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❍ 28 / 03 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ अन्दर बाहर °सच्चे° रहे ?
‖✓‖ °सर्व प्राप्तियों° को स्वयं में धारण कर विश्व की स्टेज पर प्रतक्ष्य होने का पुरुषार्थ किया ?
‖✗‖ पढाई में °गफलत° तो नहीं की ?
‖✗‖ शिव बाबा के सिवाए °और बातों में° तो नहीं गए ?
‖✗‖ ऐसा कोई काम तो नहीं किया जिससे °सर्विस में विघन° पड़े ?
‖✓‖ "हम भारत को श्रेष्ठाचारी °डबल सिरताज° बनाने की सेवा कर रहे हैं" - सबको यह खुशखबरी सुनाई ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ अपने °एकाग्र स्वरुप° द्वारा सूक्षम शक्ति की लीलाओं का अनुभव किया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
‖✓‖ °दातापन° की स्मृति में स्थित रहे ?
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http://bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/28.03.16-VisheshPurusharth.htm
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∫∫ 4 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे मीठे सर्विसएबल बच्चे - ऐसा कोई भी काम नही करना जिसमे सर्विस में कोई विघ्न पड़े"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों आप के कन्धों पर बड़ी जवाबदारी है... अपने कदमो को फूलो जैसा चलाना की बाप की खुशबु बच्चों से आये... बाप का नाम रोशन करना है... सर्विस में विजय का झंडा सदा लहराना है...
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे लाडलो आप बच्चों के दम पर ही तो सतयुग सपने को मै बाप साकार होते देखता हु... आप बच्चे ही मुझ बाप की शान हो... सदा रूहानी सर्विस में जुटे मेरे प्रतिनिधि से हो तो भूल से भी कोई भूल न हो...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे बच्चों हर कदम ईश्वरीय मत से भरा उठाना है... बाबा के सपने को अपनी आँखों में समाना है... अपने सतयुगी चन्दन से महकते बगीचे को सजाना है... विघ्नों पर विजयी बनना है...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चों आप ही... वह खुशबूदार फूल मेरी बगिया के हो जो अपनी खुशबु सारे जहाँ में महकाते हो... पिता की आशाओ को सच का जामा पहनाने वाले आप बच्चों को सदा विजयी रहना है....
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे बच्चों... अपना बहुत ख्याल करो... हर कदम साँस संकल्प का ध्यान रखो की जहाँ कदम पड़े विजयो बने... विघ्न भी जेसे आने से घबराये... आप बच्चों पर ही सारा मदार है... आपको अपना नाम दिलो में खुदाना है... और सदा का नाम ऊँचा कराना है...
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∫∫ 5 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-15)
➢➢ अंदर बाहर सच्चा रहना है पढ़ाई में गफलत नहीं करना है । कभी भी संशय बुद्धि बन पढ़ाई नहीं छोड़नी है ।
❉ इस पुरुषोत्तम संगमयुग पर हमें सत बाप का संग मिला है तो हमें सत बाप के साथ सदा सच्चा सच्चा रहना है । ऐसा नहीं करना कि अंदर से कुछ और बाहर से कुछ । जो सत बाप के साथ वादा किया है उसे पूरा करना है ।
❉ हमें ऊंच ते ऊंच बेहद का बाप मिला है जो हमें पतित से पावन बनाकर घर वापिस ले जाने के लिए आया है । जो हमें कौडी तुल्य से हीरे तुल्य, कांटों से फूल बना रहा है व ऐसे ऊंच बाप के वर्से के अधिकारी हैं तो हमें बेहद के बाप के साथ सच्चा रहना है ।
❉ अगर कोई गल्ती हो भी जाए तो उसे सच सच बाप को बताना है छुपाना नही है । सच बताने से आधी सजा माफ हो जाती है वरना सौ गुणा सजा खानी पडेगी । सच्चे दिल पर साहिब राजी - सच्चे दिल वालों पर ही बाबा राजी होते है व दिल पर राज करते है । इसलिए अंदर बाहर सच्चा ही रहना है ।
❉ ऊंच ते ऊंच भगवान स्वयं हमें दूरदेश से आकर इस पतित दुनिया में पढ़ाने के लिए आते हैं व ये रुहानी पढ़ाई बहुत वंडरफुल है जिसे पढ़कर हम भविष्य में राजाई पद प्राप्त करते हैं । तो ऐसी ऊंच पढ़ाई के लिए कभी गफलत नहीं करनी है ।
❉ माया भी बहुत प्रबल है व कई बार ऐसा वार करती है कि बाबा की याद भुला देती है और देहभान में आकर दूसरों के कहने पर चल पड़ते हैं व पढ़ाई छोड देते हैं और संशयबुद्धि हो जाते हैं । इसलिए बस एक बाप के साथ प्रीत बुद्धि रखनी है ।
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∫∫ 6 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-15)
➢➢ अपने एकाग्र स्वरुप द्वारा सूक्ष्म शक्ति की लीलाओं का अनुभव करने वाले अंतर्मुखी होते हैं... क्यों और कैसे ?
❉ जैसे साइंस के साधन का यंत्र भी तभी काम करता है जब उसका कनेक्शन मेन स्टेशन से होता है । ऐसे ही अपने एकाग्र स्वरुप द्वारा बापदादा से क्लीयर कनेक्शन होने से सूक्ष्म शक्तियों की लीलाओं को अनुभव करने वाले अंतर्मुखी होते हैं ।
❉ संकल्पों की एकाग्रता व स्थिति की एकाग्रता का आधार है अंतर्मुखता । अंतर्मुखता रहने से ही अपनी सूक्ष्म शक्ति की लीलाओं का अनुभव कर सकते हैं जैसे आत्माओं का आवाहन करना, आत्माओं का स्वभान परिवर्तन करना ।
❉ अपनी एकाग्रता में रहने से अपने में साइलेंस का बल जमा कर रुहानी सेवा करते सदा साथ अनुभव करते अपनी रुहानियत के आकर्षण से रोगी आत्मा को दूर बैठे भी शांति, शक्ति का अनुभव करा अंतर्मुखी होते हैं ।
❉ जैसे साइंस वाले कोई इनवेंशन करते हैं तो कई कई दिन अंडरग्राउंड होकर उसकी सूक्ष्म से सूक्ष्म परमाणु को पहचान कर उसे कंट्रोल करते हैं । ऐसे अपने एकाग्र स्वरुप में रहकर साइलेंस में रहकर आवाज से परे रहते अपनी सूक्ष्म शक्तियों को भी पहचानते हैं और अंतर्मुखी होते हैं ।
❉ कोई भी कार्य को एकाग्रचित्त होकर करते तो उस कार्य को करते वह उसके मास्टर बन जाते हैं । उसी मास्टरी से वह अपनी सूक्ष्म शक्तियों को भी पहचान अनुभवीमूर्त और अन्तर्मुखी होते हैं ।
❉ जो एकाग्रचित्त होते वो शक्ति स्वरुप होते हैं । जो स्वरुप होता है वही शक्ति बन जाती है और वह अपनी शक्तियों की अनुभूति करते अंतर्मुखी हो जाते हैं ।
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∫∫ 7 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ सर्व प्राप्तियों को स्वयं में धारण कर विश्व की स्टेज पर प्रत्यक्ष होना ही प्रत्यक्षता का आधार है... क्यों और कैसे ?
❉ संगम युग पर बाप द्वारा हर एक बच्चे को सर्व खजाने, शक्तियां और गुण विरासत में मिलते हैं । इन प्राप्तियों को जितना स्वयं में धारण करते हैं उतना सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न बन औरों को भी इन प्राप्तियों का अनुभव करा कर विश्व की स्टेज पर प्रत्यक्ष होते जाते हैं यह प्रत्यक्ष होना ही बाप की प्रत्यक्षता का आधार बन जायेगा ।
❉ जितना सर्व प्राप्तियों के नशे और ख़ुशी में रहते हैं उतना अविनाशी ख़ुशी के खजाने से भरपूर होते जाते हैं और सर्व आत्माओं की झोली खुशियों से भर कर उन्हें उमंग,उत्साह में ला कर चढ़ती कला का अनुभवी बनाते जाते हैं । आत्माओं को चढ़ती कला का अनुभव करवाना ही स्वयं को विश्व की स्टेज पर प्रत्यक्ष कर बाप दादा की प्रत्यक्षता में सहयोगी बनना है ।
❉ जो संगम युग की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों को सदा स्मृति में रखते हैं वे अधिकारी बन सर्व प्राप्तियों को स्वयं में धारण कर फिर उन प्रप्तियों को औरों के कल्याणार्थ यूज़ कर स्वयं को विश्व की स्टेज पर प्रत्यक्ष कर बाप दादा की प्रत्यक्षता के निमित बन अपनी श्रेष्ठ ऊँच प्रालब्ध बना लेते हैं ।
❉ भगवान भाग्य बांटने आया है, वो हमे सर्व खजाने देने आया है, सर्व शक्तियों से भरपूर करने आया है । सदा इस परमात्म मौज का अनुभव करते रहें तो जीवन हीरे तुल्य बन जायेगा और हमारा हीरे तुल्य जीवन औरों के सामने प्रत्यक्ष उदाहरण बन बाप दादा को प्रत्यक्ष करने में विशेष रूप से सहायक सिद्ध होगा ।
❉ सदा बुद्धि में रहे कि मैं दैवी कुल की महान आत्मा हूँ । सदा हर्षित रहना, मन को सदा मौज में रखना यही मेरे संस्कार है और यही जीवन जीवन की कला है । अपने दैवी संस्कारों द्वारा मैं औरों के आसुरी स्वभाव संस्कारों को बदल स्वयं को विश्व की स्टेज पर प्रत्यक्ष कर बापदादा की प्रत्यक्षता में सहायक बनती जाती हूँ ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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