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❍ 16 / 08 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ विशाल बुधी बन √जोर शोर से सेवा√ की ?
➢➢ बाप द्वारा जो स्मृति मिली है, उसे ×विस्मृति× में तो नहीं लाये ?
➢➢ √पवित्र√ रहने की जो बाप से प्रतिज्ञा की है, उसे पूरा निभाया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ √करना और कहना√ - इन दो को समान बनाकर क्वालिटी की सेवा की ?
➢➢ √अनेकता में एकता√ लाये ? बिगड़ी को बनाया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ √हिसाब किताब की समाप्ति√ का समारोह मनाने का पुरुषार्थ किया ?
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/16.08.16-VisheshPurusharth.htm
✺ PDF Format:-
➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/16.08.16-VisheshPurusharth.pdf
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - विशाल बुद्धि बन बडो बड़ो की ओपिनियन लेकर अनेक आत्माओ का कल्याण करो उनसे हाल आदि लेकर खूब प्रदर्शनिया आदि लगाओ"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... जो खजाने आपने पाये है उसे संसार में भी लुटाओ... सारे विश्व के बच्चों को मीठे पिता के आने का सन्देश दे आओ... पूरे विश्व के कल्याण की विशाल सी बुद्धि को बनाओ... बड़ी बड़ी जगहों पर सेवाओ का लंगर चलाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मुझ आत्मा ने जो खूबसूरत दौलत ज्ञान की आपसे पायी है... वह विश्व में सबको सुनाकर सबके जीवन को खुशियो संग खिलाना है... सच्चे पिता के परिचय से उनके जीवन को भी महकाना है...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... अब हदो के छोटेपन से निकल विशाल ह्रदय से भर जाओ... पूरे विश्व में... भगवान आ चला है धरती पर यह गूंजा दो... खूब प्रदर्शनियां आदि लगाओ और हर दिल पर ईश्वरीय खबर की दस्तक दे आओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अपने मीठे बाबा का परिचय हर दिल को दे रही हूँ... सबके सच्ची खुशियो का स्थायी पता बाँट रही हूँ... रूहानी सेवाधारी बन बेहद की सेवा में जुट गयी हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... विश्वस्तरीय सेवा कर सबके दुःख दूर करो... विशाल बुद्धि बनकर बड़े बड़े प्लान बना कर विहंग मार्ग की सेवा में खप जाओ... सबके जीवन को सुखो से भर आओ... सबका कल्याण कर विश्व को सुखो का सुंदर बगीचा बनाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा हर दिल को खुशियो को पता देती जा रही हूँ... आपकी मीठी यादो में खोकर औरो को भी इस सुख का अधिकारी बना रही हूँ... सब सुख शांति आनन्द से भर जय... यह सेवा की अलख जगा रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - विशाल बुद्धि बन रुहानी सर्विस करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा खुशनसीब हूं... मुझ आत्मा को परमपिता परमात्मा रोज स्वयं ज्ञान रत्नों के अनमोल अखूट खजानों से भरपूर करते है... एक एक ज्ञान रत्न कितना बड़ा खजाना है...! मैं आत्मा रिजचेस्ट इन दा वर्ल्ड बनती हूंं... प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी पहचान दी... सच्चे सच्चे परमपिता का परिचय दिया... मुझ आत्मा को सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान दिया... स्वयं रोज सुप्रीम शिक्षक बन पढ़ाकर पतित से पावन बनाते हैं... मैं आत्मा कितनी पदमापदम भाग्यशाली हूं जो स्वयं भगवान मुझे पढ़ाते हैं!! मैं आत्मा अपार खुशी व नशे में रहती हूं... मैं आत्मा इस रुहानी पढ़ाई को पढ़कर अविनाशी कमाई करती हूं... मैं आत्मा ज्ञान धारण कर नालेजफुल बनती हूं... नॉलेज से ही मैं आत्मा लाइट और माइट अनुभव करती हूं... मैं आत्मा अपने पुराने स्वभाव संस्कार छोड़ चुकी हूं... अब मुझ में स्वार्थ की भावना समाप्त हो गई है... अब मैं आत्मा हद की न सोच बेहद का चिंतन करती हूं... सर्व के प्रति शुभ भावना शुभ कामना रखती हूं... अब मुझ आत्मा की बुद्धि विशाल हो गई है... मैं आत्मा रुहानी सर्विस के लिए ऐवररेडी रहती हूं... मुझ आत्मा का हर संकल्प बाबा के लिए होता है... मुझ आत्मा का सर्विस की नवीनता के लिए चिंतन चलता रहता है... मुझ आत्मा में रुहानी सर्विस के लिए उमंग उत्साह रहता है... मैं रुहानी सर्विसएबुल आत्मा हूं...
❉ "ड्रिल - स्मृति स्वरुप रह पवित्र रहना"
➳ _ ➳ मै अपने को शरीर समझ भूल करती गई... इस एक गलती से ही अनेकों गल्तियां करती रही... देहभान में रहने से विकारों में गिर काली होती चली गई... अपने स्वरुप को भूल गई और इस शरीर को ही सब समझ बैठ इसे ही संवारने में लगी रही... देह व देहधारियों से सर्व सम्बंध निभाते दुखी ही होते रहे... इस संगमयुग पर स्वयं परमपिता परमात्मा को अपने बच्चों को पतित से पावन बनाने के लिए आना पड़ा... परमपिता परमात्मा शिव बाबा ने ही आकर अपने असली स्वरुप की पहचान दी... मैं कौन हूं... मेरा स्वरुप क्या है... मुझ आत्मा के पिता कौन है... कौन मेरा साथ निभा रहा है... मुझ आत्मा को प्यारे बाबा ने सारी विस्मृतियों की स्मृति दिलाई... मैं देह नही देही हूं... मैं ज्योतिर्बिंदु हूं... मुझ आत्मा के परमपिता परमात्मा शिव बाबा हैं... सुप्रीम बिंदु है... बाबा ने ही मुझ आत्मा को याद दिलाया कि मुझ आत्मा का आदि अनादि स्वरुप ही शुद्ध है, पवित्र है, दिव्यगुणों से युक्त है... मैं आत्मा बस इस स्मृति में नही रहती बल्कि मैं शुद्ध, पवित्र आत्मा हूं... मैं अपने स्मृति स्वरुप में रहती हूं... मैं समर्थ स्वरुप आत्मा हूं... मुझ आत्मा ने प्यारे बाबा से प्रतिज्ञा की है... मैं आत्मा इस अंतिम जन्म में पवित्र रहूंगी... मैं आत्मा बस एक बाप की याद में रह पावन बनती जा रही हूं... मुझ आत्मा को पावन बन पावन दुनिया में ऊंच पद पाना है...
❉ "ड्रिल - अनेकता में एकता लाना - सबसे बड़ी विशेषता"
➳ _ ➳ मैं आत्मा मन बुद्धि की अधिकारी हूं... सर्व कर्मेन्द्रियां मुझ आत्मा के अधीन है... पहले मुझ आत्मा को ज्ञान नही था कि हम सब आत्माऐं एक ही पिता की संतान हैं... मुझ आत्मा को परमपिता परमात्मा से ईश्वरीय ज्ञान मिलने से अज्ञानता का अंधियारा दूर हो गया है... ज्ञान का तीसरा नेत्र व दिव्य दृष्टि मिल गई है... मैं आत्मा सर्व के प्रति आत्मिक दृष्टि रखती हूं... आत्मा-आत्मा भाई भाई हैं... जिससे हम अनेक होते हुए भी एक लगते हैं... सारा विश्व मुझ आत्मा का रुहानी परिवार है...मुझ आत्मा का परमात्मा से याद रुपी तार का कनेक्शन जुड़ा रहता है... कनेक्शन जुड़ा रहने से बुद्धि की लाइन क्लीयर रहती है... मुझ आत्मा का व्यर्थ चिंतन समाप्त हो गया है... मैं आत्मा समर्थ व श्रेष्ठ संकल्पों की रचयिता हूं... मैं आत्मा सर्व की सहयोगी बनकर रहती हूं... विश्व की सर्व आत्माओं के प्रति रुहानी प्रेम रखती हूं... मैं आत्मा प्यारे बाबा को साथ रख सब बातों का समाधान कर सहज करती हूं... बीती को बिंदी लगा आगे बढ़ती हूं... मैं आत्मा बाबा से सर्व खजानों से भरपूर होकर बिगड़ी को बनाने वाली विशेषताओं से भरपूर हूं... मैं सर्वश्रेष्ठ आत्मा हूं...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳ मैं आत्मा भृकुटि सिंहासन पर विराजमान हूँ... अपने प्यारे परमपिता परमात्मा के सम्मुख हूँ... मेरे परमपिता शिव बाबा ज्ञान के सागर हैं... मुझ आत्मा को सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान देते हैं.. यह ज्ञान प्यारे बाबा के सिवाय कोई दूसरा दे नहीं सकता...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा की बुद्धिरुपी झोली ज्ञान रत्नों से भरपूर करते हैं... मैं आत्मा योगबल द्वारा अपने विकारों का नाश कर रहीं हूँ... मैं आत्मा एकाग्रचित होकर प्यारे बाबा के महावाक्य सुनती हूँ...
➳ _ ➳ मैं अपने आत्मिक स्वरुप में बैठ ज्ञान रत्न धारण कर रहीं हूँ... मेरे प्यारे बाबा हर कदम पर मेरे साथ है... मैं आत्मा हर कर्म बाबा की याद में करती हूँ... प्यारे बाबा कहते हैं कि कहना सहज होता है पर करने में मेहनत है...
➳ _ ➳ इसलिये मैं आत्मा करनकरावनहार बाबा की डायरेक्शन अनुसार स्वयं इन ज्ञान रत्नों को धारण करके अन्य आत्माओं को भी धारण करवाने में निमित्त बन सर्विस कर रहीं हूँ...
➳ _ ➳ जैसे अमृत के बीच विष की एक बूँद भी पड़ने से सारा अमृत विष बन जाता है, ऐसे ही कितनी भी सर्विस करो लेकिन एक छोटी सी गलती सर्विस को समाप्त कर देती है...
➳ _ ➳ इसलिए मैं आत्मा अपने ऊपर सम्पूर्ण रूप से अटेंशन रखती हूँ कि पहले करना है फिर अन्य आत्माओं को कहना है करने के लिए...
➳ _ ➳ मैं निमित्त आत्मा करना और कहना इन दोनों गुणों को समान बनाकर क़्वालिटी की सेवा करने वाली सच्ची सेवाधारी आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ करना और कहना - इन दो को समान बनाकर क्वालिटी की सेवा करने वाले सच्चे सेवाधारी होते हैं... क्यों और कैसे?
❉ करना और कहना – इन दो को समान बना कर क़्वालिटी की सेवा करने वाले ही सच्चे सेवाधारी होते हैं, क्योंकि उनको सदा इसी बात का अटेन्शन रहता है कि पहले करना है, फिर बाद में मुख से कहना है। वे कोई भी कार्य को सोचे समझे बिना नहीं करते हैं।
❉ किसी को किसी भी बात के लिये कह देना, बहुत ही सहज होता है। लेकिन जब स्वयं उसी बात करते हैं। तो उस कार्य में मेहनत लगती है। तभी तो कहा गया है कि... मेहनत का फल मीठा होता है तथा बहुत अच्छा होता है। हमें मीठा फल प्राप्त हो जाये, इसके लिये कहने से पहले स्वयं को करना है।
❉ अगर कहने से पहले स्वयं नहीं करेंगे तो, ये बात राईट नहीं होगी। यदि दूसरों को तो कहते हैं और स्वयं वैसा करते नही हैं, तब उस समय हम सर्विस के साथ – साथ डिस सर्विस भी कर रहे होते हैं। इसलिये प्रथमथः करके दिखाना है। फिर मुख से कहना है।
❉ तब हमारे द्वारा कभी भी किसी भी प्रकार की डिस सर्विस प्रत्यक्ष नहीं हो सकेगी तथा जिस प्रकार अमृत के बीच में अगर विष की एक बूँद भी पड़ जाये तो क्या होगा? तब होगा क्या? सारा का सारा अमृत ही विष समान विष ही बन जाएगा।
❉ इस प्रकार हम कितनी भी सर्विस करें। लेकिन हमारी एक छोटी सी गलती भी हमारी सभी सर्विस को समाप्त कर देती है। इसलिये सब से पहले अपने पर पूरा अटेन्शन देना है तथा करना और कहना – इन दोनों को समान बना कर क़्वालिटी की सेवा करनी है। तभी सब कहेंगे कि ये तो सच्चे सेवाधारी हैं।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ अनेकता में एकता लाना, बिगड़ी को बनाना - यह सबसे बड़ी विशेषता है... क्यों और कैसे ?
❉ जो सदा बेहद की शुभभावना और शुभकामना में स्थित रहते हैं । हर आत्मा के प्रति श्रेष्ठ और शुभचिंतक वृति रखते हैं । संकल्प वा स्वप्न में भी किसी भी आत्मा के प्रति कोई भी अशुभ वा साधारण भाव धारण नही करते । अकल्याण की बाते देखते और सुनते हुए भी अपनी बेहद की शुभचिंतक वृति से उसे कल्याण की वृति में बदल सर्व के कल्याणकारी बनते हैं वही अनेकता में एकता लाने वाले तथा बिगड़ी को बनाने वाली विशेष आत्मा कहलाते हैं ।
❉ अनेकता में एकता लाने वाली भाग्यशाली आत्मा वही बन सकते हैं जिन्हें सदैव यह स्मृति रहती हैं कि हम ही वे पूर्वज आत्माए हैं जिन्हें स्वयं भगवान ने सर्व आत्माओं का उद्धार करने के निमित बनाया है । हमारा हर संकल्प और हर सेकण्ड विश्व सेवा प्रति है । जो अपने इस पूर्वज स्वरूप् को सदैव स्मृति में रखते हैं वे मनसा - वाचा - कर्मणा सब बातों में उदारचित बन, हर आत्मा की कमियों को स्वयं में समा कर , बिगड़ी को भी संवार देते हैं ।
❉ ब्राह्मण जीवन है ही समर्पित जीवन, इस बात को जो सदा बुद्धि में रखते हैं वे तन - मन - धन सब कुछ ईश्वरीय सेवा में समर्पित कर बाप समान बेहद की कल्याणकारी वृति को धारण कर, सदैव सर्व आत्माओं के कल्याण के चिंतन में ही बिज़ी रहते हैं और सदैव यही सोचते हैं कि कैसे किसी भी आत्मा का कल्याण हो । ऐसे बेहद की कल्याणकारी वृति रखने वाले किसी भी स्वभाव संस्कार वाली आत्मा के सम्पर्क में आने पर उसके प्रति भी शुभ भाव ही रखते हैं और अनेकता में भी एकता की भावना पैदा कर देते हैं ।
❉ जो आत्माए मन बुद्धि को सदा श्रेष्ठ चिंतन में लगाये रखती हैं वे स्वत: ही बलशाली बन जाती हैं । आत्मिक बल जैसे जैसे उनमे बढ़ता जाता है वैसे वैसे सर्व शक्तियां उनमे जागृत होने लगती हैं और वे स्वयं को सदा सर्वशक्तियों से सम्पन्न अनुभव करते हैं । सर्व शक्तियों की अथॉरिटी उनमे सर्व गुण विकसित कर देती हैं । और जो आत्मा सहन शीलता के विशेष गुण को अपने जीवन में धारण कर लेती हैं वह बिगड़ी को भी बनाने का प्रयत्न करती है तथा अनेकता में भी एकता ले आती है ।
❉ निश्चय बुद्धि हो कल्याण की भावना रखने से दृष्टि और वृति दोनों ही बदल जाते हैं । कैसा भी कोई क्रोधी आदमी सामना करने वाला हो, इंसल्ट करने वाला हो, गाली देने वाला हो लेकिन जब कल्याण की भावना रख उसके संपर्क में आते हैं तो रोब भी बदल कर रहम हो जाता है । और यह शुभ कल्याण की भावना उस आत्मा के संस्कारों को सहज ही परिवर्तन कर देती है । ऐसे रोब को रहम में परिवर्तन करने वाली आत्माए ही अनेकता में एकता लाने तथा बिगड़ी को बनाने के निमित बन अनेको आत्माओं का कल्याण करती हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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