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 26 / 05 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ स्वदर्शन चक्रधारी बन 84 का चक्र बुधी में फिराते रहे ?

 

➢➢ चलते फिरते उठते बैठते आत्म अभिमानी बनने का अभ्यास किया ?

 

➢➢ किसी भी चीज़ की ×लालच× तो नहीं की ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ समर्पणता द्वारा बुधी को स्वच्छ बनाया ?

 

➢➢ "एक बाप दूसरा न कोई" - इस विधि द्वारा सदा वृद्धि को प्राप्त करते रहे ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢ आज बाकी दिनों के मुकाबले एक घंटा अतिरिक्त °योग + मनसा सेवा° की ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं आत्मा सर्व खज़ानों से सम्पन्न हूँ ।

 

✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-

 

_ ➳  आज अपने प्यारे बाबा के स्नेह में खो जाना है... सभी बाह्य बातों से अपनी बुद्धि रूपी जहाज को हटा कर एक बाप की याद में मग्न हो जाएंगे आज... श्रेष्ठ संकल्पों की सैर अपने मन और बुद्धि को करवाएंगे आज...

 

 ➳ _ ➳  मैं आत्मा अपने परम प्यारे पित्ता की अविनाशी निर्विकारी संतान हूँ... मैं अपने प्यारे ईश्वर की शान में अपने को स्तिथ कर, अपना हर कर्म शानदार बनाने वाली भाग्यशाली आत्मा हूँ...

 

_ ➳  मुझ आत्मा ने अपनी बुद्धि द्वारा बाप को जानकार, उस बुद्धि को बाप को समर्पित कर दिया है और सर्व परेशानियों से मुक्त होकर अपने सारे बोझ एक बाप को देने वाली बाबा की दिलतख्तनशीन संतान बन हूँ...

 

_ ➳  मीठे बाबा, मैं सदा इसी शान में खुदको भाग्यशाली मानती हूँ कि मैं आपकी नुरे रतन आत्मा हूँ... अब मेरी नज़रों व नयनों में और कोई चीज़ समा नहीं सकती... मेरी सर्व परेशानियां आपकी नुरे रत्न बनकर समाप्त हो गयीं हैं...

 

_ ➳  अब मुझ आत्मा का जीवन खुशियों से और सन्तुष्टता से भर चुका है... कोई भी कंप्लेन नहीं रह गयी है बाबा...

 

_ ➳  मैं आज यह दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मैं आपके द्वारा वरदान में दी गयी मुझ आत्मा को स्वच्छ बुद्धि और सच्चे दिलसे सर्व ख़ज़ानों को अर्थात ज्ञान का खज़ाना, श्रेष्ठ समय का खज़ाना जमा करना वा स्थूल ख़ज़ाने कोसम्पन्न करुँगी अर्थात एक से लाख गुणा जमा करुँगी... इन्हीं संकल्पों के साथ मैं आत्मा यह अनुभव कर रही हूँ कि शुद्ध बुद्धि को समर्पण करके मेरी बुद्धि दिव्य बन गयी है ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - आत्माअभिमानी भव, चलते फिरते, उठते बैठते, यही अभ्यास करो तो तुम्हारी बहुत उन्नति होती रहेगी"

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे अब शरीर के भान से निकल आत्मा के भान में आओ... निरन्तर यह पाठ पक्का कर सुंदर स्तिथि को बनाओ... उन्नति का सारा मदार इसी पर टिका है... हर पल हर क्षण यही धुन लगी रहे...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे आत्म अभिमानी अवस्था को मजबूत बनाओ... इसमे ही खो जाओ और इसी नशे में भरे कदम उठाओ... हा साँस में इस अभ्यास को समाओ और सुंदर स्तिथि के जादू से खुद को महकाओ...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे ईश्वर पिता ने धरती पर उतर कर जो खूबसूरत सा स्व का परिचय बताया उसे हर पल जिओ उसमे ही डूब जाओ... उसी नशे में डूबे रहो अपनी स्मर्तियो में इस भान को हर पल ताजा करो और खुशियो भरा आलम पाओ...

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चे आत्मा के भान पर ही सारी जादूगरी टिकी है शरीर के भान में आकर तो सारे गुण शक्तिया खो चले... अब आत्मानुभूतियो में डूबकर ऊचाइयों को पाओ... हर लम्हा इस अभ्यास से भर चलो...

 

 ❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चे.सिर्फ और सिर्फ आत्मा के अभ्यास को याद करो अपने इस स्वरूप में रहकर हर कार्य को अंजाम दो... यह स्व का सिमरन कमाल दिखायेगा... आपकी अवस्था को आनन्द की चरमसीमा पर पहुंचाएगा...

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ स्वदर्शन चक्रधारी बन 84 का चक्र बुद्धि में फिराते रहना है । बेहद बाप को याद कर बेहद का वर्सा लेना है, पावन बनना है ।

 

 ❉   सदा ये याद रखना है कि मैं कौन हूँ  ? ये शरीर नहीं हूँ देही हूँ व इस देह को चलाने वाली चैतन्य शक्ति हूँ । जब अपने को आत्मा समझते है तो दूसरे की तरफ़ दृष्टि शुद्ध रहती है । आत्म-अभिमानी बन 84 के चक्र को याद रखना है ।

 

 मैं कौन व मेरा कौन ये सदा याद रखना है । अपने को आत्मा समझ बाप को याद रखना है । कैसे कैसे 84 जन्म लिए याद रखना है । 84 के चक्र को याद रखने से चक्रधारी राजा बन जायेंगे ।

 

 ❉   बाप ने हमें ज्ञान का तीसरा नेत्र दिया है व सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान दिया है कि हम पहले सतोप्रधान थे व नीचे आते आते तमोप्रधान हो गये व फिर इस संगमयुग पर बाप को याद करके फिर सतोप्रधान बन रहे हैं । बेहद के बाप को याद कर बेहद का वर्सा लेना है ।

 

 ❉   हम ब्राह्मण आत्मायें स्वदर्शन चक्रधारी बन 84 का चक्र फिराते सेकंड में जीवन मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि बेहद बाप के बच्चे बनना और वर्से का अधिकारी बनना ही जीवनमुक्ति  है ।

 

 ❉   84 का चक्र फिराने से हमें याद रहता है कि हम ही पहले देवी देवता थे व फिर क्षत्रिय , वैश्य व शूद्र बन गए । बाप हमें पढ़ाकर फिर से पतित से पावन बना रहे हैं व फिर से देवी देवता बना रहे हैं । एक बाप की याद से ही विकर्म विनाश करने है व पावन बनना है ।

 

  ❉   हद के बाप से हद का वर्सा मिलता है जिससे अल्पकाल का सुख मिलता है व बेहद के बाप को याद कर बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेना है । बेहद के बाप से 21 जन्मों के लिए स्वर्ग की बादशाही मिलती है । इसके लिए इस अंतिम जन्म में पावन जरुर बनना है ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ समर्पणता द्वारा बुद्धि को स्वच्छ बनाने वाले सर्व खजानों से सम्पन्न होते हैं.... क्यों और कैसे ?

 

  ❉   इस मर्यादा पुरुषोत्तम संगमयुग पर देह के झूठे मान शान को जान कर की ये सब कब्रदाखिल होने है, विनाशी हैं  व सच्चा साथी सिर्फ व सिर्फ बाबा है तो सब पुराना बाबा को समर्पण कर हल्के हो बुद्धि को स्वच्छ बनाते हैं व अपना कनेक्शन बाप से जोड़ते हैं तो बाप की सर्वशक्तियों व गुणों के अधिकारी बन सर्व खजानों से सम्पन्न होते हैं ।

 

  ❉    बाबा ही ऐसा सौदागर है जो कहता है कि सारा पुराना मुझे अर्पण कर दो व नया ले लो तो जो बच्चे अपना पुराने स्वभाव संस्कार सब बाप को समर्पण करते हैं व बुधि की लाइन क्लीन व क्लीयर रखते हैं  तभी बाबा की याद ठहरती है व सर्व खजानों से सम्पन्न होते हैं ।

 

  ❉   सर्व खजानों से सम्पन्न बनने का आधार है स्वच्छ बुद्धि और सच्ची दिल । जो बच्चे सरल स्वभाव के होते है व बुद्धियोग बस एक बाप से जुड़ा रहता है ।  दिल में हमेशा  सच्चाई सफाई होती है तो बाप भी ऐसे बच्चों पर राजी होते हैं व दिल पर राज करा सर्वगुण सर्व खजानों से सम्पन्न बनाते है ।

 

  ❉   भक्ति में तो अभी तक गाते आए कि तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा तो अब तो सच में भगवान मिले हैं तो जो बच्चे अब अपना तन मन धन सब बाप को समर्पण कर निश्चिंत बेफिकर रहते हैं व किसी प्रकार का बोझ अपने पास नही रखते , सब बोझ बाप को दे हल्के रहते हैं । बाप को यथार्थ जानकर बुद्धि को स्वच्छ रखते हैं वो सर्व खजानों से सम्पन्न होते हैं ।

 

  ❉   जो सर्व खजानों सम्पन्न होते हैं वो बच्चे हर कर्म , बोल, संकल्प , हर सेवा बाप को साथ रख करते हैं व अपने को निमित्त समझ करते हैं व करने से पहले उससे प्राप्त होने वाले फल को भी बाप के प्रति समर्पित करते हैं । मैं पन से परे रह अपनी बुद्धि को स्वच्छ रखते हैं ।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ " एक बाप दूसरा ना कोई " इस विधि द्वारा सदा वृद्धि को प्राप्त करते रहो... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   जैसे लोग जादू की रिंग या जादू की कोई चीज़ अपने साथ रखते हैं, वैसे  ' बाबा शब्द को सदा जब अपने साथ रखेंगे तो कभी भी किसी भी कार्य में कोई भी मुश्किल नहीं आयेगी । अगर कोई बात हो भी जाएगी तो बाबा शब्द याद करने और कराने से सहज ही निर्विघ्न हो जायेंगे । बाबा - बाबा का महामन्त्र सदा स्मृति में रखेंगें तो सदा स्वयं को बाप की छत्रछाया के नीचे अनुभव करेंगे और एक बाप दूसरा ना कोई इस विधि द्वारा सदा वृद्धि को प्राप्त करते रहेंगे ।

 

 ❉   एक बाप दूसरा ना कोई इस विधि द्वारा सदा वृद्धि को तभी प्राप्त कर सकेंगे जब हर संकल्प और हर बात से न्यारे होते जायेगे । बाबा की शिक्षाएं हमारा स्वरूप बन जायेंगी और अंश मात्र भी पुराने स्वभाव - संस्कारों का प्रभाव चित पर दिखाई नही देगा । मन बुद्धि की तार निरन्तर बाबा के साथ जुडी रहेगी और बाप की लग्न में ऐसे मगन हो जायेगे कि हमारे चेहरे और चलन से बाप का चरित्र प्रत्यक्ष होगा ।

 

 ❉   जो वायदा है कि साथ रहेंगे, साथ चलेंगे और साथ में राज्य करेंगे - इस वायदे को तभी निभा सकेंगे जब साथी के समान बनेंगे और समानता आयेगी समर्पणता से । जब सब कुछ समर्पण कर दिया तो अपना वा अन्य का अधिकार समाप्त हो जाता है । जब तक किसी का भी अधिकार है तो सर्व समर्पण में कमी है इसलिए समान नहीं बन सकते और जब तक समान नही बनते वृद्धि को नही पा सकते । इसलिए जब एक बाप दूसरा ना कोई इस विधि को बुद्धि में धारण कर बाप समान बनेगे तो वृद्धि स्वत: होती जायेगी ।

 

 ❉   एक बाप दूसरा ना कोई इस विधि द्वारा सदा वृद्धि को तभी प्राप्त कर सकेंगे । जब बाप और सेवा को अपना संसार बना लेंगे । बाप की याद और सेवा के सिवाय जब और कुछ नजर नही आएगा । जब हर संकल्प सेवा प्रति होगा और बुद्धि सेवा की नई नई युक्तियां खोजने में व्यस्त रहेगी । सेवा में तन - मन - धन और जन सब कुछ समर्पित कर जब सर्व प्राप्तियों का अनुभव केवल एक बाप से करेंगे तब अपने हर संकल्प और कर्म से सर्व आत्माओं को बाप के स्नेह का अनुभव करवा कर वृद्धि को पा सकेंगे ।

 

 ❉   जहाँ बाप साथ है, वहाँ कोई कुछ भी नहीं कर सकता । अगर कोई थोड़ा शोर करते हैं तो भी धीरे-धीरे ठण्डे हो जायेंगे । जैसे दीपावली पर मच्छर निकलते हैं और समाप्त हो जाते हैं । इस प्रकार सागर के बच्चे हम मास्टर सागर सारे विश्व को सच्चा आर्य बनाने वाले हैं तो भल कोई कितने भी तूफान लाने की कोशिश करे लेकिन एक बाबा शब्द की स्मृति से सभी तूफान स्वत: ही समाप्त हो जायेंगे और एक बाप दूसरा ना कोई इस विधि द्वारा सदा वृद्धि को पाते रहेंगे ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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