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 02 / 08 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ "हर बात में कल्याण है" - यह स्मृति रही ?

 

➢➢ मन बुधी से सरेंडर होकर रहे ?

 

➢➢ श्रीमत पर खर्चा किया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ "तोडना, मोड़ना और जोड़ना" - इन तीन शब्दों की स्मृति रही ?

 

➢➢ सदा क्लीन और क्लियर रह योगी बनकर रहे ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ आज बापदादा से कुछ लिया ? और बापदादा को कुछ दिया ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - बाप और वर्से को याद करने में तुम्हारी कमाई भी है तो तंदुरुस्ती है तुम अमर बन जाते हो"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे सच्चे प्यारे पिता की यादो में इस कदर कमाई है.... अमीरी है कि सारे सुख कदमो में बिखरे बिखरे से है... और यही यादे सुंदर जीवन तंदुरुस्ती सुंदर काया का भी जरिया बन महकती है... और अमरता को पाकर सदा का मुस्कराते हो...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा आपने यादो भर से... सदा का अमीर सदा का तन्दुरुस्त सदा का अमर बना दिया है... आपकी मीठी यादो में और खूबसूरत सुखधाम की स्म्रति में खोकर मै आत्मा क्या से क्या हो चली हूँ...

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे.... यादे कितना सुंदर फूलो भरा मखमली सा अहसास है कि यादो की पंखुड़ियों पर चलते चलते महा धनी बन सज जाते हो... खूबसूरत जीवन को पाते हो... सारे भयो से मुक्त हो सदा के अमर बन सुखधाम में इठलाते हो....

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... अपने मीठे बाबा की सुखभरी याद और सुंदर सुखधाम से जीवन मधुमास हो चला है... नश्वर समझ कर जी रही थी... आज अमरता के वरदानों से सज चली हूँ... सुंदर तन सुंदर मन से निखर उठी हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देह के रिश्तो की यादो ने ने खाली और शक्तिहीन किया... अब सच्चा पिता सच्चे सुखो को सच्ची अमीरी को अमरत्व को उपहार सा ले आया है... विश्व पिता सुनहरे सुखो को दामन में भर बच्चों पर लुटाने आया है... उसकी मीठी प्यारी यादो में खो जाओ... यह यादे अनोखा कमाल कर जीवन सुनहरा कर देंगी...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा दीन हीन सी... म्रत्यु के भय से भयभीत सी... गरीब जीवन को अटल सत्य मान चली थी... आपने आकर मुझे बाँहो में भर लिया... मुझे इतना प्यार कर अमर कर दिया... मै आपको मीठी यादो में खोयी खोयी सी हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - संगमयुग में हर बात में कल्याण"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा संगमयुगी ब्राह्मण हूं... मैं आत्मा पदमापदम भाग्यशाली हूं... जिस परमात्मा को दुनिया वाले ढू़ढ़ रहे है... एकक्षण के दर्शन को भटक रहे है... इस संगमयुग पर ही परमपिता परमात्मा ने स्वयं कोटों में कोई व कोई मे से भी कोई में चुनकर अपना बनाया... स्वयं ज्ञानसागर बाप आकर ही समझाते है ज्ञान देते हैं... हम बच्चे ही जानते है कि कल्प कल्प संगमयुग होता है... निराकार भगवान ही ब्रह्मा बाबा के तन का आधार लेकर हमें ज्ञान देते है... मुझ आत्मा को घोर अंधियारे से निकाल ज्ञान की रोशनी देते हैं... संगमयुग पर ही आत्मा और परमात्मा का मिलन होता है... संगमयुग पर जब स्वयं परमात्मा सदैव मेरे साथी हैं तो हरपल मुझ आत्मा का कल्याण है... परमात्मा का साथ होने से मुझ आत्मा का अकल्याण हो नही सकता... मुझ आत्मा को सृष्टि के आदि मध्य अंत का सारा ज्ञान देते है... कोई भी धर्म गुरु भी ये ज्ञान दे नहीं सके... स्वयं भगवान हमें पढ़ाकर आप समान मास्टर भगवान भगवती बनाते है... मैं आत्मा रुहानी पढ़ाई पढ़कर अविनाशी कमाई करती हूं... मैं आत्मा पढ़ाई पढ़कर पतित से पावन बन रही हूं... मैं आत्मा अपने बाप को और वर्से को याद कर 21 जन्मों के लिए राजाई पद पाने के लिए पुरुषार्थ करती हूं...

 

❉   ड्रिल -  प्रवृत्ति में रहते मन-बुद्धि से सरेंडर होना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अज्ञानता के कारण स्वयं को देह समझ बैठी... अपने ओरिजनल स्वरुप को भूल गई... और रावण के चुंगल में फंस उसकी बंधिनी हो गई... स्वयं प्यारे परमपिता परमात्मा ने इस रावण के चुंगल से निकाल आजाद कर दिया है... मुझ आत्मा को ज्ञान का तीसरा नेत्र मिल गया... मुझ आत्मा को ज्ञान मिल गया कि ये शरीर विनाशी है... अब मुझ आत्मा को इस देह की दरकार नही है... मैं ये शरीर नही देही हूं... मैं मनबुद्धि की अधिकारी आत्मा हूं... सभी कर्मेन्द्रियां मुझ आत्मा के आर्डर प्रमाण ही चलती हैं... मैं आत्मा इस साकार लोक में पार्ट बजाने आई हूं... मैं आत्मा इस गृहस्थ परिवार में रहते बस अपनी जिम्मेदारी निभाती हूं... मैं मन बुद्धि से इस पुरानी दुनिया व पुराने देह के सम्बंधों को भुला चुकी हूं... मुझ आत्मा के दिल में तो बस दिलाराम बसता है... और मैं दिल से प्यारे बाबा की हो गई हूं... यह तन-मन-धन सब प्यारे बाबा का ही है... मैं आत्मा तो बस निमित्त हूं... ये शरीर भी प्यारे बाबा की अमानत है... मुझ आत्मा की परवरिश प्यारे बाबा के हाथ में है... मैं आत्मा बस एक बाप की श्रीमत पर ही खर्चा करती हूं... मैं आत्मा प्यारे बाबा के भंड़ारे से ही खाती हूं... प्यारे बाबा के भंडारे से ही सब प्राप्त करते मैं आत्मा अकाले मृत्यु के डर से, दुख दर्द से दूर होती हूं...

 

❉   "ड्रिल - सदा योगी की स्थिति का अनुभव करना"

 

➳ _ ➳  मैं अजर, अमर, अविनाशी बिंदु रुप आत्मा हूं... यही मेरा अनादि, आदि स्वरुप है... मुझ आत्मा को अपने निजी स्वरुप में स्थित होना है... मुझ आत्मा के परमपिता परमात्मा भी मुझ जैसे सुप्रीम बिंदु है... मुझ आत्मा को निरंतर एक बाप की याद मे रहना है... श्वांसो-श्वांस एक बाप को याद करते रहना है... याद में रहने से ही मुझ आत्मा की खाद निकलती जाती है... याद में रहने से मुझ आत्मा के विकर्म विनाश हो जाते है... मुझ आत्मा की लाइट तेज होती जा रही है... मुझ आत्मा के सर्व सम्बंध बस एक प्यारे बाबा से है... बाबा ही मुझ आत्मा का संसार है... मैं आत्मा प्यारे बाबा संग ही खाती हूं... बैठती हूं... बाबा संग ही चलती हूं... बस एक की ही लगन में मगन रहती हूं... मैं आत्मा दुनियावी आकर्षण से परे रहती हूं... मुझ आत्मा का बुद्धियोग बस एक बाबा के साथ ही जुड़ा रहता है... मनबुद्धि से प्यारे बाबा को ही सरेंडर हूं... बस एक प्यारे बाबा की याद में रहने से मेरी बुद्धि क्लीन व क्लीयर हो गई है... मैं आत्मा बाबा की याद में रहते योगयुक्त स्थिति का अनुभव करती हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं आत्मा सदा विजयी हूँ ।"

 

➳ _ ➳  मैं रूहानी आत्मा हूँ... मेरी गँवाई हुई तकदीर को फिर पाने के लिए तदबीर करने वाला एक बाप ही है... वह ही हम आत्माओं को सुख धाम का मालिक बनाते हैं... मैं आत्मा स्तुति, निंदासुख दुःख की बातों को समझ सकती हूँ... रचयिता और रचना का नॉलेज अब मेरी बुद्धि में है...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा बाप से शान्ति लेती हूँ... सुख लेती हूँ... नई दुनिया के लिए राजाई भाग्य लेती हूँ... मैं आत्मा अपने हिसाब-किताब चुक्तू करके शन्तिधाम और सुखधाम में जाने का पुरषार्थ निरन्तर कर रहीं हूँ... ईश्वर की गत मत ईश्वर ही जाने...

 

➳ _ ➳  वह ही मुझ आत्मा को तमो प्रधान से सतोप्रधान बनाते हैं... पतित से पावन बनाते है... सृष्टि के आदि-मध्य-अंत की नॉलेज देते हैं... मैं आत्मा घोर अँधियारे से घोर सोझरे मे जा रही हूँ... मैं आत्मा देवता बन रही हूँ... मैं आत्मा यह रुहनी पढ़ाई पढ़ रहीं हूँ... मैं आत्मा सदा इस स्मृति में रहने वाली आत्मा हूँ कि इन नयनों द्वारा दिखने वाली हर चीज़ विनाशी है...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा इस रूहानी पढाई और शिक्षाओं का सार स्वरुप बन रहीं हूँ... इस रूहानी पढ़ाई का सार है 1. कर्मबन्धन मुक्त होना... 2. अपने संस्कार-स्वाभाव को मोड़ना... 3. एक बाप से सर्व सम्बन्धों का अनुभव करना... मैं आत्मा इन तीनों ही सार रूपी शब्दों को सदा ही अपनी स्मृति में रखकर कल्प-कल्प की विजयी आत्मा होने का अलौकिक अनुभव कर रहीं हूँ  ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  तोडना, मोड़ना और जोड़ना-इन तीन शब्दों की स्मृति वाले सदा विजयी होते हैं...  क्यों और कैसे?

 

❉   तोडना, मोड़ना और जोड़ना-इन तीन शब्दों की स्मृति में रहने वाले सदा विजयी रहते हैं क्योंकि हमें अपने 63 जन्मों से जो भी कर्म बन्धनों को बनाया है उन सभी कर्म बन्धनों को तोडना है।

 

❉   साथ ही साथ अपने स्वभाव संस्कारों को भी मोड़ना है। अर्थात अपने शुद्रपन के संस्कार जो कि 63 जन्मों तक माया रावण के संग करने के फल स्वरूप हमें प्राप्त हुए हैं उनको अब संगमयुग पर बाबा कि श्रीमत पर चल कर मोड़ना है।

 

❉   अतः हमें अपने शुद्रपन के संस्कारों को मोड़ कर दिव्य बनाने हैं। अर्थात उन शुद्रपन के संस्कारो को दैवी संस्कारों में परिवर्तित करना है। तभी तो हम परम पिता परमात्मा के सानिध्य को प्राप्त कर सकेंगे और एक परम पिता परमात्मा से अपने सभी नाते जोड़ सकेंगे।

 

❉    अब हमको सिर्फ एक बाप के संग ही सर्व सम्बन्धों को निभाना है। दुनिया से तो बहुत सम्बन्ध निभा कर देख लिया...  परिणाम स्वरूप सीढ़ी ही उतरते आये हैं लेकिन अब बाप संग समस्त रिश्ते नाते निभाने से बाबा हमें लिफ्ट से ऊपर चढ़ा देते हैं। अर्थात सम्पूर्ण देवत्व प्रदान कर देते हैं।

 

❉   सारी पढाई और शिक्षाओं का सार यह तीन शब्द हैं- 1. कर्मबन्धन तोड़ने हैं। 2. अपने संस्कार-स्वभाव को मोड़ना है और 3. एक बाप से सर्व सम्बन्ध जोड़ने हैं। यही तीन शब्द सम्पूर्ण विजयी बना देंगे। इसके लिये ये स्मृति रहे कि जो भी इन नयनों से विनाशी चीजें देखते हैं, वह सब विनाश हुई पड़ी हैं। उन्हें देखते भी अपने नये सम्बन्ध, नई सृस्टि को देखते रहो, तो कभी हार हो नहीं सकती।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  योगी की निशानी है - सदा क्लीन और क्लीयर... क्यों और कैसे ?

 

❉   जैसे टेलिविजन का बटन दबाते ही सारा नज़ारा टेलीविजन में आ जाता है । इसी प्रकार जो संकल्प करें वैसा चित्र बुद्धि में क्लीयर खिंच जाये और बाप से सीधा कनेकशन जुट जाये । ऐसी अवस्था तभी बनेगी जब बुद्धि में सभी बातें समाप्त हों और सिर्फ श्रीमत की आज्ञा जो मिली हुई है वही चलती रहे और कुछ भी मिक्स ना हो । ऐसे जिनकी बुद्धि बिल्कुल क्लीन एंड क्लीयर होती है तथा अपने संकल्पों से जो किसी भी आत्मा को प्रेरणा दे सकते हैं उन्हें ही योगी आत्मा कहा जाता है ।

 

❉   जो सच्चाई और सफाई को अपने जीवन में धारण कर बाबा से सदा सच्चे रहते हैं बाबा भी कदम कदम पर उन्हें मदद करता है । हर बात बाबा क्लीन करके क्लीयर करता है । हर बात में समझानी देता है । हर बात सार में समझाता है । और इन बातों को वही कैच कर सकते हैं जिनकी बुद्धि स्वच्छ होती है । इसलिए जो दिल और दिमाग से बाप के प्रति सदा ऑनेस्ट रहते हैं उनकी बुद्धि उतनी ही क्लीन एंड क्लीयर होती जाती है जो उन्हें निरन्तर योगी बना देती है ।

 

❉   कहावत है कि शेरनी के दूध के लिए सोने का बर्तन चाहिए । ठीक इसी प्रकार परमात्मा बाप द्वारा दिया जाने वाला ये श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ ज्ञान भी उनकी बुद्धि में ठहर सकता है जिनका बुद्धि रूपी बर्तन सोने का हो अर्थात जिसमे विकार रूपी गन्दगी का अंश मात्र भी किचड़ा ना हो । इस बुद्धि रूपी बर्तन को शुद्ध रखने का एक मात्र उपाय है ज्ञान का मनन और योग का बल । इसलिए जो ज्ञान और योग से अपने बुद्धि रूपी बर्तन को सदा क्लीन एंड क्लीयर रखते हैं, वही सच्चे योगी कहलाते हैं ।

 

❉   परचिंतन और परदर्शन की धूल से जो स्वयं को सदा बचा कर रखते हैं तथा सदैव सर्व के शुभ चिंतक बन सर्व आत्माओं के प्रति शुभ भावना और शुभकामना रखते हुए सबके प्रति कल्याणकारी वृति रखते हैं । वे परमात्म प्रेम और शक्तियों से सदैव भरपूर रहते हैं । परमात्म बल उनकी आत्मा में जैसे जैसे भरता जाता है वैसे वैसे आत्मा में निखार आने लगता है । बुद्धि क्लीन और क्लीयर होने लगती है और बुद्धि योग निरन्तर एक बाप के साथ जुटने से आत्मा अमूल्य हीरा बनने लगती है । यही योगी आत्मा की निशानी है ।

 

❉   बुद्धि को क्लीन और क्लीयर रख जो श्रीमत के इशारे प्रमाण सेकण्ड में न्यारे और प्यारे बन स्वयं को ज्ञान योग की लाइट और माइट से सदा सम्पन्न रखते हैं तथा योग के बल से किसी भी परिस्थिति को सेकण्ड में पार कर लेते हैं । जिन्हें योग लगाना नही पड़ता । लेकिन सदा बाप दादा के साथ कम्बाइंड और सदा सहयोगी आत्मा बन सदैव उड़ती कला में रह सम्पन्नता और सम्पूर्णता का अनुभव करते हुए जो औरों को भी सम्पन्न स्थिति का अनुभव कराने वाले होते हैं वे ही सहजयोगी स्वत: योगी कहलाते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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