━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 01 / 04 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30) °

 

‖✓‖ बिगड़ी को बनाने वाला भोलानाथ बाप °टीचर° बनकर हमको पढाते हैं" - यह स्मृति रही ?

 

‖✓‖ °शांतिधाम और सुखधाम° को याद किया ?

 

‖✓‖ इस °पुरानी दुनिया° से अपना मुह फेरे रखा ?

 

‖✓‖ °आत्म अभिमानी° रहने का अभ्यास किया ?

 

‖✓‖ °जिम्मेवारी° संभालते हुए डबल लाइट रहे ?

 

‖✗‖ किसी भी बात की °डिबेट° में अपना टाइम वेस्ट तो नहीं किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ °एकांत और अंतरमुखता° के अभ्यास द्वारा स्वयं को अनुभवों से संपन्न बनाया ?

────────────────────────

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

‖✓‖ °सेवा और स्व उन्नति° का बैलेंस रहा ?

 

   ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧

 

To Read Vishesh Purusharth In Detail, Press The Following Link:-

 

http://bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/01.04.16-VisheshPurusharth.htm

────────────────────────

 

∫∫ 4 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - तुम्हारी यह वन्डरफुल यूनिवर्सिटी है जिसमे बिगड़ी को बनाने वाला भोलानाथ बाप टीचर बन कर तुम्हे पढ़ाते है"

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों... किस खूबसूरत भाग्य के मालिक हो... सोचो जरा कहाँ बेठे हो किसकी आँखों का तारा बने हो... सबसे बड़ा जादूगर बाप ही टीचर बन पढ़ा रहा... ख्याल भी किया था कभी... इस मीठे नसीब का...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मेरे लाडलो बिगड़ी को बनाने वाला ही हाथ आ गया जो पिता है वही टीचर बन गया... तो प्यार का सागर ही सदा छलकायेगा... वो भोला सा पिता टीचर बना कुर्बान हो गया आप पर... कितने खुशनसीब हो... परमात्मा के साये में पल रहे और पढ रहे हो...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मीठे बच्चों आपके भाग्य का गुणगान स्वयं भगवान कर रहा... इस कदर सुंदर देवो के लिए मुझे आकर पढ़ाना पढ़ा... सारे बिगडो को सवार सजाना पड़ा... आश्चर्य से भरी दास्ताँ है  की भोला पिता ही प्यार में बच्चों का शिक्षक बन बेठा...

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चों... आप देवताओ को तो कोई और पढ़ा ही न सके.... मेरे सिवाय तो कोई सिखा ही न सके... मुझ पिता को शिक्षक बन उतरना पड़ा... आपका शानदार भाग्य किसी आश्चर्य से कम नही... की उतर आया मै ज़मी पर आप देवो के लिए....

 

 ❉   मेरा बाबा कहे - जो भोला सा प्यारा सा बाप है वह टीचर बन गया... तो क्या बिगड़ी रहेगी भला... कितना खूबसूरत सा यह जादू है... इस नशे में भर जाओ जरा... इन मीठे अहसासो को जी जाओ जरा... शानदार भाग्य को स्म्रति में खो जाओ जरा...

────────────────────────

 

∫∫ 5 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-15)

 

➢➢ इस पुरानी दुनिया से अपना मुंह फेर लेना है । शांतिधाम और सुखधाम को याद करना है ।

 

  ❉   ये पुरानी दुनिया का तो विनाश होना ही है व कब्रदाखिल होनी है इसलिए इस विनाशी दुनिया से कोई मोह नही रखना । अब हमें सच्चा सच्चा संग मिला है बस उसी के रंग में रंगना है ।

 

  ❉   अभी तक पुराने शरीर व देहधारियों से सम्बंध रखते निभाते बस दुःख ही पाया है व अब हमें बाप अपने साथ वापिस घर ले जाने आया है तो नए घर को याद करना है व पुराने को भुला देना है ।

 

  ❉   अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है । जब बाप को याद करते हैं तो घर की याद स्वतः ही आती है । इसलिए अब इस पुरानी दुनिया दुःखधाम को भूल शांतिधाम व सुखधाम को याद करना है ।

 

  ❉   अपने सारे पुराने स्वभाव संस्कारों को स्वाहा कर देना है व पावन बनना है । क्योंकि पावन बने बगैर तो नए घर में जा सकेंगे । वैसे लौकिक में भी तो नए घर में जाते हैं तो पुराना सामान छोड देते हैं व पुराने से कोई मोह नही होता ।

 

  ❉   ये पुरानी दुनिया पुराना चोला है इसे भूलकर नयी दुनिया को नए घर को याद करना है । याद करते-करते ही तो अपने स्वीट होम शांतिधाम सुखधाम पहुंच जायेंगे ।

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-15)

 

➢➢ एकांत और अन्तर्मुखता के अभ्यास द्वारा स्वयं को अनुभवों से सम्पन्न बनाने वाले मायाजीत होते हैं... क्यों और कैसे ?

 

  ❉   किसी भी कार्य मे सिद्धि प्राप्त करनी होती है तो उसे एकांत में जाकर एकाग्रता से करना होता है व उसके होने वाले हर प्रभाव का अनुभव करते हैं । उसके कारण और निवारण को जानकर अनुभवीमूर्त होते है ।

 

  ❉   एकांतवासी होने से एकाग्रता और अंतर्मुखता के अभ्यास से अपनी शक्तियों को पहचान व समय पर उसे यूज करके अनुभवीमूर्त होते हैं व अनुभव ही ब्राह्मण जीवन का आधार है । अनुभवों से हर विघ्न पर जीत पाकर मायाजीत होते हैं ।

 

  ❉   एकांत और अंतर्मुखता के अभ्यास द्वारा एक बाप से ही सर्व सम्बंधों का सुख लेना , मीत की प्रीत में मग्न रहना और बाप के साथीपन का अनुभव का अनुभव करने से बाह्यमुखता से मुक्त रहते । स्वयं को अनुभवों से सम्पन्न बना कर मायाजीत होते हैं ।

 

  ❉   एकांतवासी और अंतर्मुखी बन हर प्वाइंट का अनुभवी बनते हैं तो किसी भी प्रकार के धोखे से, दुःख से बच जाते हैं । मैं कौन हूं , किसका बच्चा हूं , क्या-क्या प्राप्तियां है - इस का अनुभव कर लेने से मायाजीत बन जाते हैं ।

 

  ❉   एकांत और अंतर्मुखता के अभ्यास से एकाग्रता ,सहनशक्ति आती है । सदा मास्टर सर्वशक्तिमान की सीट पर सेट रहने से शक्तियां स्वतः ही आर्डर प्रमाण चलती हैं और देहभान रुपी माया पर जीत पाने वाले अनूभवीमूर्त होते हैं ।

 

  ❉    एकांतवासी और अंतर्मुखी होने से देह के अंदर जो आत्मा है उसे पहचान कर व उसके स्वरुप को पहचान , परमात्म का मनन करते हुए हर प्वाइंट का अनुभवी बन मायाजीत होते है ।

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ जिम्मेवारी संभालते हुए डबल लाइट रहने वाले ही बाप के समीप रत्न हैं... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   जो स्वयं को निमित समझ हर कर्म करते हैं वे करनकरावन हार बाप की मदद का अनुभव करते हुए सहजता से हर कार्य को सफलतापूर्वक सम्पन्न कर लेते हैं । स्वयं को ट्रस्टी समझने से कोई भी जिम्मेवारी उन्हें बोझ नज़र नही आती बल्कि हर जिम्मेवारी सम्भालते हुए भी वे बाप के समीप रत्न बन डबल लाइट स्थिति का अनुभव करते रहते हैं ।

 

 ❉   जो पुराने स्वभाव संस्कारो से जितने न्यारे होते जाते है उनकी अवस्था भी न्यारी और प्यारी बनती चली जाती है जो उन्हें सभी बातों में इजी रखती है । सब बातों में इजी रहने के कारण सब कार्य उनके लिए इजी हो जाते हैं इसलिए हर जिम्मेवारी संभालते हुए भी वे हल्के रहते है और इसी हल्केपन अर्थात डबल लाइट स्थिति के अनुभव से वे बाप के समीप रत्न बन जाते हैं ।

 

 ❉   लौकिक में अलौकिकता की स्मृति हर चीज को सहज बना देती है क्योकि लौकिक को जब आलौकिक में परिवर्तित कर देते हैं तो केवल दुनियावी बातों से न्यारे नही बनते लेकिन अपने शरीर से भी न्यारे बन जाते हैं इसलिए जिम्मेवारी के बोझ से भी न्यारे बन हर जिम्मेवारी बाप को सौंप कर डबल लाइट स्थिति में स्थित हो बाप के समीप रत्न बन जाते हैं ।

 

 ❉   जितना स्वयं को फ़रिश्तेपन की सीट  पर सेट रखेंगे उतना हर बात में हल्के रहेंगे । हल्कापन होने के कारण जैसी भी परिस्थिति होगी वैसी अपनी स्थिति बना सकेंगे । संकल्प, वाणी, कर्म और सम्बन्ध में हल्के रह हर जिम्मेवारी सँभालते हुए भी डबल लाइट रहेंगे और बाप के अति समीप रत्न बन जायेंगे ।

 

 ❉   सर्व खजानो से सम्पन्न आत्मा बन जब सदा अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति में मगन रहेंगे तो हद की प्रवृति को सम्भालते हुए ईश्वरीय सेवा अर्थ अपने को ट्रस्टी समझ कर प्रवृति का कार्य करेंगे और हर कर्म श्रीमत प्रमाण करेंगे तो बाप स्वयं जिम्मेवार बन हमारी सभी जिम्मेवारियों के बोझ को हल्का कर देंगे और हम बाप के समीप रत्न बन डबल लाइट स्थिति का अनुभव करते रहेंगे ।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━