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 28 / 11 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *रूहानी सोशल वर्कर बन पड़ा और पडाया ?*

 

➢➢ *बाप के साथ साथ आने वाली नयी दुनिया को भी याद किया ?*

 

➢➢ *बाप समान रहमदिल बन सबको पारस बुधी बनाने की सेवा की ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *अपनी श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा शुद्ध वायुमंडल बनाया ?*

 

➢➢ *गुणमूर्त बन सर्व को गुणमूर्त बनाया ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *बापदादा से अशरीरी भव का वरदान स्वीकार किया ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे -  यही पढ़ाई है जो तुम्हे नर से नारायण नारी से लक्ष्मी बनाती है इसलिए पढ़ाई पर बहुत बहुत ध्यान देना है"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... इस धरा पर खेल को जो उतरे तो सब कुछ भूल चले कौन हो किसके हो कहां के हो... सब कुछ भूल चले... अब सत्य पिता ज्ञान रत्नों से फिर से सजा रहा और देवताओ सा सुखद जीवन दामन में खिला रहा है...यह ईश्वरीय पढ़ाई ही सतयुगी सुखो का आधार है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा मुझ आत्मा ने कितना प्यारा भाग्य पाया है कि स्वयं ईश्वर पिता मुझे पढ़ा रहा... मेरा खोया हुआ सौंदर्य लौटाकर मुझे देवताओ सा खुबसूरत सजा रहा... मै आत्मा मीठे बाबा से पढ़कर प्रतिपल निखर रही हूँ...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय पढ़ाई को मन बुद्धि के रोम रोम में भर चलो... यही ज्ञान रत्न सुखो के रत्नों में बदल जीवन को शांति और आनन्द से भरपूर कर जाएँगे... ईश्वर पिता ने गोद में बिठाकर सारे ज्ञान खजाने नाम कर दिए है उन कीमती अमूल्य रत्नों को सहेज चलो...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा ईश्वरीय रत्नों को पाने वाली महान भाग्यशाली आत्मा हूँ... भक्ति में कितनी खाली हो चली मै आत्मा ईश्वरीय सानिध्य में ज्ञान रत्नों से मालामाल हो गयी हूँ... और सुंदर देवता बनने का राज जानकर मुस्करा उठी हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... सारा मदार इस ईश्वरीय पढ़ाई पर ही है... यह पढ़ाई ही विश्व का मालिक बनाकर विश्वधरा पर सजायेंगी... इसलिए इस पढ़ाई को रग रग में धारण कर चलो... जिन अल्पकाल के क्षणिक सुख के पीछे खप रहे थे कभी... यह पढ़ाई देवताई सुखो के अम्बार लगाकर जीवन खुशनुमा बना देगी...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सारे सुखो के गहरे राज आप पिता से जान चुकी हूँ... और जीवन को साधारण मनुष्य से असाधारण देवता बनाने के प्रयासों में जीजान से जुटी हूँ... मीठे बाबा से सारे सुख अपने नाम लिखवा रही हूँ और शान से मुस्करा रही हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं शक्तिशाली आत्मा हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  अभी वर्तमान समय में चारों ओर का वायुमंडल अशुध्द है... मुझ आत्मा को कमजोर बनाने प्रकृति, व्यक्ति, परिस्थितियाँ सब विघ्न रूप बन सामने आ रहें हैं... मुझ आत्मा को निर्विघ्न वायुमंडल बनाने के लिए अपनी दृष्टि, वृत्ति को पवित्र रखना है... शुध्द रखना है...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा एक बाबा की याद में रह अपनी दृष्टि, वृत्ति को श्रेष्ठ बना रही हूँ... स्मृति से फाउंडेशन को मजबूत करती हूँ... मैं सदा इसी स्मृति में रहती हूँ कि मैं शुध्द पवित्र आत्मा हूँ... श्रेष्ठ आत्मा हूँ... पूज्य आत्मा हूँ... विशेष आत्मा हूँ... मेरा ब्राह्मण जन्म विशेष कार्य करने के लिये हुआ है... मैं विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा एक राम की याद में स्थित रह महावीर बन रही हूँ... योग अग्नि को जलाकर विघ्नों की लंका को जला रही हूँ... अपने शुभ भावनाओं, शुभ कामनाओं से वायुमंडल को पवित्र, शुध्द बना रही हूँ... अपने श्रेष्ठ वृत्ति से दूसरों की चंचल वृत्ति को परिवर्तित कर रही हूँ...

 

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा किसी भी वायुमंडल, वायब्रेशन में डगमग नहीं होती हूँ... मुझ आत्मा को कोई भी परिस्थिति व व्यक्ति  संकल्प में भी नहीं हिला सकते हैं... सबको आत्मिक दृष्टि से देखती हूँ... सबको अपना स्नेही, सहयोगी बना रही हूँ... मैं अपने श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा शुध्द वायुमंडल बनाने वाली सदा शक्तिशाली आत्मा हूँ...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- गुणमूर्त बनकर सर्व को गुणमूर्त बनाना"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा सर्व गुणों की खान शिवपिता की सन्तान हूँ... जैसे मेरे पिता परमात्मा सर्व गुणों का सागर है... मैं आत्मा भी सर्व गुणों से भरपूर हूँ... दिव्य गुण ही मुझ ब्राह्मण आत्मा के श्रृंगार हैं... दिव्य गुणों से सजकर मैं आत्मा गुणमूर्त बन गई हूँ... 

 

➳ _ ➳   जैसा कर्म मैं करूंगी, मुझे देख सब करेंगे... मैं आत्मा अपने हर कर्म को दिव्य गुणों की खुशबू से महका कर श्रेष्ट कर्मों में तब्दील करती हूँ... मेरे दिव्य गुणों की खुशबू... सर्व आत्माओं को आकर्षित करती है...  मेरे दिव्य गुणों की खुशबू अन्य आत्माओं को भी महका रही हैं... और उन्हें प्रेरित कर रही हैं... उन गुणों को स्वयं के कार्य व्यवहार में लाने के लिए...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपने गुणो का दान करने वाली... महादानी आत्मा बन गई हूँ... अपने गुणों का दान करना, महादान हैं... इस दान से मैं आत्मा, अन्य आत्माओं को भी बहुत सहज ही आप समान बनाती जाती हूँ...  मैं गुणमूर्त आत्मा, अन्य आत्माओं को भी गुणमूर्त बनाती जाती हूँ...

 

➳ _ ➳  परमात्मा से प्राप्त सर्व गुण और विशेषतायें, प्रभु प्रसाद है... जिन्हें मैं सभी सम्बन्ध-सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को बाँटती हूँ... मैं महादानी आत्मा हूँ... मेरे स्वभाव-संस्कार और व्यवहार में दिव्य गुणों की चमक चारों ओर फैलती जाती हैं... दिव्य गुणों को धारण कर मैं अत्मा... आकर्षण मूर्त बन गई हूँ... और अन्य आत्माओं को भी गुणमूर्त आकर्षण मूर्त बनाती जाती हूँ...

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *अपनी श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा शुद्ध वायुमंडल बनाने वाले सदा शक्तिशाली आत्मा होते हैं...  क्यों और कैसे?*

 

❉   जो सदा अपनी श्रेष्ठ वृत्ति में स्थित रहते हैं वे किसी भी परिस्थिति में हलचल में नही आते। वृत्ति से ही वायुमंडल बनता है व वैसी ही वायब्रेशनस फैलते है। यदि वृत्ति श्रेष्ठ है तो वायुमंडल शुद्ध बन जायेगा और शुद्ध वायुमंडल से आत्मा भी शुद्ध बन जायेगी और शक्तिशाली भी।

 

❉   कई बच्चे कहते हैं क्या करें वायुमंडल ही ऐसा है तो वायुमंडल का प्रभाव तो पड़ता ही है। ऐसे शब्द कमजोर आत्माओं के है। जो ये स्मृति में रखते है कि हम सर्वशक्तिमान के बच्चे मा. सर्वशक्तिमान है वो बच्चे प्रतिज्ञा की स्मृति से वृत्ति को श्रेष्ठ बनाते हैं वो आत्मा शक्तिशाली होते हैं।

 

❉   जिन बच्चों का हर संकल्प, बोल, कर्म में बाबा के लिए होता है तो उनका हर कर्म श्रेष्ठ होता है और उनकी स्थिति एकरस होती है तो वो अपनी श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा श्रेष्ठ वायुमंडल बनाने वाले शक्तिशाली होते हैं।

 

❉   जैसे गुलाब कांटों के बीच में रहते हुए भी हमेशा अपनी खुशबू फैलाता है व दूसरों को अपनी खुशबू से आकर्षित करता है ऐसे ही जिन बच्चे की वृत्ति श्रेष्ठ होती है तो उनकी कृत्ति भी श्रेष्ठ होती है। कृत्ति श्रेष्ठ होती है तो स्थिति भी श्रेष्ठ होती है। श्रेष्ठ स्थिति की वायब्रेशनस से दूसरे स्वतः ही खींचे चले आते है और अपनी श्रेष्ठ वृत्ति से शुद्ध वायब्रेशनस फैलाने वाले शक्तिशाली आत्मा होते हैं।

 

❉   जो बच्चे सदैव एक बाप दूसरा न कोई और बस एक के लव मे ही लवलीन रहते है। सर्व सम्बंध सिर्फ बाबा से ही होते है व बाबा ही संसार है। सदैव अपने को बाबा की छत्रछाया में ही अनुभव करते है तो उनके चारों ओर एक पावरफुल ओरा होता है वो अपनी श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा शुद्ध वायुमंडल बनाने वाले सदा शक्तिशाली होते हैं।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *गुणमूर्त बनकर सर्व को गुणमूर्त बनाना ही महादानी बनना है... क्यों और कैसे* ?

 

❉   हम ब्राह्मणों का मुख्य लक्ष्य सर्वगुण सम्पन्न बनना है और सर्वगुण हमारे अंदर तभी आयेंगे जब किसी का अवगुण हमारे चित पर नही होगा । इसलिए गुणमूर्त बन जब दूसरों के अवगुण को ना देख गुणों को देखेंगे और गुणो का ही दान करेंगे तो स्वयं भी गुणवान बन जायेंगे तथा औरों को भी गुणों का दान दे कर गुणमूर्त बना सकेंगे । गुणों का दान ही महादान है और जो गुणमूर्त बन सर्व को गुण मूर्त बनाते हैं वही महादानी हैं ।

 

❉   स्वयं के वास्तविक स्वरूप को जान जितना उस स्वरूप में स्थित रहने का अभ्यास करेंगे उतना औरों को भी उनके वास्तविक स्वरूप में देखने का अभ्यास पक्का होता जायेगा । यह अभ्यास ही गुणमूर्त बना देगा । आत्मा के निजी गुण ज्ञान, प्रेम, आनन्द, शक्ति, शांति जब इमर्ज रहेंगे तो अपने इस स्वरूप में टिक कर औरों को भी इन गुणों का दान दे कर उन्हें भी गुणमूर्त बना सकेंगे । गुणमूर्त बन सर्व को गुणमूर्त बनाना ही महादानी बनना है ।

 

❉   जैसे मम्मा ने अपने ब्राह्मण जीवन में तीन बातों को पक्का करने का विशेष पुरुषार्थ किया कि मुझे गुणवान बनना है, गुण देखना है, गुण दान करना है । इन तीन बातों को पक्का कर, उन्हें धारणा में ला कर मम्मा नम्बर वन चली गई । तो हमारी चलन भी ऐसी हो जो औरों को प्रेरणा दे । हमारे बोल चाल से अन्य आत्माओं को स्वत: ही गुण ग्राही बनने की प्रेरणा मिले । यह भी एक प्रकार का गुप्त महादान है ।

 

❉   गुणों के साथ स्वभाव का सीधा कनेक्शन है । अगर हम किसी का अवगुण देख लेते हैं तो वह हमारे स्वभाव में प्रकट हो जाता है । क्योंकि उसके अवगुण को देख कर उसके प्रति हमारे मन में जो धारणा बनती है वह हमारे चेहरे के हाव - भाव से स्पष्ट हो जाती है । इसलिए अपने स्वभाव को शीतल, शांत और मीठा बनाने के लिए आवश्यक है कि हम किसी के अवगुण ना देखें बल्कि गुणमूर्त बन सर्व को गुणमूर्त बनाने वाले महादानी बने ।

 

❉   जितना हम संगठित रूप में मिलकर हर एक कार्य को करते हैं उतना पावरफुल वायब्रेशन बनता है । यही पावरफुल वायब्रेशन ही विश्व परिवर्तन का आधार बनेगा । जितना हम सभी स्वयं को अंतर्मुखी बनायेंगे, एक दूसरे के प्रति शुभ भावना रखेंगे उतना एक दूसरे के सहयोगी, साथी रहेंगे और यह तभी होगा जब एक दो की कमी कमजोरियों को देखने के बजाए गुणमूर्त बन सर्व को गुणमूर्त बनाने वाले महादानी बन गुणों का दान करेंगे ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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