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❍ 03 / 06 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ जो भी आया, उसकी झोली √ज्ञान रत्नों√ से भरी ?
➢➢ √चलते फिरते√ बाप की याद में रहे ?
➢➢ √सर्व संबंधो√ की रसना एक बाप से ली ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ √समय√ के श्रेष्ठ खजाने को सफल किया ?
➢➢ एकाग्रता द्वारा सागर के तले में जाकर √अनुभवों के हीरे मोती√ प्राप्त किये ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ स्वयं को टीचर न समझ √सेवाधारी√ बनकर रहे ?
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➳ _ ➳ http://bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/03.06.16-VisheshPurusharth.htm
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं सर्व सफलतामूर्त आत्मा हूँ ।
✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-
➳ _ ➳ मैं दृढ़ संकल्पधारी आत्मा हूँ... टिक जाएँ इस सर्वश्रेष्ठ वरदानी स्वमान में... अनुभव करेंगे दृढ़ता की शक्ति का... व्यर्थ से मुक्त होने के संकल्प को, दृढ़ता की शक्ति से भरपूर करेंगे...
➳ _ ➳ मन ही मन दोहराते रहें इस संकल्प को... ऑलमाइटी अथॉरिटी मेरे अविनाशी पिता हैं... उन्होंने मुझे वरदान दिया है व्यर्थ से मुक्त रहने का... हर घडी, हर मिनट, हर घण्टे, स्मृति दिलाएंगे स्वयं को सर्व शक्तिमान, सर्व श्रेष्ठ, सर्वोदय, सर्व उपकारी, सदा पावन, परमपिता परमात्मा शिव के इस वरदान की...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अब समय के श्रेष्ठ खज़ानों को सफल करने में समर्थ हो गयी हूँ... मैं इस समय के ख़ज़ाने को स्वयं के वा सर्व के कल्याण प्रति लगा रहीं हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा आज अपने प्यारे बाबा के समक्ष यह दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मैं समय के महत्व को जानकार उसे सदा सफल करुँगी... मैं अल्बेलेपन को छोड़ कर समय का खज़ाना सफल करुँगी...
➳ _ ➳ इन्हीं दृढ़ संकल्पों के साथ मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि संकल्प का खज़ाना, ख़ुशी का खज़ाना, शक्तियों का खज़ाना, ज्ञान का खज़ाना और क्षमा का खज़ाना, यह सर्व ख़ज़ाने मेरे लिए स्वतः ही जमा हो गए हैं... मैं आत्मा सर्व सफलतामूर्त बन गयीं हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - तुम्हारे पास अविनाशी ज्ञान रत्नों का अथाह खजाना है तुम उसका दान करो तुम्हारे दर से कोई वापिस नही जाना चाहिए"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे ईश्वरीय कीमती ज्ञान रत्नों से आपका दामन सजा है... उनको भर भर कर लुटाओ सबके जीवन को रत्नों से भर मालामाल करो... कोई खाली न जाय वापिस न जाय इस कदर यह खजाना लुटाओ कि दुनिया अभिभूत हो चले...
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे आपको ईश्वर ने सारी जागीर देकर मा ज्ञान सागर बना दिया है... अब इस अमीरी को जरा छलका कर चारो और फैला दो... हर किसी की झोली भर कर अमीरी का दान करो... कोई भी निराश हो न चला जाय यह ध्यान रखो...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे अपनी सारी दौलत मुझ पिता ने आपको देकर ज्ञान रत्नों से आबाद किया है... कितना धनवान् बना दिया है अब इस दौलत को सबको लुटाओ... जितना लुटाओगे यह अमीरी और बढ़ेगी...कोई मायूस होकर आपके घर से न लौटे...
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चे मेरे खजानो को मेरे और भी बच्चों पर लुटाओ... उनको भी ज्ञान रत्नों से भरपूर कर आओ... कोई भी बच्चा खाली न रह जाय इस कदर ज्ञान की बरसात कर खिला आओ...
❉ मेरा बाबा कहे - ईश्वरीय अथाह खजानो से सम्पन्न हो चले हो... तो अब उन खजानो से सबको खुशहाल करो सबके जीवन को खुशियो से खिलाओ... कोई इन खजानो से खुशियो से ज्ञान धन से वंचित न रह जाय... सबको भरपूर कर आओ...
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ बाप की याद से ही कल्याण होना है, इसलिए जितना हो सके चलते-फिरते बाप की याद में रहना है । सर्व सम्बंधों की रसना एक बाप से लेनी है ।
❉ भगवान की तो महिमा अपरम्पार है । शिव परमात्मा बाप की जो श्रीमत देते हैं , वह सबसे न्यारी है । बाप जो पढ़ाते हैं उसे अच्छी रीति धारण करना है व पावन बनना है । अपने बुद्धि रुपी बर्तन को सोने का व शुद्ध बनाना है तभी याद ठहर सकती है । याद से ही हमे अपने विकर्म विनाश करने हैं ।
❉ चलते फिरते, उठते बैठते जब भी समय मिले बस एक बाप की याद में रहना है । कहा भी गया है- हथ कार डे दिल यार डे अर्थित हाथों से भल काम करते रहो बुद्धियोग बाप से लगा रहे । बाप की याद से ही कल्याण होना है ।
❉ ये देह के सबंध तो विनाशी हैं व मिट्टी में ही मिल जाने है । इसलिए बस अपने को आत्मा समझ परम आत्मा बाप को याद करना है । लौकिक में भी जिस बाप से पता होता है कि अच्छी प्रापर्टी मिलनी है तो भूलते है क्या लौकिक पिता को । फिर बेहद के बाप से बेहद का वर्सा मिलता है फिर क्यूं भूल जाते । इसलिए देहभान को छोड़ देही अभिमानी बनना है व बस बाप को ही याद करना है ।
❉ हम गाते भी है दुःखहर्त्ता सुखकर्त्ता .... सर्व का सदगति दाता एक ही है व वही हमारा सब कुछ है मात पिता भाई बंधु साथी ...। लौकिक टीचर से पढ़कर उस पढ़ाई से तो अल्पकाल की कमाई होती है । सुप्रीम टीचर से पढ़कर.तो 21 जन्मों की कमाई होती है । इसलिए बस एक बाप को ही याद करना है ।
❉ अभी तक तो जो देह व देहधारियों से सम्बंध निभाते आए तो उनसे दुख ही मिला फिर उनमें कोई मोह नही रखना व उनसे बुद्धियोग हटाना है । बाबा ही सक्रीन जैसा मीठा है । इसलिए सर्व सम्बंधों की रसना बस बाप से ही रखनी है । बस बाबा कहो व जिस सम्बंध से याद करो बाबा अपने बच्चों के लिए जी हाजिर है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ समय के श्रेष्ठ खजाने को सफल कर सदा और सर्व सफलतामूर्त होते हैं.... क्यों और कैसे?
❉ जो बच्चे यह स्मृति में रखते कि इस पुरुषोत्तम संगमयुग पर हमें स्वयं भगवान मिले हैं व कह रहे हैं - बच्चे, सफलता तुम्हारा जन्मसिद्ध अधिकार है । इसलिए हर कर्म में बाबा को याद करते व साथ रख निश्चयीबुद्धि होकर अपने हर क्षण को सफल करते सदा और सर्व सफलतामूर्त होते हैं ।
❉ जो बच्चे समय के महत्व को स्वयं वा सर्व के प्रति कल्याण में लगाते हैं उनके सर्व खजाने स्वतः जमा हो जाते हैं । संकल्प का खजाना, खुशी का खजाना, शक्तियों का खजाना, ज्ञान का खजाना.... यह सब खजानें जमाकर समय के महत्व को जानकर सफल करते हैं और सदा और सर्व सफलतामूर्त होते हैं ।
❉ मैं संगमयुगी आत्मा हूँ इसलिए भाग्यवान आत्मा हूँ । मुझे यह हीरे तुल्य जन्म मिला है क्योंकि इस संगम पर मुझे मेरे सच्चे परमपिता मिले हैं । यह समय मेरे लिए मूल्यवान है इस का हर पल मैने बाबा की याद सफल करना है । ऐसे स्मृति में रखने वाले सदा और सर्व सफलता प्राप्त करते है
❉ जो बच्चे यह स्मृति में रखते कि ये पुरुषोत्तम संगमयुग है व इसका एक एक क्षण एक साल के बराबर है व ये समय कमाई का है और भगवान ने स्वयं इस समय भाग्य लिखने की कलम हम बच्चों को दी है तो मुझे हर कर्म करते याद में रह करना है तो समय के श्रेष्ठ खजाने को सफल कर सदा और सर्व सफलतामूर्त होते हैं ।
❉ जो ब्राह्मण बच्चे ये स्मृति में रखते है कि इस संगमयुग पर स्वयं भगवान ने मुझमें कोई विशेषता देखी व मुझे अपना बनाकर विश्व परिवर्तन के कार्य की जिम्मेवारी के निमित्त चुना तो अपना हर संकल्प, बोल, कर्म बाप के लिए रखते समय के श्रेष्ठ खजाने को सफल करते सदा और सर्व सफलतामूर्त होते है ।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ एकाग्रता द्वारा सागर के तले में जाकर अनुभवों के हीरे मोती प्राप्त करना ही अनुभवी मूर्त बनना है... क्यों और कैसे ?
❉ एकाग्रता द्वारा सागर के तले में जाकर अनुभवों के हीरे मोती प्राप्त करने वाली अनुभवी मूर्त आत्मा तब बन सकेंगे जब पहले स्वयं के संकल्प शुद्ध होंगे तथा अन्य संकल्पों को सेकेण्ड में कन्ट्रोल करने का विशेष अभ्यास होगा । जब सारा दिन शुद्ध संकल्पों के सागर में लहराते रहेगे और जिस समय चाहे शुद्ध संकल्पों के सागर के तले में जाकर साइलेंस स्वरूप हो जायेंगे तब अनुभवीमूर्त बन सकेंगे ।
❉ संकल्प शक्ति अपने कन्ट्रोल में होने के साथ जब आत्मा की विशेष शक्तियाँ मन, बुद्धि और संस्कार, तीनों ही अपने अधिकार में होंगी तब अनुभवीमूर्त बन सकेंगे । मन ने संकल्प किया और बुद्धि ने तुरन्त मन का साथ दिया और सेकण्ड में मन बुद्धि से वहां पहुँच गए जहां पहुंचना था लेकिन यह तभी होगा जब एकाग्रता की शक्ति होगी और एकाग्रता की शक्ति द्वारा ही सागर के तले में जाकर अर्थात ज्ञान की गहराई में जा कर अनुभवों के हीरे मोती प्राप्त करने वाली अनुभवी मूर्त आत्मा बन सकेंगे ।
❉ एकाग्रता अर्थात् एक ही श्रेष्ठ संकल्प में स्थित रहना । जिस एक बीज रूपी संकल्प में सारा वृक्ष रूपी विस्तार समाया हुआ है । इसलिए जितना एकाग्रता को बढ़ाते जायेंगे, सर्व प्रकार की हलचल समाप्त होती जायेगी और सब संकल्प, बोल और कर्म सहज सिद्ध होते जायेंगे । जितना एकाग्रता के अभ्यास द्वारा एकरस स्थिति का अनुभव करेंगे उतना ज्ञान की गहराई में जा कर अनुभवों के हीरे मोती प्राप्त करने वाली अनुभवीमूर्त आत्मा बनते जायेंगे ।
❉ सागर के तले में जाकर अनुभव के हीरे, मोती लाना अर्थात ज्ञान सागर की लहरों में लहराने का अनुभव करना । अमूल्य खज़ाने सागर के तल में ही मिलते हैं इस बात को जितना बुद्धि में धारण करेंगे और सभी बातों से आटोमेटिकली किनारा होता जायेगा और जितना सब बातों से किनारा होगा उतना ही मन बुद्धि में एकाग्रता की शक्ति बढ़ती जायेगी और अनेक प्रकार के विचित्र अनुभव करते हुए अनुभवी मूर्त आत्मा बनते जायेगे ।
❉ जितना सागर के तले में जाते हैं उतना बहुमूल्य रत्न मिलते हैं । ऐसे ही जितना ज्ञान की गहराई में जायेंगे उतना अनुभवो के रत्न मिलेंगे और ऐसे अनुभवी मूर्त बन जायेंगे जो हमारे अनुभवों को देख अनेको आत्माओं को अनेक प्रकार के सुखद अनुभव होंगे । क्योकि वर्तमान समय प्रमाण आत्माये ज्ञान सुनने और सुनाने की इच्छुक नही हैं बल्कि अनुभव करने की इच्छुक है । इसलिए अनुभवीमूर्त बनने के लिए आवश्यक है एकाग्रता द्वारा सागर के तले में जाकर अनुभवों के हीरे मोती प्राप्त करना ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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