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❍ 12 / 11 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *भविष्य के नए संबंधो से बुधीयोग लगाया ?*
➢➢ *औरों को समझाने के लिए हर वक़्त ख़ुशी में रहे ?*
➢➢ *सैट बाप, सैट शिक्षक और सैट गुरु बन अन्धो की लाठी बनकर रहे ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *सदा कंबाइंड स्वरुप की स्मृति द्वारा मुश्किल कार्य को सहज बनाया ?*
➢➢ *किसी भी कारण का निवारण कर संतुष्ट रहे और दूसरों को संतुष्ट किया ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *"स्वरुप बन स्वरुप बनाना" - इस विशेषता को धारण किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - स्वयं को राजयोगी समझ विकारी सम्बन्धो से ममत्व निकाल दो सिर्फ तोड़ निभाने के लिए साथ रहो"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की दिल पसन्द मणि हो... तो इस खुदाई नशे से भरकर दुनिया में रहते हुए भी उपराम रहो... अपने राजयोगी होने की खुमारी की सदा दिल दिमाग पर छाये हुए... विकारी दुनिया से अछूते होकर कार्य व्यवहार करो... ईश्वरीय प्रतिनिधि बन सम्बन्धो को तोड़ मात्र निभाते चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा जिस विकारी दुनिया ने मुझे दुखी और खाली सा किया... अब उस दुनिया से मेरा कोई नाता नहो... मात्र तोड़ ही बस मुझे तो निभाना है.. और अपनी यादो में मीठे बापदादा और अपने सजीले घर को ही बसाना है...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह के मटमैलेपन और विकारो के दलदल ने सत्य स्वरूप को भुला दिया... अब जो मीठे बाबा ने फूलो सी गोद में लेकर राजयोगी बनाया है तो हर कर्म में अपनी शान को याद रख चलो... अपने सत्य स्वरूप को यादो में कायम रख कर ही दुनियावी कारोबार करो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा सारे विकारी सम्बन्धो से उपराम होकर आपकी मीठी यादो में अपने राजयोगी के नशे में खो चली हूँ... इस विकारी दुनिया से अलग अपनी ज्योतिमय दुनिया को यादो में बसाये देवताई स्वरूप को पाती जा रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... विकारो में फंसकर गुणो और शक्तियो को खोकर खाली हो चले... अब ईश्वरीय राहो में राजयोगी बन खुशियो के आसमाँ में खुशनुमा से उड़ चलो... इस धरा पर ईश्वर पिता का चुना हुआ गुलाब हूँ... इस नशे से भरकर अपनी रूहानियत की छटा बिखेरते चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मुझ आत्मा को चुनकर अपनी गोद में बिठा कर मेरे मटमैले पन को धोकर आपने खूबसूरत राजयोगी सा सजा दिया है... मै आत्मा अब विकारो से परे कमल फूल सा प्यारा न्यारा जीवन जी रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा डबल लाइट हूँ ।"*
➳ _ ➳ इस संगम युग पर सबसे बड़ी प्राप्ति मुझ आत्मा को मिली है... जो स्वयं परम पिता परमात्मा परमधाम से मुझसे मिलने आते हैं... शिक्षक के रुप में रोज मुझ आत्मा को पढाकर ज्ञान देते हैं... सर्व सम्बन्धों का सुख देते हैं... सतगुरू बन मुझ आत्मा को शांतिधाम लेकर जायेंगे...
➳ _ ➳ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को सच्ची सच्ची सत्यनारायण की कथा सुनाई... मैं आत्मा विश्व की मालिक थी... ताज, तख्तधारी, सर्व प्राप्तियों के भंडार की मालिक थी... प्रकृति भी दासी थी... अब मैं आत्मा राज्य भाग्य गँवा कर राज्य अधिकारी से विकारों के, प्रकृति के, कर्मेंद्रियो के अधीन बन गयी...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा निरंतर एक बाबा की याद में ही रहती हूँ... सदा साथ का अनुभव करती हूँ... मुझ आत्मा की अधीनता समाप्त होते जा रहीं है... सर्व प्राप्तियों की अधिकारी बनते जा रहीं हूँ... सदा कंबाइंड स्वरूप की स्मृति से कोई भी मुश्किल कार्य को सहज बना देतीं हूँ... कोई भी समस्या आये तो अपने को कंबाइंड अनुभव करती हूँ... घबराती नहीं हूँ...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा को प्यारे बाबा ने मेहनत से छुडाकर सहज योगी बना दिया है... कभी कोई बड़ी बात सामने आये तो अपना बोझ बाप के ऊपर रख स्वयं डबल लाइट हों जाती हूँ... फरिश्ते समान दिन रात खुशी में मन से डाँस करते रहती हूँ... अब मैं आत्मा डबल लाइट बन गयी हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल - कारण का निवारण कर सन्तुष्टमणि बनना"*
➳ _ ➳ सन्तुष्टता की धारणा ही श्रेष्ठ धारणा है। सन्तुष्टता के साथ कई गुण जुड़े हुए है वह स्वतः ही आते जाते है। यदि हमारे सामने कोई भी परिस्थिति आती है तो उस परिस्थिति को अपने पूर्व कर्मों का फल समझने से हमारे सामने से प्रश्नों की क्यू समाप्त हो जाती है।
➳ _ ➳ मैं सदा अपने को सर्वशक्तिमान बाप की शक्तिशाली आत्मा अनुभव करती हूँ... शक्तिशाली आत्मा सदा सन्तुष्ट रहती है.. दूसरों को भी सन्तुष्ट करती है... मैं एक महान आत्मा हूँ... मुझ शक्तिशाली आत्मा के आगे माया के विघ्न कोई भी प्रभाव नही डाल सकते...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सर्व खजानों से भरपूर हूँ... सर्व शक्तियों से भरपूर हूँ... मुझ आत्मा के सामने बहुत सी परिस्थितियां आती है परन्तु मैं आत्मा उन्हें अपने पूर्व जन्मों का हिसाब-किताब समझ आगे बढ़ती जाती हूँ... कर्म का फल तो मिलना ही है...
➳ _ ➳ प्यारे शिव बाबा की याद में रहने से मुझ आत्मा में सहन करने की शक्ति बढ़ गई है... मुझ आत्मा में सहनशक्ति होने से हर समस्या का निवारण सहज करती हूँ... मैं आत्मा अपनी सन्तुष्टता की शक्ति से स्वयं भी सन्तुष्ट रहती हूँ... और सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा भी सन्तुष्ट होती जा रही है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सन्तुष्टमणि हूँ... मैं दुनिया की सबसे दौलतमंद, मालदार आत्मा हूँ... क्योंकि सन्तुष्टता ही सबसे बड़ा धन है... सन्तोष धन ही वास्तविक धन है... इस जैसा धन संसार में कोई नही... मैं आत्मा यह धन पाकर भाग्यशाली अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ सर्व आत्माओं के प्रति... मुझ आत्मा के दिल में स्नेह की भावना है... शुभ कामना है... हम सभी एक पिता की सन्तान है... जैसे मैं आत्मा बाप की सन्तान हूँ... सभी बाबा की सन्तान है... अभी यह आत्माएँ माया की कैद में हैं... मुझ आत्मा को इन आत्माओं को इस कैद से छुड़ाने की मदद करनी है...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *सदा कम्बाइन्ड स्वरूप की स्मृति द्वारा मुश्किल कार्य को सहज बनाने वाले डबल लाइट होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ सदा कम्बाइन्ड स्वरूप की स्मृति द्वारा मुश्किल कार्य को सहज बनाने वाले सदा डबल लाइट होते हैं क्योंकि... जो बच्चे निरन्तर बाप की याद में रहते हैं, वे सदा बाप के साथ का अनुभव करते हैं। वे कभी भी कोई कार्य अकेले रह कर नहीं करते हैं। उनके हर कार्य में बाबा का साथ होता है।
❉ उनके सामने कोई समस्या आ भी जाती है, तो भी वो अपने को कम्बाइन्ड स्वरूप ही अनुभव करेंगे। वे कभी भी किसी प्रकार की, कैसी भी परिस्थिती हो, उस में घबरायेंगे नहीं, क्योंकि बाबा जब साथ है तो फिर डरने की क्या बात है? हमारे सिर पर जब सर्व शक्तिमान बाप का हाथ है तो डर किस बात का है।
❉ ये कम्बाइन्ड स्वरूप की स्मृति कोई भी मुश्किल कार्य को सहज बना देती है। बाबा सदा हमारे साथ हैं, की ये पावन स्मृति हमें असीम शक्ति व बल प्रदान करती है। मानो जैसे कि... हमारे मन में हर परिस्थिति का सामना करने का अहसास जागृत हो गया हो या शक्ति आ गई हो।
❉ इसलिये कभी कोई बड़ी बात हमारे सामने आ भी जाती है, तो उस समय हर बात का बोझ हम बाप को दे देते हैं और स्वयं डबल लाइट हो जाते हैं। डबल लाइट अर्थात! फरिश्ता स्वरूप में स्थित हो जाना क्योंकि फरिश्ता लाइट होता है। चमकता हुआ प्रकाशवान होता है और सभी बोझों से उपराम हल्का होता है।
❉ ये दोनों प्रकार की ही, बेहतरीन क़्वालिटीज़ एक फ़रिश्ते में होती है। वह अपने प्रकाश से सारे संसार को दिव्य बनाने की सेवा में तत्पर रहता है तथा सुख शान्ति प्रेम पवित्रता ज्ञान आनन्द और सर्व शक्तियों से भरपूर करता है। अतः हमें फ़रिश्ते समान दिन-रात ख़ुशी में मन से डांस करते रहना है।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *किसी भी कारण का निवारण कर संतुष्ट रहने और करने वाले ही संतुष्टमणि हैं... क्यों और कैसे* ?
❉ बाबा की श्रीमत वह महामन्त्र है जो सहज ही हर समस्या का समाधान कर देती है । इसलिए जिनका हर कदम श्रीमत की लकीर के अंदर होता है उन पर कोई भी समस्या कभी हावी नही हो सकती क्योंकि श्रीमत के अनुसार चलकर वे हर कारण को निवारण में बदल लेते हैं । श्रीमत की लकीर उन्हें हल्का रखती है इसलिए वे स्वयं भी अपने जीवन से सदा संतुष्ट रहते हैं तथा संतुष्टमणि बन औरों को भी संतुष्ट रखते हैं ।
❉ किसी भी कारण का निवारण कर संतुष्ट रहने और करने वाले संतुष्टमणि वही बनते हैं जो अपने मन बुद्धि को एकाग्र रखते हैं । क्योकि एकाग्रता की शक्ति उन्हें हर कारण का निवारण करने का बल प्रदान करती है । इसलिए कोई भी घटना घटित होने पर या कोई भी परिस्थिति आने पर वे प्रश्नचित बन प्रश्नों का जाल नही बुनते बल्कि सेकण्ड में फुल स्टॉप लगा कर मन को एकाग्र कर समस्या का समाधान ढूंढ लेते हैं ।
❉ प्रभु प्रेम में मग्न रहने वाले और हर बात प्रभु अर्पण कर लाइट और माइट स्तिथि का अनुभव करने वाले हर कारण को सहज ही निवारण में बदल कर संतुष्टमणि बन स्वयं भी संतुष्ट रहते हैं तथा अपने सम्बन्ध संपर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को भी सदा संतुष्ट रखते हैं । किसी की कोई भी बात अपने चित्त पर रख वे स्वयं को बोझिल नही बनाते बल्कि स्नेही बन सबके साथ स्नेह युक्त रहते हैं । यही स्नेह उन्हें संतुष्टमणि बनाता है ।
❉ संगमयुग पर परमात्मा बाप द्वारा हर बच्चे को संतुष्ट और प्रसन्न रहने का वरदान सहज ही प्राप्त होता है क्योकि परमात्मा बाप द्वारा रचे इस रूद्र ज्ञान यज्ञ की अंतिम आहुति - सर्व ब्राह्मणों की सदा प्रसन्नता है । और इस प्रसन्नता का मुख्य आधार है संतुष्टता । क्यों कि सन्तुष्टता की निशानी प्रत्यक्ष रूप में प्रसन्नता ही होती है । किंतु संतुष्टमणि बन स्वयं को तथा औरों को संतुष्ट वही कर सकते हैं जो हर कारण को निवारण में बदल कर सदा प्रसन्नचित रहते हैं ।
❉ संगमयुग पर बापदादा द्वारा बच्चों को जो भी प्राप्तियां हुई है उनकी स्मृति को इमर्ज रूप में रखने से कोई भी परिस्थिति स्थिति को हिला नही सकती । सर्व प्राप्तियों की ख़ुशी कभी भी उन्हें हलचल में ला कर दुखी नही बना सकती । हलचल मे तब आते हैं, दुखी तब होते हैं जब स्वयं को खाली अनुभव करते हैं । लेकिन जो स्वयं को सदा सम्पन्न अनुभव करते हैं वे हर कारण को निवारण में बदल कर संतुष्ट रहने और सबको संतुष्ट करने वाली संतुष्टमणि बन जाते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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