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❍ 14 / 03 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °निर्णय शक्ति° को बड़ा मन की उल्झन को समाप्त किया ?
‖✓‖ देही अभिमानी बनकर °बाप का परिचय° सुनाया ?
‖✓‖ आपस में बहुत बहुत °रूहानी स्नेह° से चले ?
‖✗‖ °अहंकार° में तो नहीं आये ?
‖✓‖ बहुत बहुत °साधारण° होकर रहे ?
‖✗‖ किसी भी प्रकार का °फैशन° तो नहीं किया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ °मनन° द्वारा बाप की प्रॉपर्टी को अपनी प्रॉपर्टी बनाया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
‖✓‖ °फर्स्ट प्राइज° के अधिकारी बनकर रहे ?
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∫∫ 4 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - तुम्हारा धंधा है मनुष्य को सुजाग करना,रास्ताबताना,जितना तुम देही अभिमानी बनकर बाप का परिचयसुनाएंगे,उतना कल्याण होगा"
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चों तुम्हे अपने समान पारस जैसा सबको बनाना है... उदास निराश और दुखो में खुद को... भूलो को सच्चा सही ठिकाना दिखाना है... रौशन होकर जरा और को भी रास्ता बताना है...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे बच्चों सारा संसार प्यासी और तरसी नजरो से आप मेरे बच्चों की और बड़ी ही आस से निहार रहा... आप उनके जीवन पर जरा तरस तो खाओ... उन्हें यह सच्ची सुखदायी राह तो जरा दिखाओ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे बच्चों जो मेने किया है वही धंधा आप बच्चों का है... रहमदिल बन सबको सुख पहुंचाना है... मुझ बाप की उम्मीदों पर खरा साबित हो... मेरे और बिछड़े बच्चों को मेरे दिल के करीब लाना है...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडलो... मेरे और भी भटके उदास... निराश मेरी खोज में व्याकुल बच्चों को तो ढूंढ लाओ जरा.... मेरे बच्चों के बिना सूनी मेरी बगिया को फिर से महकाओ जरा... उनका भी दामन सुखो से आबाद करो... जाओ मेरे खोये बच्चों को तो ढूंढ लाओ जरा...
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे बच्चों भला तुम न करोगे तो कौन करेगा... मेरे भोले बिछड़े भटके बच्चों को कौन कहेगा कि उनका पिता उन्हें पुकार रहा.... बाहे पसारे उनके स्वागत में आतुर उनका इंतजार कर रहा... तुम ही तो कहोगे ना... तुम ही तो मेरा यह कार्य करोगे ना...
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∫∫ 5 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-15)
➢➢ आपस में बहुत- बहुत रुहानी स्नेह से चलना है, कभी भी लूनपानी नहीं होना है । बाबा का सपूत बच्चा बनना है ।
❉ हम प्रेमसागर के बच्चे मास्टर प्रेम सागर है व प्रेम से भरपूर है तो हमें सब के साथ प्रेम से रहना है । कोई स्नेह दे या ना दे ये नही सोचना कि ये देगा तो हम देंगे ।
❉ सब के प्रति आत्मिक दृष्टि रखनी है व ये भी मेरे मीठे बाबा का मीठा बच्चा है व मेरा रुहानी आत्मा भाई है । किसी की कमी कमजोरी को ना देखते उसे सहयोग और स्नेह से साथ लेकर चलना है ।
❉ हमारी कितनी भी गल्ती करने पर बेहद के बाप फिर भी हमें मीठे बच्चे सिकीलधे बच्चे लाडले बच्चे कहकर कितना प्यार देता है व अपने स्नेह से हमेशा आगे ही बढ़ाता है तो हमें भी ये रुहानी परिवार कल्प बाद मिला है । इसलिए आपस में बहुत- बहुत रुहानी स्नेह से चलना है ।
❉ जब देहभान में आ जाते है तो विकारों के कारण गल्त काम करते हैं व अंहकार क्रोध के कारण लड़ाई झगड़ा करते हैं । इसलिए अपने को आत्मा समझ परमात्मा को याद करना है व देही-अभिमानी बनना है । आपस में लूनपानी नहीं होना है ।
❉ हम ऊंच ते ऊंच बाप के बच्चे हैं व बाप की श्रीमत पर चल आज्ञाकारी फरमानबरदार बच्चा बनना है । लौकिक में भी बच्चा माँ बाप की आज्ञा पर चलता है तो माँ बाप कहते हैं कि ये मेरा सपूत बच्चा है । हमें भी बेहद के बाप का सपूत बच्चा बनना है ।
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∫∫ 6 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-15)
➢➢ मनन द्वारा बाप की प्रापर्टी को अपनी प्रोपर्टी बनाने वाले दिव्य बुद्धिवान होते हैं... क्यों और कैसे ?
❉ बाप द्वारा जो अखूट अविनाशी ज्ञान खजानें मिलते हैं उसका सदा विचार सागर मंथन करते रहते है तो अंदर ही अंदर समाता जाता है । बाप से मिले बेशुमार कीमती खजानों से स्वयं को मालामाल कर खुशी व नशे में रहने वाले दिव्य बुद्धिमान होते है ।
❉ जैसे पारस को टच करके पत्थर हीरा बन जाता है तो हमें तो सच्चा सच्चा पारसनाथ पिता मिले है जो सब को पढ़ाकर पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बनाते हैं । यही सदा स्मृति में रखने वाले ही दिव्य बुद्धिवान बनते हैं ।
❉ जो ज्ञान रत्नों की माला पहने रखते हैं व मनन की मस्ती में सदा मस्त रहते हैं तो उन्हें बाहरी आकर्षण नही होता व न ही बाहरी उलझन में फंसते हैं । बाप द्वारा दिव्य बुद्धि का वरदान उन्हें स्वतः मिलता है तो दिव्य बुद्धिवान बन जाते हैं ।
❉ जितना ज्ञान का मनन चिंतन करते रहते हैं व उतना बाप को अपने नजदीक अनुभव करते है । विकारों की कट उतरती जाती है व दिव्य गुणों की धारणा स्वतः होने लगती है । दिव्य गुणों की धारणा कर बेहद बाप से बेहद का वर्सा लेकर दिव्य बुद्धिवान होते हैं ।
❉ लौकिक में भी बच्चा बाप की प्रोपर्टी का वारिस होता है तो ऊंच ते ऊंच बाप ने हमें अपना बनाया व बेहद बाप का बच्चा बनते ही उसकी प्रापर्टी का वारिस बध सभी गुणों, शक्तियों से भरपूर होकर दिव्य बुद्धिवान बन जाते हैं ।
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∫∫ 7 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ मन की उलझन को समाप्त करने के लिए निर्णय शक्ति को बढ़ाओ... कैसे ?
❉ जितना सेल्फ रियलाइजेशन का गुण अपने अंदर आता जायेगा उतना ही किसी भी चीज को परखना सहज और सरल होता जायेगा और परख कर जब हर कार्य करेंगे तो मन की उलझन समाप्त होती जायेगी और निर्णय लेना भी सहज हो जायेगा ।
❉ जब नॉलेजफुल की सीट पर सेट रह, कार्य को करने से पहले अच्छी रीति उस पर सोच - विचार कर कार्य करेंगे तो ज्ञान का मनन मन की उलझन को समाप्त कर देगा और सही निर्णय शक्ति से कार्य को विधिपूर्वक करना सहज हो जायेगा ।
❉ जितना मन बुद्धि एक की ही याद में, एक ही कार्य में और एकरस स्थिति में स्थित होगी उतना ही मन शांत रहेगा और किसी भी प्रकार के व्यर्थ संकल्पों की हलचल के प्रभाव से मुक्त रहेगा जिससे उचित निर्णय ले कर कार्य को उचित और सफलतापूर्वक सम्पन्न करना सरल हो जायेगा ।
❉ जितना संकल्पों को ब्रेक देने और मोड़ने की शक्ति होगी उतना बुद्धि की शक्ति व्यर्थ होने से बच जायेगी और एनर्जी वेस्ट ना हो कर जमा होती जायेगी और जितनी एनर्जी जमा होगी उतना ही मन हलचल से मुक्त होगा जिससे परखने की और निर्णय करने की शक्ति भी बढ़ती जायेगी ।
❉ जितना एकांतवासी बन साइलेन्स का बल अपने अंदर जमा करते जाएंगे उतनी एकाग्रता बढ़ती जायेगी और एकाग्रता के कारण विशेष दो शक्तियां - परखने की शक्ति और निर्णय लेने की शक्ति भी बढ़ती जायेगी जिससे मन की हलचल से मुक्त होना और यथार्थ निर्णय लेना सहज हो जायेगा ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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