━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 14 / 08 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢  अपने स्वरुप और स्वदेश की स्मृति से बंधनमुक्त अवस्था का अनुभव किया ?

 

➢➢  √"सफलता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है" - इस स्मृति से सफलता का अनुभव किया ?

 

➢➢  √"अभी-अभी पुरूषार्थी, अभी-अभी प्रालब्धी" - यह अनुभव किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢  योधे न बन दिलतखतनशीन बनकर रहे ?

 

➢➢  हिसाब किताब  की समाप्ति का समारोह मनाने का पुरुषार्थ किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢ आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?

 

   ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧

 

To Read Vishesh Purusharth In Detail, Press The Following Link:-

 

✺ HTML Format:-

➳ _ ➳  http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/14.08.16-VisheshPurusharth.htm

 

✺ PDF Format:-
➳ _ ➳  http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/14.08.16-VisheshPurusharth.pdf

────────────────────────

 

∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "योद्धा नही दिलतख्तनशीं बनो"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे अब मन का युद्ध समाप्त हो चला अब दिल में समाने के दिन आएं है.. जनमो के बिछड़े बच्चे प्यारे बाबा के दिल तख्त पर सजकर सदा का मुस्कराये है... तो सदा खुशियो में रास करो अतीन्द्रिय सुख के नशे में झूलते ही रहो... प्यारा बाबा मिल गया... यह गीत गाते झुमते रहो...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा देह की धूल से निकल मणि सी दमक उठी हूँ... प्यारे बाबा के दिल में बस चली हूँ... दिलतख्त पर बैठ सदा की मुस्कराती जा रही हूँ... और ख़ुशी से झूम रही हूँ...

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे ईश्वर पिता बनकर जीवन में आ चला तो मेहनत तो मुक्त हो मुहोब्बत के झूले में आनन्द लो... सदा बन्धनमुक्त उड़ता पंछी बन खुशियो की मीठी उड़ान भरो... सफलता आप ईश्वरीय बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है इस नशे को अपनी रग रग में समाकर प्यारे बाबा के दिल में मणि बन इतराओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा खुशियो की खान हो गयी हूँ... ईश्वर पिता के दिल में रहने का परम् सोभाग्य पाकर मीठी यादो में खो चली हूँ... सफलता को बाँहो में भरकर बन्धनमुक्त उड़ता पंछी हो चली हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... आप बच्चों की सदा चढ़ती कला है हर कदम में महानता है... ईश्वर के राइट हैन्ड का ख़िताब पाते हो...और सदा के शांति सुख के दाता बन जाते हो... इस रूहानी नशे में डूब जाओ... सदा प्राप्ति स्वरूप और प्रत्यक्ष फल को खाने वाले अधिकारी बच्चे हो... इस परमसोभाग्य को यादो में लहराओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा प्राप्ति स्वरूप बनकर खुशियो के खजाने से भरपूर हूँ... प्यारे बाबा आपने मुझे मा सुखदाता शांतिदाता बनाकर सजा दिया है... और सदा का विजयी कर खूबसूरत देवता के रूप में खिला दिया है...

────────────────────────

 

∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - हिसाब किताब समाप्त कर जीवनमुक्त पद की स्थिति का अनुभव करना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा परमपिता परमात्मा शिव बाबा के सम्मुख बैठी हूं... बाबा बहुत ही पावरफुल दृष्टि से मुझ आत्मा को देख रहे हैं... प्यारे बाबा की दृष्टि में इतना तेज है जो मैं आत्मा कुछ सेकेंड़ के लिए भी बाबा की दृष्टि की तरफ नही देख पा रही हूं... ऐसे लग रहा है जैसेकि  बाबा मेरे भीतर के किचड़े को जलाकर राख कर रहे हैं... मुझ आत्मा के जन्म जन्मांतर के विकर्मों रुपी गंदगी पलभर में भस्म हो गई है... मैं आत्मा सच्ची दिल से अपने इस जन्म के किए पाप कर्मों का सच्चा लेखा-जोखा बाबा को सुनाती हूं... मुझ आत्मा ने  देहभान में रहते अपने इस जन्म व पिछले जन्म के किए अनगनित पाप कर्म किए हैं... स्वयं के साथ साथ अन्य अनेक आत्माओं को दुख दिए हैं... मैं अब सब बापदादा को सुनाकर क्षमा मांग रही हूं... प्यारे शिव बाबा की याद में रह अपने विकर्मों का विनाश करती हूं... प्यारे बाबा अपने कोमल प्यार भरे स्पर्श देते हुए मुझ आत्मा को दुलार रहे हैं... मुझ आत्मा की पाप कर्मों की कालिमा जलकर भस्म हो रही है... सब हिसाब हिताब चुकतू होते जा रहे हैं... मैं आत्मा बीती को बिंदी लगा आगे बढ़ती हूं... तभी जन्म-जन्म के विकर्मों के खातों को कोई नया खाता बनाए बिना चुकतू करती हूं... मैं आत्मा जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव करती हूं... मैं बस श्वांसो-श्वांस एक प्यारे बाबा की याद में रहती हूं...

 

❉   "ड्रिल - संगमयुग की प्रालब्ध - पाना था सो पा लिया"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा भृकुटि के मध्य चमकता सितारा हूं... अजर... अमर... अविनाशी हूं...  मैं परमधाम से इस धरा पर सुंदर पार्ट बजाने के लिए अवतरित हुई हूं... मैं देह नही देही हूं... मैं महान आत्मा हूं... विशेष आत्मा हूं... मुझ आत्मा को सृष्टि के आदि-मध्य-अंत का ज्ञान मिल गया है... मैं आत्मा मन बुद्धि की मालिक हूं... सभी कर्मेन्द्रियां मुझ आत्मा के आर्डर प्रमाण चलती हैं... मैं आत्मा स्वराज्याधिकारी हूं... इस संगमयुग पर मैं आत्मा परमपिता परमात्मा शिव बाबा की सर्व शक्तियां , सर्व खजाने की अधिकारी हूं... मैं संगमयुग पर डायरेक्ट बाप से वर्सा लेने की अधिकारी आत्मा हूं... मैं आत्मा युद्ध के संस्कार छोड़ चुकी हूं... मैं आत्मा अकालतख्त पर विराजमान रहती हूं... प्यारे बाबा का साथ सदैव होने से मुझ आत्मा का माया से युद्ध नही होता... मैं आत्मा सवेरे उठते ही मैं आत्मा बिंदी, बाबा बिंदी और ड्रामा बिंदी तीनों बिंदियों का तिलक लगाती हूं... मैं आत्मा अपने तख्त पर दिलतख्तनशीं बनती हूं... मैं आत्मा सदा रुहानी नशे में रहती हूं... मैं आत्मा आपस में संस्कार मिलान कर सदा खुश रहती हूं... मैं आत्मा संगमयुग की प्रालब्ध पाकर परमात्म मिलन मनाकर अतीन्द्रिय सुख का अनुभूति करती हूं....

 

❉   "ड्रिल - सर्व का सम्मान प्राप्त करना ही तख्तनशीं बनना"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा बापदादा की अति लाडली बच्ची हूं...  मुझ आत्मा का अब भौतिक सुखों से कोई लगाव नही है... इस संगमयुग पर प्यारे शिव बाबा ने मुझ आत्मा को सर्व सुखों से, शांति और प्रेम से भरपूर कर दिया है... मैं आत्मा इस सृष्टि रंगमच पर हीरोपार्टधारी हूं... मुझ आत्मा का ये नया आलौकिक जीवन है... मैं श्रेष्ठ संकल्पधारी ब्राह्मण आत्मा हूं... स्वयं भगवान रोज श्रेष्ठ टाइटलस से हम ब्राह्मण आत्माओं की महिमा करते है... स्वयं परमपिता परमात्मा शिव बाबा श्रेष्ठ स्वमानों की माला पहनाते है... स्वयं भगवान ने हम ब्राह्मण बच्चों को अपने कार्य के निमित्त चुना है... अपने कार्य में मददगार बनाया है... जिस ब्राह्मण चोटी का आज भी गायन है व आज भी ब्राह्मणों की पूजा की जाती है... वो हम ब्राह्मण बच्चों का ही गायन है... प्यारे बाबा अपने बच्चों से इतना स्नेह करते हैं व सम्मान देते है... मैं आत्मा अपने प्यारे बाबा से सर्व शक्तियों और सर्व गुणों से भरपूर होकर सर्व का सम्मान करती हूं... बिंदु बन बिंदु बाप को याद करती हूं... मैं आत्मा बीती को बिंदी लगाते सर्व का सम्मान करते व सर्व की सहयोगी बन आगे बढ़ती हूं... सर्व के प्रति शुभ भावना रख सर्व से सम्मान पाते तख्तनशीं बनती हूं...

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं सर्व आकर्षण मुक्त आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अविनाशी ज्ञान रत्नों के खजानों का दान देने वाली महादानी महा वरदानी विष्व कल्याणी हूँ... मैं आत्मा निरन्तर योगी हूँ... बुद्धि योगी हूँ... मैं आत्मा सभी को रास्ता बताने वाली और सभी का बेडा पार करने वाली ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राहमण हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा ज्ञान की पूरी धारणा करने वाली और नोलेजफुल अंजानेपन को समाप्त करने वाली ज्ञान स्वरुप और योगयुक्त आत्मा हूँ... मैं आत्मा सभी की ज्ञान रत्नों से झोली भरने वाली सम्पन्न और सम्पूर्ण हूँ... मैं आत्मा नोलेजफुल, पावरफुल, लवफुल, सिद्धिस्वरूप हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा परमात्मा द्वारा दिए गए ज्ञान के हर पॉइंट की नोलेज रखने वाली आत्मा हूँ... मुझ आत्मा में हर चीज़ का ज्ञान समाया हुआ है... मैं आत्मा योगयुक्त हो यह अनुभव करती हूँ कि मैं इस अविनाशी ज्ञान को पहले से ही जानती हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा इस अविनाशी ज्ञान के हर पॉइंट पर मनन कर मक्खन निकालने वाली ज्ञानी आत्मा हूँ... मैं आत्मा मनन शक्ति द्वारा स्वयं में सर्व शक्तियां भरकर शक्तिशाली

बन गईं हूँ... इन दिव्य गुणों की शक्तियों द्वारा मैं आत्मा हर विघ्न को सहज ही पार करने का अनुभव कर रहीं हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं दिव्य गुणों की शक्तियों से सुस्सजित आत्मा अतीन्द्रिय सुख की प्राप्ति का अनुभव कर रहीं हूँ... मुझ दूरदर्शी आत्मा को अल्पकाल की कोई भी वस्तु अपनी और आकर्षित नहीं कर सकती है...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा सदा मग्न अवस्था की अनुभवी आत्मा हूँ... इस मग्न अवस्था में स्थित होकर मुझ आत्मा की स्तिथि शक्तिशाली बनती जा रही है... इस शक्तिशाली स्तिथि द्वारा मैं आत्मा सर्व विघ्नों के फ़ोर्स को समाप्त करने वाली सर्व आकर्षणों से मुक्त आत्मा होने का अनुभव कर रहीं हूँ ।

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  मनन शक्ति द्वारा शक्तिशाली बन विघ्नों के फ़ोर्स को समाप्त करने वाले सर्व आकर्षण से मुक्त होते हैं...  क्यों? और कैसे?

❉   मनन शक्ति द्वारा शक्तिशाली बन विघ्नों के फ़ोर्स को समाप्त करने वाले सर्व आकर्षणों से मुक्त होते हैं क्योंकि वर्तमान समय मनन शक्ति द्वारा आत्मा में सर्व शक्तियाँ भरने की आवश्यकता है। जैसे जैसे आत्मा में शक्ति का विकास होगा वैसे वैसे आत्मा अधिक शक्तिशाली बनती जाती है।

❉   आत्मा को मनन शक्ति द्वारा शक्तिशाली बनाने के लिये अन्तर्मुखी बन हर पॉइन्ट पर मनन करना है। मनन करने से  मक्खन निकलेगा और हम आत्मायें! शक्तिशाली बन कर सर्व आकर्षणों से मुक्त होती जायेंगी।

❉   इस प्रकार सर्व आकर्षणों से मुक्त आत्मायें! ही परम पिता परमात्मा के प्रेम में लवलीन रहती हैं तथा ऐसी ही शक्तिशाली आत्मायें! अतिन्द्रिय सुख की प्राप्ति का अनुभव भी करती हैं। इस सुख कि प्राप्ति अभी ही संगमयुग पर हम ब्राह्मण बच्चे ही करते हैं।

❉   ऐसे अविनाशी अतिन्द्रिय सुख से लबा - लब भरे हुए बच्चे! ही सदा अतिन्द्रिय सुखों के झूलों में झूलते रहते हैं।
उन्हें अल्पकाल की कोई भी वस्तु अपनी तरफ आकर्षित नहीं कर सकती। वह सदा ही परमात्म प्रेम में मगन रहते हैं और बाबा के बताये हुए ज्ञान के हर पॉइंट का मनन चिन्तन भी करते रहते हैं।

❉   इस प्रकार से उनकी मगन अवस्था द्वारा जो भी रूहानियत की शक्तिशाली स्थिति बनती है। उस से विघ्नों का फ़ोर्स सदा के लिये समाप्त हो जाता है और वर्तमान में मनन शक्ति द्वारा आत्मा में सर्व शक्तियाँ भी स्वतः ही फुल फ़ोर्स से भरती जाती हैं।

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  ब्राह्मण संसार में सर्व का सम्मान प्राप्त करने वाले ही तख़्तनशीन बनते हैं... क्यों और कैसे ?

 

❉   ब्राह्मणों की सदैव उच्च चोटी गाई गई है । इसलिये भक्ति मार्ग में कोई भी कार्य तब तक सम्पन्न नही माना जाता जब तक वह कार्य ब्राहण के हाथों पूरे विधि विधान के साथ सम्पन्न ना हो । किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले ब्राह्मण का आशीर्वाद अनिवार्य माना जाता है । वास्तव में सच्चे ब्राह्मण तो हम ब्रह्मामुखवंशावली बच्चे हैं जो परमात्मा बाप के मददगार बन उनके दिलतख्त पर विराजमान हो, संसार में सर्व का सम्मान प्राप्त करने वाले तख़्तनशीन बनते हैं ।

 

❉   बाबा कहते जो बच्चे सदा स्वमान की सीट पर सेट रहते हैं अर्थात स्व को मान देते हैं सम्मान परछाई की तरह उनके पीछे पीछे आता है अर्थात उन्हें सम्मान मांगना नही पड़ता लेकिन अपने श्रेष्ठ कर्मो से वे सर्व का सम्मान सहज ही प्राप्त कर लेते हैं । स्वमान की सीट पर निरन्तर सेट रहने वाले ब्राह्मण बच्चों का हर संकल्प, बोल और कर्म महान होता है । अपनी महानता के बल पर वे सहज ही सर्व के सम्माननीय तथा बाबा के दिल

तख़्तनशीन बन जाते हैं ।

 

❉   सच्चे ब्राह्नण जो होते हैं वो सदा अपनी धारणाओं पर अटल रहते हैं । उनकी अटल धारणाओं के कारण ही शास्त्रों में गायन है " प्राण जाएँ पर धर्म ना जाये " । किसी भी परिस्थिति में अपने धर्म अर्थात धारणा के प्रति कुछ भी त्याग करना पड़े, सहन करना पड़े वा सामना करना पड़े तो भी ख़ुशी ख़ुशी करते हैं । कभी भी नियम और मर्यादायों से पीछे नही हटते । इसी कारण से ही

ब्राह्मण संसार में सर्व का सम्मान प्राप्त करने वाले भगवान के दिल तख़्तनशीन बनते हैं ।

 

❉   ब्राह्मण जन्म ही दिव्यता और अलौकिकता का जन्म है । क्योकि ब्राह्मण बनना अर्थात शूद्र पन के सवभाव वा संस्कार से सदा के लिए किनारा करना । संकल्प वा स्वप्न में भी शूद्रपन के संस्कार स्मृति में ना आये, तब कहेंगे सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण । जैसे भगवान के महावाक्य हैं कि " मेरा जन्म और कर्म मनुष्यो सदृश्य नही, लेकिन दिव्य और आलौकिक है । इसी तरह बाप दादा के साथ साथ हम ब्राह्मणों का जन्म भी दिव्य और आलौकिक है जिस कारण हम संसार में सर्व के सम्माननीय तथा बाप के दिलतख्तनशीन बनते है ।

 

❉   ब्राह्मणों का मुख्य संस्कार है ही सर्वस्व त्यागी जिसका अर्थ ही है सब कुछ त्याग देना । सर्वस्व त्यागी होने से ही सर्वगुण स्वत: आ जाते हैं क्योकि सर्वस्व त्यागी स्वयं के अवगुणों का तो त्याग करते ही हैं साथ ही साथ दूसरों में अवगुण देखने की आदत का भी त्याग करते हैं जिससे उनमे सरलता और सहनशीलता अपने आप आ जाती है । यही गुण दूसरों को आकर्षित करते हैं जो उन्हें सर्व का स्नेही बना देते हैं । सर्व के स्नेही ही सर्व से सम्मान प्राप्त करते हैं तथा बाबा के दिलतख्तनशीन बनते हैं ।

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━