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❍ 22 / 06 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ जो ×छी छी आदतें× हैं, उन सबको छोड़ने पर विशेष अटेंशन रहा ?
➢➢ शूद्रों को √ब्राह्मण धर्म में कन्वर्ट√ कर देवता बनाने के लिए ईश्वरीय मिशन के कार्य में सहयोग दिया ?
➢➢ ×पुराने मकान से दिल× निकाल नए से लगाई ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ मरजीवा स्थिति द्वारा √हिम्मत और हुल्लास√ की अविनाशी स्टैम्प लगाई ?
➢➢ मेले व झमेले में √डबल लाइट√ बनकर रहे ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ सदा √कंबाइंड स्वरुप√ का अनुभव किया ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं आत्मा प्राप्ति सम्पन्न हूँ ।
✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-
➳ _ ➳ योगमुद्रा में बैठ जाएँ और श्रेष्ठ संकल्पों में लीन हो जाएँ... मैं आत्मा चतुर्भुज हूँ... निर्भीक हूँ... निश्चिन्त हूँ... मैं सम्पन्न हूँ... मैं आत्मा सम्पूर्ण हूँ... बाप समान हूँ... सदा बाप से कंबाइंड हूँ... मरजीवा हूँ... मैं आत्मा लाइट के कार्ब में हूँ... अव्यक्त वतन वासी फरिश्ता हूँ...
➳ _ ➳ मैं इस साकार लोक में पाँच तत्वों से बना शरीर धारण कर पार्ट बजाने के लिए अवतरित हई हूँ... मैं आत्मा इस पाँच तत्वों के शरीर में होते हुए भी इस साकारी दुनिया से उपराम हूँ... लाइट का शरीर लेकर मैं आत्मा आज अव्यक्त वतन में अपने अविनाशी पिता के समक्ष यह दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मैं अपने पास्ट के वा ईश्वरीय मर्यादाओं के विपरीत जो संस्कार, स्वभाव, संकल्प वा कर्म हैं उनसे मरजीवा बन जाउंगी...
➳ _ ➳ मैं आत्मा प्रतिज्ञा रुपी स्विच को सेट कर प्रैक्टिकल में प्रतिज्ञा प्रमाण चलूंगी... इन श्रेष्ठ संकल्पों को लेते ही मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मैं सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न हो गयी हूँ... हिम्मत वा हुल्लास की अविनाशी स्टेम्प लग गयी है... मुझ आत्मा के हर चलन, नैन चैन से उमंग उत्साह दिखने लगा है... मुझ आत्मा की प्राप्ति की झलक दूर से दिखाई देने लगी हैं... मैं आत्मा प्राप्ति सम्पन्न बन गयीं हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - पूरा वर्सा लेने के लिए एक बाप से पूरी प्रीत रखो, तुम्हारी प्रीत किसी देहधारी से नही होनी चाहिए"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे पिता की सारी सम्पत्ति का हकदार बनना है तो इस पुरानी दुनिया पुराने रिश्तो से दिल न लगाओ... जो गर यहाँ दिल लगाओगे तो सुंदर सी मीठी सी दुनिया में कैसे प्रवेश पाओगे... अब सिर्फ पिता से ही दिल लगाओ...
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे मीठे प्यारे बच्चे देहधारियों से प्रीत करके सारे गुणो और शक्तियो को खो के शक्तिहीन हो चले... अब पिता फिर से भरने आया है जागीर लुटाने आया है खजाने देकर अमीर बनाने आया है... तो सिर्फ और सिर्फ इस महापिता से ही प्यार करो...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे इस समय सिर्फ ईश्वर से सम्बन्ध् जोड़ो उसी से प्यार कर श्रीमत को आत्मसात करो... यह प्यार सतयुगी सुखो में बदल कर खुशनुमा जिंदगानी बनाएगा... सबसे उपराम बनो और ईश्वरीय प्रेम में प्राण भर दो... यह प्रेम ही सुखो का पर्याय है...
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चे इस मिटटी के भान में मिटटी के रिश्तो से प्रीत करके अपनी असली जादूगरी को भूल चले... अब जादूगर पिता वही जादू देने आया है... तो सबसे बुद्धि निकाल उस प्यारे पिता की यादो में डूब चलो... और आलिशान सुखमय जीवन को अपने नाम लिख चलो...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चे देहधारियों से प्रीत करना सदा का खाली बना ठग जाएगा... यह समय ईश्वरीय बहारो का है... इस समय को ईश्वरीय प्रेम में बिताओ... इस सांसो को ईश्वर प्रेम में कुर्बान करो... और ईश्वरीय दोलत से अपने खाली खजानो को फिर से आबाद करो मालामाल करो...
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ ब्राह्मण से देवता बनने के लिए जो भी छी-छी आदते हैं उन सब को छोड़ना है । शूद्रों को ब्राह्मण धर्म में कनवर्ट कर देवता बनाने के लिए ईश्वरीय मिशन के कार्य में सहयोगी बनना है ।
❉ अभी तक तो घोर अंधियारे में थे व अब इस संगमयुग पर जब स्वयं भगवान ने हमें अपना बनाया व नया जीवन दिया व ब्रह्मा माँ ने हमें एडाप्ट कर शूद्र से ब्राह्मण बनाया । हमें अपनी पुरानी छी छी आदतों को छोड़ देना है ।
❉ जैसे डाक्टरी की पढ़ाई पढ़ते है तो वो अपने जैसा डाक्टर ही बनाते है ऐसे स्वयं भगवान पढ़ाते हैं तो आप समान भगवान भगवती ही बनाते है । ऐसी ऊंच पढ़ाई पढ़ने के बाद हमें अपने पुराने स्वभाव संस्कारों को छोड़ देना है ।
❉ स्वयं भगवान हमें इस पतित दुनिया में पढ़ाने आते हैव पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बनाते हैं व मनुस्य से देवता बनने की पढ़ाई कराते है तो हमें इस रुहाई पढ़ाई को अच्छी रीति पढ़ना है व धारण करनी है । जितना धारण करेंगे उतने दिव्य गुणों की धारणा होगी व विकारों की कट उतरती जायेगी ।
❉ जब स्वयं भगवान ने हमें चुना व विश्व परिवर्तन के कार्य के निमित्त बनाया तो हमें स्वयं टर अटेंशन देकर स्व का परिवर्तन कर दूसरों के आगे ऐग्जाम्पल बनना है और ज्ञान को अच्छे से धारण करना है व कराना है ।
❉ अपनी आत्मिक स्थिति में रहकर व याद का जौहर भरकर दूसरों को ज्ञान सुनाना है व तभी सुनने वाले को तीर लगता है । सर्व के प्रति शुभ भावना रखते हुए जैसे हमें सच्चे परमपिता मिले व सुख शांति का वर्सा मिले ऐसे ये दुखी अशांत आत्माऐं भी सच्चे परमपिता को पहचाने व इनका भी कल्याण हो । ऐसी शुभ भावना रखते हुए शूद्र से ब्राह्मण धर्म में कनवर्ट कर ईश्वरीय कार्य में सहयोगी बनना है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ मरजीवा स्थिति द्वारा हिम्मत और हुल्लास की अविनाशी स्टैम्प लगाने वाले प्राप्ति सम्पन्न होते हैं.... क्यों और कैसे ?
❉ जो बच्चे ये स्मृति में रखते कि इस संगमयुग पर हमें स्वयं भगवान मिले व बाप समान भव का वरदान देते है तो अब हमें इस पुरानी देह व देह के सम्बंधों से नाता तोड़ व अपने विकारों को छोड़ पावन बनने का पुरुषार्थ करते है । एक बाप से ही सच्ची प्रीत रखते हैं व बाप से हुई प्राप्तियों को याद कर अविनाशी खुशी व उमंग उत्साह में रह प्राप्ति सम्पन्न होते हैं ।
❉ जैसे कोई पुरानी चीज हो जाती है तो उसे छोड़कर नयी लेते है तो खुशी होती है ऐसे ही हमारा ये शरीर पुराना हो गया व दुनिया भी पुरानी हो गई तो इसका विनाश होना है इसलिए इस पुरानी दुनिया व पुराने शरीर से जो मोह नही रखते व नई दुनिया में जाने की खुशी होती है कि नई दुनिया में हम स्वर्ग के मालिक बनते है व 21 जन्मों के लिए सुख शांति का वर्सा मिलता है वो बच्चे मरजीवा की स्थिति द्वारा हिम्मत और हुल्लास की अविनाशी स्टेम्प लगाकर प्राफ्ति सम्पन्न होते हैं ।
❉ जो इस पुरानी दुनिया व पुराने शरीर को भूलकर व जीते जी उनसे मोह तोड़ कर बस जिम्मेवारी निभाते हैं व उनमें फंसते नही है । नयी दुनिया व नए जीवन के उमंग उत्साह की अविनाशी स्टेप लगाकर प्राप्तियों से खुश होते हैं वो प्राप्तियों से सम्पन्न होते हैं ।
❉ जो बच्चे जीते अपने को इस पुरानी दुनिया व पुराने शरीर से न्यारा प्यारा रखते है व एक बाप से ही बुद्धियोग जोड़े रखते है और बुद्धि की लाइन क्लीयर होने से कनेक्शन जुड़ा रहता है तो बापदादा से हुई प्राप्तियों से सदा खुशी व हुल्लास में रह सर्व प्राप्ति सम्पन्न होते है ।
❉ जो बच्चे प्राप्ति सम्पन्न होते हैं वो हद की मान शान व अल्पकाल की प्राप्तियों के आकर्षण से परे होते है व उन्हे जीते जी अपने देह व देह के झूठे विनाशी सम्बंधों से कोई मोह नही होता क्योंकि वे जानते है कि ये तो कब्रदाखिल होने ही है इसलिए बस अविनाशी सर्वशक्तिमान बाप से ही सर्व सम्बंध रख मा. सर्वशक्तिमान बन हिम्मत व हुल्लास की अविनाशी स्टेम्प लगाते हैं ।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ मेले वा झमेले में डबल लाइट रहने वाला ही धारणामूर्त है... क्यों और कैसे ?
❉ जैसे स्थूल वस्त्र अगर टाइट होता है तो उसे उतारने में कठिनाई होती है । इसी प्रकार कोई ना कोई संस्कारों में अगर देह रूपी वस्त्र चिपका हुआ होगा तो देह और देह की दुनिया के मेले और झमेले में आत्मा उलझी रहेगी और भारी होने के कारण डबल लाइट स्थिति का अनुभव नही कर सकेगी । इसलिए जितना संस्कारों से न्यारा होने का अभ्यास होगा उतनी ही अवस्था भी न्यारी होती जायेगी और अनेक प्रकार के मेले और झमेले में भी स्वयं को इजी अनुभव करेंगे । यही इजीनेस डबल लाइट स्थिति में स्थित कर धारणामूर्त बना देगी ।
❉ अधिकारीपन की सीट को छोड़ जब अपनी रचना अर्थात संकल्पों के, कर्मेन्द्रियों के अधीन हो जाते हैं तो सुख, शान्ति और पवित्रता का जो जन्म सिद्ध अधिकार है उसे खो देते हैं और छोटे छोटे झमेलों में फंस जाते हैं । क्योकि अधीन रहने वाला कभी भी स्वतंत्र हो कर उड़ नही सकता । इसलिए मेले और झमेले में फंस कर जब देह के पदार्थो के अधीन हो जाते हैं तो डबल लाइट स्थिति का अनुभव करने की बजाए भारीपन का अनुभव करने लगते है । इसलिए यदि अधिकारीपन की सीट पर सदा सेट रहें तो हर मेले और झमेले में भी डबल लाइट रह सकते हैं ।
❉ यह संगमयुगी ब्राह्मण जन्म कर्मबन्धनी जन्म नहीं, बल्कि कर्मयोगी जन्म है । इस अलौकिक दिव्य जन्म में ब्राह्मण आत्मा बिलकुल स्वतंत्र है न कि परतंत्र । लेकिन जब मेरे पन का भाव आता है तब परतंत्र अनुभव करते हैं । कर्मभोग है, ‘कर्मबन्धन है, संस्कारों का बन्धन है, संगठन का बन्धन है - इस व्यर्थ संकल्प रूपी जाल को जब इमर्ज करते हैं तो अपने ही जाल में स्वयं फँस जाते हैं । इसलिए अगर मेरा को तेरा में परिवर्तन करके स्वतंत्र होकर रहें और सदैव इस बात को स्मृति में रखें कि यह लोन मिली हुई देह है तो सेकेण्ड में उड़ सकते हैं और मेले व झमेले में भी डबल लाइट रहने वाली धारणामूर्त आत्मा बन सकते हैं ।
❉ सदा ‘ एक बल एक भरोसा ’ इसी लगन में जो सदा मगन रहते हैं अर्थात जो सदा एक के भरोसे पर रहते हैं वह हर परिस्थिति में सदा एकरस रहते हैं । और कोई भी रस ऐसी आत्माओं को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकता । क्योकि बाप का हाथ और साथ सदा अपने ऊपर अनुभव करते हुए ज्ञान की हर प्वाइंट को धारणा में ला कर वे धारणामूर्त बन जाते है तथा अपनी धारणाओं के बल पर हर मेले और झमेले में सदा स्वयं भी लाइट हाउस बन निर्विघ्न होकर चलते हैं और अनेकों को भी रास्ता दिखाने के निमित बन जाते हैं ।
❉ स्वयं को ज्ञान - योग की लाइट माइट से जो सम्पन्न बना लेते हैं वे किसी भी परिस्थिति को सेकण्ड में पास कर लेते हैं । क्योकि तपस्या का बल उन्हें डबल लाइट बना देता है और कोई भी परिस्थिति आने पर परिस्थिति रूपी पहाड़ को तोड़ने की बजाए सेकण्ड में हाई जम्प दे कर वे उस परिस्थिति को पार कर लेते हैं । इसलिए अब योग लगाने वाले नहीं लेकिन सदा कम्बाइन्ड अर्थात् साथ रहने वाले निरन्तर योगी सदा सहयोगी बन उड़ती कला के अनुभव में जितना रहेगे तो हर मेले व झमेले में भी डबल लाइट बन उससे मुक्त हो, धारणामूर्त बन सकेंगे ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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