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❍ 27 / 07 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ शरीर की संभाल करते हुए ×शरीर में रग× तो नहीं रखी ?
➢➢ शिव बाबा की याद की सिवाए ×दूसरे किसी भी चिंतन× में तो नहीं गए ?
➢➢ √अपना कल्याण√ करने पर विशेष अटेंशन रहा ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ आवाज़ से परे की स्थिति में स्थित हो √सर्व गुणों का अनुभव√ किया ?
➢➢ अच्छाई शरण करते हुए ×अच्छाई में प्रभावित× तो नहीं हुए ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ अव्यक्त भाव में स्थित रह √फ़रिश्ता√ बनकर रहे ?
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/27.07.16-VisheshPurusharth.htm
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/27.07.16-VisheshPurusharth.pdf
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - इस महाभारत लड़ाई में पुराना झाड़ समाप्त होना है, इसलिए लड़ाई से पूर्व बाप से पूरा पूरा वर्सा ले लो"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे यह खेल अब पूरा हो चला है... यह दुखधाम कुछ समय का है... इन सांसो के रहते सच्चे पिता से अपना अधिकार ले चलो... सिवाय पिता के यह अधिकार कोई न देगा... सब खत्म हो जायेगा पर पिता के साथ की यादे अमर होकर सुखो का वर्सा दे जाएँगी...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा... मीठे प्यारे बाबा को यादो में समाकर अधिकारी बन रही हूँ.... ये यादे सच्चा हक दिलाकर मुझे धनवान् बना रही है... सांसो को मै आत्मा बाबा की यादो में पिरो रही हूँ....
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे मेरे सिकीलधे बच्चे ये बाते ये नाते ये रिश्ते ये दुनिया सब छूट जाना है... ये भुरभुरे से खोखले रिश्ते ठग जायेंगे... इसलिए समय रहते सच्ची यादो में डूबकर पिता से सारी सम्पत्ति ले चलो.... और मीठे सुखो को अपने पिता से अपने नाम लिखवा चलो....
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा विनाश होने से पहले प्यारे बाबा से सारी जागीर अपने नाम लिखवा रही हूँ.... और मुस्कराते सुखो की मालकिन बन इतरा रही हूँ.... यादो में मेने बाबा से सब कुछ ले लिया है...
❉ मेरा बाबा कहे - मीठे प्यारे मेरे लाडले बच्चे... अब और देर न करो... वक्त से पहले वक्त को जीत चलो... ईश्वर पिता पर पूरा अधिकार जमा लो.... उसे अपनी यादो से सदा का खरीद लो खाली कर दो और सदा के अमीर बन चलो.... सारे गुण और शक्तियो को लेकर विश्व के मालिक बन चलो....
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा प्यारे बाबा से पूरा वर्सा ले रही हूँ... समय पर जाग चली हूँ... और दिल में ईश्वरीय प्रेम की लो जगा चली हूँ... ईश्वरीय धन को अपना धन बनाकर सदा के सुख अपने आँचल में भरवा चली हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - 21 जन्मों की कमाई करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा पदमापदम भाग्यशाली हूं... जो इस संगमयुग पर इस शरीर के द्वारा मुझे परमात्म मिलन का सौभाग्य मिला... मुझ आत्मा के पिछले जन्म के पुण्य कर्मो का व भक्ति का फल है... जिस भगवान को दुनिया वाले ढ़ूढ़ रहे है उस भगवान ने मुझे स्वयं ढ़ूढ़ा... अपना बनाया... अब मुझ आत्मा के सर्व सम्बंध प्यारे बाबा से हैं... प्यारे परमपिता शिव बाबा ही सुप्रीम शिक्षक बन पढ़ाते है... अनमोल अखूट बेशुमार कीमती ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा की झोली भरते हैं... मैं आत्मा अपने इस पुराने शरीर में रहते पढ़ाई करती हूं... मुझ आत्मा के कौड़ी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बनाते है... मुझ आत्मा को पढ़ाकर 21 जन्मों के लिए अविनाशी कमाई कराते हैं... मुझ आत्मा को अपने इस पुराने शरीर की सम्भाल रखनी है... इस पुराने शरीर में रहते मैं आत्मा बाबा की याद में रह पुरुषार्थ करती हूं... और ज्यादा से ज्यादा अपना भाग्य बनाती हूं... मैं आत्मा बस अपने को इस धरा पर मेहमान समझती हूं... बस इस देह से अपने को निमित्त समझ जिम्मेवारी निभाती हूं... मुझ आत्मा को इस पुराने देह व देह के सम्बंधों से मोह मुक्त हूं...
❉ "ड्रिल - बहुकाल की याद का अभ्यास"
➳ _ ➳ मैं आत्मा बिंदु रुप हूं... मैं बिंदु, बिंदु की ही संतान हूं... मुझ आत्मा में बस एक प्यारे बाबा की याद समाई है... इस अनमोल संगमयुग पर मैं आत्मा श्वांसो श्वास प्यारे बाबा को याद करते रहना है... मैं बस एक प्यारे शिव बाबा के साथ सर्व सम्बंध निभाने वाली वफादार आत्मा हूं... मैं सदा एक के स्नेह का रसपान करने करने वाली एकरस आत्मा हूं... मैं आत्मा एक प्यारे बाबा की याद में रह जन्म जन्म के विकर्मो को भस्म करती हूं... मैं कर्मयोगी बन हर कर्म करते एक बाबा के लव मे लीन होकर रहने वाली लवलीन आत्मा हूं... मै आत्मा प्यारे बाबा के सिवाय किसी देहधारी को याद नही करती हूं... मैं आत्मा एक बल एक भरोसा के आधार पर ही आगे बढ़ती हूं... मैं आत्मा एक प्यारे शिव बाबा की याद में रह याद का बल जमा करती हूं... मुझ आत्मा को अंत समय में एक सेकेंड़ के पेपर में बस बाबा की ही याद आए... मैं आत्मा बस एक की लगन में मगन रहती हूं... मैं आत्मा याद में रह अपना कल्याण करती हूं...
❉ "ड्रिल - अच्छाई धारण करना"
➳ _ ➳ मैं विशेष आत्मा हूं... महान आत्मा हूं... मुझ आत्मा ने परमपिता शिव बाबा से मिले दिव्य ज्ञान व दिव्य दृष्टि से बुराईयों पर जीत प्राप्त कर ली है... प्यारे बाबा ही मुझे अज्ञान अंधकार से निकाल सोझरे में लाये हैं... मुझ आत्मा को प्यारे बाबा रोशनी दिखा रहे हैं... मैं आत्मा अपने असली स्वरुप को पहचान गई हूं... मुझ आत्मा ड्रामा के राज को भली भांति जान गई हूं... हर आत्मा हीरोपार्ट धारी है... हर आत्मा का अपना एक्यूरेट पार्ट है... जैसे मेरे प्यारे बाबा मुझ आत्मा में कितनी ही बुराईयां है बस मेरी विशेषता को देख मुझे हमेशा आगे बढ़ाते हैं... ऐसे मुझ आत्मा को सर्व में बस अच्छाई ही देखनी है... गुणों को ही देखना है... मुझ आत्मा को उस अच्छाई को ही ऐड करते जाना है... ओर विशेष आत्मा ही बनना है... मुझ आत्मा को किसी की विशेषता से प्रभावित नही होना है... ये सब तो प्यारे बाबा की ही देन है... प्यारे बाबा का ही प्रसाद है... बाबा की ही विशेषता है... मैं आत्मा किसी की अच्छाई से प्रभावित न होकर अच्छाई को धारण करती हूं...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं मास्टर बीजरूप आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳ मैं आत्मा देह और देह के सबंध से मुक्त बाप की याद में समाई हुई ज्ञान का रौशन सितारा हूँ... मैं आत्मा अशरीरी... अव्यक्त... कर्मातीत हूँ... मैं आत्मा बंधनमुक्त जीवनमुक्त हूँ... बाप की याद से मैं आत्मा ज्ञानस्वरूप यादस्वरूप धारणास्वरूप बनती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं निराकार परमपिता परमात्मा सर्वशक्तिमान बाप के साथ चमकती हुई जागती ज्योत हूँ... मैं आत्मा बाप से मुक्ति और जीवनमुक्तिधाम से योग लगाते बंधनमुक्त जीवनमुक्त योगयुक्त युक्तियुक्त बनती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बीजरूप बाप की सन्तान मास्टर बीजरूप हूँ... मैं आत्मा बाप समान सत्तचित्त आनन्द हूँ... जैसे बीज में सारा वृक्ष समाया हुआ होता है... वैसे ही आवाज़ से परे की श्रेष्ठ स्तिथि में संगमयुग के सर्व विशेष गुण समाये होते हैं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा स्वयं को निरन्तर शांति से, ज्ञान से, अतीन्द्रिय सुख से, प्रेम से, आनंद से, शक्ति आदि सर्वगुणों से सम्पन्न अनुभव कर रहीं हूँ... यह सारे गुण मुझ आत्मा में समाए हुए हैं...
➳ _ ➳ अपनी श्रेष्ठ स्तिथि द्वारा मैं आत्मा इन श्रेष्ठ गुणों का अनुभव अन्य आत्माओं को भी करवा रहीं हूँ... मैं आत्मा बीजरूप अवस्था में स्तिथ होकर अपने एक गुण में सर्वगुणों को समाने का अनुभव कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ आवाज़ से परे की स्थिति में स्थित हो सर्वगुणों का अनुभव करने वाले मास्टर बीज रूप होते हैं... क्यों और कैसे?
❉ आवाज से परे की स्थिति में स्थित हो सर्वगुणों का अनुभव करने वाले मास्टर बीज रूप होते हैं क्योंकि जैसे बीज में सारा वृक्ष समाया हुआ होता है। वैसे ही हमारे पिता परमात्मा शिवबाबा भी इस सृस्टि के बीज स्वरूप हैं।
❉ अभी हम आत्मायें संगमयुग पर हैं। आवाज़ से परे कि स्थिति में संगमयुग के सर्व विशेष गुण अनुभव में आते हैं। जैसे बीज में क्रिएटिव पॉवर है वैसे ही परमात्मा बीज में भी इस साकारी सृस्टि का झाड़ समाया हुआ है। परमात्म बीज में सर्वगुण व शक्तियाँ स्वतः ही समाई हुई है। वह सर्वगुणों व शक्तियों के सागर हैं।
❉ हम आत्मायें भी मास्टर बीज रूप हैं। हम सभी आत्मायें भी मास्टर सागर हैं। हम सभी आत्माओं का झाड़ भी परमधाम में स्थित है। वहाँ शान्ति ही शान्ति है। वह हम आत्माओं की दुनियां है। वहाँ सदैव लाल सुनहरी प्रकाश से आत्मायें स्वतः ही प्रकाशित व भरपूर होती रहती है।
❉ मास्टर बीज रूप बनना अर्थात सिर्फ शान्ति ही नहीं लेकिन शान्ति के साथ ज्ञान अतिन्द्रिय सुख प्रेम आनन्द शक्ति आदि-आदि सर्व मुख्य गुणों का अनुभव करना है। ये सुख शान्ति प्रेम पवित्रता ज्ञान आनन्द और शक्तियाँ आदि 7 गुण आत्मा के ही स्वरूप हैं। आत्मा नित्य ही अपने इन दिव्य गुणों रुपी स्वरूप में स्थित होने का अभ्यास करती है।
❉ यह अनुभव सिर्फ स्वयं को ही नहीं होता हैं। बल्कि अन्य आत्माओं को भी होता है। अन्य आत्मायें हमारे चेहरे से सर्वगुणों का अनुभव करती हैं, क्योंकि एक गुण में ही सर्व गुण समाये हुए रहते हैं।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ अच्छाई धारण करो लेकिन अच्छाई में प्रभावित नही हो जाओ... क्यों और कैसे ?
❉ दूसरों की अच्छाई को देख उनसे प्रभावित होने के बजाए जो उनकी अच्छाई को स्वयं में धारण करते हैं वे ही परमात्म स्नेही बनते हैं । कई बच्चे कहते हैं फलाना बहुत अच्छा या अच्छी है इस लिए उस पर रहम आता है । कोई का किसी के शरीर से लगाव होता तो कोई का किसी के गुणों वा विशेषताओं से । लेकिन उन्हें वह विशेषता वा गुण देने वाला कौन ? यह भूल जाते हैं । बाबा कहते यह भी बॉडीकॉन्शियस नेस है । इसलिए कोई अच्छा है तो उसकी अच्छाई को धारण करो उससे प्रभावित नही हो जाओ ।
❉ किसी भी आत्मा के गुणों, सेवा , सहयोग आदि को देख उसके प्रभाव में आ जाना भी एक तरह का झुकाव है । जो उस आत्मा को अपना आधार बनाने के लिए प्रेरित करता है और जब किसी आत्मा का आधार हो जाता है तो बाप का आधार स्वत: ही निकल जाता है । लेकिन जब आगे चलकर वह अल्प काल का आधार हिल जाता है तो भटक जाते हैं। इसलिए बाबा कहते हैं कभी भी किसी आत्मा की किसी विशेषता के कारण प्रभावित होना महान भूल है । आत्मा की विशेषता को स्वयं में धारण अवश्य करो लेकिन उसके प्रभाव में कभी नही आओ ।
❉ अच्छाई धारण करने के बजाए जो दूसरों की अच्छाई को देख उनके प्रभाव में आ जाते हैं वे कभी भी अधिकारीपन की स्मृति में नही रह सकते क्योकि किसी के प्रभाव में आना ही अधीन बनना है और जो अधीन हैं वे सदैव स्वयं को खाली अनुभव करते हैं इसलिए सम्पन्नता वा सुख की अनुभूति से वंचित रह जाते है । जिससे चलते फिरते छोटी - मोटी भूले होती रहती हैं । समय प्रति समय होने वाली छोटी - छोटी अवज्ञाओं का बोझ आत्मा को बोझिल बना देता है और डबल लाइट स्थिति का अनुभव नही होने देता ।
❉ किसी की अच्छाई से प्रभावित होना अर्थात विनाशी दैहिक आकर्षण में फंसना । 63 जन्म देह और दैहिक आकर्षणों में फंसने के कारण ही तो अति दुःखदाई अवस्था को प्राप्त किया । अब तो कल्प का अंतिम समय है । अगर अभी भी दूसरों की विशेषताओं को देख उनसे प्रभावित होते रहेंगे तो कभी भी श्रेष्ठ प्रालब्ध नही बना पाएंगे । क्योकि अब समय है गुणमूर्त बन दूसरों से गुण उठाने का । इसलिए बाबा की श्रीमत है कि इस विनाशी देह और देह की दुनिया से अब नष्टोमोहा बनो तभी अंत गति सो मति को पा सकेंगे ।
❉ जो दूसरों के गुणों को देख उन्हें स्वयं में धारण करने के बजाए उस आत्मा की और आकर्षित होते हैं वे कभी भी परमात्म प्राप्तियों से सम्पन्न नही बन सकते । यह आकर्षण उन्हें एक दूसरे के स्नेह में तो बांध सकता है लेकिन परमात्म स्नेह से वंचित कर देता है । क्योकि दूसरों के गुणों को देख उनकी तरफ आकर्षित होना भी देह अभिमान है और देह अभिमानी देह के अभिमान में आ कर कोई ना कोई विकर्म करता ही रहता है जो उसे चढ़ती कला का अनुभव होने नही देते । इसलिए बाबा समझाते हैं कि दूसरों की अच्छाई को धारण करो लेकिन उनसे प्रभावित नही हो जाओ ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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