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 15 / 07 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ इस दुनिया को बुधी से भूलने का अभ्यास किया ?

 

➢➢ टू मच ×धन की लालच× में तो नहीं गए ?

 

➢➢ बाप से व पढाई से ×रूठे× तो नहीं ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ मनमनाभव की स्थिति द्वारा मन के भावों को जाना ?

 

➢➢ सोते समय सब कुछ बाप हवाले कर खाली होकर सोये ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ लोकिक घर का वायुमंडल भी अलोकिक बनाए रखा ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - याद की यात्रा में कभी थकना नही, देहाभिमान के तूफ़ान थकाते है देहीअभिमानि बनो तो थक दूर हो जायेगा"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे मेरी यादो में कभी न थकना यही सच्चा सहारा बनेगी... यही तुफानो से बचा कर सुख भरी छाव दिलाएगी... ईश्वरीय यादे ही सच्ची है बाकि सब छलावा है... मिटटी के भान में आओगे तो बोझिल हो जाओगे... उड़ न सकोगे...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... आपकी मीठी यादो में आत्मा उड़ चली... हल्की होकर अनन्त ऊंचाइयों को पा चली हूँ... देह भान की मिटटी से मुक्ति पा चली हूँ... और यादो के सुख में खो चली हु...

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे यादो की यात्रा में शरीर समझ जो चलोगे तो थक जाओगे सुस्त हो जाओगे... जेसे भक्ति में पैर थक जाया करते थे... आत्मा पंछी को आत्मिक भाव में उड़ाओ... तो यह थकान सदा की मिट जायेगी... और यह यादे जनमो के थके तन मन को सदा का आराम सुख दे जाएँगी...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी सुनहरी यादो में सोने की रंगत को पाती जा रही हूँ... और देहि अभिमानी के सत्य स्वरूप में जीती जा रही हूँ... आनन्द और ख़ुशी के पंख लिए हल्की हल्की मै आत्मा बाबा की बाहों में झूल रही हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - मेरे सिकीलधे बच्चे ईश्वरीय यादो में गहरा डूब जाओ... और सारे खजानो को पाकर सदा का मुस्कराओ... देह भान की मिटटी में मैले न बनो... देहि अभिमानी श्रंगार से सज जाओ... और अनन्त सुख की ऊचाइयों पर उड़ चलो... और अथक बन जाओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा देह भान में फस कर कितनी बोझिल सी थक के टूट गयी थी... आपने प्यारे बाबा मेरे पेरो तले सुख का गलीचा बिछा कर अपनी यादो में बिठा फूलो सा अहसास देकर हल्का खुशनुमा बना उड़ा ही दिया है...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - अशरीरी अवस्था"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा परमपिता परमात्मा  शिव के सम्मुख हूं... शिव पिता की पावरफुल पावन दृष्टि पड़ने से मेरी सर्व कर्मेन्द्रियाँ जागृत होकर योगमुद्रा में स्थित हो रही हैं... नजर से निहाल होकर मैं आत्मा स्वयं को इस नश्वर शरीर से डिटैच होकर अशरीरी स्थिति में स्थित करने का अभ्यास कर रही हूं... स्वयं को पांच तत्वों की दुनिया से परे देख रही हूं... मैं आत्मा बस प्यारे बाबा की याद में हूं... मैं आत्मा बाबा की याद में रह पुरानी दुनिया को भूलती जा रही हूं... याद की यात्रा में रह मैं आत्मा अपनी अवस्था मजबूत बनाती हूं... मुझ आत्मा को इस पुराने शरीर से कोई मोह नही है... अब घर वापिस जाना है... अपने को आत्मा समझ व देहभान से न्यारा समझ हर कर्म करती हूं... मैं आत्मा बस बाप को और घर को याद करती हूं...

 

❉   "ड्रिल - एक बाप दूसरा न कोई"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा संगमयुगी ब्राह्मण हूं... मुझ आत्मा को  प्यारे शिव बाबा  बेहद के अविनाशी खजानों से भरपूर करते हैं... इसलिए मैं आत्मा विनाशी खजानों के पीछे अपना समय खराब नही करती हूं... बेहद की वैराग्यवृत्ति रखती हूं... मैं आत्मा सिर्फ शरीर निर्वाह हेतु ही धन कमाती हूं... प्यारे बाबा आपने मुझ आत्मा को अपना बनाकर सर्व सम्बंधों से अपनाकर अविनाशी खुशी प्रदान कर दी है... स्वार्थ भावना से भरपूर दैहिक रिश्ते नातों से मेरा कोई लगाव नही रहा है... मैं आत्मा सर्व सम्बंधों से सिर्फ और सिर्फ एक आपकी हूं... बस एक सच्चे आशिक की तरह एक माशूक की याद में ही रहती हूं... प्यारे बाबा आपही मुझ आत्मा के परमपिता, सुप्रीम शिक्षक भी हो... मुझे हर सम्बंध बस एक आप से ही निभाने हैं बाबा... बस आप ही मेरा संसार हो बाबा... मुझ आत्मा को ऐसी वंडरफुल ऊंच ते ऊंच रुहानी पढ़ाई पढ़ाते हो...

 

❉   "ड्रिल - बाबा को पोतामेल देकर सोना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा प्यारे शिव बाबा को सतगुरु के रुप में सच्चा सच्चा पोतामेल देती हूं... मैं आत्मा अपना सब कुछ बाबा को देकर बुद्धि को खाली कर हल्की हो रही हूं... मुझ आत्मा ने पूरे दिन की दिनचर्या का हाल बाबा को सुना दिया है... मैं आत्मा दिल की सच्चाई सफाई  से अपनी सर्व गल्तियों को बापदादा के समक्ष स्वीकार करती हूं... क्षमा के सागर प्यारे बाबा के मुझ आत्मा के क्षमा याचना पर मुझे दुलार करते हुए मुझे बोझ से मुक्त कर रहे हैं... मुझ आत्मा ने सब संकल्प बाबा को दे दिए है... अब मैं आत्मा इस देह को यहाँ छोड़ सूक्ष्म वतन में बाबा की गोद में विश्राम कर रही हूं... मुझ आत्मा को ना कोई व्यर्थ संकल्प ना कोई स्वप्न आते हैं... मुझ आत्मा की निद्रा योगयुक्त है...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं सफलता स्वरूप आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा परमपिता परमात्मा की सन्तान हूँ... मैं ज्योति बिंदु आत्मा हूँ... मेरे पिता परमात्मा दिव्य ज्योति-बिंदु स्वरुप हैं... रूप में बिंदु... गुणों में सिंधु हैं... सागर हैं... जन्म पुनर्जन्म से मुक्त हैं...

 

➳ _ ➳  विश्वकल्याणकारी हैं... शिवपिता ज्ञान के सागर हैं... सर्वशक्तिमान हैं... मैं आत्मा शान्तिधाम, ज्योति के देश में अपने परमप्रिय शिवपिता के संग सर्व गुणों का अनुभव कर रहीं हूँ...

 

➳ _ ➳  शिवबाबा आप मुझ आत्मा के माता पिता हैं... आपने मुझे अपना स्नेह देकर मेरी जन्म-जन्म की थकान को दूर कर दिया है... मैं आत्मा सदा आपकी याद में मग्न रहती हूँ... मैं आत्मा सदा मनमनाभव की स्तिथि में स्तिथ रहने वाली आपकी सन्तान हूँ...

 

➳ _ ➳  मनमनाभव की स्तिथि में स्तिथ रहकर मैं आत्मा औरों के मन के भावों को भी जानने का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा अन्य आत्माओं के बोल से भी अधिक उनके भाव को समझने लगीं हूँ...

 

➳ _ ➳  उनके भावों को समझ मैं आत्मा उनकी चाहना वा प्राप्ति की इच्छा को पूरी करने में निमित्त बनने का अनुभव कर रहीं हूँ... इससे वह आत्माएं भी पुरषार्थी बन गयीं हैं... बाबा ! आपके स्नेह वा ज्ञान द्वारा मैं आत्मा सर्विस में निरन्तर सफल होने का अनुभव कर रहीं हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा पुरषार्थी आत्मा की स्टेज को पार करने लगीं हूँ... मैं आत्मा सफलता स्वरुप अवस्था का अनुभव कर रहीं हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢ मनमनाभव की स्थिति द्वारा मन के भावों को जानने वाले सफलता स्वरुप होते हैं... क्यों और कैसे ?

 

❉   जो बच्चे मनमनाभव की स्थिति में रहते है, वह अन्यों के मन के भावों को जान लेते हैं। अपने मनको यथार्त रीति परमात्मा शिव में लगाने से परमात्म शक्तियाँ स्वतः ही हम में समाने लगती हैं, क्योंकि हमारा मन्त्र ही है मनमनाभव।

 

❉   बोल भले भी कुछ भी हों, लेकिन उसका भाव क्या है उसको वह पहचान जाते हैं। हमें सदा अन्यों के मनके भावों को जानने समझने का अभ्यास करते जाना चाहिये। जब अन्यों के मन के भावों को अच्छे से समझ जाते हैं तब उन की जो भी कमी कमजोरी होती है उसको निकालने में भी सहयोगी बन जाते हैं।

 

❉   हरेक के मन के भावों को समझने से उनकी जो चाहना होती है वा प्राप्ति की इच्छा है वह भी पूरी कर सकेंगे। ऐसा करने से वे भी अविनाशी प्राप्तियों के अधिकारी बन कर श्रेष्ठ पुरुषार्थी बन जायेंगे।

 

❉   हर आत्मा के श्रेष्ठ पुरुषार्थी बनने के पश्चात फिर सर्विस में भी सफलता दिखाई देने लगती है। सर्विस में यह परिवर्तन थोड़े दिनों में ही दिखाई देने लगता है इसलिए सबके मनके भावों को अच्छे से समझने के उपरान्त उनकी प्राप्ति की सभी इच्छाओं की पूर्ति करते रहने के अभ्यासी बनना है।

 

❉   वे अविनाशी पुरुषार्थी भी अब सबके सहयोगी बन जाते हैं और सर्विस की अनेक गतिविधियों में हमारे साथी बन कर सारे विश्व के कल्याण हेतु सर्विस में पुरुषार्थी स्वरूप बन जाते हैं और हम सफलतामूर्त बन जाते हैं।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢ सोते समय सब कुछ बाप हवाले कर खाली हो जाओ तो व्यर्थ वा विकारी स्वप्न नही आयेंगे... क्यों और कैसे ?

 

❉   बाप का फरमान है कि सोते समय सदा अपनी बुद्धि को क्लीन और क्लीयर करो । चाहे अच्छा चाहे बुरा सब कुछ बाप हवाले कर अपनी बुद्धि को खाली करो । बाप को सब कुछ दे कर स्वयं हल्के हो बाप के साथ सो जाओ तो व्यर्थ वा विकारी स्वप्न नही आएंगे । व्यर्थ व विकारी स्वप्न तब आते हैं जब बाप को भूल अकेले सोते हैं या व्यर्थ बातों का चिंतन करते हुए सोते हैं । यह भी एक प्रकार का अलबेलापन है । इस लिये बाप का फरमान है कि इस अलबेलेपन को छोड़ सदा बाप के साथ रहो ।

 

❉   बुद्धि से जब बाप पर पूरी तरह सरेन्डर हो जायेंगे । चलते - फिरते, उठते - बैठते बुद्धि में केवल यही रहेगा कि सब कुछ बाबा का है मेरा कुछ भी नही । जब मेरा कुछ है ही नही तो बुद्धि कहीं जा नही सकती । बस एक बाबा और बाबा की याद । जब दिन रात बुद्धि में केवल यही ख्याल रहेगा तो सोते समय भी स्वयं को अकेला अनुभव नही करेंगे । बाबा के साथ सोयेंगे और सोते समय सब कुछ बाप हवाले कर मन बुद्धि को बिलकुल फ्री कर लेंगे तो व्यर्थ वा विकारी स्वप्न कभी भी नही आयेंगे ।

 

❉   व्यर्थ वा विकारी स्वप्न तब आते है जब कर्मेन्द्रियाँ चलायमान होती है । और कर्मेन्द्रियाँ चलायमान इस लिए होती है क्योकि आत्मा अपने अधिकारी पद से नीचे उतर आती है और भूल जाती है कि मैं आत्मा इन कर्मेन्द्रियों की राजा हूँ । यह विस्मृति ही आत्मा को कर्मेन्द्रियों का गुलाम बना कर आत्मा से विकर्म कराती है । विकारी चिंतन चलने से सोते समय भी व्यर्थ वा विकारी स्वप्न आते हैं जो कि अपिवत्रता है । इसलिए बाबा समझाते हैं कि व्यर्थ चिंतन से स्वयं को मुक्त कर सब कुछ बाप के हवाले कर बाप के साथ सोओ तो व्यर्थ वा विकारी स्वप्न नही आएंगे ।

 

❉   मनोवैज्ञानिको का भी यह मानना है कि पूरे दिन की दिनचर्या का प्रभाव रात को नीद में दिखाई देने वाले स्वप्नों पर अवश्य पड़ता है । अगर हम सारा दिन  बाबा को भूल देह और देह की दुनिया में, दैहिक आकर्षणों, दुनियावी पदार्थो में मन बुद्धि को लगाये रखते हैं । तो रात को स्वप्न में भी यही चीजे मन बुद्धि को अपनी तरफ आकर्षित करती है और नींद में यही व्यर्थ और विकारी स्वप्न दिखाई देते हैं । इसलिए इन व्यर्थ और विकारी स्वप्नों से मुक्त होने का उपाय है व्यर्थ चिंतन से स्वयं को मुक्त कर सदा मनमनाभव हो कर रहना और सोते समय भी बाबा के साथ सोना ।

 

❉   स्वयं को जब ग्रहस्थी समझते हैं तो बुद्धि भारी होती है और व्यर्थ चिंतन चलता है । इसलिए सोते समय स्वप्न भी व्यर्थ विकारी आते हैं किन्तु जब ग्रहस्थी के बजाए स्वयं को ट्रस्टी समझते हैं तो सब जिम्मेवारी बाप की हो जाती है । क्योकि सम्पूर्ण समर्पण भाव से सब कुछ बाप को समर्पित कर मेरा को तेरा में परिवर्तन कर , सारे बोझ बाप को दे स्वयं हल्के हो जाते हैं । निरन्तर एक बाप की याद में रह हर कर्म निमितपन की स्मृति मे करने से रात को भी बाबा की छत्रछाया के नीचे स्वयं को अनुभव करते हैं । और बाबा के साथ सोने से व्यर्थ वा विकारी स्वप्नो से बचे रहते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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