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   25 / 07 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ "पहले हम अपने घर शान्तिधाम में जायेंगे फिर अपनी राजधानी में आयेंगे" - इसी °डबल ख़ुशी° में रहे ?

 

‖✓‖ सदैव खुशी में रहे कि °हमें कौन पढ़ाता° है ?

 

‖✓‖ "कल हम पत्थर बुद्धि थे, आज °पारस बुद्धि° बने  हैं" - यह ख़ुशी रही ?

 

‖✓‖ °निश्चय बुद्धि° बनकर अच्छी रीति पड़े ?

 

‖✓‖ सहजयोगी कहकर अलबेलापन न ला, °शक्ति रूप° बनकर रहे ?

 

‖✗‖ देह-अभिमान में आकर कोई भी °विकर्म° तो नहीं किया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ °आदि और अनादि स्वरूप की स्मृति° द्वारा अपने निजी स्वधर्म को अपनाने वाले पवित्र और योगी बनकर रहे ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  साधना अर्थात् शक्तिशाली याद। निरन्तर बाप के साथ दिल का सम्बन्ध। सिर्फ योग में बैठ जाना यही साधना नहीं है लेकिन जैसे शरीर से बैठते हो वैसे दिल, मन और बुद्धि चारों ही एक बाप की तरफ बाप के साथ समान स्थिति में बैठ जाएं-तब कहेंगे यथार्थ साधना।

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ निरन्तर बाप के साथ °दिल का सम्बन्ध° रहा ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं पवित्र और योगी आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   आदि और अनादि स्वरूप की स्मृति द्वारा अपने निजी स्वधर्म को अपनाने वाली मैं पवित्र और योगी आत्मा हूँ ।

 

 ❉   अपने पवित्र वास्तविक आत्म स्वरूप को सदा स्मृति में रख मैं मनसा, वाचा, कर्मणा सम्पूर्ण पवित्र बनती जाती हूँ ।

 

 ❉   मेरा अनादि स्वरूप पवित्र आत्मा है, आदि स्वरूप पवित्र देवता है और अभी का अंतिम जन्म भी पवित्र ब्राह्मण जीवन है ।

 

 ❉   पवित्रता ही मेरी पर्सनालिटी है जो मुझे निरंतर सहजयोगी स्थिति का अनुभव कराती है ।

 

 ❉   सहजयोगी बन मैं स्वयं को सदैव बापदादा के समीप अनुभव करती हूँ ।

 

 ❉   इसलिए प्रवृति में रहते हुए भी सर्व से न्यारी और बाप की प्यारी बन कर रहती हूँ ।

 

 ❉   पवित्रता और योग के बल से डबल लाइट फ़रिश्ता बन मैं सदा उड़ती रहती हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ “मीठे बच्चे – सदैव ख़ुशी में रहो कि हमे कौन पढ़ाता है, तो यह भी मनमनाभव है, तुम्हे ख़ुशी है कि कल हम पत्थर बुद्धि थे, आज पारस बुद्धि बने हैं”

 

 ❉   लौकिक में भी स्टूडेंट जो स्कूल में पढ़ते हैं, उन्हें यह पता रहता है कि इस पढाई से वे क्या बनेगे ।

 

 ❉   हम भी रूहानी स्टूडेंट है जो ईश्वरीय विश्वविद्यालय में पढ़ रहें हैं ।   

 

 ❉   हमारी ऍम ऑब्जेक्ट हमारे सामने हैं जिसे पाने के लिए ही अभी हम पढ़ रहें हैं ।

 

 ❉   लेकिन हमे पढ़ाने वाला कोई देहधारी टीचर नही, बल्कि स्वयं निराकार परमपिता परमात्मा शिव हैं ।  

 

 ❉   इसलिए हमे सदैव इस ख़ुशी में रहना चाहिए कि हमे पढ़ाने वाला स्वयं भगवान है, जो हमे पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बना रहे हैं ।

 

 ❉   इस बात को भी यदि सदैव स्मृति में रखे तो ख़ुशी का पारा सदा चढ़ा रहेगा और सदा मनमनाभव रहेंगे ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ इसी डबल ख़ुशी में रहना है कि अब मुसाफ़िरी पूरी हुई , पहले हम अपने घर शांतिधाम में जायेंगे फिर राजधानी में आयेंगे ।

 

 ❉   देह व देह के सब सम्बंधों को भूल बस बाप को याद करना है । बाप को याद करते हैं तो घर की याद स्वत: ही आती है । बाप हमें घर वापिस ले जाने के लिए ही आयें हैं व हम शांतिधाम जायेंगे

 

 ❉   हमें ख़ुशी में रहना है कि बाप हम बच्चों को पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बना रहे हैं व हमें ऊंच ते ऊंच पढ़ाई पढ़ा रहे हैं । कितने भाग्यशाली है हम ! इस पढ़ाई से हम विश्व का मालिक बनेंगे व वाय शांतिधाम होते हुए राजधानी में जायेंगे ।

 

 ❉   जैसे कोई नाटक होता है व एक्टर अपना पार्ट बजा कर जाता है तो उसे ख़ुशी होती है व घर व बच्चे याद आते हैं इसीप्रकार हमे भी ख़ुशी में रहना है कि हमारी मुसाफ़िरी पूरी हुई , हम अपने घर शांतिधाम व फिर नयी दुनिया में जायेंगे ।

 

 ❉   देही-अभिमानी होकर पढ़ाई पढ़नी है । संस्कार तो आत्मा में रहते हैं । संस्कार ही साथ जायेंगे व तभी नयी दुनिया में राज्य करेंगे ।

 

 ❉   जैसे किराये के मकान से अपने घर में जाने की ख़ुशी होती है व अपने नये घर की दुनिया में खोये रहते है उसी प्रकार इस पुरानी दुनिया में तो रहते हुए यही लगता है कि बस पार्ट पूरा कर जल्दी घर वापिस जाना है ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ आदि और अनादि स्वरुप की स्मृति द्वारा अपने निजी स्वधर्म को अपनाने वाले पवित्र और योगी कहलाते है... क्यों और कैसे ?  

 

 ❉   योग अर्थात आत्मा का परमात्मा से मिलन, इसी योग अग्नि के द्वारा ही आत्मा पावन बन सकती है।

 

 ❉   हमारा आदि स्वरुप है दैवी-देवता और अनादी स्वरुप है बिंदी, यह दोनों स्मृतियों द्वारा ही हम अपने ओरिजिनल स्वरुप का अनुभव कर सकेंगे।

 

❉   आत्मा का निज स्वधर्म ही है शान्त, सुखी, पवित्र।आदि, अनादी स्वरुप की स्मृति द्वारा ही आत्मा के गुण व शक्तियो को इमर्ज करना यही योग है।

 

 ❉   स्वयं को आत्मा समझ परमात्मा को याद करना इसे ही योग कहते है। जितना-जितना हम अपने स्वधर्म में टिक कर परमात्मा को याद करेंगे उतनी ही परमात्मा से शक्तियाँ प्राप्त होगी, हमारे विकर्म विनाश होंगे और आत्मा पवित्र होती जाएगी।

 

 ❉   जिन आत्माओ को सदेव अपने आदि व अनादी स्वरुप की स्मृति रहती है वही अपने स्वधर्म को अपना सकती है अर्थात शांति, सुखी रह सकती है, उन्ही का परमात्मा से यथार्थ योग लग सकता है और स्वयं को पवित्र बना सकती है।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ सहजयोगी कह कर अलबेलापन नहीं लाओ, शक्ति रूप बनो... क्यों ?

 

 ❉   सहजयोगी कह अलबेलेपन में रहेंगे तो संगम युग का बहुमूल्य समय व्यर्थ चला जाएगा इसलिए शक्ति रूप बन संगम की अनमोल घड़ियों को सफल करो ।

 

 ❉   अलबेलापन आत्मा को चढ़ती कला के अनुभव से वंचित कर देगा इसलिए शक्ति सम्पन्न बन चढ़ती कला के अनुभव द्वारा, सबको चढ़ती कला का अनुभव कराओ ।

 

 ❉   ज्ञानी तू आत्मा ही भगवान को प्रिय है, लेकिन ज्ञानी तू आत्मा तभी बन सकेंगे जब शक्ति स्वरूप बन अलबेलेपन से दूर रहेंगे ।

 

 ❉   व्यर्थ से बचना है तो शुभ और श्रेष्ठ चिंतन द्वारा जमा का खता बढ़ाना जरूरी है और जमा का खाता बढाने के लिए आलस्य और अलबेलेपन का त्याग जरूरी है ।

 

 ❉   शक्ति रूप बनेंगे तो सही समय पर सही शक्ति का उपयोग कर सहज ही सफलता मूर्त बन जायेगे लेकिन सहजयोगी कह अलबेलापन लायेगे तो सफलता से वंचित रह जायेंगे ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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