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❍ 13 / 05 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ "अब वापिस √घर जाना है√" - यह स्मृति रही ?
➢➢ √देह का भान तोड़ने√ का पुरुषार्थ किया ?
➢➢ √ज्ञान का स्नान और याद की यात्रा√ की और कराई ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ ×युद्ध में डरने व पीछे हटने× की बजाये बाप के साथ द्वारा विजयी स्थिति का अनुभव किया ?
➢➢ सदा √आशा और विश्वास√ के आधार पर विजयी बनकर रहे ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ ✓स्वराज्य अधिकारी✓ बनकर रहे ?
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➳ _ ➳ http://bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/13.05.16-VisheshPurusharth.htm
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं सदा विजयी आत्मा हूँ ।
✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-
➳ _ ➳ कुछ समय के लिए आराम से योग युक्त स्तिथि में स्तिथ हो जाएँ... बाह्य सभी बातों से अपना ध्यान हटा कर एक विचार क्रिएट करें कि मैं शांत स्वरुप आत्मा हूँ... अनुभव करेंगे कि मुझ आत्मा के संकल्पों की गति धीमी होती जा रही है... समस्त व्यर्थ संकल्प समाप्त होते जा रहें हैं... अब मैं आत्मा इस पंचतत्व की दुनिया से दूर उड़कर जा रही हूँ आसमान की ओर... मैं पहुँच गयी हूँ अपने घर परमधाम में अपने परम प्यारे पिता के पास... बाबा की शांति और शक्ति से भरपूर सतरंगी किरणों का फाउंटेन मुझ आत्मा पर गिर रहा है... धीरे - धीरे मैं आत्मा अपने आप को शांति और शक्तिओ से भरपूर अनुभव कर रहीं हूँ... मैं अब डीप साइलेंस का अनुभव कर रही हूँ... ये साइलेंस मेरी शक्ति बनती जा रही है... मैं आत्मा एकांतवासी बन हर समस्या का हल ढूंढने में समर्थ हो रही हूँ... जिस प्रकार युद्ध करने वाले जो योद्धा होते हैं उनका स्लोगन होता है कि हारना वा पीछे लौटना कमज़ोरों का काम है, योद्धा अर्थात मरना और मारना, उसी प्रकार मैं ब्राह्मण आत्मा भी रूहानी योद्धा हूँ... मैं आज अपने मीठे बाबा के समक्ष यह दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मैं रूहानी योद्धा कभी भी डरकर पीछे नहीं हटूंगी, सदा आगे बढ़ती रहूंगी... मैं आत्मा कभी भी यह नहीं सोचूंगी कि मैं कहाँ तक युद्ध करूँ क्योंकि यह तो सारी ज़िन्दगी की बात है लेकिन 5000 वर्ष की प्रालब्ध के हिसाब से यह सेकण्ड की ही बात है... मैं रूहानी योद्धा विशाल बुद्धि बनकर बेहद के हिसाब से प्रालब्ध को देखकर बाप की याद वा साथ की अनुभूति करुँगी... इन्हीं संकल्पों के साथ मैं आत्मा सदा विजयी अवस्था का अनुभव कर रही हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चों - सदैव याद रखो - बहुत गयी थोड़ी रही, अब तो घर चलना है. इस छी छी शरीर और दुनिया को भूल जाना है"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों कितना दुखो में उलझ खप से गए हो... अब तो घर चलने का समय हो चला है... अब इन माया रुपी रेशम के धागों में न उलझो यह सांसो को रेत जैसा खत्म कर देगा... न यह मिटटी शरीर न ही ये मिट्टी के मटमैले रिश्ते सब भूलना है...
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे मीठे से बच्चों इस जीवन की एक एक साँस कीमती है इसे व्यर्थ न गवाओ न देह न देहधारी किसी से अब दिल न लगाओ... पिता को अपने दिल में बसाओ और खूबसूरत स्वर्ग पर नजरे टिकाओ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चों समय अब कर चला है पुकार... नही बचा है अब समय अपार... यादो को पिरो लो सांसो की माला में... इस दुनिया के मटमैले पन को मेरी यादो से छुड़ाओ... और जन्नत को अपने जेहन में भर लाओ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चों समय साँस और संकल्पों को व्यर्थ न खपाओ... जो झूठा संसार सत्य मान फस चले हो उससे बाहर निकल सत्य स्वरूप में आओ... बचे थोड़े से कीमती समय की कद्र कर इसे मुझ पिता की यादो में लगाओ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चो अब न कही उलझो न कही भटको न कही व्यर्थ समय बिताओ... सिर्फ और सिर्फ मेरी यादो में डूब जाओ और स्वर्ग की खूबसूरत सी दुनिया में अपनी दिल लगाओ...
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करने के लिए देह के भान को तोड़ने का पुरुषार्थ करना है । अब वापिस घर जाना है इसलिए बुद्धियोग घर से लगा रहे ।
❉ 63 जन्मों से देहभान की मिट्टी में खेलते रहे व देहभान में रहने से संस्कार कड़े हो गए और विकारों में गिरते गए । तो अब उन्हें स्वाहा करने के लिए कड़ी मेहनत करनी हैं व अपने को आत्मा समझ आत्मा के पिता परम आत्मा की याद में रहना है ।
❉ आत्मा इस शरीर को चलाने वाली शक्ति है व मन बुद्धि संस्कार इसकी सूक्ष्म शक्तियां है । अपनी कर्मेन्द्रियो को अपने आर्डर अनुसार चला स्वराज्याधिकारी बनना है व अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करने के लिए कर्मेन्द्रिय जीत बनना है व देहभान तोड़ने का पुरुषार्थ करना है देही अभिमानी बनना है ।
❉ हम नीचे खेलने के लिए आए व फिर अपने घर का रास्ता ही भूल गए और देहभान मे आकर पतित हो गए । बाबा हमें पतित से पावन बनाकर घर वापिस ले जाने के लिए आए है तो हमें पुरानी दुनिया व पुराने घर को भूल नयी दुनिया व नए घर को याद करना है ।
❉ अपनी आत्मिक स्थिति में रह आत्मा के सातों गुणों को अनुभव कर आत्म-अभिमानी बनना है । एक बाप की याद रुपी गोदी में रहते हुए अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करना है ।
❉ जैसे सर्प अपनी खाल छोड़ नयी खाल लेता है ऐसे हमें भी ये पुराना शरीर छोड़ नया फर्स्ट क्लास शरीर लेना है । अपने घर वापिस जाना है तो इस अंतिम जन्म में पावन जरुर बनना है । इसलिए अपना बुद्धियोग नए घर से लगाना है । बस एक बाप को याद करना है तो घर की याद स्वतः ही बनी रहेगी ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ युद्ध में डरने वा पीछे हटने के बजाए बाप के साथ द्वारा सदा विजयी होते हैं... क्यों और कैसे ?
❉ वो बच्चे सदा विजयी होते है जिन्हें सर्वशक्तिमान बाप पर निश्चय होता है व हमेशा बाप को साथ रख कर्म करते हैं । कहा भी गया है - निश्चयबुद्धि विजयन्ति संशयबुद्धि विनशयन्ति । इसलिए कोई भी परिस्थिति आने पर बाप को साथ रख विजय प्राप्त करते हैं ।
❉ सेना में युद्ध करने वाले जो योद्धे होते हैं उन्हों का स्लोगन होता है कि हारना वा पीछे लौटना कमजोरों का काम होता है , योद्धा अर्थात मरना और मारना । हम तो रुहानी योद्धे डरने वा पीछे हटने वाले नहीं, सदा बाप के साथ आगे बढ़ते विजयी होते हैं ।
❉ जिसका साथी स्वयं भगवान है तो ऐसे ऊंच ते ऊंच बाप का साथ होने पर भला किसी से क्यूं डरना । हिम्मत का एक कदम बच्चों का व हजार कदम बाप के सहयोग के । जब सर्वशक्तिमान साथी है तो जीत तो निश्चित ही है ।
❉ जिन बच्चों का संग ही सत्य बाप के साथ है व सत्य की ही हमेशा जीत होती है । इसलिए सत्य बाप के साथ होने से डरना या भागना या पीछे नही हटना । परिस्थिति आने पर संशय भी नही करना कि जीत होगी या नही । सत्य की नाव हिलेगी डूलेगी पर डूबेगी नही । सत्य बाप के साथ होने से विजयी होते हैं ।
❉ जो बच्चे हमेशा हजार भुजाओं वाले बाप की छत्रछाया में रहते हैं व परमात्म याद के झूले में झूलते रहते है तो बाप भी अपने उन बच्चों को युद्ध में या कोई पेपर आने पर उससे डरकर भागने व पीछे हटने की बजाय अपनी गोद में बैठाकर व अपने साथ का अनुभव करा विजयी होते हैं ।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ सदा आशा और विश्वास के आधार पर विजयी बनो... क्यों और कैसे ?
❉ सेना में जो युद्ध करने वाले वीर योद्धा होते हैं वे कभी भी हार मान कर पीछे नहीं लौटते । मरना और मारना यही उनका स्लोगन होता है । इसी तरह जो ब्राह्मण बच्चे स्वयं को रूहानी योद्धा समझ बाप को याद करते करते माया रावण से डटकर युद्ध करते हैं । माया से कभी हार नहीं खाते । बाप की याद व साथ की अनुभूति उन्हें आशा और विश्वास के आधार पर सदा विजयी बना देती है ।
❉ सदा आशा और विश्वास के आधार पर विजयी वही बनते हैं जिनके हर संकल्प, बोल और कर्म में दृढ़ता होती है । क्योंकि दृढ़ता वह चाबी है जो सफलता के द्वार खोल देती है । जो दृढ़ता से अपने लक्ष्य को पाने का साहस रखते हैं, उनका हौसला सदा बुलंद होता है । अपनी हिम्मत और हौंसले के बल पर वे हर क्षेत्र में विजय प्राप्त कर लेते हैं ।
❉ आशा की एक किरण और परमात्मा पर विश्वास बुझते हुए दीपक में भी ज्योति जगा देता है । इसलिए जो आशावान होते हैं और एक पर विश्वास रखते हैं वह किसी भी परिस्थिति में डगमग नहीं होते । क्योंकि परमात्म मदद रूपी विश्वास की डोर उन्हें हर परिस्थिति से सहज ही खींचकर बाहर निकाल लेती है और हर परिस्थिति में विजयी बना देती है ।
❉ शुभ और श्रेष्ठ चिंतन मनुष्य को आशावान बनाता है । इसलिए जितना मन को समर्थ चिंतन में बिज़ी रखते हैं, उतना ही निराशा उत्पन्न करने वाले नेगेटिव संकल्प समाप्त होते चले जाते हैं , परमात्मा के प्रति विश्वास दृढ होता चला जाता है और आत्मा स्वयं को सर्व शक्तियों से संपन्न अनुभव करने लगती है । सर्व शक्तियों की अथॉरिटी से वह हर कार्य में सफलता प्राप्त करती चली जाती है ।
❉ विषय वासनाओं के भव सागर में फंसी आत्मा की जीवन रूपी नैया को पार ले जाने का एक ही साधन है आशा की एक किरण और परमात्मा पर विश्वास । इसलिए जो आशावान और आस्थावान बन अपनी जीवन की नैया को एक राम के हवाले कर देते हैं, भगवान राम स्वयं उनकी जीवन नैया को पार ले जाते हैं और कदम कदम पर सफलता उनके गले का हार बन जाती है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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