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❍ 19 / 07 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ कर्मेन्द्रियों से कोई भी ×भूल× तो नहीं हुई ?
➢➢ पवित्र रहने के साथ साथ √याद में मजबूत√ बनकर रहे ?
➢➢ तन मन धन से बाप पर √बलिहार√ गए ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ अपनी स्मृति वृत्ति और दृष्टि को √अलोकिक√ बनाया ?
➢➢ दिल में √परमात्म प्यार व शक्तियों√ को समा मन को उलझनों से मुक्त रखा ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ √श्रेष्ठ स्मृति√ में रह श्रेष्ठ कर्म किये ?
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/19.07.16-VisheshPurusharth.htm
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/19.07.16-VisheshPurusharth.pdf
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - यह भारत भूमि निराकार बाप की जन्मभूमि है यहाँ ही बाप आते ही तुम्हे राजयोग सिखलाकर तुम्हारी सेवा करने"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे यह भारतभूमि भी किस कदर भाग्यशाली है कि स्वयं भगवान यहाँ ही उतरता है... और आप बच्चे का भाग्य भी कितना खूबसूरत है की भगवान स्वयं सेवा में उपस्तिथ होकर राज योग सिखाता है... इस मीठे नशे में भर चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा किस कदर भाग्य शाली हूँ.... ईश्वर पिता को आकर मुझे राज योग सिखाकर मेरा जीवन सच्चे सुखो से भर दिया... मै आत्मा सदा की मुस्करा उठी हूँ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे भारत देश ईश्वरीय जन्मभूमि होकर महानता को छु चला है... अपने फूल से बच्चों को विकारो की अग्नि में झुलसता देख पिता का कलेजा द्रवित हो यही उतरता है... बच्चे फिर से वही राजभाग से भर जाय... इस सेवा में जुटता है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपके मीठे साये में बेठ राजयोग से निखर रही हूँ... वही खूबसूरत आभा वही नूर पाकर दमक रही हूँ... कितना मीठा भाग्य कि विश्व पिता मेरी सेवा कर रहा है...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चे आप बच्चों की सेवा में धरती पर आता हूँ... सदा का राजा बना सुख के अथाह खजाने देने आया हूँ... भारत भूमि पर ही आता हूँ और महान भाग्य जगाता हूँ... इन मीठे अहसासो में डूब जाओ... और यादो की गहराई में उतर जाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा राजयोगी बन चली हूँ... आपकी खूबसूरत सेवा की मुरीद हो चली हूँ... इस महान भूमि हूँ जिस पर निराकार बाबा आया है... इन सुखद अहसासो में डूब गयी हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - कर्मातीत अवस्था"
➳ _ ➳ मैं आत्मा संगमयुगी ब्राह्मण हूं... मैं आत्मा अपनी कर्मेन्द्रियों की मालिक हूं... सभी कर्मेन्द्रियां मेरे आर्डर प्रमाण चलती हैं... मैं स्वराज्याधिकारी आत्मा हूं... मैं आत्मा कर्म के प्रभाव से न्यारी होकर कर्म करती हूं... मैं आत्मा सर्व कर्म बंधनों से मुक्त आत्मा हूं... मैं आत्मा हर कर्म निमित्त भाव से करती हूं... मैं आत्मा दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूं कि मैं आत्मा कोई विकर्म नही करुंगी... मुझ आत्मा ने पांचो विकार बाबा को दान दे दिये हैं... मैं आत्मा इन कर्मेन्द्रियों से कोई भूल नही करती... मैं आत्मा कर्मातीत अवस्था का अनुभव करती हूं... मैं आत्मा सहज ही अनुभव करती हूं कि कराने वाला और करने वाली कर्मेन्द्रियां स्वयं से ही अलग हैं... मैं आत्मा एक प्यारे बाबा की याद में रह विकर्म विनाश करती हूं... याद से ही मुझ आत्मा की एलाय उतरती जाती है... याद के बल से ही मैं आत्मा पावन बनती हूं... मुझ आत्मा को सिर्फ व सिर्फ एक प्यारे शिव बाबा की याद म़े रहती हूं...
❉ "ड्रिल - बाप पर बलिहार जाना"
➳ _ ➳ मैं भाग्यवान आत्मा हूं... इस संगमयुग पर स्वयं परमपिता परमात्मा ने मुझ आत्मा को अपना बनाया है...प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान का तीसरा नेत्र दिया है... मुझ आत्मा को असली स्वरुप की पहचान दी... सत्य परमपिता परमात्मा बाप का परिचय दिया... प्यारे बाबा ज्ञान का सागर हैं... मुझ आत्मा को पाप आत्मा से पुण्य आत्मा बना रहे हैं... इसलिए मैं आत्मा ओर संग तोड बस एक बाप संग जोडती हूं... ये पुरानी दुनिया पुराना शरीर सब विनाशी है... मुझ आत्मा को ज्ञान हो गया है कि इस भंभोर को आग लगनी है... मैं आत्मा इस विनाशी दुनिया से मोह मुकत हो गई हूं... मैं आत्मा अपना तन-मन-धन सब बाप पर बलिहार करती हूं... मैं आत्मा ड्रामा के राज को जान गई हूं... ये शरीर रुपी चोला मुझे इस साकार लोक में पार्ट बजाने के लिए मिला है... मैं आत्मा इस एक जन्म बाप पर बलिहारी जाती हूं... प्यारे बाबा मुझ आत्मा को 21 जन्म के लिए विश्व की राजाई देते हैं...
❉ ड्रिल - दिल में परमात्म प्यार वा शक्तियाँ समाना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा परमात्म प्यारी आत्मा हूं... मैं आत्मा खुशनसीब हूं... स्वयं सर्वशक्तिमान प्यारे शिव बाबा मुझ आत्मा के साथी है... मैं आत्मा कितनी पदमापदम भाग्यशाली हूं जो परमात्म पालना में पल रही हूं... मैं आत्मा सदैव बाबा की हजार भुजाओं की छत्रछाया में हूं... मैं आत्मा बाबा के दिलतख्त पर विराजमान हूं... सदैव एक की लगन में मगन हूं... मुझ आत्मा में सर्वशक्तिमान बापदादा की सर्वशक्तियां समाहित हैं... मुझ आत्मा के दिल में बस एक बाप की याद समाई है... मैं आत्मा हर परिस्थिति को बाबा का साथ होने से सहज ही पार करती हूं... मैं आत्मा निश्चयबुद्धि हूं... मैं आत्मा उलझन मुक्त हूं...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं आत्मा सर्व आकर्षणों से मुक्त हूँ ।"
➳ _ ➳ मैं आत्मा जीते जी मर चुकी हूं... इस पुरानी दुनिया और पुराने शरीर के सब सम्बंधों को बुद्धि से भूल चुकी हूं... पुरानी दुनिया का विनाश होना ही है... खलास होनी है...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा के देह वा देह के सम्बंधों से जुड़े सर्व आकर्षण समाप्त हो रहे हैं... मैं आत्मा पुरानी विनाशी दुनिया से मोह तोड चुकी हूं... दुनिया बदल रही है...
➳ _ ➳ जैसे दिन के बाद रात आती ही है... सृष्टि बदलती है... पुराना शरीर छोड नया शरीर लेना है... नयी दुनिया पावन दुनिया है... मुझ आत्मा को नयी दुनिया में जाना है... इसलिए मैं आत्मा पुरानी दुनिया पुराने स्वभाव संस्कारों को भूल गई हूं...
➳ _ ➳ इनसे संयास ले लिया है... मैं आत्मा एक बाप की याद में हूं... मैं आत्मा बाप द्वारा नई सृष्टि रचने के निमित्त बनाई गई विशेष आत्मा हूँ... मेरा एक-एक संकल्प श्रेष्ठ अर्थात अलौकिक है... कहा जाता है- " जैसे संकल्प वैसी सृष्टि " होती है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा भी यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मेरी स्मृति-वृत्ति और दृष्टि सब अलौकिक हो गए हैं... जिस कारण इस लोक का कोई भी व्यक्ति वा कोई भी वस्तु मुझ आत्मा को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकती है...
➳ _ ➳ व्यक्ति वा वस्तु में आकर्षण मात्र होना ही अलौकिकता की कमी की निशानी है... इसलिए मैं अलौकिक आत्मा सर्व आकर्षणों से मुक्त रहने वाली अनुभवी आत्मा की सीट पर सेट हो गयी हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ अपनी स्मृति, वृत्ति और दृष्टि को अलौकिक बनाने वाले सर्व आकर्षणों से मुक्त होते हैं... क्यों और कैसे ?
❉ कहते हैं न जैसा संकल्प वैसी सृस्टि होती है। जैसा हम सोचेंगे वैसा ही हम बन जायेंगे। जो नई सृस्टि रचने के निमित्त विशेष आत्मायें हैं उनका एक-एक संकल्प श्रेष्ठ अर्थात अलौकिक होना चाहिये तभी तो अलौकिक व आकर्षणमूर्त बनेंगे।
❉ जब स्मृति-वृत्ति और दृस्टि सब अलौकिक हो जाती है तो इस लोक का कोई भी व्यक्ति व कोई भी वस्तु अपनी और आकर्षित नहीं कर सकती है क्योंकि अगर ये वस्तुयें व व्यक्ति आकर्षित करती हैं, तो हम में अभी अलौकिकता की कमी है, क्योंकि अलौकिक आत्मायें सर्व आकर्षणों से मुक्त होंगी।
❉ इसलिये हमें अपनी स्मृति, वृत्ति और दृष्टि को सदा अलौकिक बना कर रखना है। कहते हैं न कि... रूहानियत की नज़र रखो। जब हमारी दृष्टि और वृत्ति में सदा रूहानियत की खुशबू महकती रहेगी, तब हम भी स्वतः ही सर्व आकर्षणों से मुक्त हो जाएंगे।
❉ हमें सदा स्मृति स्वरूप बनना है। सदा ही अपने अनादि स्वरूप की स्मृत्ति में स्थित हो कर रहना है। अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली तथा सदा साथ ही रहने वाली लौकिक परिवार की आत्माओं को भी अपनी स्मृति को अलौकिक दृस्टि वृत्ति द्वारा अलौकिक बनाना है।
❉ जब स्मृति-वृति और दृस्टि सब कुछ अलौकिकता में परिवर्तित ही जाता है तब जैसा हमारा संकल्प होता है वैसी ही हमें अपने चारों ओर की सृस्टि भी नज़र आने लगती है। तभी तो कहा है कि "जैसी दृस्टि वैसी ही सृस्टि"। इस कथन के अनुसार, जो भी नई सृस्टि के निर्माण हेतु निमित्त विशेष आत्मायें हैं, उन का भी संकल्प श्रेष्ठ वा अलौकिक बन जाता है।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ दिल में परमात्म प्यार वा शक्तियां समाई हुई हों तो मन में उलझन आ नही सकती... क्यों और कैसे ?
❉ जिनके दिल में परमात्म प्यार वा शक्तियां सदा समाई रहती हैं वे स्वयं भी सदा संतुष्ट रहते हैं तथा बाप और सर्व आत्माएं भी उनसे सदा सन्तुष्ट रहती हैं । सन्तुष्टता की झलक प्रसन्नता के रूप में उनके चेहरे से सदा दिखाई देती है । सदा प्रसन्नचित रहने का यह गुण तथा आगे बढ़ने का लक्ष्य उन्हें जीवन में आने वाली हर समस्या और परिस्थिति में भी मनोरंजन का अनुभव करवाता है । इसलिए बिना किसी उलझन के वे हर परिस्थिति पर सहज ही विजय प्राप्त कर लेते हैं ।
❉ जो परमात्म प्यार में सदा लवलीन और सर्व शक्तियों से सदा सम्पन्न रहते हैं तथा परमात्म प्यार के आनन्दमय झूले में सदा झूलते रहते हैं उन्हें माया कभी भी हलचल में लाने की हिम्मत नही कर पाती । किन्तु इस परमात्म प्यार को प्राप्त करने की विधि है - न्यारा बनना । जो जितना न्यारा बनता है उतना ही परमात्म प्यार का अधिकारी बनता है । परमात्म प्यार में समाई हुई आत्मा कभी भी हद के प्रभाव में नही आ सकती इसलिए सदा बेहद की प्राप्तियों में मगन रहने के कारण हर हर उलझन से सदैव मुक्त रहती है ।
❉ जो परमात्म प्यार के अनुभवी बनते है वे इसी अनुभव से सहजयोगी बन सदा उड़ते रहते हैं क्योकि परमात्म प्यार है ही उड़ाने का साधन । उड़ने वाले कभी भी धरती के आकर्षण में नही आते । माया का कितना भी आकर्षक रूप हो लेकिन वह आकर्षण उड़ती कला वालों को कभी आकर्षित नही कर सकता । क्योकि परमात्म प्यार की डोर उन्हें दूर से ही खींच कर ले जाती है और माया को समीप भी नही आने देती । इसलिए हर उलझन से मुक्त हो कर वे सदा परमात्म सुख के झूले में झूलते रहते है ।
❉ जीवन में जो चाहिये अगर वह कोई दे देता है तो यही प्यार की निशानी होती है । इसी प्रकार बाप का भी हम बच्चों से इतना प्यार है जो सारी कामनायें पूर्ण कर देते हैं । बाप सुख ही नही देते लेकिन सुख के भण्डार का मालिक बना देते हैं - यही परमात्म प्यार है । जो बच्चे इस परमात्म प्यार में सदा लवलीन और खोये हुए रहते हैं उनकी अनुभूति की किरणे इतनी शक्तिशाली होती है कि उनके मन में किसी भी तरह की कोई भी उलझन कभी आ ही नही सकती । हर उलझन से वे उपराम हो जाते हैं ।
❉ बाबा का हम बच्चों से इतना स्नेह और प्यार है जो अमृतवेले से ही हमारी पालना करते हैं । हमारे दिन का प्रारम्भ ही इतना श्रेष्ठ होता हैं जो स्वयं भगवान मिलन मनाने के लिए हमे बुलाते हैं । हमारे साथ रूह - रिहान करते हैं और आत्मा में शक्तियां तथा बल भरते हैं । बाबा की मुहब्बत के गीत हमे बड़े प्यार से उठाते हैं । इस प्यार की पालना का प्रैक्टिकल स्वरूप बन जो सदा परमात्म प्यार में खोये रहते हैं । वे हर प्रकार की उलझन से सदा मुक्त हो जाते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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