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 16 / 11 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *बापदादा की अवज्ञा तो नहीं की ?*

 

➢➢ *कोई भी लोभ, मोह की आदत तो नहीं रखी ?*

 

➢➢ *अपना स्वभाव बहुत रॉयल बनाया ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *एक बाप के लव में लवलीन रह सदा चढ़ती कला का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *अंतर्मुखी बन लाइट माईट रूप में स्थित रहे ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *समय को अपना शिक्षक न बना बापदादा को अपना शिक्षक बनाया ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे -  सवेरे सवेरे उठ बाप को याद करो तो सतोप्रधान बन जायेंगे अमृतवेले का समय बहुत अच्छा है"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... देह के रिश्तो को यादो में समाकर खाली हो चले... अब यादो में ईश्वर पिता को समाओ और गुणो और शक्तियो से भरपूर होकर सदा का मुस्कराओ... अमृतवेले पिता जब दिल पर दस्तक देता है... उस दस्तक में... प्यार की गहराइयो में डूब जाओ और सुधबुध खो दो ऐसा प्यार का दरिया बहा दो...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा मै आत्मा आपके बिना कितनी दीन दुखी सी थी... मीठे बाबा आपने जीवन में आकर फूलो सा खिलाया है... अमृतवेले दिल आँगन में उतरकर प्यार से सिक्त करते हो... और मुझे भरपूर कर देते हो...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... प्यारे बाबा की यादो में जो खुद को भिगो दोगे तो जीवन सुखो का पर्याय बन महक उठेगा... यह यादे अथाह खुशियो को जीवन में उतार देवताओ सा सजा देंगी... इन यादो के गहरे मर्म को समझ अमृतवेले मीठे बाबा से दिली रुह रिहान करो...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा खोखले रिश्तो को यादो में भरकर गहरे खालीपन की अनुभवी हूँ... अब सच्चे प्यार को जाना है... इन यादो में खोकर अतीन्द्रिय सुख पाया है... अमृतवेले दिल पर आहट कर...अनन्त प्यार बाँहों में लिए उतरे मीठे बाबा को पाकर भाग्य को सराहा है...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वरीय प्रेम के प्याले को पीकर अपने सत्य स्वरूप की खुमारी में खो जाओ... इन यादो से जन्नत के मीठे सुख अपने कदमो तले बिखराओ... डबल ताजधारी हो विश्व के मालिक बन मुस्कराओ... और ईश्वर पिता को अपनी पसन्द पर यूँ नाज सा करवाओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अमृतवेले प्यारे बाबा संग मिलन मना कर और ईश्वरीय यादो से अपने सुनहरे स्वरूप को पाकर जगमगा रही हूँ... प्यारा बाबा मुझे सतोगुणी और देवताओ सा श्रंगार देने धरा पर उतर आया है...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा सफलतामूर्त हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा भक्ति मार्ग में अज्ञानता वश भगवान से विनाशी वस्तुओं की भीख माँगती रहीं... विनाशी सम्बन्धों, विनाशी चीजों के पीछे भागती रहीं... शूद्रपन के संस्कारो को अपनाकर गिरती कला में नीचे उतरते गई...

 

➳ _ ➳  अब परमात्मा स्वयं अपना आकाश सिंहासन छोड़कर इस धरती पर आयें हैं... मुझ आत्मा को अपना बच्चा बनाया है... प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को राज़योग सिखाकर आदि, मध्य, अंत का ज्ञान देकर शूद्र से ब्राह्मण बना दिया... मैं आत्मा ही ब्राह्मण सो देवता सो क्षत्रिय सो ब्राह्मण बन चक्र फिराते रहती हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा स्वचिंतन करती हूँ... जादूगर शिव बाबा ने मुझ आत्मा के  जीवन में क्या क्या परिवर्तन कर दिये... मुझ आत्मा को क्या से क्या बना दिया... मुझ आत्मा के माँगने के संस्कारो को ख़त्म कर दिया... मैं आत्मा तो सर्व अविनाशी खजानों की मालिक हूँ... मुझ आत्मा का विनाशी चीजों, सम्बन्धों के प्रति मोह ख़त्म होते जा रहा है...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा सिर्फ एक बाप के लव में लीन होकर बैठी हूँ... अब मुझ आत्मा को एक बाप के सिवाय और कुछ दिखाई नहीं देता है... संकल्प में भी बाबा... बोल में भी बाबा... कर्म में भी बाप के साथ का अनुभव करती हूँ... श्वासों श्वास बाबा के प्रति मुझ आत्मा का प्यार बढ़ते जा रहा है...

 

➳ _ ➳  एक बाप से अटूट प्यार रख मैं आत्मा चढ़ती कला में जा रहीं हूँ... मैं आत्मा सबकी स्नेही और सहयोगी बनती जा रहीं हूँ... लवलीन आत्मा बनते जा रहीं हूँ... बाबा शब्द का जादू सब पर चला रहीं हूँ... मैं आत्मा एक बाप के लव में लवलीन रह सदा चढ़ती कला का अनुभव करने वाली सफलतामूर्त बन गयी हूँ... मन में यही गीत बजता रहता है... ईश्वर अपने साथ है डरने की क्या बात है... सदा सफलता साथ हमारे हाथ में उसके हाथ है...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अंतर्मुखी बन लाइट माइट रूप में स्थित रहना"*

 

➳ _ ➳  मैं अंतर्मुखी आत्मा हूँ... बाहर की आवाज से परे... अपने अंदर में स्थित... हर पल अपने गुणों और शक्तियों को... उपयोग में लाकर... शांति का अनुभव करती हूँ... व्यवहार में आते... संग़ठन में भी... मैं अंतर्मुखी आत्मा... एक शिवबाबा की लगन में मगन हूँ ... 

 

➳ _ ➳   मैं कछुए के समान अपनी सभी कर्मेन्द्रियों को समेटे... अपने शक्ति रूप का अनुभव करती हूँ... मैं अपनी लाइट और माइट फैलाते... योगी तू आत्मा हूँ... हर कदम पर... हर कर्म करते... निरन्तर बाबा की याद में लीन... मैं योगी तू आत्मा... सर्वत्र अपनी लाइट और माइट द्वारा... शांति, पवित्रता और ख़ुशी की लहर फैलाती हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा... अपनी शक्तियों द्वारा हर आत्मा... को पवित्रता और शक्तियों से भरती जाती हूँ... मेरे लाइट और माइट से सर्व आत्मायें... परमात्म पहचान प्राप्त कर... अलौकिकता का अनुभव करती हैं...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अंतर्मुखी हो... हर कर्म में सफलता प्राप्त करती हूँ... मैं सफल योगी हूँ... अपनी पवित्रता की लाइट और सर्व शक्तियों की माइट से सुसज्जित मैं आत्मा... प्रभु प्रिय हूँ...  मैं अंतर्मुखी हो सदैव अपने लाइट और माइट रूप में स्थित हूँ... मैं निरन्तर योगी हूँ...

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *एक बाप के लव में लवलीन रह सदा चढ़ती कला का अनुभव करने वाले सफलतामूर्त होते हैं... क्यों और कैसे?*

 

❉   एक बाप के लव में लवलीन रह सदा चढ़ती कला का अनुभव करने वाले सफलतामूर्त होते हैं क्योंकि... सेवा में वा स्वयं की चढ़ती कला में सफलता का मुख्य आधार है एक बाप से अटूट प्यार का होना। बाप के प्यार के सिवाय हमें अब और कुछ कभी भी दिखाई नही देना चाहिये।

 

एक बाप और दूसरा न कोई। बस यही एक धुन हमारे मन में सदा गूँजती रहे। संकल्प में भी बाबा रहेबोल में भी बाबा और हर कर्म में भी बाबा, बाबा सदा हमारे साथ रहे। हमारा हर संकल्प बाबा के लिये हो। इसी प्रकार हमारा हर बोल भी बाबा के लिये ही हो। अर्थात!   इस शरीर से होने वाले प्रत्येक कर्म को अपने बाबा को अर्पण करना है।  

 

❉   हमें सदा ही बाप के प्यार मेंलव में...  लवलीन रहना है। बाप के प्यार के अलावा अन्य कुछ भी हमारे अनुभव में न आये। सदा ये ही कामना हमारे मन में वलवती रहे कि...  मैं और मेरे बाबा सदा साथ रहें। हमें अपने कम्बाइन्ड स्वरूप के अनुभव में व बाबा के लव में सदा ही मगन रहना है।

 

❉   क्योंकि ऐसी लवलीन आत्मा एक शब्द भी अगर बोलती है, तो!  उसके स्नेह के बोल दूसरी आत्मा को भी बाबा के स्नेह में बाँध देते है। ऐसी लवलीन आत्मा का एक बाबा शब्द, हमारे हर कर्म की एक चाबी के समान है। बाबा शब्द मन से कहा और हर कर्म की शफा हमें प्राप्त हो जाती है अर्थात!  हम सदा के लिये सफलतामूर्त बन जाते हैं।

 

❉  इस प्रकार से ये बात भी हमारी रूहानी जादूगरी में परिवर्तित हो जाती है तथा हम रूहानी जादूगर बन जाते हैं। अतः सेवा में एक बाप के लव में लवलीन रह सदा चढ़ती कला का अनुभव करने वाले सफलतामूर्त होते हैं। बाप के सिवाय अब तो हमें कुछ भी दिखाई नहीं देना चाहिये। इस संसार का देखते हुए भी अब हमें नहीं देखना है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *योगी तू आत्मा वह है जो अंतर्मुखी बन लाइट माइट रूप में स्थित रहता है... क्यों और कैसे* ?

 

❉   अंतर्मुखी बन एक परम पिता परमात्मा की याद में जो मग्न रहते हैं । तो याद की अग्नि आत्मा पर चढ़ी विकारों की कट को जला कर भस्म कर देती है । आत्मा के ऊपर से जैसे जैसे विकर्मों का बोझ उतरने लगता है वैसे वैसे आत्मा लाइट अर्थात हल्की होती चली जाती है । साथ साथ परमात्मा की याद से परमात्मा की माइट आत्मा को मिलने से आत्मा लाइट और माइट दोनों रूपों में स्थित हो योगी तू आत्मा बन जाती है ।

 

❉   जो ज्ञान को अच्छी रीति सुनते और सुनाते हैं वे ज्ञानी आत्मा तो बन जाते हैं किन्तु कोई भी परिस्थिति आने पर वे एकरस स्थिति में स्थित नही रह पाते और डोलने लगते है । इसके विपरीत योगी तू आत्मा योग के बल से ज्ञान को अच्छी रीति धारण कर उसका स्वरूप बन जाती है इसलिए किसी भी प्रकार की कोई परिस्थिति आने पर भी वह हलचल में नही आती बल्कि एकरस स्थित में स्थित हो कर हल्केपन का अनुभव करते हुए अपने लाइट और माइट स्वरूप में स्थित हो जाती है ।

 

❉   जैसे राजा जनक का मिसाल है कि जब राजा जनक ने अष्टावक्र को अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया तभी उसका मन एकाग्र हुआ । इसी प्रकार जब अंतर्मुखता में स्थित हो कर मन बुद्धि सम्पूर्ण समर्पण भाव से केवल एक परम पिता परमात्मा बाप की याद में जुट जाती हैं तो एकाग्रता की शक्ति से आत्मा लाइट और माइट स्थिति में स्थित हो कर अपने लाइट माइट स्वरूप से अनेको आत्माओं का कल्याण करने वाली योगी तू आत्मा बन जाती है ।

 

❉   स्मृति से ही स्थिति, वृति और कृति का सम्बन्ध है । स्मृति अगर श्रेष्ठ है तो स्थिति अपने आप श्रेष्ठ बनती चली जाती है । किंतु स्मृति श्रेष्ठ तभी बनेगी जब मन बुद्धि को सभी दुनियावी बातों से समेट कर, सबसे आसक्ति मिटा कर अंतर्मुखी बन केवल एक बाप की याद में लगायेंगे । वास्तव में स्मृति एक ऐसा इंजेक्शन है जिसके द्वारा आत्मा को परमात्मा से वो शक्ति प्राप्त होती है जो उसे लाइट और माइट स्वरूप में स्थित कर योगी तू आत्मा बना देती है ।

 

❉   मैं आत्मा हूँ और परम पिता परमात्मा की अविनाशी सन्तान हूँ केवल यह निश्चय हो जाना ही पर्याप्त नही है । इस निश्चय को आचरण में लाने के लिए जरूरी है इस स्मृति का निरन्तर अभ्यास । कर्म में आते बार बार विस्मृति हो जाती है और देह अभिमान में आ जाते हैं । इसलिए बीच बीच में समय निकाल कर अंतर्मुखी बन जितना इस स्मृति को पक्का करते जायेंगे उतना ही यह स्मृति आत्मा को लाइट और माइट स्तिथि में स्थित कर योगी तू आत्मा बना देगी ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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