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❍ 15 / 12 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *मुरली पढकर उस पर चिंतन कर धारण करने पर विशेष अटेंशन रहा ?*
➢➢ *अविनाशी ज्ञान रत्नों का व्यापार किया ?*
➢➢ *सर्विस का बहुत बहुत शौंक रखा ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *रहम की दृष्टि द्वारा घृणा दृष्टि को समाप्त किया ?*
➢➢ *सदा परमात्म चिंतन में रह बेफिक्र बादशाह बनकर रहे ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ *आज बाकी दिनों के मुकाबले एक घंटा अतिरिक्त °योग + मनसा सेवा° की ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - प्रैक्टिस करो मै आत्मा हूँ मै आत्मा हूँ शरीर का भान छोड़ दो बस शिवबाबा को याद करते करते घर जाना है"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... देह को सत्य समझ जीते आये और दुःख के गहरे दलदल में धँस चले... *अब अपने आत्मिक सत्य स्वरूप की हर पल प्रैक्टिस करो.*.. और अपने अविनाशीपन के भान में डूब जाओ... मीठे बाबा की मीठी यादो में इस कदर खो चलो कि देह का भान ही न रहे...और यूँ यादो में खोये हुए से घर को चलें...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा मै आत्मा अब शरीर के दायरे से ऊपर उठ अपने सत्य स्वरूप के भान में डूबी हुई आपकी यादो में... सच्चे प्यार के मीठे रंग में रंगी हुई हूँ.... *एक बाबा ही मेरा संसार है और मीठी यादे ही मेरे जीने का आधार है*...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह समझने के अनुभवी जनमो तक रहे हो... *अब आत्मिक स्तिथि के गहरे अनुभवी बनकर जीवन में अथाह सुखो के जादू को महसूस करो*... शिवबाबा की मीठी यादो में खोकर स्वयं को दिव्य गुण और शक्तियो से भरपूर कर चलो... अशरीरीपन के भान में डूब जाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा *अपने सत्य स्वरूप की पहचान को आपसे पाकर खुशनुमा हो चली हूँ.*.. मै नश्वर नही अविनाशी आत्मा हूँ इस अहसास ने जीवन में सुखो की बहार ला दी है... और आत्मिक स्तिथि में डूबकर आपके प्यार को जीती जा रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... यह विनाशी देह नही हो *खुबसूरत मणि हो... अपने अप्रतिम सौंदर्य में खो जाओ.*.. दिव्य गुण और शक्तियो से सजकर देवताई सुंदरता को पाओ... मीठे बाबा की यादो में अपनी खोयी शक्तियो और खजानो को पाकर मालामाल हो जाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार भरे आगोश में कितनी सुखी कितनी महफूज हूँ... *इस देह के मटमैलेपन से मुक्त हो चली हूँ*और आपके प्यार भरे साये में देवताई गुणो से सज संवर रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा नालेजफुल हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं *आत्मा ज्ञान सागर के किनारे* बैठी हूँ... ज्ञान सागर की लहरें मुझ आत्मा को भीगा रहीं हैं... लहरों के थपेडों से मुझ आत्मा के सारे क्रोध, ईर्ष्या, जलन के संस्कार ख़तम होते जा रहें हैं... मुझ आत्मा के पुराने स्वभाव-संस्कार ख़तम होते जा रहें हैं... मुझ आत्मा के बहुकाल के कमजोर संस्कार, सारे अवगुण ख़तम होते जा रहें हैं...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा ज्ञान सागर बाप से *ज्ञान पाकर नालेजफुल बन गई* हूँ... मैं आत्मा सदा एक बाप की याद में समाये हुए रहती हूँ... एक बाप की याद से सर्वगुण, सर्व शक्तियों को स्वयं में धारण कर रहीं हूँ... मुझ आत्मा के निजी संस्कारों का स्वरूप बनते जा रहीं हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा याद स्वरूप, सर्वगुण स्वरूप, सर्व शक्तियों का स्वरूप बन गई हूँ... मैं आत्मा बाप के संस्कारों को धारण कर रहीं हूँ... बाप समान रहमदिल बनते जा रहीं हूँ... अब मैं *आत्मा स्वयं को बाप समान* अनुभव कर रहीं हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा सिर्फ स्वयं को देखती हूँ... दूसरों को नहीं देखती हूँ... दूसरों के स्वभाव संस्कारों का मुझ आत्मा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है... मैं आत्मा कभी किसी से खिटखिट नहीं करती हूँ... दूसरों के स्वभाव संस्कारो पर क्यों, क्या के क्वेस्चन्स नहीं उठाती हूँ... *ड्रामा में उनका यही पार्ट* है और वो अपना पार्ट बजा रहें हैं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा ड्रामा के नालेज को यूज़ कर हर परिस्थिति को फुल स्टॉप लगा देती हूँ... अब मैं आत्मा सदा निर्विघ्न रहती हूँ... मैं आत्मा *रहम की दृष्टि से घृणा दृष्टि को समाप्त* कर देती हूँ... अब मैं आत्मा रहम की दृष्टि द्वारा घृणा दृष्टि को समाप्त करने वाली नालेजफुल बन गई हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सदा परमात्म चिंतन कर , हर चिंता से मुक्त हो बेफिक्र बादशाह बनना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा परमात्म अभिमानी हूँ...* एक बाबा दूसरा न कोय... उसके संग ही खाऊ, उसी के संग बैठु, उसी से सब बातें करू, वही मेरा सच्चा सच्चा मीत हैं... मेरा सदा का साथी हैं... वो मेरे स्वांसो में बसता है... मेरे हर संकल्प में बस परमात्मा हैं... उसी की लगन में मगन... मैं आत्मा उसमें ही खोई हुई हूँ...
➳ _ ➳ परमात्म चिंतन से मैं आत्मा हर चिंता से मुक्त हो गई हूँ... मैं बस बाबा को सोचु, बाबा को देखु... *बाबा ही मेरा संसार हैं...* उसको सब कुछ सौंप... मैं आत्मा बेफिक्र बादशाह बन गई हूँ...
➳ _ ➳ जिसके साथ सर्वशक्तिमान बाप साथ हो... उसे किस बात की चिंता हो सकती हैं... मैं तो बेफिक्र हो सर्व झमेलों से मुक्त हो गई हूँ... बाबा ही मेरे लिए सोचते हैं... *हर विघ्नों को सहज ही पार करवाने वाला भगवान मेरे साथ हैं...*
➳ _ ➳ मेरे हर संकल्प में बस बाबा-बाबा पिरोया हैं... परमात्म चिंतन से मैं आत्मा सम्पूर्ण पावन बन गई हूँ... बाबा से निरन्तर शक्तियाँ और गुण मुझ पर बरस रहे हैं... *मैं आत्मा बाबा के दिल में रहती हूँ...* बाबा को निरन्तर याद करते मैं बाबा की दिलतख्तनशीं आत्मा बन गई हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *रहम की दृष्टि द्वारा घृणा दृस्टि को समाप्त करने वाले नॉलेजफुल होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ रहम की दृस्टि द्वारा घृणा दृस्टि को समाप्त करने वाले नॉलेजफुल होते हैं क्योंकि... जो बच्चे एक दो के *संस्कारों को जान कर संस्कार परिवर्तन की लगन* में रहते हैं और कभी किसी के लिये ये नहीं सोचते कि यह तो हैं ही ऐसे। उन बच्चों के लिये कहेंगे नॉलेजफुल। वे स्वयं को ही देखते हैं, और निर्विघ्न भी रहते हैं।
❉ उनकी दृस्टि और वृति रहम की होती है। उनमें किसी भी आत्मा के प्रति घृणा की भावना नहीं होती है। उनकी सोच सदा ही अन्य आत्माओं के प्रति सकारात्मक होती है। *उनकी नज़र सदा ही धारणकर्ता* अर्थात! जिसने इस पञ्च तत्त्व के शरीर को धारण कर रखा है। आत्मा पर ही रहती है।
❉ वह सबको आत्मा ही देखते हैं। उनमें आत्मिक गुणों का समावेश रहता है। वे एक दूसरे के संस्कारों को समझ कर चलते हैं। वह एक दूसरे के संस्कारों से अपने दिव्य संस्कारों की रास मिला कर चलते हैं। अन्य आत्माओं के संस्कारों को जान व समझ कर आसुरी संस्कारों को *दैवी संस्कारों में परिवर्तित करने की सोचते* हैं।
❉ वे किसी की भी बुराई को नहीं देखते हैं। उनमें ईर्ष्या द्वेष घृणा आदि ऐसे तुच्छ आसुरी गुण कदापि नहीं होते हैं। उनमें *सदा ही दैवी गुण से परिपूर्ण संस्कार विद्यमान* रहते हैं। उन आत्माओं में रहम की भावना कूट कूट के भरी होती है। उनकी नज़र स्वयं की ही गति विधियों पर होती है।
❉ उनके संस्कार बाप के समान रहमदिल के होते हैं। अतः रहम की दृस्टि, घृणा दृस्टि को समाप्त कर देती है। ऐसे *रहमदिल बच्चे कभी आपस में खिट–पिट* नहीं करते हैं, अर्थात! आपस में लड़ते व झगड़ते नहीं है, और न ही कभी किसी को गलत शब्द बोलते हैं, बल्कि! वे तो! सपूत बन कर सबूत देते हैं।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *सदा परमात्म चिंतन करने वाले ही बेफिक्र बादशाह हैं, उन्हें किसी भी प्रकार की चिंता नहीं हो सकती... क्यों और कैसे* ?
❉ जो सदा परमात्म चिंतन में बिज़ी रहते हैं उन्हें सदा निमितपन की स्मृति रहती है । *स्वयं को निमित्त समझने से वे हर जिम्मेवारी सम्भालते भी सदा हल्के रहते हैं* । क्योकि करनकरावन हार बाबा कदम कदम पर उन्हें परमात्म बल प्रदान कर उन्हें सर्व शक्तियों से भरपूर कर देते हैं । स्वयं को परमात्म पालना में अनुभव करते हुए वे ऐसे बेफिक्र बादशाह बन जाते हैं कि उन्हें किसी भी प्रकार की कोई चिंता कभी नही रहती ।
❉ जिन्हें सिवाय एक परमात्मा बाप के और कोई की याद नही रहती । हर संकल्प, हर सेकण्ड जो परमात्म चिंतन में ही व्यतीत करते हैं । वे अपना तन - मन - धन सब कुछ परमात्मा की अमानत समझते हुए श्रीमत प्रमाण उन्हें यूज़ करते हैं । *स्वयं को ट्रस्टी समझ अपना तन - मन - धन ईश्वरीय सेवा में लगाते हैं* । परमात्मा बाप के प्रति सम्पूर्ण समर्पण की यह भावना ही उन्हें बेफिक्र बादशाह बना देती है और वे अपनी सब चिंताएं बाबा को दे सदा निश्चिन्त रहते हैं ।
❉ जैसे ब्रह्मा बाबा ने हर कर्म को इस स्मृति में स्थित हो कर किया कि यह मेरा कार्य नही बल्कि परमात्म कार्य है । इस स्मृति ने उन्हें ऐसा बेफिक्र बादशाह बना दिया कि यज्ञ में अनेक विपरीत परिस्थितियां आने पर भी वे कभी चिंतित नही हुए । स्वयं को निमित्त समझ हर कर्म ऐसे किया कि वह एक यादगार बन गया । ऐसे *फॉलो फादर करते हुए जो हर कर्म परमात्म चिंतन में रह कर करते हैं* । वे कठिन से कठिन परिस्थिति में भी सदा परमात्म मदद का अनुभव करते हुए निश्चिन्त रहते हैं ।
❉ सम्पूर्ण समर्पण भाव से जो स्वयं को बाबा पर समर्पित कर देते हैं बाबा भी ऐसे बच्चों पर बलिहार जाते हैं । हर कर्म करते बुद्धि का योग केवल एक बाप से लगा होने के कारण उनके सोचने का काम भी बाबा करते हैं । उनकी सभी जिम्मेवारियों का बोझ बाप स्वयं अपने कन्धों पर उठा लेते हैं । इसलिए *लौकिक वा आलौकिक प्रवृति में रहते हुए भी वे स्वयं को निर्बन्धन अनुभव करते हैं* और हर बात में इजी रहते हुए बेफिक्र बादशाह बन जाते हैं । उन्हें किसी भी बात की कोई चिंता नही रहती ।
❉ जो सदा इस निश्चय और नशे में रहते हैं कि भगवान मेरा साथी है और हम परमात्म पालना में पलने वाली वो महान आत्मायें हैं जिन्हें स्वयं परमात्मा ने कोटों में चुना है । यह निश्चय और नशा ही उन्हें बेफिक्र बादशाह बना देता है । क्योकि उन्हें सदा यह स्मृति रहती है कि *स्वयं करनकरावन हार भगवान कदम कदम पर उनकी मदद करने के लिए उनके साथ है* । इसलिए उनका कभी अकल्याण हो ही नही सकता । कल्याणकारी बाप की छत्रछाया में वे सदा निश्चिन्त स्थिति का अनुभव करते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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