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 23 / 08 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ महावीर बन माया की बॉक्सिंग में विजयी बनकर रहे ?

 

➢➢ सबके साथ तोड़ निभाते दिल एक बाप से रखी ?

 

➢➢ ईश्वर अर्पण कर ट्रस्टी बनकर रहे ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ सर्व कमजोरियों से मुक्ति प्राप्त करने का पुरुषार्थ किया ?

 

➢➢ निश्चय का फाउंडेशन मज़बूत रहा ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢  शांति की शक्ति का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - सबको यही पैगाम दो की देह सहित देह के सब धर्मो को भूल अपने को आत्मा समझो तो सब दुःख दूर हो जायेंगे"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे लाडले बच्चे... स्वयं के खूबसूरत रूप को भूलकर देह समझ देह के रिश्तो में उलझ कर दुखो में गहरे फस पड़े... अब विश्व पिता उसी सुंदरता से भरने आया है... अपनी आत्मिक खूबसूरती को यादो में भरो तो सदा के सुखी होकर मुस्करायेंगे...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा स्वयं को देह समझ सब भूल चली... क्या थी मै और क्या हो चली... अब आपसे सत्य को जानकर यादो में अपने सुनहरे वजूद को फिर से पाकर... सदा के लिए सुखी बन रही हूँ....

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... आप देह नही आत्मा हो... इस देहभान से अब बाहर निकलो... चमकता हीरा आत्मा हो... इस मीठे नशे में भर चलो... यह आत्मिक नशा जीवन को दुखो से छुड़ाकर सुखो की जन्नत बनायेगा...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा इस देहभान की मिटटी में गर्दन तक धसी पड़ी थी... आपने मीठे बाबा मुझे मेरा सच्चा अस्तित्व याद दिलाया है... मै आत्मा इस चमकते स्वरूप के नशे में रोम रोम से डूब चली हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... कितने मुस्कराते खुशनुमा फूल थे सुखो के राज्य में महकते गुलाब थे... और देह के प्रभाव में कितने दुखी खाली हो चले हो... अब उसी सुंदरता को यादो में भरो... पिता की मीठी यादो में अपने उसी सुंदर स्वरूप को पाकर जीवन फिर से सुखो की खान बनादो...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा देह के सब धर्मो को भूल अपनी आत्मिक स्तिथि में खोती जा रही हूँ... आपकी यादो से वही मीठे सदा के सुख की अधिकारी बनती जा रही हूँ... मेरे सारे दुःख अब खत्म हो चले है...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - महावीर बन माया से विजयी बनना।

 

➳ _ ➳  अभी तक तो अज्ञानता के कारण सच्ची शांति प्राप्त करने के लिए इधर उधर भटक रही थी... मैं दुनिया की बातों में उलझ सत्य से दूर होती चली गई... अपनी असली पहचान भूल देहभान में आकर अपनी शक्तियों को भूल भूलें ही करती चली गई... व्यर्थ के क्या, क्यूं, कैसे में उलझती चली गई... इस संगमयुग पर स्वयं परमात्मा ने कोटो मे कोई व कोई मे से कोई मे से मुझे अपना बनाया... मैं आत्मा कितनी भाग्यवान हूं...!! स्वयं प्यारे बाबा ही आकर मुझ आत्मा को सच्चा ज्ञान देते हैं... मैं आत्मा ज्ञानसागर बाप की संतान मा. ज्ञान सागर हूं... प्यारे बाबा मुझ आत्मा पर रोज ज्ञान रत्नों की वर्षा करते है... प्यारे बाबा से ही सच्चा सच्चा ज्ञान पाकर मैं आत्मा पतित से पावन बन रही हूं... ये सच्चा ज्ञान प्यारे शिव पिता के सिवाय कोई दूसरा दे न सके... प्यारे बाबा के सम्मुख बैठ मैं आत्मा रोज ज्ञान अमृत पीती हूं... इस ज्ञान को धारण करने से ही मुझ आत्मा पर चढ़ी जन्मों की कालिख उतरती जाती है... मैं आत्मा प्यारे बाबा की याद में रह विकर्म विनाश करती हूं...  मैं आत्मा रोज ज्ञान के बल से अपने को माया रावण के जाल से मुक्त कर रही हूं... मैं आत्मा सर्वशक्तिमान बाबा की छत्रछाया में रहने से स्वयं को शक्तिशाली महसूस करती हूं... मैं आत्मा महावीर हूं... इसलिए मैं आत्मा बाबा की याद में रहने से माया को बाक्सिंग में हराने में सक्ष्म हूं... प्यारे बाबा से मुझ आत्मा को विजयी भव का वरदान मिला है... इस विनाशी दुनिया में रहते हुए भी मुझ आत्मा का बेहद का वैराग्य का है... प्यारे बाबा को पाने के बाद मुझ आत्मा को कुछ भी ओर पाने की इच्छा नही रही है... सर्व सम्बंध मुझ आत्मा के बस एक शिव बाबा से है... इसलिए किसी सम्बंध में मेरी आंख नही डूबती है... सब से तोड़ निभाते हुए मुझ आत्मा का बुद्धियोग बस एक प्यारे शिव बाबा से ही लगा रहता है...

 

❉   "ड्रिल - ईश्वर अर्पण कर ट्रस्टी बन रहना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा सर्व विघ्नों को सहज पार करने वाली, सर्व परिस्थितियों को सहज पार करने वाली, सर्व कमजोरियों के ऊपर विजयी शक्तिस्वरुप हूं.... प्रकृतिजीत मायाजीत शक्तिस्वरुप हूं... सर्व अधीनताओं को समाप्त करने वाली अधिकारी स्वरुप हूं... श्रेष्ठ संस्कारधारी ऊंच चरित्रवान शिव शक्ति हूं... शिव बाबा ने मुझे कितना श्रेष्ठ स्वमान दिया है शक्तिस्वरुप बनाकर... मुझ आत्मा को इस धरा पर प्यारे बाबा ने सर्वशक्तियों से भरपूर किया है... सर्वशक्तिमान प्यारे शिव बाबा की मैं संतान मास्टर सर्वशक्तिमान हूं... मैं शिव शक्ति स्वरुप हूं... शक्तिस्वरुप हूं...  मा. विघ्नविनाशक हूं...इसी स्मृति से मैं अपने स्वरुप में रहती हूं... प्यारे शिव बाबा की याद में रह मैं आत्मा सहज ही विघ्नों को पार करती हूं... बस यही गीत दिल में बजता रहता है जिसका साथी है भगवान उसे क्या रोक सके आंधी और तूफान... मैं आत्मा प्यारे बापदादा का साथ होने से हर पेपर में पास होकर आगे बढ़ती हूं... मैं आत्मा अपना तन मन धन रुहानी सर्विस में सफल करती हूं... मुझ आत्मा को जो भी मिला है सब बाबा की ही देन है... मैं आत्मा श्वांसो श्वांस बाबा की याद में रह सब कुछ सफल करती हूं... ये शरीर भी मुझ आत्मा को सेवार्थ मिला है... इस शरीर को ज्यादा से ज्यादा सेवा में लगा सफल करती हूं... ये पुरानी दुनिया व पुराना शरीर विनाशी है... मुझ आत्मा को ज्ञान मिल गया है कि ये देह व देह के सर्व सम्बंध, धन दौलत सब विनाशी है... मैं आत्मा सब से बेहद का वैराग्य रखती हूं... मै आत्मा इस साकारी लोक में बस पार्ट बजाने आई हूं... मैं आत्मा इस धरा पर मेहमान हूं... ट्रस्टी हूं... मैं आत्मा अपना हर संकल्प बस बाबा की याद में रहकर करती हूं... बाबा की याद में किया हर कर्म श्रेष्ठ करती हूं... मैं आत्मा निमित्त भाव रखती हूं...

 

❉   "ड्रिल - निश्चय का फाउंडेशन मजबूत करना"

 

➳ _ ➳  मेरे मन में व्यर्थ संकल्पों का तूफान सा उठता रहता है... मुझे बाहरी दुनियावी आकर्षण अपनी ओर आकर्षित करते है... मैं मायावी दुनिया की ओर भागती रहती हूं... साधनों को जुटाने में लगी रहती हूं... सब कुछ होते हुए भी एक अजीब सा डर है... भविष्य की चिंता है... सुख शांति को पाने की चाह में इधर उधर भटकती रहती हूं... चारों ओर नेगेटिविटी से भरा वातावरण है... मुझ आत्मा का हाथ स्वयं भगवान ने पकड़ा है... मुझे अपना बच्चा बनाया है... मैं ईश्वरीय संतान हूं...  मुझ आत्मा को अब ऐसे माहौल में भी डर नही लगता... मुझ आत्मा पर नेगेटिव वायब्रेशनस का प्रभाव नही पड़ता... मेरे मन में बस एक परमात्मा शिव बाबा की याद सदा समाई रहती है... मैं आत्मा इस दुनिया में रहते हुए भी उपराम रहती हूं... मेरा मन बुद्धि हर पल एकाग्रचित रहता है... मुझ आत्मा के सर्व सम्बंध प्यारे शिव बाबा से हैं... मैं आत्मा अपने प्यारे परमपिता शिव बाबा से मिले खजानों से सम्पन्न हूं... अपने पिता की वर्सै की अधिकारी आत्मा हूं... सर्वशक्तिमान पिता के साथ होने से मुझ आत्मा के श्रेष्ठ संकल्पों से मेरी स्थिति एकरस अचल अडोल रहती है... मैं आत्मा निश्चयीबुद्धि हूं...  श्रेष्ठ कर्मो के ज्ञान की कलम से मैं आत्मा अपनी तकदीर की तस्वीर बनाती हूं... निश्चय के फाउंडेशन से सदा अपनी रुहानी तस्वीर को देख सम्पूर्णता के नजदीक अनुभव करती हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं स्नेही आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳  मैं एक बाप में सारा संसार अनुभव करने वाली बेहद की वैरागी आत्मा हूँ... मैं "मेरा तो शिवबाबा दूसरा न कोई" की खुमारी में रहने वाली आत्मा हूँ... मैं एकता और रमणीकता का बेलेंस रखने वाली नोलेजफुल वा पॉवरफुल आत्मा हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा रूहानी बाप का रूहानी बच्चा हूँ... बाप की रूहानियत की लाइट मुझ आत्मा में निरन्तर उतर रही है... मैं आत्मा इस रूहानियत की लाइट के कार्ब में स्वयं को चमकता हुआ अनुभव कर रहीं हूँ... मुझ आत्मा पर प्यारे बाबा की रूहानियत का रंग निरन्तर लग रहा है...

 

➳ _ ➳  परमात्मा के स्नेह में मैं आत्मा डूबती जा रहीं हूँ... मैं आत्मा अपना सब कुछ  न्योछावर वा अर्पण कर रहीं हूँ... सदा एक बाप की  स्नेही मैं आत्मा, बाबा द्वारा दिए गए हर नियम व मर्यादाओं की प्रैक्टिकल स्वरुप बन रहीं हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपनी सर्व कमज़ोरियों को "मनमनाभव" के दिव्य मन्त्र द्वारा सहज ही समाप्त कर रहीं हूँ... मैं आत्मा एक सेकण्ड में मर्यादा पुरुषोत्तम होने की सीट पर सेट हो रहीं हूँ... मैं आत्मा बाबा के प्रेम में डूबकर पार होने का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा बाबा के असीम स्नेह वा सहयोग का निरन्तर अनुभव करने वाली स्नेही आत्मा हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  सेकण्ड में सर्व कमजोरियों से मुक्ति प्राप्त कर मर्यादा पुरुषोत्तम बनने वाले सदा स्नेही होते हैं...  क्यों और कैसे?

 

❉     सेकण्ड में सर्व कमजोरियों से मुक्ति प्राप्त कर मर्यादा पुरुषोत्तम बनने वाले सदा स्नेही होते हैं क्योंकि स्नेही स्नेह में आकर अपना सब कुछ न्यौछावर वा अर्पण कर देते हैं। उन्हें! अर्थात स्नेही को समर्पण करने के लिये कुछ भी सोचना नहीं पड़ता है।

 

❉   स्नेही जब भी कोई समर्पण करना चाहते हैं तो वे सदा ही दिल की गहराई से सम्पूर्ण समर्पण करते है। वे कभी भी ये नहीं सोचते कि यदि हमने अपना सब कुछ बाबा को अर्पण कर दिया तो हमारा भविष्य में क्या होगा? उनके मन में इस प्रकार के कभी भी ख्याल नहीं आयेंगे।

 

❉   स्नेही कभी भी अपना दिमाक नहीं लगायेंगे अर्थात वे कभी भी दिमाक से नहीं सोचेंगे। वे जब भी सोचेंगे, सदा ही दिल से सोचेंगे। वे जब भी कुछ न्यौछावर या अर्पण करेंगे तुरन्त मन की शुद्ध भावना से कर देंगे। वे कभी भी अपने लाभ या हानि की नहीं सोचेंगे। वे जो भी करेंगे अपने मनसा वाचा कर्मणा दिल के भाव से भाव सहित करेंगे।

 

❉   इसलिये! हम आज तक जो भी मर्यादायें वा नियम सुनते आये हैं, उन को प्रैक्टिकल स्वरूप में लाने के लिये अथवा सर्व कमजोरियों से मुक्ति प्राप्त करने के लिये, बाबा की बताई हुई सहज युक्ति को अपनायेंगे। वह सहज युक्ति है...  सदा एक बाप के स्नेही बन कर रहना।

 

❉   क्योंकि हम जिसके स्नेही होते हैं निरन्तर उसके ही संग में रहने से उसका रंग लग जाता है। अगर हम बाप के स्नेही हैंतो बाप के स्नेह की रूहानियत का रंग हम को अवश्य लग जायेगा और एक सेकण्ड में ही हम मर्यादा पुरुषोत्तम बन जायेंगे क्योंकि स्नेही को  बाप का सहयोग स्वतः ही मिल जाता है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  निश्चय का फाउंडेशन मजबूत है तो सम्पूर्णता तक पहुंचना निश्चित है... क्यों और कैसे ?

 

❉   निश्चय का फाउंडेशन मजबूत है तो सम्पूर्णता तक पहुंचना निश्चित है क्योकि दृढ निश्चय के आगे कोई रुकावट आ नही सकती । जैसे साकार में ब्रह्मा बाबा ने दृढ निश्चय के आधार पर अथक और एकरस स्थिति का प्रत्यक्ष एग्जाम्पल बन कर दिखाया । सिर्फ वाणी से ही नही चरित्र से भी स्वयं को और बाप को प्रत्यक्ष करके दिखाया । ऐसे जो फ़ॉलो फादर कर, सम्पूर्ण निश्चय बुद्धि बन हर विघ्न को हंसते हुए पार करते हैं उनका ही सम्पूर्णता तक पहुंचना निश्चित है ।

 

❉   निश्चय की निशानी है ही विजय । जितना जो निश्चय बुद्धि होंगे उतना ही सब बातों में विजयी होंगे । इसलिए जो सदैव समझते हैं कि हम विजयी रत्न है । वे हर आने वाली परिस्थिति को निश्चयबुद्धि बन पेपर समझ उसे पास करने का प्रयास करते है और इन पेपर्स को पास करने का सहज साधन है अव्यक्त वायुमण्डल निर्मित करना जिसका आधार है दृढ निश्चय । इसलिए निश्चय का फाउंडेशन जितना मजबूत होगा उतना अव्यक्त स्थिति में स्थित रहने का अभ्यास होगा जो सहज ही सम्पूर्णता तक पहुंचा देगा ।

 

❉   जो डबल तिलकधारी बन कर रहते हैं अर्थात एक तो अपने मस्तक पर सदा आत्मिक स्मृति का और दूसरा विजयी रत्न के निश्चय का तिलक सदा लगा कर रखते हैं वे कभी भी परिस्थितियों से हार नही खाते क्योकि यह डबल तिलक उनकी स्थिति को अचल, अडोल और एकरस बना देता है । स्थिति में हलचल ना होने से स्मृति भी एकदम क्लीयर होती है जो केयरफुल बनाये रखती है । और जो जितना अपने ऊपर केयर रखते हैं उतना ही सम्पूर्णता की अवस्था को पाना निश्चित होता जाता हैं ।

 

❉   जैसे कोई हरा या लाल चश्मा पहनता है तो उसको सब कुछ हरा या लाल दिखाई देता है ऐसे जो ब्राह्मण बच्चे निश्चय का चश्मा सदा पहन कर रखते हैं उन्हें हर बात में कल्याण स्वत: दिखाई देता है । लोग जिस बात में अकल्याण समझते हैं उसमे भी निश्चय बुद्धि बच्चे सम्पूर्ण कल्याण को ही देखते हैं । जैसे लोग विनाश को अकल्याण समझते हैं लेकिन ब्राह्मण बच्चे समझते हैं कि इससे ही गति सद्गति के गेट खुलने है इसलिए निश्चिन्त रहते हैं । ऐसे निश्चय बुद्धि बच्चे ही अपनी एकरस स्थिति द्वारा सम्पूर्णता को प्राप्त करते हैं ।

 

❉   जैसे साकार में मम्मा बाबा को देखा कि दोनों के ही नशे में संकल्प की भी हलचल नही थी । सम्पूर्ण अचल और अटल निश्चय था कि यह तो निश्चित ही है । तो नशे की निशानी है अटल निश्चय और निश्चिन्त स्थिति । जो ऐसे सम्पूर्ण निश्चय बुद्धि बनते जाते हैं उनकी स्व स्थिति , श्रेष्ठ स्थिति, सर्व गुणों से सम्पन्न स्थिति ऐसी अचल, अडोल और एकरस होती चली जाती है कि अपनी उसी स्थिति द्वारा वे धीरे धीरे सम्पूर्णता की मंजिल तक पहुँच जाते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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