━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 01 / 11 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *सर्वोत्तम कुल की समरीत से गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र बनकर रहे ?*
➢➢ *कभी भी सतगुरु की निंदा तो नहीं कराई ?*
➢➢ *जब भी फुर्सत मिली, विचार सागर मंथन जरूर किया ?*
────────────────────────
∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *दिव्य गुणों के आह्वान द्वारा सर्व अव्गुनियो को समाप्त किया ?*
➢➢ *मन रुपी मंत्री को अपना सहयोगी बना स्वराज्य अधिकारी बनकर रहे ?*
────────────────────────
∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *बापदादा से "सदा अमर भव" का वरदान स्वीकार किया ?*
────────────────────────
∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - बाप द्वारा जो नालेज मिली है वह बुद्धि में कायम रखनी है सवेरे सवेरे उठ स्वदर्शन चक्रधारी बन विचार सागर मन्थन करना है"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... मनुष्य मत को तवज्जो देकर खालीपन के गहरे अनुभवी हो... अब भाग्य ने ईश्वर पिता की पसन्द बनाया है... तो पाये हुए खजानो को बेशकीमती रत्नों को सदा बुद्धि तिजोरी में सुरक्षित रखो... और सवेरे सवेरे अपने ईश्वर प्राप्ति के महान भाग्य के नशे में खो जाओ....
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा मै आत्मा ईश्वर पिता से पाये अमूल्य ज्ञान को पाकर कितनी मालामाल हो गयी हूँ... अपने सच्चे स्वरूप को जानकर असीम सुख से भर चली हूँ... मै ही सुंदर देवता थी और फिर से वही देवता बाबा की मीठी यादो में सज रही हूँ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... मनुष्यो की मतो को मटमैली दुनिया की रस्मो को कितना सम्भाला और बुद्धि को भी काला और मटमैला कर चले... अब ईश्वरीय यादो से स्वदर्शन चक्र से... इस पात्र को सोने सा दमकाओ और पाये रत्नों की चमक से चकाचौन्ध कर विश्व को अपनी निराली छटा का दीवाना बना आओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा मीठे बाबा से मिले खजाने को सवेरे सवेरे उठ मन बुद्धि की आँखों से निहार रही हूँ... और अपने अथाह धन का आकलन कर मुस्करा रही हूँ... कि ईश्वरीय ज्ञान ने जीवन ही जादू सा बदल दिया और सुखो में तब्दील कर दिया है
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... कितने महान भाग्य से भरे हो ईश्वर स्वयं शिक्षक बन कर पढ़ा रहा और ज्ञान रत्नों की बरसात कर 21 जनमो की सुखो भरी हरियाली से जीवन महका रहा... तो इस खूबसूरत ज्ञान से सदा महकते रहो... और विचार सागर मन्थन कर स्वयं को शिखर सी ऊँची स्थिति पर बिठाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कभी पत्थरो से लहुलहानं थी... आज ईश्वरीय ज्ञान रत्नों की चमक से जगमगा रही हूँ... और इस चमक का पूरी दुनिया को भी दीवाना बना रही हूँ... सबके मटमैले पन को दूर कर उन्हें भी रत्नों और हीरो से सजा रही हूँ...
────────────────────────
∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा दिव्यगुणधारी हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा इस संगम युग पर सच्ची दीपावली मनाने की तैयारी कर रहीं हूँ... मैं आत्मा अपनी बुद्धि रुपी बर्तन की सफाई करती हूँ... एक बाबा की याद में बैठ योग अग्नि प्रज्वलित करती हूँ... सारे विकारों, अवगुणों, पुराने संस्कारों के किचडे की आहूति दे रहीं हूँ... जो भी कमियां, कमजोरियां, निर्बलता रही हुई है... वो सब पुराने खाते आज से सदा के लिये समाप्त कर रहीं हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा जैसे दीपावली पर श्री लक्ष्मी का आहवान करते हैं... पूरी रात दीपक जगाते हैं... मुझ आत्मा को अपनी आत्मिक ज्योत को जगाना है... अपने असली स्वरुप में स्थित रह अपनी आत्मा पर चढ़ी कट को उतारती जा रही हूँ... मैं आत्मा ज्ञान रुपी घृत डालकर अपनी ज्योत की लाइट को तेज करती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ मेरे मीठे प्यारे बाबा स्वयं रोज मुझ आत्मा का ज्ञान रत्नों से श्रृंगार कर रहे हैं... सजा रहे है... तो मैं आत्मा उन ज्ञान रत्नों को दिव्य गुणों को धारण करती जा रहीं हूँ... दिव्यगुणधारी बन रहीं हूँ... मैं आत्मा नये संस्कारो रूपी नये वस्त्र धारण कर रहीं हूँ... अब पुराने वस्त्रों से जरा भी प्रीत नहीं है...
➳ _ ➳ मैं दिव्यगुणधारी आत्मा ज्ञान के दिये जलाकर दीपावली मना रहीं हूँ... ज्ञान रोशनी से सारे जग के अँधेरे को दूर कर रहीं हूँ... मैं आत्मा इसी नशे में हूँ कि भविष्य में मुझ आत्मा की ताजपोशी होगी... उसी का ही यादगार यह दीपावली है... मैं आत्मा एक प्यारे मीठे बाबा की याद से अपने अवगुणों को समाप्त कर दिव्य गुणों को धारण कर दिव्यगुणधारी बनती जा रही हूँ...
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मन रूपी मंत्री के सहयोग से स्वराज्य अधिकारी बनना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा राजा मस्तक सिंहासन पर विराजमान हूँ... मेरी सूक्ष्म और स्थूल इन्द्रियाँ मेरी आज्ञाओं का पालन करने वाली मेरी कर्मचारी हैं... बाबा की याद से मेरी सभी इन्द्रियाँ शिथिल और पावन बन गई हैं... सभी इन्द्रियाँ मुझे सहयोग देती हैं... मेरी सूक्ष्म इन्द्रियाँ मन और बुद्धि मेरे सबसे प्यारे मित्र बन मुझ आत्मा को स्वराज्य शासन चलाने में मुझे सहयोग देते हैं...
➳ _ ➳ मैं अपने मन मंत्री से बातें करती हूँ... उसे कहती हूँ, हे मेरे मन तू मेरा मित्र बन सदैव ही शुद्ध संकल्पों की रचना करना... ऐसे शुद्ध संकल्पों को रचना जो मैं आत्मा प्रभु अर्पण कर सकूँ... ऐसे संकल्प ही रचना जो मुझ आत्मा को महान आत्मा बना दे...
➳ _ ➳ मेरा मन मेरा सबसे अच्छा मित्र बन पग-पग जीवन में सहयोग करता हैं... मेरा मन में रचनात्मक ऊर्जा से भरपूर है... मेरे मन द्वारा रचित एक-एक संकल्प... मेरे महान जीवन की संरचना करते है... मेरा मन मुझे मेरी कर्मेन्द्रियों को भी नियन्तरित करने में मेरी मदद करता हैं... मेरे मन के सहयोग द्वारा ही मैं आत्मा स्वराज्य अधिकारी बन गई हूँ...
➳ _ ➳ मैं स्वराज्य अधिकारी आत्मा भृकुटि सिंहासन पर बैठ... अपने कंट्रोलिंग और रूलिंग पॉवर द्वारा सुचारू अपनी सभी इन्द्रियों पर राज्य करती हूँ... मैं स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूँ... स्वराज्य अधिकार द्वारा, विश्व राज्य भाग्य प्राप्त करने वाली ऐसी मैं श्रेष्ठ... प्रभु प्रिय आत्मा हूँ...
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *दिव्य गुणों के आह्वान द्वारा अवगुणों को समाप्त करने वाले दिव्यगुणधारी होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ दिव्य गुणों के आह्वान द्वारा अवगुणों को समाप्त करने वाले दिव्यगुणधारी होते हैं... क्योंकि जिस प्रकार से दीपावली पर हम श्रीलक्ष्मी का आह्वान करते हैं, उसी प्रकार से हम बच्चे भी स्वयं में दिव्यगुणों का आह्वान करें, तो! हमारे सभी अवगुण आहुति के रूप में समाप्त होते जायेंगे।
❉ जिस प्रकार से हम स्थूल हवन करते समय, आहुतियों को हवन कुण्ड में समर्पित करते हैं, और वह आहुतियाँ हवन की अग्नि में स्वतः जल कर समाप्त हो जाती हैं, उसी प्रकार से जब हम योग करते समय, सर्व दिव्यगुणों का आह्वान करते हैं, तब परमात्म प्रेम की योगाग्नि में हमारे सर्व विकर्म या अवगुण स्वतः ही खत्म हो जाते हैं।
❉ अवगुणों को समाप्त करने के लिये हमें अलग से मेहनत या किसी भी प्रकार का प्रयास नहीं करना चाहिये।
फिर तदुपरान्त हम नये संस्कारों रुपी नये वस्त्र धारण करते हैं, क्योंकि अब हमारे संस्कार नवीन सदगुणों के आधार पर बनेंगे। अतः अब हमारी पुराने वस्त्रों में तनिक सी भी प्रीतबुद्धि नहीं है।
❉ हमारे अन्दर जो भी कमियाँ, कमजोरियाँ, निर्बलता व कोमलता आदि बाकी रही हुई हैं, वो सब हमें आज ही समाप्त कर देनी है। पुराने स्वभाव संस्कारों को व सर्व अवगुणों को सदा काल के लिये हमें भस्म कर देना है। उन अवगुणों की एक एक आहुति बनाकर तथा उन सभी को हवन कुण्ड के प्रति, अर्पण करते हुए, सर्व को सदा के लिये समाप्त करते जाना है।
❉ तब ही तो सदा काल के लिये दिव्यगुणधारी बन सकेंगे। जब हम दिव्यगुणधारी गुणवान बनेंगे, तभी तो भविष्य में हमारी ताजपोशी भी होगी। इसी का ही यादगार हम आज तक दीपावली के रूप मानते आ रहें हैं। हमें तो केवल स्वयं में दिव्यगुणों का आहवान करना है। अवगुण तो! स्वतः ही समाप्त होते जायेंगे और हम दिव्यगुणधारी बन जायेंगे।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *स्वराज्य अधिकारी बनना है तो मन रूपी मंत्री को अपना सहयोगी बना लो... क्यों और कैसे* ?
❉ जैसे एक नगर का राजा अपने नगर के सभी जरूरी निर्णय अपने मंत्री से ही विचार विमर्श कर के लेता है । अगर मंत्री राजा के प्रति सम्पूर्ण रीति वफादार है तो राजा भी मंत्री की हर सलाह के प्रति निश्चिन्त रहता है । ठीक इसी प्रकार हमारा मन भी आत्मा राजा का मंत्री है । इस मन रूपी मंत्री को जितना अपना सहयोगी बनायेगे उतना मन रूपी मंत्री सभी कार्य आत्मा राजा के निर्देश अनुसार करेगा और मन को अपनी इच्छानुसार चलाना ही स्वराज्य अधिकारी बनना है ।
❉ एक सफल राजा वही होता है जिसमे रूलिंग और कंट्रोलिंग पावर की योग्यता होती है । क्योकि उचित तरीके से शासन करने के लिए इन दोनों पावर का होना बहुत जरूरी है । स्व राज्य अधिकारी का अर्थ भी स्वयं पर शासन करना है । और स्वयं पर शासन करने के लिए जरूरी है रुलिंग और कंट्रोलिंग पावर का होना । क्योकि ये दोनों पावर होंगी तो मन रूपी मंत्री को अपना सहयोगी बना कर कर्मेन्द्रियों को अपनी इच्छानुसार कार्य में लगा सकेंगे ।
❉ जैसे शरीर के अंगों हाथ, पैर आदि को जैसे मर्जी घुमाना चाहें घुमा लेते हैं ऐसे मन पर भी समूर्ण रीति कट्रोल हो । ऑर्डर करें स्टॉप तो स्टॉप हो जाये । सेकण्ड में जहां चाहे मन बुद्धि से वहां पहुँच जाये । परमधाम का संकल्प करें और परमधाम पहुँच जाएं । सूक्ष्म लोक के बारे में सोचे तो सेकण्ड में सूक्ष्म लोक पहुँच जाएँ । ऐसे मन बुद्धि को जहां लगाना चाहें वहां तभी लगा सकेंगे जब स्वराज्य अधिकारी बन मन रूपी मंत्री को अपना सहयोगी बना लेंगे ।
❉ एक भ्रष्ट मंत्री अपने राजा को धोखा दे कर उसका राज्य भाग्य भी उससे छीन सकता है । इसी प्रकार यदि मन रूपी मंत्री आत्मा राजा का सहयोगी नही है तो कभी भी धोखा मिल सकता है । मन यदि वश में नही है तो स्व के संस्कार ही स्वराज्य को छीन सकते हैं । व्यर्थ सोचना और व्यर्थ बोल चाल में समय व्यर्थ गंवाना ये सभी संस्कार स्वराज्य की सीट से नीचे ले आते हैं । और ये संस्कार तभी अपना प्रभाव दिखाते हैं जब मन रूपी मंत्री सहयोगी नही होता ।
❉ एक कम्पनी का मालिक भी अपनी कम्पनी को सही तरह से चलाने और कम्पनी को ऊँचे से ऊँचा उठाने के लिए समय प्रति समय कर्म चारियों की बैठक बुलाता हैं और आवश्यकतानुसार कम्पनी के प्रॉफिट के लिए उन्हें निर्देश भी देता हैं । इसी प्रकार कर्मेन्द्रियों के मालिक बन जो रोज कर्मेन्द्रियों की बैठक लगाते हैं और चेक करते हैं कि सभी कर्मेन्द्रियां ठीक तरह कार्य कर रही हैं या नही । वही कर्मेन्द्रियजीत बन मन को अपना सहयोगी बना कर स्वराज्यअधिकारी बना जाते हैं ।
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━