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 09 / 05 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ पतित से पावन बनाने का जो धंधा बाप का है, वही धंधा किया ?

 

➢➢ "यह ब्राह्मण जीवन देवताओं से भी उत्तम है" - इस नशे में रहे ?

 

➢➢ बुधी का योग और सबसे तोड़ एक माशूक को याद करते रहे ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ कंपनी और कम्पैनियन को समझकर साथ निभाया ?

 

➢➢ मन और बुधी को एक ही पावरफुल स्थिति में स्थित करने का बार बार अभ्यास किया ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ सत्यता की महानता के नशे में सदा खुशी के झूले में झूलते रहे ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ ।

 

✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा इस अविनाशी देह के भान से परे होकर स्वयं को अशरीरी स्तिथि में देख रहीं हूँ... बाह्यमुखता से परे होकर मैं अपने ही अन्तर्मन में झाँक कर, अपनी कमी कमज़ोरियों को मिटाने के लिए स्वयं को एक बाप की याद में अनुभव कर रहीं हूँ... मेरा चित्त एकाग्र हो रहा है... मेरी स्तिथि एकरस हो रही है.... मेरे सामने परमधाम वासी बीजरूप शिव के सिवाय और कोई दृश्य नहीं... मैं स्वयं को भी इसी बीजरूप अवस्था में देख रहीं हूँ... बाबा से कनेक्शन जोड़ते ही मुझ आत्मा की चमक करोड़ों गुना बढ़ती जा रही है... कितना बेजोड़ है बाबा का यह प्यार और प्यार में अपने बच्चों को सम्पूर्ण पवित्र, शांत, शीतल, सर्वगुण सम्पन्न बनाने की यह कल्याणकारी विधि... कितना शुक्रिया अदा करूँ मैं अपने अविनाशी शिव पिता का, जो कल्प - कल्प यह भाग्य बनाने का चांस मुझ आत्मा को मिला है... मैं आत्मा अपने श्रेष्ठ भाग्य का अनुभव कर रही हूँ आज... वाह रे मैं भाग्यवान आत्मा ! प्यारे बाबा... आपका दिल से शुक्रिया जो आपने मुझ आत्मा को सच्चे ब्राह्मणों की ऐसी कंपनी दी...ड्रामा के भाग्य प्रमाण बहुत थोड़ी सी आत्माएं हैं जिन्हें श्रेष्ठ ब्राह्मणों की कम्पनी मिली है... और मैं उन थोड़ी सी आत्माओं में से एक हूँ... जिससे मैं आत्मा सदैव ही चढ़ती कला का अनुभव करती हूँ... मीठे बाबा, आज मैं आत्मा आपके समक्ष यह दृढ़ संकल्प करती हूँ की मैं आत्मा सदा श्रेष्ठ कंपनी में रह और एक बाप को अपना कम्पैनियन बनाकर आपसे सदा प्रीत की रीत निभाती रहूंगी... और अपने श्रेष्ठ भाग्य के नशे में झूमती रहूंगी ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चों - बाप आये है तुम बच्चों को अपने समान लायक बनाने, बाप की जो महिमा है वह अभी तुम धारण करते हो"

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों ईश्वर बाप बन धरती पर उतर आया है... अपने मटमैले से हुए बच्चों को आप समान बनाने... दिल से मुझे पुकार कर जो मेरी महिमा करते हो... इस समय पिता ईश्वर द्वारा अपने रोम रोम में भरते हो... और खूबसूरत देवता बन सजते हो...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मेरे मीठे से बच्चों धरती का छोटा सा पिता जब बच्चों के लिए जन्म खपाए तो विश्व का महा पिता तो सवांरने लुटा ही चला जाय... देवताई स्वरूप में निखार ही चैन पाये... बच्चे सुखो की जन्नत में बस जाय इसी में सारे संकल्प लुटाए...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चों मै अपनी महिमा सुन भला क्या करूँगा जब तक मेरे बच्चे उस खूबसूरती में रंगे नही है... बच्चे जरा चमक जाय गुणो को धारण कर सवर जाय तो मुझ पिता को भी आराम आये... और महिमा सार्थक हो जाय...

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चों मेरी छवि जब बच्चों में छलकेगी तब ही तो महिमा महिमा है बच्चे खाली से दुखो में भटके तो पिता तो देख ही न पाये... पिता की सारी दौलत बच्चों को मिल जाय बच्चे सुखी हो जाय... यही पिता की आरजू है...

 

 ❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चो मुझे दिन रात पुकारते हो...  मेरी महिमा गाते हो... पर मेरी ख़ुशी तुम बच्चों को उस महिमा से सजा हुआ देखने में समायी है... मेरे मीठे बच्चे स्वर्ग सी सुंदर धरा पर विचरे... देवताई रूप धारण कर टहले यह मुझ पिता की तमन्ना है...

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ यह ब्राह्मण जीवन देवताओं से भी उत्तम जीवन है, इस नशे में रहना है । बुद्धि का योग और सबसे तोड़ एक माशूक को याद करना है ।

 

  ❉   यह ब्राह्मण जीवन देवताओं से भी उत्तम जीवन है , इस नशे में रहना हैं क्योंकि इस अनमोल जीवन में ही हम आत्माओं का परमात्मा से मिलन होता है व परमात्मा स्वयं हमें सच्ची सच्ची गीता सुनाकर आप समान बनाते हैं ।

 

  ❉   स्वयं भगवान हमें अपना बनाते हैं व दिव्य बुद्धि व ज्ञान का तीसरा नेत्र भी इस ब्राह्मण जीवन में मिलता है । इस दिव्य बुद्धि की लिफ्ट की गिफ्ट से ही हम तीनों लोकों की जब चाहे सैर कर सकते है व जितनी देर रहना चाहे रह सकते हैं । इस अनमोल ब्राह्मण जीवन के नशे व खुशी में रहना है ।

 

  ❉   इस ब्राह्मण जीवन में ही स्वयं भगवान हम ब्राह्मण बच्चों की महिमा करते हैं व इतने टाइटल देकर सुशोभित करते हैं तो बहुत नशे में रहना है । हम ब्राह्मण बच्चों की ही डबल पूजा होती है । जो ज्ञान स्वयं भगवान हमें देते हैं वो नॉलेज देवताओं में भी नही होती ।

 

  ❉   अभी तक तो अज्ञानतावश देहधारियों को ही अपना सब समझते उनसे ही मोह रख दुःख पाते रहे । अब सत का संग मिलने पर चलते फिरते, उठते बैठते, कोई भी कर्म करते बुद्धि का योग बस एक बाप से जोड़ना है । कहा भी गया है - हथ कार डे दिल यार डे ।

 

  ❉   जैसे लड़की की सगाई होती है तो वह बस अपने माशूक की याद में ही खोई रहती है व उसका ध्यान बस उसी में लगा रहता है । हमें सच्चा सच्चा माशूक मिला है व हम सब उसके आशिक है व हमारी सगाई शिव बाबा से हुई है तो हमें अपना बुद्धियोग औरों से तोड़ बस एक सच्चे माशूक को याद करना है ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ कम्पन्नी और कम्पैनियन को समझकर साथ निभाने वाले श्रेष्ठ भाग्यवान होते हैं... क्यों और कैसे ?

 

  ❉   जो सदा श्रेष्ठ कम्पन्नी में रहते और एक बाप को ही अपना कम्पेनियन बनाकर उनसे ही प्रीति की रीति निभाते हैं वही श्रेष्ठ भाग्यवान होते हैं ।

 

  ❉   जो सब संग तोड़ एक सत का संग करते है व बाबा को ही अपना सच्चा कम्पेनियन समझ सब सच्चा सच्चा बताते है व सर्विस के लिए ऐवररेड़ी रहते है तो बाप भी अपने ऐसे को स्वयं याद करते हैं व साथ निभाते है वही श्रेष्ठवान होते हैं ।

 

  ❉   जिन बच्चों को ये नशा होता है कि हमें ऊंच ते ऊंच बाप मिला है व सच्चा अविनाशी संग मिला तो बाबा से ही सर्व सम्बंध निभाते है । किसी और रस की चाहना नही होती व यही खुशी होती है जो पाना था सो पा लिया । बाबा से ही कम्पनी और कम्पेनियन का साथ निभा श्रेष्ठवान होते हैं ।

 

  ❉   कहां तो दुनिया वाले भगवान के एक क्षण दर्शन पाने को तरसते हैं और हमें भगवान ने स्वयं चुना व हमें हाइऐस्ट अर्थारिटी बाप की कम्पनी और रिचेस्ट इन दा वर्ल्ड कम्पेनियन का साथ मिला तो इस नशे व खुशी में रहकर साथ निभाने वाले श्रेष्ठवान होते हैं ।

 

  ❉   तुझ संग बैठूं, तुझ संग खाऊं, तुझ संग खेलूं, तुझ संग सोऊं.... ऐसे बस एक बाबा को ही संसार समझते है व सब कम्पलेंट समाप्त होती है।  बाबा संग ही कम्पनी और बाबा को ही कम्पेनियन समझ साथ निभाने वाले श्रेष्ठवान होते हैं ।

 

  ❉   इस संगमयुग पर ही ऊंच ते ऊंच बाप का संग मिला है व उसे अपना सच्चा कम्पेनियन समझ साथ निभाते व बाप की ही श्रीमत पर चलते तो श्रेष्ठवान होते हैं ।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ मन और बुद्धि को एक ही पावरफुल स्थिति में स्थित करना यही एकांतवासी बनना है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   मन और बुद्धि को एक ही पावरफुल स्थिति मे स्थित करने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है संकल्प में एकानामी अर्थात संकल्पों को व्यर्थ होने से बचाना । जितना एकानामी के अवतार बन संकल्पों की बचत करेंगे उतना मन बुद्धि में एकाग्रता बढ़ती जाएगी । और मन बुद्धि जितनी एकाग्र होगी उतना एकांतवासी बन एक की याद में रहना सहज हो जाएगा ।

 

 ❉   जितना बुद्धि को खाली रखेंगे अर्थात क्या, क्यों और कैसे की क्यू में बुद्धि को उलझाकर नहीं रखेंगे उतना बुद्धि की लाइन क्लीयर रहेगी और सेकेण्ड में मन बुद्धि को जिस पावरफुल स्थिति में स्थित करना चाहेंगें उस स्थिति में स्थित कर सकेंगे और एकांतवासी बन एक के लव में लवलीन हो सकेंगे ।

 

 ❉   आने वाले समय प्रमाण जब चारों ओर हलचल का वातावरण होगा ऐसे समय में सेफ्टी का एक मात्र साधन होगा सेकंड में अपने को विदेही, अशरीरी व आत्म - अभिमानी बना लेना और यह तभी कर पाएंगे जब मन और बुद्धि को एक ही पावरफुल स्थिति में स्थित करने का और एकांतवासी बनने का लंबे काल का अभ्यास होगा ।

 

 ❉   अंतिम समय का पुरुषार्थ है एवररेडी स्थिति । जैसे मिलिट्री में ऑर्डर होता है स्टॉप, तो फौरन स्टॉप हो जाते हैं । स्टॉप कहने के बाद कदम भी आगे नहीं बढ़ा सकते । इसी प्रकार एवररेडी वही बन सकेंगे जो जैसे श्रीमत वा डायरेक्शन मिले उसी स्थिति में मन और बुद्धि से एक सेकेंड में स्थित हो जाए, जरा भी संकल्पों की हलचल ना हो ।

 

 ❉   जो सदा अपने स्वधर्म व वाणी से परे स्थिति में स्थित रहते हुए समय और परिस्थिति अनुसार सर्व शक्तियों को कार्य में लगाते हैं । वे अपने मन और बुद्धि को सेकंड में एक ही पावरफुल स्थिति में ठीक वैसे ही स्थित कर लेते हैं जैसे कोई व्यक्ति अपनी कार या कोई भी सवारी को जहां चाहे वहां रोक सकता है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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