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❍ 08 / 03 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ सृष्टि के °आदि-मध्य-अंत° का ज्ञान स्मृति में रहा ?
‖✓‖ "हम °सर्वोत्तम सोभाग्यशाली° ब्राह्मण कुल भूषण हैं" - यह स्मृति रही ?
‖✓‖ आत्माओं को °शिवबाबा के अवतरण° की बधाइयाँ दी ?
‖✓‖ आत्माओं को °रावण दुश्मन° से मुक्त होने की युक्ति बताई ?
‖✓‖ °दिव्य गुणों° के आधार पर ही मन वचन और कर्म किया ?
‖✓‖ °ज्ञान और योग° से आत्मा को स्वच्छ बनाया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ °डबल फ़ोर्स° द्वारा सर्विस व पुरुषार्थ में सफलता प्राप्त की ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
‖✓‖ °सहज ब्राह्मण जीवन° का अनुभव किया ?
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∫∫ 4 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - तुम सर्वोत्तम सोभाग्यशाली ब्राह्मण कुल भूषण हो तुम्हे स्वयं भगवान बधाइयां देते है"
❉ मीठा बाबा कहे - आत्मन बच्चे तुम पूरी सृष्टि की आत्माओ से चुने हुए खास सोभाग्यशाली ब्राह्मण कुल भूषण हो... तुम्हारे शानदार भाग्य पर तो भगवान भी फ़िदा है... और इस भाग्य की महिमा कर बधाई दे रहा...
❉ प्यारा बाबा कहे - आत्मन बच्चे... आप सोभाग्यशाली बच्चों से ही सतयुगी संकल्पना साकार हो पाती है... आप बच्चों से ही तो स्वर्ग का वजूद है... आप ईश्वरीय बधाई के पात्र है... ऐसे खूबसूरत भाग्य के मालिक हो...
❉ मीठा बाबा कहे - एक जन्म ईश्वरीय मत पर चल... तुम ही सोभाग्य सुखो से भरे बच्चे हो जो 21 जनमो के सुखो से भाग्य को भरपूर करते हो... तुम्हारे भाग्य पर मुझ भगवान को नाज है...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों... ब्रह्मा वत्स बन जो आपने अपना भाग्य चमकाया है... जो सुखो से भरा जीवन अपने नाम लिखवाया है... अपने बच्चों की इस जादूगरी की महिमा मे मै भगवान आनन्दित सा हो रहा और गीत आपके गा रहा...
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे भाग्यशाली बच्चों ने मुझे ईश्वर तुल्य ख़ुशी दी है... मेरी राह पर चल खुदको वन्दनीय बनाया है... सतयुगी सपने को साकार कर देवतुल्य बन... विश्व परिवर्तन में साथी हो... आप बच्चो के गीत भगवान गाकर झूम रहा... वाह बच्चों वाह...
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∫∫ 5 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-15)
➢➢ देवताओं से भी ऊंचे हम सर्वोतम ब्राह्मण हैं- इस रुहानी नशे में रहना है । ज्ञान और योग से आत्मा को स्वच्छ बनाना है ।
❉ हम ब्राह्मण देवताओं से भी ऊंचे है । हम ऊंच ते ऊंच भगवान के बच्चे हैं व ऊंच ते ऊंच ब्राह्मण बनते हैं । ब्राह्मणों की चोटी का गायन भी है ।
❉ सारी सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान स्वयं भगवान हमें देते हैं व इस पढ़ाई को पढ़कर ही हम ब्राह्मण सो देवता बनते हैं । हम ब्राह्मणों का ही डबल पूजन होता है व हम ब्राह्मण कुलभूषण देवता बनते हैं । कितना ऊंच भाग्य है हमारा !
❉ जैसे शरीर के लिए भोजन जरुरी है उसी प्रकार आत्मा के लिए ज्ञान रुपी भोजन जरुरी है । ज्ञान का मंथन कर उसे धारण कर आत्मा को शुद्ध बनाना है ।
❉ जैसे कोई बीमार होता है तो दवाई लेने से ठीक होता है ऐसे ही हमारी आत्मा इस समय बीमार हो गई है तो उसे स्वच्छ व पावन बनाने के लिए रुहानी सर्जन से ज्ञान योग का इंजेक्शन लगाना जरुरी है ।
❉ जैसे किसी बर्तन पर लगी कट को उतारने के लिए उसे अच्छी तरह रगडते हैं उसी प्रकार विकारों की कट उतारने के लिए सिर्फ और सिर्फ एक बाप से ही बुद्धियोग रखना है व अपनी आत्मा को शुद्ध बनाना है ।
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∫∫ 6 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-15)
➢➢ डबल फोर्स द्वारा सर्विस वा पुरुषार्थ में सफलता प्राप्त करने वाले डबल ताजधारी होते हैं... क्यों और कैसे ?
❉ संगमयुग पर ही बाप हम ब्राह्मण बच्चों को डबल ताजधारी बनाते हैं एक प्यूरिटी का ताज व दूसरा जिम्मेवारियों का ताज । दोनों ताज को अपने तीव्र पुरुषार्थ वा सर्विस द्वारा प्राप्त कर सफलता प्राप्त करते हैं ।
❉ सर्वशक्तिमान बाप का साथ अनुभव करते हुए व श्रीमत पर चलते हुए कम्बाइंड स्वरुप में स्थित होकर डबल फोर्स द्वारा सर्विस वा पुरुषार्थ में सफलता प्राप्त करने वाले डबल ताजधारी होते हैं ।
❉ बाप का सहयोग और स्नेह पाते निमित्त भाव से करते हुए मनसा वाचा कर्मणा सेवा कर पुरुषार्थ में सफलता प्राप्त करते हैं व हड्डी यज्ञ सेवा करते हैं तो ऊंच पद पाकर डबल ताजधारी होते हैं ।
❉ अपने को आत्मा समझ परमात्मा को याद करते हैं तो आत्मा शुद्ध पावन व मीठी होती जाती है । जितना याद में ज्यादा रहते हैं तो बाप के साथ का अनुभव भी ज्यादा होता है । मनसा वाचा कर्मणा व संकल्पों में भी श्रेष्ठता आने से प्यूरिटी की चमक से सर्विस वा पुरुषार्थ में सफलता प्राप्त करते हुए अभी भी श्रेष्ठ भाग्य पद प्राप्त होता है व भविष्य में भी डबल ताजधारी होते हैं ।
❉ अथक सर्विस का रुहानी नशा और संगम पर सतयुग की रजाई का बेहद का पुरुषार्थ कर डबल फ़ोर्स ही स्वर्ग के डबल ताजधारी बनने में बेहद की मदद करता है
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∫∫ 7 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ दिव्य गुणों के आधार पर मन वचन और कर्म करना ही दिव्यता है... क्यों और कैसे ?
❉ सदा इस स्मृति में रहना कि हम ब्राह्मण सो भविष्य देवता बनने वाले है, यह स्मृति आसुरी गुणों को त्यागने और दैवी गुण धारण करने में विशेष रूप से सहायक बन जायेगी और मनसा, वाचा, कर्मणा दैवी गुणों की धारणा स्वत: ही व्यवाहर में दिव्यता ले आएगी ।
❉ अपने अलंकारी स्वरूप को जब सदा स्मृति में रखेंगे और सदा अलंकारी मूर्त बन अलंकारो को धारण करके रहेंगे तो दिव्य गुणों के आधार पर मन, वचन और कर्म सहज ही दिव्य और आलौकिक बनते जायेगे जिससे दिव्यता की झलक सपष्ट दिखाई देने लगेगी ।
❉ हमारा लक्ष्य ही है नर से नारायण और नारी से लक्ष्मी बनना । यह लक्ष्य जितना बुद्धि में क्लीयर होगा उतना इस लक्ष्य को पाने का प्रयास तीव्र होता जायगा और यही तीव्र प्रयास पुरुषार्थ को बढ़ाने तथा मन, वचन और कर्म से दैवी गुणों को धारण करने के लिए प्रेरित करेगा और व्यवाहर को दिव्य बना देगा ।
❉ विश्व के आधारमूर्त और अपने पूर्वज स्वरूप की स्थिति में जितना स्वयं को स्थित रखेंगे और जितना स्वमान की सीट पर सेट रहेंगे उतना मनसा, वाचा और कर्मणा दैवी गुणों को धारण कर दिव्यता से सम्पन्न बनते जायेंगे ।
❉ विश्व की सर्व आत्माओं को अपने दिव्य और आलौकिक स्वरूप द्वारा बापदादा का साक्षात्कार तभी करवा पाएंगे जब मन, वचन और कर्म से दैवी गुणों से सम्पन्न बन अपनी दिव्यता की चमक से उन्हें आकर्षित करेंगे ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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