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❍ 22 / 08 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ बाप समान √निरहंकारी√ बनकर रहे ?
➢➢ इस √शरीर की संभाल√ करते हुए शिव बाबा को याद किया ?
➢➢ अन्दर में ×कोई भी भूत× को रहने तो नहीं दिया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ हर संकल्प, समय, शब्द और कर्म द्वारा √ईश्वरीय सेवा√ की ?
➢➢ √श्रीमत का यथार्थ अर्थ√ समझकर उस पर कदम कदम पर चले ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ अपनी √विशेषताओं को सेवा में√ लगाया ?
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - रोज अपने आप से पुछो मै आत्मा कितना शुद्ध बना हूँ जितना शुद्ध बनेगे उतनी ख़ुशी रहेगी सेवा करने का उमंग आएगा"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... पिता की मीठी यादो में जितना निखरोगे उतनी अथाह ख़ुशी से भरते चले जाओगे... ईश्वरीय यादे ही शुद्ध पवित्र बनाकर खुशियो में भरपूर करेंगी... तो प्रतिपल स्वयं को देखो कि कितनी शुद्धता को भरा है... और इसी ख़ुशी पर सेवा का मदार है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा आपकी सुनहरी यादो में देह से न्यारी हो चली हूँ... शुद्ध आत्मा बन दमक रही हूँ... और हर पल असीम ख़ुशी में झूम रही हूँ... और यह खुशियां पूरे विश्व में लुटा रही हूँ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... अपने अंतर्मन में गहराई से झांको और अपनी शुद्धता को जांचो... देह से न्यारे बन पिता की यादो में आत्मा को प्रकाशित करो... आत्माअभिमानी स्तिथि ख़ुशी की चरमसीमा पर ले जायेगी... और हल्के होकर खुशियो के आसमान में उड़ते ही रहेंगे...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा यादो के प्रकाश में बैठ उजली और प्रकाशित होती जा रही हूँ... अपने हर साँस संकल्प में सम्पूर्ण पवित्रता को समाती जा रही हूँ... और यादो से पायी ख़ुशी को सारे जहान में लुटा रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... हर पल हर घड़ी अपनी सूक्ष्मता से जाँच करो... अपने हर साँस संकल्प को पवित्रता से भर चलो... यह शुद्ध स्तिथि हल्का बनाकर असीम आनन्द का अनुभव कराएगी... और स्वयं अनुभूति कर औरो को भी इन सच्ची खुशियो से भर पाओगे...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो में निरन्तर शुद्धता को पाती जा रही हूँ... और ज्यो ज्यो यह पवित्रता बढ़ती जा रही है... मै आत्मा हल्की आनन्दित होकर मुस्करा रही हूँ... और आनन्द सागर में डूबी हुई हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - बाप समान निरहंकारी बनना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा भृकुटि के बीचोबीच एक चमकता अजब सितारा हूं... यह ज्ञान मुझे मेरे प्यारे बाबा ने दिया है... अभी तक तो मैं देह के भान में रह बस अपने झूठी मान शान को पाने में ही लगी रही... इस विनाशी शरीर को ही सब समझती रही... प्यारे परमपिता परमात्मा ने ही मुझ आत्मा को ज्ञान की रोशनी देकर अज्ञानता के घोर अंधियारे से निकाला... और मुझ आत्मा को सारी विस्मृतियों की स्मृति दिलाई... हम सब आत्माओं के पिता परमात्मा एक है... अपने बच्चों के लिए इस पतित दुनिया में पतित से पावन बनाने के लिए आते हैं... अपने बच्चों की कितनी गल्तियां करने पर भी रोज मीठे बच्चे लाडले बच्चे कहकर लाड़ प्यार देते हैं... इतने वर्षों से पहला पाठ पक्का करने के लिए रोज कहते हैं... मेरे परमपिता परमात्मा सारी सृष्टि के मालिक है... सर्वोच्च हैं... सर्वज्ञ हैं... कितने निरहंकारी हैं! स्वयं भगवान कहते हैं बच्चों मैं तुम्हारा ओबीडिऐंट सर्वेंट हूं... हम बच्चों की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं... मैं आत्मा प्यारे बाबा की आज्ञाकारी बच्ची हूं... प्यारे बाबा की श्रीमत पर चल निरहंकारी बनती हूं... मैं आत्मा निस्वार्थ भाव से सर्व की सेवा के लिए ऐवररेडी रहती हूं... मुझ आत्मा में अहंकार की भावना समाप्त हो गई है... बाबा की याद में रहने से मैं पन को छोड़ चुकी हूं... मेरे को तेरे में परिवर्तित कर चुकी हूं... यह शरीर मुझ आत्मा की अमानत है... मुझ आत्मा को अपने इस शरीर की सम्भाल करनी है... ये शरीर बहुत वैल्यूऐबल है... इस शरीर के द्वारा ही मुझ आत्मा का परमात्मा से मिलन होता है... इस संगमयुग के छोटे से जीवन में मैं आत्मा अपने प्यारे बाबा की याद में रहती हूं... मैं आत्मा अन्य आत्माओं को बाप का परिचय देकर रुहानी सर्विस करती हूं... बाप से मिलने का रास्ता बताकर उनका कल्याण करती हूं... मैं आत्मा रुहानी सर्विस कर बाप का मददगार बनती हूं...
❉ "ड्रिल - फॉलो फादर मदर करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा ऊपर से नीचे की चकाचोंध को देख आकर्षित हुई... अपने पिता से जिद्द करके नीचे खेलने को आई... अपने पवित्र स्वरुप में नीचे आकर घर वापिस जाने का रास्ता भूल गई... धीरे धीरे अपने स्वरुप की पहचान खो दी... सतोप्रधान से तमोप्रधान हो गई... देहभान के कारण माया के चुंगल में फंसती चली गई... माया रावण ने मुझे बंदी बना लिया... एक भूल से ही अनेकों भूलें होती चली गई... देहभान से विकारों में गिरती चली गई... प्यारे बाबा ने आकर अपनी बच्ची को अज्ञानता के घोर अंधियारे से निकाल ज्ञान की रोशनी दी... मैं आत्मा बापदादा के सम्मुख बैठी हूं... बापदादा से निकलती सर्व शक्तियों की किरणों से मुझ आत्मा की विकारों की कालिख उतरती जाती है... मुझ आत्मा के पांचो विकार भस्म होते जा रहे है... मैं आत्मा एक प्यारे बाबा की याद में रहती हूं... प्यारे बाबा की याद में रहने से मैं आत्मा रावण माया के चुंगल से मुक्त हो गई हूं... मैं आत्मा मन बुद्धि की अधिकारी हो गई हूं... मैं स्वराज्याधिकारी आत्मा हूं... मुझ आत्मा के मन में बस बाबा ही बसते है इसलिए कोई भी भूत नही रह सकता... मैं आत्मा मीठे बाबा की मीठी बच्ची हूं... मैं आत्मा सर्व के साथ मीठी रहती हूं... मैं आत्मा सर्व की सहयोगी बनती हूं व सर्व के साथ मिलकर चलती हूं... मैं आत्मा क्रोधमुक्त हूं... मुझ आत्मा के सर्व सम्बंध बस प्यारे बाबा से है... प्यारे परमपिता परमात्मा ने मुझ आत्मा को ब्रह्मा बाबा के द्वारा एडाप्ट किया है... ब्रह्मा बाबा मुझ आत्मा की बड़ी माँ है... मुझ आत्मा को बापदादा उंगुली पकड़ कर चलना सीखाते है... मैं आत्मा प्यारे बाबा का श्रीमत रुपी हाथ पकड़ कर ही चलती हूं... प्यारे बापदादा के साथ दिल की सच्चाई और सफाई से रहती हूं... मैं आत्मा मदर फादर को फॉलो कर दिलतख्तनशीं बनती हूं...
❉ "ड्रिल - श्रीमत पर चल सफलता प्राप्त करना"
➳ _ ➳ अभी तक मंदिर, गुरुद्वारे, मस्जिद... सब जगह भगवान को ढूंढ़ते रहे, पुकारते रहे... सत्य की खोज में भटकते रहे... इतने पतित बन गये कि स्वयं भगवान को इस धरा पर आना पड़ा... भगवान जो सर्वोच्च है... सर्वज्ञ है... सर्वशक्तिमान है... स्वयं परमात्मा ने ही अज्ञानता की निद्रा से जगाकर ज्ञान की रोशनी दी... सत् का परिचय दिया... मैं कौन हूं... मेरा कौन है... मेरा साथ कौन निभा रहा है... ये सच्चा सच्चा ज्ञान सिवाय परमपिता परमात्मा के कोई ओर दे न सका... मैं आत्मा चमकता मणि हूं, ज्योतिर्बिंदु हूं... मुझ आत्मा के पिता भी सुप्रीम बिंदु हैं... गुणों में सिंधु है... प्यारे बाबा की अनन्त किरणों का प्रकाश तेजोमय है... मुझ आत्मा के पिता ज्ञान का सागर, आनन्द का सागर, शांति का सागर, प्रेम का सागर, सुख का सागर, प्यार का सागर, सर्वशक्तिमान हैं... मैं आत्मा पदमापदम भाग्यशाली हूं... मैं आत्मा शिव बाबा का बच्चा हूं... मेरे प्यारे परमपिता शिव बाबा ही सारी सृष्टि के मालिक है... ऊंच ते ऊंच है... मुझ आत्मा को पतित से पावन बनाते हैं... मेरे कौड़ी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बनाते है... मुझ आत्मा के सुप्रीम शिक्षक बन पढ़ाकर विश्व की बादशाही के लायक बनाते है... मैं आत्मा प्यारे बाबा की श्रीमत पर चल श्रेष्ठाचारी बनती हूं... मैं आत्मा प्यारे बाबा को यथार्थ रीति से याद करती हूं... मैं आत्मा प्यारे शिव बाबा का साथ व श्रीमत रुपी हाथ सदा साथ रख सफलता प्राप्त करती हूं...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं सम्पूर्ण वफादार आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳ मैं आत्मा पारलौकिक परमपिता परमात्मा शिव की गोद का बच्चा हूँ... मैं आत्मा पारलौकिक प्रापर्टी का मालिक हूँ... मैं आत्मा बाप का वारिस बच्चा हूँ... हकदार बच्चा हूँ ... मैं निमित भाव द्वारा सेवा में सफलता प्राप्त करने वाली सेवाधारी आत्मा हूँ...
➳ _ ➳ स्वयं को निमित समझ, करनकरावनहार बाप की छत्रछाया में मैं आत्मा हर कार्य में सफलता प्राप्त करने का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा अपने हर कदम को प्यारे बाबा की श्रेष्ठ मत द्वारा श्रेष्ठ बना रहीं हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपनी स्वस्थिति द्वारा हर परिस्थिति पर विजय प्राप्त करने का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा स्वयं को व्यर्थ चिंतन से मुक्त रखने वाली समर्थ आत्मा हूँ... मुझ आत्मा का यह दिव्य अलौकिक जन्म ईश्वरीय सेवार्थ है... मुझ आत्मा ने अपना समय, संकल्प और कर्म सब कुछ ईश्वरीय सेवार्थ समर्पित कर दिया है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपना समय वा संकल्प वेस्ट नहीं करती हूँ... मैं सदा व्यर्थ बोल से परे रहने वाली नम्रचित्त आत्मा हूँ... मैं आत्मा तन द्वारा कभी भी व्यर्थ कार्य न करने वाली सम्पूर्ण वफादार आत्मा हूँ... मैं आत्मा हर सेकण्ड वा एक-एक पैसे को सफल करने वाली सफलतामूर्त आत्मा हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ हर संकल्प, समय, शब्द और कर्म द्वारा ईश्वरीय सेवा करने वाले सम्पूर्ण वफादार होते हैं... क्यों और कैसे?
❉ हर संकल्प, समय, शब्द और कर्म द्वारा ईश्वरीय सेवा करने वाले सम्पूर्ण वफादार होते हैं क्योंकि सम्पूर्ण वफादार उन्हों को ही कहा जाता है, जो अपनी हर वस्तु की सम्भाल करते हैं। वस्तु मीन्स हर संकल्प, समय, शब्द और कर्म के द्वारा जो ईश्वरीय सेवा करने वाले होते हैं।
❉ वह अपनी कोई भी चीज़ व्यर्थ में नहीं जाने देते। वह अपनी सब चीज़ों के प्रति सजग जागरूक व वफादार होते हैं। इसलिये! वे ही वफदार कहलाने का हक़ भी रखते हैं। जब से उनका जन्म होता है, तब से ही वह अपने समय संकल्पों और कर्मों को ईश्वरीय सेवा अर्थ हों, यही सोच कर उनको कार्य में लगते हैं।
❉ यदि हमारे संकल्प समय और कर्म अन्यत्र कहीं कार्य में लग रहे हैं तो समझना चाहिये कि वह ईश्वरीय सेवा नहीं है। वह समय संकल्प सब व्यर्थ में चला गया है। मुख से भी कभी व्यर्थ नहीं बोलना हैं। बड़ी सावधानी रखने की आवश्यकता है।
❉ अगर ईश्वरीय सेवा की बजाय हमारा कहाँ भी संकल्प वा समय जाता है तथा मुख से व्यर्थ बोल निकलते हैं या फिर तन द्वारा व्यर्थ कार्य होता है तो उनको सम्पूर्ण वफादार नहीं कहेंगे। सम्पूर्ण वफादार अपने संकल्पों की समय की बचत करेंगे उनको व्यर्थ नहीं जाने देंगे।
❉ ऐसे नहीं सोचना है कि एक सेकण्ड वा एक पैसा व्यर्थ गया क्या हुआ? ये कौन सी बड़ी बात हो गई? नहीं! ऐसा सोचना सरासर गलत बात है। सम्पूर्ण वफादार बनना अर्थात सब कुछ सफल करने वाले बनना। कोई भी चीज़ व्यर्थ में नहीं जाने देना।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ श्रीमत को यथार्थ समझकर उस पर कदम - कदम चलने में ही सफलता समाई हुई है... क्यों और कैसे ?
❉ श्रीमत ब्राह्मण जीवन का मूल आधार है और ब्राह्मण जीवन की सफलता का एकमात्र साधन है । जो बच्चे बाबा की श्रीमत को यथार्थ रीति समझते और समझ कर यथार्थ रीति चलते हैं उनके जीवन में असफलता कभी स्वप्न में भी नही आ सकती क्योकि श्रीमत पर यथार्थ रीति चलने वाले सदैव परमानन्द का अनुभव करते रहते हैं जो इस संगमयुगी जीवन की परम प्राप्ति है और इस परमप्राप्ति का अनुभव करने वाले कभी भी किसी भी क्षेत्र में असफल नही हो सकते ।
❉ जो सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि होते हैं अर्थात जिन्हें शिव बाबा पर सम्पूर्ण निश्चय होता है उनको बाबा द्वारा दिए ज्ञान के आधार पर स्वयं पर, परमात्म कर्तव्यों पर, विश्व नाटक के विधि विधान पर तथा कर्मो के विधि विधान पर भी अवश्य ही निश्चय हो जाता है । वे श्रीमत में ही अपना कल्याण समझते है, इसलिए वे मनमत और परमत को छोड़ एक बाप की श्रीमत को यथार्थ समझ उस पर कदम - कदम चल कर सहज ही सफलता प्राप्त कर लेते हैं ।
❉ आत्म कल्याण और विश्व कल्याण का एक मात्र साधन श्रीमत ही है । संगमयुग पर जब शिव बाबा इस धरा पर आते हैं तब आत्माओं का व्यक्तिगत कल्याण तो होता ही है साथ ही साथ सारे विश्व का भी कल्याण होता है क्योकि व्यक्ति से परिवार और परिवार से समाज, समाज से देश और देश से विश्व परिवर्तन होता है । इसलिए श्रीमत पर चल कर जब हम अपनी दृष्टि वृति को परिवर्तन कर लेते हैं तो सारी सृष्टि का परिवर्तन हो जाता है ।
❉ ये सारा विश्व नाटक कर्म और फल पर आधारित है । श्रेष्ठ कर्मो से सुख और विकर्मो से आत्मा दुःख पाती है । कोई भी आत्मा बिना कर्म किये इस कर्म क्षेत्र पर रह नही सकती । किन्तु आत्मा कैसे श्रेष्ठ कर्म करे और कैसे स्वयं को विकर्मो से बचाये और कैसे श्रेष्ठ कर्म करने के लिए शक्ति अर्जित करे उसके लिए बाबा ही आ कर श्रीमत देते है और इस श्रीमत को यथार्थ समझ इस पर कदम - कदम चलने वाले ही सफलतामूर्त बन पाते हैं ।
❉ श्रीमत को यथार्थ समझकर जो उस पर कदम - कदम चलते हैं वे पुराने स्वभाव - संस्कार अथवा किसी भी प्रकार के वातावरण के प्रभाव से स्वयं को बचा लेते हैं । मेजोरिटी देखा जाता है कि संस्कार वश ना चाहते हुए भी ब्राह्मण बच्चों से अनेक ऐसे विकर्म होते रहते हैं जो मन बुद्धि को एकाग्र नही होने देते । किन्तु जो श्रीमत की लगाम को सदा मजबूत रखते हैं और हर कदम सोच समझ कर श्रीमत प्रमाण उठाते हैं उनसे संस्कारवश भी कभी कोई विकर्म नही होते ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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