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❍ 13 / 06 / 16 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ √एम ऑब्जेक्ट√ को सदा सामने रख देवीगुण धारण करने पर विशेष अटेंशन रहा ?
➢➢ बुधी से √बेहद का सन्यास√ किया ?
➢➢ √मोस्ट बिलवेड बाप√ को और सुखधाम को याद किया ?
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ √मालिकपन की स्मृति√ द्वारा हाईएस्ट अथॉरिटी का अनुभव किया ?
➢➢ √विस्तार को सेकंड में समाकर√ ज्ञान के सार का अनुभव किया और कराया ?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ सर्व शक्तिवान बाप के साथ अष्ट शक्ति स्वरूप में स्थित हो √नौ दुर्गा√ बनकर रहे ?
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➳ _ ➳ http://bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Htm-Vishesh%20Purusharth/13.06.16-VisheshPurusharth.htm
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➳ _ ➳ http://www.bkdrluhar.org/00-Murli/00-Hindi/Pdf-Vishesh%20Purusharth/13.06.16-VisheshPurusharth.pdf
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∫∫ 4 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
➢➢ मैं आत्मा कंबाइंड स्वरुपधारी हूँ ।
✺ आज का योगाभ्यास / दृढ़ संकल्प :-
➳ _ ➳ अन्तर्चक्षु से स्वयं को देखो... भृकुटि के मध्य... मैं एक अविनाशी ज्योति हूँ... दिव्य शक्ति हूँ... सदा शाश्वत हूँ... मैं आत्मा इस शरीर रूपी मन्दिर में , मूर्ति हूँ... धीरे - धीरे स्वयं को महसूस करें... मैं इस शरीर से भिन्न एक चैतन्य शक्ति हूँ... आँखों द्वारा देखने वाली...
➳ _ ➳ मुख द्वारा बोलने वाली... कानों द्वारा सुनने वाली... मैं अति सूक्ष्म बिंदु अपने निजधाम में रहती हूँ... एक दम शांत... निर्संकल्प... सर्व बंधनों से मुक्त... कर्मातीत... सर्व शक्तिओं से सुसज्जित मैं आत्मा सदा अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति करने वाली अटल अखण्ड स्वराज्य अधिकारी हूँ...
➳ _ ➳ मैं मालिकपन की स्मृति द्वारा हाइएस्ट अथॉरिटी का अनुभव करने वाली आत्मा हूँ... मैं आत्मा अपने परमपित्ता परमात्मा शिव के समक्ष आज यह दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मैं सदा इस स्मृति में रहूंगी की मैं आत्मा और शरीर का कंबाइंड रूप हूँ... यह शरीर रचना है और मैं आत्मा रचता...
➳ _ ➳ यह दृढ़ संकल्प लेते ही मुझ आत्मा को स्वतः ही मालिकपन की स्मृति का अनुभव हो रहा है... मालिकपन की स्मृति से मैं आत्मा स्वयं को हाइएस्ट अथॉरिटी बनने का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मैं आत्मा ही इस शरीर को चलाने वाली हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा आज यह दूसरा दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मैं सदा बाप और बच्चे ( शिवशक्ति ) के कंबाइंड स्वरुप की भी स्मृति में रहूंगी... यह दृढ़ संकल्प लेते ही मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि मुझ आत्मा ने माया के विघ्न स्वतः ही अथॉरिटी से पार कर लिए हैं ।
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∫∫ 5 ∫∫ सार - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ "मीठे बच्चे - बाप की श्रीमत है इस पुरानी दुनिया से अपना मुख मोड़ लो जीवनमुक्ति के लिए तुम देवी मैनर्स धारण करो"
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे इस पुरानी सी दुनिया खाली खत्म सी दुनिया से अब दिल न लगाओ... इस दुनिया से मुख ही फेर लो और खूबसूरत स्वर्ग की और करो... जीवनमुक्ति खूबसूरत दुनिया में जाने के लिए देवताओ के गुण स्वयं में भरो...
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे इस दुनिया में रहकर अथाह दुःख ही पाया है... सच्चा सुख सच्चे रिश्ते तो यहाँ हो ही न सके... इस दुनिया से बुद्धि ही हटा लो... और देवताओ की अदा जीवन में समाओ तो जीवनमुक्ति से दामन सज जाएगा...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे सुखो से भरी मुस्कराती दुनिया के लिए खूबसूरत संस्कार जरूरी है... इसलिए देवी मैनर्स को रोम रोम में भर दो... पवित्रता का श्रंगार करके विश्व के मालिक बनो... इस दुनिया से मुख मोड़ लो और सुख भरी दुनिया को जेहन में भर दो...
❉ मीठा बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चे पिता की श्रीमत पर चलकर जीवन सुखो की खान बनाओ... अब झूठ की दुनिया से परे हो जाओ... सुंदर स्वर्ग जीवनमुक्ति मे जाने के लिए संस्कारो को देवताई बनाओ... देवी गुण धारण कर खूबसूरत संसार के हकदार बन जाओ...
❉ मेरा बाबा कहे - इस दुनिया में दिल लगाने को कुछ रहा ही नही... यह दुनिया दुखो का सागर है इससे दिल न लगाओ... देवी गुण स्वयं में निखारने में जुट जाओ इसी पर सारे सुखो का खुशियो का मदार है... सतयुगी संसार इन्ही गुणो की बदौलत ही है...
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∫∫ 6 ∫∫ मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢ एम ऑबजेक्ट को सदा सामने रख दैवीगुण धारण करने हैं। सतोप्रधान दुनिया में चलने के लिए पवित्रता के मैनर्स अपनाने हैं ।
❉ अभी तक तो घोर अज्ञानता व अंधियारे में थे व जीवन जीने का लक्ष्य ही नही जानते थे । देहभान की मिट्टी में खेलते पतित हो गए व स्वयं परमपिता परमात्मा ने अपना बनाया व दिव्य बुद्धि रुपी ज्ञान का तीसरा नेत्र दिया । हमें अपने को आत्मा समझ आत्मा के पिता को परमात्मा को याद करना है ।
❉ हमें स्वयं भगवान पढ़ाकर पतित से पावन बनाने के लिए आते है व देवी देवता बनाते हैं तो हमें अपने लक्ष्य को याद रखना है । याद से ही विकारों की कट उतारनी है व आत्मा को शुद्ध व मीठा बनाना है । जितना याद में ज्यादा रहेंगे उतनी पावन बनती जायेगी और दैवीय गुणों की धारणा होगी ।
❉ अपना लक्ष्य हमेशा साथ व याद रखना है । लक्ष्मी -नारायण का चित्र पॉकेट में रखना है जिससे लक्ष्य की याद रहेगी व याद रखने से ही लक्षण स्वतः ही धारणा में आने लगते हैं । नयी सतोप्रधान दुनिया में जाना है तो अभी से दिव्य गुणों की धारणा करेंगे तो भविष्य में वैसा पद पायेंगे ।
❉ बाबा कहते है कि मैं अपने बच्चों को घर वापिस ले जाने के लिए व पतित से पावन बनाने के लिए आया हूं व इस अंतिम जन्म में पवित्र जरुर बनना है तो हमें ऊंच ते ऊंच बाप की श्रीमत पर चलना है व इस अंतिम जन्म पवित्र बनकर 21 जन्मों के लिए बादशाही प्राप्त करनी है ।
❉ सतोप्रधान दुनिया में जाने के लिए मनसा-वाचा-कर्मणा और संकल्प में भी पवित्र जरुर बनना है क्योंकि पवित्र बने बगैर नयी सतोप्रधान दुनिया में नही जा सकते ।
❉ जैसे देवतायें एवर प्योर है, हर्षितमुख, वरदानी मूर्त व 16 कला सम्पूर्ण है तो हमें भी हमेशा वरदाता, हर्षितमुख व दिव्य गुणों की धारणा करनी है । एक पवित्रता का गुण धारण करना है इससे सभी गुण स्वतः ही आ जाते है। नयी सतोप्रधान दुनिया में जाने के लिए पुरुषार्थ कर स्वयं को पावन बनाना है ।
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∫∫ 7 ∫∫ वरदान - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ मालिकपन की स्मृति द्वारा हाइएस्ट अथॉरिटी का अनुभव करने वाले कम्बाइन्ड स्वरुपधारी होते हैं.... क्यों और कैसे ?
❉ जो बच्चे अपने शरीर और आत्मा के कम्बाइंड स्वरुप को स्मृति में रखते हैं । शरीर रचना है, आत्मा रचता है तो इससे मालिकपन की स्मृति रहती है व मुझ आत्मा के पिता परमात्मा है जो हाइएस्ट अथॉरिटी है व पूरी सृष्टि के मालिक है । मालिकपन की स्मृति से स्वयं को भी हाइएस्ट अथॉरिटी अनुभव करते है व बाप और बच्चा शिवशक्ति के कम्बाइंड स्वरुपधारी होते हैं ।
❉ जो बाप समान सम्पन्न बनने का दृढ संकल्प रखते हर संकल्प में भी बाप हर कर्म में भी बाप और सदा मालिकपन के नशे में रहते तो वे हाइएस्ट अथॉरिटी का अनुभव करने वाले कम्बाइंड स्वरूपधारी होते है ।
❉ जो सदा अपने को श्रेष्ठ भाग्यवान समझ स्वयं भगवान को ही अपना बना लेते सर्व खजानों को भी अपना बना मालिकपन की स्मृति रख हाइएस्ट अथॉरिटी का अनुभव करने वाले कम्बाइड स्वरूपधारी होते है
❉ जैसे राजा के बेटे को अपने बाप के पद का नशा होता है वो अपने बाप के पद की रायल्टी में रहता है ऐसे ही जिन बच्चों को ये स्मृति रहती व नशा रहता कि हम हाइएस्ट अथॉरिटी बाप के बच्चे है व विशेष आत्माऐं है । सदा एक नशा रहता- "मैं बाप का , बाप मेरा" तो ऐसे मालिकपन की स्मृति द्वारा हाइएस्ट अथॉरिटी का अनुभव करने वाले कम्बाइंड स्वरुपधारी होते हैं ।
❉ जिन बच्चों को ये स्मृति रहती कि सब कुछ बाप का है व मेरा कुछ भी नही। ये शरीर भी बाप ने सेवार्थ दिया है । मेरापन को समाप्त कर देही अभिमानी बन जाते हैं और निरंतर एक बाप के प्यार में लीन रहते । जो बाप के गुण, शक्तियां वही मेरे व बाप के वर्से का अधिकारी हूं । ऐसे मालिकपन की स्मृति द्वारा हाइएस्ट अथॉरिटी का अनुभव करने वाले कम्बाइंड स्वरुपधारी होते हैं ।
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∫∫ 8 ∫∫ स्लोगन - ज्ञान मंथन (Marks:-10)
➢➢ विस्तार को सेकण्ड में समाकर ज्ञान के सार का अनुभव करो और कराओ... क्यों और कैसे ?
❉ विस्तार को सेकण्ड में समाकर ज्ञान के सार का अनुभव वही कर सकते हैं तथा दूसरों को करवा सकते हैं जिनकी बुद्धि की लाइन क्लीयर होगी । मन बुद्धि की पावरफुल ब्रेक जो सदा अपने हाथ में रखते हैं वही सेकंड में मन बुद्धि को जहां चाहे उसी दिशा में मोड़ सकते हैं । और इसके लिए जरूरी है संकल्प शक्ति का पावरफुल होना तथा संकल्पों की शक्ति पर ब्रेक लगाने की पावर होना । तभी बुद्धि सही जजमेंट करेगी जिससे विस्तार को सेकण्ड में समाकर ज्ञान के सार का अनुभव करना और कराना सहज हो जाएगा ।
❉ व्यक्त में रहते हुए भी अव्यक्त स्थिति में स्थित होने का अभ्यास जितना ज्यादा होगा उतना विस्तार को सेकण्ड में समाकर ज्ञान के सार का अनुभव करना और कराना सहज होगा । किन्तु व्यक्त में रहते अव्यक्त स्थिति का अनुभव वही कर सकते हैं जो हर कर्म आत्म - अभिमानी स्थिति में स्थित हो कर करते हैं । जो सदैव इस स्मृति में रहते हैं कि मैं आत्मा परम धाम से इस सृष्टि पर कर्म करने के लिए अवतरित हुई है । इसलिए केवल कर्म करने के लिए ही वे व्यक्त भाव में आते हैं और कर्म कर फिर अव्यक्त स्थिति में स्थित हो जाते हैं ।
❉ जो एकांतवासी बन अंतर्मुखता की गुफा में बैठ केवल एक के अंत में खोये रहते हैं और ज्ञान की गहराई में जा कर ज्ञान की हर प्वाइंट पर अच्छी तरह मनन कर उसे पूरी तरह से धारणा में लाते हैं । वे अनुभवीमूर्त बन जाते हैं । अपने अनुभव का लाभ उठाते हुए वे व्यर्थ को समर्थ बना कर हर बात को स्वयं में समा लेते हैं । साइलेन्स के बल से मन बुद्धि को एकाग्रचित बना कर वे विस्तार को सेकण्ड में समेटकर ज्ञान के सार का अनुभव स्वयं भी करते रहते हैं तथा औरों को भी कराते रहते हैं ।
❉ विस्तार को सेकण्ड में समाकर ज्ञान के सार का अनुभव वही कर सकते हैं तथा औरों को करवा सकते हैं जो साक्षीदृष्टा बन ड्रामा की हर सीन को साक्षी हो कर देखते हैं । साक्षीदृष्टा की सीट पर सेट रहने से वे क्या, क्यों और कैसे की क्यू में उलझने से बच जाते हैं और हर बात, परिस्थिति अथवा घटना को ड्रामा की भावी समझ, सेकंड में फुल स्टॉप लगा कर हर बात से उपराम हो जाते हैं तथा अपनी उपराम वृति द्वारा वे हद की सभी बातों से सहज ही किनारा कर लेते हैं ।
❉ देह के भान को छोड़ देही अभिमानी बन देह से न्यारे होने का अभ्यास जितना ज्यादा होगा उतना हद के सभी आकर्षणों से, देह की पुरानी दुनिया, व्यक्तभाव, वैभवों के भाव आदि सभी आकर्षणों से मनबुद्धि को निकाल एक बाप की याद में स्थिर करना सहज होगा और जितना बुद्धि योग निरंतर एक बाप के साथ जुड़ा होगा तथा देह के बंधनों से मुक्त अवस्था होगी उतना कर्मयोगी बन कर्म करते हुए कर्म के बंधन से मुक्त रहेंगे । जिससे विस्तार को सेकण्ड में समाकर ज्ञान के सार का अनुभव स्वयं भी कर सकेंगे तथा औरों को भी करवा सकेंगे ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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