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❍ 08 / 12 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *याद में रहने सतोप्रधान बनने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *"हमें पढाने वाला स्वयं ऊंचे ते ऊंचा बाप है" - सदा यह ख़ुशी रही ?*
➢➢ *विचार सागर मंथन किया ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *मैंपन के बोझ को समाप्त कर प्रतक्ष्यफल का अनुभव किया ?*
➢➢ *ज्ञानदान के साथ गुणदान किया ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ *आज बाकी दिनों के मुकाबले एक घंटा अतिरिक्त °योग + मनसा सेवा° की ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - तुम जो भी सुनते हो उस पर विचार सागर मन्थन करो तो बुद्धि में यह ज्ञान टपकता रहेगा"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... अब तक संसार से असत्य सुनकर सत्य से कोसो दूर हो चले... अब सच्चे पिता को जो किस्मत से पाया है... पुण्यो ने ईश्वरीय गोद में बिठाया है तो पिता के *हर महावाक्य पर गहराई से मनन करो*और मन्थन कर इसे अपनी शक्ति बनाकर सुखो में मुस्कराओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा मै आत्मा आपके हर अमूल्य महावाक्य को आत्मसात करती जा रही हूँ... और *मन्थन से अपने स्वरूप को निरन्तर निखारती जा रही हूँ.*.. ईश्वरीय ज्ञान रत्नों की झनकार प्रतिपल बुद्धि में गूंज रही है...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... अब व्यर्थ की बातो से किनारा कर ईश्वरीय संग में जीवन को ऊंचाइयों पर ले चलो... *ईश्वर पिता के अनमोल रत्नों को हर पल स्म्रति में मथते रहो*... यह ईश्वरीय बुद्धि जीवन को श्रेष्ठतम बनाकर सतयुगी सुखो को बाँहों में ले आएगी...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा की यादो में बातो में खोयी हुई हूँ... मीठा बाबा और अमूल्य पढ़ाई ही मुझ आत्मा का परम् लक्ष्य है... मै आत्मा मीठे बाबा के *महावाक्यों के मन्थन से उत्कृष्ट बुद्धि को पाती जा रही हूँ*...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देह और देहधारियों के व्यर्थ चिंतन से खोखले हो चले हो... और बुद्धि को निकृष्ट कर शक्तिहीन बेनूर हो गए हो... अब परम् शिक्षक के अनमोल रत्नों को हर पल स्मरण में लाओ और *देवताओ सा सुंदर महकता जीवन और खुबसूरत मन बुद्धि लिए विश्व मालिक* की शान पाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा संसार की हर व्यर्थ बात से अलग होकर *ईश्वर पिता के साये में अनन्त ऊंचाइयों को पाती जा रही हूँ.*.. मीठे बाबा के ज्ञान रत्नों से मेरी बुद्धि देवताओ सी सज रही है... निरन्तर ईश्वरीय महावाक्यों से जीवन महक चला है...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा बालक सो मालिक हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं संगमयुगी ब्राह्मण आत्मा कोटो में से कोई, कोई में भी कोई हूँ... परमपिता परमात्मा ने मुझ आत्मा को गोद लेकर अपना बच्चा बनाया... मैं आत्मा साधारण जीवन से निकल श्रेष्ठ जीवन में आ गई... कलियुग से निकल श्रेष्ठ संगमयुग पर आ गई... मुझ आत्मा की *दृष्टि, वृत्ति, बोल, कर्म सबमें अलौकिकता* आ गई...
➳ _ ➳ मैं आत्मा स्वयं को सिर्फ निमित्त समझकर *पावर हाउस से कनेक्शन* जोड़कर बैठ जाती हूँ... मैं आत्मा एक बाप से लगन लगाती हूँ... इस लगन की अग्नि से सारी चिंतायें समाप्त हो रही हैं... अब मुझ आत्मा को न तन की चिंता है... न धन की चिंता है... न मन में कोई व्यर्थ चिंता है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा *हर कदम में फालो फादर* करती हूँ... अब मैं आत्मा किसी भी प्रकार के मैंपन में नहीं आती हूँ... मैं आत्मा सब प्रकार के बोझ बाबा को देकर निश्चिंत हो गई हूँ... मैं आत्मा बोझ मुक्त होकर खुशी में नाच रही हूँ... रुहानी नशे में उड रही हूँ... मैं आत्मा जब चाहे बच्चा बन बाबा की गोद में बैठ जाती हूँ... जब चाहे बाबा के वर्से की अधिकारी बन मालिक बन जाती हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा बालक सो मालिक समझकर श्रेष्ठ स्टेज पर स्थित रहती हूँ... सदा प्रत्यक्ष फल की अनुभूति करते रहती हूँ... मुझ ब्राह्मण आत्मा को न सर्विस की चिंता है... न भाषण की चिंता है... बापदादा सबकुछ स्वतः करा देते हैं... अब मैं आत्मा *दिलशिकस्त न बन बाबा की दिलतख्तनशीन* बन गई हूँ... अब मैं आत्मा मैंपन के बोझ को समाप्त कर प्रत्यक्ष फल का अनुभव करने वाली बालक सो मालिक हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ज्ञान दान के साथ-साथ गुणदान कर सफलता प्राप्त करना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सर्व गुणों की खान शिवपिता की सन्तान हूँ... जैसे मेरे पिता परमात्मा सर्व गुणों का सागर है... मैं आत्मा भी सर्व गुणों से भरपूर हूँ... दिव्य गुण ही मुझ ब्राह्मण आत्मा के श्रृंगार हैं... दिव्य गुणों से सजकर मैं आत्मा गुणमूर्त बन गई हूँ... कदम-कदम पर अपने हर कर्म में अपने गुणों का दान करती रहती हूँ... ज्ञान दान के साथ-साथ गुणों का दान कर *मैं आत्मा सफलतामूर्त बन गई हूँ...*
➳ _ ➳ *जैसा कर्म मैं करूंगी, मुझे देख सब करेंगे...* मैं आत्मा अपने हर कर्म को दिव्य गुणों की खुशबू से महका कर श्रेष्ट कर्मों में तब्दील करती हूँ... मेरे दिव्य गुणों की खुशबू... सर्व आत्माओं को आकर्षित करती है... मेरे दिव्य गुणों की खुशबू अन्य आत्माओं को भी महका रही हैं... और उन्हें प्रेरित कर रही हैं... उन गुणों को स्वयं के कार्य व्यवहार में लाने के लिए...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने गुणो का दान करने वाली... महादानी आत्मा बन गई हूँ... ज्ञान दान के साथ-साथ अपने गुणों का दान करना, महादान हैं... इस दान से मैं आत्मा, अन्य आत्माओं को भी बहुत सहज ही आप समान बनाती जाती हूँ... मैं गुणमूर्त आत्मा, अन्य आत्माओं को भी गुणमूर्त बनाती जाती हूँ... ऐसा करने से *सफलता सदा मेरे कदम चूमती हैं...*
➳ _ ➳ परमात्मा से प्राप्त सर्व गुण और विशेषतायें, प्रभु प्रसाद है... जिन्हें मैं सभी सम्बन्ध-सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को बाँटती हूँ... मैं महादानी आत्मा हूँ... मेरे स्वभाव-संस्कार और व्यवहार में दिव्य गुणों की चमक चारों ओर फैलती जाती हैं... दिव्य गुणों को धारण कर मैं अत्मा... *आकर्षण मूर्त बन गई हूँ...* और अन्य आत्माओं को भी गुणमूर्त आकर्षण मूर्त बनाती जाती हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *मैं पन के बोझ को समाप्त कर प्रत्यक्षफल का अनुभव करने वाले बालक सो मालिक होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ मैं पन के बोझ को समाप्त कर प्रत्यक्षफल का अनुभव करने वाले बालक सो मालिक होते हैं, क्योंकि जब किसी भी प्रकार का *मैं पन आता है तो बोझ सिर पर* आ जाता है। लेकिन! जब बाप ऑफर कर रहे हैं कि... बच्चों! तुम अपने सब प्रकार के सभी बोझ मुझे दे दो और तुम केवल खुश व हल्के हो कर रहो।
❉ अपने सभी बोझ बाप को देने से हम आत्मायें! सदा *हलकी हो कर उड़ती रहेंगी तथा कर्तापन के अभिमान* से मुक्त भी हो जायेंगी, क्योंकि कर्तापन का अभिमान हम आत्माओं को कर्मों के बन्धन में बांध देता है। अतः कर्मो के बन्धनों से मुक्त रहने के लिये, हमें कर्ता भाव का त्याग कर देना है।
❉ जितना जितना हम बाप के ऑफर पर ध्यान दे कर अपने सारे बोझ बाप को अर्पण करके खुश रहेंगे। तो! उतना उतना हम सिर्फ ख़ुशी में हलके हो कर नाचेंगे और उड़ेंगे। *फिर ये क्यों, क्या के सभी क्वेश्चन* समाप्त हो जायेंगे कि... हमसे सर्विस कैसे होगी, भाषण कैसे करेंगे आदि आदि।
❉ हमें तो स्वयं को निमित्त समझ कर सिर्फ और सिर्फ अपना कनेक्शन पावर हाउस से जोड़ कर बैठ जाना है। तथा खुद को दिल शिकस्त भी नहीं बनाना है। अगर ऐसा करेंगे तब *बाप दादा हमारे सारे कार्य स्वतः ही करा* देते हैं। लेकिन! जब हम ये सोचते हैं, सभी कर्म मुझे ही करने हैं, तब भारी हो जाते हैं।
❉ अतः स्वयं को बालक सो मालिक समझ कर चलना है। *अपने को बालक सो मालिक समझ कर चलने* से हम श्रेष्ठ स्टेज पर स्थित हो जायेंगे। जब हम अपनी श्रेष्ठ स्थिति की स्टेज पर स्थित हो जायेंगे। तब हम सदा ही प्रत्यक्ष फल की अनुभूति भी करते रहेंगे। इसलिये! हमें मैं पन के बोझ से स्वयं को सदा ही मुक्त रखना है।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *ज्ञान दान के साथ - साथ गुणदान करो तो सफलता मिलती रहेगी... क्यों और कैसे* ?
❉ ज्ञानदान के साथ साथ गुण दान तभी कर सकेंगे जब स्वयं सर्व गुणों से सम्पन्न बनेंगे । और सर्वगुण हमारे अंदर तभी आएंगे जब दूसरों के अवगुणों को ना तो देखेंगे और ना ही उन्हें अपने चित्त पर धारण होने देंगे । इसके लिए जरूरी है *स्वयं को जानना और जान कर अपने स्वरूप में स्थित रहना* । तो जितना स्वयं को जान कर उसका स्वरूप बन कर रहेंगे उतना आत्मा के निजी गुण सदा इमर्ज रहेंगे । जिससे गुणों का आदान - प्रदान करते सहज ही सेवा में सफलता को पाते रहेंगे ।
❉ ज्ञान को जब बुद्धि से समझने के साथ साथ उसे बार बार स्मृति में लायेंगे तो उसका स्वरूप बनना सहज होता जायेगा । क्योकि *ज्ञान से प्रेम, प्रेम से आनन्द, आनन्द से शांति और शांति से शक्ति फटाफट आती जायेगी* । ज्ञान की इन बातों की गहराई में जितना जायेंगे उतना अपने स्वरूप में स्थित होने की नेचर बनती जायेगी जिससे स्वयं के भी अवगुण निकलते जायेंगे तथा दूसरों के अवगुण भी दिखाई नही देंगे । अवगुणों का जब हमारे ऊपर कोई इफेक्ट नही होगा तो गुणदान करते हुए सेवा में सफलता को पाना सहज हो जायेगा ।
❉ भक्ति में कहते हैं " गुप्त दान महा -कल्याण " । वास्तव में गुप्त दान का ही महापुण्य होता है । इसलिये गुप्त रीति पहले स्वयं को परिवर्तन करना है ताकि एक भी अवगुण बाकि ना रहे । चेकिंग कर स्वयं को ऐसा गुणवान बनाना है जो अपनी चलन से औरों को प्रेरणा दे सकें । हमारा बोल चाल ऐसा बन जाये जो अन्य आत्माओं को स्वत: ही गुणग्राही वृति बनाने का सहयोग प्राप्त होता रहे । *यह गुणों का दान ही सबसे बड़ा महादान है* जो स्व परिवर्तन के साथ साथ अनेको आत्माओं के परिवर्तन का आधार बन सेवा को सफल बनाता है ।
❉ सच्चे ईश्वरीय स्नेह का एक दो को सहयोग देना यह सबसे बड़ी सेवा है । और यह सेवा वही कर सकते हैं जो ज्ञान दान के साथ साथ गुणदान करना जानते हैं । क्योंकि गुण दान करने वाले ही दूसरों की कमी कमजोरियों का वर्णन करने के बजाय *मास्टर क्षमा के सागर बन उन्हें स्वयं में समाने की क्षमता रखते हैं* । वे दूसरों के अवगुणों को नज़र अंदाज कर उन्हें गुण दान देते हुए उनके अवगुणों से उन्हें मुक्त करने में सहयोगी बनते हैं और सच्चे ईश्वरीय स्नेह का एक दो को सहयोग देते हुए वे सहज ही सेवा में वृद्धि को पाते चले जाते हैं ।
❉ जो बाबा सुना रहे हैं केवल उसका ही मंथन बुद्धि में चलता रहे । केवल वही चिंतन हमारे जीवन में आये । उसके सिवाय और कोई बातों का चिंतन ना हो, वर्णन ना हो तब हम सर्वगुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पूर्ण बन सकेंगे । *बाबा हमको ऐसा बना रहे हैं और हमको बनना है* इस ख्याल के अलावा और कोई ख्याल बुद्धि में ना आये । हम बनेंगे तो सब बनेंगे परन्तु पहले हमारी जिम्मेवारी है । और इसके लिए हमे हरेक के प्रति गुण दान करते रहना है । ऐसे चिंतन करते हुए ज्ञान दान के साथ जब गुण दान करते रहेंगे तो सेवा में सफलता मिलती रहेगी ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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