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❍ 27 / 08 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ पढाई में ×गफलत× तो नहीं की ?
➢➢ बाप से √पूरा पूरा वर्सा√ लेने पर अटेंशन रहा ?
➢➢ श्रीमत पर बाप को √बड़े प्यार से याद√ किया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ √सारे वृक्ष की नॉलेज√ को स्मृति में रख तपस्या की ?
➢➢ ×मन बीमार× तो नहीं हुआ ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ परिवार के सम्पर्क में आते √हर एक की विशेषता√ को देखा ?
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - सुख देने वाले बाप को बहुत बहुत प्यार से याद करो याद बगैर प्यार नही हो सकता"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... सच्चे सुखो का आधार ही मीठे पिता की यादे है... इन मीठी मीठी यादो में खो जाओ... यह याद ही सच्चे प्यार का पर्याय है... इन यादो से ही खूबसूरत सुख दामन में सजेंगे...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा आपकी मीठी महकती यादो में खोकर सुखो भरे संसार को पाती जा रही हूँ... दुखो से निकल कर सुखो की मालिक बन मुस्करा रही हूँ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की यादो में सदा के लिए मगन हो जाओ... दुखो के सब बन्धनों से मुक्त होकर विश्व धरा पर मालिक मुस्कराओ... मीठे सुखो में खिल खिलाओ... यादे ही ईश्वरीय प्यार है... सारा मदार यादो पर है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा सच्चे बाबा की सच्ची यादो के नशे में गहरे समा रही हूँ... मीठी यादो में सारे विकारो पर विजय पाकर सम्पूर्ण पवित्र बन मुस्करा रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देह और देहधारियों की याद ने शक्तिहीन कर खाली किया... अब विश्व पिता शक्तियो से सजाने धरा पर उतर आया है... उसकी मीठी यादो से भर जाओ... उसको ही चाहो और प्यार करो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी सुनहरी यादो में सदा की जी उठी हूँ... महक रही हूँ खिल उठी हूँ... इन यादो में अपना अप्रतिम सौंदर्य पाती जा रही हूँ...सदा की सुखी होती जा रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - अच्छी रीति पढ़ाई कर बाप से पूरा वर्सा लेना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा गॉडली स्टूडेंट हूं... मैं विश्व की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की स्टूडेंट हूं... मैं आत्मा कितनी भाग्यवान हूं...!! स्वयं भगवान मुझ आत्मा को रोज दूरदेश से इस पतित दुनिया में पढ़ाने आते है... दुनिया वाले तो भगवान के दर्शन पाने के लिए कहां कहां भटकते है... वाह मेरा भाग्य वाह!! वाह रे मैं आत्मा वाह! मैं आत्मा ये रुहानी वंडरफुल पढ़ाई पढ़ती हूं... ये रुहानी पढ़ाई दा वेस्ट है... मेरे पिता सुप्रीम शिक्षक बन मुझ आत्मा को पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बनाते हैं... मेरे कौडी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बना दिया... मुझ आत्मा की झोली अनमोल अखूट खजानों से भरपूर करते है... मुझ आत्मा का ज्ञान रत्नों से श्रृंगार करते हैं... मुझ आत्मा को पढ़ाकर 21 जन्मों के लिए राजाई पद देते है... नयी दुनिया का मालिक बनाते हैं... मैं आत्मा इस रुहानी पढ़ाई से अविनाशी कमाई जमा करती हूं... लौकिक कमाई से मैं आत्मा अल्पकाल की खुशी प्राप्त करती हूं... मैं आत्मा इस रुहानी पढ़ाई से अविनाशी खुशी प्राप्त करती हूं... 21 जन्मों के लिए प्रालब्ध जमा करती हूं... इसलिए मैं आत्मा इस रुहानी पढ़ाई के लिए गफलत नही करती हूं... मैं ज्ञानसूर्य शिव बाबा के सम्मुख बैठ ज्ञान खजानों से भरपूर होती हूं... मैं आत्मा हर कर्म करते बस बाबा की याद में रहती हूं... ये पुरानी दुनिया विनाशी है... इस भंभोर को आग लगनी ही है ये मैं आत्मा जान गई हूं... समय बहुत नजदीक है व विनाश होना ही है... इसलिए मैं आत्मा समय के महत्व को जानते तीव्र पुरुषार्थ करती हूं... मैं आत्मा एक बाप की याद में रह पूरा वर्सा लेने का पुरुषार्थ करती हूं...
❉ "ड्रिल - बस एक बाप को ही प्यार से याद करना"
➳ _ ➳ मैं जान गई हूं कि मेरा जन्म बस देह के रिश्तों द्वारा दुख पाने के लिए नही हुआ है... मैं इतने जन्मों से पुकारती रही हे प्रभु आओ... मुझे पावन बनाओ... प्यारे शिव बाबा हमारे निमंत्रण पर आऐं है... अपने बच्चों को दिव्य बुद्धि व दिव्य दृष्टि देकर अज्ञानता के घोर अंधेरे से निकाल सोझरे में लाते हैं... मैं पांच तत्वों की दुनिया में रहते हुए देह व देह के सम्बंधों से न्यारी होती जाती हूं... मैं विनाशी रिश्तों को भुला चुकी हूं... मैं ये देह नही देही हूं... मैं अविनाशी पिता परमात्मा शिव बाबा की अजर, अमर संतान हूं... ईश्वरीय संतान हूं... अपने को आत्मा समझ बस परमपिता परम आत्मा को याद करती हूं... इस संगमयुग पर एक प्यारे शिव बाबा ही मेरा संसार है... वही मेरे मात-पिता, सखा, बंधु, शिक्षक, सदगुरु हैं... मैं आत्मा सदा बाप का साथ अनुभव करती हूं... मैं आत्मा प्यारे पिता शिव बाबा की शिक्षा प्रमाण चलती हूं... बाबा के साथ साथ चलती हूं... मैं आत्मा ऐसा अनुभव करती हूं प्यारे बाबा मेरी उंगुली पकड़कर चल रहे हैं... मुझ आत्मा का मार्गदर्शन कर रहे हैं... मैं आत्मा अपने ऊंच ते ऊंच बाप की सुबह से शाम तक की मर्यादाओं पर चलते हुए बाबा की याद में रहती हूं... मेरे ह्रदय में बस दिलाराम बाबा ही बसते हैं... बाबा मेरे प्यारे मीठे बाबा... आप ही मेरा सर्वस्व हो... अब हर क्षण दिल यही गीत गाता है कि... अब तेरे बिन इक पल न बीते बाबा!!
❉ "ड्रिल - तन बीमार है मन नही"
➳ _ ➳ मैं भृकुटि सिंहासन पर विराजनमान एक चमकता सितारा हूं... मैं आत्मा अजर, अमर, अविनाशी हूंं... मैं आत्मा मन बुद्धि की अधिकारी हूं... सभी कर्मेन्द्रियां मुझ आत्मा के आर्डर प्रमाण ही चलती हैं... मैं आत्मा इस शरीर की मालिक हूं... मुझ आत्मा को ये ज्ञान इस संगमयुग पर प्यारे शिव बाबा ने दिया है... मैं आत्मा अब शरीर के रोगी होने पर दुखी नही होती... मुझ आत्मा को ज्ञान मिल गया है कि ये सब मेरे ही कर्मो का हिसाब किताब है... मैं आत्मा प्यारे परमपिता शिव बाबा की याद में रह सहज ही हर पेपर को हर दुख को सहज ही पार करती हूं... मैं सर्वशक्तिमान बाप की संतान हूं... मुझ आत्मा को ये नशा रहता है कि मैं भगवान का बच्चा हूं... मैं बाबा से प्राप्त हुई शक्तियों से अपने में बल भरती हूं... ये तन ही बीमार है... मन तो नही... मन तो मेरा छोटा बच्चा है... मैं उसे जिस तरफ लगाती हूं वही रहता है... मन की लगाम मुझ आत्मा के हाथ में है... मन की तार तो सर्वशक्तिमान के साथ जुड़ी रहती है... मेरी मन की जुड़ी है प्रीत ये दुनिया क्या जाने... मुझे मिल गया मन का मीत ये दुनिया कक्या जाने... बस यही गीत बजता रहता है... मुझ आत्मा को मिला ये शरीर तो विनाशी है... आत्मा अविनाशी है... मन, बुद्धि, संस्कार मुझ आत्मा की सूक्ष्म शक्तियां हैं... मैं आत्मा परमात्म याद से मन को शक्तिशाली बना तन की बीमारी को भूल जाती हूं... मैं आत्मा अपने मन को श्रेष्ठ व शुद्ध चिंतन में बिजी रखती हूं... मैं आत्मा मन को सकारात्मक सोच से पावरफुल रखती हूं... मैं आत्मा ये संकल्प रखती हूं- मन चंगा ते कटौती गंगा...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं सच्ची तपस्वी व सेवाधारी आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳ अंतर्चक्षु से स्वयं को देखो भृक्रुटी के मध्य में... मैं अविनाशी ज्योतिपुंज हूँ... दिव्य शक्त्ति हूँ... धीरे-धीरे अपने मन और बुद्धि को ले चलते हैं एक यात्रा पर अनंत की ओर... पंच तत्व की दुनिया से दूर... परमधाम की ओर जो मुझ आत्मा का असली घर है... अंतर्चक्षु से मैं स्वयं को उस दिव्य लोक में देख रहीं हूँ...
➳ _ ➳ जहाँ मुझ आत्मा को कोई बन्धन नहीं... मैं आत्मा यहां स्वतंत्र हूँ... सम्पूर्ण मुक्त्त अवस्था में स्तिथ हूँ... धीरे-धीरे मैं आत्मा अपने मन और बुद्धि को पिता परमात्मा के सनिध्य में ले चलती हूँ... अनंत सर्वशक्त्तिमान स्वरुप है मेरे पिता का...
➳ _ ➳ प्रकाशमय ज्योति पुंज स्वरुप हैं मेरे पिता का... कितना सुन्दर स्वरूप है मेरे प्यारे बाबा का... परमात्मा के सानिध्य में कुछ क्षण निवास कर मैं आत्मा में और बुद्धि द्वारा अपने तपस्वी स्वरुप को इमर्ज करती हूँ...
➳ _ ➳ जिस प्रकार भक्ति मार्ग में तपस्वी वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या करते थे... उसी प्रकार मुझ आत्मा का निवास भी इस सृष्टि रूपी कल्प वृक्ष की जड़ में है... यही मुझ आत्मा की तपस्या का आधार है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सम्पूर्ण वृक्ष की नॉलेज को अपनी बुद्धि में रख साक्षी होकर अपना अविनाशी पार्ट देख रहीं हूँ... वृक्ष की जड़ में निवास करने से मुझ आत्मा की बुद्धि में अपने अनादि स्वरुप की सारी नॉलेज स्वतः ही आ गयी है...
➳ _ ➳ इससे सारा ज्ञान हर पल मेरी बुद्धि में रहकर मुझ आत्मा की बैटरी को सदा ही चार्ज रखता है... बैटरी सदा चार्ज रहने से मैं आत्मा निरन्तर एक रूहानी नशे में रहने लगी हूँ... मैं आत्मा निरन्तर खुशियों से झूमने का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा सेवा में भी हर पल अपने तपस्वी मूर्त होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ सारे वृक्ष की नॉलेज को स्मृति में रख तपस्या करने वाले सच्चे तपस्वी व सेवाधारी होते हैं... क्यों और कैसे?
❉ सारे वृक्ष की नॉलेज को स्मृति में रख तपस्या करने वाले सच्चे तपस्वी व सेवाधारी होते हैं क्योंकि भक्ति मार्ग में दिखाते हैं कि अधिकतर तपस्वी वृक्ष के नीचे बैठ कर तपस्या करते हैं। वह वृक्ष के नीचे उसकी जड़ों में ही बैठ कर तपस्या क्यों करते हैं? इस बात का भी एक रहस्य है।
❉ वह रहस्य क्या है? वह रहस्य है कि हम सभी बच्चों को वृक्ष के नीचे बैठने से सारे वृक्ष की नॉलेज हमारी बुद्धि में स्वतः ही आ जाती है क्योंकि वह नॉलेज वृक्ष में पहले से ही विद्यमान रहती है। कहते है ना कि... कोई भी बीज में उस वृक्ष का सारा राज छुपा हुआ रहता है।
❉ उसी प्रकार बीज स्वरूप परमात्मा में भी इस सृस्टि के झाड़ का सम्पूर्ण राज समाया होता है। जो कि पिता बीज के सानिध्य में बैठने से हम बच्चों की बुद्धि में भी सम्पूर्ण सृस्टि का रहस्य स्वतः है प्रगट हो जाता है।
❉ अतः हमें परमात्मा पिता बाबा को सदा ही याद करते रहना है। बाबा को याद करने से बाबा के वायब्रेशन्स हमारी बुद्धि को टच करते है। बाबा से प्राप्त सुख शान्ति प्रेम पवित्रता ज्ञान आनन्द और सर्व शक्तियों की सतरंगी तरंगे हमारी बुद्धि को पावन बना देती हैं।
❉ इसलिये हमें सारे वृक्ष की नॉलेज को स्मृति में रख कर तथा साक्षी भाव में स्थित हो कर इस वृक्ष को देखना है। तभी तो ये नशा हमको ख़ुशी दिलायेगा और इससे हमारी आत्मा की बैटरी भी फुल चार्ज हो जायेगी फिर सेवा करते भी तपस्या साथ साथ रहेगी।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ तन की बीमारी कोई बड़ी बात नही लेकिन मन कभी बीमार न हो... क्यों और कैसे ?
❉ तन का रोग तो एक कर्मभोग है जिसे चुक्तू करने का सहज उपाय है कर्मयोग और कर्मयोग से कर्मभोग को चुक्तू वही कर सकता है जो मनमनाभव की स्थिति में सदा स्थित रहता है । मनमनाभव की स्थिति में सदा स्थित रहने के लिए जरूरी है मन बुद्धि पर नियंत्रण होना, संकल्पों को सही दिशा में मोड़ने का अभ्यास होना । क्योकि जब मन बुद्धि नियंत्रण में होंगी तो मन की अवस्था सदैव शक्तिशाली होगी जिसके आगे तन की बीमारी भी छोटी प्रतीत होगी ।
❉ हर मनुष्य के जीवन में कोई ना कोई परिस्थितियां आती रहती है कभी किसी दुर्घटना के रूप में, कभी तन के रोग के रूप में । लेकिन जो स्व स्थिति में स्थित रहते हैं और हर परिस्थिति को नथिंग न्यू समझते हुए डट कर उस परिस्थिति का सामना करते हैं । वे दिलशिकस्त होने के बजाए अपनी शक्तिशाली स्व स्थिति से हर परिस्थिति पर सहज ही विजय प्राप्त कर लेते हैं । अपने मन की शक्तिशाली स्थिति से वे तन की बीमारी से भी सहज ही मुक्ति पा लेते हैं ।
❉ किसी भी परिस्थिति को बड़ा या छोटा बनाना स्वयं हमारे हाथ में हैं । इसलिए कहा भी जाता है कि बातें बड़ी नही होती हम उन्हें सोच सोच कर बड़ा बना देते हैं । जैसे बीमारी के रूप में कर्मभोग आने पर दृढ़ता से उस बीमारी का सामना करने के बजाए नेगेटिव सोचना बीमारी को बड़ा बना देता है । क्योकि नेगेटिव संकल्प मन को कमजोर कर देते हैं जिससे बीमारी बड़ी नज़र आती है । इसलिए बाबा कहते मन को बीमार मत होने दो तो तन की बीमारी स्वत: समाप्त हो जायेगी ।
❉ डॉक्टर भी इस बात को सिद्ध करते हैं कि जो व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ होता है वह शरीरिक रूप से भी सदा स्वस्थ रहता है । आज 90% बीमारियों का कारण मानसिक तनाव है और मानसिक तनाव का कारण है मन का कमजोर होना । इसलिए यदि मन को शक्तिशाली बना ले तो शरीरिक रोगों से भी सहज ही छुटकारा पाया जा सकता है । और मन को शक्तिशाली बनाने का सहज उपाय है परमात्मा की याद जिससे आत्मा में बल भरता है और तन के रोग का सामना करना सहज हो जाता है ।
❉ संस्कारों की कमजोरी भी मन की स्थिति को कमजोर बनाती है । जैसे कइयों का यह स्वभाव संस्कार होता है कि वे छोटी सी परिस्थिति को भी बहुत बड़ा मानते हैं । संस्कारों की यही कमजोरी मन बुद्धि को कमजोर करती है जिससे उन्हें सदैव यही अनुभव होता है कि जैसे उनके जीवन से ख़ुशी गायब हो गई है । ऐसी मनोस्थिति वाले व्यक्ति शरीर में छोटा सा रोग हो जाने पर शक्तिहीन होने के कारण उसे भी बड़ा बना देते हैं । इसलिए बाबा कहते तन की बीमारी कोई बड़ी बात नही लेकिन मन कभी बीमार न हो ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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