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 30 / 09 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ हर कर्म साक्षी होकर शिव बाबा की याद में किया ?

 

➢➢ लोकिक, अलोकिक दोनों तरफ तोड़ निभाया ?

 

➢➢ कोई भी बंधन तो नहीं बनाए ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ हर संकल्प व कर्म को श्रेष्ठ और सफल बनाया ?

 

➢➢ ख़ुशी का दान करते चले ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ भविष्य प्रारब्ध, वर्तमान सोभाग्य और परमधाम की अपनी तीनो अवस्थाओं का अनुभव किया ?

 

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➳ _ ➳  http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/30.09.16-VisheshPurusharth.pdf

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  "मीठे बच्चे - तुम यहाँ कृष्ण जैसा प्रिन्स बनने की पढ़ाई पढ़ते हो तुम्हे पढ़ाने वाला स्वयं भगवान है"

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता धरती पर उतरा है तो हर बच्चे को कृष्ण जैसा प्रिन्स बनाने की ही चाहत दिल में ले आया है... ईश्वर पिता की नजर.. प्यार... दुलार.. पढ़ाई... सबके लिए एक समान है... कितने मीठे भाग्य के मालिक हो कि भगवान गोद में बिठा प्यार से गहरे राज समझा रहा है..

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा इतनी भाग्यशाली हूँ यह तो ख्वाबो में भी न सोचा था कभी कि भगवान धरा पर उतर आएगा यूँ... मुझे प्यार करने और पढ़ाने... और मै आत्मा कृष्ण जेसी खूबसूरत प्रिन्स बन मुस्कराऊंगी...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... भगवान पिता तो हर बच्चे को खूबसूरत देवता सा ही सजाना चाहे... हर बच्चा खूबसूरत गुलाब सा महक उठे... विश्व पिता यही एक अरमान दिल में अपने सजाये... और ऐसे देवताई स्वरूप सजाने को भगवान परमधाम छोड़ धरती पर डेरा जमाये... और प्रिन्स सा मनभावन बनाये...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा ईश्वर पिता से देवताई पढ़ाई पढ़कर... सुखो की नगरी को अपनी बाँहों में भर रही हूँ... चारों ओर सुख ही सुख और उनमे मै आत्मा झूम रही हूँ... मीठे बाबा के साथ से देवताओ सा सज रही हूँ

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... भगवान को पाकर उसका सारा खजाना अपने दिल में भर लो... उसके दिल में छुपे हर राज के राजदार बन चलो... सारी नालेज को स्वयं में भरकर सुंदर कृष्ण जैसा सज जाओ... ज्ञानसागर बाबा से पढ़कर... मा ज्ञानसागर बन मुस्कराओ और सुख शांति आनन्द की दुनिया के मालिक बन चलो...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा भगवान को टीचर रूप में पाने वाली अत्यंत भाग्यशाली आत्मा हूँ... ज्ञान सागर बाबा ने मुझे पढ़ाकर आप समान खूबसूरत बना दिया है... और मै आत्मा यूँ भगवान को पाकर अपने मीठे भाग्य पर मोहित हो चली हूँ

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की धारणा और स्लोगन पर आधारित... )

 

❉   "ड्रिल - साक्षी और युक्तियुक्त होकर लौकिक अलौकिक को निभाना"

 

➳ _ ➳  अपने आप को बाहरी दुनिया से समेटते हुए अंतर्मन से मन बुद्धि से अपनी भृकुटि पर अपना ध्यान केन्द्रित करें... स्वयं को एक चमकता सितारा देखें... मैं एक अवतरित आत्मा हूं... इस साकारी दुनिया में बस अपना पार्ट बजाने आई हूं... मैं आत्मा प्रकाश पुंज हूं... वैसे ही मुझ आत्मा के परमपिता दिव्य प्रकाश पुंज है... मैं आत्मा इस साकारी संगमयुग पर परमात्मा की श्रेष्ठ रचना हूं... मैं आत्मा इस संगमयुग पर अपने परमपिता शिव बाबा से सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान सुन रही हूं... इस रुहानी ज्ञान को सुनकर मुझ आत्मा का अज्ञानता का अंधियारा मिट गया है... ज्ञान का तीसरा नेत्र दिव्य दृष्टि मिलने पर मै आत्मा क्या क्यूं कैसे सब प्रश्नों से दूर हो गई हूं... मैं आत्मा देह व देह के विनाशी सम्बंधों से लगावमुक्त हो गई हूं... मुझ आत्मा की कमजोरियां दूर हो रही है... प्यारे शिव बाबा से ही मुझ आत्मा को सर्व सम्बंधों की रसना मिल रही है... मैं आत्मा कितनी सौभाग्यशाली हूं जो परमात्म प्यार की अनुभूति हो रही है... मैं आत्मा हर कर्म प्यारे बाबा की याद में करती हूं... मैं आत्मा हर कर्म करते साक्षी भाव रखती हूं... प्यारे बाबा की याद में रहने से मैं आत्मा हरेक के प्रति आत्मिक भाव रखती हूं... लौकिक में भी हर कर्म करते मैं आत्मा उसे बाबा की सेवा समझ कर अलौकिकता रखती हूं... हर सम्बंध सम्पर्क में आने वाली आत्मा को ये भी मेरे मीठे बाबा का बाबा का  मीठा बच्चा है ऐसा भाव रखती हूं... लौकिक में मैं आत्मा बस अपनी जिम्मेवारी समझ उसे निभाती हूं... मैं आत्मा बस तोड निभाती हूं पर उनमें फंसती नही हूं... मैं आत्मा निमित्त हूं... ट्रस्टी हूं... युक्तियुक्त होकर अपनी जिम्मेवारी निभाते साक्षीदृष्टा होकर रहती हूं...

 

❉   ड्रिल --  बापदादा की छत्रछाया में स्वयं को खुशियो के खजाने से संपन्न कर, ब्राह्मण सो फरिस्ता बन सर्व को खुशियों का दान करना।

 

➳ _ ➳  बाहरी सभी बातों से स्वयं को समेटते हुए मैं आत्मा अपने आप को देखती हूँ। परमधाम से अवतरित मैं आत्मा अपने भृकुटि सिंहासन पर विराजमान हूँ।

      अब मैं आत्मा बाबा की प्यारी बच्ची अपने भृकुटि सिंहासन से निकल अपने फरिस्ते ड्रेस को को धारण करती हूँ, और उड़ चलती हूँ बादलों के पार और एक बड़े से सफ़ेद बादल के ऊपर बैठ जाती हूँ। सामने बापदादा खड़े बड़े प्यार से निहार रहे है। उनकी शक्तिशाली किरणों की बौछार मुझ फरिस्ते पर हो रही है। मैं बाबा से सर्व खजानों की प्राप्ति का अनुभव कर रही हूँ।

       मैं कितनी ना परम सौभाग्यशाली आत्मा हूँ जिसे बाबा ने अपना बच्चा बनाकर मुझे सर्व खजानों का मालिक बना दिया। मैं बहुत हल्का और हर्षित महसूस कर रही हूँ। यह अनुभव हो रहा है जैसे बाप दादा हमे चला रहे है, मुझे कोई मेहनत नही करनी पड़ रही। बापदादा के गोद में स्नेह के पांव से चलते हुए मुझे जरा भी थकावट महसूस नही हो रही। बापदादा के स्नेह की गोदी में सर्व प्राप्तियों और ख़ुशी से मैं उड़ने लगी हूँ। बस एक संकल्प कि बाबा मैं आपकी हूँ, और बाप ही हमारा हो गया।

     अब ये हमारा सर्वश्रेष्ठ जीवन विश्व कल्याण के निमित्त बन चूका है। अब मैं बाप सामान मास्टर विश्व कल्याणकारी बन सर्व आत्माओ को खुशियों का दान कर रही हूँ। सर्व आत्मायें मेरे द्वारा फ़ैल रही ख़ुशी की वाईब्रेसन से खुशियों की अनुभूति कर रही है।

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- मैं ज्ञान स्वरुप समझदार आत्मा हूँ ।"

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा संगमयुगी ब्राह्मण हूँ... मुझ आत्मा को  प्यारे शिव बाबा  बेहद के अविनाशी ज्ञान के खजानों से भरपूर कर दिया है... मैं आत्मा विनाशी खजानों के पीछे अपना समय खराब नही करती हूँ... बेहद की वैराग्यवृत्ति रखती हूँ...

 

➳ _ ➳  प्यारे बाबा आपने मुझ आत्मा को अपना बनाकर सर्व सम्बंधों से अपनाकर अविनाशी खुशी प्रदान कर दी है... प्यारे बाबा आप ही मुझ आत्मा के परमपिता, सुप्रीम शिक्षक भी हो... मुझ आत्मा को ऐसी वंडरफुल ऊंच ते ऊंच रुहानी पढ़ाई पढ़ाते हो...

 

➳ _ ➳  बाबा आपने मुझ आत्मा को ज्ञान स्वरुप और समझदार बना दिया है... भक्ति मार्ग में कोई भी कार्य प्रारंभ करते समय स्वास्तिका निकालना वा गणेश को नमन करना मुझ आत्मा के ही यादगार हैं... स्वास्तिका, स्व स्तिथि में स्तिथ होने का यादगार है और गणेश नॉलेजफुल स्तिथि का सूचक है...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा स्वयं नॉलेजफुल बन अपना हर संकल्प वा कर्म करती जा रहीं हूँ... मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मेरा हर संकल्प वा कर्म सहज ही सफलता को प्राप्त कर रहा है... मैं आत्मा अपने हर संकल्प वा कर्म को श्रेष्ठ और सफल बनाने वाली ज्ञान स्वरुप समझदार आत्मा होने की सीट पर सेट हो रहीं हूँ ।

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢ हर संकल्प वा कर्म को श्रेष्ठ और सफल बनाने वाले ज्ञान स्वरूप समझदार होते हैं...  क्यों और कैसे?

 

❉   हर संकल्प वा कर्म को श्रेष्ठ और सफल बनाने वाले ज्ञान स्वरूप समझदार होते हैं क्योंकि वे ज्ञान स्वरूप में स्थित हो कर अर्थात समझदार बन कर कोई भी संकल्प वा कर्म करते हैं और इसीलिये!  वे सफलतामूर्त बन जाते हैं। अतः हमें अपने सभी कर्म ज्ञान सहित करने हैं।

 

❉   जब भी हम कोई भी संकल्प या कोई भी कर्म करें, तो  सदा ही ज्ञान की रौशनी में करना चाहिये। अर्थात! हमारा हर संकल्प व कर्म दोनों ही सार्थक हो। वह दोनों ज्ञान पर आधारित हों। जब स्वयं हम ज्ञान स्वरूप व समझदार बनकर कर्म व संकल्प करते हैं तब हम सफल हो जाते हैं।

 

❉   इस सफलता का यादगार आज भी भक्तिमार्ग में है। भक्तिमार्ग में कोई भी कार्य प्रारम्भ करते हैं तो स्वस्तिक का चिन्ह बना कर उसकी प्रथम पूजा करते हैं। वे लोग समझते हैं कि... ये स्वास्तिका गणेश का स्वरूप है। इसलिये! ही तो स्वास्तिका को गणेश समझ कर नमन भी करते हैं।

 

❉   वैसे यह स्वास्तिका स्व की स्थिति में स्थित होने और गणेश की नालेजफुल स्थिति का सूचक है। सदा ही गणेश को परम पुज्य मान कर अग्रणी पूजा का स्थान प्राप्त है। गणेशजी ज्ञान धन के दाता हैं। विघ्न विनाशक हैं। गणेशजी के नाम की स्मृति ही...  अनन्त विघ्नों का नाश स्वतः ही कर देती है।

 

❉   इसी प्रकार हम बच्चे भी जब स्वयं को नालेजफुल अर्थात!  ज्ञान स्वरूप बनाकर या स्वयं को समझदार बनाकर हर संकल्प करते व कर्म करते हैं तो! हमको सहज ही सफलता का अनुभव होता है। अतः हमें सदा ही ज्ञान सहित संकल्पों व कर्मों को करना होगा।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  ब्राह्मण जीवन की विशेषता है ख़ुशी, इसलिए ख़ुशी का दान करते चलो... क्यों और कैसे ?

 

❉   ब्राह्मण बनते ही बाबा अपने हर बच्चे को सर्व खजानो से सम्पन्न कर देते हैं । तो जो सदा बाप द्वारा मिले अविनाशी खजानो से स्वयं को भरपूर तृप्त आत्मा अनुभव करते हैं वे सदा नशे में झूमते रहते हैं । उनके नयनो में  सदा बाप और बाप द्वारा मिला खजाना ही सामने रहता है जो उन्हें सदा ख़ुशी से भरपूर रखता है । इसलिए वे स्वयं भी सदा खुश रहते हैं तथा औरों को भी ख़ुशी का दान करते रहते हैं ।

 

❉   सबसे बड़े ते बड़ा खजाना है ही ख़ुशी का खजाना जिसे पाने के लिए लोग कहां - कहां नही भटकते किन्तु फिर भी उस खजाने से वंचित है । लेकिन हम ब्राह्मण आत्माए कितनी खुशनसीब है, पदमापदम सौभाग्य शाली हैं जो सवेरे आँख खुलते ही सृष्टि के रचयिता बाप से हमारा मिलन होता है जो खुशियो के अखुट खजाने हम पर लुटाता है । ऐसे सर्वश्रेष्ठ भाग्य की स्मृति में रहने वाले ख़ुशी के खजाने से सम्पन्न हो औरों को भी ख़ुशी का दान करते रहते हैं ।

 

❉   जैसे भक्ति में यह माना जाता है कि ईश्वर अर्थ धन या कोई भी वस्तु अगर दान की जाती है तो उसका पदम् गुणा अवश्य मिल जाता है । ऐसे बाप द्वारा मिली सर्वशक्तियों, सर्व गुणों और सर्व खजानो को जो सदा कार्य में लगाते रहते हैं वे बालक सो मालिकपन की ख़ुशी में रहते हुए, ख़ुशी के खजाने से सम्पन्न बन बाबा द्वारा मिली सर्व शक्तियों, गुणों और खजानो को स्व कल्याण और विश्व कल्याण के प्रति यूज़ करते हुए मालामाल बन जाते हैं ।

 

❉   कहा जाता है कि ख़ुशी जैसी खुराक नही । इसलिए अगर ख़ुशी है तो सब कुछ है ख़ुशी नही तो कुछ भी नही । ख़ुशी है बाप का खजाना । इसलिए बाबा कहते धंधे धोरी में अगर थोडा बहुत नुकसान हो भी जाये तो भी उदास नही होना क्यों कि अखुट प्राप्तियों के आगे यह नुकसान कोई बड़ी बात नही ।इन अखुट खजानो को जब भूलते हैं तब उदास होते हैं । किन्तु जो इन प्राप्तियों को सदा स्मृति में रखते हैं वे सदा खुश रहते हुए औरों को भी ख़ुशी का दान करते रहते हैं ।

 

❉   " अप्राप्त नही कोई वस्तु ब्राह्मणों के खजाने में " यह गायन हम ब्राह्मण बच्चों के लिए ही है । तो जो सदा यह बात स्मृति में रखते हैं कि हम सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न हैं, दाता के बच्चे मास्टर दाता हैं वे सर्व प्राप्तियों की अनुभूति करते हुए सदा सन्तुष्ट रहते हैं  । " पाना था सो पा लिया, अब और बाकि क्या रहा " इस गीत को गाते हुए वे सदा ख़ुशी से भरपूर रह सर्व आत्माओं को ख़ुशी का दान करते रहते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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