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❍ 09 / 07 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ √ड्रामा√ के ज्ञान को बुधी में रख निश्चिंत रहे ?
➢➢ बाप द्वारा बैठी √ब्रहस्पति की दशा√ की संभाल की ?
➢➢ किस भी गृह्चारी को √ज्ञान दान√ से समाप्त किया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ √शक्ति रूप√ की स्मृति द्वारा पतित संकारों का नाश किया ?
➢➢ ×नाम मान शान× की रॉयल इच्छा से दूर रहे ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ सदा √कर्मयोगी√ बन हर कर्म किया ?
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/09.07.16-VisheshPurusharth.htm
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/09.07.16-VisheshPurusharth.pdf
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - इस सभा में बाह्यमुखी बनकर नही बेठना है, बाप की याद रहना है मित्र सम्बन्धी अथवा धंधे आदि को याद करने से वायुमण्डल में विघ्न पड़ता है"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे मीठे पिता के साये बेठे हो तो प्यार में डूब कर बेठो... यादो के अम्बार को लेकर बेठो... हर धड़कन को ईश्वरीय प्यार में भिगो कर बेठो... तो यह सारा आलम प्यार की तरंगो से खिल उठेगा... इन मीठी तरंगो को बातो में नातो में न बिखराओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... आपकी मीठे अहसासो में डूबना कितना सुखद है ह्रदयस्पर्शी है... अपनी बुद्धि को बाहरी नातो में भटकाकर दुःख का स्वाद चख चुकी हूँ... अब इस मीठे प्यार सागर में खो जाना चाहती हूँ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे मीठे पिता और बच्चे की समीपता ही सुंदर सत्य है... जिस संसार को बुद्धि में लिए घूम रहे वह भ्रम है... तो अब एक पल भी इस व्यर्थ में ना लगाओ... हर साँस को ईश्वरीय प्यार में पिरो दो... और अंतर्मुखी बन प्यार का समां बना दो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा हर साँस रुपी तार में आपको पिरो चली हूँ... ईश्वरीय प्यार में रंग कर अपनी खूबसूरती को पाकर खिल उठी हूँ... सब जगह से बुद्धि को हटाकर सारा आलम ईश्वरीय प्यार के रंग से भर चली हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चे विश्व पिता सामने आ बेठा है... सारे खजाने लेकर लुटाने बेठा है... पिता लुटने आया है तो सारा लूट लो... पास में बेठ कर बाहर न भटको वरना खजानो के प्राप्ति का समय हाथो से फिसल जाएगा... और खालीपन से दामन भर जाएगा... इतना डूब जाओ ईश्वरीय प्यार में कि हवा के कण कण में यह मीठे अहसास समा जाय...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी हो चली हूँ... सारा कचरा बुद्धि से निकाल चली हूँ... अंतर्मुखी बन यादो में डूब गयी हूँ... मुझे अपने सुनहरे स्वरूप और खूबसूरत पिता के सिवाय कुछ भी याद नही है...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - ड्रामा के ज्ञान को जान निश्चिंत बनना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा इस पुरुषोत्तम संगमयुग पर परमात्मा शिव से मिले सृष्टि के आदि मध्य अंत के जान गयी हूं... ड्रामा हुबहू रिपीट हो रहा है... ड्रामा में हर आत्मा अपना पार्ट ऐक्यूरेट बजा रही है... हर आत्मा इस सृष्टि रंगमंच पर हीरोपार्टधारी है... जो हुआ वो भी अच्छा जो हो रहा है वो बहुत अच्छा हो रहा है... जो होगा वो भी अच्छा ही होगा... ड्रामा के हर सीन में कल्याण छिपा है... मुझ आत्मा का हिसाब किताब चुकतू हो रहा है... बाबा भी ड्रामा में बंधायेमान है... मुझ आत्मा को ड्रामा का ज्ञान देकर निश्चिंत बना दिया है... स्वयं सर्वशक्तिमान परमात्मा शिव मेरा साथी है... हर कदम पर साथ निभाता है... मुझ आत्मा को सारी जिम्मेवारी बाप को सौंप निश्चिंत रहना है... बनी बनाई बन रही है...
❉ "ड्रिल - दे दान तो छूटे ग्रहण"
➳ _ ➳ मैं आत्मा मास्टर ज्ञान सूर्य हूं... ज्ञान सूर्य की किरणों के नीचे हूं... प्यारे बाबा से ज्ञान रुपी प्रकाश की किरणें मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं... मैं आत्मा ज्ञान से भरपूर होती जा रही हूं... ज्ञान को स्वयं में धारण करती जा रही हूं... प्यारे बाबा से मिले ज्ञान रत्नों से मालामाल होकर मुझ आत्मा पर बृहस्पति की दशा है... मैं आत्मा बाबा से सुख का वर्सा ले रही हूं... एक प्यारे बाबा की याद में रहने से बाहरी आकर्षण व माया के वार से सेफ हूं... माया बड़ी दुश्तर है... अच्छे अच्छे महारथियों को मार गिराती है... मनमनाभव की जादुई चाबी से मैं आत्मा स्वयं को राहू के ग्रहण से सेफ रखती हूं... मैं आत्मा प्यारे बाबा की याद से पांच विकारों पर जीत पाती हूं...
❉ "ड्रिल - रॉयल माया से मुक्त"
➳ _ ➳ मैं आत्मा देह के सर्व बन्धनो से मुक्त हूं... झूठे और विनाशी बन्धनों से मुक्त हूँ... माया के सूक्ष्म और रॉयल रुप से भी मुक्त हूँ... मुझ आत्मा को बेहद का बाप मिला है... मै आत्मा बेहद के वर्से की अधिकारी हूं... स्वयं परमात्मा शिव परमात्मा मुझ आत्मा को अविनाशी खजानों से भरपूर कर रहे है... हर कदम पर मुझ आत्मा का साथ निभाते हैं... मुझ आत्मा को पत्थर से पारस बुद्धि बना रहे हैं... मनुष्य से देवता बना रहे हैं... स्वयं पढ़ाकर स्वर्ग की बादशाही दे रहे हैं... मुझ आत्मा में परमात्म पालना से श्रेष्ठ संकल्प व श्रेष्ठ चिंतन चलता है... मुझ आत्मा के संस्कार परिवर्तन हो गए है... मै आत्मा हद के मान शान की इच्छा के रॉयल माया से मुक्त स्थिति का अनुभव करती हूं...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं काली रुप आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳ देखें स्वयं के काली स्वरुप को... एक ज्वलन्त योग-युक्त स्तिथि... मेरा तो एक बाप दुसरो न कोई स्तिथि में स्तिथ हो जाएँ... अशरीरी स्तिथि में स्तिथ होकर मिलन मनाएं निराकारी शिव पिता से...
➳ _ ➳ शिवपिता की किरणें पड़ने से पांच तत्वों की देह के रोम-रोम का किचड़ा भस्म होता जा रहा है... व्यर्थ संकल्प जलकर खाक हो रहें हैं... और उनकी राख, तपस्वी देह पर भभूत के समान चिपकी हुई प्रतीत हो रही है...
➳ _ ➳ मेरी देह की काया कल्पतरु हो रही है... विनाशी देह अब प्रकाश की काया में परिवर्तित हो रही है... आसुरी संस्कारों का प्रभाव कोसो दूर भी दिखाई नहीं दे रहा है... मैं आत्मा पतित-पावनी अवस्था का दिव्य अनुभव कर रहीं हूँ...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा को अपने सर्वशस्त्रधारि शक्ति स्वरुप की स्मृति आ रही है... मुझ पतित-पावनी पवित्र आत्मा पर किसी भी पतित आत्मा की नज़र की परछाई भी नहीं पड़ सकती है...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा की पॉवरफुल ब्रेक के आगे पतित आत्मा के पतित संकल्प भी नहीं चल सकते हैं... मैं संघारी आत्मा किसी भी पतित आत्मा का शिकार नहीं बन सकती हूँ... मुझ पतित-पावनी आत्मा पर किसी भी पतित आत्मा का प्रभाव नहीं पड़ सकता है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा ऐसा काली के स्वरूप में स्तिथ हूँ जिसके सामने कोई भी पतित आत्मा चाहे जैसा भी संकल्प करे तो उसका वह संकल्प मूर्छित हो जाता है ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ शक्ति रुप की स्मृति द्वारा पतित संस्कारों का नाश करने वाले काली रुप होते हैं.... क्यों और कैसे ?
❉ जो बच्चे अपने शक्ति स्वरुप में रहते है वो हमेशा दूसरों पर रहम करते है अपने लक्ष्य से विमुख करने वाले कड़े पतित रावणी संस्कारों पर नही बल्कि अपने पतित रावणी संस्कारो पर जीत ही नही उनको दृढ़ता से नष्ट करते है व काली रुप होते है ।
❉ जो बच्चे अपना यह स्वरुप स्मृति में रखते हैं कि मैं सर्व शस्त्रधारी शक्ति हूं,मुझ पतित-पावनी पर कोई पतित आत्मा के नजर की परछाई नहीं पड़ सकती है । अपने शक्ति स्वरुप की स्मृति में रहते कि कोई पतित संकल्प भी चलाता तो उनका संकल्प मूर्छित हो जाता ऐसे संस्कारों का नाश करने वाली काली रुप होते हैं ।
❉ जब हम अपने असली स्वरूप ज्वालामुखी स्वरूप की योगयुक्त स्थित में स्थित होते है या शक्ति सवरूप की स्टेज पर स्थित होते है उस समय हमारी अष्ट शक्तियाँ जागृत होती हैं और हम आसुरी संस्कारों का नाश करते है तो काली स्वरुप होते हैं ।
❉ क्योंकि पतित संस्कार बहुत पुराने और कड़े होते है इनको सम्पूर्ण जड़ से खत्म करने के लिए विशेष शक्ति काली रूप वाली चाहिए होती है। काली का रूप विशेष गाया हुआ है जो दुर्जनो का विनाश करने में सक्षम है । अपने शक्ति स्वरुप या ज्वाला स्वरुप में रह विकारों रुपी कचडे का विनाश कर काली स्वरुप होते हैं ।
❉ गंगा नदी को कोई कितना ही गंदा करता फिर भी वो अपने पावन संस्कार से सब गंदगी को किनारे लगा कर अपनी पवित्रता बिखेरती आगे बढ जाती है । ऐसे पतित पावन बाप के बच्चे अपनी पवित्रता की शक्ति से पतित संस्कारों को विनाश करने वाले काली रूप होते हैं ।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ रॉयल रूप की इच्छा का स्वरूप नाम, मान और शान है... क्यों और कैसे ?
❉ रॉयल रूप की इच्छा का स्वरूप नाम, मान और शान है । जो नाम के पीछे सेवा करते हैं, उनका नाम अल्पकाल के लिए हो जाता है लेकिन ऊंच पद में नाम पीछे हो जाता है क्योंकि कच्चा फल खा लिया। कई बच्चे सोचते हैं कि सेवा की रिजल्ट में मेरे को मान मिलना चाहिए । लेकिन यह मान नहीं अभिमान हैं । और जहाँ अभिमान है वहाँ प्रसन्नता नहीं रह सकती । इस रॉयल इच्छा का त्याग ही भविष्य उंच पद की प्राप्ति करवा सकता है ।
❉ इच्छा कभी भी अच्छा बनने नही देती । फिर चाहे वो कोई भी इच्छा क्यों ना हो । भौतिक सुख सुविधाओं की हो या हद के नाम, मान और शान की प्राप्ति की सूक्ष्म रॉयल रूप की इच्छा हो । ये रॉयल सूक्ष्म इच्छाएं भी अप्राप्ति की तरफ खींच लेती हैं और प्राप्ति स्वरूप बनने नही देती । सर्व प्राप्ति सम्पन्न स्वरूप ना बनने के कारण प्रसन्नता की पर्सनैलिटी कभी भी उनके चेहरे और चलन से दिखाई नही देती । सदैव असन्तुष्टता के भाव उनके चेहरे से दिखाई देते हैं ।
❉ सेवा में नाम, मान और शान की प्राप्ति की इच्छा हद की रॉयल इच्छायें होती हैं जो हिसाब-किताब के बन्धन में बांधती हैं । जैसे स्थूल देह और देह के सम्बन्ध स्वार्थ पर आधारित होने के कारण उनका बन्धन होता है । ऐसे सेवा में मान और सम्मान की इच्छा भी स्वार्थ है इसलिए यह भी एक बन्धन है । यह बन्धन भी आत्माओं के साथ रॉयल हिसाब किताब बना देता है । इसलिए सच्चे सेवाधारी वही हैं जो इस रॉयल हिसाब-किताब से भी मुक्त रहते हैं ।
❉ रॉयल रूप की इच्छा का स्वरूप नाम, मान और शान की प्राप्ति है जो मन बुद्धि को हद की इच्छाओं और कामनाओ से मुक्त नही होने देती । हद की इन इच्छाओं को प्राप्त करने में ही मन बुद्धि भटकते रहते हैं जिससे बुद्धि को एकाग्र करना मुश्किल हो जाता है । एकान्त और एकाग्रता की कमी होने के कारण मन बुद्धि बेहद की सूक्ष्म सेवा नही कर पाते और छोटी सी परिस्थिति आते ही हलचल में आ जाते हैं जिससे बाबा की मदद को कैच नही कर पाते और इस कारण सेवा में सफलता भी प्राप्त नही कर पाते ।
❉ हद के नाम, मान और शान की रॉयल इच्छा रखने वाला स्वयं को करन हार निमित समझने की बजाए करावन हार समझने लगता हैं और " मैंने किया " का संकल्प मन में आते ही मन बुद्धि भारी होने लगते हैं । क्योकि यह संकल्प देह - अभिमान में लाता है और देह का भान निर्बन्धन स्थिति का अनुभव नही होने देता । किसी भी बन्धन में बन्ध कर जो भी कर्म किया जाता है या कोई भी सेवा की जाती तो वह भारी लगती है । इसलिए सेवा में मेहनत और थकावट का अनुभव होता है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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