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 04 / 05 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ कर्म, अकर्म और विकर्म की गति को जान कोई विकर्म तो नहीं किया ?

 

➢➢ ऐसा पावन बनने का पुरुषार्थ किया जो हमारी बलिहारी बाप स्वीकार कर ले ?

 

➢➢ तन-मन-धन इस यज्ञ में स्वाहा कर सफल किया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ इस लोक के लगाव से मुक्त बन अव्यक्त वतन की सैर करते रहे ?

 

➢➢ अपने चेहरे और चलन से सत्यता की सभ्यता का अनुभव करवाया ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ "°क्या थे और क्या बन गय°" - इस अन्तर को सदा स्मृति में रखते हुए ईश्वरीय नशे में रहे ?

 

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➳ _ ➳  http://bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/04.05.16-VisheshPurusharth.htm

 

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➳ _ ➳  http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/04.05.16-VisheshPurusharth.pdf

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं आत्मा उड़ता पंछी हूँ ।

 

✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-

 

➳ _ ➳  आह्वान करेंगे कमल आसन पर बैठकर, स्वयं को मस्तक से निकलते एक फ़रिश्ते स्वरूप में... मैं फरिश्ता अति सूक्ष्म रूप लेकर अपनी भृकुटि के बाहर निकल रहीं हूँ... इस पांच तत्व की दुनिया के पार... सूर्य चाँद, तारागण के भी पार, पहुँचता हूँ अव्यक्त वतन में... मैं स्वयं को विश्व ग्लोब के ऊपर देख रहा हूँ... मैं अपने मस्तिक पर विराजमान आत्मा अपना सीधा कनेक्शन मुलवतन में बीजरूप पिता से जोड़ रहीं हूँ... बाबा से कनेक्शन जोड़ने से मुझ फ़रिश्ते की चमक करोड़ों गुणा बढ़ती जा रही है... मैं फरिश्ता स्वयं को अत्यंत शक्तिशाली महसूस कर रहा हूँ... बेजोड़ है बाबा का यह अनुपम प्यार और प्यार में बच्चों को सम्पूर्ण पवित्र, शान्त, शीतल, सर्वगुण सम्पन्न बनाने की यह अति कल्याणकारी विधि... सचमुच मैं आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ जो मुझे अपने बुद्धि रूपी विमान के द्वारा अव्यक्त वतन व मूलवतन की सैर करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ... मैं आत्मा उड़ता पंछी बन अपनी बुद्धि के द्वारा जब चाहे, जहाँ चाहे पहुँच जाती हूँ... आज मैं मूलवतन में अपने शिव पिता के समक्ष यह दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मैं इस असार संसार के लगाव से दूर रहूंगी... इस असार संसार में कोई काम नहीं है, कोई प्राप्ति नहीं है... इसलिए मैं आत्मा इस रौरव नर्क में बुद्धि द्वारा जाने के संकल्प और स्वप्न से भी दूर रह उड़ता पंछी बनकर रहूंगी ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चों - जब तुम सम्पूर्ण पावन बनोगे तब ही बाप तुम्हारी बलिहारी स्वीकार करेंगे, अपने दिल से पुछो कहाँ तक सम्पूर्ण बने है"

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों मेरे ऊपर सम्पूर्ण बलिहारी जीवन में 21 जनमो की बहार ले आएगी... तन मन धन से जो मुझ पर बलिहार जाओगे तो मै पिता बच्चों पर क्या न लुटाऊंगा... एक जीवन मुझे दोंगे तो मै क्या न दे जाऊंगा...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मेरे मीठे से बच्चों मेरे फूल से बच्चे मुझे सब कुछ दे चले तो मै पिता लूट ही जाऊंगा... एक जन्म का सच्चा समर्पण पर मै पूरा खाली सा हो जाऊंगा... पर सच्चे दिल पर ही साहिब राजी है तो टटोलो जरा अपने दिल को...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चों आप बच्चों की सच्चाई का तो मै पिता मुरीद हूँ पर इसमे सम्पूर्णता का होना बेहद जरूरी है... आशिंक सम्पूर्णता तो मुझे मोहित कर न सके... तो अपने दिल में झांको जरा की पिता को पूरा दिल जिगर से दिया है...

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चों अपना सब कुछ मुझे दे दो और मेरी सारी जागीर खजाने अपने दामन में भर लो... पर सौदा सच्चा हो दिल का हो तो ही मै स्वीकार कर लुट जाऊंगा... तो अपनी सच्ची पावनता को मुझ पर बलिहार करो तो मै कारुंन के खजानो को बलिहार करूँगा...

 

 ❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चो मै हो एक सच्चा रिश्ता हूँ जो वफादार रहूँगा... आपका एक समर्पण हजार कदमो से पिता को दोड़ायेगा... पर वफादारी पहली शर्त है... बेवफाई मै कतई स्वीकार न करूँगा... पर सच्चे प्यार समर्पण पर कायल हो जाऊँगा...तो दिल गर मुझे दो तो सच्चा दो तो बात बने...

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ ऐसा पावन बनना है जो हमारी बलिहारी बाप स्वीकार कर ले । पावन बनकर पावन दुनिया में जाना है । तन-मन-धन इस यज्ञ में स्वाहा कर सफल करना है ।

 

  ❉   अपने को आत्मा समझ परमात्मा बाप को याद करना है । याद करने से ही विकारों की कट उतारनी है । जितना याद में रहेंगे उतना आत्मा की लाइट तेज होती जायेगी व आत्मा पावन बनती जायेगी ।

 

  ❉   भक्ति में भी जो दान करते है तो पतितों को ही करते हैं तो उसका क्या फल पायेंगे । इस संगमयुग पर जो ये पुराना शरीर है विनाशी है तो क्यूं ना खुशी से हम बाबा को अर्पण कर दें । कहते भी आये है , बाबा जब आप आयेंगे तो हम बलिहारी जायेंगे  । अब बलिहारी जाने से आप फिर हम पर 21 बार बलिहारी जायेंगे ।

 

  ❉   बाप हमें अपने साथ वापिस घर ले जाने के लिए आए हैं व अपने घर पावन बने बगैर जा नही सकते । इसलिए इस अंतिम जन्म पावन जरुर बनना है । पावन बन पावन दुनिया का मालिक बनना है ।

 

  ❉   बाप जो श्रीमत देते है उस पर सम्पूर्ण रीति चलना है व याद की यात्रा में रहना है । बाप जो ज्ञान रत्नों का खजाना देते है उसे अच्छी रीति धारण करना है और याद से विकर्म विनाश करने है और पावन जरुर बनना है ।

 

  ❉   अपना तन-मन-धन सब बाप को अर्पण करना है क्योंकि ये सब मेरा है ही नही तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा ये सब गाते आए हैं तो अब जब स्वयं भगवान मिल गए तो सब उसे अर्पण कर सफल करना है । ये पुराना शरीर व पुरानी दुनिया सब विनाश होनी है तो सब कुछ स्वाहा कर अपना सफल करना है ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ इस लोक के लगाव से मुक्त बन अव्यक्त वतन की सैर करने वाले उड़ता पंछी होते हैं... क्यों और कैसे ?

 

  ❉   जो बच्चे बुद्धि से जब जहां चाहे वहां पहुंच जाते हैं । ये तभी हो सकता है जब इस देह व देह के किसी सम्बंध से लगाव न हो । वो बुद्धि रुपी विमान से अव्यक्त वतन व मूल वतन की सैर करने वाले उड़ता पंछी होते हैं ।

 

  ❉   जो बच्चे समझते ये असार संसार है , इस असार संसार से जब कोई काम नही , कोई प्राप्ति नही तो बुद्धि द्वारा भी इस असार संसार में भी नही जाते । अपने को इस लोक के लगाव से मुक्त बन अव्यक्त वतन का सैर करने वाले उड़ता पंछी होते हैं ।

 

  ❉   जो बच्चे ये स्मृति में रखते कि हम कोटो में कोई, कोई मे भी कोई श्रेष्ठ आत्मा हैं । जो कभी स्वप्न मे भी नही सोचा व साकार में अनुभव कर रहे हैं व अपना श्रेष्ठ भाग्य की स्मृति में रहते है तो इस पुरानी दुनिया , पुराने शरीर के लगाव से मुक्त रहते व उड़ती कला में रहते ।

 

  ❉   63 जन्म इस देहभान में रहते नीचे गिरते गए व देहभान की मिट्टी में रहकर मैले हो गए । अब स्वयं परमपिता परमात्मा बाप ने अपना बनाया । बाप के बन गये तो अब सब कुछ मेरा सो तेरा कर दिया । फिर कोई बोझ नही । सब सूक्ष्म लगावो की रस्सी से मुक्त हो हल्के रहते और अव्यक्त वतन की सैर करने वाले उडता पंछी होते हैं ।

 

  ❉   उड़ता पंछी अर्थात बाप के बन गए । बच्चे बाप के प्यारे बन गए और बाप उनके प्यारे बन गए । आत्मा रुपी पंछी इस स्थूल वतन में रहते हुए भी इस लोक के लगाव से मुक्त सूक्ष्म वतन और मूल वतन मे विचरण करने वाले उड़ता पंछी होते हैं ।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ अपने चेहरे और चलन से सत्यता की सभ्यता का अनुभव कराना ही श्रेष्ठता है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   अपने चेहरे और चलन से सत्यता की सभ्यता का अनुभव कराने का श्रेष्ठ कार्य वही कर सकेंगे जिनके जीवन में सच्चाई और सफ़ाई होगी । सच्चाई अर्थात जो मुख से वर्णन करें वह पहले कर्म में लाएं और सफाई अर्थात कोई भी पुराने स्वभाव संस्कार का किचड़ा ना हो ।

 

 ❉   सत्यता की शक्ति का आधार है संपूर्ण पवित्रता अर्थात मन, वचन, कर्म और स्वप्न में भी अपवित्रता का अंश मात्र भी ना हो । जो ऐसी संपूर्ण पवित्र आत्माएं होती हैं उनके चेहरे से दिव्यता और नयनों से रुहानी चमक स्पष्ट दिखाई देती है । और वह सबको अपने चेहरे और चलन से सत्यता की सभ्यता का अनुभव करवाते रहते हैं ।

 

 ❉   जैसे कोई बिल्कुल साफ चीज होती है तो उसमें सब कुछ स्पष्ट दिखाई देता है । ऐसे ही जब मन में सच्चाई और सफाई होगी तो एक दो की भावना और भाव स्वभाव स्पष्ट दिखाई देंगे । यह भाव और स्वभाव एक दूसरे को समीप ले आएंगे और सभी अपने चेहरे और चलन से सबको सत्यता का अनुभव कराते हुए बाप की प्रत्यक्षता में मददगार बन जाएंगे ।

 

 ❉   जब स्वयं अपने और बाप के सत्य स्वरूप की समृति निरंतर रहेगी तो स्वत: ही हर संकल्प भी सत्य सिद्ध होगा और अपने सत्य स्वरुप में स्थित होकर वे जो भी बोल बोलेंगे या कर्म करेंगे उनका हर बोल और कर्म सत्यता की सभ्यता का अनुभव सभी को सहज ही कराएगा ।

 

 ❉   जो संयम मे रह स्वयं को सदा आगे बढ़ाते रहते हैं और जिनका हर बोल सभ्यता पूर्वक और हर चाल चलन सभ्यता पूर्वक होती है । सफलता उनके कदम चूमती है । और अपने चेहरे तथा चलन से वे सहज ही सबको सत्यता की सभ्यता का अनुभव करवाने वाली श्रेष्ठ आत्मा बन जाते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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