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❍ 20 / 06 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ परिवार में √ट्रस्टी√ रहकर प्यार से सबको चलाया ?
➢➢ इन आँखों से सब कुछ देखते हुए याद √एक बाप√ को किया ?
➢➢ फूल हार स्वीकार न कर √खुशबूदार फूल√ बनकर रहे ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ संगमयुग पर √अतीन्द्रिय सुख√ का अनुभव किया ?
➢➢ एक दो के संस्कारों को जानते हुए उनसे √मिलकर चले√ ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ बाह्यमुखता से दूर रह √अन्तर्मुखी√ बनकर रहे ?
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/20.06.16-VisheshPurusharth.htm
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं डबल प्राप्ति की अधिकारी आत्मा हूँ ।
✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-
➳ _ ➳ आओ डूब जाएँ परमधाम प्रेम में... प्यार एक बहुत ही खूबसूरत एहसास है... ज़िन्दगी का सबसे हसीन तोहफा... और मुझे इस जीवन में भगवान से प्रेम करने का मौका मिला... खुद खुदा ने आकर मुझे अपनी प्रियतम बनाया... जन्म - जन्म मुझसे मोहब्बत करते रहे...
➳ _ ➳ मैं इस सांसारिक दुनिया के चक्र में फंसकर उन्हें भूल गयी... मगर उन्होंने मेरी कदम कदम पर रक्षा करते रहे... मेरा साथ निभाते रहे... मुझे संभालते रहें... मेरी गुप्त पालना करते रहे...भगवान से प्यार करने का अधिकार मिला है मुझे...
➳ _ ➳ मैं भाग्यवान आत्मा इस वरदानी संगमयुग पर अपने परमपिता की इस पालना को पाकर अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर रहीं हूँ... इस अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर मैं आत्मा गहन शांति और ख़ुशी का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा इस ख़ुशी और शांति की डबल प्राप्ति के नशे में लीन रहने लगीं हूँ...
➳ _ ➳ इस अतीन्द्रिय सुख में ही यह दोनों प्राप्तियां समाई हुईं हैं... मेरे प्यारे बाबा... आपने बाप और वर्से की जो प्राप्ति इस संगमयुग पर वरदान में दी है वह सारे कल्प में नहीं मुझ आत्मा को मिल नहीं सकती है... इस वरदानी समय की प्राप्ति अतीन्द्रिय सुख और नॉलेज भी फिर कभी नहीं मिलती है...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा के मस्तक पर आज पदमापदम भाग्य का तिलक लग गया है... मेरे नयनों में प्रेम का और अतीन्द्रिय सुख का काजल लग गया है... मेरे प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा का रोम - रोम प्रेम - रस से सराबोर कर अतीन्द्रिय सुखों के सागर में डुबों दिया है... मैं आत्मा अब इस संगमयुग पर अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर डबल प्राप्ति की अधिकारी आत्मा बन गयीं हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - शिव बाबा तुम्हारे फूल आदि स्वीकार नही कर सकते क्योकि वह पूज्य वा पुजारी नही बनते है, तुम्हे भी संगम पर फूल हार नही पहनने है"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे विश्व पिता बाबा सदा ही एकरस है... कभी पूज्य कभी पुजारी नही बनता है... तुम बच्चों को भी संगम पर हर बात से उपराम होना है... तुम बच्चे ही पूज्य बनते हो और फिर पुजारी बन अपनी ही प्रतिमाओ को फूल पहनाते हो....
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे मीठे प्यारे बच्चे ईश्वर पिता खूबसूरत दुनिया का मालिक तुम बच्चे को ही बनाता है... खुद कभी नही बनता... इस खेल में ईश्वर पिता कभी नही आता है... तुम बच्चे खूबसूरत पूज्य अवस्था और अपने ही उज्ज्वल स्वरूप की प्रतिमाओ को... यादो के आधार पर पुजारी बन फूल चढ़ाते हो...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे संगम पर तुम बच्चे साधारण रहते हो पर भीतर से असाधारण बनते हो... फूल पहनते नही पर फूलो संग रहने वाले जीवन की नीव रखते हो... यहाँ का काँटों के बीच रह फूल जैसा जीवन बनाते हो... पूज्य और पुजारी दोनों अवस्था को पाते हो...
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चे ईश्वर पिता तो निराकार है... इसी निराकारी अवस्था को स्मर्तियो में भर देते है... जो पूज्य बन दमकता है वह पुजारी भी अवश्य बनता है... तुम बच्चे भी अभी हर बात से किनारा करते हो... क्योकि पुरानी दुनिया से निकल फूलो की दुनिया के मालिक बनते हो...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चे जो पिता फूलो जैसा जीवन देता है वह एक फूल खुद नही पहनता... क्योकि इस मिटटी में कभी उतरता नही... सदा ही खूबसूरत रहता है...सदा ही गुणो और शक्तियो का सागर रहता है... तुम बच्चे कभी फूल पहनते हो कभी पहनाते हो... अब संगम पर सरल रह भविष्य के महान बनो...
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ बाप के दिल रुपी तख्त पर जीत पाने का पुरुषार्थ करना है । परिवार में ट्रस्टी रहकर प्यार से सबको चलाना है । मोहजीत बनना है ।
❉ लौकिक में भी जो बच्चे माँ बाप की आज्ञा अनुसार चलते है व अपना सब कुछ सच सच बताते हैं तो वो बच्चे माँ बाप का दिल जीत कर सब कुछ पाते है व राज करते है । हमें तो बेहद का बाप मिला है हमें बाप की श्रीमत पर चलना है व दिल में सच्चाई सफाई रखनी है तो बाप भी ऐसे बच्चो को स्वयं याद करता है ।
❉ जब बेहद का बाप अपने बच्चों की सर्विस के लिए हमेशा ऐवररेडी रहता है व कहता है कि मैं तो तुम्हारा ओबिडिएंट सर्वेंट हूं तो हमें भी ऐसे निरहंकारी बन दिन रात सर्विस में लगे रहना है । सर्विसएबुल बच्चों को बाप स्वयं याद कर दिलतख्त पर बिठाता है ।
❉ अपने को आत्मा समझ परमपिता परमात्मा को याद करना है । याद से ही आत्मा पर लगी कट उतारनी है व आत्मा को पावन बनाना है । चलते फिरते, उठते बैठते बस अपना बुद्धियोग एक बाप से जोड़ना है ।
❉ ये शरीर तो एक चोला है । जैसे वस्त्र पुराना हो जाता है तो उसे उतार कर नया पहन लेते है ऐसे ही ये शरीर पुराना हो गया इसे छोड़ कर नया धारण करना है और ये शरीर विनाशी है । इससे मोह नहीं रखना । ये अमानत है इसे अपना कहना भी ख्यानत है ।
❉ जैसे नाटक में एक्टर आता है अपना पार्ट बजाकर चला जाता है ऐसे ही हम सब भी इस सृष्टि रुपी रंगमच पर अपना अपना पार्ट बजाने आए है व चले जाए जाना है । इसलिए अपने को ट्रस्टी या निमित्त समझ अपना पार्ट प्ले करना है । हरेक को आत्मा देखना है व सबका पार्ट एक्यूरेट है । सबके साथ मीठा रहना है व प्यार से सबके चलना है और प्यार से ही चलाना है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ संगमयुग पर अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करने वाले डबल प्राप्ति के अधिकारी होते हैं.... क्यों और कैसे ?
❉ जो बच्चे ये स्मृति में रखते कि ये अनमोल हीरे जैसा युग ही आत्मा व परमात्मा के मिलन मेले का समय है व जो आत्माऐं इस पुरुषोत्तम संगमयुग पर कर्मेन्द्रियों से न्यारे व शरीर के भान से न्यारे होकर परमात्म मिलन की अनुभूति करते हैं व बाप की प्यारी बनती हैं वो परमात्म मिलन से अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति कर हमेशा खुश और शांति के नशे में रह डबल प्राप्ति की अधिकारी होती हैं ।
❉ जिन बच्चों को ये नशा व खुशी रहती कि स्वयं भगवान ने हमें कोटों मे से कोऊं मे से चुनकर अपना बनाया व बाप का बनते ही उसके वर्से के अधिकारी बन गए व जो बाप के गुण व शक्तियां सो हमारी तो ऐसे बाप से प्राप्त हुए सर्व खजानों से सम्पन्न अधिकारी समझ सदा खुशी और शांति के नशे में रहते है और अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करते डबल प्राप्ति के अधिकारी होते हैं ।
❉ जिन बच्चों को ये स्मृति में रहता है कि इस पुरुषोत्तम संगमयुग पर हमें स्वयं परमपिता परमात्मा मिले हैं व इस अनमोल हीरे युग में ही हम आत्माओं को परमात्मा बाप से सच्ची सुख, शांति, आनन्द, प्रेम का वर्सा मिलता है व अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करते डबल प्राप्ति के अधिकारी होते है ।
❉ संगमयुग पर बाबा का बच्चा बनते ही जिन बच्चों को ये नशा रहता है कि हम तो मास्टर भगवान है व भगवान के बच्चे है । सर्वशक्तिमान बाप को हर कदम पर साथी बना कर चलते है व अपनी हर बात सच्चाई सफाई से बाप को बताते है । अपने को रुहानी सर्विसएबुल समझ सेवा में तत्पर रहते हैं तो बाप भी अपने ऐसे बच्चों को याद कर दिलतख्त पर बिठाता है और बच्चे भी बाप का करेंट व प्यार अनुभव करते हुए अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर डबल प्राप्ति के अधिकारी होते हैं ।
❉ जो बच्चे संगमयुग पर स्वयं को कभी अकेला नही समझते व हमेशा बाप के साथ कम्बाइंड रहते हैं व हर संकल्प, बोल, कर्म बाप के लिए होता है व कम्पेनियन बना सर्व सम्बंध बाप से ही रखते प्रीत की रीत निभाते है व एक की लगन में ही मगन रहते है तो वो अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करने वाले डबल प्राप्ति के अधिकारी होते हैं ।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ एक दो के संस्कारों को जानते हुए उनसे मिल कर चलना - यही उन्नति का साधन है... क्यों और कैसे ?
❉ स्वयं को जब ट्रस्टी समझ कर हर कर्म करते हैं तो मैं और मेरे पन का भाव समाप्त हो जाता है । जब मैं पन का भाव आता है तभी अहंकार और अभिमान आता है । यही अहंकार और अभिमान स्वभाव - संस्कारों में टकराव का मुख्य कारण बनता है । इसलिए जब अहंकार को मार, अभिमान को छोड़, देह के भान से परे हो जाते हैं तो संस्कारों की रास मिलाना सहज हो जाता है तथा एक दो के संस्कारों को जानते हुए एक दो के साथ मिल कर रहना संगठन को उन्नति के शिखर पर ले जाता है ।
❉ एक दो के संस्कारों को जानते हुए उनसे मिल कर तभी चल सकेंगे जब हर कदम बाबा की श्रीमत प्रमाण होगा । श्रीमत में मनमत व परमत मिक्स नही करेंगे । बाबा की श्रीमत है हीयर नो इविल, सी नो इविल, थिंक नो इविल । तो इस श्रीमत का पालन करते हुए जब स्वयं को समर्थ चिंतन में बिज़ी रखेंगे तो किसी की भी कमी कमजोरियां दिखाई नही देंगी । गुणमूर्त बन सबकी विशेषताओं को देखते हुए सबके साथ जब संस्कारो को मिला कर चलेंगे तो स्वभाव संस्कारों में होने वाले टकराव से बचे रहेंगे तथा एक दूसरे को उमंग उत्साह दिलाते हुए,आगे बढ़ते हुए हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकेंगे ।
❉ अपनी सर्वश्रेष्ठ ऊँची स्थिति पर स्थित हो कर जब इस बेहद के ड्रामा को देखेंगे तो अपना तथा औरों का पार्ट एक खेल अनुभव होगा । इसलिए किसी के भी स्वभाव संस्कारों को देख क्या, क्यों और कैसे के प्रश्न मन में नही उठेंगे बल्कि इस बेहद ड्रामा में हर आत्मा का पार्ट मनोरंजन का अनुभव करवाएगा । जिससे सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं के स्वभाव संस्कारों को जानते और देखते हुए उनके साथ मिल कर चलना और एक दूसरे को सहयोग दे कर आगे बढ़ाना तथा निरन्तर आगे बढ़ते हए उन्नति प्राप्त करना सरल होता जायेगा ।
❉ जब सदा एक श्रेष्ठ बाप के संग में रहेंगे तो सम्बन्ध संपर्क में आने वाली तमोगुणी आत्माओं के संग का रंग आत्मा को प्रभावित नही कर सकेगा क्योकि बाप के श्रेष्ठ संग का रंग स्थिति को इतना पावरफुल बना देगा कि दूसरों के आसुरी स्वभाव संस्कार भी चित पर कोई प्रभाव नही डालेंगे बल्कि एक दो के संस्कारो को जानते हुए भी उनके साथ मिल कर चलना बिलकुल सहज अनुभव होगा । एक दो के विचारों को सम्मान देते हुए जब एक दूसरे को सहयोग दे कर आगे बढ़ायेंगे तो उन्नति की ओर सहज ही बढ़ते चले जायेंगे ।
❉ निर्मानता का गुण जितना स्वयं के अंदर धारण करेंगे उतना हर कर्म, सम्बंध, और सम्पर्क में निर्मान बनते जायेंगे और अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं की कमी कमजोरियों,
पुराने स्वभाव संस्कारों को नजऱअंदाज करते हुए सर्व को सम्मान देते हुए तथा सर्व का सम्मान प्राप्त करते हुए सबके साथ कदम से कदम मिला कर चल सकेंगे । एक दूसरे के सहयोग से, कठिन से कठिन परिस्थिति को भी सरलता से पार कर जब आगे बढ़ने का हौंसला रखेंगे तो निरन्तर उन्नति को प्राप्त करते हुए मंजिल तक पहुँच जाएंगे ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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