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❍ 30 / 08 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ √रचयिता और रचना√ का ज्ञान बुधी में रहा ?
➢➢ इस √बेहद के ड्रामा√ को बुधी में रख ख़ुशी में रहे ?
➢➢ √पतितों को पावन√ बनाने की सेवा की ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ सर्व आत्माओं पर √स्नेह का राज्य√ किया ?
➢➢ √ख़ुशी की डांस√ कर थकावट को दूर किया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ आज दिन भर बार बार मन और बुधी से √मधुबन√ पहुँचते रहे ?
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - तुम ड्रामा के गुप्त राजो को जानते हो कि यह संगम युग ही चढ़ती कला का युग है सतयुग से लेकर कलाये कम होती जाती है"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... इस विश्व के ड्रामा का ज्ञान सिर्फ आप बच्चों को ही है... आप भाग्यशाली बच्चे ही तीनो लोको कालो को जानते हो... यह समय चढ़ती कला का है... एक एक पल ऊपर उठाने वाला और पिता के दिल पर बिठाने वाला है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा कितनी सोभाग्यशाली हूँ...कि पिता के सारे राजो को जान गयी हूँ... इस विशेष युग को पहचान गयी हूँ... और महान भाग्य बनाने में जुट गयी हूँ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... सारी दुनिया अनजान है और आप बच्चे पिता के इस ड्रामा के राजदार हो... हर पल चढ़ती कला का है हर लम्हे में सफलता है... इसके जानकर होकर महान बन चले हो... सतयुग से उतरती कलाये है... यह भी आप बच्चे ही जानते हो... और कोई नही...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा पिता के दिल की सारी बात जानने वाली खुशनसीब हूँ... इस सृस्टि चक्र के सब राज मेरी मुट्ठी में है... यह युग कितना प्यारा है... मीठे बाबा संग मै उड़ती ही चली जा रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... यह कीमती समय जो हाथ आया है... इसको सफल कर चलो... हर कदम उन्नति पाकर महान बन चलो... खजानो से भरपूर समय को जान गए हो... तो खजाने को बाँहो में भर चलो... इस वरदानी समय में 21 जनमो के सुखो का वरदान विश्व पिता से ले चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने मीठे भाग्य को देवताई भाग्य बना रही हूँ... अपनी कलाओं को निखार रही हूँ... सुंदर संगम पर देवताई श्रंगार से सज रही हूँ... और गुप्त पिता के गुप्त राज को जान मुस्करा रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - सतोप्रधान बनने का पुरुषार्थ करना"
➳ _ ➳ आजतक मैं अपने पिछले 63 जन्मों में अनजाने में बहुत विकर्म करती आई... अपने को मायावी दुनिया की लोहे की रस्सियों से बंधा हुआ महसूस करती थी... अनेक बंधनों में फंसी हुई अपनी पहचान खो चुकी... बस अंधविश्वास की भागदौड़ में चलती जा रही थी... इस संगमयुग पर स्वयं भगवान ने मेरा हाथ पकड़ा... कोटों में कोई व कोई में से भी कोई मैं पदमापदम भाग्यशाली आत्मा हूं... स्वयं भगवान ने मुझे अपना बनाया... मैं बापदादा की गोद में हूं... मैं ईश्वरीय संतान हूं... मैं सर्वश्रेष्ठ आत्मा हूं... मुझे मेरे पिता शिव बाबा ने मुझे मेरे ओरिजनल स्वरुप की पहचान दी... अपनी सत्य परिचय दिया... मैं कौन व मेरा कौन इसका यथार्थ ज्ञान दिया... मैं आत्मा रचयिता और रचना को यथार्थ रीति जान गई हूं... प्यारे शिव पिता ही ब्रह्मा बाबा के तन का आधार लेकर हम ब्राह्मण आत्माओं को ज्ञान देते हैं... हम आत्माओं को ब्रह्मा के मुख द्वारा ज्ञान सुनाते है... ब्रह्मा बाबा के द्वारा ही पुरानी दुनिया को नया बनाते है... अपने को आत्मा समझ परमात्मा बाप को याद करती हूं... मैं आत्मा याद से अपने विकारों का विनाश करती हूं... याद में रहने से ही आत्मा पर चढ़ी जंक उतारती हूं... याद में रहने से ही मैं आत्मा शुद्ध और पावन बनती हूं... मैं आत्मा हर कर्म बाबा की याद में रहकर करती हूं... करनकरावनहार बस बाबा है... मैं आत्मा तो बस निमित्त हूं... मुझ आत्मा का इस विनाशी दुनिया से कोई मोह नही है... मैं आत्मा बस एक बाप की याद में रह दैवीय गुणों को धारण करती हूं... प्यारे बाबा द्वारा मिले ज्ञान को धारण कर उसका स्वरुप बनती हूं... मैं आत्मा मनसा वाचा कर्मणा और संकल्पों मे भी पवित्रता धारण करती हूं... मैं आत्मा सतोप्रधान बनने का पुरुषार्थ करती हूं...
❉ "ड्रिल - बेहद के ड्रामा को बुद्धि में रख अपार खुशी में रहना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा साक्षीद्रष्टा हूं... मैं आत्मा परमात्मा द्वारा मिले ज्ञान को अच्छी रीति धारण करती हूं... मैं आत्मा हीरो पार्टधारी हूं... मुझ आत्मा का इस बेहद के नाटक में विशेष पार्ट है... मैं बाबा की विशेष बच्ची हूं... मेरे परमपिता शिव बाबा ने मुझ में कोई विशेषता देख मुझे चुना है... वाह मेरा भाग्य वाह... !! जो स्वयं भगवान ने मुझ आत्मा को अपने विश्व परिवर्तन के कार्य के निमित्त चुना... मैं आत्मा कल्प कल्प परमात्म कार्य में सहयोगी बनूंगी... ड्रामा अनादि अविनाशी है... कल्याणकारी है... जो हुआ अच्छा ही हुआ... जो हो रहा है वो अच्छा ही हो रहा है... जो होगा वो भी अच्छा ही होगा... मैं आत्मा ड्रामा के राज को जान गई हूं... मैं आत्मा 84 जन्मों की सीढ़ी को जान गई हूं... मैं आत्मा 5000 वर्षों के सृष्टि चक्र को जान गई हूं... बाबा ही षमझाते हैं कि हम ही पहले विश्व के मालिक थे व अब ये दशा हो गई... परमपिता परमात्मा हम आत्माओं को पतित से पावन बनाते हैं... ड्रामा के राज को जान मैं आत्मा जल्दी से हर बात में फुलस्टाप लगाती हूं... मुझ आत्मा के प्रश्न क्यूं, क्या, कैसे सब खत्म हो गए है... हरेक का पार्ट एक्यूरेट है... ड्रामा के ज्ञान को जान मैं आत्मा साक्षीद्रष्टा की सीट पर बैठ ड्रामा के हर सीन को देख अपार खुशी में रहती हूं... मुझ आत्मा की बुद्धि में सारे चक्र की नॉलेज रहती है... मैं आत्मा बाबा की शिक्षाओं को धारण करती हूं... मैं आत्मा हर कर्म बाबा की याद में रहकर श्रेष्ठ करती हूं... हम आत्मायें निराकारी दुनिया में रहते थे व सुखधाम में कैसे आए... ये ज्ञान सबको सुनाती हूं... 84 जन्म कैसे भोगते है... ड्रामा 5000 वर्ष का है... हम आत्माओं को पतित से पावन बनाने वाला बस एक शिव बाबा ही है... जो सर्व का सदगति दाता है... हम सब आत्माओं का पिता एक है... यह सच्चा सच्चा सब ज्ञान सुना मैं आत्मा पतित से पावन बनाने की सेवा करती हूं...
❉ "ड्रिल - अथक सेवा कर खुशी में डांस करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा मास्टर सर्वशक्तिमान हूं... मेरे पिता ने मुझ आत्मा को सर्वशक्तियों, खजानों, गुणों से भरपूर किया है... अपनी सर्वशक्तियों का अधिकारी बनाया है... बाबा का बनते ही मैं आत्मा बाप की वर्से की अधिकारी आत्मा हूं... मैं आत्मा बाबा से हुई प्राप्तियों को सदा स्मृति में रखती हूं... इस आलौकिक जीवन का नशा मुझ में रहता है... जब मैं आत्मा बाबा को भूल जाती हूं तो माया का वार होता है... देहभान में आते ही मैं आत्मा थकावट महसूस करती हूं... स्वयं भगवान मेरा साथी है... हरपल मेरा साथ निभाता है... स्वयं भगवान मेरा हो गया... मैं भगवान की हो गई... जो पाना था सो पा लिया... स्वयं भगवान ने मुझ आत्मा में कोई विशेषता देख मुझे अपने कार्य के निमित्त चुना... इससे बड़ा भाग्य भला किसका हो सकता है... मैं आत्मा खुशी व नशे में रहती हूं... मुझ आत्मा को सब विनाशी सम्बंधों को बुद्धि से भूलती हूं... सर्व सम्बंध बस बाबा से ही रखती हूं... बाबा कहते हैं अगर सिर्फ तुम मुझे देखोगे तो अपार खुशी में रहोगे... देखते हुए भी कुछ नही देखोगे तो पहले जन्म में ऊंच पद प्राप्त करोगे... ये बाते मेरे अंदर खुशी भरती हैं... मुझ आत्मा को सिर्फ और सिर्फ अपने को देखना है और अपने प्यारे बाबा को... प्यारे बाबा ने मुझे इस साकारी लोक में सेवार्थ भेजा है... ये रुहानी सेवा कर मैं आत्मा अपना भाग्य बनाती हूं... मैं आत्मा सदैव सेवा के लिए तत्पर रहती हूं... मैं आत्मा स्वयं को बाबा की छत्रछाया में अनुभव करती हूं... मैं आत्मा सेवा करते हुए आंतरिक खुशी महसूस करती हूं... आनन्दमय स्थिति का अनुभव करती हूं...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं विश्व राज्य अधिकारी आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳ मैं आत्मा रूहानियत के प्रभाव द्वारा फ़रिश्ते पन का मेकप करने वाली सर्व की स्नेही आत्मा हूँ... बापदादा के संग का रंग मेरे चेहरे पर रूहानियत और नयनो में दिव्यता की झलक स्पष्ट दिखा रहा है... रूहानियत का यह श्रृंगार मुझे फ़रिश्ते पन का अनुभव कराता है...
➳ _ ➳ फ़रिश्ते पन के मेकप से सजी मैं दिव्य मूर्ति बन सबकी मनोकामनाओं को पूर्ण कर रही हूँ... रूहानी मेकप से सजा मेरा यह रूप सबको आकर्षित कर रहा है जिससे मैं आकर्षणमूर्त और सर्व की स्नेही आत्मा बनती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ सर्व आत्माओं को सच्चा स्नेह और सहयोग देने वाली मैं सर्व की सहयोगी आत्मा हूँ... परमात्म स्नेह की छत्र छाया में अतिन्द्रिय सुख द्वारा मैं अपने जीवन को आनन्दित करती जाती हूँ... मैं आत्मा अन्य सर्व आत्माओं के दिल पर निरन्तर स्नेह का राज्य कर रहीं हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा इस वरदानी संगमयुग पर अपनी स्नेह तथा सहयोग की शक्ति द्वारा सेवा करने वाली विश्व सेवाधारी आत्मा हूँ... मैं आत्मा अन्य किसी भी आत्मा पर ऑर्डर न चलाने वाली अतिस्नेही आत्मा हूँ... वर्तमान में सर्व आत्माओं पर स्नेह का राज्य करने वाली मैं विश्व अधिकारी आत्मा होने की सीट पर सहज ही सेट होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ सर्व आत्माओं पर स्नेह का राज्य करने वाले राज्य अधिकारी होते हैं... क्यों और कैसे?
❉ सर्व आत्माओं पर स्नेह का राज्य करने वाले राज्य अधिकारी होते हैं क्योंकि जो बच्चे वर्तमान समय पर सर्व आत्माओं के दिल पर स्नेह का राज्य करते हैं, वही बच्चे भविष्य में विश्व के राज्य का अधिकार भी प्राप्त करते हैं।
❉ इसलिये अभी संगम पर हमें किसी भी आत्मा पर आर्डर नहीं चलाना है। सब आत्माओं से स्नेह का व्यवहार करना है। सर्व से रुहानी प्रेम रखना है। सर्व से अपनापन रखना है। सब आत्मायें आपस में भाई भाई हैं इसलिये हमें सर्व के सहयोगी बन कर रहना है तथा सर्व का सहयोग भी करना है।
❉ अभी से ही हमें विश्व महाराजन नहीं बनना है। अभी तो हमें विश्व सेवाधारी बनना है तथा सर्व को स्नेह देना है और स्नेह के खाते को बढ़ाना है। बाप के और सर्व के दिल पर हमें चढ़ना है अर्थात उन सब के दिलों को जीतना है और सर्व के स्नेही बन कर रहना है।
❉ हमें ये भी देखना है कि हमारे खाते में अब तक कितना धन जमा हुआ है? अर्थात! ये देखना है कि हमारे भविष्य के खाते में हमने अब तक स्नेह का खाता कितना जमा किया है। क्योंकि... विश्व महाराजन बनने के लिये सिर्फ ज्ञान दाता ही बनना काफी नहीं है।
❉ स्नेही बनने के लिये हमें सबको स्नेह अर्थात सहयोग देना है। तभी तो सर्व के दिलो पर राज्य करने का अधिकार प्राप्त कर सकेंगे तथा सर्व आत्माओं पर स्नेह का राज्य करने वाले राज्य अधिकारी बन सकेंगे।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ जब थकावट फील हो तो ख़ुशी में डांस करो, इससे मूड चेंज हो जायेगी... क्यों और कैसे ?
❉ थकावट तब फील होती है जब किसी कार्य को करने में मेहनत का अनुभव होता है । इसलिये बालक सो मालिक बन मेहनत के बजाय जब मुहब्बत में समाये रहेंगे तो सब प्रकार के बोझ से स्वयं को मुक्त अनुभव करेंगे । संगमयुग है ही मुहब्बत का युग, मिलन का युग और संगमयुग की प्रालब्ध ही है सम्पन्न स्टेज के तख़्तनशीन । इसलिए जब भी सेवा में थकावट महसूस हो तो संगमयुग की इन श्रेष्ठ प्राप्तियों को स्मृति में रख ख़ुशी की डांस करो तो मूड चेंज हो जायेगी ।
❉ स्वयं को ट्रस्टी के बजाए जब गृहस्थी समझते हैं तो भारीपन का अनुभव करते हैं क्योकि गृहस्थीपन अर्थात अनेक रसों में भटकना और भटकने वाला कभी भी एकरस स्थिति में स्थित नही हो सकता इसलिए सदा स्वयं के ऊपर एक बोझ अनुभव करता है । इसलिए गृहस्थी के बजाए जब स्वयं को ट्रस्टी समझेंगे तो हर परिस्थिति में स्थिति एकरस रहेगी । यदि थोड़ी थकावट का अनुभव भी होगा तो भी हल्केपन और चढ़ती कला के अनुभवी बन ख़ुशी में डांस करते रहेंगे । जिससे मूड चेंज हो जायेगी ।
❉ अकेलेपन का अनुभव शक्तिहीन स्थिति की अनुभूति कराता है जिससे थकावट की महसूसता होती है । इसलिए स्वयं को यदि सदा सर्वशक्तिवान बाप की छत्रछाया के नीचे अनुभव करेंगे तो सर्वशक्ति सम्पन्न स्थिति का अनुभव होगा । सदा कम्बाइंड स्वरूप में रहने से और बाबा को कम्पैनियन के रूप में सदा साथ रखने से हर विघ्न का सामना करते हुए भी सदा निश्चिन्त रहेंगे और थकावट की स्थिति में भी लाइट स्थिति का अनुभव करते हुए , ख़ुशी में डांस करते हुए मूड को चेंज कर सकेंगे ।
❉ संगमयुग पर बापदादा द्वारा हम ब्राह्मण बच्चों को जो सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियां सौगात के रूप में मिली हैं उनकी स्मृति जितना इमर्ज रूप में रहेगी उतना इन प्राप्तियों की ख़ुशी किसी भी प्रकार की हलचल की स्थिति में भी अचल, अडोल और एकरस स्थिति में स्थित रखेगी । स्वयं को सर्व प्राप्ति सम्पन्न अनुभव करने से मुख से सदैव यही गीत निकलता रहेगा " पाना था सो पा लिया " । थकावट की स्थिति में भी जब इस गीत को गुनगुनाते हुए ख़ुशी में डांस करते रहेंगे तो मूड चेंज हो जायेगी ।
❉ बापदादा द्वारा हर ब्राह्मण बच्चे को सर्वश्रेष्ठ टाइटल मिले हुए हैं जो उन्हें सर्व प्राप्तियों की मौज का अनुभव करवाते हैं । इन टाइटल्स को सदा स्मृति में रख जो रूहानी नशे में स्थित रहते हैं उनकी स्थिति सदा समर्थ बन जाती है और अपनी समर्थ स्थिति द्वारा वे हर परिस्थिति में अचल, अडोल रहते हैं और प्रभु प्रेम की मस्तियों में ऐसे खोये रहते हैं कि परमात्म मिलन में सर्व प्राप्तियों का अनुभव करते, थकावट की स्थिति में भी ख़ुशी में डांस करते हुए अपने मूड को चेंज कर लेते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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