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❍ 19 / 11 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *चलन बहुत रॉयल रखी ?*
➢➢ *बाप से व आपस में रूठे तो नहीं ?*
➢➢ *जो भी बुरी आदतें हैं, उन्हें छोड़ने पर विशेष अटेंशन रहा ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *एक बाप की याद में सदा मगन रह एकरस अवस्था बनायी ?*
➢➢ *द्रिड निश्चय से अपने भाग्य को निश्चित कर सदा निश्चिंत अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *"हो जाएगा" जैसे शब्दों की बजाये "करना ही है" जैसे शब्दों का उपयोग कर दृढ़ता को अपने जीवन में धारण किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - तुम्हारी चलन बहुत बहुत मीठी रॉयल होनी चाहिए, क्रोध का भूत बिलकुल न हो"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... इस कदर खूबसूरत चलन हो की हर कदम से झलके की ईश्वरीय पुत्र और सजे धजे से देवता हो... मेरे मीठे बच्चों से मीठे बाबा की ही खुशबु आये... बच्चों को देख तुरन्त प्यारा पिता याद आ जाये ऐसे मीठी रॉयल चलन से भरे मेरे लाल हो... मिठास के पर्याय हो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा मै आत्मा आपकी श्रीमत को दिल में समाये विकारो से मुक्त हो प्यारा सा जीवन जी रही हूँ... अपने सत्य स्वरूप के भान में जीकर शांति की तरंगे चारो ओर फैला रही हूँ... क्रोध से परे शांत मीठा जीवन जीती जा रही हूँ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह के भान में आकर जो अपने दमकते स्वरूप को भूल चले... अब यादो में वही दिव्य संस्कार बसाओ... वही तेज वही दिव्यता वही रूहानियत को जीवन में उतारो... पिता समान मीठे बन हर दिल को जीत चलो... मधुरता से हर मन की पीड़ा हर चलो... हर आत्मा आपसे सुख और सुकून पाये ऐसा व्यक्तित्व बन चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा जो देह के प्रभाव में अपनी मूल मिठास दिव्यता को खो चली थी प्यारे बाबा ने उन सतरंगी गुणो से जीवन इंद्रधनुष सा खूबसूरत बना दिया है... मै सुखदायी आत्मा बन हर दिल को सुख पहुंचा रही हूँ... और मीठे बाबा से मिला प्यार हर दिल पर लुटा रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देह के देहधारियों के प्रभाव से निकल अपने वास्तविक मीठे तेजस्वी स्वरूप में रहना है...इस वरदानी संगम पर ही देवताई संस्कारो को भरना है और सबको अपनी रूहानियत का दीवाना बनाना है... यही मीठे संस्कार सतयुगी सुखो का आधार है... अब सुख देना है और आनन्द की लहरो में हर दिल को भिगोना है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा से पाये गुणो और शक्तियो के खजाने चारो दिशाओ में दिल खोल लुटा रही हूँ... सबको अपने दिव्य गुणो की अदा दिखा मीठे बाबा का आशिक बना रही हूँ... प्यारे बाबा से पायी गुणो की दौलत से हर दिल की झोली भर रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा साक्षीदृष्टा हूँ ।"*
➳ _ ➳ वर्तमान समय में चारों ओर हलचल है... इस पुरानी दुनिया के विनाश का समय नज़दीक होता जा रहा है... थोड़ी की भी थोड़ी रह गई है... महाविनाश और विश्व परिवर्तन का कार्य चल रहा है... अभी ऐसे पेपर आने हैं जो संकल्प स्वप्न में भी नहीं होंगे...
➳ _ ➳ दिन-प्रतिदिन प्रकृति विकराल रुप धारण करेगी... प्रकृति के पाँच तत्वों के साथ, पाँच विकार भी फुल फोर्स में वार करेंगे... कोई भी बचाव के साधन काम में नहीं आयेंगे... इन परिस्थितियों का सामना करने मुझ आत्मा को एवररेडी होना होगा... अभी से साक्षीदृष्टा बनने की प्रेक्टिस करनी होगी...
➳ _ ➳ लास्ट पेपर की तैयारी के लिये मुझ आत्मा को बाबा की नम्बरवन बन श्रीमत का पालन करना होगा... मैं आत्मा आत्मिक स्वरूप में स्थित होकर एक बाबा की याद में बैठी हूँ... एक बाबा के प्यार में लीन होती जा रहीं हूँ... एक बाप से ही सर्व सम्बन्धों का रस अनुभव कर अतीद्रिय सुख में झूल रही हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा बेहद के ड्रामे को साक्षी होकर देख रही हूँ... चाहे दर्दनाक सीन हो या हँसी का हो... चाहे कोई का रमणीक पार्ट हो, चाहे स्नेही आत्मा का गम्भीर पार्ट हो... अब मुझ आत्मा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है... मैं आत्मा हर किसी के पार्ट को साक्षीदृष्टा होकर देख रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अब इसी स्मृति में रहती हूँ कि बेहद के बाप द्वारा रचा बेहद का ड्रामा बिल्कुल एक्युरेट है... बाहर कितनी भी हलचल हो मैं आत्मा बिल्कुल शांत हो गई हूँ... मुझ आत्मा के अन्दर की हलचल समाप्त हो गई है... अब मैं आत्मा एक बाप की याद में सदा मगन रह एकरस अवस्था में रहने वाली साक्षीदृष्टा हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल - श्रेष्ठ भाग्य की स्मृति से सदा निश्चिंत रहना"*
➳ _ ➳ संगम युग का सबसे बड़ा भाग्य स्वयं भाग्य विधाता अपना बन गया। मैं उसकी हो गई। सदा इस भाग्य की ख़ुशी और नशे में रहना। जब सर्वशक्तिवान बाप मेरा हो गया तो, इससे श्रेष्ठ भाग्य की बात और क्या होगी। "मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, श्रेष्ठ बाप की हूँ और श्रेष्ठ भाग्यवान् हूँ"यही दृढ़ निश्चय है, जिस कारण मैं आत्मा निश्चिन्त हूँ।
➳ _ ➳ मैं श्रेष्ठ भाग्यवान् आत्मा हूँ... कोई साधारण भाग्यवान् नही... संगम युग की सबसे बड़ी प्रालब्ध... स्वयं भाग्यविधाता मेरा हो गया... विश्व की अनेक आत्माएँ बाप को पाने का प्रयत्न कर रही है... और हमने बाप को पा लिया... हम बाप के बन गए...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सदा इस श्रेष्ठ भाग्य की ख़ुशी और नशे में रहती हूँ... यह रूहानी नशा... इस पुरानी दुनिया के आकर्षणों को भुला देता है... ना पुरानी देह... ना पुराने देह के सम्बंध याद आते है... भूलने की मेहनत नही करनी पड़ती...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा का यह श्रेष्ठ भाग्य... मुझे हर आत्मा के प्रति स्नेह, ख़ुशी बाटने की सेवा भी कराता है... मैं आत्म देही-अभिमानी बनती जा रही हूँ... ऐसा अविनाशी भाग्य जिसका अब तक भी गायन होता है... "भागवत"... स्वयं भाग्यविधाता ने मुझे चुन अपना बना... मुझ आत्मा को निश्चिन्त बना दिया...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा को सारे कल्प में इस संगमयुग जैसा श्रेष्ठ भाग्य प्राप्त नही हो सकता... बाप का हाथ और साथ सदा अनुभव करती हूँ... मैं आत्मा सदा मौज का अनुभव करती हूँ... मैं आत्मा हर कर्म करते अपने श्रेष्ठ भाग्य को भूलती नही हूँ... भविष्य भी वर्तमान भाग्य के अनुसार ही मिलता है...
➳ _ ➳ मैं सर्वशक्तिमान बाप की शक्तिशाली आत्मा हूँ... यह दृढ़ निश्चय ही सर्व खजानों से भरपूर कर देता है... मुझ एक आत्मा को बाप ने चुना और अपना बना लिया... यह स्मृति मुझ आत्मा को सदा रूहानी नशे में झूलती है... मैं आत्मा अब भी भाग्यवान् हूँ... और फिर भी बनूंगी...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *एक बाप की याद में सदा मगन रह एक रस अवस्था बनाने वाले साक्षी दृष्टा होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ एक बाप की याद में सदा मगन रह एक रस अवस्था बनाने वाले साक्षी दृष्टा होते हैं क्योंकि... अभी हमारे सामने ऐसे पेपर आने हैं जो कि कभी हमारे संकल्पों व स्वपन में भी नहीं आई होंगी। परन्तु! हमें इन सब बातों के लिये पहले से ही तैयार रहना है।
❉ हमें हमारी स्थिति को ऐसा बना लेना है जैसे कि... जब हम हद के ड्रामा को साक्षी हो देख कर देखते हैं। फिर चाहे उस ड्रामा में कैसा भी सीन हो चाहे दर्दनाक हो या फिर चाहे हँसी मजाक का हो। दोनों ही परिस्थितियों का हमारे मन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
❉ दोनों ही अवस्थों में हम समभाव को अपनाते हैं तथा उन सीन्स में अटक भी नहीं जाते है। उसी प्रकार इस बेहद की सृस्टि रुपी रंगमंच पर घटित होने वाले सीन सीनरीज़ में, अपने मन और बुद्धि को अटकाना नहीं है। बल्कि! आनन्दित हो कर साक्षीभाव से उस सीन सीनरीज़ को देखना है।
❉ हमारे समक्ष दोनों ही प्रकार की सीन्स सीनरीज़ में कोई अन्तर नहीं होना चाहिये। फिर चाहे हमारा, ऐसा कोई रमणीक पार्ट हो या फिर चाहे स्नेही आत्माओं के प्रति का गम्भीरता का पार्ट हो। हमें तो दोनों ही पार्टस को, बाप समान स्थिति में स्थित हो कर, साक्षीभाव से देखना व प्ले करना है।
❉ इसप्रकार की एकरस स्थिति को बनाने के लिये हमारा बहुकाल का पुरुषार्थ होना अति आवश्यक है। अपनी ऐसी दिव्य एकरस अवस्था को बनाने के लिये, हमें सदा एक बाप को ही याद करना अति आवश्यक है। हमारी निरन्तर एकरस अवस्था तब ही रहेगी जब हम भी निरन्तर एक बाप की याद में मगन होंगे।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *दृढ़ निश्चय से अपने भाग्य को निश्चित कर दो तो सदा निश्चिन्त रहेंगे... क्यों और कैसे* ?
❉ निश्चय का फाउंडेशन मजबूत है तो भाग्य का सितारा सदैव उज्ज्वल है । क्योकि दृढ निश्चय के आगे कोई रुकावट आ नही सकती । जैसे साकार में ब्रह्मा बाबा ने दृढ निश्चय के आधार पर अथक और एकरस स्थिति का प्रत्यक्ष एग्जाम्पल बन कर दिखाया । निश्चय बुद्धि बन सदा निश्चितं रहे । सिर्फ वाणी से ही नही चरित्र से भी स्वयं को और बाप को प्रत्यक्ष करके दिखाया । ऐसे जो फ़ॉलो फादर कर, दृढ निश्चय बुद्धि बन हर विघ्न को हंसते हुए पार करते हैं वे अपने भाग्य को निश्चित कर सदा निश्चिन्त रहते हैं ।
❉ जिस व्यक्ति ने आँखों पर जिस रंग का चश्मा पहन रखा हो उसे हर चीज उसी रंग की ही नजर आती है । ठीक इसी प्रकार जो ब्राह्मण बच्चे निश्चय का चश्मा सदा पहन कर रखते हैं वे हर बात में कल्याण देखते हैं । इस लिए सदा निश्चिन्त रहते हैं । लोग जिस बात में अकल्याण समझते हैं उसमे भी निश्चय बुद्धि बच्चे सम्पूर्ण कल्याण को ही देखते हैं । जैसे लोग विनाश को अकल्याण समझते हैं लेकिन ब्राह्मण बच्चे समझते हैं कि इससे ही गति सद्गति के गेट खुलने है । ऐसे दृढ निश्चय से अपने भाग्य को निश्चित करने वाले सदा निश्चिन्त रहते हैं ।
❉ साकार में जैसे मम्मा बाबा को देखा कि हर बात के प्रति दोनों के ही निश्चय में संकल्प की भी कोई हलचल नही थी । सम्पूर्ण अचल और अटल निश्चय था कि यह तो निश्चित ही है । तो नशे की निशानी है अटल निश्चय और निश्चिन्त स्थिति । जो ऐसे सम्पूर्ण निश्चय बुद्धि बनते जाते हैं उनकी स्व स्थिति , श्रेष्ठ स्थिति, सर्व गुणों से सम्पन्न स्थिति ऐसी अचल, अडोल और एकरस होती चली जाती है कि अपनी उसी अचल, अडोल स्थिति द्वारा वे स्वयं अपने हाथों से अपना श्रेष्ठ भाग्य निश्चित कर लेते हैं इसलिए सदा निश्चिन्त रहते हैं ।
❉ अव्यक्त बापदादा के महावाक्य है कि डबल तिलकधारी बन कर रहने वाले कभी माया से हार नही खा सकते । क्योकि डबल तिलक धारी सदैव अपने मस्तक पर एक तो आत्मिक स्मृति का तिलक लगा कर रखते हैं और दूसरा विजयी रत्न के निश्चय का तिलक भी सदा उनके मस्तक पर चमकता रहता है । इसलिए वे कोई भी कठिन परिस्थिति आने पर घबराते नही बल्कि हर परिस्थिति में अपनी स्थिति को अचल, अडोल और एकरस बना कर दृढ निश्चय से अपना भाग्य निश्चित कर निश्चिन्त रहते हैं ।
❉ कहा भी जाता है कि निश्चय में सदा विजय समाई है । भक्ति मार्ग में एक भक्त का अपने इष्ट देव और देवी के प्रति अटूट निश्चय और विश्वास ही तो होता है जो एक पत्थर की मूर्ति से भी उसकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है । यहाँ तो स्वयं परमात्मा साक्षात् हमारे सामने आये हुए हैं । इस बात को दिल से स्वीकार कर जो दृढ निश्चय और सम्पूर्ण समर्पण भाव से स्वयं को परमात्मा बाप पर समर्पित कर देंगे । वो दृढ़ निश्चय से भविष्य 21 जन्मो के लिए अपने श्रेष्ठ भाग्य को निश्चित कर बेफिक्र बादशाह बन सदा के लिए निश्चिन्त हो जायेंगे ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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