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❍ 22 / 03 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °प्रयोगी आत्मा° बन योग के प्रयोग से सर्व खजानों को बढाया ?
‖✓‖ देह के सब संबंधो को भूल °बाप और राजाई° को याद किया ?
‖✓‖ "हमें 21 जन्म के लिए °बेहद के बाप से वर्सा° मिलता है" - यह स्मृति रही ?
‖✓‖ "हम सच्चे सच्चे सत्य बाप से सत्य कथा सुन °नर से नारायण° बनते हैं" - यह स्मृति रही ?
‖✓‖ °सम्पूरण पावन° बनने पर विशेष अटेंशन दिया ?
‖✗‖ कोई भी °पाप कर्म (विकर्म)° तो नहीं किया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ °देही अभिमानी स्थिति° में स्थित हो सदा विशेष पार्ट बजाया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
‖✓‖ मुहब्बत से मेहनत में भी °हाली डे का अनुभव° किया ?
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http://bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/22.03.16-VisheshPurusharth.htm
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∫∫ 4 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - तुम सच्चे सच्चे बाप से सत्य कथा सुनकर नर से नारायण बनते हो, 21 जन्म के लिए बेहद के बाप से वर्सा मिल जाता है"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों झूठे सहारो से तुमने असत्य को ही जाना... चाहकर भी सत्य को जान न सके और झूठ में ही उलझते रह गए... मै पिता ही सत्य बताऊंगा और देवता बना कर सारी जागीर तुम्हे सौप जाऊंगा....
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे लाडलो इन उलझे और बेनूर से भटके रास्तो ने तुझे दुखो भरी शाम बना कर भाग्यहीन का दर्जा दिलाया है... सत्य का सूरज बिना मेरे तो कभी देख न सके.... कौन तुम्हे सवारे और प्यार करे... मै ही सत्य बाप ही सत्य समझाऊंगा और सुखो की दौलत तुम पर सदा की लुटाऊंगा....
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे बच्चों अब तक झूठ में जी रहे थे अब तो सत्य को पहचानो... अँधेरे को छोड़ उजालो को जरा जानो... मेरे देवताई पुत्र नारायण बन चमको... और यह सोने की सुखो की खान 21 जनमो के लिए अपने नाम लिखवा लो...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चों सत्य ज्ञान ही जीवन को खुशबूदार बना महकायेगा... जीवन सुखो की आनन्द की खान में बदल जायेगा..इससे ही.साधारण से देवता बन सजते हो... और 21 जन्म बादशाह बन मुस्कराते हो....
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों... कितने भाग्य से भरपूर हो की आप के लिए... मुझ पिता को उतर आना पड़ा...विस्मर्तियो में खोयो को... सत्य स्मर्तियो को सुनाना पड़ा... देवता के सुनहले रूप को तुम्हारी यादो में उजागर किया... और सुखो के धन कुबेर की मचान पर सजा देख मै पिता...मुस्कराया....वाह बच्चे...
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∫∫ 5 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-15)
➢➢ अपनी बुद्धि को पारसबुद्धि बनाने के लिए देह के सब सम्बंधों को भूल देही-अभिमानी बनने का अभ्यास करना है ।
❉ अपने को देह नही समझ देही समझना है व बाबा बार बार यही कहते हैं कि ये पहला पाठ ही पक्का करों व अपने 63 जन्मों के पुराने संस्कारों को स्वाह करना है । देह.व देह के सभी सम्बंधों को भूल अपने को आत्मा समझ परमात्मा को याद करना है ।
❉ देह व देह के सभी सम्बंध विनाशी है व फिर इनमें मोह क्यूं । अब संगमयुग पर बाप ने हमें अपने असली स्वरुप की पहचान दी है । तो मन की आँखें व तन की आँखों से बस मस्तकमणि को ही देखना है व अपनी बुद्धि को पावन बनाना है ।
❉ अपनी दृष्टि की सम्भाल करनी है यही सबसे पहले धोखा देती है व आकर्षण में आती है । जैसी दृष्टि वैसी वृत्ति , जैसी वृत्ति वैसी कृत्ति, जैसी कृत्ति वैसी स्थिति । इसलिए आत्मा आत्मा भाई भाई की दृष्टि रखनी है ।
❉ जितना बाप की याद में रहेंगे तो आत्मा पर लगी जंग उतरती जायेगी । आत्मा पावन बनती जायेगी तो दिव्य गुणों की धारणा होती जायेगी । दिव्य गुणों की धारणा से देही-अभिमानी स्थिति होती जायेगी । देह व देह के सम्बंधों से लगाव समाप्त होता जायेगा ।
❉ एक मैं आत्मा व मुझ आत्मा के पिता परमात्मा । बस यही याद में रहने से बुद्धि पारस बनती जायेगी । क्योंकि पारसनाथ पिता आए ही है पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बनाने । 63 जन्मों से देहभान में फंसकर पत्थर बुद्धि बन पडे थे ।
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∫∫ 6 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-15)
➢➢ देही-अभिमानी स्थिति में स्थित होकर सदा विशेष पार्ट बजाने वाले संतुष्टमणि होते हैं... क्यों और कैसे ?
❉ जो बच्चे देही-अभिमानी स्थिति में स्थित होकर कर्म करते वो विशेष पार्टधारी होते हैं व उनके हर कर्म में विशेषता होती है तो वह स्वयं भी संतुष्ट होते हैं और दूसरों को भी संतुष्ट कर संतुष्टमणि होते हैं ।
❉ मैं आत्मा ही हूं व ये सब भी आत्मायें ही हैं । आत्मा चल रही है, आत्मा कर रही है । सदा मस्तकमणि की तरफ तन की व मन की आंखे जाती है । ऐसी स्थिति में स्थित रहने वाले की बुद्धि की लाइन क्लीयर रहती है व विशेष पार्ट बजाते संतुष्टमणि होते हैं ।
❉ देही-अभिमानी स्थिति में स्थित रहने से उन्हें यश अपयश, लाभ-हानि...स्थिति नहीं हिलाती । अपनी अकालतख्त की सीट पर सेट रहने से सदा संतुष्ट रहते हैं व औरों को भी संतुष्ट करते हैं । किसी भी प्रकार का विघ्न बस एक खेल सा अनुभव होता है ।
❉ देही-अभिमानी स्थिति में स्थित होने से आत्मा आत्मा भाई भाई की दृष्टि रहती है व किसी भी सम्बंध में कोई आकर्षण नहीं होता । सर्व सम्बंध बाप से होते हैं और निश्चयबुद्धि होने से संतुष्टता होती है ।
❉ देही-अभिमानी स्थिति में स्थित होने से कोई भी सेवा उन्हें छोटी या बड़ी नहीं लगती । बस अपने को निमित्त समझ व भाग्यशाली समझ रुहानी सेवा में बिजी रहते हैं । स्वयं संतुष्ट रह सर्व को संतुष्ट करते हैं ।
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∫∫ 7 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ प्रयोगी आत्मा बन योग के प्रयोग से सर्व खजानों को बढ़ाते चलो... कैसे ?
❉ जितना मनसा, वाचा और कर्मणा में सम्पूर्ण पवित्रता को अपनाते जाएंगे उतना आत्मा योग युक्त पावरफुल याद के अनुभव द्वारा सर्व खजानो से भरपूर होती जायेगी ।
❉ विनाशी खजाने अर्थात स्थूल धन के खजाने खर्च करने से कम होते हैं किन्तु यह अविनाशी खजाने जितना स्व के प्रति और औरों के प्रति शुभ वृति से कार्य में लगायेंगे उतना ये खजाने बढ़ते जाएंगे ।
❉ जमा का खाता बढ़ाने की सहज विधि है बिंदी लगाना । जैसे स्थूल खजाने में भी एक के साथ बिंदी लगाने से वह बढ़ता जाता है ऐसे ही अगर हर खजाने को बिंदी रूप में याद करें तो जमा होता जाता है क्योकि बिंदी लगाना माना व्यर्थ जाने से बचाना ।
❉ खजानो का खाता, अनुभूतियों का खाता कभी खाली ना रहे इसके लिए एक वेस्ट मत करो और दूसरा वेट कम करो इन दोनों बातों के ऊपर जब विशेष अटेंशन देंगे तो सर्व खजाने अनेक आत्माओं की सेवा प्रति लगा पाएंगे और जितना लगाते जायेगे उतना स्टॉक जमा होता जायेगा ।
❉ बाप द्वारा सब बच्चों को अखुट खजाने मिले हैं इन अखुट खजानों से स्वयं को जितना भरपूर तृप्त आत्मा समझेंगे, सदा बाप और खजाने की स्मृति में रहेंगे तो सदा ख़ुशी में झूमते रहेंगे और सबको ख़ुशी के खजाने से मालामाल कर खजानों में वृद्धि करते जायेंगे ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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