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❍ 23 / 09 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ ज़रा भी कोई बड़ा अथवा सूक्षम पाप न हो, इसका बहुत बहुत ध्यान रखा ?
➢➢ कोई भी चीज़ छिपाकर तो नहीं ली ?
➢➢ अशुद्ध अहंकार का त्याग किया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ याद की सर्चलाइट द्वारा वायुमंडल बनाया ?
➢➢ स्वयं को व दूसरों को डिस्टर्ब तो नहीं किया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ √शक्ति रूप से भाषण√ किया ?
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar-murli.com/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/23.09.16-VisheshPurusharth.htm
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - अभी इस दुनिया का होपलेस केस है सभी मर जायेंगे इससे ममत्व मिटाओ मामेकम् याद करो"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे... इस पुरानी खत्म होने के कगार पर खड़ी दुनिया से रगो को बाहर निकालो... सारा ममत्व मिटा दो... देह और देह के नातो से निकल आत्मा के भान में आ जाओ... सिर्फ मीठे बाबा की यादो में खो जाओ... यही यादे सदा का साथ निभाएगी और सुखो की दुनिया में ले जाएँगी...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा इस विकारी दुनिया से मन और बुद्धि को निकाल कर निर्मोही हो चली हूँ... आपकी मीठी यादो में खोकर इस विनाशी दुनिया को भूल चली हूँ... अब बाबा ही मेरा संसार है...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... अब देह व देह के भान में लिपटे नातो से उपराम बनो... और आत्मिक सुंदरता से सज चलो... इस विनाशी संसार में दिल न फंसाओ... वक्त से पहले देवताई गुणी शक्तियो से सज जाओ... मीठे बाबा की याद को हर साँस में पिरो दो... वही सच्चा सहारा है... और स्वर्ग में ले जाने वाला है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अपने सत्य स्वरूप और सतयुगी सुखो को जानकर झूठ के जंजालों से परे होती जा रही हूँ... समय और सांसो को मीठे बाबा पर ही लुटा रही हूँ... और विनाशी संसार के मोहपाश से मुक्त हो चली हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... यह शरीर के रिश्ते और ही गहरे गिराएंगे और गहरे दुखो के दलदल में उलझायेंगे... इनसे मन बुद्धि को बाहर निकाल ईश्वरीय यादो में स्वयं को पावन बनाओ... और ज्ञान और योग से सजकर देवताई स्वराज्य पा जाओ... इस विकारी विनाशी दुनिया से दिल न लगाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... आपके प्यार में मै आत्मा मोह से मुक्त होती जा रही हूँ... इन देह के खोखले नातो के प्रभाव से आजाद होती जा रही हूँ... और सच्ची मीठी यादो में झूम रही हूँ... और सतयुगी सुनहरे संसार में खोती जा रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - विकारमुक्त रहना"
➳ _ ➳ अभी तक तो व्यर्थ बातों में ही मन इधर उधर भटकता रहा है... वातावरण में नकारात्मकता होने से मन में भी व्यर्थ संकल्प चलते रहते हैं... जो बाहर परिस्थितियां है वही मन बुद्धि को आकर्षित कर रहे हैं... व्यर्थ की भागदौड़ में एक दूसरे से रेस लगा आगे बढ़ने में लगे हुए हैं... एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या द्वेष रख रहे हैं... वातावरण तमोप्रधान होने से रावण राज्य में माया का वार है... लोभ मोह ईर्ष्या द्वेष अंहकार विकारों के कारण विकर्म करते जा रहे हैं... अपना असली अस्तित्व भूल गए है... और सुख शांति के लिए भटक रहे हैं... स्वयं परमपिता परमात्मा आस पतित दुनिया में अपने वर्षों से बिछुड़े बच्चों को इस विकारी दुनिया से निकाल पावन बनाने के लिए आए हैं... मैं आत्मा सत्य को पहचान गई हूं... मैं ये देह नही देही हूं... मैं आत्मा मन बुद्धि की अधिकारी हूं... मैं स्वराज्याधिकारी आत्मा हूं... अपने को बिन्दु समझ बिंदु बाप को याद करती हूं... मैं आत्मा सृष्टि के आदि मध्य अंत के राज को जान गई हूं... मुझ आत्मा को पाप और पुण्य का ज्ञान समझ गई हूं... मुझ आत्मा पर 63 जन्मों के विकर्मो का बोझा है... मैं आत्मा एक बाप की याद में रह अपने विककारों को भस्म करती जा रही हूं... मुझ आत्मा को अब एक प्यारे बाबा की याद में ही रहना है... मुझ आत्मा को नए कर्मबंधन नही बनाने है... मैं आत्मा स्व पर अटेंशन रख हर कर्म प्यारे बाबा की याद में रह करती हूं... मैं आत्मा हर संकल्प चाहे अच्छा या बुरा सब बाबा को सच्चाई से बता रही हूं... मैं आत्मा एक बाबा की याद में रह अपने इस जन्म व पिछले जन्मों के विकर्मो को स्वाहा कर रही हूं... मैं आत्मा कर्मेन्द्रिय जीत बन अपने विकारों पर जीत पा रही हूं...
❉ "ड्रिल - सेवा बोझ न बने"
➳ _ ➳ मैं आत्मा रूहानी सेवाधारी हूं... मैं निमित्त आत्मा हूँ... करनकरावनहार शिव बाबा हैं... मैं आत्मा सदा ईश्वरीय सेवा में त्तपर हूँ... हर सेवा करते स्थिर और अपनी ऊँच स्थिति से... स्वयं में और दूसरों में ख़ुशी भरती हूँ... सेवा करते बाबा के साथ सदा कम्बाइंड हूँ... हर बात में सरल रहते... स्वयं से और सर्व से सन्तुष्टता का सर्टिफिकेट प्राप्त करती हूँ... मैं सफलतामूर्त आत्मा हूँ... हर सेवा के कार्य में बाबा मुझ निमित्त आत्मा को सफलता दिलाते हैं... बाबा मेरे द्वारा की हुई हर सेवा से मुझ आत्मा और अन्य आत्माओं को बेहद ख़ुशी का अनुभव कराते हैं... मैं आत्मा भी हर सेवा को बेफिक्र हो बहुत हल्के रह करती हूँ... सारा बोझ तो बाबा पर है... मैं तो बस निमित्त मात्र हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं विजयी रत्न आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳ मैं आत्मा दीपमाला का जगा हुआ दीपक हूँ... मुझ दीपक से सारा विश्व प्रकाशित होता जा रहा है... मैं आत्मा राज्य तिलकधारी हूँ... बाप की याद की स्मृति के तिलक से मैं आत्मा सम्पूर्ण बनती जा रही हूँ... मैं आत्मा आज अपने परम प्यारे शिवबाबा के समक्ष यह दृढ़ संकल्प करती हूँ कि मैं सदा बाप के साथ चमकता अमूल्य विजयी रत्न बनकर रहूंगी...
➳ _ ➳ यह संकल्प लेते ही मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मैं सर्वशक्तिवान बाप के साथ नौ दुर्गा स्वरूप धारण कर दृढ एकाग्र अविनाशी लाइट जलाकर रावण राज्य को समाप्त करती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा याद रूपी सर्चलाइट द्वारा सर्विस के स्थान को रोशन करती जा रहीं हूँ... यह याद रूपी सर्चलाइट वायुमंडल को स्वतः ही दिव्य बनाती जा रही है... मैं आत्मा याद रूपी सर्चलाइट को सदा रोशन रख यह अनुभव कर रहीं हूँ कि अनेक आत्माएं सहज ही प्रभु की शरण में आने लगे हैं...
➳ _ ➳ कम समय में हज़ार गुणा सफलता प्राप्त हो रही है... मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मैं सहज ही अपने हर कर्म में विजय प्राप्त कर हूँ... मैं आत्मा प्यारे बाबा द्वारा निमित्त बनाई गई सर्विसेबल बच्ची होने की सीट पर सेट हो बाबा को प्रत्यक्ष कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ याद की सर्चलाइट द्वारा वायुमण्डल बनाने वाले विजयी रत्न होते हैं... क्यों और कैसे?
❉ याद की सर्चलाइट द्वारा वायुमण्डल बनाने वाले विजयी रत्न होते हैं क्योंकि सर्विसएबुल आत्माओं के मस्तक पर विजय का तिलक पहले से ही लगा हुआ है। लेकिन! हमें जिस स्थान की सर्विस करनी है, उस स्थान पर हमें पहले से ही सर्चलाइट की रौशनी डालनी चाहिये।
❉ बाबा पहले से ही ऐसी विशेष आत्माओं के मस्तक पर विजयी भव का तिलक लगा देते है। सर्विसएबुल बच्चों की ये क़्वालिटी होती है कि वे बाबा के दिलतख्तनशीन होते हैं। उन बच्चों पर बाबा के हज़ार हाथों की छत्र छाया रहती है। वे बच्चे बाबा की छत्रछाया में रह कर स्वयं को सुरक्षित महसूस करते हैं।
❉ ऐसे सर्विसएबुल बच्चे बाबा की सर्चलाइट द्वारा सारे विश्व का वायुमण्डल सात्विक बना देते हैं। अपनी सर्चलाइट की रौशनी से सारे जग को रौशन करते हैं और विजयीरत्न बनते हैं। सारा जगत उनकी याद रुपी सर्च लाइट की रौशनी से प्रकाशित होता जा रहा है।
❉ क्योंकि बाबा की याद! की सर्चलाइट से इस प्रकार का श्रेष्ठ वायुमण्डल बन जायेगा, जो अनेक आत्मायें सहज ही समीप आ जाएँगी। आत्माओं की समीपता के लिये पहले हमें वहाँ की धरणी को रौशन और उपजाऊ बनाना होगा। तभी तो उस धरणी पर बाद में जो भी बोया जायेगा वह फलीभूत होगा।
❉ इस प्रकार से वहाँ का वायुमण्डल अति उपयोगी बन जायेगा। तब अनेक आत्मायें जो हमारे समीप आयेंगी वह सहजता से आयेंगी। फिर कम समय में भी हमारी सफलता हज़ार गुणा होगी। इसके लिये हमें दृढ़ संकल्प करना है कि हम विजयी रत्न हैं। तो हमारे हर कर्म में विजय समाई हुई ही है।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ जो सेवा स्वयं को वा दूसरे को डिस्टर्ब करे वो सेवा, सेवा नही बोझ है... क्यों और कैसे ?
❉ जब मन में यह भाव रख कर सेवा करते हैं कि मेरा बहुत नाम होगा और सब मेरा सम्मान करेंगे तो सेवा में निहित यह स्वार्थ भाव ना तो स्वयं को सन्तुष्टता प्रदान करता है और ना ही इस सेवा से दूसरों को सन्तुष्टता मिलती है । क्योकि हद के नाम, मान और शान की प्राप्ति की इच्छा मन को विचलित करती है । इसलिए बाबा कहते जो सेवा स्वयं को वा दूसरे को डिस्टर्ब करे वो सेवा, सेवा नही बल्कि बोझ है ।
❉ मैं और मेरेपन की भावना से रहित हो कर तथा स्वयं को निमित समझ कर जब सेवा की जाती है तो उस सेवा में परमात्म दुआयों के साथ साथ सर्व आत्माओं की दुआएं भी शामिल होती है । जो सेवा को सफल बनाती हैं । किंतु जब सेवा में समर्पण भाव के बजाए मैं पन का भाव आ जाता है तो यह अहम भाव स्वयं को वा दूसरों को डिस्टर्ब करने का कारण बन जाता है जिसके कारण सेवा, सेवा ना रह कर बोझ बन जाती है ।
❉ कई बार ब्राह्मण आत्माओ के पुराने स्वभाव संस्कार भी संगठन में आपसी मतभेद का माहौल बना देते हैं । आपसी मतभेद के कारण सेवा में डिस्टर्बेंस पैदा होती है जो सेवा में मिलने वाली सफलता को असफलता में बदल देती है । ऐसी ब्राह्मण आत्माएं आत्माओं के कल्याण के निमित बनने के बजाए अकल्याण के निमित बन जाती है । और ऐसी सेवा जो स्वयं को वा दूसरों को डिस्टर्ब करे वह सेवा, सेवा नही बल्कि बोझ कहलाती है ।
❉ सेवा में सफलता का मुख्य आधार है शुभ चिंतक वृति अर्थात सेवा वही सफल होती है जिसमे सर्व आत्माओं के प्रति शुभ भावना - शुभ कामना समाई हो । सर्व का कल्याण करने के उद्देश्य से जो सेवा की जाती है वही सुखदायी और फलदायी होती है । जो सेवा औरों के कल्याण के बजाए स्वयं के फायदे के लिए की जाती है वह स्वयं को भी तथा औरों को भी डिस्टर्ब करती है इसलिए ऐसी सेवा, सेवा नही बोझ कहलाती है ।
❉ जैसे पीठ पर यदि बहुत सारा बोझ रख कर चला जाये तो चलना बड़ा ही मुश्किल लगता है ठीक इसी प्रकार यदि स्व पुरुषार्थ और सेवा में बैलेंस नही है तो स्वयं की स्थिति शक्तिशाली ना होने के कारण सेवा करते समय शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की थकावट का अनुभव होता है । यह इम बैलेंस स्वयं को तो डिस्टर्ब करता ही है साथ ही साथ दूसरों को भी डिस्टर्ब करता है जिससे सेवा, सेवा नही बोझ लगने लगती है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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