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❍ 08 / 07 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ √पवित्रता का फाउंडेशन√ मज़बूत बनाने पर विशेष अटेंशन रहा ?
➢➢ अपने √शांत स्वधर्म√ में स्थित रहे ?
➢➢ √डेड साइलेंस√ अर्थात अशरीरी रहने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ √एक लगन√, एक भरोसा, एकरस अवस्था द्वारा सदा निर्विघन बनकर रहे ?
➢➢ ×प्रशंसा× को तो प्रसन्नता का आधार नहीं बनाया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ √दोनों बाप√ को माध्यम बनाकर खजाने के मालिक बनने का पुरुषार्थ किया ?
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/08.07.16-VisheshPurusharth.htm
✺ PDF Format:-
➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/08.07.16-VisheshPurusharth.pdf
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - जीते जी इस शरीर से अलग हो जाओ, अशरीरी बन बाप को याद करो, इसको ही कहा जाता है डेड साइलेन्स"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे सत्य सारा भूल चले और असत्य के प्रभाव में शक्तिहीन हो चले... अब स्वयं को इस झूठ के आवरण से अलग करो... इस खोल में छुपे मणि को निहारो... अपने सच्चे पिता को निहारो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै शरीर तो नही पर शरीर के भान में ही सदा चिपकी रही... नासमझी में दुखो को यूँ ही जीती रही... अब आपके याद दिलाने से मुझे अपना चमकता मणि रूप याद आ चला है... और इस चमक में खो गयी हूँ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे कितना समय इस भूलभुलैया में जीये हो... सारी जागीरों के स्वामी होकर यूँ निर्धन बन रोये हो... अब सच्चाई को बाहों में भरो दिल में समालो... अशरीरी पन के अहसासो में डूब चलो... वही अमीरी पुनः पा चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा निर्धन बन दीन हीन हो चली थी... आपके स्पर्श ने मुझे शरीरी तन्द्रा से जगाया और बताया की मै अशरीरी प्यारी सी खूबसूरत आत्मा हूँ... और अपने सुंदर रूप में मै खो सी गयी हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चे अशरीरी अबस्था ही सारे खजानो की प्राप्ति का आधार है... डेड साइलेन्स में ही आत्मा शक्तियो को पुनः प्राप्त कर शक्तिशाली बन पाती है... इस अहसास को यादो में पक्का कर खूबसूरत जादूगरी के अनुभवी बन चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो के खूबसूरत साये में अशरीरी होकर बेठी हु... आपको अपलक देख रही हूँ और स्वयं को तेजस्वी अनुभव कर रही हूँ... आपके प्यार में स्वयं को समेट रही हूँ... बिन्दु बन दमक रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - स्वराज्य लेने के लिए बाप समान पावन बनना"
➳ _ ➳ मै आत्मा देह से न्यारी हूं... मूल रुप में मैं पवित्र आत्मा हूं... विकारों मे गिरकर मैं अपने आदि स्वरुप को भूल गई... प्यारे बाबा से मुझ आत्मा पर निरंतर शक्तिशाली पवित्र किरणों का प्रवाह होरहा है... मुझ आत्मा के मन बुद्धि और पुराने संस्कारों का शुद्धिकरण हो रहा है... मैं आत्मा स्वयं को शक्तियों व दैवीय गुणों से सम्पन्न अनुभव करती हूं... मैं आत्मा बुद्धि और संस्कारों को आर्डर प्रमाण चलाने वाली स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूं... स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी आत्मा हूं... प्यारे बाबा ! आप पतित पावन हैं... आपकी मीठी याद मुझ आत्मा के विकारों का विनाश हो रहा है... बाप समान पवित्र स्वरुप का अनुभव करती हूं...
❉ "ड्रिल - देही-अभिमानी स्थिति का अनुभव करना"
➳ _ ➳ मैं देह नही देही हूं... मैं आत्मा शांति के सागर की संतान हूं... मैं आत्मा शांत स्वरुप हूं... मैं आत्मा शरीर से अलग देह की दुनिया से न्यारी शांतिधाम की रहने वाली हूं... मैं आत्मा कर्म करते हुए देह से न्यारी हूं... मैं आत्मा स्वराज्याधिकारी बन अपनी कर्मेन्द्रियों से कर्म करती हूं... मैं आत्मा देही अभिमानी हूं... मैं देह से संकल्प मात्र भी डिटैच नही हूं... शांति के सागर प्यारे बाबा की याद रुपी गोद में समाती जा रही हूं... शांति मुझ आत्मा का निज स्वभाव बन गया है... मैं आत्मा आवाज की दुनिया से दूर साइलेंस में हूं... इस मायावी दुनिया से दूर और देह व देह के सम्बंध सम्पर्क से परे उपराम अनुभव कर रही हूं... अशरीरी अवस्था का अनुभव कर रही हूं...
❉ "ड्रिल - सदाकाल की प्रसन्नता का आधार अंतर्मुखता"
➳ _ ➳ मैं खुशनसीब आत्मा हूं... स्वयं खुश रहना और सबको खुश रखना मुझ आत्मा का धर्म है... मैं आत्मा अपने सत्य स्वरुप को पहचान गई हूं... मैं आत्मा अपनी शक्तियों को पहचान गई हूं... अपनी आत्मिक स्थिति में रहते कर्म कर रही हूं... स्वयं परमात्मा मुझ आत्मा को टाइटलस से सुशोभित करते है... झूठी मान शान से अल्पकाल की प्रशंसा से मुक्त हो गई हूं... हद के मान शान से मैं आत्मा मुक्त हो बेहद में रह रही हूँ... मैं आत्मा एक परमात्मा की याद में रह दिव्य गुणों का विकास करती हूं... हर कर्म करते प्यारे बाबा से कंबाइंड रह करती हूँ.... सेवा का जो भी फल है वह बाप को ही समर्पित है... करनकरावनहार बाबा ही है... मैं आत्म तो निमित्त मात्र हूँ... और पार्ट बजाने के लिए इस धरा पर आई हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं निवारण स्वरुप आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳ सभी बाहय बातों से अपना ध्यान हटा कर भीतर की ओर बिंदुरुप में एकाग्रचित होइए... बाबा का बच्चा बन पुरे प्रेम से उन्हें पुकारना है आज...
➳ _ ➳ चलिये एक रूहानी यात्रा की ओर... मैं ज्योतिर्बिंदु आत्मा पंछी बन उड़ती जा रहीं हूँ नीले गगन से पार... चाँद सितारों की दुनिया से भी पार... अपने प्यारे वतन की ओर... अपने घर... परमधाम...
➳ _ ➳ अपने परम प्यारे पिता से मिलने... बड़े प्यार से अपने बाबा से मिलना है आज... बापदादा ने अपनी दिव्य दृष्टि से मुझ आत्मा को देख लिया है... ब्रह्मा बाबा फरिश्ता रूप में बैठें हैं और उनकी भृकुटि में चमक रहें हैं शिव बाबा...
➳ _ ➳ बापदादा ने मुझ फ़रिश्ते के दोनों हाथों को अपने हाथों में थाम लिया है और मुझे अपने प्यार की सतरंगी किरणों से भरपूर कर रहें हैं... मैं फरिश्ता उनके प्यार में डूबती जा रहीं हूँ... बाबा, आपके प्यार की
लगन में मैं आत्मा मगन होती जा रहीं हूँ..
➳ _ ➳ मुझ आत्मा की जन्मों की प्यास भुझती जा रही है... मैं ख़ुशी, शांति, शक्ति वा सुख की अनुभूति कर रहीं हूँ... मुझे " एक बाप दूसरा न कोई " ये खुमारी व नशा चढ़ता जा रहा है... मैं निरन्तर इस स्तिथि का अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाप के कर्तव्य की लगन में मगन होकर इस संसार के समस्त आकर्षणों से मुक्त हो रहीं हूँ... मुझ आत्मा को किसी भी वस्तु या व्यक्ति के होने का अनुभव नहीं हो रहा है... मैं आत्मा एकरस, एक लगन और एक भरोसे में निरन्तर स्तिथ रहकर सदा चढ़ती कला का अनुभव कर रहीं हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बापदादा द्वारा प्रदान की गयीं शक्तियों द्वारा कारण को देखकर कमज़ोर न बनकर निवारण स्वरुप बन गयीं हूँ... इस प्रकार मैं आत्मा कारण को निवारण रूप में परिवर्तित करने में सक्षम हो गयीं हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ एक लगन, एक भरोसा, एकरस अवस्था द्वारा निर्विघ्न बनने वाले निवारण स्वरुप होते हैं.... क्यो और कैसे ?
❉ जो बच्चे सदा एक बाप की लगन में ऐसे मगन रहते हैं कि किसी वस्तु वैभव का आकर्षण ही नही रहता । ऐसे एक लगन, एक भरोसे में, एकरस अवस्था में रहने वाले सदा निर्विघ्न बन चढ़ती कला का अनुभव करते हैं । वो कोई भी कारण को परिवर्तन कर निवारण रुप बना देते हैं और हिम्मत रख निवारण स्वरुप बनते हैं ।
❉ जिन बच्चो को निश्चय होता है कि बाबा का हाथ मेरे सिर पर है वो कोई फिकर नही रखते व न ही हिम्मत हारते है कि क्या करुं कैसे करुं सोचते है । बस बाबा की याद में मगन होकर निश्चय के बल एक बल एक भरोसा एकरस अवस्था द्वारा निर्विघ्न होकर हर समस्या का निवारण स्वरुप होते हैं ।
❉ जिन बच्चों का बाप से सच्चा स्नेह होता है वो एक बाप की याद में ही लवलीन रहते है व सर्व सम्बंध के सुख और प्राप्ति बस बाबा से ही करते है वो अपनी एऐकरस अवस्था रखते हुए निर्विघ्न आगे बढ़ते हैं । बाबा से मिलीे दिव्य नेत्र और दिव्य बुद्धि से हर समस्या का निवारण करते निर्विघ्न निवारण स्वरुप होते हैं ।
❉ जो अपने को सदैव हजार भुजाओं वाले की छत्रछा्या में रखते है व सब जिम्मेवारी अपने सर्वशक्तिमान बाप कोे सौंप निश्चिंत बेफिकर बादशाह रहते है । बस एक ही लगन में मगन रहते है कि मेरा तो शिव बाबा दूसरा न कोई । अपना कनेक्शन बस बाबा से जोडे रखते है ऐसे बच्चे एक लगन एक भरोसा से अपनी एकरस अवस्था में रहते निर्विघ्न बनने वाले निवारण स्वरुप होते हैं ।
❉ जो अपने को आत्मा समझ परमात्मा की याद में रहते हैं व हर कर्म सेवा अर्थ करते करनकरावनहार करा रहा है इसी भरोसे लगन में मगन हो अपनी स्थिति को एक रस रखते ऐसे निर्विघन बनने वाले निवारण स्वरूप होते है ।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ प्रशंसा के आधार पर प्रसन्नता अल्पकाल की रहती है... क्यों और कैसे ?
❉ जब स्वयं को निमित समझने के बजाए मैं पन का भाव मन में लाते हैं तो हद के नाम, मान और शान की इच्छा में फंस जाते हैं । हद का नाम, मान और शान प्राप्त करने की यह इच्छा अल्पकाल की ही ख़ुशी दिलाती है क्योकि दूसरों की नजरो में प्रशंसनीय बनने की इच्छा भी निष्काम सेवा नही है । इसलिए स्वार्थ वश अर्थात प्रशंसा प्राप्ति के लिए की गई सेवा मन को भारी बनाती है जिससे सेवा में लाइट माइट स्थिति का अनुभव नही हो पाता और आत्मा स्थाई ख़ुशी का अनुभव नही कर पाती ।
❉ सेवा में समर्पण भाव ना केवल सेवा को सफल बनाता है बल्कि मन को भी असीम आनन्द और ख़ुशी की अनुभूति करवाता है क्योकि समर्पण भाव संगठन में सहयोग की भावना ला कर संगठन को प्रभावशाली बनाता है और सबको सन्तुष्ट रखता है । किन्तु जब सेवा करते हुए मन में यह इच्छा या कामना रहती है कि इस सेवा के लिए सब मेरी वाहवाही करें और मैं सबकी नजरों में श्रेष्ठ बनूं तो समर्पण का भाव नही रहता और सेवा में सहयोग की बजाए प्रतियोगिता की भावना उत्तपन्न हो जाती है जो सदाकाल की आंतरिक ख़ुशी से आत्मा को वंचित कर देती है ।
❉ संगम युग पर जो आत्मायें परमात्मा बाप द्वारा मिली सर्व शक्तियों, सर्व गुणों और सर्व खजानों को बार - बार स्वयं के प्रति और सर्व आत्माओं के प्रति जितना काम में लगाती है अर्थात ईश्वरीय प्राप्तियों को ईश्वरीय नियम - प्रमाण जितना यूज़ करती है उतना और ही प्राप्ति स्वरूप का अनुभव वह अपने जीवन में करती है और जीवन में सन्तुष्टता और सरलता का सन्तुलन रख वह सदा हर्षित रहती है । किन्तु हद के मान - सम्मान की इच्छा प्राप्ति स्वरूप नही बनने देती और संगम युग का जो विशेष खजाना है ख़ुशी का उसे अल्पकाल का बना देती है ।
❉ जो मनमनाभव की स्थिति में सदा स्थित रहते हैं वे सदा अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करते रहते हैं और यह अतीन्द्रिय सुख उन्हें इच्छा मात्रम अविद्या बना देता है इसलिए हद की सभी इच्छाओं और कामनाओ से वे मुक्त हो जाते हैं । किंतु जो देह भान में रहते हैं उन्हें सदैव हद के मान शान और सम्मान की इच्छा रहती है । इन इच्छाओं को पूरा करने के लिए ही वे सदा देह और देह की दुनिया के आकर्षणों में और हद की प्राप्तियों में उलझे रहते हैं । अल्पकाल की विनाशी प्राप्तियों की इच्छा उन्हें केवल अल्पकाल की ख़ुशी ही दे पाती है । सदाकाल के अलौकिक सुख का अनुभव वे कभी नही कर पाते ।
❉ किसी भी सेवा में सफलता का आधार है एकाग्रता और एकाग्रता आती है दिल और दिमाग दोनों का बैलेन्स रख कर सेवा करने से । जब दिल की बजाए केवल दिमाग से सेवा करते हैं तो मैं पन आता है जो हद के मान शान की इच्छा में फंसा देता है जिससे सेवा में बेहद का भाव समाप्त हो जाता है और सेवा का विस्तार नही हो पाता । सेवा एक सीमा में बन्ध जाती है इसलिए मन बुद्धि हद की इच्छाओं और कामनाओ से मुक्त नही हो पाती और अल्पकाल के मान शान की इच्छा के कारण आत्मा केवल अल्पकाल की ही ख़ुशी प्राप्त कर पाती है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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