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 07 / 05 / 16  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ पतित दुनिया से बुधीयोग निकला रहा ?

 

➢➢ सवेरे सवेरे उठकर विचार सागर मंथन किया ?

 

➢➢ बाप जो सुनाते हैं , उसे नोट कर रिपीट किया ?

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ सदा साथ के अनुभव द्वारा मेहनत की अविध्या का अनुभव किया ?

 

➢➢ रहे गुलाब बन अपनी रूहानी वृति से वायुमंडल में रूहानियत की खुशबू फैलाई ?

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ °हर गुण और शक्ति° को सामने रखते हुए चेक करना है की क्या हम बाप समान हैं ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

 

➢➢ मैं आनन्द स्वरुप आत्मा हूँ ।

 

✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-

 

➳ _ ➳  आज हम सब योगयुक्त स्तिथि में अपने बाबा की गोद में बैठकर अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करेंगे... मैं आत्मा जगत पिता, जगत नियंता, परमपिता परमात्मा की प्रिय संतान हूँ... मैं सम्पूर्ण वसुधा की स्वामी हूँ... मैं मास्टर त्रिलोकीनाथ हूँ... मैं तीनों कालों और तीनों लोकों का गुह्य रहस्य जानने वाला त्रिनेत्री हूँ... ज्ञान का तीसरा नेत्र मुझे स्वयं संसार के पिता शिव परमात्मा ने उपहार स्वरुप प्रदान किया है... वह स्वयं मुझ पर अति प्रसन्न होकर मुझे इस विश्व का मालिक बनाना चाहते हैं... वह स्वयं मुझे समस्त दुखों व दुविधाओं से मुक्त रहने की युक्ति बता रहें हैं... उनका यह असीम प्यार पाकर मैं आत्मा धन्य - धन्य हो गयी हूँ... वह मुझे दर - दर भटकने से बचाने के लिए अपना दुलार अर्पित कर रहें हैं... जैसे बच्चा पाँव से चले तो थक जाता है लेकिन बाप की गोद में होता है तो उसे थकावट नहीं होती है, उसी प्रकार बाबा मैं आपकी सन्तान आज आपके समक्ष यह दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मैं सदा आपकी गोद मेँ बैठ इस जीवन की यात्रा को सम्पूर्ण करुँगी... मैं इस वरदानी संगमयुग पर सदा ही आपके साथ का अनुभव करती रहूंगी... यह संकल्प करते ही मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मुझे ज़रा भी मुश्किल और मेहनत की अनुभूति नहीं हो रही है... मेरे लिए मेहनत अविद्या मात्रम हो गयी है... पुरषार्थ भी मुझ आत्मा के लिए एक नेचुरल कर्म बनता जा रहा है... मैं अतीन्द्रिय सुख और आनंद का स्वरुप स्वतः ही बन गयी हूँ ।

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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ "मीठे बच्चों - तुम आये हो यहाँ सेल्फ रियलाइज करने, अपने को आत्मा समझ परमात्मा बाप से ही सुनो,  देही - अभिमानी बनने का अभ्यास करो"

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चों खुद को भूल के भटक कर अब खुद को जानने की उत्कंठा में भाग्य जो मेरे पास ले आया है... उस खूबसूरत भाग्य के नशे में आओ... अपने सच्चे स्वरूप के नशे को जगाओ और परमात्म नशे में डूब जाओ... अब सिर्फ बाप को सुनो और श्रीमत की राहो में कदम बढ़ाओ...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मेरे मीठे से बच्चों खुद को जानने के प्रयासों में कितना दर दर भटके शाश्त्रो में खोये पर खुद को पा न सके... अब देही अभिमानी बन सच्चे साथ की अनुभूतियों में खो जाओ... सिर्फ सच बताने वाले परमात्म का ही सच सुनो...

 

 ❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चों इतना खोजा कितना ढूंढा पर खुद को न जाना ईश्वर को सर्वव्यापी कह बिखराया...  तो खुद का भी कहाँ ठिकाना पाया... अब मुझ पिता से ही खुद के और मेरे वजूद के सच को जाना है...  तो यही सच दिल की गहराइयो में उतारो...

 

 ❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चों मेरे सिवाय रौशनी की राह कोई दिखा ही न सके सब अंधेरो में भटकता तुझे गुमराह कर और ही गर्त में ले जाय... मेरे बच्चों के असली स्वरूप को मुझ पिता के सिवाय तो सवाल ही नही की कोई बता सके... इस सुंदर सच को जीवन में जिओ और देही अभिमानी बनो...

 

 ❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे बच्चों भक्ति में डूबे थे वेदों में खोये थे शाश्त्रो में खपे थे पर एक अंश भी सत्य का जान न सके... मै सच्चा पिता सच्चाई की राह दिखा सकू... तुम्हारे और मेरे सत्य स्वरूप की झलक दिखा सके समझा सके... अब झूठी बातो का दामन छोड़ सत्य को बाँहो में समाओ... मुझसे ही सुनो और मेरी ही यादो में खो जाओ...

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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)

 

➢➢ पावन दुनिया में चलने के लिए इस पतित दुनिया से बुद्धियोग निकाल लेना है ।

 

  ❉   अभी तक तो अज्ञानता के कारण इस विनाशी दुनिया व विनाशी देह से सम्बंध रख देह अभिमान में आकर विकारों में गिरते चले गए व पतित बन गए । इस संगमयुग पर सत् का संग मिला है तो सब संग तोड़ सब बाप के संग जोड़ना है ।

 

  ❉   देह व देह के सम्बंध सब कब्रदाखिल है व किसी ने साथ नही देना । अभी तक तो हम स्वयं को ही भूल गए तो परमपिता परमात्मा ने ही हमें असली स्वरुप की पहचान दी । अब हमें पुराने स्वभाव संस्कारों को स्वाहा कर पतित दुनिया से अपना बुद्धियोग तोड़ देना है ।

 

  ❉   बाप अपने बच्चों को पतित व दुःखी देखकर नही रह सका व इस पतित दुनिया में आते है व आकर हमें पढ़ाकर पावन बनाते है । तो हमें बाप की श्रीमत पर चल पावन दुनिया में जाने के लिए पावन बनना है ।

 

  ❉   बाप कहते है कि मैं तुम्हें घर वापिस ले जाने आया हूं । तो पावन दुनिया में जाने के लिए हमें पुरानें विकारों विकर्मों को योगबल से भस्म कर पावन बनना है व एक बाप की याद में ही रहना है । पावन दुनिया में जाने के लिए अभी से देवताई संस्कार भरने हैं ।

 

  ❉   अपने को आत्मा समझ परमात्मा बाप की याद में रहना है । याद में रहने से व ज्ञान का घृत डालते रहने से आत्मा की लाइट तेज हो जाएगी व विकारों की कट उतरती जायेगी । दिव्य गुणों की धारणा कर व पावन बन पावन दुनिया में जाने लायक बनना है ।

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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ सदा साथ के अनुभव द्वारा मेहनत की अविद्या करने वाले अतीन्द्रिय सुख वा आनन्द स्वरुप होते हैं... क्यों और कैसे?

 

  ❉   जैसे बच्चा बाप की गोदी में है तो उसे थकावट नहीं होती । अपने पांव पर चलता है तो थकता भी है व रोता भी है । ऐसे ही जो बच्चे बाप की गोदी में बैठे हुए चलते है तो उन के लिए जरा भी मेहनत नही होती है व हमेशा अतीन्द्रिय सुख वा आनन्द स्वरुप स्वतः ही बन जाते हैं ।

 

  ❉   जब हर संकल्प में सेवा ,बोल में बाप की याद,  और कर्म में बाप समान होते है तो ऐसे बच्चे मेहनत की अविद्या करने वाले  बाप का साथ होने से शक्तिशाली अनुभव करते है और अतीन्द्रिय सुख की अनुभुति कर आनन्द स्वरुप होते हैं ।

 

  ❉   जो बच्चों सर्व सम्बंध सिर्फ बाप से रखते व बाप है ही हमारा व दिल से स्नेह होता है तो सदा बाप से ही कनेक्शन होने से शक्तिशाली व यथार्थ याद रहती है तो उन्हें कभी मेहनत अनुभव नही होती सब कार्य सहज ही होते । ऐसे बच्चे अतीन्द्रिय सुख वा आनन्द स्वरुप होते हैं ।

 

  ❉   जो बच्चे हमेशा श्रीमत प्रमाण चलते है व अपने को सर्वशकतिमान हजार भुजाओं वाले की छत्रछाया में अनुभव करते है । सब जिम्मेवारी बाप पर छोड़ निश्चिंत होकर आगे बढ़ते है व स्वमान की सीट पर बैठ बाप की याद में रहते हैं तो मेहनत शब्द उनकी डिक्शनरी में ही नही होता व अतीन्द्रिय सुख के झूल में रहते आनन्द स्वरुप होते हैं ।

 

  ❉   जो बच्चे संगमयुग के अनमोल समय के महत्व को याद रखते है कि इस समय ही हमें परमपिता परमात्मा बाप मिले हैं व पूरे कल्प में एक बार ही मिलते है तो हमेशा बाप की यथार्थ याद में रह सदा उमंग उत्साह में रह खुश रहते हैं  । बाप का हाथ व साथ सदा अनुभव करते सफलता प्राप्त कर अतीन्द्रिय सुख अनुभव कर आनन्द स्वरुप होते हैं ।

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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)

 

➢➢ रूहे गुलाब बन अपनी रुहानी वृति से वायुमंडल में रुहानियत की खुशबू फैलाओ... क्यों और कैसे ?

 

 ❉   रूहे गुलाब बन अपनी रूहानी वृति से वायुमंडल में रुहानियत की खुशबू तभी फैला सकेंगे जब देह अभिमान के पुराने संस्कार और पुराने देह के संबंध रुपी पत्ते झड़ जाएंगे । पुराने संबंध रुपी पत्ते जब झड़ेंगे तभी रूहानी स्नेह रूपी पुष्प जीवन में खिलेंगे और सर्व के प्रति रूहानी वृति बन सकेगी ।

 

 ❉   अपनी रूहानी वृति से वायुमंडल में रुहानी खुशबू वही फैला सकेंगे जो रुहानियत से भरपूर होंगे और रूहानियत से भरपूर वही होंगे जो सदा रूहानी स्थिति में स्थित रहेंगे, जहां भी देखेंगे, जिसको भी देखेंगे तो रूह को देखेंगे शरीर को नहीं ।

 

 ❉   जैसे बहार का मौसम आता है तो सब फूलों में रंगत आ जाती है, खिल जाते हैं । इसी प्रकार संगम युग भी बहारी जीवन है, जिसमें हर एक आत्मा रूपी पुष्प परमात्मा का प्रेम पाकर खिल जाता है । तो ऐसे एक बाप की रूहानी याद में जो सदा खिले रहते हैं वही रूहे गुलाब बन अपनी रूहानी वृत्ति से वायुमंडल में रूहानियत की खुशबू फैला सकते हैं ।

 

 ❉   जो सदा इस समृति में रहते हैं कि हम बागवान बाप के बगीचे के खुशबूदार फूल हैं । डायरेक्ट बाप इस समय आकर हम फूलों को अपने स्नेह का पानी देकर सींच रहे हैं । वे सदा अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के नशे में रह रूहानियत से चमकते रहते हैं और अपनी रूहानियत की खुशबू सारे विश्व में फैलाते रहते हैं ।

 

 ❉   जैसे जो सच्चे भक्त होते हैं वह कभी भी देवताओं पर मुरझाए हुए फूल नहीं चढ़ाते । अच्छे खिले हुए फूल ही देवताओं पर भेंट करते हैं । इसी तरह जो खुशबूदार खिले हुए रूहानी फूल होते हैं वो सदा बाप पर बलिहार जाते हैं । और अपनी रूहानी वृति से वायुमंडल में रूहानियत की खुशबू फैलाते रहते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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