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   21 / 01 / 16  की  मुरली  से  चार्ट   

        TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)

 

‖✓‖ सदा °सेवा के उमंग उत्साह° में रह माया से सेफ रहे ?

 

‖✓‖ उस °एक को ही प्यार° किया ?

 

‖✓‖ एक पारलोकिक बाप से °सर्व सम्बन्ध° जोड़े ?

 

‖✓‖ "मोस्ट बिलवेड °शिवबाबा आये हैं° हम बच्चों को विश्व का मालिक बनाने" - यह नशा रहा ?

 

‖✓‖ °खुशबूदार फूल° बनने पर विशेष अटेंशन रहा ?

 

‖✗‖ किसी को °दुःख° तो नहीं दिया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)

 

‖✓‖ °एक ही रास्ता° और एक से ही रिश्ता रखा ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)

 

‖✓‖ ब्रह्मा बाप समान हर कार्य में °एक्यूरेट और अलर्ट° रहे ?

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं आत्मा सम्पूर्ण फरिश्ता हूँ ।

 

 ✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-

 

 ❉   एक ही रास्ता और एक से ही रिश्ता रखने वाली मैं आत्मा सम्पूर्ण फरिश्ता हूँ ।

 

 ❉   निराकार वा साकार रूप से मेरा सम्बन्ध वा रिश्ता केवल एक बाप से ही है ।

 

 ❉   सर्व सम्बन्ध केवल एक बाप के साथ रखने के कारण मैं सभी दुनियावी बातों से सदा  उपराम रहती हूँ ।

 

 ❉   बुद्धि से सभी दुनियावी रास्तों को ब्लॉक कर केवल एक बाप से बुद्धि योग रख मैं सदा उड़ती कला का अनुभव करती रहती हूँ ।

 

 ❉   हम सो फरिश्ता मन्त्र को पक्का कर मैं साकार और आकार के अंतर को समाप्त करती जाती हूँ ।

 

 ❉   अपने साकारी शरीर द्वारा ईश्वरीय सेवा में बिज़ी रहने के साथ, अपने आकारी शरीर द्वारा मनसा सेवा में सदैव तत्पर रहती हूँ ।

 

 ❉   शुद्ध संकल्पों की शक्ति मुझे माया के तूफानों में भी डबल लाइट स्थिति द्वारा सहज ही मेहनत मुक्त, जीवन मुक्त स्तिथि का अनुभव कराती है ।

 

 ❉   अपने डबल लाइट फरिश्ता स्वरूप् को स्मृति में रख मैं सदा दिव्यता की रॉयल्टी से चमकती रहती हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चे - मोस्ट बिलवेड शिवबाबा आये हैं तुम बच्चों को विश्व का मालिक बनाने, तुम उनकी श्रीमत पर चलो"

 

 ❉   सतयुग में जब हम दैवी गुणों से सम्पन्न देवी - देवता थे अर्थात विश्व के मालिक थे तो अपरमअपार सुखो से भरपूर थे ।

 

 ❉  अनेक जन्म ले पार्ट बजाते बजाते और विकारो में गिरते गिरते आत्मा सम्पूर्ण पतित होने से दुखी और अशांत हो गई ।

 

 ❉   दुःखो से छूटने और सुख प्राप्त करने के लिए ही हमने परम पिता परमात्मा को पुकारना शुरू किया ।

 

 ❉   हमारी पुकार सुन कर अब संगम युग पर मोस्ट बिलवेड परम पिता परमात्मा शिव बाबा आये हैं ।

 

 ❉   और आ कर हमे ज्ञान और योग द्वारा फिर से विश्व का मालिक बना रहे हैं । इसलिए अब हमे केवल एक परमात्मा बाप की श्रीमत पर चलना है ।

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ शिवबाबा प्यारे से प्यारा है उस एक को ही प्यार करना है । सुखदाता बाप को याद करना है ।

 

  ❉   शिवबाबा प्यार का सागर है व अपने बच्चों से रोज प्यार से कहता है मेरे मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों । इतने प्यार से तो कभी लौकिक में भी किसी ने नही कहा व न ही प्यार दिया । शिव बाबा ही प्यारे से प्यारा है ।

 

  ❉   भक्ति में गाते आए कि नयनहीन को नयन दिखाओ प्रभु..... शिवबाबा केवल नयनहीनों को राह ही नही दिखाता नयन ही देता है व दिव्य ज्ञान का प्रकाश दिया कि हम कौन व यह संसार क्या है , हमें क्या करना है । तो ऐसे ऊंच ते ऊंच बाप शिवबाबा को ही दिलोजान से प्यार करना है ।

 

  ❉   जिस परमात्मा के दर्शन पाने को दुनिया कहां कहां भटकती है स्वयं परमात्मा ने हमें ढ़ूंढ़ लिया व परमात्म मिलन हो गया तो इससे बड़ी मौज या लाटरी क्या हो सकती है । जब परमात्मा मिल गया तो सब मिल गया । उससे प्यारा भला कोई हो सकता है !

 

  ❉   जैसे लौकिक में लड़की की सगाई होती है तो वो सब कुछ भूल बस उसी में ही खो जाती है व उसे वो प्रियतम ही सबसे प्यारा लगता है । हमें तो सच्चा सच्चा माशूक मिला है व हमारी शिव बाबा से ही सगाई हुई व हमें बेहद का सच्चा सच्चा माशूक शिवबाबा ही हमें प्यारे से प्यारा है ।

 

  ❉   अभी तक तो पतित विनाशी दुनिया में थे तो दुख ही पाये । बाबा ने ही हमें सच्ची सच्ची गीता सुनाकर दुखधाम से निकाल सुखधाम का रास्ता दिखाया व अनमोल खजाने देकर मालामाल किया है । बस एक सुखदाता बाप को ही याद करना है ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ एक ही रास्ता और एक ही रिश्ता रखने वाले स्वयं को सम्पूर्ण फ़रिश्ता अनुभव करते है... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   "मेरे तो शिव बाबा एक दुसरो न कोई" यही युक्ति है सम्पूर्ण फ़रिश्ता बनने की, जितना यह अवस्था पक्की बनती जाएगी उतना ही हम फ़रिश्ता स्वरुप बनते जायेंगे।

 

 ❉   बाप का फरमान है "देह सहित देह के सब संबंधो को भूल मामेकम याद करो", इसी फरमान को पालन करना है।

 

 ❉   अब अपनी बुद्धि का भटकना बंद करना है, अब अंतिम समय आ गया है, घर जाने का वक़्त आ गया है। तो बुद्धि को सब तरफ से समेटकर एक बाप में लगानी है।

 

 ❉   हम सबकी मंजील अब घर जाना है, तो उसी रास्ते पर निगाहे जमानी है, इधर उधर भटके तो गहरी खाई में गिर जायेंगे, बहुत चोट लग जाएगी। रास्ते से भटके तो समय पर मंजिल तक नहीं पहुच पाएंगे।

 

 ❉   एक बाप से ही सर्व सम्बन्ध बनाने और निभाने है और कोई रिश्ते या रास्ते है ही नहीं। एक ही साथी, एक ही रास्ता और एक ही मंजिल बस यही याद रहे तो बाप समान फ़रिश्ता बन जायेंगे।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ सदा सेवा के उमंग - उत्साह में रहना - यही माया से सेफ्टी का साधन है... कैसे ?

 

 ❉   उमंग - उत्साह के पंखो पर सवार हो जो स्वयं को सेवा में बिज़ी रखते हैं वो सदा उड़ती कला की अनुभूति करते हुए मायाजीत बन माया के तूफानो पर सहज ही विजय प्राप्त कर लेते हैं ।

 

 ❉   सदा उमंग उत्साह में रहने वाली आत्मा ड्रामा की हर सीन को साक्षी हो कर देखती है, इसलिए हर परिस्थिति को सहज ही पार करते हुए सेवा में सफलता प्राप्त कर लेती है ।

 

 ❉   उमंग - उत्साह से भरपूर आत्मा हर कार्य को दृढ़ता से करती है और दृढ़ निश्चय से किये हर कार्य में पूरी लग्न और मेहनत समाई होती है जो सेफ्टी का साधन बन माया से रक्षा करती है ।

 

 ❉   उमंग उत्साह में रहने वाले हर बोझ से मुक्त रहते हैं और हल्केपन के अनुभव द्वारा फरिश्ता बन सदा उड़ते रहते हैं इसलिए माया के तूफ़ानों को सहज ही पार करते हुए हर कार्य में सफलता प्राप्त कर लेते हैं ।

 

 ❉   सदा उमंग - उत्साह में रहने वाली आत्मा शुभ और श्रेष्ठ चिंतन द्वारा स्व स्थिति को पॉवरफुल बना कर हर कारण को निवारण में बदल कर, हर परिस्थिति से उपराम रह सहज ही सफलतामूर्त बन जाती है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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