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   25 / 02 / 16  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ °त्रिकालदर्शी° की सीट पर सेट हो हर कर्म कर माया को दूर से भगाया ?

 

‖✓‖ अपने को °ज्ञान योग का इंजेक्शन° दिया ?

 

‖✓‖ "°प्राणेश्वर बाप° आया है... हम बच्चों को प्राण दान देने" - यह स्मृति रही ?

 

‖✓‖ अपना बुधीयोग °स्वीट होम° में लगाए रखा ?

 

‖✓‖ "यह °पुरानी दुनिया विनाश° हुई पडी है" - इसलिए इससे अपने आप को अलग समझा ?

 

‖✗‖ °विघनो रुपी तूफ़ान° से डरे तो नहीं ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ °कोमलता को कमाल में परिवर्तित° कर मायाजीत बनने पर विशेष अटेंशन रहा ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

‖✓‖ मस्तक के बीच सदा °शुभ चिन्तक की चिंदी° चमकती रही ?

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-15)

 

➢➢ यह पुरानी दुनिया विनाश हुई पड़ी है इसलिए इससे अपने आपको अलग समझना है ।

 

  ❉   अभी तक ईश्वर को सर्वव्यापी कहते आए व देहभान में रह विकारों में गिरते चले गए । इस समय दुनिया इतनी तमोप्रधान है व विनाश तो होना ही है । पुरानी का विनाश होगा तभी तो नयी दुनिया आयेगी ।

 

  ❉   पुरानी दुनिया तो कब्रिस्तान होनी ही है व विनाश भी होना ही है । पर हम इस संगमयुग में भगवान के रुहानी बच्चे हैं व अपने को शरीर नहीं आत्मा समझना है ।

 

  ❉   दुनिया वाले रौरव नरक में हैं व हम ब्राह्मण बच्चों को स्वयं भगवान गुप्त रुप से पढ़ाने आते हैं व सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान दे रहे हैं । हमें श्रेष्ठ मत देकर श्रेष्ठाचारी बना रहे हैं ।

 

  ❉   इस दुनिया में एक मनुष्य मात्र भी नही जिसे आत्मा का ज्ञान हो । आत्मा का ज्ञान नही तो परमात्मा का ज्ञान कैसे होगा । स्वयं बाप हमें पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बना रहे हैं व हम कितने भाग्यशाली हैं !!

 

  ❉   समय थोड़ा है व दुनिया वाले एटामिक बॉम्ब बना रहे हैं उनसे सब खत्म हो जाना है ।अब विनाश सामने खड़ा है । हम ईश्वर पालना में आगे बढ़ रहे हैं , ईश्वरीय पढ़ाई पढ़कर प्राप्तियों से भरपूर हो रहे है । ज्ञान रत्नों से मालामाल हो रहे हैं । ईश्वर हमारा साथी है इसलिए दुनिया वालों से अलग हैं ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-20)

 

➢➢ कोमलता को कमाल में परिवर्तन कर मायाजीत बनने वाले शक्तिस्वरुप होते हैं... क्यों और कैसे ?

 

  ❉   सर्व प्राप्ति का आधार परिवर्तन शक्ति है । इससे ही कोमलता को कमाल में परिवर्तन कर मायाजीत बन सर्वशक्तिमान बाप और सर्व श्रेष्ठ आत्माओं के समीप जाने से शक्ति स्वरुप होते हैं ।

 

  ❉   चेहरे पर, नयनों से कोमलता की बजाए शक्ति रुप दिखाई दे तब मायाजीत बन शक्ति स्वरुप होता है ।

 

  ❉   स्वयं के संस्कारों को परिवर्तन करने में कोमल बनना है , पर कर्म में कोमल नहीं । शक्ति रूप बनना है । जो शक्ति रुप का कवच पहन लेते हैं तो माया का कोई तीर नहीं लग सकता ।

 

  ❉   मन, बुद्धि और संस्कार को आर्डर प्रमाण चलाकर कर्मेन्द्रियों पर स्वरिज्यिधिकारी होने से कोमलता को कमाल में परिवर्तन कर मायाजीत कर्मेन्द्रियजीत बन शक्तिस्वरूप होते हैं ।

 

  ❉   एक बाप की याद में रहने से अपने कडे से कडे से कडे संस्कारों व विकारों पर जीत पाकर मायाजीत व जगतजीत बनने वाले शक्ति स्वरुप होते है ।

 

  ❉   ऊंचे ते ऊंचे बाप समान रहमदिल , नम्रचित होकर, हर कार्य को युक्ति युक्त करने वाले स्वयं का परिवर्तन  कर मायाजीत बनने वाले शक्तिस्वरुप होते हैं ।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-15)

 

➢➢ त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट हो कर हर कर्म करो तो माया दूर से ही भाग जायेगी... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   त्रिकालदर्शी की सीट पर सदा सेट रहने वाला व्यक्ति सदैव तीनो कालो को स्मृति में रख हर कर्म करते हुए कर्म के प्रभाव से स्वयं को सदा मुक्त रखता है इसलिए मायाजीत बन माया पर सहज ही विजय प्राप्त कर लेता है ।

 

 ❉   त्रिकालदर्शी की सीट व्यक्ति को साक्षीदृष्टा बना देती है और साक्षीदृष्टा व्यक्ति हर सीन को ड्रामा का पार्ट समझ साक्षी हो कर देखता है और हर परिस्थिति में अचल अडोल बन माया के हर तूफान से बचा रहता है ।

 

 ❉   जो व्यक्ति स्वयं को सदा त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट रखता है वह अपने मस्तक पर सदैव तीन स्मृतियों का तिलक लगाये रखता है और बिंदु बन, बिंदु बाप की याद में रहते हुए, हर बात पर बिंदु लगा कर अपनी स्थिति को मजबूत बनाये रखता है जिससे माया दूर से ही भाग जाती है ।

 

 ❉   त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट होकर हर कर्म करने वाला व्यक्ति हर परिस्थिति को उड़ती कला का साधन समझ सदा उड़ता रहता है इसलिए माया के प्रभाव से स्वयं को मुक्त रख हर कर्म करते भी न्यारा और प्यारा रहता है ।

 

 ❉   त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट हो कर जब हर कर्म किया जाता है तो तीनो कालों की स्मृति व्यक्ति को क्या क्यों की क्यू से मुक्त कर हर परिस्थिति में अचल और अडोल बना देती है और उसकी अडोल स्तिथि को देख माया भी दूर भाग जाती है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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