━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 23 / 06 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ एक बाप से √सच्ची प्रीत√ रखी ?
➢➢ अपना √सब कुछ सफल√ करने पर विशेष अटेंशन रहा ?
➢➢ √ड्रामा√ के राज़ को बुधी में रखकर चले ?
────────────────────────
∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ √श्रेष्ठ कर्म√ द्वारा सिमरन योग्य बन्ने का पुरुषार्थ किया ?
➢➢ √निमित और निर्माणचित√ रह सच्चे सेवाधारी बनकर रहे ?
────────────────────────
∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ आज बाकी दिनों के मुकाबले एक घंटा अतिरिक्त °योग + मनसा सेवा° की ?
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
To Read Vishesh Purusharth In Detail, Press The Following Link:-
✺ HTML Format:-
➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/23.06.16-VisheshPurusharth.htm
✺ PDF Format:-
➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/23.06.16-VisheshPurusharth.pdf
────────────────────────
∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं आत्मा योगयुक्त वा युक्तियुक्त हूँ ।
✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-
➳ _ ➳ शांतचित्त होकर स्वयं को देखें... अपनी आंतरिक मौलिक सुंदरता पर ध्यान आकर्षित करेंगे आज... मैं आत्मा शांत स्वरुप हूँ... शान्ति में मुझे अपने सुन्दर, पवित्र और ओर प्रेम स्वरुप का आभास होता है... अपनी पवित्रता से भरपूर श्रेष्ठ वृति को देख मुझे खुदसे प्यार होने लगता है... मैं खुद का सम्मान करने लगती हूँ...
➳ _ ➳ मैं श्रेष्ठ कर्म करने वाली एक परम पवित्र आत्मा हूँ... निर्मल - विमल हूँ... मैं आत्मा अपने अनादि स्वरुप में ही पवित्र थी... सम्पूर्ण पवित्रता ही मुझ ब्राह्मण आत्मा की श्रेष्ठ धारणा है... मैं आत्मा आज अपने मीठे बाबा के समक्ष यह दृढ़ संकल्प लती हूँ कि मैं सदा योगयुक्त स्तिथि में रहकर अपना हर कर्म श्रेष्ठ बनाउंगी...
➳ _ ➳ सदा योगयुक्त बनने के श्रेष्ठ संकल्प को करते ही मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मेरा हर संकल्प, शब्द वा कर्म योगयुक्त बन गया है... मैं आत्मा अयुक्त कर्म वा संकल्प से सदा के लिए मुक्त हो गयीं हूँ... मैं आत्मा सिमरण योग्य बन गयीं हूँ...
➳ _ ➳ जिस प्रकार भक्ति में नाम का सिमरण करते हैं उसी प्रकार अन्य आत्माएं मुझ आत्मा के श्रेष्ठ कर्म और गुण को मिसाल बनाने के लिए सिमरण करने लगीं हैं... मैं आत्मा अपने परम प्यारे शिवबाबा के साथ एक अटूट कनेक्श जोड़कर सदा योगयुक्त बन गयीं हूँ... और अपने श्रेष्ठ कर्मों द्वारा सिमरण योग्य बनने वाली युक्तियुक्त आत्मा बन गयीं हूँ ।
────────────────────────
∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - अमृतवेले का समय बहुत बहुत अच्छा है, इसलिए सवेरे सवेरे उठकर एकांत में बेठ बाबा से मीठी मीठी बाते करो"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे आप भाग्यशाली हो की स्वयं ईश्वर आप बच्चे से मिलने रोज धरती पर उतर आता है... अमृतवेले उठकर उस प्यारे पिता से दिल का हाल करो... उससे मीठी मीठी बाते करो... और प्रेम में डूब खूबसूरत मिलन करो...
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे मीठे प्यारे बच्चे अमृतवेला वो खूबसूरत लम्हों का समय है की ईश्वर आतुर हो बच्चे को निहारे उनकी मीठी बातो को तरसे... बच्चे की मदद को तैयार रहे... उस समय के अमृत से दिन को मीठा करो... कुछ बाबा को सुनाओ कुछ बाबा की सुनकर आनन्द में भीग जाओ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे अपना परमधाम छोड़ पिता बच्चों के प्यार में व्याकुल हो धरती पर दौड़ा चला आये... तो सवेरे की मीठी सी वेला में एकांत में बेठ उस एक के अंत में खो जाओ... बाबा को अपनी दास्ताँ सुनाओ... वह सुनने को सदा का आतुर सा है...
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चे अमृतवेले ईश्वरीय प्यार का अमृत बरसता है... इस प्रेम अमृत में भीग जाओ... आनंद से भरकर झूम जाओ... प्यारे बाबा से दिल की रुहरुहान् करो... तसल्ली से ईश्वर बेठ सारी बाते सुने... ऐसा महा भाग्य पाकर ख़ुशी से भर जाओ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चे सारी आत्माए विश्राम करे और बच्चे पिता से प्यार का अमृत पाये... कितना प्यारा मीठा भाग्य है इस नशे में आ जाओ... सवेरे सवेरे उठकर प्यारे पिता को दिल की हर एक बात बताओ... इस समय पिता पूरा आप बच्चे का है... उसके सारे प्यार को पालो...
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ इस शरीर पर कोई भरोसा नहीं इसलिए अपना सब कुछ सफल करना है । अपनी स्थिति एकरस, अचल बनाने के लिए ड्रामा के राज को बुद्धि में रखकर चलना है ।
❉ ये शरीर तो विनाशी है व कभी भी धोखा दे सकता है । ये शरीर हमें अमानत मिली है व सेवार्थ मिला है इसलिए इससे ज्यादा से ज्यादा सेवा में लगाकर सफल करना है ।
❉ हर घड़ी अंतिम घड़ी है व अभी श्वांस है व शरीर से सेवा ले पुरुषार्थ करना है । ये नही सोचना कि अभी समय है कर लेंगे । उसी समय श्वांस बंद हो गए तो बस समय चला जाएगा । इसलिए हर घड़ी को अंतिम घड़ी समझ पुरुषार्थ में लगे रहना है ।
❉ अपना हर श्वांस, तन, मन ,धन यज्ञ में लगाकर सफल करना है । यही एक ऐसा अनमोल जन्म है जिसमें एक जन्म की कमाई का प्रालब्ध अगले 21 जन्म तक पाते है ।
❉ बाबा ने हमें आदि मध्य अंत का ज्ञान दिया है व ड्रामा की नॉलेज दी है उसे बुद्धि में रखना है । ड्रामा कल्याणकारी है व अकल्याण में भी कल्याण छिपा है । इसलिए हर परिस्थिति को खेल समझ पार करना है व अपनी अवस्था अचल अडोल रखनी है ।
❉ अभी तक तो अज्ञानी थे व हर बात के क्यूं, क्या में जाकर व्यर्थ ही उलझते रहे । अब तो प्यारे बाबा ने ड्रामा का ज्ञान देकर ज्ञानी बना दिया है । ड्रामा के राज को बुद्धि में रखते हुए स्मृति में रखना है कि जो हो रहा है वो कल्प पहले भी हुआ व कल्प बाद भी होगा और जीत हमारी ही हुई इसलिए अपनी स्थिति अचल और एकरस रखनी है ।
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ श्रेष्ठ कर्म द्वारा सिमरण योग्य बनने वाले योगयुक्त, युक्तियुक्त होते हैं.... क्यों और कैसे ?
❉ जो बच्चे योगयुक्त होते है वो एक बाप की याद में होते है व लव में लीन होते है । योगयुक्त होने से हर संकल्प, शब्द वा कर्म श्रीमत प्रमाण करते है व श्रेष्ठ होता है और युक्तियुक्त भी होता है तो वो सिमरण योग्य बन जाते हैं ।
❉ जैसे भक्ति में नाम का सिमरण करते हैं तो उसका फल एक जन्म के लिए पाते हैं ऐसे जो बच्चे इस पुरुषोत्तम संगमयुग के अनमोल हीरे जैसे जन्म की स्मृति रखते है कि इस एक जन्म में श्रेष्ठ कर्म कर हम जितना भाग्य चाहे बना सकते है तो वो श्रेष्ठ कर्म कर ऊंच पद पाने के लिए पुरुषार्थ करते हैं व सिमरण योग्य बन जाते है और योगयुक्त और युक्तियुक्त होते हैं ।
❉ जो अनमोल संगमयुग की महिमा को याद रखते कि इस समय में भगवान ने स्वयं भाग्य लिखने की कलम हम बच्चों को दी है तो वो अपने असली स्वरूप आत्मिक स्वरुप की स्थिति में रहकर कर्म भी श्रेष्ठ करते और श्रेष्ठ कर्म कर सिमरण योग्य बन योगयुक्त व युक्ति युक्त होते है
❉ जैसे राजा के बेटे को अपने बाप के पद का नशा होता व उसके चाल चलन में भी रायल्टी होती । ऐसे जो बच्चे ये स्मृति में रखते कि मैं आलमाइटी बाप का बच्चा मास्टर आलमाइटी हूं व मेरा बाप पूरे विश्व का मालिक है व मैं उसके वर्से का अधिकारी हूं तो ऊंचे ते ऊंचे बाप का बच्चा हूं तो अपने कर्म भी बाप की याद में रह बाप समान करते और श्रेष्ठ कर्म होने से सुमिरन योग्य बन जाते और योगयुक्त व युक्तियुक्त होते हैं ।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ निमित और निर्माणचित - यही सच्चे सेवाधारी के लक्षण हैं... क्यों और कैसे ?
❉ निमित भाव और निर्माण रहने की विशेषता हद की सभी इच्छाओ और कामनाओं से परे ले जाती है । जब स्वयं को निमित समझने के बजाए मैं पन का भाव मन में लाते हैं तो हद के नाम, मान और शान की इच्छा में फंस जाते हैं । यही कामना मन को भारी बनाती है । और मन पर बोझ होने से लाइट माइट स्थिति का अनुभव नहीं कर पाते । जिससे सेवा में सफलता भी प्राप्त नहीं होती । इसलिए स्वयं को निमित समझ कर और निर्माणचित बन निष्काम भाव से जो अपने समय को बेहद सेवा में सफल करते हैं । वही सच्चे सेवाधारी कहलाते हैं ।
❉ स्वयं को निमित समझने और निर्माणचित रहने वाले सदा श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट हो कर हर कर्म करते है । स्वमान की सीट पर सेट रहने के कारण उन्हें दूसरों से सम्मान मांगना नही पड़ता बल्कि मान परछाई की तरह उनके पीछे पीछे आता है । इसलिए स्वमान की सीट पर सदा सेट रहकर, हद की सभी इच्छाओं का त्यागकर जो निष्काम सेवाधारी बन ईश्वरीय सेवा में लग जाते हैं और परोपकारी बन सब पर उपकार करते हैं । सर्व के प्रति शुभभावना, शुभकामना रखते हैं उन्हें ही सच्चे सेवाधारी कहा जाता है ।
❉ जो स्वयं को निमित समझ कर चलते है उन्हें सदैव यह स्मृति रहती है कि यह तन, मन, धन जो भी मिला है यह अमानत है । इसलिए इस अमानत को श्रीमत प्रमाण ही यूज़ करना हैं । मनमत पर चल इस अमानत में खयानत नही डालनी है । ट्रस्टी बन इन्हें सेवा में सफल करना है । स्वयं को ट्रस्टी समझने के कारण निर्माणता का गुण उनमे स्वत: ही आने लगता है जो उन्हें न्यारा और प्यारा बना देता है । न्यारे और प्यारे बन वे जो भी कर्म करते हैं उनमे सेवा स्वत: समाई होती है जो उन्हें सच्चा सेवाधारी बना देती है ।
❉ जो निमित और निर्माणचित भाव से सेवा करते है उन्हें सदैव यह स्मृति रहती है कि हम पूर्वज आत्मायें हैं जो सर्व का उद्धार करने के निमित्त हैं । सदा इस स्वमान व पोजीशन में स्थित रहने के कारण उनकी बुद्धि में रहता है कि हमारा हर संकल्प, हर सेकण्ड दूसरों की सेवा प्रति है । यह स्मृति उन्हें मनसा वाचा - कर्मणा, सम्बंध - सम्पर्क सब बातों में उदार - चित्त और फ्राकदिल बना देती है इसलिए निर्माण बन वे हर आत्मा की कमियों को स्वयं में समा कर, उनके प्रति शुभ भावना, शुभकामना रखते हुए उन्हें गुणों व शक्तियों का सहयोग दे कर आगे बढ़ाते रहते हैं ।
❉ निमित भाव और निर्माणता का गुण आत्मा को रीयल गोल्ड बना देता है और जो रीयल गोल्ड होता है वह जैसा समय, जैसी परिस्थिति और जिस प्रकार की आत्मा सामने हो, वैसे ही अपने को मोल्ड कर लेता है । अपने निमित और निर्माणचित सदव्यवाहर से वह कड़े से कड़े स्वभाव संस्कार वाली आत्मा को भी आसानी से परिवर्तन कर देता है । नॉलेज फुल और ब्लीस फुल बन अपने शुभ और श्रेष्ठ संकल्पों की शक्ति से वह अनेको आत्माओं का कल्याण करने के निमित सच्चा सेवाधारी बन जाता है ।
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━