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❍ 02 / 11 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *"अंत में एक बाप याद आये" - ऐसी अवस्था बनाने पर विशेष अटेंशन रहा ?*
➢➢ *"सब विनाश होने वाला है" - यह बुधी में रहा ?*
➢➢ *अपने आप को करेक्ट करने पर विशेष अटेंशन रहा ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *पहली श्रीमत पर विशेष अटेंशन दे फाउंडेशन को मज़बूत किया ?*
➢➢ *कर्म द्वारा शक्ति स्वरुप को प्रतक्ष्य किया ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *"धनवान भव" की स्थिति का आहवान किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - ज्ञानवान बनो तो धनवान् बन जायेंगे जगदम्बा ज्ञान ज्ञानेश्वरी ही राज राजेश्वरी बनती है"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... यह ईश्वरीय ज्ञान सारे सुखो को कदमो में छलकाने वाली खूबसूरत जादूगरी है... इस जादूगरी को बुद्धि की रग रग में समा दो... तो यही ज्ञान... धन में परिवर्तन होकर अथाह दौलत अथाह सुखो से जीवन को सजा देगा... जिस धन देवी से आज तक भक्ति में झोली फेला कर मांगते आये वह ज्ञान से ही धनवान् है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा मै आत्मा आपकी मीठी यादो में और सुंदर ज्ञान के मनन से... सुंदर गुणो की देवी... शक्तियो की मालिक और अथाह धन संपदा की अधिकारी बन रही हूँ... अपने खालीपन को सदा की अमीरी से भर रही हूँ... और जगदम्बा सी धनवान् बन रही हूँ....
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता बाँहों में आ चला तो उसकी जागीर भी अपनी हो चली... तो उन रत्नों की खनक को बुद्धि में खनकाते रहो... यही ज्ञान मोती सच्चे हीरे बन चारो तरफ सज जायेंगे... तो ईश्वरीय ज्ञान से मिलने वाली अपनी अमीरी को दिल की आँखों से देखो... और नशे से भर चलो कि कौन थे और क्या बन रहे है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ मुझ गरीब सी आत्मा को अमीर बनाने स्वयं भगवान ही धरती पर उतर आया है... मुझे ऐसे ज्ञान रत्न दे दिए है जो 21 जनम अमीर की खान बन सदा साथ रहेंगे... मुझसे अधिक भाग्यवान इस धरा पर कोई नही...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... सदा ज्ञान रत्नों से ही खेलते रहो यह मन्थन जितना गहराई से भीतर समायेगा... बाहर धन की बहार स्वतः ही बिखेरेगा... ज्ञान ज्ञानेश्वरी जगदम्बा ज्ञान की बदौलत ही धन लक्ष्मी बन विश्व स्टेज पर मुस्कराती है... तो आप भी उसी अमीरी के हकदार बन चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने गुणो और शक्तियो को खोकर कितनी गरीब हो चली थी... अब प्यारे बाबा से मिले ज्ञान रत्नों से हर पल खेलने वाली ज्ञानपरी बन कर... सोने की दुनिया की मालकिन बन मुस्करा रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा सहजयोगी हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सर्व की सहयोगी हूँ... सर्व की सहयोगी होने से मैं आत्मा सहजयोगी बनती जा रही हूँ... मैं आत्मा श्रीमत पर चलने का पुरुषार्थ कर रहीं हूँ... मैं आत्मा अपने को आत्मा समझकर एक बाप की याद में रहती हूँ... मैं आत्मा इसी बात पर बार बार अटेन्शन दे रहीं हूँ... क्योंकि यह श्रीमत ही मुख्य फाउंडेशन है...
➳ _ ➳ जब मैं आत्मा अपने को आत्मा के बजाए साधारण शरीरधारी समझती हूँ तो याद टिक नहीं सकती... वैसे भी कोई दो चीजों को जब जोड़ा जाता है तो पहले समान बनाते हैं... इसीलिये मैं आत्मा पहली श्रीमत पर विशेष अटेन्शन देकर फाउंडेशन को मजबूत बना रहीं हूँ... स्मृतिस्वरूप बनते जा रहीं हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने आत्मिक स्थिति में स्वयं को बाप के समीप अनुभव कर रहीं हूँ... सर्व प्राप्तियों की अधिकारी बन रहीं हूँ... सदा ही श्रेष्ठ उमंग उत्साह खुशी में एकरसता का अनुभव कर रहीं हूँ... मुझ आत्मा के संकल्प शक्तिशाली बनते जा रहें हैं... सहजयोगी बन रहीं हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा मैं, मेरेपन को त्याग सहजयोगी बन रुहानियत धारण करते जा रहीं हूँ... सर्व आत्माओं के प्रति स्नेही बन विश्व कल्याण कर रहीं हूँ... अब मुझ आत्मा को याद में रहने मेहनत नहीं करनी पड़ती है... मैं सहज ही एक बाप की याद में रहने वाली सहजयोगी आत्मा हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- कर्म द्वारा शक्ति स्वरूप को प्रत्यक्ष करना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा ही पावन बनती हूँ, तो मैं आत्मा ही पतित भी बनती हूँ... मुझ आत्मा की पहचान मेरे कर्मो द्वारा ही होती हैं... मेरे कर्मों द्वारा ही मैं आत्मा महान बनती हूँ... मेरे कर्मों के द्वारा ही मैं आत्मा शुद्र बनती हूँ... मेरा कर्म ही मुझ आत्मा का दर्शन कराने वाले दर्पण है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अब परमात्म छाया में रह हर कर्म करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ... शिव बाबा से शक्तियाँ स्वयं में भर... मैं आत्मा मास्टर सर्वशक्तिमान बन हर कर्म में शक्ति भरती हूँ... मुझ श्रेष्ठ आत्मा के कर्म भी श्रेष्ठ हैं...
➳ _ ➳ मैं कर्मयोगी आत्मा सृष्टि रंगमंच पर अपना विशेष पार्ट प्ले करते... बाबा के साथ कम्बाइंड हो सब कर्म करती हूँ... मेरे हर कर्म में मेरा बाबा समाया हुआ हैं... मेरे द्वारा किया हर कर्म अलौकिक है... मेरा कोई भी कर्म साधारण नहीं हैं... मेरा हर कर्म प्रभु की याद में किया... सतकर्म हैं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने कर्म द्वारा अपने शक्ति स्वरूप को प्रत्यक्ष करती हूँ... मैं शक्तिशाली आत्मा हूँ... कोई भी कड़ी से कड़ी परिस्थिति क्यों न हो... मैं आपने कर्मों द्वारा ... अपने शक्ति स्वरूप द्वारा विजय प्राप्त करती हूँ... मैं विजयरत्न आत्मा हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *पहली श्रीमत पर विशेष अटेन्शन दे फॉउण्डेशन को मजबूत बनाने वाले सहजयोगी होते हैं क्यों और कैसे?*
❉ पहली श्रीमत पर विशेष अटेन्शन दे कर, फॉउण्डेशन को मजबूत बनाने वाले सहजयोगी होते हैं, क्योंकि... बापदादा की नम्बरवन श्रीमत है कि... अपने को आत्मा समझ कर, बाप को याद करो। यदि आत्मा के बजाये अपने को साधारण शरीरधारी समझते हो, तो! याद टिक नहीं सकती है।
❉ इसलिये! हमें अपने को आत्मा समझ कर चलना है। क्योंकि असुल में हम सब आत्मायें ही हैं। आत्मा इन आँखों द्वारा देखती है। इन कानों द्वारा सुनती है। इस मुख द्वारा खाती पीती व बोलती है तथा इन हाथों द्वारा कर्म करती है, व पैरों द्वारा चलती फिरती घूमती है।
❉ अर्थात! आत्मा ही इस नश्वर शरीर द्वारा सब कुछ कार्य करती है। इसलिये! हमें स्वयं को आत्मा समझ कर अपने प्रियतम! परम पिता परमात्मा को याद करना है। उस चातक पक्षी के समान जो स्वाति नक्षत्र की एक बून्द के लिये लगातार अपनी चोंच को खोल कर, आकाश को निहारता है, कि... न जाने कब स्वाति नक्षत्र की एक बून्द मेरे मुख में गिर जाये।
❉ हमें भी उस चातक पक्षी के समान, अपने बुद्धि रुपी नेत्र को अपने परम प्रिय शिवबाबा के दिव्य स्वरूप पर टिका देना है और उनसे दिव्य गुण शक्तियों व सर्व खज़ानों रुपी रत्नों को स्वयं में भर लेना है। वैसे भी कोई दो चीज़ों को जब जोड़ा जाता है, तो! पहले एक दूसरे को एक समान रूप में बनाते हैं। तब वे दोनों चीज़ें आपस में जुड़ सकती हैं।
❉ उसी प्रकार जब हम स्वयं को बाप के समान बनाते हैं। अर्थात! स्वयं को आत्मा समझते हैं तो! सुप्रीम आत्मा परमात्मा की याद हमारे लिये सहज हो जाती है। इस प्रकार से आत्मा अपने पिता परमात्मा को सहजता से याद करती है। अतः ये श्रीमत ही हमारे याद करने के विषय के लिये मुख्य फॉउण्डेशन है। इस बात पर हम बार - बार अटेन्शन देंगे तो सहजयोगी बन जायेंगे।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *कर्म आत्मा का दर्शन कराने वाला दर्पण है इसलिए कर्म द्वारा शक्ति स्वरूप को प्रत्यक्ष करो... क्यों और कैसे* ?
❉ जिस प्रकार व्यक्ति के चाल - चलन और चेहरे के हाव - भाव से उसके व्यक्तित्व का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है इसी प्रकार व्यक्ति जो कर्म करता है वह कर्म आत्मा का दर्शन कराने वाला दर्पण होता है । जिसमे आत्मा के गुण और अवगुण परिलक्षित होते हैं । जिसके आधार पर उसे पाप आत्मा और पुण्य आत्मा कहा जाता है । इसलिए बाबा कहते कि अपने कर्मो को ऐसा श्रेष्ठ बना लो जिनसे अपने शक्ति स्वरूप को प्रत्यक्ष कर सको ।
❉ आत्मिक रूप में हम सभी शिव की शक्तियां हैं । अपने इसी शक्ति स्वरूप को अपने कर्मो द्वारा प्रत्यक्ष करके ही हम अपने पिता परमात्मा शिव को प्रत्यक्ष कर सकते हैं । क्योकि कर्म आत्मा का दर्शन कराने वाला वह दर्पण है जिसमे आत्मा के सम्पूर्ण स्वरूप को देखा जा सकता है । आत्मा शरीर का आधार ले कर अच्छे वा बुरे जो भी कर्म करती है उन कर्मो से उसके बारे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि किस आत्मा का पार्ट कैसा होगा । इसलिए यदि कर्म श्रेष्ठ होंगे तो पार्ट भी श्रेष्ठ दिखाई देगा ।
❉ कहा जाता है कि दर्पण कभी झूठ नही बोलता क्योकि दर्पण में वही दिखाई देता है जो सामने और सच होता है । इसी प्रकार कोई कितना भी स्वयं को ऊँचा या श्रेष्ठ सिद्ध करने की कोशिश करे किन्तु उसके कर्म उसकी स्थिति को स्वत: ही स्पष्ट करते हैं क्यो कि कर्म वह दर्पण है जिसमे आत्मा का दर्शन सहजता से किया जा सकता है । कर्म ही आत्मा को ऊंचा उठाते हैं और कर्म ही उसे रसातल में ले जाते हैं । इसलिए कर्मो की गुह्य गति को ध्यान में रखते हुए अपने कर्म द्वारा अपने शक्ति स्वरूप को प्रत्यक्ष करना ही महानता है ।
❉ ब्रह्मा बाबा का स्लोगन था " जो कर्म मैं करूंगा मुझे देख सब करेंगे " इसलिए बाबा ने अपने हर कर्म को ऐसा महान और श्रेष्ठ बना लिया जो चरित्र के रूप में अनेको आत्माओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन गया । ऐसे ही फॉलो फादर का लक्ष्य रखते हुए हमें भी अपने हर कर्म को इतना ऊंच और महान बनाना है कि हमारे कर्म हमारे शक्ति स्वरूप को प्रत्यक्ष करने वाला ऐसा दर्पण बन जाये जो अनेको आत्मायों को रास्ता दिखा सकें और उन्हें आप समान बनने की प्रेरणा दे सकें ।
❉ कोई हमारे बारे में क्या सोचता है इसका पता ही तब लगता है जब उसके मन के भाव कर्म के रूप में सामने आते है । अगर सामने वाले को देख कर हमारे मन में निगेटिव संकल्प चल रहे हैं तो उसके प्रति हमारा जो व्यवहार कर्म के रूप में सामने आएगा वह भी नकारात्मक होगा जो दूसरों को स्पष्ट दिखाई देगा । क्योकि कर्म आत्मा का दर्शन कराने वाला दर्पण है । इसलिए बाबा कहते सबको आत्मिक स्मृति से देखने का अभ्यास जितना पक्का होगा उतना ही कर्म द्वारा सबके प्रति आत्मिक स्नेह स्पष्ट अनुभव में आएगा जिससे अपने शक्ति स्वरूप को प्रत्यक्ष करना सहज हो जायेगा ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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