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    09 / 03 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

         TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 7*5=35)

 

‖✓‖ सर्व बन्धनों से °मुक्त, स्वतंत्र° अनुभव किया ?

‖✓‖ "°मैं और मेरापन°" - देह अभिमान के इस °दरवाजे को बंद° करके रखा ?

‖✓‖ °रचयिता और रचना° का ज्ञान सिमरन कर सदा हर्षित रहे ?

‖✓‖ मास्टर ज्ञान सूर्य बन °विश्व कल्याणकारी° की सीट पर सेट रहे ?

‖✓‖ हर संकल्प में °विश्व कल्याण की भावना व कामना° भरी रही ?

‖✓‖ बाप को हर बात का °समाचार° दे राय ली ?

‖✗‖ कोई भी °भूल° तो नहीं की ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

‖✓‖ श्रेष्ठ भावना के आधार से सर्व को °शांति व शक्ति की किरणें° दी ?

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अव्यक्त बापदादा (16/02/2015) :-

➳ _ ➳  सेवा, याद दोनों का बैलेन्स रख आगे बढ़ते और औरों को भी आगे बढ़ाते रहो। बापदादा खुश है कि पीछे आने वाले भी कम नहीं हैं जो चांस मिलता है वह करते रहते हैं लेकिन अपनी अवस्थाओं का ध्यान रखना। भले थोड़े हैं लेकिन थोड़े पावरफुल हैं। सब कुछ देख लिया है ना, तो होशियार हैं जानने में। बापदादा ऐसे बच्चों पर खुश है।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-15)

‖✓‖ सेवा, याद दोनों का °बैलेन्स° रख आगे बढ़ते रहे और औरों को भी आगे बढ़ाते रहे ? अपनी °अवस्था° का ध्यान रखा ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-15)

 

➢➢ मैं विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 ❉   सर्व शक्तियों के सागर शिवबाबा आप विश्वकल्याणकारी हो और मुझे भी आपने अपने ही जैसा विश्वकल्याणकारी, निस्वार्थ आत्मा बनाया है।

 ❉   मैं कितनी भाग्यशाली आत्मा हूँ जो स्वयं आपने मुझ आत्मा को अपने साथी मददगार के रूप में चुना है।

 ❉   मीठे बाबा, मैं आपके साथ कम्बाइंड रह कर नीचे विश्व गोले की तरफ देख रही हूँ।

 ❉   आपके लाइट और माईट की किरणे मैं पूरे विश्व में फैला रही हूँ।

 ❉   मुझ आत्मा के संकल्प व बोल में सदा कल्याण की भावना व कामना भरी हुई है।

 ❉   मैं आत्मा सर्व बन्धनों से मुक्त, स्वतंत्र अनुभव कर रही हूँ।

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∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-5)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - तुम्हे ज्ञान से अच्छी जागृति आई है, तुम अपने 84 जन्मों को, निराकार और साकार बाप को जानते हो, तुम्हारा भटकना बन्द हुआ"

 

 ❉   सारी दुनिया अज्ञान रूपी अन्धकार में भटक रही है क्योकि ज्ञान के सागर अपने पिता परमात्मा को ही नही पहचान पा रही है।

 ❉   लेकिन हम बच्चे कितने पदमापदम भाग्यशाली है जो ना केवल अपने पिता परमात्मा को पहचान गए हैं बल्कि ज्ञान सागर बाप के ज्ञान से हमारे अंदर जाग्रति आ गई है।

 ❉   हम अपने 84 जन्मों की पूरी कहानी को जान गए हैं, सृष्टि के आदि, मध्य और अंत का सारा ज्ञान हमारी बुद्धि में है।

 ❉   दुनिया तो केवल अपने लौकिक बाप को ही जानती है किन्तु हम साकार और निराकार अर्थात लौकिक और पारलौकिक बाप जो कि सब आत्माओं का पिता है, को जान गये हैं।

 ❉   ज्ञान सागर परमात्मा ने आ कर हमे ज्ञान का तीसरा नेत्र दे कर भटकने से बचा लिया है।

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∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा) (Marks:-5)

 

➢➢ रचयिता और रचना का ज्ञान सिमरण कर सदा हर्षित रहना है।

 

 ❉   इस कल्याणकारी संगमयुग पर बाप स्वयं आकर ही हमें ज्ञान देते हैं कि अपने को आत्मा समझ और आत्मा के पिता परमात्मा का परिचय देते हैं व अपनी पहचान पता चलती है।

 ❉   बाप रचयिता है व वो हमारी रचना नहीं करता बल्कि रची हुई चीज़ों को(संस्कारों )को चेंज करता है। हमें अविनाशी ज्ञान रत्नों का सिमरण करते हुए निराकारी खान से अपनी झोली भरकर सदा हर्षित रहना है।

 ❉   रचयिता और रचना के ज्ञान को सदा याद में रखने से अपना घर शांतिधाम व राजाई पद की याद रहेगी

 ❉   रचयिता और रचना के ज्ञान सिमरण से ही अविनाशी ड्रामा के राज को समझकर चलने से अज्ञान अँधियारा दूर होता है व हर्षितमुख रहते हैं।

 ❉   रचयिता और रचना के ज्ञान द्वारा ही आत्मिक स्वरूप में स्थित होकर अविनाशी ज्ञान धन से स्वयं को मालामाल कर रूप बसंत बन हर्षितमुख रहना है।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-5)

 

➢➢ श्रेष्ठ भावना के आधार से सर्व को शांति, शक्ति की किरणें देने वाले ही विश्व कल्याणकारी कहलाते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   उनकी सबके प्रति रहम की दृष्टि होती है।

 ❉   वह परोपकारी होते है, अपकारीयो पर भी सहज उपकार करते है।

 ❉   वह हद की इच्छाओ व संबंधो को छोड़ हमेशा बेहद में रहते है।

 ❉   वह एक दो के कल्याण की भावना न रख सरे विश्व की आत्माओ को सुख शांति का दान देते है।

 ❉   वह सदेव मनसा, वाचा, कर्मणा कोई न कोई सेवा में बिजी रहते है, उनके द्वार से कोई खाली हाथ नहीं जाता।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-5)

 

➢➢ मैं पन और मेरा पन-यही देह-अभिमान का दरवाजा है । अब इस दरवाजे को बन्द करो... कैसे ?

 

 ❉   आत्मिक दृष्टि का अभ्यास पक्का करने से मैं और मेरा पन भाग जाएगा और देह अभिमान का दरवाजा बन्द हो जाएगा।

 ❉   ब्रह्मा बाबा देह में होते भी देहि अभिमानी रहे सदा बुद्धि में यह रखने और फॉलो फादर करने से देहि अभिमानी अवस्था बनती जायेगी तथा मैं और मेरा पन समाप्त हो जाएगा।

 ❉   आत्मिक स्मृति में रह निरन्तर एक बाप को याद करने से देह अभिमान से मुक्त हो, मैं और मेरे पन से बच जाएंगे।

 ❉   योग बल से आत्मा जैसे-2 पावन बनती जायेगी।मैं और मेरे पन की भावना समाप्त होती जायेगी।

 ❉   गुण ग्राही बन सर्व आत्माओं के गुणों को देखने से देह के भान और मैं और मेरे पन से मुक्त होने में मदद मिलेगी।

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_  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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