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   21 / 03 / 16  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ देह और देहधारियों से °बुधी का योग° हटा एक बाप से लगाए रखा ?

 

‖✓‖ °कर्म करते° एक बाप की याद में रहे ?

 

‖✓‖ याद की यात्रा में °रेस° की ?

 

‖✓‖ °तपस्या° के बल से असंभव को भी संभव कर सफलतामूर्त बनकर रहे ?

 

‖✓‖ कदम कदम पर °सर्जन से राय° ली ?

 

‖✗‖ बाप से कुछ भी °छिपाया° तो नहीं ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ रहमदिल की भावना द्वारा °अपकारी पर भी उपकार° किया ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

‖✓‖ °‘पास्ट इज पास्ट'° कर ख़ुशी के गीत गाते रहे ?

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∫∫ 4 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - याद की यात्रा में रेस करो तो पूण्य आत्मा बन जायेंगे,स्वर्ग की बादशाही मिल जायेगी"

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों जितना दिली यादो में मुझे बसाओगे उतना ही निखरते जाओगे... सारे पापो को पूण्य बना सोने सा दमकाउंगा... जन्नते बहार से दामन सजाऊंगा... आ जरा यादो में तूफानी जोश जगाओ...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मेरे लाडलो...  ईश्वरीय प्रेम को यादो में जरा भीग जाओ...  इस प्रेम के प्याले में मदमस्त हो जाओ... सारे पूण्य जाग्रत हो जायेंगे और स्वर्ग की बादशाही से तेरा दामन सजायेंगे... आओ मेरे प्यार में समा जाओ...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मीठे बच्चों मेर्री यादो के साये ही...  जीवन को रूहानी गुलाब बना महकायेंगे... यह खुदाया प्रेम ही सारी खुशियो का राज है.... इसे जूनून की तरह दिल में समाओ तो जीवन सुखो की खान बन जायेगा... यह स्वर्ग और यह बादशाही से आँचल जगमगाएगा...

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चों सारे रिश्तों से प्रेम कर देख लिया... अब मुझसे प्रेम करके जरा देख...  मेरी यादो के समन्दर में खुद को डुबो के तो देख... जीवन पारस बन हीरो सा सज जायेगा... 

 

 ❉   मेरा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों...  बाहें फैला जो दिल से गले लगाओगे...  मै पिता आपके नन्हे जोशीले कदमो पर फ़िदा हो जाऊंगा... इस जुनूनी अदा पर तो कुर्बान हो जाऊंगा... फ़रिश्ता से देवता बना सोने सा दमकाउंगा...  इस कदर प्यार तो मै बाप स्वर्ग को बलिहार कर सब कुछ बच्चों को सौप जाऊंगा...

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∫∫ 5 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-15)

 

➢➢ देह और देहधारियों से बुद्धि का योग हटाकर एक बाप से लगाना है ।

 

  ❉   अभी तक देह और देहधारियों में ही मोह रख दुख ही पाते रहे व रौरव नरक में पड़े रहे । अभी संगमयुग पर बाप ने स्वयं हमें इस नरक से निकाला तो अब हमें अपनी बुद्धि बाप से ही लगानी है ।

 

  ❉   ये दुनिया व शरीर तो विनाशी है व कब्रदाखिल होनी है इसलिए इस संसार में देखते हुए भी नही देखना, सुनते हुए भी नही सुनना । बस अपने को आत्मा समझ परम आत्मा को याद करना है ।

 

  ❉   अभी तक तो संसार में अन्य लोग जो कर रहे थे वही हम करते आए । अब भगवान ने हमें अपना बनाया है व हम भगवान के बच्चे हैं । तो जो बेहद का बाप हमें कहता है वही करना है - मनमनाभव ।

 

  ❉   कहा भी गया है - हथ कार डे दिल यार डे । यानि हाथों से भल कर्म करते रहो पर दिल व बुद्धियोग बस एक बाप से जुडा हो । हरपल बस बाबा की याद हो । ऐसा पुरुषार्थ कर अविनाशी बाप की याद में रहना है ।

 

  ❉   जिस बेहद के बाप ने हमें काँटों से फूल बनाया, विकारों से निकाल शीतल छाया में बिठाया, दुःख के आंसू पौंछ खुशियों से जीवन भरपूर किया , जन्मजन्मांतर की प्यास बुझाई ... ऐसे बाप की याद में रहना है ।

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∫∫ 6 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-15)

 

➢➢ रहमदिल की भावना द्वारा अपकारी पर भी उपकार करने वाले शुभचिंतक होते हैं... क्यों और कैसे ?

 

  ❉   रहमदिल की भावना वाले कोई भी हो चाहे सतोगुणी हो, चाहे तमोगुणी सम्पर्क में आते सभी के प्रति शुभचिंतक रहते हैं । चाहे कोई आत्मा घृणा की दृष्टि रखे तो भी यही चिंतन रहता कोई नही ये आत्मा अज्ञानता के कारण या अपने कमजोर संस्कार के कारण ऐसा करती है ।

 

  ❉   रहमदिल की भावना द्वारा वह हर आत्मा के प्रति कल्याण की भावना रखते है कि जैसे बाप से मिलकर हमारा कल्याण हुआ व बाप ने हमें विश्व कल्याणकारी की जिम्मेवारी दी तो हमें भी सर्व का कल्याण करना है । ऐसी भावना रखने वाले शुभ चिंतक होते हैं ।

 

  ❉   रहमदिल की भावना होने से किसी के बुरा करने पर भी वह उसमें बुराई न देखते हुए अच्छाई ही देखते हैं व क्यूं , क्यों ऐसा किया या कहा ऐसा नहीं देखते । उसकी अच्छाई का वर्णन करते हुए उसे सहयोग देकर आगे ही बढ़ाते हैं व शुभ चिंतक होते हैं ।

 

  ❉   बाप से कनेक्शन जुड़ा रहने से बाप के प्यार से सदा भरपूर होते हैं । इसलिए बस यही रहता कि देना ही देना है क्योंकि बेहद बाप के बच्चे हैं व सम्पन्न हैं । किसी की बात को चित्त पर नहीं धरते व किसी की कमजोरी को बड़े तरीके से दूर कराकर हमेशा शुभ भावना देने वाले शुभचिंतक होते हैं ।

 

  ❉   जो बच्चे सदा बाप के श्रीमत का हाथ व साथ अनुभव करते हैं व बाप का दिया हुआ वर्सा अपना बना लेते है तो सर्वप्राप्तियों से सम्पन्न, स्वभाव में भी सम्पन्न, संस्कार में भी सम्पन्न होने से रहमदिल की भावना से हर आत्मा के प्रति शुभ चिंतक होते हैं ।

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∫∫ 7 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ तपस्या के बल से असम्भव को सम्भव कर सफलता मूर्त बनो... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   आत्मा में जितना तपस्या का बल जमा होता जाता है उतनी संकल्पों में दृढ़ता आती जाती है जो आत्मा को सिद्धि स्वरूप बना देती है और सिद्धि स्वरूप आत्मा अपनी सिद्धि की विधि से, एकाग्रचित हो कर असम्भव से असम्भव कार्य को भी सम्भव बना कर उसमे सफलता प्राप्त कर लेती है ।

 

 ❉   तपस्या का बल आत्मा को ' कम खर्च बाला नशीन ' बनाता है जिससे वह समय रूपी खजाने, संकल्पों के खजाने तथा स्थूल खजाने में ' कम खर्च बाला नशीन ' बन हर कर्म में, हर संकल्प और बोल में तथा सम्बन्ध वा संपर्क में उचित बैलेंस रखता हुआ हर असम्भव कार्य में भी सफलता प्राप्त करता जाता है ।

 

 ❉   जैसे साइंस के साधन धरती पर बैठे हुए भी स्पेस में गए हुए यंत्र को कण्ट्रोल कर सकते हैं उसी प्रकार तपस्या के बल से आत्मा सेकण्ड में संकल्प शक्ति के प्रयोग से शक्ति स्वरूप बन हर असम्भव कार्य को भी सम्भव बना कर सफलतामूर्त बन जाती है ।

 

 ❉   तपस्या का बल बुद्धि को विशाल और दूरांदेशी बनाता है और विशाल बुद्धि आत्मा दूरदर्शी बन आने वाली समस्या को पहले से ही समझ जाती है और अपनी तीक्ष्ण बुद्धि के बल पर उस समस्या का समाधान कर हर असम्भव कार्य को सम्भव कर उसमे सहज ही सफलता प्राप्त कर लेती है ।

 

 ❉   किसी भी असम्भव कार्य को सम्भव करने के लिए जरूरी है स्थिति का पॉवरफुल होना और पॉवरफुल स्टेज का अनुभव आत्मा तभी कर सकती है जब तपस्या के बल से वह अपने अंदर की सोई हुई शक्तियों को पुनर्जागृत कर लेती है और अपनी इन्ही शक्तियों के बल से वह असम्भव कार्य को भी सम्भव बना कर उसमे सफलता प्राप्त कर लेती है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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