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❍ 05 / 06 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15) √×
➢➢ √देखने, बोलने, चलने और करने√ में सर्विसएबुल बनकर रहे ?
➢➢ आज पूरा दिन √ब्लेसिंग√ देने की सेवा करते रहे ?
➢➢ सदा √ख़ुशी के झूले√ में झूलते रहे ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ √मास्टर ज्ञान सूर्य√ के स्वरुप में सेवा के उमंग उत्साह की किरणें फैलाई ?
➢➢ आज दिन भर √बाबा के गीत√ गाते रहे ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?
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➳ _ ➳ http://bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/05.06.16-VisheshPurusharth.htm
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं आत्मा परमपूज्य हूँ ।
✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-
➳ _ ➳ देखें अपने पुज्य स्वरुप को बापदादा से रूह रिहान करते हुए... मैं एक अविनाशी बाप की याद में सदा मग्न रहने वाली एक बिंदु स्वरुप आत्मा हूँ... मैं एक बल एक भरोसे से दृढ़ निश्चय का व्रत धारण करने वाली दृढ़ संकल्पधारी आत्मा हूँ...
➳ _ ➳ मैं एक की ही श्रीमत पर चलने वाली, श्रीमत का पालन करने वाली आज्ञाकारी आत्मा हूँ... मैं एक का ही गुणगान करने वाली सदैव गुणग्राही आत्मा हूँ... मैं एक के स्नेह का रसपान करने वाली एकरस आत्मा हूँ... मैं एक की ही गोद में खेलने वाली, एक से ही स्नेह रखने वाली स्नेही आत्मा हूँ...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा सम्पन्न स्वरुप का, पूज्य स्वरुप का कल्प पहले भी विश्व द्वारा सिमरन किया गया था इसलिए अब मैं आत्मा अपने इस सम्पन्न स्वरुप का प्रैक्टिकल में प्रख्यात करने का दृढ़ निश्चय करती हूँ...
➳ _ ➳ जिस प्रकार सूर्य देवता, वायु देवता, पृथ्वी देवी का गायन है उसी प्रकार मैं आत्मा भी आज अपने परमप्यारे पिता के समक्ष यह दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मैं अपने पूजन को स्मृति में रख हर कर्म पूज्यनीय बनाउंगी... मैं आत्मा निर्भयता की शक्ति, सामाना करने की शक्ति, सन्तुष्ट रहने और करने की शक्ति और वायु समान हल्का बनने की शक्ति का अपने अंदर प्रादुर्भाव करुँगी...
➳ _ ➳ इन्हीं श्रेष्ठ संकल्पों के साथ मैं आत्मा आज एक दिव्य अलौकिक अनुभव कर रहीं हूँ... मैं अनुभव कर रहीं हूँ कि निर्भयता की शक्ति आते ही मेरा पूजन काली देवी के रूप में हो रहा है...
➳ _ ➳ सामना करने की शक्ति आते ही मुझ आत्मा का पूजन दुर्गा के रूप में हो रहा है... सन्तुष्ट रहने और करने की शक्तियां आते ही मुझ आत्मा का पूजन सन्तोषी माता के रूप में हो रहा है...
➳ _ ➳ वायु समान हल्का बनने की शक्ति आते ही मेरा पूजन पवनपुत्र के रूप में हो रहा है... मैं आत्मा परमपूज्य बनने का दिव्य अनुभव कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "ज्ञान सूर्य बाप की मा ज्ञान सूर्य बच्चों को सेवा की बधाई"
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे लाडलो किस कदर खूबसूरत भाग्य के मालिक बने हो कि स्वयं ज्ञान सूर्य बाबा आपको बधाई दे रहा... सेवा में निरन्तर आगे बढ़ते हुए पिता की यादो में खोये हुए... महान भाग्य से भरपूर बच्चे सदा दिल तख्त पर विराजित है...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे जिस ईश्वर पिता को संसार पुकारता है याद करता है... वह आप भाग्यशाली बच्चों की याद में खोया हुआ है... जिस पर संसार की नजर है उस पिता की नजरो में आप बच्चे समाये हुए है... जिन बच्चों ने ईश्वर पिता की सेवा में खुद को समर्पित किया है...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चे आप वो अमूल्य रत्न है जिनके गुण ईश्वर की नजरो में है... आप ईश्वरीय यज्ञ में समय साँस संकल्प लगाये हुए है... नन्हे से मेरे बच्चे बड़े से कार्य में बेहद की भागीदारी निभाए हुए है... ऐसे लाडले बच्चों के बाप दादा गीत गाते है...
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे ज्ञान सूर्य पिता मा ज्ञान सूर्य का गुणगान कर रहा... अपने बच्चों की बेहद की सेवा सराहना कर रहा... ऐसे निराले अदभुत बच्चों के ईश्वरीय प्रेम को देख हर्षित हो बधाई दे रहा... सेवा में जीवन अर्पित देख वाह बच्चे वाह कर रहा...
❉ मेरा बाबा कहे - कितना शानदार आप बच्चों का भाग्य है... कि ईश्वर पिता के सच्चे सच्चे मददगार बन सेवा में जुटे हुए हो... ईश्वर पिता का दिल जीते हुए हो... ईश्वरीय प्रतिनिधि बन देखना भी सेवा बोलना भी सेवा और कर्म भी सेवा... इस समर्पण पर ईश्वर पिता भी फ़िदा है...
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ दिन भर बाबा के गीत गाते रहना है ।
❉ अपने आप को महान भाग्यशाली समझना है जो कोटो मे कोई व कोई मे भी कोई आत्मा हम ही हैं जिन्हें स्वयं भगवान ने ढूंढ निकाला व भगवान ने अपना बनाया व भगवान हमारा बन गया । वाह मेरा भाग्य वाह !! वाह रे मैं आत्मा वाह!! यही गीत गाते रहना है व खुशी में नाचते रहना है ।
❉ पूरा विश्व जिसकी महिमा करना है व वही पूरी दुनिया का मालिक हम बच्चों की महिमा करता है । कितना बड़ा भाग्य है हमारा ! भगवान स्वयं हम बच्चों के बिना नही रह सकता व हम बच्चे भी अपने सच्चे परमपिता शिव बाबा के बिना नही रह सकते । परमपिता शिव बाबा इतना निस्वार्थ प्यार देते कि बस बार बार खुशी के गीत गाते रहना है - कितने खुशनसीब है बाबा जो तेरा प्यार मिला....।
❉ दुनिया वाले तो जिसके क्षणभर के दर्शन को तरसते रहते वो भगवान स्वयं रोज अपने वी.वी.आई. पी. बच्चों से रोज मिलन मनाने आते हैं । ऐसा कभी सपने में भी नही सोचा था कि एक दिन ऐसा आयेगा कि भगवान के संग ही बैठेंगे, खायेंगे, खेलेंगे.... ऐसा श्रेष्ठ भाग्य जो साकार में अनुभव कर सारा दिन खुशी के गीत गाते रहना है वो मेरा बाबा है... वो मेरा बाबा है...।
❉ स्वयं भगवान ज्ञानसागर बाप सुप्रीम टीचर बन रोज अनमोल अखूट खजानों से भरपूर करते हैं । जैसे ज्ञानसागर बाप ज्ञान से सम्पन्न हैं वैसे हम बच्चे भी मा. ज्ञान सागर बन ज्ञान की प्वाइंटस के नशे व खुशी में रहना है कि स्वयं भगवान हमें कितने श्रेष्ठ ज्ञान धन से भरपूर कर रहे हैं इसलिए सारा दिन खुशी में रह गीत गाते रहना हैं - हम कितने भाग्यवान है हमें भगवान पढ़ाते है अगमअगोचर जिसे दुनिया कहती वो मेरे सामने आते है... कितने भाग्यवान है हम...।
❉ दुनिया वाले तो अंजान बनके कहते कि हमको भगवान ने पैदा किया है । हम ब्राह्मण बने तो ज्ञान के आधार से समझ कर कहते है कि हम भगवान के बच्चे हैं, ब्रह्मामुखवंशावली है । डायरेक्ट भगवान की रचना है - यह अनुभव से कहते हैं तो भगवान की रचना हैं तो कितनी श्रेष्ठ है !! जैसा रचयिता वैसी रचना । ऐसे खुशी में गीत गाते रहना है- जिसकी रचना इतनी सुंदर वो कितना सुंदर होगा ....।
❉ पहले देहभान में रह पतित होते गए व पत्थर बुद्धि थे व पहले क्या थे भिखारी की तरह मांगते रहते थे और बाबा आपने अब अधिकारी बना दिया , जीवन जीना सिखा दिया , पारस बुद्धि बना दिया , कौडी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बना दिया, दुखो से निकाल सुख का संसार दे दिया ... सब प्राप्तियों को स्मृति में रख खुशी से बाबा के गीत गाते रहना है - ओ बाबा हमारे प्यारे बाबा ... आपने कमाल कर दिया ... हमारा सारा जीवन खुशहाल कर दिया.... ओ मीठे बाबा....।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ अपने पूजन को स्मृति में रख हर कर्म पूज्यनीय बनाने वाले परमपूज्य होते हैं.... क्यों और कैसे ?
❉ जिन बच्चो को ये स्मृति रहती है कि हम बच्चों की हर शक्ति को, प्रकृति की शक्ति को...इन सब शक्तियों को देवी देवता के रुप में पूजन होता हैं । जैसे - संतुष्ट रहना और संतुष्ट करना तो संतोषी माता के रुप में गायन हो रहा है । वायु समान हल्का बनने की शक्ति का पूजन पवनपुत्र के रुप में है । तो वो अपने पूजन की स्मृति को स्मृति में रखकर हर कर्म पजनीय बनाते है व परम पूज्य होते हैं ।
❉ जिन बच्चों का हर बोल, कर्म, संकल्प बाप के लिए होता है व संसार ही बाप है । जिसको भी देखते आत्मिक दृष्टि से व ऊंची दृष्टि से देखते है । नयनों व दृष्टि में बाप ही है । बिंदु ही देखते व बिंदु में ही समाते व पूज्य आत्मा बन जाते हैं । अपने हर कर्म को पूजनीय बनाने वाले परम पूज्य होते हैं ।
❉ जो यह स्मृति रखते कि मैं कौन हूं व मेरा पिता कौन है तो कर्म भी परमपिता परमात्मा बाप की स्मृति में करते और उनका हर कर्म फिर श्रेष्ठ व पूज्यनीय बन जाता है । जिसका कर्म पूज्यनीय हो वह स्व भी परम पूज्य बन जाते है ।
❉ जो यह स्मृति रखते कि कल्प पहले भी मैं भाग्य विधाता का बच्चा था और अब भी भाग्य विधाता का बच्चा हूँ और आगे भी रहूँगा तो उसका हर कर्म पूज्यनीय होता है और परम पूज्य होते हैं ।
❉ जो विधि द्वारा सिद्धि प्राप्त करते व स्वरूप में रहते हैं वो स्व महान होते हैं, औरो को भी महान बनाने की सेवा करते हैं । स्वयं श्री मत का पालन कर दूसरो को भी कराते उनका हर कर्म पूज्यनीय होता व परम पूज्य होते हैं ।
❉ जैसे जड़ मूर्तियां कितनी प्यारी लगती है व देखते ही ऐसे लगता है जैसे हमसे ही सच में बात कर रही हैं क्योंकि पवित्रता है ना व हम चैतन्य ब्राह्मण बच्चों की है । पूज्य आत्मायें सर्व को ही प्यारी लगती है । इसलिए अपने हर कर्म में मनसा वाचा कर्मणा पवित्रता रखते पूजनीय बन परम पूज्य होते हैं ।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ जीवन में सन्तुष्टता और सरलता का सन्तुलन रखना ही सबसे बड़ी विशेषता है... क्यों और कैसे ?
❉ स्वयं को जब ट्रस्टी समझकर रहेंगे तो न्यारे और प्यारे रहेंगे । और जितना न्यारे और प्यारे रहेंगे उतना हर परिस्थिति में स्थिति एकरस रहेगी । क्योकि गृहस्थी हैं तो अनेक रस हैं, मेरा - मेरा बहुत हो जाता है । इसलिए गृहस्थीपन अर्थात् अनेक रसों में भटकना । ट्रस्टीपन अर्थात् एकरस । और एकरस रहने वाला ही सदा हल्के पन और चढ़ती कला के अनुभव द्वारा अपने जीवन में सन्तुष्टता और सरलता का संतुलन रख सकता है और यही जीवन की सबसे बड़ी विशेषता है ।
❉ जीवन में सन्तुष्टता और सरलता का सन्तुलन रखना ही सबसे बड़ी विशेषता इसलिए है क्योकि जिस आत्मा के जीवन में सन्तुष्टता और सरलता का बैलेन्स होगा वह आत्मा सदा स्वयं से सर्व सब्जेक्टस में सन्तुष्ट रहने का अनुभव करेगी और साथ-साथ अन्य आत्मायें भी उससे सदा सन्तुष्ट रहेगी और अपनी सन्तुष्टता का आशीर्वाद व सूक्ष्म स्नेह तथा सहयोग उस आत्मा को देती रहेंगी । यह दुआयें और आशीर्वाद ही उसे सम्पूर्णता के समीप लाने में विशेष रूप से सहायक बन जायेंगी ।
❉ सर्व को सन्तुष्ट करने का मुख्य साधन है स्वयं को मोल्ड करने की योग्यता । अपने स्वभाव और संस्कार के वशीभूत न हो कर, जैसा समय , जैसी परिस्थिति, जिस प्रकार की आत्मा सामने हो, वैसा अपने को मोल्ड कर सकें । जब ऐसी विशेषता स्वयं में धारण करेंगें तभी सर्व आत्माओं द्वारा सन्तुष्टमणि आत्मा का सर्टिफिकेट प्राप्त कर सकेंगे और यह विशेषता जीवन में तभी आएगी जब स्वयं में सन्तुष्टता और सरलता का सन्तुलन होगा ।
❉ बाप द्वारा मिले सर्व शक्तियों, सर्व गुणों और सर्व खजानो को बार - बार स्वयं के प्रति और सर्व आत्माओं के प्रति जितना काम में लगायेंगे अर्थात ईश्वरीय प्राप्तियों को ईश्वरीय नियम - प्रमाण जितना यूज़ करेंगे उतना और ही प्राप्ति स्वरूप का अनुभव करेंगे और जैसा समय वैसा स्वरूप अपना बना सकेंगे जिससे माया के धोखे से बचे रहेंगे और जीवन में सन्तुष्टता और सरलता का सन्तुलन रख सदा हर्षित रहेंगे तथा औरों को भी सन्तुष्टता का अनुभव करवा सकेंगे ।
❉ संतुष्ट रहना भी है और सबको संतुष्ट करना भी है, स्वयं से यह प्रतिज्ञा कर जब इस बात को स्मृति में रखेंगें कि " जैसा संकल्प मैं करूँगा मेरे संकल्प से वैसा ही वातावरण बनेगा " अर्थात जो संकल्प मैं करूँगा, उसे सभी फॉलो करेंगे । कर्म तो मोटी बात है, लेकिन संकल्प पर भी अटेन्शन । क्योंकि संकल्प है बीज । संकल्प रूपी बीज पावरफुल होगा तभी फल भी पॉवरफुल प्राप्त होगा । तो अपनी पॉवरफुल स्मृति से कमज़ोर आत्माओं की स्थिति को भी पॉवरफुल बना कर उन्हें संतुष्ट तभी कर पाएंगे जब स्वयं के जीवन में संतुष्टता और सरलता का बैलेन्स होगा ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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