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❍ 16 / 09 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ अविनाशी ड्रामा के राज़ को बुधी में रख किसी को दोषी तो नहीं बनाया ?
➢➢ डबल अहिंसक बनने के लिए किसी पर क्रोध तो नहीं किया ?
➢➢ विकारों का दान दे सर्व गुण संपन्न बनने का पुरुषार्थ किया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ सच्चाई सफाई की धारणा द्वारा समीपता का अनुभव किया ?
➢➢ बिगड़े हुए को सुधारने की सेवा की ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ स्वयं को √मेहमान√ समझ महान स्थिति में स्थित रहे ?
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - इस अंतिम जन्म में गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र बनो एक बाप को याद करो यही गुप्त मेहनत है"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे... इस समय जबकि ईश्वर पिता सम्मुख है... तो इस अंतिम जन्म में पवित्रता को धारण करो... भले गृहस्थ में रहो पर कमल समान पवित्रता से महकते रहो... और निरन्तर मीठे पिता की यादो में मगन रहो... भीतर ही भीतर यह याद का पुरुषार्थ करो....
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा आपकी यादो में खो चली हूँ... गृहस्थ को पवित्रता से सम्भाल कर निरन्तर निखर रही हूँ... आपकी यादो में डूबने का गुप्त पुरुषार्थ कर रही हूँ... एक बाबा दूसरा न कोई में मगन हो चली हूँ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... सारे संसार को चाहकर तो देख लिया... खुद को अपवित्र बनाकर दुखी होकर भी तो देख लिया... अब ईश्वर पिता की यादो में डूबकर देखो जरा... पवित्रता को बाँहों में भरकर सज संवर कर देखो जरा... यही यादे सुखो के सुनहरे संसार की सैर कराएगी...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपके बिना कितना भटक रही थी... दुखो के जंजालों को सत्य समझ फंस पड़ी थी... आपने आकर बाबा मुझ पत्थर बुद्धि का उद्धार किया है... मुझे पवित्रता का सुन्दरतम श्रंगार दिया है...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... विकारो की अपवित्रता से निकल कमल सी सुंदरता लिए पवित्र जीवन को जीओ... सबसे बुद्धि को निकाल एक पिता में सर्व सुखो का सुख लो... यह गुप्त मेहनत आनंद की दुनिया का सुख दिलाएगी... और देवताई स्वरूप में सजाकर विश्व का मालिक बनाएगी...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो में खो चली हूँ... गृहस्थ में रहते हुए सम्पूर्ण पावन बन रही हूँ... आपकी यादो में सुंदर दिव्य गुणो से सज रही हूँ... और देवता बन मुस्करा उठी हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - पुरुषोत्तम बनने का पुरुषार्थ करना"
➳ _ ➳ स्वयं को भृकुटि के बीचोबीच एक चमकता सितारा देखें... जिसकी रोशनी चहुं ओर फैल रही है... मैं आत्मा मूल रुप से पवित्र हूं... मैं इस देह से न्यारी हूं... मैं इस देह को चलाने वाली चैतन्य शक्ति हूं... मन बुद्धि की अधिकारी हूं... सभी कर्मेन्द्रियां मेरी कर्मचारी हैं... मेरे असली स्वरुप की स्मृति प्यारे शिव पिता ने ही दिलाई है... असली स्वरुप की विस्मृति होने से अभी तक लौकिक जीवन में ना जाने कितने पाप कर्म होते रहे हैं... देहभान के कारण हमेशा दूसरों में भी गल्तियां, कमियां देखती रही हूं... नासमझ होने के कारण भगवान को ही दोषी ठहराती रही हूं... इस संगमयुग स्वयं परमपिता परमात्मा सच्चा ज्ञान सुना रहे है... मुझ आत्मा को सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान सुना रहे है... प्यारे बाबा ने तीनों बिंदुओं का मैं आत्मा बिंदु, बाबा बिंदु, ड्रामा बिंदु का ज्ञान दिया है... अब मैं स्वयं को आत्मा समझ सर्व के प्रति आत्मिक भाव रखती हूं... अपने को आत्मा समझ परमात्मा बाप को याद करती हूं... ड्रामा एक्यूरेट है... अविनाशी है... कल्याणकारी है... सेकेंड बाइ सेकेंड हुबहू रिपीट हो रहा है... सब अपना अपना हीरो पार्ट निभा रहे हैं... जो भी हो रहा है वो अच्छा ही हो रहा है... हर बात में कल्याण समाया है... मुझ आत्मा का पिछले जन्मों का किया ही मेरे सामने आ रहा है... हिसाब किताब चुकतू हो रहा है... मैं आत्मा ड्रामा के राज को अच्छी रीति समझ गई हूं... मैं आत्मा अब अपना हिसाब किताब समझ खुशी से चुकतू कर रही हूं... किसी को दोष नही दे रही हूं... इस संगमयुग पर एक बाप की याद में रह पदमों की कमाई कर रही हूं... इस अनमोल पुरुषोत्तम युग में स्वयं परमात्मा मुझ आत्मा को पढ़ाकर नर से नारायण बना रहे हैं... इस अंतिम समय में मुझ आत्मा को अच्छी रीति पढ़कर ऊंच पद पाने का पुरुषार्थ करना है... पूरा वर्सा लेने का पुरुषार्थ करना है...
❉ "ड्रिल - विकारों का दान दे सर्वगुण सम्पन्न बनने का पुरुषार्थ करना"
➳ _ ➳ मन में व्यर्थ संकल्पों का तूफान उठ रहा है... चारों ओर का तमोप्रधान वातावरण आकर्षित कर रहा है... किसी की भावनाओं के लिए दिल में कोई जगह नही हैं... बस अपना स्वार्थ ही दिखाई दे रहा है... विकारों में धंसते चले जा रहे हैं... मार-दाड़ करके हिंसा करके बस लूटपाट करके धन इकठ्ठा कर रहे हैं... विकारों और दुखों की अति हो चुकी है... ऐसे नेगेटिव व तमोप्रधान वातावरण में मेरा हाथ परमात्मा ने पकड़ा है... मुझ आत्मा को ज्ञान का तीसरा नेत्र मिल गया है... मुझ आत्मा की बुद्धि का ताला खुल गया है... मुझ आत्मा ने अपनी कमी, कमजोरियां और सब विकार बाबा को दे दिए हैं... मैं आत्मा योगबल से माया रावण पर जीत पा रही हूं... एक बाप की याद में रह विकारों की खाद निकालती जा रही हूं... आत्मा पर चढ़ी कालिख साफ होती जा रही है... आत्मा शुद्ध और पवित्र बनती जा रही है... मैं आत्मा हिंसक से अहिंसक बनती जा रही हूं... मैं आत्मा सर्व के प्रति आत्मिक भाव रखती हूं... आत्मिक भाव होने से रुहानी प्यार रहता है... मैं आत्मा कोध्र रुपी भूत को छोड़ चुकी हूं... मैं आत्मा डबल अहिंसक हूं... जैसे कहते हैं कि दे दान तो छूटे ग्रहण... ऐसे मैं आत्मा विकारों का दान दे चुकी हूं... मैं सांवरे से गोरी बनती जा रही हूं... स्वयं परमात्मा मुझ आत्मा को पढ़ाकर विश्व की राजाईदे रहे हैं... तो मैं आत्मा विश्व की राजाई प्राप्त करने के लिए सर्वगुण सम्पन्न बनने का पुरुषार्थ कर रही हूं...
❉ "ड्रिल - बिगड़ी को सुधारना"
➳ _ ➳ मैं ऊंच ते ऊंच सर्वशक्तिमान शिव पिता की संतान हूं... हाइऐस्ट सुप्रीम अथॉरिटी की सन्तान हूँ... मेरे परमपिता अपने बच्चों की सेवा के लिए ऐवररेडी है... शिव पिता समान मेरा भी काम है... बाप का राईट हैण्ड बन बिगड़ी को सुधारना... देह भान में आकर विकर्म करते करते बिगड़ गए... पर बाबा ने आकर हमे सच्चा सच्चा ज्ञान सुना आत्मिक स्मृति दिलाई है... यह अनुपम अविनाशी पाकर ज्ञान रत्नों से संगम पर झोली भर रहे हैं... इन ज्ञान रत्नों को धारण कर ही बुद्धि सदबुद्धि बन रही है... यह ज्ञान धारण कर ही बिगड़ा हुआ सुधर रहे है... तो मैं यह ज्ञान रत्न दान कर के यह सेवा का कार्य कर सहयोगी बन रही हूँ... बाबा का संग पाकर अपने को निमित्त समझ मैं आत्मा स्व परिवर्तन कर वृत्ति कृत्ति से वातावरण में शुद्ध व सकारात्मक चिंतन के वायब्रेशनस फैला रही हूं... जैसी वृति होती है वैसी ही कृति होती है... आत्मिक भाव होने से मैं आत्मा सर्व के प्रति शुभ भावना शुभ कामना रखती हूं... बाबा से सर्वशक्तियों व खजानों से सम्पन्न होकर सर्व के प्रति सहयोग और स्नेह की भावना से कडे स्वभाव वाली आत्मा भी परिवर्तित हो रही है...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं आत्मा सम्पूर्णमूर्त हूँ ।"
➳ _ ➳ आराम से योगयुक्त स्तिथि में स्तिथ होकर श्रेष्ठ संकल्पों की रचना करें... परमपिता परमात्मा शिव बाबा ने मुझे सर्व खजाने, सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न बना दिया है... बाबा से मिली सर्व खजानो और सर्व प्राप्तियों की अथॉरिटी से मैं आत्मा सिद्धि स्वरूप बन हर कार्य में सफलता प्राप्त करती जाती हूँ...
➳ _ ➳ नॉलेज की चाबी द्वारा मैं जितना चाहे उतना अपने श्रेष्ठ भाग्य का खजाना जमा कर सकती हूँ... बाप के गुणों वा अपने आदि स्वरूप के गुणों का अनुभव कर मैं सम्पूर्ण मूर्त आत्मा बन रही हूँ... सच्चाई और सफाई मुझ आत्मा के आदि संस्कार हैं... मैं आत्मा इन दोनों गुणों का स्वरुप बनने का अनुभव कर रहीं हूँ...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा के दिल में सर्व के प्रति एकदम स्वच्छ वा शुद्ध भावनाएं विद्यमान हैं... जैसे साफ़ चीज़ में सब कुछ स्पष्ट दिखाई देता है... वैसे ही मुझ आत्मा में एक दो की भावना, भाव-स्वभाव स्पष्ट दिखाई दे रहें हैं... सच्चाई और सफाई की यह दिव्य धारणा मुझ लक्की सितारे को स्वतः ही अपने दिलाराम बाबा के समीप ले जा रही है...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा के मन में विराजमान दिव्य गुणों का मैं आत्मा स्वरुप बनती जा रहीं हूँ... अपने दिव्य संकल्प, बोल, कर्म और स्वभाव द्वारा मैं आत्मा सबके समीप रहने वाली सम्पूर्णमूर्त आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ सचाई-सफाई की धारणा द्वारा समीपता का अनुभव करने वाले सम्पूर्णमूर्त होते हैं... क्यों और कैसे?
❉ सच्चाई-सफाई की धारणा द्वारा समीपता का अनुभव करने वाले सम्पूर्णमूर्त होते हैं क्योंकि सभी धारणाओं में मुख्य धारणा है सच्चाई और सफाई। जितनी हम अपने मन में सच्चाई और सफाई रखेंगे उतना ही अपने को पिता के करीब महसूस करेंगे।
❉ हमारे मन में एक दूसरे के प्रति बिलकुल सच्चाई और सफाई रहनी चाहिये। कहते भी हैं ना सच्चे दिल पर साहेब राजी है। बाबा को सरल हृदय पसन्द है। इसलिये! अगर हमें बाबा का प्रेम चाहिये तो अपने मन को सुमन बना लेना है। निर्मल बना लेना है क्योंकि निर्मल जल सबको भाता है।
❉ जब हमारा मन इतना निर्मल बन जायेगा, तब इस प्रकार का अनुभव होगा... जिस प्रकार से एक साफ चीज़ में सब कुछ स्पष्ट दिखाई देता है। उसी प्रकार से एक दूसरे की भावनायें व भाव-स्वभाव भी हमें स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं। इसलिये!
❉ जितनी ज्यादा हमारी आंतरिक स्वच्छता व सरलता बढ़ती जायेगी उतनी ही हमारी व परमात्मा की समीपता भी बढ़ती जायेगी, क्योंकि जहाँ सच्चाई व सफाई है वहाँ समीपता भी है। अतः हमें सदा अपने मन को साफ व स्वच्छ रखना है।
❉ जिस प्रकार से हम बापदादा के समीप हैं, उसी प्रकार से हमारी सभी आत्मा भाई व बहनों की आपस में भी दिल की समीपता होनी चाहिये। अतः हमारे बीच से स्वभाव की भिन्नता समाप्त हो जानी चाहिये। इसके लिये मन के भाव और स्वभाव को मिलाना है। तब स्वभाव में कोई भी फर्क नहीं दिखाई देगा और हम सम्पूर्णमूर्त भी कहलायेंगे।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ बिगड़े हुए को सुधारना यह सबसे बड़ी सेवा है... क्यों और कैसे ?
❉ भक्ति में गाते हैं " भोलेनाथ से निराला कोई और नही, बिगड़ी को बनाने वाला कोई और नही " अर्थात सिवाय परमात्मा के और कोई बिगड़ी को बना नही सकता । लेकिन परमपिता परमात्मा बाप के हम बच्चे भी बाप समान सर्व आत्माओं की बिगड़ी को बनाने वाले हैं । स्वयं परमात्मा बाप ने हम बच्चों को मास्टर भगवान का टाइटल दिया है । इसलिए जितना स्वयं को इस स्वमान की सीट पर सेट रखेंगे बिगड़े हुए को सुधारने की सेवा कर सकेंगे जो सबसे बड़ी सेवा है ।
❉ रावण की मत पर चलने के कारण आज सभी का जीवन बिगड़ा हुआ है । केवल और केवल एक परमपिता परमात्मा बाप की श्रेष्ठ मत ही सबके बिगड़े हुए जीवन को सुधार सकती है । जो बाबा की श्रेष्ठ मत पर चल कर स्वयं को बाप समान बनाने का पुरुषार्थ करते हैं वे बाबा के मददगार बन अनेको आत्माओं के बिगड़े हुए जीवन को सुधार कर उन्हें भी आप समान बनाने का प्रयास करते हैं । यही सबसे बड़ी सेवा है जो उन्हें बाबा के दिल तख़्त पर सदा विराजमान रखती है ।
❉ जैसे उपकारी पर उपकार करना कोई बहुत बड़ी महानता की बात नही है । महान तो वह है जो अपकारी पर भी उपकार करते हैं । प्रशंसा करने वाले के साथ तो हर कोई अच्छा व्यवाहर कर सकता है किन्तु जो हमारे निंदक है, हमारी ग्लानि करते हैं उन्हें अपनी शुभ भावना - शुभ कामना से परिवर्तन कर देना यह है महान आत्मा की निशानी । जो बिगड़े हुए को भी अपनी शुभ चिंतक वृति से सुधार कर उसे आप समान बना दे यही सबसे बड़ी सेवा है ।
❉ जैसे भगवान करुणा के सागर है । इसलिए सर्व आत्माओं के प्रति सदैव रहम और दया का भाव रखते हैं । गाली देने वाले को भी गले लगाते हैं । इसी प्रकार जो बाप समान रहमदिल बनते है और अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं के प्रति दया का भाव रखते हैं । किसी के गलत व्यवाहर को देख कर भी उसके प्रति मन में घृणा भाव नही लाते बल्कि अपने प्रेमपूर्ण व्हवाहर से बिगड़े हुए को भी सुधार देते हैं वही सच्चे सेवाधारी कहलाते हैं ।
❉ बिगड़े हुए को सुधारने की सेवा वही कर सकते हैं जो मास्टर त्रिकालदर्शी बन तीनो कालों को ध्यान में रख हर कर्म करते हैं । तीनो कालो को स्मृति में रख हर कर्म करने से किसी के भी गलत व्यवाहर को देख कर उनके मन में कभी भी यह प्रश्न नही उठता कि यह ऐसे क्यों । सबके अच्छे और बुरे व्यवाहर को वे साक्षी हो कर देखते हैं और सर्व के प्रति कल्याणकारी वृति रखते हुए बिगड़े हुए को भी सुधार देते हैं । यही सबसे बड़ी और महान सेवा है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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