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 06 / 08 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ ×परचिन्तन× में अपना समय तो नहीं गंवाया ?

 

➢➢ इमानदार और निरहंकारी बन सेवा को बढाया ?

 

➢➢ कथनी और करनी समान बनायी ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ ज्ञान-योग की पावरफुल किरणों द्वारा पुराने संस्कार रुपी कीटाणुओं को भस्म किया ?

 

➢➢ शुभ भावना, शुभ कामना के श्रेष्ठ संकल्पों से जमा का खाता बढाया ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ हर बात में बाप को बीच में रख बात को बढने से रोका ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - तुम अपने योगबल से पुरानी दुनिया को परिवर्तन कर नया बनाते हो तुम प्रकट हुए हो रूहानी सेवा के लिए"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... बाप समान होकर वो जादूगर बनते हो की मात्र योग बल से दुखो को अथाह सुखो में बदल देते हो... हर संकल्प साँस को यादो में और रूहानी सेवा में लगा कर विश्व को खुशियो की जन्नत बना देते हो...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा रूहानी सेवाधारी बन चली हूँ... आपकी मीठी यादो में डूबकर गुणवान शक्तिवान हो चली हूँ.... और दुखो भरी दुनिया को सुखो में बदल पाने में सक्षम हो चली हूँ...

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... यादो की बरसात में भीगकर सुनहरे देवताई स्वरूप में सज जाते हो... अनन्त खुशियां सुख बाँहो में भर पाते हो... पूरी दुनिया की कायापलट कर सुखो की सुगन्ध से महकाते हो... और सेवा में जुटकर सबके तन मन हर्षित कर आते हो...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा समय रहते अपनी सांसो को पिता की यादो में भर पायी... यह कितनी बड़ी जागीर है जो मेरे पुण्यो से मिली है... और यही जागीर पूरे विश्व की झोली में डालने को आतुर हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे अपने जैसा सुंदर जीवन विश्व के सारे बच्चों का भी बनाओ... उनके घर आँगन भी खुशियो संग खिलाओ... सबके तपते हुए मनो को राहत दे आओ.... इस दुःख भरी दुनिया को सुखो का हसता मुस्कराता स्वर्ग बनाओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सबके चेहरों को सुंदर मुस्कान से खिला कर खुशनुमा बना रही हूँ... सच्चे सुखो का रास्ता हर दिल को बता रही हूँ... पूरा विश्व महक रहा है ऐसी रूहानी सेवा की लहर चला रही हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - रुहानी सर्विस कर स्व का व दूसरों का कल्याण करना"

 

➳ _ ➳  मुझ आत्मा से नासमझी में ना जाने क्या क्या विकर्म हुए... देहभान के कारण अपने असली स्वरुप की पहचान भूल गए... अपने सच्चे पिता को भूल गए... प्यारे परमपिता शिव बाबा ने कोटो में कोई व कोई मे से कोई से चुनकर अपना बनाया... मुझ आत्मा को नया अनमोल ब्राह्मण जीवन दिया... मुझ आत्मा को इस धरा पर अपने कार्य के निमित्त बनाया... मुझ आत्मा में विशेषता देख सेवार्थ यह शरीर दिया... यह शरीर मुझ आत्मा की अमानत है... मैं आत्मा प्यारे बाबा की याद में रह स्व का कल्याण करती हूं... जैसे मुझ आत्मा के पिता सदैव बच्चों की सर्विस के लिए ऐवररेड़ी रहते हैं... ऐसे मै आत्मा  सदैव रुहानी सर्विस में तत्पर रहती हूं... मैं आत्मा परमात्म ज्ञान का प्रकाश चारों ओर फैलाती हूं... मैं सम्बंध सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को बाबा का परिचय देती हूं... बाबा से मिलने का रास्ता बताकर कल्याण करती हूं... मैं आत्मा किसी के अवगुण नही देखती... मैं आत्मा किसी की डिससर्विस करने पर गायन नही करती... मैं आत्मा शुभ भावना रख उसकी कमजोरी को योगबल से शक्ति भर परिवर्तित करती हूं... मैं आत्मा स्व की चेकिंग करती हूं... मैं आत्मा परचिंतन नही करती हूं...

 

❉   "ड्रिल - ईमानदार और निरंहकारी बनना"

 

➳ _ ➳  मैं सदा आत्मिक स्वरुप की स्मृति में रहने वाली बापदादा की लाडली ब्राह्मण आत्मा हूं... मैं आत्मा देह व देह के बंधनों से मुक्त हूं... सर्व बंधनों से मुक्त हूं... मैं सच्चे सच्चे दिल से अपने प्यारे बाबा को सच्चाई और सफाई से  सारा दिल का सच्चा हाल सुनाती हूं... मैं प्यारे बाबा के हर फरमान को दिल से स्वीकार कर उस पर चलती हूं... मैं आत्मा कर्म के प्रभाव से न्यारी होकर कर्म करती हूं... सब प्यारे बाबा की याद में रहकर हर कर्म करती हूं... मैं बाप की श्रीमत को सम्पूर्ण रीति फॉलो करती हूं... प्यारे बाबा की आज्ञाकारी व ईमानदार बच्ची हूं... मेरा हर संकल्प कर्म बस बाबा के लिए है... बाबा ही मेरा संसार है... मैं आत्मा निरंहकारी होकर सेवा करती हूं... स्वयं को बस निमित्त समझती हूं... मैं आत्मा बाप समान निरहंकारी स्थिति का अनुभव करती हूं... मैं आत्मा सवेरे -सवेरे बड़े प्यार से बाबा को याद करती हूं... परमात्म स्नेह पाकर मैं आत्मा अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करती हूं... देही-अभिमानी बन मैं आत्मा कथनी और करनी समान रखती हूं...

 

❉   "ड्रिल - जमा का खाता बढ़ाना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा संगमयुगी ब्राह्मण हूं... अवतरित आत्मा हूं... इस संगमयुग पर छोटे से जन्म में ही मुझ आत्मा को परमात्मा पालना, परमात्म प्यार , परमात्म मिलन का सौभाग्य मिला है... परमपिता परमात्मा ने ही सर्व गुणों, सर्व खजानों व सर्व शक्तियों का अधिकारी बनाया है... मैं आत्मा सर्व सुखों व सर्व सम्बंधों का रस एक प्यारे बाबा से ही लेती हूं... मैं हर आत्मा के प्रति आत्मिक भाव व आत्मिक दृष्टि रखती हूं... मैं आत्मा गुणों का, शक्तियों का दान करती हूं... मैं आत्मा सर्व के प्रति रुहानी स्नेह रखते सहयोग देते हुए आगे बढ़ाती हूं... मैं आत्मा सर्व की सहयोगी आत्मा हूं... मैं आत्मा सर्व के प्रति शुभ भावना शुभ कामना रखती हूं... मैं आत्मा अपना हर संकल्प हर श्वांस बाबा की याद में रह सफल करती हूं... मैं आत्मा श्रेष्ठ संकल्पधारी हूं... मैं आत्मा सर्व की सहयोगी बन दुआओं का पात्र बन जमा का खाता बढ़ाती ह़ू...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं आत्मा मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ ।"

 

➳ _ ➳  सर्वप्रथम अपने मनको सभी बाहरी बातों से मुक्त करेंगे और स्वयं को चैतन्य ज्योति बिंदी आत्मा समझ भृकुटि मध्य में मस्तक में विराजमान होकर इस शरीर का सन्चालन करते हुए देखे...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा शिवबाबा की आनन्द की किरणों को मन पर केंद्रित होते देख रही हूँ... और मेरे मन में आनन्द का संचार हो रहा है... मैं आत्मा परमानंद में मग्न होती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा शिवबाबा की ज्ञान की उर्जा की किरणों से अपने बुद्धि पर केन्द्रित होते देख रही हूँ...

 

➳ _ ➳  ज्ञान की इन किरणों से बुद्धि दिव्य बनती जा रही है... जिससे आत्मा परमात्मा वा सृष्टि चक्र का ज्ञान स्पष्ट होता जा रहा है... बुद्धि बीज समान सम्पन्न बनती जा रही है... जिससे मन वा संस्कारों पर शासन करने की क्षमता बढती जा रही है...

 

➳ _ ➳  जिस प्रकार सूर्य का कर्तव्य है रोशनी देना और किचड़े को खत्म करना... उसी प्रकार ज्ञानयोग की पावरफुल किरणों के द्वारा मुझ आत्मा के पुराने संस्कारों के कीटाणु भस्म होते जा रहें हैं...

 

➳ _ ➳  मैं मास्टर ज्ञान सूर्य आत्मा योग वा तपस्या द्वारा पावरफुल आत्मा होने का निरन्तर अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा ज्ञान योग द्वारा पावरफुल बन किसी भी पतित वातावरण को बदलने में सम्पन्न स्वरुप आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  ज्ञान-योग की पावरफुल किरणों द्वारा पुराने संस्कार रुपी कीटाणुओं को भस्म करने वाले मास्टर ज्ञान सूर्य होते हैं...  क्यों और कैसे?

 

❉   ज्ञान-योग की पॉवरफुल किरणों द्वारा पुराने संस्कार रूपी कीटाणुओं को भस्म करने वाले मास्टर ज्ञान सूर्य होते हैं क्योंकि  उन में कैसे भी पतित वातावरण को बदलने के लिये अथवा पुराने संस्कारों रुपी कीटाणुओं को भस्म करने के लिये सदा यही स्मृति रहती है कि  मैं मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ।

 

❉   जैसे भौतिक संसार के सूर्य का कर्तव्य है कि  सब को रौशनी देना, और किचडे को खत्म करना। उसी प्रकार सूर्य की अति पावरफुल किरणों के द्वारा सर्व कीटाणुओं को भस्म कर देना भी सूर्य की प्रचण्ड किरणों का ही कार्य है।

 

❉   हम मास्टर ज्ञान सूर्य आत्माओं को भी अपने ज्ञान-योग की शक्ति वा श्रेष्ठ चलन द्वारा यही कर्तव्य करते रहना है। अपनी पॉवरफुल किरणों के द्वारा समाज में फैली हुई असामाजिक तत्वों द्वारा फैलाई हुई कुरीतियों का व दोषों रुपी बुराइयों तथा तमोप्रधान मनोवृति रुपी कीटाणुओं को समाप्त कर देना है।

 

❉   हम मास्टर ज्ञान सूर्य इस धरा पर चमकते हुए अति तेजोमय ज्ञान सूर्य की सन्तान हैं। हमें बाबा ने यज्ञ के अति बहुमूल्य कार्यों की निर्विघ्नता पूर्वक पूर्णता के निमित्त बनाया हैं। हमें अपने ज्ञान-योग की प्रचंड तेजोमय अग्नि के द्वारा, सारे विश्व की तमोप्रधान आत्माओं के पुराने संस्कारों रुपी कीटाणुओं को भस्मीभूत कर देना है।

 

❉   हमें अपने ज्ञान-योग की शक्ति व अपने श्रेष्ठ चाल व चलन द्वारा यही कर्तव्य निभाते रहना है। यदि कभी पॉवर की कमी महसूस होती है तो, हमारा ज्ञान सिर्फ रौशनी ही देगा। परन्तु पुराने संस्कार रुपी कीटाणुओं को समाप्त करने की क्षमता प्रदान नहीं करेगा। इसलिये पहले योग की तपस्या द्वारा स्वयं को पॉवरफुल बनना है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  शुभ भावना, शुभ कामना के श्रेष्ठ संकल्प ही जमा का खाता बढ़ाते हैं... क्यों और कैसे ?

 

❉   शुभ भावना और शुभ कामना - यही सेवा का फाउंडेशन है । कोई भी आत्माओं की सेवा करते हुए अगर मन में उनके प्रति शुभ भावना - शुभ कामना नही है तो आत्माओं को प्रत्यक्ष फल की प्राप्ति नही हो सकती । रीति प्रमाण की हुई सेवा हद का मान और सम्मान दिलाती है किन्तु शुभ चिंतक वृति से की हुई सेवा बाप में भी भावना बिठाती है और बाप द्वारा फल की प्राप्ति कराने के निमित बन जाती है । इसलिए शुभ भावना और शुभ कामना के श्रेष्ठ संकल्प रखते हुए सर्व आत्माओं के कल्याणार्थ जो सेवा की जाती है उससे जमा का खाता बढ़ता चला जाता है ।

 

❉   जैसे धरती में हल चलाने वाले जो अथक किसान होते हैं वे कलराठी अर्थात बंजर जमीन को भी हरा - भरा कर देते हैं । इसी प्रकार जो सर्व आत्माओं के प्रति शुभ भावना और शुभ कामना रखते हैं वे अपनी शुभ चिंतक अर्थात रहम दिल वृति से अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली कड़े से कड़े संस्कारों वाली आत्माओं को भी सहज ही परिवर्तन कर देते है । स्वभाव संस्कारों के परवश हुई दुखी आत्माओं का परिवर्तन कर उन्हें सुख शांति की अनुभूति करवाना ही सर्वश्रेष्ठ सेवा है जिससे जमा का खाता सहज ही बढ़ता जाता है ।

 

❉   दुनिया वाले भी शुभ भावना शब्द कहते हैं लेकिन शुभ भावना केवल शुभ नही शक्तिशाली भी हो तभी प्राप्ति का आधार बन सकती है । संगमयुगी, निश्चय बुद्धि श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्माओं की श्रेष्ठ भावना, शुभ भावना के संकल्प में बहुत शक्ति है । वे विश्व की सर्व आत्माओं को प्रत्यक्ष फल की अनुभूति करवा सकते हैं, प्रकृति का परिवर्तन कर सकते हैं । इसलिए अपनी श्रेष्ठ भावना, शुभ भावना को साधारण रीति से नही लेकिन इसके महत्व को जान कर जो इसे कार्य में लगाते हैं उनका जमा का खाता स्वत: बढ़ता रहता है ।

 

❉   गाया हुआ है कि भावना का फल अवश्य मिलता है । तो जब सर्व आत्माओं के प्रति श्रेष्ठ भावना, रहम की भावना और कल्याण की भावना रखेंगे तो ऐसी भावना का फल ना मिले यह हो नही सकता। अगर बीज शक्ति शाली है तो फल अवश्य मिलता है । लेकिन यह फल तभी मिलता है जब इस श्रेष्ठ भावना के बीज को सदा स्मृति का पानी देते रहें । और यह सदा समर्थ स्मृति का पानी है सर्व आत्माओं के प्रति शुभ भावना, शुभ कामना के श्रेष्ठ संकल्प । ये संकल्प अनेको आत्माओं का कल्याण करते हैं जिससे जमा का खाता वृद्धि को पाने लगता है ।

 

❉   बोल से भाव और भावना दोनों अनुभव होती हैं । अगर बोल में शुभ व श्रेष्ठभावना और आत्मिक भाव है तो उस बोल से जमा का खाता बढ़ता है । किन्तु यदि बोल में ईर्ष्या, द्वेष या घृणा की भावना किसी भी परसेन्ट में समाई हुई है तो बोल द्वारा गंवाने का खाता ज्यादा होता है । समर्थ बोल का अर्थ ही है - जिस बोल में प्राप्ति का भाव व सार हो । लेकिन समर्थ बोल मुख से तभी निकलेंगें जब चिंतन समर्थ होगा और सर्व आत्माओं के प्रति शुभ भावना, शुभ कामना के श्रेष्ठ संकल्प होंगे । क्योंकि संकल्प ही सृष्टि की रचना करते हैं । संकल्प श्रेष्ठ होंगे तो कर्म भी सर्व के प्रति कल्याणकारी होंगे ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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