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❍ 06 / 04 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
‖✓‖ अल्फ और बे को याद कर °रमणीकता° का अनुभव किया ?
‖✓‖ "हम बेहद के °त्यागी और राजऋषि° हैं" - इसी नशे में रहे ?
‖✓‖ °सच्चा सच्चा सौदागर° बन अपना °पोतामेल° रखा ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
‖✓‖ सदा °कल्याणकारी भावना° द्वारा गुणग्राही बनकर रहे ?
‖✓‖ अपना °सब कुछ बाप को अर्पण° कर सदा हलके रह फ़रिश्ते बनकर रहे ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
‖✓‖ सदा °कंबाइंड रूप° में रह बाबा से सर्व संबंधों का अनुभव किया ?
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http://bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/06.04.16-VisheshPurusharth.htm
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∫∫ 4 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - अल्फ और बे को याद करो तो रमणीक बन जायेंगे बाप भी रमणीक है तो बच्चे भी रमणीक होने चाहिए"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे बच्चों अल्फ और बे का राज ही सुनहरे जादू से भरा है...सारी खुशियां इस राज में समाई है जो रमणीक बना आप बच्चों के संस्कारो को सदा का सजा आई है...
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे लाडलो... मीठे पिता और खुबसूरत वर्से में रमणीक सौंदर्य छुपा है... आप रमणीक बच्चों से ही तो सतयुगी फूलो का बगीचा महका है... वो खुशनसीबी वो हर्ष छ्लकाओ की दुनिया जान जाय किस रमणीक पिता के बच्चे हो....
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे बच्चों बाबा और वर्से की याद से फूलो जेसे खिल जाओगे...सदा खुशनुमा बन निखर जाओगे... यह याद ही सारी जादूगरी का राज है... बाबा जेसे रमणीक बना खुशियो से जीवन भर जायेगी...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चों अपने पिता को याद करो वर्से को याद करो तो सदा के हर्षित बन जाओगे... पिता समान बन गुणो शक्तियो से भरपूर हो जाओगे... सारे सुख बाहों में भरने को आतुर दौड़े चले आएंगे...
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों मेरी यादो डूब जाओ सुनहरे वर्से में खो जाओ... तो सदा के खुशनुमा हो जायेंगे... ये खुशियो भरी सुखो भरी खिलखलाहट सदा की दामन में सज जायेगी...
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∫∫ 5 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-15)
➢➢ हम बेहद के त्यागी और राजऋषि है - इसी नशे में रह पवित्र बनना है । ज्ञान धन से भरपूर बन दान करना है ।
❉ पुरानी दुनिया के किसी व्यक्ति वा वैभव में संकल्प मात्र भी लगाव नहीं रखना । सदा स्वयं को कलयुगी दुनिया से किनारा कर हर संकल्प , मनसा, वाचा और कर्मणा पवित्र बनाना है ।
❉ वैराग्य के साथ-साथ अधिकार या बाप से प्राप्त वर्से की खुशी में रहना है तो जितना कब्रिस्तान दिखाई देगा उतना परिस्तान भी दिखाई देगा व तो हर कर्म श्रेष्ठ कर्म होगा । बाबा की याद में ही रह पवित्र बनना है । हम बेहद के त्यागी व राजऋषि है ये नशा रखना है ।
❉ हमें बेहद का बाप मिला है व हमें बेहद के त्यागी व राजऋषि बनना है । ये नशा रखने से कर्मभोग होते हुए भी कर्मेन्द्रियों पर अधिकारी बन कर्मेन्द्रियजीत बन जगतजीत बनना है व पावन बनना है ।
❉ लौकिक में संयासी हद के त्यागी होते हैं तो उनका पवित्र रबने का अलग नशा होता है । हम तो बेहद के त्यागी और स्वयं पर राज करने वाले हैं तो हमें बेहद के नशे मे रहकर मनसा वाचा कर्मणा पवित्र बनना है ।
❉ संगमयुग पर बाप ने हमें अनमोल अखूट खजानों से अपने भाग्य लिखने की कलम हमारे हाथ में दी है कि जितना जमा करना चाहे कर सकते हैं । तो हमें ग्यान धन अच्छी रीति धारण कर दूसरों को दान देना है ।
❉ जितना दूसरों को ग्यान धन दान देते है वो उतना ही बढ़ता हैं व देना ही लेना है । उतना ही भविष्य के लिए जमा होता है ।
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∫∫ 6 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-15)
➢➢ सदा कल्याणकारी भावना द्वारा गुणग्राही बनने वाले अचल अडोल होते हैं... क्यों और कैसे ?
❉ जब सब के प्रति आत्मिक दृष्टि व आत्मिक भाव होता है तो सब के प्रति शुभ भावना होती है कि ये भी मेरा आत्मा भाई है तो हमें उसके गुण ही दिखाई देते है । इससे स्वयं भी संतुष्ट रहते है व दूसरों से भी संतुष्ट रहते तो स्थिति अचल अडोल रहती है ।
❉ अपनी अचल अडोल स्थिति बनाने के लिए सदा गुणग्राही बनना है । किसी में अवगुण होते हुए भी सिर्फ गुण ही देखना ही कल्याण की भावना है ।
❉ जिन बच्चों को बस बाप और सेवा याद रहती है व सर्व के प्रति कल्याण की भावना रहती व सदा सर्व खजानों से भरपूर होने से सब में गुण देखते हुए बस आगे ही बढ़ते है तो किसी आत्मा से असंतुष्ट नही होते व एकरस स्थिति रहती है ।
❉ जो हो रहा है अच्छा ही हो रहा है व जो होगा वो भी अच्छा ही होगा व हर सीन में कल्याण है । जब बाप साथ है तो अकल्याण तो हो ही नही सकता ऐसे विपरीत स्थिति में भी कल्याण देखते हुए व उससे सीख लेते हुए आगे बढ़ते है तो हलचल में नही आते व स्थिति अचल अडोल होती है ।
❉ जब यह स्मृति में रहता है कि मैं ईश्वरीय संतान हूं व स्वयं विश्वकल्याणकारी बाप ने मुझे विश्वकल्याण के कार्य के निमित्त चुना है तो सर्व के प्रति कल्याण की भावना रहती है । अपने को निमित्त समझ कर सेवा करने से व सबमें गुण ही देखने से अचल अडोल अवस्था रहती है ।
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∫∫ 7 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ अपना सब कुछ बाप को अर्पण कर सदा हल्के रहने वाले ही फरिश्ते हैं... क्यों और कैसे ?
❉ जो अपना सब कुछ अर्थात तन, मन धन, संबंध और समय बाप पर अर्पण कर देते हैं । सिवाय श्रीमत के एक भी संकल्प जिनके मन में उत्पन्न नहीं होता । अर्थात जो सदैव मनमनाभव की स्थिति में स्थित रहते हैं । उनके सोचने का कार्य भी स्वयं बाप करते हैं । इसलिए वे हर बात से उपराम रहते हैं और अशरीरी स्थिति में स्थित, हल्के होकर फरिश्ते बन उड़ते रहते हैं ।
❉ सब कुछ बाप पर अर्पण करने वालों के मन में सिवाय बाप के गुण, कर्तव्य और संबंध के और कुछ सूझता नहीं । बाप समान बनने की लगन में मग्न होकर अपने पुराने स्वभाव संस्कार बाप को देकर वे हर बोझ से मुक्त हो जाते हैं । और हल्के पन का अनुभव करते हुए फरिश्ते बन अपनी लाइट माइट की चमक सारे विश्व में फैलाते रहते हैं ।
❉ जो तीन बिंदुओं की समृति का तिलक सदा अपने मस्तक पर लगाए रखते हैं । वे बीती को बीती कर किसी भी बात के विस्तार में जाने के बजाए उसे सार में समाकर बिंदु बन बिंदु बाप की याद में रह हर परिस्थिति को हल्का बना लेते हैं । और हल्के होकर मन बुद्धि के विमान पर बैठ उड़ते रहते हैं ।
❉ हम ब्राह्मणों का फाइनल पेपर है - अंत मती सो गति । अंत में सहज ही शरीर के भान से मुक्त हो जाएं - यह है पास विद ऑनर की निशानी । लेकिन यह स्थिति तभी हो सकेगी । जब सबकुछ बाप को अर्पण किया हुआ होगा । क्योंकि जब सब कुछ बाप पर समर्पित कर देंगे तभी हर प्रकार की टाइटनेस से मुक्त हो सकेंगे और हल्के फरिश्ता स्वरुप स्थिति में स्थित हो सकेंगे ।
❉ जो स्वयं को ट्रस्टी समझ सब कुछ बाप को अर्पित कर देते हैं । उनकी हर जिम्मेवारी बाप अपने कंधो पर उठा लेते हैं । और इसलिए लौकिक और अलौकिक प्रवृति में रहते हुए भी वे स्वयं को निर्बंधन अनुभव करते हैं । और हर बात में सदा इजी रहते हैं । यहीं इजीनेस उन्हें फरिश्ता बना कर उमंग उत्साह में उड़ाती रहती है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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