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❍ 10 / 08 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ √रूप बसंत√ बनकर रहे ?
➢➢ सबकर प्रति √प्यार की दृष्टि√ रखी ?
➢➢ √कर्मेन्द्रियजीत√ बनकर रहे ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ थकी व तड़पती हुई आत्माओं को √सिद्धि√ प्रदान की ?
➢➢ ×कमजोर संस्कार× रुपी माया के चोर गेट को बंद करने का पुरुषार्थ किया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ खुदाई खिदमतगार की स्मृति में रह √हर कार्य में सफलता√ प्राप्त की ?
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/10.08.16-VisheshPurusharth.pdf
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे
बच्चे - अपने आप से वायदा करो की हमे बहुत मीठा बनना है सबको सुख की प्यार की
दृष्टि से देखना है किसी के नाम रूप में नही फसना है"
❉
प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... मीठे बाबा से मिलकर जो प्यार का दरिया
बने हो यह प्यार पूरे जहान में लुटाओ... प्यार का प्रतिरूप बनकर सारे संसार को
प्रेम सुधा पिलाओ... सबको सुख देकर जीवन को खुशियो से खिला आओ... और आत्मिक भाव
में रह न्यारे प्यारे हो प्यार लुटाओ...
➳ _ ➳
आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा आपके सागर समान प्रेम को पाकर प्रेम
स्वरूप हो गयी हूँ... मेरा रोम रोम प्रेम से भरा हुआ है... सबको ख़ुशी और सुखो
की सौगात दिए चली जा रही हूँ... और न्यारी बन मुस्करा रही हूँ...
❉
प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... देह की मिटटी में फसकर खुद के
सुंदर सजीले चमकीले स्वरूप को ही भूल चले... विकारो में जीकर कड़वे विषैले से हो
गए... अब प्यार का सागर से मिले हो तो वही प्रेम वही मिठास इस विश्व में बहाओ...
सब को सकून देकर तनमन खुशियो में खिला आओ... अब इस मिटटी में मटमैले न बनो....
➳ _ ➳
आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में प्रेम और
मिठास की परी बन पूरे विश्व को प्रेम तरंगो से पुलकित कर रही हूँ... प्यारे बाबा
से मिलने की ख़ुशी यूँ प्रेममय होकर लुटा रही हूँ... सब सूखी हो खुशहाल हो यह
कामना कर रही हूँ...
❉
मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे यह ईश्वरीय प्राप्ति की खुशियो को
अपने नूरानी खुशनुमा चेहरों से झल्काओ... सबको प्यार के आगोश में भर आओ...
खूबसूरत सितारे बन विश्व गगन पर मुस्कराओ... हर दिल को सुखो की बयार से आनन्दित
कर आओ...
➳ _ ➳
आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सब को प्यार की मीठी पालना दे रही
हूँ... प्यारे पिता से पाये सुखो की बरसात विश्व गगन से आत्माओ पर कर रही
हूँ... यह पूरा संसार प्यारा है दुलारा है इस मीठे भाव से भर चली हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल
- रुप बसंत बन ज्ञान दान करना"
➳ _ ➳
अभी
तक तो अज्ञानता में व घोर अंधियारे में रहते अपना समय व्यर्थ ही गंवाते रहे...
अपने देह व देह के सम्बंधों को संवारने में ही लगी रही... देहभान में रहकर
विकारों में गिरते गिरते पतित हो गई... स्वयं परमपिता ज्ञानसागर परमात्मा ने इस
संगमयुग पर आकर मुझ आत्मा को अपना बनाकर ज्ञान रुपी तीसरा नेत्र दिया... मुझ
आत्मा को सच्चा सच्चा ज्ञान सुनाकर ज्ञान स्वरुप बना दिया... अब मुझ आत्मा में
ज्ञान का मनन चिंतन ही चलता रहता है... मैं आत्मा सागर की गहराई में जाकर मोती
चुगकर विचार सागर मंथन में बिजी रहती हूं... मैं आत्मा अपने सम्पर्क में आने
वाली हर आत्मा को बाबा का परिचय देती हूं... मुझ आत्मा को प्यारे बाबा अखूट
अनमोल ज्ञान धन से भरपूर करते है... मैं आत्मा ज्ञान धन से भरपूर होकर ज्ञान
रत्नों का दान करती हूं... मैं आत्मा ज्ञान और योगबल को जमा करती हूं... मैं
आत्मा सर्व के प्रति आत्मिक भाव व आत्मिक दृष्टि रखती हूं... मैं आत्मा हरेक
में विशेषता देखती हूं... मैं आत्मा अपनी कमी कमजोरियों को प्यारे बाबा को
समर्पण करती हूं... मैं आत्मा बाबा की याद में रह अपनी कमजोरियों को दूर करने
का पुरुषार्थ करती हूं... मैं आत्मा स्व पर अटेंशन देती हूं...
❉ "ड्रिल
- मीठा बन सब को प्यार देना"
➳ _ ➳
मैं
आत्मा प्रेमसागर बाप की संतान मास्टर प्रेमसागर हूं... मीठे मीठे बाबा की मैं
मीठी मीठी बच्ची हूं... सिकीलधी बच्ची हूं... मुझ आत्मा के परमपिता परमात्मा
बहुत मीठे है... स्क्रीन से भी ज्यादा मीठे... मीठे बाबा की बच्ची हूं इसलिए
मैं आत्मा भी सब के साथ मीठा रहती हूं... मैं आत्मा सर्व के प्रति आत्मिक
दृष्टि रखती हूं... मुझ आत्मा को प्यारे बाबा ने सृष्टि के आदि मध्य अंत का
ज्ञान दिया है... मैं आत्मा ड्रामा के राज को जान गई हूं... हर आत्मा का अपना
एक्यूरेट पार्ट है... मैं कोई आत्मा को दुःख के निमित्त नही समझती हूं... मुझ
आत्मा के कर्मो का ही ये हिसाब किताब है... मैं आत्मा सर्व के प्रति मीठा रहती
हूं... शुभ भावना शुभ कामना रखती हूं... मैं आत्मा सर्व के प्रति रुहानी प्यार
रखती हूं... आत्मा भाई भाई की दृष्टि रखती हूं... मैं आत्मा स्वप्न में भी किसी
के प्रति गल्त संकल्प नही लाती हूं... मैं आत्मा मनसा वाचा कर्मणा पवित्रता
धारण करती हूं... मैं आत्मा हर कर्म श्रीमत अनुसार करती हूं... मैं आत्मा अपनी
कर्मेन्द्रियों को आर्डर प्रमाण चला जितनी देर जहाँ चाहे लगाकर कर्मेन्द्रिय
जीत बनती हूं...
❉ "ड्रिल
- मायाजीत बन कमजोर संस्कार खत्म करना"
➳ _ ➳
मैं
आत्मा शक्तिस्वरुप हूं... मैं आत्मा अपने स्व के असली स्वरुप को पहचान गई
हूं... स्व की भूली हुई शक्तियो,
गुणोंं
को पहचान स्मृति स्वरुप बन गई हूं... प्यारे परमपिता शिव बाबा ने मुझ आत्मा को
सत का परिचय दिया है... मैं सर्वशक्तिमान की संतान मा. सर्वशक्तिमान हूं... मैं
आत्मा अपने स्वमान की सीट पर सेट होकर माया रुपी संस्कारों को समाप्त करती
हूं... मैं आत्मा प्यारे बाबा की याद में बिजी रहती हूं... मुझ आत्मा को याद
में बिजी देख माया मौसी भाग जाती है... अब मुझ आत्मा के साथ सर्वशक्तिमान है...
मुझ आत्मा का हर संकल्प प्यारे बाबा के लिए है... मैं आत्मा बाप की याद में रह
श्रेष्ठ संकल्प करती हूं... मैं आत्मा सदैव श्रेष्ठ स्वमानों की सीट पर सेट रहती
हूं... श्रेष्ठ स्वमान से मैं आत्मा शक्तिशाली व खजानों से सम्पन्न रहती हूं...
मुझ आत्मा के कमजोर संकल्प समाप्त हो गए हैं...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- मैं खुदाई खिदमतगार आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳
मैं
स्मृति के स्विच द्वारा स्व कल्याण और सर्व का कल्याण करने वाली सिद्धि स्वरूप
आत्मा हूँ... "एक बाबा दूसरा न कोई" इस शक्तिशाली स्मृति से मैं आत्मा अपनी
स्थिति को पावरफुल बना रहीं हूँ... जैसे स्विच ऑन करते ही रोशनी हो जाती है,
इसी
प्रकार स्मृति रूपी स्विच ऑन कर मैं अज्ञान अंधकार को ज्ञान की रोशनी से
उज्ज्वल बना रही है...
➳ _ ➳
स्मृति रूपी स्विच के अटेंशन द्वारा मैं आत्मा स्व कल्याण द्वारा विश्व कल्याण
के निमित बन रही हूँ... मैं आत्मा योग अग्नि द्वारा अपने पुराने स्वभाव संस्कारों
को जला कर,
सिद्धि स्वरूप बनने का वरदान प्राप्त कर रही हूँ... मैं आत्मा सदा ज्ञान रत्नों
से खेलती और खुशियों के झूले में झूलती रहती हूँ...
➳ _ ➳
मैं
आत्मा सर्वशक्तियों की अथॉरिटी से सिद्धि स्वरूप बन हर कार्य में सफलता प्राप्त
कर रहीं हूँ... मैं आत्मा गहन शान्ति का अनुभव कर रहीं हूँ... आत्माओं की बहुत
समय से इच्छा वा आशा है–
निर्वाण वा मुक्तिधाम में जाने की... वह आत्माएं अनेक प्रकार की साधनाएं
करते-करते थक चुकी हैं...
➳ _ ➳
अभी
हर एक आत्मा सिद्धि अर्थात सद्गति चाहती है न कि साधना... तो मैं सिद्धि स्वरुप
आत्मा ऐसी तड़फती हुई,
थकी
हुई,
प्यासी आत्माओं को अपनी इस साइलेंस की शक्ति के द्वारा वा अपनी सर्व शक्तियों
से एक सेकेण्ड में उन निर्बल आत्माओं को सिद्धि देने में समर्थ खुदाई खिदमतदार
आत्मा होने का सर्वश्रेष्ठ अनुभव कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢
थकी वा
तड़पती हुई आत्माओं को सिद्धि देने वाले खुदाई खिदमतगार होते हैं... क्यों और
कैसे?
❉
थकी वा तड़पती हुई आत्माओं को सिद्धि देने वाले खुदाई खिदमदगार होते हैं क्योंकि
सर्व आत्माओं की बहुत समय से ये ही इच्छा व आशायें रहती हैं कि हमको निर्वाण की
प्राप्ति हो जाये और हम आत्मायें अपने घर मुक्तिधाम में चली जायें।
❉
इस के लिये ही वे आत्मायें अपने अनेक जन्मों से अनेक प्रकार की साधनायें करती
आई हैं और वे साधनायें करते - करते थक चुकी हैं। अब वे थक कर हताश हो चुकी हैं
पर उनको अपनी की हुई साधनाओं से सिद्धि की प्राप्ति नहीं हुई है। वे चाहती हैं
कि कोई उनको एक सेकण्ड में सिद्धि प्रदान कर दे।
❉
अभी हर आत्मा साधना नहीं सिद्धि को ही प्राप्त करना चाहती है। अब वे किसी भी
कीमत पर साधना नहीं करना चाहती हैं। अब तो उनकी केवल सिद्धि ही सिद्धि की
प्राप्ति की कामना है। सिद्धि अर्थात सदगति। उनकी अब यही चाहना है कि वे अब
सदगति को प्राप्त कर लें।
❉
इसलिये ऐसी तड़फती हुई,
थकी
हुई और प्यासी आत्माओं की प्यास बुझाने के लिये बाबा ने हम सभी श्रेष्ठ आत्माओं
को निमित्त बनाया है। हम आत्मायें उन थकी हुई तड़फती और प्यासी आत्माओं को अपनी
मनसा शक्ति के द्वारा शक्ति प्रदान करते हैं तथा उन आत्माओं के विकर्मो का
विनाश हो जाये इसके लिए मनसा सकाश प्रदान करते हैं।
❉
जिस से उनका थोडा दुःख तो कम हो सकें। साथ साथ अपनी साइलेन्स की शक्ति वा सर्व
शक्तियों से एक सेकण्ड में उन तड़पती हुई थकी हुई वा प्यासी आत्माओं को सिद्धि
प्रदान करने की सेवा भी करती हैं। इस प्रकार से अशान्त दुःखी आत्मायें मुक्ति
धाम अर्थात सदगति को प्राप्त करती हैं। तभी तो हम खुदाई खिदमदगार कहलाते हैं।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢
कमजोर
संस्कार ही माया के आने का चोर गेट है,
अब यह गेट
बन्द करो... क्यों और कैसे ?
❉
जैसे स्थूल धन को अगर व्यर्थ में खर्च करते रहे तो लगातार खर्च करते रहने से जमा
किया हुआ धन भी एक दिन समाप्त हो जाता है और आवश्यकता पड़ने पर धोखा खा लेते हैं
। इसी प्रकार कमजोर संस्कार श्रेष्ठ संकल्पो का खाता जमा नही होने देते ।
श्रेष्ठ संकल्पों का खाता जमा ना होने के कारण कमजोर संकल्प मन और बुद्धि को
खाली कर देते हैं जिससे माया को अटैक करने का मौका मिल जाता है और माया कमजोर
संकल्पों रूपी चोर गेट से अंदर आ जाती है और अपने अधीन कर लेती है । इस अधीनता
से मुक्त होने का उपाय है संस्कारों की कमजोरी को समाप्त करना ।
❉
संस्कारों की कमजोरी बुद्धि को कमजोर करती है और जिनकी बुद्धि कमजोर होती है वे
हमेशा कन्फ्यूज़ रहते हैं कभी भी ठीक निर्णय नही ले पाते हैं । उन्हें सदैव यही
अनुभव होता है कि जैसे उनके जीवन से ख़ुशी गायब हो गई है । ऐसी मनोस्थिति वाले
व्यक्ति जल्दी ही माया के शिकंजे में फंस जाते हैं । माया कमजोर संस्कार के चोर
गेट से कब अंदर आती है उन्हें पता ही नही चलता । छोटी छोटी परिस्थितियों में भी
वे स्वयं को शक्तिहीन अनुभव करने लगते हैं और दिलशिकस्त हो जाते हैं । इन सबसे
से बचने का एक ही उपाय है,
कमजोर संस्कारों के गेट को बन्द करना ।
❉
जहां एकाग्रता होती है वहां संकल्प,
बोल
और कर्म का व्यर्थपन समाप्त हो जाता है और समर्थपन आ जाता है । समर्थ होने के
कारण सब कमजोरियां समाप्त हो जाती हैं और सबमे सिद्धि आ जाती है । क्योंकि
एकाग्रता के आधार पर जो चीज जैसी है वैसी स्पष्ट नजर आती है । एकाग्र स्थिति
में स्थित रहने वाला स्वयं को सदा अपने वास्तविक स्वरूप में अनुभव करता है ।
अपने वास्तविक स्वरूप में रहने से वास्तविक संस्कार धारण होने लगते हैं और
कमजोर संस्कार समाप्त होने लगते हैं जिससे कमजोर संस्कारो के रूप में माया के
आने का चोर गेट बन्द हो जाता है ।
❉
जैसे साइंस वाले शस्त्र से शस्त्र को खत्म कर देते हैं,
एक
विमान से दूसरे विमान को गिरा देते हैं । इसी प्रकार हम भी अपने शुद्ध
वायब्रेशन से व्यर्थ वायब्रेशन को ,
शुद्ध संकल्पों से व्यर्थ संकल्पों को और अपने अनादि तथा आदि संस्कारों से
कमजोर आसुरी संस्कारों को सहज ही समाप्त कर सकते हैं । बस इसके लिए आवश्यकता है
संकल्पों में दृढ़ता लाने की । जब किसी भी काम को दृढ़ता के साथ करने का निश्चय
कर लेते हैं तो उसमे सफलता सहज ही प्राप्त होती है । इसलिए जब दृढ़ता से कमजोर
संस्कारो को समाप्त करने का लक्ष्य रखेंगे तो माया के आने के इस चोर गेट को सदा
के लिए बन्द कर सकेंगे ।
❉
कमजोर संस्कारों रूपी चोर गेट से माया तभी प्रवेश करती है जब वृति कमजोर होती
है । अपनी पॉवरफुल वृति द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन करने का विशाल कार्य स्वयं
भगवान ने हम बच्चों को सौंपा है,
जब
इस महान लक्ष्य को भूलते हैं और अपने श्रेष्ठ स्वमान की सीट से नीचे उतरते हैं
तो तमोगुणी आसुरी वायुमण्डल,
कमजोर संस्कार हमारे ऊपर भारी पड़ने लगते हैं और अपने प्रभाव में ले लेते हैं ।
इनके प्रभाव में आ कर हम माया के दास बन जाते हैं और हलचल की स्थिति में आ जाते
हैं । इसलिए यदि सदैव रचतापन की स्थिति में स्थित रहे तो कमजोर संकल्पों के चोर
गेट को सदा के लिए बन्द कर सकेंगे ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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