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❍ 10 / 03 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ "हम हैं °त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी, त्रिलोकीनाथ°" - यह स्मृति रही ?
‖✓‖ अपना सब कुछ बाप हवाले कर °ट्रस्टी° बनकर रहे ?
‖✓‖ सर्वशक्तिमान बाप से शक्ति ले °5 विकारों रुपी शत्रु पर विजय° पाने का पुरुषार्थ किया ?
‖✓‖ °पवित्र° बनने पर विशेष अटेंशन रहा ?
‖✓‖ नॉलेज को धारण कर °कांटे से फूल° बनने और बनाने पर विशेष अटेंशन रहा ?
‖✓‖ बाप की श्रीमत पर भारत की °सच्ची सच्ची रूहानी सेवा° की ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ °ईश्वरीय शान° में स्थित रह हर कर्म शानदार बनाया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
‖✓‖ मन और बुधी की °शक्तिशाली अवस्था° बनाए हुए स्वयं को अचल अडोल अवस्था में स्थित रखा ?
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∫∫ 4 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - ज्ञान सागर बाप द्वारा तुम मास्टर ज्ञान सागर बनते हो,तुम्हे ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है इसलिए तुम हो त्रिनेत्री,त्रिकालदर्शी और त्रिलोकीनाथ"
❉ मीठा बाबा कहे - आत्मन बच्चे मै ज्ञान का सागर के मिलने से... तुम बच्चे इस कदर बुद्धिवान बने हो की मा सागर बने हुए हो... कहाँ तो दुखो और निराशा के अंधकार में डूबे थे... और आज समझ रुपी नेत्र को पाकर तीनो कालो तीनो लोको के जानकार बने हो... मेरे मीठे बच्चों... किस कदर खूबसूरत भाग्य से भरे हो...
❉ प्यारा बाबा कहे - बच्चों ज्ञान के तीसरे नेत्र से ईश्वरीय तुल्य से बने हो... ईश्वरीय अनन्त राजो को जान मा ज्ञान सागर बने हुए हो... कहाँ तो स्वयं का परिचय न था... आज तीनो लोको तीनो कालो के आदि मध्य अंत के गहरे जानकार हुए पड़े हो... इस समझ रुपी नेत्र ने सारे राजो का राजदार कर सागर समान बना दिया है...
❉ मीठा बाबा कहे - आत्मन बच्चों को... कैसे विस्मर्ति ने भूला और भटका कर खाली किया था... आज वही मेरे बच्चे मुझे जानकर बुद्धि में सागर से बने... मुझ पिता को गौरवान्वित किये हुए है... तीनो लोको तीनो कालो की समझ को हथेली पर लिए ये दीवाने किस कदर भाग्य को... खूबसूरत भाग्य में बदल रहे है...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे बच्चों मेने अपनी अनन्त शक्तिया गुण देकर आपको ज्ञान का सागर बना दिया है... समझ रुपी नेत्र से हर उलझी गुत्थी को सुलझा जीवन वरदानों की खान बना दिया है... अपना पता न था... पर आज पुरे ब्रह्माण्ड को जान... ईश्वरीय विशाल सी बुद्धि बने हो... जो खुद को न पहचानते थे आज तीनो कालो तीनो लोको को जानने वाले महा समझ का पर्याय बने हो...
❉ मेरा बाबा कहे - बच्चों मेरी राह पर दीवानो से चल सागर जेसी समझ लिए हुए... आज सारे भेदो को राजो को जानने वाले खुशकिस्मत ज्ञानी बने हो... जो मै ही जानता था... आज तुम भी जानकार बने हुए हो... मेरे भूले से बच्चे मा ज्ञान सागर बने पड़े है... बाप समान बन असीम ख़ुशी का अहसास करा मुझ पिता का सर गर्व से ऊँचा किये है... त्रिनेत्री त्रिकालदर्शी बन सब कुछ मुट्ठी में लिए... दीवाने से ईश्वरीय राहो पर चले पड़े है... बाप भला क्यों न करे नाज ऐसे दीवानो पर...
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∫∫ 5 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-15)
➢➢ बाप की श्रीमत पर भारत की सच्ची-सच्ची रुहानी सेवा करनी है । सर्वशक्तिमान बाप से शक्ति ले पांच विकारों रुपी शत्रुओं पर विजय पानी है ।
❉ ऊंचते ऊंच बाप ने हमें अपना बच्चा बनाया है तो ऐसे ऊंच बाप की श्रेष्ठ मत पर चलना है व बाप जो ज्ञान हमें देते हैं वो हमें दूसरों को सुनाकर बाप से मिलने का रास्ता बताकर सच्ची सेवा करनी है ।
❉ अभी तक तो हम घोर कलयुग मे थे । बाप ने ही संगमयुग पर आकर हमेंअपने असली स्वरुप की पहचान दी व पूरी सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान दिया । ये सब ज्ञान एक बाप के सिवाय कोई दे नहीं सकता । ऐसे बेहद बाप की श्रीमत पर चलकर भारत की सच्ची सेवा करनी है ।
❉ बाप ने हमें ज्ञान का तीसरा नेत्र दिया । दिव्य ज्ञान व दिव्य नेत्र से ही हमने बाप को पहचाना है । अपने को आत्मा समझ परमात्मा को याद करना है । अपने को देह नही देही समझ देही-अभिमानी बनना है ।
❉ सुप्रीम बाप सर्वशक्तिमान के बच्चे हम मास्टर सर्वशक्तिमान है । सर्वशक्तिमान बाप से सर्वशक्तियां वर्से के रुप में मिलती हैं । बाप से शक्तियां लेकर हमें विकारों पर जीत पानी हैं क्योंकि मनुष्य दूसरे मनुष्य को कुछ नही दे सकता सिवाय दुख के ।
❉ बाप को याद करके हम बच्चें अपने में शक्ति भरते हैं । याद की यात्रा में रहने से ही आत्मा की खाद निकलती हैं । याद की शक्ति से ही बल जमा होता है और हम अपने विकारों पर विजय पानी है ।
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∫∫ 6 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-15)
➢➢ ईश्वरीय शान में स्थित रहकर हर कर्म शानदार बनाने वाले सर्व परेशानियों से मुक्त होते हैं... क्यों और कैसे ?
❉ जो सदा स्वयं की विशेषता को हर कार्य में लगाते हैं और सदा इसी नशे मे रहते कि मैं ईश्वरीय कुल से हूं व ऊंची शान में रहते तो हर कार्य श्रेष्ठ करते हैं । सर्व से स्वतः ही मान प्राप्त होता है ।
❉ ईश्वरीय शान में रहने वाले कोई कार्य करते है तो उसका बोझ अपने ऊपर नही लेते । सदा अपने को निमित्त समझ करनकरावनहार को साथ रख हर कर्म शानदार बनाने वाले सर्व परेशानियों से मुक्त होते हैं ।
❉ जो सदा ईश्वरीय नशे में रहते कि मैं तो जो हूं जैसा हूं बस बाबा का मुरब्बी बच्चा हूं , बाबा के नयनों का नूर हूं, नूरे रत्न हूं तो उनकी नजरों में कोई और चीज समां नही सकती । इस शान में रहने से परेशानियां स्वतः ही समाप्त हो जाती हैं ।
❉ जैसे जिसके पिता ऊंच पद पर होते है तो बच्चे को अपने पिता के पद का नशा होता है व उसके सब कार्य आसानी से हो जाते हैं । हमें तो बेहद का बाप मिला है ऊंच बाप के बच्चे होने से हर कर्म शानदार व परेशानियों से मुक्त होते हैं ।
❉ जब बाप ही कहते है कि "बच्चे तुम मेरी याद में मग्न रहो तो तुम्हारे सोचने का काम भी मैं करुंगा "। तो बाप हमें बेफिकर बादशाह बनाकर हर परेशानी से मुक्त रखते
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∫∫ 7 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ ट्रस्टी वह है जो अपना सब कुछ बाप हवाले कर दे... क्यों और कैसे ?
❉ ट्रस्टी अर्थात शरीर के भान से भी मुक्त । जो ट्रस्टी होगा उसका मुख्य लक्षण ही यह होगा कि वह स्वयं को हर बात में हल्का अनुभव करेगा, डबल लाइट अनुभव करेगा ।
❉ ट्रस्टी वह है जो तन, मन, धन सहित बाप पर सम्पूर्ण रूप से समर्पित हो । जिसे हद के मान, शान और सम्मान की कोई इच्छा ना हो ।
❉ ट्रस्टी अर्थात मेरा पन नही । जब मेरा पन समाप्त हो जाता तो लगाव भी समाप्त हो जाता । लगाव समाप्त होने से झुकाव और टकराव भी स्वत: ही समाप्त हो जाता । इसलिए ट्रस्टी अर्थात मैं और मेरेपन से मुक्त ।
❉ ट्रस्टी वह है जो स्वयं को निमित समझ हर कर्म करे । स्वयं को आलौकिक सेवाधारी समझ लौकिक घर परिवार को भी सेवा का स्थान समझे और सदा स्मृति में रखे कि लौकिक सम्बन्ध भी सेवा अर्थ मिले हुए हैं ।
❉ ट्रस्टी अर्थात निर्बन्धन । इसलिए जो ट्रस्टी होगा वह किसी भी आकर्षण के बन्धन मे नही आएगा । वह सदैव स्वतंत्र होगा, न्यारा और प्यारा होगा ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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