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 28 / 05 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ शिव बाबा को विकारों का दान देकर ×वापिस× तो नहीं लिया ?

 

➢➢ ×ध्यान दीदार× की आश तो नहीं रखी ?

 

➢➢ एम ऑब्जेक्ट को सामने रख पुरुषार्थ किया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ साधारणता को समाप्त कर महानता का अनुभव किया ?

 

➢➢ मनन शक्ति द्वारा सागर के तले में जाने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ स्वयं को वरदानी मूर्त आत्मा अनुभव किया ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं श्रेष्ठ पुरुषार्थी आत्मा हूँ ।

 

✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-

 

➳ _ ➳  आज सुबह एक संकल्प मन में आया कि मेरे प्यारे बाबा रोज़ सवेरे - सवेरे मुझे उठाते हैं... अगर मैं दुबारा सो जाऊं, तो फिर से उठा देते हैं... और धीरे से कानों में आकर कहते हैं... मेरे लाल, मेरे राज दुलारे बच्चे, उठो देखो, आप अपने पिता की गोद में हो... उठों मेरी आशाओं के चिराग, आँखें खोलो...

 

➳ _ ➳  आओ हम मीठी - मीठी बातें करेंगे... इस समय मैं सिर्फ तुम्हारे ही पास हूँ... आप और मैं ही हैं और कोई भी आस - पास नहीं है... मेरे नयनों के नूर बच्चे, जागो और मेरे गले लग जाओ...

 

➳ _ ➳  फिर मैं अपनी अधखुली सी पलके ऊपर उठाती हूँ तो खुद को आपकी गोद में पाती हूँ... वो रूमानी पल... वो अस्मर्णीय क्षण... आह्ह्ह हा ! कितना गहरा, मीठा, निराला सुख है... मैं खुद को कितना निश्चिन्त पा रहीं हूँ बाबा... बाबा मेरे हर संकल्प श्वास में स्वतः ही आपकी याद ठहर रही है...

 

➳ _ ➳  मुझ आत्मा को अपने बाबा को याद करने का पुरुषार्थ नहीं करना पड़ रहा है अपितु स्वतः ही आप मुझे याद आ रहें हैं... मैं आत्मा आज यह दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मैं श्रेष्ठ पुरुषार्थी बच्ची बनकर अपना हर संकल्प महान बनाउंगी...

➳ _ ➳  जैसे भक्ति में कहते हैं अनहद शब्द सुनाई दे, अजपाजाप चलता रहे, मैं ब्राह्मण आत्मा भी ऐसी श्रेष्ठ पुरषार्थी बनने का दृढ़ संकल्प लेती हूँ... इन्हीं संकल्पों के साथ मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मुझ आत्मा की साधारणता खत्म होती जा रही है और महानता आती जा रही है... मैं आत्मा निर्विघ्न हो निरन्तर आगे बढ़ती जा रही हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - श्रीमत पर चलकर सबको सुख दो, आसुरी मत पर दुःख देते आये, अब सुख दो सुख लो"

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे सुखदाता पिता के बच्चे बने हो सबको सुखो से भरपूर करो... आसुरी मत पर खुद भी दुखी हुए औरो को भी दुःख ही देते रहे... अब ईश्वर पिता ने सुखदायी राहे दिखाई है तो इन राहो पर चल सबकी झोली सुखो से भर चलो...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे सच्चा पिता सच्ची खुशियो से जीवन महकाता है वही झूठा साथ जीवन को दुखो का पहाड़ अनुभव कराता है... जो सुख मुझ पिता से पाते हो उसे सारे जहाँ में लुटाओ... जीवन खुशियो से भर सुख के फूल खिलाओ...  

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे परायी मत पर चल खुद का भी बुरा हाल किया औरो को भी दुखदायी यादो से भर दिया... अब सच्ची श्रीमत पर चल सुखो का व्यापार करो... सबको सुख दो और लो... यह खुशियो भरा कारोबार करो...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चे सच्चे पिता की श्रीमत सुख की जादूगरी है...  जीवन फूलो सा खुशनुमा मधुमास बना देगी... अब दुःख भरी आसुरी मत को छोडो... सच्चे बच्चे बन श्रीमत पर चल सबके जीवन को सुख की वर्षा से ओत प्रोत कर खुशनुमा बनादो...

 

 ❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चे ईश्वर पिता ने गुणो और शक्तियो से भरपूर कर कितना प्यार भरा खुशनुमा जीवन दिया... जिसे खोकर खुद को खाली और दुखी किया... अब वही खूबसूरत श्रीमत का हाथ थाम जीवन में वही सुख भर दो... खुद भी खुश रहो और को भी खुशहाल कर दो...

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ शिव बाबा को विकारों का दान देकर फिर वापिस नहीं लेना है । देह-अभिमान के भूत से बचना है । इस भूत से सब भूत आ जाते हैं इसलिए आत्म-अभिमानी बनना है ।

 

  ❉   अभी सब पर पांच विकारों का ग्रहण लगा हुआ है व सब घोर कलयुग में है । इस संगमयुग पर बाबा ने हमें अपना बनाया व कहा कि अपने विकारों का मुझे दान कर दो तो हमें पाँचों विकारों का दान देना है ।

 

  ❉   शिव बाबा ही ऐसा सौदागर है जो कहता है सब पुराना दे दो और नया ले लो । तो हमने जब एक बार सब विकार बाबा को दान में दे दिए तो वापिस नही लेने और जो चीज दे दी वो तो उस पर हमारा अधिकार ही नही और दान की चीज तो कभी कोई वापिस लेता ही नही ।

 

  ❉   देह अभिमान सबसे बड़ा विकार है व भूत के जैसा  चिपक जाता है । देहभान में आने से ही सारे ओर विकार आते हैं । देह के आकर्षण में आने से ही कुदृष्टि होजाती है । इसलिए इस विकार पर जीत पानी है व देह नही अपने को देही समझना है ।

 

  ❉   अपने को आत्मा समझ परमात्मा बाप को याद करना  है । आत्मा-आत्मा भाई भाई की दृष्टि रखनी है । आत्मिक दृष्टि रखने से आत्मा पावन व मीठी बनती है ।

 

  ❉   देह व देह के सर्व सम्बन्ध छोड़ एक बाप से सर्व सम्बंध जोड़ने है । एक बाप की याद से ही सब विकर्म विनाश करनेे हैं ।  वही पतित पावन है वही आप समान देही अभिमानी बनाने वाले है तभी बाबा कहते अपने को आत्मा समझ मामेकम याद करो ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ साधारणता को समाप्त कर महानता का अनुभव करने वाले श्रेष्ठ पुरुषार्थी होते हैं.... क्यों और कैसे ?

 

  ❉   जिन बच्चों को ये खुशी व नशा रहता है कि हम कौन है  भगवान के बच्चे व कौन साथ निभा रहा - स्वयं भगवान हमारा साथी है व कहां जाना है अपने घर वापिस शांतिधाम तो वो अपने को साधारण नही समझते व महानता का अनुभव कर श्रेष्ठ पुरुषार्थी होते हैं ।

 

  ❉   जो बच्चे इस खुशी व अपने ऊंच भाग्य के नशे में रहते हैं कि स्वयं भगवान ने कोटो मे कोऊं मे से चुना व अपना बनाया । न जाने क्या खास मुझमें देखा जो मुझे अपने विश्व परिवर्तन के कार्य में मददगार बनाया । वो अपनी को साधारण नही समझते व विशेष महान आत्मा समझ श्रेष्ठ पुरुषार्थ करते हैं व श्रेष्ठ पुरुषार्थी होते हैं ।

 

  ❉   जो श्रेष्ठ पुरुषार्थी होते हैं उनका हर संकल्प महान होता है क्योंकि उनके हर श्वांस संकल्प में बाप की याद होती है । याद करना नही पड़ता , स्वतः याद आती रहती है तो साधारणता खत्म हो जाती है और महानता का अनुभव करते हैं व हर कर्म श्रेष्ठ करते हैं ।

 

  ❉   जिन बच्चों को ये खुशी व नशा होता है कि सच्चे बाप को जान लिया , जो पाना था सो पा लिया । इससे बड़ा भाग्य तो कोई होता नहीं । घर बैठे स्वयं भगवान मिल गया जिसको दुनिया अपनाने को तड़प रही है उसने मुझे अपना बना लिया । सदा मन खुशी से नाचता रहता है ऐसे बच्चे साधारणता को समाप्त कर महानता का अनुभव कर श्रेष्ठ पुरुषार्थी होते हैं ।

 

  ❉   जो बच्चे ये निश्चय रखते कि स्वयं भगवान अपने बच्चों को सुप्रीम टीचर बन दूरदेश से पतितों की दुनिया में पढ़ाने आते हैं व अनमोल अखूट खजानों से भरपूर करते है । एक एक अनमोल रत्न बेशुमार कीमती है। और पढ़ाकर 21 जन्मों के लिए स्वर्ग की बादशाही देते है । ये पढ़ाई कोई साधारण मनुष्य नही पढ़ सकता । हम बाबा के विशेष महान बच्चे ही है जो ये रुहानी व ऊंच ते ऊंच पढ़ाई पढ़ते हैं । ऐसे साधारणता को समाप्त कर महानता का अनुभव करते है ।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ मनन शक्ति द्वारा सागर के तले में जाने वाले ही रत्नों के अधिकारी बनते हैं... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   जैसे ज्योतिषी अपने ज्योतिष की नॉलेज से, ग्रहों की नॉलेज से आने वाली आपदाओं को जान लेते हैं । ऐसे हम ब्राह्मण बच्चे इनएडवांस माया द्वारा आने वाले पेपर्स को परखकर पास विद आनर तभी बन सकेंगे जब मनन शक्ति द्वारा ज्ञान सागर के तले में अर्थात ज्ञान की गहराई में जा कर अपने बुद्धि रूपी नेत्र को ज्ञान की दिव्यता से दिव्य और आलौकिक बनाएंगे । और ज्ञान रत्नों के अधिकारी बन सर्व आत्माओं को ज्ञान रत्नों के खजानो से भरपूर करेंगे ।

 

 ❉   कहा जाता है - जैसा चित्र वैसा चरित्र । जैसी स्मृति वैसी स्थिति । अगर स्मृति समर्थ होगी तो स्थिति स्वत: समर्थ बनती जायेगी । इस लिए जितना अपने श्रेष्ठ स्वरूप, श्रेष्ठ तकदीर की तस्वीर को स्मृति में रख उस पर मनन करते रहेंगे तो मनन शक्ति द्वारा मेहनत समाप्त हो जायेगी और अपने श्रेष्ठ स्वरूप का चित्र बुद्धि में स्पष्ट होने से चरित्र भी श्रेष्ठ बन जायेगा । और ज्ञान की गहराई में जा कर ज्ञान रत्नों के अधिकारी बनना सरल हो जायेगा ।

 

 ❉   जैसे शरीर को स्वस्थ रखने के किये भोजन आवश्यक है और भोजन को पचा कर शरीर को शक्ति प्रदान करने के लिए पाचन शक्ति आवश्यक है । इसी प्रकार आत्मा को स्वस्थ रखने के लिए अध्यात्म ज्ञान आवश्यक है और ज्ञान की हर प्वाइंट से स्व को शक्तिशाली बनाने के लिए मनन शक्ति आवश्यक है । क्योकि मनन शक्ति ही अनुभवी स्वरूप बनाती है और जो अनुभवों के खजाने से सदा सम्पन्न है वही अधिकारी है जिसे माया कभी हिला नही सकती ।

 

 ❉   मनन शक्ति द्वारा जितना ज्ञान की गहराई में जाते हैं उतना मन की स्थिति शक्तिशाली बनती है, व्यर्थ से किनारा होता जाता है और आत्मा समर्थ बनती जाती है क्योकि मनन वाला स्वत: मगन रहता है और मगन अवस्था में योग लगाना नही पड़ता लेकिन निरन्तर लगा हुआ ही अनुभव होता है । मगन अर्थात मुहब्बत के सागर में ऐसा समाया हुआ कि कोई अलग ना कर सके । और ऐसे सागर में समाये हुए ही सागर के तले में जा कर रत्नों के अधिकारी बनते हैं ।

 

 ❉   ज्ञान स्वरूप के साथ अनुभवी मूर्त बनने का विशेष आधार है मनन शक्ति । क्योकि अगर आत्मा में ज्ञान है किन्तु अनुभूति की कमी है तो स्व स्थिति कभी भी शक्तिशाली नही बन सकती । जैसे परमात्म सम्बन्ध की अनुभूति की कमी है, ड्रामा के गुह्यता की अनुभूति की कमी है, सर्व शक्तियों के स्वरूप के अनुभूति की कमी है तो जब तक मनन शक्ति द्वारा इस कमी को भरेंगे नही तब तक ज्ञान की गहराई का अनुभव नही कर सकेंगे और सागर के तले में जा कर ज्ञान रत्नों के अधिकारी नही बन सकेंगे ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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