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❍ 15 / 01 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °विस्तार को सार° में समाने की जादूगरी सीख बाप समान अवस्था का अनुभव किया ?
‖✓‖ °एक बाप° को ही सब सुनाया ?
‖✗‖ किसी के अवगुण देख उसकी °निंदा° तो नहीं की ?
‖✗‖ °क्रोध° में आकर किसी का सामना तो नहीं किया ?
‖✗‖ कभी भी °अपने हाथ में लॉ° तो नहीं उठाया ?
‖✗‖ °मुरली मिस° तो नहीं की ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ °पुराने संस्कारों रुपी अस्थियों° को संपूरण स्थिति के सागर में समाया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ °असोच बन बुधी को फ्री रख°... बाप की शक्ति को मदद के रूप में अनुभव किया ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं बाप समान और सम्पूर्ण आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ पुराने संस्कार रूपी अस्थियों को सम्पूर्ण स्थिति के सागर में समाने वाली मैं बाप समान और सम्पूर्ण आत्मा हूँ ।
❉ बाप समान सम्पूर्ण बनने के लिए सृष्टि की कयामत से पहले मैं स्वयं की कमी कमजोरियों की कयामत कर रही हूँ ।
❉ हर प्रकार की उलझन को समाप्त कर मैं स्वयं को उज्ज्वल बना रही हूँ ।
❉ पुरानी आसुरी बातों और पुराने संस्कारों को भस्म कर मैं नये दैवी संस्कारों को धारण कर रही हूँ ।
❉ दिव्य और आलौकिक बुद्धि द्वारा मैं हर साधारण कर्म को आलौकिक बना कर सहज ही न्यारेपन की स्थिति में स्थित हो कर आनन्द से सदा भरपूर रहती हूँ ।
❉ दुनिया से उपराम हो कर मैं सबके पार्ट को साक्षी हो कर देखती रहती हूँ और सबको साकाश देती रहती हूँ ।
❉ चलते फिरते अपने निराकारी स्वरूप और कर्म करते अपने फरिश्ता स्वरूप में स्थित हो कर मैं आत्मा सदा ख़ुशी में ऊपर उड़ती रहती हूँ ।
❉ अपनी शुभ और श्रेष्ठ वृति और दृष्टि से मैं आत्मा सर्व को सहयोग और कल्याण का साकाश देती हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - कभी भी अपने हाथ में लॉ नही उठाओ, यदि किसी की भूल हो तो बाप को रिपोर्ट करो, बाप सावधानी देंगे"
❉ जैसे लौकिक परिवार के सदस्यों में एक दो के स्वभाव - संस्कारों में विभिन्नता होने के कारण टकराव होता रहता है ।
❉ उसी प्रकार हमारा भी यह ईश्वरीय परिवार है जिसमे कभी कभी एक दो के पुराने स्वभाव संस्कारो के कारण आपस में टकराव हो जाता है ।
❉ इसलिए बाप समझाते हैं कि कोई ग़लती या भूल करता है तो उस पर बिगड़ना या क्रोध नही करना है ।
❉ क्योकि क्रोध करना माना लॉ हाथ में उठाना है । इसलिए खुद किसको कुछ नही कहना है ।
❉ यदि कोई भूल करता है तो बाप को रिपोर्ट करो । सबको सावधानी देने वाला एक बाबा है । बाबा बहुत मीठी युक्ति बतायेंगे जिससे वह स्वयं परिवर्तित हो जायेंगे ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ किसी के अवगुण देखकर उसकी निंदा नहीं करनी है । जगह-जगह उसके अवगुण नहीं सुनाने हैं । अपना मीठापन नहीं छोड़ना है । क्रोध में आकर किसी का सामना नहीं करना है ।
❉ बाप ने सत का ज्ञान दिया है तो अपने असली स्वरुप को पहचान देही-अभिमानी बनना है । जब देही-अभिमानी स्थिति में होते हैं तो आत्मा आत्मा भाई का भान रहता है व किसी के अवगुण दिखाई नहीं देते ।
❉ जब बाबा हर समय मीठे मीठे बच्चे कहते हैं तो बाबा के साथ मीठा रहते हुए सब के साथ भी मीठा रहना है । किसी पर गुस्सा नहीं करना न ही निंदा करनी है ।
❉ अगर किसी ने कोई गलती की भी तो उसे साक्षी होकर देखना है कि उस आत्मा का पार्ट ही ऐसा है। उसे शुभ भावना शुभ कामना द्वारा सहयोग देते हुए आगे बढ़ाना है । उसके अवगुण को जगह जगह बताकर माला नही बनानी ।
❉ किसी ने क्रोध किया तो अपना मीठापन कायम रखते हुए उसे शांति की वायब्रेशनस देनी है । माया तो पेपर लेने आयेगी ही । उस समय महावीर बन अपनी स्थिति अचल अडोल रखनी है ।
❉ जैसे गवर्नमेंट कहती है कि कोई बात या झगड़ा हो तो लॉ अपने हाथ में नही उठाओ । ऐसे ही क्रोध में आकर किसी के ऊपर हाथ नही उठाना है । जो भी बात हो सामने कुछ नहीं कहना बस बाबा को बोलना है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ पुराने संस्कार रूपी अस्थियो को सम्पूर्ण स्थिति के सागर में समाने वाले समान और सम्पूर्ण बन जाते है... क्यों और कैसे ?
❉ हमारे पास बहुत बड़ी शक्ति है समाने की शक्ति, हमारे में जो भी पुराने संस्कार, स्वभाव है वह सभी हमें समाने है और अपनी बुद्धि को शुद्ध सोना बनाना है जिसमे हम बाप का ज्ञान धारण सके।
❉ जब किसी की मृत्यु होती है तो उसकी अस्थिया नदी में बहाई जाती है, ऐसे ही यह हमारा नया मरजीवा जन्म है तो हमें भी पहले अपने पुराने सभी संस्कार की अस्थियो को बहाना होगा।
❉ पुराने संस्कारों का एक अंश भी न रहे नहीं तो अंत में वह अंश से वंश निकल आयेगा जो हमें पास नहीं होने देगा अंत समय में धोखा खा लेंगे।
❉ बहुत जन्मो के हमारे संस्कार बहुत कड़े हो गए है, बाप की याद द्वारा हमें उन्हें यही हो समाप्त करने है,मन को मरना नहीं है मन को जितना है, पुराने संस्कार को परिवर्तन करना है नए दैवी संस्कारो में।
❉ सम्पूर्ण स्थिति अव्यक्त फ़रिश्ता स्थिति है, हमारा लक्ष्य भी है बाप समान व सम्पूर्ण बनना वह हम यही अपने पुराने संस्कारो को भस्म करके बन सकते है, स्व के संस्कार परिवर्तन से ही विश्व परिवर्तन होना है।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ विस्तार को सार में समाने की जादूगरी सीख लो तो बाप समान बन जायेंगे... कैसे ?
❉ क्या - क्यों की क्यू को समाप्त कर जब विस्तार को सार में समा लेंगे तो चढ़ती कला के अनुभव द्वारा सम्पूर्णता की और कदम बढ़ाते जायेंगे और बाप समान बन जायेंगे ।
❉ तीन स्मृतयों का तिलक जब मस्तक पर लगाएं रखेंगे तो त्रिकालदर्शी बन हर बात में कल्याण का अनुभव करेंगे जिससे कोई भी बात बड़ी नही लगेगी और उपराम वृति द्वारा बाप समान बनना सहज हो जायेगा ।
❉ जब व्यर्थ से किनारा कर मन बुद्धि को श्रेष्ठ और समर्थ चिंतन में बिज़ी रखेंगे तो स्थिति स्वत:ही शक्तिशाली बनती जायेगी जिससे विस्तार को सार में समाना सरल हो जाएगा और यह शक्तिशाली स्थिति ही बाप समान और सम्पूर्ण बनने में मददगार बन जायेगी ।
❉ जब बुद्धि की लाइन क्लियर होगी और बाप से जुड़ी रहेगी तो परमात्म बल आत्मा को शक्तिशाली बना देगा और आत्मा से निकले शक्तिशाली वायब्रेशन्स वायुमण्डल को शक्तिशाली बना कर हर बात को सार में समा लेंगे और बाप समान बनने में सहायक बन जायेंगे ।
❉ जितना मन बुद्धि को शांत और एकाग्रचित स्थिति में स्थित रखने का अभ्यास होगा उतना उपराम अवस्था में रहना सरल होगा जिससे हर बात बड़ी लगने की बजाए छोटी अनुभव होगी और सम्पूर्णता को पाना सहज हो जायेगा ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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