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❍ 14 / 09 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ सभी रूहों को सैल्वेज़ करने की सेवा की ?
➢➢ बने बनाए ड्रामा पर अटल रहे ?
➢➢ विघनो से घबराए तो नहीं ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ सहयोग को नेचर और नेचुरल बनाया ?
➢➢ मजबूरी से सहन न कर ख़ुशी से सहन किया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ किसी भी तरह की √कामना√ न रख परिस्थितियों का अच्छे से सामना किया ?
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - योगबल से ही तुम्हे अपने विकर्मो पर जीत पाकर विकर्माजीत जीत बनना है"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... इस देह की दुनिया में आकर जो देहाभिमान से भर उठे विकारो में लिप्त होकर विकर्म कर चले... उनको मिटाने का एकमात्र उपाय योगबल है... जितना जितना ईश्वरीय यादो में डूबोगे विकर्मो से हल्के हो मुस्कराओगे... तो अब इन खूबसूरत यादो को सांसो में पिरो चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा ईश्वरीय पिता की मीठी यादो में अपने सारे पापो को मिटा रही हूँ... विकारो ने मेरी चमक को जो धुंधला किया है... बाबा की यादो से वही सुनहरा दमकता स्वरूप पुनः पा रही हूँ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... यादो को प्रचण्ड करो मीठे बाबा संग निखर चलो... स्वयं को सतयुगी बनाने के प्रयासों में जुट चलो... दृढता को अपनाकर पल पल को यादो से भर चलो... और सारे विकर्मो से... मीठे बाबा की फूल सी गोद में बेठ मुक्ति पा लो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा महान भाग्यशाली हूँ कि... बाबा की गोद में सारे पापो को धो रही हूँ... जादूगर बाबा ने यादो के जादू से मेरे सारे पाप भस्म करवाकर... मुझे हल्का खुशनुमा बना दिया है...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... यह यादे ही सुनहरी जादू की छड़ी है जो कमाल करती है... अपने सुंदर भाग्य को सराहो... ईश्वर पिता के साथ और साये से सारे बोझों से मुक्त हो.. खुशियो के अम्बर में उड़ चलो... यादो के कारवां में खो जाओ... और सदा की खुशियो में खिल जाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने खूबसूरत से भाग्य पर नाज कर रही हूँ... मीठे बाबा को पाकर निहाल हो चली हूँ... उनकी मीठी यादो में अपने सारे दागो को मिटाकर सुनहरी सुनहरी होती जा रही हूँ... और विकर्मो से मुक्त होकर सुंदर कर्मो का भाग्य रच रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - सच्चा खिदमतगार बन सर्व का कल्याण करना
➳ _ ➳ मैं आत्मा विश्व कल्याणकारी पिता की सन्तान मास्टर विश्व कल्याणकारी हूँ... मैं अपने महादानी स्वरूप में स्थित होकर परमपिता के सम्मुख बैठ जाती हूँ... सर्वशक्तिमान शिव बाबा से निरन्तर सर्व शक्तियों का फाउंटेन मुझ आत्मा पर पड़ रहा है... मैं आत्मा इन शक्तियों को सब आत्मन भाईयो की और प्रवाह करती जा रही हूँ... मैं आत्मा रुहों को पतित से पावन बनाने की युक्ति बताती हूं... सब आत्माएँ मुक्ति जीवन मुक्ति प्राप्त कर सेलवेज ले रही है... मैं आत्मा एक बाप की ही श्रीमत पर चलती हूँ... जो मेरे बाबा शिक्षाऐं देते हैं उन्ही को अमल कर रही हूं... मैं खुदाई खिदमतगार आत्मा हूं... मैं दिलोजान से हर सेवा मे अपने को निमित्त समझ जी बाबा कह करने को हमेशा तत्पर रहती हूं... अपने को विश्व कल्याण के निमित्त समझ सर्व के प्रति शुभ भावना और शुभ कामना रखती हूं... सब का कल्याण हो रहा है... मुझ आत्मा द्वारा सब आत्माएँ बाबा का परिचय पा रही है... उनका सम्बन्ध उनके रूहानी पिता से जुट गया है... मेरे पिता ने मुझे अपने रूह भाईयो के कल्याण अर्थ सच्चा सच्चा खुदाई खिदमत करना सिखाया है... सब परमात्म प्राप्तियों से सन्तुष्ट हैं...
❉ "ड्रिल - विघ्नों में अटल रह बाप को याद करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा कल्प के अंत समय पर अपने असली स्वरूप से परिचित हुई हूँ... मैं ज्योति बिंदु आत्मा हूँ... मुझ आत्मा के पिता भी अति सूक्ष्म ज्योति बिंदु हैं... प्यारे परमपिता परमात्मा ने इस संगमयुग पर मुझे अपने असली स्वरुप की स्मृति दिलाई... मुझे अपने सच्चे परमपिता परमात्मा का परिचय दिया... मुझे अपना बच्चा बनाया... मुझे सच्चे पिता का सच्चा सच्चा प्यार मिला... सच्ची सुख शांति मिली... प्यारे परमपिता परमात्मा की महिमा अपरम्पार है... वो प्यार का सागर, सुख का सागर, शांति का सागर... मेरे प्यारे मीठे बाबा... मैं आपको बहुत दिल से याद करती हूं... बाबा अब आप से ही मेरे सर्व सम्बंध हैं... मैं आत्मा हर कर्म करते प्यारे बाबा को याद कर रही हूं...63 जन्म देहभान के कारण विकर्म होने से मुझ आत्मा पर कट चढ़ गयी है... अब बाबा को बहुत बहुत प्यार से याद कर यह कट उतार रही हूं... अब विकर्मों का विनाश कर हल्के हो अपने घर परमधाम जाना है... प्यारे बाबा ने ड्रामा का ज्ञान देकर मुझ आत्मा के क्यूं, क्या और कैसे सब प्रश्नों को हल कर दिया है... सृष्टि ड्रामा में सब बनी बनाई बन रही है... जो कल्प पहले हुआ वही हूबहु रिपीट हो रहा है... अब प्यारे बाबा का साथ होने से मैं आत्मा विघ्नों से घबराती नही हूं... कोई भी विघ्न मुझ आत्मा को ऊँचा उठाने के लिए ही आता है... मैं आत्मा निश्चयीबुद्धि हूं... मुझ आत्मा को अचल अडोल रह बाबा को बड़े प्यार से याद कर विजयी बन जाना हैं...
❉ "ड्रिल - खुशी खुशी सब सहन करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा खुशनसीब हूं... जो स्वयं भगवान ने मुझ आत्मा को कोटों में कोऊ में चुना है... स्वयं भगवान ने अपना बच्चा बनाया... मुझ आत्मा में न जाने कौन सी विशेषता देखी जो मुझे अपने कार्य के निमित्त समझ मददगार बनाया... मुझे इस दुख भरी दुनिया से निकाल दुखों से लिबरेटर कर सुखधाम का रास्ता बनाया... वाह रे मेरा भाग्य वाह...!! मैं आत्मा जो पहले अपने हर छोटी सी बात के दुखी परेशान हो जाती थी... प्यारे बाबा ने मैं आत्मा बिंदु, बाबा बिंदु, ड्रामा बिंदु का ज्ञान देकर नॉलेजफुल बना दिया... मैं आत्मा क्यूं, क्या, क्यों सब प्रश्नों से मुक्त हो रही हूं... जो कुछ भी मुझे मिल रहा है... वो मेरे ही कर्मों का किया मुझे मिल रहा है... इसलिए मैं आत्मा सब खुशी से सहन कर आगे बढ़ रही हूं... खुशी खुशी से सहन करने से मैं आत्मा दुख के अहसास से परे रहती हूं... बस बाबा की याद से सहज ही उससे निकल जाती हूं... मैं तो बस ट्रस्टी हूं... जो भी है सब बाबा का है... ड्रामा कल्याणकारी है... हर एक का एक्यूरेट पार्ट है... हीरोपार्टधारी है... स्वयं भगवान मेरे साथ है... बाबा का बच्चा बनते ही सर्वशक्तियों, सर्व खजानों की अधिकारी बन गई हूं... खुशी मेरी अपनी है... मैं आत्मा खुशी के लिए परिस्थिति को अपने पर हावी नही होने देती... खुशी मेरी अपनी चीज है... खुशी जैसी कोई खुराक नही है...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं आत्मा हर सबजेक्ट में परफेक्ट हूँ ।"
➳ _ ➳ आत्मिक स्तिथि में स्तिथ होकर मन और बुध्दि द्वारा श्रेष्ठ संकल्पों का निर्माण करें... मैं आत्मा अशरीरी हूँ... न्यारी और बाप की प्यारी हूँ... मैं आत्मा अनादी ड्रामा में 84 जन्मो का पार्ट बजाने वाली विश्व की मालिक हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अविनाशी ज्ञान रत्नों के खजानों का दान देने वाली महादानी महा वरदानी विश्व कल्याणकारी हूँ... मैं आत्मा निरन्तर योगी हूँ... बुद्धि योगी हूँ... मैं आत्मा सभी को रास्ता बताने वाली और सभी का बेडा पार करने वाली ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राहमण हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सभी की ज्ञान रत्नों से झोली भरने वाली सम्पन्न और सम्पूर्ण हूँ... मुझ आत्मा में हर चीज़ का ज्ञान समाया हुआ है... मैं आत्मा नोलेजफुल, पावरफुल, सहजयोगी, लवफुल, सिद्धिस्वरूप हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा ज्ञान की पूरी धारणा करने वाली और नोलेजफुल अंजानेपन को समाप्त करने वाली ज्ञान स्वरुप और योगयुक्त आत्मा हूँ... मैं आत्मा योगयुक्त हो यह अनुभव करती हूँ कि मैं इस अविनाशी ज्ञान को पहले से ही जानती हूँ... मैं बाप की अतिप्रिय आत्मा निरन्तर सहजयोगी वा योगयुक्त स्तिथि को अपना वास्तविक नेचर बनाकर हर सब्जेक्ट में परफेक्ट होने का अनुभव कर रहीं हूँ...
➳ _ ➳ ज्ञान, योग, धारणा और सेवा- इन चारों सबजेक्ट्स में परफेक्ट होने का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा अपने इस नेचर के वश हो सदा इस पथ पर निर्विघ्न चल रहीं हूँ... मैं आत्मा परफेक्ट होकर इफेक्ट और डिफेक्ट से परे होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ सहजयोग को नेचर और नैचुरल बनाने वाले हर सब्जेक्ट में परफेक्ट होते हैं... क्यों और कैसे?
❉ सहजयोग को नेचर और नैचुरल बनाने वाले हर सब्जेक्ट में परफेक्ट होते है क्योंकि जैसे हम बाप के बच्चे हैं, बाप के बच्चे बने हैं तो सब समान हैं। बच्चे बनने में कोई परसेंटेज नहीं है, वे तो 100 बच्चे हैं ही। उसी प्रकार से निरन्तर सहजयोगी वा योगी बनने की स्टेज में भी अब परसेन्टेज खत्म होनी चाहिये।
❉ योगी व सहजयोगी बनना भी 100 पर्सेन्ट ही हो जाये। इसमें कोई कमी नहीं रहनी चाहिये। योगी व सहजयोगी बनना हमारे लिए नैचुरल होना चाहिये। ये हमारी नेचर ही बन जानी चाहिये। दूसरे को हमें देखने से ही उसको अहसास हो जाये कि ये तो योगी हैं, साधारण नहीं है। ये विशेष आत्मायें हैं।
❉ जैसे कोई की विशेष नेचर होती है। उस नेचर के वश न चाहते हुए भी चलते रहते हैं न। उसी प्रकार ये भी नेचुरल नेचर बन जाये। मन में किसी भी प्रकार के प्रश्न उत्तर नहीं चलने चाहिये कि क्या करूँ? कैसे करूँ? मेरा योग कैसे लगेगा? आदि आदि।
❉ इस प्रकार की सभी बातें समाप्त हो जानी चाहिये। योग के प्रति हमारे मन में किसी भी प्रकार का संशय उत्पन्न नहीं होना चाहिये। जब हमारी इस प्रकार की सभी बातें खत्म हो जायेंगी तो हम हर सब्जेक्ट में परफेक्ट बन जायेंगे। परफेक्ट अर्थात इफेक्ट और डिफेक्ट से परे रहना।
❉ किसी भी परिस्थिति का या किसी भी प्रकार का इफेक्ट हमारे मन व बुद्धि पर नहीं पड़ना चाहिये। अगर हमें किसी भी बात का इफेक्ट पड़ता है, तो! ये हमारा डिफेक्ट है। जब हमारे सभी डिफेक्ट समाप्त हो जाते हैं, तभी तो हम सहजयोग को अपनी नेचुरल नेचर बनाने वाले हर सब्जेक्ट में परफेक्ट हो जाते हैं।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ सहन करना है तो ख़ुशी से करो, मजबूरी से नही... क्यों और कैसे ?
❉ परिस्थितियों से मजबूर हो कर सहन करना कमजोरी सिद्ध करता है और कमजोर व्यक्ति सदैव दूसरों के अधीन ही रहता है वह कभी भी अधिकारीपन का अनुभव नही कर सकता । लेकिन जो शुभ भावना से दूसरों को अपने नम्र व्यवहार से परिवर्तन करने की इच्छा से ख़ुशी से उनकी बातों को सहन करते हैं वे अपने शुभ व्यवाहर से सहज ही दूसरों का दिल जीत लेते हैं ।
❉ जब हम ड्रामा के राज को बुद्धि में रख कर साक्षी हो कर सामने वाले के गलत व्यवाहर को देख कर भी उसे ख़ुशी से सहन करते हैं और उसके प्रति कल्याणकारी वृति रखते हुए यह संकल्प करते हैं कि यह आत्मा अपने संस्कारों के वश है इसलिए मुझे सहन शक्ति से इस आत्मा को इसके इस पुराने स्वभाव संस्कार से मुक्ति दिलानी है तो यह सहन करना भी एक सेवा बन जाता है ।
❉ जो इस बात को सदैव स्मृति में रखते हैं कि यह सृष्टि एक रंगमच है जहां सभी एक्टर्स अपना पार्ट प्ले कर रहें हैं और सभी का पार्ट एक्यूरेट है । यहां कोई भी गलत नही है । तो सहन करना मजबूरी नही लगता बल्कि ख़ुशी से सहन करना सहज हो जाता है क्योकि यह स्मृति ही दूसरे के गलत व्यवाहर पर क्रोधित होने के बजाए सहन करने की शक्ति इमर्ज कर देती है और अपनी सहन शक्ति से व्यक्ति सर्व की दुआयों का पात्र बन जाता है ।
❉ जो श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सदा सेट रहते हैं वे स्व के मान द्वारा सहज ही सर्व का सम्मान प्राप्त कर लेते हैं क्योकि श्रेष्ठ स्वमान की सीट उन्हें दातापन की स्मृति दिलाती है । दाता का कर्तव्य ही है देना । उनके मन में कभी भी यह ख्याल नही आ सकता कि सामने वाला दे तभी मैं दूँ । मास्टर दाता बन सर्व को देने का भाव उनके मन में रहता है इसलिए वे दूसरों के गलत व्यवहार को भी मजबूरी से नही बल्कि ख़ुशी से सहन कर लेते हैं ।
❉ जिनके अंदर दूसरों के प्रति करुणा और क्षमा का भाव होता है उनके लिय सहन करना मजबूरी नही होता बल्कि ख़ुशी से सहन करना उनके लिए सहज होता है क्योकि करुणा और दया से भरा हुआ उनका हृदय उनके अंदर क्रोध और ईर्ष्या उतपन्न करने के बजाए प्रेम का भाव उत्तपन्न करता है और अपने प्रेम पूर्ण व्यवाहर से वे दूसरे के गलत व्यवहार को भी अपनी सहन शक्ति से प्रेममय बना देते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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