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   11 / 01 / 16  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ इस पतित दुनिया का °बुधी से संन्यास° किये रखा ?

 

‖✓‖ °बाप और वर्से की स्मृति° में रह अविनाशी विश्राम का अनुभव किया ?

 

‖✓‖ °आपार ख़ुशी° में रहे ?

 

‖✓‖ निश्चय और °जन्म सिद्ध अधिकार° की शान में रहे ?

 

‖✓‖ आत्माओं को °बाप का पैगाम° दे रिफ्रेश किया ?

 

‖✗‖ रूहानी सर्विस में °लज्जा° तो नहीं की ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ °अंतर स्वरुप में स्थित° रह अपने व बाप के गुप्त रूप को प्रतक्ष्य किया ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ बुधी से बाप के आगे °सरेंडर° होकर रहे ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं सच्ची स्नेही आत्मा हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   अन्तर स्वरूप में स्थित रह कर अपने व बाप के गुप्त रूप को प्रत्यक्ष करने वाली मैं सच्ची स्नेही आत्मा हूँ ।

 

 ❉   अपने अन्तर स्वरूप में स्थित रह कर अर्थात अंतर्मुखी बन मैं हर बात से निर्लिप्त रहती हूँ ।

 

 ❉   पुरानी दुनिया, पुराने सम्बन्धो और पुराने दुनियावी पदार्थो के धोखे से स्वयं को मुक्त रख मैं केवल एक बाप की लग्न में मगन रहती हूँ ।

 

 ❉   सर्व संबंधो का सुख एक बाप से अनुभव कर मैं सर्व सुखों की अधिकारी बनती जा रही हूँ ।

 

 ❉   अपने सच्चे साथी के संग में मैं सहज ही सर्व से न्यारी और प्यारी बनती जा रही हूँ ।

 

 ❉   बाप का असीम स्नेह मुझे हर श्रीमत का पालन करने का प्रोत्साहन देता है ।

 

 ❉   अन्तर स्वरूप की स्थिति में स्थित रह स्वयं के गुप्त शक्ति स्वरूप द्वारा मैं बाप दादा की प्रत्यक्षता में निमित बनने वाली बाप दादा की नूरे रत्न आत्मा हूँ ।

 

 ❉   बाप दादा के विश्व परिवर्तन के कार्य में निमित बन विशेष भूमिका निभाते हुए मैं बाप दादा की सच्ची स्नेही आत्मा बन सबको स्नेह देती जाती हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - तुम बाप के पास आये हो रिफ्रेश होने, बाप और वर्से को याद करो तो सदा रिफ्रेश रहेंगे"

 

 ❉   84 जन्म लेते - लेते, शरीर धारण कर पार्ट बजाते - बजाते जब आत्मा थक जाती है तो उसे रिफ्रेश होने के लिए विश्राम की आवश्यकता होती है ।

 

 ❉   रिफ्रेश होने के लिए ही मनुष्य अनेक प्रकार के भौतिक सुख - साधनों को एकत्रित करने के लिए भागते रहते हैं ।

 

 ❉   किन्तु इस बात को वे जानते नही कि भौतिक सुख - साधन तो विनाशी है जो आत्मा को रिफ्रेश कर ही नही सकते ।

 

 ❉   आत्मा को रिफ्रेश परम पिता परमात्मा बाप ही कर सकते हैं । इसलिए रिफ्रेश होने और विश्राम पाने के लिए हम शिव बाबा के पास जाते हैं ।

 

 ❉   बाबा की याद से हम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जाते हैं तो अविनाशी रिफ्रेश हो कर अविनाशी विश्राम पाते हैं । इसलिए बाबा कहते हैं बाप और वर्से को याद करो तो सदा रिफ्रेश रहेंगे ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ इस पतित दुनिया का बुद्धि से संयास कर पुरानी देह और देह के सम्बंधियों को भूल अपनी बुद्धि बाप और स्वर्ग तरफ लगानी है ।

 

  ❉   अपने को आत्मा समझ परमात्मा को याद करना है ।जब अपने को आत्मा समझेंगे तो देह याद नही आयेगी व देह के सम्बंधी भी याद नहीं आयेंगे । बुद्धियोग परमात्मा से लगा रहेगा ।

 

  ❉   ये दुनिया तो विनाशी है व ये देह भी मिट्टी में मिल जाना है तो इससे मोह क्यूं रखना । बाप अविनाशी है व बाप की याद से ही आत्मा पावन बनेगी । जब बाप को याद करते हैं तो घर की याद स्वत: ही आती है ।

 

  ❉   बाप आए ही है हमें घर वापिस ले जाने व नयी दुनिया स्वर्ग का मालिक बनाने । पुरानी दुनिया पुराने संस्कार पुराने घर को भूलेंगे व छोड़ेंगे तभी तो बाप व स्वर्ग की याद ठहरेगी ।

 

  ❉   बाप की श्रीमत पर चल दैवीगुण धारण करने हैं । जब तक दैवीय गुण नहीं होंगे तब तक स्वर्ग में भी नहीं जा सकते । बाप रोज ज्ञान रत्नों से झोली भरते है उन्हें अच्छी रीति धारण करना है व मनुष्य से देवता बनना है ।

 

  ❉   बाप कहते है भल धंधा आदि करो मित्र सम्बंधियों से भल सम्बंध रहे ,पर हर कर्म करते बस बुद्धियोग बाप से लगा रहे । जितना बाप से योग लगा रहेगा उतनी आत्मा पर लगी जंक उतरती जायेगी व सतोप्रधान हो जायेगी ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ अन्तर स्वरुप में स्थित रह अपने वा बाप के गुप्त रूप को प्रत्यक्ष करने वाले सच्चे स्नेही होते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   कहते है "अंतर्मुखी सदा सुखी", क्युकी अंतर्मुखी सदा अपने में ही मस्त मौला रहता है, वह किसी की तेरी मेरी में नहीं आता इसलिए उसका बहुत समय, संकल्प, एनर्जी वेस्ट होने से बच जाती है।

 

 ❉   अंतर्मुखी रहने से आत्मा की जो आन्तरिक शक्तिया है वह बहुत बड जाती है, आत्मा के ओरिजिनल गुण, संस्कार, मूल्य जाग्रत रहते है।

 

 ❉   जितना अंतर्मुखी रहेंगे उतना ही हम पुरानी दुनिया, पुराने सम्बन्ध, अपने पुराने संस्कारों से धोखा नहीं खायेंगे क्युकी उस समय आत्मा की सभी शक्तियाँ इमर्ज फॉर्म में होगी।

 

 ❉   यही स्वराज्य अधिकारी स्टेज है, इस स्थिति में रहने से हमारे हर कर्म एक कला बन जाती है, और हमारे कर्मो द्वारा बाप की प्रत्यक्षता होती है जिसका गायन है "जिसकी रचना इतनी सुन्दर वो कितना सुन्दर होगा"।

 

 ❉   अंतर स्वरुप में रहना बहुत बड़ा गुण है इससे हमारी एकाग्रता बढती है, हमारी कार्य कुशलता व व्यक्तित्व का निखार होता है इसलिए बुरी संगत से भी बचे रहते है क्युकी सदा स्व की चेकिंग करते रहते है।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ निश्चय और जन्म सिद्ध अधिकार की शान में रहो तो परेशान नही होंगे... कैसे ?

 

 ❉   निश्चय और जन्म सिद्ध अधिकार की शान में रहेंगे तो मन में किसी भी प्रकार की कमजोरी या संशय की फीलिंग कभी नही आएगी इसलिए कभी भी  परेशान नही होंगे ।

 

 ❉   निश्चय और जन्म सिद्ध अधिकार की स्मृति में रहने वाले वाले सदा अधिकारीपन के निश्चय और नशे में रह हर कर्म करेंगे जिससे सर्व प्रकार की अधीनता समाप्त हो जायेगी और हर प्रकार की परेशानी से बच जायेंगे ।

 

 ❉   जितना स्वयं पर और बाप पर निश्चय तथा जन्म सिद्ध अधिकार का नशा होगा उतना बाप दादा भी अवश्य मददगार बनेगे । और मन बुद्धि एक बाप में ही लगे रहेगे

जिससे व्यर्थ चिंतन से मुक्त रहेंगे और सर्व परेशानियो से भी बचे रहेंगे ।

 

 ❉   निश्चय और जन्म सिद्ध अधिकार की स्मृति कार्य को सरल बना कर मेहनत से मुक्त करा देगी जिससे आत्मा हल्की बन उड़ती कला का अनुभव करते हुए हर परेशानी से सहज ही किनारा कर लेगी ।

 

 ❉   निश्चय बुद्धि सदैव एक रस और अथक रहेंगे और जन्म सिद्ध अधिकार की स्मृति द्वारा निर्विघ्न बन अपने मार्ग में आने वाली हर परेशानी से मुक्त रह डबल लाइट स्थिति का अनुभव करते रहेंगे ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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