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 24 / 06 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ "कर्मो पर ही सुख और दुःख की रेस्पोंसिबिलिटी है" - यह स्मृति रही ?

 

➢➢ किसी भी तरह की ×बहानेबाज़ी× तो नहीं की ?

 

➢➢ आत्मा से माया के 5 विकार निकालने पर अटेंशन रहा  ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ इस पुरानी दुनिया को विदेश समझ इससे उपराम रहे ?

 

➢➢ झमेलों में फंसने की बजाये सदा मिलन मेले में रहे ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ सुबह से रात तक का अपना फिक्स प्रोग्राम बना अपनी दिनचर्या की सेटिंग की ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं स्वदेशी आत्मा हूँ ।

 

✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-

 

➳ _ ➳  आत्मा इस देह को छोड़कर उड़ती हुई जा रही है... धरती से दूर, ऊपर आकाश की ओर... जाकर सूक्ष्मवतन में बैठ जाती है अपनी प्रकाश की काया को धारण कर और सूक्ष्मवतन में अपने प्रकाशमय सम्पूर्ण स्वरुप को धारण कर उड़ चलती है वतन की सैर पर...

 

➳ _ ➳  फिर प्रकाश की काया को छोड़ उड़ चलती है ऊपर परमधाम में अपने पिता शिव के पास और निर्संकल्प होकर बैठ जाती है निराकारी पिता शिव के सम्मुख... निराकारी पिता शिव परमात्मा से सर्व शक्तियों की किरणों से फुल चार्ज होकर मैं आत्मा इस पुरानी दुनिया में अपने विशेष पार्ट को पहचानकर इस पुरानी दुनिया को विदेश समझ इससे उपराम हो रहीं हूँ...

 

➳ _ ➳  मेरे मीठे बाबा की दिव्य शक्तियों द्वारा मुझ आत्मा में इतनी शक्ति भर गयी है कि पुरानी दुनिया की कोई चीज़, स्वभाव - संस्कार मुझ आत्मा को अपनी तरफ ज़रा भी आकर्षित नहीं कर पा रहें हैं...

 

➳ _ ➳  जैसे कई लोग विदेश की चीज़ों को टच भी नहीं करते हैं, समझते हैं अपने देश की ही चीज़ों का प्रयोग करें, उसी प्रकार मैं आत्मा भी इस पुरानी दुनिया को विदेशी समझ इसके आकर्षण से मुक्त हो गयी हूँ... मैं आत्मा बाबा की शक्तियों और प्रेम द्वारा परिपूर्ण होकर स्वदेशी बन गयीं हूँ... मैं आत्मा अपने प्यारे वतन में... अपने प्यारे घर परमधाम में...

 

➳ _ ➳  अपने ऊँचें देश परमधाम में... अपने प्यारे बाबा के प्यार के नशे में डूब रहीं हूँ... मैं आत्मा ईश्वरीय परिवार के हिसाब से अपने आप को बाबा की नगरी मधुबन देश का निवासी समझ इसी नशे में लीन हो रहीं हूँ... मैं आत्मा इस पुरानी दुनिया को विदेशी समझ इससे उपराम रहने वाली स्वदेशी आत्मा बन गयीं हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "कर्मो पर ही - सुख दुःख की रेस्पांसिबिलिटी है"

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मेरे लाडलो अपने मीठे बच्चों को मै भला कैसे दुःख दे सकता हूँ... मै तो विश्व पिता हूँ बच्चों को विश्व का मालिक बनाने का ही सपना रखता हूँ... तुम बच्चों के दुखो का आधार कर्म है जिनका फल अवश्यम्भावी है... अपने जिगर के टुकड़ो को इस हाल में देख धरती पर उन्हें सदा सुखी बनाने उतर आता हूँ....

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे सारा मदार ही कर्म और कर्मफल पर है... यह खेल ही इस आधार पर टिका है... मै तो पिता हूँ मै अपने बच्चों को दुःख में देख ही नही सकता... तुम स्वयं नासमझी में किये अपने ही कर्मो से दुःख पाते हो... और मै आकर सही समझानी दे सुखी बनाता हूँ...

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चे अपने कर्मो पर ध्यान दो यही कर्म तुम्हारे सुख और दुःख का मुख्य कारण है... अब दुःख देने और लेने वाले कर्म न करो... सबको सुख दो और लो तो यह कर्म सदा सुख का आधार बन जीवन खुशनुमा बनाएगा... मेरी याद में रहकर अपने उज्ज्वल स्वरूप को पुनः पा जाओ...

 

 ❉   मेरा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे मै तो सदा सुखदाता पिता हूँ... बच्चों को सुखो के महलो में रखता हूँ... तुम बच्चे बेसमझ होकर जो कर्म करते हो उसका प्रतिफल ही दुःख पाते हो... मै तो दुखो से मुक्त कराकर जीवन को आनन्द और खुशियो से भर देता हूँ... अब अपनी मत छोड़ मेरी श्रीमत से खुद को सदा का सुखी बनाओ...

 

 ❉   मेरा बाबा कहे - अब उस परमत और मनमत को छोडो जिसने ऐसे कर्मो में तल्लीन बना जीवन दुखमय बनाया... अब मेरी मत का हाथ थाम खुशहाल जीवन को जिओ... मुझे साथ रख श्रीमत से हर कर्म करो... तो सुखो के बीच मुस्कराओगे... और दुखो के जंजाल से सदा के लिए छूट जाओगे...

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ किसी भी तरह के बहाने नहीं देने हैं

 

  ❉   हम सब आत्माओं का परमपिता परमात्मा एक ही है सदाशिव । लौकिक में भी बाप कभी अपने बच्चों को दुख नही देता फिर हमें तो बेहद का बाप मिला है तो वो अपने बच्चों को दुःख नही देता । जो भी सुख दुःख आते हैं हमारे ही कर्मो का फल है व हमारी रिसपोंसिब्लिटी है । तो परमात्मा ने किस्मत बनाई है ऐसे नही कहना । जैसी करनी वैसी भरनी ।

 

  ❉   परमात्मा तो दुःखहर्त्ता सुखकर्त्ता है तभी तो जब कोई भी दुख आता है तो उसे याद करते हैं व दुख के समय खास प्रेम उठता है । अगर जो दुख देता हो तो क्या उससे ही सहायता के लिए याद करेंगें । परमात्मा तो हमारा मित्र है साथी है व दाता है व परमात्मा से सुख का सम्बंध रहा तभी याद करते हैं व दुःख का कारण कुछ ओर है  । जिस चीज से हम दुखी है उसकी पूरी समझ रखनी है व ऐसे बहाने नही देने हैं ।

 

  ❉   मेरा परिवार...मेरा गृहस्थ ... व मैंपन से ही दुःखी होते है व जान भी गए है । इस संगमयुग पर बाप द्वारा ज्ञान मिलने पर कहते हैं कि कैसे गृहस्थ परिवार छोड़ दे । माया एकदम पकड़ कर बैठी है । सभी बातों का पूर्ण ज्ञान न होने के कारण दुःखी रहते हैं । बाप कहते हैं कि मैं जो शिक्षा देता हूं उसे धारण करना है । ऐसे किसी तरह के बहाने नही देने ।

 

  ❉   स्वयं भगवान आए हैं व हमें अपना बनाया है । रोज हमें ऊंच ते ऊंच श्रीमत दे रहे हैं । दुःखों से छूटने का रास्ता बता रहे हैं । शरीर, धन, सम्पत्ति ये सब माया है। बाबा कहते हैं मैं जो सिखाता हूं, समझाता हूं उसको समझ कर पुरुषार्थ करना है । मैंने जो रचना रची हुई है अनादि है, वह दुःख का कारण नही है । दुःख का कारण है ये पांच विकार । कई तो ये कह देते कि ये भी तो भगवान ने दिए ऐसे बहाने नही लगाने है ।

 

  ❉   बाप के बच्चे बने हैं व बाप की श्रीमत का पालन करते हुए एक बाप की याद में रह अपने विकारों को निकालना है व दुःखों का जो कारण है जो चाहना करते आए व इतना पतित बन गए उसका निवारण करना है । कोटो में कोई और कोई में भी कोई में भगवान ने स्वयं मुझे चुना है बस उसकी श्रीमत पर चलना है व पूरा वर्सा लेना है उसके लिए कोई बहाना नही करना है । महाविनाश सामने खड़ा है ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ इस पुरानी दुनिया को विदेश समझ उपराम रहने वाले स्वदेशी होते हैं.... क्यों और कैसे ?

 

  ❉   जो बच्चे अपने आत्मिक स्वरुप में रहते व इस नशे में रहते कि ऊंचा देश परमधाम ही असली घर है और हम ईश्वरीय परिवार के हैं और मधुबन देश के निवासी है तो इस पुरानी दुनिया को विदेश समझ उपराम रहने वाले विदेशी होते हैं ।

 

  ❉   जैसे कई लोग विदेश की चीजों को टच भी नही करते हैं व सोचते हैं कि अपने ही देश की चीज को यूज करना है व अपने ही देश की उन्नति करनी है । ऐसे हमें भी नयी दुनिया में जाना है ये स्मृति  पुरानी दुनिया की जो चीजें है जो पुराने स्वभाव संस्कार हैं उनसे आकर्षित नही होना व पुरानी दुनिया को विदेश समझ उपराम रहने वाले विदेशी होते हैं ।

 

  ❉   स्थूल में भी विदेश रहने वाले भल विदेश मे रहते है लेकिन रहन सहन स्वदेश की तरह करते है ऐसे ही पुरानी दुनिया में भले ही रहते हैं व नई दुनिया में जाने के लिए आहार व्यवहार चाल चलन में दिव्यता रखते हैं और विदेश समझ कर उपराम रहने वाले स्वदेशी होते है ।

 

  ❉   चाहे कोई विदेश में कितने समय से क्यों न रह रहा हो अपने  पुराने स्थान से कितना उपराम क्यों न हो लेकिन वह कहलाता स्वदेशी ही है ऐसे ही जो देह व देह के सम्बंध यह सब पुरानी विनाशी दुनिया के है व हम तो बस मेहमान है । उन रिश्तों को जिम्मेवारी समझ बस निभाते हुए उपराम रहने वाले विदेशी होते हैं ।

 

  ❉   जिन बच्चों को ये नशा रहता है कि अब तो बस अपने घर वापिस जाना है व बाबा हमें लेने आए हैं वो अपने तीव्र पुरुषार्थ करते व कुछ भी होता तो खुशी में नाचते रहते कि माया के सम्बंध को डायवोर्स दे दिया - बाप के सम्बंध से सौदा कर लिया । इसतरह पुरानी दुनिया को विदेशी समझ उपराम रहने वाले स्वदेशी होते हैं ।

 

  ❉   जो बच्चे अपने को मेहमान समझ कर रहते कि मैं तो इस सृष्टि रंगमंच पर बस पार्ट बजाने आया हूं व ये शरीर भी सेवार्थ मिला है । तो वो इस पुरानी दुनिया के झमेलों से अपने को मुक्त रखते व बस तोड़ निभाते हुए इस पुरानी दुनिया से उपराम रहते स्वदेशी होते हैं ।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ झमेलों में फंसने के बजाए सदा मिलन मेले में रहो... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   श्रेष्ठ स्वमान की स्थिति में जब स्थित रहेंगे तो स्व स्थिति के आगे हर परिस्थिति और झमेले छोटे नज़र आयेंगे । क्योकि जितना स्व स्थिति में स्थित रहेंगे उतना हमारी वृति, बोल और कर्म में परिवर्तन आता जाएगा । वृति, बोल और कर्म में जैसे - जैसे श्रेष्ठता आती जाएगी , परिस्थितियां छोटी होती जायेंगी और सब प्रकार के झमेलों से मुक्त होते जायेंगे । किन्तु स्व स्थिति में स्थित तभी रह सकेंगे जब सदा मिलन मेले में रहेंगे अर्थात सब बातों से उपराम हो केवल एक बाप के साथ मिलन मनाते रहेंगे ।

 

 ❉   व्यक्त में रहते अव्यक्त स्थिति में स्थित रहने अर्थात वाणी से परे जाने का अभ्यास जैसे-जैसे पक्का होता जाएगा और पांच तत्वों से पार जाने के अभ्यासी जब बनते जाएंगे तो परमात्म मिलन से अलौकिक दिव्य शक्तियां आत्मा में भरती जाएंगी और आत्मा स्वयं को इतना बलशाली अनुभव करेगी कि अपने बल से स्वयं को सर्व झमेलों से मुक्त कर लेगी और परिस्थिति आते ही सेकंड में वाणी से परे जाकर पांच तत्वों के इस शरीर से न्यारी होकर उड़ता पंछी बन परिस्थितियों के पहाड़ को सेकण्ड में पार कर लेगी ।

 

 ❉   इस देह और देह की दुनिया के विस्तार में ना जा कर सार अर्थात अपने आत्मिक स्वरूप में टिक कर केवल एक बाप की याद में जब बिज़ी रहेंगे और सर्व सम्बन्धो से मिलन मेला केवल एक बाप के साथ मनाते रहेंगे तो सदैव यह स्मृति रहेगी कि सर्व शक्तिवान बाप हर पल मेरे साथ है । यह स्मृति बुद्धि को क्लीन और क्लीयर रखेगी और किसी भी प्रकार के झमेले में मन बुद्धि को फंसने नही देगी जिससे मन बुद्धि हल्के रहेंगे और उड़ती कला के अनुभव द्वारा हर परिस्थिति पर विजय प्राप्त कर लेंगे ।

 

 ❉   अपनी सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों को स्मृति में रख जब इस नशे में रहेंगे कि हम अविनाशी खज़ाने के मालिक हैं । जो बाप का खज़ाना ज्ञान, सुख, शान्ति, आनन्द है, वह सर्व गुण हमारे हैं ।  क्योकि बच्चा बाप की प्रॉपर्टी का स्वत: ही मालिक होता है । ऐसे स्वयं को जब अधिकारी समझ कर रहेंगे तो अधिकारीपन की यह स्मृति आत्मा को सब प्रकार के झमेलों से मुक्त कर देगी और बाप के साथ मिलन मेला मनाते हुए आत्मा सर्व सुखों से स्वयं को ऐसे सम्पन्न अनुभव करेगी जिसके सामने दुःख की कभी लहर भी नही आ सकेगी ।

 

 ❉   संगमयुगी ब्राह्मण जीवन है ही सन्तुष्ट जीवन । क्योकि संगमयुग पर बापदादा की और से बच्चों को जो विशेष गिफ्ट प्राप्त होती है वह है ख़ुशी और सन्तुष्टता । तो जो सदा अपने संतुष्ट जीवन की शान में रहते हैं वे कभी भी परेशान नहीं हो सकते । कैसी भी हिलाने वाली परिस्थितियां आये लेकिन परिस्थितियों रूपी झमेलों में फंसने के बजाए वे साक्षी स्थिति में स्थित हो कर, एक बाप के साथ मिलन मेला मनाते हुए, बाप को साथी बना कर उन झमेलों में भी ऐसे अनुभव करते हैं जैसे कोई मनोरंजन का खेल हो ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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