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❍ 19 / 05 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ अमृतवेले √एकांत√ में बैठ बाप को प्यार से याद किया ?
➢➢ दुनियावी बातों को छोड़ √ईश्वरीय सेवा√ में लगे रहे ?
➢➢ देहधारियों से प्रीत न जोड़ √प्रीत एक बाप से√ रही ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ इस हीरे तुल्य युग में √हीरा देखने और हीरो का पार्ट√ बजाया ?
➢➢ वायुमंडल और विश्व को परिवर्तन करने के पहले √स्व परिवर्तन√ पर विशेष अटेंशन दिया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ आज बाकी दिनों के मुकाबले एक घंटा अतिरिक्त °योग + मनसा सेवा° की ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं पुरुषार्थी आत्मा हूँ ।
✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-
➳ _ ➳ आराम से बैठें और अपने विचारों को चेतनापूर्वक निर्मित करने का प्रयास करें... अपने आप को देखें... और विचार करें... मैं एक शक्तिशाली आत्मा हूँ...
➳ _ ➳ अपने विचारों की निर्माणकर्ता हूँ... मैं ही सभी संकल्पों की रचयिता हूँ... मेरे पास चुनाव की स्वतन्त्रता है... मुझ आत्मा के आस - पास चाहे कुछ भी हो जाए मैं चुनती हूँ स्थिरता को...
➳ _ ➳ चाहे कोई कुछ भी कहे मैं पसन्द करती हूँ स्थिरता को... और जैसे ही मैं आत्मा स्थिर बनी रहती हूँ परिस्तिथियां परिवर्तित होने लगती है... कोई भी विपरीत परिस्थिति अब मेरे मन पर प्रभाव नहीं डाल सकती है...
➳ _ ➳ अपनी हर प्रतिक्रिया मैं तय करती हूँ क्योंकि मैं शक्तिशाली आत्मा हूँ... मैं आत्मा अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति द्वारा अनेक आत्माओं का आह्वान कर रही हूँ और विश्व कल्याणकारी अवस्था का अनुभव कर रहीं हूँ...
➳ _ ➳ यह संगमयुग है हीरे तुल्य युग, पार्ट भी हीरो है, इसलिए मैं आत्मा आज अपने बाबा के समक्ष यह दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि जैसे जोहरी की नज़र सदा हीरे पर रहती है, उसी प्रकार मैं आत्मा भी ज्वेलर्स बन अपनी नज़र से पत्थर को न देख हीरे को देखूंगी...
➳ _ ➳ अर्थात मैं ब्राह्मण आत्मा अन्य आत्माओं की केवल विशेषतायें ही देखूंगी... इन्हीं संकल्पों के साथ मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मैं तीव्र पुरषार्थी बन अपनी शुभ भावना की किरणें सब तरफ फैला रहीं हूँ... वर्तमान समय इसी बात पर मुझ आत्मा की विशेष अटेंशन रहेगी ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चों - अभी विनाश का समय समीप है, इसलिए एक बाप से सच्ची प्रीत रखो किसी देहधारी से नही"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों अब सारे बिखराव को समेटो फेली सांसो को संकल्पों को एक पिता में समादो... कुछ साथ न जायेगा सब ठग कर यही खत्म हो जायेगा... सिर्फ इन यादो के सिवाय कोई साथ न निभाएगा... समय पूरा हो चला है...
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे मीठे से बच्चों देहधारियों से तो 2 युगों तक प्यार कर देख लिया... और इस झूठ के ठगी से प्यार में खुद को खत्म कर भी देख लिया... अब सच्चे पिता से सच्ची प्रीत निभाओ और इस प्रीत से जीवन को मधुमास सा खूबसूरत बनाओ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चों खेल अब खत्म होने की कगार पर खड़ा है विनाश आने को आतुर है... अब मेरी यादो में खो जाओ किसी वस्तु बैभव व्यक्ति से दिल न लगाओ... सब धोखा है इस झूठी दुनिया में सिर्फ मेरा और तुम्हारा रिश्ता ही बस सच्चा है...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चों सच्ची प्रीत मेरे सिवाय कोई दे न सकेगा सिवाय पिता के तुम्हे कोई सच्चा प्यार कर न सकेगा... सब फरेब है देह के रिश्ते देहधारी कोई साथ न निभाएगा... मेरे प्यार के सिवाय कोई पार न लगाएगा...
❉ मेरा बाबा कहे - मेने ही सच्चे जज्बातों का अहसास आप बच्चों को कराया है... मेरे ही अहसासो को दुनिया में खोज रहे हो... सच्चे जज्बात इस दुनिया में भला कैसे पाओगे वह तो पिता की समीपता में ही जी पाओगे... तो आओ मेरे प्यार भरी बाँहो में चले आओ...
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ बाप से सच्ची दिल रखनी है । आपस में एक दो के आशिक - माशूक नहीं बनना है । प्रीत एक बाप से जोड़नी है देहधारियों से नहीं ।
❉ कहा भी गया है - सच्चे दिल पर साहिब राजी । जो सच्चाई से सब बात को बताते है व कुछ भी छिपाते नही हैं तो खुशी व उमंग उत्साह में रहते हैं वो बाप के दिल पर राज करते हैं ।
❉ सच्चे बाप के साथ सच्चा ही रहना है । ये नही सोचना कि कोई देख थोड़ा रहा है । हम जो भी करते हैं वो भगवान के कैमरे में कैद हो रहा है । इसलिए कोई गल्ती होने पर साफ साफ बता देना है । बता देने पर व माफी मांग लेने पर बाबा माफ कर देते हैं ।
❉ आपस में एक दूसरे के आशिक माशूक नही बनना । एक दो के आशिक बनने से मोह हो जाएगा । सबसे एक जैसा प्यार रखना है । सब आत्मा आत्मा भाई भाई है व बाबा के मीठे बच्चे हैं ।
❉ देहधारियों से प्रीत नही रखनी । अभी तक देह भान में रह देहधारियों से प्रीत रखते ही तो दुःख ही दुःख पाएं है व गिरते आए । देह व देह के सर्व सम्बंध विनाशी है इसलिए इनसे प्रीत नही रखनी सिर्फ अविनाशी बाप से ही सर्व सम्बंध निभाने है व प्रीत रखनी है ।
❉ बाबा ही सच्चा सच्चा माशूक है व हम सब उसके आशिक । इसलिए सब सच्चे माशूक से ही प्रीत रखनी है जैसे लड़की की सगाई होने पर वो उससे कितनी दूर होती है बस उसकी याद में ही खोई रहती है । ऐसे ही हमारी प्रीत भी सच्चे माशूक के लिए ऐसी होनी चाहिए ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ इस हीरे तुल्य युग में हीरा देखने और हीरो पार्ट बजाने वाले तीव्र पुरुषार्थी होते हैं.... क्यों और कैसे ?
❉ जो बच्चे इस हीरे तुल्य संगमयुग की महत्ता को स्मृति में रखते हैं तो हर श्वास , संकल्प को सफल कर अपना जीवन हीरे तुल्य बनाते है व अपने को हीरो पार्टधारी समझ पुरुषार्थ में हमेशा आगे बढ़ते तीव्र पुरुषार्थी होते हैं ।
❉ इस संगमयुग की महिमा को स्मृति में रखते तो जो संकल्प आया उसे तभी पूरा करते व अपने को उसके निमित्त समझ व भाग्यशाली हीरो समझ हीरो पार्टधारी होते हैं । हरेक को शुभ भावना शुभ कामना देते पार्ट बजाते तीव्र पुरुषार्थी होते हैं ।
❉ जो बच्चे तीव्र पुरुषार्थी होते हैं उनकी नजर हमेशा हर आत्मा की विशेषताओं पर होती है जैसे जौहरी की नजर हमेशा हीरे पर रहती है । ऐसे ही संगमयुग है ही हीरे तुल्य व स्वयं को भी हीरो देखते व हीरे की तरह अपनी आत्मा के सातो गुणों की वायब्रेशनस फैला हीरो पार्टधारी होते हैं ।
❉ जो इस हीरे तुल्य संगमयुग पर ही सर्वशक्तिमान बाप को दिल का सच्चा साथी बनाकर ही अपने कौडी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बनाकर सदा हर्षित रहते है व अपने को हीरे समान बना हीरो पार्ट बजाते है वही तीव्र पुरुषार्थी होते हैं ।
❉ जो हर पल बाप का संग अनुभव करते हैं व श्रीमत रुपी हाथ पकड़ आगे बढ़ते है । ईश्वरीय नशे व भविष्य देवपद के नशे में रहते हैं । सदा याद में रहने से इस हीरे तुल्य युग में शुभ भावना शुभ कामना देते हरेक के पार्ट को एक्यूरेट देखते हीरा देखने व हीरो पार्ट बजाने वाले तीव्र पुरुषार्थी होते हैं ।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ वायुमण्डल वा विश्व को परिवर्तन करने के पहले स्व - परिवर्तन करो... क्यों और कैसे ?
❉ स्व परिवर्तन से वायुमण्डल वा विश्व को परिवर्तन तभी कर पायेंगे जब स्व -स्थिति से सर्व परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करेंगे और स्व-स्थिति द्वारा परिस्थितियों पर विजय तभी होगी जब देह का भान समाप्त होगा क्योकि यह देह भी पर है, स्व नहीं । तो जो सदा स्व - स्थिति में व अपने स्वधर्म में स्थित होगा वह सदा स्वयं भी सुख का अनुभव करेगा तथा औरों को भी करवाएगा ।
❉ विश्व-सेवा और स्व की सेवा दोनों का बैलेन्स रखने से ही सफलता की प्राप्ति होगी । अगर स्व - सेवा को छोड़ विश्व - सेवा करना चाहेंगे तो सफलता मिल नहीं सकती । इसलिए जब दोनों सेवायें साथ-साथ होंगी, मन्सा और वाचा दोनों सेवा इक्कठी होंगी तो मेहनत से भी बच जायेगे और सफलता भी प्राप्त होगी ।
❉ कोई भी संस्कार, स्वभाव वा बोल अगर यथार्थ नही है व्यर्थ है, तो यह पुराने स्वभाव संस्कारों का प्रभाव आत्माओं का परिवर्तन नही कर सकेगा इसलिए जब भी कोई सेवार्थ जाते हो तो पहले चेक करो कि स्व-स्थिति में स्थित होकर जा रहे हैं, हलचल में तो नहीं जा रहे हैं ? अगर स्वयं हलचल में होंगे तो सुनने वाले भी एकाग्र नही हो सकेंगे, अनुभव नही कर सकेंगे ।
❉ जब स्व के प्रति स्व-चिन्तक और औरों के प्रति शुभ-चिन्तक वृति रखेंगे तो स्व-चिन्तन अर्थात् मनन शक्ति और शुभ चिन्तक अर्थात् सेवा की शक्ति सहज ही अनेक आत्माओं का परिवर्तन कर देगी । क्योकि शुभचिन्तक भावना से जब ज्ञान का बीज धरती में डालेंगे तो वह बीज अवश्य फलीभूत होगा और अनेको आत्माओं का कल्याण कर विश्व परिवर्तन में सहायक बन जायेगा ।
❉ जैसे भाग्य में सभी अपने को आगे करते हो, वैसे त्याग में भी जब ‘ पहले मैं ' शब्द को आगे रखेंगे तो भाग्य की माला सबके गले में पड़ जायेगी । शुभ-चिन्तक और स्व- चिन्तक बन जब दूसरे को देखने की बजाए स्वयं को देखेंगे और सदैव इस स्लोगन को स्मृति में रखेंगे कि “ मुझे देखकर और करेंगे “ तो स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन सहज हो जायेगा ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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