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 30 / 05 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ एक बाप से सच्ची प्रीत रख सच्चा सच्चा पांडव बनकर रहे ?

 

➢➢ "मौत सामने खड़ा है" - यह स्मृति रही ?

 

➢➢ काम महाशत्रु पर जीत प्राप्त करने पर विशेष अटेंशन रहा ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ विश्व परिवर्तन के श्रेष्ठ कार्य की जिम्मेवारी उठाते हुए डबल लाइट रहे ?

 

➢➢ दिल और दिमाग दोनों का बैलेंस रख सेवा कर सफलता प्राप्त की ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ संकल्पों में ×व्यर्थ× की ज़रा भी अस्वच्छता न रह लाइन क्लियर रही ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं आधारमूर्त आत्मा हूँ ।

 

✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-

 

_ ➳  मैं इस सृष्टि पर अवतरित एक सतोगुणी दृष्टि वाली भाग्यशाली आत्मा हूँ... मैं आत्मा आज अपने प्यारे वतन की ओर पंछी बनकर उड़ती जा रहीं हूँ... और आ बैठी हूँ अपने मीठे बाबा के सामने और बाबा से दिव्य दृष्टि ले रही हूँ...

 

_ ➳  इस दिव्य दृष्टि से मेरी आत्मा सतोगुणी बनती जा रही है... मैं अपनी इस सतोगुणी दृष्टि से  इस सृष्टि को बदलने वाली ज़िम्मेदार आत्मा हूँ... मेरी इस दृष्टि द्वारा समस्त अशांत आत्माओं की दृष्टि तथा वृति बदलती जाती है...

 

_ ➳  सभी आत्माएं तमोप्रधान तथा राजोप्रधान से सतोप्रधान बन जाती हैं मेरे दर्शन मात्र से... इस दृष्टि से अनेक आत्माएं अपने भाग्य व भविष्य का साक्षात्कार करने में समर्थ होती हैं...

 

_ ➳  मैं आत्मा आज अपने प्यारे बाबा के समक्ष यह दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मैं आधारमूर्त बन विश्व परिवर्तन के श्रेष्ठ कार्य की जिम्मेवारी को निभाने में  अपना विशेष पार्ट अदा करुँगी... यह दृढ़ संकल्प लेते ही मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मैं आत्मा जिस भी रूप से, जहाँ भी कदम उठा रहीं हूँ, अनेक आत्माएं मुझे फॉलो कर रहीं हैं...

 

_ ➳  यह ज़िम्मेवारी लेते ही मेरी अवस्था श्रेष्ठ बन गयी है क्योंकि मुझ आत्मा को अनेक आत्माएं आशीर्वाद दे रहीं हैं... मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ की अन्य आत्माओं के आशीर्वाद पाकर मुझे ज़िम्मेवारी की थकान नहीं महसूस हो रही है, मुझे इस ज़िम्मेवारी में हल्कापन महसूस हो रहा है... और अनुभव हो रहा की यह जिम्मेवारी मेरी सर्व प्रकार की थकान मिटा रही है ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - चेरिटी बिगिन्स एट होम अर्थात जो देवी देवता धर्म के है शिव के वा देवताओ के पुजारी है, उन्हें पहले पहले ज्ञान दो"

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे जो देवताई घराने के है जिन्होंने शिव को अंतर्मन से पुकारा है... जो शिव वंशी है और अपने ही स्वरूप की पूजा में खोये हुए है... यह सच्चा ज्ञान उन्हें देकर उनकी जनमो की प्यास बुझाओ...  

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे ज्ञान की शुरुआत सबसे पहले घर से करो... मेरे देवताई बच्चों को ढूंढ निकालो जो मेरे और अपने सत्य स्वरूप को भूल चले है... उनको खोज अपनी देवताई स्मर्तियो से भर आओ... यह ज्ञान देवताओ के पुजारी बन बेठे मेरे बिछड़े बच्चों को दे आओ...

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे मेरे देवताई बच्चे जो सुध बुध खो चले है मुझे खोजते खोजते भटक चले है... इस सच्चे ज्ञान से उन शिव भक्तो को भरपूर कर आओ... सच्चा पिता धरती पर सत्य ज्ञान को ले चला आया है यह खबर सुना आओ...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चे मेरे अपने जिगर के टुकड़ो को यह ज्ञान सुनाओ... पिता उन्हें पुकार रहा और सत्य ज्ञान ले बाँट निहार रहा इस ख़ुशी से मेरे देवताई बच्चों को भर आओ... शिव की और देवताओ की पूजा में डूबे हुए बच्चों को ज्ञानरत्नो से सजा आओ...

 

 ❉   मेरा बाबा कहे - ज्ञान रत्नों को अपने ही घर में छ्लकाओ... देवताई घराने वाले बच्चों को उनकी पूजा का फल दिलवाओ... भक्ति पूरी हो चली शिव पिता धरती पर आ चूका... सतयुगी साजो सामान लिए इंतजार कर रहा... यह शिव भक्तो को जरा बताओ...

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ एक बाप से सच्ची प्रीत रख सच्चा-सच्चा पाण्डव बनना है । मौत सामने खड़ा है इसलिए पवित्र बन पवित्र दुनिया का मालिक बनना है ।

 

  ❉   अभी तक तो झूठी दुनियावी दलदल में फंसे रहे व देहधारियों से प्रीत रख दुःखी होते रहे व देहभान के कारण पतित होते गए । इस संगमयुग पर स्वयं भगवान ने हमें इस दलदल से बाहर निकाला है व हमें सच्चा गीता ज्ञान सुनाकर सच्चा पांडव बना रहे हैं । हमें ऐसे ऊंच ते ऊंच बाप से ही सच्ची प्रीत रख सच्चा पांडव बनना है ।

 

  ❉   जैसे कोई भी पेड़ होता है व वो पुराना होता तो उसकी जर्जर अवस्था हो जाती है ऐसे ही ये पुरानी दुनिया की अवस्था भी जर्जर हो गई है व विनाश होना ही है । दुनिया वाले बाम्ब बनाकर बैठे है तो बस विनाश होने ही वाला है व ये अंतिम समय है।

 

  ❉   हमारी भी वानप्रस्थ अवस्था है व अंतिम जन्म है । जब बाप से अपने बच्चों का दुख नही देखा गया व ये दुनिया इतनी पतित हो गई तो स्वयंं भगवान को आना पड़ा। बाबा भी ड्रामा में बंधायमान हैं । इसलिए अपने बच्चों को घर वापिस ले जाने के लिए आए हैं ।

 

  ❉   समय बहुत कम है व मौत सामने ही खड़ी है । हर घड़ी अंतिम घड़ी है यही सोचकर हमें अपने पुरुषार्थ को तीव्र करना है व बाप की श्रीमत का सम्पूर्ण रीति पालन करना है । बाप की याद में रहने से ही विकर्मों का विनाश करना है व पावन बनना है ।

 

  ❉   बाप कहते हैं इस अंतिम जन्म में पवित्र जरुर बनो तो हमें अपने बाप की श्रीमत का पालन करना है व पवित्र जरुर बनना है । क्योंकि नयी दुनिया सतोप्रधान हैं व पावन दुनिया में पवित्र बने बगैर जा नही सकते । इसलिए पवित्र बन पवित्र दुनिया का मालिक बनना है ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ विश्व परिवर्तन के श्रेष्ठ कार्य की जिम्मेवारी निभाते हुए डबल लाइट रहने वाले आधारमूर्त होते हैं.... क्यों और कैसे ?

 

  ❉   जो बच्चे ये स्मृति में रखते कि हम ही इस कल्पवृक्ष सृष्टिरुपी रंगमंच के आधारमूर्त है व पूर्वज आत्माऐं हैं व विश्व परिवर्तन की जिम्मेवारी बाप ने हमें सौंपी है व अपने इस कार्य के निमित्त चुना है । करनकरानवनहार तो बाबा ही है । हमारी तो बस उंगुली लगवा करवा रहा है तो बस अपने को ट्रस्टी समझ हल्के रहते हैं ।

 

  ❉   जो आधारमूर्त होते हैं उनके ऊपर सारी जिम्मेवारी रहती है । जैसा कर्म हम करेंगें हमें देख दूसरे भी वैसा फॉलो करेंगे , यह जिम्मेवारी है । ये जिम्मेवारी अवस्था बनाने में बहुत मदद करती है क्योंकि इससे अनेक आत्माओं की दुआयें मिलती हैं तो जिम्मेवारी हल्की हो जाती है , यह जिम्मेवारी थकावट मिटाने वाली है ।

 

  ❉   जो बाबा के बनते ही स्वयं को ऊंची स्टेज पर देखते कि हमें बाप ने वो स्टेज दी जो कोई छीन नही सकता है व अब ज्ञान के खजाने , खुशी के खजाने, समय के खजानों... से भरपूर होकर स्व का परिवर्तन करने वाले सत्यता के आधार पर विश्व का परिवर्तन भी बडी जिम्मेवारी से करते है और सदा लाईट माईट रहते है ।

 

  ❉   जो बाप समान बनने का दृढ संकल्प करते व बालक सो मालिक बनने की स्मृति रखते हैं व स्वयं को बाप समान सम्पन्न बनाते हैं । जो बाप का कार्य वो मेरा यह स्मृति रखते ऐसे बच्चे विश्व परिवर्तन का कार्य करते लाईट व माईट रहने वाले आधार मूर्त होते है

 

  ❉   जो बच्चे यह स्मृति रखते - जैसे बाप गुणों और शक्तियों के सागर हैं वैसे स्वयं को भी सम्पन्न अनुभव करते । स्वयं को सदा बापदादा के सहयोगी समझ विश्व परिवर्तन के कार्य में उसी लगन से लग आगे बढ़ते है व दृष्टि, वृत्ति को लौकिक से अलौकिक में परिवर्तन कर स्व का परिवर्तन करते विश्व परिवर्तन की जिम्मेवारी को निभाते डबल लाइट रहते आधारमूर्त होते हैं ।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ दिल और दिमाग दोनों का बैलेन्स रख सेवा करने से सफलता मिलती है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   जो सिर्फ दिमाग से सेवा करते हैं उन्हें दिमाग में थोड़ा टाइम बाप की याद रहती है कि हाँ बाबा ही कराने वाला है, हम निमित हैं । लेकिन कुछ समय के बाद फिर मैं - पन आ जाता हैं और जो दिल से सेवा करते हैं उनके दिल में बाबा की याद सदा रहती है । फल मिलता ही है दिल से सेवा करने का । इसलिए दिल और दिमाग दोनों का बैलेंस रख कर जब सेवा की जाती है तो स्थिति लाइट और माइट होने के कारण सेवा में सहज ही सफलतामूर्त बन जाते हैं ।

 

 ❉   अभी समय की पुकार है दातापन की स्मृति में स्थित हो कर सेवा करना अर्थात हद की नही बेहद की वृति से सेवा । चाहे स्व - उन्नति के प्रति दाता-पन का भावचाहे सर्व के प्रति स्नेह इमर्ज रूप में दिखाई दे । और वह तभी होगा जब दिल और दिमाग दोनों का बैलेन्स रख कर सेवा करेंगे । दिमाग अर्थात मन बुद्धि को खाली रखने से, व्यर्थ चिंतन से मुक्त रखने से तथा दिल को सदा साफ रखने से बाप की याद में रह निरन्तर बाप की सेवा के साथी बन सफलता प्राप्त कर सकेंगे ।

 

 ❉   दिलाराम बाप को सच्ची दिल वाले बच्चे ही पसन्द है । दुनिया का दिमाग न भी हो लेकिन सच्ची साफ दिल है तो नम्बरवन ले ही लेंगे । क्योंकि दिमाग तो बाप इतना बड़ा दे देता है जिससे रचयिता को जानने से रचना के आदि, मध्य, अन्त की नॉलेज को जान लेते हैं लेकिन सच्ची साफ दिल के आधार से ही नम्बर बनते है क्योकि सच्चे दिल की सेवा का प्रभाव दिल तक पहुंचता है । दिमाग वाले नाम कमाते हैं और दिल वाले दुआयें कमाते हैं । इसलिए दिल और दिमाग दोनों का बैलेंस रख सेवा करने से सफलता मिलती है ।

 

 ❉   सेवा तो सब करते हैं लेकिन जो सेवा करते भी सदा निर्विघ्न रहते हैं, महत्व उसका है । सेवा के बीच में कोई भी प्रकार का विघ्न न आये, ना वायुमण्डल का, ना संग का, ना आलस्य का । यदि कोई भी विघ्न आया तो मानो सेवा खण्डित हो गई । अखण्ड सेवाधारी कभी किसी विघ्न में नहीं आ सकते । जरा संकल्प मात्र भी विघ्न न हो । और निर्विघ्न हो कर सेवा में सफलता तभी प्राप्त कर सकेंगे जब सब व्यर्थ चक्रों से मुक्त रहेंगे और यह तभी होगा जब दिल और दिमाग दोनों का बैलेंस रख कर सेवा करेंगे ।

 

 ❉   दिल और दिमाग दोनों का बैलेन्स रख कर जब सेवा की जाती है तो मन बुद्धि हद की इच्छाओं और कामनाओ से मुक्त हो कर बेहद में चली जाती है जिससे बुद्धि को एकाग्र करना सहज हो जाता है । एकान्त और एकाग्रता पर विशेष अटेन्शन दे कर जब मन बुद्धि बेहद की सूक्ष्म सेवा में बिज़ी हो जाते हैं तो बाहर की परिस्थिति भल कितनी भी हलचल वाली क्यों ना हो लेकिन दिल और दिमाग से ऑनेस्ट बन जब सेवा की जाती है तो बाबा की मदद सेवा में सफलतामूर्त बना देती है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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