━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 17 / 07 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ स्वमान और अभिमान के अंतर को समझ ×अभिमान× से दूर रहे ?
➢➢ √श्रेष्ठ स्मृति√ में रह श्रेष्ठ कर्म किये ?
➢➢ बाप के साथ √स्नेही और सहयोगी√ बनकर रहे ?
────────────────────────
∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ बापदादा को अपनी महानता की √महिमा√ करते हुए अनुभव किया ?
➢➢ स्वमान में स्थित रह √रूहानियत√ का अनुभव किया ?
────────────────────────
∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
To Read Vishesh Purusharth In Detail, Press The Following Link:-
✺ HTML Format:-
➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/17.07.16-VisheshPurusharth.htm
✺ PDF Format:-
➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/17.07.16-VisheshPurusharth.pdf
────────────────────────
∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "हर ब्राह्मण चैतन्य तारामण्डल का श्रंगार"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे आज ज्ञान सूर्य पिता ज्ञान चन्द्रमा माँ अपने सितारों की रंगत देख देख फ़िदा है... मेरा हर फूल खुशबु की विशेषता से महक रहा है... गुणो से सज रहा है... चन्द्रमा माँ एक एक रत्न पर मोहित सी है... और मीठा पिता बगिया पर लुटा जा रहा है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा मीठे प्यारे अनोखे माँ पिता को पाकर धन्य धन्य हुई जा रही हूँ... मुझमे विशेषताओ को भरने वाले पिता किस कदर निरहंकारी है... मुझे सवार कर चमकाने में जुटे है... मै चमकीली चमक से भरती जा रही हूँ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे चैतन्य तारामण्डल का खूबसूरत श्रंगार हो... इस नशे में डूब जाओ... मा सर्वशक्तिवान हो उस सीट पर सदा सजे रहो... ईश्वरीय पसन्द हो... अब अभिमान के काँटों को जला दो... पिता की यादो में वफादारी का सबूत दो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा मा सर्वशक्तिवान बन चली हूँ... इस नशे में डूबकर यादो में धरती आसमाँ एक कर चली हूँ.... अभिमान के काँटों भरी राहो को छोड़ स्वमान के फूलो से भरे बगीचे में घूम रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे...किस कदर सुंदर भाग्य है... खुशियो की खान हाथो में है... ज्ञान धन से मालामाल हो... कितनी प्यारी तकदीर है और किस कदर खूबसूरत श्रेष्ट कर्म की लकीरो से हाथ सज गए है...इस नवयुग में हर बात नई... हर चाल नई... हर अदा नई... हर रंग जुदा सा हो चला है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... आपके प्यार मै आत्मा नई सी सुंदर सी अदाओ से भरी सज चली हूँ... मेरी तकदीर खूबसूरत रेखाएं लिए... और खुशियो की खान साथ हो चली है... आपकी मीठी रोशन यादो में मेरा नूर बढ़ता ही जा रहा है...
────────────────────────
∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ ड्रिल - राज्याधिकारी की स्थिति का अनुभव करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा सर्वशक्तिमान पिता शिव की संतान मास्टर सर्वशक्तिमान हूं... मैं आत्मा गुणों के सागर बाप की गुण मूर्त आत्मा हूँ.. गुणों से सम्पन्न हूँ... जैसेे राज्य परिवार में हर आत्मा सम्पन्न होती है... सदैव सब को देती ही है... ऐसे मेरे परमपिता परमात्मा में असीम विशेषताए है तो मैं भी विशेषताओं की अधिकारी हूँ... मैं विशेष आत्मा हूं... मैं महान आत्मा हूं... मेरे बाबा ने मुझ आत्मा को रूहानी स्वमानों से श्रृंगारा हैं... मैं इतनी विशेष आत्मा हूँ कि चैतन्य तारागण का श्रृंगार हूँ... मैं आत्मा स्वमान में रहने से सदा शक्तिशाली स्थिति का अनुभव करती हूं... स्वयं भगवान ने कहा है कि मैं निर्बल नही हूँ... मैं आत्मा बलवान हूँ क्योंकि सर्वशक्तिमान की सन्तान हूँ... मैं आत्मा सदैव इसी रूहानी नशे की स्थिति का अनुभव कर रही हूं...
❉ "ड्रिल - अभिमान मुक्त"
➳ _ ➳ मैं अभिमान मुक्त आत्मा हूं... मैं आत्मा बाबा की श्रीमत पर चल विकारों से मुक्त हो गई हूं... मैं आत्मा झूठी दुनिया के झूठे मान शान से परे हो गई हूं... मुझ आत्मा को ज्ञान हो गया है कि ये झूठी माया झूठी काया झूठा ये संसार है... मुझ आत्मा को प्यारे बाबा से दिव्य ज्ञान मिल गया है... मैं अभिमान को छोड़ स्वमानधारी आत्मा हूं... मुझ आत्मा को मेरे प्यारे बाबा ने स्वयं को मान देना सिखा दिया है... मैं आत्मा स्वमान की सीट पर सेट रहती हूं... मैं आत्मा बाहरी आकर्षण से मुक्त हूं... अल्पकाल के मान शान से परे हूं... स्वमान की सीट पर रहने से सदैव सुख का अनुभव कर रही हूं... स्वमान में रहने से मैं आत्मा सर्वप्राप्ति सम्पन्न स्थिति का अनुभव करती हूं... मैं आत्मा अपनी विस्मृत हुई विशेषताओं को जान गई हूं... मैं अपने सच्चे सच्चे परमपिता परमात्मा शिव बाबा को जान गई हूं... अपने प्यारे बाबा से मिलन मना सदैव हर्षित रहती हूं...
❉ "ड्रिल - सम्पूर्ण पवित्र आत्मा"
➳ _ ➳ मैं आत्मा ज्योति बिंदु हूं... शरीर से अलग देह की दुनिया से न्यारी परमधाम की रहवासी हूं... मैं आत्मा इस सृष्टि रंगमंच पर पार्ट बजाने आई हूं... मैं आत्मा इस पुरानी विनाशी दुनिया में रहते देह व देह के सम्बंधों से बंधनमुक्त हूं... मुझ आत्मा का पुरानी दुनिया से मोह समाप्त हो गया है... पुराने स्वभाव संस्कार को मैं आत्मा बाबा की याद में रह स्वाह करती हूं... मैं आत्मा हर कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म करते हुए इन्द्रियों के आकर्षण से न्यारी हूं... मुझ आत्मा की चलन दिव्य हो गई है... मेरा चित शांत हो गया है... मैं आत्मा मनसा वाचा कर्मणा और संकल्पों में पवित्रता को धारण करती हूं... मैं आत्मा बस एक प्यारे बाबा की याद में रहती हूं... मुझ आत्मा के सर्व सम्बंध सिर्फ व सिर्फ बाबा से हैं... मैं आत्मा गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल पुष्प समान न्यारी और प्यारी हूं... यही योगी तू ज्ञानी आत्मा की निशानी है... मैं आत्मा सम्पूर्ण पवित्र अवस्था का अनुभव कर रही हूं...
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं आत्मा कम खर्च बालानाशीन हूँ ।"
➳ _ ➳ मैं आत्मा प्यार के सागर की संतान मास्टर प्यार का सागर हूं... मुझ आत्मा का हर संकल्प, बोल और कर्म मेरे मीठे बाबा के लिए है... बाबा ही मेरा संसार है...
➳ _ ➳ जिस परमपिता परमात्मा को दुनिया वाले ढूंढ रहे हैं... वो मेरे पिता है जो मुझ आत्मा को सच्चा-सच्चा प्यार दे रहे हैं... सच्ची-सच्ची गीता ज्ञान सुना रहे हैं... जो मुझे पतित से पावन बना रहे हैं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने व्यर्थ संकल्पों को छोड़ बस श्रेष्ठ संकल्प को ही धारण कर रहीं हूँ... मेरे सच्चे परमपिता मेरे विकारों को लेकर विश्व की बादशाही मुझ आत्मा को दे रहे हैं... कल्प पहले भी यह सब मेरे सच्चे परमपिता ने मुझ आत्मा को दिया था... ऐसे पिता पर मैं अपना सब कुछ न्यौछावर करती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपना सर्वस्व बापदादा पर न्यौछावर कर इस वरदानी संगमयुग उनके द्वारा मुझे जो ख़ज़ाने प्राप्त हुए हैं, उन ख़ज़ानों को सदा समेटकर रखने वाली युक्तियुक्त आत्मा हूँ... मैं आत्मा उन सर्व ख़ज़ानों को बचाकर कम खर्च बालानाशीन आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा व्यर्थ की लीकेज को सदा के लिए समाप्त करने वाली समर्थी स्वरुप आत्मा हूँ... व्यर्थ को समाप्त कर मैं आत्मा अपने पुरषार्थ में तीव्रता का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा शक्तिशाली अवस्था की सीट पर सदा के लिए सेट हो रहीं हूँ...
➳ _ ➳ मैं हर पल इस अनुभव को करते रहने के लिए सदा व्यर्थ की लीकेज को चेक कर रहीं हूँ... मैं आत्मा समर्थी स्वरुप बन व्यर्थ की चिंताओं से, व्यर्थ की बातों से, व्यर्थ बोल, कर्म और व्यर्थ के संकल्पों से सदा के लिए मुक्त होने का श्रेष्ठ अनुभव कर रहीं हूँ ।
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ व्यर्थ की लीकेज को समाप्त कर समर्थ बनने वाले कम खर्च बालानशीन होते हैं... क्यों और कैसे ?
❉ हमें व्यर्थ की लीकेज को समाप्त करके समर्थ बनना है क्योंकि समर्थ बनना अर्थात कम खर्च बालानशीन बनना होता है। इस पुरुषोत्म संगमयुग पर बाबादादा ने हम बच्चों को बहुमूल्य खज़ाने प्रदान किये हैं। उन बहुमूल्य खज़ानों को व्यर्थ जाने से हमें बचाना है।
❉ अभी संगम पर बापदादा द्वारा प्राप्त जो भी खज़ाने हमें मिले हैं, उन सर्व खज़ानों को व्यर्थ जाने से हमें बचाना है। अगर हम उन सभी खज़ानों को बचाने का श्रेष्ठ पुरुषार्थ करेंगे, तो हम कम खर्च बालानशीन बन जायेंगे क्योंकि एक एक खज़ाना हमारे लिये हीरे माणक व बहुमूल्य रत्नों के समान हैं।
❉ हम अपने बापदादा द्वारा प्रदत्त खज़ानों को व्यर्थ जाने से बचायेंगे, तो हम समर्थी स्वरूप बन जाएंगे। व्यर्थ से बचाव करना अर्थात समर्थ बनना होता है। जहाँ समर्थी है, वहाँ हमारे खजाने व्यर्थ में चले जाये, यह हो नहीं सकता है।
❉ अगर हमारे पास व्यर्थ की लीकेज है तो हम कितना भी पुरुषार्थ व मेहनत करेंगे तब भी हम शक्तिशाली नहीँ बन सकेंगे। इसलिये सब से पहले हमें अपनी लीकेज को समाप्त करना है क्योंकि व्यर्थ की लीकेज हमें समर्थ बनने नहीं देती, इसलिये पहले सभी लीकेज को समाप्त करके समर्थी स्वरूप बनना है।
❉ सभी लीकेज को चेक करके व्यर्थ को समाप्त करना है। अगर लीकेज को चेक करके हम व्यर्थ को समाप्त नहीं करेंगे तो हम भी समर्थी स्वरूप नहीं बन सकेंगे, इसलिये व्यर्थ की लीकेज को समाप्त करो तो व्यर्थ से समर्थ बन जायेंगे।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ प्रवृति में रहते सम्पूर्ण पवित्र रहना - यही ज्ञानी व योगी तू आत्मा की चैलेन्ज हैं... क्यों और कैसे ?
❉ जैसे गन्दगी में कीड़े पैदा होते हैं वैसे ही जब देह अभिमान आता है तो माया अर्थात विकारों की प्रवेशता होती है । किन्तु जब प्रवृति में रहते सबके प्रति आत्मिक दृष्टि होती है तो ट्रस्टीपन का भाव बुद्धि में रहने से किसी के प्रति कोई अटैचमेंट, कोई मेरापन नही रहता बल्कि आत्मिक स्मृति कमल पुष्प समान न्यारा और प्यारा बना देती है । ऐसे ब्राह्मण बच्चे ही दूसरों को सम्पूर्ण पवित्र रहने का चैलेंज करने वाली ज्ञानी तू योगी आत्मा बनते हैं ।
❉ जैसे कमल की यह विशेषता है कि वह जल में रहते हुए भी जल से न्यारा होकर रहता है । अस्पताल में नर्स अनेक बच्चों को सँभालते हुए भी उनसे मोह नही रखती । कोर्ट में एक जज ख़ुशी या गम के निर्णय सुनाता है, परन्तु वह स्वयं उनके प्रभाव में कभी नही आता । इसी प्रकार जब हम भी प्रवृति में रहते हुए सबसे न्यारे हो कर एक बाप की याद में मगन रहते हैं तो सम्पूर्ण पवित्रता की धारणा का चेलेन्ज दूसरों को सहज ही दे सकते हैं जो ज्ञानी तू योगी आत्मा की निशानी है ।
❉ जैसे कोई रॉयल फैमिली का बच्चा होता है तो उसके चेहरे और चलन से पता पड़ जाता है कि यह कोई रॉयल कुल का है । ऐसे ब्राह्मण जीवन की परख भी प्योरिटी की झलक से होती है और यह प्योरिटी की झलक चेहरे और चलन से तब दिखाई दे सकती है जब संकल्प में भी अपवित्रता का नाम ना हो, किसी भी विकार का प्रभाव ना हो । ऐसे प्रवृति में रहते प्योरिटी की रॉयलिटी द्वारा जो बच्चे ब्राह्मण जीवन की सम्पूर्ण पवित्रता की विशेषता को प्रत्यक्ष करते हैं वही ज्ञानी तू योगी आत्मा कहलाते हैं ।
❉ पूज्य, पवित्र आत्मा की निशानी है – उनका हर संकल्प, बोल, कर्म और स्वप्न यथार्थ अर्थात् युक्तियुक्त होता है । उनके हर संकल्प में अर्थ होता है । ऐसे नही मुख से कुछ भी बोल दिया या गलती से मुँह से निकल गया । ऐसे शब्द कभी भी उनके मुख से निकल नही सकते । ऐसे प्रवृति में रहते पवित्रता को धारण कर जो सदा दिनचर्या के हर कर्म में यथार्थ और युक्तियुक्त रहते हैं वही ब्राह्मण बच्चे ही दूसरों को सम्पूर्ण पवित्र रहने का चैलेंज करने वाले ज्ञानी तू योगी आत्मा बन सकते हैं ।
❉ जो कर्मेन्द्रियजीत बन कर्मेन्द्रियों से कर्म करते हुए भी कर्मातीत स्थिति का अनुभव करते हैं वे प्रवृति में भी कमल पुष्प समान रहते हुए माया की कीचड़ से स्वयं को सेफ रखते हैं तथा देह और देह के आकर्षणों से न्यारे और बाप के प्यारे बन बाप की याद में रह कर्मयोगी बन हर कर्म करते हैं । प्योरिटी की रॉयलिटी की झलक उनके चेहरे और चलन से स्पष्ट दिखाई देती है जो अनेको आत्माओं के सामने इस बात का पर्त्यक्ष प्रमाण बन जाती है कि प्रवृति में रहते भी सम्पूर्ण पवित्र बनना सहज है । यही ज्ञानी तू योगी आत्मा की निशानी है ।
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━