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❍ 02 / 09 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ बाप समान रहम दिल, √दुःख हर्ता सुख कर्ता√ बनकर रहे ?
➢➢ ×संगदोष× से अपनी बहुत बहुत संभाल की ?
➢➢ कभी अहंकार में आकर ×मियाँ मिठू× तो नहीं बने ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ कर्म द्वारा √गुणों का दान√ किया ?
➢➢ √सेवा में सफलता√ का सितारा बनकर रहे ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ अपने भिन्न भिन्न √पूज्य स्वरुप√ की स्मृतियों में स्थित रहे ?
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - अपना सच्चा सच्चा चार्ट रखो तो अवस्था अच्छी रहेगी, चार्ट रखने से कल्याण होता रहेगा"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... हर हर घड़ी स्वयं की स्वयं पर नजर रखो... हर पल अपनी चेंकिंग करो की किसी व्यर्थ चिंतन या बातो में तो वक्त नही बीत रहा... ऐसे सच्चाई से अपनी अवस्था की जाँच का चार्ट रखेंगे... तो पुरुषार्थ में तीव्रता आती जायेगी...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा आपकी मीठी यादो में सच्चा चार्ट रख खुद के कल्याण में जुट गयी हूँ... निरन्तर ऊंचाइयों की ओर अग्रसर हो रही हूँ... अपना महान भाग्य बना रही हूँ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... यह संगम युग का समय महान समय है... इस वरदानी समय पर जितना चाहे उतना महान भाग्य बना सकते हो... इसलिए अपनी उन्नति का ख्याल करो... हर घड़ी का ध्यान रख पुरुषार्थ में ऊंचाइयों को पाओ... हर बात सच्चाई से बाबा को बताओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा जीवन को सुंदर बनाने वाले संगम को पहचान चली हूँ... और अपने पुरुषार्थ पर गहराई से नजर रख सच्चा चार्ट रख रही हूँ... हर बात बाबा को बता रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे...इस समय ईश्वर पिता सम्मुख है खूबसूरत चढ़ती कला का युग है तो निरन्तर याद में डूब जाओ... सच्चा चार्ट रख कर अपनी जाँच करो... सारी कमियो को दूर कर शक्तिशाली बन चलो... याद का चार्ट रखने से बहुत फायदा है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा इस मीठे समय में कि प्यारा बाबा मेरे साथ है... गहन पुरुषार्थ को लक्ष्य बना चली हूँ... हर पल का पोतामेल प्यारे बाबा को... देकर और ऊंचाइयों को पाती जा रही हूँ
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - रहमदिल बन सुख देना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा ज्योति बिंदु हूं... मुझ आत्मा के पिता भी सुप्रीम बिंदु हैं.. तेजोमय है... अनन्त प्रकाश की किरणें चहुं ओर फैल रही हैं... और मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं... मुझ आत्मा के विकार जलकर भस्म हो रहे हैं... विकारों रुपी कालिख उतरती जा रही है... मुझ आत्मा की चमक बढ़ती जा रही है... अज्ञानता रुपी अंधियारा मिटता जा रहा है... मुझ आत्मा के पिता शिव बाबा से अपने बच्चों को दुखी देखकर रहा नही गया... अपने बच्चों को दुःख तकलीफ में व भटकता हुआ देखना प्यार के सागर बाप के लिए कहां सम्भव था... स्वयं अपने बच्चों को इस रौरव नरक से निकाल नयी दुनिया में ले जाने के लिए आए हैं... सर्वशक्तिमान प्यारे प्यारे मीठे बाबा ने सर्वशक्तियों, सर्व गुणों, सर्व खजानों से मुझ आत्माओं को सम्पन्न बना दिया... जैसे बाबा ने कभी किसी की गलती न देख सब पर रहम किया... सब को अपनी गोदी में बिठाया... सब को एक जैसा ज्ञान दिया... दुखी और पतित बच्चों को देख इस पतित दुनिया में आए... दुःख की दुनिया से निकाल सुख शांति से भरपूर करते हैं... मैं आत्मा अब स्वार्थ की भावना छोड़ सब के प्रति निस्वार्थ भाव रख प्यार देती हूं... मैं सुख के सागर प्यारे मीठे बाबा की संतान मैं मास्टर सुख सागर हूं... मैं आत्मा अब दुःखी अशांत आत्माओं पर रहम करती हूं... मैं आत्मा हर आत्मा के प्रति शुभ भावना रखती हूं... मैं आत्मा अब दुःखी आत्मा को देख दुखी न होकर सुख की वायब्रेशनस दे रही हूं... मैं आत्मा अपने शिव पिता समान रहमदिल बनती जा रही हूं...
❉ "ड्रिल - संग दोष से मुक्त रह कल्याणकारी बनना"
➳ _ ➳ मैं देह नही देही हूं... भृकुटी के बीचोबीच चमकती मणि हूं... अजर हूं... अविनाशी हूं... हम सब आत्माओं के परमपिता परमात्मा शिव बाबा है है... ये सत का ज्ञान मुझ आत्मा को मेरे प्यारे बाबा ने दिया... इस संगमयुग पर ही मुझे सत का संग मिला... सत्य को पहचाना... मैं आत्मा बस सत का संग करती हूं... मुझ आत्मा पर संग का रंग चढ़ गया है... मुझ आत्मा की एक सच्चे माशूक से प्रीत है... मैं आत्मा एक की लगन में मगन हूं... मुझ आत्मा को अब मायावी दुनिया का आकर्षण प्रभावित नही करता... मैं आत्मा संग दोष से अपनी सम्भाल करती हूं... मैं आत्मा प्यारे बाबा संग ही उठती हूं... बैठती हूं... खाती हूं... मेरे प्यारे बाबा जैसे मुझे चलावे वैसी चलती हूं... बुद्धि का कनेक्शन बाबा से ही जुड़ा रहता है... प्यारे बाबा से सच्चे दिल से स्नेह होने से मैं आत्मा अच्छे बुरे की टचिंग सहज ही अनुभव करती हूं... मैं आत्मा बस एक प्यारे बाबा की श्रेष्ठ मत पर ही चलती हूं... श्रेष्ठाचारी बनती हूं... मैं आत्मा सम्बंध सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को सच्चा ज्ञान सुना सत का मार्ग बताती हूं... गति सदगति का मार्ग बताती हूं... मैं आत्मा स्व का परिवर्तन कर विश्व परिवर्तक के कार्य के निमित्त हूं... करनकरावनहार तो बस बाबा है... मैं आत्मा सदैव रुहानी सर्विस के लिए तत्पर रहती हूं... मैं आत्मा मान शान से दूर रहती हूं... मुझ आत्मा का हर संकल्प, कर्म, बोल बस बाबा के लिए होता है... मैं आत्मा हर कर्म व उसका फल प्यारे बाबा को अर्पण करती हूं... मैं आत्मा निंरहकारी होकर कर्म करती हूं....
❉ "ड्रिल - सफलतामूर्त बनना"
➳ _ ➳ कोटो में कोई व कोई मे से भी कोई स्वयं भगवान ने मुझे अपना बनाया है... हे आत्मन् - सोचो कितने भाग्यवान हो... स्वयं भगवान आप के साथ है... बाबा का बच्चा बनते ही स्वयं भगवान ने वरदान दिया है... सफलता तुम्हारा जन्मसिद्ध अधिकार है... भगवान ने स्वयं अपनी गोद में बिठाया है... भगवान रोज स्वयं मुझ आत्मा को निहारते हैं... मुझ आत्मा को नजरों से निहाल कर रहे हैं... मुझ आत्मा को विजयी रत्न, मास्टर सर्वशक्तिमान कहकर पुकारते हैं... मेरे सिर पर अपना वरदानी हाथ रख मुझे वरदानों से भरपूर कर रहे हैं... मुझ आत्मा को ऊंच ते ऊंच स्वमान की सीट पर बिठाते हैं... स्वयं भगवान ने इस संगमयुग पर भाग्य लिखने की कलम मुझ आत्मा को दी है... मैं आत्मा जितना भाग्य बनाना चाहूं बना सकती हूं... स्वयं भगवान मुझ पर मेहरबान हुआ है... मेरा प्यारा मीठा बाबा हजार भुजाओं सहित मुझ आत्मा की मदद करने को तैयार है... स्वयं भगवान जिसकी मुझ आत्मा को हजारो वर्षो से इंतजार थी... प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को वो सब दिया जो मैं आत्मा भक्ति में उससे मांगती आई... उस परमपिता परमात्मा ने स्वयं मुझे अपने कार्य मे मददगार बनाया... मैं आत्मा प्यारे बाबा से हुई सर्व प्राप्तियों को स्मृति में रखते हुए रुहानी नशे में रहती हूं... मैं तो बस अपने को निमित्त समझती हूं... करनकरावनहार बस बाबा है... कराने वाला करा रहा है करनहार मैं किए जा रही बस... मैं आत्मा हर सेवा में सदैव बाबा को साथ रख सफलतामूर्त बनती हूं... प्यारे बाबा की छत्रछाया होने से मैं आत्मा कभी अपने को कमजोर अनुभव नही करती...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं डबल लाइट फरिश्ता मूर्त हूँ ।"
➳ _ ➳ मैं ब्राह्मण आत्मा हूँ... श्रेष्ठ आत्मा हूँ... मैं विशेष आत्मा हूँ... यह मुझ आत्मा का नया जन्म है... मैं इस पुरानी दुनिया में होते हुए भी निंदा-स्तुति, जय-पराजय, मान-शान से परे हूँ... प्यारे बाबा ही मुझ आत्मा को सुप्रीम शिक्षक बन पढ़ाते हैं...
➳ _ ➳ मनुष्य से ब्राह्मण और ब्राह्मण से देवता बनाने के लिए पढ़ाते है... मैं आत्मा विश्व की बादशाही व ऊंच पद पाने के लिए पुरुषार्थ करती हूँ... मैं आत्मा अटेंशन रखती हूँ कि मुझ से कोई भी कर्म ऐसा न हो जिससे ब्राह्मण कुल का नाम खराब हो...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा की याद में रह श्रेष्ठ कर्म करती हूँ... मैं कर्मणा द्वारा गुणों का दान करने वाली महादानी आत्मा हूँ... मैं आत्मा अपने सर्व बाझ बाप को देकर अपने हर कर्म में बाप की मदद की महसूसता करने वाली बेफिक्र बादशाह हूँ... मुझ आत्मा के साथ यह एहसास हर पल रहता है कि बाबा की शक्ति, उनका आशीर्वाद और उनका वरदानी हाथ सदा ही मेरे संग है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा इन सर्वश्रेष्ठ संकल्पों को महसूस कर बहुत ही हल्का वा प्रकाशमय स्तिथि का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा डबल लाइट फ़रिश्ते की स्थिति में स्थित होने का दिव्य अनुभव कर रहीं हूँ और विश्व की सर्व आत्माओं को भी अपनी इस श्रेष्ठ स्थिति का अनुभव करवा रहीं हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ कर्म द्वारा गुणों का दान करने वाले डबल लाइट फरिश्ता मूर्त होते हैं... क्यों और कैसे?
❉ कर्म द्वारा गुणों का दान करने वाले डबल लाइट फरिश्ता मूर्त होते हैं क्योंकि जो बच्चे कर्मणा द्वारा गुणों का दान करते हैं उनकी चलन और चेहरा दोनों ही फ़रिश्ते की तरह दिखाई देते हैं। उनकी चाल से फ़रिश्ते की अनुभूति होती है तथा उनकी चलन से रॉयल्टी नजर आती है।
❉ वे डबल लाइट अर्थात प्रकाशमय और हल्केपन की अनुभूति करते हैं। उन के प्रत्येक अंग से निरन्तर प्रकाश की किरणें फैलती रहती हैं। ये किरणें इन स्थूल नेत्रों से दिखाई नहीं देती हैं। इन किरणों को केवल महसूस ही किया जा सकता है।
❉ उन्हें कोई भी बोझ महसूस नहीं होता है। वे इतने हल्के होते हैं कि उनको किसी भी प्रकार के बोझ की महसूसता तनिक भी नहीं होती है। मानो कि... उनके सारे बोझ बाबा ने ले लिये हों। ये फ़रिश्ते अपने कर्मो के द्वारा अपनी आत्मा के सतोगुणी स्वरूप को संसार के समक्ष उजागर करते हैं।
❉ जिस प्रकार उन्हें किसी भी प्रकार के बोझ की अनुभूति नहीं होती है, उसी प्रकार वे अपने हर कर्म में मदद की महसूसता भी करते हैं। उनके द्वारा सर्व आत्माओं को सुख शान्ति प्रेम पवित्रता ज्ञान आनन्द और शक्तियों की तरंगों की अनुभूति निरन्तर होती रहती है।
❉ उनको ऐसा अनुभव होता है, जैसे कि... कोई महा शक्ति उनको चला रही है। हर कर्म द्वारा महादानी बनने के कारण उन्हें सर्व की आशीर्वाद वा सर्व के वरदानों की प्राप्ति का अनुभव होता है। वे डबल लाइट फ़रिश्ते लगातार चहुँ ओर अपने प्रकाश व गुणों के प्रकम्पन फैलाते रहते हैं।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ सेवा में सफलता का सितारा बनो, कमजोर नही... क्यों और कैसे ?
❉ जो स्व पुरुषार्थ और सेवा में बैलेंस रख कर सेवा के क्षेत्र में आते हैं वे सदा स्व उन्नति करते हुए सेवा में सहज ही सफलता को पा लेते हैं ।
स्व पुरुषार्थ और सेवा में बैलंस उन्हें सहज ही मायाजीत बना देता हैं । शक्तिशाली स्व स्थिति में स्थित हो कर सेवा करने से वे दूसरों के भाव - स्वभाव में आ कर कमजोर नही बनते बल्कि उनकी शक्तिशाली स्थिति उन्हें सेवा में सफलता का सितारा सहज ही बना देती है ।
❉ सेवा मे सफलता पाने का महामन्त्र है समर्पण भाव । जब सम्पूर्ण समर्पण भाव से स्वयं को केवल निमित मात्र समझ कर सेवा के क्षेत्र में आते हैं तो करनकरावन हार बाबा की मदद से सेवा में स्वत: ही सफलता प्राप्त होती है । " मैंने किया " का भाव सेवा को खण्डित करता है । किन्तु निमित भाव से मन में बस एक बाबा दूसरा ना कोई जब यह भाव रख कर सेवा करते हैं तो यह भाव ही सफलता का सितारा बना देता है ।
❉ दुयायें सेवा को आगे बढ़ाने और सेवा में सफलता पाने का मुख्य आधार हैं । दुयायें मिलती हैं निर्मान और निर्माण बनने से । इसलिए जो निमित और निर्मान भाव से निर्माणचित बन सेवा करते हैं वे सहज ही सर्व की ब्लैसिंग प्राप्त कर लेते हैं । मात पिता और सर्व आत्माओं की दुयायों से वे निरन्तर आगे बढ़ते हुए सेवा में सफलता प्राप्त कर लेते हैं । दुआयें ही पालना हैं जो उन्हें सफलता का सितारा बना देती है ।
❉ मनसा - वाचा - कर्मणा तीनो रूपों से की गई सेवा ही सफलता दिलाती है । क्योकि मनसा - वाचा - कर्मणा तीनो रूपो से जब सेवा करते हैं तो मेहनत से बच जाते हैं । संस्कारों की कमजोरी सेवा में मेहनत का अनुभव कराती है और सफलता से दूर ले जाती है । इसलिए बाबा कहते जब भी कोई सेवार्थ जाते हो तो पहले चेक करो कि स्व - स्थिति में स्थित हो कर जा रहे हैं, मन में कोई प्रकार की हलचल तो नही है ?
❉ डबल लाइट स्थिति में स्थित हो कर सेवा के विस्तार में जाते भी सार की स्थिति में स्थित रहने वाले ही सफलता का सितारा बन सकते हैं । सेवा के विस्तार में जाने से हद के नाम - मान और शान में फंस जाते हैं और सेवा में मिलने वाली प्राप्ति से वंचित रह जाते हैं । किन्तु विस्तार में भी सार की स्थिति में स्थित हो कर जब सेवा के क्षेत्र में आते हैं तो बेहद की दृष्टि, वृति और कृति सफलतामूर्त बना कर सेवा में सफलता पाने का आधार बन जाती है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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