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   05 / 01 / 16  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ °छोटी बात को बड़ा न कर° वातावरण को शक्तिशाली बनाये रखा ?

 

‖✓‖ °काम विकार पर जीत° पाने पर अटेंशन दिया ?

 

‖✓‖ "हमने °आधा कल्प जिसकी भक्ति° की है... वही बाप हमें खुद पड़ा रहे हैं" - यह स्मृति रही ?

 

‖✓‖ बाप की याद से सब °पाप काटने का पुरुषार्थ° किया ?

 

‖✓‖ सबको °बाप से मिलाने° की कोशिश की ?

 

‖✓‖ आत्माओं को °सच्ची सच्ची यात्रा° सिखलाई ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ °समाने और सामना करने की शक्ति° द्वारा सेवा में सफलता प्राप्त की ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ °शुभ चिंतन, ज्ञान चिंतन° द्वारा व्यर्थ और नेगेटिव के बोझ से हलके बनकर रहे ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं रूहानी सेवाधारी हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   समाने और सामना करने की शक्ति द्वारा सेवा में सफलता प्राप्त करने वाली मैं रूहानी सेवाधारी आत्मा हूँ ।

 

 ❉   अपने पुराने संस्कारों को समा कर तथा माया का सामना कर, माया को हरा कर मै सहज ही सफलतामूर्त आत्मा बनती जाती हूँ ।

 

 ❉   नॉलेजफुल के साथ साथ पावरफुल बन मैं हर समस्या का समाधान कर विजयी आत्मा बनती जाती हूँ ।

 

 ❉   अपने नम्र और सहयोगी व्यवहार से सबको सदा संतुष्ट करने वाली मैं सबके स्नेह की पात्र आत्मा बनती जाती हूँ ।

 

 ❉   विश्वकल्याण के कार्य की सेवा में स्वयं को बिज़ी रखने से मैं व्यर्थ के प्रभाव से सदैव मुक्त रहती हूँ और आलस्य, अलबेलेपन से बची रहती हूँ

 

 ❉   मैं सेकंड में व्यर्थ संकल्पों पर फुल स्टॉप लगा कर स्वयं को संकल्पों की हलचल से मुक्त करती जाती हूँ ।

 

 ❉   मुझ आत्मा के संकल्प में भी किसी भी विकार की कमजोरी, व्यर्थ बोल, व्यर्थ भावना, घृणा व इर्ष्या की भावना नहीं रहती ।

 

 ❉   मैं आत्मा पुण्य आत्मा भव के वरदान द्वारा स्वयं को सेफ रख विश्व सेवाधारी का पार्ट बजाती हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - तुमने आधाकल्प जिसकी भक्ति की है, वही बाप खुद तुम्हे पढ़ा रहे हैं, इस पढ़ाई से ही तुम देवी देवता बनते हो"

 

 ❉   जिस भगवान को पाने के लिए हम आज दिन तक भक्ति करते आये ।

 

 ❉   मन्दिरो में, मस्जिदों में, गुरुद्वारों में तथा तीर्थो पर जिसे ढूंढते रहे और जगह जगह धक्के खाते रहे ।

 

 ❉   परन्तु यथार्थ परिचय ना होने के कारण कहीं पर भी उसे प्राप्त ना कर सके और दुखी होते रहे ।

 

 ❉   वही परम पिता परमात्मा बाप जिनकी हमने आधा कल्प भक्ति की, अभी संगम युग पर आ कर हमे मिले हैं ।

 

 ❉   स्वयं अपनी और हमारी यथार्थ पहचान बताने के लिए ही हमें टीचर बन राजयोग की पढ़ाई पढ़ा रहे हैं ।

 

 ❉   इस पढ़ाई से हम मनुष्य से देवता बन 21 जन्मों के लिए अपना श्रेष्ठ भाग्य बना लेते हैं ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ जगत का मालिक बनने वा विश्व की बादशाही लेने के लिए मुख्य काम विकार पर जीत पानी है । सम्पूर्ण निर्विकारी बनना है ।

 

  ❉   देह-अभिमान के कारण अभी तक विकारों में गिरते चले गए व अब संगमयुग पर सत का ज्ञान मिलने पर देही-अभिमानी बन कर्मेन्द्रियों पर कंट्रोल कर विकारों पर जीत पानी है ।

 

  ❉   अपने को आत्मा समझ अपने परमपिता परमात्मा को याद करते -करते पावन बनना है । जितना बाप की याद में रहते हैं उतना विकारों की कट उतरती जाती है । आत्मा सतोप्रधान बनती है व तभी नयी दुनिया में राजाई पद पाती है ।

 

  ❉  सबसे बड़ा काम विकार है । काम विकार पर जीत पाकर ही जगतजीत बन जायेंगे । परमात्म शक्ति व योगबल से ही इस विकार पर जीत पाकर पावन बन नयी दुनिया के मालिक बनना है।

 

  ❉  अभी तक भक्ति मार्ग में पुकारते रहे कि पतित पावन आओ तो अपने बच्चों को दुखी देखकर भगवान स्वयं आकर सुप्रीम टीचर बनकर पढ़ाते है व विश्व की बादशाही देते है तो हमें बाप की श्रीमत पर सम्पूर्ण रीति चलना है ।

 

  ❉   मन बुद्धि पर अटेंशन रुपी पहरेदार रख स्वराज्याधिकारी बनना है व स्वीट बाप को याद करने से सतोप्रधान देवता बन जायेंगे ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ समाने और सामना करने की शक्ति द्वारा सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले रूहानी सेवाधारी बनना है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   भक्ति मार्ग में हम शिव शक्तियों की निशानी दिखाई है "शेर की सवारी" अर्थात निडर, चाहे कैसी भी बात या परिस्थिति आये कभी डरना नहीं, हिम्मतवान बनकर माया व परिस्थिति का सामना करना है।

 

 ❉   हम दैवी राजधानी में जाने की तैयारी कर रहे है तो हमें अपने योगबल बल से अपने पुराने सभी संस्कारो को मर्ज कर अपने दैवी संस्कारो को इमर्ज करना है, सभी प्रकार के विस्तार को समाकर सार स्वरुप बन जाना है।

 

 ❉   जब हम अपने पुराने संस्कारो को समाकर माया व परिस्थितियों का सामना करते हुए आगे बढ़ते है तो "हिम्मते बच्चे और मदद दे बाप" द्वारा सहज सफलता का वरदान प्राप्त कर लेते है।

 

 ❉   रूहानी सेवाधारी अर्थात जो सदा आत्मिक स्थिति में रहकर सेवा करे, जब देहि अभिमानी होंगे तो मै पन का भाव निकल जायेगा, स्वयं को निमित्त समझकर कर्म करने वाले ही रूहानी सेवाधारी है।

 

 ❉   यह अंतिम जन्म हमारा है ही मरजीवा जन्म, बाप ने यह जन्म विश्व सेवा अर्थ दिया है इसलिए निरंतर सेवाधारी समझकर चलना है, हमारा हर कर्म सेवा प्रति हो।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ छोटी बात को बड़ा नही करो, वातावरण को शक्तिशाली बनाओ...  कैसे ?

 

 ❉   क्या -  क्यों की क्यू को समाप्त कर जब विस्तार को सार में समा लेंगे तो आत्मा चढ़ती कला के अनुभव द्वारा सदैव प्रसन्नचित रहेगी जिससे वातावरण शक्तिशाली बनेगा और फुल स्टॉप लगने से छोटी बात बड़ी नही होगी ।

 

 ❉   तीन स्मृतयों का तिलक जब मस्तक पर लगाएं रखेंगे तो त्रिकालदर्शी बन हर बात में कल्याण का अनुभव करेंगे जिससे कोई भी बात बड़ी नही लगेगी और वातावरण शक्तिशाली बन जाएगा ।

 

 ❉   जब व्यर्थ से किनारा कर मन बुद्धि को श्रेष्ठ और समर्थ चिंतन में बिज़ी रखेंगे तो प्रसन्नचित स्तिथि का अनुभव वातावरण को शक्तिशाली बना देगा और किसी भी छोटी बात को बड़ा नही होने देगा ।

 

 ❉   जब बुद्धि की लाइन क्लियर होगी और बाप से जुड़ी रहेगी तो परमात्म बल आत्मा को शक्तिशाली बना देगा और आत्मा से निकले शक्तिशाली वायब्रेशन्स वायुमण्डल को शक्तिशाली बना कर हर बात को सार में समा लेंगे ।

 

 ❉   जितना मन बुद्धि को शांत और एकाग्रचित स्थिति में स्थित रखने का अभ्यास होगा उतना उपराम अवस्था में रहना सरल होगा जिससे हर बात बड़ी लगने की बजाए छोटी अनुभव होगी और वातावरण शक्तिशाली बन जायेगा ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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