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   27 / 01 / 16  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ "यह °विनाश भी शुभ कार्य° के लिए है" - यह स्मृति में रख डर से दूर रहे ?

 

‖✓‖ "°कल्याणकारी बाप° सदा कल्याण का ही कार्य कराते है" - इस स्मृति से सदा खुश रहे ?

 

‖✓‖ "°सतोप्रधान सच्चा सोना° बन ऊंच पद पाना है" - यही एक ही फुरना रखा ?

 

‖✓‖ °वंडरफुल क्लास° की महिमा स्मृति में रही ?

 

‖✓‖ जो °रूहानी भोजन° मिला, उस ऊगारा ?

 

‖✓‖ °दृष्टि वृत्ति में भी पवित्रता° को अंडरलाइन कर वानप्रस्थ अवस्था में जाने का पुरुषार्थ किया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ शरीर को ईश्वरीय सेवा के लिए °अमानत° समझ कार्य में लगाया ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ बुधी रुपी विमान में रूहानी नशे और ख़ुशी के डबल रीफईन पेट्रोल द्वारा °तीनो लोकों की सैर° की ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं आत्मा नष्टोमोहा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   शरीर को ईश्वरीय सेवा के लिए अमानत समझ कर कार्य में लगाने वाली मैं नष्टोमोहा आत्मा हूँ ।

 

 ❉   निमितपन की स्मृति द्वारा स्वयं को प्रभु अर्पण कर मैं ईश्वरीय सेवा में सदैव तत्पर रहती हूँ ।

 

 ❉   स्वयं को बाप की अमानत समझ स्वयं से ममत्व निकाल एक बाप की लग्न में मगन रहने वाली मैं रूहानियत से भरपूर आत्मा हूँ ।

 

 ❉   अपनी रूहानियत की खुशबू से मैं सर्व आत्माओं को रूहानियत से महकाती जाती हूँ ।

 

 ❉   देह और देह के सर्व सम्बन्धों से मोह निकाल कर मैं सहज ही नष्टोमोहा, निरन्तर योगी बनती जाती हूँ ।

 

 ❉   अपनी देह से, मित्र सम्बंधियो से मुझे अब किसी तरह का कोई लगाव नहीं है ।

 

 ❉   सर्व संबंधो का सुख एक बाप से अनुभव कर मैं सर्व सुखों की अधिकारी बनती जा रही हूँ ।

 

 ❉   अपने सच्चे साथी के संग में मैं सहज ही सर्व से न्यारी और प्यारी बनती जा रही हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - तुम जो भी कर्म करते हो उसका फल अवश्य मिलता है, निष्काम सेवा तो केवल एक बाप ही करते हैं"

 

 ❉   यह सृष्टि एक बहुत बड़ा कर्म क्षेत्र हैं जहां हर आत्मा को शरीर धारण कर कर्म करना ही है ।

 

 ❉   वास्तव में इस सृष्टि रंग मंच पर शरीर धारण कर पार्ट बजाने के लिए ही हम आत्माएं अपने स्वीट साइलेन्स होम अर्थात परमधाम से आती हैं ।

 

 ❉   शरीर का आधार ले कर हम आत्माएं अच्छा या बुरा जैसा कर्म करती है उसका वैसा ही अच्छा या बुरा फल हमे प्राप्त होता है ।

 

 ❉   क्योकि हर मनुष्य आत्मा द्वारा किये हुए हर कर्म में अच्छी या बुरी भावना समाई होती है ।

 

 ❉   केवल एक परम पिता परमात्मा बाप ही ऐसे हैं जो निष्काम सेवा करते हैं । बाप आते ही है हम आत्माओं का कल्याण करने ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ सदा एक ही फुरना रखना है कि सतोप्रधान सच्चा सोना बन ऊंच पद पाना है । जो रुहानी भोजन मिलता है उसे उगारना है ।

 

  ❉   लौकिक में भी किसी बच्चे का उद्देश्य होता है कि मुझे फर्स्ट आना है तो उसे प्राप्त करने के लिए फुरना लगा रहता है ऐसे ही हमें भी जब सुप्रीम टीचर हमें पढाता है तो हमें भी सतोप्रधान बन ऊंच पद पाने का फुरना रखना है ।

 

  ❉   जैसे शुद्ध सोना बनाने के लिए उसे पकाकर उसकी एलाय निकाली जाती है ऐसे ही आत्मा को सतोप्रधान बनाने के लिए योगग्नि से विकारों की कट उतारनी है व ऊंच पद पाना है ।

 

  ❉   जब बाप कहते ही है कि मैं अपने बच्चों को पावन बनाकर नयी दुनिया में ले जाने के लिए व स्वर्ग की बादशाही देने के लिए आया हूं तो हमें कितना नशा होना चाहिए! परमपिता परमात्मा जो सबसे बडा सुनार है उसकी लगन में मगन होकर याद की यात्रा में रहते हुए अपने को पावन बनाना है ।

 

  ❉   जैसे शरीर के लिए भोजन.की जरुरत होती है फिर उसे पचाने के लिए कार्य करते है तभी वो पोषक बनता है इसी तरह रुह का भोजन का भोजन बाबा हमें प्रतिदिन देते हैं उसे अच्छी रीति धारण कर ओरों को सुनाना है ।

 

  ❉   ज्ञान मुरली आत्मा का भोजन है व हम ब्राह्मण बच्चों के जीवन का आधार है । बाप स्वयं सुप्रीम टीचर बन जो अविनाशी ज्ञान रत्नों से झोली भरते है उन्हेंस्वयं धारण कर ज्ञान दान करना है ।

 

  ❉   जब बाप स्वयं कहते हैं कि मैं अपने बच्चों के सिर पर ताज देखता हूं आप ही विश्व के महाराजन हो तो ऊंच पद तभी मिलेगा जब अच्छी रीति ज्ञानरत्नों को धारण कर दूसरों को ज्ञान धन बांटेंगे गुणों का दान करेंगे ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ शरीर को ईश्वरीय सेवा के लिए अमानत समझकर कार्य में लगाने वाले नष्टोमोहा कहलाते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   यह हमारा अंतिम जन्म मरजीवा जन्म है, हमारा जो लोकीक जन्म था वो तो समाप्त हो चूका है अब यह अलोकिक जन्म बापदादा ने हमें दिया है तो इस जन्म का सबकुछ बापदादा की अमानत है।

 

 ❉   मीठे बाबा ने हमें बहुत श्रेष्ठ मन, बुद्धि दी, स्वस्थ शरीर दिया, तन, मन, धन, सर्व सुख, सुविधा प्राप्तियाँ कराई तो जिसने दिया उसी के कार्य में लगाना है। हम भक्ति में भी कहते आये "मेरा क्या लागे तेरा तुझको अर्पण"।

 

 ❉   यह शरीर इश्वर की अमानत है, ईश्वरीय सेवा में हमें अपना तन मन धन सब कुछ समर्पण कर देना है, सब मेरे को एक तेरे में परिवर्तन कर देना है।

 

 ❉   मन बुद्धि से सब कुछ अर्पण करना ही सम्पूर्ण समर्पण है। बाबा हमसे कोई लेता नहीं है, बस हमें अपनेपन या मेरेपन की जगह उसमे निमित्त व ट्रस्टी हु यह दृष्टि वृत्ति होनी चाहिए।

 

 ❉   जब तक यह शरीर है जितना हो सके इसे ईश्वरीय सेवा अर्थ लगाना है, क्युकी सिर्फ यही एक जन्म है जिसमे हम इश्वर के मददगार बन सकते है, अगर यह शरीर छुट जाये तो अगले जन्म में फिर बच्चा बनकर कोई सेवा नहीं कर सकेंगे।

 

 ❉   यह हमारा अंतिम बहुत वैल्युएबल शरीर है, इस द्वारा हमने भगवान को जाना, देखा, सुना, अनुभव किया तो इस शरीर को जितना हो सके ईश्वरीय सेवा में झोक दो जिसको बाबा कहते हड्डी सेवा करो।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ वानप्रस्थ स्थिति में जाना है तो दृष्टि - वृति में भी पवित्रता को अंडरलाइन करो... क्यों ?

 

 ❉   जैसे जैसे दृष्टि - वृति में पवित्रता आती जायेगी वैसे वैसे विनाशी दुनिया और दुनियावी पदार्थो से उपराम होते जाएंगे और वानप्रस्थ स्थिति के अनुभवी बनते जायेंगे ।

 

 ❉   दृष्टि - वृति में पवित्रता का बल आत्मिक उन्नति में सहायक बन कर आत्मा को बलशाली बना देगा जिससे दुनियावी पदार्थो से मोहजीत बन वानप्रस्थ स्थिति में स्थित होते जायेंगे ।

 

 ❉   पवित्रता का बल दृष्टि - वृति को भी पावन बना कर मन बुद्धि की लाइन को क्लीयर कर देगा जिससे सर्वशक्तिमान बाप से प्राप्त सर्व शक्तियों, गुणों और खजानों से आत्मा सम्पन्न बनकर बेहद की वैराग्य वृति को धारण कर वानप्रस्थ स्थिति में स्थित होती जायेगी ।

 

 ❉   जैसे जैसे दृष्टि - वृति पावन बनती जायेगी वैसे वैसे आत्मा सर्व सम्बन्धो का अनुभव एक बाप से करते हुए अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलती रहेगी और सहज ही इन्द्रियों के आकर्षण से मुक्त हो वानप्रस्थ अवस्था को प्राप्त करती जायेगी ।

 

 ❉   दृष्टि - वृति में जैसे जैसे पवित्रता आती जायेगी वैसे वैसे इस पतित विकारी दुनिया, दुनियावी सम्बन्धो और पदार्थो के प्रति अनासक्ति बढ़ती जायेगी और यह अनासक्त वृति वानप्रस्थ स्थिति का अनुभवी बना देगी ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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