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❍ 03 / 12 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *फॉलो फादर किया ?*
➢➢ *अपना सब कुछ इश्वर अर्थ कर ट्रस्टी बनकर रहे ?*
➢➢ *याद और पढाई पर पूरा पूरा ध्यान दिया ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *मास्टर त्रिकालदर्शी बन हर कर्म युक्तियुक्त किया ?*
➢➢ *हद की इचाओं की अविध्या से महान संपत्तिवान बनकर रहे ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *मास्टर ज्ञान सूर्य स्थिति का अनुभव किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - ऊँच पद का आधार पढ़ाई और याद की यात्रा पर है इसलिए जितना चाहे उतना गैलप कर लो"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... जितना यादो में खुद को खपाओगे और ज्ञान रत्नों से खुद को सजाओगे उतने अनन्त सुख और वैभव से सम्पन्न खुद को निहारोगे... इसलिए महा अमीर खुबसूरत देवता सा सजने का... रोम रोम से पुरुषार्थ कर चलो... ईश्वरीय खजानो को लुटने वाले महान भाग्यशाली बन मुस्करा उठो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा मै आत्मा विकारो से लिप्त दलदल में अपनी गरिमा को ही गवां बेठी... अपनी खूबसूरती पर कालिमा को मल चली... आज आपकी मीठी यादो में वही दमकता सौंदर्य और छलछलाता वैभव पुनः प्राप्त कर रही हूँ... और खुबसूरत सी सज रही हूँ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता ने धरा पर आकर सारी खाने सजा दी है... सब खजानो को बच्चों के लिए खोल दिया है... अब रत्नों को बाँहों में भरने में जी जान से जुट जाओ... और जितना चाहे उतना लूट कर मालामाल हो मुस्कराओ... और ऊँचा पद पाकर सज जाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मीठे भाग्य ने ईश्वरीय लाटरी खुलवाई है... और मीठे प्यारे बाबा ने सारी दौलत खाने खजाने मेरे चहुँ और बिखराये है... मै आत्मा महान भाग्य का भरपूर फायदा लेकर देवताई श्रंगार से सजती जा रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता के सच्चे साथ को पाकर उसकी मीठी महकती यादो में खुशबूदार फूल बन खिल जाओ... ज्ञान रत्नों से लबालब होकर अथाह धन दौलत को पाओ... सतयुगी सुखो और सम्रद्धि को ईश्वर पिता की मीठी यादो से अपने दामन में सजाओ... और मीठा सा भाग्य बनाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा देह और देह के मटमैलेपन से बाहर निकल सच की रौशनी में जगमगा उठी हूँ... भगवान को पिता रूप में पाकर कुर्बान हूँ... उसकी प्यारी सी यादो में कमल फूल समान खिल उठी हूँ... और असीम सुख और अपना नैसर्गिक सौंदर्य पाकर गरिमामय हो चली हूँ..
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा कर्मबंधन मुक्त हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई पढ़ रही हूँ... मैं आत्मा रोज गॉडली स्टूडेंट बन पढाई पढ़ती हूँ... परमपिता परमात्मा रोज सुप्रीम टीचर बन मुझ आत्मा को पढ़ाते हैं... मैं आत्मा प्यारे बापदादा के सम्मुख बैठी हूँ...
➳ _ ➳ सुप्रीम टीचर मुझ आत्मा को ए बी सी डी का पाठ पढ़ा रहें हैं... ए आत्मा, बी बाबा, सी चिल्ड्रेन बाबा के, डी ड्रामा... बाबा मुझ आत्मा को अल्फ और बे का मतलब समझाते हैं... बाबा और बादशाही... आदि, मध्य, अंत तीनों कालों का राज़ समझाते हैं...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा सदा ए बी सी डी के पाठ को स्मृति में रखती हूँ... मैं आत्मा हूँ... मैं परमपिता परमात्मा की संतान हूँ... मैं आत्मा इस साकारी दुनिया में, साकार देह में अपना पार्ट बजाने आई हूँ... जो भी होता है, हो रहा है, जो भी होगा सब ड्रामा में नूँध है... ड्रामा बिल्कुल एक्युरेट है... ड्रामा का हर सीन मुझ आत्मा के लिए कल्याणकारी है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सदा अल्फ और बे को याद रखती हूँ... इस संगमयुग में प्यारे बाबा स्वयं आये हैं... मुझ आत्मा को विश्व का मालिक बना रहें हैं... 21 जन्मों के लिए स्वर्णिम युग का सुख दे रहें हैं... अब मैं आत्मा सारे गुह्य ते गुह्य राजों को जानकर मास्टर त्रिकालदर्शी बन गई हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा मास्टर त्रिकालदर्शी बन हर संकल्प, बोल वा कर्म करती हूँ... अब मुझ आत्मा से कोई भी कर्म व्यर्थ वा अनर्थ नहीं हो सकता है... अब मैं आत्मा ड्रामा के हर सीन को साक्षीपन की स्थिति में स्थित होकर देखती हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा कर्मों की गुह्य गति को जानकर इन कर्मेंद्रियों द्वारा कर्म कराती हूँ... मैं आत्मा किसी भी कर्मबंधन में नहीं पड़ती हूँ... हर कर्म करते कर्मबंधन मुक्त, कर्मातीत स्थिति का अनुभव करती हूँ... अब मैं आत्मा मास्टर त्रिकालदर्शी बन हर कर्म युक्तियुक्त करने वाली कर्मबंधन मुक्त बन गई हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल - हद के इच्छाओं की अविधा से महान सम्पतिवान बनना*"
➳ _ ➳ परमात्म बाप की दृष्टि हम बच्चों पर पड़ी है। बाबा ने जो स्नेह हम बच्चों पर लुटाया, उससे मुझ आत्मा को कोई भी चीज की, प्राप्ति की इच्छा समाप्त हो गई है। मुझ आत्मा की आँख अब किसी में डूबती नही। बाबा ने अपना बना पद्मापद्म भाग्यशाली बना दिया। अविनाशी ज्ञान धन दे मुझ आत्मा को सम्पन्न कर, सम्पतिवान बना दिया।
➳ _ ➳ मैं परमात्म स्नेही आत्मा हूँ...बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान धन दे... धनवान बना दिया... मैं आत्मा सर्व इच्छाओं से सम्पन्न आत्मा हूँ... मैं आत्मा व्यक्ति... वैभव... और लगाव-झुकाव से मुक्त होती जा रही हूँ... मुझ आत्मा पर बाबा की शक्तिशाली किरणे पड़ रही है...
➳ _ ➳ बाबा की किरणें लगातार मुझ आत्मा को रोशन कर रही है... मुझ आत्मा के सर्व सम्बन्ध एक परमात्मा... अर्थात मेरे शिव बाबा से है... सर्व प्राप्तियां भी एक शिव बाबा से है... मुझ आत्मा की नज़र कहीं और जाती ही नही... मैं आत्मा एकरस स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ एक रस स्थिति... मुझ आत्मा को निर्विघन बनाती जा रही है... मैं आत्मा अपने को पद्मा पद्मभाग्यशाली अनुभव कर रही हूँ... मुझ आत्मा पर जो ग्रहचारी बैठी थी... वह हट गई है... अब ब्रहस्पति की दशा बैठ गई है... जिससे मैं आत्मा एवर हेल्थी... वेल्दी... और हैपीनेस बनती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा ज्ञान धन से... स्वयं भी ख़ुशी रह... दूसरों को भी ख़ुशी बाँट रही हूँ... मैं आत्मा ज्ञान की गहराई में जाने से... कितने सुख का अनुभव कर रही हूँ... होगा कोई मुझ जैसा धनवान इस दुनिया में... नही... बाबा मिला सब कुछ मिल गया... सर्व इच्छाओं से मुक्त मैं आत्मा... हद की वस्तुओं, वैभव के आकर्षण से परे हो गई हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा दूसरों की इच्छाओं को पूर्ण करने वाली हूँ... मैं नॉलेजफुल और सफलतामूर्त आत्मा हूँ... मैं अनेक आत्माओं के संकल्पों को... सफल करने वाली सम्पन्न आत्मा हूँ... मैं सदा वरदाता से प्राप्त हुए... वरदानों में पलने वाली... सदा निश्चिंत आत्मा हूँ... दुनिया में सबसे अधिक सम्पतिवान मैं आत्मा हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *मास्टर त्रिकालदर्शी बन हर कर्म युक्तियुक्त करने वाले कर्मबन्धन से मुक्त होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ मास्टर त्रिकालदर्शी बन कर हर कर्म युक्तियुक्त करने वाले कर्मबन्धन से मुक्त होते हैं क्योंकि... जो भी संकल्प, बोल वा कर्म हम करते हैं, वह मास्टर त्रिकालदर्शी बन कर कर रहे होते हैं तथा अपने स्वमान में स्थित हो कर, कोई भी कर्म करने से वह कर्म, कभी व्यर्थ नहीं हो सकता है और न ही उस कर्म का कभी अनर्थ हो सकता है।
❉ इसलिये! अपनी त्रिकालदर्शी स्थिति की स्टेज पर स्थित रह कर, हर कर्म युक्तियुक्त करने से, वह कर्म हमें कर्मबन्धन में भी नहीं बांधता है... बल्कि! हम जीते जी जीवनमुक्ति के आनन्द का अनुभव भी करते हैं, और प्रभु के प्रेम में लवलीन भी रहते हैं।
❉ बाबा ने हमको सृस्टि के आदि, मध्य और अन्त के तीनों कालों का ज्ञान दे कर, त्रिकालदर्शी बना दिया है। त्रिकालदर्शी! अर्थात! साक्षीपन की स्थिति में स्थित हो कर रहना। दुनिया के हर खेल को साक्षी दृष्टा के भाव से साक्षी बन कर देखना है। उस की सीन सीनरीज़ में कभी भी अटकना नहीं है।
❉ अर्थात! उनके आकर्षण में कभी भी फँसना नहीं है। सीन सीनरीज़ को देख कर, उनके पार्ट को देख कर, साथ में दुःखी या सुखी नहीं होना है, बल्कि! कर्मो की गुह्य गति को जानकार, इन कर्मेन्द्रियों द्वारा साक्षीपन की स्थिति में स्थित हो कर कर्म को करना होता है।
❉ तभी तो हम! कभी भी कर्म के बन्धन की आकर्षण में नहीं बंधेंगे, फिर कोई भी कर्म करते भी, हर कर्म के बन्धन से हम मुक्त ही रहेंगे। कर्म बन्धन से मुक्त अवस्था को ही कर्मातीत अवस्था भी कहते हैं। तब हम! कर्म के बन्धन से मुक्त हो कर, कर्मातीत स्थिति का अनुभव भी करते रहेंगे।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *जिनके पास हद के इच्छाओं की अविद्या है वही महान सम्पत्तिवान हैं... क्यों और कैसे* ?
❉ कहते हैं " मन जीते जगत जीत " अर्थात जिसने अपने मन को जीत लिया उसने सारे विश्व पर विजय प्राप्त कर ली । किन्तु लोगो की अवधारणा है कि मन घोड़े के समान चंचल है जो इधर उधर भागता ही रहता है । एक इच्छा पूरी होती है तो दूसरी इच्छा मन में जागृत हो जाती है और मनुष्य जीवन भर इन विनाशी हद की इच्छाओं के पीछे भागता ही रहता है । इसलिए बाबा कहते जिसने मन को जीत कर हद की इच्छाओं की अविद्या करना सीख लिया वही संसार में सबसे अधिक सम्पत्तिवान है ।
❉ आज दुनिया का हर मनुष्य सुख, शांति की तलाश में भटक रहा है । सुख शांति की यही तलाश ही उसे हद की इच्छाओं के पीछे दौड़ा रही है और मनुष्य में इतनी भी बुद्धि नही जो यह सोच पाए कि हद की सभी चीजें, सब भौतिक सुख सुविधाएं विनाशी है । तो विनाशी चीजों में स्थायी सुख शांति कैसे मिल सकती है । इस बात को जो अच्छी रीति समझ लेते हैं कि हद की इच्छाओं में सुख शांति तलाश करना मूर्खता है तो वे हद की इच्छाओ के पीछे भागना छोड़ देते हैं और इच्छा मात्रम अविद्या बन जाते हैं ।
❉ दुनिया में जिस मनुष्य के पास जितना ज्यादा स्थूल धन और सम्पत्ति है लोगों की नजर में वो उतना ही ज्यादा सम्पत्तिवान है किंतु वास्तव में वो दुनिया का सबसे कंगाल व्यक्ति है । क्योकि जो जितना सम्पत्तिवान है वो उतना ही ज्यादा दुखी और अशांत है । या तो उस विनाशी सम्पति को और बढ़ाने की चिंता उसे सताती रहती है या उसे सम्भालने की चिंता में ही वह डूबा रहता है । किन्तु जो हद की इन विनाशी इच्छाओं की अविद्या कर परमात्म प्रेम में समाए रहते हैं वे परमात्मा से सुख शांति के असीम खजाने प्राप्त कर महान सम्पत्तिवान बन जाते हैं ।
❉ भक्ति मार्ग में अतीन्द्रिय सुख का गायन करते बहुत ही सुंदर शब्द उच्चारण किये गये हैं कि " ऐ रस आवा ते ओ रस नही भावा " अर्थात जिसने प्रभु प्रेम के, प्रभु पालना के अतीन्द्रिय सुख का अनुभव एक बार कर लिया उसे फिर दुनिया की विनाशी चीजों में कभी कोई रस आ ही नही सकता । दुनियावी आकर्षण फिर उसे अपनी और कभी नही खींच सकते । वह बेहद का वैरागी बन हद की इच्छाओं की अविद्या कर केवल उस परमात्म प्रेम में ही खोये रहना चाहता है और ऐसा प्रभु प्रेमी ही दुनिया का महान सम्पत्तिवान है ।
❉ संगम युग पर जो इच्छा मात्रम अविद्या बन कर रहते है और सदैव मनमनाभव की स्थिति में स्थित रहते हैं वे अतीन्द्रिय सुख के सुखमय झूले में सदा झूलते रहते हैं । अतीन्द्रिय सुख की सुखद अनुभूति उन्हें हद की सभी इच्छाओ और कामनाओं से मुक्त कर देती है । यह चाहिए, वह चाहिए, यह मिल जाये तो सेवा अच्छी हो, इस प्रकार के चाहिए चाहिए के संकल्प की रॉयल इच्छा से भी वे परे रहते हैं । ऐसे मनमनाभव रहने वाले और हद की सूक्ष्म इच्छाओं की भी अविद्या करने वाले ही वास्तव में महान सम्पत्तिवान आत्मा कहला सकते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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