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❍ 14 / 12 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *याद के बल से सब हिसाब किताब चुक्तु करने पर विशेष अटेंशन रहा ?*
➢➢ *भगवान हमको पढाकर विश्व का मालिक बनाते हैं" - इसी ख़ुशी में रहे ?*
➢➢ *रूहानी सेवा में तत्पर रहे ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *पवित्रता के आधार पर सुख शांति का अनुभव किया ?*
➢➢ *व्यर्थ से इन्नोसेंट बन सच्चे सच्चे सेंट बनकर रहे ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *संकल्प शक्ति द्वारा समस्याओं का हल करने का पुरुषार्थ किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - भारतभूमि सुखदाता बाप की जन्मभूमि है बाप ही आकर सभी बच्चों को दुःख से लिबरेट करते है"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... जिस धरा पर ईश्वर यूँ जन्म ले और बच्चों को आप समान पवित्र और खुबसूरत बनाये उस भूमि के महान भाग्य के भी क्या कहने... *इस भूमि पर ही ईश्वर का दिल उमड़ आता है* और वह आकर अपने बच्चों पर *देवता रूप का मीठा जादू* कर जाता है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा मै आत्मा आपके मीठे और पवित्र प्यार में देवताओ सा श्रंगार पाकर सुनहरी होती जा रही हूँ... आपकी मीठी पावन यादो में अपनी कालिमा को धोकर चमकीले स्वरूप को पाती जा रही हूँ... *दुखो की दासता को छोड़ सुखो की स्वामिन् बनती जा रही हूँ*..
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... जब परमधाम की ओट से *अपने खिलते फूलो को यूँ दुखो में कुम्हलाये हुए देखता हूँ तो पिता का दिल द्रवित* हो उठता है... अपने खजानो का साजो सामान उठाता हूँ और भारत कि ओर कदम बढ़ाता हूँ... और भारत में ही पूरे विश्व के बच्चों को फिर से सदा की खुशियो का हकदार बनाता हूँ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा भारतभूमि पर भगवान से मिलकर जनमो के दुखो से मुक्त हो अपने अप्रतिम सौंदर्य से सज संवर कर... *फिर से नई नवेली सी सुखो के महलो में प्रवेश कर रही हूँ.*.. प्यारा बाबा मेरे सुखो की फ़िक्र में मुझे सजाने संवारने परमधाम से नीचे उतर आया है...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जब सब ही खेल में रम जाएं तो फिर *इन दारुण दुखो से बच्चों को सिवाय परमात्मा के कौन सही राह दिखाये.*.. दुखो की पुकार परमधाम में बेठे विश्वपिता को भारत धरती पर खिंच सी लाये और प्यारा पिता एक एक कांटे को चुन खिलता रूहानी गुलाब बनाये...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा के प्यार भरे पहलु में आकर कितनी सुखी कितनी निश्चिन्त और कितनी शांत प्यारी हो चली हूँ... भगवान मुझे मिल गया और पिता की अधिकारी बन गयी... *सब कुछ तो मेने पा लिया है... अथाह दौलत की स्वामिन् मै आत्मा हो चली हूँ.*..
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा नम्बरवन अधिकारी हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा *पवित्रता के सागर की संतान* हूँ... परम पिता परमात्मा सदा परम पवित्र रहते हैं... मैं आत्मा 63 जन्मों से काम, क्रोध जैसे विकारों के वश होकर पतित बन गई थी... अपवित्र हो गई थी... काम विकार के वश होने से ही मैं आत्मा कलाविहीन हो गई थी...
➳ _ ➳ पतित-पावन बाबा ने आकर मुझ आत्मा को पवित्रता का महत्व समझाया... बाबा ने स्मृति दिलाई की मुझ *आत्मा का स्वधर्म ही पवित्रता* है... पवित्रता की ही महानता है... मैं आत्मा अनादिकाल में परमधाम में बिंदु स्वरूप में परम पवित्र रहती हूँ...
➳ _ ➳ आदिकाल में मुझ आत्मा ने 21 जन्मों तक पवित्र देवता स्वरूप का पार्ट बजाया था... मध्य काल में पवित्रता के आधार पर ही मैं आत्मा पूजन और गायन योग्य बनती हूँ... भक्ति मार्ग में *यादगार पवित्रता के आधार पर* है... अब इस अंतिम जन्म में मुझ आत्मा को पवित्र बन वापस घर जाना है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा प्यारे बाबा के याद में बैठी हूँ... पवित्रता के सागर से निकली पवित्र किरणों के झरने में नहा रही हूँ... मुझ आत्मा के जन्मों जन्मों की अपवित्रता बाहर निकलती जा रही है... सूक्ष्म संकल्पों से भी अपवित्रता के बीज को ही योगाग्नि में जला रही हूँ... मुझ आत्मा की *दृष्टि, वृत्ति, संकल्प, बोल, कर्म सब पवित्र* बनते जा रहें हैं... मैं आत्मा पवित्र, योगी बनते जा रही हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा प्रतिज्ञा करती हूँ की-पवित्रता के फाउंडेशन को कभी कमजोर नहीं होने दूँगी... मैं आत्मा इसी धर्म में सदा स्थित रहूंगी... कुछ भी हो जाए... चाहे व्यक्ति, चाहे परिस्थिति कितना भी हिलाये... मैं आत्मा पवित्रता का धर्म कभी नहीं छोडूंगी... *"पवित्रता" की प्रतिज्ञा को सदा स्मृति में* रखने से मैं आत्मा स्वतः सुख-शांति की अनुभूति कर रहीं हूँ... सर्व प्राप्तियों में नम्बरवन बन लास्ट सो फास्ट जा रहीं हूँ... अब मैं आत्मा पवित्रता के आधार पर सुख-शांति का अनुभव करने वाली नम्बरवन अधिकारी बन गई हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- व्यर्थ से इनोसेंट बन सच्चे-सच्चे सेंट बनना"*
➳ _ ➳ मुझ आत्मा को शिव बाबा ने समर्थ संकल्पों की शक्तियों का स्पष्ट ज्ञान दिया हैं... समर्थ संकल्पों की रचना से मैं आत्मा सृष्टी निर्माण का महान कार्य कर रही हूँ... मेरे एक-एक संकल्प शक्ति से भरपूर हैं... मुझ आत्मा का सबसे बड़ा खजाना ही संकल्प शक्ति हैं... इसे मैं ऐसे ही व्यर्थ नहीं गवाँ सकती... *मेरा एक-एक संकल्प कीमती हैं...* इन्हें चुन- चुन कर मैं आत्मा रचती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा व्यर्थ संकल्पों से इनोसेन्ट हूँ... सदा समर्थ और श्रेष्ठ चिंतन में व्यस्थ मुझ आत्मा ने व्यर्थ से सम्पूर्ण किनारा कर लिया हैं... व्यर्थ संकल्प नहीं आने से मेरे बोल भी श्रेष्ठ तो मेरे कर्म भी श्रेष्ठ हो गए हैं... मैं व्यर्थ से पूर्णतः मुक्त आत्मा बन गई हूँ... इससे *मेरीे आंतरिक शक्तियों की वृद्धि हो रही हैं...*
➳ _ ➳ मैं शक्तिशाली आत्मा हूँ... मेरे संकल्प, बोल और कर्म भी श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ हैं... परमात्म शक्तियों को प्राप्त कर... *मैं समर्थ आत्मा बन गई हूँ...* समर्थ संकल्पों की शक्ति से मैं आत्मा सच्ची- सच्ची सेंट बन गई हूँ...
➳ _ ➳ मुझ सेंट आत्मा से शन्ति और पवित्रता केश्रेष्ठ शक्तिशाली वायब्रेशन निरन्तर निकलते रहते हैं... मेरे शुद्ध वायब्रेशन्स पूरे वातावरण को शांत और पावन बना रहे हैं... *मेरी एनर्जी फील्ड की शक्ति का हर आत्मा अनुभव हो रहा है...* मेरे समर्थ संकल्प, बोल और कर्म सम्बन्ध- सम्पर्क की सभी आत्माओं को परिवर्तन कर उनमें श्रेष्ठता भरते जा रहे हैं...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *पवित्रता के आधार पर सुख शान्ति का अनुभव करने वाले नम्बरवन अधिकारी होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ पवित्रता के आधार पर सुख शान्ति का अनुभव करने वाले नम्बरवन अधिकारी होते हैं क्योंकि... जो बच्चे *"पवित्रता" की प्रतिज्ञा को सदा स्मृति* में रखते हैं, उन्हें सुख व शान्ति की अनुभूति स्वतः ही होती रहती हैं। वे आत्मायें! सदा अपने आत्मिक स्वरूप में ही रमण करती रहती हैं।
❉ उनको स्थूल इंद्रियों के सुखों की आवश्यकता नहीं होती। वे तो *सदा ही अतीन्द्रिय सुख व शान्ति के झूलों* में ही झूलने का आनन्द प्राप्त करती रहती हैं। वे आत्मायें! सदा अपनी भृकुटी सिंघासन पर विराजमान अपने महेश्वर स्वरूप, अर्थात! अपनी आत्मा के स्वरूप की दिव्यता के चिन्तन में मगन रहती हैं।
❉ सभी गुणों की जननी पवित्रता है। एक पवित्रता गुण ही ऐसा गुण है, जिस की उपस्थिति सभी गुणों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। अतः उन आत्माओं को अपनी श्रेष्ठ प्रतिज्ञा, अर्थात! *सदा पवित्रता के गुण को अपने जीवन* में धारण करने की प्रतिज्ञा की विस्मृति कभी भी नहीं होती है।
❉ इसलिये! वे बच्चे! पवित्रता का अधिकार लेने में नम्बरवन रहना ही अपना जन्मसिद्ध अधिकार है। ऐसा समझ कर नम्बरवन लेते हैं। पवित्रता का अधिकार लेने में *नम्बरवन रहना, अर्थात! सर्व प्राप्तियों* में भी नम्बरवन बनना है। वे सदा ही सुख शान्ति की अनुभूति करते रहते हैं।
❉ अतः हमें अपनी पवित्रता के फाउन्डेशन को कभी भी कमजोर नहीं करना है। तभी तो! लास्ट सो फ़ास्ट जायेंगे। इसीलिये! इसी स्वधर्म में हमें सदा ही स्थित रहना है। कुछ भी हो जाये – चाहे व्यक्ति, चाहे प्रकृति, चाहे परिस्थिति कितना भी हिलाये, *लेकिन! धरत परिये! धर्म न छोड़िये!!!* के सिद्धान्त पर अडिग अचल अडोल रहना है।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *व्यर्थ से इनोसेंट बनो तो सच्चे - सच्चे सेन्ट बन जाएंगे... क्यों और कैसे* ?
❉ जो मास्टर त्रिकालदर्शी बन संकल्प को कर्म में लाते है, उनका कोई भी कर्म व्यर्थ नहीं जाता । *व्यर्थ को बदलकर समर्थ संकल्प और समर्थ कार्य करना - इसको कहते हैं सम्पूर्ण स्टेज* । इस संपूर्ण स्टेज पर जो निरन्तर रहते हैं वे केवल अपने ही व्यर्थ संकल्पों वा विकर्मो को भस्म नहीं करते बल्कि शक्ति रूप बन सारे विश्व के विकर्मो का बोझ हल्का करने व अनेक आत्माओं के व्यर्थ संकल्पों को मिटाने की सेवा करने के निमित्त बन जाते हैं । ऐसे व्यर्थ से इनोसेंट बनने वाले ही सच्चे सेन्ट कहलाते हैं ।
❉ देवताओं को सेन्ट वा महान आत्मा इसलिए कहा जाता है क्योंकि देवता माया से इनोसेन्ट होते हैं । अपने उन्ही सतयुगी संस्कारों को बुद्धि में इमर्ज रख जब व्यर्थ के अविद्या स्वरूप बनेंगे । *समय, श्वांस, बोल, कर्म जब सबमे व्यर्थ की अविद्या होगी* तब दिव्यता स्वत: और सहज अनुभव होगी । इसलिए स्वयं को श्रेष्ठ पुरुषार्थी समझ श्रेष्ठ पुरुष बन जब इस रथ से श्रेष्ठ कार्य करवायेंगे तो व्यर्थ से इनोसेंट बन जायेंगे और जब व्यर्थ से इनोसेंट बन जायेंगे तो सच्चे सच्चे सेन्ट स्वत: बन जायेंगे ।
❉ सेन्ट अर्थात महान आत्मा उसे कहते हैं जिसके हर संकल्प, बोल और कर्म में महानता की झलक स्पष्ट दिखाई दे । और *महानता तब आएगी जब व्यर्थ की अविद्या होगी* । क्योकि व्यर्थ के अविद्या स्वरूप ना बनने से कई बार व्यर्थ का जोश सत्यता और यथार्थता के होश को समाप्त कर देता है । इसलिए जितना व्यर्थ से इनोसेंट बनेंगे उतना अपने सत्य और यथार्थ स्वरूप की स्मृति में स्थित रहने से सर्व आत्माओं को उनके सत्य और यथार्थ स्वरूप का अनुभव करवाकर उनका कल्याण करने वाले सच्चे सेन्ट बन सकेंगे ।
❉ हर सेकण्ड, हर संकल्प को जो सफल करना जानते हैं वही सेन्ट अर्थात महान आत्मा कहलाते हैं । किन्तु महान आत्मा बन अपने हर सेकण्ड, हर संकल्प को वही सफल कर सकते हैं जो व्यर्थ से इनोसेन्ट बन स्वयं को व्यर्थ से मुक्त रखते हैं । ऐसे *व्यर्थ से इनोसेन्ट रहने वाले सच्चे सेंट अपने मन बुद्धि को सदैव ज्ञान मंथन में बिज़ी रखते हैं* । इसलिए व्यर्थ चिंतन के रूप में आने वाले माया के वार से स्वयं को सेकेण्ड में बचा कर अपने समय और संकल्पो को व्यर्थ जाने से बचा कर उन्हें सफल बना लेते हैं ।
❉ एक तपस्वी वा महान संत की यह मुख्य विशेषता होती है कि उनके अंदर ज्ञान के अखुट ख़ज़ाने विधमान होते है और ज्ञान की प्वाईंटस को समय वा परिस्थिति अनुसार अच्छी रीति उन्हें यूज़ करना आता है । *सही समय पर ज्ञान की उचित प्वाइंट को यथार्थ रीति धारण कर* वे किसी भी परिस्थिति पर जीत प्राप्त कर लेते हैं । क्योकि नॉलेजफुल आत्मा होने के कारण अपने नॉलेज की अथॉरिटी से वे समाधान स्वरूप बन हर समस्या का समाधान कर हर सेकण्ड, हर संकल्प को व्यर्थ जाने से बचा लेते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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