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❍ 17 / 06 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ देह सहित जो कुछ है उसे √बाप के हवाले√ कर उनकी श्रीमत पर चलते रहे ?
➢➢ मात-पिता के गद्दी नशीन बनने के लिए स्वयं को √लायक√ बनाने पर अटेंशन रहा ?
➢➢ √पवित्रता√ की धारणा पर अटेंशन रहा ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ √तपस्या√ द्वारा अपने विकर्मों व तमोगुण के संस्कारों को भस्म किया ?
➢➢ संस्कारों की टक्कर से बचने के लिए √बालक और मालिकपन√ का बैलेंस रखा ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ √ब्रदरहुड√ की स्थिति से सेवा में सफलता प्राप्त की ?
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➳ _ ➳ http://bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/17.06.16-VisheshPurusharth.htm
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं तपस्विमूर्त आत्मा हूँ ।
✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-
➳ _ ➳ बैठ जाएँ कमल आसन पर... देह से न्यारा बन... देही अवस्था में... स्तिथ हो जाएँ सहज योग मुद्रा में... अपने चारों ओर श्रेष्ठतम दृढ़ संकल्पों के चार स्तम्भ खड़े कर लें...
➳ _ ➳ अनुभव करें, मुझ आत्मा पर निरन्तर शिवबाबा की सर्वशक्तियों से सम्पन्न किरणें पड़ रहीं हैं... मैं आत्मा इन किरणों द्वारा देह से लुप्त होती जा रहीं हूँ... मेरी काया प्रकाशवान होकर चमक रही है...
➳ _ ➳ मैं आत्म - अभिमानी बन रहीं हूँ... जैसे अभी ईश्वरीय पालना का कर्तव्य चल रहा है ऐसे ही लास्ट में तपस्या द्वारा अपने विकर्मों और हर आत्मा के तमोगुणी संस्कार वा प्रकृति के तमोगुण को भस्म करने का कर्तव्य चलना है...
➳ _ ➳ इस कर्तव्य में विशेष पार्ट धारी आत्मा बनने के लिए मैं आत्मा आज अपने परम प्यारे बाबा के समक्ष यह दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मैं अपनी हर कर्मेन्द्रियों से देह - अभिमान का त्याग करुंगी और सदा आत्म - अभिमानी स्तिथि में रहने की गहन तपस्या करुँगी...
➳ _ ➳ मैं सदा इसी एकरस स्तिथि के आसन पर स्तिथ हो अपने तपस्वी रूप द्वारा अपने विकर्मों को भस्म करके और अन्य आत्माओं के तमोगुनिबस्नस्कार वा प्रकृति के तमोगुणों को भस्म करुँगी... इन्हीं संकल्पों के साथ मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मुझ तपस्विमूर्त आत्मा का तपस्वी रूप निरन्तर प्रत्यक्ष हो रहा है ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - यह सारी विश्व ईश्वरीय फेमिली है इसलिए गाते भी है तुम मातपिता हम बालक तेरे, तुम अभी प्रेक्टिकल में गॉडली फैमिली के बने हो"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे सारे विश्व की आत्माए ही ईश्वरीय परिवार है इसलिए सारा विश्व ही मातपिता को पुकारता है... और तुम बच्चे इतने भाग्यशाली हो की पिता के साथ सम्मुख में गॉडली परिवार के बने हो... पुकारा तो हर बच्चे ने है पर पहचाना और समाया आप भाग्यशाली ने है...
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे आप बच्चे का भाग्य कितना खूबसूरत है की स्वयं ईश्वर की पसन्द हो... गॉडली फेमिली का अंश बने हो... पिता के सामने हो... सारा जग पुकार रहा पर पहचान नही पा रहा और आप ईश्वरीय हकीकत को जी रहे हो... महान सोभाग्य से भरे हो...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे ईश्वर फेमिली की हकीकत किस कदर खूबसूरत सच्चाई है... सारे विश्व के बच्चे जगह जगह ढूंढ रहे... पर भाग्य करीब आने से रोक रहा... और आप बच्चे दिल तख्त पर हो ईश्वर पिता की मीठी गोद में हो अपने जीवन को सदा खुशियो से खिलाते हुए...
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चे प्रेक्टिकल में गॉडली फेमिली में होना यह ख़ुशी जनन्तो पर भारी है... पिता की गोद में खेलना... महान टीचर से पढ़ना और सतगुरु की रहमत... यह आनन्द सर्वोपरि है सबसे मीठा और प्यारा है... दुनिया मातापिता कह कह पुकारे और आप पिता के साये में सुरक्षित हो...
❉ मेरा बाबा कहे - विश्व के हर बच्चे की चाहत ईश्वर पिता को पाना है... पर पिता हर बच्चे को आप भाग्यवान बच्चों की तरह प्राप्त नही है अपने महान भाग्य के जरा नशे में आओ... किसकी महान छाया में शीतल हुए हो... यह मीठा भाव यादो में भर लाओ... ईश्वर पिता के परिवार में मौजूद हो यह भाग्य विश्व के हर बच्चे का नही जो आप बच्चे का है...
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ आत्मा और शरीर दोनों को पावन बनाने के लिए देह सहित जो कुछ है उसे बाप के हवाले कर उनकी श्रीमत पर चलना है ।
❉ अभी तक घोर अंधियारे में थे और देह व देह के झूठे सम्बंधों को ही सब कुछ समझ उनमें ही उलझे रहे व देहभान में रहकर पतित होते गए । इस पुरुषोत्तम संगमयुग पर स्वयं परमात्मा ने हमें अपने असली स्वरुप की पहचान दी व सच्चे बाप की पहचान दी तो हमें सत् का संग ही करना है ।
❉ अपने को आत्मा समझ परमात्मा बाप को याद करना है । आत्मा पर लगी कट एक परमात्मा बाप की याद से उतारनी है । जितना याद में रहेंगे उतना आत्मा पावन बनती जायेगी । आत्मा पावन होगी तो शरीर भी पावन होगा ।
❉ ये शरीर भी हमारा अपना नही है व अमानत है । हम तो बस पार्ट बजाने आए है इसलिए अपने को मेहमान समझना है । इस पुरानी विनाशी दुनिया व देहधारियों से मोह नही रखना । मनसा वाचा कर्मणा पवित्र रहना है ।
❉ अपना तन मन धन उस बाप को सौंप देना है व निश्चिंत रहना है व फिर बाप की जिम्मेवारी है । हमें तो बस बाप की श्रीमत पर चलना है व बाप हमें पतित से पावन बनाकर वापिस ले जाने आए है इसलिए पावन जरुर बनना है ।
❉ जीते जी मरना है यानि इस पुरानी दुनिया व पुराने शरीर में रहते देह व देह के धर्म सम्बंधों की बस तोड निभानी है व जो जिम्मेवारी हैं वो निभानी है व कमल पुष्प समान न्यारा और प्यारा रहना है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ तपस्या द्वारा अपने विकर्मो वा तमोगुण के संस्कार को भस्म करने वाले तपस्वीमूर्त होते हैं.... क्यों और कैसे ?
❉ जो बच्चे ये स्मृति में रखते कि पूरे कल्प में एक बार ही परमात्म पालना का सौभाग्य मिलता है व इसी समय झूठे मान शान वैभव व झूठे रिश्तों का त्याग कर ईश्वरीयमत पर सम्पूर्ण रीति अपने पुराने स्वभाव संस्कारों को स्वाहा करते तपस्वीमूर्त होते है ।
❉ जैसे सोना को शुद्ध बनाने के लिए उसको आग में जलाकर उसकी एलाय निकालते है व कच्ची मिट्टी को साँचे में डालकर तपाया जाता है तो ईंट बनती है ऐसे ही जो बच्चे एक बाप की याद की लगन की अग्नि में पड़ते हैं व अपने विकर्मों और पुराने संस्कारों को जलाकर भस्म कर देते है व स्वयं मे परिवर्तन करते हैं वो तपस्वीमूर्त होते हैं ।
❉ जो बच्चे अपनी हर कर्मेन्द्रिय से देह का त्याग कर आत्म-अभिमानी बनने का पुरुषार्थ करते है और याद व तपस्या के बल से अपने विकर्मों और तमोगुणी संस्कार को भस्म कर एकरस स्थिति बनाए रखते है वो तपस्वीमूर्त होते हैं ।
❉ जो बच्चे तपस्वीमूर्त होते है वो अपने इस संगमयुग के महत्व की प्राप्तियों की स्मृति में रहते एक बाप की याद में रहते हुए तपस्या द्वारा अपने विकर्मों और तमोगुणी संस्कारों को भस्म करते हुए गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल पुष्प समान न्यारे और प्यारे रहते है और मनसा वाचा कर्मणा और संकल्पों में भी पवित्र रहते हैं ।
❉ जो तपस्वीमूर्त होते है वे बस एक बाप के लव मे सदा लवलीन रहते हैं । वे बाहरी दुनिया में देखते हुए भी नही देखते व सुनते हुए भी नही सुनते । सदा बाप के नयनों व दिल में समाये रहते है । देह के धर्म के कर्म में हरेक रस्म का त्याग कर बापदादा की याद की तपस्या में रहते है और विकर्मों व तमोगुण संस्कारों को भस्म कर देते है ।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ संस्कारों की टक्कर से बचने के लिए बालक और मालिक पन का बैलेंस रखो... क्यों और कैसे ?
❉ बालक और मालिक पन का बैलेंस रखने वाले हर कर्म में फॉलो फादर करते हैं । किसी को ना देख केवल एक बाप को देखने का लक्ष्य रख बाप समान गुण धारण करने के प्रयास में सदैव तत्पर रहते हैं । किसी की भी कमी कमजोरियों को देखने के बजाए गुणमूर्त बन आपस में गुणों का हीआदान - प्रदान करते हैं । इसलिए स्वभाव संस्कारों के टकराव से हमेशा बचे रहते हैं । सब के विचारों का सम्मान करते हुए हर एक की विशेषता को समृति में रख, एक दो को सहयोग दे आगे बढ़ते और बढ़ाते रहते हैं ।
❉ एक दो की कमजोरियों पर चिंतन करने की बजाए मास्टर क्षमा का सागर बन जब सबकी कमी कमजोरियों को स्वयं में समा लेंगे । और एक दूसरे को दिल से माफ कर बीती को बिंदी लगा देंगे । तो किसी की भी भूले चित पर नहीं रहेंगी । बल्कि सबकी विशेषताएं समृति में रहेंगी जिससे आपस में होने वाले स्वभाव - संस्कार के टकराव से बचना सहज हो जायेगा । लेकिन मास्टर दया का सागर तभी बन पाएंगे जब बालक सो मालिकपन की स्मृति में रह हर कर्म करेंगे ।
❉ बालक सो मालिकपन का बैलेंस रख जब हर कर्म करेंगे तो अपनी ऑथोरिटीज को, प्राप्त हुई सर्व शक्तियों, सर्व खजानों और वरदानो को अच्छी तरह से यूज कर पाएंगे । सर्व के प्रति शुभभावना, शुभ कामना रखते हुए सर्व प्राप्तियों का अनुभव जब सबको करवाते रहेंगे तो एक दूसरे के स्वभाव संस्कार आपस में टक्कर नही खायेंगे बल्कि एक दो से संस्कारों की रास करते हुए स्वयं भी निरन्तर आगे बढ़ते रहेंगे तथा औरों को भी उमंग उत्साह दिलाते हुए आगे बढ़ाते रहेंगे ।
❉ स्वयं को बालक सो मालिक समझने वाले इस बात को सदैव स्मृति में रखते हैं कि ड्रामा अनुसार हर ब्राह्मण आत्मा को कोई न कोई विशेषता प्राप्त है । ऐसा कोई नहीं है जिसमें कोई विशेषता नहीं हो क्योंकि संगम युग पर हर विशेषता ड्रामा अनुसार परमात्म देन है । सबकी विशेषतायों को सदा स्मृति में रखने के कारण वे हर प्रकार के स्वभाव संस्कार के टकराव से बचे रहते हैं और मास्टर दाता बन अनेक आत्माओ को प्राप्तियों का अनुभव करवाकर, उड़ती कला की अनुभूति करवाते रहते हैं ।
❉ बालक सो मालिकपन का बैलेंस व्यक्त को अव्यक्त में और लौकिकता को अलौकिकता में परिवर्तित कर देता है इसलिए बालक सो मालिक बन कर रहने वाले अनेक प्रकार के व्यक्तियों के सम्पर्क में आते हुए भी व्यक्त भाव के बजाए आत्मिक भाव धारण कर उनके सम्पर्क में आते हैं । हर लौकिक चीज़ को देख, लौकिक बातों को सुन, लौकिक दृश्य को देख, उन्हें अलौकिक में परिवर्तन कर किसी भी आत्मा के स्वभाव संस्कार की टक्कर से बचे रहते हैं । और ज्ञान स्वरुप हो हर बात से ज्ञान उठाते हुए सर्व का कल्याण करते रहते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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