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 28 / 06 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ स्वयं को रूह समझ रूहानी बाप से पढकर पूरा वर्सा लेने का पुरुषार्थ किया ?

 

➢➢ किसी ×देहधारी× को याद तो नहीं किया ?

 

➢➢ "इस पुरानी दुनिया को आग लगनी है" - यह स्मृति में रहा ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ रूहाब और रहम के गुण द्वारा विश्व नव निर्माण के निमित बने ?

 

➢➢ बाप के प्यार के पीछे व्यर्थ संकल्पों को न्योछावर किया ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ बाप के ऊपर, प्राप्तियों के ऊपर और ज़िम्मेवारियों के ऊपर अपना अधिकार समझकर चले ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ "मीठे बच्चे - अमरबाबा आया है तुम्हे ज्ञान का तीसरा नेत्र देने, अभी तुम तीनो कालो तीनो लोको को जानते हो"

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे  अमर पिता अपने भूले बच्चों को सब कुछ याद दिलाने आया है... ज्ञान के दिव्य चक्षु से सारे राज बताने आया है... खुद के सत्य को भूले बच्चे आज समझदार हो चले है... खुद को तो क्या तीनो कालो और तीनो लोको को जान मा ज्ञान सागर बन चले है...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... कितना भटकी थी मै आत्मा इस दुखमय संसार के झूठे नातो में... सच्चे सुख की एक बून्द भी मेरे दामन में न थी... आपने अपना हाथ मेरे सर पर रख मुझ आत्मा को ज्ञान परी बना दिया... मै सब जान गयी हूँ प्यारे बाबा... तीनो कालो तीनो लोको से भी वाकिफ हो चली हूँ...

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे हद के ज्ञान से सच्चे राजो को जान न सकोगे... बेहद के ज्ञान को अमर पिता के सिवाय तो कोई बता ही न सके... ज्ञान के तीसरे नेत्र को पाकर सदा के रौशन हो चले हो... खुद को जान... सृस्टि के चक्र को भी यादो में भर चले हो मा त्रिलोकीनाथ बन गए हो...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे सिकीलधे प्यारे बाबा... मै आत्मा घर से जो निकली... खूबसूरत खेल खेलते खेलते दुःख के खेल में उलझ चली... स्थूल नेत्र की दुनिया को ही दिल में समा चली... आपने आकर ज्ञान नेत्रो से जीवन सदा का रौशन किया है... आपने ज्ञान को मेरी बुद्धि में समाहित कर आप समान बना दिया है... प्यारे बाबा मै सब कुछ जान गयी हूँ...

 

 ❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चे यह दुखमय संसार मेरे बच्चों के लिए नही है... सोने जेसी सुखो भरी धरती ही तुम बच्चों का आशियाना है... विस्मर्ति के खेल से सब भूल चले हो... और अब अमर पिता के संग से अपनी वास्तविकता और खूबसूरत राजो के राजदार बन पड़े हो...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - प्राणों से भी प्यारे बाबा... आपका किन शब्दों में शुक्रिया करूँ.... कितना सुंदर मेरा भाग्य है कि स्वयं अमर पिता... मुझ आत्मा को ज्ञान के नेत्रो से बेहद के राजो को बताने... मेरी दुनिया में आ चला है... मुझे ज्ञानवान बना सदा का सुखी बना रहा है... मीठे बाबा इस खुशनसीबी की तो मेने कल्पना भी न की थी...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

 ❉  "ड्रिल - स्वयं को रुह समझ रुहानी बाप से पढ़ाई पढ़ना"

 

 ➳ _ ➳  सबसे पहले ये निश्चय करके बैठें कि मैं ये शरीर नही रुह हूं... स्वयं को देहभान से न्यारा कर अपने असली स्वरुप में ज्ञान सागर प्यारे बाबा के सन्मुख बैठी हूं... प्यारे बाबा स्वयं सुप्रीम टीचर बन हमें पढ़ाकर पतित से पावन बना रहे हैं... मैं आत्मा ऊंच ते ऊंच पढ़ाई को अच्छी रीति धारण कर रही हूं... रुहानी बाप का बच्चा बनते ही बाप के वर्से की अधिकारी बन गई हूं... मुझ आत्मा को सच्चा सच्चा बाप मिला है जो रोज मुझ आत्मा को सच्ची सच्ची अमरनाथ की कथा सुना रहे है... सच्ची कथा को सुन मैं आत्मा पावन बनती जा रही हूं... यही सच्ची सच्ची अमरकथा सुनकर और दूसरों को सुनाकर मैं आत्मा सचखंड़ का मालिक बनती जा रही हूं...

 

 ❉   "ड्रिल - पुरानी दुनिया को भुलाकर एक निराकार बाप को याद करना"

 

 ➳ _ ➳  जैसे मैं आत्मा निराकार ज्योति बिंदु है ऐसे ही मुझ आत्मा के पिता परमात्मा शिव बाबा भी निराकार तेजोमय ज्योति बिंदु है... मेरे परमपिता परमात्मा से ही मुझ आत्मा को बेहद का वर्सा मिल रहा है... बेहद के बाप से ही बेहद की सुख, शांति, आनन्द, प्रेम... शक्तियों से भरपूर होती जा रही हूं... शिव बाबा से ही मुझ आत्मा के सर्व सम्बंध है...  देहधारियों के साथ झूठे रिश्तों को भूलती जा रही हूं... मोह खत्म होता जा रहा है ... ये पुरानी दुनिया का विनाश होना ही है... इसलिए मैं आत्मा इन आंखों से देखते हुए भी नही देख रही हूं... मुझ आत्मा की दिव्य दृष्टि में बस एक बाप समाया है...

 

 ❉   "ड्रिल - सच्चे बाप के प्यार में व्यर्थ संकल्पों को न्यौछावर करना"

 

 ➳ _ ➳  मैं आत्मा प्यार के सागर की संतान मास्टर प्यार का सागर हूं... मुझ आत्मा का हर संकल्प, बोल और कर्म मेरे मीठे बाबा के लिए है... बाबा ही मेरा संसार है... जिस परमपिता परमात्मा को दुनिया वाले ढूंढ रहे है ....वो मेरे पिता है जो  मुझ आत्मा को सच्चा सच्चा प्यार दे रहे हैं... सच्ची सच्ची गीता ज्ञान सुना रहे हैं.....जो मुझे पतित से पावन बना रहे हैं... अब अपने व्यर्थ संकल्पों को छोड़ बस श्रेष्ठ संकल्प ही कर रही  हूं... मेरे सच्चे परमपिता मेरे विकारों को लेकर विश्व की बादशाही दे रहे  हैं... कल्प पहले भी  ये सब मेरे सच्चे परमपिता ने मुझ आत्मा को दिया...  ऐसे पिता पर मैं अपना सब न्यौछावर करती हूँ....

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- "मैं विश्वकल्याणकारी आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳  यह सृष्टि एक विशाल नाटक है... मैं आत्मा इस नाटक में श्रेष्ठ अभिनेता हूँ... एक्टर हूँ... इस नाटक में अनेक एक्टर्स हैं... जो अपनी - अपनी भूमिका अदा कर रहें हैं... यह नाटक विविधताओं से भरा है और रहस्मय है...

 

➳ _ ➳  इस अदभुत नाटक के निर्देशक विश्वकल्याणकारी हैं... और मैं आत्मा उनकी सन्तान मास्टर विश्वकल्याणकारी हूँ... संसार नाटक से मन को हटाकर मैं आत्मा अपने निज धाम... आवाज़ की दुनिया से दूर शान्तिधाम में... शांतस्वरूप स्तिथि में स्तिथ हूँ... मन की आँखों से मैं परमधाम में ज्योति बिंदु आत्मा को देख रही हूँ...

 

➳ _ ➳  वह मेरे बाबा शांति के सागर हैं... मैं आत्मा उनकी संतान अपने परमपिता के संग दिव्य शांति का अनुभव कर रहीं हूँ... अब मैं आत्मा अपना हर कार्य शांति पूर्वक कर रहीं हूँ... मैं स्थापना के कार्य में निमित्त बन रहीं हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा ईश्वरीय गुणों से भरपूर हूँ... "रुहाब और रहम" - मुझ आत्मा के 2 मुख्य गुण हैं... मैं आत्मा अपने इन 2 मुख्य गुणों की अनुभूति कर रही हूँ... मेरे यह दो गुण मेरे 2 शस्त्र बनकर हमेशा मुझ आत्मा के साथ रहते हैं...

 

➳ _ ➳  मुझ आत्मा के हर कर्तव्य में, मुख द्वारा बोले बोले गए हर शब्द में रुहाब और रहम की झलक हमेशा दिखाई देती है...

 

➳ _ ➳  शक्तियों के चित्रों में इन दोनों गुणों की समानता दिखाते हैं... उसी प्रकार मैं आत्मा इन दोनों गुणों को साथ - साथ और समान रखकर रूहानियत की ऊंच स्टेज तक पहुँच गयी हूँ... इन दोनों गुणों को इस संगमयुगी श्रेष्ठ जीवन में दृढ़ता से धारण करके मैं आत्मा विश्व नव निर्माण की निमित्त आत्मा बन गयीं हूँ... मैं आत्मा विश्व कल्याणकारी के स्वरुप में सम्पूर्ण रूप से स्थित हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢ रुहाब और रहम के गुण द्वारा विश्व निर्माण करने वाले विश्वकल्याणकारी होते हैं.... क्यों और कैसे ?

 

❉   जो सदा ब्राह्मण परिवार के साथ साथ दूसरी आत्माओ को भी बाप समान बनाने की शुभ भावना रखता है ।  सर्व आत्माओ के प्रति अशान्त से शान्त दुखी से सुखी बनाने  की सेवा में लगा रहता है । सदा ईश्वरीय नशे मे रहता है ।ऐसे अपने रुहाब और रहम के गुण से विश्व निर्माण करने वाले विश्वकल्याणकारी होते है ।

 

❉   जो सदा अपने को रूह को देख रूह से बात करते हैं । जो स्वयं को सदा सुप्रीम बाप की छत्रछाया में रखते हैं । हर संकल्प, बोल और कर्म भी रूहाब में होता है व सर्व के प्रति शुभ भावना शुभ कामना होती है । स्वयं परमात्मा ने मुझ आत्मा को विश्व परिवर्तन के कार्य के निमित्त चुना है ऐसे अपने को भाग्यशाली समझते रुहाब और रहम के गुण द्वारा  विश्व कल्याण करने वाले कल्याणकारी होते है

 

❉   जो सदा रुहानी सेवा में दिन रात लगे रहते है व बाप से सच्चा स्नेह होता है तो बाप समान सब के प्रति रहम की भावना होती है । सर्व रूहें हमारी तरह वर्से के अधिकारी बन जाए । बाप द्वारा जो शक्ति गुण प्राप्त हुई उनके द्वारा सहयोग देकर कमी कमजोरी वाली आत्मा को शक्तिशाली अनुभव कराते हैं ।  ऐसे रूहाब और रहम के गुण द्वारा विश्व निर्माण करने वाले  विश्वकल्याणकारी होते है ।

 

❉   विश्वकल्याकारी बनने के लिए दो धारणायें जरुरी है एक है ईश्वरीय रुहाब और दूसरा रहम । जिन में ईश्वरीय रुहाब और रहम दोनो होते है और समान होते है तो रुहानियत की स्टेज बन जाती है । जो बच्चे कर्म करते सदा ईश्वरीय रुहाब में रहते है व सर्व के प्रति रहम की भावना रखते हैं । स्व का परिवर्तन कर विश्व परिवर्तन करने वाले विश्वकल्याणकारी होते है ।

 

❉   जो बच्चे परमपिता परमात्मा से प्राप्त हुए सर्व खजानों, सर्व गुणों व सर्व शक्तियों से सम्पन्न होते है व परमात्म पालना व परमात्म प्राप्तियों से सदा खुशी के झूले में झूलते रहते है और ईश्वरीय रुहाब में रहते है । सर्व सम्बंध बस एक बाप से रखते है । स्वयं को निमित्त सेवाधारी समझ सर्व के प्रति रहम की भावना रखते उन्हें आप समान बनाने की सेवा में लग उनका कल्याण करते है और विश्व कल्याणकारी होते हैं ।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢ बाप के प्यार के पीछे व्यर्थ संकल्प न्योछावर कर दो - यही सच्ची कुर्बानी है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   वेस्ट एक सेकण्ड में निगेटिव को पैदा करता है जिससे छूटना फिर मुश्किल हो जाता है । इसलिए बाबा कहते रेस्ट इस बेस्ट ।  अर्थात मन बुद्धि को रेस्ट दो तो बेस्ट बन जायेंगे । क्योकि व्यर्थ संकल्प मन बुद्धि को भटकाते हैं और बेस्ट बनने नही देते । लेकिन जो बेस्ट बनते हैं वही बाप के दिल रूपी तख्त पर राज करते हैं । इसलिए बाप के दिल तख़्त नशीन बन बाप का प्यार तभी पा सकेंगे जब मन बुद्धि को एकाग्र कर केवल एक बाप की लग्न में मगन रहेंगे । और बाप के प्यार के पीछे व्यर्थ संकल्पों को न्योछावर कर सच्ची कुर्बानी देंगे ।

 

 ❉   बाबा के मददगार तभी बन सकेंगे जब बाप समान बनेंगे और बाप समान बनने के लिए सबसे पहले जरूरी है व्यर्थ संकल्पों को बाप पर न्योछावर करना । जैसे साइंस वाले शस्त्र से शस्त्र को खत्म कर देते हैं, एक विमान से दूसरे विमान को गिरा देते हैं । इसी प्रकार संकल्प ही संकल्प को समाप्त कर सकते हैं । तो जितना मन बुद्धि को शुद्ध और श्रेष्ठ चिंतन में बिज़ी रखेंगे उतना समर्थ संकल्प पावरफुल होते जायेंगे और अपनी पॉवरफुल स्व स्थिति में जब स्थित रहेंगे तो स्वत: ही शुद्ध और श्रेष्ठ वायब्रेशन इमर्ज होने लगेंगे जो व्यर्थ संकल्पों और व्यर्थ वायब्रेशन को समाप्त कर देंगे ।

 

 ❉   कोई भी कनेक्शन जोड़ने के लिए सदा लाइन क्लीयर चाहिए । इसी प्रकार बाप से भी कनेक्शन तभी जोड़ पाएंगे जब बुद्धि की लाइन क्लीयर होगी और बुद्धि की लाइन तभी क्लीयर होगी जब व्यर्थ संकल्पों को बाप पर पूरा न्योछावर कर सच्ची कुर्बानी देंगे क्योकि व्यर्थ समाप्त होगा तभी समर्थ संकल्प चलेंगे और जितने संकल्प श्रेष्ठ और समर्थ होंगे उतना बाप द्वारा मिली नॉलेज को धारणा में ला कर सेवा में सदा बिज़ी रहने के अभ्यासी बन अनेको का कल्याण कर सकेंगे ।

 

 ❉   जैसे मुख के बोल के लिए कहते हैं कि 10 शब्द की बजाए अगर 2 समर्थ बोल बोले जाये तो वह 10 बोल का कार्य सिद्ध कर सकते हैं । इसी प्रकार संकल्पों की श्रेष्ठता की गति भी ऐसी हो जो सहज ही दूसरों को परिवर्तन कर दे । और यह तभी होगा जब संकल्प रूपी बीज सफलता के फल से सम्पन्न होगा और संकल्पों में सम्पन्नता तभी आएगी जब संकल्पो की संख्या कम होगी किन्तु शक्तिशाली और समर्थ होगी । इसके लिए  जरूरी है व्यर्थ संकल्पों को बाप पर पूरी तरह कुर्बान कर सच्ची कुर्बानी दे व्यर्थ से स्वयं को मुक्त करना ।

 

 ❉   संकल्पों में जितनी पॉवर होगी उतना वह दूर तक पहुँच सकेंगे । जैसे रोशनी में भी जितनी पॉवर ज्यादा होती है उसका प्रकाश उतनी दूर तक दिखाई देता है इसी प्रकार जब संकल्पों में इतनी शक्ति आ जायेगी कि एक जगह संकल्प किया और दूसरी जगह फल मिला जैसे बाप भक्तों को भक्ति का फल देते हैं । ऐसे जब पावरफुल संकल्प शक्ति वाली श्रेष्ठ आत्माएं बन जायेंगे तो उस संकल्प रूपी बीज से जो फल प्राप्त होगा उसका अनुभव सभी कर सकेंगे । यह सेवा तब आरम्भ होगी जब बाप के प्यार और सेवा के पीछे व्यर्थ संकल्पों को न्योछावर कर देंगे ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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