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❍ 12 / 12 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *उठते बैठते एक बाप की याद में रहे ?*
➢➢ *बाप समान सभी पर उपकार किया ?*
➢➢ *ज्ञान अमृत पिया और पिलाया ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *मैं पन का त्याग कर सेवा में सदा खोये रहे ?*
➢➢ *व्यर्थ को समाप्त करने पर विशेष अटेंशन रहा ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *अपने अनादी असली स्वरुप की स्मृति में रहे ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - यह सुहावना कल्याणकारी संगमयुग है जिसमे स्वयं बाप आकर पतित भारत को पावन बनाते है"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... जब विश्व पिता अपने ही फूलो को विष भरे काँटों में परिवर्तित होते देखता है अपना धाम छोड़ धरा पर उतरता है और सुहावने संगम पर उन *कांटो को पलको से चुन रहा है और गोद में प्यार की नरमी से फिर से फूल बना रहा*... सिवाय पिता के पतित हो चले भारत को पावन कोई और बना ही न सके....
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा मै आत्मा *ईश्वर पिता की फूलो सी गोद में असीम सुख को पा रही हूँ.*.. प्यारा बाबा मुझे देवताओ सा सुंदर बना रहा है... मीठे संगम पर परमात्म मिल्न का सुख पाकर मै आत्मा आनंद से भरपूर हो चली हूँ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... जब घर से चले थे कितने खिले दिव्य गुणो से सजे महकते फूल थे... धरा के खेल को खेलते खेलते अपने वास्तविक वजूद को ही खो चले... अपनी पावनता को कलुषित कर मटमैले हो चले हो... अब मीठा बाबा फिर से दिव्य और पावन बनाने आया है... *अपने कुम्हलाये फूलो को पवित्रता से पुनः खिलाने आया है.*..
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा भगवान की नजरो में समायी महान भाग्यशाली हूँ... संगमयुग में प्यारे बाबा की मीठी सी पसन्द हूँ... *मीठे बाबा की महकती यादो में पवित्रता की खुशबु से सराबोर हो रही हूँ.*.. पावनता से सज रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... स्वर्ग सा सुंदर भारत विकारो का पर्याय सा बन चला... देह की मिटटी में हर दिल आत्मा रंग गयी... अपने उजले दमकते सत्य स्वरूप को हर दिल खो चला... *कल्याणकारी पिता वरदानी युग में सबका कल्याण करने आ चला*... सबको अपनी पावनता के रंग में रंग देवताई ताजो तख्त पर बिठा... सच्चे पिता का फर्ज निभा चला...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा देह के धर्म को जीवन का सत्य समझ दुखो के गहरे जंगल में खो चली थी... कितनी दुखी कितनी निराश और थक सी गयी थी... आपने प्यारे बाबा मुझे मखमली सी गोद में बिठा दिया है... *सुख की ठंडी छाँव में चैन और सदा का आराम दे दिया है.*..
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं त्यागमूर्त, सेवाधारी आत्मा हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा महान भाग्यवान हूँ... जिस भगवान को सब ढूँढ़ रहें हैं... जिस सत्य को जानने साधु, संन्यासी घर बार छोड़कर जंगलों में भटक रहें हैं... वो भगवान स्वयं इस धरती पर आकर मुझ आत्मा को गोद लेकर अपना बच्चा, विद्यार्थी, शिष्य बनाया... मुझ आत्मा को उस *परमात्मा ने परम सत्य का ज्ञान* दिया...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा को त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी बना दिया... मुझ आत्मा को 21 जन्मों का *अविनाशी वर्सा देकर अविनाशी भाग्य* बना दिया... ज्ञान, गुण, शक्तियों का खजाना देकर दिव्यगुणधारी बना दिया... मुझ आत्मा को प्यारे बाबा ने नई दुनिया की स्थापना के निमित्त बनाया... अपना राइट हेंड बनाया...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा सदा बाबा के प्यार में खोये रहती हूँ... मैं आत्मा अब देही अभिमानी बन रही हूँ... मुझ आत्मा का नाम, मान, शान की अपेक्षा ख़तम होती जा रही है... देह अभिमान छूटता जा रहा है... अब मैं आत्मा *"मैं पन " का त्याग* कर त्यागमूर्त सच्चा सेवाधारी बन रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा के लव में लीन होकर सच्ची सेवा कर रही हूँ... मैं आत्मा इसी भाव से सेवा कर रही हूँ... की मैं *आत्मा करनहार हूँ, करावनहार बाप है*... कराने वाला करा रहा है... मैं आत्मा निमित्त हूँ... मैं आत्मा सेवा में "मैं पन " को मिक्स नहीं होने देती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सेवा कर बाबा को समर्पित कर देती हूँ... मैं आत्मा स्व परिवर्तन कर विश्व परिवर्तन के कार्य में सहयोग दे रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा सेवाधारी की स्टेज पर स्थित रहती हूँ... मनसा, वाचा, कर्मणा हर प्रकार की सेवा में सफलता की अनुभूति कर रही हूँ... अब मैं आत्मा "मैं पन" का त्याग कर सेवा में सदा खोये रहने वाली *त्यागमूर्त, सेवाधारी आत्मा* बन गई हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- व्यर्थ को समाप्त कर सेवा के ऑफर प्राप्त करना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सम्पूर्ण शुद्ध और पवित्र हूँ... मेरी मन बुद्धि एकदम स्वच्छ और पावन हैं... मेरे मन में सदैव शुद्ध और श्रेष्ठ संकल्पों की रचना होती हैं... *मैं शुद्ध वा श्रेष्ठ संकल्पों की धनी आत्मा हूँ...* हर परिस्थिति में मैं आत्मा श्रेष्ठ और समर्थ संकल्पों को ही इमर्ज करती हूँ... समर्थ संकल्पों के मोती मैं आत्मा हर समय पिरोती रहती हूँ... इससे व्यर्थ संकल्पों पर सम्पूर्ण विराम लग गया है...
➳ _ ➳ शुद्ध और श्रेष्ठ संकल्पों का स्टॉक मुझ आत्मा में सदा भरपूर रहता हैं... सदा ही शुद्ध और श्रेष्ठ संकल्प ही मुझ से इमर्ज होते रहते हैं... लगातार समर्थ श्रेष्ठ संकल्पों की रचना से मेरा औरा/आभा मण्डल अत्यंत शक्तिशाली और पवित्र हो गया हैं... मेरे श्रेष्ठ संकल्पों की खुशबू चारों ओर फ़ैल रही हैं... मेरे शुद्ध संकल्पों की खुशबू से अन्य आत्माओं में भी श्रेष्ठ संकल्पों की रचना हो रही हैं... व्यर्थ समाप्त होने से मुझ आत्मा को *बाबा से कई सेवा के डायरेक्शन प्राप्त हो रहे हैं...*
➳ _ ➳ शिवबाबा ने ज्ञान रत्नों से मेरे संकल्पों को सजाया हैं... बाबा के दिए हुए ज्ञान रत्नों को मनन करने से... मेरे मन में सदा श्रेष्ठ और शुद्ध संकल्प इमर्ज होते है... इससें व्यर्थ स्वतः ही मर्ज हो गए हैं... मैं आत्मा व्यर्थ संकल्पों से पूर्ण मुक्त हो कर अत्यंत शक्तिशाली हो गई हूँ... *मुझे सेवा के कई ऑफर्स मिल रहे हैं...*
➳ _ ➳ व्यर्थ से मुक्त होने से मेरी एकाग्रता शक्ति बढ़ गई हैं... मैं शक्तिशाली आत्मा जब चाहे, जो चाहे वो संकल्प क्रिएट कर सकती हूँ... *शुद्ध और श्रेष्ठ संकल्पों को सदा इमर्ज रखती हूँ...* व्यर्थ से मुक्त होने से मुझे हर सेवा में सफलता प्राप्त होती हैं... और इस सफलता से सेवा के ऑफर्स मिलते ही रहते...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *"मैंपन" का त्याग कर सेवा में सदा खोये रहने वाले त्यागमूर्त, सेवाधारी होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ "मैंपन" का त्याग कर सेवा में सदा खोये रहने वाले त्यागमूर्त, सेवाधारी होते हैं, क्योंकि... *सेवाधारी सेवा में सफलता की अनुभूति* तभी कर सकते हैं, जब उनमें मैंपन की भावना का त्याग हो जायेगा। मैं सेवा कर रही हूँ। मैंने ये सेवा की है। इस सेवा के भाव का भी त्याग करना है।
❉ सेवाधारी के मुख से कभी भी मैं व मैंने जैसे शब्द नहीं निकलने चाहिए। न ही मन में ऐसा विचार आना चाहिए कि ये मैने किया, मुझे ही तो करना है आदि आदि। अर्थात! *कर्ता भाव का त्याग करना* है। करने वाला कौन है? ज़रा इस बात पर विचार तो करना चाहिए न, इसलिये! करने के भाव का बिलकुल ही त्याग करना है।
❉ मन में यही भाव रखना है कि... ये सेवा मैने नहीं की है, लेकिन! मैं करनहार हूँ, करावनहार बाप है। सब कुछ बाप ही करवा रहा है। मैं *आत्मा तो केवल निमित्तमात्र* हूँ। करने वाला स्वयं मुझे निमित्त बना कर करवा रहा है। मेरा सारा "मैंपन" बाबा में लीन हो जाना चाहिये।
❉ इस भावना से रहने को ही, अर्थात! इस भावना के अनुसार ही सेवाभाव रहे तो! इसको ही कहा जाता है सेवा में *सदा खोये रहने वाले त्यागमूर्त सच्चे सेवाधारी* दिव्य आत्मायें! इस प्रकार से सच्चे सेवाधारी ही सेवाओं में सच्ची सफलता की अनुभूति भी करते हैं।
❉ हमें अपने "मैंपन" को बाबा के हवाले कर देना है तथा सदा अपनी सेवाओं में व बाबा के लव में लीन हो जाना है। *सेवाओं में सदा ही खोये रहना है।* कराने वाला करा रहा है। हम निमित्त हैं। इसलिये! सेवाओं में "मैंपन" मिक्स नही करना है। अगर सेवाओं में "मैंपन" मिक्स होता है तो! मानो मोहताज बनना है। सच्चे सेवाधारी में ये संस्कार हो नहीं सकता।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *व्यर्थ को समाप्त कर दो तो सेवा की ऑफर सामने आएगी... क्यों और कैसे* ?
❉ जैसे लोहा पारस के संग में सोना बन जाता है । ऐसा ही सच्चा सोना हमें भी बनना है । किंतु वह तभी बन सकेंगे जब जरा भी लोहे का अंश नहीं होगा । क्योंकि *अगर लोहे का अंश भी होगा तो वैल्यू को कम कर देगा* । व्यर्थ संकल्प लोहे के समान है जो आत्मा को सच्चा सोना बनने नहीं देंगे । इसलिए जब व्यर्थ को समाप्त करेंगे तो ही रीयल गोल्ड बन आत्माओं को आकर्षित कर सकेंगे । जिससे सेवा की ऑफर स्वत: ही सामने आएगी ।
❉ ज्ञान से अपने बुद्धि को जैसे जैसे महीन और सूक्ष्म बना लेंगे । तथा बाबा के साथ गहराई से हर सम्बन्ध निभाते हुए, पावर हाउस बाप से निरन्तर कनेक्शन जोड़ कर जैसे - जैसे आत्मा में पावर भरते जाएंगे वैसे - वैसे आत्मा में व्यर्थ का जो किचड़ा है वह धीरे-धीरे समाप्त होने लगेगा । *जैसे स्विच ऑन करने से रोशनी आ जाती है ऐसे ही ज्ञान का प्रकाश व्यर्थ के अंधकार को समाप्त कर देगा* और अपने साथ साथ अनेक आत्माओं के जीवन में भी उजाला कर देगा । जिससे सर्विस की ऑफर सामने आने लगेगी ।
❉ लौकिक में भी देखा जाता है कि सेल्समैन अगर अच्छा है तो सर्विस अपने आप ही अच्छी होती रहती है । हम भी रूहानी सेवाधारी हैं । तो *जितना हमारे पास शांति का, प्रेम का और सुख का खजाना होगा उतना ही सेवा स्वत : होती रहेगी* । किंतु यह खजाना तभी जमा होगा जब व्यर्थ समाप्त होगा । अगर व्यर्थ चिंतन मन में चलता रहेगा तो जमा किया हुआ खजाना भी समाप्त हो जायेगा । इसलिए जितना स्वयं को समर्थ चिंतन में बिजी रखेंगे उतना व्यर्थ से मुक्त रहेंगे और खजाना जमा होने से सेवा स्वत: होती रहेगी ।
❉ जैसे हंस मोती और कंकड़ में से मोती को चुग लेता है और कंकड़ को छोड़ देता है । क्योकि उसमे परखने की शक्ति बहुत तीव्र होती है । ठीक इसी प्रकार हमारे अंदर भी परखने और निर्णय करने की शक्ति होनी चाहिए कि क्या व्यर्थ है और क्या समर्थ है । तो *जितना इस शक्ति को स्वयं में धारण करेंगे उतना ही व्यर्थ संकल्प रूपी कंकड़ बुद्धि से निकलते जायेंगे* । और श्रेष्ठ तथा समर्थ संकल्प रूपी मोती मन बुद्धि में धारण होने से बुद्धि स्वच्छ और निर्मल होती जाएगी जिससे सर्व के प्रति कल्याणकारी वृति बनने से सेवा की ऑफर सामने आती जायेंगी ।
❉ जैसे बाबा की दृष्टि और वृत्ति में सर्व आत्माओं के प्रति कल्याण की भावना होने के कारण *बाबा की समीपता सबको सुख का अहसास कराती है* । तो ऐसे ही सुख के सागर बाप के बच्चे हम आत्माएं भी मास्टर सुखदाता है । अपने इस स्वमान की सीट पर जब हम सदा सेट रहेंगे तो मन बुद्धि में केवल सर्व के कल्याण का चिंतन ही चलता रहेगा जो समृति स्वरूप बना देगा । इससे व्यर्थ समाप्त होने लगेगा और सर्व के प्रति श्रेष्ठ तथा कल्याणकारी वृति होने से सेवा की ऑफर भी स्वत: ही मिलती रहेगी ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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