━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

   24 / 11 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ "°पुरानी दुनिया अब नयी° बन रही है" - यह स्मृति रही ?

 

‖✓‖ °गुप्त ख़ुशी° में रहे ?

 

‖✓‖ "°धन दिए धन न खुटे°" - यह बात याद रख ज्ञान धन का दान करते रहे ?

 

‖✗‖ सर्विस के लिए कोई °बहाना° तो नहीं दिया ?

 

‖✗‖ किसी भी °देहधारी को याद° तो नहीं किया ?

 

‖✗‖ श्रेष्ठ पुरुषार्थ में °थकावट° तो अनुभव नहीं की ?

──────────────────────────

 

∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ °संगठित रूप में एकरस स्थिति° के अभ्यास द्वारा विजय का नगाड़ा बजाने का पुरुषार्थ किया ?

──────────────────────────

 

आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  जैसे ब्रह्मा बाप अव्यक्त बन विदेही स्थिति द्वारा कर्मातीत बने, तो अव्यक्त ब्रह्मा की विशेष पालना के पात्र हो इसलिए अव्यक्त पालना का रेसपान्ड विदेही बनकर दो। सेवा और स्थिति का बैलेन्स रखो।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ °सेवा और स्थिति° का बैलेंस रखा ?

──────────────────────────

 

∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं आत्मा एवररेडी हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   संगठित रूप में एकरस स्थिति के अभ्यास द्वारा विजय का नगाड़ा बजाने वाली मैं एवररेडी आत्मा हूँ ।

 

 ❉   सर्व प्रकार के आकर्षणों से मुक्त मैं प्रत्यक्षता के समय को समीप लाने वाली हूँ ।

 

 ❉   दृढ निश्चय और सर्व ब्राह्मण आत्माओं के स्नेह द्वारा मैं सेवा में सफलता प्राप्त कर सिद्धि स्वरूप बनती जाती हूँ ।

 

 ❉   ऊँचे ते ऊँचे बाप को प्रत्यक्ष करने वाली मैं शुभ और श्रेष्ठ कर्मधारी आत्मा हूँ ।

 

 ❉   बाबा का राईट हैण्ड बन अपने श्रेष्ठ और उच्च कर्मो द्वारा मैं बाबा के गुणों को प्रत्यक्ष करने वाली हूँ ।

 

 ❉   मैं विनाश के समय अंतिम डायरेक्शनस को कैच करने वाली वाइसलेस आत्मा हूँ ।

 

 ❉   अशरीरीपन के अभ्यास द्वारा मैं आत्मा सेकण्ड में वाइसलेस बन आवाज की दुनिया के पार पहुँच जाती हूँ ।

──────────────────────────

 

∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - यह पुरुषोत्तम संगम युग है, पुरानी दुनिया बदल अब नई बन रही है, तुम्हे अब पुरुषार्थ कर उत्तम देव पद पाना है"

 

 ❉   सभी युगों में सबसे श्रेष्ठ युग संगम युग है क्योकि इसी युग में लम्बे समय से अपने पिता परमात्मा से बिछुड़ी हुई हम आत्मायें फिर से मिलती हैं ।

 

 ❉   सबसे उत्तम ते उत्तम यह समय है जबकि स्वयं परमात्मा आ कर हमे सर्वोत्तम अर्थात देवी देवता बनाते हैं ।

 

 ❉   संगम युग पर ही आ कर परमात्मा हमे श्रेष्ठ मत देते हैं, जिस पर चल कर हम देव पद पाने का पुरुषार्थ करते हैं ।

 

 ❉   यही पुरुषोत्तम संगम युग अब चल रहा है, जब बाप आये हुए है और पुरानी दुनिया को फिर से नया बना रहे हैं ।

 

 ❉   इसलिए बाप समझाते हैं कि उत्तम देव पद पाना है तो अच्छी रीति पुरुषार्थ करो ।

──────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ घर-घर जाकर बाप का पैगाम देना है ।सर्विस करने का प्रण करो, सर्विस के लिए कोई भी बहाना मत दो ।

 

  ❉   जैसे कोटों मे कोई मे से चुनकर बाबा ने हमें अपना बनाया है व अपने असली स्वरुप की पहचान दी है । हम सब आत्माओं का परमपिता एक परम आत्मा ही है । यह पैगाम घर घर जाकर देना है कि जिसे आजतक हम पुकारते रहे वो अब धरा पर अवतरित हो चुके हैं ।

 

  ❉   कल्याणकारी सदाशिव परमात्मा पूरे कल्प में एक बार संगमयुग पर ही आते हैं व ये कलयुग के खत्म होने व सतयुग के शुरु होने के बीच का समय संगमयुग है ।

 

  ❉   बाप इस पतित व पुरानी दुनिया का विनाश कराने व हमें पतित से पावन बनाकर नयी दुनिया की स्थापना का कार्य करवाने के लिए आते हैं ।

 

  ❉   ज्ञान के सब प्वाइंटस को धारण कर सर्विस करते रहना है व कहा भी जाता है धन दिये न धन खुटे । जो जितना ज्ञान का दान करेंगें व सर्विस में तत्पर रहेंगे उतना ही अखूट खजानों से भरपूर रहेंगे ।

 

  ❉   परमपिता परमात्मा जो सबका बाप है व उनको सब याद करते है पुकारते है कि हे पतित पावन आओ । तो अब परमात्मा कहते है देह व देह के सर्व सम्बंधों को छोड़ मामेकम् याद करो तो पावन बन जाओगे ।

 

  ❉   ईश्वरीय सेवा मिलना एक बहुत बड़ी लाटरी है व पद्मो की कमाई जमा ह़ोती है । इसलिए सर्विस के लिए हमेशा तत्पर रहना है । जब बाप हमारी सेवा के लिए आता है तो हमें भी सर्विस कर अपना भाग्य बनाना है ।

──────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ संगठित रूप में एकरस स्थिति के अभ्यास द्वारा विजय का नगाड़ा बजाने वाले एवररेडी रहते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   एक बाप, एक बल, एक भरोसा। जब सभी ब्राह्मण आत्माओ की एकमत और एकरस स्थिति हो जाएगी तभी विजय का नगाड़ा बजेगा।

 

 ❉   संगठन में रहते सभी का एक ही संकल्प विश्व कल्याण का हो जाये। सब बाप समान बन जाये तो विजयी का नगाड़ा जल्दी बज जायेगा।

 

 ❉   जब संगठन की एकरस स्थिति हो। अनेकता में भी एकता दिखाई दे, सबके चेहरे चलन से सिर्फ एक बाप ही प्रत्यक्ष दिखाई दे।

 

 ❉   सब एक ही श्रेष्ठ स्थिति में स्थित रहे तो हमसे निकलने वाले वाइब्रेशन सृष्टि परिवर्तन का शुभ कार्य शीघ्र संपन्न हो जायेगा और विजयी का नगाड़ा बज जायेगा।

 

 ❉   एवररेडी अर्थात बाप का इशारा हुआ ओर सेना तैयार। इसके लिए लम्बे समय का अभ्यास चाहिए। अनेक बातो के होते भी सबकी सदेव एकरस स्थिति हो तब अंत में अनेक संकल्पों को समेटकर एक संकल्प में टिक सकेंगे।

──────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ श्रेष्ठ पुरुषार्थ में थकावट आना - यह भी आलस्य की निशानी है... कैसे ?

 

 ❉   समर्थ चिंतन की बजाए जब मन बुद्धि को व्यर्थ चिंतन में व्यस्त कर देते हैं तो बुद्धि भारी होने के कारण थकावट का अनुभव करती है और पुरुषार्थ में थकावट आलस्य की ही निशानी है ।

 

 ❉   पुराने स्वभाव संस्कार आत्मा को उड़ती कला का अनुभव नही होने देते और पुराने स्वभाव संस्कार के बोझ से दबी आत्मा थकावट के कारण आलस्य, अलबेलेपन का शिकार हो जाती है ।

 

 ❉   देह और देह के पदार्थो में बुद्धि फंसी होने के कारण शक्तिशाली याद में स्थित नही रह पाते और विकर्म विनाश ना होने के कारण विकर्मो का बोझ आत्मा को भारी कर थकावट का अनुभव कराता है ।

 

 ❉   पर चिंतन और नकारात्मक चिंतन आत्मा को प्रश्नचित बना देता है और प्रश्नो के बोझ तले दबी आत्मा भारी पन का अनुभव करती है और भारीपन की अनुभूति आत्मा को थका देती है ।

 

 ❉   स्व स्थिति और स्वमान की सीट को छोड़ जब नीचे आ जाते हैं तो परिस्थितिया मन बुद्धि पर हावी हो कर उसे भारी कर देती हैं और थकावट का अनुभव आत्मा में आलस्य और अलबेलेपन का कारण बन जाता है ।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━