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❍ 26 / 08 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ √ज्ञान रत्नों√ से अपनी झोली भरी ?
➢➢ किसी भी प्रकार का ×संशय× तो नहीं उठाया ?
➢➢ एक बाप से सच्ची प्रीत रख बाप समान √मीठी सैकरीन√ बनकर रहे ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ नॉलेज की लाइट माईट द्वारा √कमजोर संस्कारों को समाप्त√ किया ?
➢➢ √सर्व प्राप्तियों के अनुभव√ से प्रसन्नता का अनुभव किया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ √"क्या थे और क्या बन गये हैं"√ - यह महान अंतर सदा सामने रहा ?
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - बाप मीठे से मीठी सैक्रीन है तो और सब बाते छोड़ उस बाप को याद करो तो मीठी सैक्रीन बन जायेंगे"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... प्यारा बाबा ही सारे सच्चे सुखो से दामन सजाता है... मीठे बाबा की यादे ही कमाल दिखाएंगी... यह यादे ही सुखो से सजे मीठे संसार को बाँहों में लाएंगी... और बाबा जैसा मीठा कर जाएँगी... इन यादो में खो जाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा विकारो के जाल में अपनी मिठास को सदा का भूल चली थी... आपने आकर मुझे सदा का मीठा और चिर स्थायी सुखो का राज बताया है... आपकी यादो में सुनहरी रंगत पाती जा रही हूँ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... मुझ पिता की यादे ही जीवन की मधुरता का पर्याय है... यह यादे ही सच्चे सुखो का आधार है... और सुन्दरतम जीवन को बनाने वाली है... तो व्यर्थ को छोड़ इन मीठी यादो में खोकर मीठी सैक्रीन बनो... और सच्चे सुखो में मुस्कराओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा देह और देहभान में विकारो की कड़वाहट में डूबी हुई थी... अब आप मीठे पिता संग सदा की मीठी हो रही हूँ... व्यर्थ बातो से निकल समर्थ यादो में खो चली हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... प्यारे मीठे बाबा की मीठी याद ही समर्थ बनाकर सजाएगी... यही यादे अविनाशी बन सुखो की मीठी सौगातों से भर जाएँगी... बाकि सब तो ठग जायेगा... इसलिए सब बातो को नातो को छोड़ इन यादो में पिता समान मीठी सैक्रीन बनो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा प्यारे बाबा बिना कितनी भटक रही थी... मीठे बाबा आपने मुझे दुखो के घने जंगल से हाथ देकर निकाल दिया है... मै आत्मा आप समान मीठी होकर आनन्द से भर उठी हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - ज्ञान रत्नों को धारण कर पावन बनना"
➳ _ ➳ कलयुगी दुनिया में मैं अज्ञानता के कारण रावण माया की जंजीरों मे बंधती चली गयी... विकारों के वश होकर कमजोर होती चली गयी... मायावी झूठी मान शान को ही अपनी प्राप्ति समझ अल्पकाल की खुशी को ही सब समझने लगी... अपनी पहचान खो दी... अपने बच्चों को दुखी व पतित देख स्वयं परमात्मा को ड्रामानुसार अवतरित होना पड़ा... इस संगमयुग पर स्वयं परमात्मा ने अपने बच्चों को असली स्वरुप की पहचान दी... मुझ आत्मा का उद्धार किया... सत्य ज्ञान दिया... सत्य का परिचय दिया... स्वयं परमपिता परमात्मा सुप्रीम शिक्षक बन रोज दूरदेश से पढ़ाने आते... अनमोल अखूट खजानों से मेरी झोली भरते हो... मैं आत्मा पदमापदम भाग्यशाली हूं... !! स्वयं भगवान मुझे पढ़ाते हैं...!! मैं आत्मा इन खजानों से रीचेस्ट इन दा वर्ल्ड बनती हूं... ये एक एक ज्ञान बेशुमार कीमती है... मैं आत्मा अपनी बुद्धि रुपी झोली में इन खजानों से भरपूर करती हूं... मैं आत्मा सम्पूर्ण निश्चयीबुद्धि हूं... मैं आत्मा किसी बात में संशय नही करती... ये तो परमात्मा के महावाक्य है... प्यारे शिव बाबा सर्वोच्च हैं... सर्वज्ञ है... सिवाय मेरे प्यारे बाबा के कोई दूसरा ये ज्ञान दे नही सकता... प्यारे बाबा ने ही मुझ आत्मा को सारे सृष्टि चक्र का ज्ञान दिया है... प्यारे शिव बाबा ही हम सब आत्माओं के सच्चे पिता है... मुझ आत्मा के सर्व सम्बंध बस एक बाबा से है... मैं आत्मा प्यारे शिव बाबा की याद में रहती हूं... याद में रहने से ही मुझ आत्मा की खाद उतरती जाती है... मैं आत्मा चलते-फिरते, खाते-पीते, उठते-बैठते बस एक बाप की याद में रहती हूं... मैं आत्मा याद में रह पावन बनने का पुरुषार्थ करती हूं... मुझ आत्मा के सब प्रश्न समाप्त हो गए हैं...
❉ "ड्रिल - एक बाप से सच्ची प्रीत रखना"
➳ _ ➳ अभी तक देह व देह के सर्व सम्बंधों को ही सब समझ उन्हीं में खोई रही... अपने दैहिक रिश्तों को ही कभी मजबूरी समझ व कभी जिम्मेवारी समझ निभाती रही.. उन्हें ही बस अपना संसार समझ मोह माया में फंसती चली गई... इन झूठे व विनाशी सम्बंधों को निभाते निभाते देहभान में फंस विकारो में जाकर पतित बन गई... अपनी पहचान खो दी... तो परमपिता परमात्मा शिव बाबा ने विकारों की दुबन से निकाल ज्ञान का तीसरा नेत्र दिया... अपना परिचय दिया... आत्मा के सातों गुणों की स्मृति दिलाई... मैं आत्मा प्रेम के सागर की संतान मास्टर प्रेम का सागर हूं... प्यारे शिव बाबा से ही मुझ आत्मा के सर्व सम्बंध है... शिव बाबा ही मुझ आत्मा के सच्चे सच्चे माशूक है... और मैं बाबा की सच्ची सच्ची आशिक हूं... मुझ आत्मा का इस विनाशी दुनिया से कोई मोह नही रहा... जैसे आशिक माशूक एक दूसरे के बिना नही रह सकते... ऐसे ही मुझ आत्मा को कल्प बाद मेरा सच्चा माशूक मिला है... मेरी जन्मों की तडप प्यास अब बुझी है... मैं अपने आशिक से सच्ची प्रीत रखती हूं... मुझ आत्मा के नयनोंमें, दिल में बस बाबा ही समाए हैं... मुझ आत्मा का हर संकल्प, बोल और कर्म बस बाबा के लिए है... मेरे प्यारे शिव बाबा बहुत बहुत मीठे हैं... सैक्रीन से भी मीठे... मैं आत्मा मीठे बाबा की मीठी बच्ची हूं... मैं सर्व के प्रति आत्मिक भाव व आत्मिक दृष्टि रखती हूं... आत्मिक दृष्टि रखने से सर्व के प्रति रुहानी प्रेम रखती हूं... प्यारे बाबा मुझ आत्मा की अनेकों भूलों होने पर भी हमेशा मीठा बोलते हैं... मीठे बच्चे... लाडले बच्चे... मैं आत्मा बाप की श्रीमत पर चलते सब के साथ मीठा रहती हूं...
❉ "ड्रिल - सर्वशक्ति सम्पन्न बन प्रसन्नतचित्त रहना"
➳ _ ➳ मैं संगमयुगी ब्राह्मण आत्मा हूं... मैं आत्मा खुशनसीब हूं... इस संगमयुग पर ही मुझ आत्मा को जन्मों से बिछुड़े हुए मेरे सर्वशक्तिमान परमपिता ने ढूंढ़ लिया... कोटो में कोऊ मैं पदमापदम सौभाग्यशाली आत्मा हूं... इस कलयुगी दुनिया में रहते जहां सब कुछ होते हुए भी अपने को कमजोर व शक्तिहीन समझने लगी... असन्तुष्ट रहने लगी... वहीं बाबा का बच्चा बनते ही इस पुरानी दुनिया में रहते हुए भी अपने भाग्य पर गर्व महसूस करती हूं... ये मुझ आत्मा का नया अलौकिक जन्म है... सर्वशक्तिमान बाप ने स्वयं मेरा हाथ पकड़ा है... मुझ आत्मा के हरपल साथ है... साथी है... सखा है... इस संगमयुग पर परमपिता परमात्मा ने भाग्य लिखने की कलम मुझ आत्मा को दे दी... मैं आत्मा जितना चाहे पुरुषार्थ कर अपना भाग्य बना सकती हूं... बाबा का बच्चा बनते ही सर्वगुणों, सर्वशक्तियों, सर्व खजानों का अधिकारी बन गई... भाग्य विधाता बाप ही मेरे साथ है... मैं आत्मा हजार भुजाओं वाले बाप की छत्रछाया में रहती हूं... मैं आत्मा सर्वशक्ति सम्पनन् अनुभव करती हूं... मैं आत्मा खजानों से सम्पन्न होने से खजानों को बांटती रहती हूं... सर्व को शुभ भावना व शुभ कामनाऐं देते हुए सर्व की सहयोगी बनती हूं... मैं आत्मा सदैव रुहानी नशे में रहती हूं... मुझ आत्मा को अपने भाग्य पर बहुत नाज है... मैं ईश्वरीय संतान हूं... गॉडली स्टूडेंट हूं... मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूं... सर्वशक्तियों से सम्पन्न होने से मैं आत्मा प्रसन्नचित्त रहती हूं...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं शक्ति सम्पन्न आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳ मैं आत्मा ब्रह्मा बाप समान विशेषता सम्पन्न के स्वभाव संस्कार वाली बाप समान आत्मा हूँ... मैं आत्मा शिवबाबा द्वारा दिए गए ज्ञानरत्नों को अटेंशन द्वारा सुनकर अपने श्रेष्ठ परिवर्तन से बाप समान बनती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ बाप से दिव्य बुद्धि की लाइट मुझ आत्मा में उतर रही है... मैं आत्मा दिव्य स्वरूप बनती जा रही हूँ... मैं आत्मा बाप समान मास्टर सागर बन तीव्र लगन से समान सम्पन्न सम्पूर्ण बनती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं मास्टर नॉलेजफुल आत्मा नॉलेज के बल से अपने कमज़ोर संस्कारों को जानकार... समझकर... उन संस्कारों को समाप्त करने के लिए लाइट और माइट स्वरुप को इमर्ज करती हूँ...
➳ _ ➳ मैं मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा के साथ-साथ चेकिंग मास्टर भी हूँ... मैं आत्मा सदा अपने सूक्ष्म संस्कारों की चेकिंग करती रहती हूँ... मैं आत्मा मनन शक्ति द्वारा स्वयं में शक्ति भरने वाली शक्ति सम्पन्न आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ नॉलेज की लाइट माइट द्वारा कमजोर संस्कारों को समाप्त करने वाले शक्ति सम्पन्न होते हैं... क्यों और कैसे?
❉ नॉलेज की लाइट माइट द्वारा कमजोर संस्कारों को समाप्त करने वाले शक्ति सम्पन्न होते हैं क्योंकि नॉलेज से अपने कमजोर संस्कारों का मालूम तो पड़ जाता है और जब उस बात की समझानी मिलती है तो वे संस्कार थोड़े समय के लिये अन्दर दब जाते हैं।
❉ लेकिन कमजोर संस्कार समाप्त करने के लिये लाइट और माइट के एक्स्ट्रा फ़ोर्स की आवश्यकता है। इसके लिये हमें मास्टर सर्व शक्तिवान व मास्टर नॉलेजफुल के साथ साथ स्वयं का चेकिंग मास्टर भी बनना है।
❉ हमें स्वयं की चेकिंग करने से जब अपने कमजोर संस्कारों का पता पड़ जाता है, तो! उन संस्कारों को दबाने की बजाय बाबा की ओर मोड़ देना चाहिये। जिससे बाबा का भी एक्सट्रा फ़ोर्स प्राप्त करके उन कमजोर संस्कारो को समर्थ संस्कारों में परिवर्तित किया जा सके।
❉ जब हम मास्टर सर्व शक्तिवान व मास्टर नॉलेजफुल बन कर लाइट व माइट का फ़ोर्स सर्व आत्माओं को देंगे तो सर्व आत्मायें! भी अपने आप को शाक्तिशाली महसूस करेंगी और विश्व की सेवा करने के लिये सदा ही तत्पर रहेंगी।
❉ इस के लिये मास्टर सर्व शक्तिमान व मास्टर नालेजफुल बन कर, स्व की चेकिंग के आधार पर बाबा की दी हुई नॉलेज के द्वारा स्वयं में शक्ति भरनी है। साथ ही अपनी मनन शक्ति को, स्वयं के मनन करने के अभ्यास द्वारा बढ़ा कर स्वयं को अति शक्ति सम्पन्न बनना है।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ जहाँ सर्व प्राप्तियां हैं वहाँ प्रसन्नता है... क्यों और कैसे ?
❉ लौकिक में भी जो स्थूल धन के खजानो से भरपूर रहते हैं प्रसन्नता की झलक रॉयल्टी के रूप में उनके चेहरे और चलन से स्पष्ट दिखाई देती है । लेकिन हम ब्राह्मण बच्चों को तो अविनाशी खजाने स्वयं परम पिता परमात्मा बाप द्वारा मिले हैं । हर रोज बाबा ज्ञान रत्नों की थालियां भर भर कर हम बच्चों पर लुटाते हैं । इसलिए गायन भी है कि अप्राप्त नही कोई वस्तु ब्राह्मणों के खजाने में । तो ऐसे सर्व प्राप्तियों के नशे में रहने वाले सदा प्रसन्नता से खिले रहते हैं ।
❉ रोज अमृतवेले बाबा अपने हर एक बच्चे को श्रेष्ठ टाइटल दे कर उसे सर्व प्राप्तियों की मौज का अनुभव करवाते हैं । इस टाइटल के रूहानी नशे में जो सदा रहते हैं वे कोई भी परिस्थिति आने पर उस परिस्थिति के अनुसार बाबा द्वारा मिले श्रेष्ठ टाइटल को स्मृति में रख अपनी स्थिति को समर्थ बनाये रखते हैं । ऐसे श्रेष्ठ स्वमान धारी हर परिस्थिति में सदा अचल, अडोल रहते हैं तथा प्रभु मिलन की मस्तियों में सदा खोये रहते हैं और प्रसन्नता से सदा भरपूर रहते हैं ।
❉ संगमयुग पर परमात्मा बाप द्वारा हर बच्चे को संतुष्ट और प्रसन्न रहने का वरदान सहज ही प्राप्त होता है क्योकि परमात्मा बाप द्वारा रचे इस रूद्र ज्ञान यज्ञ की अंतिम आहुति - सर्व ब्राह्मणों की सदा प्रसन्नता है । जब सभी सदा प्रसन्न रहेंगे तब प्रत्यक्षता का आवाज गूंजेगा अर्थात विजय का झंडा लहराएगा । और प्रसन्नता का आधार है संतुष्टता । क्यों कि सन्तुष्टता की निशानी प्रत्यक्ष रूप में प्रसन्नता ही होती है । और संतुष्ट वही रह सकते है जो सर्व प्राप्तियों से सदा सम्पन्न हो ।
❉ जब से ब्राह्मण बने तब से अपने श्रेष्ठ भाग्य को यदि स्मृति में रखें और अनुभव करें कि स्वयं भाग्यविधाता बाप मेरे सर्वश्रेष्ठ भाग्य की महिमा का गुणगान कर रहे हैं । बाप के रूप में स्वयं भगवान मेरी पालना कर रहें हैं । ऐसी परमात्म पालना जिसमे आत्मा को सर्व प्राप्ति स्वरूप का अनुभव होता है और ऐसा परमात्म प्यार जो सर्व सम्बन्धो का अनुभव कराता है । ऐसे परमात्म प्यार और परमात्म प्राप्तियों की मौज का जो सहज अनुभव करते हैं वे सदा संतुष्ट और प्रसन्न रहते हैं ।
❉ संगमयुग पर बापदादा द्वारा बच्चों को जो भी प्राप्तियां हुई है उनकी स्मृति को इमर्ज रूप में रखने से कोई भी परिस्थिति स्थिति को हिला नही सकती । सर्व प्राप्तियों की ख़ुशी कभी भी उन्हें हलचल में ला कर दुखी नही बना सकती । हलचल मे तब आते हैं, दुखी तब होते हैं जब स्वयं को खाली अनुभव करते हैं । लेकिन जो स्वयं को सदा सम्पन्न अनुभव करते हैं उनके मुख से सदैव एक ही गीत निकलता है " पाना था सो पा लिया " और इसी गीत को गाते हुए वे सदा प्रसन्नता के झूले में झूलते रहते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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