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   13 / 12 / 15  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ °सर्व सम्बन्ध° की प्रीत एक से निभाने के अनुभवी बने ?

 

‖✓‖ हर संकल्प में भी बाबा, बोल में भी बाबा, कर्म में भी °बाबा का साथ° अनुभव किया ?

 

‖✓‖ ज्ञान की पॉइंट्स के °अनुभवी मूर्त° बनकर रहे ?

 

‖✓‖ "हम सबके पास कितने प्रकार की °अथॉरिटी° है" - इसकी लिस्ट निकाली ?

 

‖✓‖ सदा सेवा के लिए °एवररेडी° रहे ?

 

‖✓‖ प्यासी आत्माओं को °शांति और सुख की अंचली° दे तृप्त आत्मा बनाया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ °अलोकिक नशे° की अनुभूति द्वारा निश्चय का प्रमाण दिया ?

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आज की अव्यक्त पालना :-

 

➳ _ ➳  जब कर्मों के हिसाब-किताब वा किसी भी व्यर्थ स्वभाव-संस्कार के वश होने से मुक्त बनेंगे तब कर्मातीत स्थिति को प्राप्त कर सकेंगे। कोई भी सेवा, संगठन, प्रकृति की परिस्थिति स्वस्थिति वा श्रेष्ठ स्थिति को डगमग न करे। इस बंधन से भी मुक्त रहना ही कर्मातीत स्थिति की समीपता है। देती है? इस बन्धन से भी मुक्त हैं?

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ किसी भी सेवा, संगठन, प्रकृति की परिस्थिति ने °स्वस्थिति° को डगमग तो नहीं किया ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं सदा विजयी आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   आलौकिक नशे की अनुभूति द्वारा निश्चय का प्रमाण देने वाली मैं सदा विजयी आत्मा हूँ ।

 

 ❉   रूहानियत के नशे से भरपूर मैं आत्मा सदा ख़ुशी की खान से सम्पन्न रहती हूँ ।

 

 ❉   यह ख़ुशी की खुराक मुझे माया के हर वार से सेफ रखती है ।

 

 ❉   बेफिक्र बादशाह बन मैं माया दुश्मन पर सहज ही विजय प्राप्त कर लेती हूँ ।

 

 ❉   आत्मिक स्वरूप के, आलौकिक जीवन के, फ़रिश्ते पन के तथा भविष्य के नशे में रह मैं पुराने स्वभाव -संस्कारों को मर्ज कर नयें दैवी संस्कारों को इमर्ज कर रही हूँ ।

 

 ❉   त्रिमूर्ति स्वरूप का तिलक धारण कर मैं हर परिस्थिति पर सहज ही विजय प्राप्त करती जाती हूँ ।

 

 ❉   हर कदम पर बाप के संकल्प और बोल को अपने संकल्प और बोल बना कर मैं सफलतामूर्त बनती जाती हूँ ।

 

 ❉   अपने श्रेष्ठ पुरुषार्थ द्वारा भविष्य श्रेष्ठ प्रालब्ध प्राप्त कर, विजय का तिलक लेने वाली मैं विश्व अधिकारी आत्मा हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "सफलता के दो मुख्य आधार"

 

 ❉   सेवा में व स्वयं की चढ़ती कला में सफलता के दो मुख्य आधार है जो बापदादा बता रहें हैं ।

 

 ❉   पहला आधार है - एक बाप से अटूट प्यार । क्योकि बाबा के लव में लवलीन आत्मा एक शब्द भी बोलेगी तो अपने स्नेह के बोल से सहज ही अन्य आत्माओं को स्नेह में बाँध लेगी ।

 

 ❉   सेवा में सफलता का दूसरा आधार है - हर ज्ञान की प्वाइन्ट के अनुभवी मूर्त होना ।

 

 ❉   अनुभवी मूर्त आत्मा अपने अनुभव की अथॉरिटी से सहज ही सर्व आत्माओं को प्राप्ति का अनुभव करवा सकेगी ।

 

 ❉   अनुभवीमूर्त हो कर ज्ञान की जो भी प्वाइन्ट वह किसी भी आत्मा को सुनायेगी तो उसका प्रत्यक्ष अनुभव उस आत्मा को बाप के स्नेह में स्वत: बांध देगा ।

 

 ❉   इसलिए जब एक बाप के लव में लीन हो कर और अनुभवीमूर्त बन सेवा के क्षेत्र में आएंगे तो  सफलतामूर्त बन सेवा में सफलता प्राप्त कर सकेंगे ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ सर्व सम्बंध की प्रीत एक से निभाने का अनुभवी बनना है ।

 

  ❉   जैसे लौकिक में बाप अपने बच्चे को दुखी नही देख सकता फिर हमें तो बेहद का बाप मिला है जो सवेरे ही उठो मेरे लाडलो कहकर कितने प्यार से उठाकर वरदानों से हमारी झोली भरता है व कहता है इस समय पर यथार्थ याद से जो पाना चाहो पा सकते हो । तो बच्चों को बाप से स्पेशल मिलन मनाकर बाप के प्यार का  अनुभवी बनना है ।

 

  ❉   बाबा रोज सबसे पहले अपने बच्चों को मीठे बचे लाडले, सिकीलधे बच्चे कहकर ही इतना प्यार देता है ऐसे लौकिक में भी कभी किसी ने इतने प्यार से नही कहा तो हम बच्चों को भी बाबा से ही सर्व सम्बंधों की प्रीत से ही निभानी है ।

 

  ❉   जैसे कोई परेशानी होती है तो हम   पहले उसे अपने दोस्त से शेयर करते हैं तो वह कल फायदा उठाता है । फिर हमें तो बेहद का खुदा दोस्त मिला है जिससे हम अपने दिल की हर बात कहकर हल्का अनुभव करते हैं व अपने दोस्त की बात कों बिना कहे ही समझ जाता है व रास्ता भी दिखाता है तो ऐसे हमें भी सच्ची दोस्ती की प्रीत निभानी है ।

 

  ❉  जैसे लड़की की सगाई होती है तो अपने माशूक से भल कितनी दूर रहती है उसके नयनों में माशूक की सीरत समाई रहती है व उसकी याद में खोई रहती है हमें तो सच्चा सच्चा माशूक मिला है व हमें सिर्फ एक से सच्ची प्रीत निभा सच्चा आशिक बनना है ।

 

  ❉   हमें कितने भाग्यशाली है जिन्हें स्वयं भगवान पढ़ाते है जिसको दुनिया वाले अगम अगोचर कहते वो मेरे सामने आते हैं । कितने भाग्यवान हम! स्वयं टीचर बन इस पतित दुनिया में आकर पढ़ाते है व पावन बनाकर 21 जन्मों की बादशाही देते हैं । ऐसे बेहद के सुप्रीम टीचर पर सच्चा सच्चा बलिहारी हो सुप्रीम टीचर का नाम ऊंचा करना हैं व ऊंचा पद पाना है ।    

  

  ❉    पहले तो अज्ञानता के कारण गुरु को ही भगवान समझ मन धन सब अर्पण करके जीवन को सफल समझते रहे व उसकी मत पर चलते रहे । अब संगमयुग पर सत का संग मिला व ऊंच ते ऊंच सुप्रीम सतगुरु मिला जो सर्व की सदगति दाता है । ऐसे श्रेष्ठ सतगुरु की श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत पर चल सतगुरु का नाम बाला कर प्रीत की रीत निभानी है ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ अलोकिक नशे की अनुभूति द्वारा निश्चय का प्रमाण देने वाले सदा विजयी होते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   जब निशाना क्लियर होगा तो अलोकिक नशा भी रहेगा और नशे में होने से निराशा कभी नहीं आयेगी।

 

 ❉   परमात्मा पर निश्चय है तो नशा अवश्य रहेगा, और लक्ष्य नजदीक दिखाई देने से ख़ुशी भी बहुत होगी, ख़ुशी ही सब बीमारियों का इलाज है, खुशी प्रत्यक्ष फल है नशे होने का।

 

 ❉   जब हम अपने ही नशे व ख़ुशी में मग्न रहेंगे तो हमें इधर उधर की छोटी छोटी बाते दिखाई नहीं देगी, बहुत लाइट माइट स्थिति रहेगी जिससे माया के कोई वार हमपर लग नहीं सकते।

 

 ❉   निश्चय ही विजयी बनने का आधार है, सम्पूर्ण निश्चय वालो की ही लास्ट में विजय होगी। उनका ही मन एक बाप की तरफ लगा होगा।

 

 ❉   जब एक परमात्मा से कनेक्शन क्लियर रहता है तो सर्व प्राप्तिया एक परमात्मा से होती है तब फिर दुनिया की तरफ से हमारी बुद्धि निकल जाती है और इस रूहानी नशे में रहने वाले ही विजयी बन सकते है।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ मधुरता का गुण ही ब्राह्मण जीवन की महानता है, इसलिए मधुर बनो और मधुर बनाओ... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   मधुरता का गुण व्यक्ति को निर्मान और निर्माण बनाता है तथा निर्मान और निर्माण रहने वाला व्यक्ति सदा हद के नाम, मान और शान से परे रह कर औरों को सदा सन्तुष्ट रख, अपनी प्रसन्नता की छाया से सबको शीतलता का अनुभव कराता रहता है ।

 

 ❉   मधुरता का गुण आत्मा को इच्छा मात्रम अविद्या बना कर, सदा तृप्त रखता है । और तृप्त आत्मा अपने मीठे और मधुर स्व्भाव से सबको मधुरता और  सन्तुष्टता का अनुभव कराती रहती है ।

 

 ❉   मधुरता से सम्पन्न व्यक्ति सब चिंताओं से मुक्त हो सदा विकर्माजीत स्तिथि में स्तिथ रहता है और हर प्रकार के विघ्न से मुक्त, सदैव प्रसन्न रह, औरो के जीवन को भी प्रसन्नता और  मधुरता से भरपूर कर देता है ।

 

 ❉   मधुर स्वभाव आत्मा को गुण ग्राही बनाता है और गुणग्राही व्यक्ति कभी किसी के भी अवगुणों को चित पर नही रखता और मास्टर क्षमा का सागर बन सबको आत्मिक प्रेम और स्नेह से मधुरता का अनुभव कराता रहता है ।

 

 ❉   मधुरता का गुण धारण करने वाले व्यक्ति के जीवन में सदैव सत्यता, सरलता और नम्रता उसके साथ  रहती है और अपने सत्य, सरल और नम्र व्यवहार से वह सबके जीवन में मधुरता ले आता है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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