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 28 / 07 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ "मेरा तो एक शिव बाबा दूसरा न कोई" - मित्रों सम्बन्धियों के बीच रहते बुधी में यही रहा ?

 

➢➢ पक्का वैष्णव बनकर रहे ?

 

➢➢ नर्क से जीते जी मरकर बुधीयोग स्वर्ग से लगाया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ सदा मर्यादाओं की लकीर के अन्दर रहने की केयर की ?

 

➢➢ सेवा की अति में न जा सेवा और पुरुषार्थ का बैलेंस रखा ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢ आज बाकी दिनों के मुकाबले एक घंटा अतिरिक्त °योग + मनसा सेवा° की ?

 

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➳ _ ➳  http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/28.07.16-VisheshPurusharth.pdf

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - तुम यहाँ आये हो अपने सहित सारी दुनिया की काया कल्पतरु बनाने.याद से ही काया कल्पतरु होगी"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे पिता से मिलकर आप बच्चे अपनी दुनिया की कायापलट करके नर्क से स्वर्ग बना देते है... पिता की यादो में जीना ही खूबसूरत जीवन का पर्याय है.... ये यादे ही सुन्दरतम जीवन का आधार है... और सिर्फ और सिर्फ याद ही वह जादूगरी है जो देवताई दुनिया बनाती है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा... तो नर्क के दलदल में गहरे धसी थी... अब आपके प्यार के साये में खुद तो खूबसूरत बन रही हूँ.... इस पूरी दुनिया को भी निखार कर देवताई बना रही हूँ... कब सोचा था ऐसे मीठे भाग्य को पाएंगे भला...

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे.... सारा मदार मीठे पिता के प्रेम पर है... रिश्तो के दैहिक प्रेम में सब गवाया और दुनिया क्या से क्या हो चली... अब यादो में गहरे बेठ सुनहरे सुखधाम को बनाना है... खुशनुमा बन खुशियो भरी दुनिया बसाना है...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपसे गुण और शक्तियो को लेकर यादो के बल पर स्वर्णिम दुनिया में कदम रख रही हूँ... ईश्वरीय प्रेम में धरती आसमाँ सब निखर रहे है... दमकती काया और चमकती मेरी दुनिया यादो में स्वतः ही बनती चली जा रही है....

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे बच्चे... ईश्वरीय यादो से जो विमुख हुए हो खुद भी गिरे हो दुनिया भी गिर चली है... देवताओ जेसे सुंदर फूल साधारण मनुष्य बन पड़े हो... अब वही सुनहरा जग फिर लाना है... यादो के मोती से सुनहरी माला फिर बनानी है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सारे राजो को जान गयी हूँ... मेरे देहभान में आने से ही दुनिया का यह हाल हुआ... अब मीठी प्यारी याद से स्वयं को खूबसूरत बना वही सुंदर दुनिया बनाने में जुट गयी हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - ज्ञान स्नान कर पावन बनना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा ज्ञान सागर बाप के सम्मुख बैठी हूं... स्वयं प्यारे बाबा ही मुझ आत्मा के सुप्रीम बाप, सुप्रीम टीचर, सुप्रीम सदगुरु हैं... प्यारे बाबा सुप्रीम शिक्षक बन ब्रह्मा बाबाके तन का आधार लेकर मुझ आत्मा पर ज्ञान रत्नों की वर्षा करते है... मुझ आत्मा को पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बनाते है... कांटो भरी दुःख की दुनिया से निकाल सुख की दुनिया में लाते है... शूद्र से ब्राह्मण और ब्राह्मण से देवता बनाते है... मुझ आत्मा के कौड़ी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बना दिया... इस संगमयुग पर ही स्वयं प्यारे बाबा इस पतित दुनिया में आकर पतित से पावन बनाते हैं... जैसे गाया जाता है कि संगम पर सागर और नदियों का मेला है... ये इस संगमयुग पर ही ज्ञानसागर बाप और हम आत्माओं का मिलन है... हम आत्मायें ज्ञान सागर बाप के पास आये है... हम ज्ञान गंगायें ही ज्ञान सागर बाप से ज्ञान रत्नों से भरपूर होते हैं और ज्ञान स्नान कर पावन बनते है... इस पुरानी दुनिया में रहते मुझ आत्मा का देह व देह के सम्बंधियों से कोई मोह नही है... ये सब तो विनाशी सम्बंध है... चलते-फिरते, उठते-बैठते मुझ आत्मा का बुद्धियोग बस एक प्यारे बाबा से जुड़ा रहता है... मुझ आत्मा के दिल में यही गीत बजता रहता है... *मेरा तो बस एक शिव बाबा दूसरा न कोई*

 

❉   "ड्रिल - पक्का वैष्णव बन बुद्धियोग स्वर्ग में लगाना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा ज्योति बिंदु स्वरुप हूं... मुझ आत्मा को प्यारे परमपिता शिव बाबा ने ही स्मृतियां दिलाई है... मैं ही परम पवित्र आत्मा परमधाम की रहने वाली हूं... मैं आत्मा ही पहले सतयुग की मालिक थी... अपने असली स्वरुप व अपने सच्चे परमपिता को भूलने से व विकारों में आने से मुझ आत्मा की ये दशा हुई है... प्यारे बाबा अपने बच्चों को दुःखी नही सके... इसलिए ड्रामानुसार प्यारे बाबा हम आत्माओं को पतित से पावन बनाने के लिए आए हैं... पुरानी दुनिया को नया बनाते है... अब घर वापिस जाना है... विष्णुपुरी सतोप्रधान दुनिया है... सतोप्रधान दुनिया में जाने के लिए मैं आत्मा पावन बनने का पुरुषार्थ करती हूं... मैं आत्मा पक्का वैष्णव हूं... मैं आत्मा संकल्पों मे, मनसा, वाचा और कर्मणा पवित्रता को धारण करती हूं... मैं शुद्ध व शाकाहारी भोजन ही ग्रहण करती हूं... मैं आत्मा दृढ़ संकल्प करती हूं कि विष्णुपुरी में जाने के लिए सम्पूर्ण पवित्रता धारण करुंगी... इस पुरानी नर्क की दुनिया से मुझ आत्मा का कोई मोह नही है... मैं आत्मा जीते जी इस पुरानी दुनिया को बुद्धि से भुला चुकी हूं... मैं आत्मा बस बाप को व वर्से को याद रखती हूं... इस पुरानी दुनिया में रहते मुझ आत्मा का बुद्धियोग स्वर्ग से, नयी दुनिया से जुड़ा रहता है...

 

❉   ड्रिल - सेवा और स्व पुरुषार्थ का बैलेंस"

 

➳ _ ➳  मैं अवतरित आत्मा हूं... ईश्वरीय संतान हूं... इस धरा पर पार्ट बजाने आई हूं... मैं आत्मा स्वयं को इस धरा पर मेहमान समझती हूं... मैं आत्मा निमित्त हूं... अथक व रुहानी सेवाधारी हूं... प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को ये शरीर सेवार्थ दिया है... मुझ आत्मा को यह थोड़ा सा समय जो संगमयुग पर मिला है हर सेकेंड़ सेवा मे लगा सफल करती हूं... मैं आत्मा सेवा करते हुए बस प्यारे बाबा की याद में रहती हूं... मैं आत्मा स्वयं को सेवा में इतना बिजी नही करती कि ये कहूं कि मुरली सुनने का समय नही मिला... मैं आत्मा सेवा के साथ अपनी आत्मा को ज्ञान का भोजन जरुर देती हूं... मैं आत्मा स्व की उन्नति पर पूरा अटेंशन देती हूं... मैं आत्मा देह में रहते देह से न्यारा होकर कर्म करती हूं... मैं आत्माभिमानी स्थिति का अनुभव करती हूं... मैं आत्मा याद में रहकर सेवा करती योगयुक्त रहती हूं... याद के चार्ट पर पूरा अटेंशन देती हूं... मैं आत्मा सेवा व स्व पुरुषार्थ का बैलेंस रखती हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं मर्यादा पुरुषोत्तम आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳  मैं हर परिस्तिथि पर विजय प्राप्त करने वाली महावीर आत्मा हूँ... माया रूपी दुश्मन का आह्वान कर, उसे पछाड़ने वाली मैं कल्प - कल्प की विजयी आत्मा हूँ... मैं सदा त्रिकालदर्शी बन माया का डट कर सामना कर, उस पर जीत प्राप्त करती हूँ...

 

➳ _ ➳  बाबा से मिली रूहानी शक्तियों को सही समय पर प्रयोग कर, मैं माया के तुफानो को खेल में बदल मर्यादाओं की लकीर के अंदर रहने का अनुभव करती हूँ...

 

➳ _ ➳  सर्वशक्तिवान बाबा का वरदानी मूर्त हाथ सदा मेरे सिर के ऊपर है, इसलिए विजय का तिलक मेरे मस्तक पर सदैव चमकता रहता है... बापदादा के स्नेह और प्यार के द्वारा मुझ आत्मा को ज्ञान और योग के पंख लग गए हैं...

 

➳ _ ➳  यह पंख मुझ आत्मा को सुबह से रात तक मर्यादा के अंतर्गत रखते हैं... मैं आत्मा मर्यादा की लकीर के अंदर रहकर सदा केयरफुल सो चियरफुल अर्थात हर्षित रहने वाली आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा बाप अर्थात राम की सच्ची सीता हूँ... मैं आत्मा मर्यादा पुरुषोत्तम हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  सदा मर्यादाओं की लकीर के अन्दर रहने की केयर करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम होते हैं...  क्यों और कैसे?

 

❉   सदा मर्यादाओं की लकीर के अन्दर रहने की केयर करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम होते हैं क्योंकि जो बच्चे अपने आप को एक ही बाप अर्थात राम की सच्ची सीता समझ कर सदा मर्यादाओं की लकीर के अन्दर रहते हैं, अर्थात केयर करते हैं तो वह सदा हर्षित रहते हैं।   

 

❉   मर्यादाओं की लकीर में रहना अर्थात अपनी सदैव केयर करते रहना है। वह केयरफुल सो चियरफुल अर्थात हर्षित स्वतः ही रहते हैं। अगर मर्यादा की लकीर में नहीं रहेंगे तो माया रावण आत्मा रुपी सीता का हरण करने में तनिक भी देर नहीं लगाता है।

 

❉   इसलिये सवेरे से ले कर, रात तक की अर्थात अमृतवेले से रात्रि सोने के समय तक की, जो भी मर्यादायें मिली हुई हैं, उनकी स्पष्ट नॉलेज बुद्धि में रखनी है। स्वयं को सच्ची सीता समझ कर मर्यादाओं की लकीर के अंदर ही रहना है। तब ही कहलायेंगे मर्यादा पुरुषोत्तम।

 

❉   मर्यादा पुरुषोत्तम वही होते हैं, जो बाबा द्वारा अर्थात ब्राह्मण जीवन के लिये निर्धारित की गई मर्यादाओं का हूबहूँ पालन करते हैं तथा श्रीमत के अनुसार मर्यादित आचरण भी करते हैं। वही सही मायने में मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हैं।

 

❉   इसलिये जो बच्चे अपने को एक ही बाप राम की सीता समझते हैं और मर्यादाओं की लकीर में रहते हैं वही सदा केयरफुल और चिअरफुल होते हैं। माया उनका बाल भी बाँका नहीं कर सकती है, क्योंकि हम ही वही सच्ची सीतायें हैं, जो राम द्वारा बनाई गई मर्यादाओं को अपनी बुद्धि में धारण करती है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢ सेवा की अति में नही जाओ, सेवा और स्व पुरुषार्थ का बैलेन्स रखो... क्यों और कैसे ?

 

❉   बाबा की श्रीमत है कि सर्व की सेवा के साथ-साथ पहले स्व सेवा आवश्यक है ।  जो यह बैलेन्स रखते हैं सदा स्व उन्नति करते हुए सेवा में सहज ही सफलता प्राप्त कर लेते हैं । सेवा के क्षेत्र में भाग - दौड़ करते दोनों बातों का बैलेन्स मायाजीत बना देता है । अगर सेवा और स्व पुरुषार्थ का बैलेन्स नही रखते तो सेवा में बाह्यमुखता के कारण सफलता प्राप्ति के बजाए अपने वा दूसरों के भाव - स्वभाव के प्रभाव में आ जाते हैं । 

 

❉   समय कम है और सेवा अभी भी बहुत है । सेवा में  माया के आने की भी मार्जिन रहती है । उसमें थोड़ा सा बैलेन्स कम होते ही माया नया - नया रूप धारण कर आ जाती है । इस लिए बाबा कहते सेवा और स्व - स्थिति का बैलेन्स बहुत जरूरी है । मालिक बन कर्मेन्द्रियों रूपी कर्मचारियों से जब सेवा लेंगे और मन में बस एक बाबा दूसरा न कोई इस स्मृति को इमर्ज रख कर जब सेवा के क्षेत्र में आएंगे तो यह बैलेंस सफलतामूर्त बना देगा ।

 

❉   सेवा में निरन्तर आगे बढ़ने के साथ साथ स्वउन्नति पर भी पूरा अटेन्शन रहे यह सेवा में सफलता प्राप्त करने के लिए बहुत आवश्यक है । यह बैलेन्स ही दुयायें लेने और देने का आधार है । क्योकि बैलेन्स की प्राप्ति ही है ब्लैसिंग । बैलेन्स वाले को ब्लैसिंग नहीं मिले  -  यह हो नहीं सकता । जो यह बैलेन्स रख कर सेवा करते हैं वे मात - पिता और परिवार की दुआओं से सदा आगे बढ़ते चले जाते हैं । यह दुआयें ही पालना हैं जो सेवा में सफलता दिलाती हैं ।

 

❉   विश्व-सेवा और स्व की सेवा दोनों का बैलेन्स रखने से सफलता होगी । अगर स्व - सेवा को छोड़ विश्व -सेवा में लग जाते हैं तो सफलता मिल नहीं सकती । इसलिए विश्व सेवा के साथ साथ पहले स्वयं का पुरुषार्थ जरूरी है । मन्सा और वाचा - दोनों सेवा जब इक्कठी होंगी तो मेहनत से बचे रहेंगें इसलिए बाबा कहते जब भी कोई सेवार्थ जाते हो तो पहले चेक करो कि स्व - स्थिति में स्थित होकर जा रहे हैंहलचल में तो नहीं जा रहे हैं ?

 

❉   अभी समय की पुकार है वरदानी मूर्त बन दुखी और अशांत आत्माओं को शांति की अनुभूति करवाना । दातापन की स्मृति में स्थित हो कर सेवा करना अर्थात हद की नही बेहद की वृति से सेवा । चाहे स्व - उन्नति के प्रति दाता - पन का भावचाहे सर्व के प्रति स्नेह इमर्ज रूप में दिखाई दे । और वह तभी होगा जब स्व पुरुषार्थ और सेवा दोनों का बैलेन्स रख कर सेवा करेंगे । स्व स्थिति में स्थित हो कर बाप की याद में रह जब सेवा के क्षेत्र मे आयेंगे तो बेहद बाप की सेवा के साथी बन सफलता प्राप्त कर सकेंगे ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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