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 22 / 09 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ बुधी रुपी झोली को अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर कर फिर दान किया ?

 

➢➢ कभी भी आपस में बिगड़कर लूनपानी तो नहीं हुए ?

 

➢➢ बहुत प्यार से बाप को याद किया और मुरली सुनी ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ अन्य आत्माओं की सेवा के साथ साथ स्वयं की भी सेवा की ?

 

➢➢ बेहद की सेवा का लक्ष्य रख सब हद के बन्धनों को तोडा ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢ आज बाकी दिनों के मुकाबले एक घंटा अतिरिक्त °योग + मनसा सेवा° की ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - पतित पावन बाप की श्रीमत पर तुम पावन बनते हो इसलिए तुम्हे पावन दुनिया की राजाई मिलती अपनी मत पर पावन बनने वालो को कोई प्राप्ति नही"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे... मीठे बाबा की श्रीमत पर चलकर पावन बनते हो इसलिए पावन दुनिया के सारे सुखो के अधिकारी बनते हो... मनुष्य की मत सम्पूर्ण पावन न बन सकते हो न ही सतयुगी दुनिया के मालिक बन सकते हो... यह कार्य ईश्वर पिता के सिवाय कोई कर ही न सके....

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा अपनी मत और दूसरो की मत से अपनी गिरती अवस्था की बेहतर अनुभवी हूँ... अब श्रीमत का हाथ थाम खुशियो के संसार में बसेरा हुआ है... प्यारा बाबा मुझे पावन बनाने आ गया है...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... पतित पावन सिर्फ बाबा है जो स्वयं पावन है वही पावन बना भी सकता है... मनुष्य खुद इस चक्र में आता है वह दूसरो को पावनता से कैसे सजाएगा भला... ईश्वर की मत ही सर्व प्राप्तियों का आधार है... श्रीमत ही मनुष्य को देवता श्रंगार देकर सजाती है...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा इतनी भाग्यशाली हूँ कि श्रीमत मेरे भाग्य में है... श्रीमत की ऊँगली पकड़ मै आत्मा पावनता की सुंदरता से दमक रही हूँ... और श्रीमत पर सम्पूर्ण पावन बन सतयुग की राजाई की अधिकारी बन रही हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता धरती पर उतरा है प्रेम की सुगन्ध को बाँहों में समाये हुए... तो फूल बच्चे इस खुशबु को अपने रोम रोम में सुवासित कर चलो... यादो को सांसो सा जीवन में भर चलो... और यही प्रेम नाद सबको सुनाकर आल्हादित रहो... हर साँस पर नाम खुदाया हो... ऐसा जुनूनी बन चलो...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपनी मत पर चलकर और परमत का अनुसरण कर निराश मायूस हो चली थी... दुखो को ही अपनी नियति मान बेठी थी... प्यारे बाबा आपकी श्रीमत ने दुखो से निकाल... मीठे सुखो से दामन सजा दिया है... प्यारी सी श्रीमत ने मुझे पावन बनाकर महका दिया है...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल -  अविनाशी ज्ञान धन का दान कर खुशी में रहना"

 

➳ _ ➳  कितने जन्मों से अज्ञानता के अंधकार में भटक रही थी... विनाशी और स्थूल धन इकठ्ठा करने में लगी हुई थी... जिसके कारण विकारों में धंसती जा रही थी... मेरा सौभाग्य है कि मुझे ज्ञान सागर पिता ने अपना बनाया... मुझे अपने असली स्वरुप की पहचान मिली... सच्चे सच्चे परमपिता का परिचय मिला... प्यारे शिव पिता की छत्रछाया मिली... दिव्य दृष्टि और ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला... अपने को ज्ञानसागर प्यारे शिव पिता के सम्मुख पाकर मुझ आत्मा की अज्ञानता रुपी अंधियारा मिटता जा रहा है... ज्ञान की किरणें मुझ आत्मा में समाती जा रही है... मैं आत्मा मास्टर ज्ञान सागर बनती जा रही हूं... स्वयं भगवान इस पतित दुनिया में आकर मुझ आत्मा को रोज पढ़ाकर पतित से पावन बना रहे हैं... मुझ आत्मा की बुद्धि रुपी झोली अविनाशी अनमोल अखूट खजानों से भरपूर कर रहे हैं... मैं आत्मा इन अविनाशी ज्ञान रत्नों से कमाई कर मालामाल हो रही हूं... ये एक एक रत्न बेशुमार कीमती है... मैं ये ज्ञान रत्न अच्छी रीति धारण कर अविनाशी कमाई कर रही हूं... इस पढ़ाई से मैं आत्मा 21जन्मों के लिए राजाई पद पा रही हूं... इस पढ़ाई से मैं अगले 21जन्मों के लिए प्रालब्ध जमा कर रही हूं... ये अविनाशी ज्ञान धन पाकर मैं अज्ञान में भटकती हुई आत्माओं को दे रही हूं... उनका कल्याण कर रही हूं... वो आत्माएं अपने सच्चे पिता से मिलकर खुश हो रही है... मैं आत्मा अपने सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को ये अविनाशी ज्ञान का दान दे रही हूं... ताकि उनको भी गति सदगति का रास्ता मिले... जो सच्ची सुख, शांति खुशी मुझे मिली सब को मिले... मैं आत्मा जितना ज्ञान धन बांटती हूं उतना ही ये धन बढ़ता जाता है...  मैं आत्मा ज्ञान धन का दान कर खुशी अनुभव करती हूं...

 

❉   ड्रिल -- बापदादा की छत्रछाया में बेहद के सेवाधारी बन स्वयं को हद के बंधनों से मुक्त बनाना।

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा बेहद के बाप की प्यारी बच्ची जिसे बाबा ने अव्यक्त फरिस्ता बनाया है, सूक्ष्म वतन में अपने को बापदादा के सानिध्य में देख रही हूँ। जैसे मेरे बाबा विश्व के सेवाधारी, विश्व कल्याणकारी है, मुझे भी बेहद के सेवाधारी, मास्टर विश्व कल्याणकारी बना रहे है।

    बापदादा के नयनो से निकलती हुई शक्तिशाली किरणे झरने के सामान मुझ फरिस्ते पर पड़ रही है, मैं फरिस्ता उन शक्तिशाली किरणों को अपने में समाने लगी हूँ। और भरपूर होती जा रही हूँ। अब मेरे संकल्पों में बाबा ही बाबा है। मेरे संकल्प, बोल और कर्म बाप सामान हो गए है।

    अब मै बाप सामान बेहद की सेवाधारी, विश्व कल्याणकारी बन चुकी हूँ। मुझ आत्मा द्वारा निकलती हुई शक्तिशाली वायब्रेशन्स पुरे विश्व में सेवा के निमित्त बन रही है। मुझ फरिस्ते द्वारा पुरे विश्व की सेवा हो रही है, और अब हद के आकर्षण मुझे आकर्षित नही करते, मैं इन आकर्षणों से मुक्त हो चुकी हूँ, हद के बंधनों से भी मुक्त हो चुकी हूँ। मैं बंधनमुक्त आत्मा बन गयी हूँ।

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं सफलतामूर्त आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳  आराम से योगयुक्त हो बैठ जाएं और शान्तिधाम में शिवबाबा के समक्ष स्वयं को श्रेष्ठ स्वमानों में अपने आपको स्तिथ करें... मैं आत्मा परमधाम में शिवबाबा के समीप हूँ... मैं आत्मा बाप की छत्रछाया में हूँ... मैं अष्ट-इष्ट महान और सर्वश्रेष्ठ आत्मा हूँ... मैं आत्मा मास्टर ज्ञानसूर्य हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ... शिव शक्ति कमबाइनड हूँ... मैं आत्मा जागती ज्योत हूँ... मैं योगबल जमा करने वाली योगयुक्त आत्मा हूँ... मैं आत्मा योग की अग्नि द्वारा अपने पुराने संस्कारों का अग्नि संस्कार कर रही हूँ... जला कर भस्म कर रही हूँ अपने पुराने संस्कारों को...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अवगुणों को भस्म करने वाली सम्पूर्ण निर्विकारी आत्मा होने की सीट पर सेट हो गयी हूँ... मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि अन्य सभी आत्माएं मुझे मन से नमस्कार करने लगीं हैं... मेरा सत्कार करने लगीं हैं... मैं अन्य आत्माओं की सेवा के साथ-साथ स्वयं की सेवा करने वाली सफलतामूर्त आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  अन्य आत्माओं की सेवा के साथ - साथ स्वयं की भी सेवा करने वाले सफलतामूर्त होते हैं...  क्यों और कैसे?

 

❉   अन्य आत्माओं की सेवा के साथ - साथ स्वयं की भी सेवा करने वाले सफलतामूर्त होते हैं क्योंकि अगर हमें सेवा में सफलतामूर्त बनना है तो  दूसरों की सर्विस के साथ - साथ अपनी भी सर्विस करनी है क्योंकि...  स्वयं की भरपूरता होनी भी तो अति आवश्यक है।

 

❉   इसलिये!  हम जब भी कोई सर्विस पर जायें तो ऐसा समझना चाहिये कि सर्विस के साथ - साथ अपने भी पुराने संस्कारों का अंतिम संस्कार करना हैं।  क्योंकि... पुराने स्वभाव और संस्कार मनुष्य को अच्छा नहीं बनने देतें हैं। इसलिए सर्विस के साथ स्वयं को भी पवित्र बनाना है।

 

❉   जितना - जितना हम अपने पुराने स्वभाव व संस्कारों का संस्कार करेंगे, उतना - उतना  ही अन्य आत्माओं से हम को सत्कार भी मिलेगा। इसलिये हमें अपने पुराने स्वभाव व संस्कारों का स्वाहा कर देना है। जिस से ये सभी पुराने स्वभाव व संस्कार हमारी सर्विस में तथा हमारी सेवाओं में विघ्न स्वरूप न बन पायें।

 

❉   इसके लिये अन्य आत्माओं की सेवा के साथ - साथ स्वयं की सेवा भी करते रहना चाहिये। तभी तो हम सेवा के निमित्त आत्मायें भी सफलतामूर्त बन सकेंगी। क्योंकि सेवा में सफलतामूर्त बनना है तो दूसरों की सर्विस के साथ - साथ अपनी स्वयं की सर्विस करनी भी अति आवश्यक है।

 

❉   जितना हम अपने संस्कारों का संस्कार करेंगे, उतना ही हमको सत्कार भी मिलेगा। तब सभी आत्मायें हमारे आगे मन से नमन अर्थात नमस्कार करेंगी। लेकिन हमें बहार से नमस्कार करने वाले नहीं बनना है। हमें तो मानसिक नमस्कार करने वाले बनना है। क्योंकि नमन भी मन से होना चाहिये। दिखावे के लिये किया गया नमन व्यर्थ है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  बेहद की सेवा का लक्ष्य रखो तो हद के बन्धन सब टूट जायेंगे... क्यों और कैसे ?

 

❉   जैसे ब्रह्मा बाप ने यज्ञ के लिए अपना सब कुछ स्वाहा कर दिया । अपना तन - मन - धन सब कुछ इश्वरिय सेवा अर्थ समर्पित कर दिया और ट्रस्टी बन कर रहे । ऐसे जब फॉलो फादर का लक्ष्य रखेंगे तो हद की दृष्टि, वृति बेहद की बन जायेगी और जब बेहद की सेवा का लक्ष्य रख सेवा के क्षेत्र में आएंगे तो हद के बन्धन सब टूट जायेंगे और बेहद के वैरागी बन जायेंगे ।

 

❉   पतित पावन परम पिता परमात्मा बाप पतित दुनिया, पतित तन का आधार लेते हैं सिर्फ हम बच्चों की सेवा करने के लिए और सर्व आत्माओं का यहां तक कि अहिल्यायो, गणिकाओं और कुब्जाओं का भी उद्धार करते हैं । ऐसे परमपिता परमात्मा बाप के हम बच्चे भी बेहद विश्व के आधारमूर्त हैं इसलिए हमारा कर्तव्य बनता है कि हद के सभी बन्धनों को तोड़ हम भी बेहद सेवा का लक्ष्य रख सर्व आत्माओं का कल्याण करें ।

 

❉   स्वयं को जब देह समझते हैं तो देह और देह की दुनिया से जुड़े सम्बन्ध याद आते हैं यह सम्बन्ध ही हदों में बाँध देते हैं । मेरा पति, मेरे बच्चे, मेरा परिवार जब यह स्मृति में रख इस बेहद ड्रामा की स्टेज पर आते हैं तो अनेक प्रकार के बंधनो में बन्ध जाते हैं और दुखी हो जाते हैं । किन्तु जब आत्मिक स्मृति में रह सबको आत्मा भाई भाई की दृष्टि से देखते हैं तो सेवा का लक्ष्य भी बेहद का हो जाता है और हद के बन्धन टूट जाते हैं ।

 

❉   जो सदा त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट रहते हैं वे सब बातों के प्रभाव से सहज ही मुक्त हो जाते हैं । क्योंकि त्रिकालदर्शी की सीट उनमे साक्षीपन का भाव पैदा करती हैं । इसलिए वे सभी के पार्ट को साक्षी हो कर देखते हैं । साक्षीपन का भाव हद के मैं और मेरेपन को समाप्त कर देता है और हद की दृष्टि वृति को बेहद में परिवर्तित कर देता है । बेहद की सेवा का लक्ष्य रख सेवा के क्षेत्र में आना ही हद के सर्व बन्धनों से मुक्त कर देता है ।

 

❉   विश्व एक परिवार है और हम सभी एक ही परम पिता परमात्मा बाप के बच्चे हैं जो इस बात को अच्छी रीति समझ लेते हैं और सदा यह बात स्मृति में रखते हैं । उनका हद के रिश्ते नातों में आकर्षण धीरे धीरे समाप्त होने लगता है और सर्व के साथ रूहानियत का रिश्ता बनने लगता है । सबके प्रति रूहानी स्नेह और समदृष्टि का भाव उन्हें हद के सर्व बन्धनों से मुक्त कर बेहद विश्व का सेवाधारी बना देता है ।

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⊙_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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