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 18 / 08 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ ×ज्ञान के घमंड× में तो नहीं आये ?

 

➢➢ निश्चयबुधी बन अपनी अवस्था पक्की की ?

 

➢➢ देह सहित जो कुछ देखने में आता है, उनसे बुधीयोग तोड़े रखा और एक बाप के साथ जोड़े रखा ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ निष्काम सेवा द्वारा विश्व का राज्य प्राप्त करने का पुरुषार्थ किया ?

 

➢➢ ×अपनी गलती दुसरे पर× तो नहीं लगाई ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢ आज बाकी दिनों के मुकाबले एक घंटा अतिरिक्त °योग + मनसा सेवा° की ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - बापदादा की यादप्यार लेनी है तो सर्विसेबिल बनो बुद्धि में ज्ञान भरपूर है तो वर्षा करो"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता के दिल पर मणि बन दमकना है तो ज्ञान और यादो के मीठे बादल बन बरसो... मेरे दुखो में मुरझाये फूल बच्चों को खुशनुमा कर आओ... मीठे बाबा का पता देकर उन्हें सदा का जीवित कर आओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा आपकी यादो से भरा मीठा बादल बन चली हूँ... यादो की बदली बन सबके तनमन खिला रही हूँ... प्यारा बाबा आ गया... हर दिल को इस मीठी बरसात में भिगो रही हूँ...

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... प्यार भरे बादल बनकर ज्ञान के बादल बनकर सुखो की वर्षा कर चलो... मीठे बापदादा के दिलतख्त पर राज करो... पूरे विश्व का कल्याण करने की मीठी भावना से भर चलो... सबको सच्चे सुखो का पता देते चलो...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा पूरे विश्व का कल्याण करने के दृढ़ संकल्प से भर चली हूँ... जो मीठे बाबा से खजाना पाया है वह लुटाने निकल पड़ी हूँ... सबको सजाना है संवारना है और पूरे विश्व में मुझे ख़ुशी के फूल खिलाना है...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जो सुख पिता से पाया है उसे पूरे विश्व के दामन में सजा आओ... सबके चेहरे खुशियो से मुस्करा आओ... ईश्वर को मिलने की उनकी जनमो की चाहत को पूरा कर आओ... विश्व परिवार को ज्ञान और योग का जादू सिखा आओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ख़ुशी का बादल बनकर विश्व गगन में उड़ चली हूँ... और ज्ञान की वर्षा कर सारे विश्व को सुखो से सराबोर कर रही हूँ... कोई फूल दिल मुरझाया न रहे इस ईश्वरीय सन्देश के महान अभियान में जुट गयी हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - बंधनमुक्त बन रुहानी सेवा करना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपने ही किए विकर्मो से दुखी हूं... जो पिछले 63 जन्मों से करती आई हूं... वही मुझ आत्मा को दुख की महसूसता कराने के निमित्त बन रहे हैं... मैं आत्मा अपने को हद के बंधनों से मुक्त करती हूं... इस संगमयुग पर मुझ आत्मा को ड्रामा का ज्ञान मिलने पर किसी को दोष न देकर अपने हिसाब किताब समझ चुकतू करती हूं... दुख की फीलिंग में नही आती हूं... बीती को फुलस्टाप लगाकर आगे बढ़ती हूं... अब इस संगमयुग पर सिर्फ एक बाप की याद में रह अपने को बंधन मुक्त करती हूं... जन्म जन्म के विकर्मों के खातों को बिना कोई नया खाता बनाये चुक्तू करती हूं... अपने सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को सम्मान देती हूं... गुणों का, शक्तियों का दान देकर रुहानी सेवा करती हूं... हर पल हर श्वांस बाबा को याद करती हूं... सर्व शक्तियो, सर्व खजानों से सम्पन्न होने से मुझ आत्मा में सदा रुहानी सर्विस के लिए उमंग उत्साह रहता है... जो घोर अंधियारे में हैं उनको ज्ञान धन का दान देकर बाबा का परिचय देती हूं... हम सब आत्माओं के पिता एक है परमपिता परमात्मा सदा शिव... मैं आत्मा बाप की श्रीमत पर चल आप समान बनाने की सेवा करती हूं... मैं आत्मा रुहानी सेवा करते रुहानी नशे में रहती हूं...

 

❉   "ड्रिल - सब संग तोड़, बाप संग जोड"

 

➳ _ ➳  मैं देह नही देही हूं... मुझ आत्मा के परमपिता मुझ जैसे ही होगें... और हम सब आत्माओं के पिता एक ही है... ये सारा ज्ञान मुझ आत्मा को मेरे प्यारे बाबा से मिल गया है... जैसे मैं आत्मा बिंदु ऐसे ही मुझ आत्मा के पिता भी सुप्रीम बिंदु है... मैं आत्मा देह व देह के सम्बंधों से बुद्धियोग तोड़ बस एक परमपिता परमात्मा को याद करती हूं... मैं आत्मा 63 जन्मों तक विकर्म करते पतित हो गई व दुःखी हो गई...  इस संगमयुग पर स्वयं परमात्मा को इस पतित दुनिया में आना पड़ा... मुझ आत्मा को पतित से पावन बनाने के लिए स्वयं सुप्रीम टीचर बन पढ़ाने आते है... मैं आत्मा निश्चयीबुद्धि हूं... स्वयं भगवान ब्रह्मा बाबा के तन का आधार लेकर पढ़ाते है... मुझ आत्मा को ज्ञान रत्नों से भरपूर करते हैं... पतित पावन, ज्ञान का सागर सिर्फ और सिर्फ मेरे प्यारे शिव बाबा हैं... शिव बाबा ही मुझ आत्मा के सुप्रीम बाप, सुप्रीम टीचर, सुप्रीम सदगुरु हैं... प्यारे बाबा ही मुझ आत्मा को राजयोग सिखाते है... इस पुरानी दुनिया में देह व देह के सर्व सम्बंध विनाशी है... मैं आत्मा जान गई हूं कि ये पुरानी दुनिया कब्रदाखिल होनी ही है... इसलिए मुझ आत्मा का इस विनाशी दुनिया से कोई मोह नही रहा... मैं बुद्धियोग से सब से नाता तोड़ चुकी हूं... मैं आत्मा बस निमित्त समझ तोड निभाती हूं... मैं आत्मा एक अविनाशी बाप की याद में रहती हूं... मैं आत्मा सब संग तोड, बस बाबा संग ही अपना बुद्धियोग जोड़ती हूं...

 

❉   "ड्रिल - परचिंतन मुक्त बनना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा परमपिता परमात्मा शिव बाबा के सम्मुख हूं... परमपिता परमात्मा से सर्वशक्तियों की किरणें मुझ आत्मा पर पड़ रही है... सर्वशक्तियों की किरणें पड़ने से मुझ आत्मा का विकारों रुपी कचड़ा जलकर स्वाहा होता जा रहा है... मुझ आत्मा पर चढ़ी विकारों की कट उतरती जा रही है... मैं आत्मा जो विकारों के कारण स्वयं को कमजोर महसूस कर रही थी अब शक्तियों से भरपूर होकर शक्तिस्वरुप अनुभव कर रही हूं... मैं आत्मा अपनी विस्मृतियों को स्मृति में लाती हूं... मुझ आत्मा को परमात्मा ने ज्ञान का तीसरा नेत्र दे दिया है... मैं आत्मा पुराने स्वभाव संस्कारों को छोड़ती जा रही हूं... मैं आत्मा स्व पर अटेंशन देती हूं... मैं आत्मा अपनी कर्मेन्द्रियों की मालिक हूं... मुझ आत्मा को अपनी परमात्मा ने सर्वशक्तियों, सर्व खजानों का मालिक बना दिया है... मुझ आत्मा के संस्कारों का परिवर्तन हो गया है... मुझ आत्मा की सर्व के प्रति आत्मिक दृष्टि होने से मैं आत्मा सर्व में विशेषता ही देखती हूं... मैं आत्मा अपनी कमजोरियों को बाबा को देकर हल्की रहती हूं... कोई गलती होने पर मैं आत्मा दूसरों को दोषी नही ठहराती हूं... मैं आत्मा उस गलती का दूसरों के आगे चिंतन भी नही करती हूं... मैं आत्मा बस एक बाप की याद में रह श्रीमत पर चलती हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं विश्व कल्याणकारी रहमदिल आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳  योगयुक्त हो बैठ जाएं... और श्रेष्ठ संकल्पों की रचना करें... मैं इस साकार दुनिया में रहने वाली अजर अमर अविनाशी आत्मा हूँ... मैं आत्मा शिव ज्योतिबिंदु की संतान बड़ी भारी रूहानी सेवाधारी हूँ... मैं बाप से अटूट सम्बन्ध से जुडी हुई आत्मा हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं ज्ञान सुनने और सुनाने वाली तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ... मैं आत्मा ज्ञान को धारण करने और कराने वाली ख़ुशी का फ़रिश्ता हूँ... मैं आत्मा मनसा शक्ति के अनुभव द्वारा विशाल कार्य में सदा सहयोग देने वाली मैं सहयोगी आत्मा हूँ... मैं आत्मा अपने पॉवरफुल मनसा वायब्रेशन्स द्वारा और अपने शुभ और श्रेष्ठ संकल्पों द्वारा दिलशिकस्त आत्माओं को सहयोग देकर आगे बढ़ाती जाती हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपने श्रेष्ठ संकल्प शक्ति द्वारा बुद्धि की लाइन को सदा क्लियर रख निरन्तर बाप के साथ जोड़े रखती हूँ... मैं आत्मा सेवा करते हुए भी सदा न्यारी और प्यारी स्थिति में स्थित रहती हूँ... मैं आत्मा निष्काम सेवाधारी आत्मा हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं शान-मान वा महिमा के संकल्पों से सदा उपराम रहने वाली आत्मा हूँ... मैं आत्मा दाता की बच्ची मास्टर दाता संकल्पों में भी लेने की भावना नहीं रखती हूँ... मैं निष्काम सेवाधारी आत्मा विश्व महाराजन होने का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं बेहद की वैरागी रहमदिल आत्मा होने की सीट पर सदा के लिए सेट होने वाली मास्टर विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  निष्काम सेवा द्वारा विश्व का राज्य प्राप्त करने वाले विश्व कल्याणी, रहमदिल होते हैं...  क्यों और कैसे?

 

❉   निष्काम सेवा द्वारा विश्व का राज्य प्राप्त करने वाले विश्व कल्याणी, रहमदिल होते हैं क्योंकि जो निष्काम सेवाधारी हैं उन्हें कभी भी यह संकल्प नहीं आ सकता कि मैंने इतना किया। वह जो भी कार्य इस शरीर द्वारा करेंगे वह सब कार्य परमात्मा के निमित्त हो कर ही करेंगे।

 

❉   सभी कार्य परमात्मा करवा रहे हैं। मैं तो केवल परमात्मा का एक इंस्ट्रूमेंट हूँ। क्योंकि करणकरावनहार करवा रहा है। मुझ आत्मा को उस कार्य का निमित्त बना कर। इसलिये सदा उनके मन में ये ही भाव रहता है कि मैंने कुछ नहीं किया। जो भी कार्य इस शरीर से अर्थात मन, बुद्धि व शरीर की ज्ञानव कर्मेन्द्रियों से हुआ है, वह सब कार्य बाबा ही कर रहे हैं।

 

❉   इसलिये निष्काम सेवाधारियों के हर कर्म परमात्मा को अर्पित होते हैं। वे अपना प्रत्येक कर्म निष्काम भाव से करते हैं। उनके संकल्प में भी ये बात नहीं आती है कि मैंने ये किया या इतना किया तथा मुझे, जो कर्म किये हैं, उन कर्मों से कुछ शान-मान वा महिमा मिलनी चाहिये।

 

❉   अगर वे ऐसा सोचते हैं तो...  ये भी लेना ही हुआ। हमें उस झूठी, विनाशी, मान- शान व महिमा से क्या प्रयोजन है। देने वाला स्वयं सब कुछ दे रहा है। बाबा हमें अविनाशी मान सम्मान देता है। असंख्य स्वमान! बाबा! हम आत्माओं को रोज देते हैं। फिर विनाशी सम्मान मिले, ऐसा वे कभी भी नहीं सोचते हैं।

 

❉   दाता के बच्चे अगर लेने का संकल्प भी करते हैं तो दाता नहीं हुए। यह लेना भी देने वाले के आगे शोभता नहीं है। जब यह संकल्प समाप्त हो जाए, तब विश्व महाराजन का स्टेटस प्राप्त हो। ऐसा निष्काम सेवाधारी, बेहद का वैरागी ही विश्व कल्याणी, रहमदिल बनता है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  अपनी गलती दूसरे पर लगाना - यह भी परचिंतन है... क्यों और कैसे ?

 

❉   जो सदा देह अभिमान में रहते हैं । देह को ही देखते हैं और देह तथा देह के सम्बन्धो के आकर्षण में सदा आकर्षित रहते हैं वे देह अभिमान में आ कर हमेशा कर्मेन्द्रियों से कोई ना कोई विकर्म करते ही रहते हैं । ऐसे मनुष्य हमेशा झरमुई - झगमुई में ही फंसे रहते हैं । उन्हें सदैव दूसरों में अवगुण ही दिखाई देते हैं इसलिए अपनी गलती होने पर भी उसे स्वीकार करने के बजाए उसका दोष दूसरों पर लगा देते हैं । बाबा कहते यह भी एक प्रकार का परचिन्तन है जो स्व उन्नति में बाधक है ।

 

❉   स्वयं का चिंतन छोड़ जो सदैव दूसरों की कमियों और दोषों को ही ढूंढने में लगे रहते हैं वे कभी भी पुरुषार्थ में तीव्रता हासिल नही कर पाते क्योकि ऐसे मनुष्य अपनी गलती के लिए भी सदैव परिस्थितयों अथवा अन्य व्यक्तियों पर दोषारोपण करते रहते हैं ।इसलिए वे कभी भी बाबा के दिल पर नही चढ़ पाते और परमात्म मदद का अनुभव नही कर पाते । क्योकि बाबा कहते अपनी गलती दूसरों पर लगाना - यह भी परचिन्तन है जो आत्मा को परमात्म प्रप्तियों से वंचित कर देता है ।

 

❉   अपनी गलती का दोष दूसरों पर लगा कर स्वयं को बचाने का प्रयास वही करते हैं जिनमे सच का सामना करने की हिम्मत नही होती । एक झूठ को छिपाने के लिए फिर और झूठ बोलते चले जाते हैं और संकल्पों के चक्रव्यहू में खुद ही फंस कर दिलशिकस्त हो जाते हैं । लेकिन जो सच्चाई और सफाई से सब कुछ बाप को बताते हैं वही बाप के दिल तख़्त पर सदा विराजमान रहते हैं । बाबा की श्रीमत भी यही कहती है कि सच्चे बाप के साथ सदा सच्चे रहो । इसलिए अपनी गलती को छिपाने के लिए झूठ का सहारा लेना भी परमत है ।

 

❉   जिन्हें स्वयं की महिमा सुनने का शौंक होता है अर्थात हद के नाम, मान और शान को पाने की जिनमे इच्छा होती है वे गलती हो जाने पर कभी भी अपनी गलती को स्वीकार नही करते बल्कि अपनी गलती के लिए दूसरे व्यक्तियों पर दोष लगा कर स्वयं उस गलती के परिणाम से बचने का प्रयास करते है परन्तु बाबा कहते अपनी गलती के लिए दूसरों को दोषी ठहराना भी परचिंतन है क्योकि स्व चिंतन करने वाले गलती हो जाने दूसरे को दोष देने के बजाए गलती को स्वीकार कर उसे सुधारने का प्रयास करते हैं ।

 

❉   अपनी गलती स्वीकार करने के बजाए दूसरों को दोषी वही ठहराते हैं जिनमे अहंकार होता है । अंहकार के कारण स्वयं की गलती होते हुए भी वे उस गलती को स्वीकार नही करते क्योकि गलती को स्वीकार करना माना झुकना और अहंकारी व्यक्ति सदा अपने अहंकार के नशे रहता है इसलिए कभी भी झुकना नही चाहता । स्व चिंतक और शुभ चिंतक वृति तो नम्रचित बनना सिखाती है अहंकारी बनना नही । इसलिए देह के झूठे अभिमान में आ कर अपनी गलती का दोष दूसरों पर लगाना भी परचिंतन है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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