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 03 / 08 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ इस पुरानी दुनिया से अपना लंगर उठा रहा ?

 

➢➢ ×दूसरों को चिंतन× छोड़ अपनी बुधी को स्वच्छ सोने जैसा बनाया ?

 

➢➢ योगबल से अपनी कर्मेन्द्रियों को शांत, शीतल बनाया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ नशे और निशाने की स्मृति से सर्व कर्मेन्द्रियों को आर्डर प्रमाण चलाया ?

 

➢➢ ×कमजोर संकल्पों× को विदाई दे प्रशनचित की बजाये प्रसन्नचित बनकर रहे ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ स्वयं को सदा राजऋषि समझकर चले ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - परचिन्तन छोड़ अपना कल्याण करो तुम सोने जैसा बनकर औरो को भी रास्ता बताओ"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे देह और देह की दुनिया की बाते समय साँस संकल्पों को मिटटी में मिलायेगी... इन सांसो को यादो में बेठ निखारो... स्वयं को सुनहरा संवारो और औरो को भी ज्ञान रत्नों से दमकाओ... यह खूबसूरत रास्ता सबको बताओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा अब मै आत्मा व्यर्थ से समर्थ की और रुख कर चली हूँ...  सुनहरे जीवन के सच्चे सूत्रो को जान यादो में खो चली हूँ... खुद भी सुंदर बन औरो को भी खूबसूरत बनाने में जुट गयी हूँ....

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे.... अब सबके ख्यालो को छोड़ सिर्फ अपने जीवन को स्वर्णिम बनाने का ख्याल करो... सच्चे सुखो के अधिकारी बन कर ज्ञान की महक से सबको महकाओ... पूरे विश्व का कल्याण कर सबको खुशियो से भर आओ....

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ज्ञान और योग के पंख लिए खूबसूरत परी बन चली हूँ... हद के दायरों से निकल पूरे विश्व के कल्याण के भावो में डूबी हूँ... अपने साथ सबको महकाने के प्रयासों में जुट गयी हूँ....

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे दुसरो के चिंतन में सांसो को न खपाओ... इन मोतियो को प्यारे बाबा की मीठी यादो में पिरो खूबसूरती को पाओ... अथाह सुखो पर अपना नाम लिखवाओ... प्रेम और शांति सुख की जन्नत में इतराओ... और इसी खुशबु से पूरे जहान के चमन को खुशनुमा बना आओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ने सदा दुसरो का ही चिंतन किया... सदा दुखो भरा जीवन ही व्यतीत किया.... अब आपके मीठे प्यार की जादूगरी में मै सुनहरी परी बन रही हूँ.... और यही जादू पूरे विश्व में फैला रही हूँ....

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   ड्रिल - निश्चयबुद्धि बन हर फरमान को पालन करना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा इस देह में रहते देह व देह के सम्बंधों से अनासक्त हो गई हूं... मैं आत्मा स्वयं के असली स्वरुप को पहचान गई हूं... प्यारे परमपिता परमात्मा शिव बाबा ही मुझ आत्मा के सच्चे सच्चे पिता है... अपने परमपिता परमात्मा से दिव्य दृष्टि व दिव्य ज्ञान मिलते ही मैं आत्मा जान गई हूं... ये पुरानी दुनिया विनाशी है... कब्रदाखिल होनी है... मुझ आत्मा का जीते जी इस पुरानी दुनिया से लंगर उठ गया है... इस पुरानी दुनिया से मुझ आत्मा को हमेशा दुःख ही मिला है... मुझ आत्मा को प्यारे बाबा से अनकंडीशनल प्यार मिल रहा है... मुझ आत्मा के सर्व सम्बंध अब सिर्फ प्यारे बाबा से हैं... बाबा ही मुझ आत्मा का संसार हैं... मैं आत्मा निश्चयबुद्धि होकर परमात्मा द्वारा दिखाई राह पर निरंतर आगे बढ़ रही हूं... मैं आत्मा प्यारे बाबा की श्रीमत का सम्पूर्ण रीति पालन करती हूं... मैं आत्मा बाबा के हर फरमान को सर माथे रखती हूं... मैं बाबा की फरमानबरदार बच्ची हूं... मैं आत्मा बाबा की याद रुपी डोर सदा पकड़े रहती हूं... मैं सदैव प्यारे बाबा की छत्रछाया में रह हर कर्म करती हूं... प्यारे बाबा का सदैव साथ होने से मुझ आत्मा का कल्याण ही कल्याण हैं...

 

❉   ड्रिल - परचिंतन छोड़ बुद्धि को स्वच्छ, शांत और शीतल बनाना"

 

➳ _ ➳  मुझ आत्मा को परमात्मा से दिव्य बुद्धि रुपी  गिफ्ट मिलने से घोर अंधियारा मिट गया है... ज्ञान की रोशनी मिलने से मैं आत्मा अपनी विस्मृत हुई शक्तियों को जान गई हूं... मैं महान आत्मा हूं... विशेष आत्मा हूं... पवित्र आत्मा हूं... मैं आत्मा चमकता सितारा हूं... मुझ आत्मा को अपने प्यारे शिव बाबा की याद में रह जन्मान्तर के विकर्म विनाश करने है... मैं आत्मा याद में रह आत्मा की डिम हुई लाइट की चमक बढ़ाती हूं... मैं आत्मा स्व पर अटेंशन देती हूं... मैं आत्मा इस अनमोल संगमयुग के महत्व को जान गई हूं... अब मैं आत्मा परचिंतन में अपना समय व्यर्थ नही करती हूं... मैं आत्मा एक बाप की ही याद में रह अपनी बुद्धि में लगी कट को उतारती हूं... जैसे बर्तन पर लगी कट को रगड़ कर उतारते हैं तो चमक जाता है ऐसे मैं आत्मा अपने प्यारे माशूक की याद में मगन रहती हूं... दिलाराम को दिल में बसा चुकी हूं... जब दिल में एक को बसा लिया है तो कोई दूसरा आ ही नहीं सकता... मैं आत्मा याद से अपनी बुद्धि को स्वच्छ सोने जैसा बनाती हूं... मैं आत्मा इधर-उधर की व्यर्थ बातों में समय नही गवांती हूं... योगबल से  मुझ आत्मा की कर्मेन्द्रिय शीतल हो गई हैं... शांत हो गई हैं... मैं आत्मा कर्मेन्द्रियजीत हूं...

 

❉   ड्रिल - प्रसन्नचित्त स्थिति का अनुभव करना

 

➳ _ ➳  अभी तक अज्ञान निद्रा के वश होकर चारो और के तमोप्रधान वातावरण से अंधियारे में थे... देहभान में रहने से विकारों में घिरे रहे... अपनी पहचान व अपनी शक्तियों को भूल गए... अपने कमजोर संकल्पों से ही क्यूं, क्यों, कैसे में उलझते चले गए... किसी भी गल्ती के होने पर दूसरे को ही दोषी ठहराने लगे... क्योंकि स्वयं ही कमजोर हो गए... दुखी रहने लगे... प्यारे बाबा से अपने बच्चों का दुख नही देखा गया... ड्रामानुसार प्यारे बाबा ने ही मुझ आत्मा को अज्ञान निद्रा से जगाकर ज्ञान के सोझरे में लाये हैं... मुझ आत्मा को रोशनी दिखा रहे हैं... मुझ आत्मा को सर्व शक्तियों , खजानों, गुणों से भरपूर करते हैं... मेरे प्यारे बाबा मुझ आत्मा को वरदानों से भरपूर करते हैं... मैं सर्व के प्रति आत्मिक भाव रखती हूं... विश्व की हर आत्मा के प्रति भाई-भाई की दृष्टि रखती हूं... सब प्यारे मीठे बाबा के बच्चे हैं... मुझ आत्मा में परिवर्तन हो गया है... मैं श्रेष्ठ संकल्पधारी आत्मा हूं... सुबह उठते ही श्रेष्ठ संकल्पों से दिन की शुरुआत करती हूं... हर संकल्प बप्यारे बाबा के प्रति करती हूं... मैं आत्मा श्रेष्ठ संकल्प रखते सदैव प्रसन्नचित स्थिति का अनुभव करती हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं ताज व तख्तनशीन आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳  मैं ईश्वरीय ख़ज़ानों से सम्पन्न आत्मा हूँ... मैं आत्मा बेफिक्र बादशाह हूँ... मैं आत्मा बेगमपुर की बादशाह हूँ... मैं आत्मा कैसा भी वायुमंडल हो... कैसी भी परिस्थिति हो... सदा अचल-अडोल-स्थिर रहने वाली आत्मा हूँ... मैं आत्मा अपनी सतोप्रधान स्थिति द्वारा रूहानियत की स्थिति से सभी के विकर्मों को भस्म और परिवर्तन करने वाली आत्मा हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा ईश्वरीय कार्य के निमित्त बनी विशेष अलौकिक शक्तिशाली आत्मा हूँ... मैं आत्मा मास्टर ज्ञानसूर्य महाज्ञानी... महायोगी... महावरदानी विश्व कल्याणी विश्व परिवर्तक आत्मा हूँ...  मैं आत्मा मास्टर सर्वशक्ति स्वरूप की अनुभवीमूर्त मरजीवा आत्मा हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा कर्मेन्द्रियों की राजा हूँ... मैं आत्मा पतित पावन की संतान मास्टर पतित पावन हूँ...  मैं आत्मा उंच और श्रेष्ठ कर्म और श्रेष्ठ धर्म वाली सर्वगुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरषोत्तम, ज़िम्मेवार आत्मा हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा प्यूरिटी और ज़िम्मेवारियों रूपी डबल ताजधारी देवता हूँ... मैं विश्व महाराजन हूँ... मैं आत्मा बाबा की दिलतख़्तनशीन आत्मा हूँ... मैं आत्मा आकाल तख्त नारायण हूँ... मैं आत्मा कर्मेन्द्रियों का राजा हूँ...

 

➳ _ ➳  कर्मेन्द्रियाँ भी मुझ शक्तिशाली आत्मा के समक्ष जी हुज़ूर करती हैं... अपने ताज वा तख्त पर विराजमान हो मैं आत्मा कर्मेन्द्रियाँ को अपने ऑर्डर प्रमाण चला रहीं हूँ... इन सर्वश्रेष्ठ स्वमानों की स्मृति अपनी बुद्धि में रख मैं आत्मा रूहानी नशे में झूम रही हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  नशे और निशाने की स्मृति से सर्व कर्मेन्द्रियों को ऑर्डर प्रमाण चलाने वाले ताज व तख्तनशीन होते हैं...  क्यों और कैसे?

 

❉   नशे और निशाने की स्मृति से सर्व कर्मेन्द्रियों को आर्डर प्रमाण चलाने वाले ताज़ व तख्तनशीन होते हैं। क्योंकि संगमयुग पर बापदादा द्वारा सभी बच्चों को ताज़ और तख़्त प्राप्त हुए हैं। इसलिये हमें सदा रूहानियत के नशे में व निशाने अर्थात बाबा की स्मृति में सदा ही चूर रहना मीन्स भरपूर रहना चाहिये। 

 

❉   प्योरिटी का भी ताज है। तो जिम्मेवारियों का भी ताज है। ये समय की बलिहारी है, कि हमें बाबा ने इस पुरुषोत्म संगमयुग पर दोनों ताजों से नवाज़ा है। एक तो प्यूरिटी का ताज जो कि अपने आप में अति दिव्य है। जितनी जितनी हम ब्राह्मण आत्माओं में प्योरिटी की शक्ति का विकास होगा, उतना उतना ये ताज़ भी अति तेजोमय अवस्था को प्राप्त करेगा।

 

❉   उसी प्रकार दूसरा है जिम्मेवारियों का ताज़। यहाँ संगम पर हम आत्मायें बाबा द्वारा प्राप्त जिम्मेवारियों को  जितना अधिकार से परिपूर्ण करेंगे, उतना उतना हमारे लिये भविष्य सतयुग में राज्य तख़्त के स्वर्णिम सिंघासन भी तैयार मिलेंगे। इसलिये हमें सदा ही बाबा द्वारा प्रदत्त अपनी जिम्मेवारियों को एक्यूरेट व सहर्ष निभाना है।

 

❉   तभी तो हमारे लिये अकाल तख़्त है, और हम बाप के  दिलतख्तनशींन भी हैं। अभी जितना अधिक समय अकाल तख़्त पर हम विराजमान रहेंगे, उतना ही अधिक बाबा के दिलतख्तनशींन भी बनते जाएंगे। इसलिये हमें सदा ही अपनी व बाप के स्वरूप की स्मृति में लवलीन रहना है।

 

❉   जब हम ऐसे डबल ताज़ और तख्तनशीन बनते हैं, तब हमको नशा चढ़ता है और अपना निशाना (बाबा) स्वतः ही याद रहता है। फिर यह कर्मेन्द्रियाँ भी जी हज़ूर करती हैं। जो ताज़ व तख़्त छोड़ देते हैं, उनका आर्डर कोई भी कारोबारी नहीं मानते हैं। इसलिये हमें सदा अपने को अकालतख्तधारी समझ कर चलना है और अपना निशाना लगाने की जो कला है, उसमें हमें निपुण बनना है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  कमजोर संकल्प ही प्रसन्नचित के बजाए प्रश्नचित बना देते हैं... क्यों और कैसे ?

 

❉   दृढ संकल्प सफलतामूर्त बनाते हैं जबकि कमजोर संकल्प सफलता से दूर ले जाते हैं । जैसे कोई बीमार है और बार बार यही संकल्प दोहराता है कि मैं बीमार हूँ, मैं बीमार हूँ तो ठीक होने के बजाए और ही बीमार हो जाता है । इसी प्रकार यह संकल्प मन में लाना कि मैं इतनी शक्तिशाली नही हूँ, मेरा योग इतना अच्छा नही है, मेरी सेवा इतनी अच्छी नही है यह भी कमजोर संकल्प हैं । जितना इनके बारे में वर्णन करते हैं या सोचते हैं उतना ही प्रसन्नचित रहने के बजाए प्रश्नचित बन प्रश्नो की क्यू में उलझते चले जाते हैं ।

 

❉   संकल्पों की कमजोरी का मुख्य कारण है किसी ना किसी ईश्वरीय मर्यादा वा श्रीमत का किसी ना किसी रूप में चाहे संकल्प में, वाणी में वा कर्म में उल्लंघन होना । संकल्प में भी यदि कोई ईश्वरीय नियम टूटता है तो वह मन में अनेक प्रकार की उलझने पैदा कर देता है । जितना इस उलझन से स्वयं को बाहर निकालने की कोशिश करते हैं उतना ही मन बुद्धि क्या, क्यों और कैसे के कमजोर संकल्पों में उलझ कर स्वयं को हिम्मतहीन अनुभव करने लगती है और दिलशिकस्त हो  ख़ुशी के खजाने से वंचित हो जाती है ।

 

❉   कमजोर संकल्प एक प्रकार से माया का ही रॉयल रूप है और माया तभी वार करती है जब याद और सेवा का डबल लॉक लगाने के बजाए सिंगल लॉक लगाते हैं । जब सिर्फ वाणी में वा सिर्फ कर्म में आ जाते हैं तो कमजोर संकल्पों के रूप में माया को साथी बनने का चांस मिल जाता है । सिंगल होते ही माया साथी बन जाती है और बाबा के साथ से दूर कर देती है जिससे सेवा करते हुए भी सेवा में सन्तुष्टता और ख़ुशी का अनुभव नही हो पाता और प्रसन्नचित बनने के बजाए प्रश्नचित बन जाते हैं ।

 

❉   कमजोर संकल्प आने का मुख्य आधार है शुद्ध विचार अर्थात ज्ञान के खजाने की कमी । बाप दादा द्वारा मिले ज्ञान के अखुट खजाने को जब सही रीति यूज़ नही करते और यथार्थ रीति यूज़ ना करने के कारण उसे साधारण रीति से सुन कर और अल्पकाल की ख़ुशी वा शक्ति का अनुभव करके खत्म कर देते हैं तो धारणा शक्ति की कमजोरी होने के कारण स्वयं को ज्ञान, शक्तियों से सदा खाली अनुभव करते हैं । इसलिए निरन्तर हर्षित नही रह पाते और प्रश्नो के जाल में उलझ कर माया के दास बन जाते हैं ।

 

❉   मेरेपन का भाव भी कमजोर संकल्पो को उतपन्न करता है । पुराने स्वभाव संस्कार में अगर हल्का सा भी मेरापन है तो यह भी एक प्रकार का सूक्ष्म लगाव है और जहां लगाव है वहां बुद्धि का आकर्षण ना हो यह हो नही सकता । जब तक मेरा स्वभाव, मेरा संस्कार है तो वह खींचेगे । जैसे मेरी रचना रचता को खींचती है वैसे मेरा स्वभाव - संस्कार रूपी रचना आत्मा रचता को अपनी तरफ खींचती है इससे विकर्मो का बोझ कम होने के बजाए बढ़ता चला जाता है जो कमजोर संकल्पों के रूप में बुद्धि को बार बार विचलित कर उसे प्रश्नचित बना देता है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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