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❍ 24 / 04 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
‖✓‖ अनेकों की °सेवा अर्थ झुक° स्वयं की महानता का परिचय दिया ?
‖✓‖ बापदादा के कमरे में जाकर अपने °मन का सर्टिफिकेट° प्राप्त किया ?
‖✓‖ °स्वदर्शन चक्रधारी° बनकर रहे ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
‖✓‖ अपने भिन्न भिन्न °टाइटल्स° की स्मृति में रहे ?
‖✓‖ °धर्म और कर्म° के सम्बन्ध को जोड़े रखा ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
‖✓‖ आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं वरदानी मूर्त आत्मा हूँ ।
✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-
➳ _ ➳ आराम से बैठ जाएँ... देखें अपने आप को भृकुटि के बीच में चमकता हुआ एक दिव्य सितारा... मैं ज्योतिर्बिंदु आत्मा हूँ... पवित्र स्वरुप... शांत स्वरुप... शक्तिस्वरूप... ये मेरा मूलस्वरूप है... मैं आत्मा आज ऊपर की ओर जा रहीं हूँ अपने घर... चाँद, सूर्य और सितारों से भी पार मुझ आत्मा का घर... शांति और पवित्रता का देश... चारों तरफ सुनहरी लाल किरणें बिखरी हुई हैं... मैं आत्मा अपने पिता के पास जाकर बैठ गयी हूँ... मेरे पिता की शक्तिशाली किरणों का आवाहन मुझ आत्मा पर हो रहा है... मैं सर्वशक्तिमान परमात्मा की संतान हूँ... मैं इस देही - अभिमानी स्तिथि में स्तिथ होकर सदा विशेष पार्ट बजाने वाली संतुष्मणि आत्मा हूँ... मैं आत्मा आज अपने परमप्यारे सद्गुरु शिवपिता के समक्ष यह दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मैं सन्तुष्टता रूपी गुण को जोकि बड़े से बड़ा गुण है, बड़े से बड़ा दान है, बड़े से बड़ी विशेषता है या बड़े से बड़ी श्रेष्ठता है, उसे अपना मूल गुण बनाउंगी... यह संकल्प कर मैं आत्मा प्रभुप्रिय, लोकप्रिय और स्वयं प्रिय बनने का अनुभव कर रहीं हूँ... मुझ आत्मा को प्रभु पालना से मिले इस सन्तुष्टता के वरदान के द्वारा अनेक आत्माओं के इष्ट व अष्ट देवता बनने का सौभग्य प्राप्त हो रहा है... इस वरदानी रूप के द्वारा ही मुझ आत्मा को निर्विघ्न सेवाधारी बनने का अधिकार प्राप्त हो रहा है ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "समर्थ कर्मो का आधार - धर्म"
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे लाडलो अपने मीठे पिता से जो स्वधर्म का सबक सीखे हो उसे अब अमल में लाओ...कर्म में धर्म की जुगलबन्दी से धर्मात्मा बन दिखलाओ... चाहे कुछ भी हो अपने स्वधर्म पर अटल अडिग रहो...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों... अपने खूबसूरत स्वमानो के सिंहासन पर सदा डटे रहो... अपनी खूबसूरती को सदा पकड़े रहो... ईश्वरीय रत्नों से सजे धजे जादूगर बन फिरते रहो... धर्म का दामन पकड़े मुक्त हो उड़ते रहो...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चे केसी भी परिस्तिथि आये कैसे भी पेपर आये धर्म को थामे सच्चे धर्मात्मा बन चलते चलो...स्वधर्म में समाये रहो तो सदा के विजेता हो... पिता ने जो जादू भरा राज बताया है उस जादू में झूमते ही रहो...
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों पिता के दिए खूबसूरत खजानो को प्रतिपल जीते रहो...खुशियो में सदा खिलते रहो...अपने खूबसूरत भाग्य के नशे में लहराते रहो... स्वमानो की खुशबु से महकते रहो... बाते तो आएगी चली भी जाएँगी...पर निज ख़ुशी को थामे रहो...
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों मुझ पिता ने जो आपके स्वरूपो का खजाना बताया है...उसके आनन्द में सदा डूबे रहो...उसकी आनंदकारी लहरो में खिलखिलाते रहो... अपने श्रेष्ट देवताई धर्म को हरपल जीते रहो... सत्यता और पवित्रता के खूबसूरत रत्नों से जीवन को सजाते रहो... अपने गुणो के नशे में झूमते रहो...
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ अपने भिन्न भिन्न टाइटल्स की स्मृति में रहना है ।
❉ लौकिक में पढ़ाई करके डिग्री लेते है वो भल कितनी बड़ी हो पर परमात्म बाप से जो डिग्री हम बच्चों को मिलती है उनके आगे ये लौकिक डिग्री कुछ नही है । परमात्म बाप के जो भिन्न टाइटल्स है वो सब हमारे ही हैं । हमें अपने कर्म अनुसार भिन्न भिन्न टाइटल्स स्मृति में रखना है व खुशी और नशे में रहना है ।
❉ मैं मास्टर आलमाइटी हूं ये स्मृति में रखना है । मैं भगवान का बच्चा हूं । स्वयं भगवान ने मुझे कोटो मे से कोई व कोई मे से भी कोई में चुनकर अपना बच्चा बनाया है व भगवान स्वयं मेरा हो गया कितनी पद्मापद्म भाग्यशाली आत्मा हूं ! तो ये टाइटल स्मृति में रखना है व हर कर्म करते हुए अपने स्वरुप में स्थित रहना है ।
❉ कोई बड़ी परिस्थिति आई तो अपना टाइटल स्मृति में लाना है कि मैं आत्मा मास्टर सर्वशक्तिमान हूं व हजार भुजाओं वाला सर्वशक्तिमान बाप मेरे साथ है । तो हमें सारा दिन कर्म करते मा. सर्वशक्तिमान के स्वरुप में रह टाइटल की सीट पर सेट रहना है व परिस्थिति सहज ही पार करनी है ।
❉ बाबा कहते हैं आप विश्वकल्याणकारी हो तो ये टाइटल को स्मृति में रखते सदा विश्व की आत्माओं के प्रति कल्याण की भावना रखनी है । सारे विश्व की आत्माऐं हमारा परिवार है । हमें अपनी जमा की हुई शक्तियों को, खजानों को शुभ भावना के श्रेष्ठ संकल्प द्वारा विश्व की अशांति को दूर करना है ।
❉ बाबा कहते हैं - आप स्वदर्शन चक्रधारी हो व स्वदर्शन चक्र घुमाते घुमाते चक्रधारी राजा बन जाओगे । तो हमें स्व दर्शन करना है परदर्शन नही करना है । परदर्शन करना यानि माया का आवाहन । स्व दर्शन करना यानि माया को चेलेंज करना । इसलिए अपने टाइटल की स्मृति में रह स्वदर्शन चक्र ही घुमाना है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ सन्तुष्टता की विशेषता वा श्रेष्ठता द्वारा सर्व के इष्ट बनने वाले वरदानी मूर्त होते हैं... क्यों और कैसे ?
❉ वरदानी मूर्त आत्मा स्वयं खजानों से सम्पन्न होने से संतुष्ट होती है व दूसरी आत्माओं के प्रति हमेशा स्नेह सहयोग व रहमदिल की भावना से समय पर उनकी मदद कर व अशंति दुःख से छुड़ाकर शांति व सुख का अनुभव करा उनके लिए साक्षात देवता समान व इष्ट बनते है ।
❉ जो सदा स्वयं से और सर्व से संतुष्ट रहते है वही अनेक आत्माओं के लिए इष्ट व अष्ट देवता बन सकते हैं । सन्तुष्ट आत्मा ही प्रभुप्रिय, लोकप्रिय और स्वयं प्रिय होती है । ऐसी संतुष्ट आत्मा ही वरदानीमूर्त होती है ।
❉ सदा सन्तुष्ट आत्मा के लिए अप्राप्य वस्तु कोई होती नहीं व सर्व प्राप्ति स्वरुप होते हैं । सर्व को संतुष्ट व सर्व प्राप्ति कराने का संस्कार होता है तो अपनी संतुष्टता की विशेषता द्वारा सर्व के इष्ट बनने वाले वरदानी मूर्त होते हैं ।
❉ सन्तुष्ट आत्मा हर कदम सर्वशक्ति बाप को साथ रखते है तो सदा तृप्त सदा सम्पन्न सदा श्रेष्ठ सदा कम्पलीट रहती व कोई कम्पलेन नही करते। इन्ही विशेषताओं से इष्ट बनने वाले वरदानी मूरत होते है
❉ संगमयुग पर परमात्मा को पाने के बाद - जो पाना था सो पा लिया तो सदा संतुष्ट रहती व दातापन के संस्कार होने से हर आत्मा के प्रति शुभ भावना शुभ कामना रखते भटकी हुई आत्माओं को मंजिल बताकर उनके लिए साक्षात देवता बन वरदानी मूर्त होते हैं ।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ विजयी रत्न वह हैं जिसके मस्तक पर सदा विजय का तिलक चमकता हो... क्यों और कैसे ?
❉ जो तीन स्मृतियों का तिलक सदैव अपने मस्तक पर लगाये रखते हैं, वे निरन्तर एक बाप की याद में मगन रह बीती को बीती कर, सदैव बिंदी बन हल्के हो कर उड़ते रहते हैं और उमंग उत्साह से भरपूर रहते हैं । वे सफलतामूर्त बन हर कार्य में सफलता प्राप्त करते रहते हैं । इसलिए उनके मस्तक पर सदैव विजय का तिलक चमकता रहता है जो उन्हें विजयी रत्न बना देता है ।
❉ निश्चय में विजय सदैव समाई हुई है । इसलिए जो निश्चय बुद्धि बन सब कुछ बाप के हवाले कर निश्चिन्त रहते हैं और बाप पर सम्पूर्ण निश्चय रख हिम्मत के कदम बढ़ाते रहते हैं, बाप भी हजार कदमो से उनकी मदद कर उन्हें हर कार्य में विजयी बना देते हैं और अपने मस्तक पर विजय का तिलक लगाये वे विजयी रत्न बन जाते हैं ।
❉ जो किसी भी घटना या परिस्थिति में विचलित नही होते । क्या, क्यों और कैसे की क्यू में नही फंसते । हर बात में कल्याण देखते हैं और हर परिस्थिति में स्वयं को शांत रख एकरस स्थिति में स्थित रहते हैं । उनके हर कदम में सफलता समाई होती है और उनके मस्तक पर सदा विजय का तिलक चमकता रहता है ।
❉ जो ड्रामा के आदि, मध्य और अंत के राज को सदैव स्मृति में रख, त्रिकालदर्शी की सीट पर सदा सेट रहते हैं और बाप की शिक्षाओं को धारण कर हर परिस्थिति में अचल अडोल रहते हैं, विजय का तिलक सदैव उनके मस्तक पर चमकता रहता है और वे विजयी रत्न बन सदैव सफलता के झूले में झूलते रहते हैं ।
❉ " पाना था सो पा लिया " जो सदैव इस नशे में रहते है वे निष्काम सेवाधारी बन हद की सभी कामनाओ का त्याग कर इच्छा मात्रम अविद्या बन जाते हैं । अपने समय, श्वांस और संकल्पों को बेहद विश्व की सेवा में सफल कर वे सफलतामूर्त बन जाते हैं । इसलिए उनके मस्तक पर विजय का तिलक सदैव चमकता रहता है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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