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 24 / 08 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ याद का अभ्यास बड़ा अपनी अवस्था को अचल अडोल बनाया ?

 

➢➢ "यह ड्रामा बिलकुल एक्यूरेट बना हुआ है" - यह स्मृति में रख किसी से ×नाराज़× तो नहीं हुए ?

 

➢➢ निश्चयबुधी बनकर रहे ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ स्नेही बनने के गुह्य रहस्य को समझ सर्व को राजी किया ?

 

➢➢ निमित भाव से जिम्मेवारी संभालते हुए सदा हलके रहे ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢  बुधी को बिजी रख निर्विघन अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - बापदादा की भी वन्डरफुल कहानी है बाप इस दादा में प्रवेश करे तब तुम ब्रह्माकुमार कुमारी वर्से के अधिकारी बनो"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता अपने निश्चित समय पर निश्चित तन में इस धरा पर उतरते है... जब विश्व पिता धरती पर आते है तब ब्रह्मा वत्स बन पाते हो और वर्से के अधिकारी हो जाते हो... यह भी वन्डर है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा भला आपको कैसे जानू पहचानु... आप स्वयं जब अपना परिचय देते है तब मुझे मेरा भी परिचय मिलता है.. मीठे बाबा आपने ही मुझे bk बनाकर वर्से का अधिकार दिया है...

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... आप बच्चों ने कितना पुकारा पर विश्व पिता ड्रामानुसार समय पर मुकरर तन में ही प्रवेश हुआ... पिता ही आकर बच्चों को चुनता है कितनी अनोखी यह बापदादा की कहानी है... उसके बच्चे बने बगैर वर्सा तो मिल ही न सके...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... आपने इस धरा पर आकर मेरा खूबसूरत भाग्य बनाया... आपने मुझे चुनकर ब्रह्मा वत्स बनाया तब ही मेने वर्से का अधिकार पाया... सब कुछ आपने ही किया मेरे मीठे बाबा...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जब परमधाम से उतरकर इस विश्व रंगमंच पर आते हो... सब कुछ भूल कर देह में खो जाते हो...फिर पिता खोजता हुआ आता है और ब्रह्मा तन में आकर उन्ही खूबसूरत यादो से भर देता है... तो फिर से अधिकारी बन सज जाते हो...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा स्वयं को आप पिता को अपने सुन्दरतम स्वरूप सब को भूल बेठी... आपने परमधाम से आकर मुझे सुजाग किया है... इस देह में खूबसूरत मणि हूँ और स्वर्ग मेरा अधिकार यह ब्रह्मा तन में बेठ आपने मुझे बताया है...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - अचल अडोल स्थिति का अनुभव करना"

 

➳ _ ➳   मैं अविनाशी पिता परमात्मा शिव की अजर, अमर संतान निराकारी आत्मा हूं... इस कल्याणकारी पुरुषोत्तम संगमयुग पर पःयारे बाबा ही मेरा संसार हैं... मुझ आत्मा के सर्व सम्बंध बस बाबा से ही है... वही मेरे सच्चे माता पिता, सखा, बंधु, साथी, सदगुरु, शिक्षक हैं... मेरे परमपिता , मैं जन्म-जन्मांतर से आपसे बिछुड़कर इस विषय सागर में भटक रही थी... आपने मुझे ढ़ूढ़कर अपना बनाया... मुझे सर्व सम्बंधों से अपनाकर अविनाशी खुशी प्रदान कर दी... अब मैं आत्मा जान गई हूं कि ये स्वार्थ भरी विनाशी झूठी दुनिया है... स्वार्थ से भरे दैहिक रिश्ते नातो से मेरा कोई लगाव नही है... अपने को आत्मा समझ परमात्मा शिव बाबा की याद में रहती हूं... मैं आत्मा संगमयुग के समय के महत्व को जान गई हूं... इस संगमयुग पर एक अविनाशी पिता की याद में रह मैं आत्मा जन्मों के किए विकर्मों को भस्म करती हूं... याद के बल से ही मैं आत्मा शक्तिशाली बनती हूं... एक प्यारे बाबा की याद ही मुझ आत्मा की अविनाशी कमाई है... मैं आत्मा श्वांसो श्वांस एक बाप की याद में रह अपना जीवन करती हूं... बस बाबा ही मुझ आत्मा का संसार है... मैं आत्मा उठते बैठते चलते फिरते खाते पीते बाप संग ही रहती हूं... याद के बल से मैं आत्मा पहाड़ जैसी परिस्थिति को रुई समान हल्का बना देती हूं... कोई भी परिस्थिति आने पर प्यारे बाबा का हाथ व साथ होने से मुझ आत्मा की स्थिति एकरस रहती है.. मैं आत्मा बस प्यारे बाबा की याद में रह समीपता का अनुभव करते अचल अडोल स्थिति का अनुभव करती हूं...

 

❉   "ड्रिल - ड्रामा पर निश्चय कर निश्चयबुद्धि बनना"

 

➳ _ ➳  मैं अज्ञानता के कारण देहभान में रह झूठी मान शान के पीछे भागती रही... भविष्य की चिंता करती रही... यही सोचती रही कि मेरे बिना ये सब कैसे होगा... क्यूं, क्या, क्यों और कैसे में उलझती रही... प्यारे पिता शिव बाबा ने अपनी बच्ची को इतना दुखी व पतित देख ढ़ूंढ निकाला... अपना बच्चा बनाया... प्यारे झबाबा को अपने बच्चों को सम्भालने के लिए इस पतित दुनिया में आना पड़ा... क्यूंकि प्यारे बाबा भी ड्रामा में बंधायमान है... इस संगमयुग पर ही आकर प्यारे शिव ने तीनों बिंदुओं का ज्ञान दिया... मैं आत्मा तीनों बिंदुओं का सुबह ही तिलक लगाती हूं... मैं आत्मा बिंदु, बाबा बिंदु और ड्रामा बिंदु सदा स्मृति में रखती हूं... मैं आत्मा ड्रामा के राज को जान गई हूं...  हर आत्मा का अपना एक्यूरेट पार्ट है... जो कल्प पहले हुआ हुबहू रिपीट हो रहा है... मैं आत्मा कर्मो की गति के गुह्य राज को समझ गई हूं... मुझ आत्मा के द्वारा किया ही मेरे सामने आ रहा है... मैं आत्मा किसी के पार्ट को देख नाराज नही होती हूं... सबके प्रति साक्षी भाव रखती हूं... मैं आत्मा जान गई हूं कि जो हो रहा है वो बिल्कुल सही हो रहा है... जो होगा वो भी अच्छा ही होगा... मेरे साथ मेरे प्यारे शिव बाबा है... मुझ आत्मा के साथ होने वाली हर बात में कल्याण छिपा है... मैं आत्मा अब क्यूं, क्या, और कैसे में अपना समय नही गंवाती हूं... मैं आत्मा बीती पर जल्दी से फुलस्टाप लगाती हूं... मुझ आत्मा का नथिंग न्यू का पाठ पक्का हो गया है... मैं आत्मा सर्व के प्रति शुभ भाव रखती हूं... मुझ आत्मा को ड्रामा का ज्ञान मिलने से निश्चयबुद्धि हो गई हूं... स्वयं परमपिता परमात्मा मेरे साथ है... साथी है... ड्रामा कल्याणकारी है.... मैं निश्चयबुद्धि निश्चिंत बेफिकर आत्मा हूं...

 

❉   ड्रिल - निमित्त भाव रख हल्केपन की स्थिति का अनुभव करना"

 

➳ _ ➳  मैं कौन हूं...व मेरा कौन है... मेरा साथ कौन निभा रहा है... कौन मुझे चला रहा है... ये सब ज्ञान मिलने के बाद मुझ आत्मा का अज्ञानता का अंधकार मिट गया है... अभी तक तो अपने को.दुनियावी जिम्मेवारी निभाने का ठेकेदार समझती रही... यही झूठे अंहकार में रही कि मेरे बिना तो ये हो नही सकता... सब निभाते हुए कभी सफलता व कभी मेहनत करने के बाद भी असफलता प्राप्त कर सदा बोझ समझ करती रही... ज्ञान का तीसरा नेत्र मिलने के बाद व दिव्य बुद्धि मिलने के बाद अज्ञान निद्रा से जाग रोशनी में आ गई... मैं तो बस शरीर से सेवार्थ करने इस साकारी लोक में आई हूं... अपने हिसाब किताब पूरा करने आअई हूं... ये शरीर तो अमानत है... मैं आत्मा तो बस इस रंगमच पर पार्ट प्ले करने आई हूं... मेहमान हूं... करनकरावनहार बस बाबा है... मैं आत्मा बस निमित्त हूं... मैं आत्मा अपना सब बाबा को सौंप हल्की रहती हूं... जैसे मेरा बाबा मुझे चलावे, खिलावें, बिठावें... उसकी रजा में राजी रहती हूं... मैं आत्मा बस बाबा संग रहती हूं... मैं आत्मा निमित्त भाव रखते अपनी जिम्मेवारी को निभाती हल्की रहती हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं राज़युक्त योगयुक्त आत्मा हूँ ।"

 

 ➳ _ ➳  योगयुक्त स्तिथि में बैठ जाएं और श्रेष्ठ संकल्पों का निर्माण करें... मैं आत्मा अपने सर्वशकिमान बाप की हर श्रीमत का पालन करने वाली सच्ची स्नेही आशिक आत्मा हूँ... मैं सदा एक बाप के स्नेह में लवलीन रहने वाली बाप की अति स्नेही आत्मा हूँ... बाप के मधुर बोल मेरे मन में उठने वाले सभी प्रश्नो को समाप्त कर देते हैं...

 

➳ _ ➳  बाप का असीम स्नेह मुझे हर श्रीमत का पालन करने का प्रोत्साहन देता है... बाप के प्यार की लग्न में मगन हो कर मैं आत्मा उमंग-उत्साह में उड़ती रहती हूँ... दिलाराम बाप के दिल रूपी तख़्त पर विराजमान हो, मैं आत्मा हर बड़ी बात को छोटा बना कर, हर बात से उपराम रहती हूँ...

 

➳ _ ➳  सर्व संबंधो का सुख एक बाप से अनुभव कर मैं आत्मा सर्व सुखों की अधिकारी होने का अनुभव कर रहीं  हूँ... अपने सच्चे साथी के संग में मैं आत्मा सहज ही न्यारेपन का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा स्वतः ही अन्य आत्माओं की  अति स्नेही आत्मा बन गईं हूँ...

 

➳ _ ➳  परमात्मा प्रेम की इस डोर से बंधकर मैं आत्मा सर्व प्राप्तियों से भरपूर हो गयी हूँ... इस गुह्य रहस्य को समझकर मैं आत्मा सदा ही योगयुक्त स्तिथि में स्तिथ रहने लगीं हूँ... स्नेह में लवलीन मैं आत्मा दिव्य गुणों की माला को धारण कर युक्तियुक्त अन्य आत्माओं को भी सहज ही राज़ी करने वाली राज़युक्त युक्तियुक्त आत्मा होने का निरन्तर अनुभव कर रहीं हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  स्नेही बनने के गुह्य रहस्य को समझ सर्व को राजी करने वाले राजयुक्त, योगयुक्त होते हैं... क्यों और कैसे?

 

❉   स्नेही बनने के गुह्य रहस्य को समझ सर्व को राजी करने वाले राजयुक्त, योगयुक्त होते हैं क्योंकि जो बच्चे एक सर्वशक्तिमान बाप के स्नेही बन कर रहते हैं वे सर्व आत्माओं के स्नेही स्वतः ही बन जाते हैं। बाप के स्नेही सो सर्व के स्नेही होते हैं और वे ही योगयुक्त भी होते हैं।

 

❉   इस गुह्य रहस्य को जो समझ लेते हैं वह राजयुक्त, योगयुक्त वा दिव्यगुणों से युक्तियुक्त बन जाते हैं। वे कभी भी दिल शिकस्त नहीं होंगे और सभी आत्माओं से समता के आधार पर चल कर युक्तियुक्त व्यवहार करेंगे। उनके हर कर्म से बाप के स्नेह की झलक दिखाई देती है।

 

❉   ऐसी राजयुक्त आत्मा सर्व आत्माओं को सहज ही राजी कर लेती है। वह किसी को भी दुःखी नहीं देख सकती है इसलिये! वह सर्व से रुहानी स्नेह रखती है। वे आत्मायें दुखहर्ता और सुखकर्ता होती हैं। वे सर्व के कष्टों को हर लेने वाली होती हैं और सर्व की स्नेही स्नेहयुक्त तथा योगयुक्त होती हैं।

 

❉   जो इस राज को नहीं जानते वे कभी अन्य को नाराज़ करते और कभी स्वयं नाराज़ रहते हैं। वे अज्ञानता के आधार पर स्वयं भी दुखी होते और दूसरे को भी दुखी करते। उनका सारा समय व्यर्थ ही कष्टों में बीत जाता है। उन बच्चों का बहुमुखी विकास भी नहीं होता है।

 

❉   इसलिये हमें सदा स्नेही के राज़ को जान राजयुक्त बनना है। तभी तो हमारा सही मायने में संगमयुग का बहुमूल्य समय भी सफल होता है। आज हम खुश रहेंगे तो भविष्य भी हमारा खुशनुमा होगा। तभी तो कहते हैं कि जो बच्चे बाप के स्नेही होते हैं। वो सर्व के स्नेही होते हैं तथा वे सदा के योगयुक्त व युक्तियुक्त बन जाते है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  जो निमित है वह जिम्मेवारी सम्भालते भी सदा हल्के हैं... क्यों और कैसे ?

 

❉   जो सदा निमितपन की स्मृति में रह कर सेवा करते हैं वे जिम्मेवारी सम्भालते भी सदा हल्के रहते हैं क्योकि निमित भाव उन्हें निर्माणचित बनाता है और निर्माणता का गुण  उन्हें हद के सभी आकर्षणों और हद की सभी इच्छाओं से पार ले जाता है । स्वयं को निमित ना समझने से मन बुद्धि हद की सूक्ष्म इच्छाओ और कामनाओं में फंसते है और मन को भारी बनाते हैं किन्तु जो स्वयं को केवल निमित समझ हर जिम्मेवारी सम्भालते हैं वे हर प्रकार के बोझ से बचे रहते हैं और सदा हल्के रहते हैं ।

 

❉   स्वयं को निमित समझने वाले इस बात को सदैव स्मृति में रखते हैं कि यह तन, मन, धन उन्हें सेवा अर्थ मिला है इसलिए यह बाबा की अमानत है और इस अमानत को श्रीमत प्रमाण ही यूज़ करना है । मनमत पर चल इस अमानत में खयानत नही डालनी है । ऐसे स्वयं को ट्रस्टी समझ जो तन, मन, धन को ईश्वरीय सेवा में लगाते हैं वे सहज ही सर्व से न्यारे और बाप के प्यारे बन जाते हैं और कदम - कदम पर बाप की मदद का अनुभव करते हुए वे हर जिम्मेवारी सम्भालते हुए भी हल्के रहते है ।

 

❉   निमितपन की स्मृति समर्पण भाव उतपन्न करती है इसलिए जो स्वयं को निमित समझ हर कर्म करते हैं वे सम्पूर्ण समर्पण भाव से सब कुछ बाबा को समर्पित कर देते हैं । अपनी सभी जिम्मेवारियों का बोझ बाप को दे वे स्वयं एकदम हल्के हो जाते हैं । बाप भी उनकी हर जिम्मेवारी अपने कन्धों पर उठा लेते हैं । इसलिए लौकिक व आलौकिक प्रवृति में रहते हुए भी वे स्वयं को निर्बन्धन अनुभव करते हैं और हर बात में सदा इजी रहते हैं तथा हर जिम्मेवारी सम्भालते हुए  सदा हल्के रहते हैं ।

 

❉   ब्रह्मा बाबा ने स्वयं को सदा निमित समझ हर कर्म ऐसे किया जो एक यादगार बन गया । सेवा वा कोई भी कर्म छोड़ा नही लेकिन न्यारे हो कर सेवा की । हर सेवा को निमितपन की स्मृति में रह कर किया और करनकरावनहार बाप की मदद से हर कर्म में सफलता का सहज अनुभव भी किया । ऐसे जो ब्रह्मा बाप समान स्वयं को निमित करनहार समझ हर कर्म करते हैं उन्हें किसी भी कर्म में मुश्किल व थकावट का अनुभव नही होता बल्कि हर जिम्मेवारी सम्भालते हुए भी वे सदा हल्के रहते हैं ।

 

❉   संगमयुग पर स्वयं परमपिता परमात्मा बाप सेवाधारी बन हम बच्चों के पास आते हैं और अपनी छत्रछाया के रूप में हम बच्चों की सेवा करते हैं । किन्तु बाबा की छत्रछाया का अनुभव हमें तभी हो सकता है जब हम स्वयं को निमित समझ बाबा की याद में रह हर कर्म करते हैं । याद में रह हर कर्म करने से कदम - कदम पर बाबा के साथ का अनुभव होता है जो हर प्रकार की मेहनत से मुक्त कर देता है और बाबा की मुहब्बत हर जिम्मेवारी को सम्भालते हुए भी हल्केपन का अनुभव कराती है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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