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❍ 01 / 08 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ बहुत बहुत √मीठा√ बनकर रहे ?
➢➢ कोई भी ×वाह्यात बातें× न सुनी और न बोली ?
➢➢ √सहनशील√ बनकर रहे ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ हर संकल्प और कर्म में √सिद्धि√ अर्थात सफलता प्राप्त की ?
➢➢ समय पर ×दुःख और धोखे× से बचकर ज्ञानी (समझदार) बनकर रहे ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ आज दिन भर अपना √मुख मीठा√ किया और दूसरों का भी मुख मीठा करवाया ?
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/01.08.16-VisheshPurusharth.htm
✺ PDF Format:-
➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/01.08.16-VisheshPurusharth.pdf
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - सब बातो में सहनशील बनो निंदा स्तुति जय पराजय सबमे समान रहो, सुनी सुनाई बातो पर विश्वास नही करो"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे मीठा पिता सदा आपके साथ है... सम्मुख है... अथाह दुखो को सहने के आदी जनमो से हो... तो इस समय भी सहनशील बनो... सब बातो से उपराम बन समय और सांसो को मीठे पिता में खपा दो... और कही न उलझो... बस एक पिता की याद में मगन रहो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मुझ आत्मा ने सारा जीवन इन व्यर्थ भरी बातो में ही खपाया... पर अब मै आत्मा प्यारे बाबा में खो चली हूँ.... ईश्वर पिता के साथ सहनशीलता की मिसाल बन रही हूँ... जीवन खूबसूरत होता चला जा रहा है...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे.... अब यह खेल पूरा हो चला है... सारे हिसाब पूरे होने है... मान हो या अपमान दुनिया कुछ भी कहे.... आप प्यारे बाबा की यादो में स्थिर रहो.... यादो में हर कर्म को कर ईश्वरीय पिता के दिल पर राज करो... सिर्फ पिता की सुनो और याद करो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... सबको सुनकर मै आत्मा किस कदर भटक पड़ी थी... अब आप जो मिले हो बाबा तो आप ही को सुन रही... आपकी यादो में इस कदर खो चली हूँ... कि सब भावो से न्यारी बन चली हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे.... जनमो से असत्य को सुनकर सत्य से कोसो दूर हो चले... अब और इन बातो में न फंसो... सच्चे पिता से सुनकर गहरे आनन्द में उतरो... भगवान आ चला है जीवन में तो सारे दुखो से उबर जाओ.... खुशियो संग नाचो और सदा का मुस्कराओ... पाना था सो पा लिया...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी खुशनसीब हूँ.... ईश्वर पिता को सुनने देखने जानने का सोभाग्य मिला है... अब झूठ के भँवर से निकल पड़ी हूँ... अब मेरी ख़ुशी को दुनिया का कोई भी दुःख छीन ही न सके....
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - स्व की चेकिंग करते अपनी चलन देवताओं जैसी बनाना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा भृकुटि सिंहासन पर विराजमान चमकती मणि हूं... मैं आत्मा देह व देह के सम्बंधों से न्यारी होती जा रही हूं... मैं आत्मा अपनी कर्मेन्द्रियों की मालिक हूं... मैं आत्मा अब रावण के राज्य से मुक्त हो गई हूं... मुझ आत्मा को प्यारे शिव बाबा से दिव्य बुद्धि व दिव्य दृष्टि मिल गई है... मुझ आत्मा को प्यारे शिव बाबा ने सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान दिया है... प्यारे बाबा प्यार का सागर है... मुझ आत्मा को भी मास्टर प्यार का सागर बना दिया है... अभी तक तो अज्ञानता के कारण मुझ में बदला लेने की भावना थी... अब ज्ञान मिलने पर सब मेरे प्यारे आत्मा भाई है... सब मेरे मीठे बाबा के मीठे बच्चे हैं... मुझ आत्मा को सब के प्रति आत्मिक भाव रखना है... मैं आत्मा सर्व के प्रति आत्मिक भाव रखते हुए मीठा रहती हूं... मैं आत्मा स्व की चेकिंग करते हुए अपनी कमियां बाबा को देते हुए उन्हें दूर करती हूं... मुझ आत्मा को प्यारे बाबा पतित से पावन बनाने आए हैं... मुझ आत्मा को मनुष्य से देवता बनाने आए हैं... मुझ आत्मा को पावन दुनिया में जाना है... मैं आत्मा अपने अंदर नयी दुनिया में जाने के लिए दैवीय गुण धारण करती हूं... मैं आत्मा को अभी से अपनी चलन देवताओं जैसी बनाती हूं... मैं आत्मा शुद्ध खानपान ग्रहण करती हूं... मैं आत्मा सच्चा सच्चा वैष्णव हूं...
❉ "ड्रिल - सहनशील बनना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा इस देह में रहती देह से न्यारी हूं... मैं आत्मा मनबुद्धि से इस पुरानी दुनिया को भुला चुकी हूं... मैं आत्मा विनाशी दुनिया में देखते हुए भी नही देखती... सुनते हुए भी नही सुनती... मुझ आत्मा को ज्ञान की रोशनी मिल गई है... ये पुरानी दुनिया विनाशी व कब्रदाखिल है... मुझ आत्मा का इससे कोई लगाव नही है... मैं आत्मा व्यर्थ की बातों से स्वयं को मुक्त रखती हूं... मैं आत्मा परचिंतन नही करती... मैं आत्मा देही-अभिमानी हूं... मैं आत्मा बस प्यारे शिव बाबा की याद में रहती हूं... मैं आत्मा निंदा-स्तुति, मान-शान से परे रहती हूं... मैं आत्मा प्यारे बाबा की श्रीमत पर चलती हूं... प्यारे बाबा मुझ आत्मा के गल्तियां करने पर भी हमेशा प्यार देते है... कभी किसी की निंदा नही करते... मुझ आत्मा को ज्ञान मिल गया है... मैं आत्मा कभी किसी की निंदा नही करती हूं... मैं आत्मा कोई गलत बात नही बोलती हूं... मैं आत्मा ड्रामा के राज को जान गई हूं... मुझ आत्मा को परमात्मा ने सर्वशक्तियों से भरपूर कर दिया है... मुझ आत्मा में सहन करने की शक्ति बढ़ गई है... मैं आत्मा सहनशील हूं...
❉ "ड्रिल - ज्ञानी तू आत्मा"
➳ _ ➳ मैं आत्मा ज्योतिर्बिंदु हूं... मुझ आत्मा को अपने असली स्वरुप की पहचान परमपिता परमात्मा ने दे दी है... अभी तक तो मैं देहभान में आकर रावण माया के जाल में फंस कर काली हो गई... विकारों में फंसकर अपनी शक्तियों को भूल गई थी... माया को न परख पाने के कारण मैं आत्मा कमजोर हो गई... इस संगमयुग पर प्यारे शिव बाबा ने अपना बच्चा बनाकर मुझ आत्मा को घोर अंधियारे से निकाल ज्ञान का तीसरा नेत्र दे दिया है... मुझ आत्मा को कर्मो की गुह्यी गति का ज्ञान मिल गया है... मैं आत्मा जान गई हूं कि जो दुख मुझे मिल रहे है वो मैं आत्मा पिछले जन्मों का हिसाब किताब है... जो मुझे चुकतू करना ही है... मैं आत्मा उसे खेल समझ पार करती हूं... मैं आत्मा उसे दुख समझ दुखी नही होती हूं... मैं आत्मा ज्ञान और योगबल से उसे खत्म करती हूं... मैं आत्मा बस एक प्यारे बाबा की याद में रहती हूं... बुद्धि की लाइन क्लीयर रखने से मुझ आत्मा का परमात्मा से कनेक्शन जुड़ा रहता है... प्यारे बाबा से टचिंग मिलने से मैं आत्मा बाहरी मायावी दुनिया के धोखे से बच जाती हूं... मैं आत्मा अपना हरपल बाबा की याद में सफल कर ज्ञानी तू आत्मा का परिचय देती हूं...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं आत्मा सम्पूर्ण मूर्त हूँ ।"
➳ _ ➳ आराम से योगयुक्त होकर बैठ जाएं और श्रेष्ठ संकल्पों का निर्माण करें... मैं आत्मा होली हंस हूँ... मैं आत्मा स्वयं को इस झूठे जग की व्यर्थ बाते सुनने और सुनाने से मुक्त रखती हूं... मुझ आत्मा को सागर की गहराई में जाकर ज्ञान मोती ही चुनने है...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा का कर्म इन्द्रियों पर कण्ट्रोल है... मैं हद की बातों से उपराम एक बाप की याद में मगन हूं... मैं आत्मा श्रेष्ठ समर्थ चिंतन कर के वातावरण में रूहानियत की खुशबू फैलानी वाली रूहे गुलाब आत्मा हूँ... वृत्ति से श्रेष्ठ वायुमंडल बनाने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूं...
➳ _ ➳ जो आत्माएं अधिक संकल्पों की रचना करते हैं, व्यर्थ की बातों में जाते हैं वह शक्तिहीन हो जाती हैं... इसलिए मेरा मन व्यर्थ की बातों में ना जाकर एक बाप के दिए खजानो को मनन करने में आनंदित होता है... मैं आत्मा सदा समर्थ संकल्पों की ही रचना करने वाली शक्ति स्वरुप आत्मा हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपना हर कर्म आदि-मध्य-अंत के ज्ञान को अपनी स्मृति में रखकर करने वाली युक्तियुक्त आत्मा हूँ... इस ज्ञान को बुद्धि में रखकर कर्म करने से मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मेरा हर कर्म, हर संकल्प सफल और सिद्ध हो रहा है... इन्हीं श्रेष्ठ संकल्पों के साथ मैं आत्मा सम्पूर्ण मूर्त आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ हर संकल्प और कर्म में सिद्धि अर्थात सफलता प्राप्त करने वाले सम्पूर्ण मूर्त होते हैं... क्यों और कैसे?
❉ हर संकल्प और कर्म में सिद्धि अर्थात सफलता प्राप्त करने वाले सम्पूर्ण मूर्त होते हैं क्योंकि हमें संकल्पों की सिद्धि तब प्राप्त होगी जब हम समर्थ संकल्पों की रचना करेंगे और संकल्पों की रचना हम आसानी से कर सकते हैं।
❉ क्योंकि हमारे अन्तर में संकल्पों की रचना करने की शक्ति विद्यमान है। ये अद्भुत क्रिएटिव पॉवर हम सभी आत्माओं को परमपिता परमात्मा ने उपहार स्वरूप प्रदान की है इसलिये हमें इस दिव्य पॉवर को यथा शक्ति उपयोग में लाना है।
❉ जो आत्मायें अधिक या व्यर्थ संकल्पों की रचना करते हैं, वो उनकी पालना करने में असमर्थ होते हैं। अर्थात वे उनकी पालना सही ढंग से नहीं कर पाते हैं अर्थात उन संकल्पों को कार्य रूप में नहीं ला पाते हैं।
❉ इसलिये जितनी ज्यादा रचना रचना होती है उतनी ही वह शक्तिहीन होती है। इसलिये सब से पहले हमें व्यर्थ रचना को समाप्त करना है। तभी हमें सफलता प्राप्त हो सकेगी। हमें तुरन्त सावधान हो कर अपने व्यर्थ संकल्पों की निर्माणता पर रोक लगानी अति अनिर्वाय है।
❉ तभी तो बाबा ने हम आत्माओं को कर्मों में सफलता प्राप्त करने की युक्ति बताई है... कर्म करने से पहले आदि-मध्य और अन्त को जानकर फिर कर्म करो। इस प्रकार करने से हम सभी आत्मायें! सम्पूर्णमूर्त बन जायेंगे।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ समय पर दुःख और धोखे से बचकर सफल होने वाला ही ज्ञानी ( समझदार ) है... क्यों और कैसे ?
❉ समय पर दुःख और धोखे से बचकर वही व्यक्ति सफल हो सकता है जिसकी बुद्धि एकाग्रचित होगी । अगर बुद्धि एकाग्रचित नही है तो कोई भी समस्या या परिस्थिति आने पर व्यक्ति उसका सामना नही कर पायेगा । बुद्धि एकाग्र होगी तभी व्यक्ति में परखने की शक्ति होगी और जितनी व्यक्ति में परखने की क्षमता होगी उतना उसके लिए सही समय पर सही निर्णय लेना सहज होगा । इसलिए समय पर सही निर्णय ले कर जो स्वयं को दुःख और धोखे से बचा लेते हैं वही व्यक्ति समझदार कहे जाते हैं ।
❉ समय पर स्वयं को दुःख और धोखे से वही बचा सकते हैं जिनकी स्व स्थिति अच्छी होती है । अगर स्व स्थिति अच्छी नही है तो व्यक्ति छोटी छोटी घटनाओ में ही विचलित होने लगता है और तनाव में आ कर अपना ही नुकसान कर लेता है । इसलिए ज्ञानी अर्थात समझदार वह है जो समस्या आने पर घबराने के बजाय स्व स्थिति में टिक कर हिम्मतवान बन उस समस्या का समाधान करे और परिस्थिति से धोखा खा कर दुखी होने के बजाए अपनी शक्तिशाली स्व स्थिति से उस परिस्थिति पर जीत प्राप्त करे ।
❉ कोई भी कठिन परिस्थिति आने पर जो दिल शिकस्त होने के बजाए हिम्मत का एक कदम उस परिस्थिति से निकलने के लिए उठाते हैं उनकी मदद के लिए स्वयं भगवान हज़ार कदमो से उनकी ओर बढ़े चले आते हैं । इसलिए जो समझदार होते हैं वो अपने जीवन की नैया परमात्मा बाप के हवाले कर परमात्म याद से स्वयं को इतना बलशाली बना लेते हैं कि सही समय पर परमात्म बल और परमात्म मदद प्राप्त कर हर प्रकार के धोखे और दुःख से स्वयं को बचा कर सुरक्षित कर लेते हैं ।
❉ व्यर्थ चिंतन और व्यर्थ विचार बुद्धि को स्वच्छ नही रहने देते । बुद्धि स्वच्छ ना होने के कारण व्यक्ति किसी से भी धोखा खा लेता है । इसलिए समझदार वह है जो अपने मन बुद्धि को समर्थ चिंतन में लगा कर व्यर्थ बातों से स्वयं को मुक्त रखते हैं । जितना व्यक्ति स्वयं को व्यर्थ से मुक्त रखता है उतना उसकी बुद्धि में उसका लक्ष्य स्पष्ट रहता है और उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वह सोच समझ कर सही निर्णय ले कर हर कदम उठाता है । इसलिए किसी भी प्रकार के धोखे से स्वयं को समय पर बचा कर दुखी होने से बच जाता है ।
❉ जीवन में आने वाली किसी भी समस्या या परिस्थिति में घबराने के बजाए जो उस परिस्थिति से शिक्षा ग्रहण करते हैं और सदैव इस बात को स्मृति में रखते हैं कि हर घटना अथवा परिस्थिति हमे जीवन में कुछ सिखा कर जाती है । इन परिस्थितियो से हमे बल मिलता है । जैसे पहली बार एक छोटी सी चोट भी बहुत तकलीफ देती है लेकिन कुछ समय बाद वही चोट मामूली लगने लगती है । इसी प्रकार परिस्थितियां भी हमारे अनुभव बढ़ाती है और जो इन अनुभवों से सीख कर समय पर स्वयं को हर प्रकार के धोखे और दुःख से बचा लेते हैं वही समझदार कहलाते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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