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❍ 15 / 08 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ कितना भी बीमार हो, तकलीफ हो, उसमें √एक बाप को ही याद√ किया ?
➢➢ पूरा पूरा √निश्चयबुधी√ बनकर रहे ?
➢➢ बुधीयोग अपने √स्वीट साइलेंस होम√ में लगा रहा ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ √संकल्प, वृत्ति और स्मृति√ से व्यर्थ को समाप्त किया ?
➢➢ √बाप के साथ को यूज़√ कर दिलशिकस्त होने से बचे ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ √"सफलता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है"√ - इस स्मृति से सफलता का अनुभव किया ?
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - प्राण बचाने वाला प्राणेश्वर बाप आया है, तुम बच्चों को ज्ञान की मीठी मुरली सुनाकर प्राण बचाने"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... अज्ञान के अंधेरो में भटक कर आत्मा पंछी देह में देह के संसार रुपी पिंजरे में कैद हो चली... अब विश्व पिता आया है ज्ञान और योग के सुंदर पंखो से.... आत्मा पंछी को प्राण रुपी सच्चे स्वरूप का अहसास देने... तो उस मीठे प्राणेश्वर बाबा को याद करो
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा स्वयं को भूल निस्तेज हो चली थी मिटटी के मटमैले सम्बन्धो में निष्प्राण सी जी रही थी... आपने मीठे बाबा मुझ आत्मा का आकर उद्धार किया है... ज्ञान और योग के पंखो से मुझे आनन्द में उड़ा दिया है...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... प्राणहीन होकर अपने सच्चे वजूद को भूलकर जो देह की दुनिया में उलझ गए थे... अब मीठा पिता समझ और यादो के सुनहरे पंख देकर उड़ाने आया है... अपना पता अपने घर का पता बताकर सच्चा जीयदान देने आया है... माया के अज्ञान ने प्राणहीन सा किया और मीठे बाबा ने आकर प्राणों से जीवित किया है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा कितने जनमो से प्राणेश्वर बाबा आपकी प्यासी रही... आपने मेरी पुकार को दिल में समा लिया है... मेरी यादो में आकर मुझे सदा का संवार दिया है... ज्ञान रुपी प्राण पाकर में आत्मा मणि सी दमक उठी हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जिन्हें जनमो से पुकारते रहे वह प्राणेश्वर पिता आ चला है... अज्ञान से मूर्छित आत्माओ को ज्ञान के सच्चे प्राण देकर सदा का सुजाग करने... अंधेरो से निकाल ज्ञान की सुंदर रौशनी में उनकी उजली धवल सुनहरी छवि दिखाने... और उनके चिरस्थायी सौंदर्य को खिलाने प्राणेश्वर बाबा आ गया है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा बिना सत्य ज्ञान के बेसुध हो चली थी... भक्ति के अंधकार में खो गयी थी और मद्धम चमक लिए जी रही थी... आपने ज्ञान के प्राणों से मुझ आत्मा को सदा का सुरजीत कर हीरे जैसा चमका दिया है...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - ज्ञान और योग से बुद्धि को पारस बनाना"
➳ _ ➳ मन और बुद्धि को सब ओर से हटाते हुए बस एक के अंत में ले जाते हुए अपने अंतर्मन से महसूस करती हूं... मैं चमकती हुई भृकुटि के बीच शक्तिशाली दिव्य आत्मा हूं... मैं आत्मा ज्ञानसागर बाप के सम्मुख हूं... ज्ञानसागर बाप की संतान मास्टर ज्ञानसागर हूं... ज्ञानसागर बाप से मुझ आत्मा पर निरंतर ज्ञान की किरणें पड़ रही हैं... मुझ आत्मा का जन्मों जन्मों का विकारो रुपी कचड़ा भस्म हो रहा है... मुझ आत्मा पर चढ़ी कट उतरती जा रही है... मैं आत्मा स्वयं को ज्ञान के मनन चिंतन में बिजी रखती हूं... सागर की गहराई में जाकर ज्ञान रुपी मोती ही चुगती हूं... मुझ आत्मा को प्यारे बाबा ने ज्ञान और योग के पंख दे दिए हैं... जिन्हें लगाकर मैं आत्मा उड़ती रहती हूं... मैं आत्मा ज्ञान और योग से अपनी पत्थर बुद्धि को पारस बनाती हूं... ज्ञान के मनन चिंतन से मुझ आत्मा का व्यर्थ समाप्त हो जाता है... बुद्धि की लाइन क्लीयर हो जाती है... बुद्धि का कनेक्शन पावर हाउस से जुड़ा रहता है... मैं आत्मा ज्ञान के बल से, एकाग्रता के बल से सबके साथ होते हुए भी एकांत में हूं... सिर्फ मैं आत्मा और सर्व शक्तियो , सर्व गुणों का स्तोत्र मेरा बाबा... मैं आत्मा जान गई हूं कि आत्मा अजर अमर अविनाशी है... बीमार तो सिर्फ शरीर ही होता है... ये तो कर्मों का लेखा जोखा है... एक बाप की ही याद में रहने से सूली भी कांटा बन जाता है... जो दुख दर्द होता है वो भी अहसास नही होता... मैं आत्मा बस एक बाप की ही याद में रहती हूं...
❉ ड्रिल - ऊंच तकदीर बनाने के लिए पूरा-पूरा निश्चयीबुद्धि बनना"
➳ _ ➳ कोटो मे कोई व कोई मे से भी कोई मैं पदमापदम भाग्यशाली आत्मा हूं... जिस भगवान के एक क्षण के दर्शन पाने को दुनिया वाले कहां कहां भटकते है... वो भगवान मेरा हो गया व मैं उसकी हो गई... अपने बच्चों को दुखी देख प्यारे बाबा स्वयं अपने बच्चों की तकदीर बनाने आए है... वो परमपिता परमात्मा जो सारी सृष्टि का मालिक है... रचयिता है... सर्वोच्च है... सर्वज्ञ है... मुझ आत्मा को पतित से पावन बना अपने साथ वापिस घर ले जाने आया है... मुझ आत्मा को प्यारे बाबा से मिलते ही निश्चय हो गया... यही मुझ आत्मा के सच्चे सच्चे परमपिता शिव बाबा है... मुझ आत्मा को सृष्टि के आदि-मध्य-अंत के सारे राज बाबा समझाते है... मैं भी आत्मा बस एक बाप को याद करती हूं... जब स्वयं भगवान रोज सुप्रीम शिक्षक बन पढ़ाते है तो हाइऐस्ट अथॉरिटी पर मुझ आत्मा को कैसे निश्चय न हो... कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूं जो स्वयं भगवान पढ़ाते हैं!! मैं आत्मा निश्चयीबुद्धि बन अपनी ऊंच तकदीर बनाती हूं... मुझ आत्मा को तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाते हैं... मुझ आत्मा को ज्ञान का इंजेक्शन लगाते हैं... मैं आत्मा बाप को और घर को याद करती हूं... मैं आत्मा अपने घर स्वीट साइलेंस होम में हूँ ...यहाँ अनन्त असीम शांति है... इस असीम शांति में मैं आत्मा परम सुख अनुभव करती हूं... मैं आत्मा बुद्धियोग अपने स्वीट साइलेंस होम में टिकाती हूं...
❉ "ड्रिल - हर कार्य में बाप को यूज कर उमंग उत्साह में रहना"
➳ _ ➳ मैं अभी तक अज्ञानता के कारण अपने देहभान के कारण माया के जंजाल में फंसी थी... कोई भी दुख आने पर भगवान को ही दोष देती रही... हर छोटी सी बात पर दुखी होती रही... देहभान में रह अंहकार में रही... विकारों में गिरती चली गई... मेरे प्यारे परमपिता ने ही आकर अपनी बच्ची को विकारों की दुबन से निकाल सत का परिचय दिया... मैं आत्मा जान गई हूं कि मैं आत्मा इस शरीर को चलाने वाली एक चैतन्य शक्ति हूं... मुझ आत्मा के परमपिता शिव बाबा हैं... मुझ आत्मा का यह नया जीवन है... मैं आत्मा संगम युगी ब्राह्मण हूँ... मैं सदा उमंग में रहती हूँ क्योंकि अब मुझ आत्मा के परम सखा हर पल के साथी मेरे साथ हैं... किसी भी परिस्थिति में मैं आत्मा दिलशिक्सत नही होती हूँ... सर्व सुखो की चाबी *मेरा बाबा* अब मेरे पास है... अब मेरी विजय निश्चित है... मैं अपना हर कर्म बाबा को साथ रख करती हूं... करनकरावनहार मेरा प्यारा बाब है... मैं अब बेफिकर और निश्चिंत हूं... क्यूंकि बाप के होते बच्चे को किस बात की चिंता... अपनी सारी जिम्मेवारी अपने परमपिता को सौंप कर हल्की रहती हूं... मैं आलमाइटी अथॉरिटी की संतान हूं... इस रुहानी नशे से सदा उमंग उत्साह से रहती हूं...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं सम्पूर्ण पवित्र सच्चा ब्राह्मण हूँ ।"
➳ _ ➳ मैं आत्मा ब्रह्मा मुखवंशावली ब्राह्मण हूँ... सृष्टि रंग मंच पर मुझ आत्मा का पार्ट बहुत ऊँच है... लौकिक में ब्राह्मणों को आज तक पूजनीय माना जाता है... वो हम ब्राह्मण आत्माओं का ही गायन है...
➳ _ ➳ मेरे प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को ऊँच ज्ञान देकर सृष्टि में ऊँच ते ऊँच बना दिया है... सृष्टि के आदि में स्थापना का हम ब्राह्मण बच्चों से करवा रहे हैं... हम ब्राह्मण आत्मायें ही आधारमूर्त हैं... ब्रह्मा बाप मेरे अलौकिक पिता है...
➳ _ ➳ शिव बाबा मेरे पिता के भी पिता है... ब्रह्मा द्वारा अडॉप्ट किये जाने पर मैं आत्मा स्वयं ही वर्से की अधिकारी आत्मा बन गयी हूँ... क्योंकि शिव बाबा हम ब्राह्मण आत्माओं के दादा भी है हम पौत्रे भी है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा शिवबाबा की संतान अपने संकल्प, वृति और स्मृति को सदा व्यर्थ के कर्मों से मुक्त रखती हूँ... मैं ब्रह्ममुखवंशावली ब्राह्मण आत्मा व्यर्थ से परे रहने के लिए सदा अपने संकल्प, वृति और स्मृति को चेक करती हूँ...
➳ _ ➳ यदि कुछ गलत हो गया तब कितना भी कोई माफ़ी मांग ले लेकिन जो पाप वा व्यर्थ कर्म हुआ उसका निशान नहीं मिटता है... इसलिए मैं कदम-कदम पर सावधान रहने वाली आत्मा हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपना रजिस्टर सदा साफ़ रखने वाली सम्पूर्ण पवित्र आत्मा हूँ... मैं ब्राह्मण आत्मा सिर्फ रीति-रस्म को न अपनाकर सदा अपने सम्पूर्ण पवित्र स्वरुप को स्मृति में रखने वाली आत्मा हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ संकल्प वृति और स्मृति से व्यर्थ को समाप्त करने वाले सच्चे ब्राह्मण होते हैं... क्यों और कैसे?
❉ संकल्प, वृत्ति और स्मृति से व्यर्थ को समाप्त करने वाले ही सच्चे ब्राह्मण होते हैं क्योंकि वे सम्पूर्ण पवित्र होते हैं। वे अपने संकल्प, वृति और स्मृति को सदा ही चेक करते रहते हैं। उनके संकल्प मात्र में भी कोई गलत कार्य की स्मृति नहीं आती है। उनकी वृति में सदा ही समर्थ समाया हुआ रहता है। अर्थात! वे व्यर्थ से सदा सर्वदा मुक्त रहते हैं।
❉ वह सदा ही अपने संकल्पों तथा अपनी वृति और स्मृति की सम्भाल करते रहते हैं कि... कहीं हमसे कुछ गलत तो नहीं हो गया है। वे अपनी गलती की माफ़ी भी मांग लेते हैं। लेकिन! अपने द्वारा की गई गलती का, केवल पश्चात कर लेना या माफ़ी मांग लेना ही पर्याप्त नहीं है।
❉ वे समझते हैं कि अब माफ़ी मांग ली है। चलो हो गई हमारी छुट्टी। नहीं! कितना भी कोई माफ़ी मांग ले, लेकिन हमसे जो भी पाप या व्यर्थ कर्म हुआ है। उस कर्म के निशान कभी भी नहीं मिटते है। उन पापों की, उन व्यर्थ कर्मो की सजा तो निश्चित ही है। उन विकर्मो की सजा से कोई भी आत्मा बच नहीं सकती है।
❉ इसलिये! हमें अपने रजिस्टर को सदा साफ़ रखना है। किसी भी प्रकार के व्यर्थ कर्मों की स्याही के दाग से हमारा रजिस्टर खराब नहीं हो जाये, इस बात का हम सभी आत्माओं को ध्यान रखना है। ताकि कयामत के समय हमें धर्मराज की सजाएँ नहीं खानी पड़े।
❉ हमें सिर्फ इस रीती ही रस्म को नहीं अपनाना है। बल्कि! हमें सदा ये ही स्मृति रखनी है कि मैं सम्पूर्ण पवित्र ब्राह्मण हूँ। – अपवित्रता तो– हमारे संकल्प, वृति वा स्मृति को भी टच नहीं कर सकती। इसलिये! हमें कदम– कदम पर सावधान रहना है।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ बाप के साथ को यूज़ करो तो कभी दिलशिकस्त नही होंगे...क्यों और कैसे ?
❉ जो सदा बाप के साथ को यूज़ करते हैं वे स्वयं को सदा सर्वशक्तिवान बाप की छत्रछाया के नीचे सुरक्षित अनुभव करते हैं क्योकि सर्वशक्तिवान बाप के साथ का अनुभव उन्हें सर्व शक्ति सम्पन्न बना देता है । इसलिए कोई भी परिस्थिति आने पर उस परिस्थिति से घबराने अथवा दिलशिकस्त होने के बजाए अपने सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप् द्वारा वे सहज ही उस परिस्थिति पर विजय प्राप्त कर लेते हैं ।
❉ जो हर कर्म करते सदा बाप को अपने साथ रखते हैं वे कर्मयोगी बन हर कर्म करते हुए हर कर्म के बन्धन से मुक्त रहते हैं । याद और सेवा का डबल लॉक लगाये बेहद की उपराम वृति को धारण कर वे विनाशी देह और देह की दुनिया के संग के प्रभाव से सदैव परे रहते हैं । बाप के संग का रंग उन्हें हर प्रकार के संग दोष से बचा कर रखता है तथा साथ ही साथ परमात्म बल और शक्तियों से भरपूर कर देता है इसलिए किसी भी परिस्थिति में वे कभी दिलशिकस्त नही होते ।
❉ बाप के साथ को सदा यूज़ करने वाले हर कर्म निमितपन की स्मृति में रह कर करते हैं । निमित बन हर कर्म करने से करनकरावन हार बाप की मदद कदम कदम पर मिलती है क्योकि निमित बनने का अर्थ ही है सब कुछ बाप को अर्पण कर, हर जिम्मेवारी बाप को दे कर निश्चिन्त हो जाना । जो ऐसे निमित बन सदा बाप को अपने साथ रखते हैं वे हर बात में सदा इजी रहते हैं । हल्के हो कर हर कर्म करते हैं इसलिए विपरीत परिस्थितियों में भी कभी दिलशिकस्त नही होते ।
❉ जो सदा बाप के साथ रहते हैं, संकल्प और स्वप्न में भी बाप का हाथ और साथ नही छोड़ते वे देह और देह के सम्बन्धो के लगाव - झुकाव के प्रभाव से स्वयं को मुक्त कर लेते हैं । इस विनाशी दुनिया से मरजीवा बन , उड़ती कला में उड़ने वाले सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप स्थिति में वे सदा स्थित रहते हैं इसलिए इस नश्वर दुनिया और इस दुनिया में घटित होने वाली किसी भी घटना को देख वे ना तो दिलशिकस्त होते हैं और ना ही आश्चर्यचकित होते हैं ।
❉ बाप के साथ को सदा यूज़ करने वाले सदैव डबल लाइट रहते हैं । उन्हें चलते फिरते केवल एक ही स्मृति रहती हैं कि हम फ़रिश्ते हैं और फ़रिश्ते का अर्थ ही है जिसका देह और देह की दुनिया से कोई रिश्ता नही । सारे रिश्ते केवल एक बाप से । तो जब सभी रिश्ते बाप से हो गए तो सब कुछ मेरा सो तेरा हो गया । ऐसे जो हर रिश्ता बाप से निभाते हैं वे हर बोझ से सदा मुक्त रहते हैं और किसी भी परिस्थिति को देख दिलशिकस्त होने के बजाए उसे सहज ही पार कर लेते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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