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❍ 19 / 06 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ सेवा करते हुए √अन्तर्मुखता√ का अनुभव किया ?
➢➢ सदा √कंबाइंड स्वरुप√ का अनुभव किया ?
➢➢ सुबह से रात तक का अपना फिक्स प्रोग्राम बना अपनी √दिनचर्या की सेटिंग√ की ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ √मुक्त और जीवनमुक्त√ अवस्था का अनुभव किया ?
➢➢ बाह्यमुखता से दूर रह √अन्तर्मुखी√ बनकर रहे ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?
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➳ _ ➳ http://bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/19.06.16-VisheshPurusharth.htm
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं आत्म - अभिमानी आत्मा हूँ ।
✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-
➳ _ ➳ धीरे - धीरे अपना ध्यान जागरूकता के साथ शरीर के विभिन्न अंगों से निकालें... पाँव से शुरू करें और ऊपर की ओर जाते हुए मस्तक तक सारी मसल्स को रिलैक्स कर दें... आप ऐसा महसूस करेंगे जैसाकि आपका सारा शरीर आराम की अवस्था में है...
➳ _ ➳ और अब अपना सारा ध्यान अपनी आँखों के पीछे मस्तक के मध्य एकाग्र करें... आपने जो भीतर स्पेस तैयार किया है उसमें प्रवेश करें... और एक शक्तिशाली विचार स्वयं को दें... मैं एक ज्योतिबिंदु आत्मा हूँ... मैं एक निराकार आत्मा हूँ...
➳ _ ➳ मेरे शरीर के विभिन्न अंग मेरी अटैचमेंटस् हैं... आँखों के द्वारा मैं आत्मा देखती हूँ... मुख के द्वारा मैं आत्मा बोलती हूँ... कानों के द्वारा मैं आत्मा सुनती हूँ... और मस्तिक के द्वारा मैं आत्मा सोचती हूँ... हाथ - पाँव के द्वारा मैं आत्मा कार्य करती हूँ... चलती हूँ... मैं आत्मा मन और बुद्धि की भी मालिक हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा इस आत्म - अभिमानी स्तिथि में स्तिथ रहकर सहज ही निर्विकारी बन रहीं हूँ... मैं इस स्तिथि द्वारा मनसा में भी निर्विकारीपन की स्टेज का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा ऐसी निर्विकारी आत्मा बनने का अनुभव कर रहीं हूँ जिन्हें किसी भी प्रकार की इम्पुरिटी वा 5 तत्वों की आकर्षण आकर्षित नहीं कर सकते... यही निर्विकारी स्तिथि फरिश्ता स्वरुप की स्तिथि है... मैं आत्मा आज इस स्तिथि का निरन्तर अनुभव कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "अंतर्मुखी ही सदा बन्धनमुक्त और योगयुक्त"
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे लाडलो अंदर की भरपुरता ही सच्चा सौंदर्य है... सदा प्रसन्नचित और एक बाप में समाये हुए होना ही सच्ची खूबसूरती है... यही योगयुक्त अवस्था है और बापदादा के दिल तख्त का राज है... तो अंतर्मुखी अवस्था को बनाकर बाप दादा के दिल में मणि बन बस जाओ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे भीतर ही भीतर बाप के साथ सदा मगन हो तो वो ख़ुशी का नूर बन चेहरे और चलन से दमकेगा... सारे बन्धनों से मुक्त होकर पिता के दिल पर राज करायेगा...और अपनी अवस्था को आनन्द के सागर में ले जायेगा... इसलिए बह्यमुखता को छोड़ भीतर गहरे उतर चलो...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चे सदा अंतर्मुखी बन सुख के सागर में गहरे समाये रहो... सदा हर्षितपन की तरंगे फेलाते हुए बाप दादा के दिल में मुस्कराते रहो... व्यक्त भाव को छोड़ अव्यक्त की गहराइयो में डुबो... सदा योगयुक्त होकर सुख की रश्मियों से सबको रोशन करो...
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे सच्ची दीवाली को मनाओ... पुराने सारे चौपड़े साफ़ कर नए खुशियो के सुख के आनन्द के खाते बनाओ... गुलो के गुलदस्ते में गुलाब बन महको... अपनी रूहानियत से अलौकिकता से सबको रूहानी बना सुख शांति सुकून से भरा बापदादा का अथाह प्यार पाओ...
❉ मेरा बाबा कहे - सदा अंतर्मुखी बन योगयुक्त बन दिल तख्त पर मुस्कराते रहो... समय साँस संकल्पों का खजाना बचाकर अव्यक्त स्तिथि के नशे में डूबे रहो... महावीर हो अपनी दिनचर्या को महान बनाओ... हजार भुजाओ के साथी पिता को हर पल साथ ले उड़ते ही रहो... अपनी सच्ची खुशियो को पाकर खिलखिलाते रहो...
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ सेवा करते हुए अन्तर्मुखता का अनुभव करना है ।
❉ सेवा करते हुए बस ये स्मृति में रखना है कि बस बाबा की सेवा है व मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य है। अपने को ट्रस्टी समझ देहभान से परे रह मन ही मन बाबा को याद करते उमंग उत्साह से सेवा करते हुए अंतर्मुखी रहना है ।
❉ ज्ञान सुनाते हुए यह मैं आत्मा हूँ, देह नही । यह मुख तो बोलने का इन्सट्रूमेंट है मैं आत्मा परमपिता के आदेश अनुसार सुना रही हूँ । जितनी देर कर्म करना उतनी देर अपनी आत्मिक स्थिति में रह बुद्धियोग परमात्मा में टिकाये रखना है ।
❉ कोई भी कर्म करते बुद्धि में यही स्मृति रहे कि मैं आत्मा हूँ देह नही हाथों द्वारा जो सेवा कर रही हूँ यह निमित मात्र हैं । बाबा ने बस सेवा के पार्ट के निमित्त ही भेजा है व एक के अंत मे लीन होकर सेवा करते अंतर्मुखता का अनुभव करना है ।
❉ ज्ञान और योग के अभ्यास से सेवा करते हुए यह चैक करते रहना है कि कहीं व्यर्थ संकल्प तो नही चल रहे हैं व श्री मत का उल्लंघन नही करना है । कछुआ की भांति अपनी हर कर्मेन्द्रिय को समेट कर अपने आत्मिक स्वरूप में रह सेवा में लीन रह अंतर्मुखता का अनुभव करना है ।
❉ सेवा करते सदा स्व भी सुख के सागर समाए रहना है व ओरों को भी सुख की वायब्रेशन देकर सुख की अनुभूति कराते हुए अन्तर्मुखी बन कर रहना है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ निर्विकारी वा फरिश्ते स्वरुप की स्थिति का अनुभव करने वाले आत्म-अभिमानी होते हैं.... क्यों और कैसे ?
❉ जो एक जन्म देह व देह के सम्बन्धों से न्यारे व प्यारे एक दम लाइट स्थिति मे रहते है व जिनको पवित्र रह ताउसी तख्त लेना है वे निर्विकारी व फरिश्ते स्वरूप की स्थिति का अनुभव करने वाले आत्म अभिमानी होते है
❉ जो आत्म-अभिमानी होते हैं वह सहज ही निर्विकारी होते हैं । उन्हें कोई भी बाहरी आकर्षण वा पांच तत्वों का आकर्षण आकर्षित नही करता व हमेशा हल्के रहते हैं व साकार में रहते निराकारी आत्म-अभिमानी स्थिति में रहते हैं ।
❉ मनसा वाचा कर्मणा व संकल्प में भी सर्व के प्रति शुभ भावना शुभ कामना रखते हैं । सम्पूर्ण रीति श्रीमत की पालना करते एकरस व अचल अडोल स्थिति रखते हैं वो निर्विकारी और फरिश्ते स्वरूप स्थिति अनुभव कर अात्म-अभिमानी होते है ।
❉ जो पाँच विकारो पर विजय पाकर सर्व रिश्तों से उपराम रहते है । सर्व सम्बन्ध व रिश्ते एक बाप से निभाते है वे फरिश्ते स्वरूप की स्थिति का अनुभव करने वाले आत्म-अभिमानी होते है
❉ फरिश्ता जीवन यानि इस पुरानी देह में रहते देह के भान से न्यारे । फरिश्ता हमेशा हल्के होने के कारण ऊंची स्थिति में रहते है व निर्बधन होते हैं । जिनका देह से कोई रिश्ता नही बस निमित्त कार्य के लिए आधार लिया फिर उपराम । जो निर्विकारी व फरिश्ता स्वरुप की स्थिति में रहते हैं वो आत्म-अभिमानी होते हैं ।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ जीवन में अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करने के लिए विशेष अमृतवेले एकांतप्रिय बनो... क्यों और कैसे ?
❉ संगम युग का बड़े ते बड़ा खजाना है ही अतींद्रिय सुख का अनुभव जो और किसी भी युग में प्राप्त नहीं हो सकता । जैसे जो सबसे बढ़िया चीज होती है वह अच्छी लगती है । उस को कभी भुलाया नहीं जाता । इसी प्रकार संगमयुग पर अतीन्द्रिय सुख का अनुभव भी सबसे बड़ी सौगात है जिसे प्राप्त करने का मुख्य आधार है अमृतवेले एकांतप्रिय बन एक की लग्न में मगन हो जाना । जो अमृतवेले एकांतवासी बन इस अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर लेते है वे अल्पकाल के इन्द्रियों के आकर्षण से स्वत: ही छूट जाते हैं ।
❉ रोज अमृतवेले सवेरे सवेरे बापदादा स्वमान की स्मृति दिलाते हैं, स्वमान में स्थित कराते हैं । हमारे स्वमान की लिस्ट तो इतनी बड़ी है जो बड़े से बड़े आदमी की भी नही हो सकती । इतने टाइटल्स तो किसी नामिग्रामी आत्मा के, चाहे कोई राजनेता हो, चाहे अभिनेता हो, चाहे कोई धर्मात्मा हो उनके भी नही होंगे, जो टाइटल्स रोज अमृतवेले बापदादा हम बच्चों को वरदान के रूप में देते हैं । इसलिए जो रोज सवेरे सवेरे उठ अमृतवेले एकांतप्रिय बन बापदादा से स्वमान ले उसकी स्मृति में टिक जाते हैं वे दिन भर अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते रहते हैं ।
❉ बापदादा द्वारा सभी बच्चों को नम्बरवन श्रीमत मिली हुई है कि अपने को आत्मा समझो और आत्मा समझकर बाप को याद करो । स्वयं को आत्मा ना समझने के कारण बाप की याद टिकती नही । जैसे कोई दो चीजों को जब जोड़ना होता है तो पहले समान बनाते हैं । ऐसे ही जब आत्मा समझकर बाप को याद करेंगे तभी याद सहज होगी । क्योंकि समान हो गये ना । यही पहली श्रीमत ही मुख्य फाउन्डेशन है और इस फाउन्डेशन को मजबूत करने का आधार है रोज अमृतवेले एकांतप्रिय बन बाप को याद करना और अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति का अनुभव करना ।
❉ जो सवेरे सवेरे विशेष अमृतवेले उठ एकांतप्रिय बन बाप से मिलन मनाते हैं । केवल एक बाप के लव में लीन हो जाते हैं । जिनकी बुद्धि की लाइन एक दम क्लीअर होती है उन्हें बापदादा द्वारा विशेष टचिंग प्राप्त होती है । अमृतवेले उठ बाप से जब वे रूह - रिहान करते हैं तो उन्हें सब परिस्थितियों का हल सपष्ट दिखाई देता है । हर बात का रेस्पॉन्स उन्हें रूह रिहान में मिल जाता है । इसलिए वे सारे बोझ बाप को दे कर सदा हल्के रहते हैं और अतीन्द्रिय सुख के झूले में सदा झूलते रहते हैं ।
❉ विशेष अमृतवेले एकांतप्रिय बन जो देह भान की स्मृति को भूल अपने वास्तविक आत्मिक स्वरूप अर्थात अशरीरी स्थिति में स्थित हो कर बाप को याद करते हैं वे हर कदम पर परमात्म मिलन, परमात्म प्यार और परमात्म मदद का अनुभव करते रहते हैं । यह परमात्म प्यार, परमात्म अनुभूति व मिलन इतना अलौकिक और इतना प्यारा है कि एक बार अनुभव कर लेने के बाद फिर इसे भुलाया नही जा सकता । क्योकि इस मिलन का आनन्द हर कर्म करते भी अतींद्रिय सुखमय स्थिति का अनुभव करवाता रहता है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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