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 03 / 09 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ आपस में शुभ सममेलन कर सर्विस की वृद्धि के प्लान बनाए ?

 

➢➢ भोजन बनाते एक बाप की याद में रहे ?

 

➢➢ मनसा भी बाहर न भटके, यह ध्यान रखा ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ त्रिकालदर्शी बन व्यर्थ संकल्प व संस्कारों को परिवर्तित किया ?

 

➢➢ सेवा अर्थ स्नेह रखा, स्वार्थ से तो नहीं ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢  सोचना और करना साथ साथ कर महापुण्य कमाया ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - अभी तुम अमरलोक की यात्रा पर हो तुम्हारी यह बुद्धि की रूहानी यात्रा है जो तुम सच्चे सच्चे ब्राह्मण ही कर सकते हो"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... इस समय आप बच्चे सच्ची अमरलोक की यात्रा पर हो... शरीर के भान से निकल रूहानी यात्रा पर हो... इस रूहानी यात्रा को करने वाले आप भाग्यशाली ब्राह्मण हो... आप जैसा भाग्यशाली इस संसार में और कोई नही...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा अब तक शरीर की यात्राये करती रही... अब प्यारे बाबा संग मै आत्मा अमरलोक की यात्रा पर हूँ... शरीर को कोई तकलीफ दिए बिना बुद्धि से सदा रूहानी यात्रा पर हूँ...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... अब सत्य को जान सत्य पिता को जान सच्चे ज्ञान को समझ कर अमरलोक की यात्रा पर हो... अब  बुद्धि संसार से निकल सदा की रूहानी यात्रा पर है... ईश्वर द्वारा चुने हुए आप सच्चे ब्राह्मण ही इस जादू को कर सकते है...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा विश्व पिता द्वारा चुनी हुई महान भाग्यशाली सच्ची ब्राह्मण बनकर...ईश्वर पिता की मीठी यादो में बुद्धि को सतयुगी बनाती जा रही हूँ... और सच्चे अमरलोक को बाँहों में भर चली हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... खूबसूरत ब्राह्मण जन्म पाकर अब अपनी बुद्धि को सिर्फ ईश्वरीय यादो में ही लगाओ... अमरलोक की यात्रा पर हो यह हर पल स्म्रति में लाओ... सच्चे पिता के सच्चे वारिस ही यह रूहानी यात्रा की जादूगरी जान पाते है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा इस कदर अलौकिक जन्म पाकर निहाल हो चली हूँ... मै अब शरीर के भान से उपराम हो रूहानी स्मर्तियो से भर उठी हूँ... मीठे बाबा से यह यादो का जादू सीख चली हूँ....

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - सर्विस की वृद्धि के प्लान बना सर्व का कल्याण करना"

 

➳ _ ➳  मैं संगमयुगी ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण हूं... मुझ आत्मा का ये नया जीवन है... अलौकिक जीवन है... मुझ आत्मा को यह शरीर इस धरा पर सेवार्थ मिला है... मैं कल्याणकारी आत्मा हूं... क्योंकि मैं विश्व कल्याणकारी बाप की संतान हूं... मेरे परमपिता शिव बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान रुपी तीसरा नेत्र व दिव्य दृष्टि दी है... मैं आत्मा ज्ञान को अच्छी रीति धारण कर रही हूं... मुझ आत्मा के स्वभाव संस्कार परिवर्तन हो रहे हैं... मैं आत्मा ज्ञान की लाइट और माइट फैला रही हूं... मैं आत्मा बाबा की याद में रह शुभ भाव, शुभ संकल्प, शुभ कर्म करती हूं... ये पुरानी दुनिया विनाशी है... दुनिया में हर आत्मा को तमोप्रधान बनना ही है... तमोप्रधान वाले ही रावण की राह पर चलते हैं... ये पुराना शरीर भी छोड़ देंगे क्योंकि यह शरीर अब काम का नही है... आत्मा बाप की याद में रहने से पवित्र होती जाती है... तो शरीर भी पवित्र होता है... मैं आत्मा ऐसे शुभ चिंतन कर सदा शुभ सम्मेलन करती हूं... मैं आत्मा सर्विस को कैसे बढ़ाऊ ऐसे प्लैन करती हूं... अपने परम पिता का परिचय देती हूं... सभी को सदगति का रास्ता बताती हूं... सर्व को ज्ञान मार्ग पर चलने का रास्ता बताती हूं... भारत स्वर्ग था... भारतवासी ही 84 जन्म भोगते है... ये हमारा अंतिम जन्म है... शिव बाबा ही तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाते हैं... मैं आत्मा नयी दुनिया में जाने लायक बनने का पुरुषार्थ कर रही हूं... मैं आत्मा स्व का परिवर्तन कर सर्व की कल्याणी बनती जा रही हूं...

 

❉   "ड्रिल - एक बाप की याद में रहना"

 

➳ _ ➳  सवेरे सवेरे आंख खुलते ही बापदादा को गुडमार्निंग करती हूं... प्यारे मीठे बापदादा से प्यार भरी पावरफुल दृष्टि पाकर हर सुबह की शुरुआत होती है... बापदादा से गुडमार्निंग कर उनकी मीठी गोद में बैठ रही हूं... बाबा मुझे प्यार से दुलार रहे हैं... बापदादा से मीठी मीठी बातें करती हूं... मीठी मीठी रुह-रिहान करती हूं... मैं आत्मा स्व चिंतन करती हूं... मैं कौन हूं... मेरा कौन है... मैं इस धरा पर क्यूं आई हूं... मुझ आत्मा के क्या कर्तव्य है... स्व चेकिंग करती हूं... मैं आत्मा अपनी उन्नति के लिए चिंतन करती हूं... मैं आत्मा विचार सागर मंथन करती हूं... ये पुरानी दुनिया विनाशी है... मैं आत्मा अब देहधारियों से मेरा कोई लगाव नही रहा... मुझ आत्मा को इस संगमयुग पर बेहद का बाप मिला है... मुझ आत्मा का ये नया अलौकिक जीवन है... मैं इस संगमयुग पर ईश्वरीय संतान हूं... एक बाबा ही मेरा संसार हैं... उनकी याद में रहना ही मेरा जीवन है... मेरे प्यारे प्यारे बाबा आप ही मेरे मात पिता, बंधु, सखा, शिक्षक, सदगुरु हैं... मैं सर्व सम्बंधों से बस आपकी ही हूं... मैं आत्मा हर कर्म बापदादा को साथ रखती हूं... मैं आत्मा हर कर्म से पहले बापदादा का आवाहन करती हूं... प्यारे बापदादा आओ... पवित्रता के सागर शिव बाबा से पवित्रता की किरणें लेकर रसोईघर में फैलाती हूं... बाबा की याद में ही ब्रह्मा भोजन बनाती हूं... मेरा मन में बस एक दिलाराम बाबा की याद होती है तो कोई दूसरा आ ही सकता... बस मन एक की लगन में मगन होता है...

 

❉   "ड्रिल - नष्टोमोहा बनना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा मन बुद्धि की अधिकारी आत्मा हूं... मैं आत्मा इस शरीर की मालिक हूं... मैं आत्मा स्वराज्याधिकारी हूं... मै आत्मा पदमापदम भाग्यशाली हूं... स्वयं भगवान ने मुझ आत्मा को अपना बनाया... हाथ पकड़कर चलना सीखाया... मुझ आत्मा को अज्ञानता की निद्रा से जगाकर ज्ञान की रोशनी दी... दिव्य बुद्धि व ज्ञान का तीसरा नेत्र दिया... मैं आत्मा जान गई हूं कि ये पुरानी दुनिया विनाशी है... इस भंभोर को आग लगनी है... मैं आत्मा इस विनाशी दुनिया से लगावमुक्त हूं... मैं आत्मा स्वयं को इस मायावी दुनिया से आकर्षणमुक्त अनुभव कर रही हूं... मैं हद की मान शान से परे हूं... मुझ आत्मा को बेहद का वैराग्य है... मैं आत्मा इस धरा पर सेवार्थ आई हूं... प्यारे शिव पिता ने मुझे अपने विश्व परिवर्तन के कार्य के निमित्त चुना है... ये मुझ आत्मा का बहुत बड़ा सौभाग्य है... मैं स्वयं को निमित्त समझ सदैव सेवा के लिए तत्पर रहती हूं... मैं बिंदु बन बिंदु बाप की याद में रहती हूं... मैं इस शरीर को प्यारे बाबा की अमानत समझती हूं... इस शरीर को जहां चाहे जब चाहे बाबा लगावे बस खुशी से इससे सेवा में लगाती हूं... मैं आत्मा बाबा की याद में रह सदा रुहानी सेवा करते खुशी में डांस करती हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳  मैं अविनाशी ज्ञान रत्नों के खजानों का दान देने वाली महादानी महा वरदानी विश्व कल्याणी आत्मा हूँ... मैं आत्मा निरन्तर योगी हूँ... बुद्धि योगी हूँ... मैं आत्मा सभी को रास्ता बताने वाली और सभी का बेडा पार करने वाली ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राहमण हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा ज्ञान की पूरी धारणा करने वाली अंजानेपन को समाप्त करने वाली ज्ञान स्वरुप और योगयुक्त आत्मा हूँ... मैं आत्मा सभी की ज्ञान रत्नों से झोली भरने वाली सम्पन्न और सम्पूर्ण हूँ... मैं आत्मा त्रिकालदर्शीपॉवरफुल, लवफुल और सिद्धि स्वरुप हूँ...

 

 ➳ _ ➳  मैं आत्मा परमात्मा द्वारा दिए गए ज्ञान के हर पॉइंट की नोलेज रखने वाली आत्मा हूँ... मुझ आत्मा में तीनों कालों का ज्ञान समाया हुआ है... मैं आत्मा योगयुक्त हो मास्टर त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट होकर अपने हर संकल्प को कर्म में लाकर उसे सफल कर रहीं हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा इस अविनाशी ज्ञान के हर पॉइंट पर मनन कर मक्खन निकालने वाली ज्ञानी आत्मा हूँ... मैं आत्मा मनन शक्ति द्वारा स्वयं में सर्व शक्तियां भरकर शक्तिशाली बन हर व्यर्थ संकल्प को समर्थ संकल्प में बदलकर समर्थ कार्य में लगाने वाली शक्ति स्वरुप आत्मा हूँ...

 

➳ _ ➳  इस शक्तिशाली स्तिथि द्वारा मैं आत्मा सारे विश्व के विकर्मों का बोझ हल्का करने वाली वा अनेक आत्माओं के व्यर्थ संकल्पों को मिटाने की मशीनरी को तेज़ करने वाली विश्व कल्याणकारी आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  त्रिकालदर्शी बन व्यर्थ संकल्प व संस्कारों का परिवर्तन करने वाले विश्व कल्याणकारी होते हैं...  क्यों और कैसे?

 

❉   त्रिकालदर्शी बन व्यर्थ संकल्प व संस्कारों का परिवर्तन करने वाले विश्व कल्याणकारी होते हैं क्योंकि हम जब मास्टर त्रिकालदर्शी बन कर अपने संकल्प को कर्म में लायेंगे तो हमारा कोई भी कर्म व्यर्थ नहीं होगा। त्रिकालदर्शी की स्थिति उस कर्म को अविनाशी और श्रेष्ठ बना देगी।

 

❉   इसलिये हमें किसी भी व्यर्थ संकल्प को समर्थ संकल्प में परिवर्तित करना है। तब फिर बाद में समर्थ संकल्प को समर्थ कार्य में भी लगाना है। अर्थात!  इस व्यर्थ को बदल कर समर्थ संकल्प और समर्थ कार्य में लगाना ही सार्थकता कहलाती है।

 

❉   व्यर्थ संकल्प को बदल कर समर्थ संकल्प और समर्थ कार्य करने का अर्थ है...  अपनी सम्पूर्ण स्टेज का अनुभव करना तथा उस सम्पूर्णता की स्टेज को प्राप्त करना है। अर्थात!  इस स्टेज के प्राप्त करने को कहते हैं...  सम्पूर्ण स्टेज। इस प्रकार अपनी आत्मा की सम्पूर्णता की स्टेज पर पहुँच जाना, मीन्स!  आत्मा का सम्पूर्ण बन जाना होता है।

 

❉   हमें सिर्फ अपने व्यर्थ संकल्पों वा विकर्मो को ही भस्म नहीं करना है लेकिन!  शक्ति रूप बन कर सारे विश्व की आत्माओं के विकर्मों के बोझ को हल्का करने में भी सहयोग देना है। साथ ही उनके विकर्मो व उनके द्वारा 63 जन्मों में किये गये सभी पापों का क्षय भी करना है।

 

❉   हमें विश्व कल्याणकारी की स्टेज पर स्थित हो कर अनेक आत्माओं के संकल्पों को मिटा कर समर्थ संकल्पों को बनाने की मशीनरी को तेज़ करना है, अर्थात! सर्व व्यर्थ संकल्पों को समर्थ संकल्पों में परिवर्तित करना है तथा समर्थ संकल्पों को समर्थ कार्य में लगाना भी है। तभी हम कहलायेंगे विश्व कल्याणकारी।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  नष्टोमोहा बनना है तो सेवा अर्थ स्नेह रखो, स्वार्थ से नही... क्यों और कैसे ?

 

❉   प्रवृति में रहते भी पर वृति में रहना सहज ही नष्टोमोहा बना देता है क्योकि पर वृति रख कर जब लौकिक सम्बंधियों के सम्पर्क में आते हैं तो सदा यही स्मृति रहती है कि बाबा ने मुझे इन लौकिक सम्बंधियों की सेवा अर्थ निमित बनाया है । इस प्रकार स्वयं को निमित व ट्रस्टी समझने से सम्बंधों में रूहानी स्नेह व प्रेम की भावना पैदा होती है जो स्वार्थ भाव को समाप्त कर नष्टोमोहा बना देती है ।

 

❉   जहां मान सम्मान या कुछ भी पाने की इच्छा होती है वहां सेवा का भाव बदल जाता है । वहां सेवा में स्नेह नही बल्कि स्वार्थ का भाव आ जाता है । मैं सबका ध्यान रखती हूँ, सबकी इतनी सेवा करती हूँ इसलिए सभी मुझे सम्मान दे यह भाव भी मन में आना स्वार्थ है जो नष्टोमोहा नही बनने देता । बाबा कहते स्वार्थ वश की हुई कोई भी सेवा कभी भी सफल नही होती । सेवा वही सफल होती हैं जो निस्वार्थ और निष्काम भाव से की गई हो ।

 

❉   जब बेहद की वैराग्य वृति को धारण करेंगे तभी नष्टोमोहा बन सकेंगे । और बेहद की वैराग्य वृति तभी आ सकती है जब इच्छा मात्रम अविद्या की स्थिति होगी । अगर मन में किसी का रिगार्ड पाने की भी इच्छा है तो यह भी रॉयल रूप का मांगना है जो एक प्रकार का स्वार्थ है । यह स्वार्थ का भाव लगाव, झुकाव और टकराव का कारण बनता है और नष्टोमोहा स्थिति नही बनने देता । इसलिए बाबा समझाते हैं कि सेवा अर्थ स्नेह रखो, स्वार्थ वश नही ।

 

❉   जैसे कछुआ कर्म करने के बाद अपनी कर्मेन्द्रियों को सिकोड़ लेता है वैसे ही जब यह अभ्यास पक्का करेंगे कि जब चाहे सेवा अर्थ कर्म करने के लिए देह का आधार लें और जब चाहें देह से न्यारे हो जायें तो यह अवस्था कर्मेन्द्रियजीत बना देगी । कर्मेन्द्रियों को समेट कर अर्थात सेवा के क्षेत्र में कर्म करते हुए भी कर्मेन्द्रियों से न्यारे हो कर जब कर्म करेंगे तो कर्म के प्रभाव से स्वयं को मुक्त रख सकेंगे और निस्वार्थ भाव से सेवा करते हुए नष्टोमोहा सहज ही बन सकेंगे ।

 

❉   जैसे लौकिक में एक बच्चा बाप की प्रॉपर्टी का मालिक होता है । इसी प्रकार हम ब्राह्मण बच्चे भी परमात्मा बाप के वारिस बच्चे हैं और बाप की प्रॉपर्टी अर्थात सर्व गुणों, सर्व शक्तियों और सर्व खजानो के मालिक हैं । किन्तु स्वयं को अधिकारी ना समझने और अधिकारीपन की स्मृति में ना रहने के कारण स्वार्थ वश हद की कामनाओ को प्राप्त करने के प्रयास में लगे रहते हैं । इस लिए नष्टोमोहा नही बन पाते ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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