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 30 / 06 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ कोई ऐसी ×गफलत× तो नहीं की जो माया अपनी तरफ मुह कर ले ?

 

➢➢ बाप पर अपना सब कुछ स्वाहा करने पर विशेष अटेंशन दिया ?

 

➢➢ एम ऑब्जेक्ट को बुधी में रख पुरुषार्थ किया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ श्रेष्ठ मत के आधार पर ×मायावी संगदोष× से परे रहे ?

 

➢➢ हर कर्म करते उपराम स्थिति में रहे ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢ आज बाकी दिनों के मुकाबले एक घंटा अतिरिक्त °योग + मनसा सेवा° की ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ "मीठे बच्चे - सूर्यवंशी राजपद लेने के लिए अपना सब कुछ बाप पर स्वाहा करो, सूर्यवंशी राजपद अर्थात एयरकंडीशन टिकट"

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे  सारे बोझ सारी चिंताए मुझ पिता को देकर हल्के होकर उड़ चलो... सब स्वाहा कर खुशियो से भर चलो... पिता बेठा है ना... सब उसको थमा दो... और निश्चिन्त हो आनन्द भरी उड़ान भरो... सदा सुखदायी दुनिया के मालिक बनो...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपना सबकुछ प्यारे बाबा को सौप रही हूँ... अपना सब स्वाहा कर बाबा से खूबसूरत सुखो को ले रही हूँ... सारे मीठे सतयुगी सुख अपने नाम लिखवा रही हूँ...

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे ऐसा पिता कहाँ मिलेगा भला जो पुराना लेकर सब नए में बदल लौटा दे... सारे विश्व को बच्चों के कदमो तले ला दे... सतयुगी सुखो से जीवन खुशनुमा बना दे... सुकून भरी सच्ची खुशियां दामन में सजा दे...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... आपके बिना यह जीवन कितना दुखमय था... आपने आकर मुझ आत्मा को सच्चा सुकून सदा का दे दिया है... मुझ आत्मा ने अपना सब आपको समर्पित कर सारे सुखो का टिकट ले लिया है...

 

 ❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चे सच्चे पिता से सारे सतयुगी सुख ले लो... सूर्यवंशी राजपद अपने नाम लिखवा लो... इस मिटटी के रिश्तो...  दारुण दुखो से निकल खूबसूरत दुनिया में चलो... सदा की सुखो की ठंडक भरी छाँव वाली दुनिया को बाँहो में भरो...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मेरा सारा कालापन ले लो... मुझे सुनहरा सा कर खूबसूरत बना दो... मुझे जन्नत की ठण्डी छाँव में बिठा दो... मै आत्मा अपना सबकुछ आपको सौप रही हूँ और सूर्यवंशी हो रही हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

 ❉   "ड्रिल - जीते जी मरकर एक बाप की श्रीमत पर चलना"

 

 ➳ _ ➳  मुझ आत्मा की देह व देह के सम्बंध निभाते ये दशा हुई है व पतित हो गई हूं...  मैं आत्मा जीते जी इन सब रिश्ते नाते से बुद्धि से मोह तोड़ बस एक अविनाशी बाप की याद में हूं... मैं आत्मा विनाशी पुरानी दुनिया के आकर्षणों से स्वयं को मुक्त करती जा रही हूं... एक बाप की याद में रहने से माया रुपी रावण के चुंगल से परे होती जा रही हूं...  ऊंच ते ऊंच बाप की श्रीमत पर चल श्रेष्ठाचारी बन रही हूं... मुझ आत्मा को प्यारे बाबा की श्रीमत की कभी अवज्ञा नही करनी है... मैं आत्मा परमपिता परमात्मा की फरमानबरदार बन पूरे वर्से की अधिकारी बनती जा रही हूं...

 

 ❉   "ड्रिल - बाप को वारिस बनाकर सतयुगी टिकट लेना"

 

 ➳ _ ➳ भक्ति से गाते आए तन मन धन सब तेरा व तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा । इस संगमयुग पर स्वयं भगवान मुझ आत्मा को मिल गए...  मैं आत्मा तन, मन, धन, श्वांस संकल्प... सब कुछ प्यारे बाबा को अर्पण कर रही हूं... अपने प्यारे परमपिता को अपना सब सौंप पक्की वारिस बन रही हूं... बाबा आप मेरे हो... मैं आपकी हूं... मैं आत्मा  प्यारे बाबा से सतयुगी दुनिया में जाने की टिकट ले रही हूं... मुझ आत्मा को प्यारे बाबा ने श्रीलक्ष्मी श्री नारायण ऊंच पद पाने का लक्ष्य दे दिया है... मैं आत्मा अपने लक्ष्य को सामने रख वैसा बनने का पुरुषार्थ कर रही हूं...

 

 ❉   "ड्रिल - कर्मयोग करते उपराम स्थिति का अनुभव करना"

 

 ➳ _ ➳ मैं आत्मा हर कर्म बाप को याद करते हुए बाप को साथ रखते हुए कर रही हूं... मैं आत्मा इस पुरानी दुनिया... पुरानी देह...  पुराने स्वभाव संस्कार... सब भूलती जा रही हूं... हर कर्म करते मुझ आत्मा का बुद्धियोग बस एक प्यारे मीठे बाबा के साथ है... मैं आत्मा इस पुरानी दुनिया से न्यारी और प्यारी होती जा रही हूं... मैं आत्मा इस कल्प रुपी वृक्ष की डाली पर बैठ कर्म कर रही हूं... जो भी हो रहा है मैं आत्मा साक्षीभाव रखते देख रही हूं... एकदम अचल अडोल व उपराम अवस्था में हूं....

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- "मैं शक्ति स्वरुप आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा रमणीक बाप का रमणीक बच्चा हूँ... मैं आत्मा पवित्र बाप का पवित्र बच्चा हूँ... मैं आत्मा अल्फ और बे को याद करने वाला रमणीक बच्चा हूँ... मैं आत्मा बेहद का सर्वस्व  त्यागी हूँ... मैं आत्मा बेहद का राज ऋषि हूँ... मैं आत्मा बेहद ड्रामा का हीरो हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा बाप  का  अनन्य बच्चा हूँ... मैं आत्मा सौदागर बाप का सौदागर बच्चा हूँ... मैं आत्मा खिवैया बाप की बोट मे बैठ बाप के साथ घर जा रहा हूँ... मैं आत्मा समय को अमूल्य रीति सफल करनेवाला मूल्य वान हूँ... मैं आत्मा रोज का पोतामेल रखता हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा सच्चे बाप से सच्ची कमाई कर रहा हूँ...  मैं आत्मा सर्व गुणों में सम्पन्न सो रमणीक सो खुशाल हूँ... मैं आत्मा छोटी  सी बिंदी हूँ... मुझ मे 84 जन्मों  का पार्ट नूँधा हुआ है... जो कभी घिसता नहीं  जो कभी मिटता नहीं... चलता ही आता है...

 

➳ _ ➳  मुझे रोज का ऩफा-नुकसान समझना है... मुझे रोज का घाटा और फायदा  चेक करना है... मैं आत्मा अचल अड़ोल एकरस और साक्षी दृष्टा हूँ... मैं आत्मा बाप से बड़ी खबरदारी रखकर पढ़ाई कर रहा हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा श्रेष्ठ मत के आधार पर सदा ज्ञान स्वरुप तथा शक्ति स्वरुप स्तिथि के वरदानों से परिपूर्ण होकर अचल अडोल शक्तिशाली स्तिथि में निरन्तर स्तिथ रहती हूँ... 

 

➳ _ ➳  मैं सदा साक्षी होकर हर आत्मा का पार्ट देखने वाली साक्षी दृष्टा आत्मा हूँ... मुझ आत्मा की अपने इस संगमयुगी श्रेष्ठ जीवन से कोई भी कंप्लेन नहीं है... चाहे वह सम्बन्धी हों या संगदोष हो, मुझ आत्मा पर किसी के भी मायावी संस्कारों का बिलकुल भी प्रभाव नहीं पड़ता है...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा सदा अपने सतोगुणी पार्ट में स्तिथ रहने वाली अपने प्यारे मीठे बाबा की फार्मानबर्दार बच्ची हूँ... मैं सदा अपने पिता के संग रहकर तमोगुणी आत्मा के संग के रंग से दूर रहने वाली आत्मा बन गयीं हूँ... मैं आत्मा शक्ति स्वरुप हूँ... और इस सृष्टि रंगमंच पर अपना विशेष पार्ट प्ले कर रही हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢ श्रेष्ठ मत के आधार पर मायावी संगदोष से परे रहने वाले शक्ति स्वरुप होते हैं.... क्यों और कैसे ?

 

  ❉   जो बच्चे बाबा की श्रेष्ठ मत के आधार पर ज्ञान स्वरुप शांत स्वरुप के वरदानी बन अपनी स्थिति अचल रखते हैं । साक्षी होकर हर एक के पार्ट को देखते हैं । सदा बाप के संग रहकर तमोगुणी आत्मा के संग के रंग का प्रभाव नही पड़ता वे शक्तिस्वरुप होते हैं ।

 

  ❉   जो बच्चे ऊंच ते ऊंच बाप की श्रेष्ठ मत की सम्पूर्ण रीति पालना करते हैं व बाप का श्रीमत रुपी हाथ व साथ हमेशा साथ रखते है तो संकल्प में भी उनके पास दुःख की लहर नही होती व माया रुपी पांच विकार भी आक्रमण नही कर सकते । एक बाप का संग होने से मायावी संगदोष से परे रहते शक्तिस्वरुप होते है ।

 

  ❉   जो बाप की श्रेष्ठ मत पर चलते देह व देह के सर्व सम्बंधों से बुद्धि से नाता तोड़ बस एक बाप से ही सर्व सम्बंधों रखते है । एक दिल वाले बाप के सिवाय किसी और से दिल की लेन देन नही करते । सब साफ व सच्चा हाल सुनाते तो बाप भी ऐसे बच्चों को अपने दिल पर रखता है व सेफ रखता है । इसलिए बाहरी दुनिया के मायावी प्रभाव से परे रहते शक्तिस्वरुप होते हैं ।

 

  ❉   लौकिक में भी जो बच्चा माँ बाप की मत पर चलते हैं तो सदा आगे बढता रहता है । उसे कुसंग छू नही सकता अथार्त किसी बुरी संगत में आकर कोई कुकर्म नही करता । हमें तो बेहद का बाप मिला । बेहद के बाप की श्रेष्ठ मत पर चलते हुए श्रेष्ठाचारी बनते हैं व सत के संग में रहते है । रुहानी संग का रंग मायावी संगदोष से परे रखता है ।  ऐसे श्रेष्ठ मत के आधार पर मायावी संगदोष से परे रहने वाले शक्ति स्वरूप होते है

 

  ❉.  जो बच्चे इस नशे में रहते है कि हमें स्वयं भगवान ने अपना बनाया है व हमें कौन श्रेष्ठ मत दे रहा है स्वयं भगवान !! वो हर कदम पर श्रेष्ठ मत पर चलते व अपने को परमात्म छत्रछाया में अनुभव करते है । फर्श पर रहते हुए भी अर्श की अनुभूति करते तो मायावी संगदोष  से परे रहने वाले शक्ति स्वरूप होते है ।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢ कर्मयोगी वह है जो कर्म के कल्प वृक्ष की डाली पर बैठ कर्म करते भी उपराम स्थिति में रहे... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   किसी भी प्रकार की हद की दीवार को पार करने की निशानी है - पार किया उपराम बना ।उपराम स्थिति अर्थात् उड़ती कला । जो सदा ऐसी उड़ती कला में रहते हैं वे कभी भी हद में लटकते वा अटकते नही। उन्हें मंजिल सदा समीप दिखाई देती है । वे उड़ता पंछी बन कर्म के  कल्प वृक्ष की डाली पर आते है और बेहद के समर्थ स्वरूप से कर्म कर उड़ जाते हैं । वे कभी भी कर्म रूपी डाली के बंधन में फंसते नही । बल्कि कर्मयोगी बन हर कर्म करते भी कर्म के प्रभाव से सदा स्वतन्त्र रहते हैं । 

 

 ❉   देह और देह के सर्व बन्धनों से मुक्त स्वयं को जब एक बाप के सम्बन्ध में अनुभव करेंगे तो सदा एवर-रेडी रहेंगे । संकल्प किया और अशरीरी बना, यह प्रैक्टिस जैसे जैसे पक्की होती जायेगी बुद्धि सेवा के कार्य में अति बिज़ी होते हुए भी - यथार्थ सेवा का कभी बन्धन महसूस नही होगा । क्योंकि योग युक्त, युक्ति युक्त सेवाधारी सदा सेवा करते भी उपराम रहते हैं । वे कर्म के कल्प वृक्ष की डाली पर बैठ कर्म करते है लेकिन कर्म करते हुए भी कर्मातीत स्थिति के अनुभव द्वारा कर्म के बन्धन से उपराम रहते हैं ।

 

  ❉   कर्मक्षेत्र पर कमल पुष्प समान रहते हुए माया की कीचड़ से स्वयं को जो सदा सेफ रखते हैं वे कर्मयोगी बन हर कर्म करते भी कर्म के बन्धन से मुक्त रहते हैं क्योकि कर्मयोगी अर्थात् कर्म और योग दोनों कम्बाइन्ड हों यानि हाथों से कर्म करते भी बुद्धि का योग केवल एक बाप के साथ लगा रहे । ऐसे कर्मयोगी बन जो हर कर्म करते हैं  उन्हें किसी भी कर्म का बोझ अनुभव नही होता बल्कि उपराम स्थिति में स्थित रह कर्म करते हुए भी वे कर्म के प्रभाव से न्यारे और प्यारे रहते हैं ।

 

 ❉   कर्म और योग का बैलेंस रख जब हर कर्म करेंगे  तो हर कर्म करते ट्रस्टीपन का भाव स्मृति में रहेगा । स्वयं को ट्रस्टी समझ करनकरावन हार बाप की याद में रह हर कर्म करने से एक तो बाप की याद से विकर्म विनाश होंगे, दूसरा कर्म बंधन कटते जाएंगे और तीसरा अपने समय, संकल्प और श्वांसों को परमात्म याद में सफल करते हुए बेहद की उपराम वृति बनी रहेगी जो कर्म करते हुए भी कर्म के प्रभाव से आत्मा को मुक्त रखेगी ।

 

 ❉   कर्मो की गुह्य गति को समृति में रख जो कर्मयोगी बन हर कर्म करते हैं वे योगबल से पहले रहे हुए कर्म बन्धनों को चुक्तू करते हुए नए कर्म बंधन ना बने इसके लिए श्रीमत प्रमाण हर कर्म बाप की याद में रह कर करते हैं । श्री मत प्रमाण हर कर्म करने से वे विकर्मो के दुष्प्रभाव से भी बच जाते हैं तथा साथ ही साथ परमात्म बल और परमात्म ब्लैसिंग से उड़ती कला का अनुभव करते हुए उपराम स्थिति में स्थित रह कर कर्म के प्रभाव से स्वयं को मुक्त अनुभव करते हैं । इस लिए सदा लाइट माइट स्थिति में स्थित रहते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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