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 02 / 05 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ पढाई और पढाने वाले से सच्ची प्रीत✓ रखी ?

 

➢➢ "मौत सामने✓ खड़ा है" - यह स्मृति रही ?

 

➢➢ इस हीरे तुल्य अनमोल जीवन को कोडियों के पीछे तो नहीं गंवाया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ सदा देह अभिमान व देह की बदबू से दूर रहे ?

 

➢➢ अपने तन-मन-धन को सफल किया ? और सर्व खजानों को बढाया ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ आज पूरा दिन अपने °हनुमान स्वरुप° में स्थित रहे ?

 

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➳ _ ➳  http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/02.05.16-VisheshPurusharth.pdf

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं आत्मा इन्द्रप्रस्थ निवासी हूँ ।

 

✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-

 

➳ _ ➳  धीरे - धीरे अपना ध्यान जागरूकता के साथ शरीर के विभिन्न अंगों से निकालें... पाँव से शुरू करें और ऊपर की ओर जाते हुए मस्तक तक सारी मसल्स को रिलैक्स कर दें... आप ऐसा महसूस करेंगे जैसाकि आपका सारा शरीर आराम की अवस्था में है... और अब अपना सारा ध्यान अपनी आँखों के पीछे मस्तक के मध्य एकाग्र करें... आपने जो भीतर स्पेस तैयार किया है उसमें प्रवेश करें... और एक शक्तिशाली विचार स्वयं को दें... मैं एक ज्योतिबिंदु आत्मा हूँ... मैं एक निराकार आत्मा हूँ... मेरे शरीर के विभिन्न अंग मेरी अटैचमेंटस् हैं... आँखों के द्वारा मैं आत्मा देखती हूँ... मुख के द्वारा मैं आत्मा बोलती हूँ... कानों के द्वारा मैं आत्मा सुनती हूँ... और मस्तिक के द्वारा मैं आत्मा सोचती हूँ... हाथ - पाँव के द्वारा मैं आत्मा कार्य करती हूँ... चलती हूँ... मैं आत्मा मन और बुद्धि की भी मालिक हूँ... मैं आत्मा आज अपने परमप्यारे बाबा के समक्ष यह दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मैं सदा इसी देही - अभिमानी स्तिथि में स्तिथ रह देह - अभिमान व देह की बदबू से दूर रहूंगी... मैं अपने को आत्मा समझ देह की पुरानी दुनिया और पुराने सम्बंधों से सदा ऊपर उड़ती रहूंगी... मुझ आत्मा में ज़रा भी मनुष्यपन की बदबू नहीं रहेगी... यह संकल्प कर मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मैं इन्द्रप्रस्थ की निवासी बन रहीं हूँ... इन्द्रप्रस्थ जहाँ केवल परियों के सिवाय और कोई भी मनुष्य निवास नहीं कर सकते हैं ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चों - सदा इस ख़ुशी में रहो की स्वयं भगवान हमे टीचर बनकर पढ़ाते है, हम उनसे राजयोग सीख रहे है प्रजायोग नही"

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों किस कदर खूबसूरत भाग्य के मालिक हो की भगवान टीचर बन उतर आये और आप बच्चों का टीचर बन जाय... इन सच्ची खुशियो को जिओ मै पिता खूबसूरत राजा बनाने आया हूँ प्रजा नही...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मेरे मीठे से बच्चों बाप जब टीचर बन धरा पर उतर आये तो बच्चों को महाराजा सा ही सजा जाये... एक महापिता कैसे प्रजा के पद पर बच्चों को बिठाये भला... बच्चे सुखो में इतराये तो ही पिता के कलेजे को आराम आये...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चों ये खुशियो भरे सदा के लिए अपनी यादो में भर लो भगवान दौड़ा आया है जमीन पर बच्चों को काबिल राजा बनाने... इस ख़ुशी में लहराओ ये अनमोल खुशियां सदा की जी जाओ और अपने भाग्य को सराहो...

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चों मेरे देवता बच्चों को साधारण टीचर तो पढ़ा ही न सके तो भगवान टीचर बन धरती पर आ जाय... इससे बढ़कर खुशनसीबी भला क्या होगी की पिता जब आ ही चला तो क्या न दे जायेगा भला... इन खुशनुमा पलों की यादो में खो जाओ...

 

 ❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चो कल्प पहले भी हाथो में मेने राजाई थमाई थी आज फिर हथेली पर स्वर्ग सजा लाया हूँ... ये आनन्द से भरे खुशियो में भीगे पलों को रोम रोम में समालो... राजा बन सुख सम्रद्धि और आनन्द को फिर से जीना है... इसी गहरी यादो के तारो को मुझसे जोड़ना है...

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ पढ़ाई और पढ़ाने वाले से सच्ची प्रीत रखनी है । भगवान हमको पढ़ाने आते हैं, इस खुशी में रहना है ।

 

  ❉   लौकिक पढ़ाई पढ़कर अल्पकाल का सुख मिलता है व ये ईश्वरीय पढ़ाई ऊंच ते ऊंच पढ़ाई है व बेस्ट पढ़ाई है जिसे पढ़कर हम देवी देवता बनते है । इसलिए इस रुहानी पढ़ाई से प्रीत रखनी है और मन लगाकर पढ़ना है ।

 

  ❉   लौकिक में जो टीचर अच्छा पढ़ाते है तो उससे बच्चों को ज्यादा प्यार होता है । हमें तो बेहद का टीचर पढ़ाते है व जो ज्ञान का सागर है , प्यार का सागर.... हैं व हमें मास्टर ज्ञान सागर, मास्टर प्यार का सागर... बनाते है तो ऐसे ऊंच ते ऊंच टीचर से प्रीत रखनी है ।

 

  ❉   जिस परमात्मा के दर्शन पाने को दर दर भटकते रहे व इस संगमयुग पर स्वयं भगवान ने हमें ढूंढ़ा व अपना बनाया । सुप्रीम टीचर बन पतितों की दुनिया में आकर हमें पढ़ाकर पावन बनाते है तो ऐसे सुप्रीम टीचर से प्रीत रखनी है ।

 

  ❉   दुनिया वाले तो जिस भगवान के एक क्षण के दर्शन को तरसते हैं व हम कितने पदमापदम भाग्यशाली है जो स्वयं भगवान हमें रोज पढ़ाने आते हैं । इस नशे व खुशी में रहना है ।

 

  ❉   ये पढ़ाई बहुत वंडरफुल है । इसे पढ़ाने वाला भी वंडरफुल है । स्वयं भगवान हमें पढ़ाकर 21 जन्मों की बादशाही देते है तो ऐसी ऊंच व रुहानी पढ़ाई व पढ़ाने वाले से प्रीत रखनी है और पढ़ाने वाला कौन है ये याद रहे तो खुशी का पारा चढ़ा रहेगा ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ सदा देह-अभिमान व देह की बदबू से दूर रहने वाले इन्द्रप्रस्थ निवासी होते हैं... क्यों और कैसे ?

 

  ❉   जो अपने को देह न समझ देही समझते है । तो वो देह अभिमान और देह की पुरानी दुनिया , पुराने सम्बंधों से सदा ऊपर उड़ते रहते है, उनमें जरा भी मनुष्यपन की बदबू नहीं आती । ज्ञान और योग के पंख मजबूत होते हैं व इन्द्रप्रस्थ निवासी होते हैं ।

 

  ❉   इन्द्रप्रस्थ निवासी यानि जहां फरिश्ता रहते अर्थात जिसकी दुनिया ही एक बाप हो । देह और देह के आकर्षण से कोई रिश्ता नही । निमित्त मात्र देह में हैं और देह के सम्बंधियों से बस कार्य के लिए आते हैं लेकिन कोई लगाव नही । देहभान व देह की बदबू से दूर रहते ।

 

  ❉   जो यह सोचते कि मेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा या तन मन धन सब तेरा । यह समझते कि उनका ये देह भी बाप का दिया हुआ है व अमानत है । जो चीज दे दी उससे लगाव क्यूं व देहअभिमान से दूर रहते है । सदा ये में स्मृति रखते मैं परम धाम की रहने वाली हूँ सतोप्रधान आत्मा हूँ और वो इन्द्रप्रस्थ निवासी होते ।

 

  ❉   जो सदा अपने अनादि और आदि स्वरूप की स्मृति में रहते है वो देह रूपी धरनी पर पैर नही रखते हैं । ये स्मृति में रखते कि मेरा तो पुराने संस्कारों से, पुरानी बातों से अब कोई रिश्ता नही । सदा उपराम स्थिति में रहते है व देह अभिमान और देह की बदबू से दूर रहने वाले फरिश्ता व इन्द्रप्रस्थ निवासी होते हैं ।

 

  ❉   इन्द्रप्रस्थ निवासी फरिश्ते सभी को प्यारे लगते हैं । फरिश्ता यानि पुराने से रिश्ता नहीं सब नया । पुराने संस्कार स्वभाव का कोई अंश नही, कोई देह का रिश्ता नही, कोई मन की चंचलता नही । बस प्रकाशमय काया प्राप्त करने के बाद देह अभिमान व पुरानी देह की बदबू से दूर रहते हैं ।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ अपने तन, मन, धन को सफल करने वा सर्व खजानों को बढ़ाने वाले ही समझदार हैं... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   संगम युग है ही एक का पदम गुणा जमा करने का युग । इस युग में जो अपना तन - मन - धन ईश्वरीय सेवा में सफल करते हैं वा सर्व खजानों को महादानी बन सर्व आत्माओं पर लुटाते हैं । वो भविष्य 21 जन्म के लिए इसका फल श्रेष्ठ प्रारब्ध के रूप में प्राप्त करते हैं । इसलिए इस बात को सदा समृति मे रख जो इन्हें सफल करते हैं वही समझदार कहलाते हैं ।

 

 ❉   इस एक जन्म में की गई तन, मन और धन की सेवा भविष्य 21 जन्मों की सुख शांति के साथ-साथ आधा कल्प के लिए पूजनीय बना देगी । आधा कल्प भक्ति मार्ग में अपने जड़ चित्रों द्वारा भक्त आत्माओं को शांति देने के निमित्त बनेंगे । इसलिए जितना इस समय तनमन और धन ईश्वरीय सेवा में सफल करेंगे । सारा कल्प चैतन्य स्वरूप बन पूजा के पात्र बनेगें ।

 

 ❉   संगम युग पर वरदाता द्वारा ड्रामा अनुसार समय को वरदान मिला हुआ है कि जो चाहे वह श्रेष्ठ भाग्यवान बन सकता है । लेकिन अपने भाग्य का सितारा वही चमका सकते हैं जो इस समय अपने तन, मन, धन को वा बाप की प्रॉपर्टी अर्थात सर्व खजानों को कमाई द्वारा बढ़ाते रहते हैं ।

 

 ❉   अपने तन, मन, धन वा सर्व खजानों को सफल करने का आधार है समय को सफल करना । जो समय को व्यर्थ नहीं गंवाते, हर सेकंड का लाभ उठाते हैं ।  समय के वरदानों को स्वयं प्रति और सर्व के प्रति कार्य में लगाते हैं वही समझदार बन सदा सफलतामूर्त बन जाते हैं ।

 

 ❉   भक्ति में भावना का फल है किंतु अभी इस समय संगम युग पर वर्से और वरदान का फल है । इसलिए इस समय के महत्व को जान, प्राप्तियों को जान जो त्रिकालदर्शी बन हर कदम उठाते हैं और समझदार बन तन, मन, धन वा सर्व खजानों को सफल करते हैं वे इस समय के अधिकारी बन जन्म जन्म के अधिकारी बनते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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