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❍ 31 / 03 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ सर्व कलयुगी कर्मबंधनो को °बुधी से भूला° ?
‖✓‖ °अलंकारी° बनकर रहे ?
‖✓‖ योगबल से °सृष्टि को पावन° बनाने की सेवा की ?
‖✓‖ एक ही °साइलेंस के शुद्ध घमंड° में रहे ?
‖✓‖ °बेहद की अवस्था° में स्थित रहे ?
‖✗‖ किसी °एक के प्रति विशेष भावना° तो नहीं रखी ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ अपनी °शुभ भावना° द्वारा निर्बल आत्माओं में बल भरा ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ परमार्थ मार्ग में विघ्न-विनाशक बनने का साधन है - माया को परखना और परखने के बाद निर्णय करना क्योंकि परमार्थी बच्चों के सामने माया भी रॉयल ईश्वरीय रुप रच करके आती है, जिसको परखने के लिए एकाग्रता अर्थात् साइलेन्स की शक्ति को बढ़ाओ ।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ रॉयल ईश्वरीय रुप में आई माया को परखने के लिए एकाग्रता अर्थात् °साइलेन्स की शक्ति° को बढाया ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं सदा शक्ति स्वरुप आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ सर्व शक्तियों के सागर शिव पिता परमात्मा की संतान, मैं आत्मा सदा शक्ति स्वरूप हूँ ।
❉ बाबा से आ रही सर्वशक्तियां लेज़र किरणों की तरह मुझ आत्मा पर उतर - उतर कर आ रही हैं ।
❉ शिव पिता की सर्वशक्तियों से सम्पन्न हो कर मैं आत्मा मास्टर सर्वशक्तिवान बनती जा रही हूँ ।
❉ अपने शक्ति स्वरुप में स्थित हो कर मैं आत्मा सर्व आत्माओं को शक्ति स्वरुप बना रही हूँ और निर्बल आत्माओं में बल भर रही हूँ ।
❉ मैं आत्मा सदा शुभ भावना और श्रेष्ठ कामना स्वरुप हूँ ।
❉ मैं आत्मा किसी एक के प्रति विशेष भावना ना रख, बल्कि बेहद की स्थिति में स्थित हो निर्बल आत्माओं को अपनी प्राप्त हुई शक्तियों के आधार से शक्ति स्वरुप बना रही हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - तुम्हे योगबल से सारी सृष्टि को पावन बनाना है, तुम योगबल से ही माया पर जीत पा कर जगतजीत बन सकते हो"
❉ कहा जाता है कि पवित्रता ही सुख शान्ति की जननी है । इसलिए सतयुग में जब सभी पवित्र देवी देवता थे तो सभी सुख, शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर थे ।
❉ लेकिन अनेक जन्म लेते, विकारों में गिरते जब पतित बन गए तो सभी दुखी और अशांत हो गए ।
❉ और आज तो पूरी दुनिया विकारो के कारण सम्पूर्ण पतित तमोप्रधान बन गई है । इसलिए आज सभी अपरम अपार दुखो से पीड़ित है ।
❉ दुनिया में फिर से सुख शान्ति लाने का एक ही उपाय है, पतित तमोप्रधान दुनिया को योगबल से पावन सतोप्रधान बनाना ।
❉ क्योकि केवल योग का बल ही आत्मा पर चढ़ी विकारों की कट को उतार सकता है और माया पर जीत पा कर हमे जगतजीत बना सकता है ।
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∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा)(Marks:-10)
➢➢ इस समय सब कुछ बाप हवाले कर 21 जन्मों की बादशाही लेनी है।
❉ यह समय पुरुषोत्तम संगमयुग है व इस समय को जितना सफल करेंगे उतनी अधिक अविनाशी प्राप्तियाँ होंगीं ।
❉ इस लौकिक संसार में जीवन में जो भी है विनाश हो जाएगा। अपना सब कुछ बाप को सौंप बेफिकर बादशाह होकर निश्चिंत रहना है व सिर्फ़ एक की याद में रहना है।
❉ इस समय संगमयुग में भगवान स्वयं अपने बच्चों को पढ़ाने आते हैं। कितना नशा होना चाहिए ! इस नशे में पढ़ाई पढ़कर 21 जन्मों के लिए कमाई जमा कर बादशाही लेनी है।
❉ ख़ाली हाथ आए थे व ख़ाली हाथ ही जाना है, फिर क्यूँ तेरी मेरी में समय व्यर्थ करना। सब उसी को अर्पण कर सदा बाप को साथ रख हर कार्य करते हुए याद में रहते हुए पुरूषार्थ करना है व ऊंच पद पाना है।
❉ देह व देह के सर्व सम्बंधों को निभाते हुए देहभान से परे रहना है। करते हुए भी ये भान न रहे कि मैंने किया। अगर बाबा न होते तो मैं नहीं कर सकता था। इस प्रकार सब उसे समर्पित कर निमित्त भाव से करते हुए बाप से 21 जन्मों की बादशाही लेनी है।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-10)
➢➢ अपनी शुभ भावना द्वारा निर्बल आत्माओ को बल भरने वाले शक्ति स्वरुप बन जाते है... क्यों और कैसे ???
❉ जितना हम बापदादा से शक्तिया ले दुसरो को दान देते है उतनी ज्यादा शक्तिया हममे भरती जाती है।
❉ सभी आत्माये आज एक बूंद प्यार की प्यासी है, दुखो के पहाड़ ने सबको शक्तिहीन बना दिया है, ऐसे में हम ईश्वरीय संतानों का फर्ज है सभी निर्बल आत्माओ को शक्तियों का दान देना।
❉ जब हम माया पर सम्पूर्ण जीत पाएंगे, शक्ति स्वरुप बन सभी विकारो का संहार करेंगे तभी हम दुसरो को दान दे सकेंगे।
❉ शुभ भावना द्वारा सभी निर्बल आत्माओ द्वारा जो दुवाये हमें प्राप्त होती है वह हमारा सुरक्षा कवच बन जाता है।
❉ निर्बल आत्माओ में बल भरने के लिए हमें अपने सभी अलंकारो से सुसज्जित हो श्रेष्ठ स्वमान द्वारा शक्ति स्वरुप में स्थित होना होगा।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-10)
➢➢ अलंकार ब्राह्मण जीवन का श्रृंगार हैं - इसलिए अलंकारी बनो देह अहंकारी नही... क्यों ?
❉ सदा अलंकारी ही निरहंकारी और निराकारी स्तिथि में स्तिथ रह, स्वयं का तथा बाप का साक्षात्कार करा सकता है ।
❉ सदा अलंकारी ही सदा स्मृति स्वरूप और समर्थी स्वरूप बन सर्व आत्माओं को सर्व शक्तियों का अनुभव करा सकता है ।
❉ सदा अलंकारी नाम, मान और शान के अहंकार से मुक्त, अलंकारो की धारणा द्वारा सर्व आत्माओं का कल्याण कर सकता है ।
❉ सदा अलंकारी स्वदर्शन चक्रधारी बन सर्व आत्माओं के संस्कार, स्वभाव को परावर्तित कर सकता है ।
❉ सदा अलंकारी अपने देवताई स्वरूप द्वारा अपने अनेक भक्त आत्माओं की मनोकामनाओ को पूरा कर सकता है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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