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 25 / 08 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ अशुद्ध कामनाओं का त्याग कर शुद्ध कामनाएं रखी ?

 

➢➢ धर्मराज बाप से सदा सच्चा रहे ?

 

➢➢ योग अग्नि से विकर्मों के खाते को दग्ध किया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ स्वमान में स्थित रह देह अभिमान को समाप्त किया ?

 

➢➢ समय को बचा, बहाना न दे, तपस्या की ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢ आज बाकी दिनों के मुकाबले एक घंटा अतिरिक्त °योग + मनसा सेवा° की ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - बाप आये है तुम्हे इस पाप की दुनिया से निकाल चैन की दुनिया में ले जाने बाप द्वारा तुम्हे सुख शांति की दो सौगाते मिलती है"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... मै विश्व का पिता आप बच्चों की झोली सदा के लिए सुख से भरने आया हूँ... अमन ही अमन हो ऐसी चैन की दुनिया बसाने आया हूँ... सुख शांति भरपूर हो ऐसी मीठी सुखो की दुनिया बच्चों के लिए सौगात स्वरूप लाया हूँ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा आपके बिना किस कदर दुखमय जीवन को अपनी नियति समझ चली थी... आपने मीठे बाबा मेरा दामन खुशियो से खिलाया है... सुख शांति से भरे जीवन का अधिकारी बना सजाया है...

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... इस घोर पाप की दुनिया से ईश्वर पिता के सिवाय कोई निकाल ही न सके... सुख भरा चैन सिर्फ पिता ही जीवन में ला सके... ऐसे मीठे बाबा को हर पल यादो में सजाओ... जो परमधाम से उतर आये और सुख शांति के सौगातों से लबालब कर जाय...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... आप महा पिता मेरे लिए कितनी दूर से आते हो... सुनहरे सुखो से और शांतिमय जीवन से मेरी सदा के लिए दुनिया सजाते हो... अपनी मीठी यादो से मुझे आप समान सुंदर बनाते हो... जिंदगी को महकाते हो...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने खिलते हुए खुशबूदार फूलो को इस कदर विकारो रुपी काँटों में झुलसता तो मै पिता देख ही न सकूँ... और बच्चों को मुस्कराहटों से सजाने महकाने धरती पर चला आऊं... बच्चे सुख शांति के जीवन में चैन से रहे तो मै पिता सदा का आराम पाऊँ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा पाप की दुनिया में गहरे धस चली थी... आपसे मेरी दारुण सी दशा देखी न गई... आप दौड़े से आये और मेरा जीवन सुखो की सौगातों से महका दिया... यूँ जीवन मीठा और प्यारा बना दिया....

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - शुद्ध पवित्र कामना और भावना रखते बाप के साथ सच्चा बनना"

 

➳ _ ➳  मै आत्मा शुद्ध और पवित्र स्वरूप हूँ... यह मेरा अनादि स्वरूप है जिसे मैं कुछ समय के लिए भूल गई थी...  मेरे पिता शिव बाबा ने मुझे मेरे असली स्वरुप की पहचान दी... अपने स्वधर्म की स्मृति दिलाई...  अब मुझ आत्मा से अज्ञानता का अंधेरा मिट गया है... प्यारे शिव बाबा ने दिव्य बुद्धि व दिव्य दृष्टि रुपी अनमोल गिफ्ट दिया है... मैं आत्मा प्यारे बाबा की याद में रह श्रेष्ठ संकल्प ही करती हूं... मैं आत्मा अशुद्ध कामनाओं का त्याग कर शुद्ध भावना और कामना रखती हूँ... मैं आत्मा मनसा वाचा कर्मणा शुद्ध संकल्प रखती हूं... बाबा की याद में रहने से विक्रम विनाश करती हूं... पवित्र बनती जा रही हूँ... पवित्रता के सागर परमपिता से पवित्र किरणे लेकर सर्व के प्रति शुद्ध और पवित्र कामना की वायब्रेशन देती हूँ... मुझ आत्मा को प्यारे पिता शिव बाबा अपने साथ वापिस घर ले जाने के लिए आए हैं... इसलिए मैं आत्मा परमात्म शक्ति से पवित्रता को धारण करती हूं... मुझ आत्मा को पवित्रता के बल से ही पवित्र दुनिया में जाना है... मैं आत्मा हर कर्म करते पिता के साथ का अनुभव करती हूँ... मैं आत्मा अपने पिता शिव बाबा के साथ सच्ची सच्ची रहती हूं... उनको सच्चा पोता मेल देती हूँ... मैं आत्मा अपनी हर अच्छी बुरी बातों का सारा हाल बाबा को सुनाती हूं... कोई गलती होने पर भी सब सच सच बताती हूं... मैं अपने पिता से कुछ भी नही छिपाती हूं... प्यारे बाबा का बनने के बाद भी अगर विकर्म किया तो बाबा धर्मराज के रुप में सजा भी देते है... इसलिए मैं आत्मा अपने हर कर्म पर अटेंशन रखती हूं...

 

❉   "ड्रिल - ऊँच पद पाने के लिए पढाई की रेस करनी"

 

➳ _ ➳  मैं अभी तक लौकिक पढ़ाई कर ऊंच पद पर पहुंचना लक्ष्य समझती थी... ऊंच पढ़ाई कर ऊंच पद पर पहुंच कमाई कर अल्पकाल की खुशी प्राप्त करने में लगी रही.. सारा जीवन इस झूठी मान शान में रह संतुष्टता प्राप्त नही कर सकी... देहधारियों को खुश करने में लगी रही... हमेशा दुखी ही रही... देहभान के कारण विकारों के चुंगल में फंसती चली गयी... सत्य की खोज में इधर उधर भटकती रही... इस संगमयुग पर स्वयं परमपिता परमात्मा मुझ आत्मा को अपना बनाया... मैं ईश्वरीय सम्प्रदाय का हूं... शिव बाबा का बच्चा हूं... गॉडली स्टूडेंट हूं... मेरे पिता सुप्रीम शिक्षक बन मुझ आत्मा को रोज अनमोल अखूट ज्ञान रत्नों से मेरा श्रृंगार करते हैं... सच्चा सच्चा ज्ञान सुनाते हैं... अभी तक मैं आत्मा काम विकारों की अग्नि में जल रही थी... मुझ आत्मा को ज्ञान मिलने पर ज्ञान का ही मनन चिंतन करती हूं... मैं आत्मा रुहानी पढ़ाई को पढ़कर उसे अच्छी रीति धारण करती हूं... मुझ आत्मा में लग्न रहती है कि मैं अच्छी रीति पढ़कर व धारण कर उसका स्वरुप बनूं... इस रुहानी पढ़ाई को पढ़कर मैं आत्मा 21 जन्मों के लिए राजाई पद पाती हूं... मैं आत्मा रीस न करके ऊंच पद पाने के लिए पढ़ाई में रेस करती हूं... मैं आत्मा इस पढ़ाई से अविनाशी कमाई जमा करती हूं... मैं आत्मा ज्ञान और योगबल से पवित्र बनती हूं... नयी दुनिया में ऊंच पद पाने के लायक बनती हूं... मैं आत्मा ज्ञानसूर्य सागर बाप के सम्मुख बैठ शक्तियों की किरणों से स्वयं को भरपूर करती हूं... योगबल से अपने पुराने विकर्मो के खातों को भस्म करती हूं...

 

❉   "ड्रिल - समय को यूज कर तपस्वीमूर्त बनना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा पदमापदम भाग्यशाली हूं... स्वयं भगवान ने मुझ आत्मा को कोटो मे से कोई और कोई मे से भी कोई में चुना है... मैं बाबा की हो गई व बाबा मेरा हो गए... जिसकी मुझ आत्मा ने कभी कल्पना भी नही की थी... जहां दुनिया रौरव नरक में है... कलयुगी दुनिया में है... वहां मैं आत्मा परमात्मा की हो गई... वाह रे मैं आत्मा... वाह मेरा भाग्य वाह...! स्वयं भगवान ने मुझ आत्मा को भाग्य लिखने की कलम मेरे हाथ में दे दी... मैं आत्मा अपनी तकदीर की तस्वीर स्वयं बना लूं... जितना भाग्य बनाना चाहूं बना सकती हूं... इस संगमयुग पर ये मुझ आत्मा का सौभाग्य है... इस संगमयुग पर ही स्वयं परमात्मा ने मुझ आत्मा को ज्ञान का खजाना, समय का खजाना, खुशी का खजाना... खजानों से भरपूर किया है... स्वयं इस संगमयुग पर इस छोटे से जीवन में मैं आत्मा पूरे कल्प के लिए अपना भाग्य बनाती हूं... मैं आत्मा इस संगमयुग के समय के हर क्षण को बाबा की याद में रह सफल करती हूं... इस संगमयुग में किया गया पुरुषार्थ  मुझ आत्मा को पदमों की कमाई कराता है... मैं आत्मा बाबा की याद में रह अपने विकर्मो का विनाश करती हूं... मैं आत्मा कोई गफलत नही करती हूं... जैसे लेंस को एक जगह ही लगातार रखते हैं तो कागज जल जाता है ऐसे मैं आत्मा एक ही संकल्प में एक की ही याद में रह योगग्नि से अपने को तपाकर विकारों को भस्म करती हूं... अपनी बुद्धि को क्लीन क्लीयर कर तपस्यामूर्त बनती हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं सफलतामूर्त आत्मा हूँ ।"

 

 ➳ _ ➳  मैं बापदादा द्वारा दिए हुए भिन्न-भिन्न स्वमानों को अपने व्यवहार में धारण करने वाली ताज, तिलक, तख्तनशीन आत्मा हूँ... मैं आत्मा इस संसार की सर्वश्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ... मैं सर्वशक्तिमान पिता शिव की संतान मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हूँ... मैं विघ्न-विनाशक हूँ...

 

➳ _ ➳  मुझमें बापदादा द्वारा प्रदान की गई अनमोल सर्वशक्तियाँ समाहित हैं... यह परमात्म शक्तियाँ छत्रछाया बनकर मेरे साथ रहती है... इन शक्तियों के रहते मुझ आत्मा पर कैसी भी आसुरी शक्तियाँ प्रहार नहीं कर सकती...

 

➳ _ ➳  अपने श्रेष्ठ स्वमान में स्तिथ रहकर मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि भिन्न-भिन्न प्रकार के देहाभिमान मेरे जीवन से स्वतः ही समाप्त हो रहें हैं... मैं आत्मा अपने अनादि स्वरुप में स्वयं को सहज ही स्तिथ कर रहीं हूँ... मैं आत्मा बाप के हर फरमान को सहज ही पालन करने का अनुभव कर रहीं हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा सदा "स्व" शब्द को स्मृति में  रख देह के मान-शान से परे रहती हूँ... मैं सदा "स्व" की स्तिथि में स्तिथ रहकर मेहनत से उपराम रहने वाली...  प्रत्यक्षफल प्राप्त करने वाली आत्मा हूँ... सदा स्वमान में स्तिथ रहकर मैं आत्मा पुरुषार्थ वा सेवा में सहज ही सफलता प्राप्त करने वाली सफलतामूर्त आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  स्वमान में स्थित रह देह-अभिमान को समाप्त करने वाले सफलतामूर्त होते हैं...  क्यों और कैसे?

 

❉   स्वमान में स्थित रह देह-अभिमान को समाप्त करने वाले सफलतामूर्त होते हैं क्योंकि जो बच्चे स्वमान में स्थित रहते हैं वही बाप के हर फरमान का सहज ही पालन कर सकते हैं। वे बच्चे बाप द्वारा प्रदत्त की हुई श्रीमत का पालन स्वानुशासन में रहते हुए प्रसन्नतापूर्वक करेंगे।

 

❉   स्वमान भिन्न भिन्न प्रकार के देह-अभिमान को समाप्त कर देता है लेकिन जब स्वमान से स्व शब्द भूल जाता है और मान - शान में आ जाते हैं तो एक शब्द की गलती से अनेक गलतियाँ होने लगती हैं। देहभान सब से बड़ा अभिशाप है।

 

❉   इसलिये! देह अभिमानी आत्मा को आत्म अभिमानी बनने के लिये मेहनत ज्यादा करनी पड़ती है और देखने में प्रत्यक्षफल कम मिलता है। मेहनत कम करनी पड़े और प्रत्यक्ष फल अधिक मिलेउसके लिये सदा ही स्वमानों का अभ्यास करते रहना चाहिये।

 

❉   तभी तो! हमसदा स्वमान में स्थित रहने से पुरुषार्थ वा सेवा में सहज ही सफलतामूर्त बन जायेंगे। इसके लिये हमें सदा बाप की याद में रहना है। स्वयं को आत्मा समझ कर अपने प्यारे पिता!  अर्थात!  सर्व आत्माओं के पिता को याद करते रहना है। साथ ही स्वमान को धारण कर उसका स्वरूप भी बनना है।

 

❉   इसी लिये!  हमें सदा ही स्वमान में स्थित रहना है, तथा स्वयं को देह अभिमान से मुक्त रख कर के अपने को आत्म अभिमानी स्थित में स्थित रखना है। तभी तो हम सफलतामूर्त बन जाते हैं क्योंकि हमने अपने देह अभिमान को समाप्त कर दिया है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  तपस्या करनी है तो समय को बचाओ, बहाना नही दो... क्यों और कैसे ?

 

❉   जैसे स्थूल काम का टाइम टेबल फिक्स करते हैं ताकि कार्य सही समय पर और सहजता से पूरा हो सके ऐसे हर समय जो काम करना है उस काम को करते भी जब मन का टाइम टेबल बना कर रखेंगे कि यह काम करते हुए इस स्वमान की स्मृति में रहना है तो कर्म योगी बन हर कर्म करते भी तपस्या में रह सकेंगे । ऐसे अपने कर्म के हिसाब से जब अपनी दिनचर्या को सेट करेंगे तो बहाने बाजी से भी बचे रहेंगे और समय को भी तपस्या में लगा कर सफल कर सकेंगें ।

 

❉   अभी समय है उड़ती कला के तीव्र पुरुषार्थ का । इसलिए बापदादा समय प्रति समय इशारा देते रहते हैं कि अब कॉमन पुरुषार्थ का समय नही है इसलिए अपने हर सेकण्ड, हर संकल्प को चेक करो । अगर साधारण पुरुषार्थ में रहे तो यह साधारण पुरुषार्थ कितना नुकसान कर देगा । इसलिए समय की नज़ाकत को देखते हुए तीव्र पुरुषार्थी बनो क्योकि हलचल के समय अचल रहने का पुरुषार्थ तीव्र पुरुषार्थी ही कर सकता है । इसलिए तपस्या कर उंच पद पाना है तो बहाने छोड़, समय को बचाओ ।

 

❉   जैसे एक सेकण्ड में साधन यूज़ करते हैं ऐसे बीच बीच में कुछ समय जब साधना के लिए निकालने का लक्ष्य रखेंगे । जैसे अभी अभी साधन पर हाथ है और अभी अभी एक सेकण्ड साधना । ऐसे जब बीच बीच में अभ्यास करते रहेंगे तो जैसे साधनो का प्रयोग ऑटोमेटिक चलता रहता है ऐसे साधना का अभ्यास भी बीच बीच में ऑटोमेटिक चलता रहेगा । फिर यह बहाना भी समाप्त हो जायेगा कि बहुत बिज़ी थे तपस्या के लिए समय नही मिला ।

 

❉   व्यवाहर करते जब शरीर निर्वाह और आत्म निर्वाह का बैलेंस नही रखते तो यह व्यवाहर ही मायाजाल बन जाता है जिसमे फंस कर सारा समय ही व्यर्थ गंवा देते है और फिर बहानेबाजी करते हैं । इसलिए बाबा कहते धन की वृद्धि करते भी याद की विधि नही भूलो । लौकिक स्थूल कर्म भी कर्मयोगी की स्टेज पर स्थित हो कर करो । व्यवाहर और परमार्थ दोनों को साथ साथ रखो तो फिर तपस्या के लिए समय को भी बचा सकेंगे और बहानो से भी बच जायेंगे ।

 

❉   जैसे स्थूल कार्य में लक्ष्य रखने से अगर किसी कारणवश वह कार्य अधूरा भी रह भी जाता है तो उसको सम्पन्न करने का प्रयत्न करते हैं इसी प्रकार जब रोज तपस्या का लक्ष्य रखेंगे तो विशेष अटेंशन होने से बल मिलेगा । कोई भी कार्य करते हुए फिर स्मृति रहेगी जिससे सहज ही स्मृति स्वरूप बन जायेंगे । सोच कर, प्लैन बना कर जब दृढ़ता के साथ इस लक्ष्य को पूरा करने का प्रयास करेंगें तो अलबेलेपन की सारी बहानेबाजी समाप्त हो जायेगी । समय को बचा कर उसे तपस्या में सफल करना सहज हो जायेगा ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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