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 19 / 08 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ मुख में मुलहरा डाल ×क्रोध× ख़तम किया ?

 

➢➢ दुःखधाम को भूल नयी दुनिया को याद किया ?

 

➢➢ बाप से जो पवित्र रहने की प्रतिज्ञा की है, उस पर पक्का रहे ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ फरमान की पालना द्वारा सर्व अरमानो को ख़तम किया ?

 

➢➢ अपनी सूक्षम कमजोरियों का चिंतन कर उन्हें मिटाने का पुरुषार्थ किया ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢  योधे न बन दिलतखतनशीन बनकर रहे ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - याद में रहने से अच्छी दशा बैठती है, अभी तुम्हारे ऊपर बृहस्पति की दशा है इसलिए तुम्हारी चढ़ती कला है"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता की यादे ही सारे सुखो का आधार है... ये यादे विकारो की काली छाया से मुक्त करा...सुनहरे सुखो में पहुंचाकर सतयुगी स्वरूप में स्थापित करने की जादूगरी है... ईश्वर पिता के साथ का हर पल चढ़ती कला है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा आपकी मीठी यादो में अपने सुखदायी स्वरूप को पाती जा रही हूँ... विकारो के ग्रहण से मुक्त हो... सुखो के बृहस्पति को बाँहों में भर चली हूँ...और ईश्वरीय पिता की यादो में खो चली हूँ...

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... मीठे बाबा के प्यार में जीने से सारी बुरी दशाये खूबसूरत हो जाती है... सुखो का सुंदर संसार आपके दामन में सज जाता है... इस समय मीठे पिता के साये में गुणो और शक्तियो से सजकर बृहस्पति की दशा को पाते हो...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपके प्यार में निखरती जा रही हूँ... सुनहरी रंगत को पाती जा रही हूँ... और सुख भरे संसार को अपने नाम कर रही हूँ... प्यारे बाबा आपकी यादो में चढ़ती कला को पा रही हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देह के सम्बन्धो से निकल अब ईश्वरीय यादो में खो जाओ... ईश्वरीय यादो में सच्चा सुख है... यही यादे अविनाशी है और सुन्दरतम जीवन का सच्चा आधार है... इस समय ईश्वर पिता के साथ और साये में बृहस्पति की सुन्दरतम दशा है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो में अथाह सुख पाती जा रही हूँ... खुशनुमा जीवन की अधिकारी बनती जा रही हूँ... हर पल ईश्वरीय याद से चढ़ती कला में जा रही हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - याद में रह क्रोध को समाप्त करना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा शांतिधाम की रहने वाली शांत स्वरुप आत्मा हूं... जहां मैं अनादि स्वरुप में रह शांत और शीतल रहती थी... निर्संकल्प अवस्था में अशरीरी अवस्था में आदि स्वरुप में आ गई... यहां भी शांत और शीतल... जन्म लेते लेते देहभान में आती गई... अपनी इस एक भूल से अनेकों भूलें करती गई... विकारों में गिरती चली गई... स्वयं परमपिता परमात्मा शिव बाबा ने ही आकर अपने बच्चे को ढ़ूंढ़ निकाला... अपनी प्यारी गोद में बिठाकर सच्चा सच्चा ज्ञान दिया... प्यारे बाबा ने ही असली स्वरुप की पहचान दी व मुझ आत्मा को सच्चे पिता का परिचय दिया... मैं आत्मा अब भक्ति के संस्कार भूला चुकी हूं... मुंह से ऊंच स्वर में कोई मंत्र जाप नही करती ह़ू... मुझ आत्मा को जादुई चाबी 'मेरा बाबा' मिल गई है... जादुई मंत्र भी मिल गया है *मनमनाभव*... मैं आत्मा प्यारे बाबा की याद में रह अपने विकारों को भस्म करती हूं... मैं श्वासो श्वांस दिल से बस एक प्यारे बाबा की याद में रहती हूं... मैं आत्मा क्रोध रुपी भूत को छोड़ चुकी हूं... मीठे बाबा की याद में रहने से मैं आत्मा मीठी बन गई हूं... मैं आत्मा ड्रामा के राज को जान गई हूं... हर आत्मा का एक्यूरेट पार्ट है... मैं सर्व के साथ प्रेम से रहती हूं... सर्व के प्रति आत्मिक भाव रखती हूं...

 

❉   "ड्रिल - दुःखधाम को भूल सुखधाम की याद में रहना"

 

➳ _ ➳  पुरानी दुनिया तमोप्रधान है... हर चीज अपनी अति पर है... दुःखों से भरी हुई है... इस दुनिया में दुःखों ने अपना भंयकर रुप ले लिया है... पुरानी दुनिया पतित हो गई है... बस ये सब एक ही भूल से हुआ है... अपने असली स्वरुप को भूल देहभान में आ गए... देहधारियों से निभाते निभाते दुःखी ही हुए... जब अति हो गई तो परमपिता परमात्मा शिव बाबा को अपने बच्चों को दुख से निकालने के लिए इस पतित दुनिया में आना पड़ा... प्यारे शिव बाबा ने ब्रह्मा बाबा के तन का आधार लेकर अपने बच्चों को एडाप्ट किया... प्यारे बाबा ही अपने बच्चों को सच्चा सच्चा गीता सुनाते है... मैं आत्मा जान गई हूं... ये पुरानी दुनिया विनाशी है... देह व देह के सर्व सम्बंध विनाशी है... ये पुरानी दुनिया आग का भंभोर है जो जलकर राख हो जानी है... सब कब्रदाखिल होना है... इसलिए मैं आत्मा इस दुखधाम को भूल गई हूं... मेरे प्यारे बाबा मुझ आत्मा को रोज सुप्रीम शिक्षक बन पढ़ाते है... पतित से पावन बनाते है... मुझ आत्मा को मनुष्य से देवता बनाने के लिए पढ़ाने आते है... मैं आत्मा पुरानी दुःखधाम दुनिया को भुलाकर सुखधाम की याद में रहती हूं... नयी दुनिया में जाने के लिए मैं आत्मा एक बाप की याद में रह विकर्मों का विनाश करती हूं... याद में रहने से आत्मा पर लगी कट उतरती जाती है... मैं आत्मा मनसा वाचा कर्मणा पवित्रता धारण करती हूं... मैं आत्मा दृढ़ संकल्प करती हूं कि मैं आत्मा सम्पूर्ण पवित्रता धारण करुंगी... मैं आत्मा प्यारे बाबा से की प्रतिज्ञा को जरुर पूरा करुंगी...

 

❉  "ड्रिल - स्वचिंतन करना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा भृकुटि सिंहासन पर विराजमान चमकती मणि हूं... मैं आत्मा अजर, अमर, अविनाशी हूं... मुझ आत्मा को स्व की पहचान मिल गई है... मैं आत्मा जान गई हूं... कि मैं कौन व मेरा कौन... मैं आत्मा जान गई हूं कि मुझे अपनी आत्मिक स्मृति में रहकर अपने पुराने स्वभाव संस्कारों को मिटाना है... अपनी कमी कमजोरियों को एक प्यारे बाबा को दे देनी है... मेरे प्यारे बाबा ही सौदागर है जो पुरानी चीज लेकर नया देते हैं... अब मैं आत्मा इस संगमयुग पर प्यारे मीठे बाबा का संग पाकर  बस बाबा की याद में रहती हूं... मैं आत्मा दूसरों की कमी कमजोरी न देख बस अपनी ही कमी कमजोरियों का चिंतन करती हूं... मुझ आत्मा की क्या स्थिति है... मुझ आत्मा के क्या कर्तव्य है... मैं आत्मा किस प्रकार पुरुषार्थ कर आगे बढ़ूं... स्व उन्नति पर ही अटेंशन देती हूं... मैं आत्मा स्व कि चेकिंग कर सूक्ष्म से सूक्ष्म चेकिंग करती हूं... मैं आत्मा याद का बल भर मास्टर सर्वशक्तिमान की सीट पर बैठ अपनी कमजोरियों को दूर करती हूं... मैं आत्मा सब में विशेषता देख अपनी अंदर विशेषताओं को धारण करती हूं... इससे मुझ आत्मा की कमजोरियां स्वतः समाप्त होती हैं...बाह्यमुखता से परे होकर मैं आत्मा अपने अन्तर्मन में झांक अपनी कमी कमजोरियों को मिटाने के लिए बाबा की याद में रहती हूं व स्व चिंतन करती हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं माया प्रूफ आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा पारलौकिक परमपिता परमात्मा शिव की गोद में पलने वाला बच्चा हूँ... बाप का वारिस बच्चा हूँ... मैं आत्मा हाईएस्ट और होलीएस्ट हूँ... बाप के लव में लवलीनमूर्त हूँ... मैं आत्मा ईश्वरीय नियम सयंम कायदे कानून श्रीमत का ध्यान देते सर्व को सुख देने और सर्व से सुख लेने वाला प्रीत बुद्धि सर्विसएबुल सपूत बच्चा हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा ब्राह्मण कुल का सम्पूर्ण श्रीमत वाला रिस्पान्सिबुल ब्राहमण कुल भूषण हूँ... मैं आत्मा अमृतवेले से लेकर रात तक दिनचर्या में जो भी फरमान मिले हैं, उसी प्रमानानुसार श्रेष्ठ महान वरदानी संकल्प, वृत्ति, दृष्टि, सम्बन्ध, स्मृति, बोल, कर्म और सर्विस करने वाला स्वदर्शन चक्रधारी ब्रह्मा मुखवंशावली ब्राह्मण हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं ब्राह्मण आत्मा बाप का प्यारा प्रिय आज्ञाकारी हर संकल्प में, हर कदम में फरमान को पालन करने वाला फरमानबरदार बच्चा हूँ... मैं ब्राह्मण आत्मा दुनिया के सब अरमानों से उपराम होंने का अनुभव करने वाली आत्मा हूँ...

 

➳ _ ➳  मुझ आत्मा में पुरषार्थ का वा सफलता का अरमान संकल्प मात्र में भी नहीं है... मैं आत्मा सदा फरमान का पालन कर... हर अरमान को खत्म कर... हर परिस्थिति में... हर उलझन में सदा मायाप्रुफ रहने वाली आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  फरमान की पालना द्वारा सर्व अरमानों को खत्म करने वाले माया प्रूफ होते हैं...  क्यों और कैसे?

 

❉   फरमान की पालना द्वारा सर्व अरमानों को खत्म करने वाले माया प्रूफ होते हैं क्योंकि अमृतवेले से लेकर रात्रि तक दिनचर्या में जो भी फरमान मिले हुए हैं, उसी प्रमाण अपनी वृत्ति, दृस्टि, संकल्प, स्मृति, सर्विस और सम्बन्ध को चेक करना है।

 

❉   जो बच्चे हर संकल्प हर कदम फरमान का पालन करते हैं उनके सब अरमान समाप्त हो जाते हैं। क्योंकि वे स्वयं ही परमात्मा की रज़ा में राजी रहना सीख जाते हैं। उनकी अपनी खुद की कोई इच्छा नहीं होती है।

 

❉   अगर अंदर में पुरुषार्थ का वा सफलता का अरमान भी रह जाता है तो जरूर कहाँ न कहाँ कोई न कोई फरमान पालन नहीं हो रहा है। इसलिये पहले इस इच्छा को भी समाप्त करना है। इसके लिये स्वयं की चेकिंग करनी आवश्यक है कि कौन से फरमान का पालन नहीं हो पा रहा है।

 

❉   कहते हैं न...  इच्छा मात्रम अविद्या। हमारे मन में तनिक भी किसी बात की इच्छा या कामना नहीं रहनी चाहिये। अगर किसी भी बात की इच्छा मन में शेष रहती है, तो!  इच्छा हमें अच्छा बनने नहीं देगी। इसलिये अपने मन को सबसे पहले कामना रहित बनाना है।

 

❉   तभी तो ये बात कही गई है कि फरमान की पालना द्वारा सर्व अरमानों को समाप्त करने वाले माया प्रूफ होते हैं। जैसे जैसे हम आत्मायें फरमानों का पालन स्वतः ही करने लगती हैं तो मन से हद के अरमान आपने आप ही समाप्त हो जाते हैं। इसलिये जब भी कोई उलझन आये तो चारों ओर से चेक करना है। इससे हम माया प्रूफ स्वतः ही बन जायेंगे।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  अपनी सूक्ष्म कमजोरियों का चिंतन करके उन्हें मिटा देना - यही स्वचिंतन है... क्यों और कैसे ?

 

❉   जो परचिंतन और परदर्शन में समय व्यर्थ गंवाने के बजाए सर्व के प्रति शुभ चिंतक वृति रखते हैं वही स्वचिंतन करके अपनी सूक्ष्म कमजोरियों को भी जान सकते हैं । क्योकि स्वचिंतन से ही सेल्फ रियलाइजेशन की पॉवर बढ़ती हैं और जितना स्वयं को रियलाइज करने की योग्यता हमारे अंदर आती जाती है उतना अपने अंदर छुपी सूक्ष्म कमजोरियों को पहचानना और उन्हें दृढ़ता से मिटाना सहज हो जाता है ।

 

❉   अपनी सूक्ष्म कमजोरियों का चिंतन करके  उन्हें मिटाने का प्रयास वही कर सकते हैं जिन्हें बस एक ही फुरना रहता है कि मुझे बाप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनना ही है और सम्पन्न तथा सम्पूर्ण स्थिति को पाने का मुख्य आधार है ही अपनी सूक्ष्म चेकिंग कर कमजोरियों को जानना तथा दृढ़ता के साथ उन कमजोरियों को मिटाने की प्रतिज्ञा कर, हर कदम श्रीमत प्रमाण उठाते हुए, फॉलो फादर करते हुए अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को श्रेष्ठ बनाना ।

 

❉   जैसे ब्रह्मा बाप का मुख्य स्लोगन था " जो कर्म मैं करूँगा मुझे देख सब करेंगे " इस बात को सदैव स्मृति में रखते हुए बाबा ने अपने हर कर्म को श्रेष्ठ बनाया और सम्पूर्णता को प्राप्त कर लिया । ब्रह्मा बाप समान जो सदा इस बात को अपनी बुद्धि में धारण कर लेते हैं वे अपने हर कर्म पर विशेष अटेंशन देते हैं । इसलिए दूसरों के अवगुणों का चिंतन करने के बजाए वे स्वचिंतक बन अपने अंदर छुपी सूक्ष्म कमजोरियों को पहचान कर उन्हें मिटाने के प्रयास में लग जाते हैं ।

 

❉   संस्कारों की कमजोरी भी एक प्रकार की सूक्ष्म कमजोरी है जो मन बुद्धि को कमजोर कर देती है जिससे व्यक्ति सही समय पर सही निर्णय लेने में स्वयं को असमर्थ और शक्तिहीन अनुभव करता है । पुराने स्वभाव, संस्कारों रूपी सूक्ष्म कमजोरियां आत्मा को विकर्मो की ओर प्रवृत कर देती हैं । इन सूक्ष्म कमजोरियों से बचने का सहज उपाय है स्वचिंतन । जो स्वयं को स्वचिंतन में बिज़ी कर लेते हैं वे अपनी सूक्ष्म कमजोरियों का चिंतन करके उन पर सहज ही विजय प्राप्त कर लेते हैं ।

 

❉   सूक्ष्म कमजोरियां एक प्रकार से माया का रॉयल रूप हैं जो मन बुद्धि पर अटैक करती हैं और बुद्धि का योग बाप से तुड़वा देती हैं । बाप से किनारा होते ही माया व्यर्थ चिंतन के रूप में प्रवेश कर जाती है । किन्तु जो मन बुद्धि को सभी बातों से हटा कर स्वचिंतन में लगाये रखते हैं वे व्यर्थ से भी बचे रहते हैं और उनकी बुद्धि का योग भी बाप से जुटा रहता हैं । इसके अतिरिक्त स्व चिंतन आत्मा को बलशाली बनाता है जिससे आत्मा सहज ही अपनी कमजोरियों को पहचान कर उन्हें दूर करने के प्रयास में लग जाती है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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