━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 01 / 09 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ काम महाशत्रु पर विजय पाने का पुरुषार्थ किया ?

 

➢➢ इन आँखों से देह सहित जो कुछ दिखता है, उसे देखते हुए भी नहीं देखा ?

 

➢➢ हर कदम पर बाप से राय लेकर चले ?

────────────────────────

 

∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ वाचा द्वारा ज्ञान रत्नों का दान किया ?

 

➢➢ स्वराज्य के मालिक बन सम्पूरण वर्से के अधिकारी बनने का पुरुषार्थ किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢ आज बाकी दिनों के मुकाबले एक घंटा अतिरिक्त °योग + मनसा सेवा° की ?

 

   ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧

 

To Read Vishesh Purusharth In Detail, Press The Following Link:-

 

✺ HTML Format:-

➳ _ ➳  http://www.bkdrluhar-murli.com/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/01.09.16-VisheshPurusharth.htm

 

✺ PDF Format:-
➳ _ ➳  http://www.bkdrluhar
-murli.com/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/01.09.16-VisheshPurusharth.pdf

────────────────────────

 

∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - तत्वों सहित सभी मनुष्य मात्र को बदलने वाली यूनिवर्सिटी केवल एक ही है यहाँ से ही सबकी सदगति होती है"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... आप बच्चे जो खुद को भूले तो देह के भान में विकारो में फंस चले... और अपनी ही गिरती अवस्था से सारे तत्वों को भी तमोप्रधान कर चले... अबकी सबकी सदगति करने विश्वपिता चला आया है... प्यारे बाबा की यादो से मनुष्य देवता बन सज जाते है और तत्व सतोप्रधान होकर मुस्कराते है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा मीठे बाबा से मीठा ज्ञान पाकर स्वयं को निखार रही हूँ... ईश्वरीय ज्ञान से जीवन को अमूल्य बना रही हूँ... गुणो और शक्तियो से भरपूर होकर देवताई रूप पा रही हूँ...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... जनमो की दुखदायी यादो से विकारो से मात्र ईश्वरीय प्रेरणा से तो निकल ही न सको... ईश्वर पिता आकर पास बेठ सब सिखाये समझाये तब बच्चे कर पाये... तो सबकी सदगति करने वाला यह एकमात्र ईश्वरीय विश्व विधालय ही है...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आप मीठे बाबा से ज्ञान रत्नों को पाकर सुखो से लबालब हो रही हूँ...सतयुगी प्रकर्ति की मालिक बन रही हूँ... जीवन मुक्ति को पाने की अधिकारी हो रही हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... मनुष्य मनुष्य की सदगति कर ही न सके.... तत्वों को और पूरी सृष्टि को परिवर्तन करने का कार्य महान पिता ही कर सकता है... यह जादूगरी सिर्फ विश्व पिता के हाथो में ही है... सुंदर खुशनुमा प्रकर्ति और देवताओ की दुनिया सिवाय मीठे बाबा के कोई ला न सके...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी भाग्य शाली हूँ कि ईश्वर टीचर बन पढ़ा रहा है... कभी सोचा भी न था कि इतना मीठा भाग्य मेरा होगा... और मेरी बुद्धि ईशरीय बुद्धि बन कर यूँ जीवन आनन्द में महकाएगी...

────────────────────────

 

∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - राजाई पद के लिए पावन बनना"

 

➳ _ ➳  अभी तक देह के बंधनों में माया की जंजीरों में फंसी हुई थी... परचिंतन परदर्शन में ही व्यस्त रहती थी... अपनी कर्मेन्द्रियों के अधीन थी... परमपिता परमात्मा से अपने बच्चों का दुख नही देखा गया... अपने बच्चों को इस दुखी व पतित कलयुगी दुनिया से निकालने के लिए आना पड़ा... मुझे अपना बच्चा बनाया... कलयुगी से संगमयुगी सच्चा ब्राह्मण बनाया... मुझ आत्मा को अज्ञानता से निकाल ज्ञान की रोशनी दी... मैं अपने सत्य स्वरुप को पहचान गई... अपने स्वधर्म को पहचान गई... मैं आत्मा अपने अनादि आदि स्वरुप को जान गई... मैं पावन से पतित कैसे बनी इसका मुझ आत्मा को ज्ञान मिल गया... मुझ आत्मा को इस झूठी दुनिया को छोड़ सच की दुनिया में जाना है... मुझ आत्मा को ज्ञान मिल गया है... नयी दुनिया सतोप्रधान है... वहां हर चीज सतोप्रधान है... एक ही धर्म एक ही राज्य है... सतयुगी दुनिया में कोई आत्मा पावन बने बगैर जा नही सकता... मैं आत्मा नयी सतयुगी दुनिया में जाने के लिए अपने में दैवीय संस्कार भरती हूं... मेरे शिव पिता ज्ञान का सागर, सुख का सागर हैं... मुझे अपने जैसा प्यारा मीठा बनाते है... नयी सतयुगी दुनिया में अथाह सुख शांति है... सब की देही अभिमानी स्थिति होती हैं... बाबा मेरे प्यारे बाबा... मुझे अपने बाबा के साथ घर वापिस जाना है... इसलिए बाबा हम प्रतिज्ञा करते है बाबा हम जरुर पवित्र बनेंगे... मैं आत्मा अपने पिता की श्रीमत पर चल मनसा वाचा कर्मणा पवित्रता धारण करती हूं... ब्राह्मण जीवन का आधार ही पवित्रता है... मैं आत्मा राजाई पद पाने के लिए पवित्रता धारण करती हूं... पवित्रता से ही मैं आत्मा पीस और प्रासपर्टी प्राप्त करती हूं... मैं आत्मा कर्मेन्द्रिय जीत बन अपने विकारों पर जीत पा जगतजीत बनने का पुरुषार्थ करती हूं...

 

❉   "ड्रिल - बेहद का वैरागी बनना"

 

➳ _ ➳  अभी तक देहधारियों से देह के रिश्ते नाते निभाते मोह माया के जाल में फंसी रही... देहधारियों से दुःख ही पाती रही... इस शरीर को संवारने में लगी लगी... देहभान में रह अपनी शक्तियों को भूल गई... माया के वश होकर कमजोर हो चली... सुख पाने के लिए हद की चीजों से वैराग्य करने लगी... स्थूल चीजों का त्याग करती रही... इस संगमयुग पर मुझ आत्मा को बेहद का बाप मिला... मुझ आत्मा को सच्चा ज्ञान दिया... मुझे अपने असली स्वरुप का परिचय दिया और मेरा स्वधर्म क्या है ये ज्ञान दिया... मुझ आत्मा को गुणों और शक्तियों की स्मृति दिलाई... मैं देह नही आत्मा हूं... मैं आत्मा आत्मिक दृष्टि वृत्ति रखती हूं... मैं अब शरीर को न देख आत्मा देखती हूं... मैं आत्मा सर्व के प्रति आत्मिक भाव रखती हूं... प्यारे शिव बाबा ने मुझ आत्मा को इस पुरानी दुनिया से बेहद का वैरागी बनाने का रास्ता बताया है... ये पुरानी दुनिया पुराना शरीर सब वैभव विनाशी है... इस भंभोर को आग लगनी ही है... इसलिए मैं आत्मा इस विनाशी दुनिया को बुद्धि से भुला चुकी हूं... मैं आत्मा इस पुरानी दुनिया को देखते हुए भी नही देखती हूं... मैं आत्मा अपनी दृष्टि पर अटेंशन रखती हूं... ये आंखें ही चलायमान होती हैं... व धोखा देती हैं... इसलिए सर्व के प्रति आत्मिक दृष्टि रखती हूं... आत्मा आत्मा भाई की दृष्टि रखती हूं... मैं आत्मा सर्व के प्रति साक्षीभाव रखती हूं... मैं आत्मा एक बाप की याद में रह अपने विकारों को छोड़ बेहद का वैरागी बनती जाती हूं... मैं आत्मा हर कार्य बाप से राय लेकर करती हूं... मैं आत्मा कदम कदम पर बाप की श्रीमत पर चलती हूं... मैं आत्मा सदा बाबा की छत्रछाया में रहती हूं... मैं आत्मा हर कर्म श्रीमत प्रमाण बाबा की याद में रह करती हूं...

 

❉   "ड्रिल - स्वराज्याधिकारी बन वर्से के अधिकारी बनना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा भृकुटि के बीच चमकता सितारा हूं... मैं आत्मा अजर, अमर, अविनाशी हूं... मैं आत्मा इस शरीर की मालिक हूं... इस शरीर को चलाने वाली रथी हूं... मन बुद्धि संस्कार मुझ आत्मा की सूक्ष्म शक्तियां हैं... सर्व कर्मेन्द्रियां की अधिकारी हूं... सभी कर्मेन्द्रियां मेरे आर्डर प्रमाण चलती हूं... मैं इन्हें जब चाहूं... जैसे चाहूं... जितनी देर जहां चाहूं टिका सकती हूं... मैं आत्मा स्वराज्य अधिकारी हूं... मैं आत्मा हर संकल्प, बोल और कर्म बाप की याद में करती हूं...  बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान और योग के पंख दिए हैं... मैं अपने अनादि स्वरुप में स्वयं को सहज ही स्थित कर विकट से विकट परिस्थिति को सहज ही पार कर लेती हूं... बाबा की याद में रहने से मुझ आत्मा के मन बुद्धि और पुराने विकारी संस्कारों का शुद्धिकरण होता जा रहा है... मैं आत्मा परमपिता परमात्मा का बच्चा बनते ही वर्से की अधिकारी बनती हूं... मैं आत्मा बालक सो मालिक स्थिति का अनुभव करती हूं... मैं श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूं... हर कदम पर बाप की याद में रह पदमों की कमाई जमा करती हूं... मैं कल्प कल्प की अधिकारी आत्मा हूं इस स्मृति को सदा समर्थ बनाते आगे बढ़ती हूं... मैं आत्मा बाप और वर्से को याद रख सर्व शक्तियों और खजानों से सम्पन्न अनुभव करती हूं... ज्ञान रत्नों से स्वयं को मालामाल करती हूं... मैं आत्मा बाबा से दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूं मेरे मीठे बाबा... मैं आत्मा स्वराज्याधिकारी बन सम्पूर्ण वर्सा प्राप्त करने का पुरुषार्थ करुंगी...

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं मास्टर नॉलेजफुल आत्मा हूँ ।

 

➳ _ ➳  मैं पदमापदम भाग्यशाली आत्मा हूँ... मुझ आत्मा को स्वयं परमपिता ज्ञानसागर परमात्मा ने इस संगमयुग पर आकर अपना बनाकर ज्ञान रुपी तीसरा नेत्र दिया है... मुझ आत्मा को सच्चा-सच्चा ज्ञान सुनाकर ज्ञान स्वरुप बना दिया... अब मुझ आत्मा में ज्ञान का मनन चिंतन सदा चलता ही रहता है...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा सागर की गहराई में जाकर मोती चुनकर विचार सागर मंथन में बिजी रहती हूँ... मैं आत्मा अपने सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को बाबा का परिचय वाचा द्वारा देती हूँ... मैं आत्मा प्यारे बाबा द्वारा दिए गए अखुट अनमोल ज्ञान धन से भरपूर होकर ज्ञान रत्नों का दान कर प्यारे बाबा से मास्टर नॉलेजफुल होने का वरदान प्राप्त करने वाली भाग्यशाली आत्मा हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा ज्ञान और योगबल को जमा कर विस्तार को सार में समाकर अन्य आत्माओं की प्यास भुजाने में निमित्त बन रहीं हूँ... मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मुझ आत्मा के प्रभावशाली बोल द्वारा कई दुखी और निराश आत्माएं सुख की अनुभूति कर रहीं हैं...

 

➳ _ ➳  मुझ आत्मा का हर शब्द वैल्युएबल बन गया है... प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान रत्नों के ख़ज़ानों से भरपूर कर सदाकाल के लिए सन्तुष्ट और हर्षित बना दिया है... मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि वाणी का दान करने से मेरी वाणी भी बहुगुणी बन गयी है ।

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  वाचा द्वारा ज्ञान रत्नों का दान करने वाले मास्टर नालेजफुल होते हैं...  क्यों और कैसे?

 

❉   वाचा द्वारा ज्ञान रत्नों का दान करने वाले मास्टर नालेजफुल होते हैं क्योंकि जो वाचा द्वारा ज्ञान रत्नों का दान करते हैं उन्हें मास्टर नालेजफुल का वरदान प्राप्त हो जाता है। उनके मुख से निकले हुए ज्ञान रत्न शिवबाबा के द्वारा प्रदान किये हुए अविनाशी ज्ञान रत्न होते हैं।

 

❉   इसलिए ही उनके द्वारा उच्चारे हुए  एक एक शब्द की बहुत वैल्यू होती है। उनका एक एक वचन सुनने के लिये अनेक आत्मायें प्यासी होती हैं। उनके मुख से शिव प्रदत्त महा वाक्यों का उच्चारण होता है। उनको यह महा वाक्य, शिवबाबा ने वरदान के रूप में दिये हुए हैं।

 

❉   अतः उन वरदानों को अपने जीवन में धारण कर के उन्होंने उन वाक्यों को सफल बनाया है। उनके एक एक शब्द में सेन्स (सार) भरा होता है। उन्हें विशेष ख़ुशी की प्राप्तियाँ भू होती रहती हैं। उनके पास ज्ञान का भरपूर खज़ाना रहता है। इसलिये!  वे सदा संतुष्ट और हर्षित रहते हैं।

 

❉   उनके मुख कमल से निकला  एक एक शव्द महावाक्य बन जाता है। उनको वाक सिद्धि की प्राप्ति हो जाती है तथा उन के शब्दों में परमात्म शक्तियों का वास हो जाता है। किसी भी आत्मा के प्रति उनके द्वारा कहे गए शब्द समर्थ वा सार्थक होते जाते हैं।

 

❉   उनके बोल सर्व दिलशिकस्त आत्माओं के लिये संजीवनी बूटी के समान होते हैं। दुःखी व अशान्त  आत्माओं के लिये उनके मुख से निकले बोल वरदान सिद्ध होते हैं। उनके बोल स्वतः ही प्रभावी होते जाते हैं। कहते हैं वाणी का दान करने से वाणी में बहुत गुण आ जाते हैं।

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  स्वराज्य के मालिक बनो तो सम्पूर्ण वर्से का अधिकार मिल जायेगा... क्यों और कैसे ?

 

❉   जैसे राजा की विशेषता होती है रूलिंग पॉवर और कंट्रोलिंग पॉवर । ये दोनों पॉवर ही उसे उचित तरीके से राज्य चलाने के योग्य बनाती हैं । इसी प्रकार स्वराज्य अधिकारी का अर्थ है स्वयं पर राज्य करना अर्थात रूलिंग और कंट्रोलिंग पॉवर द्वारा अपनी कर्मेन्द्रियों के राजा बन उन्हें अपनी इच्छानुसार उचित तरीके से कार्य में लगाना । संगमयुग पर जो स्वराज्य के मालिक बनते हैं वही विश्व राज्यअधिकारी बन सम्पूर्ण वर्से का अधिकार प्राप्त करते हैं ।

 

❉   स्व के संस्कार ही स्वराज्य को खण्डित करते हैं। व्यर्थ सोचना, व्यर्थ समय गँवाना और व्यर्थ बोल-चाल में आना ये सभी संस्कार स्वराज्य की सीट से नीचे ले आते हैं । इसके साथ - साथ अलबेलेपन के संस्कार भी रॉयल रूप में स्वराज्य को खण्डित करते हैं । इसलिए जब तक इन संस्कारों का परिवर्तन नही करते तब तक स्वराज्य के मालिक नही बन सकते । इन संस्कारों को परिवर्तित कर जब दैवी संस्कार धारण करेंगे तभी स्वराज्य के मालिक बन सम्पूर्ण वर्से के अधिकारी बन सकेंगे ।

 

❉   माया का वार स्वराज्य की सीट से नीचे लाता है । इसलिए माया के वार से बचने का सहज उपाय है बाप के साथ का अनुभव सदा इमर्ज रहे । ऐसे नहीं कि बाप तो है ही मेरा, साथ है ही है। साथ का प्रैक्टिकल अनुभव इमर्ज हो। तो माया हार खा लेगी। क्योकि बाप है ही आल माईटी अथॉरिटी और आल माईटी अथॉरिटी के साथ कम्बाइंड रहना अर्थात सर्व शक्तियों की पॉवर इमर्ज रूप में सदा अनुभव करना । यही अनुभव स्वराज्य का मालिक बना कर सम्पूर्ण वर्से का अधिकारी बना देगा ।

 

❉   जैसे हाथ को ऊपर उठाना चाहें तो उठा लेते हैं, इधर - उधर घुमाना चाहे तो घुमा लेते हैं ऐसे मन पर भी कंट्रोलिंग पॉवर हो । ऑर्डर करें - स्टॉप तो स्टॉप हो जाए। सेवा का सोचे तो सेवा में लग जाए । परमधाम का सोचे तो परमधाम में चला जाये। सूक्ष्मवतन का सोचे तो सेकण्ड में सूक्ष्मवतन पहुँच जाए अर्थात जो सोचे वह ऑर्डर में हो । जब ऐसे संकल्पो की शक्ति पर ब्रेक लगाने की पॉवर होगी तो छोटे छोटे संस्कारों के परिवर्तन में समय नही गंवाना पड़ेगा । बल्कि सेकण्ड में स्वराज्य के मालिक बन वर्से का अधिकार प्राप्त कर लेंगे ।

 

❉   जैसे एक नगर का राजा अपने राज्य कारोबार को चलाने के लिए समय प्रति समय अपने राज्य दरबारियों की राज्य दरबार लगाता है और उन्हें आवश्यक निर्देश भी देता है । इसी प्रकार जो कर्मेन्द्रियों के राजा बन रोज कर्मेन्द्रियों की राज्यदरबार लगाते हैं और चेक करते हैं कि सभी कर्मेन्द्रियाँ रूपी मंत्री सही कार्य कर रहे हैं या नही वही सच्चे राजऋषि बन स्वयं के मालिक बनते हैं और स्वराज्य के मालिक बन भविष्य 21 जन्मों के वर्से का अधिकार प्राप्त कर लेते हैं ।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━