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❍ 14 / 05 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ विनाश के पहले अपना √सब कुछ सफल√ करने पर विशेष अटेंशन रहा ?
➢➢ देहधारियों से मोह निकाल √मोहजीत√ बनने पर विशेष अटेंशन रहा ?
➢➢ √पावन√ बनने पर विशेष अटेंशन रहा ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ सदा उमंग उत्साह में रह √चढ़ती कला√ का अनुभव किया ?
➢➢ जब चाहे √शीतल स्वरुप√ और जब चाहे √ज्वाला स्वरुप√ धारण करने का पुरुषार्थ किया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( 21 जन 1969 की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ बापदादा को ✓निश्चय पत्र✓ लिखा ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं आत्मा महावीर हूँ ।
✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-
➳ _ ➳ आज बाबा से शक्तियों का आह्वान कर महावीर आत्मा बनने का संकल्प करेंगे... बाबा की पावरफुल किरणें सूक्ष्मलोक से होती हुई मुझ पर उतर रही हैं... मैं उन्हें स्वयं में आत्मसात कर रहा हूँ... बापदादा से निकलती तीव्र किरणे मेरी भृकुटि में आकर समा रही हैं और मुझसे होती हुई दूर -दूर तक फैल रही है... बापदादा से प्राप्त शक्तियों के द्वारा मुझ आत्मा के तमोगुणी संस्कार जलकर भस्म हो रहे हैं... मैं आत्मा बोझमुक्त हो रही हैं... मैं आत्मा सच्चा सोना बनती जा रही हूँ... मुझे स्वयं में सतयुगी संस्कार की अनुभूति हो रही है... मैं सदा, हर सेकेण्ड, हर संकल्प में चढ़ती कला का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं एकदम हल्की, पूर्णतया पापमुक्त, सम्पूर्ण पवित्रता की अनुभूति कर रही हूँ... मेरे सभी बंधन कटते जा रहे हैं और मैं आत्मा बंधन मुक्त होती जा रही हूँ... मेरी सभी शक्तियों का विकास हो रहा है... मैं सर्वस्व आत्माओं के हेतु कल्याण की भावना रखने वाली बन रहीं हूँ... मैं आत्मा अपने सद्गुरु प्यारे के समक्ष यह दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मैं इसी तरह सदा चढ़ती कला का अनुभव कर सर्व के प्रति भला अर्थात कल्याण करने के निमित्त बनूँगी... मुझ आत्मा की आँख कभी भी माया के किसी भी रूप में डूबेगी नहीं... जिस प्रकार रुकने वाले को घुड़सवार, थकने वाले को प्यादा और जो सदा चलने वाला है उनको महावीर कहा जाता है, तो मैं आत्मा थकने और रुकने की अनुभूति न करने वाली सदा अथक और उमंग– उत्साह में रहने वाली महावीर आत्मा बनने का अनुभव कर रहीं हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चों - अपना सब कुछ ईश्वरीय सेवा में सफल कर भविष्य बना लो, क्योकि मौत सर पर खड़ा है"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों अपना तन मन धन सब ईश्वरीय सेवा में सफल करने के सच्चे दिन सचमुच जीवन में आ चले है... की ईश्वर ग्रहण कर फल देने को भी सामने खड़ा है... तो सही मायनो में सफल करो और खूबसूरत सी जन्नत के मालिक बनो...
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे मीठे से बच्चों अब समय हो चला अब खेल के खत्म होने का...अब देह की मिटटी से और मिटटी की वस्तुओ से मोह निकालो जरा... सम्पूर्ण पवित्रता को अपनाओ... और सब कुछ प्यारे बाबा को देकर हल्के भी हो जाओ... सुरक्षित भी हो जाओ... और सदा के धनवान भी हो जाओ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चों अपना तन मन धन देह के रिश्तो को देकर देख लिया इन झूठ के रिश्तो में बहुत ही खप लिया... अब सच्चे रिश्ते का साथ निभाओ... इससे पहले की मौत प्राणों को हर ले बाबा को सब समर्पित कर हल्के और सदा को निश्चिन्त हो जाओ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चों ईश्वर को अपना सब कुछ देकर किस कदर खूबसूरत भविष्य को प्राप्त कर लेते हो... मै पिता भला बच्चों से लेकर तो क्या करूँगा... बच्चों के लिए ही लूंगा और बच्चों को ही सुखी बनाऊँगा...कि मेरे लाडले मेरे हाथो में सुरक्षित रहे...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चो अब बहुत खेल लिए इस दुखदायी दुनिया में कहाँ से चले और कहाँ आ भटके हो...अब और ना मोह बढ़ाओ इन वस्तुओ और व्यक्तियो से... सब कुछ पिता को सौप दिल दिमाग से हल्के हो जाओ... सब कुछ तो वेसे ही खत्म हो जायेगा... फिर क्यों नही समय पर इसे सच्चे कार्य में लगा अपना भविष्य सुखदायी बना रहे...
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ देहधारियों से मोह निकाल मोहजीत बनना है । देह- अभिमान जो पहला नम्बर दुश्मन हैं, उस पर विजय पानी है और सब संग तोड़ , बुद्धियोग जोड़ना है ।
❉ अभी तक देहधारियों से ही सर्व सम्बंध रखते व उन्ही को ही अपना सब कुछ समझते रहे और अब ये जानने के बाद की ये सब सम्बंध विनाशी है । इसलिए देहधारियों से मोह नही रखना है । सम्बंध तो निभाने है पर उनमें फंसना नही है ।
❉ देह अभिमान में आने से ही सारे विकार आते है । जैसे ही शरीर को देखते है तो आकर्षण में आते है व कुदृष्टि हो जाती है । इसलिए सबसे पहले पाठ को पक्का करना है कि मैं देही हूं , देह नही । अपने को आत्मा समझ परमपिता परमात्मा को याद करना है । याद से ही जो 83 जन्मों की कट को उतारना है ।
❉ हम सब तो इस सृष्टि रुपी रंगमच पर पार्ट बजाने आए है व पार्ट बजाकर चले जाना है । सब सगे सम्बंधी इस ड्रामा में पार्टधारी हैं । अपने को बस मेहमान समझ रहना है व सब के प्रति आत्मिक भाव रखते मोहजीत बनना है ।
❉ ये रिश्ते नाते सगे सम्बंधी सब यही रह जाने है किसी ने साथ नही देना । ये शरीर भी अमानत है व राख हो जाना है तो इस शरीर का अभिमान क्यूं करना । देह अभिमान को छोड़ देही अभिमानी बनना है ।
❉ भक्ति में गाते आए हे पतित पावन आओ पावन बनाओ तो अब स्वयं भगवान आए हैं तो सब विनाशी सम्बंधों से बुद्धि से संग तोड़ बस एक संग जोड़ना है । बस एक अविनाशी बाप के संग बुद्धियोग जोड़ना है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ सदा उमंग, उत्साह में रह चढ़ती कला का अनुभव करने वाले महावीर होते हैं... क्यों और कैसे ?
❉ जो बच्चे महावीर होते हैं वो हर सेकेण्ड चढ़ती कला का अनुभव करते हैं व वो माया से किसी प्रकार से हार नही खाते । हमेशा अथक, उमंग उत्साह में रह सबको भी उमंग उत्साह में रख बढ़ते रहते हैं
❉ किसी भी परिस्थिति के आने पर घबराते नही क्योंकि ड्रामा का पाठ पक्का होने से व कर्मों की गुह्यगति का ज्ञान होने से अचल अडोल रह उसे सहज पार कर महावीर होते हैं ।
❉ जो महावीर होते हैं वो विकारों रुपी रावण को जलाकर हमेशा हजार भुजाओं वाले दिलाराम बाप को साथ रखते है व याद रुपी कवच पहनकर सेफ रहते हैं । उन्हें कोई पेपर हरा नही सकता । हाई जम्प लगाते हर सीन को पार कर हमेशा उमंग उत्साह में रहते हैं व उडती कला का अनुभव करते हैं ।
❉ जो बच्चे बाप को पाने के बाद हमेशा खुशी व नशे में रहते हैं जो पाना था सो पा लिया व प्राप्तियों को हमेशा स्मृति में रखते है । वो उमंग उत्साह में रह चढ़ती कला का अनुभव करते महावीर होते हैं ।
❉ सर्वशक्तिमान के बच्चे मास्टर सर्वशक्तिमान है व सर्व शक्तियों पर मेरा अधिकार है । मैं आत्मा परमात्म पालना में पल रही हूं व स्वयं भगवान मेरा साथी है ऐसे ईश्वरीय नशे में रहते है तो वो बच्चे कोई भी हलचल होने पर महावीर की तरह अचल अडोल रहते हैं व उंमग उत्साह से ऊंची स्टेज पर रहते हैं ।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ शक्तिशाली वह है जो अपनी साधना द्वारा जब चाहे शीतल स्वरूप और जब चाहे ज्वाला रूप धारण कर ले... क्यों और कैसे ?
❉ जो साधना द्वारा मन, बुद्धि और संस्कार को अपने कंट्रोल में कर, कर्मेन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर, स्वराज्य अधिकारी बनते हैं, वे सदा मास्टर सर्वशक्तिवान की सीट पर सेट रह, सर्वशक्तियों को अपने ऑर्डर प्रमाण यूज़ करते हैं । सर्व शक्तियों की अथॉरिटी से जब चाहे जैसी परिस्थिति में ज्वाला रूप और जब चाहे शीतल स्वरूप धारण कर लेते हैं ।
❉ जो निरंतर योगी, सहजयोगी बन साधना द्वारा अनुभूतियों की गिफ्ट प्राप्त कर लेते हैं । वे अनुभवीमूर्त बन अपने अनुभवों की अथॉरिटी से जैसी परिस्थिति वैसा स्वरूप बन जाते हैं । जब चाहे शीतल स्वरूप और जब चाहे अपने ज्वाला रूप में स्थित होकर सर्व परिस्थितियों पर जीत पाने वाली शक्तिशाली आत्मा बन जाते हैं ।
❉ जो मन बुद्धि से निरंतर याद की साधना में व्यस्त रहते हैं । वे सर्वशक्तिवान बाप से सर्व शक्तियों के अखुट खजाने प्राप्त कर शक्तिशाली आत्मा बन जाते हैं । और समय तथा परिस्थिति के अनुसार सही समय पर सही शक्ति का स्वरुप बनने का अभ्यास उन्हें जब चाहे शीतल स्वरूप और जब चाहे ज्वाला रुप में स्थित कर देता है ।
❉ समय की आवश्यकता है ज्वालामुखी योग । क्योकि पुराने संस्कारों को जलाकर लाइट माइट स्वरूप में स्थित होने के लिए ज्वालामुखी योग की ही आवश्यकता है । और ज्वालामुखी योग का अनुभव वही कर सकेंगे जो निरंतर एक बाप की याद की साधना में लीन रहकर, शक्तिशाली बन, अपनी साधना द्वारा जब चाहे शीतल स्वरूप और जब चाहे ज्वाला रूप को धारण करने के अभ्यासी होंगे ।
❉ जो साधना अर्थात निरंतर एक बाप की लगन में मगन रहते हैं । जागती ज्योत बनकर रहते हैं, वे संकल्प और कर्म की समानता द्वारा सिद्धि स्वरूप बन जाते हैं । अपनी साधना द्वारा वे जब चाहे शीतल स्वरूप धारण कर लेते हैं और और जब चाहे ज्वाला रुप में स्थित होकर शक्तिशाली आत्मा बन जाते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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