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❍ 16 / 07 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ √एक बाबुल√ को प्यार से याद किया ?
➢➢ √निश्चयबुधी√ बन बाप से पूरा वर्सा लेने का पुरुषार्थ किया ?
➢➢ √याद के बल√ से आत्मा को तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाने का पुरुषार्थ किया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ √देह अभिमान√ के त्याग द्वारा श्रेष्ठ भाग्य बनाने का पुरुषार्थ किया ?
➢➢ स्वार्थ के बजाये √निस्वार्थ√ बन क्रोध मुक्त बनकर रहे ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ भिन्न भिन्न परिस्थितियों में √उड़ता पंछी√ स्थिति का अनुभव किया ?
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/16.07.16-VisheshPurusharth.htm
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - योगबल से ही आत्मा की कट निकलेगी इसलिए योग में कभी भी गफलत मत करो"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे मीठे पिता की यादो के सिवाय कोई भी नाता सच्चा नही... ये यादे ही जादूगरी करके सुनहरा चमकीला रंग देकर सजायेंगी.... इसलिए इन यादो के मोतियो को अपनी सांसो में पिरो चलो.... यही पल सच्चे साथी बनेगे...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... आपकी मीठी यादो के साये में मै आत्मा कितनी खूबसूरत और प्यारी होती चली जा रही हूँ... इन यादो में अनन्त सुख को जी रही हूँ... मै कितनी भाग्यशाली हूँ सच्चे पिता की गोद में सुरक्षित हूँ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे खुद को खूबसूरती से सजाने वाले इन मीठे पलों को यादो में बांध लो... सांसो को यादो में अमर कर दो... ये यादे ही जनमो की कलुषिता को जलायेगी और सोने जेसी दमकती काया और आनन्द ख़ुशी से छलकता महकता जीवन कदमो में भर जाएँगी...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपके बिना किस कदर अधूरी सी थी... आपने आकर जनमो के गहरे अँधेरे को सदा की रोशनी से रोशन किया है... ये पल आपकी यादो में भीगे भीगे से अनमोल है...जहाँ हम आप एक दूजे में खोये है...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चे सारा मदार कीमती यादो और कीमती समय पर है... इस समय को मुट्ठी में बांध यादो में घोट दो... और सुर्ख योग अग्नि में सारी कालिमा को धो दो... समय रहते बाबा के दिल को सदा का जीत लो... गफलत शब्द को सदा की विदाई दे अथक बन चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ने इस सच्चे समय को मेने जान लिया है... आपकी यादो में भर देने का इसे ठान लिया है... न होगी यादो में गफलत कोई... दिल को यूँ समझा दिया है... और आपको सदा का बाहों में जकड़ लिया है...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ ड्रिल - घर वापिस जाने के लिए कर्मातीत स्थिति का अनुभव करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा संगमयुगी पवित्र आत्मा हूं... मैं आत्मा इस शरीर की मालिक हूं... सभी कर्मेन्द्रिय मुझ आत्मा के आर्डर प्रमाण चलती हैं... मैं आत्मा हर कर्म प्यारे बाबा की याद में करती हूं... मुझ आत्मा का इस झूठी विनाशी दुनिया से मोह खत्म हो खया है... मुझे अपने प्यारे बाबा के साथ अपने घर वापिस जाना है... मैं आत्मा कर्म के प्रभाव से न्यारी होकर कर्म करती हूं... मुझ आत्मा के सर्व सम्बंध बस प्यारे शिव बाबा से हैं... अब समय समाप्ति की ओर है... सृष्टि की अंतिम वेला चल रही है... मुझ आत्मा को अब नए हिसाब किताब नही बनाने हैं... मैं आत्मा योगाग्नि से पुराने हिसाब किताब चुकतू कर पुराने बंधनों से मुक्त होती हूं... मैं आत्मा बाबा की श्रीमत पर चलती हूं... मैं आत्मा बाबा की याद में योगयुक्त हूं... मैं आत्मा विस्तार को सार में लाते बिंदु बन बिंदु में सिमट जाती हूं...
❉ "ड्रिल - निश्चयीबुद्धि बन सतोप्रधान बनना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा ज्योति बिंदु हूं... मैं आत्मा ज्ञानसागर प्यारे बाबा की संतान ज्ञानस्वरुप हूं... मुझ आत्मा को घोर अंधियारे से निकाल ज्ञानसागर बाबा ने ज्ञान का तीसरा नेत्र देकर ज्ञान की रोशनी दी है... अभी तक अज्ञानता के कारण काले बन गए... प्यारे बाबा ही काले से गोरा बनाते है... प्यारे बाबा ही सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान देते हैं... बाबा ही ज्ञान का सागर हैं... दुःखहर्त्ता सुखकर्त्ता हैं... प्यारे बाबा मुझ आत्मा को अपना बनाकर वर्सा देते हैं... ये सारा ज्ञान मुझ आत्मा को प्यारे बाबा के सिवाय कोई दूसरा नही दे सकता... मैं निश्चयीबुद्धि आत्मा हूं... मैं आत्मा चलते फिरते उठते बैठते बस एक बाबा को ही याद करती हूं... मैं आत्मा याद के बल से ही आत्मा की एलाय उतारती हूं... याद से ही सच्चा सोना बनती हूं... मैं आत्मा याद से ही तमोप्रधान से सतोप्रधान स्थिति का अनुभव कर रही हूं...
❉ "ड्रिल - शुद्ध परिवर्तन"
➳ _ ➳ मैं आत्मा परम पवित्र हूँ... शुद्ध स्वरूप हूँ... मुझ आत्मा को ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है... मुझ आत्मा को दिव्य दृष्टि मिली है... मैं आत्मा अब अशुद्धता को छोड़ शुद्धता को धारण करती हूँ... मैं आत्मा रावण के संस्कारों को भस्म करती जा रही हूं... मेरी क्रोधी वृत्ति यज्ञ कुंड़ में जलकर खाक हो गई हैं... मेरा तन मन शांत हो गया हैं... मैं आत्मा अब क्रोध की बजाए शान्ति को, स्वार्थ की जगह निस्वार्थ और मोह की बजाए शुद्ध स्नेह को धारण करती हूँ... मुझ आत्मा के इस परिवर्तन से सारी सृष्टि परिवर्तन हो रही है... मैं आत्मा अपनी हर इच्छाओं का रूप परिवर्तन करती हूं... मैं आत्मा अपना और समस्त जगत का कल्याण करती हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं सर्व सिद्धि स्वरुप आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳ कुछ क्षण के लिए हम अपने मन के विचारों को बाह्य सभी बातों से समेट लें... स्वयं को आत्मा निश्चय करें... अंतर्चक्षु से... स्वयं को देखें... भृक्रुटी के मध्य में... मैं अविनाशी ज्योतिपुंज हूँ... दिव्य शक्त्ति हूँ... अजर-अमर- अविनाशी हूँ... सदा शाश्वत् हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा इस शरीर रूपी मन्दिर में चैतन्य शक्त्ति हूँ... आँखों द्वारा देखने वाली... मुख द्वारा बोलने वाली... कानों द्वारा सुनने वाली... मैं अति सूक्ष्म दिव्य प्रकाश का पुंज हूँ... प्यारे बाबा ! मुझ आत्मा ने कई जन्मों तक देहधारियों के सम्बन्ध वा स्नेह में ताज, तख्त और अपना असली स्वरुप सब कुछ छोड़ दिया था...
➳ _ ➳ परन्तु अब मैं आत्मा आपके स्नेह में डूबकर इस देह-अभिमान का त्याग कर रहीं हूँ... मैं आत्मा देहि-अभिमानी बन एक आपसे ही सर्व सम्बन्धों का अनुभव करने वाली आत्मा होने का दिव्य अनुभव कर रहीं हूँ...
➳ _ ➳ मेरे प्यारे बाबा ! मैं आत्मा केवल आपके साथ सर्व सम्बंधों का अनुभव कर रहीं हूँ... आपकी स्मृति से प्राप्त होने वाली शक्ति से मैं स्वयं को निरंतर सशक्त अनुभव कर रहीं हूँ... मुझमें इस बात की जागृती आ रही है कि मेरी स्मृति से मेरा स्वमान बढ़ता जा रहा है...
➳ _ ➳ यह अनुभव इस वरदानी संगमयुग का श्रेष्ठ भाग्य है... अशरीरी बन मनमनाभव के सर्वश्रेष्ठ मन्त्र को अपने जीवन में अपनाने से मैं आत्मा वृद्धि को प्राप्त हो सदा सर्व सिद्धि स्वरुप की ऊँची स्टेज में सदा स्तिथ रहने वाली आत्मा होने का सर्वश्रेष्ठ अनुभव कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ देह अभिमान के त्याग द्वारा श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले सर्व सिद्धि स्वरुप होते हैं... क्यों और कैसे ?
❉ देह अभिमान के त्याग द्वारा श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले सर्व सिद्धि स्वरूप होते है। देह - अभिमान का त्याग करने अर्थात देहि - अभिमानी बनने से बाप के सर्व सम्बन्धों का व सर्व शक्तियों का अनुभव होता है। यह अनुभव ही संगमयुग का श्रेष्ठ भाग्य है।
❉ संगमयुग की महिमा का गायन है एक का सौ गुना। अर्थात पद्मों की कमाई। कहा है एक कदम में पद्म मिलते है। अतः विधाता द्वारा मिली हुई इस निधि को अपनाने से वृद्धि भी होगी और सर्व सिद्धियाँ भी प्राप्त होंगी। संगम पर सर्व सिद्धियाँ प्राप्त करने के अधिकारी सो भविष्य में भी राज्य पद के अधिकारी बन जायेंगे।
❉ देहधारियों के सम्बन्ध व स्नेह में तो ताज तख़्त और अपना असली स्वरूप सब कुछ छोड़ दिया, तो क्या बाप के स्नेह में देह - अभिमान का त्याग नहीं कर सकते। कर सकते हैं ना। देह - अभिमान में ही तो सर्व दुःख समाया हुआ है। देह - अभिमान ही सर्व दुःखों की खान है।
❉ इसी एक त्याग से सर्व भाग्य प्राप्त हो जायेंगे। बाप के प्रेम में सब कुछ सम्भव है। प्रेम असम्भव से भी असम्भव कार्य को सरल बना देता है। प्रेम में मेहनत महसूस नहीं होती। केवल एक देहभान का त्याग कर देने से ही हम सर्वांश त्यागी बन जाते हैं। अर्थात बेहद के त्यागी बन कर सर्व ईश्वरीय निद्धियों के अधिकारी बन जायेंगे।
❉ सर्वांश त्याग का ही गायन है। त्याग से ही भाग्य का निर्माण होता है। त्याग से ही सर्व सिद्धियाँ व सर्व निद्दियों की प्राप्ति हो जाती है। त्याग की भावना सर्व श्रेष्ठ भावना है। इस एक ही भावना को अपना कर, हम कल्प कल्प के लिये भाग्यवान बन जायेंगे।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ क्रोध मुक्त बनना है तो स्वार्थ के बजाए नि:स्वार्थ बनो, इच्छाओ के रूप का परिवर्तन करो... क्यों और कैसे ?
❉ निर्मानता का गुण जितना स्वयं के अंदर धारण करेंगे उतना हर कर्म, सम्बंध, और सम्पर्क में निर्मान बनते जायेंगे । स्वार्थ के बजाए नि:स्वार्थ भाव धारण कर, जब अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं की कमी कमजोरियों, पुराने स्वभाव संस्कारों को नजऱअंदाज करते हुए सबके साथ कदम से कदम मिला कर चलेंगे तो हद का नाम, मान और शान प्राप्त करने की इच्छा सहज ही परिवर्तित हो जायेगी जो इच्छा मात्रम अविद्या स्थिति में स्थित कर क्रोध मुक्त बना देगी ।
❉ जो निस्वार्थ भाव से सदा सेवा में तत्पर रहते हैं वही सच्चे परोपकारी कहलाते हैं । जैसे सूर्य स्वयं तप कर भी धरती को रोशन करता है और धरती जो स्वयं पर वर्षा, ताप, गर्मी, सर्दी, तूफान, आंधी सब सहती है और सहते-सहते भी हमें फल - फूल, कंद - मूल, मेवे देती है और कभी कुछ मांगती नहीं । इसी तरह बादल, नदियां, सागर, चंद्रमा आदि सब बिना किसी स्वार्थ भावना के केवल देते ही रहते है । जब हम भी ऐसे निस्वार्थी बन हद की इच्छाओं को बेहद में परिवर्तित कर लेंगे तो सहज ही क्रोध मुक्त बन जाएंगे ।
❉ स्वार्थ के बजाए नि:स्वार्थ बन, इच्छाओं के रूप को परिवर्तन कर क्रोधमुक्त तभी बन पाएंगे जब स्वयं को सदा मास्टर दाता की सीट पर सेट रखेंगे । और इस बात को सदा स्मृति में रखेंगे कि हम दाता के बच्चे हैं इसलिए हमे सबको देना है । रिगार्ड मिले ना मिले, स्नेह मिले ना मिले लेकिन हमे किसी भी विनाशी प्राप्ति को कोई इच्छा नही रखनी । स्नेही बन सबको स्नेह देना है । इस विशेषता को जब स्वयं में धारण करेंगे तो सर्व के प्रति बेहद की शुभभावना रखते हुए हद की सभी बातो को बेहद में बदल क्रोध मुक्त शांत स्थिति का अनुभव कर सकेंगे ।
❉ जहां इच्छा है वहां अच्छाई हो नही सकती क्योकि इच्छा कभी भी अच्छा नही बनने देती । हद का नाम, मान और शान प्राप्त करने की इच्छा भी सूक्ष्म रॉयल रूप की इच्छा है । ये रॉयल सूक्ष्म इच्छाएं भी अप्राप्ति की तरफ खींच लेती हैं और सर्व प्राप्ति सम्पन्न स्वरूप का अनुभव करने नही देती । सर्व प्राप्ति सम्पन्न स्वरूप स्थिति की अनुभवी आत्मा ना बन पाने के कारण सदैव असन्तुष्टता के भाव उनके चेहरे से दिखाई देते हैं और यह असन्तुष्टता ही क्रोध का कारण बनती है । इसलिए क्रोधमुक्त बनने के लिए जरूरी है स्वार्थ के बजाए निस्वार्थ भाव धारण कर इच्छाओ के रूप को परिवर्तन करना ।
❉ बाप द्वारा मिली सर्व शक्तियों, सर्व गुणों और सर्व खजानों की मैं अधिकारी आत्मा हूँ इस निश्चय और नशे में जितना रहेंगें उतना स्वयं को परमात्म प्राप्तियों से सम्पन्न, सर्व प्राप्ति स्वरूप अनुभव करेंगे । जैसे फलदायक पेड़ सम्पन्न होने के कारण सदा अपनी शीतलता की छाया से हर मनुष्य को शीतलता का अनुभव करवाता ही है । इसी प्रकार सर्व प्राप्ति सम्पन्न आत्मा भी अपनी प्राप्तियों की अनुभूति सर्व आत्माओं को सदैव करवाती रहेगी । उसके मुख से निकले बोल मिठासयुक्त होंगे और उसका हर कर्म निस्वार्थ भावना से भरपूर होगा । इच्छाओँ के रूप को परिवर्तन कर वह सदा क्रोधमुक्त स्थिति का अनुभव करेगी ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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