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 11 / 08 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ माया से सावधान रहे ?

 

➢➢ अपनी उन्नति के लिए विचार किया ?

 

➢➢ "सर्विस को कैसे बढायें ?" - यह चिंतन किया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ बुधी की प्रीत एक प्रीतम से लगाकर सदा सम्मुख की अनुभूति की ?

 

➢➢ ×चाहिए चाहिए× के संकल्पों से मुक्त रहे ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢ आज बाकी दिनों के मुकाबले एक घंटा अतिरिक्त °योग + मनसा सेवा° की ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - तुम गैरन्टी करते हो की अपने योगबल से इस भारत को स्वर्ग बनाएंगे वहाँ एक धर्म एक राज्य होगा"

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... यादो में बैठकर जो सत्य स्वरूप को दमकाओगे तो भारत स्वर्ग हुआ पड़ा है... योग बल के दम पर भारत को सुखो का स्वर्ग बना कर एक राज्य एक धर्म का जादू करने वाले जादूगर हो... ईश्वरीय यादे धरा को सुखो का स्वर्ग बना देंगी यह गैरन्टी है...

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा आपके सागर समान प्रेम को पाकर प्रेम स्वरूप हो गयी हूँ... मेरा रोम रोम प्रेम से भरा हुआ है... सबको ख़ुशी और सुखो की सौगात दिए चली जा रही हूँ... और

❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... आप ईश्वरीय बच्चों के सिवाय कोई भी यह गैरन्टी कर न सके कि विश्व में रामराज्य फिर आएगा... एकता से महकता जहान होगा और हर दिल खुशियो में गायेगा मुस्करायेगा और भारत सोने की चिड़िया बन इठलायेगा...

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा योगबल से कितनी खूबसूरत होती जा रही हूँ... अपने सुंदर सजीले स्वरूप और प्यारे बाबा पर फ़िदा होती जा रही हूँ... पूरे भारत को सुखो की खान बनाकर विजयी हो मुस्करा रही हूँ...

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे ईश्वरीय यादो के बल से भारत को स्वर्ग बनाने में सक्षम हो... सतयुगी सुख और आनन्द को फिर से बाँहो में भरने का बूता ईश्वरीय बच्चों का ही है... यादो में रहकर खुद भी मुस्कराते हो और पूरे विश्व को मुस्कराहटों से सजा आते हो... सुखो की यह गेरेंटी आप ही दे सकते हो....

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में खुद भी निखरतो हूँ और पूरे भारत को भी सुखो से सजाती हूँ... सत्य स्वरूप को धारणाओं में जीकर... सारा जहान खुशियो की बगिया बनाकर महकाती हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - मायाजीत बन अटेंशन रुपी पहरेदार रखना"

➳ _ ➳  मैं आत्मा मायाजीत हूं... मुझ आत्मा को ज्ञान रुपी तीसरा नेत्र मिलने पर मैं आत्मा अपने माया रुपी पांचों विकारो पर नियंत्रण करती हूं... मैं आत्मा इस पुरानी रावण की दुनिया में रहते देह व देह के बंधनों से मुक्त हो गई हूं... मैं आत्मा मन बुद्धि की अधिकारी हूं... मैं अपने को आत्मा समझ प्यारे परमपिता परमात्मा की याद में रहती हूं... बाबा की याद भूलते ही 63 जन्मों से देहभान में रहने से मैं आत्मा बार बार फिर से देहभान में आ जाती हूं... देहभान में आते ही रावण माया का वार हो जाता है... इस.समय मुझ आत्मा का रावण माया से युद्ध होता है... रावण माया बाबा की याद भुला देती है... मैं आत्मा प्यारे शिव बाबा को भूलते ही बाह्यमुखता में आ जाती हूं... बाहरी चकाचोंध से आकर्षित हो जाती हूं... इसलिए मैं आत्मा अपनी कर्मेन्द्रियों की बहुत सम्भाल रखती हूं... बाबा की याद में रहने से मुझ आत्मा पर लगी कट उतरती जाती है... मैं आत्मा स्व पर अटेंशन रुपी पहरेदार रखती हूं...

❉   "ड्रिल - रुहानी सर्विस कर स्व की उन्नति पर अटेंशन"

➳ _ ➳  मैं आत्मा हूं... मस्तकमणि हूं... अजर अमर अविनाशी हूं... यह ज्ञान मुझे मेरे ज्ञान सूर्य शिव बाबा ने दिया है... जाने कितने जन्मों से देह समझ देहभान में रह विकारों में गिर पतित बनती गई... इस संगमयुग पर अंतिम समय में मुझ आत्मा को परमपिता शिव बाबा का संग मिला है... प्यारे शिव बाबा ने ही ओरिजनल स्वरुप की पहचान दी... मुझ आत्मा को यह ज्ञान मिल गया कि मैं कौन व मेरा कौन... कौन मेरा साथ निभाता है... मैं और मेरा दो शब्दों में ही मुझ आत्मा को सारा ज्ञान मिल गया... यह ज्ञान मुझे अन्य आत्माओं को देना है... मैं आत्मा परमपिता परमात्मा शिव बाबा का परिचय देती हूं... मुझ आत्मा के पिता कहाँ रहते है... क्या आकार है... क्या स्वरुप है... यह ज्ञान सर्व आत्माओं को देती हूं... मुझ आत्मा का चिंतन रहता है कि मैं आत्मा रुहानी सर्विस को कैसे बढ़ाऊं... मैं बाबा की याद में रह चित्रों के द्वारा सहज रीति से ज्ञान समझाती हूं... मैं आत्मा रुहानी सेवा करते हुए याद और सेवा का बैलेंस रखती हूं... मैं आत्मा स्व चिंतन कर स्व का परिवर्तन करती हूं... ज्ञान और योगबल से मैं आत्मा स्व की उन्नति करती हूं...

❉   "ड्रिल - रॉयल रुप के संकल्प चाहिए चाहिए समाप्त करना"

➳ _ ➳  मैं आत्मा पदमापदम भाग्यशाली हूं... जिस भगवान का एक क्षण दर्शन पाने को दुनिया वाले कहां कहां भटकते हैं... वो भगवान स्वयं मेरा हो गया!! वाह मेरा भाग्य वाह! वाह रे मैं आत्मा वाह!! मुझ आत्मा को भगवान मिल गया... जो पाना था सो पा लिया... भगवान मिलने के बाद मुझ आत्मा को कुछ ओर पाने की इच्छा नही रही... इच्छा मात्रम अविद्या... मैं आत्मा श्रेष्ठ संकल्पधारी आत्मा हूं... मुझ आत्मा को बाबा मिला सब मिल गया... मुझ आत्मा स्वयं को हद की इच्छाओं से मुक्त रखती हूं... परमपिता परमात्मा का बच्चा बनते ही सर्वशक्तियों, सर्व खजानों, गुणों की अधिकारी बन गई हूं...
मैं 63 जन्मों से भिखारी बनी रही... कुछ भी पाने के लिए याचना और प्रार्थना करती रही... अब इस संगमयुग पर मुझ आत्मा ने बिन मांगे सब पा लिया... अब मीठा बाबा मिला सब कुछ मिल गया और न कुछ बाकी रहा... बाबा ने मुझे अपना बनाकर 21 जन्मों तक भर पूर कर दिया... बाबा ने मेरे लेने के संस्कार समाप्त कर देने के संस्कार भर दिये है... अब चाहिए का संकल्प भी नही रहा संकल्प भी श्रेष्ठ और भरपूर होते जा रहे है...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं विजयी रत्न आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा परमात्म प्यारी आत्मा हूं... मैं आत्मा खुशनसीब हूँ... स्वयं सर्वशक्तिमान प्यारे शिव बाबा मुझ आत्मा के साथी है... मैं आत्मा कितनी पदमापदम भाग्यशाली हूँ जो परमात्म पालना में पल रही हूं... मैं आत्मा सदैव बाबा की हजार भुजाओं की छत्रछाया में हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा बाबा के दिलतख्त पर विराजमान हूँ... मैं आत्मा प्रीत बुध्दि हूँ... सदैव एक प्रीतम की लगन में मगन हूँ... मैं आत्मा अन्य किसी भी व्यक्ति वा वैभव से प्रीत न रखने वाली आत्मा हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपने आपको सदा बापदादा के सम्मुख अनुभव करने वाली भाग्यशाली आत्मा हूँ... मुझ आत्मा में सर्वशक्तिमान बापदादा की  सर्वशक्तियां समाहित हैं...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा हर परिस्थिति को बाबा का साथ होने से सहज ही पार कर रहीं हूँ... मैं आत्मा निश्चयबुद्धि हूँ... मैं आत्मा सदा विपरीत व्यर्थ संकल्पों वा विकल्पों से मुक्त रहती हूँ... मुझ आत्मा के दिल में बस एक बाप की याद समाई है...

 

➳ _ ➳  प्यारे बाबा ! मेरे तो बस आप ही हो दुसरो न कोई है... आप ही मेरे पालनहार हो... आपसे ही मैं आत्मा खाना खाती हूँ... आपसे ही मैं आत्मा आज बैठी हूँ... हर कर्म में मेरे सिर्फ आप ही समाये हो बाबा...

 

➳ _ ➳  आपसे ही मैं सर्व सम्बन्धों का अनुभव कर आपके प्यार में मग्न रह रहीं हूँ... सदा आपसे ही बुद्धि की प्रीत को मैं निभा कर मैं आत्मा कल्प-कल्प की विजयी आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  बुद्धि की प्रीत एक प्रियतम से लगा कर सदा सम्मुख की अनुभूति करने वाले विजयी होते हैं...  क्यों और कैसे?

❉   बुद्धि की प्रीत एक प्रियतम से लगा कर सदा सन्मुख की अनुभूति करने वाले विजयी होते हैं क्योंकि प्रीत बुद्धि अर्थात उनकी बुद्धि की लगन एक प्रियतम के साथ लगी हुई रहती है तथा वे सदा ही सम्मुख रहने की अनुभूति करते रहते हैं। इसलिये वे सदा के लिये विजयी बन जाते हैं।

❉   जिसकी एक के साथ प्रीत होती है, उनकी अन्य किसी भी व्यक्ति वा वैभव के साथ प्रीत नहीं जुट सकेगी क्योंकि वो सदा एक के अन्त में ही समायें रहते हैं। उनको अन्य किसी व्यक्तियों या वैभवों से कोई भी प्रयोजन नहीं रहता है। वह तो अपने निजी मूल स्वरूप व अपने प्रियतम बाबा के संग का ही अनुभव करते रहते हैं।

❉   वे सदा बाप और दादा को अपने सन्मुख ही देखते हैं। इसप्रकार का अनुभव वे सदा करते रहते हैं। उनकी बुद्धि की लाइन सदा अपने प्रियतम के प्रेम में मगन रहती है। वे आत्मायें! सदा ही अन्तर्मन का सुख प्राप्त करती रहती हैं, तथा आनन्दित होती रहती हैं। वे सदा ही तृप्त व संतुष्ट रहती है।

❉   वे सदा ही अपने सामने बाप दादा की सन्मुखता की महसूसता करती हैं। उन्हें मनसा में भी श्रीमत के विपरीत व्यर्थ के संकल्प व विकल्प नहीं आते हैं। उनकी सोच सदा ही पॉजिटिव होती है। वे जो भी सोचते है, सदा सहृदय की भावना से सकारात्मक ही सोचते हैं।

❉   उनके मुख से व दिल से यही बोल निकलते हैं कि... तुम्हीं से खाऊँ,...  तुम्हीं संग बैठूँ...  तुम्हीं से सर्व सम्बन्ध निभाऊँ...  ऐसे सदा प्रीत बुद्धि रहने वाले ही विजयी रत्न बन जाते हैं। इसलिये हमें सदा अपनी बुद्धि रुपी नेत्र से अपने प्रियतम का दीदार करते रहना है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  चाहिए - चाहिए का संकल्प करना भी रॉयल रूप का मांगना है... क्यों और कैसे ?

❉   किसी चीज को पाने की इच्छा का संकल्प करना भी रॉयल रूप का मांगना है और मांगने वाले को दाता नही भिखारी कहा जाता है । हम दाता के बच्चे मास्टर दाता हैं इसलिए कभी किसी से कुछ मांगने का संकल्प भी मन में आना नही चाहिए । दूसरा पहले दे तो मैं दूँ या दूसरा रिगार्ड करे तो मैं उसका रिगार्ड करू, यह इच्छा रखना भी रॉयल रूप का मांगना है । इच्छा कभी अच्छा बनने नही देती । इसलिए चाहिए चाहिए का संकल्प छोड़, मास्टर दाता बन हमे केवल देने का ही संकल्प करना है तभी बाबा के दिल रूपी तख्त पर विराजमान हो सकेंगे ।

❉   कई ब्राह्मण बच्चे यह चाहना रखते हैं कि सेवा की रिजल्ट में उनका नाम हो, उन्हें सब सम्मान की नजर से देखें । किन्तु बाबा कहते इस प्रकार की चाहना रखना भी रॉयल रूप की इच्छा है और जहां इच्छा या किसी भी प्रकार की कोई कामना मन में हैं तो उस सेवा में कभी सफलता प्राप्त नही हो सकती । क्योकि कि ये हद की इच्छाएं हैं जिनसे हद के नाम, मान और शान की प्राप्ति भले हो जाये लेकिन भविष्य प्रालब्ध में कमी आ जाती है । इसलिए चाहिये चाहिए के संकल्प को त्याग जो निस्वार्थ और निष्काम भाव से सेवा करते हैं वे सहज ही सफलतामूर्त बन जाते हैं ।

❉   किसी भी कार्य की सफलता का मुख्य आधार समर्पणता है । जब समर्पण भाव से कोई भी कार्य किया जाता है तो वह कार्य मन को असीम आनन्द और ख़ुशी की अनुभूति करवाता है तथा साथ ही साथ संगठन में सहयोग की भावना ला कर संगठन को प्रभावशाली बनाता है और सबको संतुष्ट रखता है । सन्तुष्टता और ख़ुशी ही संगम युग के अनमोल खजाने हैं । जो इन खजानो से स्वयं भी भरपूर रहते हैं तथा औरों पर भी लुटाते रहते हैं वही परमात्म ब्लेसिंग के अधिकारी बनते हैं । किन्तु समर्पण भाव तभी आ सकता है जब चाहिए - चाहिए की रॉयल इच्छाओँ के संकल्प से भी स्वयं को मुक्त कर लेंगे ।

❉   संगम युग पर जो इच्छा मात्रम अविद्या बन कर रहते है और सदैव मनमनाभव की स्थिति में स्थित रहते हैं वे सदैव अतीन्द्रिय सुख के सुखमय झूले में झूलते रहते हैं इसलिए हद की सभी इच्छाओ और कामनाओं से मुक्त हो जाते हैं । यह चाहिए, वह चाहिए, यह मिल जाये तो सेवा अच्छी हो, इस प्रकार के चाहिए चाहिए के संकल्प की रॉयल इच्छा से भी वे परे रहते हैं । किन्तु जो सदैव देह अभिमान में रहते हैं वे इन्ही रॉयल इच्छाओ को पूरा करने के लिए हमेशा देह और देह की दुनिया के आकर्षणों में उलझे रहते हैं । अल्पकाल की विनाशी प्राप्तियों की इच्छा को पूरा कर वे अल्पकाल की ख़ुशी तो पा लेते हैं किन्तु सदा काल के आलौकिक सुख के अनुभव से वंचित रह जाते हैं ।

❉   चाहिये - चाहिये का संकल्प करना भी रॉयल रूप का मांगना है और मांगने वाले अविनाशी खजानो से सम्पन्न होते हुए भी स्वयं को खाली अनुभव करते हैं । जैसे लौकिक में भी बच्चा बाप की प्रॉपर्टी का मालिक होता है इसी प्रकार हम ब्राह्मण बच्चे भी परमात्मा बाप के वारिस बच्चे हैं और बाप की प्रॉपर्टी अर्थात सर्व गुणों, सर्व शक्तियों और सर्व खजानो के मालिक हैं । किन्तु स्वयं को अधिकारी ना समझने और अधिकारीपन की स्मृति में ना रहने के कारण हद की इच्छाओ और कामनाओ के अधीन हो जाते हैं और उन्हें प्राप्त करने के झमेलों में ही फंस कर रह जाते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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