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 26 / 12 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *कभी भी एक दो की दिल खराब तो नहीं की ?*

 

➢➢ *ज्ञान धन का दान किया ?*

 

➢➢ *आत्मा को याद के बल से पावन बनाया ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *अपने भाग्य और भाग्य विधाता के गुण गाते रहे ?*

 

➢➢ *एकनामी और इकोनोमी से चल सफलता को प्राप्त किया ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *जिस भी गुण का अनुभव कम है, उस पर अटेंशन दे अनुभवी मूर्त बनने का पुरुषार्थ किया ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे - दिलवाला बाप आया है तुम बच्चों की दिल लेने इसलिए साफ़दिल बनो"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता को जो बाँहों में भर लिया है... तो *सातो गुणो के श्रंगार से सजकर मिलन के मधुमास में खो जाओ.*.. मीठा साजन धरा पर जो लेने आया है तो मन बुद्धि को परमात्म प्यार की चुनरी में सजा चलो... सच्ची दिल अर्पित कर परमात्म दिल को प्रेम डोरी में बांध लो...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा ईश्वर मीत को पाऊँगी और उसके दिल में समाकर ख़ुशी के गीत गुनगुनाउंगी सोचा भी न था... ऐसा मीठा सपना मुझ आत्मा ने कभी देखा भी न था... और आज *ईश्वर मीत के दिल में रहने की खुबसूरत हकीकत को*जीती जा रही हूँ...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... मनुष्यो को दिल देकर और मनुष्यो की दिल लेकर... दिल को अपवित्रता की दुर्गन्ध से भर दिया है... अब उसे ज्ञान अमृत से धोकर पावन कर चलो... और *ईश्वर महा दिल को देकर सच्चे प्रेम के महानायक बन मुस्कराओ*...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा मनुष्यो को दिल देकर कितनी पतित हो चली थी... आज ईश्वर की दिल पर चढ़ कर पावनता से महक उठी हूँ... मन बुद्धि दिल को रूहानियत की सुगन्ध और *सच्चाई से रंगी पवित्रता की ओढ़नी ओढ़ा कर ईश्वर मीत को* पेश करने वाली प्रियतमा बन चली हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... दिलवाला बाप आया है पतित दिल को लेकर पारस दिल बनाने... तो अपने दिल को पावनता की खुशबु से खिलाओ... सच्चाई सफाई से सजाकर *ईश्वर पिता के दिल की धड़कन बन चलो*... मनुष्यो ने जिस दिल को ठुकराया कभी वह दिल  ईश्वर पिता को भाया... सोचो जरा...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी खुबसूरत भाग्य वाली और दिलवाली हूँ... *कभी मनुष्यो को भी स्वीकार न थी आज ईश्वर पिता के दिल में धड़क रही हूँ.*.. महा साजन मुझे मिल गया और मै धरती आसमाँ को ख़ुशी के कदमो से नाप चली हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा सदा प्रसन्नचित हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा पदमापदम भाग्यशाली हूँ... मैं आत्मा सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य की स्मृति में रहती हूँ... स्वयं परमपिता परमात्मा ने मुझ आत्मा को गोद लिया... अब मैं आत्मा *शिववंशी ब्रह्मा मुख वंशावली श्रेष्ठ ब्राह्मण कुलभूषण* हूँ... ब्राह्मण बनते ही मुझ आत्मा को जन्म से ही ताज, तख्त, तिलक जन्म सिद्ध अधिकार के रूप में प्राप्त हो गया है... मैं आत्मा वर्तमान और भविष्य, दोनों में सर्व प्राप्तियों की अधिकारी बन गई हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा सदा अपने *भाग्य और भाग्य विधाता के गुण गाते* रहती हूँ... जिस भगवान को लोग अभी भी ढूँढ रहें हैं... न जाने कहाँ-कहाँ भटक रहें हैं... बड़े से बड़े साधू -सन्यासी भी जिसको पहचान नहीं पायें हैं... उस प्यारे परमात्मा ने मुझ आत्मा को अपने दिलतख्त पे बिठाया है... मस्तक मणि बनाया है... मैं आत्मा सर्व सम्बन्धों का सुख एक परमात्मा से लेती हूँ...

 

➳ _ ➳  मुझ आत्मा को स्वयं भगवान अमृतवेले प्यार से जगाते हैं... *ज्ञान, गुण, शक्तियों के खजानों* से मालामाल करते हैं... झोली भर-भर वरदान देते हैं... मुझ आत्मा को न कोई आडम्बर, न पूजा-पाठ, न  कोई लम्बी-लम्बी विधियां करनी पड़ती है... मैं आत्मा तो सिर्फ प्यारे बाबा की याद में बैठती हूँ... बस मुझ आत्मा के जन्मों-जन्मों के संचित कर्म भस्म हो जाते हैं... कड़े से कड़े पुराने स्वभाव संस्कार पल भर में नष्ट हो जाते हैं...

 

➳ _ ➳  मुझ आत्मा का भविष्य भी कितना सुनहरा है... मैं *आत्मा ही देवताई स्वरूप धारण* करती हूँ... मैं आत्मा 21जन्मों तक स्वर्ग सुख भोगती हूँ... मैं आत्मा ही विश्व का मालिक बनती हूँ... प्रकृति की भी मालिक बनती हूँ... मैं आत्मा ही पूज्य स्वरूप धारण कर भक्त आत्माओं को वरदान देती हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपने भाग्य के चमकते हुए सितारे को देखते हुए सदा खुश रहती हूँ... मैं आत्मा सदा अपने भाग्य के गुण गाते रहती हूँ... अब मैं आत्मा कभी भी अपनी कमजोरियों के गुण नहीं गाती हूँ... अब मैं आत्मा क्यों, क्या जैसे प्रश्नों से सदा पार रहती हूँ... मैं आत्मा प्यारे बाबा से सदा प्रसन्नचित रहने का वरदान प्राप्त करती हूँ... दूसरों को भी सहज ही प्रसन्न करती हूँ... अब मैं आत्मा अपने भाग्य और भाग्य विधाता के गुण गाने वाली *सदा प्रसन्नचित हूँ*...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- एकनामी और इकानामी से चल ब्राह्मण जीवन में सफलता प्राप्त करना।"*

 

_ ➳  मैं ब्राह्मण आत्मा... पूरे विश्व में सर्वश्रेष्ठ आत्मा हूँ... मैंने भगवान को पहचाना है... वाहा मेरा भाग्य जो भगवान की नज़र मुझ पर पड़ी... *पाना था सो पा लिया...* जन्म-जन्म जिस भगवान को पाने के लिए... भक्ति करती आई... अंततः वह घड़ी आई जब भगवान मुझे मिले हैं... उन्होंने मुझे अपना बनाया हैं... 5000 वर्षों के लम्बे समय के बाद और मेरी कड़ी तपस्या के बाद भगवान मुझे मिले हैं... मेरी भक्ति का फल देने भगवान आये हैं...मैं कितनी सौभाग्यशाली आत्मा हूँ... 

 

_ ➳   अब तो एक पल भी उनसे नजर नहीं हटती... बड़ी मुश्किल से मिले हैं... तो बस जी चाहता हैं... की हर पल उनका दीदार करती रहूँ... *मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई...* उनके नाम से दिन शुरू... तो उनसे ही दिन खत्म... एकनामी बन... बस बाबा, बाबा... यही हर संकल्प में... तो यही हर बोल में... एक ही लगन में मगन मैं ब्राह्मण आत्मा एकनामी हूँ... बस एक शिव बाबा से ही मेरे सर्व सम्बन्ध हैं...

 

_ ➳  एकनामी के साथ ही मैं इकनामी से चलने वाली आत्मा भी हूँ... हर स्वाँस, हर संकल्प, हर सेकण्ड को सफल करने वाली... व्यर्थ से मुक्त हूँ...  बाबा ने मुझे संगम युग के एक-एक पल का महत्व बताया हैं... *एक-एक पल में पद्मो की कमाई हैं...* संगम का एक-एक संकल्प मेरे भविष्य राजाई को घड़ता है... मेरा हर सेकण्ड, हर स्वाँस, हर संकल्प कीमती हैं, बाबा की अमानत है... इन्हें मुझे बहुत इकनामी से खर्चना हैं...

 

_ ➳  एकनामी और इकनामी से चलने से मैं ब्राह्मण आत्मा कदम-कदम पर सफलता का अनुभव करती हूँ... एकनामी और इकानामी से चलना ही ब्राह्मण जीवन में सफलता का आधार है... *मैं सफलतामूर्त आत्मा हूँ...*

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *अपने भाग्य और भाग्य विधाता के गुण गाने वाले सदा प्रसन्नचित होते हैं...  क्यों और कैसे?*

 

❉   अपने भाग्य और भाग्य विधाता के गुण गाने वाले सदा प्रसन्नचित होते हैं क्योंकि...  सभी ब्राह्मण बच्चों को जन्म से ही ताज, तख़्त और तिलक जन्म सिद्ध अधिकार के रूप में प्राप्त होता है। तो इस भाग्य के चमकते हुए सितारे को देखते हुए *अपने भाग्य और भाग्य विधाता के गुण गाते रहने से*हम गुण सम्पन्न बन जायेंगे।

 

❉   इसलिये हमें सदा ही अपने भाग्य को और भाग्य को बनाने वाले भाग्य विधाता के गुणों को गाते रहना है। गुणों को गाते रहने से हम सदा ही प्रसन्नचित रहेंगे। *बाप का बनने के बाद भी अगर प्रसन्न नहीं रह सके* तो क्या हम भाग्यवान कहलायेंगे, नहीं न! 

 

❉   अतः हमें सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य को स्मृति में रख कर चलना है तथा सदा ही अपने भृकुटी रुपी तख़्त पर विराजमान रहना है तथा *पवित्रता के ताज और आत्म स्मृति के तिलक को* सदा ही अपने मस्तक पर धारण करना है। अभी नहीं करेंगे तो कब करेंगे।

 

❉   हम सभी बाबा के बच्चों को संगमयुग पर ही ये ताज तख़्त और तिलक का भाग्य जन्म के साथ ही प्राप्त हो जाता हैअतः!  *अपने उज्जवल भाग्य के नशे में रह कर* सदा ही प्रसन्नचित रहना है, क्योंकि अभी भाग्य विधाता हमें, पिता के रूप में प्राप्त है।

 

❉   हम आत्माओं को उन्होंने अपना बच्चा बनाया है। इसलिये हमें *अपनी कमजोरियों के कभी भी गुण*नहीं गाने हैं बल्कि! अपने भाग्य के गुण गाते रहना है तथा सभी प्रकार के प्रश्नों से पार ही जाना है। तब हमें सदा ही प्रसन्नचित रहने का वरदान प्राप्त हो जायेगा। फिर सहज ही दूसरों को भी प्रसन्न कर सकेंगे।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *एकनामी और इकॉनामी से चलना ही ब्राह्मण जीवन में सफलता का आधार है... क्यों और कैसे* ?

 

❉   संगम युग पदमों की कमाई का समय है । इसलिए समय के महत्व को जानकर *जो ब्राह्मण बच्चे बचत के खाते को सदा स्मृति में रखकर बजट बनाते हैं* । अर्थात एकनामी और इकॉनामी से चलते हैं । और इस बात पर पूरा अटेंशन रखते हैं कि संकल्प शक्ति, वाणी की शक्ति, कर्म की शक्ति और समय की शक्ति को कैसे और कहां कार्य में लगाएं कि सर्व आत्माओं का कल्याण हो । इस प्रकार का ईश्वरीय बजट बना कर चलने वाले ही ब्राह्मण जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं ।

 

❉   संगम युग पर बापदादा द्वारा हर ब्राह्मण बच्चे को ज्ञान, गुण, शक्तियां और खजाने विरासत में मिलते हैं । इस *ज्ञान, गुण, शक्तियों और खजानों का प्रयोग जो ब्राहमण बच्चे  एकनामी और इकॉनामी के साथ करते हैं* । उनका एक भी गुण, शक्ति और खजाना व्यर्थ नहीं जाता । हर गुण, शक्ति और खजाने को कर्म में कैसे लाया जाये कि बचत भी हो और व्यर्थ भी ना जाये । यह प्लैन बनाकर वे हर गुण, शक्ति और खजाने को सफल कर अपने जीवन में सफलता प्राप्त करते चले जाते हैं ।

 

❉   जो समय को महत्व नहीं देते और अपनी शक्तियां वा समय व्यर्थ चिंतन और व्यर्थ बातो में गंवा देते हैं । तो व्यर्थ होने के कारण जमा नही हो पाता और जमा का खाता ना होने के कारण जो खुशी वा शक्तिशाली स्टेज का अनुभव होना चाहिए वह चाहते हुए भी नहीं कर पाते । इसलिए *जो ब्राह्मण बच्चे दो बातों पर विशेष अटेंशन देते हैं । एक तो व्यर्थ नहीं करते और दूसरा वेट कम करते हैं* । वही  एकनामी और इकॉनामी से चलते हुए ब्राह्मण जीवन में सदा सफलता प्राप्त करते चले जाते हैं ।

 

❉   जैसे लौकिक में भी जितना बड़ा परिवार होता है । उतना ही इकॉनामी का ख्याल रखा जाता है । हमारा भी यह बेहद का ईश्वरीय परिवार है । और *हमारा कर्तव्य है विश्व कल्याणकारी बन सर्व आत्माओं का कल्याण करना* । तो उसी प्रमाण सर्वशक्तियों वा सर्व खजानो का सिर्फ अपने प्रति नही लेकिन अनेक आत्माओं की सेवा के प्रति भी स्टॉक जमा होना चाहिए । जो ब्राहमण बच्चे अपनी इस जिम्मेवारी को समझते हुए सर्व शक्तियों और खजानों को जमा कर एकनामी और इकॉनामी से चलते हैं वही सफलतामूर्त बनते हैं ।

 

❉   हम ब्राह्मणों का स्लोगन ही है  " कम खर्च बाला नशीन " और वह तभी बन सकेंगे जब एक तो हर सेकंडहर संकल्प को स्वयं के प्रति शक्तिशाली बनाने में वा सर्व आत्माओं की सेवा अर्थ कार्य में लगाएंगे तथा दूसरा वेट  कम करने के लिए पिछले जन्मों के हिसाब किताब को योगबल से चुक्तु करेंगे ।  इसलिए व्यर्थ से बचने के लिए और *विकर्मों के बोझ को कम करने के लिए जरूरी है बचत और बजट का बैलेन्स बना कर चलना* । तो जो ब्राह्मण बच्चे यह बैलेन्स बना कर एकनामी और इकॉनामी से चलते हैं वही जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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