━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 09 / 11 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *एक बाप का सच्चा सच्चा फॉलोअर बनकर रहे ?*

 

➢➢ *"हे शिवबाबा" - मुख से ऐसे शब्द तो नहीं कहे ?*

 

➢➢ *आवाज़ से परे जाने का अभ्यास किया ?*

────────────────────────

 

∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *उपराम और एवर रेडी बन बुधी द्वारा अशरीरीपन का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *सरलता और सहनशीलता का गुण धारण कर सच्चे स्नेही और सहयोगी बनकर रहे ?*

────────────────────────

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *शमा बन आत्माओं को रास्ता दिखाया ?*

────────────────────────

 

∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे -  इस ड्रामा में तुम हीरो हीरोइन पार्टधारी हो सारे कल्प में तुम्हारे जैसा हीरो पार्ट और किसी का भी नही"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता के दिल की पसन्द हो... ईश्वर पिता के धरती पर किये कारोबार में मददगार हो... इन मीठी स्मर्तियो को यादो में ताजा करो... कि हर कल्प में जब जब भगवान धरा पर उतरता है आप महान भाग्यशाली बच्चों को उम्मीदों से निहारता है... कितना प्यारा अनोखा भाग्य आप मीठे बच्चों का है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा मै आत्मा हीरो जेसे भाग्य को पाकर निहाल हूँ... भगवान पिता की चुनी महान आत्मा हूँ... मेरे जैसा खुशनसीब और कोई नही... कब सोचा था कि स्वयं को भूली धरा पर यूँ उपेक्षित आत्मा आसमानी पिता के दिल पर राज करेगी...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... इस ड्रामा की खूबसूरती आप बच्चे हो... सुखो की दुनिया के सरताज और डबलताजधारी असाधारण देवता आप बच्चे ही हो... इस ईश्वरीय खुमारी को रग रग में प्रवाहित कर चलो... सतयुगी दुनिया का सपना साकार करने वाले हीरो आप ही हो...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा तो स्वयं को ही भूली हुई दुखो के दलदल में गहरे धँसी थी... और आज आपने हाथ पकड़ उस दलदल से बाहर निकाल... अपने महान कार्य में सबसे सुंदर पार्ट देकर कितना महान जीवन बना दिया है... वाह क्या सुंदर भाग्य है...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... आप महान बच्चे ही तो सुखो से छलकते और खुशियो से लहलहाती सुन्दरतम दुनिया को लाने वाले हो... आप ही हो और कोई नही... आपने ही सहयोग की ऊँगली विश्वपिता को देकर उसके अरमानो को पूरा किया है... आप जैसा प्यारा और शानदार भाग्य किसी का नही... इस नशे में गहरे डूब चलो...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय पसन्द हूँ... मीठे बाबा के दिल की हीरोइन हूँ... कितना प्यारा प्यारा भाग्य है मेरा... जब जब धरा पर भगवान उतर आएगा वो और मै साथ मिल एक दूजे में यूँ खोएंगे और धरा को सुखो के रंगो से सजायेंगे...

────────────────────────

 

∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा सर्व कलाओं में सम्पन्न हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा त्रिकालदर्शी की सीट पर बैठी हूँ... आदि, मध्य, अंत तीनों कालों को देख रहीं हूँ... आदिकाल में मैं आत्मा सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण थी... सम्पूर्ण निर्विकारी थी... दैवीय गुणों से सम्पन्न थी... देही अभिमानी थी...

 

➳ _ ➳  मुझ आत्मा ने 2500 वर्षों तक अपने दैवीय स्वरूप का पार्ट बजाया... मध्य काल में आते आते मुझ आत्मा की कलायें कम होते गई... और मैं आत्मा विकारों में गिरती गई... अब मैं आत्मा अपने अंतिम जन्म में पहुँच गई हूँ... अब मैं बिल्कुल कला विहीन हो गई हूँ... देहभान में आकर पतित हो गई हूँ...

 

➳ _ ➳  इस अंतिम जन्म में ज्ञान सागर बाप ने मुझ आत्मा को मेरे असली स्वरूप की स्मृति दिलाई... अब मुझ आत्मा को सम्पन्न बन अपने घर वापस जाना है... अब मै आत्मा सम्पूर्ण बनने, सर्व कलाओं में सम्पन्न बनने का पुरुषार्थ कर रहीं हूँ...

 

➳ _ ➳  मै आत्मा अशरीरी पन का अभ्यास कर रहीं हूँ... देह के भान से उपराम होकर बुद्धि को एक बाप की याद में लगा रहीं हूँ... कर्म करते करते बीच बीच में दुनिया से न्यारी, बाप की प्यारी बनने का ड्रिल करते रहती हूँ...

 

➳ _ ➳  जैसे सर्कस में कला दिखाने वाले कलाबाज का हर कर्म कला बन जाता है... वे कलाबाज शरीर के कोई भी अंग को जैसे चाहे, जहाँ चाहे, जितना समय चाहे मोल्ड कर सकते हैं... वैसे मै आत्मा भी बुद्धि को जब चाहे जितना समय, जहाँ स्थित करना चाहूं वहाँ स्थित करने की सबसे बड़ी कला सीख रहीं हूँ...

 

➳ _ ➳  अब मै आत्मा इस स्मृति में रहती हूँ कि मै शरीर का आधार लेने वाली आत्मा हूँ... शरीर से काम कराने वाली मै आत्मा अलग हूँ... सदा उपराम और एवररेडी बन रहीं हूँ... जो ऑर्डर प्रमाण एक सेकेंड में सहज ही अशरीरी बन रहीं हूँ... अब मैं आत्मा मेहनत करने में समय व्यर्थ नहीं करती हूँ... मै आत्मा बुद्धि द्वारा अशरीरी पन का अभ्यास करने वाली सर्व कलाओं में सम्पन्न बन रहीं हूँ...

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सरलता और सहनशीलता के गुण धारण कर सच्चे स्नेही और सहयोगी बनना।*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा दिव्य गुणों की खान हूँ... मैं आत्मा अत्यंत सरल और सहज हूँ... सब कुछ स्वीकृत करने वाली अत्यंत सरल स्वभाव की हूँ... क्यों, क्या,...के क्वेशन में न जाकर सेकण्ड में बिंदी लगाती हूँ...

 

➳ _ ➳  सहनशीलता की चादर ओढे... हर बात में खुश हूँ... हर किसी से सन्तुष्ट हूँ... ड्रामे को यथार्थ रीती समझ... सर्व के पार्ट को सम्मान देने वाली आत्मा हूँ... निंदा स्तुति, मान अपमान में एक समान रह... सहनशीलता की मूरत हूँ... 

 

➳ _ ➳  सरलता और सहनशीलता के गुणों को धारण कर... मैं आत्मा सर्व की स्नेही और सहयोगी आत्मा बन गई हूँ... सभी सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को... जो जैसा है वैसे ही स्वीकृत करने से... मेरी सरलता और सहनशीलता से... सभी आत्माओं के लिए सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह निरन्तर हो रहा हैं... मेरे सकारात्मक प्रकम्पन सभी आत्माओं की कमी कमजोरियों को भी दूर कर रहा हैं...

 

➳ _ ➳  मैं सर्व की स्नेही और सहयोगी आत्मा... सर्व की विश्वाश पात्र आत्मा बन गई हूँ... मैं प्रभु प्रिय आत्मा... शिव बाबा की राईट हैंड हूँ... मेरे स्नेही और सहयोगी स्वभाव से... मैं बेहद की सेवा की निमित्त आत्मा बन गई हूँ... कई भटकी हुई आत्माओं को परमात्मा से मिलाने की निमित्त आत्मा बन गई हूँ... मैं महान आत्मा हूँ... बेहद की सेवाधारी... विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ...

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *उपराम और एवररेड़ी बन बुद्धि द्वारा अशरीरीपन का अभ्यास करने वाले सर्व कलाओं में सम्पन्न होते हैं क्यों और कैसे?*

 

❉   उपराम और एवररेडी बन बुद्धि द्वारा अशरीरीपन का अभ्यास करने वाले सर्व कलाओं में सम्पन्न होते हैं, क्योंकि...  जैसे सर्कस में कला दिखाने वाले कलाबाज़ का हर कर्म कला बन जाता है। वे कलाबाज़ शरीर के कोई भी अंग को जैसे चाहें, जहाँ चाहें, जितना समय चाहें मोल्ड कर सकते हैं।

 

❉   इसी को कला कहते हैं। जिस प्रकार कलाकार अपनी कलाकारी को नित्य के प्रति अभ्यास द्वारा सर्व के कल्याण व मनोरंजन हेतु कार्य में लगाते हैं। उसी प्रकार हम बाबा के बच्चे भी अपनी कलाओं को विश्व कल्याण हेतु, नित्य प्रति कार्य में लगाते हैं और बाबा द्वारा प्राप्त कलाओं से निष्काम सेवा करते हैं।

 

❉   हम बच्चे भी अपनी बुद्धि को जब चाहो, जहाँ चाहों जितना समय चाहों वहाँ स्थित कर सकते हैं। इसको ही तो कला कहते है। यही सब से बड़ी कला है। इस एक ही कला के अभ्यास से हम सम्पूर्ण 16 कलाओं से सम्पन्न बन जाते हैं। अतः हमें इस कला को अपने नित्यप्रति की दैनिकचर्या में शामिल कर लेना है।

 

❉   हमें इस संसार की गतिविधियों से उपराम और एवररेडी बनकर रहने का अभ्यास करना है और अपनी आंतरिक कलाओं को जो कि...  हम सब मानव प्राणियों में सुषुप्त अवस्था में पड़ी हुई हैंउनको जागृत करके संपूर्ण रूप से सम्पन्न बनना है और बाबा के ऑर्डर प्रमाण चल करएक सेकण्ड में अशरीरी बनने का कलाबाज़ अर्थात कलाकार बन जाना है।

 

❉   इसके लिये हमें ऐसा उपराम और एवररेडी बनना है, जो एक ही सेकण्ड में आर्डर प्रमाण एक अशरीरी बन जायें। हमारा अशरीरी बनने में आंतरिक व्यर्थ के युद्ध में संगम युग का बहुमूल्य अनमोल समय कभी भी नष्ट नहीं होना चाहिये। अतः हमें इस संसार में रहते हुए उपराम अवस्था को प्राप्त करना है।

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *सरलता और सहनशीलता के गुण को धारण करने वाले ही सच्चे स्नेही और सहयोगी हैं... क्यों और कैसे* ?

 

❉   सरलता और सहनशीलता के गुण को जो अपने जीवन में धारण कर लेते हैं उनकी वाणी में स्वत: ही मधुरता और व्यवहार में शीतलता आती जाती है । अपने मीठे बोल और निर्मल व्यवहार से वे सहज ही सबके स्नेही और सहयोगी बन जाते हैं । क्योंकि व्यक्ति का असली व्यक्तित्व उसका बाहरी रूप रंग नही बल्कि उसके अंदर छुपे ये गुण ही हैं जो उसे स्वत: ही सर्व के आकर्षण का केंद्र बना देते हैं । जैसे एक कोयल का रंग भले काला होता है किंतु उसकी मधुर

आवाज पर सब मोहित होते हैं ।

 

❉   जैसे हर वस्तु वा पदार्थ का अपना गुण धर्म होता है जिसे अगर बदलने का प्रयास भी किया जाये तो भी वह वापिस उसी रूप में लौट आता है । जैसे जल का गुण धर्म शीतलता है इसलिए पानी को चाहे कितना भी उबाल ले किन्तु ठंडा होने पर वह फिर से अपने शीतलता के गुण को धारण कर लेता है । ठीक इसी प्रकार जो सरलता और सहन शीलता के गुण को अपने जीवन में धारण कर लेते है वे कैसी भी परिस्थिति क्यों ना आ जाये किन्तु अपने इस गुण को नही छोड़ते और इस गुण में स्थित रह कर सर्व का स्नेह और सहयोग प्राप्त कर लेते हैं ।

 

❉   एक सड़क पर खड़ा फलदायी पेड़ राहगीरों को अपनी शीतल छाया भी देता है और उन्हें अपने मीठे फल दे कर उनकी भूख प्यास भी बुझाता है । लोगों के पत्थर खा कर भी वह अपना देने का स्वभाव नही छोड़ता । ऐसे जो सरलता और सहनशीलता को अपने जीवन में धारण कर लेते हैं वे भी फलदायी पेड़ की भांति नम्रचित बन अपकारी आत्माओं पर भी केवल उपकार की भावना रखते हैं । और अपने निर्मल स्वभाव से वे प्रभु प्रिय और लोक प्रिय बन सहज ही सबके स्नेही और सहयोगी बन जाते हैं ।

 

❉   सरलता और सहनशीलता का गुण व्यवहार में नम्रता लाता है और नम्रचित व्यक्ति की यह विशेषता होती है कि वह समय व परिस्थिति के अनुसार स्वयं को मोल्ड कर हर प्रकार के स्वभाव संस्कार वाले व्यक्ति के साथ स्वयं को एडजेस्ट कर लेते है । दूसरों को बदलने के बजाए वह स्वय को उनके अनुरूप ढाल कर स्वयं भी सुख और प्रसन्नता का अनुभव करते हैं तथा दूसरों को भी ख़ुशी प्रदान करने वाले सच्चे स्नेही और सहयोगी बन सबको स्नेह और सहयोग देते हुए सबकी दुआओं के पात्र बन जाते हैं ।

 

❉   सरल स्वभाव ही प्रभु प्रिय और लोक प्रिय बनाता है । इसलिए कहा भी जाता है कि सच्चे दिल पर साहिब राजी । परमात्मा के दिल रूपी तख्त पर सदा विराजमान रहने का सबसे सहज उपाय है ही दिल में सच्चाई और सफाई होना । और सच्चाई और सफाई दिल में तभी होगी जब सरलता और सहनशीलता का गुण होगा । क्योकि सरलता का गुण व्यक्ति को गुणग्राही बनाता है और गुण ग्राही आत्मा परमात्मा की रची हुई रचना के अवगुणों को देखने के बजाए हर एक में गुण देखती है इसलिए सबकी स्नेही और सहयोगी बन जाती है ।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━