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❍ 23 / 05 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ √बाप और वर्से√ की याद में रहे और दूसरों को याद दिलाई ?
➢➢ इस ×पुरानी दुनिया× से, इस कब्रिस्तान से दिल तो नहीं लगाई ?
➢➢ स्वयं को ×देवता× बनाने के लायक पुरुषार्थ किया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ √श्रीमत√ द्वारा सदा ख़ुशी व हल्केपन का अनुभव किया ?
➢➢ बुधी रुपी विमान द्वारा वतन में पहुँच कर √ज्ञान सूर्य√ की किरणों का अनुभव किया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ बापदादा से प्राप्त √तत्त्वम्√ के वरदान का अनुभव किया ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं मनमत और परमत से मुक्त आत्मा हूँ ।
✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-
➳ _ ➳ योगयुक्त स्तिथि में बैठकर बाबा से रुहरिहान करते हुए मन को एक चिंतन दें कि... सोचो, भगवान ने हमको कितना प्यारा परिवार दिया है... हम किसके बच्चे हैं, भगवान के ! और भगवान ने ब्रह्मा सरीखी माँ दी, फिर ईश्वरीय परीवार का हिस्सा होने का हक़ दिया...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा का प्यारे बाबा ने इतना ध्यान रखा कि मेरे बच्चे को रत्ती भर भी दुःख न हो तो उसके लिए सर्व सम्बन्ध खुद एक से ही निभाने की युक्ति बताई... खुद ही हर बच्चे को खुश रखने का बीड़ा उठाया...
➳ _ ➳ और हम बच्चे फिर भी उससे हर सम्बन्ध का सुख लेने की बजाए दुनियादारी में ही उलझने लगते हैं... उसको दिन रात हमारा ख्याल रहता है... अब सोचो अगर इस भाग्यशाली युग में बाबा के साथ इस सुख का अनुभव नहीं लिया तो फिर कभी नहीं ले सकेंगे क्योंकि कल्प - कल्प यही पार्ट रिपीट होगा...
➳ _ ➳ इसलिए आज मैं बाबा की बच्ची बाबा के समक्ष यह दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मैं अपना हर कदम सदा श्रीमत प्रमाण उठाऊंगी... ज़रा सी भी ख़ुशी की परसेंटेज यदि कम होगी तो मैं अपनी सूक्ष्म चेकिंग करुंगी कि मैं कहीं श्रीमत की अवज्ञा तो नहीं कर रहीं हूँ...
➳ _ ➳ इन्हीं संकल्पों के साथ मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मैं मनमत वा परमत से स्वयं को मुक्त कर रहीं हूँ...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा का मन सदा सन्तुष्टता का अनुभव कर रहा है... मन में किसी प्रकार की कोई भी हलचल नहीं हो रही है... श्रीमत पर चलने से मुझ आत्मा को नेचुरल ख़ुशी वा हल्केपन का अनुभव हो रहा है ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - यह दुनिया अब कब्रिस्तान होने वाली है, इसलिए इससे दिल नही लगाओ, परिस्तान को याद करो"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे यह मिटटी की दुनिया मिटटी होने का वक्त नजदीक आ चला है... यह मिटटी के रिश्ते मिटटी में मिल तुम्हे सदा का ठग जायेंगे... अब इनसे न दिल लगाओ सच्चे सुखो भरी दुनिया चित्त में सजाओ...
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे खेल में पात्रो की कहानी में उलझ गए और दुखो से दामन भर चले... अब कब्रिस्तान का सीन खेल का अंतिम दृश्य है... अब यहाँ बुद्धि को न उलझाओ इन महज खेलो से दिल न लगाओ... सतयुगी संसार को दिल में बसाओ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे कब्रिस्तान में भला मिलेगा ही क्या तो फिर दिल लगाना भी व्यर्थ है... जहाँ कुछ प्राप्ति नही उस दुखमय संसार से प्रीत निष्फल सी है... अपने सुनहरे संसार को याद करो जहाँ सुखो की खान समायी है...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चे कब्रिस्तान से दिल लगाकर क्या से क्या बन चले... अपनी सारी खूबसूरती को खो खाली हो चले... अब और न सांसो को यहाँ लुटाओ... दिल में मीठे संसार की यादे भर लाओ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चे इस झूठ की दुनिया से दिल न लगाओ... यह दुनिया खत्म होने को है... अब यहाँ से बुद्धि निकाल सुख और प्यार भरी आनन्दमयी दुनिया में खो जाओ... खूबसूरत सतयुगी दुनिया से प्रीत लगाओ...
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ इस पुरानी दुनिया से, कब्रिस्तान से दिल नही लगानी है । शांतिधाम, सुखधाम को याद करना है ।
❉ इस पुरानी दुनिया जिसका विनाश होना ही है व जब ये पता है कि ये चीज मेरी है ही नही और सब मिट्टी में ही मिल जाना है , तो उससे मोह ही क्यूं रखना । उसमें दिल रखेंगे तो दुःखी होंगे ।
❉ अभी तक तो अज्ञानता के कारण इस देह व देह के ही सब सम्बंधों को ही अपना सब कुछ समझ उनमें ही फंसे रहे व देहभान में रह दुःखी होते रहे व पतित बनते गए । अभी तो सत् का ज्ञान मिलने पर दिव्य बुद्धि मिलने पर इस पुरानी दुनिया से मोह नही रखना ।
❉ ये शरीर भी विनाशी है व ये धन दौलत जिसको कमाने में हम सारा जीवन लगा देते है वो भी एक दिन सब मिट्टी में मिल जाना है , ये शरीर भी हमारा नही है जिसे मेरा मेरा कहते रहते हैं । ये भी अमानत है व नाम भी दूसरों के द्वारा मिला है । अपना कुछ भी नही है मेरा । इसलिए पुरानी दुनिया पुराना शरीर किसी से मोह नही रखना सब कब्रदाखिल होना है ।
❉ बस अभी देहभान को छोड़ देही अभिमानी बनना है । अपने को आत्मा समझ परमात्मा बाप को याद करना है । यही अविनाशी कमाई ही साथ जानी है । बाप को याद करते हैं तो घर की याद स्वतः ही आती है ।
❉ ये हमारा अंतिम जन्म है इसलिए पावन जरुर बनना है क्योंकि पावन बने बगैर घर नही जा सकते । हमें एक आँख में शांतिधाम व दूसरी आँख में सुखधाम को रखना है व याद करना है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ श्रीमत द्वारा सदा खुशी व हल्केपन का अनुभव करने वाले मनमत और परमत से मुक्त होते हैं.... क्यों और कैसे ?
❉ जिन बच्चों को ये नशा होता है कि हमें कौन मिला है स्वयं भगवान जो ऊंच ते ऊंच , सर्वोच्च और सर्वज्ञ है । हमारा सुप्रीम बाप है वही सुप्रीम टीचर भी है सुप्रीम सतगुरु भी है तो ऐसे श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बाप की श्रीमत पर चल सदा खुशी का व हल्केपन का अनुभव कर मनमत व परमत से मुक्त होते हैं ।
❉ जिनको ये नशा होता है कि स्वयं भगवान ने कोटों मे कोई , कोई मे से भी कोई में मुझे चुना है व अपना बनाया है व अपने को पदमापदम भाग्यशाली समझते है । ऐसे परमपिता परमात्मा बाप की छत्रछाया में ही अपने को अनुभव करते हैं । हर कर्म बाप से राय लेकर ही करते है व सफलता प्राप्त कर खुशी व हल्केपन का अनुभव करने वाले मनमत और परमत से परे रहते हैं ।
❉ जैसे लौकिक मेंभी बच्चा माँ-बाप के कहे अनुसार चलता है तो उसे सफलता मिलती है व खुशी होती है । हमें तो बेहद का बाप मिला है तो जिन बच्चों का हर कदम श्रीमत प्रमाण होता है उनका मन संतुष्ट होता है व मन में कोई हलचल नही होती । श्रीमत पर चलने से स्वाभाविक खुशी होती है व हल्केपन का अनुभव होता है व मनमत , परमत से मुक्त होते हैं ।
❉ जो बच्चे हमेशा श्रीमत पर चलते हैं व किसी भी बाहरी आकर्षण से प्रभावित नही होते व न ही ये परवाह करते कि कोई क्या कहेगा । वो देहभान से परे होते है तो किसी हलचल में नही आते व मनमत या परमत मिक्स नही करते । बस एक ही लगन में मगन होते है कि मेरा तो शिव बाबा दूसरा न कोई और हमेशा खुशी व हल्केपन का अनुभव करते हैं ।
❉ जो बच्चे बस यही स्मृति रखते कि सदगुरु की आज्ञा सिर माथे । बस उन्हें तो सुप्रीम सदगुरु से इतना दिल से प्यार होता की बस जो सच्चे बाप, सच्चे सदगुरु ने कहा वही आदिकाल से रात तक उन्हीं मर्यादाओं पर चलना ही है व उनका पालन करते सच्चे बाप पर बलिहारी जाते हैं । सम्पूर्ण रीति श्रीमत पर चलते खुशी व उमंग उत्साह में रह हल्केपन का अनुभव कर मनमन वा परमत से मुक्त रहते हैं ।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ बुद्धि रूपी विमान द्वारा वतन में पहुँच कर ज्ञान सूर्य की किरणों का अनुभव करना ही शक्तिशाली योग है... क्यों और कैसे ?
❉ बुद्धि रूपी विमान द्वारा वतन में पहुँच कर ज्ञान सूर्य की शक्तिशाली किरणों का अनुभव करने के लिए सिर्फ बुद्धि रूपी विमान में डबल रिफाइन पेट्रोल की आवश्यकता है । डबल रिफाइन अर्थात् एक निराकारी निश्चय का नशा कि मैं आत्मा हूँ, बाप का बच्चा हूँ, दूसरा साकार रूप में सर्व संबंधों का नशा । यह नशा और खुशी ही शक्तिशाली योग का अनुभव करा कर सहजयोगी बना देगी ।
❉ इस देह और देह की दुनिया से जितने उपराम रहेंगे उतने डबल लाइट फ़रिश्ता बन तीनो लोको की सैर करते रहेंगे । बस संकल्प का स्विच ऑन किया और सेकण्ड में बुद्धि रूपी विमान पर बैठ जब चाहे वतन में पहुँच कर बाप दादा के साथ वतन की सैर कर सकते हैं, चन्द्रमा की चांदनी का आनन्द ले सकते है तथा ज्ञान सूर्य की शक्तिशाली किरणों का अनुभव कर शक्तिशाली योगयुक्त स्थिति का अनुभव कर सकते हैं ।
❉ जैसे बाप प्रवेश होते हैं और चले जाते है । बच्चे बुलाते हैं और बाप परकाया प्रवेश होकर भी प्रीत की रीति निभाने आ जाते हैं, समान बन जाते हैं । तो जैसे बाप स्नेह के कारण साकार वतन निवासी, साकार रूपधारी बन जाते हैं । वैसे ही जब हम भी बाप के गुणों समान सर्व गुणों में मास्टर तथा बाप समान आकारी अव्यक्त वतन निवासी बनेंगे तो सेकण्ड में बुद्धि रूपी विमान द्वारा वतन में पहुँच कर ज्ञान सूर्य की शक्तिशाली किरणों का अनुभव कर सकेंगे ।
❉ जैसे एरोप्लेन जब उड़ते हैं तो पहले चेकिंग होती है फिर माल भरना होता है, जो भी उसमें चाहिए । उसके बाद धरती को छोड़ना होता है फिर उड़ना होता है । इसी प्रकार डायरेक्शन प्रमाण एक सेकेण्ड में उड़ने का आदेश मिलते ही आत्मा बन, स्वयं को शक्तियों से सम्पन्न कर, शुद्ध संकल्प रूपी विमान में बैठ सेकेण्ड में देह रूपी धरती को छोड़ अशरीरी स्टेज पर जब स्थित होंगे तो जब चाहे बुद्धि रूपी विमान में बैठ वतन में पहुँच ज्ञान सूर्य की शक्तिशाली किरणों का अनुभव कर सकेंगे ।
❉ ब्राह्मण जन्म कर्मबन्धनी जन्म नहीं, कर्मयोगी जन्म है । इस अलौकिक दिव्य जन्म में ब्राह्मण आत्मा स्वतंत्र है न कि परतंत्र । जब तेरे को मेरे में लाते हैं तब परतंत्र होते हैं । इसलिए अगर मेरे को तेरे में परिवर्तन कर, ऐसे स्वतंत्र होकर रहें कि यह लोन मिली हुई देह है, तो सेकेण्ड में उड़ सकते हैं । अनेक बन्धनों से स्वयं को मुक्त कर एक बाप के सम्बन्ध में जब रहेंगे तो सदा एवर-रेडी रहेंगे । सेकण्ड में जब चाहे वतन में पहुँच ज्ञान सूर्य की शक्तिशाली किरणों का आनन्द ले , योग की शक्तिशाली स्थिति का अनुभव कर सकेंगे ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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