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❍ 29 / 05 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ सब √रस्सियों को तोड़√ सुख के सागर में लहराते रहे ?
➢➢ स्वयं को टीचर न समझ √सेवाधारी√ बनकर रहे ?
➢➢ √मास्टर सर्वशक्तिवान√ की स्थिति का अनुभव किया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ संकल्पों में ×व्यर्थ× की ज़रा भी अस्वच्छता न रह लाइन क्लियर रही ?
➢➢ दिव्य बुधी द्वारा √दूर रहने वाली आत्माओं को पास√ अनुभव किया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?
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➳ _ ➳ http://bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/29.05.16-VisheshPurusharth.htm
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं मायाजीत सो जगतजीत विजयी आत्मा हूँ ।
✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-
➳ _ ➳ योगयुक्त स्तिथि में अपने आपको स्तिथ कर अपने आत्मिक स्वरुप की स्मृति में आ जाएँ और विचार दें... हे आत्मा तुम, अमर हो... अविनाशी हो... तुम्हारा अनादि सो आदि स्वरुप परम पवित्र है...
➳ _ ➳ तुम सदा के लिए इस धरा पर नहीं आई थी... तुम 84 जन्मों का पार्ट बजाने अपने असली घर परमधाम से आती हो... और भिन्न - भिन्न नाम रूप से शरीर धारण कर पार्ट बजाती रही हो... तुम्हारे आदि के 21 जन्म सदा सुखदायी, शांति, प्रेम और पवित्रता से सम्पन्न थे...
➳ _ ➳ फिर मध्यकाल में तुम्हारे आदि संस्कारों पर रावण का परछाया पड़ जाता है जिससे तुम अपनी ओरिजिनल चमक खोने लगती हो... अब तुम इस विकर्मी खातों को मन - बुद्धि से निकालकर परमधाम, अपने घर वापिस जाने का निश्चय करो...
➳ _ ➳ इमर्ज करेंगे अब अपने वास्तविक स्वरुप को... मैं आत्मा प्रेम वा सौहृदय, पवित्रता और सुख - शांति जैसे देवी गुणों से सम्पन्न हूँ... मैं आत्मा परम पूज्य, परमप्रिय, सदा पवित्र, निराकारी परमपिता शिव की संतान हूँ...
➳ _ ➳ मेरे पिता अविनाशी हैं... सर्वशक्तिमान हैं... और आत्मा उन सर्वशक्तिमान पिता की संतान मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ... मैं आज अपने सर्वशक्तिमान बाप से उनकी शक्तियों का आवाहन कर ये दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मैं आत्मा सदा मास्टर सर्वशक्तिमान की स्तिथि में स्तिथ रहकर कभी भी यह नहीं सोचूंगी की माया क्यों आ गयी...
➳ _ ➳ मैं आत्मा माया के छोटे - छोटे रूपों को स्वयं को मायाजीत बनाने के लिए निमित्त समझूँगी... मैं आत्मा स्वयं को मायाजीत, जगतजीत समझ माया पर विजय प्राप्त करुँगी... मैं कभी भी कमज़ोर वृति वाली आत्मा न बनकर चैलेंज करने वाली बनूँगी...
➳ _ ➳ इन्हीं संकल्पों के साथ मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि माया भी मुझसे हार रही है... माया मुझ आत्मा को घबराया हुआ देख बार - बार वार नहीं कर रही है... मैं आत्मा विजयी बन गयी हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "संकल्प शक्ति का महत्व"
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे लाडलो आप सर्वशक्तिवान पिता के बच्चे मा सर्वशक्तिवान मा ज्ञानसागर हो... इस खूबसूरत नशे में डूब जाओ... आपके संकल्पों में कमाल का जादू है उसे प्रयोग में लाओ... अब श्रेष्ठ संकल्पों से मेहनतमुक्त अवस्था को पाओ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे ईश्वर पुत्र बने हो तो ईश्वरीय खजानो से भी भरपूर हो चले हो... सारी शक्तिया सारे खजानो को मुट्ठी में समा चले हो... इस भाग्य को जीने में लाओ... शुभ संकल्प श्रेष्ठ संकल्प से फ़रिश्ते सी स्तिथि पाओ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चे आपकी श्रेष्ठ स्तिथि शुभ संकल्प सब कुछ सरल बना देगी... जीवन मेहनत नही मुहोब्बत ख़ुशी से भरपूर होगा... सब कुछ आसान सा होता चलेगा... आपकी रूहानियत भरी अदा से सब सिद्ध होता चलेगा... शक्तिशाली संकल्प पर सारा मदार है...
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे सुखदायी पिता के सुख भरे बच्चे हो... दुःख तो आप बच्चों को छु भी नही सकता... जहाँ कदम रखोगे सुख का गलीचा बिछा मिलेगा... संकल्पों से सुख छलकता रहेगा... सारी प्राप्तियां आप बच्चों के पीछे पीछे परछाई बन चलेंगी...
❉ मेरा बाबा कहे - कितना शानदार आप बच्चों का भाग्य है... ईश्वर स्वयं आप पर फ़िदा हुआ है... सारी अदाएं ईश्वरीय बन गयी है... संकल्पों से सिद्धि हुई पड़ी है... श्रेष्ठ खूबसूरत स्तिथि बाँहो में सुखदायी जन्नत लिए हुए है... बिना मेहनत के मात्र शुभ श्रेष्ठ संकल्पों से सारा कमाल कर... सब कामनाओ को पूर्ण कर मा सर्वशक्तिवान हो चले हो...
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ दिव्य बुधी द्वारा दूर की आत्माओं को पास अनुभव करना है ।
❉ जैसे साईंस के साधनों से दूर बैठे व्यक्ति से बात करके पास अनुभव करते हैं ऐसे ही संगमयुग पर स्वयं परमात्मा द्वारा मिली दिव्य बुद्धि द्वारा दूर बैठी आत्माओं को पास अनुभव करना है ।
❉ संगमयुग पर ही स्वयं बाबा ने अपने बच्चों को दिव्य बुद्धि व ज्ञान रुपी तीसरा नेत्र दिया है और दिव्य दृष्टि भी दी है तो बापदादा से मिले खजानों व शक्तियो से सम्पन्न होकर संकल्प शक्ति से दूर बैठी आत्माओं को पास अनुभव करना है ।
❉ जैसे साईंस वाले वायरलेस द्वारा दूर दूर तक कनेक्शन रख बात करते हैं ऐसे हम त्रिलोकीनाथ ब्राह्मण बच्चों ने तीनों लोकों तक वाइसलेस की शक्ति द्वारा कनेक्शन करना है व अपना बुद्धियोग पावरफुल याद की तार से जोड़ संकल्पों से दूर बैठी आत्माओं को पास अनुभव करना है ।
❉ हम ब्राह्मण बच्चों को बाबा ने दिव्य बुद्धि की लिफ्ट की गिफ्ट दी है और अपने श्रेष्ठ संकल्पों से तकदीर की लकीर खींचने का भाग्य दिया है । तो हम बच्चों को अपनी संकल्प शक्ति से व मनमनाभव के महामंत्र से वशीभूत आत्मा को वायब्रेशनस देकर सुख शांति की अनुभूति कराकर समीप अनुभव करना है ।
❉ स्थूल साधनों द्वारा जहां चाहे सैर कर सकते हैं व साई़स के सब साधनों का आधार लाइट है । ऐसे ही बाप द्वारा मिली डिवाइन इनसाइट द्वारा साइलेंस की शक्ति से जहां पहुंचो तो उनको भी अनुभव होगा कि जैसे प्रेक्टिकल में मिलन हुआ है । याद के नेत्र से अपनी संकल्प शक्ति से जो दूर का दृश्य देखना चाहे बिल्कुल स्पष्ट पास में अनुभव करना है ।
❉ जैसे दिव्य बुद्धि द्वारा अपने को देह नही आत्मा देखते हैं । तन भले ही स्थूल में होता , बिंदु बन बिंदु बाप से मिलन मनाते हैं । ऐसे ही दिव्यबुद्धि द्वारा दूर बैठी आत्माओं कों शुभ भावना शुभ कामना दे पास मे अनुभव करना है
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ मास्टर सर्वशक्तिमान् की स्मृति द्वारा मायाजीत सो जगतजीत , विजयी होते हैं.... क्यों और कैसे ?
❉ जो बच्चे इस स्मृति में रहते कि मैं बाप समान सर्वशक्तियों का अधिकारी मास्टर सर्वशक्तिमान् हूं व सर्वशक्तिमान् की संतान हूं तो ये स्मृति उन्हें निर्बल से शक्तिमान् बना देती है व वो मायाजीत सो जगतजीत , विजयी होते हैं ।
❉ जो बच्चे बहुत सोचते हैं कि पता नहीं माया क्यों आ गई , तो माया भी घबराया हुआ देखकर वार कर लेती है इसलिए जो सोचने के बजाए सदा मास्टर सर्वशक्तिमान की स्मृति में रहते हैं तो विजयी बन जाते हैं । विजयी रत्न बनाने के निमित्त ही माया के रुप में पेपर आते हैं व माया पर विजय पाकर मायाजीत , जगतजीत होते हैं ।
❉ जिन बच्चों का बुद्धियोग बस एक बाप से जुडा रहता हैं व सर्व सम्बंध भी सिर्फ बाबा से होते हैं तो उन्हें सर्व शक्तियों का वर्सा अधिकार के रुप में प्राप्त होता है । वो अपने को अधीन नहीं ,अधिकारी समझते हैं तो पुराने संस्कारों पर , माया के ऊपर विजय प्राप्त कर मायाजीत जगतजीत होते हैं ।
❉ जो बच्चे एक बाप दूसरा न कोई इस स्मृति में रहते हैं व हमेशा अपने को हजार भुजाओं वाले बाप की छत्रछाया में अनुभव करते हैं । इस खुशी व नशे में रहते हैं कि स्वयं सर्वशक्तिमान् मेरा पिता है तो वो इस समर्थी स्वरुप स्मृति से मायाजीत सो जगतजीत व विजयी होते हैं ।
❉ जो बच्चे ये स्मृति रखते है कि मैं कौन हूं व किसका बच्चा हूं व कौन साथ निभा रहा है तो उन्हें खुशी व नशा रहता है कि स्वयं सर्वशक्तिमान् भगवान मेरा साथी है व पूरी सृष्टि का रचयिता मेरे साथ है तो बड़े से बड़े माया के रुप मे पेपर आने पर भी नही घबराते व खेल समझ पार कर मायाजीत सो जगतजीत व विजयी होते हैं
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ हर आत्मा से शुभ आशीर्वादें प्राप्त करनी हैं तो बेहद की शुभ भावना और शुभ कामना में स्थित रहो... क्यों और कैसे ?
❉ बेहद की शुभ भावना और शुभ कामना में स्थित रह कर हर आत्मा से शुभ आशीर्वादें तभी प्राप्त कर सकेंगे जब होली हंस बनेंगे क्योकि होली हंस का अर्थ ही है सदा हर आत्मा के प्रति श्रेष्ठ और शुभ सोचने वाले । बुद्धि में कभी भी किसी भी आत्मा के प्रति अशुभ व साधारण भाव धारण ना हो । ऐसे शुभ चिंतक वृति वाले ही किसी भी आत्मा के प्रति अकल्याण की बातें सुनते, देखते हुए भी अपनी बेहद की शुभ चिंतक वृति से उसे कल्याण की वृति में बदल सर्व के कल्याणकारी बन उनकी दुयायों के पात्र बन जाते हैं ।
❉ बोल से भाव और भावना दोनों अनुभव होती हैं । अगर हर बोल में शुभ वा श्रेष्ठ भावना, आत्मिक भाव है तो उस बोल से जमा का खाता बढ़ता है । यदि बोल में ईष्या, द्वेष या घृणा की भावना किसी भी परसेन्ट में समाई हुई है तो बोल द्वारा गंवाने का खाता ज्यादा होता है । समर्थ बोल का अर्थ ही है - जिस बोल में प्राप्ति का भाव वा सार हो । और समर्थ बोल मुख से तभी निकलेंगे जब चिंतन समर्थ होगा । और जितनी सर्व आत्माओं के प्रति शुभ चिंतक वृति होगी उतना ही हर आत्मा से शुभ आशीर्वाद प्राप्त कर सकेंगे ।
❉ हम पूर्वज आत्मायें सर्व का उद्धार करने के निमित्त हैं इस स्वमान व पोजीशन में जब सदा स्थित रहेंगे तो सदा यह स्मृति रहेगी कि हमारा हर संकल्प, हर सेकण्ड दूसरों की सेवा प्रति है और तभी मंसा - वाचा -
कर्मणा, सम्बंध - सम्पर्क सब बातों में उदारचित्त, बड़ी दिल वाले बन, हर आत्मा की कमियों को स्वयं में समा कर, उनके प्रति शुभ भावना, शुभकामना रखते हुए उन्हें गुणों व शक्तियों का सहयोग दे कर आगे बढ़ा सकेगें और हर आत्मा से शुभ आशीर्वाद प्राप्त कर सकेंगे ।
❉ शुभ-भावना अर्थात् शक्तिशाली संकल्प । किसी भी आत्मा के प्रति व बेहद विश्व की आत्माओं के प्रति शुभ भावना रखना अर्थात् शक्ति - शाली शुभ और शुद्ध संकल्प करना कि इस आत्मा का कल्याण हो जाए । और ऐसी कल्याण कारी वृति तभी बनेगी जब हर आत्मा के संस्कारों की कमजोरी को जानते हुए भी उन्हें स्नेह और सहयोग देंगें । उनसे किनारा करने की बजाए उनका सहारा बनेंगे और इसके लिए जरूरी है अपने मन को एकाग्र वृति से, शुभकामना तथा परोपकारी भावना से सदा भरपूर रखना ।
❉ मास्टर दाता की सीट पर जब सदा सेट रहेंगे और इस बात को सदा स्मृति में रखेंगे कि हम दाता के बच्चे हैं इसलिए हमे सबको देना है । रिगार्ड मिले ना मिले, स्नेह मिले ना मिले लेकिन हमे स्नेही बन सबको देना है । इसके साथ साथ हमे स्वयं के प्रति तथा सम्बन्ध सम्पर्क में सर्व के प्रति समाने के शक्ति स्वरूप सागर बनना है । इन्हीं दो विशेषताओं को जब स्वयं में धारण कर लेंगे तो बेहद की शुभ भावना, शुभ कामना रखते हुए हर आत्मा से दिल की दुआएँ प्राप्त कर सकेंगे ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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