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❍ 07 / 11 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *किसी देहधारी के पीछे बदकिस्मत तो नहीं बने ?*
➢➢ *आपस में किसी बात के कारण सर्विस तो नहीं छोड़ी ?*
➢➢ *सवेरे सवेरे उठकर अपने आप से बातें की ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *अपनी सम्पूरनता के आधार पर समय को समीप लाने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *कर्म और योग का बैलेंस रख सच्चे कर्मयोगी बनकर रहे ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *आत्माओं पर प्राप्तियों और अनुभूतियों के बोम्ब्स चलाये ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - सबको एक बाप का ही परिचय दो एक बाप से लेंन देन रखो बाप को अपना सच्चा पोता मेल दो"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की याद ही सारे सुखो का आधार है और यही एकमात्र सच्चा नाता है जो सदा साथ निभाता है... खुदा दोस्त ही वफादारी का सच्चा पर्याय है इसलिए पिता से ही लेन देन करो... और सच्चे साथी को ही जीवन का व्रतांत सुनाओ और दिल की हर बात बताओ....
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा मै आत्मा झूठे नातो से निकल कर सच्चे पिता की सुख भरी बाँहों में झूल रही हूँ... और मीठे बाबा को हाले दिल सुनाकर हल्की होती जा रही हूँ खुशियो में उड़ती जा रही हूँ... और हर दिल को बाबा की आहट दिए जा रही हूँ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... इंसानी रिश्तो को जीकर देख लिया खाली सा खत्म होकर भी देख लिया... अब ईश्वर पिता ने जो आकर फूलो सी बाँहों में उठाया है तो इन प्यार भरी बाँहों में...ईश्वरीय यादो में खो जाओ... और इन महकती ईश्वरीय खुशियो का पता हर धड़कन को दे आओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा आपकी खुशनुमा यादो में खिलती जा रही हूँ... ईश्वरीय साथ को पाकर अनन्त ऊंचाइयों को छूती जा रही हूँ... मीठे बाबा को सच्चा चार्ट देकर,... हर पल को मीठे अहसासो में जीती जा रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... इस झूठ की दुनिया से सच्ची प्रीत को निभाया और अथाह दुःख और धोखे को पाया... अब सच्चे प्रेम के धागे ईश्वरीय रंग में रंगो... प्यारे सच्चे साथ को साथी बनाकर बेफिक्र बन ख़ुशी की उड़ान भर मुस्कराओ... और इन खुशियो की पहचान हर दिल को कराओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता के साथ हर पल को जीकर सुख और आनन्द की खान बन चली हूँ.... वरदानी संगम पर ईश्वर पिता ही सर्व सम्बन्धी बन सच्चा साथ निभा रहा.... और अथाह खुशियो से दामन सजा रहा...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा मास्टर रचयिता हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सृष्टि के रचयिता की संतान मास्टर रचयिता हूँ... इस संगम युग के श्रेष्ठ समय के महत्व प्रमाण मैं आत्मा अपना श्रेष्ठ भाग्य लिख रहीं हूँ... भाग्य विधाता बाप ने ज्ञान देकर भाग्य लिखने का कलम मेरे हाथ में दे दिया है... मुझ आत्मा को मास्टर भाग्य विधाता का वरदान दिया है...
➳ _ ➳ अज्ञानता में मैं आत्मा समय को व्यर्थ संकल्पों, व्यर्थ कर्मों में गवांती थी... समय के भरोसे बैठे रहती थी... अपने भाग्य को कोसती थी... कोई भी विघ्न आये तो समय प्रमाण अपने आप चला जायेगा यही विचार रखती थी... प्राप्तियों के बिना दुखी होती रहती थी...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा ज्ञान की कलम से गुण, शक्तियों की स्याही से समय के कागज पर अपने श्रेष्ठ भाग्य को रच रहीं हूँ... संगम के एक एक सेकेंड को समर्थ बना रहीं हूँ... अब मैं आत्मा सम्पूर्ण बनने का पुरुषार्थ कर रहीं हूँ... एक बाबा की याद में रहकर सर्व शक्तियों को प्राप्त कर रहीं हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अमृतवेले के समय श्रेष्ठ संकल्पों का निर्माण करती हूँ... अव्यक्त स्थिति में रहकर व्यक्त भाव में कर्म करती हूँ... श्रेष्ठ स्वमानों में रहती हूँ... संगम के विशेष नुमाशाम के समय को विश्व सेवाधारी बन विश्व के कल्याण में लगाती हूँ... मैं आत्मा दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ कि रात को प्यारे बाबा को दिनभर का पोतामेल देकर हल्के होकर उनकी गोदी में अतिंद्रिय सुख की निद्रा में सोऊंगी...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा समय को अपने अधीन कर रहीं हूँ... मैं आत्मा विघ्नजीत बन विघ्नों को परिवर्तन शक्ति द्वारा परिवर्तन कर रहीं हूँ... सर्व प्राप्तियों की अधिकारी बनते जा रहीं हूँ... सम्पूर्ण बनते जा रहीं हूँ... सम्पूर्णता के आधार पर समय को समीप लाने वाली मास्टर रचयिता बन रहीं हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- कर्म और योग के बेलेंस द्वारा सच्चे योगी बनना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा इस शरीर द्वारा हर कार्य कराने वाली करावनहार हूँ... यह शरीर मेरा इंस्ट्रूमेंट है... मैं आत्मा इस शरीर का आधार ले अपने कर्मक्षेत्र में कर्म करती हूँ... पर कर्म करते मेरे मन के तार मेरे असुल घर और मेरे प्यारे पिता शिव बाबा से जुड़े ही रहते...
➳ _ ➳ मैं इस सृष्टि रंगमंच पर अपना विशेष पार्ट प्ले करते... हर एक्ट करते अपने डायरेक्टर/ क्रियेटर से डायरेक्शन लेती हूँ... उनको अपने हर कर्म में अपने साथ रखती हूँ... मेरे द्वारा किया हर कर्म अलौकिक है... मेरा कोई भी कर्म साधारण नहीं हैं... मेरा हर कर्म प्रभु की याद में किया... सतकर्म हैं...
➳ _ ➳ मुझे बाबा से सहज योगी भवः... ये वरदान मिला हैं... इस वरदान को यूज़ करते मैं आत्मा निरन्तर योगी बन गई हूँ... मुझे सदा ही ये स्मृति रहती की मैं आत्मा ऊंच ते ऊंच भगवान की गोद में पलने वाली... विश्व परिवर्तक हूँ... मैं आत्मा बाबा के साथ कम्बाइंड हो सब कर्म करती हूँ... मेरे हर कर्म में मेरा बाबा समाया हुआ हैं... मैं आत्मा बाबा की याद में निरन्तर लवलीन हूँ... कभी मेरा दोस्त बन मुझसे मीठी बातें करते... तो कभी साथी बन मेरे काम में मदद करते...
➳ _ ➳ मैं आत्मा कर्मयोगी हूँ... कर्म करते योग का बेलेंस रख मैं सच्चा योगी बन गई हूँ... सबेरे उठने से रात को सोने तक हर कर्म करते बाबा का हाथ और साथ पकड़े रखती... कर्म और योग का बेलेंस रखने से मेरे हर कर्म में सफलता समाई हुई हैं... योग के बेलेंस से हर कर्म करते मैं आत्मा निश्चिन्त हूँ... बेफिक्र हूँ... कराने वाला करा रहा... मैं आत्मा बस सच्चे दिल से करे जा रही हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *अपनी सम्पूर्णता के आधार पर समय को समीप लाने वाले मास्टर रचयिता होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ अपनी सम्पूर्णता के आधार पर समय को समीप लाने वाले मास्टर रचयिता होते हैं क्योंकि... समय हमारी स्वयं की रचना हैं। हम ही तो मास्टर रचयिता हैं न। जो रचयिता होते हैं वो रचना के आधार पर नहीं होते हैं, बल्कि! रचियता अपनी रचना को अपने अधीन रखते हैं।
❉ इसलिये! हमें ही तो अपनी सम्पूर्णता के आधार पर समय को समीप लाना है। जो अपनी विशेषताओं के आधार पर अर्थात! सम्पूर्णता के आधार पर समय को समीप लाते हैं, वही तो रचयिता होते हैं। मास्टर रचयिता वे ही होते हैं, जो अपनी रचना को अपने अधीन रखते हैं।
❉ अतः वे कभी भी ऐसा नहीं सोचते हैं कि... समय आपे ही हमें सम्पूर्ण बना देगा। इसलिये! ही तो! हमें स्वयं को सम्पूर्ण बना कर समय को समीप लाना है तथा समय का इन्तजार हमें नहीं करना है। अगर! हम समय का इंतज़ार करेंगे तो! इन्तज़ार में ही सारा समय बीत जायेगा।
❉ वैसे अगर देखा जाये तो! कोई भी विघ्न हमारे सामने आता है तो! वह समय प्रमाण जायेगा भी जरूर। जैसे आया था, वैसे ही चला जाएगा लेकिन! हमें समय आने की प्रतीक्षा में नहीं रहना है। समय आये, उस से पहले ही उसे चेंज करना है। अगर समय रहते हुए, हम उसे चेंग नहीं करेंगे तो नुकसान भी हम ही उठायेंगे।
❉ विघ्न समय प्रमाण जाये, उससे पहले अर्थात! समय से पहले ही अपनी परिवर्तन शक्ति के द्वारा उसे परिवर्तन कर देना है। ऐसा करने से उस की जो प्राप्ति हैं, वो हमको हो जायेगी। अगर हम समय के आधार पर परिवर्तन करते हैं तो! उसकी प्राप्ति हमको नहीं होगी।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *कर्म और योग का बैलेन्स रखने वाले ही सच्चे कर्मयोगी हैं... क्यों और कैसे* ?
❉ हम सभी आत्माएं इस सृष्टि रंगमंच रूपी कर्म भूमि पर मनुष्य शरीर धारण कर कर्म करने के लिए आएं हैं । और इस कर्मभूमि पर देह का आधार ले कर कर्म करते हुए आत्मा जब अपने वास्तविक स्वरूप को भूल देह के भान में आ जाती है तो कर्म बंधन में फंस जाती है । किन्तु कर्म और योग का बैलेन्स रखते हुए जब हर कर्म परम पिता परमात्मा बाप की याद में रह कर किया जाता है तो आत्मा कर्म करते हुए भी कर्म के प्रभाव से मुक्त रहती है । यही सच्चा कर्मयोग है ।
❉ इस बात को जो सदा स्मृति में रखते हैं कि मैं आत्मा परमधाम की रहने वाली हूँ और इस साकारी दुनिया में मनुष्य तन धारण करके केवल पार्ट बजाने आई हूँ । यह स्मृति जितनी ज्यादा रहती हैं उतना आत्मिक स्मृति में रहना सहज हो जाता है और जितना आत्मिक स्मृति में रह कर कर्म करते हैं उतना ही आत्मा कर्म के प्रभाव से मुक्त न्यारी और प्यारी स्थिति में स्थित रहती है इसलिए हर कर्म करते परमात्मा बाप की स्मृति स्वत: बनी रहती हैं । ऐसे कर्म और योग का बैलेन्स रखने वाले ही कर्मयोगी कहलाते हैं ।
❉ जैसे सोने को शुद्ध बनाने के लिए पहले उसे आग में तपाया जाता है ताकि उसमे मिली हुई खाद समाप्त हो जाये । इसी प्रकार देह भान में आ कर आत्मा से जो भी विकर्म हुए हैं उन्हें भी जब तक योग अग्नि में जलाया ना जाये तब तक आत्मा शुद्ध और पावन नही बन सकती । इसलिए कर्म करते हुए जितना कर्म और योग का बैलेन्स बना रहता है उतना आत्मा पर चढ़ी विकारों की कट उतरती है और साथ ही साथ कर्मयोगी बन बाबा की याद में रह कर्म करने से आत्मा नये पाप कर्म करने से भी बच जाती है ।
❉ लोग गंगा को पतित पावनी मान गंगा स्नान करने जाते है और स्मझते हैं कि गंगा में स्नान करने से आत्मा पर चढ़े पाप धुल जायेंगे किंतु आत्मा को पावन बनाने का केवल एक ही उपाय है और वो है पतित पावन परमपिता परमात्मा बाप की याद । और उसी परमात्मा बाप ने 8 घण्टे याद में रहने का फरमान दिया है । इस फरमान का पालन तभी कर सकेंगे जब हर कर्म करते बुद्धि का योग केवल एक परम पिता परमात्मा बाप की याद में लगाएं रखेंगे । और यह अभ्यास पक्का होना ही सच्चा कर्मयोगी बनना है ।
❉ मनुष्य का यह स्वभाव है कि जिसके साथ उसका गहरा सम्बन्ध या स्नेह होता है उसे याद करने की उसे मेहनत नही करनी पड़ती बल्कि याद स्वत: बनी रहती है । बाबा की याद भी निरन्तर बनी रहे इसके लिए जरूरी है बाबा से जिगरी स्नेह होना और यह स्नेह तभी उतपन्न होगा जब केवल एक बाबा को ही सर्व सम्बन्धो से अपना साथी बना लेंगे । इससे चलते - फिरते, उठते - बैठते हर कर्म करते मन बुद्धि में केवल एक बाबा की ही याद रहेगी जो सहज ही कर्मयोगी स्थिति का अनुभव कराती रहेगी ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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