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❍ 13 / 09 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ सबको सच्चा मान दिया ?
➢➢ मानव मत छोड़ एक की श्रीमत पर चले ?
➢➢ पढाई के नशे में रहे ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ सहयोग द्वारा स्वयं को सहजयोगी बनाया ?
➢➢ संगम पर सहन करने का पार्ट बजाया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ √निमित भाव√ से निराकारी, निरहंकारी, नम्रचित, निःसंकल्प अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - तुम्हारा अभी ईश्वरीय न्यू ब्लड है तुम्हे बड़ी मस्ती में भाषण करना चाहिए नशा रहे की शिव बाबा हमे पढ़ा रहे है"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता की पसन्द हो कितने भाग्यशाली हो... ईश्वर पिता टीचर बन पढ़ा रहे है... ईश्वरीय विधार्थी हो तो नया और जोशीला खून है... कलयुगी से सतयुगी बन रहे हो...तो इस नशे को रग रग में भर कर मस्त हो भाषण करो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा इस कदर भाग्यशाली हूँ कि मनुष्य मात्र नही ईश्वर पिता से पढ़ रही हूँ... पुरानी देहाभिमान की कालिख को मिटा नये सतयुगी संस्कारो से भर रही हूँ... रूहानी नशे से भर उठी हूँ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... सारी दुनिया जिसे दर दर ढूंढ रही है... वह भगवान यूँ समीप बेठ बाँहों में लेके पढ़ा रहा है... इस नशे को नस नस में जगाओ... ईश्वरीय खून का असर सारे जहाँ को दिखाओ... सबके दिलो पर जोशीली दस्तक दे आओ कि मै ईश्वरीय स्टूडेंट हूँ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा पत्थरबुद्धि हो पत्थरो में जिस भगवान को ढूंढ रही थी... उसने अपनी फूलो सी गोद में मुझे बिठाकर फूल सा महकाया है... यह रूहानी नशा लहु में दौड़ रहा है... और रोम रोम से छलक रहा है...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... भगवान बाँहों में आ गया है तो आप मस्त न होंगे तो भला फिर कौन होगा...तो यह ईश्वरीय मस्ती छ्लकाओ और जमाने को बता आओ... आ चला है भगवान धरा पर... हम काँटों को फूल बनाने... यह खबर सबको सुनाओ... और उनके दामन में भी अपने जेसे खुशियो के फूल खिला आओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा से पायी खुशियां पूरे विश्व में बिखेर कर सुंदर उपवन बना रही हूँ... अपनी मस्तानी ईश्वरीय अदा रोम रोम से छलका रही हूँ... लहु बनकर सांसो में बाबा समाया है...और सतयुगी बना रहा है... यह खबर हर दिल तक पहुंचा रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - हरेक के प्रति शुभ भावना रख सच्चा मान देना"
➳ _ ➳ मैं संगमयुगी ब्राह्मण आत्मा हूँ... कितनी सौभाग्यशाली आत्मा हूँ... कल्प के बाद यह समय मिला जब वर्षों से बिछुड़े सच्चे परमपिता भगवान मुझे अपना बनाते हैं... मुझे इस पतित और पुरानी दुनिया से निकलने की राह दिखाते हैं... अज्ञानता की निद्रा से जगाकर ज्ञान की रोशनी दिखाते है... जो वर्षो से देहभान के कारण झूठी मान शान को ही सब समझते रहे... एक दूसरे से ईर्ष्या, द्वेष रखते अपने लिए ही दुःखों का कारण बनते गए... किसी के लिए कुछ भी करते ही पहले मान की इच्छा रखते थे... प्यारे बाबा ने ही मुझ आत्मा को अपनी ओरिजनल स्वरुप की स्मृति दिलाई... आत्मिक स्मृति से ही मैं आत्मा सब को आत्मा भाई ही देखती हूं... आत्मिक भाव होने से हर आत्मा के प्रति शुभ भावना रहती है... मैं आत्मा सारे विश्व को अपने परिवार के रुप में देख रही हूं... प्यारे शिव पिता से सर्व शक्तियों व सर्व खजानों से सम्पन्न होकर हर सम्पर्क में आने वाली आत्मा को शुभ भावना शुभ कामना दे रही हूं... सच्चा रुहानी प्यार दे रही हूं... मैं आत्मा सर्व का दिल से मान देती हूं... मैं आत्मा इस दुनिया से मरजीवा स्थिति की अनुभव करती हूं... इस दुनिया से मोह छोड स्व राज अधिकारी बनती हूं... स्व पर राज्य कर पवित्र बन मैं आत्मा स्वर्ग के राज्य को पा लूँगीं... मुझ आत्मा को बाबा ने अपना राइट हैण्ड बना लिया है... मुझ आत्मा को भी अपने पिता परमात्मा की तरह सबका कल्याण करना है... सबको शुभ भावना शुभ कामना दे कर सुख का अधिकारी बनाना है... वाह मेरा भाग्य...
❉ "ड्रिल - आत्म-अभिमानी बनने के लिए एक की ही श्रीमत पर चलना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा हूँ... यह ज्ञान मुझे मेरे परमपिता ने इस संगमयुग पर दिया है... अपने अनादि आदि स्वरुप और अपने धर्म को भूल चुकी थी... बाबा ने ही आकर मुझे मेरे असली रूप धर्म गुण के बारे में बताया... मैं कौन हूं... कहां की रहने वाली हूं... मेरा स्वरुप क्या है... मीठे बच्चे तुम देह नही आत्मा हो... ज्योति बिंदु हो... परमधाम निवासी हो... परमधाम ही वापिस जाना है... प्रति दिन बाबा की श्री मत अनुसार अपने को आत्मा समझने का अभ्यास करती हूँ.... बिंदु बन बिंदु बाप को ही याद करती हूं... आत्मिक स्थिति मे रहने का अभ्यास करती हूँ... सर्व के प्रति आत्मा आत्मा भाई भाई की दृष्टि रखती हूं... इस पर ही पुरूषार्थी बनने का सारा मदार है... एक बाप को याद कर विकर्म विनाश कर रही हूं... मैं आत्माभिमानी बनने का पुरुषार्थ कर रही हूं... मुझ आत्मा को स्व का परिवर्तन कर ही विश्व परिवर्तन में सहयोगी बनना है... इसी से ही कर्मातीत स्थिति को पा सकूगी... मैं आत्मा एक बाप की अच्छी रीति श्रीमत का पालन करती हूं... श्रीमत का पालन करने से ही मुक्ति जीवन मुक्ति का वर्सा प्राप्त कर सकेंगे... जैसे बाबा ने मुझ आत्मा को असली रूप को पहचान दी है... ऐसे ही मुझ आत्मा को भी सबको बाबा की श्रीमत बता उनको मुक्ति जीवन मुक्ति का अधिकारी बनाना है... स्वयं भगवान जिसके दर्शन कोतो दुनिया वाले तरसते है... वो भगवान स्वयं रोज मुझ आत्मा को पढ़ाने आते है... वाह रे मैं वाह...!! पदमापदम भाग्यशाली... मैं आत्मा रुहानी पढ़ाई के नशे में रहती हूं...
❉ "ड्रिल - संगम पर मरना ही स्वर्ग का राज्य लेना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ... जो स्वयं परमपिता परमात्मा ने मुझे चुन लिया है... इस अनमोल हीरे तुल्य संगमयुग की प्राप्तियो का मुझ आत्मा ने आनंद लिया है... भगवान ने मुझ आत्मा को अपना बच्चा बन सर्व खजानों का अधिकारी बना दिया है.... जितना इस संगम पर हम आत्माएं पुरुषार्थ करती जा रही हैं... उतना ही हम बाबा के वर्से के अधिकारी बनते जा रहे हैं... अब हम आत्माएं जीते जी मरने का पुरुषार्थ कर रही हैं... जीते जी मरना यानि इस पुरानी दुनिया में रहते हुए मैं आत्मा इस विनाशी दुनिया से लगाव मुक्त हो गई हूं... मैं आत्मा अपना बुद्धियोग विनाशी सम्बंधों से तोड़ चुकी हूं... मैं तो अपने को बस निमित्त समझ जिम्मेवारी निभा रही हूं... बस सर्व सम्बंध बाबा से निभा रही हूं... मैं आत्मा बाहरी आकर्षणों से मुक्त हो रही हूं... हर परिस्थिति को बाबा की छत्रछाया में रह सहज ही पार कर रही हूं... जो भी परिस्थिति समस्या आती है उसे आगे बढ़ने का जरिया समझ खुशी से स्वीकार कर रही हूं... जब स्वयं सर्वशक्तिमान पिता अपनी हजारों भुजाएं फैलाए सदैव साथ है तो डरने की क्या बात है... प्यारे पिता की याद में रह मैं आत्मा इस संगम पर ही अविनाशी कमाई जमा कर रही हूं... इसकी प्रालब्ध मुझ आत्मा को सतयुगी रजाई मिलती है...वाह वाह कितनी भाग्यशाली हूं मैं आत्मा...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं निरन्तर योगी आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳ मैं आत्मा विश्व परिवर्तन के विशाल कार्य में सदा सहयोग देने वाली मैं सहयोगी आत्मा हूँ... अपने पॉवरफुल वायब्रेशन्स द्वारा प्रकृति को तथा विकारी आत्माओ के तमोगुणी वायब्रेशन्स को सतोगुणी बनाती जाती हूँ... मैं आत्मा अपने शुभ और श्रेष्ठ संकल्पों द्वारा दिलशिकस्त आत्माओं को सहयोग दे कर आगे बढ़ाती जाती हूँ...
➳ _ ➳ बुद्धि की लाइन क्लियर होने के कारण बाबा से टचिंग ले, मैं हर कार्य में सफलता प्राप्त करती जाती हूँ... सेवा करते हुए भी मैं आत्मा सदा न्यारी और प्यारी स्थिति में स्थित रहती हूँ... बाप के सतयुगी राज्य की स्थापना के बेहद के कार्य में मैं सेवाधारी आत्मा संकल्प, शब्द और कर्म द्वारा बाप की सहयोगी बन भविष्य राज्याधिकारी बनने की श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाती जाती हूँ...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा ने अपना सर्वस्व एक बेहद के बाप को समर्पित कर दिया है... मैं आत्मा निरन्तर योग की अवस्था में रहकर तन-मन-धन से बाप की सहयोगी बन रहीं हूँ... मैं आत्मा बाप द्वारा ज्ञानि तू आत्मा, योगी तू आत्मा और सच्चा सेवाधारी आदि टाइटल प्राप्त करने का दिव्य अनुभव कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ सहयोग द्वारा स्वयं को सहजयोगी बनाने वाले निरन्तर योगी होते हैं... क्यों और कैसे?
❉ सहयोग द्वारा स्वयं को सहजयोगी बनाने वाले निरन्तर योगी होते हैं, क्योंकि वे संगम युग पर बाप का सहयोगी बन जाते हैं। जो इस पुरुषोत्तम समय में बाप का सहयोगी है, वह सर्व का भी सहयोगी होगा। इसलिये बाबा का साथ हमको सहजयोगी बना देगा।
❉ सहजयोगी बनने की सहज विधि भी यही है, जिनका हर संकल्प, शब्द और कर्म बाप की व अपने राज्य की स्थापना के कर्तव्य में सहयोगी रहने का है। उस को ही ज्ञानी तू आत्मा व योगी तू आत्मा तथा निरन्तर सच्चा सेवाधारी कहा जाता है।
❉ जो निरन्तर सेवाधारी होते हैं वो सच्चे योगी तथा सर्व के सहयोगी होते हैं। जो जितना इस समय अर्थात संगम युग पर बाप का सहयोगी होगा उतना ही वह योगी बनता जायेगा। योगी बनने के लिये हमें सर्व के प्रति शुभ कामना व आत्मिक दृस्टि रखनी है।
❉ अपने आपको हमें सच्चा सेवाधारी समझ कर चलना है। सेवा किसी भी प्रकार की हो सकती है। परन्तु सेवा का लक्ष्य निष्काम भावना ही होना चाहिये। हमें सेवायें निःस्वार्थ भाव से ही करनी चाहिए। हमारा स्वयं का कोई भी स्वार्थ हमारी सेवाओं में बाधक न बने। इस बात का हमें पूरा पूरा ध्यान रखना है।
❉ सेवा मन से ख़ुशी ख़ुशी करनी चाहिये। मनसे नहीं तो तन से, तन से नहीं तो धन से, धन से नहीं तो जिसमें हम सहयोगी बन सकते हैं, उस में सहयोगी बन जाना चाहिये। यह भी योग है, क्योंकि जब हम हैं ही बाप के, तो बाप और हम हैं। हमारे बीच तीसरा कोई नहीं हो सकता, इसलिये हम निरन्तर योगी बन जाते हैं।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ संगम पर सहन करना अर्थात मरना ही स्वर्ग का राज्य लेना है... क्यों और कैसे ?
❉ सहन वही कर सकता है जिसमे नम्रता का गुण होगा और नम्रचित व्यक्ति ही अपने नम्र व्यवाहर से सबके मन को जीत सकता है और अनेकों की दुयायें प्राप्त कर सकता है । इसलिए बाबा कहते कि संगम युग पर जो व्यक्ति नम्रता का गुण धारण कर जितना सहनशील बन अनेको के दिल पर राज करता है वही विश्व महाराजन बन स्वर्ग का राज्य ले सकता है ।
❉ बाबा कहते हैं संगम युग पर जो स्वराज्य अधिकारी बनता है वही भविष्य में विश्व राज्य अधिकारी बनता है और स्वराज्य अधिकारी का अर्थ ही है अपनी कर्मेन्द्रियों के राजा बन हर कर्म करना । कर्मेन्द्रिय जीत व्यक्ति ही विकारों पर जीत पा सकता है और जिसने विकारों पर जीत पा ली उसमे सहनशक्ति सहज ही आ जाती है इसलिए जिसने संगम पर सहन कर लिया उसने सहज ही स्वर्ग का राज्य प्राप्त कर लिया ।
❉ जिसमे सहन करने की शक्ति आ गई उसमे समाने की शक्ति भी स्वत: ही आ जाती है और जो जितना दूसरों के अवगुणों को स्वयं में समा कर गुणग्राही बन गुणों का दान करता है उतना वह सबको संगठित रूप से एक साथ ले कर चल सकता है । सबको एक साथ ले कर चलने का यह गुण जिसने संगम पर स्वयं में धारण कर लिया वही विश्व का महाराजा बन स्वर्ग में राज्य कर सकता है ।
❉ सहनशीलता की शक्ति महान शक्ति है इसलिए जिसने भी अपने जीवन में सहन शक्ति को धारण किया वह जीवन में महानता के शिखर पर पहुँच गया । इतिहास साक्षी है कि इस संसार में जो भी महान हस्तियां हुई है उन्होंने अपने जीवन में बहुत कुछ सहन करके ही उस उपलब्धि को प्राप्त किया है । इसलिए बाबा भी कहते कि संगम युग पर जो सहन करता है वही स्वर्ग का राज्य लेता है ।
❉ जैसे फलों से लदा पेड़ सदा झुका हुआ होता है और अपनी शीतलता की छांव सबको देता है । उस पर लगे फलों को खाने के लिए लोग उस पर पत्थर भी फैंकते हैं किन्तु एक एक पत्थर को सह कर भी वह सबको मीठे फल ही देता है । इसी प्रकार जो संगम युग पर दूसरों के अवगुण रूपी पत्थरों को सहन कर उन्हें गुण रूपी फल देते हैं वही स्वर्ग में ऊंच राज्य पद प्राप्त करते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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