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❍ 31 / 07 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ अपने जीवन द्वारा √बाप का परिचय√ दिया ?
➢➢ हर बात में √बाप को बीच में रख√ बात को बढने से रोका ?
➢➢ स्वयं को सदा √राजऋषि√ समझकर चले ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ आज दिन भर अपना √मुख मीठा√ किया और दूसरों का भी मुख मीठा करवाया ?
➢➢ आज बापदादा से कुछ √लिया√ ? और बापदादा को कुछ √दिया√ ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/31.07.16-VisheshPurusharth.htm
✺ PDF Format:-
➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/31.07.16-VisheshPurusharth.pdf
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "बाप और बच्चों का रूहानी मिलन"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे प्यारे पिता से मिलन के यह खूबसूरत पल सदा के है... यह ख़ुशी अविनाशी है एक दिन की नही... सदा की ख़ुशी सदा का आनन्द... सदा ज्ञान गुणो का श्रंगार है... ईश्वरीय पिता के बच्चे सदा ही उमंगो के उत्सव् में है... दुनिया एक दिन के त्योहारो में खुशियां पाती है आप हर पल त्योहारो को जीते हो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा खुशियो की कितनी प्यासी थी... एक दिन की ख़ुशी का बरस भर इंतजार सा था... आज हर दिन खुशियो के मेले में मस्त हूँ... हर लम्हा श्रंगार है हर पल ख़ुशी का खजाना मेरे पास है...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे परमात्म से मिलन के मेले में पिता समान श्रेष्ठ हो चले हो... गुणो और शक्तियो से सजेधजे मुस्करा उठे हो... आपस में गुणो को लिए दिए चले जा रहे हो... और खुशियो संग यूँ खेलते ही चले जा रहे हो... कितना मीठा और प्यारा यह महा सोभाग्य आप बच्चों का है कि सदा की खुशियो में जीते जा रहे हो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा प्यारा से पल आपकी यादो में जीती जा रही हूँ... खुशियो में खिलती ही जा रही हूँ.... गुणो के लेन देन में सुखी होती जा रही हूँ... मिलन के मेले में खुशियो भरी तकदीर जगाती जा रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... मधुर परमात्म मिलन के मेले में खोये रहो... प्रवर्ति में रहते हुए भी सदा न्यारे और प्यारे बन पिता के दिल पर सितारे रहो... राजऋषि बन मुस्कराते रहो... निर्विघ्न रह विजय पताका लहराते ही रहो... लक्की सितारे होकर बाबा के दिल पर इठलाते रहो... और चमकदार हीरे बन अपनी रश्मियों से संसार में आभा फेलाते रहो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... आपकी खूबसूरत सी छत्रछाया में जादू हो चला है... मै आत्मा चमकता हीरा हो चली हूँ हर विघ्न पर विजयी हो कर न्यारी सी प्यारी सी अनोखी बन जहान में खुशियो की जादुई परी हो गयी हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - बाप समान गुणों व संस्कारों से मिलन"
➳ _ ➳ मैं आत्मा परमपिता परमात्मा की संतान हूं... मेरे पिता दिव्य ज्योतिबिंदु, मैं भी बिंदु स्वरुप हूं... इस अनमोल संगमयुग पर मैं आत्मा जन्मों से बिछुड़ी अपने प्यारे शिव बाबा से मिलन मनाती हूं... यह संगमयुग ही आत्मा परमात्मा के मिलन का मेला है... मुझ आत्मा के लिए हर दिन विशेष खुशी का दिन है... प्यारे बाबा मुझ आत्मा का हर दिन श्रृंगार करते है... दिव्य गुणों से नवाजते है... मैं आत्मा हर दिन नया वर्ष नया उत्सव मनाती हूं... मैं आत्मा प्यारे बाबा से मिलन मना शक्तियों व खजानों से भरपूर हो सदा उमंग उत्साह में रहती हूं... जो मेरे प्यारे बाबा के गुण है वही गुण मैं आत्मा स्वयं में धारण करती हूं... मैं आत्मा बाप समान बनने का पुरुषार्थ करती हूं... मैं आत्मा ओर संग तोड़ बस बाप संग बुद्धियोग जोड़ती हूं... मैं आत्मा सत् का संग पाकर उसी रंग में रंगती जा रही हूं... मैं आत्मा पुराने स्वभाव संस्कार को छोड़ प्यारे बाबा से मिले सर्वगुणों और सर्व खजानों को स्वयं मे भर सर्व के साथ गुणों व संस्कार मिलन कर चलती हूं... मैं आत्मा गुणों और संस्कार मिलन अभी से स्वयं मे भरती हूं... मुझ आत्मा मे यह संस्कार सदाकाल के लिए है... मैं आत्मा अपने परमपिता से रोज मिलन मना अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करती हूं...
❉ ड्रिल - विशेषता धारण कर कमजोरी समाप्त करना"
➳ _ ➳ अभी तक मैं देहभान में आकर अपनी असली पहचान खो चुकी थी...अपने सच्चे पिता को भूल गई थी... प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपना बनाकर विशेष बना दिया... महान बना दिया... मुझ आत्मा का परमात्मा से मेरा जन्मजन्मान्तर का रिश्ता है... हर जन्म में परमात्मा ने मुझ आत्मा को दिया ही दिया है... यह समझ मुझ आत्मा को इस संगमयुग में मिली... मुझ आत्मा ने अपने परमपिता को इस जन्म में पहचाना है... मेरे प्यारे बाबा अपने हर बच्चे में भल कितनी कमियां हो बस विशेषता ही देखते है... ऐसे ही मै आत्मा हरेक में बस विशेषता ही देखती हूं... गुणों को ही धारण करती हूं... सर्व में विशेषता देख स्वयं में विशेष ही ऐड करते मैं विशेष आत्मा हूं... विशेषता को धारण करने पर मुझ आत्मा की अपनी कमजोरी को स्वतः ही समाप्त हो जाती है... मै आत्मा अपने परमपिता शिव बाबा से सर्व खजाने लेती जा रही हूँ... और अपनी कमी कमजोरी प्यारे बाबा को देती हूं... जैसे मैं आत्मा लेने में फराक हूँ ऐसे कमी कमजोरी देने में भी फराक दिल बनती हूं... कमी कमजोरी को अपने पास रख कमजोर नही बनती हूं...
❉ "ड्रिल - बेदाग डायमण्ड की स्थिति का अनुभव करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा भृकुटि के बीच चमकता मणि हूं... मैं आत्मा सब के मस्तक में चमकती मणि ही देखती हूं... मैं आत्मा पुराने संसार के आकर्षण, देह व देह के सम्बंधों के आकर्षण से मुक्त हो गई हूं... मैं आत्मा प्यारे परमपिता शिव बाबा की याद में रहने से व्यर्थ से मुक्त हो गई हूं... मैं आत्मा अपना सारा बोझ बाबा को देकर हल्का अनुभव करती हूं... मैं आत्मा देह के सूक्ष्म अभिमान के सम्बंध से भी न्यारा रहती हूं... मैं आत्मा लाइट का फरिश्ता हूं... मैं आत्मा किसी भी विघ्न के वश से मुक्त हूं... फरिश्ता यानि विघ्न से मुक्त... किसी विघ्न के आने पर भी मैं आत्मा स्वयं को बापदादा की छत्रछाया में अनुभव करती हूं... मैं आत्मा बेदाग डायमण्ड हूं... जैसे डायमण्ड को लाइट के आगे रखते है तो उससे रंगबिरंगी किरणें निकलती हैं ऐसे बापदादा से निकलती सर्वशक्तियों की किरणों से भरपूर होकर मैं आत्मा रंगबिरंगी किरणें फैलाते बेदाग डायमंड स्थिति का अनुभव करती हूं...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं आत्मा लक्की सितारा हूँ ।"
➳ _ ➳ मैं आत्मा ब्रह्मा बाप समान विशेषता सम्पन्न के स्वभाव संस्कार वाली समान सम्पन्न सम्पूर्ण आत्मा हूँ... मैं आत्मा बाप को सम्पूर्ण रूप से फॉलो कर बाप समान बनती जा रहीं हूँ... बाप से दिव्य बुद्धि की लाइट मुझ आत्मा में उतर रही है... मैं आत्मा दिव्य स्वरूप बनती जा रही हूँ... मैं आत्मा बाप समान मास्टर सागर बन उंच तीव्र लगन से समान सम्पन्न सम्पूर्ण बनती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा जगता हुआ सम्पन्न दीपक हूँ... सम्पूर्ण दीपक हूँ... बाप समान चरित्रवान हूँ... मैं आत्मा बाप की शुभ आशाओं उम्मीदों और श्रेष्ठ संकल्पों को साकार रूप में पूर्ण करने वाली बाप की आशाओं की दीपक हूँ...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा की यही सम्पूर्ण स्तिथि है... मैं आत्मा अपनी इस सम्पूर्ण स्तिथि व सम्पूर्ण स्वरुप को स्मृति में रख सदा ऊँची स्टेज में स्तिथ रहने का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा अपनी स्तिथि को अचल-अडोल अवस्था में स्तिथ करने वाली विजयी आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा की स्तिथि नीची स्तिथि में आने-जाने अर्थात आवागमन के चक्र से या स्मृति विस्मृति के चक्र से सदा के लिए मुक्त हो गयी है... इस श्रेष्ठ स्तिथि में स्तिथ हो मैं आत्मा व्यर्थ बातों के चक्र से भी स्वतः ही मुक्त हो लक्की सितारे के स्वरुप में चमक रहीं हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ अपने सम्पूर्ण स्वरूप के आह्वान द्वारा आवागमन के चक्र से छूटने वाले लक्की सितारे होते हैं... क्यों और कैसे?
❉ अपने सम्पूर्ण स्वरूप के आह्वान द्वारा आवागमन के चक्र से छूटने वाले लक्की सितारे होते हैं क्योंकि वह अपने सम्पूर्ण स्वरूप का आह्वान करते हैं जिससे वही स्वरूप सदा उनकी स्मृति में रहता है। इस प्रकार उस स्वरूप की स्मृति उनको अति विशेष बना देती है।
❉ फिर कभी ऊँची स्थिति और कभी नीची स्थिति में आने-जाने का अर्थात आवागमन का चक्र चलता है। यह बार बार उनकी स्मृति में आता है कि हम स्मृति स्वरूप हैं। उनका इस प्रकार स्मृति विस्मृति के चक्र में घूमते रहने से वे कभी भी अपने स्वरूप में स्थित नहीं हो सकेंगे। इसलिये हमें सभी व्यर्थ की बातों से उपराम हो कर अपने सम्पूर्ण स्वरूप की स्मृति में स्थित हो जाना चाहिये।
❉ इस प्रकार हम बार-बार स्मृति और विस्मृति के चक्र में आते हैं। हम बार बार इस स्मृति और विस्मृति के चक्र में आने से अपना बहुमूल्य समय व संकल्पों रुपी खज़ानों को स्वयं ही समाप्त कर देते हैं। इसलिये हमें सदा ही समृति स्वरूप बन कर रहना है।
❉ जो लोग स्मृति और विस्मृति के चक्र में आते रहते हैं। वह इस चक्र से मुक्त हो जायेंगे, ऐसा नहीं है। उनको इस चक्र से मुक्त रहने के लिये सदा स्मृति स्वरूप बन कर रहना होगा तथा सदा ही अपने सम्पूर्ण स्वरूप को अपनी स्मृति में रख कर... स्वयं को नष्टो मोहा स्मृतिलब्धा की सम्पूर्ण स्थिति में स्थित रखना होगा।
❉ वे लोग तो जन्म-मरण के चक्र से छुटना चाहते हैं और हम लोग व्यर्थ की बातों से छूटना चाहते हैं। व्यर्थ बातें हमारी सुख शान्ति को हमसे छीन लेती हैं। इसलिये व्यर्थ बातों से छूट कर, हमें अपने स्वरूप की स्थिति में स्थित रह कर, सदा के लिये चमकते हुए लक्की सितारे बन जाना हैं।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ किसी भी विघ्न के वश होना अर्थात डायमण्ड पर दाग लगाना... क्यों और कैसे ?
❉ किसी भी परिस्थिति अथवा विघ्न के आने पर उसके प्रभाव में आ जाना भी डायमण्ड पर दाग लगाना है इसलिए बापदादा की श्रीमत है कि डायमण्ड बन डायमण्ड को देखो । क्योकि अगर डायमण्ड को छोड़ देह रूपी कांच को देखेंगे तो उसका प्रभाव डायमण्ड की चमक को कम कर देगा । इसलिए कैसी भी तमोगुणी स्वभाव वाली आत्मा हमारे सम्बन्ध सम्पर्क में आये लेकिन जब डायमण्ड बन डायमण्ड को देखेंगे तो हमारी दृष्टि पड़ने से उसका कालापन भी समाप्त हो जायेगा ।
❉ कोई भी परिस्थिति अथवा विघ्न आने पर विचलित हो जाना अर्थात उसके वश में आ जाना भी देह अभिमान है । देह अभिमान जब आता है तो आत्मिक विस्मृति हो जाती हैं जिससे छोटी छोटी परिस्थिति भी बहुत बड़ी लगने लगती है । स्व स्थिति शक्तिशाली ना होने के कारण जल्दी ही परिस्थिति के प्रभाव में आ जाते हैं और आत्मा की जो शक्तियां है, गुण है उन्हें भूल जाते हैं । सही समय पर सर्व शक्ति स्वरूप ना बन पाने के कारण दिलशिक्स्त हो जाते हैं । इसलिए बाबा कहते हैं कि किसी भी विघ्न के वश हो कर डायमण्ड पर दाग मत लगाओ ।
❉ किसी भी विघ्न के वश तब होते हैं जब अपने वास्तविक आत्मिक स्वरूप को भूल देह और देह की दुनिया के विस्तार में जाते हैं । बाबा कहते यह भी डायमण्ड पर दाग लगाना है । इसलिए जितना अपने इस डायमण्ड आत्मिक स्वरूप में टिक बाप की याद में बिज़ी रहेंगे और सर्व सम्बन्धो से मिलन मेला केवल एक बाप के साथ मनाते रहेंगे तो बुद्धि की लाइन क्लीन ऐंड क्लीयर रहेगी जो मन बुद्धि को किसी भी व्यर्थ झमेले में फंसने नही देगी । इससे किसी भी विघ्न के वश नही होंगे और डायमण्ड को बेदाग रख सकेंगे ।
❉ जीवन में कैसी भी हिलाने वाली परिस्थितियां अथवा विघ्न आएं किन्तु जो इन परिस्थितियों के अधीन हो दिलशिकस्त होने के बजाए अपने डायमण्ड स्वरूप की स्मृति में रहते हैं और उसकी चमक से अपने जीवन को चमकदार बनाये रखते हैं वे सदा अपने संतुष्ट जीवन की शान में रहते हुए किसी भी विघ्न के आने पर परेशान नही होते बल्कि साक्षी स्थिति में स्थित रह, बाप को अपना साथी बना कर विघ्नों अथवा परिस्थितियो में भी ऐसे अनुभव करते हैं जैसे कोई मनोरंजन का खेल हो ।
❉ जो सदा अपनी रूहानी स्थिति में स्थित रहते हैं वे देह और देह की दुनिया के आकर्षणों से परे सदा उपराम अवस्था में रहते हुए मन बुद्धि से केवल अपने स्वीट होम और स्वीट बाप की याद में मगन रहते हैं । बुद्धि योग निरन्तर बाप के साथ जुड़ा होने के कारण परमात्म बल से उनकी आत्मा रूपी डायमण्ड की चमक निरन्तर बढ़ती रहती है । जो लाइट हाउस का काम करती है । अपनी लाइट की रोशनी से वे अज्ञान अंधकार में भटकती आत्माओं को रास्ता दिखाने की सेवा में सदैव बिज़ी रहते हैं और किसी भी विघ्न के वश हो डायमण्ड पर दाग लगाने से बच जाते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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