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 31 / 08 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ जीवनमुक्त बनने के लिए पुण्य कर्म किये ?

 

➢➢ घरबार आदि सब होते दिल से ×ममत्व× मिटा दिया ?

 

➢➢ तन-मन-धन से दैवी राज्य स्थापन करने की सेवा की ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ सर्व रूपों से, सर्व संबंधो से अपना सब कुछ बाप के आगे अर्पण किया ?

 

➢➢ साकार कर्म में ब्रह्मा बाप को और अशरीरी बनने में निराकार बाप को फॉलो किया ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢  अमृतवेले से लेकर रात तक सेवा की स्टेज पर रहे ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - यह पुरुषोत्तम बनने का संगमयुग है इसमे कोई भी पाप कर्म नही करना है"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... प्यारा पिता सम्मुख है संगम का मीठा युग है... तो अब कही ओर न उलझो इस कीमती समय पर 21 जनमो की कमाई कर चलो... अब देह के भान में आकर विकर्म न करो... अब मुक्त होने के समय नए कर्म के बन्धनों में नही फंसो...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा सदा की जाग उठी हूँ... आपकी मीठी आवाज को दिल में भर चली हूँ... संगम के सुहावने समय पर गुणो से महक रही हूँ... देह की मिटटी से दूर हो चली हूँ...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... इस बेशकीमती समय को यूँ ही न गवाओ... यह पुरुषोत्तम बनने का सुंदर समय है... आत्मिक गुणो से भरपूर होने का मीठा समय है... पल पल को अपनी उन्नति में लगाओ... नए बन्धन पाप कर्म से दूर रहकर सिर्फ अपने पुरुषार्थ में जुट जाओ...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आप मीठे बाबा से इस अनमोल समय को पहचान चुकी हूँ... प्यारी मीठी यादो में खुद को डुबो कर अप्रतिम सौंदर्य से भरपूर हो रही हूँ... पाप से दूर होकर सुखो में खिल रही हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... सारे कल्प में नीचे उतरते ही आये... इस समय ईश्वर पिता के साथ का यह प्यारा सा वक्त ऊंचाइयों पर सजाने वाला है... अमूल्य वक्त को पहचान कर अब दुखदायी नातो पाप कर्मो से सदा के दूर हो चलो... और सुंदर पुरुष बन सुंदर अदा दिखाओ... मीठे सुखो से भरा रोल निभाओ....

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मुझ आत्मा को आपने आकर सुजाग किया है... सत्य बताकर मेरी उलझनों को खत्म किया है... इन महकते पलो का पता देकर जीवन खुशियो से भर दिया है... और देह के विकर्मो से दूर किया है...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - पुण्य कर्म कर पवित्र बनना"

 

➳ _ ➳ मुझ से अभी तक जाने अनजाने मे पता नही कितने पाप कर्म हुए... कितनों का दिल दुखाया... दर्द दिया... स्वयं को पता नही कितनी बेड़ियों में बांधे रखा... यही सोचती रही कि मेरे बिना तो ये काम हो नही सकता... अज्ञानता के घोर अंधियारे के कारण देहभान में फंस पाप और पुण्य में भी फर्क नही देखा... बस भक्ति के मार्ग पर चल मंदिरों में व देहधारियों को दान करना ही पुण्य समझ बैठी... इस संगमयुग पर प्यारे बाबा से सच्चा सच्चा ज्ञान मिलने पर ही पुण्य कर्म की समझ मिली... मैं आत्मा अब मनबुद्धि की अधिकारी हूं... सर्व कर्मेन्द्रियां मुझ आत्मा के अधीन है... मैं आत्मा स्वयं को देह व देह के सम्बंधों की जंजीरों से मुक्त करती हूं... मैं स्वयं को ट्रस्टी समझ अपना पार्ट बजाती हूं... इस विनाशी दुनिया के आकर्षण से स्वयं को मुक्त रखती हूं... मैं आत्मा बाह्यमुखता को छोड़ अंतर्मुखी रहती हूं... मैं आत्मा हर कर्म बाप की याद में करती हूं... मुझ आत्मा का बुद्धियोग बस प्यारे शिव पिता से ही जुड़ा रहता है... मैं आत्मा बाबा की याद में रह विकारों से व विकारी सम्बंधों से मुक्त होती हूं... मैं आत्मा उठते-बैठते, चलते-फिरते बस एक बाप की याद में रहती हूं... याद में रहने से मुझ आत्मा पर लगी कट उतरती जाती है... मैं आत्मा संगमयुग के महत्व को जानते हुए हर कदम पर पदमों की कमाई करती हूं... मैं आत्मा इस संगमयुग पर बाबा का बनते ही जीवनमुक्त अवस्था का अनुभव करती हूं... मैं आत्मा गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल पुष्प समान न्यारी और प्यारी रहती हूं... मुझ आत्मा का देह व देह के सम्बंधों से कोई ममत्व नही है... ये विनाशी दुनिया कब्रदाखिल होनी ही है... इसलिए मैं आत्मा इस पुरानी व विनाशी दुनिया से कोई मोह नही रखती... मैं आत्मा नष्टोमोहा हूं...

 

❉   ड्रिल -  श्रीमत पर चल दैवी राज्य स्थापन करना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा इस तन मैं अवतरित हुई हूँ... मैं ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण हूँ... ब्रह्मा की सन्तान हूँ... मैं आत्मा ईश्वरीय सम्प्रदाय की हूं... मुझ आत्मा के पिता शिव बाबा इस सृष्टि के मालिक है... मैं सर्वोच्च, सर्वज्ञ, त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री बाप की बच्ची सर्वश्रेष्ठ आत्मा हूं... मुझ आत्मा को ऊंच ते ऊंच बाप की श्रीमत मिलती है... प्यारे बाबा के साथ मुझ आत्मा के सर्व सम्बंध हैं... मुझ आत्मा को सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान मिल गया है... प्यारे शिव बाबा ने ही मुझ आत्मा को विश्व परिवर्तन के इस कार्य के निमित्त चुना है... मैं आत्मा बाप की श्रीमत पर चल स्व का परिवर्तन करती हूं... मैं आत्मा बाप की याद में रह विकर्मों का विनाश करती हूं... मैं आत्मा तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने का पुरुषार्थ करती हूं... प्यारे शिव पिता स्वयं सुप्रीम शिक्षक बन दूादेश से आकर मुझ आत्मा को पतित से पावन बनाते है... मुझ आत्मा को पढ़ाकर स्वर्ग का मालिक लायक बनाते हैं... मुझ आत्मा को रंक से राव बनाते हैं... मनुष्य से देवता बनाते हैं... मैं आत्मा तन मन धन सब बाबा पर न्यौछावर करती हूं... मुझ आत्मा के श्वांसो श्वांस में बाबा की याद समाई हुई है... ये दुनिया तो स्वाह होनी है इसलिए मैं आत्मा सब बाबा को अपर्ण करती हूं... मैं आत्मा बाबा की श्रीमत पर चल दैवी राज्य स्थापन करती हूं... मैं आत्मा प्यारे बाबा से मिले ज्ञान को यथार्थ रीति जान गई हूं... मैं आत्मा यह सच्चा ज्ञान दूसरों को सुनाकर सच्चे पिता का परिचय देती हूं... मैं आत्मा इस संगमयुग पर पुरुषोत्तम बन दूसरों को भी पुरुषोत्तम बनाने की सेवा करती हूं...

 

❉   "ड्रिल - साकारी और निराकारी को फालो करना"

 

➳ _ ➳   मैं आत्मा परमात्म पालना में पलने वाली भाग्यशाली आत्मा हूँ... मैं परमात्म प्यार पाने वाली विशेष आत्मा हूं... स्वयं निराकार भगवान ब्रह्मा बाबा के तन का आधार लेकर विश्व परिवर्तन का कार्य व नई दुनिया की स्थापना का कार्य कराते हैं... स्वयं भगवान ने मुझ आत्मा को इस विश्व परिवर्तन के कार्य में अपना मददगार बनाया है... नव सृष्टि के निर्माण के लिए मुझ आत्मा को श्रेष्ठ कर्मो की शिक्षा देते हैं... साकार बाबा के अति श्रेष्ठ कर्मो से मैं आत्मा शिक्षा लेती हूं... मुझ आत्मा को ब्रह्मा बाबा केे कदम पर कदम रखते जाना है... जैसे साकार में ब्रह्मा बाबा हर छोटे से छोटे काम को स्वयं निरहंकारी होकर करते ऐसे मुझ आत्मा को साकार बाबा के हर कर्म से शिक्षा लेती हुई निरहंकारी होकर सेवा करनी है... मैं आत्मा ब्रह्मा बाबा के कर्मों से शिक्षा लेते हांजी का पाठ पक्का रखती हूं... शिव बाबा की शिक्षाओं को ब्रह्मा बाप ने कैसे फॉलो किया अति महीन और गुह्य रहस्य को मैं आत्मा समझती हूं... मैं आत्मा कर्म के लिए बस शरीर में आती हूं... मैं आत्मा निराकार स्थिति में स्थित होकर निराकार बाप की याद में रहती हूं... निराकार बाबा जैसे अशरीरी और न्यारे प्यारे रहते हैं... मैं आत्मा कर्म करते अशरीरी होने का अभ्यास करती हूं... मैं आत्मा साकारी और निराकारी दोनो को फालो करती हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं सच्ची स्नेही आत्मा हूँ ।

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा बापदादा की अति लाडली बच्ची हूँ... मुझ आत्मा का अब भौतिक सुखों से कोई लगाव नही है... इस संगमयुग पर प्यारे शिव बाबा ने मुझ आत्मा को सर्व सुखों से, शांति और प्रेम से भरपूर कर दिया है... मुझ आत्मा का यह नया आलौकिक जीवन है...

 

➳ _ ➳   मैं श्रेष्ठ संकल्पधारी ब्राह्मण आत्मा हूँ... प्यारे बाबा अपने बच्चों से इतना स्नेह करते हैं व सम्मान देते है... मैं आत्मा अपने प्यारे बाबा से सर्व शक्तियों और सर्व गुणों से भरपूर होकर सर्व का सम्मान करती हूँ... मैं आत्मा बिंदु बन बिंदु बाप को याद करती हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं बाप की स्नेही बच्चा सर्व का सम्मान करते व सर्व की सहयोगी बन आगे बढ़ती हूँ... मैं सर्व के प्रति शुभ भावना रख सर्व से सम्मान पाते परमात्मा की दिलतख्तनशीन आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा प्यारे बाबा की अति स्नेही आत्मा हूँ...

 

➳ _ ➳  बेहद के बाप के अत्यंत स्नेह वश मुझ आत्मा ने अन्य सभी आत्माओं से किनारा कर दिया है... मुझ आत्मा ने सर्व रूपों से, सर्व सम्बन्धों से अपना सब कुछ प्यारे बाबा को अर्पण कर दिया है... मैं आत्मा एक भी ख़ज़ाने को मनमत से व्यर्थ नहीं गवाती हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा स्नेह की शक्ति द्वारा योगबल जमा कर सर्व की सहयोगी आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं सच्ची स्नेही आत्मा बेहद के बाप के आगे अपना सब कुछ अर्पण कर सदाकाल के लिए सर्व सुखों की अधिकारी होने का अनुभव का रहीं हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  सर्व रूपों से सर्व सम्बन्धों से अपना सब कुछ बाप के आगे अर्पण करने वाले सच्चे स्नेही होते हैं...  क्यों और कैसे?

 

❉   सर्व रूपों से सर्व सम्बन्धों से अपना सब कुछ बाप के आगे अर्पण करने वाले सच्चे स्नेही होते हैं क्योंकि जिससे अति स्नेह होता है, तो उस स्नेह के लिये सभी को किनारे कर सब कुछ उनके आगे अर्पण कर देते हैं। स्नेही के लिये प्रेम में सब कुछ समर्पित कर देना अति सुगम होता है।

 

❉   जैसे बाप का बच्चों से स्नेह होता है, इसलिये! सदाकाल के सुखों की प्राप्ति स्नेही बच्चों को करवाते हैं। बाकी सबको मुक्तिधाम में बिठा देते हैं। जो बच्चे बाप से स्नेह करते हैं, तब बाप भी उन बच्चों से स्नेह रखते हैं और बाबा भी उन बच्चों को रेसपोंस में सतयुगी दुनिया का  मालिक बना देते हैं।

 

❉   ऐसे बच्चों के स्नेह का सबूत है सर्व रूपों से, सर्व सम्बन्धों से अपना सब कुछ बाप के आगे अर्पण करना। अर्थात मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई...  की धारणा के अनुसार सर्व रूपों में, मीन्स तन मन धन से बाप के प्रति समर्पित होना है। जहाँ स्नेह है, वहाँ योग भी है और योग है तो सहयोग भी है।

 

❉   अपनी मन और बुद्धि को भी बाप को समर्पित करना है। तन की सभी इन्द्रियों, अर्थात!  ज्ञान इन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों के द्वारा जो भी कर्म हम कर रहे हैं उनको भी बाबा के अर्पण करना है। बाबा को कहना है कि...  बाबा! सब कुछ तुम्हारे लिये है। इस शरीर के द्वारा सुबह अमृतवेले से रात्रि सोने पर्यन्त तकहोने वाले सर्व कर्म के फल भी बाबा आपको अर्पण हों।

 

❉   हमको सर्व सम्बन्धों का सुख भी बाबा से ही लेना है। दुनिया के विनाशी सम्बन्धों के रसों के सुखों को त्याग कर केवल एक बाप से ही सर्व सम्बन्ध निभाने हैं। वही तो हमारे माता पिता भाई बन्धु बालक और सखा हैं। वही शिक्षक और सदगुरु भी हैं। जहाँ स्नेह होता है, वहाँ योग सहयोग दोनों हैं। इसलिये! हम एक भी खजाने को व्यर्थ नहीं गवां सकते हैं।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  साकार कर्म में ब्रह्मा बाप को और अशरीरी बनने में निराकार बाप को फालो करो... क्यों और कैसे ?

 

❉   समान बनना ही स्नेह का रिटर्न देना होता है । जैसे बाप दादा बच्चों के स्नेह में बच्चों से मिलने साकार रूप में आते हैं । बाप परकाया प्रवेश होकर भी प्रीत की रीति निभाने आ जाते हैं । बाप का सदा एक ही संकल्प है कि सर्व बच्चे बाप समान बन जाएं । बाप समान बनना ही हम बच्चों का बाप के प्रति स्नेह का रिटर्न है और यह तभी होगा जब बाप-समान आकारी अव्यक्त वतन निवासी बनेंगे तथा निराकारी बाप के गुणों समान सर्व गुणों में मास्टर बनेंगें ।

 

❉   जैसे साइन्स के साधन एरोप्लेन जब उड़ते हैं तो पहले चेकिंग होती है फिर माल भरना होता है । जैसे पेट्रोल , हवा, खाना आदि जो भी चाहिए, उसके बाद धरती को छोड़ना होता है फिर उड़ना होता है । ऐसे ही हम ब्राह्मण आत्माओं का भी लक्ष्य और डायरेक्शन एक ही है । लक्ष्य है उड़कर बाप समान बनने का और डायरेक्शन है एक सेकेण्ड में उड़ने का । और इस लक्ष्य को पाने का आधार है साकार कर्म में ब्रह्मा बाप को और अशरीरी बनने में निराकार बाप को फालो करना ।

 

❉   जैसे बाप परकाया प्रवेश होते हैं, बच्चों से मिलन मनाते हैं और चले जाते हैं । तो जैसे परमात्मा प्रवेश होने योग्य है वैसे ही मरजीवा जन्मधारी हम ब्राह्मण आत्मायें भी प्रवेश होने योग्य हैं । इसलिए जब चाहें कर्मयोगी बने , जब चाहे परमधाम निवासी बने और जब चाहें सूक्ष्मवतन वासी बने । स्वतंत्र हैं क्योकि तीनों लोकों के मालिक हैं । किन्तु यह अभ्यास तब होगा जब साकार कर्म में ब्रह्मा बाप को और अशरीरी बनने में निराकार बाप को फालो करेंगे ।

 

❉   कई बच्चों के संकल्प बाप तक पहुँचते है कि बाप तो निर्बन्धन हैं और हमें तो देह का बन्धन है, कर्म का बन्धन है । लेकिन बाप -दादा बच्चों से पूछते हैं कि अब तक क्या देह सहित त्याग नहीं किया है ? पहला-पहला वायदा है सब बच्चों का कि तन - मन - धन तेरा । जब तेरा है, मेरा है ही नहीं तो फिर बन्धन काहे का ? इसलिए जैसे ब्रह्मा बाप ने सेकण्ड में सम्पूर्ण समर्पण कर दिया और सम्पूर्ण अवस्था को पा लिया । ऐसे साकार कर्म में जब ब्रह्मा बाप को और अशरीरी बनने में निराकार बाप को फालो करेंगे तो सब बन्धनों से मुक्त हो जायेंगे ।

 

❉   कई ब्राह्मण बच्चे सोचते हैं कि शिव बाबा तो निराकार है इसलिए उन्हें क्या पता कि कैसे चतुराई से चलना पड़ता है । किन्तु बाबा कहते ब्रह्मा बाप तो साकार है ना । साकार स्वरूप में सबके साथ रहे । स्टूडेंट भी रहे । सत्यता और पवित्रता के लिए कितनी आपोजिशन भी हुई तो भी कोई चालाकी नही । सत्यता की शक्ति को धारण कर सदा के लिए विजय प्राप्त कर ली । सत्यता की शक्ति से चलने वाले ही महारथी है और जो महारथी बन साकार कर्म में ब्रह्मा बाप को और अशरीरी बनने में निराकार बाप को फालो करते हैं वही विजयी बनते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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