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❍ 09 / 01 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks:- 6*5=30)
‖✓‖ °मन-वचन-कर्म से पवित्र° बनने पर विशेष अटेंशन रहा ?
‖✓‖ °पक्का ब्राह्मण° बनने पर विशेष अटेंशन रहा ?
‖✓‖ मनमत व मनुष्य मत को छोड़ °एक बाप की श्रीमत° पर चले ?
‖✓‖ °सफलता को परमात्म बर्थ राईट° समझ सदा प्रसन्नचित रहे ?
‖✓‖ आत्मा रुपी दीपक में °ज्ञान का घृत° डालने का पुरुषार्थ किया ?
‖✓‖ °योग को ज्वाला° रूप बनाया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-10)
‖✓‖ °सदा बिजी° रहने की विधि द्वारा व्यर्थ संकल्पों की काम्प्लेन को समाप्त किया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:-10)
‖✓‖ सब कुछ °बाप को अर्पण° कर डबल लाइट फ़रिश्ता बनकर रहे ?
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं सम्पूर्ण कर्मातीत आत्मा हूँ ।
✺ श्रेष्ठ संकल्प / कर्मयोग / योगाभ्यास :-
❉ सदा बिज़ी रहने की विधि द्वारा व्यर्थ संकल्पों की कम्पलेन को समाप्त करने वाली मैं सम्पूर्ण कर्मातीत आत्मा हूँ ।
❉ सारे दिन में मन को बिज़ी रखने का प्रोग्राम बना कर मैं सहज ही माया के तूफानों पर विजय प्राप्त कर लेती हूँ ।
❉ रोज अमृतवेले बाबा से रूह - रिहान कर मैं स्वयं को परमात्म शक्तियों और वरदानों से भरपूर कर लेती हूँ ।
❉ सेवा में स्वयं को बिज़ी रख कर मैं व्यर्थ चिंतन से सदा मुक्त रहती हूँ ।
❉ एक बाप की लग्न में मगन हो कर मैं सर्व सम्बन्धो का सुख बाप से ले कर सदा उड़ती कला का अनुभव करती रहती हूँ ।
❉ मन को हर समय बिज़ी रख कर, समय को यथार्थ रीति सफल करते हुए मैं कर्म करते भी कर्म के प्रभाव से मुक्त रहती हूँ ।
❉ परमात्म प्यार और स्नेह का बल मुझे कर्मो के आकर्षण और बन्धनों से परे ले जाता है और हर परिस्थिति में अचल अडोल बना देता है ।
❉ अपने श्रेष्ठ स्वमान, श्रेष्ठ स्मृति और श्रेष्ठ जीवन के समर्थी स्वरुप द्वारा श्रेष्ठ पार्टधारी आत्मा बन मैं सदा श्रेष्ठता का खेल करती हूँ ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - तुम यहां आये हो सर्वशक्तिमान बाप से शक्ति लेने अर्थात दीपक में ज्ञान का घृत डालने"
❉ जैसे दीपक को जलाने के लिए उसमे घृत डाला जाता है ताकि दीपक जलता रहे ।
❉ इसी प्रकार आत्मा रूपी दीपक की ज्योति भी जगती रहे उसके लिए जरूरी है ज्ञान का घृत हर रोज आत्मा रूपी दीपक में डालना ।
❉ क्योकि 84 जन्म ले पार्ट बजाते बजाते सभी आत्माये तमोप्रधान पतित बन गई हैं इसलिये सबकी ज्योति उझाई हुई है ।
❉ हम आत्माओं रूपी दीपको की ज्योति को फिर से जगाने के लिए ही सर्वशक्तिमान् परम पिता परमात्मा बाप आये हैं ।
❉ और हर रोज ज्ञान रूपी घृत से हम आत्माओं की ज्योति को प्रज्वल्लित कर रहे हैं । सर्वशक्तिमान् बाप से सर्व शक्तियां ले कर हम अपनी उझाई हुई ज्योति को फिर से जगा रहे हैं ।
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ मनुष्य वा मनुष्य मत छोड़ कर एक बाप की श्रीमत पर चलकर स्वयं को श्रेष्ठ बनाना है । सतोप्रधान बन बाप के साथ उडकर जाना है ।
❉ मनुष्य मत से चलकर हम भटक रहे थे अब हमें पारलौकिक बाप से एक श्रेष्ठ मत मिली है जिससे हमारी भटकना समाप्त हो उड़ना है।
❉ मनुष्य के बनाये शास्त्रो को पढ़कर अब तक हम धर्म में गिरते ही आये है। अब बाबा हमे उड़ती कला में ले जाने आये है।
❉ बाबा का बनकर सम्पूर्ण पवित्र बनना है। ग्रहस्थ में रहकर कमल समान न्यारे प्यारे बन नयी सतयुगी दुनिया में जाना है। मनुष्यो की मत पर तो दुःख ही दुःख देखे।
❉ पवित्रता सुख शान्ति की जननी है। कन्या पवित्र है तो पूज्य है। इस लिए अब बाबा फिर से पूज्य बनाने आये है। उड़ाने आये है।
❉ दुखो और पाप की दुनिया में हम दुखों के पहाड़ो के नीचे दब गए थे । कोई गुरु हमारी सदगति नही कर सका । अब बाबा हमारे बोझ लेकर हल्का कर उड़ाने आये है।
❉ डबल लाइट बन उड़ना है बाबा संग नयी दुनिया में चलना है क्योंकि यही हमारा ईश्वरीय अधिकार है। इसलिए उड़ती कला में नशे में रहना है।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ सदा बीजी रहने की विधि द्वारा व्यर्थ संकल्पों की कम्पलेन को समाप्त करने वाले सम्पूर्ण कर्मातित बन जाते है... क्यों और कैसे ?
❉ योग और सेवा में स्वयं को इतना बीजी रखना है की व्यर्थ के लिए समय ही न बचे, कहते भी है "खाली दिमाग शैतान का घर होता है" इसलिए मन बुद्धि को सदा ईश्वरीय सेवा में बीजी रखना है।
❉ जितना अनेको की सेवा में बीजी रहेंगे उतना ही अनेको की दुवाओ के अधिकारी बन जायेंगे, जहाँ दुवाये है वहाँ नेगटिव कभी आ नहीं सकता, वह शुभ चिंतन की छाया में सदा सेफ रहते है।
❉ "मनजीत जगतजीत" जिसने अपने मन को अर्थात अपने संकल्पों को जीत लिया उसने जैसे सारे जहान को जीत लिया। क्युकी मन के हारे हार और मन के जीते जीत गाई जाती है।
❉ सदा जब हमारा शुभ चिंतन चलेगा, सबके प्रति शुभ भावना, तो शुभ चिन्तक होने से मन का सारा मेल निकलता जायेगा। मन शुद्ध संकल्पों से भर जायेगा तो कैसी भी बात आये कोई भी परिस्थिति हो कभी नेगेटिव या व्यर्थ संकल्प नहीं चलेंगे।
❉ स्वदर्शन चक्र धारी बनने से, ड्रामा के यथार्थ नॉलेज को बुद्धि में रखने से, स्वयं की आत्मिक स्थिति बनाने से व्यर्थ का पिटारा ख़त्म होता जायेगा और हम कर्मातित बनते जायेंगे।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ सफलता को परमात्म बर्थराइट समझने वाले ही सदा प्रसन्नचित रह सकते हैं... क्यों और कैसे ?
❉ सफलता को परमात्म बर्थराइट समझने वाले सदा हद के नाम, मान और शान से परे रहते हैं और सदा सन्तुष्ट रह, अपनी प्रसन्नता की छाया से सबको प्रसन्न रखते हैं ।
❉ सेवा में सफलता की प्राप्ति को परमात्म बर्थराइट समझने का गुण आत्मा को इच्छा मात्रम अविद्या बना कर सदा तृप्त रखता है । और तृप्त आत्मा सदैव प्रसन्नचित रहती है ।
❉ सफलता को परमात्म बर्थराइट समझने वाले सदैव निर्मल और निर्माण रहते है और हर प्रकार के विघ्न से मुक्त, सदैव प्रसन्न रह, औरो को भी प्रसन्नता की अनुभूति कराते है ।
❉ किसी के भी अवगुणों को चित पर ना रखते हुए मास्टर क्षमा का सागर बन सबको आत्मिक प्रेम और प्रसन्नता का अनुभव वही करा सकते हैं जो सफलता को परमात्म बर्थ राइट समझते हैं ।
❉ सफलता को परमात्म बर्थ राइट समझने वाले व्यक्ति के जीवन में सदैव सत्यता, सरलता और नम्रता उसके साथ रहती है और अपने सत्य, सरल और नम्र व्यवहार से वह सबको प्रसन्न रख प्रसन्नचित बन जाता है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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