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❍ 21 / 07 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ सब हिसाब किताब √योगबल√ से चुक्तु किये ?
➢➢ किस भी बात की ×चिंता× तो नहीं की ?
➢➢ ×घरघाट, धंधाधोरी× आदि याद तो नहीं किया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ √सम्पूरण समर्पण√ की विधि द्वारा सर्व गुण संपन्न बन्ने का पुरुषार्थ किया ?
➢➢ मन को वश में कर √मनमनाभव√ होकर रहे ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ आज बाकी दिनों के मुकाबले एक घंटा अतिरिक्त °योग + मनसा सेवा° की ?
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/21.07.16-VisheshPurusharth.htm
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/21.07.16-VisheshPurusharth.pdf
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - तुम्हे नशा होना चाहिए कि हमारा बाबा आया हुआ है,हमे विश्व का मालिक बनाने, हम उनके सम्मुख बेठे है"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे आप बच्चों का भाग्य कितना प्यारा और महान है... ईश्वर पिता सामने आ चला है... जो कल्पनाओ में भी न था वो ईश्वरीय सुख बाँहो में भर चला है... सोचो तो जरा कितना मीठा प्यारा नसीब है... कि नसीब बनाने वाला मन आँगन में आ बेठा है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने भाग्य की जादूगरी में खो गयी हूँ... आपको सम्मुख पाकर नशे में भर गयी हूँ... कोनसे पुण्यो ने आज भगवान से मिला दिया... इन मीठे अहसासो में डूब गयी हूँ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे आपके सुखो की चाहतो में परमधाम छोड़ धरती पर उतर आया हूँ... बच्चों के भाग्य को बनाने सम्मुख टीचर बन चला हूँ... वही खिले हुए फूलो सा विश्व के मालिक बनाने में जुटा हूँ... सोचो जरा कौन हूँ... कहाँ से आया हूँ... और क्या बना रहा हूँ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा पिता की यादो में विश्व की मालिक बनती जा रही हूँ... ईश्वर पिता के साथ से किस कदर निखरती दमकती जा रही हूँ... कितना शानदार भाग्य है मेरा कि ईश्वर की गोद में फूल सी खिलती जा रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे बच्चे ईश्वरीय ज्ञान रत्नों से मीठी यादो से विश्व के मालिक बन चले हो... ईश्वर पिता सामने आ चला है... सब कुछ बच्चों को लुटाने पर लुटाने आया है... सतयुगी सुखो का संसार दामन में खिलाने आया है... फूलो से महकता खुशनुमा जीवन सदा का देने आया है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा ईश्वरीय पिता के प्यार में अभिभूत हूँ... उसके साये में समीपता में पारस बन दमक रही हूँ... पूरे विश्व की मालिक बन रही हूँ... मेरे सुंदर भाग्य ने भगवान सामने ला दिया है...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - ट्रस्टी होकर रहना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा हीरोपार्टधारी हूं... इस सृष्टि रंगमच पर पार्ट बजाने आई हूं... मैं आत्मा हर कर्म ध्यान रखते हुए करती हूं कि पाप का भागीदारी न बनूं... मैं आत्मा प्यारे बाबा की याद में रहकर कर्म करती हूं... मैं आत्मा योगबल से पुराने हिसाब किताब चुकतू करती हूं... मुझ आत्मा को यह शरीर सेवार्थ मिला है... यह शरीर भी अमानत है... करनकरावनहार बाबा है... मैं आत्मा हर कर्म करते बापदादा की छत्रछाया अनुभव करती हूं... मैं आत्मा प्यारे बाबा की श्रीमत पर चलती हूं... मैं आत्मा स्वयं को बस निमित्त समझती हूं... मैं आत्मा कर्म के प्रभाव से न्यारा व प्यारा होकर करती हूं... मैं आत्मा अपना पार्ट बजाते हुए बस जिम्मेवारी समझ निभाती हूं... प्यारे परमपिता सर्वशक्तिमान शिव बाबा मेरे साथ है... प्यारे बाबा ने मुझे निश्चिंत बना दिया है... मैं बेफिकर बादशाह हूं... मैं आत्मा अपनी कर्मेन्द्रियों से कर्म कराती हूं... मैं आत्मा आत्म-अभिमानी हूं...
❉ "ड्रिल - एक बाप की याद में रहना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा संगमयुगी ब्राह्मण हूं... इस संगमयुग पर मुझ आत्मा को सच्चे परमपिता का संग मिला है... स्वयं परमपिता परमात्मा ने भाग्य बनाने की कलम मुझ आत्मा को दे दी है... मैं आत्मा बस एक प्यारे बाबा की याद में रह जितना भाग्य बनाना चाहूं बना सकती हूं... मुझ आत्मा की ये सच्ची कमाई है... पूरे कल्प में बस संगमयुग ही स्वयं प्यारे बाबा सुप्रीम टीचर बन पढ़ाते है... मुझ आत्मा को पतित से पावन बनाते है... मैं आत्मा बस प्यारे बाबा की याद में रहती हूं... मैं आत्मा पुरानी विनाशी दुनिया व पुरानी देह को भुला चुकी हूं... मैं आत्मा निर्वाह हेतु बस धन कमाती हूं... मुझ आत्मा का कर्म करते हुए बुद्धियोग प्यारे शिव बाबा से ही जुड़ा रहता है... मैं आत्मा बस कर्म करने के लिए इस साकारी लोक में आती हूं... कर्म करते कर्म के प्रभाव से न्यारी रहती हूं... मैं आत्मा प्यारे बाबा को सब सौंप सदा हल्की रहती हूं... मैं आत्मा प्यारे बाबा के प्यार की लिफ्ट में सैर कर रही हूं... मैं आत्मा उड़ता पंछी फरिश्ता बन सारे विश्व में भ्रमण कर रही हूं...
❉ "ड्रिल - मनमनाभव"
➳ _ ➳ मैं आत्मा भृकुटि के बीचोबीच चमकता एक अजब सितारा हूं... मन बुद्धि संस्कार मुझ आत्मा की शक्तियां हैं... मैं आत्मा इस शरीर की मालिक हूं... सर्व कर्मेन्द्रियाँ मुझ आत्मा के आर्डर प्रमाण चलती हैं... मैं आत्मा हाथों की कर्मेन्द्रियों से कर्म करती हूं, कानों से सुनती हूं, आंखो द्वारा देखती हूं... मैं आत्मा स्वराज्य अधिकारी हूं... मैं आत्मा अपने परमपिता परमात्मा को मन ही मन याद करती हूं... मैं आत्मा बिंदु बन बिंदु बाप से मिलन मनाने वाली मन बुद्धि संस्कारों की मालिक आत्मा हूं... मैं आत्मा देह से संकल्प मात्र भी अटैच नही हूं... चलते फिरते सब बातों से उपराम हूं... एक प्यारे शिव बाबा ही सदा श्वांसों में बसे हैं... मैं आत्मा मनमनाभव की स्थिति का अनुभव कर रही हूं...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं सदा विजयी आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳ मैं स्वयं को भृकुटि के मध्य में चमकती हुई ज्योति बिंदु सितारे के रूप में अनुभव कर रही हूँ... मैं विदेही आत्मा स्वयं को अपने निराकारी सम्पूर्ण स्वरूप में देख रही हूँ... शिवबाबा ने मुझ विदेही आत्मा को सातों गुणों से सम्पन्न कर दिया है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने आपको इस सम्पूर्ण स्वरूप में देख रहीं हूँ... अब मैं विदेही आत्मा सूर्य चाँद तारागण से भी पार सूक्ष्म लोक से परे अपने स्वदेश परमधाम में पहुँच गइ हूँ...
➳ _ ➳ परम प्रिय परमपिता शिव परमात्मा अपने सतरंगी किरणों को मुझ आत्मा पर फैला रहे है... परम शिक्षक शिवबाबा से निकलती हुई यह किरणें मुझ आत्मा के अंतर्मन को अलौकिक कर रहीं हैं...
➳ _ ➳ आत्मा का ज्ञान मेरे अन्दर स्पष्ट होता जा रहा है... मुझ आत्मा के अंदर अब संकल्प मात्र में भी बॉडी कॉन्सशियस की अवस्था नहीं रही है... परमात्मा की इन दिव्य किरणों के नीचे खड़े होकर मैं आत्मा आज अपना देह का भान प्यारे बाबा को अर्पण करती हूँ...
➳ _ ➳ अपनी लौकिक पहचान, मैं फलानी हूँ, यह संकल्प भी मैं आत्मा बाबा को अर्पण कर रहीं हूँ... मैं आत्मा सम्पूर्ण समर्पण हो अपने सर्वगुण सम्पन्न स्वरुप को निहार रहीं हूँ... आत्मा के सातों गुण मुझ आत्मा में फूलों की तरह विराजमान हो रहें हैं... सर्व सम्पन्न कर सर्वगुण सम्पन्न वा सम्पूर्ण बनना ही मुझ पुरषार्थी आत्मा का परम लक्ष्य है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा इन श्रेष्ठ संकल्पों का निर्माण कर यह अनुभव कर रहीं हूँ कि प्यारे बाबा ने मुझे विजयी भव के वरदान से भरपूर कर दिया है... मैं आत्मा सदा ही विजयी अवस्था का अनुभव करने लगी हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ सम्पूर्ण समर्पण के पुरुषार्थ द्वारा सर्वगुण संपन्न बनने का पुरुषार्थ करने वाले सदा विजयी होते हैं... क्यों और कैसे ?
❉ सम्पूर्ण समर्पण की विधि द्वारा सर्वगुण सम्पन्न बनने का पुरुषार्थ करने वाले सदा विजयी होते हैं, वो इसलिये क्योंकि वो संकल्प में भी देह के भान से मुक्त रहते हैं। अर्थात वो सोल कॉन्शियस होते हैं। बॉडी कॉन्शियस वे कदापि नहीं होते हैं।
❉ इसलिये सम्पूर्ण कॉन्शियस उसे ही कहा जाता है, जिसके संकल्प में भी बॉडी कॉन्शियसनेस ना हो। वह अपनी देह का भान भी प्रभु अर्पण कर देते हैं। मैं ये हूँ- मैं फलानी हूँ- यह संकल्प भी अर्पण कर देने से वह सम्पूर्ण समर्पण होने वाले सर्वगुणों में सम्पन्न बन जाते हैं।
❉ जो अपने को देह के भान से मुक्त रखते हैं। यहाँ तक कि मैं इस्त्री हूँ। या मैं पुरुष हूँ। अर्थात जेंडर/लिंग के भान से भी वह मुक्त होते हैं। जो इस्त्री पुरुष के भान से भी मुक्त है, वही वास्तव में सम्पूर्ण समर्पण की विधि को जानते हैं। तथा वह सर्वगुणों को धारण करने के पुरुषार्थ में भी सदा विजयी हो जाते हैं।
❉ उनमें कोई भी गुण की कमी शेष नहीं रहती हैं। वह सर्वगुणों से सम्पन्न होते हैं। वे सभी गुणों की खान होते हैं। वे सर्व ईश्वरीय खज़ानों व सर्व शक्तियों से सम्पन्न भी होते हैं। वे पवित्र दिव्यता को धारण करते हैं, तथा परम पवित्र होते हैं। वो अपना सब कुछ प्रभु के अर्पण कर देते हैं। अर्थात मैं और मेरे के भाव का भी समर्पण कर देते हैं। मैं कौन?... मैं आत्मा और मेरे क्या है?... मेरा तो बस एक ही है और वो है परमात्मा सर्व शक्तिमान।
❉ जो स्वयं को व स्वयं का जो भी समझते हैं, वह सभी कुछ समर्पण कर देते हैं तथा सर्वगुण सम्पन्न वा सम्पूर्ण बनने का लक्ष्य भी रखते हैं, तो ऐसे पुरुषार्थियों को बापदादा सदा विजयी भव का वरदान देते हैं। उनको अपने प्रत्येक कार्य में सदा विजय की प्राप्ति होती रहे, इसके लिए ये वरदान भी दे कर, उनको सर्व प्राप्ति सम्पन्न बना देते हैं तथा सभी लौकिक अलौकिक प्राप्तियाँ भी उनके चारों और इर्द गिर्द घूमती हुई नज़र आती हैं।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ मन को वश में करने वाला ही मनमनाभव रह सकता है... क्यों और कैसे ?
❉ दुनिया वाले कहते हैं मन घोड़ा है जो बहुत तेज भागता है, लेकिन जो बच्चे श्रीमत पर चलते है तो श्रीमत की लगाम उनके मन को इधर - इधर भागने नही देती । उनका मन सदा उनके वश में रहता है क्योंकि श्रीमत की लगाम मजबूत है । जब मन-बुद्धि साइडसीन को देखने में लग जाती है तो लगाम ढीला होने से मन चंचल होता है इसलिए जब भी कोई बात हो, मन चंचल हो तो श्रीमत की लगाम टाइट करने से सहज ही मनमनाभव की स्थिति में स्थित हो जायेंगे ।
❉ मन को वश में करने का सहज उपाय है अधिकारी पन की सीट पर सदा सेट रहना । बालक सो मालिक हूँ - इस स्मृति में रह जो अधिकारी बन मन को अपने वश में रखते हैं वे सदा मनमनाभव की स्थिति में स्थित रहते हैं । क्योकि बालक सो मालिक अर्थात एक तो स्वराज्य अधिकारी मालिक और दूसरा बाप के वर्से के मालिक । स्वराज्य अधिकारी का अर्थ ही है स्व की सर्व कर्मेन्द्रियां आर्डर प्रमाण हों । तो जिनकी कर्मेन्द्रियां वश में हैं उनके लिए मनमनाभव की स्थिति में स्थित रहना बहुत ही सहज है ।
❉ मन को वश में कर मनमनाभव की स्थिति में वही स्थित रह सकते हैं जो हर बंधन से स्वयं को मुक्त कर लेते हैं । क्योकि कोई भी बंधन पिंजड़ा है जो उड़ने नही देता । लेकिन जो स्वयं को ट्रस्टी समझते हैं उनके लिए प्रवृति को सम्भालने का भी बंधन नही ।क्योकि ट्रस्टी होकर सम्भालने वाले सदा निर्बन्धन रहते हैं । गृहस्थी माना बोझ और बोझ वाला कभी उड़ नहीं सकता । लेकिन ट्रस्टी हैं तो निर्बन्धन हैं और उड़ती कला से सेकण्ड में स्वीट होम पहुंच सकते हैं और मनमनाभव रह सकते हैं ।
❉ कहा जाता है " मन जीते जगत जीत " अर्थात जिसने अपने मन को जीत लिया उसने जगत को जीत लिया । क्योकि जिन्हें मन को वश में करना आता है, मायाजीत बन माया के हर तूफान का सामना करना उनके लिए सहज हो जाता है । माया
जीत बन वे सेकण्ड में प्रकृतिजीत बन जाते हैं । कर्म करने के लिए शरीर रूपी प्रकृति का आधार लेते हैं लेकिन अधीन नही बनते । इसलिए जब चाहे कर्म करने के लिए देह में आते हैं और जब चाहे अशरीरी बन आलौकिक अतीन्द्रिय सुखमय मनमनाभव स्थिति में स्थित हो जाते हैं ।
❉ जो मन बुद्धि की लगाम कसकर अपने हाथ में रखते हैं और अपनी इच्छानुसार मन को जहां स्थित करना चाहें वहां स्थित कर लेते हैं उनमे एकाग्रता की शक्ति जमा होने से रियलाइजेशन पॉवर स्वत: ही आ जाती है । जितना रियलाइज करने की योग्यता स्वयं में आती जाती है उतना वे हर बात से लिबरेट होते चले जाते हैं क्योकि रियलाइजेशन का अंतिम स्वरूप् है ही लिबरेशन अर्थात सबसे मुक्त । तो जितना जो स्वयं को विनाशी दुनिया और दुनियावी पदार्थो के आकर्षण से मुक्त कर लेते हैं उतना मनमनाभव रहना उनके लिए सहज हो जाता है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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