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❍ 04 / 01 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ आत्माओं को °बाप और सृष्टि चक्र° का परिचय दिया ?
‖✓‖ "हम सब आत्मा रूप में °भाई-भाई° हैं" - यह पाठ पक्का किया और कराया ?
‖✓‖ "°मेरा तो एक बाबा°... दूसरा न कोई" - इस स्मृति से फ़रिश्ता स्थिति का अनुभव किया ?
‖✓‖ अपने संस्कारों को °याद से संपूरण पावन° बनाने पर विशेष अटेंशन रहा ?
‖✗‖ किसी भी बात को बार बार °फील° तो नहीं किया ?
‖✗‖ कर्म-अकर्म-विकर्म की गुह्य गति को बुधी में रख कोई °विकर्म° तो नहीं किया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ °आत्मिक उन्नति के साधन° द्वारा सर्व परिस्थितियों पर विजय प्राप्त की ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ °मेरे को तेरे में° परिवर्तित कर सदा हलके डबल लाइट फ़रिश्ता बनकर रहे ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं अकालमूर्त आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ आत्मिक उन्नति के साधन द्वारा सर्व परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करने वाली मैं अकालमूर्त आत्मा हूँ ।
❉ सदा स्वयं को अकालमूर्त ( आत्मा ) निश्चय करने से मैं अकाले मृत्यु तथा अनेक समस्याओ से बची रहती हूँ ।
❉ अपने पुराने शरीर के भान को मिटा कर आत्म - अभिमानी बन मैं सभी परिस्थितियों पर सहज ही विजय प्राप्त कर लेती हूँ ।
❉ सभी चिंताए बाप को देकर बेफिक्र बादशाह बन मैं उमंग उत्साह के पंख लगाये उड़ती रहती हूँ ।
❉ मैं आत्मा सदा मनमनाभव की विधि से मन के बन्धनों से मुक्त स्मृति स्वरुप अवस्था का अनुभव करती हूँ ।
❉ स्वस्थिति में स्थित रह हर परिस्थिति को अपने वश में कर मैं सभी बातो से उपराम होती जाती हूँ ।
❉ मैं आत्मा सदा बाप से सर्व संबंधो की अनुभूति व प्राप्ति में मगन रह, पुरानी दुनिया के वातावरण से सहज ही उपराम रहती हूँ ।
❉ बाप के साथ के सर्व सम्बन्धो की अनुभूति मुझे विनाशी दुनिया के दुःख व धोखा देने वाले सभी सम्बन्धो से बचा कर रखती है ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - बाप तुम्हे जो पढ़ाई पढ़ाते हैं वह बुद्धि में रख सबको पढ़ानी है, हर एक को बाप का और सृष्टि चक्र का परिचय देना है"
❉ लौकिक में जो स्टूडेंट ऊंच पद पाने का लक्ष्य रखते हैं उसे पाने के लिए पढ़ाई पर पूरा अटेंशन देते हैं ।
❉ हमारी भी यह रूहानी पढ़ाई है जो स्वयं परम पिता परमात्मा शिव बाबा आ कर हमे पढ़ाते हैं । जिसे धारण कर हम 21 जन्मों की राजाई प्राप्त करते हैं ।
❉ परमात्मा बाप हमे जो ज्ञान देते हैं वह ज्ञान और कोई के पास है नही क्योकि सब बाप को और बाप की शिक्षा को भूले हुए हैं ।
❉ इस बात को भी भूले हुए हैं कि यह सृष्टि एक बहुत बड़ा ड्रामा है जिसमे हम सभी आत्माये शरीर धारण कर पार्ट बजा रही हैं ।
❉ इसलिए हमारा फर्ज है कि बाप जो पढ़ाई हमें पढ़ाते हैं वह बुद्धि में रख सबको पढ़ाये और सबको एक बाप का और सृष्टि चक्र का परिचय दें ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ 24 कैरेट सच्चा सोना (सतोप्रधान) बनने के लिए कर्म-अकर्म-विकर्म की गुह्य गति को बुद्धि में रख अब कोई विकर्म नहीं करना है ।
❉ पहले अज्ञानता के कारण देह-अभिमानी रहने से कर्मेन्द्रियों के विषयों के आकर्षण में बंधे रहे व विकर्म करते रहे । अब सत का ज्ञान मिलने पर व अपने असली स्वरुप की पहचान मिलने पर अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते हुए करःम करने है ।
❉ 24 कैरेट सच्चा सोना यानि सतोप्रधान बनने के लिए आत्मिक स्मृति में स्थित होकर कर्म करने हैं व सत्य ज्ञान प्राप्त करके योगयुक्त होकर कर्म करने हैं ।
❉ बाप ने हमें कर्म अकर्म विकर्म की गुह्य गति का ज्ञान.दिया है । अगर बाप का बनने के बाद भी अगर विकर्म करते हैं तो सौ गुना सजा खानी पडेगी व पद भी भ्रष्ट होगा इसलिए कोई विकर्म नहीं करना ।
❉ जैसे शुद्ध सोना बनाने के लिए उसे अच्छे से तपाया जाता है ऐसे ही आत्मा को सतोप्रधान बनाने के लिए ज्वालामुखी योग से विकर्मों को भस्म करना है । तभी आत्मा शुद्ध व मीठी होगी व कोई विकर्म नही होगा ।
❉ करम अकर्म विकर्म की गुह्य गति को समझते हुए हमें मनसा वाचा कर्मणा व संकल्प में भी पवित्र रहना है क्योंकि किसी के लिए कुछ सोचना भी विकर्म है ।
❉ कर्मों के गुह्य ज्ञान को जान गए हैं कि कर्म कब विकर्म होते हैं व अकर्म कब होते है व उनका फल हमें कहां तक ले जाता है । तो कोई ऐसा कर्म नहीं करना जिससे किसी को दु:ख हो व कर्मों का खाता बढ़ाना नही है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ अकालमूर्त आत्मिक उन्नति के आधार द्वारा सर्व परिस्थितियों पर विजय प्राप्त कर लेते है ... क्यों और कैसे ?
❉ हम आत्माये अकालमूर्त है अर्थात हम आत्माये कभी मरती नहीं है, सदा अमर अविनाशी है। सदा स्वयं को अकालमूर्त आत्मा समझ शरीर के अकालतख्त पर विराजमान होकर कर्म करना है।
❉ जब हम अपनी आत्मिक स्थिति में स्थित होते है तो हमारे सर्व गुण, शक्तियाँ इमर्ज फॉर्म में रहती है। मास्टर सर्व शक्तिमान के आगे कोई परिस्थिति टिक नहीं सकती।
❉ देहि अभिमानी बनने से हमें यह याद रहता है की हम आत्मा कल्प-कल्प की विजयी है, अनेक बार हमने विजय पाई है और इस कल्प में भी विजय होना निश्चित है।
❉ जो भी साधन सुविधा मिली है उन्हें आत्मिक उन्नति के लिए उपयोग में लाओ, साधन द्वारा भी साधना हो सकती है परन्तु साधनों के अधीन नहीं हो जाना है। निम्मित डिटेच रहकर उपयोग करना है।
❉ जो आत्माये अकालतख्त पर विराजमान होकर अकालमूर्त स्थिति में स्थित रह कर्म करती है उन्हें कभी काल खा नहीं सकता, उनकी कभी अकाले मृत्यु नहीं होती।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ कोई भी बात जो बार - बार फील करता है वह फाइनल में फेल हो जाता है... क्यों और कैसे ?
❉ किसी भी बात में फीलिंग व्यर्थ चिंतन का कारण बन स्थिति को नीचे गिरा सकती है और किसी भी परिस्थिति में फेल होने का कारण बन सकती है ।
❉ कोई भी बात को फील करना आत्मा को दिलशिकस्त बना कर उसके पुरुषार्थ को ढीला करने का कारण बन सकता है । और पुरुषार्थ में ढीलापन फेल होने का मुख्य कारण है ।
❉ दूसरों की बात को फील करने वाले सदा अपसेट रहते हैं और किसी भी चीज पर अटेंशन नही दे पाते और एकाग्रता की कमी के कारण हर क्षेत्र में फेल होते हैं ।
❉ फीलिंग की भावना असन्तुष्टता उत्तपन्न करती है और असन्तुष्ट व्यक्ति हर बात में दुखी रहता है और दुःख की अनभूति उसे हर क्षेत्र में असफल बना देती है ।
❉ किसी भी बात में फीलिंग आना स्थिति की एकरसता को समाप्त कर देता है जिससे छोटी से छोटी परिस्थिति भी बड़ी दिखाई देती है और फेल होने का कारण बन जाती है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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