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❍ 14 / 11 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *ऐसा कोई काम तो नहीं किया जो सजाएं खानी पड़ें ?*
➢➢ *माया के तूफानों की परबाह न कर जितना समय मिले बाप को याद किया ?*
➢➢ *सच्चे बाप से सच्चे रहे ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *साक्षिपन की सीट द्वारा परेशानी शब्द को समाप्त किया ?*
➢➢ *अपनी सर्व कर्मेन्द्रियों को आर्डर प्रमाण चला स्वराज्य अधिकारी बनकर रहे ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *संगम युग का महत्व इमर्ज रूप में स्मृति में रहा ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - दुनिया में भले और किसी का डर नही रखो लेकिन इस बाप का डर जरूर रखो, डर रखना यानि पाप कर्मो से बचे रहना"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... इस विकारो के दलदल से मीठे बाबा ने जो हाथ थाम बाहर निकाला है... तो फिर से उस ओर रुख न करो... ईश्वरीय पुत्र बनकर अब फिर से कोई पाप कर्म न करो... सत्य पिता सत्य स्वरूप और सत्य ज्ञान को पाकर फिर से उन दुखो की अँधेरी गलियो में न भटको...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा मै आत्मा आपके प्यार भरे साये में कितनी महफूज हूँ... विकारो से पापो से दूर रह... यादो में खोयी खोयी हूँ... मीठे बाबा के श्रीमत की ऊँगली पकड़कर पापो से मुक्त रह प्यारा सा जीवन जी रही हूँ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... अब हर कार्य श्रीमत के आधार पर करो... हर कर्म श्रोमत प्रमाण हो... पिता की नजरो में ऊँचा उठाने और भाग्य को बनाने वाला हो... जिन कर्मो ने बुद्धि को मलिन कर जीवन को दुखो के जंगल में उलझाया उनसे किनारा कर... मीठे बाबा संग पुण्यो की उजली राहों पर उड़ चलो....
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा श्रीमत की लकीर के अंदर रह स्वयं के हर कर्म पर नजर रख पुण्यो के खाते को निरन्तर बढ़ाती ही जा रही हूँ... अब पाप की दुनिया से मेरा कोई नाता नही... ईश्वरीय राहों पर मै आत्मा निष्पाप सा उजला जीवन जीती जा रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता भी है तो साथ ही धर्मराज भी है... जितना प्यार पिता रूप में लुटायेगा धर्मराज हो साक्षी बन मुस्करायेगा... इसलिए हर कार्य ईश्वर पिता की सम्मति से कर उसके दिल में शान से रहो... पापो से स्वयं को बचाकर पुण्यो भरा श्रेष्ठतम जीवन जीकर सदा का मुस्कराओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा हर कदम हर पल मीठे बाबा की शिक्षाओ को जीवन में उतार कर हर विकार से मुक्त साफ सच्चा मुस्कराता जीवन जी रही हूँ.... मीठा बाबा मुझे कभी धर्मराज बन आँख न दिखाये...यह ख्याल हर पल हर कर्म में रख रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा मास्टर त्रिकालदर्शी हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सृष्टि के आदि, मध्य, अंत को जानकर मास्टर त्रिकालदर्शी बन गयी हूँ... स्वयं के, प्यारे बाबा के और ड्रामा के राज को जानकर त्रिनेत्री बन गयी हूँ... जो ज्ञान साधु, संन्यासी, गुरू, महात्मा कोई भी नहीं जानते... मैं आत्मा प्यारे बाबा से ज्ञान पाकर सभी गुह्य ते गुह्य राज जान गयी हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सदा साक्षीपन की सीट पर सेट रहती हूँ... जो भी हो रहा है वो ड्रामा अनुसार बिल्कुल एक्युरेट है... इस ड्रामा में जो कुछ भी होता है उसमें कल्याण भरा हुआ है... नुकसान में भी कल्याण समाया हुआ है... मैं आत्मा अब समझदार बन क्यों, क्या के क्वेश्चन में नहीं पड़ती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सदा बाप के साथ और हाथ का अनुभव करती हूँ... सदा इसी विश्वास में रहती हूँ कि मुझ आत्मा का अकल्याण कभी नहीं हो सकता है... मैं आत्मा साक्षी होकर हर कर्म करती हूँ... मैं आत्मा बिंदी रुप में स्थित रहकर बिंदी बाप के याद से हर परिस्थिति को बिंदी लगाती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा ऐसे शान की सीट पर रहकर कभी परेशान नहीं होती हूँ... साक्षीपन की सीट मुझ आत्मा की सारी परेशानी को ख़तम कर देती है... मैं आत्मा सर्व सम्बन्धों, मायावी आकर्षणों से सदा उपराम रहती हूँ... मैं आत्मा प्रतिज्ञा करती हूँ कि न कभी परेशान होऊंगी न किसीको परेशान करूँगी... मैं आत्मा साक्षीपन की सीट द्वारा परेशानी को समाप्त करने वाली मास्टर त्रिकालदर्शी हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- स्वराज्य अधिकारी बनना*
➳ _ ➳ मैं आत्मा चैतन्य शक्ति... भृकुटि सिहांसन पर विराजमान... इस शरीर की मालिक हूँ... सर्व कर्मेन्द्रियों की भी मालिक हूँ... मैं आत्मा राजा हूँ... सर्व कर्मेन्द्रियाँ मेरी कर्मचारी है... मैं राजा अपने सभी कर्मेन्द्रियों को अपने ऑर्डर प्रमाण चलाती हूँ...
➳ _ ➳ मैं शक्तिशाली आत्मा... अपनी सभी कर्मेन्द्रियों को... ज्ञान और विवेक की लगाम द्वारा नियंत्रित करती हूँ... योग की शक्ति से मैं आत्मा... अपनी सभी कर्मेन्द्रियों पर सहज ही कण्ट्रोल और रूल करती हूँ...
➳ _ ➳ मेरी सभी कर्मेन्द्रियाँ शीतल और कमल फूल समान पवित्र हैं... मेरी सभी कर्मेन्द्रियाँ मेरे आर्डर प्रमाण चलती है... मैं स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूँ... जिस समय जो भी श्रीमत अनुसार करना है... मैं आत्मा वही कर्म अपने कर्मेन्द्रियों द्वारा करती हूँ... राईट कर्म होने से मेरा पूण्य का खाता बढ़ता जाता हैं... और कर्मेन्द्रियों द्वारा कोई भी पाप कर्म या व्यर्थ कर्म नहीं होता हैं...
➳ _ ➳ संगम पर स्वराज्यधिकारी मैं आत्मा... भविष्य में विश्वराज्य अधिकारी बनूँगी... स्वयं पर राज्य करने वाला ही विश्व पर राज्य कर सकता हैं... मैं स्वराज्य अधिकारी आत्मा हर कर्म श्रीमत अनुसार करने के कारण... सदा ही खुश और हृर्षितमुखी रहती हूँ... स्वराज्य अधिकार से मैं आत्मा निर्विघ्न बन गई हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *साक्षीपन की सीट द्वारा परेशानी शब्द को समाप्त करने वाले मास्टर त्रिकालदर्शी होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ साक्षीपन की सीट द्वारा परेशानी शब्द को समाप्त करने वाले मास्टर त्रिकालदर्शी होते हैं, क्योंकि... इस ड्रामा में जो कुछ भी होता है उस में कल्याण भरा हुआ है, क्यों क्या का क़्वेश्चन समझदार के अन्दर उठ नहीं सकता। अतः नुक्सान में भी कल्याण ही समाया हुआ है।
❉ इसलिये! हमें सदा ही साक्षीपन की सीट पर सेट रहना है क्योंकि सीट पर सेट हो कर ही हम अपनी हर परेशानी को समाप्त कर सकते हैं। इस प्रकार से परेशानी शब्द को समाप्त करने वाले, हम मास्टर त्रिकालदर्शी बन कर ही हर कर्म करते हैं और सर्व दुःखों से छूटने का भरसक प्रयत्न करते हैं।
❉ ड्रामा के हर राज को समझ कर चलने वाले ही, ड्रामा के हर सीन को भी कल्याणकारी ही समझते हैं। उनको मालूम है कि... ड्रामा के हर सीन में कल्याण छिपा हुआ है। क्योंकि बाप का हाथ और साथ सिर पर है, तो! अकल्याण हो ही नहीं सकता। अतः हमें अपनी शान की सीट पर सदा सेट रहना है।
❉ बाप के साथ को व अपने सिर और उनके हाथ का सदा ही अपने साथ अनुभव करते रहना है। हमें ऐसे शान की सीट पर सदा ही सेट रहना है। ऐसे शान की सीट ओर सेट रहेंगे तो कभी भी किसी प्रकार की परेशानी में दुःखी नहीं हो सकते।
❉ क्योंकि साक्षीपन की सीट सभी परेशानियों को समाप्त कर देती है। सारी की सारी परेशानियों को खत्म करने के लिये हमें त्रिकालदर्शी बन कर, प्रतिज्ञा करनी है कि... न तो हम किसी को परेशान करेंगे और न ही हम किसी के द्वारा किसी भी प्रकार से परेशान होंगे।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *अपनी सर्व कर्मेन्द्रियों को ऑर्डर प्रमाण चलाना ही स्वराज्य अधिकारी बनना है... क्यों और कैसे* ?
❉ स्वराज्य अधिकारी का अर्थ ही है स्वयं पर राज्य करने वाला और स्वयं पर राज्य वही कर सकता है जो सदा इस स्मृति में रहता हो कि मैं आत्मा राजा हूँ और ये कर्मेन्द्रियां मंत्री हैं जिन्हें मैं आत्मा राजा अपनी इच्छानुसार जैसे चलाना चाहूँ चला सकता हूँ । ऐसे जो स्वयं को राजा समझ कर हर कर्म करते हैं उन्हें कर्मेन्द्रिय रूपी मंत्री कभी धोखा नही दे सकते । सर्व कर्मेन्द्रियां उनके ऑर्डर प्रमाण कार्य करती हैं और वे स्वराज्य अधिकारी बन सदा अकालतख्त पर विराजमान रहते हैं ।
❉ एक सफल राजा वही होता हैं जो समय प्रति समय अपने दरबारियों की राजदरबार लगाता है और राज्य में होने वाली हर गतिविधि के बारे में जानकारी प्राप्त करता रहता है । ठीक इसी प्रकार स्वराज्य की सीट पर जो सदा सेट रहते हैं वे भी समय प्रति समय अपने सर्व कर्मेंद्रियों रूपी दरबारियों की राजदरबार लगा कर चेक करते रहते हैं कि सभी कर्मेन्द्रियां ऑर्डर प्रमाण सही रीति अपना कार्य करती है या नही । ऐसे चेकिंग करके कर्मेन्द्रियों पर नजर रखने वाले ही सदा विजयी रहते हैं ।
❉ किसी कम्पनी का बड़ा ऑफिसर या किसी देश का राजा जब तक अपने पद की ऊँची सीट पर स्थित होता है। केवल तब तक ही उसके अधीन काम करने वाले अधिकारी उसकी हर आज्ञा का पालन करते हैं । जब वह उस सीट से उतर जाता है तो कोई भी उसका ऑर्डर नही मानता । ठीक इसी प्रकार आत्मा भी जब तक स्वराज्य की सीट पर सेट है तो सर्व कर्मेन्द्रिया उसके अधीन है । इस लिए जो सदा स्वराज्य की सीट पर सेट रहते हैं वही कर्मेन्द्रियों को अपने ऑर्डर प्रमाण चलाने वाले स्वराज्यअधिकारी बन सकते हैं ।
❉ 63 जन्मों से आत्मा अपने अधिकारी पन को भूलने के कारण कर्मेन्द्रियों की गुलाम बनी हुई है । इस कारण अत्यन्त दुखी और अशांत हो गई है । लेकिन अब संगमयुग पर स्वयं परमात्मा बाप ने आकर आत्मा को उसके अधिकारी पन की स्मृति दिलाई है । इसलिए परमात्मा बाप की श्रीमत पर चल जो साधना द्वारा आत्मा की शक्तियों अर्थात मन, बुद्धि और संस्कार को अपने कंट्रोल में कर कर्मेन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर उन्हें अपने ऑर्डर प्रमाण चलाने की कला सीख लेते हैं वो स्व राज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी बनते हैं ।
❉ जैसे आजकल के राज्य में अलग ग्रुप बना कर पावर में आ जाते हैं और पहले वाले को हिलाने की कोशिश करते हैं । तो ये मन भी ऐसे ही करता है । पहले बुद्धि को अपना बना लेता है फिर मुख, कान सबको अपना बना लेता है । इसलिये अपने मन के राजा बन पहले चेक करो कि अंदर ही अंदर यह मन, बुद्धि रूपी मंत्री अपना राज्य तो स्थापन नही कर रहे । ऐसे मन मंत्री पर अटेंशन रख अपनी सर्व कर्मेन्द्रियों को जब अपने ऑर्डर प्रमाण चलाएंगे तभी स्वराज्य अधिकारी बन भविष्य विश्व राज्य अधिकारी बन पायेंगे ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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