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 29 / 08 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ ज्ञान से धनवान और योग से निरोगी बनकर रहे ?

 

➢➢ पावन बनने के लिए अशरीरी बनने का अभ्यास किया ?

 

➢➢ सबको एक बाप को याद करने का पैगाम दिया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ हर शिक्षा को स्वरुप में लाकर सपूत होने का सबूत दिया ?

 

➢➢ एकाग्रता की शक्ति को बड़ा मन बुधी का भटकना बंद किया ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢  समय की रफ़्तार प्रमाण स्वयं का श्रृंगार संपन्न करने पर विशेष अटेंशन रहा ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - मनमनाभव की ड्रिल सदा करते रहो तो 21 जनमो के लिए रुस्ट-पुष्ट (निरोगी)हो जायेंगे"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... मेरी यादो में इस कदर खो जाओ... इतना प्यार करो इतना चाहो की सुधबुध ही भूल जाओ... और हर साँस में यादो को समा लो... तो खूबसूरत सुखो से आँचल भर जायेगा... 21 जनमो के सुखी स्वस्थ धनी बन जायेंगे...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा अपनी सांसो के तारो में आपकी मीठी यादो को भरकर अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति में डूब चली हूँ... निरन्तर याद को सांसो में समा कर 21 जनमो की निरोगी बन चली हूँ...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... देह के सम्बन्धो को किस कदर सांसो में पिरोया है.. और दुखो के पहाड़ो में खुद को झोंका है... अब यही वफादारी ईश्वरीय यादो में दिखाओ... और मनमनाभव की अखण्ड याद से दो जहान की खुशियो को गले लगाओ...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा झूठे नातो में कितनी वफादार रही और दुःख ही दुःख झेलती रही... अब आपकी मीठी यादो में सदा की स्वस्थता को पाती जा रही हूँ... हँसती मुस्कराती निरोगी बनती जा रही हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपनी यादो को व्यक्तियो और वेभवो के पीछे व्यर्थ न खपाओ... इन मोतियो को ईश्वर महा पिता के दिल पर चढ़ाओ... ये यादोे के सच्चे मोती अमूल्य हो जायेंगे...और 21 जनम सुंदर मीठे सुखो में तुम्हे बिठाएंगे...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा निरन्तर आपके ही ख्यालो में खोयी हूँ... आपके ही प्यार में देह के सारे नाते भूली हूँ... मुझे 21 जनमो का सुंदर भरपूर बनना है...इसलिए आपका साथ एक पल भी नही छोड़ना है...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - अशरीरी हो पावन बनना"

 

➳ _ ➳  मैं अज्ञानता की निद्रा से जाग ज्ञान की रोशनी में आ गई हूं... मेरे प्यारे शिव बाबा ने मुझे अपनी गोद में बिठाया है... मुझे अपना बनाया है... मुझ आत्मा को ज्ञान का तीसरा नेत्र दिया है... मैं देह नही देही हूं... मैं अशरीरी आई थी व अशरीरी ही जाना है... इसलिए मैं आत्मा इस विनाशी देह व देह के बंधनों से मुक्त होकर डिटैच होने का बार बार अभ्यास करती हूं... मैं आत्मा अलग... ये विनाशी शरीर अलग... मैं इस देह में होते देहभान से परे न्यारी... बीजरुप अवस्था में निराकारी आत्मा बीजरुप में बीज रुप पिता के सम्मुख एकदम शांत व साइलेंस अवस्था में हूं... कोई संकल्प नहीं... बसबिंदु बाप और सामने मैं बिंदु आत्मा... मैं आत्मा अपने पुराने स्वभाव संस्कारों को बाप की याद में रह भस्म करती हूं... इस पुरानी दुनिया व पुराने शरीर से मैं आत्मा बाह्य आकर्षणों से परे होकर अपने ही अन्तर्मन में झांक अपनी कमी कमजोरियों को मिटाने लिये बस एक बाप को याद करती हूं...मैं आत्मा बिंदु अपने अविनाशी बिंदु प्यारे शिव बाबा से परमधाम में बुद्धि की तार द्वारा कनेक्शन जोड़ रही हूं... प्यारे बाबा से मुझ आत्मा पर शक्तिशाली ज्वाला स्वरुप किरणें पड़ने लगी हैं... इन किरणों से मुझ आत्मा की कालिख भस्म होने लगी है... मैं आत्मा अपनी खोई हुअई चमक पुनः प्राप्त कर शक्तिशाली और पवित्र होती जा रही हूं... मैं आत्मा बाबा की याद में बैठते ही अशरीरी अवस्था का अनुभव करती हूं... मैं आत्मा सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को बाबा का परिचय देती हूं... सबको बाप का पैगाम देती हूं... हम सब आत्माओं का परमपिता परम आत्मा है... अपने को आत्मा समझ परमात्मा बाप को याद करना है... मैं आत्मा देह व देह के सब धर्मों को भूल बस एक बाप की याद में रहती हूं...

 

❉   "ड्रिल - ज्ञान और योग से हेल्दी वेल्दी बनना"

 

➳ _ ➳  मैं माया के वश होकर कमजोर हो गई... मैं अपनी पहचान भूल गई... अपनी शक्तियों को भूल गई... देहभान में आकर अज्ञानता के कारण क्यूं, क्या, क्यों में फंस दुखी होती गई... विकारों मे गिरती चली गई... इस संगमयुग पर स्वयं ज्ञानसूर्य ज्ञान के सागर बाप ने मुझ आत्मा को अपना बनाया... मुझे चोटी से पकड़ विकारों के कीचड़ से निकाला... मुझ आत्मा को ज्ञान का तीसरा नेत्र दिया... मैं आत्मा ज्ञान सागर बाप के सम्मुख हूं... प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को सच्चा सच्चा गीता ज्ञान दिया है... मुझ आत्मा को ज्ञान और योग के पंख दिए है... ज्ञान और योग के पंखों से मैं आत्मा उड़ना सीख गई हूं... मैं आत्मा  सृष्टि के आदि-मध्य-अंत का राज जान गई हूं... प्यारे बाबा ही मुझ आत्मा को तीनो कालो और तीनो लोकों का ज्ञान देकर मास्टर त्रिकालदर्शी बनाते हैं... स्वयं भगवान रोज सुप्रीम शिक्षक बन मुझ आत्मा को पढ़ाकर ज्ञान रत्नों से भरपूर करते है... मैं आत्मा अनमोल अखूट खजानों से मालामाल होती हूं... एक एक रत्न बेशुमार कीक्षती हैं... मैं आत्मा ज्ञान रत्नों से मालामाल होकर रिचेस्ट इन दा वर्ल्ड बनती हूं... बहुत धनवान बनती हूं...  प्यारे शिव पिता ही ने मुझ आत्मा को राज योग सिखाया है... मैं आत्मा अपने मोस्ट बिलवेड बाप की याद में रहती हूं... मैं आत्मा योगग्नि से अपने विकारों को दग्ध करती हूं... मैं आत्मा अपना मालिक बनती हूं... मैं अपनी आत्मा रुपी बैटरी पावर सोर्स परमात्मा से जोड़ कनेक्ट करती हूं व अपनी चार्जिंग फुल करती हूं... मैं आत्मा याद से अपने को शक्तिशाली महसूस करती हूं... मैं आत्मा शुद्ध पवित्र और मीठी बनती हूं... आत्मा शुद्ध पवित्र होने से मैं आत्मा निरोगी बनती हूं...

 

❉   "ड्रिल - एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा पंच तत्वों की दुनिया में रहते हुए इस दुनिया के आकर्षण से परे हूं... मैं माया के वशीभूत होकर रौरव नर्क में फंसती चली गई... परमपिता परमात्मा ने मुझे ओरिजनल स्वरुप की पहचान दी... प्यारे शिव पिता से पवित्रता की किरणें पड़ने से मेरी जन्मों की कालिख उतरने लगी... मैं आत्मा चमकदार बन गई... मेरा आदि निराकारी स्वरुप कितना शुद्ध और निर्मल स्वरुप है... मैं आत्मा मन बुद्धि की अधिकारी हूं... प्यारे शिव पिता से ज्ञान का तीसरा नेत्र मिलने पर सर्व कर्मेन्द्रियां मुझ आत्मा के आर्डर प्रमाण चलती है... मैं आत्मा इस शरीर की मालिक हूं... मैं आत्मा स्वराज्याधिकारी हूं... मैं आत्मा अपने पिता की सर्वशक्तियों की अधिकारी हूं... मैं मालिकपन की शक्ति से एकाग्रचित्त हो गई हूं... मुझ आत्मा के अधिकारी की सीट पर बैठने से मन बुद्धि का भटकाव बंद हो गया है... एक बाप की याद में रहने से मुझ आत्मा के विकार दूर हो गए हैं... मैं आत्मा हर कर्म करते बाप की याद में रहती हूं... अब मेरा मन तो बस एक माशूक की लगन में मगन रहता है... एकाग्रता की शक्ति से बस *एक शिव बाबा दूसरा न कोई* यही अनुभूति रहती है... एकाग्रता की शक्ति से मैं आत्मा अपनी सीट पर सेट रहती हूं... अपनी सीट पर सेट रहने से भिन्न भिन्न परिस्थितियां आने पर भी मैं आत्मा एकरस स्थिति में रहती हूं... मैं आत्मा शिव पिता की याद में रहने से दृष्टि, वृत्ति और कर्म में न्यारापन अनुभव करती हूं... मैं आत्मा मन की एकाग्रता पर अटेंशन देती हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं साक्षात्कार मूर्त आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा शिवबाबा की बच्ची हूँ... मैं ज्ञान की रोशनी वाली त्रिनेत्री आत्मा हूँ... मैं अपने प्यारे बाबुल की प्यारी बिंदी हूँ... मैं प्यारे बाबा द्वारा दी गयी शिक्षाओं को अच्छे रीती बुद्धि में धारण कर उनका स्वरुप बनने वाली सम्पूर्ण निर्विकारी आत्मा हूँ...

 

 ➳ _ ➳  मैं आत्मा ज्ञान स्वरुप... प्रेम स्वरुप... आनन्द स्वरुप  की स्तिथि में सहज ही स्तिथ होने वाली आत्मा हूँ... मैं आत्मा श्रीमत पर चलने वाली योगबल द्वारा पॉइंट रूप में स्थित होने वाली अलर्ट बच्ची हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपने इस वास्तविक "पॉइंट" स्वरूप में स्तिथ होकर अन्य आत्माओं को नज़र से निहाल करने वाली भगवान के नयनों का नूर हूँ... मैं आत्मा प्रवृति के विस्तार में रहते सर्व आत्माओं को अपने स्वरुप का... अपने फ़रिश्ते पन का साक्षात्कार कराने वाली मैं साक्षात्कार मूर्त वा सपूत आत्मा हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  हर शिक्षा को स्वरूप में ला कर साबुत देने वाले सपूत वा साक्षात्कारमूर्त होते हैं...  क्यों और कैसे?

 

❉   हर शिक्षा को स्वरूप में लाकर सबूत देने वाले सपूत वा साक्षात्कारमूर्त होते हैं क्योंकि जो बच्चे शिक्षाओं को सिर्फ शिक्षा की रीति से ही बुद्धि में नहीं रखते है, बल्कि उसे स्वरूप में लाते हैं। वही बच्चे उस शिक्षा को अपने जीवन में अच्छे से धारण करते हैं।

 

❉   शिक्षा को स्वरूव में लाने से वो उस शिक्षा के अनुभवी बन जाते हैं। इसलिये!  वह आत्मायें!  ज्ञान स्वरूप प्रेम स्वरूप आनन्द स्वरूप स्थिति में रहते हैं। वह इन गुणों के अर्थात सुख शान्ति प्रेम पवित्रता ज्ञान आनन्द और शक्तियों के स्वरूप बन जाते हैं।

 

❉  जो हर प्वाइंट को स्वरूप में लायेंगे वही प्वाइंट्स रूप में स्थित हो सकेंगे तथा अन्यों को भी उस स्वरूप में टिकने का पुरुषार्थ भी करवायेंगे। एक एक पॉइंट्स को स्वरूप में लाने से आत्मा उस पॉइन्ट को प्रैक्टिकल रूप में अपने नित्य प्रति की दिनचर्या में अर्थात कार्य में यूज़ करते हैं। 

 

❉   प्वाइंट का मनन अथवा वर्णन सहज है लेकिन स्वरूप बन अन्य आत्माओं को भी स्वरूप का अनुभव कराना है। अन्य आत्मायें भी फिर अन्य आत्माओं को करवायेंगी। इस प्रकार सारे संसार में ज्ञान का विस्तार स्वतः ही हो जायेगा।

 

❉   जब चहुँ और ज्ञान का प्रचार व प्रसार हो जाता है तब सर्व आत्मायें!  ज्ञान गुण व शक्तियों की ऑथोरिटी स्वरूप बन जाते हैं। ज्ञानी तू आत्मा का यही है सबूत देना अर्थात सपूत वा साक्षात्कारमूर्त बनना है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाओ तो मन - बुद्धि का भटकना बन्द हो जायेगा... क्यों और कैसे ?

 

❉   एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाने का मुख्य आधार है साइलेन्स पॉवर । जितना साइलेन्स का बल आत्मा में जमा होता जायेगा उतना मन बुद्धि को अपने ऑर्डर प्रमाण चलाना अति सहज होता जायेगा । मन को वश में करके मन बुद्धि को जिस स्थिति में स्थित करना चाहेंगे उसी स्थिति में स्थित कर सकेंगे और सेकण्ड में मालिकपन की सीट पर सेट हो कर मन बुद्धि को भटकने से बचा सकेंगे ।

 

❉   जितना अंतर्मुखता में रहने के अभ्यासी बनेगे उतना एकाग्रता की शक्ति बढ़ने से देह और देह की दुनिया के आकर्षणों से मुक्त हो कर एक के अंत में खोने के अनुभवी बनते जायँगे । जिससे मन बुद्धि सहज ही बाहर की दुनिया से डिटैच होते जायेंगे । मन बुद्धि का भटकना स्वत: ही बन्द होता जायेगा और मनरस स्थिति के अनुभव द्वारा मन आंतरिक ख़ुशी और आनन्दमय स्थिति में स्थित हो कर अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करता रहेगा ।

 

❉   मन के ऊपर कंट्रोलिंग पॉवर जितनी बढ़ती जायेगी उतनी ही एकाग्रता की शक्ति भी बढ़ती जायेगी । मन बुद्धि जितने एकाग्र होंगे उतना परवश स्थिति से मन बुद्धि को निकाल कर मालिकपन की सीट पर सेट करना आसान लगने लगेगा जिससे मन बुद्धि को भटकने से भी बचा सकेंगे और साथ ही साथ मन बुद्धि को हर प्रकार की हलचल से मुक्त कर, एकरस स्थिति में स्थित कर के योग की गहराई का अनुभव कर सकेंगे ।

 

❉   अंतिम समय की परिस्थितियों अथवा हंगामो के बीच एकांत की स्थिति का अनुभव तभी कर सकेंगे जब एकाग्रता की शक्ति जमा होगी क्योकि पुरुषार्थ द्वारा एकाग्र बनना यह अलग स्टेज है लेकिन एकाग्रता में स्थित हो जाना यह स्थिति इतनी शक्तिशाली है जो ऐसी श्रेष्ठ स्थिति का एक संकल्प भी बाप समान का अनुभव करायेगा । एकांतवासी हो एकाग्रता की स्थिति में स्थित होने का अभ्यास ही अंत में मन बुद्धि को भटकने से बचा कर एकांत का अनुभव करने का साधन बनेगा ।

 

❉   वर्तमान समय विश्वकल्याण का सहज साधन अपने श्रेष्ठ संकल्पो की एकाग्रता द्वारा सर्व आत्माओं की भटकती हुई बुद्धि को एकाग्र करना है । सारे विश्व की सर्व आत्माओं की चाहना यही है कि मन चंचलता से एकाग्र हो जाये । सारे विश्व की सर्व आत्माओं की यह कामना तभी पूर्ण कर सकेंगे जब स्वयं एकाग्र होंगे । इसके लिए " एक बाप दूसरा ना कोई " ऐसे निरन्तर एकरस स्थिति में स्थित रहने का अभ्यास हो तब मन बुद्धि का भटकना बन्द होगा ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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