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    12 / 04 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

         TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ "ऐसा °भाग्य° सारे कल्प में किसी आत्मा का न है.. न हो सकता है" - यह स्मृति रही ?

‖✓‖ परिस्थितियाँ, समस्याएं, वायुमंडल डबल दूषित होते हुए भी इन सब के °प्रभाव से मुक्त° रहे ?

‖✓‖ जीवन में रहते °सर्व सूक्षम बन्धनों से मुक्त° जीवन मुक्त स्थिति का अनुभव किया ?

‖✓‖ देह में होते हुए भी °विदेही अवस्था° का अनुभव किया ?

‖✓‖ °सेवा और स्थिति° का बैलेंस रख आगे बढते चले ?

‖✓‖ मर्यादाओं के अन्दर चल °मर्यादा पुरुषोत्तम° बनकर रहे ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

‖✓‖ परीक्षाओं और समस्याओं में मुरझाने की बजाये °मनोरंजन का अनुभव° किया ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

➳ _ ➳  एक तरफ मन्सा सेवा दूसरे तरफ मन्सा एक्सरसाइज । अभी- अभी निराकारी, अभी- अभी फरिश्ता । जैसे शरीर का नाम पक्का है । दूसरे को भी कोई बुलायेगा तो आप ऐसे-ऐसे करेंगे । तो मैं आत्मा हूँ, आत्मा का संसार बापदादा, आत्मा का संस्कार ब्राह्मण सो फरिश्ता, फरिश्ता सो देवता । तो यह मन की ड्रिल करना । मैं आत्मा, मेरा बाबा ।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

‖✓‖ "°ब्राह्मण सो फरिश्ता, फरिश्ता सो देवता°" - यह मन की ड्रिल बार बार की ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं सदा विजयी आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 ❉   मैं कल्प कल्प की विजयी आत्मा सदा सफलता मूर्त हूँ

 ❉   स्वयं वरदाता बाप ने मुझे सदा विजयी भव का वरदान दिया है, इसलिए किसी भी कार्य में मुझे असफलता मिले, यह हो नही सकता

 ❉   सृष्टि चक्र को बुद्धि में रख, मैं ड्रामा की हर सीन को साक्षी हो कर देखती हूँ

 ❉  और ड्रामा अनुसार जीवन में आने वाली सभी समस्याओं परिस्थियों को पार कर निरंतर आगे बढती चली जाती हूँ

 ❉   मैं आत्मा रास्ते के सभी नजारों को करेक्ट करने में समय गंवाने की बजाये तीव्रता से आगे बढती चली जाती हूँ

 ❉   हर परिस्थिति में मुझ आत्मा का बाप की याद का कनेक्शन टाइट रहता है

 ❉   मैं आत्मा मुरझाने की बजाये सदा मनोरंजन का अनुभव करती हूँ औरवाह नज़ारा वाह के गीत गाते हुए सदा आगे बढती चली जाती हूँ

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∫∫ 5 ∫∫ ज्ञान मंथन (सार) (Marks:-10)

 

➢➢ "सेवा के साथ देह में रहते विदेही अवस्था का अनुभव बढ़ाओ"

 

 ❉   विदेही अवस्था अर्थात देह में रहते हुए भी देह से न्यारी और प्यारी अवस्था जहाँ देह का भान समाप्त हो जाये

 ❉   देह से न्यारे होने का यह अभ्यास ही अंत की विदेही अवस्था का आधार बनेगा इसलिए विदेही स्तिथि में स्तिथ होने का लम्बे काल का अभ्यास चाहिए

 ❉   क्योकि विदेही अवस्था की अभ्यासी आत्मा ही अंत समय की परिस्तिथियों में अचल अडोल रह पास विद ऑनर हो सकेगी

 ❉   इसलिए बाप दादा कहते हैं कि विदेही अर्थात साक्षी बन सोचो, प्लैन बनाओ और सेकंड में प्लेन स्तिथि बनाते चलो

 ❉   सेवा और स्तिथि का सदा बैलेन्स रख सेवा में आगे बढ़ते चलो और दुआओं का खाता जमा करते चलो

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∫∫ 6 ∫∫ ज्ञान मंथन (मुख्य धारणा)(Marks:-10)

 

➢➢ जीवन में रहते सर्व सर्व बंधनों से मुक्त जीवन मुक्त स्थिति का अनुभव करना है।

 

 ❉   जीवन में हद के बंधनों से मुक्त होने के लिये सर्व बंधन बेहद के बाप से जोड़ लें तो जीवन मुक्त की स्थिति मज़बूत होती जायेगी और सूक्ष्म बंधन आसानी से कटते जायेंगे।

 ❉   जैसे मकड़ी अपने जाल में स्वयं ही फँस जाती है उसी तरह मनुष्य में सूक्ष्म बंधन हो तो वह जाल की तरह उसमें फँसता चला जाता है। युक्ति युक्त तरीक़े से उसे बंधन मुक्त बनना है तभी जीवन मुक्त स्थिति तक पहुँचेंगे

 ❉   यदि सूक्ष्म बंधनों में कोई विघ्न आते भी है तो विघ्न विनाशक की स्थिति से उसे काट देना है क्योंकि अंश से ही वंश बन जाता है

 ❉   ज्ञानी आत्मा होने के बाद भी कभी कभी ऐसा लगता है कि मैं ही बहुत अच्छी क्लास कराती हूँ सब मेरे से क्लास लेना पसंद करते है या ये दीदी बहुत अच्छी क्लास कराती है मुझे इनसे ही करनी है तो हम लोहे की ज़ंजीरों को तोड़ सोने की ज़ंजीरें बांध रहे हैं तो कैसे जीवन मुक्त स्थिति का अनुभव करेंगे ?ऐसे सूक्ष्म बंधनों से भी मुक्त रहना है।

 ❉   जो भी परिस्थिति आती है तो उसे ड्रामा के ज्ञान को अच्छी रीति समझ कर सहज पार कर लेना है क्यूँ, क्या, क्यों के क्वेश्चन में फंसकर अपने आप को उलझाना नहीं हैं साक्षी होकर जीवन मुक्त स्थिति का अनुभव करना है।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (वरदान) (Marks:-10)

 

➢➢ परिक्षाओ और समस्याओ में मुरझाने की वजाए मनोरंजन का अनुभव करने वाले ही सदा विजयी हो सकते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   संगमयुग सर्वोत्तम श्रेष्ठ युग है जब स्वयं परमात्मा का साथ हमें मिले है, यह रिहानी मौजो का समय है जो कल्प में एक ही बार मिलता है।

 ❉   जब रावण की इस दुनिया में रहते हुए हम राम के बने है, माया को चैलेंज किया है तो वो हर तरह से परीक्षाए समस्याए तो पैदा करेगी ताकि हम राम को छोड़ दे।

 ❉   63 जन्मो से जो हमने पाप किये, अज्ञानता में जिनको दुःख दिए, जो भी हिसाब किताब बनाया है वो सभी इसी जन्म में चुक्त करना है, जब कोई परीक्षा या समस्या आये तब और ही खुश होना चाहिए की अच्छा हुआ जो चुक्त हुआ, बोझा कम हुआ।

 ❉   बाबा हम आत्माओ को विश्व का मालिक देवी देवता बनाने आये है तो विश्व की बादशाही देने से पहले हर तरह से ठोक बजा कर चेक तो करेगा के लायक बच्चे है या नहीं, कही कोई परिस्थिति आने से बिच में छोड़ के तो नहीं चले जायेंगे।

 ❉   यह दुःख की दुनिया का अंतीम समय है विनाश सामने खड़ा है तो यह सब दुःख की बाते भूल अपने आने वाले राज्य भाग्य को याद कर बहुत ख़ुशी में रहना है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (स्लोगन) (Marks:-10)

 

➢➢ मर्यादा के अंदर चलना माना मर्यादा परुषोत्तम बनना... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   नियम और मर्यादाओं का बल आत्मा को मायाजीत और विकर्माजीत बनाने में मदद करता है इसलिए मर्यादा पुरुषोत्तम बनने के लिए मर्यादा के अंदर चलना जरूरी है

 ❉   परमात्म शक्ति का अनुभव करने और मायाजीत बनने के लिए मर्यादा के अंदर चल कर मर्यादा पुरुषोत्तम बनना बहुत आवश्यक है

 ❉   जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मूर्त बनने के लिए  मर्यादाओं का पालन बहुत जरूरी है

 ❉   मर्यादाएं बैक बॉन की तरह होती है जो हमे हर परिस्तिथि में सेफ रखती हैं इसलिए मर्यादाओं के अंदर चल मर्यादा पुरुषोत्तम बनना बहुत जरूरी है।

 ❉   मर्यादाओं का पालन आत्मा को चढ़ती कला का अनुभव करता है इसलिए हर परिस्तिथि में मर्यादाओं का पालन करना आवश्यक है

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_  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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