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❍ 12 / 08 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ "√84 जन्मो का नाटक√ अभी पूरा होता है" - यह स्मृति रही ?
➢➢ अर्थ सहित अपने को आत्मा √बिंदु समझ, बिंदु बाप√ की अव्यभिचारी याद में रहे ?
➢➢ √महावीर√ बन अचल अडोल अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ सदा √ज्ञान सूर्य के सम्मुख√ रहे ?
➢➢ सदा √उडती कला√ में उड़ झमेलों के पहाड़ को क्रॉस किया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ अव्यक्त पालना में भी √साकार पालना√ का अनुभव किया ?
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/12.08.16-VisheshPurusharth.htm
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ "मीठे बच्चे - अब इस बेहद की पुरानी दुनिया का विनाश होना है नई दुनिया स्थापन हो रही है इसलिए इस नई दुनिया में चलने के लिए पवित्र बनो"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... आप फूल से बच्चों के लिए पिता खूबसूरत परिस्तान बना रहा... सारे सुखो की जन्नत बच्चों के लिए बसा रहा... यह पुरानी दुनिया का अंत करीब है... सुखो में मुस्कराने का मीठा समय नजदीक है... इसलिए हर साँस हर संकल्प हर कर्म में पवित्रता को अपनाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा नई सी दुनिया में चलने को आतुर हूँ... सम्पूर्ण पवित्रता को अपनाकर सज चली हूँ... नए सुख बाँहो में भरने को नई दुनिया में जाने के महा पुरुषार्थ में जुट गयी हूँ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... आप सुंदर देवता बन सुंदर दुनिया में चलोगे असीम खुशियां और आनन्द से खिलोगे... इस दुनिया का बदलाव समीप है... पर नई दुनिया की पवित्रता पहली शर्त है... इसलिए पवित्रता को अपनाकर अनोखी दिव्यता से नई दुनिया के हकदार बनो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा पवित्र बन कितनी खूबसूरत होती जा रही हूँ... मीठा बाबा मेरे लिए प्यारी सी दुनिया बनाने धरा पर उतर आया है... मै इस विनाशी दुनिया के विकारी जीवन को छोड़ चमकीली पवित्र होती जा रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे इस विनाशी दुनिया से ममत्व निकाल नई दुनिया सुखो के संसार को याद करो... पवित्र बन कर अनन्त खुशियो में मुस्कराओ... और शानदार सुखो की दुनिया के मालिक बन सदा के आनन्दित हो जाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा इस विनाशी देह और दुनिया से मुक्त होती जा रही हूँ... पवित्रता को दामन में सजाये स्वर्ग के लिए दिव्य प्रकाश से भरती जा रही हूँ... प्यारा बाबा मुझे सुखधाम में ले जाने आ चला है...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )
❉ "ड्रिल - घर वापिस जाने के लिए पावन बनना"
➳ _ ➳ हे आत्मन्! तुम स्वयं को ही भूल गई... ऊपर से नीचे की चकाचोंध को देख आकर्षित हुई... नीचे आकर दुनियावी खेल खेलते हुए अपना घर का रास्ता ही भूल गई... माया के वश आकर कमजोर होकर अपनी शक्तियों को अपनी पहचान को भूल गई... अपने सच्चे सच्चे पिता को भूल गई... इस अंतिम समय में ड्रामानुसार परमपिता परमात्मा को अपने बच्चों के लिए पतित दुनिया में आना पड़ा... स्वयं परमपिता शिव बाबा ने आकर इस संगमयुग पर आकर मुझ आत्मा को अपना बनाकर ज्ञान रुपी तीसरा नेत्र दिया... मुझ आत्मा को सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान दिया... मैं आत्मा 84 जन्मों के चक्र को जान गई हूं... यह मुझ आत्मा की वानप्रस्थ अवस्था है... मुझ आत्मा का अंतिम जन्म है... मुझ आत्मा को मेरे प्यारे शिव बाबा अपने साथ वापिस घर ले जाने के लिए आए हैं... मुझ आत्मा को बस वापिस घर जाना है... नयी दुनिया सतोप्रधान दुनिया है... नयी दुनिया में सतोप्रधान बने बगैर जा नही सकते... मुझ आत्मा प्यारे बाबा की याद में रह विकर्म करती हूं... मैं आत्मा बाबा की श्रीमत पर चल सतोप्रधान बनने का पुरुषार्थ करती हूं... मैं आत्मा के सातों गुणों को ईमर्ज कर कर्म करती हूं... मैं आत्मा देह व देह के सम्बंधों से न्यारी और प्यारी स्थिति का अनुभव करती हूं...
❉ "ड्रिल - अव्याभिचारी याद से महावीर बनना"
➳ _ ➳ मैं अजर, अमर, अविनाशी बिंदु आत्मा हूं... यही मुझ आत्मा का अनादि, आदि स्वरुप है... मुझ आत्मा को अपने ओराजनल स्वरुप की पहचान मेरे परमपिता परमात्मा शिव बाबा ने ही दी है... मैं आत्मा बिंदी हूं ऐसे ही मुझ आत्मा के पिता भी सुप्रीम बिंदी हैं... तेजोमय ज्योतिर्बिंदु है... इस संगमयुग पर स्वयं प्यारे बाबा ने ही अपनी परिचय दिया है... इस अंतिम समय में मुझ आत्मा को इतना पुरुषार्थ करना है कि स्वयं को बिंदु रुप में स्थित होना है... निरंतर याद भी बिंदु बाप को ही करना है... मैं बाप और रचना सब कुछ इस बिंदी में ही समाया है... इस संगमयुग पर बिंदु बन बिंदु बाप को ही श्वांसो-श्वांस याद करती हूं... 63 जन्मों तक स्वयं में भरे अविनाशी पार्ट को भूल गई... देह के भान में आकर स्वयं को भी देह समझ बैठी... देहधारियों को गुरु मान उन्हें ही सब समझ दुख पाती रही... देहभान में रह विकारों में गिर पतित हो गई... अब मुझ आत्मा को सुप्रीम बाप, सुप्रीम टीचर, सुप्रीम सतगुरु स्वयं भगवान मिल गए... मुझ आत्मा के सर्व सम्बंध बस एक प्यारे शिव बाबा से हैं... मैं आत्मा बस एक बाप की याद में रहती हूं... मैं आत्मा एक बाप की याद में रह महावीर जैसी स्थिति अनुभव करती हूं... मैं आत्मा अपने परमपिता प्यारे शिव बाबा के सर्व खजानों की अधिकारी हूं... सर्वगुणों, सर्वशक्तियों से सम्पन्न आत्मा हूं... मैं आत्मा खजानों से भरपूर होने से हर परिस्थिति को सहज ही पार करती हूं... मुझ आत्मा के पास जादुई चाबी है - 'मेरा बाबा'... इसलिए मैं आत्मा अचल, अडोल अवस्था का अनुभव करती हूं...
❉ ड्रिल - उडती कला में रह हर परिस्थिति को पार करना"
➳ _ ➳ स्वयं को चमकता हुआ सितारा देखती हूं... मुझ आत्मा की चमक समस्त भूमंडल में अंधकार में चमकते हुए दीये के समान फैल रही है... मुझ आत्मा का शिव बाबा से बुद्धि के तार द्वारा कनेक्शन जुड़ा हुआ हैं... मैं आत्मा अपने प्यारे बाबा के सम्मुख हूं... मेरे बाबा मुझ पर अपनी सर्व शक्तियों की वर्षा कर रहे हैं... मैं आत्मा शक्तियों की किरणों से भरपूर होकर हीरे समान हो गयी हूं... विषय विकारों रुपी कीचड़ जलकर भस्म हो गया हैं... बाबा से अनकंडीशनल प्यार पाकर मैं खुशी से झूम रही हूं... मैं आत्मा सदैव स्वयं को हजार भुजाओं वाले परमपिता की छत्रछाया में अनुभव करती हूं... बाबा आपने मुझ आत्मा की खोयी हुई चमक लौटा दी है... मुझ आत्मा को रुहे गुलाब बना दिया है... कौड़ी से हीरे तुल्य बना दिया है... मैं आत्मा सदा इस खुशी व नशे में रहती हूं कि स्वयं भगवान मेरा साथी है... जब सर्वशक्तिमान मेरे साथ है तो कोई भी पहाड़ जैसी परिस्थिति भी मुझ आत्मा को हिला नही सकती... मैं आत्मा झमेलों से मुक्त रहती हूं... मैं बाबा की याद में रह बड़ी से बड़ी परिस्थिति को खेल समझ पार करती हूं... मुझ आत्मा के मन में यही गीत बजता रहता है - 'जिसका साथी है भगवान , उसको क्या रोक सके आंधी और तूफान'... मैं आत्मा बाबा की याद व बाबा के प्यार में उड़ती कला का अनुभव करती हूं...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- मैं स्वमानधारी आत्मा हूँ ।"
➳ _ ➳ मैं इस संसार की सर्वश्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ... सारी दुनिया जिस भगवान को ढूंढ रहे हैं... जिसके दर्शन को प्यासी है... वह भगवान रोज़ अमृतवेले मुझसे मिलन मनाते हैं... पूरी दुनिया जिस भगवान को याद करती है...
➳ _ ➳ वह भगवान मुझे याद करते हैं... पूरी दुनिया जिस भगवान के गुणगान करते हैं... वह भगवान मेरे दिव्य गुणों की धारणा का गुणगान करते हैं... मेरी महिमा करते हैं... मुझे आप समान कहकर मेरा मान बढाते हैं... मुझे सम्मान प्रदान करते हैं...
➳ _ ➳ पूरी दुनिया जिसे प्यार करते हैं... वो परमपिता परमात्मा अपना संपूर्ण प्यार रोज़ मुझ पर बरसाते हैं... मैं आत्मा कितनी श्रेष्ठ, महान और भाग्यवान हूँ... जिसे भगवान ने अपना बना लिया...
➳ _ ➳ आह ! कितना श्रेष्ठ भाग्य है मेरा... जो संसार की करोड़ों आत्माओं में से भगवान ने मुझे चुना है... मैं आत्मा पल-पल ज्ञान सूर्य परमात्मा के सम्मुख रहती हूँ...
➳ _ ➳ जिस प्रकार सूर्य के सामने देखने से सूर्य की किरणें अपने अंदर अवश्य आतीं हैं... उसी प्रकार मैं आत्मा ज्ञान सूर्य बाबा के सम्मुख रहकर सर्व गुणों की किरणों को स्वयं में समाते हुए अनुभव कर रहीं हूँ...
➳ _ ➳ मैं सदा अंतर्मुखी रहने वाली आत्मा हूँ... अन्तर्मुखता की झलक और संगमयुग के वा भविष्य के सर्व स्वमानों की फलक मुझ आत्मा के चहरे पर झलक रही है... हर घड़ी अंतिम घड़ी है यह स्मृति सदा मुझ आत्मा की बुद्धि में रहती है...
➳ _ ➳ किसी भी घड़ी इस शरीर का विनाश हो सकता है इसलिए मैं आत्मा इस संगमयुग में ज्ञान सूर्य बाप के सम्मुख रह सदा अन्तर्मुखता वा स्वमान की अनुभूति कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢
सदा ज्ञान
सूर्य के सम्मुख रहने वाले अन्तर्मुखी स्वमानधारी होते हैं... क्यों और कैसे?
❉
सदा ज्ञान सूर्य के सम्मुख रहने वाले अन्तर्मुखी स्वमानधारी होते हैं क्योंकि
जैसे सूर्य को अपने सामने देखने से सूर्य की अनन्त किरणों से हमारा सम्बन्ध जुड़
जाता है। उसी प्रकार जो बच्चे! ज्ञान सूर्य शिवबाबा के सदा सम्मुख रहते हैं उनका
भी सम्बन्ध शिवबाप से जुड़ जाता है।
❉
वो सदा ही ज्ञान सूर्य के सर्व गुणों की किरणें स्वयं में अनुभव करते रहते हैं।
इसलिये ही उनकी सूरत में अन्तर्मुखता की झलक और संगम युग के वा भविष्य के सर्व
स्वमान की फलक दिखाई देती है। अर्थात वे सदा ही स्वमानधारी बन कर रहते हैं।
❉
क्योंकि उनको पता है कि किसी भी घडी इस विनाशी शरीर का विनाश हो सकता है। ये
सारा संसार जो इन चर्म चक्षुओं से दिखाई दे रहा है वो सभी मिथ्या है। देखने में
सत्य सा ही प्रतीत होता है। लेकिन बाबा ने कहा जो दिखाई दे रहा है वो सत्य नहीं
है।
❉
परन्तु वास्तविकता कुछ और ही है जो कि हमें दिखाई नहीं देती। सच तो केवल एक ही
है और वो है... आत्मा और परमात्मा। हम सभी आत्मायें! एक परम पिता परमात्मा की
सन्तान है। मम्मा भी कहती थी कि... हर घडी को अंतिम घडी समझ कर चलो। ये विनाशी
तन है ना,
ना
मालूम कब छूट जाये।
❉
इसके लिए सदा ही स्मृति में रहे कि... हर घडी अंतिम घडी है। किसी भी घडी इस
विनाशी तन का विनाश हो सकता है। इसलिये हमें सदा ही प्रीत बुद्धि बन कर रहना
है। सदा ही ज्ञान सूर्य शिव बाबा के सम्मुख रह कर अंतर्मुखता वा स्वमान की धारणा
की अनुभूति करते रहना है।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ सदा उड़ती कला में उड़ना ही झमेलों के पहाड़ को क्रास करना हैं... क्यों और कैसे ?
❉ मन बुद्धि को सब प्रकार के झमेलों से किनारे कर जो सदैव एक बाप के साथ मिलन मेला मनाने में ही व्यस्त रहते हैं । परिस्थितियों रूपी झमेलों के पहाड़ उन्हें कभी भी आगे बढ़ने से रोक नही सकते क्योकि वे पहाड़ को हटाने में अपना समय व्यर्थ नही गंवाते बल्कि मन बुद्धि को किनारे कर, एक सेकण्ड में अपनी उड़ती कला द्वारा उस झमेले के पहाड़ के भी ऊपर चले जाते हैं । झमेले की दुनिया में आते ही नही ।
❉ जितना जो वानप्रस्थ स्थिति में स्थित रहते हैं अर्थात व्यक्त में रहते भी अव्यक्त स्थिति में स्थित हो कर वाणी से परे जाने का अभ्यास जिनका पक्का होता जाता है । जो मन बुद्धि से सदैव 5 तत्वों के पार रहते है । वे हर समय परमात्म मिलन मनाते हुए आत्मा में दिव्य आलौकिक शक्तियां भरते रहते हैं । इसलिए परिस्थितियों रूपी झमेलों के पहाड़ को देख घबराने के बजाए वे उड़ता पंछी बन सेकण्ड में वाणी से परे जा कर उस पहाड़ को क्रॉस कर लेते हैं ।
❉ किसी भी प्रकार के झमेलों में तभी फंसते हैं जब स्वयं को उन झमेलों के अधीन समझ लेते हैं इसलिए जो सदा अधिकारीपन की सीट पर स्वयं को सेट रखते हैं और सदा इसी नशे में रहते हैं कि हम अविनाशी खजानो के मालिक हैं, सर्व गुणों और सर्व शक्तियों से सम्पन्न हैं । उनके सामने कभी दुःख की लहर भी नही आ सकती क्योकि अपने अधिकारीपन के निश्चय और नशे में वे सदा उड़ती कला में उड़ते रहते हैं और झमेलों के पहाड़ को भी सेकण्ड में क्रॉस कर लेते हैं ।
❉ जितना जो स्वयं को इस देह और देह की दुनिया से डिटैच कर लेते हैं और आत्मिक स्मृति में स्थित हो कर मन बुद्धि को केवल एक बाप की याद में ही लगाये रखते हैं तथा सर्व सम्बन्धो से सदा एक बाप के साथ ही मिलन मेला मनाते रहते हैं । उन्हें सदैव यही स्मृति रहती है कि वे निरन्तर सर्वशक्तिवान बाप की छत्रछाया के भीतर सुरक्षित हैं । यह स्मृति उन्हें किसी भी प्रकार के झमेलों में फंसने नही देती । इसलिए उड़ती कला में उड़ते हुए झमेलों के पहाड़ को भी वे आसानी से पार कर लेते हैं ।
❉ स्वमान की सीट सदा ऊँची स्थिति पर स्थित रखती है । इसलिए जो सदा श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट रहते हैं उन्हें अपनी ऊँची स्थिति के आगे हर परिस्थितियां और झमेले छोटे नजर आते हैं । झमेलों के पहाड़ को देख कर भी उससे विचलित होने के बजाए अपनी स्व स्थिति में टिक कर वे हर परिस्थिति से उपराम हो जाते हैं और अपनी उड़ती कला में उड़ते हुए झमेलों के उस पहाड़ को भी ऐसे आसानी से क्रॉस कर लेते हैं जैसे एक पंछी सेकण्ड में उड़ कर किसी स्थूल पहाड़ को क्रॉस कर उस पार चला जाता है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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