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 13 / 08 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ किसी ने झूठी बातें सुनायी तो उसे सुना अनसुना किया ?

 

➢➢ "कोई भी देवता बनने वाले ब्राह्मण कुल भूषणों का ×नाम बदनाम× न हो" - इसका ध्यान रखा ?

 

➢➢ पिछले हिसाब किताब चुक्तु किये ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ न्यारेपन के अभ्यास द्वारा फ़रिश्ते रूप का साक्षातकार करवाया ?

 

➢➢ संगम का ×एक सेकंड भी व्यर्थ× तो नहीं गंवाया ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢  बाप की याद से प्रवृति के हर कार्य को सहज बनाया ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - सुनी सुनाई बातो पर विश्वास नही करो अगर कोई उलटी सीधी बात सुनाये तो एक कान से सुन दूसरे से बाहर निकाल दो"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... दुनिया की बातो ने किस कदर भ्रमित किया है... सत्य बात से कोसो दूर किया है... अब व्यर्थ में स्वयं को और न उलझाओ... सुनते हुए भी न सुनो... सिर्फ एक बाप की मीठी बातो को सुन उसके अनन्त प्यार में खो जाओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा सिर्फ प्यारे बाबा को ही सुनूंगी... सत्य को ही बाँहो में भरुंगी... व्यर्थ की बातो से उपराम होकर प्यारे बाबा आपकी यादो में महकुंगी...

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... भक्ति की कहानियो ने बुद्धि का क्या हाल किया है... विश्व पिता के अतिरिक्त तो सच्चे सत्य को कोई सुना ही न सके... तो सिर्फ सच्चे पिता की सच्ची बातो को सुनो जो जीवन को सच से भर कर सुखो में ले जाएँगी... सुनी सुनाई बातो से में न फंसो... सुलझा हुआ सुंदर जीवन पिता की यादो भरा जीओ...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ की सत्य पिता को पा चली हूँ... झूठी बातो और नातो से दूर दूर तक अब कोई नाता ही नही... प्यारे बाबा की सुनहरी यादो का सच्चा जीवन जीकर किस कदर खुशहाल हो चली हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे जब भाग्य ने सत्य को जीवन में महका दिया तो झूठ में दामन उलझाना क्यों... यह सुंदर अनोखा ईश्वरीय सत्य देवता रूप से सजाएगा... और अथाह खुशियो के फूल दामन में खिलायेगा... तो ईश्वर पिता को ही सुनो और प्यार करो और कही रिंचक मात्र भी न भटको...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अब सदा की सुलझ चली हूँ आपके मीठे प्यार में सदा का जीयदान पा चली हूँ... असत्य से विमुख हो गयी हूँ... और मीठी यादो भरा सत्य से भरपूर अनोखा जीवन जी रही हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल -  श्रीमत पर चल अपना व दूसरों का कल्याण करना"

 

➳ _ ➳  पिछले कई वर्षो से मैं अज्ञानता के घोर अंधियारे में थी... माया रावण के वश होकर मैं दुखी होती रही... स्वयं परमपिता परमात्मा ने अज्ञान की निद्रा से जगाकर ज्ञान की रोशनी दी... अज्ञान अंधकार से निकाल ज्ञान के सोझरे में लाकर ज्ञान रुपी तीसरा नेत्र दिया... मैं आत्मा परमात्म सर्व शक्तियों और सर्वगुणों से भरपूर होकर जागता दीपक बन गया हूं... सारा संसार जिसकी एक झलक पाने के लिए दिन रात भक्ति आदि अनेक कर्म करते हैं... वह परमात्मा स्वयं रोज दिव्य गुणों से मुझ आत्मा को नवाजते है... जो स्वयं सारी सृष्टि का मालिक है... वो मुझ आत्मा को प्यार देकर अपनी गोदी में बिठाता है... मुझ आत्मा को दुख की दुनिया से निकाल सुख की दुनिया में लाते हैं... मुझ आत्मा को सृष्टि का सारा ज्ञान देकर ज्ञानस्वरुप बनाते है... यह ज्ञान प्यारे बाबा के सिवाय कोई दूसरा सुना न सके... मैं आत्मा अपने ऊंच ते ऊंच बाप की श्रीमत पर ही चलती हूं... मैं आत्मा बाबा का परिचय अन्य आत्माओं को देती हूं... श्रीमत पर चल मैं आत्मा अपना कल्याण करती हूं... दूसरी आत्माओं को मैं आत्मा बाबा का पैगाम दे कल्याण के निमित्त बनती हूं... मैं आत्मा व्यर्थ में अपना समय नही गंवाती हूं... मैं आत्मा देखते हुए भी इस विनाशी दुनिया की मायावी चीजों को नही देखती... सुनते हुए भी नही सुनती...

 

❉   "ड्रिल - देवताई पद पाने के लिए श्रेष्ठ कर्म करना"

 

➳ _ ➳  मैं ब्राह्मण आत्मा हूं... श्रेष्ठ आत्मा हूं... मैं विशेष आत्मा हूं... ये मुझ आत्मा का नया जन्म है... मैं इस पुरानी दुनिया में होते हुए भी निंदा-स्तुति, जय-पराजय, मान-शान से परे हूं... मुझ आत्मा को यह ज्ञान मेरे परमपिता शिव बाबा से मिल गया है... मैं जान गई हूं कि मैं देह नही देही हूं... मैं आत्मा इस दुनिया में बस अपना पार्ट बजाने आई हूं... मुझ आत्मा के सच्चे सच्चे पिता प्यारे शिव बाबा हैं... प्यारे शिव बाबा ने ही मुझे इस विकारी दुनिया के दुबन से निकाल अपना बच्चा बनाया है... ये मुझ आत्मा का नया आलौकिक जीवन है...  प्यारे बाबा ही मुझ आत्मा को सुप्रीम शिक्षक बन पढ़ाते हैं... मुझ आत्मा को पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बनाते हैं... कौडी तुल्य से हीरे तुल्य बनाते है... मनुष्य से ब्राह्मण और ब्राह्मण से देवता बनाने के लिए पढ़ाते है... मैं आत्मा रुहानी और दा बेस्ट पढ़ाई पढ़ती हूं... मैं आत्मा यह रुहानी पढ़ाई पढ़कर 21 जन्मों के लिए अविनाशी कमाई जमा करती हूं... मैं आत्मा विश्व की बादशाही व ऊंच पद बना के लिए पुरुषार्थ करती हूं... मैं आत्मा अटेंशन रखती हूं कि मुझ से कोई भी कर्म ऐसा न हो जिससे ब्राह्मण कुल का नाम खराब हो... मैं आत्मा बाबा की याद में रह श्रेष्ठ कर्म करती हूं... मैं आत्मा याद में रह पिछले जन्मों के हिसाब किताब चुकतू करती हूं...

 

❉   "ड्रिल - संगमयुग का हर सेकेंड सफल करना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा कोटो मे कोई व कोई मे से कोई पदमापदम भाग्यशाली आत्मा हूं... जो स्वयं परमपिता परमात्मा में स्वयं भगवान ने मुझे अपना बच्चा बनाया... मुझ आत्मा पर बलिहारी गया... मैं आत्मा संगमयुगी ब्राह्मण हूं... संगमयुग पर स्वयं परमात्मा ने मुझ आत्मा को भाग्य लिखने की कलम दी है... मैं आत्मा जितना चाहे पुरुषार्थ कर भाग्य बनाती हूं... मैं आत्मा इस संगमयुग के अनमोल जीवन के महत्व को जान गई हूं... मुझ आत्मा अपना समय और संकल्प बस बाबा की याद में रहकर सफल करती हूं... मैं आत्मा प्यारे बाबा की याद में रह कदम कदम पर पदमों की कमाई जमा करती हूं... इस संगमयुग के छोटे से जीवन में ही मैं आत्मा पुरुषार्थ कर 21 जन्मों के लिए प्रालब्ध प्राप्त करती हूं...  मैं आत्मा सदैव स्वयं को प्यारे बाबा की छत्रछाया में अनुभव करती हूं... संगमयुग पर ही मुझ आत्मा और परमात्मा का मिलन मेला होता है... मैं आत्मा परमात्म सर्वशक्तियों से स्वयं को सम्पन्न अनुभव करती हूं... मैं आत्मा हर क्षण अपने सर्व खजानों को जमा करते अपने समय को सफल करती हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं सहजयोगी आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳  मैं देह नही देही हूँ... मैं आत्मा शांति के सागर की संतान हूँ... मैं आत्मा शांत स्वरुप हूँ... मैं आत्मा शरीर से अलग देह की दुनिया से न्यारी शांतिधाम की रहने वाली हूँ... मैं आत्मा कर्म करते हुए देह से न्यारी हूँ... मैं आत्मा स्वराज्याधिकारी बन अपनी कर्मेन्द्रियों से कर्म करती हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा देही अभिमानी हूँ... मैं आत्मा इस देह रूपी वस्त्रों को धारण किये हुए हूँ... इस देह रूपी वस्त्रों को धारण करके ही मैं आत्मा अपना हर कार्य करती हूँ... कार्य पूर्ण होते ही मैं आत्मा शांति के सागर प्यारे बाबा की याद रुपी गोद में समा जाती हूँ... शांति मुझ आत्मा का निज स्वभाव बन गया है... मैं आत्मा आवाज़ की दुनिया से दूर साइलेंस में हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा चलते फिरते शरीर और आत्मा दोनों के न्यारेपन का अनुभव कर रहीं हूँ... इस मायावी दुनिया से दूर और देह व देह के सम्बंध सम्पर्क से परे मैं आत्मा उपराम अवस्था का अनुभव कर रही हूँ... अशरीरी अवस्था का अनुभव कर रही हूँ... मैं देह से संकल्प मात्र भी अटैच नहीं हूँ... मैं आत्मा स्वयं को हल्का महसूस करने वाली फरिश्ता स्वरुप आत्मा हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अन्य कई आत्माओं को उनका फरिश्ता  रूप और भविष्य राज्य पद का साक्षात्कार करवाने में निमित्त बनने का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा निरन्तर सहजयोगी बन इस अंतिम समय की सर्विस के निमित्त आत्मा बनने का अनुभव कर रहीं हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  न्यारेपन के अभ्यास द्वारा फरिश्ते रुप का साक्षात्कार कराने वाले निरन्तर सहजयोगी होते हैं...  क्यों? और कैसे?

❉   न्यारेपन के अभ्यास द्वारा फरिश्ते रूप साक्षात्कार कराने वाले निरन्तर सहजयोगी होते हैं क्योंकि जैसे कोई भी वस्त्र धारण करना वा न करना अपने हाथ में होता है, उसी प्रकार ऐसा ही अनुभव इस शरीर रुपी वस्त्र में भी हमें होना चाहिये। जब चाहें हम अपनी कोई सी भी ड्रैस धारण कर सकें। चाहे फरिश्ता स्वरूप, चाहे अनादि बिन्दु स्वरूप या फिर देव स्वरूप की ड्रैस हो।

❉   हमें ऐसा अनुभव करना है कि...  जैसे हमने किसी भी वस्त्र को धारण करकेकोई भी कार्य किया हो और उस कार्य के पूरा होते ही वस्त्र से न्यारे हो गये हों। हमें इस प्रकार से अपने न्यारेपन के अनुभव को बढ़ाते जाना है। जैसे - जैसे हमारे अनुभव की मात्रा बढ़ेगी, वैसे - वैसे ही हमारे पुरुषार्थ में भी तीव्रता आती जायेगी।

❉   हमें अपने शरीर और अपनी आत्मा, दोनों के न्यारेपन का अनुभव चलते - फिरते होना चाहिये। तब ही कहेंगे निरन्तर सहजयोगी आत्मा। निरन्तर सहज योग के बहुकालीन अभ्यास की स्थिति, हम आत्माओं को सहज ही सम्पूर्णता का अनुभव करायेगी।

❉   इस प्रकार से अपने शरीर से डिटेच रहने वाले बाबा के बच्चों द्वारा अनेक आत्माओं को हमारे फरिश्ते रूप और भविष्य के पद के अधिकारी स्वरूपों के साक्षात्कार होंगे। वो आत्मायें!  अपने इष्ट देव के दर्शन हम आत्माओं में भी करेंगी।

❉   अन्त में इस सर्विस का बहुत ही जोरों से प्रभाव निकलेगा।  तब हमारे पास अनेक प्रकार के कष्टों से दुखी तड़फती हुई आत्मायें! आ कर अपने कष्टों व दुःखों को दूर करने की फ़रियाद करेंगी। तब हम उन आत्माओं के सभी कष्टों को अपनी दृस्टि की रूहानियत द्वारा, उनको निहाल कर के, उनके सभी कष्टों का हरण करेंगे।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  संगम का एक सेकण्ड भी व्यर्थ गंवाना अर्थात एक वर्ष गंवाना... क्यों और कैसे ?

 

❉   सारे कल्प में श्रेष्ठ खाता जमा करने का समय सिर्फ संगम युग ही है । इस युग की यह मुख्य विशेषता है कि जितना जमा करना चाहे कर सकते हैं । जमा करने का अविनाशी खाता जो केवल एक जन्म नही बल्कि जन्म जन्म का अविनाशी खाता बन जाता है, वह जमा करने का युग यह संगम युग ही है । इसलिए इसे पुरुषोत्तम युग कहा जाता है क्योकि उत्तम ते उत्तम बनने का केवल यही समय है । इसलिए संगम युग के इस अनमोल समय का एक सेकण्ड भी व्यर्थ गंवाना अर्थात एक वर्ष गंवाना है ।

 

❉   संगम युग परमात्म अवतरण का युग है । सारे कल्प में केवल एक ही बार इसी समय परमात्मा बाप अवतरित हो कर हम बच्चों के साथ साकार मिलन मनाते हैं । इसलिए इस युग को वरदानी युग भी कहा जाता है क्योकि इसी समय बाप विधाता और वरदाता का पार्ट बजाते हैं और भोले भंडारी बन एक का पदम गुणा फल देते हैं । इसलिए इस समय के महत्व और प्राप्तियों को जान एक सेकण्ड भी व्यर्थ गंवाना एक वर्ष व्यर्थ गंवाने के बराबर है ।

 

❉   अपने तन, मन, धन और समय को सफल करने का युग केवल संगम युग ही है क्योकि बाकि पूरे कल्प में जो भी तन, मन, धन सेवा में लगाते हैं उसकी प्राप्ति अल्पकाल के लिए होती है किन्तु इस समय जो अपना तन, मन और धन जितना सेवा में सफल करता है वह अपने वर्तमान को श्रेष्ठ बनाने के साथ साथ भविष्य ऊंच प्रालब्ध भी बनाता है । क्योंकि पूरे कल्प में सभी युगों में केवल एक संगम युग ही है जिसमे एक की पदम गुणा प्राप्ति होती है । इसलिए संगम का एक सेकण्ड भी व्यर्थ गंवाना एक वर्ष व्यर्थ गंवाना है ।

 

❉   संगमयुग पर स्वयं वरदाता बाप द्वारा ड्रामा अनुसार विशेष वरदान मिला हुआ है कि जो जितना चाहे उतना श्रेष्ठ भाग्यवान बन सकता है क्योकि जन्मते ही अर्थात ब्राह्मण बनते ही भाग्य का सितारा सभी के मस्तक पर चमकने लगता है । लेकिन प्राप्त हुए इस जन्म सिद्ध अधिकार को वा चमकते हुए भाग्य के सितारे को वही श्रेष्ठ बना सकते हैं जो संगम युग के एक भी सेकण्ड को व्यर्थ नही गंवाते और मिले हुए भाग्य के अधिकार को जीवन में धारण कर कर्म में ला कर सफल करते हैं ।

 

❉   हर सेकण्ड में पदमो की कमाई का वरदान ड्रामा में संगम के समय को ही मिला हुआ है । ऐसे वरदान को अगर स्वयं प्रति भी जमा ना किया तथा औरो प्रति भी दान ना किया तो इसको भी व्यर्थ कहा जायेगा । इसलिए बाबा कहते यह मत समझो कि हमने कोई पाप नही किया या हमसे कोई भूल नही हुई लेकिन अगर समय का लाभ नही लिया अर्थात जमा नही किया तो यह भी व्यर्थ माना जायेगा और संगम का एक सेकण्ड भी व्यर्थ गया तो मानो एक वर्ष व्यर्थ चला गया ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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