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 22 / 12 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *सवेरे उठते ही बाबा को प्यार से गुड मोर्निंग कहा ?*

 

➢➢ *अच्छी सर्विस करने के साथ साथ दिल व जान से बाप को याद किया ?*

 

➢➢ *किसी देहधारी के नाम रूप में तो नहीं अटके ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *आपस में एक दो की विशेषता को देखा और उसका वर्णन किया ?*

 

➢➢ *समय को बचाने वाले तीव्र पुरुषार्थी बनकर रहे ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢ *आज बाकी दिनों के मुकाबले एक घंटा अतिरिक्त °योग + मनसा सेवा° की ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे - सवेरे सवेरे उठकर शिवबाबा से गुडमॉर्निंग जरूर करो उठते ही शिवबाबा की याद आये किसी देहधारी की नही"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... सवेरे सवेरे अपने सच्चे मीठे और प्यारे बाबा को गुडमोर्निग अवश्य करो... *जनमो के बाद जो मीठा बाबा मिला है उसकी मीठी यादो के अनन्त सुख में खो जाओ.*.. मीठे पिता को ही जीओ और उसकी यादो में वेसा ही खुबसूरत बन चलो...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अब शरीर के सारे नातो से न्यारी होकर मीठे बाबा की यादो में खोयी हूँ.... *बाबा ही मेरा संसार है.*.. बाबा से ही जीवन का सवेरा है बाबा ही मेरे जीवन का आधार है इस नशे में डूबी हुई हूँ...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे...अब देहधारियों को नही... अपने सच्चे सच्चे पिता को ही हर पल याद करो... *ये यादे ही सुनहरे सुखो से दामन सजाएंगी.*.. जीवन को सच्चे प्यार और मधुरता से छलकायेगी... सवेरे उठकर मीठे बाबा को यादो में बसाओ...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा कितनी महान भाग्य से सजी हूँ की सवेरे सवेरे उठकर ईश्वर पिता को गुडमॉर्निंग कर रही हूँ... मेरी यादो स्वयं भगवान समाया है... अब इंसानी रिश्तो से ऊपर उठकर... *मै भगवान को चाहने वाली उसकी यादो में जीने वाली खुशनसीब आत्मा हूँ*....

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब सच्ची यादो का छलकता मौसम आ चला है... भगवान स्वयं धरती पर बच्चों के आकर्षण में बन्ध उतर चला है तो सच्चे प्यार के मधुमास में खो जाओ.... *सवेरे सवेरे सच्चे माशूक की सच्ची बेपनाह मुहोब्बत में गहरे डूब जाओ.*..

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सच्चे प्यार को पाकर कितनी प्यार भरी हो गयी हूँ... कभी धरती की मिटटी से खेलने वाली आज आसमानी माशूक की बाँहों में झूल रही हूँ... *सवेरे मीठा माशूक मुझसे मिलने चला आये और मै आत्मा उसकी बाँहों में समाकर स्वयं को ही भूल सी जाऊँ.*..

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा होलीहंस हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा बिल्कुल रिलेक्स होकर बैठती हूँ... इस देह, देह की दुनिया से उपराम होकर अपने भृकुटी सिंहासन पर विराजमान हो जाती हूँ... मैं आत्मा स्वमानों स्थित रह देही अभिमानी बनने का अभ्यास कर रहीं हूँ... मैं शांत स्वरूप आत्मा हूँ... मैं आत्मा एक चमकता हुआ सितारा हूँ... मस्तक मणि हूँ... मैं *आत्मा ज्योति बिंदु स्वरूप हूँ*...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा भृकुटी सिंहासन से निकल चाँद, सितारों की दुनिया से पार अपने घर परमधाम जाती हूँ... मैं आत्मा बिंदु अपने प्यारे बिंदु बाबा के सामने बैठ जाती हूँ... बिंदु बाबा को निहारते हुए मैं आत्मा बिंदु बाप में खो जाती हूँ... अपनी सुध-बुध खोकर एक हो जाती हूँ... अब मैं आत्मा *बाप के गुणों, विशेषताओं को* स्वयं में महसूस कर रहीं हूँ...

 

➳ _ ➳  मुझ आत्मा का देह अभिमान, पुराने स्वभाव-संस्कार, सारे विकार ख़तम होते जा रहें हैं... मैं आत्मा अब इसी स्मृति में रहती हूँ... कि बाप को जानने वाली, बाप को पाने वाली कोटो में कोई आत्मा हूँ... मुझ आत्मा की *जिस्मानी दृष्टि, रुहानी दृष्टि में* परिवर्तित हो रही हैं... मुझ आत्मा की सर्व प्रकार की लौकिकता ख़तम होकर अलौकिक बनती जा रही हूँ...

 

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा गुणग्राही बन गई हूँ... मैं आत्मा होलीहंस बन हर एक की विशेषता को ही देखती हूँ और वर्णन करती हूँ... अब मैं आत्मा किसी की कमजोरी को नहीं देखती हूँ... न किसी से वर्णन करती हूँ... क्योंकि हम सब एक ही बाप के, एक ही परिवार के, एक ही माला के मणके हैं... मैं आत्मा होलीहंस बन विशेषताओं को ग्रहण करती हूँ... और कमजोरियों को मिटाते जाती हूँ... अब मैं आत्मा आपस में एक दो की विशेषता देखने और वर्णन करने वाली *श्रेष्ठता सम्पन्न होलीहंस बन गई* हूँ...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- समय को बचा कर तीव्र पुरषार्थी बन सदा विजयी बनना"*

 

➳ _ ➳  संगम के एक-एक सेकण्ड में पद्मो की कमाई हैं... संगम का ये बहुमूल्य समय पूरे कल्प में सिर्फ एक बार ही मिलता हैं... भाग्य बनाने की इस सुहावनी बेला को ऐसे ही व्यर्थ नहीं गवाँ सकते... *संगम की हर स्वाँस, हर पल को सफल करना ही हैं...*

 

➳ _ ➳   अभी नहीं तो कभी नहीं... समय को बचा कर, विजय माला के मणके बनना ही हैं... समय को सफल करने की कला द्वारा... अपनी सभी शक्तियों को इस्तेमाल करना हैं... *भगवान को साथ रख हर कर्म को सफल करना हैं...* 

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपने समय को बचा उसे सफल करने वाली तीव्र पुरषार्थी हूँ... *मैं विजय रत्न आत्मा हूँ...* कल्प पहले भी मुझ आत्मा ने समय पर विजय प्राप्त की थी... फिर से विजय प्राप्त करना हैं... समय से पहले सम्पूर्ण बनना ही है... बापदादा की आस पूरी कर... बाप को प्रत्यक्ष करना ही हैं... 

 

➳ _ ➳  मैं तीव्र पुरषार्थी आत्मा व्यर्थ से स्वयं को मुक्त रख... समय की सुनहरी धरोहर को बचा कर... अपने भाग्य निर्माण और सम्पूर्ण विश्व के कल्याण हेतु उसे सफल करती हूँ...  *सेकण्ड में बिंदी लगा कर...* समेटने की शक्ति का प्रयोग कर... और ड्रामा के राज को यथार्थ रीती समझ कर...  संगम के हर पल पर भविष्य सतयुगी राज्य की बादशाही की कहानी लिखना हैं...

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *आपस में एक दो की विशेषताओं को देखने और वर्णन करने वाले श्रेष्ठता सम्पन्न होली हंस होते हैं...  क्यों और कैसे?*

 

❉   आपस में एक दो की विशेषताओं को देखने और वर्णन करने वाले श्रेष्ठता सम्पन्न होली हंस होते हैं क्योंकि...  संगम युग पर हर बच्चे को *नॉलेज द्वारा कोई न कोई विशेष गुण अवश्य प्राप्त* है इसलिये! होली हंस बन कर हर एक की विशेषता को ही देखना है और वर्णन भी विशेषता का ही करना है।

 

❉   होली हंस कभी भी किसी के अवगुण को नहीं देखते हैं। उनकी नज़र सदा ही गुणों पर रहती है तथा *वे एक दूसरे से गुण ही ग्रहण करते हैं,*  क्योंकि! होली हंस में एक  विशेष गुण होता है कि...  वह कंकड़ को त्याग करके केवल मोती व रत्नों को ही स्वीकार करता है।

 

❉   इसी प्रकार हंस का ये गायन भी है कि...  अगर दूध में पानी मिला हो तोवह पानी को दूध से अलग कर देता है। अर्थात!  दूध दूध तो वह पी जाता है और पानी को छोड़ देता है। इसीलिये!  *हमें भी होली हंस के समान ही बनना है* और सार्थक बातों का व सार्थक चीजों का ही चिन्तन करना है।

 

❉    अगर कभी किसी बात का वर्णन करना भी पड़े, तो!  केवल दूसरों की विशेषताओं का ही वर्णन करना है। हमें आपस में *एक दूसरे की अच्छाई को देखते हुए श्रेष्ठता सम्पन्न* बनना है।  जिस समय किसी की कमजोरी देखते वा सुनते हैंतो! समझना चाहिये कि यह कमजोरी इनकी नहीं है बल्कि!  मेरी ही है क्योंकि...

 

❉   हम सब एक बाप ही बाप के बच्चे हैंतथा हम  एक ही परिवार के हैंव एक ही माला के मणके हैं। *जैसे अपनी कमजोरी को प्रसिद्ध नही करना चाहते* हैंऐसे दूसरे की कमी कमजोरी का भी वर्णन नहीं करना है। तभी तो!  हम होली हंस कहलायेंगे। होली हंस माना कि विशेषताओं को ग्रहण करना और कमजोरियों को मिटाना है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *समय को बचाने वाले तीव्र पुरुषार्थी ही सदा विजयी हैं... क्यों और कैसे* ?

 

❉   समय का खजाना संगम युग का सबसे अनमोल खजाना है । जो सर्व खजानों को जमा करने का आधार है । इसी आधार पर *समय के महत्व के कारण ही सदा विश्व सेवाधारी बनने से सेवा का प्रत्यक्ष फल खुशी का खजाना अखुट बन जाता है* । और जो सर्व खजानों के जमा का आधार अर्थात समय के श्रेष्ठ खजाने को सफल करते हैं । ऐसे सफलतामूर्त बनने वाले तीव्र पुरुषार्थी ही हर क्षेत्र में विजय प्राप्त करने वाले सदा विजयी आत्मा कहलाते हैं ।

 

❉   सबसे बड़े से बड़ा मूल्य है समय का । क्योंकि इस समय का गायन है अब नहीं तो कब नहीं । *संगम युग का एक सेकंड भी एक वर्ष के बराबर है* । इसलिए एक सेकंड भी व्यर्थ गंवाना अर्थात एक वर्ष गंवाना । चलते फिरते, रास्ते चलते दो बातें सुन ली, दो बातें कर ली यह भी समय व्यर्थ चला जाता है और जितना समय व्यर्थ गंवाते हैं उतना ही व्यर्थ के संस्कार पक्के होते चले जाते हैं । इसलिए संगम पर एक एक सेकण्ड के महत्व को जान जो हर सेकेण्ड सफल करते हैं वही तीव्र पुरुषार्थी सदा विजयी बनते हैं ।

 

❉   समय को व्यर्थ जाने से बचाने वाले सदा वर्तमान और भविष्य प्रालब्ध पाने के अनुभवी होते हैं । *उन्हें प्रालब्ध ऐसे स्पष्ट दिखाई देती है । जैसे स्थूल नेत्रों द्वारा कोई स्थूल वस्तु स्पष्ट दिखाई देती है* । ऐसे बुद्धि के अनुभव के नेत्र द्वारा अर्थात तीसरे दिव्य नेत्र द्वारा उन्हें अपनी भविष्य प्रारब्ध स्पष्ट दिखाई देती है । क्योंकि वे हर सेकण्ड, हर श्वांस को परमात्म याद और ईश्वरीय सेवा में सफल करते हुए हर कदम में पदमों से भी ज्यादा कमाई का अनुभव करते हैं । ऐसे तीव्र पुरुषार्थी ही सदा विजयी बनते हैं ।

 

❉   सदा सफलता का विशेष साधन है - हर सेकेंड को, हर श्वास को, हर खजाने को सफल करना । सफल करना ही सफलता का आधार है । किसी भी प्रकार की सफलता चाहे *संकल्प में, बोल में, कर्म में, संबंध संपर्क में सर्व प्रकार की सफलता अनुभव करने का सही साधन है समय को सफल करना* । जो समय को व्यर्थ गंवाने के बजाए उसे स्व के प्रति सफल करते हैं या अन्य आत्माओं के प्रति सफल करते हैं । वही तीव्र पुरुषार्थी विजयी रतन कहलाते है ।

 

❉   हम ब्राह्मणों का स्लोगन ही है - कम खर्च बाला नशीन । दुनिया वाले तो स्थूल धन में कम खर्च बाला नशीन बनने का प्रयत्न करते हैं । लेकिन *हम ब्राह्मणों के लिए संगम युग पर अनेक प्रकार के खजाने हैं* । जिनमें समय का खजाना बहुत ही वैल्यूएबल है । क्योंकि एक एक सेकंड में अनेक जन्मों की कमाई जमा कर सकते हैं । इस बात को स्मृति में रख जो समय को व्यर्थ नही गंवाते और हर सेकण्ड को बाप की याद में सफल करते हैं वही तीव्र पुरुषार्थी सदा विजयी बनते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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