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❍ 29 / 06 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ ×मेरा मेरा× सब छोड़ अपने को आत्मा समझा ?
➢➢ कोई भी पहनने, खाने की इच्छा से √इच्छा मात्रम अविध्या√ बनकर रहे ?
➢➢ पार्ट बजाते हुए कर्म करते अपने √शांति स्वधर्म√ में स्थित रहे ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ √स्व स्थिति√ द्वारा सर्व परिस्थितियों का सामना किया ?
➢➢ स्वयं को √निमित करनहार√ समझ हर कार्य कर थकावट से दूर रहे ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ हर बात को √"त्रिकालदर्शी"√ की सीट पर सेट होकर देखा ?
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/29.06.16-VisheshPurusharth.htm
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - सच्चे सच्चे राजयोगी हो तुम्हे राजऋषि भी कहा जाता है, राजऋषि माना ही पवित्र"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे प्यारे पिता से मिलकर स्वयं को जानकर भोग की दुनिया से निकल योगिराज बन चले हो... पवित्रता को धारण कर पिता की यादो में खोकर भीतर के आनन्द से भरे सच्चे राजऋषि हो चले हो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सदा भोगो में लिप्त रही... और क्षणिक सुखो में ही सांसो को खो रही थी... आपने आनन्द से मेरा जीवन भर दिया है...मुझे मनबुद्धि का राजा बना अपनी मीठी यादो में भर दिया है...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे फूल समान खुशबु से भरे अपने घर से चले थे... खुद को देह समझ विकारो की बदबू से भर गए... अब सच्चे पिता की यादो में समाकर सच्चे राजयोगी बने हो... अतीन्द्रिय सुखो को पाकर इच्छा मात्र अविधा हो चले हो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा मुझ आत्मा को नचाने वाला मन आपकी श्रीमत पर चल मेरा मित्र हो चला है... मेरी बुद्धि पवित्रता से भर कर निखर चली है... मै आत्मा सच्चे सुख को पाकर राजऋषि हो चली हूँ....
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चे पिता धरती पर उतर कर सारे सुख हथेली पर ले आया है... सुनहरे रंगत से सुंदर बना पवित्रता की खुशबु से भर कर राजऋषि सा सजाने आया है... सारी खुशियो को जीने वाले सच्चे सच्चे राजयोगी बन सदा का मुस्कराये हो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... आपकी यादो के साये में बैठकर में आत्मा सुनहरी रंगत से भर चली हूँ... पवित्रता की खुशबु से महक उठी हूँ... मै राजयोगी बन खुशियो के पंख लगाकर उड़ चली हूँ....
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - आत्म-अभिमानी स्थिति का अनुभव करना"
➳ _ ➳ मेरा परिवार, मेरा पद, मेरा नाम... इन सब में अपना असली परिचय भूलते चले गए... अपनी विस्मृति होने से ही मैं आत्मा अपने गुणों को भूलती गई... और सुख शांति के लिए बाहर भटकती रही... संगमयुग पर परमात्मा द्वारा दिव्य ज्ञान मिलने से मुझ आत्मा को अपने गुणों की स्मृति आती जा रही है... मैं आत्माभिमानी रहने की मेहनत कर रही हूं... इस पुरानी दुनिया के आकर्षण से परे होती जा रही हूं... मैं इस तमोप्रधान शरीर को भूलती जा रही हूं... मुझ आत्मा को यहां बहुत सिम्पल रहना है... मुझ आत्मा की सर्व इच्छाऐं समाप्त होती जा रही हैं... परमपिता परमात्मा शिव बाबा को पाने के बाद मैं आत्मा इच्छा मात्रम् अविद्या बनती जा रही हूं....
❉ "ड्रिल - अपने स्वधर्म में रहते दुःखधाम को भूल शांतिधाम व सुखधाम को याद करना"
➳ _ ➳ मीठे प्यारे बाबा मुझ आत्मा को ड्रामा के आदि मध्य अंत का ज्ञान दे रहे है... ज्ञान को धारण करते हुए मैं आत्मा समझ रही हूं कि हर आत्मा अपना एक्यूरेट पार्ट बजा रही है... मैं आत्मा परमपिता परमात्मा की याद में रहते हुए हर कर्म कर रही हूं... मै आत्मा अपना पार्ट बजाते हुए अपने स्वधर्म में स्थित होकर हर कर्म कर रही हूं... मैं आत्मा बिंदु बन बिंदु बाप को याद कर रही हूं... अपने घर शांतिधाम सुखधाम को याद कर रही हूं... जहां अथाह सुख शांति है... इस पुरानी दुःख देने वाली दुनिया दुःखधाम को भूलती जा रही हूं...
❉ "ड्रिल - स्वयं को निमित्त समझ करनकरावनहार की स्मृति मे रहकर कर्म करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा 84 जन्मों से अलग अलग पार्ट बजाती आ रही हूं... ये शरीर अमानत है... मैं तो मेहमान हूं... इस जन्म में ये शरीर मुझे सेवार्थ मिला है... करनकरावनहार बाबा है... मैं तो निमित्त बन बस करनहार हूं... अपने को पार्टधारी आत्मा समझ करा रही हूं... मैं आत्मा शक्तिशाली हूं... आत्मा समझ कर्म करने से मैं थकावट अनुभव नही कर रही हूं... मैं आत्मा अथक हूं... मेरे प्यारे मीठे बाबा करावनहार करा रहे हैं... और मैं आत्मा करनहार करती जा रही हूं... ।
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- "मैं अव्यक्त स्तिथि की अभ्यासी आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳ मैं आत्मा हूँ... निराकार हूँ... बाप का बच्चा हूँ... मैं आत्मा श्रीमत पर चलनेवाला ऊँच तक़दीर वान हूँ... मैं आत्मा मीठे बाबा को प्यार से याद करने वाला मीठा बच्चा हूँ... मैं आत्मा बाप से स्वर्ग का वर्सा ले रहा हूँ...
➳ _ ➳ बाप को प्यार से याद कर रहा हूँ... मैं आत्मा देही-अभिमानी सतोप्रधान फरिश्ता हूँ... मैं आत्मा याद और पढ़ाई से ही पावन बनकर बाप के साथ घर जाऊंगा... मैं आत्मा बाप का विनम्र बच्चा हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा पहले आप करने वाली चतुरसुजान सो ताजधारी हूँ... मैं एकान्तवासी हूँ… अन्तर्मुखी हूँ… मैं स्व-स्तिथि द्वारा सर्व परिस्थितियों का सामना करने वाली इस अव्यक्त स्थिति की अभ्यासी सर्व श्रेष्ठ आत्मा हूँ...
➳ _ ➳ अव्यक्त स्तिथि में ही निरन्तर स्तिथ रहना मुझ आत्मा का निजी संस्कार है... मैं आत्मा अपनी पुरानी आदतों का, पुराने संस्कारों का, पुरानी बातों का पूर्ण रूप से अंतिम संस्कार कर चुकी हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा पूर्ण रूप से इस पुरानी दुनिया से वैराग्य का अनुभव कर रहीं हूँ... यह मुझ आत्मा की शक्ति बन गयी है... मैं अपनी इस स्व स्तिथि द्वारा हर परिस्थिति का सामना दृढ़ता से करने में सम्पूर्ण रूप से समर्थ हूँ... यह मेरी आदत बन गयी है...
➳ _ ➳ यह अभ्यास अब नेचुरल बन मुझ आत्मा का नेचर बन गया है... अब मैं आत्मा अपनी इस स्व स्तिथि की शक्ति से सम्पन्न होकर हर छोटी बड़ी परिस्थिति को सहजता से पार करने में स्वयं को सम्पूर्ण रूप से सक्षम अनुभव कर रही हूँ... इस आदत द्वारा मैं आत्मा अदालत में जाने से भी बच गयीं हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ स्व स्थिति द्वारा सर्व परिस्थितियों का सामना करने वाले अव्यक्त स्थिति के आभासी होते हैं.... क्यों और कैसे ?
❉ जो अपने देहभान के संकल्प को, शरीर व शरीर के सम्बंध सम्पर्क की वस्तुओं को व साधनों की प्राप्ति के संकल्पों को समेट लेते हैं । अब घर जाने के संकल्प के सिवाय अन्य किसी संकल्प को नही लाते व अशरीरीपन का अनुभव करते बुद्धि द्वारा जब चाहे शरीर में आते ऐसे अपनी ऊंची स्टेज पर रह हर परिस्थिति का सामना करने वाले अव्यक्त आभासी होते हैं ।
❉ जिन बच्चों को अव्यक्त स्थिति में रहने का अभ्यास होता है व इस अभ्यास को नेचुरल व नेचर बना लेते है तो जितनी नेचुरल कलाइमिटीस आती है तो उनका सामना करने वाले स्व स्थिति से हर परिस्थिति को पार करने वाले अव्यक्त स्थिति के आभासी होते हैं ।
❉ जो सदा स्वमान की सीट पर सेट रहकर स्वस्थिति उपराम रखते और परस्थिति नीचे रखते है नीचे रखी हुई कोई भी वस्तु हमेशा छोटी लगती है ऐसे अपनी उपराम स्थिति द्वारा परस्थिति का सामना करने वाले अव्यक्त स्थिति के आभासी रहते हैं ।
❉ सदा अपने को फर्श निवासी नही अर्शनिवासी समझते है । हर कर्म करते अपने को हीरो पार्ट धारी समझते हैं । हर कदम अपने पर अटेन्शन रखते है। ऐसे स्व स्थिति द्वारा परिस्थिति का सामना करने वाले अव्यक्त स्थिति के आभासी होते है
❉ जो बाप समान अव्यकत फरिश्ते स्वरूप में रहते हैं मेरा एक बाप दूसरा न कोई । बाप भी जब अव्यक्त तो उसके साथ कम्बाइण्ड स्वरूप् में स्थित हो तो अव्यकत स्थिति का आभास स्वतः हो जाता है । सदा प्यारी और न्यारी स्थिति में रहते सदा कर्मेन्द्रिय जीत रहते हैं । ऐसे स्व स्थिति द्वारा हर परिस्थिति का सामना करने वाले अव्यक्त स्थिति के आभासी होते है ।
❉ जो स्व स्थिति माना आत्मिक रूप से रूहानियत से सम्पन्न आत्मिक रूप से केवल एक बेहद के बाप की याद मे रहते हैं और सदा आत्मिक रूप से उनके साथ कम्बाइन्ड स्वरूप् की स्थिति में स्थित और अचल अडोल अर्थात श्वांसो श्वांस् में अव्यक्त स्थिति के आभासी होते हैं ।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ स्वयं को निमित करनहार समझो तो किसी भी कर्म में थकावट नही हो सकती... क्यों और कैसे ?
❉ जो करन करावन हार बाप की छत्रछाया में रह स्वयं को निमित करनहार समझ हर कर्म करते हैं और स्वयं को ट्रस्टी समझ सब कुछ बाप को अर्पित कर देते हैं । उनकी हर जिम्मेवारी बाप अपने कंधो पर उठा लेते हैं । इसलिए लौकिक और अलौकिक प्रवृति में रहते हुए भी वे स्वयं को निर्बंधन अनुभव करते हैं । और हर बात में सदा इजी रहते हैं । हल्के हो हर कर्म करने से वे कभी भी थकावट का अनुभव नही करते ।
❉ स्वयं को करन हार समझ हर कर्म करने वाले सम्पूर्ण समर्पण भाव से सब कुछ बाप को समर्पित कर मेरा को तेरा में परिवर्तन कर , सारे बोझ बाप को दे स्वयं हल्के रहते हैं । निरन्तर एक बाप की याद में रह हर कर्म निमितपन की स्मृति मे करने से वे सहज ही सर्व से न्यारे और बाप के प्यारे बन जाते हैं जिससे हर कदम पर उन्हें बाप की मदद का अनुभव होता रहता है जो उन्हें डबल लाइट स्थिति का अनुभव करा कर थकावट से मुक्त रखता है ।
❉ जैसे ब्रह्मा बाप ने साकार जीवन में हर कदम पर स्वयं को करनहार समझ हर कर्म किया । सेवा वा कोई कर्म छोड़ा नहीं लेकिन न्यारे होकर सेवा की । हर सेवा में स्वयं को निमित समझाऔर करावनहार बाप की मदद से हर कर्म में सफलता का सहज अनुभव किया । ऐसे ब्रह्मा बाप को फॉलो करते हुए स्वयं को निमित करनहार समझ हम भी जब हर कर्म करेंगे तो किसी भी कर्म को करने में थकावट का अनुभव नही होगा क्योकि बाप का हाथ और साथ हर मुश्किल कार्य को सहज बना देगा ।
❉ संगमयुग पर स्वयं परमपिता परमात्मा बाप हम बच्चों की सेवा करने के लिए सेवाधारी बन करके आते हैं और अपनी छत्रछाया के रूप में हम बच्चों की सेवा करते हैं । किन्तु बाप की छत्रछाया का अनुभव हम तभी कर सकते हैं जब स्वयं को करनहार निमित समझ कर हर कर्म करते हैं । क्योकि स्वयं को ट्रस्टी समझ हर कर्म करने से पहले जब बाबा को याद करते है तो याद करते ही सेकण्ड में साथ का अनुभव होता है और यह याद की छत्रछाया हर मेहनत से मुक्त कर देती है जिससे कार्य में थकावट का अनुभव नही होता ।
❉ स्वयं को करन हार निमित समझने की बजाए जब करावन हार समझते हैं तो " मैंने किया " का संकल्प मन बुद्धि को भारी कर देता है क्योकि यह संकल्प देह - अभिमान में लाता है और देह का भान निर्बन्धन स्थिति का अनुभव नही होने देता । किसी भी बन्धन में बन्ध कर जो भी कर्म किया जाता है उसमे बोझ अनुभव होता है जो आत्मा को उड़ती कला के अनुभव से वंचित कर देता है । इसलिए हर कर्म में मेहनत का अनुभव होता है और मेहनत से किये हर कार्य में थकावट महसूस होती है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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