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 27 / 06 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ रूहानी पढाई के नशे में रहे ?

 

➢➢ पोजीशन आदि का ×अहंकार× तो नहीं किया ?

 

➢➢ कभी भी ×मुरझाये× तो नहीं ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ साइलेंस की शक्ति द्वारा अपने रजिस्टर को साफ़ किया ?

 

➢➢ न खुद ×व्यर्थ संकल्प× चलाये, और न खुद दूसरों के व्यर्थ संकल्प चलाने के निमित बने ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ नॉलेज के दर्पण में चेक किया की ब्राह्मण जीवन में डबल ताज है ? व सिंगल ताज है ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ "मीठे बच्चे - बाप आये है सारी दुनिया से विकारो की तपत बुझाए सबको शीतल बनाने, ज्ञान बरसात शीतल बना देती है"

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे  सारी दुनिया में विकारो का हाहाकार मचा है... सभी विकारो की तपन में घिरे है... विश्वपिता के अलावा तो इस विकारी दुनिया से कोई छुड़ा ही न सके... प्यारे बाबा पवित्रता और ज्ञान की शीतलता में सबकी तपन को हर लेते है... विकारो में जले तन मन शीतल और पवित्र होकर सदा का खिल जाते है...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा खुद को ही भूल चली... अपने सत्य और दमकते स्वरूप को भूल खुद देहभान में आ मटमैला कर चली... आपने पत्थर हो चली बुद्धि को आ पारस बनाया... विकारो से छुड़ाकर निर्विकारी बनाया... और ज्ञान की शीतल बरसात में तन मन शीतल और शांत बना दिया...

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे कितने खूबसूरत और निखरे रूप में सजे घर से चले थे... गुणो और शक्तियो से भरकर इस रंगमंच पर उतरे थे... पर पार्ट बजाते विकारो के रंग में रंग सुंदरता को खो चले... उनकी तपन में तपकर काले हो चले... मै ईश्वर पिता हथेली पर ज्ञान अमृत रुपी बरसात ले आया हूँ... विकारो की धूल को धोकर उज्ज्वल चमकीला बनाने आया हूँ...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा आप जैसा तो किसी ने मुझे प्यार न किया... माया के रूपो ने भर भर कर छला... मै भटकी आत्मा किस कदर खुद को भूल देह मान में विकारो के दलदल में फस चली थी... आपने बाबा मुझे सत्यता का आइना दिखा... मेरे धूमिल रूप को

 ज्ञान बरसात में धोकर... मेरा रोम रोम पुलकित किया.... 

 

 ❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चे विकारो के संग में आकर सोने से दमकते सुनहरे स्वरूप को काला कर चले हो... पतित और दुखी बन सारे सुखो को शांति को खो चले हो... अपने सुंदर फूलो का यह हाल देख मै पिता ज्ञान बरसात लाया हूँ.... विकारो की बदसूरती को धोकर शीतल और उज्जवल बनाने आया हूँ...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मुझे आपके याद दिलाने पर अपना प्यारा खूबसूरत स्वरूप याद आ गया है... मुझे अपना प्यारा घर भी याद आ गया है... इस शीतल ज्ञान ने मेरे तीसरे नेत्र को खोल सुकून दे दिया है... मै आत्मा ज्ञान बरसात में मदमस्त हो चली हूँ... विकारो को धोकर पवित्रता के पथ पर मुस्करा रही हूँ... आनन्द की लहरो में नाच रही हूँ....

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

 ❉   "ड्रिल - निरहंकारी स्थिति का अनुभव"

 

 ➳ _ ➳  मैं आत्मा अपने परमपिता के सम्मुख बैठी हूं... स्वयं भगवान इस पतित दुनिया में दूरादेश से आकर मुझ आत्मा पर ज्ञान वर्षा कर रहे हैं... स्वयं सुप्रीम टीचर बन पढ़ा रहे हैं... पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बना रहे हैं... कौड़ी तुल्य से हीरे तुल्य बना रहे हैं... वाह! मेरा भाग्य वाह! जैसे बाप निस्वार्थ भाव से अपने बच्चों की सेवा कर रहे है व सर्वोच्च होते हुए अपने को ओबिडीऐंट सर्वेंट कह सेवा में तत्पर रहते हैं ऐसे बाप से शक्तियां लेकर बाप समान बन मुझ आत्मा में भी निस्वार्थ सेवा का भाव भर रहा है... मुझ आत्मा का पद पोजीशन का अंहकार समाप्त होता जा रहा है... बाप समान निरहंकारी बनती जा रही  हूं...

 

 ❉   "ड्रिल - "सम्पूर्ण निर्विकारी देवता स्थिति का अनुभव"

 

 ➳ _ ➳   अब मैं आत्मा बाहरी दुनिया के विषय विकार रुपी विष से मुक्त होती जा रही हूं... बाप स्वयं टीचर बन रोज मुझ आत्मा को ज्ञान अमृत पिला रहे है... अब ज्ञान रत्नों से मेरी बुद्धि रुपी झोली भरती जा रही है... मैं सर्वगुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पूर्ण बनती जा रही हूं... देवता पद पाने के लिए निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी बनती जा रही हूं... मुझ आत्मा की मुरझाहट समाप्त होती जा रही है... मुझ आत्मा की चमक बढ़ती जा रही है...

 

 ❉   "ड्रिल - व्यर्थ संकल्पों से मुक्त स्थिति का अनुभव"

 

 ➳ _ ➳  पवित्रता के सागर प्यारे बाबा की पवित्र किरणें मुझ आत्मा में समाती जा रही हैं... पवित्र किरणों से मेरी अपवित्रता समाप्त होती जा रही है... मैं आत्मा व्यर्थ संकल्पों से मुक्त होकर समर्थ स्थिति का अनुभव कर रही हूं... मैं उन सभी आत्माओं को वतन में ईमर्ज करती हूँ जिन आत्माओं के मेरी वजह से व्यर्थ संकल्प चले... और बाबा से और उन सभी आत्माओं से क्षमा मांगती हूँ...  मैं आत्मा बाबा से पवित्रता किरणे लेकर उन सभी आत्माओं की और प्रवाहित कर रही हूँ...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- "मैं लोकप्रिय व प्रभु प्रिय आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳  आराम से बैठें और अपने विचारों को चेतनापूर्वक निर्मित करने का प्रयास करें... अपने आप को देखें... और विचार करें... मैं एक शांतस्वरूप आत्मा हूँ...

 

➳ _ ➳  अपने विचारों की निर्माणकर्ता हूँ... मैं ही सभी संकल्पों की रचयिता हूँ... मेरे पास चुनाव की स्वतन्त्रता है... मुझ आत्मा के आस - पास चाहे कुछ भी हो जाए मैं चुनती हूँ साइलेंस को...

 

➳ _ ➳  चाहे कोई कुछ भी कहे मैं पसन्द करती हूँ साइलेंस को... और जैसे ही मैं आत्मा शांत बनी रहती हूँ परिस्तिथियां परिवर्तित होने लगती है... कोई भी विपरीत परिस्थिति अब मेरे मन पर प्रभाव नहीं डाल सकती है...

 

➳ _ ➳  अपनी हर प्रतिक्रिया मैं तय करती हूँ क्योंकि मैं शक्तिशाली आत्मा हूँ... यह साइलेंस ही मेरी शक्ति बन गयी है... जिस प्रकार साइंस ने इन्वेंशन की है कि जो लिखा हुआ है वह सब मिट जाता है, मालूम नहीं पड़ता है... उसी प्रकार मैं आत्मा भी इस साइलेंस की शक्ति द्वारा रोज़ अपने रजिस्टर को साफ़ रखने का अपने प्यारे बाबा के समक्ष आज दृढ़ संकल्प लेती हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा सच्चाई और सफाई पसंद हूँ... और बीते हुए कल में किये हुये किसी भी व्यर्थ संकल्प व व्यर्थ कर्म की लीक को अभी सम्पूर्ण रूप से मिटाती हूँ... और बीते हुए कल के किसी भी बोझ से स्वयं को सम्पूर्ण रूप से मुक्त करती हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा सर्व बीती बातों को सम्पूर्ण रूप से फुलस्टॉप लगाती हूँ... और यह संकल्प करते ही मैं आत्मा अनुभव कर रही हूँ कि मेरा मन और बुद्धि हर तरह के व्यर्थ के बोझ से पूरी तरह से हल्का हो रही है...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मैं प्रभू प्रिय वा दैवी लोक प्रिय आत्मा बन गयीं हूँ... मुझ आत्मा का रजिस्टर निरन्तर साफ़ रहने लगा है... और मेरी सच्ची वृति देख मेरे साहिब भी राज़ी हो गए हैं ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢ साइलेंस की शक्ति द्वारा अपने रजिस्टर को साफ रखने वाले लोकप्रिय, प्रभुप्रिय होते हैं.... क्यों और कैसे ?

 

  ❉   जैसे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व शक्तिशाली बनाने के लिए एक्सरसाइज करते है ऐसे आत्मा को शक्तिशाली बनाने के लिए व बाहरी वातावरण के हलचल से अपने को बचाने के लिए साइलेंस में रहने का अभ्यास करना है । साइलेंस की शक्ति से ही अपने रजिस्टर को साफ रखते है । वो लोकप्रिय व प्रभु प्रिय होते हैं ।

 

  ❉   जैसे साईंस ने ऐसी इनवेंशन की है जो लिखा हुआ सब मिट जाता है व पता भी नही चलता । ऐसे जो बच्चे सच्चाई और सफाई पसंद होते है वो कोई व्यर्थ संकल्प आया भी तो उसको वहीं बीती सो बीती फुलस्टाप लगाकर अपना रजिस्टर साफ रखते हैं और लोकप्रिय वा प्रभुप्रिय होते हैं ।

 

  ❉   जो बच्चे मौन में रहते हैं व मौन के माध्यम से सत्य तक पहुंचते है वो मौन का आनन्द लेते हैं । साइलेंस की शक्ति से एक के अंत में खोकर अंतर जगत की यात्रा करते हुए व्यर्थ संकल्प, बोल और व्यर्थ कर्म से परे रहते है व अपना रजिस्टर साफ रख प्रभु प्रिय और लोकप्रिय होते हैं ।

 

  ❉   जिन बच्चों को ये नशा होता कि हम तो आलमाइटी अथॉरिटी की संतान है व हमें डायरेक्ट परमात्म अधिकार प्राप्त हुआ है  तो वो अपनी साइलेंस की शक्ति से अपने संकल्पों में शक्ति भर लेते है व छोटी मोटी बातों में  अलबेलेपन को छोड़ बाप से सर्व सम्बंध रखते प्रभुप्रिय व लोकप्रिय होते हैं ।

 

  ❉   जैसे विज्ञान की शक्ति से स्पेस में चले जाते हैं तो धरती का आकर्षण नीचे रह जाता है और अपने को सबसे ऊपर अनुभव करता है । ऐसे साइलेंस की शक्ति द्वारा स्वयं को विकारों की आकर्षण वा प्रकृति के आकर्षण से परे उडती स्टेज अनुभव करते है और बाप के दिल पर राज करते हैं व बाप के साथ दिल से सच्ची लगन होती है तो अपने रजिस्टर को साफ रखते प्रभुप्रिय व लोकप्रिय होते हैं ।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢ व्यर्थ संकल्प करना वा दूसरों के व्यर्थ संकल्प चलाने के निमित बनना - यह भी अपवित्रता है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   बाप दादा द्वारा हर बच्चे को ज्ञान, गुणों वा शक्तियों का अखुट खजाना  ब्राह्मण बनते ही प्राप्त हो जाता है । किन्तु जब इस खजाने को सही रीति यूज़ करना नही आता या जमा करना नही आता तो व्यर्थ संकल्प उतपन्न होते हैं जो चढ़ती कला की बजाए ठहरती कला में ले जाते हैं । निरन्तर हर्षित ना रहने के कारण अन्य आत्माओं को भी उमंग उत्साह दिला कर चढ़ती कला का अनुभव करवाने की बजाए उतरती कला में लाने के निमित बन जाते हैं जो एक प्रकार की अपिवत्रता है ।

 

 ❉   जो मन बुद्धि को व्यर्थ संकल्पों में उलझाये रखते हैं  या दूसरों के व्यर्थ संकल्प चलाने के निमित बनते है  वे स्वयं भी तीव्र पुरुषार्थी नही बन पाते और दूसरे के पुरुषार्थ में भी रुकावट बनते हैं । स्वयं को ज्ञान वा शक्तियों के खजाने से खाली अनुभव करने के कारण अपने सर्वश्रेष्ठ टाइटल मास्टर सर्वशक्तिवान को भूल माया के दास बन जाते हैं । साथ साथ अन्य आत्माओं को सम्पन्न देख स्वयं उदास हो जाते है और अपनी उदासी के वायब्रेशन्स से अन्य आत्माओं को भी उदास करने के निमित बन जाते हैं ।

 

 ❉   व्यर्थ संकल्प बुद्धि को भटकाते हैं तथा बार बार पुराने संस्कारों के इमर्ज होने का कारण बन जाते हैं ।जिस कारण छोटे से छोटे विघ्न में भी क्या, क्यों के क्वेश्चन उठने से व्यर्थ संकल्पों को क्यू लग जाती है और उसी क्यू को समाप्त करने में काफी समय नष्ट हो जाता है । कारण का निवारण सोचने के बजाए कारण को जानने में ही समय और संकल्प व्यर्थ चले जाते हैं । मास्टर नॉलेजफुल होते हुए भी ज्ञान स्वरूप नही बन पाते । इसलिए ना स्वयं को विघ्नों से मुक्त कर पाते और ना दूसरों को निर्विघ्न बना पाते ।

 

 ❉   जो व्यर्थ संकल्प में अपना समय वेस्ट गंवाते हैं वे सदैव स्वयं को खाली अनुभव करते हैं इसलिए सम्पन्नता वा सुख की अनुभूति से वंचित रह जाते है  । जिससे चलते फिरते छोटी - मोटी भूले होती रहती हैं । समय प्रति समय होने वाली छोटी - छोटी अवज्ञाओं का बोझ आत्मा को बोझिल बना देता है और डबल लाइट स्थिति का अनुभव नही होने देता । अतीन्द्रिय सुख वा ख़ुशी सम्पन्न शांत स्थिति का अनुभव ना होने के कारण खुद भी अशांत रहते हैं तथा औरों को भी अशांति का अनुभव कराने के निमित बन जाते हैं ।

 

 ❉   जो व्यर्थ संकल्प चलाते हैं उनकी बुद्धि कमजोर हो जाती है, वे सदा कन्फ्यूज़ रहते है और कोई भी निर्णय सही तरह से नही कर पाते हैं । निर्णय शक्ति ठीक ना होने के कारण वे सदा परेशान व उदास रहते हैं और जाने अनजाने छोटे छोटे विकर्म करते रहते हैं । विकर्मो का बोझ बढ़ने और व्यर्थ का खाता बढ़ने से जीवन में आनन्द और उल्लास समाप्त हो जाता है जिससे वे स्वयं भी संगम युग की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों से वंचित रह जाते हैं तथा औरों को भी उन प्रप्तियों का अनुभव नही करवा पाते तथा उनके भी व्यर्थ संकल्प चलाने के निमित बन जाते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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