━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 15 / 06 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ स्वयं को आत्मा समझकर आत्मा से बात की ?

 

➢➢ नींद को जीतने का पुरुषार्थ किया ?

 

➢➢ ×फालतू बातों× में अपना समय तो नहीं गंवाया ?

────────────────────────

 

∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ साकार बाप समान अपने हर कर्म को यादगार बनाया ?

 

➢➢ सहनशील बन सत्यता की शक्ति को धारण किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ आशिक बनकर माशुक को, शक्ति बनकर सर्वशक्तिवान को और सीता बनकर राम को याद किया ?

 

   ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧

 

To Read Vishesh Purusharth In Detail, Press The Following Link:-

 

✺ HTML Format:-

➳ _ ➳  http://bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/15.06.16-VisheshPurusharth.htm

 

✺ PDF Format:-
➳ _ ➳  http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/15.06.16-VisheshPurusharth.pdf

────────────────────────

 

∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं आत्मा आधारमूर्त और उद्धमूर्त हूँ ।

 

✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-

 

➳ _ ➳  योगयुक्त स्तिथि में बैठ जाएँ... मन को शुद्ध संकल्पों में स्तिथ करें... मैं श्वेत वस्त्रधारी मास्टर विश्वकल्याणकारी शिक्षक हूँ... परमात्मा पालना को स्वयं में भरकर औरों को बाप समान बनाने वाली दिव्य आत्मा हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं ईश्वरीय शिक्षा द्वारा काँटों को फूल, मनुष्यों को देवता, बन्दर से मन्दिर लायक बनाने वाली मास्टर टीचर हूँ... मेरे चारों ओर मेरा अनुसरण करने वाले कई लोग मेरे मार्ग दर्शन का इंतज़ार कर रहें हैं... मैं आत्मा श्वेत वस्त्र धारण कर अपने गन्तव्य की ओर जा रहीं हूँ... मेरा दिव्य चलन, शांत और गंभीर स्वभाव ईश्वरीय सेवा में निमित्त है...

 

➳ _ ➳  मेरा सहज जीवन और मधुर बोल कई आत्माओं को प्रेरित कर रहें हैं... जैसे साकार बाप ने अपना हर कर्म यादगार बनाया ऐसे ही मैं आत्मा आज अपने परम प्यारे शिवबाबा के समक्ष यह दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मैं अपना हर कर्म स्वयं को आधारमूर्त और उद्धारमूर्त समझकर ही करुँगी... मैं आत्मा अपने आपको विश्वपरिवर्तन की आधारमूर्त समझूँगी...

 

➳ _ ➳  मेरी वृति - दृष्टि में सदा सर्व के कल्याण की भावना रहेगी... इन्हीं श्रेष्ठ संकल्पों के साथ मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मेरा हर कर्म ऊँच पद को प्राप्त हो रहा है... सर्व के कल्याण की भावना आते ही मुझ आत्मा का हर कर्म श्रेष्ठ बन गया है... और यह श्रेष्ठ कर्म यादगार बनता जा रहा है ।

────────────────────────

 

∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - अपने को आत्मा समझ आत्मा से बात करो तो फूल में खुशबु आती जायेगी देह अभिमान की बदबू निकल जायेगी"

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे स्वयं को भूल सत्य को भूल चले तो फूल से कांटे बन चले... अब उसी सत्य स्वरूप की स्मर्तियो से भर जाओ... और वही फूलो की खुशबु से महक जाओ... इस मिटटी की बदबू से निकल आत्मिक भाव से सुगन्ध में बदल जाओ...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे खुद को आत्मा भूल शरीर माना और इस मिटटी को ही सत्य संसार जाना... तो रोम रोम विकारो की दुर्गन्ध से भर गया... अब आत्मा के भाव को यादो में गहरा करो और देहाभिमान की बदबू से मुक्त हो फूलो की सुगन्ध से भर जाओ...

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे शरीर तो तुम थे ही नही पर शरीर समझ कर ही सदा रहे... तो रग रग इसी गन्ध से भर चले और काँटों में तब्दील हो बदबू से भर चले... अब आत्मा सत्य भान के नशे में आओ और कांटो से खुशबूदार फूल बन मुस्कराओ...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चे आत्मा समझ आत्मा से बात करो तो वही खूबसूरत रंगत फूलो से फिर से पा जाओगे... जो फूल थे वही फूल बन खिल जाओगे... शरीर के भम्र से निकल जाओगे और दुर्गन्ध से दामन बचा पाओगे...

 

 ❉   मेरा बाबा कहे - इस मिटटी को मिटटी के रिश्तो को सत्य समझ अपनी खूबसूरत खुशबूदार महक को खो चले... चमकती मणि को यादो में ताजा करो और देहाभिमान की बदबू से निकल चलो... वही खुशबु वही नूर वही फूल बन मुस्करा उठोगे...

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ स्वयं को आत्मा समझ आत्मा से ही बात करनी है । देही-अभिमानी बनकर सुनने-सुनाने से धारणा अच्छी होती होगी ।

 

  ❉   अभी तक तो घोर अज्ञानता में रहने से अपने शरीर को ही सब समझते रहे व बस उसे ही संवारने सजाने में लगे रहे । इस संगमयुग पर सत का ज्ञान मिलने पर अपने असली स्वरुप सत स्वरुप की पहचान मिली व सत बाप मिला । अब बाबा यही पहला पाठ ही पक्का कराते रोज बच्चे अपने को देह नही देही समझना है ।

 

  ❉   अपने को भृकुटि के बीचो बीच चमकता हुआ स्टार मिसल समझना है कि मैं आत्मा हूं व दूसरे को भी आत्मा देखते हुए बात करनी है । हम सब आत्माओं के परमपिता एक ही है सदा शिव परमात्मा । देह को नही देखना देही को देखना है ।

 

  ❉   आत्मिक दृष्टि रखते हुए व मस्तक में चमकती मणि देखते हुए ही बात करनी है । आत्मिक भाव रखना है कि ये भी मेरा आत्मा भाई है या आत्मा बहन है । आत्मा आत्मा भाई भाई है क्योंकि एक ही पिता की संतान है ।

 

  ❉   जब अपने को आत्मा समझ दूसरे के प्रति भी आत्मिक भाव रखते है तो ज्ञान सुनने को भी और सुनाने वाले को भी अच्छे से धारणा होती है व टचिंग होती है और ज्ञान को समझता है ।

 

  ❉   इस संगमयुग पर हमें बाप की श्रीमत पर सम्पूर्ण रीति चलना है व श्रीमत पर चलकर ही श्रेष्ठाचारी बनना है । देह-अभिमान को छोड़ देही-अभिमानी बनना है व निरंतर बाप की याद में रहना है । याद से ही ज्ञान तलवार में जौहर भरना है और ज्ञान की धारणा करनी और करानी है ।

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ साकार बाप समान अपने हर कर्म को यादगार बनाने वाले आधारमूर्त और उद्धारमूर्त होते हैं.... क्यों और कैसे ?

 

  ❉   जो बच्चे सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य की स्मृति रखते है व स्वयं की विशेषता को जान सदा यज्ञ के कार्य में लगाते है । जो बाप का कार्य सो मेरा ऐसा अनुभव करते हैं तो वो हर कर्म को यादगार बनाने वाले आधार मूर्त और उद्धारमूर्त  होते है

 

  ❉   जिन बच्चों के हर संकल्प, बोल और कर्म में बस बाबा ही होता है तो वो हर संकल्प, बोल और कर्म में चेकिंग करते कि ये मेरा कर्म बाप समान है या नही और ये चेक करते कि बाप क्या ऐसे बोल बोलते इस प्रकार अटेंशन रुपी पहरेदार रख अपना कर्म करते तो बाप की याद में किया हर कर्म श्रेष्ठ होता वो साकार बाप समान अपने हर कर्म को यादगार बनाने वाले आधारमूर्त और उद्धारमूर्त होते है ।

 

  ❉   जो बच्चे अपने को विश्व परिवर्तन के आधारमूर्त समझते हैं, उनका हर कर्म ऊंचा होता है और वृत्ति-दृष्टि में सर्व के प्रति कल्याण की भावना रहती है तो उनका हर कर्म श्रेष्ठ हो जाता है व ऐसे श्रेष्ठ कर्म ही यादगार बनते हैं वो बच्चे आधारमूर्त और उद्धारमूर्त होते हैं ।

 

  ❉   जैसे साकार ब्रह्मा बाप ने अपना हर कर्म यादगार बनाया तो जो बच्चे हर कदम पर फालो फादर करते है तो वो भी अपना हर कर्म ऐसे करते व रुहानियत से दूसरों के लिए प्रेक्टिकल में यादगार बन जाता ऐसे अपने हर कर्म को यादगार बनाते आधारमूर्त और उद्धारमूर्त होते हैं ।

 

  ❉   जो बच्चे हर कार्य को बेहद की स्थिति में स्थित रह कर करते हैं तथा दूर रहकर भी दिल के समीप का अनुभव करते हर कर्म में सफलता अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझते तो उनका हर कर्म यादगार व आधार मूर्त होता है

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ सत्यता की शक्ति को धारण करने के लिए सहनशील बनो... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   शुभ और श्रेष्ठ चिंतन आत्मा को बलशाली बनाता है इसलिए जितना मन को शुभ और श्रेष्ठ चिंतन में बिज़ी रखते हैं आत्मिक बल बढ़ता जाता है और आत्मा स्वयं को सदैव सर्व शक्तियों से सम्पन्न अनुभव करने लगती है । सर्व शक्तियों की अथॉरिटी उसमें सहनशीलता का गुण विकसित करती है और सहन शीलता का गुण उसे सत्यता की शक्ति को धारण करने के काबिल बना देता है जिससे वह कड़वे से कड़वे सच का भी सामना सहजता से कर लेती है ।

 

 ❉   अपने आदि और अनादि स्वरूप को सदा स्मृति में रखने से पुराने आसुरी संस्कार मर्ज होते जायेंगे तथा अनादि दैवी संस्कार इमर्ज होने लगेंगे जिससे आत्मा अपनी सतोगुणी अवस्था को प्राप्त कर सर्वगुण सम्पन्न बनती जायेगी । सर्व गुणों की धारणा आत्मा को सहनशील बना देगी और आत्मा सत्यता की शक्ति को धारण कर रीयल गोल्ड बन हर परिस्थिति में मोल्ड हो कर भी अपनी चमक को बनाये रखेगी अर्थात सत्यता से पीछे नही हटेगी ।

 

 ❉   ज्ञान और योग से बुद्धि रूपी बर्तन को जितना स्वच्छ करते जायेगे उतना आत्मा पर चढ़ी विकारों की कट उतरने से अशुद्धता समाप्त होती जायेगी और आत्मा बलशाली बनती जायेगी । जैसे जैसे आत्मा बलशाली बनती जायेगी वैसे वैसे स्थिति भी शक्तिशाली बनती जायेगी और किसी भी बात को सहन करने की शक्ति स्वयं में आती जायेगी । सहनशीलता का गुण जब आत्मा में भरने लगेगा तो सत्यता की शक्ति को धारण सत्यता को स्वीकार करना सहज हो जायेगा ।

 

 ❉   श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर जब सदा सेट रहेंगे तो जीवन में आने वाली परिस्थितियों और विघ्नों से सहज ही किनारा होता जायेगा । स्व स्थिति में स्थित हो कर जब किसी भी घटना या परिस्थिति का सामना करेंगे तो परिस्थिति छोटी अनुभव होगी और श्रेष्ठ स्वमान की स्मृति आत्मा को हर गुण वा शक्ति का अनुभवी बना देगी और अनुभवीमूर्त आत्मा आवश्यकता पड़ने पर सहनशील बन सत्यता की शक्ति को स्वयं में धारण कर असत्य पर जीत प्राप्त कर लेगी ।

 

 ❉   जो सच्चे ब्राह्मण बन सदा सच की राह पर चलते हैं । सच्चाई और सफाई से हर कर्तव्य का पालन करते हुए हर कदम श्रीमत प्रमाण उठाते हैं । वे बाबा की मदद का अनुभव हर कदम पर करते हैं । बाबा की मदद और सत्यता का यही बल उन्हें सतकर्म करने के लिए प्रेरित करता है और सतकर्मो का बल आत्मा को शक्तिवान बना कर हर बात को सहन करने की शक्ति से भरपूर कर देता है । सहनशील बन कर आत्मा सत्यता की शक्ति को धारण कर हर सत्य बात को स्वीकार कर लेती है ।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━