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 15 / 04 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

‖✓‖ °हद की साहूकारी° का नशा, फैशन आदि का त्याग किया ?

 

‖✓‖ "°हीयर नो ईविल... सी नो ईविल°" - इस धारणा को धारण किये रखा ?

 

‖✗‖ किसी पर °प्रभावित° तो नहीं हुए ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

‖✓‖ सदा °रहम और कल्याण° की दृष्टि से विश्व की सेवा की ?

 

‖✓‖ °मान, शान का त्याग° कर अपने समय को बेहद सेवा में सफल कर परोपकारी बनकर रहे ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

‖✓‖ °सब बोझ बाप को° दे स्वयं को निमित समझ हर कार्य किया ?

 

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To Read Vishesh Purusharth In Detail, Press The Following Link:-

 

http://bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/15.04.16-VisheshPurusharth.htm

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∫∫ 4 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - देवता बनना है तो अमृत पियो और पिलाओ, अमृत पीने वाले ही श्रेष्ठाचारी बनते है"

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों यह ज्ञान अमृत ही देवताई स्वरूप में सजाएगा... बाकी और ज्ञान तो व्यर्थ में ही उल्झायेगा... इस अमृत को पियो और पिलाओ और महकते श्रेष्ट खूबसूरत देवताई लिबास में सजधज् इतराओ...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मेरे लाडलो.. ज्ञान अमृत से अमरता को पाते हो...  सुनहरे उजले असली रूप को पाते हो...तो इसी अमृत का रसपान करो और कराओ... यह ज्ञान अमृत ही जीवन को गुणो से महकायेगा...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मीठे बच्चों बिना ज्ञान के कितना भटक गए हो सत्य से कितना दूर जा कितने भर्मित हुए पड़े हो... अब इस ज्ञान के नशे में भर जाओ और ओरो पर भी बरसाओ... और अपना चमकीला रूप पाओ...

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चों जनमो के दुखो ने उजले रूप को काला बनाया... मै सत्य पिता सत्य ज्ञान से उजलाने दौड़ा आया... अब इस में डूब आनन्दित हो जाओ...इसी अमृत को सदा छ्लकाओ...और श्रेष्ट निजता को पाओ...

 

 ❉   मेरा बाबा कहे - मेरे सिकीलधे बच्चों आपको देवता बनादे यह दम किसी और में नही... मेरे ज्ञान अमृत को कोई और चखा दे यह किसी के बस में नही...जो मनुष्य से श्रेष्ठाचारीदेवता रूप में सजा दे.. इस खूबसूरत अमृत के नशे में डूब जाओ और सबको डुबो दो....

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∫∫ 5 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-15)

 

➢➢ पारसबुद्धि बनने के लिए पढ़ाई पर पूरा-पूरा ध्यान देना है श्रीमत पर पढ़ना और पढ़ाना है ।

 

  ❉   63 जन्मों से देहभान में रहते विकारों में गिरते चले गए व पतित हो गए । अपने बच्चों को पतित व दुःखी देख स्वयं बाप आए हैं व सुप्रीम टीचर बन हमें पढ़ाने के लिए पतित दुनिया में आते हैं तो हमें पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना है ।

 

  ❉   अभी तक तो हम पत्थर बुद्धि थे व अपनी पहचान ही भूल गए थे । अब पुरुषोत्तम संगमयुग पर पारसनाथ स्वयं आकर अपने बच्चों को पढ़ाकर पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बना रहे हैं तो ऐसी ऊंच पढ़ाई पर पूरा अटेंशन देना है ।

 

  ❉   मैं कौन हूं व मेरा कौन है , सृष्टि के आदि मध्य अंत  का ज्ञान, 84 जन्मों के चक्र का ज्ञान ये रुहानी पढ़ाई व अनमोल अखूट ज्ञान रत्न सिवाय पारसनाथ के कोई दे न सके । इन ज्ञान रत्नों को धारण करने के लिए बुद्धि की लाइन कलीयर रखनी है ।

 

  ❉   ऊंच ते ऊंच बाप श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत देते है तो हमें सम्पूर्ण रीति श्रीमत पर चलना है और पढ़ाई कभी मिस नहीं करनी है । पढ़ाई अच्छी रीति पढ़नी और पढ़ानी है । ज्ञान रत्नों को धारण करने से ही बुद्धि व आत्मा पर लगी जंग उतरेगी । जितना बाप को याद करेंगे बुद्धि शुद्ध व पावन बनती जायेगी ।

 

  ❉   ये रुहानी पढ़ाई बेस्ट व वंडरफुल पढ़ाई है व सोर्स आफ इनकम है जिसकी प्रालब्ध हमें 21 जन्म तक प्राप्त होती है । इस पढ़ाई से ही हम भविष्य में विश्व में राजाई पद प्राप्त करेंगे । तो ऐसी ऊंच पढ़ाई पर पूरा पूरा ध्यान देना है ।

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∫∫ 6 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-15)

 

➢➢ सदा रहम और कल्याण की दृष्टि से विश्व की सेवा करने वाले विश्व परिवर्तक होते हैं... क्यों और कैसे ?

 

  ❉   जो बच्चे विश्व सेवाधारी होते है उन्हें हमेशा सर्विस का फुरना रहता है व सर्विस में  नवीनता लाते हैं । सबको उमंग उत्साह में लाकर आगे बढ़ाते हैं  व सब को सच्चा सच्चा ज्ञान देकर बाबा से जोडते व जैसे बाबा से मिलकर हमें सर्व खजाने प्राप्त हुए ऐसे सब को बाबा से मिलाएं और सबका कल्याण हो ।

 

  ❉   बाबा जो सुख का सागर, प्यार का सागर, आनन्द का सागर हैं व हम उसके बच्चे मास्टर प्यार का सागर, मास्टर सुख का सागर... है व बाप समान बन सबका भला करते सबके प्रति शुभ भावना शुभ कामना रखते सबकी सेवा करते निरंतर आगे बढ़ते हैं व स्व का परिवर्तन कर विश्व परिवर्तक होते हैं ।

 

  ❉   पहले स्व के ऊपर रहम और कल्याण कर अपने  पुराने संस्कार परिवर्तन करते हैं फिर दूसरों पर रहम और कल्याण की दृष्टि  दे सेवा करने वाले विश्व परिवर्तक होते है

 

  ❉   आत्म अभिमानी  स्थिति में रह देह को नही देखते व दूसरे के प्रति भी यही भाव रखते कि ये भी बाबा का मीठा बच्चा है व मेरा आत्मा भाई है तो रहम और कल्याण की दृष्टि रखते और विश्व परिवर्तक बनते है

 

  ❉   अपने रहम और कल्याण की दृष्टि से जिस किसी दुखी व अशांत आत्मा को देखते उसकी मनसा से सेवा कर सुख व शांति की वायब्रेशनस देकर व बाप से मिले खजानों से सर्व आत्माओं को भिखारी से अधिकारी बनाते है । हर संकल्प,कर्म, बोल और दृष्टि से सेवा करते विश्व परिवर्तक होते है ।

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∫∫ 7 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ मान, शान का त्याग कर अपने समय को बेहद सेवा में सफल करना ही परोपकारी बनना है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   हद के नाम, मान और शान की कामना मन को भारी बनाती है । और मन पर बोझ होने से लाइट माइट स्थिति का अनुभव नहीं किया जा सकता । जिससे सेवा में सफलता भी प्राप्त नहीं हो सकती । इसलिए निष्काम सेवाधारी बन जो अपने समय को बेहद सेवा में सफल करते हैं । वे डबल लाइट स्थिति में स्थित होकर सब पर उपकार करते हुए परमात्मा के अति प्रिय बन जाते हैं ।

 

 ❉   मान और शान की इच्छा कर्म में बल का अनुभव नहीं होने देती । बल नहीं तो फल भी प्राप्त नहीं होता । इसलिए निस्वार्थ भाव से, सच्चे महावीर बन, परमात्म प्रेम में मग्न होकर जो बेहद की सेवा में अपने समय और संकल्प को सफल करते हैं । वही सच्चे परोपकारी बन बेहद विश्व की आत्माओं का कल्याण करते हैं ।

 

  ❉   सेवा में मान और शान की इच्छा का भाव समाया होगा तो सेवा सुख का अनुभव नहीं कराएगी । क्योंकि उस सेवा में संतुष्टता नहीं होगी । इसलिए जब हम मान और शान की इच्छा से रहित होकर अपने समय को बेहद सेवा में सफल करेंगे । तो स्वयं भी संतुष्ट रहेंगे तथा औरों को भी संतुष्ट कर सब पर उपकार कर सकेंगे ।

 

 ❉   दया ही सच्चे दिल से सेवा करना सिखाती है । कहा भी गया है " दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान "

इसलिए हद के मान, शान की इच्छा से रहित होकर, भावना के साथ जब सच्चे दिल से बेहद सेवा में अपने समय और संकल्प को सफल करेंगे । तो परोपकारी बन अपने हर कर्म से औरों का कल्याण कर सकेंगे । और सर्व की दुआओं के पात्र बन सकेंगे ।

 

 ❉   परमात्मा बाप कहते हैं स्वमान में रहो तो मान परछाई की तरह पीछे आता रहेगा । इसलिए स्वमान की सीट पर सदा सेट रहकर, हद की सभी इच्छाओं को त्यागकर, ईश्वरीय सेवा में जब स्वयं को ऑफ़र करेंगे और परोपकारी बन सत्कर्म करते रहेंगे । तो परमात्मा बाप के दिलतख्त पर सदा विराजमान रहेंगे और सर्व के सम्माननीय भी सहज ही बन जाएंगे ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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