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 15 / 09 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ बाकी जो कुछ सुना है, उसे भूलने का पुरुषार्थ किया ?

 

➢➢ इस एक जन्म में पवित्र रहने पर विशेष अटेंशन रहा ?

 

➢➢ फ़रिश्ता बनने का पुरुषार्थ किया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ सदा पावरफुल वृत्ति द्वारा बेहद की सेवा में तत्पर रहे ?

 

➢➢ बोल और चाल चलन प्रभावशाली बना सेवा में सफलता प्राप्त की ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢ आज बाकी दिनों के मुकाबले एक घंटा अतिरिक्त °योग + मनसा सेवा° की ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - बाप आये है तुम्हे पुजारी से पूज्य बनाने, पूज्य से पुजारी और पुजारी से पूज्य बनने की पूरी कहानी तुम बच्चे जानते हो"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... सतयुग में फूलो समान सुंदर जीवन को जीने वाले अपने सुन्दरतम स्वरूप को ही खो चले और उसी स्वरूप के पुजारी बन चले हो... अब मीठा बाबा अपने बच्चों को वही पूज्य सुंदर फूल बनाने आया है... यह कमाल भरी बात पूरी दुनिया में सिर्फ बच्चे ही जानते है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा आपसे मिलकर सारे सुंदर राज जान गयी हूँ... मै ही पूज्य थी और मै ही पुजारी बन चली हूँ... अब आपकी मीठी यादो में फिर से वही दमकता पूज्य स्वरूप पा मुस्करा रही हूँ...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता ने आकर सारे राजो को बच्चों सम्मुख रख दिया है... तो पूज्य बनने के मीठे प्रयासों में जुट जाओ... मीठे बाबा संग इस विशेष संगम युग में सुनहरे सुखो को अपने भाग्य में लिखवा लो... पुजारीपन को छोड़ पूज्य बन मुस्कराओ... और मालिक बन राज्य करो...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अपने सोभाग्य को जान गयी हूँ... और सच्चे पिता की मीठी यादो में अपनी खोयी सुंदरता को पाती जा रही हूँ... साधारण मनुष्य से असाधारण देवता बन रही हूँ... पुजारी नही अब पूज्य बनने को द्रढ़ हो चली हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... विश्व पिता आप बच्चों के लिए ही तो इस धरती पर आया है... स्वर्ग की सुंदर सौगात हथेली पर सजाकर लाया है... अपने कुम्हला चले फूलो को... वही मुस्कान रौनक देने आया है... ईश्वर पिता अपने बिछड़े बच्चों को पुजारीपन से छुड़ा कर... सुंदर देवता बना विश्व का मालिक बनाने आया है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने मीठे बाबा को पाकर अपने सच्चे स्वरूप को जान गयी हूँ... मै पुजारी नही पूज्य आत्मा हूँ इस नशे से पुलकित हो चली हूँ...और अपने सच्चे सौंदर्य को पाने में अथक हो चली हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - कल्याणकारी युग में सिर्फ बाप से सुनना"

 

➳ _ ➳  अभी तक भक्ति मार्ग में न जाने कौन कौन से धर्म शास्त्र पढ़ती रही... बिना किसी का अर्थ जाने उसके पीछे चलते रहे... सत्य की खोज में इधर उधर भटकते रहे है... विश्व में चारो ओर दुःख, अशांति का वातावरण दिखाई दे रहा है... ऐसे लगता है जैसे सब अपने वास्तविक ठिकाने को तलाश रहे हैं... इस कल्याणकारी संगमयुग पर स्वयं ज्ञानसूर्य परमपिता परमात्मा ने कोटों में कोई व कोई मे से भी कोई में मुझे चुनकर अपना बच्चा बनाया... वाह मेरा भाग्य वाह... ! ज्ञान सूर्य प्यारे शिव पिता के सम्मुख हूं... उनकी शक्तिशाली किरणें पाकर मैं सहज ही आत्मिक स्वरुप में स्थित होता जा रहा हूं... इस कल्याणकारी युग में मुझ आत्मा को सत का संग मिला है... प्यारे बाबा ही मुझ आत्मा को सच्ची सत्यनारायण की कथा सुना रहे हैं... कैसे 84जन्मों का चक्र पूरा होता है... कैसे चारो युग पूरे होते हैं व नयी दुनिया आती है... ये सारा ज्ञान प्यारे शिव पिता के सिवाय कोई दूसरा दे न सका... इस संगमयुग पर ही मैं आत्मा इस सच्ची गीता को सुन पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बन रही हूं... प्यारे बाबा ही मेरे इस कौड़ी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बना रहे हैं... मैं आत्मा बस एक बाप की ही श्रीमत पर चलती हूं... बस प्यारे बाबा की ही सुन रही हूं... मैं आत्मा मुरली में आए महावाक्यों का विचार सागर मंथन कर प्रभु प्यार को दिल में समाये रहती हूं... बस प्यारे बाबा की बातें ही याद करती हर कर्म करती जा रही हूं... सिवाय बाबा के कुछ ओर याद नही रखती हूं... बस दिल में यही गीत बजता रहता है *मेरा तो बस एक शिव बाबा दूसरा न कोई*...

 

❉    "ड्रिल - पवित्र रह फरिश्ता बनने का पुरुषार्थ करना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा एक ज्योति बिंदु हूं... शरीर से अलग देह की दुनिया से न्यारी एक ज्योति के देश की रहने वाली हूं... अपने पवित्र स्वरुप में हूं... आधुनिकता के इस युग में बस मशीन की तरह दिन रात काम में सब लगे हुए है... पैसा कमाने की होड़ है... अपना धर्म अपना स्वरुप सब भूल देह अभिमान में आकर विकारों में लिप्त हैं... हर ओर पापाचार, भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है... मनुष्यात्माओं से निकलती अपवित्रता, विकर्मों की बदबू चारों ओर व्याप्त हो रही है... इस रौरव नरक की दुनिया में प्यारे शिव पिता ने मेरा हाथ पकड़ मुझे इस दुबन से निकाला... बाबा की शक्तिशाली दृष्टि पड़ते ही मैं अपने ओरिजनल स्वरुप को पहचान रही हूं... मुझ आत्मा को प्यारे बाबा पतित से पावन बनाकर साथ घर वापिस ले जाने के लिए आए है... प्यारे बाबा पढ़ाकर नयी दुनिया में जाने लायक बना रहे है...  नयी दुनिया में पावन बने बगैर जा नही सकते... इसलिए इस अंतिम जन्म मुझे पावन जरुर बनना है... मैं आत्मा बाप की याद में रह विकर्मों का विनाश कर रही हूं... पावन बनने का पुरुषार्थ कर रही हूं... मैं आत्मा गृहस्थ व्यवहार में रहते न्यारी और प्यारी बनती जा रही हूं... मैं आत्मा मनसा, वाचा, कर्मणा व संकल्पों में भी पवित्रता धारण कर रही हूं... मैं आत्मा परमात्म प्यार के झूले में झूल रही हूं... रुहानी नशे में हूं... परमात्म शक्तियों व खजानों से सम्पन्न होकर अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर रही हूं... मैं आत्मा उडता पंछी हूं...  मैं आत्मा ब्राह्मण सो फरिश्ता बनने का पुरुषार्थ कर रही हूं...

 

❉   "ड्रिल - सेवा मे सफलता प्राप्त करना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा सफलतामूर्त हूं... सफलता मुझ आत्मा का जन्मसिद्ध अधिकार है... ये वरदान मेरे प्यारे मीठे बाबा ने मुझे पहले दिन ही दे दिया... अब मुझ आत्मा को इसे फलीभूत करना है... दृढ़ निश्चय रखना है... संकल्प मात्र में भी संशय नही लाना... मीठे बाबा ने चलना, बात करना, सेवा कैसे करनी है हर कार्य करने में शिक्षाएं दी है... वो सुप्रीम शिक्षक बन अपने शिष्य को देवताई संस्कार सिखा रहे है... मैं आत्मा बाबा की शिक्षाओं पर चलते हुए पवित्रता धारण कर रही हूं... मुझ आत्मा के पुराने स्वभाव संस्कार परिवर्तित होते जा रहे हैं... मुझ आत्मा की चमक बढ़ती जा रही है... पवित्रता की रुहानियत मुझ आत्मा के बोल और चाल चलन से झलक रही है... रुहानियत से दूसरी आत्माओं को स्वतः कशिश होती है व आकर्षित होते है... मुझ आत्मा के चाल चलन व बोल से स्वतः ही सेवा हो रही है... मेरे बोल  सर्व के प्रति शुभ व कल्याणकारी  है... शुभ भावना शुभ कामना है... मेरे भाव सिर्फ विश्व की आत्माओँ को सुख शांति के दाता से मिलाने का है... मधुर मीठी मुस्कान सिर्फ बाप से प्राप्त हुई बेहद की ख़ुशी से है... मुझ आत्मा की सर्व के प्रति पवित्र दृष्टि और प्यूरिटी की पर्सनेलिटी ही प्रभावशाली बना रही है... सदैव एक बाप की याद में की हर सेवा करते सफलता प्राप्त कर सफलतामूर्त बन रही हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं आत्मा हद की बातों से मुक्त हूँ ।"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपनी देह से, मित्र सम्बंधियों से और पुरानी दुनिया से मरजीवा हूँ... इस विनाशी दुनिया और दुनियावी पदार्थो से मुझे कोई लगाव नहीं है... मैं आत्मा व्यर्थ की बातें न सुनती हूँ... ना सुनाती हूँ.. ना सोचती हूँ... मैं आत्मा सदा शुभ भावना से सोचती हूँ... और शुभ बोल ही बोलती हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा व्यर्थ को भी शुभ भाव से सुन... शुभ चिन्तक बन बोल के भाव को सदैव परिवर्तन कर देती हूँ... जिस प्रकार साकार बाप को सेवा के सिवाय कुछ भी दिखाई नहीं देता था... उसी प्रकार मैं आत्मा सदा भाव और भावना को श्रेष्ठ कर बेहद की सेवा में त्तपर रहती हूँ...

 

➳ _ ➳   मैं आत्मा हद की बातों से सदा उपराम रहकर सेवा करती हूँ... गुड़ियों के खेल के समान मैं आत्मा हद की व्यर्थ की बातों में अपना समय देकर अपना समय और एनर्जी वेस्ट नहीं करती हूँ... मैं आत्मा छोटी-छोटी बातों में समय वा जमा की हुई शक्तियों को व्यर्थ नहीं गवाती हूँ... मैं आत्मा अपनी इस पावरफुल वृति द्वारा बेहद की सेवा में त्तपर रहने वाली आत्मा हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  सदा पॉवरफुल वृत्ति द्वारा बेहद की सेवा में तत्पर रहने वाले हद की बातों से मुक्त होते हैं... क्यों और कैसे?

 

❉   सदा पॉवरफुल वृत्ति द्वारा बेहद की सेवा में तत्पर रहने वाले हद की बातों से मुक्त होते हैं क्योंकि जिस प्रकार से साकार बाप को सेवा के सिवाय कुछ भी दिखाई नहीं देता था, उसी प्रकार से हम बच्चों को भी अपने पॉवरफुल वृति के द्वारा सेवायें करने में सदा मगन रहना है।

 

❉   अगर हम बच्चे भी अपनी पॉवरफुल वृति द्वारा बेहद की सेवा पर सदा तत्पर रहेंगे, तो हद की बातें!  स्वतः ही खत्म हो जायेंगी। हद की व्यर्थ बातों में हमें अपने समय को नहीं गवांना चाहिये। हमारा एक एक क्षण, एक एक कदम अति बहुमूल्यवान है। हमें उन बेशकीमती क्षणों को सार्थक बनाना हैं।  

 

❉   हद की बातों में अपना बेशकीमती समय देना भी मानो ऐसा है जैसे कि...  अपने कौड़ी तुल्य व्यर्थ गवांना है। जिन क्षणों में हम अपने हर कदम में पदम खिला सकते थे उन क्षणों को कौड़ियों में ही खो दिया है। ये कहाँ की समझदारी है। हमें बाबा ने अब समझदार बनाया है।

 

❉   पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बनाया है। कौड़ी तुल्य को पद्मों की कमाई में परिवर्तित कर दिया है। अतः अब हमें  सदा ही अपनी पावरफुल वृत्ति द्वारा सेवा में रत रहना है और व्यर्थ बातों से मुक्त हो कर पद्मों की कमाई को जमा करना है।  

 

❉   अगर अब भी हद की बातों में अपना समय गवांते रहे तो ये भी एक प्रकार से गुड़ियों का खेल ही हो गया क्योंकि गुड़ियों के खेल में समय और एनर्जी वेस्ट जाती है। इसलिये! हमें छोटी छोटी बातों में अपने कीमती समय को वा एनर्जी को तथा जमा की हुई शक्तियों को व्यर्थ नहीं गवांना है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  सेवा में सफलता प्राप्त करनी है तो बोल और चाल - चलन प्रभावशाली हो... क्यों और कैसे ?

 

❉   बाबा कहते हैं कि ज्ञान तलवार में यदि योग का जौहर होगा तभी वह सुनने वाले को घायल कर सकेगा । इसलिए यदि स्व पुरुषार्थ और सेवा का बैलंस नही होगा तो ज्ञान तलवार में जौहर आ नही सकता तथा मुख से निकले बोल और चाल - चलन प्रभावशाली नही बन सकते जबकि सेवा में सफलता का मुख्य आधार ही है - प्रभावशाली बोल और चाल चलन । और वह तभी होगें जब ज्ञान और योग दोनों का बैलंस होगा ।

 

❉   बाबा की याद वह रामबाण औषधि है जो तुरन्त असर करती है और सब प्रकार की बिमारियों से मुक्त कर देती है । इसलिए योग युक्त हो कर, बाबा की याद में रहते हुए निमित बन जब सेवा के क्षेत्र में आएंगे तो हमारे मुख से निकला हर वचन प्रभावशाली बन जायेगा और हमारी योगयुक्ति स्थिति हमारे चेहरे को दिव्यमूर्त तथा हमारे नयनो को रूहानियत से ऐसे भरपूर कर देगी कि हमारे बोल और चाल चलन से सेवा स्वत: ही होने लगेगी ।

 

❉   ज्ञानी तू योगी आत्मा ही सेवा में सफलता प्राप्त कर सकती है । क्योकि ज्ञानी तू योगी आत्मा ज्ञान को सुनने सुनाने के साथ साथ ज्ञान की गुह्यता में जा कर उसका स्वरूप बन जाती है और अपने बुद्धि रूपी नेत्रों को ज्ञान की दिव्यता से ऐसा दिव्य और आलौकिक बना लेती है कि उसके मुख से निकला हर बोल और उसका चाल - चलन इतना प्रभावशाली बन जाता है जो सहज ही सबको प्रभावित कर सेवा में सफलता प्राप्ति का आधार बन जाता है ।

 

❉   एक अभिनय कर्ता भी अपने अभिनय से दूसरों की वाहवाही तभी प्राप्त कर सकता है जब वह अपने मिले हुए पात्र की गहराई में जा कर उस पात्र का पार्ट प्ले करता है । उसके प्रभावशाली बोल और उसकी एक्ट लोगो को वास्तविकता का आभास कराती है जिसे देख कर लोग वाह वाह करने लगते है । इसी प्रकार ईश्वरीय सेवा में भी सफलता का मुख्य आधार है बोल और चाल - चलन का प्रभावशाली होना और इसके लिए जरूरी है ज्ञान और योग की गहराई में जाना ।

 

❉   जितना ईश्वर और ईश्वरीय सेवा के प्रति समर्पण का भाव होगा उतना ही यह समर्पण भाव प्रभु प्रिय बना देगा । प्रभु प्रेम से भरपूर हो कर जिन भी आत्माओं के सम्पर्क में आएंगे उन्हें हमारे चेहरे और चलन से प्रभु प्रेम की झलक अवश्य दिखाई देगी । प्रभु के प्रेम रस में भीगे हुए जो भी बोल प्रभु की महिमा के लिए हमारे मुख से निकलेंगे वो सहज ही इतने प्रभावशाली होंगे कि दूसरों को भी प्रभु प्रेम का अनुभव करवा देंगे और सेवा में सफलता प्राप्ति का आधार बन जायेंगे ।

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⊙_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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