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 20 / 07 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ कोई भी ×उल्टी आश× तो नहीं रखी ?

 

➢➢ "अंत मति सो गति" - यह स्मृति में रहा ?

 

➢➢ माया के तूफानों में ×समय तो नहीं गंवाया× ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ ×आलस्य× के भिन्न भिन्न रूपों को समाप्त कर सदा हुल्लास में रहे ?

 

➢➢ सोचना और कहना समान बना सच्चे सेवाधारी बनकर रहे ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ बाप के साथ स्नेही और सहयोगी बनकर रहे ?

 

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➳ _ ➳  http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/20.07.16-VisheshPurusharth.pdf

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - इस दुनिया में जिस प्रकार की आशये मनुष्य रखते है वह आशाये तुम्हे नही रखनी है, क्योकि यह दुनिया विनाश होनी है"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे इस पुरानी सी दुखो भरी दुनिया से अब दिल न लगाना है... दिल तो गुणो से भरी मीठी दुनिया से लगाना है... खूबसूरत सुखो से लगाना है जो 21 जनमो तक आनन्द देंगे... विनाशी दुनिया से आशा रखना स्वयं को ठगना है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा इस दुखो की दुनिया को भूल चली हूँ... इन विनाशी आशाओ से मुक्त हो सतयुगी सुखो की ओर रुख ले चली हु... आपके साये में पारस बन गुणो और शक्तियो से दमक उठी हूँ...

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे इस खोखली और खाली दुनिया से क्या पाओगे सिवाय तकलीफो के... यह रिश्ते ये बाते ये नाते ये आशाये सच्चे सुखो का पर्याय कभी न होंगी... खूबसूरत सुखो की दुनिया बाँहो में भरकर बाबा लाया है... उसमे खो जाओ... और सदा आनन्दित हो जाओ...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा इन मटमैले नातो से निकल सच्ची आत्मिक स्मर्तियो से भर चली हूँ... आपने मुझे जो खूबसूरत यात्रा सिखलाई है उस पर उड़ चली हूँ... इन बन्धनों आशाओ से मुक्त हो यादो के आसमान में झूम रही हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे बच्चे यहाँ जो सांसो को खपाया तो क्या सदा सुख पाया... इस ढहती सी भुरभुरी सी दुनिया को यादो में भर कर स्वयं को ही ठग जाओगे... विश्व पिता की मीठी यादो में ही सुखो भरा निराला अनोखा खूबसूरत संसार पाओगे... तो दिल को मीठे बाबा में ही लगाना...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा प्यारे बाबा के सानिध्य में निखर चली हूँ... विनाशी दुनिया से उपराम हो सतयुगी दुनिया में अनन्त सुखो में खो चली हूँ.... सत्य को दिल में समा चुकी हूँ... और प्यारे बाबा पर निहाल हो रही हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - ईश्वरीय मत पर चलना"

 

➳ _ ➳  मैं  संगमयुगी विशेष आत्मा हूं... मुझ आत्मा का ये नया जीवन है... मुझ आत्मा को मेरे प्यारे परमपिता शिव बाबा ने घोर अंधियारे से निकाल ज्ञान की रोशनी दे दी है... मै आत्मा देह व देह के पुराने सम्बंधों को बुद्धि से भूल गई हूं... मैं आत्मा विनाशी कलयुगी दुनिया से कोई आश नही रखती... मुझ आत्मा ने प्यारे बाबा को पांच विकारों का दान दे दिया है... मैं आत्मा प्यारे बाबा की याद में मग्न रहती हूं... मैं आत्मा प्यारे मीठे बाबा की श्रीमत पर ही चलती हूं... प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा का जीवन श्रेष्ठ, ऊंच और पवित्र बना दिया है... मैं आत्मा  काले से गोरी बन गई हूं... मैं आत्मा ईश्वरीय मत पर चलने से पावन बन रही हूं... मैं आत्मा प्यारे बाबा की मत पर चलने से व याद में रहने से सम्पूर्ण सतोप्रधान स्थिति का अनुभव कर रही हूं...

 

❉   "ड्रिल - पावन बन घर वापिस जाना"

 

➳ _ ➳  मैं अति सूक्ष्म आत्मा ज्योति बिंदु हूं... देह व देह के बंधन से मुक्त आत्मा हूं... मैं आत्मा खेलने के लिए नीचे आई व अपना घर ही भूल गई... अब मुझ आत्मा के परमपिता मुझे घर वापिस ले जाने के लिए आए हैं... मेरे परमपिता मुझ आत्मा को पतित से पावन बनाते है... मैं आत्मा  एक बाप की याद में रह अपने विकर्म विनाश करती हूं... याद से ही आत्मा पर लगी कट उतारती हूं व पावन बनती हूं... पावन बने बगैर मैं आत्मा घर वापिस नही जा सकती हूं... मैं आत्मा  यही आश रखती हूं कि मुझे घर वापिस जाना है... प्यारे बाबा मुझ आत्मा को राजयोग सिखाते हैं... मैं एक बाप की ही याद में रहती हूं... एक याद में रहने से ही अंत मति सो गति हो जायेगी... मैं आत्मा एक बाप की याद में रहने से माया के वार से सेफ रहती हूं... मैं आत्मा जीते जी मरने का पुरुषार्थ करती हूं...

 

❉   "ड्रिल - सच्चा सेवाधारी"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा सच्चा रुहानी सेवाधारी हूं... मैं मास्टर सुखदाता हूं... मैं आत्मा परमपिता परमात्मा से मिले सर्व खजानों से सम्पन्न हूं... मैं आत्मा हर संकल्प, हर श्वांस में, हर सेकेंड सदा साक्षीदृष्टा और सदा बाप के साथीपन का, सहयोग के साथीपन का अनुभव करती हूं... मैं आत्मा सेवा द्वारा सुख देती हूं... मैं आत्मा स्वयं को भाग्यशाली समझती हूं... मुझ आत्मा को प्यारे बाबा ने ईश्वरीय सेवा के निमित्त चुना... मैं आत्मा सदैव सेवा के लिए तत्पर रहती हूं... मुझ आत्मा का सोचना और करना समान है... मैं आत्मा तीव्र पुरुषार्थी हूं... मैं आत्मा सदा सेवा में सहयोगी साथी बन चलती हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं तीव्र पुरषार्थी आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा भगवान की पालना में पलने वाली, माया के तूफानों में भी सदा अचल रहने वाली मैं मायाजीत, जगतजीत आत्मा हूँ... परमात्म शक्ति द्वारा पांच विकारों रूपी माया दुश्मन परिवर्तित हो मुझ आत्मा के सहयोगी बन गए हैं...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपने अंदर योग का बल जमा कर योग बल से अपनी कर्मेन्द्रियों को शीतल करती जाती हूँ... काम विकार को शुभ कामना द्वारा, क्रोध को रूहानी खुमारी द्वारा, लोभ को अनासक्त वृति द्वारा, मोह को स्नेह द्वारा और देह अभिमान को स्वाभिमान द्वारा परिवर्तित करती जाती हूँ...

 

➳ _ ➳  सर्वशक्तिमान बाप के साथ का अनुभव प्रकृति के पांचो तत्वों और पांचो विकारों को मेरा सहयोगी बना रहा है... मैं तन-मन-धन से एक बाप पर सम्पूर्ण समर्पित हूँ... और यह अव्यभिचारी समर्पण ही मुझे मायाजीत बनाता है...

 

➳ _ ➳  बाबा के प्रति मेरे अविनाशी और निस्वार्थ प्रेम के आगे माया का कोई भी आकर्षण टिक नही रहा है... माया के भिन्न-भिन्न वारों से मैं आत्मा अपने आपको सेफ रखती हूँ...

 

➳ _ ➳ आलस्य रुपी माया के विशेष वार को खत्म  करने के लिए मैं आत्मा सदा हुल्लास की अवस्था में स्तिथ रहती हूँ... यह संगमयुग कमाई का युग है... ऐसे ही पद्मगुना कमाई करने के लिए मैं आत्मा हुल्लास को कभी भी कम नहीं होने देती हूँ...

 

➳ _ ➳  सोचेंगे, करेंगे, कर ही लेंगे, हो जायेगा ऐसे आलस्य रुपी माया के वार को मैं आत्मा मात दे रहीं हूँ... मैं आत्मा इन नाकारात्मक संकल्पों को समाप्त कर इन साकारात्मक संकल्पो से अपने मन और बुध्दि को भर रहीं हूँ कि जो करना है, जितना करना है अभी करना है...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा इन श्रेष्ठ संकल्पों की रचयिता हूँ... इन श्रेष्ठ संकल्पों के साथ मैं आत्मा यह निरन्तर अनुभव कर रहीं हूँ कि मैं सदा हुल्लास में रहने वाली तीव्र पुरषार्थी आत्मा हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  आलस्य के भिन्न भिन्न रूपों को समाप्त कर सदा हुल्लास में रहने वाले तीव्र पुरुषार्थी होते हैं... क्यों और कैसे ?

 

❉   आलस्य के भिन्न-भिन्न रूपों को समाप्त कर सदा हुल्लास में रहने वाले तीव्र पुरुषार्थी होते हैं, क्योंकि वर्तमान समय में माया का वार हम ब्राह्मणों पर, आलस्य के रूप में भिन्न-भिन्न प्रकार से होता है। ये आलस्य भी एक प्रकार का विशेष विकार है।

 

❉   आलस्य को ख़त्म करने के लिये हमें सदा हुल्लास में रहना है। जब मन में उमंग, उत्साह और हुल्लास रहेगा तो आलस्य स्वतः समाप्त हो जायेगा। इसलिये कभी भी अपने हुल्लास को कम नहीं होने देना है, क्योंकि सदा का हुल्लास आलस्य रुपी विकार को सदा के लिये समाप्त कर देता है।

 

❉   इसलिये हमें कभी भी अपने हुल्लास को कम नहीं करना चाहिये। सदा उमंग और उत्साह व हुल्लास के वातारण में अपने पुरुषार्थ को बढाते रहना चाहिये क्योंकि तीव्र पुरुषार्थि सदा माया को अपने वश में रख कर चलते हैं। अर्थात माया रुपी विकारों पर भी जीत पहनते हैं तथा विकारों को भी अपने अधीन रखते हैं।

 

❉   सोचेंगे, करेंगे, कर ही लेंगे, अभी नहीं बाद में कर लेंगे, हो जायेगा...   आदि ऐसे बहाने बनाने वाले शब्दों को  तिलांजली दे देनी चाहिये, क्योंकि ये शब्द ही आलस्य की निशानी हैं, और ये आलस्य हमें! अपने पुरुषार्थ में आगे बढ़ने, नहीं देता है, तथा ये हमें तीव्र पुरुषार्थी बनने से भी रोक देते हैं।

 

❉   ये सब शब्द आलस्य की निशानियाँ है। ऐसे आलस्य वाले निर्बल संकल्पों को समाप्त कर, यही सोचना है कि जो करना है, जितना करना है, वो अभी करना है। तब कहेंगे! तीव्र पुरुषार्थी।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢ सच्चे सेवाधारी वह हैं जिनका सोचना और कहना समान हो... क्यों और कैसे ?

 

❉   यथार्थ सेवाधारी उन्हें कहा जाता है जो स्व की और सर्व की सेवा साथ-साथ करते हैं । स्व की सेवा में सर्व की सेवा समाई हुई हो । ऐसे नहीं दूसरों की सेवा करो और अपनी सेवा में अलबेले हो जाओ । सेवा में सेवा और योग दोनों ही साथ-साथ हो । इसके लिए प्लेन बुद्धि बनकर सेवा के प्लैन बनाओ । प्लेन बुद्धि अर्थात् कोई भी बात बुद्धि को टच नहीं करे, सिवाए निमित्त और निर्माण भाव के । ऐसे जो सेवाधारी होते हैं, जिनका सोचना और करना एक समान होता है उन्हें ही सच्चे सेवाधारी कहा जाता हैं ।

 

❉   जिन्हें सदा यह स्मृति रहती है कि  " मैं विशेष हीरो पार्टधारी आत्मा हूं " । उनका अपने हर कर्म पर विशेष अटेंशन रहता है । ताकि सब उनके हर कर्म को देख वाह - वाह करें वन्स मोर कहें । इस लिए अपने हर एक्ट में विशेषता लाने के लिए वे अपनी सोच और कर्म को सदैव एक समान रखते हैं । कथनी - करनी में समानता लेकर वे स्वयं के परिवर्तन द्वारा अनेक आत्माओं का परिवर्तन करने के निमित बन जाते हैं । ऐसे विश्व परिवर्तन के आधारमूर्त ही सच्चे सेवाधारी कहलाते हैं ।

 

❉   स्वरूप बन स्वरूप बनाने की सेवा ही प्रभावशाली सेवा है और यही सच्चे सेवाधारी की विशेषता है । और यह सेवा वही कर सकते है जिनकी कथनी करनी में समानता होती है अर्थात जो सोचते है वही कहते हैं और वैसा ही स्वरूप बन सेवा करते हैं । अभी के समय प्रमाण और आने वाले समय प्रमाण इस सेवा की अधिक आवश्यकता है क्योकि आत्माएं सुनते सुनते थक गई है इसलिए अनुभव करना चाहती हैं । और दूसरों को अनुभव करवाने के लिए जरूरी है अनुभवी मूर्त बनना और अनुभवीमूर्त वही बन सकते हैं जिनकी सोच और कर्म समान हो ।

 

❉   जैसे साकार बाप के कोई भी कर्म से, देखने, उठने, बैठने, चलने और सोने से अलौकिकता स्पष्ट दिखाई देती थी । ऐसे जो हर संकल्प, बोल और कर्म में ब्रह्मा बाप को फ़ॉलो करते हैं उनके हर संकल्प, बोल और कर्म में अलौकिकता आ जाती है । कोई भी लौकिकता कर्म में वा संस्कारों में अंश मात्र भी दिखाई नही देती ।  जिनका सोचना, करना, बोलना तीनों ही एक समान और बाप समान बन जाते हैं ऐसे श्रेष्ठ पुरुषार्थी ही बाप समान वरदाता मूर्त्त और सच्चे सेवाधारी कहला सकते हैं ।

 

❉   विश्व कल्याण की सेवा के लिए क्षेत्र में सहज सफलता का साधन प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा बाप की प्रत्यक्षता है । जो बोले वह दिखाई दे । जैसे बोलते हैं कि हम ब्राह्मण आलमाइटी अथॉरिटी हैंमास्टर सर्वशक्तिवान हैंमायाजीत हैं, रहमदिल हैंरूहानी सेवाधारी हैं । तो यह प्रैक्टिकल स्वरूप सबको दिखाई दे तभी विश्व कल्याणकारी बन सकेंगे । अगर स्वयं के ही संस्कार परिवर्तन करने में दिलशिक्स्त हो जाते हैं तो विश्व परिवर्तक कैसे बनेंगे । इसलिए सोचना और कहना एक समान बना कर जब सम्पन्न बन सैम्पुल बनेंगे तभी सच्चे सेवाधारी कहला सकेंगे ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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