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❍ 14 / 07 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ अपनी √अवस्था की जांच√ स्वयं ही की ?
➢➢ अपना √तन-मन-धन√ बाप हवाले किया ?
➢➢ √निश्चयबुधी√ बन अपना कल्याण किया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ √सहयोग√ की शक्ति से असहयोगियों को भी सहयोगी बनाया ?
➢➢ ×स्वार्थ व इर्ष्या× से दूर रह चिडचिडेपैन को समाप्त किया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ आज बाकी दिनों के मुकाबले एक घंटा अतिरिक्त °योग + मनसा सेवा° की ?
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/14.07.16-VisheshPurusharth.htm
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/14.07.16-VisheshPurusharth.pdf
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - व्रक्षपति बाप ने तुम बच्चों पर बृहस्पति की दशा बिठाई है, अभी तुम अविनाशी सुख की दुनिया में जा रहे हो"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे पिता के साये में सदा के सुखी हो चले हो... विकारो से मुक्त होकर सुखो से दामन भर चले हो... राहु के चंगुल से छूट गए हो और सुख आनन्द के बृहस्पति से सज गए हो... यह दुःख की दुनिया से निकल अविनाशी सुखधाम में जा रहे हो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... आपने राहु की कालिमा से छुड़ा कर मुझे उजला कर दिया है... अविनाशी सुख देकर सुखधाम मेरे नाम कर दिया है... मै आत्मा सुख शांति से परिपूर्ण होकर दमक उठी हूँ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे विनाशी सुख के पीछे कितना बेहाल हो चले... फिर भी सुखो से सदा महरूम ही रहे... अब मीठा बाबा सच्चे सुखो के बृहस्पति को सजाकर बच्चों के लिए सौगात लाया है... और अनन्त खुशियां से भरने आया है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपसे मिलकर अविनाशी सुखो की अधिकारी फिर से हो चली हूँ... और उसी आनन्द की मुस्कराहट से फिर से सज चली हूँ... मेरा प्यारा बाबा मुझे सारे सुख देने आया है...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चे अपने फूल से बच्चों को मै पिता राहु रुपी विकारो में लिप्त होकर दुखी भला कैसे देख पाऊ... इसलिए धरती पर ही उतर चला आऊ... बच्चों को अपनी यादो के साये में समेटकर... उनकी अदभुत सी रंगत से उन्हें फिर सजाऊ... तब मै व्रक्षपति पिता आराम पाऊ... और बच्चे सदा के सुखी हो तो मै पिता मुस्कराऊ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मुझ आत्मा को ऐसा अनोखा प्यार दुलार ममता किसी न दी बाबा... सबने मुझे ठगकर खोखला किया.... आपकी छत्रछाया में मै आत्मा कितनी सुखी हो चली हूँ.... प्यारे बाबा आपने तो सारे सुख मेरी झोली में डाल दिए है...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - याद का चार्ट रखना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा स्वराज्याधिकारी हूं... अपनी देह की मालिक हूं... सभी कर्मेन्द्रियां मुझ आत्मा के आर्डर प्रमाण चलती हैं... मैं आत्मा प्यारे बाबा के साथ कम्बाइंड होकर हर कर्म करती हूं... चाहे कैसी भी परिस्थिति आती है मैं आत्मा अचल अडोल स्थिति का अनुभव करती हूं... मैं आत्मा हर कर्म का लेखा जोखा सच्चा सच्चा बाबा को देती हूं... मै आत्मा एक बाप की याद में रह अपना कल्याण करती हूं... मै आत्मा रात को सोने से पहले अपना रोज का याद का सच्चा चार्ट बाबा को देती हूं... मैं आत्मा बस एक प्यारे बाबा की याद में रह अविनाशी कमाई करती हूं...
❉ "ड्रिल :- बेहद के बाप के साथ सच्चा रहना"
➳ _ ➳ हे मेरे आत्मन्! क्या तुझे पता है बाबा सच्चा सौदागर है... उस जैसा सौदागर कोई ओर नहीं... जो एक का सौ गुणा करके रिटर्न करता है... ये शरीर भी अमानत है... इस शरीर को अपना कहना भी कयानत है... इस पुराने शरीर व पुरानी दुनिया ने स्वाहा होना ही है... इसलिए मैं आत्मा अपना तन-मन-धन सब प्यारे बाबा को समर्पण करती हूं... मैं आत्मा अपना बैग बैगेज सब बाप को सौंप 21 जन्म की बादशाही लेती हूं... मुझ आत्मा को अपने प्यारे बाबा पर पूरा निश्चय है... स्वयं परमात्मा शिव बाबा मेरे साथी हैं... मैं आत्मा निश्चयबुद्धि हूं... मुझ आत्मा के परमपिता शिव बाबा सदैव मेरी छत्रछाया है... मुझ आत्मा का सदैव कल्याण है... मैं आत्मा पदमापदम सौभाग्यशाली हूं...
❉ "ड्रिल - क्रोधमुक्त"
➳ _ ➳ मैं आत्मा शान्त स्वरूप शुद्ध स्वरूप हूँ... शान्ति मेरे गले का हार है... शांति मुझ आत्मा का स्वधर्म है... देह की कर्म इन्द्रियों को शांत करते हुए मैं आत्मा शांतिधाम में आत्मा शांति के सागर के सामने हूँ... शांत पवित्र किरणे मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं... मुझ आत्मा को शांति ही शांति अनुभव हो रही हैं... मुझ आत्मा ने अनुभव कर लिया है कि ईर्ष्या स्वार्थ मुझ आत्मा में चिड़चिड़ापन की जड़ है... आत्मिक स्थिति में रहते मैं आत्मा सब के प्रति भाई भाई की दृष्टि रखती हूं... मैं आत्मा सबके प्रति शुभ भावना रखती हूँ... प्रेम और स्नेह युक्त विहार करती हुई क्रोधमुक्त शांत रहती हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं बाप समान परोपकारी आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳ श्रेष्ठ संकल्पों की फुलवारी में अपने आपको मन और बुध्दि द्वारा स्तिथ करें... मैं आत्मा ब्रह्मा बाप समानवसर्व शक्तियों को अष्ट भुजाओं के रूप में धारण करने वाली अष्ट भुजाधारी मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हूँ... मुझसे निकलती ओम् ध्वनि की मधुर तरंगे, एक प्रचण्ड ज्योति का रूप धारण किए परमधाम में शिव पिता को टच कर रहीं है...
➳ _ ➳ ओम् ध्वनि के रेस्पोंड में शिव पिता की शक्तिशाली अष्ट शक्तियों से सम्पन्न किरणें परमधाम से मुझ आत्मा पर पड़ रही है... और मुझे बाप समान बना रही है... जैसे ब्रह्मा बाप ने अयोग्य, असहयोगी, अपमान करने वाली आत्माओं को भी सम्भाला... मेरा बच्चा कहकर उन्हें दिल का स्नेह दिया और जीवन भर पालना करते रहे...
➳ _ ➳ उसी प्रकार शिवबाबा द्वारा मुझ आत्मा में भी वही सहयोग देने की शक्ति मेरी भुजा के रूप में आकर मेरे कंधे पर विराजमान हो रही है... मैं आत्मा अब शक्तिशाली अवस्था का अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा का हर गुण बाप समान बन गया है... मैं आत्मा अब अपकारियों पर भी उपकार करने लगीं हूँ... असहयोगी आत्माओं को भी मैं आत्मा अपने सहयोग की शक्ति द्वारा सहयोगी बना रहीं हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा कारण को जानने के बजाए निवारण स्वरुप बन गयीं हूँ... मैं आत्मा कमज़ोर आत्मा को कमज़ोर न समझकर उनको बल देकर बलवान बनाने में निमित्त बन रहीं हूँ...
➳ _ ➳ बाप समान परोपकारी आत्मा बनने से मुझ आत्मा के सर्विस के प्लैनस रुपी ज़ेवरों पर हीरे चमकने लगें हैं... अर्थात मैं आत्मा सहजता से प्रत्यक्ष होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ सहयोग की शक्ति से, असहयोगियों को सहयोगी बनाने वाले बाप समान परोपकारी होते हैं... क्यों और कैसे?
❉ जैसे सहयोगियों के साथ सहयोगी बनना कोई बड़ी बात नहीं है। यह कोई महावीरता की निशानी भी नहीं है। बल्कि महावीरता व बड़प्पन तो इस बात में है कि... जैसे बाप अपकारियों पर भी उपकार करते हैं, उसी प्रकार हम बच्चों को भी परोपकारी बनना है तथा औरों को भी परोपकारी बनाना है।
❉ हमारा कोई कितना भी असहयोगी बने लेकिन हमें अपने सहयोग की शक्ति से असहयोगी को भी सहयोगी बनना है। हमें ऐसा कदापि नहीं सोचना है कि ये इस कारण से आगे नहीं बढ़ रहा है। हमें सभी कारणों का निवारण करते हुए अपने भरसक प्रयास से उसे आगे बढ़ाना है।
❉ हमें कमजोर को आगे बढ़ने की पूरी मेहनत करनी है। कमजोर को कमजोर समझ कर यूँ ही छोड़ नहीं देना हैं। बल्कि हमें हमारी तरफ से हर प्रकार की चेष्टायें कर के कमजोर को भी सम्पूर्ण बल प्रदान करना है, जिससे वो भी बलिष्ठ तथा महावीर बन जाये।
❉ इस प्रकार जब सभी कमजोर आत्मायें भी बलिष्ठ व बलवान बन जायेंगी। तब सब आत्मायें एक समान महावीर बन कर, बाप समान परोपकारी बन जायेंगी तथा सभी आत्मायें संगठन में या एकल रूप से सम्पूर्ण विश्व का कल्याण करके बहुत बड़ी सेवा के अधिकारी बन जायेंगी।
❉ हम सभी आत्मायें इस बात पर सावधानी रखेंगी तो सर्विस के अन्य और भी प्लान हमारी बुद्धि में आएंगे और उन प्लान्स को जब हम कार्य में लगायेंगे तब हमें सभी कार्यों में सफलता भी मिल जायेगी क्योंकि इन बातों पर अटेन्शन देने से सर्विस के प्लान रुपी जेवरों पर हीरे चमक जायेंगे। अर्थात सहज प्रत्यक्षता हो जायेगी।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ क्रोध का कारण है स्वार्थ वा ईर्ष्या - यही चिड़चिड़ेपन की जड़ है, पहले इसे ही समाप्त करो... क्यों और कैसे ?
❉ प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया अवश्य होती है । इसलिए जब हम अपने स्वार्थ के लिए कोई कार्य करते हैं या ईर्ष्या वश कोई कर्म करते हैं तो वैसे ही वायब्रेशन हमसे निकल कर वायुमण्डल में फैलते हैं और उसे दूषित कर देते हैं । यही ईर्ष्या और द्वेष के वायब्रेशन जब सामने वाले को पहुँचते हैं तो वह भी हमारे प्रति वैसी ही प्रतिक्रिया करते हैं अर्थात ईर्ष्या करनी शुरू कर देते हैं । उनकी ईर्ष्या की भावना को देख कर हमारे अंदर चिड़चिड़ापन आ जाता है जो क्रोध का कारण बन जाता है । इसलिए पहले इसे समाप्त करना जरूरी है ।
❉ जो दूसरो से ईर्ष्या रखते हैं वे ईर्ष्या की उस भावना को चाहे कितना भी छिपाने की कोशिश करें परन्तु वह किसी ना किसी रूप में प्रकट हो ही जाती है । और दूसरा मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यह बात सिद्ध होती है कि मन ही मन जो दूसरों से ईर्ष्या रखते हैं वे कुंठित हो कर अनेक मानसिक रोगों का शिकार हो जाते हैं जिसका प्रभाव उनकी मनोभावनाओं पर भी पड़ता है और व्यक्ति चिड़चिड़ेपन का शिकार हो जाता है और छोटी छोटी बातो पर क्रोधित होने लगता है । इसलिए क्रोधमुक्त बनने के लिए पहले ईर्ष्या द्वेष से मुक्त होना जरूरी है ।
❉ ईर्ष्या की भावना जब किसी के प्रति एक बार अंतर्मन में उतपन्न हो जाती है तो वह आसानी से समाप्त नही होती बल्कि अहंकार और स्वार्थ का रूप धारण कर और ही तीव्र हो जाती है । जिसका परिणाम कई बार इतना घातक हो जाता है कि व्यक्ति के मन में बदला लेने वा दूसरे को नुकसान पहुँचाने के विचार भी अति तीव्र गति से आने लगते है और जब व्यक्ति इन विचारों पर कण्ट्रोल नही कर पाता तो चिड़चिड़ेपन और क्रोध का शिकार हो जाता है और क्रोध में आकर स्वयं अपना तथा दूसरों का नुकसान भी कर देता है । इसलिए पहले ईर्ष्या द्वेष को छोड़ कर ही क्रोध से मुक्त हो सकते हैं ।
❉ मनुष्य का जीवन केवल उन्ही अनुभवो, संस्कारों और विचारों का परिणाम नही है जो उसके चेतन मन में दिखाई देते हैं बल्कि अनेक ऐसे गुप्त भाव, संस्कार और अनुभव भी हैं जो कहीं ना कहीं उसके अचेतन मन में छिपे हुए हैं । जब हम स्वार्थ की भावना से कोई कार्य करते हैं या किसी के प्रति ईर्ष्या द्वेष की भावना रखते हैं तो ये अपना कुछ संस्कार अंतर्मन में अवश्य छोड़ देते हैं जो अचेतन मन में जमा होते चले जाते हैं और समय प्रति समय सक्रिय हो कर चिड़चिड़ेपन वा क्रोध के रूप में प्रकट होने लगते हैं ।
❉ कई बार व्यक्ति दूसरों के सामने जब अपने विचार रखता है तो संकल्प के रूप में उस विचार को इच्छा में बदली कर देता है । अर्थात स्वार्थ वश हो कर अपने विचार रखता हैं और सोचता है कि जो मैंने विचार रखा वैसा ही होना चाहिए और जब उसके विचारों का सम्मान नही रखा जाता या उसे ठुकरा दिया जाता है तो यही विचार चिड़चिड़ापन उतपन्न करता है और ईर्ष्या द्वेष का कारण बन जाता हैं । इसी स्वार्थ तथा ईर्ष्या के कारण फिर क्रोध की उतपत्ति होती है इसलिए बाबा कहते निस्वार्थ होकर विचार दो, स्वार्थ रखकर नहीं तो क्रोध से सदैव बचे रहेंगे ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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