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 08 / 08 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ ईश्वरीय सर्विस में ×थके× तो नहीं ?

 

➢➢ अच्छा टीचर बन आप समान बनाने की सेवा की ?

 

➢➢ कोई भी ×देहधारी में ममत्व× तो नहीं रखा ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ कम शब्दों द्वारा ज्ञान के सर्व राजों को स्पष्ट किया ?

 

➢➢ दिल से बाबा कह ख़ुशी और शक्ति को प्राप्त किया ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢  खुदाई खिदमतगार बनकर रहे ?

 

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➳ _ ➳  http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/08.08.16-VisheshPurusharth.pdf

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - मनसा वाचा कर्मणा किसी को भी दुःख नही दो कभी किसी पर गुस्सा नही करो प्यार बहुत मीठी चीज है इससे किसी को भी वश कर सकते हो"

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... प्यार के सागर के दिल की मणि हो तो मीठे बन प्यार से मुस्कराओ... हर दिल को पिता जेसे प्यार से सहलाओ... सबके सहयोगी बन सदा का दिल जीतो... मीठे बोलो की टोली खाते रहो और खिलाते रहो... और मीठी वाणी से मीठे पिता का पता दे आओ...

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा कितनी मीठी और प्यारी बन चली हूँ... हर दिल की राहत हो चली हु... सारा विश्व मेरा परिवार है... सब मेरे अपने ही आत्मा भाई है... इस सुंदर भाव में डूबकर सदा की मीठी हो गयी हूँ...

❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... सारी दुनिया दुखो में डूबी हुई निढाल हो चली है... आप प्यार भरी मिठास से उनमे नव जीवन का संचार करो... प्यार के मरहम से उनके दुखो को दूर करो... मनसा वाचा कर्मणा सुख देकर उनके थके तनमन को आनन्द से भर चलो... मा प्यार सागर बन प्यार का दरिया बहाओ...

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपके मीठे साये में प्रेम से ओतप्रोत हो रही हूँ... सब पर प्यार लुटाती जा रही हूँ... सबपर सुखो की वर्षा कर दुखो से मुक्त कर रही हूँ.... मा प्रेमसागर बन प्रेम के झरनो में सबको भिगो रही हूँ...

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे आप बड़े वाले देवता हो... आपको सबको प्यार देना है सबका ध्यान रखना है सबकी सम्भाल करनी है... ईश्वर के बच्चे हो सबको खुशियां देने के निमित्त हो... सारे विश्व को खुशियो से भर दो... हर आत्मा को प्रेम से सींच कर खुशहाली दो...

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा प्रेम धारा बनकर सबकी मीठी पालना कर रही हूँ... मेरा पोर पोर प्यार में डूब रहा है और यह प्रेम तरंगे पूरे विश्व में फेला कर सुखो का कारवां ला रही हूँ.... चारो और सुख और प्रेम बिखरा है...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - ईश्वरीय सर्विस में तत्पर रहना"

➳ _ ➳  मैं आत्मा मस्तक में जगमगाती दिव्य ज्योति हूं...  मुझ आत्मा को मेरे परमपिता परमात्मा शिव बाबा ने दिव्य ज्ञान रुपी तीसरा नेत्र दिया है... मैं आत्मा जान गई हूं कि मुझे ये शरीर सेवार्थ मिला है... इस धरा पर मैं आत्मा मेहमान हूं... मैं इस साकारी लोक में पार्ट बजाने आयी हूं... स्वयं परमपिता परमात्मा ने मुझ आत्मा को अपने विश्व परिवर्तक के कार्य के निमित्त चुना है... मैं आत्मा पदमापदम भाग्यशाली हूं... मैं आत्मा ईश्वरीय सेवा के निमित्त हूं... ईश्वरीय सेवा मिलना बहुत बड़ी लाटरी है... अपना भाग्य बनाना है... मैं आत्मा सदैव ईश्वरीय सेवा के लिए तत्पर रहती हूं... मैं आत्मा देह से न्यारी होकर अपने आत्मिक स्वरुप में रह सेवा करती हूं... मैं आत्मा कर्म के प्रभाव से न्यारी और प्यारी रहती हूं... मैं आत्मा दिन रात सर्विस के लिए ऐवररेड़ी रहती हूं... ज्ञानसागर बाप सुप्रीम टीचर बन मुझ आत्मा की झोली ज्ञान रत्नों से भरपूर करते है... मुझ आत्मा को पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बनाते हैं... नया जीवन दे हीरे तुल्य बनाते हैं... मैं आत्मा बाप की श्रीमत पर चल श्रेष्ठाचारी बनती हूं... मुझ आत्मा भी अपने सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को बाप का परिचय देती हूं... ज्ञान धन का दान देती हूं... मैं आत्मा बाप का परिचय देकर आप समान बनाने की सेवा करती हूं...

❉   ड्रिल - याद का बल जमा करना"

➳ _ ➳  आज दुनिया में सब दुःखी हैं अपने किए विकर्मों के कारण... जो पिछले 63 जन्मों से करते आ रहे हैं... देहभान में रहकर विकर्म करते करते पतित बन गए... अपनी असली पहचान भूल गए... स्वयं परमपिता प्यारे बाबा ने हमें स्मृति दिलाई व सत् का परिचय दिया... मैं देह नही देही हूं... मैं आत्मा अपनी कर्मेन्द्रियों की मालिक हूं... स्वराज्याधिकारी हूं... मैं आत्मा अजर, अमर, अविनाशी हूं... मैं आत्मा सदा जागती जोत हूं... चमकता अजब सितारा हूं... ज्योतिर्बिंदु हूं... मुझ आत्मा के पिता भी सुप्रीम बिंदु है... स्वयं परमपिता परमात्मा ने ही मुझे अज्ञान निद्रा से जगाकर ज्ञान का तीसरा नेत्र दिया है... सोझरे में लाये है... ज्ञान की रोशनी दिखा रहे हैं... अपने को आत्मा समझ परमात्मा को याद करती हूं... याद से ही मुझ आत्मा पर लगी कट उतरती है... मैं आत्मा याद से ही विकर्मों का विनाश करती हूं... याद से ही मुझ आत्मा में बल भरता हैं... मैं आत्मा शक्तिशाली बनती जाती हूं... याद से ही मैं आत्मा मीठी व शुद्ध होती जा रही हूं... मुझ आत्मा का अब देहधारियों से मोह नही रहा है... अभी तक देहधारियों से मोह रख दुःख ही पाए हैं... ये देह व देह के सर्व सम्बंध विनाशी है... कब्रदाखिल हैं... इसलिए मैं आत्मा बस अविनाशी बाप की याद में ही रहती हूं...

❉   "ड्रिल - खुशी और शक्ति से सम्पन्न स्थिति का अनुभव करना"

➳ _ ➳   मैं आत्मा खुशबनसीब हूं... पदमापदम भाग्यशाली हूं... सारा संसार जिसकी एक झलक पाने को तरस रहा है... इधर उधर भटक रहा है... वहीं प्राणों से प्यारे  प्रिय प्राणेश्वर शिव बाबा ने कोटो मे कोई व कोई मे भी कोई से चुनकर मुझे अपना बच्चा बनाया... मुझ आत्मा ने कभी स्वप्न में भी नही सोचा था कि आप से ऐसे मिलन मनाऊंगी... बाबा मैं आत्मा आपकी गोद में बैठ अगाध प्रेम पाती हूं... अपने प्यारे शिव बाबा से मिलन मना मैं आत्मा वरदानों से झोली भरती हूं... परमपिता परमात्मा का मैं आत्मा बच्चा बनते ही वर्से की अधिकारी हूं... मैं आत्मा  परमात्म शक्तियों और सर्व खजानों से भरपूर हूं... मुझ आत्मा के प्यारे शिव बाबा ने एक जादुई गोल्डन चाबी दी है... बस मैं आत्मा दिल से अपने प्यारे बाबा को याद करती हूं... मुझ आत्मा के दिल में बस बाबा ही समाए हुए हैं... 'मेरा बाबा' दिल से कहते ही खुशी व सर्वशक्तियों से सम्पन्न स्थिति का अनुभव करती हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं यथार्थ और शक्तिशाली आत्मा हूँ ।"

➳ _ ➳  मैं आत्मा बाप के डायरेक्शन पर चलने वाली परमात्मा की संतान हूँ... मैं आत्मा यहाँ इस धरा पर आकर अपना पार्ट बजाती हूँ... मैं आदि सनातन देवी देवता धर्म की स्थापना में श्रीमत पर चलने वाली बाबा की मददगार बच्ची हूँ...

➳ _ ➳  मैं आत्मा गुणों के सागर की संतान सर्व गुणों में सम्पन्न  हूँ... मैं आत्मा ज्ञान को धारण करने और कराने वाली हूँ... मैं तीव्र पुरुषार्थी हूँ... मैं एकरस स्तिथि में स्तिथ रहने वाली निश्चय बुद्धि आत्मा हूँ...

➳ _ ➳  मैं आत्मा कम शब्दों में ज्ञान के सर्व राज़ों को स्पष्ट करने वाली बाबा की सेर्विसेबल बच्ची हूँ... मैं सदा अपनी निर्वाण स्तिथि में स्तिथ रहने वाली आत्मा हूँ... निर्वाण स्तिथि में स्तिथ होकर वाणी में आते ही मैं आत्मा अपना हर शब्द यथार्थ वा शक्तिशाली होने का अनुभव कर रहीं हूँ...

➳ _ ➳  मैं यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मुझ आत्मा की व्यर्थ वाणी आटोमेटिक ही समाप्त हो गयी है... मैं आत्मा विस्तार को सार में समाने में परिपूर्ण हो गयी हूँ...

➳ _ ➳  मैं हज़ार शब्दों के रहस्य को भी एक शब्द में समाकर ज्ञान के सर्व राज़ों को स्पष्ट करने में निमित्त बनने का अलौकिक अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा शक्तिशाली स्तिथि का निरंतर अनुभव कर रहीं हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  कम शब्दों द्वारा ज्ञान के सर्व राज़ों को स्पष्ट करने वाले यथार्थ और शक्तिशाली होते हैं...  क्यों और कैसे?

❉   कम शब्दों द्वारा ज्ञान के सर्व राज़ों को स्पष्ट करने वाले यथार्थ और शक्तिशाली होते हैं, क्योंकि कोई भी चीज़ जितनी अधिक शक्तिशाली होती है, उतनी ही उस चीज़ की क्वान्टिट्टी अर्थात् उसकी मात्रा कम होती है। अर्थात जितनी किसी चीज़ की मात्रा  कम होगी उतनी ही वो चीज अधिक वैल्युएबल होगी। उतनी ही श्रेष्ठ होगी।

❉   ऐसे ही जब हम अपनी निर्वाण अवस्था की स्थिति में स्थित हो कर, अपनी वाणी में आयेंगे तोउस समय हमारे शब्दों की मात्रा कम होगी। लेकिन वह शब्द अधिक यथार्थ और अधिक शक्तिशाली होंगें तथा विस्तार को सार में समाये हुए होंगे।

❉   उन एक ही शब्द में हजारों शब्दों का रहस्य समाया हुआ होगा, जिससे व्यर्थ की वाणी ऑटोमेटिकली समाप्त हो जायेगी। बाबा ने हम सभी आत्माओं को विस्तार को सार में परिवर्तित करके, व्यर्थ के विस्तार को क्षीण करने की शक्ति प्रदान की है।

❉   उस शक्ति को, अर्थात विस्तार को सार में समेटने की शक्ति को कार्य में लगाने से हमारे सभी प्रकार के व्यर्थ, जैसे कि...  व्यर्थ का चिन्तन करना, संशयात्मक बुद्धि का विकास होना आदि आदि सभी प्रकार के व्यर्थ बातों की संभावनाएं स्वयं ही समाप्त हो जायेंगी।

❉   इसलिये हमें सदा अपनी वाणी में सार युक्त और उचित शब्दों का ही प्रयोग करना चाहिये, क्योंकि उस एक शब्द में हज़ारों शब्दों का रहस्य समाया हुआ होता है। जिससे व्यर्थ की वाणी ऑटोमेटिकली समाप्त हो जायेगी। तब हम एक शब्द से ज्ञान के सर्व राज़ों को स्पष्ट कर सकेंगे, तथा विस्तार भी समाप्त हो जाएगा।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  दिल से बाबा कहना अर्थात ख़ुशी और शक्ति की प्राप्ति करना... क्यों और कैसे ?

❉   जैसे लौकिक रीति से जब किसी पर ग्रहचारी बैठती है तो ग्रहचारी को मिटा कर श्रेष्ठ तकदीर बनाने के लिए अनेक प्रकार की विधियां अपनाते हैं । कितना समय, कितनी शक्ति और सम्पत्ति खर्च करते हैं । फिर भी अल्पकाल की तकदीर बनती है । किन्तु हम ब्राह्मण बच्चे कितने पदमा
पदम सौभाग्यशाली हैं जो स्वयं भाग्य विधाता बाप इस समय हम बच्चों की श्रेष्ठ तकदीर बनाने के लिए आये हुए हैं । दिल से बाबा कहते ही ख़ुशी और शक्ति की प्राप्ति के अनुभव के साथ साथ विधाता द्वारा अविनाशी तकदीर की लकीर भी हम ब्राह्मण बच्चे खिंचवा लेते हैं ।

❉   जो दिल से बाबा बाबा कहते रहते हैं वे सर्व खजाने प्राप्त करने वाली भाग्यवान आत्मा बन जाते हैं । ज्ञान के विस्तार को चाहे वे जान ना भी सके और भले ज्ञान भी ना सुना सके लेकिन एक शब्द " बाबा " दिल से कहना और दूसरों को सुनाना ही विशेष आत्मा बना देता है और ऐसी आत्मायें ही दुनिया के सामने महान आत्मा के रूप में गायन योग्य बन जाती हैं । क्योकि एक " बाबा " शब्द ही सर्व खजानों की व भाग्य की चाबी है । और चाबी लगाने की विधि है दिल से जानना और मानना । इसलिए दिल से बाबा कहा तथा ख़ुशी और शक्ति की प्राप्ति का अनुभव किया ।

❉   दिल से बाबा कहना ही बाबा से समीप के सम्बन्ध द्वारा सर्व प्राप्तियों का अनुभव करना है । जो दिल में केवल एक दिलाराम बाप को बसा कर रखते हैं और दिल से बाबा बाबा कहते रहते हैं । जिन्हें सदा यह अनुभव होता है कि मैं तो हूँ ही बाबा का । वे सदा उमंग - उत्साह और ख़ुशी में एकरस रह, हर गुण वा शक्ति को अपना स्वरूप बना लेते हैं और अपनी शक्तिशाली स्थिति में स्थित हो शक्ति स्वरूप बन बाप द्वारा मिले सर्व खजानों और शक्तियों का अनुभव सर्व आत्माओं को कराते रहते हैं । वे स्वयं भी सदा ख़ुशी के खजाने से भरपूर रहते हैं तथा औरों को भी खुशियां लुटाते रहते हैं ।

❉   जो दिल से बाबा कहते हैं वे स्वयं को हमेशा बाप की याद की छत्रछाया के नीचे अनुभव करते हैं । उन्हें सदैव यह स्मृति रहती है कि हम अकेले नही हैं लेकिन बाप दादा सदा हमारे अंग संग है । कोई भी परिस्थिति अथवा समस्या आने पर वे घबराते नही बल्कि कम्बाइंड स्वरूप की स्मृति से बाप दादा को अपने साथ अनुभव करते हुए हर मुश्किल काम को भी सहज कर लेते हैं । एक बच्चा जैसे अपने सारे बोझ बाप को देकर हल्का रहता हैं ऐसे ही जो दिल से बाबा बाबा कहते रहते हैं उनके सब बोझ बाप स्वयं अपने सिर पर ले लेते हैं और वे ख़ुशी तथा शक्ति से सम्पन्न बन सदा हल्के हो उड़ते रहते हैं ।

❉   दिल से बाबा कहने वाले देह अभिभान को छोड़ सदा अपने वास्तविक स्वरूप की स्मृति में स्थित हो कर अर्थात अशरीरी स्थिति में स्थित हो कर निरन्तर एक बाप की याद में मगन रहते हैं इसलिए उन्हें हर कदम पर परमात्म मदद मिलती रहती है । परमात्म मिलन और परमात्म प्यार का अनुभव उन्हें घड़ी घड़ी ख़ुशी और शक्ति की प्राप्ति करवाता रहता है । परमात्म अनुभूति का यह अलौकिक  अनुभव करते हुए और हर कर्म करते परमात्म मिलन का आनन्द लेते हुए वे निरन्तर अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति में खोये रहते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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