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❍ 17 / 08 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ √पढाई√ पर पूरा अटेंशन दिया ?
➢➢ ×माया से हार× तो नहीं खाई ?
➢➢ √स्वर्ग की स्थापना√ के कार्य में सहयोग दिया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ √निराकारी स्थिति√ के अभ्यास द्वारा मैं पन को समाप्त किया ?
➢➢ किसी की बुरी व अच्छी बात सुनकर संकल्प में भी ×घृणा भाव× तो नहीं आया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ √"अभी-अभी पुरूषार्थी, अभी-अभी प्रालब्धी"√ - यह अनुभव किया ?
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/17.08.16-VisheshPurusharth.htm
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - बाप आये सबके जीवन से दुःख दूर कर स्वर्ग का वर्सा देने, इस समय सबको मुक्ति और जीवन मुक्ति मिलती है"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... फूलो जेसे सुंदर खिले मेरे बच्चे दुखो की दुनिया बेहाल हो चले है... मै अपने बच्चों को सुखो की दुनिया में खिलते फूल बनाने आया हूँ... सुखो का मीठा स्वर्ग वर्सा देने आया हूँ... मुक्ति और जीवनमुक्ति देने मै विश्व पिता धरती पर उतर आया हूँ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा दुखो को अपनी तकदीर समझ कितने अंधकार में जी रही थी... आपने आकर बाबा मुझे सुखो का सूरज दिखा दिया है... अलौकिक खुशियो से दामन सजा दिया है...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... अपने ही लाडलो का दुःख मै विश्व पिता भला कैसे देख पाऊं... मेरे फूलो को कुम्हलाता मै बागवान कैसे झेल पाऊँ... अपने मीठे बच्चों को सुखो का खुशनुमा स्वर्ग देने दौड़ा ही चला आऊं... मेरे बच्चे सदा को सुखी हो चले तो मै विश्व पिता मीठा सुकून पाऊं...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में खुशियो संग मुस्करा उठी हूँ... दुखो से सदा की अनजान और खुशियो का पता जान चुकी हूँ... आपको पाकर सदा की भाग्यशाली हो चली हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... मुझसे दूर होकर जो घर से चले दुखो की नगरी में विकारो के कंटीले तारो में लहुलहानं हो गए... अब प्यारा बाबा आ गया अपने बच्चों की सुध लेने... उन्हें फूलो सा खिलाने और खूबसूरत दुनिया में ले जाकर विश्व का मालिक बनाने... और सुख शांति की दुनिया के महलो में बिठाने...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा प्यारे बाबा को पाकर जादुई अहसासो से भर उठी हूँ... मीठा बाबा मुझे सजाने सवांरने के लिए ज्ञान और योग के पंखो को ले आया है... मुझे फ़रिश्ता सा बना अपने दिल के आसमाँ पर बिठाने आया है...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - माया को जीत कर्मातीत अवस्था का अनुभव करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा कितनी खुशनसीब, कितनी सौभाग्यशाली हूं... स्वयं संसार का मालिक शिव बाबा मुझ आत्मा के परमपिता भी हैं, सुप्रीम टीचर भी है, सुप्रीम सदगुरु भी हैं !! मुझ आत्मा की उंगुली पकड़कर मुझ आत्मा को सत्य की राह पर चलना सीखाते है... मुझ आत्मा को पत्थर बुद्धि को पारस बुद्धि बनाते है... मुझ आत्मा के कौड़ी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बना दिया है... प्यारे बाबा मुझ आत्मा को रोज ज्ञान रत्नों से नवाजते है... मुझ आत्मा की झोली ज्ञान रत्नों से भरकर रिचेस्ट इन दा वर्ल्ड बनाते हैं... मुझ आत्मा को पढ़ाकर पतित से पावन बनाने के लिए ही इस पतित दुनिया में आते है... मुझ आत्मा को मनुष्य से देवता बनाते है... मैं आत्मा पढ़ाई पर पूरा अटेंशन देती हूं... ज्ञान रत्नों को धारण कर ऊंच पद पाने के लिए पुरुषार्थ करती हूं... ये रुहानी पढ़ाई ही मुझ आत्मा की अविनाशी कमाई है... इस वंडरफुल पढ़ाई की प्रालब्ध मैं आत्मा 21 जन्मों तक प्राप्त करती हूं... इस संगमयुग पर मुझ आत्मा का विकारों से युद्ध चलता है... मैं आत्मा परमात्मा की याद में रह विकारों पर जीत पाती हूं... रावण माया बाबा का बनते ही हर तरह से हराने की कोशिश करती है... मैं आत्मा मास्टर सर्वशक्तिमान की सीट पर बैठ माया के वार से सेफ रहती हूं... माया पर जीत पाकर मैं आत्मा कर्मेन्द्रिय जीत और मायाजीत बनती हूं... मैं आत्मा हर कर्म करते बाबा को साथ रखती हूं... करनकरावनहार बाबा है... मैं आत्मा कर्म करते कर्म के प्रभाव से न्यारी रहती हूं... मैं आत्मा मायाजीत बन कर्मातीत अवस्था का अनुभव करती हूं...
❉ "ड्रिल - बाप की याद में रह दैवी गुणों की धारणा करना"
➳ _ ➳ इस कलयुगी दुनिया में मेरी मन बुद्धि विकारों से भरी हुई थी... आयरन ऐज्ड में रहते मैं अपनी एक भूल से विकारों मे गिरती चली गई... आयरन ऐज में जैसी सोच थी मनुष्यों की वैसी ही देवी देवताओं की प्रतिमा भी काली बनाने लगी... तमोप्रधान हो गई... अब इस संगमयुग पर स्वयं परमात्मा ने मुझ आत्मा को दिव्य बुद्धि व दिव्य ज्ञान देकर मुझे घोर अंधियारे से निकाल सोझरे में लाकर ज्ञान की रोशनी दी है... मैं आत्मा देह व देह के सर्व सम्बंधों को भूल गई हूं... मैं जीते जी मर गई हूं... मैं आत्मा अपने परमपिता परमात्मा शिव बाबा की याद में रहती हूं... याद से मुझ आत्मा की बुद्धि की विकारों की कट उतरती जा रही है... मैं आत्मा याद से विकर्मों का विनाश करती हूं... मुझ आत्मा की बुद्धि की लाइन क्लीयर होती जा रही है... इस पुरानी दुनिया में रहते याद में रहने से मेरी बुद्धि गोल्डन ऐज्ड की होती जा रही है... मैं आत्मा ज्ञान योग की धारणा से अपने अंदर दैवी गुणों को धारण करती जाती हूं... मैं आत्मा ज्ञान धन का दान करते हुए एक दो को अपने समान बनाती जा रही हूं... मैं आत्मा बाप का परिचय देकर उनका कल्याण करती हूं... मैं आत्मा स्व का परिवर्तन कर विश्व परिवर्तक के कार्य में बाप का मददगार बनती हूं... नयी दुनिया के स्थापना के कार्य के निमित्त बनती हूं...
❉ "ड्रिल - घृणाभाव से मुक्त"
➳ _ ➳ मैं आत्मा भृकुटि में चमकती मणि हूं... मैं आत्मा प्रेम के सागर की संतान मास्टर प्रेम की सागर हूं... मैं आत्मा अपने आदि अनादि स्वरुप में रह सर्व के साथ आत्मिक भाव रखती हूं... भाई भाई की दृष्टि रखती हूं... सर्व के साथ रुहानी स्नेह रखती हूं... मेरे प्यारे बाबा सक्रीन से भी मीठे है... मुझ आत्मा को अनकंडीशनल प्यार देकर मुझ आत्मा को भी मीठा बना दिया है... सबके प्रति आत्मिक भाव रखने से मुझ आत्मा पर किसी भी अच्छी या बुरी बात का प्रभाव नही पड़ता है... मैं आत्मा ड्रामा के राज को अच्छी तरह जान गई हूं... हर आत्मा का एक्यूरेट पार्ट है... मैं आत्मा बाहरी मायावी बातें सुनते हुए भी नही सुनती... देखते हुए भी नही देखती... मैं आत्मा बस एक बात की श्रीमत पर चलती हूं... मैं आत्मा परचिंतन और परदर्शन से परे रहती हूं... मैं आत्मा संकल्प में भी किसी के प्रति ईर्ष्या, द्वेष या घृणा नही रखती हूं... मैं आत्मा श्रेष्ठ मत पर चल सर्व से प्रेमपूर्वक चलती हूं... सर्व के प्रति शुभ भावना शुभ कामना रखती हूं... मैं श्रेष्ठ संकल्पधारी आत्मा हूं...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं निरहंकारी आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳ देखें स्वयं को साकार देह में भृकुटि के बीच चमकता हुआ दिव्य सितारा... मैं आत्मा राजा हूँ... मालिक हूँ... मन-बुद्धि-संस्कार और सर्व कर्मेन्द्रियाँ मेरे आधीन हैं... मैं इन्हें स्वेच्छा से जब चाहूँ... जैसे चाहूँ... चला सकती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बेफिक्र बादशाह हूँ... देखते-देखते मुझ आत्मा की साकारी देह प्रकृति के तत्वों को त्याग आकारी रूप में बदल रही है... मैं लाइट और माइट बनती जा रहीं हूँ... मैं लाइट का एक शक्तिशाली पुंज हूँ... ज्योति स्वरुप हूँ... सम्पूर्ण हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सदा इस देहि-अभिमानी स्तिथि में स्तिथ रहने वाली आत्मा हूँ... "मैं पन" ही वर्तमान समय का महीन और सुन्दर धागा है... मैं आत्मा "मैं" शब्द से सम्पूर्ण रूप से मुक्त रहने वाली आत्मा हूँ... मैं अन्य सभी आत्माओं से मोह के महीन धागे को तोड़कर एक बाप से अपने प्रेम की डोर को जोड़ने का अनुभव कर रहीं हूँ...
➳ _ ➳ मैं नाम-मान-शान के बंधन से मुक्त रहने वाली आत्मा हूँ... मैं आत्मा निरंतर अपनी इस निराकारी स्तिथि में स्तिथ होकर साकार में रहने वाली बन्धन मुक्त आत्मा हूँ... मैं आत्मा साकार में निराकारी स्तिथि को ही अपना नेचुरल नेचर अनुभव करने वाली निरहंकारी आत्मा हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ निराकारी स्थिति के अभ्यास द्वारा मैं पन को समाप्त करने वाले निरहंकारी होते हैं... क्यों और कैसे?
❉ निराकारी स्थिति के अभ्यास द्वारा मैं पन को समाप्त करने वाले निरहंकारी होते हैं क्योंकि वर्तमान समय में सब से महीन और सुन्दर धागा – यह मैं पन है। इस मैं पन रुपी धागे में दैवी गुणों के मोती पिरो लेने से एक बहुत ही सुन्दर चमकती हुई, समस्त दैवी गुणों से सम्पन्न माला बन जाती है।
❉ यह मैं पन शब्द का जो सब से महीन और सब से सुन्दर धागा है, वह धागा हमें देह के अभिमान से पार ले जाने वाला भी होता है और देह के अभिमान में लाने वाला भी होता है। इसलिये! हमें मैं पन रुपी देह अभिमान से पार ले जाने वाले धागे से बहुमूल्य रत्नों, अर्थात! दैवी गुणों से सम्पन्न मोतियों की सुन्दर माला को पिरो लेना चाहिये।
❉ जब हम मैं पन शब्द को उल्टे रूप में इस्तेमाल करते हैं, तब हम बाप का प्यारा बनने की बजाय, अन्य किसी ना किसी आत्मा के नाम – मान – शान का प्यारा बन जाते हैं। यही कारण है कि हम आत्मायें! देवत्व से नीचे सीढ़ी उतरते हुए शुद्रपन के संस्कारों की ओर बढ़ चले हैं।
❉ हमें तुरन्त इस प्रकार के बन्धन से मुक्त हो जाना है। नहीं तो ये बन्धन बहुत बड़ी समस्या रूप, देह अहंकार के वशीभूत कर देगा। इसलिये! हमें अपने को इस बंधन से मुक्त करके, अपने आपको देह के अभिमान से पार ले जाना है तथा स्वयम को निरहंकारी स्थिति में स्थित रखने का अभ्यास करना है।
❉ बाबा का सर्वदा प्यारा बनने के लिये तथा इस प्रकार के दैहिक बन्धनों से मुक्त होने के लिये हमें निरन्तर स्वयं को निराकारी स्थिति में स्थित रख कर, साकार में आने का अभ्यास करना है तथा इस अभ्यास को अपनी नेचुरल नेचर भी बना लेना है। तब ही हम सम्पूर्ण निरहंकारी बन पायेंगे।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ किसी की बुरी वा अच्छी बात सुनकर संकल्प में भी घृणा भाव आना - यह भी परमत है... क्यों और कैसे ?
❉ किसी की अच्छी वा बुरी बात सुनकर संकल्प में भी घृणा भाव लाना यह भी परमत है । क्योकि परमात्म मत किसी के भी प्रति घृणा भाव लाना नही सिखाती । परमात्म मत तो सर्वश्रेष्ठ मत है जो सर्व के प्रति कल्याणकारी भाव रखना सिखाती है । बाबा कहते उपकारी पर उपकार करना कोई बड़ी बात नही है किन्तु श्रेष्ठ वही है जो अपकारी पर भी उपकार करे और अपकारी पर उपकार वही कर सकते हैं जो केवल एक बाप की श्रीमत पर चलते हैं ।
❉ किसी की बुरी व अच्छी बात सुन कर संकल्प में भी जो घृणा का भाव लाते हैं वे कभी भी आत्मअभिमानी नही बन सकते । आत्मा का स्वधर्म तो सबको शन्ति देना है । सबको प्रेम, सुख, आनन्द की अनुभूति करवाना है । घृणा करना, दूसरों को दुःख देना ये तो आसुरी अवगुण है जो देह भान में आने से उतपन्न होते हैं । बाबा कहते आत्मा " निज " है और देह " पर " है । इसलिए देह अभिमान में आ कर कोई भी कर्म करना वो भी परमत है ।
❉ जो स्वचिंतन की बजाए परचिंतन या परदर्शन में स्वयं को बिज़ी रखते हैं वही दूसरों की अच्छी व बुरी बात देख कर उनके प्रति घृणा भाव मन में लाते हैं । यह भी परमत है । ऐसे परमत पर चलने वाले गुणग्राही बनने के बजाए अर्थात दूसरों में गुणों को देखने के बजाए उनके अवगुणों को ही देखते हैं और उनके अवगुणों का बखान सब जगह करते रहते हैं । बाबा कहते ऐसे जो दूसरों के अवगुणों का चिंतन करते हैं वे श्रीमत में मनमत और परमत मिक्स करते है इसलिए वे कभी भी उंच पद नही पा सकते ।
❉ जैसे बाप के संस्कार हैं सर्व के प्रति सदा कल्याणकारी, शुभ चिंतनधारी । इसी प्रकार हम आत्माओं के ओरिजनल संस्कार भी सर्व के प्रति शुभ भावना शुभकामना के हैं । किन्तु जब किसी की अच्छी व बुरी बात को देख कर उनके प्रति शुभ भाव की बजाए घृणा का भाव मन में आ जाता है तो इसका अर्थ है ओरिजनल संस्कारों पर आसुरी संस्कारों का प्रभाव है । बाबा कहते यह अशुद्ध संस्कार ब्राह्मणों के नही शूद्रों के हैं इसलिए यह भी परमत है ।
❉ श्रीमत कहती है कि कैसे भी स्वभाव संस्कार वाली आत्मा हमारे सामने आ जाये किन्तु हमारे सदव्यवाहर को देख उसका स्वभाव संस्कार भी परिवर्तित हो जाये । अपने रहम की भावना से उन आत्माओं का भी कल्याण हो जाये जो पुराने स्वभाव संस्कारों के परवश हैं और उन सवभाव संस्कारों के कारण दुखी हो रही हैं । इसलिए बाबा कहते किसी की अच्छी व बुरी बात को देख कर व सुन कर उस आत्मा पर रहम करने के बजाए अगर संकल्प में भी उस आत्मा के प्रति घृणा का भाव मन में आता है तो इसे भी परमत कहेंगे ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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