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   01 / 01 / 16  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ उम्मीद रख °शौंक से सर्विस° की ?

 

‖✓‖ मुख से सदैव °ज्ञान रत्न° ही निकलते रहे ?

 

‖✓‖ °विचार सागर मंथन° कर उल्लास में रहे ?

 

‖✓‖ अपने °हर्षित मुखड़े° से बाप का नाम बाला किया ?

 

‖✓‖ चलन °देवताओं° मिसल रही ?

 

‖✓‖ °बेहद की वैराग्य वृति° का फाउंडेशन मज़बूत बनाया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ सर्व के °गुण देखने व सदा संतुष्ट करने° की उत्कंठा द्वारा सदा एकरस उत्साह में रहे ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ अपने सब °बोझ व बंधन बाप हवाले कर° डबल लाइट बन उड़े और उड़ाया ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं गुणमूर्त आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   सर्व के गुण देखने वा संतुष्ट करने की उत्कंठा द्वारा सदा एकरस उत्साह में रहने वाली मैं गुणमूर्त आत्मा हूँ ।

 

 ❉   अपने सम्बन्ध संपर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को मैं उमंग उत्साह द्वारा आगे बढ़ाती जाती हूँ ।

 

 ❉   किसी के भी अवगुण चित पर ना रख, मैं सबमे गुणों को देखती और सबके गुणों को स्वयं में धारण करती जाती हूँ ।

 

 ❉   सर्व आत्माओं के गुणों का बल मुझे सदैव उमंग उत्साह से भरपूर रखता है ।

 

 ❉   मैं कभी भी किसी की कमजोरी दिल पर न रख सदैव रहमदिल रहती हूँ ।

 

 ❉   मैं आत्मा सर्व आत्माओं की आशीर्वाद की पात्र सदैव सभी की स्नेही और सहयोगी बनकर रहती हूँ।

 

 ❉   सर्व आत्माओं को दिल से सच्चा स्नेह दे कर,सर्व के प्रति शुभ कामना रखने वाली मैं आत्मा दिलाराम बाप के दिल रूपी तख़्त पर सदा विराजमान रहती हूँ ।

 

 ❉   स्व के प्रति श्रेष्ठ चिंतन और सर्व के प्रति शुभ भावना - शुभ कामना रखने वाली मैं सदा शुभ चिंतक और स्व चिंतक आत्मा हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - तुम्हारे मुख से सदैव ज्ञान रत्न निकलने चाहिए, तुम्हारा मुखड़ा सदैव हर्षित रहना चाहिए"

 

 ❉   ज्ञान का अर्थ ही है समझ अर्थात सही और गलत की पहचान ।

 

 ❉   अब तक स्वयं अपनी तथा अपने पिता परमात्मा की यथार्थ पहचान ना होने के कारण दुखी होते रहे । उसे पाने के लिए दर - दर की ठोकरें खाते रहे ।

 

 ❉   किन्तु अब संगम युग पर स्वयं परम पिता परमात्मा बाप ने आकर स्वयं अपनी और हमारी यथार्थ पहचान हमे दी है ।

 

 ❉   अज्ञान अंधकार में भटकती हम आत्माओं को सृष्टि के आदि, मध्य और अंत का सारा ज्ञान दे कर, नई राह दिखाई है ।

 

 ❉   इसलिए अब हमारे मुख से सदैव ज्ञान रत्न ही निकलने चाहिए । हमारा मुखड़ा सदैव हर्षित रहना चाहिए ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ अपने हर्षितमुख मुखड़े से बाप का नाम बाला करना है ।ज्ञान रत्न ही सुनने और सुनाने हैं । गले में ज्ञान रत्नों की माला पड़ी रहे ।

 

  ❉   हम प्यार के सागर सुख के सागर के बच्चे मास्टर प्रेम के सागर, मास्टर सुख के सागर हैं तो हमें हमेशा हर परिस्थिति में खुश रहना है । दूसरी आत्मायें हमें हमेशा हर्षितमुख देखकर पूछे कि तुम्हें क्या मिला है !

 

  ❉   जैसे लौकिक में कोई छोटा बच्चा हर्षितमुख होता है तो सब उसकी ओर आकर्षित होते है ऐसे ही हमें जब बाप से अथाह निस्वार्थ प्यार मिलता है तो हमें भी अपने हर्षितमुख मुखडे से सब को प्यार देते हुए बाप का नाम बाला करना है ।

 

  ❉   देह-अभिमान छोड़कर देही-अभिमानी बनना है । बाप ही सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान सुनाते हैं व ये रुहानी ज्ञान अच्छी रीति धारण करना है । ये ज्ञान बाप के सिवाय ओर कोई दे न सके ।

 

  ❉   इस पुरुषोत्तम संगमयुग पर भगवान ने हमें अपना बनाया तो हमें भी मास्टर भगवान बनना है ।दैवीय गुणों को धारण करना है व मुख से सदैव रत्न निकालने हैं । हर्षितमुख रह बाप का नाम बाला करना है ।

 

  ❉   बाबा जो ज्ञान रत्नों से हमारी झोली भरते हैं उस ज्ञान धन का दान करते रहना है । देना ही लेना है । जितना हम ज्ञान बांटते है उतना ही बढ़ता है व विचार सागर मंथन चलता रहता है व धारणाएं भी गहरी हो जाती हैं ।

 

  ❉   बाबा से ज्ञान रत्नों को सुनते कितनी खुशी होती है कि स्वयं भगवान हमें पढ़ा रहे हैं कितने भाग्यशाली हैं हम! इन ज्ञान रत्नों की माला गले में हमेशा पड़ी रहे व ये ज्ञान रत्न ही हमें भविष्य के लिए मालामाल करेंगे इस ख़ुशी में हर्षितमुखड़े से बाप का नाम बाला करना है ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ सर्व के गुण देखने व संतुष्ट करने की उत्कंठा द्वारा सदा एकरस उत्साह में रहने वाले गुणमूर्त बन जाते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   सदा सर्व के गुण देखने का चश्मा लगा हुआ, हर आत्मा में कोई न कोई गुण अवश्य होता है, हमें हर एक के सिर्फ गुणों को ही देखना है, एक दुसरे के गुण देखते रहेंगे तो सबके प्रति वृत्ति भी शुभ रहेगी।

 

 ❉   गुणग्राही बनकर रहना है, जिसके भी सम्बन्ध संपर्क में आओ, गुणचोर बन जाओ और उसका गुण अपने में धारण करलो तो गुणमूर्त बन जायेंगे।

 

 ❉   सर्व को संतुष्ट करना है,इसके लिए परखने की शक्ति बहुत अच्छी चाहिए, जो भी आत्मा समबन्ध संपर्क में आये उसकी जरुरत को परख कर उसी चीज़ की उसे अनुभूति कराओ तो वह बहुत संतुष्ट हो जाएगी।

 

 ❉   जितना सबके गुणों और देखेंगे, सबको संतुष्ट करेंगे इतना ही स्वयं का भी उमंग उत्साह बना रहेगा। सबको ख़ुशी देना ही सबसे बड़ी खिशी है।

 

 ❉   हमेशा सर्व के गुण देखेंगे तो नेगेटिव से दूर रहेंगे, कभी दुःख की फीलिंग नहीं आयेगी। सर्व से संतुष्ट रहेंगे और सबको संतुष्ट कर पाएंगे। ऐसे स्थिति जब होगी तभी उमंग उत्साह भी एकरस बना रहेगा क्युकी वह किसी पर आधारित नहीं होगा।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ बेहद के वैराग्य वृति का फाउंडेशन मजबूत हो तो सेकण्ड में अशरीरी बनना सहज है... कैसे ?

 

 ❉   बेहद की वैराग्य वृति आत्मा को देह और देह के सर्व बंधनो से मुक्त कर देती है जिससे आकर्षण के सब संस्कार समाप्त हो जाते हैं और अशरीरी बनना सहज हो जाता है ।

 

 ❉   बेहद की वैराग्य वृति धारण करने वाला सर्व सम्बन्धों की अनुभूति एक बाप से करता है इसलिए परमात्म प्यार के रंग में रंगा हुआ सदैव अशरीरी स्थिति में स्थित रहता है ।

 

 ❉   हद के मान, शान और सम्मान की इच्छा से मुक्त और अभिमान से रहित हो कर जो निस्वार्थ भाव से सेवा करते हैं, वो बेहद की वैराग्य वृति द्वारा अशरीरी पन के अनुभवी सहज बन जाते हैं ।

 

 ❉   सदा एक बाप का श्रेष्ठ संग आत्मा को सब बातों से उपराम कर बेहद का वैरागी बना कर अशरीरी स्थिति का अनुभवी बना देता है, जिससे किसी के भी संग का रंग आत्मा पर कोई प्रभाव नही डाल सकता ।

 

 ❉   बेहद की वैराग्य वृति आत्मा को निरन्तर योगी, सहजयोगी स्थिति द्वारा सर्व आकर्षणों से मुक्त कर सर्व से न्यारा और बाप का प्यारा बना कर सेकण्ड में अशरीरी स्थिति का अनुभव कराती है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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