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   14 / 02 / 16  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ °तीव्र पुरुषार्थ° की लगन को ज्वाला रूप बनाकर बेहद के वैराग्य की लहर फैलाई ?

 

‖✓‖ °बिंदु° बन, बिंदु को याद कर बीती बातों को बिंदु लगाया ?

 

‖✓‖ स्वयं को सदा °बापदादा की नयनो° में समाया हुआ अनुभव किया ?

 

‖✓‖ मस्तक में सदा °परमात्म पालना, परमात्म पढाई और परमात्म प्राप्तियों° की तीन लकीरें चमकती रही ?

 

‖✓‖ "हम सारे विश्व में और सारे कल्प में सबसे °हाईएस्ट, महान और होलिएस्ट° हैं" - यह नशा रहा ?

 

‖✓‖ महान दाता बन °समय और संकल्पों का खजाना° औरों के प्रति लगाया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ मरजीवे जन्म की स्मृति द्वारा °कर्मबंधन को सम्बन्ध° में परिवर्तित किया ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं परोपकारी आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   मरजीवे जन्म की स्मृति द्वारा कर्मबन्धन को सम्बन्ध में परिवर्तन करने वाली मैं परोपकारी आत्मा हूँ ।

 

 ❉   लौकिक सम्बंधों को सेवा का सम्बन्ध मान कर श्रीमत प्रमाण हर कर्म करने से मैं सहज ही बन्धन मुक्त रहती हूँ ।

 

 ❉   ज्ञान की प्वान्ट्स को धारणा में ला कर मैं वैरायटी प्रकार की आत्माओं के पार्ट को साक्षी हो कर देखती हूँ । इसलिए हर बात से उपराम रहती हूँ ।

 

 ❉   पाप आत्मा अथवा अपकारी आत्मा से भी नफरत व घृणा के बजाए, रहमदिल बन मैं सर्व का कल्याण करती जाती हूँ ।

 

 ❉   अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सभी आत्माओं के साथ केवल सेवा का सम्बन्ध समझ कर सबके प्रति शुभ और श्रेष्ठ वृति रखते हुए मैं सब पर उपकार करती जाती हूँ ।

 

 ❉   अपने रहम की वृति और सर्व के प्रति शुभ भावना, शुभकामना रखते हुए मैं हर प्रकार की आत्मा के व्यवहार को सहज ही परिवर्तन कर देती हूँ ।

 

 ❉   मैं आत्मा सदैव अपकारी पर भी उपकार करने वालीगाली देने वाले को भी गले लगाने वाली और निंदा करने वाले को भी सच्चा मित्र बनाने वाली हूँ ।

 

 ❉   मैं कभी भी किसी की कमजोरी दिल पर न रख सदैव रहमदिल, सभी की स्नेही और सहयोगी बनकर रहती हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "तीव्र पुरुषार्थ की लगन को ज्वाला रूप बनाकर बेहद के वैराग्य की लहर फैलाओ"

 

 ❉   वर्तमान समय प्रमाण बापदादा का यही फरमान है कि तीव्र पुरुषार्थ की लग्न को अग्नि रूप में लाओ । ज्वालामुखी बनो ।

 

 ❉   समय प्रमाण रहे हुए जो भी मन के, सम्बन्ध - सम्पर्क के हिसाब - किताब हैं उसको ज्वाला स्वरूप से भस्म करो ।

 

 ❉   क्योकि आगे आने वाले समय में विश्व में एक तरफ भ्रष्टाचार, अत्याचार की अग्नि होगी और दूसरी तरफ आप बच्चों का पावरफुल योग अर्थात लग्न की अग्नि ज्वाला रूप में आवश्यक है ।

 

 ❉   क्योकि आपकी लग्न जब ज्वाला रूप की होगी तभी याद की अग्नि उस अग्नि को समाप्त करेगी तथा सर्व आत्माओं को परमात्म सन्देश की, शीतल स्वरूप की अनुभूति करवाएगी ।

 

 ❉   इसलिए अपने ज्ञान की शीतलता द्वारा सर्व आत्माओं को पापों की आग से मुक्त करो और बेहद की वैराग्य वृति को प्रज्ज्वलित कर बेहद के वैराग्य की लहर फैलाओ । यह है वर्तमान समय का ब्राह्मणों का कार्य ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ बिंदु बन बिंदु बाप को याद कर बीती बातों का बिंदु लगाना है ।

 

  ❉   मन के मालिक बन मन को आर्डर कर एक सेकेंड में बिंदु बन बिंदु बाप को याद करना है । बाप के महावाक्य पर मनन चिंतन करते हुए बीती बातों पर बिंदु लगाना है ।

 

  ❉   अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते हुए ड्रामा मेंजो भी कर्म किया , बीत गया उसे बस फुलस्टाप ही लगाना है । बस बिंदु ही याद रखना है विस्तार में या पास्ट में नही जाना ।

 

  ❉   बापदादा हमेशा कहते हैं - अमृतवेले से ही मिलन मिलाते रुह रिहान करते तीन बिंदियों का तिलक लगाना है व लाल बिंदियों का तिलक लगाने शुरु नहीं करना स्मृति का तिलक लगाना है । चेक भी करते रहना है कि किसी कारण यह स्मृति का तिलक मिटे नही ।

 

  ❉   बिंदु बनो, बिंदु को याद करो और बिंदु लगाओ यही पुरुषार्थ करना है । क्यूं क्या कैसे करके बिंदु को क्वेश्चन मार्क में नही बदलना । अगर बदला तो इसका मतलब देहभान में आकर बाप को भूल गए ।

 

  ❉   इस संगमयुग  के समय के महत्व को समझते हुए कमाई का व जमा का खाता बढ़ाने का सहज उपाय ही है - आप ही बिंदी, बाप भी बिंदी व ड्रामा में भी बीती को बिंदी लगाना । बिंदी लगाते जाना हैं व जमा का खाता बढ़ाते जाना है ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ मरजीवे जन्म की स्मृति द्वारा कर्मबंधन को सम्बंध में परिवर्तन करने वाले परोपकारी होते हैं ....क्यों और कैसे ??

 

  ❉   ये पुरानी दुनिया , पुराने विनाशी सम्बंध सब कब्रदाखिल होने हैं व इनसे मोह न रखते हुए कर्मबंधन न समझते हुए बस मैं तो इस समय पार्ट प्ले कर रही हूं व ट्रस्टी हूं । ऐसे निमित्त भाव से सेवा करनी है । 

 

  ❉   बस करनकरावनहार की याद में रह श्रीमत का पालन करते हुए हर आत्मा के साथ आत्मिक दृष्टि का भाव रखते हुए रहना है । जो कर्मबधन हो उसे योगबल से काटते हुए व सेवा भाव से करते हुए आगे बढ़ना है ।

 

  ❉   अलग अलग प्रकार की आत्माएं सम्बंध में आती हैं पाप आत्माएं, अपकारी आत्माएं...सब आत्माओं के प्रति रहमदिल, उपकार, कल्याण का भाव रखते हुए सेवा का सम्बंध समझ सेवा करने वाले परोपकारी व विश्व परोपकारी होते हैं ।

 

  ❉   बाप ने हमें अपना बनाकर नया जन्म दिया है तो पुराने स्वभाव संस्कारों को छोड़ ऐसा भाव रखना है कि ये भी बाबा का मीठा बच्चा है प्यारा आत्मा भाई है । ऐसे सम्बंध रख सर्व के प्रति शुभ भावना शुभ कामना रख परोपकारी होते हैं ।

 

  ❉   देह व देह के सम्बंधों से न्यारे और प्यारे रहते हुए अपनी सारी जिम्मेवारी उस बाप को सौंप स्वयं को बस हीरोपार्टधारी समझते हुए हर कर्म को सेवा समझ बाप की याद में करते हुए परोपकारी होते हैं ।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ समय वा परिस्थिति प्रमाण वैराग्य आया तो यह भी अल्पकाल का वैराग्य है, सदाकाल के वैरागी बनो... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   समय व परिस्थिति प्रमाण वैराग्य वृति को धारण करने के बजाए जब सदा काल के वैरागी बनेगें तभी मन - बुद्धि और संस्कारों पर सम्पूर्ण राज्य करने वाले स्वराज्य अधिकारी सो भविष्य राज्य अधिकारी बन सकेंगें ।

 

 ❉   अंत समय का जो एक सेकण्ड का पेपर है वह है नष्टोमोहा स्मृतिलब्धा । और इस पेपर में वही पास हो सकेंगे जो अल्पकाल की वैराग्य वृति को धारण करने की बजाए सदाकाल के वैरागी बनेगें ।

 

 ❉   अंत मति सो गति गाया हुआ है अर्थात अंत समय जिस स्मृति में देह का त्याग करेंगे वैसा ही पुनर्जन्म लेना पड़ेगा । इस लिए अंत समय सिवाए एक बाप के और कोई याद ना आये इसके लिए जरूरी है सदाकाल की वैराग्य वृति ।

 

 ❉   धर्मराज की सजाओ से बचने और सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था को पाने का एक ही उपाय है और वह उपाय है योग का बल । आत्मा में योग का बल तभी जमा होगा जब आत्मा सदाकाल की वैराग्य वृति को धारण करेगी ।

 

 ❉   अशरीरी स्थिति में स्थित रहने का जितना अभ्यास होगा उतना देह रूपी वस्त्र को त्यागना सहज होगा । और इस अभ्यास के लिए जरूरी है सदाकाल की बेहद की वैराग्य वृति ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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