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❍ 20 / 03 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °संगमयुग, मूलवतन और स्वर्ग° तीनो की बेगमपुर स्थिति का अनुभव किया ?
‖✓‖ ‘‘°सी फादर°'' - इस मंत्र को सदा सामने रखते हुए चढ़ती कला का अनुभव किया ?
‖✓‖ मुहब्बत से मेहनत में भी °हाली डे का अनुभव° किया ?
‖✓‖ एक दुसरे पर चारों पिचकारियों(°ख़ुशी, प्राप्तियां, शक्तियां, ज्ञान°) का रंग डाला ?
‖✓‖ खूब खेलते, खाते, मौज करते बापदादा से प्राप्त "°अविनाशी भव°" के वरदान का अनुभव किया ?
‖✓‖ °‘पास्ट इज पास्ट'° कर ख़ुशी के गीत गाते रहे ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ इस संगमयुग पर °एक का सो गुना° प्रतक्ष्यफल प्राप्त किया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?
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∫∫ 4 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ सच्ची होली कैसे मनाये ?
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे लाडलो आपने प्यारे पिता को रूहानी प्रेम रंग में रंग कर धरती पर् उतार लिया... सच्ची मुहोब्बत के रंग में रंगे किस कदर खुशनुमा बन पड़े हो... यह ख़ुशी से भरी लालिमा आत्मा को निखार रही है... योग अग्नि में दमकता सिंदूरी सौंदर्य पा रही है....यही तो सच्ची होली है...
❉ प्यारा बाबा कहे - आपने ईश्वर को पा लिया.... उसके सारे खजानो पर अपना नाम रंगवा दिया.... उसको अपने प्रेम में रंग दीवाना बना दिया... बालक सो मालिक हो चले मनुष्य से देवता बने... खुशियो की धारा में सारोबार ईश्वरीय प्रेम में मदहोश से...यही तो सच्ची होली है...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे बच्चों आप परमात्मा के और वो आपका दीवाना हो गया... खुशियो के सारे रंग आपकी झोली में आ गए... रूहानी प्रेम रंग में आत्मा रंगकर खिल उठी...देवता बनकर दमक उठी... और यह प्रकर्ति भी मुरीद हो पीछे पीछे चल पड़ी.... यही तो सच्ची होली है....
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चे सच्ची होली... खुशियो भरी होली मनाओ... झूमो नाचो और खुशिया मनाओ....पाना था सो पा लिया... जरा अपने खूबसूरत भाग्य पर् इठलाओ... खिले बसन्त से खिलखलाओ.... यही सच्ची होली अब बच्चे मेरे मनाओ...
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों... ईश्वर के प्रेम का रंग ही तो अनोखा है... जो बच्चों को सुखो और खुशियो में भिगो दे ऐसा रंग ये पक्का है... आनन्द के खुशियो के सारे तारे दामन में सजा दे.... देवताई गुणो से आत्मा श्रंगाररित हो....ऐसे ईश्वरीय प्रेम में डूबी होली आत्मा ही तो सच्ची स्तिथि की होली मनाये....
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∫∫ 5 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-15)
➢➢ एक दूसरे पर चारों पिचकारियों (खुशी, प्राप्तियां, शक्तियां, ज्ञान) का रंग डालना है ।
❉ जैसे लौकिक में एक दूसरे को रंग लगाते हैं तो उनको अपने कपड़े व चेहरा रगड़ कर साफ करना पड़ता है । हमें बाबा ने अपना बच्चा बनाया व हम उसके हो गए तो ये नशा व खुशी हमारे सूरत व सीरत से झलके व दुनिया वाले पूछे कि क्या मिल गया जो इतने खुश रहते हो । ये खुशी का रंग व इसका रास्ता दूसरों को बताकर खुशी का रंग लगाना है ।
❉ अपनी खुशी की पिचकारी से मैं श्रेष्ठ आत्मा हूं , विश्व के मालिक का बच्चा हूं, ऊंच ते ऊंच बाप के साथ श्रेष्ठ हीरोपार्ट है ये श्रेष्ठ खुशी की प्वाइंटस की धाराएं निकलती रहें व एक दो को लगाते रहना है व मनुष्य का परिवर्तन कर देव आत्मा बनाना है ।
❉ जैसे मुरलीधर की मुरली सुनने को गोपी बल्लभ की गोप गोपियां कैसी दीवानी थी व अपनी सुधबुध खो बैठती थी । इसी संगमयुग की गोप गोपियां ज्ञान रुपी मुरली को सुनकर अपने दुख और अशांति को भूल अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति कर दूसरों को करानी है ।
❉ बाबा ने हमें अपनी सर्व शक्तियों से, गुणों से भरपूर किया है तो उनको अब प्रेक्टिकल स्वरुप में लाकर दूसरों को रंग लगाना है । उन्हें भी बाबा का परिचय देकर वर्से का अधिकारी बनाना है ।
❉ बाबा ने हमें सृष्टि के आदि मध्य अंत की नॉलेज दी है व मास्टर ज्ञान सागर बना दिया । जो पहले खुद को ही नही पहचानते थे तो अब तीनों कालों, तीनों लोको को जानकर नॉलेजफुल हो गए हैं तो एक दूसरे को ज्ञान की प्वाइंटस से होली खेल देव आत्मा बनाना हैं व रंग लगाना है ।
❉ बाबा कहते हैं जो संगम पर होली खेलते हैं (यानि हो ली पास्ट इज पास्ट ) वही होली हंस बनते हैं । जब बाबा के हो लिए तो एक दूसरे के पुराने संस्कार मिटा नए दैवीय संस्कारों का रंग लगाना है ।
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∫∫ 6 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-15)
➢➢ संगमयुग पर एक का सौ गुणा प्रयत्क्षफल प्राप्त करने वाले पदमापदम भाग्यशाली होते हैं... क्यों और कैसे ?
❉ संगमयुग पर हमें बड़े से बड़ा खजाना स्वयं भगवान मिल गया । स्वयं भगवान मिला इससे बड़ा भाग्य भला किसका हो सकता !! बाप का बनते ही उसके खजानों के मालिक बन गये । संगमयुगी श्रेष्ठ ब्राह्मण जीवन अमूल्य हीरा जैसा जीवन पाने वाले पदमापदम भाग्यशाली होते हैं ।
❉ संगमयुग ही एक का सौ गुणा प्रयत्क्ष फल देने वाला है सिर्फ एक श्रेष्ठ संकल्प किया कि मैं बाबा का बाबा मेरा - यह अटल निश्चय व बाबा का स्नेह मायाजीत बनने का, सदा विजयी बनने का नशे का अनुभव करते और बच्चों के स्नेह के बंधन में बंध स्वयं परमात्मा बाप भी साकार मनुष्य रुप में मिलने आते ।
❉ संगमयुग पर ही स्वयं भगवान ने अपने बच्चों को अपने भाग्य की तकदीर लिखने की कलम दी कि बच्चे जितना प्राप्त करना चाहो कर सकते हो जितनी ऊंची प्रालब्ध चाहो पा सकते हो । ऐसे श्रेष्ठ लक्की पदमापदम भागयशाली हैं हम ।
❉ संगमयुग पर कोई भी सेवा करते किसी व्यक्ति विशेष के लिए न करते बस ईश्वरीय सेवा में व निमित्त भाव से करते हुए एक का सौ गुणा प्रयत्क्षफल प्राप्त करते पदमापदम भाग्यशाली होते हैं ।
❉ अगर कोई पुरुषार्थी अपनी कमी कमजोरी से या अलबेलेपन से आगे नही बढ़ पा रहा तो उसकी कमी कमजोरी को न देख उसे अपने सहयोग स्नेह से व सम्मान देते हुए आगे बढ़ाने वाले संगमयुग पर एक का सौ गुणा प्राप्त कर पदमापदम भाग्यशाली होते है ।
❉ जैसे बाप अनेक आत्माओं को रोशनी देने वाले हैं ऐसे जो बच्चे बाप समान अनेक आत्माओं को बाप से मिलाने वाली ,अनेक आत्माओं को रास्ता बताने वाले, बाप समान लाइट हाऊस बन सर्व को रोशनी देने वाले पदमा पदम भाग्यशालीहोते हैं ।
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∫∫ 7 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ सच्चे ब्राह्मण वह हैं जिनकी सूरत और सीरत से पर्सनैलिटी वा रॉयल्टी का अनुभव हो... कैसे ?
❉ और संग तोड़, एक संग जोड़ने वाले सदा एक बाप के श्रेष्ठ संग के रंग में रंगे रहते है और सच्चे ब्राह्मण बन रूहानियत से सदा भरपूर रहते हैं इसलिए उनकी सूरत वा सीरत से पर्सनैलिटी वा रॉयल्टी का अनुभव सर्व आत्माओं को स्वत: होता रहता है ।
❉ जो कमल पुष्प समान स्थिति में स्थित रह हर संकल्प वा कर्म न्यारे और प्यारे हो कर करते हैं वही सच्चे ब्राह्मण बन अपने चेहरे की दिव्यता और पवित्रता की झलक से सबको आकर्षित कर अपनी सूरत और सीरत से पर्सनैलिटी वा रॉयल्टी का अनुभव करवाते रहते हैं ।
❉ ब्राह्मण अर्थात सर्व आकर्षणों के बन्धन से मुक्त । जो सच्चे ब्राह्मण बन जितना बन्धन मुक्त स्थिति में स्थित होते जायेगे उतना अपने शक्ति स्वरूप स्थिति में स्थित रहना सहज होता जायेगा और शक्ति स्वरूप स्थिति में स्थित आत्मा के चेहरे वा चलन से पर्सनैलिटी वा रॉयल्टी का अनुभव स्वत: होता रहेगा ।
❉ सच्चे ब्राह्मण वह है जो अपने गुण व कर्तव्य द्वारा बाप के गुण वा कर्तव्यों को प्रत्यक्ष करें इसलिए जब सुनना, सुनाना और स्वरूप बनना तीनो एक साथ चलेंगे तभी ब्राह्मणों के हर कर्म में दिव्यता और अलौकिकता आएगी और अपनी सूरत वा सीरत से सर्व आत्माओं को रॉयल्टी का अनुभव करवा सकेंगे ।
❉ शुद्रपन के स्वभाव वा संस्कारों से किनारा कर जो सदा मर्यादाओं की लकीर के अंदर रहते हैं वे सच्चे ब्राह्मण बन सदा बापदादा के सिरताज बने रहते हैं और अपने चेहरे वा चलन से , पर्सनैलिटी वा रॉयल्टी का अनुभव करवाते हुए अपनी रूहानियत की खुश्बू से सबको महकाते रहते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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