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❍ 23 / 12 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *धैर्य और गंभीरता से बाप को याद किया ?*
➢➢ *अपनी झोली ज्ञान रत्नों से भरपूर कर दान की ?*
➢➢ *किसी की भावना को तोडा तो नहीं ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *कल्याण की वृत्ति और शुभ चिन्तक भाव द्वारा विश्व कल्याण के निमित बनकर रहे ?*
➢➢ *संतुष्टमणि बन संतुष्ट रहे और सर्व को संतुष्ट किया ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *बापदादा से सहजयोगी भव और पवित्र भव वरदान स्वीकार किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - देह अभिमान तुम्हे बहुत दुखी करता है इसलिए देही अभिमानी बनो देही अभिमानी बनने से ही पापो का बोझा खत्म होगा"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... देह के भान में आने से ही विकारो में फंस गए और दुखो के घने जंगल में गुमराह से हो चले... अब *मीठे बाबा के रूहानी संग में रुह का अभ्यास करो.*.. अपने सतरंगी रंगो का श्रंगार करो और सतयुग के अथाह सुखो में मुस्कराते हुए शान से रहो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी श्रीमत को थामे देहभान के दलदल से बाहर निकल दुखो से मुक्त हो चली हूँ... अपने सुंदर स्वरूप को बाबा से जानकर मै आत्मा *मीठे बाबा पर मुग्ध हो गयी हूँ.*.. और उनके मीठे प्यार में खो गयी हूँ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... मिटटी के मटमैले पन ने पापो से लथपथ कर दिया... खुबसूरत सितारे अपने वजूद को खोकर धुंधले हो चले... अब *अपने सच्चे स्वरूप सच्ची चमक को मीठे पिता के साये में फिर से पा चलो* और 21 जनमो तक सुख आनन्द से लबालब हो चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अब सारे विकराल दुखो को भूल अपने सच्चे सौंदर्य में खिल उठी हूँ... *मै यह देह नही खुबसूरत प्यारी और पिता की दुलारी आत्मा हूँ इस नशे से भर चली हूँ.*.. और खजाने पाकर मालामाल हो गयी हूँ....
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने आत्मिक स्वरूप को जितना यादो में ले आओगे उतना ही निखरते चले जाओगे... देह के भान में किये सारे विकर्मो से सहज ही मुक्त होते चले जायेंगे... और *सुखो के अम्बार अपने कदमो में बिछे पाओगे.*.. पूरा विश्व आपका और आप मालिक बन मुस्करायेंगे...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी खुशनसीब हूँ कि स्वयं ईश्वर पिता मुझे सच बता रहा... मीठे पिता की गोद में मै आत्मा कितनी सुखी होकर बेठी हूँ... और *शरीर के झूठे भ्रम से निकल कर अपने आत्मिक स्वरूप को पाकर सच्ची खुशियो से भर उठी हूँ.*...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा तीव्र पुरुषार्थी हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा ज्ञान सागर बाबा से ज्ञान धन पाकर ज्ञान की धनी बन गई हूँ... *ज्ञानी तू आत्मा, योगी तू आत्मा* बन गई हूँ... मुझ आत्मा का माया का ग्रहण छूटकर... बृहस्पति की दशा शुरू हो गई है... माया के कुचक्र से बाहर निकल स्वतंत्र उड़ता पंछी बन गई हूँ... सर्व प्रकार के बोझ से हल्की हो गई हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा एक बाप दूसरा न कोई इसी लगन में मगन रहती हूँ... मुझ आत्मा के दिल में सदा एक दिलाराम बाप की याद ही समाई रहती है... मैं आत्मा अमृतवेले से ही *तीन बिंदियों के स्मृति का तिलक* लगाती हूँ... मैं आत्मा बाबा से विजयी भव, सफलतामूर्त भव का वरदान लेती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा *हर क़दम में फालो फादर* कर बाप के साथ का अनुभव करती हूँ... मैं आत्मा सदा एक बाप की याद में रहने से सर्व गुणों, खजानों से सम्पन्न अनुभव करती हूँ... मैं आत्मा स्वयं को सदा सर्व शक्तियों से भरपूर कर सर्व को भरपूर करने की सेवा करती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा *सदा विश्व कल्याणकारी स्टेज* पर स्थित रहती हूँ... मैं आत्मा सबके प्रति भाई-भाई की दृष्टि रखती हूँ... सबको शुभ भावना शुभ कामना देती हूँ... सभी के प्रति कल्याण की वृत्ति और शुभ चिंतक भाव रखती हूँ... मैं आत्मा तीव्र पुरुषार्थी, सहज योगी बन रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अब व्यर्थ बातों में अपना टाइम वेस्ट नहीं करती हूँ... हर परिस्थिति में वृत्ति और भाव श्रेष्ठ रखती हूँ... भल कोई बार-बार गिराने की कोशिश करें... मन को डगमग करें... विघ्न रूप बने फिर भी मैं आत्मा उसके प्रति शुभ चिंतक का अडोल भाव रखती हूँ... बात के कारण भाव नहीं बदलती हूँ... अब मैं आत्मा *कल्याण की वृत्ति और शुभ चिंतक भाव* द्वारा विश्व कल्याण के निमित्त बनने वाली तीव्र पुरुषार्थी बन गई हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल - सन्तुष्टता के गुण को धारण कर सन्तुष्टमणि बनना"*
➳ _ ➳ सन्तुष्टता की धारणा भी श्रेष्ठ धारणा है। अगर एक को धारण करें तो बाकी सब आ जायेंगे। *सन्तुष्टता सदा सर्व प्राप्ति सम्पन्न है क्योंकि जहाँ सन्तुष्टता है वहाँ अप्राप्त कोई वस्तु नहीं*। सन्तुष्टता की शक्ति से सदा प्रगति को प्राप्त करती रहती हूँ। कितनी भी परिस्थिति सामने आए लेकिन सन्तुष्टमणि के आगे खेल लगती है।
➳ _ ➳ मैं एक सन्तुष्ट आत्मा हूँ... सदा सन्तुष्ट रहने वाली सन्तुष्टमणि हूँ... *मुझ आत्मा के चेहरे से सन्तुष्टता की चमक दिखाई दे रही है*... मैं बाप की भी प्रिय आत्मा हूँ... मुझ आत्मा की सन्तुष्टता ने मुझे एक महान आत्मा बना दिया है...
➳ _ ➳ मैं सर्व प्राप्तियों सम्पन्न आत्मा हूँ... *मुझ आत्मा की सन्तुष्टता की शक्ति... चारों और सन्तुष्टता का वायुमण्डल फैलाती है*... सन्तुष्टता की शक्ति के आने से अनेक शक्तियों का आगमन हो जाता है... मुझ आत्मा में मधुरता... धैयर्ता... सहनशीलता की शक्ति भी आने लगी है...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा की सन्तुष्टता का वायुमण्डल अन्य आत्माओं को भी... यथाशक्ति सन्तुष्टता के वायब्रेशन देता है... मैं आत्मा सदा हर्षित मुख ही रहती हूँ... *मुझ आत्मा को कोई भी परिस्थिति हिला नही सकती... परेशान नही कर सकती*...
➳ _ ➳ चाहे कैसी भी परिस्थिति हो मुझ आत्मा पर वार नही कर सकती... मुझ आत्मा को हरा नही सकती... परिस्थिति को ही हारना पड़ता है... *मैं आत्मा अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करती हूँ... मेहनत नही करनी पड़ती... ख़ुशी का अनुभव करती हूँ*...
➳ _ ➳ सन्तुष्टता सर्व को प्यारी लगती है... *मैं सन्तुष्टमणि आत्मा होने के कारण... सदा बाप के दिल में समाई रहती हूँ*... मैं सन्तुष्टमणि आत्मा सदैव साक्षी दृष्टा की सीट पर सेट रहती हूँ... मैं सन्तुष्टमणि आत्मा कैसा भी दृश्य हो... कितने भी दृश्य बदल जाएं... पर मैं आत्मा सदा सन्तुष्ट रहती हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *कल्याण की वृति और शुभ चिन्तक भाव द्वारा विश्व कल्याण के निमित्त बनने वाले तीव्र पुरुषार्थी होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ कल्याण की वृति और शुभ चिन्तक भाव द्वारा विश्व कल्याण के निमित्त बनने वाले तीव्र पुरुषार्थी होते हैं क्योंकि... तीव्र पुरुषार्थी वह है जो सभी के प्रति कल्याण की वृति और शुभ चिन्तक का भाव रखें। *भल कोई बार बार गिराने की कोशिश करे* तो भी उस के प्रति, हमारे मन में शुभ भाव होना चाहिये।
❉ हमें तो अपने मन में यही शुभ चिन्तक भाव रखना है कि *हम विश्व कल्याण के कार्य हेतु निमित्त बने* हैं। अतः सर्व के कल्याणार्थ, हमें हमारे मन में शुभ भावना व शुभ कामनायें बनायें रखनी है तथा अपने मन की वृत्ति को भी शुभ रख कर, तीव्र पुरुषार्थी बनना है।
❉ क्योंकि... तीव्र पुरुषार्थी के मन में, सर्व के प्रति सदा ही शुभ कामनायें! व शुभ भावनायें! विद्यमान रहती हैं।
वह सर्व का भला ही चाहते हैं... भले ही अन्य आत्माओं ने उनको कितने भी कष्ट दिये हों। *चाहे उनके लिये कितने भी विघ्न रूप बने* हों। फिर भी उनके प्रति हमारे मन में श्रेष्ठ भाव ही हों।
❉ हमें अपने मन को कभी भी डगमगाने नहीं देना है। हर परिस्थिति में सदा अचल व अडोल बने रहना है। उनके प्रति सदा ही हमारे मन में शुभ चिन्तक का अडोल भाव हो। *किसी भी बात के कारण हमारे मन के भाव* नहीं बदलने चाहिये। अतः हर परिस्थिति में हमारी वृत्ति और मन के भाव यथार्थ रूप से हों।
❉ तब इन सब बातों का हमारे ऊपर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ेगा। फिर कोई भी *व्यर्थ बातें देखने में ही नहीं आयेंगी और हमारा टाइम भी बच जायेगा।* इसको ही विश्व कल्याणकारी स्टेज कहते हैं। सर्व के प्रति कल्याण की वृति, शुभ चिन्तन तथा सर्व के प्रति शुभ भावनायें।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *संतुष्टता जीवन का श्रृंगार है इसलिए संतुष्टमणि बन संतुष्ट रहो और सर्व को संतुष्ट करो... क्या और कैसे* ?
❉ हम ब्राह्मण बच्चों के लिए ही यह गायन है कि " अप्राप्त नहीं कोई वस्तु इस ब्राह्मण जीवन में " । क्योंकि संगम युग पर बाप दादा द्वारा अपने हर एक बच्चे को सर्व प्राप्तियां विरासत में मिलती हैं । और इन *सर्व प्राप्तियों की निशानी है उनके चेहरे और चलन में प्रसन्नता की पर्सनालिटी दिखाई देना* । तो जो सदा इन प्राप्तियों के निश्चय और नशे में रहते हैं वही सन्तुष्टता का श्रृंगार कर संतुष्टमणि बन स्वयं भी सदा संतुष्ट रहते हैं तथा सर्व को भी सदा संतुष्ट रखते हैं ।
❉ जैसे आधे पानी के भरे हुए मटके में से पानी छलकता हैं किंतु भरे हुए मटके में से पानी नही छलकता । इसी प्रकार जो संपन्न होता है उसमें हलचल नहीं होती । जो खाली होता है उसमें हलचल होती है । इसलिए *जो सदा स्वयं को सर्वगुणों, सर्वशक्तियों और सर्व खजानों से संपन्न अनुभव करते हैं वे हर प्रकार की हलचल से सदा मुक्त रहते हैं* । सन्तुष्टता के श्रृंगार से स्वयं को सजा कर वे संतुष्टमणि बन स्वयं भी संतुष्ट रहते हैं तथा औरों को भी संतुष्ट रखते हैं ।
❉ ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्ति है खुशी । इसलिए बाबा कहते हैं शरीर चला जाए परंतु ख़ुशी ना जाए । और ब्राह्मण जीवन की खुशी का आधार है संतुष्टता । *संतुष्ट वही रह सकता है जो ईश्वरीय प्रप्तियों को सदा बुद्धि में इमर्ज रखता है* । क्योकि ईश्वरीय प्रप्तियों की स्मृति ही इच्छा मात्रम अविद्या की स्थिति में स्थित कर सकती है और जिसने विनाशी चीजों की इच्छाओं की अविद्या करना सीख लिया वही संतुष्टमणि बन स्वयं के साथ साथ औरों को भी संतुष्ट कर सकता है ।
❉ व्यर्थ और नकारात्मक चिंतन से आत्मिक शक्ति नष्ट होती है । जो आत्मा की खुशी को गायब कर देती है और व्यक्ति को असंतुष्ट बना देती है । इसलिए खुश और संतुष्ट रहने के लिए जरूरी है परखने और निर्णय करने की शक्ति का होना । क्योंकि *परखने और निर्णय करने की शक्ति जब होगी तभी व्यर्थ को परख कर उसे समर्थ में बदल पायेंगे* । तो जो परखने और निर्णय करने की शक्ति स्वयं में विकसित कर लेते हैं वे व्यर्थ को समर्थ में बदल कर सर्व को संतुष्ट करने वाली संतुष्टमणि आत्मा बन जाते हैं ।
❉ जहां प्राप्ति है वहां संतुष्टता स्वत: ही आ जाती है । किंतु संतुष्टता की अनुभूति इस बात पर निर्भर करती है कि हम कितना स्वयं को उन प्राप्तियों से संपन्न अनुभव करते हैं । और स्वयं को परमात्मा प्राप्तियों से संपन्न वही अनुभव कर सकते हैं जो सदा अपने अधिकारीपन की सीट पर सेट रहते हैं । *अधिकारीपन की सीट व्यक्ति को ऐसा संतुष्ट मणि बना देती है* कि वह सदा संतुष्टता का श्रृंगार किए सर्व को संतुष्ट करने वाली विशेष आत्मा बन जाता है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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