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❍ 20 / 11 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *अपनी हथेली पर स्वर्ग के स्वराज्य का गोला अनुभव किया ?*
➢➢ *अच्छे अच्छे लक्ष्य के संकल्प लिए ?*
➢➢ *कोई भी परिस्थिति आये, बात आये, एकरस स्थिति का अनुभव किया ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *"एक बाप दूसरा न कोई" - इस स्थिति का अनुभव किया ?*
➢➢ *अपने फ़रिश्ता स्वरुप और देवता स्वरुप का स्पष्ट अनुभव किया ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ *आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"दूरदेशी बच्चों से दूरदेशी बापदादा का मिलन"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... लवली बापदादा अपने लवलीन बच्चों से मिलने आये है... प्यार के ख़ुशी के गीत सुनते हुए एकरस स्तिथि को देख रहे है... रूहानी गुलाबो की खुशबु ले रहे है... ऐसे फ़रिश्ता सो देवता... स्नेह के बन्धन में बंधने और बांधने वाले खुशनसीब बच्चों को पदमगुणा मुबारक दे रहे है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा मीठे बापदादा संग मिलन मना रही हूँ कभी दुआओ में माँगा मन्दिरो में खोजा दर दर ढूंढा... वो परमात्मा अपनी आँखों के सामने देख अपने भाग्य पर निहाल होती जा रही हूँ... इतनी भाग्यशाली खुशनसीब मै आत्मा हूँ और ख़ुशी में नाच उठी हूँ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... पिता के गले की माला के मनके हो इस मीठे नशे से भर चलो... और सदा बाप को याद रखना है एक पिता का सन्देश हर दिल को देना है और हर परिस्तिथि में एकरस रहकर बापदादा के दिलतख्त पर शान से सजना है... चैतन्यता का ऐसा रूहानी वायुमण्डल तैयार करो कि सब सुख पाये...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा मीठे प्यारे बापदादा की यादो से भर चली हूँ... सदा यादो में समाये हुए अपनी दिली मुस्कान से प्यारे बाबा का परिचय दे रही हूँ... सबको सुख सुकून शांति मिले ऐसा अनोखा वातावरण हर थकी आत्मा को देकर असीम ख़ुशी की अनुभूति करा रहो हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... रूहानी डॉक्टर बन सबके दुखो को दूर करो... ईश्वर पिता को पाने की ख़ुशी में झूलते हुए सबको खुशियो के झूलो में संग झुलाओ... सदा बाप की छत्रछाया में रह हर विघ्न से मुक्त होकर मा सर्वशक्तिमान बन मुस्कराओ... बेहद के वैरागी बन नष्टोमोहा स्तिथि से अचल अडोल होकर बापदादा के दिल में मणि सा जगमगाओ....
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपसे मिलकर खुशियो से भर चली हूँ... जीवन हर विघ्न से मुक्त हो चला है... चारो ओर खुशियो के फूल खिले है... आनन्द की मस्ती छायी है और दिल अथाह सुख में झूल रहा है... मै आत्मा बेहद की वैरागी हो अपने सत्य स्वरूप के नशे में डूब चली हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा अचल अडोल हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सांसारिक जेल में हूँ... हद की दीवारों के बीच कैद हूँ... कर्मबंधनों की बेडियों से जकडी हुई हूँ... सुप्रीम लिब्रेटर ने आकर मुझ आत्मा को इस जेल से छुड़ाकर आजाद कर दिया है... दिव्य ज्ञान की चाबी से कर्मबंधनों की बेडियों को खोल दिया है... सर्व बंधनों से मुक्त कर दिया...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा सदा सर्व शक्तिमान बाबा के साथ का अनुभव करती हूँ... उनके कदम के साथ कदम मिलाकर पदमों की कमाई कर रही हूँ... सर्व प्राप्तियों का अनुभव कर रहीं हूँ... सिर्फ एक प्यारे बाबा के स्नेह में समाये हुए रहती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा एक बाबा के प्यार में सुध बुध खोकर सहज ही इस पुरानी दुनिया के आकर्षण से न्यारी होती जा रहीं हूँ... बेहद की स्मृति स्वरूप बनती जा रहीं हूँ... हद की व्यर्थ बातें स्वतः समाप्त होते जा रहीं हैं... सर्व बंधनों, सर्व मायावी आकर्षणों से उपराम होती जा रहीं हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल - राजऋषि ही बेहद के वैरागी सो राज्याधिकारी"*
➳ _ ➳ राज्य होते हुए भी कोई लगाव नही सदा बेहद के वैरागी। स्थूल राज्य नही स्व का राज्य हो। स्व- राज्य करते हुए बेहद के वैरागी भी हो, तपस्वी भी हो। इस पुरानी दुनिया से कोई भी लगाव नही किसी भी सम्बन्ध से लगाव नही, माया की आकर्षण से सदा परे, उसे कहेंगे राजऋषि।
➳ _ ➳ मैं स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूँ... मैं अपनी सर्व कर्मेंद्रियों पर राज करने वाली राज्य अधिकारी आत्मा हूँ... सर्व कर्मेंद्रियां मेरी कर्मचारी है... मैं आत्मा जैसे चलाना चाहूँ उन्हें वैसे चला सकती हूँ... बाबा ने ही मुझ आत्मा को अपनी सर्व कर्मेंद्रियों पर राज्य करना सिखाया...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सदा राज्य अधिकारी के स्वमान में स्थित रहती हूँ... मैं अधिकारी आत्मा हूँ... अधीन रहने वाली नही... राज्य करने वाली... मैं आत्मा राज्य करते हुए भी सदा बेहद की वैरागी भी हूँ... मैं आत्मा तपस्वी मूर्त आत्मा भी हूँ... सदा यह स्मृति रहती है...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा को श्रेष्ठ ब्राह्मण का भाग्य प्राप्त हो गया है... तो इस पुरानी दुनिया से कुछ लेना-देना नही है... मुझ आत्मा को इस पुरानी दुनिया का कोई भी आकर्षण अपनी और आकर्षित नही कर सकता... कोई भी लगाव या झुकाव मुझे राजऋषि बनने नही देगा... इसलिए मुझ आत्मा को इस माया के आकर्षणों से परे रहना है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सदा अपने तपस्वी स्वरूप में स्थित रहती हूँ... मैं आत्मा बाबा की लगन में मग्न रहने वाली हूँ... तपस्या का बल सहज परिवर्तन कराने का आधार है... यह बल मुझ आत्मा को निर्विघन बनाता है... मुझ आत्मा को यही सेवा भी करनी है... निर्विघन बनना और निर्विघन बनाना है... बेहद का वैराग्य ही राज्य भाग्य दिलाने वाला है... मैं ऐसी राजऋषि आत्मा हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *बेहद की वृति द्वारा नष्टों मोहा स्मृति स्वरूप बनने वाले अचल अडोल होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ बेहद की वृति द्वारा नष्टों मोहा स्मृति स्वरूप बनने वाले अचल अडोल होते हैं क्योंकि... जो सदा बेहद की वैराग्यवृति में रहते हैं। वह कभी किसी भी दृश्य को देख कर घबराते या हिलते डुलते नहीं है, बल्कि! वे तो सदा ही अपनी अचल व अडोल स्थिति में स्थित रहते हैं।
❉ वे बेहद की वैराग्यवृति को अपना कर, नष्टों मोहा और स्मृतिलब्धा के स्वरूप को सरलता से प्राप्त कर लेते हैं। अर्थात! वे नष्टों मोहा स्मृतिलब्धा स्वरूप बन जाते हैं। हमें सदा ही अपने अचल व अडोल स्वरूप में स्थित रहना है। कभी भी परस्थितियों के प्रभाव से विचलित नहीं होना है।
❉ हमें सदा ये बात अपनी बुद्धि में याद रखनी है कि... हम ही तो हैं, बेहद के वैराग्य वृति को धारण करने वाले असली योद्धा। असली महारथी। अंगद के सामान अचल अडोल। हम ही तो हैं, जो किसी भी प्रकार की परस्थिति में घबराते नहीं हैं। न ही किसी दृश्य को देख कर विचलित होते हैं।
❉ अगर थोड़ा बहुत भी कुछ देख कर, हमारी स्थिति डगमग होती है, तो! हम निश्चय बुद्धि नहीं बन पायेंगे। बल्कि! आपातकाले विपरीत बुद्धि बन कर विनाश को ही प्राप्त होंगे। अतः हमें स्वयं की बेहतारी के लिये, नष्टों मोहा बनना है। स्वयं को अपने वास्तविक अचल व अडोल स्वरूप में स्थित रखना है।
❉ तभी तो हम, सही मायने में नष्टों मोहा और स्मृतिलब्धा स्वरूप बन सकेंगे। अगर थोडी सी भी, अंश मात्र भी हमारे मन में हलचल होती है, या फिर मोह उत्पन्न होता है, तो! अंगद के समान हमको अचल अडोल नहीं कहेंगे, क्योंकि बेहद की वैराग्यवृति में गम्भीरता के साथ साथ रमणीकता भी समाई हुई है।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *राज्य अधिकारी के साथ - साथ बेहद के वैरागी बनकर रहना यही राजऋषि की निशानी है... क्यों और कैसे* ?
❉ राजऋषि उन्हें कहा जाता है जो अपनी कर्मेन्द्रियों के राजा बन तपस्या के बल से स्व राज्य सो विश्व राज्य अधिकारी बनते है । राजऋषि बनने के लिए जरूरी है बेहद का वैराग्य । और बेहद का वैराग्य उसे कहा जायेगा जब किसी भी स्वरूप में अंश मात्र भी पुराना देह भान का संस्कार स्मृति में ना आये । इसलिए बापदादा की यही चाहना है कि जैसे सर्विस की फलक, झलक अब लोगों को दिखाई देती है ऐसे बेहद की वैराग्य वृति का प्रभाव हो तब कहेंगे राजऋषि ।
❉ बेहद की वैराग्य वृति अर्थात देह भान की वैराग्य वृति, देह की बातों से वैराग्य वृति, देह की भावना, भाव इन सबसे वैराग्य । जैसे ब्रह्मा बाप को देखा कितनी बेहद की वैराग्य वृति रही । अपनी देह से भी वैराग्य वृति । बच्चों के सम्बन्ध में भी वैराग्य वृति । ऐसे फॉलो फादर कर जो बेहद की वैराग्य वृति के लक्ष्य को लक्षण में लायेंगे वही स्वयं के अधिकारी बन राज्य अधिकारी बनने के साथ साथ सच्चे राजऋषि भी कहला सकेंगे ।
❉ जैसे भक्त लोग भगवान की याद में बैठने का कितना पुरुषार्थ करते हैं । कितना अपने को कष्ट देते हैं, भिन्न भिन्न रीति से समय, सम्पति सब लगाते हैं किंतु प्राप्ति कुछ नही होती । तो जैसे भक्ति में प्राप्ति के लिए रीति रस्म सब निभाते हैं यहां भी ज्ञान की प्रालब्ध पाने अर्थात राज्य अधिकारी बनने के लिए जरूरी है बेहद की वैराग्य वृति को धारण कर राज ऋषि बनना । क्योकि बेहद की वैराग्य वृति ही याद का आधार है जिससे भविष्य श्रेष्ठ भाग्य का निर्धारण होगा ।
❉ विश्व परिवर्तन से पहले विश्व की सर्व आत्माओं में वैराग्य वृति होगी । क्योंकि इसी वैराग्य वृति से ही सबको अनुभव होगा कि हम आत्माओं का बाप आ चुका है । तो जैसे विश्व की आत्माओं में वैराग्य वृति ही परिवर्तन का आधार होगा वैसे ही हम निमित्त बनी हुई आत्माओं में भी संपूर्ण परिवर्तन का आधार बेहद का वैराग्य होगा । क्योकि जब बेहद की वैराग्य वृति होगी तो ही पुराने स्वभाव व संस्कार बहुत जल्दी और सहज ही इस वैराग्य वृति के अंदर मर्ज हो सकेंगे और राजऋषि बन सकेंगे ।
❉ बेहद के वैरागी अर्थात हर संकल्प, बोल और सेवा में बेहद की वृति, स्मृति, भावना और कामना हो । हर बोल में निस्वार्थ भाव हो । हर कर्म में करावनहार करा रहे हैं यह वायब्रेशन सर्व आत्माओं को अनुभव हो । इसको कहा जाता है बेहद के वैरागी । जब ऐसे बेहद के वैरागी बन अपनेपन को मिटा कर हर संकल्प और हर श्वांस में केवल बाबा को समा लेंगे तो सहज ही राजऋषि बन त्याग द्वारा राज्य अधिकारी का ख़िताब हासिल कर सकेंगे ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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