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❍ 26 / 06 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ हर बात को √"त्रिकालदर्शी"√ की सीट पर सेट होकर देखा ?
➢➢ √"अप्राप्त नहीं कोई वस्तु हम ब्राह्मणों के खज़ाने में!"√ - मन में यही अविनाशी गीत बजता रहा ?
➢➢ √अकाल तख्तधारी और दिलतख्तधारी√ बनकर रहे ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ नॉलेज के दर्पण में चेक किया की ब्राह्मण जीवन में √डबल ताज है ?√ व सिंगल ताज है ?
➢➢ बाप के ऊपर, प्राप्तियों के ऊपर और ज़िम्मेवारियों के ऊपर अपना √अधिकार√ समझकर चले ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/26.06.16-VisheshPurusharth.htm
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं आत्मा सिम्पल और सैम्पुल हूँ ।
✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-
➳ _ ➳ देखें अपने ज्योति स्वरुप को बापदादा से रूह रिहान करते हुए... मैं एक अविनाशी बाप की याद में सदा मग्न रहने वाली एक बिंदु स्वरुप आत्मा हूँ... मैं एक बल एक भरोसे से दृढ़ निश्चय का व्रत धारण करने वाली दृढ़ संकल्पधारी आत्मा हूँ....
➳ _ ➳ मैं एक का ही गुणगान करने वाली सदैव गुणग्राही आत्मा हूँ... मैं एक की ही गोद में खेलने वाली, एक से ही स्नेह रखने वाली स्नेही आत्मा हूँ... मैं साधारणता द्वारा महानता को प्रसिद्ध करने वाली सिम्पल और सैम्पुल आत्मा हूँ...
➳ _ ➳ बाबा के स्नेह और दुलार ने मुझ आत्मा को सिम्पल बना दिया है... मेरे मनसा के संकल्पों में, सम्बन्ध में, व्यवहार में, रहन - सहन में स्वतः ही स्वच्छ्ता और साधारणता आ गयी है...
➳ _ ➳ जैसे कोई सिम्पल चीज़ अगर स्वच्छ होती है तो अपनी तरफ ज़रूर आकर्षित करती है उसी प्रकार मेरे मन और तन की स्वच्छ्ता सर्व को अपनी ओर स्वतः ही आकर्षित करने लगी है... जो आत्माएं साधारण अर्थात सिम्पल नहीं होतीं वह प्रॉब्लम रूप बन जाती हैं... पर मुझ आत्मा की यह साधारणता ही महानता बन गयी है ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "वर्तमान ही भविष्य का आधार"
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे लाडलो आप बच्चों के आज के संकल्प ही भविष्य का आधार है... तो स्वयं की गहन जाँच करो की निरन्तर अकाल तख्तधारी हो... जिस तरह परमात्म प्यार के अधिकारी हो उसी तरह अपनी जिम्मेदारियो का भी भान है...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे सारा मदार स्व पर आधारित है... ब्राह्मण जीवन ही डबल ताजधारी है पढ़ाई और सेवा का... तो दोनों ताज समान है यह चेक करो... यादो का सुहाग ऐसा अमिट बनाओ की माया उसे मिटा ही न सके... तन मन को निस्वार्थ भाव से ईश्वरीय राहो में समर्पित कर... सतयुगी सुखो के नम्बरवन अधिकारी बनो...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चे आप खूबसूरत कलम हो आधारमूर्त हो... इस नशे से भर उठो... विश्वपिता आपका हो चला... बालक बन मालिक हो चले... सबसे बड़ा खजाना पिता रूप में पा लिया... इस ख़ुशी को नस नस में भर दो... सदा निश्चिन्त होकर खुशियो में झूमो...
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे सदा निश्चयबुद्धि हो विजय को गले लगाओ... कौन मिला है किसके बन चले हो इस खुमारी में खो जाओ... ईश्वरीय प्रेम में परवानो सा मर मिट चलो... महाप्रेमी पिता इस मर मिटे प्रेम को सुखो से भरकर लौटाएगा... ट्रस्टी बन उड़ते रहो... सबके दिलो को सुखो से भरकर पूण्य बढ़ाते चलो....
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चे संकल्प शक्ति महा शक्ति है इसका जादू देखो और दिखाओ... मनसा सेवा से सबको सुख और प्रेम की बरसातों में भिगो आओ... वाणी और मनसा के कम्बाइंड स्वरूप से महा जादू चलाओ... और सबको सुखी बनाओ... महावीर बन शक्तियो का कमाल दिखाओ...
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ नॉलेज के दर्पण में चेक करना है की ब्राह्मण जीवन में डबल ताज है ? व सिंगल ताज है ?
❉ नॉलेज के दर्पण से अपनी चेकिंग करनी है जो ज्ञान बाबा हमें दे रहे हैं उससे हमारे अंदर का अंधकार दूर हुआ है या नही । संगमयुग पर आत्मिक स्मृति का अविनाशी तिलक हमेशा लगाए रखना है व आत्मा के पिता परमात्मा की याद में रहना है । परमात्मा की याद में रहकर ही हर कर्म करना है व विकारों की कट उतार कर पावन बनना है । इस संगमयुग में बाप समान बनने के लिए अपनी चेकिंग करनी है कि डबल ताजधारी है या सिंगल ताजधारी ।
❉ संगमयुग पर ब्राह्मण जीवन में एक ताज तो प्यूरिटी का मिलता है । जैसे ब्रह्मा बाबा मनसा वाचा कर्मणा व संकल्पों में भी पवित्रता थी व आते जाते हुए ऐसे लगते थे जैसे धरती पर ही नही हो व लाइट का शरीर जैसे फरिश्ता । ऐसे नॉलेज के दर्पण से अपनी चेकिंग करनी है कि हम में इतनी प्यूरिटी है व डबल ताजधारी है या सिंगल ताजधारी ।
❉ जैसे मम्मा को भी कोई देखता था तो प्यूरिटी की शक्ति से रुहानियत से मम्मा कोई साधारण नही दिखती थी । मम्मा से मिलने वाले को मां दुर्गा का साक्षात्कार होता था व मम्मा हमेशा योग में रहती थी । संगमयुग पर ही हमें भाग्य मिला है व पवित्रता की शक्ति मिली है । इसलिए एक बाप की याद मे रहकर मनसा वाचा कर्मणा और संकल्पों में पवित्रता लाकर ताजधारी बनना है व मम्मा जैसे गुण धारण करने हैं व अपनी चेकिंग करनी है कि ब्राह्मण जीवन में डबल ताजधारी है या सिंगल ।
❉ जो भी संकल्प करना है, बोल बोलना है, कर्म करना है, सम्बन्ध सम्पर्क में आना है वो बाप दादा समान है चैक करना है । बापदादा समान सर्वगुण सम्पन्न बन गए हैं । क्या दोनो ताज धारण किये है एक पवित्रता का दूसरा गुणों का व सेवा का । डबल ताजधारी बनने के लिए चारों सब्जेक्ट पर अटेंशन देनी है ।
❉ जैसे मम्मा का बाबा से इतना प्यार था कि मम्मा पढ़ाई पर इतना अटेंशन देती कि मुरली का एक एक शब्द हुबहू वैसा सुना देती व तीनो सेवा मनसा वाचा कर्मणा एक साथ करती । हर आत्मा के प्रति शुभ भावना शुभ कामना रखती तो हमें भी नॉलेज के दर्पण से अपनी चेकिंग करनी है कि हम अभी कितनी परसेंटेज तक पहुंचे है व डबल ताजधारी है या सिंगल ताजधारी ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ साधारणता द्वारा महानता को प्रसिद्धि करने वाले सिम्पल और सैम्पुल होते हैं.... क्यों और कैसे ?
❉ जो बच्चे बाबा की याद में रहते व बाबा को ही अपना कम्पेनियन बनाते और ये खुशी रहती कि हम कोटों मे कोई व कोई मे से कोई विशेष आत्मा हैं, महान आत्मा हैं व रुहानी नशा रहता । चलते फिरते बोलते हर कर्म में रुहानियत दिखायी देती तो वो साधारणता द्वारा महानता को प्रसिद्ध करने वाले दूसरों के लिए सैम्पुल होते हैं ।
❉ जैसे लौकिक में भी कोई बिजनैसमेन होता है वो अपने हर कार्य को व्यक्तियों की विशेषता अनुसार कराकर प्रसिद्धि पाता है । ऐसे जो बच्चे बाबा की याद में कर्म करते हैं साधारण और श्रेष्ठ होते है और जब दूसरों के सम्बंध सम्पर्क में आते तो उनकी चाल चलन से ऐसे महसूस करते हैं कि यह न्यारे और कोई विशेष आत्मा हैं ऐसे साधारणता में रहते महानता की प्रसिद्धि करनेवाले सिम्पल और सैम्पुल बनते हैं ।
❉ जैसे कोई सिम्पल चीज अगर स्वच्छ होती है तो अपनी तरफ आकर्षित जरुर करती है । ऐसे मनसा के संकल्पों में, सम्बंध में, व्यवहार में, रहन सहन में जो सिम्पल और स्वच्छ होते है वह सैम्पुल बन स्वतः ही आकर्षित करते हैं । साधारणता से ही महानता प्रसिद्ध होती है ।
❉ कोई भी सेवा करते अपने को साधारण नही समझते जैसी सेवा हो वैसे मोल्ड कर लेते हैं । परमत और मनमत को छोडश्री मत अनुसार कार्य करते भले ही वह साधारण क्यों न हो ऐसे महान बन सैम्पुल बन जाते हैं ।
❉ जो मान शान की इच्छा न रख सिर्फ अपने को आत्मा समझते और परमात्मा का फरमानबरदार बनते हैं व देहभान से परे रह नम्रचित होकर छोटी से छोटी सेवा को करने में भी हांजी का पार्ट बजाते है व निमित्त भाव से करते हैं । ऐसे साधारणता के द्वारा महानता को प्राप्त हो सैम्पुल बन जाते है ।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ दिल से कहो मेरा बाबा तो माया की बेहोशी से बन्द आँखे खुल जायेंगी... क्यों और कैसे ?
❉ जब आत्मिक स्मृति को भूल देह भान में आते हैं तो माया बेहोश कर देती है और कर्मेन्द्रियों के अधीन हो कर आत्मा विकर्म करने लगती है । किन्तु दिल से जब मेरा बाबा कहते हैं तो परमात्म बल से आत्मा कर्मेन्द्रियों पर जीत पाने लगती है और स्वराज्य अधिकारी बन आत्मा जब अपनी कर्मेन्द्रियों को वश में कर लेती है तो सभी कर्मेन्द्रियां सही कार्य करने लगती है जिससे माया की बेहोशी से बन्द आँखे सदा के लिए खुल जाती हैं ।
❉ जब दिल से मेरा बाबा कहेंगे तो एक बाप की याद के सिवाय और कुछ याद नही आयेगा । क्योकि जब एक ही स्मृति रहेगी कि मेरा बाबा है । तो जो मेरा होता है वह स्वत: याद रहता है उसको याद करना नहीं पड़ता । मेरा कहना अर्थात् अधिकार प्राप्त हो जाना । मैं बाबा का बाबा मेरा - इसी को कहा जाता है सहजयोग । ऐसे सहजयोगी बन जब एक बाप की याद की लगन में मगन रहते हुए आगे बढ़ते रहेंगे तो माया की बेहोशी से बन्द आँखे अपने आप खुलती जायेंगी ।
❉ पुराने स्वभाव संस्कारों के रूप में माया बार बार बेहोश करती है । किन्तु जो दिल से मेरा बाबा कहते रहते हैं उन्हें सिवाय बाप के गुण, कर्तव्य और संबंध के और कुछ सूझता नहीं । बाप समान बनने की लगन माया से बेहोश हुई उनकी बन्द आँखों को खोल देती है और इसी लग्न में मग्न होकर अपने पुराने स्वभाव संस्कार बाप को देकर वे बाप समान बनने के तीव्र पुरुषार्थ में लग जाते हैं । और हल्के पन का अनुभव करते हुए निरन्तर आगे बढ़ते चले जाते हैं ।
❉ ज्ञान के अखुट खजाने बाबा ने हम बच्चों को दिए हैं । इसे स्मृति में रख जब दिल से बाबा कहते हैं तो ज्ञान की ये गुह्य प्वाइंट्स माया की बेहोशी से बन्द आँखों को खोल देती हैं । रूप बसंत बन ज्ञान की इन गुह्य प्वाइंट्स को जब बुद्धि में धारण करते हैं और योग बल से आत्मा को स्वच्छ पावन बनाने के पुरुषार्थ में लग जाते हैं तो हर परिस्थिति रुपी पहाड़ को सहजता से पार कर अपनी मंजिल को प्राप्त करना सहज लगने लगता है ।
❉ आत्मा रूपी सीता जब मर्यादा की लकीर से बाहर आती है तब माया की बेहोशी से आँखे बन्द होती हैं किन्तु जब दिल से मेरा बाबा कहते हैं तो स्वयं को बापदादा की छत्रछाया के नीचे अनुभव करते हैं । और बापदादा की छत्रछाया आत्मा को मर्यादाओं की ऐसी लकीर में बांध देती हैं जो माया की बेहोशी से बन्द आँखे सेकण्ड में खुल जाती है और आत्मा स्वयं को ऐसा निर्विघ्न अनुभव करती है कि माया रूपी किसी भी विघ्न का उस पर कोई प्रभाव ही नही पड़ सकता ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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