━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 21 / 12 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *बाप जो राय देते हैं... उसे शिव बाबा की श्रीमत समझ कर चले ?*

 

➢➢ *ज्ञान अमृत पीया और पिलाया ?*

 

➢➢ *सबको रीगार्ड देते हुए सर्विस पर तत्पर रहे ?*

────────────────────────

 

∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *हर एक की राय को रीगार्ड दे विश्व द्वारा रीगार्ड प्राप्त किया ?*

 

➢➢ *मस्तक पर सदा साथ की स्मृति का तिलक लगाए रखा ?*

────────────────────────

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *"सर्व संगम युगी प्राप्तियों का आधार है:- पवित्रता" - यह स्मृति रही ?*

────────────────────────

 

∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे - आत्माअभिमानी बनने की प्रेक्टिस करो जितना आत्माअभिमानी बनेगे उतना बाप से लव रहेगा"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... सत्य पिता ने जो सत्य स्वरूप का सच्चा परिचय दिया है उस आत्म स्वरूप के नशे में प्रतिपल रहो... *इस विनाशी देह को भूल अपने अविनाशी स्वरूप को ही यादो में बसाओ.*.. जितना अपने चमकते भान के नशे में रहेंगे पिता के दिल में उतना गहरे उतरेंगे...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अब झूठ शरीर की अँधेरी दुखदायी गलियो से बाहर निकल कर... *आत्मा होने के सत्य प्रकाश में चमक उठी हूँ.*.. मीठे बाबा के प्यार में गहरे डूब चली हूँ... और प्रकाशित मणि बन चली हूँ...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे...खुद को शरीर कर जीने से कितने खाली और मायूस हो चले हो.... आवरण को सत्य समझ कर शक्तिहीन निष्प्राण से हो चले... *अब आत्मा के सत्य भान में हर साँस को पिरो दो.*.. इस सच्चाई को रोम रोम में भर दो... और मीठे बाबा की मीठी यादो में खोकर अतीन्द्रिय सुख को पा चलो...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपसे अपना खोया सा स्वरूप... यूँ फिर से जानकर पुलकित हो चली हूँ... मै आत्मा हूँ मै आत्मा हूँ इसकी अनन्त गहराइयो में डूबी हूँ... *अपने खुबसूरत स्वरूप को जानकर आनन्द में झूम उठी हूँ.*..

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब इस देह को ओर याद न करो....यह देह गहरी ठगी सी है जो भाग्यहीन सा बना देगी... आत्मा होने के सुंदर नशे में खो जाओ... *आत्मा की अनुभूति में जितना डूबेंगे उतना खजानो को तकदीर में भरेंगे*और ईश्वर पिता की गहरी यादो में रहेंगे...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने सत्य भान में और मीठे बाबा की प्यारी सी यादो में खुशियो से भर उठी हूँ... शरीर की धुंध से निकल कर सत्यआत्मा के उजालो में आ गयी हूँ... और *सत्य को बाँहों में भरकर विजेता सी मुस्करा रही हूँ*...

────────────────────────

 

∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा बालक सो मालिक हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा *रुहानी बाप की रुहानी बच्ची* हूँ... मीठे बाप की मीठी बच्ची हूँ... सिकीलधी बच्ची हूँ... प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को गोद लिया... अपना बच्चा बनाया... मीठे बाबा मुझ आत्मा को प्यार से अपनी गोदी में बिठाते हैं... अमृतवेला मुझ आत्मा को प्यार से जगाते हैं... अमृतपान कराते हैं...

 

➳ _ ➳  भाग्यविधाता बाप ने मुझ आत्मा को भाग्य लिखने की कलम दे दी है... बाबा कई सौगातें लेकर आयें हैं... 21 जन्मों के स्वर्ग का सुख दे रहें हैं... मुझ आत्मा को अपना वारिस बनाकर सब कुछ लुटा दिया है... *सर्व खजानों की मालिक* बना दिया है... जिस खजाने में कोई वस्तु अप्राप्त नहीं है...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा सदा बाबा की याद में ही रहती हूँ... एक बाप की याद में रह देह, देह के सम्बन्धों, पदार्थों से किनारा कर रही हूँ... मुझ आत्मा का देह अभिमान छूटता जा रहा है... मैं *आत्मा देही अभिमानी बन रही* हूँ... उड़ती कला का अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा सर्व गुणों, सर्व शक्तियों, सर्व ज्ञान के खजानों से सम्पन्न होकर बाप समान बन रही हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा भी *बाप समान सबको रिगार्ड दे रही* हूँ... इतने ऊँचे ते ऊँचे परम पिता परमात्मा रोज मुझ आत्मा को याद-प्यार देते हैं, गुड-मॉर्निंग और नमस्ते करते हैं... झोली भर-भर वरदान देते हैं... प्यारे बाबा रोज मुझ आत्मा को भिन्न-भिन्न टाइटल्स से नवाजते हैं...

 

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा चाहे कोई छोटा हो या बड़ा हर एक की राय को रिगार्ड देती हूँ...  कोई की भी राय को ठुकराती नहीं हूँ... किसी के व्यर्थ को कट करने के लिए पहले उसे रिगार्ड देती हूँ... स्वमान देकर फिर शिक्षा देती हूँ... मैं आत्मा ऐसे रिगार्ड देने के संस्कार भर रही हूँ... सारे विश्व से मुझ आत्मा को स्वतः रिगार्ड मिल रहा है... अब मुझ आत्मा की बुद्धि बेहद में शुभ कल्याण की भावना से सम्पन्न हो रही है... अब मैं आत्मा हर एक की राय को रिगार्ड दे विश्व द्वारा रिगार्ड प्राप्त करने वाली *बालक सो मालिक बन गई* हूँ...

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मस्तक पर सदा साथ की स्मृति का तिलक लगाना"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा शिव साजन की सजनी... हम दोनों सदा कम्बाइंड हैं... *मैं शिवशक्ति हूँ...* शिवबाबा के साथ मेरा अविनाशी सम्बन्ध हैं.... बाकि सब सम्बन्ध तो शरीर के साथ है... शरीर के सम्बन्ध तो विनाशी है, श्रणभंगुर हैं.... परन्तु शिवबाबा के साथ तो मेरा अमिट सम्बन्ध हैं...

 

➳ _ ➳  शिवबाबा के साथ की स्मृति ही मेरा सुहाग चिन्ह हैं... मैं सदा सुहागन हूँ... मेरे शिव साजन का साथ सदा मेरे साथ हैं... मैं आत्मा जो हूँ जैसी हूँ शिव साजन की हूँ... और वो मेरे हैं.... यही स्मृति सदा रहती है... *अहो भाग्य मेरा जो ऐसा साथी मिला हैं...*

 

➳ _ ➳  मेरे शिव साजन ने मुझे सर्व गुुणों से सजाया है ... मेरा  सर्व गुणों से 16 श्रृंगार किया हैं... *मस्तक पर साथ की स्मृति का अविनाशी तिलक लगाया हैं...* तो पवित्रता के कंगन पहनाये हैं... पैरों में मर्यादा की पायल पहनाई हैं...

 

➳ _ ➳  ज्ञान और योग से सजधज कर मुझ आत्मा को अपने शिव पिया के साथ जाना हैं... ऐसा साथी किसका होगा जो एक पल भी साथ न छोड़े... असीम प्यार देना वाला साजन मिला है.... उसके प्यार में मैं इस दुनिया को भूल चली... बस मैं और वो... दूसरा कोई नही... *वो ही मेरा संसार हैं...*

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *हर एक की राय को रिगार्ड दे विश्व द्वारा रिगार्ड प्राप्त करने वाले बालक सो मालिक होते हैं...  क्यों और कैसे?*

 

❉   हर एक की राय को रिगार्ड दे कर विश्व द्वारा रिगार्ड प्राप्त करने वाले बालक सो मालिक होते हैं क्योंकि...  चाहे कोई छोटा बच्चा हो या फिर बड़ा हो। हमें *हर एक की राय को रिगार्ड* जरूर देना है। वो रिगार्ड देना इसलिये भी जरुरी है क्योंकि किसी की भी राय को ठुकराना गोया अपने आपको ठुकराना होता है। 

 

❉   इसलिये! अगर कभी किसी की बात को कट भी करना है तो पहले उसे रिगार्ड देना हैफिर बाद में अपनी बात को उसके सामने रख कर समझाना है। सब से पहले उनको स्वमान में स्थित करना है अर्थात!  *पहले उनको सन्मान देना है, फिर तदुपरान्त उनको शिक्षा दे कर समझानी* देनी है।

 

❉   जितना जितना हम हरेक की राय को रिगार्ड देते हुए चलते जायेंगे उतना उतना ही हम उसके दिल में अपनी जगह भी बनाते जायेंगे। जितनी ज्यादा जगह हम किसी के भी *दिल में बना पायेंगे उतना ही ज्यादा हमारा भी रिगार्ड*उनकी निगाहों में बढ़ता जायेगा। अतः हमें सर्व आत्माओं की राय को रिगार्ड देते हुए चलना है।

 

❉   इसलिये!  पहले दूसरे की राय को रिगार्ड देना है, पीछे अपनी बात उनके सामने रखनी है। इस से उस आत्मा को भी बुरा महसूस नहीं होगा बल्कि!  उस के *हृदय में हमारी भी एक सुन्दर सी छवि का निर्माण* हो जायेगा। अतः पहले सर्व की बात को सम्मान देना है फिर अपनी बात को भी उनके सामने रखना है।

 

❉   यह भी एक सुन्दर तरीका है किसी की बात को कट करने का। जब हम सब में ऐसे रिगार्ड देने के संस्कार भर जायेंगे तो!  सारे विश्व से हमको रिगार्ड मिलेगा। इसके लिये हमें *बालक सो मालिक व मालिक सो बालक* बनना है तथा हमारी बुद्धि भी बेहद में, शुभ कल्याण की भावना से भरी हुई श्रेष्ठ व सम्पन्न होनी चाहिये।

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *मस्तक पर सदा साथ की स्मृति का तिलक लगाना - यही सुहाग की निशानी है... क्यों और कैसे* ?

 

❉   सदा सुहाग की निशानी है अविनाशी स्मृति का तिलक । और ऐसी सुहागिन तिलकधारी वा सदा सुहागिन होने के कारण सदा विश्व के आगे श्रेष्ठ अर्थात ऊंच आत्मा दिखाई देती है जैसे *लौकिक रूप में भी सुहागिन को श्रेष्ठ नजर से देखते हैं । और हर श्रेष्ठ कार्य में सुहागिन को ही आगे रखते हैं* । इसी प्रकार आलौकिक जीवन में भी हर आत्मा परमात्मा साजन की सजनी हैं अर्थात सुहागिन है । और यही अविनाशी स्मृति का तिलक लगाना ही सुहाग की निशानी है ।

 

❉   लौकिक में हम देखते हैं कि एक पतिव्रता सुहागन स्त्री के लिए उसका पति ही सब कुछ होता है । एक भी श्वांस, एक भी पल वह अपने पति का साथ नहीं छोड़ती । इसी प्रकार *हम सभी आत्मा रूपी सजनिया एक परमात्मा साजन की सुहागिने है* । तो जो सदा स्वयं को परमात्मा साजन की सुहागिन समझ अपने मस्तक पर परमात्म साथ की स्मृति का तिलक लगा कर रखती हैं । उनके मुख से सदा यही बोल निकलते हैं कि सदा साथ रहेंगे, साथ जिएंगे और साथ मरेंगे ।

 

❉   जैसे भक्ति में अनहद शब्द सुनने के अभ्यासी होते हैं । बहुत प्रयत्न करने के बाद अगर एक भी शब्द सुनाई दे जाए तो अपनी भक्ति को सफल मानते हैं । इसी प्रकार *सदा सुहागन अर्थात जिसके कानों में अनहद महामंत्र मनमनाभव का स्वर गूंजता रहे* । बस तुम्ही से बोलूं, तुम्ही से सुनूं वा तुम्हारा सुनाया हुआ ही बोलूं, ऐसी स्टेज पर जो स्थित रहते हैं ।उनके मस्तक पर सदा केवल एक परमात्मा साजन के साथ की स्मृति का तिलक लगा रहता है - जो सुहाग की निशानी है ।

 

❉   जैसे लौकिक जीवन में भी पर पुरुष के प्रति संकल्प करना या किसी पर पुरुष का स्वपन में आना भी सुहागिन के लिए महा पाप माना जाता है । ऐसे ही आलौकिक जीवन में भी अगर संकल्प मात्र भी या *स्वपन मात्र भी कोई देहधारी आत्मा की तरफ झुकाव है । तो यह सदा सुहागिन के लिए महा पाप माना जाता है* । तो सदा सुहागिन अर्थात एक बाप दूसरा ना कोई । ऐसे मस्तक पर सदा परमात्म साथ की स्मृति का तिलक लगाना ही सुहाग की निशानी है ।

 

❉   सदा सुहागिन के साथ सदा भाग्यवान शब्द भी जुड़ा हुआ है । जैसे सदा सुहाग की निशानी है अविनाशी समृति का तिलक । वैसे ही *सदा भाग्य की निशानी है बाप द्वारा मिली सर्व प्राप्तियां अर्थात लाइट का क्राउन* और लाइट के क्राउन की प्राप्ति का आधार है प्यूरिटी । तो जितना सम्पूर्ण प्यूरिटी को धारण कर इन प्रप्तियों की स्मृति में रहेंगे उतना मस्तक पर अविनाशी साजन के साथ की स्मृति का तिलक चमकता हुआ दिखाई देगा । यह चमकता हुआ तिलक ही सुहाग की निशानी है ।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━