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 18 / 07 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ आपस में एक दो को व बाप को यथार्थ रीगार्ड दिया ?

 

➢➢ हर चीज़ पहले बाप को स्वीकार करवाई ?

 

➢➢ खुदाई खिदमतगार बनकर रहे ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ अधिकारिपन की स्मृति द्वारा सर्व शक्तियों का अनुभव किया ?

 

➢➢ सम्पूरण लगाव मुक्त बन स्वयं के साथ साथ प्रकृति को भी पावन बनाया ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ स्वमान में स्थित रह रूहानियत का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - अपने स्वधर्म में स्तिथ हो आपस में प्यार से एक दो को ओम शांति कहो - यह भी एक दो को रिगार्ड देना है"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे सत्य पिता ने आकर सत्य स्वरूप का अहसास कराया है... इस सत्य के नशे में आओ... अपने स्वधर्म में स्तिथ हो प्यार से दूसरी आत्मा को सम्मान दो... ओम शांति कह आत्मा का अभिवादन करना ही सच्चा सम्मान देना है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आत्मिक स्मर्तियो से भर चली हूँ... अपने खूबसूरत स्वरूप के नशे में खो चली हूँ... इसी स्वधर्म के नशे में गहरे उतर चली हूँ.... और सबको आत्मिक भाव से रिगार्ड दे रही हूँ...

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे आत्मा के सच्चे नशे से भर चलो... इन्ही यादो में डूब कर दुसरो को भी इसी आत्मिकता का नशा चढ़ाओ... ओम शांति के सच्चे भाव में डूब चलो... इन्ही यादो में भरो और औरो को भी भर आओ...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ओमशन्ति के स्वरूप में समा रही हूँ... इन सुंदर अहसासो में भीग रही हु... आत्मा देख आत्मा से बात कर रही हूँ... सबको सच्चा रिगार्ड देकर ईश्वरीय नजरो में सज रही हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चे सारा मदार स्मर्तियो पर टिका है... स्वयं को आत्मा निश्चित कर इस भाव से स्वयं को भर चलो... और ओम शांति के भाव में डूबकर अन्य आत्माओ का भी सम्मान करो... यही दिली रिगार्ड है... जो एक दूसरे को देना है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सबको सच्चा रिगार्ड दे रही हु... सदा अपने स्वधर्म में स्तिथ होकर मुस्करा रही हूँ... सच्चा सम्मान दे रही हूँ और पा भी रही हूँ.... यह स्वरूप बहुत ही लुभावना मीठा और प्यारा है...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - भोग स्वीकार कराना"

 

➳ _ ➳  मैं  ब्रह्ममुखवंशावली ब्राह्मण आत्मा हूँ... मुझ आत्मा का रूहानी परिवार अति मीठा है... मैं आत्मा सर्व के साथ क्षीरखंड होकर रहती हूं... मैं हर आत्मा का रिगार्ड करती हूं... मैं आत्मा सबके प्रति आत्मिक भाव रखती हूं... मैं आत्मा अपने परमपिता शिव बाबा को यथार्थ रीति से याद करती हूं... जैसे मैं आत्मा बिंदी हूं मुझ आत्मा के परमपिता भी सुप्रीम बिंदी हैं... निराकार है...  मुझ आत्मा को दिव्य ज्ञान मिल गया है... प्यारे शिव बाबा ही अधिकारी हैं... प्यारे बाबा निराकार अभोक्ता है... मैं आत्मा शिव बाबा को ही सबसे पहले भोग स्वीकार कराती हूं... मेरे भोले बाबा का ही भंड़ारा है... मैं आत्मा बाबा के भंड़ारे से ही खाती हूं... मैं आत्मा प्यारे बाबा को भोग स्वीकार करा प्यारे परमपिता शिव बाबा का रिगार्ड करती हूं...

 

❉   "ड्रिल - पूजन योग्य बनना"

 

➳ _ ➳  मैं खुदाई खिदमतगार आत्मा हूँ... मैं आत्मा रूहानी सेवाधारी हूँ... पूजनीय हूं... मेरे बाबा ने मुझे पूजनीय बनने का जो लक्ष्य दिया है उसको दृढ़ता से पालन करती हूं... मेरे बाबा ने जो अविनाशी रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा है मैं आत्मा उस यज्ञ का रक्षक बनती हूं... मैं आत्मा बाप का साथी और मददगार बन चलती हूँ... मुझ आत्मा को ये शरीर सेवार्थ मिला है... मैं आत्मा हांजी का पाठ पक्का कर सदा सेवा के लिए ऐवररेडी रहती हूं... मैं आत्मा पवित्रता और योग के बल से तन और मन को पावन बना रही हूँ... जैसे मेरे प्यारे बाबा हम बच्चों की सेवा करते हैं, पतित से पावन बनाते हैं... हम बच्चे ओरों की सेवा करते हैं... मैं आत्मा को औरो को भी पावन बनाने में मददगार बनती हूं... पूजनीय बनने के लिए अब मैं आत्मा स्वयं को और शरीर को भी स्वच्छ पावन बनाने का पुरुषार्थ करती हूँ... मैं आत्मा एक बाप की याद की यात्रा में रह पावन बनती हूं... मैंआत्मा पूजनीय योग्य स्थिति का अनुभव करती हूं...

 

❉   "ड्रिल - प्रकृति को पावन बनाना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा कमल फूल समान पवित्र हूँ... फरिश्ता हूँ... देह से मुक्त अवस्था है मेरी.. प्रकाश की काया है मेरी... मैं आत्मा पवित्रता का फ़रिश्ता हूं... मुझ आत्मा पर निरंतर परमात्मा से आती पवित्रता की किरणें पड़ रही हैं... मुझ आत्मा से श्वेत प्रकाश की किरणे मेरे सूक्ष्म प्रकाश के शरीर से निकल निकल कर प्रकृति के पांचो तत्वों तक प्रकम्पन फैल रहे हैं... प्रकृति के पांचो तत्व पावन और शांत होते जा रहे हैं... चारों ओर वातावरण शुद्ध होता जा रहा है... प्रकृति की हलचल समाप्त होती जा रही है... प्रकृति मुझ आत्मा की सहयोगी बनती जा रही है... मुझ आत्मा को बाहरी आकर्षण प्रभावित नही करता हैं... मुझ आत्मा का किसी से लगाव झुकाव नही हैं... मैं आत्मा लगाव मुक्त हूं...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं आत्मा प्राप्ति स्वरुप हूँ ।"

 

➳ _ ➳  अन्तर्चक्षु से स्वयं को देखो... भृकुटि के मध्य... मैं एक अविनाशी ज्योति हूँ... दिव्य शक्ति हूँ... सदा शाश्वत हूँ... मैं आत्मा इस शरीर रूपी मन्दिर में, मूर्ति हूँ... धीरे - धीरे स्वयं को महसूस करें...

 

➳ _ ➳  मैं इस शरीर से भिन्न एक चैतन्य शक्ति हूँ... आँखों द्वारा देखने वाली... मुख द्वारा बोलने वाली... कानों द्वारा सुनने वाली... मैं अति सूक्ष्म बिंदु अपने निजधाम में रहती हूँ... एक दम शांत... निर्संकल्प... परम पवित्र...

 

➳ _ ➳  सर्व बंधनों से मुक्त... कर्मातीत... सर्व शक्तियों से सुस्सजित... मैं आत्मा मन और बुध्दि द्वारा सदा एक बाप के साथ सर्व सम्बन्धों का अनुभव करने वाली भाग्यशाली आत्मा हूँ... बाप के साथ सर्व सम्बन्धों का अनुभव कर मैं आत्मा स्वतः ही बाप के वर्से की अधिकारी आत्मा बन रहीं हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपना हर कर्म अधिकारी समझकर करने वाली आत्मा हूँ... मैं आत्मा बाप द्वारा दिए गए वर्से की अधिकारी आत्मा हूँ इसलिए मुझ को कहने वा संकल्प में भी कुछ मांगने की आवश्यकता नहीं है...

 

➳ _ ➳  यह अधिकारिपन की स्मृति ही मुझ आत्मा को सर्व शक्तियों से सम्पन्न होने का अनुभव करवा रही है... मैं आत्मा सदा इस नशे में रहती हूँ कि बाप द्वारा दी गई सर्व शक्तियां मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है... मैं आत्मा अधिकारिपन के नशे में रह अधीनता को समाप्त करने वाली सर्व प्राप्ति स्वरुप अवस्था का अनुभव कर रहीं हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  अधिकारीपन की स्मृति द्वारा सर्व शक्तियों का अनुभव करने वाले प्राप्ति स्वरूप होते हैं... क्यों और कैसे?

 

❉   अधिकारीपन की स्मृति द्वारा सर्व शक्तियों का अनुभव करने वाले प्राप्ति स्वरूप होते हैं। हम आत्मायें परमात्मा की संतान होने के कारण परमात्मा के सर्व खजानों के अधिकारी हैं। हमें उनसे कुछ भी मांगने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि हम आत्मायें...  बालक सो मालिक हैं। इसलिये हम सम्पूर्ण वर्से की अधिकारी आत्मायें है। 

 

❉   यदि बुद्धि का सम्बन्ध सदा एक बाप के साथ लगा रहे तो सर्व शक्तियों का वर्सा अधिकार के रूप में प्राप्त होता है। बाप हमको वर्सा प्राप्त करने की युक्तियाँ बताते हैं। अर्थात हमसे पुरुषार्थ भी करवाते है। तभी तो सर्व प्राप्तियाँ हमारे लिये सरल व सुगम हैं।

 

❉   जो अधिकारी समझ कर हर कर्म करते हैं, उन्हें कहने व संकल्प में भी मांगने की आवश्यकता नहीं रहती है। बिना मांगे ही बाबा सब बात का ख्याल रखते हैं। बाबा हमारी माँ हैं, जिसको हमारी हर बात का ध्यान है, कि हमको अब किस चीज़ की आवश्यकता हो सकती है।

 

❉   यह अधिकारीपन की स्मृति ही सर्व शक्तियों की प्राप्ति का अनुभव कराती है। तो नशा रहे कि सर्व शक्तियां हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है। इधर जन्म हुआ नहीं कि...  उधर बाप की सर्व प्रॉपर्टी के मालिक बन गये। क्या राजा के बेटे को कभी कुछ माँगना पड़ता है। नहीं न! वह आपने आप ही हर चीज़ का अधिकारी है।

 

❉   अधिकारी बन कर चलो तो अधीनता अपने आप समाप्त हो जायेगी। कहा भी है न...  पराधीन सपने सुख ना हीं अर्थात पराधीन को स्वपन में भी सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती इसलिये सदा अधिकारीपन की स्थिति में स्थित हो कर रहना है। अपना हर कर्म भी अपने को अधिकारी समझ कर ही करना है, तथा अपनी बुद्धियोग भी एक बाप से जोड़ कर रखना है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢ स्वयं के साथ - साथ प्रकृति को भी पावन बनाना है तो सम्पूर्ण लगाव मुक्त बनो... क्यों और कैसे ?

 

❉   हम ब्राह्मण बच्चे इस सृष्टि के आधारमूर्त हैं इसलिए हमारा कर्तव्य है स्वयं के साथ - साथ सम्पूर्ण प्रकृति को पावन बनाना । आज चारों और दूषित वायुमण्डल फैला हुआ है । संसार में अनैतिकता का भयानक दौर चल रहा है । इस वातावरण को योगबल से पावन बनाना यही हमारी जिम्मेदारी है । और यह जिम्मेदारी हम तभी उठा सकेंगे जब सम्पूर्ण लगावमुक्त बनेंगे क्योकि किसी से सूक्ष्म लगाव भी अपवित्रता है । इसलिए इस बात को स्मृति में रखते हुए कि हमारी प्योरिटी ही इस संसार को पावन बनाएगी, हमे सम्पूर्ण लगावमुक्त बनना है ।

 

❉   किसी व्यक्ति, वस्तु या वैभव के प्रति लगाव और झुकाव भी माया का रॉयल रूप है जो सम्पूर्ण पवित्र बनने में बाधा डालता है । जब तक हम स्वयं सम्पूर्ण पवित्र नही बनते तब तक प्रकृति को पावन कैसे बना सकते हैं क्योकि हमारी स्थिति ही सृष्टि की स्थिति बनाती है अर्थात जैसी हमारी स्थिति होती है वैसी ही सृष्टि बनती है । अगर हम बार बार माया के इस रॉयल रूप से मार खाते रहेंगे, मायाजीत नही बनेंगे तो प्रकृतिजीत भी कभी नही बन सकेंगे और प्रकृति को पावन भी नही बना सकेंगे । इसलिए सम्पूर्ण लगावमुक्त बन कर ही स्वयं को और प्रकृति को पावन बना सकेंगे ।

 

❉   कहा जाता है कि ब्रह्मा ने जब सृष्टि का निर्माण किया, तब मानव के साथ प्रकृति का भी निर्माण हमारी सहायता के लिए किया । लेकिन आज वही प्रकृति दुःखदायी बन गई है और उसका कारण है हमारी सोच, हमारे विचारों में गिरावट आना । सतयुग में जब हम सतोप्रधान थे तो प्रकृति भी सतो प्रधान सुखदायी थी लेकिन विकारों की प्रवेशता के कारण जब हम पतित तमोप्रधान बने तो प्रकृति भी तमोप्रधान दुःख देने वाली बन गई । इसलिए प्रकृति को फिर से सतोप्रधान सुखदायी हम तभी बना सकेंगे जब स्वयं सपूर्ण पावन बनेंगे और सम्पूर्ण पावन तभी बन सकेंगे जब सम्पूर्ण लगावमुक्त बनेंगे ।

 

❉   परमात्मा द्वारा दिए जा रहे इस ज्ञान की नवीनता ही पवित्रता है तभी तो हम ब्राह्मण बच्चे फ़लक से दुनिया वालों को चैलेन्ज करते हैं कि प्रवृति में रहते हुए भी हम कमल पुष्प समान न्यारे और प्यारे रहते हैं । यही ज्ञानी तू योगी आत्मा की निशानी है । सम्पूर्ण पवित्रता की धारणा के बिना ज्ञानी तू योगी आत्मा बन नही सकते और सम्पूर्ण पवित्रता का अर्थ ही है हर प्रकार के लगाव से मुक्त । किसी भी व्यक्ति वा साधनो से भी कोई लगाव ना हो । बुद्धि किसी भी देह धारी या दुनियावी पदार्थो में अटके ना । तब कहेंगे सम्पूर्ण लगावमुक्त । जब ऐसी पवित्रता की धारणा होगी तभी प्रकृति को पावन बनाने की सेवा कर सकेंगे ।

 

❉   न्यारे बन कर्मेन्द्रियों से कर्म करते हुए जब कर्मातीत स्थिति का अनुभव करते रहेंगे तो कर्मक्षेत्र पर कमल पुष्प समान रहते हुए माया की कीचड़ से स्वयं को सेफ रख सकेंगे । देह और देह के आकर्षणों से न्यारे , सम्पूर्ण लगावमुक्त और बाप के प्यारे बन बाप की याद में रह कर्मयोगी बन जब हर कर्म करेगें तो कर्म के बन्धन से भी मुक्त रहेंगे तथा कर्म करते हुए बुद्धि का योग केवल एक बाप के साथ लगा रहने से ऑटोमैटिकली आत्मा से सुख, शांति, पवित्रता के वायब्रेशन चारों और फैलते रहेंगे जो वायुमण्डल को भी शुद्ध और पावन बना देंगे । जिससे स्वयं के साथ साथ प्रकृति को भी पावन बना सकेंगे ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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