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 29 / 07 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ ज्ञान योग से आत्मा के बुरे संस्कार समाप्त करने का पुरुषार्थ किया ?

 

➢➢ श्रीमत पर पूज्य बनने का पुरुषार्थ किया ?

 

➢➢ शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते पढाई पड़ी और पढाई ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ बुधी रुपी पाँव द्वारा ×पांच तत्वों की आकर्षण× से परे रहे ?

 

➢➢ लाइट रूप में स्थित रह लाइट का शरीर देखा ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ दया व कृपा की भावना से पत्थर को भी पानी बनाया ?

 

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➳ _ ➳  http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/29.07.16-VisheshPurusharth.pdf

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - सारी दुनिया में तुम्हारे जैसा खुशनसीब और कोई नही, तुम हो राजऋषि तुम राजाई के लिए राजयोग सीख रहे हो"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे तुम्हारे जैसा खुशनसीब इस पूरे जहान में नही मिलेगा... भगवान की पसन्द हो राजऋषि हो... ईश्वर सम्मुख आ बेठा है... और सामने बेठ राजयोग सिखा रहा... और यही राजयोग सुखो को कदमो में बिछा देगा... जीवन खूबसूरती से महका देगा...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा... कितने प्यारे से भाग्य की मल्लिका हूँ... ईश्वर पिता की पसन्द हूँ... उसके सम्मुख हूँ... राजयोग सीख रही हूँ... और सारे सुख पिता से अपनी झोली में डलवा सदा की अमीर हो रही हूँ...

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे.... संसार के अल्पकाल के सुख दुनिया के पास हो सकते है पर मेरे बच्चों जेसे सुख तो उनके नसीब में नही... यहाँ कर्मेन्द्रियों पर राज कर राजऋषि बनते हो सतयुगी दुनिया में अथाह सुखो पर राज्य करते हो...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा मै आत्मा... आपकी यादो में राजऋषि बन रही हूँ सच्चे सुखो से दामन भर रही हु... सदा की खूबसूरत और प्यारी बन रही हूँ... और सुंदर भाग्य से राजरानी बन रही हू...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे बच्चे... मेरे खूबसूरत भाग्य से भरे बच्चों का कही कोई सानी नही... विश्व पिता धरती पर उतर राजयोग सिखला रहा... सदा का विश्व महाराजन बना रहा... और अनन्त सुख और खुशियां बाँहो में दिला रहा... सजा रहा संवार रहा...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मुझ आत्मा का भाग्य ही खिल गया... मेरा प्यारा बाबा तो मुझे मिल गया... जनमो की प्यास बुझ गयी... और मै आत्मा ईश्वरीय वरदानों से सज गयी... सारी खुशियां बाँहो में भर मै आत्मा मुस्कराने लगी हूँ....

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - ज्ञान योग से बुरे संस्कार समाप्त करना"

 

➳ _ ➳  अभी तक अज्ञानता के घोर अंधकार में थी... प्यारे बाबा से अपने बच्ची को दुःखी व पतित देख रहा नही गया... मैं आत्मा विकारों की अग्नि से जल रही थी... मुझ आत्मा को विकारों की दुबन से निकाल अंधकार से ज्ञान की रोशनी दी... दिव्य ज्ञान का तीसरा नेत्र दिया... स्वयं का परिचय देकर मुझे खुद से मिलाया... स्वयं अपनी भी पहचान दी... मैं आत्मा अपने परमपिता परमात्मा के सम्मुख बैठी हूं... मेरे प्यारे शिव बाबा सर्वोच्च है, सर्वज्ञ है... मैं आत्मा ऊंच ते ऊंच बाप की श्रीमत पर चलती हूं... मैं आत्मा श्रेष्ठ मत पर चल श्रेष्ठाचारी बनती हूं... पूज्य बनती हूं... स्वयं प्यारे शिव बाबा ही मुझ आत्मा को सृष्टि के आदि-मध्य-अंत का ज्ञान देते है... कोई ओर दूसरा ये ज्ञान दे नही सकता... अपने को आत्मा समझ परमपिता परमात्मा की याद में रहती हूं... एक प्यारे बाबा की याद से ही आत्मा पर लगी कट को उतारती हूं... एक की ही याद में रह अपने विकर्मों को भस्म करती हूं... मैं अत्मा स्वयं को ज्ञान चिंतन में बिजी रखती हूं... ज्ञान को धारण कर व याद में रहने से पुराने स्वभाव संस्कारों से मुक्त होती जाती हूं... मैं आत्मा दृढ़ संकल्प करती हूं कि मैं सम्पूर्ण निर्विकारी बनूंगी...

 

❉   "ड्रिल - योगबल से पावन बनना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा पदमापदम भाग्यशाली हूं... स्वयं परमपिता परमात्मा शिव बाबा सुप्रीम शिक्षक बन मुझे रोज पढ़ाने के लिए इस पतित दुनिया में आते है... मुझ आत्मा को ये नशा रहता है... मैं गॉडली स्टूडेंट हूं... प्यारे बाबा मुझ आत्मा को पढ़ाकर पतित से पावन बनाते है... मैं आत्मा यह रुहानी पढ़ाई पढ़कर पत्थर बुद्धि से पारसबुद्धि बनती जा रही हूं... मुझ आत्मा के कौड़ी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बना दिया है... मै आत्मा उठते-बैठते, चलते-फिरते बस एक बाबा की याद में रहती हूं... हर कर्म करते मुझ आत्मा का बुद्धियोग बाबा से जुड़ा रहता है... मैं आत्मा निर्वाह अर्थ धंधाधोरी करते यह रुहानी पढ़ाई भी पढ़ती हूं... ये रुहानी पढ़ाई बहुत वंडरफुल है... ये रुहानी पढ़ाई जो स्वयं भगवान पढ़ाते हैं कितना बड़ा भाग्य है मुझ आत्मा का... मुझ आत्मा को ये रुहानी पढ़ाई पढ़नी भी है और पढ़ानी भी है... मैं आत्मा यह रुहानी पढ़ाई पढ़कर 21 जन्मों के लिए राजाई पद पाती हूं... मैं आत्मा निरंतर एक बाप की याद में रह योगबल जमा करती हूं... योगबल से ही मैं आत्मा  जन्मों के विकर्म विनाश करती हूं... विकर्म विनाश होने से ही मुझ आत्मा की चमक बढ़ती जाती है... आत्मा शुद्ध और पावन बनती जा रही है... मैं आत्मा पावन बन ही राजाई पद की अधिकारी बनती हूं...

 

❉   "ड्रिल - लाइट बन लाइट स्वरुप में स्थित रहना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा हूं, देह नही... मुझ आत्मा को यह दिव्य दृष्टि प्यारे शिव बाबा ने दी है... मैं आत्मा अब इस पुरानी देह में रहते देह से न्यारी हो गई हूं... मैं आत्मा देही अभिमानी हूं... मैं आत्मा अपनी कर्मेन्द्रियों की मालिक हूं... जितनी देर अपनी कर्मेन्द्रियों से जो कर्म कराना चाहूं करा सकती हूं... मैं आत्मा सर्व के प्रति आत्मिक भाव रखती हूं... सर्व के मस्तक पर चमकती मणि देखती हूं... मैं आत्मा शरीर को देखते हुए भी बस लाइट का शरीर देखती हूं... मैं आत्मा लाइट का फरिश्ता हूं... बस कर्म करने के लिए शरीर का आधार लेती हूं... मैं श्वेत प्रकाश का शरीर लिए अपनी देह से अलग हो गया हूं... मैं आत्मा मन बुद्धि रुपी पंखों द्वारा उड़कर सदा अविनाशी बापदादा की गोद में खेलने वाला डबल लाइट फरिश्ता हूं... अपना सब कुछ बापदादा को सौंप सदैव हलका अनुभव करती हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं फरिश्ता स्वरुप आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳  आराम से योगयुक्त स्तिथि में बैठ जाएं और श्रेष्ठ संकल्पों की रचना करें... मैं आत्मा एवरप्योर बाप की पवित्र पावन सतोप्रधान बच्ची हूँ... मैं मातपिता को फोलो करने वाली राजयोगिनी हूँ... मैं आत्मा बाप की याद में शुद्ध स्वच्छ साफ पवित्र पावन दिव्य सतोप्रधान बनती जा रहीं हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा स्वीटहोम निर्वाणधाम की रहवासी हूँ... मैं आत्मा आत्मिक निश्चय रखने वाली दृढ एकाग्र बुद्धियोगी हूँ... बाप की सम्पूर्ण श्रीमत शिक्षा की लाइट मुझ आत्मा पर उतर रही है... मैं आत्मा सर्वश्रेष्ठ श्रेष्ठाचारी सदाचारी प्रकाश की काया में विराजमान फरिश्ता बनती जा रही हूँ...

 

➳ _ ➳  इस देह का भान भी मुझ फ़रिश्ते को भूल चुका है... मुझ फ़रिश्ते के बुध्दि रूपी पाँव इस पांच तत्वों की आकर्षण से ऊँचे उड़ रहें हैं... मैं फरिश्ता स्वरूप आत्मा माया के मेल से मुक्त शुद्ध स्वच्छ साफ हूँ...

 

➳ _ ➳  मुझ आत्मा की हर प्रकार की अधीनता सदा के लिए समाप्त हो रहीं है... मैं लौकिक वा अलौकिक सम्बन्धों की आधीनता से परे हो रहीं हूँ... मैं इस भौतिक शरीर की अधिकारी और माया की भी अधिकारी स्वरुप आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं फरिश्ता स्वरुप आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  बुद्धि रुपी पाँव द्वारा पाँच तत्वों की आकर्षण से परे रहने वाले फरिश्ता स्वरूप होते हैं... क्यों और कैसे?

 

   बुद्धि रुपी पाँव द्वारा पाँचों तत्वों की आकर्षण से परे रहने वाले फरिश्ता स्वरूप होते हैं क्योंकि फरिश्तों को सदा प्रकाश की काया में दिखाते हैं।  प्रकाश की काया वाले इस देह की स्मृति से भी परे रहते हैं। वो इस पुरानी देह से व देह के पदार्थों व देह के सम्बन्धों से भी न्यारे व प्यारे होते हैं।

 

   उनके बुद्धि रुपी पाँव इस पाँच तत्व की आकर्षण से ऊँचे रहते हैं अर्थात परे रहते हैं। फरिश्ते कभी भी फर्श पर नहीं रहते हैं। वे तो सदा ही अर्श पर रहते हैं। उनका इस प्रकृति से कोई भी मतलब नहीं होता है। वे सूक्ष्म वतन वासी होते हैं।

 

   प्रकाश की काया वाले फरिश्तों का इस पंचभौतिक तत्वों की पुरानी दुनिया से कोई लगाव नहीं होता है। वह तो उन्मुक्त तीनों लोकों में अपनी सेवा का पार्ट बजाते हवा के झोंके के समान विचरण करते रहते हैं। ऐसे फरिश्तों को माया व कोई भी मायावी टच भी नहीं कर सकता है।

 

   लेकिन ऐसा तब होगा जब कभी भी किसी के अधीन नहीं होंगे। अर्थात! वे स्वराज्य अधिकारी होते हैं। उन्होंने अपनी मन व इन्द्रियों को अपने अधीन किया हुआ होता है। फ़रिश्ते कभी भी परवश नहीं होते हैं। वे तो तीनों लोकों के अधिकारी होते हैं।

 

   वे किसी के भी वश में नहीं होते हैं। वे तो अधिकारी हो कर चलते हैं। माया के भी अधिकारी बन कर चलते हैं। वे माया को अपने अधीन बना कर रखते हैं तथा लौकिक व अलौकिक सम्बन्धों की अधीनता में भी नहीं आते हैं।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢ शरीर को देखने की आदत है तो लाइट का शरीर देखो, लाइट रूप में स्थित रहो... क्यों और कैसे ?

 

   जब सदैव इस बात को स्मृति में रखेंगे कि " मैं हूँ ही ओरीजनल पवित्र आत्मा " मेरा  अनादि और आदि दोनों काल का ओरीजनल स्वरूप पवित्र था । अपवित्रता तो शूद्रों की देन है और शूद्रों की चीज हम ब्राहमण यूज नही कर सकते । अपने अनादि आदि रीयल स्वरूप की स्मृति में स्थित रहने का यह अभ्यास सदैव लाइट रूप स्थिति में स्थित रखेगा और इसी स्मृति में स्थित हो कर जब किसी के भी सम्पर्क में आयेंगे तो उसके स्थूल शरीर में भी उसका सूक्ष्म अर्थात लाइट का शरीर ही दिखाई देगा ।

 

   जब मैं और मेरे पन का त्याग कर सब कुछ बाप को अर्पण कर देंगे और सब जिम्मेवारी बाप को दे कर मेरे को तेरे में परिवर्तन कर देंगे तो मेरा सो तेरा हो जायेगा । जब मेरा सो तेरा हो जाता तो सहज ही डबल लाइट हो जाते । मेरापन ऊपर से नीचे ले आता है लेकिन जब तेरा तुझको अर्पण कर देते हैं तो सदा डबल लाइट और सदा ऊपर उड़ते रहते हैं । ऐसी ऊँची स्थिति में जब स्थित रहते हैं तो देह और देह की दुनिया से उपराम हो जाते हैं और स्वयं भी लाइट रहते है तथा औरों के भी लाइट स्वरूप को ही देखते हैं ।

 

   बिन्दू रूप में स्थित रह उड़ती कला में उड़ने वाले डबल लाइट फ़रिश्ता जब बनेंगे तो किसी की देह को देखते हुए भी उसका लाइट स्वरूप ही दिखाई देगा । लेकिन यह तभी होगा जब सदा स्मृति में रखेंगे कि हम बाप के नयनों के सितारे हैं और नयनों में सितारा अर्थात् बिन्दू ही समा सकता है । बिंदु बाप को नयनो में समा कर बिन्दू रूप में स्थित रहना - यही उड़ती कला में उड़ने का साधन है। जो स्वयं को भी लाइट स्वरूप में स्थित रखता हैं तथा औरों के भी लाइट स्वरूप का अनुभव करवाता है ।

 

   अपने फ़रिश्ता स्वरूप की स्मृति में जो स्थित रहते हैं वे सदा लाइट रूप बन उड़ते रहते हैं क्योकि फ़रिश्ता का अर्थ ही है फर्श से ऊपर अर्श पर रहने वाला । ऐसे लाइट रूप में रहने वाली आत्माओं को सदा यही स्मृति रहती है कि हम हैं ही फ़रिश्ते और फरिश्तों का देह या देह की दुनिया से कोई रिश्ता नही होता ।सारे रिश्ते केवल एक बाप से होते हैं । इस लिए केवल एक बाप से सर्व सम्बन्धो का सुख लेते हुए वे स्वयं भी लाइट रहते हैं तथा औरों के भी शरीर को ना देख उनके लाइट रूप को ही देखते हैं ।

 

   जो सदा " एक बल एक भरोसा " इस लग्न में रहते हैं वे सदा एकरस स्थिति में स्थित रहते हैं । कोई भी रस ऐसी आत्माओं को अपनी ओर आकर्षित नही कर सकता । सर्व रसों का सुख एक बाप से लेते हुए वे सदा निर्विघ्न हो कर आगे बढ़ते रहते हैं । ऐसी आत्मायें लाइट हाउस बन अनेको आत्माओं को रास्ता दिखाने के निमित बनती हैं । देह और देह के सर्व आकर्षणों से सदैव परे रहने के कारण वे स्वयं भी सदा लाइट रूप रहती हैं और अपने सम्बन्ध संपर्क में आने वाली सभी आत्माओं को भी उनके दैहिक रूप में ना देख उनका लाइट का शरीर ही देखती हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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