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❍ 21 / 11 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *बाप समान ज्ञान का, आनंद का, प्यार का सागर बनकर रहे ?*
➢➢ *आत्माओं को ज्ञान का तीसरा नेत्र दिया ?*
➢➢ *संगदोष से अपनी संभाल की ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *कर्म करते हुए कर्म के बंधन से मुक्त रहे ?*
➢➢ *एकरस स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर विराजमान रहे ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *अपनी हथेली पर स्वर्ग के स्वराज्य का गोला अनुभव किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - संगदोष बहुत नुकसान करता इसलिए संगदोष से अपनी सम्भाल करते रहो वह बहुत खराब है"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता ने जो अब अपने प्यार भरे हाथो में पाला है... तो बुरे संग की मिटटी में अपना उजला स्वरूप फिर से मटमैला न करो... इस ईश्वरीय चमक को देहभान और बुरे संग में धुंधला न करो... ईश्वरीय गोद से नीचे उतरकर खुद को फिर से मलिन न करो... अपना हर पल ख्याल रखो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा मै आत्मा देहभान और विकारो के संग में आकर अपने सत्य स्वरूप को खोकर किस कदर दुखी और मलिन से हो चली... अब जो मीठे बाबा ने मुझे अपनी बाँहों में लेकर श्रंगारा है... मै दमकती आत्मा यह ईश्वरीय चमक हर दिल पर सजा रही हूँ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर बागबान से जो खुशबूदार फूल बन महके हो तो अब फिर से काँटों का संग न करो... अपनी बहुत सम्भाल करो... ईश्वर प्रेम में खिली मन बुद्धि की पंखुड़ियों को बुरे संग की तेज धूप में फिर से न कुम्हलाओ... अपनी ईश्वरीय खुशबु और रंगत महकेपन का हर साँस से ध्यान रखो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा प्यारे बाबा संग जो खिला फूल हो चली हूँ... इस रूहानियत की खुशबु पूरे जहान में फैला रही हूँ... संगदोष से दूर रह सबपर ईश्वरीय यादो का रंग चढ़ा रही हूँ... सबके जीवन में अपने जेसी बहार लाकर ऐसा ही खूबसूरत बना रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने सुंदर खिले हुए दामन में अब फिर संगदोष में आकर दाग न लगाओ... ईश्वरीय श्रीमत का हाथ थाम सदा हंसो के संग मुस्कराते रहो... देहधारियों के प्रभाव से मुक्त रहकर सदा ज्ञान रत्नों से श्रंगारित रहो... संगदोष फिर से विकारो की कालिमा से बेनूर कर देगा... इससे परे रहो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा की श्रीमत को दिल में समा कर प्रतिपल अपना ख्याल रख रही हूँ... मीठे बाबा आपने जो समझ भरा तीसरा नेत्र दिया है उससे स्वयं को हर बुराई से परे रख हंसो संग झूम रही हूँ... और अपने उजले पन में मुस्करा रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा सहजयोगी स्वतः योगी हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा पंछी साकारी दुनिया रुपी झाड़ के डाल पर बैठी हूँ... मैं, मेरेपन के हाथ इन डालियों को पकडे हुए हैं... कर्मबंधनों से जकडी हुई हूँ... इस दुनिया रुपी झाड़ को ही अपना संसार समझ बैठी थी... डाल की पंछी बनकर रह गई थी...
➳ _ ➳ अब मेरे प्राणेश्वर बाबा ने आकर मुझ आत्मा पंछी के मायावी आकर्षण के पंख काटकर, ज्ञान के पंख लगा दिये... प्यारे बाबा ने स्मृति दिलाई की मैं तो आजाद आसमान में उड़ता पंछी हूँ... इस दुनिया रुपी झाड़ की डालियों से लगाव छोड़ मुझे उड़ता पंछी बनना है...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा पंछी, बाबा के द्वारा दिये 'छोडो तो छूटो ' महामंत्र को स्मृति में रख उड़ती कला का अभ्यास कर रहीं हूँ... एक बाबा की याद से सारे कर्मबंधनों को तोड़ रहीं हूँ... दुनियावी आकर्षण से मुक्त होती जा रहीं हूँ... बाबा को ही अपना संसार समझ उड़ता पंछी बनते जा रहीं हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा जब चाहे, जितना समय चाहे, अपने संकल्प, श्वांस को एक प्राणेश्वर बाप की याद में स्थित कर सकती हूँ... एक सेकेंड में न्यारी होकर बाप की प्यारी बन रहीं हूँ ... बाबा से मिली अनमोल गिफ्ट दिव्य बुद्धि से ज्ञान और योग रुपी पंख लगाकर दुनियावी डाल को छोडकर प्यारे बाबा की गोद में पहुँच जाती हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा शरीर से परे अशरीरी, आत्म अभिमानी, बंधनमुक्त, योगयुक्त स्थिति का अनुभव करने वाली सहजयोगी, स्वतः योगी, सदा योगी, कर्म योगी और श्रेष्ठ योगी बन रहीं हूँ... अब मैं महावीर आत्मा बन कर्म करते हुए कर्म के बंधन से मुक्त रहने वाली सहजयोगी स्वतः योगी बन गई हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- एकरस स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर विराजमान रहना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा शांत स्वरूप हूँ... भृकुटि सिंहासन पर विराजमान... एक की लगन में मगन हूँ... मेरा तो बस एक शिवबाबा दूजा न कोय... दिन-रात शिवबाबा की ही याद में मगन... मैं महान तपस्वी आत्मा हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सूरजमुखी बन, शांति के सूर्य को... एकटक देखती हूँ... शिवबाबा सदा मेरी नजरों में समाया हुआ हैं... मेरी हर स्वांस में मेरा बाबा समाया है... शिवबाबा ही मेरे जीवन की स्वांस हैं... मेरे संकल्पों की माला में सिर्फ शिवबाबा ही पिरोया हुआ हैं... हर पल उसकी याद से मैं आत्मा सदा एकरस स्थिति के आसन पर विराजमान हूँ...
➳ _ ➳ बाबा के रूहानी स्नेह में लवलीन आत्मा... बाबा के साथ कम्बाइंड हूँ... वो मेरा माशूक... मैं आत्मा उसकी इस कदर दीवानी... की एक पल भी उससे नजर हटाने को जी ही नहीं करता... बस उसे निहारू... उसे देखती ही रहूँ... उससे ही मेरे जीवन में सब रस हैं... उसके बिना तो मेरा जीवन नीरस है...
➳ _ ➳ मैं तपस्वी आत्मा... योगी तू आत्मा हूँ... तपस्या से ही मेरा सम्पूर्ण जीवन पावन हो गया हैं... मेरे तप की शक्ति से... यह विश्व परिवर्तन हो रहा है... मेरी तपस्या के बल से ही सम्पूर्ण सृष्टि सतोप्रधान हो रही हैं... मेरे तपस्या का प्रकाश पूरे विश्व में फ़ैल रहा हैं...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *कर्म करते हुए कर्म के बंधन से मुक्त रहने वाले सहजयोगी स्वतः योगी होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ जो बच्चे सहजयोगी स्वतः योगी होते हैं उन्हें इस साकारी दुनिया के आकर्षण अपनी तरफ आकर्षित नही कर सकते। वो अपने को सदा हजार भुजाओं वाले बाप की छत्रछाया मे रहते है व सर्व सम्बंध सिर्फ बाबा से ही रखते है। इसलिए हर कर्म करते हुए बाबा को साथ रख करते हुए कर्म के बंधन से मुक्त रहते हैं।
❉ जो बच्चे देह व देह के सर्व धर्मों से स्वयं को न्यारा रखते हुए कर्म करते है व मान शान यश अपयश से फीलिंग प्रूफ रहते हैं। कर्म किया व उसके प्रभाव से न्यारा रहते हैं तो कर्म के बंधन से मुक्त रहते है। बस एक बाफ की ही याद में हर कर्म करते हैं तो वो सहजयोगी स्वतः योगी होते हैं।
❉ मैं आत्मा राजा हूँ व सब कर्मेन्द्रियां मेरे मंत्री हैं मेरे अधीन है । जब चाहे जितना समय चाहूं अपने आर्डर प्रमाण चला सकता हूँ व स्वराज्याधिकारी आत्मा हूँ
। ऐसे बच्चे एक प्यारे परमपिता की याद में रहने से शरीर से डिटैच होकर अशरीरी, आत्म-अभिमानी, बंधन मुक्त, योगयुक्त स्थिति का अनुभव करने वाले ही सहजयोगी स्वतः योगी सदा योगी होते हैं।
❉ जिनका हर संकल्प, बोल, कर्म बस बाबा के लिए होता है व अपना सब कुछ बाबा को अर्पण कर निश्चिंत बेफिकर रह हलके रहते हैं। ऐसे बच्चे कर्म करते हुए कर्मबंधन से मुक्त रहते है व अपना बुद्धियोग बस बाप के साथ जोड़े रखते हैं व सहजयोगी स्वतःयोगी होते हैं।
❉ जो बच्चे अपने को बस निमित्त समझ हर कर्म करते है तो वो मैंपन से दूर रहते हैं व कर्म के प्रभाव से परे रहते हैं। हर कर्म में बाबा को साथ रखते है व करनकरावनहार सब मीठा बाबा ही है। हर कर्म का फल बस बाबा को समर्पित करते है तो कर्मबंधन से मुक्त रह सहजयोगी स्वतः योगी होते हैं।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *एकरस स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर विराजमान रहना - यही तपस्वी आत्मा की निशानी है... क्यों और कैसे* ?
❉ सच्चा तपस्वी उसे कहा जाता है जो अपनी तपस्या के बल से हर परिस्थिति को सहजता से ऐसे पार कर ले जैसे कोई परिस्थिति कभी आई ही नही । अपनी श्रेष्ठ स्व स्थिति के बल से बड़ी से बड़ी समस्या को भी सेकण्ड में सुलझा कर जो अचल अडोल रहते हैं और एकरस स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर दृढ़ता के साथ ऐसे विराजमान रहते हैं कि उस आसन से उन्हें कोई परिस्थिति हिला डुला नही सकती । ऐसी आत्मा ही वास्तव में सच्ची तपस्वी आत्मा हैं ।
❉ भक्ति में भी दिखाते हैं कि एक महात्मा भी जब तपस्या में लीन होता है तो उसकी तपस्या के बल से उसके सामने आने वाले विघ्न और बाधाएं स्वत: ही टल जाते हैं क्योंकि उसकी तपस्या का बल उसके चारों और एक ऐसा प्रभा मण्डल बना देता है कि उस तक कोई भी विघ्न पहुँच ही नही पाता । यहां भी माया के अनेक प्रकार के विघ्न स्थिति को प्रभावित करने के लिए आते हैं किंतु अपनी तपस्या में लीन हो कर जो एकरस स्थिति के आसन पर विराजमान रहते हैं वही उन विघ्नों पर जीत पाने वाले सच्चे तपस्वी बनते हैं ।
❉ शास्त्रों में गायन है कि बड़े बड़े ऋषि मुनियों ने परमात्मा को प्रसन्न करने के लिए और परमात्मा से मनचाहा वरदान पाने के लिए अनेक प्रकार के यज्ञ तप आदि किये और अपनी तपस्या से परमात्मा को प्रसन्न करके उनसे मनचाहा वरदान प्राप्त किया । अप्रत्यक्ष रूप में की गई तपस्या जब स्थिति को इतना श्रेष्ठ बना सकती है तो यहां तो स्वयं परमात्मा प्रत्यक्ष रूप में हमारे सामने हैं । तो उनकी याद में जो सदा मग्न रहते हैं अपनी तपस्या के बल से वे एकरस स्थिति के आसन पर विराजमान रहने वाले सच्चे तपस्वी सहज ही बन जाते हैं ।
❉ अपने तप के बल से रिद्धि सिद्धि प्राप्त करने वाले साधू महात्मा भी अपनी रिद्धि सिद्धि से अनेक आश्चर्यजनक कार्य कर दिखाते हैं । किंतु हम ब्राह्मणों की सबसे बड़ी सिद्धि है सिद्धि स्वरूप आत्मा बन अनेको आत्मायों का कल्याण करना । और सिद्धि स्वरूप बन अनेकों आत्मायों का कल्याण तभी कर सकेंगे जब सब बातों से उपराम हो कर एकरस स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर विराजमान रहेंगे । अपनी एकरस स्थिति से न केवल स्वयं को बल्कि अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को भी हर प्रकार की हलचल से जब मुक्त कर पायेंगे तभी तपस्वी आत्मा कहलायेंगे ।
❉ कर्मेन्द्रियों के अनेक प्रकार के रसों को छोड़ जो केवल एक के ही रस में डूबे रहते हैं वही सदा एकरस स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर विराजमान रह सकते हैं । क्योंकि इंद्रियों के सुख की लालसा आत्मा को पतन की ओर ले जाती है और उन्ही क्षणिक सुखों को पाने के लिए ही मनुष्य विकर्म करता चला जाता है । किन्तु प्रभु प्रेम के रस में जो डूब जाते हैं उन्हें दुनिया का कोई भी रस फिर अपनी ओर आकर्षित नही कर पाता और एकरस स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर विराजमान हो कर वे सदा परमात्म रस का पान करने वाले सच्चे तपस्वी बन जाते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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