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❍ 21 / 04 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
‖✓‖ सबसे °बुधी की प्रीत° तोड़ एक बाप से जोड़े रखी ?
‖✓‖ सच्चा सच्चा °रूहानी खिदमतगार° बनकर रहे ?
‖✓‖ अवस्था बहुत °खुशमिजाज़° रही ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
‖✓‖ °ज्ञानी तू आत्मा° बन ज्ञान सागर और ज्ञान में समाये रहे ?
‖✓‖ °अतीन्द्रिय सुख व आनंद° की अनुभूति कर सहजयोगी बनकर रहे ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
‖✓‖ आज बाकी दिनों के मुकाबले एक घंटा अतिरिक्त °योग + मनसा सेवा° की ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं सर्व प्राप्ति स्वरूप आत्मा हूँ ।
✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-
➳ _ ➳ सभी बाहरी बातों से अपना ध्यान हठा कर चलिए चलें रूहानी यात्रा की ओर... देखें अपने आप को... मैं ज्योतिर्बिन्दु आत्मा उड़ती हुई जा रहीं हूँ परमधाम की ओर... आज मेरे परमपिता परमात्मा शिव के सम्मुख मैं दिव्य आत्मा गहन शक्तिओ की अनुभूति कर रहीं हूँ... बाबा की शक्तियां मुझ पर निरंतर बरसती जा रही है... इन शक्तियों से मैं आत्मा असीम शांति और सुख का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा स्वयं को सम्पूर्ण महसूस कर रहीं हूँ... मैं पदमापदम भाग्यशाली आत्मा सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य के नशे और ख़ुशी में रहने वाली हूँ... मैं आत्मा अपने भाग्य की महिमा गा रहीं हूँ आज... मैं ज्ञानी तू आत्मा बन सदा ज्ञान सागर और ज्ञान में समाने वाली सर्व प्राप्ति स्वरुप बन रहीं हूँ... मैं आत्मा इच्छा मात्रम अविद्या की स्टेज अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आज अपने प्यारे बाबा के समक्ष यह दृढ़ संकल्प करती हूँ कि मुझ आत्मा में जो स्वभाव - संस्कार अंश मात्र रह गए हैं मैं उनके अधीन नहीं होऊँगी... मैं आत्मा नाम - मान - शान की झूठी खुशियों में खुश नहीं होऊँगी... मैं क्या, क्यों के क्वेश्चन में चिल्लाने वाली, पुकारने वाली, अंदर बाहर दूसरा रूप रखने वाली आत्मा नहीं बनूँगी... मैं सदा ही ज्ञानी तू आत्मा बनने की सीट पर सेट रहूंगी ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - तुम ईश्वरीय सेलवेशन आर्मी हो,तुन्हे सबको सदगति देनी है सबकी प्रीत एक बाप से जुटानी है"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे बच्चो आप मुझ पिता के मददगार हो और सारे संसार में ईश्वरीय पैगाम दे सबकी जीवन खुशियो से भरनी है... सबकी बिखरी सी यादो का रुख मुझ पिता की ऒर कर सबको सुखी बनाना है...सदगति से सबका दामन सजाना है...
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे लाडलो आप बच्चे किस क़दर भाग्य से भरे हो की परमात्मा के मददगार बने हो...मै ईश्वर पिता भी आपकी मदद बिना जेसे अधूरा हूँ... आप मेरे रूहानी सिपाही बन सबको सदगति का रास्ता दिखाओ और सबको अपने सच्चे पिता की याद दिलाओ
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चों आप ईश्वरीय प्रतिनिधि बन मेरे बिछड़े बच्चों को मेरा सन्देश दे जगाओ... उनके दुखो से थके मन को जरा सुख की राहत पहुँचाओ...पिता अब धरती पे आ पहुंचा है यह सुखदायी बात कानो में डाल आओ
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चों सबके दुखो को रूहानी आर्मी बन दूर करना है... सबके जीवन को फूलो सा महकाना है... खुशियो से खिलाना है... मुझ पिता बिना कोई कर ही न पायेगा... यह खबर सबको दे आओ सारे जहाँ को उज्ज्वल बनाओ...और मेरी यादो में महका आओ
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों मेने आकर आपको ढूंढा...रूहानी सिपाही बन आप मेरे भटके से बच्चों को खोज लाओ... पिता की पुकार उनके दिल पर दस्तक सी सुना आओ... उन्हें मेरे दिल के करीब लाओ...मेरी यादो में भिगो कर सदगति दे आओ...
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ और सबसे बुद्धि की प्रीत तोड़ एक बाप से जोड़नी है और सबकी प्रीत एक बाप से जुड़ाने की सेवा करनी है ।
❉ अपने बच्चों को दुःखी देख बाप से रहा नही गया व इस पतित दुनिया में अपने बच्चों को दुःखों के चुंगल से छुड़ाकर पतित से पावन बनाकर सुख की दुनिया में ले जाने के लिए आया है तो हमें ऐसे सच्चे बाप से ही प्रीत जोड़नी है ।
❉ अभी तक देहधारियों से ही सब सम्बंध निभाते व बुद्धि की प्रीत रखते ये हालत हुई है व सिर्फ दुःख ही पाए हैं । अब संगमयुग पर सत् का संग मिला व सबसे बुद्धि की प्रीत तोड़ बस एक बाप से ही जोड़नी है । सर्व सम्बंध बस बाप से ही निभाने है ।
❉ देह व देह के सम्बंध सब विनाशी है व सब मिट्टी में ही मिल जाने है । इसलिए देहधारियों से कोई मोह नही रखना । इस शरीर से ममत्व निकाल जीते जी मरना है व बस एक अविनाशी बाप को याद करना है ।
❉ गाते भी आए हैं सच्ची प्रीत हमने तुमसे जोड़ी और संग तोड़ी । जैसे मीरा ने एक माशूक के संग जोड़ी । बाप भी हमारा सच्चा-सच्चा माशूक है व हम सब उसके सच्चे आशिक । सच्चा आशिक बन सच्चे माशूक से ही प्रीत जोड़नी है ।
❉ ऊंच ते ऊंच बाप परमपिता परमात्मा है व हम सब आत्माओं का एक ही पिता है सदा शिव । सब की सदगति करने वाला पतित ते पावन बनाने वाला एक बाप ही है । लौकिक बाप से हमें हद का वर्सा मिलता है व पारलौकिक बाप से हमें बेहद का वर्सा मिलता है । ऐसे ऊंच ते ऊंच बाप से सब को प्रीत करनी है जो हमें विश्व की बादशाही देने आया है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ ज्ञानी तू आत्मा बन ज्ञान सागर और ज्ञान में समाने वाले सर्वप्राप्ति सम्पन्न होते हैं... क्यों और कैसे ?
❉ जो ज्ञानी तू आत्मायें है वह सदा ज्ञानसागर और ज्ञान में समाई रहती हैं । उनका हर संकल्प, कर्म, बोल बस ज्ञान सागर बाप के लिए ही होता है व ज्ञान का ही सागर मंथन चलता रहता है । इसलिए वो इच्छा मात्रम् अविद्या होते है और सर्वप्राप्ति सम्पन्न स्वरुप होते हैं ।
❉ ज्ञानी तू आत्मा अंश मात्र भी किसी आत्मा के अधीन नही होती व नाम-मान-शान से परे होते हैं । क्यूं, क्या, कैसे कोई क्वेश्चन नहीं होते व अंदर बाहर सब के प्रति कल्याण की भावना होती है । हमेशा सागर की गहराई में जाकर अनमोल अखूट खजानों से भरपूर रहते है व सबमें अच्छाई ही देखते है । ऐसे ज्ञान सागर व ज्ञान में समाने वाले सर्वप्राप्ति सम्पन्न होते हैं ।
❉ जब ज्ञान सागर बाप ही अपना हो गया व हम उसके बच्चे मास्टर ज्ञान सागर हो गए । तो जो बच्चे अपने अंदर ज्ञानसागर बाप के सर्व खजानों को भरपूर कर स्व के कार्य में व अन्य की सेवा के प्रति यूज करते है तो उतना खजानें बढ़ते जाते है व सर्वप्राप्ति सम्पन्न होतेहै ।
❉ जब ज्ञानसागर बाप ने हमें ज्ञानी तू आत्मा बना दिया व लाइट, माइट और इनसाइट तीनों ही वर्से के रुप में दे दी और बेहद के बाप के वर्से के अधिकारी बन गये । ज्ञान रुपी अनमोल अखूट खजानों देकर नॉलेजफुल बना दिया तो ऐसे बच्चे ज्ञानसागर और ज्ञान में समाने वाले सर्वप्राप्ति सम्पन्न होते हैं ।
❉ ज्ञानी तू आत्मा कोई भी बड़ी से बड़ी परिस्थिति आने पर हलचल में नही आती क्योंकि ज्ञानसागर बाप के प्यार में समाये होने से उन्हें वो खेल समझ पार कर लेते है व ज्ञान सागर में समाए रहने से व सर्वप्राप्ति सम्पन्न होने से सहज ही पार कर लेते हैं ।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ इस जीवन में अतीन्द्रिय सुख व आनंद की अनुभूति करने वाले ही सहजयोगी हैं... क्यों और कैसे ?
❉ आवाज से परे निराकार स्थिति में स्थित रहने का जितना अभ्यास होगा । उतना अतींद्रिय सुख की अनुभूति करते रहेंगे । अभी - अभी निराकारी, अभी-अभी साकारी यह अभ्यास अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करवाता रहेगा । जिससे सहजयोगी बन, हर कर्म करते योग युक्त रहेंगे ।
❉ जैसे बीज में सारा पेड़ समाया हुआ है । वैसे ही मुझ आत्मा में बाप की याद समाई हुई है । ऐसे जब बिंदु रूप हो कर बैठेंगे और बिंदु रूप के अभ्यास को बढ़ाते जाएंगे तो सब रसनायें आती जायेंगी और अतिंद्रीय सुख के झूले में सदैव झूलते हुए सहजयोगी बन सदा रूहानी मस्ती में खोए रहेंगे ।
❉ एक बाप के लव में लवलीन हो जो सदा मगन अवस्था में रहेंगे वे सदैव अतींद्रिय सुख का अनुभव करते रहेंगे और इस अतिंद्रिय सुख की झलक दिव्यता और अलौकिकता के रूप में उनके चेहरे व चलन से सहज ही दिखाई देती रहेगी और बाप की लगन में मगन होकर वे सहजयोगी बन हर कर्म करते रहेंगे ।
❉ जैसे स्थूल वस्तुओं का आधार जब चाहे लेते हैं जब चाहे छोड़ देते हैं । इसी तरह इस देह के भान को छोड़ जब चाहे देहि अभिमानी बन जाए, यह प्रैक्टिस जितनी सरल होगी उतना बंधन मुक्त अवस्था होती जाएगी । जितना बंधन मुक्त होंगे उतना योग युक्त होंगे । और जितना योग युक्त होंगे उतना इंद्रियों के रस से परे अतींद्रिय सुख की अनुभूति करते रहेंगे ।
❉ जैसे अज्ञानता में एक विकार के साथ सर्व विकारों का गहरा संबंध होता है । वैसे ही एक गुण के साथ सर्वगुणों का भी गहरा संबंध है । तो जितना सर्व विशेष गुण हम हर समय अनुभव में लाते रहेंगे उतना अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करते रहेंगे और चलते-फिरते योग युक्त स्थिति में स्थित रहेंगे ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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