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❍ 19 / 03 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ योगबल से °कर्मभोग पर विजय° प्राप्त की ?
‖✓‖ °देही अभिमानी° बनने का पूरा पूरा पुरुषार्थ किया ?
‖✓‖ अपनी °सीरत(चलन)° सुधारते रहे ?
‖✓‖ बहुत बहुत °मीठा, शीतल° बनकर रहे ?
‖✓‖ अन्दर से °क्रोध का भूत° निकालने पर विशेष अटेंशन दिया ?
‖✗‖ कोई भी °उल्टा-सुलटा कार्य° तो नहीं किया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ °स्वमान की सीट° पर स्थित रह माया को सरेंडर कराया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
‖✓‖ आत्मिक बाम्ब के साथ साथ आत्माओं को °परमात्म बाम्ब° भी लगाया ?
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∫∫ 4 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - सबसे बड़ी बीमारी देहाभिमान की है, इससे ही डाउन फॉल हुआ है, इसलिए अब देही अभिमानी बनो"
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे लाडलो जब घर से चले थे किस कदर उजले उजले से थे... अपनी सुंदर स्मर्तियो से सजे धजे थे... अब विस्मर्तियो ने चमकता दमकता जीवन धूमिल कर बदरंग किया है... अब शरीर की खाल को भूल जरा अपनी मणि के भान में आओ और खोये स्वरूप को फिर पा जाओ....
❉ प्यारा बाबा कहे - एक पिता के कलेजे से कोई पूछे की अपने सरताज शिरोमणि बच्चों को भिखारी आवरण में मैला कुचैला देखे.... तो केसा लगे.... आसमानी पिता अपना सिंहासन ही छोड़ आये और बच्चों को देही अभिमानी बना सतयुगी बादशाही हाथ में दे जाय...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे बच्चों का हीरो से सजा सुख और गुणो के सौंदर्य से छलकता जीवन... आज किस दुर्गति को गले लगाये हुए है... आनन्द हंसी से गुंजायमान थे जो वे आज गरीबी भुखमरी के आलम में दबे पड़े है... प्यारे बच्चे अब जागो जरा... चमड़ी को छोड़ सितारे के भान में आओ तो जरा...तो देखो सारा स्वर्ग कदमो में ही तो बिखरा पड़ा है...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चे उन्नति के शिखर को छूने वाले आज अवनति के दलदल में गर्दन तक फसे पड़े हो... तकलीफो से कभी थे अनजान... आज उनके गहरे जानकार हुए पड़े हो.... अब होश में आओ और आत्मिक स्वरूप से खुदको खोया जहाँ पुनः दिलाओ...
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों... क्यों दुखो के जाल में उलझे हो... निराशाओं में सर धुने पड़े हो... मुझ पिता से तो देखा ही न जाय... आ मेरे सुख भरे साये की शीतल सी छाव में... और याद कर सच्चे स्वयं के भान को... आत्मिक स्म्रति से जीवन को खूबसूरती से छलकाकर सुकून पाओ...
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∫∫ 5 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-15)
➢➢ बहुत-बहुत मीठा, शीतल बनना है । अंदर में क्रोध मोह का जो भूत है उसे निकालना है ।
❉ मेरा बाबा कितना मीठा है ! अपने बच्चों से कितना मीठा बोलता है मीठे बच्चे, सिकीलधे बच्चे, लाडले बच्चे इतने प्यार से लौकिक में भी किसी ने नहीं बुलाया । प्यार का सागर है तो हमें भी बाप समान सबके साथ प्यार से व मीठा रहना है ।
❉ कहा भी गया है - ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए , ओरन को शीतल करे आपा शीतल होए । जब हम मीठा बोलते है तो पहले तो अपने को ही अच्छा लगता है व फिर दूसरे भी हमारी वाणी से शीतल हो जाते है । हमें ऐसी वाणी बोलकर शीतल बनना व बनाना है ।
❉ जैसे पेड़ हरेक को अपनी शीतलता देता है चाहे कोई उसे पत्थर भी मारता है । ऐसे हमें दूसरों को न देख अपने गुणों को नही छोड़ना । मीठा व शीतल ही बनना है ।
❉ देहभान में आने के कारण ही दृष्टि क्रिमिनल होती है व आत्मा आत्मा भाई भाई की दृष्टि नही रहती । देहभान में रहते ही मैं मेरा में आते ही क्यूं, क्यों में आ जाते हैं व क्रोध का भूत आ जाता है । आत्मा का स्वभाव तो शांति है इसलिए आत्मिक स्थिति में रहना है ।
❉ देह का भान छोड़ देही-अभिमानी बनना है । जितना बाप को याद करेंगे देही-अभिमानी रहेंगे व सर्व सम्बंध बाप से ही रखने हैं । जब बाप से ही सर्व सम्बंध होंगे तो दुनियावी सम्बंधों का मोह नही रहेगा ।
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∫∫ 6 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-15)
➢➢ स्वमान की सीट पर स्थित रह माया को सरेंडर करके श्रेष्ठ स्वमानधारी होते हैं... क्यों और कैसे ?
❉ संगमयुग का सबसे श्रेष्ठ स्वमान है मास्टर सर्वशक्तिमान की स्मृति में रहना । जैसे कोई बड़ा आफिसर होता है, जब स्वमान की सीट पर स्थित होता है तो दूसरे भी उसे सम्मान देते हैं । अगर वह सीट पर नही तो उसका आर्डर कोई नही मानता । ऐसे ही जो बच्चे स्वमानधारी बन अपने श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट रहते तो माया उनके आगे सरेंडर हो जाती है ।
❉ जैसे लौकिक में भी कोई बड़ा प्रोग्राम में साधारण आदमी को आगे सीट मिल जाती है तो उसका स्वमान बढ़ जाता है । ऐसे बापदादा ने हमें विघ्न विनाशक, सर्व परिस्थितियों को मिटाने वाली स्वस्थिति व पोजीशन की सीट दी है उस पर स्थित रह माया को दूर भगा श्रेष्ठ स्वमानधारी होते हैं ।
❉ मैं जो हूं जैसा हूं व अपने सत्य स्वरुप को जानने से सदा स्वमान की सीट पर रहते हैं व देहभान में नही आते तो देह का मान, पोजीशन का मान, गुणों का मान...ऐसेअनेक प्रकार के मान स्वीकार नही करते तो माया भी उनके आगे टिक नहीं सकती और स्वमान की सीट पर सेट होकर श्रेष्ठ स्वमानधारी होते हैं ।
❉ जो स्वमान में रहते कि सर्वशक्तिमान बाप के साथ हमारा सम्बंध है, उनके हम बच्चे हैं । वरदाता बाप का वरदानी हाथ मेरे सिर पर है तो माया उनके आगे ठहर नहीं सकती और वे श्रेष्ठ स्वमानधारी होते ।
❉ स्वमान की सीट पर स्थित रहने से सदा निर्मान बन जाते हैं व इससे सर्व से स्वतः ही मान मिलता है । स्वमान की सीट पर सेट होने से श्रेष्ठ भाग्य की स्मृति रहने से कड़ेसे कड़े संस्कार परिवर्तन कर श्रेष्ठ स्वमानधारी होते हैं ।
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∫∫ 7 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ साक्षीपन की स्थिति में रह दिलाराम के साथ का अनुभव करने वाले ही लवलीन आत्मा हैं... क्यों और कैसे ?
❉ साक्षीपन की स्थिति में स्थित रह जब ड्रामा की हर सीन को देखते हैं तो तीन स्मृतियों के तिलक की स्मृति मन बुद्धि को हर प्रकार की हलचल से मुक्त रखती है और बिंदु बन, बिंदु बाप की स्मृति में रह, बीती को बिंदु लगा कर दिलाराम बाप के साथ का अनुभव करते हुए स्वत: ही उसके लव में लीन होते चले जाते हैं ।
❉ साक्षीपन की स्थिति आत्मा को प्रश्नचित नही बनने देती क्योकि साक्षी पन की सीट पर सेट रहने वाला हर परिस्थिति को खेल अनुभव करता है इसलिए हर परिस्थिति में प्रसन्नचित रहता है । और प्रसन्नचित आत्मा सदैव दिलाराम बाप के साथ का अनुभव करते हुए उनके लव में लीन हो कर असीम आनन्द की अनुभूति करती रहती है ।
❉ स्वयं को सदा साक्षीपन की सीट पर सेट रखने वाला हर कर्म करते भी हर प्रकार के कर्म बन्धन के प्रभाव से सदा उपराम रहता है और उपराम वृति द्वारा वह सर्व से न्यारा और बाप का प्यारा बन बाप के साथ का अनुभव करते हुए केवल एक बाप के लव में लीन रहता है और दिलाराम बाप के नयनो में सदैव समाया रहता है ।
❉ साक्षीपन की स्थिति में रह दिलाराम बाप के साथ का अनुभव करने वाली लवलीन आत्मा तभी बन सकतें हैं जब " एक बाप दूसरा ना कोई " इस स्मृति में स्थित रह, मन को सभी बातो से हटा कर और सभी बातों से किनारा कर मन बुद्धि की तार केवल एक दिलाराम बाप के साथ जोड़े रखते हैं ।
❉ साक्षीपन की स्मृति आत्मा को गुणग्राही बनाती है और गुणग्राही व्यक्ति जब दूसरे व्यक्तियों के संपर्क में आता है तो होली हंस बन सदैव उनके गुणों को ही धारण करता है और उनके प्रति शुभ भावना और शुभकामना रखते हुए, बेहद की दृष्टि, वृति को अपना कर दिलाराम बाप के साथ का अनुभव करते हुए उनके ही लव में लीन रहता है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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