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 26 / 04 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

‖✓‖ गृहस्थ व्यवहार में रह °कमल फूल समान° रहने की बहादुरी दिखाई ?

 

‖✓‖ बाप समान °कल्याणकारी° बन सर्व की आशीर्वाद ली ?

 

‖✓‖ अपनी °चलन° से बाप का व यग्य का नाम बाला किया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

‖✓‖ स्नेह के पीछे सर्व °कमजोरियों को कुर्बान° किया ?

 

‖✓‖ °संकल्प व स्वपन° में भी एक दिलाराम की याद में रह सच्चे तपस्वी बनकर रहे ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

‖✓‖ °स्वदर्शन चक्रधारी° बनकर रहे ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं समर्थी स्वरुप आत्मा हूँ ।

 

✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-

 

➳ _ ➳  आत्मिक स्वरुप में स्तिथ होकर आज हम अपने परमपिता परमात्मा से उनकी शक्तिओं का आह्वान करेंगे... मुझ आत्मा के परम पित्ता शिव परमात्मा आज स्वयं परमधाम से इस धरा पर उतर रहें हैं मुझे अपनी शक्तिओं और प्रेम से भरपूर करने के लिए... उनके प्रकाश की प्रेम से भरपूर किरणें मुझ आत्मा पर पड़ती जा रही है... इन किरणों से मुझ आत्मा में स्नेह और  सहनशीलता के गुणों की वृद्धि होती जा रही है, जिससे मेरे कठोर संस्कार भी शीतल बनते जा रहें हैं... मैं अपने पिता के सम्मुख रह असीम खुशी और प्रेम का अनुभव कर रहीं हूँ... आलस्य और अलबेलापन जैसे मुझ आत्मा के कठोर संस्कार का बाबा की शक्तियों द्वारा कुर्बान हो रहीं हैं... मैं आत्मा अथक बन सदा एक बाप के सम्मुख रहकर खुश रहने का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं बाबा के स्नेह में मग्न होकर अपनी सर्व कमज़ोरियों को मज़बूरी से नहीं बल्कि दिल से कुर्बान करने वाली समर्थी स्वरुप आत्मा बन रही हूँ... मैं आत्मा आज अपने बाबा के समक्ष यह दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मैं बाप समान अव्यक्त स्तिथि स्वरूप बन असम्भव बात को भी सम्भव और सहज अनुभव करने के योग्य बनूँगी... मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मैं सत्य बाप के पास अपनी कमज़ोरियों को सत्यता से स्वीकार करा गायन योग्य आत्मा बन रहीं हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चों - अब घर वापिस जाना है इसलिए देहभान को भूल अपने को अशरीरी आत्मा समझो, सबसे ममत्व मिटा दो"

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों खेल अब पूरा हो चला है घर जाने के पल नजदीक आ चले है... सब फैला समेटो अशरीरी आत्मा के भान को पक्का करो... खेल की सारी साम्रगी से मोह निकाल दो... जिस स्वरूप में आये थे उसे ही याद करो...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मेरे प्यारे बच्चों जब घर से चले तो बाहों में खूबसूरत दुनिया थी... तब तक तो यह खेल बड़ा प्यारा था अब तो सारे सुख...  दुःख की गहरी नदी बन चले है... अब यहां मेरे बच्चे तो रह न सके... तो घर चलने की तैयारी करो...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चों कितनी खूबसूरत दुनिया में मेने भेजा था... लेकिन कहाँ बेठा देख रहा हूँ चलो अब घर वापस... छोडो ये दुनिया... तुम सुखो की दुनिया के ही सदा अधिकारी थे पर चलते चलते कहाँ आ पहुंचे हो...

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चों मै पिता अपने बच्चों को ढूंढ वापस घर ले जाने आया हूँ... इस दुःख नगरी में अपने जिगर के टुकड़ो को भटकते तो देख नही सकता... अब घर चलना है सब बातो से ममत्व निकाल सच्चे स्वरूप में आ जाओ...

 

 ❉   मेरा बाबा कहे - मेरे लाडलो मै परमधाम से उतर अपने मीठे बच्चों को सुखी बनाने आया हूँ... अब इन दुखो का समय पूरा हो चला अब और यहाँ रहना ही नही खूबसूरत समय बाहें फैलाये स्वागत को आतुर खड़ा है... समेटो खुद को और जेसे आये थे उसी रूप में स्तिथ हो जाओ... और घर चलो...

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ अपनी चलन से बाप का वा यज्ञ का नाम बाला करना है, ऐसा कोई कर्म न हो जो बाप की इज्जत जाये । सर्विस से अपना भाग्य आपेही बनाना है ।

 

  ❉   जैसे राजा का बेटा होता है तो उसे अपने बाप के पद का नशा होता है व अपनी चलन भी रॉयल रखता है । हम तो परमपिता परमात्मा बाप के बच्चे है हमें भी खुशी व नशे में रहना है और अपनी चलन से बाप का नाम बाला करना है ।

 

  ❉   बाप की श्रीमत पर चलते हुए श्रेष्ठाचारी बनना है व हर संकल्प, बोल, कर्म में रुहानियत से भरपूरता रखनी है कि देखने वाले को भी लगे कि ये कोई साधारण बच्चे नही हैं । अपनी चलन से बाप का वा यज्ञ का नाम बाला करना है । कहते भी है सन सोज फादर , फादर सोज सन ।

 

  ❉   जब बाप अपने बच्चों को दुःखी व पतित नही देख सका व अपने बच्चों के लिए इस पतित दुनिया में पावन बनाने के लिए आता है तो हम बच्चों को भी बाप की श्रीमत का पालन करना व आज्ञाकारी फरमानदार बन बाप का व यज्ञ का नाम बाला करना है ।

 

  ❉   हम ऊंच बाप के बच्चे है व हमें आंखों से कुदृष्टि, न मुख से अपशब्द, निंदा या विकारी बोल कोई ऐसा कर्म नही करना जिससे बाप की इज्जत जायें व हमें सौ गुणा सजा भी खानी पड़े और पद भी भ्रष्ट हो जाये ।

 

  ❉   जब बाप अपने बच्चों के लिए सर्विस के लिए ऐवररेडी रहता है व अपने को ओबीडियेंट सर्वेंट कह सेवा करता है तो हम बच्चों को इस सेवा निमित्त चुना है तो हमें भी बाप का मददगार बन सर्विस कर अपना भाग्य बनाना है ।

 

  ❉    ये रुहानी सेवा या यज्ञ सेवा मिलना एक बहुत बड़ा सौभाग्य है । इस यज्ञ सेवा में अपनी हड्डी हड्डी सफल कर अपना भाग्य बनाना है व आपेही पर कृपा करना है ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ स्नेह के पीछे सर्व कमजोरियों को कुर्बान करने वाले समर्थी स्वरुप होते हैं... क्यों और कैसे ?

 

  ❉   सत्य बाप के स्नेह पाने के लिए कुर्बान करने में कोई मुश्किल वा असम्भव बात भी सम्भव और सहज अनुभव होती है । तो बाप द्वारा समर्थी स्वरुप के वरदान द्वारा सर्व कमजोरियों को मजबूरी से नही दिल से कुर्बान करते हैं ।

 

  ❉   स्वयं भगवान इस पतित दुनिया में मुझे पावन बनाने आया है ।  यह स्मृति आती है तो सभी विकारों और कमी कमजोरी बाप के स्नेह पर कुर्बान कर देते है और समर्थ स्वरूप बन जाते है ।

  

  ❉   जिस सुख शान्ति प्रेम के लिए पूरी दुनिया कहां कहां भटक रही है उस सर्व सुखों के सागर ने मुझे अपना बना लिया यह स्मृति आते ही सर्व कमजोरियां स्वत ही कुर्बान हो जाती है ।

 

  ❉   जिससे स्नेह होता है तो उसके समान बनना मुश्किल नही लगता ऐसे ही जिन बच्चों को बेहद के बाप से स्नेह होता है तो बस बाप के गुण , बाप के खजानों , शक्तियों से भरपूर होते है व बाप समान बनते हैं । सर्व की कमजोरी नजर अंदाज करते बस बाबा का मीठा बच्चा है व मेरा आत्मा भाई है । ऐसे बस स्मृति में रहते समर्थी स्वरुप होते हैं ।

 

  ❉   बाप मिला सब कुछ मिला ये खुमारी रहती है व मेरा तो बस शिव बाबा दूसरा न कोई । बुद्धियोग बस एक बाप के साथ जुड़ा रहता व बाप से इतना स्नेह मिलता तो अपनी सर्व कमजोरियों को फट से कुर्बान कर समर्थी स्वरुप होते है ।

 

  ❉    जैसे स्थूल खजाना पर्याप्त होने पर चेहरे से व चलन से पता चल जाता है । ऐसे ही जिन आत्माओं को ईश्वरीय नशा का फखुर होता व स्मृति रहती कि मैं कौन व मेरा कौन वो सर्व खजानों से भरपूर होते व समर्थी स्वरुप होते हैं ।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ संकल्प वा स्वपन में भी एक दिलाराम की याद रहे तब कहेंगे सच्चे तपस्वी... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   अपनी दिनचर्या पर विशेष अटेंशन देते हुए जो सारा दिन शुभ संकल्पों का खजाना जमा करते रहते हैं और व्यर्थ चिंतन से दूर रहते हैं उनके हर संकल्प व स्वपन में भी केवल एक दिलाराम बाप की याद समाई रहती है यह तपस्या ही उन्हें सच्चा तपस्वी बना देती है ।

 

 ❉   सच्चे तपस्वी वही बनते हैं जो ज्ञान की गुह्य बातों को अनुभवी मूर्त होकर सुनते हैं । ज्ञानी तू आत्मा बन हर बात के स्वरूप का अनुभव करते हैं । हर बात को स्वयं में समाते हुए वे निरंतर एक बाप की याद में मगन रहते हैं । उनके हर संकल्प वा स्वपन में भी केवल दिलाराम बाप की याद ही समाई रहती है ।

 

 ❉   जैसे भक्ति में कहते हैं - अनहद शब्द सुनाई दे, अजपाजाप चलता रहे । ऐसे जो स्मृति स्वरूप बनते हैं जिन्हें बाप को याद करना नहीं पड़ता बल्कि याद स्वत: बनी रहती है । ऐसे जो संकल्प और स्वपन में भी एक दिलाराम बाप की याद में मगन रहते हैं वही सच्चे तपस्वी कहलाते हैं ।

 

 ❉   जिनके संकल्प व स्वपन में भी निरंतर एक दिलाराम बाप की याद समाई रहती है वे सदा बाप के दिल रूपी तख्त पर विराजमान रहते हैं । ऐसे तपस्वी मूर्त  बच्चे जो भी कर्म करते हैं , जो भी बोल बोलते हैं, सभी के दिल पर ऐसे लगता जैसे बाप बोल रहे हो ।

 

 ❉   संकल्प व स्वपन में भी एक दिलाराम बाप की याद में जो समाए रहते हैं उन पर सदा बाप के संग का रूहानी रंग लगा रहता है । वह सदा बाप को साथी बना कर रखते हैं । पल-पल बाप के साथ के अनुभव से वे स्वयं को सदा संपन्न और भरपूर अनुभव करते हैं । यही सम्पन्नता उन्हें सच्चा तपस्वी बना देती है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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