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❍ 17 / 02 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °व्यर्थ बोल° व डिस्टर्ब करने वाले बोल से मुक्त रहे ?
‖✓‖ मनसा-वाचा-कर्मणा ऐसे कर्म किये जो °मर्यादा पुरुषोत्तम° बनाने वाले हों ?
‖✓‖ °पवित्र° बनने की प्रतिज्ञा की ?
‖✓‖ आत्माओं को °पवित्र बनने की युक्ति° सुनाई ?
‖✓‖ आत्माओं को °बाप का पैगाम° दिया ?
‖✓‖ आत्माओं को 21 जन्म के लिए °विश्व की बादशाही° लेने का सस्ता सौदा करना सिखाया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ °त्याग और स्नेह° की शक्ति द्वारा सेवा में सफलता प्राप्त की ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
‖✓‖ °बिंदु° बन, बिंदु को याद कर बीती बातों को बिंदु लगाया ?
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-15)
➢➢ इस अंतिम समय में पवित्र बनाने की प्रतिज्ञा करनी है । पवित्र बनने की ही युक्ति सबको सुनानी है ।
❉ बाबा कहते है कि मैं तुम्हें पवित्र दुनिया का वर्सा देने के लिए आया हूं तो हमें बाप की श्रीमत पर चलते हुए इस अंतिम जन्म में पवित्र जरुर बनना है ।
❉ सतयुग में देवी देवता ही होते हैं व देवी देवता तो हमेशा पवित्र होते हैं । जब परमपिता परमात्मा स्वयं सुप्रीम टीचर बन हमें पढ़ाकर पावन बनाने के लिए आए हैं तो हमें भी बाप का आज्ञाकारी फरमानबरदार व् पवित्र बन विश्व की बादशाही लेनी है ।
❉ बाबा कहते हैं मैंने तो 5000 वर्ष पहले ही तुम्हें राजाई दी थी । तुम विकारों में आकर गिरते गए । अब स्वयं को व बाप को पहचान अपने विकारों व अवगुणों को छोड़कर देही अभिमानी बनना है व पवित्र दुनिया में जाने के लिए पवित्र बनने की प्रतिज्ञा करनी है ।
❉ मनसा-वाचा-कर्मणा से पवित्रता की युक्ति बतानी है । मन से सब को शुभ भावना देनी है । वाचा से हमेशा बाप समान मीठा बोलना है व श्रेष्ठ कर्म करने है ।
❉ अपने को शरीर नही आत्मा ही समझना है । अपने को आत्मा समझ आत्मा के पिता परमात्मा को याद करना है । याद से ही आत्मा की कट उतरती जायेगी व आत्मा पावन बनती जायेगी । इस अंतिम जन्म में पवित्र रहने से 21 जन्मों के लिए विश्व का मालिक बन जायेंगे ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-20)
➢➢ त्याग और स्नेह की शक्ति द्वारा सेवा मे सफलता प्राप्त करने वाले स्नेही सहयोगी होते हैं...क्यों और कैसे ?
❉. जो बच्चे सदा बाप के लव में लवलीन रहते हैं, बाप के गुणों ज्ञान, सुख, आनन्द के सागर में समाये रहते हैं । देह व देह के सर्व सम्बंधों के कर्म में हरेक चीज वैभव का त्याग कर बाप की याद में सेवा करते सफलता प्राप्त करते हैं वे स्नेही व सहयोगी होते हैं ।
❉ त्याग का मतलब यह नहीं कि सब सम्बंध छोड़ कर बैठ जाना । महिमा का त्याग, मान का त्याग, सेवाधारी का त्याग कर बस एक बाप की लगन में रहते रुहानी व आत्मिक स्नेह हो तो सेवा में मेहनत कम व सफलता ज्यादा प्राप्त होती है ।
❉ जैसे ब्रह्मा बाबा ने त्याग और स्नेह की शक्ति से अपने सभी ब्राह्मण बच्चों को त्याग और स्नेहमूर्त बना सर्व का सहयोगी बना दिया ।
❉ जिसके लिए दिल से स्नेह होता है तो उसके लिए कुछ भी करना त्याग नही लगता है । स्नेह की शक्ति से सहज ही सफलता प्राप्त करते हैं । हर सेवा में स्वयं को ट्रस्टी समझ करते हुए सर्व के स्नेही सहयोगी होते हैं ।
❉ लौकिक में भी कोई कार्य स्नेह और त्याग से करते हैं तो उसे भी दूसरों का सहज सहयोग प्राप्त होता है व सफलता प्राप्त करते हैं । ऐसे हमें मनसा,वाचा, कर्मणा त्याग और स्नेहमूर्त बन सर्व का स्नेही सहयोगी बनना है ।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-15)
➢➢ फरिश्ता बनना है तो व्यर्थ बोल वा डिस्टर्ब करने वाले बोल से मुक्त बनो...क्यों और कैसे ?
❉ व्यर्थ बोल वा डिस्टर्ब करने वाले बोल मन बुद्धि को शांत और एकाग्रचित स्थिति में स्थित नही रहने देते । एकाग्रता की शक्ति ना होने के कारण मन बुद्धि सदा भारी रहती है तथा फरिश्ता स्वरूप का अनुभव होने ही नही देती । इसलिए फ़रिश्ता बनने के लिए जरूरी है व्यर्थ बोल वा डिस्टर्ब बोलने वाले बोल से मुक्त बनो ।
❉ जब स्वयं को नॉलेजफुल की सीट पर सेट रखेंगे तो मन बुद्धि श्रेष्ठ और समर्थ चिंतन में बिज़ी रहेगी जिससे स्व स्थिति स्वत:ही शक्तिशाली बनती जायेगी और मन बुद्धि व्यर्थ बोल वा डिस्टर्ब करने वाले बोल से मुक्त हो कर फरिश्ता बन उड़ती रहेगी ।
❉ जितना स्वयं को व्यर्थ बोल वा डिस्टर्ब करने वाली बातो के प्रभाव से मुक्त रखेंगे उतना साकारी दुनिया और दुनियावी सम्बन्धो से ममत्व निकलता जाएगा और निराकारी स्वरूप तथा आकारी फरिश्ता स्वरूप में रहना सरल होता जाएगा ।
❉ फ़रिश्ता बनने के लिए जरूरी है सदैव हल्का हो कर रहना और हल्केपन का अनुभव वही आत्मा कर सकती है जो प्लेन बुद्धि बन व्यर्थ बोल वा डिस्टर्ब करने वाले बोल से स्वयं को मुक्त कर लेती है ।
❉ व्यर्थ बोल व डिस्टर्ब करने वाले बोल मायाजीत बनने नही देते और माया से हार खाने वाली आत्मा सदैव मन पर एक बोझ का अनुभव करती है और बोझिल आत्मा ना तो उड़ती कला का अनुभव कर सकती है और ना ही फरिश्ता बन उड़ सकती है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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