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   18 / 10 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ "विश्व की आत्माएं आज भी आपके ब्राह्मण, पांडव, गोप-गोपियों के नाम का वर्णन करती हैं" - अपना यह °नाम का भाग्य° स्मृति में रहा ?

 

‖✓‖ "भक्त लोग शक्तियों के रूप में, देवी देवताओं के रूप में आपको पूजते हैं" - अपना यह °रूप का भाग्य° स्मृति में रहा ?

 

‖✓‖ "भक्त लोग कीर्तन के रूप में आपके गुणों का वर्णन करते हैं" - अपना यह °गुणों का भाग्य° स्मृति में रहा ?

 

‖✓‖ "सारे वर्ष में आपके कर्तव्य पर आधारित भिन्न भिन्न उत्सव मनाये जाते हैं" - अपना यह °कर्तव्य का भाग्य° स्मृति में रहा ?

 

‖✓‖ "आपके निवास स्थान की यादगार में अलग अलग तीर्थ स्थान बनाये जाते हैं" - अपना यह °स्थान का भाग्य° स्मृति में रहा ?

 

‖✓‖ "इस संगम के समय का वर्णन विशेष अमृतवेले के रूप में गाया जाता है" - अपना यह °समय का भाग्य° स्मृति में रहा ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ सर्व आत्माओं को °यथार्थ अविनाशी सहारा° दे आधार, उद्धारमूर्त बनकर रहे ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  अपनी सब जिम्मेवारी बाप को दे दो अर्थात् अपना बोझ बाप को दे दो तो स्वयं हल्के हो जायेंगे, बुद्धि से सरेन्डर हो जाओ। अगर बुद्धि से सरेन्डर होंगे तो और कोई बात बुद्धि में नहीं आयेगी। बस सब कुछ बाप का है, सब कुछ बाप में है तो और कुछ रहा ही नहीं।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ अपने °सब बोझ बाप को° दे दो तो स्वयं हल्के हुए ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं आधार व उद्धारमूर्त आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   सर्व आत्माओं को यथार्थ अविनाशी सहारा देने वाली मैं आधार व उद्धारमूर्त आत्मा हूँ ।

 

 ❉   अपने शुभ और श्रेष्ठ वायब्रेशन्स द्वारा मैं प्रकृति के तमोप्रधान वायुमण्डल की हलचल को समाप्त करती जाती हूँ ।

 

 ❉   अल्पकाल के आधार से, प्राप्तियों से, विधियों से थककर वास्तविक सहारा ढूंढने वाली आत्माओं को मैं मास्टर सहारेदाता बन सदाकाल का सहारा दे रही हूँ ।

 

 ❉   विश्व की आधार व उद्धारमूर्त आत्मा बन मैं सर्व आत्माओं को श्रेष्ठ अविनाशी प्राप्तियों की यथार्थ वास्तविक अनुभूति करवा रही हूँ ।

 

 ❉   मेरी मन बुद्घि सदैव सेवा के नये - नये प्लैन और तरीके सोचने में बिज़ी रहती है ।

 

 ❉   सेवा में स्वयं को बिज़ी रखने से मैं व्यर्थ के प्रभाव से सदैव मुक्त रहती हूँ और आलस्य, अलबेलेपन से बची रहती हूँ ।

 

 ❉   मेरे हर संकल्प और कर्म के आधार पर ही सम्पूर्ण सृष्टि के समय और स्थिति का आधार है, क्योकि मेरे हर कर्म को सृष्टि की सर्व आत्मायें फॉलो करने वाली हैं ।

 

 ❉   विश्व के परिवर्तन का आधार मुझ आत्मा की सम्पूर्णता पर निर्भर है ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "भाग्य विधाता बाप और भाग्यशाली बच्चे"

 

 ❉   भाग्य विधाता परम पिता परमात्मा शिवबाबा हम बच्चों के श्रेष्ठ भाग्य को देख हर्षित हो रहें हैं ।

 

 ❉   सारे विश्व में श्रेष्ठ पद पाने वाली हम ब्राह्मण आत्माओं का भाग्य कितना श्रेष्ठ है ।

 

 ❉   क्योकि वर्तमान और भविष्य दोनों में हम बच्चे ही सर्व प्राप्तियों के

अधिकारी बनते हैं ।

 

 ❉   हम ब्राह्मण बच्चों के नाम, रूप, गुणं, कर्तव्य, स्थान और समय का भाग्य कितना श्रेष्ठ है ।

 

 ❉   बाप के भाग्य को तो आत्मायें वर्णन करती हैं लेकिन हम ब्राह्मण बच्चों के भाग्य का वर्णन तो स्वयं बाप करते हैं ।

 

 ❉   तो ऐसे सदा अपने भाग्य के सितारे को चमकता हुआ देख हर्षित रहो ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ अपने महान भाग्य की स्मृति में रहना है ।

 

 ❉   ज्ञान दाता भाग्य विधाता स्वयं अपने बच्चों के भाग्य को देखते हैं व अपने बच्चों के भाग्य का गुणगान करते हैं । जहाँ मनुष्य परमात्मा की महिमा करते है व यहाँ परमात्मा अपने बच्चों की  । तो इससे बड़ा भाग्य किसी का हो सकता है !

 

 ❉   हम ब्रह्मा मुखवंशावली बच्चे है व ब्रह्मा के आचरण पर चलने वाले सच्चे ब्राह्मण हैं अब मैं शुद्र से ब्राह्मण अथवा श्रेष्ठ कुल का बना हूँ । यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है।

 

 ❉  शिवबाबा जिनकी मुरली यानि डायरेक्ट भगवान के महावाक्य सुनने केलिए या चार पेज का प्रेम पत्र को सुनने के लिए कि आज मेरे बाबा ने मेरे लिए क्या कहा होगा सब छोड़ गोप गोपियाँ प्रेम दीवानी बन अतीन्द्रिय सुख पाने के लिए भागी आती है , ये आपके नाम के भाग्य का ही गायन है ।

 

 ❉   संसार में जब किसी वींआईपी से सम्बंध हो तो उसी बात का नशा रहता है लेकिन हम ब्राह्मण बच्चों का सम्बंध तो स्वयं परमात्मा से होता है जो ऊँच ते ऊँचा है ज्ञान,प्रेम शांति के सागर , सर्वशक्तिमान है । जब वह परमपिता परमात्मा स्वयं मिल गया तो फिर और क्या चाहिये ? " पा लिया जो था पाना और क्या बाकि रहा"। मैं कितनी सौभाग्यशाली है उसी नशे मे रहना है

 

 ❉    इस संगमयुग पर अमृतवेले स्वयं परमात्मा अपने बच्चों से मिलने आते हैं व ख़ास ये समय अपने बच्चों के लिए रखा है । इस समय अपने बाप से जो लेना चाहो ले सकते हो । दुनिया वाले तो दर्शन मात्र के लिए कहाँ कहाँ भटकते रहते है व  हमारा कितना महान भाग्य है कि परमपिता परमात्मा स्वयं अपने बच्चों से मिलने आते हैं ।

 

 ❉   भक्त लोग धरती और आकाश के बीच खड़े रह तपस्या करते है तो हमें शक्तियो के रूप में, देवी देवताओ के रूप में पूजनीय होने का भाग्य मिलता है तो रूप का ज्ञान व् पूजन योग्य भाग्य है।आप के गुणों का भाग्य से अल्पकाल के कीर्तन करनेवालो को भी शांति व ख़ुशी के आनंद का अनुभव होता है ये है गुणों का भाग्य।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ आधार, उद्धारमूर्त वह है जो सर्व आत्माओ को यथार्थ अविनाशी सहारा देने वाले हो... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   आज का मनुष्य स्थूल साधनो में सुख को धुंढ रहे है, और जितना उनके पीछे भाग रहे है उतना ही ज्यादा दुःख हो रहे है, अल्पकाल के साधनों में सच्चा सुख ढूँढना म्रग तृष्णा के समान हो गया है।

 

 ❉   अज्ञानता व साइंस के साधनों में मनुष्य खुद को खोया हुआ अनुभव कर रहा है, एकदम बेसहारा, हताश, निराश अनुभव कर रहा है। आशा की कोई किरण नजर नहीं आ रही है। तन, मन, धन, प्रकृति, सम्बन्ध हर तरफ से सिर्फ टेंशन से ही घिरा हुआ है।

 

 ❉   हम बच्चो को बाप ने सत्य मार्ग बताया, सच्चा ज्ञान दिया, स्व की पहचान दी, हम पंशी को पिंजड़े से निकालकर खुला आसमान दिया। तो हमें अब अपने हमजीन्स की सेवा करनी है, उनका भी कल्याण करना है, उन्हें भी इस माया के पिंजड़े से छुड़ाना है।

 

 ❉   हम ब्राह्मण इस कल्प वृक्ष की जड़ो में बेठे है, हम आधार है इस वृक्ष की सभी आत्माओ का उद्धार करने के। बाप ने हम बच्चो को चुनकर हमें इस बेहद के विश्व कल्याण के कार्य के लिए निमित्त बनाया है।

 

 ❉   यथार्थ बाप की पहचान बाप ने हउम बच्चो को ही दी है, हम ही बाप को यथार्थ रीती जानते है, अंध विश्वास में आज तक मनुष्य बहुत धक्के व धोका खाते आये है अब उन्हें सत्य पिता को पाने का सत्य मार्ग बताना है और सच्चे वर्से का अधिकारी बनाना है।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ समय अमूल्य खजाना है - इसलिए इसे नष्ट करने के बजाए फौरन निर्णय ले सफल करो... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   संगम युग पर समय का खजाना सबसे अनमोल खजाना है इसलिए इसे व्यर्थ चिंतन में नष्ट करने के बजाए फौरन निर्णय ले सफल करेंगे तो लास्ट सो फ़ास्ट आ जायेंगे ।

 

 ❉   "कहना कम - करना ज्यादा" इस महान लक्ष्य को जीवन का एक मुख्य अंग बना लेंगे तो समय का अमूल्य खजाना नष्ट होने से बच जायेगा ।

 

 ❉   साक्षी पन की सीट पर सदा सेट रह हर परिस्थिति को देखेंगे तो क्या, क्यों और कैसे में समय व्यर्थ करने की बजाए फुल स्टॉप द्वारा फौरन निर्णय ले समय को सफल कर सकेंगे ।

 

 ❉   कोई भी बात में अपसेट होने की बजाए जब नॉलेजफुल की सीट पर सेट रहेंगे तो किसी भी परिस्थिति के आने पर अपसेट हो कर समय व्यर्थ गवाने की बजाए तुरन्त निर्णय ले समय का सदुपयोग कर सकेंगे ।

 

 ❉   दूसरों के स्वभाव, संस्कारों के  परिवर्तन के बारे में सोच कर समय व्यर्थ गवाने की बजाए जब स्व परिवर्तन पर बल देंगे तो सेकण्ड में उचित निर्णय ले समय को सफल बना सकेंगे ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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