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 25 / 07 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ ज्ञान और योग पर पूरा पूरा अटेंशन दिया ?

 

➢➢ सुनते समय बहुत शांत और एकाग्रचित होकर बैठे ?

 

➢➢ स्वदर्शन चक्रधारी बनने के साथ साथ ×ज्ञान शंख× भी बजाया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ जिम्मेवारी सँभालते हुए आकारी और निराकारी स्थिति का अभ्यास किया ?

 

➢➢ देह व देह अभिमान की आकर्षण से मुक्त हो सच्चे रहमदिल बनकर रहे ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ दयालु व कृपालु आत्मा बनकर रहे ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - अब तुम्हे नयी दुनिया में चलना है यह दुःख के दिन पूरे हो रहे है इसलिए पुरानी बीती हुई बातो को भूल जाओ"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे अब यह दुःख भरा सफर पूरा हुआ अब दुःख की बाते भूल चलो... अब खूबसूरत दुनिया में चलने के दिन आ चले है... बस पावन हो घर चलना और फिर सुखो में उतरना है... इन दुखो से अब कोई नाता नही... खुशियो भरा जहान सामने खड़ा है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा... आपकी मीठी यादो में बैठकर सारे कष्टो को ही भूल रही हूँ.... मीठे याद के झरने में सारी कड़वी यादो को बहा चली हूँ.... और नयी दुनिया को यादो में भर चली हूँ...

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे.... कितने खूबसूरत खिले फूलो से घर से चले थे... चलते चलते दुखो के धाम में फस गए... मीठा बाबा अपने फूलो की दशा देख धरा पर ही आ चला है... अब ये दर्द भरी दास्ताँ को सदा का भूलो... और उन सच्चे सुखो को याद करो...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मुझ आत्मा की वेदनाएं और दर्द भरा जीवन ही मेरी हकीकत हो चले थे.... आपने आकर मुझे मेरे सत्य का अहसास दिया है... देह की मिटटी से मै आत्मा अब निकल चली हूँ... सब कुछ भुला कर सुन्दरतम यादो सुखो में खोती जा रही हूँ....

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे बच्चे... सारे भोगे गए कष्टो को काले दुख भरे सायो को स्वप्न की तरहा विस्मर्त कर चलो... खुशियो और सुखो से भरी दुनिया पर आप बच्चों का अधिकार है... अब यहाँ और रहना नही... मीठा बाबा दुखो से निकाल हाथ पकड़ कर सुखो के महलो में बिठाने आ चला है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा गमो से निकल गयी हूँ.... आपकी सुखद यादो में सुखी हो गयी हूँ... पुरानी बाते नाते और दुखो के भम्र से मुक्त हो गयी हूँ... और नई खूबसूरत दुनिया के ख्वाबो में डूब चली हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - ज्ञान और योग पर अटेंशन देना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा भृकुटि सिंहासन पर विराजमान हूं... अपने प्यारे परमपिता परमात्मा के सम्मुख हूं... मेरे परमपिता शिव बाबा ज्ञान के सागर हैं... मुझ आत्मा को सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान देते है... ये ज्ञान प्यारे बाबा के सिवाय कोई दूसरा दे नही सकता... मुझ आत्मा की बुद्धिरुपी झोली ज्ञान रत्नों से भरपूर करते हैं... मैं आत्मा ज्ञान रत्नों को धारण करती हूं... ये ज्ञान रत्न बेशुमार कीमती हैं... मैं आत्मा अपने प्यारे बाबा की याद में रहती हूं... मैं आत्मा को योगबल से विकारों का नाश करती हूं... मैं आत्मा एकाग्रचित होकर प्यारे बाबा के महावाक्य सुनती हूं... मैं अपने आत्मिक स्वरुप में बैठ ज्ञान रत्न धारण करती हूं... मैं आत्मा अपने स्वधर्म में स्थित हूं... मेरे प्यारे बाबा हर कदम पर मेरे साथ है... मैं आत्मा हर कर्म बाबा की याद में करती हूं... करनकरावनहार मेरा बाबा है...  मैं आत्मा कर्म के प्रभाव से न्यारी होकर कर्म करती हूं... मैं आत्मा कर्मयोगी हूं...

 

❉   "ड्रिल - स्वदर्शन चक्रधारी बनना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा ऊपर से नीचे की चकाचोंध देख खेलने के लिए नीचे आ गई... मैं आत्मा दुनियावी माया में फंसकर व देहभान में आकर विकारों में गिरती चली गई... मैं आत्मा अपने घर को ही भूल गई... मैं आत्मा दुःखी व पतित बन गई... मेरे प्यारे बाबा से अपने बच्चों का दुःख नही देखा गया... मेरे प्यारे बाबा ही अपने बच्चों को लेने के लिए आए हैं... प्यारे शिव बाबा ने ही आकर मुझ आत्मा को सृष्टि के आदि मध्य अंत का सम्पूर्ण ज्ञान दिया है... वापिस घर जाने का रास्ता बताया है... ऐसे ही मुझ आत्मा को ओरों को रास्ता बताना है... माया का परछाया पड़ जाने से अपने अनादि सो आदि स्वरुप को भूल गई थी... अब संगमयुग पर परमात्मा शिव बाबा मुझ आत्मा को श्रीमत देकर सतोप्रधान बनाने की शिक्षा दे रहे हैं... मैं आत्मा प्यारे बाबा की दी हुई शिक्षाओं को धारण कर स्व पर अटेंशन देती हूं... स्व का ही दर्शन करती हूं... मैं आत्मा स्वदर्शन चक्रधारी हूं... मैं आत्मा ज्ञान धन का दान देती हूं...

 

❉   "ड्रिल - देह अभिमान के आकर्षण से मुक्त"

 

➳ _ ➳•  मैं आत्मा भृकुटि के मध्य में विराजमान शरीर को चलाने वाली एक चैतन्य शक्ति हूं... मैं आत्मा अपनी बुद्धि रुपी आँखों से अपने मीठे प्यारे बीजरुप शिव बाबा को देख रही हूं... मीठे बाबा सर्व गुणों के सिंधु हैं... रहम के सागर हैं.. रहमदिल के सागर की संतान मैं आत्मा मास्टर रहमदिल हूं... मैं आत्मा अपने सम्बंध सम्पर्क में आने वाले को आत्मिक दृष्टि से देखती हूं... आत्मा आत्मा भाई भाई का भाव रखती हूं... मैं आत्मा देह व देह के आकर्षण से परे  हूं... मैं देह अभिमान के आकर्षण से परे रहमदिल आत्मा हूं... मुझ आत्मा के परमपिता शिव बाबा मुझ आत्मा की रोज कितनी गल्ती करने पर भी  मुझ आत्मा को हमेशा प्यार से मीठे बच्चे लाडले बच्चे कहकर प्यार देते है... मुझ आत्मा की गल्ती को माफ करते हमेशा गले से लगा आगे बढ़ाते हैं... ऐसे ही मैं आत्मा सर्व के प्रति साक्षी भाव रखते हुए बाप समान रहमदिल बनती  हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं साक्षाक्तकारमूर्त आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा सहज राजयोगी राजा हूँ... मैं आत्मा इस शरीर की मालिक हूँ... देहि अभिमानी हूँ... मैं आत्मा बाप समान सम्पूर्ण निर्विकारी हूँ... मैं आत्मा स्वरूप में बाप के साथ चमकती मणि हूँ... मेरे अंग-अंग शांत शीतल पवित्र पावन सुखदाई बनते जा रहे हैं...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा मायाजीत जगतजीत हूँ... मैं सर्व अधिकारी आत्मा हूँ... मैं आत्मा निराकार परमपिता परमात्मा बाप का वारिस बच्चा हूँ... मैं आत्मा बाप के साथ चमकती विशेष ज्योति हूँ... मैं आत्मा अपने पिता को सम्पूर्ण रूप में फॉलो करने वाली आत्मा हूँ...

 

➳ _ ➳  जैसे साकार रूप में इतनी बड़ी ज़िम्मेवारी होते हुए भी बाबा आकारी और निराकारी स्तिथि का अनुभव करवाते रहें, उसी प्रकार मैं आत्मा भी साकार रूप में फ़रिश्ते पन की अनुभूति करवाने वाली फॉलो फादर करने वाली आत्मा हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि कोई भी आत्मा कितनी भी अशांत वा बेचैन या घबराई हुई मुझ आत्मा के सामने आती हो तो उस समय मेरी दृष्टि, वृति और स्मृति की शक्ति उन आत्माओं को बिलकुल शांत कर रहीं हैं...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा व्यक्त भाव में मेरे पास आने वाली समस्त आत्माओं को अव्यक्त स्तिथि का निरन्तर अनुभव करवा रहीं हूँ... मैं आत्मा इन श्रेष्ठ संकल्पों में समाकर साक्षात्कारमूर्त अवस्था का अनुभव कर रहीं हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  जिम्मेदारी सम्भालते हुए आकारी और निराकारी स्थिति का अभ्यास करने वाले साक्षात्कार मूर्त होते हैं...  क्यों और कैसे?

 

❉   अपनी सभी जिम्मेवारियों को सम्भालते हुए ही हमें आकारी और निराकारी स्थिति का अभ्यास करने वाले साक्षात्कारमूर्त बनना है। जैसे बाबा साकार रूप में इतनी बड़ी जिम्मेवारी होते हुए भी आकारी और निराकारी स्थिति का हमें अनुभव कराते रहे उसी प्रकार हमें भी सभी को अनुभव करवाना है तथा फॉलो फादर करना है।

 

❉    स्वयं को साकार स्वरूप में स्थित कर के अन्य आत्माओं को फ़रिश्तेपन की अनुभूति करवानी है। जैसे कि फरिश्तों की चाल होती है न, हमें अन्यों को उस चाल का अनुभव कराना है। हम चलते हुए इस प्रकार से दिखाई देने चाहिये, मानो कि कोई फरिश्ता उड़ रहा हो। हमारा चलना ऐसा प्रतीत होना चाहिये, जैसे कि उन्मुक्त हवा का झोंका हो। 

 

❉   कोई कितना भी अशान्त वा बेचैन घबराया हुआ हमारे सामने आये, लेकिन हमारी एक दृस्टि, वृति और स्मृति की शक्ति उनको बिलकुल शान्त कर दे। वे हमारी सूरत में अपने इष्ट की छवि का साक्षात्कार करें। तब कहलायेंगे साक्षात्कारमूर्त।

 

❉   हमें साकार रूप में स्थित हो कर अन्य आत्माओं को अपने अति सूक्ष्म स्वरूप के द्वारा अर्थात प्रकाश के स्वरूप से निरन्तर प्रवाहित होने वाले प्रकम्पन्नों के प्रभाव से अन्य आत्माओं के दुःखों, तकलीफों व कष्टों को सदा के लिये हर कर समाप्त कर के सुखी बना देना है।

 

❉   इस प्रकार अन्य आत्मायें आपकी दृस्टि और वृति के वायब्रेशन्स को कैच कर के आप के साक्षात्कार मूर्त होने के प्रभाव का अनुभव करेंगी। तब हम अपने व्यक्त भाव में आ कर भी अव्यक्त स्थिति का अनुभव स्वयं भी  करेंगे और अन्यों को भी करवायेंगे। तब हम कहलायेंगे साक्षात्कार मूर्त।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢ जो सच्चे रहमदिल हैं उन्हें देह वा देह - अभिमान की आकर्षण नही हो सकती... क्यों और कैसे ?

 

❉   जो आत्मिक स्मृति में रहते हैं और सबको आत्मा भाई भाई की दृष्टि से देखते हैं । उनके हृदय में सबके प्रति रूहानी स्नेह और प्रेम सदा समाया हुआ रहता है  रहमदिल बन हर आत्मा के कल्याण के बारे में ही वे चिंतन करते रहते हैं । जैसे बाप अपकारियों पर भी सदा उपकारी है ऐसे ही उनके सामने कैसे भी स्वभाव संस्कार वाली आत्मा आ जाए लेकिन अपने रहम की वृत्ति से, शुभ भावना से उसे परिवर्तन कर देते हैं । देह का कोई भी आकर्षण उन्हें अपनी और आकर्षित नही कर पाता है ।

 

❉   जो अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा चाहे ब्राहमण आत्मा हो, चाहे अज्ञानी आत्मा हो लेकिन हर आत्मा के प्रति श्रेष्ठ भावना अर्थात उसे ऊँचा उठाने की वा आगे बढाने की भावना रखते हैं । सदा हर आत्मा के गुणों वा विशेषताओं को देखते है । किसी के भी अवगुणों को नही देखते । ऐसे अपनी रहम और शुभचिन्तक वृति में स्थित रहने वाले तथा अपनी श्रेष्ठ स्मृति की समर्थि द्वारा अन्य आत्माओं को परिवर्तन करने वाले ही देह वा देह के आकर्षण से परे रहते हैं और सच्चे रहमदिल कहलाते हैं ।

 

❉    बुद्धि में कभी भी किसी भी आत्मा के प्रति अशुभ व साधारण भाव धारण ना हो ।  बेहद की शुभ भावना और शुभ कामना रखते हुए मन में हर आत्मा के प्रति रहम और कल्याण का भाव समाया हुआ हो । ऐसे जो हर आत्मा के प्रति शुभ और श्रेष्ठ विचार रखते हैं और किसी भी आत्मा के प्रति अकल्याण की बातें सुनते, देखते हुए भी अपनी बेहद की शुभ चिंतक वृति से उसे भी कल्याण की वृति में बदल देते हैं । ऐसे  रहमदिल ब्राह्मण बच्चे कभी भी किसी की देह और देह अभिमान के आकर्षण में नही आ सकते ।

 

❉   सच्चे रहमदिल वही बन सकते हैं जो बेहद विश्व की सर्व आत्माओं के प्रति शुभ भावना रखते हैं और सर्व आत्माओं के प्रति यही शक्ति - शाली शुभ और शुद्ध संकल्प करते हैं कि हर आत्मा का कल्याण हो जाए । ऐसी कल्याण कारी वृति को धारण कर जो अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा के संस्कारों की कमजोरी को जानते हुए भी उन्हें स्नेह और सहयोग देते हैं । उनसे किनारा करने की बजाए उनका सहारा बनते है । अपने मन को परोपकारी भावना से सदा भरपूर रखने वाले ऐसे बच्चे ही देह और देह के आकर्षण से दूर रहते हैं ।

 

❉   जिनके मन में सदैव यही चिंतन चलता रहता है कि कैसे किसी आत्मा का कल्याण करें ? कैसे किसी आत्मा को बाबा का परिचय दे ? कैसे दिलशिक्सत आत्माओं को अपने उमंग उत्साह का सहयोग दे कर शक्तिवान बनाएं । ऐसे जो सर्विस की नई नई युक्तियां सोचने में स्वयं को बिज़ी रखते हैं और बाबा की याद में खोये रहते हैं उनकी स्थिति शक्तिशाली बनती चली जाती है । अपनी शक्तिशाली स्व स्थिति में स्थित हो कर वे मुख से जो भी बोल निकालते हैं । उनमे सदा रहम और कल्याण का भाव समाया रहता है । ऐसे सच्चे रहमदिल देह वा देह - अभिमान की आकर्षण से सदैव मुक्त रहते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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