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❍ 10 / 07 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ पुराने स्वभाव-संस्कार का °त्याग° किया ?
‖✓‖ °कुसंग से अपनी सम्भाल° रखी ?
‖✓‖ सच्चा °खुदाई खिदमतगार° बनकर रहे ?
‖✓‖ अपने आपको °बेहद का पार्टधारी° समझकर चले ?
‖✓‖ एक °बाप को और शान्तिधाम° घर को याद करते रहे ?
‖✗‖ किसी भी ची॰ज में °ममत्व° तो नहीं रखा ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ हर आत्मा को ऊंच उठाने की भावना से रिगार्ड देने वाले °शुभचिंतक° बनकर रहे ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ जैसे वह तपस्वी सदैव आसन पर बैठते हैं, ऐसे आप अपनी एकरस आत्मा की स्थिति के आसन पर विराजमान रहो। इस आसन को नहीं छोड़ो तब सिंहासन मिलेगा। आपकी हर कर्मेन्द्रिय से देह-अभिमान का त्याग और आत्म-अभिमानी की तपस्या प्रत्यक्ष रूप में दिखाई दे।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ अपनी °एकरस° आत्मा की स्थिति के आसन पर विराजमान रहे ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं शुभचिंतक आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ हर आत्मा को ऊँचा उठाने की भावना से रिगार्ड देने वाली मैं शुभचिंतक आत्मा हूँ ।
❉ अपनी शुभ वृति और शुभ चिंतक स्थिति से मैं अन्य आत्माओं के अवगुणों को भी परिवर्तित कर देती हूँ ।
❉ किसी की भी कमजोरी को कमजोरी समझ उसे दूसरों के सामने वर्णन करने की बजाए उसे अपने अंदर समा लेती हूँ ।
❉ दिलशिक्सत आत्मा को भी शक्तिवान बना कर मैं उसे हिम्मत और उत्साह से भरपूर कर देती हूँ ।
❉ दूसरों के कुसंग से स्वयं को बचा कर उन्हें अपने श्रेष्ठ रंग में रंग लेती हूँ ।
❉ आपनी शुभभावना - शुभकामना द्वारा मैं सर्व आत्माओं को आगे बढ़ाने की भावना रख उनमे उमंग और उल्लास भर देती हूँ ।
❉ मेरी शुभ और श्रेष्ठ वृति सहज ही अन्य आत्माओं को चड़ती कला का अनुभव कराती है ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - तुम बहुत रॉयल स्टूडेन्ट हो, तुम्हें बाप, टीचर और सतगुरु की याद में रहना है, आलौकिक खिदमत करनी है"
❉ लौकिक में स्टूडेन्ट जिस टीचर के पास पढ़ते हैं वो केवल टीचर ही होता है, बाप और सतगुरु नही ।
❉ किन्तु हम कितने पदमपदम सौभाग्यशाली स्टूडेन्ट हैं जो स्वयं भगवान हमे टीचर बन पढ़ा रहे हैं और साथ ही साथ बाप बन हमारी पालना भी कर रहें हैं और सतगुरु बन हमें सद्गति भी दे रहे हैं ।
❉ परम पिता परमात्मा बाप के हम बहुत ही रॉयल स्टूडेन्ट हैं ।
❉ इसलिए हमे परमात्मा बाप को बाप, टीचर और सतगुरु तीनो रूपो से याद करना है ।
❉ जैसे बाप सारी दुनिया की खिदमत करते हैं, पतितो को पावन बनाते हैं । ऐसे ही हमे भी बाप समान खुदाई खिदमतगार बनना है ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ सदा ध्यान रहे कि हमारी कोई भी चलन देह-अभिमान वाली न हो । बहुत सिम्पल रहना है ।
❉ अपने को आत्मा समझ आत्मिक दृष्टि रखनी है । देह अभिमान में नहीं आना व अपने विचार ऊँचे रखने हैं । किसी के नाम रूप में नहीं फँसना ।
❉ विदेही बाप व ऊँचे ते ऊँचे बाप के बच्चे हैं इसलिये ऐसा कार्य नहीं करना जिससे बाप का नाम बदनाम हो बल्कि ऊंच ते ऊंच बाप का नाम बाला करना है ।
❉ लौकिक में लोगों को देहभान में रहने में आनन्द आता है व देह को सजाते सँवारते रहते है व हम ब्राह्मण बच्चों को देही-अभिमानी बनने में आनन्द आता है । हम आत्मा के पिता परम आत्मा की याद में रहने में व आत्मा को बल देने में आनन्द आता है ।
❉ जितना बाहरी आकर्षणों से परे रहते है व बाप की याद में रहते हैं तो स्व स्थिति अच्छी रहती है व स्व पर ही अटेंशन रहता है तो हमारी चलन भी रायल व श्रेष्ठ होती है ।
❉ आत्मा का कनेक्शन आत्मा के पिता से जुड़ा रहता है तो याद का आनन्द आत्मा रूपी बैटरी को चार्ज करता रहता है व देही- अभिमानी रहते है तो कोई भी ऐसा कर्म नहीं होता कि किसी का दिल दुखे या पाप कर्म हो ।
❉ कहा भी गया है - सादा जीवन ऊँच विचार । इसलिए जितना हमारा जीवन सादा होता है तो इच्छाएँ भी नहीं होती और विचार भी श्रेष्ठ व ऊँचे होते हैं ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ हर आत्मा को उच उठाने की भावना से रिगार्ड देने वाले शुभचिन्तक होते है... क्यों और कैसे ?
❉ हमें सर्व आत्माओ के प्रति शुभ चिन्तक बन कर रहना है, हमारा शुभ चिंतन ही अनेक आत्माओ तक गुड वाइब्रेशन का काम करता है।
❉ बाबा विश्व की रजाई राजधानी स्थापन करने आये है, कोई अकेला तो राज्य करेगा नहीं, हमें सभी को सहयोग दे उचा उठाना है।
❉ सभी आत्माये बाप की संतान है इसलिए हमें सभी को रेगार्ड देना है, हम एक दो के सहयोगी बनकर ही एक दो आगे बढ़ाना है और अपनी रजाई जल्दी से जल्दी लाना है।
❉ हम ब्राह्मण बच्चो का कभी यह संकल्प नहीं चल सकता की इनकी तक़दीर में होगा तो अपेही ले लेंगे, ड्रामा में इनका पार्ट ही नहीं होगा। हमें सभी के प्रति शुभ भावना रखना है, बाबा ने हमें चुन ही है विश्व की सेवा करने के लिए।
❉ देना ही लेना है, हम कभी किसी को कुछ देते नहीं है बल्कि उसका पदम् गुणा बाप से लेते है। जितना हम औरो को ऊचा उठाएंगे उतना स्वयं की भी उन्नति होगी, जितना दुसरो को रेगार्ड देंगे उसका डबल हमें मिलेगा, जितना दुसरो के प्रति शुभ चिंतन व शुभ भावना रखेंगे उतना हमारे चारो और पावरफुल वाइब्रेशन फैलेंगे।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ त्याग का भाग्य समाप्त करने वाला पुराना स्वभाव - संस्कार है, इसलिए इसका भी त्याग करो... क्यों और कैसे ?
❉ पुराना स्वभाव संस्कार निरहंकारी नही बनने देता । इसलिए अहंकार वश किया हुआ त्याग उस त्याग के भाग्य को समाप्त कर देता है ।
❉ एक दो का स्नेही और सहयोगी बनने के लिए संस्कारों का मिलान बहुत जरूरी है । संस्कारो का टकराव स्नेही और सहयोगी नही बनने देता इसलिए इसका त्याग बहुत जरूरी है ।
❉ पुराने स्वभाव - संस्कार के वशीभूत ही कर आत्मा जो कर्म करती है उसमे फल की इच्छा का लोभ रहता है जो त्याग के भाग्य को निष्फल बना देता है ।
❉ पुराना स्वभाव - संस्कार मान, स्तुति और महिमा का इच्छुक बना कर किये हुए त्याग के भाग्य को समाप्त कर देता है ।
❉ पुराना स्वभाव - संस्कार बुद्धि को व्यर्थ चिंतन में फंसा कर सही जजमेंट लेने में रुकावट डालता है । सही निर्णय ना ले पाने के कारण किये हुए त्याग वेस्ट चला जाता है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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