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❍ 28 / 09 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ कभी भी रोये तो नहीं ?
➢➢ बाप जो गुह्य रमणीक बातें समझाते हैं, उन्हें धारण कर सबको समझाया ?
➢➢ स्प्रिचुअल लीडर का टाइटल लिया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ अपनी श्रेष्ठ स्थिति द्वारा माया को स्वयं के आगे झुकाया ?
➢➢ कर्म के समय योग का बैलेंस ठीक रख कर्मयोगी बनकर रहे ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ √मनमनाभव√ के गुह्य अर्थ को समझ इस स्थिति में स्थित रहे ?
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/28.09.16-VisheshPurusharth.htm
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - तुम रूहानी बाप से नई नई रुहानी बाते सुन रहे हो, तुम जानते हो जेसे हम आत्माये अपना रूप बदलकर आये है वेसे बाप भी आये है"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे... अब सारे सत्य को जान गए हो... शरीर नही खूबसूरत सितारा आत्मा हो इस स्वमान से भर चले हो... निज स्वरूप और पिता से परिचित होकर महक उठे हो... शरीर से जुड़े दुखो से मुक्त होकर अपने सत्य स्वरूप में खिल उठे हो... और रूहानी बाते सुनकर मुस्करा उठे हो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा मीठे बाबा से पाये निज स्वरूप को जानकर खुशियो से भर चली हूँ... खूबसूरत आत्मा हूँ... यह जान आनन्द में डूब चली हूँ... परमधाम की वासी हूँ... सतरंगी गुणो की खान हूँ... इस नशे में झूम रही हूँ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... यह रूहानी ज्ञान सिवाय परमात्मा के तो कोई बता ही न सके... जब रूहानी पिता तन के आधार को लेकर समझाये तब भूली हुई रूहे सुजाग हो पाये... और रूह के नशे से भर जाएँ... रूहानी पिता आकर रूह को नई नई बातो के नशे से भरे तो आत्मा पुलकित होकर अपने सुन्दरतम रूप को जान विस्मय से झूम झूम जाए...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा किस कदर भाग्यवान हूँ कि मुझे पढ़ाने... मुझे समझाने भगवान को धरा पर उतर आना पडा... मीठे बाबा ने कितने गुह्य राज मुझे बैठ बताये है... कितनी प्यारी अनोखी मै निराली आत्मा हूँ... यह राज मीठे बाबा ने ही मुझे बताया है...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... इस देह में पार्ट बजाने के लिए ही आये हो... शरीर नही चमकती रूह हो... यह अनोखा मीठा ज्ञान रूहानी बाबा ही बता पाये... सब पार्टधारी हो और परमधाम निवासी हो यह खूबसूरत ज्ञान पिता ही शिक्षक बन समझाये... अपने खूबसूरत स्वरूप और मीठे कल्याणकारी पिता को प्रतिपल याद करो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा इस रूहानी ज्ञान को जानकर और अपने रूह होने के भान में सजकर... अनन्त खुशियो को बाँहों में लिए झूम रही हूँ... यह शरीर... मै नही हूँ... यह दुःख भी सत्य नही... खेल का हिस्सा मात्र है इन सत्य को जान हल्की होकर खुशियो में उड़ रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - बाप का ज्ञान सुना रूहानी लीडर बनना"
➳ _ ➳ मैं मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ... अपने पिता ज्ञान सूर्य के सामने हूँ... मेरे अंदर का अज्ञान का किचड़ा खत्म हो रहा है... ज्ञान की रोशनी से अज्ञानता का अँधेरा छंट गया है.... प्यारे परमपिता परमात्मा सुप्रीम शिक्षक बन रोज दूरदेश से आकर मुझ आत्मा को पढ़ाकर पतित से पावन बना रहे हैं... मुझ आत्मा को सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान सुना रहे हैं... मैं आत्मा कर्मों की गुह्य गति के राज को जान गई हूं... अपने परमपिता से इन बहुमूल्य अनमोल अखूट ज्ञान रत्नों से अपनी बुद्धि रुपी झोली को भर रही हूं... अब इस रुहानी ज्ञान का हर बारीक से बारीक गुह्य पॉइंट मुझे स्वतः ही याद में रहते है... यह ज्ञान रतन अब मुझ आत्मा की धारणा में आ गये है... मुझ आत्मा की अब रूहानी प्यूरिटी की पर्सेनालिटी बनती जा रही है... यह रूहानी ज्ञान मैं आत्मा अपने आत्मिक भाइयो के उद्धार के लिए अति रमणीकता से सुना देती हूं... सर्व को बाप का रूहानी वर्सा देना है... सर्व के दुःखो को ज्ञान की रोशनी से खत्म करना है... मुझ आत्मा में सर्व के प्रति कल्याण की भावना है... प्यारे बाबा से मिले ज्ञान की धारणा से मुझ में मनसा वाचा कर्मणा व संकल्पों में पवित्रता आ रही है... मुझ आत्मा में दिव्य गुणो की धारणा करने के कारण बाबा मुझे स्प्रीचुअल लीडर का टाइटल दे रहे है...
❉ "ड्रिल - कर्म में योग के बेलेंस से कर्मयोगी बनना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपनी कर्मिन्द्रियों द्वारा हर कर्म कराते हुये मन और बुद्धि से परमात्मा की याद में खोई हुई रहती हूँ... मैं कर्मयोगी आत्मा हूँ... हर कर्म करते योग का बेलेंस रखती हूँ... हर स्थूल कार्य करते हुए मेरा मन और बुद्धि शिव बाबा से योग लगाने में व्यस्थ रहते है... जब हर कर्म में योग का बेलेंस रहता हैं... तो मेरे हर कर्म में श्रेष्ठता समाई हुई रहती है... हर कर्म में सफलता समाई हैं... मैं हूँ ही कर्मयोगी आत्मा... मेरे स्वासो-स्वास, हर कर्म करते हुए शिवबाबा की याद समाई हुई हैं... मैं साक्षी भाव से स्वयं को अमृतवेला से रात को सोने तक हर कर्म करते हुए स्वयं को योग का बेलेंस रखते हुए देख रही हूँ... मैं आत्मा नारायणी नशे में लिप्त एक शिवबाबा दूसरा न कोई, इसी लगन में मगन में हर कर्म कर रही हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं हाइएस्ट पद की अधिकारी आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳ मैं लाइट और माइट से जगमगता हुआ दिव्य सितारा भृकुटी के मध्य में चमक रहा हूँ... मेरे चारों ओर लाइट का दिव्य प्रकश है... मैं ज्ञान स्वरूप आत्मा इस मस्तिष्क द्वारा पूरे शरीर का संचालन कर रही हूँ... ज्ञान के सागर बाबा के ज्ञान की किरणों की वर्षा मुझ आत्मा पर आ रही है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा स्वराज्य अधिकारी हूँ... मैं इस देह से भिन्न हूँ... न्यारी हूँ... अलौकिक हूँ...मैं आत्मा मास्टर नॉलेजफुल हूँ... यह ज्ञान का तीसरा नेत्र जो मेरे परमपिता शिवबाबा द्वारा मुझ भाग्यशाली आत्मा को प्राप्त हुआ है वह मुझ आत्मा को सफलतामूर्त बनने का अनुभव करवा रहा है...
➳ _ ➳ जैसे महान आत्माएं कभी किसी के आगे झुकती नहीं, वैसे ही मैं बाप द्वारा चुनी हुई सर्वश्रेष्ठ आत्मा हूँ... मैं सर्वश्रेष्ठ आत्मा कोई भी परिस्तिथि में वा माया के भिन्न-भिन्न आकर्षण करने वाले रूपों के आगे कभी भी झुकती नहीं हूँ...
➳ _ ➳ बाबा की प्रदान की गयी शक्तियों द्वारा मैं आत्मा माया को अपने आगे झुकाती जा रहीं हूँ... प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान का तीसरा नेत्र देकर सतयुग में राजाई पद की अधिकारी आत्मा बना दिया है... आज माया मुझ शक्तिशाली आत्मा के आगे झुकती जा रही है...
➳ _ ➳ सतयुग में प्रजा मुझ आत्मा के आगे सम्मान से झुकेगी... द्वापर में मुझ आत्मा के यादगार के आगे भक्तजन अपना सर झुकायेंगे... मैं आत्मा अपनी इस ऊंच स्तिथि द्वारा हाइएस्ट पद का अधिकार प्राप्त करने वाली सर्वश्रेष्ठ आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ अपनी श्रेष्ठ स्थिति द्वारा माया को स्वयं के आगे झुकाने वाले हाइएस्ट पद के अधिकारी होते हैं... क्यों और कैसे?
❉ अपनी श्रेष्ठ स्थिति द्वारा माया को स्वयं के आगे झुकाने वाले हाइएस्ट पद के अधिकारी होते हैं क्योंकि... जिस प्रकार महान आत्मायें कभी भी किसी के आगे झुकती नहीं हैं, उनके आगे जहान के सभी लोग झुकते हैं। उसी प्रकार हम भी बाबा के द्वारा चुनी हुई श्रेष्ठ आत्मायें हैं।
❉ हम बाबा द्वारा चुनी हुई श्रेष्ठ आत्मायें कहीं पर भी होंगी या किसी भी परिस्तिथि में होंगी, तब भी माया के भिन्न भिन्न आकर्षण करने वाले रूपों में स्वयं को कभी भी झुका नहीं सकती हैं। वे आत्मायें झुकने वाली नहीं होती हैं, बल्कि झुकाने वाली होती हैं।
❉ वे अपनी श्रेष्ठ स्थिति द्वारा माया को सदा ही झुकाने वाले होते हैं। जब वे अभी से सदा झुकाने की स्थिति में स्थित रहेंगे, तब ही हाइएस्ट पद का अधिकार भी उनको ही प्राप्त होगा। इसलिये! वे सदा ही अपनी स्थिति को श्रेष्ठ व श्रेष्ठतर बनाने के लिये प्रयासरत रहते हैं। उनको कभी भी झुकने वाले नहीं बनना है। उनको तो सदा ही झुकाने वाला ही बनना है।
❉ सतयुग में हम सभी श्रेष्ठ आत्मायें देवी या देवता थे। हम सभी महान आत्मायें थी। हम सम्पूर्ण निर्विकारी, सोलह कलाओं से सम्पन्न व डबल ताजधारी तथा परम पुज्य आत्मा थे। फिर कालान्तर में पुज्य से पुजारी बने हैं। अब मन्दिरों में हमारे भक्त हमारा गुणगान कर रहे हैं। आज भी सभी राजा लोग हमारे पुज्य स्वरूपों के आगे माथा टेकते हैं। अर्थात! वे हमारे जड़ चित्रों के आगे भी झुकते हैं।
❉ ऐसी आत्माओं के आगे सतयुग में प्रजा भी स्वमान से झुकेगी तथा द्वापर में हम लोगों के यादगार के आगे भक्त जन सदा झुकते ही रहेंगे। इसीलिये! तो कहा भी गया है कि... अपनी श्रेष्ठ स्थिति द्वारा माया को स्वयं के आगे झुकाने वाले हाइएस्ट पद के अधिकारी होते हैं।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ कर्म के समय योग का बैलेंस ठीक हो तब कहेंगे कर्मयोगी... क्यों और कैसे ?
❉ मैं आत्मा परमधाम की रहने वाली हूँ और इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर यह साकार मनुष्य तन धारण कर पार्ट बजाने आई हूँ । यह बात जितना स्मृति में रहेगी उतना अपने मूल आत्मिक स्वरूप में रहना सहज लगने लगेगा और जितना आत्मिक स्मृति में रहने का अभ्यास पक्का होगा उतना ही इस देह में रहते हर कर्म करते भी आत्मा न्यारी और प्यारी रहेगी जिससे कर्म के साथ योग का बैलेंस भी बना रहेगा जो सहज ही कर्मयोगी बना देगा ।
❉ यह सृष्टि एक कर्मभूमि है जहां आत्मा बिना कर्म किये रह ही नही सकती । हर आत्मा को ड्रामा अनुसार इस कर्मक्षेत्र पर अवश्य आना है और आकर कर्म भी अवश्य करना है । इस देह का आधार ले कर आत्मा जब कर्म करते हुए कर्म के प्रभाव में आ जाती हैं तो वह कर्म एक बन्धन बन जाता है और आत्मा कर्मो के बन्धन में फंस जाती है किन्तु कर्म करते हुए भी जब मन बुद्धि परम पिता परमात्मा बाप के साथ लगे रहते हैं तो कर्म करते भी कर्म के प्रभाव से मुक्त रहते हैं । इसे ही कर्मयोग कहा जाता है ।
❉ आत्मा पर जन्म जन्मांतर के विकर्मो का जो बोझ है उसे परमात्मा की याद रूपी योग अग्नि से ही भस्म किया जा सकता है । इसलिए कर्म करते हुए जब योग का बैलेंस ठीक रहता है तो पुराने विकर्म भी चुक्तू होने लगते है और साथ ही साथ आत्मा नए विकर्मो के बोझ से भी बच जाती है क्योकि परमात्मा की याद में रह हर कर्म करने से आत्मा पाप कर्म करने से बच जाती है और कर्मयोगी बन हर प्रकार के कर्मभोग पर सहज ही विजय प्राप्त कर लेती है ।
❉ बाबा ने हर ब्राह्मण बच्चे को 8 घण्टे की याद का लक्ष्य दिया है । क्योकि सिवाय एक परम पिता परमात्मा बाप की याद के आत्मा गति सद्गति को पा नही सकती । और बाबा के इस फरमान का पालन वही कर सकता है जो निरन्तर याद की यात्रा पर रहे और निरन्तर याद की यात्रा में रहने के लिए जरूरी है कि हर कर्म करते बुद्धि का योग केवल एक परम पिता परमात्मा बाप के साथ लगा रहे । यह अभ्यास इतना पक्का हो जाये कि याद करना ना पड़े बल्कि याद सदा बनी रहे । तब कहेंगे कर्मयोगी स्थिति ।
❉ याद का मुख्य आधार है स्नेह और सम्बन्ध । जिनसे हमारा विशेष स्नेह होता है या जिनसे हमारा कोई सम्बन्ध होता है उनकी याद सहज ही बनी रहती है । इसी प्रकार जब बाबा को सर्व सम्बन्धो से अपना साथी बना लेंगे तो वह सम्बन्ध ही स्नेह उतपन्न करेगा और स्नेह बाबा को याद करने का आधार बन जायेगा । जिससे चलते - फिरते , उठते - बैठते हर कर्म करते मन बुद्धि में केवल एक परमात्मा बाप की याद समाई रहेगी । और यह निरन्तर याद सहज ही कर्मयोगी स्थिति का अनुभव कराती रहेगी ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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