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 10 / 09 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ जो बात बीत गयी, नथिंग न्यू समझ उसे भूले ?

 

➢➢ इस राजस्व अश्वमेध यग्य में अपना तन-मन-धन सब कुछ सफल करने पर अटेंशन रहा ?

 

➢➢ सम्पूरण पावन बनने की मेहनत की ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ न्यारे और प्यारेपन की योग्यता द्वारा लगावमुक्त बनकर रहे ?

 

➢➢ स्व पुरुषार्थ और सेवा के बैलेंस द्वारा बंधन को सम्बन्ध में बदला ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢  न्यारे और प्यारे दोनों साथ साथ बनकर रहे ?

 

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-murli.com/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/10.09.16-VisheshPurusharth.pdf

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - इस बेहद के ड्रामा में हीरो हीरोइन का पार्ट तुम्हारा है बाप का नही, बाप के पास सिर्फ पतितो को पावन बनाने का हुनर है"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... मेरी यादो के साये में बैठकर कितना खूबसूरत भाग्य पाते हो कि इस बेहद के ड्रामा में सबसे सुंदर भूमिका हीरो बन निभाते हो... मै पिता खुद सुख नही भोगता पर अपने बच्चों के सुख में खपता हूँ... अपने पतित हो चले बच्चों को पावन देवता सजाता हूँ... तब चैन मै पिता पाता हूँ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा अपने पिता की मीठी यादो में... सुंदर देवता बन सजती हूँ... पावन बन महकती हूँ और विश्व धरा पर... हीरो हीरोइन के पार्ट को अदा कर मुस्कराती हूँ...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... मेरे सुंदर फूल से खिले बच्चे को पावनता के श्रंगार से सजा... बेहद के स्टेज पर हीरो सा उतारता हूँ... मै पिता खुशियो के सौगातों से बच्चों की झोली भर जाता हूँ... और बच्चे को सुख शांति आनन्द में खिलाकर सदा का आराम पाता हूँ...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आप पारस पिता के साथ से सदा की पावन हो दमक उठी हूँ... सम्पूर्ण पवित्रता से भर चली हूँ... आपके प्यार में गुणो और शक्तियो से सज चली हूँ... निखर उठी हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... इस बेहद के ड्रामा के स्टेज पर आप बच्चे ही हीरो हीरोइन बन पार्ट बजाते हो... ईश्वर के बच्चे ही सबसे शानदार पार्ट बजाते है दूसरा और कोई नही... देहभान से मटमैले हो चले हीरों को... हीरो पार्टधारी बनाने ही ईश्वर पिता धरती पर आ चला है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा जो देहभान में आकर पतित बन चली थी प्यारे बाबा ने पावन बना दिया है... मुझे मेरा दमकता चमकता स्वरूप लौटा दिया है... मै आत्मा पिता के मीठे साये में सजीली संवरी सी मुस्करा रही हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - नथिंग न्यू का पाठ पक्का करना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा प्रकृति के पांचों तत्वों के बीच रहती देह व देह के सर्व सम्बंधों से स्वयं को एक चमकता सितारा देख रही हूं... मैं पवित्र आत्मा हूँ... देह से न्यारी हूँ... अति सूक्ष्म हूँ ..परमधाम में ज्योति बिंदु के सामने बैठी हूँ... मुझे अपने असली स्वरुप की पहचान प्यारे शिव पिता ने दी है... इस संगमयुग पर ही मुझ आत्मा को मैं आत्मा बिंदु, परमपिता परमात्मा बिंदु, ड्रामा बिंदु इन तीनों बिंदु का ज्ञान दिया है... मैं आत्मा इस अनमोल संगमयुग के महत्व को जान परचिंतन, परदर्शन, बीती बातों में व्यर्थ समय नही गंवाती हूं... मैं आत्मा बिंदु बन बिंदु बाप की याद में रहती हूं... मैं आत्मा सवेरे उठते ही तीनों बिंदुओं का स्मृति तिलक लगाती हूं... मैं आत्मा साक्षी होकर ड्रामा के हर सीन को देख रही हूँ... हर आत्मा अपना पार्ट एक्यूरेट बजा रही है... ड्रामा सदा कल्याणकारी है...यह पाठ पक्का कर अब शरीर में आते ही बीती को बिंदु लगा रही हूँ... ड्रामा की हर बात में नूध है... नथिंग न्यू है... कल्प पहले भी ऐसा हुआ... हर बार इस परिस्थिति पर विजय मिली है... मैं हर फ़ाइल को अब बन्द कर बीती को बिंदु लगा रही हूँ... व्यर्थ के चिंतन से मुझ आत्मा ने पहले ही अपनी शक्तियॉ क्षीण हो गयी थी... अब व्यर्थ का खाता नही जमा का खाता बनाना है... अब परमात्म शक्तियों से स्वयं को सम्पन्न कर हर परिस्थिति को खेल समझ सहज पार करते हुए आगे बढ़ रही हूं... बीती से सीख लेते हुए नथिंग न्यू का पाठ पक्का कर रही हूं...

 

❉   "ड्रिल - राजस्व अश्वमेघ यज्ञ में अपना तन-मन-धन सब सफल करना"

 

➳ _ ➳ मैं आत्मा परमपिता की सन्तान हूँ... मेरे पिता ने राजस्व अश्वमेघ यज्ञ रचा है... जो मेरे पिता का कर्तव्य है वो ही मेरा है... मेरे पिता ने मुझ आत्मा को कल्याण अर्थ पतित से पावन बनाने के लिए ही यह यज्ञ रचा है... इस पुरानी दुनिया का विनाश व नयी दुनिया के स्थापना निमित्त अपने इस कार्य में मुझे मददगार बनाया है... मुझ आत्मा को सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान दिया है... मैं आत्मा जान गई हूं कि ये पुरानी दुनिया व पुराना शरीर सब कब्रदाखिल होना है... इस भंभोर को आग लगनी ही है... इसलिए मैं आत्मा इस पुरानी दुनिया में रहते हुए भी बुद्धि से लगाव मुक्त होती जा रही हूं... मेरा देह व देह के धर्म से मोह टूट गया है... महाविनाश सामने खड़ा है... ये हमारा अंतिम जन्म है... ये शरीर भी मुझे सेवार्थ मिला है... बाबा की दी हुई अमानत है... इस लिए मुझ आत्मा को अपना तन मन स्वाहा कर के इस यज्ञ को सफल बनाना है... हर श्वांस, संकल्प, कर्म, बोल बस बाबा के प्रति ही रखना है... मनसा, वाचा, कर्मणा, संकल्पों में पवित्रता धारण करती जा रही हूं... यह मुझ आत्मा का अंतिम जन्म है... यह ही पावन बनने की बेला है... मुझे अवश्य ही पावन बनना है... सम्पूर्ण पवित्र और पावन बन घर जाना है... पुरुषार्थ कर इन घड़ियों को सफल करना है...

 

❉   "ड्रिल - स्व पुरुषार्थ और सेवा का बैलेंस रखना"

 

➳ _ ➳  मैं देह नही देही हू... मेरा जन्म सिर्फ परिवार रिश्ते नातों द्वारा दुख पाने के लिए नही हुआ है... इस संगमयुग पर हीरे तुल्य अलौकिक जन्म अपने अविनाशी परमपिता को यथार्थ रीति पहचान उनसे मिलन मनाने को हुआ है... स्व को पहचान उसकी उन्नति के लिए हुआ है... मुझ आत्मा को प्यारे शिव पिता की श्रीमत पर चलना है...  देह और देह के सम्बन्धों को भूल खुद को आत्मा समझना है... आत्मा समझ परमात्मा बाप को याद करना है... इस श्रीमत से ही मैं आत्मा हरेक सम्बन्ध से न्यारी हो रही हूँ... मैं आत्मा निर्बंधन हूं... देह से न्यारी प्यारी हूं... मैं आत्मा अपने को निमित्त समझ एक बाप की याद में सेवा करती हूं... लौकिक में भी कर्म करते अलौकिक भाव रखते सर्व की सेवा करते जिम्मेदारी निभाती हूं... सर्व को आत्मिक भाव से समझते हुए हर सम्बन्ध सुखदाई बन रहा है... क्योंकि बन्धन जीवन बन्ध देह भान से होते है... आत्मिक भाव से तो मैं आत्मा जीवन मुक्त हो रही हूँ... इस तरह स्व पुरुषार्थ और बेहद की सेवा का सोभाग्य भी मिल रहा है... सेवा और स्व पुरषार्थ का बेलेन्स रखते हुए मैं आत्मा सफलता मूर्त बनती जा रही हूँ...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं सहजयोगी आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳  मैं स्वयं को चमकता हुआ सितारा देखती हूँ... मुझ आत्मा की चमक समस्त भूमंडल में अंधकार में चमकते हुए दीये के समान फैल रही है... मुझ आत्मा का शिव बाबा से बुद्धि के तार द्वारा कनेक्शन जुड़ा हुआ हैं... मैं आत्मा अपने प्यारे बाबा के सम्मुख हूँ... मेरे बाबा मुझ पर अपनी सर्व शक्तियों की वर्षा कर रहे हैं...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा शक्तियों की किरणों से भरपूर होकर हीरे समान हो गयी हूँ... विषय विकारों रुपी कीचड़ जलकर भस्म हो गया हैं... बाबा से अनकंडीशनल प्यार पाकर मैं खुशी से झूम रही हूँ... मैं आत्मा सदैव स्वयं को हजार भुजाओं वाले परमपिता की छत्रछाया में अनुभव करती हूँ...

 

➳ _ ➳  बाबा आपने मुझ आत्मा की खोयी हुई चमक लौटा दी है... मुझ आत्मा को रुहे गुलाब बना दिया है... कौड़ी से हीरे तुल्य बना दिया है... मैं आत्मा सदा इस खुशी व नशे में रहती हूँ कि स्वयं भगवान मेरा साथी है... मैं आत्मा बाबा की याद व बाबा के प्यार में उड़ती कला का अनुभव करती हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा इस दुनिया के झमेलों से स्वतः ही मुक्त हो गयी हूँ... मैं आत्मा मन से इस दुनिया के लगाव से सदा के लिए न्यारी हो चुकी हूँ... मैं न्यारी आत्मा बाबा के असीम प्यार का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं न्यारे और प्यारे पन की योग्यता द्वारा लगावमुक्त रहने वाली सहजयोगी आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  न्यारे और प्यारेपन की योग्यता द्वारा लगाव मुक्त बनने वाले सहजयोगी होते हैं...  क्यों और कैसे?

 

❉   न्यारे और प्यारेपन की योग्यता द्वारा लगाव मुक्त बनने वाले सहजयोगी होते हैं क्योंकि सहजयोगी जीवन का अनुभव करने के लिये ज्ञान सहित न्यारे बनोसिर्फ बहार से न्यारा नहीं बनना है, लेकिन मन का लगाव न हो। जितना जो न्यारा बनता उतना प्यारा अवश्य बन जाता है।

 

❉   हमें मन से न्यारा व सर्व का प्यारा बनना है। बाहर से किसी से भी न्यारा नहीं होना है बल्कि सर्व के साथ रह कर उन को आत्मा समझ कर प्रेमपूर्वक व्यवहार करना है। सभी आत्माओं की विशेषताओं को ही देखना है। अपनी दृस्टि व वृति को गुणग्राहक बनानी है।

 

❉   बहार से कमल पुष्प के समान भले ही जुड़ा हुआ दिखाई दे पर भीतर से न्यारा और प्यारा ही दिखाई देना चाहिए क्योंकि जितना जो अन्तर में न्यारा होगा उतना ही प्यारा भी अवश्य होगा। न्यारी चीज़ प्यारी लगती है। इसलिए हमें न्यारी अवस्था में ही सदा स्थित रहना चाहिये।

 

❉   न्यारी अवस्था सब से ज्यादा प्यारी अवस्था होती है। यही अवस्था हमको सहजयोगी जीवन का अनुभव भी करवाती है। इस के लिये हमको ज्ञानयुक्त स्थिति में स्थित हो कर सर्व आत्माओं से व सर्व वस्तुओं पदार्थों से आंतरिक तौर पर न्यारा और प्यारा बनना है।

 

❉   जो बाहर के लगाव से न्यारे नहीं हैं वह प्यारे बनने के बजाये परेशान होते हैं। इसलिये! सहजयोगी अर्थात न्यारे और प्यारेपन की योग्यता वाले ही सर्व लगावों से मुक्त होते हैं तथा वही सहजयोगी भी होते हैं। जो जितना लगाव से रहित होगा वह उतना ही सर्व का प्यारा होगा।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  स्व पुरुषार्थ और सेवा के बैलेन्स द्वारा बंधन, सम्बन्ध में बदल जायेगा... क्यों और कैसे ?

 

❉   जब स्वयं का पुरुषार्थ कम होता है और दूसरों की सेवा में स्वयं को ज्यादा बिज़ी रखते हैं तो सेवा का प्रत्यक्ष फल अर्थात ख़ुशी का अनुभव नही होता बल्कि थकावट महसूस होती है और सेवा बन्धन लगती है । लेकिन जब स्व पुरुषार्थ और सेवा में उचित बैलेंस रख सेवा के क्षेत्र में आते हैं तो सेवा बन्धन नही लगती बल्कि सेवा से एक सम्बन्ध जुट जाता है जिससे सेवा करते हुए असीम ख़ुशी का अनुभव होता है ।

 

❉   किसी भी प्रकार की सेवा में सफलता का मुख्य आधार है दुआयें देना और दुआयें लेना । क्योकि दुयायें लिफ्ट का काम करती है और सेवा को फलदायी बनाती है । किन्तु दुआयें जमा करने के लिए जरूरी है निमित और निर्मान भाव और वह तभी आ सकता है जब स्व पुरुषार्थ और सेवा साथ साथ हो । स्वयं का पुरुषार्थ अगर कमजोर होगा तो सेवा में बन्धन का अनुभव होगा । लेकिन स्व पुरुषार्थ और सेवा मे बैलेंस होगा तो बन्धन भी सम्बन्ध में बदल जायेगा ।

 

❉   सेवा को सफल बनाने के लिए जरूरी है निर्बन्धन और उपराम स्थिति । अगर हर प्रकार के बन्धन से स्वयं को मुक्त नही किया है और उपराम अवस्था नही बनी है तो पुरुषार्थ में तीव्रता नही आ सकती । अगर स्वयं का पुरुषार्थ ही ढ़ीला है तो इसका प्रभाव सेवा पर अवश्य पड़ता है । सेवा में जो सफलता प्राप्त होनी चाहिए वह नही मिलती इसलिए सेवा में भी बन्धन की अनुभूति होती है । किन्तु स्व पुरुषार्थ और सेवा का बैलेंस है तो हर बन्धन सम्बन्ध अनुभव होता है ।

 

❉   जितना स्व पुरुषार्थ और सेवा में बैलेंस बराबर होगा उतना स्व स्थिति शक्तिशाली होगी और शक्तिशाली स्व स्थिति वाली आत्मा शक्ति सम्पन्न होने के कारण सेवा में आने वाले किसी भी प्रकार के विघ्न में भी निर्विघ्न स्थिति का अनुभव करेगी । उसे सेवा में कोई बन्धन अनुभव नही होगा बल्कि सेवा के साथ ऐसा सम्बन्ध बन जायेगा कि वह सेवा में आने वाले हर विघ्न को भी सहजता से पार कर उसमे सफलतामूर्त बन जाएगी ।

 

❉   एक गरीब व्यक्ति दूसरे गरीब व्यक्ति को कभी दान नही दे सकता क्योंकि दे वही सकता है जो खुद सम्पन्न हो । इसी प्रकार सेवा वही कर सकता है जो पहले खुद भरपूर होगा । अगर स्व पुरुषार्थ नही करते तो मास्टर दाता कभी नही बन सकते । इसलिए स्व पुरुषार्थ और सेवा का बैलेंस बहुत जरूरी है क्योकि स्व पुरुषार्थ और सेवा का बैलेंस होगा तभी हर बन्धन को सम्बन्ध में बदल सकेंगे और  दाता के बच्चे मास्टर दाता बन सर्व का कल्याण कर सकेंगे ।

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⊙_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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