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❍ 29 / 09 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ बाप और बाप के कार्य में कोई संशय तो नहीं उठाया ?
➢➢ लोकिक में बहुत युक्ति से विशाल बुधी बनकर रहे ?
➢➢ कोई ऐसे शब्द तो नहीं बोले जो सुनने वाले मूंझ जाएँ ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ अपने हाईएस्ट पोजीशन में स्थित रहकर हर संकल्प, बोल और कर्म किया ?
➢➢ कर्म करते करन-करावनहार बाप की स्मृति रही ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ आज बाकी दिनों के मुकाबले एक घंटा अतिरिक्त °योग + मनसा सेवा° की ?
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/29.09.16-VisheshPurusharth.htm
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/29.09.16-VisheshPurusharth.pdf
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - सत्य बाप सचखण्ड स्थापन करते है, तुम बाप के पास आये हो नर से नारायण बनने की सच्ची सच्ची नालेज सुनने"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे... इस झूठ की दुनिया में झूठ को ही सत्य समझ जीते आये... अब सत्य पिता सचखण्ड की स्थापना करने आये है... अपने सत्य दमकते स्वरूप को भूल साधारण मनुष्य होकर दुखो में लिप्त हो चले बच्चों को... मीठा बाबा नारायण बनाकर विश्व का मालिक बनाने आया है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा भगवान से बैठ सारे सत्य को समझ रही हूँ... कैसे साधारण नर से नारायण बन सकती हूँ... यह गुह्य रहस्य बुद्धि में भर रही... ईश्वर पिता मुझे गोद में बिठा पढ़ा रहा... और मेरा सदा का नारायणी भाग्य जगा रहा है...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... जब सब मनुष्य मात्र झूठ को सत्य समझ जी रहे तो सत्य फिर कौन बताये... सत्य परमात्मा के सिवाय तो भूलो को... फिर कौन राह दिखाये... तो वही सत्य कथा प्यारा बाबा सुना रहा और कांटे हो चले बच्चों को फूलो सा फिर खिला रहा...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा से महान भाग्य प्राप्त कर रही हूँ... सचखण्ड की मालिक बन रही हूँ... मनुष्य से देवताई रूप में दमक रही हूँ... और सुखो की बगिया में खुशियो संग झूल रही हूँ... कितना प्यारा मेरा भाग्य है...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... सच्चा पिता तो सत्य सुखो से भरा सचखण्ड ही बनाये... यह दुःख धाम तो विकारो की माया ही बसाये... पिता तो अपने बच्चों को मीठे महकते सुखो की नगरी में ही बिठाये... सारे विश्व का राज्य बच्चों के कदमो में ले आये और नारायण बनाकर विश्व धरा पर शान से चमकाए... तो वही मीठी सत्य नालेज बाबा बेठ सुना रहा है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सच्चे पिता से सत्य जानकारी लेकर सोने सी निखरती जा रही हूँ... मीठा बाबा मुझे नारायण सा सजा रहा... यह नालेज मै मन बुद्धि में ग्रहण करती जा रही हूँ... और अपने सत्य स्वरूप को जीती जा रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - ज्ञान धारण कर विशाल बुद्धि बन युक्तियुक्त चलना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा भृकुटि के बीचो बीच चमकता सितारा हूं... मैं आत्मा परम पवित्र हूं... मुझ आत्मा की चमक चहुं ओर फैल रही है... जैसे मैं आत्मा बिंदी हूं... ऐसे मुझ आत्मा के परमपिता भी बिंदी है...सुप्रीम बिंदी हैं... हम सब आत्माओं के परमपिता एक ही है - सदाशिव कल्याणकारी... परमपिता परमात्मा तो निराकार है... प्यारे बाबा ब्रह्मा बाबा के साधारण तन का आधार लेकर हम ब्राह्मण बच्चों को पढ़ाने आते हैं... परमपिता परमात्मा जिसके एक क्षण के दर्शन को पाने के लिए दुनिया वाले कहां कहां भटक रहे है... वही स्वयं परमात्मा गुप्त रुप से हमें पढ़ा रहे हैं... ये ज्ञान तो प्यारे बाबा के सिवाय कोई दूसरा दे न सका... हम सब आत्मा आत्मा भाई भाई हैं... एक ही पिता की संतान है... प्यारे शिव बाबा हमें पढ़ाकर पतित से पावन बना रहे है... कौड़ी तुल्य जीवन से हीरे तुल्य बना रहे हैं... हमें पढ़ाकर मनुष्य से देवता बना रहे हैं... 21 जन्मों की बादशाही लायक बना रहे हैं... दुनिया वालों को क्या पता हमें स्वयं भगवान पढ़ाकर ज्ञान रत्नों से भरपूर कर मालामाल बना रहे हैं... रीचेस्ट इन दा वर्ल्ड बना रहे हैं... इस रुहानी ज्ञान को धारण कर विशाल बुद्धि बन रहे हैं... हम आत्मिक रिश्ते से भाई भाई या भाई बहन है... मै आत्मा ज्ञान को धारण कर लौकिक में रहते हुए युक्ति से चलती हूं... मैं आत्मा ज्ञान को समझ स्व पर अटेंशन रखती हूं... कोई बोल व कर्म ऐसा नही करती हूं कि दूसरा उसे सुनकर मूंझ जाए...
❉ "ड्रिल - करन-करावनहार बाप की स्मृति से स्व पुरषार्थ और योग का बेलेंस"
➳ _ ➳ मैं आत्मा एक चमकती हुई दिव्य ज्योति... मैं आत्मा इस शरीर द्वारा कर्म करती हूँ... हर कर्म करते मुझ आत्मा का बुद्धि का तार मेरे प्यारे मीठे शिव बाबा से जुड़ा ही रहता हैं... सदा ये स्मृति रहती की करन-करावनहार तो शिव बाबा ही है... मैं तो बस निमित्त हूँ... हर कर्म करते बाबा की स्मृति से मेरे स्व-पुरषार्थ और योग का बेलेंस बना रहता हैं... मैं आत्मा तो सम्पूर्ण शिव बाबा की हूँ... मेरे मन बुद्धि भी बाबा को समर्पित हैं... मैं आत्मा करनहार हूँ... शिव बाबा करावनहार हूँ... मेरे द्वारा शिवबाबा हर कर्म करवाते हैं... शिव बाबा की स्मृति से साधारण कर्म भी सेवा में परिवर्तन हो जाते है... हर कर्म करते मुझ आत्मा की कमाई होती रहती... मेरा स्व-पुरषार्थ सहज ही हो जाता है...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं सम्पूर्ण निर्विकारी आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳ मैं स्वयं को भृकुटि के मध्य में चमकती हुई ज्योति बिंदु सितारे के रूप में अनुभव कर रही हूँ... मैं विदेही आत्मा स्वयं को अपने निराकारी सम्पूर्ण स्वरूप में देख रही हूँ... शिवबाबा ने मुझ विदेही आत्मा को सातों गुणों से सम्पन्न कर दिया है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने आपको इस सम्पूर्ण स्वरूप में देख रहीं हूँ... अब मैं विदेही आत्मा सूर्य चाँद तारागण से भी पार सूक्ष्म लोक से परे अपने स्वदेश परमधाम में पहुँच गई हूँ... परम प्रिय परमपिता शिव परमात्मा अपने सतरंगी किरणों को मुझ आत्मा पर फैला रहे है...
➳ _ ➳ परम शिक्षक शिवबाबा से निकलती हुई यह किरणें मुझ आत्मा के अंतर्मन को अलौकिक कर रहीं हैं... मुझ आत्मा के अंदर अब संकल्प मात्र में भी बॉडी कॉन्सशियस की अवस्था नहीं रही है... परमात्मा की इन दिव्य किरणों के नीचे खड़े होकर मैं आत्मा आज अपने सारे विकार प्यारे बाबा को अर्पण करती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सम्पूर्ण समर्पण हो सर्वगुण सम्पन्न बनती जा रहीं हूँ... आत्मा के सातों गुण मुझमें फूलों की तरह विराजमान हो रहें हैं... मैं आत्मा सदा श्रेष्ठ संकल्पों का निर्माण करती जा रहीं हूँ... मुझ आत्मा का हर संकल्प वा कर्म ऊंच ते ऊंच बन गया है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा लक्ष्य प्रमाण सभी दैवी लक्षण धारण करती जाती हूँ... मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मुझ आत्मा का काम मेरे नाम के समान ऊँचा हो गया है... मैं आत्मा अपनी हाइएस्ट पोज़िशन में स्तिथ रहकर अपना हर संकल्प, बोल और कर्म करने वाली सम्पूर्ण निर्विकारी आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ अपने हाइएस्ट पोजीशन में स्थित रहकर हर संकल्प, बोल और कर्म करने वाले सम्पूर्ण निर्विकारी होते हैं... क्यों और कैसे?
❉ अपने हाइएस्ट पोजीशन में स्थित रहकर हर संकल्प, बोल और कर्म करने वाले सम्पूर्ण निर्विकारी होते हैं क्योंकि... सम्पूर्ण निर्विकारी अर्थात किसी भी परसेन्टेज में किसी भी विकार की तरफ, उन का आकर्षण नही जाता है। तथा न ही, कभी उन विकारी आकर्षणों के, वे वशीभूत ही होते हैं।
❉ क्योंकि हाइएस्ट पोजीशन वाली आत्मायें कोई भी साधारण संकल्प नहीं कर सकती हैं। उनके संकल्प सदा ही उच्च क़्वालिटी के होते हैं। तभी तो कहते हैं न कि बड़ी सोच का बड़ा जादू। जितनी ऊँच हमारी सोच होगी उतने ही ऊँच हमारे संकल्प भी होंगे।
❉ इसीलिये हाइएस्ट पॉजिशन वाली आत्मायें जब कोई भी संकल्प या कर्म करती हैं तब सदा उनको पहले से ही चेक करती हैं कि... जैसा हमारा ऊँचा नाम हैं वैसा हमारा ऊँचा काम भी है, या नहीं। अगर नहीं है तो पहले अपने संकल्पों को व कर्मों को ऊँचा बनाना है।
❉ उन्हें अपने संकल्पों को व अपने कामों को, नाम के अनुरूप हाइएस्ट पोजीशन में स्थित करना है। अपने विचारों को अति श्रेष्ठ बनाना है। श्रेष्ठ व पॉजिटिव विचार ही अच्छी हाइएस्ट पोजीशन का निर्माण करते हैं। अतः जो ऐसा सोचती हैं, वे सम्पूर्ण निर्विकारी व सम्पूर्ण निराकारी आत्मायें होती हैं।
❉ अगर उनका नाम ऊँचा है और काम नीचा है तो वे नाम को बदनाम करतें हैं। इसलिये लक्ष्य के प्रमाण लक्षण को धारण करना बहुतनही जरुरी होता है। जब लक्ष्य के प्रमाण लक्षण को धारण करेंगे, तब ही कहलायेंगे सम्पूर्ण निर्विकारी अर्थात होलिएस्ट आत्मा।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ कर्म करते करन - करावनहार बाप की स्मृति रहे तो स्व - पुरुषार्थ और योग का बैलेंस ठीक रहेगा... क्यों और कैसे ?
❉ कर्म करते करन - करावनहार बाप की स्मृति रहेगी तो बुद्धि में निमित भाव रहेगा । जितना स्वयं को निमित समझ हर कर्म करेंगे उतना कर्म करते बुद्धि का योग निरन्तर एक बाप से जुटा रहेगा जिससे स्व - पुरुषार्थ और योग का बैलन्स भी बना रहेगा और यह बैलेंस जितना अधिक होगा उतना कर्मयोगी बन हर कर्म करना सहज हो जायेगा जिससे सहज ही कर्मातीत अवस्था को प्राप्त कर सकेंगे ।
❉ कर्म करते जब इस बात को स्मृति में रखेंगे कि मैं आत्मा परमधाम से इस सृष्टि पर इस देह में कर्म करने के लिए अवतरित हुई है तो हर कर्म आत्मिक स्मृति में ही होगा और कर्म करते ही आत्मा स्वयं को इस देह से डिटैच अनुभव करेगी जिससे देह और देह के सभी बंधनो से मुक्त होना सहज हो जायेगा। जितना देह की दुनिया से न्यारे होंगे उतना करन - करावनहार बाप की स्मृति रहेगी और स्व पुरुषार्थ तथा योग का बैलेंस ठीक रहेगा ।
❉ कर्म करते करन - करावनहार बाप की स्मृति तभी रहेगी जब निरन्तर अव्यक्त स्थिति में स्थित रहने का अभ्यास होगा । जैसे आवाज में आना सहज लगता है ऐसे आवाज से परे जाने का जितना अभ्यास होगा उतना व्यक्त में रहते अव्यक्त स्तिथि में रहना भी सहज प्रतीत होगा । जितनी यह अवस्था पक्की होती जायेगी उतना कर्म करते करन - करावनहार बाप की स्मृति निरन्तर बनी रहेगी और स्व - पुरुषार्थ और योग का बैलेंस भी ठीक रहेगा ।
❉ जैसे आशिक माशूक एक दो को सदा याद करते रहते हैं । उन्हें सिवाए एक दूसरे के कोई और दिखाई नही देता । एक दूसरे को देखने के लिए तड़पते रहते हैं । ऐसे ही जब हम आत्माएं भी सच्चे आशिक बन अपने परम पिता परमात्मा माशूक की याद में सदा मगन रहेंगे तो उसकी याद कभी नही भूलेगी । हर कर्म करते जब केवल उस माशूक की, उस करन - करावनहार की स्मृति रहेगी तो स्व - पुरुषार्थ और योग का बैलेंस स्वत: ही बना रहेगा ।
❉ कर्म करते करन - करावनहार बाप की स्मृति में वही रह सकते हैं जो हर कर्म करते सदा बाप को अपने साथ रखते हैं । याद और सेवा का डबल लॉक लगाये बेहद की उपराम वृति को धारण कर जो विनाशी देह और देह की दुनिया के संग के प्रभाव से सदैव परे रहते हैं । बाप के संग का रंग उन्हें हर प्रकार के संग दोष से बचा कर रखता है तथा साथ ही साथ परमात्म बल और शक्तियों से भरपूर कर देता है जिससे स्व - पुरुषार्थ और योग का बैलंस सदा बना रहता है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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