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❍ 13 / 11 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *"हो जाएगा" जैसे शब्दों की बजाये "करना ही है" जैसे शब्दों का उपयोग कर दृढ़ता को अपने जीवन में धारण किया ?*
➢➢ *बापदादा से किये गए वायदों को कर्म में लाये ?*
➢➢ *अपने सब बोझ बाप को अर्पित किये ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *संगम युग का महत्व इमर्ज रूप में स्मृति में रहा ?*
➢➢ *समय को अपना शिक्षक न बना बापदादा को अपना शिक्षक बनाया ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ *आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"पास विद ऑनर बनने के लिए सर्व खजानो के खाते को जमाकर सम्पन्न बनो"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... कितने महान भाग्यशाली हाईएस्ट और रिचेस्ट अविनाशी खजानो से सम्पन्न हो... अपने महानतम भाग्य के नशे में खो जाओ... साँस समय संकल्प और शक्तियो के खजानो से मालामाल हो... हर कदम में पदम् जमा करने वाले और मीठे बाबा की याद और स्वमान से सजे विश्व राज्य अधिकारी बच्चे हो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा के मिलन पूर्व कितनी गरीब दीनहीन और दुखी थी... प्यारे बाबा ने मुझे कितना भाग्यवान धनवान् बना दिया है... सारे खजानो से सम्पन्न मै आत्मा कितनी भरपूर हूँ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... समय रहते सारे खजानो को जमा कर सम्पन्न हो चलो... जमा का खाता हर पल बढ़ाओ... संकल्प और कर्म को प्लैन और प्रेक्टिकल दोनों को समान बनाओ... व्यर्थ पर बिंदी लगाकर आगे बढ़ चलो... मा रचता बन मुस्कराते रहो... और सारे बोझ बाबा को सुपुर्द कर हल्के हो आनन्द के झूले में झूलते खिलखिलाते रहो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा आपकी प्यारी मीठी यादो में सम्पन्न होती जा रही हूँ... संगम के कीमती समय पर नजर रख अपने भाग्य को जमा के खाते को भरपूर करती जा रही हूँ... और मीठे बाबा के साये में निश्चिन्त उड़ती जा रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... मा सर्वशक्तिवान बन हर मुश्किल को उड़ा दो... सहजयोगी बन मुस्कराओ... संगम युग मोजो का युग है... ईश्वरीय मिलन का हर पल आनन्द उठाओ...व्यर्थ से मुक्त सदा बचत का खाता बढ़ाने वाले स्वराज्य अधिकारी पन के भान में डूब जाओ... मन बुद्धि के मालिक बन निर्बन्धन हो सदा खुशियो में खिलखिलाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा से पाये खजानो को बाँहों में भरकर मुस्करा रही हूँ... यादो में डूबी हर पल कमाई कर मालामाल होती जा रही हूँ... मन बुद्धि को संग लिए हर संकल्प को मीठे बाबा की याद में भिगो रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा निर्बंधन हूँ ।"*
➳ _ ➳ ये कलयुगी दुनिया विनाश के कगार पर खड़ी है... परमपिता परमात्मा इस सृष्टि पर आये हैं... पुरानी दुनिया का विनाश कर नई दुनिया की स्थापना करने... नई दुनिया में प्रवेश करने के लिये मुझ आत्मा को बंधनमुक्त बन सम्पन्न बनना है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा एकाग्रचित्त होकर स्वयं की चेकिंग करती हूँ... मनसा, वाचा व कर्मणा में मुझ आत्मा का कोई सूक्ष्म में भी धागा जुड़ा हुआ तो नहीं है... एक बाप के सिवाय कोई देहधारी की याद न आये... अपनी देह भी याद आई तो देह के साथ देह के सम्बन्ध, पदार्थ, दुनिया सब एक के पीछे आ जायेंगे...
➳ _ ➳ मैं आत्मा निर्बंधन बनने के लिए सबसे पहले आत्मा का पाठ पक्का करती हूँ... मैं श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ... मैं इस देह का आधार लेकर पार्ट बजाने आई हूँ... सभी कर्मेंद्रियों की मालिक हूँ... मैं आत्मा इस दुनिया में मेहमान हूँ... मैं आत्मा अब देही अभिमानी स्थिति में स्थित हो रहीं हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सभी को आत्मिक दृष्टि से देखती हूँ... एक बाप की संतान होने के नाते सभी आत्माएँ मुझ आत्मा के भाई हैं... हम सभी निराकारी दुनिया के रहने वाले हैं... 63 जन्मों से इन्हीं देह के बंधनों में, पदार्थों के आकर्षण में पड़कर मैं आत्मा मायावी बंधनों के जाल में फँसते चले गयी थी...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा सिर्फ एक बाप की याद में रहती हूँ... अनेकों जन्मों के अनेक प्रकार के बंधनों को समाप्त कर सर्व सम्बन्ध एक प्यारे बाबा के साथ जोड़ती हूँ... मैं बाबा की, बाबा मेरा बस इसी स्मृति में रहती हूँ... देह का भान, पुराने स्वभाव-संस्कार, सर्व लौकिक -अलौकिक परिवार के बंधनों से मुक्त होते जा रहीं हूँ... मैं आत्मा सम्पूर्ण स्वतंत्र होते जा रहीं हूँ... मैं सूक्ष्म संकल्पों के बंधन से भी मुक्त बन ऊँची स्टेज का अनुभव करने वाली निर्बंधन आत्मा बन रहीं हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल - देही- अभिमानी स्थिति द्वारा अचल अडोल स्थिति का अनुभव करना"*
➳ _ ➳ देही- अभिमानी स्थिति से शुद्ध आत्मा, पुण्य आत्मा बनती है। जब आत्मा पावन बनती है। तब हमारा सोच-विचार, बोल सर्व के कल्याण प्रति हो जाता है। देही अभिमानी बनने से आत्मा बाबा के साथ जाने के लायक बन जाती है। देह अभिमान सुख शान्ति सम्पन्न बनने नही देता।
➳ _ ➳ मैं आत्मा भृकुटि में चमकता हुआ एक सितारा हूँ... इस देह से न्यारा... मैं आत्मा अपनी बुद्धि को एकाग्रचित करने का अभ्यास कर रही हूँ... बुद्धि से मैं आत्मा अंतर्मुखी बन सहजता से शान्ति का अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा शान्ति का अनुभव करती जा रही हूँ... धीरे-धीरे इस देह का भान समाप्त होता जा रहा है... सर्वशक्तिमान पिता से पवित्रता की किरणों के फ़व्वारे के नीचे मैं आत्मा अपनी कमी-कमजोरियों को भी समाप्त होता अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने देही अभिमानी स्थिति में स्थित होती जा रही हूँ... देह अभिमान के कारण आत्मा जो खुद को शक्तिहीन अनुभव करने लगी थी... फिर से देही अभिमानी स्थिति के कारण आत्मा शक्तिशाली अनुभव करने लगी है...
➳ _ ➳ अपने पिता की गोद में... मैं आत्मा अपने मन और तन की हलचल से मुक्त अनुभव कर रही हूँ... आत्मा अपने असली शान्त स्वरूप में टिक जाती है... मैं आत्मा खुद को बहुत ही हल्का अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ देही- अभिमानी स्थिति द्वारा मैं आत्मा सर्व बन्धनों से अपने को मुक्त अनुभव कर रही हूँ... मेरी स्थिति अचल, स्थिर होती जा रही है... आत्मा खुद को बहुत ही हल्का अनुभव कर रही है... बहुत ही अच्छा लग रहा है...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *सूक्ष्म संकल्पों के बन्धन से भी मुक्त बन ऊँची स्टेज का अनुभव करने वाले निर्बंधन होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ सूक्ष्म संकल्पों के बन्धन से भी मुक्त बन ऊँची स्टेज का अनुभव करने वाले निर्बंधन होते हैं क्योंकि... जो बच्चे जितना निर्बंधन हैं, उतना ऊँची स्टेज पर स्थित रह सकते हैं, इसलिये! हमें ये चेक करना है कि... मनसा वाचा कर्मणा में कोई सूक्ष्म में भी सूक्ष्म धागा कहीं जुटा हुआ तो नहीं है न।
❉ अगर जुटा हुआ है, तो! उसे तुरन्त प्रभाव से तोडना है। अपनी देह व देह से सम्बन्धित सभी पदार्थों से व सम्बन्ध सम्पर्क में रहने वाले सम्बन्धियों से, आसक्ति को निकाल कर उन के प्रति केवल अपने कर्तव्य भाव से ट्रस्टी बन कर, सिर्फ सेवा के निमित्त भाव से, हर कार्य को करना है।
❉ अब हमें एक बाप के सिवाय और किसी भी आत्मा से कोई भी सम्बन्ध नहीं रखना है। एक बाप के सिवाय हमको और कोई की भी याद नही आये। अब तो! हमें सर्व सम्बन्धों का सुख केवल और सिर्फ केवल, एक बाप से ही लेना है। अभी संगमयुग पर एक भी सम्बन्ध की कमी नही रहनी चाहिये।
❉ अभी की रही हुई कमी, कल्प कल्प की कमी बन जाती है। इसलिये सावधानी रखते हुए, अपने सर्व सम्बन्ध बाबा से ही रखने हैं। हमें अपनी देह की तनिक भी याद नहीं आनी चाहिये। अगर अपनी देह की याद आई, तो! देह के साथ देह के सम्बन्ध, पदार्थ व सारी दुनिया सब एक के पीछे, एक आ जायेंगे।
❉ मैं निर्बंधन हूँ। ये एक विचार हमें सर्व बन्धनों से मुक्त कर देगा। बाबा के द्वारा प्रदत्त वरदान मैं निर्बंधन हूँ– इस वरदान को स्मृति में रख कर, सारी दुनिया को माया की जाल से मुक्त करने की सेवा करनी है, इसलिये! तो! सूक्ष्म संकल्पों के बंधन से भी मुक्त बन कर, ऊँची स्टेज का अनुभव करने वाले ही निर्बंधन होते हैं।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *देही - अभिमानी स्थिति द्वारा तन और मन की हलचल को समाप्त करने वाले ही अचल रहते हैं... क्यों और कैसे* ?
❉ देह का भान ही आत्मा को तन और मन की हलचल में लाता है । इसलिए जो देही - अभिमानी स्थिति में स्थित रहते हैं उन्हें तन और मन की हलचल अपनी और आकर्षित नही कर सकती क्योंकि एकरस स्थिति के आसन पर विराजमान हो कर वे साक्षी हो कर ड्रामा की हर सीन को देखते हैं । इसलिए कभी भी मुरझाते नही । ड्रामा को ढाल बना कर वे अचल अडोल बन हर परिस्थिति को पार कर लेते हैं ।
❉ देही अभिमानी स्थिति में स्थित रहने वाले देह के सर्व आकर्षणों से सदा मुक्त रहते हैं । दुनिया का कोई भी रस उन्हें अपनी और आकर्षित नही कर सकता । केवल एक के ही रस में मग्न हो कर वे सर्व सम्बन्धो का सुख बाप से ही लेते हैं । चलते फिरते उठते बैठते केवल बाबा की ही स्मृति में समाये रहते हैं यह एकरस स्थिति ही उन्हें तन और मन की हर हलचल से मुक्त करा कर अचल अडोल बना देती है ।
❉ जैसे ब्रह्मा बाप ने देही अभिमानी स्थिति के अभ्यास द्वारा हर मुश्किल को सहज बनाया । कैसी भी परिस्थिति आई किन्तु सदा निश्चिन्त रहे । किसी भी बात में क्वेश्चन मार्क का टेढ़ा रास्ता लेने के बजाए कल्याण की बिन्दी लगाई । एक बल एक भरोसा इसी आधार पर अपनी अचल - अडोल, एकरस स्थिति बनाई । ऐसे जो फॉलो फादर करते हैं वे सदा एकरस स्थिति के आसन
पर विराजमान रहते हुए तन और मन की हलचल को समाप्त करने वाले अचल अडोल बन जाते है ।
❉ देह अभिमान में आ कर जब सार के बजाए विस्तार में चले जाते हैं तो जल्दी ही तन और मन की हलचल में आ जाते हैं । इसलिए देह के भान को छोड़ जितना देही - अभिमानी स्थिति में स्थित रहने का अभ्यास करेंगे । उतना हद के सभी आकर्षणों से, देह की पुरानी दुनिया, व्यक्त भाव, वैभवों के भाव आदि सभी आकर्षणों से मनबुद्धि को निकाल एक बाप की याद में स्थिर कर सकेंगे । जिससे विस्तार को सार में समाना सहज हो जाएगा जो सर्व प्रकार की हलचल से मुक्त कर स्थिति को अचल अडोल बना देगा ।
❉ तन और मन हलचल में तब आते हैं जब संकल्प शक्ति कमजोर होती है । संकल्पों की शक्ति पर ब्रेक लगाने की जब पावर आ जाती है तो सेकंड में मन बुद्धि को जहां चाहे उसी दिशा में मोड़ सकते हैं । जिससे बुद्धि विस्तार में नहीं जाती और एनर्जी वेस्ट होने से बच जाती है । जितनी एनर्जी जमा होती जाती है उतनी परखने और निर्णय करने की शक्ति भी बढ़ती जाती है । और सही निर्णय लेकर जो हर प्रकार की हलचल से स्वयं को बचा लेते है । वे हर परिस्थिति में अचल अडोल स्थिति का अनुभव करते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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