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❍ 24 / 07 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ दया व कृपा की भावना से √पत्थर को भी पानी√ बनाया ?
➢➢ अव्यक्त भाव में स्थित रह √फ़रिश्ता√ बनकर रहे ?
➢➢ स्वयं को अलोकिक संबंधो के ×सोने के पिंजरे× में तो नहीं बाँधा ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ बाप से व ब्राह्मण परिवार से ×सोदेबाज़ी× तो नहीं की ?
➢➢ √दयालु व कृपालु√ आत्मा बनकर रहे ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/24.07.16-VisheshPurusharth.htm
✺ PDF Format:-
➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/24.07.16-VisheshPurusharth.pdf
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "सदा दाता के बच्चे दाता बनो"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे ईश्वरीय सन्तान हो ईश्वरीय अहसासो और खजानो से भरपूर हो... तो अब यह भरपुरता पूरे जहाँ में लुटाओ... दुनिया आपके दाता पन की स्मर्तियो में डूबी है... प्रत्यक्ष में तुम बच्चे वह वरदान छ्लकाओ... शुभ भावो से सबके दामन को खुशियो से सजाते चलो... दाता के बच्चे बन यूँ इतराते चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा किस कदर खाली थी... मीठे बाबा आपने मुझे मेरे दातापन को याद दिलाया... मुझे वरदानी स्वरूप से महकाया... और मै आत्मा खुशियो के खजाने लुटाने लगी हूँ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे सबके सहयोगी बन स्नेह की अविरल धारा बहाते चलो... सारे जहान को प्रेम दुआए और रहम की तरंगो से तरंगित कर चलो... सदा उड़ता पंछी बन उन्मुक्त हो मुक्त गगन में उड़ चलो... फ़रिश्ते बन सबके घर आँगन को खुशियो से भरते चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अपनी पूरी खूबसूरती में खिल उठी हूँ... आपकी यादो के घने साये में देवता बन मुस्करा उठी हूँ... सबको सहयोग के हाथो से थाम कर स्नेह लहर में भिगो चली हूँ... फ़रिश्ता बन आपकी यादो भरे आसमाँ में उड़ चली हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने पिता का नाम रौशन करो... मीठे बाबा जैसा सेवाधारी बन विकारो में जलती दुनिया को स्नेह भरी राहत दो... महावीर बन निडर रहो... विघ्नो के ऊपर से उड़ चलो... निश्चयबुद्धि बन अटल रहो... और सदा दया रहम और कृपा को दिल में समाये बाप समान सबको कलेजे से लगा कर सच्ची ढांढस सुख दे चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... आपके प्यार में मै प्यार का जादूगर हो चली हूँ... सारे विश्व को अपनी स्नेह बाहों में भर रही हूँ... सच्ची सेवाधारी बन मीठे बाबा के दिल में राज कर रही हूँ... निडर और महावीर हो विघ्नो को पार कर फ़रिश्ता बन अनन्त ऊंचाइयों में घूम रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - मास्टर दया के सागर स्थिति का अनुभव करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा दया के सागर पिता की संतान मास्टर दया का सागर हूं... यह गुण मुझ आत्मा को मेरे परमपिता शिव बाबा ने दिया है... मैं आत्मा प्यारे बाबा की श्रीमत पर चल दयालु कृपालु बनती जा रही हूं... कलयुगी दुनिया में आत्मायें इस दुख की दुनिया में दीन हीन अवस्था में हैं... मैं आत्मा अपने प्यारे बाबा से दया की किरणें लेकर उन आत्माओं को दया की वायब्रेशनस दे रही हूं... उन आत्माओं में परिवर्तन हो रहा है... मैं आत्मा अपनी दया के संस्कार से पत्थर दिल को भी मोम बनाती हूं... जो मुझ आत्मा ने पिछले जन्मों ने किया वही मेरे सामने आ रहा है... मैं आत्मा साक्षी होकर अपने हिसाब किताब चुकतू करती हूं... मुझ आत्मा का ये ब्राह्मण जीवन नया जीवन है... मुझ आत्मा का आत्मिक रिश्ता है... आत्मा आत्मा भाई भाई हैं... आत्मिक भाव रखने से मेरी विरोधी आत्मायें भी सहयोगी बनती जा रही हैं... क्योंकि आत्मिक दृष्टि रखने से मेरा हर आत्मा के प्रति दया भाव है... मैं आत्मा प्यारे बाबा का सदैव साथ अनुभव करती हूं... मैं आत्मा हर परिस्थिति में सर्व के प्रति दयाभाव रख मास्टर दयासागर की स्थिति का अनुभव करती हूं...
❉ "ड्रिल - मंसा निराकारी, वाचा निर्विकारी, कर्मणा निरहंकारी स्थिति"
➳ _ ➳ मैं आत्मा परमपिता परमात्मा की संतान बिंदु स्वरुप चमकता हुआ अजब सितारा हूं... जैसे मुझ आत्मा के पिता निराकारी हैं ऐसे मैं भी अपने परमपिता की तरह निराकारी हूं... मुझ आत्मा के परमपिता शिव बाबा की दिव्य चमक से पूरा ब्रह्माण्ड चमक रहा है... मै आत्मा भी अपने चारो ओर के वातावरण को चमत्कृत करती हूं... मैं आत्मा सर्व के प्रति आत्मिक भाव रखती हूं... मैं आत्मा प्यारे बाबा की याद से विकारी दुनिया से दूर होती जा रही हूं... मैं आत्मा योगबल से निर्विकारी बनती जाती हूं... मै आत्मा बाप समान सबके प्रति दया भाव रखती हूं... मैं आत्मा अपनी देह व देह के सम्बंधों से न्यारी होती जा रही हूं... मैं आत्मा मन-वचन-कर्म, सम्बंध में निराकारी, निर्विकारी और निरहंकारी तीनों महामंत्र को सदा याद रखती हूं... इससे मुझ आत्मा का सम्बंध सम्पर्क में सर्व के प्रति शुभ भावना शुभ कामना रहती है... मैं आत्मा सर्व के प्रति दया और सहयोग की भावना रखती हूं... सर्व के प्रति कल्याण की भावना रखते सर्व ब्राह्मण परिवार को यथाशक्ति सहयोग देते निवारण स्वरुप बनती हूं...
❉ ड्रिल :- रहमभाव से सहज ही निमित्त भाव"
➳ _ ➳ मैं आत्मा रहमदिल हूं... मैं आत्मा विश्वकल्याणकारी हूं... मैं आत्मा मनुष्यात्माओं को देखते ही रहमभाव रखती हूं... ये सभी आत्माऐं विनाशी खजानों की प्राप्ति के नशे में है... इस समय पर स्वयं परमपिता परमात्मा धरती पर आए हुए है... यह सभी आत्माऐं भी अपने सच्चे परमपिता शिव बाबा को पहचानें... अपने वर्से की अधिकारी बनें... मैं रहमकर्म करने वाली रहमोदिल आत्मा हूं... मैं आत्मा असहाय और निर्बल आत्माओं को हर कर्म करते रहम की दृष्टि वृति देती हूं... मैं आत्मा प्यारे बाबा से मिले हुए खजानों को स्वयं के प्रति व सर्व आत्माओं के प्रति बांटती हूं... मुझे जो भी मिला है मेरे प्यारे बाबा की देन है... मैं आत्मा सर्व के प्रति आत्मिक भाव रखती हूं... भाई भाई की दृष्टि रखती हूं... मैं आत्मा यही भाव रखती हूं कि ये भी मेरा आत्मा भाई है... बाबा का प्यारा बच्चा है... ऐसे रहम भाव रखने से मुझ आत्मा में निमित्त भाव रहता है... मैं आत्मा मनसा वाचा कर्मणा रहम भाव व निमित्त भाव रखती हूं...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं विजयी रत्न आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳ मैं आत्मा दीपमाला का जगा हुआ दीपक हूँ... मुझ दीपक से सारा विश्व प्रकाशित होता जा रहा है... मैं आत्मा राज्य तिलकधारी हूँ... बाप की याद की स्मृति तिलक से मैं बापसमान सम्पन्न सम्पूर्ण बनती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं बाप की याद की योगाग्नि में अष्टमी मनाती विजयी दश्मी मनाने वाली सम्पूर्ण विजयरत्न आत्मा हूँ... मैं बाप के साथ सदा चमकते रहने वाली आत्मा हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाप के साथ चमकता अमूल्य रत्न हूँ... विजयी रत्न हूँ... मैं आत्मा माया रावन पर विजय प्राप्त करने वाली महावीर हूँ... मैं आत्मा निः संशय बुद्धि हूँ... मुझ आत्मा के संकल्प मात्र में भी फेल होंने का संशय नहीं है...
➳ _ ➳ विजय मुझ आत्मा का जन्मसिद्ध अधिकार है... मैं आत्मा अपना हर कार्य अधिकारी पन की स्तिथि में स्तिथ रहकर ही करती हूँ... इस श्रेष्ठ स्तिथि में स्तिथ रहकर मैं आत्मा सफलता की ऊँची स्टेज पर पहुँचने का अनुभव कर रहीं हूँ...
➳ _ ➳ मैं विजयी रत्न आत्मा परमात्म ज्ञान के हर पॉइंट की नॉलेज रखने वाली मास्टर नॉलेजफुल आत्मा हूँ... इस श्रेष्ठ स्वमान में स्तिथ होकर नामालूम शब्द मुझ आत्मा की स्मृति से स्वतः ही निकल गया है ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ संशय के संकल्पों को समाप्त कर मायाजीत बनने वाले विजयी रतन होते हैं... क्यों और कैसे ?
❉ संशय के संकल्पों को समाप्त कर मायाजीत बनने वाले विजयी रत्न होते हैं क्यों कि संशय बुद्धि विनश्यन्ति। अर्थात कार्य के प्रारम्भ में ही मन में अगर ये भाव आ गया कि न मालूम ये कार्य होगा के नहीं। तो समझो कि वह कार्य कदापि नहीं होगा।
❉ कभी भी पहले से यह संशय का संकल्प उत्पन्न न होने दें कि न मालूम हम फेल हो जायें क्योंकि संशय बुद्धि होने से हार होती है। इसलिये मन में सदा सकारात्मक श्रेष्ठ संकल्प ही उत्पन्न होने चाहिये। इन श्रेष्ठ संकल्पों से शुद्ध वायब्रेशनस चहुँ ओर फ़ैल कर संकल्प की सिद्धि हो जाती है।
❉ संशय बुद्धि होने से ही हार होती है इसलिये सदा यही संकल्प हो कि हम विजय प्राप्त करके ही दिखायेंगे क्योंकि विजय तो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। बाबा ने हम बच्चों को विजय रत्न का वरदान दिया है। हमने ही तो कल्प कल्प विजय प्राप्त की है। अब भी विजय निश्चित ही है।
❉ ऐसे अधिकारी बन कर कर्म करने से विजय अर्थात सफलता का अधिकार अवश्य प्राप्त होता है। इसी से विजयी रत्न बन जायेंगे। जब संशय रुपी संकल्पों को समाप्त कर देंगे तब मायाजीत बनने वाले विजयी रत्न बन जाते हैं।
❉ संशय बुद्धि विनाश को प्राप्त करती है जब कि बाबा से व स्वयं से प्रीत बुद्धि कल्प कल्प के भाग्य का निर्माण करती है। इसलिये कर्म करने से पहले ही संशयात्मक संकल्प करके अपने कार्य को होने से पहले ही समाप्त नहीं कर देना चाहिये। हमारे संकल्पों में निर्माण करने की शक्ति है। इस शक्ति का सदुपयोग करके हमें कल्प कल्प का विजयी रत्न बन जाना है।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ रहम की भावना सहज ही निमित भाव इमर्ज कर देती है... क्यों और कैसे ?
❉ इस बात को जब सदैव स्मृति में रखेंगे कि बाबा ने हमे निमित बनाया ही विशेष कार्य अर्थ है । और वह विशेष कार्य है बाप द्वारा मिली सर्व शक्तियों, सर्व खजानो को रहमदिल बन विश्व की सर्व आत्माओं के प्रति यूज़ करना । सर्व के शुभचिंतक बन निर्बल आत्माओं को शक्तिशाली बनाना । ऐसी बेहद की शुभभावना और सहयोग की वृति जब सेवा में रखेंगे तो निमित भाव से सेवा करते हुए सेवा में सफलता
मूर्त बन बेहद आत्माओ का कल्याण कर सकेंगे ।
❉ विश्व कल्याणकारी बन जब हम सर्व आत्माओं के प्रति रहम की वृति रखते हुए सूक्ष्म सेवा में तत्पर रहेंगे तो अपने श्रेष्ठ संकल्पों वा शुभभावना से निराश वा थकी हुई आत्माओं को विशेष सहयोग से शांति वा शक्ति का अनुभव करवा कर हिम्मत व उत्साह से भरपूर कर सकेंगे । क्योकि रहम की भावना से निमित भाव इमर्ज होगा और स्वयं को जब निमित समझ कर सेवा करेंगे तो करावनहार बाप की मदद से सेवा में अवश्य सफलता प्राप्त कर सकेंगे ।
❉ हम पूर्वज आत्मायें सर्व का उद्धार करने के निमित्त हैं इस स्वमान व पोजीशन में जब सदा स्थित रहेंगे तो सदा यह स्मृति रहेगी कि हमारा हर संकल्प, हर सेकण्ड दूसरों की सेवा प्रति है । यह स्मृति हमे सर्व आत्माओं के प्रति रहमदिल और उदारचित्त बना देगी और हम फ्राकदिल बन, हर आत्मा की कमियों को स्वयं में समा कर, उनके प्रति शुभ भावना, शुभकामना रखते हुए उन्हें गुणों व शक्तियों का सहयोग दे कर आगे बढ़ा सकेगें और हर आत्मा से शुभ आशीर्वाद प्राप्त कर सकेंगे ।
❉ मास्टर दाता की सीट पर जब सदा सेट रहेंगे और इस बात को सदा स्मृति में रखेंगे कि हम दाता के बच्चे हैं इसलिए हमे सबको देना है । रिगार्ड मिले ना मिले, स्नेह मिले ना मिले लेकिन हमे स्नेही बन सबको देना है । इसके साथ साथ हमे स्वयं के प्रति तथा सम्बन्ध सम्पर्क में सर्व के प्रति समाने के शक्ति स्वरूप सागर बनना है । इन विशेषताओं को जब स्वयं में धारण कर लेंगे तो बुद्धि में रहेगा कि स्वयं भगवान ने हमे इस कार्य के निमित बनाया है । इस लिए हमें रहमदिल बन सर्व का कल्याण करना है ।
❉ जो सर्व आत्माओं के प्रति बेहद कल्याण और रहम की भावना रखते हैं वे स्वयं को सदैव निमित समझ कर चलते है । स्वयं को निमित समझने से उन्हें सदैव यह स्मृति रहती है कि यह तन, मन, धन जो भी मिला है यह अमानत है । इसलिए इस अमानत को श्रीमत प्रमाण ही यूज़ करना हैं । मनमत पर चल इस अमानत में खयानत नही डालनी है । ट्रस्टी बन इन्हें सेवा में सफल करना है । स्वयं को ट्रस्टी समझने के कारण निर्माणता का गुण उनमे स्वत: ही आने लगता है जो उन्हें बेहद विश्व के कल्याण के निमित बना देता है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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