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❍ 10 / 12 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *जो अच्छी सर्विस करते हैं, उनका पूरा रीगार्ड रखा ?*
➢➢ *अपनी उन्नति का ख़याल किया ?*
➢➢ *गफलत तो नहीं की ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *विश्व परिवर्तन के श्रेष्ठ कार्य में अपनी अंगुली दी ?*
➢➢ *अपनी नेचर को इजी बना सब कार्य इजी किये ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *संकल्प के आधार पर बोल, कर्म, दृष्टि और वृत्ति को कण्ट्रोल किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - बाप आये है तुम्हे भक्ति का फल देने भक्ति का फल है ज्ञान, ज्ञान से ही सदगति होती है"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... कितना पुकारा कितना खोजा... ईश्वर पिता ने आकर खुदको उजागर किया... भक्ति का फल ज्ञान सिवाय परमात्मा के कोई दे न सके... भक्ति कभी भी सदगति दे नही सकती... *विश्व पिता से मिला सच्चा ज्ञान ही सदगति का आधार है.*..
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा मै आत्मा *सच्चे ज्ञान को पाकर धन्य धन्य हो गयी हूँ.*.. ज्ञान रत्नों से लबालब होकर सबसे धनवान् हो चली हूँ... जनमो की कड़ी तपस्या का फल ज्ञान पाकर खुशियो में मुस्करा उठी हूँ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय ज्ञान को पाने वाली महान भाग्यशाली आत्मा हो... ईश्वर पिता शिक्षक बन सारे खजानो को दामन में सजा रहा.. *यही ज्ञान रत्न सुनहरे सतयुगी सुखो की बहार जीवन में ले आएंगे*... और देवताओ की दिव्यता और पवित्रता से महकायेंगे...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा के साये में ज्ञान स्वरूप हो दमक उठी हूँ... *ज्ञान के प्रकाश ने जीवन से दुखो के गहरे अंधकार को दूर कर सुखमय* कर दिया है... मै आत्मा हर राज को जानने वाली मा त्रिलोकीनाथ बन चली हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... सच की गहरी चाह में और दुखो की इस कदर दारुण सी पुकार में... सच्चे सतगुरु को धरा पर आकर सत्य ज्ञान देकर फूल बनाना पड़ा... यह *ईश्वरीय ज्ञान ही सुखो का भण्डार है*और सदगति का आधार है
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता की खोज में किस कदर भटक रही थी... अपने दमकते सत्य स्वरूप को खोकर कितनी मैली सी हो चली थी... मीठे बाबा ने आपने आकर *सत्य ज्ञान देकर मेरा जीवन सदा का रौशन* कर दिया है...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं महान सो निर्माण आत्मा हूँ ।"*
➳ _ ➳ परमपिता परमात्मा ने इस सृष्टि पर आकर *अश्वमेध अविनाशी रुद्र गीता ज्ञान यज्ञ* रचा है... इस पुरानी पतित दुनिया का विनाश हो नये पवित्र सतयुगी दुनिया की स्थापना होगी... तमोप्रधान दुनिया का अंत और सतोप्रधान दुनिया का स्वागत होगा...
➳ _ ➳ मैं आत्मा *संगमयुगी श्रेष्ठ ब्राह्मण कुलभूषण* हूँ... विश्व नव-निर्माण के इस कार्य में मुझ आत्मा को भी अपनी अँगुली देना है... विशेष योगदान देना है... मैं महान आत्मा हूँ... श्रेष्ठ महारथी हूँ... जिसको स्वयं परमात्मा ने कोटो में से चुनकर इस कार्य के निमित्त बनाया...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा को बाबा के इस नव-निर्माण के कार्य में राइट हेंड बनना होगा... मुझ आत्मा को *सदा विश्व सेवाधारी की स्टेज* पर स्थित रहना होगा... एवररेडी बनना होगा... मुझ आत्मा को ज्ञान, योग, धारणा, सेवा चारों सब्जेक्ट्स में पास विथ आनर होना होगा...
➳ _ ➳ मैं आत्मा *सदा ज्ञान रत्नों का मनन* करती हूँ... मैं आत्मा सागर मंथन कर धारणा स्वरूप बनती जा रही हूँ... मैं आत्मा देह के सर्व आकर्षर्णों से परे... सर्व सम्बन्धों, पदार्थों, पुराने संस्कारों, प्रकृति की भी हलचल से परे बाबा से शांति, शक्ति की किरणों से अपने को भरपूर करती हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा फरिश्ता स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ... पूरे विश्व में शांति की किरणें फैला रही हूँ... अब मैं आत्मा चारों ही सब्जेक्ट्स में पास होकर चार भुजाधारी शक्ति स्वरूपा बन गई हूँ... विश्व की सर्व आत्माओं में बल,शक्ति भर रही हूँ... अब मैं आत्मा अपने कार्य की श्रेष्ठता के मूल्य को जान गई हूँ... मैं आत्मा कोई साधारण नहीं हूँ... प्यारे बाबा की अमूल्य रत्न हूँ... मैं आत्मा विश्व परिवर्तन के श्रेष्ठ कार्य में अपनी अँगुली देने वाली *महान सो निर्माण आत्मा* हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल - *नेचर इजी (सरल) तो सब कार्य इजी*
➳ _ ➳ मैं आत्मा शांत स्वरुप हूँ... शांति के सागर शिव पिता की संतान सदा इसी स्मृति में रहने वाली आत्मा हूँ कि मैं *सत् चित आनन्द स्वरुप आत्मा* हूँ... मैं आत्मा अपनी कर्मेन्द्रियों की मालिक हूं... हर कर्मेन्द्रिय को शांत और शीतल रहने का आदेश देती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा *हर कर्म करते अपने स्वरुप* में रह अपने परमपिता की छत्रछाया में करती हूँ... सर्व के प्रति आत्मिक दृष्टि रखती हूँ... सर्व आत्माऐं मेरे परमपिता की संतान हैं... मेरे मीठे बाबा के मीठे बच्चे हैं... सब भाई भाई हैं...
➳ _ ➳ सभी मुझ आत्मा के सहयोगी है... मैं आत्मा भी सर्व की सहयोगी हूँ... सर्व के प्रति शुभ भावना शुभ कामना रखती हूँ... मैं आत्मा *हर कदम पर परमात्म प्यार* का अनुभव करती हूँ... मैं आत्मा सच्चे दिल से अपनी हर बात सच्चाई और सफाई से अपने बाबा को बताती हूँ...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा के मन की *सरलता और सच्चाई से सच्चा साहिब परमात्मा* राजी होता है... मैं आत्मा अपने प्यारे बाबा की सच्ची लाडली बच्ची बन दिल पर राज करती हूं तो मुझ आत्मा के लिए बाबा सहयोगी बन हर कार्य सहज कर देते हैं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सरलचित्त हूँ... मुझ आत्मा की *सरलता ही परमात्मा को भी अपनी ओर खींच* अपने स्नेह की डोर में बांध लेती है... जब स्वयं भगवान ही अपना हो गया तो तो कुछ भी असम्भव नही... सब कार्य इजी हो जाते हैं... कोई परिस्थिति ठहर ही नही सकती...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सरलता से ही ज्ञान को धारण कर *सच्चा आत्मिक सुख* अनुभव कर रही हूँ... जैसे मुझ आत्मा के लिए रुहानी यात्रा कर अपने पिता से मिलना इजी है... ऐसे अपने पिता से प्राप्त शक्तियों से हर कार्य इजी हो जाता है... मैं आत्मा प्यारे मीठे बाबा का साथ होने से *इजी नेचर से सदा सब इजी* करते हुए बिजी रह व्यर्थ से मुक्त रहती हूँ... सफलतामूर्त बनती हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *विश्व परिवर्तन के कार्य में अपनी अंगुली देने वाले महान सो निर्माण होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ विश्व परिवर्तन के श्रेष्ठ कार्य में अपनी अंगुली देने वाले महान सो निर्माण होते हैं क्योंकि... जैसे कोई *स्थूल चीज़ बनाते हैं तो उसमें सब चीज़ें डालते हैं,* जैसे नमक या मीठा आदि। अगर यही नमक या मीठा सही अनुपात में न हो तो वह बढ़िया चीज़ भी स्वादिष्ट नहीं लगेगी।
❉ कभी साधारण मीठा या नमक कम भी हो तो *बढ़िया चीज़ भी खाने योग्य नहीं बन सकती* उसी प्रकार विश्व परिवर्तन के इस श्रेष्ठ कार्य के लिये भी हर प्रकार के एक रत्न की आवश्यकता होती है। अभी रूद्र ज्ञान यज्ञ का पावन कार्य चल रहा है। बाबा इस पुरानी दुनिया को बदल कर नई दुनिया की स्थापना कर रहे हैं।
❉ इस पुनीत कार्य में सब बाबा के बच्चे अपनी अपनी अँगुली लगा कर सहयोगी बन रहे हैं। भक्तिमार्ग में भी दृष्टान्त दिखाते हैं कि... गोवर्धन पर्वत को उठाने के लिए सभी ग्वाल बालों ने कान्हा जी के साथ अपनी अपनी *अँगुली लगाने का सहयोग दिया था।* ये दृश्टान्त अभी हमारा ही है। हम ही बाबा के वे ग्वाल बाल गोपाल हैं।
❉ जो इस विश्व परिवर्तन के श्रेष्ठ कार्य में अँगुली लगा रहे हैं। भले ही बाबा *वास्तविकता में सारा काम स्वयं* ही कर रहे हों। पर वह अपने बच्चों को अपने से भी आगे रखते हैं और उनको ही सारा श्रेय देते हैं। अभी उनको हम दिव्य रत्नों की आवश्यकता आन पड़ी है, इसलिये! उनको अभी हमारे सहयोग की अँगुली चाहिये।
❉ सब अपनी अपनी रीती से बहुत बहुत आवश्यक हैं। *हम सभी श्रेष्ठ महारथी हैं।* इसलिये! हमें अपने कार्यों की श्रेष्ठता के मूल्य को जानना अति आवश्यक है। क्योंकि... हम सभी महान आत्मायें हैं, और जितने हम महान हैं, उतने ही हम निर्माण भी हैं।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *अपनी नेचर को इज़ी ( सरल ) बनाओ तो सब कार्य इज़ी हो जायेंगे... क्यों और कैसे* ?
❉ जो अपनी नेचर को इज़ी बना लेते हैं *वे परमात्म स्नेह की शक्ति से सदैव मुस्कुराते रहते हैं* । दूसरों की बातों का व्यर्थ किचड़ा अपने मन पर रख कर मन को भारी बनाने के बजाए सहनशील बन अपने व्यवहार को वे ऐसा सरल बना लेते हैं कि उनके सरल व्यवहार को देख सभी उनसे प्रभावित होते हैं और उनके सच्चे स्नेही तथा हर कार्य में उनके सहयोगी बन जाते हैं । इसलिए हर कार्य उनके लिए इज़ी हो जाता है ।
❉ जिनका स्वभाव सरल होता है वे रीयल गोल्ड बन जैसा समय जैसी परिस्थिति होती है उसी के अनुरूप अपने आप को मोल्ड कर लेते हैं । स्वयं को मोल्ड करने की यह विशेषता उनमे परखने और निर्णय करने की शक्ति को बढ़ा देती है । और *परख कर निर्णय करना जिन्हें आ जाता है वे किसी भी क्षेत्र में कभी भी असफल नही हो सकते* । क्योकि इन दोनों शक्तियों को कर्म में यूज़ करने से उनके लिए सभी कार्य इज़ी हो जाते हैं ।
❉ सरलता का गुण जिसने अपने जीवन में धारण कर लिया वे संतुष्टमणि आत्मा बन स्वयं भी सदा संतुष्ट रहते हैं तथा अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को भी सन्तुष्टता से भरपूर कर देते हैं । *सन्तुष्टता का गुण उन्हें हर प्रकार की हलचल से बचा कर रखता है* जिससे हर परिस्थिति में उनकी स्थिति सदा एकरस और अचल अडोल रहती है । अचल, अडोल और एकरस स्थिति में स्थित रहने से हर कार्य उनके लिए इज़ी हो जाता है ।
❉ इज़ी का अर्थ ही है सरल अर्थात जिसमे थोड़ी सी भी टाइटनेस ना हो । इसलिए *बाबा कहते अलबेले नही बनना है परंतु इज़ी बनना है* यानि थोड़ा सा भी संस्कार वश भी टाइट नही रहना है । ऐसे संस्कार स्वयं में धारण करने हैं जो स्वत: ही काम करते रहें और ऐसे काम करते रहें जो पुरानी नेचर भी गुम हो जाये । और यह तभी सहज होगा जब अपने स्वभाव को सरल बना लेंगे । इससे सब कार्य इज़ी हो जायेंगे ।
❉ सरलता का गुण वाणी को मधुर और व्यवहार को शीतल बनाता है इसलिए जो सरलता के गुण को अपने जीवन में धारण कर लेते हैं वे अपने *निर्मल और मधुर व्यवहार से सहज ही सबके स्नेही और सहयोगी बन जाते हैं* । अपने साफ और सच्चे दिल से वे परमात्मा के दिल पर भी राज करने वाले परमात्म स्नेही बन जाते हैं । इसलिए जीवन के हर क्षेत्र में वे परमात्म मदद का अनुभव करते हुए हर कार्य में स्वयं को इज़ी महसूस करते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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