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 16 / 06 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ सच्चा सच्चा रूहानी पंडा बन आत्माओं को घर का रास्ता बताया ?

 

➢➢ शरीर निर्वाह अर्थ धंधा आदि करते याद की यात्रा में रहे ?

 

➢➢ ज्ञान श्रृंगार कर स्वयं को स्वर्ग की परी बनाने पर विशेष अटेंशन दिया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ त्याग, तपस्या द्वारा सेवा में सफलता प्राप्त की ?

 

➢➢ चित्र को न देख चेतन और चरित्र को देखा ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢ आज बाकी दिनों के मुकाबले एक घंटा अतिरिक्त °योग + मनसा सेवा° की ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं सर्व की कल्याणकारी आत्मा हूँ ।

 

✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा दूरादेशी अर्थात त्रिनेत्री हूँ... मैं अपने मस्तक पर विराजमान दिव्य तीसरे नेत्र से तीनों लोकों और तीनों कालों को जानने वाला मास्टर त्रिकालदर्शी हूँ... मैं देख रही हूँ मेरा सूक्ष्म शरीर... मैं आत्मा इस दैहिक शरीर से निकालकर ऊपर वतन की ओर जा रहीं हूँ... मैं साक्षी होकर देख रहीं हूँ...

 

➳ _ ➳  प्रकाश एवं शक्ति से भरपूर मेरा सूक्ष्म शरीर... धीरे - धीरे  चलता हुआ ऊपर बादलों की ओर बढ़ रहा हूँ... अब मैं आत्मा एक छोटी से बदली पर सवार होकर अपने प्यारे पिता और अपने अतिप्रिय परमधाम, अपने घर जा रहीं हूँ... असीम शांति व सुनहरे लाल प्रकाश से ओत - प्रोत इस अद्भुत संसार में...

 

➳ _ ➳  मेरे सामने मेरे अविनाशी पिता मुझे देखकर अपनी सर्वशक्तियों की बरसात कर रहें हैं... मैं आत्मा सर्व शक्तियों को स्वयं में समाती हुई अपने सभी पुराने संकल्पों व संस्कारों को भस्म कर त्यागीमूर्त आत्मा बन रहीं हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा आज सर्वशक्तिवान परमात्मा के समक्ष यह दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मैं सेवाधारी के साथ - साथ त्यागी तथा तपस्विमूर्त बनूँगी... मैं आत्मा बुद्धि की स्मृति वा दृष्टि से सिवाए आत्मिक स्वरुप के और कुछ भी न देखकर तपस्विमूर्त आत्मा बनूँगी...

 

 ➳ _ ➳  मैं आत्मा यह दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मेरे जो भी संकल्प उठेगें उसमें हर आत्मा का कल्याण ही समाया होगा...

 

➳ _ ➳  जैसे स्थूल अग्नि दूर से ही अपना अनुभव कराती है ठीक उसी प्रकार इन श्रेष्ठ संकल्पों के साथ मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मेरी तपस्या और त्याग की झलक दूर से ही सर्व को आकर्षित कर रही है...

 

➳ _ ➳  त्यागीमुर्त व तपस्यमूर्त बनते ही सेवा का प्रत्यक्ष फल दिखाई दे रहा है... मैं यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मैं आत्मा सर्व की कल्याणकारी आत्मा बन गयी हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - तुम हो रूहानी पण्डे तुम्हे गृहस्थ व्यहार सभालते हुए कमल फूल समान बन याद की यात्रा करनी और करानी है"

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे तुम साधारण नही हो रूहानी पण्डे हो... सबको सत्य राह को दिखलाने वाले हो... गृहस्थ में रहते हुए पवित्रता को धारण किये हुए महकना है... और मिसाल बन दिखाना है... यादो में डूबकर औरो को भी याद का नशा चढ़ाना है...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे रूहानी पण्डे बन सबके जीवन सवांरने है... दुखो से मुक्त कराकर सुखो का पता हर दिल तक दे आना है... घर परिवार को चलाते हुए दिव्य गुण धारण किये न्यारा और प्यारा रहना है... और यादो का यही गुण सबको सिखाना है

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे ईश्वर पिता के दिए सच्चे ज्ञान को दुनिया में छ्लकाओ... हर भटके को सच की राहो पर ले आओ... रूहानी पण्डे बन ईश्वरीय याद में खो जाओ... अपने कमल फूल समान जीवन से रूहानियत का सन्देश फैलाओ...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चे अब आपका जीवन असाधारण है आपकी हर अदा ईश्वरीय है... आपकी हर बात हर चाल में दिव्यता है रूहानियत है... आप न्यारे प्यारे कमल हो चले हो... यह हर पल याद रख सबको ईश्वरीय यादो में डुबाओ...

 

 ❉   मेरा बाबा कहे - मीठे बच्चे आप ईश्वर के चुने हुए फूल हो... आप आम नही ईश्वरीय दिलेखास हो... रूहानी यात्री हो... इस नशे को अपनी सांसो संकल्पों में समाओ... लौकिक जिम्मेदारियो को निभाते हुए रूहानियत की पहचान बनो... यादो की ऐसी लहर चलाओ की हर दिल भीग जाय...

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ ज्ञान श्रृंगार कर स्वयं को स्वर्ग की परी बनाना है । इस तमोप्रधान दुनिया में जिस्मानी श्रृंगार नहीं करना है ।

 

  ❉   इस पुरुषोत्तम संगमयुग पर स्वयं परमपिता परमात्मा बाप ही पतित दुनिया में आकर सुप्रीम टीचर बन हमें ज्ञान रत्नों से नवाजते है व श्रृंगार करते है । सिवाय बाप के ये ज्ञान कोई ओर दे न सका । तो हमें इन अनमोल अखूट ज्ञान रत्नों को स्वयं मे धारण करना है ।

 

  ❉   स्वयं भगवान हमें पढ़ाते हैं व आप समान भगवान भगवती बनाते है व इस ज्ञान धन को अच्छी रीति पढ़कर व धारण कर पावन बनना है और दिव्य गुणों की धारणा करनी है । पावन बन ही 21 जन्मों के लिए स्वर्ग की बादशाही प्राप्त करनी है । इसलिए इस संगमयुग पर ही ज्ञान श्रृंगार कर स्वयं को स्वर्ग की परी बनाना है ।

 

  ❉   ये पुरानी दुनिया तमोप्रधान है व इसमें शरीर का श्रृंगार नही करना क्योंकि फैशन से कशिश होती है । ये आंखे सबसे पहले धोखा देती है व आकर्षण में आती है । इसलिए सिम्पल रहना है ।

 

  ❉   बाबा इस समय हमारा ज्ञान रत्नों से श्रृंगार करते है व काला से गोरा बनाते है । गृहस्थ व्यवहार में रहते हमें कमल पुप्ष समान न्यारा और प्यारा रहना है । हमें तो हम सूर्यवंशी घराने में जाना है व यही श्रृंगार करेंगे तो भविष्य में भी तो स्वर्ग में पायेंगे ।

 

  ❉   बाबा कहते है कि मैं अपने बच्चों को लेने आया हूं व हमें पावन दुनिया का मालिक बनाते है । तो पावन सतोप्रधान दुनिया में जाने के लिए याद की गुप्त यात्रा में रहना है व अपना ज्ञान रत्नों से श्रृंगार करना है व रुहानी श्रृंगार करना है । इस पुरानी दुनिया में रहते जीते जी मरना है व जिस्मानी श्रृंगार नही करना है ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ त्याग, तपस्या द्वारा सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले सर्व के कल्याणकारी होते हैं.... क्यों और कैसे ?

 

  ❉   जिन बच्चों को ये स्मृति व नशा रहता है कि हमें स्वयं भगवान ने अपना बनाया व अपने कार्य में मदद के निमित्त बनाया व विश्व परिवर्तन की जिम्मेवारी दी तो वो अपने को सेवाधारी समझ दिन रात ऐवररेडी रह रुहानी सेवा करते अपनी त्याग तपस्या से सर्व के कल्याणकारी होते हैं ।

 

  ❉   जो सदा अल्पकाल के देह के सुख देने वाले पदार्थों का, सम्बन्धो का त्याग करते हुए रुहानी सेवा में लगे रहते है व सर्व सम्बंध एक बाप से रखते हैं तो वे सदा सेवा में सफलता पाते अविनाशी सुख पाते हैं व दूसरों को भी सुख अनुभव कराने वाले सर्व के कल्याणकारी होते है ।

 

  ❉   जो सर्व के कल्याणकारी होते हैं उनके हर संकल्प में हर आत्मा के प्रति कल्याण की भावना होती है । पुराने स्वभाव संस्कार का त्याग कर देते है , उनकी बुद्धि की स्मृति में वा दृष्टि से सिवाए आत्मिक स्वरुप के और कुछ दिखाई नही देता बस आत्मिक रिश्ता होता है ।

 

  ❉   जो बच्चे इस अनमोल संगमयुग की महत्ता को जानते हुए विनाशी दुनिया व विनाशी सम्बंधों को भुलाकर बस अपने को निमित्त या मेहमान समझते है व बस एक बाप की याद में रह बाहरी दुनिया की परवाह नही करते । बापदादा से होने वाली प्राप्तियों को याद रख त्याग, तपस्या और सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले सर्व के कल्याणकारी होते हैं ।

 

  ❉   जो सदा अपने प्रभु प्यार में समर्पण भाव अनुभव करता है विनाशी स्नेह का त्याग कर सदा अविनाशी स्नेह के सागर में समाए रहते हैं तथा औरों को भी श्रेष्ठ रास्ते पर चलाने की सेवा करते तो उन्हें सफलता अवश्य मिलती है । वो त्याग, तपस्या और सेवा में सफलता का प्रयत्क्ष फल प्राप्त करने वाले सर्व के कल्याणकारी होते हैं ।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ देह भान से पार जाने के लिए चित्र को न देख चेतन और चरित्र को देखो... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   जितना आत्मिक स्मृति में रहेंगे और हर कर्म करते हुए अपने को अशरीरी आत्मा अनुभव करेंगे उतना देह और देह के भान से मुक्त होते जायेंगे । प्रेक्टिकल में न्यारे हो कर कर्तव्य में आने का अनुभव जितना ज्यादा करेंगे उतना बिंदु रूप स्थिति में स्थित होना सरल होता जायेगा और किसी के भी सम्बन्ध संपर्क में आने पर उसका चित्र अर्थात देह दिखाई नही देगी बल्कि उसका चेतन रूप अर्थात आत्मा और चरित्र अर्थात आत्मिक गुण दिखाई देंगे ।

 

 ❉   जितना एकांत और अंतर्मुखता में

रहेंगे उतना बाह्यमुखता में आने का इन्ट्रेस्ट समाप्त होता जायेगा  और अव्यक्त स्थिति सहज ही बनती जायेगी । जितना अव्यक्त स्थिति में स्थित रहेंगे उतना व्यक्त में आने पर भी अव्यक्त स्मृति बनी रहेगी और कर्मेन्द्रियाँ शांत और शीतल रहेंगी । देह को देखते हुए भी दैहिक दृष्टि नही जायेगी बल्कि देह में विराजमान चमकती हुई जगमग ज्योति बिंदु आत्मा ही दिखाई देगी । और आत्मिक स्मृति में रहने का अभ्यास जितना बढ़ता जायेगा देह का भान समाप्त होता जायेगा ।

 

 ❉   स्वयं को जब मेहमान समझेंगे तो हर प्रकार के बन्धन से सहज ही मुक्त होते जायेंगे क्योकि स्वयं को मेहमान समझने से यह स्मृति रहेगी कि हम इस शरीर में भी मेहमान हैं और पुरानी दुनिया में भी मेहमान है । जब शरीर में ही मेहमान है तो फिर इस शरीर से कैसा लगाव ? सिर्फ थोड़े समय के लिए यह शरीर काम में लाना है यह स्मृति हर प्रकार के लगाव से मुक्त कर विदेही बना देगी । जितना विदेही बनेगें उतना चित्र को देखते हुए भी चित्र में विराजमान चेतन शक्ति आत्मा और उसका चरित्र दिखाई देगा ।

 

 ❉   शरीर और आत्मा दोनों का न्यारापन जब चलते फिरते अनुभव करेंगे तब देहभान से पार जा कर चेतन और  चरित्र को देखने के अभ्यासी बन सकेंगे । और यह न्यारापन तभी आएगा जब शरीर के साथ व शरीर के सम्बन्ध में जो भी बातें हैं, देह की दुनिया, देह के सम्बन्ध व अनेक जो भी वस्तुएं हैं उनसे डिटैच होंगे । उनमें जरा भी लगाव नही होगा । अगर सूक्ष्म संकल्प में भी हल्कापन नही होगा तो न्यारेपन का अनुभव नही कर सकेंगे ।

 

 ❉   अभी अभी एक सेकण्ड में जैसे स्थूल शरीर द्वारा कहीं भी जाने का इशारा मिले तो जैसे आना और जाना ये दोनों सहज अनुभव होते हैं ऐसे ही सेकण्ड में कर्मेन्द्रियों का आधार ले कर कर्म करना और सेकण्ड में कर्मेन्द्रियों के बन्धन से न्यारा हो जाना अर्थात हर प्रकार के कर्म के बन्धन से मुक्त रहना इस स्थिति में स्थित होने का अभ्यास जैसे जैसे बढ़ता जायेगा वैसे वैसे देह भान से परे होते जायेंगे जिससे मनसा में निराकारी स्टेज, वाचा में निरहंकारी और कर्म में निर्विकारी स्थिति सहज ही बनती जायेगी ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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