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❍ 25 / 01 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °मरजीवा स्थिति° का अनुभव किया ?
‖✓‖ अच्छी रीति °पढाई° पडी ?
‖✓‖ °सम्पूरण पावन° बनने पर विशेष अटेंशन रहा ?
‖✓‖ °भाई-भाई की दृष्टि° का अभ्यास करते हुए लोकिक बन्धनों से तोड़ निभाया ?
‖✗‖ किसी की विशेषता के कारण उससे °विशेष स्नेह° तो नहीं रहा ?
‖✗‖ मुख से °हे इश्वर... हे बाबा° शब्द तो नहीं निकला ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ °विकारों के वंश के अंश° को भी समाप्त करने पर विशेष अटेंशन रहा ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ स्पीकर की सीट के साथ °सर्व अनुभवों की अथॉरिटी° का आसन लिया ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं सर्व समर्पण वा ट्रस्टी आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ विकारों के वंश के अंश को भी समाप्त करने वाली मैं सर्व समर्पण वा ट्रस्टी आत्मा हूँ ।
❉ पुराने स्वभाव - संस्कारों को त्याग कर , स्वयं को माया से सुरक्षित रख मैं सहज ही मायाजीत बनती जाती हूँ ।
❉ माया की कैचिंग पॉवर से बचने के लिए मैं विकारों को जड़ से समाप्त कर रही हूँ ताकि किसी भी विकार का कोई अंश मात्र भी ना रहे ।
❉ केवल एक परमात्मा बाप के साथ प्रीत की रीत निभाने वाली मैं सदा बाप की स्नेही आत्मा हूँ ।
❉ मैं आत्मा सदैव स्मृति का स्विच ऑन कर देह और देह की दुनिया से उपराम रहती हूँ ।
❉ बेहद की वैराग्य वृति द्वारा मैं पुराने स्वभाव - संस्कार रूपी बीज को जला कर समाप्त करती जाती हूँ ।
❉ अशुद्ध और व्यर्थ चिंतन के प्रभाव से मुक्त मैं देह के सूक्ष्म लगाव से भी न्यारी हूँ ।
❉ इस रावण राज्य की कोई भी परिस्थिति वा व्यक्ति जरा संकल्प रूप में भी मुझे हिला नही सकते ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - तुम्हारे मुख से कभी भी हे ईश्वर, हे बाबा शब्द नही निकलना चाहिए, यह तो भक्ति मार्ग की प्रैक्टिस है"
❉ सतयुग में सभी पावन देवी देवता अपरमअपार सुखों से भरपूर होते हैं इसलिए परमात्मा को याद करने की दरकार ही नही होती ।
❉ किन्तु जब यही पावन देवी देवता वाम मार्ग में आने से, विकारों में गिर कर पतित बनते हैं तो दुःखो की अनुभूति होती है ।
❉ और कलयुग अंत तक आते आते जब अपरमअपार दुखी होते हैं तो दुःखो को दूर करने के लिए भगवान को याद करते हैं ।
❉ मन्दिरों , मस्जिदों, गुरुद्वारों और अनेक तीर्थ स्थानों पर जा कर प्रार्थनायें करते हैं कि हे ईश्वर, हे प्रभु आओ और आ कर हमे दुःखो से छुड़ाओ ।
❉ हमारी पुकार सुन कर ही परम पिता परमात्मा ने अभी हमारे सन्मुख आ कर हमे भक्त से अपना बच्चा बना लिया है ।
❉ इसलिए बाप समझाते हैं कि तुम्हारे मुख से कभी भी हे ईश्वर, हे बाबा शब्द नही निकलना चाहिए, यह तो भक्ति मार्ग की प्रैक्टिस है ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ भाई-भाई की दृष्टि का अभ्यास करते हुए लौकिक बंधनों में तोड निभाना है ।
❉ सत का ज्ञान इस पुरुषोत्तम संगमयुग पर परमात्मा ने स्वयं अपने बच्चों को दिया व ज्ञान का तीसरा नेत्र खोला है । हम भगवान के बच्चें हैं इसलिए आत्मा-आत्मा भाई भाई है ।
❉ लौकिक बंधनों में रहते हुए सबको आत्मा-आत्मा भाई भाई की दृष्टि से देखते हुए आत्मिक स्थिति रखनी है व इससे दृष्टि शुद्ध व पावन रहती है ।
❉ गृहस्थ परिवार में रहते हुए यही दृष्टि रखनी है कि ये भी मेरा आत्मा भाई है व ऐसे देखने से दृष्टि विकारी नही होती है । सर्व सम्बंध निभाते हुए न्यारा व प्यारा रहना है ।
❉ स्त्री पुरुष भल आत्मिक दृष्टि से भाई बहन है , ये ज्ञान हम बच्चों को है। पर किसी बाहर के आदमी के सामने पुरुष को भाई , सास को बहन कह देंगे तो उनका माथा ठनक जायेगा । इसीलिए ये ज्ञान गुप्त है व सम्बंध भी गुप्त है । इसलिए युक्ति से चलना है ।
❉ ऐसा भी नही है बी. के. बन गए तो लौकिक सम्बंध छोड देने हैं व उनसे मुंह मोड़ लेना है । सब के साथ भाई भाई की दृष्टि रखते हुए व आत्मिक भाव रखते हुए जिम्मेवारी निभानी है ,बस फंसना नही है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ विकारो के वंश के अंश को भी समाप्त करने वाले सर्व समर्पण व ट्रस्टी बनकर रहना है... क्यों और कैसे ?
❉ बाबा हमें निरविकारी दुनिया में ले चलने के लिए आये है। वहाँ विकार न नाम मात्र भी नहीं होगा, वह सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया है।
❉ एसी दुनिया में जाने लायक हमें यहाँ ही बनना है, यही से हम आत्माओ को संस्कार भरकर जाना है। इसलिए अभी ही सम्पूर्ण निर्विकारी बनना है।
❉ अपने अन्दर की कमी कमजोरियों को पूरा चेक करना है, मोटे रूप के विकारो को तो जितना सहज है परन्तु सूक्ष्म रूप के जो कमी कमजोरिया है उनकी भी चेकिंग करके उन्हें भी समाप्त करना है।
❉ इन विकारो ने बहुत लम्बे समय से हमे घेरा हुआ है, अब बाबा की याद से इस एक जन्म में ही सब विकारो पर जीत पानी है, सूक्ष्म ते सूक्ष्म चेकिंग करके भी सबको निकालना है, कोई अंश मात्र भी न रह जाये नहीं तो उसके वंश फिर पैदा हो जायेंगे।
❉ जितना हम ट्रस्टी होकर रहेंगे, जितना आत्म अभिमानी बनने का अभ्यास होगा, जितना बाबा की याद में रहेंगे, मन को शुद्ध विचारो से भरपूर करेंगे, उतने विकारो पर जीत प्राप्त करते रहेंगे।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ किसी की विशेषता के कारण उससे विशेष स्नेह हो जाना - ये भी लगाव है... क्यों और कैसे ?
❉ किसी की विशेषता को देख उससे स्नेह रखना देह अभिमान में लाता है और देह का लगाव आत्मा से कोई ना कोई विकर्म करवाता रहता है ।
❉ किसी की विशेषता अथवा किसी गुण को देख उसकी तरफ आकर्षित होने से आत्मा का लगाव झुकाव उस व्यक्ति में चला जाता है जो आत्मा को न्यारा और प्यारा बनने नही देता ।
❉ परमात्म प्यार और पालना का अनुभव कर, वही खुश रह सकता है जो आत्म अभिमानी हो और किसी की विशेषता को देख उससे स्नेह रखने वाला उसके लगाव के कारण कभी आत्म अभिमानी नही बन सकता ।
❉ दूसरों की विशेषताओं से प्रभावित हो कर उनके प्रति आकर्षित होने वाले कभी भी मोहजीत और मायाजीत नही बन पाते इसलिए सदा माया से हार खाते रहते हैं और विघ्नों में फंस, सदा दुखी होते रहते हैं ।
❉ किसी की विशेषताओं से प्रभावित हो कर उससे स्नेह रखने वाली आत्मा सदैव प्रकृति के अधीन रहती है और कभी कर्मेन्द्रियजीत नही बन पाती और कर्मेन्द्रियों के धोखे में आ कर विकर्म करती रहती है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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