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 20 / 08 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ किसी के शरीर छोड़ने पर ×रोये× तो नहीं ?

 

➢➢ "हमारा तो एक बेहद का बाप, दूसरा न कोई" - यह बुधी में रहा ?

 

➢➢ सुख का देवता बन सबको सुख दिया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ सर्व आत्माओं के पतित संकल्प व वृत्तियों को भस्म करने का पुरुषार्थ किया ?

 

➢➢ अपने धारणा स्वरुप से अपने योगी जीवन का प्रभाव दूसरी आत्माओं पर डाला ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢  अपने स्वरुप और स्वदेश की स्मृति से बंधनमुक्त अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - बाप आये है तुम्हारी तकदीर जगाने पावन बनने से ही तकदीर जगेगी"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... खिलते फूल जेसे मुस्कराते जीवन को पवित्रता से ही पा सकोगे...ईश्वर पिता वही पावनता से सजाने आया है.. पिता की मीठी यादो  से खूबसूरत तकदीर सदा के लिए बन जायेंगी... मीठा बाबा सोई तकदीर को जगाकर महकाने आया है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा अपनी फूल से तकदीर को देहभान के नशे में काँटों से भर चली थी... मीठे बाबा आपने आकर मेरा सोया भाग्य जगाया है... पावन बनाकर मेरा सुंदर जीवन सजाया है...

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... मिटटी के मटमैले रिश्तो ने स्वयं को देह समझने से खूबसूरत तकदीर दुखो का पहाड़ बन गयी... अब मीठा बाबा फिर से सुनहरी सुंदरता से भरने धरा पर उतर आया है... पवित्रता के श्रंगार से तकदीर को सुखो से महकाने आया है...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा विश्व पिता से मिलकर पवित्रता से जगमगाने लगी हूँ... मेरी पवित्रता विश्व में चहुँ ओर फैल रही है... मेरा भाग्य खिला गुलाब बन सारे विश्व में खुशबु बिखेर रहा है...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... मीठे बाबा की मीठी यादो में खो जाओ... सच्चे माशूक को हर साँस संकल्प में बसा लो... और इन मीठी यादो में सोई तकदीर को सारे सुखो से भरपूर बना दो... सच्चे पिता के साथ से पावन बनकर विश्व के मालिक बन मुस्कराओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो में देह के मटमैलेपन से मुक्त हो सुनहरे पवित्र रंग में रंगती जा रही हूँ... मेरा पावन दमकता स्वरूप देख देख मै आत्मा प्यारे बाबा पर निहाल होती जा रही हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - नष्टोमोहा बनना"

 

➳ _ ➳  मैं बिंदु आत्मा स्वयं को ही भूल गयी... स्वयं में भरे 63 जन्मों के अविनाशी पार्ट को भूल गयी थी... मैं आत्मा अपने ओरिजनल स्वरुप को भूल देह के भान में आकर स्वयं को ही देह समझ बैठी... रावण माया केचुंगल में फंसती चली गई व रावण की ही बंधिनी बन गई... रावण की मायावी नगरी मे भटकती अपने अविनाशी परमपिता को ही भूल गई... बस देह व देह के सम्बंधों को निभाने में लगी रही... उनमें ही फंसती चली गई... शुक्रिया मेरे प्यारे बाबा का जो मुझे असली स्वरुप की पहचान दी... मुझे सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान दिया... मैं आत्मा जान गई हूं कि हर आत्मा का अपना अपना हिसाब किताब है... सबका पार्ट ऐक्यूरेट है... सब हीरोपार्टधारी है... जिस आत्मा का मेरे साथ जितना हिसाब किताब है उतना ही पार्ट निभाऐगी... ड्रामा हुबहू रिपीट होता है... जो कल्प पहले हुआ वही रिपीट होगा... मैं आत्मा तो बस मेहमान हूं... इस धरा पर इस आत्मा के साथ के हिसाब किताब चुकतू करने आई हूं... मुझ आत्मा को बस अपनी जिम्मेवारी समझ अपना पार्ट निभाना है... मुझ आत्मा का अब कोई मोह नही है... मैं आत्मा नष्टोमोहा हूं... किसी आत्मा के शरीर छोड़ने पर मैं आत्मा दुखी नही होती हूं... मैं आत्मा बस एक प्यारे बाबा की याद में रहती हूं... मुझ आत्मा के सर्व सम्बंध बस एक बाबा से ही है... मैं आत्मा बस बाबा संग ही बैठती हूं... बाबा संग ही खाती हूं... उठती हूं... चलती हूं... मुझ आत्मा के दिल में तो बस यही गीत बजता रहता है कि *मेरे तो बस शिव बाबा दूसरा न कोई*

 

❉   ड्रिल - मास्टर सुखस्वरुप बनना"

 

➳ _ ➳  मैं अभी तक अज्ञानता के घोर अंधियारे में थी... अपने को देह समझ इसे ही संवारने में अपना समय व्यतीत करती रही... देह के भान में रह हमेशा झूठी मान शान में ही सुख ढ़ूढ़ती रही... दूसरों में ही गलती देखती रही... बुद्धि क्यूं, क्या और क्यों में उलझाती रही...  देह के भान में रह विकारों में गिरती चली गई... इस संगमयुग पर घोर अंधियारे से निकल ज्ञान की रोशनी में आ गई हूं... स्वयं परमपिता परमात्मा शिव बाबा मुझ आत्मा को अज्ञान की निद्रा से जगाकर ज्ञान के सोझरे में लाये हैं... मुझ आत्मा को प्यारे बाबा ने सच्चा सच्चा ज्ञान दिया है... मुझ आत्मा को अपने असली ओरिजनल स्वरुप की पहचान दी है... मैं अपने आत्मिक स्वरुप की स्थिति में रहती हूं... अपने को आत्मा समझ परमपिता परमात्मा की याद में रहती हूं... याद में रहने से ही मुझ आत्मा की खाद उतरती जाती है... रावण रुपी संस्कार मुझ आत्मा के परिवर्तित हो गये हैं... मैं आत्मा कर्मेन्द्रिय जीत हो गई हूं... मुझ आत्मा विकारों की कालिख धोकर पवित्र बनती जा रही हूं... मुझ आत्मा का बुद्धियोग बाबा से जुड़ा रहता है... मैं आत्मा सुख के सागर की संतान मास्टर सुखसागर हूं... मैं आत्मा बाबा से सुख शांति की किरणें लेकर पूरे विश्व में सर्व आत्माओं पर सुख शांति की वायब्रेशनस फैलाती हूं... सर्व आत्मायें सुख की किरणों का अनुभव करती हुई आनन्दचित्त हो रही है... मैं आत्मा सदैव मुख से मीठे व सुख देने वाले बोल ही निकालती हूं... मैं आत्मा किसी से कडुवा बोल दुख नही पहुंचाती हूं... मैं आत्मा मास्टर सुखदाता हूं...

 

❉   "ड्रिल - धारणा स्वरुप बन योगी जीवन की स्थिति का अनुभव करना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा परमपिता परमात्मा के सम्मुख हूं... मैं इस देह की मालिक और कर्मेन्द्रियों की राजा हूं... मैं इस देह से न्यारी हूं... मेरे आलौकिक पिता मुझे अति प्यार से  निहार रहे हैं... उनके मस्तक में चमकते ज्ञान सूर्य शिव बाबा की अनन्त किरणें मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं... मैं आत्मा अपने चारों ओर दृढ़ संकल्पों के पिल्लर खड़े करती हूं... मुझ आत्मा को सत का संग मिला है... प्यारे शिव बाबा ब्रह्मा तन का आधार लेकर मुझ आत्मा को ज्ञान रत्नों से भरपूर करते हैं... मैं आत्मा ज्ञान रत्नों को धारण कर अपने को शक्तिशाली अनुभव करती हूं... ज्ञान का मनन चिंतन करते हुए मैं आत्मा प्यारे शिव पिता की याद में रहती हूं... प्यारे शिव पिता से सर्व शक्तियों, सर्व गुणों और सर्व खजानों की मालिक बनती हूं... ज्ञान और योगबल से मैं आत्मा पवित्रता के पिल्लर को मजबूत करती हूं... मैं आत्मा जितना ज्यादा ज्ञान का मनन चिंतन करती हूं व सागर की गहराई में जाकर मोती चुग होलीहंस बनती हूं... मैं आत्मा उतना ही ज्यादा धारण करती हूं व उसका स्वरुप बनती हूं... प्यारे बाबा की याद में रहने से मैं आत्मा सदैव प्रसन्नचित, हर्षितमुख रहती हूं... मैं आत्मा धारणा स्वरुप बन योगयुक्त रहती हूं... मैं आत्मा धारणाओं पर चल योगी जीवन की स्थिति का अनुभव करती हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं आत्मा मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ ।"

 

➳ _ ➳  सर्वप्रथम अपने मनको सभी बाहरी बातों से मुक्त करेंगे और स्वयं को चैतन्य ज्योति बिंदी आत्मा समझ भृकुटि मध्य में मस्तक में विराजमान होकर इस शरीर का सन्चालन करते हुए देखे...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा शिवबाबा की आनन्द की किरणों को मन पर केंद्रित होते देख रही हूँ... और मेरे मन में आनन्द का संचार हो रहा है... मैं आत्मा परमानंद में मग्न होती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा शिवबाबा की ज्ञान की उर्जा की किरणों से अपने बुद्धि पर केन्द्रित होते देख रही हूँ...

 

➳ _ ➳  ज्ञान की इन किरणों से बुद्धि दिव्य बनती जा रही है... जिससे आत्मा परमात्मा वा सृष्टि चक्र का ज्ञान स्पष्ट होता जा रहा है... बुद्धि बीज समान सम्पन्न बनती जा रही है... जिससे मन वा संस्कारों पर शासन करने की क्षमता बढती जा रही है...

 

➳ _ ➳  जिस प्रकार सूर्य का कर्तव्य है रोशनी देना गन्दगी और किचड़े को भस्म करना... उसी प्रकार ज्ञानयोग की पावरफुल किरणों के द्वारा मुझ आत्मा के पुराने संस्कारों के कीटाणु भस्म होते जा रहें हैं...

 

➳ _ ➳  मैं मास्टर ज्ञान सूर्य आत्मा योग वा तपस्या द्वारा पावरफुल आत्मा होने का निरन्तर अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा माइट हाउस की ऊंच स्तिथ में स्तिथ होने का अनुभव कर रहीं हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा ज्ञान योग द्वारा पावरफुल बन माइट हाउस बन किसी भी पतित आत्मा को देख उनके पतित संकल्प, पतित वृति वा दृष्टि को भस्म करने में सम्पन्न स्वरुप आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ...

 

➳ _ ➳  मुझ पतित-पावनी आत्मा पर उन पतित आत्मओं के कोई भी पतित संकल्प वार नहीं कर सकते... मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मुझ पतित-पावनी आत्मा पर सभी पतित आत्माएं बलिहार जा रहीं हैं ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  सर्व आत्माओं के पतित संकल्प वा वृत्तियों को भस्म करने वाले मास्टर ज्ञान सूर्य होते हैं...  क्यों और कैसे?

 

❉   सर्व आत्माओं के पतित संकल्प वा वृत्तियों को भस्म करने वाले मास्टर ज्ञान सूर्य होते हैं क्योंकि जिस प्रकार सूर्य अपनी प्रचण्ड किरणों के माध्यम से सारे संसार का किचड़ा, दलदल व गंदगी के सभी प्रकार के कीटाणुओं को भस्म कर देता है।

 

 ❉   उसी प्रकार से जब हम मास्टर ज्ञान सूर्य बन कर किसी भी आत्मा को देखेंगेतब उस आत्मा का पतित संकल्प, पतित वृत्ति वा पतित दृस्टि स्वतः ही भस्म हो जायेगी। क्योंकि हम सभी आत्मायें!  ज्ञानसूर्य शिव बाबा की सन्तान हैं। बाबा का सम्पूर्ण तेज़ हम आत्माओं में समाया हुआ है।

 

❉   हम खुदा के बच्चे हैं। खुदाई खिदमतगार हैं। जो भी कार्य हम करेंगेउस कार्य में खुदा को सदा ही अपने साथ रखेंगे। खुदा खुद जब साथ रहता है तब उसकी अर्थात बाबा की सर्व शक्तियाँ भी हमारे साथ होती हैं। इसलिये हम पतित पावनी आत्माओं पर पतित संकल्प कभी भी वार नहीं कर सकते हैं।

 

❉   पतित आत्मायें हम पतित पावनियों पर बलिहार जायेंगी क्योंकि उनको हम मास्टर ज्ञान सूर्य अपनी प्रचण्ड किरणों के माध्यम से, जो कि हमारे पास परमात्म देन हैं... उन परमात्म किरणों से सर्व आत्माओं को उनकी मनसासे, वाचा से वा कर्मणा तक से पवित्र बना देती हैं।

 

❉   तब वे पतित आत्मायें! पतित से पावन बनकर स्वयं भी बाबा के रचित यज्ञ के कार्यों में सहयोगी बन जाती हैं। ऐसे परिवर्तन सदा सर्व आत्माओं के प्रति होते रहेइसके लिए हम पतित पावनी आत्माओं को माइट हाउस अर्थात मास्टर ज्ञान सूर्य स्थिति में सदा स्थित रहना है। ताकि सारे संसार की पतित आत्माओं को पावन बना कर बाबा का सहयोग कर सकें।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  अपने धारणा स्वरूप से योगी जीवन का प्रभाव डालना - यह बहुत बड़ी सेवा है... क्यों और कैसे ?

 

❉   मनसा - वाचा - कर्मणा तीनो रूपों से की गई सेवा ही सफलतामूर्त बनाती हैं क्योकि जो मन - वचन और कर्म से सेवा करते हैं उनका सेवा के साथ साथ स्व पुरुषार्थ पर भी पूरा अटेंशन रहता हैं । स्व पुरुषार्थ और सेवा में बैलेंस बना कर जब वे सेवा के क्षेत्र में आते हैं तो उनका धारणा स्वरूप स्वत: ही सर्व आत्माओं के सामने प्रत्यक्ष होता है जो अनेको आत्माओं को प्रभावित करता है ।इसलिए बाबा कहते कि अपने धारणा स्वरूप से योगी जीवन का प्रभाव डालने वाले ही सच्चे सेवाधारी हैं ।

 

❉   आज सभी आत्माएं सुख शान्ति की तलाश में भटकते भटकते थक गई है इसलिए वे ज्ञान सुनने सुनाने के बजाए सेकण्ड में अनुभव करना चाहती है और उन्हें अनुभव कराने का एक मात्र साधन है अनुभवीमूर्त बनना । अनुभवी मूर्त बनने का सहज उपाय है ज्ञान को सुनने सुनाने के साथ उसे धारणा में लाकर उसका स्वरूप् बन जाना । जितना ज्ञान की प्वाइंट्स को मनन कर उसे धारणा में लाएंगे उतना धारणा स्वरूप स्वत: ही बनते जायेंगे और अपने धारणा स्वरूप से योगी जीवन का प्रभाव अन्य आत्माओं पर डाल सकेंगे ।

 

❉   अपने धारणा स्वरूप से अपने योगी जीवन का प्रभाव अन्य आत्माओं पर तभी डाल सकेंगे जितना स्वयं ज्ञान की गहराई में जायेंगे । क्योकि जितना जो ज्ञान की गहराई में जाते हैं उनके मन की स्थिति उतनी ही शक्तिशाली होती जाती है और आत्मा समर्थ बनती जाती है । इसलिए कहा भी जाता है कि मनन वाला स्वत: मगन रहता है अर्थात उसे योग लगाना नही पड़ता बल्कि योग निरन्तर लगा रहता है  । उसका धारणा स्वरूप ही उसके योगी जीवन को रिफ्लेक्ट करता है और सहज ही आत्माओं को प्रभावित करता है ।

 

❉   आत्मा में अगर ज्ञान है किन्तु अनुभूति की कमी है तो स्व स्थिति कभी भी शक्तिशाली नही बन सकती । जैसे परमात्म सम्बन्ध का ज्ञान है किन्तु अनुभव् नही है, सर्व शक्तियों का ज्ञान है किन्तु सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप बनने की अनुभूति की कमी है तो जब तक इस कमी को भरेंगे नही आत्माओं को प्रभावित भी नही कर सकेंगे क्योंकि प्रभावित करने का आधार है ही योगी जीवन और अपने योगी जीवन का प्रभाव आत्माओं पर तभी डाल सकेंगे जब धारणा स्वरूप बनेंगे ।

 

❉   योगी जीवन का आधार है ही ज्ञान की गुह्यता में जा कर अपने बुद्धि रूपी नेत्रों को ज्ञान की दिव्यता से दिव्य और आलौकिक बनाना । जैसे जैसे ये दिव्यता और अलौकिकता बढ़ती जायेगी ज्ञान के अथॉरिटी स्वरूप सहज ही बनते जायेंगे और ज्ञान सहज ही धारणा में स्पष्ट दिखाई देने लगेगा । ज्ञानी तू योगी आत्मा बन जब अधिकारी पन की सीट पर सेट हो कर ज्ञान रत्नों के खजाने सर्व आत्माओं पर लुटायेंगे तो अपने धारणा स्वरूप से अपने योगी जीवन का प्रभाव उन पर सहज ही डाल सकेंगे ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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