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   27 / 03 / 16  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30) °

 

‖✓‖ °साधन और साधना° का बैलेंस रहा ?

 

‖✓‖ °याद और सेवा° का बैलेंस रहा ?

 

‖✓‖ °सेवा और स्व उन्नति° का बैलेंस रहा ?

 

‖✓‖ °दातापन° की स्मृति में स्थित रहे ?

 

‖✓‖ °इष्ट देव° की स्मृति में रह आत्माओं की पुकार सुनी ?

 

‖✓‖ °लक्ष्य और लक्षण° समान रहे ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ सदा अपने °श्रेष्ठ भाग्य° के नशे और ख़ुशी में रहे ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

‖✓‖ आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?

 

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To Read Vishesh Purusharth In Detail, Press The Following Link:-

 

http://bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/27.03.16-VisheshPurusharth.htm

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∫∫ 4 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "समय की पुकार - दाता बनो"

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों करुणा से भरी मेरे और भी बच्चों की जरा पुकार तो सुनो.. उनकी दुखो में डूबी आँखों का वीराना तो देखो... उनकी सूनी दुनिया को सुखो से अब आबाद करो... दाता बन उनको भी निहाल करो...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मेरे लाडलो यह संसार आप बच्चों को कितनी आस लिए निहार रहा... क्या उनकी तड़फ आपके कलेजे को हिलाती सी नही... मुझ महापिता से न सहा गया... तो आप बच्चे भी संसार का आर्तनाद सुनो... सुखदाता के बच्चे सुखो से संसार का दामन भरो...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मीठे बच्चों देवताई खुशियो को संसार भर में छ्लकाओ... किस भाग्य को पाये हो जरा इस दुनिया को भी दिखाओ... सच्ची खुशियो का पता सारे जहान को बताओ... मुझसे प्राप्त बेशकीमती खजानो को सारे विश्व में बिखेर कर सबके होठो पर सच्ची मुस्कान सजाओ...

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चो समय आपको दस्तक सी दे रहा... संसार के खाली से हाथो को गुणो और शक्तियो की मेहँदी से सजा दो... खजाने के द्वार पर खड़े हो खूब लुटाओ... अपनी अमीरी का जहान को दीवाना बनाओ...  अमीर बाप के बादशाह बच्चे हो... इस बेहद की अमीरी की खनक सबको सुनाओ...

 

 ❉   मेरा बाबा कहे - आप बच्चों को चुनकर जो देवताई खजाना सुपुर्द किया है...उसकी झलक विश्व के सारे बच्चों को भी दिखाओ... सारा विश्व थका सा निराश टुटा सा... आप बच्चों को उम्मीदों से ताक रहा... उनकी निराश आँखों में मीठे सपने भर आओ... आपके पास तो मै पिता हूँ... पर वो कितने अकेले है टूटे है निष्प्राण है... आप उन्हें ज्ञान अमृत पिला प्राण लौटाओ...

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∫∫ 5 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-15)

 

➢➢ याद और सेवा, सेवा और स्व उन्नति, साधन और साधन का बैलेंस रखना है ।

 

  ❉   जैसे लौकिक में पिता को याद करने की मेहनत नहीं करनी पड़ती । चाहे कोई काम कर रहे होते तो भल बाप से कितनी दूर होते याद स्वतः ही आती है । ऐसे ही ये स्मृति रखनी है  कि मैं कौन व मेरा परमपिता कौन । ऊंच ते ऊंच सारी सृष्टि का रचयिता स्वयं भगवान मेरा पिता है इस नशे व खुशी में रहते याद व सेवा दोनो करनी हैं ।

 

  ❉   कहा भी गया है - हथ यार डे दिल कार डे । यानि हाथों से तो कर्म करना है चाहे कोई भी सेवा है उसे अपने को निमित्त भाव से करते हुए बाबा की याद में रहते हुए करना है । ये नही बस सेवा ही करते रहो । बुद्धियोग बस बाबा के साथ जुड़ा रहे और हाथों से सेवा करनी हैं । याद और सेवा का बैलेंस रखना है ।

 

  ❉   जब बाप की याद रहती है तो स्वतः ही स्वमान भी याद रहता है कि बाप समान बनना ही है । तो उन्हें ये फुरना रहता कि देना ही देना है । हर आत्मा के प्रति शुभ भावना शुभ कामना रख विश्वकल्याण की भावना रखनी है , हद के संस्कार ईमर्ज नहीं करने । इसप्रकार सेवा व स्व उन्नति का बैलेंस रखना है ।

 

  ❉   सेवा के साथ साथ स्व उन्नति पर पूरा अटेंशन देना है । सेवा मे अपने को इतना बिजी नही करना या ऐसा नही कहना कि बाबा की याद का या योग का या ज्ञान के मनन चिंतन का समय नही मिला । सेवा करते हुए बाबा की याद में रहते हुए योगयुक्त होकर सेवा करनी है । सेवा व स्व उन्नति का बैलेंस रखना है ।

 

  ❉   साईंस के साधनों से बहुत मदद मिलती है व बाबा का ज्ञान घर बैठे आसानी से मिल जाता है । लेकिन हमें इन साधनों को अपना आधार नही बनाना । जैसे इन साधनों से ही योग कामेंट्री करते हैं व आज कोई साधन नही किसी कारण तो हम साधना ही न करें या आज साधन नही जाने का तो हम मुरली सुनने ही न जाए । हमें साधना व साधन का बैलेंस रखना है ।

 

  ❉    जैसे लौकिक पिता के गुण व शिक्षाओं को याद रखते है ऐसे ही कर्म करते अलौकिक पिता के गुणों शक्तियों व शिक्षाओं को याद करना है । बस यही स्मृति रहे कि करनकरावनहार तो बाबा है व मैं निमित्त हूं । ऐसे याद और सेवा , सेवा व स्व उन्नति का बैलेंस रखना है ।

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∫∫ 6 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-15)

 

➢➢ सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य के नशे और खुशी में रहने वाले पदमापदम भाग्यशाली होते हैं... क्यों और कैसे ?

 

  ❉   दुनिया वाले जिस भगवान के दर्शन पाने को कहां-कहां भटकते है और भगवान ने स्वयं कोटों मे कोई और कोई मे से भी कोई मे से मुझे चुना व अपना बना लिया व मैं उसकी हो गई कितना श्रेष्ठ भाग्य है मेरा !! इसी नशे व खुशी में रहने वाले पदमापदम भाग्यशाली होते हैं ।

 

  ❉   लौकिक में ही राजा का बेटा होता है तो उसे अपने पिता के पद का कितना नशा व खुशी होती व अपने को बहुत लकी समझता और हमें तो स्वयं भगवान मिला बेहद का बाप सर्वशक्तिमान पूरी सृष्टि का मालिक व हम उसके वर्से के अधिकारी । कितने पदमापदम भाग्यशाली हैं हम!

 

  ❉   हम बच्चे कितने पदमापदम भाग्यशाली हैं जो स्वयं भगवान से ही हर सम्बंध माता, पिता, टीचर, सतगुरु, खुदा दोस्त और साजन का यादप्यार लेने के पात्र बनते हैं । सर्वशक्तिमान बाप स्वयं सेवक बन हम बच्चों की मदद को एवररेडी रहता है ।

 

  ❉   जो बच्चे सदा श्रेष्ठ भाग्य के नशे और खुशी में रहते कि हम परमात्म पालना में पल रहे है व स्वयं भगवान हर कदम पर हमारा साथ निभाते हैं । हमारे पत्थर तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बनाते व भगवान के साथ ही बैठ खाते पीते व परमात्म गोद में ही सोते ऐसे बच्चे पदमापदम भाग्यशाली होते हैं ।

 

  ❉   खुद भगवान रोज हमें पढ़ाकर पतित से पावन बना रहे हैं व रोज ज्ञान रत्नों से नवाजते है जो बेशुमार कीमती है हमें मालामाल करते व रिचेस्ट इन दा वर्ल्ड बनाते । स्वयं स्वर्ग की बादशाही न लेकर अपने बच्चों को देते । इतना ऊंचा व श्रेष्ठ भाग्य पाकर नशे व खुशी में रहने वाले पदमापदम भाग्यशाली होते हैं ।

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∫∫ 7 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ तन और मन को सदा खुश रखने के लिए ख़ुशी के ही समर्थ संकल्प करो... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   याद और सेवा का डबल लॉक लगा कर जितना स्वयं को ईश्वरीय सेवायों में बिज़ी रखेंगें और विश्व कल्याणकारी बन सर्व आत्माओं का कल्याण करते रहेंगे उतना सर्व की दुयायों के अधिकारी बन ख़ुशी के खजाने से भरपूर होते जायेंगे जिससे ख़ुशी के ही समर्थ संकल्प उतपन्न होंगे जो तन और मन को सदा खुश रखेंगे ।

 

 ❉   जितना स्वयं को सौभाग्यशाली समझ अपने संगमयुगी ब्राह्मण जीवन के नशे में रहेंगे और परमात्म पालना में पलते हुए स्वयं को संगमयुगी परमात्म वर्से से सम्पन्न अनुभव करेंगे उतना मन बुद्धि में ख़ुशी के समर्थ संकल्प चलते रहेंगे जो तन और मन को सदा खुश रखेंगे ।

 

 ❉   व्यर्थ चिंतन आत्मा को चढ़ती कला के अनुभव से वंचित करता है जिससे आत्मा स्वयं को दिलशिक्स्त महसूस करती है और ख़ुशी का अनुभव नही कर पाती इसलिए जितना स्वयं को व्यर्थ चिंतन से मुक्त रखेंगे और मन बुद्धि में समर्थ चिंतन चलाते रहेंगे उतना ख़ुशी के समर्थ संकल्पों से तन और मन भी खुश रहेंगे ।

 

 ❉   ख़ुशी के समर्थ संकल्प मन में तब उतपन्न होंगे जब स्वयं को सब बातों से उपराम रखेंगे और मन की तार को केवल एक परम पिता परमात्मा बाप के साथ जोड़े रखेंगे और एक बाप के साथ ही सर्व सम्बन्धो का अनुभव करते हुए अतीन्द्रिय सुख के झूले में सदैव झूलते रहेंगे इससे तन और मन भी सदा खुश रहेंगे ।

 

 ❉   इच्छाएं मनुष्य को कभी संतुष्ट नही रहने देती । इच्छाओं के पीछे भागने वाला सदैव असन्तुष्ट रहता है और  व्यर्थ संकल्पों का ही जाल बुनता रहता है और उसमे ही फंस कर सदैव दुखी रहता है । इसलिए जितना इच्छा मात्रम अविद्या बनेंगे उतना मन बुद्धि में ख़ुशी के समर्थ संकल्पों की रचना होगी जो तन और मन को सदा खुश रखेगी ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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