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❍ 03 / 05 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ बाप जो नॉलेज देते हैं, उस पर पूरा ✓अटेंशन✓ देकर पडा ?
➢➢ ज्ञान के तीसरे नेत्र से अपने ✓84 जन्मो✓ के दर्शन किये ?
➢➢ पांच ✓विकारों का दान✓ दिया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ ✓रूहानी एक्सरसाइज और सेल्फ कण्ट्रोल✓ द्वारा महीनता का अनुभव किया ?
➢➢ हर सेकंड, हर कदम ✓श्रीमत पर एक्यूरेट✓ चले ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ मनन शक्ति के आधार पर ज्ञान की °भिन्न भिन्न पॉइंट्स का अनुभव° किया ?
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➳ _ ➳ http://bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/03.05.16-VisheshPurusharth.htm
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं आत्मा फरिश्ता स्वरुप हूँ ।
✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-
➳ _ ➳ आत्मा इस देह को छोड़कर उड़ती हुई जा रही है... धरती से दूर, ऊपर आकाश की ओर... जाकर सूक्ष्मवतन में बैठ जाती है अपनी प्रकाश की काया को धारण कर और सूक्ष्मवतन में अपने प्रकाशमय सम्पूर्ण स्वरुप को धारण कर उड़ चलती है वतन की सैर पर... फिर प्रकाश की काया को छोड़ उड़ चलती है ऊपर परमधाम में अपने पिता शिव के पास और निर्संकल्प होकर बैठ जाती है निराकारी पिता शिव के सम्मुख... निराकारी पिता शिव परमात्मा से सर्व शक्तियों की किरणों से फुल चार्ज होकर मैं आत्मा बड़ रहीं हूँ पुनः सूक्ष्मवतन की ओर... परमधाम की स्तिथि में अपनी प्रकाश की काया को धारण कर मैं आत्मा फरिश्ता स्वरुप बन रही हूँ... मुझ फरिश्ते की वास्तविक पर्सनेलिटी है:- "बुद्धि की महीनता और हल्कापन"... महीनता ही महानता है... मैं आत्मा आज अपने बाबा के समक्ष यह दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मैं रोज़ अमृतवेले यह अशरीरीपन की रूहानी एक्सरसाइज को करुँगी और सेल्फ कन्ट्रोल रख व्यर्थ संकल्पों के भोजन का परहेज़ करुँगी... मैं ब्राह्मण आत्मा व्यर्थ संकल्पों के एक्स्ट्रा भोजन का परहेज़ कर सदा फरिश्ता स्वरुप बनकर रहने के लक्ष्य को प्राप्त करने में समर्थ होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चों - सुख शांति का वरदान एक बाप से ही मिलता है कोई देहधारी से नही बाबा आये है - तुम्हे मुक्ति जीवनमुक्ति की राह दिखाने"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों इस दुःख भरी दुनिया से मेरे सिवाय कोई न निकाल सके... हर कोई श्रापित कर जाय पर सदा का वरदानी बना न सके... जीवनमुक्ति जेसी खूबसूरत बात मेरे सिवाय कोई सिखा ही न सके...
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे मीठे से बच्चों मै सुख का शांति का सागर पिता अपने बच्चों पर ही न बरसाऊ तो भला चैन कैसे फिर पाऊँ... जो खुद खेल में फसे है वह तो वरदानी तुम्हे बना न सके जीवन सुख शांति की ख़ुशी से खिला ही न सके...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चों कोई भी देहधारी तुम्हे जीवनमुक्ति की राह दिखा ही न सके... खुद ही सीढ़ी उतरा तुम्हे हरगिज चढ़ा ही न सके... मुझ पिता के सिवाय तुम्हारे जीवन को सुखमय कोई बना ही न सके...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चों मै भगवान पिता धरती पर दौड़ा चला आया हूँ अपने मुरझाये फूल से... फिर बच्चों को खिलता खुशबूदार गुलाब बनाने... जीवन को सुखो से सजाने और सुखभरी नई दुनिया बच्चों के लिए बनाने...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चो खुशियो भरी दुनिया हथेली पर रख आया हूँ मै ईश्वर पिता जीवन मुक्ति का वरदान ले आया हूँ... अब इन मिटटी के रिश्तो के पीछे न भागो ये समय साँस संकल्प सब छीन खोखला बना देंगे... मेरी यादे ही जीवन खुशनुमा बना सुख शांति भरा वरदानी जीवन दे जाएंगो
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ रावण के श्राप से बचने के लिए एक बाप को याद करना है । 5 विकारों का दान दे देना है । एक बाप की मत पर चलना है ।
❉ अभी तक अज्ञानता के घोर अंधेरे में थे व काम चिता पर बैठ एकदम जल गये व काले हो गये । इस संगमयुग पर बाप ज्ञान चिता पर बिठाते है व ज्ञान चिता पर बिठाकर कौडी तुल्य से हीरे मिसल बनाते है तो ऐसे ऊंच ते ऊंच बाप को याद करना है ।
❉ रावण की मत पर चलते चलते ही ये हाल हुआ है व पतित हो गये । स्वयं को ही भूल गये तो स्वयं परमपिता परमात्मा शिव ने ही दिव्य ज्ञान दिया व ज्ञान का तीसरा नेत्र दिया । अपने को आत्मा समझ आत्मा के पिता परम आत्मा बाप को याद करना है वही सर्व का गति सदगति दाता है ।
❉ भक्ति मार्ग में रावण राज्य में ही पांच विकार होने के कारण पतित हो गये । देह- अभिमानी होकर दुःखी व कंगाल हो गये । गाते भी हैं - हे पतित पावन आओ व हमें पावन बनाओ । तो इस संगमयुग पर स्वयं भगवान आए हैं इसलिए और संग तोड़ बस बाप संग जोड़ना है व बस बाप की याद में रहना है ।
❉ गाया भी जाता है - दे दान तो छूटे ग्रहण । जो वो ग्रहण लगता है वह तो पृथ्वी का परछाया होता है फिर भी कहते है दान देंगे तो उसका असर नही होगा । हमारे ऊपर तो पांच विकारों रुपी रावण का ग्रहण है । ये विकार हमें बाप को दान देने हैं और फिर कभी विकारों में नही आना ।
❉ ऊंच ते ऊंच बेहद का बाप मिला है । बाप की श्रेष्ठ मत पर ही चल श्रेष्ठाचारी बनना है ।बाप के सिवाय ये मत कोई दे नही सकता ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ रुहानी एक्सरसाइज और सेल्फ कन्ट्रोल द्वारा महीनता का अनुभव करने वाले फरिश्ता होते हैं... क्यों और कैसे ?
❉ जो बच्चे रोज अमृतवेले अशरीरीपन की रुहानी एक्सरसाइज करते हैं और व्यर्थ संकल्पों के भोजन की परहेज रख सेल्फ कंट्रोल करते हैं । वे महीन बुद्धि बन फरिश्ता स्वरुप होते हैं ।
❉ बुद्धि की महीनता व हल्कापन ब्राह्मण जीवन की पर्सनेलिटी है । जो बच्चे बुद्धि की महीनता से कभी अपने को अनादि स्वरुप, कभी आदि देवता स्वरुप, पूज्य स्वरुप... जिस रुप में जितनी देर रहना चाहो स्थित रहकर ये रुहानी एक्सरसाइज करते रहते हैं तो अपने में स्थिरता लाकर हल्के रहते है व फरिश्ता होते हैं ।
❉ जो सदा अपने को रुह समझ हर कार्य करते हैं व रूहानी नशे में रहते हैं । देह की दुनिया में रहते हुए अपने को निराकारी आत्मा समझ कर्म करते व कभी अपने को ऊंची स्टेज पर स्थित होकर देखते । ऐसे रूहानी एक्सरसाइज और सेल्फ कन्ट्रोल द्वारा महीनता का अनुभव करने वाले फरिश्ता स्वरूप होते हैं ।
❉ जो सदा रूहानी सेवा में रहते सदा यही सोचते सर्व रूहे बाप के वर्से की अधिकारी है । किसी की कमी कमजोरी को नही देखते । विशेषता देखते और विशेषता ही लेते । इसको भी बाप समान बनाऊँ ऐसे शुभ भावना रखने वाले सदा हल्के रहते व फरिश्ता होते हैं ।
❉ जो बच्चे कभी अपने को सूक्ष्म वतन में , कभी मूल वतन में ईमर्ज करते व जितनी देर रुकना चाहे रुकते व ऐसे रुहानी एक्सरसाइज करते रहते व अपनी कर्मेन्द्रियों के मालिक बन उन्हें आर्डर अनुसार चलाते तो हर कर्म करने में व सम्बंध में हल्के रहते और फरिश्ता होते ।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ महान आत्मा वह है जो हर सेकंड, हर कदम श्रीमत पर एक्यूरेट चलते हैं... क्यों और कैसे ?
❉ जो स्वयं को अमानत समझ कर चलते हैं और सदैव इस समृति में रहते हैं कि यह तन, मन, धन जो भी मिला है यह निमित रूप में मिला है । स्वयं को ट्रस्टी समझने वाले ऐसे वफादार, फरमान बरदार बच्चे ही हर सेकंड, हर कदम सदा श्रीमत पर एक्यूरेट चलते रहते हैं और महान आत्मा बन जाते हैं ।
❉ जो जितना ज्ञान युक्त, योग युक्त, राज युक्त और युक्तियुक्त बनता जाता है वह ना तो अपनी मनमत चलाता है और ना ही परमत पर चलता है । उसका हर सेकंड, हर कदम एक दम एक्यूरेट श्रीमत प्रमाण होता है । एक बाप की श्रेष्ठ मत पर चलकर श्रेष्ठ कर्म करते हुए वह महान बन जाता है ।
❉ श्रीमत ब्राह्मण जीवन का मूल आधार है और ब्राह्मण जीवन की सफलता का एक मात्र साधन है । जो बाबा की श्रीमत को यथार्थ रीति समझते और समझ कर हर सेकंड, हर कदम श्रीमत पर एक्यूरेट चलते हैं वे इस संगम युगी जीवन की परम प्राप्ति अर्थात परमानंद का अनुभव करने वाली महान आत्मा बन जाते हैं ।
❉ श्रीमत का अर्थ है परमात्म पालना और यह परमात्म पालना पूरे कल्प में केवल इस समय संगम युग पर ही प्राप्त होती है । जो इस बात को सदैव समृति में रखते हैं । वह हर सेकंड, हर कदम एक्यूरेट श्रीमत पर चलते हुए महान आत्मा बन अपने जीवन को सफल बना लेते हैं ।
❉ हर सेकंड, हर कदम श्रीमत पर चलने वाले सिर्फ एक ही बात समृति में रखते हैं " एक बाप दूसरा ना कोई " । जैसे बाप चलाएं वैसे चलेंगे, जो बाप कहे वह करेंगे, जहां बाप बिठाएं वहां बैठेंगे इस आधार पर अपने जीवन की जिम्मेवारी बाप हवाले कर सदा बाप के सहारे को आगे रख वे सर्व विघ्नों से किनारा कर महान आत्मा बन जाते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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