते हुए भी समर्थ भव के वरदान द्वारा कर्म और फल, पुरुषार्थ और प्रालब्ध की फिलॉसफी को सामने रख निमित बन मैं सब कार्य करती जाती हूँ ।
❉ स्व परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन करने वाली मैं विश्व की आधारमूर्त आत्मा हूँ ।
❉ करनकरावनहार बाप की छत्रछाया और परमात्म बल द्वारा हर कार्य में सफलता प्राप्त करने वाली मैं सदा सफलतामूर्त आत्मा हूँ ।
❉ ज्ञान के मुख्य पॉइंट्स के अभ्यास द्वारा और योग की विशेषता द्वारा मैं सिद्धि स्वरूप बनती जाती हूँ ।
❉ अभ्यास की प्रयोगशाला में बैठ, एक बाप की लग्न में मगन हो कर मैं निर्विघ्न बनती जाती हूँ ।
❉ कोई भी विघ्न मेरी स्थिति की एकरसता को डगमगा नही सकता, निर्विघ्न आत्मा बन मैं सब विघ्नों को सहजता से पार करती जाती हूँ ।
❉ सफलता का तिलक लगाये, मैं सदैव अपने चमकते हुए भाग्य और भविष्य की ऊँची उड़ान को अपने दिल रूपी आईने में देख, हर्षित होती रहती हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "सम्पूर्ण ब्रह्मा और ब्राह्मणों के सम्पूर्ण स्वरूप के अन्तर का कारण और निवारण"
❉ हम सभी ब्राह्मणों का संगमयुगी लक्ष्य ब्रह्मा बाप समान सम्पूर्ण बन बाप को प्रत्यक्ष करना है ।
❉ किन्तु सम्पूर्ण ब्रह्मा और ब्राह्मणों के सम्पूर्ण स्वरूप में अन्तर होने के कारण सम्पूर्ण अवस्था को प्राप्त करने में सम्पन्न नही बन पा रहे ।
❉ इस अन्तर का मुख्य कारण है कि बच्चों में ज्ञान, गुणों और शक्तियों को ग्रहण करने के साथ दूसरों की कमजोरियों को ग्रहण करने की शक्ति भी बहुत तेज है ।
❉ स्वयं को देखने की बजाए दूसरों को देख अलबेले बन जाते और सोचते कि बाकि अभी कौन से सम्पूर्ण बन गए ।
❉ इस खेल के कारण ही लक्ष्य और लक्षण में महान अन्तर पड़ जाता है ।
❉ इस अन्तर के कारण का निवारण तभी हो सकता है जब "शुभ - चिन्तक और स्व - चिन्तक बनो" और सदा यह स्लोगन याद रखो " जो मैं करूँगा, मुझे देख और करेंगे"
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ "हम सो, सो हम" का मन्त्र स्मृति में रखना है ।
❉ "हम सो, सो हम" के मंत्र से हमें स्मृति रहती है कि हम ही पहले देवी-देवता , फिर क्षत्रिय, वैश्य , शूद्र बन गये व अब हमें पुरूषार्थ कर शूद्र से ब्राह्मण , ब्राह्मण से फ़रिश्ता व फिर देवी देवता बनना है ।
❉ "हम सो, सो हम" के मंत्र को स्मृति में रखने से हमें सृष्टि चक्र का ज्ञान मिलता है व ये स्मृति रहती है कि हमने ही सतयुग में 8 जन्म, त्रेतायुग में 12 जन्म, द्वापर में 21 जन्म, कलयुग में 42 जन्म व पहला जन्म इसी समय संगमयुग में लिया ।
❉ "हम सो, सो हम" का मंत्र स्मृति में रखने से ये ज्ञान हुआ कि आत्मा ही परमात्मा व परमात्मा ही आत्मा नहीं है व आत्मा परमात्मा में लीन नहीं होती । हम सब आत्माओं का पिता परमात्मा हैं ।
❉ "हम सो, सो हम" का मंत्र स्मृति में रखने से हम देहभान से निकल देही-अभिमानी बनने का पुरूषार्थ कर सकते हैं क्योंकि आदि सनातन धर्म में हम देवी देवता थे यानि देही अभिमानी थे ।
❉ "हम सो, सो हम" के मंत्र को स्मृति में रखने से हम अपने विकारों पर विजय पाकर ही सो हम बन सकते हैं तभी सर्व गुणों और सर्व शक्तियों को धारण कर सकते हैं ।
❉ "हम सो, सो हम" के मंत्र को स्मृति में रखने से हम त्रिकालदर्शी बन जाते है व आत्मा भूत भविष्य और वर्तमान की ज्ञाता बन जाती है । आत्मा को एक लक्ष्य मिल जाता है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ अटल भावी को जानते हुए भी श्रेष्ठ कार्य को प्रत्यक्ष रूप देने वाले सदा समर्थ अनुभव करते है... क्यों और कैसे ?
❉ ड्रामा के राज को जानते हुए भी हमें अपने श्रेष्ठ कार्य को छोड़ नहीं देना है यह नहीं सोचना है जो होना है वो हो ही जायेगा हम क्यों मेहनत करे। ऐसे आलसी बनकर बेथ नहीं जाना है।
❉ कभी भी ज्ञान का उल्टा मतलब नहीं निकलना है, बाबा ने हमें ड्रामा का राज समझाया क्युकी उस अनुसार हम समय प्रमाण अपनी सब तैयारिया करले न की उसका उल्टा मतलब निकल कर भाग्य के भरोसे बेठ जाये।
❉ बाबा कहते है हमें उच्च पद पाने की मेहनत करो, जितना मिला उसी में संतुष्ट होकर बेठ नहीं जाना है, अभी की प्राप्तियो को बैठकर मजे करना अर्थ कच्चा फल खा लेना उससे सतयुग का कुछ जमा नहीं होगा।
❉ नयी दुनिया की स्थापना और पुरानी दुनिया का विनाश यह बाप का काम है और वह कैसे भी होना निश्चित है, परन्तु उसमे जितना हम सहयोगी बनेंगे उतना अपना ही भला करेंगे अपना ही भाग्य जमा होगा, अपने को ही उसकी प्रालब्ध मिलेगी इसलिए श्रेष्ठ कार्य को प्रत्यक्ष करने के लिए अपने 20सो नाखुनो का जोर लगाना है।
❉ जो आत्माये अभी बाप की मददगार बनकर बाप के विश्व परिवर्तन के महान कार्य में सहयोगी बनना है, अपना हर संकल्प, कर्म, बोल बाप के कार्य को प्रत्यक्ष करने के लिए हो तभी समर्थि स्वरुप बन सकेंगे।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ कहना कम, करना ज्यादा - यह श्रेष्ठ लक्ष्य महान बना देगा... क्यों और कैसे ?
❉ जो कहते कम और करते ज्यादा हैं वे कदम कदम पर परमात्म मदद का अनुभव करते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते जाते हैं ।
❉ कहना कम, करना ज्यादा यह लक्ष्य हर कार्य में सफलता दिला कर सहज ही सफलतामूर्त आत्मा बना देता है ।
❉ कम कहने और ज्यादा करने वाला अपनी सहयोग वृति द्वारा सबका सहयोगी बन सबकी दुआओं का पात्र बन जाता है ।
❉ महान आत्मा वही है जिसके हर कर्म में सर्व आत्माओं का कल्याण समाया हो और कल्याणकारी आत्मा वही बन सकती है जिसका कहना कम और करना ज्यादा हो ।
❉ कहना कम और करना ज्यादा यह लक्ष्य हर कर्म को आलौकिक बना कर साधारणता को समाप्त कर देगा जिससे व्यवहार में महानता स्पष्ट दिखाई देगी ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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