━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 20 / 04 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
‖✓‖ "बाप से जप पवित्र बनने की °प्रतिज्ञा° की है" - उस पर पक्के रहे ?
‖✓‖ काम, क्रोध आदि °भूतों पर विजय° प्राप्त करने का पुरुषार्थ किया ?
‖✓‖ "अब °नाटक पूरा° जो रहा है" - यह स्मृति रही ?
────────────────────────
∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
‖✓‖ अपने °भाग्य और भाग्य विधाता° की स्मृति द्वारा सर्व उलझनों से मुक्त रहे ?
‖✓‖ °कमल आसनधारी° बन माया की आकर्षण से न्यारे, बाप के स्नेह में प्यारे बनकर रहे ?
────────────────────────
∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
‖✓‖ स्वयं की तीनो कालों (आदि, मध्य, अंत) की °महानता° स्मृति में रही ?
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
To Read Vishesh Purusharth In Detail, Press The Following Link:-
✺ HTML Format:-
➳ _ ➳ http://bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/20.04.16-VisheshPurusharth.htm
✺ PDF Format:-
➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/20.04.16-VisheshPurusharth.pdf
────────────────────────
∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं आत्मा मास्टर रचयिता हूँ ।
✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-
➳ _ ➳ योगयुक्त स्तिथि में बैठ अपने मन को शुद्ध संकल्पों में स्तिथ करें... मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि इस दुनिया के वैभव का आनंद, पद, पदवी और पैसे का आनन्द क्षणभंगुर है... मान सम्मान अहंकार का निर्माण करता है... इन आकर्षणों से मुझ आत्मा को अब छुटकारा पाना है... अब मुझमें शुद्ध आत्मिक आनन्द की इच्छा बढ़ रही है... मैं आत्मा अनुभव कर रहीं हूँ कि वास्तव में मैं अजर अमर अविनाशी आत्मा हूँ... यह देह तो नाशवान है... मैं आत्मा सत् चित् आनंद स्वरुप हूँ... मेरे कल्याणकारी, ज्योतिस्वरूप परम पिता परमात्मा आनन्द के सागर हैं... मैं आत्मा उनसे आनंद के प्रकम्पन्न प्राप्त कर रहीं हूँ... मैं आत्मा यह अलौकिक आनन्द का अनुभव करके संतुष्ट हो रही हूँ... मैं अपने भाग्य और भाग्य - विधाता की स्मृति द्वारा सर्व उलझनों से मुक्त हो मास्टर रचयिता बनने का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मैंने जो जानना था वो जान लिया है, जो पाना था वो पा लिया है और मैं सर्व उलझनों से मुक्त हो रहीं हूँ... मैं आत्मा अपने शिव बाबा के समक्ष आज यह दृढ़ संकल्प करती हूँ कि मैं बचपन की छोटी - छोटी बातों में अपना समय और संकल्पों की शक्ति को न गवाकर मास्टर सर्वशक्तिमान और मास्टर रचयिता बन अब उलझी हुई आत्माओं को निकालने में समर्थ बनूँगी ...यह दृढ़ संकल्प कर मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मेरे मन में सदा इस सूक्ष्म आवाज़ का नगाड़ा बज रहा है कि, वाह मेरा भाग्य वाह और वाह भाग्य - विधाता वाह ! और मैं ख़ुशी से नाच रहीं हूँ ।
────────────────────────
∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - तुम बाप द्वारा सम्मुख पढ़ रहे हो, तुम्हे सतयुगी बादशाही का लायक बनने के लिए पावन जरूर बनना है"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे बच्चो तुम इस क़दर भाग्य शाली हो की सम्मुख बेठे पढ़ रहे हो... सतयुगी बादशाही बाँहो में लेने को आतुर सी खड़ी है...तो पावन बन उसे सदा का बाँहो में भरना है... पवित्र बच्चे ही सतयुगी ताज में चमकेंगे....
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे लाडलो मै पिता आप खास बच्चों के खातिर टीचर बन चला हूँ... आप विशेष किसी से पढ़ नही सकते तो बाप ही टीचर बन गया हूँ...तो अब पिता टीचर का मान पवित्र बन रखना है और सतयुगी बादशाही का बादशाह बनना है...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चों भगवान धरती पर उतर आया है बच्चों को पढ़ाने... खुशकिस्मती से भरपूर हो सतयुगी सल्तनत के मालिक हो...पवित्र बन विश्व पर राज कर मुस्कराते हो...और इस पिता टीचर का नाम ऊँचा कर सुखो में इठलाते हो...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चों स्वर्णिम सी दुनिया सजती ही पवित्रता के आधार से है...विष वहाँ तो चल न सके देवताओ के शहर में गंद तो हो न सके...तो यह बीज गहरे जरा यहां ही बोने है...और उसका मीठा सा सुनहरा सा फल फिर पाना है...
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों आप बच्चों के प्यार की कशिश ने मुझे खीच लिया...मै सम्मुख आ बच्चों को पढ़ाने लगा...और पवित्रता से भर कर देवताई पढ़ाई से आबाद किया...सारे सुखो की जन्नत को बच्चों के नाम किया...तो पवित्रता ही बुनियाद है जो स्वर्ग सी दुनिया की नीव है...इसे कभी न भूलो...
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ चलते फिरते हर कार्य करते पढ़ाने वाले बाप को याद करना है । अब नाटक पूरा हो रहा है इसलिए इस अंतिम जन्म में पवित्र जरुर बनना है ।
❉ अभी तक रौरव नर्क में पडे थे व अज्ञानता के कारण दुःखों के काले अंधियारे में थे । पत्थर बुद्धि बन गये थे स्वयं बाप ने हमें ज्ञान का तीसरा नेत्र देकर दिव्य बुद्धि दी व स्वयं टीचर बन पढ़ाकर पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बना रहे हैं । इसलिए हमेशा बुद्धियोग बस एक बाप से लगा रहे ।
❉ बाबा कहते हैं भल जीवन निर्वाह हेतु काम धंधा करते रहो । बस काम करते हुए भी पढ़ाने वाले बाप को याद करते रहना है । कहा भी गया है हथ कार डे दिल यार डे । हाथों से काम करते रहो बस दिल से बाप को याद करते रहो ।
❉ ऊंच ते ऊंच बाप सुप्रीम टीचर जो दूरदेश से पतितों की दुनिया में हमें पढ़ाने आता है व पढ़ाकर हमें पावन बनाता है ,21 जन्मों के लिए विश्व का मालिक बनाता है तो ऐसे सुप्रीम टीचर को चलते फिरते हर कार्य करते याद करना है ।
❉ ये सृष्टि एक ऱंगमच है व इस दुनिया में सब अपना अपना पार्ट बजाने आए हैं व सब का अपना अपना एक्यूरेट पार्ट है । जैसे कोई नाटक होता है तो जिसको जो रोल मिलता है उसे प्ले करके सब अपने घर जाते हैं ऐसे ही हमें भी अपना पार्ट प्ले कर घर वापिस जाना है । नयी दुनिया सतोप्रधान है तो वहां पवित्र बने बगैर जा नही सकते ।
❉ बाप हमें पढ़ाकर पावन बनाने व अपने साथ वापिस ले जाने आए है तो बाप की श्रीमत का पालन करते हुए हमें इस अंतिम जन्म पवित्र जरुर बनना है । अपने को आत्मा समझ पढ़ाने वाले बाप को जरुर याद करना है ।
❉ लौकिक मे जिस टीचर से पढ़ते है तो उसे याद रखते है जबकि हमें तो बेहद के सुप्रीम टीचर पढ़ाते है जो हमारे कौड़ी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बनाते है व अनमोल अखूट खजानों से मालामाल करते है रीचेस्ट इन दा वर्ल्ड बनाते है तो ऐसी वंडरफुल रुहानी पढ़ाई पढ़ाने वाले बाप को हमेशा याद करना है ।
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ अपने भाग्य और भाग्य विधाता की स्मृति द्वारा सर्व उलझनों से मुक्त रहने वाले मास्टर रचयिता होते हैं... क्यों और कैसे ?
❉ वाह मेरा भाग्य वाह ! जब स्वयं भगवान हमारे ऊपर बलिहारी हो गया व हमारे प्रेम और अधिकार की सूक्ष्म रस्सी से बंधा है तो वो हमारे बिना रह नही सकता । ऐसे ऊंच बाप के बच्चे अपने भाग्य और भाग्य विधाता की स्मृति द्वारा सर्व उलझनों से मुक्त रहने वाले मास्टर रचयिता होते हैं ।
❉ अपने ऊंच भाग्य और भाग्य विधाता बाप के बच्चे हैं हम व जिसने स्वयं अपना भाग्य लिखने की कलम अपने बच्चों को दे दी मास्टर रचयिता बना दिया । जन्म-जन्म के दुख हर कर मास्टर सुखदाता बना दिया तो ऐसे ऊंच ते ऊंच बाप भाग्य विधाता हमारा साथी है तो भला कोई उलझन कैसे ठहर सकती है ।
❉ ईश्वरीय सेवा करना ही सबसे बडा भाग्य है जो यह स्मृति रखते हुए आलराउंड सर्विस में तन-मन-धन, समय, श्वांस, संकल्प को सफल कर अपना भाग्य बनाते हैं । ऐसे मन वचन कर्म से सच्ची सच्ची सेवा कर सारी उलझनों से मुक्त रहने वाले मा०रचियता होते है ।
❉ स्वयं ब्रह्मा बाबा भी ईश्वरीय सेवा कर अपना भाग्य बनाते और बच्चों का भाग्य बनाने के निमित्त बनते ऐसे फॉलो फादर बन अपना और औरों का भाग्य बनाने वाले उलझन मुक्त हो मा० रचियता होते
❉ वाह मेरा भाग्य और वाह भाग्य विधाता ! इस मन की सूक्ष्म आवाज को सुनकर खुशी में रहते व नशा रहता कि जो पाना था सो पा लिया - उसी अनुभव में रहते तो सर्व उलझनों से मुक्त रहते हैं व दूसरी आत्माओं को भी उलझनों से बाहर निकालते व मास्टर रचयिता होते हैं ।
❉ पूरे कल्प में संगम युग ही भाग्य बनाने का समय है व भाग्य विधाता बाप भी पूरे कल्प में भी बस संगमयुग में ही मिलते हैं जो यह स्मृति रख अपने स्वरूप में रहता और औरो को भी वैसी सेवा करता वो सर्व उलझनों से मुक्त रह मा० रचियता होता है ।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ कमल आसनधारी ही माया की आकर्षण से न्यारे, बाप के स्नेह में प्यारे श्रेष्ठ कर्म योगी हैं... कैसे ?
❉ कमल आसनधारी सदैव कमल पुष्प समान स्थिति में स्थित रहते हैं अर्थात सदा हर कर्मेंद्रिय द्वारा कर्म करते हुए भी इंद्रियों के आकर्षण से परे न्यारे और प्यारे रहते हैं । सिर्फ समृति में न्यारे और प्यारे नहीं बल्कि हर सेकेंड का हर कर्म वे न्यारे और प्यारे हो कर करते हैं । इसलिए सदा एक बाप के लव में लवलीन हो, श्रेष्ठ कर्म योगी बन हर कर्म करते रहते हैं ।
❉ कमल आसनधारी प्रवृत्ति मार्ग की निशानी का प्रतीक है । जैसे कमल जल में रहते हुए भी जल के आकर्षण के बंधन से न्यारा रहता है । उसी प्रकार कमल आसनधारी प्रवृत्ति में रहते हुए भी चाहे लौकिक चाहे अलौकिक और साथ ही अपने चारों ओर के पतित तमोगुणी वातावरण में रहते हुए भी उसके प्रभाव से सदा मुक्त रहते है और सदा बंधन मुक्त और योग युक्त हो बाप के स्नेह में समाए रहते हैं ।
❉ कमल आसन पर सदा विराजमान रहने वाली आत्मा सदा एक अविनाशी सहारे के आधार पर कलियुगी पतित दुनिया से सहज ही किनारा कर स्वयं को सदैव पतित विकारी दुनिया के आकर्षण से परे महसूस करती है । इसलिए माया की आकर्षण से भी न्यारे, श्रेष्ठ कर्म योगी बन निरंतर एक बाप की याद में रह, हर कर्म करते कर्मातीत स्थिति को प्राप्त कर लेते है ।
❉ जैसे साइंस के साधन द्वारा शीघ्र ही धरती के आकर्षण से परे हो जाते हैं, स्पेस में चले जाते हैं । इसी प्रकार कमल पुष्प समान स्थिति में स्थित आत्मा सदैव देह और देह की दुनिया के आकर्षण से परे सदा उपराम अवस्था में रहते हुए, मन बुद्धि से अपने स्वीट होम और बाप की याद में मगन हो कर्म योगी बन हर कर्म करती रहती है ।
❉ जो कमल आसन पर सदा विराजमान रहते हैं । वे हद के सभी सहारों का आधार छोड़ केवल एक बाप के सहारे के आधार से हर प्रकार की हलचल से मुक्त रहते हैं । क्योंकि बाप की लगन में मगन होने से माया भी उन्हें हिला नहीं सकती । इसलिए हर कर्म करते योग युक्त हो कर, माया की आकर्षण से न्यारे, बाप के स्नेह में प्यारे श्रेष्ठ कर्म योगी बन जाते हैं ।
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━