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 26 / 07 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ कर्म अकर्म विकर्म की गति को जान श्रेष्ठ कर्म किये ?

 

➢➢ ज्ञान दान कर धर्मात्मा बनकर रहे ?

 

➢➢ "यह वानप्रस्थ अवस्था है" - यह स्मृति रही ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ आसक्ति को अनासक्ति में परिवर्तित किया ?

 

➢➢ निस्वार्थ और लगावमुक्त रहम किया ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ बाप से व ब्राह्मण परिवार से ×सोदेबाज़ी× तो नहीं की ?

 

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➳ _ ➳  http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/26.07.16-VisheshPurusharth.pdf

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - तुम्हे बाप समान सच्चा सच्चा पैगम्बर और मेसेंजर बनना है और सबको घर चलने का मेसेज देना है"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे विश्व पिता ने आकर सच्चे ज्ञान प्रकाश से जनमो के अंधेरो को मिटाया है... और आप आत्मा हो यह सदा का नूर स्मर्तियो में सजाया है... यही पिता समान जादूगरी आप बच्चे भी कर दिखाओ... दुखो से तड़फते मेरे और भी बच्चों को यह पैगाम जरा बता आओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा... सच्चे नूर को आपसे पाकर सदा की चमक उठी हूँ.... यह सच्ची ख़ुशी को मै आत्मा मेसेंजर बन सारी दुनिया में बाँट रही हूँ... सबको खुशियो का पता दिए चली जा रही हूँ...

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे मेरे सिकीलधे बच्चे आप राह न बताओगे तो भला मेरे और बच्चों का भला कैसे होगा... आप न आँसू पोछेंगे तो उनका दर्द कैसे दूर होगा... तो सच्चा पेंगम्बर बन सबको तकलीफो से मुक्ति दिलाओ... प्यारा पिता आ चला है सबके मन पर यह मीठी दस्तक दे आओ...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा पैगम्बर बन चली हूँ... सारे जहान को मीठे पिता का परिचय देने के लिए दृढ़संकल्प ले चली हूँ... इस धरा को दुखो से मुक्त करा खुशियो से भरने का बीड़ा उठा चुकी हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे बच्चे... धरती से लेकर आसमाँ तक गूंजा दो की भगवान धरती पर आ चला है... अब दुखो की कालिमा से निकल सुखो के उजाले के सुंदर दिन आ चले है... सच्चे पिता संग अपने मीठे घर को जाना है और श्रंगारित हो धरा पर मुस्कराना है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सच्चे पिता के सच्चे सन्देश को हर दिल को सुना रही हूँ... मीठे घर में पावन होकर चलना है... यह बात सबके दिलो में समा रही हूँ.... मीठे बाबा से मिले सुख को सर्वत्र बता रही हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - कर्म-अकर्म और विकर्म की गति"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अभी तक अज्ञानता के घोर अंधकार में थी... मेरे प्यारे बाबा ने मुझे विकारों की दुबन से निकाल मुझ आत्मा को अपना बनाया... मुझ आत्मा को असली स्वरुप व अपने सच्चे पिता का परिचय दिया... मुझ आत्मा को कर्म अकर्म विकर्म का ज्ञान दिया... कर्मो की गुह्य गति का ज्ञान दिया... अभी तक जो मुझ आत्मा से हुआ अज्ञानता में हुआ... मुझ आत्मा को ज्ञान मिलने पर इस संगमयुग में अपने पुराने कर्मो के हिसाब किताब चुकतू करने हैं... मुझ आत्मा को अब कोई नए कर्मबंधन नही बनाने है... मैं आत्मा प्रकृति से, तन से व कोई भी परिस्थिति आने पर घबराती नही हूं... अब मैं आत्मा कर्मो की गति को जान गई हूं... मै आत्मा हर कर्म बाबा की याद में रह कर करती हूं... बाबा की याद में किया हर कर्म श्रेष्ठ कर्म करती हूं...  मैं आत्मा ज्ञान रत्नों को अच्छे से धारण करती हूं... स्वयं धारण कर ज्ञान धन का दान करती हूं...

 

❉   "ड्रिल - पावन बन ही पावन दुनिया में जाना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा मन और मुख की आवाज से परे शांति की दुनिया में हूं... बाहरी सभी बातों से परे मैं आत्मा अपने ही अंतर्मन में झांकते अपनी विकारों को मिटाने के लिए एक बाप की याद में अनुभव कर रही हूं... 63 जन्म लेते देहभान में आकर मुझ आत्मा की ये अवस्था हो गई है... मैं आत्मा अपने ओरिजनल स्वरुप को ही भूल गई... ये मुझ आत्मा का अंतिम जन्म है... मुझ आत्मा के परमपिता परमात्मा स्वयं वापिस ले जाने के लिए आए है... मुझ आत्मा को नयी सतोप्रधान दुनिया में जाना है... इसलिए मुझ आत्मा को इस अंतिम जन्म में पावन जरुर बनना है... मेरे प्यारे बाबा से निकलती ज्वाला स्वरुप किरणें मुझ आत्मा में भरे हुए विकर्मों रुपी कचड़े को जलाकर से भस्म कर रही हैं... मैं आत्मा सच्चे सोने में परिवर्तित हो रही हूं... मैं आत्मा पावन बन पावन दुनिया में जाने लायक बन रही हूं... मैं आत्मा सर्व को संदेश देती हूं कि नयी दुनिया सतोप्रधान है... संगमयुग की पावन बेला में पावन बन अपने पावन घर जाना है... अब घर जाना है...

 

❉   "ड्रिल - निःस्वार्थ और लगावमुक्त"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा सर्व की सहयोगी हूं... मैं आत्मा सर्व के प्रति आत्मिक भाव रखती हूं... आत्मा आत्मा भाई की दृष्टि रखती हूं... सर्व मेरे रुहानी भाई है... मेरे परमपिता परमात्मा विश्वकल्याणकारी है... मुझ आत्मा को भी आप समान मास्टर विश्वकल्याणकारी बनाते हैं... मुझ आत्मा को दिव्य ज्ञान व दिव्य दृष्टि मिलने से मैं आत्मा बाहरी आकर्षण से लगावमुक्त हूं... मैं आत्मा प्यारे बाबा से अनकंडीशनल प्यार पाकर गदगद होती हूं, भरपूर होती हूं... प्यारे बाबा से मिले सर्व खजानों से भरपूर होकर मैं आत्मा सर्व को निस्वार्थ भाव से सहयोग देती हूं... मुझ आत्मा के  सर्व सम्बंध बस बाबा से हैं... देहधारियों से लगाव रखते 63 जन्म बस दुःख ही पाए हैं... इसलिए मैं आत्मा अब देहधारियों से व विनाशी दुनिया से लगाव मुक्त हूं... मैं आत्मा अपने सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को सम्मान व सहयोग देकर आगे बढ़ती हूं... मैं आत्मा दुखी अशांत आत्माओं के प्रति आत्मिक भाव रखते हुए रहम करती हूं... और सुख शांति की वायब्रेशनस देती हूं... मैं आत्मा किसी के प्रति स्वार्थ की भावना से रहम नही करती हूं... मैं रहमदिल आत्मा हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं शक्ति स्वरुप आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳   मैं आत्मा देह के सर्व बन्धनो से मुक्त हूं... झूठे और विनाशी बन्धनों से मुक्त हूँ... माया के सूक्ष्म और रॉयल रुप से भी मुक्त हूँ... मुझ आत्मा को बेहद का बाप मिला है... मै आत्मा  बेहद के वर्से की अधिकारी हूं... स्वयं परमात्मा शिव परमात्मा मुझ आत्मा को अविनाशी खजानों से भरपूर कर रहे है...

 

➳ _ ➳  हर कदम पर मुझ आत्मा का साथ निभाते हैं... मुझ आत्मा को पत्थर से पारस बुद्धि बना रहे हैं... मनुष्य से देवता बना रहे हैं... स्वयं पढ़ाकर स्वर्ग की बादशाही दे रहे हैं... मुझ आत्मा में परमात्म पालना से श्रेष्ठ संकल्प व श्रेष्ठ चिंतन चलता है...

 

➳ _ ➳  मुझ आत्मा के संस्कार परिवर्तन हो गए हैं... मै आत्मा हद के  मान शान की इच्छा से परे रॉयल माया से मुक्त स्थिति का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं शक्तिस्वरूप आत्मा आसक्ति को अनासक्ति में बदल रहीं हूँ... मैं आत्मा माया के हर रूप को पहचान गयी हूँ...

 

➳ _ ➳   मैं आत्मा देह, देह के सम्बन्धों और देह के कोई भी पदार्थ में आसक्ति न रखने वाली अनासक्त आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं अनासक्त आत्मा माया के विघ्नों पर सहजता से ही जीत प्राप्त कर रहीं हूँ...

 

➳ _ ➳   मैं आत्मा किसी भी विघ्न के आने पर चिल्लाने या घबराने की बजाए शक्ति रूप धारण कर लेने का दिव्य अनुभव कर रहीं हूँ... मैं शक्तिसम्पन्न आत्मा विघ्न-विनाशक होने की सर्वश्रेष्ठ अवस्था का निरन्तर अनुभव कर रहीं हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  आसक्ति को अनासक्ति में परिवर्तन करने वाले शक्ति स्वरूप होते हैं...  क्यों और कैसे?

 

❉   आसक्ति का अनासक्ति में परिवर्तित करने वाले शक्ति स्वरूप होते हैं क्योंकि आसक्ति कमजोरी की निशानी है। और अनासक्ति शक्ति स्वरूप की। अगर हमें शक्ति स्वरूप बनना है तो अनासक्त भाव को अपनाना चाहिये, क्योंकि अनासक्त भाव में स्थित व्यक्ति सदा शक्ति स्वरूप होता है।

 

❉   हमें शक्ति स्वरूप बनने के लिये, अपनी आसक्ति को अनासक्ति में परिवर्तित करना होगा। चूँकि आसक्ति एक विकार है। यह देह-अभिमान के कारण हममें आ जाती है। अगर अपनी देह में या देह से सम्बन्धित पदार्थों में या देह से सम्बंधित सम्बन्धों में आसक्ति आ जाती है तो समझो माया भी तुरन्त ही आ जायेगी।

 

❉   माया के आ जाने से मन में एक एक करके सभी विकार आने लगते है। क्योंकि माया को रास्ता नजर आ जाता है। इसलिए माया के रहते आसक्ति समाप्त नहीं हो सकती है और आसक्ति समाप्त नहीं होगी तो हम शक्ति रूप भी नहीं बन सकते हैं। 

 

❉   इसलिये सब से पहले हमें अपने आप को अनासक्त भाव टिकाना है। जब हमें अनासक्त भाव में टिकने का अच्छे से अभ्यास हो जायेगा, तब हम माया के विघ्नों का सामना भी कर सकेंगे।

 

❉   माया के विघ्नों के आने पर हमें चिल्लाने और घबराने की आवश्यकता नहीं है। घबराने और चिल्लाने की बजाय हमें शक्ति रूप धारण कर लेना है। अगर शक्ति रूप धारण कर लेंगे तो हम विघ्नविनाशक स्वरूप भी बन जायेंगे।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢ रहम निःस्वार्थ और लगावमुक्त हो - स्वार्थ वाला नही... क्यों और कैसे ?

 

❉   दूसरों पर निस्वार्थ भावना से रहम तभी कर पाएंगे जब बाप समान निष्काम सेवाधारी बनेंगे । जैसे बाबा अपकरियों के लिए भी सदा उपकारी हैं वैसे ही हमारे सामने भी कैसे ही स्वभाव - संस्कार वाली आत्मा आये किन्तु अपने रहम की वृति से, शुभभावना से उसे परिवर्तित कर दें । जैसे साइंस वाले रेत में खेती पैदा कर सकते है ऐसे ही सर्व आत्माओं को अपनी शुभ भावना से परिवर्तन करने का दृढ संकल्प कर जब सेवा में आएंगे और लगावमुक्त हो कर तथा निस्वार्थ भाव से सेवा करेंगे तो सेवा में सफलता सहज ही प्राप्त कर सकेंगे ।

 

❉   किसी भी सेवा में सफलता का मुख्य आधार है ही निस्वार्थ और लगावमुक्त रहम भाव अर्थात  कल्याणकारी वृति । जो भी सेवा करें उसमें सर्व आत्माओं के सहयोग की भावना हो, खुशी की भावना वा सद्भावना हो तो सेवा में सफलता अवश्य प्राप्त होगी । यदि स्वार्थ वश अर्थात हद के नाम, मान और सम्मान को प्राप्त करने की इच्छा मन में रखते हुए दूसरों पर रहम का भाव दिखाते हैं या किसी लगाव के कारण किसी आत्मा का कल्याण करना चाहते हैं तो सेवा में सफलता प्राप्त नही कर पाएंगे ।

 

❉   किसी स्वार्थ को पूरा करने के उद्देश्य से अर्थात किसी इच्छा के वशीभूत हो कर किसी आत्मा पर रहम दिखाना सच्ची सेवा नही है । क्योकि ऐसी सेवा  मन बुद्धि को हद की इच्छाओं और कामनाओ से मुक्त नही होने देती । हद की इन इच्छाओं को प्राप्त करने में ही मन बुद्धि भटकते रहते हैं जिससे बुद्धि को एकाग्र करना मुश्किल हो जाता है । एकान्त और एकाग्रता की कमी होने के कारण मन बुद्धि बेहद की सूक्ष्म सेवा नही कर पाते और छोटी सी परिस्थिति आते ही हलचल में आ जाते हैं । इसलिए सेवा में सफलता की प्राप्ति नही हो पाती ।

 

❉   किसी भी आत्मा के प्रति रहम की भावना में यदि कोई स्वार्थ भाव है या कोई लगाव - झुकाव है तो यह लगाव झुकाव आत्मा को  मनमनाभव की स्थिति में स्थित नही रहने देता । कोई ना कोई हद की इच्छा को पाने के लिय मन सदैव भटकता रहता है । इन इच्छाओं को पूरा करने के लिए ही व्यक्ति फिर देह और देह की दुनिया के आकर्षणों में और हद की प्राप्तियों में उलझा रहता हैं । अल्पकाल की विनाशी प्राप्तियों की इच्छा उसे केवल अल्पकाल की ख़ुशी ही दे पाती है । सदाकाल के अलौकिक सुख का अनुभव वह कभी नही कर पाता ।

 

❉   जैसे वाणी द्वारा आत्माओं को स्नेह के सहयोग की भावना का अनुभव कराते हैं ऐसे जब रहमदिल बन लगावमुक्त हो कर, बेहद की शुभभावना और स्नेह की भावना की स्थिति में स्वयं स्थित होंगे तो जैसी हमारी भावना होगी वैसी ही भावना अन्य आत्माओं में उत्पन्न कर सकेंगे । हमारी निस्वार्थ रहम की वृति उनके अंदर स्नेह की भावना को प्रज्ज्वलित करेगी । जैसे दीपक, दीपक को जगा देता है ऐसे हमारी शक्तिशाली रहम की वृति और शुभ भावना निराश और थकी हुई आत्माओं को सहारे का अनुभव कराएगी ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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