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❍ 22 / 07 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ √ज्ञान और योग√ में मज़बूत होने का पुरुषार्थ किया ?
➢➢ आत्मा में जो खाद पडी है, उसे √याद की मेहनत√ से निकला ?
➢➢ "हम √ब्रह्मा मुख वंशावली√ ब्राह्मण छोटी हैं" - इस नशे में रहे ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ अपनी √सम्पूरण स्टेज√ द्वारा सर्व प्रकार की अधीनता को समाप्त किया ?
➢➢ √श्रीमत की लगाम√ मज़बूत कर मन रुपी घोडा भागने से रोका ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ स्वमान और अभिमान के अंतर को समझ ×अभिमान× से दूर रहे ?
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/22.07.16-VisheshPurusharth.htm
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - बेगर से प्रिन्स बनने का आधार ही पवित्रता है, पवित्र बनने से ही पवित्र दुनिया के राजाई मिलती है"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे अमीरो के अमीर थे शहजादे से घर से चले थे... पर देह भान ने सब कुछ खत्म करवाकर यूँ बेगर बन दिया है... अब वही राजाई पाने के लिए पवित्रता की दमक को जगाना है... यही पवित्रता जीवन को राजाई बनाएगी और सारे सुखो को कदमो में छलकायेगी...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा... पवित्रता के श्रंगार से सजी थी तो किस कदर अमीरी से भरी थो... अपवित्रता ने मुझे लाचार दीन हीन बना दिया... अब आपकी मीठी यादो से वही श्रंगार पा कर सज रही हूँ... और अमीर बन रही हूँ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे मेरे फूल से बच्चे खिलते मुस्कराते गुणो और शक्तियो की खुशबु से भरे महके महके से थे... पर विकारो की कालिमा ने सारे रंग रूप को धूमिल कर दिया है... अब मीठे पिता की यादो में पावन बन कर उस सुनहरी रंगत को फिर से पा लो... वहो सुनहरा दमकता ताज रूप बाँहो में भर चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपके मीठे सच्चे स्नेह के साये में जनमो की गरीबी को मिटा रही हूँ... और 21 जनमो की खूबसूरत अमीरी को अपने नाम लिखवा रही हूँ... पवित्रता की चुनरी में देवता रूप बना रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे बच्चे... आप बच्चों की अमीरी का मदार पवित्रता पर टिका था... जो खेलते खेलते खो ही चले हो... मेरे राजकुमार से बच्चे होकर बेगर बन बिलख रहे हो... अब इस सुंदर भाव में गहरे उतर चलो और पवित्रता पर टिकी जादूगरी को पा चलो... फिर से ताजधारी राजा बन मुस्करा उठो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सारे अमीरी और गरीबी के भेद जान चुकी हूँ... फिर से अमीरी को पाने के राज को अपना चुकी हूँ... पवित्र बन मुस्करा उठी हूँ और पूरे विश्व की मालिक बनने का भाग्य आपसे लिखवा चुकी हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - ज्ञान योग के पंख लगा उड़ना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा पहले घोर अज्ञानता के अंधियारे में थी... देहभान में आकर विकारों में आने से पतित हो गई... काली हो गई... मुझ आत्मा को प्यारे बाबा से दिव्य ज्ञान व दिव्य दृष्टि मिलने से अंधेरे से उजाले में आ गई हूं... देह व देह के सम्बंधों से न्यारी होती जा रही हूं... प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान और योग के दिव्य पंख दिये है... दिव्य पंखों से मैं आत्मा उड़ना सीख गई हूं... मैं आत्मा ज्ञान और योग बल से अपने विकारों को स्वाहा करती जा रही हूं... मैं आत्मा अपने प्यारे बाबा की याद में रहती हूं... याद में रहने से मेरी आत्मा की कट उतरती जा रही है... मेरी आत्मा शुद्ध होती जा रही है... पावन बनती जा रही है... मै आत्मा बस एक प्यारे बाबा की याद में रह बल जमा करती हूं...
❉ "ड्रिल - वर्से के अधिकारी ब्राह्मण"
➳ _ ➳ मैं आत्मा ब्रह्मा मुखवंशावली हूं... ब्राह्मण चोटी हूँ... लौकिक में ब्राह्मणों को आज तक पूजनीय माना जाता है... वो हम ब्राह्मण आत्माओं का ही गायन है... सृष्टि रंग मंच पर मुझ आत्मा का पार्ट बहुत ऊँच है... स्वयं भगवान हम ब्राह्मण बच्चों की महिमा करते हैं... कितना नशा होना चाहिए !! जहां दुनिया वाले भगवान की महिमा करते और भगवान हम बच्चों की... मेरे बाबा ने ऊँच ज्ञान देकर सृष्टि में ऊँच ते ऊँच बना दिया है... सृष्टि के आदि में स्थापना का हम ब्राह्मण बच्चों से करवा रहे हैं... हम ब्राह्मण आत्मायें ही आधारमूर्त हैं... ब्रह्मा बाप मेरे अलौकिक पिता है... शिव बाबा मेरे पिता के भी पिता है... ब्रह्मा द्वारा अडॉप्ट किये जाने पर मैं आत्मा स्वयं ही वर्से की अधिकारी आत्मा बन गयी हूँ... क्योंकि शिव बाबा हम ब्राह्मण आत्माओं के दादा भी है हम पौत्रे भी है...
❉ "ड्रिल - श्रीमत पर ही चलना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा मन बुद्धि की मालिक हूँ... मैं आत्मा स्वराज्य अधिकारी हूँ... मेरे मीठे बाबा ने मुझे मेरा असली स्वरूप बता दिया है... मैं आत्मा मन बुद्धि को कण्ट्रोल करने वाली बन गयी हूँ... मेरा अपनी हर कर्म इन्द्रिय पर कण्ट्रोल है क्योंकि बाबा की श्रीमत का पालन कर रही हूँ... अब मुझ आत्मा का मन रूपी घोड़े पर श्रीमत का अटेंशन रहता है... मुझ आत्मा के साथ सदा बाप की श्रीमत के हाथ का साथ है इसलिए मन बेकाबू नही हो सकता... मैं आत्मा कर्मेन्द्रियजीत हूं... मैं आत्मा जितनी देर जिस कर्मेन्द्रिय से जहां कर्म कराना चाहूं करा सकती हूं... एक बाप की श्रीमत पर चल मैं आत्मा अपने मन को एक छोटे बच्चे की तरह प्यार से काबू में रखती हूं... मैं आत्मा श्रीमत रुपी लगाम मजबूत रख मनजीत बन गई हूं...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं प्रकृति जीत आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳ मैं आत्मा ब्रह्मा बाप समान सम्पन्नता के स्वभाव संस्कार वाली समान सम्पन्न सम्पूर्ण आत्मा हूँ... बाप से दिव्य बुद्धि की लाइट मुझ आत्मा में उतर रही है... मैं आत्मा अपने दिव्य स्वरूप का अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाप समान मास्टर सागर बन उंच तीव्र लगन से समान सम्पन्न सम्पूर्ण बनती जा रही हूँ... मैं आत्मा जगता हुआ सपन्न दीपक हूँ... मैं आत्मा सम्पूर्ण दीपक हूँ... मैं बाप समान चरित्रवान हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाप की शुभ आशाओं को, उम्मीदों को और श्रेष्ठ संकल्पों को साकार पूर्ण करने वाली बाप की आशाओं का दीपक हूँ... मैं आत्मा ऊँची स्टेज वाली सदा डबल लाइट उड़ता पंछी हूँ... मैं आत्मा अपनी इस सम्पूर्ण स्टेज पर स्तिथ होकर प्रकृति पर भी विजय अर्थात अधिकार का अनुभव करने वाली आत्मा हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा 1.रूहानियत, 2. रुहाब, 3. रहमदिल के गुणों से भरपूर हो गईं हूँ... यह तीनों गुण मुझ आत्मा में प्रत्यक्ष रूप में स्तिथ हो रहें हैं... यह तीनों गुण मुझ आत्मा की स्तिथि में स्तिथ हो मुझ आत्मा के चेहरे वा कर्म में दिखाई देने लगा है... मैं आत्मा इस ऊंच स्तिथि का अनुभव कर अधिकारी वा प्रकृति जीत आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ अपनी सम्पूर्ण स्टेज द्वारा सर्व प्रकार की अधीनता समाप्त करने वाले प्रकृति जीत होते हैं... क्यों और कैसे ?
❉ अपनी सम्पूर्ण स्टेज द्वारा सर्व प्रकार की अधीनता समाप्त करने वाले प्रकृति जीत होते हैं क्योंकि उन्होंने अपनी कर्मेंद्रियों को जीत लिया है। वो मनजीत सो जगतजीत होते हैं। उन्होंने अपने मन को जीत लिया हैं। वो मन इन्द्रियों के राजा हैं।
❉ जब हम अपनी सम्पूर्ण स्टेज पर स्थित होंगे तो प्रकृति पर भी विजय अर्थात प्रकृति पर अधिकार का अनुभव करेंगे क्योंकि सम्पूर्ण स्टेज में किसी भी प्रकार की अधीनता नहीं रहती है तथा अधिकारीपन का अनुभव होता है।
❉ लेकिन ऐसी सम्पूर्ण स्टेज बनाने के लिये तीन बातें साथ-साथ चाहिये। वह तीन बातें हैं:- 1. रूहानियत,
2. रुहाब और 3. रहमदिल का गुण। जब ये तीनों बातें प्रत्यक्ष रूप में, स्थिति में, चेहरे वा कर्म में दिखाई दें तब कहेंगे अधिकारी वा प्रकृति जीत आत्मा।
❉ सम्पूर्ण स्टेज अर्थात सोलह कला सम्पूर्ण बनना। जब हम सर्व दैवी गुणों से सम्पन्न तथा सम्पूर्ण निर्विकारी अवस्था को प्राप्त करते हैं तब हम अपनी सम्पूर्ण स्टेज की स्थिति में स्थित होते हैं। सम्पूर्ण स्टेज के उपरान्त हम इस शरीर रुपी विकारी चोले से भी उपराम हो जाते हैं।
❉ ये देह भी प्रकृति के पाँचों तत्व से मिल कर बनी है। सम्पूर्णता को प्राप्त आत्मा इस देह की प्रकृति की भी मालिक होती है। मैं आत्मा और ये मेरा शरीर। दोनों अलग अलग हैं। मैं इस प्रकृति से निर्मित इस देह की मालिक हूँ अर्थात मैं अधिकारी आत्मा हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ श्रीमत की लगाम मजबूत है तो मन रूपी घोडा भाग नही सकता...क्यों और कैसे ?
❉ कोई भी छोटी सी व्यर्थ बात हो या व्यर्थ वातावरण या व्यर्थ दृश्य हो, सबका प्रभाव सबसे पहले मन पर ही पड़ता है , फिर बुद्धि उसको सहयोग देती है । मन और बुद्धि अगर उसी प्रकार चलती रहती है तो वह संस्कार बन जाता है । इसलिए बाबा की श्रीमत है कि अभी भी अपने को चेक करो कि मेरा जो व्यर्थ संस्कार है वो बना कैसे ? क्योकि संस्कारवश भी अनेक ऐसे विकर्म ना चाहते हुए भी हो जाते हैं । इसलिए श्रीमत की लगाम को अगर मजबूत रखेंगे तो संस्कारवश भी कोई विकर्म नही होंगे क्योकि मन रूपी घोडा कण्ट्रोल में रहेगा ।
❉ बाप द्वारा हम बच्चों को मनमनाभव का मन्त्र इस लिए मिला हुआ है क्योकि बाबा जानते हैं कि बच्चों की स्थिति में मालिकपन की स्मृति को भुलाने वाला मन ही है । इसके लिए बाबा की श्रीमत भी है कि सदा स्व राज्य अधिकारी की सीट पर सेट रहो । सीट से जब नीचे उतरते हैं तो अधीन हो जाते हैं । इसलिए बाबा समझाते हैं कि सदैव स्मृति में रखो मैं आत्मा राजा हूँ और मन मंत्री है । और राजा का अर्थ ही है जिसमें रूलिंग पॉवर हो । इसलिए श्रीमत की लगाम को मजबूत कर अपनी रूलिंग पावर को यूज़ करो तो मन रूपी घोडा कभी भाग नही सकता ।
❉ पूरे 63 जन्मों से रावण की चीज़ जो अपने पास छिपाकर रखी है वो मन का मालिक बनने नहीं देती । मेरी आदत है , मेरा स्वभाव है,मेरा संस्कार है, मेरी नेचर है - ये सब रावण की सम्पति है जो दिल में अभी भी छुपा कर रखी हुई है इसलिए घड़ी घड़ी दिलाराम बाप को भूल जाते हैं । तो बाप समझानी देते हैं कि अभी इसको मिटाओ । जब मेरा शब्द बोलते हो तो याद करो - मेरा स्वभाव या मेरी नेचर क्या है? अपने ओरिजीनल स्वभाव, संस्कार को स्मृति में रख श्रीमत रूपी लगाम को कस कर पकड़े रहो तो मन रूपी घोडा सदा नियंत्रण में रहेगा ।
❉ दुनिया वाले कहते हैं कि मन घोड़ा है जो बहुत तेज भागता है लेकिन बाबा कहते हैं कि आपके हाथ में श्रीमत की मज़बूत लगाम है । अगर वह लगाम ठीक है तो कुछ भी हलचल नहीं हो सकती । लेकिन अगर चलते-चलते लगाम को कस कर पकड़ने के बजाए बुद्धि या मन को कोई साइटसीन देखने में बिज़ी कर देते हो तो लगाम ढीला हो जाता है और लगाम ढीला होने से ही मन चंचलता करता है । इसलिए श्रीमत का लगाम सदा अपने अन्दर स्मृति में रखो । जब भी कोई बात हो, मन चंचल हो तो श्रीमत का लगाम टाइट करो । फिर मंज़िल पर पहुँच जायेंगे ।
❉ बाबा द्वारा अपने हर एक बच्चे को हर कदम के लिए श्रीमत मिली हुई है । हर कर्म के लिये श्रीमत है । चलना, खाना, पीना, सुनना, सुनाना - सबकी श्रीमत है । श्रीमत को जब ढ़ीला कर देते हैं तो ही मन को चांस मिलता है चंचल बनने का । फिर उसको आदत पड़ जाती है । तो यह आदत डालने वाले हम ही है । इसलिए बाबा समझाते हैं कि पहले मन का राजा बनो । जैसे आजकल के राज्य में अलग ग्रुप बना करके फिर पॉवर में आ जाते हैं । और पहले वालों को हिलाने की कोशिश करते हैं तो ये मन भी ऐसे करता है । लेकिन अगर श्रीमत की लगाम मजबूत है तो मन रूपी घोडा भाग नही सकता ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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