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❍ 29 / 11 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *"भगवान हमको पढाकर भगवती भगवान बनाते हैं" - इसी ख़ुशी व नशे में रहे ?*
➢➢ *रचता और रचना का ज्ञान बुधी में रख दूसरों को सुनाया ?*
➢➢ *किसी की बात दिल पर तो नहीं रखी ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *तीनो कालों को सामने रख हर कार्य में सफल हुए ?*
➢➢ *हद के किनारों को छोड़ एक बाप सहारा बनाया ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *"हम कल्प कल्प के विजयी थे, विजयी है, और सदा विजयी रहेंगे" - यह स्मृति रही ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - हर एक पार्टधारी आत्मा आधा समय सुख और आधा समय दुःख का पार्ट बजाती है यह भी ईश्वरीय लॉ है"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... अपने सत्य स्वरूप को मुझ पिता से जान सच्ची मुस्कराहट को पाते हो...आत्मा के अनोखे से सुख दुःख के पार्ट को मुझ पिता से ही जान पाते हो... आधा कल्प देवता बन सुखो में मुस्कराते हो और आधा कल्प शरीर के भान में आकर दुखो के सागर में गोते लगाते हो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा मै आत्मा तो देह में ही उलझी सी देहधारियों में फंसकर अपने दमकते स्वरूप को भुला बेठी थी... आपने मीठे बाबा मुझे कितना हल्का कितना खुशनुमा बना दिया... यह तो मात्र खेल है यह बताकर सारे बन्धनों से छुड़ा दिया...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सदा चमकते हुए नूर हो अविनाशी आत्मा हो... खुबसूरत महकते सुखो को जीते खुशियो भरा जीवन पाकर देवता बन मुस्कराते हो... और फिर अपने स्वरूप को भूल देह से दिल लगाकर दुखो के जंजाल में भटक से जाते हो... यह अनोखा सत्य मीठे पिता को आकर बताना पड़े तब ही जान पाते हो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा सोभाग्यशाली हूँ कि स्वयं भगवान आकर मुझे सच्ची बाते बता रहा... यह सुख दुःख का खेल है और मै चमकती आत्मा सदा ही खेलती आयी हूँ... मीठा बाबा अपनी फूलो सी गोद में बिठा मुझे होले होले से समझा रहा...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने आत्मिक स्वरूप में रहकर अथाह सुखो में देवताई जीवन जीकर फिर तुम्ही दुखो के दलदल में भी उतर आते हो... यह ईश्वरीय लॉ है जो मीठा पिता इस धरा पर आकर समझाता है... और सुख दुःख के पार्ट को बताकर अविनाशी स्वरूप की याद दिलाता है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने पार्ट से चिपक कर दुःख की अनुभूतियों में किस कदर विचलित थी... मीठे बाबा आपने आकर मुझे मेरा दमकता स्वरूप दिखा दिया... यह तो मात्र खेल है और मेरा पार्ट है... कितना हल्का प्यारा और खुशनुमा बना दिया....
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं सदा विजयी आत्मा हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अज्ञान काल में अपना भाग्य जानने कहाँ कहाँ भटकती थी... कभी इस पंडित को, कभी उस पंडित को अपना जन्मपत्री दिखाती थी... मैं आत्मा अपना भविष्य उज्ज्वल बनाने कितने ही हद की रीतियां, आडम्बर करती थी... कितना ही अपना धन, समय व्यर्थ गंवाई थी...
➳ _ ➳ मैं आत्मा कहाँ एक दो जन्म को जानने के लिये भटक रही थी... पर अब स्वयं परमपिता परमात्मा ने आकर मुझ आत्मा को 5000 वर्ष की जन्मपत्री का नालेज दे दिया है... मैं आत्मा अपने सभी जन्मों को जानकर त्रिकालदर्शी बन गई हूँ... भाग्यविधाता बाप ने भाग्य लिखने की कलम मुझ आत्मा को दे दी है...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा अपना श्रेष्ठ भाग्य लिख रही हूँ... मैं आत्मा अब बेहद की समझ धारण कर अलौकिक व असाधारण कर्म कर रही हूँ... सदा इसी स्मृति में रहती हूँ की मैं हीरो पार्टधारी हूँ... मैं आत्मा ही आदि से अंत तक विशेष पार्ट बजाते आयीं हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सदा स्वदर्शन चक्र फिराते रहती हूँ... मैं आत्मा अनादिकाल में बिंदु रूप में अपने प्यारे बाबा के साथ परमधाम में थी... आदिकाल में मुझ आत्मा ने कितना ही सुंदर, अद्वितीय देवता स्वरूप में पार्ट बजाया था... मुझ आत्मा ने ही मध्य काल में अपने पूज्य स्वरूप से भक्तों को वरदान दिया था... अब मैं श्रेष्ठ संगमयुगी ब्राह्मण आत्मा का पार्ट बजा रही हूँ... फरिश्ता स्वरूप धारण कर विश्व का कल्याण करती हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा विजयीपन के निश्चय के आधार पर हर कार्य करती हूँ... त्रिकालदर्शी बन सोच समझकर हर कदम उठाती हूँ... अब मैं आत्मा अपने तीनों कालों को सामने रखकर हर कार्य करती हूँ... हर बोल बोलती हूँ... मैं तीनों कालों को सामने रख हर कार्य में सफल होने वाली सदा विजयी आत्मा हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- हद के किनारो को छोड़ एक बाप को सहारा बनाना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा बेहद की वैरागी हूँ... मेरा तो बस एक शिवबाबा हैं, दूसरा न कोय... शिवबाबा ही मेरा सच्चा-सच्चा सहारा हैं... मेरे सब सम्बन्ध शिवबाबा के साथ ही हैं... हर परिस्थिति में... हर मुसीबत में शिवबाबा सदा मेरे साथ हैं... वही मेरा सच्चा-सच्चा साथी हैं... सांसारिक सम्बन्ध तो सब मतलब के लिए हैं... पर शिवबाबा का प्यार तो निस्वार्थ हैं...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा ने सभी झूठे हद के किनारों को छोड़... शिवबाबा को अपना सहारा बना लिया हैं... वही इस झूठे संसार में, सच्चा सहारा हैं... वही मेरा मन मीत हैं... वही मेरा हमसफ़र हैं... जो मुझे इस विषय सागर से पार ले जायेगा... मैंने अपनी जीवन कश्ती की पतवार शिवबाबा के हवाले कर दी हैं... अब मैं एकदम निश्चिन्त हूँ... सर्वशक्तिमान बाप मेरा सहारा बना हैं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा इस संसार में मेहमान हूँ... मुझे अब समझ मिली हैं... की सभी आत्मायें केवल अपना-अपना पार्ट बजाने हेतु ही सम्बन्ध सम्पर्क में आती हैं... इस लिए कोई भी हद का सहारा स्थाई या विश्वसनीय नहीं हो सकता... मुझे किसी भी हद की वस्तु में लगाव या झुकाव नहीं हैं... मैं नष्टमोहा आत्मा हूँ...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा को सर्वशक्तिमान बाप से शक्तियाँ ले अन्य आत्मा को भी सहारा देना हैं... हद के सहारे मेरे लिए नहीं हैं... अपितु मुझे सर्व का सहारा बनने का निमित्त शिवबाबा ने बनाया है... शिवबाबा का सहारा पाकर मुझे किसी हद के सहारे की आवश्यकता ही नहीं बची...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *तीनों कालों को सामने रख हर कार्य में सफल होने वाले सदा विजयी होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ लौकिक में भी जो बच्चे समझदार होते है व हर कदम सोच समझ कर उठाते है। हर कार्य करते हुए उसके होने वाले परिणाम को ध्यान में रखते हुए करते है तो ऐसे ही जो आत्माऐं जब भी कोई कार्य करते हैं तीनों कालों को सामने रख करती हैं सिर्फ वर्तमान को नही देखते और बेहद की धारणा रखते हैं वो सदा विजयी होते हैं।
❉ जो बच्चे सदा ये स्मृति में रखते हैं कि मैं आत्मा कल्प कल्प की विजयी रतन हूं वो विजयीपन के निश्चय के आधार पर वा त्रिकालदर्शी पन के आधार पर हर कर्म करते है व हर कर्म में व बोल में अलौकिकता होती है और वो सदा विजयी होते हैं।
❉ जिन बच्चों को ये नशा व खुशी रहती कि मैं आत्मा त्रिकालदर्शी की संतान मास्टर त्रिकालदर्शी हूं व स्वयं भगवान ने मुझे आदि मध्य अंत की नॉलेज देकर त्रिकालदर्शी बना दिया है वो त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट होकर हर कर्म करते सफल होते है और सदा विजयी रत्न होते हैं।
❉ जो संगमयुग के अनमोल समय के महत्व को जान हर कदम पर बाबा को साथ रखते हुए बाबा की याद में ही हर कदम पर पदमों की कमाई जमा करते है व जब बाबा ने भाग्य लिखने की कलम स्वयं बच्चों के हाथ में दे दी है तो इस अनमोल समय कमाई करते तीनों कालो को सामने रख हर कार्य में सफल होने वाले विजयी होते हैं।
❉ जो ड्रामा के आदि मध्य अंत के राज को जान हर बात में कल्याण छिपा है व ऐसा दृढ़ निश्चय रखते है कि सदैव हजार भुजाओं वाले बाप साथ है। बाप ने हरेक के मस्तक पर विक्टरी का तिलक लगाया है तो ऐसी आत्माओं की कभी हार हो ही नही सकती। वो तीनों कालों को सामने रख हर कार्य में सफलता प्राप्त करते हैं।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *हद के किनारों को छोड़ एक बाप को सहारा बना लो तो पार हो जायेंगे... क्यों और कैसे* ?
❉ बाबा की पहली श्रीमत है कि देह सहित देह के सब सम्बन्धों को भूल मामेकम याद करो । क्योकि देह और देह के सम्बन्धी हद के किनारे हैं जिनके लगाव की सूक्ष्म जंजीरे कभी भी जीवन रूपी नैया को पार नही जाने देंगी । इसलिए जितना हद के इन किनारों को छोड़ एक बाप को सहारा बनाएंगे । तो बाप स्वयं खिवैया बन हमारी जीवन रूपी नैया को पार ले जायेंगे ।
❉ शरीर से परे अपने स्व - स्मृति में रहना ही हद के किनारों से छूटना है । स्वयं को देह समझना अर्थात हद के बंधनों में बंध जाना और स्वयं को आत्मा निश्चय करना अर्थात सर्व बन्धनों से मुक्त हो जाना । क्योंकि जब स्वयं को आत्मा समझते हैं तो आत्मा का सिवाय परमात्मा के और कोई नही । इसलिए जितना स्व - स्मृति में रह परमात्मा के प्रेम की लगन में मग्न रहेंगे तो हद के किनारे स्वत: छूटते जायेंगे और बाप सहारेदाता बन पार ले जायेंगे ।
❉ एकांत में बैठ जितना आवाज से परे, निराकारी स्थिति में स्थित रहने का अभ्यास करेंगे उतना मनमनाभव की स्थिति में स्थित रह सकेंगे । यह मनमनाभव की स्थिति ही हद के किनारों को छोड़ने में मददगार बनेंगी । क्योकि जब बाप को सहारा बनायेंगे तो हद के किनारे धीरे धीरे अपने आप दूर होते जायेंगे । जीवन की सारी समस्याएं समाप्त होती जाएंगी और बाप साथी बन जीवन रूपी नैया को पार ले जायेंगे ।
❉ इस बात को सभी स्वीकार करते हैं कि इस दुनिया में मनुष्य अकेला आता है और उसे वापिस भी अकेले ही जाना है । जितना इस बात को स्मृति में रखेंगे उतना देह का आकर्षण धीरे धीरे समाप्त होता जायेगा और बुद्धि का योग दुनियावी सम्बन्धो से निकल एक परमात्मा में लगने लगेगा । परमात्म ज्ञान को जब ढाल बना कर अपने साथ रखेंगे तो हद के किनारे छूटते जायेंगे और केवल एक परमात्मा बाप ही सहारा बन जायेंगे ।
❉ जितना सर्व सम्बंधों के साथ बाबा से अटैच रहेंगें उतना देह और देह की दुनिया से डिटैच होते जायेंगे । बाप से अटैच माना दुनिया से ए - टू - जेड डिटैच । किसी बात का कोई फ़िक्र और चिंता नही । सब कुछ बाप के हवाले । जब ऐसी स्थिति में निरन्तर स्थित रहेंगे तो उड़ता पंछी बन उड़ते रहेंगे । केवल कर्म करने के लिए देह और देह के सम्बन्धो में जब आएंगे तो हद के सभी किनारे दूर होते जायेंगे और एक बाप के सहारे जीवन की नैया सहजता से पार हो जायेगी ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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