━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 28 / 08 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ आज दिन भर बार बार मन और बुधी से √मधुबन√ पहुँचते रहे ?
➢➢ अमृतवेले से लेकर रात तक √सेवा की स्टेज√ पर रहे ?
➢➢ अपने भिन्न भिन्न √पूज्य स्वरुप√ की स्मृतियों में स्थित रहे ?
────────────────────────
∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ समय की रफ़्तार प्रमाण √स्वयं का श्रृंगार√ संपन्न करने पर विशेष अटेंशन रहा ?
➢➢ √सोचना और करना√ साथ साथ कर महापुण्य कमाया ?
────────────────────────
∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
To Read Vishesh Purusharth In Detail, Press The Following Link:-
✺ HTML Format:-
➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar-murli.com/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/28.08.16-VisheshPurusharth.htm
✺ PDF Format:-
➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar-murli.com/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/28.08.16-VisheshPurusharth.pdf
────────────────────────
∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "अंतर सम्पन्न करने का साधन - तुरन्त दान महापुण्य"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे आपके खूबसूरती से दमकते चित्र को देखो जरा... ज्ञान के सुनहरे रंग यादो के लाल रंग धारणा के सफेद रंग और सेवा की हरियाली से भरी तकदीर देख मीठे बाबा मुस्करा रहे है... वतन के चित्रो से स्थूल के अंतर को समाप्त कर समान हो जाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा अपने ही सुंदर रूप को वतन में देख मोहित हो चली हूँ... और संकल्पों में और करना एक कर समानता के रंग से रंगती जा रही हूँ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे अपने अंतर की समाप्ति के लिए संकल्पों को प्रेक्टिकल में कर दिखाओ... कथनी और करनी की समानता से भेद को मिटाओ... तुरन्त दान महा पुण्य से सदा की खूबसूरती से भर जाओ....
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा आपकी मीठी यादो से कारण को निवारण में बदल चुकी हूँ... सारे विघ्नो समाप्त कर विघ्न विनाशक बन चली हूँ... चमकते रूप को पाकर मुस्करा रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने खूबसूरत तीर्थ की स्मर्तियो से भर जाओ... और सुंदर भाग्य को सराहो... स्वदर्शन चक्रधारी की याद से सफलताओ को गले लगाओ... चैतन्य दीपक बन सबके अंधेरो को सदा का रौशन करो... और अंतर्मुखी बन विघ्नो पर विजयी बनो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा संकल्पों की बचत से विघ्नो पर विजयी हो चली हूँ... सबके जीवन को रौशन कर सुख शांति के फूलो से हर दिल को महका रही हूँ... स्वदर्शन चक्रधारी बन मायाजीत हो चली हूँ....
────────────────────────
∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ ड्रिल - सुनना और सुनाना एक समान कर नॉलेजफुल बन सम्पन्न स्थिति का अनुभव करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा ब्रह्मामुखवंशावली ब्राह्मण हूं... मैं आत्मा इस संगमयुग पर परमात्मा को जान गई हूं... विधाता शिव बाबा को जानने से विधान और विधि स्वतः ही मुझ आत्मा की बुद्धि व कर्म में आ जाती है... स्वयं परमात्मा मुझ आत्मा की पालना कर चलना सीखाते हैं... स्वयं ज्ञानसागर बाप मुझ आत्मा पर ज्ञान की वर्षा करते हैं... मुझ आत्मा का ज्ञान रत्नों से श्रृंगार करते हैं... मैं आत्मा ज्ञान अमृत पीकर उन्हे धारण कर मालामाल बनती हूं... मास्टर ज्ञान सागर बनती हूं... प्यारे बाबा हम सब आत्माओं को एक जैसा ज्ञान सुनाते है... हम आत्माऐं अपने पुरुषार्थ अनुसार उसे ग्रहण करते हैं... समय प्रमाण मैं आत्मा जो सुनती हूं वही सुनाती हूं... मैं आत्मा स्वयं धारण कर उसका स्वरुप बनती हूं... स्वयं एग्जाम्पल बन दूसरों को सुनाने के निमित्त बनती हूं... मैं आत्मा जो ज्ञान रत्न धारण करती हूं उसी का दान करती हूं... हर आत्मा अपने पुरुषार्थ अनुसार अपनी स्थिति बनाती है... अपना पद प्राप्त करती है... जो जितने ज्ञान रत्न धारण कर अपनी स्थिति ऊंच बनाता है उसी अनुसार पूज्य बनता बनता है... मुझ आत्मा में जो कमी रह रह जाती है मैं आत्मा उसे दूर कर सुनना और सुनाना एक जैसा करती हूं... मैं आत्मा नॉलेजफुल बन सम्पन्न स्थिति का अनुभव करती हूं...
❉ "ड्रिल - सोचना और करना एक समान"
➳ _ ➳ मैं आत्मा दृढ़ संकल्पधारी हूं... मैं आत्मा श्रेष्ठ ब्राह्मण हूं... मैं आत्मा ब्रह्मा बाप के कदमों पर कदम रखकर चलने वाली आत्मा हूं... मुझ आत्मा को प्यारे शिव पिता ने विश्व कल्याण के कार्य के निमित्त चुना है... मैं आत्मा विश्व कल्याणकारी हूं... मैं आत्मा दृढ़ संकल्प धारण कर जो सोचती हूं तभी करती हूं... मैं आत्मा जो संकल्प करती हूं तभी उसे धारण कर उसका स्वरुप बनती हूं... मैं आत्मा परमपिता परमात्मा शिव बाबा की याद मे रह समीप अनुभव करती हूं... जैसे जो प्यारा होता है वो कभी भूलता नही ऐसे शिव बाबा मेरे प्यारे मीठे बाबा मुझ आत्मा को बहुत बहुत प्यारे है... मैं आत्मा सदा स्मृति स्वरुप रहती हूं... मैं आत्मा सोचना और करना एक समान करती हूं... मैं आत्मा जैसा संकल्प करती हूं वैसा ही कृति में आता है... मैं आत्मा इस अनमोल संगमयुग के समय के महत्व को जानते हुए हर क्षण बाबा की याद में सफल करती हूं... मैं आत्मा जो संकल्प जब आया उसे तभी करती हूं... मैं आत्मा सदा रुहानी नशे में रह उमंग उत्साह से आगे बढ़ती हूं... मैं आत्मा नशा और निशाना रख हर सब्जेक्ट में पास विद ऑनर का लक्ष्य रखती हूं... जैसे ताजी चीज व रखी हुई चीज में विटामिन्स में अंतर आ जाता है ऐसे ही कोई संकल्प आया व उसे तभी नही किया तो मुझ आत्मा के उमंग उत्साह में भी अंतर आ जाता है... मै आत्मा ये दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूं मैं जो संकल्प आया तो यह करना ही है, अभी करना ही है...
❉ "ड्रिल - बीमारी को याद रुपी दवाई से विदाई देना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा अजर अमर अविनाशी हूं... मुझ आत्मा की रोशनी चहुं ओर फैल रही है... मुझे मेरे प्यारे पिता शिव बाबा ने इस कलयुगी दुनिया के रौरव नरक से निकाल ज्ञान का तीसरा नेत्र दिया है... मुझ आत्मा को सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान दिया है... ये पुरानी दुनिया व शरीर विनाशी है... मैं आत्मा जान गई हूं कि ये शरीर की बीमारी दुख हमारे पिछले जन्मों के हिसाब किताब है... ये शरीर ही मेरा नही है... मैं तो बस पार्ट बजाने आई हूं... मैं विघ्नविनाशक आत्मा हूं... मैं तो दूसरों के विघ्नों को दूर करने के निमित्त हूं... मैं आत्मा निर्भय, हिम्मतवान हूं... मैं आत्मा मास्टर सर्वशक्तिमान हूं... सर्वशक्तियों की अधिकारी हूं... मैं आत्मा किसी बीमारी या परिस्थिति से नही घबराती हूं... कोई भी बीमारी या परिस्थिति मुझ आत्मा को शक्तिशाली बनाने के लिए आती है... मैं आत्मा परमात्मा की याद से शक्तिस्वरुप बनती हूं... मुझ आत्मा को प्यारे बाबा ने जादुई गोल्डन चाबी दी है... जादुगर बाबा की छत्रछाया में रहते मैं अपनी बीमारी भूल जाती हूं... प्यारे बाबा का साथ होने से मुझ आत्मा को तन की बीमारी का अहसास नही होता... मैं तो बस एक बाप के रुहानी निस्वार्थ स्नेह मे व याद रुपी मीठी दवाई से बीमारी को विदा करती हूं...
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं विघ्न जीत आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳ मैं एकान्तवासी बन एक के अंत में खोये रहने वाली अंतर्मुखी आत्मा हूँ... मैं बाप समान सदा सुख के सागर में लवलीन रहती हूँ... सुखदाता बाप की सन्तान मैं आत्मा मास्टर सुखदाता बन सर्व आत्माओं को सुख का खजाना बाँटती रहती हूँ... एकांत में बाप दादा के प्यार भरे संकल्पों को कैच कर, मैं सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों का अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ साइलेन्स की शक्ति द्वारा मैं बाबा से प्रेरणायुक्त और पवित्र सेवा के संकल्प ले रही हूँ... याद और सेवा के पंखो द्वारा विश्व गगन में उड़ान भरते हुए मैं आत्मा प्रेम, पवित्रता और ज्ञान की ऊंचाइयों को प्राप्त कर रही हूँ... अंतर्मुखता में रहते हुए अतीन्द्रिय सुख व हल्केपन के प्रत्यक्ष फल द्वारा मैं आत्मा अपने जीवन को आनन्दमय बनाती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अंतर्मुखता की ऊंचाइयों तक पहुंचकर यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मुझ आत्मा पर वायुमण्डल का क्षणभर भी प्रभाव नहीं पड़ रहा है... मैं आत्मा माया के विघ्नों से भी सेफ रहने का अनुभव कर रहीं हूँ... मुझ अंतर्मुखी आत्मा की मनन शक्ति की निरन्तर वृद्धि हो रही है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा कर्म करते हुए ज्ञान की हर पॉइंट को बुद्धि में रख कर बाहरमुखता में आते ही हर्षितमुख्ता, अंतर्मुखता और आकर्षणमूर्त आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा कर्म करते हुए अंतर्मुखता की प्रैक्टिस कर समय को सफल करने वाली सफलतामूर्त आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ अन्तर्मुखी बन अपने समय और संकल्पों की बचत करने वाले विघ्न जीत होते हैं... क्यों और कैसे?
❉ अन्तर्मुखी बन अपने समय और संकल्पों की बचत करने वाले विघ्न जीत होते हैं, क्योंकि कोई भी नई पॉवर फुल इंवेवशन करते हैं तो अण्डरग्राउण्ड करते हैं। इसलिये हम भी जितना अन्तर्मुखी बन कर रहेंगे, अर्थात! जितना अण्डरग्राउण्ड हो कर रहेंगे उतना ही इन्वेंशन करने के कार्य में सफलता भी प्राप्त करेंगे।
❉ इसलिये हमें सदा ही अपने कार्यों को अन्तर्मुखी बन कर ही करना है। जितना अन्तर्मुखता में रहकर बाबा को याद करेंगे, उतनी ही हमारी मननशक्ति का व एकाग्रता का विकास भी होता चला जायेगा और बाहरी वातावरण के प्रभाव से बचाव भी होता रहेगा।
❉ इस प्रकार हम जितना अन्तर्मुखता की गुफा में निवास करेंगे, उतना ही हम आत्माओं का बाहरी वायुमण्डल से बचाव होगा तथा मन की शक्ति अर्थात मननशक्ति भी हमारी जागृत हो जायेगी। मननशक्ति के बढ़ जाने से हमारे अन्तर्जगत का अर्थात! हमारे मन व बुद्धि का चहुँमुखी विकास भी होगा।
❉ हमारा चहुँमुखी विकास हो जाने के कारण हम आत्मायें! माया के विघ्नों से सदा के लिये सेफ भी हो जायेंगी। बहारमुखता में आने पर भी हमें अन्तर्मुखी बन कर ही रहना है। हमारे मुख पर सदा ही अन्य आत्माओं को, ख़ुशी की झलक तथा मुस्कराहट दिखाई देनी चाहिये क्योंकि हर्षितमुख व्यक्ति सब को अपनी ओर सरलता से आकर्षित करता है।
❉ इसलिये हमारे चहरे से अन्य आत्माओं को सदा ही ख़ुशी व हर्षितमुखता की झलक दिखाई देनी चाहिये। अतः बाह्यमुखता में आने पर भी, हम आत्माओं को, अन्तर्मुख, हर्षितमुख, आकर्षणमूर्त बन कर ही रहना है। हमें कर्म करते हुए भी यही प्रेक्टिस करनी है। ऐसी प्रेक्टिस करने से, हमारे समय की बचत भी होगी तथा साथ ही हम सफलता का भी अधिक अनुभव करेंगे।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ बीमारी से घबराओ नही, उसे दवाई रूपी फ्रूट खिलाकर विदाई दे दो... क्यों और कैसे ?
❉ शरीर में छोटा सा रोग होने पर भी जो घबरा जाते हैं उनके लिए बीमारी भयंकर रूप धारण कर लेती हैं क्योकि शरीर का स्वास्थ्य मन की स्थिति पर निर्भर करता है । अगर व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ है, आशावान है तो बीमारी के बारे में सोच कर चिंतित होने के बजाए परमात्म याद से अपने अंदर योग का बल जमा कर, आत्मा को शक्तिशाली बना लेता है और बीमारी से घबराने के बजाए ईश्वरीय याद की दवाई रूपी फ्रूट खा कर उसे विदाई दे देता है ।
❉ शरीर में बीमारी आने पर उस बीमारी से घबरा कर दिलशिकस्त होने के बजाए जो उसे कर्मभोग के रूप में स्वीकार कर लेते हैं और इस बात को अच्छी रीति बुद्धि में बिठा लेते हैं कि मेरे शरीर में ये जो बीमारी आई है ये कर्मभोग को चुक्तू करने के लिए आई है इसलिए अब मुझे इस बीमारी को योगबल से चुक्तू करना ही है । मन को ऐसे शक्तिशाली संकल्प दे कर जो बाबा की याद की दवाई रूपी फ्रूट खाते रहते हैं वे जल्दी ही बीमारी को विदाई दे देते हैं ।
❉ कहा जाता है तन का कनेक्शन मन से और मन का कनेक्शन तन से है । इसलिए तन का रोग भी तभी बड़ा नजर आता है जब मन रोगी होता है अर्थात मन की स्थिति कमजोर होती है । मन कर्मेन्द्रियों के अधीन हो विकारों में प्रवृत होता है । मन को कर्मेन्द्रियों की अधीनता से छुड़ा कर सुकर्मो में लगा देना ही मन को शक्तिशाली बनाता है जिसका सहज उपाय है परमात्म याद । और जो इस परमात्म याद की दवाई रूपी फ्रूट को रोज खाते हैं, बीमारी उनसे हमेशा के लिए विदाई ले लेती है ।
❉ हमारे जीवन में घटने वाली हर घटना हमारी स्थिति से जुडी होती है जो हमे सिखाती है कि किस परिस्थिति को किस रूप में स्वीकार करना है । जिनकी स्थिति अच्छी नही होती उनके लिए शरीर में छोटी सी बीमारी का आना भी बहुत बड़ी परिस्थिति हो जाती है । किन्तु जो स्व स्थिति में टिक जाते हैं उनके लिए परिस्थिति स्वत: ही छोटी हो जाती है । जैसे विमान से देखने पर पृथ्वी छोटी दिखने लगती है । ऐसे ही बीमारी के समय स्वमान में टिक कर प्रभु की याद की दवाई का फ्रूट खाने से बीमारी छोटी लगने लगती है ।
❉ कहा जाता है कि दवाई का असर भी तभी होता है जब व्यक्ति आशावान होता है । जो व्यक्ति छोटी सी बीमारी में भी दिलशिकस्त हो जाते हैं उन पर दवा का भी असर समाप्त हो जाता है । किन्तु जो व्यक्ति आशावान होते हैं अपने मनोबल से वे मृत्यु को भी जीत लेते हैं । मनोबल आता है परमात्मा बाप की याद से । परमात्मा की याद दवाई रूपी फ्रूट का काम करती है जो मन को शक्तिशाली बना देती है जिससे व्यक्ति बीमारी आने पर घबराने के बजाए अपने मनोबल से उस बीमारी को सहज ही विदाई दे देता है ।
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━