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 11 / 04 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

‖✓‖ बुधी से देह सहित °देह के सब सम्बन्ध छोड़° एक बाप को याद करते रहे ?

 

‖✓‖ पुकारने व चिल्लाने की बजाये अपने °शांत स्वधर्म° में स्थित रहे ?

 

‖✗‖ देह अभिमान में आकर °मैं और मेरा° शब्द तो नहीं कहा ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

‖✓‖ सेवा की स्टेज पर °समाने की शक्ति° द्वारा सफलतामूर्त बनकर रहे ?

 

‖✓‖ विस्तार को न देखने °सार को देखने वाले° व स्वयं में समाने वाले तीव्र पुरुषार्थी बनकर रहे ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

‖✓‖ °सच्चाई° से बाप को जीता ?

 

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To Read Vishesh Purusharth In Detail, Press The Following Link:-

 

http://bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/11.04.16-VisheshPurusharth.htm

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∫∫ 4 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - अभी तुम सत्य बाप द्वारा सच्ची बाते सुन सोझरे में आते हो तो तुम्हारा कर्तव्य है सबको अंधियारे से निकाल सोझरे में लाना"

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे बच्चो मै जीवन में जब नही था...  तो किस कदर दुखो के अंधकार में डूबे हुए थे... अब सत्य के प्रकाश से निखरे हो तो ओरो को भी यह उजाले भरा रास्ता दिखाओ... और पुण्यों को बढ़ाओ...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मेरे लाडलो.. ज्ञान सूर्य ने जीवन को सुनहरे सत्य की किरणों से रोशन किया है... असत्य की कालिमा को धो हीरे सा चमकाया है...तो इस सत्य सवेरे से भर...  पूरे विश्व में छायी दुखो भरी कालिमा को सदा का धो चलो...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मीठे बच्चों किस कदर दुखो के अँधेरे में भटके थे की मुझ ज्ञान सूर्य ने तकदीर को सत्य रौशनी से लबालब कर भरपूर किया है... अब आप सबकी तकदीर जगाओ...सत्य के उजाले से सबका जीवन सुखो से भरा खुशनुमा बनाओ...

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चों सत्य पिता ही सत्य को बताने का दम रखता है... बाकि सारा जहान तो झूठ से ही भरा पड़ा है... ईश्वरीय प्रतिनिधि से आप सबको असत्य के घने अंधकार से दूर निकाल सत्य से भरपूर करो... सबके दुःख अब दूर करो...

 

 ❉   मेरा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों जेसे मुझ पिता से बच्चों का दुःख देखा न गया... आप मेरे बच्चे भी सत्य रुपी सोने से सबके जीवन को स्वर्णिम बनाओ... पूरे विश्व को सुख भरे फूलो सा महकाओ... सत्य पिता की सत्य बाते सारे विश्व में एलान कर गूंजा दो...

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∫∫ 5 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-15)

 

➢➢ सिर पर जो पापों का बोझ है उसे योग अग्नि से भस्म करना है । बुद्धि से देह सहित देह के सब सम्बंध छोड़ एक बाप को याद करना है ।

 

  ❉   जैसे सोने को शुद्ध बनाने के लिए उसे आग में तपाकर उसकी एलाय निकालते है ऐसे ही 63 जन्मों से देहभान में आकर विकर्म ही करते रहे तो उस पर लगी कट उतारने के लिए अपने को आत्मा समझ परम आत्मा को याद करना है ।

 

  ❉   जैसे कोई घास फूस या झाड होता है तो उसे उखाडते है तो वो थोड़े दिन में फिर से उग आता है ऐसे ही पुराने स्वभाव संस्कारों का व पापों का जो बोझ है वो फिर रह रहकर सामने आते हैं इसलिए उसे यथार्थ याद व योग की अग्नि से भस्म करना है ।

 

  ❉   देह व देह के सब सम्बंध विनाशी है व सब कब्रदाखिल होने ही है इसलिए इनसे कोई मोह नही रखना । बस एक अविनाशी बाप को याद करना है व कामकाज करते हुए बुद्धियोग बस बाप से लगाना है ।

 

  ❉   अभी तक तो अज्ञानता के कारण देह व देहधारियों से ही रिश्ता निभाते देहभान में रह गिरते चले गए व ये हालत हो गई । रावण की दुनिया में फंसते चले गए । अब संगमयुग पर बाप ने आकर ही इस दलदल से निकाला व दिव्य बुद्धि दी तो हमें बस बाप को ही याद करना है ।

 

  ❉  देह व देह के सम्बंध निभाते तो दुःखही पाते आए व अब जब स्वयं परमात्मा बाप ने हमें अपना बनाया है व कांटो से फूल बना रहा है बाप, टीचर, सतगुरु , साथी.. सर्व सम्बंध निभा सर्व सुखो खजानों शक्तियों से भरपूर कर रहा है तो ऐसे ऊंच ते ऊंच बाप को याद करना है ।

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∫∫ 6 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-15)

 

➢➢ सेवा की स्टेज पर समाने की शक्ति द्वारा सफलता मूर्त बनने वाले मास्टर सागर होते हैं... क्यों और कैसे ?

 

  ❉   जब सेवा की स्टेज पर आते है तो अनेक प्रकार की बातें सामने आती हैं, उन सब को समा लेते हैऔर आगे बढ़ते है तो सफलता प्राप्त कर सफलता मूर्त बनते हैं । किसी के अवगुण को गुण में बदल कर, निंदा को स्तुति में बदल देते हैं और मास्टर सागर होते हैं ।

 

  ❉   जब सेवा करते हैं तो भिन्न-भिन्न संस्कारों वाली ब्राह्मण आत्माऐं सम्पर्क में आते है व सबसे संस्कार मिलान कर साथ चलते हुए थोड़ा भी हलचल में नहीं आते व हर बात को अपने अंदर समाकर सफलता मूर्त बन मास्टर सागर होते हैं ।

 

 ❉   जैसे सागर अपने अंदर सब समा लेता है व जो कूडा कर्कट होता है एक तरफ छोड़ देता है ऐसे ही मास्टर सागर बच्चे सेवा करते हुए किसी के अवगुण चित पर न धरते हुए सबका रिगार्ड करते, सबको स्नेह देते हुए समाने की शक्ति द्वारा सहज सेवा करते हुए सफलता मूर्त होते हैं ।

 

  ❉   मास्टर सागर बच्चों में विश्वकल्याण की व रहम की भावना होती हैं व सेवा की स्टेज पर कोई छोटी बड़ी बात होने पर विस्तार में न जाकर फुलस्टाप की बिंदी लगाकर बिंदी बन आगे बढ़ते हैं व अपनी सहनशक्ति द्वारा सफलता मूर्त बनते हैं ।

 

  ❉   जिनका हर संकल्प हर कर्म बाबा के प्रति होता है व बाबा ही संसार होता है तो आत्मिक स्थिति में रहने से सेवा करते हुए अपने को हर जगह मोल्ड कर सफलता मूर्त होते है व संतुष्मणि होते है और मास्टर सागर होते हैं ।

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∫∫ 7 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ विस्तार को न देख सार को देखने वा स्वयं में समाने वाले ही तीव्र पुरुषार्थी हैं... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   जो विस्तार में ना जाकर सार को देखने वा स्वयं में समाने का प्रयास करते हैं । वे क्या, क्यों और कैसे की क्यू में उलझने से बच जाते हैं और हर बात, परिस्थिति अथवा घटना को ड्रामा की भावी समझ, सेकंड में फुल स्टॉप लगा कर हर बात से उपराम हो जाते हैं । जिससे उनके पुरुषार्थ में तीव्रता आती चली जाती है ।

 

 ❉   जो पढ़ाई पर पूरा अटेंशन देते हैं और ज्ञान की हर पॉइंट पर अच्छी तरह मनन कर उसे पूरी तरह से धारणा में लाते हैं । वे अनुभवीमूर्त बन जाते हैं । और अपने अनुभव का लाभ उठाते हुए किसी भी बात के विस्तार में ना जाकर हर बात को सार में समाकर पुरुषार्थ में तीव्र गति से आगे बढ़ते चले जाते हैं ।

 

 ❉   संकल्पों की शक्ति पर ब्रेक लगाने की जब पावर होगी तो सेकंड में बुद्धि को जहां चाहे उसी दिशा में मोड़ने की शक्ति आती जाएगी । बुद्धि विस्तार में नहीं जाएगी जिससे एनर्जी वेस्ट ना होकर जमा होती जाएगी । जितनी एनर्जी जमा होती जाएगी उतनी परखने और निर्णय करने की शक्ति भी बढ़ती जाएगी । और सही निर्णय लेकर तुरंत हर बात को सार में समा लेंगे । जिससे पुरुषार्थ में तीव्रता आने लगेगी ।

 

 ❉   जो एकांतवासी बन अंतर्मुखता में रहने के अभ्यासी होंगे । वे साइलेन्स के बल से संकल्पों के विस्तार को समेट कर उसे सार रूप में ले आएंगे । व्यर्थ को समर्थ बना कर वे हर बात को स्वयं में समा लेंगे । और मन बुद्धि को एकाग्रचित बनाकर पुरुषार्थ को तीव्र बनाते जाएंगे ।

 

 ❉   बातों के विस्तार में तभी जाते हैं जब देह अभिमान में आते हैं । इसलिए देह के भान को छोड़ जितना आत्म - अभिमानी स्थिति में स्थित रहने का अभ्यास करेंगे । उतना हद के सभी आकर्षणों से, देह की पुरानी दुनियाव्यक्त भाव, वैभवों के भाव आदि सभी आकर्षणों से मनबुद्धि को निकाल एक बाप की याद में स्थिर कर सकेंगे । जिससे विस्तार को सार में समाना सहज हो जाएगा जो पुरुषार्थ में तीव्रता ले आएगा ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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