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 27 / 05 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ ज्ञान को अच्छी रीति धारण कर देही अभिमानी बनकर रहे ?

 

➢➢ जिन्न बनकर याद की यात्रा की ?

 

➢➢ माया कितने भी विघन डाले लेकिन मुख में मुलहरा डाले रखा ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ बाप समान अपने हर बोल व कर्म को यादगार बनाया ?

 

➢➢ अपनी उडती कला द्वारा हर समस्या को बिना किसी रुकावट के पार किया ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ स्वयं में सर्व गुणों का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं दिलतख्तनशीन सो राज्य तख्तनशीन आत्मा हूँ ।

 

✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा हूँ... जगत पिता, जगत नियंता, परमपिता परमात्मा की प्रिय संतान होने के कारण मैं आत्मा इस सम्पूर्ण वसुधा की स्वामी हूँ... मैं मास्टर त्रिलोकीनाथ हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं तीनों लोकों और तीनों कालों का गुह्य रहस्य जानने वाली त्रिनेत्री हूँ... ज्ञान का तीसरा नेत्र मुझे स्वयं संसार के पिता शिव ने उपहार स्वरुप प्रदान किया है... वह स्वयं मुझ पर अति प्रसन्न होकर मुझे इस वुश्व का मालिक बनाना चाहते हैं...

 

➳ _ ➳  इस समय भोलेनाथ बाबा मुझे सारे विश्व की राजाई देने के लिए स्वयं इस वसुधा पर अवतरित हुए हैं... वह स्वयं मुझ आत्मा को समस्त दुखों और दुविधाओं से मुक्त रहने की युक्ति बता रहें हैं... उनका यह असीम प्यार देखकर मैं धन्य - धन्य हो गयी हूँ...

 

➳ _ ➳  जैसे बाप द्वारा जो भी बोल निकलते हैं वो यादगार बन जाते हैं, ऐसे ही मैं आत्मा भी बाप समान बनने का दृढ़ संकल्प लेती हूँ आज... यह संकल्प लेते ही मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ की बाबा ने मुझे वरदानों से भरपूर कर दिया है...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मैं जो भी बोलती हूँ वह सबके दिलों में समा रहा है अर्थात वह यादगार बनता जा रहा है... मैं जिस आत्मा के प्रति भी संकल्प करती हूँ वह उनके दिल को लगता है...

 

➳ _ ➳  मुझ करनहार आत्मा के मुख से निकले दो शब्द भी दिल को राहत देने वाले होते हैं... मैं यह अनुभव कर रहीं हूँ कि अन्य आत्माएं मुझसे समीपता का अनुभव कर रहीं हैं...  सभी मुझे अपना समझने लगे हैं... मैं भाग्यशाली आत्मा अपने प्यारे बाबा की दिलतख्तनशीन सो राज्य तख्तनशीन आत्मा बन गयी हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - अपने आपसे पुछो की मै कितना समय बाप की याद में रहता हूँ देहि अभिमानी स्तिथि कितना समय रहती है"

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे अपने अंतर्मन में गहराई से झांक कर स्वयं से पुछो की ईश्वर पिता की यादो में कितना डूबते हो... सत्य को जानकर स्वयं के सत्य स्वरूप में कितना समय मन बुद्धि टिकता है... यह गहनता से स्वयं की जाँच करो

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे पिता तो श्रीमत से दामन सजाएगा पर कदम तो स्वयं आप बढ़ा कर उसे जिंदगी की जागीर बनाओगे... तो चैक करो की पिता के ख्यालो में स्वयं को कितना खोया है... आत्मा के खूबसूरत नशे से कितना खुद को भरा है...

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे भगवान पिता बन जीवन में छत्रछाया सा सज गया पर पुरुषार्थ को लेकर तो आप बच्चे ही स्वयं के भगवान बनोगे... तो गौर करो अपने पुरुषार्थ पर और देखो की देही अभिमानी स्तिथि को सांसो संकल्पों में कितना समाया है...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चे कितने समय तक ईश्वरीय प्यार में रंगते हो... कितना समय निज सत्य रूप को जीते हो कितनी सांसे कितने संकल्प इस महालक्ष्य को देते हो... गहरे से देखो जरा और समय और संकल्पों को ईश्वरीय प्रेम में भिगो दो...

 

 ❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चे अपने जीवन को सच्ची राहो पर चलाओ... ईश्वरीय श्रीमत को सांसो में बसाओ... देखो कितने पल इन सच्ची यादो से भरते हो... कितना समय देही अभिमानी हो मुझ बिन्दु में बिन्दु बन मिलते हो...

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ ज्ञान को अच्छी रीति धारण कर देही-अभिमानी बनना है । यही मेहनत है । यही ऊंची मंजिल है । इस मेहनत से आत्मा को सतोप्रधान बनाना है ।

 

  ❉   देह-अभिमान में रहने के 63 जन्मों के पुराने कडे संस्कार है व उसे खत्म करने के लिए अपने को देह नही देही समझना है । यही पाठ पक्का करना है ।

 

  ❉   पहले तो घोर अंधियारे में व रौरव नर्क में थे । अब तो संगमयुग पर स्वयं परमपिता परमात्मा ने हमें दिव्य ज्ञान व दिव्य बुद्धि दी है तो ज्ञान को अच्छे से धारण करना है व अपने को आत्मा समझ परमात्मा बाप को याद करना है ।

 

  ❉   ज्ञान तो सहज है व इसको धारण करने में ही मेहनत है । अभी तक शरीर को ही सब समझते रहे व शरीरधारियों से ही सम्बंध निभाते देहभान में रह पतित हो गए । परमपिता परमात्मा बाप ने ही ज्ञान दिया कि शरीर तो बस चोला है व आत्मा अलग है । आत्मा में ही सब संस्कार साथ जाते हैं ।

 

  ❉   बाप ही आकर सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान देते हैं व सर्व का सदगति दाता एक बाप ही हैं । बस इसलिए बस परमात्मा बाप की याद से विकर्म विनाश करने हैं व आत्मा पर लगी कट को उतारना है । याद से आत्मा को सतोप्रधान बनाना है ।

 

  ❉   अभी तक घोर कलयुग में तमोप्रधान थे व परमात्मा बाप की याद से आत्मा को सतोप्रधान बनाने की मेहनत करनी है । पुराने स्वभाव संस्कारों को पावरफुल योग द्वारा स्वाह करना है व आत्मा की जगती ज्योति को तेज करना है ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ बाप समान अपने बोल व कर्म का यादगार बनाने वाले दिलतख्तनशीन सो राज्य तख्तनशीन होते हैं.... क्यों और कैसे?

 

  ❉   जिन बच्चों का हर संकल्प, कर्म और बोल बाप के लिए होता है व बाप के प्रति दिल से लगन होती हैं तो वो जो भी बोलते हैं सबके दिलों में समा जाता है । उनके बोल रुहानियत से भरपूर होते है व बाप की समीपता का अनुभव होता है । इसलिए सब उन्हें अपना समझते हैं । ऐसे बच्चे ही दिलतख्तनशीन सो राज्य तख्तनशीन बनते हैं ।

 

  ❉   जो बच्चे एक बाप से ही सर्व सम्बंध रखते हैं व हर पल बाप की ही महिमा करते हैं व बस बाबा बाबा ही कहते सेवा में बिजी रहते हैं तो बाप भी अपने ऐसे सर्विसएबुल  बच्चों को याद करते हैं व दिलतख्तनशीन सो राज्य तख्तनशीन होते हैं ।

 

  ❉   जो बच्चे पुरानी देह वा देह की दुनिया से विस्मृत रहते है व इस अनमोल संगमयुग के महत्व को जान बाप की स्थाई याद के नशे में रहते है तो बापदादा के दिल तख्तनशीन होते हैं व ये नशा होता है कि ये तख्त सारे कल्प में नही मिल सकता । अभी बाप के दिल तख्तनशीन सो विश्व के राज्य के तख्तनशीन होंगे ।

 

  ❉   जो बच्चे स्वयं को हमेशा हजार भुजाओं वाले बाप की छत्रछाया में अनुभव करते है व श्रीमत रुपी हाथ पकड़े रखते है व सुखसागर बाप समान सबको सुख कआ खजाना बांटते रहते हैं । हर बोल में बाप समान अर्थोरिटी व कर्म में श्रेष्ठता रखते हैं वो बाप समान बोल और कर्म का यादगार बनाने वाले दिलतख्तनशीन सो राज्य तख्तनशीन होते हैं ।

 

  ❉   जो बच्चे बाप के साथ सदा फेथफुल , सदा के सहयोगी, बाप और सेवा में मगन, बाप के कदमों कर कदम रखते हैं । जो बाप से वायदा करते निभाते हैं कि तुम्हीं संग बैठूं, तुम्हीं से हर सेकेण्ड हर कर्म में साथ निभाऊं , ऐसे ज्ञानी तू आत्मा बच्चे कर्म को यादगार बनाने वाले दिलतख्तनशीन सो राज्यनशीन होते हैं ।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ अपनी उड़ती कला द्वारा हर समस्या को बिना किसी रुकावट से पार करने वाले उड़ता पंछी बनो... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   जैसे स्थूल नेत्रों द्वारा स्थूल वस्तु स्पष्ट दिखाई देती है ऐसे बुद्धि के अनुभव के नेत्र द्वारा वर्तमान और भविष्य प्रालब्ध स्पष्ट दिखाई दे, इसके लिए सदा अपने सामने जब संगमयुगी सर्व प्राप्तियों को इमर्ज रखेंगे तो उड़ती कला में ऐसे उड़ते रहेंगे कि हिमालय पर्वत जितनी बड़ी समस्या को भी सेकण्ड में पार कर लेंगे तथा हर कदम में पदमो की कमाई जमा करते हुए उड़ता पंछी बन हर रुकावट को पार कर ऊँची उड़ान भरते रहेंगे ।

 

 ❉   एक बाप की याद के सिवाय और कुछ याद ना आये, बस एक ही स्मृति रहे कि मेरा बाबा है । तो जो मेरा होता है वह स्वत: याद रहता है उसको याद करना नहीं पड़ता । क्योकि मेरा कहना अर्थात् अधिकार प्राप्त हो जाना । मैं बाबा का बाबा मेरा - इसी को कहा जाता है सहजयोग । ऐसे सहजयोगी बन एक बाप की याद की लगन में मगन रहते हुए जब आगे बढ़ते रहेंगे तो यह अटूट याद ही सर्व समस्याओं को हल कर हमे उड़ता पंछी बनाए उड़ती कला में ले जायेगी ।

 

 ❉   बाप द्वारा मिले सर्व ज्ञान खजानों को सम्पूर्ण विधि से सम्पूर्ण सिद्धि स्वरूप बन जब सफल करते रहेंगे और बाप दादा से अथक भव का वरदान प्राप्त कर ज्ञान और योग के पंख लगा कर, मन बुद्धि रूपी विमान में बैठ सेकण्ड में जब चाहे तीनों लोकों की सैर करते हुए, जब चाहे, जितना समय जिस स्वरूप में स्थित होना चाहे उस स्वरूप में स्थित हो कर जब सहजयोगी स्थिति में स्थित होने के अनुभवी बन जायेंगे तो उड़ता पंछी बन अपनी उड़ती कला द्वारा हर समस्या को बिना किसी रुकावट के सेकण्ड में पार कर सकेंगे ।

 

 ❉   इस देह और देह की दुनिया से जितना उपराम रहेंगे उतना उड़ती कला में उड़ते रहेंगे क्योकि उपराम स्थिति का अर्थ ही है उड़ती कला । जो सदा ऐसी उड़ती कला में रहते हैं वे कभी भी हद में लटकते वा अटकते नहीं । उड़ता पंछी बन वे कर्म के कल्प वृक्ष की डाली पर आते हैं और बेहद के समर्थ स्वरूप से कर्म कर फिर उड़ जाते हैं । कर्म रूपी डाली के बंधन में वे कभी फंसते नहीं । इसलिए हर समस्या को बिना किसी रुकावट के सहज ही पार कर लेते हैं ।

 

 ❉   मेरे को तेरे में परिवर्तन कर जो सदा डबल लाइट फरिश्ता बन कर रहते हैं । जिन्हें चलते - फिरते सदा यही स्मृति रहती है कि हम हैं ही फरिश्ते और फ़रिश्ते का अर्थ ही है जिसका देह और देह की दुनिया से कोई रिश्ता नही । सारे रिश्ते केवल एक बाप से । तो जब बाप के बन गये, सब कुछ मेरा सो तेरा कर दिया तो हल्के बन गये। ऐसे जो फ़रिश्ते बन कर रहते हैं उन्हें कभी कोई बोझ फील नही होता इसलिए सदा अपनी उड़ती कला द्वारा हर समस्या को बिना किसी रुकावट के आसानी से पार कर लेते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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