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❍ 22 / 05 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ सदा √ख़ुशी के खजाने√ से खेलते रहे ?
➢➢ स्वयं में √सर्व गुणों√ का अनुभव किया ?
➢➢ स्वयं को √वरदानी मूर्त√ आत्मा अनुभव किया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ बापदादा से प्राप्त √तत्त्वम्√ के वरदान का अनुभव किया ?
➢➢ √मेले में रह√ अनेक झमेलों की समाप्ति का अनुभव किया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?
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➳ _ ➳ http://bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/22.05.16-VisheshPurusharth.htm
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं समर्थी स्वरुप आत्मा हूँ ।
✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-
➳ _ ➳ आराम से अन्तर्मुखी हो बैठ जाएँ... और चिंतन करें... मैं ज्योतिर्बिंदु आत्मा पंछी बन उड़ती जा रहीं हूँ नीले गगन से पार... चाँद सितारों की दुनिया से भी पार...
➳ _ ➳ अपने प्यारे वतन की ओर... अपने घर... परमधाम... अपने परम प्यारे पिता से मिलने... बड़े प्यार से अपने बाबा से मिलना है आज... बापदादा ने अपनी दिव्य दृष्टि से मुझ आत्मा को देख लिया है...
➳ _ ➳ ब्रह्मा बाबा फरिश्ता रूप में बैठें हैं और उनकी भृकुटि में चमक रहें हैं शिव बाबा... बापदादा ने मुझ फ़रिश्ते के दोनों हाथों को अपने हाथों में थाम लिया है और मुझे समर्थी स्वरुप बना रहें हैं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मैं ज्ञान मार्ग में जितना आगे बढ़ती जा रहीं हूँ उतनी ही माया भिन्न - भिन्न रूप से परीक्षा लेने आ रहीं हैं... लेकिन मैं आत्मा यह दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मैं निवारण के बजाए कारण को न सोचकर अपने समय और शक्ति को व्यर्थ नहीं करुँगी...
➳ _ ➳ इन परीक्षाओं को आगे बढ़ाने का साधन समझूँगी न की गिराने का... मैं आत्मा सदा कारण के बजाए निवारण को सोचकर एक बाप की लगन में मगन रहूंगी...
➳ _ ➳ इन्हीं संकल्पों के साथ मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मैं समर्थी स्वरूप बन निर्विघ्न बन रहीं हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "सदा मिलन के झूले में झूलने का आधार"
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे लाडलो इतने खूबसूरत भाग्य के मालिक कि ईश्वर मुरीद हो चला आप बच्चों पर... फ़िदा हो धरती पर उतर चला... तो इससे बड़ी ख़ुशी और भला क्या... भगवान राजी हो चला सारा खजाना दोनों हाथ लिए बच्चों को दे चला...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों जो आपकी जनमो की तमन्ना थी वह पूरी हो चली बाबा पिता शिक्षक सतगुरु बन जीवन में उतर आया...इतना शानदार भाग्य हो चला जो मुरादे थे ईश्वरीय चाहत की पूरी हो चली...तो अब सदा ख़ुशी आनन्द के झूले में झूलते रहो...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चे ऐसी खुशनसीबी विश्व में किसी की नही जो मेरे आप बच्चों की है... ईश्वर पिता का दिल आ गया मीठे दुलारे बच्चों पर... पिता लुट गया मिट सा गया बच्चों के प्यार में...कि बच्चे भी ख़ुशी में नाच उठे... पाना था सो पा लिया... तो खुशियां ही खुशियां बिखरी चारो ओर है...
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों.विश्व पिता जो मिला तो खुशियो से भरपूर हो चले हो... आनन्द के गीतों में खो चले हो... अनुभवो का खजाना पाकर मदमस्त हो चले हो... आप बाप में और बाप आपमें समा कर दो रूह एक जान हो चले हो... भाग्य की खूबसूरती गजब हो चली है...
❉ मेरा बाबा कहे - सदा मिलन के झूले में झूलने का आधार यह मिलन की मीठी सच्ची खुशियां है... खूबसूरत अनुभवो की जागीर है... सच्चा पिता मनमीत बन दिल आँगन में उतर आया है... न पिता रह पाये न बच्चे जी पाये ऐसा मीठा नाता हर पल खुशियो के झूले में झुलाये... और इस तकदीर के कितने न गुण गाये कितना ना आनन्द मनाये...
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ बापदादा से प्राप्त तत् त्वम् के वरदान का अनुभव करना है ।
❉ बाप का बनते ही हमेशा बाप के साथ कम्बाइंड स्वरुप मे रहना है व साथी बनाकर साथ रहना हैं । तो कोई संशय नही होगा व निश्चिंतता से सम्पन्नता का अनुभव कर तत् त्वम् के वरदान को अनुभव करना है ।
❉ जैसे गंगा सागर से अलग नही होता व सागर गंगा से अलग नही हो सकता ऐसे ही संगमयुग में बाप का बनते ही व मन से मिलन मनाते बस एक की ही याद में स्थित रह बाप के दिल में समा जाना है । मैं बाबा का बाबा मेरा । ऐसे तत् त्वम के वरदान का अनुभव करना है ।
❉ जैसे बाप हमेशा बच्चों की सेवा के लिए तत्पर रहते हैं व जी हाजिर का पाठ पढ़ाकर हाजिर हो जाते हैं ऐसे हमें भी बापदादा से मिली आदिकाल से प्राप्तियों व शक्तियों को यूज कर तत् त्वम के वरदान का अनुभव करना है ।
❉ अमृतवेले से लेकर दिन की समाप्ति तक बस एक की याद में रहना है व अपने को हजार भुजाओं वाले की छत्रछाया में अनुभव करना है व खुशी में रहना है । जो बाबा से मिला उसे स्वयं प्रति व दूसरों के प्रति यूज कर तत् त्वम् के वरदान का अनुभव करना है ।
❉ जो बाप के गुण व शक्तियां हैं उनका ही मैं अधिकारी हूं । जैसे बाप ज्ञान कासागर , सुख का सागर हैं तो स्वयं को मास्टर ज्ञान का सागर , मास्टर सुख का सागर अनुभव करना है व सुख स्वरुप आत्मा बन सारे विश्व में सुख की किरणें फैलाकर बापदादा से मिले तत् त्वम वरदान का अनुभव करना है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ कारण को निवारण में परिवर्तन कर सदा आगे बढ़ने वाले समर्थी स्वरुप होते हैं.... क्यों और कैसे ?
❉ ज्ञान मार्ग में जितना आगे बढ़ते हैं उतने ही बड़े बड़े पेपर आते हैं । ये पेपर ही हमें अगली क्लास में ले जाते हैं इसलिए उसके कारण में समय व्यर्थ न गंवाते हुए बस उसका निवारण करना है । एक बाप की याद में मगन रह समर्थी स्वरुप बनना है ।
❉ जो संकल्प में भी एक बाप के सिवाय दूसरा कोई व्यक्ति व वैभव , सम्बंध-सम्पर्क कोई भी स्मृति में नही लाते व हमेशा स्मृति स्वरुप रहते हैं वो किसी भी परिस्थिति आने पर स्व पर अटेंशन रख कारण को जल्द ही निवारण में बदल आगे बढ़ समर्थी स्वरुप होते हैं ।
❉ जो बस एक की याद में ही मगन रहते हैं व एक ही संकल्प होता है कि बाप को प्रयत्क्ष करना है । तो भल कितने भी पेपर आए स्वयं को सर्वशक्तिमान के साथ अनुभव करते व स्मृति स्वरुप में रहते हर कारण को निवारण में बदल आगे बढने वाले समर्थी स्वरुप होते हैं ।
❉ आपदायें तो बहुत आयेंगी क्योंकि पुरानी कलयुगी दुनिया का विनाश होना है तो जो अपने को हजार भुजाओं वाले बाप की छत्रछाया में अनुभव करते हैं व याद रुपी कवच पहने रखते है । जादूई गोल्डन चाबी हमेशा साथ रखते है तो हर कारण का निवारण कर आगे बढ़ने वाले समर्थी स्वरुप होते हैं ।
❉ जो स्वयं को मास्टर सर्वशक्तिमान की सीट पर सेट रखते व जिस समय जिस शक्ति की जरुरत होती उसे यूज कर हर विघ्न को आगे बढ़ने का साधन समझ पार करते व साक्षी होकर पार्ट देखते हुए सदा श्रेष्ठ बाप के संग रहते आगे बढ़ने वाले समर्थी स्वरुप होते हैं ।
❉ जो हर कार्य दूसरों के कल्याण के भाव से करते व सब के प्रति शुभ भावना शुभ कामना रखते हैं व चाहे उसमें कितने माया के विघ्न आए उसमें भी कोई कल्याण है यह स्मृति रख आगे बढते हैं । ईश्वरीय लगन में मगन रहते है वो समर्थी स्वरूप होते हैं ।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ महादानी वह है जो अपनी दृष्टि, वृति और स्मृति की शक्ति से शांति का अनुभव करा दे... क्यों और कैसे ?
❉ आवाज से परे शांत स्वरुप स्थिति में स्थित रहने का जितना अभ्यास होगा उतना साइलेन्स का बल आत्मा में जमा होता जायेगा और आत्मा अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति का स्वरूप बनती जायेगी । अतीन्द्रिय सुख के झूले में निरन्तर झूलने वाली ऐसी आत्मा जिन आत्माओं के सम्बन्ध सम्पर्क में आएगी उन्हें भी अपनी दृष्टि, वृति और स्मृति की शक्ति से असीम शांति का अनुभव करवा देगी और महादानी बन अपने शक्तिशाली वायब्रेशन द्वारा विश्व की अनेक आत्माओं को सुख, शान्ति से भरपूर कर देगी ।
❉ जैसे भक्तों को भावना का फल देते हैं, वैसे ही कोई अशांत और दुखी आत्मा भावना रखकर, तड़पती हुई, जीय दान लेने वा मन की शान्ति लेने के लिए आये तो महादानी बन ऐसी दुखी और अशांत आत्माओं को अपनी दृष्टि, वृति और स्मृति की शक्ति से सुख और शान्ति का अनुभव तभी करवा सकेंगे जब स्वयं शांति स्वरूप् , शक्ति स्वरुप, विघ्न विनाशक स्थिति में स्थित होंगे । और यह स्वरूप तभी बना सकेंगें जब सुख, शांति, आनन्द, प्रेम और पवित्रता के सागर बाप की याद में निरन्तर समाये हुए होंगे ।
❉ जैसे शरीर में कोई भयानक रोग हो जाने पर उस रोग के जीवाणुओं को नष्ट करने के लिए आज कल बिजली के तेज करेंट का इस्तेमाल करते है इसी प्रकार अपनी सम्पूर्ण ऐसी ही पॉवरफुल स्टेज पर जब हम स्थित होंगे तो सेकण्ड में अपने शुभ संकल्पों का स्विच ऑन कर अपनी दृष्टि, वृति और स्मृति की शक्ति से दुखी और अशांत आत्माओं को शान्ति का अनुभव करा कर उनका कल्याण कर सकेंगे । और महादानी बन अनेको आत्माओं को सर्व प्राप्तियों का अनुभव करा सकेंगे ।
❉ जैसे डॉक्टर के पास जैसा रोगी आता है, उसी प्रमाण उनको दवाई की डोज़ देता है और तन्दुरूस्त बना देता है । इसी प्रकार अपनी दृष्टि, वृति और स्मृति की शक्ति से अशांत आत्माओं को शान्ति का अनुभव तभी करा सकेंगे जब सर्व शक्तियो, सर्व खजानों और सर्व गुणों का स्टॉक स्वयं अपने पास भरपूर होगा । अपने जीवन में आने वाले विघ्न व परीक्षाओं को पास करना - यह तो बहुत कॉमन है लेकिन जब दूसरों के प्रति ही हर सेकेण्ड, हर संकल्प होगा तभी महादानी बन सर्व का कल्याण कर सकेंगे ।
❉ वर्तमान समय विश्व कल्याण करने का सहज साधन है महादानी बन अपने श्रेष्ठ संकल्पों की एकाग्रता द्वारा सर्व आत्माओं की भटकती हुई बुद्धि को एकाग्र कर उन्हें सुख, शान्ति की अनुभूति करवाना । क्योंकि विश्व की सर्व आत्मायें यही चाहना रखती हैं कि भटकती हुई बुद्धि एकाग्र हो जाए वा मन शांत हो जाए । ऐसी भटकती हुई आत्माओं को अपनी दृष्टि, वृति और स्मृति की शक्ति से शांति का अनुभव तभी करवा पाएंगे जब निरन्तर एकरस योगयुक्त स्थिति में स्थित रहने का निरंतर अभ्यास होगा ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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