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   28 / 01 / 16  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30) °

 

‖✓‖ °बीज और झाड° का ज्ञान सिमरन कर सदा हर्षित रहे ?

 

‖✓‖ "यह अंतिम 84वां जन्म है... °वानप्रस्थ अवस्था° है" - यह स्मृति रही ?

 

‖✓‖ "अभी अंधियारा है... अभी हम °फिर सोझरे में चलेंगे°" - यह स्मृति रही ?

 

‖✓‖ देह के सब संबंधो को छोड़ °एक बाप को और राजाई को° याद किया ?

 

‖✓‖ °इच्छा मातरम् अविध्या° की स्थिति में स्थित रहे ?

 

‖✓‖ °पुण्य आत्मा° बनने की मेहनत की ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ °संगठन में सहयोग° की शक्ति द्वारा विजयी बने ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ °एक बाप से समीप के सम्बन्ध° द्वारा सर्व प्राप्ति का अनुभव किया ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं सर्व की शुभचिंतक आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   संगठन में सहयोग की शक्ति द्वारा विजयी बनने वाली मैं सर्व की शुभचिंतक आत्मा हूँ ।

 

 ❉   संगठन में रहते लक्ष्य और लक्षण को समान बना कर मैं सदा सर्व शक्तियों से सम्पन्न रहती हूँ ।

 

 ❉   उमंग उत्साह के पंखो पर सवार हो, मैं संगठन की सभी आत्माओं में उमंग उत्साह भर, उन्हें आगे बढ़ाती जाती हूँ ।

 

 ❉   मुझे स्वयं को सम्पन्न बना कर सबके सामने सैम्पुल बनना है, इस लक्ष्य को सामने रख, अपने हर कर्म से सबको प्रेरणा दे, उन्हें आप समान बनाती जाती हूँ ।

 

 ❉   अपने शक्ति स्वरुप में स्थित हो कर मैं आत्मा संगठन की सर्व आत्माओं को शक्ति स्वरुप बना रही हूँ और उनमे योग का बल भर रही हूँ ।

 

 ❉   मैं आत्मा सदा शुभ भावना और श्रेष्ठ कामना स्वरुप बन सबको रास्ता दिखाती हूँ ।

 

 ❉   संगठन की सर्व आत्माओं को सच्चा स्नेह और सहयोग देने वाली मैं सर्व की सहयोगी आत्मा हूँ ।

 

 ❉   मुझ शक्ति सम्पन्न आत्मा से संगठन की सर्व आत्माओं को श्रेष्ठ संकल्पों की शक्ति व सर्वशक्तियों की प्राप्ति होती है ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - जब यह भारत स्वर्ग था तुम घोर सोझरे में थे, अभी अंधियारा है, फिर सोझरे में चलो"

 

 ❉   सोझरा कहा जाता है दिन को और सोझरे में कोई भी विकर्म नही होते ।

 

 ❉   इसलिए भारत जब स्वर्ग था तो सभी सोझरे में थे अर्थात सभी पावन देवी देवतायें थे ।

 

 ❉   सभी दैवी गुणों से सम्पन्न थे । कोई भी विकर्म नही होता था । इसलिए सभी सुख, शांति और सम्पन्नता से भरपूर थे ।

 

 ❉   किन्तु अभी तो घोर अंधियारा है । देवी देवतायें जो सतयुग में पावन थे अभी वाममार्ग में आने से पतित भारतवासी बन गए हैं इसलिए दुखी और अशांत हो गए है ।

 

 ❉   इन्ही भारतवासियों को अंधियारे से निकाल कर फिर से सोझरे में ले जाने के लिए ही परम पिता परमात्मा शिव बाबा आयें हैं ।

 

 ❉   तथा ज्ञान और योग सिखलाकर हम भारतवासियों को पतित से पावन अर्थात मनुष्य से देवता बना रहे हैं ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ आत्मा से बुरे संस्कारों को निकालने के लिए देही-अभिमानी रहने का पुरुषार्थ करना है । यह अंतिम 84वां जन्म है, वानप्रस्थ अवस्था है इसलिए पुण्य आत्मा बनने की मेहनत करनी है ।

 

  ❉   सबसे कड़ा संस्कार है देह-अभिमान । देह-अभिमान में रहते बुरे संस्कारों का आवागमन लगा रहता है इसलिये देही अभिमानी बनने का पुरुषार्थ करना है । जितना देही अभिमानी का अभ्यास करेंगे उतने बुरे संस्कारों से मुक्त होते जायेंगे ।

 

  ❉   63 जन्मों से देह अभिमान में रहे हैं व अब बाबा कहते है इस अंतिम जन्म पवित्र बनो । आत्मा जन्म लेते लेते वानप्रसथ अवस्था में है तो परमपिता परमात्मा की याद में रह पावन बनना है ।

 

  ❉   इस संगमयुग पर बाप ने ही सच्चा ज्ञान व असली स्वरुप की पहचान दी है कि मैं शरीर नही हूं मैं आत्मा हूं व हम सब आत्माओं का पिता एक ही है परमात्मा । जितना अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते हैं बुरे संस्कार खत्म होते जाते हैं ।

 

  ❉   इस समय बाप ही सच्ची गीता सुनाकर हमें पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बना रहे हैं व पतित से पावन बना रहे हैं । आत्मा में ही अच्छे बुरे संस्कार भरते है जिससे ही वह पाप आत्मा व पुण्य आत्मा बनती है ।

 

  ❉   देह व देह के सर्व सम्बंध विनाशी है इसलिए बस अविनाशी बाप को ही याद करना है । इसलिए अविनाशी बाप से अविनाशी ज्ञान खजानों से भरपूर होकर व उन्हें धारण कर पुण्य आत्मा बनने की मेहनत करनी है ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ संगठन में सहयोग की शक्ति द्वारा विजयी बनने वाले सर्व के शुभ चिन्तक होते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   संगठन में कार्य सफल तभी होता है जब सबके सहयोग की ऊँगली उसमे लगी हो। सहयोग करना भी आत्मा की एक शक्ति है, जिसमे सब भेद भाव भुलाकर हम एक ही संकल्प व लक्ष्य लेकर में आगे बढ़ते है।

 

 ❉   संगठन को मजबूत बनाना है तो सर्व को सहयोग के ऊँगली लगानी होगी, किसी एक से गोवर्धन पर्वत नहीं उठा सकते सबको अपने सहयोग की ऊँगली लगानी होगी।

 

 ❉   संगठन में अनेक स्वभाव संस्कार वाले व्यक्ति होते है, सभी के विचार सोचना समझना व्यवहार एक समान नहीं होता है इसलिए इन सब बातो से ऊपर रहकर सबको शुभ भावना से आगे बढ़ाना है।

 

 ❉   सहयोगी आत्माओ के संगठन द्वारा ही यह किला मजबूत होगा, इस किले की एक एक इट का बहुत महत्व है। जितना किला मजबूत होगा उतना ही माया अन्दर घुस नहीं पगेगी और हम विजयी बन जायेंगे।

 

 ❉   सदा सर्व के प्रति शुभ भावना, सहयोग की भावना हो। सब अपने है और हम सभी के इसलिए एक दो तो आगे बढ़ाते जाना है। सहयोग की ऊँगली लगाकर इश्वर के इस कार्य को सफल बनाना है।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ कोई भी इच्छा, अच्छा बनने नही देगी इसलिए इच्छा मात्रम अविद्या बनो... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   इच्छा मात्रम अविद्या बन जब स्थूल सूक्ष्म कामनाओं का भी त्याग कर देंगे तो यह त्याग बेहद की वैराग्य वृति द्वारा आत्मा को देह और देह के सर्व बंधनो से मुक्त कर देगा जिससे आकर्षण के सब संस्कार सहज ही समाप्त हो जायेंगे ।

 

 ❉   जितना आत्मा में योग का बल होगा उतना किसी भी परिस्थिति का सामना करना सहज होगा और यह तभी होगा जब स्थूल सूक्ष्म कामनाओं का त्याग कर, इच्छा मात्रम अविद्या बनेंगे ।

 

 ❉   इच्छा मात्रम अविद्या बन सूक्ष्म इच्छाओं का जितना त्याग करेंगे उतना कर्मो में श्रेष्ठता आती जायेगी जिससे समाधान स्वरूप बन हर समस्या का सामना सहजता से कर सकेंगे ।

 

 ❉   जब सब इच्छाओं का त्याग कर देंगे तो स्वयं को सदा अधिकारीपन की सीट पर सेट अनुभव करेंगे और अधिकारीपन के निश्चय और नशे में रह जब हर कर्म करेंगे तो सब प्रकार की अधीनता समाप्त हो जायेगी ।

 

 ❉   स्थूल सूक्ष्म कामनाओं का त्याग हद के मैं और मेरे पन को समाप्त कर बुद्धि को विशाल बना देगा और विशाल बुद्धि आत्मा सदा योग युक्त स्थिति का अनुभव करते हुए अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति में मगन रहेगी ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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