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❍ 24 / 09 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ किसी भी बात के उलझन में तो नहीं आये ?
➢➢ एक दो को सावधान कर उन्नति को पाया ?
➢➢ जो उल्टी सूक्ति बातें सुनाते हैं, उनसे सावधान रहे ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ स्वयं के टेंशन पर अटेंशन देकर विश्व का टेंशन समाप्त किया ?
➢➢ दृढ़ता की शक्ति से मन को कण्ट्रोल कर योग अनुभूति की ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ √प्रेम और शक्ति√ दोनों गुणों का समान रूप से अनुभव किया ?
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar-murli.com/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/24.09.16-VisheshPurusharth.htm
✺ PDF Format:-
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - तुम गॉडली स्टूडेंट हो तुम्हे सच्चा सच्चा रूप बसन्त बन अपने मुख से सदैव ज्ञान रत्न ही निकालने है"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे... आप ईश्वरीय फूल हो गॉडली स्टूडेंट हो... कितना प्यारा और मीठा सा भाग्य है कि धरती पर आकर ईश्वर की गोद में पढ़ाई पढ़ रहे हो... तो भाग्य की इस अमीरी को ज्ञान रत्नों से छ्लकाओ... रूप और बसन्त बन अपनी योगी छटा का जहान को दीवाना बनाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा ज्ञान की अमीरी में मुस्करा उठी हूँ... अपने शानदार भाग्य को पाकर निहाल हो चली हूँ... रत्नों से भरपूर होकर... सुनहरा रूप पाकर बसन्त सी खिल उठी हूँ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वरीय स्टूडेंट हो तो हर बात हर चाल रूहानी हो... हर कर्म असाधारण हो... सदा मुख से रत्नों की बरसात हो कि हर दिल सुख की भासना से पुलकित हो उठे... सच्चे पिता और सच्चे ज्ञान की चमक का पूरे विश्व को दीवाना बना आओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा बाबा से ज्ञान रत्नों का अथाह खजाना पाकर हर दिल पर लुटा रही हूँ... कौन मिला है मुझे इस रूहानी नूर से हर दिल को रौशन कर रही हूँ... और टीचर बाबा के पते की दस्तक हर दिल को दे रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर ने पसन्द किया और अपना स्टूडेंट बनाया है... यह भाग्य विरलो को ही नसीब होता है... तो जो खूबसूरत भाग्य हाथ आया है... उस की खूबसूरती को छ्लकाओ... भगवान बेठ पढ़ा रहा और सुंदर देवता सा सजा रहा... इस नशे में झूम जाओ... सबको ज्ञान रत्नों से मालामाल कर आओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... आपसे पाये ज्ञान रत्नों की झनकार हर दिल को सुना रही हूँ... सच्चा रूप बसन्त बन मीठा मुस्करा रही हूँ... ईश्वरीय स्टूडेंट हूँ... इस खुमारी में खोती जा रही हूँ... अपने मीठे भाग्य पर मन्द मन्द मुस्करा रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - पुरुषार्थ कर अपना जीवन हीरे तुल्य बनाना"
➳ _ ➳ अपना ध्यान सब तरफ से हटाते हुए मन बुद्धि को एकाग्र करें... स्वयं को आत्मा निश्चित करें... मैं आत्मा भृकुटि के बीचोबीच चमकता एक सितारा हूं... मुझ आत्मा की रोशनी चहुं ओर फैल रही है... मैं एक महान आत्मा हूं... विशेष आत्मा हूं... सर्वश्रेष्ठ आत्मा हूं... मुझे स्वयं परमपिता परमात्मा ने कोटों में कोई मे से चुना है... कितनी पदमापदम भाग्यशाली हूं... स्वयं भगवान ने मुझे अपना बनाया है... इस संगमयुग पर ये मेरा नया जीवन है... अलौकिक जीवन है... जब स्वयं भगवान ने मुझ आत्मा को अपना भाग्य बनाने की कलम मेरे हाथ में दे दी है... मैं आत्मा अपने ओरिजनल स्वरुप को पहचान गई हूं... सच्चे सच्चे शिव पिता का परिचय मिल गया है... मैं आत्मा इस देह व देह के सम्बंधों व विनाशी दुनिया को बुद्धि से भुलाकर बस प्यारे शिव पिता को याद कर रही हूं... स्वयं सर्वशक्तिमान भगवान मेरा सच्चा साथी है... मुझ आत्मा के सर्व सम्बंध बस एक प्यारे बाबा से हैं... वही मेरे मात-पिता, सुप्रीम शिक्षक, सुप्रीम सदगुरु व साजन है... मैं आत्मा परमात्म पालना में पल रही हूं... मैं आत्मा ईश्वरीय रुहानी पढ़ाई पढ़कर विश्व की राजाई लायक बन रही हूं... मैं आत्मा एक बाबा की श्रीमत पर चल रही हूं... प्यारे बाबा मुझ आत्मा का दिव्य गुणों से श्रृंगार कर सजा रहे हैं... मैं आत्मा बाबा की छत्रछाया में रह किसी उलझन में नही आती हूं... एक बाबा की याद में रह माया के वार से अपने को सेफ रख रही हूं... मैं आत्मा ज्ञान धन से भरपूर होकर अविनाशी कमाई कर रही हूं... ज्ञान रत्नों का दान करते हुए एक दो को आगे बढ़ा रही हूं... प्यारे बाबा का परिचय देकर सम्बंध सम्पर्क में आने वाली आत्माओं का कल्याण कर रही हूं... मैं आत्मा एक बाप की याद में रह स्व की उन्नति कर अपने जीवन को हीरे तुल्य बनाने का पुरुषार्थ कर रही हूं....
❉ "ड्रिल - "योग की अनुभूति करने के लिए दृढ़ता की शक्ति से मन को कन्ट्रोल करना"
➳ _ ➳ अपने आप को देखे भृकुटि के मध्य चमकती मैं आत्मा एक अद्भुत ज्योति हूँ..... मैं आत्मा स्वराज्य अधिकारी हूँ.....अपनी स्थूल और सूक्ष्म कर्मर्न्द्रियों की मालिक हूँ...... मेरी सूक्ष्म कर्मेन्द्रिया मन, बुद्धि और संस्कार मेरे आर्डर प्रमाण काम करते हैं........ मैं अपने मन की मालिक दृढ़ता की शक्ति द्वारा मन को कन्ट्रोल करती हूँ......अपनी कंट्रोलिंग पॉवर द्वारा मन पर पावरफुल ब्रेक लगाते हुए व्यर्थ और कमजोर संकल्पों से मुक्त रखती हूँ......और उसे श्रीमत की लगाम द्वारा काबू करते हुए सही दिशा में लेकर जाती हूँ.......मन को दृढ़ता से कन्ट्रोल करने पर मुझ आत्मा को बाबा के साथ योग लगाने पर कई अद्भुत अनुभूतियाँ हो रही हैं....... मेरा योग पावरफुल होता जा रहा हैं..... इस अलौकिक जीवन में प्राप्त अनुभूतियों के बल पर मैं अनुभवों की आल्माईटी अथॉरिटी बनती जा रही हूँ।
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳ मैं 'विशेष'शब्द की स्मृति द्वारा सम्पूर्णता की मंजिल को प्राप्त करने वाली स्व परिवर्तक आत्मा हूँ... मैं विशेष आत्मा विशेष कार्य करने के निमित हूँ... अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को विशेष बना कर मैं स्व परिवर्तन द्वारा विश्व का परिवर्तन करने वाली स्व परिवर्तक सो विश्व परिवर्तक आत्मा हूँ...
➳ _ ➳ स्व परिवर्तन द्वारा सम्पूर्णता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मैं निरन्तर मंजिल की ओर बढ़ती जाती हूँ... मैं आत्मा स्वयं की टेंशन पर अटेन्शन देकर विश्व कल्याण का करने में निमित्त बनने वाली आत्मा हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपनी पॉवरफुल वृत्ति द्वारा सारे विश्व की आत्माओं की टेंशन को समाप्त करती जाती हूँ... मैं आत्मा विस्तार की बजाय सार रूप में स्थित रह कर सर्व आत्माओं को समर्थ बनाती जाती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा संकल्पों की क्वांटिटी की बजाय क्वालिटी पर विशेष अटेन्शन रखती हूँ... यह अटेन्शन रख मैं यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मेरा हर कर्म स्व के प्रति और दूसरों के प्रति सदैव फलदायी होने लगा है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सर्वप्रथम स्वयं की सर्विस कर निर्बल, दिलशिकस्त, असमर्थ आत्माओं को एक्स्ट्रा बल देकर सर्विस करने वाली रूहानी रहमदिल विश्व कल्याणकारी आत्मा होने की सीट पर सेट होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ स्वयं के टेन्शन पर अटेन्शन देकर विश्व का टेन्शन समाप्त करें वाले विश्व कल्याणकारी होते हैं... क्यों और कैसे?
❉ स्वयं के टेन्शन पर अटेन्शन दे कर विश्व का टेन्शन समाप्त करने वाले विश्व कल्याणकारी होते हैं क्योंकि जब हम दूसरों के प्रति जास्ती अटेन्शन दे देते हैं तब अपने अन्दर टेन्शन चलता है, इसलिये! हमें विस्तार करने के बजाये सार रूप में स्थित हो जाना है।
❉ क्योंकि जब हम दूसरों के प्रति अधिक ध्यान देंगे तब स्वयं की ओर ध्यान नहीं दे पायेंगे और हमारा सारा समय दूसरों की उलझनों को ही साल्व करने में यूँ ही व्यर्थ चला जायेगा। इसलिये! उनकी समस्याओं के विस्तार को बुद्धि द्वारा जान कर, स्वयं को सार स्वरूप में स्थित कर लेना है।
❉ इसके लिये हमें सदा ही क्वान्टिटी के संकल्पों को समा कर क्वालिटी वाले संकल्पों को क्रियेट करना है। हमें सदा ही क्वालिटी के संकल्पों का निर्माण करते रहना चाहिये। जिससे हम दूसरों के टेन्शन को भी आसानी से सॉल्व कर सकेंगे। अतः हमें श्रेष्ठ संकल्पों के निर्माण पर अटेन्शन देनी है।
❉ इसके लिये सब से पहले हमें अपने टेन्शन पर अटेन्शन देनी है। तब विश्व में जो अनेक प्रकार के टेन्शन हैं, उनको समाप्त कर सकेंगें तथा इस बात पर अटेन्शन भी देंगे क्योंकि जब तक हम स्वयं ही टेन्शन से मुक्त नहीं होंगे तो अन्यों को उनकी टेन्शन से मुक्त किस प्रकार से कर सकेंगे।
❉ इसलिये पहले स्वयं को टेन्शन मुक्त स्थिति में स्थित रखना है। तब अन्यों के अनेक टेन्शन को समाप्त करने के निमित्त बन सकेंगे और विश्व कल्याणकारी बन जायेंगे। अतः पहले हमें अपने आपको देखना है और अपनी सर्विस भी फर्स्ट करनी है। अपनी सर्विस की तो दूसरों की सर्विस स्वतः ही हो जायेगी।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ योग की अनुभूति करनी है तो दृढ़ता की शक्ति से मन को कन्ट्रोल करो... क्यों और कैसे ?
❉ भगवान जो हमे योग सिखा रहे हैं वह सहज राजयोग है जिसमे सारा खेल मन बुद्धि का है क्यो
कि योग का अर्थ ही है मन बुद्धि से आत्मा को परमात्मा के साथ जोड़ना । इस लिए मन बुद्धि जितने एकाग्र होंगे उतना योग की अनुभूति सहज होगी और एकाग्रता को बढ़ाने के लिए
आवश्यकता है दृढ़ता की शक्ति की । क्योकि मन सदैव चलायमान रहता है । इसलिए जितना दृढ़ता की शक्ति से मन को कण्ट्रोल करेंगे उतना मन बुद्धि परमात्मा में लगे रहेंगे ।
❉ दुनिया वाले कहते हैं कि मन एक घोड़ा है जिसकी लगाम यदि कस कर ना पकड़ो तो वह कहीं भी भाग जाता है । लेकिन इसकी लगाम को कस कर वही पकड़ सकता है जिसके अंदर दृढ़ता की शक्ति हो । जितना दृढ़ता की शक्ति हमारे अंदर जमा होगी उतना इस मन रूपी घोड़े को सेकण्ड में जहां ले जाना चाहे वही ले जा सकेंगे और मन बुद्धि को जहां चाहे वहां लगाना ही योग की अनुभूति करना है ।
❉ मनमनाभव का मन्त्र ही मन को कण्ट्रोल में रखने का सहज उपाय है जो परमात्मा बाप द्वारा हम बच्चों को मिला हुआ है । जिसका अर्थ ही है मन ही मन में परमात्मा बाप को याद करो या अपना मन परमात्मा बाप में लगाओ । जो मन
मनाभव के इस मन्त्र को सदा स्मृति में रखते हैं उनमे दृढ़ता की शक्ति स्वत: आने लगती है और दृढ़ता से मन को कण्ट्रोल करके वे अपना मन परमात्म याद में लगाये रखते हैं और योग की गहन अनुभूति करते रहते हैं ।
❉ मन का स्वभाव है कि उसे वैरायटी अर्थात विभिन्नता पसन्द आती है । एक ही चीज से मन ऊब जाता है और इधर उधर भटकता रहता है । इसलिए यदि रोज एक ही प्रकार से योग किया जाये तो बोरियत अनुभव होती है जिससे योग में गहन अनुभूति नही होती । किंतु यदि दृढ़ता की शक्ति से मन बुद्धि को कण्ट्रोल करके अनेक सुंदर युक्तियों से योग की विभिन्न विधियों को अपनाया जाये तो योग में अनेक प्रकार के अनुभव स्वत: होने लगते हैं ।
❉ योग की गहन अनुभूति तभी हो सकती है जब अंतर्मुखता में रहने का अभ्यास हो । एकांत
वासी बन एक के अंत में खो जाने का अभ्यास जैसे जैसे आत्मा को होता जायेगा योग में गहन अनुभव स्वत: ही होने लगेंगे किन्तु अंतर्मुखता का अभ्यास तभी होगा जब दृढ़ता की शक्ति से मन को बह्यमुखी साधनो से मुक्त करने का अभ्यास होगा । बाहरी दुनिया और दुनियावी पदार्थो से लगाव जब समाप्त होगा तो अंतर्मुखी बन योग में रहना भी सहज होने लगेगा ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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