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❍ 27 / 04 / 15 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °रूहानी शान° में रहे ?
‖✓‖ °पवित्रता° की धारणा पर विशेष अटेंशन रहा ?
‖✓‖ अच्छी °कमाई° की और कराई ?
‖✓‖ बुधीयोग °एक बाप° से रहा ?
‖✗‖ पड़ते समय बुधी योग इधर उधर तो नहीं °भटका° ?
‖✗‖ कहीं भी °अशांति° तो नहीं फैलाई ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ सदा सुखों के सागर में °लवलीन° रहे ?
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✺ आज की अव्यक्त पालना :-
➳ _ ➳ समय प्रमाण अब मन्सा और वाचा की इकट्ठी सेवा करो । लेकिन वाचा सेवा सहज है, मन्सा में अटेंशन देने की बात है इसलिए सर्व आत्माओं के प्रति मन्सा में शुभ भावना, शुभ कामना के संकल्प हों । बोल में मधुरता, सन्तुष्टता, सरलता की नवीनता हो तो सहज सफलता मिलती रहेगी ।
∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ बोल में °मधुरता, सन्तुष्टता, सरलता° की नवीनता रही ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं अंतर्मुखी आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ मैं एकान्तवासी बन एक के अंत में खोये रहने वाली अंतर्मुखी आत्मा हूँ ।
❉ मैं बाप समान सदा सुख के सागर में लवलीन रहती हूँ ।
❉ सुखदाता बाप की सन्तान मैं आत्मा मास्टर सुखदाता बन सर्व आत्माओं को सुख का खजाना बाँटती रहती हूँ ।
❉ अंतर्मुखता में रहते हुए अतेंद्रिये सुख व हल्केपन के प्रत्यक्ष फल द्वारा मैं अपने जीवन को आनन्दमय बनाती जा रही हूँ ।
❉ एकांत में बाप दादा के प्यार भरे संकल्पों को कैच कर, मैं सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों का अनुभव कर रही हूँ ।
❉ साइलेन्स की शक्ति द्वारा मैं बाबा से प्रेरणायुक्त और पवित्र सेवा के संकल्प ले रही हूँ ।
❉ याद और सेवा के पंखो द्वारा विश्व गगन में उड़ान भरते हुए मैं आत्मा प्रेम, पवित्रता और ज्ञान की ऊंचाइयों को प्राप्त कर रही हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - बाप आया है तुम्हे करेन्ट देने, तुम देही - अभिमानी होंगे, बुद्धियोग एक बाप से होगा तो करेन्ट मिलती रहेगी"
❉ जैसे अँधेरे को समाप्त करने के लिए बल्ब की जरूरत होती है और बल्ब तभी जलता है जब उसमे उचित मात्रा में करेन्ट हो ।
❉ ठीक ऐसे ही आज हम सभी आत्माओं की ज्योति भी विकर्म करते करते उझा गई है ।
❉ इसलिए आत्मा की ज्योति को फिर से जगाने के लिए करेन्ट की आवश्यकता है । और वह करेन्ट, अखण्ड ज्योतिर्मय परम पिता परमात्मा ही दे सकते हैं ।
❉ अब वही परम पिता परमात्मा शिव बाप इस समय संगम युग पर हम सभी आत्माओं को करेन्ट देने के लिए आएं हैं ।
❉ किन्तु यह करेन्ट तभी मिलेगी जब हम देही अभिमानी होंगे । हमारा बुद्धि योग केवल एक परमात्मा बाप के साथ होगा ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा - ज्ञान मंथन(Marks:-10)
➢➢ पढ़ाई में बहुत-बहुत कमाई है इसलिए कमाई खुशी-ख़ुशी से करनी है।
❉ जैसे लौकिक पढ़ाई में डाक्टरी की पढ़ाई से डाक्टर बनते है इसी प्रकार यह बेहद की व आलौकिक पढ़ाई है जिसे भगवान स्वयं पढ़ाते हैं तो इस पढ़ाई से हम भगवान भगवती बनते हैं तो कितना नशा रहना चाहिए !
❉ कितनी ऊँची पढ़ाई व ऊँचे ते ऊँचा बाप पढ़ाने वाला ! वाह रे मैं ! वाह मेरा भाग्य वाह ! इसीलिए जितनी अच्छी रीति से पढ़ेंगे उतना ही ऊँचा पद पायेंगें।
❉ लौकिक पढ़ाई से तो विनाशी धन की प्राप्ति होती है व थोड़े समय की खुशी मिलती है । बेहद की पढ़ाई से अविनाशी कमाई होती है व 21 जन्मों का राज्य भाग्य मिलता है। इसलिए यह कमाई ख़ुशी ख़ुशी करनी है।
❉ अभी तक तो हम कीचडे के डिब्बे में पड़े हुए थे सत बाप ने ही हमें कचड़े से निकाल हमें अपने असली स्वरूप की पहचान व अपना परिचय देकर पतित से पावन बनाते है।सुप्रीम टीचर बन पढ़ाते है तो हमें यथार्थ रीति से याद में रहते हुए अपनी कमाई करनी है।
❉ लौकिक में भी जो बच्चा अच्छी कमाई करता है तो उसे सब जगह मान व प्यार मिलता है तो हमें भी बेहद की पढाई खुशी खुशी करके अविनाशी कमाई करके ऊंच पद पाना है।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ सदा सुखो के सागर में लवलीन रहने के लिए अंतर्मुखी होना आवश्यक है... क्यों और कैसे ?
❉ बाहरी बातो से जब हम शान्त होंगे तभी स्वयं के अन्दर झाककर सच्चे सुख की अनुभूति कर सकते है क्युकी आत्मा का ओरिजिनल गुण ही है सुख स्वरुप।
❉ यदी हमारा मन शान्त नहीं है, बहुत सारे व्यर्थ संकल्प उठते रहते है, तो हमें परमात्मा की याद ठहर नहीं सकेगी और सच्चा सुख परमात्मा की याद में ही है।
❉ अंतर्मुखी अर्थात मुख व मन का मौन रखना, इससे हमारा समय, संकल्प, एनर्जी की बहुत बचत होगी जो हम कोई समर्थ सेवा में लगा कर सफल कर सकते है और प्रत्यक्षफल सुख, शांति, प्रसन्नता का अनुभव कर सकते है।
❉ कहते है "अंतर्मुखी सदा सुखी" क्युकी जरुरत से ज्यादा बहार्यमुख्ता में आने से हम कभी-कभी कुछ ऐसा बोल जाते है जिसके लिए हमें ज़िन्दगी भर पछताना पड़ता है।
❉ जितना अंतर्मुखी होंगे उतना मन शान्त होने से परमात्मा से कनेक्शन जल्दी और लम्बे समय के लिए जुट सकेगा, अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति कर सकेंगे। किसी के लगाव टकराव में बुद्धि भटकेगी नहीं।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ रूहानी शान में रहो तो कभी भी अभिमान की फीलिंग नही आयेगी... क्यों और कैसे ?
❉ अभिमान की फीलिंग तब आती है जब हम देह के भान में आते हैं । रूहानी शान में रहने से देह का भान समाप्त हो जाएगा तो अभिमान की फीलिंग भी नही आयेगी ।
❉ रूहानी शान में रहने से आत्मा भाई भाई की दृष्टि पक्की होती जायेगी जिससे अभिमान की फीलिंग समाप्त होती जायेगी ।
❉ रूहानी नशा, आत्मा को मैं और मेरे पन की हदों से दूर बेहद में ले जायेगा और हद की सभी बातो जैसे ईर्ष्या, द्वेष, अभिमान आदि की फीलिंग को समाप्त कर देगा ।
❉ रूहानी शान में रहने से बुद्धियोग देह और देह के सम्बन्धो से निकल एक बाप के साथ लगा रहेगा और बाप की याद अभिमान की फीलिंग को समाप्त कर देगी ।
❉ रूहानी शान में रहने से आत्मा में प्रेम, नम्रता , हर्षितमुखता, जैसे दैवी गुण स्वत: आते जाएंगे और आसुरी गुण जैसे क्रोध, अपमान, अभिमान आदि समाप्त होते जाएंगे ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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