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 03 / 07 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ मनरस की स्थिति का अनुभव किया ?

 

➢➢ मुरली सुनने के पश्चात उसका अच्छे से मनन किया ?

 

➢➢ सदाकर्मयोगी बन हर कर्म किया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ "बाबा" शब्द की चाबी बिना अटकाए सही तरह से घुमाते रहे ?

 

➢➢ दोनों बाप को माध्यम बनाकर खजाने के मालिक बनने का पुरुषार्थ किया ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢ आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ "सर्व खजानो की चाबी एक शब्द - बाबा"

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे कितना मीठा प्यारा शानदार आपका भाग्य है... कितनी मीठी सी तकदीर है... भगवान आपके पास है... क्या नही कर सकते जितना चाहे उतने खजाने लूटो... जितने चाहे उतने सुख अपनी बाहों में भर लो... भाग्य विधाता बन मुस्कराओ...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै कितनी प्यारी भाग्यशाली आत्मा हूँ.... भगवान पिता बन कर सामने बेठा है... सारे खजाने मेरे हवाले कर चला है... जितना चाहे बटोर लूँ और महा भाग्य शाली बन मुस्काऊँ...

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे विश्व पिता बच्चों के सम्मुख है... जितना चाहे भाग्य की लकीर खीच लो... जितनी खुशियां जितने सुख दामन में सजा लो... बाबा शब्द चाबी है उस खूबसूरत खुशियो के खजाने की... इसे हर पल लगाओ और सारे खजाने पाकर खिलखिलाओ...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मेने खूबसूरत भाग्य से बाबा रुपी चाबी को पा लिया है... मै आत्मा सुखो की दौलत बाहों में भरने में जुट चली हूँ... मेरे जैसा भाग्यशाली तो और कोई नही... मुझे भगवान मिल गया है...

 

 ❉   मेरा बाबा कहे - सदा बाबा की यादो में खोये रहो... दीवाने से मस्ताने रहो... बाबा ही संसार हो... यादो में उठाया हर कदम पदम् है... त्याग और तपस्या के साथ सदा सफलता है... कीचड़ से परे सदा न्यारे और बाबा के दिल में प्यारे बनो... तो जीवन आनन्द से भरा खिल जायेगा...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... आपकी मीठी यादो से दिल को भर दिया है... कदमो में पदमो की धनी मै आत्मा मुस्करा उठी हूँ... बाबा चाबी से प्राप्त खजानो को देख निहाल हो उठी हूँ... खुशियो में खोयी हुई हूँ....

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

 ❉   "ड्रिल - अपना सरनेम की स्मृति रखते साकार और निराकार बाप से वर्सा लेने के अधिकारी"

 

 ➳ _ ➳. मैं आत्मा ब्रह्मा मुखवंशावली हूं... शिव बाबा ने ब्रह्मा बाप ने मुझ आत्मा को एडाप्ट किया है... शिव बाबा ब्रह्मा बाबा के शरीर को रथी बनाकर अपना बच्चा बनाकर मुझ आत्मा को दिव्य ज्ञान दे रहे हैं... साकार ब्रह्मा माँ ने ही मुझ आत्मा को प्यारे निराकार बाबा का परिचय दिया है... ब्रह्मा माँ ही पालना कर मुझ आत्मा को बाप से वर्सा दिलाने के योग्य बना रही है... बापदादा से सर्व खजानों से भरपूर होती जा रही हूं... मैंआत्मा ब्रह्मा बाबा को आधार बनाकर शिव बाबा से सर्व खजानों को लेकर सर्व खजानों की मालिक बनती जा रही हूं... साकार ब्रह्मा बाबा के थ्रू ही निराकार बाप से मैं आत्मा सर्व प्राप्ति से सम्पन्न बनती जा रही हूं... ब्रह्मा बाप के आचरण पर चलने वाली ही मैं आत्मा ब्रह्माकुमार कुमारी हूं...

 

 ❉   "ड्रिल - बापदादा को याद कर पदमापदम भाग्यशाली अनुभव करना"

 

 ➳ _ ➳. मैं आत्मा पदमापदम भाग्यशाली हूं... मुझ आत्मा के आलौकिक बाप भी हैं और पारलौकिक भी... मुझ आत्मा के दोनो बाप हाजिर नाजिर रहते है... भाग्य विधाता बाप से अविनाशी तकदीर की लकीर जितनी चाहूं खिंचवा सकती हूं... सर्व खजानों को भरपूर करने की चाबी मुझ आत्मा को बापदादा ने दी है... मैंपन को भुलाकर बस बाबा शब्द की चाबी सदा साथ रख बाबा के सहयोग और साथ से मैं आत्मा सर्व खजानों से सम्पन्न हो रही हूं...  मैं आत्मा बापदादा दोनो को याद कर रही हूं... करनकरावनहार ही करा रहा है... बापदादा को साथ रख करने से हर परिस्थिति सहज ही पार.करती जा रही हूं... पदमापदम भाग्यशाली अनुभव कर रही हूं...

 

 ❉   "ड्रिल - मन्मनाभव की स्थिति में रहना"

 

➳ _ ➳. मुझ आत्मा को स्वयं की पहचान मिल गई है... मैं शरीर नही एक चैतन्य शक्ति हूं... चमकता हुआ एक अजब सितारा हूं... मैं आत्मा इस शरीर की मालिक हूं... सभी कर्मेन्द्रियां मुझ आत्मा के अधीन हैं... मैं आत्मा मन बुद्धि की मालिक हूं... मन बुद्धि मुझ आत्मा के आर्डर प्रमाण चल रहे हैं... मैं आत्मा हाथों की कर्मेन्द्रियों से काम कर रही हूं... कानों से सुन रही हूं.... आँखों से देख रही हूं... मुझ आत्मा के परमपिता सुप्रीम सोल हैं... ज्योति बिंदु हैं... गुणों में सिंधु हैं... अपने को आत्मा समझ मन ही मन अपने परमपिता परमात्मा को याद करती हूं... मन्मनाभव की जादुई चाबी से अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति कर रही हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- " मैं पदमों की कमाई जमा करने वाली पदमपति आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳  अपना ध्यान केंद्रित करेंगे भृकुटि के मध्य चमकती बिंदु रूप आत्मा पर, संकल्प करें... मैं आत्मा अजर... अमर... अविनाशी हूँ...

 

➳ _ ➳  परमधाम से इस धरा पर सुन्दर पार्ट बजाने के लिए अवतरित हुई हूँ... मेरा मूलवतन आवज़ ते परे शान्तिधाम है... धरा पर अवतरण के आदिकाल में मैं सम्पूर्ण निर्विकारी...

 

➳ _ ➳  आत्म-अभिमानी स्तिथि में थी... भौतिक सुखों से पूर्णतया सम्पन्न होते हुए मुझमें भौतिकता के प्रति कोई लगाव नहीं था... अब संगम पर परमात्मा पिता मुझे उन्हीं सुखों से भरपूर कर रहें हैं...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा हूँ... शांतस्वरूप हूँ... सुख स्वरुप हूँ... मैं कदम-कदम पर सावधानी रखते हुए पदमों की कमाई जमा करने वाली पदमपति आत्मा हूँ... मैं बाप की डायरेक्शन अनुसार सदा ऊंच स्टेज पर रहने वाली आत्मा हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा इस संगमयुग के वरदानी समय पर ज़रा भी गफलत न करने वाली और कदम-कदम पर सावधान रहने वाली पदमापदम भाग्यशाली आत्मा हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपना हर कदम श्रीमत प्रमाण उठाने वाली और श्रीमत में मनमत को मिक्स न करने वाली फार्मानबर्दार आत्मा हूँ... श्रीमत प्रमाण चलने से मुझ आत्मा का हर कर्म पदम की कमाई करने वाला हो गया है... मैं आत्मा पदमपति आत्मा बन गयीं हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢ कदम-कदम पर सावधानी रखते हुए पदमों की कमाई जमा करने वाले पदमपति होते हैं... क्यों और कैसे ?

 

  ❉   जो ये स्मृति रखते है कि ये संगमयुग ऐसा अनमोल समय है जिसमें स्वयं भगवान ने हमें अपने भाग्य लिखने की कलम हम बच्चों को दी है व हम जितना भाग्य बनाना चाहे बना सकते है तो वो अपना हर संकल्प, बोल में  अटेंशन रखते हुए कर्म करते है व पदमों की कमाई जमाकर पदमापति होते हैं ।

 

  ❉   जो ये स्मृति में रखते कोटो में कोई व कोई मे से भी कोई  हम आत्माऐं हैं जिन्होनें परमपिता परमात्मा को पाया है । न सिर्फ जाना, जो पाना था सो पा लिया व ये पूरे कल्प में एक बार ही भाग्य प्राप्त होता है । इसलिए हर कदम पर सावधानी रखते हुए अपने भाग्य के गीत गाते हुए एक बाप की याद में हर कर्म करते पदमों की कमाई जमा करते हैं व पदमापदम भाग्यशाली होते हैं ।

 

  ❉   जो बच्चे बहुत सोच समझकर श्रीमत प्रमाण हर कदम उठाते हैं व श्रीमत में मनमत मिक्स नही करते । संगमयुग के अनमोल समय की महत्ता को समझते है तो हर कदम पर प्यारे बाबा की याद में रहते अपने हर कदम में कमाई जमा कर पदमपति होते हैं ।

 

  ❉   जो ये स्मृति में रखते कि ये संगमयुग ही ऐसा समय है जहां हम पुरुषार्थ कर 21 जन्मों के लिए प्रालब्ध पाते है व हर एक क्षण एक साल के बराबर है तो कदम कदम पर सावधानी रखते अपना हर श्वांस एक प्यारे बाबा की याद में  सफल कर पदमापदमपति होते है ।

 

  ❉   जिन बच्चों को ये नशा रहता है कि इस संगमयुग पर ही भगवान के बच्चे बनते है व सर्वप्राप्ति स्वरुप बनते है । सदा बाप का साथ अनुभव करते अलबेलेपन से दूर रहते है । बाप के लव मे लीन हो हर कदम में पदमों के सुख शांति खुशी ज्ञान के खजानों से भरपूर हो पदमपति होते है ।

 

  ❉    जो बापदादा के डायरेक्शन प्रमाण हर संकल्प व हर कदम उठाते और हमेशा बाप  की भुजाएं बन मदद करते है । मर्यादा पुरुषोतम के संस्कार रखने का लक्ष्य रखते सच्ची सीता बन लकीर के अंदर रहने की हिम्मत रखते हैं । रावण के बहुरुपों को जानते वो हर कदम में सावधानी रखते हुए पदमों की कमाई जमा करने वाले होते है ।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢ मन को आर्डर प्रमाण चलाओ तो मनमनाभव की स्थिति स्वत: रहेगी... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   मन को आर्डर प्रमाण तभी चला सकेंगे जब सदा अपनी रूहानी शान में रह ड्रामा की हर सीन को साक्षी हो कर देखते हुए, अनेक विघ्नों के बीच भी अचल, अडोल और एकरस स्थिति के आसन पर विराजमान रहेंगे । जब किसी भी विपरीत परिस्थिति में मन चलायमान नही होगा बल्कि सेकण्ड में फुल स्टॉप लगा कर परिस्थिति पर विजय प्राप्त कर लेगा तभी कल्याणकारी बाप के लव में लीन हो कर अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करते हुए मनमनाभव की स्थिति में सदा स्थित रह सकेंगे ।

 

 ❉   मन को वश में कर, मनमनाभव की स्थिति का अनुभव तभी कर सकेंगे जब इच्छा मात्रम अविद्या बन हद की इच्छाओं और कामनाओं पर पूर्ण रूप से जीत पा लेंगे और यह तभी होगा जब वाणी से परे की वानप्रस्थ स्थिति में स्थित रहने के अभ्यासी होंगे । वाणी से परे की वानप्रस्थ अवस्था ही मनजीत अर्थात कामनाजीत बनाएगी और आत्मा सभी विनाशी रसों को छोड़ एक बाप से सर्व रसों का अनुभव करते हुए मन को आर्डर में रख असीम तृप्ति का अनुभव करेगी ।

 

 ❉   मन को आर्डर प्रमाण तभी चला सकेंगे जब मन वश में होगा और मन को वश में करने का मुख्य आधार है संकल्प शक्ति । संकल्प शक्ति ही हर कदम में कमाई का आधार है । संकल्प किया और अशरीरी बन सेकण्ड में बाबा के पास पहुँच गए । इसलिए मन की शक्ति विशेष है किन्तु मन शक्तिशाली तभी बनेगा जब व्यर्थ से मुक्त होगा क्योकि व्यर्थ संकल्प मन की शक्ति को कमजोर कर देते हैं । इसलिए जितना मन को समर्थ चिंतन में बिज़ी रखेंगे मन को शक्तिशाली बना कर मनमनाभव की स्थिति में स्थित हो पाएंगे ।

 

 ❉   " एक बाप दूसरा ना कोई " इस अनुभूति में जो रहते हैं वे सदा अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की स्मृति में हर्षित रहते हैं । भाग्यविधाता के राज़ी होने के कारण वे स्वयं को सर्व प्राप्ति सम्पन्न अनुभव करते हैं इसलिए उनके मन का झुकाव या लगाव किसी व्यक्ति या वस्तु की तरफ नही होता । उन्हें मन को आर्डर दे कर बाबा की याद में लगाने की मेहनत नही करनी पड़ती लेकिन सहज ही मन बाबा की मुहब्बत के संसार में विचरण करता रहता है । इसको ही सार रूप में कहते हैं " मनमनाभव " की स्थिति ।

 

 ❉   जो स्वयं को सदा स्वराज्य अधिकारी की सीट पर सेट रखते है वही मन के राजा बन अपनी इच्छानुसार मन को चला सकते हैं । राजा का अर्थ ही है जिसमे रूलिंग पॉवर हो । और रूलिंग पावर आती है स्वयं को अधिकारी समझने से । अगर पुराने स्वभाव संस्कार के अधीन हो जाते है तो मालिकपन की सीट विस्मृत हो जाती है और मन को आर्डर प्रमाण चलाना कठिन हो जाता है । इसलिए अधिकारीपन की सीट पर जो सदा सेट रहते हैं वही मन को कण्ट्रोल कर मनमनाभव की स्थिति का अनुभव कर सकते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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