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 13 / 07 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ इस बेहद के खेल को साक्षी होकर देखा ?

 

➢➢ "मैं आत्मा हूँ" - यह पथ पक्का किया ?

 

➢➢ ×कर्मेन्द्रियाँ चलायेमान× तो नहीं हुई ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ स्वयं की स्मृति में रह अपने हर कर्म को संयम(नियम) बनाया ?

 

➢➢ पवित्रता का पिल्लर मज़बूत करने पर विशेष अटेंशन रहा ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ मरजीवा स्थिति का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - तुम्हे अपना चिंतन करना है दूसरे का नही क्योकि ड्रामा अनुसार जो करेगा वह पायेगा"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे अपने आदि स्वरूप को स्मर्तियो में भरो... स्वयं की खूबसूरती को मुझ पिता के साथ से यादो में ताजा करो... यही स्वयं का चिंतन और पिता की यादे अथाह प्राप्तियों को देकर आनन्दमय जीवन में ले जाएँगी...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... अब देह नही देह के नाते भी नही... और व्यर्थ सी बाते भी नही... सिर्फ और सिर्फ मेरे आत्मिक रूप और आपकी मीठी स्मर्तियो से सजी धजी न्यारी और प्यारी बन चली हूँ...

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे अपने सत्य रूप में खो चलो... देही अभिमानी होकर गुणो और शक्तियो से भर चलो... अपने खूबसूरत मीठे सुखो को स्मर्तियो में सजाओ... सिर्फ अपने जनमो का चिंतन करो... उन्हें आत्मिक स्तिथि में पिता की यादो से निखारो... तो ये यादे यह चिंतन सुख के सागर को दिल आँगन में समा देगा...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै कितनी प्यारी आत्मा हूँ अब जान चली हूँ... अपने सारे जनमो को जान चुकी हूँ... अपने सत्य स्वरूप को जानकर मोहित सी हो चली हूँ... और आपकी यादो में गुणो और शक्तियो से भर उठी हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - मेरे सिकीलधे बच्चे... कितने खूबसूरत दिलकश स्वरूप से भरे हो... कितने सुंदर भाग्य से भरे हो... इसे चिंतन में लाओ... अपनी सच्चाई को कभी न भूलो... खूबसूरत प्यारी आत्मा हो यह समझकर ही रोल को निभाओ... और आत्मिक सुंदरता को चहु ओर बिखराओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने खुबसूरत स्वरूप में खो चली हूँ... अपने ही मीठे चिंतन में डूबी हूँ... आपकी यादो में अपने सुंदर रूप को दिलकश सा आकर्षक बनाने में जुट गयी हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - मैं आत्मा साक्षीदृष्टा हूं"

 

➳ _ ➳  योगयुक्त होकर स्वमान की सीट पर सेट होकर मैं आत्मा सेवा का पार्ट बजाने वाली साक्षीदृष्टा आत्मा हूं... जो कल्प पहले हुआ वही हुबहू रिपीट हो रहा है... ड्रामा कल्याणकारी है... इस सृष्टि रंगमच पर सब हीरोपार्टधारी हैं... सब आत्माऐं अपना एक्यूरेट पार्ट बजाते है... जैसे नाटक में सब अपना पार्ट बजाते हैं व फिर घर वापिस जाते हैं... मैं आत्मा निराकारी दुनिया से यहां आकर शरीर रुपी चोला लेकर पार्ट बजाती हूं... ये बेहद का खेल है... मैं आत्मा सबके पार्ट को साक्षी होकर देखती हूं... विनाश होना ही है... कहीं बाढ़ , कहीं ब्लास्ट.. ऐसे आश्चर्यजनक दृश्य सामने आते हैं जैसे अनेक बार देखी हुई सीन फिर से देखती हूं... मेरे प्यारे बाबा मेरे साथ हैं... मैं आत्मा निर्भय हूं... मैं आत्मा अजर अमर अविनाशी हूं...

 

❉   "ड्रिल - निर्विकारी निराकारी स्थिति का अनुभव करना"

 

➳ _ ➳  मैं कर्मिन्द्रियजीत आत्मा हूँ... देह से न्यारी भृकुटि में अपने अकाल तख्त पर बिराजमान हूँ... देह की मालिक हूँ... देह की हर कर्मेन्द्रिय मुझ आत्मा के आर्डर प्रमाण चलती है... मैं आत्मा अपनी स्थिति की स्वयं ही जांच करती हूं... मैं आत्मा देखते हुए भी नही देखती... सुनते हुए भी नही सुनती... मैं आत्मा अपनी कर्मेन्द्रियों की कचहरी लगाती हूं... मैं आत्मा योगबल से काम विकार पर जीत पाती हूं... देह और देह के सम्बंधों को बुद्धि से भुला देही-अभिमानी स्थिति का अनुभव करती हूं... मैं आत्मा  देह के विष को छोड़ मस्तकमणि को देखती हूं... मैं आत्मा सम्पूर्ण निर्विकारी निराकारी स्थिति का अनुभव करती हूं...

 

❉   "ड्रिल - पवित्रता का पिल्लर मजबूत कर लाइट हाउस की स्थिति का अनुभव करना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा देह से न्यारी देही अवस्था में हूं... अपने प्यारे बाबा के सम्मुख हूं... मेरे एक ओर ज्ञान से निर्मित सत बाप के संग का पिल्लर है... मैं आत्मा सत बाप की याद से अपने विकारों को भस्म करती हूं... आत्मा पर लगी कट बाप की याद से उतरती जाती है... मैं आत्मा शुद्ध और पावन बन रही हूं... पवित्रता ही सुख शांति की जननी है... मुझ आत्मा के मनसा वाचा कर्मणा पवित्रता के दृढ़ संकल्प से पवित्रता का पिल्लर मजबूत हो गया है... पवित्रता ही नयी दुनिया का आधार है... प्यारे बाबा की याद से मेरी काया पवित्रता से प्रकाशवान होकर चमक रही है... मुझ आत्मा की पवित्रता ही इस अंधेरी कलयुगी रात में रोशनी का काम करती लाइट हाईस है... मैं आत्मा स्वयं को लाइट माइट के स्वरुप में अनुभव कर रही हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं अथॉरिटी स्वरुप आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳  मैं चैतन्य शक्ति आत्मा हूँ... अलौकिक प्रकाश हूँ... अजर अमर अविनाशी हूँ... देह के भृकुटि मध्य में श्वेत किरणों को फेला रही हूँ... अब मै आत्मा इस शरीर तख्त को छोड़ उड़ चली अपने प्यारे बाबा के पास परमधाम में...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा मीठे बाबा के सम्मुख हूँ... प्यारे बाबा की शक्तिशाली सुखदायी आनन्ददायी किरणों के सम्मुख हूँ... यह आनन्ददायी किरणें मुझ आत्मा को सहज ही मेरे वास्तविक स्वरुप के गुणों की याद में स्तिथ कर रहीं हैं...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा स्वयं के वास्तविक स्वरुप की स्मृति में रहकर ही समस्त कर्मों को करने की शक्ति परमात्मा से प्राप्त कर रहीं हूँ... अपनी वास्तविकता की स्मृति में किया गया हर कर्म मेरे ब्राह्मण जीवन का संयम बन गया है...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपने साकार स्वरुप की स्मृति के नशे में सदा मग्न रहने का दिव्य अनुभव कर रहीं हूँ... इस नशे में मग्न रहकर मैं आत्मा यह अथॉरिटी से कह सकती हूँ कि मैं अपने साकार द्वारा किए गए हर उल्टे कर्म को भी सुल्टा करने में समर्थ हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा सदा स्वयं की स्तिथि में स्तिथ रहकर हर संकल्प, हर बोल वा हर कर्म को संयम में करके उन्हें ही नियम बनाने में निमित्त बनने का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा नित्य ही अथॉरिटी स्वरुप की अवस्था में स्तिथ रहने का अनुभव कर रहीं हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢ स्वयं की स्मृति में रह अपने हर कर्म को संयम(नियम) बनाने वाले ही ऑथिरिटी स्वरुप होते हैं... क्यों और कैसे ?

 

❉   हम ब्राह्मण आत्माएं अभी संगम के समय में  जो आत्मा की स्मृति में रह कर्म करते वही फिर भक्तिमार्ग में नियम बन जाते। स्वयं की स्मृति में रहने से हर कर्म की ऑथिरिटी स्वरुप बन जाते। देहि अभिमानी रह कर्म करने से हर कर्म नियम बन जाता।

 

❉   शिव बाबा ने जो श्रीमत बताई है तो स्वयं को आत्मा समझ श्रीमत प्रमाण एक्यूरेट चलने से अगर कोई कर्म उल्टा भी हो जाता तो बाप उसे सुल्टा कर देते। हम अगर स्वयं की स्मृति में रह कोई कर्म करते और अगर कोई कर्म उल्टा भी हो जाए तो हमारे हर उल्टे कर्म में भी कल्याण समाया हुआ है।

 

❉   अगर कोई कर्म स्वयं की स्मृति स्वरुप में रह करते अर्थात स्वयं को आत्मा समझ संकल्प रचते, बोल बोलते वा कर्म करते तो उस हर कर्म का नशा रहता क्योंकि वो श्रीमत प्रमाण होता जिसमें शिव बाबा की याद समाई होती तो वो कर्म उल्टा हो ही नहीं सकता। इसलिए ब्राह्मण परिवार का हर संकल्प, हर बोल, हर कर्म संयम (नियम) बन जाएगा।

 

❉   स्वयं की स्मृति में रह अर्थात देहि अभिमानी स्थिति में स्थित रह कर्म करने से ब्राह्मण आत्माओं का हर कर्म गायन और पूजन योग्य बन जाता। ब्राह्मण आत्माएं जो कर्म करते वो कर्म भक्तिमार्ग में नियम बन जाता।

 

❉   ब्राह्मण आत्माओं का हर कर्म नियम बने उसके लिए ज़रूरी है स्वमान में रह कर्म करना । जैसे ब्रह्मा बाबा देहि अभिमानी स्थिति में स्थित रह स्वमान के अभ्यास द्वारा हर कर्म करते थे । ब्रह्मा बाबा हर कर्म की ऑथरिटी स्वरुप बन गए इसलिए हम सभी ब्रह्मा बाबा को फॉलो कर स्वयं को भी ऑथरिटी स्वरुप बना हमारे हर कर्म को संयम (नियम) बना सकते।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢ पवित्रता का पिल्लर मजबूत करो तो यह पिल्लर लाइट हाउस का काम करता रहेगा... क्यों और कैसे ?

 

❉   जैसे नदी पर बांध बना देने से पानी को बिजली पैदा करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है और इस बिजली से फिर अनेकों काम किये जाते हैं । गांव - गांव में पानी पहुंच जाता है जिससे अनेक लाभ होते हैं । जैसे उत्पादन शक्ति बढ़ती है । लहलहाते खेतो में हरियाली आ जाती है और देश समृद्धशाली बनता जाता है । इसी प्रकार पवित्रता का पिल्लर मजबूत होने से आतमा में शक्ति का जो संचय होता है वह लाइट हाउस का काम करता है ।

 

❉   पवित्रता का पिल्लर जब मजबूत होगा तभी कमल आसनधारी बन कमल पुष्प समान स्थिति में स्थित रह सकेंगे तथा हर कर्मेन्द्रिय द्वारा कर्म करते हुए भी इन्द्रियों के आकर्षण से परे न्यारी और प्यारी स्थिति में स्थित रह सकेंगे । यही प्यारी और न्यारी स्थिति ही आत्मा को चलता फिरता ऐसा लाइट हाउस बना देगी जो इन्द्रियों के आकर्षण में फंसी अनेको आत्माओं को अपने ज्ञान की रोशनी दिखा कर उनके दुखमय  जीवन को खुशियों के रंगो से भरपूर कर देगी ।

 

❉   जैसे लौकिक दुनिया में भाग्य की निशानी राज्य अर्थात राजाई होती है और राजाई की निशानी ताज होता है । ऐसे ईश्वरीय भाग्य की निशानी भी लाइट का ताज है और इस ताज को प्राप्त करने का आधार है सम्पूर्ण पवित्रता । इसलिए जो ब्राह्मण बच्चे ईश्वरीय नियमो और मर्यादाओं पर चल कर पवित्रता के पिल्लर को मजबूत कर लेते है तो यह पिल्लर उन्हें पवित्रता की रॉयल्टी से सम्पन्न बना देता है और लाइट  हाउस बन अपनी पवित्रता की रॉयल्टी से वे सारे विश्व को प्रकाशित करते रहते हैं ।

 

❉   जो सम्पूर्ण पवित्रता को धारण कर अपना पवित्रता का पिल्लर मजबूत कर लेते हैं वे कमल पुष्प समान बन इस पतित दुनिया अर्थात देह और देह की दुनिया के आकर्षणों से स्वयं को मुक्त कर लेते हैं और उपराम स्थिति में स्थित रहते हुए डबल लाइट फ़रिश्ता बन जाते हैं । अपने फ़रिश्ता स्वरूप में स्थित हो कर जब वे आत्माओं के सम्पर्क में आते हैं तो उनसे निकलने वाली लाइट और माइट की किरणे उन आत्माओं को ऐसाअनुभव कराती हैं जैसे लाइट हाउस की रोशनी उन्हें अँधेरे से प्रकाश में ले जा रही है ।

 

❉   भक्तिमार्ग में देवताओं के हाथ में कमल का पुष्प दिखाते हैं जो वास्तव में हम ब्राह्मण बच्चों का अलंकार है जिसे हम संगम युग पर धारण कर करते हैं । जैसे कमल का पुष्प कीचड़ में रहते हुए भी उससे न्यारा और प्यारा रहता है इसी प्रकार जो ब्राह्मण बच्चे लौकिक प्रवृति में रहते हुए भी पवित्रता को धारण को पवित्रता के पिल्लर को मजबूत बना लेते हैं वे अपने लौकिक जीवन को भी अलौकिक जीवन में परिवर्तित कर अलौकिकता का प्रकाश अपने जीवन में ऐसे भर लेते हैं कि उनका यह पवित्रता का पिल्लर लाइट हाउस बन अनेकों को रास्ता दिखाने के निमित बन जाता है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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