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❍ 18 / 04 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
‖✓‖ °पुण्य आत्मा° बनने का पूरा पूरा पुरुषार्थ किया ?
‖✓‖ °कर्म करते° भी बाप की याद में रहे ?
‖✗‖ अपने °धर्म को भूले° तो नहीं ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
‖✓‖ °त्याग और तपस्या° द्वारा सेवा में सफलता प्राप्त की ?
‖✓‖ अपनी तपस्या द्वारा °शांति के वाइब्रेशन° फैलाए ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
‖✓‖ °बाप को स्वीकार° करवाए बिना कोई भी वस्तु स्वीकार तो नहीं की ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ ।
✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-
➳ _ ➳ आराम से योगयुक्त स्तिथि में बैठ जाएँ... आज अपने बाबा को पूरे प्यार से याद करना है... मैं एक अविनाशी बाप की याद में मगन रहने वाली एक बिंदु आत्मा हूँ... मैं एक की ही श्रीमत पर चलने वाली, श्रीमत का पालन करने वाली आज्ञाकारी आत्मा हूँ... मैं एक के ही रस का रसपान करने वाली एकरस आत्मा हूँ... मैं एक का ही गुणगान करने वाली गुणग्राही आत्मा हूँ... मैं एक के ही साथ सर्व सम्बन्ध निभाने वाली वफादार आत्मा हूँ... मैं एक ही इश्वरिये परिवार के एक लक्ष्य - एक लक्षण को आधार बनाने वाली आत्मा हूँ... मैं एक ही याद में रहकर जन्म - जन्म के विक्रमों को भस्म करने वाली विघ्न - विनाशक आत्मा हूँ... मैं त्याग और तपस्या द्वारा सेवा में सफलता प्राप्त करने वाली सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ... मैं आत्मा अपने एक बाबा से सर्व सम्बंधों की अनुभूति करते हुए यह दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मैं किसी भी परिस्तिथि के कारण, मर्यादा के कारण, मजबूरी से कभी भी कोई त्याग नहीं करूंगी... मैं अपने मनसा संकल्प से वा ज्ञान स्वरुप से त्यागीमूर्त आत्मा बनूँगी... मैं आत्मा सदा अपने मीठे बाबा की तपस्वीमूर्त आत्मा भी बन कर रहूंगी अर्थाथ ज्ञान के सागर, प्रेम के सागर, आनंद के सागर, सुख के सागर, शन्ति के सागर बाप में ही समा जाउंगी... ये दृढ़ संकल्प कर मैं पदम्पदम भाग्यशाली आत्मा सेवा में सफलता प्राप्त करने का अनुभव कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - योगबल से ही आत्मा की खाद निकलेगी,बाप से पूरा वर्सा मिलेगा इसलिए जितना हो सके योगबल बढ़ाओ"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे बच्चो सच्चे पिता की यादे ही आप बच्चों को निखार कर उजला बनाएंगी... सारी कालिमा सुनहरे प्रकाश में तब्दील हो जायेगी मेरीे सारी सम्पत्ति के मालिक बन मुस्कराओगे...और सुख शांति से भरे जीवन में झूम जाओगे...
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे लाडलो.. सिर्फ ईश्वरीय यादे ही ऐसा जादू है जो आप बच्चे हीरे जैसा चमकते हो...अपने देवताई स्वरूप में सजधज दमकते हो...ईश्वरीय खजानो को पा जाते हो...तो इन यादो को दिल की गहराइयो से और भी गहरा करो...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चों सदा दुखी रिश्तो से नाता जोड़ा और खुद को खाली बेहाल किया...अब सांसो को मुझ सच्चे पिता में खपाओ जो हर साँस का कद्रदान बनेगा... अपनी दौलत को आप पर न्यौछावर कर लुट सा जायेगा...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चों हर रिश्ता कुछ लेने आएगा कुछ देने आएगा... पर मै विश्व पिता बिना शर्तों का प्यार ले हथेली पर स्वर्ग सजा लाया हूँ... इस सच्चे प्यार में डूब जाओ सीमाओ को तोड़ कर प्यार कर दिखाओ... की पिता मुरीद हो जाय...
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों सिवाय मेरी गहरी यादो के आत्मा की कालिमा तो धूल ही न सके... तो इस सत्य में अब खो जाओ...मेरे साये में आकर सवर जाओ...मेरी बेपनाह दौलत को ले जाओ... सुखो भरी जिंदगी के अधिकारी होकर दुखो में न उलझो...
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ पुण्य आत्मा बनने का पूरा-पूरा पुरुषार्थ करना है । देह-अभिमान छोड़ देही-अभिमानी बनना है ।
❉ अभी तक तो रावण ने बहुत भूले कराई व भूले करते करते पाप आत्मा बन गए । काम, क्रोध, अंहकार ये सब रावण कराता रहा । अब बाबा आए है हमें विकारों पर विजयी बनाने व तो हमें विकारों को छोड़ पुण्य आत्मा बनना है ।
❉ रौरव नर्क वाली दुनिया को भुलाकर बाप ने जो ज्ञान का तीसरा नेत्र दिया है व हमें अपने असली स्वरुप की पहचान दी है कि मैं देह नही आत्मा हूं । यही पाठ पक्का करना है ।
❉ हम सब आत्माओं का पिता एक ही है शिव परमात्मा । अपने को आत्मा समझ परमात्मा बाप को याद करना है । याद करने से ही विकारों की जंग उतरती जायेगी व आत्मा पावन बनती जायेगी ।
❉ जितना ज्ञान का घृत डालते जायेंगे व याद का बल जमा होता जायेगा आत्मा की लाइट तेज होती जायेगी व विकारों पर जीत पाकर विकर्माजीत बनना है व पुण्य आत्मा बनने कआ पुरुषार्थ करना है ।
❉ देह-अभिमान सबसे बड़ा विकार है व इसी विकार में आकर गिरते गिरते ये हालत हुई है । इसलिए आत्मिक दृष्टि व आत्मिक भाव रखना है । आत्मा-आत्मा भाई भाई हैं ।
❉ इस शरीर में रहते हुए कर्म करते हुए कर्मेन्द्रियों का आधार लेते हुए कर्मेन्द्रियों का मालिक बन देही-अभिमानी बनना है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ त्याग और तपस्या द्वारा सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले सच्चे सेवाधारी होते हैं... क्यों और कैसे ?
❉ मनसा, वाचा और कर्मणा तीनों सेवा साथ साथ करते हैं । मनसा सेवा से वायब्रेशनस से सेवा करते हैं व सिर्फ यही लक्ष्य रखते हैं कि हम दाता के बच्चे हैं , इसलिए सब के प्रति कल्याण की भावना रखते हैं, दाता सदैव आने वाले को हाथ खाली नहीं भेजता । अपनी त्याग और तपस्या से अपने से व सेवा से संतुष्ट रह सफलता प्राप्त करने वाले सच्चे सेवाधारी होते हैं ।
❉ किसी भी सेवा में सफलता का मुख्य साधन है त्याग और तपस्या । त्याग का अर्थ है मनसा संकल्प में भी त्याग । मजबूरी से त्याग त्याग नही , परिस्थिति में किसी चीज को छोड़ा वो त्याग नही है । तपस्वी अर्थात बाप की लगन में समाये हुए । ऐसे त्यागी व तपस्वी ही सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले सच्चे सेवाधारी होते हैं ।
❉ जिनका हर संकल्प,कर्म, बोल , सम्बंध-सम्पर्क बस बाबा के लिए ही होता है व श्रीमत व मर्यादाओं पर चलते हुए दुनिया की परवाह किए बिना आगे बढ़ते है । जो भी देखते सुनते हैं उसमें अकल्याण का रुप होते हुए भी कल्याण की बात देखते हैं । अच्छे को अच्छा समझ साक्षी होकर देखना, बुरे को रहमदिल बनकर रहम की दृष्टि से परिवर्तन कर सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले सच्चे सेवाधारी होते हैं ।
❉ जैसे ब्रह्मा बाबा ने एक झटके में ही अपना सब कुछ त्याग कर दिया व बस बाप की लगन में मगन होकर तपस्या द्वारा सेवाकर सफलता प्राप्त की ऐसे ही त्याग व तपस्या कर जो ये समझते कि मेरा बैकबोन ब्रह्मा बाप है और मुझे बाप को देखकर ही चलना है तो बाबा बाबा कहते सहज त्याग और तपस्या द्वारा सेवा में सफलता प्राप्त कर सच्चे सेवाधारी होते हैं ।
❉ जिससे सच्चा दिल का स्नेह होता है तो उसके लिए कुछ भी त्याग करना पड़ता है तो वो त्याग नही लगता व न ही कोई नाजुकपन के संस्कार होते हैं कि कैसे करुं मेरे में हिम्मत नही । फिर हमें तो बेहद का सर्वशक्तिमान बाप मिला है व जो नई दुनिया का मालिक बना रहा है । इतना ऊंच पद पाने के लिए पुराने संस्कारों का त्याग कर व तपस्या द्वारा तपाकर सफलता प्राप्त कर सच्चे सेवाधारी होते हैं ।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ अपनी तपस्या द्वारा शांति के वायब्रेशन फैलाना ही विश्व सेवा धारी बनना है... क्यों और कैसे ?
❉ जितना आवाज से परे शांत स्वरुप स्थिति में स्थित होते जाएंगे और एकांतवासी बन एक की लगन में मगन होते जाएंगे । उतना ही तपस्या के बल से अपनी अतींद्रिय सुखमय स्थिति द्वारा अनेक आत्माओं का आह्वान कर उन्हें शांति के वायब्रेशन द्वारा सच्चे सुख और शांति का अनुभव करवा सकेंगे । और विश्व सेवा धारी बन अपने शक्तिशाली वायब्रेशन द्वारा विश्व की अनेक आत्माओं का कल्याण कर सकेंगे ।
❉ जैसे साइंस के साधनो द्वारा दूर की चीज भी समीप अनुभव होती हैं । उसी प्रकार साइलेन्स की शक्ति द्वारा कहीं भी दूर रहती हुई आत्मा को शांति के वायब्रेशन द्वारा शांति का अनुभव करवा सकेंगे । अर्थात तपस्या के बल से संकल्प की सिद्धि का पार्ट बजा सकेंगे और दूर बैठी हुई आत्मा को भी अपने संकल्पों द्वारा शांत स्वरूप स्थिति का अनुभव करवा सकेंगे ।
❉ समय के प्रमाण स्वयं के पुरुषार्थ की स्पीड और विश्व सेवा की स्पीड तीव्र गति की चाहिए । इसके लिए जरूरी है सुनना, सोचना और करना तीनों को समान करते हुए चलना और यह तीनों एक समान करते हुए तभी चल सकेंगे जब तपस्या का बल आत्मा में जमा होगा । और इन संकल्पों का प्रयोग कर अपने शक्तिशाली वायब्रेशन द्वारा विश्व का कल्याण कर सकेंगे ।
❉ वर्तमान समय विश्व कल्याण करने का सहज साधन अपने श्रेष्ठ संकल्पों की एकाग्रता द्वारा सर्व आत्माओं की भटकती हुई बुद्धि को एकाग्र करना है । क्योंकि विश्व की सर्व आत्मायें यही चाहना रखती हैं कि भटकती हुई बुद्धि एकाग्र हो जाए वा मन शांत हो जाए । ऐसी भटकती हुई आत्माओं को शांति के वायब्रेशन फैलाकर शांति का अनुभव तभी करवा पाएंगे जब निरंतर एकरस स्थिति में स्थित रहकर तपस्या करने का निरंतर अभ्यास होगा ।
❉ जैसे साइंस के साधन का यंत्र तभी काम करता है जब कनेक्शन मेन स्टेशन से होता है । इसी प्रकार साइलेन्स की शक्ति द्वारा आत्माओं को शान्ति का अनुभव कभी करवा सकेंगे जब बाप दादा से निरंतर क्लियर कनेक्शन होगा । तपस्या की अग्नि निरंतर जलती हुई होगी ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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