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 16 / 05 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ सम्पूरण गुणवान बनने पर विशेष अटेंशन रहा ?

 

➢➢ हर कर्म बाप की याद में रहकर किया ?

 

➢➢ इस ×पुराने कपडे(शरीर)× से ममत्व तो नहीं रखा ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ दिव्य बुधी के विमान द्वारा विश्व की देख रेख की ?

 

➢➢ मास्टर दाता बन अनेक आत्माओं को प्राप्तियों का अनुभव करवाया ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( 21.01.1969 की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ परीक्षा के समय किसी भी तरह का सीन सामने आने पर निश्चयबुधी बनकर रहे ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं आत्मा मास्टर रचयिता हूँ ।

 

✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-

 

_ ➳  आह्वान करेंगे कमल आसन पर बैठकर, स्वयं को मस्तक से निकलते हुए फ़रिश्ते स्वरुप में... मैं फरिश्ता इस पाँच तत्वों की दुनिया के पार सूर्य, चाँद, तारागण के भी पार, पहुँचता हूँ अलौकिक वतन में...

 

_ ➳  मैं स्वयं को विश्व ग्लोब के ऊपर देख रहा हूँ... विश्व ग्लोब के ऊपर अति सूक्ष्म फ़रिश्ते के रूप में बैठकर, मैं अपने मस्तक पर विराजमान आत्मा का सीधा कनेक्शन परमधाम में बीजरूप पिता शिव से जोड़ रहा हूँ...

 

_ ➳  बाबा से कनेक्शन जुड़ने से मुझ फ़रिश्ते की चमक करोड़ों गुना बढ़ती जा रही है... मैं फरिश्ता स्वयं को अत्यंत शक्तिशाली महसूस कर रहीं हूँ... और मैं फरिश्ता अपने इस बुद्धि रूपी विमान द्वारा एक सेकेण्ड में स्पष्ट रूप से विश्व की परिक्रमा कर सर्व आत्माओं की देख रेख करने में निमित्त बन रहीं हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा आज अपने बाबा के समक्ष यह दृढ़ लेती हूँ कि मैं अपनी दिव्यता को पद्मगुना बढ़ा कर चक्रवर्ती बन चारों ओर चक्र लगाउंगी... क्योंकि जिसकी बुद्धि जितनी दिव्य है, उसी के आधार पर स्पीड भी तेज़ होती है...

 

_ ➳  इन्हीं संकल्पों के साथ मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि विश्व की समस्त आत्माएं मुझसे सन्तुष्ट हो रहीं हैं... चारों ओर से यही आवाज़ निकल रही है के हम लोगों ने ज्योति देखी, चलते हुए फ़रिश्ते देखें हैं...

 

_ ➳  मैं  आत्मा स्वयं कल्याणी के साथ विश्व कल्याणकारी मास्टर रचता की स्थिति का अनुभव कर रही हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चों - तुमने रावण की मत पर बाप की ग्लानि की तो भारत कौड़ी तुल्य बना, अब पहचान कर याद करो तो धनवान बन जायेंगे"

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों पिता को ही सर्वव्यापी बना डाला... खुद का एक निश्चित ठिकाना है और मुझे जगह जगह बता दिया... सबसे प्यारे सच्चे रिश्ते को शर्मसार किया और खुद को भी फटेहाल किया...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मेरे मीठे से बच्चों विकारो की चपेट में आकर पिता को भूल चले...  ठिकाना भी भूल चले और कोड़ियो संग निर्धन निधन के बन पड़े... अब सच को पहचानो और सच्चे पिता संग फिर से धनवान बन राज करो...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चों रावण की मत ने जीवन को भिखारी बना सदा की गरीबी से भर दुखमय कर दिया... अब तो पिता ही उतर आया तो सत्य को पहचान प्रकाश से भर जाओ और उसी अमीरी को बाँहो में सजाओ...

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चों असत्य के साथ ने जीवन खाली किया खत्म कर निर्धन किया... ईश्वर को भी न छोड़ा और सर्व व्यापी की ग्लानि से स्वागत किया... अब तो जान लो पहचान लो और धनवान बनने की युक्ति मान लो...

 

 ❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चो इस रावण ने विकारो ने झूठी मत ने जीवन बर्बाद सा किया... अमीरी से नीचे उतार जमीन पर पटक दिया... पर अब श्रीमत को दिल की जमीन पर लिख लो...  तो सदा की अमीरी कदमो में झुकी पड़ी है...

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ पुरुषार्थ कर सम्पूर्ण गुणवान बनना है । कर्म कोई भी हो बाप की याद में रहकर करना है । कोई भी विकर्म नहीं करना है ।

 

  ❉   अभी तक अज्ञानता के घोर अंधियारे में थे अब सत का ज्ञान मिलने पर दिव्य ज्ञान रुपी तीसरा नेत्र मिला है व दिव्य बुद्धि मिली है तो अपने को आत्मा समझ आत्मा के पिता परमात्मा को याद करना हैं व पावन बनना है ।

 

  ❉   बस एक बाप की याद में रहने से ही आत्मा की खाद निकालनी है व आत्मा को शुद्ध व मीठा बनाना है । आत्मा की कट उतार दिव्य गुणों की धारणा करनी है । बाप की श्रीमत पर चलते हुए सम्पूर्ण गुणवान बनने का पुरुषार्थ करना है ।

 

  ❉   ये हमारा अंतिम जन्म है व इस अंतिम में योगबल से अपने विकर्मों का नाश करना है और पावन जरुर बनना है क्योंकि नयी दुनिया सतोप्रधान है व वहां पावन बने बगैर जा नही सकते । इसलिए पुरुषार्थ कर पावन बन सम्पूर्ण गुणवान बनना है ।

 

  ❉   भल धंधा कोई भी करते रहो बस बुद्धियोग एक बाप से लगा रहे । हाथों से काम करते रहना है व दिल बाबा से लगा रहना है । जैसे आशूक माशूक भल कितनी दूर होते है लेकिन उनके दिल में बस अपने माशूक की याद होती है ऐसे ही हमें भी सच्चा सच्चा माशूक मिला है बस उसकी याद में रहकर हर कर्म करना है ।

 

  ❉   बाबा ने हमें कर्म , विकर्म और अकर्म की गुह्य गति का राज समझाया है तो हमें बाबा का बच्चा बनने के बाद कोई विकर्म नही करना है वरना सौ गुणा सजाऐं खानी पड़ेंगी ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ दिव्य बुद्धि के विमान द्वारा विश्व की देख-रेख करने वाले मास्टर रचयिता होते हैं.... क्यों और कैसे ?

 

  ❉   जिन बच्चों की दिव्य बुद्धि की स्पीड तेज होती है वो दिव्य बुद्धि के विमान द्वारा एक सेकेंड में स्पष्ट रुप से विश्व की परिक्रमा का चक्कर लगाकर सर्व आत्माओं को सुख शांति की वायब्रेशनस देकर संतुष्ट कर मास्टर रचयिता होते हैं ।

 

  ❉   जैसे दिव्य बुद्धि से व दृष्टि से सूक्ष्म वतन या सूक्ष्म लोक की विभिन्न विचित्र लीलाऐं देख सूक्ष्म शक्ति आत्माओं का आवाहन करते व आत्माओं का बाप से कनेक्शन जुडवाते है ऐसे बच्चे मास्टर रचयिता होते हैं ।

 

  ❉   जो बच्चे दिव्य बुद्धि रुपी विमान द्वारा विश्व की देख-रेख कर रुहानी सेवा करते हैं व अपनी रुहानियत और रुहानी बाप से सबंध जुड़ा होने से अपनी रुहानियत की खुशबू से आत्माओं को समीप लाते है मास्टर रचयिता होते हैं ।

 

  ❉   देहभान को छोड़ देही अभिमानी बन कर रहने वाले व  बुद्धि की लाइन क्लीयर होने से हमेशा प्राप्ति सम्पन्न होते है वो बुद्धि रुपी विमान से विश्व का चक्र लगाते हुए अपनी दिव्य बुद्धि द्वारा पूरे विश्व की देखरेख करने वाले मास्टर रचियता होते हैं ।

 

  ❉    जिनकी स्थिति एक रस होती व बुद्धियोग एक बाप से ही लगा रहता ऐसे सहजयोगी अपनी दिव्य बुद्धि द्वारा विश्व की देख रेख करने वाले मास्टर रचयिता होते है

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ मास्टर दाता बन अनेक आत्माओं को प्राप्तियों का अनुभव कराना ही ब्रह्मा बाप समान बनना है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   ड्रामा अनुसार हर ब्राह्मण आत्मा को कोई न कोई विशेषता प्राप्त है । ऐसा कोई नहीं है जिसमें कोई विशेषता नहीं हो क्योंकि संगम पर हर विशेषता ड्रामा अनुसार परमात्म देन है । तो अपनी विशेषतायों को सदा स्मृति में रख जो उनको सेवा में लगाते हैं और मास्टर दाता बन अनेक आत्माओ को प्राप्तियों का अनुभव करवाकरउड़ती कला की अनुभूति करवाते है वो ब्रह्मा बाप समान बन जाते हैं ।

 

 ❉   जैसे प्रसाद होता है ना, उसको कोई अपना नहीं कहेगा कि मेरा प्रसाद है । यही कहते हैं कि प्रभु प्रसाद है । इसी प्रकार परमात्म प्रप्तियां भी प्रभु प्रसाद हैं और प्रसाद सिर्फ अपने प्रति नहीं यूज किया जाता है, बांटा जाता है । तो जो इन परमात्म प्राप्तियों के प्रसाद को अनेक आत्माओं में बांटते है अर्थात अनेक आत्माओं को इन प्राप्तियों का अनुभव करवाते हैं वे ब्रह्मा बाप समान महादानी वरदानी बन जाते हैं ।

 

 ❉   जैसे बाप को भोला भण्डारी कहते हैं क्योकि खुला भण्डार है ना । इसी प्रकार भोला भण्डारी बाप के हम बच्चे भी मास्टर भोला भण्डारी हैं । बाप द्वारा अखुट भण्डार के, सर्व खजानो के मालिक बने हैं । इस अखुट भण्डार को, जो फ्राक दिल से अनेक आत्माओं को बांटते हैं, खुली दिल से सर्व प्राप्तियों का अनुभव अनेक आत्माओं को करवाते है वो मास्टर ब्रह्मा बन अनेको आत्माओं का कल्याण करते हैं ।

 

 ❉   मास्टर दाता बन अनेक आत्माओं को प्राप्तियों का अनुभव कराने वाले ब्रह्मा बाप समान वही बन सकते हैं जो भाग्य विधाता बाप और अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य दोनों को सदा स्मृति में रख, दाता के बच्चे बन अनेको आत्माओं को सर्व प्राप्तियों का अनुभव कराने वाले श्रेष्ठ महादानी बनते हैं तथा सिद्धि स्वरूप बन अनेक आत्माओं को सिद्धि प्राप्त कराने वाले मास्टर विधाता और वरदाता बनते हैं ।

 

 ❉   ब्रह्मा बाप समान मास्टर विधाता वो बनते हैं जो ब्राह्मण जीवन में, दाता, वरदाता और विधाता के सम्बन्ध में सम्पन्न बन सदा रूहानी मौज में रहते हैं । बाप को दाता के रूप में याद कर, बाप से मिले सर्व खजानो, सर्व शक्तियो, सर्व प्राप्तियों को स्मृति में रख , रूहानी अधिकारीपन के नशे में रह जो मास्टर दाता बन अनेक आत्माओं को प्राप्तियों का अनुभव कराते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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