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 10 / 06 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ पुराने ×देह-अभिमान× की आदत मिटाने की मेहनत की ?

 

➢➢ ×बुधी को भटकने× से रोका ?

 

➢➢ अत्याचारों को सहन कर बाप से पूरा वर्सा लेने का पुरुषार्थ किया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ एक बाप की स्मृति से सच्चे सुहाग का अनुभव किया ?

 

➢➢ अंतर्मुखी बन फिर बाह्यमुखता में आने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ सदा ख़ुशी के झूले में झूलते रहे ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं भाग्यवान आत्मा हूँ ।

 

✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-

 

_ ➳  आराम से योगयुक्त स्तिथि में बैठ जाएँ... आज अपने बाबा को पूरे प्यार से याद करना है... मैं एक अविनाशी बाप की याद में मगन रहने वाली एक बिंदु आत्मा हूँ... मैं एक की ही श्रीमत पर चलने वाली, श्रीमत का पालन करने वाली आज्ञाकारी आत्मा हूँ...

 

_ ➳  मैं एक के ही रस का रसपान करने वाली एकरस आत्मा हूँ... मैं एक का ही गुणगान करने वाली गुणग्राही आत्मा हूँ... मैं एक के ही साथ सर्व सम्बन्ध निभाने वाली वफादार आत्मा हूँ... मैं एक ही इश्वरिये परिवार के एक लक्ष्य - एक लक्षण को आधार बनाने वाली आत्मा हूँ...

 

_ ➳  मैं एक ही याद में रहकर जन्म - जन्म के विक्रमों को भस्म करने वाली विघ्न - विनाशक आत्मा हूँ... मैं एक बाप की स्मृति से सच्चे सुहाग का अनुभव करने वाली भाग्यवान आत्मा हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा अपने एक बाबा से सर्व सम्बंधों की अनुभूति करते हुए यह दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मैं आत्मा किसी भी अन्य आत्मा के बोल सुनते हुए भी नहीं सुनूंगी... किसी अन्य आत्मा की स्मृति संकल्प वा स्वप्न में भी नहीं लाऊंगी अर्थात किसी भी देहधारी के झुकाव में नहीं आउंगी...

 

_ ➳  मैं आत्मा एक बाप दूसरा न कोई इस स्मृति में ही सदा रहूंगी... इन्हीं श्रेष्ठ संकल्पों के साथ मैं भाग्यवान आत्मा अपने ऊपर अविनाशी सुहाग के तिलक लगने का अनुभव कर रहीं हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - याद से आत्मा का किचडा निकालते जाओ, आत्मा जब बिलकुल पावन बने तब घर चल सके"

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे याद ही वह खूबसूरत आधार है जो आत्मा के सारे कचरे को निकाल खूबसूरत बनाता है... सम्पूर्ण पावनता के साथ ही आत्मा घर को चल पायेगी... अब अपनी बुद्धि को व्यर्थ के देह के रिश्तो में न उलझाओ... मीठे पिता की मीठी यादो में डूब जाओ...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे जो पिता की मीठी मीठी यादो में स्वयं को भर जाओगे तो उन यादो का परिणाम पावनता निज में पाओगे... इस खूबसूरती से भर पिता समान खूबसूरत बन जाओगे... यह यादे आत्मा की कालिमा को गहरे साफ़ कर उजला कर देंगी... अपनी असली चमक को पाकर निखर उठोगे...

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे मीठे पिता की मीठी सी प्यारी सी यादो में खो जाओ... अब फेली हुई बुद्धि को समेत मीठे पिता पर टिकाओ... यादो से अपनी खूबसूरती को निखार पावनता से परिपूर्ण हो जाओ... यही पावनता से भर घर चल सकेंगे... यादो से सारे दागो को धो चलो...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चे पवित्र तो बनना ही है मीठे पिता की याद कितना सुंदर मीठा साधन है इस मंजिल को पाने का... अब स्वयं को सारे बुद्धि के फैलाव से समेट पिता की याद में डुबो दो... सब कचरा निकल जायेगा बुद्धि स्वच्छ पावन हो जायेगी...

 

 ❉   मेरा बाबा कहे - यादे ही वह सुंदर मीठा प्यारा माध्यम है जो आत्मा की सुंदरता में चार चाँद लगाती है... और रिश्तो की यादो ने आत्मा को देहभान से जकड़ लिया... मोहपाश में फसाकर कचरे से भर दिया... अब पिता के साये में बेठ वही रूप वही रंगत पाकर पावन बनो...

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ इस एक जन्म में 63 जन्मों के पुराने देह-अभिमान की आदत मिटाने की मेहनत करनी है । देही-अभिमानी बन स्वर्ग का मालिक बनना है ।

 

  ❉   अभी तक तो घोर अंधियारे में व रौरव नरक थे व इस देह को ही सजाने संवारने में लगे रहे व देह के सम्बंधों को ही अपना सब समझते रहे व पतित होते गए । अब इस संगमयुग पर स्वयं बाबा ने हमें अपना असली परिचय दिया कि मैं देह नही देही हूं व यही पाठ पक्का करना है ।

 

  ❉   63 जन्मों से जो देहभान की मिट्टी में खेलते खेलते जो पुराने संस्कार है व देह-अभिमान की जो रस्सियां है उनको तोड़ने की मेहनत करनी है क्योंकि देह-अभिमान एक भूत है व सभी विकारों की जड़ है । इसलिये अपने को आत्मा समझ परमात्मा बाप को याद करना है ।

 

  ❉   इस समय जब स्वयं भगवान हमें आकर संगमयुग पर पतित से पावन बनाने के लिए आए हैं व सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान सिवाय बाप के ओर कोई दे नही सकता । इस एक जन्म में ही बाबा अपने बच्चों को रोज बार बार यही पाठ पक्का कराते है तो हमें अपने सर्वोच्च बाप की श्रीमत पर चल देह अभिमान को छोड़ने की मेहनत करनी है ।

 

  ❉   हम जन्मजन्मांतर पतित बनते गए व आत्मा पर खाद पडती गई व एकदम सीढ़ी नीचे उतर आए व तमोप्रधान हो गए । इसलिए बस अपने को आत्मा समझ बाप की याद से ही आत्मा की खाद निकालनी है व आत्मा को पावन बनाना है । ये शरीर तो बस पार्ट बजाने के लिए मिला है व इसे निमित्त समझ सेवा करनी है । देही अभिमानी बनना है ।

 

  ❉   संगमयुग के एक इसी जन्म में ही आधाकल्प की देह अभिमान की आदत मिटानी है । बाबा जो ज्ञान धन देते है उन्हें अच्छी रीति धारण करना है । पारलौकिक बाप को याद करने से ही विकर्म विनाश करने है व पावन बन पावन दुनिया स्वर्ग का मालिक बनना है ।

   

  ❉   दुनिया वाले तो कुम्भकरण की नींद में सोए हुए हैं व बाबा ने हमें स्वयं जगाया है व स्वर्गवासी बना रहे हैं तो हमें देही अभिमानी बन बाप व वर्से को याद करना है और ऊंच पद पाने के लिए पुरुषार्थ में लगे रहना है ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ एक बाप की स्मृति से सच्चे सुहाग का अनुभव करने वाले भाग्यवान आत्मा होते हैं.... क्यों और कैसे ?

 

  ❉   सदा भाग्यवान की निशानी होती है लाइट का क्राउन । जैसे लौकिक दुनिया में भाग्य की निशानी राजाई होती है, और राजाई की निशानी ताज होता है ऐसे ईश्वरीय भाग्य की निशानी लाइट का ताज है और उस ताज की प्राप्ति का आधार पवित्रता है ।  हर संकल्प, बोल, कर्म और हर श्वांस में पवित्रता होती हैं व बस बाप के लिए होता है वो एक बाप की स्मृति से ही सदा सुहाग का अनुभव करने वाले भाग्यवान आत्मा होते हैं ।

 

  ❉   जिन बच्चों की आत्मिक स्मृति का तिलक चमकता रहता है व पवित्रता की चमक और बाप द्वारा हुई प्राप्तियों के नशे में रहते है वो एक बाप की लगन में मगन रहते हैं जैसे लौकिक जीवन में नारी अपने सुहाग की याद में मगन रहती है व उसे ही श्रेष्ठ मानती है व ऐसे अपने इस आलौकिक जीवन में एक बाप की स्मृति में रहने वाले सच्चे सुहाग का अनुभव कराने वाले भाग्यवान आत्मा होते हैं ।

 

  ❉   जो किसी भी आत्मा के बोल सुनते हुए नहीं सुनते, किसी अन्य आत्मा की स्मृति संकल्प वा स्वप्न में भी नही लाते । बस एक बाप दूसरा न कोई इस स्मृति में रहते है व सर्व सम्बंध सिर्फ एक बाप से रखते हैं व उन्हें अविनाशी सुहाग का तिलक लग जाता है । ऐसे सच्चे सुहाग वाले ही भाग्यवान होते हैं ।

 

  ❉   जैसे लौकिक में सुहागिन अपने सुहाग का एक पल भी साथ नही छोड़ती व यही मन के बोल होते हैं- 'साथ जीयेंगे साथ मरेंगे।इस संगमयुग हम सब सच्चे सच्चे आशिकों का सच्चा माशूक एक ही है शिव बाबा व हम सब आत्माऐं एक साजन की सजनियां है व तुम संग खाऊं, तुमसंग बैठूं, तुम्हीं से बोलूं, तुम्हीं से सुनूं...बस सिर्फ 'मेरा तो शिव बाबा दूसरा न कोय'- ऐसे एक बाप की स्मृति में सच्चे सुहाग का अनुभव करने वाले भाग्यवान आत्मा होते हैं ।

 

  ❉   जैसे लौकिक में लड़की की सगाई करते हैं, विवाह करते हैं उसमें पहले लगन करते हैं व फिर वो मगन हो जाती है । ऐसे ही जो बच्चे ये स्मृति रखते है कि हमारी आत्मा रुपी सजनी की परमात्मा रुपी साजन के साथ लगन हो गयी और लगन के साथ मन बस बाबा में ही रम जाता है व प्यार का केन्द्र बिंदु बस बाबा ही होता है । मेरी तुझ से सच्ची प्रीत ये दुनिया क्या जाने .... ऐसे बाप की स्मृति से सच्चे सुहाग का अनुभव कराने वाले भाग्यवान होते हैं ।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ अपनी श्रेष्ठ स्थिति बनानी है तो अंतर्मुखी बन फिर बाह्यमुखता में आओ... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   एकांतवासी बन अंतर्मुखता में स्थित रहने का जितना अभ्यास होगा उतना साइलेन्स का बल आत्मा में जमा होता जायेगा और आत्मा अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति का स्वरूप बनती जायेगी । अतीन्द्रिय सुख के झूले में निरन्तर झूलने वाली ऐसी आत्मा जब बाह्यमुखता में आयेगी तो अपने सम्बन्ध संपर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को अपनी श्रेष्ठ स्थिति में स्थित हो कर, अपनी दृष्टि, वृति और स्मृति की शक्ति से असीम शांति का अनुभव करवा देगी अपने शक्तिशाली श्रेष्ठ वायब्रेशन द्वारा विश्व की अनेक आत्माओं को सुख, शान्ति से भरपूर कर देगी

 

 ❉   अंतर्मुखता की गुफ़ा में बैठ जब निरन्तर एक बाप की याद में मगन रहेंगे तो योग का बल आत्मा को रूहानियत से भरपूर कर देगा और स्थिति को ऐसा श्रेष्ठ और शक्तिशाली बना देगा कि अव्यक्त स्थिति से निकल कर जब आत्मा व्यक्त में आएगी तो अपनी रूहानी वृति से वायुमण्डल में रूहानियत की ऐसी खुशबू फैला देगी कि जो भी आत्मा सम्पर्क में आएगी वह भी रूहानियत से खिल उठेगी और रूहानी मस्ती में असीम आनन्द का अनुभव करने लगेगी ।

 

 ❉   अंतर्मुखी बन जितना ज्ञान, आनन्द, प्रेम, सुख और शांति के सागर में समाये रहेंगे अर्थात जितना एक बाप के लव में लीन रहेंगे उतना तपस्या का बल आत्मा में भरता जायेगा और तपस्या की अग्नि में तप कर आत्मा कुन्दन बनती जायेगी । सागर के तले में जाकर साइलेन्स स्वरूप बन जब आत्मा बाह्यमुखता में आएगी तो अपनी तपस्या द्वारा विश्व में शांति की किरणे फैला कर दुखी और अशांत आत्माओं को सुख और शांति का अनुभव करवाकर उन्हें दुःख और पीड़ा से मुक्त कर देगी ।

 

  ❉   एकांतवासी बन अंतर्मुखता में रहने का आत्मा को जितना अभ्यास होगा उतना शांति की शक्ति जमा होने से आत्मा सेकण्ड में संकल्पों के विस्तार को सार में समा कर अपनी श्रेष्ठ स्थिति में स्थित हो सकेगी और आवश्यकता पड़ने पर बाह्यमुखता में आकर सार से विस्तार में जा कर संकल्पों की दिशा को मोड़ अपनी संकल्प शक्ति द्वारा बेहद विश्व की आत्माओं का कल्याण कर सकेगी । अपने श्रेष्ठ और शक्तिशाली संकल्पों द्वारा आत्माओं को सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों का अनुभव करवा सकेगी ।

 

 ❉   अंतर्मुखता में रहने वाली आत्मा मन बुद्धि को सेकण्ड में एक के अंत में एकाग्र करने की अभ्यासी बन जाती है और अपनी एकाग्रता की शक्ति से वह हर घड़ी, हर संकल्प में नवीनता का अनुभव करते हुए सदा सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों की अनुभूति करती रहती है । इन अनुभूतियों के आनन्द में मगन हो कर जब वह बाह्यमुखता में आती है तो अपने सर्व प्राप्ति सम्पन्न स्वरूप से सहज ही सर्व आत्माओं को रूहानी स्नेह, प्रेम और सुख का अनुभव करवा कर उनका कल्याण करने के निमित बन जाती है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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