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 12 / 09 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ कोई भी ऐसा कर्म तो नहीं किया जिससे बाप की निंदा हो ?

 

➢➢ पुरुषोत्तम बनने पर विशेष अटेंशन रहा ?

 

➢➢ माया के तूफानों से डरे तो नहीं ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ स्वमान में स्थित रह विश्व द्वारा सम्मान प्राप्त किया ?

 

➢➢ जैसा समय वैसे अपने को मोल्ड कर रियल गोल्ड बनकर रहे ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢  पढ़ाई का शो दिखाया ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - मनमनाभव का मन्त्र पक्का कराओ, एक बाप को सदा फॉलो करो - यही है बाप का सहयोगी बनना"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... सदा दिल में पिता को समाये रहो... उसे ही अपनी यादो में बसाये रहो... उसे ही चाहो और प्यार करो... मन ही मन उससे प्रेम की बाते करो... उसका ही अनुसरण करो... तो यही सच्चा सहयोग है... अपनी सुंदर स्तिथि ही सर्वोत्तम सहयोग है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा ज्ञानसागर बाबा के गुण और शक्तियो को स्वयं में भर कर गुणवान शक्तिवान हो रही हूँ... और पूरी धरा को भी इन खजानो से भरपूर कर मीठे बाबा की सहयोगी बन रही हूँ...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वरीय ज्ञान से स्वयं को सजाओ संवारो और एक की लगन में मगन हो जाओ... प्यारे पिता को ही फॉलो करो... तो यह अवस्था ही पिता का सहयोगी बनना है... अपनी सुंदर स्तिथि और ईश्वर पिता की यादो में डूबे रहना ही मनमनाभव अवस्था है...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा मनमनाभव के मन्त्र को प्राणों में बसाकर खूबसूरत भाग्य से राजरानी बन रही हूँ... प्यारे बाबा की शिक्षाओ को आत्मसात कर उजली सी दमक उठी हूँ... अपनी खुशनुमा स्तिथि की तरंगे पूरे विश्व को दे रही हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने हर साँस संकल्प को ईश्वरीय यादो में पिरो दो... यादो के मोतियो से हर पल श्रंगारित रहो... सच्चे पिता की यादो में खोये रहो... और पिता के ही नक्शे कदम पर चल हर कदम पर पदम् बिछा दो... यही तो सच्चा सहयोगी बनना है... अपनी श्रेष्ठ स्तिथि ही सबसे बड़ा सहयोग है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने मन और बुद्धि को आपके प्रेम में समर्पित कर आपकी मीठी यादो में महक उठी हूँ... मीठे पिता के कदमो की छाप पर अपने कदमो में पदम् भर रही हूँ... ईश्वर पिता की सहयोगी बन मुस्करा रही हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉.  "ड्रिल - रुहानी सर्विस कर पुरुषोत्तम बनना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा चमकती मणि हूं... अति सूक्ष्म हूँ... एक दम शान्त और शीतल... शान्तिधाम की रहने वाली शान्ति के सागर की सन्तान हूँ... प्यारे परमपिता शिव बाबा सर्वोच्च हैं... सर्वज्ञ है... त्रिकालदर्शी हैं... सदगति दाता हैं... जिनकी महिमा अपरम्पार है... परमपिता, परमशिक्षक, परम सदगुरु हैं... मुझ आत्मा के परमपिता है... मैं आत्मा अपने ऊंच ते ऊंच व श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बाबा की ही मत पर चल रही हूं... प्यारे बाबा की श्रीमत पर चल श्रेष्ठाचारी बन रही हूं... मैं आत्मा कर्म अर्थ इस साकार लोक में देह में रहती हूँ... देह के बन्धन से उपराम कोई ऐसा कर्म नही करती जिससे मेरी आत्मिक स्थिति डगमगाए... मैं आत्मा बस निमित भाव से हर कर्म करती हूँ... बाप की श्री मत का पालन कर सर्व का कल्याण करती हूँ... सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को गति सदगति का मार्ग बताती हूँ... प्यारे बाबा से ज्ञान मिलने पर अब देहभान में आकर मनसा वाचा कर्मणा किसी को दुख नही देती... मैं आत्मा कोई ऐसा कर्म भी नही करती जिससे बाप की निंदा हो... मैं आत्मा सुबह से रात तक की जो नियम और मर्यादाऐं हैं उन पर चलने की पूरी कोशिश कर रही हूं... मैं अपने स्वार्थ के लिए कोई अवज्ञा नही करती हूं... अब मैं आत्मा रुहानी नशे में रहती हूँ... मैं संगमयुगी भाग्यशाली आत्मा हूँ... मुझे उत्तम समय मिला है... ऊँच ते ऊँच मत मिली है इसलिए पुरूषोत्तम बनना है...

 

❉   "ड्रिल - पावन बनने के लिए याद का पुरुषार्थ करना"

 

➳ _ ➳  माया के वश होकर मैं अपनी शक्तियों को भूल गई... माया रावण की जंजीरों में अपने को जकड़ती चली गई... विकारों के कारण दुखी और पतित हो गई... जब दुःखों की अति हो गई व अपने बच्चों को दुखी देखकर ड्रामानुसार जब बाबा का पार्ट था तो परमपिता शिव बाबा को आना पड़ा... प्यारे शिव पिता ने ही आकर विस्मृतियों की स्मृति दिलाई... मैं आत्मा पवित्र स्वरूप आत्मा हूँ... मेरा सबसे पहला धर्म ही पवित्रता है... इसके बिना मैं अपने पिता से मिलन नही मना सकती... अपने पवित्र परमधाम में अपने घर जा नही सकती... देहभान में आकर पतित दुनिया के रंग में रंग गई... जिसके कारण माया के संग में आ गई... अब सत का संग मिला... प्यारे बाबा ने पावन बनने का रास्ता दिखाया है... अब मैं आत्मा अपने अनादि स्वरूप में रह परमपिता की याद में रहती हूं... मैं आत्मा माया से डरती नही हूं... एक बाप की याद में रहने से माया के वार से सेफ रहती हूं... माया तो कागज का शेर है... मुझ आत्मा को एक बाप की याद में रह पतित से पवित्र बनना है... हर कर्म करते बाप की याद में रहना है... याद में रहने से आत्मा परचढ़ी विकारों की कट उतारती जा रही हूं... आत्मा शुद्ध और पावन बनती जा रही है... मैं आत्मा तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने का पुरुषार्थ कर रही हूं...

 

❉   "ड्रिल - स्वयं को मोल्ड करना ही है रीयल गोल्ड" 

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा कई जन्मों तक अपने स्वरूप स्वधर्म को भूल देहभान के संस्कारों में विकारों में धसती चली गई... मेरे संस्कार गोल्डन से सिलवर... सिलवर से आयरन जैसे कडे और ठोस बन गए... आयरन में भी विकारों रूपी जंग लग गई... मेरा कोई अस्तित्व नही रहा... इस कल्याणकारी संगमयुग पर परमपिता ने मुझे आकर अपने ज्ञान की रोशनी दिखाई... मुझे असली स्वरूप की स्मृति दिलाई... अब मैं आत्मा अपने पूर्वज स्वरुप की स्मृति में रहती हूं... मैं आत्मा प्यारे शिव बाबा ने याद की अग्नि में तपना सीख रही हूं... जैसे आग मे तपने से सोना की अलाएं निकल जाती है... वह शुद्ध सोना बन जाता है... और वो रीयल स्थिति में आ जाता है... ऐसे याद की अग्नि से तप कर विकारों की अलाएं निकाल मोल्ड होना है... तमो से सतो गुणी बनना है... मैं आत्मा जैसी परिस्थिति जैसा समय होता है उसी अनुसार स्वयं को मोल्ड कर लेती हूं... मैं आत्मा एक बाप की छत्रछाया में सदैव स्वयं को अनुभव करती हूं... कड़े से कड़े संस्कार वाली आत्मा को अपने सदव्यवहार से परिवर्तित कर रही हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं देह-अभिमान मुक्त आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳  मैं देह नहीं देही हूँ... मैं आत्मा शांति के सागर की संतान हूँ... मैं आत्मा शांत स्वरुप हूँ... मैं आत्मा शरीर से अलग देह की दुनिया से न्यारी शांतिधाम की रहने वाली हूँ... मैं आत्मा कर्म करते हुए देह से न्यारी हूँ... मैं आत्मा स्वराज्याधिकारी बन अपनी कर्मेन्द्रियों से कर्म करती हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा देही अभिमानी हूँ... मैं आत्मा इस देह रूपी वस्त्रों को धारण किये हुए हूँ... इस देह रूपी वस्त्रों को धारण करके देह अभिमान से न्यारी होकर ही मैं आत्मा अपना हर कार्य करती हूँ... कार्य करते हुए भी मैं आत्मा संगमयुग के और भविष्य के अनेक प्रकार के स्वमानों में से एक स्वमान लेकर उसमें दिन भर स्तिथ रहने का अभ्यास करती हूँ... सदा स्वमान में रहना मुझ आत्मा का निज स्वभाव बन गया है...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा आवाज़ की दुनिया से दूर साइलेंस में होने का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा चलते फिरते शरीर और आत्मा दोनों के न्यारेपन का अनुभव कर रहीं हूँ... इस मायावी दुनिया से दूर और देह व देह के सम्बंध सम्पर्क से परे मैं आत्मा उपराम अवस्था का अनुभव कर रही हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अशरीरी अवस्था का अनुभव कर रही हूँ... मैं देह से संकल्प मात्र भी अटैच नहीं हूँ... मैं सहजयोगी आत्मा स्वतः ही अन्य आत्माओं द्वारा मान प्राप्त करने का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा सर्व से सम्मान प्राप्त करने वाली विश्वमहाराजन आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  स्वमान में स्थित रह विश्व द्वारा सम्मान प्राप्त करने वाले देह - अभिमान से मुक्त होते हैं... क्यों और कैसे?

 

❉   स्वमान में स्थित रह विश्व द्वारा सम्मान प्राप्त करने वाले, देह - अभिमान से मुक्त होते हैं क्योंकि हमारी पढाई का मूल लक्ष्य भी यही है कि...   देह - अभिमान से न्यारे हो कर, देहि - अभिमानी बनना। मेरी देह अलग हैं और मैं आत्मा अलग हूँ।

 

❉   मैं शरीर नहीं हूँ। मैं आत्मा हूँ। ये शरीर मेरा है। ये बात हमारे अन्तर्मन में समां जानी चाहिये। जितना-जितना हम देह - अभिमान का त्याग करते जायेंगे उतना - उतना हम आत्मायें विदेही बनते जायेंगे। विदेही का मीन्स ही है...  देहभान से मुक्त रहना।

 

❉   अर्थात आत्मअभिमानी स्थिति में स्थित रहना। मन में सदैव आत्मा का ही भान रहे। मैं आत्मा हूँ! बस इसी एक बात का मन में सदा अहसास होता रहे कि... हमें देह भान  से न्यारा अथवा मुक्त होना है। इसलिये देहभान से न्यारे और मुक्त होने की विधि यही है कि...  सदा स्वमान में स्थित रहो।

 

❉   संगमयुग के और भविष्य के जो अनेक प्रकार के स्वमान हैं उनमें से किसी एक भी स्वमान में स्थित रहने से देह - अभिमान मिटता जायेगा। इसलिये हमें सदा ही स्वमान का अभ्यास करते रहना है। जितना अधिक हमारा स्वमान का अभ्यास होगा, हमारी आत्म स्थिति भी उतनी ही उच्च बनती जायेगी।

 

❉   जो ब्राह्मण आत्मा स्वयं को स्वमान में स्थित रखती है उन्हें मान भी स्वतः ही प्राप्त होता है। इसलिये सदा स्वमान में रहने वाले ही विश्व महाराजन बनते हैं और विश्व उन्हें सम्मान भी देता है। तभी तो कहा गया है कि...  स्वमान में स्थित रहने वाले ही देह - अभिमान से मुक्त होते हैं।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  जैसा स्मय वैसा अपने को मोल्ड कर लेना - यही है रीयल गोल्ड बनना... क्यों और कैसे ?

 

❉   रीयल गोल्ड की ये पहचान होती है कि उसे जैसे मोड़ा जाये वैसे ही मुड़ जाता है । लेकिन जिस गोल्ड में खाद मिली होती है वो मोड़ने पर मुड़ता नही बल्कि टूट जाता है । ठीक इसी प्रकार जो व्यक्ति जीवन में आने वाली परिस्थितियों और समय के अनुसार स्वयं को समायोजित कर लेते हैं वे कभी भी परिस्थितियों से हार खा कर टूटते नही बल्कि स्वयं को मोल्ड कर रीयल गोल्ड बन कर हर परिस्थिति को सहज ही पार कर लेते हैं ।

 

❉   सच्चा सोना शुद्ध और प्योर होता है जिसमे किसी भी प्रकार की मिलावट नही होती इसलिए अपनी चमक से वह सहज ही सबको अपनी और आकर्षित करता है । ठीक ऐसे ही जो आत्माएं अपने जीवन में सच्चाई और सफाई को धारण करती हैं वे भगवान के दिल पर राज करती है । जीवन में आने वाली हर परिस्थिति में वे परमात्म मदद का अनुभव करती हैं । यही परमात्म मदद उन्हें रीयल गोल्ड बना कर परिस्थितियों में स्वयं को मोल्ड करना सिखाती है ।

 

❉   जो समय और परिस्थिति के अनुसार स्वयं को मोल्ड कर लेते हैं । परिस्थितयों को बदलने की कोशिश में समय व्यर्थ गंवाने की बजाए स्वयं को उस परिस्थिति के अनुसार ढाल लेते हैं । वे उड़ती कला के अनुभवी बन जाते हैं इसलिए परिस्थितियों के तूफ़ान भी उनके लिए तोहफा बन जाते हैं । उनकी उड़ती कला उन्हें रीयल गोल्ड बना देती है । जिसकी रॉयल्टी की चमक सहज ही सबको अपनी और आकर्षित करती है और सबको रूहानियत का अनुभव कराती है ।

 

❉   आत्मा अपने यथार्थ स्वरूप में रीयल गोल्ड के समान ही सम्पूर्ण शुद्ध और पावन है । देह अभिमान में आने के कारण और विकारों की खाद पड़ जाने से वह अब सच्चा सोना नही रही इसलिए परिस्थितयों में वह जल्दी ही स्वयं को शक्तिहीन अनुभव करने लगती है । किन्तु बाबा की निरन्तर याद रूपी योग अग्नि आत्मा पर चढ़ी विकारों की खाद को भस्म कर उसे रीयल गोल्ड बना देती है । जिससे वह शक्तिशाली बन स्वयं को मोल्ड कर हर परिस्थिति को पार कर लेती है ।

 

❉   जीवन में आने वाली हर कठिन परिस्थिति तब छोटी अनुभव होती है जब स्व स्थिति शक्तिशाली होती है । और स्व स्थिति शक्तिशाली बनती है परमात्म याद से । क्योकि परमात्मा की याद ही आत्मिक बल को बढ़ाती है और जैसे जैसे आत्मा में बल भरने लगता है वैसे वैसे आत्मा अपने शक्ति सम्पन्न स्वरूप में स्थित होने लगती है । आत्मा का सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप उसे रीयल गोल्ड बना देता है और आत्मा हर परिस्थिति में स्वयं को मोल्ड कर उस पर जीत पा लेती है ।

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⊙_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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