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 09 / 09 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ स्वयं को स्वर्ग में चलने के लायक बनाने पर विशेष अटेंशन रहा ?

 

➢➢ बुरी आदतों को छोड़ने पर विशेष अटेंशन रहा ?

 

➢➢ सच्ची सच्ची सत्य नायारण की कथा सुनी ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ माया की नॉलेज से इन्नोसेंट और ज्ञान में सैंट बनकर रहे ?

 

➢➢ अन्दर की असुधि को समाप्त करने पर विशेष अटेंशन रहा ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢  सारा दिन अव्यक्त और अन्तर्मुख स्थिति में स्थित रहे ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - नाम रूप से न्यारी कोई भी चीज होती नही, आत्मा परमात्मा को भी नाम रूप से न्यारा नही कहेंगे उसमे भी अविनाशी पार्ट नुधा हुआ है"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... सत्य से जो दूर हुए तो हर बात में उलझते ही चले गए... अर्थ को न जानकर अनर्थ सा ही कर बेठे... मुझ कल्याणकारी पिता को नाम रूप से न्यारा कह चले...जबकि इस पूरे उलझे सूत को मै पिता ही आकर सुलझाता हूँ... और नाम शिव है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा खुद को न जान सकी तो पिता को न्यारा कह चली...बाबा आपने आकर मुझे सत्य का परिचय कराया... मेरे और अपने अविनाशी स्वरूप का भान दिला कर सत्य से जीवन रौशन किया है...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... इस दुनिया में नाम रूप से न्यारी चीज है ही नही तो अविनाशी आत्मा और परमात्मा कैसे न्यारे हो सकते है... सारे सत्य को भूल असत्य के मायाजाल में फंस पड़े हो... अब ज्ञानसागर बाबा सत्य के प्रकाश से जीवन में खुशियो का उजाला लाये है...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा किस कदर भटकन से भरी थी... आपने ज्ञान की रौशनी से जीवन को जगमगाया है... मुझ आत्मा के अविनाशी पार्ट का आभास कराया है... और अपनी मीठी यादो में सदा का महकाया है...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब कोरे भ्रम से बाहर निकल सत्य पिता के सत्य ज्ञान को सांसो में बसाओ... न आत्मा न ही  परमात्मा नाम रूप से न्यारा है... यह खूबसूरत बात स्वयं के साथ... पूरे विश्व में फैलाओ... ज्ञान की रौशनी से सारे विश्व को प्रकाशित कर आओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सत्य पिता से सत्य ज्ञान को जान... अपने प्यारे से अविनाशी पार्ट को जान पुलकित सी हो चली हूँ... सारी उलझनों से बाहर निकल मुक्त हो चली हूँ और यादो के आसमाँ में बाबा संग घूम रही हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल -  ज्ञान अमृत पीकर स्वयं को स्वर्ग में जाने लायक बनने का पुरुषार्थ करना"

 

➳ _ ➳  अभी तक माया के वश होकर बाहरी दुनिया में ही सुख शांति ढ़ूंढ़ती रही... यही सोचती रही कि गंगा में स्नान करने से पावन बन जाऊंगी... गंगा स्नान से मेरे पाप कर्म धुल जायेंगे... भक्ति मार्ग में चल एक दूसरे को देख सब बिना अर्थ जाने करती रही... यही सुनते आए कि अंतिम समय में मुख में गंगा जल अमृत देने से मुक्ति हो जाएगी... क्यूंकि अज्ञानता का घोर अंधियारे में व विकारों की दुबन मे फंसे थे... इस संगमयुग पर स्वयं परमात्मा ने अपने बच्चों को दुखी देख जाने कहां कहां से ढ़ूंढ़ निकाला... सत्य का ज्ञान दिया... अज्ञान निद्रा से जगाकर ज्ञान की रोशनी दी... मीठे बाबा मुझ आत्मा को इस अंतिम जन्म में सत का ज्ञान देकर मुझे विकारों से निकाल रहे है... यही सच्चा ज्ञान सुनकर व अच्छी रीति धारण कर विकारों रुपी विष खत्म होता जा रहा है... हम आत्माएं ही इस रुहानी ज्ञान को सुन ज्ञान नदियां बन चारों ओर ज्ञान रत्नों की बारिश कर रहे हैं... प्यारे बाबा से इस अंतिम जन्म में ज्ञान के एक प्वाइंट को धारण कर धारणामूर्त बन रहे हैं... इस ज्ञान अमृत को पीकर मैं आत्मा अविनाशी कमाई कर रही हूं... जितना ज्ञान को धारण करते हैं उतना ही मनन शक्ति बढ़ती जा रही है... मुझ आत्मा के विकर्म विनाश हो रहे है... आत्मा शुद्ध होती जा रही है... बुद्धि की लाइन क्लीयर होती जा रही है... पुराने स्वभाव संस्कार भस्म होते जा रहे है... मैं आत्मा दिव्य गुणों को धारण कर स्वर्ग में जाने लायक बनने का पुरुषार्थ कर रही हूं...

 

❉   "ड्रिल - सच्ची सच्ची कथा सुनकर नर से नारायण बनने का पुरुषार्थ करना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा पदमापदम भाग्यशाली हूं... स्वयं भगवान ने मुझे चुनकर इस रौरव नर्क की दुनिया से निकाला है... जहां दुनिया वाले तो घोर अंधियारे में हैं... भगवान के एक क्षण के दर्शन पाने को न जाने कहां कहां भटक रहे हैं... वही स्वयं भगवान इस संगमयुग पर  मुझे अपना बच्चा बनाया... आसुरी परिवार से निकाला... अब मैं ईश्वरीय सम्प्रदाय का हूं...  स्वयं भगवान सुप्रीम शिक्षक बन सत का ज्ञान दे रहे है... मैं गॉडली स्टूडेंट हूं... विश्व की सबसे बड़ी व वंडरफुल युनिवर्सिटी का स्टूडेंट हूं... ये रुहानी व सच्चा सच्चा ज्ञान मेरे प्यारे बाबा के सिवाय कोई ओर नही दे सकता... मैं आत्मा प्यारे बाबा से सच्ची सच्ची सत्य नारायण की कथा सुन रही हूं... प्यारे बाबा  ये रुहानी पढ़ाई पढ़ाकर पत्थर से पारस बना रहे हैं... कांटो भरे जीवन से निकाल मुझे खुशबूदार फूल बना रहे हैं... मेरे कौड़ी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बना दिया है... ये रुहानी पढ़ाई बहुत वंडरफुल है... इसलिए इस पढ़ाई के लिए कोई गफलत नही करनी... स्वयं प्यारे बाबा अपने बच्चों के लिए इस पतित दुनिया में आते हैं... पतित से पावन बनाने के लिए... मैं आत्मा इस पढ़ाई से अविनाशी कमाई कर रही हूं... ये पढ़ाई पढ़कर प्यारे शिव बाबा से हमें 21 जन्मों के लिए विश्व का राजाई पद लेना है... नयी दुनिया में प्रिंस- प्रिसेस बनना है... स्वयं भगवान पढ़ाते है तो जरुर आप समान ही भगवान भगवती बनायेंगे... नर से नारायण और नारी से श्री लक्ष्मी ही बनायेंगें... इसलिए मैं आत्मा इस सच्ची कथा को सुन अच्छी रीति धारण करती हूं... परमपिता शिव बाबा की श्रीमत पर चलते नर से नारायण बनने का पुरुषार्थ कर रही हूं...

 

❉   "ड्रिल - अंदर की अशुद्धि समाप्त कर सम्पूर्ण शुद्ध स्थिति का अनुभव करना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा शुद्ध हूं... पवित्र हूं... मेरा अनादि आदि स्वरुप पवित्र था... अपना पार्ट प्ले करते करते मैं अपने असली स्वरुप को भूल गई... ऊपर से चमकती दुनिया की चकाचोंध को देखकर मैं ड्रामानुसार नीचे आ गई... अपना घर वापिस जाने का रास्ता भूल गई... देहभान में आकर बाहरी दुनिया में सुख शांति खोजने लगी... देहभान के कारण ही विकारों में फंसती चली गई... स्वयं को अच्छा समझने लगी... एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या, द्वेष, जलन, क्रोध की भावनाऐं पनपने लगी... विचारों में अशुद्धता आती गई...  स्वयं ही अपने किए के कारण दुःखों का कारण बन गई... अपने बच्चों को दुखी व पतित देख ड्रामानुसार आना पड़ा... मैं आत्मा पवित्रता के सागर के सम्मुख हूं... मुझ आत्मा पर परमपिता परमात्मा से पवित्रता की किरणें निरंतर पड़ रही है... मुझ आत्मा पर लगी विकारों की कालिख धुलकर साफ होती जा रही है... एक प्यारे शिव पिता की याद में रहने से मैं आत्मा मीठी होती जा रही हूं... मेरे अंदर की सूक्ष्म अशुद्धियां मिटती जा रही है... मैं सब के प्रति आत्मिक भाव रखती हूं... आत्मा आत्मा भाई भाई की दृष्टि रखती हूं... प्यारे बाबा से मिल रहे सर्वशक्तियों, सर्व खजानों से सम्पन्न होती जा रही हूं... बाबा का संग पाकर प्यारे मीठे बाबा का अनकंडीशनल प्यार पाकर मैं आत्मा भी सर्व की स्नेही हूं... सर्व के प्रति शुभ भावना शुभ कामना रखती हूं... मैं आत्मा बाबा की छत्रछाया में रह अपने अंदर की सब अशुद्धियों को समाप्त कर सम्पूर्ण शुद्ध स्थिति का अनुभव कर रही हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं सम्पूर्ण पवित्र आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳  आराम से बैठ जाएं... इस देह और देह के सभी बन्धनों को भूल जाएं... देखें अपने आप को... मैं एक आत्मा हूँ... इस शरीर को चलाने वाली चैतन्य शक्ति हूँ... मैं सदाकाल के लिए इस आत्मिक स्मृति में रहने वाली बापदादा की लाडली डबल ताजधारी ब्राह्मण आत्मा हूँ...

 

➳ _ ➳  मेरा मस्तक अनादि अविनाशी स्वरुप की स्मृति से चमक रहा है... जिस प्रकार सतयुगी आत्माएं विकारों की बातों की नॉलेज से इनोसेंट रहतीं हैं उसी प्रकार मेरा यह दिव्य स्वरुप मुझे सहज ही शिव पिता की याद में स्तिथ कर माया की नॉलेज से इनोसेंट बना रहा है...

 

➳ _ ➳  बाबा से निरंतर सर्वशक्तियों की किरणें मुझ आत्मा पर पड़ रही है... और मुझ आत्मा को मास्टर सर्वशक्तिवान की पावरफुल स्थिति का अनुभव करवा रही हैं... मैं मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा माया के वार से स्वतः ही सेफ रहने का अनुभव कर रहीं हूँ... ज्ञान के हर पॉइंट का स्वरुप बनने वाली मैं सम्पूर्ण पवित्र आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  माया की नॉलेज से इनोसेंट और ज्ञान में सेंट बनने वाले सम्पूर्ण पवित्र होते है...  क्यों और कैसे?

 

❉   माया की नॉलेज से इनोसेंट और ज्ञान में सेंट बनने वाले सम्पूर्ण पवित्र होते हैं क्योंकि जैसे सतयुगी आत्मायें विकारों की बातों से इनोसेंट होती हैं, और ज्ञान में सेंट होती हैं। वैसे ही सतयुगी संस्कार स्पष्ट स्मृति में रहे तो माया की नॉलेज से सदा के लिये इनोसेंट बन जायेंगे।  

 

❉   उसी प्रकार हमें सदा ही विकारों से मुक्त रहने की स्थिति  में स्थित रहना है तथा सदा ही ज्ञान में सेंट बन कर चलना हैं। अतः ज्ञान को हमें अपनी बुद्धि में धारण कर के ज्ञानी तू आत्मा बनना है। माया के चंगुल में कभी भी फँसना नहीं है तथा सदा ही अपने स्वरुप में स्थित रहना है।

 

❉   हमारी जब सदा काल की आत्मिक स्थिति रहेगी तो भविष्य के संस्कारों की स्पष्ट स्मृति में आना और उन संस्कारों में स्थिर रहना स्वभाविक है। अर्थात!   लेकिन भविष्य के संस्कार स्मृति में स्पष्ट तभी रहेंगे जब आत्मिक स्वरूप की स्मृति सदाकाल की और स्पष्ट रूप से होगी।

 

❉   जैसे साकार देह रूप स्पष्ट व हकीकत में दिखाई देता है उसी प्रकार आत्म स्वरूप भी हकीकत में दिखाई देना चाहिये। सदा ही आत्मिक स्थिति में स्थित रहना है। आत्मिक स्वरूप में रहना हमारी आदत बन जाना चाहिए।

 

❉   इसलिये स्वयं को सदा ही आत्मिक भान में रखना है। जैसे देह स्पष्ट दिखाई देती है। वैसे अपनी आत्मा का स्वरूप भी स्पष्ट दिखाई देना आवश्यक है। अर्थात!  वह  अनुभव में आये तब कहेंगे माया से इनोसेंट और ज्ञान में सेंट अर्थात! सम्पूर्ण पवित्र।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  अंदर की अशुद्धि ही सम्पूर्ण शुद्ध बनने में विघ्न डालती है... क्यों और कैसे ?

 

❉   अंदर की अशुद्धि का सबसे पहला और सबसे बड़ा कारण देह अभिमान है जो अन्तर्मन को शुद्ध नही होने देता । क्योकि देह अभिमान में आने से ही विकारों की उत्पत्ति होती है । और विकारों के वशीभूत होने के कारण आत्मा कर्मेन्द्रियों के अधीन हो कर अनेक विकर्म करने लगती है । विकर्मो का यह बोझ बढ़ने से अंदर की अशुद्धि भी बढ़ती जाती है और यही अशुद्धि सम्पूर्ण शुद्ध बनने में विघ्न रूप बनती है ।

 

❉   63 जन्मों के विकारों की कट आत्मा पर चढ़ी हुई है जिसे उतारने का एकमात्र उपाय केवल बाबा की याद रूपी योग अग्नि है जिसमें आत्मा के सारे पाप कर्म जल कर भस्म हो जाते हैं और आत्मा चमकदार सोना बन जाती है । किन्तु जो बाबा को याद नही करते और आलस्य - अलबेलेपन में अपना समय गंवा देते हैं उनके अंदर की अशुद्धि कभी समाप्त नही होती इसलिए वे सम्पूर्ण शुद्ध नही बन पाते ।

 

❉   मन बुद्धि जैसे जैसे स्वच्छ बनने लगते है अंदर की अशुद्धता भी धीरे धीरे समाप्त होने लगती है । और मन बुद्धि को स्वच्छ बनाने का उपाय है शुद्ध और श्रेष्ठ चिंतन । किन्तु जो अपने मन बुद्धि को शुद्ध और श्रेष्ठ चिंतन के बजाए पर - चिंतन और व्यर्थ चिंतन में लगाये रखते हैं । व्यर्थ का किचड़ा उनके अंदर जमा होता रहता है और उन्हें अंदर से अशुद्ध कर देता है । अंदर की यह अशुद्धि ही सम्पूर्ण शुद्ध बनने में बाधा डालती है ।

 

❉   कहावत है कि " शेरनी का दूध सोने के बर्तन में ही रह सकता है " इसी प्रकार बाबा की याद भी तभी ठहर सकती है जब अंदर शुद्धि हो । ज्ञान की गुह्य प्वाइंट्स जो बाबा हर रोज मुरली के माध्यम से हम बच्चों को सुनाते हैं उन प्वाइंट्स की धारणा तभी हो सकती है जब मन बुद्धि में शुद्धता होगी, पवित्रता होगी । अगर मन में संकल्प मात्र भी अपवित्रता है तो वह अंदर की शुद्धि को समाप्त कर सम्पूर्ण शुद्ध बनने में विघ्न डालेगी ।

 

❉   आत्मा अपने मूल स्वरूप में अति शुद्ध और पवित्र है । अशुद्धि आती ही तब है जब वास्तविक स्वरूप की विस्मृति होती है । अपने स्वधर्म को भूल परधर्म में आने से अशुद्धता का जन्म होता है जो दुःख और अशांति का कारण बनता है । जिसे दूर करने के लिए ही व्यक्ति अनेक प्रकार के उपाय अपनाता है । किन्तु यथार्थ ज्ञान ना होने से और ही गलत कर्मो में प्रवृत हो जाता है जो अंदर से उसे और ही अशुद्ध बना देते हैं और यह अशुद्धि उसे सम्पूर्ण शुद्ध नही बनने देती।

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⊙_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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