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 19 / 09 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ ज्ञान चिता पर बैठे रहे ?

 

➢➢ पूरा पूरा वैष्णव बनकर रहे ?

 

➢➢ अपने शांत स्वधर्म में स्थित रह सबको शांतिधाम की याद दिलाई ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ माया के विघनो को खेल समान अनुभव किया ?

 

➢➢ स्नेह, शक्ति और ईश्वरीय आकर्षण स्वयं में भर सर्व को सहयोगी बनाया ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢ त्याग से तपस्या और सेवा में सफलता प्राप्त की ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - तुम्हे अभी रूहानी कारोबार करनी है रूह समझकर हर कर्म करने से आत्मा निर्विकारी बनती जाती है"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे... अब तुम सत्य स्वरूप को भली भांति जान गए हो... तो रूह समझ हर कर्म करो तो देह के भान से निकलते चले जायेंगे...रूह का अभ्यास करने से देह के भान में फंसी आत्मा निर्विकारी बनती चली जायेगी... और सुखो से भरपूर हो जायेगी...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा प्यारे बाबा के हाथ और साथ से निर्विकारी न्यारा और प्यारा फ़रिश्ता बन खुशियो के जहान में चहकती जा रही हूँ... अब देह नही चमकती मणि हूँ... इस खुमारी में खोती जा रही हूँ... मेरे चारो ओर मणियो का संसार है... इस अहसास में डूबती जा रही हूँ...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... शरीर को सत्य समझ जो दुखो में उलझ गए हो... अब रूह समझ शरीर के अहसास से निकलते चलो... आत्मा ही समझ हर कर्म करते भी न्यारे प्यारे बन चलो... यह रूहानी प्रेक्टिस विकारो से मुक्त कराकर सुख और शांति के खूबसूरत संसार में ले चलेगी...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपसे मिलकर वही नूरानी नूर से सज चली हूँ... खूबसूरत जगमगाता सितारा हूँ इस नशे से भर चली हूँ... और रूहानी कारोबार में खो गयी हूँ... मीठे बाबा ने शरीर के भान से निकाल नूरानी कर दिया है...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... शरीर समझ कर जनमो कारोबार करते आये हो... और खूबसूरत सितारे स्वरूप को भूल शरीर के भान को पक्का किया है... अब रूह समझ रूहानी कारोबार करो... आत्मिक भाव में स्तिथ हो आत्मिक गुणो की लेन देन करो... तो वही चमकता निर्विकारी स्वरूप सहज ही प्राप्त कर पाएंगे...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा की यादो में अपने उजले दमकते स्वरूप को पाकर खुद पर मोहित हो चली हूँ... उजली चमकदार मै आत्मा... आत्मिक गुणो और शक्तियो को हर कर्म में पिरोती जा रही हूँ... मेरा हर कर्म सुकर्म होता जा रहा है...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - हिसाब किताब चुकतू कर पावन बनना"

 

➳ _ ➳  अपने लौकिक जीवन में अभी तक न जाने कितने पाप कर्म करती रही... अज्ञानता में ही न जाने कितने हिसाब किताब बनाती आई... देहभान में रह अपने कर्मो से अपने सम्बंध सम्पर्क वालों को दुख देती रही... इसलिए जो सम्बंध सम्पर्क से अब दुख के निमित्त बन रही हूं... मुझ आत्मा के द्वारा किया ही मेरे सामने आ रहा है... ये ज्ञान इस संगमयुग पर प्यारे शिव पिता ने ही मुझे दिया है... मैं आत्मा इस सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान जान गई हूं... ड्रामा के राज को अच्छी रीति समझ रही हूं... ड्रामा कल्याणकारी है... एक सेकेंड पहले या एक सेकेंड बाद में नही हो सकता... हुबहू रिपीट हो रहा है... मैं आत्मा एक प्यारे शिव पिता की याद में रह अपने विकर्म विनाश कर रही हूं... जैसे लैंस को कागज पर एक जगह लगातार रखने से वो कागज जलने लगता है... ऐसे मुझ आत्मा को एक की ही याद में रह योगग्नि से अपने विकर्म विनाश करने है... इस अंतिम समय में एक की ही याद में रह आत्मा की खाद को निकाल रही हूं... आत्मा को शुद्ध और पावन बना रही हूं... अपने 63 जन्मों के हिसाब किताब चुकतू कर रही हूं... एक शिव पिता की याद से ही मैं आत्मा पतित से पावन बन रही हूं... मैं आत्मा इस संगमयुग पर काम चिता को छोड़ ज्ञान चिता पर बैठी हूं... ज्ञान का मनन चिंतन कर अपने विकारों को भस्म कर रही हूं... मैं प्यारे शिव पिता से दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूं कि मैं आत्मा इस अंतिम जन्म में सम्पूर्ण पवित्रता धारण करुंगी... और पक्की वैष्णव बनूंगी...

 

❉   "ड्रिल - स्वयं को स्नेह, शक्ति और ईश्वरीय गुणों से भरपूर अनुभव कारण"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा बाह्य जगत से अपने को समेटते हुए, सभी बातों से मुक्त अपने को परमधाम में अशरीरी स्थिति में देख रही हूँ। मैं बाबा के सानिध्य में अपने को बिलकुल हल्का महसूस कर रही हूँ। स्नेह के सागर बाबा के स्नेह में अपने को डूबा हुआ महसूस कर रही हूँ। धीरे धीरे बाबा के स्नेह और शक्तियों से अपने को भरपूर महसूस कर रही हूँ। बाबा अपने सारी शक्तियों और गुणों से मुझे भरते ही जा रहे है, भरते ही जा रहे है। अब मैं अपने को बहुत शक्तिशाली और ईश्वरीय गुणों, आकर्षणों से भरपूर महसूस कर रही हूँ। मुझ आत्मा से अब इन ईश्वरीय गुणों के वाइब्रेशन चारो ओर फ़ैलने लगे है। जिससे प्रकृति के पांचों तत्त्व भी पावन और शक्तिशाली बनते जा रहे है। प्रकृति भी मेरी सहयोगी बनती जा रही है। अब सर्व का सहयोग मुझे मिल रहा है।

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं आत्मा मास्टर विश्व-निर्माता हूँ ।"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा स्वयं की मालिक हूँ... देहि अभिमानी हूँ... बाप समान सम्पूर्ण निर्विकारी स्वरूप में बाप के साथ चमकती मणी हूँ... मेरे अंग अंग शांत शीतल पवित्र पावन सुखदाई बन गए हैं... मैं आत्मा मायाजीत जगतजीत हूँ... सर्व अधिकारी आत्मा हूँ...

 

➳ _ ➳  निराकार परमपिता परमात्मा बाप का वारिस बच्चा हूँ... मैं आत्मा बाप से किये वायदों पर दृढ़ता से आगे बढ़ते हुए माया के हर विघ्न पर विजयी प्राप्त कर रहीं हूँ... मुझ आत्मा के लिए माया छोटे बच्चे के समान बन गयी है...

 

➳ _ ➳  जिस प्रकार बुज़ुर्ग के आगे छोटा बच्चा अलबेलेपन के कारण कोई भी उल्टा कार्य करे या कुछ बोलदे फिर भी बुज़ुर्ग लोग समझते हैं कि वह निर्दोष, अंजान, छोटा बच्चा है... उसी प्रकार मुझ आत्मा पर भी माया के विघ्नों का कोई असर नहीं हो रहा है...

 

➳ _ ➳  मैं माया के हर विघ्न को खेल के समान अनुभव करने वाली आत्मा हूँ... अब माया किसी भी आत्मा द्वारा समस्या, विघ्न वा परीक्षा पेपर बनकर चाहे आ जाए, मैं आत्मा कभी भी उससे घबराती नहीं हूँ... माया को निर्दोष समझने वाली मैं आत्मा मास्टर विश्व-निर्माता की सीट पर सेट होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  माया के विघ्नों को खेल के समान अनुभव करने वाले मास्टर विश्व - निर्माता होते हैं...  क्यों और कैसे?

 

❉   माया के विघ्नों को खेल के समान अनुभव करने वाले मास्टर विश्व - निर्माता होते हैं क्योंकि जैसे कोई बुजुर्ग के आगे छोटे बच्चे अपने बचपन के अलबेलेपन के कारण कुछ भी बोल दे, कोई ऐसा कर्तव्य भी कर ले तो बुजुर्ग लोग समझते हैं कि ये निर्दोष, अन्जान छोटे बच्चे हैं। उनके इस  प्रकार से बोलने का कोई असर नहीं होता है।

 

❉   उसी प्रकार जब हम अपने को मास्टर विश्व - निर्माता समझेंगे, तो यह माया के विघ्न बच्चों के खेल के समान ही लगेंगे। माया अपने खेलपाल करके हम योगियों को विचलित नहीं कर सकती है। माया द्वारा इस प्रकार के विघ्न अक्सर करके हमारे योगी जीवन में आते रहते हैं।

 

❉   हमें उन विघ्नों से विचलित नहीं होना है क्योंकि हम स्वयं विश्व के निर्माता है। हम बच्चों ने ही शिवबाबा के इस पावन विश्व - निर्माण के कार्य में सहयोगी बन कर, विश्व - निर्माण का कार्य पहले भी किया है।

 

❉   और आज भी कर रहे हैं। हम सभी बापदादा के बच्चों ने उस समय भी विश्व निर्माण किया था और अब भी बाबा के संग कर रहे हैं। शुभ कार्यों में माया रूपी रावण विघ्न तो डालेगा ही क्योंकि रावण का राज्य अब समाप्त होने जा रहा है और सतयुगी राम का राज्य स्थापन हो रहा है।

 

❉   सभी ब्रह्मा वत्स अपने शुद्र संस्कारों को परिवर्तित कर के देवताओं के सतोगुणी संस्कारों को धारण कर रहे हैं। माया किसी भी आत्मा द्वारा समस्या, विघ्न वा परीक्षा पेपर बन कर आ जाये तो भी उसमें हम घबरायेंगे नहीं, लेकिन! तब भी उन्हें हम, निर्दोष ही समझेंगे।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  स्नेह, शक्ति और ईश्वरीय आकर्षण स्वयं में भरो तो सब सहयोगी बन जायेंगे... क्यों और कैसे ?

 

❉   अपने मूल स्वरूप में तो आत्मा है ही प्रेम, सुख, शांति, पवित्रता, आनन्द, ज्ञान और शक्ति के गुणों से सम्पन्न । किन्तु देह भान में आने से आज हम अपने वास्तविक स्वरूप को ही भूल चुके हैं इसलिए आत्मा में निहित गुण भी विस्मृत हो गए हैं तो जितना स्वयं को आत्मिक स्मृति में स्थित रखेंगे स्नेह, शक्ति और ईश्वरीय आकर्षण स्वयं में भरता जायेगा जिससे सभी भेदभाव सहज ही समाप्त हो जायेंगे और सब सहयोगी बन जायेंगे ।

 

❉   जैसे लोहे पर जब तक जंक लगी हुई होती है तब तक चुम्बक लोहे को अपनी और आकर्षित नही कर सकता । इसी  प्रकार आत्मा के ऊपर भी विकारों की कट चढे होने के कारण ईश्वरीय आकर्षण उसे अपनी और नही खींचता । इसलिए आत्मा स्वयं को स्नेह से रहित और शक्तिहीन अनुभव करती है । किन्तु जैसे जैसे आत्मा के ऊपर से विकारों की कट उतरने लगती है ईश्वरीय आकर्षण से वह भरपूर होने लगती है और यही आकर्षण उसे सर्व का सहयोगी बना देता है ।

 

❉   जिसके पास जो कुछ होता है वही वह दूसरों को देता है । आज सभी की आत्मिक शक्ति क्षीण हो चुकी है इसलिए सभी एक दूसरे को दुःख ही दे रहे हैं । केवल एक परमात्मा बाप ही है जो प्रेम, सुख, शांति, आनन्द के सागर है और सबको सुख, शांति, प्रेम देने वाले है । इसलिए जो निरन्तर परमात्मा बाप के संग रहते हैं और उनकी याद में मगन रहते हैं वो बाप समान स्नेह, शक्ति और ईश्वरीय आकर्षण से भरपूर हो जाते है । इसलिए सहज ही सर्व के सहयोगी बन जाते हैं ।

 

❉   आज सभी सम्बन्ध स्वार्थ की नीवं पर टिके हैं । इसलिए सम्बन्धो में स्नेह की बजाए लगाव, झुकाव और टकराव ज्यादा दिखाई देता है । जो असहयोग वृति को जन्म देता है । इसलिए जितना स्वयं को आत्मा समझने और सबको आत्मा भाई भाई की दृष्टि से देखने का अभ्यास पक्का करेंगे उतना ही सम्बन्धो में मजबूती आएगी क्योकि सम्बन्धों में स्वार्थ की बजाए रूहानी स्नेह जागृत होने लगेगा और स्वयं में भी स्नेह, शक्ति और ईश्वरीय आकर्षण भरने लगेगा जिससे सभी सहयोगी बन जायेंगे ।

 

❉   व्यर्थ और नेगेटिव चिंतन बुद्धि को भ्रष्ट करते हैं जिससे विचारो में अशुद्धता आ जाती हैं । इस कारण कहा भी जाता है कि जैसे मनुष्य के विचार होते हैं वैसे ही वह कर्म करने लगता है । इसलिए मन बुद्धि को जितना शुद्ध और श्रेष्ठ चिंतन में बिज़ी रखेंगे उतना विचार भी श्रेष्ठ होते जायेंगे । मन बुद्धि की लाइन क्लीयर होगी तो परमात्म स्नेह और शक्तियां अपनी और आकर्षित करेंगे जिससे ईश्वरीय आकर्षण आत्मा में भरता जायेगा और सर्व को अपना सहयोगी बना लेगा ।

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⊙_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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