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❍ 21 / 08 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ √शांति की शक्ति√ का अनुभव किया ?
➢➢ √बुधी को बिजी√ रख निर्विघन अवस्था का अनुभव किया ?
➢➢ √"क्या थे और क्या बन गये हैं"√ - यह महान अंतर सदा सामने रहा ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ अपनी √विशेषताओं को सेवा में√ लगाया ?
➢➢ परिवार के सम्पर्क में आते √हर एक की विशेषता√ को देखा ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/21.08.16-VisheshPurusharth.htm
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/21.08.16-VisheshPurusharth.pdf
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "विशेष युग का विशेष फल"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे कितने खूबसूरत भाग्य से भरे हो... विशेष युग में ईश्वर पिता की खास पसन्द हो विशेष आत्मा हो... पिता समान विशेषताओ के पारखी हो... हर कार्य में अपनी विशेषता से खूबसूरत सफलता का रंग भरने वाले विशेष जादूगर हो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा महा सोभाग्यशाली हूँ ईश्वर पिता की विशेष पसन्द हूँ... मेरा भाग्य किस कदर प्यारा है कि विशेष संगमयुग में मै आत्मा ईश्वर पिता की सहयोगी हूँ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे इस विशेष युग में कमल समान बन मुस्कराओ... विशेषता रुपी बीज से सन्तुष्टता का फल सदा प्राप्त करो... होली हंस बन विशेषताओ के मोती चुनते चलो... और इन खूबसूरत विशेष रंगो से एक दूसरे को भरते चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा प्यारे बाबा को पाकर कितनी विशेष हो चली हूँ... सबकी विशेषताओ को चुनने वाली ज्ञान हंस हो चली हूँ... मेरा हर संकल्प हर कर्म विशेष हो चला है... और मेरा जीवन विघ्नो से मुक्त हो चला है...
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... अशरीरी बनकर शरीर के भान से उड़ चलो... ज्ञानसूर्य बनकर पूरे विश्व में अपनी किरणों से दमक उठो... मीठे बाबा के दिल तख्त पर सदा का मुस्कराओ... और लाईट हॉउस बन सारे विश्व को राह दिखाओ...सदा ब्लिसफुल बन खुशियो में खिलते रहो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ज्ञान सूर्य बन चमक रही हूँ... प्यारे बाबा से पाया प्यार और ज्ञान पूरे विश्व में फैला रही हूँ... सबके जीवन को खुशियो से भर रही हूँ... और विशेष युग में प्यारे बाबा के दिलतख्त पर सज गयी हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - संगमयुग पर विशेष आत्मा का पार्ट बजाना"
➳ _ ➳ मैं संगमयुगी विशेष ब्राह्मण आत्मा हूं... मैं आत्मा पदमापदम भाग्यशाली हूं... ना जाने प्यारे बाबा को मुझ में क्या विशेषता दिखी... जो स्वयं परमपिता परमात्मा शिव बाबा ने कहां कहां से ढ़ूंढ़कर मुझे अपना बच्चा बना लिया... यह संगमयुग ही आत्मा और परमात्मा का, सागर और नदियों के मिलन का मेला है... इसलिए यह युग विशेष युग है... प्यारे बाबा के सामने हर आत्मा विशेष आत्मा है... प्यारे बाबा बस अपने बच्चों की विशेषता ही देखते हैं... प्यारे बाबा बच्चों को बस चमकता हुआ सितारा देखते हैं... प्यारे शिव बाबा हर आत्मा में किसी न किसी गुण की, शक्ति की विशेषता को देखते हैं... ऐसे ही मैं आत्मा हर आत्मा में बस गुण या विशेषता को ही देखती हूं... मैं आत्मा इस कलयुगी दुनिया में रहते हुए बस सत का संग करती हूं... बस सत का संग करके गुणों और शक्तियों से भरपूर होती हूं... मैं आत्मा अपनी देह के भान की मिट्टी की मैल को उतारती हूं... एक प्यारे बाबा की याद में रहती हूं... इस संगमयुग पर याद के बल से इस पुरानी व कलयुगी दुनिया में रहते हुए पवित्रता धारण करती हूं... कमल पुष्प समान न्यारी और प्यारी रहती हूं... संगमयुग पर मुझ आत्मा का विशेष पार्ट है... क्योंकि हर कदम पर बापदादा का सहयोग प्राप्त करती हूं... मैं आत्मा अपनी विशेषता द्वारा निमित्त बन विशेष सेवा करती हूं... मैं आत्मा अपनी विशेषता को मनसा वाचा कर्मणा द्वारा सेवा में लगाती हूं... सदा वृत्ति रुपी बीज को श्रेष्ठ बना सदा श्रेष्ठ अनुभव करती हूं...
❉ ड्रिल - विशेषता की दृष्टि द्वारा विशेषता को देखना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा ईश्वरीय परिवार की विशेष ब्राह्मण आत्मा हूं... मुझ आत्मा को परमपिता परमात्मा ने ही अपना बनाकर विशेष बनाया है... कभी स्वप्न में भी नही सोचा था कि मुझे ऐसे भगवान मिल जायेंगे... कोटो में कोई व कोई मेसे भी कोई में स्वयं भगवान ने मुझे ही चुना है... तो मैं विशेष आत्मा ही हूं... ईश्वरीय संतान हूं... शिव बाबा का बच्चा हूं... मुझे विशेष भी स्वयं परमपिता परमात्मा ने ज्ञान का तीसरा नेत्र देकर विशेष बनाया है... दिव्य दृष्टि देकर विशेष बनाया है... इसलिए मैं आत्मा दिव्य दृष्टि विशेष दृष्टि से सर्व में विशेषता ही देखती हूं... विशेषता देखते देखते मुझ आत्मा की कमजोरियां स्वतः ही समाप्त हो जाती हैं... मेरे प्यारे बाबा बच्चों की कितनी गल्तियां होने पर भी बस विशेषता देख उसे उमंग उत्साह से आगे बढ़ाते हैं... किसी की बुराई नहीं देखते... ऐसे ही मैं आत्मा प्यारे बाबा की श्रीमत पर चलते हुए सर्व की विशेषता देखते हुए विशेष बनती हूं... मैं आत्मा बस विशेषता देखने का ही चश्मा पहने रखती हूं... किसी आत्मा की कोई गल्ती होने पर भी उसमें विशेषता ही देखती हूं... जैसे कीचड़ मे पलने वाले बस कमल को ही देखती हूं... ऐसे प्रवृति में रह सर्व आत्माओं की विशेषता देख आगे बढ़ाती हूं... मैं आत्मा साक्षीभाव रखती हूं... मैं आत्मा विशेषता देखते स्व का परिवर्तन कर विश्व परिवर्तन के कार्य के निमित्त बनती हूं...
❉ "ड्रिल - सेवाओं द्वारा खुशी की अनुभूति करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा खुशनसीब हूं... पदमापदम भाग्यशाली हूं... क्यूंकि स्वयं परमात्मा ने मुझ आत्मा को अपने विश्व परिवर्तन के कार्य के लिए मददगार चुना... मुझ आत्मा को अपना बनाकर अपने कार्य के निमित्त बनाया... मुझ आत्मा को इस रौरव नरक से निकाल मुझ आत्मा को नया जीवन दिया... मुझ आत्मा का रोज ज्ञान रत्नों से श्रृंगार करते हैं... मैं आत्मा इस ज्ञान को धारण कर ज्ञान रत्नों का दान देती हूं... मैं आत्मा प्यारे बाबा से सर्व शक्तियो, सर्व गुणों और सर्व खजानों से स्वयं को सम्पन्न अनुभव करती हूं... सर्व खजानों से सम्पन्न होने से मैं आत्मा सर्व के प्रति शुभ भावना शुभ कामना रखती हूं... मैं आत्मा प्यारे बाबा का सदा साथ होने से सदैव सर्व की सहयोगी बनती हूं... सम्बंध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को बाबा का परिचय देती हूं... स्वयं उमंग उत्साह में रह रुहानी सेवा करते हुए सर्व को साथ लेकर आगे बढ़ती हूं... मैं सर्व के साथ मीठा बनकर रहती हूं...मैं आत्मा सेवा करते व सर्व को साथ लेकर चलते दुआओं का पात्र बनती हूं... मैं आत्मा सदा रुहानी सर्विस के लिए ऐवररेड़ी रहती हूं... मैं आत्मा प्यारे बाबा को हर बात सब सच्चाई और सफाई से बताती हूं... मैं आत्मा अपने को निमित्त समझ मनसा वाचा कर्मणा सेवा करती हूं... ईश्वरीय सेवा मिलना बहुत बड़ा सौभाग्य है... मैं आत्मा गॉडली सर्विस करते हुए असीम खुशी का अनुभव करती हूं...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं सर्व बन्धनमुक्त आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳ मैं आत्मा जीते जी मर चुकी हूँ... इस पुरानी दुनिया और पुराने शरीर के सब सम्बंधों को बुद्धि से भूल चुकी हूँ... पुरानी दुनिया का विनाश होना ही है... मैं आत्मा पुरानी विनाशी दुनिया से मोह तोड चुकी हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा एक बाप की याद में मग्न हूँ... मैं याद के बल से माया रूपी लोहे की जंजीरों को और मोह रूपी बन्धनों के महीन धागों को तोड़ बन्धनमुक्त स्तिथि में स्तिथ रहने वाली आत्मा हूँ....
➳ _ ➳ मैं आत्मा पुरानी दुनिया पुराने स्वभाव संस्कारों को भूल गई हूँ... इनसे सन्यास ले चुकी हूँ... इस कलयुगी स्थूल वस्तुओं की रसना वा मन के लगाव से मैं आत्मा स्वतः ही मुक्त हो गयी हूँ... मुझ आत्मा का देह व देह के सम्बंधों से... देह के पदार्थों से आकर्षण समाप्त हो गया है...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा की सर्व कर्मेन्द्रियाँ शांत व शीतल हो गयीं हैं... इंद्रियों के विनाशी रस से मैं आत्मा स्वतः ही सदा के लिए मुक्त हो गयी हूँ... मैं आत्मा इस ऊंच अवस्था पर स्तिथ होकर अतीन्द्रिय सुखों के झूलों में झूलने लगीं हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा मनमनाभव की स्तिथि में निरन्तर स्थित रहकर मनरस की स्तिथि का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा स्वयं यह दिव्य अनुभव कर अन्य आत्मओं को भी मनरस स्तिथि का अनुभव करवाने में निमित्त बन रहीं हूँ... मैं आत्मा सर्व बन्धनों से मुक्त उड़ता पँछी होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ मनमनाभव की विधि द्वारा मनरस की स्थिति का अनुभव करने और कराने वाले सर्व बन्धनमुक्त होते हैं... क्यों और कैसे?
➢➢ मनमनाभव की विधि द्वारा मनरस की स्थिति का अनुभव करने और कराने वाले सर्व बन्धनमुक्त होते हैं क्योंकि जो बच्चे लोहे की जंजीरें और महीन धागों के सम्बन्ध को अर्थात बन्धन को तोड़ बन्धनमुक्त स्थिति में रहते हैं। वे ही स्वतंत्र और उन्मुक्त अवस्था में रहने का आनन्द प्राप्त करते हैं।
❉ वे कलियुगी स्थूल वस्तुओं की रसना व मन के लगाव से सदा सर्वदा के लिये मुक्त हो जाते हैं। उनको संसार की कोई भी वस्तु, व्यक्ति या साधन अपनी ओर आकर्षित नहीं करता है। वे स्वयं की स्थिति में स्थित रहते हैं। स्वयं की स्थिति मीन्स... आत्म अभिमानी स्थिति में स्थित रहना होता है।
❉ सदा ही आत्मिक स्थिति में अपने मन को लगा कर एक परम पिता परमात्मा की याद में मगन हो जाना है। याद में मगन होना अर्थात मनमनाभव की स्थिति में सदा स्थित रह कर मन को सदा ही आनन्दित रखना है। अतः स्वयं को सदा ही प्रसन्नचित अवस्था में रखना और दूसरों को भी प्रसन्नचित रहने की प्रेरणा देना है।
❉ उनको देह अभिमान व देह की कोई भी पुरानी वस्तु की जरा भी आकर्षण नहीं होती है। वे स्थूल व सूक्ष्म वस्तुओं का केवल शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के निमित्त ही, सिर्फ उपयोग करने हेतु, उन वस्तुओं को कार्य में लेते हैं। तब भी उनको वे वस्तुयें अपनी और आकर्षित नहीं कर पाती हैं।
❉ उनको वे सभी पुरानी, हद की दुनिया के व्यक्ति, वस्तुयें व उन व्यक्तियों का वैभव, धन सम्पदा तथा विभिन्न प्रकार का उनका ऐश्वरीय, उनकी अन्य कोई भी विशेषता आदि, किसी भी प्रकार की लोहे अथवा सोने रत्नों की जंजीरे ही क्यों न हो, वे सभी विनाशी हद की सामग्री तनिक भी अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाती है।
❉ जब उनको कोई भी इन्द्रियों के रस अर्थात इन्द्रियों से सम्बंधित विषयों के विनाशी रस की तरफ आकर्षण नही होता है, तब ही अलौकिक व पारलौकिक अतिन्द्रिय सुख व मनरस की स्थिति का उनको अनुभव होता है। इसके लिए निरन्तर मनमनाभव की स्थिति में वे स्वयं को स्थित रखना चाहते हैं।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ सच्ची सेवा वह है जिसमे सर्व की दुआओं के साथ ख़ुशी की अनुभूति हो... क्यों और कैसे ?
❉ जो सेवा निस्वार्थ और निष्काम भाव से की जाती हैं तथा जिस सेवा में सर्व आत्माओं के प्रति कल्याणकारी भाव समाया होता है । उस सेवा में सर्व की दुआयें भी समाई होती हैं तथा वह सेवा असीम ख़ुशी का भी अनुभव करवाती हैं । संगम युग पर सेवा का प्रत्यक्ष फल है ही ख़ुशी । जो सर्व आत्माओं की दुआएं जमा करने के साथ साथ इस प्रत्यक्ष फल का अनुभव करते रहते हैं वही सच्चे सेवाधारी बन अनेकों आत्माओं का कल्याण करने के निमित बनते हैं ।
❉ किसी भी सेवा में सफलता का मुख्य आधार है शुभ चिंतक वृति । जब सेवा में सर्व आत्माओं के सहयोग की भावना होती है, ख़ुशी की भावना वा सदभावना होती है तो सेवा में सफलता अवश्य समाई होती है । जैसे बच्चे जब बाहर जाते हैं तो बड़ो का आशीर्वाद ले कर जाते हैं ताकि सफलता प्राप्त करे । इसी प्रकार वर्तमान सेवायों में भी यह एडीशन चाहिए । जब मन में शुभभावना शुभकामना रख सेवा पर जायेंगे तो सर्व आत्माओं की दुआयों के साथ सन्तुष्टता का अनुभव भी सेवा को फलदायी बना देगा ।
❉ सेवा में जब समर्पणता होती है अर्थात सेवा में जब सम्पूर्ण समर्पण का भाव निहित होता है तो यह समर्पण भाव एक तो संगठन में सहयोग की भावना ला कर अनेको आत्माओं की दुआयों का अधिकारी बनाता है और साथ ही साथ मन को भी असीम आनन्द और ख़ुशी की अनुभूति करवाता है । क्योकि सेवा में समर्पण भाव सेवा को सफलता के ऊँचे शिखर पर ले जाता है और सफलता की प्राप्ति आत्मा को अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति का अनुभव करा कर उसे तृप्त कर देती है ।
❉ जब स्वयं को निमित समझने के बजाए करावनहार समझने लगते हैं तो सेवा में सन्तुष्टता और ख़ुशी के बजाए एक बोझ और थकावट का अनुभव होता है जो सेवा में सफलतामूर्त नही बनने देता । लेकिन जब निमित पन की स्मृति में रह करनकरावन हार बाबा की छत्रछाया में स्वयं को अनुभव करते हुए सेवा के क्षेत्र में आते हैं तो बाबा का हाथ और साथ हर मुश्किल कार्य को सहज बना देता है । जिससे सेवा में सर्व की दुआये भी प्राप्त होती है और ख़ुशी की अनुभूति भी होती है ।
❉ एकाग्रता भी सेवा की सफलता को निर्धारित करती है । एकाग्रता आती है इच्छा मात्रम अविद्या बनने से । क्योकि कोई भी इच्छा मन बुद्धि को स्वतंत्र नही रहने देती । हद की इच्छाओ और कामनाओं को प्राप्त करने में ही मन बुद्धि भटकते रहते हैं जिससे बुद्धि को एकाग्र करना मुश्किल हो जाता है । एकाग्रता की कमी होने के कारण मन बुद्धि बेहद की सूक्ष्म सेवा नही कर पाते । इसलिए जब इच्छा मात्रम अविद्या बन कर सेवा करते है तो सेवा में सफलता सहज ही प्राप्त होती है जो सर्व की दुआयों और ख़ुशी का अनुभव करवाती है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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