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❍ 21 / 09 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ एक बाप में ही शुद्ध सच्चा मोह रखा ?
➢➢ ट्रस्टी होकर सब कुछ संभाला ?
➢➢ कर्मेन्द्रियों से कोई विकर्म तो नहीं हुआ ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ स्नेह और शक्ति के बैलेंस द्वारा सेवा की ?
➢➢ सर्वशक्तिवान बाप को साथी बनाकर रखा ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ अपना √स्वमान, सर्विस और श्रेष्ठतायों√ को प्रतक्ष्य किया ?
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - आपस में एक दो को बाप की याद में रहने का इशारा देते,सावधान करते उन्नति को पाते रहो"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे... इस संगम युग के वरदानी समय का एक एक पल कीमती है... यह सांसे भी अमूल्य है... अब इन्हे यूँ ही न गवाओ... याद में रहो और सबको याद दिलाओ... समय से पूर्व सज चलो ऐसा अनोखा पुरुषार्थ कर दिखाओ... और उन्नति को पाकर सदा की मुस्कान से सज जाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा खुद भी सावधान होकर सबको भी सावधान कर मीठे बाबा की यादो में खोयी खोयी सी हूँ... प्यारा बाबा मुझे हर पल निखार रहा है... मेरे सारे विकर्मो का विनाश हो रहा है... और मै खूबसूरत आत्मा बनती चली जा रही हूँ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... देह के नातो को बहुत चाह लिया निभा लिया और खालीपन को भी देख लिया... अब प्राप्ति के सागर में डुबकी लगाओ... अपनी सांसो को ईश्वरीय यादो में भिगो दो... और महा प्रेम में मदमस्त हो जाओ... एक पल भी न गुजरे नजरो से... यादो के बिना ऐसा अटूट प्रेम का नाता निभाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी यादो में खोकर मन्त्रमुग्ध हो चली हूँ... इन मीठी यादो के अनन्त सागर में डूब गयी हूँ... निरन्तर याद से अथाह ख़ुशी को पाती जा रही हूँ... और हर दिल को ईश्वरीय प्रेम का पैगाम देकर निरन्तर उन्नति के अहसासो में डूबती जा रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता धरती पर उतरा है प्रेम की सुगन्ध को बाँहों में समाये हुए... तो फूल बच्चे इस खुशबु को अपने रोम रोम में सुवासित कर चलो... यादो को सांसो सा जीवन में भर चलो... और यही प्रेम नाद सबको सुनाकर आल्हादित रहो... हर साँस पर नाम खुदाया हो... ऐसा जुनूनी बन चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपनी सांसो पर आपका नाम लिख चली हूँ... ईश्वरीय नशे से भरकर झूम उठी हूँ... सबको यादो भरा जाम पिलाती जा रही हूँ... और ईश्वरीय खुशबु से हर पल महकती जा रही हूँ... शिब बाबा याद है... यह अलख जगाती जा रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - देहधारियों से ममत्व निकाल बस एक बाप को ही याद करना"
➳ _ ➳ स्वयं को भृकुटि के बीच चमकता हुआ सितारा देखें... इस पांच तत्वों की दुनिया व देह के सर्व सम्बंधों से न्यारा कर अपने को आत्मा समझें... मैं आत्मा अजर अमर अविनाशी हूं... शुद्ध हूं... पवित्र हूं... इस शरीर को चलाने वाली चैतन्य शक्ति हूं... मैं आत्मा मन बुद्धि की अधिकारी हूं... स्वराज्याधिकारी आत्मा हूं... जैसे मैं आत्मा बिंदु स्वरुप हूं... ऐसे मुझ आत्मा के पिता भी बिंदु स्वरुप हूं... तेजोमय है... परमपिता परमात्मा से निकलती अनन्त किरणें मुझ आत्मा में समाती जा रही है... मुझ आत्मा का शुद्धिकरण हो रहा है... मुझ आत्मा को परमपिता परमात्मा शिव से दिव्य बुद्धि और दिव्य दृष्टि रुपी अनमोल गिफ्ट मिले है... जिससे मुझ आत्मा का अज्ञानता का अंधियारा मिट रहा है... मुझ आत्मा को अपने वर्षो से बिछुड़े सच्चे पिता का परिचय मिल गया है... अब मैं आत्मा अपने को बिंदु समझ बिंदु बाप की याद में रहती हूं... मैं सदैव अपने परमपिता की छत्रछाया में रहती हूं... अभी तक देहभान में रह देहधारियों से दुख ही पाती रही हूं... मुझ आत्मा का इस झूठी व विनाशी रिश्तों से कोई लगाव नही रहा है... मैं आत्मा बुद्धि से इस पुरानी दुनिया को भुला चुकी हूं... मुझ आत्मा के सर्व सम्बंध बस एक प्यारे मीठे बाबा से हैं... मीठे बाबा अब आप ही मेरा संसार हो... मैं आत्मा श्वांसो श्वांस बस एक की लगन में मगन हूं... ये शरीर भी मुझे सेवार्थ मिला है... मैं तो इस साकार लोक में पार्ट बजाने आई हूं... मैं आत्मा तो इस धरा पर मेहमान हूं... निमित्त हूं... अपने को ट्रस्टी समझ बस जिम्मेवारी निभा रही हूं...
❉ "ड्रिल - सर्वशक्तिवान बाप का साथी के रूप में अनुभव"
➳ _ ➳ मैं आत्मा, मास्टर सर्व शक्तिवान, शक्तियों के अंनत सागर की संतान, इस संगम युग में मेरे पिता ने स्वयं मुझ आत्मा को चुना हैं। मैं साधारण नही हुँ, मैं एक शक्तिशाली आत्मा हुँ, उस सर्व शक्तिवान की दृष्टि में आई एक अति भाग्यशाली आत्मा हुँ। वह परमात्मा हजारों भुजाओं सहित सदैव मेरे साथ हैं। मेरा सबसे प्यारा साथी, जो मुझे बहुत ही प्रेम करता हैं। जो सदैव हर प्रकार की परिस्थितियों में मेरा साथ निभाता हैं। मुझे सही गलत का रास्ता बताता हैं। मैं आत्मा इस प्यारे साथी को पाकर धन्य हो गयी हुँ। मेरा यह प्यारा साथी मुझे अज्ञनता में हुए विकर्मो से मुक्त करने के अनेकों उपाय बताकर मुझ आत्मा को पश्चाताप के बोझ से मुक्त करता जा रहा हैं। मेरा बाबा जो कि मेरा साथी भी हैं मुझ आत्मा को समझा रहे हैं, कि आत्मा को तो अपने सतोप्रधान अवस्था से तमोप्रधान अवस्था में आना ही था। तो किस प्रकार का पश्चाताप, यह सब तो ड्रामें में नूँध था। ड्रामें का हर सीन राइट, परफेक्ट व एक्यूरेट हैं। अब देह सहित देह के सभी संबंधों को भूल एक बस मेरे साथ सर्व संबंध रख इस पुरानी दुनियां को भूल जाओ। एक मुझे ही सदैव अपने साथ रखो।
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं सफलतामूर्त आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳ बैठ जाएँ सहज योगमुद्रा में... और महसूस करें अपने भाग्य की सुंदरता को... मैं आत्मा कितनी खुशनसीब, कितनी सौभाग्यशालिनी आत्मा हूँ... स्वयं संसार का मालिक मेरा मेहबूब बनकर, मेरी ऊँगली पकड़कर, मुझे सत्य के मार्ग पर चलना सिखा रहें हैं...
➳ _ ➳ सारा संसार जिनकी एक झलक पाने के लिए अपना सर्वस्व लुटा देने के लिए व्याकुल हैं... वहीं प्राणों से भी अति प्रिय प्राणेश्वर मुझे अपने कन्धों पर बिठाकर दैवी दुनिया की सैर करा रहें हैं... बापदादा की उन्मुक्त बाहों का स्पर्श पाकर मैं आत्मा आनंद विभोर हो रहीं हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा श्रेष्ठ स्वमानधारी, डबल ताजधारी, डबल राज्याधिकारी, सदा निश्चिन्त रहने वाली निश्चयबुद्धि आत्मा हूँ... मैं आत्मा सदा अपने अविनाशी बाप में निश्चय रखने वाली आत्मा हूँ... मुझ आत्मा की एक आँख में प्यारे बाबा का स्नेह भरा है और दूसरी आँख में बाप द्वारा मिला हुआ सेवा रूपी कर्तव्य सदा स्मृति में रहता है...
➳ _ ➳ मैं बाप की अति स्नेही आत्मा स्वयं को बाप द्वारा प्रदान की गईं शक्तियों से भरपूर होने का अनुभव कर रहीं हूँ... स्नेह की शक्ति द्वारा मुझ आत्मा के हर शब्द में ऐसा जौहर समा गया है जो किसी भी अन्य आत्मा के हृदय को विदीरण कर दे...
➳ _ ➳ जैसे माँ बच्चों को कैसे भी शब्द में शिक्षा दे तो स्नेह के कारण कड़वे शब्द भी महसूस नहीं होते... उसी प्रकार मैं आत्मा भी ज्ञान की हर सत्य बात में अपने स्नेह की मिठास को भरकर उन्हें स्पष्ट शब्दों में अन्य आत्माओं तक पहुंचा रहीं हूँ... मैं आत्मा स्नेह और शक्ति रूप के बैलेंस द्वारा सेवा करने वाली सफलतामूर्त आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ स्नेह और शक्तिरूप के बैलेन्स द्वारा सेवा करने वाले सफलतामूर्त होते हैं... क्यों और कैसे?
❉ स्नेह और शक्तिरूप के बैलेन्स द्वारा सेवा करने वाले सफलतामूर्त होते हैं क्योंकि जैसे उनकी एक आँख में बाबा का स्नेह और दूसरी आँख में बाबा द्वारा मिला कर्तव्य अर्थात! सेवायें, सदा ही स्मृति में रहता हैं, उसी प्रकार हमें स्नेही मूर्त के साथ - साथ शक्ति रूप भी बनना है।
❉ बाप के स्नेही मूर्त सो सर्व के स्नेह का पात्र बनना है। कहते भी हैं न... एक साधे सब सधे! सब साधे सब जाये! इसलिये हमें एक से स्नेह रखना है। बाकि सर्व का स्नेह आपे ही प्राप्त होता रहेगा। इसमें तनिक भी संशय नहीं है। अतः हमें स्नेही मूर्त बनना है।
❉ बाबा का व सर्व का स्नेह प्राप्त करने के लिये, हमें स्नेही के साथ - साथ शक्ति स्वरूप भी बनना है। जैसे दूसरी आँख में सेवा का कर्तव्य है, वह सदा ही हमारी स्मृति रहता है, उसी प्रकार स्नेह के साथ - साथ हमारे शब्दों में ऐसा जोहर हो जो किसी भी आत्मा का हृदय विदीर्ण करदे।
❉ जैसे एक माँ अपने बच्चों को कैसे भी शब्दों द्वारा शिक्षा देती है। तो माँ के स्नेह के कारण वह शब्द, तेज़ व कडुवे प्रतीत नहीं होते हैं, क्योंकि उन शब्दों में अपने बच्चों के प्रति माँ का स्नेह व दुआयें साथ - साथ रहती हैं। माँ सदा ही अपने बच्चों की भलाई चाहती है।
❉ उसी प्रकार परम पिता परमात्मा भी हमारी माँ है। वह सदा हम बच्चों की भलाई ही चाहते हैं। इसलिये! ज्ञान की जो भी सत्य बातें हैं, उन्हें स्पष्ट शब्दों में बताना है। लेकिन! उनके शब्दों में स्पष्टता के साथ - साथ स्नेह भी समाया हुआ होगा तो वे सफलतामूर्त बन जायेंगे।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ सर्वशक्तिवान बाप को साथी बना लो तो पश्चाताप से छूट जायेंगे... क्यों और कैसे ?
❉ जिसने अपना हाथ सर्वशक्तिवान के हाथ में दे दिया और बाप को अपना साथी बना लिया उसके संकल्प, बोल और कर्म में भी कोई ऐसी बात हो नही सकती जिसके लिए उसे पछताना पड़े क्योकि बाप को अपना साथी बना कर सदा अपने साथ रखने वाले की हर जिम्मेवारी बाप स्वयं अपने ऊपर ले लेते हैं इसलिए स्वप्न में भी उनसे कोई ऐसा कर्म नही हो सकता जिसके लिए उन्हें पश्चाताप करना पड़े ।
❉ गाया भी जाता है कि जहां बाप है वहां पाप नही । पाप कर्म होते ही तब है जब बाप का हाथ और साथ छोड़ कर माया रावण को अपना साथी बना लेते हैं । माया ही प्रवेशता ही आत्मा से जाने अनजाने अनेक पाप कर्म करवाती रहती है जिसके पश्चाताप का बोझ ही आत्मा को भारी बना देता है । किंतु बाप को सदा अपना साथी बना कर बाप के साथ रहने वाले हर प्रकार के पाप कर्म से बच जाते है और पश्चाताप से छूट जाते हैं ।
❉ जो सर्वशक्तिवान बाप को साथी बना कर सदा अपने साथ रखते हैं वे सर्व शक्तियों से स्वयं को सदा सम्पन्न अनुभव करते हैं । और सर्व शक्ति सम्पन्न आत्मा हर प्रकार के पाप कर्म के बोझ से मुक्त रहती है । आत्मा पाप कर्मो में तब प्रवृत होती है जब वह शक्ति हीन हो जाती है । इसलिए यदि सर्वशक्तिवान बाप को साथी बना कर सदा अपने साथ रखेंगे तो कोई पाप कर्म होंगे ही नही । इसलिए पाप कर्म करने और उसका पश्चाताप करने से बच जायेंगे ।
❉ जिसने अपना हाथ सर्वशक्तिवान बाप के हाथ में दे दिया उसका जीवन स्वत: ही पावन बन जाता है और पावनता का कवच ही उसकी रक्षा करता है और उसे हर प्रकार के पाप कर्मो से बचा कर रखता है । जैसे भक्ति में दिखाते हैं कि सीता तब तक सुरक्षित थी जब तक वह लक्ष्मण रेखा के अंदर थी । इसी प्रकार बाप का हाथ और साथ भी आत्मा के चारों और एक सुरक्षा कवच बना कर उसे पाप कर्म और उनसे होने वाले पश्चाताप से बचा लेता है ।
❉ भक्ति में गंगा को पतित पावनी मान कर गंगा स्नान करने जाते है और समझते हैं कि गंगा में स्नान करने से पाप धुल जायेंगे किन्तु ये सब भक्ति मार्ग की कथाएँ हैं । क्योकि पतित पावन सिवाए एक परमात्मा बाप के कोई हो नही सकता । इसलिए उनकी याद ही आत्मा को सर्व पापों से मुक्त कर सकती है और जो उस पतित पावन सर्वशक्तिवान बाप को अपना साथी बना कर सदा साथ रखते हैं वे विकर्म करने तथा विकर्मो से होने वाले पश्चाताप से बच जाते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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