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 13 / 12 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *बाप समान सच्चा सेवाधारी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *आज्ञाकारी होकर रहे ?*

 

➢➢ *"ड्रामा में जो सीन चलती है, वही राईट है" - यह निश्चय रहा ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *बाप के संस्कारों को अपना निजी संस्कार बनाया ?*

 

➢➢ *आत्मिक स्थिति में स्थित रह अपने रथ द्वारा कार्य करवाया ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *चारों और ख़ुशी के बाजे बजाये ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे -  तुम्हे अथाह ईश्वरीय सुख मिला है इसलिए तुम्हे मायावी सुखो की परवाह नही करनी है वह सुख काग विष्ठा समानं है"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... रेत में बून्द पानी से सुख के पीछे सदा व्यथित और व्याकुल रहे... अब *ईश्वर पिता अथाह सुखो को हथेली पर सजाये बच्चों के लिए सौगात ले आया है.*.. अब क्षणिक सुख के मायावी जाल में न फंसो... पिता की सारी खाने बच्चों के लिए है... जिसके आगे सब कुछ फीका फीका सा है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा मै आत्मा इतना सुख इतनी ख़ुशी इतना आनन्द जीवन में कभी पाऊँगी सोचा ही न था... *प्यारे बाबा न जाने किस पुण्य ने आपसे मिला दिया और सच्चे सुखो से मेरा दामन भर दिया.*.. कभी ख़ुशी की प्यास से व्याकुल थी और आज आपसे मिल दरिया बन सब पर लुटा रही हूँ...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सारी दुनिया जिसे जार जार पुकार रही वह पिता शिक्षक और सतगुरु रूप में अपनी सारी दौलत लिए आप बच्चों के सम्मुख है... इस महान नशे में झूम जाओ... *भगवान मिल गया जब पिता रूप में तो और क्या चाहत बाकी रही.*.. उसकी मीठी महकती यादो में अथाह आनन्द को जी लो...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अपनी खुशनसीबी पर मोहित हो चली हूँ... छोटे छोटे सुखो की चाहत में खपने वाली अनाथ इंसान से *अविनाशी सुखो को बाँहों में भरने वाली मुस्कराती सनाथ अविनाशी मणि बन दमक उठी हूँ.*.. कितना प्यारा मीठा सा मेरा भाग्य है...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब दुनियावी मृग मरीचिका से वेभवो में न उलझो... *ईश्वर पिता की सुख भरी खानो का आनन्द लूटो.*.. ईश्वर पिता के सम्मुख मिलन का और उसके सारे खजानो का भरपूर वैभव सम्रद्धि बाँहों में भर चलो... जितनी चाहे उतनी अमीरी अपने नाम लिखवा लो...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय बुद्धि को पाकर कितनी भाग्यवान हो चली हूँ... *झूठे दुखो से विरक्त होकर सच्चे ईश्वरीय सुखो में मुस्करा रही हूँ.*.. ईश्वर पिता की सारी दौलत की मालकिन बनकर... अपने मीठे प्यारे भाग्य को देख देखकर निहाल हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा पुराने संस्कारो से मुक्त हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  संगम युग एक बाबा के संग रहने का युग है... प्रीत बुद्धि बन *एक बाप संग बुद्धि योग* लगाना है... मैं आत्मा कई जन्मों से लोहे का फूल बनी हुई थी... मैं आत्मा व्यर्थ, पुराने संस्कारों के कारण लोहे के समान कड़ी हो गई थी... मुझ आत्मा में विकारों का जंग लग गया था...

 

➳ _ ➳  परम प्रिय परम पिता परमात्मा ने आकर मुझ आत्मा को *ज्ञान, योग की भट्टी में तपाया*... बाबा ने श्रीमत की हथोड़ी से ठोककर मुझ आत्मा के कड़े पुराने संस्कारों, व्यर्थ संकल्पों को ख़तम कर दिया... मुझ आत्मा का देह अभिमान, देह के सम्बन्ध, देह की दुनिया का आकर्षण ख़त्म कर दिया...

 

➳ _ ➳  मुझ आत्मा को बाबा ने दिव्य गुण रुपी फूलों की वर्षा में नहलाया... अब मैं आत्मा *रियल खुशबूदार गुलाब* बन गई हूँ... नेचुरल गुलाब बन गई हूँ... अब मुझ आत्मा रुपी गुलाब के पुराने संस्कार, पुराने देह के सम्बन्धियों रूपी पत्ते सहज ही एकदम फट से छट जाते हैं... और फिर मैं आत्मा बीजरूप अवस्था में स्थित हो जाती हूँ...

 

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा सदा आत्मिक स्वरूप में स्थित रहती हूँ... बीजरूप अवस्था में रहकर बीजरूप बाप के याद में रहती हूँ... अब मुझ आत्मा के संस्कार बाप समान बनते जा रहें हैं... जैसे बाप सदा *विश्व-कल्याणकारी, परोपकारी, रहमदिल, वरदाता* हैं... ऐसे ही मुझ आत्मा के संस्कार नेचुरल बनते जा रहें हैं...

 

➳ _ ➳  अब मुझ आत्मा को *श्रेष्ठ संस्कारों की चाबी* मिल गई है... जिससे स्वतः चलते रहती हूँ... अब मुझ आत्मा के संकल्प, बोल और कर्म स्वतः संस्कारो प्रमाण चल रहें हैं... अब मुझ आत्मा को मेहनत करने की ज़रूरत नहीं रहती है... अब मैं आत्मा बाप के संस्कारो को अपना निजी संस्कार बनाकर व्यर्थ व पुराने संस्कारो से मुक्त हो गई हूँ...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- आत्मिक स्थिति में स्थित रह अपने रथ(शरीर) द्वारा कार्य करा सच्चे पुरुषार्थी बनना"*

 

➳ _ ➳  *मैं आत्मा स्वराज्य अधिकारी हूँ...* इस शरीर में निवास करने वाली रथी हूँ... इस  शरीर द्वारा काम कराने वाली... इस शरीर की मालिक हूँ...  अपनी सभी स्थूल और सूक्ष्म कर्मेन्द्रियों की भी मालिक हूँ... सभी कर्मेन्द्रियाँ मेरे ऑर्डर प्रमाण चलती हैं...

 

➳ _ ➳   ये शरीर भारी हैं, जड़ हैं... मैं आत्मा तो अत्यंत हल्की हूँ... एक चैतन्य शक्ति हूँ... *ये शरीर मेरी रचना हैं...* ये शरीर नश्वर हैं, विनाशी हैं... मैं आत्मा तो अजर, अमर, अविनाशी हूँ... हमेशा थी, हैं और रहूँगी... मुझ आत्मा ने कई शरीर बदले है... और अब इस शरीर में बैठ... सृष्टि रंगमंच पर अपना पार्ट प्ले कर रही हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा साक्षी हो अपने शरीर के द्वारा हर कर्म करवाती हूँ...  *ये शरीर मेरा इंस्ट्रूमेंट हैं...* सदैव आत्मिक स्थिति में स्थित रह... इस शरीर से हर कर्म करवाती हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं रथी अपने रथ द्वारा कर्म करवाते सच्ची-सच्ची पुरषार्थि बनती जाती हूँ... देही अभिमानी स्थिति में स्थित रहने से मेरा कनेक्शन शिवबाबा से स्वतः ही जुड़ा रहता हैं... मेरा हर कर्म परफेक्ट अथवा सतकर्म बनता जाता हैं... मुझ आत्मा ने ईश्वरीय पढ़ाई का पहला-पहला पाठ... *आत्म अभिमानी स्थिति में रह हर कर्म करवाना... ये अच्छी तरह पक्का कर लिया हैं...*

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *बाप के संस्कारों को अपना निजि संस्कार बनाने वाले व्यर्थ वा पुराने संस्कारों से मुक्त होते हैं...  क्यों और कैसे?*

 

❉   बाप के संस्कारों को अपना निजि संस्कार बनाने वाले व्यर्थ वा पुराने संस्कारों से मुक्त होते हैं क्योंकि... कोई भी *व्यर्थ संकल्प वा पुराने संस्कार देह अभिमान* के सम्बन्ध के कारण से ही उत्पन्न होते हैं। लेकिन!  आत्मिक रूप के सभी संस्कार बाप समान होंगे।

 

❉   अतः पुराने संस्कारों से मुक्त रहने के लिये हम स्वयं की देहदेह के सभी पदार्थोंदेह के सभी सम्बन्धों व देह अभिमान के सभी साधनों से उत्पन्न होने वाले व्यर्थ व पुराने संस्कारों को *आत्मिक संस्कारों में परिवर्तित* करने का पूर्ण रूपेण भरसक प्रयास करेंगे।

 

❉   अपने देह अभिमान के सभी कारणों को पुरुषार्थ करके दैवी संस्कारों में परिवर्तन करके पूर्ण रूप से समाप्त करेंगे। अपने *मन व बुद्धि में व्यर्थ संकल्पों की रचना* के निर्माण को स्थगित कर देंगे तथा नव समर्थ व सात्विक संस्कारों के निर्माण हेतु समर्थ संकल्पों की नवीन रचना करेंगे।

 

❉    जिस प्रकार से बापदादा सदा विश्वकल्याणकारी हैं। वह सभी दिव्य गुणों से परिपूर्ण हैंउसी प्रकार से हम आत्माओं!  को भी *सभी दिव्य गुणों से परिपूर्ण बनना* है। जैसे हमारे परम पिता परमात्मा अर्थात!  हमारे बाबा सदा परोपकारी हैं, रहमदिल हैं तथा सदा ही वरदाता के रूप में स्थित रहते हैं। वैसे ही हम आत्मायें भी स्वयं के नेचुरल रूप के बन जायें अर्थात!

 

❉     हमारे संस्कार भी बाप समान दिव्य संस्कार बन जायें। संस्कार बनना अर्थात!  संकल्प बोल और कर्म में स्वतः उसी प्रमाण चलना क्योंकि *जीवन में संस्कार एक चाबी के समान* होते हैं। जो एक बार भर देने से स्वयं ही स्वतः चलते रहते हैं। फिर मेहनत की जरुरत नहीं रहती।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *आत्मिक स्थिति में स्थित रह अपने रथ ( शरीर ) द्वारा कार्य कराने वाले ही सच्चे पुरुषार्थी हैं... क्यों और कैसे* ?

 

❉   बाबा की पहली पहली श्रीमत वा डायरेक्शन ही यही है कि देह सहित देह के सब संबंधों को भूल मामेकम याद करो । क्योंकि *अगर देह को याद रखेंगे तो देह का बहुत बड़ा संसार है* । इसलिए बाबा कहते इससे भी निवृत बनो । खुद का यह जो शरीर है यह प्रवृति भी हमें नीचे खींचती है इसलिए इसे भी परिवर्तन करके देही बनाना है । इसके लिए जरूरी है निरंतर आत्मिक स्थिति में स्थित रहना और इस देह को रथ समझ कर इससे कार्य कराना । यही सबसे बड़ा पुरुषार्थ है ।

 

❉   आत्मिक स्थिति में स्थित तभी रह सकेंगे । जब निरंतर अशरीरी बनने का ही चिंतन और मनन बुद्धि में चलता रहेगा तथा अशरीरी बंनने का ही अभ्यास करते रहेंगे । *अशरीरी बनने का निरंतर अभ्यास ही वास्तव में राजयोग है* । क्योंकि राजयोग का अर्थ ही है इस शरीर से परे अपनी स्व स्मृति में स्थित होना । एक मैं आत्मा और एक मेरा पिता परमात्मा इस स्थिति में रहकर डेड साइलेन्स का अनुभव करना । यह अनुभव करने वाले ही आत्मिक स्मृति में स्थित रह अपने ( रथ ) द्वारा कार्य करने वाले सच्चे पुरुषार्थी कहलाते हैं ।

 

❉   देह अभिमान में आने से हर कर्म विकर्म बनता है क्योकि विकारों के वशीभूत हो कर किया जाता है । और *देही अभिमानी बन हर कर्म करने से वह कर्म अकर्म हो जाता है* । कर्मों की इस गुह्य गति को ध्यान में रख जो देही अभिमानी बन हर कर्म करते हैं वे देह का आधार लेकर देह द्वारा कर्म करते हुए भी कर्म के बंधन से मुक्त रहते हैं । तो ऐसे आत्मिक स्मृति में स्थित रह अपने रथ द्वारा कर्म कराते हुए भी कर्म के प्रभाव में ना आने वाले ही वास्तव में सच्चे पुरुषार्थी हैं ।

 

❉   जैसे सितारे आकाश में अपने अपने स्थान पर चमकते रहते हैं । वैसे ही हम आत्माएं भी ब्रह्म तत्व में जाकर बाप के साथ साइलेंस की शक्ति का अनुभव कर सकते हैं । *किन्तु साइलेन्स की शक्ति का अनुभव तभी होगा जब साइलेन्स में निरन्तर रहने का अभ्यास होगा* । साइलेन्स की शक्ति जैसे जैसे बढ़ती जायेगी । आत्मिक स्थिति में स्थित रहना एकदम सहज अनुभव होने लगेगा । और जितना आत्मिक स्मृति में रहने का अभ्यास पक्का होगा अपने रथ ( शरीर ) द्वारा कार्य कराना भी सहज होगा । यही सच्चा पुरुषार्थ है ।

 

❉   जितना स्वयं को आत्मा निश्चय करने तथा सर्व को आत्मा देखने का अभ्यास पक्का करेंगे उतना आत्मिक स्मृति में रहना सहज होता जायेगा । और जब हर कर्म करते आत्मिक स्मृति बनी रहेगी तो कोई भी कर्म विकर्म नही बनेगा । क्योकि स्वयं को आत्मा रथी समझ जब इस शरीर रूपी रथ से कार्य करायेंगे तो कर्मेन्द्रियां कभी भी चलायमान नही होंगी । *कर्मेन्द्रियों का राजा बन जिन्हें कर्मेन्द्रियों से अपनी इच्छानुसार कार्य करवाना आ जाता है* । वही स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी बनने वाले सच्चे पुरुषार्थी कहलाते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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