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   05 / 10 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ सारे विश्व को °पतित से पावन° बनाने की सेवा की ?

 

‖✓‖ बाबा ने जो °हुकुम° किया, उसे फ़ौरन माना ?

 

‖✓‖ स्व की °कर्मेन्द्रियों पर संपूरण राज्य° कर सच्चे राजयोगी बनकर रहे ?

 

‖✓‖ अपनी °आँखों° को बहुत बहुत सिविल बनाया ?

 

‖✓‖ बहुत मीठे °शांत स्वभाव° का बनकर रहे ?

 

‖✓‖ °सुख-दुःख° मान-अपमान सब सेहन किया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ तीन प्रकार की विजय (°स्व, सर्व और प्रकृति पर विजय°) का मैडल प्राप्त करने का पुरुषार्थ किया ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  अभी तीव्र पुरुषार्थ का यही लक्ष्य रखो कि मैं डबल लाइट फरिश्ता हूँ, चलते-फिरते फरिश्ता स्वरूप की अनुभूति को बढ़ाओ। अशरीरीपन का अभ्यास करो। सेकण्ड में कोई भी संकल्पों को समाप्त करने में, संस्कार स्वभाव में डबल लाइट रहो।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ चलते-फिरते °फरिश्त° स्वरूप की अनुभूत की ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं सदा विजयी आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   स्व पर, सर्व पर और प्रकृति पर विजय प्राप्त करने वाली मैं सदा विजयी आत्मा हूँ ।

 

 ❉   अपने दाता - विधातापन के शक्तिशाली संस्कारों को इमर्ज कर, कमजोर आसुरी संस्कारों को सहज ही समाप्त करती जाती हूँ ।

 

 ❉   बाबा ने मुझे सर्व प्राप्तियो का अनुभवी बना कर सम्पूर्ण विजयी भव के वरदान से सम्पन्न कर दिया है ।

 

 ❉   त्रिमूर्ति स्वरूप का तिलक धारण कर मैं हर परिस्थिति पर सहज ही विजय प्राप्त करती जाती हूँ ।

 

 ❉   अपने श्रेष्ठ पुरुषार्थ द्वारा भविष्य श्रेष्ठ प्रालब्ध प्राप्त कर, विजय का तिलक लेने वाली मैं विश्व अधिकारी आत्मा हूँ ।

 

 ❉   स्वयं की स्मृति¸ बाप की स्मृति और ड्रामा की स्मृति मुझे हर प्रकार से उपराम रखती है ।

 

 ❉   स्व के प्रति श्रेष्ठ चिंतन और सर्व के प्रति शुभ भावना - शुभ कामना रखने वाली मैं सदा शुभ चिंतक और स्व चिंतक आत्मा हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - नाजुकपना भी देह - अभिमान है, रूसना, रोना यह सब आसुरी संस्कार तुम बच्चों में नही होने चाहिए, दुःख - सुख, मान - अपमान सब सहन करना है"

 

 ❉   हमारा सबसे बड़ा दुश्मन देह - अभिमान है, जिसने हमसे विश्व की बादशाही छीन हमे कंगाल बना दिया ।

 

 ❉   सतयुग में जब देह - अभिमान नही था तो सभी दैवी गुणों से युक्त, सुख शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर थे ।

 

 ❉   किन्तु द्वापर युग में देह - अभिमान में आने के कारण दैवी गुण समाप्त होते गए और आसुरी गुणों की प्रधानता होती गई ।

 

 ❉   इन आसुरी गुणों की प्रवेशता के कारण जब हम अपरमअपार दुखी हुए तो सुख पाने के लिए परमात्मा को पुकारना शुरू किया ।

 

 ❉   हमारी पुकार सुन कर अभी संगम युग पर परम पिता परमात्मा शिव बाबा आये हुए हैं और हमे आसुरी गुणों को निकाल दैवी गुण धारण करना सिखला रहें हैं ।

 

 ❉   इसलिए बाप समझाते है कि नाजुकपना, रूसना, रोना ये आसुरी संस्कार अब हम बच्चों में नही होने चाहिए, चाहे हमे कितना ही दुःख - सुख, मान - अपमान सहन करना पड़े ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ बाबा जो हुक्म करें, उसे फ़ौरन मानना है । सारे विश्व को पतित से पावन बनाने की सेवा करनी है अर्थात घेराव करना है ।

 

 ❉   बाबा को अपने हर बच्चे की विशेषता पता है व उसी अनुसार बाबा अपने बच्चों से सेवा करवाता है । इसीलिए बाबा जो भी हुक्म दे उसे फ़ौरन मानना है क्योंकि करानी तो बाबा ने है । हमारा तो बस हाथ ही लगना है ।

 

 ❉   जब कोई सेवा बाबा कहते है तो अपने को पदमापदम सौभाग्यशाली समझना है क्योंकि हर किसी को ईश्वरीय सेवा का मौक़ा नहीं मिलता । हांजी का पार्ट पक्का कर हमेशा बाबा के हुक्म को मानना है ।

 

 ❉   कभी भी देहभान में आकर बाबा के हुक्म को मना नहीं करना कि कैसे करेंगे । बाबा कह रहे हैं तो बस हिम्मत का एक क़दम रखना है बाबा हमारी हर क़दम पर साथ देकर करवाता है व हज़ार क़दम हिम्मत बाबा देते हैं ।

 

 ❉   जैसे युद्ध में सैनिक दुश्मन पर वार करने के साथ साथ हर काम करने को तैयार रहते हैं । वैसे बाप भी निरंहकारी होकर अपने बच्चों के लिए सर्विस के लिए तत्पर रहता है तो हमें भी ऊंच ते ऊंच बाप के हुक्म के सिर माथे रख मानना है ।

 

 ❉   जो बच्चे सर्विस पर तत्पर रहते है व हांजी का पार्ट पक्का होता है तो बाप अपने उन बच्चों को याद करता है व वे बच्चे बाप के दिलतख्तनशीं होते हैं । इसलिए बाप जो हुक्म दे फ़ौरन मानना है ।

 

 ❉   सबको बाप का परिचय देकर उन्हें घोर अज्ञान के अंधेरे से निकाल ज्ञान का रास्ता बताकर उनका कल्याण करना है व बताना है किस्वयं भगवान इस धरा पर अवतरित हो चुके है व हमें विकारों से निकालकर सच्चा सच्चा ज्ञान  देकर पतित दुनिया को पावन बना रहे हैं ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ तीन प्रकार की विजय का मैडल प्राप्त करने वाले ही सदा विजयी कहलायेंगे... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   हमें सम्पूर्ण विजयी बनना है। स्व के, सर्व के व प्रकृति के विजयी बनने वालो को ही विजयी रत्न कहा जाता है, किसी एक में भी कमी रह गयी तो सम्पूर्ण विजयी नहीं कहला सकते।

 

 ❉   बाबा ने हम बच्चो को बहुत अच्छे टाइटल दिए है "में विजयी रत्न हु, में सफलता मूर्त हु, सफलता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार।" इन स्वमानो की बहुत अच्छी प्रेक्टिस करने से जैसा लक्ष्य वैसे लक्षण आते जायेंगे

 

 ❉   मै आत्मा राजा हु, जब यह स्मृति रहेगी तो सभी कर्मेन्द्रियो को आर्डर प्रमाण चला सकेंगे। कोई भी व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति के प्रभाव में नहीं आएंगे, उनसे ऊपर विश्व सेवाधारी की सीट पर सेट रहेंगे।

 

 ❉  बाबा हमें सारे विश्व का मालिक बनाने के लिए आये है। विश्व का मालिक वही बन सकेंगे जिसने स्वयं तो सर्व कर्मेन्द्रिया या माया पर जित पाई हो परंतु साथ साथ सारे विश्व की आत्माओ को राजी किया होगा और प्रकृति की भी बहुत सेवा की होगी तभी सब उनको अपना महाराजा महारानी स्वीकार करेंगे।

 

 ❉   तीनो प्रकार के मैडल प्राप्त करने के लिए हमें सदा लव और लॉ का बैलेंस रखना होगा। निरहंकारी बनकर निराकारी स्थिति द्वारा बेहद की सेवा करनी होगी। साथ साथ बालक सो मालिक की भी स्मृति रहे।हर श्रीमत का 20सो नाखुनो का जोर लगाकर पालन करना होगा।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ स्वयं की कर्मेन्द्रियों पर सम्पूर्ण राज्य करने वाले ही सच्चे राजयोगी हैं... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   कर्मेन्द्रियों पर सम्पूर्ण नियंत्रण बुद्धि की लाइन को क्लियर रखता है जिससे योग की गहन अनुभूति होती है और आत्मा सच्ची राजयोगी बन

 आध्यात्मिक ऊंचाइयों को छूती चली जाती है ।

 

 ❉   कर्मेन्द्रिय जीत आत्मा कर्मेन्द्रियों को वश कर व्यर्थ चिंतन के प्रभाव से मुक्त रहती है और परमात्म पालना के झूले में झूलती रहती है ।

 

 ❉   कर्मन्द्रियों पर राज्य आत्मा को बल प्रदान कर उसे शक्तिशाली बनाता है जिससे आत्मा सहज ही उड़ती कला के अनुभव द्वारा आनन्द के झूले में झूलती रहती है ।

 

 ❉   जितना कर्मेन्द्रियों के प्रभाव से मुक्त हो आत्मा कर्मेन्द्रिय जीत बनती जाती है उतना ही धारणाओं में वृद्धि होती जाती है और स्व - स्थिति शक्तिशाली बनती जाती है ।

 

 ❉   कर्मेन्द्रियों पर नियंत्रण आत्मा को परमात्म शक्तियों का अनुभव कराता है और इन प्राप्तियों की स्मृति आत्मा को परम आनन्द से भरपूर कर देती है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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