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   29 / 01 / 16  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ अपने °हमजीन्स के कल्याण° की युक्तियाँ रची ?

 

‖✓‖ सबके प्रति शुभ भावना रखते हुए एक दो को °सच्चा मान° दिया ?

 

‖✓‖ "हम °ब्राह्मण सो देवता° बनते हैं" - यह नशा रहा ?

 

‖✓‖ °ईश्वरीय पढाई° के नशे में रहा ?

 

‖✓‖ श्री श्री शिव बाबा की °श्रेष्ठ मत° पर चलकर स्वयं को श्रेष्ठ बनाने पर विशेष अटेंशन दिया ?

 

‖✓‖ °मन बुधी° को बाप के आगे समर्पित कर संस्कारों को दिव्य बनाया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ सेवा की लगन द्वारा °लोकिक को अलोकिक° में परिवर्तित किया ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ परमात्म प्यार द्वारा जीवन में °अतीन्द्रिय सुख व् आनंद° की अनुभूति की ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं आत्मा निरन्तर सेवाधारी हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   सेवा की लगन द्वारा लौकिक को आलौकिक प्रवृति में परिवर्तन करने वाली मैं निरन्तर सेवाधारी आत्मा हूँ ।

 

 ❉   स्वयं को निमित और घर को सेवा स्थान समझ कर मैं हर कार्य करते सदैव हल्की रहती हूँ ।

 

 ❉   त्याग वृति द्वारा प्रवृति में तपस्वीमूर्त बन अपने शुभ और श्रेष्ठ वायब्रेशन्स द्वारा मैं सबको शांति का अनुभव कराती रहती हूँ ।

 

 ❉   सेवा करते हुए भी मैं सदा न्यारी और प्यारी स्थिति में स्थित रहती हूँ ।

 

 ❉  अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को अपनी एकाग्रता की शक्ति द्वारा संकल्पों की हलचल से मुक्त करा कर सुख शान्ति की अनुभूति कराती हूँ ।

 

 ❉   सर्व आत्माओं को सच्चा स्नेह और सहयोग देने वाली मैं सर्व की सहयोगी आत्मा हूँ ।

 

 ❉   सूक्ष्म मनसा सेवा द्वारा मैं आत्माओं की कमजोरियों को समाप्त करने के लिए उनमे बल भरती जाती हूँ ।

 

 ❉   प्रवृति का विस्तार होते हुए भी विस्तार को सार में समा कर मैं सर्व बातो से किनारा कर सदा उपराम रहती हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - तुम्हे नशा रहना चाहिए कि  हम ब्राह्मण सो देवता बनते हैं, हम ब्राह्मणों को ही बाप की श्रेष्ठ मत मिलती है"

 

 ❉   देवता उन्हें कहा जाता है जो दैवी गुणों से सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी,16 कला सम्पूर्ण होते हैं ।

 

 ❉   भक्ति मार्ग में भक्त लोग मन्दिरों में जा कर इन्ही देवी देवताओं के जड़ चित्रों के आगे माथा टेकते हैं और उनकी पूजा करते हैं ।

 

 ❉   वास्तव में वे पूज्य देवी देवता कोई और नही हम ब्राह्मण बच्चे हैं जो संगम युग पर श्रेष्ठ पुरुषार्थ कर ऐसा बनते हैं । फिर वाम मार्ग में जाने से पुजारी बन जाते हैं ।

 

 ❉   संगम युग पर परम पिता परमात्मा शिव बाबा आकर हम ब्राह्मण बच्चों को राजयोग सिखलाते हैं, और हम ज्ञान और योग की धारणा से पूज्य देवी देवता बन जाते हैं ।

 

 ❉   तो इस बात का कितना नशा रहना चाहिए कि हम ब्राह्मण सो देवता बनते हैं । स्वयं भगवान आ कर हमे ईश्वरीय पालना दे कर मनुष्य से देवता बनने की युक्ति बताते हैं ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ श्री श्री शिवबाबा की श्रेष्ठ मत पर चलकर स्वयं को श्रेष्ठ बनाना है ।

 

  ❉   अभी तक तो घोर अज्ञानता में थे व स्वयं अपनी पहचान ही भूल गए । इस संगमयुग पर परमपिता परमात्मा शिव बाबा ने ही स्वयं हमें अपनी असली पहचान दी कि मैं कौन हूं व मेरा कौन है । ये ज्ञान शिव बाबा के सिवाय दूसरा कोई दे न सके ।

 

  ❉   स्वयं शिवबाबा ही ऊंच ते ऊंच व श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ है व बाप आये ही है हमें श्रेष्ठ बनाने । तो हमें बाप की श्रेष्ठ मत पर चलकर श्रेष्ठ ही बनना है ।

 

  ❉   जब स्वयं बाप सुप्रीम टीचर बन हमें पढ़ाकर मनुष्य से देवता बना रहे हैं व अपने से ऊंची सीट पर बिठा रहे हैं तो हमें भी सुप्रीम टीचर की श्रेष्ठ मत पर चलकर आज्ञाकारी गॉडली स्टूडेंट बन श्रेष्ठ बनना है ।

 

  ❉   बाप हमें समय समय पर सहज युक्तियां बताते हैं व समझानी देते रहते है व नर्कवासी से स्वर्गवासी बनाते हैं ।  तो हमें इस अंतिम जन्म पवित्र बनना है व बाप की श्रेष्ठ मत पर ही चलना है ।

 

  ❉   बाप कहते हैं कि मामेकम याद करो व सर्व सम्बंध बाप से रखो ।  तो हमें लौकिक में सब जिम्मेदारी अपने को निमित्त समझ निभानी है बस फंसना नही है । सर्व सम्बंध बाप से निभाते हुए सम्पूर्ण रीति से श्रेष्ठ मत पर चलते हुए श्रेष्ठ बनना है ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ सेवा की लगन द्वारा लोकीक को अलोकिक प्रवृत्ति में परिवर्तन करने वाले निरंतर सेवाधारी बनना है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   त्याग, तपस्या और फिर सेवा। इसलिए सेवाधारी को पहले सर्वस्व त्यागी होना पड़े उसके बाद तपस्विमुर्त और जब यह दोनों स्थिति बन जाये तब सेवा की फील्ड में उतर सकते है।

 

 ❉   सच्चे सेवाधारी को यह कभी इन्तेजार नहीं रहता की कोई उसे सेवा बताये तो करे। उसके त्यागी और तपस्वी रूप से सेवाए खुद उसके पास चलकर आयेंगी।

 

 ❉   "जो ओटे सो अर्जुन", कभी भी सेवा मिलने का इन्तेजार नहीं करना चाहिए, जो स्वयं को सेवा के लिए ऑफर करते है वही अर्जुन बनते है।

 

 ❉   सेवा के लिए सदा एवररेडी, हा जी का पाठ बजाना चाहिए। चाहे मनसा, चाहे वाचा, चाहे कर्मणा कैसी भी सेवा कही भी मिल जाये या बाबा भेजे तो एवररेडी। इसमें बाबा मिलिट्री का उधारण देते है।

 

 ❉   जब स्वयं को सदा सेवाधारी समझ कर रहेंगे तो लोकीक प्रवृत्ति में भी यह स्मृति रहेगी की, वह भी आत्माये है और यह बाबा का घर है, सब बाबा के बच्चे है, एसी दृष्टि वृत्ति होने से अलोकिकता आ जायेगी और निरंतर सेवाधारी बन जायेंगे।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ अपने संस्कारों को दिव्य बनाना है तो मन - बुद्धि को बाप के आगे समर्पित कर दो... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   मन बुद्धि को जब बाप के आगे समर्पित कर देंगे तो कदम - कदम पर परमात्म साथ का अनुभव परमात्म शक्तियों से भरपूर करबुद्धि को हल्का और स्वच्छ बना देगा जिससे पुराने आसुरी संस्कारो को परिवर्तित कर दैवी संस्कार बनाना सहज हो जाएगा ।

 

 ❉   मन - बुद्धि से स्वयं को बाप के आगे समर्पित करने से सर्वशक्तिमान बाप के साथ का अनुभव आत्मा में सर्वशक्तियों का बल भर कर पुराने स्वभाव - संस्कारों को दिव्य बना देगा ।

 

 ❉   बुद्धि की लाइन जितनी क्लीयर होगी, हर मुश्किल उतनी ही सहज अनुभव होगी और पुराने संस्कारों का त्याग कर नए दैवी संस्कारों को धारण करना भी उतना ही सहज होगा लेकिन वह तब होगा जब मन बुद्धि को बाप के आगे समर्पित कर देंगे ।

 

 ❉   हर बात प्रभू अर्पण कर जब मन बुद्धि को बाप के आगे समर्पित कर देंगे तो स्वयं को सदा करनकरावनहार बाप की छत्रछाया के नीचे अनुभव करेंगे जिससे दैवी संस्कार आत्मा में स्वत: आते जायेंगे ।

 

 ❉   मन बुद्धि को बाप के आगे समर्पित कर देंगे तो हर संकल्प और हर कर्म करते बुद्धि का योग बाप से लगा रहेगा जिससे हर कर्म में दिव्यता और अलौकिकता स्वत: आती जायेगी ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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