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 18 / 09 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ हर सेकंड, हर संकल्प में बाप के साथ का, स्नेह का सहयोग का अनुभव किया ?

 

➢➢ अमृतवेले सहज ही स्वयं को चेक किया ?

 

➢➢ स्वयं को बाप के समान अर्थात समानता द्वारा समीपता में लाये ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ बापदादा से अनेक बार मिलन की अनुभूति स्पष्ट रूप से अनुभव की ?

 

➢➢ सदा आप और बाप कंबाइंड होकर रहे ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢ आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "विजय - माला में नम्बर का आधार"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे विजय माला में स्वयं को देखो... नम्बर वन में आने के लिए सदा बाप का हाथ और साथ पकड़े रहो.. हर सेकण्ड बाबा के स्नेह और सहयोग की महसूसता ही नम्बर वन का आधार है... और कभी कभी विघ्नो को हटाने की मेहनत दूसरे नम्बर में ले जायेगी...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता को पाकर सदा उड़ती कला की अनुभूतियों में हूँ... सदा बाबा के हाथ को पकड़े हुए... सहयोग को प्राप्त करते हुए... खुशियो के आसमान में उड़ती ही जा रही हूँ... हर विघ्न से मुक्त सहजयोगी बन चली हूँ...

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे सदा याद में कंबाइंड न होना तीसरे नम्बर पर ले जायेगा... इसलिए अपनी चेंकिंग करो... बुद्धि की लाइन सदा क्लियर रखो...  संकल्प बोल और कर्म को बाप समान बनाते चलो... चढ़ती कला नही अब सदा उड़ती कला का अनुभव करो... और विजय माला में समीप रत्न बन चलो...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा अपने पुरुषार्थ को तीवता से ऊंचाइयों पर ले जा रही हूँ... मन बुद्धि को एक बाबा में लगाकर उड़ती कला में जा रही हूँ... सदा बाबा के साथ कम्बाइंड होकर बाप समान बनती जा रही हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब सेवाओ में नवीनता की अनुभूति कराओ... रीयल सुख रीयल शांति का अनुभव सारे जहान को कराओ... निमित्त नम्रचित्त बन सफलता मूर्त बनो... अपने सुंदर भाग्य के नशे में डूब जाओ... और व्यर्थ बोल संकल्प से परे समर्थ आत्मा बन मुस्कराओ... बाप को फॉलो कर 16 कलाओं से सम्पूर्ण बन चलो...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो की छत्रछाया में समर्थ आत्मा बन रही हूँ... प्यारे बाबा सारे व्यर्थ खत्म हो चले है... और सबको सच्चे सुखो की अनुभूति कराती जा रही हूँ... 16 कलाओं से सजकर मुस्कराती जा रही हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - पुरुषार्थ और प्राप्ति के आधार पर विजयमाला में आना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा सर्वश्रेष्ठ हूं... महान आत्मा हूं... विशेष आत्मा हूं... स्वयं भगवान ने मुझे कोटो मे कोई व कोई मे से कोई मे से चुना है... कितना श्रेष्ठ भाग्य है मेरा जो स्वयं भगवान मुझसे मिलन मनाने आते है... कितने जन्मों से बिछुड़े हुए अपने बच्चों से मिलने आते है...  कितना श्रेष्ठ भाग्य है हम ब्राह्मण बच्चों का... जो कल्प कल्प हम इसी रुप में इसी समय में मिलन मनाते हैं... स्वयं परमपिता परमात्मा ओरिजनल स्वरुप की पहचान देते हैं... सच्चे पिता का परिचय देते हैं... इस संगमयुग पर सृष्टि चक्र की नालेज मुझ आत्मा को प्यारे बाबा दे रहे हैं... नालेज के आधार पर मैं आत्मा जान गई हूं कि मैं कल्प कल्प ऐसे परमपिता परमात्मा से मिलन मनाती रही हूं... इस संगमयुग पर मेरा ये जन्म सर्वश्रेष्ठ जन्म हैं... मैं कौन और मेरा कौन मुझ आत्मा ने इस सत्य को पहचाना है... मैं आत्मा अपने जीवन की 84 जन्मों की कहानी को जान गई हूं कि मुझ आत्मा ने कैसे कैसे जन्म लिए... मैं आत्मा बस एक प्यारे शिव पिता को याद करती हूं... सर्व सम्बंध बस एक बाबा से ही हैं... मैं आत्मा जितना याद में रहती हूं उतना ही अपने को बाबा के समीप अनुभव कर रही हूं... मैं आत्मा इस संगमयुग पर सर्व प्राप्ति और श्रेष्ठ भाग्य की अधिकारी हूं... जैसे माला में दाने साथ साथ कम्बाइंड रहते हैं ऐसे मैं आत्मा सदैव बाबा के साथ कम्बाइंड रह हर कर्म करती हूं... मैं आत्मा विजयमाला में आने का पुरुषार्थ कर रही हूं...

 

❉   "ड्रिल - बाप के हाथ व साथ का अनुभव कर उड़ती कला का अनुभव करना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपने शिव पिता के सम्मुख हूं... मुझ आत्मा को मेरे सच्चे सच्चे पिता मिल गए है... मुझ आत्मा की अज्ञानता रुपी घोर अंधियारा मिट गया है... मैं इस रौरव नरक व दुख की दुनिया से बाहर आ गई हूं... मैं इस पांच तत्वों की दुनिया में रहते हुए इस देह व देह के सम्बंधों से न्यारी और प्यारी हो गई हूं... मुझ आत्मा का इस विनाशी दुनिया से कोई मोह नही रहा है... मैं आत्मा ईश्वरीय संतान हूं... ऊंच ते ऊंच व सर्वशक्तिमान की संतान हूं... जैसे राजा के बेटे को अपने बाप के पद का नशा होता है... ऐसे मैं आत्मा रुहानी नशे व खुशी में डांस कर रही हूं... मुझे स्वयं भगवान मिल गए... जो पाना था सो पा लिया अब क्या बाकि रहा... हर संकल्प, कर्म, बोल बस बाबा के प्रति है... बाबा ही मेरा संसार है... मैं आत्मा ऐसे अनुभव कर रही हूं कि बस हर कदम पर प्यारे बाबा मेरे साथ है... उंगुली पकड़ कर मुझ आत्मा को चला रहे हैं... मेरे हर कदम पर सहयोगी हैं... मैं आत्मा अपने ऊंच ते ऊंच बाप का श्रीमत रुपी हाथ पकड़ चल रही हूं व बाबा ही मुझे चला रहे हैं... हर सेकेंड बाबा का स्नेह सहयोग प्राप्त कर रही हूं... प्यारे बाबा की हजार भुजाओं की छत्रछाया में हूं... बाबा अपना स्नेह सहयोग देकर अपनी बच्ची को चला रहे हैं... आगे बढ़ा रहे हैं... बाबा के हाथ में ही मुझ आत्मा का हाथ है... जहां चलावेजैसे चलावे जैसे रखे हर रजा में राजी हूं मेरे प्यारे बाबा... तेरा साथ है इतना प्यारा... जब सर्वशक्तिमान प्यारे बाबा साथ है तो मैं आत्मा सदा सम्पन्न अनुभव कर उडती कला की स्थिति का अनुभव करती हूं...

 

 

❉   "ड्रिल - परखने की शक्ति"

 

➳ _ ➳  अभी तक माया के वश आकर अपनी शक्तियों को भूल गई... अपने आप को कमजोर महसूस करने लगी... माया की जंजीरों में जकड़ती चली गई... अपनी पहचान खो बैठी... दुखी व पतित हो गई... तो स्वयं परमात्मा को अपने बच्चों को दुखी देखकर इस पतित दुनिया में आना पड़ा... परमपिता परमात्मा ने आकर विस्मृत हुई शक्तियों की स्मृति दिलाई है... मैं आत्मा सर्वशक्तिमान की संतान मास्टर सर्वशक्तिमान हूं... मैं शिव शक्ति हूं... इस संगमयुग पर ही मैं आत्मा अपने स्वरुप, स्वधर्म को पहचान गई हूं... साइलेंस की शक्ति इस संगमयुग की विशेष शक्ति है... इस शक्ति से ही मैं आत्मा अपनी सर्व समस्याओं को हल कर रही हूं... साइलेंस की शक्ति के बल से ही मैं आत्मा अपने प्यारे बाबा के साथ व समीपता का अनुभव कर रही हूं... जितना साइलेंस में रहती हूं उतनी ही एकाग्रता से बस एकांत में रह एक की याद में समाती हूं... एक की याद में रहने से मैं आत्मा माया के वार से सेफ रहती हूं... मैं आत्मा एकाग्रता की शक्ति से प्यारे बाबा की याद में समीपता का अनुभव कर रही हूं... मुझ आत्मा की बुद्धि की लाइन क्लीन व क्लीयर होती जा रही है... बुद्धि की लाइन क्लीयर हैने से प्यारे बाबा से कनेक्शन जुड़ा रहता है... कनेक्शन सही जुड़ा रहने से मैं आत्मा प्यारे बाबा की शक्तियों का करेंट अनुभव कर सही गल्त को जल्दी से परख लेती हूं... मैं आत्मा बाबा की टचिंग से जल्दी से परखकर फैसला ले लेती हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं 16 कला सम्पन्न आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा भगवान की पालना में पलने वाली जगतजीत

आत्मा हूँ... परमात्म शक्तियों द्वारा मैं आत्मा पांच विकारों रूपी माया दुश्मन को परिवर्तित कर सर्वगुण सम्पन्न बन रहीं हूँ... मैं आत्मा योग बल से अपनी कर्मेन्द्रियों को शीतल करती जाती हूँ...

 

➳ _ ➳   काम विकार को शुभ कामना द्वारा, क्रोध को रूहानी खुमारी द्वारा, लोभ को अनासक्त वृति द्वारा, मोह को स्नेह द्वारा और देह अभिमान को स्वाभिमान द्वारा परिवर्तित कर 16 कला सम्पूर्ण बनती जाती हूँ... मैं तन-मन-धन से एक बाप पर सम्पूर्ण समर्पित हूँ...

 

➳ _ ➳   और यह अव्यभिचारी समर्पण ही मुझ आत्मा को 16 कला सम्पन्न बनाता जा रहा है... यही आत्मा की सम्पूर्ण स्टेज की निशानी है... साकार बाबा के प्रति मेरे अविनाशी और निस्वार्थ प्रेम के कारण मैं आत्मा सम्पूर्ण रूप से अपने अलौकिक फादर को फॉलो करती जा रहीं हूँ...

 

➳ _ ➳  यह संगमयुग है ही कमाई का युग... ऐसे ही पद्मगुना कमाई करने के लिए मैं आत्मा अपना हर कर्म कला के रूप में करती जा रहीं हूँ... जैसे साकार में बाबा के बोलने, उठने-बैठने, देखने, चलने आदि सभी में न्यारापन और विशेष कलाएं विद्यमान थीं...

 

➳ _ ➳   वैसे ही मैं आत्मा भी फॉलो फादर कर 16 कला सम्पन्न होने की सीट पर सेट हो रहीं हूँ... मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि हर कर्म कला के रूप में करने से मुझ आत्मा के हर कर्म का वा गुणों का गायन हो रहा है ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  संगमयुग पर हर कर्म कला के रूप में करने वाले 16 कला सम्पन्न होते हैं...  क्यों और कैसे?

 

❉   संगमयुग पर हर कर्म कला के रूप में करने वाले 16 कला सम्पन्न होते हैं क्योंकि संगमयुग विशेष कर्म रुपी कलायें दिखाने का युग है। जिनका हर कर्म कला के रूप में होता है उनके हर कर्म का व गुणों का अन्त तक गायन होता है। वे संसार के लिये एक उदाहरण स्वरूप बनते हैं।

 

❉   संगमयुग पर ही आत्मायें बाबा से अपनी खोई हुई 16 कलायें पुनः प्राप्त करते हैं। हम जब देवी देवता थे,  तब हम 16 कलाओं से सम्पन भी थे। सतयुग में सब आत्मायें 16 कलाओं से सम्पन्न होती हैं। फिर धीरे धीरे उनकी कलायें कम होती जाती हैं,  तथा संगमयुग पर वे आत्मायें! बाबा से प्राप्त श्रीमत पर चल कर पुनः 16 कलाओं से सम्पन्न बनती हैं।

 

❉   16 कला सम्पन्न अर्थात!  हमारा हर चलन सम्पूर्ण कला के रूप में दिखाई देना चाहिए। क्योंकि यही सम्पूर्ण स्टेज की निशानी है। जैसे साकार में बाबा के बोलने में, चलने आदि में...  विषेशता दिखाई देती है। तो ये उनकी कला हुई, इसलिये! सर्व कलाओं से संपन्न व्यक्ति विशेष व्यक्ति बन जाता है।

 

❉   उठने बैठने की कला, देखने की कला, चलने की कला। ये सभी कलायें हैं। ये सभी कलायें!  बाबा के अन्दर थी। बाबा सम्पूर्ण 16 कलाओं से सम्पन्न थे। हमें भी बाबा के जैसा सम्पूर्ण 16 कलाओं से सम्पन्न बनना है। अभी ही संगमयुग में ही पुरुषार्थ कर के बनना है।

 

❉   बाबा के हर कर्म को हम सभी आत्माओं ने फॉलो फादर करना है। तभी तो हम बाप समान बन पायेंगे। जैसे साकार के उठने बैठने खाने पीने लेखन आदि में विशिष्टता को सब ने देखा है। सभी में उनका न्यारापन था और प्यारेपन की विशेषता थी। तो ऐसे फॉलो फादर कर हमें भी 16 कलाओं से सम्पन्न बनना है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  पावरफुल वह है जो फौरन परखकर फैंसला कर दे... क्यों और कैसे ?

 

❉   फौरन परख कर फैंसला वही कर सकते हैं जिनकी बुद्धि विवेकयुक्त और ज्ञानयुक्त होती है । अगर ज्ञान अर्थात समझ की कमी हैं तो परखने की शक्ति काम नही कर सकती । एक जौहरी ही असली और नकली हीरे की पहचान कर सकता है क्योकि उसमे यह समझ है कि कौन सा हीरा असली होता है और कौन सा नकली । इसी प्रकार जीवन में आने वाली परिस्थितियों में भी सही निर्णय वही ले सकता है जिसमे उन परिस्थितयों को परखने की क्षमता होगी ।

 

❉   जैसे हंस नीर और क्षीर को तुरन्त परख लेता है । मोती और कंकड़ में से मोती को चुग लेता है और कंकड़ छोड़ देता है क्योकि उसकी बुद्धि स्वच्छ और स्पष्ट है । ठीक इसी प्रकार जो अपनी बुद्धि को परमात्म चिंतन  द्वारा हंस के समान शुद्ध और पवित्र बना लेते हैं उनमे परखने की शक्ति स्वत: ही आ जाती है । इसलिए कैसा भी समय और कैसी भी परिस्थिति उनके सामने आ जाये किन्तु वे उसे परख कर फौरन सही निर्णय ले कर उस परिस्थिति को सहज ही पार कर लेते हैं ।

 

❉   जिस प्रकार एक कम धार वाला चाकू किसी भी चीज को काटने में सक्षम नही होता । उसी प्रकार जिनकी बुद्धि नकारात्मक अथवा व्यर्थ चिंतन में उलझी रहती है उनकी बुद्धि की धार तेज ना होने के कारण अर्थात कुशाग्र बुद्धि ना होने के कारण वे ना तो किसी चीज की सही परख कर पाते हैं और परख ना कर पाने के कारण सही समय पर उचित निर्णय भी नही ले पाते । जिसके लिए उन्हें बहुत नुकसान भी उठाना पड़ता है । इसलिए पावरफुल वही है जिनमे फौरन परख कर फैंसला करने की क्षमता होती है ।

 

❉   जितना हमारे अंदर पारदर्शिता होती है अर्थात बुद्धि युक्तियुक्त होती है उतना ही हम हर बात की या परिस्थिति की सच्चाई को स्पष्ट देखते हुए उसे परख लेते हैं और जीवन में उसका लाभ उठाते हुए आगे बढ़ सकते हैं । लेकिन कई बार परख शक्ति ना होने के कारण व्यक्ति अच्छे से अच्छा अवसर भी हाथ से गंवा देता है । इसलिए पावरफुल वही है जो अपनी युक्तियुक्त बुद्धि से हर बात को परख लेते हैं और परख कर फौरन उचित निर्णय लेते हैं ।

 

❉   अक्सर व्यक्ति में परखने की शक्ति की कमी इस लिए होती है क्योकि उसकी बुद्धि का तीसरा नेत्र लोभ, मोह, या स्वार्थ के कारण बन्द हो जाता है । जैसे धृतराष्ट्र मोह में अँधा था तो वह सत्य - असत्य, भलाई - बुराई, न्याय - अन्याय में भेद ही नही कर पाया । इसलिए वह पांडवो के साथ न्याय नही कर पाया । इसी प्रकार मोह या स्वार्थ वश भी कई बार व्यक्ति सही और गलत को नही परख पाते और सही समय पर सही फैंसला ना ले पाने के कारण जीवन भर कष्ट उठाते है  ।

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⊙_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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