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 09 / 08 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ कोई भी ऐसा कर्म तो नहीं किया जो ×कनिष्ठ× बन जाएँ ?

 

➢➢ गुप्त रूप में बाप का मददगार बनकर रहे ?

 

➢➢ याद और पवित्रता का बल जमा किया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा प्रवृति को प्रगति का साधन बनाया ?

 

➢➢ स्वपन मात्र में भी ×पवित्रता से हिले× तो नहीं ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢  अल्पकाल के संस्कारों को अनादी संस्कारों में परिवर्तित करने पर विशेष अटेंशन रहा ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - अब तक जो कुछ पढ़ा है उसे भूल एक बाप को याद करो"

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... इस दुनिया में जो जाना पढ़ा उसने किस कदर उलझा दिया... सत्य से दूर कर भ्रम के करीब किया... इसलिए सत्य स्वरूप को बताने के लिए ईश्वर पिता को उतर आना पडा अब जो पढा है उसे भूल जाओ... और सत्य बाप से सत्य ज्ञान सुन सच्ची मीठी यादो में खो जाओ...

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा सत्य पिता सत्य ज्ञान पाकर सदा की रौशन हो गयी हूँ... सारी उलझनों से निकल सदा की सुलझ गयी हूँ... और प्यारे बाबा की यादो में ज्ञान परी बन गयी हु..

❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... संसार के असत्य ज्ञान ने पिता से दूर किया और सर्व व्यापी कहकर बुद्धि को अंधेरो में ओझल सा किया... अब ज्ञान का सागर सत्य ज्ञान को छलकाने आया है... चारो ओर विश्व को अज्ञान नींद से जगाने आया है... उस पिता के सुंदर सत्य को अपनाओ और अपने अधकचरे ज्ञान को सदा का भूल जाओ...

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा सारे भ्रमो से निकल चली हूँ... सत्य के सूरज से दमक उठी हूँ... आदि मध्य अंत के खूबसूरत राजो को जानकर मुस्करा उठी हूँ... ईश्वरीय ज्ञान को पाकर भाग्यशाली बन सुखो की स्वामिन् हो चली हूँ...

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे ईश्वर पिता के सिवाय आप बच्चों के सच्ची जीवन कहानी कोई बता ही न सके... ईश्वर पिता ही धरती पर आकर सत्य राह दिखलाये... इसलिए अब सारे पढ़े को बुद्धि से निकाल खाली करो... और ईश्वरीय रत्नों को भर कर रत्नों की खान बनो...

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा दुनियावी बातो को भूल कर ईश्वरीय ज्ञान से बुद्धि को सदा का सुंदर बना रही हूँ... ईश्वरीय ज्ञान से दमकती जा रही हूँ... और रत्नों के खजानो से भरपूर होकर सुखो की अधिकारी बन रही हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - श्रेष्ठ कर्म करके पुरुषोत्तम बनना"

➳ _ ➳  मैं ब्राह्मण आत्मा हूं... ये जन्म मुझ आत्मा का नया अनमोल जीवन है... इस संगमयुग पर ही मुझ आत्मा को स्व की असली पहचान मिली... परसों से पिछुड़े सच्चे सच्चे पिता मिले... इस संगमयुग पर ही मुझ आत्मा का परमात्मा से मिलन होता है... मुझ आत्मा को परमात्मा ने इस संगमयुग पर ही अपने भाग्य लिखने की कलम दी है... मैं आत्मा जितना चाहे अपना भाग्य बना सकती हूं... संगमयुग के एक एक क्षण एक साल के बराबर है... मैं आत्मा श्वांसों श्वांस बाबा की याद में रहकर सफल करती हूँ... मैं आत्मा हर कर्म परमात्मा की याद में रहकर करती हूं... मैं आत्मा सम्पूर्ण रीति से श्रीमत का पालन करती हूं... मैं आत्मा संगमयुग के महत्व को समझते हुए अपने हर कर्म संकल्प पर अटेंशन देती हूं... मैं आत्मा इस संगमयुग पर ही आत्मा और परमात्मा के मिलन के आनन्द को अनुभव करती हूं... मैं आत्मा कर्मों की गुह्य गति को जान गई हूं... मैं आत्मा स्व पर अटेंशन रख कोई ऐसा कर्म नही करती जो सजा खानी पड़े... मैं आत्मा श्रेष्ठ कर्म कर पुरुषोत्तम बनती हूँ...

❉   "ड्रिल - याद और पवित्रता का बल"

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपने परमपिता परमात्मा शिव बाबा के सम्मुख हूं... मुझ आत्मा के प्यारे बाबा से सर्व सम्बंध है... प्यारे शिव बाबा मुझ आत्मा के सुप्रीम पिता, सुप्रीम टीचर, सुप्रीम सतगुरु हैं... प्यारे बाबा ही सुखकर्त्ता, दुखहर्त्ता है... पतित ते पावन बनाते हैं... प्यारे बाबा ही सुप्रीम शिक्षक बन गुप्त रुप से मुझ आत्मा को रोज पतित दुनिया में दूरदेश से पढ़ाने आते हैं... मुझ आत्मा को सृष्टि के आदि-मध्य-अंत का ज्ञान देते हैं... ये पुरानी दुनिया विनाशी है... अब मुझ आत्मा में 84 के चक्र का पूरा ज्ञान है... मैं आत्मा सौभाग्यशाली हूं कि परमात्मा ने स्वयं मुझे अपने विश्व परिवर्तक के कार्य के निमित्त चुना... मैं आत्मा याद के बल से अपने विकर्मों का विनाश करती हूं... मैं आत्मा गृहस्थ परिवार में रहते परमात्म शक्ति से न्यारी और प्यारी रहती हूं... मैं आत्मा मनसा वाचा कर्मणा सेवा कर बाप के कार्य में मददगार बनती हूं... मैं आत्मा जानती हूं कि शिवबाबा की मत पर मैं आत्मा अपना तन मन धन सफल करती हूं... नयी दुनिया स्वर्ग के स्थापन के कार्य में मैं आत्मा सहयोगी बनती हूं... मैं आत्मा ज्ञान और योगबल से बाप की श्रीमत पर चल अपना स्वराज्य स्थापन के कार्य में मददगार बनती हूं... मैं आत्मा सिर्फ एक बाप की याद में रहती हूं... मैं आत्मा संकल्पों मेमनसा, वाचा और कर्मणा पवित्रता धारण करती हूं...

❉   ड्रिल - निश्चय का फाउंडेशन पक्का करना"

➳ _ ➳  मैं आत्मा पवित्रता के सागर बाप के सम्मुख हूं... मुझ आत्मा पर परमपिता परमात्मा से पवित्रता की किरणें फाउंटेन के रुप में पड़ रही हैं... मुझ आत्मा की जन्मों की कालिख उतरती जा रही हैं... माया रुपी पांच विकारों ने मुझ आत्मा को कमजोर बना दिया था... मैं आत्मा अपनी शक्तियों को भूल गई थी... प्यारे शिव बाबा ने मुझे अपना बच्चा बनाकर मुझ आत्मा को स्व की पहचान दी... अपनी सर्वशक्तियों, खजानों का अधिकारी बना दिया... मुझ आत्मा को ज्ञान रुपी तीसरा नेत्र देकर अंधेरा दूर कर दिया... मैं आत्मा देह की दुनिया से न्यारी परमधाम की रहने वाली हूं... ज्योति बिंदु आत्मा हूं... अपने पवित्र स्वरुप में हूं... मुझ आत्मा के परमपिता शिव बाबा है... मुझ आत्मा के सर्व सम्बंध बस बाबा से ही हैं... मैं आत्मा एक बाप की याद में रह विकर्मों का विनाश करती हूं... विश्व की हर आत्मा को भाई भाई की दृष्टि से देखती हूं... भाई भाई की दृष्टि से ही सहयोग देती हूं... मैं आत्मा स्वप्न मात्र में भी किसी के प्रति कोई गल्त सोच नही रखती हूं... मनसा वाचा कर्मणा सर्व के प्रति शुभ भावना रखती हूं... मुझ आत्मा ने अपनी सर्व जिम्मेवारियों का बोझ प्यारे बाबा को दे दिया है... सारी सृष्टि का रचयिता स्वयं मेरे प्यारे परमपिता शिव बाबा हैं तो मुझ आत्मा को क्या चिंता... मैं निश्चयीबुद्धि निश्चिंत आत्मा हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं सदा समर्थवान आत्मा हूँ ।"

➳ _ ➳  मैं आत्मा पदमापदम भाग्यशाली हूं... सारी दुनिया जिस भगवान को ढ़ूंढ़ रही है वह स्वयं सुप्रीम शिक्षक बन मुझे पढ़ाते हैं... मुझ आत्मा को कांटो से फूल बनाते हैं... पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बनाते हैं... मुझ आत्मा के कौड़ी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बना दिया...

➳ _ ➳  मैं आत्मा यह रुहानी पढ़ाई पढ़कर अविनाशी कमाई करती हूं... अब समय बहुत नजदीक है... हम सब को अपने घर वापिस जाना है... प्यारे बाबा हमें अपने साथ वापिस ले जाने आए है... मैं आत्मा सिर्फ प्यारे बाबा की याद में रह प्रवृति में रहकर वृति से पावन बनती जा रही हूँ...

➳ _ ➳  प्यारे बाबा के साथ घर जाने के लिए मैं आत्मा सदा एक बाप के साथ अपनी वृति को लगाकर, एक बाप दूसरा न कोई की ऊंची वृति में रहने का सुन्दर अनुभव कर रहीं हूँ... इस ऊंच प्रवृति में रहने से मैं आत्मा निरन्तर प्रगति की ओर सहजता से ही बढ़ रही हूँ...

➳ _ ➳  मुझ आत्मा के चंचलता के संस्कार स्वतः ही समाप्त होते जा रहें हैं... मैं आत्मा इस श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा निरन्तर प्रगति कर गति सद्गति को सहज ही प्राप्त करने वाली समर्थी स्वरुप आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ की मुझ आत्मा की सभी कंपलेन कम्प्लीट हो गयी हैं ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  श्रेष्ठ वृति द्वारा प्रवृति को प्रगति का साधन बनाने वाले सदा समर्थवान होते हैं...  क्यों और कैसे?

❉   श्रेष्ठ वृति द्वारा प्रवृति को प्रगति का साधन बनाने वाले सदा समर्थवान होते हैं, क्योंकि वे प्रवृति में रहते हुए या तो  पहले से पवित्र होते हैं या फिर वे अपनी वृति से अपवित्र बनते हैं। जिनकी वृति पहले से ही पवित्र होती हैंवो प्रवृति को अपनी प्रगति का साधन समझते हैं।

❉   वे अपनी पवित्रता की शक्ति द्वारा श्रेष्ठ प्रवृति मार्ग को अपनाते हैं। अपनी पवित्रता के बल से अन्य गुणों व शक्तियों से स्वयं को सम्पन्न भी बना लेते हैं। वे सदा  अपनी वृति को ऊँचा और श्रेष्ठ बनाते हैं। जिनकी ऐसी ऊँची वृति रहती है, उनकी प्रवृति भी प्रगति का श्रेष्ठ साधन बन जाती है।

 ❉   यदि वे अपनी वृति को सदा एक बापके साथ लगा कर रखे तथा एक बाप दूसरा न कोई  की स्मृति में रहें - ऐसी ऊँची वृति सदा जिनकी बनी रहे, तो उनकी प्रवृति प्रगति का साधन बन जायेगी। इस प्रकार हमारी वृति ऊँची और श्रेष्ठ भी रहेगी तथा हमारी वृति कभी चंचल भी नहीं हो सकेगी।

❉   ऐसी श्रेष्ठ वृति द्वारा हम प्रगति करते हुए गति व सदगति को सहज ही पा लेंगे। फिर सब कम्पलेन कम्पलीट हो जायेगी। तब हमारा किसी भी प्रकार का कोई भी संशय नहीं रहेगा और न ही कोई प्रश्न मन में उठेगा। सभी प्रश्नों का समाधान हो जाएगा।

❉   इसलिये सामर्थ्यवान बनने के लिये हमें अपनी प्रवृति को अपनी प्रगति का साधन बनना है। अपनी प्रवृति को गृहस्थ आश्रम बनना है। आश्रम मीन्स...  पवित्र रहने का स्थान। जहाँ पर सभी पवित्र रहते हों। जिन के पास अपवित्रता का नाम निशान भी नहीं होता है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  अगर पवित्रता स्वप्न मात्र भी हिलाती है तो निश्चय का फाउंडेशन कच्चा है... क्यों और कैसे ?

❉   तमोगुणी सृष्टि के बीच रहते हुए, वातावरण को परिवर्तन करना यही ब्राह्मणों का कर्तव्य है किन्तु जब इस कर्तव्य की विस्मृति होती है तो वायुमण्डल के प्रभाव मे आ जाते हैं । तमोगुणी आत्माओं के संग का प्रभाव जब आत्मा पर पड़ता है तो बाप को भूल जाते है । निश्चय का फाउंडेशन कमज़ोर होने के कारण आत्मा विकारों के वश हो विकर्म करने लगती है । बुद्बि में श्रेष्ठ चिंतन ना चलने के कारण संकल्पों में अशुद्धता आ जाती है और स्वप्न भी दूषित अर्थात अपवित्र हो जाते हैं ।
 
❉   व्यर्थ संकल्प चलाना या व्यर्थ चिंतन में स्वयं को बिज़ी रखना भी अपवित्रता है जिससे स्वप्न मे भी पवित्रता की नींव हिलने लगती है । व्यर्थ संकल्प का एक मुख्य कारण है बाबा से कनेकशन का लूज़ होना जो संशय बुद्धि बना देता है । कनेक्शन लूज़ होने के कारण आत्मा निर्बल हो जाती है और छोटी छोटी  परिस्थितियों में ही विचलित हो कर व्यर्थ संकल्पों के जाल में उलझ जाती है । व्यर्थ संकल्प आत्मा को शुद्ध और श्रेष्ठ चिंतन से दूर ले जाते हैं जिससे आत्मा में विकारों की अलाय और ही बढ़ती चली जाती है ।

❉   अगर पवित्रता स्वप्न मात्र भी हिलाती है तो इसका अर्थ है जरूर आत्मा कमज़ोर है । कमज़ोर होते हैं तब माया की छाया का प्रभाव पड़ता है क्योकि किसी भी प्रकार की कमजोरी माया का आह्वाहन करती है । जैसे शारीरिक कमजोरी बीमारियों का आह्वाहन करती है इसी प्रकार आत्मिक कमजोरी माया का आह्वाहन करती है और निश्चय का फाउंडेशन कमजोर कर देती है । फिर उस छाया से निकलने में बहुत मेहनत करनी पड़ती है । अगर माया की यह छाया स्वप्न मे भी पड़ जाती है तो स्वप्न भी परेशान करते हैं ।

❉   सम्पूर्ण पवित्रता की धारणा का साधन है संकल्प में भी एक बाप के सिवाए दूसरा कोई व्यक्ति व वैभव, सम्बन्ध - सम्पर्क वा कोई साधन स्मृति में ना आये । किन्तु अलबेले होने के कारण, मनमत के कारण, वातावरण के प्रभाव के कारण और संगदोष के कारण इस धारणा पर जब पूरी तरह से नही चल पाते तो स्मृति स्वरूप नही बन पाते । स्मृति स्वरूप ना बन पाने के कारण समर्थी स्वरूप भी नही बन पाते । इसलिए बाप से किनारा कर माया के दास बन जाते हैं और सम्पूर्ण पवित्र बनने के बजाए और ही आसुरी चलन चलने लगते हैं ।

❉   बाबा ने हम ब्राह्मण बच्चों को ट्रस्टी बनाया है । इस तन के भी ट्रस्टी, मन अर्थात संकल्प के भी ट्रस्टी, लौकिक व आलौकिक जो प्रवृति मिली है उसमें भी ट्रस्टी । किन्तु ट्रस्टी के बजाए जब गृहस्थी बन जाते हैं तो कर्मेन्द्रियों के वश हो कर्मेन्द्रियों के अनेक प्रकार के रस लेने में मस्त हो जाते हैं और बाबा की जो श्रीमत है एक के रस में सदा एकरस रहने की, उस श्रीमत को भूल जाते हैं । श्रीमत को भूलना अर्थात बाबा के प्रति निश्चय में कमी आना । और निश्चय का फाउंडेशन कच्चा होने से माया अनेक प्रकार के रॉयल रूप धारण कर पवित्रता की नींव को हिला देती है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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