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❍ 10 / 07 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ सदा अपने को इस सृष्टि ड्रामा के अन्दर √हीरो पार्टधारी√ समझकर चले ?
➢➢ √मरजीवा√ स्थिति का अनुभव किया ?
➢➢ लोकिक घर का वायुमंडल भी √अलोकिक√ बनाए रखा ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ भिन्न भिन्न परिस्थितियों में √उड़ता पंछी√ स्थिति का अनुभव किया ?
➢➢ सेवा के बंधन से शरीर में प्रवेश हो कर्म करने और √जब चाहे तब न्यारे√ होने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/10.07.16-VisheshPurusharth.htm
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "सभी परिस्तिथियों का समाधान - उड़ता पंछी बनो"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे कितना प्यारा भाग्य है... ईश्वरीय सन्तान बन चले हो...पुरानी देह पुराने सम्बन्ध् से उपराम हो चले हो... bk बनकर दिव्य कर्म से फ़रिश्ता हो चले हो... इस खूबसूरत जीवन में कोई बन्धन नही... सिर्फ बाप की यादो का कारोबार है... चाहे प्रकर्ति चाहे तन चाहे संस्कार की बाते... सबसे न्यारे प्यारे हो उड़ चले हो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा दिव्य जीवन को जी रही हूँ... फ़रिश्ता बन खूबसूरत हो चली हूँ... सारी बोझिल बातो से मुक्त हो आनन्द और ख़ुशी के पंख लिए आपकी यादो में उड़ चली हूँ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे बाबा आया है बच्चों के बोझ दूर कर उन्हें राहत देने के लिए... सारे बन्धनों से राहत देकर सुंदर सम्बन्ध् की विधि हाथ लिए... ट्रस्टी बन मुस्कराते रहो... लौकिक परिस्तिथि हो या अलौकिक सदा कर्मयोगी बन ऊँची उडान भरो... भगवान धरती पर आ चला और बच्चे फिर बोझिल भला क्यों... तो पंछी बन उड़ते ही रहो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ज्ञान और योग के पंख लिए आपकी यादो के बादलो में उड़ चली हूँ... सब बोझ आपको सौप मै मुक्त हो चली हूँ... कर्मयोगी बन मुस्करा उठी हूँ... और ट्रस्टी बन इतरा रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे...हीरे जैसा अमूल्य जीवन लिए हो और सदा के हीरो पार्टधारी हो... इस नशे से अंतर्मन को भर दो... घर को मन्दिर बनाये हुए पवित्रता की खुशबु समाये हुए... कर्मेन्द्रियों के मालिक बन मुस्कराये हुए... और बाप समान तत्वम् के वरदानी हो... आप फ़रिश्ते उड़ते पंछी मेरी बगिया की रौनक हो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... आपके प्यार में मै आत्मा दिव्य फ़रिश्ता बन उड़ चली हूँ... अपनी कर्मेन्द्रियों की मालिक बन मुस्करा रही हूँ... क्या क्यों कैसे सारे सवालो से मुक्त होकर आपके प्यार भरे मुक्त गगन में विचरण कर रही हूँ... और सबको उड़ने के वरदानी पंख दिए चली जा रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - अव्यक्त फरिश्ता स्वरुप स्थिति का अनुभव करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा इस देह को छोड़कर उडती जा रही हूं धरती से दूर, ऊपर आकाश की ओर... सूक्ष्म वतन में बैठ जाती हूं अपनी प्रकाश की काया को धारण कर... बापदादा सूक्ष्मवतन में अव्यक्त वतनवासी फरिश्ता हैं... ऐसे मुझ आत्मा को आप समान बनाने का वरदान देते है... मैं अव्यक्त वतनवासी फरिश्ता स्वरुप हूं... मैं उडता पंछी हूं... मै आत्मा इस साकारी दुनिया में बस कर्म के लिए आती हूं... मैं आत्मा हर कर्म बस बाबा की याद में करती हूं... मैं आत्मा कर्मयोगी हूं... बाबा से कनेक्शन जुडने के बाद मुझ फरिश्ते की चमक बढ़ती जा रही है... मैं आत्मा विकारी दृष्टि वृत्ति से मुक्त हो गई हूं... प्यारे बाबा मुझ आत्मा को अपने स्नेह के रंग में रंग रहे हैं... मैं बाबा की बाबा ऐसा स्नेह समाया हुआ है... मैं फरिश्ता आत्मा कर्मबंधन से मुक्त हूं... मैं आत्मा फरिश्ता स्वरुप हूं...
❉ "ड्रिल - कर्मबंधन से मुक्त नये जीवन का अनुभव करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा इस पुरानी देह और देह के बंधन से मुक्त हो गई हूं... मैं आत्मा इस बाहरी दुनिया के आकर्षण से परे हूं.. मुझ आत्मा को परमपिता परमात्मा द्वारा ज्ञान का तीसरा नेत्र मिल गया है व दिव्य दृष्टि मिल गई है... ये दुनिया विनाशी है... मुझ आत्मा का विनाशी दुनिया से मोह समाप्त हो गया है... मैं आत्मा इस दुनिया में बस पार्ट बजाने आई हूं... मैं आत्मा एक बाप की याद मे रह अपना पुराना हिसाब किताब चुकतू करती हूं... मैं आत्मा जीते जी मरती हूं... मैं आत्मा हर कर्म बाप की याद में रहकर करती हूं... मैं आत्मा अपनी कर्मेन्द्रियों की मालिक हूं... सभी कर्मेन्द्रियां मुझ आत्मा के आर्डर प्रमाण चलती हैं... मैं बंधन मुक्त आत्मा हूं... ये देह मुझ आत्मा को सेवार्थ मिली है... इस संगमयुग पर मुझ ब्राह्मण आत्मा को नया जीवन मिला है.
❉ "ड्रिल - झरमुई झगमुई से मुक्त"
मैं आत्मा होली हंस हूँ... मैं आत्मा स्वयं को इस झूठे जग की व्यर्थ बाते सुनने और सुनाने से मुक्त रखती हूं... मुझ आत्मा को सागर की गहराई में जाकर ज्ञान मोती ही चुनने है... मुझ आत्मा का कर्म इन्द्रियों पर कण्ट्रोल है... मैं हद की बातों से उपराम एक बाप की याद में मगन हूं... मैं आत्मा श्रेष्ठ समर्थ चिंतन कर के वातावरण में रूहानियत की खुशबू फैलानी वाली रूहे गुलाब आत्मा हूँ... वृत्ति से श्रेष्ठ वायुमंडल बनाने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूं... मेरा मन अब व्यर्थ की बातों में ना जाकर एक बाप के दिए खजानो को मनन करने में आनंदित होता है...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं निश्चयबुद्धि आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳ सभी बैठ जाएँ सहज योगमुद्रा में... और महसूस करें अपने भाग्य की सुंदरता को... मैं आत्मा कितनी खुशनसीब, कितनी सौभाग्यशालिनी आत्मा हूँ... स्वयं संसार का मालिक मेरा मेहबूब बनकर, मेरी ऊँगली पकड़कर, मुझे सत्य के मार्ग पर चलना सिख रहें हैं...
➳ _ ➳ सारा संसार जिनकी एक झलक पाने के लिए अपना सर्वस्व लुटा देने के लिए व्याकुल हैं... वहीं प्राणों से भी अति प्रिय प्राणेश्वर मुझे अपने कन्धों पर बिठाकर दैवी दुनिया की सैर करा रहें हैं...
➳ _ ➳ बापदादा की उन्मुक्त बाहों का स्पर्श पाकर मैं आत्मा आनंद विभोर हो रहीं हूँ... मुझ आत्मा को मेरे परम शिक्षक, परम सतगुरु बापदादा ने स्वयं इस उंच सिंहासन पर बिठाया है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा श्रेष्ठ स्वमानधारी, डबल ताजधारी, डबल राज्याधिकारी, सदा निश्चिन्त रहने वाली निश्चयबुद्धि आत्मा हूँ... मैं आत्मा सदा अपने अविनाशी बाप में निश्चय रखने वाली आत्मा हूँ... मैं आत्मा स्वयं के पार्ट में और ड्रामा की हर सेकण्ड की एक्ट में 100 प्रतिशत निश्चय रखने वाली निश्चयबुद्धि आत्मा हूँ...
➳ _ ➳ मैं निश्चयबुध्दि आत्मा निश्चित विजय वा सफल होने वाली निश्चिन्त आत्मा हूँ... मैं आत्मा अपनी समस्त परेशानियां बाप को देकर चिंता से मुक्त रहने वाली बेफिक्र बादशाह हूँ...
➳ _ ➳ मैं करनहार आत्मा करनकरावनहार परमात्मा पर हर कार्य वा संकल्प की सिद्धि की ज़िम्मेदारी को सौंपकर सदा निश्चिन्त रहने वाली भाग्यशाली आत्मा होने का सुन्दर दिव्य अनुभव कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ अपनी विजय वा सफलता को निश्चित समझकर सदा निश्चिंत रहने वाले निश्चयबुद्धि होते हैं.... क्यों और कैसे ?
❉ जो बच्चे सदैव ये स्मृति रखते है कि सफलता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है व कल्प पहले भी हमारी ही विजय हुई और अब भी हमारी विजय हुई के हुई । वो अपनी विजय वा सफलता को निश्चित समझकर सदा निश्चिंत रहने वाले निश्चयबुद्धि होते हैं ।
❉ जिन बच्चों को ये नशा रहता है कि स्वयं सर्वशक्तिमान मेरा साथी है । करनकरावनहार साथ है व सब वही करा रहा है । सब जिम्मेवारी उसे सौंप कर निश्चिंत रहते है । हर कार्य में सफलता को निश्चित समझकर सदा निश्चिंत रहते हैं और निश्चयबुद्धि होते है ।
❉ जो बच्चे सदा बाप में, स्वयं के पार्ट में और ड्रामा की हर सेकेंड की एक्ट में 100% निश्चयबुद्धि रहते हैं उनकी विजय वा सफलता निश्चित है । निश्चित विजय होने के कारण वे सदा निश्चिंत रहते हैं । उन्हें सदा निश्चय रहता है कि यह कार्य हुआ ही पड़ा है । वो सदा निश्चयबुद्धि होते हैं ।
❉ जैसे राजा का बेटा होता है उसे अपने पिता के पद का नशा होता है व हमेशा अपने हर कार्य में सफलता को निश्चित समझता है क्यूंकि हर कदम पर सहयोग स्वतः ही मिलता है । हमें तो बेहद का बाप मिला है आलमाइटी अथॉरिटी ने हमारा हाथ पकड़ा है व हर कदम पर सहयोग स्वतः ही मिलता है तो वे अपनी विजय वा सफलता को निश्चित समझ सदा निश्चिंत रहने वाले निश्चयबुद्धि होते है ।
❉ कहा भी जाता है जैसा सोचोगे वैसा बन जाओगे व जो बच्चे इस स्वमान- मैं आत्मा विजयी रत्न सफलतामूर्त हूं की सीट पर सेट रहते हैं व बाबा शब्द की गोल्डन जादुई चाबी साथ रख निश्चयीबुद्धि रहते है वो हमेशा विजयी होते वा सफलता पाते हैं ।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ सुनने - सुनाने में भावना और भाव को बदल देना ही वायुमण्डल खराब करना है... क्यों और कैसे ?
❉ जैसी हमारी भावना होती है वैसे ही भाव चेहरे पर स्पष्ट दिखाई देते है । जैसे एक भक्त की अपने जिस इष्ट देव या देवी में आस्था होती है उस इष्ट देव के प्रति उसके मन में सम्पूर्ण समर्पण भावना भी होती है और उसकी भावना उसके द्वारा अपने इष्ट देव के प्रति किये हर कर्म में परिलक्षित होती है । इसी कारण अपने इष्ट के प्रति प्रेम के भाव इसके चेहरे से स्पष्ट दिखाई देते है । किन्तु जब सुनने सुनाने में यह भावना और भाव बदल जाते हैं तो कथनी करनी में अंतर आ जाता है जो वायुमण्डल को खराब कर देता है ।
❉ पुराने स्वभाव संस्कार भी भावना और भाव को परिवर्तित कर देते हैं । कई बार ना चाहते हुए भी मुख से कोई ऐसी बात निकल जाती है जो सामने वाले को दुःख पहुँचाने का कारण बन जाती है और इसका कारण है पुराने स्वभाव संस्कार । और उस समय स्वयं का बचाव करने के लिए मनुष्य यही कहता है कि मैं चाहता नही था लेकिन मुख से निकल गया या मेरा कहने का भाव यह नही था । इस प्रकार सुनने सुनाने में हमारे मुख से निकले शब्दों के भाव और भावना ऐसे वायब्रेशन फैलाते है जो वायुमण्डल को खराब करने का कारण बन जाते हैं ।
❉ सुनने सुनाने में हमारे भावना और भाव तब बदलते हैं जब हम स्व स्थिति से या श्रेष्ठ स्वमान की सीट से नीचे उतर कर बोलते हैं । स्व स्थिति में स्थित ना होने के कारण पूरे देही अभिमानी बन जाते है और देह भान में आ कर अच्छे बुरे की पहचान नही कर पाते । इसलिए देह भान में आ कर मुख से जो भी बोल बोलते हैं उन शब्दों के कहने का भाव अलग हो जाता है और उनमे छुपी भावना अलग हो जाती है । शब्दों के भाव और भावना बदल जाने से निगेटिविटी उतपन्न होती है जो वायुमण्डल को खराब कर देती है ।
❉ सुनने सुनाने में भावना और भाव का बदलना भी अपवित्रता है जिसके कारण वायुमण्डल दूषित होता है । क्योकि भावना और भाव बदल जाने से मन चलायमान होता है और इधर उधर भटकने लगता है । एकाग्र चित ना होने के कारण मन बुद्धि व्यर्थ चिंतन और व्यर्थ संकल्पों में ही लगी रहती हैं और दूसरों का भी व्यर्थ का खाता बनाने के निमित बन जाती है इन व्यर्थ संकल्पों का प्रभाव वायुमण्डल पर भी पड़ता है जो वायुमण्डल को भी खराब कर देता है ।
❉ बाह्यमुखता में ज्यादा आना भी सुनने सुनाने में भाव और भावना को बदल देता है क्योकि जो बाह्यमुखता में रहते हैं वे बातों को सार में समाने की बजाए विस्तार में ज्यादा जाते हैं । फुल स्टॉप लगाने के बजाय क्वेश्चन मार्क ज्यादा लगाते हैं । इस लिए क्या, क्यों और कैसे की पहेली हल करते करते कब बातों का भाव ही बदल जाता है उन्हें पता ही नही चलता । सुनने सुनाने में भाव और भावना का बदलना ही समस्या को समाप्त करने के बजाए और ही समस्या को बड़ा कर देता है जिससे वायुमण्डल भी प्रभावित होता है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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