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❍ 12 / 01 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ सेंसिबल बन °सच्ची सेवा° में लगे रहे ?
‖✓‖ स्वयं °ज्ञान को धारण° कर दूसरों को सुनाया ?
‖✓‖ °विचार सागर मंथन° कर बाप की हर समझानी पर अटेंशन दिया ?
‖✓‖ कदम कदम °श्रीमत° पर चलते रहे ?
‖✓‖ °निश्चय° में अडोल रहे ?
‖✗‖ °प्रशनचित° बन परेशान तो नहीं हुए ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ अपने मस्तक द्वारा °तीसरे नेत्र° का साक्षात्कार करवाया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ °कथनी, करनी और रहनी° को समान बनाया ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं सच्ची योगी आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ अपने मस्तक द्वारा तीसरे नेत्र का साक्षात्कार कराने वाली मैं सच्ची योगी आत्मा हूँ ।
❉ बुद्धि का योग सदा एक बाप के साथ लगा रहने के कारण मैं बाप से टचिंग ले सबको दिव्य नेत्र का साक्षात्कार कराती जाती हूँ ।
❉ " एक बाप दूसरा ना कोई " यह स्मृति मुझे सहज ही सर्व से न्यारा और बाप का प्यारा बना देती है ।
❉ बाप और मुझ आत्मा के बीच में तीसरा कोई ना आये यह अटेंशन मुझे हर परिस्थिति से सहज ही उपराम कर देता है ।
❉ स्वयं परमात्मा बाप ने मुझ बच्चे को दिव्य बुधी की लिफ्ट दी है... इस लिफ्ट द्वारा मैं तीनो लोकों में जहां चाहूं वहाँ पहुँच सकती हूँ ।
❉ सिर्फ स्मृति का स्विच ऑन कर मैं सेकंड में किसी भी लोक में पहुँच सकती हूँ और जिस लोक का जितना समय अनुभव करना चाहूं, उतना समय वहाँ स्थित रह सकती हूँ ।
❉ मैं अथॉरिटी से इस लिफ्ट को कार्य में लगाती हूँ इसलिए सहजयोगी बनकर रहती हूँ और मेहनत से मुक्त रहती हूँ ।
❉ शुद्ध संकल्पों की शक्ति मुझे माया के तूफानों में भी डबल लाइट स्थिति द्वारा सहज ही मेहनत मुक्त, जीवन मुक्त स्तिथि का अनुभव कराती है ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - कदम - कदम पर श्रीमत पर चलते रहो, यह ब्रह्मा की मत है या शिवबाबा की, इसमें मूँझो नही"
❉ श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत सिवाए श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ परमपिता परमात्मा बाप के और कोई भी नही दे सकता ।
❉ इसलिए अब तक मनमत और परमत पर चल और ही नीचे गिरते आये और दुखी होते रहे ।
❉ किन्तु अब संगम युग पर स्वयं परमपिता परमात्मा बाप ब्रह्मा तन में अवतरित हो कर हम बच्चों को श्रेष्ठ बनने की श्रीमत दे रहे हैं ।
❉ किन्तु कई ब्राह्मण बच्चे इस बात में मूँझ जाते हैं कि यह ब्रह्मा की मत है या शिव बाबा की ?
❉ इसलिए बाप समझाते हैं कि इस बात में मूँझो नही कि यह ब्रह्मा की मत है या शिव बाबा की । बापदादा दोनों इक्कठे हैं इसलिए श्रीमत समझ कर चलते रहो ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ सेन्सीबुल बन सच्ची सेवा में लग जाना है । जवाबदार एक बाप है इसलिए श्रीमत में संशय नही उठाना है ।
❉ इस पुरुषोत्तम संगमयुग पर हमें परमात्मा ने अपना बनाया व सत ज्ञान दिया व कहा मैं जो हूं जैसा हूं यथार्थ रीति याद करो । बाप नई नई प्वाइंटस से सहज रीति से हम बच्चों को समझाते हैं तो हमे धारण करना है व सेन्सीबुल बन रुहानी सेवा करनी है ।
❉ जैसे लौकिक में पढ़ाई पढ़ते है तो उससे अल्पकाल की खुशी मिलती है । बाप जो पढ़ाई पढ़ाते है उसे अच्छी रीति पढ़ना है व ये रुहानी ज्ञान रत्न बांट रुहानी सेवा करनी है ।
❉ जब स्वयं परमात्मा ने हमें अपना बना लिया तो हमें बेफिकर बादशाह होकर सब उसे सौंप निश्चिंत रहना है । लौकिक मे भी बच्चे से गल्ती होने पर बाप अपने आप सम्भालता हैं फिर हमें तो बेहद का बाप मिला है । बस हमें बेहद के बाप की श्रीमत पर ही चलना है ।
❉ श्रीमत प्रमाण समझदारी से सच्ची सच्ची सेवा करनी है । अगर श्रीमत का उल्लंघन करेंगे तो सजाएं भी खानी पड़ेगी । क्यूं, क्या, कैसे लगाकर संशयबुद्धि नहीं बनना ।
❉ लौकिक में भी सच्ची सेवा वही करता है जिसको निश्चय होता है । बिना निश्चय वाले को सफलता प्राप्त नहीं होती । कहा भी गया है निश्चयबुद्धि विजयन्ति संशयबुद्धि विनश्यन्ति ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ अपने मस्तक द्वारा तीसरे नेत्र का साक्षात्कार कराने वाले ही सच्चे योगी है... क्यों और कैसे ?
❉ हम आत्माये अकालतख्त नशीन है। भ्रकुटी के मध्य में हम आत्माये आकर बैठती है। यही से ही आत्मा पुरे शरीर को कण्ट्रोल करती है। इसलिए मस्तक में तिलक व बिंदी लगायी जाती है।
❉ हम आत्माये जितना अपनी आत्मिक स्थिति में रहेंगे, जितना अपने श्रेष्ठ स्वमान में रहेंगे उतना ही बाप की याद द्वारा हमसे अन्य आत्माओ को सुखद व अलोकिक अनुभूतियाँ होंगी।
❉ तीसरे नेत्र का वरदान बाप से मिला है इसलिए सदा एक नयन में परमधाम और एक में नयी दुनिया और तीसरे नेत्र में बाप समाया हो। अगर बाप को भुलाया तो तीसरा नेत्र बंद हो जायेगा।
❉ बाबा ने हमें ज्ञान का तीसरा नेत्र दिया है, हमें दिव्य बुद्धि का वरदान दिया और हमारा तीसरा नेत्र खुल गया है, यह ज्ञान आत्मा को मिला है जो की मस्तक के मध्य विराजमान है।
❉ ज्ञान स्वरुप बनकर रहने से, शक्ति स्वरुप बनकर कार्य व्यवहार में आने से ही हमारे द्वारा आत्माओ को तीसरे नेत्र का साक्षात्कार होगा अर्थात ज्ञान की समझ आयेगी। हमारे द्वारा ही बाप की भी प्रत्यक्षता होनी है।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ प्रश्नचित बनना अर्थात परेशान होना और परेशान करना... क्यों और कैसे ?
❉ नॉलेजफुल की सीट पर सेट ना रहने के कारण किसी भी परिस्तिथि के आने से पहले उसे परख नही पाते इसलिए प्रश्नचित बन जाते हैं, स्वयं भी परेशान रहते हैं तथा औरों को भी परेशान करते हैं ।
❉ स्वयं को जब त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट नही रखते तो हर बात में कल्याण का अनुभव नही कर पाते इसलिये हर बात में अपसेट रहते हैं और दूसरों को भी अपसेट करते रहते हैं ।
❉ साक्षी दृष्टा बन हर बात को साक्षी हो कर ना देखने के कारण छोटी छोटी परिस्तिथि में भी घबरा जाते हैं और प्रश्नचित बन उस परिस्तिथि को पार करने की सूझ - बूझ खो देते हैं इसलिए स्वयं भी परेशान रहते हैं और दूसरों को भी परेशान करते रहतें हैं ।
❉ ड्रामा का राज सदैव बुद्धि में ना रहने के कारण छोटी बात को भी बड़ा बना कर क्या, क्यों और कैसे में उलझ जाते हैं और खुद परेशान हो कर दूसरों को परेशान करते हैं ।
❉ जब आत्मिक विस्मृति होती है और देह - अभिमान में आ जाते हैं तो आसुरी गुणों की प्रधानता के कारण बुद्धि की लाइन क्लियर नही हो पाती और परमात्मा बाप की मदद ना मिल पाने के कारण हर बात में परेशान हो दूसरों की परेशानी का कारण बन जाते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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